Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

संस्कृत भाषा में दो या अधिक सार्थक शब्दों को एक साथ मिलाकर प्रयुक्त करने की व्यवस्था है। इसे “समास” कहते हैं। इसका अर्थ हैसमसनं समासः । अर्थात् पदों को एक साथ (सम्) रखना (असनम्) । एक साथ रखने पर उसके बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं। दोनों पदों के बीच कैसा सम्बन्ध है इसके आधार पर समास के भेद होते हैं । इस सम्बन्ध को समास के विग्रह द्वारा प्रकट करते हैं। जैसे

  1. समास का पद – पदों में सम्बन्ध (विग्रह)
  2. राजपुरुषः – राज्ञः पुरुषः।
  3. यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य । (शक्ति की सीमा के अन्तर्गत)
  4. पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः ।
  5. पाणिपादम् – पाणी च पादौ च तेषां समाहारः।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

समास मूलतः चार प्रकार के हैं-

अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि तथा द्वन्द्व । तत्पुरुष के अन्तर्गत कर्मधारय और द्विगु मुख्य रूप से होते हैं इसलिए कहीं-कहीं छह समासों की चर्चा दिखाई पड़ती है।

अव्ययीभाव समास – अव्यय के रूप में रहता है। इसमें प्रायः पूर्व पद के अर्थ की प्रधानता रहती है। जैसे

  1. शक्तिमनतिक्रम्य = यथाशक्ति ।
  2. दिनं दिनं प्रति = प्रतिदिनम् ।
  3. गृहस्य समीपम् = उपगृहम् ।

तत्पुरुष समास – में उत्तर पदार्थ की प्रधानता होती है । इसमें कहीं-कहीं दोनों पदों की विभक्तियाँ भिन्न होती हैं तो व्यधिकरण तत्पुरुष कहलाता है। जैसे

  1. ग्रामं गतः = ग्रामगतः । (द्वितीया तत्पुरुष)
  2. ज्ञानेन हीनः = ज्ञानहीनः । (तृतीया तत्पुरुष)
  3. व्याघ्रात् भयम् = व्याघ्रभयम् । (पञ्चमी तत्पुरुष)
  4. गंगायाः जलम् = गङ्गाजलम् । (षष्ठी तत्पुरुष)
  5. काव्ये प्रवीणः = काव्यप्रवीणः । (सप्तमी तत्पुरुष)
  6. पूर्वपद की विभक्ति के अनुसार इसके भेद किये गये हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

तत्पुरुष समास में कभी-कभी दोनों पदों की विभक्तियाँ समान होती हैं,

तब उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

  1. जैसे- नीलं कमलम् = नीलकमलम्
  2. वीरः पुरुषः = वीरपुरुषः
  3. घन इव श्यामः = घनश्यामः
  4. कुत्सितः पुरुषः = कुपुरुषः

ऐसे ही समास में पूर्वपद संख्या वाचक हो, तो उसे द्विगु कहते हैं। जैसे

  1. त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
  2. सप्तानां शतानां समाहारः = सप्तशती
  3. नवानां रात्रीणां समाहारः = नवरात्रम्

‘न’ का समास किसी पद के साथ होने से उसे “न” समास कहते हैं। न का व्यञ्जन के पूर्व ‘अ’ तथा स्वर के पूर्व ‘अन्’ हो जाता है। जैसे

  1. न मोघः = अमोघः
  2. न सिद्धः = असिद्धः
  3. न अर्थः = अनर्थः
  4. न आगतः = अनागतः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

बहुव्रीहि समास में दोनों पदों के अर्थों से भिन्न अन्य पदार्थ की प्रधानता
होती है । जैसे

  1. दश आननानि यस्य सः = दशाननः (अर्थात् रावण)
  2. पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (अर्थात् विष्णु)
  3. वीणा पाणौ यस्याः सा = वीणापाणिः (अर्थात् सरस्वती)

द्वन्द्वसमास – ‘च’ के अर्थ में होता है, इसलिए इसमें दोनों पदों के अर्थों की प्रधानता होती है। जैसे

  1. रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
  2. सुखं च दु:खं च = सुखदुःखें
  3. पिता च पुत्रश्च = पितापुत्री
  4. सीता च गीता च = सीतागीत

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

यह स्मरणीय है कि सन्धि के समान समास भी संस्कृत भाषा की . विशिष्टता है जिससे भाषा में संक्षेपण, अभिनव अर्थ का प्रकाशन एवं बहुव्रीहि समास के प्रयोग से व्यञ्जना वाले अर्थ भी लाये जाते हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

(क) सर्वनाम-व्याकरण में सामान्यतः सर्वनाम की परिभाषा यह दी गयी है कि संज्ञा शब्द के स्थान पर आने वाला शब्द सर्वनाम होता है । जैसे वह, यह, कौन, तुम, हम इत्यादि । यह परम्परा अंग्रेजी व्याकरण से चली है जहाँ सर्वनाम को अर्थात् संज्ञा का स्थानापन्न कहते हैं। संज्ञा का बार-बार प्रयोग बचाने के लिए सर्वनाम प्रयुक्त होते हैं। संस्कृत में भी प्राय: इसी अर्थ में सर्वनाम शब्द आते हैं । पाणिनि ने सर्व आदि कुल पैतीस (35) शब्दों को सर्वनाम कहा है (सर्वादीनि सर्वनामानि) इनके शब्द रूप अन्य प्रातिपदिक शब्दों से कुछ भिन्न होते हैं। सर्वनामों में भी सभी लिङ्ग रहते हैं। केवल युष्मद् और अस्मद् का रूप सभी लिङ्गों के लिए एक समान होता है अर्थात् इनमें लिङ्गगत वैशिष्ट्य नहीं रहता । अन्य सभी सर्वनमों के पृथक्-पृथक् लिङ्गों में भिन्न रूप होते हैं । जैसे-सर्व का पुंल्लिङ्ग रूप सर्वः सर्वां-सर्वे इत्यादि है तो स्त्रीलिङ्ग में सर्वा-सर्वे-सर्वाः है, नपुंसकलिङ्ग में सर्वम्-सर्वे सर्वाणि इत्यादि है।

सर्वनामों में तद्, यद्, इदम्, अदस्, युष्मद्, अस्मद्, भवत् और किम् के प्रयोग बहुत प्रचलित हैं इसलिए सामान्यतः इनके रूपों पर पर्याप्त बल दिया जाता है। यह ध्यातव्य है कि युष्मद् और अस्मद् के रूप कुछ जटिल हैं । इनके प्रातिपदिक रूप केवल बहुवचनों में ही दिखाई पड़ते हैं। एकवचन, द्विवचन में न अस्मद् का पता रहता है, न युष्मद् का । इन पर ध्यान देना चाहिए । यह भी ध्यातव्य है कि दिशावाचक पूर्व, दक्षिण और उत्तर शब्द तो सर्वनाम हैं, पश्चिम नहीं । इसी प्रकार संख्यावाचक एक और द्वि सर्वनाम है अन्य संख्याएँ सर्वनाम नहीं हैं।

जिस संज्ञा के स्थान में सर्वनाम आता है उसके उस संज्ञा के लिङ्ग और वचन का ग्रहण करता है। जैसे इयं गङ्गा नदी, तस्यां वर्षपर्यन्तं जलं वर्तते । यहाँ नदी स्त्रीलिङ्ग है इसलिए उसका सर्वनाम ‘तस्याम्’ भी स्त्रीलिङ्ग एकवचन है। उसका सार्वनामिक विशेषण “इयम्” भी वैसा ही है। निम्नलिखित वाक्यांशों में रेखांकित पद सर्वनाम हैं-उत्तरस्य तडागस्य, अन्यस्यां (अपरस्यां) नद्याम्, अपराणि फलानि, एक पुस्तकम्, उभौ बालको, सर्वेभ्यः जनेभ्यः, दक्षिणस्यै दिशाये, एकस्याः नार्याः, सर्वाभिः बालिकाभिः, कस्याः नगर्याः आगच्छसि ? उत्तरस्मिन् भागे हिमालयः, पूर्वस्यां दिशायाम्-ये सार्वनामिक विशेषण हैं किन्तु संस्कृत में सर्वनाम ही हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

(ख) विशेषण-किसी अन्य पद की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं । “विशेषण” सापेक्ष शब्द है इसलिए इसका विशेष्य के साथ सम्बन्ध होता है । विशेष्य की ही विशेषता विशेषण प्रकट करता है। वह विशेष्य सुबन्त या तिङन्त कोई भी हो सकता है, इसलिए विशेषण के दो भेद होते हैं

  1. सामान्यविशेषण जो सुबन्त की विशेषता बताता है।
  2. क्रियाविशेषण जो तिङन्त अथवा उसके स्थानापन्न क्रिया रूप में प्रयुक्त कृदन्त की विशेषता बताता है । सामान्यतः इन दोनों को पृथक् माना जाता है क्योंकि इनके प्रयोग की विशेषताएँ पृथक्-पृथक् होती हैं।

यहाँ (सामान्य) विशेषण की विवेचना की जाती है। यह विशेषण – विशेष्य का अन्धानुकरण करता है । व्याकरण के वचन, लिङ्ग तथा विभक्ति की दृष्टि से जो स्थिति विशेष्य की होती है वही विशेषण की भी रहती है। इन उदाहरणों में इसे देख सकते हैं-सुन्दरं पुष्पम्, लघूनि चित्राणि, निपुणस्य छात्रस्य, गभीरायां नद्याम्, अस्मिन् गृहे, मूर्खायाः दास्याः, दुर्बलयोः बालकयोः, धवले वस्त्रे, उत्कृष्टानि फलानि, जीर्णात् गृहात्, निर्धनेभ्यः छात्रेभ्यः इत्यादि ।

विशेषण का स्वरूप जैसा होगा (अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि) उस शब्द के ढाँचे पर ही इसका रूप चलेगा। जैसे अकारान्त विशेषण का पुँल्लिग में ‘बालक’ के समान, नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान और स्त्रीलिंग आकारान्त हो जाने पर ‘लता’ के समान रूप होगा। नीचे के उदाहरण देखें-

शीतल (ठंडा)-

  • पुंल्लिग – शीतलः, शीतलौ, शीतला:
  • स्त्रीलिंग – शीतला, शीतले, शीतला:
  • नपुंसकलिंग – शीतलम्, शीतले, शीतलानि

अन्य स्वरा में अन्त होने वाले विशेषणों के रूप उनके संज्ञा-रूपों के समान होते हैं।

जैसे-

  • लघु (छोटा) का रूप
  • पुं. – लघुः लघू, लघवः
  • नपुं – लघु लधुनी, लघूनि (मधु के समान)

नीचे कुछ उपयोगी विशेषण दिये जाते हैं

रंगसम्बन्धी – सफेद = श्वेतः । काला = कृष्णः, श्यामः । लाल = रक्तः अरुणः । पीला = पीतः । नीला = नीलः ।

आकारसम्बन्धी-छोटा = ह्रस्वः, लघुः । बड़ा = विशालः, महान् । मोटा = स्थूलः, पीनः । लम्बा = दीर्घः लम्बः । पतला = कृशः, क्षीणः । लंगड़ा = खञ्जः।

स्वभावसम्बन्धी-अच्छा = सुशीलः, सज्जनः, शोभन:, उत्तमः, सुन्दरः (अर्थ के अनुसार प्रयोग होता है)। सबसे अच्छा = श्रेष्ठः । सुस्त = मन्दः । चालाक = चतुरः, निपुणः, कुशलः । चंचल = चपलः, चञ्चलः । तेज = तीव्रः । बुरा = दुष्टः । पढ़ा-लिखा = शिक्षितः ।

गुणसम्बन्धी-कड़ा = कठोरः । मजबूत = दृढः, सबलः । कमजोर = दुर्बलः। सूखा = शुष्कः । गीला = आर्द्रः । ठंडा = शीतः, शीतलः । गर्म = उष्णः । महीन = सूक्ष्मः । मुलायम = कोमलः, मृदुलः । रूखा = रूक्षः । तीखा = तीक्ष्णः । कड़वा = कटुः । तीता = तिक्तः । गरीब = निर्धनः, दरिद्रः । धनी = धनिकः, धनी । मीठा = मधुरः, मिष्टः । खट्टा = अम्लः । कसेला = कषायः।

मूलत: सर्वनाम रहने वाले शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इनमें भी विशेष्य के अनुसार लिङ्ग, वचन तथा विभक्ति का प्रयोग होता है । इनका संस्कृत भाषा के दैनिक व्यवहार में बहुत महत्त्व है । इदम् (तीनों लिङ्ग), अदस् (तीनों लिङ्ग), यद् (तीनों लिङ्ग), तद् (तीनों लिङ्ग), एतद् (तीनों लिङ.) एवं किम् (‘तीनों लिङ्ग)-इनका प्रयोग बहुत अधिक देखा जाता है, इसलिए इनके रूपों को संस्कृत वाग्धारा की दृष्टि से स्मरण रखना आवश्यक है। कुछ उदाहरण देखें – के के बालकाः सन्ति ? (कौन-कौन लड़के हैं ?)

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

एतस्य गृहस्य (इस घर का)।
असौ बालकः (वह लड़का)।

अस्याः बालिकायाः (इस लड़की का)।
कस्यां पाठशालायाम् (किस पाठशाला में)।
तेषां छात्राणाम् (उन छात्रों का)।
तानि पुष्पाणि (वे फूल)।
तस्मात् नगरात् (उस शहर से)

इसी प्रकार सैकड़ों उदाहरण बनाने का प्रयास करें। इस प्रसंग में अनिश्चय वाचक सार्वनामिक विशेषणों का भी प्रयोग सीखना चाहिए। प्रश्नवाचक सर्वनाम (तथा अव्यय) से ‘चित्’ या ‘चन’ लगाने पर अनिश्चय वाचक शब्द (सार्वनामिक विशेषण या अव्यय) बन जाते हैं। विशेषण में चित्, चन के पूर्व ऊपर के अनुसार विभक्ति लगती है। उदाहरण देखें

  • कोई लड़का (क: + चित् = कश्चित् बालकः)
  • किसी लड़की का (काम् + चित् = काञ्चित् बालिकाम्)
  • (यहाँ सन्धि के नियम लगते हैं)।
  • किसी जगह से (कस्मात् + चित् = कस्माच्चित् स्थानात्)
  • कुछ फूलों को (कानि + चित् = कानिचित् पुष्पाणि)
  • किसी शहर में (कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित् नगरे)
  • चित् के स्थान पर ‘चन’ (हलन्त नहीं) तथा ‘अपि’ का प्रयोग भी देखा जाता है किन्तु सन्धि के नियमों का पालन आवश्यक है। उदाहरण

किसी नदी में = कस्याञ्चित, कस्याञ्चन, कस्यामपि नद्याम् । कुछ मनुष्यों का = केषाञ्चित्, केषाञ्चन, केषामपि मनुष्याणाम् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

(ग) क्रिया विशेषण-ऊपर कहा गया है कि विशेषण का ही एक भेद क्रिया विशेषण है जो तिङन्त या क्रिया रूप में प्रयुक्त कृदन्त की विशेषता बतलाता है। क्रिया की विशेषता का अर्थ है उसके प्रकार, स्थान, काल इत्यादि का बोध कराना । इसलिए क्रिया विशेषण इन लक्ष्यों की पूर्ति करते हैं। क्रिया विशेषण अव्यय के रूप में हो जाते हैं इसलिए इनमें लिंग, वचन विभक्ति का प्रश्न नहीं उठता, सदा एकरूप रहते हैं। कुछ लोगों ने भ्रमवश “क्रियाविशेषणे द्वितीया” के रूप में नियम बनाया है। वस्तुतः यह व्यर्थ है। अव्यय के स्वरूप के अनुसार किसी शब्द में “अम्” लगा हो तो वह द्वितीयान्त नहीं होता ।

क्रिया विशेषण अव्यय होते हैं इसलिए अव्ययों के तीनों भेद (मूल अव्यय, प्रत्ययान्त अव्यय तथा अव्ययीभाव समास) यहाँ गृहीत होते हैं।

उदाहरण देखें

मूल अव्यय – वृक्षात् फलं पृथक भवति ।
प्रात: गमिष्यति ।
त्वं पुनः समागतः असि।
पण्डित: उच्चैः वदति ।

प्रत्ययान्त अव्यय – अहम् अन्यत्र पठिष्यामि (स्थानवाचक)।
इदम् उभयथा सिध्यति (प्रकारवाचक)।
यदा सः आगतः तदा वृष्टिः जाता (कालवाचक)।
शिक्षकः कथञ्चित् चलति (प्रकारवाचक)।
अव्ययीभाव समास-अहं यथाशक्ति करिष्यामि ।
प्रधानाध्यापकः उपविद्यालयं समागतः ।
छात्राः प्रतिदिनं परिश्रमं कुर्वन्ति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् सन्धिविचारः

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

सन्धि विचार (Euphomic Combination)-संस्कृतभाषा की विशेषताओं में एक उल्लेखनीय बात है कि यहाँ सन्धिबद्ध पदों का अत्यधिक प्रयोग होता है । इसके कारण संस्कृत की कठिनता से लोग भड़क उठते हैं। गीता, नीतिश्लोक जैसे सुरुचिपूर्ण साहित्य में भी सन्धियों को देखकर उच्चारण करने की कठिनाई का सामान्य लोग प्रतिदिन साक्षात्कार करते हैं। किन्तु

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

सन्धियाँ जहाँ संस्कृत की विशिष्टता हैं वहीं इनका सही ज्ञान हो जाने पर भाषा के सौन्दर्य का एवं इनसे होने वाले अनुप्रासों की सुषमा का रसास्वादन किया जा सकता है। सन्धियों की उपयोगिता संस्कृत भाषा में निम्नांकित रूप से देखी जा सकती है

1. सन्धियाँ संस्कृत के वर्गों पर आश्रित हैं, वर्णों का उच्चारण स्थान जानना संस्कृत सन्धियों के लिए अनिवार्य है। इससे संधियों से वर्णविचार का परिचय स्वतः हो जाता है और विश्व की भाषाओं में संस्कृत ध्वनि विज्ञान (Sanskrit Phonetics) की महत्ता समझ में आती है। यदि + अपि = यद्यपि, इसमें इ का य क्यों हुआ इसे जानने के लिए समझना होगा कि इ और य दोनों का उच्चारण स्थान तालु है । इस प्रकार सन्धियाँ मनमाने ढंग से नहीं होती अपितु वणों के परिवर्तन में वैज्ञानिकता है। वाक् + ईशः = वागीशः, यहाँ क का ग हो जाना न केवल उच्चारण स्थान की समता से है अपितु अघोष वर्ण का घोष वर्ण में परिवर्तन उच्चारण के स्वाभाविक विकास का द्योतक है। इस प्रकार सन्धियों में जो तथाकथित वर्ण-परिवर्तन होते हैं वे संस्कृत ध्वनि-विज्ञान की मौलिक शिष्टता अंकित करते हैं।

2. सन्धियों के कारण संस्कृत में संक्षिप्त और संश्लेषण की स्थिति आती है। इससे कभी-कभी उच्चारण का सौन्दर्य भी झलकता है। जैसे-रविः + अपि = रविरपि । दोनों के.उच्चारण में स्वभावतः सौन्दर्य का अन्तर प्रतीत होगा । इसी प्रकार स्मृता + अपि = स्मृतापि में अन्तर देखें । चार वर्ण तीन वर्गों में बदल गये। संस्कृत पद्य रचना में इसका बहुत महत्त्व होता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

3. संस्कृत भाषा संयोगात्मक (Synthetical) है अर्थात् शब्दों के साथ विभक्तियाँ जुड़ी रहती हैं। इसलिए पदों को कहीं भी रख दें, अन्वय करने में असुविधा नहीं होती । सन्धियों के कारण ऐसे विभिन्न स्थलों में रखे हुए पदों से अद्भुत नाद सौन्दर्य उत्पन्न होता है । दण्डी के ‘दशकुमारचरित’ में आये हुए एक वाक्य को लें-असत्येनास्य नास्यं संसज्यते । सन्धियों के कारण ‘नास्य नास्यं’ में नाद सौन्दर्य उत्पन्न है । वस्तुतः सन्धि तोड़ देने पर यह वाक्य होगा-असत्येन अस्य न आस्यं संसृज्यते । अर्थात् असत्य से इसके मुख का कोई संसर्ग नहीं होता, यह झूठ नहीं बोलता । इतनी साधारण बात को कवि ने पदचयन, पदस्थापन तथा सन्धि-इन तीनों का प्रयोग करके अद्भुत चमत्कार किया है। सन्धियाँ सामान्य विकृत शब्दों में भी सुन्दरता ला देती हैं, उनका संक्षेपण होने से पद्यों में संस्कृत कवियों ने सन्धियों का अधिकतम प्रयोग किया है।

4. पद्य-रचना में सन्धि का महत्त्व कितना है यह कोई अनुभवी ही जान सकता है । सन्धियों के कारण छन्दों के चरण में वर्णलाभ होता है । जैसे एक पद्य का चरण है – विषादप्यमृतं ग्राह्य…….. । इसे सन्धि तोड़कर अन्वित करें तो वाक्य बनेगा-विषात् अपि अमृतम् ग्राह्यं । इसमें छन्द का चरण आठ (8) अक्षर ही चाहिए । अपि और अमृतम् मिलकर पाँच के स्थान पर चार स्वर ही हो जाते हैं और छन्द को सही बना देते हैं। इसी प्रकार त् का दकार हो जाना, म् का अनुस्वार हो जाना भी अनुकूलता उत्पन्न करता है। मकार का स्वर वर्ण से सम्मेलन तथा अनुस्वार में परिवर्तन भी संस्कृत सन्धि की महत्ता का द्योतक

जैसे-अहम् + एव = अहमेव, कथम् + इव = कथमिव, वित्तम् + बन्धुः = वित्तंबन्धुः इत्यादि उदाहरण लिये जा सकते हैं। सन्धियों के कारण

कभी-कभी पूरा चरण इसी प्रकार एकशब्दात्मक प्रतीत होता है, जिससे संस्कृत की संश्लिष्टता पर प्रकाश पड़ता है। जैसे रघुवंश महाकाव्य में रघुवंशी राजाओं की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कालिदास ने लिखा है

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सन्धिविचारः

सोऽहमाजन्मशुद्धनामाफलोदयकर्मणाम्।
आसमुद्रक्षितीशानामानाकरथवर्त्मनाम् ॥
अर्थात् उन रघुवंशी राजाओं का वर्णन करूँगा जो जन्म से होने वाले संस्कारों के कारण पवित्र थे, फल जब तक न मिल जाए तब-तक काम करते रहते थे। समुद्रपर्यन्त पृथ्वी पर जिनका अधिकार था और स्वर्ग तक (आ नाक) जिनके रथ का मार्ग बना हुआ था।

इस प्रकार सन्धि के विविध उपयोगों को देखा जा सकता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् वर्णविचारः

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण है। जैसे क, ख, अ, इ इत्यादि । इन वर्गों के संयोग से शब्द बनते हैं। वर्ण समह को ‘वर्णमाला’ में रखते हैं। वर्गों के दो भेद संस्कृत में माने गये हैं-स्वर वर्ण तथा व्यञ्जन वर्ण । अपने उच्चारण में किसी की अपेक्षा न रखने वाले को स्वर कहते हैं (स्वयं राजन्ते इति स्वराः) । जिनके उच्चारण में स्वर सहायक होता है वे व्यञ्जन कहलाते हैं (अन्वग् भवति व्यञ्जनम्) । अ, आ, इ, ई आदि स्वर हैं जबकि क, ख आदि व्यञ्जन हैं। प्राचीन काल में केवल व्यञ्जनों को ‘वर्ण’ कहते थे और स्वरों को ‘अक्षर’ कहा जाता था। किन्तु अब दोनों को वर्ण में समेटा जाता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

स्वर वर्ण को मूलस्वर तथा सन्ध्यक्षर-दो भागों में विभक्त किया गया है। अ, इ, उ, ऋ (ल भी) ये मूल स्वर हैं जबकि ए, ऐ, ओ, औ ये चारों सन्ध्यक्षर कहलाते हैं । वस्तुतः इनका निर्माण दो मूल स्वरों से होता है (अ + इ = ए, अ + उ = ओ, आ + इ = ऐ, आ + उ = औ) । यही कारण है कि अयादि संधि में इन सन्ध्यक्षरों से अय्, अव्, आय, आव् हो जाते हैं क्योंकि इ, उ का परिवर्तन दूसरी सन्धि में य, व हो जाता है । मूलस्वरों के तीन-तीन भेद हैं ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत । ह्रस्व स्वर तो इन्हीं रूपों में लिखे जाते हैं किन्तु दीर्घ स्वरों को लिखने में लिपिगत परिवर्तन होता है – आ, ई, ऊ, ऋ । प्लुत लिखने के लिए इन्हीं के बाद तीन का अंक लगाया जाता है। ‘आ 3, ई 3, ऊ 3, ऋ3। इनका प्रयोग दूर से पुकारने में होता है। जैसे – हे राम = हे रामा 3 ! स्मरणीय है कि सन्ध्यक्षर दीर्घ होते हैं।

व्यञ्जनों को तीन वर्गों में विभक्त करते हैं :

  1. स्पर्श वर्ण-कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग तथा पवर्ग (25 वर्ण)
  2. अन्तःस्थ वर्ण-य, र, ल, व् (4 वर्ण)
  3. ऊष्म वर्ण-श्, ष, स्, ह (4 वर्ण)

सभी व्यञ्जनों को सामान्यतः हल् कहते हैं जो एक प्रत्याहार है । इसे पूर्व के एक पाठ में समझाया गया है। इसीलिए व्यञ्जनों की लिपि में हलन्त का प्रयोग होता है। जैसे मुनीन् में न ‘हलन्त’ कहलाता है क्योंकि इसका अन्तिम ‘न’ शुद्ध हल् या व्यञ्जन है, स्वर से जुड़ा नहीं है।

व्यञ्जनों को उच्चारण स्थानों तथा प्रयत्नों के आधार पर पुनः वर्गीकृत किया जाता है। कवर्ग (क, ख, ग, घ ङ) का उच्चारण कण्ठ से होने से इन वर्गों को कण्ठ्य कहते हैं । चवर्ग तालव्य कहलाता है, टवर्ग ‘मूर्धन्य’ है, तवर्ग ‘दन्त्य’ है जबकि पवर्ग ‘ओष्ठ्य’ है । अन्तःस्थ वर्गों में य् तालव्य है, र मूर्धन्य, ल् दन्त्य तथा व् दन्तोष्ठ्य है। ऊष्म वर्ण भी इसी प्रकार विभक्त हैं- श् (तालव्य), प् (मूर्धन्य) स् (दन्त्य) और ह (कण्ठ्य ) ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

स्वरों के भी अपने-अपने उच्चारण स्थान हैं। जैसे अ (कण्ठ्य), इ (तालव्य), उ (ओष्ठ्य) ऋ (मूर्धन्य) ल (दन्त्य) । दीर्घ और प्लुत स्वरों के भी यही स्थान हैं। सन्ध्यक्षरों के उच्चारण में दो-दो स्थानों का उपयोग होता है। जैसे ए, ऐ (कण्ठ-तालु), ओ, औ (कण्ठ-ओष्ठ) । इन उच्चारण स्थानों को स्मरण रखने से अनेक स्वर सन्धियों का रहस्य समझ में आता है।

उच्चारण स्थान से सम्बद्ध सूत्र सप्तम वर्ग की संस्कृत पाठ्य-पुस्तक (अमृता-द्वितीय भाग) के ‘प्रासङ्गिक व्याकरणम्’ में देखे जा सकते हैं। उन्हीं का विवरण यहाँ दूसरे रूप में दिया गया है।

आभ्यन्तर तथा बाह्य प्रयत्न 

किसी भी वर्ण के (स्वर या व्यञ्जन) के उच्चारण के लिए उच्चारण स्थानों में एवं उनके बाहर कण्ठ-नली में किये जाने वाले प्रयास को ‘प्रयत्न’ कहते हैं। मानव अपनी इच्छा को व्यक्त करने के लिए फेफड़े से वाय-सञ्चार करता है जो कण्ठ एवं मुख विवर से टकराकर ध्वनियों को उत्पन्न करती है। इसमें कुछ प्रयास करना ही पड़ता है। प्रयास के मृदु होने या तीव्र होने के कारण उच्चारण भी मृदु या तीव्र होता है । फुसफुसाहट तक बिना प्रयास के नहीं हो सकती। अतः उच्चारण-प्रक्रिया में प्रयत्न का महत्त्वपूर्ण स्थान होता

प्रयल दो प्रकार के होते हैं-आभ्यन्तर तथा बाह्य । आभ्यन्तर प्रयत्न कण्ठ से लेकर ओष्ठ तक के बीच में होने वाले प्रयत्न को कहते हैं। ये सभी उच्चारण स्थान है. इनका परस्पर सट जाना या आधा सटा होना या बिल्कुल पृथक होना आभ्यन्तर प्रयत्नों का निर्णय करता है। बाहय प्रयत्न वस्तुतः उच्चारण स्थानों के बाहर अर्थात् कण्ठ के भीतर ही वायु के रहने की स्थिति में होते हैं। यद्यपि उदात्त आदि प्रयत्न उच्चारण स्थान के भीतर ही होते हैं फिर भी वे बाहय कहलाते हैं।

आभ्यन्तर प्रयत्न के पाँच भेद हैं 

1. स्पृष्ट – क से लेकर म तक पचीस (25) व्यञ्जनों के उच्चारण में उच्चारण स्थान या तो स्वयं या जिहवा के अग्र भाग से सट जाते हैं। इसीलिए इन वर्गों को स्पर्श कहते हैं। इस प्रकार उच्चारण स्थानों के भीतर स्पर्श की क्रिया होने से स्पष्ट आभ्यन्तर प्रयत्न है।

2. ईषत् – स्पृष्ट-अन्तःस्थ वर्णों के उच्चारण में ईषत् स्पृष्ट प्रयत्न होता है। य, र, ल, व का उच्चारण करते हुए प्रतीत होता है कि जिह्वाग्र से उच्चारण स्थान लगभग स्पर्श की स्थिति में है। इसीलिए ईषत् (थोडा) स्पृष्ट नामक प्रयत्न होता है।

3. विवृत – सभी स्वर वर्णों के उच्चारण में उच्चारण स्थान परस्पर खुले रहते हैं, वायु का निर्गमन सरलता से हो जाता है। इसलिए प्रयत्न को विवृत कहते हैं।

4. ईषद-विवृत-ऊष्म वर्णों के उच्चारण में यह प्रयत्न लगता है। श, ष, स्, ह् का उच्चारण करते हुए इसका अनुभव किया जा सकता है कि उच्चारण स्थान कुछ-कुछ खुले रहते हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

5. संवृत – यह व्याकरण की प्रक्रिया की दृष्टि से माना गया प्रयत्न है। हस्व अ के उच्चारण में यह स्वीकृत है। बाह्य प्रयत्न वस्तुत: उच्चारण प्रक्रिया की सूक्ष्मता की व्याख्या करते हैं। इन्हें चार वर्गों में देखा जा सकता है।

1. विवार, श्वास, अघोष – वर्गों के प्रथम द्वितीय वर्ण (क्-ख, च-छ, ट्-ठ्, त्-थ्, प्-फ्) एवं श्, ए, स् – ये अघोष कहलाते हैं। इनके उच्चारण में कण्ठ के नीचे स्थित स्वर यन्त्र के द्वार खुले होते हैं। इसलिए इनके उच्चारण में तीव्र ध्वनि नहीं होती । स्वर-यन्त्र के खुले होने से इन्हें विवार कहा जाता है। बिना विशेष प्रयत्न के उच्चारण से इन्हें श्वास भी कहते हैं।

2. संवार, नाद, घोष – अन्य व्यञ्जन तथा सभी स्वर घोष कहलाते हैं। इनके उच्चारण में विशेष ध्वनि (नाद) होती है, स्वर-यन्त्र के द्वारों को प्रयत्नपूर्वक खुलवाना पड़ता है। ग् – घ – ङ्, ज्-झ-ब इत्यादि के उच्चारण में ये प्रयत्न होते हैं। सन्धियों में क का ग होना, च का ज होना इत्यादि अघोष के घोष में रूपान्तरण का उदाहरण है।

3. अल्पप्राण, महाप्राण – जिन वर्णों के उच्चारण में कम वायु लगे उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। जैसे क्, ग, ङ् इत्यादि । दूसरी आर जिनके उच्चारण में दुहरी (अधिक) वायु का प्रयोग होता है वे महाप्राण हैं। इनमें ह के रूप में दूसरी ध्वनि जुड़ी रहती है। जैसे- ख्, घ, छ, झ, ठ, ढ, थ्, ध्, फ्, भ, ह । अल्पप्राणों के साथ ह का उच्चारण होने से महाप्राण होता है।

4. उदात्त, अनुदात्त, स्वरित – इनका महत्त्व वैदिक भाषा के उच्चारण में है। उच्चारण-स्थान में उच्चतम स्थान पर जीभ को रखकर ‘उदात्त’ का, निम्नतम स्थान से अनुदात्त का और मध्यस्थान से स्वरित का उच्चारण होता है। स्मरणीय है कि ये तीनों भेद केवल स्वर वर्णों के होते हैं। सामान्य उच्चारण में इनका उपयोग नहीं होता।

1. पदविचार (Morphology) – वर्णों के योग से जो अर्थबोधक इकाई बनती है उसे ‘शब्द’ कहते हैं । शब्द बहुत व्यापक अर्थ में आता है। यहाँ तक कि अनर्थक ध्वनि को भी शब्द कहते हैं (ध्वनिः शब्द:) जैसे मेघ का शब्द या किसी वस्तु के गिरने का शब्द । पूरे वाक्य को भी शब्द कहने की परम्परा रही है (आप्तवाक्यं शब्दः)। इस व्यापक अर्थ श्रृंखला में यहाँ सार्थक ध्वनि समूह को ही शब्द कहना प्रासंगिक है। जैसे राम, गज, गम् इत्यादि । शब्द जब वाक्य में प्रयोग करने के योग्य हो जाता है तब उसे कंवल शब्द न कहकर पारिभाषिक दृष्टि से ‘पद’ (Term) कहते हैं। सामान्यतः संस्कृत में तीन प्रकार के पद होते हैं-सुबन्त पद (बालकः, राज्ञः, वयम्, चत्वारि इत्यादि), तिङन्त पद (गच्छति, अपठत्, करिष्यति, धावाम्: इत्यादि) तथा अव्यय पद (पुनः, कृत्वा, सर्वथा, शनैः, कथमपि इत्यादि) । सभी पद शब्द हैं, किन्तु सभी शब्द पद नहीं हैं।

सुबन्त पदों में लिंग, वचन, विभक्ति अनिवार्य होते हैं । इसी प्रकार तिङन्त पदों में पुरुष, वचन तथा लकार अनिवार्य हैं । तिङन्त पदों में विभक्ति और लिङ्ग नहीं होते किन्तु क्रिया के रूप में जो कृदन्त पद होते हैं (जो वस्तुतः सुबन्त ही हैं) वे लिङ्ग की विशिष्टता रखते हैं। जैस-बालक: गतवान, सीता गतवती । किन्तु लकार के रूप में जो तिङन्त होगा वह लिङ्ग के कारण भिन्नता नहीं रखेगा । जैसे-बालकः अगच्छत्, सीता अगच्छत् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् वर्णविचारः

अव्यय पद में लिङ्ग, वचन या विभक्ति के प्रभाव नहीं पड़ते, वह सदा एकरूप रहता है । ‘व्यय’ का अर्थ विकार है, जिसमें विकार नहीं होता, वह अव्यय है। इसका भी वाक्य में स्वतन्त्र प्रयोग होता है। जैसे रमा शीघ्र चलति । रमा सुबन्त है, शीघ्रम् अव्यय है, चलति तिङन्त है । ये सभी पद हैं। पद भी किसी-न-किसी रूप में शब्द हैं किन्तु सभी शब्द पद नहीं हो सकते । पद होने के लिए सुप् या तिङ् लगना अथवा अव्यय के रूप में होना अनिवार्य

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 14 कृषिगीतम् Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

Bihar Board Class 8 Sanskrit कृषिगीतम् Text Book Questions and Answers

वयं गायाम कृषिगीतं धरा परिधानयुक्तेयम्।
अर्थ – परिधान युक्त (हरी-भरी) धरती का कृषिगीत हमलोग गाते हैं।

1. तदासीद् या विकृतवेषा कुरूपा निर्जला चेयम् ।
इदानीं नः श्रमेणाप्ता धरा परिधानयुक्तेयम् ॥

अर्थ – उस समय (खेती से पूर्व) जो यह धरती खराब वेश-भूषावाली, कुरूप और निर्जला थी वह धरती इस समय हमारे परिश्रम से हरीतिमा परिधान (पहनाया) से युक्त हो गई है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

2. समेषां चिन्तयास्माकं कथंचित् कर्मणा फलितम् ।
बहूनां कर्षकाणां नः श्रमैः सस्यं समाकलितम् ॥

अर्थ-सबों की चिन्ता और हमारे कर्म से किसी तरह फल प्राप्त हुआ है। हमारे अनेक किसानों के श्रम से यह फसल प्राप्त हुई है।

3. परं ते मध्यमाः सर्वे समेषामन्नराशीनाम्।
क्रयं कृत्वाल्पमूल्येन, पुनर्नो निर्धनान् कुर्युः ॥

अर्थ–लेकिन वे सब बिचौलिये (दलालों) ने अल्प मूल्य से (कम दाम पर) अन्नों को खरीदकर फिर हमें गरीब बना दिया है।

4. धराऽस्माकं भवेत्कामं न चान्नं नो हितायेदम ।
वयं गायाम कृषिगीतं तथापीत्थं सुखायेदम् ॥

अर्थ – इस धरती से उत्पन्न अन्न निश्चय ही (भले ही) हमारे हित के लिए (उपकार के लिए) नहीं हो। इसके बाद भी हमलोग यह सुखकारी (आनन्ददायक) कृषिगीत को गाते हैं।

5. ऋतूनां कष्टमाघातैः वयं सर्वे समाभ्यस्ताः ।
शरीरे नास्ति परिधानं कृषिः परिधानयुक्तेयम् ॥

अर्थ – हमलोग ऋतुओं के आधातों (चोटों) से उत्पन्न कष्ट को सहने में अभ्यस्त हैं। हमारे शरीर पर वस्त्र नहीं हैं लेकिन यह धरती हमारी कृषि से परिधान (वस्त्र) युक्त (हरीतिमा) हो गई है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

6. सुखं सन्तोषवाचा यत् प्रशस्यं कल्पयामस्तत् ।
समेषामन्नभाजां सा कृषिः सुखलब्धे भूयात ॥

अर्थ – अन्न खाने वाले (उपभोक्ता) सभी लोगों को सन्तोष एवं सुख ‘प्राप्ति हो, यही कल्पना हमलोग (किसान) करते हैं कि सुख प्राप्ति के लिए हो।
अन्वयः-

  1. तदा या इयम् विकृतवेषा कुरूपा निर्जला च आसीत् (सा इयं धरा इदानीं न श्रमेण (हरीतिमारूपिणी) परिधानयुक्ता आप्ता ।
  2. समेषां चिन्तया अस्माकं कर्मणा कथंचित् फलितम् । नः बहूनां कर्षकाणां श्रमैः सस्यं समाकलितम् ।।
  3. परं ते सर्वे मध्यमाः अल्पमूल्येन समेषाम् अन्नराशीनां क्रयं कृत्वा पुनः नः निर्धनान् कुर्युः।
  4. अस्माकं कलं (यत्) ………… गायामः ।
  5. वयं सर्वे ऋतूनाम् आघातैः कष्टं (प्रति) समाभ्यस्ताः । शरीरे परिधानं नास्ति । इयं कृषिः परिधानयुक्ता ।
  6. समेषाम् अन्नभाजां सन्तोषवाचा यत् सुखं तत् प्रशस्तं (वयं) कल्पयामः । सा कृषिः सुखलब्धये भूयात् ।

शब्दार्थ

धरा = धरती । परिधानम् = पहनावा । विकृतवेषा = खराब वेषभूषा वाला । समेषाम् = सबका/की/के । कथंचित् = किसी तरह । कर्षकाणाम् = किसानों का । रास्यम् = फसल । समाकलितम् = प्राप्त हुआ । मध्यमाः = बीच वाले, बिचौलिये । नः = हमारा/री/रे । कामम् = निश्चय ही । आघातैः = आघातों/चोटों से । समाभ्यस्ताः = अभ्यस्त, आदी । प्रशस्यम् = अच्छा, प्रशंसनीय । कल्पयामः = करते हैं, कर सकते हैं (हमलोग) । सुखलब्धये = सुख पाने के लिए । अन्नभाजाम् = अन्न खाने वालों का।

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेद 

तदासीत् = तदा + आसीत् (दीर्घ सन्धि).। चेयम् = च + इयम् (गुण सन्धि) । श्रमेणाप्ता = श्रमेण + आप्ता (दीर्घ सन्धि) । परिधानयुक्तेषम् = परिधानयुक्ता + इयम् (गुण सन्धि) । चिन्तयास्माकम् = चिन्तया + अस्माकम् (दीर्घ सन्धि) : कृत्वाल्पमूल्येन = कृत्वा + अल्पमूल्येन (दीर्घ सन्धि)। पुनर्नो (पुनर्नः) = पुनः + नः (विसर्ग सन्धि) । धराऽस्माकम् = धरा + अस्माकम् (दीर्घ सन्धि) । चान्नम् = च + अन्नम् (दीर्घ सन्धि) । हितायेदम् = हिताय + इदम् (गुण सन्धि) । नास्ति = न + अस्ति (दीर्घ सन्धिः ) । कल्पयामस्तत् = कल्पयामः + तत् (विसर्ग सन्धिः) । तथापीत्थम् = तथा + अपि + इत्थम् (दीर्घ सन्धिः)

प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम् 1

अभ्यासः

मौखिक

  1. गीतं सस्वरं गायत (गीत को स्वर, लय के साथ गाएँ।)
  2. स्वमातृभाषायां कृषिगीतं श्रावयत ।

अपनी मातृभाषा में कृषि गीतों को सुनाएँ।

लिखित

3. गीतांशेषु रिक्त स्थानानि स्मरणेन पूरयत :
उत्तरम्-
समेषां चिन्तयास्माकं कथंचित कर्मणा फलितम् । धराऽस्माकं भवेत्कामं न चान्नं नी हितायेदम् । वयं गायाम कृषिगीतं तथापीत्थं सुखायेदम् । ऋतूनां कष्टमाघातैः वयं सर्वे समाभ्यस्ताः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां पदानां लिङ्गम् विभक्ति वचनं च लिखत :
पदानि – लिङ्गम् – विभक्तिः – वचनम्
यथा-
कर्षकाणाम् – पुंल्लिङ्ग – षष्ठी – बहुवचनम्

पदानि – लिङ्गम् – विभक्तिः – वचनम्

  1. शरीरे – नपुंसकलिङ्गम् – सप्तमी – एकवचनम्
  2. सुखाय – नपुंसकलिङ्गम् – चतुर्थी – एकवचनम्
  3. कर्मणा – नपुंसकलिङ्गम् – तृतीया – एकवचनम्
  4. आघातैः – पुंल्लिङ्ग – पंचमी – एकवचनम्
  5. उपलब्धये – पुल्लिङ्ग – चतुर्थी – एकवचनम्

प्रश्न 5.
रेखाङ्कित पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-
(क) तदा धरा विकृतवेषा आसीत् ।
उत्तरम्-
तदा विकृतवेषा का आसीत् ?

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

(ख) इदानीं धरा परिधानयुक्ता अस्ति ।
उत्तरम्-
इदानीं धरा कस्य युक्ता अस्ति ?

(ग) कर्षकाणां श्रमैः सस्यं प्राप्यते ।
उत्तरम्-
केषां श्रमैः सस्यं प्राप्यते ?

(घ) वयं कृषिगीतं गायाम ।
उत्तरम्-
वयं किम् गायाम?

(ङ) कर्षकाणां कृषिकर्म अस्माकं सुखाय भवति ।
उत्तरम्-
कर्षकाणां कृषिकर्म अस्माकं कस्मै भवति ?

प्रश्न 6.
निम्नवाक्येषु अव्यय पदानि चित्वा लिखत :
यथा-
तटा वसुधा कुरूपा आसीत् ।
प्रश्नोत्तरं :
(क) अस्माकं श्रमेण इदानीं धरा श्यामला अस्ति।
उत्तरम्-
इदानीम् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

(च) कर्षकाणां परिश्रमः कथंचित् सफलो जातः ।
उत्तरम्-
कचित् ।

(ट) परं मध्यमाः अल्पमूल्येन अन्नं क्रीणन्ति ।
उत्तरम्-
पुनः।

(त) ते अस्मान् पुनः निर्धनान् कुर्वन्ति ।
उत्तरम्-
पुनः।

(प) वसुन्धरा सुरूपा सजला च वर्तते ।
उत्तरम्-
च।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

प्रश्न 7.
समुचितं विपरीतार्थक पदं चित्वा मेलयत
प्रश्नोत्तरम् :

  1. इदानीम् = बहूनां
  2. निर्जला = इदम्
  3. दुःखाय = केषांचित्
  4. अल्पानाम् = तदा
  5. समेषाम् = निर्धनान्
  6. धनिनः = सजला
  7. तत् = सुखाय

प्रश्न 8.
कोष्ठात् पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत :
मिलति, गंगायाः, वर्तते, हिमालयात्, देशस्य।
उत्तरम्-

  1. बिहारस्य राजधानी पाटलिपुत्रम् वर्तते ।
  2. इदं नगरं गंगायाः तटे अवस्थितमस्ति ।
  3. गंगा अस्माकं देशस्य पवित्रतमा नदी वर्तते ।
  4. अयं हिमालयात् निःसृत्य बंगोपसागरे मिलति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 14 कृषिगीतम्

प्रश्न 9.
निम्नलिखितम् अनुच्छेदं पठित्वा प्रश्नानां निर्माणं कुरुत :
भारतवर्ष कृषिप्रधान देशः वर्तते । अत्र षट् ऋतवः भवन्ति । वसन्तः ऋतुनां राजा कथ्यते । विविधेषु ऋतुषु विविधानि सस्यानि फलानि च उत्पद्यन्ते । अत्रत्या धरा सर्वदा सस्यश्यामला भवति । कृषिकाश्च परिश्रमिणः सन्ति ।
यथा-
भारतवर्ष कीदृशः देशः वर्तते ?
प्रश्नोत्तरम् :

  1. अत्र कति ऋतवः भवन्ति ?
  2. ऋतूणां राजा कः कथ्यते?
  3. विविधेषु ऋतुषु विविधानि कानि-कानि च उत्पयन्ते ?
  4. अत्रत्या धरा सर्वदा कीदृशा भवति ?
    कृषिकाश्च कीदृशाः सन्ति ?

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

Bihar Board Class 8 Sanskrit रविषष्टि-व्रतोत्सवः Text Book Questions and Answers

प्राकृतिकपदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च मन्यते । अनेन सर्वे जीताः प्राणिनः वनस्पतयः प्राणान् लभन्ते । अस्य उपयोगिता विचार्य देवरूपेण इमं पूजयन्ति जनाः । प्राचीनकालात् सूर्यः भगवान् इति पूज्यते । सूर्यस्य पूजने कश्चित् पुरोहितः मध्यस्थः न अपेक्षितः भवति इति अस्य विशिष्टता वर्तते ।

अर्थ – प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सबसे अधिक तेजस्वी और आरोग्यप्रद माना जाता है। इससे सभी जीव, प्राणी और वनस्पतियाँ (पेड़-पौधे) प्राण को पाते हैं। इसकी उपयोगिता को विचार कर देव रूप से इसको लोग पूजते हैं। प्राचीनकाल से सूर्य भगवान पूजे जाते हैं । सूर्य के पूजन में कोई पुरोहित मध्यस्थ (बिचौलिया) नहीं होता है, यही इस व्रत की विशेषता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

कार्तिको मासः वर्षाशीतयोः मध्ये अवस्थितः । एवमेव चैत्रो मासः शीतग्रीष्मयोः सन्धिकालः । सन्धिस्थितयोः अनयोः मासयोः अनेके रोगाः ज्वरकासादयः प्रभवन्ति । तत्र रोगाणां विनाशाय उपवासः आवश्यक । उपवास. रविषठीव्रते अनिवार्यतया जायते । अतः अस्य व्रतस्य वैज्ञानिक महत्त्वं वर्तते । अपि च चैत्रमासे रविसप्तानि अन्नानि पच्यन्ते गोधूमादीनि । तेषां प्रयोगः अस्य व्रतस्य नैवेद्याय भवति । अतः चैत्रकालिकः व्रतोत्सवः ग्रामेषु प्रसिद्धः । कार्तिककालिकः व्रतोत्सवस्तु नगरेषु बहुधा आयोजितः । सर्वथापि जलाशयः अस्मिन् व्रतोत्सवे आवश्यकः तडागो वा नदी वा । सागरतटेष स्थिताः जनाः सागरेऽपि स्नात्वा अर्घ्यदानं कर्वन्ति ।

अर्थ – कार्तिक मास वर्षा और शीत के बीच में होता है। उसी प्रकार चैत्र मास शीत और ग्रीष्म के सन्धि काल में होता है। संधिकाल में स्थित ये दोनों मासों में अनेक रोग, बुखार, खाँसी आदि उत्पन्न होते हैं। वहाँ रोगों के विनाश के लिए उपवास आवश्यक है। उपवास छठ पर्व में अनिवार्य रूप से होता है। अत: इस व्रत का वैज्ञानिक महत्त्व है । चैत्र मास में सूर्य प्रकाश से गेहूँ आदि अन्न पकते हैं। उनका प्रयोग इस व्रत के नैवेद्य (प्रसादी) के लिए होता है। इसीलिए चैत्रकालिक व्रत उत्सव प्रायः शहरों में आयोजित होता है। सब तरह से (दोनों मास के व्रत में) तालाब या नदीरूपी जलाशय इस व्रत में आवश्यक है । सागर तट पर स्थित लोग सागर में भी स्नान कर अर्घ्य दान करते हैं।

यस्मिन् मासे रविषष्ठीव्रतोत्सवः आयोजितः भवति परिवारे तस्य प्रथमदिवसादेव परिवारे अभक्ष्याः पदार्थाः वर्जिताः भवन्ति । शुक्लपक्षस्य चतुर्थदिवसः संयतः नाम क्रियाकलापः । तदा स्नात्वा पवित्रं सिद्धान्नम् ओदनादिकं पचन्ति, इष्टजनानपि भोजयन्ति वतिनः । वस्तुतः तस्मादेव दिवसात् संयमः प्रारभते । पञ्चमदिवसे एकवारमेव व्रतिनः पायसरोटिकयोः सूर्यास्तादनन्तरं भोजनं कुर्वन्ति ।

इष्टजनानपि भोजयन्ति । ततः षष्ठदिवसे सम्पूर्ण दिवसम् अनाहाराः वतिनः सायंकाले शूर्पेषु फलानि धारयित्वा दीपकं च प्रज्वाल्य सूर्याय अर्घ्यदानं कुर्वन्ति । इदं दृश्यं अतीव पवित्रं मनोहरं च । रात्रौ भूमौ शयित्वा वतिनः पुनः प्रातःकाले सप्तमदिवसे उदीयमानाय सूर्याय स्नानपूर्वकम् अर्घ्यदानं पूर्ववत् कुर्वन्ति । तदनन्तरं पारणं क्रियते । व्रतिनः स्वयं प्रसादग्रहणं कुर्वन्ति अपरेभ्यश्च प्रयच्छन्ति ।

अर्थ – जिस मास में और जिस परिवार में छठ पर्व आयोजित होता है उस परिवार में प्रथम दिवस से ही नहीं खाने योग्य पदार्थों को खाना वर्जित हो जाता

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

है। शक्ल पक्ष के चौथे दिन संयत (नहाय खाय) नामक क्रियाकलाप प्रारम्भ होता है। उस दिन स्नान कर पवित्र सिद्ध अन्न-भात आदि पकाये जाते हैं। प्रियजन को भी व्रती भोजन कराते हैं। वस्तुत: उसी दिन से ही संयम (नियम) प्रारम्भ होता है। पाँचवें दिन एक बार ही व्रती लोग खीर और रोटी सूर्यास्त के बाद खाते हैं । इष्टजनों (मित्र वर्गों) को भी भोजन कराया जाता है। इसके बाद छठे दिन सम्पूर्ण दिन व्रती लोग निराहार रहकर सायंकाल में सूपों में फल रखकर और दीपक जलाकर सूर्य के लिए अर्घ्यदान करते हैं । यह दृश्य बहुत में सातवें दिन उदयमान (उगते हुए) सूर्य को स्नान करके अर्घ्यदान पूर्व दिन की तरह ही करते हैं। उसके बाद पारण किया जाता है । व्रती लोग स्वयं प्रसाद ग्रहण करते हैं और दूसरों को भी देते हैं।

इत्थं रविषष्ठी व्रतोत्सवः सूर्योपासनाया: महत्त्वपूर्णः अवसरः । वस्तुतः अत्र षष्ठीदेवीपूजनं सन्तानलाभाय, सूर्यपूजनम् आरोग्याय इति द्वयोः पूजनयोः मिश्रणरूपः व्रतोत्सवः । क्रमशः अस्य प्रसारः वर्धमानः दृश्यते।

अर्थ – इस प्रकार छठ पर्व सूर्य उपासना का महत्त्वपूर्ण अवसर है। वस्तुतः इसमें षष्ठी देव का पूजन संतान लाभ के लिए तथा सूर्य का पूजन आरोग्यता के लिए होता है। दोनों का पूजन मिश्रण रूप यह.व्रत है। क्रमशः . इसका प्रसार बढ़ता हुआ दिखाई पड़ रहा है।

शब्दार्थ 

प्राकृतिकपदार्थेषु = प्राकृतिक पदार्थों में । सर्वाधिकः = अत्यधिक, सबसे बढ़कर। तेजस्वी = तेजस्वी, आत्मबल से युक्त, ओज से युक्त, ऊर्जावान् (व्यक्ति) । आरोग्यप्रदः = नीरोगता प्रदान करने वाला । मन्यते = माना जाता है । लभन्ते = प्राप्त करते हैं। विचार्य = विचार करके, सोचकर । देवरूपेण = देवता के रूप में । पूजयन्ति = पूजते हैं। प्राचीनकालात् = पुराने समय से । पूजने = पूजा करने के समय में । कश्चित् = कोई । मध्यस्थः = बीच में रहने वाला, बिचौलिया । अपेक्षितः = आवश्यक । शीतः = जाड़ा। अवस्थितः = स्थित । एवमेव (एवम् + एव) = इसी प्रकार, ऐसा ही। ग्रीष्मः = गर्मी । सन्धिकालः = जोड़नेवाला/बीच वाला समय । अनयोः = दोनों में । ज्वरकासादयः = बुखार, खाँसी आदि । प्रभवन्ति = उत्पन्न होते हैं। विनाशाय = विनाश के लिए । चैत्रमासे = चैत महीने में । अन्नानि = अन्न । पच्यन्ते = पकाये जाते हैं ।

वितप्तानि = धूप में सुखाये हुए । पच्यते = पकाये जाते हैं । गोधूमः = गेहूँ । नैवेद्याय = पूजा की सामग्री के लिए। ग्रामेषु = गाँवों में । कार्तिककालिकाः = कार्तिक माह वाला । नगरेषु = नगरों/शहरों में । बहुधा = प्रायः । सर्वथा = सब तरह से । तडागः = तालाब । सागरतटेषु = समुद्र के किनारे । स्नात्वा = स्नान करके । अर्घ्यदानम् = चढ़ावा, पूजन सामग्री का दान । यस्मिन् = जिसमें । अभक्ष्याः = नहीं खाने योग्य । वर्जिताः = मना किये हुए । तदा = तब ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

सिद्धान्नम् = पका हुआ अन्न । ओदनादिकम् (ओदन + आदिकम्) = भात आदि । इष्टजनानपि (इष्टजनान् + अपि) = प्रिय लोगों को भी। भोजयन्ति = खिलाते हैं। प्रारभते = शुरू होता है। पायसम् = खीर । रोटिका = रौटी । अनन्तरम् = बाद में, पश्चात् । कुर्वन्ति = करते हैं । ततः = इसके बाद । अनाहाराः = बिना भोजन किए । धारयित्वा = रखकर । प्रज्वाल्य = जलाकर । शयित्वा = सोकर । उदीयमानाय = उगते हुए को । पूर्ववत् = पहले की तरह । क्रियते = किया जाता है। अपरेभ्यः = दूसरों को । प्रयच्छन्ति = देते हैं । इत्थम् = इस प्रकार । वर्धमानः = बढ़ता हुआ । दृश्यते = दिखलायी देता है, देती है।

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेदः

आरोग्यप्रदश्च = आरोग्यप्रदः + च (विसर्ग सन्धि) । कश्चित् = कः + चित् (विसर्ग सन्धि) । एवमेव = एवम् + एव । व्रतोत्सवः = व्रत + उत्सवः (गुण सन्धि)। तस्मादेव = तस्मात् + एव (व्यञ्जन सन्धि)। एकवारमेव = एकवारम् + एव । सूर्यास्तादनन्तरम् = सूर्यास्तात् + अनन्तरम् (व्यञ्जन सन्धि)। अपरेभ्यश्च = अपरेभ्यः + च (विसर्ग सन्धि)।

प्रकृति-प्रत्यय-विभाग :

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सव 1
अभ्यासः

मौखिक :

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत :
उत्तरम्-

  1. प्राकृतिकपदार्थेषु
  2. तेजस्वी
  3. आरोग्यप्रदः
  4. वर्षाशीतयोः
  5. शीतग्रीष्मयाः
  6. ज्वरकासादयः
  7. रविषष्ठीव्रते
  8. अनिवार्यतया
  9. गोधूमादीनि
  10. नैवेद्याय
  11. व्रतोत्सवस्तु
  12. सागरेपि
  13. रविषष्ठीव्रतोत्सवः
  14. अभक्ष्याः
  15. पायसरोटिकयोः
  16. सूर्यास्तादनन्तरं
  17. प्रज्वाल्य, अपरेभ्यश्च ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

प्रश्न 2.
निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत् :
उत्तरम्-
प्राकृतिकपदार्थेषु = प्राकृतिक पदार्थों में । तेजस्वी = तेज, ऊर्जावान् । आरोग्यप्रद = आरोग्यता प्रदान करने वाला । ज्वरकासादयः = बुखार-खाँसी आदि । गोधूमादीनि = गेहूँ आदि । नैवेद्याय = प्रसादी के लिए। स्नात्वा = स्नान कर । अर्घ्यदानम् = अर्घ्य का दान । अभक्ष्या = नहीं खाने योग्य । वर्जिता = मना (वर्जित) । इष्ट जनान् = इष्ट जनों को । तस्मात् = इसलिए। पायसरोटिकयोः = खीर रोटी का। प्रज्वाल्य = जलाकर । अपरेभ्यः = दूसरों को । वर्धमानः = बढ़ता हुआ ।

प्रश्न 3.
सत्यम् असत्यम् वा वदत :
प्रश्नोत्तरम्-

  1. प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्य: आरोग्यप्रदः मन्यते । – (सत्यम्)
  2. सूर्यः देवरूपेण पूज्यते । – (सत्यम्)
  3. कार्तिको मासः शीतवसन्तयोः मध्ये अवस्थितः। – (असत्यम्)
  4. चैत्रो मास: शीतग्रीष्मयोः सन्धिकालः। – (सत्यम्)

प्रश्न 4.
बिहार में मनाये जाने वाले किसी एक पर्व का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरम्-
बिहार पर्व-प्रधान राज्य है । यहाँ होली, दिवाली, छठ इत्यादि पर्व धूमधाम और श्रद्धा से मनाया जाता है। उसी पर्यों में से एक पर्व केवल बिहार में मनाये जाने वाला है। चतुर्थीचन्द्र पूजन (चौठचन्द्र) व्रत भी बिहारवासी प्रायः उत्तर बिहार में बड़ी श्रद्धा से मनाते हैं।

चन्द्रमा की कल्पना हितकारी देव रूप में करके लोग यह व्रत करते हैं। यह व्रत भादो मास के शुक्ल पक्ष में चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है । एक दिन पूर्व से ही पूरा परिवार शुद्ध और पवित्र अन्न खाते हैं। व्रत के दिन व्रती उपवास रखकर सायंकाल में खीर, पूड़ी, फल दही लेकर चन्द्रमा को अर्घ्य देते हैं। व्रती स्वयं प्रसाद खाकर दूसरों को बाँटते हैं। इष्टमित्र भी प्रसाद खाने के लिए आते हैं।

कहा जाता है कि मिथ्या कलंक से बचने के लिए भाद्रशुक्ल चतुर्थीचन्द्र का पूजन करना चाहिए।

लिखित

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत :
(क) प्राकृतिक पदार्थेषु सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च कः ?
उत्तरम्-
सूर्यः।

(ख) कार्तिको मासः कस्मात मासात् पश्चात् आगच्छति ?
उत्तरम्-
आश्विनमासात् ।

(ग) रोगाणां विनाशाय कः आवश्यकः?
उत्तरम्-
व्रतः।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

(घ) रवि षष्ठी व्रतोत्सवः कदा मन्यते ?
उत्तरम्-
कार्तिक-चैत्र मासयोः।

(ङ) सूर्योपासनायाः महत्त्वपूर्ण: अवसरः कः?
उत्तरम् -रविषष्ठी-व्रतोत्सवः।।

प्रश्न 2.
पूर्ण वाक्येन उत्तरत :
(क) रविषष्ठीव्रतोत्सवः अन्येन केन नाम्ना ज्ञायते ?
उत्तरम्-
रवि षष्ठी व्रतोत्सवः अन्येन छठपर्वेन नाम्ना ज्ञायते ।

(ख) रविषष्ठीव्रतोत्सवः कदा मन्यते?
उत्तरम्-
रविषष्ठीव्रतोत्सव: कार्तिक चैत्र मासयोः मन्यते ।

(ग) छठ-व्रतोत्सवे कस्य पूजा भवति ?
उत्तरम्-
छठ-व्रतोत्सवे सूर्यस्य पूजा भवति ।

(घ) रविषष्ठीव्रतोत्सवः कार्तिक मासस्य कस्मिन् दिवसे मन्यते ?
उत्तरम्-
रविषष्ठीव्रतोत्सव: कार्तिक मासस्य षष्ठी दिवसे मन्यते ।

(ङ) कार्तिक मासस्य शुक्लपक्षस्य सप्तमदिवसे किं भवति ?
उत्तरम्-
कार्तिक मासस्य शुक्लपक्षस्य सप्तमदिवसे पारणं भवति ।

प्रश्न 3.
उदाहरणानुसारं लिखत :
यथा-
एकवचनम् – बहुवचनम्
मन्यते – मन्यन्ते
उत्तरम्-
एकवचनम् – बहुवचनम्

  1. लभते – लभन्ते
  2. वर्तते – वर्तन्ते
  3. प्रभवति – प्रभवन्ति ।
  4. भवति – भवन्ति ।
  5. करोति – कुर्वन्ति ।
  6. प्रारभते – प्रारभन्ते
  7. भोजयति – भोजयन्ति
  8. प्रयच्छति – प्रयच्छन्ति
  9. पश्यति – पश्यन्ति

प्रश्न 4.
उदाहरणानुसारेण विभक्ति निर्णयं कुरुत :
यथा-
पदार्थेषु – सप्तमी विभक्ति
उत्तरम् –

  1. वनस्पतयः – प्रथमा विभक्ति
  2. प्राचीनकालात् – पंचमी विभक्ति
  3. वर्षाशीतयोः – सप्तमी/षष्ठी विभक्ति
  4. रोगाणाम् – षष्ठी विभक्ति
  5. रविषष्ठी व्रत – सप्तमी विभक्ति
  6. व्रतस्य – षष्ठी विभक्ति
  7. नैवेद्याय – चतुर्थी विभक्ति
  8. भूमौ – सप्तमी विभक्ति
  9. सूर्योपासनायाः – षष्ठी विभक्ति

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

प्रश्न 5.
मेलनं कुरुत:

  1. सूर्यः – (1) ऊर्जावान
  2. तेजस्वी – (2) रविः
  3. अनिवार्यः – (3) प्रायः
  4. बहुधा – (4) अपरिहार्यः
  5. स्नात्वा – (5) विस्तारः
  6. प्रसारः – (6) स्नानं कृत्वा

उत्तरम्-

  1. सूर्यः – (2) ऊर्जावान
  2. तेजस्वी – (1) रविः
  3. अनिवार्यः – (4) प्रायः
  4. बहुधा – (3) अपरिहार्यः
  5. स्नात्वा – (6) विस्तारः
  6. प्रसारः – (5) स्नानं कृत्वा

प्रश्न 6.
कोष्ठात् शब्दं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत :
उत्तरम्

  1. प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्यः सर्वाधिकः तेजस्वी आरोग्यप्रदश्च मन्यते – (सूर्य:/चन्द्रः)
  2. वर्षा शीतयोः मध्ये अवस्थितः कार्तिकः मासः – (कार्तिक:/चैत्रः)।
  3. कार्तिक मासे अभक्ष्याः पदार्थाः वर्जिता भवन्ति – (वर्जिता: अवर्जिताः)
  4. छठ इति व्रतोत्सवे सूर्याय अर्घ्यदानं दीयते । – (सूर्याय/चन्द्राय)
  5. रविषष्ठीव्रतोत्सवस्य वैज्ञानिक महत्त्वं वर्तते । – (वैज्ञानिक/आर्थिक)

प्रश्न 7.
निम्नलिखितानां पदाना सन्धि सन्धिविच्छेदं वा कुरुत
उत्तरम्-

  1. आरोग्यप्रद: + च = आरोग्यप्रदश्च ।
  2. व्रत + उत्सवः = व्रतोत्सवः।
  3. तस्मात् + एव = तस्मादेव ।
  4. कः + चित् = कश्चित ।
  5. सूर्य + अस्तः = सूर्यास्तः।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

प्रश्न 8.
शब्दान् दृष्ट्वा लिखतं
उत्तरम्-

  1. ज्योत्स्ना
  2. तेजस्वी
  3. अनिवार्यतया
  4. नैवेद्याय
  5. व्रतोत्सवः
  6. सागरेपि
  7. पायसरोटिकयोः
  8. प्रज्वाल्य
  9. अपरेभ्यः

प्रश्न 9.
वर्ग प्रहेलीतः धातुरूपं निस्सारयत् :

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सव 2
उत्तरम् –

  1. हसति – हसतः – हसन्ति
  2. हससि – हसथः – हसथ
  3. हसामि – हसाव: – हसामः

प्रश्न 10.
संस्कृते अनुवदत :
प्रश्नोत्तरम् :
(क) रविषष्ठीव्रतोत्सव बिहार का एक प्रसिद्ध पर्व है।
उत्तरम् –
रविषष्ठीव्रतोत्सवः विहारस्य एकः प्रसिद्धः पर्वः अस्ति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 13 रविषष्टि-व्रतोत्सवः

(ख) यह मुख्यतः कार्तिक महीना में मनाया जाता है।
उत्तरम् –
अयं मुख्यतः कार्तिक मासे मन्यते ।

(ग) प्राकृतिक पदार्थों में सूर्य सर्वाधिक रोग विनाशक माना जाता है।
उत्तरम् –
प्राकृतिक पदार्थेषु सूर्य: सर्वाधिक: रोग विनाशक: मन्यते ।

(घ) कार्तिक माह वर्षा और शीत ऋत के मध्य स्थित है।
उत्तरम् –
कार्तिक मासे वर्षा-शीतयोः ऋतवयोः मध्ये स्थितः अस्ति ।

प्रश्न 11.
अधोलिखित तद्भव-शब्दानां कृते पाठात् चित्वा संस्कृत पदानि
लिखत :
यथा – सूरज = सूर्यः
उत्तरम् –

  1. माह = मासः
  2. कातिक = कार्तिक
  3. गेहूँ = गोधूमः
  4. तालाब = तडागः
  5. सूप = शूर्पः
  6. रात = रात्रि
  7. छठी = षष्ठी

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 12 सदाचार: Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

Bihar Board Class 8 Sanskrit सदाचार: Text Book Questions and Answers

1. नापृष्टः कस्यचिद् ब्रूयात् न चान्यायेन पुच्छतः ।
जानन्नपि हि मेधावी जडवल्लोकमाचरेत् ॥

अर्थ – बिना पूछे किसी से नहीं बोलना चाहिए और यदि किसी के द्वारा जबरदस्ती पूछा जा रहा हो तो मेधावी लोग जानते हुए भी मूर्ख की तरह संसार में आचरण करते हुए चुप रहें।

2. अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ।।

अर्थ – अभिवादन करने का स्वभाव रखने वाले का और बड़े-बुजुर्गों (वृद्ध लोगों) की सेवा करने वालों का चार चीज बढ़ते हैं आयु, विद्या, यश और बल।

3. वित्तं बन्धुर्वयः कर्म विद्या भवति पञ्चमी।
एतानि मान्यस्थानानि गरीयो यद् यदुत्तरम् ।।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

अर्थ – धन, बान्धव, आयु, कर्म और विद्या ये पाँच मान पाने की चीजें हैं। इनमें से हरेक के बाद जो दूसरे हैं वे श्रेष्ठ हैं । अर्थात् विद्या मापन पाने का सर्वश्रेष्ठ साधन है।

4. ब्राह्म मुहूर्ते बुध्येत स्वस्थो रक्षार्थमायुषः ।
शरीरचिन्तां निर्वर्त्य कृतनित्यक्रियो भवेत् ॥

अर्थ – आयु और स्वास्थ्य रक्षा के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए । _शरीर की चिन्ता करते हुए नित्य क्रिया का सम्पादन करना चाहिए।

5. आचार्यश्च पिता चैव माता भ्राता च पूर्वजः ।।
नार्तेनाप्यवमन्तव्याः पुंसा कल्याणकामिना ॥
अर्थ – कल्याण चाहने वाले लोग अपने को विवश जानकर भी आचार्य (गुरु), पिता, माता, भाई और अन्य बड़े लोगों का अपमान नहीं करें।

6. विषादप्यमृतं ग्राह्यं बालादपि सुभाषितम् ।
अमित्रादपि सवत्तममेध्यादपि काञ्चनम् ॥

अर्थ – विष से अमृत को प्राप्त हो, छोटा बच्चा से सुभाषित (अच्छे वचन) मिले, शत्रु से भी अच्छा आचरण की सीख मिले तथा अपवित्र स्थान या अपवित्र व्यक्ति से भी सोना मिले तो ग्रहण कर लेना चाहिए।

7. सर्वलक्षणहीनोऽपि यः सदाचारवान् नरः ।।
श्रद्धावान् अनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति ॥

अर्थ – सभी शुभ लक्षणों से हीन होकर भी जो व्यक्ति सदाचारवान है, श्रद्धावान है और ईर्ष्यारहित है, वह व्यक्ति सौ वर्षों तक जीवित रहता है।

8. सर्वेषामेव शौचानामर्थशौचं परं स्मृतम्।
योर्षे शुचिः स हि शुचिः न मृद्वारिशुचिः शुचिः ।।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

अर्थ – सभी प्रकार की पवित्रताओं में धन की पवित्रता को श्रेष्ठ कहा गया है । जो धन पक्ष में पवित्र है वही पवित्र है। मिट्टी पानी से बार-बार शुद्ध करने से कोई शुद्ध (पवित्र) नहीं होता है।

शब्दार्थ

नापृष्टः (न + अपृष्टः) = बिना पूछे नहीं। कस्यचित् = किसी का/की/के । ब्रूयात् = बोलना चाहिए । चान्यायेन (च + अन्यायेन) = और अन्याय/जबरदस्ती से। पृच्छतः = पूछते हुए का। जानन्नपि (जानन् + अपि) = जानता हुआ भी । जडवल्लोकमाचरेत् = मूर्ख की तरह संसार में आचरण करना चाहिए । अभिवादनशीलस्य = अभिवादन करने वाले का । वृद्धोपसेविन: (वृद्ध + उपसेविनः) = बूढों की सेवा करने वालों का/की/के। वर्धन्ते = बढ़ते हैं । वयः = उम्र । वित्तं = धन । मान्यस्थानानि = आदरणीय, सम्मान के पात्र । गरीयो (गरीयः) = श्रेष्ठ, बढ़कर ।

यदुत्तरम् (यत् + उत्तरम् ) = जो उत्तर । ब्राह्मे = ब्रह्मवेला में, सूर्योदय से पूर्व के समय में। मुहूर्ते = वेला में, I मुहूर्त = 24 मिनट । बुध्येत = जागना चाहिए । रक्षार्थमायुषः = आयु की रक्षा के लिए । निर्वर्त्य = पूरा करके/सम्पन्न करके। कृतनित्यक्रियो = जिसने नित्य क्रिया कर हो (ऐसा व्यक्ति) । आचार्यः = गुरु, शिक्षक । नार्तेनाप्यवमन्तव्याः (न+ आर्तेन + अपि + अवमन्तव्याः) = आर्त (विवश/बेचैन/पीड़ित) होकर भी अपमान नहीं करना चाहिए । पुंसा = व्यक्ति द्वारा । कल्याणकामिना = कल्याण चाहने वाला । विषादप्यमृतम् (विषात् + अपि + अमृतम् ) = जहर से भी अमृत । ग्राह्यम् = ग्रहण करना चाहिए, लेना चाहिए । बालादपि (बालात् + अपि) = बच्चे से भी।

सुभाषितम् = अच्छे वचन । अमित्रादपि (अमित्रात् + अपि) = शत्रु से भी। काञ्चनम् = सोना, स्वर्ण को । यः = जो । सर्वलक्षणहीनोऽपि = सभी – लक्षणों से हीन भी। सदाचारवान् = अच्छे आचरण वाला । अनसूयश्च (अन् + असूयः + च) = और ईर्ष्यारहित/डाह न करनेवाला । शौचानामर्थशौचम् (शौचानाम् + अर्थशौचम्) = पवित्रताओं में धन की पवित्रता । स्मृतम् = कहा गया है । शुचिः = पवित्र । हि = निश्चय ही । मृद्वारि = मिट्टी एवं जल । सद्वृत्तम् = अच्छा व्यवहार । अमेध्यादपि = अपवित्र से भी। काञ्चनम् = सोना (स्वर्ण) को ।

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेद

नापृष्टः = न + अपृष्टः (दीर्घ सन्धि) । चान्यायेन = च + अन्यायेन (दीर्घ सन्धि) । जानन्नपि = जानन् + अपि (व्यंजन संधि) । जडवल्लोकमाचरेत् = जडवत् + लोकम् + आचरेत् (व्यंजन सन्धि) । वृद्धोपसेविनः = वृद्ध + उपसेविनः (गुण सन्धि) । आयर्विद्या = आयु: + विद्या (विसर्ग सन्धि) । बन्धुर्वयः = बन्धुः + वयः (विसर्ग सन्धि)। यदुत्तरम् = यत् + उत्तरम् (व्यञ्जन सन्धि) । रक्षार्थमायुषः = रक्षा + अर्थम् + आयुषः (दीर्घ सन्धि)। आचार्यश्च = आचार्यः + च (विसर्ग सन्धि) । नार्तेनाम्यवमन्तव्याः = न + आर्तेन + अपि + अवमन्तव्याः (दीर्घ सन्धि, यण् सन्धि) । विषादप्यमृतम् = विषात् + अपि + अमृतम् (व्यंजन संधि, यण् सन्धि) । बालादपि = बालात् + अपि (व्यञ्जन – सन्धि) । सद्वृत्तममेध्यादपि = (सत् + वृत्तम् + अमेध्यात् + अपि) (व्यञ्जन सन्धि) । सदाचारवान् = सत् + आचारवान् (व्यञ्जन सन्धि)। अनसूयश्च = अन् + असूयः + च (विसर्ग सन्धि) । शौचानामर्थशौचम् = शौचानाम् + अर्थशौचम् ।

प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार 1

अभ्यासः

मौखिक

प्रश्न 1.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) कस्य चत्वारि वर्धन्ते ?
उत्तरम्-
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

(ख) अभिवादन शीलस्य कानि चत्वारि वर्धन्ते ।
उत्तरम्-
अभिवादन शीलस्य आयुः विद्या यशः बलम् च वर्धन्ते ।

(ग) कति मान्य स्थानानि सन्ति ?
उत्तरम्-
पञ्च मान्य स्थानानि सन्ति ।

(घ) पञ्च मान्य स्थानानि कानि सन्ति ?
उत्तरम्-
वित्तं, बन्धुः, वयः कर्मः विद्या च एतानि पञ्च मान्य स्थानानि सन्ति ।

(ङ) कदा बुध्येत् ?
उत्तरम्
ब्रह्म मुहूर्ते बुध्येत् ।

प्रश्न 2.
सुस्पष्टम् उच्चारयत ( साफ-साफ उच्चारण करें।)
प्रश्नोत्तरम्-

  1. ब्रूयात् – ब्रूयाताम् – बुयुः
  2. आचरेत् – आचरेताम् – आचरेयुः
  3. भवेत् – भवेताम् – भवेयुः

प्रश्न 3.
पठत:

  1. न मित्रम् = अमित्रम्
  2. न मेध्यम = अमेध्यम्
  3. न असूया = अनसूया
  4. न पृष्टः = अपृष्टः
  5. न न्यायेन = अन्यायेन
  6. न उचितम् = अनुचितम्

लिखित

प्रश्न 4.
उदाहरणानुरूपं वाक्यानि रचयत
प्रश्नोत्तरं-

  1. नित्यं = वयं नित्यं विद्यालयं गच्छामः ।
  2. पिता = पिता पुत्रेण सह गच्छति ।
  3. स्वस्थः = सः स्वस्थ: अस्ति ।
  4. काञ्चनम् = काञ्चनम् सर्वे इच्छन्ति ।
  5. जीवति = यस्य कीर्ति सः जीवति ।
  6. रक्षार्थम् = देशस्य रक्षार्थम् अहं जीवामि।

प्रश्न 5.
मेलनं कुरुत:
प्रश्नोत्तरं-

  1. सदाचारः = श्रेष्ठः
  2. मेधावी = कस्यचित् वंशस्य पूर्वपुरुषः
  3. सुभाषितम् = सम्य-विभागः
  4. पूर्वजः = सुन्दरं वचनम्
  5. गरीयः = सज्जनानां व्यवहार:
  6. मुहूर्तः = यः कञ्चित् विलक्षणसंस्कारं धारयति

प्रश्न 6.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) कल्याणकामिना के नावमन्तव्याः?
उत्तरम्-
कल्याणकामिना आचार्यः पिता माता भ्राता पूर्वजः च नावमन्तव्याः ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

(ख) कस्मात् अमृतं ग्राह्यम् ?
उत्तरम्-
विषात् अमृतं ग्राह्यम् ।

(ग) किम शौचं श्रेष्ठं स्मृतम् ?
उत्तरम्-
अर्थं शौचं श्रेष्ठं स्मृतम् ।

(घ) कः शतं वर्षाणि जीवति ?
उत्तरम्-
यः सदाचारः श्रद्धावान् अनसूयश्च नरः सः शतं वर्षाणि जीवति ।।

(ङ) अपृष्टः किन्न कुर्यात् ?
उत्तरम्-
अपृष्टः कस्यचिद् न ब्रूयात् ।

प्रश्न 7.
वर्णान् संयोज्य लिखत :
यथा-
व् + इ + त् + त् + अ + म् = वित्तम्

  1. ब् + र् + आ + ह् + म् + अ = ब्राह्मः
  2. म् + उ + ह् + ऊ + र् + त् + अ = मुहूर्तः
  3. श् + र् + अ + द् + ध् + आ: = श्रद्धाः
  4. श् + ऋ + इ + ग् + आ + र् + अ = शृंगार:
  5. उ + ज् + ज + व + अ + ल् + अ = उज्ज्व ल:

प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं पदानि पृथक् कुरुत :
यथा-
सर्वेषामेव = सर्वेषाम् + एव
उत्तरम्-

  1. लोकमाचरेत् = लोकम् + आचरेत् ।
  2. रक्षार्थमायुषः = रक्षार्थम् + आयुषः
  3. वृत्तममेध्यात् = वृत्तम् + अमेध्यात् ।
  4. प्रथममेव = प्रथमम् + एव।
  5. शौचानामर्थशौचम् = शौचानाम् + अर्थशौचम् ।

प्रश्न 9.
मञ्जूषायाः पदानि संयोज्य वाक्यानि रचयत

(विशालः, गंगायाः, पूर्वभागे, मध्ये, तटे, गंगा, पर्वतानाम्।)
यथा –
भारतस्य उत्तरभागे कश्मीर राज्यम् अस्ति।

  1. भारतस्य पूर्वभागे बंगप्रदेशः अस्ति ।
  2. बिहारस्य मध्य गंगानदी प्रवहति ।
  3. बंगोपसागरस्य तटे उत्कलप्रदेशः अस्ति ।
  4. तीरे गंगायाः वाराणसी अस्ति ।
  5. पाटलिपुत्रस्य उत्तरभागे गंगा प्रवहति ।
  6. शोणनदः अतीव विशालः वर्तते ।
  7. हिमालयः पर्वतानां राजा कथ्यते ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 12 सदाचार:

प्रश्न 10.
मंजूषातः क्रियापदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत :

(विराजते, चलत, भविष्यति, निवसामः, निवससि, आसन्)
यथा-
वयं भारतवर्षे निवसामः।

  1. त्वं कस्मिन् ग्रामे निवससि ?
  2. पाटलिपुत्र गंगायास्तटे विराजते
  3. राज्ञो दशरथस्य चत्वारः पुत्राः आसन्।
  4. यूयं अस्माभिः सह विद्यालयं चलत्
  5. अस्माकं विद्यालये श्व: वार्षिकोत्सवः भविष्यति

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

Bihar Board Class 8 Sanskrit विज्ञानस्य उपकरणानि Text Book Questions and Answers

अधुना वैज्ञानिक युगं सर्वे अनुभवन्ति । अद्य मानवः तथैव नास्ति यथा शतं वर्षाणि पूर्वमासीत् । विज्ञानप्रभवाणि उपकरणानि सर्वेषां जीवने प्रविष्टानि सन्ति । नगरेषु वा ग्रामेषु वा सर्वे स्व-स्व-कार्येषु विज्ञानस्य साध नानि व्यवहरन्ति । आधुनिकानि वैज्ञानिकान्युपकरणानि सर्वाण्यपि वैदेशिकैः जनैराविष्कृतानि सन्ति । रेलयानं सम्प्रति लोकप्रियं वाहनं दूरं गन्तुम् । देशे बहूनि रेलस्थानकानि वर्तन्ते । प्रथम रेलचालकयन्त्रं जार्ज स्टीफेन्सनेन निर्मितमासीत् ।

एवमेव मुद्रणयन्त्रैः पुस्तकानि शीघ्रमेवासंख्यानि मुद्रितानि भवन्ति । कैक्सटनेन तस्य यन्त्रस्य आविष्कारेण संसारस्योपकारः कृतः । एडीसन नामकः आंग्लदेशीयो वैज्ञानिकः ग्रामोफोनस्य विद्युबल्बस्य चाविष्कारं कृतवान् । विद्युतः उत्पादनाय डायनेमोनामक यन्त्रमनिवार्य वर्तते । तदाविष्काराय वयं माइकल फेराडे नामकं वैज्ञानिकं प्रति कृतज्ञाः । दूरस्थितानां वस्तुना साक्षात्करणाय दूरबीन-नामकस्य उपकरणस्य आविष्कारम् इटलीदेशवासी गैलीलियो नामकः वैज्ञानिकः कृतवान् । रेडियो यन्त्रेण दूरस्थाः शब्दाः गृह्यन्ते । अस्य आविष्कारः इटलीवासिना मारकोनी

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

महोदयेन कृतः । मोटरकारस्य आविष्काराय ऑस्टिनमहोदयः प्रसिद्धः । वायुयानम् अमेरिकावासिनौ राइटभ्रातारौ आविष्कृतवन्तौ ।

अर्थ – आजकल वैज्ञानिक युग का सभी अनुभव कर रहे हैं। आज का मानव वैसा नहीं है जैसा कि सौ वर्ष पूर्व था । विज्ञान से उत्पन्न उपकरण सबों के जीवन में प्रवेश कर लिया है (स्थान पा चुका है) । नगरों या गाँवों में सभी अपने-अपने कार्यों में विज्ञान के साधनों का व्यवहार (उपयोग) कर रहे हैं। आधुनिक वैज्ञानिक सभी उपकरण विदेशियों के द्वारा आविष्कृत हैं। रेलगाड़ी आजकल लोकप्रिय वाहन है जो दूर-दूर तक जाता है। देश में बहुतों रेल स्टेशनें हैं। प्रथम रेल इंजन जार्ज स्टीफेन्सन के द्वारा निर्माण किया गया था। उसी प्रकार छापे का यंत्र के आविष्कार ने संसार का उपकार किया । एडीसन नामक अंग्रेज वैज्ञानिक ग्रामोफोन का और बिजली-बल्ब का आविष्कार किया। बिजली उत्पादन के लिए डायनेमो नामक यंत्र अनिवार्य है।

उसके आविष्कार के लिए हमलोग माईकल फेरार्ड नामक वैज्ञानिक के प्रति कृतज्ञ (ऋणी) हैं। दूर में स्थित वस्तुओं को निकट का दिखाने वाला दूरबीन नामक उपकरण का आविष्कार इटली देशवासी गैलीलियो नामक वैज्ञानिक ने किया था । रेडियो यंत्र से दूर में स्थित शब्दों को ग्रहण किया जाता है (सुना जाता है)। इसका आविष्कार इटलीवासी मारकोनी महोदय के द्वारा किया गया था। मोटरकार के आविष्कार के लिए ऑस्टीन महोदय प्रसिद्ध हैं। वायुयान को अमेरिका निवासी राइट नामक दो भाइयों ने आविष्कार किया।

अधुना टेलीविजनयन्त्रं महदुपकारकं सिध्यति तेन गृहे स्थिताः वयं चित्राणि, पश्यामः चित्रस्थपात्राणां वचनानि च शृणुमः । जे. एल. बेयर्ड महोदयः अस्य यन्त्रस्य आविष्कारकः तथैव कम्प्यूटरयन्त्रं लघुकायमपि गणनाकार्ये, श्रेणीकरणे, विषलेषणे, तालिकादिनिर्माणे, मुद्रणे, स्मृतिसंग्रहणे च आधुनिकयुगे महदुपकारकं वर्तते । यद्यपि भारतवर्षे बिलम्बेन समागतं किन्तु अस्य आविष्कारः 1946 वर्षे एव. ब्रेनर्ड इंकटमैन्युली महोदयाभ्यां कृतः आसीत् । हेलीकाप्टरनामकं वायुयानं दुर्गम स्थलेष्वपि यानवाहनयोः कार्य संचालयति । तस्याविष्कार: एटीन ओहमिसेन नामकेन वैज्ञानिकेन अभवत् । जी. ब्रैड शॉ महोदयः अत्युपयोगिनः स्कूटरयानस्य आविष्कारमकरोत् । डायनामाइट-नामकेन प्रभावशालिना चूर्णेन कठोराः पर्वताः अपि भज्यन्ते । तस्य आविष्कारम् अल्फ्रेड नोबेल महोदयः स्वीडेन निवासी कृतवान् । तस्यैव नाम्ना तेन दत्तेन राशिना च विश्वप्रसिद्धः नोबलपुरस्कार प्रदीयते ।

अर्थ – आजकल टेलीविजन यंत्र अत्यन्त उपकारी सिद्ध हुआ है । उससे हमलोग घर में बैठकर चित्रों को देख लेते हैं और चित्र में स्थित पात्रों की बोली को भी सुनते हैं । जे. एल. बेयर्ड महोदय इस यंत्र के आविष्कारक हैं। उसी प्रकार कम्प्यूटर यंत्र छोटा होकर भी गणना के लिए, वर्गीकरण करने में, विश्लेषण करने में, तालिका आदि निर्माण में, छापने में और याद रखने योग्य बातों को संग्रहण (स्टॉक) करने में आधुनिक युग में बहुत उपयोगी है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

यद्यपि भारतवर्ष में विलम्ब से आया लेकिन इसका आविष्कार 1946 ई. सन् में ही ब्रेनड और इंकटमैन्युली महोदय के द्वारा किया गया था। हेलीकॉप्टर नामक वायुयान को दुर्गम स्थलों पर भी यात्री और माल ढोने के कार्य में संचालित किया जाता है। उसका आविष्कार एटीन ओहमिसेज नामक वैज्ञानिकों के द्वारा हुआ । जी ब्रेड शॉ महोदय अत्यन्त उपयोगी स्कूटरयान का आविष्कार किया था। डायनामाइट नामक प्रभावशाली चर्ण से कठोर पत्थर भी टट जाते हैं। इसका आविष्कार स्वीडेन निवासी अल्फ्रेड नोबल महोदय ने किया था। उसी के नाम से और उन्हीं के द्वारा दी गयी राशि से विश्व प्रसिद्ध नोबल पुरस्कार दिया जाता है।

आविष्कारैः रोगा: दूरीक्रियन्ते जीवनावधिश्च जनानां वर्धितः । अत्र कानिचनैव उपकरणानि सुचितानि ।
अर्थ – जबकि हजारों से अधिक विज्ञान उपकरणों का प्रयोग दिन-रात हो रहा है और प्रतिदिन नये-नये आविष्कार सुविधा के लिए लोग कर रहे हैं। आयुर्विज्ञान के आविष्कार से रोगों को दूर किया जाता है और लोगों के जीवन अवधि बढ़ रही है। यहाँ पर कुछ ही उपकरणों को बताया गया है।

शब्दार्थ

अधुना = आजकल । शतम् = सौ। विज्ञानप्रभवाणि = विज्ञान से । उत्पन्न । प्रविष्टानि = प्रवेश किये हुए। वैदेशिकैः = विदेशियों द्वारा । सम्प्रति = आजकल । रेलस्थानकानि = रेल-स्टेशन । रेलचालकयन्त्रम् = रेल इंजन । विद्युबल्बस्य = बिजली-बल्ब का । विद्युतः = बिजली का/की/के । कृतज्ञाः = किये गये उपकार को जानने वाले, ऋणी । कृतवान् = किया गया । गृह्यन्ते = ग्रहण किये जाते हैं। कृतः = किया। आविष्कृतवन्तौ = आविष्कार/खोज किये (द्विवचन) । महदुपकारकम् = बड़ा उपयोगी, महान उपकारक । सिध्यति = सिद्ध होता है। चित्रस्थपात्राणाम् = चित्र स्थित पात्रों/व्यक्तियों का/के/की ।

शृणुमः = (हम) सुनते हैं। लघुकायमपि (लघुकायम् + अपि) = छोटा शरीर होने पर भी। श्रेणीकरणे = वर्गीकरण में । स्मृतिसंग्रहणे = याद करने योग्य (तथ्यों) को इकट्ठा करने में । समागतम् = आया । यानवाहनयोः कार्यम् = सवारी एवं माल ढुलाई के काम को। . अत्युपयोगिनः = अधिक उपयोगी (का/की/के)। भज्यन्ते = तोड़े जाते हैं। तस्यैव (तस्य + एव) = उसके ही । सहस्राधिकानाम् = हजार से अधिक (का/की/के) । अहर्निशम् = दिन-रात । आयुर्विज्ञानस्य = चिकित्साशास्त्र का । जीवनावधिश्च = आयु, जीवनकाल । कानिचनैव (कानिचन + एव) = कुछ ही । सूचितानि = बताये गये (हैं)।

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेदः

तथैव = तथा + एव (वृद्धि सन्धि)। नास्ति = न + अस्ति (दीर्घ सन्धि) । पूर्वमासीत् = पूर्वम् + आसीत् । वैज्ञानिकान्युपकरणानि = वैज्ञानिकानि + उपकरणानि (यण् सन्धि) । सर्वाण्यपि = सर्वाणि + अपि (यण् सन्धिः) । जनैराविष्कृतानि = जनैः + आविष्कृतानि (विसर्ग सन्धि) । निर्मितमासीत् = निर्मितम् + आसीत् । एवमेव = एवम् + एव । शीघ्रमेवासंख्यानि = शीघ्रम् + एव + असंख्यानि (दीर्घ सन्धि) । संसारस्योपकारः = संसारस्य + उपकारः (गुण सन्धि) । चाविष्कारम् = च + आविष्कारम् (दीर्घ सन्धि) । यन्त्रमनिवार्यम् == यन्त्रम् + अनिवार्यम् । तदाविष्काराय = तत् + आविष्काराय (व्यञ्जन सन्धि)। महदुपकारकम् = महत् + उपकारकम् (व्यञ्जन सन्धि)। दुर्गमस्थलेष्वपि = दुर्गमस्थलेषु + अपि (यण् सन्धि) । तस्याविष्कारः = तस्य + आविष्कारः (दीर्घ सन्धि) । अत्युपयोगिनः = अति + उपयोगिनः (यण सन्धि)। आविष्कारमकरोत् = आविष्कारम् + अकरोत् । तस्यैव = तस्य + एव (वृद्धि सन्धि) । सहस्राधिकानाम् = सहस्र + अधिकानाम (दीर्घ सन्धिः) । विज्ञानोपकरणानाम् = विज्ञान + उपकरणानाम् (गुण सन्धि)। अहर्निशम् = अहः + निशम् (विसर्ग सन्धि) । जीवनावधिश्च = जीवन + अवधि: + च (दीर्घ सन्धि, विसर्ग सन्धि)।

प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि 1
अभ्यासः

मौखिक 

प्रश्न 1.
निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत् :
अधुना, सम्प्रति, विज्ञानप्रभवानि, गृहीयन्ते, लघुकायमपि, सहस्राधिकानाम्, आयुर्विज्ञानस्य, सिध्यति, समागतम्।
उत्तरम्-
अधुना = आजकल । सम्प्रति = इस समय । विज्ञान प्रभवानि = विज्ञान से उत्पन्न । गृहीयन्ते = ग्रहण किया जाता है । लघुकायमपि = छोटा स्वरूप होकर भी । सहस्राधिकानाम् = हजारों से अधिकों का । आयुर्विज्ञानस्य = आयुर्विज्ञान का । सिध्यति = सिद्ध होता है। समागतम् = आया ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

प्रश्न 2.
निम्नलिखितानाम् उपकरणानाम् आविष्कारकानां नामानि वदत :
प्रश्नोत्तरम् :

  1. रेलचालकयन्त्रम् = जार्ज स्टीफेन्सन महोदयः ।
  2. विद्यदबल्बः = एडीसन महोदयः ।
  3. दूरबीन = गैलीलियो महोदयः ।
  4. रेडियो यन्त्रम् = मारकोनी महोदयः ।
  5. मोटरकारः = ऑस्टीन महोदयः ।
  6. डायनामाइट = अल्फ्रेड नोबल महोदयः।

प्रश्न 3.
निम्नलिखितानां धातुरूपाणां पाठं कुरुत
उत्तरम्-

  1. अकरोत् – अकुरुताम् – अकुर्वन्
  2. अकरोः – अकुरुतम् – अकुरुत
  3. अकुर्वम् – अकुर्व – अकुर्म्

लिखित

प्रश्न 4.
निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं एकपदेन लिखत
(क) विद्युबल्बस्य आविष्कारः कः कृतवान् ?
उत्तरम्-
एडीसनः।।

(ख) कम्प्यूटर यन्त्रस्य आविष्कार: कस्मिन् वर्षे अभवत् ?
उत्तरम्-
1946 ई० तमे ।

(ग) कस्य नाम्ना नोबेल पुरस्कारः प्रदीयते?
उत्तरम् -अल्फ्रेड नोबलस्य ।

(घ) मोटरकारस्य आविष्कारं कः कृतवान् ?
उत्तरम्-
ऑस्टीन:

(ङ) जी ब्रैड शॉ महोदयः किम् आविष्कारम् अकरोत् ? ।
उत्तरम्-
स्कूटर यानम् ।

प्रश्न 5.
पठित पाठमाश्रित्य निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं लिखत :
(क) माइकल फेराडे नामकः वैज्ञानिकः किम् आविष्कारकम् अकरोत् ?
उत्तरम्-
गाइकल फेराडे नामक: वैज्ञानिकः डायनेमो नामक यन्त्रं आविष्कार अकरोत् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

(ख) दूरबीन नामकस्य उपकरणस्य आविष्कारं कः कतवान् ?
उत्तरम्-
दूरबीन नामकस्य उपकरणस्य आविष्कारं गैलीलियो महोदयः कृतवान् ।

(ग) केन गृहे स्थिताः वयं चित्राणि पश्यामः?
उत्तरम्-
टेलीविजन यन्त्रेण गृहे स्थिताः वयं चित्राणि पश्यामः ।

(घ) कम्प्यूटर यन्त्रस्य आविष्कारं कः कृतवान् ?
उत्तरम्-
कम्प्यूटर यन्त्रस्य आविष्कारं ब्रेनर्ड इंकटमैन्युलीय कृतवान् ।

(ङ) हेलीकाप्टर नामकं वायुयानस्य आविष्कारं कः कृतवान् ?
उत्तर-
हेलीकॉप्टर नामकं वायुयानस्य आविष्कार एटीन ओहमिसः कृतवान् ।

(च) केन चूर्णेन कठोराः पर्वताः अपि भज्यन्ते ?
उत्तरम्-
‘डायनामाइटेन चूर्णेन कठोराः पर्वताः अपि भज्यन्ते ।

(छ) जे. एल. बेयर्ड महोदयः कस्य यन्त्रस्य आविष्कारं अकरोत् ?
उत्तरम्-
जे. एल. बेयर्ड महोदयः टेलीविजन यन्त्रस्य आविष्कारं अकरोत् ।

प्रश्न 6.
लङ्लकारे परिवर्तनं कुरुत
लट्लकार – लङ्लकार
यथा-
सः करोति – सः अकरोत्
प्रश्नोत्तरम् :
लट्लकार – लङ्लकार

  1. अहं गच्छामि – अहं अगच्छम्
  2. त्वं पश्यसि – त्वं अपश्यः
  3. यूयं चलथ – यूयं अचलत
  4. युवां मिलथः – युवां अमिलतम्
  5. के पश्यन्ति – के अपश्यन्

प्रश्न 7.
मञ्जूषायाः उचित पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत :

(जॉर्ज स्टीफेन्सनेन, रेलस्थानकानि, महत्, एटीन ओहमिसेन रेडियो, स्कूटरयानस्य, रोगाः)
प्रश्नोत्तर:

  1. देशे बहूनि रेलस्थानकानि वर्तन्ते ।
  2. रेल चालक यंत्र जार्ज स्टीफेन्सनेन निर्मितमासीत्।
  3. विद्युतः उत्पादनाय डायनेमो नामकं यन्त्र अनिवार्य वर्तन्ते ।
  4. अधुना टेलीविजनयन्त्रं महत् उपकारक सिध्यति ।
  5. हेलीकॉप्टरनामकं वायुयानं एटीन ओहमिसेन नामकेन वैज्ञानिकेन । कृतः।
  6. रेडियो यन्त्रेण दूरस्थाः शब्दाः गृहीयन्ते ।।
  7. आयुर्विज्ञानस्य आविष्कारैः रोगाः दूरी क्रियन्ते

प्रश्न 8.
उचित कथनानां समक्षम ‘आमू’ अनुचित कथनानां समक्षं ‘न’ इति
लिखत-
यथा –
विज्ञान प्रभवानि उपकरणानि सर्वेषां जीवने प्रविष्टानि सन्ति । (आम्)
प्रश्नोत्तर :

  1. गैलेलियो नामक: वैज्ञानिकः इटली देशवासी आसीत् । – (आम्)
  2. एडीसन नामक: वैज्ञानिकः अपि इटली देशवासी आसीत् । – (न)
  3. मोटरकारस्य आविष्कारं माइकल फेराडे कृतवान। – (न)
  4. टेलीविजनयन्त्रस्य आविष्कारकः आस्टीन महोदयः आसीत् । – (न)
  5. कम्प्यूटरयन्त्रस्य आविष्कारः 1946 वर्षे अभवत्। – (आम्)
  6. स्कूटर यानस्य आविष्कारं जगदीशचन्द्र बोस महोदयः अकरोत् । – (न)

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

प्रश्न 9.
अर्थानुसारेण पदानि सुमेलयत् :
पद – अर्थ

  1. अधुना – सौ।
  2. शतम् – आया
  3. कृतवान् – इस समय
  4. अहर्निशम् – सिद्ध होता है
  5. समागतम् – उसके ही
  6. सिध्यति – बिजली का
  7. विद्युतः – दिन-रात
  8. तस्यैव – किया

उत्तरम् –

  1. अधुना – इस समय ।
  2. शतम् – सौ।
  3. कृतवान् – किया ।
  4. अहर्निशम् – दिन-रात ।
  5. समागतम् – आया ।
  6. सिध्यति – सिद्ध होता है।
  7. विद्युतः – बिजली का ।
  8. तस्यैव – उसके ही।

प्रश्न 10.
अधोलिखितानां पदानां सन्धि सन्धि विच्छेदं वा कुरुत :
प्रश्नोत्तरम् :

  1. न + अस्ति = नास्ति ।
  2. अति + उपयोगिनः = अत्युपयोगिनः ।
  3. तस्य + आविष्कारः = तस्याविष्कारः ।
  4. अहः + निशम् = अहर्निशम् ।
  5. एक + एकम् = एकैकम् ।
  6. तस्य + एव = तस्यैव ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि

प्रश्न 11.
‘क्त’ प्रत्ययस्थ प्रयोगं कृत्वां त्रिषु लिङ्गेषु रूपाणि लिखन्तु

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 11 विज्ञानस्य उपकरणानि 2

प्रश्न 12.
अधोलिखितानि अशुद्धानि पदानि शुद्धानि कृत्वा लिखत :

  1. सूचितानि
  2. अहर्निशम्स्मृ
  3. तिसंग्रहणे
  4. श्रेणीकरणे
  5. सर्वाण्यपि
  6. आविष्कारम्य
  7. न्त्रमनिवार्यम्गृ
  8.  ह्यन्ते।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद: Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

Bihar Board Class 8 Sanskrit गुरु-शिष्य-संवाद: Text Book Questions and Answers

(अष्टमकक्षायाः दृश्यम्, आसनेषु स्थिता: बालकाः बालिकाश्च । पृष्ठभूमौ कृष्णपट्टः समक्षं फलकम्, तस्योपरि मार्जनी पट्टलेखी च । शिक्षकस्य प्रवेशः, सर्वे छात्राः उत्तिष्ठन्ति ।)
अर्थ – अष्टम वर्ग का दृश्य है, अपने-अपने आसन (बेंच) पर लड़के और लड़कियाँ बैठी हैं। पृष्ठभूमि (सामने की दीवार) में श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड) सामने में टेबुल, उसपर डस्टर और खल्ली है। शिक्षक का प्रवेश होता है। सभी छात्र उठ जाते हैं।).

छात्राः (समवेतस्वरेण) प्रणमामो वयं सर्वे।
अर्थ – छात्रों – (एक स्वर में) हम सब आपको प्रणाम करते हैं।)

शिक्षक (दक्षिणं हस्तमुत्थाप्य) – तिष्ठन्तु सर्वे । ।
अर्थ – (दाहिना हाथ उठाकर) सभी बैठ जाएँ।

भावना – गुरुवर ! अद्य किं पाठयिष्यति ?
अर्थ – (गुरुवर ! आज क्या पढाएँगे?)

शिक्षकः – अद्य अनेकान् विषयान् कथयिष्यामि । आदौ विद्यायाः ‘महत्त्वम् ।
अर्थ- आज अनेक विषयों को कहूँगा । सबसे पहले विद्या के महत्त्व को बताता हूँ।

शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते।।
अर्थ – अच्छा है। विद्या के विषय में सुनने की जिज्ञासा हमलोगों की भी।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

अर्थ – आज अनेक विषयों को कहूँगा । सबसे पहले विद्या के महत्त्व को बताता हूँ। :

शीला – शोभनम् । विद्याविषये तु अस्माकमपि जिज्ञासा वर्तते ।
अर्थ – अच्छा है। विद्या के विषय में सुनने की जिज्ञासा हमलोगों की भी

शिक्षकः तर्हि एवं प्राचीनं श्लोकं स्मरतु :
अर्थ – तो इस प्राचीन श्लोक को याद करें।

न चौरहार्यं न च राजहार्य, न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।..
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं, विद्याधनं सर्वधनप्रधानम ॥
अर्थ – विद्या चोर के चुराने योग्य नहीं है और न राजा के द्वारा हरने योग्य है, भाईयों के बीच बाँटने योग्य भी नहीं है और न यह भारी ही लगता है। खर्च करने पर सदैव बढ़ता है। इसीलिए तो कहां गया है विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।

मोईन:-अयं तु अतीव प्रसिद्धः श्लोकः । धनानां सीमा वर्तते, विद्या तु असीमा । अपि किञ्चिदस्ति विद्याविषयकं सुभाषितम् ?
अर्थ – यह तो बहुत प्रसिद्ध श्लोक है। धन की सीमा होती है। विद्या – तो असीम (सीमा रहित) है। विद्या विषय पर कोई और भी सुभाषित है?

शिक्षकः-बहूनि सन्ति । यथा-विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्या ददाति विनयम, विद्याविहीनः पशुः इत्यादीनि । अपरमपि अद्य वदिष्यामि ।
अर्थ – बहुतों हैं। जैसे-विद्या से अमृत (अमरता) की प्राप्ति होती है, विद्या विनम्रता देती है। विद्या से विहीन लोग पशु के समान होते हैं इत्यादि । अन्य भी आज बताऊँगा।

पंकज – तत्रापि रोचकं किमपि कथयतु । वयं किशोराः स्मः । अस्माकं जीवनस्य लक्ष्यं वदतु भवान् ।
अर्थ – वहीं पर कुछ रोचक बातें भी कहें । हम सभी किशोर हैं। हमारे जीवन के लक्ष्य को आप बताएँ।

शिक्षक: यस्मिन् देशे समाजे च वयं निवसामः तं प्रति सर्वेषां किशोराणां कर्त्तव्यमस्ति । अस्याम् अवस्थायां स्वस्थम् आचरणं यदि भवेत् तदा सर्वत्र कल्याणं

शान्तिः सुखं च प्रसरेत् । कुत्रापि विषमताभावं न ध रियेत् । यदपि शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं किशोरावस्थायां भवति, तत् सर्व प्राकृतिकमेव । अतः आश्चर्यं नास्ति ।
अर्थ – जिस देश और समाज में हमलोग रहते हैं उसके प्रति सभी किशोरों (युवकों) का कर्तव्य है। इस अवस्था में स्वस्थ आचरण यदि हो , तो सब जगह कल्याण, शान्ति और सुख का प्रसार होगा । कहीं भी विलगाव

का भाव नहीं धारण करना चाहिए । जबकि शारीरिक और मानसिक परिवर्तन किशोर अवस्था में होता है। यह सब प्राकृतिक ही होता है। अतः इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

वसुन्धरा-गुरुवर ! किशोरान् प्रति भवतः कः उपदेशः ?
अर्थ – गुरुवर ! किशोरों के प्रति आपका क्या उपदेश है।
शिक्षकः – किशोराः अस्मिन् वयसि उद्विग्नाः भवन्ति, सर्वत्र शीघ्रतां कुर्वन्ति । तत् नास्ति उचितम् । सर्वं कार्य कालेन भवति । ईर्ष्या, द्वेषः, लोभः, क्रोधः, अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् इत्येते सर्वे दोषाः सन्ति । अतः तेषां परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति । अन्यथा सर्वम् अध्ययनं व्यर्थम्

अपि च येन कार्येण वयं उद्विग्नाः भवामः तथा अपरान् प्रति न करणीयम् । उक्तञ्च
अर्थ – नवयुवक इस उम्र में उत्तेजित हो जाते हैं। सब जगह शीघ्रता करते. हैं। यह उचित नहीं है सभी कार्य समय से होता है। ईर्ष्या, द्वेष, लोभ, क्रोध, गाली-गलौज का प्रयोग करना और आलस्य ये सभी दोष हैं । अत: इन सबों का परित्याग करने से किशोर और किशोरी (लड़के-लड़कियाँ) विद्या के पात्र होते हैं। अन्यथा सभी पढ़ाई व्यर्थ हो जाता है। जिस कार्य को करने से हमलोग उत्तेजित हो जाते हैं वह कार्य दूसरों के प्रति नहीं करना चाहिए। कहा गया है-

पालनीयं तु सर्वत्र किशोरैरनुशासनम् ।
न क्रोधेन न लोभेन तेषामपि हितं भवेत् ॥
अर्थ – नवयवकों को अनुशासन का पालन सब जगह करना चाहिए। क्रोध और लोभ नहीं करने से उनका (छात्रों का) हित होता है।

त्याज्यं च मादकं द्रव्यं त्यजेदपि कुसंगतिम् ।
पितरौ प्रणमेत् नित्यम् आद्रियेत गुरुनपि ।
अर्थ – मादक पदार्थों का त्याग करना चाहिए। बुरी संगति का त्याग करना चाहिए। माता-पिता को प्रतिदिन प्रणाम करना चाहिए और गुरु का आदर करना चाहिए।

समाजस्योपकाराय कुर्याद् देशहिताय च ।
एवं कृते किशोराणां कल्याणं सार्वकालिकम् ॥
अर्थ – समाज के उपकार के लिए और देश के हित के लिए काम करना चाहिए। ऐसा करने से नवयुवकों का सदैव कल्याण रहेगा।

छात्रा: – अतीव कल्याणकरं वस्तुं दर्शितं भवता।
अर्थ – बहुत कल्याणप्रद बातों को बताया आपने ।

(छात्राः प्रमुदिताः प्रतीयन्ते । शिक्षकः वर्गात् निर्गच्छति ।)
अर्थ – (छात्र लोग खुश नजर आते हैं। शिक्षक वर्ग से निकलते हैं।)

शब्दार्थ

आसनेषु = आसनों पर । पृष्ठभूमौ = पृष्ठभूमि में । कृष्णपट्ट = श्यामपट्ट (Blackboard) । समक्षम् = सामने । फलकम् = टेबुल । तस्योपरि = उसके ऊपर । मार्जनी = डस्टर । पट्टलेखी = चॉक । उत्तिष्ठन्ति = उठते हैं। समवेतस्वरेण = एक स्वर में । दक्षिणम् = दायाँ । हस्तमुत्थाप्य (हस्तम् + उत्थाप्य) = हाथ उठाकर । पाठयिष्यति = पढ़ाएँगे। कथयिष्यामि = कहूँगा । आदौ = आरम्भ (शुरू) में । शोभनम् = अच्छा । विद्याविषये =

जिज्ञासा = जानने की इच्छा । तर्हि = तो । स्मरतु = याद रखें । चौरहार्यम् = चोर द्वारा चुराने योग्य । राजहार्यम् = राजा द्वारा छीनने योग्य । भ्रातृभाज्यम् = भाई द्वारा बाँटने योग्य । भारकारि = भार या बोझ देने वाला । व्यये कृते = खर्च करने पर । वर्धत एव = बढ़ता ही है। नित्यम् = हमेशा, सदा । विद्याधनम् = विद्यारूपी धन । सर्वधनप्रधानम् = सभी धनों में प्रधान । असीमा = असीमित । किञ्चित् = कुछ, कोई । विद्याविषयकम् = विद्या से सम्बन्धित । बहूनि = अनेक । विद्ययाऽमृतमश्नुते = विद्या से अमृत प्राप्त होता है ।

(विद्यया + अमृतम् + अश्नुते) । विद्याविहीनः = विद्या से रहित । अपरम् = दूसरा, अन्य । वदिष्यामि = बोलूँगा। रोचकम् = रोचक, मनोरञ्जक । अस्माकम् = हमलोगों का । वदतु = बोलो, बोलिए । भवान् = आप । यस्मिन् = जिसमें । निवसामः = रहते हैं । तम् प्रति = उसके प्रति । सर्वेषाम् = सबका । किशोराणाम् = किशोरों का । अस्याम् अवस्थायाम् = इस अवस्था में । प्रसरेत् = फैलना चाहिए । स्वपरिवारमेव = (स्वपरिवारम् + एव) = अपना परिवार ही । कुत्रापि (कुत्र + अपि) = कहीं । विषमताभावम् = भेदभावपूर्ण भाव । धारयेत् = धारण करना चाहिए । यदपि (यत् + अपि) = जो भी । किशोरावस्थायाम् = किशोरावस्था में । किशोरान् प्रति = किशोरों के प्रति । भवतः = आपका । अस्मिन् = इसमें । वयसि = आयु

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

छोड़ देने से । पात्राणि = योग्य । अपरान् प्रति = दूसरे के प्रति । करणीयम् = करना चाहिए । उक्तञ्च ( उक्तम् + च) = और कहा गया है। पालनीयम् = पालन करना चाहिए। किशोरैः = किशोरों द्वारा । अनुशासनम् = अनुशासन । तेषामपि (तेषाम् + अपि) = उनका भी। हितम् = हित, कल्याण । भवेत् = होना चाहिए । त्याज्यम् = छोड़ने योग्य । मादकम् = नशीला । द्रव्यम् = पदार्थ । त्यजेत् = छोड़ देना चाहिए । कुसंगतिम् = बुरी संगत (साथ) को । पितरौ = माता-पिता को । प्रणमेत् = प्रणाम करना चाहिए । आद्रियेत = आदर करना चाहिए। गुरुनपि = गुरुओं को भी। समाजस्योपकाराय (समाजस्य + उपकाराय) = समाज के उपकार के लिए । कुर्याद् (कुर्यात्)

(समाजस्य + उपकाराय) = समाज के उपकार के लिए । कुर्याद् (कुर्यात्) = करना चाहिए । देशहिताय = देश के हित के लिए । एवं कृते = ऐसा करने पर । किशोराणाम् = किशोरों का । कल्याणम् = हित । सार्वकालिकम् = हमेशा, सदा । कल्याणकरम् = कल्याण करने वाला । दर्शितम् = दिखाया गया । भवता = आपके द्वारा । प्रमुदिताः = प्रसन्न, खुश । प्रतीयन्ते = प्रतीत होते हैं, लगते हैं। वर्गात् = कक्षा से, वर्ग से । निर्गच्छति = निकलता है।

व्याकरणम्

सन्धि विच्छेद

बालिकाश्च = बालिकाः + च (विसर्ग सन्धि) । तस्योपरि = तस्य + उपरि (गुण सन्धि) । हस्तमुत्थाप्य = हस्तम् + उत्थाप्य । किञ्चिदस्ति = किञ्चित् + अस्ति (व्यञ्जन सन्धि) । विद्ययाऽमृतमश्नुते = विद्यया + अमृतम् + अश्नुते । अपरमपि = अपरम् + अपि । तत्रापि = तत्र + अपि (स्वर सन्धि) । किमपि = किम + अपि । कर्त्तव्यमस्ति = कर्त्तव्यम् + अस्ति । स्वपरिवारमेव । स्वपरिवारम् + एव । कुत्रापि = कुत्र + अपि (स्वर सन्धि) । यदपि = यत् + अपि (व्यञ्जन सन्धि)। किशोरावस्थायाम् = किशोर + अवस्थायाम् (स्वर सन्धि) । प्राकृतिकमेव = प्राकृतिकम् + एव । नास्ति = न + अस्ति (दीर्घ सन्धि) । उद्विग्नाः = उत् + विग्नाः (व्यञ्जन सन्धि) । इत्येते = इति + एते (स्वर सन्धि) । किशोर्यश्च = किशोर्यः + च (विसर्ग सन्धि) । किशोरैरनुशासनम् = किशोरैः + अनुशासनम् (विसर्ग सन्धि) । तेषामपि = तेषाम् + अपि । त्यजेदपि = त्यजेत् + अपि (व्यञ्जन सन्धि)। गरुनपि = गरुन् + अपि ।

प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद 1

अभ्यासः

मौखिक 

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुरुत:
पृष्ठभूमौ, समक्षम्, पट्टलेखी, हस्तमुत्थाप्य, जिज्ञासा, चौरहार्यम्, राजहार्यम्, भ्रातृभाज्यम्, सर्वधनप्रधानम्, किञ्चिदस्ति विद्ययाऽमृतमश्नुते, विद्याविहीनः इत्यादीनि, उद्विग्नाः, अपशब्दानां, किशोर्यश्च, उक्तञ्च, किशोरैरनुशासनम्, त्याज्यम्, कुसंगतिम्, गुरुनपि, समाजस्योपकाराय, सार्वकालिकम्, प्रमुदिताः, निर्गच्छति।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

प्रश्न 2.
निम्नलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत:
प्रश्नोत्तरं :
कृष्णपट्टः = ब्लैकबोर्ड । समक्षम् = सामने । मार्जनी = डस्टर । हस्तमुत्थाप्य = हाथ उठाकर । चौरहार्यम् = चोर के द्वारा चुराने योग्य । राजहार्यम् = राज के द्वारा हरने योग्य । भ्रातृभाज्यम् = भाई के द्वारा बाँटने योग्य । किञ्चित् = थोड़ा, कुछ। अपरम् = दूसरा । प्रसरेत् = फैलना. चाहिए। विषमता भावम् = भेदभावपूर्ण भाव । उद्विग्ना = उत्तेजित । अपशब्दानाम् = गाली-गलौज का । परित्यागेन = परित्याग से । तेषामपि = उनका भी । त्याज्यम् = त्यागने योग्य । मादकम् = नशीला । कुसंगतिम् :बुरी संगति । पितरौ = माता-पिता । सार्वकालिकम् = हमेशा, सब समय में रहने वाला । प्रमुदिताः = खुश, प्रसन्।

लिखित

प्रश्न 3.
निम्नलिखिताना प्रश्नानां उत्तरं एकपदेन लिखत :
(निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में लिखें):

प्रश्नोत्तरम् :
(क) “गुरु शिष्य-संवादः’ इति पाठे कस्याः कक्षायाः दृश्यम् ?
उत्तरम्-
अष्टम्।

(ख) बालकाः बालिकाश्च कुत्र स्थिताः?
उत्तरम्:
आसनेषु ।

(ग) शिक्षकः पाठेऽस्मिन् कस्याः महत्त्वं दर्शयति ?
उत्तरम्-
विद्यायाः।

(घ) किं न चौरहार्यं न राजहार्यं न भ्रातृभाज्यं वा वर्वते ?
उत्तरम्-
विद्या।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

(ङ) सर्वधन प्रधानं धनं किम् ?
उत्तरम्-
विद्या ।

(च) धनानां सीमा का?
उत्तरम्-
असीमा।

(छ) विद्या किं ददाति ?
उत्तरम्-
विनयम।

(ज) विद्याविहीनः जनः कीदृशः भवति ?
उत्तरम्-
पशुः।

(अ) किशोरावस्थायां किशोराः कीदृशाः भवन्ति ?
उत्तरम्-
उद्विग्नाः।

(ट) किशोरैः सर्वत्र किं पालनीयम् ?
उत्तरम्-
अनुशासनम् ।

(ठ) को नित्यं प्रणमेत् ?
उत्तरम्-
पितरौ ।

(ड) शिक्षकः कस्मात् निर्गच्छति ?
उत्तरम् –
वर्गात् ।

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तर पूर्ण वाक्येन लिखत
(क) कक्षायां शिक्षकस्य प्रवेशे सति सर्वे छात्राः किं कुर्वन्ति ?
उत्तरम्-
कक्षायां शिक्षकस्य प्रवेशेसति सर्वे छात्रा: उत्तिष्ठन्ति ।

(ख) छात्राः समवेतस्वरेण किं वदन्ति ?
उत्तरम्-
छात्राः समवेतस्वरेण वदन्ति यत्-प्रणमामो वयं सर्वे ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

(ग) शिक्षकः कं हस्तम् उत्थाप्य वदति-तिष्ठन्तु सर्वे।
उत्तरम्-
शिक्षकः छात्रान दक्षिणं हस्तम् उत्थाप्य वदति-तिष्ठन्तु सर्वे ।

(घ) शिक्षकः आदौ कस्याः महत्त्वं दर्शयति ?
उत्तरम्-
शिक्षक: आदौ विद्यायाः महत्त्वम् दर्शयति ।

(ङ) किशोरावस्थायाः के के दोषाः सन्ति ?
उत्तर-
किशोरावस्थायाः ईर्ष्या, द्वेषः लोभः, क्रोधः अपशब्दानां प्रयोगः, आलस्यम् आदाः दोषाः सन्ति ।

(च) केषां परित्यागेन किशोरा: किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति ?
उत्तरम्-
दोषानाम् परित्यागेन किशोराः किशोर्यश्च विद्यायाः पात्राणि भवन्ति ।

(छ) येन कार्येण वयम् उद्विग्नाः भवामः तया कान् प्रति न करणीयम्?
उत्तरम्-
येन कार्येण वयम् उद्विग्ना : भवामः तया अपरान् प्रति न करणीयम् ।

(ज) को नित्यं प्रणमेत् ।
उत्तरम्-
माता-पितरौ नित्यं प्रणमेत् ?

(झ) कान् नित्यम् आद्रियेत ?
उत्तरम्-
गुरुन्, नित्यम् आद्रियेत ।

प्रश्न 5.
मञ्जूषायाः उचितानि पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत :

पृष्ठभूमौ, समक्षम्, विद्याधनम्, विनयम्, पशुसमानः, अनुशासनम्, कुसंगतिम्, त्याज्यम्, किशोराः, प्राकृतिकम्।

  1. कृष्णपट्टः ……….. वर्तते ।
  2. फलकं …………. वर्तते।
  3. सर्वधनप्रधानं ………….. ।
  4. विद्या ददाति …………..।
  5. विद्याविहीनः ………….. ।
  6. किशोरैः सर्वत्र ………. पालनीयम्।
  7. ………… त्यजेत् ।
  8. मादक द्रव्यं …………. उद्विग्ना भवन्ति ।
  9. किशोरावस्थायां शारीरिक मानसिकं च परिवर्तनं ………. एव ।

उत्तरम्-

  1. पृष्ठभूमी
  2. ‘समक्षम्’
  3. विद्या धनं
  4. विनयम्
  5. पशु समानः
  6. अनुशासनम्
  7. कुसंगतिम्
  8. किशोराः
  9. प्राकृतिकम्।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

प्रश्न 6.
निम्नलिखितानां पदानां बहुवचनं लिखत :
प्रश्नोत्तरम् :

  1. उत्तिष्ठति = उतिष्ठन्ति ।
  2. तिष्ठतु = तिष्ठन्तु ।
  3. पाठयिष्यति = पाठिष्यन्ति ।
  4. कथयिष्यामि = कथयिष्यामः ।
  5. स्मरतु = स्मरन्तु ।
  6. वर्तते = वर्तन्ते ।
  7. वदिष्यामि = वदिष्यामः।
  8. भवति = भवन्ति ।
  9. करोति = कुर्वन्ति ।
  10. निर्गच्छति = निर्गच्छन्ति ।

प्रश्न 7.
पदानि योजयित्वा लिखत :
प्रश्नोत्तरम् :

  1. अपरम् + अपि = अपरमपि ।
  2. हस्तम् + उत्थाप्य = हस्तमुत्थाप्य ।
  3. अस्माकम् + अपि = अस्माकमपि ।
  4. अपरम् + अपि = अपरमपि ।
  5. किम् + अपि = किमपि ।
  6. कर्तव्यम् + अस्ति = कर्त्तव्यमस्ति ।
  7. स्वपरिवारम् + एव = स्वपरिवारमेव ।
  8. प्राकृतिकम् + एव = प्राकृतिकमेव ।
  9. तेषाम् +.अपि – तेषामपि ।
  10. गुरुन् + अपि = गुरुनपि।

प्रश्न 8.
संस्कृते अनुवादं कुरुत
प्रश्नोत्तरम्:

  1. आज क्या पढ़ाएँगे = अद्य किं पाठयिष्यति।
  2. आरम्भ में विद्या का महत्त्व कहूँगा? = आदौ विद्यायाः महत्त्वं कथयिष्यामि।
  3. धन की सीमा होती है। = धनस्य सीमा भवति।
  4. विद्या विनय देती है। = विद्या विनयं ददाति ।
  5. विद्या से रहित व्यक्ति पशु के समान होता है । = विद्ययाहीन: जनः पशु समानः भवति ।
  6. छात्र प्रसन्न प्रतीत होते हैं । = छात्राः प्रसन्नप्रतीताः सन्ति ।

प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारेण विभक्ति निर्णयं कुरुत

यथा –
आसनेषु – सप्तमी विभक्ति
प्रश्नोत्तरम् :

  1. बालकाः – प्रथमा विभक्ति
  2. पृष्ठभूमौ – सप्तमी विभक्ति
  3. शिक्षकस्य – षष्ठी विभक्ति
  4. अवस्थायाम् – सप्तमी विभक्ति
  5. अस्मिन् – सप्तमी एकवचन
  6. पात्राणि – प्रथमा बहुवचन
  7. किशोरैः – षष्ठी बहुवचन
  8. गुरुन् – द्वितीया विभक्ति बहुवचन
  9. उपकाराय – चतुर्थी बहुवचन
  10. शिक्षकः – पाठिष्यति

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 10 गुरु-शिष्य-संवाद:

प्रश्न 10.
उदाहरणानुसारेण वचन निर्णयं कुरुत :
यथा –
बालिकाः – बहुवचनम्
प्रश्नोत्तरम्-

  1. बालकाः – बहुवचनम्
  2. श्लोकः – एकवचनम्
  3. पशुः – एकवचनम्
  4. किशोराः – बहुवचनम्
  5. पितरौ – द्विवचनम्

प्रश्न 11.
निम्नलिखितानां पदानां सन्धि सन्धिविच्छेदं वा कुरुत-
उत्तरम्-

  1. तस्य + उपरि = तस्योपरि ।
  2. तत्र + अपि = तत्रापि ।
  3. यत् + अपि = यदपि ।
  4. उत् + विग्नाः उद्विग्नाः ।
  5. किशोर + अवस्था = किशोरावस्था ।
  6. किञ्चित् + अस्ति = किञ्चदस्ति ।
  7. किशोरैः + अनुशासनम् = किशोरैरनुशासनम् ।
  8. निः + गच्छति = निर्गच्छति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

Bihar Board Class 8 Sanskrit संकल्प वीर: दशरथ माँझी Text Book Questions and Answers

जयन्ति कर्मवीरास्ते कृतभूरिपरिश्रमाः। सर्वेषामुपकाराय येषां संकल्पसिद्धयः ॥
अर्थ-जिन्होंने खूब परिश्रम किया ऐसे कर्मवीरो आपकी जय हो। क्योंकि आपके द्वारा किया गया कार्य का फल सबों के उपकार के लिए होता

दुर्बलकायः स्वदेमुख: रिक्तोदरः कौपीनवसनः कृषिकः ग्रामक्षेत्रेषु सर्वदा श्रमं करोति । ग्रामेषु प्रायेणार्थव्यवस्थायाः आधारः कृषिरेव वर्तते । किन्तु कृषिकाः आवश्यकवस्तूनि क्रेतुं निकटस्थान् अट्टान् आपणान् च. गच्छन्ति । बिहारप्रान्तस्य गयामण्डले उटजप्रधाने ग्रामे गहलौरनामके कश्चित् कृषिश्रमिकः न्यवसत् । तस्य नाम दशरथ माँझी इत्यासीत् । अतीव परिश्रमी संकल्पवान् चासीत् । सः तस्य ग्रामः राजगीर-पर्वतमालायाः एकभागे अवर्तत । तस्य ग्रामस्य आपणस्थानं वजीरगंजे आसीत् । उभयोः ।

अनेन संकल्पेन दशरथं प्रति ग्रामीणाः जनाः उपहासं कृतवन्तः । किन्तु निरक्षरोऽपि दशरथः दृढसंकल्पवान् जातः। यद्यपि स कुठारेण काष्ठानयनस्य कार्याणि कृत्वा क्षेत्राणां कर्षणं च कृत्वा जीवनं यापयति, तथापि तस्मात् दिवसात् प्रस्तरछेदनाय अपि उपकरणानि क्रीत्वा स स्वसंकल्पस्य पूरणे प्रवृत्तः । दिनानि व्यतीतानि वर्षानि च गतानि । शैनः-शनैः अस्य श्रमिकस्य परिश्रमः प्रत्यक्षो जातः । द्वाविंशतिवर्षेषु एकः विस्तीर्णः मार्ग: पर्वतमध्ये निर्मितः, नाव कस्यापि शारीरिकः सहयोगः प्राप्तः । प्रस्तरखण्डानि भग्नानि । गहलौरात् वजीरगंजस्य मार्ग: अल्पीभूतः । एतेषु वर्षेषु दशरथ माँझी बहून सम्मानान् लब्धवान् । पर्वतमार्गश्च तस्य नाम्ना अभिहितः । ग्रामे प्रशासनेन तदनु सामुदायिक भवनं निर्मितं चिकित्सालयश्च तस्य नाम्ना स्थापितः । राज्यप्रशासनं तस्मै ‘पर्वतपुरुष’ इति सम्मानोपाधिम् अयच्छत् । दशरथस्य उदाहरणेन स्पष्टं भवति यत् कोऽपि जनः दृढेन संकल्पेन कठिनं किञ्च असम्भवमपि कार्य कृत्वा यशो लभते एतादृशाः कर्मवीराः एव समाजस्य वास्तविकाः सेवकाः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

अर्थ इस निश्चय को जानकर ग्रामीण लोगों ने दशरथ मांझी का उपहास भी किया। लेकिन निरक्षर दशरथ दृढ़ निश्चयी हो गया। जबकि वह कुल्हाड़ी से काटकर लकड़ी लाने का काम और खेतों को जोतकर जीवन-यापन किया करता था। इसके बाद भी उसी दिन से पत्थर काटने के लिए उपकरणों (छेनी, हथौड़ा) खरीदकर वह अपने संकल्प को पूरा करने में लग गया । दिन बीता और वर्ष भी बीतने चला । इस मजदूर का परिश्रम दिखने लगा । बाईस वर्षों में एक चौड़ा मार्ग पहाड़ के बीच में निर्माण हो गया। इसमें किसी का शारीरिक सहयोग नहीं प्राप्त हुआ। पत्थर के टुकड़े-टुकड़े होकर टूट गये।

गहलौर से वजीरगंज का मार्ग छोटा हो गया । इन वर्षों में दशरथ माँझी बहुत सम्मान पाये । वह पर्वतीय मार्ग उन्हीं के नाम से जाना जाता है। उसके बाद ग्राम प्रशासन के द्वारा सामुदायिक भवन और अस्पताल निर्माण उन्हीं के नाम से किया गया। राज्य सरकार उनको ‘पर्वत पुरुष’ इस सम्मानजनक उपाधि से विभूषित किया । दशरथ माँझी के उदाहरण से स्पष्ट होता है कि कोई भी व्यक्ति दृढ़ संकल्प से कुछ भी असम्भव कार्य को करने का यश प्राप्त कर सकता है। ऐसे कर्मवीर लोग ही समाज के वास्तविक सेवक होते हैं।

शब्दार्थ

कृतभूरिपरिश्रमाः = जिन्होंने खूब परिश्रम किये हैं। सर्वेषाम् = सबका/सबकी, सबके । उपकाराय = उपकार के लिए । संकल्पसिद्धयः = संकल्पित कार्य के फल । दुर्बलकायः = दुबले शरीर वाला । स्वेदमुखः = पसीना युक्त मुँह । रिक्तोदरः = खाली पेट । कौपीनवसनः = लंगोटी धारण किये हुए । कृषिकः = किसान । ग्रामक्षेत्रेषु = ग्रामीण इलाकों में । केतुम् = खरीदने हेतु । निकटस्थान = समीप स्थित (को) । अट्टान् = हाटों को। आपणान् = दुकानों को । उटजप्रधाने = झोपड़ी बहुल । कृषिश्रमिकः = खेतिहर मजदूर । न्यवसत् = निवास करता था। संकीर्णः = सँकरा, तंग। बाधारूपः = बाधा पहुँचाने वाला । पदयात्रिकाः = पदयात्री लोग, पैदल चलने वाले । चलितुम् = चलने में ।

अनुभूतवन्तः = अनुभव करते थे। विस्तारीकरणे = चौड़ा करने में। नीत्वा = लेकर । भग्नो (भग्नः) जातः = टूट गया। मानसे = मन में । मार्गमेतम् (मार्गम् + एतम्) = इस रास्ते को । अहमेव (अहम् + एव) = मैं ही । विनाश्य = नाश/समाप्त करके । निर्मास्यामि = बनाऊँगा, निर्माण करूँगा। उपहासम् = मजाक । दृढसंकल्पवान् = दृढ़ निश्चय वाला । काष्ठामयनस्य = लकड़ी ढोने का । कुठारेण = कुल्हाड़ी से। कर्षणम् = जुताई । क्षेत्राणाम् = खेतों का/की/के । यापयति = बिताता है । प्रस्तरछेदनाय = पत्थर काटने के लिए । पूरणे = पूरा करने में । प्रवृत्तः = लग गया । व्यतीतानि = बिताये गये/बीत गये । गतानि = गये । अल्पीभूतः = छोटा हो गया । द्वाविंशतिवर्षेषु = बाइस वर्षों में । नाम्ना = नाम से । अभिहितः = पुकारा गया । तदनु = उसके बाद । अयच्छत् = दिया । किञ्च = इसके अतिरिक्त । एतादशाः = इस प्रकार के।’

व्याकरणम्

सन्धिविच्छेद

कर्मवीरास्ते = कर्मवीराः + ते (विसर्ग सन्धि)। रिक्तोदरः = रिक्त + उदरः (गुण-सन्धि) । प्रायेणार्थव्यवस्थायाः = प्रायेण + अर्थव्यवस्थायाः (दीर्घ सन्धि) । कृषिरेव = कृषिः + एव (विसर्ग सन्धि) । इत्यासीत् = इति + आसीत् (यण् सन्धि) । चासीत् = च + आसीत् (दीर्घ सन्धि) । यद्यपि = यदि + अपि (यण् सन्धि)। नासन् = न. + आसन् (दीर्घ सन्धि)। कृषिकाश्च = कृषिकाः + च (विसर्ग सन्धि)। कठोरस्यापि = कठोरस्य + अपि (दीर्घ सन्धि) । निरक्षरोऽपि = निः + अक्षरः + अपि (विसर्ग सन्धि)। काष्ठानयनस्य = काष्ठ + आनयनस्य (दीर्घ सन्धि) । तथापि = तथा + अपि (दीर्घ सन्धि) । कस्यापि = कस्य + अपि (दीर्घ सन्धि) । चिकित्सालयश्च = चिकित्सा + आलयः + च (दीर्घ सन्धि)। सम्मानोपाधिम् = सम्मान + उपाधिम् (गुण + सन्धि)।
प्रकृति-प्रत्यय-विभाग :

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर दशरथ माँझी 1

अभ्यास

मौखिक

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां शब्दानाम् उच्चारणं कुरुत
(निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण करें):
रिक्तोदरः आपणस्थानम्, इत्यासीत्, प्रायेणार्थव्यवस्थायाः, अट्टान्, निर्मास्यामि, द्वाविंशतिवर्षेषु, असम्भवमपि, सम्मानोपाधिम्।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

प्रश्न 2.
कृषिकस्य विषये संस्कृतभाषायां द्वे वाक्ये वदत
उत्तरम्-

  1. कृषिकाः ग्रामवासिनः भवन्ति ।
  2. कृषिकाः कृषिकार्यं कुर्वन्ति ।

प्रश्न 3.
निम्नलिखितानां शब्दानाम् अर्थं वदत:
अट्टान, कौपीनः, स्वेदः, आपणम्, चलितुम्, कर्षणम्, अयच्छत्
उत्तरम्-

  1. अट्टान = हाट (बाजार) ।
  2. कौपीनः = लंगोटी ।
  3. स्वेदः = पसीना ।
  4. आपणम् = दुकान ।
  5. चलितुम् = चलने के लिए ।
  6. कर्षणम् = जुताई ।
  7. अयच्छत् = दिया, प्रदान किया।

लिखित

प्रश्न 4.
अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरम् एकेन पदेन लिखत :
(क) अस्मिन पाठे संकल्पवीरः कः ?
उत्तरम्-
दशरथ माँझी।

(ख) सम्प्रति भारतवर्षे ग्रामीण क्षेत्रे अर्थ व्यवस्थायाः मख्याधार कः?
उत्तरम्-
कृषिकार्यम् ।

(ग) ग्रामीण: क्षेत्रे कृषिका: आवश्यक वस्तूनि क्रेतुं कुत्र गच्छन्ति ?
उत्तरम्-
अट्टान ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

(घ) दशरथ मांझी कस्मिन् ग्रामे वसति स्म?
उत्तरम्-
गहलौरे।

(ङ) राज्य प्रशासनं कस्मै ‘पर्वत पुरुष’ इति सम्मानोपाधिम् अयच्छत् ?
उत्तरम्-
दशरथाय।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरं पूर्णवाक्येन लिखत
(क) दशरथ मांझी कीदृशः आसीत् ?
उत्तरम्-
दशरथ माँझी परिश्रमी दृढ़ संकल्पः च आसीत् ।

(ख) दशरथ माँझी महोदयस्य ग्रामः कुत्र स्थितः आसीत् ?
उत्तरम्-
दशरथ माँझी महोदयस्य ग्रामः राजगीर पर्वतमालायाः मध्ये स्थितः आसीत् ।

(ग) कयोः स्थानयोः मध्ये पर्वतस्य संकीर्णः मार्गः बाधा रूपः आसीत् ?
उत्तरम्-
गहलौर वजीरगंजयोः मध्ये पर्वतस्य संकीर्णः मार्गः बाधारूप: आसीत्।

(घ) कं प्रति ग्रामीणाः जनाः उपहासं कृतवन्तः ?
उत्तर-
दशरथ माँझी महोदयं प्रति ग्रामीणाः जनाः उपहासं कुलवन्तः ।

(ङ) दशरथस्य उदाहरणेन का शिक्षा मिलति ?
उत्तरम्-
दशरथस्य उदाहरणेन शिक्षा मिलति यत्-कोपि जन: दृढ़ेन संकल्पेन कठिनं कार्यं कृत्वा यशः लभते ।

(च) कस्याः कष्टं दृष्ट्वा दशरथः संकल्पं कृतवान् ?
उत्तरम्-
पत्न्याः कष्टं दृष्ट्वा दशरथ: संकल्पं कृतवान् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

प्रश्न 6.
मञ्जूषायाः उचितपदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत
(वजीरगंजे, संकीर्णः, कृषिरेव, दशरथ माँझी, राजगीर पर्वतमालायाः, गहलौर, अल्पीभूतः)
प्रश्नोत्तरम्-

  1. ग्रामेषु प्रायेणार्थ व्यवस्थायाः आधारः कृषिरेव वर्तते ।।
  2. तस्य ग्रामस्य आपणस्थानं वजीरगंजे आसीत् ।
  3. गहलौरात् वजीरगंजस्य मार्गः अल्पीभूतः।
  4. उभयोः स्थानयोः मध्ये पर्वतस्य संकीर्णः मार्गः बाधारूपः अभवत् ।
  5. तस्य ग्रामः राजगीर पर्वतमालायाः एकभागे अवर्तत। पंचमी..
  6. उटज प्रधाने ग्रामे गहलौर नामके कश्चित् कृषि श्रमिक: न्यवसत् ।
  7. तस्य नाम दशरथ माँझी इत्यासीत् ।

प्रश्न 7.
अधोलिखितेषु पदेषु प्रयुक्तां विभक्ति वचनं च लिखत :
पदानि – विभक्तिः – वचनम्

यथा-
क्षेत्रेषु – सप्तमी – बहुवचनम्
प्रश्नोत्तरम् :

  1. ग्रामेषु – सप्तमी – बहुवचनम्
  2. दुर्बलकायः – प्रथमा – एकवचनम्
  3. क्षेत्राणाम् – षष्ठी – बहुवचनम्
  4. तस्मात् – पंचमी – एकवचनम्
  5. नाम्ना – तृतीया – एकवचनम्
  6. तस्य – षष्ठी – एकवचनम्
  7. पर्वतस्य – षष्ठी – एकवचनम्
  8. तस्मिन् – सप्तमी – एकवचनम्

प्रश्न 8.
अधोलिखितानि पदानि आधृत्य वाक्यानि रचयत

(सर्वदा, कृषकः, उभयोः, ग्रामेषु, अतीव)
प्रश्नोत्तरम्-

  1. सर्वदा – सर्वदा बालकाः पठेयुः।
  2. कृषकः – कृषक: कृषिकर्म करोति ।
  3. उभयोः – गंगायाउभयोः तट्योः नगरानि सन्ति ।
  4. ग्रामेषु – ग्रामेषु कृषिका: वसन्ति ।
  5. अतीव: – स: अतीव परिश्रमी आसीत् ।

प्रश्न 9.
सुमेलनं कुरुत :

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर दशरथ माँझी 2

उत्तरम्-
(क) – (2)
(ख) – (5)
(ग) – (1)
(घ) – (6)
(ङ) – (4)
(च) – (3)

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

प्रश्न 10.
अधोलिखितानां पदानां सन्धिं सन्धि विच्छेदं वा कुरुत
प्रश्नोत्तरम-

  1. यदि + अपि = यद्यपि ।
  2. च + आसीत् = चासीत् ।
  3. न + आसन = नासन् ।
  4. रिक्त + उदरः = रिक्तोदरः।
  5. इति + आसीत् = इत्यासीत् ।
  6. क: + चित् = कश्चित् ।

प्रश्न 11.
वचन-परिवर्तनं कुरुत:।

एकवचनम् – बहुवचनम्
यथा-
करोति – कुर्वन्ति ।
उत्तरम्-
एकवचनम् – बहुवचनम्

  1. गच्छति । – गच्छन्ति ।
  2. आगीत – आसन्
  3. वर्तते – वर्तन्ते.
  4. अगच्छत् । – अगच्छन्
  5. करिष्यामि – करिष्यामः
  6. अकरोत् – अकुर्वन्
  7. रक्षतु – रक्षन्तु
  8. भवसि – भवथ

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 9 संकल्प वीर: दशरथ माँझी

प्रश्न 12.
उदाहरणानुसारं अव्यय पदानि चिनुत
यथा –
दुर्बलकायः कृषिकः ग्रामक्षेत्रेषु सर्वदा श्रमं करोति । = सर्वदा
प्रश्नोत्तर:

  1. ग्रामेषु अर्थव्यवस्थायाः आधारः प्रायेण कृषिः वर्तते । = प्रायेण ।
  2. दशरथः परिश्रमी संकल्पवान च आसीत् । = च।
  3. शनैः शनैः अस्य श्रमिकस्य परिश्रमः प्रत्यक्षो जातः । = शनैः-शनैः ।
  4. एतादृशाः कर्मवीराः एव समाजस्य वास्तविकाः सेवकाः । = एव ।
  5. यात्रिकाः अपि चलितुम् असमर्थाः आसन् । = अपि ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

Bihar Board Class 8 Sanskrit प्राचीनाः विश्वविद्यालयः Text Book Questions and Answers

बहूनां शास्त्राणां ज्ञानविषयाणां च यत्र शिक्षा दीयते तस्यैव अभिधानं विश्वविद्यालय इति । तत्र सुयोग्याः अध्यापकाः निष्पक्षभावेन छात्रान् पाठयन्ति । छात्राश्च परीक्षानन्तरमेव तत्र प्रवेशं लभन्ते । विश्वविद्यालयाः ज्ञानकेन्द्राणि भवन्ति ज्ञानस्य विकासोऽपि तत्र निरन्तरं जायते ।

अर्थ-अनेक शास्त्रों का और ज्ञानविषयों का जहाँ शिक्षा दी जाती है उसी का नाम विश्वविद्यालय है । वहाँ सुयोग्य शिक्षक लोग निष्पक्ष भाव से – छात्रों को पढ़ाते हैं। छात्र प्रवेश परीक्षा के बाद ही वहाँ प्रवेश पाते हैं। विश्वविद्यालय ज्ञान के केन्द्र होते हैं । ज्ञान का विकास भी वहाँ हमेशा होता है।

प्राचीने भारते तक्षशिलायां प्रसिद्धः विश्वविद्यालयः षष्ठशतके ईस्वीपूर्वमेव अवर्तत । बौद्धसाहित्ये तक्षशिलायाः भूयो भूयः उल्लेखो वर्तते । अयं विश्वविद्यालयः गान्धारदेशे आसीत्। तस्य देशस्य तक्षशिलायां राजधानी बभूव । सम्प्रति तक्षशिलाया: भग्नावशेषाः पाकिस्तानदेशे रावलपिण्डीसमीपे सन्ति। अत्र धनुर्वेदस्य, आयुर्वेदस्य तथा अन्यासां विद्यानामपि शिक्षणम् आसीत् । अत्र बुद्धकालिकः वैद्यः जीवकः, वैयाकरण: पाणिनिः, मौर्यराज्यस्य संस्थापकः चन्द्रगुप्तः, कूटनीतिज्ञः चाणक्यः इत्यादयः प्रसिद्धः छात्राः अधीतवन्तः।

अर्थ – प्राचीन भारत में तक्षशिला में प्रसिद्ध विश्वविद्यालय छ: सौ ई. पूर्व . ही स्थापित हुआ था । बौद्ध साहित्य में तक्षशिला का बार-बार उल्लेख है। यह विश्वविद्यालय गान्धार देश में था। उस देश का तक्षशिला में राजधानी था। आजकल तक्षशिला का भग्नावशेष पाकिस्तान देश में रावलपिण्डी के समीप है। यहाँ धनुष विद्या, आयुर्वेद विद्या, तथा अन्य विद्याओं का शिक्षण दिया जाता था । यहाँ बुद्धकालीन वैद्य जीवक, वैयाकरण पाणिनी, मौर्य राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त, कूटनीति को जाननेवाला चाणक्य इत्यादि प्रसिद्ध छात्रगण अध्ययन किये थे।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

नालन्दा विश्वविद्यालयः बिहारे एव आसीत् । अस्य भग्नावशेषाः विशालक्षेत्रे अवस्थिताः सन्ति । कुमारगुप्तेन पञ्चमशतके ख्रीष्टाब्दे अस्य स्थापना कृता । प्रायः सप्तशतानि वर्षाणि अयम् अवस्थितः । बर्बराणाम् आक्रमणेन अस्य विध्वंसी जातः। अत्रानेके चीनयात्रिका: बहूनि वर्षाणि अधीतवन्तः । तेषु हुएनसांगः प्रधानः । तेन विश्वविद्यालयस्य विस्तृतं विवरणं दत्तम् । अत्र दशसहस्राणि छात्रा: एकसहस्रमध्यापकाः निवसन्ति । स्म । यद्यपि बौद्धधर्म अस्य अभिनिवेशः आसीत् किन्तु बहूनां शास्त्राणामपि वर्णनं स करोति । तानि अत्र पाठ्यन्ते स्म । अस्य विश्वविद्यालयस्य त्रयः महान्तः पुस्तकालयाः सप्तसु तलेषु अविद्यन्त । भग्नावशेषेण विश्वविद्यालयस्य विशालता ज्ञायते।

अर्थनालन्दा विश्वविद्यालय बिहार में ही था। इसके भग्नावशेष (खण्डहर) बहुत बड़े भूभाग में अवस्थित है। कुमार गुप्त के द्वारा पाँचवीं शताब्दी में इसकी स्थापना की गई थी। लगभग सात सौ वर्षों तक यह कायम रहा । क्रूर आक्रमणकारियों के आक्रमण से इसका नाश कर दिया गया । यहाँ अनेक चीन यात्री बहुत वर्षों तक अध्ययन किये थे । उनमें से हुएनसांग प्रधान है। उसके द्वारा विश्वविद्यालय का विस्तारपूर्वक विवरण दिया गया है। यहाँ दस हजार छात्र और एक हजार अध्यापक रहते थे। जबकि बौद्ध धर्म में इसका लगाव था। अनेक शास्त्रों का वर्णन भी यहाँ किया गया था जिसको वहाँ पढ़ाया जाता था। इस विश्वविद्यालय का तीन बहुत बड़ा पुस्तकालय सात

मंजिल पर मौजूद था। खण्डहर से विश्वविद्यालय की विशालता का पता चलता है।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

बिहारराज्ये एव पालवंशीयेन राज्ञा धर्मपालेन अष्टम-शतके संस्थापितः विक्रमशिला- विश्वविद्यालयः अपि अनेक शास्त्राणां शिक्षणाय प्रसिद्धः आसीत् । अत्रापि नालन्दायामिव चीनतिब्बतादि-देशेभ्यः आगताः छात्राः अधीयते स्म । केचन अध्यापका अपि उभाभ्यां विद्यापीठाभ्यां तिब्बते चीने वा निमन्त्रिता: गच्छन्ति स्म । अस्यापि विक्रमशिलाविश्वविद्यालयस्य विनाश: नालन्दया सार्धं बबरैः कृतः धनलुण्ठनाशया । उभौ विश्वविद्यालयौ बिहारस्य गौरवभूतौ स्तः ।

अर्थ-बिहार राज्य में ही पालवंशीय राजा धर्मपाल के द्वारा स्थापित विक्रमशिला विश्वविद्यालय भी अनेक शास्त्रों के शिक्षण के लिए प्रसिद्ध था । यहाँ भी नालन्दा की तरह ही चीन, तिब्बत आदि देशों से आकर छात्र अध्ययन करते थे। कुछ अध्यापक भी दोनों विद्यापीठों (विश्वविद्यालयों) से तिब्बत और चीन निमंत्रित होकर गये थे। इस विक्रमशिला विश्वविद्यालय का भी विनाश नालन्दा के साथ क्रूरों के द्वारा धन लूटने की आशा से कर दिया गया। दोनों विश्वविद्यालय बिहार के गौरवपूर्ण हैं।

शब्दार्थ

बहूनाम = बहुत का, अनेक का । शास्त्राणाम् = शास्त्रों का । ज्ञानविषयाणाम् = ज्ञान के विषयों का । दीयते = दिया जाता है। तस्यैव (तस्य + एव) = उसी का । अभिधानम् = नाम । निष्पक्षभावेन = निष्पक्ष भाव से, बिना किसी का पक्ष लिये । परीक्षानन्तरमेव = परीक्षा के बाद ही। लभन्ते = पाते हैं। विकासोऽपि = विकास भी । निरन्तरम् = हमेशा । जायते = होता है। प्राचीने = प्राचीन में, पुराने में ।

तक्षशिलायाम् = तक्षशिला में । षष्ठशतके = छठी शताब्दी में । ईस्वीपूर्वमेव = ईस्वी पूर्व ही । अवर्तत = हुआ था। बौद्धसाहित्ये = बौद्ध साहित्य में । तक्षशिलायाः = तक्षशिला का/की । भूयः भूयः = बार-बार । गान्धारदेशे = गान्धार देश में (वर्तमान पाकिस्तान में)। बभूव = हुआ । सम्प्रति = इस समय (साम्प्रतम् = आजकल) । भग्नावशेष: = खण्डहर । रावलपिण्डीसमीपे = रावलपिण्डी के समीप में । अन्यासाम् = दूसरी का/के/की । विद्यानामपि (विद्यानाम् + अपि) = विद्याओं का, विषयों का भी । बुद्धकालिकः = बुद्धकालीन, बुद्ध के समय वाला ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

वैयाकरणः = व्याकरण के विद्वान । मौर्यराज्यस्य = मौर्य राज्य का, के, की । कूटनीतिज्ञः = कूटनीति जाननेवाला । इत्यादयः = इत्यादि । अधीतवन्तः = अध्ययन करते थे। अवस्थिता = स्थित, रही हुई । पञ्चमशतके = पाँचवीं शताब्दी में । ख्र ष्टाब्दे = ईस्वी में । सप्तशतानि = सात सौ । वर्षाणि = वर्ष (बहुवचन)। बर्बराणाम् = बर्बरों के, क्रूरों के। विध्वंसः = नाश । अत्रानेके = यहाँ अनेक । चीनयात्रिकाः = चीनी यात्री । दत्तम् = दिया गया । दशसहस्राणि = दस हजार । एकसहस्रमध्यापकाः = एक हजार अध्यापक ।

निवसन्ति स्म = रहते थे। अभिनिवेशः = लगाव, ज्ञान । शास्त्राणामपि = शास्त्रों का भी। तानि = वे (नपुंसक लिङ्ग)। पाठ्यन्ते = पढ़ाये जाते हैं। त्रयः = तीन (पुंल्लिङ्ग) तिम्रः (स्त्री.) तीन, त्रीणि (नपुं.) तीन । अविद्यन्त = मौजूद थे। विशालता = बड़ा आकार का भाव, भव्यता । ज्ञायते = जाना जाता है। अत्रापि = यहाँ भी । नालन्दायाम् = नालंदा में । आगताः = आये हुए । अधीयते स्म = अध्ययन करते थे। केचन = कोई, कुछ (पुंल्लिङ्ग)। उभाभ्याम् = दोनों से (अपादान कारक) । विद्यापीठाभ्याम् = विद्यापीठों से (अपादान कारक) । अस्यापि = इसका भी । सार्धम् = साथ । धनलुण्ठनाशया (धनलुण्ठन + आशया) = धन को लूटने की आशा से।

व्याकरणम्

सन्धि-विच्छेद

तस्यैव = तस्य + एव (वृद्धि-सन्धि)। छात्राश्च = छात्राः + च (विसर्ग-सन्धि) परीक्षानन्तरमेव = परीक्षा + अनन्तरम् + एव (दीर्घ-सन्धि)। विकासोऽपि = विकासः + अपि (विसर्ग-सन्धि) । ईस्वीपूर्वमेव = ईस्वीपूर्वम् + एव । भग्नावशेषाः = भग्न + अवशेषाः (दीर्घ-सन्धि) । विद्यानामपि = विद्यानाम् + अपि । इत्यादयः = इति + आदयः (यण-सन्धि) । अत्रानेके = अत्र + अनेके (दीर्घ-सन्धि)। शास्त्राणामपि = शास्त्राणाम् + अपि । नालन्दायामिव = नालन्दायाम् + इव । अत्रापि = अत्र + अपि (दीर्घ-सन्धि)। अस्यापि = अस्या + अपि (दीर्घ-सन्धि)। यद्यपि = यदि + अपि (यण-सन्धि)।

प्रकृति-प्रत्यय-विभागः

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीना विश्वविद्यालय 1

अभ्यास

मौखिक

प्रश्न 1.
अधोलिखितानां पदानाम् उच्चारणं कुत
उत्तरम्-
शास्त्राणाम्, तस्यैव, निष्पक्षभावेन, परीक्षानन्तरमेव, दशसहस्राणि, भग्नावशेषेण, धनलुण्ठनाशया, गौरवभूतौ ।

प्रश्न 2.
अधोलिखितानां पदानाम् अर्थं वदत
उत्तरम्-

  1. इति = ऐसा ।
  2. यत्र = जहाँ ।
  3. जायते = होता है ।
  4. भूयोभूयः = बार-बार ।
  5. अधीतवन्तः = अध्ययन करते रहे ।
  6. भग्नावशेषाः = खण्डहरों ।
  7. पञ्चमशतके = पाँचवीं सदी में ।
  8. ख्रीष्टाब्दे = ईस्वी सन् में ।
  9. बबरैः = क्रूरों के द्वारा ।
  10. उभौ = दोनों।।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

प्रश्न 3.
निम्नलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तरम् एकेन पदेन लिखत
(क) तक्षशिला विश्वविद्यालयः कस्मिन देशे आसीत् ?
उत्तरम्-
गान्धार देशे।

(ख) सम्प्रति तक्षशिलायाः भग्नावशेषाः कुत्र सन्ति ?
उत्तरम्-
रालवपिण्डी।

(ग) मौर्य राज्यस्य संस्थापकः कः आसीत् ?
उत्तरम्-
चन्द्रगुप्तः।

(घ) नालन्दा विश्व-विद्यालयस्य भग्नावशेषाः कुत्र सन्ति ?
उत्तरम्-
नालन्दायाम् ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

(ङ) केन आक्रमणेन नालन्दा विश्वविद्यालयस्य विध्वंसो जाः ?
उत्तरम्-
बबरः।

प्रश्न 4.
कोष्ठात् शब्दं चित्वा रिक्तस्थानाम् पूरयत :

  1. षष्ठशतके ईस्वीपूर्वे ………….. विश्वविद्यालयः अवर्तत । (नालन्दा, तक्षशिला)
  2. नालन्दा विश्वविद्यालयः ……….. एव आसीत् । (बिहारे, उत्तरप्रदेशे)
  3. कुमारगुप्तः ……….. विश्वविद्यालयस्य स्थापनां कृतवान् । (विक्रमशिला, नालन्दा)
  4. हुएनसांग ………. देशस्य आसीत्। (अमेरिका, चीन)
  5. धर्मपाल: ……… वंशीयः राजा आसीत्। (पाल, चोल)

उत्तरम्-

  1. तक्षशिला
  2. बिहारे
  3. नालंदा
  4. चीन
  5. पाल।

प्रश्न 5.
निम्नलिखितानां शब्दानां प्रयोगेण संस्कृते वाक्यानि रचयत अभिधानम्, तक्षशिला, चन्द्रगुप्तः, हुएनसांगः, अध्यापकः ।
उत्तरम्-

  1. अभिधानम् = बिहारे पुरा नालन्दा विश्वविद्यालयः अभिधनं शिक्षा केन्द्रम् आसीत्।
  2. तक्षशिला = तक्षशिला विश्वविद्यालयः गान्धार देशे आसीत् ।
  3. चन्द्रगुप्तः = चन्द्रगुप्त मौर्यवंशस्य संस्थापकाः आसीत् ।
  4. हुएनसांग = हुएनसांग चीन देशस्य आसीत् ।
  5. अध्यापकः = अध्यापकः छात्रान् पाठयति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

प्रश्न 6.
मेलनं कुरुत

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीना विश्वविद्यालय 2
उत्तरम्-
(क) – (2)
(ख) – (4)
(ग) – (1)
(घ) – (5)
(ङ) – (3)

प्रश्न 7.
रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम्-
Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीना विश्वविद्यालय 3

प्रश्न 8.
अधोलिखितानां पदानां सन्धि विच्छेदं वा कुरुत

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीना विश्वविद्यालय 4

प्रश्न 9.
प्रकृति-प्रत्यय विभागं कुरुत

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीना विश्वविद्यालय 5

प्रश्न 10.
‘सत्यम्’ अथवा ‘असत्यम्’ लिखत :

यथा –
विश्वविद्यालयः ज्ञानकेन्द्राणि भवन्ति ।
“सत्यम्”
प्रश्नोत्तरम् :

(क) तक्षशिलाविश्वविद्यालयः गान्धारदेशे आसीत् ।
उत्तरम्-
“सत्यम्”

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

(ख) मौर्यराजस्य संस्थापकः धर्मपालः आसीत् ।
उत्तरम्-
“असत्यम्”

(ग) नालन्दा विश्वविद्यालयः पाकिस्तान देशे आसीत् ।।
उत्तरम्-
असत्यम्

(घ) विक्रमशिला विश्वविद्यालयः धर्मपालेन संस्थापितः।
उत्तरम्-
“सत्यम्”

(ङ) नालन्दा विश्वविद्यालयस्य बर्बराणाम् आक्रमणेन विध्वंसो नातः।
उत्तरम्-
“सत्यम्”

प्रश्न 11.
उदाहरणानुसारेण विभक्ति वचन-निर्णयं कुरुत

यथा-
गृहेषु विभक्तिः वचनम्। – सप्तमी – बहुवचनम्
प्रश्नोत्तर :

  1. शास्त्राणाम् – षष्ठी – बहुवचनम्
  2. छात्रान् – द्वितीया – बहुवचनम्
  3. ज्ञानस्य – षष्ठी – एकवचनम्
  4. भारते – सप्तमी – एकवचनम्
  5. देशस्य – षष्ठी – एकवचनम्
  6. वर्षाणि – प्रथमा – बहुवचनम्
  7. आक्रमणेन – तृतीया – एकवचनम्
  8. बर्बराणाम् – षष्ठी – बहुवचनम्

Bihar Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 7 प्राचीनाः विश्वविद्यालयः

प्रश्न 12.
हिन्दी भाषायाम् अनुवदत

  1. तक्षशिला विश्वविद्यालयः गान्धारदेशे आसीत् ।
  2. नालन्दा विश्वविद्यालयस्य कुमारगुप्तेन स्थापना कृता ।।
  3. अत्र सुयोग्याः अध्यापकाः छात्रान् पाठयन्ति ।
  4. तक्षशिलाविश्वविद्यालयः षष्ठशतके ईस्वीपूर्वमेव अवर्तत ।
  5. धर्मपाल: पालवंशीयः राजा आसीत् ।

उत्तरम्-

  1. तक्षशिला विश्वविद्यालय गान्धार देश में था।
  2. नालन्दा विश्वविद्यालय का कुमार गुप्त के द्वारा स्थापना की गयी।
  3. यहाँ सुयोग्य अध्यापक लोग छात्रों को पढ़ाते हैं।
  4. तक्षशिला विश्वविद्यालय छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ही स्थापित किया गया ।
  5. धर्मपाल पालवंशीय राजा थे।