Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 2 जन्तुओं में पोषण

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 2 जन्तुओं में पोषण Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 2 जन्तुओं में पोषण

Bihar Board Class 7 Science जन्तुओं में पोषण Text Book Questions and Answers

अभ्यास

जंतुओं में पोषण Class 7 Bihar Board प्रश्न 1.
खाली स्थानों को भरिए:
(a) मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि ……………….. है।
(b) मनुष्य में भोजन का पाचन ……………….. में शुरू होकर ……………….. में पूरा होता है।
(c) आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एवं ……………….. का प्राव होता है जो भोजन क्रिया करते हैं।
(d) मनुष्य में पोषण के मुख्य चरण ……………….. और ……………….. हैं।
(e) अमीबा अपने भोजन को ……………….. की सहायता से ग्रहण करता है।
उत्तर:
(a) यकृत
(b) मुख गुहिका, मलद्वार
(c) श्लेष्मा
(d) मुख गुहिका. ग्रास नली, आमाशय, छोटी आंत और बड़ी आँत ।

Bihar Board Class 7 Science Solution In Hindi प्रश्न 2.
सही विकल्प पर (✓) का चिह्न लगाइए –

(a) कुतरने में सहायता करने वाला दाँत –
(i) कृन्तक
(ii) रदनक
(iii) अग्रचर्वणक
(iv) चर्वणक
उत्तर:
(ii) रदनक

(b) लार, मंड (स्टार्च) को बदलता है –
(i) माल्टाज
(ii) ग्लूकोज
(iii) संलुलांज
(iv) लैक्टोज
उत्तर:
(ii) ग्लूकोज

(c) पित्त रस का स्राव होता है –
(i) यकृत
(ii) अग्न्याशय
(iii) आमाशय
(iv) छोटी आँत
उत्तर:
(i) यकृत

(d) वसा का पूर्णरूपेण पाचन होता है –
(i) आमाशय
(ii) अग्न्याशय
(ii) बड़ी आँत
(iv) छोटी आँत ।
उत्तर:
(iv) छोटी आँत ।

(e) जल का अवशोषण मुख्यतः होता है
(i) ग्रसिका
(ii) बड़ी आँत
(iii) छोटी आँत
(iv) आमाशय
उत्तर:
(ii) बड़ी आँत

Bihar Board Class 7 Science Solution प्रश्न 3.
सत्य और असत्य कथनों को चिह्नित कीजिए
(i) आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्राव होता है।
(i) पित्त रस में प्रोटीन का पाचन होता है।
(iii) प्रोटीन का पाचन मुख से आरंभ हो जाती है।
(iv) जुगाली करने वाले निगली हुई घास को पुनः अपने मुख में लाकर धीरे-धीरे चबाते हैं।
उत्तर:
(i) सत्य
(ii) असत्य
(iii) असत्य
(iv) सत्य
(v) असत्य ।

Jantuo Me Poshan Class 7 Bihar Board प्रश्न 4.
कॉलम A के कथनों का मिलान कॉलम B से कीजिए –
Science Class 7 Bihar Board
उत्तर:
(a) (iii)
(b) (iv)
(c) (v)
(d) (ii)
(e) (i)

जंतुओं में पोषण कक्षा 7 Bihar Board प्रश्न 5.
आहारनाल के किन भागों द्वारा ये कार्य होते हैं –

  1. ‘भोजन का चबाना
  2. जीवाणु नष्ट होना
  3. उपयोगी पदार्थों का अवशोषण
  4. मल का निकास।

उत्तर:

  1. मुख गुहिका
  2. आमाशय
  3. बडी आँत
  4. मलद्वार ।

Bihar Board Class 7 Science Book Solutions प्रश्न 6.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –

  1. मानव शरीर में पाया जानेवाला कठोरतम पदार्थ ।
  2. पचे भोजन का अवशोषण करने वाली अँगली जैसी संरचनाएँ।
  3. घास खाने वाले जन्तुओं में सेलुलोज पाचन का स्थान ।
  4. अमीबा में भोजन पाचन का स्थान ।
  5. भोजन के अवयवों से उपयोगी पदार्थ संश्लेषण की प्रक्रिया ।

उत्तर:

  1. इनेमल
  2. दीर्घराम या रसांगुल
  3. रूमेन
  4. खाद्यधानी
  5. जटिल पदार्थों का बनना ।

Bihar Board Solution Class 7 Science प्रश्न 7.
कारण बताइए
(a) मनुष्य में सेलुलोज का पाचन नहीं होता है।
(b) अमीबा के खाद्यधानी में भोजन का पाचन होता है।
(c) वायुनली तथा भोजन नली का संबंध ग्रसनी से है फिर भी भोजन वायुनली में नहीं जाता है।
उत्तर:
(a) मनुष्य में सेलुलोज का पालन नहीं होता क्योंकि मनुष्य के शरीर में रूमन नहीं होता है और जगाल करने की प्रक्रिया नहीं करता है। सेलुलोज का पाचन जीवाणुओं की सहायता से रूमेन में होता है । गाय, भैंस, बकरी घास चरने वाले जानवरों में रूमेन होता है और सेलुलोज जो एक प्रकार का कार्वोहाइड्रेट है, का पाचन होता है।

(b) भोजन को पकड़ने के लिए अमीबा अपने पादाभों को विकसित करता – है और चारों तरफ घेरकर विकसित पादाभ आपस में मिलकर एक हो जाते हैं और भोजन खाद्यधानी में बंद होकर कोशिका के अंदर नला जाता है जहाँ पाचक रसों का स्राव होता है और खाद्य पदार्थ सरल पदार्थों में बदल जाता है। इस प्रकार भोजन का पाचन होता है।

(c) वायुनली और भोजन नली का संबंध ग्रसनी से है। वायनली के ऊपर एक मांसल संरचना होती है जिसे इपीग्लोटिस कहते हैं। यह वाल्व की तरह – काम करती है। जब भोजन करते हैं तो वायुनली को ढंक लेती है और भोजन नली में चला जाता है। तेजी से खाने या बातें करने पर भोजन वायु नली में कुछ कण चले जाते हैं जिससे छींक का हिचकी आती है।

Bihar Board Class 7 Science Chapter 2 प्रश्न 8.
छोटी आंत में किन ग्रंथियों के स्राव आते हैं। पाचन में उनकी क्या भूमिका है?
उत्तर:
छोटी आंत में यकृत अग्न्याशय ग्रंथियाँ होती हैं यकृत आमाशय के ऊपरी भाग में दाहिनी ओर स्थित है इससे पित्तरस स्रावित होती है। पित्तरस वसा का पाचन करती है। अग्न्याशय यह अमाशय के ठीक नीचे रहता है। इससे अग्न्याशिक रस निकलता है जो वसा, कार्बोहाइड्रेट और वसा को सरल रूप में परिवर्तित करती है। छोटी आंत की दीवारों से भी स्रावित आँत रस जो आंशिक रूप से पचे भोजन को पूर्ण रूप से पचा देता है।

Bihar Board Class 7th Science Solution प्रश्न 9.
अमीबा में पोषण की प्रक्रिया मानव से भिन्न है? क्यों?
उत्तर:
मानव बहुकोशिकीय जीव है जबकि अमीबा एक कोशिकीय जीव है। मानव में भोजन का पाचन कई चरणों में. जैसे मख गहिका में. ग्रासनली. अमाशय छोटी आँत, मलाशय और गुदा द्वार, पचित भोजन का रसगुलों द्वारा ग्रहण एवं मिलने की प्रक्रिया होती है। अवशोषित भोजन रुधिर वाहिकाओं की सहायता से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचता है और जटिल पदार्थों का निर्माण होता है। अमीबा में भोजन ग्रहण पादाभ की सहातया से होता है और भोजन का पाचन खाद्यधानी में होता है। पाचक रसों का स्राव खाद्यधानी में ही होता है और सरल पदार्थों में बदलकर भोजन अवशोषित कर अमीबा की वृद्धि संख्या में मदद करता है।

Bihar Board Class 7 Science प्रश्न 10.
मनुष्य में पाये जाने वाले दाँत तथा उनके कार्यों को लिखें।
उत्तर:
मनुष्य में पाये जाने वाले मुख्य दाँत कृतक, रदनक, अग्रचवर्णक और चवर्णक।

  • कंतक – कृतक दाँते आगे की ओर चौड़ा होता है जो काटने के काम आता है।
  • रदनक – रदनक दाँत भोजन को फाड़ने का कार्य करता है।
  • अग्रचवर्णक – कटे हुए भोजन को पीसने और चबाने का कार्य करता है।
  • चवर्णक – ये भी भोजन को अच्छी तरह से चबाने और पीसने का कार्य करता है।

Bihar Board Class 7 Science Book प्रश्न 11.
मनुष्य के पाचनतंत्र का नामांकित चित्र बनाए
उत्तर:
Class 7 Bihar Board Science Solution

Bihar Board Class 7 Science जन्तुओं में पोषण Notes

पोषण सभी जन्तुओं की अनिवार्य आवश्यकता है। पोषण के लिए जीव पौधों पर निर्भर करते हैं। जीव को अपने स्वास्थ्य, वृद्धि और विकास के लिए पोषण की जरूरत होती है। जीव-जन्तुओं के पोषण में पोषण की अनिवार्यता भोजन अंतर्ग्रहण का तरीका और शरीर में उपयोग करना है। भिन्न-भिन्न जीव-जन्तुओं का भोजन और पोषण का तरीका भिन्न-भिन्न है। पोषण एक जटिल प्रक्रिया है। पोषण में भोजन का पाचन, भोजन ग्रहण, अवशोषण शरीर का विकास, वृद्धि और अंत में अपचित भोजन का निष्कासन होता है। स्वपोषी और विषमपोषी मुख्य दो वर्गों में जन्तुओं को बाँटा गया है। जीव-जन्तुओं की शारीरिक बनावट में अन्तर होता है । भोजन ग्रहण करने का तरीका अलग होता है, कुछ फूलों के रस चूसते हैं तो कोई कीड़े-मकोड़े को चुनकर तो कोई चबाकर तो कोई निगलकर अपना भोजन ग्रहण करते हैं।

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मनुष्य भी जीव है। अन्य जीवों की तरह मनुष्य भी भोजन ग्रहण करता है, ग्रहित भोजन का पाचन, पचित भोजन का अवशोषण शारीरिक विकास और निष्कासन करता है। मनुष्य पाचन तंत्र निम्नलिखित प्रक्रियाओं के बाद होता है जो इस प्रकार है-सबसे पहले भोजन मुख गुहिका में जाता है जहाँ भोजन को दाँतों द्वारा काटकर चबाकर, लार ग्रंथी से निकले लार द्वारा गीला होकर ग्रास नली से होते हुए अमाशय में जाता है। अमाशय के आंतरिक भाग में पाचक रस, शलेष्मा तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल सावित होता है ! श्लेष्मा आमाशय के आंतरिक स्तर को सुरक्षा प्रदन करता है। जीवाणुओं को नष्ट करने पर हाइड्रोक्लोरिक अम्ल मदद करता है।

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पाचक रस भोजन के प्रोटीन भाग को अमीनो अम्ल में तोड़ देता है। जब भोजन का पाचन पूरा हो जाता है तो भोजन छोटी आँत में जाता है। छोटी आँत लगभग 6-7 मीटर लंबी नली है। इसमें यकृत (Liver) अग्न्याशय (Pancreas) और स्वयं की दीवारों से स्राव होता है। यकृत मानव की सबसे बड़ी ग्रंथि है जो अमाशय के दाहिनी ओर है, पित्तरस को सावित करती है जहाँ वसा का पाचन होता है।

अमाशय के नीचे अग्न्याशय हल्के पीले रंग की ग्रंथि हैं इससे स्रावित द्रव प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट और वसा को छोटे रूपों में बदल देती है। छोटी आंत से निकली स्रावित पचे हुए भोजन को पूर्णतः पचा देती है और छोटी आंत इस प्रकार छोटी आँत में भोजन कार्बोहाइड्रेट ग्लूकोज प्रोटीन अमीनो अम्ल और वसा, वसा अम्ल में परिणत हो जाता है और स्वांगीकरण की क्रिया होती है। जो भोजन नहीं पचता वह बड़ी आँत में जाता है। इसकी लम्बाई लगभग 1.5 मीटर होती है। यहाँ अपचित भोजन जल और कुछ लवणों का अवशोषण होता है और बचा पदार्थ मलाशय में और फिर गुदा द्वारा मल के रूप में बाहर निकलता है।

इसी प्रकार घास चरने वाली गाय, भैंस, बकरी का भी पाचन तंत्र होता है जो मानव से भिन्न होता है। घास में सेलुलोज अधिक पाया जाता है जो कार्बोहाइड्रेट है। घास खाने वाले पशु का आमाशय विशेष प्रकार का होता है। इसे चार भागों में बाँटा गया है। रूमेन प्रथम अमाशय जहाँ भोजन इकट्ठा होता है और भोजन का आंशिक पाचन होता है। ये जुगाल करते हैं और सेलुलोज का पाचन करते हैं। अमाशय के बाद भोजन छोटी और उसके बाद बड़ी आँत में जाता है। छोटी और बड़ी आँत के बीच अंधनाल होता है जहाँ जीवाणु होते हैं । जहाँ सेलुलोज का पाचन होता है। कुछ लवणों को अवशोषित कर अपचित पदार्थ मलाशय में जमा होता है और गुदा द्वारा समय-समय पर बाहर निकलता है।

अमीबा एक कोशिकीय प्राणी है। इसके कोशिका के चारों ओर कोशिका झिल्ली होती है। इसके अन्दर द्रव रहता है जिसे कोशिका द्रव कहते हैं। इसमें एक केन्द्रक’ और खाली स्थान जिसे धानियाँ कहते हैं, रहता है। अमीबा अपना लगातार आकार और स्थिति बदलता है। एक पादप जो भोजन पकड़ने में सहायता करता है।

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जब अमीबा के पास भोजन होता तो पादाभ की सहायता से इसे जकड़ लेता है और आपस में मिलकर एक हो जाता है और भोजन कोशिका के अन्दर चला जाता है। खाद्यधानी में पाचक रस निकलता है जो भोजन को सरल बना देता है और पचा भोजन अवशोषित करता है। अपचा पदार्थ कोशिका द्वारा बाहर हो जाता है। इसकी वृद्धि, विकास, संख्या में वृद्धि तेजी से होती है।

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 10 मूल निवासियों का विस्थापन

Bihar Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन Textbook Questions and Answers

 

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

मूल निवासियों का विस्थापन के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 1.
दक्षिणी और उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों के बीच के फों (अन्तर) से सम्बन्धित किसी भी बिन्दु पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका के मूल निवासियों के विपरीत उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी बड़ी पैमाने पर खेती नहीं करते थे। वे अपने आवश्यकता से अधिक अत्पादन करते थे। इसलिए वे दक्षिणी अमेरिका की तरह राज्य और सम्राज्य स्थापित न कर सके।

मूल निवासियों का विस्थापन प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 2.
आप उन्नीसवीं सदी के संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी के उपयोग के अतिरिक्त अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की कौन-सी विशेषताएं देखते हैं?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों (मुख्यतः अंग्रेजों) के संयुक्त राज्य अमेरिका में आकर बसने तथा अपना विस्तार करने के कारण राज्य में अंग्रेजी भाषा का प्रचलन काफी बढ़ गया। इसके अतिरिक्त वहाँ बसे अंग्रेजों के आर्थिक और सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. जमीन के प्रति यूरोपीय लोगों का विचार मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र न होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अत: वे अमेरिका में भूमि के स्वामी बनना चाहते थे।

2. जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देशों से ऐसे अप्रवासी आए जिनकी जमीनें बड़े किसानों के हाथों में चली गई थीं। वे ऐसी जमीन चाहते थे, जिसे वे अपना कह सकें।

3. पोलैंड से आए लोगों को प्रेयरी चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था, जो उन्हें। अपने देश के स्टेपीज की याद दिलाती थी।

4. अमेरिका में बहुत कम कीमत पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरीद पाना आसान था। अत: अंग्रजों ने बड़े-बड़े भूखंड खरीद लिए। उन्होंने जमीन की सफाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने मुख्य रूप से कपास और धान जैसी पसलें उगाईं। इसका कारण यह था कि ये फसलें यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए वहाँ ऊंचे मुनाफे पर बेचा जा सकता था।

5. अपने विस्तृत खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए अन्होंने शिकार द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के बाद खेत पूरी तरह सुरक्षित हो गए।

6. अंग्रेजों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उनके साथ अपनी जमीनें बेच देने की संधियाँ की गई और उन्हें जमीन की बहुत कम कीमतें दी गई। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि अमेरिकियों (संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले अंग्रेज) ने धोखे से उनसे अधिक भूमि हथिया ली या पैसा देने के मामले में हेराफरी की।

7. उच्च उधिकारी भी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे। जॉर्जिया इसका उदाहरण है। जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। यहाँ के अधिकारियों का तर्क था कि वहाँ के चिरोकी कबीले पर राज्य के कानून तो लागू होते हैं, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपयोग भी कर सकते हैं।

मूल निवासियों का विस्थापन पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 History प्रश्न 3.
अमेरिकियों के लिए ‘फ्रंटियर’ के क्या मायने (अर्थ) थे?
उत्तर:
यूरोपियों द्वारा जीती गई भूमि तथा खरीदी गई भूमि के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका का विस्तार होता रहता था। इससे अमेरिका को पश्चिमी सीमा खिसकती रहती थी। इसके साथ मूल अमेरिकियों को भी पीछे हटना पड़ता था। वे राज्य की जिस सीमा तक पहुँच जाते थे उसे ‘टियर कहा जाता है।

प्रश्न 4.
इतिहास की किताबों में ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को शासित क्यों नहीं किया गया था?
उत्तर:
यूरोपीय इतिहासकारों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के प्रति भेदभाव की नीति अपनाई। उन्होंने अपनी पुस्तकों में केवल ऑस्ट्रेलिया में आकर बसे यूरोपीयों की ही उपलब्धियों का वर्णन किया और यह दिखाने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासियों की न तो कोई परम्परा है और न ही कोई इतिहास। इसी कारण इतिहास की पुस्तकों में उनकी उपेक्षा की गई।

प्रश्न 5.
लोगों की संस्कृति को समझाने में संग्रहालय की गैलरी में प्रदर्शित चीजें कितनी कामयाब रहती हैं? किसी संग्रहालय को देखने के अपने अनुभव के आधार पर सोदाहरण विचार करिए।
उत्तर:
लोगों की संस्कृति को समझने में संग्रहालय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहाँ प्रदर्शित वस्तुओं के आधार पर मूली बिसरी अथवा उपेक्षित संस्कृतियों को भी फिर से जीवित किया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया की आदि संस्कृतियाँ इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 6.
कैलिफोर्निया में चार लोगों के बीच 1880 में हुई किसी मुलाकात की कल्पना करिए । ये चार लोग हैं : एक अफ्रीकी गुलाम, एक चीनी मजदूर, गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ एक जर्मन और होपी कबीले का एक मूल निवासी। उनकी बातचीत का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कैलिफोर्निया उत्तर अमेरिका का एक प्रसिद्ध शहर है। यहाँ ये चारों मिलकर अपनी आवश्यक्ता पूरा करने के लिए बातचीत करते हैं। इसमें सबसे शक्तिशाली गोल्ड रश के चक्कर में आया हुआ जर्मन है। वह अफ्रीकी गुलाम को अपने पास रखना चाहता है। वह उससे अपने यहाँ रहने के लिए कहता है। वह चीनी मजदूर से अपने काम करने के लिए पृण है। चीनी मजदूर टूटी फूटी भाषा में जवाब देता है। जमन निवासी होपी कबीले के मूल निवासी को जमीन देने के लिए कहता है ताकि वह यहाँ अपना व्यापार जमा सके। चारों टूटी अंग्रेजी में बातचीत करते हैं।

Bihar Board Class 11 History मूल निवासियों का विस्थापन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चिरोकी कौन थे? उनके साथ क्या अन्याय हो रहा था?
उत्तर:
चिरोकी संयुक्त राज्य अमेरिका के एक राज्य जार्जिया के मूल निवासी थे। वहाँ के मूल निवासियों में चिरोकी ही ऐसे थे जिन्होंने अंग्रेजी सीखने और अंग्रेजों की जीवन-शैली समझने का सबसे अधिक प्रयास किया था। उन पर राज्य के कानून तो लागू होते थे, परन्तु उन्हें नागरिक अधिकारों से वंचित होना पड़ता था।

प्रश्न 2.
अमेरिका में मूल निवासियों से जमीनें प्राप्त करने वाले लोग किस आधार पर अपने आप को उचित ठहराते थे?
उत्तर:
मूल निवासियों से जमीनें प्राप्त करने वाले लोग इस आधार पर अपने आप को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते । इसलिए वह उनके पास रहनी ही नहीं चाहिए। वे यह कह कर भी मूल निवासियों की आलोचना करते कि आलसी : हैं। इसलिए वे बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प-कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं। अंग्रेजी सीखने और ढंग के कपड़े पहनने में भी उनकी कोई रुचि नहीं है।

प्रश्न 3.
उत्तरी अमेरिका के सन्दर्भ में ‘रिजर्वेशंस’ (आरक्षण) क्या थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों को छोटे-छोटे प्रदेशों में सीमित कर दिया गया था। यह प्रायः ऐसी जमीन होती थी, जिनके साथ उनका पहले से कोई नाता नहीं होता था। इन्हीं जमीनों को रिजर्वेशन अथवा आरक्षण. कहा जाता था।

प्रश्न 4.
अमेरिका के मूल निवासियों ने अपनी जमीनें संघर्ष करने के बाद ही छोड़ी थीं। इसके पक्ष में उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अमेरिका के मूल निवासियों ने वास्तव में अपनी जमीनों के लिए संघर्ष किया था। इसके पक्ष में यह तर्क दिया जा सकता है कि संयुक्त राज्य की सेना को 1865 से 1890 ई. के बीच मूल निवासियों के विद्रोहों की एक पूरी श्रृंखला का दमन करना पड़ा था। इसी प्रकार 1869-1885 ई. के बीच कनाडा में मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के विद्रोह
हुए थे।

प्रश्न 5.
उत्तरी अमेरिका में 1840 के दशक में मानवशास्त्र विषय का आरम्भ क्यों हुआ?
उत्तर:
1840 के दशक में उत्तरी अमेरिका में मानवाशास्त्र विषय का आरम्भ स्थानीय ‘आदिम’ समुदायों तथा युरोप के ‘समुदायों के बीच अन्तर को जानने के लिए हुआ। कुछ मानवशास्वियों ने यह स्थापित किया कि जिस प्रकार यूरोप में ‘आदिम’ लोग नहीं पाये जाते, उसी : प्रकार अमेरिका के मूल निवासी भी नहीं रहेंगे।

प्रश्न 6.
‘गोल्ड रश’ को किस बात ने जन्म दिया? यह क्या था?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमेरिका में धरती के नीचे सोना है। 1840 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिह्न मिले । इसने ‘गोल्ड रश’ को जन्म दिया। ‘गोल्ड रश’ उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हजारों की संख्या में यूरोपीय लोग सोना पाने की आशा में अमेरिका जा पहुंचे।

प्रश्न 7.
अमेरिका महाद्वीप के लिए गोल्ड रश किस प्रकार वरदान सिद्ध हुआ?
उत्तर:
गोल्ड रश को देखते हुए पूरे महाद्वीप में रेलवे-लाइनों का निर्माण किया गया। इसके लिए हजारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति हुई। 1870 में संयुक्त राज्य अमेरिका में तथा 1885 में कनाडा में रेलवे का काम पूरा हो गया। स्कॉटलैंड से आने वाले अप्रवासी एंड्रिड कानेगी ने कहा था, “पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं। नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़

प्रश्न 8.
उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास के कौन-से दो मुख्य उद्देश्य थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास के निम्नलिखित उद्देश्य थे –

विकसित रेलवे के साज-समान बनाना, ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
ऐसे यन्त्रों का निर्माण करना, जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

प्रश्न 9.
1934 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक युगान्तकारी कानून पारित हुआ। यह क्या था?
उत्तर:
यह कानून था 1934 का इंडियन रीऑर्गनाईजेशन एक्ट । इसके अनुसार रिजर्वेशंज में मूल निवासियों का जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार दिया गया।

प्रश्न 10.
मूल निवासियों ने किस दस्तावेज द्वारा तथा किस शर्त पर संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की?
उत्तर:
मूल निवासियों ने 1954 में अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन ऑफ इंडियन राइट्स’ नामक दस्तावेज द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की। उनकी शर्त यह थी कि उनके रिजर्वेशंज वापिस नहीं लिए जाएंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 11.
ऑस्ट्रेलिया में ‘ऐबॉरिजिनीज’ नामक आदिम कब आने शुरू हुए ? वहाँ के मूल निवासियों का इस विषय में क्या कहना है?
उत्तर:
माना जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में ‘ऐबॉरिजिनीज’ नामक आदिम मानव आज से लगभग 40,000 साल पहले आने शुरू हुए। परन्तु वहाँ के निवासी इसका विरोध करते हैं। उनकी परम्पराओं के अनुसार वे कहीं बाहर से नहीं आए थे, बल्कि आरम्भ से ही वहीं रह रहे थे।

प्रश्न 12.
ऑस्ट्रेलिया के टॉरस स्ट्रेट टापूवासियों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। इनके लिए ‘ऐबॉरिजिनीज’ शब्द का प्रयोग क्यों नहीं होता?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के देसी लोगों का एक विशाल समूह उत्तर में रहता है। इन्हें टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। 2005 ई. में वे ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत भाग थे । इनके लिए ऐबॉरिजिनी शब्द प्रयोग नहीं होता क्योंकि यह माना जाता है कि वे कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं।

प्रश्न 13.
ऑस्ट्रेलिया की अधिकतर जनसंख्या कहाँ बसी हुई है और क्यों?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या बहुत ही विरल है। वहाँ की अधिकतर जनसंख्या समुद्रतट के साथ-साथ बसी हुई है। इसका कारण यह है कि देश का भीतरी भाग शुष्क मरुभूमि है।

प्रश्न 14.
ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के व्यवहार के प्रति ब्रिटिशों का क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर:
ब्रिटिश नाविक कैप्टन कुक और उसके चालक दलन के आरम्भिक ब्योरों में मूल निवासियों के व्यवहार को मैत्रीपूर्ण बताया गया है। परन्तु जब एक मूल निवासी ने हवाई में कुक की हत्या कर दी तो ब्रिटिशों का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया । अब उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वहाँ के मूल निवासी व्यवहार में हिंसक हैं।

प्रश्न 15.
‘सेटलर’ (आबादकर) शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:’
सेटलर’ शब्द से अभिप्राय किसी स्थान पर बाहर से आकर बसे लोगों से है। इस शब्द का प्रयोग दक्षिण अफ्रीका में डचों के लिए, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, तथा ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश लोगों के लिए और अमेरिका में यूरोपीय लोगों के लिए किया जाता है।

प्रश्न 16.
दक्षिण अफ्रीका तथा अमेरिका में यूरोप उपनिवेशों की राजभाषा कौन-सी थी?
उत्तर:
कनाडा को छोड़कर इन सभी उपनिवेशों की राजभाषा अंग्रेजी थी। कनाडा में अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रांसीसी भी एक राजभाषा थी।

प्रश्न 17.
‘नेटिव’ (मूल निवासी) शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘नेटिव’ शब्द उस व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है जो अपने वर्तमान निवास स्थान पर ही पैदा हुआ हो । 20वीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में यह शब्द यूरोपीय लोगों द्वारा अपने उपनिवेशों के मूल निवासियों के लिए किया जाता था।

प्रश्न 18.
‘अमेरिका की पूर्व संध्या’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अमेरिका की पूर्व संध्या’ से अभिप्राय उस समय से है जब यूरोपीय लोग अमेरिका में आए और उन्होंने इस महाद्वीप को अमेरिका का नाम दिया।

प्रश्न 19.
उत्तरी अमेरिका के आरम्भिक निवासियों की जीवन शैली की कोई तीन विशेषताएं बताएँ।
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के आरम्भिक निवासी नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बना कर रहते थे।
वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मक्का उगाते थे।
वे प्रायः मांस की तलाश में लम्बी यात्राएँ करते थे। मूख्य रूप से उन्हें ‘बाइर्सन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते रहते थे।

प्रश्न 20.
वेमपुम (Wampum) बेल्ट क्या थी?
उत्तर:
वेमपुम बेल्ट रंगीन सीपियों को आपस में सिलकर बनाई जाती थी। किसी समझौते के बाद अमरिका के स्थानीय कबीलों के बीच इसका आदान-प्रदान होता था।

प्रश्न 21.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों की परम्परा की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर:
औपचारिक सम्बन्ध स्थपित करना, मित्रता करना, तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 22.
यूरोपीय लोगों को उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों पर किस बात ने अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी शराब से परिचित नहीं थे। परन्तु यूरोपियों ने उन्हें शराब देकर शराब पीने का आदी बना दिया। शराब उनकी कमजोरी बन गई। उनकी कमजोरी ने यूरोगय लोगों को उन पर अपनी शत थोने में सक्षम बनाया।

प्रश्न 23.
पश्चिमी यूरोप के लोगों को अमेरिका के मूल निवासी असभ्य क्यों प्रतीत हुए?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म शहरीपन के आधार पर करते थे। इसी दृष्टि से उन्हें अमेरिका के मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए।

प्रश्न 24.
विभिन्न उपहारों के आदान-प्रदान के प्रति उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों तथा यूरोपीयों के दृष्टिकोण में क्या अन्तर था?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उन्हें मैत्री में मिले उपहार मानते थे। दूसरी ओर अमीरी का सपना देखने वाले यूरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खालें मुनाफा कमाने के लिए बेची जाने वाली वस्तुएँ था।

प्रश्न 25.
यूरोपीय लोगों ने अमेरिका में अपनी जमीनों पर मुख्य रूप से कौन-सी फसलें उगाईं और क्यों?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों ने अमेरिका में अपने खेतों पर धान और कपास आदि फसलें उगाई सका कारण यह था कि ये फसलें यूरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए यूरोप में इन्हें ऊँचे लाभ पर बेचा जा सकता था।

प्रश्न 26.
यूरोपीय बागान मालिक लोग दक्षिण अमेरिका में दासों से काम क्यों लेना चाहते थे? इस सम्बन्ध में उन्हें क्या समस्या आई?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों के लिए अमेरिका के दक्षिणी प्रदेश की जलवायु काफी गर्म थी। ऐसी – जलवायु में उनके लिए घर से बाहर.(खेतों पर अथवा बागानों में) काम कर पाना कठिन थी। इसलिए वे दासों से काम लेना चाहते थे।

प्रश्न 27.
अमेरिका में यूरोपीय लोगों को अफ्रीका से दास क्यों खरीदने पड़े ? क्या इन दासों को दासता से मुक्ति मिली?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को अपने खेतों पर काम करने के लिए दासों की जरूरत थी। परन्तु दक्षिणी अमरिकी उपनिवेशों से दास बना कर लाए गए मल निवासी बहत बडी संख्या में मौत का शिकार हो गए थे। इसीलिए बागान मालिकों को अफ्रीका से दास खरीदने पड़े। समय बीतने पर दासों के व्यापार पर तो रोक लग गई। परन्तु अफ्रीकी दासों को दासता से मुक्ति न मिली। – वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे।

प्रश्नी 28.
संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा का अन्त किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों का अर्थतन्त्र बागानों पर आधारित न होने के कारण दास प्रथा पर आधारित नहीं था। अत: वहाँ दास प्रथा को समाप्त करने के पक्ष में आवाज उठने लगी और उसे एक अमानवीय प्रथा बताया गया। 1861-65 में दास प्रथा के समर्थक तथा उसके विरोधी राज्यों के बीच युद्ध हुआ। इसमें दासता विरोधियों की जीत हुई और दास प्रथा समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 29.
कनाडा की ब्रिटिश सरकार के सामने फ्रांसीसियों के सम्बन्ध में क्या समस्या थी? इसे किस प्रकार सुलझाया गया?
उत्तर:
कनाडा की ब्रिटिश सरकार के सामने एक समस्या थी, जो लम्बे समय तक हल नहीं हो पाई थी। 1763 में ब्रिटेन ने फ्रांस के साथ हुई लड़ाई में कनाडा को जीत लिया था। वहाँ बसे फ्रांसीसी लगातार स्वायत्त राजनीतिक दर्जे की माँग कर रहे थे। अन्ततः 1867 में कनाडा को स्वायत्त राज्यों के एक महासंघ के रूप में संगाठित करके इस समस्या को हल किया गया।

प्रश्न 30.
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आरम्भिक आबादकार कौन थे? उन्हें किस शर्त पर ऑस्ट्रेलिया में स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दी गई थी?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आरम्भिक आबादकार ब्रिटिश कैदी थे जो इंग्लैंड से निर्वासित होकर आए थे। उनके कारावास की अवधि पूरी होने पर उन्हें इस शर्त पर ऑस्ट्रेलिया में ही स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई कि वे ब्रिटेन वापस नहीं लौटेंगे। अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकाल बाहर किया।

प्रश्न 31.
ऑस्ट्रेलिया की गोरी सरकार ऑस्ट्रेलिया की भूमि को ‘टेरा न्यूलियस’ (terra nullius) क्यों कहती रहती है?
उत्तर:
टेरा न्यूलियस का अर्थ है-किसी को नहीं । सरकार का मानना था कि वहाँ की भूमि किसी को नहीं । ऐसा वहाँ पर यूरोपियों द्वारा किए भूमि अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए कहा जाता रहा है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका अपने वर्तमान क्षेत्रफल तक किस तरह पहुँचे?’
उत्तर:
कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका 18वीं शताब्दी के अन्त में अस्तित्व में आए थे। उस समय उनके पास अपने वर्तमान क्षेत्रफल का एक छोटा-सा ही भाग था। वर्तमान आकार तक पहुँचने के लिए अगले सौ सालों में उन्होंने अपने नियन्त्रण वाले प्रदेश में काफी वृद्धि की। संयुक्त राज्य अमेरिका ने विस्तृत क्षेत्रों की खरीद की। उसने दक्षिण में फ्रॉस (लइसियाना परचेज) और रूस (अलास्का) से जमीन खरीदी। उसने युद्ध में भी जमीन जीती।

दक्षिण संयुक्त राज्य अमेरिका का अधिकतर भाग मेक्सिको से ही जीता गया था । किसी ने यह बात नहीं सोची कि उन प्रदेशों में रहने बाने मूल निवासियों की भी राय ली जाए। संयक्त राज्य अमेरिका की पश्चिमी सीमा खिसकती रहती थी। जैसे-जैसे सीमा खिसकती, वहाँ के निवासियों को भी पीछे खिसकने के लिए बाध्य कर दिया जाता था। \

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में अमेरिका के भूदृश्य में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन किजिए। ये परिवर्तन क्यों हुए?
उत्तर:
19वीं सदी में अमेरिका के भूदृश्य में अत्यधिक परिवर्तन आए।
कारण – जमीन के प्रति युरोपीय लोगों का रुख मूल निवासियों से अलग था। ब्रिटेन और फ्रांस से आए कुछ प्रवासी ऐसे थे जो अपने पिता का बड़ा पुत्र न होने के कारण पिता की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं बन सकते थे। अत: वे अमेरिका में जमीन का स्वामी बनना चाहते थे। बाद में जर्मनी, स्वीडन और इटली जैसे देश में ऐसे अप्रवासी आ गए जिनकी जमीनें बड़े किसानों के हाथ में चली गई थीं वे ऐसी जमीन चाहते थे, जिसे अपना कह सकें। पोलैंड से आए लोगों को प्रयरी (prairie) चरागाहों में काम करना अच्छा लगता था, जो उन्हें अपने देश के स्टेपोज (घास के मैदानों) की याद दिलाती थीं। अमेरिका में बहुत कम मूल्य पर बड़ी सम्पत्तियाँ खरी: पाना आसान था।

परिवर्तन – यूरोपीय लोगों ने खरीदी गई जमीन की सफाई की और खेती का विकास किया। उन्होंने धान और कपास आदि फसलें उगाईं। ये फसलें युरोप में नहीं उगाई जा सकती थीं। इसीलिए युरोप में उन्हें ऊँचे लाभ पर बेचा जा सकता था। अपने विस्तृत खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए उन्होंने शिकार द्वारा उनका सफाया कर दिया। 1873 में कंटीले तारों की खोज के बाद खेत पूरी तरह सुरक्षित हो गए।

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका में दास प्रथा के प्रचलन तथा समाप्ति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी प्रदेश की जलवायु यूरोपीय लोगों के लिए काफी गर्म थी। इसलिए उनके लिए वहाँ घर से बाहर काम कर पाना कठिन था। अतः वे दासों से काम लेना चाहते थे। परन्तु दक्षिण अमेरिकी उपनिवेशों में दास बनाए गए मूल निवासी बहुत बड़ी संख्या में मौत का शिकार हो गए थे। इसीलिए बागान मालिकों ने अफ्रीका से दास खरीदे। समय बीतने पर दास प्रथा विरोधी समूहों के विरोध के कारण दासों के व्यापार पर रोक लग गई। परन्तु जो अफ्रीकी दास संयुक्त राज्य अमेरिका में थे, वे और उनके बच्चे दास ही बने रहे।

दास प्रथा की समाप्ति-संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी राज्यों का अर्थतन्त्र बागानों पर आधारित न होने के कारण दास-प्रथा पर आधारित नहीं था। अत: वहाँ दास प्रथा को समाप्त करने के पक्ष में आवाज उठने लगी और उसे एक अमानवीय प्रथा बनाया गया। 1861-65 में दास प्रथा के समर्थक तथा विरोधी राज्यों के बीच युद्ध हुआ। इसमें दासता के विरोधियों की जीत हुई और दास प्रथा समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 4.
ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों के आगमन के प्रति वहाँ के मूल निवासियों की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया की खोज 1770 ई. में अंग्रेज नाविक कैप्टन कुक ने की थी। वहाँ के मूल निवासियों ने कुक तथा उसके चालक दल का स्वागत किया। इसलिए ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के साथ हुई भेंट को लेकर कैप्टन कुक और उसके चालक दल के आरम्भिक ब्योरे मूल निवासियों के मैत्रीपूर्ण व्यवहार से भरे पड़े हैं। परन्तु बाद में एक मूल निवासी ने हवाई में कक की हत्या कर दी। इस कारण ब्रिटिशों को उनके प्रति दृष्टिकोण पुरी तरह से बदल गया। अब उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि वहाँ के मुल निवासी व्यवहार में हिंसक हैं।

यूरोपीय लोगों के आगमन को सभी मूल निवासियों ने खतरा नहीं माना । इसका कारण यह था कि उनमें दूर की सोच की कमी थी। वे यह अनुमान नहीं लगा पाए कि 19वीं और 20वीं सदी के बीच कीटाणुओं के प्रभाव से अपनी जमीनें छिन जाने से तथा आबादकारों के साथ होने वाली लड़ाइयों में लगभग 90 प्रतिशत मूल निवासियों को अपने प्राण गवाने पडेंगे।

प्रश्न 5.
ऑस्ट्रेलिया में मानव निवास के इतिहास का वर्णन करते हुए वहाँ के मूल निवासियों के समुदायों की जानकारी दीजिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया में मानव निवास का इतिहास काफी लम्बा है। आरम्भिक मनुष्य या आदिमानव जिन्हें ‘ऐबॉरिजिनीज’ कहते हैं ऑस्टेलिया में लगभग 40,000 साल पहले आने शुरू हए थे। वे न्यूगिनी से आए थे जो ऑस्ट्रेलिया के साथ एक भूमि सेतु द्वारा जुड़ा हुआ था। इसके विपरीत मूल निवासियों की अपनी परम्पराओं के अनुसार वे ऑस्ट्रेलिया में बाहर से नहीं आये थे। बल्कि आरम्भ ही वहीं रह रहे थे।

मूल निवासियों के समुदाय – 18वीं सदी के अन्तिम चरण में ऑस्ट्रेलिया में मूल निवासियों के लगभग 350 से 750 तक समूदाय रहते थे। इनमें से प्रत्येक समुदाय की अपनी भाषा थी। देसी लोगों का एक अन्य विशाल समूह उत्तर में रहता है। 2005 ई. में वे ऑस्ट्रेलिया की कुछ जनसंख्या का 2.4 प्रतिशत भाग थे। इन्हें टॉरस स्ट्रेट टापूवासी कहते हैं। इनके लिए ‘ऐबॉरिजिनी’ शब्द प्रयोग नहीं होता क्योंकि यह माना जाता है कि वे कहीं और से आए हैं और एक अलग नस्ल के हैं।

प्रश्न 6.
मानव अधिकारों ने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों को न्याय दिलाने का मार्ग किस सीमा तक प्रशस्त किया है?
उत्तर:
1973 के दशक से संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सियों की बैठकों में मानवाधिकारों पर बल दिया जाने लगा। इससे ऑस्ट्रेलियाई जनता को यह आभास हुआ कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और न्यूजीलैंड के विपरित ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय लोगों द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण को औपचारिक बनाने के लिए मूल निवासियों के साथ कोई समझौता नहीं किया गया है। सरकार सदा से ऑस्ट्रेलिया की जमीन को टेरा न्यूलियस (terra nullius) कहती आई थी। इसका अर्थ था, “जो किसी की नहीं है।” इसके अतिरिक्त वहाँ यूरोपवासियों द्वारा अपने आदिवासी रिश्तेदारों से जबरदस्ती छीने गए मिश्रित रक्त वाले बच्चों का भी एक लम्बा और यन्त्रणापूर्ण इतिहास था।

अन्ततः दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए –
इस बात को मान्यता देना कि मूल निवासियों का जमीन के साथ, जोकि उनके लिए पवित्र है, मजबूत ऐतिहासिक सम्बन्ध रहा। अतः इसका आदर किया जाना चाहिए।
‘श्वेत’ तथा ‘अश्वेत’ लोगों को अलग-अलग रखने के प्रयास में बच्चों के साथ जो अन्याय हुआ है, उसके लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी जानी चाहिए।

प्रश्न 7.
उपनिवेशीकरण को प्रेरित करने वाला मुख्य कारक कौन-सा था? उपनिवेशीकरण की प्रकृति में पाई जाने वाली विविधताओं के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
उपनिवेशीकरण को प्रेरित करने वाला प्रमुख कारक मुनाफा था। परन्तु उपनिवेशीकरण की प्रकृति में कुछ महत्त्वपूर्ण विविधताएँ थीं, जिसके निम्नलिखित उदाहरण है-
1. दक्षिण एशिया में व्यापारिक कम्पनियों ने अपनी राजनीतिक सत्ता स्थापित की। उन्होंने स्थानीय शासकों को हराकर अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने नयी प्रशासनिक व्यवस्था. स्थापित करने की बजाय पुरानी सुविकसित प्रशासकीय व्यवस्था को ही अपनाया और भस्वामियों से कर वसूला। बाद में उन्होंने अपने व्यापार को सुगम बनाने के लिए रेलवे का निर्माण किया, खानें खुदवाई और बड़े-बड़े बागान स्थापित किए।

2. दक्षिणी अफ्रीका को छोड़कर शेष पूरे अफ्रीका में युरोपीय लोग लम्बे समय तक समुद्र तटों पर ही व्यापार करते रहे। 19वीं सदी के आखिरी चरण में ही वे अफ्रीका के भीतरी भागों में जाने का साहस कर सके। बाद में कुछ यूरोपीय देशों ने अपने उपनिवेशों के रूप में अफ्रीका का बँटवारा करने का समझौता कर लिया।

प्रश्न 8.
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप के विस्तार, भूमध्य तथा संसाधनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका महाद्वीप उत्तर ध्रुवीय वृत्त से लेकर कर्क रेखा तक फ्राला हुआ है। दूसरी ओर इसका विस्तार प्रशान्त महासागर से अटलांटिक महासागर तक है।पिचरीले, पर्वतों की श्रृंखला के पश्चिम में अरिजोना और नेवाडा की मरुभूमि है। थोड़ा और पश्चिम सिएरा नेवाडा पर्वत है। पूर्व में ग्रेट (विस्तृत) मैदानी प्रदेश, महान् (विस्तृत) झीलें, मिसीसिपी तथा ओहियो और अप्लेशियन पर्वतों की घाटियाँ हैं। दक्षिण दिशा में मेक्सिको है। कनाडा का 40 प्रतिशत प्रदेश वनों से ढंका है। कई क्षेत्रों में तेल, गैस और खनिज संसाधन पाए जाते हैं। इनके आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में कई बड़े उद्योग स्थापित हैं। आजकल कनाडा में गेहूँ, मक्का और फल बड़े पैमाने पर पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
यूरोपीय व्यापारी उत्तरी अमेरिका में सर्वप्रथम कब और कहाँ पहुँचे? वहाँ के स्थानीय लोगों के प्रति उनके व्यवहार तथा दृष्टिकोण की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
17वीं शताब्दी में यूरोपीय व्यापारी उत्तरी अमेरिका के उत्तरी तट पर पहुंचे। ये लोग मछली और रोएँदार खाल के व्यापार के लिए आए थे। इस काम में कुशल स्थानीय लोगों ने उनकी सहायता की। वे उनके मैत्रीपूर्ण व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए। स्थानीय उत्पादों के बदले में यूरोपीय लोग वहाँ के लोगों को कम्बल, लोहे के बर्तन, बंदुकें और शराब देते थे। इससे पहले वहाँ के लोग शराब से परिचित नहीं थे। शीघ्र ही वे इसकी आदत का शिकार हो गए।

यूरोपीय लोगों के लिए उनकी यह आदत अच्छी बात सिद्ध हुई। इसने उन्हें व्यापार के लिए अपनी शर्ते थोपने में सक्षम बनाया। यूरोपीय लोगों ने भी उन मूल निवासियों से तम्बाकू की आदत ग्रहण की। पश्चिमी यूरोप के लोग ‘सभ्य’ मनुष्य की पहचान साक्षरता, संगठित धर्म और शहरीपन के आधार पर करते थे। इस दृष्टि से उन्हें अमेरिका के मूल निवासी ‘असभ्य’ प्रतीत हुए।

प्रश्न 10.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के व्यवहार को देखकर दुःखी क्यो होते थे?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासी यूरोपीय लोगों के साथ जिन चीजों का आदान-प्रदान करते थे, वे उन्हें मैत्री में मिले उपहार मानते थे। दूसरी ओर अमीरी का सपना देखने वाले युरोपीय लोगों के लिए मछली और रोएँदार खाल मुनाफा कमाने के लिए बेची जाने वाली वस्तुएँ थीं। इन बेची जाने वाली वस्तुओं के मूल्य इनकी पूर्ति के आधार पर हर साल बदलते रहते थे। मूल निवासी इस बात को समझ नहीं सकते थे, क्योंकि उन्हें सुदूर यूरोप में स्थित ‘बाजार’ का जरा भी बोध नहीं था।

उनके लिए तो यह सब पहेली की तरह था कि यूरोपीय व्यापारी उनकी चीजों के बदले में कभी तो बहुत सा सामान दे देते थे और कभी बहुत कम। वे यूरोपीय लोगों के लालच को देखकर भी दुःखी होते थे। प्रचुर मात्रा में रोएँदार खाल प्राप्त करने के लिए उन्होंने सैकड़ों कदबिलावों को मार डाला था। मूल निवासी इससे काफी विचलित थे। उन्हें डर था कि जानवर उनसे इस विध्वंस का बदला लेंगे।

प्रश्न 11.
यूरोपीय व्यापारियों के बाद यूरोपीय लोग अमेरिका बसने के लिए क्यों आये? उन्होंने वहाँ के वनों के प्रति क्या नीति अपनाई?
उत्तर:
व्यापारी के रूप में आने वाले यूरोपीय लोगों के पीछे-पीछे अमेरिका में ‘बसने’ के लिए भी यूरोपीय आए। इनमें से अधिकतर लोग धार्मिक उत्पीड़न के शिकार थे। इन लोगों में कैथेलिक प्रभुत्व वाले देशों में रहने वाले प्रोटेस्टेन्ट अथवा प्रोटेस्टेन्टवाद को राजधर्म का दर्जा देने वाले देशों के कैथोलिक सम्मिलित थे। जब तक उनके बसने के लिए वहाँ खाली जमीनें थीं, कोई समस्या नहीं आई। परन्तु धीरे-धीरे वे महाद्वीप के आन्तरिक भागों में मूल निवासियों के गाँवों की ओर बढ़ने लगे। उन्होंने अपने लोहे के औजारों द्वारा जंगलों को साफ किया, ताकि खेती की जा सके।

उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों तथा यूरोपीय लोगों का वहाँ के वनों के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण था। मूल निवासियों को वन ऐसे मार्ग जुटाते थे, जो यूरोपीय :गों की पहुंच से बाहर थे। दूसरी ओर यूरोपीय लोगों की कल्पना में जंगलों के स्थान पर मक्कं के खेत उभरते थे। . अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति जैफर्सन का सपना एक ऐसे देश का था, जो छोटे-छोटे खेतों वाले । यूरोपीय लोगों से आबाद था। मूल निवासी उसके इस दृष्टिकोण को समझने में असमर्थ थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संयुक्त राज्य अमेरिका में मूल निवासियों के अधिकारों एवं हितों के लिए क्या किया गया? अब उनकी क्या स्थिति है?
उत्तर:
1920 के दशाक तक संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के मूल निवासियों की भलाई के लिए कुछ नहीं किया गया था। उन्हें न तो स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएँ प्राप्त थीं और न ही शिक्षा सम्बन्धी।

1934 का ‘इंडियन रिआर्गनाइजेशन एक्ट’-अन्ततः गोरे अमेरिकियों के मन में उन मूल निवासियों के प्रति सहानुभूति जागी, जिन्हें अपनी संस्कृति का पालन करने से रोका गया था और जिन्हें नागरिकता के लाभों से भी वंचित रखा गया था। इस बात ने संयुक्त राज्य अमेरिका में एक युगान्तकारी कानून को जन्म दिया। यह कानून था-1934 का इंडियन रीऑर्गनाईजेशन एक्ट। इसके अनुसार रिजर्वेशन्स में मूल निवासियों को जमीन खरीदने और ऋण लेने का अधिकार दिया गया।

1950 तथा 1960 के दशकों में सरकारी नीति-1950 और 1960 के दशकों में संयुक्त राज्य और कनाडा की सरकारों ने मूल निवासियों के लिए किए गए प्रावधनों को समाप्त करने पर विचार किया। उन्हें आशा थी कि इससे वे ‘मुख्य धारा में शमिल’ होंगे अर्थात् वे यूरोपीय संस्कृति को अपना लेंगे । परन्तु मूल निवासी ऐसा नहीं चाहते थे। 1954 में अनेक मूल निवासियों ने अपने द्वारा तैयार किए गए ‘डिक्लेरेशन आफ इंडियन राइट्स’ में इस शर्त के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता स्वीकार की कि उनके रिजर्वेशन्स वापस नहीं लिए जाएंगे और उनकी परम्पराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। कुछ ऐसी ही चीजें कनाडा में भी हुई।

1969 में सरकारी नीति-1969 में सरकार ने घोषणा की कि वह “आदिवासी अधिकारों को मान्यता नहीं देगी।” मूल निवासियों ने इसका डटकर विरोध किया। उन्होंने जोरदार प्रदर्शन किए तथा धरने दिए। 1982 में एक संवैधानिक धारा के अनुसार मूल निवासियों के वर्तमान आदिवासी अधिकारों तथा समझौता-आधारित अधिकारों को स्वीकृति मिलने पर ही इस समस्या का समाधान हो सका । परन्तु इन अधिकारों की बारीकियों के बारे में अभी भी बहुत से निर्णय बाकी हैं। भले ही अब दोनों देश के मूल निवासियों कि संख्या 18वीं शताब्दी की तुलना में बहुत कम हो गई है तो भी उन्होंने अपने सांस्कृतिक अधिकारों की जबरदस्त दावेदारी की है।

प्रश्न 2.
ब्रिटेन ने ऑस्ट्रेलिया में किस प्रकार अपने कैदियों को स्थायी रूप से बसा दिया? यूरोपीय बस्ती के रूप में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऑस्ट्रेलिया के अधिकांश आम्भिक आबादकार इंगलैंड के कैदी थे जो वहाँ निर्वासित होकर आए थे। उनके कारावास की अवधि पूरी होने पर ब्रिटेन वापस न लौटने की शर्त पर उन्हें ऑस्ट्रेलिया में ही स्वतन्त्र जीवन जीने की अनुमति दे दी गई। अपने जीवनयापन के लिए उन्होंने खेती के लिए ली गई जमीन से मूल निवासियों को निकाल बाहर किया।

ऑस्ट्रेलिया का आर्थिक विकास-यूरोपीय बस्ती के रूप में ऑस्ट्रेलिया के आर्थिक विकास में अमेरिका जैसी विविधता नहीं थी। वहाँ एक लम्बे समय के बाद ही भेड़ों के विशाल फार्मों, खानों, मदिरा बनाने के लिए अंगूर के बागों और गेहूँ की खेती का विकास हो सका, जिसमें काफी श्रम लगा। ये ऑस्ट्रेलिया की सम्पन्नता का आधर बने। जब राज्यों को आपस में मिलाया गया और 1911 में ऑस्ट्रेलिया की एक नई राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया, तब इस राजधानी का नाम ‘चूलव्हीटगोल्ड’ (Woolwheat gold) रखने का सुझाव दिया गया था। परन्तु ‘अन्त में उसका नाम कैनबरा रखा गया जो एक स्थानीय शब्द कैमबरा (kamberra) से बना है जिसका अर्थ है ‘सभा-स्थल’।

ऑस्ट्रेलिया के कुछ मूल निवासियों को खेतों में काम पर लगाया गया था। वे दासों जैसी कठोर परिस्थितियों में काम करते थे। बाद में चीनी अप्रवासियों ने सस्ता श्रम जुटाया; जैसे कि कैलिफोर्निया में हुआ था। परन्तु गैर-गोरों पर बढ़ती हुई निर्भरता से उत्पन्न घबराहट के कारण चीनी अप्रवासियों को प्रतिबन्धित कर दिया गया। 1974 तक लोगों के मन में, यह भय घर कर गया था कि दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के ‘काले’ लोग बड़ी संख्या में ऑस्ट्रेलिया आ सकते हैं। अत: ‘गैर-गोरों’ को बाहर रखने के लिए सरकार ने एक विशेष नीति अपनाई।

प्रश्न 3.
‘दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस क्या थी? इसने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृति तथा परम्पराओं को पुनर्जीवित करने में कैसे सहायता पहुँचाई?
उत्तर:
1963 में एक मानवशास्त्री डब्ल्यु. ई. एच. स्टैनर के एक व्याख्यान से लोगों में बिजली की तरंग सी दौड़ गई। व्याख्यान का शीर्षक था-‘दि ग्रेट ऑस्ट्रेलियन साइलेंस’ (महान् ऑस्ट्रेलियाई चुप्पी)। यह चुप्पी इतिहासकारों की मूल निवासियों के बारे में चुप्पी थी। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों के इतिहास तथा संस्कृति के प्रति पूरी तरह चुप्पी साध ली थी। 1970 के दशक में उत्तरी अमेरिका की तरह यहाँ भी मूल निवासियों को एक नए रूप में समझने की चाहत उत्पन्न हो गई।

उन्हें विशिष्ट संस्कृतियों वाले समुदायों तथा प्रकृति एवं जलवायु को समझने में सहायक विशिष्ट पद्धतियों का रूप माना गया। अब उन्हें ऐसे समुदायों के रूप में समझा जाना था, जिनके पास अपनी कथाओं, कपड़ासाजी, चित्रकारी तथा हस्तशिल्प के कौशल का विशाल भंडार था। उनका यह भंडार सराहना; सम्मान तथा अभिलेखन के योग्य था। इन सबकी तह में एक जरूरी प्रश्न भी था। यह प्रश्न आगे चलकर हेनरी रेनॉल्डस ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक, ‘व्हाइ वरंट वी टोल्ड?’ में सामने रखा । इस पुस्तक में ऑस्ट्रेलियाई इतिहास लेखन की उस प्रथा की भर्त्सना की गई थी, जिसमें वहाँ के इतिहास का आरम्भ कैप्टन कुक की खोज से माना जाता था।

ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन – तब से मूल निवासियों की संस्कृतियों का अध्ययन करने के लिए विश्वविद्यालयों में विशेष विभागों की स्थापना की गई है। आर्ट गैलरीज में देसी कलाओं की गैलरीज शामिल की गई हैं। संग्रहालयों में देसी संस्कृति को समझाने वाले कल्पनाशील तरीके से बनाए गए कमरों को स्थान दिया गया है। अब मूल निवासियों ने स्वयं भी अपने जीवन-इतिहास को लिखना आरम्भ कर दिया है। यह सब एक अद्भुत प्रयास है। यह प्रयास समय रहतें शुरू हो गया है। यदि मूल निवासियों की संस्कृतियों की अनदेखी होती रहती तो इस समय तक उनका बहुत कुछ भुला दिया गया होता।

1974 से ऑस्ट्रेलिया की राजकीय नीति बहुसंस्कृतिवादी रही है। इस नीति के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों की संस्कृतियों और यूरोप तथा एशिया के अप्रवासियों को संस्कृतियों को समान आदर दिया गया है। नयी दुनिया के देशों को यूरोपवासियों द्वारा दिए गए नाम।

‘अमेरिका’ – यह नाम पहली बार अमेरिगो वेसपुकी (1451-1512) का यात्रा-वृत्तांत छपने के बाद प्रयोग में आया।
‘कनाडा’ – कनाडा में निकला शब्द (1535 में खोजी जाक कार्टियर को मिली जानकारी के अनुसार, यूरों-इरोक्यूइम की भाषा में कनाटा का अर्थ था, ‘गाँव’).
‘ऑस्ट्रेलिया’ – महान् दक्षिणी महासागर में स्थित भूमि के लिए सोलहवीं सदी में प्रयुक्त नाम।
‘न्यूजीलैंड’ – हॉलैंड के तासमान द्वारा दिया गया नाम, जिसने सबसे पहले 1642 में इन टापुओं को देखा था। डच भाषा में ‘समुद्र’ को ‘जी’ कहते हैं।

प्रश्न 4.
उत्तरी अमेरिका में मानव के आगमन तथा उपनिवेशीकरण से पूर्व उनकी जीवन-शैली की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मानव का आगमन – उत्तरी अमेरिका के सबसे पहले निवासी 30,000 साल पहले बेरिंग स्टेट्स के आर-पार फैले भूमि-सेतु के मार्ग से एशिया से आए थे। लगभग 10,000 साल – पहले वे आगे दक्षिण की ओर बढ़े। अमेरिका में मिलने वाली सबसे पुरानी मानव कृति-एक तीर की नोक है, जो 11,000 साल पुरानी है। लगभग 5000 साल पहले जलवायु में स्थिरता आयी और उत्तरी अमेरिका की जनसंख्या बढ़ने लगी।

जीवन – शैली-यहाँ के लोग नदी घाटी के साथ-साथ बने गाँवों में समूह बनाकर रहते थे। वे मछली और मांस खाते थे और सब्जियाँ तथा मक्का उगाते थे। वे प्रायः मांस की तलाश में लम्बी यात्राएँ करते थे। मुख्य रूप से उन्हें ‘बाइसन’ अर्थात् उन जंगली भैंसों की तलाश रहती थी, जो घास के मैदानों में घूमते रहते थे। परन्तु वे उतने ही जानवर मारते थे, जितने उन्हें भोजन के लिए आवश्यक होते थे।

ये लोग लोभी नहीं थे। वे बड़े पैमाने पर खेती नहीं करते थे। न ही वे अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन करते थे। इसलिए वे केन्द्रीय तथा दक्षिणी अमेरिकी की तरह राज्य और साम्राज्य स्थापित न कर सके। उन्हें भूमि पर नियन्त्रण की कोई चिन्ता नहीं थी क्योंकि वे उससे मिलने वाले भोजन और आश्रय से ही सन्तुष्ट रहते थे। इसलिए भूमि को लेकर कबीलों के बीच बहुत कम ही झगड़े होते थे। औपचारिक सम्बन्ध स्थापित करना, मित्रता करना तथा उपहारों का आदान-प्रदान करना उनकी परम्परा थी।

उत्तरी अमेरिका में अनेक भाषाएँ बोली जाती थौं । लोगों का विश्वास था कि समय की गति चक्रीय है। प्रत्येक कबीले के पास अपनी उत्पत्ति और इतिहास के बारे में ब्योरे थे, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहते थे। वे कुशल कारीगर थे और खूबसूरत कपड़े बुनते थे। उन्हें भूदृश्यों तथा जलवायु की भी पूरी जानकारी थी।

प्रश्न 5.
संयुक्त राज्य अमेरिका के मूल निवासियों की अपनी जमीनों से बेदखली की समस्या की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए। चिरोकी कबीले का विशेष रूप से उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में यूरोपियों ने अपनी बस्तियों के विस्तार के लिए खरीदी गई जमीन से वहाँ के मूल निवासियों को हटा दिया। उनके साथ अपनी जमीनें बेच देने की संधियाँ की गई और उन्हें जमीन की बहुत कम कीमतें दी गईं। ऐसे उदाहरण भी मिलते हैं कि अमेरिकियों ने धोखे से उनसे अधिक भूमि हथिया ली या फिर पैसा देने के मामले में हेराफेरी की।

चिरोकियों के प्रति अन्याय-उच्च अधिकारी भी मूल निवासियों की बेदखली को गलत नहीं मानते थे। जॉर्जिया इसका उदाहरण है। जॉर्जिया संयुक्त राज्य अमेरिका का एक राज्य है। यहाँ के अधिकारियों का तर्क था कि वहां के चिरोकी कबीले पर राज्य के कान तो लागू होते हैं, परन्तु वे नागरिक अधिकारों का उपभोग नहीं कर सकते।

1832 में संयुक्त राज्य के मुख्य न्यायाधीश, जॉन मार्शल ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय सुनाया। उन्होंने कहा कि चिरोकी कबीला “एक विशिष्ट समुदाय” है और उसके स्वत्वाधिकार वाले क्षेत्र में जॉर्जिया का कानून लागू नहीं होता । वे कुछ मामलों में संप्रभुसत्ता सम्पन्न हैं। परन्तु संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति एंड्रिड जैकसन ने मुख्य न्यायाधीश की इस बात को मानने से इन्कार कर दिया और सेना के बल पर चिरोकियों को अपनी जमीन से मार भगाया। इनकी संख्या लगभग 15000 थी। उनमें से एक चौथाई अपने ‘आंसुओं की राह’ (Trail of Tears) के सफर में ही मर-खप गए। अर्थात् अपनी जमीन खो देने के दु:ख ने ही उनके प्राण ले लिए।

मूल निवासियों की जमीनें प्राप्त करने वाले लोग इस आधार पर अपने को उचित ठहराते थे कि मूल निवासी जमीन का अधिकतम प्रयोग करना नहीं जानते। इसलिए वह उनके पास रहनी ही नहीं चाहिए। वे यह कहकर भी मूल निवासियों की आलोचना करते थे कि वे आलसी हैं। इसलिए वे बाजार के लिए उत्पादन करने में अपने शिल्प-कौशल का प्रयोग नहीं करते हैं। अंग्रेजी सीखने और ‘ढंग के’ कपड़े पहनने में भी उनकी कोई रुचि नहीं है। कुल मिलाकर उनका कहना था कि वे ‘मर-खप जाने’ के ही अधिकारी हैं। खेती के लिए जमीन प्राप्त करने के लिए प्रेयरीज को साफ किया गया और जंगली भैंसों को मार डाला गया। एक फ्रांसीसी आगंतुक ने लिखा, “आदिम जानवरों के साथ-साथ आदिम मनुष्य भी लुप्त हो जाएगा।”

मूल निवासियों के रिजर्जेशंज – इसी बीच मूल निवासियों को पश्चिम की ओर खदेड़ दिया गया था। उन्हें ‘स्थायी रूप से अपनी भूमि तो दे दी गई थी, परन्तु उनकी जमीन में सीसा, सोना या तेल जैसे खनिज होने का पता चलने पर उन्हें वहाँ से भी खदेड़ दिया जाता था। प्रायः कई-कई समूहों को मूलतः किसी एक समूह के नियन्त्रण वाली जमीन में ही साझा करने के लिए बाध्य किया जाता था, जिससे उनके बीच झगड़े हो जाते थे।

मूल निवासी छोटे-छोटे प्रदेशों में ही सीमित कर दिए गए थे, जिन्हें ‘रिजर्वशंज’ (आरक्षण) कहा जाता था। ये प्रायः ऐसी जमीन होती थी, जिसके साथ उनका पहले से कोई नाता नहीं होता था। ऐसा नहीं है कि उन्होंने अपनी जमीनें बिना : किसी संघर्ष के ही छोड़ दी हों। संयुक्त राज्य की सेना को 1865 से 1890 के बीच मूल निवासियों के विद्रोहों की एक लम्बी श्रृंखला का दमन करना पड़ा था । कनाडा में 1869 से 1885 के बीच मेटिसों (यूरोपीय मूल निवासियों के वंशज) के सशस्त्र विद्रोह हुए थे। परन्तु इन लड़ाईयों के बाद उन्होंने हार मान ली थी।

प्रश्न 6.
‘गोल्ड रश’ से क्या अभिप्राय है? इसने संयुक्त राज्य अमेरिका में रेलवे के निर्माण, उद्योगों के विकास तथा खेती के विस्तार में किस प्रकार सहायता पहुँचाई?
अथवा
गोल्ड रश की अमेरिका के आर्थिक तथा राजनीतिक विस्तार में क्या भूमिका रही?
उत्तर:
यूरोपीय लोगों को इस बात की आशा थी कि उत्तरी अमेरिका में धरती के नीचे सोना है। 1840 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कैलीफोर्निया में सोने के कुछ चिह्न मिले । इसने गोल्ड रश को जन्म दिया। गोल्ड रश उस आपाधापी का नाम है, जिसमें हजारों की संख्या में यूरोपीय लोग सोना पाने की आशा में अमेरिका जा पहुंचे।

रेलवे का निर्माण – गोल्ड रश को देखते हुए पूरे महाद्वीप में रेलवे-लाइनों का निर्माण किया गया। इसके लिए हजारों चीनी श्रमिकों की नियुक्ति की गई। संयुक्त राज्य अमेरिका में रेलवे का काम 1870 में और कनाडा की रेल्वे का काम 1885 में पूरा हुआ। स्कः सैंड से आने वाले एक अप्रवासी एंड्रिड कानेगी ने कहा था-“पुराने राष्ट्र घोंघे की चाल से सरकते हैं। नया गणराज्य किसी एक्सप्रेस की गति से दौड़ रहा है।

उद्योगों का विकास-गोल्ड रश ने केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में ही नहीं अपितु पूरे उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकास में सहायता पहुँचाई । उत्तरी अमेरिका में उद्योगों के विकसित होने के दो मुख्य उद्देश्य थे।

विकसित रेलवे का साज-सामान बनाना, ताकि दूर-दूर के स्थानों को तीव्र परिवहन द्वारा जोड़ा जा सके।
ऐसे यन्त्रों का उत्पादन करना, जिनसे बड़े पैमाने पर खेती की जा सके।

संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा दोनों जगहों पर औद्योगिक नगरों का विकास हुआ और कारखानों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई।- 1860 में संयुक्त राज्य अमेरिका का अर्थतन्त्र अविकसित अवस्था में था। परन्तु 1890 तक यह संसार की अग्रणी औद्योगिक शक्ति बन चुका था।

खेती का विस्तार – बड़े पैमाने की खेती का भी विस्तार हुआ। बड़े-बड़े इलाके साफ किए गए और उन्हें खेतों में बदल दिया गया। 1890 तक जंगली भैंसों का लगभग पूरी तरह सफाया कर दिया गया। इस प्रकार शिकार वाली जीवनचर्या भी समाप्त हो गई। 1892 में संयुक्त राजनीतिक विस्तार राज्य अमेरिका का महाद्वीपीय विस्तार पूरा हो गया। तब तक प्रशान्त महासागर और अटलांटिक महासागर के बीच का क्षेत्र विभिन्न राज्यों में विभाजित किया जा चुका था।

अब कोई ‘फ्रॉटयर’ नहीं रहा था, जो कई दशकों तक यूरोपीय आबादकारों को पश्चिम की ओर खींचता रहा था। अब संयुक्त राज्य अमेरिका हवाई और फिलिपींस में अपने उपनिवेश बसा रहा था। इस प्रकार वह एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कनाडाई राज्यों के महासंघ का निर्माण कब हुआ?
(क) 1667
(ख) 1767
(ग) 1867
(घ) 1967
उत्तर:
(ग) 1867

प्रश्न 2.
नश्तत्वशास्त्र का विकास कहाँ हुआ था?
(क) इंग्लैंड में
(ख) जर्मनी में
(ग) फ्रांस में
(घ) पोलैंड में
उत्तर:
(ग) फ्रांस में

प्रश्न 3.
जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने अमेरिकी फ्रन्टियर किस रूप में देखा है?
(क) पूँजीवादी यूरोपिया
(ख) समाजवादी यूरोपिया
(ग) जमाखोर
(घ) दानी
उत्तर:
(क) पूँजीवादी यूरोपिया

प्रश्न 4.
सिडनी कहाँ स्थित है?
(क) उत्तरी अमेरिका में
(ख) दक्षिण अमेरिका में
(ग) पुर्तगाल में
(घ) आस्ट्रेलिया में
उत्तर:
(घ) आस्ट्रेलिया में

प्रश्न 5.
आस्ट्रेलिया के मूल निवासी कहाँ से आये थे?
(क) न्यूगिनी
(ख) तस्मानिया
(ग) सिडनी
(घ) न्यु साउथवेल्स
उत्तर:
(क) न्यूगिनी

प्रश्न 6.
आस्ट्रेलिया को किस यूरोपीय देश ने अपना उपनिवेश बनाया?
(क) फ्रांस
(ख) पुर्तगाल
(ग) इंगलैंड
(घ) स्पेन
उत्तर:
(ग) इंगलैंड

प्रश्न 7.
उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों ने अपना इतिहास लिखना कब आरम्भ किया?
(क) 1840
(ख) 1860
(ग) 1740
(घ) 1960
उत्तर:
(ग) 1740

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में किसके लिए सेटलर शब्द का प्रयोग नहीं हुआ?
(क) डच
(ख) पुर्तगाली
(ग) ब्रिटिश
(घ) यूरोपीय
उत्तर:
(ख) पुर्तगाली

प्रश्न 9.
कनाडा का एक महत्त्वपूर्ण उद्योग क्या है?
(क) मत्स्य उद्योग
(ख) फर्न उद्योग
(ग) लौह उद्योग
(घ) टीन उद्योग
उत्तर:
(क) मत्स्य उद्योग

प्रश्न 10.
किसी स्थान का बाशिंदा कौन है?
(क) जहाँ उसे वोट देने का अधिकार हो
(ख) जहाँ से उसे जीविका मिले
(ग) जहाँ उसके माता पिता रहते हो
(घ) जहाँ वह पैदा हुआ हो
उत्तर:
(घ) जहाँ वह पैदा हुआ हो

प्रश्न 11.
चिरोकी उत्तरी अमेरिका एक्ट कब बना?
(क) हवाई जहाज
(ख) जीप
(ग) काक
(घ) बाल कटाई
उत्तर:
(ख) जीप

प्रश्न 12.
यूरोपीय उत्तरी अमेरिका से क्या खरीदना चाहते थे?
(क) गेहूँ
(ख) सुअर
(ग) मछली और रोएदार खाल
(घ) मक्खन
उत्तर:
(ग) मछली और रोएदार खाल

प्रश्न 13.
कनाडा इन्डियन्स एक्ट कब बना?
(क) 1691
(ख) 1791
(ग) 1876
(घ) 1991
उत्तर:
(ग) 1876

प्रश्न 14.
संयुक्त राज्य अमेरिका की कौन-सी सरहद (फ्रंटियर) खिसकती रहती थी?
(क) पूर्वी
(ख) पश्चिमी
(ग) उत्तरी
(घ) दक्षिणी
उत्तर:
(ख) पश्चिमी

प्रश्न 15.
प्रेयरी चरागाह कहाँ था?
(क) उत्तरी अमेरिका में
(ख) दक्षिणी अमेरिका में
(ग) आस्ट्रेलिया में
(घ) इंगलैंड में
उत्तर:
(क) उत्तरी अमेरिका में

प्रश्न 16.
उत्तरी अमेरिका के आबादकार (सेटलर) कहाँ से दास खरीदते थे?
(क) दक्षिणी अमेरिका से
(ख) अफ्रिका से
(ग) पुर्तगाल में
(घ) दक्षिणी एशिया से
उत्तर:
(ख) अफ्रिका से

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 2 असली चित्र

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 2 असली चित्र Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 2 असली चित्र

Bihar Board Class 6 Hindi असली चित्र Text Book Questions and Answers

प्रश्न अभ्यास

पाठ से –

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
यह कहानी आपको कैसी लगी? इस संबंध में आप अपने तर्क (विचार) दें।
उत्तर:
यह कहानी रोचक तथा मनोरंजक है। इस कहानी की सबसे बडी विशेषता यह है कि पाठक की रुचि कहानी पढ़ने में आदि से अन्त तक बनी रहती है। तेनालीराम की बुद्धि के आगे सेठजी की चालाकी नहीं चली और उन्हें अन्त में अपनी हार माननी ही पड़ी।

असली चित्र का क्वेश्चन आंसर Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 2.
इसका कौन-सा पात्र अच्छा लगा और क्यों ?
उत्तर:
वैस तो इस कहानी में कुल चार ही पात्र हैं पर तेनालीराम की भूमिका सर्वोपरि है। तेनालीराम के कारण ही कहानी आगे बढ़ती है और उसका सुखदायी अन्त होता है अन्यथा कहानी का बीच में ही अन्त हो जाता और अन्त दुखदायी होता क्योंकि चित्रकार को अपने परिश्रम का फल नहीं मिलता।

असली चित्र Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 3.
तेनालीराम ने इस घटना की खबर राजा को दी तो क्या हुआ?
उत्तर:
इस घटना की खबर तेनालीराम ने राजा कृष्णदेव राय को दी। राजा इसे सुनकर लोट-पोट हो गये। वे अपनी हँसी रोक नहीं पाये।

Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 4.
“एक कौड़ी-खर्च करने में उसकी जान निकलती थी।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
कंजूसों के लिये पैसा सब कुछ होता है। इस संबंध में एक कहावत है कि “चमड़ी जाय तो जाय पर दमडी बची रहे।” एक कौडी खर्च करने में उनकी जान निकल जाने की नौबत आ जाती है। राजा कृष्णदेव राय के राज्य में भी एक ऐसा ही धनी सेढ़ था जो पैसे को हाथ से निकलना सहन नहीं कर सकता था।

Bihar Board Solution Class 6 Hindi प्रश्न 5.
रिक्त स्थानों को भरिए।
(क) कंजूस सेठ ने चित्रकार से ……………. देने का वादा किया।
(ख) यह कहानी राजा ……………. के राज्य की है।
(ग) चित्रकार ने …………. से सलाह ली।
(घ) एक दिन चित्रकार ……………. लेकर सेठ के पास पहुंचा।
(ङ) तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में ………….. थे।
उत्तर:
(क) उसके चित्र के लिये सौ स्वर्ण मुद्राएँ
(ख) कृष्णदेव राय
(ग) तेनालीराम
(घ) तेनालीराम के कहे अनुसार आईना
(ङ) विदूषक ।

पाठ से आगे –

Bihar Board Class 6 Hindi Solution प्रश्न, 1.
चित्रकार की जगह आप होते तो क्या करते?
उत्तर:
चित्रकार की जगह कोई भी दूसरा व्यक्ति होता तो निराश होकर बैठ जाता और दो-तीन प्रयास के बाद बनाये चित्र को कंजूस सेठ के घर छोड़कर आ जाता।

Asali Chitra Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 2.
गप्प लगाने से नुकसान ज्यादा होता है या फायदा? पाँच वाक्यों में लिखिए।
उत्तर:
गप्प लगाने का आधार ज्यादातर झूठ होता है। झूठ के पाँव नहीं होते। झूठ अपने बल पर बहुत देर तक टिक नहीं पाता। अत: बराबर गप्प लगाने वाला व्यक्ति अपने मित्रों के सामने बहुत प्रभाव डालने में विफल हो जाता है क्योंकि सच्चाई प्रकट हो जाती है। गप्प लगाने से नुकसान ज्यादा होता है फायदा बिलकुल नहीं।

किसलय हिंदी बुक बिहार क्लास 6 Bihar Board प्रश्न 3.
बार-बार कंजूस सेठ द्वारा अपना चेहरा बदल लेने के बाद चित्रकार को सलाह किसने दी? दी गई सलाह का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
चित्रकार कंजूस सेठ की चालाकी से हतप्रभ हो गया था। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। फिर वह तेनालीराम के पास गमा और अपनी समस्या बतायी। तेनालीराम ने ही चित्रकार को आईना लेकर जाने के लिये कहा जिसमें कंजूस सेठ को अपना सही चेहरा दिखाई दे । कंजूस सेठ का असली चेहरा स्वयं प्रकट हो गया और उसे अपनी हार मानने को मजबूर होना पड़ा । यह सलाह उस स्थिति में सबसे अच्छी थी और उसका सही प्रभाव पड़ा।

व्याकरण –

किसलय हिंदी बुक बिहार क्लास 6 Solution Bihar Board प्रश्न 1.
बॉक्स में दिए गए शब्दों को संज्ञा के विभिन्न भेदों में छाँटकर लिखिए।
कृष्णदेव राय, चित्रकार, तेनालीराम, पानी, आईना, लोग, कंजूसी, दूध, ईमानदारी, गाय, पढ़ना, वर्ग, चीनी, गाय, हिमालय, मेला।
उत्तर:

(क) जातिवाचक संज्ञा : चित्रकार, गाय, आईना
(ख) व्यक्तिवाचक संज्ञा : कृष्णदेव राय, तेनालीराम, हिमालय।
(ग) भाववाचक संज्ञा : कंजूसी, ईमानदारी
(घ) द्रव्यवाचक संज्ञा : पानी, दूध, चीनी।
(ङ) समूहवाचक संज्ञा : लोग, वर्ग, मेला पढ़ना क्रिया है, संज्ञा नहीं।

Bihar Board Class 6 Hindi Book प्रश्न 2.
इन मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करें
पानी-पानी होना, काम चाँदी होना, हँसते-हँसते लोट पोट होना, हिम्मत करना, भौंचक रह जाना ।
उत्तर:

  1. पानी-पानी होना : सच्चाई प्रकट होने पर रणधीर पानी-पानी हो गया।
  2. काम चाँदी होना : पैसा मिलते ही उसका काम चाँदी हो गया।
  3. हँसते-हँसते लोट-पोट होना : बच्चे की बात सुनते ही घर के सभी लोग हँसते-हँसते लोट-पोट हो गये।
  4. हिम्मत हारना ; बाधा आने पर भी मनुष्य को हिम्मत नहीं हारना चाहिये।
  5. भौचक रह जाना : परीक्षा में असफल हो जाने की सूचना पाकर वह भौंचक रह गया।

Bihar Board Class 6 Hindi Solution In Hindi प्रश्न 3.
इनके विपरीतार्थक शब्द लिखिएअपार, नया, निराशा, समझ, देर, सही।
उत्तर:
अपार – सीमित
निराशा – आशा
देर – शीघ्र
नया – पुराना
समझ – नासमझ
सही – गलत

Bihar Board Class Six Hindi प्रश्न 4.
निम्न शब्दों से वाक्य बनाइएचित्रकार, पत्रकार, कलाकार, सलाहकार, नाटककार ।
उत्तर:

  1. चित्रकार : भारत में अनेक अच्छे चित्रकार हैं।
  2. पत्रकार : पत्रकार बनकर आप यश कमा सकते हैं।
  3. कलाकार : अच्छे कलाकार का सभी सम्मान करते हैं।
  4. सलाहकार : सलाहकार बनना गौरव की बात है।
  5. सरकार सरकार का गठन शासन चलाने के लिये होता है।

कुछ करने को –

Class 6 Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
तेनालीराम की ही तरह बीरबल और गोनू झा के किस्से भी प्रचलित हैं। अपनी कक्षा में वैसे किस्से सुनाइए।
उत्तर:
उत्तर – [इनके प्रचलित किस्से, छात्र एकत्रित करें और अपने साथियों को कक्षा में सुनायें।]

बीरबल, अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक थे। बीरबल की बद्धिमानी के किस्से उसके राज्य में अत्यन्त प्रचलित थे। अकबर और बीरबल के बीच होने वाले नोंक-झोंक की कहानियाँ भी लोगों के बीच कहे और सुने जाते थे। एक दिन अकबर ने बीरबल को हराने की सोची जब दरबार लगा था, महाराज ‘अकबर ने एक श्याम-पट (ब्लैकबोर्ड) पर खली से एक रेखा खींच दी और बीरबल को आदेश दिया कि इस रेखा को बिना काटे या छाँटे छोटी कर दो। पर यह कैसे सम्भव था? सब लोक चकित थे। आज तो बीरबल की खैरियत नहीं थी। इस बीच बीरबल उठे और अकबर द्वारा खींची रेखा के नीचे एक बड़ी रेखा खींच दी। अकबर द्वारा खींची रेखा छोटी हो गयी। दरबारी, बीरबल की बुद्धि की प्रशंसा करने लगे। अकबर अपने सिंहासन से उतरे और बीरबल को गले लगा लिया। इस किस्से से एक शिक्षा मिलती है। बिना मारे-काटे अपने दुश्मन को छोटा कर दो – उसे परास्त कर दो। अपने को उतना ताकतवर बना लो कि तुम्हारा दुश्मन तुम्हारे आगे नतमस्तक हो जाय।

है न, यह किस्सा मनोरंजक और शिक्षाप्रद भी। इस प्रकार के किस्से आप इकत्रित कर सकते हैं।

Bihar Board 6th Class Hindi प्रश्न 2.
अपने मित्रों के बीच इसी तरह की कोई रोचक कहानी सुनाइए और सुनिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Class 6 Chapter 2 Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
इस कहानी को एकांकी के रूप में कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

असली चित्र Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध राजा हो गये थे जिनका नाम कृष्णदेव राय था। उनके राज्य में एक सेठ रहता था जो कंजूस ही नहीं महाकंजूस था। वह अपार धन-दौलत का मालिक था पर खर्च करने के नाम पर उसकी जान निकल जाती थी।

एक बार सेठ के मित्रों ने सेठ से उसका चित्र बनवाने के राजी कर लिया। चित्रकार ने बड़े मनोयोग से सेठ जी का चित्र बनाया और उनके सामने उपस्थित किया। चित्रकार ने पारिश्रमिक के रूप में सेठ से सौ स्वर्ण मुद्राओं की मांग की । सेठ का कलेजा, स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर बैठ गया। पैसे नहीं देने पड़े, इस बात के लिये सेठ ने एक तरकीब सोची। सेठ स्वयं चेहरा बदलने में माहिर था- वह घर के अन्दर गया और अपना चेहरा बदल कर चित्रकार के सामने उपस्थित हुआ। उसने चित्रकार से कहा – तुम्हारे द्वास बनाया चित्र तो मेरे चेहरे से मेल ही नहीं खाता, फिर यह मेरे किस काम की? तुम स्वयं ही मिलाकर देख लो। चित्रकार सेठ का बदला हुआ चेहरा देखकर निराश हो गया और बनाये हुये चित्र को लेकर वापस चला गया।

दूसरे दिन चित्रकार पुन: एक नया चित्र बनाकर लाया जो पिछले दिन के चेहरे से एकदम मिलता था। लेकिन कमाल हो गया जब सेठ ने चित्रकार को आया देखकर पुनः अपना चेहरा बदल कर उपस्थित हुआ । चित्रकार सेठ का बदला हुआ चेहरा देखकर हतप्रभ हो गया। चित्रकार मारे शर्म के · पानी-पानी हो गया। उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर उससे भूल कहाँ हो जाती है। उसने फिर से चित्र बनाने का फैसला किया।

अगले चित्र के साथ भी वही हश्र हुआ जो पहले दो चित्रों के साथ हुआ था। इसके बाद कई दिनों तक वह नया-नया चित्र बनाता रहा और बार-बार उसे सेठ के सामने लज्जित होने की नौबत आती रही।

चित्रकार अबतक सेठ की चाल अच्छी तरह समझ चुका था और उसकी कंजूसी को भी जान चुका था। वह सोचने लगा इस कंजूस सेठ से कैसे पार पाया जाये । गम्भीरतापूर्वक विचार करने के बाद उसने तेनालीराम से राय लेने की बात सोची। थोड़ी देर सोचने के बाद तेनालीराम ने चित्रकार को सलाह दी- कल तुम कंजूस के पास एक आईना लेकर जाना और उसे कहना कि इस बार वह उसका सही चित्र लेकर आया है। आप इस चित्र को अपने चेहरे से अच्छी तरह मिलाकर देख लें और फर्क पड़े तो उसे बतावें। तेनालीराम ने कहा – “इतना भर करो और तुम्हारा काम चाँदी।”.

कल के दिन चित्रकार ने तेनालीराम के कहे अनुसार किया और एक आईना लेकर कंजूस सेठ के पास पहुँचा । उसने सेठ से कहा- ” सेठजी आज आपका बिल्कुल सही चित्र बनाकर लाया हूँ। देख लें इसमें किसी प्रकार की – त्रुटि की गुंजाइश नहीं है। सेठ आईने को देखकर आगबबूला हो गया और बौखलाकर बोला – “अरे, यह चित्र कहाँ है ? यह तो आईना है ? चित्रकार ने तब सेठ से कहा- ” महाराज! आईना के सिवा आपकी असली सूरत और कौन बना सकता है? बस जल्दी से मेरे चित्रों की कीमत एक हजार स्वर्ण मुद्रायें निकालें।” सेठ का माथा चक्कर खा गया। वह समझ गया कि यह बुद्धि कंवल तेनालीराम की ही हो सकती है। बिना देर किये उसने एक हजार स्वर्ण मुद्रायें सौंप दीं।

अगले दिन तेनालीराम ने इस घटना की सूचना कृष्णदेव राय को दी। राजा भी इस घटना को सुनकर लोट-पोट हो गये।

Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 2 मानव एवं संसाधन

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 1 Chapter 2 मानव एवं संसाधन Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 9 Economics मानव एवं संसाधन Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

Bihar Board Class 9 Economics Solution प्रश्न 1.
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ क्या हैं ?
(क) भोजन और वस्त्र
(ख) मकान
(ग) शिक्षा
(घ) उपयुक्त सभी
उत्तर-
(घ) उपयुक्त सभी

अर्थशास्त्र कक्षा 9 Chapter 2 Bihar Board प्रश्न 2.
निम्न में से कौन मानवीय पूँजी नहीं है ?
(क) स्वास्थ्य
(ख) प्रशिक्षण
(ग) अकुशलता
(घ) प्रबंधन
उत्तर-
(ग) अकुशलता

कक्षा 9 अर्थशास्त्र पाठ 2 के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 3.
प्रो0 अमर्त्य सेन ने प्राथमिक शिक्षा को मानव के लिए क्या बनाने पर जोर दिया है ?
(क) मूल अधिकार
(ख) मूल कर्त्तव्य
(ग) नीति-निर्देशक तत्व
(घ) अनावश्यक
उत्तर-
(क) मूल अधिकार

Bihar Board Class 9 Social Science Solution प्रश्न 4.
जनगणना 2001 के अनुसार भारत की साक्षरता दर है ?
(क) 75.9 प्रतिशत
(ख) 60.3 प्रतिशत ।
(ग) 54.2 प्रतिशत
(घ) 64.5 प्रतिशत
उत्तर-
(ख) 60.3 प्रतिशत ।

अर्थशास्त्र पाठ 2 के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 5.
जनगणना सन् 2001 ई0 के अनुसार मानव की औसत आयु निम्न में से क्या है?
(क) 65.4 वर्ष
(ख) 60.3 वर्ष
(ग) 63.8 वर्ष
(घ) 55.9 वर्ष
उत्तर-
(ग) 63.8 वर्ष

Bihar Board Class 9th Economics Solution प्रश्न 6.
बिहार राज्य के किस जिले की जनसंख्या सबसे अधिक है ?
(क) पटना
(ख) पूर्वी चम्पारण
(ग) मुजफ्फरपुर
(घ) मधुबनी
उत्तर-
(क) पटना

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. मानव पूँजी-निर्माण से सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में …………. ………. होता है।
2. …………………. संसाधन उत्पादन का सक्रिय साधन है।
3. मानवीय संसाधन के विकास के लिए ………….. अनिवार्य है।
4. सन् 2001 ई० की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या …………………… करोड़ है।
5. सन् 2001 ई० की जनगणना के अनुसार सबसे कम साक्षरता वाला राज्य ……………………… है।
6: बिहार में सन् 2001 ई० के जनगणना के अनुसार साक्षरता दर ………………….. है।
उत्तर-
1. वृद्धि,
2. मानव,
3. शिक्षा,
4. 102.70,
5. बिहार,
6. 47 प्रतिशत ।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

संसाधन के रूप में लोग Class 9 Notes Bihar Board प्रश्न 1.
मानव संसाधन क्या है ?
उत्तर-
किसी देश या प्रदेश की जनसंख्या को ही मानव संसाधन कहते हैं।

Bihar Board Class 9th Social Science Solution प्रश्न 2.
हमें मानव संसाधन में निवेश की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर-
मानव की कुशलता और कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए मानव संसाधन में निवेश की आवश्यकता होती है।

अर्थशास्त्र कक्षा 9 Chapter 2 Answers Bihar Board प्रश्न 3.
साक्षरता व शिक्षा में क्या अंतर है ?
उत्तर-
साक्षरता का अर्थ है मात्र अक्षर ज्ञान जबकि शिक्षा का अर्थ विशिष्ट ज्ञानार्जन है।

Class 9 Economics Chapter 2 Notes In Hindi प्रश्न 4.
भौतिक व मानव-पूँजी में दो अंतर बताएँ।
उत्तर-
(i) मानव पूँजी उत्पादन का सक्रिय साधन है जबकि भौतिक पूँजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन है ।
(ii) मानव पूँजी अमूर्त होती है जिसे बाजार में बेचा नहीं जा सकता लेकिन भौतिक पूँजी मूर्त होती है जिसे बाजार में ले जाया जा सकता है।

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 5.
विश्व जनसंख्या की दृष्टि से भारत का क्या स्थान है ?
उत्तर-
भारत का दूसरा स्थान है।

Bihar Board Class 9 Geography Solutions प्रश्न 6.
जन्म-दर क्या है ?
उत्तर-
जन्म दर से तात्पर्य किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या के पीछे जन्म लेनेवाले बच्चों की संख्या से है।

Bihar Board Class 9th History Solution प्रश्न 7.
मृत्यु दर क्यो है ?
उत्तर-
मृत्युदर का अभिप्राय किसी एक वर्ष में प्रति हजार जनसंख्या में मरनेवाले व्यक्तियों की संख्या से है।

Bihar Board Class 9 History Solution प्रश्न 8.
एक साक्षर व्यक्ति कौन है ?
उत्तर-
यदि कोई व्यक्ति किसी भाषा को समझने के साथ-साथ उस भाषा को लिखना-पढ़ना भी जानता हो तो वह व्यक्ति साक्षर है।

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 9.
प्रारम्भिक (प्राथमिक) शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
प्राथमिक शिक्षा वह है जो युवावर्ग (6-14) आयुवर्ग को न्यूनतम और आधारभूत कौशल सिखाती है।

Bihar Board Class 9 Civics Solution प्रश्न 10.
पेशेवर शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
किसी खास कार्य के लिए विशेष तकनीकि ज्ञान प्राप्त करना पेशेवर शिक्षा है। 11. संक्षिप्त रूप को पूरा रूप दें
(i) G.D.P (ii) U.G.C. (iii) N.C.E.R.T. (iv) S.C.E.R.T. (v) I.C.M.R.
उत्तर-
(i) G.D.P. : Gross Domestic Product (कुल गृह उत्पादन)
(ii) U.G.C. : University Grants Commission (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग)
(iii) N.C.E.R.T. : National Council of Educational Research and Training (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद)
(iv) S.C.E.R.T. : State Council of Educational Research and Training (राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
(v) I.C.M.R : Indian Council of Medical Research (भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव तथा मानव संसाधन को परिभाषित करें।
उत्तर-
मानव-उत्पादन कार्य में साहस एक साधन है जो सक्रिय है यह साहस दिखाने वाला ही मानव है।
मानवसंसाधन-उत्पादन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मानव को ‘मानव संसाधन’ के रूप में जानते हैं।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन उत्पादन को कैसे बढ़ाता है ?
उत्तर-
मानव संसाधन अपनी योग्यता और क्षमता से उत्पादन को बढ़ाता है और अर्थ-व्यवस्था के चतुर्मुखी विकास में इसका योगदान अधि क होता है।

प्रश्न 3.
किसी देश में मानव-पूँजी के दो प्रमुख स्रोत क्या हैं ?
उत्तर-
मानव पूँजी के स्रोतों में-भोजन और प्रशिक्षण

प्रश्न 4.
किसी व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर कुशल बनाना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
जब किसी खास काम के लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है तो उसे तकनीकि ज्ञान से जोड़ते हैं । विश्व के बाजारों के बीच connent missing

प्रश्न 5.
भारत में जनसंख्या के आकार को एक बार चार्ट (दंड ग्राफ) द्वारा ्पष्ट करें।
उत्तर-
दशकीय जनसंख्या वृद्धि को बार-चार्ट के द्वारा दिखाया जा सकता है-
Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 2 मानव एवं संसाधन - 1

प्रश्न 6.
बिहार के सबसे अधिक जनसंख्या-वृद्धि वाले 5 जिलों के नाम लिखें।
उत्तर-
(अवरोही क्रम में)
राज्य में सर्वाधिक जनसंख्या वाले 5 जिले –
(i) पटना – 47,09,851
(ii) पूर्वी चम्पारण – 39,33,636
(iii) मुजफ्फरपुर – 37,43,836
(iv) मधुबनी – 35.70.651
(v) गया – 34,64,983

प्रश्न 7.
बिहार के सबसे कम जनसंख्या वाले 5 जिलों के नाम लिखें।
उत्तर-
(आरोही क्रम में) राज्य में सबसे कम जनसंख्या वाले 5 जिले –
(i) शिवहर – 5,14,288
(ii) शेखपुरा – 5,25,137
(iii) लखीसराय – 8.01,173
(iv) मुंगेर – 11,35,499
(v) खगड़िया – 12,76,677

प्रश्न 8.
बिहार देश का सबसे कम साक्षर राज्य है, इसके मुख्य दो कारण लिखें।
उत्तर-
बिहार देश का सबसे कम साक्षर राज्य है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(i) अन्य राज्यों की तुलना में बिहार में प्राथमिक नामांकन की दर बहुत कम है। देश में औसत नामांकन जहाँ 77% है वहीं बिहार में 52% ही है।
(ii) उच्च प्राथमिक विद्यालय पहुँचते- पहुँचते बहुत से बच्चे स्कूल का त्याग कर देते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव संसाधन क्या है ? मानव संसाधन को मानव पूँजी के रूप में केसे परिवर्तित किया जाता है ?
उत्तर-
मानव संसाधन का अर्थ है देश की कार्यशील जनसंठ्या का कौशल और योग्यताएँ । जब व्यक्ति राष्ट्रीय उत्पादन के सृजन : अधिक योगदान करने की दृष्टि से योग्यताएँ एवं कौशल प्राप्त कर लत हैं तो वे संसाधन बन जाते हैं।
जब किसी भी व्यक्ति में शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रशिक्षण के रूप में निवेश किया जाता है तो वह प्रशिक्षण, दक्षता एवं कौशल हासिल कर लेता है तो वह व्यक्ति राष्ट्र की संपत्ति बन जाता है। ऐसी स्थिति में वह संसाधन रूप में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरण स्वरूप-छात्र रूपी मानव संसाधन को शिक्षा अभियंता, डॉक्टर, शिक्षक वकील आदि रूपों में परिवर्तित कर देती है, अर्थात मानव को पूँजी के रूप में परिवर्तित दिया जाता है । मानवीय पूँजी कुल राष्ट्रीय उत्पाद के निर्माण में सहायक होती है।

प्रश्न 2.
मानव पूँजी और भौतिक-पूँजी में क्या अंतर है ? इसे तालिका द्वारा स्पष्ट करें। क्या मानव पूँजी भौतिक पूँजी से श्रेष्ठ है ?
उत्तर-
भौतिक पूँजी (Physical Capital) :

  • भौतिक पूँजी उत्पादन का निष्क्रिय साधन है (Passive Resource).
  • भौतिक पूँजी मूर्त (Trangile) होती है जिसे बाजार में ले जाया जा सकता है।
  • भौतिक पूँजी को उसके मालिक से अलग किया जा सकता है।
  • यह देश के अन्दर पूर्णतः गतिशील है।
  • इसके लगातार प्रयोग से इसमें ह्रास होता है।
  • इसमें केवल निजी लाभ होता है ।

मानव पूँजी (Human Capital):

  • मानव पूँजी उत्पादन का सक्रिय साधन है (Active Re’source)
  • मानव पूँजी आमूर्त होती है (Intrangible) इसे बाजार में बेचा नहीं जा सकता । इसकी सेवा को खरीदा या बेचा जा सकता है।
  • मानव-पूँजी को इसके स्वामी से अलग नहीं किया जा सकता है।
  • यह पूर्णतः गतिशील नहीं, यह राष्ट्रीयता तथा संस्कृति से बाधित होती है।
  • मानव पूँजी उम्र बढ़ने के साथ इसमें हास हो सकता है लेकिन शिक्षा तथा स्वास्थ्य में लगातार निवेश से इसकी क्षतिपूर्ति होती है।
  • मानव पूँजी से स्वामी तथा समाज दोनों को लाभ होता है।

प्रश्न 3.
भारत में मानवीय-पूँजी निर्माण के विकास का परिचय दें।
उत्तर-
भारत की विकास योजनाओं का अंतिम उद्देश्य मानवीय पूँजी-निर्माण अथवा मानवीय साधनों का विकास करना है ताकि दीर्घकाल में आर्थिक सुधारों को सफल बनाया जा सके । देश में कुछ वर्षों में मानवीय साधनों के विकास में सराहनीय सफलता मिली है। जिसका पता नीचे दिए गए तालिका से लगता है।

Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 2 मानव एवं संसाधन - 2

इस तालिका से स्पष्ट है कि भारत में योजना काल में जीने की औसत आयु में वृद्धि हुई है । साक्षरता की दर भी बढ़ी है, जन्मदर, मृत्यु दर में कमी हुई है। प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि हुई है। इस प्रकार आँकडे इस बात के सूचक हैं कि देश में मानवीय साधनों के विकास में सराहनीय प्रगति हुई है।

प्रश्न 4.
मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर-
मानवीय साधनों के विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की भूमिका कुछ इस प्रकार है
शिक्षा-मानव पूँजी निर्माण में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा वह माध्यम है, जिससे व्यक्ति मानव पूँजी के रूप में समृद्धि पाता है। नोबेल पुरस्कार विजेता ‘प्रो० अमर्त्य सेन’ ने शिक्षा को मानव पूँजी के रूप में समृद्ध करने के लिए प्राथमिक शिक्षा को नागरिक का ‘मूल अधिकार’ बनाने पर जोर दिया है। विगत वर्षों के आर्थिक विकास के बाद भी भारत में शिक्षितों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि नहीं हो सकी है। . स्वास्थ्य-स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। अच्छा स्वास्थ्य ही उसकी महत्वपूर्ण पूँजी है और इसमें खर्च कर बढ़ोतरी करना मानव को एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में परिवर्तित कर देना है। अतः स्वास्थ्य पर व्यय मानव पूँजी के निर्माण का एक महत्वपूर्ण स्रोत आवास-रहने को उचित घर होने से मानव अपनी कार्य कुशलता में वृद्धि कर पाता है।

प्रश्न 5.
भारत की राष्ट्रीय जनसंख्या-नीति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत में नौवीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) के अन्तर्गत यह स्वीकार किया गया है कि ‘दीर्घकालीन विकास’ (Sustainable Development) तथा जनसंख्या में घनिष्ठ संबंध है। विकास की क्रिया को बनाये रखने के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना नितांत जरूरी है इसी उद्देश्य से 15 फरवरी, 2000 ई० को भारत सरकार के द्वारा ‘राष्ट्रीय जनसंख्या नीति’ की घोषणा की गयी। इस नीति में समान वितरण के साथ दीर्घकालीन विकास के लिए जनसंख्या स्थिरीकरण को मौलिक आवश्यकता माना गया है।

इस नीति के तत्कालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन उद्देश्य हैं। तत्कालीन उद्देश्य में गर्भ निरोधक की आपूर्ति एवं स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना है।

मध्यकालीन उद्देश्य में कुल प्रजनन दर को 2010 तक प्रतिस्थापना स्तर पर लाना है। दीर्घकालीन उद्देश्य में 2045 तक जनसंख्या को उस स्तर पर स्थिर बनाना है जो दीर्घकालीन विकास की जरूरतें सामाजिक विकास तथा पर्यावरण सुरक्षा के अनुरूप माना गया है । इसके अंतर्गत कुछ नीतियाँ अपनाई गयी है।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 7 हिरोशिमा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 7 हिरोशिमा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 7 हिरोशिमा

Bihar Board Class 10 Hindi हिरोशिमा Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

हिरोशिमा कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है?
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है। अर्थात् हिरोशिमा की धरती पर बम गिरने से आग का गोला चारों ओर फैल जाता है, चारों ओर आग की लपटें फैल जाती हैं। धरती पर भयावह दृश्य उपस्थित हो जाता है। आण्विक बम नरसंहार करते हुए उपस्थित होता है।

हिरोशिमा कविता का सारांश Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
सूर्य के उगने से जो भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब या छाया का निर्माण होता है वे सभी निश्चित दिशा में लेकिन बम-विस्फोट से निकले हुए प्रकाश से जो छायाएँ बनती हैं वे दिशाहीन होती
हैं। क्योंकि आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसका कोई निश्चित दिशा नहीं है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं परन्तु चतुर्दिक फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है। बम के रूप में सूरज की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ती हैं।

Hiroshima Kavita Ka Saransh In Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
प्रज्ज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-
हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चतुर्दिक फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रहे गये। उन्हें सोचने  का अवसर नहीं मिला। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया। बम से प्रज्वलित अग्नि एक क्षण के लिए दोपहर का दृश्य प्रस्तुत कर दिया। कवि उस क्षण में उपस्थित भयावह दृश्य का आभास करते हैं जो तात्कालिक था। वह दोपहर उसी क्षण वातावरण से गायब भी हो गया।

Hiroshima Kavita Ki Vyakhya Bihar Board प्रश्न 4.
मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं?
उत्तर-
मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं।
जहाँ-तहाँ घर की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं। आण्विक आयुध का विस्फोट इतनी तीव्र गति में हुई कि कुछ देर के लिए समय का चक्र भी ठहर गया और उन विस्फोट में जो जहाँ थे वहीं उनकी लाश गिरकर सट गयी। वही सटी हुई लाश अमिट छाया के रूप में प्रदर्शित हुई।

Hiroshima Poem By Agyeya In Hindi Bihar Board प्रश्न 5.
हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-
आज भी हिरोशिमा में साखी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर दीवारें पड़ी हुई हैं यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सड़कों पर, घर के दीवारों पर लाश के निशान छाया के रूप में साक्षी है। यही साक्षी से पता चलता है कि अतीत में यहाँ अमानवीय दुर्दान्तता का नंगा नाच हुआ था।

हिरोशिमा कविता Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
व्याख्या करें:
(क) “एक दिन सहसा / सूरज निकता’
(ख) ‘काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’
(ग) ‘मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया।
उत्तर-
(क)प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी प्रयोगवादी विचारधारा के महान प्रवर्तक कवि अज्ञेय द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से अवतरित है। प्रस्तुत अंश में हिरोशिमा में हुए बम विस्फोट के बाद दुष्परिणाम का जो अंश उपस्थित हुआ है उसी का मार्मिक चित्रण है। – कवि कहना चाहते हैं कि जब हिरोशिमा में आण्विक आयुध का प्रयोग हुआ उस समय प्रकृति के शाश्वत तत्त्व भी कुंठित हो गये। सूरज जैसा ब्रह्माण्ड का शक्ति सनव को ही वाष्प बनाकर सांख गया। उस समय सड़कों, गलियों में चल-फिर रहे लोग, वाष्प की भाँति विलीन हो गए। आस-पास के पत्थरों पर, सड़कों पर, दीवारों पर उस त्रासदी के फलस्वरूप बनी मानव छायाएँ दुर्दान्त मानव के कुकृत्य की साक्षी हैं।

यहीं द्वितीय विश्व युद्ध अणु-बम का विस्फोट हुआ और एक अनहोनी होती है।

भाषा की बात

हिरोशिमा’ कविता की व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों का कारक स्पष्ट कीजिए-
क्षितिज, अंतरिक्ष, चौक, मिट्टी, बीचो-बीच; नगर, रथ, गय, छाया।
उत्तर-
क्षितिज – अधिकरण कारक
अंतरिक्ष – अपादान कारक
चौक – संबंधकारक
मिट्टी – अपादान कारक
बीचो-बीच – संबंध कारक
नगर – संबंध कारक
रथ – संबंध कारक
गच – अधिकरण
छाया – कृर्ता कारक

Hiroshima Poem In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त क्रियारूपी का चयन करते हुए उनकी काल रचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
निकला – वर्तमान काल
पड़ी – भूतकाल
उगा था – भूतकाल
गये हां – भूतकाल
लिखी हैं – भूतकाल
लिखी हुई – भूतकाल
है – वर्तमान काल

हिरोशिमा’ कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
कविता से तद्भव शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
सूरज – सूरज निकल आया।
धूप – धूप निकल गया।
मिट्टी – मिट्टी गीली है।
पहिया – पहिया टूट गया।
पत्थर – पत्थर बड़ा है।
सड़क – सड़क चौड़ी है।

हिरोशिमा की पीड़ा कविता का अर्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
कविता से संज्ञा पद चुनें और उनकी प्रकार भी बताएँ।
उत्तर-
सूरज – व्यक्तिवाचक
नगर – जातिवाचक
चौक – जातिवाचक
मानव – जातिवाचक
रथ – जातिवाचक
पहिया – जातिवाचक
अरे – जातिवाचक
पत्थर – जातिवाचक
सड़क – जातिवाचक

Sakhi Class 10 Question Answers Bihar Board Hindi प्रश्न 5.
निम्नांकित के वचन परिवर्तित कीजिए-
छायाएँ, पड़ी, उगा, हैं, पहियों, अरे, पत्थरों, साखी।
उत्तर-
छायाएँ – छाया
पड़ीं – पड़ी
उगा – उगे
हैं – है
पहियों – पहिया
अरे – अरें
पत्थरों – पत्थर
साखी – साखियाँ

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

हिरोशिमा नागासाकी Bihar Board Class 10 Hindi  प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता–हिरोशिमा।
कवि-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय ने आधुनिक सभ्यता का दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण किया है। जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर मानव जाति ने आण्विक तत्त्वों का क्रूरता के साथ दुरुपयोग करने से जो भीषणतम परिणाम सामने आया उसी का एक साक्ष्य है। इस साक्ष्य के माध्यम से कवि एक अनिवार्य चेतावनी दे रहे हैं।

(ग) सरलार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा क्रूरता से जब आण्विक आयुध का प्रयोग किया गया तो हिरोशिमा तो क्या संपूर्ण विश्व की सभ्यता कराह उठी। उस भीषणतम आण्विक शक्ति के प्रयोग के बाद जो हिरोशिमा की स्थिति हुई उसी स्थिति का वर्णन कवि साक्ष्य के धरातल पर करते हैं। कवि कहते हैं कि अचानक एक प्रचण्ड ज्वाला से प्रज्वलित धरातल को फोड़ता हुआ आण्विक बम रूपी सूरज निकला। हिरोशिमा नामक शहर के खबूसरत चौक चौराहे पर प्रचण्ड ताप लिये हुए धूप निकली।

यह धूप अंतरिक्ष के स्थल से नहीं निकलकर धरती की छाती को फोड़कर निकली और अपनी प्रचण्डता को बिखरती हुई पूरे हिरोशिमा को जलाने लगी। बम विस्फोट से चारों ओर इतनी ज्वाला फैली कि समस्त जन-जीवन क्रूरता के गाल में समाहृत हो गया। प्रकृति प्रदत्त सूरज जब पूरब से उगता है तब एक निश्चित दिशा में निश्चित छाया बनती है लेकिन इस आण्विक बम रूपी सूर्य के उगने से समस्त जीवों की छायाएँ जहाँ-तहाँ पड़ी हुई मिलीं। जैसे लगा कि पूर्व दिशा का एक सूरज नहीं उगा है चारों ओर सूर्य ही सूर्य उगा हुआ है। कवि साक्ष्य के आधार पर कहते हैं कि जैसे लगता है महाकाल-रूपी सूर्य के रथ के पहिये टूटकर दसों दिशाओं के साथ शहर के केन्द्र में बिखर गये हैं। अर्थात् चारों ओर हाहाकार और कोहराम की ध्वनि गुजित हो रही है। आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका चित्र दिखाई पड़ रहे थे। विनाश का भीषणतम लीला का रूप मुंह बाये खड़ा था।

(घ) भाव-सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश का भाव पूर्ण रूप से चित्रात्मक शैली में उद्धत है। प्रयोगवादी वातावरण स्पष्ट रूप से मिल रहे हैं। हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद उभरे हुए नतीजे वर्षों तक मानव के, संवेदनाओं को झकझोर रहे हैं और जैसे उनसे प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या तुम्हारी सभ्यता की यही पहचान है?

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता की भाषा पूर्णतः खड़ी बोली है।
(ii) यहाँ तद्भव के साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग अर्थ की गंभीरता में सहायक है।
(iii) सम्पूर्ण कविता मुक्तक छंद में लिखी गयी है।
(iv) अलंकार योजना की दृष्टि से उपमा, अनुप्रास, दृष्टांत की छटा प्रशंसनीय है।
(v) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
(vi) कविता में प्रयोगवाद की झलक मिल रही है।
(vii) ओजगुण में लिखी कविता भाव को सार्थक बना रही है।

2. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर;
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

Hiroshima Poem Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ). काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हिरोशिमा।
कवि- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में कवि अज्ञेय हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट के कठोरतम परिणाम का साक्ष्य प्रकट करते हैं। साक्ष्य इतना अमानवीय है कि आज भी इसके समस्त मानस पटल पर किसी-न-किसी रूप में उभरते रहते हैं।

(ग) सरलार्थ- इतिहास प्रसिद्ध हिरोशिमा की घटना आज भी राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है। कवि कहते हैं कि यह घटना कुछ क्षण के उदयास्त में इस तरह का दोपहरी वातावरण निर्माण हुआ जिसमें केवल धूप की प्रचण्डता ही थी। वह प्रचण्डता उदय-अस्त के वातावरण को मिटाकर केवल ज्वलनशीलता रूपी दोपहर सामने उभरकर आया।

अनेक लोग जलकर राख हो गये। जो जहाँ था इस आण्विक बम प्रयोग से वहीं मरकर सट गया। जिसके दाग और निशान वर्षों तक अंकित रहे। मानवीय छायाएँ इतनी लम्बी और गहरी हुई कि अभी भी यह अंकित है। जैसे लगा कि सभी मानव भाप बनकर ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गये हैं। ज्वाला इतनी भीषण थी कि पत्थर भी झुलस गए। सड़कें क्षत-विक्षत हो गईं। मानव के द्वारा निर्मित बम रूपी सूरज खुद मानव को ही भाप बनाकर सोख गया। अर्थात् मानव के द्वारा रचित यह आण्विक बम मानव को ही विनाश कर बैठा। आज भी जहाँ-तहाँ मरे हुए मानव की छाया जो अंकित है वह आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका की कहानी का गवाह है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का साक्ष्य प्रकट किया गया है। साथ ही आण्विक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते
संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता खड़ी बोली में है।
(ii) सम्पूर्ण कविता में प्रयोगवाद की झलक मिलती है। स्वतंत्र छंद में लिखी कविता मुक्तक की पहचान करा रही है।
(ii) साहित्यिक गुण की दृष्टि से ओज गुण के अंश देखने को मिल रहे हैं।
(iv) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है। अलंकार की योजनाओं से उपमा पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्व

I. सही विकल्प चुनें

Hiroshima Poem By Agyeya Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
‘हिरोशिमा’ के कवि कौन हैं ?
(क) रामधारी सिंह दिनकर
(ख) कुँवर नारायण
(ग) ‘अज्ञेय’
(घ) जीवानंद दास
उत्तर-
(ग) ‘अज्ञेय’

प्रश्न 2.
‘अज्ञेय’ किसका उपनाम है ?
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन
(ख) रामधानी सिंह
(ग) बदरी नारायण चौधरी
(घ) वीरेन डंगवाल
उत्तर-
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कहाँ है ?
(क) जापान में
(ख) म्यानमार में
(ग) कोरिया में
‘(घ) चीन में
उत्तर-
(क) जापान में

प्रश्न 4.
‘हिरोशिमा’ कविता में सूरज की संज्ञा किसे दी गई है ?
(क) जापान बम को
(ख) अणुबम को
(ग) हाइड्रोजन बम को
(घ) रडार को
उत्तर-
(ख) अणुबम को

प्रश्न 5.
“अज्ञेय’ किस काव्य-धारा के कवि हैं?
(क) रहस्यवाद
(ख) छायावाद
(ग) नकेनवाद
(घ) प्रयोगवाद
उत्तर-
(घ) प्रयोगवाद

प्रश्न 6.
किस काव्य-संकलन के प्रकाशन से हिन्दी में नयी हवा के झोंके आए
(क) तार-सप्तक
(ख) हरी घास पर क्षण भर
(ग) चक्रवाल
(घ) इन दिनों
उत्तर-
(क) तार-सप्तक

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें-

प्रश्न 1.
‘अज्ञेय’ का असली नाम …………. है।
उत्तर-
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

प्रश्न 2.
अज्ञेय कवि कथाकार, नाटककार के अतिरिक्त सुधी ………… भी थे।
उत्तर-
सम्पादक

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कविता अणु बम विस्फोट की ………….. में लिखी गई।
उत्तर-
पृष्ठभूमि

प्रश्न 4.
अणु बम फटने पर मानव ही सब ………….. हो गए।
उत्तर-
भाप

प्रश्न 5.
धूप बरसी पर ………. से नहीं।
उत्तर-
अन्तरिक्ष

प्रश्न 6.
‘अज्ञेय’ हिन्दी में ……… प्रवृत्तियाँ लेकर आए।
उत्तर-
नयी।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी काव्य में ‘अज्ञेय’ ने क्या किया?
उत्तर-
हिन्दी-काव्य में ‘अज्ञेय’ ने छायावाद की धारा को प्रगतिवाद में समाहित किया और प्रयोगवाद की शुरुआत की।

प्रश्न 2.
‘तार सप्तक’ क्या है ?
उत्तर-
तार सप्तक’ सात प्रयोगधर्मी कवियों के काव्य का संकलन है।

प्रश्न 3.
‘काल-सूर्य’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर-
काल-सूर्य का अर्थ है मृत्यु का सूरज।

प्रश्न 4.
‘अज्ञेय’ किस-किस साहित्य-पुरस्कार से सम्मानित हुए ?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ को साहित्य अकादमी के अतिरिक्त ज्ञानपीठ सुगा (युगोस्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल और अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रश्न 5.
‘अज्ञेय’ ने किस साप्ताहिक पत्र का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ ने साप्ताहिक ‘दिनमान’ का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया।

प्रश्न 6.
“हिरोशिमा’ कविता किस छंद में लिखी गई है ?
उत्तर-
‘हिरोशिमा’ कविता मुक्त छंद में लिखी गई है।

व्याख्या खण्ड

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गये बम से हैं।
कवि कहता है कि अचानक एक दिन चौक पर सूरज का विस्फोट हुआ। उस सूरज ने क्षितिज पर नहीं, पूरब में नहीं बल्कि चौक पर अपनी तीखी धूप से जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया।

अंतरिक्ष से सूरज नहीं निकला था। बम विस्फोट से धरती दहल गयी थी और उसकी आंतरिक संरचना में उथल-पुथल मच गयी थी। यहाँ कवि ने नये प्रयोगों द्वारा शब्दों के माध्यम से मानवीय क्रूरतम् पक्षों को उद्घाटित किया है। हिरोशिमा पर बम विस्फोट भयंकर मानवीय दुर्घटना थी। आज के आणविक आयुध की होड़ में हम कितने क्रूर हो गए हैं। इस सृष्टि के विनाश में सदैव तत्पर रहते हैं। वैश्विक राजनीति के कारण अनेक संकट की आशंकाएँ बनी रहती हैं। सृष्टि का पालनकर्ता सूर्य नहीं बल्कि सृष्टि का विनाशक सूर्य धरती पर उगा था। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ही आज सबसे खतरनाक जीव हो गया है। वह दिन-रात विध्वंसक कार्यों में संलग्न रहता है।

उसी के काले कारनामों में हिरोशिमा पर बरसाया गया बम भी था जो सृष्टिकाल का भयंकर विस्फोट था। अपार धन-जन और संस्कृति की हानि हुई थी। इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक रूप में कवि ने प्रयोग किया है। कवि ने मानव के विध्वंसकारी रूप का वर्णन किया है। कैसे हम वैसे विनाशकारी सूर्य की कल्पना और सृजन कर रहे हैं जो सारी सृष्टि का विनाशक सिद्ध हो रहा है।

प्रश्न 2.
छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक हिरोशिमा काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर बरसाए गए बम और उससे हुए अपार धन-जन के महाविनाश से है। कवि ने अपनी काव्य-पक्तियों में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा है कि जब बम विस्फोट हुआ था उस समय चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी थी—कुहराम मच गया था। लोग जान बचाने के लिए दिशाहीन होकर जिधर-जिधर भाग रहे थे। अपनी प्राण रक्षा के लिए आकुल-व्याकुल दिख रहे थे। वह सूरज पूरब में उगकर नहीं आया था-धरती पर। वह अचानक शहर के बीचोंबीच में गिरा। लगता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये धूरी के साथ टूटकर बिखर गये हों।

इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक मानते हुए बम की विध्वंसकारी लीलाओं, उससे हुई अपार धन-जन की हानि, मानवीय पीड़ाओं का यथार्थ और पीडादायी वर्णन हुआ है। यह कवि के जीवन : की सबसे बड़ी दर्दनाक घटना है आज आदमी अपनी क्रूरता की सीमाओं को लाँघ गया है और स्वयं के महाविनाश में लगा हुआ है।

3. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर;
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गए बम से है जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।

कवि कहता है कि बम विस्फोट काल में कुछ क्षण तक स्तब्धता छा गयी थी। चारों तरफ धुआँ ही धुआँ और विस्फोटक पदार्थों से धरती पट गयी थी। प्रतीत होता था कि यह दोपहरी प्रज्ज्वलित क्षण के दृश्यों को सोख लेगी। कहने का मूल भाव यह है कि दोपहर का सूर्य ज्यादा गरमी वाला होता है। उसने यानी सूर्यरूपी बम ने जन-जन के अस्तित्व को मिटा दिया था क्षणभर

प्रश्न 4.
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया
मानव की साखी है।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के “हिरोशिमा” शीर्षक काव्य-पाठ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों का संबंध मानव तथा उसके द्वारा रचे गए सूरज अर्थात् अणु-बम से है जिसके विस्फोट के समय चारों ओर प्रकाश फैलता है, जिस प्रकार सूर्य प्रकाश-पुंज है ऊर्जावान है, उसी प्रकार अणु बम में भी अपार ऊर्जा है तथा मानव-निर्मित सूरज है। किन्तु प्राकृतिक सूरज जहाँ सृष्टि का निर्माण एवं रक्षा करता है वहीं मानव-निर्मित यह सूरज अणु-बम ध्वंस एवं संहार का प्रतीक है।

मानव निर्मित सूरज-‘अणु-बम’ ने मानव को ही वाष्प बनाकर सोख लिया, चट कर गया, दीवारों, पत्थरों और सड़कों के धरातल पर अंकित वाली छायाएँ मानव के इस अमानवीय एवं क्रूर कृत्य की साक्षी हैं।

उपरोक्त पंक्तियों में व्यक्त भाव का तात्पर्य यह है कि मानव ने अपनी रचनात्मक शक्ति का जो दुरुपयोग किया है उसका दुष्परिणाम आज उसके सामने है। वस्तुतः विश्व-राजनीति में आयुद्धों की होड़ से जो संकट गहरा गया है वह नितान्त दुःखद है।

हिरोशिमा कवि परिचय

अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।

अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।

अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।

आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करनेवाली यह कविता एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है । कविता अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का ही साक्ष्य नहीं है, बल्कि आणविक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से भी जुड़ी हुई है । आधुनिक कवि अज्ञेय की प्रस्तुत कविता उनकी समग्र कविताओं के संग्रह ‘सदानीरा’ से यहाँ संकलित है ।

हिरोशिमा Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता मानवीय विभीषिका का सजीवात्मक चित्रण करती है। ‘अज्ञेय’ आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक प्रखर कवि, कथाकार, विचारक और पत्रकार हैं। उन्होंने हिन्दी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया है। सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ प्रस्तुत की यह सिद्ध कर दिया कि प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है।

प्रस्तुत कविता में कवि आज की वैश्विक राजनीति से उपजाते संकर और आशंकाओं को प्रदर्शित किया है। आज दुनिया आण्विक आयुधों को जमा करने में लगी है। विश्व में छायं काले त्रासदी के बादल ये संकेत कर रहे हैं कि कभी वीभत्सकारी रूप ले सकते हैं। ‘हिरोशिमा’ इसी शक्ति का शिकार हुआ है। आज भी वहाँ की त्रासदी कण-कण में प्रदीप्त दिख रही है। अमेरिका द्वारा गिराया गया ‘बम’ साधारण शक्तिवाला नहीं था। वह आग के गोली की तरह आकाश से उनर और पूरे हिरोशिमा को निःशेष कर गया। आज भी उस त्रासदी का दंश वहाँ के वासी झेल रहे हैं। मानव द्वारा निर्मित वह सूरज मानव को ही जलाकर राख कर दिया।

शब्दार्थ

अरं : पहिये की धुरी और परिधि या नमि को जोड़ने वाले दंड
गच : पत्थर या सीमेंट से बना पक्का धरातल
साखी (साक्षी) : गवाही, सबूत

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 हार-जीत

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 हार-जीत

 

हार-जीत वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

हार जीत कविता का भावार्थ लिखें Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
अशोक वाजपेयी के पिता जी कौन थे?
(क) परमानंद वाजपेयी
(ख) रमाकांत वाजपेयी
(ग) शियानंद वाजपेयी
(घ) दयानंद वाजपेयी
उत्तर-
(क)

हार जीत पर कविता Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 2.
अशोक वाजपेयी की माँ का नाम क्या था?
(क) निर्मला देवी
(ख) विमला देवी
(ग) सुधा देवी
(घ) राधिका देवी
उत्तर-
(क)

Hindi Bihar Board Class 12 प्रश्न 3.
इनमें अशोक वाजपेयी की कौन–सी रचना है?
(क) गाँव का घर
(क) गाव ५
(ख) हार–जीत
(ग) कवित्त
(घ) कड़बक
उत्तर-
(ख)

4. अशोक वाजपेयी का जन्म कब हुआ था?
(क) 16 जनवरी, 1941 ई.
(ख) 16 जनवरी, 1940 ई.
(ग) 16 जनवरी, 1930 ई.
(घ) 16 जनवरी, 1935 ई.
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

हार जीत कविता Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
वे……… मना रहे है।
उत्तर-
उत्सव

Bihar Board Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
सारे शहर में……… की जा रही है।
उत्तर-
रौशनी

Bihar Board Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 3.
उन्हें बताया गया है कि उनकी सेना और रथ………….. लौट रहे हैं।
उत्तर-
विजय प्राप्त कर

बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 12 Pdf Bihar Board प्रश्न 4.
नागरिकों में से ज्यादातर को पता नहीं है कि किस युद्ध में उनकी सेना और……….. थे, युद्ध कि बात पर था।
उत्तर-
शासक गए

Bihar Board Hindi Book Class 12 प्रश्न 5.
यह भी नहीं कि शत्रु कौन था पर वे………… की तैयारी में व्यस्त हैं।
उत्तर-
विजय पर्व मनाने

बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 12 Bihar Board प्रश्न 6.
उन्हें सिर्फ इतना पता हैं कि…….. हुई।
उत्तर-
उनकी विजय

हार-जीत अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Hindi Book Class 12 Pdf Download प्रश्न 1.
अशोक वाजपेयी की कविता का नाम है :
उत्तर-
हार–जीत।

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks प्रश्न 2.
हार–जीत कैसी कविता है?
उत्तर-
गद्य कविता है।

Hindi Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
उत्सव कौन मना रहे हैं?
उत्तर-
शासक वर्ग।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 12th Bihar Board प्रश्न 4.
हार–जीत कविता में किसका प्रश्न उठाया गया है?
उत्तर-
हार और जीत का।

हार-जीत पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

Class 12th Hindi Book Bihar Board प्रश्न 1.
उत्सव कौन और क्यों मना रहे हैं?
उत्तर-
किसी शहर विशेष में रहने वाले सामान्य नागरिक उत्सव मना रहे हैं। उनके उत्सव मनाने के कारण निम्नलिखित हैं

  • कुछ लोगों द्वारा यह बता दिया गया है कि उनकी सेना ने विजय प्राप्त कर ली है और वह युद्ध क्षेत्र से वापस आ रही है।
  • उन्हें इस युद्ध की वास्तविक स्थिति का ज्ञान नहीं है।
  • उन्हें युद्ध में मारे गए लोगों के विषय में कुछ भी पता नहीं है।
  • सच बोलने वाले अपनी जिम्मेदारी का उचित निर्वहन नहीं कर रहे हैं।

Hindi Chapter 1 Class 12 Pdf Bihar Board प्रश्न 2.
नागरिक क्यों व्यस्त हैं? क्या उनकी व्यस्तता जायज है?
उत्तर-
नगारिक इसलिए व्यस्त है क्योंकि

  • उन्हें उत्सव मनाने के लिए नाना प्रकार की तैयारियाँ करनी है।
  • उन्हें विजयी भाव प्रदर्शित करते हुए विजयी सेना तथा शासक का स्वागत करना है।
  • उन्हें युद्ध में गए लोगों की संख्या का पता है पर लौटकर आने वालों का ठीक–ठीक पता नहीं है।
  • अर्थात् युद्ध में कितने लोग मारे गए इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। उन्हें तो बस सुखद परन्तु असत्यपूर्ण समाचार ही ज्ञात हुआ है।

उनकी व्यस्तता जायज नहीं है क्योंकि उन्हें वास्तविक स्थिति का पता नहीं है। उन्हें नहीं है पता है कि वास्तव में उनकी जीत नहीं बल्कि हार हुई है।.

हार-जीत कविता Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 3.
किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है? यह विजय किनकी है? आप क्या सोचते हैं? बताएँ।
उत्तर-
किसी की विजय नहीं हुई। विजय प्रतिपक्ष की हुई। कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिन्तन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ–मूठ के आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है। यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता। यानि सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।

हार की जीत Question Answer Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 4.
‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है।’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है? बताइए।
उत्तर-
‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि युद्ध में दोनों पक्षों के अनेक वीर मारे जाते हैं। विजय के मद में चूर सेना इन मृत सैनिकों या लोगों की परवाह नहीं करती। वह भूल जाती है कि इस विजय में उनका भी अप्रत्यक्ष योगदान है। उनके बिना विजय मिलनी संभव न थी।

इस पंक्ति की कविता में यह सार्थकता है कि विजय की खुशी में चूर विजयोत्सव मना रहे लोगों को. मरे हुए लोगों तथा सैनिकों का जरा भी ध्यान नहीं है। उनके आश्रितों पर क्या बीत. रही है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। वे तो बस विजयोत्सव मनाने में व्यस्त है।

वास्तव में शासक अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए जनता के जीवन का मोल नहीं समझता है। वह बनावटी राष्ट्रीयता का नारा देकर पूरे राष्ट्र को युद्ध की भीषण ज्वाला में झोंक देता है। वह तो अपना अधिनायकत्व बनाये रखने के लिए युद्ध लड़ते हैं। इस पंक्ति के माध्यम से सत्ता वर्ग की सत्तालोलुप प्रवृत्ति का पर्दाफाश होता है।

हार जीत कविता का सारांश Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 5.
सड़कों को क्यों सींचा जा रहा है?
उत्तर-
सड़कों को इसलिए सींचा जा रहा है ताकि उनकी धूल–गुबार समाप्त हो सके और युद्ध क्षेत्र से छत्र चंवर और गाजे–बाजे के साथ जो विजयी राजा आ रहे हैं उन पर धूल न उड़े। उन्हें पहले जैसा बनाया जा सके। अर्थात् युद्ध के कारण उनकी टूटी–फूटी हालत में सुधार लाया जा सके।

प्रश्न 6.
बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है?
उत्तर-
बूढ़ा मशकवाला कहता है कि–

  • एक बार फिर हमारी हार हुई है।
  • गाजे–बाजे के साथ विजय नहीं हार लौट रही है।
  • ऐसी विजय पर खुश होकर जश्न मनाने का कोई औचित्य नहीं है वह।

ऐसा इसलिए कहता है क्योंकि–

  • बूढा अनुभवी व्यक्ति है। उसे जीवन के यथार्थ का अनुभव है।.
  • उसे पता है कि समाज में घृणा, द्वेष, हत्या, लूटपाट, दंगे, आतंकवाद आदि मानवता के विनाश के कारण बने हुए हैं। इन पर विजय पाए बिना विजय का जश्न मनाना अनुचित है।
  • लोगों को मरने वालों की कोई जानकारी न देकर वास्तविक स्थिति पर पर्दा डाला जा रहा है।
  • उसकी बातों में सच्चाई तो है पर उसे कोई सुनना नहीं चाहता है।

प्रश्न 7.
बूढा, मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है? सोचिए, अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या होता?
उत्तर-
बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति से वंचित है। अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता। वह सत्य प्रकट करता। उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है। यही उसकी जिम्मेवारी है। सत्य लिखने और बोलने की मनाही है। इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा है। वह विवश है, विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देना केवल सींचने से ही मतलब रखता है। इसमेकं बौद्धि वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती। झूठी बातों और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता। जीवन के हर क्षेत्र में अमन–चैन, शिक्षा–दीक्षा, विकास की धारा बहती। अबोधता ओर अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती।

प्रश्न 8.
‘जिन पर है वे सेना के साथ ही जीतकर लौट रहे हैं जिन किनके लिए आया है? वे सेना के साथ कहाँ से आ रहे हैं? वे सेना के साथ क्यों थे? वे क्या जीतकर लौटे हैं? बताएँ।
उत्तर-
इन पंक्तियों में ‘जिन’ नेताओं के लिए प्रयोग हुआ है। वे लड़ाई के मैदान से लौट रहे हैं। वे सेना के साथ इसलिए हैं कि सेना सच न बोले। वे हारकर लौटे हैं। इन पंक्तियों में नेताओं के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। उनका जीवन–चरित्र कितना भ्रम में डालनेवाला है। कथनी–करनी में कितना अंतर है? झूठी प्रशंसा और अविश्वसनीय कारनामों के बीच उनका समय कट रहा है। उनके व्यवहार और विचार में काफी विरोधाभास है। तनिक समानता और स्वच्छता नहीं दिखायी पड़ती।

प्रश्न 9.
गद्य कविता क्या है? इसकी क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-
दैनदिन जीवन अनुभवों की धरती से बोलचाल बातचीत और सामान्य मन:चिन्तन के रूप में उगा हुआ, विवरणधर्मी और चौरस कविता गद्य कविता है। इस कविता की विशेषता ये होती हैं कि सबसे पहले यह कविता विचार कविता होती है। एक–एक शब्द के कई अर्थ परत–दर–परत खुलते जाते हैं। इस प्रकार की कविता में जीवनानुभव की बात भोगे हुए यथार्थ मानों सामने दिखलाई पड़ती है। क्योंकि ये वर्णनात्मक होती हैं। इनकी भाषा बोल–चाल से सम्पृक्त होने के कारण उसमें स्थानीयता का गहरा रंग भी झलकता है।

प्रश्न 10.
कविता में किस प्रश्न को उठाया गया है? आपकी समझ में इसके भीतर से और कौन से प्रश्न उठते हैं?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में देश की ज्वलन्त समस्याओं की ओर कवि ने ध्यान आकृष्ट किया। है। इस देश की जनता अबोध और चेतनाविहीन है। वह अंधविश्वासों, अफवाहों में जी रही है।

सत्य से कोसों दूर नीति–नियम हैं। सिद्धान्त और व्यवहार में काफी असमानता है।

कवि ने अपनी कविताओं के माध्यम से जीवन की विसंगतियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। जनता की हालत दयनीय है। श्रमिक वर्ग कष्ट में जी रहा है। बौद्धिक वर्ग संकट मेकं जी , रहा है। उसे विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिली है। संस्कृति पर खतरा दिखायी पड़ता है। शासक वर्ग बेपरवाह मौज–मस्ती जश्न में अपना समय बीता रहा है और नागरिक भूख की. ज्वाला में तड़प रहा है। सुरक्षा देनेवाले भी गैर जिम्मेवार है। झूठे–मूठे भुलावा में सभी लोग जी रहे हैं। सत्य से प्रजा को दूर रखने की कोशिश हो रही है। बौद्धिक वर्ग सर्वाधिक संकट में जी रहा है। वह राष्ट्र निर्माण में संकल्पित होकर तो लगा है लेकिन उचित सम्मान और स्थान नहीं मिलता। इतिहास हम भूल रहे हैं। दिग्भ्रमित होकर भटकाव की स्थिति में जी रहे हैं।

हार-जीत भाषा की बात।

प्रश्न 1.
हार–जीत में कौन समास है?
उत्तर-
हार–जीत = हार और जीत–द्वन्द्व समास।

प्रश्न 2.
ज्यादातर में ‘तर’ प्रत्यय है, ‘तर’ प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
कमतर, लघुतर, अधिकतर, निम्नतर, मेहतर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित के पर्यायवाची शब्द चुनें

  • युद्ध–जंग, फसाद, रण, लड़ाई, वार, संग्राम, समर, कलह।
  • सेना–वाहिनी, लश्कर, सैन्य।
  • शत्रु–अप्रिय, अरिष्ट, दुश्मन, द्रोही।
  • सड़क–पथ, रास्ता, राह, पंथ, मार्ग, डगर।
  • रोशनी–प्रकाश, उजाला, ज्योति, उजियाला।
  • उत्सव–जश्न, त्योहार, पर्व, महोत्सव।
  • शहर–नगर, पुर, पुरी, टाउन, स्थान, नगरी।
  • विजय–जय, जीत, फतह, सफलता।
  • हार–पराजय, पराभव, शिकस्त, नाकामयाबी।

प्रश्न 4.
उत्पत्ति की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ। रोशनी, सड़क, अवकाश, रथ, सिर्फ, सच, बूढ़ा।
उत्तर-

  • रोशनी – फारसी
  • सड़क – अरबी
  • अवकाश – संस्कृत
  • रथ – संस्कृत
  • सेना – संस्कृत
  • सिर्फ – फारसी
  • नागरिक – संस्कृत
  • सच – संस्कृत
  • बूढ़ा – हिन्दी

प्रश्न 5.
‘हार’ प्रत्यक्ष से पाँच अन्य शब्द बनाएँ और उसका अर्थ बताएँ।
उत्तर-

  • खेवनहार = खेनेवाला।
  • पालनहार = पालन करने वाला।
  • चन्द्रहार = एक तरह का कंठहार।

प्रश्न 6.
‘विजय पर्व’ में कौन समास है?
उत्तर-
विजय पर्व = विजय का पर्व (षष्ठी तत्पुरुष समास)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों से सर्वनाम चुनें एवं यह बताएँ कि वे किस सर्वनाम के उदाहरण हैं?
(क) किसी के पास पूछने का अवकाश नहीं है।
(ख) यह भी नहीं कि शत्रु कौन था।
(ग) वे उत्सव मना रहे हैं।
(घ) उन्हें सिर्फ इतना पता है कि उनकी विजय हुई।
उत्तर-
शब्द – सर्वनाम

  • किसी के – अनिश्चय वाचक सर्वनाम
  • यह भी – निश्चयवाचक सर्वनाम
  • कौन – प्रश्नावाचक सर्वनाम
  • वे – पुरुषवाचक सर्वनाम
  • उन्हें – पुरुषवाचक सर्वनाम
  • उनकी – पुरुषवाचक सर्वनाम (अन्य पुरुष)

हार–जीत कवि परिचय अशोक वाजपेयी (1941)

अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी, 1941 ई. को दुर्ग, छत्तीसगढ़ (मध्यप्रदेश) में हुआ था। उनकी माता का नाम निर्मला देवी एवं पिता का नाम परमानन्द वाजपेयी था। उनकी. प्राथमिक शिक्षा गवर्नमेंट हायर सेकेन्ड्री स्कूल में हुई। सागर विश्वविद्यालय से बी. ए. और सेंट स्टीफेंस कॉलेज, दिल्ली से अंग्रेजी में एम. ए. किये। वे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे तथा महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति पद से सेवानिवृत्ति हुए। वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, दयाविती मोदी कवि शेखर सम्मान प्रमुख है। सम्प्रति वे दिल्ली में रहकर स्वतन्त्र लेखन कर रहे हैं।

अशोक वाजपेयी की तीन दर्जन के लगभग उनकी मौलिक एवं संपादित रचनाएँ प्रकाशित हुई। इनकी निम्नलिखित कविताएँ प्रकाशित हुई–”शहर अब भी संभावना है”, “एक पलंग अनन्त में” “अगर इतने से”, “तत्पुरुष”, “कहीं नहीं वहीं”, बहुरि अकेला, थोड़ी सी जगह, “घास में दुबका आकाश”, आविन्यों, अभी कुछ और समय के पास समय, इबादत से गिरी मात्राएँ, कुछ रफू कुछ थिगड़े, उम्मीद का दूसरा नाम, विवक्षा, “दुख चिट्ठीरसा है” (कविता संग्रह) है।

अशोक वाजपेयी समसामयिक हिन्दी के एक प्रमुख कवि, आलोचक, विचारक, कला मर्मज्ञ, संपादक एवं संस्कृतिकर्मी हैं। उनकी संवेदना भाषा और रचनात्मक चिन्ताओं ने व्यापक पाठक वर्ग का ध्यान आकृष्ट किया। उनकी कविता में वैयक्तिक आग्रह बढ़ने लगे। खुशहाल मध्यवर्ग की अभिरुचियों को तुष्ट करने में उनकी कविता में एक तरह की स्वच्छंदता विकसित हुई। एक समर्थ कवि की पहचान उनकी कविता में कौंधती है, एक ऐसी कवि जिसका मानस विस्तृत है, उदार है; संवेदनायुक्त है और भाषा स्फूर्त, समर्थ, भारहीन और अर्थग्रहिणी है।

कविता का सारांश हिन्दी साहित्य के प्रखर प्रतिभा संपन्न कवि अशोक वाजपेयी की “हार–जीत” कविता अत्यन्त ही प्रामाणिक है। इसमें कवि ने युग–बोध और इतिहास बोध का सम्यक् ज्ञान जनता को. कराने का प्रयास किया है। इस कविता में जन–जीवन की ज्वलन्त समस्याओं एवं जनता की अबोधता, निर्दोष छवि को रेखांकित किया गया है?

कवि का कहना है कि सारे शहर को प्रकाशमय किया जा रहा है और वे यानी जनता जिसे हम तटस्थ प्रजा भी कह सकते हैं, उत्सव से सहभागी हो रहे हैं। ऐसा इसलिए वे कर रहे हैं कि ऐसा ही राज्यादेश है। तटस्थ प्रजा अंधानुकरण से.प्रभावित है। गैर जवाबदेह भी है। तटस्थ जनता को यह बताया गया है कि उनकी सेना और रथ विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं लेकिन नागरिक में से अधिकांश को सत्यता की जानकारी नहीं है। उन्हें सही–सही बातों की जानकारी नही है।. किस युद्ध में उनकी सेना और शासक शरीक हुए थे। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था कि शत्रु कौन थे।

विडंबना की बात यह है कि इसके बावजूद भी वे विजय पर्व मनाने की तैयारी में जी–जान से लगे हुए हैं। उन्हें सिर्फ यह बताया गया है कि उनकी विजय हुई है? ‘उनकी’ से आशय क्या है यानी उनकी माने किनकी? यह एक प्रश्न उभरता है। यह भी स्थिति साफ नहीं है कि वे जश्न मनाने में इतना मशगूल हैं कि उन्हें यह भी सही–सही पता नहीं है कि आखिर विजय किसकी हुई–सेना की, शासक की या नागरिकों की कितनी भयावह शोचनीय स्थिति है कि किसी के पास यह फुर्सत नहीं है कि वह पूछे कि आखिर ये कैसे और क्यों हुआ?

वे अपनी निजी समस्याओं में इतना खोए हुए हैं कि मूल समस्याओं की ओर ध्यान ही नहीं जाता, यह उनकी विवशता ही तो है। वह कौन–सी विवशता है, यह भी विवेचना का विषय है। नागरिकों की यह भी सही–सही पता नहीं है कि युद्ध में कितने सैनिक गए थे और कितने विजय प्राप्त कर लौट रहे हैं। खेत रहने वालों यानी जो शहीद हुए हैं उनकी सूची भी नदारत है।

कवि उपरोक्त पंक्तियों पर इतिहास और लोक जीवन की ज्वलंत समस्याओं की ओर अपनी कविताओं के माध्यम से सच्चाई से वाकिफ कराने का प्रयास किया है।

कवि कहता है–इन सारी बातों की जानकारी रखने वाला चाहे कोई साक्षी है तो वह है मशकवाला। वह मशकवाला जिसका काम है मशक के पानी से सड़क को सींचना। मशकवाला कह रहा है कि हम एक बार फिर हार गए हैं और गाजे–बाजे के साथ जीत नहीं हारकर लौट रही है? मूल बात की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। विडंबना है कि मशकवाले की एकमात्र जिम्मेवारी सड़क सींचने भर की है। सच लिखने या बोलने की नहीं। जिनकी हैं वे सेना के साथ जीतकर लौट रहे हैं”. यह एक प्रश्नवाचक चिह्न खड़ा करता है।

प्रस्तुत कविता अत्यन्त ही यथार्थपरक रचना है। कवि सच्चाई से वाकिफ कराना चाहता है। वर्तमान में राष्ट्र और जन की क्या स्थिति है, इस ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उक्त गद्य कविता में कवि द्वारा प्रयुक्त शासक, सेना, नागरिक और मशकवाला शब्द प्रतीक प्रयोग हैं। शासक वर्ग अपनी दुनिया में रमा हुआ है। उसमें उसके अन्य प्रशासकीय वर्ग भी सम्मिलित है। नागरिकों की स्थिति बड़ी ही असमंजस वाली है। मशकवाला पूरे घटनाक्रम की सही जानकारी रखता है लेकिन उस पर बंदिशें हैं कि वह सत्य से अवगत किसी को नहीं कराये। इसे सख्त हिदायत है न लिखने की, न बोलने की।

उक्त कविता में कवि ने पूरे देश की जो वस्तुस्थिति है, उससे अवगत कराने का काम किया है–राज्यादेश के कारण तटस्थ प्रजा जश्न मनाने में मशगूल है। प्रजा चेनता के अभाव में गैर जिम्मेवार भी है। उसे यह भी ज्ञान नहीं है कि उसकी जिम्मेवारी, कर्तव्य और अधिकार क्या है? नागरिकों को पेट की चिन्ता है। नागरिक स्वार्थ में अंधा है वे अपनी स्वार्थपरता में इतना अंधे हैं कि राष्ट्र की चिन्ता ही नहीं याद आती। यह एक प्रश्न खड़ा करता है हमारे राष्ट्र के समक्ष, जबतक जना सुशिक्षित प्रज्ञ एवं चेतना संपन्न नहीं होगी तबतक राष्ट्र विकसित और कल्याणकारी नहीं हो सकता।

कवि कहता है कि आजादी के लिए जिन्होंने अपने को बलिवेदी पर चढ़ाया आज उनका इतिहास ही नहीं है। उनकी सूची अपूर्ण है। उनकी शहादत को देश और शासक भूल गए हैं। शहीदों की कुरबानी के महत्व को तरजीब नहीं दी जाती है। उधर किसी का न ध्यान जाता है न श्रद्धा ही है। बड़ी ही त्रासद स्थिति है।

श्रमिकों/मजदूरों/किसानों की दीन–दशा की ओर भी कवि ने ध्यान आकृष्ट किया है। वे सड़क सींचते हैं यानी अपने श्रम द्वारा राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं लेकिन आजादी के इतने दिनों बाद उनकी सामाजिक, आर्थिक दशा सुधरी क्या? वे जीवन बोध से अवगत हुए क्या? अगर हुआ होता तो वे ऐसा नहीं करते यानि गैर जवाबदेही और अंधभक्त होकर शासनादेश के अविवेकपूर्ण आदेश को नहीं मानते।

किसकी जीत हुई या हार यह भी सोचने की बात है। चिन्तन करने की बात है। जीवन के यथार्थ और देश की वास्तविक समस्याओं की ओर से हमारा ध्यान हटकर झूठमूठ के दिखावे, ठाकुरसुहाती बातों के द्वारा जश्न मनाने की तैयारी यह लोकतंत्र के लिए खिलवाड़ नहीं तो क्या है? देश की प्रजा राजनीतिक चेतना से चर्चित है। वह राजनैतिक अधिकारों की बातें क्या समझे या जानें। उसे तो भूख के आगे कुछ सूझता नहीं।

अबोधता और अज्ञानता में पल रही प्रजा सत्य से कोसों दूर है। अगर उसे राजनीति की सही शिक्षा मिलती तो वह जिम्मेवारी से भागता नहीं तथा हार को, हार कहती जीत नहीं कहती। यानि सत्य के लिए संघर्ष करती, आन्दोलन करती। अपने अधिकारों के लिए सचेत रहती। अपनी अबोधता और विवशता के कारण ही वह दूसरे क्षेत्रों में दखल नहीं देती।।

इस कविता में देश के नेताओं के चरित्र को भी उद्घाटित किया गया है। नेताओं के चारित्रिक गुणों का पर्दाफाश किया जाता है। लड़ाई के मैदान से वे लौटे हैं लेकिन सेना के साथी। इसका तात्पर्य है कि सेना सच बोलकर भेद नहीं खोल दे कि वे हार कर लौट रहे हैं और झूठी प्रशंसा में जीत का प्रचार कर रहे हैं। उक्त गद्य कविता में कवि का कहना है कि देश की वास्तविक स्थिति से अवगत नहीं कराया जा रहा है। झूठे–प्रचारतंत्र के द्वारा यह शासन चल रहे हैं। मशकवाला बुद्धिजीवी वर्ग का प्रतीक है। बुद्धिजीवियों के आगे भी संकट है–क्या वे सत्य के उद्घाटन में स्वयं को सक्षम पाते हैं?

कई प्रकार की बंदिशें हैं–सत्य कहने, लिखने की। जनता मूकदर्शक बनकर सही स्थितियों को देख रही है किन्तु उसे ज्ञान ही नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, क्योंकि अपनी विवशता में वह अभिशप्त है। घोर दुर्व्यवस्था, प्रपंच, झूठे आडम्बरों एवं दकियानूसी बातों में समय व्यतीत हो रहा है। लोक जीवन में अराजकता, अशिक्षा, बेकारी, बेरोजगारी भवाह रूप से परिव्याप्त है। उसे और किसी का भी ध्यान नहीं आ रहा है।

शासक वर्ग को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए न कोई उपाय है और न वे हृदय से इसे चाहते हैं। वे तो अपने शान–शौकत, जय–जयकार में लीन है। प्रजा मौन है। बुद्धिजीवी विवश है लोकतंत्र खतरे में है। राष्ट्रीय चेतना सुषुप्तावस्था में है। सांस्कृति और राजनीतिक संकट के आवरण में देश घिरा हुआ है। अनेक सामाजिक विसंगतियों एवं समस्याओं से जन–जलवन त्रस्त है। कवि व्यग्र है, चिन्तित है। इन समस्याओं से कैसे मुक्ति मिले।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ

Bihar Board Class 12 History भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए(100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि सम्प्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
उत्तर:
सम्प्रदाय के समन्वय का अर्थ:
इतिहासकारों के अनुसार विभिन्न पूजा प्रणालियों का एक-दूसरे में मिलन और सहिष्णुता की भावना ही संप्रदाय का समन्वय है। इतिहासकारों के विचार से इस विकास में दो प्रक्रियायें कार्य कर रही थीं। पहली पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और संरक्षण से ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। ये ग्रंथ सरल संस्कृत छंदों में थे और स्त्रियों और शूद्रों द्वारा भी इन्हें पढ़ा जा सकता था।

दूसरी प्रक्रिया स्त्री, शूद्रों व समाज के अन्य वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों की स्वीकृति वाली और उसे एक नया रूप प्रदान करने की थी। समाज शास्त्रियों का विचार है कि सम्पूर्ण महाद्वीप में धार्मिक विचारधाराएँ और पद्धतियाँ एक-दूसरे के साथ संवाद की ही परिणाम हैं। इस प्रक्रिया का सबसे विशिष्ट उदाहरण पुरी (उड़ीसा) में दिखाई देता है। यहाँ मुख्य देवता को 12वीं शताब्दी तक आते-आते जगन्नाथ (सम्पूर्ण विश्व का स्वामी) विष्णु के रूप में प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 2.
किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?
उत्तर:
कुछ सीमा तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण दिखाई पड़ता है। उदाहरणार्थ-मस्जिदों इमारत का मक्का की ओर मेहराब (प्रार्थना का आला) के रूप में अनुस्थापन मंदिरों में मिलबार (व्यासपीठ) की स्थापना से दिखाई पड़ता है। अनेक छत और निर्माण के मामले में कुछ भिन्नता भी दिखाई पड़ती है।

केरल में तेरहवीं शताब्दी की एक मस्जिद की छत चौकोर है जबकि भारत में बनी कई मस्जिदों की छत गुम्बदाकार है। उदाहरणार्थ-दिल्ली की जामा मस्जिद। बांग्लादेश की ईंट की बनी अतिया मस्जिद की छत भी गुम्बदाकार है। श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद की छत चौकार है। इसके शिखर और नक्काशीदार छज्जे बहुत आकर्षक हैं।

प्रश्न 3.
बे-शरिया और बा-शरिया सूफी परंपरा के बीच एकरूपता और अंतर दोनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बे-शरिया और बा-शरिया सूफी परम्परा के बीच एकरूपता और अंतर:
मुसलमान समुदाय को निर्देशित करने वाला कानून शरिया कहलाता है। यह कुरानशरीफ और हदीस पर आधारित है। शरिया की अवहेलना करने वालों को बे-शरिया कहा जाता था। कुछ रहस्यवादियों ने सूफी सिद्धांतों की मौलिक व्याख्या से भिन्न कुछ नए सिद्धान्तों को जन्म दिया। ये सिद्धांत मौलिक सिद्धांतों पर ही आधारित थे। परंतु खानकाह (सूफी संगठन) का तिरस्कार करते थे। ये सूफी समुदाय रहस्यावादी फकीर का जीवन व्यतीत करते थे। निर्धनता और ब्रह्मचर्य को इन्होंने गौरव प्रदान किया।

शरिया का पालन करने वालों को बा-शरिया कहा जाता था जिनको सूफियों से अलग माना जाता था। बा-शरिया के लोग शेख से जुड़े रहते थे अर्थात् उनकी कड़ी पैगम्बर मुहम्मद से जुड़ी थी। इस कड़ी के द्वारा अध्यात्मिक शक्ति और आशीर्वाद मुरीदों (शिष्यों) तक पहुँचता था। दीक्षा के विशिष्ट अनुष्ठान विकसित किए गए जिसमें दीक्षित को निष्ठा का वचन देना होता था और सिर मुंडाकर थेगड़ी लगे वस्त्र धारण करने होते थे।

प्रश्न 4.
चर्चा कीजिए कि अलवार, नयनार और वीर शैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?
उत्तर:
कुछ इतिहासकारों के अनुसार अलवार और नयनार संतों ने जाति प्रथा की आलोचना की। उन्होंने ब्राह्मणों की प्रभुता को गैर-आवश्यक बताया। वस्तुतः समाज में ब्राह्मणों का आदर था और उनके आदेशों का पालन राजाओं द्वारा भी किया जाता था जिससे अन्य जातियों की उपेक्षा होती थी। अलवार, नयनार और वीर शैवों ने ब्राह्मण, शिल्पकार, किसान और यहाँ तक कि अस्पृश्य मानी जाने वाली जातियों को भी समान आदर दिया और इस धर्म का अनुयायी स्वीकार किया। उल्लेखनीय है कि ब्राह्मणों ने वेदों को प्रश्रय दिया था। चारों वेदों का महत्त्व आज भी है। अलवार और नयनार संतों की रचनाओं को वेदों जैसा ही महत्त्व दिया गया। उदाहरण के लिए अलवार संतों के एक मुख्य काव्य संकलन ‘नलयिरा दिव्य प्रबंधम्’ का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 5.
कबीर तथा बाबा गुरु नानक के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए। इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ।
उत्तर:
(I) कबीर के उपदेश:

  • कबीर एकेश्वरवाद के प्रबल समर्थक थे। उनका कहना था कि ईश्वर एक है और उसे ही राम, रहीम, साईं, साहिब, अल्लाह आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है।
  • कबीर ईश्वर को सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान् सर्वज्ञ, सर्वत्र तथा सर्वरूप मानते थे। वे परमात्मा के निराकार स्वरूप के उपासक थे। इसके लिए किसी मंदिर, मस्जिद तथा तीर्थस्थान की कोई आवश्यकता नहीं थी।
  • कबीरदास जी का कहना था कि ईश्वर की भक्ति गृहस्थ जीवन का पालन करते हुए करनी चाहिए। वे आजीवन गृहस्थी रहे। वे व्यावहारिक ज्ञान तथा सत्संग में विश्वास रखते थे। वे पुस्तकीय ज्ञान को व्यर्थ बताते थे। पंडितों को यह कहकर निरूत्तर कर देते थे कि “तू कहता कागज की लेखी, मैं कहता आँखन की देखी।”
  • कबीर ज्ञान मार्ग को अधिक कठिन समझते थे। उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि भक्ति के बिना ईश्वर प्राप्ति असंभव है।
  • गाँधीजी की तरह वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान् पक्षधर थे। उन्हें धर्म के नाम पर हिन्दू मुसलमानों की कलह पसंद नहीं थी। वे समन्वयकारी थे। उन्होंने दोनों को फटकारते हुए कहा था “अरे इन दोउन राह न पाई। हिन्दुवन की हिन्दुता देखी, देखी तुर्कन की तुर्काई”।
  • कबीर बाह्य आडम्बरों, व्यर्थ की रूढ़ियों, अन्धविश्वासों, रीति-रिवाजों, कर्मकाण्डों, रोजा, नमाज, पूजा आदि के विरोधी थे। अपने प्रवचनों में उन्होंने इन पर निर्मम प्रहार किया है। मूर्तिपूजा का खंडन करते हुए उन्होंने कहा है: “पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहाड़। याते तो चक्की भली, पीस खाय संसार।”

(II) बाबा गुरु नानक के उपदेश-गुरु नानक की शिक्षाएँ:

1. एक ईश्वर में विश्वास:
गुरु नानक के अनुसार ईश्वर एक है और उसके समान कोई दूसरी वस्तु नहीं है। “ईश्वर से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है, ईश्वर अद्वितीय है। “परब्रह्म प्रभु एक है, दूजा नहीं कोय। वह अलख, अपर, अकाल, अजन्मा, अगम तथा इन्द्रियों से परे हैं।” मैकालिक के शब्दों में, “नानक जी ईश्वर को बहुत ऊँचा स्थान देते हैं और कहते हैं कि मुहम्मद सैकड़ों और हजारों हैं, परंतु ईश्वर एक और केवल एक ही है।”

2. ईश्वर सर्वव्यापी और इन्द्रियों से परे हैं:
भारत में असंख्य ऋषि-मुनि ईश्वर को सगुण तथा साकार मानते हैं, किन्तु नानक ईश्वर के निर्गुण रूप में विश्वास रखते हैं अत: उनका ईश्वर इन्द्रियों से परे अगम-अगोचर है। ईश्वर सर्वव्यापक तथा सर्वशक्तिमान है। उसे मन्दिरों तथा मस्जिदों की चारदीवारी में बंद नहीं किया जा सकता।

3. आत्म-समर्पण ही ईश्वर-प्राप्ति का एकमात्र साधन है:
नानकदेव जी की यह धारणा है कि ईश्वर उन लोगों पर दया करता है, जो दया के पात्र तथा अधिकारी हैं। किन्तु ईश्वर की दया को आत्म-समर्पण तथा इच्छाओं के परित्याग द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। वे अपने को ईश-इच्छा पर छोड़ना ही आत्म-समर्पण मानते हैं।

4. ‘सत्यनाम’ की उपासना पर बल:
नानक देव जी मोक्ष प्राप्ति के लिए ‘सत्यनाम’ की उपासना पर बल देते हैं। उनका विश्वास है कि “जो ईश्वर का नाम नहीं जपता, वह जन्म और मृत्यु के झमेलों में फँसकर रह जाएगा।” एक बार कुछ साधुओं ने उन्हें कोई चमत्कार दिखाने को कहा। उन्होंने बड़े सरल भाव से उत्तर दिया-“सच्चे नाम के अतिरिक्त मेरे पास कोई चमत्कार नहीं।” यहाँ तक कि उन्होंने अपनी माता से भी एक बार कहा था … “उसके नाम का जाप करना जीवन है और उसे भूल जाना ही मृत्यु है।”

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए। (लगभग 250-300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सूफी मत के मुख्य धार्मिक विश्वास और आधार:
इस्लाम के अन्तर्गत रहस्यवादियों का उदय हुआ जो सूफी कहलाते थे। सूफियों ने ईश्वर और व्यक्ति के बीच प्रेम सम्बन्ध पर बल दिया। वे राज्य से सरोकार नहीं रखते थे। सूफी मत का आधार इस्लाम ही था, परंतु भारत में हिन्दू धर्म के सम्पर्क में आने के बाद हिन्दू धर्म के अनुयायियों की विचारधारा और रीति-रिवाजों में काफी समानता आती गई। इस मत का उदय पहले-पहल ईरान में हुआ।

सूफी मत के बहुत से सिद्धांत भक्ति-मार्ग के सिद्धांतों से मिलते-जुलते हैं –

  1. ईश्वर एक है और संसार के सभी लोग उसकी संतान हैं। ईश्वर सृष्टि की रचना करता है। सभी पदार्थ उसी से पैदा होते हैं और अंत में उसी में समा जाते हैं।
  2. संसार के विभिन्न मतों में कोई विशेष अंतर नहीं है। सभी मार्ग भिन्न-भिन्न हैं तथापि उनका उद्देश्य एक ही है अर्थात्-सभी मत एक ही ईश्वर तक पहुँचने का साधन हैं।
  3. सूफी मानवतावाद में विश्वास रखते थे। उनका विचार था कि ईश्वर को पाने के लिए मनुष्यमात्र से प्रेम करना जरूरी है। किसी भी व्यक्ति को उसके धर्म के आधार पर भिन्न समझना भारो भूल है।
  4. मनुष्य अपने शुद्ध कर्मों द्वारा उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है।
  5. समाज में सब बराबर हैं-न कोई बड़ा है और न छोटा।
  6. मनुष्य को बाह्य आडम्बरों से बचना चाहिए। भोग-विलास से दूर रहकर सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। उसका नैतिक स्तर बहुत ऊँचा होना चाहिए।
  7. सूफियों ने अपने आपको जंजीर अथवा सिलसिलों में संगठित किया। प्रत्येक सिलसिले का नियंत्रण शेख, पीर या मुर्शीद के हाथ में।
  8. गुरु (पीर) और शिष्य (मुरीद) के बीच सम्बन्ध को बहुत महत्त्व दिया जाता था। गुरु ही शिष्यों के लिए नियमों का निर्माण करता था। उनका वारिस खलीफा कहलाता था।
  9. सूफी आश्रम-व्यवस्था, प्रायश्चित, व्रत, योग तथा साधना आदि पर भी बल देते थे।
  10. सूफी संगीत पर भी बहुत जोर देते थे।

प्रश्न 7.
क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतो से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?
उत्तर:
शासकों के संबंध नयनार और सूफी संतों के साथ : नयनार शैव परम्परा के संत थे। नयनार और सूफी संतों को शासकों ने अनेक प्रकार से संरक्षण दिया। चोल सम्राटों ने ब्राह्मणीय और भक्ति परम्परा को समर्थन दिया तथा विष्णु और शिव के मन्दिरों के निर्माण हेतु भूमि दान किया। चिदम्बरम्, तंजावुर और गंगैकोडा चोलापुरम् के विशाल शिव मंदिर चोल सम्राटों की सहायता से बनाये गये। इसी काल में कांस्य से ढाली गई शिव की प्रतिमाओं का भी निर्माण हुआ। स्पष्ट है कि नयनार संतों का दर्शन शिल्पकारों के लिए प्रेरणा स्रोत बना।

बेल्लाल क किसान नयनार और अलवार संतों का विशेष सम्मान करते थे। इसीलिए सम्राटों ने भी उनका समर्थन पाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए चोल सम्राटों ने दैवीय समर्थन पाने का दावा अपने उत्कीर्ण अभिलेखों में किया है। अपनी सत्ता के प्रदर्शन के लिए उन्होंने सुन्दर मंदिरों का निर्माण करवाया जिनमें पत्थर और धातु निर्मित मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की गयी थीं। नयनारों का समर्थन पाने के लिए इन सम्राटों ने मंदिरों में तमिल भाषा के शैव भजनों का गायन प्रचलित किया। उन्होंने ऐसे भजनों का संकलन एक ग्रंथ ‘तवरम’ में करने की जिम्मेदारी ली।

945 ई० के एक अभिलेख के अनुसार चोल सम्राट परांतक प्रथम ने संत कवि अप्पार संबंदर और सुंदरार की धातु प्रतिमाएँ एक शिव मंदिर में स्थापित करवायी। इन मूर्तियों को उत्सव में एक जुलूस में निकाला जाता था। सूफी संतों के साथ शासकों के संबंध जोड़ने का प्रयास मुगल बादशाह जहाँगीर का अजमेर की दरगाह पर जाने, गियासुद्दीन खलजी द्वारा शेख की मजार का निर्माण कराए जाने एवं अकबर का अजमेर की दरगाह पर 14 बार दर्शन करने हेतु जाने आदि से दिखाई पड़ता है। सुलतानों ने खानकाहों को कर मुक्त भूमि अनुदान में दी और दान संबंधी न्यास स्थापित किए। सुल्तान गियासुद्दीन ने शेख फरीदुद्दीन को चार गाँवों का पट्टा भेंट किया और धनराशि भी भेंट की थी।

प्रश्न 8.
उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए कि क्यों भक्ति और सूफी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया?
उत्तर:
भक्ति और सूफी चितकों द्वारा विभिन्न भाषाओं का प्रयोग –
1. भक्ति और सूफी चिन्तक अपने उपदेशों और विचारों को आम-जनता तक पहुँचाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने कई क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग किया।

2. पंजाब से दक्षिण भारत तक, बंगाल से गुजरात तक भक्ति आंदोलन का व्यापक प्रभाव रहा। जहाँ-जहाँ संत सुधारक उपदेश देते थे, स्थानीय शब्द उनकी भाषा का माध्यम और अंग बन जाते थे। ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, गुजराती, बंगाली, पंजाबी, अरबी, आदि का उनके उपदेशों में अजीब समावेश है। इसी ने आगे चलकर आधुनिक भाषाओं का रूप निर्धारित किया।

3. स्थानीय भाषा संतों की रचनाओं को विशेष लोकप्रिय बनाती थी। उल्लेखनीय है कि चिश्ती सिलसिले के लोग दिल्ली हिन्दी में बातचीत करते थे ! बाबा फरीद ने भी क्षेत्रीय भाषा में काव्य रचना की जो गुरु ग्रन्थ साहिब में संकलित है। मोहम्मद जायसी का पद्मावत भी मसनवी शैली में है।

4. सूफियों ने लम्बी कवितायें मसनवी लिखी। उदाहरण के लिए मलिक मोहम्मद जायसी का पद्मावत पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रतन सेन की प्रेम कथा को रोचक बनाकर प्रस्तुत करता है। वह मसनवी शैली में लिखा गया है।

5. सूफी संत स्थानीय भक्ति भावना से सुपरिचित थे। उन्होंने स्थानीय भाषा में ही रचनाएँ की। 17-18वीं शताब्दी में बीजापुर (कर्नाटक) में दक्खनी (उर्दू का रूप) में छोटी कविताओं की रचना हुई। ये रचनाएँ औरतों द्वारा चक्की पीसते और चरखा कातते हुए गाई जाती थीं। कुछ और रचनाएँ लोरीनाना और शादीनामा के रूप में लिखी गईं।

6. भक्ति और सूफी चिन्तक अपनी बात दूर-दराज के क्षेत्रों में फैलाना चाहते थे। लिंगायतों द्वारा लिखे गए कन्नड़ की वचन और पंढरपुर के संतों द्वारा लिखे गए मराठी के अभंगों ने भी तत्कालीन समाज पर अपनी अमिट छाप अंकित की। दक्खनी भाषा के माध्यम से दक्कन के गाँवों में भी इस्लाम धर्म का खूब प्रचार-प्रसार हुआ।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में प्रयुक्त किन्हीं पाँच स्रोतों का अध्ययन कीजिए और उनमें निहित सामाजिक व धार्मिक विचारों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अध्याय में प्रयुक्त पाँच स्रोत:
1. मारिची की मूर्ति:
मारिची बौद्ध देवी थी। यह मूर्ति बिहार की 10वीं शताब्दी की है, जो तांत्रिक पूजा पद्धति का एक उदाहरण है। तांत्रिक पूजा पद्धति में देवी की आराधना की जाती है। यह मूर्ति शिल्पकला का उत्तम उदाहरण है।

2. तोंदराडिप्पोडि का काव्य:
तोंदराडिप्पोडि एक ब्राह्मण अलवार था। उसने अपने काव्य में वर्ण व्यवस्था की अपेक्षा प्रेम को महत्त्व दिया है। “चतुर्वेदी जो अजनबी हैं और तुम्हारी सेवा के प्रति निष्ठा नहीं रखते उनसे भी ज्यादा आप (हे विष्णु) उन “दासों” को पसंद करते हो-जो आपके चरणों से प्रेम रखते हैं, चाहे वह वर्ण व्यवस्था के परे हों।

3. नलयिरा दिव्य प्रबंधम्:
यह अलवारों (विष्णु के भक्त) की रचनाओं का संग्रह है। इसकी रचना 12वीं शताब्दी में की गई। इसमें अलवारों के विचारों की विस्तृत चर्चा है।

4. हमदान मस्जिद:
यह मस्जिद कश्मीर की सभी मस्जिदों में ‘मुकुट का नगीना’ समझी जाती है। यह कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह पेपरमैशी से सजाई गई है। (5) कश्फ-उल-महजुब-यह सूफी खानकाहों की एक पुस्तिका है। यह अली बिन उस्मान हुजाविरी द्वारा लिखी गई। इससे पता चलता है कि उपमहाद्वीप के बाहर की परम्पराओं ने भारत में सूफी चिंतन को कितना प्रभावित किया। यह सूफी विचारों और व्यवहारों के प्रबंध की उत्तम पुस्तक है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
भारत के एक मानचित्र पर 3 सूफी स्थल ओर 3 वे स्थल जो मंदिर (विष्णु, शिव, तथा देवी से जुड़ा एक मंदिर ) से संबद्ध है, निर्दिष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 6 भक्ति सूफी परंपराएँ धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ img 1a

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
इस अध्याय में वर्णित किन्हीं दो धार्मिक उपदेशकों/चिंतकों/संतों का चयन कीजिए और उनके जीवन व उपदेशों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कीजिए। इनके समय, कार्य क्षेत्रों और मुख्य विचारों के बारे में एक विवरण तैयार कीजिए। हमें इनके बारे में कैसे जानकारी मिलती है और हमें क्यों लगता है कि वे महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 12.
इस अध्याय में वर्णित सूफी. एवं देवस्थलों से संबद्ध तीर्थयात्रा के आचारों के बारे में अधिक जानकारी हासिल कीजिए। क्या यह यात्राएँ अभी भी की जाती हैं। इन स्थानों पर कौन लोग और कब-कब जाते हैं? वे यहाँ क्यों जाते हैं? इन तीर्थयात्राओं से जुड़ी गतिविधियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History भक्ति सूफी परंपराएँ : धार्मिक विश्वासों में बदलाव और श्रद्धा ग्रंथ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पुरी (उड़ीसा) के मंदिर की विशेषतायें बताइये।
उत्तर:

  1. पुरी (उड़ीसा) का मंदिर पूजा प्रणालियों के समन्वय का एक अच्छा उदाहरण है। हिन्दू धर्म से 12वीं शताब्दी तक विष्णु को संपूर्ण विश्व का स्वामी या जगन्नाथ माना जाता है। हिन्दू धर्मापुरी (उड़ीसा) का मंदिर की विशेषतायें बताइये मए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट था। इस मंदिर से ऐसी जानकारी मिलती है।
  2. इस स्थानीय प्रतिमा को पहले और आज स्थानीय जनजाति के विशेषज्ञ काष्ठ-प्रतिमा के रूप में गढ़ते हैं। विष्णु का यह रूप देश के अन्य भागों में स्थित विष्णु प्रतिमाओं में दर्शित रूप से भिन्न है।

प्रश्न 2.
तांत्रिक पूजा पद्धति से आप क्या समझते हैं और इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:

  1. प्रायः देवी की आराधना पद्धति को तांत्रिक पूजा पद्धति या शाक्त पद्धति कहा जाता है।
  2. कर्मकाण्ड और अनुष्ठान की दृष्टि से इस पद्धति में स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से भाग ले सकते हैं।

प्रश्न 3.
आराधना पद्धतियों में कौन-सी दो प्रक्रियायें कार्य कर रही थीं?
उत्तर:

  1. एक प्रक्रिया ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इसका प्रसार पौराणिक ग्रंथों की रचना, संकलन और संरक्षण द्वारा हुआ।
  2. स्त्री, शूद्रों और अन्य सामाजिक वर्गों की आस्थाओं और आचरणों को ब्राह्मणों द्वारा स्वीकार किया गया और उसे एक नया रूप प्रदान किया।

प्रश्न 4.
उलमा कौन थे?
उत्तर:

  1. उलमा ‘आलिम’ शब्द का बहुवचन है। इसका अर्थ है-ज्ञाता या जानकार। वस्तुत: उलमा इस्लाम धर्म के ज्ञाता थे।
  2. इस परिपाटी के संरक्षक होने से उनकी कार्य धार्मिक कृत्य संपन्न करने, कानून बनाने, उसका अनुपालन कराने और शिक्षा देने का था।

प्रश्न 5.
बासन्ना ने अपनी कविताओं में कौन से विचार व्यक्त किये हैं?
उत्तर:

  1. संसार में लोग जीवित व्यक्ति या जानवर से घृणा करते हैं परंतु निर्जीव वस्तु को पूजा करते हैं जो सर्वथा असंगत है।
  2. उदाहरण- “जब वे एक पत्थर से बने सर्प को देखते हैं तो उस पर दूध चढ़ाते हैं। यदि असली साँप आ जाएं तो कहते हैं “मारो-मारो।”

प्रश्न 6.
भक्ति परम्परा की दो मुख्य शाखाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. भक्ति परम्परा दो मुख्य शाखाओं में विभाजित है-सगुण और निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा। सगुण उपासना में शिव, विष्णु, उनके अवतार और देवियों की मूर्तियाँ बनाकर पूजी जाती है। इसमें देवताओं के मूर्त रूप की पूजा होती है।
  2. निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त एवं निराकार ईश्वर की उपासना की जाती है।

प्रश्न 7.
अंडाल कौन थी?
उत्तर:

  1. अंडाल एक अलवार स्त्री और प्रसिद्ध कवयित्री थी। उसके द्वारा रचित भक्ति गीत व्यापक स्तर पर गाये जाते थे और आज भी गाये जाते हैं।
  2. अंडाल स्वयं को विष्णु की प्रेयसी मानकर अपनी प्रेम भावना को छंदों में व्यक्त करती थी।

प्रश्न 8.
नयनारों द्वारा जैन और बौद्ध धर्म की आलोचना क्यों की जाती थी?
उत्तर:
राजकीय संरक्षण और आर्थिक अनुदान की प्रतिस्पर्धा रहने के कारण ही नयनार इन दोनों धर्मों में दोषारोपण किया करते थे। इनकी रचनाएँ अन्तत: शासकों से विशेष संरक्षण दिलाने में कारगर साबित हुई।

प्रश्न 9.
बासवन्ना (1106-68) कौन थे?
उत्तर:

  1. बासवन्ना वीर शैव परम्परा के संस्थापक थे। वे ब्राह्मण थे और प्रारम्भ में जैन धर्म के अनुयायी थे। चालुक्य राजदरबार में उन्होंने मंत्री का पद संभाला था।
  2. इनके अनुयायी वीर शैव (शिव के वीर) और लिंगायत (लिंग धारण करने वाले) कहलाए।

प्रश्न 10.
खोजकी लिपि की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  1. इस देशी साहित्यिक विधा या लिपि का प्रयोग पंजाब, सिंध और गुजरात के खोजा करते थे। ये इस्माइली (शिया) समुदाय के थे।
  2. खोजकी लिपि में “जीनन” नाम से राग बद्ध, भक्ति गीत लिखे गए। इसमें पंजाबी, मुल्तानी, सिंध, कच्छी, हिन्दी और गुजराती भाषाओं का सम्मिश्रण था।

प्रश्न 11.
सैद्धान्तिक रूप से इस्लाम धर्म के प्रमुख उपदेश क्या हैं?
उत्तर:

  1. अल्लाह एकमात्र ईश्वर है।
  2. पैगम्बर मोहम्मद उनके दूत (शाहद) हैं।
  3. दिन में पाँच बार नमाज पढ़नी चाहिए।
  4. खैरात (जकात) बांटनी चाहिए। (रमजान के महीने में रोजा रखना चाहिए और हज के लिए मक्का जाना चाहिए।

प्रश्न 12.
जिम्मियों ने अपने को संरक्षित कैसे किया?
उत्तर:

  1. जिम्मी अरबी शब्द ‘जिम्मा’ से व्युत्पन्न है। यह संरक्षित श्रेणी में थे।
  2. जिम्मी उद्घटित धर्मग्रंथ को मानने वाले थे। इस्लामी शासकों के क्षेत्र में रहने वाले यहूदी और ईसाई इस धर्म के अनुयायी थे। ये लोग जजिया नामक कर का भुगतान करने मात्र से मुसलमान शासकों का संरक्षण प्राप्त कर लेते थे। भारत के हिन्दुओं को भी मुस्लिम शासक ‘जिम्मी कहते थे और उनसे जजिया नामक कर की वसूली की जाती थी।

प्रश्न 13.
इस्लामी परम्परा में शासकों को शासितों के प्रति क्या नीति थी?
उत्तर:

  1. शासक शासितों के प्रति पर्याप्त लचीली नीति अपनाते थे। उदाहरण के लिए अनेक शासकों ने हिन्दू, जैन, फारसी, ईसाई और यहूदी धर्मों के अनुयायियों और धर्मगुरुओं को मंदिर आदि निर्माण के लिए भूमियाँ दान में दी तथा आर्थिक अनुदान भी दिए।
  2. गैर मुसलमान धार्मिक नेताओं के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करना भी उनकी उदार नीति का एक हिस्सा था। अकबर और औरंगजेब जैसे मुगल सम्राटों ने ऐसी उदार नीति अपनाई थी।

प्रश्न 14.
अकबर की खम्बात के गिरजाघर के प्रति कैसी नीति रही?
उत्तर:

  1. यीशु की मुकद्दस जमात के पादरी खम्बात (गुजरात) में एक गिरजाघर का निर्माण करना चाहते थे। अकबर ने उनकी माँग स्वीकार कर ली और अपनी स्वीकृति दे दी।
  2. उसने अपने हुक्मनामें से खम्बात के अधिकारियों को यह आदेश दिया कि वे इस कार्य में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। वस्तुतः यह अकबर की उदार धर्मनीति का एक उदाहरण है।

प्रश्न 15.
वली का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. पीर या गुरु के उत्तराधिकारी को वली या खलीफा कहा जाता है।
  2. सूफीमत के प्रत्येक सिलसिले या वर्ग अथवा कड़ी का पीर या गुरु शिक्षा-दीक्षा का कार्य संपन्न करने के लिए अपना उत्तराधिकारी या वली अथवा खलीफा नियुक्त करता था।
  3. वली’ शब्द का अर्थ है-ईश्वर का मित्र। कई “वली” को एक साथ ‘औलिया’ कहा जाता था।

प्रश्न 16.
पीर और मुरीद में अंतर बताइए।
उत्तर:

  1. सूफीमत में अध्यात्मिक गुरु को पीर कहा जाता है। इनका बहुत अधिक महत्त्व था। यह मानता थी की पीर के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
  2. सूफी परम्परा में शिष्य या अनुयायी को मुरीद कहा जाता है। ये सूफी विचारधारा के बारे में पीर से ज्ञान प्राप्त करते थे। इन्हें भी पीर के आश्रम में रहना पड़ता था।

प्रश्न 17.
मातृगृहता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. वह परिपाटी जिसमें स्त्रियाँ विवाह के बाद अपने मायके में ही अपनी संतान के साथ् रहती हैं और उनके पति उनके साथ आकर रह सकते हैं।
  2. यह एक प्रकार की मातृसत्तात्मक परिपाटी है।

प्रश्न 18.
‘मुकुट का नगीना’ किस मस्जिद को कहा जाता है? इसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:

  1. श्रीनगर की झेलम नदी के किनारे बनी शाह हमदान मस्जिद कश्मीर की सभी मस्जिदों में मुकुट का नगीना मानी जाती है।
  2. इसका निर्माण 1395 में हुआ और यह कश्मीरी लकड़ी की स्थापत्य कला का सर्वोत्तम नमूना है। इसके शिखर और नक्काशीदार छज्जे पेपरमैशी से अलंकृत है।

प्रश्न 19.
खानकाह क्या है?
उत्तर:

  1. खानकाह का अर्थ है-एक संगठित समुदाय का आश्रय स्थल या दरगाह। यह प्राचीन काल के गुरुकुल जैसा था क्योंकि इसमें खलीफा दुवारा मुरीदों को इस्लाम धर्म की शिक्षा दी जाती थी।
  2. सूफीवादी नेता या शेख अथवा पीर द्वारा इस समुदाय की व्यवस्था की जाती थी।

प्रश्न 20.
खालसा पंथ की नींव किसने रखी? इस पंथ के पाँच प्रतीक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. खालसा पंथ (पवित्रों की सेना) की स्थापना गुरु गोविंद सिंह जी ने की।
  2. खालसा पंथ के पाँच प्रतीक निम्नलिखित हैं: हाथ में कड़ा, कमर में कृपण, सिर में पगड़ी (केश), बालों में कंघा तथा कच्छ धारण करना।

प्रश्न 21.
मसनवी का किससे संबंध था?
उत्तर:

  1. मसनवी सूफियों द्वारा लिखित लम्बी कवितायें श्रीं । इनमें ईश्वर के प्रति प्रेम को मानवीय या दुनियावी प्रेम से अभिव्यक्त किया गया है।
  2. उदाहरण के लिए मलिक मोहम्मद जायसी के पद्मावत नामक प्रेम काव्य की कथा-वस्तु पद्मिनी और चित्तौड़ के राजा रत्नसेन के इर्द-गिर्द घूमती है।
  3. पद्मिनी और रत्नसेन का प्रेम आत्मा को परमात्मा तक पहुँचने की यात्रा का प्रतीक है।

प्रश्न 22.
वैदिक परम्परा तथा तांत्रिक आराधना में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. वैदिक परंपरा को मानने वाले उन सभी तरीकों की निंदा करते थे जो ईश्वर की उपासना के लिए मंत्रों के उच्चारण तथा यज्ञों के सम्पादन से हटकर थे।
  2. तांत्रिक लोग वैदिक सत्ता की अवहेलना करते थे। इसलिए उनमें कभी-कभी संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती थी।
  3. तांत्रिक आराधना में देवियों की मूर्ति पूजा हेतु कई तरह के भौतिक या वस्तु प्रधान साधन अपनाए जाते थे जबकि वैदिक परंपरा जप, मंत्रोच्चारण और यज्ञ पर आधारित थी।

प्रश्न 23.
अलवार और नयनार कौन थे?
उत्तर:

  1. अलवार तथा नयनार दक्षिण भारत के संत थे। अलवार विष्णु के पुजारी थे।
  2. नयनार शैव थे और शिव की उपासना करते थे।

प्रश्न 24.
चिश्ती उपासना से जुड़े कोई दो व्यवहार बताइए।
उत्तर:

  1. इस्लाम धर्म के सभी अनुयायी या मुसलमानों के साथ ही विश्व के लगभग सभी धर्मानुयायी सूफी संतों की दरगाह की जियारत (तीर्थयात्रा) करते हैं। इस अवसर पर संत के अध्यात्मिक आशीर्वाद अर्थात् बरकत की कामना की जाती है।
  2. नृत्य तथा कव्वाली जियारत के महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनके द्वारा अलौकिक आनन्द की भावना जगाई जाती है। हिन्दी भाषा में चिश्ती का अर्थ है-उपदेशक।

प्रश्न 25.
उर्स से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. उर्स का अर्थ है-विवाह अर्थात् पीर की आत्मा का ईश्वर से मिलन होना।
  2. सूफियों का यह मानना था कि मृत्यु के बाद पीर ईश्वर में समा जाते हैं। इस प्रकार वे पहले की अपेक्षा ईश्वर के और अधिक निकट हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
महान् और लघु परम्परा में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. इन दो शब्दों को 20वीं शताब्दी के समाजशास्त्री राबर्ट रेडफील्ड ने एक कृषक समाज के सांस्कृतिक आचरणों का वर्णन करने के लिए किया।
  2. इस समाजशास्त्री ने देखा कि किसान उन्हीं कर्मकाण्डों और पद्धतियों का अनुकरण करते थे जिनका पालन समाज के पुरोहित और राजा जैसे प्रभावशाली वर्ग द्वारा किया जाता था। इन कर्मकाण्डों को उसने ‘महान परम्परा’ की संज्ञा दी।
  3. कृषक समुदाय के अन्य लोकाचारों का पालन लघु परम्परा कहा गया।
  4. रेडफील्ड के अनुसार महान् और लघु दोनों प्रकार की परम्पराओं में समय के साथ परिवर्तन हुए।

प्रश्न 2.
वैदिक परिपाटी और तांत्रिक परिपाटी में संघर्ष की स्थिति क्यों उत्पन्न हो जाती थी?
उत्तर:
वैदिक परिपाटी और तांत्रिक परिपाटी में संघर्ष की स्थिति के कारण –

  1. वैदिक देवकुल के अग्नि, इन्द्र और सोम जैसे देवता पूर्णरूप से गौण हो गये थे। साहित्य और मूर्तिकला दोनों का निरूपण बंद हो गया था।
  2. वैदिक मंत्रों में विष्णु, शिव और देवी की झलक मिलती है और वेदों को प्रमाणिक माना जाता रहा। इसके बावजूद इनका महत्त्व कम हो रहा था।
  3. वैदिक परिपाटों के प्रशंसक ईश्वर की उपासना के लिए मंत्रों के उच्चारण और यज्ञों के संपादन से भिन्न आचरणों की निंदा करते थे।
  4. तांत्रिक पद्धति के लोग वैदिक सत्ता की अवहेलना करते थे। उनका बौद्ध अथवा जैन धर्म के अनुयायियों के साध भी टकराव होता रहता था।

प्रश्न 3.
आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषताएँ इंगित कीजिए।
उत्तर:
आठवीं से अठारहवीं सदी के मध्य की साहित्यिक विशेषतायें –

  1. इस काल की नूतन साहित्यिक स्रोतों में संत कवियों की रचनायें हैं। इनमें उन्होंने जनसामान्य की क्षेत्रीय भाषाओं में अपने उपदेश दिए हैं।
  2. ये रचनाएँ प्रायः संगीतबद्ध हैं और संतों के अनुयायियों द्वारा उनकी मृत्यु के उपरांत संकलित की गई।
  3. ये परम्परायें प्रवाहमान थी-अनुयायियों की कई पीढ़ियों ने मूल संदेश का न केवल विस्तार किया अपितु राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में संदिग्ध और अनावश्यक लगने वाली बातों को बदल दिया या हटा दिया गया।
  4. इन रचनाओं का मूल्यांकन करना इतिहासकारों के लिए एक चुनौती का विषय बना है।

प्रश्न 4.
शरिया कैसे उद्भूत हुआ?
उत्तर:
शरिया का उद्भव –

  1. शरिया मुसलमान समुदायों को निर्देशित करने वाला कानून है। यह ‘कुरान शरीफ’ और ‘हदीस’ पर आधारित है।
  2. हदीस’ पैगम्बर साहब से जुड़ी परम्परायें हैं। इनके अंतर्गत उनके स्मृत शब्द और क्रियाकलाप भी आते हैं।
  3. जब अरब क्षेत्र के बाहर इस्लाम धर्म से भिन्न आचार-विचार वाले देशों में इस धर्म का प्रसार हुआ तो शरिया में कियास (समानता के आधार पर तर्क) और इजमा (समुदाय की सहमति) को भी कानूनी स्रोत मान लिया गया।
  4. इस प्रकार कुरान, हदीस, कियास और इजमा से शरिया का अभ्युदय एवं विकास हुआ।

प्रश्न 5.
लिंगायत सम्प्रदाय के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
लिंगायत सम्प्रदाय –

  1. कर्नाटक में लिंगायत सम्प्रदाय का विशेष महत्त्व है। शिव की आराधना लिंग के रूप में करना इस संप्रदाय का प्रमुख लक्षण है।
  2. इस समुदाय के पुरुष बायें कंधे पर चाँदी के एक पिटारे में एक लघु शिव लिंग धारण करते हैं।
  3. इस संप्रदाय में जंगम अर्थात् यायावर भिक्षु भी शामिल हैं।
  4. लिंगायतों का विश्वास है कि मृत्योंपरांत सभी शिव भक्त उन्हीं में लीन हो जायेंगे तथा जन्म एवं मरण चक्र से मुक्त हो जाएंगे।
  5. इस सप्रदाय के लोग धर्मशास्त्रीय श्राद्ध एवं मुंडन आदि संस्कारों का पालन नहीं करते थे परंतु अपने मृतकों को भली-भाँति दफनाते थे।

प्रश्न 6.
सूफीमत के प्रभावों की गणना कीजिए।
उत्तर:
सूफीमत के प्रभाव –
1. हिन्दू समाज में पहले की अपेक्षा निम्न वर्ग के साथ अच्छा व्यवहार होने लगा।

2. इस्लाम धर्म में हिन्दू धर्म की अच्छी बातों को स्थान दिया जाने लगा। भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति ने इस्लाम को प्रभावित किया और मुसलमानों ने हिन्दू रीति-रिवाजों को अपनाना आरंभ कर दिया।

3. सूफी मत ने अपने प्रचार में मुसलमानों को पहले की अपेक्षा अधिक उदार बनने में सहयोग दिया। मुसलमान हिन्दुओं को अपने समान समझने लगे। आपसी वैर-भाव दूर हुआ और एकता की भावना को बल मिला।

4. सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति तथा राजपूतों से विवाह सम्बन्ध, हिन्दुओं को राज्य के उच्च तथा महत्त्वपूर्ण पद प्रदान करना जैसे कार्य सूफी मत पर उसकी निष्ठा के ही परिणाम थे।

5. सूफी आंदोलन ने भारत की स्थापत्य कला को भी प्रभावित किया। सन्तों की समाधियों पर अनेक भव्य भवन खड़े किए गए। अजमेर में शेख मुईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह तथा दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया का मकबरा कला की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

6. सूफी आंदोलन का भारतीय साहित्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ा। जायसी ने पद्मावत तथा अन्य रचनाएँ की। खुसरो ने अनेक काव्य-ग्रन्थ लिखे। निःसन्देह सूफी संतों की भारतीय समाज को यह बहुत बड़ी देन थी।

प्रश्न 7.
चिश्ती सिलसिला के विषय में एक नोट लिखिए।
उत्तर:
चिश्ती सिलसिला-मध्यकालीन भारत के भक्ति आंदोलन की तरह ही सूफी संप्रदाय का “सिलसिला” भी हिन्दु-मुस्लिम एकता, सामाजिक समानता तथा भाईचारे का संदेश दे रहा था। सूफी आंदोलन के साथ हुसैन बिन मंसूर अल हज्जाज, अब्दुल करीम, शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी, ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया और शेख सलीम चिश्ती जैसे ‘सिलसिलों’ के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

“सिलसिलों” के सभी चिश्ती (उपदेशक) बड़े विद्वान तथा महान् संत थे। इन्हें फारसी, अरबी तक अनेक भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर (राजस्थान) में है। उन्होंने भारत के अनेक भागों की पैदल यात्रा की। शेख सलीम चिश्ती उनके शिष्य थे। उनके आशीर्वाद से ही मुगल सम्राट अकबर के पुत्र सलीम (बाद का नाम जहाँगीर) का जन्म हुआ था। अकबर ने उसके सम्मान में फतेहपुर सीकरी में एक दरगाह बनवाई थी।

आज भी अजमेर की दरगाह पर हजारों हिन्दू तथा मुसलमान हर वर्ष जाते हैं। वहाँ के मेले में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अन्य देशों के लोग भी आते हैं। निजामुद्दीन औलिया की दरगाह दिल्ली में है, उनके भी हिन्दू और मुसलमान दोनों सम्प्रदाय के लोग शिष्य थे। सूफी सम्प्रदाय में चिश्ती सिलसिला के अनुयायी बहुत ही उदार थे। वे खुदा की एकता, शुद्ध जीवन तथा मानव मूल्यों पर बहुत जोर देते थे। वे सभी धर्मों की मौलिक एकता में यकीन रखते थे। चिश्ती सन्त घूम-घूमकर मानव प्रेम तथा एकता का उपदेश देते थे।

प्रश्न 8.
भक्ति परम्परा के सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effects):
1. सांस्कृतिक विकास:
भक्ति आन्दोलनों के नेताओं ने अपनी शिक्षा का प्रचार जनसाधारण की भाषा में किया। इसके परिणामस्वरूप बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी, हिन्दी आदि अनेक देशी भाषाओं का विकास हुआ। जयदेव का ‘गीत गोबिन्द’ सूरदास का ‘सूरसागर’, जायसी का ‘पद्मावत’, सिक्खों का ‘आदि ग्रन्थ साहिब’, तुलसीदास जी का ‘रामचरित मानस’, कबीर और रहीम के ‘दोहे’ एवं रसखान की ‘साखियां’ जैसा हृदयस्पर्शी सद्साहित्य रचा गया।

2. हिन्दू-मुस्लिम कलाओं में समन्वय:
राजनीतिक, धार्मिक तथा सामाजिक भेदभाव, कटुता तथा वैमनस्य के कम होने पर हिन्दू और मुस्लिम कलाओं में समन्वय का एक नया युग प्रारम्भ हुआ और वास्तुकला, चित्रकला तथा संगीत का चरण विकास हुआ। ईरानी कलाओं का सम्मिश्रण तथा संगम हुआ और सभी क्षेत्रों में नई भारतीय कला का जन्म हुआ। इसका निखरा हुआ रूप मुगलकालीन भारतीय कलाकृतियों में देखने को मिलता है।

3. आर्थिक प्रभाव (Economic Effects):
इस आंदोलन के भारतीय सामाजिक जीवन पर कुछ आर्थिक प्रभाव भी पड़े । संत भक्तों ने यह महसूस किया कि अधिकांश सामाजिक बुराइयों की जड़ आर्थिक विषमता है। संत कबीर तथा गुरु नानकदेव जी ने धनी वर्ग के उन लोगों को फटकारा, जो गरीबों का शोषण करके धन संग्रह करते हैं। गुरु नानकदेव जी ने भी इस बात पर बल दिया कि लोगों को अपनी मेहनत तथा नेक कमाई पर ही संतोष करना चाहिए।

प्रश्न 9.
भक्ति आंदोलन के मुख्य सामाजिक प्रभाव बताइए।
उत्तर:
सामाजिक प्रभाव:
1. जाति-प्रथा पर प्रहार-भक्त संतों ने जाति-प्रथा, ऊँच-नीच तथा छुआछूत पर करारी चोट की। इससे देश की विभिन्न जातियों में भेदभाव के बंधन शिथिल पड़ गये और छुआछूत की भावना कम होने लगी।

2. हिन्दुओं नया मुसलमानों में मेल-मिलाप-भक्ति आंदोलन के फलस्वरूप हिन्दुओं और मुसलमानों में विद्यमान आपसी वैमनस्य, ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, अविश्वास तथा सन्देह की भावना कम होने लगी। वे एक-दूसरे को सम्मान देने लगे और उनमें आपसी मेल-जोल बढ़ा।

3. व्यापक दृष्टिकोण-भक्ति आंदोलन ने संकीर्णता की भावना को दूर किया तथा लोगों के दृष्टिकोण को व्यापक तथा उदार बनाने में सहायता की। लोग अब प्रत्येक बात को तर्क तथा बुद्धि की कसौटी पर कसने लगे। ब्राह्मणों का प्रत्येक वचन उनके लिए ‘वेद-वाक्य’ न रहा। अंधविश्वास तथा धर्मांधता की दीवारें गिरने लगीं। देश की दोनों प्रमुख जातियों-हिन्दुओं तथा मुसलमानों का दृष्टिकोण उदार तथा व्यापक होने लगा।

4. निम्न जातियों का उद्धार-भक्ति आंदोलन के नेताओं ने समाज में एक नया वातावरण पैदा किया। जाति-पालि के बंधन शिथिल होने लगे, ऊँच-नीच तथा धनी-निर्धन का भेदभाव कम हुआ और उनमें आपसी घृणा समाप्त होने लगी।

प्रश्न 10.
प्रारम्भिक भक्ति परम्परा के स्वरूप की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
प्रारम्भिक भक्ति परम्परा के स्वरूप की विशेषतायें –

  1. देवताओं की पूजा के तरीकों विकास के दौरान संत कवि ऐसे नेता के रूप में उदित हुए जिनके आस-पास भक्तजनों की भीड़ लगी रहती थी। इन्हीं के नेतृत्व में प्रारम्भिक भक्ति आंदोलन आरम्भ हुआ।
  2. भारतीय भक्ति परम्परा में विविधता थी। कुछ कृष्ण के भक्त थे तो कुछ राम के। कुछ सगुण उपासक थे तो कुछ निर्गुण।
  3. भक्ति परम्परा में सभी वर्गों को स्थान दिया गया। स्त्रियों और समाज के निम्न वर्गों को भी सहज स्वीकृति दी गयी।
  4. इतिहासकारों ने भक्ति परम्परा को दो वर्गों में विभाजित किया है-सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति। प्रथम वर्ग में शिव, विष्णु और उनके अवतार तथा देवियों को मूर्त आराधना शामिल है। निर्गुण भक्ति परम्परा में अमूर्त अर्थात् निराकार ईश्वर की उपासना की जाती थी।

प्रश्न 11.
“सूफी सम्प्रदाय और भक्ति सम्प्रदाय के विचारों में पर्याप्त समानता मिलती है।” तर्क दीजिए।
उत्तर:
सूफी सम्प्रदाय और भक्ति सम्प्रदाय के विचारों में समानतायें:

  1. दोनों सम्प्रदाय एकेश्वरवादी थे। सूफियों का कहना था कि परमात्मा एक है और हम उसकी संतान है। भक्ति आंदोलन ने एक ईश्वर को माना और उसका भजन कीर्तन किया।
  2. दोनों ने मानवता को समान महत्त्व दिया और मानव-जाति को प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
  3. सूफी और भक्त संत दोनों ने गुरु को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है। सूफी गुरु को पीर कहते थे।
  4. दोनों सम्प्रदायों ने हिन्दुओं और मुसलमानों को साथ मिलकर रहने और एक दूसरे की मदद करने का उपदेश दिया।
  5. सूफियों, हिंदू संतों और रहस्यवादियों के बीच प्रकृति, ईश्वर, आत्मा और संसार से सम्बन्धित विचारधारा में पर्याप्त समानता थी।
  6. दोनों ने ही यह बताया कि मानव प्रेम ही ईश्वर प्रेम है और नर-सेवा ही नारायण-सेवा है।

प्रश्न 12.
अलवार और नयनार कौन थे। इनकी प्रमुख उपलब्धियाँ क्या थी?
उत्तर:
अलवार और नयनार तथा उनकी उपलब्धियाँ –

  1. तमिलनाडु में प्रारम्भिक भक्ति आंदोलन का नेतृत्व अलवारों (वैष्णव भक्त) और नयनारों (शैव भक्त) ने दिया।
  2. वे एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण करते थे और अपने ईष्ट देव की स्तुति में गीत गाते थे। इन यात्राओं के दौरान इन संतों ने कुछ स्थानों को अपने पूजनीय देवता का निवास स्थान घोषित किया।
  3. ये स्थान तीर्थ स्थल बन गये और यहाँ विशाल मंदिर बनाये गये। इन संत कवियों के भजनों को मंदिर में उत्सव के समय गाया जाता था और साथ ही संतों की मूर्तियाँ बनाकर पूजा की जाने लगी।
  4. अलवार और नयनार जाति प्रथा के विरोधी थे और ब्राह्मणों को विशेष महत्त्व नहीं देते थे।
  5. इन संतों की रचनाओं को वेदों के समान महत्त्वपूर्ण माना जाता था। एक प्रसिद्ध काव्य संकलन ‘नलयिरा दिव्य प्रबंधम्’ का उल्लेख वेद के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 13.
मस्जिद के स्थापत्य की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
मस्जिद के स्थापत्य की विशेषतायें –

  1. मस्जिद को इस्लामिक कला को मूल रूप माना गया है। इसका मौलिक ढाँचा साधारण होता है।
  2. मस्जिद का अनुस्थापन मक्का की ओर किया जाता था। इसमें एक खुला प्रांगण होता है जिसके चारों ओर स्तम्भों वाली छतें होती हैं।
  3. आँगन के मध्य में नमाज से पूर्व स्नान करने के लिए एक सरोवर या जलाशय होता है। इसके पश्चिम में मेहराबों वाला एक विशाल कक्ष होता है। मक्का को सम्मुख दिशा में स्थित यह विशाल कक्ष नमाज की दिशा बताता है।
  4. इस विशाल कक्ष के दक्षिण की ओर एक मंच होता है जहाँ से इमाम प्रवचन देता है। मस्जिद में एक या अधिक मीनारें भी होती हैं जहाँ से अजान दी जाती है।
  5. जिस मस्जिद में मुसलमान जुम्मा की नमाज के लिए एकत्रित होते हैं उसे ‘जामी मस्जिद’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि बाबा गुरु नानक की परम्पराएँ 21 वीं शताब्दी में महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
21 वीं शताब्दी के सन्दर्भ में नानक की परम्पराओं का महत्त्व –

  1. गुरु नानक ने बड़े-बड़े धार्मिक अनुष्ठानों, यज्ञों तथा मूर्ति पूजा का खंडन किया, जो आज भी उपयोगी हैं।
  2. उनका कहना था कि ईश्वर एक है और निराकार है। उसके साथ केवल शब्द के द्वारा ही संबंध जोड़ा जा सकता है।
  3. उनकी शिक्षायें इतनी सरल थीं कि आज भी व्यावहारिक हैं।
  4. नानक ने अपने शिष्यों को एक समुदाय के रूप में गठित किया और उनके लिए उपासना के नियम बनाये। ऐसे संगठन और एकता की आज भी खासी आवश्यकता है।
  5. उन्होंने जाति-प्रथा का विरोध किया और किसी को ऊँच-नीच नहीं समझा। भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में आज भी ऐसी धारणा का रहना प्रासंगिक और श्रेष्ठ है।
  6. उन्होंने मानव सेवा तथा आपसी। प्रेम तथा भाईचारे को बढ़ावा दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सल्तनत काल में उत्तर भारत की धार्पिक दशा का वर्णन कीजिए। इसने ब्राह्मणों की स्थिति कि कैसे प्रभावित किया। अथवा, 13-14 वीं शताब्दी की धार्मिक स्थिति की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सल्तनत काल में धार्मिक दशा:
दिल्ली सल्तनत एक इस्लामी राज्य था जिसमें इस्लाम राज्य धर्म था। दिल्ली के सुल्तान और अन्य विदेशी मुसलमान कट्टर सुन्नी मुसलमान थे। इन शासकों का यह धार्मिक कर्त्तव्य था कि वे धर्म का प्रसार करें और अन्य धर्मावलम्बियों को इस्लाम धर्म में दीक्षित करें। भारत में हिन्दुओं को मुसलमान बनाने की कई मुहिम चलाई गयीं। जनता को डरा-धमका कर, लालच देकर तथा सम्मानित करके धर्म परिवर्तन कराने के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं।

वस्तुतः धर्मान्तरण उनके लिए धार्मिक कृत्य था। हिन्दुओं को ‘जिम्भी’ कहा जाता था। इसका अर्थ यह है कि वे समझौता करके जीवित रहने का अधिकार प्राप्त करने वाले लोग हैं। जजिया नामक कर देकर हिन्दू जीवित रहने का अधिकार प्राप्त करते थे। जो लोग जजिया नहीं देते थे उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बना लिया जाता था। हिन्दुओं के लिए अपने मंदिरों में पूजा करना, घंटा-घड़ियाल बजाना अथवा धार्मिक जुलूस निकालना अत्यन्त कठिन था। इस प्रकार धार्मिक क्षेत्र में आजादी नहीं थी और इस दृष्टि से राज्य असहिष्णु था। भारत में शिया मुसलमानों का भी वर्ग था ! सुन्नी मुसलमान शियाओं के भी विरोधी थे। उन्होंने शियाओं का दमन किया। शियाओं को प्राय: दूर ही रखा जाता था तथा उनके धार्मिक कार्यों में विघ्न डाला जाता था।

ब्राह्मणों की स्थिति पर प्रभाव:
ब्राह्मणों के प्रभाव में कमी होने लगी थी और गैर-ब्राह्मणीय नेताओं के प्रभाव बढ़ रहे थे। इन नेताओं में नाथ, जोगी और सिद्ध शामिल थे। उनमें में अनेक लोग शिल्पी समुदाय के थे। इनमें मुख्यतः जुलाहे थे। शिल्प कला के विकास के साथ उनका महत्त्व भी बढ़ रहा था। नगरों के विस्तार तथा मध्य एवं पश्चिमी एशिया के साथ व्यापार बढ़ने के कारण शिल्पी वस्तुओं की मांग बढ़ गई थी। सभी शिल्पकार धनाढ्य थे।

अनेक धार्मिक नये नेताओं ने वेदों की सत्ता को चुनौती दी और अपने विचार आम-लोगों की भाषा में सामने रखे। समय के साथ इन भाषाओं ने वह रूप धारण कर लिया जिस रूप में वे आज प्रयोग में लाई जाती हैं। अपनी लोकप्रियता के बावजूद नए धार्मिक नेता विशिष्ट शासक वर्ग का समर्थन प्राप्त न कर सके। सल्तनत राज्य की स्थापना से राजपूत राज्यों तथा उनसे जुड़े ब्राह्मणों का महत्त कम हो गया था। इन परिवर्तनों का प्रभाव संस्कृति और धर्म पर भी पड़ा। भारत में सूफियों का आगमन इन परिवर्तनों का एक महत्त्वपूर्ण अंग था।

प्रश्न 2.
सूफी मत क्या है? इसकी विशेषताओं अथवा सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूफी मत (Sufism):
मध्यकालीन भारत में इस्लाम धर्म दो वर्गों-सुन्नी और शिया में बँट गया था। इनके बीच लगाकर तनाव और संघर्षों की स्थिति बन रही थी। इस बढ़ते हुए वैमनस्य को दूर करने के लिए कुछ मुसलमान संतों ने प्रेम एवं भक्ति पर बल दिया। ये सूफी संत कहलाए। सूफी मत के सम्बन्ध में इतिहासकार राय चौधरी ने लिखा है, “सूफी मत ईश्वर तथा जीवन की समस्याओं के प्रति मस्तिष्क तथा हृदय की भावना है ओर वह कट्टर इस्लाम से उसी प्रकार भिन्न है, जिस प्रकार कैथोलिक धर्म से “प्रोटेस्टेन्ट” भिन्न है।” जिस प्रकार हिन्दू धर्म की बुराइयों को दूर करने के लिए भक्ति आंदोलन का जन्म हुआ था, उसी प्रकार इस्लाम धर्म में आई हुई बुराइयों को दूर करने के लिए सूफीमत अस्तित्त्व में आया। यह मत प्रेम और मानवमात्र की समानता के सिद्धांत पर आधारित था।

सूफी मत का आरम्भ:
सूफी मत का जन्म ईरान में हुआ। हजरत मुहम्मद की मृत्यु के पश्चात् इस्लाम धर्म के अनुयायी शिया और सुन्नी के दो वर्गों में बँट गए और एक-दूसरे से ईर्ष्या, घृणा तथा द्वेष रखने लगे। सूफी मत इन झगड़ों को समाप्त कर दोनों वर्गों में समन्वय स्थापित करना चाहता था। इस विचारधारा में प्रेम तथा आपसी भाइचारे का सन्देश दिया गया। सूफी उदार प्रकृति के मुसलमान थे और सभी धर्मों को समान समझते थे। सूफी विचार प्रेमपूर्ण भक्ति का द्योतक है। डॉ. ताराचन्द के अनुसार, “सूफीवाद प्रगाढ़ भक्ति का धर्म है, प्रेम इसका भाव है, कविता संगीत तथा नृत्य इसकी आराधना के साधन हैं, तथा परमात्मा में विलीन हो जाना इसका आदर्श है।”

सूफीमत के सिद्धांत अथवा विशेषताएँ (Principles or Characteristics of Sufism):
सूफी सन्त मानवीय गुणों के उपासक थे। वे नैतिक जीवन बिताने पर बल देते थे और धार्मिक संकीर्णता की भावना से दूर थे। सूफी नत के सिद्धांत इस प्रकार थे।

1. एकेश्वरवाद-सूफी सन्त केवल एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते थे। वे पीरों तथा अवतारों को ईश्वर नहीं मानते थे, किन्तु उनकी निन्दा भी नहीं करते थे। वे राम, कृष्ण, रहीम को महापुरुष मानते थे। उनका विचार था कि सब-कुछ ईश्वर में है, उससे बाहर कुछ नहीं है।

2. मानव मात्र से प्रेम-सूफी संत सब लोगों को एक ईश्वर की सन्तान होने के कारण समान समझते थे। वे मानव-मानव में कोई भेदभाव नहीं करते थे। वे वर्ग तथा जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के आधार पर भेदभाव के विरोधी थे। वे मानवमात्र से प्रेम तथा सहानुभूति में विश्वास रखते थे। वे सभी धर्मों को समान समझते थे। हिन्दु धर्म तथा इस्लाम उनकी दृष्टि में समान थे।

3. बाह्य आडम्बरों का विरोध-सूफी संत बाह्य आडम्बर, कर्मकाण्ड विधि-विधान, रोजा-नमाज के घोर विरोधी थे। वे जीवन की पवित्रता में विश्वास रखते थे। वे नैतिक सिद्धांतों के पोषक थे। वे मूर्ति-पूजा, हिंसा, माँस-भक्षण के पक्ष में नहीं थे। वे सांसारिक वस्तुओं का त्याग चाहते थे। वे ईश्वर को दयालु तथा उदार मानते थे। वे प्रेम तथा ईश्वर भक्ति में विश्वास रखते थे।

4. कर्म सिद्धांत में विश्वास-सूफी कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। उनके विचार से मनुष्य अपने कर्मों से अच्छा या बुरा होता है न कि जन्म से। उच्च वंश, में जन्म लेकर दुष्कर्म करने वाला व्यक्ति भी नीच कहलाएगा और निम्न वंश में जन्म लेकर अच्छे कर्म करने से आदर का पात्र होगा-उनका ऐसा विश्वास था।

5. दैवी चमत्कार में विश्वास-सूफी संत दैवी चमत्कार में विश्वास रखते थे। इसमें मनुष्य मानवीय स्थिति से ऊपर उठकर देवत्व को प्राप्त होता है। इस अवस्था में वह ईश्वर की शिक्षा
को सुन सकता है और लोगों के सामने उत्तम विचारों को रख सकता है।

6. गुरु की महिमा पर बल-सूफी संतों ने गुरु महिमा पर भी बल दिया है। एक व्यक्ति को धर्म में दीक्षित होने से पूर्व गुरु के सामने कुछ प्रतिज्ञाएँ करनी पड़ती हैं। शिष्य को गुरु की आज्ञा का पालन तथा उसकी सब प्रकार से सेवा करनी चाहिए। उनके अनुसार कठिन मार्ग को पार करने के लिए गुरु का होना परमावश्यक है। गुरु की सहायता से ही प्रत्येक व्यक्ति अपने वास्तविक उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।

7. मनुष्य को प्रधानता-सूफी मत में मनुष्य को प्रकृति का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है और उसकी प्रधानता को स्वीकार किया गया है। मनुष्य की आत्मा सार्वभौमिक है। उसकी आत्मा कर्मों से प्रभावित होती है, अतः मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करने चाहिए।

8. प्रेम का विशेष महत्त्व-सूफी मत में प्रेम को विशेष महत्त्व दिया गया है। सूफी मत का आधार ही प्रेम है। सूफी सन्तों के अनुसार ईश्वर परम सुन्दर है और उसे प्रेम के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम की त्रिवेणी शारीरिक, मानसिक तथा अध्यात्मिक है।

प्रश्न 3.
सन्त कबीर एवं गुरु नानक के आरम्भिक जीवन और शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(I) सन्त कबीर का आरम्भिक जीवन:
सन्त कबीर भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान् प्रचारक थे। वे भक्ति सुधारकों में सर्वाधिक प्रसिद्ध थे। उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी से हुआ था। उसने लोक-लाज के भय से बालक को काशी के लहरतारा तालाब के किनारे फेंक दिया। नि:संतान जुलाहे नीरु ने उसे वहाँ से उठा लिया और उसकी पत्नी नीमा ने अपने पुत्र की तरह उसका पालन-पोषण किया। बड़े होने पर कबीर रामानन्द के शिष्य बन गए। कबीर का विवाह लोई नाम की लड़की से हुआ। उनके कमाल तथा कमाली नाम के दो बच्चे भी हुए लेकिन गृहस्थ जीवन में रहकर भी वे ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे।

कबीर की शिक्षाएँ-सन्त कबीर की प्रमुख शिक्षाएँ इस प्रकार हैं:
1. ईश्वर एक है, उसका कोई आकार नहीं है। कथन है कि-‘हिन्दु तुरक का कर्ता एकता गति लिखी न जाई।

2. ईश्वर सर्वव्यापक है। मूर्ति-पूजा से कोई लाभ नहीं। उसे पाने के लिए मन की पवित्रता आवश्यक है।

3. ईश्वर को पाने के लिए गुरु की अत्यन्त आवश्यकता है। यदि ईश्वर अप्रसन्न हो जाए तो गुरु के सहारे उसे फिर पाया जा सकता है, किन्तु यदि गुरु रूठ जाए तो कहीं भी सहारा नहीं मिलता (हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर)।

4. कबीर जाति-पाँति के भेद-भाव को स्वीकार नहीं करते थे उनका विश्वास था कि जाति के आधार पर कोई छोटा या बड़ा नहीं हो सकता। कबीर ने ब्राह्मणों की जाति को ऊँचा मानने से साफ इन्कार कर दिया था।

5. कबीर व्यर्थ के रीति-रिवाजों को आडम्बरों के विरोधी थे। उन्होंने पूजा-पाठ, रोजा-नमाज, तीर्थ-यात्रा और हज आदि का विरोध किया है। उन्होंने मुसलमानों की नमाज का विरोध करते हुए लिखा है:

“काँकर पाथर जोरि के, मसजिद लई चुनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, बहरा हुआ खुदाय।” इसी तरह उन्होंने हिन्दुओं की मूर्ति-पूजा का भी विरोध किया:

“पाहन पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजें पहार।
ताते या चाकी भली, पीस खाय संसार ”

6. कबीर कर्म-सिद्धान में विश्वास रखते थे। उनका विश्वास था कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके अच्छे या बुरे कर्म का फल अवश्य भुगतना पड़ेगा। उनके शब्दों में:

“कबिरा तेरी झोपड़ी, गलकटियन के पास।
जो करे सो भरे, तू क्यों भया उदास।

7. कबीर सभी धर्मों की एकता में विश्वास रखते थे। उनके अनुसार हिन्दू-मुसलमान में कोई भेदभाव नहीं है। उनके अनुसार दोनों की मौजल एक ही है, केवल रास्ते अलग-अलग हैं। इस प्रकार कवीर ने जाति-भेद का विरोध किया, कुसंग की निन्दा की तथा साधना और प्रेम पर बल दिया। उन्होंने गुरु को गोविन्द (ईश्वर) के समान मानः। उन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों के आडम्बरों का विरोध किया। उनमें बैर-विरोध कम करके एकता की स्थापना की। डॉ० ताराचन्द के अनुसार, “कबीर का उद्देश्य प्रेम के धर्म का प्रचार करना था, जो धर्मों और जातियों के नाम पर पड़े भेदों को मिटा दे।” अत: डॉ० बनर्जी ने ठीक ही लिखा है कि “कबीर मध्यकाल के सुधारक मार्ग के पहले पथ-प्रदर्शक थे, जिन्होंने धर्म के क्षेत्र में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए सक्रिय प्रयास किया।”

(II) गुरु नानक:
सिक्ख धर्म के संस्थापक गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में रावी नदी के तट पर स्थित एक गाँव जलवण्टी में हुआ। इनके पिता का नाम मेहता कालूराम और माता का नाम तृप्ता देवी था। इनका विवाह बचपन में ही कर दिया गया था। पिता के व्यवसाय-का लेखा-जोखा तैयार करने का प्रशिक्षण फारसी में दिया गया। आपके दो पुत्र भी हुए जिनका नाम श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द था। नानक जी का झुकाव अध्यात्मवाद की ओर था। उन्हें साधु-सन्तों की संगति अच्छी लगती थी। कुछ समय बाद उन्हें सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ।

उन्होंने मानवता को सच्ची राह दिखाने के लिए दूर-दूर तक यात्राएँ की जिन्हें सिक्ख धर्म में ‘उदासियाँ’ कहा जाता है। कहा जाता है कि वे सारे भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, बर्मा, चीन और अरब (मक्का और मदीना) भी गए लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में वे गुरदासपुर जिले के करतारपुर गाँव में बस गए। वे काव्य रचना करते थे और उनके शिष्य मरदाना और बाला, सारंगी व रबाब बजाते थे। उन्होंने करतारपुर में यात्रियों के लिए धर्मशाला बनवाई और अपने शिष्यों में समानता लाने का प्रयास किया। 1539 ई० में उनका देहांत हो गया।

कबीर की तरह गुरु नानक ने भी एकेश्वरवाद पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ईश्वर के स्मरण और उसके प्रति भक्ति से ही मुक्ति मिल सकती है। वे ईश्वर की निकटता पाने के लिए व्यवहार और चरित्र की पवित्रता पर बहुत बल देते थे। मार्गदर्शन के लिए उन्होंने गुरु की अनिवार्यता पर भी बल दिया। कबीर की तरह वे भी मूर्ति-पूजा, तीर्थ-यात्रा तथा धार्मिक आडम्बरों के विरोधी थे। उन्होंने मध्यम मार्ग पर बल दिया। वे गृहस्थ जीवन के पक्षपाती थे। उन्होंने उदारवादी दृष्टिकोण अपनाया तथा शान्ति, सद्भावना और भाई-चारे की भावना द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना की। इस प्रकार, कबीर और नानक ने एक ऐसा जनमत तैयार किया जो शताब्दियों तक धार्मिक उदारता के लिए प्रयत्नशील रहा।

प्रश्न 4.
भक्ति आंदोलन के उदय के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भक्ति आंदोलन के उदय के कारण-भक्ति आंदोलन के उदय के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. हिन्दू धर्म का विघटन (Degeneration of Hindusim):
मध्ययुग में हिन्दू धर्म में अनेक बुराइयाँ आ चुकी थीं। धर्म अपनी पवित्रता और प्रभाव खो चुका था। अन्धविश्वास, रूढ़िवाद, आडम्बर और जातिवाद में लोगों का विश्वास बढ़ता जा रहा था। ब्राह्मण, भ्रष्ट और निर्दयी हो चुके थे। वे जनता का अधिक से अधिक शोषण करते थे। इन बुराइयों के विरुद्ध कुछ लोगों ने साहसी कदम उठाया और इस प्रकार भक्ति आंदोलन का श्रीगणेश हुआ।

2. इस्लाम धर्म का खतरा (Danger from Islam):
भारत में मुस्लिम शासन के कारण इस्लाम धर्म का प्रचार तेजी से हो रहा था इसके कारण हिन्दू धर्म समाप्त हो जाने का खतरा उत्पन्न हो गया था। इस्लाम-धर्म के सिद्धांतों ने एक ईश्वर और भाई-चारे के सिद्धांत का प्रचार किया। इन सिद्धांतों ने भारत के अधिसंख्यक निम्नवर्ग को बहुत अधिक प्रभावित किया। इस खतरे से हिन्दू धर्म को बचाने के लिए कुछ सुधारकों ने अपना कार्य शुरू कर दिया।

3. मुस्लिम शासन (Reign of Muslims):
भक्ति-आंदोलन के उदय का एक प्रमुख कारण मुस्लिम शासन था। धीरे-धीरे मुसलमान भारत में स्थायी रूप से बस गये और उन्होंने हिन्दुओं पर शासन करना शुरू कर दिया। जब उनका स्थायी राज्य स्थापित हो गया तो हिन्दू जनता उन्हें बाहर निकालने में असमर्थ हो गयी। ऐसी स्थिति में दोनों के सम्पर्क बढ़ने लगे। इस सम्पर्क को बढ़ाने वाले सन्त थे।

4. सूफी संत (Sufi Saint):
इस समय सूफी संतों जैसे ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती, निजामुद्दीन औलिया और नसीरूद्दीन चिराग-ए-दिल्ली आदि के कारण सूफी प्रभाव बढ़ता जा रहा था। इन्होंने कट्टर मुस्लिम विचारों पर अंकुश लगाया। इनके प्रभाव से भारत में सगुण-भक्ति विचारधारा को बल मिला।

5. भक्ति मार्ग को अपनाया (Selection of Bhakti Marg):
इस्लामी खतरे का सामना करने के लिए हिन्दू सुधारकों ने भक्ति मार्ग की शिक्षा को अपना प्रमुख सिद्धांत बनाये रखा। मोक्ष के तीन मार्गों-ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग में सबसे सरल भक्ति मार्ग ही था। इसलिए मध्ययुग के धार्मिक सुधारकों ने इसी मार्ग पर जोर दिया।

प्रश्न 5.
भारत में सूफी सिलसिले पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में सूफी:
सिलसिले (Sufi Order in India):
भारत में 13 वीं और 14 वीं शताब्दी में चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिले अधिक प्रचलित थे और इनके अनुयायियों की संख्या भी काफी थी।

चिश्ती सिलसिला (the Chisti Order):
भारत में चिश्ती की स्थापना का श्रेय ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती को जाता है। इनका जन्म 1142 ई० में मध्य एशिया में हुआ। 1192 ई० में वे भारत आये और कुछ समय लाहौर और दिल्ली में रहने के बाद अजमेर में आबाद हो गये जो उस समय एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक केन्द्र था। उनके स्वतंत्र विचारों का प्रचार बहुत जल्दी हुआ और उनके अनुयायियों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती गई।

उनकी मृत्यु 1223 ई० में हुई। आज भी हजारों मुसलमान हर साल अजमेर में उनकी दरगाह पर जाते हैं। उनके शिष्यों में शेख हमीमुद्दीन और ख्वाजा बख्तियार उद्दीन काकी के नाम उल्लेखनीय हैं। काकी के शिष्य फरीदउद्दीन-गंज-ए-शंकर थे जिन्होंने पंजाब अपना केन्द्र बनाया। इन सन्तों ने अपने आपको राजनीति, शासकों तथा सरकारों से सदा दूर रखा। वे निजी सम्पत्ति नहीं रखते थे।

चिश्ती सन्तों में निजामुद्दीन औलिया और नसीरुद्दीन चिराग-ए-दिल्ली के नाम विशेषकर उल्लेखनीय हैं। उन्होंने दिल्ली को अपने प्रचार का केन्द्र बनाया। निजामुद्दीन औलिया सादा और पवित्र जीवन, मानववाद, ईश्वरीय प्रेम, अध्यात्मिक विकास एवं गीत-संगीत (सभा) पर बल देते थे। निम्न वर्ग के लोगों से विशेष सहानुभूति रखते थे। धर्म-परिवर्तन में वे विश्वास नहीं रखते थे। नसीरुद्दीन ने भी इस सिलसिले की उन्नति में बहुत योगदान दिया। उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में उनका प्रभुत्व कम होने लगा। तत्पश्चात् उनके शिष्यों ने उनके सिद्धांतों का प्रचार दक्षिणी और पूर्वी भारत में किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संत कवियों के विवरण का स्रोत क्या है?
(अ) अभिलेख
(ब) महाकाव्य
(स) उनकी मूर्तियाँ
(द) अनुयायियों द्वारा लिखी गयी जीवनियाँ
उत्तर:
(द) अनुयायियों द्वारा लिखी गयी जीवनियाँ

प्रश्न 2.
लोग जजिया कर क्यों देते थे?
(अ) सुल्तान का खजाना भरने के लिए
(ब) सुल्तानों का संरक्षण प्राप्त करने के लिए
(स) सुल्तान के भय से
(द) राज्य निष्कासन से बचने के लिए
उत्तर:
(ब) सुल्तानों का संरक्षण प्राप्त करने के लिए

प्रश्न 3.
रेडफील्ड कौन था?
(अ) समाजशास्त्री
(ब) इतिहासकार
(स) राजनेता
(द) समाज सुधारक
उत्तर:
(अ) समाजशास्त्री

प्रश्न 4.
तांत्रिक पूजा पद्धति में पूजा की जाती है?
(अ) देवताओं की
(ब) देवियों की
(स) दोनों की
(द) दानवों की
उत्तर:
(ब) देवियों की

प्रश्न 5.
चतुर्वेदी का क्या अर्थ है?
(अ) हवन कुंड के चारों ओर बनी वेदी
(ब) चतुर वैद
(स) चारों वेदों का ज्ञाता
(द) विष्णु का पुजारी
उत्तर:
(स) चारों वेदों का ज्ञाता

प्रश्न 6.
करइक्काल अम्मइयार किससे संबंधित थी?
(अ) इस्लाम
(ब) भक्ति परम्परा
(स) अलवर
(द) नयनार
उत्तर:
(द) नयनार

प्रश्न 7.
नयनार संत बौद्ध और जैन धर्म को किस दृष्टि से देखते थे?
(अ) प्रेम
(ब) सौहार्द
(स) घृणा
(द) विरोधी
उत्तर:
(द) विरोधी

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में शिव मंदिर कहाँ नहीं है?
(अ) भीतरी
(ब) चिदम्बरम्
(स) तंजावुर
(द) गंगा कोडाचोलपुरम्
उत्तर:
(अ) भीतरी

प्रश्न 9.
किसका संबंध ब्राह्मणीय परम्परा से था?
(अ) नाथ परम्परा
(ब) भक्ति परम्परा
(स) जोगी परम्परा
(द) सिद्ध परम्परा
उत्तर:
(ब) भक्ति परम्परा

प्रश्न 10.
इस्लाम का उद्भव कब हुआ?
(अ) 10 वीं शताब्दी
(ब) 9वीं शताब्दी
(स) सातवीं शताब्दी
(द) छठी शताब्दी
उत्तर:
(स) सातवीं शताब्दी

प्रश्न 11.
जाजिया कर कौन देता था?
(अ) मुस्लिम वर्ग
(ब) गैर मुस्लिम वर्ग
(स) दोनों वर्ग
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(ब) गैर मुस्लिम वर्ग

प्रश्न 12.
मालाबार तट पर बसे मुसलमान व्यापारियों की भाषा क्या थी?
(अ) उर्दू
(ब) अरबी
(स) तमिल
(द) मलयालम
उत्तर:
(द) मलयालम

प्रश्न 13.
पारसीक कहाँ के रहने वाले थे?
(अ) तजाकिस्तान
(ब) सीरिया
(स) फारस
(द) काबुल
उत्तर:
(स) फारस

प्रश्न 14.
खानकाह का नियंत्रण कौन करता था?
(अ) शेख
(ब) मुरीद
(स) खलीफा
(द) संत
उत्तर:
(अ) शेख

प्रश्न 15.
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है?
(अ) दिल्ली
(ब) अजमेर
(स) पाकिस्तान
(द) ईरान
उत्तर:
(ब) अजमेर

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2 Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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प्रश्न 1.
‘हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती’। कैसे?
उत्तर-
प्रत्येक समाज में सामाजिक विभिन्नता पायी जाती है। समाज में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा, समुदाय, लिंग इत्यादि के लोग रहते हैं जो सामाजिक विभिन्नता का सूचक है। यह आवश्यक नहीं है कि ये राजनीतिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार हो, क्योंकि भिन्न समुदाय के विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन हित समान होगा। उदाहरण के लिए मुम्बई में मराठियों की हिंसा का शिकार व्यक्तियसों की जातियाँ भिन्न थीं, धर्म भिन्न थे और लिंग भी भिन्न हो सकता है, परन्तु उनका क्षेत्र एक ही था। वे सभी एक ही क्षेत्र विशेष के उत्तर भारतीय थे। उनका हित समान था। वे सभी अपने व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। उपर्युक्त कथनों के अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जायेगा कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक अन्तर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?
उत्तर-
सामाजिक अन्तर एवं सामाजिक विभाजन में बहुत बड़ा अन्तर पाया जाता है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों और दलितों का अन्तर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित सम्पूर्ण देश में आमतौर पर गरीब, वंचित एवं बेघर हैं और भेदभाव के शिकार हैं जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं। अर्थात् दलितों को महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं। अतः हम कह सकते हैं कि जब एक तरह का सामाजिक अन्तर अन्य अन्तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। जैसे- अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अन्तर सामाजिक विभाजन है। वास्तव में उपर्युक्त कथनों के अध्ययन के बाद यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक अन्तर उस समय सामाजिक विभाजन बन जाता है जब अन्य अन्तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है।

प्रश्न 3.
‘सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है। भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
सामाजिक विभाजन दुनिया के अधिकतर देशों में किसी-न-किसी रूप में मौजूद है और यह विभाजन राजनीतिक रूप अख्तियार करती ही है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक विभाजनों की बात करना और विभिन्न समूहों से अलग-अलग वायदे करना स्वाभाविक बात है। हमारे देश भारत में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था पायी जाती है। जनता अपने प्रतिनिधियों को मतदान के माध्यम से चुनकर देश की संसद या राज्य की विधानसभाओं में भेजती है।

भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन का असर देश की राजनीति पर बहुत हद तक पड़ता है। साथ ही सरकार की नीतियाँ भी प्रभावित होती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की मांग को सरकार शुरू से खारिज करती रहती है तो आज भारत विखंडन के कगार पर होता। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीतिक का लक्षण भी है। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजन की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों की बीच संतुलन पैदा करने का भी काम रहती है। परिणामतः कोई भी सामाजिक विभाजन एक हद से ज्यादा उग्र नहीं हो पाता और यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को मजबूत करने में सहायक भी होता है। लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीक से अपनी मांगों को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से उनके लिए दबाव बनाते हैं। उनका समाधान पाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक विभाजन की राजनीति के फलस्वरूप भारतीय लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 4.
सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
सत्तर के दशक के पहले भारत की राजनीति सवर्ण सुविधापरस्त हित समूहों के हाथों में थी। अर्थात् 1967 तक भारतीय राजनीति में सवर्ण जातियों का वर्चस्व रहना। सत्तर से नब्बे तक के दशक के बीच सवर्ण और मध्यम पिछड़े के उपरान्त पिछड़ी जातियों का वर्चस्व तथा तथा दलितों की जागृति की अवधारणाएँ राजनीतिक गलियारों में उपस्थित दर्ज कराती रहीं और नीतियों को प्रभावित करती रहीं। भारतीय राजनीति के इस महामंथन में पिछड़े और दलितों का संघर्ष प्रभावी रहा। आधुनिक दशक के वर्षों में राजनीति का पलड़ा दलितों और महादलितों (बिहार के संदर्भ में) के पक्ष में झकता दिखाई दे रहा है। सरकार की नीतियों के सभी परिदृश्यों में दलित न्याय की पहचान सबके केन्द्र-बिन्दु का विषय बन गया है।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?
उत्तर-
सामाजिक विभाजन की राजनीति तीन तत्वों पर निर्भर करती है जो निम्नलिखित हैं

1. लोग अपनी पहचान स्व. अस्तित्व तक ही सीमित रखना चाहते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में राष्ट्रीय चेतना के अलावा उप-राष्ट्रीय या स्थानीय चेतना भी होती है। कोई एक घटना बाकी चेतनाओं की कीमत पर उग्र होने लगती है तो समाज में असंतुलन पैदा हो जाता है। भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि जबतक बंगाल बंगालियों का, तमिलनाडु तमिलों का, महाराष्ट्र मराठियों का, आसाम असमियों का, गुजरात गुजरातियों की भावना का दमन नहीं होगा तबतक भारत की अखण्डता, एकता तथा सामंजस्य खतरा में रहेगा। अतएव उचित यही है कि पहचान के लिए सभी चेतनाएँ अपनी-अपनी मर्यादा में रहें और एक दूसरे की सीमा में दखल न दें. सरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि अगर लोग अपने बहु-स्तरीय पहचान को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं तो कोई समस्या नहीं हो सकती। उदाहरण स्वरूप-बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्जियाई (Belgian) ही मानते हैं, भले ही वे डच और जर्मन बोलते हैं। हमारे देश में भी ज्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नजरिया रखते हैं। भारत विभिन्नताओं का देश है, फिर भी सभी नागरिक सर्वप्रथम अपने को भारतीय मानते हैं। तभी तो हमारा देश अखण्डता और एकता का प्रतीक है।

2. किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की मांगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान ” के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदायों को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान ‘ है। सत्तर के दशक के पूर्व के राजनीतिक स्वरूप तथा अस्सी एवं नब्बे के दशक में राजनीति परिदृश्य में बदलाव हुआ और भारतीय समाज में सामंजस्य अभी तक बरकरार है। इसके विपरीत युगोस्लाविया में विभिन्न समुदाय के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ से ऐसी माँगें रखीं कि जिन्हें एक देश की सीमा के अन्दर पूरा करना संभव न था। इसी के परिणामस्वरूप युगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।

3. सामाजिक विभाजन के राजनीति का परिणाम सरकार के खर्च पर भी निर्भर करता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इन मांगों पर क्या प्रतिक्रियाएं व्यक्त करती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की माँग को सरकार शुरू से ही खारिज रहती तो आज भारत बिखराव के कगार पर होता। लेकिन सरकार ने इनके सामाजिक न्याय को चिह्न मानते हुए सत्ता में साझेदार बनाया और उनको देश की मुख्य धारा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया। फलतः छोटे संघर्ष के बावजूद भी भारतीय समाज में समरसत्ता और सामंजस्य स्थापित है। पुनः बेल्जियम में भी सभी समुदायों के हितों को सामुदायिक सरकार में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया। परन्तु . श्रीलंका में राष्ट्रीय एकता के नाम पर तमिलों के न्यायपूर्ण माँगों को दबाया जा रहा है। ताकत के दम पर एकता बनाये रखने की कोशिश अकसर विभाजन की ओर ले जाती है।

प्रश्न 6.
सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल (accomodate) करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर (on the basis of social division) समाज विखण्डन (disintegration) की ओर ले जाता है।
उत्तर-
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें
(क) जहाँ सामाजिक अन्तर एक दूसरे से टकराते हैं (Social differences overlaps), वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।
(ख) यह संभव है एक व्यक्ति की कई पहचान (multiple indentities) हो।
(ग) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।

इन बयानों में स कौन-कौन से बयान सही हैं?
(अ) क, ख और ग
(ब) के और ख
(स) ख और ग
(द) सिर्फ ग
उत्तर-
(ब) के और ख

प्रश्न 8.
निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नहीं थे?
(क) किग मार्टिन लूथर
(ख) महात्मा गांधी
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस
(घ) जेड गुडी
उत्तर-
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस

प्रश्न 9.
निम्नलिखित का मिलान करें
(क) पाकिस्तान
(अ) धर्मनिरपेक्ष
(ख) हिन्दुस्तान
(ब) इस्लाम
(ग) इंग्लैंड
(स) प्रोस्टेंट
उत्तर-
(क) (ब), (ख) (अ), (ग) (स)।

प्रश्न 10.
भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक अक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वर्तमान में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संसार के अधिकतर देश अपना रहे हैं, क्योंकि लोकतंत्र में लोगों के कल्याण की बातों को प्रमुखता दी जाती है आज लोकतंत्र अपनी जड़ें जमा .. चुका है और यह धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर अग्रसर है।

लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था एक ऐसी शासन-व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर संसद या विधानसभा में भेजते हैं। यह लोगों के कल्याण, सामाजिक समानता, आर्थिक समानता तथा धार्मिक समानता इत्यादि का पक्षधर है। इसी शासनतंत्र के अन्तर्गत लोक-कल्याणकारी राज्य बनाया जा सकता है। इस शासन-व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और वे प्रतिनिधि जनता की भलाई के लिए कार्य करते हैं।

वर्तमान समय में लोकतंत्र का क्रमिक विकास इस बात का सूचक है कि यह शासन-व्यवस्था औरों से अच्छी है लोकतंत्र एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण के साथ-साथ समाज का विकास भी संभव है। यह भावी समय के लिए एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण की भावना छुपी है। लोकतंत्र का दीर्घकालीन उद्देश्य है-एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना जिसमें आम लोग का विकास, आर्थिक समानता, धार्मिक. समानता एवं सामाजिक समानता निहित होती है। इस प्रकार लोकतंत्र भावी समाज के लिए जिम्मेवारीपूर्ण कार्य करता है।

प्रश्न 11.
भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?
उत्तर-
भारत में भिन्न जाति के लोग रहते हैं, चाहे वे किसी धर्म से संबंध रखते हों। यहाँ जातिगत विशेषताएँ पायी जाती हैं, क्योंकि भारत विविधताओं का देश है।
दुनिया भर के सभी समाज में सामाजिक असमानताएँ और श्रम विभाजन पर आधारित समुदाय विद्यमान है। भारत इससे अछूता नहीं है। भारत की तरह दूसरे देशों में भी पेशा का आधार वंशानुत है। पेशा एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्वयं ही चला आता है। पेशे पर आधारित सामुदायिक व्यवस्था ही जाति कहलाती है। यह व्यवस्था जब स्थायी हो जाती है तो श्रम विभाजन का अतिवादी रूप कहलाता है जिसे हम जाति के नाम से पुकारने लगते हैं। यह एक खास अर्थ में समाज में दूसरे समुदाय से भिन्न हो जाता है। इस प्रकार के वंशानुगत पेशा पर आधारित समुदाय जिसे हम जाति कहते हैं, की स्वीकृति ति-रिवाज से भी हो जाती है। इनकी पहचान एक अलग समुदाय के रूप में होती है और इस समुदा. के सभी व्यक्तियों की एक या मिलती-जुलती पेशा होती है। इनके बेटे-बेटियों को शादा-आपस के समुदाय में ही होती है और खान-पान भी समान समुदाय में ही होता है। अन्य समुदाय में इनके संतानों की शादी न तो हो सकती है, और न ही करने की कोशिश करते हैं। महत्वपूर्ण परिवारिक आयोजन और सामुदायिक आयोजन में अपने समुदाय के साथ एक पांत में बैठकर भोजन करते हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा देखा गया है कि अगर एक समुदाय के बेटा या बेटी दूसरे समुदाय के बेटा या बेटी से शादी कर लेते हैं तो उसे. पांत से काट दिया जाता है। अपने समुदाय से हटकर दूसरे समुदाय में वैवाहिक संबंध बनाने वाले परिवार को समुदाय से निष्कासित भी कर दिया जाता है।

प्रश्न 12.
क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके _ : दो कारण बतावें। .
उत्तर-
(i) किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का गठन इस प्रकार नहीं किया गया है कि उसमें मात्र एक जाति के मतदाता रहें। ऐसा हो सकता है कि एक जाति के मतदाता की संख्या अधिक हो सकती है, परन्तु दूसरे जाति के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अतएव हर पार्टी एक या एक से अधिक जाति के लोगों का भरोसा करना चाहता है।
(ii) अगर जातीय भावना स्थायी और अटूट होती तो जातीय गोलबंदी पर सत्ता में आनेवाली पार्टी की कभी हार नहीं होती है। यह माना जा सकता है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ जातीय गुटों से संबंध बनाकर.सत्ता में आ जाये, परन्तु अखिल भारतीय चेहरा पाने के लिए जाति विहीन, साम्प्रदायिकता के परे विचार रखना आवश्यक होगा।

प्रश्न 13.
विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर-
जब हम यह कहना आरंभ करते हैं कि धर्म ही समुदाय का निर्माण करता है तो साम्प्रदायिक राजनीति का जन्म होता है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही साम्प्रदायिकता कहलाती है। हम प्रत्येक दिन साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति देखते हैं, महसूस करते हैं, यथा धार्मिक पूर्वाग्रह, परम्परागत धार्मिक अवधारणायें एवं एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ।

साम्प्रदायिकता की सोच प्रायः अपने धार्मिक समुदाय की प्रमुख राजनीति में बरकरार रखना चाहती है। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है, उदाहरणार्थ श्रीलंका में सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद। यहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने भी सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यकपरस्ती के तहत . कई कदम उठाये। यथा–1956 में सिंहली को एकमात्र राज्यभाषा के रूप में घोषित करना, विश्वविद्यालय और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देना, बौद्ध धर्म के संरक्षण हेतु कई कदम उठाना आदि। साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीति गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इस हेतु पवित्र प्रतीकों; धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपील आदि का सहारा लिया जाता है। निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते हैं। किसी खास धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील करायी जाती है और अन्त में साम्प्रदायिकता का भयावह रूप तब हम देखते हैं, जब सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार होता है। : विभाजन के समय हमने इस त्रासदी को झेला है। आजादी के बाद भी कई जगहों पर बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई है। उदाहरण-नोआखली में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए।

प्रश्न 14.
जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र कर जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं ?
उत्तर-
भारत एक विकासशील देश है। यहाँ स्त्रियों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है जितना एक विकसित देश में होती है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले स्त्रियों की स्थिति बहुत ही विकट थी और आजादी के बाद स्त्रियों की स्थिति में बहुत थोड़ा बदलाव आया लेकिन वह काफी नहीं था। अगर वर्तमान परिदृश्य में देखा जाय तो भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है, परन्तु उनके सुधार के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है।

भारत में समय-समय पर महिलाओं ने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए या जागृति लाने के लिए समय-समय पर मान्दोलन किया। पुरुषों के बराबर दर्जा पाने के लिए गोलबंद होना आरंभ किया। सार्वजनिक बोवन के विभिन्न क्षेत्र पुरुष के कब्जे में है। यद्यपि मनुष्य जाति की आबादी में महिलाओं का हिस्सा आया है। आज महिलाएं वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षक इत्यादि पेशे में दिखाई पड़ती हैं, परन्तु हमारे देश में महिलाओं की तस्वीर अभी भी उतनी संतोषजनक नहीं है, अभी भी महिलाओं के साथ कई तरह के भेदभाव होते हैं। इस बात का संकेत निम्नलिखित तथ्यों से हमें प्राप्त होता है

  • महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54% है जबकि पुरुष 76%। यद्यपि स्कूली शिक्षा में कई जगह लड़कियाँ अव्वल रही हैं, फिर भी उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाली लड़कियों का प्रतिशत बहुत ही कम है। इस संदर्भ के लिए माता-पिता के नजरिये में भी फर्क है। माता-पिता की मानसिकता बेटों पर अधिक खर्च करने की होती है। यही कारण है कि उच्च शिक्षा में लड़कियों की संख्या सीमित है।
  • शिक्षा में लड़कियों के इसी पिछड़ेपन के कारण अब भी ऊँची तनख्वाह वाली और ऊँचे पदों पर पहुँचनेवाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है।
  • यद्यपि एक सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत औसतन रोजना साढ़े सात घंटे से ज्यादा काम करती है, जबकि एक पुरुष औसतन रोज छ: घंटे ही काम करता है। फिर भी पुरुषों द्वारा किया गया काम ही ज्यादा दिखाई पड़ता है क्योंकि उससे आमदनी होती है। हालांकि औरतें भी ढेर सारे ऐसे काम करती हैं जिनसे प्रत्यक्ष रूप से आमदनी होती है। लेकिन इनका ज्यादातर काम घर की चहारदीवारी के अन्दर होती है। इसके लिए उन्हें पैसे नहीं मिलते। इसलिए औरतों का काम दिखलाई नहीं देता।
  • लैंगिक पूर्वाग्रह का काला पक्ष बड़ा दुखदायी है, जब भारत के अनेक हिस्से में माँ-बाप को सिर्प लड़के की चाह होती है। लड़की जन्म लेने से पहले हत्या कर देने की प्रवृति इसी मानसिकता का परिणाम है।

उपर्युक्त तथ्यों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारत में स्त्रियों की स्थिति कमजोर है, उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 15.
भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
उत्तर-
भारत में महिला आन्दोलन की मुख्य मांगों में सत्ता में भागीदारी की मांग सर्वोपरि रही। औरतों ने यह सोचना प्रारंभ कर दिया कि जबतक औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा, तबतक . इस समस्या का निपटारा नहीं होगा। परिणामस्वरूप राजनीतिक गलियचारों के इस बात की बहस … शुरू हो गयी कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे बेहतर तरीका यह होगा कि चुने हुए प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी बढ़ायी जाये। यद्यपि भारत के लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 59 हो गयी है, फिर भी यह 11 प्रतिशत के नीचे है। पिछले लोकसभा चुनाव में 40% महिलाओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि आपराधिक थी, परन्तु इस बार 15वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने अपराधियों को नकार दिया। 90% महिला सांसद स्नातक हैं। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ है। अतः भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों की तुलना में बहुत कम है।

प्रश्न 16.
किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं
उत्तर-
हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं जिनमें दो इस प्रकार हैं

  • हमारे देश में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। . श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंगलैण्ड में ईसाई धर्म को जो दर्जा दिया गया ‘ है, उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
  • हमारे संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक घोषित है।

प्रश्न 17.
जब हम लगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।
(ख) समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गयी असमान भूमिकाएँ।
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को मतदान अधिकार न मिलना।
उत्तर-
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।

प्रश्न 18.
भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है-
(क) लोकसभा
(ख) विधानसभा
(ग) मंत्रीमण्डल
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ
उत्तर-
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ

प्रश्न 19.
साम्प्रदायिक राजनीतिक के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?
(क) एक धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ है।
(ख) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रहते हैं।
(ग) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
उत्तर-
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 20.
भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है ?
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर-
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।

प्रश्न 21.
……….पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।
उत्तर-
जाति, धर्म और लिंगा

प्रश्न 22.
सूची I और सूची II का मेल कराएं
Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी - 1
उत्तर-
1. (ख), 2. (क), 3. (ग), 4. (ग)

Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संविधान के किस अनुच्छद में नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है ?
(क) अनुच्छेद 15
(ख) अनुच्छेद 19
(ग) अनुच्छेद 18
(घ) अनुच्छेद 14
उत्तर-
(ख) अनुच्छेद 19

प्रश्न 2.
मैक्सिको ओलंपिक की घटना एक
(क) रंगभेद का
(ख) सांप्रदायिकता
(ग) जातिवाद का
(घ) आतंकवाद
उत्तर-
(क) रंगभेद का

प्रश्न 3.
देश को सामाजिक विभेद के कारण विखंडन का सामना करना पड़ा?
(क) श्रीलंका
(ख) बाल्जयम
(ग) यूगोस्लाविया
(घ) भारत
उत्तर-
(ग) यूगोस्लाविया

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में एक गलत बयान कौन-सा है ?
(क) लोकतंत्र में सामाजिक विभेद का राजनीति पर अवश्य प्रभाव पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र सामाजिक विभेद के आधार पर देश को विखंडित करने में सहायक होता है।
(ग) लोकतंत्र को सामाजिक विभेद से उत्पन्न समस्याओं को हल ढूँढने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।
(घ) लोकतंत्र में विभिन्न समुदाय अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से शासन के सामने उपस्थित कर सकते हैं।
उत्तर-
(ख) लोकतंत्र सामाजिक विभेद के आधार पर देश को विखंडित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में एक सही बयान, कौन-सा है?
(क) बड़े लोकतांत्रिक देशों में ही सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं।
(ख) सामाजिक विभेद का राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(ग) एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक व्यक्ति की कई पहचान होती है।
(घ) सामाजिक विभेद हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होते हैं।
उत्तर-
(ख) सामाजिक विभेद का राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का एक कारण बताएं ?
उतर-
सामाजिक विभेद की उत्पत्ति को एक प्रमुख कारण जन्म है।।

प्रश्न 2.
विविधता राष्ट्र के लिए कब घातक बन जाती है ?
उत्तर-
जब धर्म, क्षत्र, भाषा, जाति, संप्रदाय के नाम पर लोग आपस में उलझ पड़ते हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना देता है। विविधताएँ जब सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यंभावी हो जाता है तथा राष्ट्र के लिए घातक बन जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वधर्म समन्वय का एक उदाहरण प्रस्तत करें।
उत्तर-
भारत म मादरी के शहर वाराणसी में नाजनीन नामक एक मुस्लिम लड़की ने हनुमान-भक्तों की पवित्र पुस्तक हनुमान चालीसा को उर्दू में लिपिबद्ध कर सर्वधर्म समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया।

प्रश्न 4.
उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म के दो समूहों के प्रतिनिधित्व करनेवाली दो राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएँ। .
उत्तर-
उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म को दो समूहों प्रोटेस्टैंटो और कैथोलिकों को प्रतिनिधित्व करनेवाली दो राजनीतिक पार्टियाँ थी-नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा यूनियनिस्ट पार्टियाँ।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभेद्रों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम बताएं।
उत्तर-
सामाजिक विभेदों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम यह है कि अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीति में अटूट संबंध देखने को मिलता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में कैसे बदल जाता है?
उत्तर-
लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का माहोल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों को हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है। ऐसा कई देशों में हो चुका है।

प्रश्न 2.
‘विविधता में एकता’ का अर्थ बताएँ।
उत्तर-
विविधता में एकता भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपनी विशेषता रही है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारत में विविधता धार्मिक तथा सांस्कृतिक आधार पर है। हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग भारत में हैं तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान भी अलग-अलग है। लेकिन एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में वे शरीक होते हैं तथा वे अलग-अलग होते हुए पहले वे भारतवासी हैं। इसलिए कहा जाता है कि भारत में विविधता ये भी एकता विद्यमान है।

प्रश्न 3.
सामाजिक विभेद किस प्रकार सामाजिक विभाजन के लिए उत्तरदायी है ? …
उत्तर-
समाज में व्यक्ति के बीच कई प्रकार के सामाजिक विभेद देखने को मिलते हैं जैसे जाति के आधार पर विभेद, आर्थिक स्तर पर विभेद धर्म के आधार पर तथा भाषाई आधार पर विभेद। ये सामाजिक विभेद तब सामाजिक विभाजन का रूप ले लेती हैं. जब इनमें से कोई एक सामाजिक विभेद दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। जब किसी एक समूह को यह महसूस होने लगता है कि वे समाज में बिल्कुल अलग हैं तो उसी समय सामाजिक विभाजन प्रारंभ हो जाता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक विभेद एवं सामाजिक विभाजन का अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
जब हम क्षेत्र में रहनेवाले विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय के द्वारा लोगों के बीच विभिन्नताएं पाई जाती हैं तो वे सामाजिक विभेद का रूप धारण कर लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ – धन, रंग, क्षेत्र के आधार पर विभेद सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है। श्वेतों का अश्वेतों
के प्रति, अमीरों का गरीबों के प्रति व्यवहार सामाजिक विभाजन का कारण बन जाता है। भारत में सवर्णों और दलितों का अंतर सामाजिक विभाजन का रूप ले रखा है।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभेदों में तालमेल किस प्रकार स्थापित किया जाता है ?
उत्तर-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक होता है परंतु ‘विविधता में एकता’ भी लोकतंत्र का ही एक गुण है। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को गले लगाया जाता है। एक धर्मनिरपेक्ष ये विभिन्न धर्म, भाषा तथा संस्कृति के लोग एक साथ मिलजुलकर रहते हैं। उनमें यही धारणा विकसित हो जाती है कि उनके धर्म, भाषा रीति-रिवाज अलग-अलग तो अवश्य है परंतु उनका राष्ट्र एक है। बेल्जियम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न भाषा-भाषी एवं क्षेत्र के लोगों के बीच अच्छा तालमेल है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। कैसे?
उत्तर-
यह आवश्यक नहीं है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप ले ले। सामाजिक विभिन्नता के कारण लोगों में विभेद की विचारधारा अवश्य बनती है, परन्तु यही विभिन्नता कहीं-कहीं पर समान उद्देश्य के कारण मूल का काम भी करती है। सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में बहुत बड़ा अंतर है।

सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों एवं दलितों के बीच अंतर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब वंचित, सुविधाविहिन एवं भेदभाव के शिकार हैं, जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं। दलितों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं।

परंतु इन सबके बावजूद जब क्षेत्र अथवा राष्ट्र की बात होती है तो सभी एक हो जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं हो तो।

प्रश्न 2.
सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों पर प्रकाश डालें। ..
उत्तर-
किसी भी समाज में सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के अनेक कारण होते हैं। प्रत्येक . समाज में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति संप्रदाय एवं क्षेत्र के लोग रहते हैं। इन सबों के आधार पर उनमें विभेद बना रहता है। सामाजिक विभेद का सबसे मुख्य कारण जन्म को माना जाता है। किसी व्यक्ति का जन्म किसी परिवार विशेष में होता है। उस परिवार का संबंध किसी न किसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा क्षेत्र से होता है। इस तरह उस व्यक्ति विशेष का संबंध भी उसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र से हो जाता है। इस प्रकार जाति, समुदाय, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।

कुछ अन्य प्रकार से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं जिनका जन्म से कोई संबंध नहीं। होता है। जैसे लिंग, रंग, नस्ल; धन आदि भी विभेद लोगों में पाया जाता है जो कालांतर में सामाजिक विभेद का रूप ले लेते हैं। स्त्री-पुरुष; काला-गोरा लंबा-नाटा, गरीब-अमीर, शक्तिशाली और कमजोर का विभेद भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का कारण होते हैं। व्यक्तिगत पसंद से भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति होती है। कई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके एक अलग समुदाय बना लेते हैं। कुछ लोग अंतरजातीय विवाह संबंध स्थापित कर अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। कुछ लोग अपने परिवार की परंपराओं से हटकर अलग विषय का अध्ययन करने, पेशे, खेल, उद्योग-धंधे तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का चयन कर अलग सामाजिक समूह के सदस्य बन जाते हैं और इस तरीके से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक विभेदों में तालमेल और संघर्ष पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक है। परंतु विविधता में बनता भी लोकतंत्र का ही 24 गुण है। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया जाता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग मिल-जुलकर साथ रहते हैं। उनमें यह धारणा .. विकसित हो जाती है कि उनके धर्म अलग-अलग अवश्य हैं, परंतु उनका राष्ट्र एक है। एक से सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं। विभिन्नताओं के बावजूद लोगों में सामंजस्य का भाव पैदा होता है। उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं। उत्तरी आयरलैंड में वर्ज और धर्म के बीच गहरी समानता है।

सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमरीका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाज्य भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं तथा भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए लाभदायक नहीं हो सकती।

Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Notes

  • लोकतांत्रिक राज्य में केवल भाषा और क्षेत्र की विविधता ही नहीं होती है, वरन ग धर्म जाति संप्रदाय लिंग जैसे विभेद भी अवश्य देखने को मिलते हैं।
  • लोकतांत्रिक राज्यों में जनता के बीच विभिन्नताओं असमानताओं तथा विभेदों के रहते हुए भी उनके बीच तालमेल स्थापित किया जाता है।
  • लोकतंत्र सैद्धांतिक रूप से समानता पर आधृत शासन-पद्धति है।
  • विभिन्न लोकतांत्रिक पद्धतियों में विरोधाभास के उदाहरण भी मिलते हैं जिसे विद्वानों ने लोकतंत्र में इंद्व की भी संज्ञा दी है।
  • लोकतंत्र में विविधता तथा विभिन्नताओं के कारण सामाजिक विभाजन की संभावना बनी रहती है।
  • सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों में जन्म सबसे बड़ा कारण होता है। जन्म के अतिरिक्त व्यक्तिगत विभेद तथा व्यक्तिगत पसंद के कारण भी सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।
  • सामाजिक विभेद ही सामाजिक विभाजन और सामाजिक संघर्ष के लिए मूलरूप से उत्तरदायी है।
  • विविधता कभी-कभी सामाजिक एकता को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेद हमेशा सामाजिक विभाजन का कारण बने, यह आवश्यक नहीं है।
  • भिन्न-भिन्न जाति के लोग भी समान धर्म में आस्था रखते हुए सामाजिक विभेद को मिटाने में सहायक होते हैं।
  • लोकतंत्र में विविधता स्वामित्व है, परंतु विविधता में एकता भी लोकतंत्र का ही एक गुण है।
  • सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक भी है। धर्म धन क्षेत्र भाषा जाति संप्रदाय के नाम पर आपस में उलझना लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना डालता है। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
  • जब तक विविधताएँ एक सीमा में रहती है तब तक कोई परेशानी नहीं होती है, परंतु जब विविधताएँ सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यभावी हो जाता है और आपसी संघर्ष में वृद्धि हो जाती है।
  • जब सामाजिक विभेद अन्य विभेदों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है तब स्वाभाविक रूप से सामाजिक विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति लोकतानिक व्यवस्था के लिए घातक है।
  • सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है। विभिन्न राजनीतिक दलों का गठन भी सामाजिक विभेदों के आधार पर होता है। उत्तरी आयरलैंड में नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा युनियननिष्ट पार्टियों का गठन प्रोटेस्टेंटो और कैथोलिको का प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ है। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी प्रतिदिता का आधार भासामाजिक विभेद को बना लेते हैं।
  • जब सामाजिक विभेद सजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब देश का विखंडन अवश्यभावी हो जाता है। यूगोस्लाविया इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति के अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीतिक में अटूट संबंध देखने को मिलता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम तीन बातों पर निर्भर करते हैं- स्वयं की पहचान की चेतना, समाज के विभिन्न समुदायों की मांग को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका तथा सरकार की मांगों के प्रति सोच।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति का हमेशा गलत परिणाम होगा, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि सामाजिक विभेदों की राजनीति लोकतंत्र को सशक्त करने में सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति से लोकतांत्रिक व्यवस्था में संघर्ष और हिंसा की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है, परंतु इसपर काबू करने का प्रयास भी होता रहता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम अच्छा ही हो, इसके लिए शासन को कुछ सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 11 A Marriage Proposal

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Bihar Board Class 12 English A Marriage Proposal Text Book Questions and Answers

A. Work in small groups and discuss the following :

A Marriage Proposal Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 1.
How are marriages settled in your family ?
Answer:
Marriages in our family are settled in the customary manner by the elders. However the consent of the bride/bridegroom is assured.

The Marriage Proposal Questions And Answers Bihar Board Class 12 English Question 2.
What are the major factors that decide the relation of brides/ grooms ?
Ans
Bride: The following factors are important: good looking, education, age, status of the family.
groom: education, income of the boy, status of the family, age

B. 1.1. Read the following sentences and write T’ for true and ‘F’ for false statements :

  1. Lomov is a neighbour of the Stepanovnas.
  2. He wore the morning coat to attend a party.
  3. Mr. Choobookov becomes angry To know Lomov’s desire.
  4. Lomov is a man of nervous temperament
  5. Natalia is a quiet and peace loving lady.
  6. The ownership of Ox-meadows is disputed.

Answer:

  1. T
  2. F
  3. F
  4. T
  5. F
  6. T

B. 1.2. Answer the following questions briefly :

The Proposal Question Answer Class 12 Bihar Board English Question 1.
How is Lomov greeted by Choobookov ?
Answer:
Choobookov is surprised to see Lomov dressed in formal clothes. He thinks Lomov is going to a party. But he greets him cordially.

The Proposal Question Answer Class 12 Bihar Board English Question 2.
How does Choobookov react when he comes to know that Lomov wants to marry Natalia ?
Answer:
Choobookov is truly overjoyed when he learns that Lomov wants to marry his daughter Natalia. He says that he has wished to happen it for a long time. He embraces and kisses Lomov.

A Marriage Proposal Short Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 3.
Why does Lomov think that his is a critical age ?
Answer:
Lomov is already thirty-five. He is still unmarried. He thinks his is a critical age because if he does not get married soon he will never be able to marry.

The Proposal Class 12 Long Questions And Answers Bihar Board Question 4.
Why does Lomov feel nervous before proposing to Natalia ?
Answer:
Primarily Lomov is a man of nervous temperament. Then, he is not sure whether Natalia will accept him. He feels nervous before proposing to her as if he is going to take the final examination.

The Proposal Class 10 Questions And Answers Bihar Board Question 5.
Why is Natalia afraid that all her hay may rot ?
Answer:
Natalia has had all her meadow mown. But it has started raining. The hay may not get dried without the sun. It is likely to rot. So she is worried.

Bihar Board Rainbow English Book Class 12 Pdf Download Question 6.
What according to her, is the real worth of Ox meadows ?
Answer:
Natalia thinks that the Ox-meadows are worth about three hundred rubles.

Bihar Board Class 12 English Book Solution Question 7.
Who, according to Lomov, had let the meadows and to whom ?
Answer:
According to Lomov the meadows were lent by his aunt grandmother to the peasants of Natalia’s great grandfather for an indefinite period without any payment.

B. 2.1. Read the following sentences and write T for true and ‘F’ for false statement :

  1. Choobookov supports Lomov’s claim over Ox- meadows.
  2. His peasants used the land for forty years.
  3. It is Natalia who threatens to take the matter court.
  4. She does not use abusive language of Lomov.
  5. She feels delighted to have behaved decently with Lomov.

Answer:

  1. F
  2. F
  3. F
  4. F
  5. F

B.2.2. Answer the following questions briefly :

The Proposal Class 12 Questions And Answers Bihar Board Question 1.
What is Lomov’s explanation of Ox-meadow becoming a disputed piece of land ?
Answer:
Lomov tells Natalia that his aunt’s grandmother lent the Ox-meadows to the peasants of her great-grandfather for free use. They used it for forty years, and then, they began to treat it as their own. This caused the dispute.

Class 12th English Book Bihar Board Question 2.
What does Choobookov say about Lomov’s father and grandfather ?
Answer:
Choobookov says that Lomov’s father was a gambler and ate like a pig and his grandfather drank like a fish.

Rainbow Part 2 English Book Class 12 In Hindi Bihar Board Question 3.
Why does Lomov refer to the land settlement ?
Answer:
Lomov refers to the land settlement to assert that now there is no dispute about the Ox-meadows. They rightfully belong to him.

Bihar Board Solution Class 12th English Question 4.
Why does he complain all the time of palpitation and veins throbbing ?
Answer:
Lomov is a very excitable person. Whenever there is an argument, he gets excited. His heart begins to palpitate and his nerves begin to throb. He feels like having a heart stroke.

Rainbow English Book For Class 12 Solutions Bihar Board Question 5.
Why does Natalia cry and weep to know that Lomov has come to propose to her ?
Answer:
Natalia is already twenty-five years old. She is still unmarried. Probably nobody has proposed to her. She is eager to married. She weeps and cries because she feels that she is losing her chance to marry Lomov too.

B.3.1. Read the following sentences and write ‘T’ for true and ‘F’ for false statements :

  1. Lomov refuses to come back to Natalia.
  2. The name of Lomov’s dog is Leap.
  3. Choobookov bought his dog for eighty five ‘rubbles’ rubles.
  4. According to Lomov, Leap is pug-jawed.
  5. Lomov claims to have the memory of an elephant.
  6. Choobookov thinks that Lomov is possessed by some ‘demon of contrandiction’.
  7. Lomov faints when he realises that he will not succeed in marrying Natalia.
  8. Choobookov takes the lead to settle the marriage of his daughter with Lomov.

Answer:

  1. F
  2. F
  3. T
  4. T
  5. F
  6. F
  7. F
  8. T

B.3.2. Compelete the following sentences on the basis of the unit you have just studied :

(a) It is not very nice of you to …………… your neighbours.
(b) Do you think I may …………… on her accepting me ?
(c) I’m always getting terribly …………… up.
(d) I was so greedy that I had the whole meadows ……………
(e) I have had the of …………… knowing your family.
(f) Your Leap …………… behind by half a mile.
(g) You only tag along in order to …………… with other people’s dogs.

Answer:

(a) cheat
(b) count
(c) wrought
(d) mown
(e) honour
(f) lagged
(g) meddle

B. 3.3. Answer the following questions briefly :

12th English Book Writer Name Bihar Board Question 1.
Why does Natalia want to talk about something else ?
Answer:
Natalia wishes that Lomov should propose to her immediately. So she tries her best to avoid any further arguments on Ox-meadows. She wants to avoid a quarrel.

A Marriage Proposal Summary Bihar Board Question 2.
What, according to Lomov, is the main defect of Leap ?
Answer:
According to Lomov, Leap is pug-jawed, which makes him a poor hunting dog.

The Proposal Question Answer Bihar Board Question 3.
How does Natalia describe her own pet dog, Leap ?
Answer:
Natalia proudly describes her Leap as a pedigreed greyhound. She says Lomov’s Guess is piebald. So her Leap is a hundred times superior to Lomov’s Guess.

A Marriage Proposal Bihar Board Question 4.
‘That’s a load off my back.’ What is this ‘load’ ? Why does Choobookov say so ?
Answer:
Choobookov is the father of a 25-year old daughter, Natalia. He was keen that she should be married off as early as possible. But it was not easy. He considered this responsibility as a load on her back. Now she is married to Lomov, he feels relieved. The load is off his back.

C. 1. Long Answer Questions:

Question 1.
On the basis of your reading of scene I, do you think that Lomov and Choobookov are cordial neighbours ?
Answer:
Yes, I think that Lomov and Choobookov are cordial neighbours When Lomov calls at Choobookov, the later welcomes him. He calls him his esteemed neighbour. He rather complains that Lomov has almost neglected him because he has paid a visit after a long time. Lomov on his part admires Choobookov. He says that Choobookov has always been kind and helpful to him.

Question 2.
Write a short note on the character of Lomov on the basis of his self-revelation in scene II ?
Answer:
Lomov is an old bachelor. He is thirty-five and has not been able to decide who to marry. Probably he has been looking for an ideal woman to marry. He is unable to take a firm decision. He suffers from a number of serious ailments. He suffers from palpitations of the heart and throbbing of veins and eyelids. He is also shy and lacks confidence. He is afraid that Natalia may not accept him.

Question 3.
Are Lomov and Natalia really interested in laying claim to Ox- meadows ?
Answer:
Lomov and Natalia don’t seem to be actually interested in laying claim to the Ox-meadows. As Natalia says it is not worth much. The meadows are lying neglected for a long time. But it is the vanity of both Lomov and Natalia to lay claim to it. Both of them are willing to gift it to each other. But they say as a matter of principle, they cannot allow anyone to take them away because they are their property. In this quarrel they forget the more serious and urgent matter—the marriage proposal. Any how when Natalia learns that Lomov has come to propose to her she says to him that she was mistaken. The meadows belong to him. But Lomov again harps on his claim to them. He is not willing to let the matter rest there because of his vanity.

Question 4.
Do you think that Natalia was also interested in marrying Lomov ? What makes you think so ?
Answer:
Yes, Natalia is very much interested in marrying Lomov. She has had a serious quarrel with him because she does not know he has come to propose to her. But when he has gone and her father tells her the real motive of Lomov a visit, Natalia goes hysterical. She moans and wails. She asks her father to bring him back because she wants to accept him at once.

When Lomov has come back, he begins to talk of the meadows, she wishes he talked of the proposal instead. She gives up her claim to the meadows. She is eager not to lose her suitor. After all she is twenty-five years old and does not want to remain unmarried all her life. When Lomov kisses her, she says, “I’m very happy.”

Question 5.
Despite his heated arguments with Lomov, Choobookov in the last scene shows haste in finalising the marriage. What could be the reason of his haste?
Answer:
Choobookov is over worried about his old daughter Natalia’s marriage. He is eager that she is married off without any further delay. When he learns that Lomov has come to propose to her, he is overjoyed. He embrances and kisses Lomov. He calls him his son. He assures him that Natalia will accept him.

Unluckily Lomov and Natalia are easily excited. They quarrel over the question of the ownership of the meadows. When Choobookov hears the noise, he immediately rushes to see what the matter is. But he supports his daughter and thus the real purpose of Lomov’s visit is lost. But when Lomov is gone, and he tells Natalia that Lomov wanted to propose to her, she blames Choobookov for the quarrel. She asks him to bring him back. He feels like killing himself.

Lomov comes again. Once again they quarrel over the superiority of their dogs. Once again Choobookov supports his daughter.

But Lomov is too excited and he collapses. Once again Natalia weeps because the chances of. her marriage seem to have gone forever.

When Lomov regains consciousness Choobookov does not lose the opportunity to get them married. He hastily joins their hands, and makes them kiss each other. He is happy because the burden is off his back. Now he can live in peace.

Question 6.
Do you think the title of the drama is suitable ? Give reasons in support of your views. Suggest a different title of the drama ?
Answer:
The contents of the play do not justify the title. We find there is no marriage proposal, there is no love-talk, and there is no acceptance or refusal by the lady-love. Instead we find that the young man is an old bachelor who suffers from a number of ailments. The lady is not a young charming woman but a grown up woman of twenty-five.

Lomov shyly tells Choobookov that he has come to propose to his daughter Natalia. But when Lomov and Natalia are together they exchange no sweet words like love-birds. Instead they begin to quarrel over the ownership of the Ox-meadows. Choobookov who knows the purpose of Lomov’s visit, does not try to pacify them. Instead he supports his daughter and the quarrel takes a serious turn. Poor Lomov is excited, his heart palpitates and he leaves. But neithbour Choobookov nor Natalia show mercy on him.

But soon Natalia learns the purpose of his visit. She wails and asks her father to bring him back.

Shemeless Lomov comes back. This time Natalia is soft and sweet. She wants him to propose so that she may accept him immediately. But both Natalia and Lomov are vain to the core. They begin to quarrel over an insignificant matter, the superiority of their respective dogs. They have no restraint. They do not think of the actual questions—the marriage proposal. Neither Lomov proposes nor Natalia accept him. It is Choobookov who appears to be more concerned.

Lomov is almost dead and Natalia is hysterical. When Lomov regains consciousness. Choobookov joins their hands though they are still quarrelling.

In fact the title of the play is far from being suitable. The title of the play should be ‘A comedy of Human Vanity’.

Question 7.
Natalia and lomov would be an ideal couple Do you agree? Give reasons
Answer:
The basic requirement of an ideal couple is mutual respect, understanding and sacrifice. But Natalia and Lomov are made of a different stuff. Both of them have obstinate vanity. They are not willing to yield a bit. For example, the Ox-meadows are a worthless piece of land. It is disputed. Both Lomov and Natalia lay their claim to it. Lomov is prepared to take the matter to a court of law to prove his claim. On the other hand Natalia asks her father to send men to mow the meadow immediately. Both of them call each other names, Lomov is about to faint but he goes on repeating how it belonged to his aunt’s grandmother.

This matter ends. But they again begin to quarrel over the superiority of their dogs. It is an insignificant matter but both Natalia and Lomov make it a question of life and death. Even after they are engaged, the quarrel continues. Neither of them is willing to yield or be quiet. This qurrel, and many more quarrels like these, will adorn their married life. They will continue to quarrel over trifles. But, since both need each other, they will live together. But they will be far from being an ideal couple.

C. 2. Group Discussion

Discuss the following in groups or pairs :

Question 1.
Arguments for the sake of arguments lead to nowhere.
Answer:
Humans are the only creation of God that are endowed with a faculty or reasoning and a sophisticated language. They are great blessings. All human civilizations and progress are the result of these. Science and philosophy, literature and commerce couldn’t have been developed without power of reasoning and communicated from person to person, and generation to generation without language. But human have one terrible weakness. Sometimes they would argue for its own sake. They would not given in even though they have no substantial basis to support their point. Such arguments can be continued for as long as they desire. But they lead to nowhere.

Question 2.
Marriages are settled in heaven but are solemnised on the earth.
Answer:
Much can be said in favour and gainst this statement. Most people believe that it is perfectly true. There is a destiny that decides marriages. It is not a unilateral matter. You cannot marry a person without the consent of the other. People say that try however hard you may. You are sure to tie the knot with the person you are destined to. But there are some people who do not agree with this. They say if marriages were settled in heaven, why there are divorces. Marriage is a social custom. It binds two persons together in a special manner. Divorce, like marriage is also a social custom. Marriages and divorces are social and legal matters. They are the inventions of our civilication. We could do without marriage. But if we did, it would lead to social chaos. But heaven has nothing to do with marriages and divorces.

C. 3. Composition

Question 1.
Write a short essay in about 150 words on the following:

Question a.
Role and responsibility of parents in marriage.
Answer:
Role and responsibility of parents in marriage of their children varies from society to society and culture to culture. In the East parents were supposed to have the fullest responsibility in the marriage of their children. In India, the marriage of daughter was a sole and grave responsibility of the parents. As a girl reached marriageable age, parents had sleepless night. The girl’s father would go about looking for a suitable match for her. He tried his best. In several cases he had to in debts or sell his land to give dowry and fulfil other social and religious obligations. In olden days the girl in question has no say in the matter of her own marriage.

But now things have changed much. First, the social fabric, especially in towns and cities, has greatly changed. Secondly, joint familier do not exist. Thirdly the boys and girls enjoys far more indepedence than ever before. So the role and responsiblity of parents are very little. According to the latest trends, boys and girls choose their own partners, and parents consent is a formality.

Question b.
Social relevance of marriage.
Answer:
Marriage in human society is of paramount relevance. In fact the institution of marriage has deep roots in our civilizaiton. It will be no exaggeration to say that marriage and civilization evloved together. And human society will be no better than a herd of animal without marriage. Our laws of inheritance, the responsibility of parents towards children, and children’s responsiblity towards parent are the offshoots of the institution of marriage. There are some philosophers like G.B. Shaw who advocate the abolition of marriage. They want the government to take the responsibility of bringing up children and looking after the aged. But it is only a theoretical idea. It is not practicable. Marriage is recognised in every culture and has the sanctity of all religions. Marriage is not a matter between two persons only. It is the basis of the family, and the family is the basis of society.

Question 2.
Write a letter to your friend describing the marriage ceremony that you attended recently in your family.
Answer:

ASHOK RAJPATH
Patna
My 25,200.

Dear Rishiksh

I hope my letter finds you in the pink of your health. Recenlty, I visited my cousin’s house to attend the marriage ceremony of my cousin sister. Everywhere it was happiness. All were busy in arranging things and enjoying each moment of it. All wanted to be an important part of it. All relatives had come. Many rituals were performed. The marriage was conducted with great pomp and show. We really enjoyed it very much. Howevei all were weeping at her departure to her new house.

Give my regards to elders and love to youngers.

Yours lovingly
Shashank sinha

D. Word Study

D. 1. Dictionary Use :

Ex. 1. correct the spelling of the following words :
Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 11 A Marriage Proposal 1
Answer:
Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 11 A Marriage Proposal 2
D. 2. Word-formation

Go through the drama and underline the use of the following words, wherever they occur.

land-garbber windbag countryside horseback house keeper These are compound words, made by joining two words. Make at least five similar words, using the following ones :
air college right cyber young
Answer:
fresh air, women’s college, night mare, cybercafe, young mountains

D. 3. Word-meaning

Ex. 1. Fill in the blanks with suitable phrases given in the box :
Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 11 A Marriage Proposal 3

(a) Snighdha’s intelligence made her to her classmates.
(b) It time of crisis you may your friends.
(c) We must the glorious tradition of the past.
(d) I advised Ankita to a doctor.
(e) You should your mind before joining the army.
(f) Shylock was Antonio’s popularity.
(g) We were asked to our aim in life.
(h) Priya is not such severe cold.

Answer:

(a) superior
(b) call on
(c) talk about
(d) run after
(e) make up
(f) envious of
(g) talk about
(h) accustomed to

E. Grammar

Ex. 1. The following verbs in their past participle forms have been used an adjectives in the drama. Go through the text and underline them wherever they have been used as ajectives.
Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 11 A Marriage Proposal 4
use each of these words both as verb and adjective in sentences of your own. The first one is done for you:
esteemed (v): Tendulkar is esteemed as the best batsman.
esteemed (adj): He is my estmeed neighbour.
Answer:
delighted (v): He is delighted of the news.
delighted (adj): This is delighted experience.
inherited (v): He has inherited this house.
inherited (adj): It is an inherited property.
maintained (v): They have maintained their norms.
maintained (adj): It is a maintained house.
mistaken (v): He has mistaken them sum.
mistaken (adj): It is a mistaken happiness.
disputed (v): They have disputed over the matter.
disputed (adj): They were discussing the disputed matter.
paralyzed (v): They paralyzed the scorpion.
paralyzed (adj): It is a paralysed dog.
accustomed (v): He is accustomed of such situation.
accustomed (adj): This is an accustomed rituals.
abused (v): They have abused him.
abused (adj): This is an abused house.
insulted (v): He has insulted me.
insulted (adj): He is an insulted person.
twisted (v): They have twisted the matters.
twisted (adj): It is a twisted rod.

The main aim is to share the knowledge and help the students of Class 12 to secure the best score in their final exams. Use the concepts of Bihar Board Class 12 Chapter 11 A Marriage Proposal English Solutions in Real time to enhance your skills. If you have any doubts you can post your comments in the comment section, We will clarify your doubts as soon as possible without any delay.

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 9 हमारी नींद

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 9 हमारी नींद Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 9 हमारी नींद

Bihar Board Class 10 Hindi हमारी नींद Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि एक बिप्य की रचना करता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि वीरेन डंगवाल ने मानव जीवन एक बिंब उपस्थित किया है। सुविधाभोगी आरामपसंद जीवन नींद रूपी अकर्मण्यता के चादर से अपने आपको ढंककर जब सो जाता है तब भी प्रकृति के वातावरण के एक छोटा बीज अपनी कर्मठता रूपी सींगों से धरती के सतह रूपी संकटों को तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है। यहाँ नींद, अंकुर, कोमल सींग, फूली हुई बीज, छत ये सभी बिम्ब रूप में उपस्थित है।

हमारी नींद Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का क्या आशय है ?
उत्तर-
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का आशय है निम्न स्तरीय जीवन की संकीर्णता को दर्शाना। सष्टि में अनेक जीवन-क्रम चलता रहता है। उसका जीवन-क्रम की व्यापकता को लेकर कर्मठता और अकर्मठता का बोध कराता है लेकिन मक्खी के जीवन-क्रम केवल सुविधापयोगी एवं परजीवी-जीवन का बोध कराता है।

Class 10th Hindi Godhuli Question Answer प्रश्न 3.
कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है ?
उत्तर-
कवि गरीब बस्तियों के उल्लेख के माध्यम से कहना चाहता है कि जहाँ के लोग दो जून रोटी के लिए काफी मसक्कत करने के बाद भी तरसते हैं वहाँ पूजा-पाठ, देवी जागरण जैसे महोत्सव कितना सार्थक हो सकता है ? यहाँ कुछ स्वार्थी लोग अपनी उल्लू सीधा करने के लिए गरीब लोगों का उपयोग करते हैं। लेकिन गरीबी से ग्रसित लोग अपने वास्तविक विकास हेतु सचेत नहीं होते हैं।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10 Bihar Board प्रश्न 4.
कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है?
उत्तर-
कवि यहाँ उन अत्याचारियों का जिक्र करता है जो हमारी सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन से लाभ उठाते हैं। समाज का एक वर्ग जो ऐशो-आराम की जिंदगी में अपने आपको ढाल लेता है उसी का लाभ अत्याचारी उठाते हैं। हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जाने वाले जीवन नहीं रह पाते हैं और इस अवस्था में अत्याचारी अत्याचार करने के बाह्य और आंतरिक सभी साधन जुटा लेते हैं।

Bihar Board 10th Class Hindi Book Pdf प्रश्न 5.
इनकार करना न भूलने वाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे हठधर्मी हैं जो संवैधानिक और वैधानिक स्तर पर ‘कई गलतियाँ कर जाते हैं लेकिन अपनी भूलें या गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं। वे साफ तौर पर अपनी भूल को इनकार कर देते हैं। जैसे लगता है कि उनका दलील काफी साफ और मजबूत है।

Class 10 Hindi Kavita Bihar Board प्रश्न 6.
कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-
किसी भी कविता का शीर्षक कवितारूपी शरीर का मुख होता है। शीर्षक कविता की सारगर्भिता लिए रहता है। शीर्षक रखने के समय कुछ बातें इस प्रकार होती हैं-शीर्षक, सार्थक लघु और समीचीन होना चाहिए। साथ ही शीर्षक घटना प्रधान, जीवन प्रधान या विषय-वस्तु प्रधान होता है। यहाँ शीर्षक विषय-वस्तु प्रधान हैं। शीर्षक छोटा है और आकर्षक भी है। इसका शीर्षक पूर्ण रूप से केन्द्र में चक्कर लगाता है जहाँ शीर्षक सुनकर ही जानने की इच्छा प्रकट हो जाता है। अत: सब मिलाकर शीर्षक सार्थक है।

Hindi Kavita For Class 10 Bihar Board प्रश्न 7.
व्याख्या करें-
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
उत्तर –
प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल के द्वारा लिखित ‘हमारी नींद’ से ली गई है। इस अंश में कवि उन लोगों का चित्र खींचा है जो गरीब बस्तियों में जाकर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए देवी जागरण जैसे महोत्सव का आयोजन करते हैं।

कवि कहते हैं कि आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे स्वार्थपरक लोग हैं जिनके हृदय में गरीबों के प्रति हमदर्दी नहीं है। केवल उनसे समय-समय पर झूठे -वादे करते हैं। नेता, पूँजीपति एवं अत्याचारी ये सभी गरीबों की आंतरिक व्यथा से खिलवाड़ कर उनकी विवशता से लाभ उठाते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution In Hindi प्रश्न 8.
‘याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी साहित्य के हमारी नींद नामक शीर्षक से उद्धृत है। कवि वीरेन डंगवाल सामाजिक अत्याचारियों के करतूतों का पर्दाफाश किये हैं।
आज हमारे समाज में अनेक लोग हैं जो अपनी जिंदगी को आरामतलबी बना लिये हैं। ऐसी जिंदगी समाज और राष्ट्र के लिए खतरनाक परिधि में रहती है और इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे हैं जो इनकी विवशता का लाभ उठाने के लिए गलत अंजाम देने में पीछे नहीं हटते हैं। अत्याचारी आंतरिक और बाह्य रूप से अपने स्वार्थपूर्ति के लिए सभी प्रकार के साधन अपनाते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions प्रश्न 9.
“हमारी नींद के बावजूद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के “हमारी- नींद” नामक शीर्षक से उद्धृत है। इस अंश में हिन्दी काव्यधारा के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने वैसे लोगों का चित्रण किया है जो आरामतलबी जीवन पंसद करते हैं।
प्रस्तुत अंश में कवि कहते हैं कि जीवन-क्रम कभी रुकता नहीं है। समय-चक्र के समान बिना किसी की प्रतीक्षा किये हुए अनवरत आगे ही बढ़ता जाता है। यदि हमारे समाज के कोई भी व्यक्ति सुविधोपयोगी आराम पसंद जीवन पसंद करते हैं तो भी कहीं एक पक्ष जरूर ऐसा होता है जिसका सिलसिला हमेशा आगे बढ़ते जाता है जो कर्मवाद का संदेश देता है।

Bihar Board Hindi Solution प्रश्न 10.
‘हमारी नींद’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने हमारी नींद’ कविता में विभिन्न चित्रों के माध्यम से सुविधाभोगी जीवन और हमारी बेपरवाही के बावजूद बेहतर जिन्दगी के लिए चलने वाले संघर्ष का चित्रण बड़ी स्पष्टता से किया है।

कवि कहता है कि छोटी धरती के नीचे बीज अंकुरा और उस छोटे अंकुर ने अपने ऊपर की धरती को दरकाया और खुली हवा में उसने साँस ली। उसने अपने ऊपर के अवरोध को तोड़ा। पेड़ ने भी अपना कद ऊँचा किया।

प्रकृति के इस क्रम के बाद कवि समाज की ओर निहारता है। मक्खियों की तरह लोग जी रहे हैं और उनकी तरह ही बच्चे उत्पन्न कर रहे हैं। नतीजा है कि जीवन की इस अफरा-तफरी में ही रंगे हो रहे कुछ लोग आगजनी कर रहे हैं, बम फोड़ रहे हैं ताकि अपने लिए सुविधा का सामान जुटा सकें। कुछ की जिन्दगी जाती है तो जाए। हमें क्या ?

दूसरी ओर कुछ गरीब लोग हैं जो अपनी गरीबी को अपना नसीब मान चुके हैं, वे गरीबी से छुटकारा पाने के लिए लड़ने की अपेक्षा अपनी गाढ़ी कमाई में लाउडस्पीकर लगाकर, रात-रात भर देवी के भजन गा रहे हैं वे इस भ्रम में हैं कि देवी-पूजा से उनका जीवन बदल जाएगा। वस्तुतः वे नींद में हैं। दरअसल भाग्य, पूजा-पाठ समाज के दुश्मनों के बिछाए हुए जाल हैं ताकि ये अत्याचारी आनन्द-सुख भोग सकें। किन्तु जीवन ऐसा है कि उनके लाख चाहने के बाद रुकता नहीं है। उपेक्षाकृत से उस पर कोई असर नहीं पड़ता।

कवि कहता है कि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ लोग हैं जो अनाचार के आगे सिर नहीं झुकाते। वे दृढतापूर्वक अनुचित कार्य करने से मना कर देते हैं। उनकी ओर से आँख बन्द कर लेने पर भी वे रुकते नहीं, बढ़ते जाते हैं। यह संघर्ष ही उनकी ताकत है, मानव के विकास की यही कहानी है।

प्रश्न 11.
कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े। यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह भाषा की शक्ति है जो अपने साधारण अर्थ से सबकुछ समझाने में सफल हो जाती है। सीमा का रूपान्तर नहीं होता है किन्तु भाषा का रूपान्तर कविता की सौष्ठवता को प्रदर्शित करने में समर्थ हो जाती है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित के दो-दो समानार्थी शब्द लिखें-
पेड़, शिशु, दंगा, गरीब, अत्याचारी, हठीला, साफ, इनकारा
उत्तर-
पेड़ – तरू, वृक्ष
शिशु- बालक, बाल
दंगा – सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक युद्ध
गरीब – दीन, निर्धन
अत्याचारी – दुराचारी
हठीला – स्थैर्य, अडिग रहने वाला
साफ – एकदम, बेहिचक
इनकार – मनाही, मना करना।

प्रश्न 2.
निम्नांकित वाक्यों में कर्ता कारक बताएँ
(क) मेरी नींद के दौरान / कुछ इंच बढ़ गए / कुछ सूत पौधे।
(ख) अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से धकेलना शुरू की। बीज की फूली हुई। छत भीतर से।
(ग) गरीब बस्तियों में भी / धमाके से हा देवी जागरण लाउडस्पीकर पर।
(घ) मगर जीवन हठीला फिर भी : बढ़ता ही जाता आगे / हमारी नींद के बावजूद।
उत्तर-
(क) पौधे
(ख) अंकुर
(ग) देवी जागरण
(घ) जीवन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्मकारक की पहचान कीजिए
(क)अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से / धकेलना शुरू की / बीज की फूली हुई / छत भीतर से।
(ख) कई लोग हैं / अभी भी / जो भूले नहीं करना , साफ और मजबूत / इनकार।
उत्तर-
(क) छत
(ख) इनकार

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हमारी नींद।
कवि-वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग हिन्दी साहित्य के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जीवन का चित्रण किया है।

(ग) सरलार्थ प्रस्तुत पद्यांश में कवि एक बिम्ब की रचना करते हैं जो मानव जीवन और मानवेत्तर प्राणियों के आंतरिक और बाह्य जीवन चक्र, संघर्षशीलता के साथ चल रहे हैं। कवि स्वयं कविता के केन्द्र में बिम्ब के रूप में उपस्थित होकर कहता है कि जब मैं सुविधाभोगी बनकर आराम की नींद में सो रहा था तो इधर प्रकृति अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को आगे बढ़ा रही थी। प्रकृति के आगोश में पलने वाले पेड़-पौधे के बीज भी धरातल के अन्दर प्रवेश कर अपने अंकुररूपी कोमल सींगों से बीज की छत को धकेल कर कुछ इंच पौधे के रूप में आगे बढ़ आये हैं। उसी प्रकार मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ तो इस जीवन क्रम में कई शिशु उत्पन्न हुए, उनमें से कई मारे गये। कई जगह दंगे-फसाद, आगजनी और बमबारी से मानव और मानवेत्तर प्राणियों का जीवनक्रम चलता रहा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि आराम तलबी, विलासिता में लिप्त जो मानव जीवन-यापन करते हैं और उनके ही इर्द-गिर्द घूमने वाले अन्य प्राणियों का जीवन-चक्र किस तरह से चलता है इसी का यहाँ दार्शनिक आकलन किया गया है। कवि मानवीय जीवन की लधुता और विधाता के समय की व्यापकता के माध्यम से कहता है कि मानव जीवन अति लघु है। इस लघु जीवन दुःख-सुख, जुल्म-अत्याचार, सहते हुए जीवन को विकास क्रम में ले जाना है। अतः विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर जीवन की यथार्थता को समझना चाहिए।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में रचित है।
(ii) छंद मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं कविता में संगीतमयता आ गयी है।
(iii) कवि की भाषा सरल और सुबोध है।
(iv) बिम्ब-प्रतिबिम्ब की झलक कविता की लाक्षणिकता पूर्णरूप से प्रकट होती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का वर्णन कविता की परिपक्वता दिखाई पड़ रही है।

2. गरीब बस्तियों में भी ।
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबूत
इनकार।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) दिये गये पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- हमारी नींद।
कवि- वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग-पस्तुत पद्यांश में कवि काल-क्रम की व्यापक एवं संघर्षशील गतिविधियों के दार्शनिक रूप का वर्णन करता है। जीवन-क्रम में जीव-जंतु से लेकर मानवीय जीवन जो प्रभावित होता है उनमें विपरीत परिस्थितियाँ जीवन को कुछ कहने-सुनने के लिए बाध्य करती है। यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि सर्वदा सामंतशाहियों के चक्र में कमजोर और ईमानदार पिसता रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण करते हुए कहता है कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की ज्वाला शांत करने की अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं। वहाँ भी विलासी लोग भगवती जागरण तथा अन्य ढोंगी कार्यक्रम के आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं। साथ ही समाज के कुछ लोग सुशिक्षित होकर भी मानवता की परिभाषा को झुठलाते हुए अत्याचारियों के द्वारा जुटाये गये साधनों को मूक होकर देखते रहते हैं। हम आराम तलबी जिंदगी में कर्महीनता का परिचय देकर मानवता को कलंकित करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। इनमें आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने सामने कमजोर, बेबस, मजबूर लोगों पर अत्याचारियों के द्वारा होते अत्याचार को देखकर केवल यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि आज के परिवेश में मनुष्य केवल स्वार्थपरता पर केन्द्रित है। साथ ही साथ कहा जा रहा है कि जमाना बाह्य जगत से काफी खतरनाक पैमाने पर टूट रहा है। लोग सच्चाई से मुख मोड़ रहे हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) तद्भव तत्सम के साथ-साथ कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी समागम हुआ है।
(iii) पूरी कविता लक्षण शक्ति पर आधारित है।
(iv) भाव के अनुसार कविता में ओज गुण के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।
(v) अलंकार और छंद के विशेष परिस्थितियों से दूर रहने पर भी कविता के उद्देश्य में अंतर नहीं आया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘हमारी नींद’ के रचयिता कौन हैं ?
(क) सुमित्रानंदन पंत
(ख) वीरेन डंगवाल
(ग) रामधारी सिंह दिनकर
(घ) कुँवर नारायण
उनर-
(ख) वीरेन डंगवाल

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल किस विचारधारा के कवि हैं ?
(क) जनवाद
(ख) रहस्यवादी
(ग) रीतिवादी
(घ) सूफी
उत्तर-
(क) जनवाद

प्रश्न 3.
‘हमारी नींद’ में ‘नींद’ किसका प्रतीक है?
(क) गफलत
(ख) बेहोशी
(ग) पागलनपन
(घ) मदहोशी
उत्तर-
(क) गफलत

प्रश्न 4.
‘दुश्चक्र में सृष्टा’ पुस्तक पर वीरेन डंगवाल को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(क) ज्ञानपीठ
(ख) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
(ग) साहित्य अकादमी
(घ) नोबेल पुरस्कार
उत्तर-
(ग) साहित्य अकादमी

प्रश्न 5.
हमारी नींद’ कैसी कविता है ?
(क) समकालीन
(ख) नकेनवादी
(ग) हालावादी
(घ) छायावादी
उत्तर-
(क) समकालीन

प्रश्न 6.
कवि वीरेन डंगवाल के अनुसार जीवन में महत्त्वपूर्ण क्या है ?
(क) सुख
(ख) नकेनवादी
(ग) भ्रमण
(घ) संघर्ष
उत्तर-
(घ) संघर्ष

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल ………….. परिवर्तन के पक्षधर हैं।
उत्तर-
जनवादी

प्रश्न 2.
‘हमारी नींद’ कविता काव्य-संकलन …….से संकलित है।
उत्तर-
दुष्चक्र में स्रष्टा

प्रश्न 3.
मेरी नींद के दौरान कुछ इंच बढ़ गए ………… ।
उत्तर-
पंड

प्रश्न 4.
कई लोग मारे गए दंगे, आगजनी और …….. में।
उत्तर-
बमबारी

प्रश्न 5.
गरीब बस्तियों में भी धमाके से हुआ ………. जागरण।
उत्तर-
देवी

प्रश्न 6.
डंगवाल की कविताओं के दृश्य “………” करनेवाले हैं।
उत्तर-
बेचैन

प्रश्न 7.
नाजिम हिकमत ………. भाषा के महाकवि हैं।
उत्तर-
तुकी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल का जन्म कहाँ हुआ है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल का जन्म उत्तरांचल के कीर्तिनगर में हुआ।

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल ने काव्य रचना के अलावा क्या कर हिन्दी को समृद्ध किया है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल ने काव्य-रचना के अलावा विश्व के श्रेष्ठ कवियों की कविताओं का अनुवाद कर हिन्दी को समृद्ध किया है।

प्रश्न 3.
यथार्थ को डंगवाल किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर-
यथार्थ को डंगवाल बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 4.
वीरेन डंगवाल कैसे कवि हैं ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल जनवादी परिवर्तन के पक्षधर प्रमुख सामयिक कवि हैं।

प्रश्न 5.
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर-
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश है संघर्ष ही जीवन है।

प्रश्न 6.
वीरेन डंगवाल की काव्य भाषा कैसी है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल की काव्य-भाषा में देशी ठाठ दिखाई देता है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी प नुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की नींद से जुड़ा हुआ है जिसमें नींद के माध्यम से एक पेड़ के सृजन एवं विकास-क्रम की चर्चा है। कवि सपने देखता है। सपने में पेड़ कुछ इंच बढ़ गए हैं—कुछ छोटे-छोटे पौधे पेड़ पुत्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। अंकुर अपने स्वरूप में कैसे बदलाव क्रमानुसार लाता है, उसकी व्याख्या कवि ने अपनी कविता में किया है। बीज जब अंकुरित होते हैं, धीरे-धीरे फूल के रूप में छतनुमा आकार ग्रहण करते हैं। भीतर से बीज का अंकुरित रूप विकसित होकर पौधे-पेड़ के रूप में अपने विराट अस्तित्व को प्राप्त कर लेता है।

कवि की नींद कितनी सुखद है इसकी व्याख्या स्वयं कवि ने किया है। जैसे मनुष्य का जीवन-क्रम है—ठीक वैसा ही बीज-पौधे-पेड़ का है। कवि ने नींद में देखे गए सपने के माध्यम से पेड़ के जन्म से लेकर विकसित रूप तक का सूक्ष्म चित्रण करते हुए मानवीय जीवन से उसके संबंधों को व्याख्यायित किया है। जैसे मानव के भीतर कई विचार मंथन के द्वारा एक आकार रूप ग्रहण करता है। ठीक उसी प्रकार बीजरूप भी अंकुरण के द्वारा विराटता को प्राप्त करता है। इस कविता में प्रकृति की सृजन-प्रक्रिया का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 2.
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पक्तियों का संबंध मक्खी के जीवन-क्रम, शिशु-प्रजनन, आगजनी, बमबारी से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि एक मक्खी का जीवन-क्रम धीरे-धीरे पूर्णता को प्राप्त करता है। कई शिशु पैदा होते हैं और उनमें से कई मार दिये भी जाते हैं-दंगों द्वारा, आगजनी द्वारा और बमबारी द्वारा। यहाँ मक्खी के जीवन क्रम को मानव के जीवन क्रम को तुलनात्मक रूप में दिखाया गया है। मनुष्य आज अपने जीवन-क्रम ने विकास की सीढ़ियों पर दूर-दूर तक पहुँचाया है। हमारे बच्चे भी सृजन-प्रक्रिया से गुजरते हुए विकास की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। आज चारों तरफ कितनी भयावह स्थिति है। कहीं दंगे हो रहे हैं, कहीं आगजनी हो रही है, कहीं बमबारी हो रही है। पूरी मानवता आज कराह रही है। आज चारों तरफ अराजक स्थिति है। सभी असुरक्षित हैं। जीवन को खतरे से बचाकर विकास-पथ की ओर ले चलने में आज काफी कठिनाइयाँ हो रही हैं।

प्रश्न 3.
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउा पीकर पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग दीन-हीन जन के अंध-विश्वासों, देवी-जागरण और धूम-धमाका से है। कवि कहता है कि गरीब बस्तियों में भी देवी-जागरण के बहाने धूम-धमाका, लाउडस्पीकर को बजाना आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। ये दीन-जन अपनी यथार्थ स्थिति से रू-ब-रू न होकर भटके हुए हैं। भावुकता एवं अंधविश्वास में समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं। इनमें अपनी गरीबी, बेबसी-लाचारी के प्रति चेतना नहीं जगी है। ये कोरे अंधविश्वास और नकलची जीव ! अभी भी जी रहे हैं। इनमें सारी शक्तियाँ तो हैं किन्तु चेतना के अभाव में अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं। कवि गरीबों, उनकी बस्तियों, उनके कार्यक्रमों के प्रति ध्यान आकृष्ट करता है। उनके जीवन की विसंगतियों का सही चित्रण प्रस्तुत कर कवि ने सच्चाई से हमें अवगत कराया है।

प्रश्न 4.
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन कविताओं का प्रसंग हमारे मानवीय जीवन के अनेक पक्षों से जुड़ा है। समाज में रह रहे अनेक किस्म के लोगों, उनके रहन-सहन और क्रियाकलापों से संबंधित है। कवि कहता है कि अनेक तरह के साधन-संसाधन को लोगों ने जुटा लिया है। अत्याचारियों ने अपने अत्याचार से, ‘ शोषण दमन से सबको त्रस्त कर रखा है। किन्तु जीवन की गति भी कहाँ अवरुद्ध हो रही है। वह तो अपनी गति में अग्रसर है। जीवन तो संघर्ष का ही नाम है। उसे जीवटता के साथ जीने में ही मजा है। जीवन सदैव प्रगति-पथ पर आगे की ओर ही बढ़ता गया है, भले ही उसके मार्ग में क्यों न अनेक बाधाएँ खड़ी हों। जीवन हठधर्मी होता है। उसमें दृढ़-संकल्प शक्ति निहित होती है। लाख नींद बाधा बनकर खड़ी हो किन्तु यात्रा-क्रम कभी रुका है क्या ? सीमित लोगों के पास संसाधन सिमटे हुए हैं। विषमता के बीच जीवन को जीते हुए लक्ष्य के शिखर तक पहुँचाना है। कवि सामाजिक विसंगतियों के बीच जीते हुए लड़ते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।

प्रश्न 5.
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूलें नहीं करता
साफ और मजबूत
इनकार।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग समाज के आमलोगों से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी को सृजन कर्म में लगाया है।

इस धरा पर उन अत्याचारियों के अलावा दूसरे लोग भी हैं जो अभी भी अपने साफ और मजबूत इरादों के साथ भूलों को स्वीकार करते हैं इनकार नहीं करते हैं। उनके भीतर नैतिकता, ईमानदारी, कर्मठता और साहस विद्यमान है। समाज के ये तपे-तपाये लोग हैं जिन्होंने समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, लोकहित के लिए मजबूत इरादों के साथ संघर्ष किया है, संघर्ष कर रहे हैं। समाज के ये अगली पंक्ति के लोग हैं जिनमें त्याग, करुणा, दया और सहनशक्ति भरी हुई है। इस प्रकार समाज के शोषक वर्ग के अलावा एक सृजन वर्ग भी है जो अपनी कर्तव्यनिष्ठता के साथ, संकल्पशक्ति के साथ समाज-निर्माण, राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है।

हमारी नींद कवि परिचय

प्रमुख समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947, ई० में कीर्तिनगर, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरांचल में हुआ । मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद डंगवाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया और यहीं से आधुनिक हिंदी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी० लिट् की उपाधि पायी । वे 1971 ई० से बरेली कॉलेज में अध्यापन करते रहे । डंगवाल जी हिंदी और अंग्रेजी में पत्रकारिता भी करते हैं। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित अमृत प्रभात’ में कुछ वर्षों तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक . से स्तंभ लेखन भी किया । वे दैनिक ‘अमर उजाला’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं। ]

कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का है । सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है । उन्होंने कविता में समाज के साध परण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य रचे हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी बेचैन करने वाले हैं । उन्होंने कविता के मार्फत ऐसी बहुत-सी वस्तुओं और उपस्थितियों के विमर्श का संसार निर्मित किया है जो प्रायः ओझल और अनदेखी थीं। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में ठेठ देसी किस्म के, खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

वीरेन डंगवाल को ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्हें ‘इसी दुनिया में’ पर रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार मिला । उन्हें श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और कविता के लिए शमशेर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है । डंगवाल जी ने विपुल परिमाण में अनुवाद कार्य भी किए हैं। तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद उन्होंने ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में किया । उन्होंने विश्वकविता से पाब्लो नेरुदा, वर्ताल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूजेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के भी अनुवाद किए ।

समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से उनकी कविता ‘हमारी नींद’ यहाँ प्रस्तुत है । सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है यह कविता।

हमारी नींद Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

नई कविता के यशस्वी कवि हिन्दी साहित्य में अपना अलग पहचान बनानेवाले वीरेन डंगवाल एक चर्चित कवि हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का . वर्णन मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं ने समाज के साधरण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन को विशेष रूप से स्थान दिया है। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बनावट में ठेठ देशी किस्म के खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

प्रस्तुत कविता कवि की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से संकलित है। इस कविता में कवि सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी लपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितओं से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण है। ‘हमारी नींद’ अनमना-सा है। नींद में भी सूत के पौधे कुछ बढ़ते हुए नजर आते हैं। मक्खियों की भाँति अत्याचारी अपना जीवन यापन करते हैं। अत्याचारी बढ़ते हैं और मारे जाते हैं। आर्थिक स्थिति से कमजोर वाले भी धना के के साथ जीवन जीना चाहते हैं। हम उन अत्याचारियों से डरते हैं फिर भी हमारी नींद में कोई परिवर्तन नहीं होता है। हम बेपरवाह जीवन जीते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं ज्यों अपने जीवन जीने की कला से इंकार नहीं कर सकते हैं। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि हम देखकर भी न देखने का भाव दिखाते हैं। न सो कर भी गहरी नींद का ढोंग करते हैं।

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 8 बहुत दिनों के बाद (नागार्जन)

 

बहुत दिनों के बाद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

बहुत दिनों के बाद कविता का सारांश Bihar Board Class 11th प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने क्या देखा और क्या सुना?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ घुमक्कड़ कवि की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना का एक दुलर्भ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। घुमक्कड़ प्रवृत्ति का होने के कारण बहुत दिनों के बाद कवि अपने ग्रामीण वातावरण में आकर पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखकर आह्वादित हो जाता है। का धान कूटती किशोरियों की कोकिल-कंठी तान सुनकर मंत्र-मुग्ध हो जाता है। उसका जन अ। . उल्लसित हो जाता है।

बहुत दिनों के बाद कविता का भावार्थ Bihar Board Class 11th प्रश्न 2.
कवि ने अपने गाँव की धूल को क्या कहा है? और क्यों?
उत्तर-
कवि नागार्जुन ने अपने गाँव की धूल को चन्दनवर्णी कहा है। ऐसा कहने के पीछे कवि का आशय है कि जिस तरह चन्दन स्निग्धता, सुगंध और शीतलता देता है। ठीक उसी तरह कवि के गाँव की धूल जिसका रंग चंदन की तरह ही है, जिससे ऐसी सोंधी महक आ रही है, उसका स्पर्श चन्दवत्, स्निग्ध और शीतलता प्रदान कर रहा है।

बहुत दिनों के बाद कविता की व्याख्या Bihar Board Class 11th प्रश्न 3.
कविता में ‘बहुत दिनों के बाद’ पंक्ति बार-बार आयी है। इसका क्या औचित्य है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घुमक्कड़ी प्रवृत्ति का होने के कारण कवि ‘बहुत दिनों के बाद’ अपने गाँव का उल्लासपूर्ण वातावरण देखकर मंत्र-मुग्ध है। प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल में हरियाली देखकर कवि का हृदय कल्पना को ऊँची उड़ान भरने लगता है। बहुत दिनों के बाद कवि को पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान तथा धान कूटती नवयौवनाओं की सुरीली तान सुनने को मिलता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल के सुवास कवि के नासारन्ध्रों में समाती है। प्रकृति की मेहरबानी से गन्ने, ताल-मखाना की हरी-भरी फसलें लहलहाते हुए देखकर कवि ताल-मखाना खाता है और गन्ना चूसता है।

प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्राय: उजार-बियावान-सा दिखाई पड़ता था। प्रकृति की असीम कृपा से बहुत दिनों के बाद कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ भोगने का अवसर प्राप्त हुआ है। कवि कहना चाहता है कि उजड़े उपवन में फिर से हरियाली छा गई है, प्रायः बाढ़ के प्रकोप से आच्छादित भूमि को स्पर्श करने का अवसर भी उसे बहुत दिनों के बाद मिलता है। लंबी इन्तजारी के बाद मिलने वाली ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना ‘सुख’ के महत्व में चार-चाँद लगा दिया है।

बहुत दिनों के बाद कविता Bihar Board Class 11th प्रश्न 4.
पूरी कविता में कवि उल्लसित है। इसका क्या कारण है?
उत्तर-
‘बहुत दिनों के बाद’ शीर्षक कविता घुमक्कड़ कवि नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदनाओं का एक दुर्लभ साक्ष्य प्रस्तुत करती है। कवि बहुत दिनों के बाद पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान जी-भर देखता है। धान के उपज की प्रचुरता से कोकिल कंठी नवयौवन द्वारा धान कूटते हुए मधुर संगीत फिजाँ में फैला हुआ है जिसे सुनकर कवि मंत्र-मुग्ध हो जाता है। मौलसिरी के ताजे-टटके फूल भी सूंघने को मिलती है।

साथ-ही-साथ चंदनवर्णी धूल को भी अपने तिलक के रूप में माथे पर लगाने का अवसर प्राप्त होता है। कवि का हृदय गाँव की खुशहाली से आह्वादित है। वह जी-भर ताल-मखाना खाता है और गन्ने भी जी-भर चूसता है। कवि को गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब अपनी जन्मभूमि पर साथ-साथ प्राप्त हो जाता है। इस मनोहर तथा मन को आह्वादित करने वाले प्रकृति के मनोरम दृश्य को देखकर कवि भवविभोर हो जाता है। उसका हृदय उल्लास से भर जाता है।

Bahut Dino Ke Baad Kavita Question Answer Bihar Board Class 11th प्रश्न 5.
“अब की मैंने जी-भर भोगे गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर” इन पंक्तियों का गर्भ उद्घाटित करें।
उत्तर-
प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, सहृदय साहित्यसेवी कवि नागार्जुन रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी इन पंक्तियाँ में तृप्ति का आख्यान हुआ है। मानव जीवन मृग मरीचिका में व्यतीत हो रहा है। सुख की वांछा में व्यक्ति अपनी जड़ों से कट कर वहाँ पहुँच जाता है जहाँ सारा कुछ मानव निर्मित, कृत्रिम होता है। चाँदनी होती है, चाँद नहीं होता। खूशबू आती है, फूल कागजी होते हैं, रूप मोहित करता है लेकिन मेकअप की मोटी परत चुपड़ी हुई है। भेद खुलने पर, छले जाने पर काफी दुःख होता है, क्लेष होता है और मानव मन अपनी जड़ की ओर लौटता है।

जीवन शहरों और महानगरों जैसे अजगर के गुंजलक में किस स्थिति में है, सभी जानते हैं। उगता सूरज, डूबता सूरज के दर्शन दुर्लभ हो जाते हैं। भागमभाग लगा रहता है। इसी भागमभाग से ऊबकर, भाग कर या निजात पाकर कवि अपने प्राकृतिक परिवेश में लौटा जहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रातरानी, रजनीगंधा जैसे सुगंध बिखेरने वाले फूलों का सान्निध्य मिला, हृदय तृप्त हुए। प्रकृति के विभिन्न अंगों के प्रकृत रूप देखकर धूल धूसरित बालक को देखकर, धान रोपती, काटती, कूटती किशोरियों को गीत गाते देखकर मन को तृप्ति मिली।

पकी फसल की झूमती बालियों को छूने का सुख मिला। खेत-खलिहान से उठने वाली महक। भरते मंजर और चू रहे महुए की सुगंध से मन प्राण तृप्त हुए। लगा जैसे सदियों बीत गयी हो, इन सब का भोग किये हुए। पता नहीं, फिर जीवन के संघर्ष से मुक्ति मिले न मिले। इसलिए कवि ने इन सबका पान, भोग जी भर कर किया।

बहुत दिनो के बाद कविता Bihar Board Class 11th प्रश्न 6.
इस कविता में ग्रामीण परिवेश का कैसा चित्र उभरता है?
उत्तर-
मार्क्सवादी विचार के कवि नागार्जुन द्वारा रचित कविता “बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता में ग्रामीण परिवेश अपनी पूर्ण वस्तुवाचकता और गुणवाचकता के साथ उपस्थित है। उत्तर बिहार के नेपाल से सटे मिथिलांचल जिसे ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है, में ही बाबा नागार्जुन का गाँव है, जवार है, अपना परिवेश है। यहाँ धान की पकी सुनहली फसल से भरे खेत हैं। धान से चावल निकलाने के लिए श्रमसाध्य उद्योग है और इसी से जुड़ा है श्रम परिहार हेतु “धान कूटनी” का गीत।

वस्तुतः अकृत्रिम अकृत्रिम ग्रामीण परिवेश का हर उपक्रम हर गतिविधि गीत, संगीत से आबद्ध है। शहरों में फूल या तो बिकते हैं, नकली होते हैं बासी होते हैं। यहाँ मौलसिरी, हर शृंगार, रजनीगंधा, रातरानी सब ताजा टटके रूप में प्राप्त होते हैं। इन्हें तोड़ने सजाने की जरूरत नहीं होती। जरूरत होती है, इनके रूप-गंध में स्वयं को निमज्जित करने की। गाँवों की पक्की सड़कें हो भी तो जो मजा पगडंडियों पर स्वयं को साधते हुए चलने का, उससे उड़ती चंदन जैसी धूल में सराबोर होने का है, उसका कहना ही क्या?

शुद्ध देशी घी में भुना हुआ कुरकुराता ताल मखाना खाने का और खेत से ताजे गन्ने तोड़कर अपने दाँतों-जबड़ों से उसे चीर चूस कर आस्वाद लेने का आनंद तो गाँव में ही मिलेगा। जहाँ सब कुछ उपलब्ध है बिना पैसे के, केवल प्यार के दो मीठे बोल खर्च करने पड़ते हैं। ऐसा ही है नागार्जुन का ग्रामीण परिवेश।

बहुत दिनों के बाद नागार्जुन Bihar Board Class 11th प्रश्न 7.
“धान कूटनी किशोरियों की कोकिल-कंठी तान” में जो सौन्दर्य चेतना दिखलाई पड़ती है, उसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
अपने गाँव से गहरे जुड़े सरोकर रखनेवालं वैताली कवि नागार्जुन ग्रामीण सौंदर्य के सूक्ष्म द्रष्टा, पारखी और प्रस्तोता हैं।

धान कूटने के लिए ओखल-मूसल या फिर ढेकुली का प्रयोग होता है। ओखल धान रखकर बार-बार मूसल को बीच से पकड़ते हुए हाथ को शिर के ऊपर तक उठाना फिर कुछ झुकतं हुए धान पर प्रहार करना। चूड़ियों की खनखन, आपस में चूहल करती किशोरियों, नारियों और उनके गले से निकले ग्राम्य गीत के बोल, लगे जैसे किसी अमराई में कोयल पंचम का आलाप ले रही हो। यह सारा वातावरण ऐन्द्रिक, चाक्षुष और घ्राण बिम्बों को कोलाज़, प्रस्तुत करता है। कवि का कथन संक्षिप्त है किन्तु उसका सौन्दर्य अति सचेत, चेतनायुक्त और प्रभावी है।

Bahut Dinon Ke Bad Bihar Board Class 11th प्रश्न 8.
कविता में जिन क्रियाओं का उल्लेख है वे सभी सकर्मक हैं। सकर्मक क्रियाओं का सुनियोजित प्रयोग कवि ने क्यों किया है?
उत्तर-
देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना के ध्वजावाहक प्रकृतिप्रेमी कविवर नागार्जुन ने चिंतन रचना, आचरण के धरातल पर बैठकर जनहित से संबंधित विषयों को कविता के माध्यम से उद्घाटित किया है। कवि के अनुसार शहरी जीवन के सीलन-भरी जिन्दगी की अपेक्षा प्रकृति की उन्मुक्त वातावरण, ग्रामीण परिवेश, सहज, सरस तथा आनन्ददायक होता है। इसकी बोधगम्यता ‘सकर्मक क्रिया’ के सुनियोजित प्रयोग करने में सहज और स्वाभाविक द्रष्टव्य होती है। पात्रों के कार्यों में जीवंतता प्रदान करने के लिए सार्थक क्रियाओं का प्रयोग करना कवि की कल्पना को। यथार्थ से दृढ़तापूर्वक संवेदित करता है।

बहुत दिनों के बाद Bihar Board Class 11th प्रश्न 9.
कविता के हर बंद में एक-एक ऐन्द्रिय अनुभव का जिक्र है और अंतिम बंद में उन सबका सारा-समवेत कथन है। कैसे? इसे रेखांकित करें।
उत्तर-
“बहुत दिनों के बाद” शीर्षक कविता के हर बंद में एक ऐंद्रिय अनुभव है। हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिय हैं, जिनके माध्यम से सृष्टि का वस्तुमय साक्षात्कर होता है।

प्रथमबंद में पकी-सुनहली फसलों की मुस्कान देखने का, दूसरे बंद में धान कूटती किशोरियों की कोकिल कंठी तान सुनने का, तीसरे बंद में मौलसिरी के ताजे टटके फूल सूंघने का, चौथे बंद में गवई पगडंडी के चन्दनवर्णी धूल का स्पर्श करने का, पाँचवें बंद में ताल मखाना खाने और गन्ना चूसने का ऐन्द्रिय अनुभव वर्णित है और अंतिम बंद में भोगने शब्द कार प्रयोग करते हुए कवि ने समवेत ढंग से ऊपर के ही ऐन्द्रिय अनुभवों को सान्द्रित रूप से प्रस्तुत किया है। गंध का संबंध नाक से, रूप का आँख से, रस का जीभ से, शब्द का कान से, स्पर्श का त्वचा से, अनुभव का भोग होता है। अतः अंतिम बंद ऐन्द्रिय अनुभवों का सारांश ही है।

बहुत दिनों के बाद भाषा की बात

Bahut Dino Ke Baad Poem In Hindi Question Answer प्रश्न 1.
कोकिलकंठी, चंदनवी में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर-
कोकिलकंठी और चंदनवर्णी में रूपक और उदाहरण अलंकार प्रयोग भेद से उपस्थित है।

Bahut Dino Ke Baad Kavita Bihar Board Class 11th प्रश्न 2.
‘मैंने’ सर्वनाम के किस भेद के अंतर्गत है?
उत्तर-‘
मैंने’ सर्वनाम पुरुषवाचक सर्वनाम के अन्तर्गत उत्तम पुरुष के अंतर्गत आता है जिसका कारक ‘कर्ता’ है। मैंने का प्रयोग भूतकाल के निम्न भेदों में आते हैं।

सामान्य भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी।
आसन्न भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी है।
पूर्ण भूत-मैंने पुस्तक पढ़ी थी।

वैसे पंजाब-हरियाणा में मैंने का प्रयोग वर्तमान काल में होता है, जहाँ इसका अर्थ मुझे, मुझको लिया जाता है।

मैंने खाना है (मुझे खाना है)।

Bahut Dino Ke Baad Poem In Hindi Bihar Board Class 11th प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों को तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशज समूहों में विभक्त करें
पगडंडी, तालमखाना, गंध, मौलसिरी, टटका, फूल, मुसकान, फसल, स्पर्श, गवई, गन्ना
उत्तर-

  • तत्सम-गंध, स्पर्श
  • तद्भव-फूल, पगडंडी, मौलसिरी।
  • देशज-तालमखाना, टटका, गवई, गन्ना।
  • विदेशज-मुस्कान, फसल।।

Bahut Dinon Ke Bad Kavita Bihar Board Class 11th प्रश्न 4.
सकर्मक और अकर्मक क्रिया में क्या अंतर है? सोदाहरण स्पष्ट करें।
उत्तर-
सकर्मक क्रिया उसे कहते हैं, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की संभावना हो अर्थात् जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्त्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर अर्थात् कर्म पर पड़े। जैसे-राम आम खाता है। जिन क्रियाओं पर व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-राम सोता है।

Bahut Din Ke Bad Bihar Board Class 11th प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के लिए प्रयुक्त विशेष्य बताइए
(i) कोकिल-कंठी,
(ii) पकी सुनहली,
(iii) गँवई,
(iv) चंदनवर्णी,
(v) ताजे-टटकी,
(vi) धान कूटती।
उत्तर-
(i) तान,
(i) फसलों,
(iii) पगडंडी,
(iv) धूल,
(v) फूल,
(vi) किशोरियाँ।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुत दिनों के बाद लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता का परिचय दीजिए।
उत्तर-
नागार्जुन की यह कविता मिथिला की धरती तरौनी जो कवि की जन्मभूमि रही है, की सुरभि से सुरभित है। कवि यथार्थ का शिल्पी और रागात्मक संवेदनाओं का अमर गायक रहा है। अपने गाँव-जवार की प्रति कवि के मन में प्रगाढ़ स्नेह एवं दुलार है। ग्रामीण परिवेश की टटकी छवियों का चित्रांकन ‘बहुत दिनों के बाद’ कविता में सफलतापूर्वक किया गया है। पठित कविता में कवि की सहृदयता, सौन्दर्यानुभूति एवं विशिष्ट रागात्मक संवेदना उकेरी गई है। कवि की संवेदना मानव-जीवन के चित्रण में शहर की अपेक्षा गाँवों के प्रति अधिक उभरी है।

कवि जब रोजी-रोटी की तलाश में देश-देशान्तर की खाक छान रहा था, तब उसे अपने ग्राम ‘तरउनी’ की याद सताने लगती है। यह कविता घुमक्कड़ कवि की ग्रामीण प्रकृति और घरेलू संवेदना का दुर्लभ अहसास कराती है। ‘तरउनी’ मिथिला का एक अदना-सा गाँव है, इस गाँव का अदना कवि यहाँ की मिट्टी से इतना प्रभावित है कि उसे वह गाँव स्वर्ग-तुल्य लगता है। यह कविता उनकी ‘सतरंगे पंखों वाली’ काव्यकृति में संकलित है। कृति का प्रकाशन 1950 ई. में हुआ था।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु को देखकर आँखों का सुख प्राप्त किया? .
उत्तर-
पकी सुनहली फसलों की मुस्कान को देखकर।

प्रश्न 2.
बहुत दिनों के बाद कवि को क्या सुनने का सुख प्राप्त हुआ?
उत्तर-
गाँव में धान कूटती हुई किशोरियों के कोकिल कंठ से निकली तान सुनकर।

प्रश्न 3.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु की गन्ध का सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
मौलश्री के ढेर सारे टटके फूलों की गन्ध का।

प्रश्न 4.
बहुत दिनों के बाद कवि ने कहाँ की धूल का स्पर्श-सुख प्राप्त किया?
उत्तर-
अपने गाँव की चन्दनवर्णी धूल को स्पर्श करने का सुख प्राप्त किया।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि ने किस वस्तु का स्वाद प्राप्त किया?
उत्तर-
ताल मखाने को खाने और गन्ने को चूसने का।

प्रश्न 6.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुयी है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में सौंदर्य चेतना की अभिव्यक्ति हुयी है।

प्रश्न 7.
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन हुआ है?
उत्तर-
बहुत दिनों के बाद शीर्षक कविता में कवि नागार्जुन ने गाँव की प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन किया है।

प्रश्न 8.
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में कौन-सा बिंब दिखाई पड़ता है?
उत्तर-
धान कूटती किशोरियों की कोकिल कण्ठी तान में स्राय बिंब दिखाई पड़ता है।

बहुत दिनों के बाद वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
बहुत दिनों के बाद कविता के कवि हैं?
(क) नरेश सक्सेना
(ख) दिनकर
(ग) अरुण कमल
(घ) नागार्जुन
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
नागार्जुन का जन्म कब हुआ था?
(क) 1911 ई०
(ख) 1813 ई०
(ग) 1907 ई०
(घ) 1905 ई०
उत्तर-
(क)

प्रश्न 3.
‘नागार्जुन’ का जन्म स्थान था
(क) बेगूसराय
(ख) मुजफ्फरपुर
(ग) दरभंगा
(घ) मोतिहारी
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 4.
‘नागार्जुन’ की कविता का नाम था
(क) बहुत दिनों के बाद
(ख) भस्मांकर
(ग) प्यासी पथराई आँखें
(घ) चंदना
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 5.
‘नागार्जुन’ का मूल नाम था
(क) वैद्यनाथ मिश्र
(ख) गोवर्धन मिश्र
(ग) सकलदेव मिश्र
(घ) जगदंबी मिश्र
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
‘नागार्जुन’ की शिक्षा हुई थी
(क) बंगला में
(ख) हिन्दी में
(ग) संस्कृत में
(घ) उर्दू में
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 7.
कवि ‘नागार्जुन’ को कौन-सा जीवन पसंद था?
(क) सधुक्कड़ी
(ख) धुमक्कड़ी
(ग) शहरी
(घ) ग्रामीण
उत्तर-
(ख)

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
कवि ने गाँव की धूल को ……………… कहा है।
उत्तर-
चन्दवर्णी।

प्रश्न 2.
कवि की कविता में ग्रामीण परिवेश का …………….. उभरता है।
उत्तर-
मार्मिक चित्र।

प्रश्न 3.
नागार्जुन को आधुनिक ……. कहा जाता है।
उत्तर-
कबीर।

प्रश्न 4.
नागार्जुन ने अपनी कविता में मिथिलांचल की …………….. का वर्णन किया है।
उत्तर-
अनुपम छटा।

प्रश्न 5.
बहुत दिनों के बाद कवि गाँव की पक्की सुनहली फसल को देखकर …………….. हो जाता है।
उत्तर-
आह्वादित।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विपदाओं से त्रस्त मिथिलांचल प्रायः …………….. दिखाई पड़ता था।
उत्तर-
उजार-वियावान।

प्रश्न 7.
लंबी इंतजारी के बाद ग्रामीण परिवेश का सच्चा सुख मिलना सुख के महत्व में ……………… लगा दिया है।
उत्तर-
चार चाँद।

प्रश्न 8.
कवि की कविता देशज प्रकृति और घेरलू संवेदनाओं का …………….. प्रस्तुत करती है।
उत्तर-
दुर्लभ साक्ष्य

प्रश्न 9.
ऐन्द्रिय आधार और स्थायी मन-मिजाज का यह कविता एक दुर्लभ और ……………… है।
उत्तर-
अद्वितीय उदाहरण।

बहुत दिनों के बाद कवि परिचय – नागार्जुन (1911-1998)

जीवन-परिचय-
नागार्जुन का जन्म 1911 ई. में बिहार के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव (उनके ननिहाल) में हुआ था। वे तरौनी के निवासी थे एवं उनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। 1936 ई. में श्रीलंका जाकर बौद्ध धर्म में दीक्षित जेल की यात्रा भी करनी पड़ी।

1935 में उन्होंने ‘दीपक’ (हिंदी मासिक) तथा 1942-43 में ‘विश्वबंधु’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। मैथिली काव्य-संग्रह ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कारों से सम्मानित किए गए। 1998 ई. में उनका देहावसान हो गया।

रचनाएँ-बाबा नागार्जुन की प्रमुख काव्य-कृतियाँ हैं-युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछलियाँ, हजार-हजार बाँहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, रत्नगर्भा, ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, मैं मिलिटरी का बूढ़ा घोड़ा, भस्मांकुर (खंडकाव्य)। मैथिली में उनकी कविताओं के दो संकलन हैं-चित्रा, पत्रहीन नग्नगाछ। बलचनमा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जुमनिया का बाबा, वरुण के बेटे (हिंदी), पारो, नवतुरिया, बलचनमा (मैथिली) जैसे उनके उपन्यास विशेष महत्त्व के हैं।

भाषा-शैली-नागार्जुन का हिंदी और मैथिली के साथ संस्कृत पर भी समान अधिकार होने के कारण उनकी काव्य भाषा में हाँ एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती है, वहीं दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की सहजता भी दिखाई देती हैं। उनके काव्य में तत्सम शब्दों के प्रयोग के साथ ही ग्राम्यांचल शब्दों का भी समुचित प्रयोग हुआ है। उन्होंने मुहावरों का भी समावेश अपनी कविताओं में किया है। उन्होंने व्यंग्यपूर्ण शैली का सफल प्रयोग सामाजिक-विसंगतियों के चित्रण में किया है।

साहित्यिक विशेषताएँ-नागार्जुन प्रगतिवादी विचारधारा के कवि हैं। वे जनसामान्य, श्रम तथा धरती से जुड़े लोगों की बात अपनी कविताओं में कहते हैं। वे जन भावनाओं और समाज की पीड़ा को व्यक्त करते हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त विषमताओं को देखा है, समझा है, अतः उनका वर्णन स्वाभाविक है। विषय की जितनी विराटता और प्रस्तुति की जितनी सहजता नागार्जुन के रचना संचार में है, उतनी शायद ही कहीं और हो। लोक जीवन और प्रकृति उनकी रचनाओं की नस-नस में रची-बसी है। छायावादोत्तर काल के वे अकेले कवि हैं, जिनकी कविताओं का ग्रामीण चौपाल से लेकर विद्वानों तक में समान रूप से आदर प्राप्त है। जटिल से जटिल विषय पर लिखी गई उनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली होती हैं कि वे पाठक के मानस-लोक में बस जाती हैं।

बाबा नागार्जुन कभी मार्क्सवाद की वकालत करते हैं, कभी समाज में व्याप्त शोषण का वर्णन करते हैं और कभी प्रकृति का मनोहारी वर्णन करते हैं। उनकी कविताओं में शिष्टगंभीर हास्य और सूक्ष्म चुटीले व्यंग्यों की अधिकता है।

कवि के मन में श्रम के प्रति सम्मान का भाव है। प्रकृति से भी नागार्जुन को बहुत लगाव है। बादल कवि को मृग रूप में दिखाई देता है। उसने रूपक के माध्यम से बादलों को चौकड़ी करते देखा है।

नागार्जुन संस्कृत भाषा का गंभीर ज्ञान रखते थे। अतः उनकी भाषा संस्कृत शब्दावली से युक्त है। उनकी काव्यभाषा में संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती। वे प्रगतिवादी विचारध रा के कवि हैं, अतः उन्होंने बोलचाल की भाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी भाषा में सरता है, स्वाभाविकता है। उन्होंने खड़ी बोली के लोक प्रचलित रूप को अपनाया है। उनकी अभिव्यक्ति एकदम स्पष्ट, यथार्थ और ठोस है। व्यंग्य का बाहुल्य है। लोकमंगल उनकी कविता की मुख्य विशेषता है, इस कारण व्यावहारिक धरातल भी दिखाई देती है। उन्होंने विभिन्न छंदों में काव्य रचना की है और मुक्त छंद में भी। अलंकारों का आकर्षण उनमें नहीं है। आधुनिक कवियों में नागार्जुन का विशेष स्थान है।

बहुत दिनों के बाद कविता का सारांश

वर्तमान के वैताली प्रतिबद्ध मार्क्सवादी, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और जनकवि बाबा नागार्जुन रचित कविता शुद्ध प्रकृति प्रेम की कविता है। जो स्वयं को खोजना चाहता है, स्वयं को परिपूर्ण ऊर्जावान और अर्थवान बनाना चाहता है। वह प्रकृति की गोद में जाता है। प्रकृति से प्रकृत रूप में मिलन की कविता है, बहुत दिनों के बाद।

आधुनिक युग संत्रास, विषाद असंतोष का पर्याय है। जीवन-यापन के लिए आपा-धापी लगी हुई गला काट प्रतियोगिता जारी है। निजता की स्थापना में निजता का छिजन, क्षरण होता जा रहा है। अपने अस्तित्व को पुनः पाने रस पूर्ण, गंध पूर्ण करने के लिए कवि कार्तिक माह में अपने मिथिलांचल स्थिति “तरौनी” गाँव आए। और उसे दूर से धान की सुनहली पकी बालियाँ झूमती मुस्कराती नजर आयीं। इन्हें देखकर कवि का मन प्रसन्न हो गया। ऐन्द्रिय भोग का एक साधन नेत्र है। जो दूर से दृश्य दिखाकर भी तृप्ति प्रदान करती है।

कवि नागार्जुन जब अपने गाँव में प्रविष्ट हुआ तो ओखल में मूसल की मार, ढेंकी की चोट के साथ कोयल-सी मधुर आवाज में गाँव की किशोरियों के गले से गाँव के गीत सुनने को मिले, कानों को भी तृप्ति प्राप्त हुई।

आगे बढ़ा तो मौलसिरी अपनी मादकता अपने अगणित फूलों के माध्यम से बिखेर रही थी। “अंजुली-अंजुली” उठाकर इन फूलों को कवि ने सूंधे, नाक की प्यास भी बूझी। गाँव की पगडंडियों पर खाली पाँव चलते हुए गाँव की मिट्टी धूल का स्पर्श सुख चंदन सुवासित सुख सम प्रतीत हुआ।

अब बारी आई षट्स की पहचान करने वाली जिह्वा की। मिथिला के ताल मखाने में और ईखों (गन्नों) में जो स्वाद है, वह ‘फाइव स्टार’ या काटिनेंटल डिसेज में कहाँ है। जिह्वा के माध्यम से पेट भी भर गया। ऐसी तृप्ति कवि को बहुत दिनों के बाद हुई। यदि वह लगातार इसी परिवेश में रहता तो शायद तब यह कविता नहीं रची जाती।

वियोग, विछोह, असंतुष्टि के कारण प्रकृति के इन उपादानों को देखने, सुनने, सुंघने, छूने और खाने का अवसर मिला। सब कुछ मुफ्त, निःशुल्क शुद्ध, सात्विक और पवित्र अवस्था में। कवि अतिम बंद में ‘भोगे’ शब्द का उपयोग करता है। कहा भी गया है “वीर भोग्य वसुन्धरा धरती” भू का प्रत्येक अवयव, घटक भोग्य है। उपयोगी है। आवश्यकता है प्रकृति के इस योगदान को स्वीकार करने का। आवश्कता है कृत्रिमता का केचुल उतारकर प्रकृत रूप में हम रहें।

‘बहुत दिनों के बाद’ कविता प्रकृति प्रेम की अपने प्रकार की अनूठी कविता है। इसमें उपमा, रूपक और अनुप्रास अलंकार भी सहज चले आये हैं। सम्पूर्ण कविता उल्लास का सृजन करती है। प्रकृति की ओर लौटने का आह्वान करती है।

वास्तव मे, बहुत दिनों के बाद मिथिला के घुमक्कड़ नागार्जुन की देशज प्रकृति और घरेलू संवेदना एक दुर्लभ साक्ष्य को दर्शाती है।

बहुत दिनों के बाद कठिन शब्दों का अर्थ

जी-भर-मन भर, इच्छा भर। किशोरी-नयी उम्र की लड़की। कोकिलकंठी-कोयल जैसे मीठे स्वर वाली। गवई-गाँव की। चंदनवर्णी-चंदन के रंग की। मोलसिरी (मोलिश्री)-एक बड़ा सदाबहार पेड़ जिसमें छोटे-छोटे सुगंधित फूल लगते हैं, बकुल। तालमखाना-एक मेवा जो मिथिला की ताल-तलैया में विशेष रूप से उपजाया जाता है। गन्ना-ईख। पगडंडो-कच्चा-पतला-इकहरा रास्ता। भू-पृथ्वी।

बहुत दिनों के बाद काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. बहुत दिनों के बाद ………………. साथ-साथ इस भू पर। .
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रगतिवादी कवि नागार्जुन की कविता “बहुत दिनों के बाद” से ली गयी है। कवि ने इस कविता में बहुत दिनों के बाद गाँव में रहकर विविध वस्तुओं का सुख भोगने की स्थिति का वर्णन किया है।

कवि कहता है कि बहुत दिनों के बाद इस बार गाँव में रहकर रूप, रस, गन्ध, शब्द और स्पर्श का भरपूर सुख लिया। कवि ने कविता के प्रथम छन्द में पकी सुनहली फसल की मुस्कान का सुख भोगने की बात कही है जो नये सुख के अन्तर्गत आता है। अतः रूप है। दूसरे छन्द में गाँव की किशोरियों द्वारा धान कूटने के समय कोकिल कंठ से गीत गाने या मधुर वार्तालाप करने का वर्णन किया है जो श्रवण सुख का विषय है। यही शब्द है। तीसरे छन्द में मौलश्री के ताजा पुष्पों की गंध सूंघने का वर्णन है जो घ्राण सुख का विषय है अतः गन्ध है।

चौथे छन्द में गाँव की चन्दनी-माटी छूने का वर्णन है जो स्पर्श का विषय है। पाँचवें छन्द में तालमखाना खाने और गन्ने का रस चूसने का उल्लेख है जो रस के अन्तर्गत है। यह स्वाद संवेदना का विषय है। इस तरह इस छन्द में पूर्व के पाँच छन्दों में वर्णित विषयों का समाहार हो गया है। पूर्व के पाँच छन्दों में क्रमशः रूप, शब्द, गन्ध, स्पर्श और रस की व्याख्या है और इस छन्द में इन पाँचों – को सूत्र रूप में पिरो कर कहा गया है। इस तरह सूत्र शैली तथ्य-कथन के कारण ये पतियों महत्त्वपूर्ण है। कथावस्तु के आलोक में यह तत्त्व प्रकाश में आया है।