Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा

Bihar Board Class 10 Hindi राम बिनु बिरथे जगि जनमा Text Book Questions and Answers

कविता के माथ

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Bihar Board प्रश्न 1.
कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर-
कवि राम-नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम-नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।

Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma Bihar Board प्रश्न 2.
वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर-
जब वाणी वाह्य आडंबर से सम्पन्न होकर राम-नाम को त्याग देती है तब वह विष हो जाती है। राम-नाम के अतिरिक्त उच्चरित ध्वनि काम-क्रोध, मद सेवन आदि से परिपूर्ण होती है।

Ram Naam Binu Birthe Jagi Janma Bihar Board प्रश्न 3.
नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?
उत्तर-
पुस्तक पाठ, व्याकरण के ज्ञान की बखान, दंड कमण्डल धारण करना, सिखा बढ़ाना, . तीर्थ- भ्रमण, जटा बढ़ाना, तन में भस्म लगाना, वस्त्रहीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि भगवत् नाम-कीर्तन के आगे ये सब कर्म व्यर्थ हैं।

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा का अर्थ प्रश्न 4.
प्रथम पद के आधार पर बताएं कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर-
प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूप की चर्चा करते हैं। सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना इत्यादि धर्म साधना माने जाते हैं। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वेश धारण करना, तीर्थ करना, डंड कमण्डल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना भी कवि के युग में धर्म-साधना के रूप रहे हैं। पद में इन्हीं रूपों का बखान कवि ने दिये हैं।

Bihar Board Class 10th Hindi Solutions प्रश्न 5.
हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-
कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर ___ अन्य कोई धर्म साधना नहीं है। भगवत् कीर्तन से प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है। भगवान्
के नाम कीर्तन, नाम स्मरण में डूब जाना, हरि कीर्तन में रम जाना और कीर्तन में उत्साह, परमानंद की अनुभूति करना ही हरि रस है। इसी रस पान से जीव धन्य हो सकता है।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 6.
कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर-
जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित है, जो मान-अपमान से परे है, हर्ष-शोक दोनों से जो दूर है, उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह जिसे नहीं छूते वैसे प्राणियों में निश्चित ही ब्रह्म का निवास है।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10 प्रश्न 7.
गुरु की कृष्ण से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर-
कवि कहते हैं कि ब्रह्म से साक्षात्कार करने हेतु लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, निंदा आदि से दूर होना आवश्यक है। ब्रह्म के सानिध्य प्राप्ति के लिए सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यन्त जरूरी है। जो प्राणी माया, मोह, काम, क्रोध लोभ, हर्ष-शोक से रहित है उसमें ब्रह्म का अंश विद्यमान हो जाता है। वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्म प्राप्ति की यही युक्ति की पहचान गुरु कृपा से ही हो पाती है। गुरु बिना ब्रह्म को पाने की युक्ति का ज्ञान नहीं मिल सकता। अर्थात् ब्रह्म को पाने के लिए गुरु का कृपा पात्र होना परमावश्यक है।

गोधूलि भाग 1 Class 10 Pdf प्रश्न 8.
व्याख्या करें :
(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।
(ख) कंचन माटी जाने ।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक . के द्वारा लिखित “राम नाम बिनु निर्गुण जग जनमा” शीर्षक से उद्धृत है। गुरुनानक निर्गुण, निराकार ईश्वर के उपासक तथा हिंदी की निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं। यहाँ राम नाम की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।

प्रस्तुत व्याख्य पंक्ति में निर्गुणवादी विचारधारा के कवि गुरुनानक राम-नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उजागर सच्चे हृदय से किये हैं। कवि कहते हैं कि राम-नाम का अध्ययन, संध्या वंदन तीर्थाटन रंगीन वस्त्र धारण यहाँ तक की जरा जूट बढ़ाकर इधर-उधर घूमना ये सभी भक्ति-भाव के बाह्याडम्बर है। इससे जीवन सार्थक कभी भी नहीं हो सकता है। राम-नाम की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक मानवीय मूल चेतना का उजागर नहीं हो सकता है। राम-नाम के बिना बहुत-से सांसारिक कार्यों में उलझकर व्यक्ति जीवन लीला समाप्त कर लेता है।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के “जो नर दुःख में दुख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पद्यांश में निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए लोभ और मोह से दूर रहने की सलाह देते हैं।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ब्रह्म को पाने के लिए सुख-दुःख से परे होना परमावश्यक बताते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्म को वही प्राप्त कर सकता है जो लोक मोह ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध से परे हो। जो व्यक्ति सोना को अर्थात् धन को मिट्टी के समान समझकर परब्रह्म की सच्चे हृदय से उपासना करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है। जो प्राणि सांसारिक विषयों में आसक्ति नहीं रखता है। उस प्राणि में ब्रह्म निवास करता है।

(म) प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के संत कवि गुरुनानक द्वारा रचित “जो नर दःख में दःख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति में संत गुरुनानक उपदेश देते हैं कि ब्रह्म के उपासक प्राणि को हर्ष-शोक, सुख-दुख, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान से परे होना चाहिए। इन संबके पृथक रहने वाले प्राणियों में ब्रह्म का निवास स्थान होता है।

प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं ब्रह्म निर्गुण एवं निराकार है। वैराग्य भाव रखकर ही हम उसे पा सकते हैं। झूठी मान, बड़ाई या निंदा शिकायत की उलझन मनुष्य को ब्रह्म से दूर ले जाता है। ब्रह्म को पाने के लिए, सच्ची मुक्ति के लिए हर्ष-शोक, मान-अपमान से दूर रहकर, उदासीन रहते हुए ब्रह्म की उपासना करना चाहिए।

(घ) प्रस्तुत प हमार्य पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक के द्वारा रचित “जो नर दु:खं में द:ख नहीं माने” पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ब्रह्म की सत्ता की महत्ता को बताते हैं। मनुष्य जन्म का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म को पाना बताते हुए कहते हैं कि सांसारिक व्यक्ति से दूर रहकर मनुष्य को ब्रह्ममय होने की साधना करनी चाहिए। गुरु कृपा से ईश्वर की प्राप्ति । संभव है।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं। इस मानवीय जीवन में ब्रह्म को . पानी की सच्ची युक्ति, यथार्थ उपाय करना आवश्यक है। पर ब्रह्म को पाना प्राणि का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार पानी के साथ पानी मिलकर एकसमान हो जाता है उसी प्रकार जीव जब ब्रह्म के सानिध्य में जाता है तब ब्रह्ममय हो जाता है। जीवात्मा एवं परमात्मा में जब मिलन होता है तब जीवात्मा भी परमात्मा बन जाता है। दोनों का भेद मिट जाता है। कवि कहते हैं कि यह जीव ब्रह्म का ही अंश है। जब हम विषयों की आसक्ति से दूर रहकर गुरु की प्रेरणा से ब्रह्म को पाने की साधना करते हैं तब ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और ऐसा होने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 9.
आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों . की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर-
आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। ईश्वरीय उपासना में लोग तीर्थाटन करते हैं, जटा-बढ़ाकर, भस्म रमाकर साधु वेश धारण करते हैं। गंगा स्नान दान पुण्य करते हैं। मंदिर मस्जिद जाकर परमात्मा की पुकार करते हैं। साथ ही आज धर्म के नाम पर विभेद भी किया जाता है। धर्म को प्रतिष्ठा प्राप्ति के साधन मानकर धार्मिक बाह्याडम्बर अपनाया जा रहा है। बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन किये जाते हैं जिसमें अत्यधिक धन का व्यय भी किया जाता है। फिर भी लोगों को सुख-शांति नहीं मिलती है। आज लोग भटकाव के पथ पर अग्रसर है। समयाभाव में ईश्वर के सानिध्य में जाने हेतु कठिनतम उपासना के मार्ग को अपनाने में लगे अभिरुचि नहीं रख रहे हैं। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में भटकाव आ गया है। हम कह सकते हैं कि नानक के पद में वर्णित राम-नाम की महिमा आधुनिक जीवन में सप्रासंगिक है। हरि-कीर्तन सरल मार्ग है जिसमें न अत्यधिक धन की आवश्यकता है नहीं कोई बाह्माडम्बर की। आज भगवत् नाम रूपी रस का पान किया जाये तो जीवन में उल्लास, शांति, परमानन्द, सुख, ईश्वरीय अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता है। हरि रस पान से जीवन को धन्य बनाया जा सकता है। नानक के उपदेश को अपनाकर यथार्थ से युक्त होकर हम जीवन में ब्रह्म का साक्षात्कार आज भी कर सकते हैं।

भाषा की बात

Class 10 Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
पद में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें –
बिरथे, बिखु, निहफलु, मटि, संधिआ, करम, गुरसबद, तीरथभगवनु, महीअल,
सरब, माटी, अस्तुति, नियारो, जुगति, पिछानी
उत्तर-
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Bihar Board

Bihar Board 10th Hindi Book प्रश्न 2.
दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिहित करें और उनके भेद बताएं।
उत्तर-
कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
तें – पुरूषवाचक सर्वनाम
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम
सो – संबंधवाचक सर्वनाम

Bihar Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें –
जम, मुक्ति, धोती, जल, भस्म, कंचन, जुमति, स्तुति
उत्तर-
जग – जग बड़ा है।
मुक्ति – उसे मुक्ति मिल गई।
धोती – धोती नई है। जल गंदा है।
भस्म – लग गया।
जुगति – उसकी जुगटी अनूठी है।
स्तुति – ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए।

Class 10th Hindi Chapter 1 Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्रत वाक्य प्रयोग करें
व्यर्थ, निष्फल, नग्न, सर्व, न्यारा, सकल
उत्तर-
व्यर्थ – राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है।
निष्फल – प्रयोग निष्फल हो गया।
नग्न – वह नग्न बैठा है।
सर्व – सर्व नष्ट हो गया।
न्यारा – संसार न्यारा है।
सकल – आतंकवाद पर सकल विश्व एक हों।

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. राम नाम बिनु बिरथे जबह जनमा।
– बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना॥
पुस्तक पाठ व्याकरण बखारौं संधिआ करम निकाल करै।
बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै॥
ठंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवनु अति भ्रमनु करे।
समनाम बिनु सांति न आवै जपि हरिहरि नाम सुपारि घरै।
जटा मुकुट तन भसम लगायी वसन छोड़ि तन नगन भया।
जेते जी अजंत जल थल महोअल जत्र तत्र तू सरब जीआ॥
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीआ।

प्रश्न
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवि- गुरुनानक
कविता- राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
(ख) प्रस्तुत कविता में संत कवि गुरुनानक बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ, तीर्थ स्नान और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम नाम की भक्ति करने पर बल दिया है।
(ग) नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना इस संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। बिना राम की भक्ति के भोजन, बोली, भ्रमण बुद्धि ये सभी विष बन जाते हैं, कार्य भी निष्फल हो जाते हैं। पुस्तक पढ़ना, शब्द-ज्ञान के लिये व्याकरण का अध्ययन करना यहाँ तक कि संध्या उपासना करना ये सभी राम की भक्ति के बिना निरर्थक होते हैं।

कवि गुरु की महिमा का बखान करते हुये कहते हैं कि बिना गुरु की कृपा के मुक्ति नहीं मिल सकती है। साथ ही राम नाम की भक्ति के बिना इंस सांसारिक मोह-माया से मानव उलझकर मर जाता है। दण्ड, कमंडल, सिखा बजाकर, जनेऊ धारण कर, रंगीन धोती पहनकर तथा इधर-उधर तीर्थों में भटककर मनुष्य अपना समय व्यर्थ बर्बाद करता है। ये सभी तो बाह्याडम्बर हैं। इन आडम्बरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है, राम नाम के बिना शांति नहीं मिल सकती है। अतः राम-नाम जपने से ही मनुष्य इस संसार-रूपी भव सागर से पार उतरकर मोक्ष प्राप्ति कर सकता है। पुनः नानक कहते हैं कि हे मानव जटारूपी मुकुट पहन कर शरीर में भस्म लगाकर वस्त्रहीन होकर तथा नंगे बदन होकर भ्रमण करने से ईश्वरीय भक्ति प्राप्त नहीं किया जा सकता है। नानक कहते हैं कि जिस प्राणी पर गुरु की कृपा होती है चाहे वह जल में रहता हो, धरती पर रहता हो या सभी जगह रहता हो, उसी प्राणी को ईश्वर की भक्ति रूपी रस. पीने के लिये मिलता है अर्थात् ईश्वर भक्ति की अलौकिक आनंद की अनुभूति उसी प्राणी को प्राप्त होती है।

(घ) इस कविता में निर्गुणवादी विचारधारा प्रकट हुयी है। इसमें कवि बाहरी वेश-भूषा, तीर्थाटन कर्मकाण्ड के विरोध करते हुये सच्चे हृदय से भक्ति-भावना पर प्रकाश डालते हैं। कवि का मानना है कि परमात्मा की भक्ति बाह्य दिखाने से नहीं हो सकती है। परमात्मा की भक्ति रूपी सरस का अलौकिक पान करने के लिये सच्चे हृदय और ज्ञान की आवश्यकता है।
(A) (i) यहाँ निर्गुण निराकार ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया गया है।
(ii) भाषा की दृष्टि से पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग लाक्षणिक और व्यञ्जना रूप में किया गया है।
(iii) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अनायास ही भक्ति भावना की ओर अग्रसर होना पड़ता है।
(iv) कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का भी प्रयोग प्रशंसनीय है। भाषा में सरलता और सुबोधता के कारण प्रसाद गुण की अपेक्षा है।
(v) अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास उपमा और दृष्टांत मनोभावन है।

2. जो नर दुख में दुख नहिं माने।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जाने।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
आसा मनसा सकल तयागि कै जय तें रहै निरासा।
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहिं घट ब्रह्म निकासा
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिलानी
नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी

प्रश्न
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कबि-गुरुनानका .
– कविता-जो नर दुख में दुख नहीं माने।
(ख) निर्गण निराकार ईश्वर के उपासक गरुनानक ने प्रस्तुत कविता में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया है। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।
(ग) प्रस्तुत कविता में ईश्वर की निर्गुणवादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दुःख को दुःख नहीं समझता है अर्थात् दुःखमय जीवन में भी समान रूप.में रहता है उसी का जीवन सार्थक होता है। जिसके जीवन में सुख, प्यार, भय नहीं आता है अर्थात् इस परिस्थिति में भी तटस्थ रहकर मानसिक दुर्गुणों को दूर करता है, लोभ से रहित सोने को भी माटी के समान समझता है वही प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य न किसी की निंदा करता है, न किसी की स्तुति करता है लोभ, मोह, अभिमान से दूर रहता है, न सुख में प्रसन्नता जाहिर करता है और . न संकट में शोक उपस्थित करता है तथा मान अपमान से रहित होता है वही ईश्वर भक्ति के सुख को प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य आशा निराशा, बढ़ी-चढ़ी कामनाओं से दूर रहता है, जिस काम और क्रोध विचलित नहीं करता है उसी के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। गुरुनानक कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर को पहचान सकता है। यहाँ तक कि ईश्वर के उपासक गुरुनानक भी अपने गुरु के कृपा से ही गोविंद की भक्ति में उसी तरह मिल गये हैं जिस तरह पानी के संग पानी मिल जाता है।

(घ) भाव सौंदर्य-प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि जो मनुष्य सुख-दुख में एक समान रहता है, आशा-निराशा से दूर रहता है। निंदा प्रशंसा में भी समान स्थिति में रहता है वही व्यक्ति गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर का आनंद लेता है क्योंकि गुरु कृपा के बिना ईश्वर की पहचान नहीं हो सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यहाँ भाव के अनुसार ही भाषा का प्रयोग है।
(ii) ईश्वर भक्ति और गुरु भक्ति का सामंजस्य स्थापित हुआ है।
(ii) पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग सफल कवि का प्रतीक है।
(iv) भाषा में संगीतमयता, सरलता और मोहकता आ गई है।

विस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
राय नाम बिनु बिरथे जगि जनश्या’ किस कवि की रचना है ?
(क) गुरु नानक
(ख) गुरु अर्जुनदेव
(ग) रसखान
(घ) प्रेमधन
उत्तर-
(क) गुरु नानक

प्रश्न 2.
गुरु नानक की रचना है
(क) अति सूधो सलेट को मारता है
(ख) मो अंसुवा निहि लै बरसौ
(ग) जो नर दुख में दुख नहिं मानें
(घ) स्वदेश
उत्तर-
(ग) जो नर दुख में दुख नहिं मानें

प्रश्न 3.
गुरु नानक के अनुसार किसके बिना जन्म व्यर्थ है ?
(क) सम्पत्ति
(ख) इष्ट मित्र
(ग) पत्नी
(घ) राम नाम
उत्तर-
(घ) राम नाम

प्रश्न 4.
ब्रह्म का निवास कहाँ होता है ?
(क) समुद्र में
(ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में
(ग) स्वर्ग में
(घ) आकाश में
उत्तर-
(ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में

प्रश्न 5.
गुरु कृपा की महत्ता का वर्णन किस कवि ने किया है ?
(क) घनानंद
(ख) रसखान
(ग) गुरु नानक
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर-
(ग) गुरु नानक

प्रश्न 6.
गुरु नानक किस भक्ति धारा के कवि हैं ?
(क) सगुण भक्ति धारा ।
(ख) निर्गुण भक्ति धारा
(ग) सिख भक्ति धारा
(घ) किसी भी धारा के नहीं
उत्तर-
(ख) निर्गुण भक्ति धारा

II. रिक्त स्थानों की मूर्ति करें

प्रश्न 1.
गुरु नानक का जन्म सन् …………. में हुआ था।
उत्तर-
1469

प्रश्न 2.
…….. गुरु नानक के पिता थे।
उत्तर-
कालूचंद खत्री

प्रश्न 3.
गुरु नानक ने ………….की स्थापना की।
उत्तर-
सिख पंथ

प्रश्न 4.
गुरु नानक ने पंजाबी के साथ …. में कविताएं की।
उत्तर-
हिन्दी

प्रश्न 5.
सामाजिक विद्रोह गुरु नानक की कविताओं का …….नहीं है।
उत्तर-
विषय

प्रश्न 6.
गुरु नानक की कविताओं में …………. की महत्ता निर्विवाद है।
उत्तर-
सहज प्रेम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था? .
उत्तर-
गुरु नानक का जन्म तलवंडी नामक गाँव जिला-लाहौर में हुआ था जो फिलहाल पाकिस्तान में है। उस स्थान को अब नानकाना साहब कहते हैं।

प्रश्न 2.
गुरु नानक किस युग के कवि थे?
उत्तर-
गुरु नानक मध्य युग के संत कवि थे।

प्रश्न 3.
‘गुरु ग्रंथ साहिब’ किनका पवित्र ग्रंथ है ?
उत्तर-
गुरु ग्रंथ साहिब’ सिखों का पवित्र ग्रंथ है। इसमें गुरु नानक एवं कुछ अन्य संतों की । रचनाएँ संकलित हैं।

प्रश्न 4.
कवि किससे बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर-
कवि राम नाम के बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है।

प्रश्न 5.
वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर-
जिस वाणी से राम नाम का उच्चारण नहीं होता है अर्थात् भगवत् नाम के बिना वाणी विष के समान हो जाती है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलुमटि भ्रमना।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित काव्य-पाठ ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों द्वारा कवि मनुष्य जाति को संदेश देते हुये कहता है कि इस संसार में राम के नाम के बिना जन्म व्यर्थ है, इस जन्म का सार्थक मोल नहीं। मनुष्य का लक्षण बन गया है—विष पान करना, विष भाषण करना और बिना नाम के बेकार बनकर मतिभ्रम की तरह जिधर-तिधर भटकना इन पंक्तियों में राम नाम की महिमा का गुणगान है।

प्रश्न 2.
पुस्तक पाठ व्याकरण बरवाण संधिआकरम निकाल कर,
बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरूझि.भ.
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा” काव्य पाठ से ली गयी हैं, इन काव्य-पंक्तियों का प्रसंग मानव जीवन से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि व्याकरण की किताब संधि-कर्म की जिस प्रकार व्याख्या करती है ठीक वैसा ही गुरु का काम है, राम नाम की महिमा का ज्ञान बिना गुरु के असंभव है। गुरु द्वारा ही शब्द-ज्ञान मिलता है। बिना ज्ञान के मुक्ति असंभव है, बिना ज्ञान के राम नाम की महिमा से हम दूर रह जाते हैं, अनभिज्ञ रह जाते हैं, इस प्रकार व्याकरण और गुरु दोनों का कार्य-व्यापार समान है, जिस प्रकार व्याकरण संधि-कर्म की व्याख्या कर हमें पाठ ज्ञान कराता है, ठीक उसी प्रकार सिद्ध गुरु द्वारा ही राम – नाम के महत्व का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इस मायावी संसार से बिना गुरु शब्द के मुक्ति असंभव है।

प्रश्न 3.
डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवन अति भ्रमनु करें।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि हरि नाम सु पारित परै।।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग मानव जीवन में व्याप्त पाखंड है।

कवि कहता है कि मनुष्य बाहरी आडम्बरों के फेरे में पड़कर भटक रहा है। उसे सत्य का ज्ञान ही नहीं। वह डंड, कमंडल, शिखा, सूत, धोती, तीरथ आदि के साथ सारा जीवन भरमता रहता है। यानी भटकता रहता है। वह सत्य मार्ग से दूर चला जाता है।

राम नाम के बिना शांति कैसे मिले ? बिना हरिनाम के स्मरण के इस भवसागर से मुक्ति । मिल सकती है क्या? यहाँ सांसारिक आडंबरों के बीच जी रहे मानव की मूर्खता के विषय में कवि ध्यान दिलाता है। वह बताता है कि इस मायावी संसार से मुक्ति तभी मिलेगी जब हम सही रूप में, सच्चे मन से हरि स्मरण करेंगे। यहाँ गूढ भाव यह है कि मानव जीवन सत्य पर आधारित होना चाहिए। मनुष्य को पाखंड से दूर रहकर निर्मल मन और भाव से प्रभु-पूजा करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
जटा मुकुट तन भसम लगाई, वसन छोड़ि तन नगन भया।
जेते जीअ जंत जल-थल महीअल जत्र तत्र तू सरब जीआ
गुरु परस्पदी राखिले जन कोउ हरिरस नानक झोलि पीआ।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के रामनाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध मनुष्य के जीवन में व्याप्त अनेक तरह की विसंगतियों से है।

कवि कहता है कि मनुष्य जटा बढ़ा लेता है तन में राख पोत लेता है और मुकुट धारण कर लेता है। सारे वस्त्रों का परित्याग कर आधुनिक युग में नग्न रहने लगा है। जिस प्रकार इस जल-थल पर जंतु जीते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी सर्वत्र जीता है, विचरण करता है। लेकिन अंत में गुरु नानक जी कहते हैं कि ऐ मनुष्यों-गुरु का प्रसाद-ग्रहण कर लो। गुरु नानक ने तो हरि रस की झोलि यानी रस, शर्बत पी ही लिया है।

इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि बिना ईश्वर के साथ लगातार संबंध बनाये, आस्था रखे, इस जीवन का कल्याण नहीं, मोक्ष की प्राप्ति असंभव है। आडंबर में जीने पर मुक्ति पाना असंभव है। आडंबर से दूर रहकर निर्मल भाव से ईश्वर की साधना कर ही हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
जो नर दुख में दुख नहिं माने।
सुख सनेह अरू भय नहिं जाके, कंचन माटी जान।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मान” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मानव-जीवन में आए दुख से है।
कवि कहता है कि वही मनुष्य सही मनुष्य है जो अपने जीवन में आए दुःख में नहीं घबराए, उसे दुःख नहीं माने बल्कि धैर्य के साथ उसका सामना करे। वही मनुष्य सच्चा मानव है जो निर्लिप्त भाव से जीवन जीये। सुख, स्नेह और भय तीनों स्थितियों में जो विकाररहित और निर्भय होकर रहे, जो सोना को भी माटी समझे, वही सच्चा इन्सान है। वहीं ईश्वर के निकट है। वह मायावी जगत से दूर है। ऐसे मनुष्य से ही इस धरा का कल्याण संभव है। इन पंक्तियों में गुरु नानक ने भौतिक दुनिया की मोह-माया से मुक्त होकर जीनेवाले नर की प्रशंसा की है।

प्रश्न 6.
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना। :
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के. “जो नर दुख में दुख नहिं मानै” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के सद्विचारों से जुड़ा हुआ है।
कवि कहता है कि जो मनुष्य निंदा और स्तुति के बीच समभाव से जीता है, जो लोभ, मोह, अभिमान से मुक्त है। हर्ष और शोक के निकट रहकर भी जो अशोक के रूप में जीए। जिसे मान-अपमान की चिंता नहीं हो, वह सच्चा मानव है, महामानव है। इन काव्य पंक्तियों में गुरु नानक ने महामानव के लक्षणों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने इस मायावी लोक में निर्लिप्त भाव से जीनेवाले कर्मवीरों की प्रशंसा की है। उनके गुणों को बताया है।

प्रश्न 7.
आसा मनसा सकल त्यागिकै जग तें रहै निरास
काम क्रोध जेहि परसे चाहिन हि घट ब्रा निवासा।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मानै” काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के सात्विक जीवन से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि वही मनुष्य महामानव है, जो मानसिक विकारों से दूर रहे, जिसने आकांक्षाओं पर विजय प्राप्त कर लिया हो, जिसने सन्मार्ग ग्रहण कर लिया है, इस जग से जिसे कोई मोह-माया नहीं, जो आशा और निराशा के बीच महाप्रज्ञ के रूप में जीये वही लोकोत्तर महामानव है। काम-क्रोध जिसे स्पर्श नहीं कर सका हो उसी के घर में, कंठ में ब्रह्म निवास करता है। कहने का गूढ़ भाव यह है कि सांसारिकता से जो मुक्त होकर जीवन जीता है वही ब्रह्म के निकट है, ईश्वर के निकट है, उसी का जीवन सार्थक है।

प्रश्न 8.
युरु किरपा जेति नर मै कोही मिन्ह यह ति पिलानी
नानक लीन भयो गोविन्द सो न्यों पानि सवानी।।
व्याखया-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मान” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग गुरु-कृपा के महत्त्व से जुड़ा हुआ है।
कवि कहता है कि जिस मनुष्य पर गुरु-कृपा हो जाती है, उन्हें जुगाति की क्या जरूरत है। उसे किसी प्रकार के उपाय करने, यत्न करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

गुरु नानक परं गुरु की कृपा का ही प्रभाव है कि वे गोविन्द यानी ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त कर सके। जिस प्रकार पानी में पानी को मिलाने पर कोई विकार नहीं दिखता बल्कि दोनों एकात्म रूप में दिखते हैं। दोनों पानी एक समान ही दिखते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा-परमात्मा का भी मिलन होता है। दोनों में रूप या रंग का अंतर नहीं होता है। दोनों मिलकर एकाकार, एक रंग, एक रूप को प्राप्त कर लेते हैं।
इन काव्य पंक्तियों में गुरु महिमा, ईश्वर भक्ति और आत्मा-परमात्मा के रूपाकार पर सूक्ष्म प्रकाश डाला गया है।

राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै कवि परिचय

गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में तलबंडी ग्राम, जिला लाहौर में हुआ था । इनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब’ कहलाता है जो अब पाकिस्तान में है । इनके पिता का नाम कालूचंद खत्री, माँ का नाम तृप्ता और पत्नी का नाम सुलक्षणी था। इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्यम किया, किन्तु इनका मन भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया । इन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया । वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध करके निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया । गुरुनानक ने व्यापक देशाटन किया और मक्का-मदीना तक की यात्रा की । मुगल सम्राट बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी । गुरु नानक ने ‘सिख धर्म का प्रवर्तन किया । गुरुनानक ने पंजाबी के साथ हिंदी में भी कविताएँ की । इनकी – हिंदी में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का मेल है। इनके भक्ति और विनय के पद बहुत मार्मिक हैं । इनके दोहों में जीवन के अनुभव उसी प्रकार गुंथे हैं जैसे कबीर की रचनाओं में, लेकिन इन्होंने उलटबाँसी शैली नहीं अपनाई । इनके उपदेशों के अंतर्गत गुरु की महत्ता, संसार की क्षणभंगुरता, ब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता, नाम जप की महिमा, ईश्वर की सर्वव्यापकता आदि बातें मिलती हैं । इनकी रचनाओं का संग्रह सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन् 1604 ई० में किया जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । गुरु नानक की रचनाएँ हैं – “जपुजी’, ‘आसादीवार’, ‘रहिरास’ और सोहिला । कहते हैं कि सन् 1539. में इन्होंने ‘वाह गुरु’ कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए ।

निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक हिंदी की निर्गुण भक्तिधारा के एक प्रमुख कवि हैं। पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा में रचित इनके पद सरल सच्चे हृदय की भक्तिभावना में डूबे उद्गार हैं । इन पदों में कबीर की तरह प्रखर सामाजिक विद्रोह-भावना भले ही न दिखाई पड़ती हो, किन्तु धर्म-उपासना के कर्मकांडमूलक सांप्रदायिक स्वरूप की आलोचना तथा सामाजिक भेदभाव के स्थान पर प्रेम के आधार पर सहज सद्भाव की प्रतिष्ठा दिखलाई पड़ती है । नानक के पद वास्तव में प्रेम एवं भक्ति के प्रभावशाली मधुर गीत हैं । यहाँ नानक के ऐसे दो महत्त्वपूर्ण पद प्रस्तुत हैं । प्रथम पद बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम-नाम के कीर्तन पर बल देता है, क्योंकि नाम-कीर्तन ही सच्ची स्थायी शांति देकर व्यक्ति को इस दुखमय जीवन के पार पहुंचा पाता है। द्वितीय पद में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते
हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया गया . है । संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर इस पद में गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है ।

राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक गुरूनानक निर्गुणभक्ति धारा के प्रखर कवि हैं। पंजाबी समिश्रित ब्रजभाषा इनकी रचना का मूलाधार है। कबीर की तरह इनकी रचनाएँ भले ही न हो फिर भी धर्म-उपासना, कर्मकाण्ड आदि के स्थान पर प्रेम की पीर की अनुभूति स्पष्ट झलकती है।

पहले पद में कवि ने बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल हृदय से राम नाम के कीर्तन पर बल दिया है। वस्तुतः कवि दशरथ पुत्र राम की स्तुति न कर परम ब्रह्म उस सत्य की उपासना करने पर बल दिया है जो अगोचर और निराकम है। नाम कीर्तन ही. इस भवसागर से मुक्ति दिलाता है। जिसने जन्म लेकर राम की कीर्तन नहीं किया उसका जीवन निरर्थक है। उस खान-पान, रहन-सहन आदि सभी विष से परिपूर्ण होता है। संध्या, जप-पाठ आदि करने से मुक्ति नहीं मिलती है। जटा बढ़ाकर भस्म लगाने, तीर्थाटन करने से आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति नहीं होती है। गुरू कृपा और राम-नाम ही जीवन की सार्थकता है।

दूसरे पद में कवि ने सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अतः करण की निर्भरता हासिल करने पर जोर दिया है। ईर्ष्या, लोभ, मोह आदि से परिपूर्ण मानव के पास ईश्वर फटकता तक नहीं है। जिस प्रकार पानी-पानी के साथ मिलकर अपना स्वरूप उसी में अर्पण कर देता है उसी प्रकार गुरूं की कृपाकर मनुष्य ईश्वर रूपी स्वरूप से प्राप्त कर लेता है।

शब्दार्थ

बिर : व्यर्थ ही
जगि : संसार में
बिखु : विष
नावै : नाम
निहफतु : निष्फल
मटि : मति, बुद्धि
संधिआ : संध्या, संध्याकालीन उपासना
गुरसबद : गुरु का उपदेश
अरुझि : उलझकर
डंड : दंड (साधु लोग जिसे वैराग्य के चिह्न के रूप में धारण करते हैं)
सिखा : चोटी
सुत : जनेऊ
जीअ : जीव
जंत : जंतु, प्राणी ।
महीअल : महीतल, धरती पर
कंचन : सोना
अस्तुति : स्तुति, प्रार्थना
नियारो : न्यारा, अलग, पृथक
परसे : स्पर्श
घट : घड़ा (प्रतीकार्थ – देह, शरीर)
जुगति : युक्ति, उपाय
पिछानी : पहचानी

Bihar Board Class 10 English Book Solutions Chapter 3 Gillu

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B.1. Answer the following questions briefly

Gillu Class 10 Question Answer Bihar Board Question 1.
How did ‘Gillu’ sustain wounds?
Answer:
Gillu had sustained wounds by two crows, to make him a easy prey for-them poking their beaks on his tiny body.

Gillu Class 10th Bihar Board Question 2.
Who started calling the tiny baby squirrel as Gillu?
Answer:
The poetess started calling tiny baby squirrel as ‘Gillu’.

Gillu Question Answer Bihar Board Class 10 English Question 3.
Which ointment was applied on the wounds of the tiny baby squirrel?
Answer:
Pencillin ointment was applied on the wounds of the tiny baby squirrel.

Panorama English Book Class 10 Solutions Bihar Board Question 4.
What does the transformation from the common to the proper noun imply? What difference does a name make?
Answer:
Transformation from the common to the proper noun suggests the identity of a person or thing. It means the condition or character as to who a person or what a thing is. We can recognize a man by his name and easily find him out among other persons. When a person, place or thing is named it becomes a proper noun and it denotes a particular person, place or thing.

10th Hindi Gillu Lesson Questions And Answers Bihar Board Question 5.
What did the writer do with the wonded squirrel?
Ans. The writer wiped the blood of the squirrel and applied pencillin ointment over it and tried to feed him.

B. 2. Answer the following questions briefly 

Gillu Lesson Notes Class 10 Bihar Board Question 1.
How would Gillu inform that he was hungry?
Answer:
When Gillu become hungry, he would inform the narrator by twittering and produced a sound of “chik-chik” after receving some Biscuits or Kaju.

Bihar Board Class 10 English Book Solution Pdf Download Question 2.
What prompted the narrator to set Gillu free?
Answer:
Seeing Gillu sitting near the window and affectionately peering at the world. Outside made the narrator realise that it was necessary to set Gillu free.

English Book Class 10 Bihar Board Question 3.
What is the life span of squirrels?
Answer:
Squarrle have a life span of barely 2 years.

Bihar Board Class 10 English Book Solution Question 4.
What was the favourite food of Gillu?
Answer:
The favourite food of Gillu was Kaju.

Panorama English Book Answers Pdf Bihar Board Class 10 Question 5.
When was his swing taken off?
Answer:
His (Gillu) Swing was taken off after his death.

Gillu Summary In English Bihar Board Class 10 Question 6.
Where did the writer see two crows?
Answer:
The writer saw two crows at the flower-pots in the verandah of her house.

Gillu Question Answers Bihar Board Class 10 English Question 7.
What were the crows doing?
Answer:
The crows were playfully pushing sharply their beaks at the flowerpots. . ‘

Question 8.
Why was the tiny baby squirrel motionless?
Answer:
The tiny baby squirrel had sustained two wounds due to the violent and sudden attack by two crows. It had made him motionless.

Question 9.
How did the writer manage to pour water in the mouth of the motionless tiny baby squirrel?
Answer:
The writer could manage to pour water in the mouth of the motionless tiny baby squirrel after several hours of taking care and vigorous efforts for the same.’

C. 1. Long Answer Questions:

Question 1.
What did the narrator do with the wounded squirrel?
Answer:
The narrator gently lifted the squirrel up from the ground and brought it to her room and wiped the flood from his wound try by using cotton wool and applied pencillin ointment. The narrator tried to feed the squirrel by somehow putting a thin cotton wool wick, to dip in milk in his mouth but the squirrel was unable to open his mouth and drips of milk only slid down from both sides but after few hours the narrator tended to manage to pour one drop of water in his mouth. But on the 3rd day, he becomes much better and assured that he would use his two tiny claws to hold her finger and gaze all around with his blue glass beads like eyes and in 3-4 months, the squirrel astonished everyone with his smooth fur, hushy tail and naughty, refiuegent eyes.

Question 2.
How did the narrator make the tiny baby squirrel hale and hearty?
Answer:
When the poetess (the story writer) found the tiny baby squirrel, lying wounded on the flower-pot in her verandah, first, she Washed the blood from his wounds with cotton wool and applied pencillin ointment over it. A light-weight flower-basket was used as a nest to reside him. It was fitted on the window. He was given all sorts of delicious and nutrient food mostly kaju and biscuits as his meal. The story writer gave him full affection. He even dared to eat in her plate. She had immense intimacy with him. When she did sit to write down, he used to attract her attention by his naughty acts. She was highly pleased with his funny behavior and loving him like her son. Thus the reason behind Gillu’s being hale and hearty was his utmost care, ruitrious food and the affection of the story-writer.

Question 3.
Gillu took little food during the indisposition of the story-writer. What does this suggests?
Answer:
The story-writer had saved his life. She had given all possible comforts and pleasure of life to him. She had an extraordinary affection for him. He even dared to eat in her plate: He was provided with Kaju, biscuits and all sorts of nuitrient and delicious food to eat. Gillu became very’ familiar to her. When she would sit down to work he used to attract her attention by his naughty acts sitting closer to her feet. Sometimes the story-writer, out of joke used to hold Gifu and put his tiny figure in a long envelope.

All these facts suggest that Gillu was so much influenced by her compassionate fealings for him that during her indisposition he used to become aggrieved. He wanted to share her illness. He did not like anything during the period of her indisposition. So, he was taking little food at that time. It also suggests that all the animals and birds have a compassionate feeling. So even the tiny baby squirrel, Gillu had naturally such feeling and excessive attachment as well as love for the story writer.

Question 4.
Do you have any pet animal? How does it show concern for you?
Answer:
Yes, I have got a parrot as my pet bird. I have kept it in a cage. It has got deep intimacy with me and my other family members. Even if I get him out of the cage it does not fly away and comes closer to me. It could touch my feet by its beak showing its love. A few months back, when I was sitting on the hanging chair in my garden, suddenly. I saw a little baby parrot lying on the ground. Perhaps it had fallen from the mango tree. I quickly went there and found it injured. The blood was coming of its little body. I nicely lifted him up and brought it in my room. Washing the blood from its body. I applied some ointment over the wounds. I could manage to pour a few drops of water in its mouth. It became alright within a couple of months.

During day time I arranged its cage in the garden. In the evening, it is shifted in my room. It is very fond of taking bread etc. It would inform me by twittering “chik-chik” when hungry. Whenever I return from my school and open my room, it will express its pleasure by twittering “chik-chik”. During the period of my indisposition it becomes sad and expresses its concern by, twitering in a peculiar manner. If it (parrot) would be kept out of its cage, it will come to me and sit beside me to show its concern relating to my indisposition. I have also great love and attachment with him.

Question 5.
What did the narrator feel at the death of Gillu? Describe her feelings in your own words.
Answer:
Gillu spent two years with the story-writer living in a flower-basket hung on the window as his nest. She was very much perturbed by his death because he was so much closely associated with her. Whenever she was present in her room he would sit near her feet or remain on the table leaning the wall, for hours and watch her activities with his eyes. She had also never dreamt of his being separated. But after two years of his association with her, he took his last breath.

The story-writer witnessed his departure from this world from her own f eyes. She was highly aggrieved by his death. It shocked her much. Gillu was buried under the Sonjuhi creeper because he loved the creaper most and because of her satisfaction. It is her believe that some day she will find him flowering and blossoming in the outward form of a tiny yellow. Juhi flower. Thus it is observed that she was so much aggrieved, as if she had lost her own son. Which was really genuine and but natural.

Question 6.
In what condition did the narrator find Gillu? What did she do with him? What would you do in a similar situation?
Answer:
One morning when the writer entered the verandah from her room, she saw.two crows were pushing sharply their beaks in a funny manner at the flowerpots as if engaged in the game of hide and seek. All of a sudden she saw a tiny baby squirrel lying hidden in the middle of the wall and the flower pot, who must have fallen down from a nest. The tiny baby squirrel sustained two wounds due to the violent attack by the pair of crows.

She gently lifted him up and brought in her room. She first wiped the blood from the wounds and then applied penicillin ointment. Then she tried to feed him milk with the help of a thin cotton-piece. He became alright in thrte-four months. He was named Gillu. She arranged a flower basket, which was hung on the window to be used as his nest. It had become his new residence. She took his all care.

He was provided Kaju, biscuits etc as his meal. He became very familiar to her. Whenever the writer was doing something in her room he used to sit near her feet. Gillu died in about two years. The writer was greatly aggrieved by his death. His body was buried under the Sonjuhi creeper. She was so much loving him that she believed to find him flowering and bloosoming in the outward form of a yellow “Juhi” flower in the next spring season. Thus the writer had given him her motherly affection and care as if he was his son. I shall also express the same gesture of love as the writer had shown with Gillu. I have got very much compassionate feeling for all living beings. There is a pet puppy in my house to whom, I am loving most.

C. 2. Group discussion

Discuss the following in group or pair

(a) Animals/birds can be a good companion of men.
Answer:
I have a pet dog. I call it Ticky. It is my playmate. I have in it a loving and faithful companion. If accompanies me when I go out for a walk. It begins to wag its tail when it sees me on the door. When I leave home for school in the morning. I love it and it loves me too. It licks my feet. I like to play with it. I throw a ball. It runs after it and brings it back holding it in its mouth. It answers to its name. It is very intelligent. It carries my message to my friend. It runs after cats and barks at strangers. It plays with small children and seems to like their company. At times I go on hunting, It goes with me. It helps me track the game. It is a rare animal. It responds to my love. Its special qualities are loyalty, sagacity, and watchfulness. Its fidelity is unquestionable.

(b) Discuss with your friends what you notice in the picture given below:
Answer:
The picture is belongs to the ruins of Nalanda University. Once Nalanda was the renowned ancient university in the world of knowledge. Nalanda is the symbol of the most glorious period of our history. Nalanda had 10,000 students and 1,500 teachers. 100 lecturers were delivered every day at Nalanda. It had made a study of five compulsory subjects grammar, Logic, medical science and handicraft. Its teachers could pay individual attention to the education and training of their students.

C.3. Composition

a. Write a Paragraph in about 100 words on ‘Relation between men and birds”
Answer:
(a) There ace a number of birds around us but the cuckoo, the parrot and the crow are the most common birds known to one and all. There is close relationship between men and birds. The cuckoo comes in spring along with budding flowers and new leaves. It seems to love spring. It sings. It has no sorrow in its song. Its song thrills everyone. Every poet has described it as an a-song bird.
We tame parrots. The parrot is a source of great amusement as an imitator. People make it say funny things and it provides fun to the listeners. Its presence in the house is considered a good omen which saves the family from ill-luck and bad influence.

b. Write a letter to the editor of a newspaper, drawing his attention to the gradual extinction of certain birds in the locality. Also suggest some measures to be taken to preserve birds.
Answer:

Frazer Road
Patna,
June 10, 2012.

To.
The Editor.
The Hindustan times
Patna.

Dear Sir,
I shall feel much obliged if you kindly allow me the use of some of the valuable space in the columns of your esteemed paper to draw the attention of the government to the urgent need to stop cruelty against birds in our locality. Some crazy young boys are killing mainas and crows in my neighborhood locality. Birds are necessary for maintaining an ecological balance. They are also aids of beauty. We all know they are very important for human life.

So I hope, the authorities need to take immediate steps in this direction.

Yours faithfully
Narayan Singh.

D. Word Study

D. 1. Dictionary use:
Ex. 1. Correct the spelling of the following words
Sudenly, pencilin, biscuit, faverite, squirel, exeption, spoted, invelop, pillo
Answer:
suddenly, penicillin, biscuit, favourite, squirrel, exception, spotted, envelope, pillow, belief.

Ex. 2. Transcript the following words in phonetic alphabet as given in the dictionary:
He, Be, Seek, Beek, Room, Hook, My, By, Gap, Have
Answer:
Words — Phonetic
He – hi
Be – fi
Seek – sik
Beek – bih
Room – r m
Hook – hk
my – mai
By – fai
Gap – gaep
Have -haev

D, 2. Word Formation

Read carefully the following sentences taken from the lesson
(a) I gently lifted him up and brought him to my room.
(b) All were pleasantly astonished at his antics.
In the first sentence the word ‘gently’ is an Adverb which is derived from the Word (Adjective) ‘gentle’. The new word has been made by adding the suffix’- ly’ to it. Similarly, in the second sentence ‘pleasantly’ is an Adverb which is derived from the Adjective ‘pleasant’ by adding the suffix ‘-ly’ to it.

Ex. 1. Now make Adverbs from the following Adjectives by adding the suffix -‘ly’ to them
glad, nice, accurate, love, accident, sudden, swift, affectionate total time, bad, sad, beautiful, prompt, intelligent, perfect. profound, polite, dear. home,

Answer:
Adjectives — Adverbs
Glad — gladly
Nice — nicely
Accurate — accurately
Love — lovely
Accident — accidently
Sudden — suddenly
Swift — swiftly
Affectionate — affectionately
Total — totally
Time — timely
Bad — badly
Sad — sadly
Beautiful — beautifully
Prompt  — promptly
Intelligent — intelligently
Perfect — perfectly
Profound — profoundly
Polite — politely
Dear — dearly
Home — homely

D. 4. Phrases

Ex.1. Read the lesson carefully and find out the sentences in which the following phrases have been used. Then use these phrases in sentences of your own.
Unexpectedly, hide and seek, wiping blood, glass-beads like eyes, breakneck speed, the wire-mesh opening, during the course, as well as.
Answer:
unexpectedly:- unexpectedly, one morning when I entered the playground. I saw a man lying on the grass.
Hide and seek:- It seems clouds were playing hide and seek in the sky.
Wiping blood:- After wiping the blood of the injured man the nurse applied some ointment.
Glass beads Like yes:- The squirrel has glass beads like eyes.
Breakneck speed:- Seeing a dog the cat ran away at breakneck speed.
The wire mesh opening:- I found another squirrel at the wire-meshed opening of the window.
During the course:- During the course of my illness, lots of my friends visited me.
As well as:- He as well as I am living together.

D. 3. Word-Meaning

Ex. 1. Find out from the lesson the words, the meanings of which have been given in column A. The last few letters of each word have been given in column B.

A                             B
Sudden attack    …….ault
eager and cheerful readiness …..rity
lasting forever   …….nal
queer and typical behavior ……tics
lying on the ground   ….rate.

Answer:
A                         B
Sudden attack — assault
eager and cheerful readiness — alocrity
lasting for ever — eternal .
queer and typical behaviour — antics
Lying on the ground — prostrate

Ex.2. Fill in the blanks with words given below:
Verandah, basket, twittering, swing. free, remarked.
1. When I entered the…………..from the room.
2. I hung a lightweight flower…………………
3. He would inform me by…………………..
4. It was necessary to set him……..
5. Gilluwas an…………………….
6. His…………..was taken off the hook.
7. I saw two crows……….poking their heads at the flowerpots.
8. Everyone………that he would not survive.
Answer:
1. verandah, 2. basket, 3. twittering, 4. free, 5. exception, 6. swing, 7. playfully, 8. remarked

E. Grammar

E. 1. Read carefully the sentences given below
1. When I entered the verandah from the room, I saw two crows playfully poking their beaks at the flowerspot.
2. I used to hold Gillu and I put his tiny body in a long envelope. You see that sentence No. 1 consists of two clauses or simple sentences. These two sentences are combined by using a Relative pronoun ‘when’. Similarly, sentence 2 also consists of two sentences combined by the conjunction ‘and’. There are many ways to combine two or more than two sentences into one. Such a process in Grammar is called ‘synthesis’ or ‘combination’.
Following is the list of some conjunctions or sentence connectors:

Andbutoreither orNeither-norsince
becausethoughasbesidesas longtherefore
hencehavingseeingsonowbeing
whenwheneverwhereverdespiteas soon asno sooner

Ex.1. Now combine the following sentences into one sentence
1. She came, she took her lunch:
2. He got first class. He laboured hard.
3. Sheela was suffering from fever. She could not attend school.
4. The teacher entered the class. He started teaching.
Answer:
1. She came and took her lunch.
2. He laboured so hard that he got first class.
3. Sheela could not attend her school because she was suffering from fever.
4. As soon as the teacher entered the class he started teaching.

G. Translation

Translate the following sentences into Hindi/your mother tongue.
1. As if they engaged in the game of hide and seek
2. Everyone remarked that he would not survive.
3. He would venture close to my feet.
4. He devised a novel way of doing it.
5. I got up to catch him.
6. I made a small opening.
7. He stepped in.
8. I would reach the dining-room.
9. Everyone would offer him Kaju.
10. I discovered it was full of Kaju.
Answer:
1. मानों वे लुका-छिपी का खेल खेल रहे थे।
2. हर व्यक्ति यही कहता कि वह नहीं बचेगा।
3. वह मेरे पैर के पास आने का साहस करता।
4. उसने यह (उक्त कार्य) करने के लिए एक नया अनोखा ढंग अख्तियार किया।
5. मैं उसको पकड़ने के लिए उठती। 6. मैंने एक छोटा सा स्थान खोल रखा थी।
7. वह अन्दर आया ।
8. मैं भोजन गृह में पहुँचती थी।
9. हर कोई उसे काजू देता था।
10. मैंने पाया कि वह (स्थान) काजू से भरा हुआ था।

Comprehension Based Questions With Answers

Read the following extracts carefully and answer the questions that follow each
1. Unexpectedly, one morning, when I entered the verandah from the room, I saw two crows playfully poking their beaks at the flowerpots, as if engaged in the game of hide and seek. Suddenly, my assiduous critique of this mythical talc :he crow was intercepted by my gaze that fell on this tiny being, lying hicu . in the gap at the junction of the pot with the wall. Moving closer, I saw that it was a tiny baby squirrel that must have accidentally fallen down from a nest and was now being considered by the crows to be an easy prey. Having sustained two wounds due to the assault by the pair of crows was enough for this tiny being and he was now motionless, clinging to the pot.

Everyone remarked that as he would not survive after having been so assaulted by the crows, he be left alone. But, my mind refused to accede to their views, and therefore, I gently lifted him up and brought him to my room, and after wiping the blood from his wounds with cotton wool, applied Penicillin ointment.

Questions:
(i) What did the authoress find in the morning?
(ii) Who had assaulted the baby squirrel?
(iii) How did the authoress serve the injured squirrel?
(iv) Find the word from the passage which means push sharply’.
Answers:
(i) The authoress found an injured baby squirrel in the morning.
(ii) A pair of crows had assaulted the baby squirrel.
(iii) The authoress brought him to her room and after wiping the blood from his wounds with cotton wool, applied Penicillin ointment.
(v) The word is poking.

2. I tried to feed him by somehow putting a thin cotton wool wick, dipped in milk to his mouth, but he was unable to open his mouth and the drops of milk only slid down from both sides. Only after several hours of tending could I manage to pour one drop of water in his mouth. But, on the third day he became so much better and assured that he would use his two tiny claws to hold my finger and gaze all around with his blue, glass-beads-like eyes. And in three-four months, he astonished everyone with his smooth fur, bushy tail and naughty, refulgent eyes.

A transformation from common to proper noun followed and we started calling him, Gillu! I hung a light-weight flower basket lined with cotton wool on the window with the help of a wire. For two years, this was Gillu’s abode. All were pleasantly astonished at his antics and intellect.
Questions:
(i) Name the title and the writer of this passage.
(ii) How did the writer try to feed the squirrel?
(iii) When eh she get succeed in feeding him?
(iv) When did she call him with a new name?
(v) What the name was given to the squirrel?
(vi) How long did the squirrel live with the writer and how?
Answers:
(i) The title of the story is Gillu and its writer is Mrs. Mahadevi Verma.
(ii) She tried to feed the squirrel by somehow putting a thin cotton wool wick, dipped in milk to his mouth, but he was unable to open his mouth and the drop of milk rollfed down.
(iii) After several hours of tending could she managed to pour one drop of water in his month.
(iv) When authoress made Gillu’s new abode, she called him with a new name.
(v) He was named Gillu.
(vi) Gillu lived for two years with the writer with all his antics and intellect. .

3. When I would sit down to write, he would be seized by such an acute desire to attract my attention that he devised a novel way of doing it. He would venture close to my feet, whiz swiftly up the curtains and descend with the same breakneck speed. This sequence would continue till the time I got up to catch him. On some occasions, I used to hold Gillu and put his tiny body in a long envelope. Sometimes, he would continue to stand on the table leaning against the wall in such an amazing condition for hours, and watch my activities with his radiant eyes.

Questions:
(i) Who has written this extract?
(ii) What does the narrator describe in this passage?
(iii) What would Gillu do to attract the narrator’s attention?
(iv) Who would watch the activities of the narrator?
(v) Which word in the passage means ‘come down?
Answers:
(i) Mahadevi Verma has written this extract.
(ii) The narrator describes the antics and intelligence of Gillu, her pet squirrel.
(iii) In order to attract the narrator’s attention, Gillu would whiz swiftly up the curtains and descend at the same speed.
(iv) Gillu would watch the activities of the narrator with his shining eyes.
(v) The word ‘descend’ means ‘come down’.

4. I have several pet animals and birds and all of them are quite fond of me. I don’t remember any of them daring to eat from my plate.

Given was an exception. The moment I would reach the dining-room, he would emerge from the window, cross over the courtyard wall and the verandah, reach the table and would want to sit in my plate. With great difficulty, I taught him to sit close to my plate. His favorite food, where he would dexter¬ously eat each grain of rice. His favorite food was Kaju and when not avail¬able for several days, he would refuse other food items and threw them down from the swing.

Around that time, being injured in a motor car accident, I had to spend some days in the hospital. Those days, whenever my room was opened, Gillu would rush down from his swing, but on seeing somebody else, he would, with the same alacrity, scuttle back to sit in his nest. Everyone would offer him Kajjj, but when I cleaned up his swing on my return from the hospital, I discovered it was full of Kaju, which only showed how little he was eating his favorite food those days! During the course of my indisposition, he would sit near my head on my pi How and gently stroke my forehead and hair, and his moving away was like the going away of a nurse or attendant!

Questions:
(i) Why was Gillu an exception for the writer?
(ii) Describe how did Gillu share with the authoress at dinner?
(iii) What did Gillu do when the writer was in ill health?
(iv) What did the writer discover?
Answers:
(i) Though the writer had several pet animals and birds. All of them were quite fond of her, but none of them was daring to eat from her plate. So Gillu was an exception. He won her heart.
(ii) The moment the authoress would remain in the dining room, he would emerge from the window cross over the courtyard wall and the verandah reach the table and would want to sit in her plate, but she taught him to sit close to her plate.
(iii) When the writer was in ill health he would sit near her head on her pillow and gently’stroke her forehead and hair, and his mov¬ing away was like the going away of a nurse or attendant.
(iv) During the period the authoress was in hospital Gillu did not eat more Kaju. She found in her room, there was full of Kaju but he did not eat them all.

5. When I used to work during summer afternoons, Gillu would abstain from going outside or sitting in his swing. To keep himself close to me and also to tackle the summer heat, he had discovered a totally new method. He would lie prostrate on the surahi kept near me and thus remain both close to me as well as be cool!

Squirrels have a life span of barely two years; as such, Gillu’s lease of life finally came to an end. For the whole day, he neither ate nor ventured out. In the night, even with the pain of going away, he came to my bed from the swing, and clutched the same finger with his icy claws, which he had clung to, in his near death-like state during his natal days. The claws were getting so cold that I switched on the heater and tried to give him some warmth. But, as the first ray of the morning touched him, he departed.

His swing was taken off the hook and the opening made in the wire- mesh window was closed.
Gillu w’as put to eternal rest under the Sonjuhi creeper-both, because he oved this creeper most and also because of the satisfaction. I derive from my belief that some spring day I will find him flowering and blossoming in the guise of a tiny yellow Juhi flower!

Questions:
(i) How did Gillu make himself cool in summer?
(ii) How long does Squirrel live?
(iii) Describe the end of Gillu?
(iv) How would the authoress find him again?
Answers:
(i) During summer afternoons when the authoress used to work, Guilu would abstain from going outside or sitting in his swing. To keep himself cool and close to her he would lie prostrate on the surahi kept near her and thus remain both close to her as well as be cool.
(ii) It.is said that Squirrels have a life span of barely two years.
(iii) Gillu’s lease of life finally came to an end. For the whole day, he neither ate nor ventured out. In the night, even with the pain of going away, he came to her bed from the swing and clutched the same finger with his icy claws. They were getting cold, but in the very morning he died.
(iv) The authoress put the dead body of Gillu to eternal rest under the Sonjuhi creeper for both the reasons, (i) because he loved that creeper most and (ii) because of her satisfaction. She believed that some spring day she would find him flowering and blossoming in the guise of a tiny yellow Juhi flower.

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Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 1 जल और जंगल

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 1 जल और जंगल Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 1 जल और जंगल

Bihar Board Class 7 Science जल और जंगल Text Book Questions and Answers

अभ्यास

जल और जंगल वर्ग 7 Bihar Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथन सत्य है अथवा असत्य
(क) वर्षा जल का चरम स्रोत है।
(ख) नदियों का जल खेतों में सिंचाई का एकमात्र साधन है।
(ग) जल की कमी की समस्या का सामना केवल ग्रामीण क्षेत्रों के निवासी करते हैं।
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) असत्य
(ग) असत्य।

Bihar Board Class 7 Science Solution In Hindi प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
(क) भौमजल प्राप्त करने के लिए …………. प्रथा …………. का उपयोग होता है।
(ख) जल की तीन अवस्थाएँ …………. …………. …………. जल और वाष्य
(ग) भूमि की जल धारण करने वाली परत …………. कहलाती है।
उत्तर:
(क) नलकूप, कुंआ
(ख) बर्फ, जल, वाय,
(ग) भौम जल-स्तर।

Bihar Board Class 7 Science Solution प्रश्न 3.
समझाइए कि भौमजल की पुनः पूर्ति किस प्रकार होती है?
उत्तर:
जब वर्षा होती हैं तो वर्षा का पानी पृथ्वी पर गिरती है, जल पृथ्वी पर बने गड्ढों, तालाबों, नदियों में जमा होता है और धीरे-धीरे रिसकर पृथ्वी के नीचे गड्ढों में जमा होता है । भूमि के अन्दर जल के रिसाव को अन्त:स्पंदन कहते हैं। अन्त:स्यंदन की क्रिया धीरे-धीरे होती है। खेतों का पानी का रिसाव भी जमीन के अन्दर होता है। इस प्रकार की प्रक्रिया के कारण भीमजल की पुनः परिपूर्ति होती है।

Bihar Board Class 7 Science Chapter 1 प्रश्न 4.
भीम-जल स्तर के नीचे गिरने के लिए उत्तरदायी कारकों को समझाइए।
उत्तर:
ये बात सच है कि आज के दिनों में भौम जल-स्तर नीचे गिर गया है और गिरता चला जा रहा है। इसका मुख्य कारण वनों की कटाई होना, वनों की कटाई होने से वर्षा कम होती है और भौमजल को पुनः परिपूर्ति नहीं हो पाती। दूसरा कारण औद्योगिकीकरण जिसके कारण कल-कारखानों में भूमि जल का उपयोग अधिक होना, साथ ही साथ वायुमण्डल प्रदूषित सड़कों का निर्माण अधिकाधिक हाना जिसस जल का रिसाव पृथ्वा क अन्दर रुक जाता है। सिचाई के लिए भौमजल का प्रयोग होना, जल की वर्षादि जिससे ज्यादा जलवाष्य बन जाते है। तालाबों को खेत में बदलना जिसके कारण पानी का जमाव न हो पाता है। ये सब कारण से भीमजल का स्तर नीचे गिर रहा है।

Bihar Board Class 7 Science प्रश्न 5.
कम-से-कम जल का उपयोग करते हुए बगीचे लगाने तथा रख-रखाव के लिए क्या कदम उठाएंगे?
उत्तर:
बगीचं लगाने के लिए जल का कम उपयोग तभी संभव है जब पाइप द्वारा पेड़ की जड़ों में पानी दे ताकि पानी बर्बाद न हो। पेड़ों के चारों और मिट्टी का बाँध बना दें ताकि पानी जड़ को प्राप्त हो और जल का रिसाव पृथ्वी के अन्दर हो। पानी इधर-उधर बहकर बर्बाद न हो।

Bihar Board Class 7th Science Solution प्रश्न 6.
ऐसे सात उत्पादों के नाम बताएं जो हम वनों से प्राप्त करते हैं।
उत्तर:
वनों से हमें इमारती लकड़ी, फल, ऑक्सीजन, गोंद, लाह, शहद, भीमजल, विभिन्न प्रकार के जन्तु ।

Bihar Board Solution Class 7 Science प्रश्न 7.
वनों में कुछ भी व्यर्थ नहीं होता है, क्यों समझाइए।
उत्तर:
वनों में घास जो छोटे-छोटे जोवों का भोजन है। घोड़े, जेवरा, हाथी आदि जानवरों के लिए वनस्पति भोजन है। सुखी पत्तियाँ सड़कर मस बनाने में सहायता करते हैं। मृत जीव जन्तु भी अपघटित होकर ह्यूमस में परिवर्तित हो जाते हैं। ये पौधों के पोषण में सहायक होते हैं। वनों के पौधे कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते और ऑक्सीजन छोड़ते हैं। लकड़ियाँ मानव के उपयोगी हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वनों की हरेक चीजें चाहे वह सुखी पत्तियाँ ही क्यों न हों उपयोगी हैं। जीव-जन्तु और वनस्पति एक-दूसरे पर निर्भर है।

Bihar Board Class 7 Science Book Solutions प्रश्न 8.
अपघटक किसे कहते हैं ? ये वन एवं जीवों की वृद्धि में किस प्रकार सहायक हैं ?
उत्तर:
छोटे-छोटे जीव जिन्हें खुली आँखों से नहीं देख सकते हैं, जिन्हें हम माइक्रोस्कोप की सहायता से देखते हैं। ये सूक्ष्मजीव कहलाते हैं जिसे अपघटक कहते हैं। ये मृत जीव-जन्तुओं को अपघटित कर ह्यूमस में परिवर्तित कर देती है और ये पौधों के पोषण में सहायक होती है। नये नये पादपों का जन्म होता है जो शाकाहारी जन्तुओं के लिए भोजन होता है। मांसाहारी जीव को लाभ होता है। अतः जीवों की वृद्धि में सहायक होता है।

Bihar Board 7th Class Science Solution प्रश्न 9.
ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन बनाए रखने में वन के योगदान को समझाइए।
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड, वातावरण से पेड़-पौधे ग्रहण करते हैं। अपना भोजन सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपना भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन गैस छोड़ते हैं जो वातावरण में चला जाता है और फिर जीव-जन्तु श्वसन क्रिया के फलस्वरूप ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बोहाइड्रेट के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित होता है ये क्रिया लगातार चलती रहती है और वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड संतुलित रहते हैं।

Bihar Board Class 7 Science Book प्रश्न 10.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(क) कीट मधुमक्खियाँ और पक्षी, पुष्पी पादपों की ………… सहायता करते हैं।
(ख) वन शुद्ध करते हैं …………. और …………. को।
(ग) वन में क्षमवान पत्तियों और जन्तु ……… को समृद्ध करते हैं।
(घ) सुक्ष्मजीवों द्वारा मृत पादपों पर क्रिया से ……….. बनता है।
उत्तर:
(क) वृद्धि
(ख) जल और वायु
(ग) पौधों
(घ) ह्यूमस ।

Bihar Board Class 7 Science जल और जंगल Notes

जल ही जीवन है। बिना जल के जीवन संभव नहीं है। प्राय: गर्मी के दिनों में अत्यधिक जल की कमी आ जाती है। पृथ्वी के तीन भाग जल से घिरा है फिर भी जल की कमी है। पृथ्वी पर जल है लेकिन खारा जल है। मृदु जल की कमी है। माना कि 20 लीटर कुल जल पृथ्वी पर है तो उसमें 500 ml. जल ही मृदु जल है। जल की तीन अवस्थाएँ होती हैं। भूमिगत जल (नदियों, तालाबों और झरनों के जल) और वाष्य । जल चक्र के द्वारा जल का संतुलन रहता है फिर भी मृदु जल की कमी होती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, उद्योगों का तेजी से बढ़ना, सिंचाई के साथ ही साथ कुप्रबंधन जल की कमी के कारण हैं। भौमजल अर्थात् भूमिगत जल कुआँ, नलकूपों और बोरिंग से प्राप्त करते हैं। भौम जल-स्तर सभी जगह समान नहीं है। कहीं कम गहराई तो कहीं ज्यादा गहराई पर जल प्राप्त होता है।

भौमजल, वर्षा, जल, नदियों, तालाबों का जल मिट्टी से रिसकर भूमि के नीचे गड्ढों, दरारों में एकत्रित होता है। भौमजल पूर्ति का सबसे प्रमुख प्रक्रिया वर्षा जल का रिसना । जनसंख्या की वृद्धि के कारण नगरों का विकास, औद्योगिकीकरण वन का कटाव के कारण भौमजल का स्तर गिर गया है। नलकूपों से सिंचाई, पम्पसेटों से सिंचाई के कारण भी भौमजल का जलस्तर कम हुआ है। वनों की कटाई के कारण वर्षा का कम होना भीमजल का जलस्तर कम हुआ है।

हमारे देश के कई भागों में घन-घोर जंगल है जहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ और पशु-पक्षी रहते हैं। वनों तथा उसमें पाये जाने वालों जानवरों की रक्षा सरकार करती है। जंगलों को कटाई पर आज रोक लगी हुई है। हिमालय के पहाड़ों पर चीड़ और देवदार के वृक्ष पाये जाते हैं। बिहार के चम्पारण क्षेत्र में साल और सागवान के पेड़ पाये जाते हैं। वनों के पशु पेड़ों पर निर्भर रहते हैं। पौधे स्वपोषी होते जवकि पशु परपोषी और मृतपोषी होते हैं। जैसे-घास को कीट, कीट को ओढ़क, मेढ़क को सांप, सांप को गरुड़ इस तरह खाद्य श्रृंखला बनती है। अर्थात् वनों के विभिन्न घटक एक दूसरे पर निर्भर है। वन मृदा को अपरदन से बचाती है।

मिट्टी की सबसे ऊपरी परत ह्यूमस होता है। सूखी पत्तियाँ घास-फूस सड़कर मिट्टी को ह्यूमस बनाती है। छोटे-छोटे जीव जिन्हें हम खुली आँखों से नहीं देख सकते हैं जिन्हें हम माइक्रोस्कोप की सहायता से देखते हैं, ऐसे जीव को सूक्ष्मजीव कहते हैं। मृत जीव-जन्तु अपघटित होकर हामस में परिवर्तित हो जाते हैं। ये पौधों के पोषण में सहायक होते हैं।

Bihar Board Science Class 7

पौधे पृथ्वी से जल अवशोषित करते हैं और जलवाष्प के रूप में जल बाहर निकालते हैं। पेड़-पौधे भूअपरदन को रोकता है और भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। वन हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। इसकी रक्षा करनी चाहिए।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 4 छप्पय

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 4 छप्पय

 

छप्पय वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
नाभादास का जन्म कब हुआ था?
(क) 1570 ई. (अनुमानित)
(ख) 1560 ई.
(ग) 1575 ई.
(घ) 1565 ई.
उत्तर-
(क)

प्रश्न 2.
नाभादास किसके शिष्य थे?
(क) रामानंद
(ख) तुलसीदास
(ग) महादास
(घ) अग्रदास
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 3.
कबीरदास किस शाखा के कवि हैं?
(क) सगुण शाखा
(ख) सर्वगुण शाखा
(ग) निर्गुण शाखा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 4.
नाभादास जी कि समाज के विद्वान हैं?
(क) दलित वर्ग
(ख) वैश्य वर्ग
(ग) आदिवासी
(घ) संथाल वर्ग
उत्तर-
(क)

प्रश्न 5.
नाभादास जी कैसे संत थे?
(क) विरक्त जीवन जीते हुए
(ख) पारिवारिक जीवन जीते हुए
(ग) मंदिर में रहते हुए
(घ) व्यापारी बनकर रहते हुए
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
‘भक्तमाल’ किस प्रकार की रचना है?
(क) भक्त चरित्रों की माला
(ख) जीवनी
(ग) नाटक
(घ) संस्मरण
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
नाभादास सगुणोपारूक…….. कवि थे।
उत्तर-
रामभक्त

प्रश्न 2.
संपूर्ण भक्तमाल’…….. छंद में निबद्ध हैं।
उत्तर-
छप्पय

प्रश्न 3.
छप्पय एक छंद है जो……….. पंक्तियों का गेय पद होता है।
उत्तर-
छः

प्रश्न 4.
नाभादास गोस्वामी तुलसीदास के……. थे।
उत्तर-
समकालीन

प्रश्न 5.
नाभादास जी स्वामी रामानंद की ही शिष्य………. में शिक्षित थे।
उत्तर-
परंपरा

प्रश्न 6.
………. विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
उत्तर-
भगति योग यज्ञ व्रतदान भजन बिदु तुच्छ दिखाए।

छप्पय अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘भक्तमाल’ किसकी रचना है?
उत्तर-
नाभादास की।

प्रश्न 2.
नाभादास किसके समकालीन थे?
उत्तर-
तुलसीदास के।

प्रश्न 3.
नाभादास किसके शिष्य थे?
उत्तर-
अग्रदास के।

प्रश्न 4.
नाभादास के अनुसार किसकी कविता को सुनकर कवि सिर झुका लेते हैं?
उत्तर-
सूरदास की।

प्रश्न 5.
नाभादास किस धारा के कवि थे?
उत्तर-
सगुणोपासक रामभक्त धारा।

छप्पय पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? उनकी क्रम सूची बनाइए।
उत्तर-
नाभादास ने कबीर की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  • कबीर की मति अति गंभीर और अंत:करा भक्तिरस से सरस था।
  • वे जाति–पाँति एवं वर्णाश्रम का खंडन करते थे।।
  • कबीर ने केवल भगवद्भक्ति को ही श्रेष्ठ माना है।
  • भगवद्भक्ति के अतिरिक्त जितने धर्म हैं, उन सबको कबीर ने अधर्म कहा है।.
  • सच्चे हृदय से सप्रेम भजन के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत सभी को कबीर ने तुच्छ बताया।
  • कबीर ने हिन्दू, मुसलमान दोनों को प्रमाण तथा सिद्धान्त की बातें सुनाई हैं।

प्रश्न 2.
‘मुख देखी नाहीं भनी’ का क्या अर्थ है? कबीर पर यह कैसे लागू होता है?
उत्तर-
कबीरदास सिद्धान्त की बात करते हैं। वे कहते हैं कि मुख को देखकर हिन्दू–मुसलमान होने का अनुमान नहीं लगाया जाता। वहीं उनके हित की बात बताते हैं कि भक्ति के द्वारा ही भवसागर से पार उतरा जा सकता है। वे सभी को भगवद्भक्ति का उपदेश देते हैं।

प्रश्न 3.
सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है?
उत्तर-
कवि ने सूर के काव्य की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  • सूर के कवित्त को सुनकर सभी प्रशंसापूर्वक अपना सिर हिलाते हैं।
  • सूर की कविता में बड़ी भारी नवीन युक्तियाँ, चमत्कार, चातुर्य, अनूठे अनुप्रास और वर्णों के यथार्थ की उपस्थिति है।
  • कवित्त के प्रारंभ से अन्त तक सुन्दर प्रवाह दर्शनीय है।
  • तुकों का अद्भुत अर्थ दिखाता है।
  • सूरदास ने प्रभु (कृष्ण) का जन्म, कर्म, गुण, रूप सब दिव्य दृष्टि से देखकर अपनी रसना से उसे प्रकाशित किया।

प्रश्न 4.
अर्थ स्पष्ट करें
(क) सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै।
(ख) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
उत्तर-
कवि कहता है कि ऐसा कवि कौन है जो सूरदास जी का कवित्त सुनकर प्रशंसापूर्वक अप… सीस न हिलाये।

(ख) कबीर का कहना है कि भक्ति के विमुख जितने भी धर्म हैं उन सबको अधर्म कहा जाना चाहिए। अर्थात् प्रभुभक्ति या भगवद्भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त सब व्यर्थ है।

प्रश्न 5.
‘पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी।’, इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है?
उत्तर-
पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी’ से दर्शाया गया है कि कबीर हिन्दू, मुसलमान, आर्य, अनार्य में कोई भेद नहीं रखते हैं अपितु सबके हित की बात करते हैं। वे सिद्धान्तवादी हैं और सिद्धान्तों को लेकर आगे बढ़ते हैं।

प्रश्न 6.
कविता में तुक का क्या महत्त्व है? इन छप्पयों के संदर्भ में स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविता में ‘तुक’ का अर्थ अन्तिम वर्गों की आवृत्ति है। कविता के चरणों के अंत में वर्णों का आवृत्ति को ‘तुक’ कहते हैं। साधारणतः पाँच मात्राओं की ‘तुक’ उत्तम मानी गयी है।

संस्कृत छंदों में ‘तुक’ का महत्व नहीं था, किन्तु हिन्दी में तुक ही छन्द का प्राण है।

“छप्पय’–यह मात्रिक विषम और संयुक्त छंद है। इस छंद के छह चरण होते हैं इसलिए इसे ‘छप्पय’ कहते हैं।

प्रथम चार चरण रोला के और शेष दो चरण उल्लाला के प्रथम–द्वितीय और तृतीय–चतुर्थ के योग होते हैं। छप्पय में उल्लाला के सम–विषम (प्रथम–द्वितीय और तृतीय–चतुर्थ) चरणों का यह योग 15 + 13 = 28 मात्राओं वाला ही अधिक प्रचलित है। जैसे–

भक्ति विमुख जो धर्म सु सब अधरमकरि गायो।
योग, यज्ञ, व्रत, दान, भजन बिनु, तुच्छ दिखाओ।

प्रश्न 7.
‘कबीर कानि राखी नहीं’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
कबीरदास महान क्रांतिकारी कवि थे। उन्होंने सदैव पाखंड का विरोध किया। भारतीय षड्दर्शन और वर्णाश्रम को ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। वर्णाश्रम व्यवस्था का पोषक धर्म षडदर्शन। भारत के प्रसिद्ध छः दर्शन हिन्दुओं के लिए अनिवार्य थे। इनकी ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कबीर ने षड्दर्शन को बुराइयों की तीखी आलोचना की और उनके विचारों की और तनिक भी ध्यान नहीं दिया यानी कानों से सुनकर ग्रहण नहीं किया बल्कि उसके पाखंड की धज्जी–धज्जी उड़ा दी। कबीर ने जनमानस को भी षड्दर्शन द्वारा पोषित. वर्णाश्रम की बुराइयों की ओर सबका ध्यान किया और उसके विचारों को मानने का प्रबल विरोधी किया।

प्रश्न 8.
कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया?
उत्तर-
कबीर ने अपनी सबदी, साख और रमैनी द्वारा धर्म की सटीक व्याख्या प्रस्तुत की। लोक जगत में परिव्याप्त पाखंड व्याभिचार, मूर्तिपूजा और जाति–पाति. छुआछूत का प्रबल विरोध किया। उन्होंने योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन की नदी या उसके समक्ष उपस्थित किया।

कबीर ने भक्ति में पाखंडवादी विचारों की जमकर खिल्लियाँ उड़ायी और मानव–मानव के बीच समन्वयवादी संस्कृति की स्थापना की। लोगों के बीच भक्ति के सही स्वरूप की व्याख्या की। भक्ति की पवित्र धारा को बहाने उसे अनवरत गतिमय रहने में कबीर ने अपने प्रखर विचारों से उसे बल दिया। उन्होंने विधर्मियों की आलोचना की। भक्ति विमुख लोगों द्वारा भक्ति की परिभाषा गढ़ने की तीव्र आलोचना की। भक्ति के सत्य स्वरूप का उन्होंने उद्घाटन किया और जन–जन के बीच एकता, भाईचारा प्रेम की अजस्र गंगा बहायी। वे निर्गुण विचारधारा के तेजस्वी कवि थे। उन्होंने ईश्वर के निर्गुण स्वरूप का चित्रण किया उसकी सही व्याख्या की। सत्य स्वरूप का सबको दर्शन कराया।

छप्पय भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में विपरीतार्थक शब्द लिखें तुच्छ, हित, पक्षपात, गुण, उक्ति
उत्तर-

  • शब्द – विपरीतार्थक
  • तुच्छ – महान्
  • हित – अहित
  • पक्षपात – विरोध, तटस्थता
  • गुण – अवगुण
  • उक्ति – अनुक्ति

प्रश्न 2.
वाक्य प्रयोग द्वारा इन शब्दों का लिंग निर्णय करें। वचन, मुख्य, यज्ञ, अर्थ, कवि, बुद्धि।।
उत्तर-
वचन (स्त्री.)–हमें सदा सत्य वचन बोलनी चाहिए।।
मुख्य (पु.)–यह दुकान के मुख्य कार्यकर्ता है।
यज्ञ (पु.)–अब यज्ञ में पशुवलि नहीं दिया जाता।
अर्थ (पु.)–कविताओं का अर्थ सरल तथा सहज है।
कवि (पु.)–सूरदास एक अच्छे कवि हैं।
बुद्धि (स्त्री.)–उसकी बुद्धि कुशाग्र है।

प्रश्न 3.
विमल में ‘वि’ उपसर्ग है। इस उपसर्ग से पांच अन्य शब्द बनाएँ
उत्तर-
विमल, विमुक्त, विनाश, विशाल, विदग्ध, विहित।

प्रश्न 4.
पठित छप्पय से अनुप्रास अलंकार के उदाहरण चुनें
उत्तर-
अनुप्रास, अस्थिति अति, अर्थ–अद्भूत, दिवि–दृष्टि, हृदय–हरि, कौन कवि, ये प्रथम छप्पय के अनुप्रास अलंकार में प्रयुक्त हैं। अतः ये अनुप्रास अलंकार हैं।

प्रश्न 5.
रसना (जिह्व) का पर्यायवाची शब्द लिखें।
उत्तर-
रसना–जीभ, जबान, जुबान, रसाला, रसिका, स्वादेन्द्रिय आदि।

छप्पय कवि परिचय नाभादास (1570–1600)

नाभादास का जन्म संभवत: 1570 ई. में दक्षिण भारत में हुआ था। इनके पिता बचपन में ही चल बसे और इलाके में अकाल पड़ गया, जिस कारण वे अपनी माताजी के साथ राजस्थान में रहने आ गये। दुर्भाग्यवश कुछ समय पश्चात् इन्हें माता का विछोह भी सहना पड़ा। तत्पश्चात् ये भगवान की भक्ति में लीन रहने लगे गये और अपने गुरु और प्रतिपालक की देखरेख में स्वाध्याय और सत्संग के माध्यम से ज्ञानार्जन करने लग गये।

कवि नाभादास स्वामी रामानंद शिष्य परंपरा के स्वामी अग्रदासजी के शिष्य थे और वे वैष्णवों के निश्चित सम्प्रदाय में दीक्षित थे जबकि अधिकांशतः विद्वानों के अनुसार कवि जन्म से दलित वर्ग के रहनेवाले थे किन्तु अपने गुण, कर्म, स्वभाव और ज्ञान से एक विरक्त जीवन जीने वाले सगुणोपासक रामभक्त थे। कवि नाभादास का अविचलं भगवद् भक्ति भक्त–चरित्र और भक्तों की स्मृतियाँ ही अनुभव सर्वस्व है। इनकी मुख्य रचनाएँ भक्तमाल, अष्टयाम (ब्रजभाषा गद्य) (‘रामचरित’ की दोहा शैली में), रामचरित संबंधी प्रकीर्ण पदों का संग्रह है।

कवि नाभादास गोस्वामी तुलसीदासजी के समकालीन सगुणोपासक रामभक्त कवि थे जिनमें मर्यादा के स्थान पर माधुर्यता अधिक मिलती है। इनकी सोच और मान्यताओं में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं बल्कि ये पक्षपात, दुराग्रह, कट्टरता से मुक्त एक भावुक, सहृदय विवेक–सम्पन्न सच्चे भक्त कवि हैं। लेखक ने अपनी अभिरुचि, ज्ञान, विवेक, भाव–प्रसार आदि के द्वारा प्रतिभा का प्रकर्ष उपस्थित किया है।

कवि की रचना ‘छप्पय’ ‘कबीर’ और ‘सूर’ पर लिखे गये छः पंक्तियों वाले गेय पद्य हैं। कवि द्वारा रचित ‘छप्पय’ भक्तभाल में संकलित 316 छप्पयों और 200 भक्तों का चरित्र वर्णित ग्रन्थ है, में उद्धृत हैं। ‘छप्पय’ एक छंद है जो छः पक्तियों का गेय पद होता है। जो नाभादास की तलस्पर्शिणी अंतदृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा और सारग्रही चिन्तनशैली के विशेष प्रमाण हैं।

छप्पय कविता का सारांश

‘छप्पय’ शीर्षक पद कबीरदास एवं सूरदास पर लिखे गये छप्पय ‘भक्तमाल’ से संकलित है। छप्पय एक छंद है जो छः पंक्तियों का गेय पद होता है। ये छप्पय नाभादास की अन्तर्दृष्टि, मर्मग्राहणी प्रज्ञा, सारग्राही चिन्तन और विदग्ध भाषा–शैली के नमूने हैं।

प्रस्तुत छप्पय में वैष्णव भक्ति के नितांत भिन्न दो शाखाओं के इन महान भक्त कवियों पर लिखे गये छंद हैं। इन कवियों से सम्बन्धित अबतक के संपूर्ण अध्ययन–विवेचन के सार–सूत्र इन छंदों से कैसे पूर्वकथित हैं यह देखना विस्मयकारी और प्रीतिकर है। ऐसा प्रतीत है कि आगे की शतियों में इन कविता पर अध्ययन विवेचन की रूपरेखा जैसे तय कर दी गई हो।

पाठ के प्रथम छप्पय में नाभादास ने आलोचनात्मक शैली में कबीर के प्रति अपने भाव व्यक्त किये हैं।

कवि के अनुसार कबीर ने भक्ति विमुख तथाकथित धर्मों की धज्जी उड़ा दी है। उन्होंने वास्तविक धर्म को स्पष्ट करते हुए योग, यज्ञ, व्रत, दान और भजन के महत्व का बार–बार प्रतिपादन किया है। उन्होंने अपनी सबदी साखियों और रमैनी में क्या हिन्दू और क्या तुर्क सबके प्रति आदर भाव व्यक्त किया है। कबीर के वचनों में पक्षपात नहीं है। उनमें लोक मंगल की भावना है। कबीर मुँह देखी बात नहीं करते। उन्होंने वर्णाश्रम के पोषक षट दर्शनों की दुर्बलताओं को तार–तार करके दिखा दिया है।

छप्पय में कवि नाभादास ने सूरदासजी की कृष्ण की भक्तिभाव प्रकट किये हैं। कवि का कहना है कि सूर की कविता सुनकर कौन ऐसा कवि है जो उसके साथ हामी नहीं भरे। सूर की कविता में श्रीकृष्ण की लीला का वर्णन है। उनके जन्म से लेकर स्वर्गधाम तक की लीलाओं का मुक्त गुणगान किया गया है। उनकः कविता में क्या नहीं है? गुण–माधुरी और रूप–माधुरी सब कुछ भरी हुई है। सूर की दृष्टि दिव्य थी। वही दिव्यता उनकी कविताओं में भी प्रतिम्बित है। गोप–गोपियों के संवाद के अद्भुत प्रीति का निर्वाह दिखायी पड़ता है। शिल्प की दृष्टि से उक्त वैचित्र्य, वर्ण्य–वैचित्र्य और अनुप्र.सों की अनुपम छटा सर्वत्र दिखायी पड़ता है।

पदों का भावार्थ।

कबीर 1.
भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
योग यज्ञ व्रत दान भजन बिनु तुच्छ दिखाए॥
हिंदू तुरक प्रमान रमैनी सबदी साखी।
पक्षपात नहिं वचन सबहिके हितकी भाषी॥
आरूढ़ दशा है जगत पै, मुख देखी नाहीं भनी।
कबीर कानि राखी नहीं, वर्णाश्रम षट दर्शनी।

प्रसंग–प्रस्तुत छप्पय ‘नाभादास’ द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ से अवतरित है.। यह नाभादास की सहृदय आलोचनात्मक प्रतिभा का विशेष प्रमाण है। कवि कबीर से संबंधित अब तक के सम्पूर्ण अध्ययन तथा विवेचन का सार–सूत्र इस छंद में वर्णित है जो अत्यन्त विस्मयकारी व प्रीतिकर है।

व्याख्या–कबीर जी की मति अति गंभीर तथा अन्त:करण भक्ति रस से परिपूर्ण था। भाव भजन में पूर्ण कबीर जाति–पाँति वर्णाश्रम आदि साधारण धर्मों का आदर नहीं करते थे। नाभादास कहते हैं कि कबीर जी ने चार वर्ण, चार आश्रम, छ: दर्शन किसी की आनि कानि नहीं रखी। केवल श्री भक्ति (भागवत धर्म) को ही दृढ़ किया। वहीं ‘भक्ति के विमुख’ जितने धर्म हैं, उन सबको ‘अधर्म’ ही कहा है।

उन्होंने सच्चे हृदय से सप्रेम भजन (भक्ति, भाव, बंदगी) के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत आदि को तुच्छ बताया। कबीर ने आर्य, अनार्यादि हिन्दू मुसलमान आदि को प्रमाण तथा सिद्धान्त की बात सुनाई। भाव यह है कि कबीर जाति–पाँति के भेदभाव से ऊपर उठकर केवल शुद्ध अन्त:करण से की गई भक्ति को ही श्रेष्ठ मानते हैं।

सूरदास 2.
उक्ति चौज अनुप्रास वर्ण अस्थिति अतिभारी।
वचन प्रीति निर्वही अर्थ अद्भुत तुकधारी॥
प्रतिबिम्बित दिवि दृष्टि हृदय हरि लीला भासी।
जन्म कर्म गुन रूप सबहि रसना परकासी।।
विमल बुद्धि हो तासुकी, जो यह गुन श्रवननि धरै।
सूर कवित सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै।

प्रसंग–प्रस्तुत छप्पय ‘नाभादास’ द्वारा रचित ‘भक्तमाल’ से उद्धृत है। इसमें सूरदास के पदों का वर्णन किया गया है।

व्याख्या–सूरदास की कविता में बड़ी भारी नवीन युक्तियाँ, चमत्कार, चातुर्य, बड़े अनूठे अनुप्रास और वर्गों के यथार्थ की अस्थिति है। वे कवित्त के आदि में जिस प्रकार का वचन तथा प्रेम उठाते हैं उसका अंत तक निर्वाह करते हैं। कविता के तुकों का अद्भुत अर्थ दिखाई देता है। उनके हृदय में प्रभु ने दिव्य दृष्टि दी जिसमें सम्पूर्ण हरिलीला का प्रतिबिम्ब भासित हुआ।

उन्होंने प्रभु का जन्म, कर्म, गुण, रूप आदि दिव्य दृष्टि से देखकर अपनी रसना (जीभ) वचन से प्रकाशित किया। जो कोई भी सूरदास कथित भगवद् गुणगान को अपने श्रवण में धारण करता है उसकी बुद्धि विमल गुण युक्त हो जाती है। आगे नाभादास जी कहते हैं कि ऐसा कौन सा कवि है जो सूरदास जी का कवित्त सुनकर प्रशंसापूर्वक अपना शीश न हिलाए।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 10 मछली

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Bihar Board Class 10 Hindi मछली Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10 Bihar Board प्रश्न 1.
झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में क्यों घुस गए ?
उत्तर-
दौड़ते हुए बच्चे पतली गली में इसलिए घुस गये कि इस गली से घर नजदीक पड़ता था।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा क्या थी?
उत्तर-
मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा थी कि एक मछली पिता जी से मांग कर कुँए में डालकर बहुत बड़ी करेंगे। जब मन होगा बाल्टी से निकालकर खेलेंगे। बाद में फिर कुँए में डाल देंगे।

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf Download प्रश्न 3.
मछलियाँ लिए घर आने के बाद बच्चों ने क्या किया?
उत्तर-
घर आने के बाद बच्चों ने नहानघर में प्रवेश किया। भरी हुई बाल्टी को आधा खाली कर झोले को तीनों मछलियाँ उड़ेल दी।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 4.
मछली को छूते हुए संतू क्यों हिचक रहा था?
उत्तर-
संतू को मछली छूते हुए डर लग रहा था। मछली छूने से कहीं काट न ले।

Bihar Board Hindi Book Class 10 Pdf प्रश्न 5.
मछली के बारे में दीदी ने क्या जानकारी दी थी? बच्चों ने उसकी परख कैसे की?
उत्तर-
मछली के बारे में दीदी ने जानकारी दी थी कि मरी हुई मछली की आँख में अपनी परछाईं नहीं दिखती है। बच्चों ने उसकी परख एक मृत मछली की आँख में अपनी परछाईं देखकर की।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 10 Bihar Board प्रश्न 6.
संतू क्यों उदास हो गया ?
उत्तर-
संतू यह जानकर उदास हो गया था कि मछली कुछ देर बाद कट जायेगी। वह मछली को जीवित पालना चाहता था। मछली की बिछुड़ते हुए जानकर वह दुःखी हो गया।

Bihar Board Class 10 Hindi Chapter 1 प्रश्न 7.
घर में मछली कौन खाता था और वह कैसे बनायी जाती थी?
उत्तर-
घर में मछली केवल पिताजी खाते थे। मछली को उस घर का नौकर काटता था। उसे काटने के लिए अलग पाटा था। पहले मछली को पत्थर पर पटककर मार दिया जाता था, फिर राख से मलने के बाद पाटा पर रखकर चाकू से काटा जाता था। मछली बनाने का कार्य नहानघर .. में होता था।

Bihar Board Hindi Class 10 प्रश्न 8.
दीदी कहाँ थी और क्या कर रही थी?
उत्तर-
दीदी कमरे में थी और सो रही थी।

प्रश्न 9.
अरे-अरे कहता हुआ भग्गू किसके पीछे भागा और क्यों ?
उत्तर-
अरे अरे कहता हुआ भग्गू संतू के पीछे भागा क्योंकि संतू एक मछली को लेकर भाग रहा था। भागू को डर था कि संतू मछली को कुओं में डाल देगा जिसके चलते उसे डाँट पड़ेगी। संतू से मछली लेने के लिए वह उसके पीछे भागा।

प्रश्न 10.
मछली और दीदी में क्या समानता दिखाई पड़ी? स्पष्ट करें।
उत्तर-
आदमी के चंगुल में आकर मछली कटने को विवश थी। पानी के अभाव में अंगोछा में लिपटी मछली लहरा रही थी। दीदी कमरा में करवट लिए, पहनी हुई साड़ी को सर तक ओढे, सिसक-सिसक कर रो रही थी। हिचकी लेते ही दीदी का पूरा शरीर सिहर उठता था। दीदी का सिहरना एवं मछली का लहराना दोनों में समानता दिखलाई पड़ी।

प्रश्न 11.
पिताजी किससे नाराज थे और क्यों ?
उत्तर-
पिताजी नरेन से नाराज थे। क्योंकि बच्चों ने मछलियों के चलते स्वयं परेशान रहे। साथ ही भग्गू को भी परेशान किया। बच्चे मछली को पालना चाहते थे, कोमल बालमन मछली को कटते देख विह्वल हो उठा और बच्चा एक मछली को लेकर भाग गया। पीछे-पीछे भग्गू को भागना पड़ा। छीना-झपटी की स्थिति आई। पिताजी इन हरकतों के कारण नाराज हुए।

प्रश्न 12.
सप्रसंग व्याख्या करें
(क)बरसते पानी में खड़े होकर झोले का मुँह आकाश की तरफ फैलाकर मैंने खोल दिया ताकि आकाश।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ नामक कहानी से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध उस संदर्भ से है जब बच्चे पिताजी द्वारा खरीदी गयी तीन मछलियों को लेकर भीगते हुए घर जा रहे हैं। बच्चों को मछलियों के प्रति मोह था। वे उसे मरने देना नहीं चाहते थे। मछलियाँ बड़ी थीं। झोले में एक-दूसरे से दबी हुई थीं। झोला में तो पानी नहीं था। कहीं पानी के अभाव में ये मछलियाँ मर न जाएँ इसी डर से उन्होंने झोले का मुँह खोलकर आकाश की ओर फैला दिए ताकि आकाश का पानी झोले में पड़े और मछलियाँ जिन्दा रह सकें। इस प्रकार मछलियों के लिए पानी एवं जान की रक्षा करने के लिए बच्चों ने ऐसा किया। वे मछलियों को कुएं में डालकर पोसना चाहते थे। उन्हें मछलियों के प्राण बचाने की चिंता थी।

(ख) अगर बाल्टी भरी होती तो मछली उछलकर नीचे आ जाती।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। इस वाक्य का संदर्भ उस समय से है जब बच्चे मछली लेकर घर आते हैं। नहानघर में पानी से भरी बाल्टी से आधा पानी को गिराकर उसमें तीन मछलियों को उड़ेल देते हैं। लेखक को लगा कि अगर भरी बाल्टी में मछलियों को रखा जाता तो वे उछलकर बाल्टी से निकल जाती और फर्श पर आ जाती।

बच्चों का बालसुलभ मन मछलियों को खाना नहीं चाहता था। एक बार एक छोटी मछली उनके हाथ से छूटकर नहानघर की नाली में घुस गयी थी जिसे दोनों भाइयों ने काफी ढूँढा, लेकिन वह मछली नहीं मिली। दीदी ने कहा था कि घर की नाली शहर की नाली से तीन मील दूर मोहरा नदी में मिली है जिससे छोटी मछली नदी में बहकर चली गयी होगी। इसी आशंका से बच्चों ने आधी पानी भरी बाल्टी में मछलियों को रखा था ताकि वे मछलियों उछलकर बाहर आकर कहीं नाली-नाली होते हुए नदी में न चली जाएँ। मछली के खोने का भय आज भी बच्चों के दिमाग में बना हुआ है। अतः, आज वे सतर्क थे और तीनों मछलियों को बाल्टी में रखकर सुरक्षा कर रहे थे।

(ग) और पास से देख। परछाई दिखती है?
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘मछली’ कहानी से ली गयी हैं। इसका संदर्भ दीदी द्वारा कही गयी बातों से जुड़ा हुआ है। दीदी अपने भाइयों से कहती थी कि जो मछली मर जाती है उसकी आँखों में झाँकने से आदमी की परछाईं नहीं दिखती हैं।

लेखक ने जब बाल्टी से मछली को निकालकर फर्श पर रखा और पूंछ पकड़कर दो-तीन बार हिलाया तो मछली में थोड़ी-सी भी हरकत नहीं हुई। इस पर लेखक ने संतू से कहा कि तू इसकी आँख में झाँककर देख तेरी परछाई इसमें दिखती है कि नहीं। संतू थोड़ी दूरी पर बैठा था। बड़े भाई की बात सुनकर वह मछली के पास आया और उत्सुकतावश मछली को देखने लगा। इस पर लेखक ने संतू से कहा है कि-और पास से देखा परछाई दिखती है क्या ? लेखक ने समझाते हुए दीदी की बातों को संतू से दुहरा दिया। संतू दूर से ही सिर झुकाए मछली की आँखों में झाँकता हुआ चुपचाप था। वह कुछ बोलता ही नहीं था कि परछाई दिखती है कि नहीं।

इस प्रकार उपर्युक्त पंक्तियों का संदर्भ और व्याख्या संतू, मछली और लेखक के बीच का है। मछली के जिन्दा होने के लिए लेखक ने संतू से उपर्युक्त वाक्य को कहा था ताकि दीदी ने जो बातें मछली के बारे में बताया था, वह सच था कि नहीं। वह इसकी परीक्षा ले रहा था। संतू चुपचाप मछली की आँखों में अपनी परछाईं देखने का प्रयत्न कर रहा था और निरूत्तर था।

(घ) नहानघर की नाली क्षणभर के लिए पूरी भर गई, फिर बिल्कुल खाली हो गयी।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक की कहानी ‘मछली’ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संदर्भ नहानघर से है जहाँ लेखक मछलियों को देखने के लिए गया है। नहानघर में पहुंचने पर लेखक ने महसूस किया कि पूरा नहानघर मछलियों की गंध से भरा हुआ है। वहाँ भग्गू द्वारा गोल-गोल काटी गयी मछलियों के टुकड़े पड़े हुए थे। उसे लेखक ने हाथों से बाल्टी में धोया और पानी भरी बाल्टी को उड़ेल दिया। इससे नहानघर की नाली क्षणभर में पूरी भर गयी और तुरंत पानी के बह जाने पर खाली भी हो गयी। पूरे घर में मछलियों की गंध आ रही थी। जिसे लेखक ने महसूस किया। नहानघर में ही भग्गू मछलियों को धोकर, काटकर साफ-सुथरा कर रहा था ताकि उसे पकाया जा सके।

इन पंक्तियों के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि नहानघर ही नहीं पूरा घर मछली की गंध से पट गया था। कारण मछली के कारण पूरे घर में हंगामा हो गया था। दीदी से लेकर . पिताजी और संतू सभी मछली वाली घटना में शरीक थे।

प्रश्न 13.
संतू के विरोध का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संतू मानवीय गुणों को उजागर करता है। मानव में सेवा, परमार्थ, ममता जैसे गुण विद्यमान होते हैं। परन्तु आज मानव अपने आदर्श को भूलकर, इन गुणों को त्यागकर, स्वार्थ में अंधा होकर विवश और लाचार की मदद में नहीं बल्कि शोषण में लिप्त है। मूक मछलियों को निर्ममतापूर्वक काटते देख संतू उसकी रक्षा को आतुर हो उठता है और उसे बचाने हेतु झपट कर भग्गू के सामने से मछली को लेकर भाग जाता है। इस विरोध का मतलब है कि आज निःस्वार्थ भाव से बेबस, लाचार, शोषित, पीड़ित जनों की रक्षा, उत्थान एवं कल्याण के लिए अग्रसर होना परमावश्यक है। ममत्व में धैर्य टूट जाता है। सभी प्राणी में अपनी परछाईं देखनी चाहिए।

प्रश्न 14.
दीदी का चरित्र चित्रण करें।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में मध्यम वर्गीय परिवार की यथार्थ झलक है। दीदी घर, के चहारदीवारी के बीच कठपुतली बनकर रहने वाली एक बाला है। लिंग-भेद परिवार में निहित है। पिता की ओर से स्वतंत्रता नहीं है जिसके चलते घर में ही रहकर समय व्यतीत करती है। वह ममता की मूर्ति है। अपने भाइयों के प्रति अटूट श्रद्धा रखती है। उन्हें प्रत्येक जीवों में अपनी परछाईं देखने की शिक्षा देती है। मछली को विवश होकर कट-जाना उसके लिए पीड़ादायक है। वह समाज की रूढ़िवादिता के बीच मूक रहकर लाचार, बेबस एवं निर्ममतापूर्वक प्रहार को सहन करने वाले की आत्मा की पुकार को अनुभव करके सिसकियाँ एवं आह भर कर रह जाने वाली कन्या है।

प्रश्न 15.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट करें।
उत्तर-
‘मछली’ शीर्षक कहानी में एक किशोर की स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं। मछलियों के माध्यम से, मूक रहकर प्राणांत को स्वीकार लेना ही लाचार, शोषित, पीड़ित जनों की नियति है, बताया गया है। जीवन क्षणभंगुर है। कल्पनाएँ क्षणिक हैं एवं स्वप्न कभी भी बिखर सकते हैं। बाल सुलभ मनोभाव मछलियों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। पूरी कहानी मछली पर ही आधारित है। मछली की दशा का जीवन्त चित्रण है। अंतत: दीदी की तुलना भी बालक मछली से करता है। इस कहानी का ‘मछली’ शीर्षक पूर्णरूपेण सार्थक कहा जा सकता है।

प्रश्न 16.
कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
उत्तर के लिए सारांश देखें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित विशेष्य पदों में उपयुक्त विशेषण या क्रियाविशेषण लगाएँ
उत्तर-
गली – पतली गली
मछली – तीन मछलियाँ, कोई मछली।
उछली – जोर से उछली।
कमीज – गीली कमीज।
मूंछे – छल्लेदार मूंछे।
परछाई – अपनी परछाईं।
नहानघर – मछलियाँ नहानघर।
खंगाला – गोल-गोल खंगाला।

प्रश्न 2.
पाठ में प्रयुक्त विभिन्न क्रियारूपों को एकत्र कीजिए।
उत्तर-
घुस गए, पड़ता था, घूटते-घूटते बचा। उछलकर, आदि।

प्रश्न 3.
निम्नांकित वाक्यों के पद-विग्रह करें
(क) मुर्दा सी मछली के पूरे शरीर में अच्छी तरह राख मली।
उत्तर-
मुर्दा – गुणवाचक विशेषण, स्त्रीलिंग, एकवचन
मछली – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, एकवचन, कर्त्ताकारक।
अच्छी – गुणवाचक विशेषण स्त्रीलिंग, एकवचन।
मली – सकर्मक क्रिया, स्त्रीलिंग, एकवचन, भूतकाल।

(ख) पाटे के समय मछलियों के गोल-गोल चमकीले पंख पड़े थे।
उत्तर-
मछलियों – जातिवाचक संज्ञा, स्त्रीलिंग, बहुवचन संबंध कारक।
चमकीले – गुणवाचक विशेषण, बहुवचन, पुल्लिंग।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
दौड़ते हुए हम लोग एक पतली गली में घुस गए। इस गली से घर नजदीक पड़ता था। दूसरे रास्तों में बहुत भीड़ थी। बाजार का दिन था। लेकिन बूंदें पड़ने से भीड़ के बिखराव में तेजी आ गई थी। दौड़ इसलिए रहे थे कि डर लगता था कि मछलियाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में तीन मछलियाँ थीं। एक तो उसी वक्त मर गई थी जब पिताजी खरीद रहे थे। दो जिन्दा थीं। झोले में उनकी तड़प के झटके मैं जब तब महसूस करता था। मन ही मन सोच रहा था कि एक मछली पिताजी से जरूर माँग लगेंगे। फिर उसे कुएँ में डालकर बहुत बड़ी करेंगे। जब मन होगा बाल्टी से निकालकर खेलेंगे। बाद में फिर कुएँ में डाल देंगे।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है? और इसके लेखक कौन हैं ?
(ख) बच्चों ने गली का रास्ता क्यों पकड़ लिया?
(ग) बच्चों की कौन-सी उत्कंठा थी?
(घ) झोले में कितनी मछलियाँ थीं?
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश मछली शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक विनोद कुमार शुक्ल हैं।
(ख) बाजार का दिन होने और हल्की वर्षा होने के कारण दूसरे रास्तों में काफी भीड़ थी। गली से घर नजदीक पड़ता था। घर जल्दी पहुंचने के उद्देश्य से बच्चों ने गली का रास्ता पकड़ लिया।
(ग) बाजार से तीन मछलियाँ खरीदी गई थीं। एक मछली को वे पिताजी से मांग कर कुआँ – में डालना चाहते थे। कुआँ में डालकर वे मछली के साथ खेलना चाहते थे।
(घ) झोले में तीन मछलियाँ थीं।

2. नहानघर का दरवाजा अंदर से हम लोगों ने बंद कर लिया था। भरी हुई बाल्टी थी, उसे आधी खाली कर मैंने झोले की तीनों मछलियाँ उड़ेल दीं। अगर बाल्टी भरी होती तो मछली नाली में घुस गई थी। हाथों से मैंने और सन्तू ने टटोल-टटोलकर ढूँढा था। जब दिखी नहीं तो हम घर के पीछे जाकर खड़े हो गए थे जहाँ घर की नाली एक बड़ी नाली से मिलती थी। गंदे पानी में मछली दिखी नहीं। दीदी ने बताया था कि वह मछली इस नाली से शहर की सबसे बड़ी नाली में जाएगी फिर शहर से तीन मील दूर मोहरा नदी में चली जाएगी।

प्रश्न
(क) बच्चों ने मछलियों का क्या किया?
(ख) नहानघर की नाली में गिरी हुई मछली के बारे में दीदी ने क्या बताया था ?
(ग) मछली नाली में कैसे चली गई थी?
(घ) मोहरा नदी शहर से कितनी दूर पर बहती है ?
उत्तर-
(क)बच्चों ने मछलियों को आधे जल से भरी हुई बाल्टी में डाल दिया।
(ख) दीदी ने बताया था कि वह मछली इस नाली से शहर की सबसे बड़ी नाली में जाएगी और शहर से तीन मील दूर मोहरा नदी में चली जाएगी।
(ग) लेखक के हाथ से छूटकर मछली नाली में चली गई थी।
(घ) मोहरा नदी शहर से तीन मील की दूरी पर बहती है।

3. गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई। फिर प्यार से समझाया। संतू को दीदी ने खुद अपने हाथों से जानें क्यों अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाएँ। मैं घर के धोए कपड़े पहन रहा था तो दीदी ने कहा कि धोबी के धुले कपड़े पहन लें। फिर दीदी ने पेटी से मेरे लिए कपड़े निकाल – दिए। संतू के बड़े-बड़े बाल थे इसलिए अभी तक गीले थे। दीदी ने संतू के बालों को टॉवेल से पोंछकर उसके बाल संवार दिए।

प्रश्न
(क) दीदी क्यों नाराज हुयी?
(ख) दीदी ने क्या किया ?.
(ग) उल्लिखित गद्यांश के आधार पर तर्क सहित बताएं कि दीदी का स्वभाव कैसा था?
उत्तर-
(क) भाइयों को गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई।
(ख)अपनी नाराजगी जाहिर करने के बाद दीदी ने भाइयों को प्यार से समझाया। संतू को खुद अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए। फिर टॉवेल से उसके बाल सुखाकर उसके बाल झाड़े। नरेन को धोबी के साफ किए कपड़े पहनने को कहा।
(ग) दीदी ममतामयी थी। भाइयों से बहुत स्नेह करती थी यही कारण है कि गोले कपड़ों में भाइयों पर नाराज हुई। फिर प्यार से समझाया। संतू के कपड़े बदलवाए उसके बाल सँवारे और नरेन को धोबी के धुले कपड़े पहनने के लिए निकाल कर दिए। .

4. तीनों मछलियों के कई टुकड़े हो गए थे। पाटे के पास मछलियों के गोल-गोल चमकीले पंख पड़े थें। दीदी जहाँ लेटी थी, उस समय कमरे का दरवाजा खुला था। शायद माँ अन्दर थीं। पिताजी दरवाजे के पास गुस्से से टहल रहे थे। दीदी की सिसकियाँ बढ़ गई थी। मुझे लगा कि पिताजी ने दीदी को मारा है।

प्रश्न
(क) मछलियों के टुकड़े होने का निहितार्थ क्या है ?
(ख) दीदी की सिसकियाँ क्यों बढ़ गई थीं?
(ग) पिताजी का दीदी को मारना क्या प्रदर्शित करता है ?
उत्तर-
(क) मछलियों के टुकड़े होने का निहितार्थ है कोमल भावनाओं का नष्ट होना।
(ख) दीदी को पिताजी ने मारा था, इसलिए उनकी सिसकियाँ बढ़ गई थीं।
(ग) पिताजी द्वारा दीदी. को मारना दोहरी मानसिकता का प्रतीक है जिसमें बेटा-बेटी में फर्क और निर्भर परनिर्भर में भेद स्पष्ट होता है।

5. घर में मछली काटने के लिए एक अलग से पाटा था। उस पाटे के ऊपर ही मछली रखकर काटी जाती थी। पाटे में चक्कू के आड़े-तिरछे निशान बन गए थे। यह पाटा परछी में ड्रम के पीछे रखा रहता था। जिस रोज मछली बनती थी उसी रोज यह पाटा निकाला जाता था। घर का नौकर मछली काटा करता था। पानी का गिरना बिल्कुल बंद हो गया था। आँगन में आकर मैंने देखा जिस जगह मछली काटी जाती थी वहाँ वही पाटा धुला हुआ रखा था। पास में थोड़ी चूल्हे की राख थी। मैंने सोचा भग्गू कुआँ के पास चक्कू में धार कर रहा होगा। नहानघर का दरवाजा पूरा खुला था। मुझे बाल्टी दिख रही थी जिसमें मछलियाँ थीं। माँ वहाँ नहीं थी। शायद ऊपर होगी। माँ को घर में मछली, गोश्त बनना अच्छा नहीं लगता था। पिताजी ने कई बार चाहा किं हम लोग भी मछली, गोश्त खाया करें, लेकिन माँ ने सख्ती से मना कर दिया था। और, किसी को अच्छा भी नहीं लगता था, केवल पिताजी खाते थे।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) घर में मछली काटने का साधन क्या था?
(ग) घर में मछली कौन काटता था?
(घ) माँ को क्या अच्छा नहीं लगता था?
(ङ) घर में मछली कौन खाते थे?
उत्तर-
(क) पाठ का सारांश-मछली।
लेखक का नाम-विनोद कुमार शुक्ला
(ख) घर में मछली काटने के लिए एक अलग से पाटा था।
(ग) घर का नौकर मछली काटता था।
(घ) मछली, गोश्त बनाना माँ को अच्छा नहीं लगता था।
(ङ) घर में केवल पिताजी मछली खाते थे।

6. भग्गू को जैसे मालूम था कि मछलियाँ नहानघर में हैं। आते ही वह अंगोछे में तीनों मछलियाँ निकाल लाया। कुएँ में मछली पालने का उत्साह.बुझ-सा गया था। पिताजी शायद अभी तक आए नहीं थे। कमरे में जाकर देखा तो सच में दीदी करवट लिए लेटी थी। संतू को मैंने इशारे से बुलाया कि वह भी गीले कपड़े बदल ले। शायद कुछ आहट हुई होगी। दीदी ने पलटकर हमें देखा। गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई। फिर प्यार से समझाया। संतू को दीदी ने खुद अपने हाथों से न जाने क्यों बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए। मैं घर के धोए कपड़े पहन रहा था तो दीदी ने कहा कि धोबी के धुले कपड़े पहन लूँ। फिर दीदी ने पेटी से मेरे लिए कपड़े निकाल दिए। संतू के बड़े-बड़े बाल थे, इसलिए अभी तक गीले थे। दीदी ने संतू के बातों को टॉवेल से पोंछकर, उनमें तेल लगाया। बाएँ हाथ से संतू की ठुड्डी पकड़कर दीदी ने उसके बाल सँवार दिए। जब दीदी संतू के बाल संवार रही थी तो संतू अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीदी को टकटकी बाँधे देख रहा था। सभी कहते थे कि दीदी बहुत सुन्दर है।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखें।
(ख) भग्ग को क्या मालूम था और उसने आते ही क्या किया?
(ग) कमरे में कौन थी?
(घ) दीदी क्यों नाराज हुई?
(ङ) दीदी ने संतू के लिए क्या किया?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम मछली
लेखक का नाम-विनोद कुमार शुक्ला
(ख) भग्गू को जैसे मालूम था कि मछलियाँ नहानघर में हैं। आते ही वह अंगोछे में तीनों मछलियाँ निकाल लाया।
(ग) कमरे में दीदी करवट लिए लेटी थी।
(घ) बच्चों को गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई।
(ङ) दीदी ने संतू को अपने हाथों से अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए एवं उसके बाल संवारे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्व

सही विकल्प चुनें-

प्रश्न 1.
‘मछली’ किस कहानीकार की रचना है ?
(क) नलिन विलोचन शर्मा
(ख) प्रेमचंद
(ग) अज्ञेय
(घ) विनोद कुमार शुक्ल
उत्तर-
(घ) विनोद कुमार शुक्ल

प्रश्न 2.
‘मछली’ किस प्रकार की कहानी है ?
(क) सामाजिक
(ख) मनोवैज्ञानिक
(ग) ऐतिहासिक
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर-
(क) सामाजिक

प्रश्न 3.
‘महाविद्यालय’ पुस्तक से कौन-सी रचना संकलित है ?
(क) विष के दाँत
(ख) मछली
(ग) नौबतखाने में इबादत
(घ) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर-
(ख) मछली

प्रश्न 4.
‘मछली’ कहानी में किस वर्ग का जीवन वर्णित है ?
(क) उच्च वर्ग
(ख) मध्यम वर्ग
(ग) निम्न वर्ग
(घ) मजदूर वर्ग
उत्तर-
(ख) मध्यम वर्ग

प्रश्न 5.
संत-नरेन आपस में कौन हैं ?
(क) भाई-भाई
(ख) चाचा-भतीजा
(ग) भाई-बहन
(घ) जीजा-साला
उत्तर-
(क) भाई-भाई

प्रश्न 6.
विनोद कुमार शुक्ल कहानीकार उपन्यासकार के अलावा और क्या है ?
(क) कवि
(ख) नाटककार
(ग) आलोचक
(घ) राजनेता
उत्तर-
(घ) राजनेता

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1.
अब जोर से ……….. गिरने लगा था।
उत्तर-
पानी

प्रश्न 2.
संतू ……….. से काँप रहा था।
उत्तर-
ठंड

प्रश्न 3.
घर का नौकर ……… काटा करता था।
उत्तर-
मछली

प्रश्न 4.
हिचकी लेते ही दीदी का पूरा शरीर ……… उठता था।
उत्तर-
सिहर

प्रश्न 5.
नहानघर में जाकर उसे लगा कि ……….. गंध आ रही है।
उत्तर-
मछलियों की

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
झोले में मछली लेकर दौड़ते हुए लड़कों ने झोले का मुँह क्यों खोल दिया? ..
उत्तर-
लड़कों ने झोले का मुँह इसलिए खोल दिया ताकि वर्षा का जल मछलियों को जीवित रखने में झोले के अन्दर आ सके।

प्रश्न 2.
संतु मछली को क्यों नहीं छूना चाहता था?
उत्तर-
संतू मछली को इसलिए नहीं छूना चाहता था क्योंकि वह छूने से डरता था।

प्रश्न 3.
नरेन ने बाल्टी में क्यों हाथ डाला?
उत्तर-
नरेन ने बाल्टी में हाथ डालकर मुर्दा सी पड़ी मछली को बाहर निकालकर फर्श पर डाल दिया।

प्रश्न 4.
कमरे से दीदी की हल्की सिसकियों की आवाज क्यों आ रही थी?
उत्तर-
दीदी की सिसकियों की आवाज कमरे से इसलिए आ रही थी क्योंकि उसके पिताजी ने उसको पीटा था।

प्रश्न 5.
पिता जी ने दहाड़ क्यों मारा और क्या कहा?
उत्तर-
पिताजी ने सन्तू पर क्रोधित होकर दहाड़ मारा तथा भग्गू से उसके हाथ-पैर तोड़ देने के लिए कहा।

प्रश्न 6.
बच्चों ने मछलियों का क्या किया?
उत्तर-
बच्चों ने मछलियों को आधे जल से भरी हुई बाल्टी में डाल दिया।

प्रश्न 7.
मछली नाली में कैसे चली गई ?
उत्तर-
नरेन (लेखक) के हाथ से छूटकर मछली नाली में चली गई।

प्रश्न 8.
दीदी क्यों नाराज हुई?
उत्तर-
भाइयों को गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई।

प्रश्न 9.
मछलियों के टुकड़े होने का निहितार्थ क्या है ?
उत्तर-
मछलियों के टुकड़े होने का निहितार्थ है कोमल भावना का विनष्ट होना।

प्रश्न 10.
झोले में मछलियां लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में क्यों घुस गए ?
उत्तर-
झोले में मछलियाँ लेकर बच्चे दौड़ते हुए पतली गली में घुस गए, क्योंकि इस गली में घर नजदीक पड़ता था। दूसरे रास्तों में बहुन भीड़ थी।

प्रश्न 11.
मछलियों को लेकर बच्चों की अभिलाषा क्या थी?
उत्तर-
मछलियों को लेकर बच्चों के मन में अभिलाषा थी कि एक मछली पिताजी से माँगकर उसे कुएँ में डालकर बहुत बड़ी करेंगे।

प्रश्न 12.
मछलियाँ लिए घर आने के बाद बच्चों ने क्या किया ?
उत्तर-
मछलियाँ घर लाने के बाद बच्चों ने नहानघर में भरी हुई बाल्टी को आधी करके उसमें . मछलियों को रख दिया।

प्रश्न 13.
मछली को छूते हुए संतु क्यों हिचक रहा था ?
उत्तर-
संतू मछलियों को छूते हुए हिचक रहा था, क्योंकि उसे डर था कि मछली काट लेगी।

प्रश्न 14.
दीदी कहाँ थी और क्या कर रही थी?
उत्तर-
दीदी घर के एक कमरे में थी। वह लेटी हुई थी और सिसक-सिसककर रो रही थी। . वह बार-बार हिचकी ले रही थी जिससे उसका शरीर सिहर उठता था।

मछली लेखक परिचय

विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 ई० में राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में हुआ । । उन्होंने वृत्ति के रूप में प्राध्यापन को अपनाया । वे इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट . प्रोफेसर थे । वे दो वर्षों (1994-1996 ई०) तक निराला सृजनपीठ में अतिथि साहित्यकार भी रहे । उनका पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिंद’ पहचान सीरीज के अंतर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। उनके अन्य कविता संग्रह हैं – ‘वह आदमी नया गरम कोट पहिनकर चला गया विचार की तरह’, ‘सबकुछ होना बचा रहेगा’ और ‘अतिरिक्त नहीं । उनके तीन उपन्यास – ‘नौकर की कमीज’, ‘खिलेगा तो देखेंगे’ और ‘दीवार में एक खिडकी रहती थी’ तथा दो कहानी संग्रह – ‘पेड़ पर कमरा’ और ‘महाविद्यालय’ भी प्रकाशित हो चुके हैं। उनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इतालवी भाषा में उनकी कविताओं एवं एक कहानी संग्रह ‘पेड़ पर कमरा’ का अनुवाद हुआ है । ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का भी निर्माण हुआ है । विनोद कुमार शुक्ल को 1992 ई० में रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, 1997 ई० में दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान और 1990 ई० में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं।

बीसवीं शती के सातवें-आठवें दशक में विनोद कुमार शुक्ल एक कवि के रूप में सामने आए थे। कुछ ही समय बाद उसी दौर में उनकी दो-एक कहानियाँ भी सामने आई थीं । धारा और प्रवाह से बिल्कुल अलग, देखने में सरल किंतु बनावट में जटिल अपने न्यारेपन के कारण . उन्होंने सुधीजन का ध्यान आकृष्ट किया था । यह खूबी भाषा या तकनीक पर निर्भर नहीं थी। इसकी जड़ें संवेदना और अनुभूति में थीं और यह भीतर से पैदा हुई खासियत थी । तब से लेकर आज तक वह अद्वितीय मौलिकता अधिक स्फुट, विपुल और बहुमुखी होकर उनकी कविता, उपन्यास और कहानियों में उजागर होती आयी है।।

प्रस्तुत कहानी कहानियों के उनके संकलन ‘महाविद्यालय’ से ली गयी है । कहानी बचपन की स्मृति के भाषा-शिल्प में रची गयी है और इसमें एक किशोर की वयःसंधिकालीन स्मृतियाँ, दृष्टिकोण और समस्याएँ हैं । कहानी एक छोटे शहर के निम्न मध्यवर्गीय परिवार के भीतर के वातावरण, जीवन यथार्थ और संबंधों को आलोकित करती हुई लिंग-भेद की समस्या को भी स्पर्श करती है। घटनाएँ, जीवन प्रसंग आदि के विवरण एक बच्चे की आँखों देखे हुए और उसी के मितकथन से उपजी सादी भाषा में हैं । कहानी का समन्वित प्रभाव गहरा और संवेदनात्मक है। कहानी अपनी प्रतीकात्मकता के कारण मन पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ती है।

मछली Summary in Hindi

पाठ का सारांश

दौड़ते हुए हम लोग एक पतली गली में घुस गए। इस गली से घर नजदीक पड़ता था। दूसरे रास्तों में बहुत भीड़ थी। बाजार का दिन था। लेकिन बूंदें पड़ने से भीड़ के बिखराव में तेजी आ . गई थी। दौड़ इसलिए रहे थे कि डर लगता था कि मछलियाँ बिना पानी के झोले में ही न मर जाएँ। झोले में तीन मछलियाँ थीं। एक तो उसी वक्त मर गई थी जब पिताजी खरीद रहे थे। वो जिन्दा थीं। झोले में उनकी तड़प के झटके मैं जब तब महसूस करता था। मन ही मन सोच रहा था कि एक मछली पिताजी से जरूर माँग लेंगे। फिर उसे कुँए में डालकर बहुत बड़ी करेंगे। जब मन होगा बाल्टी में निकालकर खेलेंगे। बाद में फिर कुँए में डाल देंगे।

अब जोर से पानी गिरने लगा था। बरसते पानी में खड़े होकर झोले का मुँह आकाश की तरफ फैलोकर मैंने खोल दिया ताकि आकाश का पानी झोले के अन्दर पड़ी मछलियों पर पड़े। पानी के छींटे पाकर, कहीं आसपास किसी तालाब या नदी का अंदाजकर जोर से मछली उछली। झोला मेरे हाथ से छूटते-छूटते बचा।

नहानघर के बाल्टी में मैंने झोले की तीनों मछलियाँ उड़ेल दीं। अगर बाल्टी भरी होती तो मछली उछलकर नीचे आ जाती। एक बार एक छोटी सी मछली मेरे हाथ से फिसलकर नहानघर की नाली में घुस गई थी। हाथों से मैंने और सन्तू ने हटोल टंटोलकर ढूँढा था। जब दिखी नहीं तो हम घर के पीछे जाकर खड़े हो गए थे जहाँ घर की नाली एक बड़ी नाली से मिलती थी। गंदे पानी में मछली दिखी नहीं।

संतू मछलियों की तरफ प्यार से देखता था। वह मछलियों को छूकर देखना चाहता था। लेकिन डरता भी था। बाल्टी के थोड़ा और पास खिसककर एक मछली को पकड़ते हुए मैंने कहा, “संतू! तू भी छूकर देख ना””नहीं, काटेगी” संतू ने इनकार करते हुए कहा। नीचे दबी हुई मछली
को आँखों में मैं अपनी छाया देखना चाहता था। दीदी कहती थी जो मछली मर जाती है उसकी आँखों में झाँकने से अपनी परछाईं नहीं दिखती।
“माँ कहाँ है ? उस तरफ मसाला पीस रही है।” मेरा दिल बैठ गया। “च: चः मछली के मसाला होगा” “आज ही बनेगी” दुःख से मैंने कहा।

“भइया! मछली अभी कट जायेगी।” भोलेपन से संतू ने पूछा। “हाँ” फिर संतू भी उदास हो गया। माँ को घर में मछली, गोश्त खाया करें लेकिन माँ ने सख्ती से मना कर दिया था। और किसी को अच्छा भी नहीं लगता था केवल पिताजी खाते थे।

भग्गू को जैसे मालूम था कि मछलियाँ नहानघर में हैं। आते ही वह अंगोछे में तीनों मछलियाँ निकाल लाया। कुँए में मछली पालने का उत्साह बुझ-सा गया था। कमरे में जाकर देखा तो सच में दीदी करवट लिए लेटी थी। संतू को मैंने इशारे से बुलाया कि वह भी गीले कपड़े बदल ले। शायद कुछ आहट हुई होगी। दीदी ने पलटकर हमें देखा। गीले कपड़ों में देखकर दीदी बहुत नाराज हुई। फिर प्यार से समझाया। संतू को दीदी ने खुद अपने हाथों से जाने क्यों बहुत अच्छे-अच्छे कपड़े पहनाए। मैं घर के धोए कपड़े पहिन रहा था तो दीदी ने कहा कि धोबी के धुले कपड़े पहिन लूँ। फिर दीदी ने पेटी से मेरे लिए कपड़े निकाल दिए। संतू के बड़े-बड़े बाल थे इसलिए अभी तक गीले थे। दीदी ने संतू के बालों को टावेल से पोंछकर, उनमें तेल लगाया। वायें हाथ से संतू की ठुड्डी पकड़कर दीदी ने उसके बाल सँवार दिए। जब दीदी संतू के बाल सँवार रही थी तो संतू अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से दीदी को टकटकी बाँधे देख रहा था। सभी कहते थे कि दीदी बहुत सुन्दर है।

भग्गू मछली काट रहा था संतू एक मछली अंगोछे से उठाकर बाहर की तरफ सरपट भागा। भग्गू भी मछली काटना छोड़कर “अरे! अरे! अरे!” कहता हुआ उसके पीछे-पीछे भागा। मैं वहीं खड़ा रहा, पाटे में राख से पिटी हुई सिर कटी हुई मछली पड़ी थी। बाड़े की तरफ आकर मैंने देखा कि कुंए के पास जमीन पर संतू जानबूझकर पट पड़ा था। दोनों हाथों से मछली को अपने पेट के पास छुपाए हुए था। भग्गू मछली छीनने की कोशिश कर रहा था। शायद उसे डर था कि संतू मछली कुँए में डाल देगा तो पिताजी से उसे डाँट पड़ेगी। मैंने सुना कि अंदर की तरफ पिताजी के जोर-जोर से चिल्लाने की आवाज आ रही थी। संतू सहमा-सहमा चुपचाप खड़ा था। कीचड़ से उसके साफ अच्छे कपड़े बिल्कुल खराब हो गए थे। बाल जिसे दीदी ने प्यार से सँवारा था उसमें भी मिट्टी लगी थी।

शब्दार्थ

टटोला : अनुमान किया, थाह लिया
फर्श : पक्की जमीन
उत्सुकता : कुतूहल, जानने की इच्छा
छोर : किनारा
पाटा : फाँसुल, हँसुआ
आहट : ध्वनि, आवाज, संकेत
पेटी : बक्सा
टावेल : तौलिया
टकटकी : अपलक देखना
अंगोछा : गमछा
सरपट : तेजी
लहरना : तड़पना
सिसकियों : रुदन की अस्पष्ट ध्वनि, धीमे-धीमे रोना
बाड़ा : अहाता
निचोड़ना : निथारना, गारना

Bihar Board Class 8 Social Science Geography Solutions Chapter 1 संसाधन

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Geography Hamari Duniya Bhag 3 Chapter 1 संसाधन Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Geography Solutions Chapter 1 संसाधन

Bihar Board Class 8 Social Science संसाधन Text Book Questions and Answers

अभ्यास-प्रश्न

I. बहुवैकल्पिक प्रश्न-

Bihar Board Class 8 Geography Solution प्रश्न 1.
इनमें से कौन एक प्राकृतिक संसाधन है ?
(क) पंचायत भवन
(ख) विद्यालय
(ग) भूमि
(घ) हवाई अड्डा
उत्तर-
(ग) भूमि

Bihar Board Class 8 Social Science Solution प्रश्न 2.
इनमें कौन प्राकृतिक संसाधन नहीं है ?
(क) सूर्य
(ख) मिट्टी
(ग) जल
(घ) हवाई जहाज़
उत्तर-
(घ) हवाई जहाज़

Bihar Board Class 8 Hamari Duniya प्रश्न 3.
केरल में पाया जाने वाला थोरियम किस प्रकार के संसाधन का उदाहरण है ?
(क) निजी
(ख) नवीकरणीय
(ग) संभाव्य
(घ) अनवीकरणीय
उत्तर-
(ग) संभाव्य

Bihar Board Class 8 Hamari Duniya Solution प्रश्न 4.
संसाधन निर्माण के लिए क्या आवश्यक है ?
(क) तकनीक
(ख) आवश्यकता
(ग) ज्ञान
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर-
(ग) ज्ञान

II. खाली स्थान को उपयुक्त शब्दों से पूरा करें।

  1. संसाधन के लिए मूल्य की अभिव्यक्ति ………… प्रकार से की जाती हैं।
  2. ………….. संसाधन क्षेत्र के विकास के लिए आधार का काम करते हैं।
  3. राजस्थान में पाया जाने वाला ताँबा ………….. संसाधन का उदाहरण है।
  4. …………… एवं शारीरिक क्षमता मानव को संसाधन बनाने के लिए आवश्यक है।

उत्तर-

  1. विविध
  2. मानव
  3. वास्तविक
  4. दिमागी।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें (अधिकतम 50 शब्दों में)

Bihar Board Class 8 History Solution प्रश्न 1.
संसाधन की परिभाषा दें।
उत्तर-
मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाले सभी जीव-जंतु, वस्तुएँ एवं पदार्थ संसाधन कहलाते हैं।

Bihar Board Solution Class 8 Geography प्रश्न 2.
संसाधन का वर्गीकरण करें।
उत्तर
Bihar Board Class 8 History Book Solution
Class 8 Social Science Bihar Board प्रश्न 3.
प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
प्राकृतिक संसाधन का संरक्षण जरूरी है। क्योंकि आवश्यकता एवं माँग के अनुसार इन संसाधनों को मानव अपने तकनीक एवं कौशल से उपयोग में लाता है।

Bihar Board Solution Class 8 Social Science प्रश्न 4.
नवीकरणीय संसाधन किसे कहा जाता है ? उदाहरण के साथ लिखें।
उत्तर-
नवीकरणीय संसाधन वैसे प्राकृतिक संसाधनों को कहा जाता है जिनकी पुनः पूर्ति प्राकृतिक रूप से होती रहती है । जैसे—सूर्य की किरणें एवं पवन ।

Bihar Board Class 8 Sst Solution प्रश्न 5.
प्राकृतिक संसाधनों के वितरण में असमानता के कारणों को लिखें।
उत्तर-
जल एवं वन जैसे संसाधन जिनके भंडार या पुनः पूर्ति में मानवीय हस्तक्षेप के कारण रूकावटें आती हैं। यदि इन संसाधनों के प्रति मानव का हस्तक्षेप कम हो जाए तो वे स्वयं ही पुनः पूर्ति में लग जाएँगे।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें। (अधिकतम 200 शब्दों में)

Class 8 Hamari Duniya Bihar Board प्रश्न 1.
संसाधन को परिभाषित कर उनका वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने वाले सभी जीव-जंत. वस्तुएँ एवं पदार्थ संसाधन कहलाते हैं।

Bihar Board 8th Class Social Science
प्रश्न 2.
प्राकृतिक संसाधन का वर्गीकरण उपयुक्त उदाहरण के साथ प्रस्तुत करें।
उत्तर-
विकास एवं उपयोग की दृष्टि से प्राकृतिक संसाधन को दो भागों में बाँटा गया है।

  1. वास्तविक संसाधन-पश्चिम एशिया का पेट्रोलियम, आस्ट्रेलिया का सोना, झारखंड का अभ्रक, मध्य प्रदेश का मैंगनीज एवं राजस्थान का ताँबा
  2. संभाव्य संसाधन केरल में मिलने वाला थोरियम, लद्दाख में पाया जाने वाला यूरेनियम ।

उत्पत्ति के आधार पर प्राकृतिक संसाधन को दो भागों में बाँटा गया

  1. जैव संसाधन-पेड़-पौधे, वन, जीव-जंतु ।
  2. अजैव संसाधन खनिज, चट्टान, मिट्टी, भूमि, खेत, तालाब, नदी, झील।

उपलब्धता के आधार पर प्राकृतिक संसाधन को दो भागों में बाँटा गया है

  1. नवीकरणीय संसाधन – सूर्य की किरणे एवं पवन ।
  2. अनवीकरणीय संसाधन – लोहा, कोयला, पेट्रोलियम, अभ्रक ।

वितरण के आधार पर प्राकृतिक संसाधन को चार भागों में बाँटा गया

  1. सर्वत्र उपलब्ध संसाधन मिट्टी, पवन।
  2.  स्थानिक संसाधन कोडरमा में पाया जाने वाला अभ्रक, जादूगोड़ा में मिलने वाला यूरेनियम, छोटानागपुर क्षेत्र में पाया जाने वाला कोयला ।

स्वामित्व के आधार पर प्राकृतिक संसाधन को तीन भागों में बाँटा – गया है

  1. निजी संसाधन-भूमि, तालाब ।
  2. राष्ट्रीय संसाधन-समुद्र तट से दूर 19.2 किलोमीटर क्षेत्र के अन्दर पाये जाने वाले संसाधन।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन खुला महासागर का क्षेत्र ।

प्रश्न 3.
“संसाधन बनाये जाते हैं।” उपर्युक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट करें।
उत्तर-
“संसाधन बनाये जाते हैं।” जैसे
नदी या मरुस्थल में पड़े बालू का वहाँ कोई उपयोग नहीं होता । परन्तु जब वहाँ से उठाकर बालू को निर्माण कार्य हेतु गाँव या शहर में लाया जाता है तब इसका उपयोग और मूल्य दोनों बदल जाते हैं। अत: यह कह सकते हैं कि संसाधन होते नहीं, बनाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
संसाधन संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
प्राकृतिक संसाधनों के बिना मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। परन्तु इन संसाधनों के उपयोग की तकनीक एवं ठन संसाधनों की आवश्यकता का होना आवश्यक है। मनुष्य ने अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है। हमने इसका इस्तेमाल तो किया ही है इसे इस प्रकार प्रदूषित भी कर दिया है कि वे आज सीधे उपयोग के लायक नहीं रह गए हैं।

यही नहीं, हमने कई प्राकृतिक संसाधनों का इतना अधिक खनन एवं उपयोग किया है कि इनके भंडार धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है। भविष्य में इनके भंडार खत्म होने की पूरी आशंका है। मानव के लिए इनका होना भविष्य में भी उतना ही जरूरी है जितना आज । मानव जीवन सतत् चलता रहे, इसके लिए यह जरूरी है कि हम इन अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित कर इसे भविष्य के लिए संरक्षित करें।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 2 विष के दाँत

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 2 विष के दाँत Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 2 विष के दाँत

Bihar Board Class 10 Hindi विष के दाँत Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

विष के दांत का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने अमीरों की तथाकथित मर्यादा पर व्यंग्य किया है। इसमें गरीबों पर अमीरों के शोषण एवं अत्याचार पर प्रकाश डाला गया है। ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी महल और झोपड़ी की लड़ाई की कहानी है। इस लड़ाई में महल की जीत में भी हार दिखाई गई है। मदन द्वारा पिटे जाने पर खोखा के जो दो दाँत टूट जाते हैं वह अमीरों की प्रदर्शन-प्रियता और गरीबों पर उनके अत्याचार का प्रतीक है। मदन अमीरों की प्रदर्शन-प्रियता और गरीबों पर उनके अत्याचार के विरुद्ध एक चेतावनी है, सशक्त विद्रोह है। यही इस कहानी का लक्ष्य है। अतः निसंदेह कहा जा सकता है कि ‘विष के दाँत’ इस दृष्टि से बड़ा ही सार्थक शीर्षक है। अमीरों के विष के दाँत तोड़कर मदन ने जिस उत्साह, ओज और आग का परिचय दिया है वह समाज के जाने कितने गिरधर लालों के लिए गर्वोल्लास की बात है। इसमें लेखक द्वारा दिया गया संदेश मार्मिक बन पड़ा है।

विष के दांत कहानी का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
सेन साहब के परिवार में बच्चों के पालन-पोषण में किए जा रहे लिंग आधारित भेद-भाव का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सेन साहब के परिवार में उनकी पाँच लड़की थी। सीमा, रजनी, आलो, शेफाली, आरती सबसे छोटा लड़का था काशू बाबू, प्यार से खोखा कहते थे। ।
सेन साहब के परिवार में पाँचों लड़कियों के ऊपर काफी अनुशासन था। लड़का सबसे छोटा था और उसका बहुत बाद में था। इसी कारण से लड़के प्रति मोह होना स्वभाविक था। लड़का के ऊपर अनुशासन का बंधन बहुत ढीला था।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 3.
खोखा किन मामलों में अपवाद था ?
उत्तर-
सेन साहब एक अमीर आदमी थे। अभी हाल में उन्होंने एक नयी कार खरीदी थी। वे किसी को गाड़ी के पास फटकने नहीं देते थे। कहीं पर एक धब्बा दिख जाए तो क्लीनर और शोफर पर शामत आ जाती थी। उनके लड़कियों से मोटर की चमक-दमक का कोई खास खतरा नहीं था। लेकिन खोखा सबसे छोटा लड़का था। वह बुढ़ापे की आँखों का तारा था। इसीलिए मिसेज सेन ने उसे काफी छूट दे रखी थी। दरअसल बात यह थी कि खोखा का आविर्भाव तब हुआ था जब उसकी कोई उम्मीद दोनों को बाकी नहीं रह गई थी। खोखा जीवन के नियम का जैसे अपवाद था और इसलिए यह भी स्वाभाविक था कि वह घर के नियमों का भी अपवाद था। इसलिए मोटर को कोई खतरा था तो केवल खोखा से ही। घर में मोटर-संबंधी नियम हो या अन्यान्य मामले उसके लिए सिद्धान्त बदल जाते थे।

विष के दांत कहानी का सारांश बताएं Bihar Board Class 10 प्रश्न 4.
सेन दंपती खोखा में कैसी संभावनाएँ देखते थे और उन संभावनाओं के लिए उन्होंने उसकी कैसी शिक्षा तय की थी?
उत्तर-
सेन दंपती खोखा में अपने पिता की तरह इंजीनियर बनने की पूरी संभावना देखते थे। उन्होंने उसके शिक्षा के लिए कारखाने से बढ़ई मिस्त्री घर पर आकर एक-दो घंटे तक उसके साथ कुछ ठोंक-ठाक किया करे। इससे बच्चे की उँगलियाँ अभी से औजारों से वाकिफ हो जाएंगी।

Vish Ke Dant Ka Question Answer Bihar Board Class 10 प्रश्न 5.
सप्रसंग व्याख्या कीजिए –
(क) लड़कियाँ क्या है, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है।
उत्तर-
‘व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ नलिने विलोचन शर्मा द्वारा लिखित ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। यह संदर्भ सेन परिवार में पाली-पोसी जानेवाली लडकियों की चारित्रिक विशेषताओं . से जुड़ा हुआ है।

सेन परिवार मध्यमवर्गीय परिवार है जहाँ की जीवन-शैली कृत्रिमताओं से भरी हयी है।
सेन परिवार में लड़कियों को तहजीब और तमीज के साथ जीना सिखाया जाता है। उन्हें । शरारत करने की छूट नहीं। वे स्वच्छंद विचरण नहीं कर सकतीं जबकि बच्चा के लिए कोई पाबंदी नहीं है। सेन दंपत्ति ने लड़कियों को यह नहीं सिखाया है कि उन्हें क्या करना चाहिए उन्हें ऐसी तालीम दी गयी है कि उन्हें क्या-क्या नहीं करना है, इसकी सीख दी गयी है। इस प्रकार सेन परिवार में लड़कियों के प्रति दोहरी मानसिकता काम कर रही है। जहाँ लड़कियाँ अनुशासन, तहजीब और तमीज के बीच जी रही हैं वहाँ खोखा सर्वतंत्र स्वतंत्र है। लड़का-लड़की के साथ दुहरा व्यवहार विकास, परिवार और समाज के लिए घातक है। अतः लड़का-लड़की के बीच नस्लीय भेदभाव न पैदा कर उनमें समानता का विस्तार करना चाहिए।

(ख) खोखा के दुर्ललित स्वभाव के अनुसार ही सेनों ने सिद्धान्तों को भी बदल लिया था।
उत्तर-
व्याख्या प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी हैं। इस कहानी के रचयिता आचार्य नलिन विलोचन शर्माजी हैं। यह पंक्ति सेन परिवार के लाडले
बेटे के जीवन-प्रसंग से संबंधित है।
कहानीकार ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह बताने की चेष्टा किया है कि सेन परिवार एक मध्यमवर्गीय सफेदपोश परिवार है। यहाँ कृत्रिमता का ही बोलबाला है। नकली जीवन के बीच जीते ।। हुए सेन परिवार अपने बच्चों के प्रति भी दोहरा भाव रखता है।

सेन परिवार का बेटा शरारती स्वभाव का है। वह बुढ़ापे में पैदा हुआ है, इसी कारण सबका लाडला है। उसके लालन-पालन, शिक्षा-दीक्षा में कोई पाबंदी अनुशासन नहीं है। वह बेलौस जीने के लिए स्वतंत्र है। उसके लिए सारे नीति-नियम शिथिल कर दिए गए थे। वह इतना उच्छृखल था कि उसके द्वारा किये गए बुरे कर्मों को भी सेन दंपत्ति विपरीत भाव से देखते थे और उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे।

सेन दंपत्ति बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे, इसी कारण ट्रेनिंग भी वैसी ही दिलवा रहे थे। उसे किंडरगार्टन स्कूल की शिक्षा न देकर कारखाने में बढ़ई मिस्त्री के साथ लोहा पीटने, ठोंकने आदि से संबंधित काम सिखाया जाता था। औजारों से परिचित कराया जाता था। इस प्रकार सेन परिवार अपने शरारती बेटे के स्वभाव के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था कर दी थी और अपने सिद्धांतों को बदल लिया था।

(ग) ऐसे ही लडके आगे चलकर गंडे, चोर और डाक
उत्तर-
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी से ली गयी हैं। इसके रचयिता हैं—नलिन विलोचन शर्मा। इस पंक्ति का प्रसंग गिरधारी के बेटे मदन के साथ जुड़ा हुआ है।

एक बार की बात है कि सेन की गाड़ी के पास मदन खड़ा होकर गाड़ी को छू रहा था। जब शोफर ने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह शोफर को मारने दौड़ा लेकिन गिरधारी की पत्नी ने बेटे को संभाल लिया। ड्राइवर ने मदन को धक्के देकर नीचे गिरा दिया था जिससे मदन का घुटना फूट गया था.

शरारत की चर्चा ड्राइवर ने सेन साहब से की थी। इसी बात पर सेन साहब काफी क्रोधित हुए थे और गिरधारी को अपनी फैक्टरी से बुलवाकर डाँटते हुए कहा था कि देखो गिरधारी। आजकल मदन बहुत शोख हो गया है। मैं तो तुम्हारी भलाई ही चाहता हूँ। गाड़ी गंदा करने से मना करने पर वह ड्राइवर को मारने दौड़ पड़ा था और मेरे सामने भी वह डरने के बदले ड्राइवर की ओर मारने के लिए झपटता रहा। देखो, यह लक्षण अच्छा नहीं है, ऐसे ही लड़के आगे चलकर गुण्डे, चोर और डाकू बनते हैं। गिरधारी लाल तो जी हाँ, जी हाँ कहने में ही लगा हुआ था। ऐसी सीख देते हुए सेन साहब गिरधरी लाल को बच्चे को सँभालने और शरारत छोड़ने की सीख देते हुए चले गए। यह प्रसंग उसी वक्त का है।

इन पंक्तियों में सेन के चरित्र के दोगलेपन की झलक साफ-साफ दिखती है एक तरफ अपने अनुशासनहीन बेटे को इंजीनियर बनाने का सपना पालनेवाले सेन को उसकी बुराई नजर नहीं आती लेकिन दूसरी ओर गिरधारी लाल के बेटे में उइंडता और शरारत दिखाई पड़ती है। यह उस मध्यवर्गीय परिवार के जीवन चरित्र की सही तस्वीर है। अपने बेटे की प्रशंसा करते हैं, भले ही वह कुलनाशक है लेकिन निर्धन, निर्बल गिरधरी लाल के बेटे में कुलक्षण ही उन्हें दिखायी पड़ते हैं।

(घ) हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया।
उत्तर-
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘विष के दाँत’ नामक कहानी से ली गयी हैं जिसके रचियता हैं नलिन विलोचन शर्मा।
यह प्रसंग उस समय का है जब सेन दंपत्ति का बेटा दूसरे दिन शाम के वक्त बँगले के अहाते __ के बगलवाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन (गिरधारी लाल का बेटा) आवारागर्द लड़कों . के साथ लटू नचा रहा था। खोखा ने जब यह दृश्य देखा तो उसकी भी तबीयत लटू नचाने के लिए ललच गयी। खोखा तो बड़े घर का था यानी वह हंसों की जमात का था जबकि मदन और वे लड़के निम्न मध्यमवर्गीय दलित, शोषित थे। इन्हें कौओं से संबोधित किया गया। इसी सामाजिक भेदभाव के कारण कहा गया कि हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया। यानी कहने का भाव यह है कि खोखा जो अमीर सेन परिवार का वंशज है, गरीबों के खेल में शामिल होकर खेलने के लिए ललक गया किन्तु यह संभव न हो सका क्योंकि पहले दिन उसके पिता ने उसे और उसकी माँ के साथ पिता को भी प्रताड़ित किया था, उसने अपने अपमान को यादकर छूटते ही खोखा से कहा—अबे, भाग जा यहाँ से। बड़ा आया हैलटू खेलनेवाला ! यहाँ तेरा लटू नहीं है। जा, जा, अपने बाबा की मोटर में बैठ।

इन पंक्तियों के द्वारा कहानीकार सामाजिक असमानता, भेदभाव, गैरबराबरी को दर्शाना चाहता है।

विष के दांत प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 6.
सेन साहब के और उनके मित्रों के बीच क्या बातचीत हुई और पत्रकार मित्र ने उन्हें किस तरह उत्तर दिया?
उत्तर-
एक दिन का वाकया है कि ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे गपशप कर रहे थे। उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबारनवीस थे और सेन के दूर के रिश्तेदार भी होते थे। साथ में उनका लड़का भी था, जो था तो खोखा से भी छोटा, पर बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले कि पत्रकार महोदय : कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया- मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ, और वे ही बातें दुहराकर थकते नहीं थे। पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा, “मैं चाहता हूँ कि वह जेंटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए।

Vish Ke Dant Question Answer Bihar Board Class 10 प्रश्न 7.
मदन और ड्राइवर के बीच के विवाद के द्वारा कहानीकार क्या बताना चाहता है ?
उत्तर-
कहानीकार ड्राइवर के रूप में सामन्ती मानसिकता को दिखाया है। मदन एक गरीब का बच्चा है उसके सिर्फ मोटर को स्पर्श करने पर उसे धकेल दिया गया है। जिस कारण उसे चोट आ गया। सामन्ती मानसिकता और एक गरीब के व्यवहार की ओर कहानीकार बसा रहे हैं।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 8.
काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण क्या था ? इस प्रसंग के द्वारा लेखक क्या दिखाना चाहता है ?
उत्तर-
काशू और मदन के बीच झगड़े का कारण था काशू द्वारा मदन से लटू माँगना। मदन देने से इंकार करता है। काशू मारता है फिर मदन भी मारता है।
लेखक इस प्रसंग के द्वारा दिखाने चाहते हैं कि बच्चे में सामन्ती मानसिकता का भय नहीं होता बाद में चाहे जो हो जाय।

Bihar Board Class 10th Hindi Book Solution प्रश्न 9.
‘महल और झोपड़ी वालों की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में जब दूसरे झोपड़ी वाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं।’ लेखक के इस कथन को कहानी से एक उदाहरण देकर पुष्ट कीजिए।
उत्तर-
सेन साहब की नयी चमकती काली गाड़ी को छूने भर के अपराध के लिए मदन न केवल शोफर द्वारा घसीटा जाता है, अपितु बाप गिरधर द्वारा भी बेरहमी से पीटा जाता है। दूसरे दिन खोखा जब मदन की मंडली में लटू खेलने चला जाता है तो मदन का स्वाभिमान जाग उठता है। दोनों की लड़ाई वृहत् रूप ले लेती है। खोखा और. मदन की लड़ाई महल और झोपड़ी की लड़ाई का प्रतीक है। खोखा को मुँह की खानी पड़ती है। इस स्वाभिमान की झगड़ा में झोपड़ी वाले की जीत होती है।

प्रश्न 10.
रोज-रोज अपने बेटे मदन की पिटाई करने वाला गिरधर मदन द्वारा काशू की पिटाई करने पर उसे दंडित करने के बजाय अपनी छाती से क्यों लगा लेता है ?
उत्तर-
गिरधर लाल सेन साहब की फैक्ट्री में एक किरानी था और उनके ही बंगले के अहाते के एक कोने में आउट-हाउस में रहता था। सेन साहब द्वारा जब मदन की शिकायत की जाती । तब गिरधर मदन की पिटाई करता था। गिरधर सेन साहब की हर बात को मानने के लिए विवश था। लेकिन एक दिन जब मदन काशू के अहंकार का जवाब देते हुए उस पर प्रहार करके उसके दाँत तोड़ दिये तब उसके पिता उल्लास और गर्व के साथ उसे शाबासी देते हैं। जो काम वह स्वयं नहीं कर पाया था वह उसका पुत्र करके दिखा दिया था। इसलिए वह गौरवान्वित था। मदन शोषण, अत्याचार और अन्याय के विरुद्ध प्रज्वलित प्रतिशोध का प्रतीक है। उसके निर्भीकता से प्रभावित होकर गिरधर ने उसे छाती से लगा लिया।

प्रश्न 11.
सेन साहब, मदन, काश और गिरधर का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
सेन साहब- कहानी में सेन साहब प्रमुख पात्र हैं। नई-नई उन्होंने गाड़ी खरीदी है। इसीलिए गाड़ी छाया से सब दूर रहे। खासकर खोखा-खोखी।
सेन साहब में दिखावा बहुत अधिक है। अपने पुत्र के संबंध में बहुत बढ़ा-चढ़ाकार बातें करते हैं। अपने बेटे के सामने किसी दूसरे लड़के का प्रशंसा पसंद नहीं करते हैं। सेन साहब सामंती मानसिकता के आदमी है। .

मदन – सेन साहब का एक कर्मचारी गिरधर है जो उन्हीं के आहाते में रहता है। मदन उसी का लड़का है। लड़का साहसी और निर्भीक है। बाल सुलभ शरारत भी उसमें विद्यमान है। इसी कारण जब काशू. उससे झगड़ता है तो मदन भी उसी के भाषा में जवाब देता है।

काशू- काशू बाबू सेन साहब का एकमात्र सुपुत्र है। बहुत लाड़-प्यार के बहुत बिगड़ गया है। शरारत करने में माहिर हो गया है। कहानी का नायक काशू ही है।

गिरधर- गिरधर सेन साहब के फैक्ट्री में काम करने वाला एक कर्मचारी हैं। उन्हीं के अहाते में रहता है। गिरधर बेहद सीधा और सरल कर्मचारी। यदा-कदा इसे सेन साहब का गुस्सा झेलना पड़ता है। गिरधर मदन का पिता है।

प्रश्न 12.
आपकी दृष्टि में कहानी का नायक कौन है ? तर्कपूर्ण उत्तर दें।
उत्तर-
हमारी दृष्टि में ‘विष के दाँत’ शीर्षक कहानी का नायक मदन है। नायक के संबंध में पुरानी कसौटी अब बदल चुकी है। पहले यह धारणा थी कि नायक वही हो सकता है. जो उच्च कुलोत्पन्न हो, सुसंस्कृत, सुशिक्षित, युवा तथा ललित-कला प्रेमी हो। परन्तु नायक के संबंध में ये शर्ते अब मान्य नहीं। कोई भी पात्र नायक पद का अधिकारी है यदि वह घटनाओं का संचालक है, सारे पात्रों में सर्वाधिक प्रभावशाली है और कथावस्तु में उसका ही महत्व सर्वोपरि है। इस दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट ज्ञात होता है कि इस कहानी का नायक मदन ही है। इसमें मदन का ही चरित्र है जो सबसे अधिक प्रभावशाली है। पूरे कथावस्तु में इसी के चरित्र का महत्त्व है। खोखे के विष के दाँत उखाड़ने की महत्त्वपूर्ण घटना का भी वही संचालक है। अत: निर्विवाद रूप से मदन ही कहानी का नायक है।

प्रश्न 13.
आरंभ से ही कहानीकार का स्वर व्यंग्यपूर्ण है। ऐसे कुछ प्रमाण उपस्थित करें।
उत्तर-
पाँचो लड़कियाँ तो तहजीब और तमीज की तो जीती-जागती मूरत ही हैं।
जैसे कोयल घोंसले में से कब उड़ जाय। चमक ऐसी कि अपना मुँह देख लो।

प्रश्न 14.
‘विष के दाँत’ कहानी का सारांश लिखें।
उत्तर-
उत्तर के लिए सारांश देखें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
कहानी से मुहावरे चुनकर उनके स्वतंत्र वाक्य प्रयोग करें।
उत्तर-
आखों का तारा-मोहन अपने माता-पिता के आखों का तारा है।
जीती-जागती मूरत- सेन साहब पुत्री तहजीब और तमीज में जीती जागती मूरत है।
किलकारी. मारना– मोहन अपने मित्र के बातों पर किलकारी मारता है।

प्रश्न 2.
कहानी से विदेशज शब्द चुनें और उनका स्रोत निर्देश करें।
उत्तर-
Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 2 विष के दाँत - 1

प्रश्न 3.
कहानी से पाँच मिश्र वाक्य चुनें?
उत्तर-
(i) उन्हें सिखाया गया है कि ये बातें उनकी सेहत के लिए जरूरी है।
(ii) सेनों का कहना था कि खोखा आखिर अपने बाप का बेटा ठहरा।
(iii) औरत के पास एक बच्चा खड़ा था, जिसे वह रोकने की कोशिश कर रही थी।
(iv) मैंने मना किया तो लगा कहने जा-जा।
(v) कुर्सियाँ लॉन में लगवा दो, जब तक हम यहाँ बैठते हैं।

प्रश्न 4.
वाक्य-भेद स्पष्ट कीजिए-..
(क) इसके पहले कि पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ।
(ख) पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे।
(ग) ठीक इसी वक्त मोटर के पीछे खट-खट की आवाज सुनकर सेन साहब लपके, शोफर भी दौड़ा। .
(घ) ड्राइवर, जरा दूसरे चक्कों को भी देख लो और पंप ले आकर हवा भर दो।
उत्तर-
(क) मिश्र वाक्य
(ख) साधारण वाक्य
(ग) साधारण वाक्य
(घ) संयुक्त वाक्य।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1. लड़कियाँ तो पाँचों बड़ी सुशील हैं, पाँच-पाँच ठहरी और सो भी लड़कियाँ, तहजीब और तमीज की तो जीती-जागती मूरत ही हैं। मिस्टर और मिसेज सेन ने उन्हें क्या करना चाहिए, यह सिखाया हो या नहीं, क्या-क्या नहीं करना चाहिए, इसकी उन्हें ऐसी तालीम दी है कि बस। लड़कियाँ क्या हैं, कठपुतलियाँ हैं और उनके माता-पिता को इस बात का गर्व है। वे कभी किसी चीज को तोड़ती-फोड़ती नहीं। वे दौड़ती हैं, और खेलती भी हैं, लेकिन सिर्फ शाम के वक्त, और चूँकि उन्हें सिखाया गया है कि ये बातें उनकी सेहत के लिए जरूरी हैं। वे ऐसी मुस्कराहट अपने होठों पर ला सकती हैं कि सोसाइटी की तारिकाएँ भी उनसे कुछ सीखना चाहें, तो सीख लें, पर उन्हें खिलखिलाकर किलकारी मारते हुए किसी ने सुना नहीं। सेन परिवार के मुलाकाती रश्क के साथ अपने शरारती बच्चों से. खीझकर कहते हैं “एक तुम लोग हो, और मिसेज सेन की लड़कियाँ हैं। अब, फूल का गमला तोड़ने के लिए बना है ? तुम लोगों के मारे घर में कुछ भी तो नहीं रह सकता।”

प्रश्न
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ? और इसके लेखक कौन हैं ?
(ख) सेन साहब अपनी पुत्रियों को कैसा मानते थे?
(ग) स्वास्थ्य लाभ के लिए पुत्रियों को क्या सिखाया गया है ?
(घ) सेन साहब के मुलाकाती लोग अपने शरारती बच्चों से खीझकर क्या कहते थे?
(ङ) लेखक ने सेन साहब की पुत्रियों की तुलना कठपुतलियों से क्यों की है ?
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश ‘विष के दाँत’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक नलिन विलोचन शर्मा हैं।
(ख) सेन साहब को अपनी पुत्रियों पर पूरा भरोसा था। उनकी सोच थी कि उनकी बेटियाँ तहजीब और तमीज की जीती-जागती मूरत हैं। वे किसी भी चीज को तोड़ती-फोड़ती नहीं हैं।
(ग) स्वास्थ्य लाभ के लिए खेलना जरूरी है। खेलने से शरीर चुस्त-दुरूस्त रहता है किन्तु खेल की भी समय-सीमा निर्धारित थी। खेलना-कूदना और दौड़ना शाम में ही ठीक होता है। अतः, समय पालन का पूरा-पूरा निर्देश दिया गया था।
(घ) सेन साहब से मिलने के लिए प्रायः लोग आया-जाया करते थे। वे सेन साहब की पुत्रियों के रहन-सहन से काफी प्रभावित हो जाते थे। मंद मुस्कान, बोली में मिठास आदि उन पुत्रियों के गुण थे। किन्तु मिलनेवालों के बच्चे इन चीजों के विपरीत थे। कभी गमला तोड़ देना, आपस में उलझ जाना उनकी ये आदत बन गयी थीं। अत: उनकी लड़कियों पर रीझकर, अपने बेटे-बेटियों से कहते, एक तुम लोग हो और एक सेन साहब की लड़कियाँ जिनकी चाल-ढाल प्रशंसनीय है।
(ङ) कठपुतलियाँ निर्देशन के आधार पर चलती हैं। उठना, बैठना, चलना आदि सभी क्रियाएँ निर्देश पर ही होती हैं। ठीक उसी प्रकार सेन साहब की बेटियाँ भी निर्देश पर ही काम करती थीं। जोर-से नहीं हँसना, चीजों को नहीं तोड़ना, शाम में खेलना-कूदना आदि सभी काम वे कहने पर ही करती थीं। इसी कारण लेखक ने उन पुत्रियों की तुलना कठपुतलियों से की है।

2. खोखा नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा है यह नहीं कि मिसेज सेन अपना और बुढ़ाये का ताल्लुक किसी हालत में मानने को तैयार हों और सेन साहब तो सचमुच बूढ़े नहीं लगते, लेकिन मानने लगते कि बात छोड़िये। हकीकत तो यह है कि खोखा का आविर्भाव तब जाकर हुआ था, जब उसकी कोई उम्मीद दोनों को बाकी नहीं रह गयी थी। खोखा जीवन के नियम का अपवाद
था, और यह अस्वाभाविक नहीं था कि वह घर के नियमों का भी अपवाद हो।
प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नामोल्लेख करें।
(ख) लेखक ने नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा किसे कहा है और क्यों ?
(ग) खोखा घर के नियमों का अपवाद क्यों था?
उत्तर-
(क) पाठ-“विष के दाँत”, लेखक–नलिन विलोचन शर्मा।
(ख) लेखक ने सेन दम्पत्ति के एक मात्र पुत्र खोखा को नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा कहा है। वस्तुतः सेन दम्पत्ति इस ढलती उम्र में, जब संतानोत्पत्ति की कोई आशा नहीं थी, खोखा. का जन्म हुआ था। इसलिये उसे आँखों का तारा अर्थात् अत्यन्त प्यारा कहा है।
(ग) खोखा ढलती उम्र में सेन दम्पत्ति का एक मात्र पुत्र था। अत: बहुत दुलारा था। घर का अनुशासन लड़कियों पर तो लागू था किन्तु खोखा पर किसी प्रकार की शक्ति नहीं थी। उसपर … कोई पाबंदी न थी। इसलिये बहुत छूट थी।

3. एक दिन का वाकया है कि ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे गपशप कर . रहे थे। उनमें एक साहब साधारण हैसियत के अखबारनवीस थे और सेनों के दूर के रिश्तेदार भी होते थे। साथ में उनका लड़का भी था, जो था तो खोखा से भी छोटा, पर बड़ा समझदार और होनहार मालूम पड़ता था। किसी ने उसकी कोई हरकत देखकर उसकी कुछ तारीफ कर दी और उन साहब से पूछा कि बच्चा स्कूल तो जाता ही होगा? इसके पहले कि पत्रकार महोदय कुछ जवाब देते, सेन साहब ने शुरू किया-मैं तो खोखा को इंजीनियर बनाने जा रहा हूँ, और वे ही बातें दुहराकर वे थकते नहीं थे। पत्रकार महोदय चुप मुस्कुराते रहे। जब उनसे फिर पूछा गया कि अपने बच्चे के विषय में उनका क्या ख्याल है, तब उन्होंने कहा “मैं चाहता हूँ कि वह जेंटिलमैन जरूर बने और जो कुछ बने, उसका काम है, उसे पूरी आजादी रहेगी।” सेन साहब इस उत्तर के शिष्ट और प्रच्छन्न व्यंग्य पर ऐंठकर रह गए।

प्रश्न
(क) पाठ तथा उसके लेखक का नाम लिखें।
(ख) ड्राइंग रूम में कौन बैठे थे ?
(ग) समझदार लड़का कौन था ?
(घ) सेन साहब खोखा को क्या बनाना चाहते थे ?
(ङ) पत्रकार महोदय के उत्तर को सुनने के पश्चात् सेन साहब पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-विष के दाँत
लेखक का नाम-नलिन विलोचन शर्मा।
(ख) ड्राइंग रूम में सेन साहब के कुछ दोस्त बैठे थे।
(ग) समझदार लड़का सेन साहब के रिश्तेदार पत्रकार महोदय का पुत्र था।
(घ) सेन साहब खोखा को इंजीनियर बनाना चाहते थे।
(ङ) पत्रकार महोदय के उत्तर पर सेन साहब ऐंठकर रह गए।

4. शाम के वक्त खेलता-कूदता खोखा बँगले के अहाते के बगल वाली गली में जा निकला। वहाँ धूल में मदन पड़ोसियों के आवारागर्द छोकरों के साथ लटू नचा रहा था। खोखा ने देखा तो उसकी तबीयत मचल गई। हंस कौओं की जमात में शामिल होने के लिए ललक गया, लेकिन आदत से लाचार उसने बड़े रोब के साथ मदन से कहा- ‘हमको लट्टू दो, हम भी खेलेगा’ दूसरे लड़कों की कोई खास उम्र नहीं थी, वे खोखा को अपनी जमात में ले लेने के फायदों को नजर अंदाज नहीं कर सकते थे। पर उनके अपमानित प्रताड़ित, लीडर मन को यह बात कब मंजूर हो सकती थी। उसने छूटते ही जवाब दिया-“अबे भाग जा यहाँ से ! बड़ा आया है लटू खेलने वाला। है भी लटू तेरे ! जा, अपने बाबा की मोटर पर बैठ।”

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) खोखा शाम के खेलते हुए कहाँ चला गया ?
(ग) मदन क्या कर रहा था ?
(घ) लटू का खेल देखकर खोखा पर क्या प्रभाव पड़ा?
(ङ) मदन खोखा को खेल में भाग लेने क्यों नहीं दिया ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम- विष के दाँत
लेखक का नाम नलिन विलोचन शर्मा।
(ख) खोखा शाम के वक्त खेलता-कूदता बँगले के अहाते की बगल वाली गली में चला गया।
(ग) मदन पड़ोसियों के आवारागर्द छोकरों के साथ लटू नचा रहा था।
(घ) लटू का खेल देखकर खोखा की तबीयत मचल गई। उसे खेलने की प्रबल इच्छा हुई।
(ङ) खोखा के व्यवहार ने मदन को आहत कर दिया था। उसके द्वारा प्रताड़ित होने के चलते वह खोखा को खेल में भाग लेने नहीं दिया।

5. मदन घर नहीं लौटा, लेकिन जाता ही कहाँ ? आठ-नौ बजे तक इधर-उधर मारा-मारा फिरता रहा। फिर भूख लगी, तो गली के दरवाजे से आहिस्ता-आहिस्ता घर में घुसा। उसके लिए मार खाना मामूली बात थी। डर था तो यही कि आज मार और दिनों से भी बुरी होगी, लेकिन उपाय ही क्या था! वह पहले रसोईघर में घुसा। माँ नहीं थी। बगल के सोनेवाले कमरे से बातचीत की आवाज आ रही थी। उसने इत्मीनान के साथ भर पेट खाना खाया, फिर दरवाजे के पास जाकर अन्दर की बातचीत सुनने की कोशिश करने लगा।

प्रश्न
(क) पाठ एवं लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मदन देर रात तक घर क्यों लौट गया ?
(ग) मदन किस बात के लिए डरा हुआ था ?
(घ) घर पहुँचकर मदन ने सर्वप्रथम क्या किया ?
(ङ) खाना खाने के बाद मदन ने क्या किया ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-विष के दाँत।
लेखक का नाम-नलिन विलोचन शर्मा।
(ख) मदन देर रात तक घर लौट गया, क्योंकि इधर-उधर घूमते रहने के कारण उसे भूख लग चुकी थी।
(ग) मदन को डर था कि अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक मार खानी पड़ेगी।
(घ) घर पहुँचकर मदन ने सर्वप्रथम रसोईघर में घुसकर भर पेट खाना खाया।
(ङ) खाना खाने के उपरान्त मदन ने दरवाजे के पास जाकर अन्दर की बात सुनने की कोशिश करने लगा।

6.  चोर-गुंडा-डाकू होनेवाला. मदन भी कब माननेवाला था। वह झट काशू पर टूट पड़ा। दूसरे लड़के जरा हटकर इस द्वन्द्व युद्ध का मजा लेने लगे। लेकिन यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी। अहाते में यही लड़ाई हुई रहती, तो काशू शेर हो जाता। वहाँ से तो एक मिनट बाद ही वह रोता हुआ जान लेकर भाग निकला। महल और झोपड़ीवालों की लड़ाई में अक्सर महलवाले ही जीतते हैं, पर उसी हालत में, जब दूसरे झोपड़ीवाले उनकी मदद अपने ही खिलाफ करते हैं। लेकिन बच्चों को इतनी अक्ल कहाँ ? उन्होंने न तो अपने दुर्दमनीय लीडर की मदद की, न अपने माता-पिता के मालिक के लाडले की ही। हाँ, लड़ाई खत्म हो जाने पर तुरन्त ही सहमते हुए तितर-बितर हो गए।

प्रश्न
(क) मदन काशू को मारने के लिए क्यों टूट पड़ा?
(ख) यह लड़ाई हड्डी और मांस की, बँगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी। इसका आशय स्पष्ट करें।
(ग) महल और झोपड़ीवालों की लड़ाई में महलवाले ही क्यों जीतते हैं ?
(घ) लड़ाई समाप्त होने पर क्या हुआ?
(ङ) मदन और काशू की लड़ाई में अन्य लड़के तमाशबीन क्यों बने रहे?
उत्तर-
(क) लट्टू खेलने के नाम पर मदन और काशू में आपसी विवाद उत्पन्न हो गया। काशू को अपने पिता और उनकी सम्पत्ति पर गर्व रहता था। इस कारण वह मदन को मार बैठा। मदन भी अल्हड़ और स्वाभिमानी प्रवृत्ति का था। अपनी पिटाई उसे नागवार लगी और वह काशू को मारने के लिए टूट पड़ा।
(ख) दो परस्पर असामान्य हैसियतों के बीच की लड़ाई अजीबोगरीब होती है। काशू अमीर बाप का बेटा था और मदन का बाप काशू के पिताजी का ही एक निम्न कोटि का कर्मचारी था। मदन और काशू में कभी भी प्रेम नहीं रहता था। दोनों में सर्प और नेवले की तरह संबंध था। गली का कुत्ता किसी तरह अपना पेट भरता है जबकि महल का कुत्ता स्वामी का स्नेही होता है उसे खाने के लिए विविध प्रकार की व्यवस्था रहती है।
(ग) झोपड़ीवाले महल के अत्याचार से भयभीत रहते हैं। उन्हें भय बना रहता है कि महल का विरोध करना अपने आपको मृत्यु के मुँह में झोकना है। महलों के दया-करम पर ही उनका जीवन निर्भर है। झोपड़ीवाले अपने साथी को मदद करने में हिचकते हैं। यही कारण है कि महलवाले हमेशा झोपड़ीवालों से जीत जाते हैं।
(घ) लड़ाई में जब काशू हार गया और रोता-बिलखता अपने घर में भाग गया तो अन्य लड़के भी वहाँ से तितर-बितर हो गये। उन्हें भय हो गया कि कहीं काशू के पिताजी आकर हमलोगों को मार बैठे।
(ङ) मदन और काशू की लड़ाई को देखनेवाले लड़कों के बाप काशू के पिताजी के यहाँ ही नौकरी करते थे। उन्हें लगा कि यहाँ मौन रह जाना ही समझदारी है। किसी को मदद करने का मतलब अपने ऊपर होनेवाले जुर्म को न्योता देना है। इसी कारण वे तमाशबीन बने रहे।

7. गिरधर निस्सहाय निष्ठुरता के साथ मदन की ओर बढ़ा। मदन ने अपने दाँत भींच लिए। गिरधर मदन के बिल्कुल पास आ गया कि अचानक ठिठक गया। उसके चेहरे से नाराजगी का बादल हट गया। उसने लपककर मंदन को हाथों से उठा लिया। मदन. हक्का-बक्का अपने पिता को देख रहा था। उसे याद नहीं, उसके पिता ने कब उसे इस तरह प्यार किया था, अगर कभी किया था, तो गिरधर उसी बेपरवाही, उल्लास और गर्व के साथ बोल उठा; जो किसी के लिए भी नौकरी से निकाले जाने पर ही मुमकिन हो सकता है, ‘शाबाश बेटे’। एक तेरा बाप है, और तूने तो, खोखा के दो-दो दाँत तोड़ डाले। हा हा हा हा !
(क) पाठ और लेखक का नामोल्लेख करें।
(ख) गिरधर निष्ठुरता के साथ आगे बढ़कर क्यों ठिठक गया? (ग) मदन हक्का-बक्का क्यों हो गया ?
(घ) गिरधर ने बेटे मदन को शाबासी क्यों दी? मदन एकाएक गिरधर के लिए प्यारा क्यों बन गया ?
उत्तर-
(क) पाठ-विष के दाँत। लेखक-नलिन विलोचन शर्मा।
(ख) गिरधर पहले तो गुस्से में मदन को मारने के लिए तत्पर हो गया किन्तु तत्काल ही उसे ख्याल आया कि अब तो वह सेन साहब का कर्मचारी है ही नहीं। फिर उनके लड़के के लिए अपने को क्यों मारे? यह सोचकर वह ठिठक गया।
(ग) मदन अक्सर अपने पिता से पिटता था। किन्तु जब पिता ने उसे अपने हाथों में प्यार से उठा लिया तो पिता के इस स्वभाव परिवर्तन पर वह हक्का-बक्का हो गया।
(घ) गिरधर सेन साहब का कर्मचारी था और अक्सर डाँट-फटकार सुनता था। इससे उसमें हीन-भावना घर कर गई थी। जब बेटे के कारण नौकरी से हटाया गया तो सेन साहब का भय समाप्त हो गया और उनके प्रति आक्रोश उभर आया। चूंकि उसके दमित आक्रोश को, उसके बेटे मदन ने सेन साहब के बेटे खोखा के दाँत को तोड़कर, व्यक्त कर दिया था, इसलिए मदन उसका प्यारा बन गया। जो काम गिरधर न कर सका था, उसके बेटे ने कर दिखाया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनें-

प्रश्न 1.
विष के दाँत कहानी के रचयिता कौन हैं ?
(क) अमरकांत
(ख) विनोद कुमार शुक्ल
(ग) नलिन विलोचन शर्मा
(घ) यतीन्द्र मिश्रा
उत्तर-
(ग) नलिन विलोचन शर्मा

प्रश्न 2.
खोखा का दूसरा नाम क्या था?
(क) मदन
(ख) गिरधर
(ग) काशू
(घ) आलो
उत्तर-
(ग) काशू

प्रश्न 3.
‘मदन’ किसका पुत्र था?
(क) सेन साहब
(ख) गिरधर
(ग) शोफर
(घ) सिंह साहब
उत्तर-
(ख) गिरधर

प्रश्न 4.
विष के दाँत कैसी कहानी है?
(क) सामाजिक
(ख) ऐतिहासिक
(ग) धार्मिक
(घ) मनोवैज्ञानिक
उत्तर-
(घ) मनोवैज्ञानिक

प्रश्न 5.
‘विष के दाँत’ समाज के किस वर्ग की मानसिकता उजागर करती है ?
(क) उच्च वर्ग ।
(ख) निम्न वर्ग
(ग) मध्य वर्ग
(घ) निम्न-मध्य वर्ग
उत्तर-
(ग) मध्य वर्ग

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1.
खोखा नाउम्मीद ………. की आँखों का तारा है।
उत्तर-
बुढ़ापे

प्रश्न 2.
सेन साहब को देखकर औरत ……..” गई। .
उत्तर-सहम

प्रश्न 3.
मदन का ……. रुदन रुक गया था। .
उत्तर-
आत

प्रश्न 4.
दूसरे लड़के जरा हटकर इस ……… युद्ध का मजा लेने लगे।
उत्तर-
द्वन्द्व

प्रश्न 5.
मदन के लिए ……” खाना मामूली बात थी।
उत्तर-
मार

प्रश्न 6.
गिरधर ने लपककर मदन को “……” से उठा लिया।
उत्तर-
हाथों

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सेन साहब को कितनी लड़कियाँ थीं ? उनके क्या नाम थे?
उत्तर-
सेन साहब को सीमा, रजनी, आलो, शेफाली और आरती-ये पाँच लड़कियाँ थीं।

प्रश्न 2.
सेन साहब की लड़कियाँ कठपुतलियाँ किस प्रकार थीं ?
अथवा, लेखक ने सेन साहब की लड़कियों को कठपुतलियाँ क्यों कहा है?
उत्तर-
अपने माता-पिता (सेन-दम्पति) के आदेश का वे अक्षरशः पालन करती थीं तथा वही .. कार्य करती थीं जो उन्हें करने के लिए कहा जाता था।

प्रश्न 3.
खोखा सेन दम्पति की नाउम्मीद बुढ़ापे की आँखों का तारा क्यों था?
उत्तर-
खोखा सेन दम्पति के बुढ़ापे की संतान था। उसका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब उसकी कोई उम्मीद उन दोनों को बाकी नहीं रह गई थी।

प्रश्न 4.
सेन साहब अपने “खोखा” को क्या बनाना चाहते थे ?
उत्तर-
सेन साहब अपने “खोखा” को इंजीनियर बनाना चाहते थे।

प्रश्न 5.
गिरधर कौन था?
उत्तर-
गिरधर सेन साहब की फैक्ट्री में किरानी था।

प्रश्न 6.
मदन ड्राइवर के बीच विवाद क्यों हुआ?
उत्तर-
ड्राइवर के मना करने पर भी मदन सेन साहब की कार को छू रहा था जो दोनों के बीच विवाद का कारण बना।

प्रश्न 7.
सेन साहब ने मदन की माँ को क्या हिदायत दी ?
उत्तर-
सेन साहब ने मदन की माँ को हिदायत दी कि मदन भविष्य में कार को छूना जैसी हरकत नहीं करे।

प्रश्न 8.
काश और मदन की लड़ाई कैसी थी?
उत्तर-
काशू और मदन की लड़ाई हड्डी और मांस की, बंगले के पिल्ले और गली के कुत्ते की लड़ाई थी।

प्रश्न 9.
झोपड़ी और महल की लड़ाई में अक्सर कौन जीतता है ?
उत्तर-
झोपड़ी और महल की लड़ाई में अक्सर महल वाले ही जीतते हैं।

प्रश्न 10.
आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का प्रारंभ किसकी कविताओं से हुआ था ?
उत्तर-
आलोचकों के अनुसार प्रयोगवाद का आरंभ नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से हुआ।

विष के दाँत लिखक परिचय

नलिन विलोचन शर्मा का जन्म 18 फरवरी 1916 ई० में पटना के बदरघाट में हुआ । वे जन्मना भोजपुरी भाषी थे। वे दर्शन और संस्कृत के प्रख्यात विद्वान महामहोपाध्याय पं० रामावतार शर्मा के ज्येष्ठ पुत्र थे । माता का नाम रत्नावती शर्मा था। उनके व्यक्तित्व-निर्माण में पिता के पांडित्य के साथ उनकी प्रगतिशील दृष्टि की भी बड़ी भूमिका थी। उनकी स्कूल की पढ़ाई पटना कॉलेजिएट स्कूल से हुई और पटना विश्वविद्यालय से उन्होंने संस्कृत और हिंदी में एम० ए० किया। वे हरप्रसाद दास जैन कॉलेज, आरा, राँची विश्वविद्यालय और अंत में पटना विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहे । सन् 1959 में वे पटना विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए और मृत्युपर्यंत (12 सितंबर 1961 ई०) इस पद पर बने रहे।

हिंदी कविता में प्रपद्यवाद के प्रवर्तक और नई शैली के आलोचक नलिन जी की रचनाएँ इस प्रकार हैं – ‘दृष्टिकोण’, ‘साहित्य का इतिहास दर्शन’, ‘मानदंड’, ‘हिंदी उपन्यास – विशेषतः प्रेमचंद’, ‘साहित्य तत्त्व और आलोचना’ – आलोचनात्मक ग्रंथ; ‘विष के दाँत’ और सत्रह असंगृहीत पूर्व छोटी कहानियाँ — कहानी संग्रह; केसरी कुमार तथा नरेश के साथ काव्य संग्रह – ‘नकेन के प्रपद्य’ और ‘नकेन- दो’, ‘सदल मिश्र ग्रंथावली’, ‘अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रंथ’, ‘संत परंपरा और साहित्य’ आदि संपादित ग्रंथ हैं।

आलोचकों के अनुसार, प्रयोगवाद का वास्तविक प्रारंभ नलिन विलोचन शर्मा की कविताओं से हुआ और उनकी कहानियों में मनोवैज्ञानिकता के तत्त्व समग्रता से उभरकर आए। आलोचना में वे आधुनिक शैली के समर्थक थे । वे कथ्य, शिल्प, भाषा आदि सभी स्तरों पर नवीनता के आग्रही लेखक थे। उनमें प्रायः परंपरागत दृष्टि एवं शैली का निषेध तथा आधुनिक दृष्टि का समर्थन है । आलोचना की उनकी भाषा गठी हुई और संकेतात्मक है । उन्होंने अनेक पुराने शब्दों को नया जीवन दिया, जो आधुनिक साहित्य में पुनः प्रतिष्ठित हुए ।

यह कहानी ‘विष के दाँत तथा अन्य कहानियाँ’ नामक कहानी संग्रह से ली गई है। यह कहानी मध्यवर्ग के अनेक अंतर्विरोधों को उजागर करती है। कहानी का जैसा ठोस सामाजिक संदर्भ है, वैसा ही स्पष्ट मनोवैज्ञानिक आशय भी । आर्थिक कारणों से मध्यवर्ग के भीतर ही एक ओर सेन साहब जैसों की एक श्रेणी उभरती है जो अपनी महत्वाकांक्षा और सफेदपोशी के भीतर लिंग-भेद जैसे कुसंस्कार छिपाये हुए हैं तो दूसरी ओर गिरधर जैसे नौकरीपेशा निम्न मध्यवर्गीय व्यक्ति की श्रेणी है जो अनेक तरह की थोपी गयी बंदिशों के बीच भी अपने अस्तित्व को बहादुरी एवं साहस के साथ बचाये रखने के लिए संघर्षरत है । यह कहानी सामाजिक भेद-भाव, लिंग-भेद, आक्रामक स्वार्थ की छाया में पलते हुए प्यार-दुलार के कुपरिणामों को उभारती हुई सामाजिक समानता एवं मानवाधिकार की महत्त्वपूर्ण बानगी पेश करती है ।

विष के दाँत Summary in Hindi

पाठ का सारांश

विष के दाँत शीर्षक कहानी के लेखक श्री नलिन विलोचन शर्मा हैं। उन्होंने अपने लेख में । सामंती मिजाज के धनवान् परिवार और उसी पर आश्रित एक गरीब परिवार का चरित्र-चित्रण किया है। कहानी में सेन साहब और उनकी पत्नी को कड़े अनुशासन को पालन करने वाला दिखाया गया है। उनके परिवार में पाँच लड़की के बाद एक लड़का का जन्म होता है। लड़कियों के ऊपर अनुशासन की छड़ी बहुत कड़ी है जिससे लड़कियाँ मानो मिट्टी की मूर्ति बन चुकी है। उसी परिवार में लड़का सबसे छोटा है। सारा अनुशासन घर का नियम-व्यवस्था सब कुछ उसके लिए फे है। लाड़-प्यार में शरारती हो चुका है। अभी उम्र पाँच वर्ष का है लेकिन नौकर, बहन आदि पर हाथ चला देता है।

एक दिन संन साहब अपने दोस्तों के साथ ड्राइंग रूम में गपशप कर रहे थे। उनके एक पत्रकार मित्र भी थे। उसके साथ छोटा लड़का भी था जो काशू बाबू के उम्र का ही था। बात-चीत के क्रम में किसी ने उस लड़के के बारे में जानकारी चाही, बस सेन साहब अपने पुत्र खोखा के बारे में बोलने लगे। इसे इंजीनियर बनाना है। और बोलते ही चले गये। सेन साहब व्यवहार में परिवर्तन हो चुका था अपने पुत्र खोखा के लिए।

उन्हीं अहाते में गिरधर लाल रहता था। उसका छोटा लड़का मदन था जो खोखा के उम्र का था। एक दिन गाड़ी को गन्दा कर रहा था। रात में सेन साहब ने गिरधरलाल को बुलाकर काफी डाँटा। परिणामतः गिरधरलाल ने अपने बेटे मदन को खूब पीटा। रात में सोने वक्त सेनसाहब । मदन की रोने की आवाज सुनकर काफी खुश हुए।

अगले ही दिन काशू बाबू खेलने के लिए बगल के गली में चले गये। जहाँ मदन और अन्य लड़का लटू नचा रहा था। खोखा ने मदन से रौब में लटू माँगा। नहीं मिलने पर मदन पर चूंसा चला दिया। बदले में मदन ने भी घूसा चला दिया। और काशू बाबू के दो दाँत टूट गये। यानी विष के दाँत टूट गये।

शब्दार्थ

बरसाती : पोर्टिको
नाज : गर्व, गुमान
तहजीब : सभ्यता
शोफर : ड्राइवर
शामत : दुर्भाग्य
सख्त : कड़ा, कठोर
ताकीद : कोई बात जोर देकर कहना, चेतावनी
खोखा-खोखी : बच्चा-बच्ची (बाँग्ला)
फटकना : निकट आना
तमीज : विवेक, बुद्धि, शिष्टता
तालीम : शिक्षा
सोसाइटी : शिष्ट समाज, भद्रलोक
रश्क : इर्ष्या
ताल्लुक : संबंध
हकीकत : सच्चाई, वास्तविकता
आविर्भाव : उत्पत्ति, प्रकट होना
दुर्ललित : लाड़-प्यार में बिगड़ा हुआ
ट्रेंड : प्रशिक्षित
दूरदेशी : दूरदर्शिता, समझदारी
फरमाना : आग्रहपूर्वक कहना
फिजल : फालतू, व्यर्थ
वाकिफ : परिचित
वाकया : घटना
हेसियत : स्तर, प्रतिष्ठा, सामर्थ्य, औकात
अखबारनवीस : पत्रकार
प्रच्छन्न : छिपा हुआ, गुप्त, अप्रकट
अदब : शिष्टता, सभ्यता
हिकमत : कौशल, योग्यता
रासत : विदाई
बलौस : नि:स्वार्थ
बेयरा : खाना खिलाने वाला सेवक
चीत्कार : क्रंदन, आर्त होकर चीखना
शयनागार : शयनकक्ष, सोने का कमरा
खलल : विघ्न, बाधा, व्यवधान
कातर : आर्त
खेतयत : कुशलक्षेम
बेडब : बेतरीका, अनगढ़
उज्र : आपत्ति
मजाल : ताकत, हिम्मत, साहस
अक्ल : बुद्धि
दुर्दमनीय : मुश्किल से जिसका दमन किया जा सके
निष्ठुरता : क्रूर निर्ममता

Bihar Board Class 9 History Solutions Chapter 3 फ्रांस की क्रान्ति

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 1 Chapter 3 फ्रांस की क्रान्ति Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science History Solutions Chapter 3 फ्रांस की क्रान्ति

Bihar Board Class 9 History फ्रांस की क्रान्ति Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

फ्रांस की क्रांति प्रश्न उत्तर Class 9 Bihar Board प्रश्न 1.
फ्रांस की राजक्रांति किस ई० में हुई ?
(क) 1776
(ख) 1789
(ग) 1776
(घ) 1832
उत्तर-
(ख) 1789

फ्रांस की क्रांति प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 2.
बैस्टिल का पतन कब हुआ?
(क) 5 मई, 1789
(ख) 20 जून, 1789
(ग) 14 जुलाई, 1789
(घ) 27 अगस्त, 1789
उत्तर-
(ग) 14 जुलाई, 1789

Bihar Board Class 9 History Solution Chapter 3 प्रश्न 3.
प्रथम एस्टेट में कौन आते थे?
(क) सर्वसाधारण
(ख) किसान
(ग) पादरी
(घ) राजा
उत्तर-
(ग) पादरी

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 4.
द्वितीय एस्टेट में कौन आते थे?
(क) पादरी
(ख) राजा
(ग) कुलीन
(घ) मध्यमवर्ग
उत्तर-
(ग) कुलीन ।

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 5.
तृतीय एस्टेट में इनमें से कौन थे?
(क) दार्शनिक
(ख) कुलीन
(ग) पादरी
(घ) न्यायाधीश
उत्तर-
(क) दार्शनिक

फ्रांस की क्रांति प्रश्न उत्तर Pdf Bihar Board प्रश्न 6.
बोल्टेमर क्या था?
(क) वैज्ञानिक
(ख) गणितज्ञ
(ग) लेखक
(घ) शिल्पकार
उत्तर-
(ग) लेखक

Bihar Board Class 9 Social Science Solution प्रश्न 7.
रूसो किस सिद्धान्त का समर्थक था?
(क) समाजवाद
(ख) जनता की इच्छा
(ग) शक्ति पृथक्करण
(घ) निरंकुशता (General Will)
उत्तर-
(ख) जनता की इच्छा

Itihas Ki Duniya Class 9 Bihar Board प्रश्न 8.
मांटेस्क्यू ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
(क) समाजिक संविदा
(ख) विधि का आत्मा
(ग) दास केपिटल
(घ) वृहत ज्ञानकोष
उत्तर-
(ख) विधि का आत्मा

फ्रांस की क्रांति के परिणामों का उल्लेख करें Bihar Board प्रश्न 9.
फ्रांस की राजक्रांति के समय वहाँ का राजा कौन था ?
(क) नेपोलियन
(ख) लुई चौदहवाँ
(ग) लुई सोलहवाँ
(घ) मिराब्यो
उत्तर-
(ग) लुई सोलहवाँ

फ्रांस की क्रांति के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 10.
फ्रांस में स्वतंत्रता दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 4 जुलाई
(ख) 14 जुलाई
(ग) 21 अगस्त
(घ) 31 जुलाई
उत्तर-
(ख) 14 जुलाई

I. रिक्त स्थान की पूर्ति करें-

1. लुई सोलहवाँ सन् …………… ई० में फ्रांस की गद्दी पर बैठा।
2. …………… लुई सोलहवाँ की पत्नी थी। 3. फ्रांस की संसदीय संस्था को …………… कहते थे।
4. ठेका पर टैक्स वसूलने वाले पूँजीपतियों को …………… कहा जाता था।
5. …………. के सिद्धन्त की स्थापना मांटेस्क्यू ने की।
6. ………….. की प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ है।
7. 27 अगस्त, 1789 को फ्रांस की नेशनल एसेम्बली ने …………… की घोषणा थी।
8. जैकोबिन दल का प्रसिद्ध नेता …………… था।
9. दास प्रथा का अंतिम रूप से उन्मूलन …………… ई० में हुआ।
10. फ्रांसीसी महिलाओं को मतदान का अधिकार सन् ……….. ई० में मिला।
उत्तर-
1.1774,
2. मेरी अन्तोयनेत,
3. स्टेट जेनरल,
4. टैक्सफार्मर,
5. शक्ति पृथक्करण,
6. रूसो,
7. मानव और नागरिकों के अधिकार,
8. मैक्समिलियन राब्स पियर,
9. 1848,
10. 1946

लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Solution Class 9 History प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति के राजनैतिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के राजनैतिक कारण निम्नलिखित थे।
(i) निरंकुश राजशाही। (ii) राज-दरबार की विलासिता । (iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार। (iv) संसद की बैठक 175 वर्षों तक नहीं बुलाई गयी। (v) अत्यधिक केन्द्रीयकरण की नीति। (vi) स्वायत्त शासन का अभाव। (vii) मेरी अन्तोयनेत का प्रभाव।
इन्हीं कारणों से फ्रांस की राज्य क्रान्ति हुई।

फ्रांसीसी क्रांति पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रांति के सामाजिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांस में समाज तीन वर्गों में विभक्त था- (i) प्रथम एस्टेट में पादरी (ii) दूसरे एस्टेट में अभिजात वर्ग । (iii) तीसरे एस्टेट में सर्वसाधारण । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त थे। फ्रांस की कुल भूमि का 40% इन्हीं के पास थी। 90 प्रतिशत जनता तीसरे एस्टेट में थी, जिनको कोई भी विशेषाधिकार प्राप्त नहीं था वे अपने स्वामी की सेवा घर एवं खेतों में काम करना । डाक्टर, वकील, जज, अध्यापक भी इसी वर्ग में थे। इन लोगों में भारी असंतोष था। यही वर्ग क्रांति का कारण बना।

France Ki Kranti Class 9 Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
क्रांति के आर्थिक कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-

  • फ्रांस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसे सुधारने के लिए वहाँ की जनता पर करों का बोझ लाद दिया गया था।
  • करों का विभाजन दोष पूर्ण था । प्रथम और द्वितीय वर्ग करों से मुक्त था, जबकि जनसाधारण को कर चुकाने पड़ते थे ।
  • किसानों पर भूमि पर, धार्मिक कर, सामन्ती कर आदि लगे थे। दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर भी कर देने पड़ते थे।
  • औद्योगिक क्रांति शुरू होने से मशीनों का उपयोग शुरू हुआ और बेरोजगारों की संख्या बढ़ने लगी।
  • व्यापारियों पर अनेक तरह के कर लगाए गए थे। जैसे—गिल्ड की पाबन्दी, सामन्ती कर, प्रान्तीय आयात कर इत्यादि । इस कारण यहाँ का व्यापार का विकास नहीं हो पाया। ये सभी कारण क्रांति को प्रोत्साहित किया।

Class 9 फ्रांस की क्रांति प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 4.
फ्रांस की क्रांति के बौद्धिक कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रान्ति के विषय में कहा जाता है कि यह एक मध्यम वर्गीय क्रान्ति थी । फ्रांस की स्थिति बड़ी गंभीर थी इस स्थिति को समझने या स्पष्ट करने में दार्शनिकों ने बड़ा योगदान दिया। फ्रांस के अनेक दार्शनिक, विचारक और लेखक हुए । इन लोगों ने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया । जनता इनके विचारों से गहरे रूप से प्रभावित हुए और क्रांति के लिए तैयार हो गई। इनमें प्रमुख मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो थे।

  • मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘विधि की आत्मा’ में सरकार के तीनों अंगों-कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका–को एक ही हाथ । में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए ऐसा होने से शासन निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी नहीं होगा। ऐसा बताकर उन्होंने शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त का पोषण किया।
  • रूसो पूर्ण परिवर्तन चाहते थे। उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ में जनमत को ही सर्व शक्तिशाली माना । अतः जनतंत्र का समर्थक था।
  • अन्य बुद्धिजीवी जिनमें ददरों प्रमुख थे । इन्होंने ‘वृहत ज्ञानकोष’ के लेखों से फ्रांस में क्रांन्तिकारी विचारों का प्रचार किया। फ्रांस के अर्थशास्त्रियों क्वेजनों एवं तुर्गों ने समाज में आर्थिक शोषण एवं नियंत्रण की आलोचना की और मुक्त व्यापार का समर्थन किया ।

Bihar Board Solution Class 9 Social Science Objective प्रश्न 5.
‘लेटर्स-डी-केचेट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
लेटर्स-डी-केचेट’ से फ्रांस में बिना अभियोग के गिरफ्तारी वारंट होता था । फ्रांस में सभी तरह की स्वतंत्रताओं का अभाव था। भाषण, लेखन, विचार की अभिव्यक्ति तथा धार्मिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था । वहाँ राजधर्म कैथोलिक था और प्रोटेस्टेंट धर्म के मानने वालों को कठोर सजा दी जाती थी। ऐसे धर्मावलवियों को राजा बिना अभियोग के रिरफ्तारी वारंट देता था। उसे ही लेटर्स-द-केचेट (Letters-decachet) कहते थे।

प्रश्न 6.
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम का फ्रांस की क्रांति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में लफायते के नेतृत्व में फ्रांसीसी सेना ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था। उन्होंने वहाँ देखा था कि अमेरिका के 13 उपनिवेशों ने कैसे औपनिवेशिक शासन को समाप्त कर लोकतंत्र की स्थापना की थी। स्वदेश वापस लौटकर उनलोगों ने देखा कि जिन सिद्धान्तों की रक्षा के लिए वे अमेरिका में युद्ध कर रहे थे उनका अपने देश में ही अभाव था। वे सैनिक फ्रांस में क्रांति का अग्रदूत बनकर लोकतंत्र का संदेश फैलाने लगे । जनसाधारण पर इसका बहुत प्रभाव पड़ा अंत में वह फ्रांस की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बन गया ।

प्रश्न 7.
‘मानव एवं नागरिकों के अधिकार से’ आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
14 जुलाई, 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र के लिए राजा बना रहा और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी। इसी सभी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी.27 अगस्त, 1789 को ‘मानव और नागरिकों के अधिकार’ (The Declaration of the rights of man and citizen)इसमें समानता, स्वतंत्रता, संपत्ति की सुरक्षा तथा अत्याचारों से मुक्ति के अधिकार को नैसर्गिक और अहरणीय’ माना गया । व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस एवं भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी । अब राज्य किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए गिरफ्तार नहीं कर सकता था। तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकता था। इन अधिकारों की सुरक्षा करना राज्य का दायित्व माना गया । मध्यम वर्ग के लिए सबसे महत्वूपर्ण घोषणाएँ थीं। 90% सामान्य जनता को उन समस्याओं से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया जिनका सामना उन्हें निरंकुश राजशाही में करना पड़ता था।

प्रश्न 8.
फ्रांस की क्रांति का इंग्लैण्ड पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति का प्रभाव सिर्फ फ्रांस पर ही नहीं बल्कि यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा । नेपोलियन फ्रांस में सुधार के कार्यों को करते हुए अपने विजय अभियान के दौरान जब इटली और जर्मनी आदि देशों में पहुँचा, तब उसे वहाँ की जनता भी ‘क्रांति का अग्रदूत’ कहकर स्वागत किया । इसने इन देशों के नागरिकों को राष्ट्रीयता का संदेश देने का कार्य किया। इंग्लैण्ड पर प्रभाव-नेपोलियन का विजय अभियान इंग्लैण्ड पर भी हुआ, क्रान्ति का इतना अधिक असर इंग्लैण्ड में दिखा कि वहाँ की जनता ने भी सामन्तवाद के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी । फलस्वरूप सन् 1832 ई० में इंग्लैण्ड में ‘संसदीय सुधार अधिनियम’ पारित हुआ; जिसके द्वारा वहाँ के जमींदारों की शक्ति समाप्त कर दी गयी और जनता के लिए अनेक सुधारों का मार्ग खुल गया । भविष्य में, इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के विकास में इस क्रांति का बहुत योगदान रहा ।

प्रश्न 9.
फ्रांस की क्रांति ने इटली को प्रभावित किया, कैसे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति ने इटली को बहुत प्रभावित किया । इटली इस समय कई भागों में बँटा हुआ था । फ्रांस की इस क्रान्ति के बाद इटली के विभिन्न भागों में नेपोलियन ने अपनी सेना एकत्रित कर लड़ाई की तैयारी की और ‘इटली राज्य’ स्थापित किया। एक साथ मिलकर युद्ध करने से उनमें राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ और इटली में भावी एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ।

प्रश्न 10.
फ्रांस की क्रांति से जर्मनी कैसे प्रभावित हुआ?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति से जर्मनी भी अछूता नहीं रहा। जर्मनी भी उस समय छोटे-छोटे 300 राज्यों में विभक्त था, जो नेपोलियन के ही प्रयास से 38 राज्यों में सिमट गया । इस क्रान्ति में ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ एवं ‘बन्धुत्व’ की भावना को जर्मनी के लोगों ने अपनाया और आगे चलकर इससे जर्मनी के एकीकरण करने में बल प्राप्त हुआ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति के क्या कारण थे?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति 1789 ई० में हुई। इसके निम्नलिखित कारण थे
(i) सामाजिक कारण-फ्रांस में समाज तीन वर्गों-उच्च मध्यम तथा निम्न । प्रथम दोनों श्रेणियों में बडे सामन्त, पादरी तथा कुलीन वर्ग के व्यक्ति थे । इन्हें किसी भी प्रकार का कोई कर नहीं देना पड़ता था और 40% जमीन के भी यही मालिक थे। तृतीय श्रेणी वालों के जिसमें सर्वसाधारण व्यक्ति डाक्टर, वकील, व्यापारी आदि थे जिन्हें सभी प्रकार का कर देना पड़ता था। फलतः यह वर्ग जिनकी संख्या 90% थी परिवर्तन चाहते थे।

(ii) राजनीतिक कारण-फांस का राजा अपने को ही राज्य मानता था। उसका कथन था ‘मैं ही राज्य हूँ।” यह कथन लुई चौदहवाँ का कथन था। शासन की एकरूपता नहीं थी 1 पादरी और कुलीन लोगों के लिए कानून अलग थे । जनसाधारण के लिए अलग । सेना असंतुष्ट थी । शासन भ्रष्टाचारी हो चुका था।

(iii) आर्थिक कारण-
(क) फ्रांस का राजा और रानी मेरी अन्तोयनेत अत्यन्त खर्चीले थे । राज्यकोष खाली हो गया था ।
(ख) धनी लोग कर्ज से मुक्त थे जन साधारण को हर तरह के कर्ज देने पड़ते थे। अतः विधि दोष पूर्ण थी।
(ग) फ्रांस में 15000 बड़े पदाधिकारी अपार धन वेतन में पाते थे।
(घ) इस प्रकार फ्रांस का खजाना खाली हो गया था।

(iv) बौद्धिक कारण-फ्रांस की स्थिति तो खराब थी ही, परन्तु इस स्थिति को स्पष्ट करने में योगदान दिया फ्रांस के दार्शनिकों ने ।
(क) रूसो अपनी पुस्तक “सामाजिक संविदा” में राजा के दैवी अधिकार पर प्रहार किया।
(ख) वाल्टेयर ने चर्च, समाज और राजतंत्र के दोषों का पर्दाफास किया।
(ग) मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘विधि का आत्मा’ में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही।

(v) तात्कालिक कारण-इस प्रकार उपर्युक्त कारणों के कारण फ्रांस की क्रान्ति हुई।

प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रांति के परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति के निम्नलिखित परिणाम हुए

  • पुरातन व्यवस्था का अन्त-इस क्रान्ति ने पुरातन व्यवस्था (Anceient Regime) को समाप्त कर दिया । आधुनिक युग का आरम्भ हुआ जिसमें स्वतंत्रता’, ‘समानता’ तथा ‘बन्धुत्व’ को प्रोत्साहन मिला। सामन्तवाद का अंत हो गया।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना-क्रान्ति के फलस्वरूप धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हुई। बुद्धिवाद का उदय हुआ और जनता को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई।
  • जनतंत्र की स्थापना-फ्रांस की क्रान्ति ने राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त को समाप्त कर दिया तथा जनतंत्र की स्थापना की।
  • व्यक्ति की महत्ता-1791 ई० में फ्रांस के नेशनल एसेम्बली ने पहली बार नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की घोषणा की तथा स्वतंत्रता एवं समानता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
  • समाजवाद का आरम्भ-फ्रांसीसी क्रान्ति ने समाजवाद का बीजारोपण किया । जैकोबिनों ने बहुसंख्यक गरीबों को अनेक सुविधाएँ दी। अमीरी-गरीबी का भेद मिटाने का प्रयास हुआ। खाद्य-पदार्थों के मूल्य निर्धारित किए गए।
  • वाणिज्य व्यापार में वृद्धि-क्रान्ति के फलस्वरूप गिल्ड प्रथा, प्रान्तिक आयात कर तथा अन्य व्यापारिक प्रतिबंध व्यापारियों पर से हटा दिए गए, जिससे वाणिज्य एवं व्यापार का विकास हुआ । यही कारण था कि उन्नीसवीं शताब्दी में व्यापार के क्षेत्र में फ्रांस इंग्लैण्ड के बाद द्वितीय स्थान पर था।
  • दास प्रथा का उन्मूलन-सन 1794 ई० में कन्वेशन ने ‘दास मुक्ति कानून’ पारित किया । पुनः 1848 ई० में अंतिम रूप में फ्रांसीसी उपनिवेशों से दास प्रथा का अंत हो गया।
  • महिला आन्दोलन-क्रान्ति में महिलाएं भी शामिल हुई थी उन्होंने ‘The society of Revolutionary and Republican women’ नामक संस्था का गठन किया जिसमें ओलम्प दे गूज नामक नेत्री की अहम भूमिका थी। इनके नेतृत्व में महिलाओं को पुरुषों के समान राजनैतिक अधिकार की मांग को स्वीकार लिया गया। आन्दोलन चलता रहा और अन्त में 1946 ई० में महिलाओं को मताधि कार प्राप्त हो गया ।
  • सरकार पर शिक्षा का उत्तरदायित्व-फ्रांस में अभी तक चर्च में शिक्षा का प्रबन्ध था। अब इसकी जिम्मेवारी सरकार पर आ गयी। फलस्वरूप पेरिस विश्वविद्यालय तथा कई शिक्षण संस्थान एवं शोध संस्थान फ्रांस में खोले गए।
  • राष्ट्रीय कैलेंडर भी लागू कर दिया गया जिसका नया नाम ब्रुमेयर, थर्मिडर आदि रखा गया।

प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रांति एक मध्यमवर्गीय क्रांति थी, कैसे?
उत्तर-
फ्रांस में सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था जिसका सबसे बड़ा कारण यह था कि सुयोग्य एवं सम्पन्न होते हुए भी उन्हें कुलीनों जैसा सामाजिक सम्मान प्राप्त नहीं था । सम्पन्नता और उन्नति के बावजूद भी वे सभी तरह के राजनैतिक अधिकारों से वंचित थे । राज्य में सभी बड़े पद कुलीनों के लिए सुरक्षित थे । उनका मानना था कि सामाजिक ओहदे का आधार योग्यता होनी चाहिए, न कि वंश ।

मध्यम वर्ग के साथ कुलीन वर्ग के लोग बहुत बुरा और असमानता का व्यवहार करते थे। यह बात उन्हें बहुत अपमानजनक लगती थी। इसी वजह से फ्रांस की क्रांति का सबसे महत्त्वपूर्ण नारा ‘समानता’ था जिसे मध्यम वर्ग ने आगाज किया। मध्यम वर्ग में शिक्षित वर्ग के लोगों ने तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दोषों को पर्दाफाश किया और जनमानस में आक्रोश पैदा किया । फ्रांसीसी बुद्धिजीवियों ने फ्रांस में बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात किया । इनमें मांटेस्क्यू, वोल्टेयर और रूसो थे । मांटेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘विधि की आत्मा’ में सरकार के तीनों अंगों को पृथक-पृथक करने पर बल दिया रूसो । पूर्ण परिवर्तन चाहते थे। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ में राज्य को व्यक्ति द्वारा निर्मित संस्था और सामान्य इच्छा को संप्रभु माना है। अत: जनतंत्र का समर्थक था।

फ्रांस में क्वेजनों एवं तुर्गो जैसे अर्थशास्त्रियों ने समाज में अधिक शोषण एवं आर्थिक नियंत्रण की आलोचना करते हुए मुक्त व्यापार का
समर्थन किया।

इस प्रकार मध्यमवर्गीय लोगों में राजा एवं कुलीन वर्ग के लोगों के प्रति घृणा की भावना थी जो क्रान्ति का रूप ले लिया। इसीलिए फ्रांस की क्रान्ति को मध्यमवर्गीय क्रान्ति कहा जाता है।

प्रश्न 4.
फ्रांस की क्रांति में वहाँ के दार्शनिकों का क्या योगदान था?
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति में वहाँ के दार्शनिकों का महत्त्वपूर्ण योगदान था। फ्रांस में अनेक दार्शनिक हुए जिन्होंने तत्कालीन व्यवस्था पर करारा प्रहार किया। उनमें मांटेस्क्यू, वाल्टेयर और रूसो प्रमुख थे।
(i) मांटेस्क्य-यह उदार विचारों वाला दार्शनिक था । इसने राज्य और चर्च दोनों की कटु आलोचना की वे जानते थे कि जीवन, संपत्ति एवं स्वतंत्रता मानव के जन्मसिद्ध अधिकार है। मॉटेस्क्यू की सबसे बड़ी देन शक्ति के पृथक्करण का सिद्धान्त है। अपनी पुस्तक ‘विधि की आत्मा’ । इसके अनुसार राज्य की शक्तियाँ कार्यपालिका, विधायिका एवं न्यायपालिका-एक ही हाथ में केन्द्रित नहीं होनी चाहिए । इस जनता भलीभाँति समझ रही थी। अतः इनके विचार क्रान्ति का कारण था।

(ii) वाल्टेयर-इसने भी चर्च की आलोचना की। अपने क्रान्ति विचारों के कारण वह जाना जाता था। उसका सिद्धन्त था कि राजतंत्र प्रजाहित में होना चाहिए।

(iii) रूसो-रूसो फ्रांस का सबसे बड़ा दार्शनिक था । वह लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था का समर्थक था। अपनी पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ (Social contract) में उसने ‘जनमत’ को ही सर्वशक्तिशाली माना । राज्य जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए बनी थी। अत: वह वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट था । रूसो के अनुसार व्यक्ति द्वारा निर्मित संस्था और सामान्य इच्छा को संप्रभु माना । अतः वह जनतंत्र का समर्थक था । रूसा के क्रान्तिकारी विचारों ने फ्रांस में क्रान्ति के विस्फोट के लिए पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

(iv) दिदरो-दिदरो के ‘वृहत् ज्ञान कोष’ (eucyclopaedia) के लेखों के द्वारा इसने निरंकुश राजतंत्र, सामंतवाद एवं जनता के शोषण की घोर भर्त्सना की। इसका भी प्रभाव फ्रांसीसी जनता पर खूब पड़ा।

(v) क्वेजनों एवं तुर्गो-इन अर्थशास्त्रियों ने समाज में आर्थिक शोषण एवं आर्थिक नियंत्रण की आलोचना करते हुए मुक्त व्यापार का समर्थन किया।

इन सभी का फ्रांस की जनता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 5.
फ्रांस की क्रांति की देनों का उल्लेख करें।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति 1789 ई० में हुई थी। इस क्रान्ति से न केवल फ्रांस बल्कि संसार के समस्त देश इसके देनों से स्थाई रूप से प्रभावित हुए । वास्तव में इस क्रान्ति के कारण एक नये युग का उदय हुआ। इसके तीन प्रमुख सिद्धान्त समानता, स्वतंत्रता और मातृत्व की भावना पूरे विश्व के लिए अमर वरदान सिद्ध हुए । इन्हीं आधारों पर संसार के अनेक देशों में एक नये समाज की स्थापना का प्रयत्न किया गया । यह महान देन है ।

  •  स्वतंत्रता-स्वतंत्रता फ्रांसीसी क्रान्ति का एक मूल सिद्धान्त था । इस सिद्धान्त से यूरोप के लगभग सभी देश बड़े प्रभावित हुए । फ्रांस में मानव अधिकारों की घोषणा पत्र द्वारा सभी लोगों को उनके अधिकारी से परिचित कराया गया। देश में आर्द्धदोस (Serfdom) का अंत कर दिया गया। इस प्रकार निर्धन किसानों को सामंतों से छुटकारा मिल सका।
  • समानता-सभी के लिए समान कानून बना । वर्ग भेद मिट गया ।
  • लोकतंत्र-फ्रांस की क्रान्ति ने निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर दिया और इसके स्थान पर लोकतंत्रात्मक शासन की स्थापना हुई।
  • दार्शनिक-फ्रांस की क्रान्ति के समय में ही फ्रांस के महान दार्शनिकों की पुस्तकें सामने आईं जैसे मांटेस्क्यू की पुस्तक ‘विधि का आत्मा’ । रूसो की पुस्तक ‘सामाजिक संविदा’ तथा दिदरो केलोस ‘वृहत् ज्ञान कोष’। ये सभी असाधारण पुस्तकें हैं जो क्रान्ति की महान देन है।

प्रश्न 6.
फ्रांस की क्रांति ने यूरोपीय देशों को किस तरह प्रभावित किया।
उत्तर-
फ्रांस की क्रान्ति का विश्वव्यापि प्रभाव पड़ा संसार का कोई भी देश अछूता न रहा । खासकर यूरोप तो इसके व्यापक प्रभाव में आया ।

  • फ्रांस की क्रान्ति की देखा-देखी सामंती व्यवस्था को मिटाने के लिए एवं समानता के सिद्धान्त को लागू करने का प्रयास किया गया ।
  • नेपोलियन ने यूरोपीय राष्ट्रों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत कर दी। इसलिए इटली के भावी एकीकरण की नीव पड़ी।
  • नेपोलियन ने पोलैंड के लोगों के सामने भी एक संयुक्त तस्वीर रखी जो प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पूरी हुई।
  • जर्मनी में कुल 300 राज्य थे । नेपोलियन के प्रयास से 38 राज्य रह गए सबों को मिलाकर एक कर दिया ।
  • द्वितीय ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में भी फ्रांसीसी क्रान्ति का योगदान था । इससे प्रेरणा लेकर ही इंग्लैण्ड में 1832 ई० का रिफार्म एक्ट (Reform Act) पारित हुआ । इससे संसदीय प्रणाली में सुधार हुआ ।

प्रश्न 7.
‘फ्रांस की क्रांति एक युगान्तकारी घटना थी’ इस कथन की पुष्टि
करें।
उत्तर-
सन् 1789 की फ्रांस की क्रांन्ति यूरोप के इतिहास में एक युगान्तकारी घटना थी, जिसने एक युग का अंत और दूसरे युग के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया और दूसरे युग के आगमन का मार्ग प्रशस्त किया । सन 1789 के पूर्व फ्रांस में जो स्थिति व्याप्त थी उसे प्राचीन राजतंत्र के नाम से जाना जाता है इस समय सामन्ती व्यवस्था थी। समाज तीन वर्गों में विभाजित था

(i) कुलीन वर्ग (ii) पादरी वर्ग (iii) साधारण वर्ग । इसमें प्रथम और द्वितीय वर्ग को किसी प्रकार के टैक्स नहीं देने पड़ते थे। राजा स्वेच्छाचारी था । फ्रांस में प्रतिनिधि संस्थाओं का सर्वथा अभाव था। यद्यपि स्टेट्स जेनरल नामक प्रतिनिधि सभा थी तथापि 1614 के बाद इसकी बैठक ही नहीं हुई थी।

राज्य में कानूनी एकरूपता का अभाव था । राजा की इच्छा ही कानून थी राजा कहता था ‘मैं ही राज्य हूँ’ राजा की इच्छा को चुनौती नहीं दी जा सकती थी। राजा और कुलीन वर्ग ऐश-आराम की जिंदगी व्यतीत करते थे। चर्च भी राज्य में एक प्रभावशाली संस्था थी। 90 प्रतिशत जनता किसान थी जो विभिन्न प्रकार के कर से परेशान थी महँगाई की मार से ‘जीविका का संकट’ का उत्पन्न हो गया था।

उधर गिल्ड (व्यापारिक संगठन) प्रान्तीय क्रान्ति कानून अवाध रूप से व्यापार की प्रगति नहीं होने देते थे। इस तरह फ्रांस की पुरातन व्यवस्था को समाप्त कर स्वतंत्र विचार करने वाले समाज की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया । चूँकि फ्रांस ने इस युद्ध में ब्रिटेन के खिलाफ अमेरिका की. मदद की थी, अत: अमेरिका के बाद स्वतंत्रता की लहर फ्रांस में आई जो यूरोप के इतिहास में एक युगान्तकारी घटना कहलाई।

प्रश्न 8.
फ्रांस की क्रांति के लिए लुई सोलहवाँ किस तरह उत्तरदायी था?
उत्तर-
लुई चौदहवाँ के बाद फ्रांस की गद्दी पर लुई सोलहवाँ गद्दी पर बैठा, जो अयोग्य और निरंकुश था । फ्रांस की क्रान्ति के लिए निम्नलिखित बातों के कारण उत्तरदायी था
(i) निरंकुश राजशाही-फ्रांस की क्रान्ति के समय में लुई सोलहवाँ गद्दी पर था । राजा के हाथों में सारी शक्ति केन्द्रित थी लुई सोलहवाँ का कहना था कि ‘मेरी इच्छा ही कानून है।’ इस व्यवस्था में राजा की आज्ञा नहीं मानना एक अपराध था। फ्रांस में राजा की निरंकुशता को नियंत्रित करने के लिए ‘पार्लमा’ नामक एक संस्था थी। यह एक प्रकार का न्यायालय था । इसमें केवल कुलीन वर्ग वाले ही न्यायाधीश थे। जो राजा का ही सर्मथन करती थी।

(ii) मेरी अन्तोयनेत का प्रभाव-लुई सोलहवाँकी पत्नी मेरी अन्तोयनेन थी जो फिजूलखर्ची के लिए प्रसिद्ध थी। यह उत्सवों में काफी रुपये लुटाती थी, और अपने खास आदमियों को ओहदे दिलाने के लिए राजकार्य में दखल देती रहती थी। रानी निर्ममतापूर्वक अपने भोग विलास पर खर्च करती थी।

(iii) प्रशासनिक भ्रष्टाचार-राजा के सलाहकार और अधिकारी भ्रष्ट थे । राजा के वर्साय स्थित राजा महल में पन्द्रह हजार अधिकारी एसे थे जो को भी काम नहीं करते थे, मगर अपार धन राशि वेतन के रूप में लेते थे । राजस्व का 1 प्रतिशत इन्हीं पर व्यय होता था । इससे प्रशासन पर बुरा प्रभाव पड़ा।

(iv) स्वायत्त शासन का अभाव-इसका सर्वथा अभाव था । फ्रांस में हर जगह वर्साय के राजमहल की ही प्रधानता थी। राजा के अलावे मेरी अन्तोयनेत के द्वारा शासन का दुरुपयोग किया जाता था, जिससे जन साधारण की धारणाएँ राजतंत्र के बिलकुल खिलाफ हो गयी।
इसे हर तरफ से देखने से पता चलता है कि लुई सोलहवाँ एक मात्र दोषी थी। अतः 1789 ई० तक आते-आते जन साधारण शासन में भाग लेने के लिए उतावला होने लगे।

प्रश्न 9.
फ्रांस की क्रांति में जैकोबिन दल का क्या भूमिका थी?
उत्तर-
सन् 1791 ई० में नेशनल एसेम्बली ने संविधान का प्रारूप तैयार किया। इसमें शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। यद्यपि लुई सोलहवाँ ने इस सिद्धान्त को मान लिया, परन्तु मिराव्या की मृत्यु के बाद देश में हिंसात्मक विद्रोह की शुरुआत हो गयी। इसमें समानता के सिद्धान्त की अवहेलना की गई बहुसंख्यकों को मतदान से वंचित रखा गया था सिर्फ धनी लोगों को ही यह अधिकार दिया गया । इस तरह बुर्जुआ वर्ग का प्रभाव बढ़ा इस बढ़ते असंतोष की अभिव्यक्ति नागरिक राजनीतिक क्लबों में जमा होकर करते थे। इन लोगों ने अपना एक दल बनाया जो ‘जैकोबिन दल’ कहलाया इन लोगों ने अपने मिलने का स्थान पेरिस के ‘कॉन्वेंट ऑफ सेंट जेक्ब’ को बनाया । यह आगे चलकर ‘जैकोबिन क्लब’ के नाम से जाना जाने लगा। इस क्लब के सदस्य थे-छोटे दुकानदार, कारीगर, मजदूर आदि । इसका नेता मैक्स मिलियन रॉब्सपियर था। इसने 1792 ई० में खाद्यानों की कमी एवं महंगाई को मुद्दा बनाकर जगह-जगह विद्रोह करवाए ।

जैकोबिन के कार्य-रॉब्सपियर वामपंथी विचारधारा का समर्थक था। इसने आंतक का राज्य स्थापित किया चौदह महीने में लगभग 17 हजार व्यक्तियों पर मुकदमे चलाये गए और उनहें फाँसी दे दी गई।

प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का पोषक रॉब्सपियर प्रजातंत्र का पोषक था । 21 वर्ष से अधिक उम्र वालों को मतदान का अधिकार देकर, चाहे उनके पास सम्पत्ति हो या न हो, चुनाव कराया गया । 21 सितम्बर, 1792 ई० को नव निर्वाचित एसेम्बली को कन्वेंशन नाम दिया गया तथा राजा की सत्ता को समाप्त कर दिया गया । देशद्रोह के अपराध में लुई सोलहवाँ पर मुकदमा चलाया गया और 21 जनवरी, 1793 ई० को उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

रॉब्सपियर का अंत-रॉब्सपियर का आतंक राज्य 1793 ई० तक उत्कर्ष पर था । राष्ट्र का कलेन्डर 22 सितम्बर, 1792 को लागू किया गया । इन सभी को रॉब्सपीयर ने सर्वोच्च सता की प्रतिष्ठा के रूप में स्थापित किया लेकिन सभी अस्थाई सिद्ध हुए । उनकी हिंसात्मक कार्रवाइयों की वजह से विशेष न्यायालय ने जुलाई 27, 1794 को उसे मृत्यु दंड दिया गया । इस तरह ‘जैकोबिन का फ्रांस की क्रान्ति पर प्रभाव देखने को मिलता है।

प्रश्न 10.
नेशनल एसेम्बली और नेशनल कन्वेंशन ने फ्रांस के लिए कौन-कौन से सुधार पारित किए ?
उत्तर-
(क) नेशनल एसेम्बली द्वारा किये गए सुधार इस प्रकार हैं-14 जुलाई, सन् 1789 के बाद लुई सोलहवाँ नाम मात्र का राजा रह गया और नेशनल एसेम्बली देश के लिए अधिनियम बनाने लगी।

  • 21 अगस्त, 1789 को ‘मानव और नागरिकों के अधिकार’ (The Declaration of the rights of Man and citizen) की स्वीकार कर लिया । इस घोषणा से प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने और अपनी इच्छानुसार धर्मपालन करने के अधिकार का मान्यता मिली।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता-व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ प्रेस पक्ष भाषण की स्वतंत्रता भी मानी गयी।
  • संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना-एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई। अब राज्य में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाये गिरफ्तार नहीं कर सकते थे, तथा मुआवजा दिए बिना उसके जमीन पर कब्जा नहीं कर सकते थे।
  • निजी सम्पत्ति का अधिकार-सभी नागरिकों को निजी सम्पत्ति रखने का अधिकार दिया गया ।
  • शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया गया। ये सभी घोषणाएँ अत्यधिक महत्वपूर्ण थी।
    (ख)नेशनल कन्वेंशन द्वारा किये गए सुधार-21 सितम्बर, 1792 को नव निर्वाचित एसेम्बली को कन्वेंशन नाम दिया गया। इस कन्वेंशन ने निम्नलिखित सुविधाएँ प्रदान की।
  • मतदान का अधिकार-21 वर्ष से अधिक उम्र वालों को मतदान का अधिकार मिला । चाहे उसके पास सम्पति हो या न हो।
  • गणतंत्र की स्थापना-कन्वेंशन का प्रमुख कार्य राजतंत्र का अंत कर फ्रांस में गणतंत्र की स्थापना करना । यह कार्य प्रथम अधिवेशन के पहले ही पूरा कर दिया गया ।

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 2 Chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science History Solutions Chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद

Bihar Board Class 10 History समाजवाद एवं साम्यवाद Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लग उनमें सही का चिह्न लगायें।

समाजवाद और साम्यवाद Class 10 Bihar Board प्रश्न 1.
रूस में कृषक दास प्रथा का अंत कब हुआ?
(क) 1861
(ख) 1862
(ग) 1863
(घ) 1864
उत्तर-
(क) 1861

समाजवाद और साम्यवाद Class 10 Notes Bihar Board प्रश्न 2.
रूस में जार का अर्थ क्या होता था ?
(क) पीने का बर्तन .
(ख) पानी रखने का मिट्टी का पात्र
(ग) रूस का सामन्त
(घ) रूस का सम्राट
उत्तर-
(घ) रूस का सम्राट

समाजवाद के उदय और विकास को रेखांकित करें Bihar Board प्रश्न 3.
कार्ल मार्क्स का जन्म कहाँ हुआ था?
(क) इंगलैंड
(ख) जर्मनी
(ग) इटली
(घ) रूस
उत्तर-
(ख) जर्मनी

इतिहास की दुनिया भाग 2 कक्षा 10 Bihar Board प्रश्न 4.
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग कहाँ हुआ?
(क) रूस
(ख) जापान
(ग) चीन
(घ) क्यूबा
उत्तर-
(क) रूस

Bihar Board Class 10 Social Science Solution प्रश्न 5.
यूटोपियन समाजवादी कौन नहीं था? ।
(क) लुई ब्लां
(ख) सेंट साइमन
(ग) कार्ल मार्क्स
(घ) रॉबर्ट ओवन
उत्तर-
(ग) कार्ल मार्क्स

Bihar Board Class 10 History Book Solution प्रश्न 6.
“वार एंड पीस’ किसकी रचना है ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) टॉलस्टाय
(ग) दोस्तोवस्की
(घ) ऐंजल्स
उत्तर-
(ख) टॉलस्टाय

Bihar Board Class 10 History Notes Pdf प्रश्न 7.
बोल्शेविक क्रांति कब हुई ?
(क) फरवरी 1947
(ख) नवंबर 1917
(ग) अप्रैल 1917
(घ) अक्टूबर 1905
उत्तर-
(ख) नवंबर 1917

Social Science In Hindi Class 10 Bihar Board Pdf प्रश्न 8.
लाल सेना का गठन किसने किया था ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) स्टालिन
(ग) ट्रॉटसकी
(घ) करेंसकी
उत्तर-
(ग) ट्रॉटसकी

प्रश्न 9.
लेनिन की मृत्यु कब हुई थी?
(क) 1921
(ख) 1922
(ग) 1923
(घ) 1924
उत्तर-
(घ) 1924

प्रश्न 10.
ब्रेस्टलिटोवस्क की संधि किन देशों के बीच हुआ था ?
(क) रूस और इटली
(ख) रूस और फ्रांस
(ग) रूस और इंगलैंड
(घ) रूस और जर्मनी
उत्तर-
(घ) रूस और जर्मनी

निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें :

प्रश्न 1.
रूसी क्रांति के समय शासक…………..था।
उत्तर-
जार निकालेस II

प्रश्न 2.
बोल्शेविक क्रांति का नेतृत्व……………ने किया था।
उत्तर-
लेनिन

प्रश्न 3.
नई आर्थिक नीति…………….ई. में लागू हुआ था।
उत्तर-
1921

प्रश्न 4.
राबर्ट ओवन………….”का निवासी था।
उत्तर-
ब्रिटेन

प्रश्न 5.
वैज्ञानिक समाजवाद का जनक……………..को माना जाता है।
उत्तर-
कार्ल मार्क्स

निम्नलिखित समूहों का मिलान करें :
Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 2 समाजवाद एवं साम्यवाद - 1
उत्तर-
1. (ख)
2. (घ)
3. (ङ)
4. (ग)
5. (क)।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
राष्ट्रवाद क्या है ?
उत्तर-
ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन के सभी साधनों पर किसी एक व्यक्ति या संस्था का अधिकार होता है।

प्रश्न 2.
खूनी रविवार क्या है?
उत्तर-
जार की सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियां बरसाईं जिसमें हजारों लोग मारे गये। इसलिए, 9 जनवरी, 1905 को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 3.
अक्टूबर क्रांति क्या है ?
उत्तर-
1917 की रूस की महान क्रांति को अक्टूबर क्रांति भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
सर्वहारा वर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज का वैसा वर्ग जिसमें किसान, मजदूर एवं आम गरीब लोग शामिल होते हैं।

प्रश्न 5.
क्रांति से पूर्व रूसी किसानों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर-
क्रांति के पूर्व किसानों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी वे करों के बेल्म से दबे थे।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
रूसी क्रांति के किन्हीं दो कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासन-रूस में एक राजनीतिक संरचना स्थापित की थी। गलत सलाहकारों के कारण जार की स्वेच्छाचारिता बढ़ती गयी और जनता की स्थिति बाद से बदतर होती गयी।
  • कृषकों की दयनीय स्थिति कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा करों के बोझ से वे दबे हुए थे। ऐसे में किसानों के पास क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं था।

प्रश्न 2.
रूसीकारण की नीति क्रांति हेतु कहाँ तक उत्तरदायी थी?
उत्तर-
सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था। यहाँ मुख्यतः स्लाव जाति के लोग रहते थे। इनके अतिरिक्त फिन, पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के लोग भी थे। वे भिन्न-भिन्न भाषा बोलते तथा इनका रस्म-रिवाज भिन्न-भिन्न था। परन्तु रूस के अल्पसंख्यक जार-निकोलस द्वितीय द्वारा जारी की गयी रूसीकरण की नीति से परेशान थे। इसके अनुसार देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लादने का प्रयास किया गया। इससे अल्पसंख्यकों में हलचल मच गयी और 1868 ई. में इस नीति के विरुद्ध पोलो ने विद्रोह किया तो निर्दयतापूर्वक उसका दमन किया गया। इससे रूसी राजतंत्र के प्रति उनका आक्रोश बढ़ता गया।

प्रश्न 3.
साम्यवाद एक नई आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था थी। कैसे ?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स ने एंगल्स के साथ मिलकर 1848 में एक साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। इसमें आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया। इसने पूँजीवाद का विरोध कर वर्गहीन समाज * की स्थापना में महत्वपूर्ण योग दिया।

प्रश्न 4.
नई आर्थिक नीति मार्क्सवादी सिद्धान्तों के साथ समझौता था, कैसे ?
उत्तर-
लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक एवं व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था। उसने यह स्पष्ट देखा कि तत्काल प्रभाव से पूरी तरह समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ पूँजीवाद से टकराना संभव नहीं है अतः उसने एक नई आर्थिक नीति की घोषणा की जिसमें मार्क्सवादी मूल्यों
को भी तरजीह दिया ताकि पूँजीवाद और समाजवाद दोनों के बीच संतुलन बना रहे।

प्रश्न 5.
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय क्रांति हेतु मार्ग प्रशस्त किया, कैसे?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण बना क्योंकि युद्ध के मध्य जार द्वारा सेनापति का कमान अपने हाथों में लेने के कारण जरीना और उसके तथाकथित गुरु रासपुटिन (पादरी) जैसा निकृष्टतम व्यक्ति को षड्यंत्र करने का मौका मिल गया जिसके कारण राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गयी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
रूसी क्रांति के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर-
रूसी क्रांति के कारण निम्नलिखित हैं-

  • जार की निरंकुशता-जार निकोलस II जिसके शासनकाल में क्रांति हुई, वह दैवी अधिकारों में विश्वास करता था। उसे आम लोगों की कोई चिन्ता नहीं थी। उसके द्वारा नियुक्त अफसरशाही व्यवस्था अस्थिर, जड़ और अकुशल थी। अतः जनता की स्थिति बद से बदतर होती गयी।
  • कृषकों की दयनीय स्थिति कृषकों के पास पूँजी का अभाव था तथा वे करों के बोझ से दबे हुए थे। ऐसे में उनके पास क्रांति के सिवाय कोई चारा नहीं था।
  • मजदूरों की दयनीय स्थिति मजदूरों को अधिक काम के बदले कम मजदूरी मिलती थी। उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता था, उन्हें कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। वे अपने मांगों के समर्थन में हड़ताल भी नहीं कर सकते थे।
  • औद्योगिकीकरण की समस्या-रूस में राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था। यहाँ औद्योगिकीकरण के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता थी। विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अतः । चारों ओर असंतोष था।
  • रूसीकरण की नीति—जार निकोलस द्वितीय ने विभिन्नताओं का ख्याल न करते हुए देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति को लादने का प्रयास किया, जिससे जनता में राजतंत्र के प्रति असंतोष बढ़ने लगा।
  • विदेशी घटनाओं का प्रभाव क्रीमिया के युद्ध में रूस की पराजय ने आर्थिक सुधारों का युग आरम्भ किया। तत्पश्चात 1904-05 के रूस-जापान युद्ध ने रूस में प्रथम क्रांति और प्रथम विश्वयुद्ध ने बॉल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।

मार्क्सवाद का प्रभाव तथा बुद्धिजीवियों का योगदान लियो टॉलस्टाय, दोस्तोवस्की, तुर्गनेव जैसे चिंतक वैचारिक क्रांति को प्रोत्साहन दे रहे थे, रूस के औद्योगिक मजदूरों पर कार्ल मार्क्स के समाजवादी विचारों का पूर्ण प्रभाव था। रूस का पहला साम्यवादी प्लेखानोव जारशाही का अंत कर साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना चाहता था। उसने 1898 में रशियन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। 1903 में साधन एवं अनुशासन के मुद्दे पर पार्टी में फूट पड़ गयी। बहुमत वाला दल बोल्शेविक सर्वहारा क्रांति का पक्षधर था जबकि मेनशेविक मध्यवर्गीय क्रांति के पक्षधर थे। 1901 में सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी पार्टी का गठन हुआ जो किसानों की मांगों को उठाता था। इस प्रकार मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित मजदूर एवं किसानों के संगठन रूस की क्रांति का एक महान कारण साबित हुए।

प्रथम विश्व युद्ध में रूस की पराजय–रूसी सेनाओं की हार को ध्यान में रखते हुए जार ने सेना का कमान अपने हाथों में ले लिया जिससे उनके खिलाफ षड्यंत्र का मौका मिला और राजतंत्र की प्रतिष्ठा और भी गिर गई।

प्रश्न 2.
नई आर्थिक नीति क्या है ?
उत्तर-
लेनिन एक कुशल सामाजिक चिंतक तथा व्यावहारिक राजनीतिज्ञ था। उसने स्पष्ट रूप से देखा कि तत्काल प्रभाव से समाजवादी व्यवस्था लागू करना या एक साथ सारी पूँजीवादी दुनिया से टकराना संभव नहीं है। इसीलिए 1921 ई. में उसने एक नई नीति की घोषणा की जिसे नई आर्थिक नीति कहते हैं। इसकी प्रमुख बातें निम्नांकित थीं-

  • किसानों से अनाज ले लेने के स्थान पर एक निश्चित कर लगाया गया। बचा हुआ अनाज किसान का था और वह इसका मनचाहा इस्तेमाल कर सकता था।
  • यद्यपि यह सिद्धांत कायम रखा गया कि जमीन राज्य की है फिर भी व्यवहार में जमीन किसान की हो गई।
  • 20 से कम कर्मचारियों वाले उद्योगों को व्यक्तिगत रूप से चलाने का अधिकार मिल गया।
  • उद्योगों का विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। निर्णय और क्रियान्वयन के बारे में विभिन्न इकाइयों को काफी छूट दी गई।
  • विदेशी पूँजी भी सीमित तौर पर आमंत्रित की गई।
  • व्यक्तिगत संपत्ति और जीवन की बीमा भी राजकीय एजेंसी द्वारा शुरू किया गया।
  • विभिन्न स्तरों पर बैंक खोले गए।
  • ट्रेड यूनियन की अनिवार्य सदस्यता समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 3.
रूसी क्रांति के प्रभाव की विवेचना करें।
उत्तर-

  • इस क्रांति के पश्चात् श्रमिक अथवा सर्वहारा वर्ग की सत्ता रूस में स्थापित हो गई तथा इसने अन्य क्षेत्रों में भी आंदोलन को प्रोत्साहन दिया।
  • रूसी क्रांति के बाद विश्व विचारधारा के स्तर पर दो खेमों में विभाजित हो गया। साम्यवादी विश्व एवं पूँजीवादी विश्व। इसके पश्चात् यूरोप भी दो भागों में विभाजित हो गया। पूर्वी एवं पश्चिमी यूरोपा धर्मसुधार आंदोलन के पश्चात् और साम्यवादी क्रांति से पहले यूरोप में
    वैचारिक आधार पर इस तरह का विभाजन नहीं देखा गया था।
  • द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् पूँजीवादी विश्व तथा सोवियत रूस के बीच शीतयुद्ध की शुरूआत हुई और आगामी चार दशकों तक दोनों खेमों के बीच शस्त्रों की होड़ चलती रही।
  • रूसी क्रांति के पश्चात् आर्थिक आयोजन के रूप में एक नवीन आर्थिक मॉडल आया। आगे पूँजीवादी देशों ने भी परिवर्तित रूप में इस मॉडल को अपना लिया। इस प्रकार स्वयं पूँजीवाद के चरित्र में भी परिवर्तन आ गया।
  • इस क्रांति की सफलता ने एशिया और अफ्रीका में उपनिवेश मुक्ति को भी प्रोत्साहन दिया क्योंकि सोवियत रूस की साम्यवादी सरकार ने एशिया और अफ्रीका के देशों में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक समर्थन प्रदान किया।

प्रश्न 4.
कार्ल मार्क्स की जीवनी एवं सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई, 1818 ई. को जर्मनी में राइन प्रांत के ट्रियर नगर में एक यहूदी परिवार में हुआ था। कार्ल मार्क्स के पिता हेनरिक मार्क्स एक प्रसिद्ध वकील थे, जिन्होंने बाद में चलकर ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था। मार्क्स ने बोन वि. वि. में विधि की शिक्षा ग्रहण की परन्तु 1836 में वे बर्लिन वि. वि. चले आए जहाँ उनके जीवन को एक नया मोड़ मिला। मार्क्स हीगल के विचारों से प्रभावित थे। 1843 में उन्होंने बचपन की मित्र जेनी से विवाह किया। उन्होंने राजनीतिक एवं सामाजिक इतिहास पर मांण्टेस्क्यू तथा रूसो के विचारों का गहन अध्ययन किया। कार्ल मार्क्स की मुलाकात पेरिस में 1844 ई. में फ्रेडरिक एंगेल्स से हुई जिनसे जीवन भर उनकी गहरी मित्रता बनी रही। एंगेल्स के विचारों एवं रचनाओं से प्रभावित होकर मार्क्स ने भी श्रमिक के कष्टों एवं उनकी कार्य की दशाओं पर गहन विचार करना आरंभ कर दिया। मार्क्स ने एंगेल्स के साथ मिलकर 1948 ई. में एक साम्यवादी घोषणापत्र प्रकाशित किया जिसे आधुनिक समाजवाद का जनक कहा जाता है। उपर्युक्त घोषणा पत्र में मार्क्स ने अपने आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। मार्क्स विश्व के उन गिने-चुने चिंतकों में एक हैं जिन्होंने इतिहास की धारा को व्यापक रूप से प्रभावित किया है। मार्क्स ने 1867 ई. में ‘दास कैपिटल’ नामक पुस्तक की रचना की जिसे “समाजवादियों की बाइबिल” कहा जाता है।

मार्क्स ने कुछ सिद्धांत दिए जो निम्नलिखित हैं

  • द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का सिद्धांत
  • वर्ग संघर्ष का सिद्धांत
  • इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या
  • मूल्य एवं अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत
  • राज्यहीनं व वर्गहीन समाज की स्थापना।

प्रश्न 5.
यूटोपियन समाजवादियों के विचारों का वर्णन करें।
उत्तर-
यूटोपियन (स्वप्नदर्शी) समाजवादियों के विचार निम्न हैं

  • सेंट साइमनवे प्रथम यूटोपियन समाजवादी एवं फ्रांसीसी विचारक थे जिसने समाज को निर्धन वर्ग के भौतिक एवं नैतिक उत्थान के लिए कार्य करने और लोगों को एक दूसरे का शोषण करने के बदले मिलजुलकर काम करने की बात कही। उसने घोषित किया ‘प्रत्येक को उसकी क्षमता के अनुसार तथा प्रत्येक को उसके कार्य के अनुसार’। आगे यही समाजवाद का मूलभूत नारा बन गया।
  • चार्ल्स फौरिपर वह आधुनिक औद्योगिकवाद का विरोधी था तथा उनका मानना था कि श्रमिकों को छोटे नगर अथवा कस्बों में काम करना चाहिए।
  • लई ब्लांफ्रांसीसी यूरोपियन चितकों में एकमात्र व्यक्ति जिसने राजनीति में भी हिस्सा लिया। उनका मानना था कि आर्थिक सुधारों को प्रभावकारी बनाने के लिए पहले राजनीतिक सुधार आवश्यक है।
  • ब्रिटिश उद्योगपति राबर्ट ओवन वह सबसे महत्वपूर्ण यूटोपियन चिन्तक, जिसने बताया कि संतुष्ट श्रमिक ही वास्तविक श्रमिक हं।

Bihar Board Class 10 History समाजवाद एवं साम्यवाद Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
1854-56 के क्रीमिया युद्ध में किसकी हार हुई थी?
उत्तर-
रूस की।

प्रश्न 2.
रूसी क्रांति किसके नेतृत्व में हुई थी?
उत्तर-
1917 की रूसी क्रांति बोल्शेविक दल के नेता लेनिन के नेतृत्व में हुई थी।

प्रश्न 3.
जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या 1881 ई० में किसने की?
उत्तर-
1881 में जार एलेक्जेंडर की हत्या निहिलस्टों ने कर दी।

प्रश्न 4.
रूस के सम्राट को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
रूस के सम्राट को जार कहा जाता था।

प्रश्न 5.
रूस में किस राजवंश का शासन था ?
उत्तर-
रूस में रोमोनोव वंश का शासन था।

प्रश्न 6.
रूस की संसद का क्या नाम था ?
उत्तर-
रूस की संसद का नाम ड्यूमा था।

प्रश्न 7.
रूस में कृषि-दासता की प्रथा किस वर्ष समाप्त हुई।
उत्तर-
रूस में कृषि दासता की प्रथा 1861 ई. में समाप्त हुई।

प्रश्न 8.
रासपुटिन कौन था ?
उत्तर-
रासपुटिन एक बदनाम और रहस्यमय पादरी था।

प्रश्न 9.
वार एंड पीस उपन्यास के लेखक कौन थे?
उत्तर-
वार एंड पीस उपन्यास के लेखक लियो टॉल्सटाय थे।

प्रश्न 10.
रूस में कृषि-दासता की प्रथा किसने समाप्त की?
उत्तर-
1861 तक रूस में किसानों के कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। अधिकांश किसान बँधुआ मजदूर थे। वे सामंतों के अधीन थे और जमीन से बंधे हुए थे। 1861 में क्रमिया युद्ध की पराजय के पश्चात जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने इस बंधुआ प्रथा का अंत करके किसानों को मुक्ति दी। इसलिए उसे ‘मुक्तिदाता जार’ कहा जाता है। इस प्रकार कृषि-दासता (serfdom) का अंत हुआ।

प्रश्न 11.
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
साम्यवादी शासन का पहला प्रयोग रूस में हुआ था। रूसी क्रांति ने पुरान राजनीतिक व्यवस्था को नष्ट कर समाजवाद तथा साम्यवाद के आधार पर नए रूस का निर्माण किया। फलतः, इसका प्रभाव दुनिया के कोने-कोने में पड़ा और हर जगह साम्यवाद का नारा पुरानी व्यवस्था को गंभीर चुनौती देने लगा।

प्रश्न 12.
किसने सुधार के लिए आतंकवाद का सहारा लिया ?
उत्तर-
रूस में एक नागरिक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आंदोलन चलाया जाए। इन्होंने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया तथा ये निहिलिस्ट के नाम से जाने जाते थे। ये निहिलिस्ट स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे। 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलिस्टों ने कर दी।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर –

प्रश्न 1.
समाजवादी दर्शन क्या है ?
उत्तर-
समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। समाजवादी शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहते हैं। समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।

प्रश्न 2.
रॉबर्ट ओवेन का संक्षिप्त परिचय दें?
उत्तर-
इंगलैंड में समाजवाद का प्रवर्तक रॉबर्ट ओवेन को माना जाता है। इंगलैंड में औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप श्रमिकों के शोषण को रोकने हेतु ओवेन ने एक आदेश समाज की स्थापना का प्रयास किया। उसके स्कॉटलैंड को न्यू लूनार्क नामक स्थान पर एक आदर्श कारखाना और मजदूरों के आवास की व्यवस्था की। इसमें श्रमिकों को अच्छा भोजन, आवास और उचित मजदूरी देने की व्यवस्था की गयी। श्रमिकों की शिक्षा, चिकित्सा की भी व्यवस्था की गई। साथ ही काम के घंटे घटाए गए और बल मजदूरी समाप्त की गयी। ओवेन के इस प्रयास से मुनाफा में वृद्धि हुई इससे वह संतुष्ट हुआ।

प्रश्न 3.
1917 ई० की क्रांति के समय रूस में किस राजवंश का शासन था? इस शासन का स्वरूप क्या था ?
उत्तर-
1917 ई की क्रांति के पूर्व रूस में रोमोनोव वंश का शासन था। इस वंश के शासन का स्वरूप स्वेच्छाचारी राजतंत्र था। इस वंश के शासकों ने स्वेच्छाचारी राजतंत्र की स्थापना की। रूस का सम्राट जार अपने आपको का ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था। वह सर्वशक्तिशाली था। राज्य की सारी शक्तियाँ उसी के हाथों में केन्द्रित थी। उसकी सत्ता पर किसी का नियंत्रण नहीं था। राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। राज्य के अतिरिक्त वह रूसी चर्च का भी प्रधान था। प्रजा जार और उसके अधिकारियों से भयभीत और त्रस्त रहती थी।

प्रश्न 4.
निहिलिज्म से आप क्या समझते हैं ? रूस पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
रूसी नागरिकों का एक वर्ग ऐसा था जो चाहता था कि रूस में सुधार आन्दोलन जार के द्वारा किए जाएँ। जार एलेक्जेंडर द्वितीय ने कई सुधार कार्यक्रम भी चलाए, परंतु इससे सुधारवादी संतुष्ट नहीं हुए। इनमें से कुछ ने निहिलिस्ट आंदोलन आरंभ किया। ये निहिलस्ट के नाम से जाने जाते थे। ये स्थापित व्यवस्था को आतंक का सहारा लेकर समाप्त करना चाहते थे। 1881 में जार एलेक्जेंडर द्वितीय की हत्या निहिलस्टों ने कर दी। इन निहिलिस्टो के विचारों से प्रभावित होकर क्रांतिकारी जारशाही के विरुद्ध एकजुट होने लगे।

प्रश्न 5.
बौद्धिक जागरण ने रूसी क्रांति को किस प्रकार प्रभावित किया ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरुद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी। अनेक विख्यात लेखकों और बुद्धिजीवियों लियो टॉलस्टाय, ईरान तुर्गनेव, फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गोर्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नए प्रगतिशील समाज के निर्माण का आह्वान किया। रूसी लोग विशेषतः किसान और मजदूर, कार्ल मार्क्स के दर्शन से गहरे रूप से प्रभावित हुए। वे शोषण और अत्याचार विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गए।

प्रश्न 6.
मेन्शिविकों और बोल्शेविको के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से रूस में राजनीतिक दलों का उत्कर्ष हुआ। कार्ल मार्क्स के एक प्रशंसक और समर्थक लेखानीव ने 1883 में रूसी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। इस दल ने मजदूरों को संघर्ष के लिए संगठित करना आरंभ किया। 1903 में संगठनात्मक मुद्दों को लेकर सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी दो दलों में विभक्त हो गया। मेन्शेविक (अल्पमत वाले) तथा वोल्शेविक (बहुमत वाले) मेन्शेविक संवैधानिक रूप से देश में राजनीतिक परिवर्तन चाहते थे तथा मध्यवर्गीय क्रांति के समर्थक थे। परंतु बोल्शेविक इसे असंभव मानते थे तथा क्रांति के द्वारा परिवर्तन लाना चाहते थे जिसमें मजदूरों की विशेष भूमिका हो।

प्रश्न 7.
रूस में प्रति-क्रांति क्यों हुई ? बोल्शेविक सरकार ने इसका सामना कैसे किया ?
उत्तर-
बोल्शेविक क्रांति की नीतियों से वैसे लोग व्यग्र हो गए जिनकी संपत्ति और अधिकारों को नई सरकार ने छीन लिया था। अतः सामंत, पादरी, पूँजीपति नौकरशाह सरकार के विरोधी बन गए। वे सरकार का तख्ता पलटने का प्रयास कर रहे थे। उन्हें विदेशी सहायता भी प्राप्त थी। लेनिन ने प्रति क्रांतिकारियों का कठोरतापूर्वक दमन करने का निश्चय किया। इसके लिए चेका नामक विशेष पुलिस दस्ता का गठन किया गया। इसने निर्मतापूर्वक हजारों षड्यंत्रकारियों को मौत के घाट उतार दिया। चेका के लाल आतंक ने षड्यंत्रकारियों की कमर तोड़ दी।

प्रश्न 8.
कौमिण्टर्न की स्थापना क्यों की गई? इसका क्या महत्व था ?
उत्तर-
मार्क्सवाद का प्रचार करने एवं विश्व के सभी मजदूरों को संगठित करने के उद्देश्य से विभिन्न देशों के साम्यवादी दलों के प्रतिनिधि मास्को में एकत्रित हुए। सभी देशों की साम्यवादी पार्टियों का एक संघ बनाया गया जो कोमिण्टर्न कहलाया। इसका मुख्य कार्य विश्व में क्रांति का प्रचार करना एवं साम्यवादियों की सहायता करना था। कौमिण्टर्न का नेतृत्व रूस के साम्यवादी दल के पास रहा। लेनिन के इस कार्य से पूँजीवादी देशों में बेचैनी फैल गयी। रूस से मधुर संबंध बनाने को वे बाह्य हो गए। इंगलैंड ने 1921 में रूस से व्यापारिक संधि कर ली। 1924 तक इटली, जर्मनी, इंगलैंड ने रूस की बोल्शेविक सरकार को मान्यता प्रदान कर दी।

प्रश्न 9.
नई आर्थिक नीति (NEP) पर एक टिप्पणी लिखें?
उत्तर-
लेनिन ने 1921 में एक नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की। इसके अनुसार सीमित रूप से किसानों और पूँजीपतियों को व्यक्तिगत संपत्ति रखने की अनुमति दी गई। यह नीति कारगर हुई।
खेती की पैदावार बढ़ी तथा उद्योग-धंधों में भी उत्पादन बढ़ा। इससे रूस समृद्धि के मार्ग पर ‘ आगे बढ़ा। नई आर्थिक नीति की कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं
(i) किसानों से अनाज की जबरन उगाही बन्द कर दी गई। अनाज के बदले उन्हें निश्चित कर देने को कहा गया। शेष अनाज का उपयोग किसान अपनी इच्छानुसार कर सकता था।
(ii) सैद्धांतिक रूप से जमीन पर राज्य का अधिकार मानते हुए भी व्यावहारिक रूप से किसानों को जमीन का स्वामित्व दिया गया।

प्रश्न 10.
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल एक संस्था थी जिसकी स्थापना प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1919 में हुई थी। इस संस्था का उद्देश्य साम्यवाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना था। इसके प्रभाव से अनेक देशों में साम्यवादी संगठनों की स्थापना हुई। साथ ही, अनेक प्रजातंत्रीय देशों में राजनीतिक समानता के साथ-साथ सामाजिक एवं आर्थिक समानता लाने का भी प्रयास किया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के आरंभ होने पर इस संस्था को भंग कर दिया गया।

प्रश्न 11.
‘सोवियत’ से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
रूस में राजनीतिक संगठन के सबसे निचले स्तर पर स्थानीय समितियाँ थी जिन्हें ‘सोवियत’ कहा जाता था। आरंभ में यह मजदूरों के प्रतिनिधियों की परिषद थी जिसकी स्थापना हड़तालों के संचालन के लिए की गई थी, पर शीघ्र ही यह राजनतिक सत्ता का उपकरण बन गई। मजदूरों की भाँति किसानों की परिषदों या सोवियतों का निर्माण हुआ। भी सोवियतों के प्रतिनिधि एक राष्ट्रीय कांग्रेस का संगठन करते थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवाद क उदय और विकास को रेखांकित करें।
उत्तर-
समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समाज को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देती है। यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अन्तर्गत उत्पादन के सभी साधनों, कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है।

समाजवादी विचारधारा की उत्पत्ति 18वीं शताब्दी के प्रबोधन आन्दोलन के दार्शनिकों के लेखों में ढूँढे जा सकते हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी थे, जिनमें सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए लुई ब्लां तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। समाजवादी आंदोलन और विचारधारा मुख्यतः दो भागों में विभक्त की जा सकती है – (i) आरंभिक समाजवादी अथवा कार्ल मार्क्स के पहले के समाजवादी (ii) कार्ल मार्क्स के बाद के समाजवादी। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या “स्वप्नदर्शी” (Utopian) समाजवादी कहे गए। वे उच्च और अव्यावहारिक आदर्श से प्रभावित होकर “वर्ग संघर्ष” की नहीं बल्कि “वर्ग समन्वय” की बात करते थे। दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक जो ‘साम्यवादी’ कहलाए ने वर्ग समन्वय के स्थान पर “वर्ग संघर्ष” की बात कही। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है।

19वीं शताब्दी में समाजवादी विचारधारा का तेजी से प्रसार हुआ। फ्रांस में लुई ब्लाँ ने सामाजिक कार्यशालाओं की स्थापना कर पूँजीवाद की बुराइयों को समाप्त करने की बात कही। जर्मनी भी समाजवादी विचारधारा से अपने को अलग नहीं रख सका। रूस में भी समाजवाद ने अपनी जड़ें जमा ली। कार्ल मार्क्स ने आरंभिक समाजवादियों से प्रेरणा लेकर ही नई समाजवादी व्याख्या प्रस्तुत की।

प्रश्न 2.
साम्यवाद के जनक कौन थे ? समाजवाद और साम्यवाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
साम्यवाद के जनक फेडरिक एंगेल्स तथा कार्ल मार्क्स थे। समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है जिसने आधुनिक काल में समान को एक नया रूप प्रदान किया। औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप समाज में पूँजीपति वर्गों द्वारा मजदूरों का लगातार शोषण अपने चरमोत्कर्ष पर था। उन्हें इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने तथा वर्ग विहीन समाज की स्थापना करने में समाजवादी विचारधारा ने अग्रणी भूमिका अदा की। समाजवाद उत्पादन में मुख्यतः निजी स्वामित्व की जगह सामूहिक स्वामित्व या धन के समान वितरण पर जोर देता है। यह एक शोषण उन्मुक्त समाज की स्थापना चाहता है। अतः समाजवादी व्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके अंतर्गत उत्पादन के सभी साधनों कारखानों तथा विपणन में सरकार का एकाधिकार हो। ऐसी व्यवस्था में उत्पादन निजी लाभ के लिए न होकर सारे समाज के लिए होता है। आरंभिक समाजवादियों में सेंट साइमन, चार्ल्स फूरिए, लुई ब्लां तथा रॉबर्ट ओवेन के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। आरंभिक समाजवादी आदर्शवादी या स्वप्नदर्शी थे। वे उच्च और अव्यवहारिक आदर्श से प्रभावित होकर ‘वर्ग संघर्ष’ की नहीं बल्कि ‘वर्ग समन्वय’ की बात करते थे।

दूसरे प्रकार के समाजवादियों में फ्रेडरिक एंगेल्स, कार्ल मार्क्स और उनके बाद के चिंतक साम्यवादी कहलाए जो वर्ग समन्वय के स्थान पर “वर्ग संघर्ष” की बात की। इन लोगों ने समाजवाद की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की जिसे “वैज्ञानिक समाजवाद” कहा जाता है। मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्यूनिस्ट मेनिफेस्टो अथवा साम्यवादी घोषणापत्र प्रकाशित किया। मार्क्स ने पूंजीवाद की घोर भर्त्सना की ओर श्रमिकों ने हक की बात उठाई। मजदूरों को अपने हक के लिए लड़ने को उसने उत्प्रेरित किया। मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया जिले “समाजवादियों का बाइबिल” कहा जाता है। मार्क्सवादी दर्शन साम्यवाद के नाम से विख्यात हुआ। मार्क्स का मानना था कि मानव ‘इतिहास वर्ग संघर्ष’ का इतिहास है। इतिहास उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण के लिए दो वर्गों में चल रहे निरंतर संघर्ष की कहानी है।

प्रश्न 3.
1917 की रूसी क्रांति के प्रमुख कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
बीसवीं शताब्दी के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना रूस की क्रांति थी। इस क्रांति ने रूस के सम्राट जार के एकतंत्रीय निरंकुश शासन का अंत कर मात्र लोकतंत्र की स्थापना का ही प्रयत्न नहीं किया अपितु सामाजिक आर्थिक और व्यवसायिक क्षेत्रों में कुलीनों पूँजीपतियों और जमींदारों की शक्ति का अंत किया तथा मजदूरों और किसानों की सत्ता को स्थापित किया। इस क्रांति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

(i) जार की निरंकुशता एवं अयोग्य शासनः- 1917 से पूर्व रूस में रोमनोव राजवंश का शासन था। इस समय रूस के सम्राट की जार कहा जाता था। जार निकोलस-II जिसके शासनकाल में क्रांति हुई राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। उसे प्रजा के सुखः-दुख के प्रति कोई चिन्ता नहीं थी। जार ने जो अफसरशाही बनायी थी वह अस्थिर जड़ और अकुशल थी।

(ii) कृषकों की दयनीय स्थिति- रूस में जनसंख्या का बहुसंख्यक भाग कृषक ही थे, परन्तु उनकी स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। 1861 ई. में जार एलेक्जेंडर द्वितीय के द्वारा कृषि दासता समाप्त कर दी गई थी, परन्तु इससे किसानों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ था। खेत छोटे थे जिनपर वे पुराने ढंग से खेती करते थे। पूँजी का अभाव तथा करों के बोझ के कारण किसानों के पास क्रान्ति के सिवाय कोई विकल्प नहीं था।

(iii) औद्योगिकरण की समस्या – रूसी औद्योगीकरण पश्चिमी पूँजीवादी औद्योगीकरण से भिन्न था। यहाँ कुछ ही क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उद्योगों का संकेद्रण था। यहाँ राष्ट्रीय पूँजी का अभाव था। अतः उद्योगों के विकास के लिए विदेशी पूँजी पर निर्भरता बढ़ गई थी। विदेशी पूँजीपति आर्थिक शोषण को बढ़ावा दे रहे थे। अतः चारो ओर असंतोष व्याप्त था।

(iv) रूसीकरण की नीति- सोवियत रूस विभिन्न राष्ट्रीयताओं का देश था। यहाँ मुख्य रूप से स्लाव जाति के लोग रहते थे। इनके अतिरिक्त किन पोल, जर्मन, यहूदी आदि अन्य जातियों के भी लोग थे। रूस का अल्पसंख्यक समूह जार निकोलस-II द्वारा जारी की गई समीकरण की नीति से परेशान था। इसके अनुसार जार ने देश के सभी लोगों पर रूसी भाषा, शिक्षा और संस्कृति लादने का प्रयास किया। 1863 में इस नीति के विरुद्ध पोोले ने विद्रोह किया जिसे निर्दयतापूर्वक दबा दिया गया लेकिन रूसी राजतंत्र के विरुद्ध उनका आक्रोश बढ़ता गया।

(v) विदेशी घटनाओं का प्रभाव- रूस की क्रांति में विदेशी घटनाओं की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण थी। सर्वप्रथम क्रीमिया के युद्ध 1854-56 में रूस की पराजय ने उस देश में सुधारों का युग आरम्भ किया। तत्पश्चात 1904-05 के रूस-जापान युद्ध ने रूस में पहली क्रांति को जन्म दिया और अंततः प्रथम विश्वयुद्ध में रूस की पराजय ने बोल्शेविक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया।

(vi) बौद्धिक कारण- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रूस में बौद्धिक जागरण हुआ.जिसने लोगों को निरंकुश राजतंत्र के विरूद्ध बगावत करने की प्रेरणा दी। अनेक विख्यात लेखकों एवं बुद्धिजीवियों लियो टॉल्सटाय, तुर्गनेव फ्योदोर दोस्तोवस्की, मैक्सिम गार्की ने अपनी रचनाओं द्वारा सामाजिक अन्याय एवं भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था का विरोध कर एक नए प्रगतिशील समान के निर्माण का आह्वान किया। रूसी लोग विशेषतः किसान और मजदूर कार्ल मार्क्स के दर्शन सभी गहरे रूप से प्रभावित हुए। साम्यवादी घोषणा-पत्र और दास कैपिटल द्वारा मार्क्स ने सामाजिक विचारधारा और वर्ग-संघर्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। मार्क्स के विचारों से श्रमिक वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ और वे शोषण और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने को तत्पर हो गए।

Bihar Board Class 10 History समाजवाद एवं साम्यवाद Notes

  • समाजवादी भावना का उदय मूलत: 18वों शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप हुआ था।
  • ऐतिहासिक दृष्टि से आधुनिक समाजवाद का विभाजन दो चरणों में किया जा सकता है- मार्क्स से पूर्व का समाजवाद एवं मार्क्स के बाद का समाजवाद।
  • मार्क्सवादी विचारकों ने इन्हें क्रमशः यूटोपियन एवं वैज्ञानिक समाजवाद का नाम दिया।
  • अधिकतर यूटोपियन विचारक फ्रांसीसी थे जो क्रांति के बदले शांतिपूर्ण परिवर्तन में विश्वास रखते थे। अर्थात् वे वर्ग संघर्ष के बदले वर्ग समन्वय के हिमायती थे।
  • प्रमुख यूटोपियन समाजवादी थे लुई-जलां, रॉबर्ट ओवन, चार्ल्स फौरियर इत्यादि।
  • कार्ल मार्क्स का जन्म 3 मई, 1818 ई. को जर्मनी के राइन प्रांत के टियर नगर में हुआ।
  • 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई, उस समय रूस का शासक जार निकोलस द्वितीय था।
  • 9 जनवरी, 1905 को खूनी रविवार के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस दिन जार की सेना ने निहत्थे लोगों पर गोलियाँ बरसाईं जिसमें हजारों लोग मारे गये।
  • लेनिन ने 1921 ई. NEP (नई आर्थिक नीति) की घोषणा की थी।
  • औद्योगिक क्रांति सबसे पहले इंगलैंड में हुई थी जिसके द्वारा समाज में पूँजीपति वर्ग एवं मजदूर वर्ग का उदय हुआ।
  • समाजवाद शब्द का पहला प्रयोग 1827 में हुआ।
  • सेंट साइमन (फ्रांस के) रॉबर्ट ओवेन (इंगलैंड के) आरंभिक समाजवादी थे जो आदर्शवादी थे। इसलिए उन्हें “स्वप्नदर्शी समाजवादी” (Utopian Socialists) कहा जाता है। * चार्टिस्ट आंदोलन ब्रिटेन में हुआ था।
  • कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी के राइन प्रांत के टियर नगर में एक यहूदी परिवार में 5 मई, 1818 को हुआ था।
  • 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • मार्क्स और एंगेल्स ने मिलकर 1848 में कम्यूनिस्ट मेनिफेस्टो (CommunistManifesto) । अथवा साम्यवादी घोषणा पत्र प्रकाशित किया।
  • मार्क्स ने अपनी विख्यात पुस्तक दास कैपिटल का प्रकाशन 1867 में किया। इसे ‘समाजवादियों का बाइबिल’ कहा जाता है।
  • लंदन में 1864 में मार्क्स के प्रयासों से प्रथम इंटरनेशनल (अंतर्राष्ट्रीय संघ) की स्थापना हुई।
  • 1889 में पेरिस में द्वितीय इंटरनेशनल की बैठक हुई।
  • ‘चेका’ गुप्त पुलिस संगठन था।
  • ट्रॉटस्की के नेतृत्व में एक विशाल लाल सेना’ गठित की गई।
  • लेनिन ने 1921 ई. में एक नई आर्थिक नीति (NEP) लागू की। .
  • सोवियत संघ का विघटन दिसम्बर, 1991 ई० में हुआ।
  • लेनिन ने 1919 में मास्को में थर्ड इंटरनेशनल की स्थापना की।
  • शीतयुद्ध पूँजीवादी गुट का नेता संयुक्त राज्य अमेरिका तथा साम्यवादी गुट का नेता सोवियत संघ के बीच हुआ था।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 7 पुत्र वियोग

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 7 पुत्र वियोग

 

पुत्र वियोग वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ–

Bihar Board Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
‘मुकुल’ त्रिधारा आदि सुभद्रा कुमारी चौहान की कैसी कृतियाँ हैं?
(क) काव्य कृतियाँ
(ख) नाट्य कृतियाँ
(ग) कहानी–संग्रह
(घ) एकांकी–संग्रह
उत्तर-
(क)

Bihar Board Hindi Book Class 12 Pdf Download प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब हुआ था?
(क) 16 अगस्त, 1904 ई.
(ख) 18 अगस्त, 1910 ई.
(ग) 15 अगस्त, 1902 ई.
(घ) 20 अगस्त, 1915 ई.
उत्तर-
(क)

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks प्रश्न 3.
सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन–सी है?
(क) प्यारे–नन्हें बेटे को
(ख) पुत्र–वियोग
(ग) हार–जीत
(घ) गाँव का घर
उत्तर-
(ख)

Class 12 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 4.
माँ के लिए अपने मन को समझाना कब कठिन हो जाता है?
(क) घन नष्ट होने पर
(ख) पुत्र मृत्यु पर
(ग) पति मृत्यु पर
(घ) पिता मृत्यु पर
उत्तर-
(ख)

Bihar Board Solution Class 12th Hindi प्रश्न 5.
“बिखरे मोती समा के खेल’ सुभद्रा कुमारी चौहान की कौन–सी कृतियाँ हैं?
(क) कहानी–संग्रह
(ख) उपन्यास
(ग) संस्मरण
(घ) आलोचना
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

बिहार बोर्ड हिंदी बुक Class 12 Pdf प्रश्न 1.
मेरा खोया हुआ………..।
अबतक मेरे पास न आया।
उत्तर-
खिलौना

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Pdf प्रश्न 2.
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास……… पर छाया।
उत्तर-
विश्व

Bihar Board 12th Hindi Book Pdf प्रश्न 3.
शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं ……… से जिसे उतारा।
उत्तर-
गोद

Hindi Class 12 Bihar Board प्रश्न 4.
छोड़ काम दौड़ कर आई,
………. कहकर जिस समय पुकारा।
उत्तर-
‘माँ’

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Syllabus प्रश्न 5.
……… दे दे जिसे सुलाया,
जिसके लिए लोरियाँ गाई।
उत्तर-
थपकी

पुत्र वियोग अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 12 Hindi Book Pdf प्रश्न 1.
कवयित्री स्वयं को असहाय क्यों कहती है?
उत्तर-
पुत्र वियोग के कारण।

दिगंत भाग 2 Pdf 12th Download प्रश्न 2.
सुभद्रा कुमारी चौहान का खिलौना क्या है?
उत्तर-
उसका पुत्र।

Bihar Board Class 12 Hindi Book प्रश्न 3.
माँ के लिए अपने मन को समझाना कब कठिन हो जाता है?
उत्तर-
पुत्र की मृत्यु पर।

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks Pdf Download प्रश्न 4.
सुभद्रा कुमारी चौहान की लिखी कविता कौन–सी है?
उत्तर-
पुत्र वियोग।

पुत्र वियोग पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

12th Hindi Book 100 Marks Bseb Pdf Download प्रश्न 1.
कवयित्री का खिलौना क्या है?
उत्तर-
कवयित्री का खिलौना उसका बेटा है। बच्चों को खिलौना प्रिय होता है। उसी प्रकार कवयित्री माँ के लिए उसका बेटा उसके जीवन का सर्वोत्तम उपहार है। इसलिए वह कवयित्र का खिलौना है।

Class 12th Hindi Book Bihar Board प्रश्न 2.
कवयित्री स्वयं को असहाय और विवश क्यों कहती है?
उत्तर-
कवयित्री स्वयं को असहाय तथा विवश इसलिए कहती है कि उसने अपने बेटे की देख–भाल तथा उसके लालन–पालन पर अपना पूरा ध्यान केन्द्रित कर दिया। अपनी सुविधा असुविधा का कभी विचार नहीं किया। बेटा को ठंढ न लग जाए बीमार न पड़ जाए इसलिए सदैव उसे गोदी में रखा। इन सारी सावधानियों तथा मन्दिर में पूजा–अर्चना से वह अपने बेटे की असमय मृत्यु नहीं टाल सकी। नियमि के आगे किसी का वश नहीं चलता। अतः, वह स्वयं को असहाय तथा बेबस माँ कहती है।

प्रश्न 3.
पुत्र के लिए माँ क्या–क्या करती है?
उत्तर-
पुत्र के लिए माँ निजी सुख–दुख भूल जाती है। उसे अपनी सुख–सुविधा के विषय में सोचने की अवकाश नहीं रहता। वह बच्चे के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा का पूरा ध्यान रखती है। बेटा को ठंढ़ न लग जाए अथवा बीमार न पड़ जाए, इसके लिए उसे सदैव गोद में लेकर उसका.. मनोरंजन करती रहती है। उसे लोरी–गीत सुनाकर सुलाती है। उसके लिए मन्दिरों में जाकर पूजा–अर्चना करती है तथा मन्नतें माँगती है।

प्रश्न 4.
अर्थ स्पष्ट करें–
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया।
उत्तर-
आज सभी दिशाएँ पुलकित हैं, सर्वत्र प्रसन्नता छाई हुई है। सारे विश्व में उल्लास का वातावरण है। किन्तु मेरा (कवयित्री) खोया हुआ खिलौना अब मुझे प्राप्त नहीं हुआ। अर्थात् कवयित्री के पुत्र का निधन हो गया है। इस प्रकार वह उससे (कवयित्री) छिन गया है। यह उसकी व्यक्तिगत क्षति है। विश्व के अन्य लोग हर्षित हैं। सभी दिशाएँ भी उल्लासित (प्रमुदित) दिख रही हैं। किन्तु कवयित्री ने अपना बेटा खो दिया है। उसकी मृत्यु हो चुकी है। वह उद्विग्न है शोक विह्वल है। अपनी असंयमित मनोदशा में वह बेटा के वापस आने की प्रतीक्षा करती है और नहीं लौटकर आने पर निराश हो जाती है।

प्रश्न 5.
माँ के लिए अपना मन समझाना कब कठिन है और क्यों?
उत्तर-
माँ के लिए अपने मन को समझाना तब कठिन हो जाता है, जब वह अपना बेटा खो देती है। बेटा माँ की अमूल्य धरोहर होता है। बेटा माँ की आँखों का तारा होता है। माँ का सर्वस्व यदि क्रूर नियति द्वारा उससे छीन लिया जाता है उसके बेटे की मृत्यु हो जाती है तो माँ के लिए अपने मन को समझाना कठिन होता है।

प्रश्न 6.
पुत्र को ‘छौना’ कहने से क्या भाव हुआ है, इसे उद्घाटित करें।
उत्तर-
‘छौना’ का अर्थ होता हे हिरण आदि पशुओं का बच्चा ‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में कवयित्री ने ‘छौना’ शब्द का प्रयोग अपने बेटा के लिए किया है। हिरण अथवा बाघ का बच्चा बड़ा भोला तथा सुन्दर दिखता है। इसके अतिरिक्त चंचल तथा तेज भी होती है। अतः, कवयित्री द्वारा अपने बेटा को छौना कहने के पीछे यह विशेष अर्थ भी हो सकता है।

प्रश्न 7.
मर्म उद्घाटित करें–
भाई–बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलाये
किन्तु रात–दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझाएँ।
उत्तर-
भाई तथा बहिन, अपने भाई को भूल जा सकते हैं। पिता भी अपने बेटे को विस्मृत कर सकता है, पर उसकी ममतामयी माँ जो सदैव उसके पास रहती है, गोद में लेकर मन बहलाती है। उसको सुलाने के लिए लोरी गीत सुनाती है, वह माँ अपने बेटा को नहीं भूल सकती है। वह तो सदैव एक सच्चे साथी के समान, उसके पास सदैव रही है। उसको दिन रात गोदी में लेकर मन बहलाती रही है। अतः, वे बेटा को मौत के बाद अपने मन को कैसे समझाए।

प्रश्न 8.
कविता का भावार्थ संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
‘पुत्र वियोग’ शीर्षक कविता में अपने बेटे की मौत के बाद उसकी शोकाकुल माँ के मन में उठनेवाले अनेक निराशाजनक तथा असंयमित विचार तथा उससे उपजी विषादपूर्ण मन:स्थिति का उद्घाटित किया गया। कवयित्री अपने बेटे के आकस्मिक तथा अप्रत्याशित निधन से मानसिक तौर पर अशान्त है। वह अपनी विगत स्मृतियों को याद कर उद्विग्न है। एक माँ के हृदय में उठनेवाले झंझावत की वह स्वयं भुक्तभोगी है। कविता में कवयित्री द्वारा नितांत मनोवैज्ञानिक तथा स्वाभाविक चित्रण किया गया है।

बेटा की मौत से कवयित्री विषाद के गहरे सदमे में डूबी है–उसका प्यारा बेटा अब उसे दूर चला गया है। उसने उसे दिन–रात गोद में लेकर ठंड तथा रोग से बचाया, लोरियाँ सुनाकर उसे सुलाया। उसके लिए मंदिरों में पूजा–अर्चना की, मन्नतें मांगी। किन्तु ये सारे प्रयास निरर्थक हो गए। अब वह दुखी माँ एक पल के लिए भी अपने बेटा का मुख देखना चाहती है उसे अपनी छाती से चिपकाकर स्नेह को वर्षा करना चाहती है, उससे बातचीत कर कुछ समझाना चाहती है। शोकाकुल कवयित्री (माँ) भावावेश में इतनी असंयमित हो जाती है कि वह अपने मृत बेटा को संबोधित करते हुए यहाँ तक कहती है–अब तुम सदा मेरे पास रहो, मुझे छोड़ कर मत जाओ।

वस्तुतः कवयित्री ने अपने बेटे की मौत से उपजे दु:खिया माँ के शोकपूर्ण उद्गारों का स्वाभाविक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है। ऐसी युक्तियुक्तपूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति अन्यत्र दुर्लभ है। महादेवी वर्मा की एक मार्मिक कविता इस प्रकार है, जो माँ की ममता को प्रतिबंधित करती है, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।

प्रश्न 9.
इस कविता को पढ़ने पर आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा, उसे लिखिए।
उत्तर-
‘पुत्र वियोग’ कविता में कवयित्री ने अपने बेटा की मृत्यु तथा उससे उपज विवाद की अभिव्यक्ति की है। कवयित्री की विरह–वेदना, अतीत के पृष्ठों को उलटते हुए विगत की स्मृतियों को दुहराना पाठक के मन में करुणा विषाद की रेखा खींच देती है। उसकी (पाठक) की भावनाएँ कवयित्री (माँ) के शोकाकुल क्षणों में अपनी संवेदना प्रकट करती दिखती है।

मेरे मन में भी कुछ इसी प्रकार के मनोभावों का आना स्वाभाविक है। किसका ‘हृदय संवेदना से नहीं भर उठेगा? कौन कवयित्री के शोकोद्गारों की गहराई में गए बिना रहेगा।

एक माँ का अपने बेटे को दिन रात देखभाल करना बीमारी, ठंड आदि से रक्षा के लिए उसे गोदी में खेलाते रहना। स्वयं रात में जागकर उसे लोरी सुनाकर सुलाना ! अपने दाम्पत्य जीवन को खुशी को संतान पर केन्द्रित करना। अंत में नियति के क्रूर चक्र की चपेट में बेटा की मौत। इन सारे घटनाक्रमों से मैं मानसिक रूप से अशांत हो गया। मुझे ऐसा अहसास हुआ जैसे यह त्रासदी मेरे साथ हुई। कविता में कवयित्री ने अपनी सम्पूर्ण संवेदना को उड़ेल दिया है, करुणा उमड़ पड़ी तथा असहाय दर्द की अनुभूति होती है।

पुत्र वियोग भाषा की बात

प्रश्न 1.
सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य–भाषा पर संक्षिपत टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
सुभद्रा कुमारी चौहान की काव्य–भाषा यथार्थनिष्ठा राष्ट्रीय भावधारा है। वे अपने समकालीन छायावादी काव्यधरा के समान्तर रूप से काव्य रचना करनेवाली राष्ट्रीय भावधारा की प्रमुख और विशिष्ट कवयित्र थी। उनकी इस भावधारा के मूल में सामाजिक, राजनीतिक यथार्थ की प्रेरणाएँ और आग्रह थे।

प्रश्न 2.
कविता से सर्वनाम शब्दों को चुनें।
उत्तर-
मेरा खोया हुआ खिलौना, अबतक न मेरे पास आया।

प्रश्न 3.
‘मलिनता’ में ‘ता’ प्रत्यय है। ‘ता’ प्रत्यय के योग से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
मानवता, आवश्यकता, दानवता, मनुष्यता, सरलता।

प्रश्न 4.
इनके विपरीतार्थक शब्द लिखें–
मलिनता, देव, असहाय, जटिल, नीरस, कठिन, विकल।
उत्तर-

  • शब्द विपरीतार्थक
  • मलिनता – स्वच्छता
  • देव – दानव
  • असहाय – समर्थ
  • जटिल – सरल
  • नीरस – सरस
  • कठिन – सरल
  • विकल – अविकल

प्रश्न 5.
वाक्य प्रयोग द्वारा इन मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करें
(क) आँखों में रात बिताना
(खं) शीश नवाना
उत्तर-
(क) आँखों में रात बिताना–(राज भर जागना)–माताएँ अपने बच्चों के लिए आँखों में रात बिता देती है।
(ख) शीश नवाना (आदर करना, प्रणाम करना)–मोहन ने अपने गुरु के सामने शीश नवाया।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें गोद, छौना, बहन, विश्व, दूध।।
उत्तर-

  • शब्द समानार्थी शब्द
  • गोद – अंक
  • छौना – बालक, शावक
  • बहन – भगिनी
  • विश्व – जगत, संसार
  • दूध – पय, सुधा

प्रश्न 7.
‘उल्लास’ शब्द का सन्धि–विच्छेद्र करें।
उत्तर-
उल्लास = उत् + लास

पुत्र वियोग कवि परिचय सुभद्रा कुमारी चौहान (1904–1948)

कवि परिचय– 16 अगस्त, 1904 को सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म निहालपुर, इलाहाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती धीराज कुँवरी और पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। सन् 1919 में इनका विवाह ठाकुर लक्ष्मण सिंह चौहान से खांडवा, मध्यप्रदेश में हुआ। लेखिका के पति अंग्रेजो सरकार द्वारा जब्त ‘कुली प्रथा और गुलामी का नशा’ नामक नाटकों के लेखक एक प्रसिद्ध पत्रकार, अच्छे स्वतंत्रता सेनानी और कांग्रेस के सक्रिय नेता थे।

लेखिका की आरम्भिक शिक्षा क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में हुई जहाँ इनके साथ प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा भी थीं। इसके पश्चात् वाराणसी में थियोसोफिकल स्कूल के नौवीं कक्षा के बाद अधूरी शिक्षा छोड़ कर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़ी। छात्र जीवन से ही इन्हें काव्य रचना की भी अभिरूचि थी। आगे चलकर एक अच्छी कवयित्री एवं साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठा. भी पायौं।

लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान अपने जीवनकाल में समाज सेवा, स्वाधीनता संघर्ष में सक्रिय भागीदारी, राजनीति करते हुए अनेक बार कारावास भी गयीं। अन्त में मध्यप्रदेश के एक विधानसभा में एम. एल. ए. बनकर अनेक क्रांतिकारी परिवर्तन और जागरण में सक्रिय भूमिका निभाते हुए वसंत पंचमी के दिन इस संसार से “नवश्रृजन के महापर्व” करके चल पड़ी।

इनके जीवन का महामंत्र था। स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व होम करना, इतना ही नहीं, मुक्तिबोध ने तो कहा है “सुभद्रा जी के साहित्य में अपने युग के मूल उद्वेग, उसके भिन्न–भिन्न रूप, अपनी आभरणहीन शैली में प्रकट हुए हैं।”

सुभद्रा कुमारी चौहान की निम्नलिखित रचनायें ‘मुकुल’ (कविता संग्रह), ‘त्रिधारा’ (कविता चयन) बिखरे मोती (कहानी संग्रह) सभा के खेल (कहानी संग्रह) प्रमुख हैं।

पुत्र वियोग कविता का सारांश

अपने पुत्र के असामयिक निधन के बाद माँ द्वारा व्यक्त की हुई उसके अन्दर की व्यथा का इस कविता में सफल निरूपण हुआ। कवयित्री माँ अपने पुत्र–वियोग में अत्यन्त भावुक हो उठती है। उसकी अन्तर्चेतना को पुत्र का अचानक बिछोह झकझोर देता है। प्रस्तुत कविता में पुत्र के अप्रत्याशित रूप से असनय निधन से माँ के हृदय में अपने संताप का हृदय–विदारक चित्रण है। एक माँ के विषादमय शोक का एक साथ धीरे–धीरे गहराता और क्रमशः ऊपर की ओर आरोहण करता भाव उत्कंठा अर्जित करता जाता है तथा कविता के अन्तिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ–बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म–प्रतीति में स्थायी परिवर्तित करता है। यह माँ की ममता की अभिव्यक्ति का चरमोत्कर्ष है।…

कवयित्री अपने पुत्र असामयिक निधन से अत्यन्त विकल है। उसे लगता है कि उसका प्रिय खिलौना खो गया है। उसने अपने बेटे के लिए सब प्रकार के कष्ट उठाए, पीड़ाएँ झेली। उसे कुछ हो न जाय, इसलिए हमेशा उसे गोद में लिए रहती थी। उसे सुलाने के लिए लोरियाँ गाकर तथा थपकी देकर सुलाया करती थी। मन्दिर में पूजा–अर्चना किया, मिन्नतें माँगी, फिर भी वह अपने बेटे को काल के गाल से नहीं बचा सकी। वह विवश है। नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता।

कवयित्री की एकमात्र इच्छा यही है कि पलभर के लिए भी उसका बेटा उसके पास आ जाए अथवा कोई व्यक्ति उसे लाकर उससे मिला दे। कवयित्री उसे अपने सीने से चिपका लेती है तथा उसका सिर सहला–सहलाकर उसे समझाती है। कवयित्री की संवेदना उत्कर्ष पर पहुँच जाती है, शोक सागर में डूबती–उतराती बिछोह की पीड़ा असह्य है। वह बेटा से कहती है कि भविष्य में वह उसे छोड़कर कभी नहीं जाए। अपने मृत बेटे को उक्त बातें कहना उसकी असामान्य मनोदशा का परिचायक है। संभवतः उसने अपनी जीवित सन्तान को उक्त बातें कही हों।

सुभद्रा के प्रतिनिध काव्य संकलन ‘मुकुल’ से ली गई। प्रस्तुत कविता, ‘पुत्र–वियोग’ कवयित्री माँ के द्वारा लिखी गई है तथा निराला की ‘सरोज–स्मृति’ के बाद हिन्दी में एक दूसरा
“शोकगीत” है।

पुत्र के असमय निधन के बाद तड़पते रह गए माँ के हृदय के दारूण शोक की ऐसी सादगी भरी अभिव्यक्ति है जो निर्वैयक्तिक और सार्वभौम होकर अमिट रूप में काव्यत्व अर्जित कर लेती है। उसमें एक माँ के विवादमय शोक का एक साथ धीरे–धीरे गहराता और ऊपर–ऊपर आरोहण करता हुआ भाव उत्कटता अर्जन करता जाता है तथा कविता के अन्तिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ–बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म–प्रतीति में स्थायी परिणति पाता है।

कविता का भावार्थ 1.
आज दिशाएँ भी हँसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया,
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया।
शीत न लग जाए,
इस भय से नहीं गोद से
जिसे उतारा छोड़ काम दौड़ कर आई
‘मा’ कहकर जिस समय पुकारा (पृष्ठ 195)

प्रसंग–प्रस्तुत पद्यांश प्रसिद्ध कवयित्री ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ द्वारा रचित उनकी कविता ‘पुत्र वियोग’ से उद्धृत है जो उनके प्रतिनिधि काव्य संकलन ‘मुकुल’ में संकलित है। कवयित्री की यह रचना एक शोकगीति है।

यह शोकगीति पुत्र के असामयिक निधन के बाद कवयित्री माँ द्वारा लिखा गया है, जिसमें पुत्र–निधन के बाद पीछे तड़पते रह गए माँ के हृदय के दारुण शोक की मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति है। यह विषादमय शोक गहरा होता हुआ भाव उत्कटता प्राप्त करता जाता है।

व्याख्या–पुत्र की असामयिक मृत्यु से शोक विह्वल माँ अपने शोक संतप्त भावों को प्रकट करते हुए कहती है कि आज जब चारों ओर खुशी का वातावरण है और सारे संसार में खुशियाँ छाई हैं ऐसे में एक दुखी माँ के लिए ये सारी खुशियाँ बेकार हैं। मेरा पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त कर चुका है। मैं उसके इंतजार में दुखी बैठी हूँ। मेरा खोया पुत्र मेरे पास नहीं है।

फिर वह अपने मृत पुत्र को याद करती हुई कहती है कि मैंने अपने पुत्र को सर्दी, गर्मी, बरसात तथा हर दुख से बचाने का प्रयास किया था। मेरे प्रिय पुत्र को सर्दी न लगे, वह बीमार न पड़े, इसलिए मैंने उसे गोद से जमीन पर नहीं उतरने दिया। उसने जब भी माँ कहते हुए मुझे आवाज लगाई मैं अपना सारा काम–काज छोड़कर उसके पास दौड़कर आई, ताकि उसकी जरूरतें पूरी कर सकूँ।

विशेष–

  • पुत्र वियोग में दुखी माँ को उल्लासपूर्ण वातावरण भी उल्लसित नहीं कर पा रहा है।
  • माँ अपने पुत्र के हर दुःख में उसका ध्यान रखती है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
  • माँ ने अपने पुत्र को खिलौना कहकर मार्मिकता बढ़ा दी है।
  • ‘हँसती हैं’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • भाषा सहज तथा भावाभिव्यक्त करने में सक्षम है।
  • छंदबद्ध काव्यांश में करुण रस घनीभूत हुआ है।

2. थपकी दे दे जिसे सुलायी
जिसके लिए लोरियाँ गाईं,
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आँख में रात बिताई।
जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया
कहीं नारियल, दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया।

प्रसंग–पूर्ववत्। माँ अपने पुत्र से असीम प्यार करती हैं। वह अपने पुत्र को जरा सी तकलीफ में देखकर परेशान हो जाती है। उसकी परेशानी दूर करने के लिए वह तरह–तरह के उपाय करती है। कवयित्री भी अपने पुत्र के साथ किए गए प्यार भरे व्यवहार को याद कर उठती है। उसे वे सारी बातें एक–एक कर याद आने लगती हैं।

व्याख्या–कवयित्री कहती हैं कि उसने अपने प्रिय पुत्र के हर दुख–सुख का ख्याल रखा। उसने उसे प्यार से थपकियाँ देकर सुलाने की कोशिश की। उसे सुलाने के लिए मीठी–मीठी लोरियाँ सुनाईं, जिससे वह सो जाए। अपने पुत्र के चेहरे की चमक फीकी देखकर या उसकी उदासी महसूस कर उसने रात–रात भर जागकर उसका ख्याल रखा।

भलाई और सुख के लिए वह अपना सब कुछ भूल गई। उसे अपना सुख–दुख याद न रहा। इस कारण उसने पत्थर को देवता मानकर उसकी विधिवत् पूजा–अर्चना की। उसने इन देवों की पूजा करते हुए कहीं नारियल, दूध और बताशे चढ़ाए तो कहीं देवालयों में अपने पुत्र की भलाई की कामना करते हुए देवों को प्रणाम किया।

विशेष–

  • माँ अपनी संतान की भलाई के लिए नाना प्रकार के कष्ट उठाती हैं, यह भाव व्यक्त हुआ है।
  • लोरियाँ गाकर बच्चों को सुलाने की प्राचीन परंपरा का वर्णन किया गया है। (iii) दे दे’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा “लिए लोरियाँ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • आँखों में रात बिताना’ ‘पत्थर को देव बनाना’ तथा ‘शीश नवाना’ आदि मुहावरों का उपयुक्त प्रयोग किया गया है।
  • भाषा सहज, सरल तथा भावों को व्यक्त करने में सक्षम है, जिससे काव्यांश मर्म को छू जाता है।
  • काव्यांश छंदबद्ध तुकांत शैली में है।

3. फिर भी कोई कुछ न कर सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा।
तड़प रहे हैं विकल प्राण ये
मुझको पल भर शान्ति नहीं है
वह खोया धन पर न सकूँगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है।

प्रसंग–पूर्ववत्। कवयित्री ने अपने पुत्र की हर तरह से देखभाल की। उसकी सलामती के लिए पूजा–अर्चना करते हुए देवताओं के सम्मुख सिर झुकाकर दुआएँ भी माँगी, पर मृत्यु के आगे कोई कुछ नहीं कर सका है।

व्याख्या–कवयित्री कहती है कि उसके द्वारा की गई पूजा–अर्चना और माँगी गई दुआएँ भी उसके पुत्र को नहीं बचा सकी। कोई कुछ भी नहीं कर सका और उसका पुत्र असमय मृत्यु को प्राप्त हो गया। एक माँ का खिलौना उससे छिन गया और वह असहाय तथा विवश होकर बैठी रह गई। सकी आँखों से सामने ही उसका प्यारा पुत्र भगवान को प्यार हो गया।

पुत्र वियोग में तड़पती माँ कहती है कि इस असह्य कष्ट को उसका हृदयं तड़प–तड़पकर सह रहा है। उसे पुत्र की मृत्यु के बाद से पल भर के लिए शान्ति नहीं मिल सकी है। एक विवश माँ यह भी जानती है कि उसका जो अनमोल धन (पुत्र) खो गया है, उसे वह वापस नहीं पा सकती है। इस बात में जरा भी संदेह की गुजाइश नहीं है।

विशेष–

  • मृत्यु एक अटल सत्य है और इसे नकारा नहीं जा सकता है यह भाव व्यक्त किया गया है।
  • पुत्र वियोग में व्याकुल एक माँ के हृदय की पीड़ा का हृदय–स्पर्शी चित्रण है।
  • ‘कोई कुछ न कर सका’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • पुत्र के लिए ‘खिलौना’, ‘छौना’, ‘धन’ आदि उपमों के प्रयोग से भाषा–सौन्दर्य में वृद्धि हुई है
  • छंदबद्ध काव्यांश में करुण रस की उद्भावना हुई है।
  • भाषा सरल, सहज, हृदयस्पर्शी, तत्सम शब्दों से युक्त तथा भावों को अभिव्यक्त करने में सफल है।.

4. फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना सूना जीवन मेरा।
यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती।

प्रसंग–पूर्ववत्।

एक माँ यह बात अच्छी तरह जानती है कि मृत्यु पर किसी का वश नहीं चलता है। मृत्यु को किसी से मोह नहीं होता और जो उसके मुँह में चला गया, वह कभी लौटकर नहीं आता है। किन्तु एक माँ अपने मृत बेटे को कभी भूल नहीं पाती है। वह पुत्र वियोग में सदा तड़पती रहती है।

व्याख्या–अपने पुत्र की असामयिक मृत्यु से दुखी कवयित्री कहती है कि यह जानकर भी कि जो मर गया उसे वापस नहीं पाया जा सकता है। फिर भी उसका पुत्र के लिए रोता ही रहता है। किसी तरह से समझाने पर भी वह नहीं मानता है। पुत्र की मृत्यु के उपरांत उसके जीवन में खुशियाँ नहीं बची हैं। उसका जीवन कठिन और सूना–सूना हो गया है।

कवयित्री सोचती है कि यदि वह अपने खोए (मरे हुए) पुत्र को एक बार फिर से पा जाती, तो उसे जी–भरकर प्यार करती और अपने हृदय से लगा लेती। वह अपने पुत्र का सिर बार–बार सहलाती है और उसे समझाती कि वह अपनी मां को छोड़कर दूर न जाए।

विशेष–

  • पुत्र वियोग में तड़पती माँ के शोकाकुल हृदय (मन) की पीड़ा का हृदयस्पर्शी वर्णन है।
  • माँ का जीवन उसके पुत्र के लिए बिना कितना सूना हो जाता है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
  • माँ अपने पुत्र को पुनः पाना तथा प्यार करना चाहती है। इसे असंभव जानते हुए भी माँ की ममता इसे संभव बना लेना चाहती है।
  • ‘मानता है मेरा मन’ में अनुप्रास अलंकार तथा ‘सूना–सूना’ एवं ‘सहला–सहला’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • काव्यांश छंदबद्ध एवं तुकांतयुक्त है, जिसमें करुण रस घनीभूत है।
  • भाषा सरल, सहज तथा भावाभिव्यक्ति में पूर्णतया समर्थ है।

5. मेरे भैया मेरे बेटे अब
माँ को यों छोड़ न जाना
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।
भाई–बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावे
किन्तु रात–दिन की साथिन माँ
कैसे अपना मन समझावे ! (पृष्ठ 196)

प्रसंग–पूर्ववत्।

माँ अपने पुत्र की मृत्यु से बहुत दुखी है। उसका जीवन सूना–सूना हो गया है। वह अपने मृत पुत्र को पुनः पाना चाहती है। वह उसे समझाना चाहती है कि वह अपनी माँ को छोड़कर. कहीं भी न जाए।

व्याख्या–पुत्र वियोग में शोक–संतप्त माँ सोचती है कि यदि उसका पुत्र उसे पुनः मिल जाए तो वह उसे समझाएगी कि मेरे प्रिय पुत्र, मेरे भैया (बेटा) ! अब तुम अपनी माँ को छोड़कर इस तरह मत जाना, जैसे तुम अब चले गए थे। एक माँ से बेटे का यूँ बिछुड़कर दूर चले जाना ही उसके लिए सबसे बड़ा दुख है। अपने दुखी मन को सांत्वना देना और समझाना उसके (माँ के) लिए बड़ा ही कठिन होता है।

पुत्र वियोग में व्याकुल माँ कहती है कि हे बेटा ! तुम्हारे भाई–बहन तथा पिता भले ही तुम्हें. कुछ समय बाद भूल जाएँ, पर माँ तो अपने पुत्र की दिन–रात अर्थात् हर समय की साथिन होती है। वह उसे अपने गर्भ में पालती–पोसती है। उसे अपने साथ लिए हुए घूमती है। इसलिए वह उसे अपने मन को कैसे. और क्या समझाकर अपना दुख कम करे।

विशेष–

  • काव्याश में एक माँ की वेदना का हृदयस्पर्शी एवं मार्मिक वर्णन है।.
  • माँ और बेटे के बीच ममता का अटूट रिश्ता होता है। यह रिश्ता माँ को अपने पुत्र की याद दिलाता है, यह भाव व्यक्त हुआ है।
  • काव्यांश में करुण रस व्याप्त है।
  • भाषा सरल, सहज, बोधगम्य, मर्मस्पर्शी तथा भावों को व्यक्त करने में समर्थ है।।
  • काव्यांश छंदबद्ध तथा तुकांत युक्त है, जिसमें ‘रात–दिन की साथिन’ लोकोक्ति का अत्यन्त सुन्दर प्रयोग किया गया है।
  • अन्तिम पंक्तियों में मानवीय रिश्तों का मर्म छिपा हुआ है।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 4 नाखून क्यों बढ़ते हैं

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 4 नाखून क्यों बढ़ते हैं Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 4 नाखून क्यों बढ़ते हैं

Bihar Board Class 10 Hindi नाखून क्यों बढ़ते हैं Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 1.
नाखून क्यों बढ़ते हैं ? यह प्रश्न लेखक के आगे कैसे उपस्थित हुआ?
उत्तर-
नाखून क्यों बढ़ते हैं ? यह प्रश्न लेखक के आगे उनकी लड़की के माध्यम से उपस्थित हुआ।

Nakhun Kyu Badhte Hai Question Answer Bihar Board प्रश्न 2.
बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को क्या याद दिलाती है ?
उत्तर-
प्राचीन काल में मनुष्य जंगली था। वह वनमानुष की तरह था। उस समय वह अपने नाखून की सहायता से जीवन की रक्षा करता था। दाँत होने के बावजूद नख ही उसके असली हथियार थे। उन दिनों अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए नाखून ही आवश्यक अंग थे। कालान्तर में मानवीय हथियार ने आधुनिक रूप लिया और बंदूक, कारतूस, तोप, बम के रूप में मनुष्य की रक्षार्थ प्रयुक्त होने लगा। नखधर मनुष्य अत्याधुनिक हथियार पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे हैं। बढ़ते नाखूनों द्वारा प्रकृति मनुष्य को याद दिलाती है कि तुम भीतर वाले अस्त्र से अब भी वंचित नहीं हो। तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही प्राचीनतम नख एवं दंत पर आश्रित रहने वाला जीव हो। पशु की समानता तुममें अब भी विद्यमान है।

Nakhun Kyon Badhate Hain Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
लेखक द्वारा नाखूनों को अस्त्र के रूप देखना कहाँ तक संगत है ?
उत्तर-
कुछ लाख वर्षों पहले मनुष्य जब जंगली था उसे नाखून की जरूरत थी। वनमानुष के समान मनुष्य के लिए नाखून अस्त्र था क्योंकि आत्मरक्षा एवं भोजन हेतु नख की महत्ता अधि क थी। उन दिनों प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ने के लिए नाखून आवश्यक अंग था। असल में वही उसके अस्त्र थे। आज के बदलते परिवेश में, परिवर्तित समय में, इस आधुनिकता के दौर में सभ्यता के विकास के साथ-साथ अस्त्र के रूप में इसकी आवश्यकता नहीं समझी जा रही है। अब मनुष्य पशु के समान जीवनयापन नहीं करके आगे बढ़ गया है, इसलिए समयानुसार अपने अस्त्र में भी परिवर्तन कर लिया है। प्राचीन समय के लिए अस्त्र कहा जाना उपयुक्त है, तर्कसंगत है। लेकिन आज यह मानवीय अस्त्र के रूप में प्रयुक्त नहीं है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न उत्तर कक्षा 10 Bihar Board प्रश्न 4.
मनुष्यं बार बार नाखूनों को क्यों काटता है ?
उत्तर-
मनुष्य निरंतर सभ्य होने के लिए प्रयासरत रहा है। प्रारंभिक काल में मानव एवं पशु एकसमान थे। नाखून अस्त्र थे। लेकिन जैसे-जैसे मानवीय विकास की धारा अग्रसर होती गई मनुष्य पशु से भिन्न होता गया। उसके अस्त्र-शस्त्र, आहार-विहार, सभ्यता-संस्कृति में निरंतर नवीनता आती गयी। वह पुरानी जीवन-शैली को परिवर्तित करता गया। जो नाखून अस्त्र थे उसे अब सौंदर्य का रूप देने लगा। इसमें नयापन लाने, इसे संवारने एवं पशु से भिन्न दिखने हेतु नाखूनों को मनुष्य काट देता है। अब वह प्राचीनतम पशुवत् मानव को भूल जाना चाहता है। नाखून को सुंदर देखना चाहता है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं Bihar Board प्रश्न 5.
सुकुमार विनोदों के लिए नाखून को उपयोग में लाना मनुष्य ने कैसे शुरू किया? लेखक ने इस संबंध में क्या बताया है ?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि पशुवत् मानव भी धीरे-धीरे विकसित हुआ, सभ्य बना तब पशुता की पहचान को कायम रखनेवाले नाखून को काटने की प्रवृत्ति पनपी। यही प्रवृत्ति कलात्मक रूप लेने लगी। वात्स्यायन के कामसूत्र से पता चलता है कि भारतवासियों में नाखूनों को जम कर संवारने की परिपाटी आज से दो हजार वर्ष पहले विकसित हुई।

उसे काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार, दंतुल आदि विविध आकृतियों के नाखून उन दिनों विलासी नागरिकों के मनोविनोद का साधन बना। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार किसी ने नाखून को कलात्मक ढंग से काटना पसंद किया तो कोई बढ़ाना। लेकिन लेखक ने बताया है कि यह भूलने की बात नहीं है कि ऐसी समस्त अधोगामिनी वृत्तियों को और नीचे खींचनेवाली वस्तुओं को भारतवर्ष ने मनुष्योचित बनाया है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न उत्तर Pdf Bihar Board प्रश्न 6.
नख बढ़ाना और उन्हें काटना कैसे मनुष्य की सहजात वृत्तियाँ हैं ? इनका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मानव शरीर में बहुत-सी अनायास-जन्य सहज वृत्तियाँ अंतर्निहित हैं। दीर्घकालीन आवश्यकता बनकर मानव शरीर में विद्यमान रही सहज वृत्तियाँ ऐसे गुण हैं जो अनायास ही अनजाने में अपने आप काम करती हैं। नाखून का बढ़ना उनमें से एक है। वास्तव में सहजात वृत्तियाँ अनजान स्मृतियों को कहा जाता है। नख बढ़ाने की सहजात वृत्ति मनुष्य में निहित पशुत्व का प्रमाण है। उन्हें काटने की जो प्रवृति है वह मनुष्यता की निशानी है। मनुष्य के भीतर पशुत्व है लेकिन वह उसे बढ़ाना नहीं चाहता है। मानव पशुता को छोड़ चुका है क्योंकि पशु बनकर वह आगे नहीं बढ़ सकता। इसलिए पशुता की पहचान नाखून को मनुष्य काट देता है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं उत्तर Bihar Board प्रश्न 7.
लेखक क्यों पूछता है कि मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है, पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक के हृदय में अंतर्द्वन्द्व की भावना उभर रही है कि मनुष्य इस समय पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर बढ़ रहा है। वह इस प्रश्न को हल नहीं कर पाता है। अत: इसी जिज्ञासा ।

को शांत करने के लिए स्पष्ट रूप से इसे प्रश्न के रूप में लोगों के सामने रखता है। मनुष्य पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर बढ़ रहा है। इस विचारात्मक प्रश्न पर अध्ययन करने से पता चलता है कि मनुष्य पशुता की ओर बढ़ रहा है। मनुष्य में बंदूक, पिस्तौल, बम से लेकर नये-नये महाविनाश के अस्त्र-शस्त्रों को रखने की प्रवृत्ति जो बढ़ रही है वह स्पष्ट रूप से पशुता की निशानी है। पशु प्रवृत्ति वाले ही इस प्रकार के अस्त्रों के होड़ में आगे बढ़ते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 8.
देश की आजादी के लिए प्रयुक्त किन शब्दों की अर्थ मीमांसा लेखक करता है और लेखक के निष्कर्ष क्या हैं ?
उत्तर-
देश की आजादी के लिए प्रयुक्त ‘इण्डिपेण्डेन्स’ शब्दों की अर्थ मीमांसा लेखक करते हैं। इण्डिपेण्डेन्स का अर्थ है अनधीनता या किसी की अधीनता का अभाव, पर ‘स्वाधीनता’ शब्द का अर्थ है अपने ही अधीन रहना। अंग्रेजी में कहना हो, तो ‘सेल्फडिपेण्डेन्स’ कह सकते हैं।

लेखक का निष्कर्ष है ‘स्व’ निर्धारित आत्म-बंधन का फल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है। मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के नि:शेष भाव से दे देने में है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न उत्तर Class 8 Bihar Board प्रश्न 9.
लेखक ने किस प्रसंग में कहा है कि बंदरिया मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रसंग- मैं ऐसा तो नहीं मानता कि जो कुछ हमारा पुराना है, जो कुछ हमारा विशेष है, उससे हम चिपटे ही रहें। पुराने का ‘मोह’ सब समय वांछनीय ही नहीं होता। मेरे बच्चे को गोद में दबाये रखने वाली ‘बंदरिया’ मनुष्य का आदर्श नहीं बन सकती।

लेखक महोदय का अभिप्राय है कि सब पुराने अच्छे नहीं होते, सब नए खराब ही नहीं होते। भले लोग दोनों का जाँच कर लेते हैं, जो हितकर होता है उसे ग्रहण करते हैं।

Class 10th Hindi Godhuli Question Answer प्रश्न 10.
‘स्वाधीनता’ शब्द की सार्थकता लेखक क्या बताता है ?
उत्तर-
स्वाधीनता शब्द का अर्थ है अपने ही अधीन रहना। जिसमें ‘स्व’ का बंधन अवश्य है। यह क्या संयोग बात है या हमारी समूची परंपरा ही अनजाने में हमारी भाषा के द्वारा प्रकट होती रही है। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं प्रश्न उत्तर कक्षा 8 Bihar Board प्रश्न 11.
निबंध में लेखक ने किस बूढ़े का जिक्र किया है ? लेखक की दृष्टि में बूढ़े के कथनों की सार्थकता क्या है ?
उत्तर-
लेखक महोदय ने एक ऐसे बूढ़े का जिक्र किया है जो अपनी पूरी जिंदगी का अनुभव कुछ शब्दों में व्यक्त कर मनुष्य का सावधान करता है। जो इस प्रकार है। बाहर नहीं भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओं, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-तोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो। लेखक की दृष्टि में कथन पूर्णतः सार्थक हैं।

Bihar Board Class 10th Hindi Solution प्रश्न 12.
मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी एक दिन झड़ जाएँगे। प्राणिशास्त्रियों के इस अनुमान से लेखक के मन में कैसी आशा जगती है ?
उत्तर-
ग्राणीशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि एक दिन मनुष्य की पूँछ की तरह उसके नाखून भी झड़ जायेंगे। इस तथ्य के आधार पर ही लेखक के मन में यह आशा जगती है कि भविष्य में मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जायेगा और मनुष्य का आवश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जायेगा जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गयी है अर्थात् मनुष्य पशुता को पूर्णत: त्याग कर पूर्णरूपेण मानवता को प्राप्त कर लेगा।

नाखून क्यों बढ़ते हैं का सारांश Bihar Board प्रश्न 13.
‘सफलता’ और ‘चरितार्थता’ शब्दों में लेखक अर्थ की भिन्नता किस प्रकार प्रतिपादित करता है ?
उत्तर-
सफलता और चरितार्थता में अंतर है। मनुष्य मारणास्त्रों के संचयन से बाह्य उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा भी सकता है, जिसे उसने बड़े आडंबर के साथ सफलता नाम दे रखा है। परंतु मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, अपने को सबके मंगल के लिए निःशेष भाव से दे देने में है। नाखूनों को काट देना उस ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन का फल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है।

गोधूलि भाग 1 Class 10 Pdf Bihar Board प्रश्न 14.
व्याख्या करें –
(क) काट दीजिए, वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भाँति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।
व्याख्या-
ग्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के नाखून क्यों बढ़ते हैं, शीर्षक से ली गयी हैं। इसका संदर्भ है-जब लेखक की बिटिया नाखून बढ़ने का सवाल पूछती है, तब लेखक इस पर चिंतन-मनन करने लगता है। इस छोटे से सवाल के बीच ही यह पंक्ति भी विद्यमान है जो लेखक के चिंतन से उभरकर आयी है।

लेखक का मानना है कि नाखून ठीक वैसे ही बढ़ते हैं जैसे कोई अपराधी निर्लज्ज भाव से दंड स्वीकार के समय मौन तो लगा जाते हैं लेकिन पुनः अपनी आदत या व्यसन को शुरू कर देते हैं और अपराध, चोरी करने लगते हैं।
यह नाखून भी ठीक उसी अपराधी की तरह है। यह धीरे-धीरे बढ़ता है। काट दिए जाने पर पुनः बेहया की तरह बढ़ जाता है। इसे तनिक भी लाज-शर्म नहीं आती। अपराधी की भी ठीक वैसी ही प्रकृति-प्रवृत्ति है।

लेखक ने मनुष्य की पाश्विक प्रवृत्ति की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। वह बार-बार सुधरने, सुकर्म करने की कसमें खाता है। वादा करता है किन्तु थोड़ी देर के बाद पुनः वही कर्म दुहराने लगता है। कहने का मूल भाव यह है कि वह विध्वंसक प्रकृति की ओर सहज अग्रसर होता है जबकि वह निर्णयात्मक कार्यों में अपनी ऊर्जा और मेधा को लगाता।

(ख) मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के नाखून क्यों बढ़ते हैं’ नामक पाठ से ली गयी हैं। – इन पंक्तियों का संदर्भ मनुष्य की बर्बरता से जुड़ा हुआ है। अपने निबंध में लेखक यह बताना चाहता है कि मनुष्य के नाखून उसकी भयंकरता के प्रतीक हैं। लेखक के मन में कभी-कभी नाखून को देखकर निराशा उठती है। वह इस पर गंभीरता से चिंतन करने लगता है।

कहने का आशय यह है कि मनुष्य की बर्बरता कितनी भयंकर है कि वह अपने संहार में स्वयं लिप्त है जिसका उदाहरण—हिरोशिमा पर बम बरसाना है इससे कितनी धन-जन की हानि हुई, संस्कृति का विनाश हुआ, अनुमान नहीं लगाया जा सकता। आज भी उसकी स्मृति से मन सिहर उठता है। तो यह है मनुष्य का पाशविक स्वरूप। यहीं स्वरूप उसके नाखून की याद दिला देते हैं। उसकी भयंकरता, बर्बरता, पाशविकता, अदूरदर्शिता, अमानवीयता जिसे लेकर लेखक निराश हो उठता है। वह चिंतित हो उठता है।

लेखक की दृष्टि में मनुष्य के नाखून भयंकर पाशवी वृत्ति के जीते-जागते उदाहरण हैं। मनुष्य की पशुता को जितनी बार काटने की कोशिश की जाय फिर भी वह मरना नहीं चाहती। किसी न किसी नवीन रूप को धारण कर अपने विध्वंसक रूप को प्रदर्शित कर ही देती है।

(ग) कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का संदर्भ जुड़ा है – लेख के अंत में द्विवेदीजी यह बताना चाहते हैं कि ये कमबख्त नाखून अगर बढ़ता है तो बढ़े, किन्तु मनुष्य उसे बढ़ने नहीं देगा।

लेखक के कहने का आशय यह है कि मनुष्य अब सभ्य और संवेदनशील हो गया है, बुद्धिजीवी हो गया है। वह नरसंहार का वीभत्स रूप देख चुका है। उसे यादकर ही वह कॉप जाता है। उसके विनाशक रूप का वह भुक्तभोगी है। हिरोशिमा का महाविनाश उसके सामने प्रत्यक्ष प्रमाण है। अतः, उससे निजात पाने के लिए वह सदैव सचेत होकर फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहा है। वह अपने विध्वंसक रूप को छोड़कर सृजनात्मकता की ओर अग्रसर होना चाहता है। वह मानव मूल्यों की रक्षा, मानवीयता की स्थापना में लगे रहना चाहता है। निरर्थक और संहारक तत्वों से बनकर शांति के साये में जीना चाहता है।

मनुष्य के इसी विवेकशील चिंतन और दूरदर्शिता की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए लेखक यह बताना चाहता है कि कमबख्त नाखून बढ़े तो बढ़े इससे चिंतित होने की जरूरत नहीं। अब मनुष्य सजग और सचेत है। वह उसे बढ़ने नहीं देगा उसे काटकर नष्ट कर देगा। कहने का भाव यह है कि वह क्रूरतम विध्वंसक रूप को त्याग देगा।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 15.
लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक की दृष्टि में हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है अपने आप पर अपने आपको द्वारा लगाया हुआ बंधन। भारतीय चित्त जो आज की अनधीनता के रूप में न सोचकर स्वाधीनता के रूप में सोचता है। यह भारतीय संस्कृति की विशेषता का ही फल है। यह विशेषता हमारे दीर्घकालीन संस्कारों से आयी है, इसलिए स्व के बंधन को आसानी से नहीं छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 16.
मैं मनुष्य के नाखून की ओर देखता हूँ तो कभी-कभी निराश हो जाता हूँ। स्पष्ट . कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी साहित्य के ललित निबंध ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ शीर्षक से उद्धृत है। इस अंश में प्रख्यात निबंधकास हजारी प्रसाद द्विवेदी बार-बार काटे जाने पर . भी बढ़ जाने वाले नाखूनों के बहाने अत्यन्त सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकास गाथा उद्घाटित करते हैं। साथ ही नाखून बढ़ने की उसकी भयंकर पाश्विक वृत्ति के जीवंत प्रतीक का भी वर्णन करते हैं।

प्रस्तुत व्याख्येय अंश पूर्ण रूप से लाक्षणिक वृत्ति पर आधारित है। लाक्षणिक धारा में ही निबंध का यह अंश प्रवाहित हो रहा है। लेखक अपने वैचारिक बिन्दु को सार्वजनिक करते हैं। मनुष्य नाखून को अब नहीं चाहता। उसके भीतर प्राचीन बर्बरता का यह अंश है जिसे भी मनुष्य समाप्त कर देना चाहता है। लेकिन अगर नाखून काटना मानवीय प्रवृत्ति और नाखून बढ़ाना पाश्विक प्रवृति है तो मनुष्य पाश्विक प्रवृत्ति को अभी भी अंग लगाये हुए है। लेखक यही सोचकर |

कभी-कभी निराश हो जाते हैं कि इस विकासवादी युग में भी मनुष्य को बर्बरता नहीं घटी है। वह तो बढ़ती ही जा रही है। हिरोशिमा जैसा हत्याकांड पाश्विक प्रवृत्ति का महानतम उदाहरण है। साथ ही लेखक की उदासीनता इस पर है कि मनुष्य की पशुता को जितनी बार काट दो वह मरना नहीं जानती।

प्रश्न 17.
नाखून क्यों बढ़ते हैं का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
उत्तर के लिए सारांश देखें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन बदलें
उत्तर-
अल्पज्ञ – अल्पज्ञों
प्रतिद्वंद्वियों – प्रतिद्वंद्वी
हड्डि – हड्डियाँ
मुनि – मुनियों
अवशेष – अवशेष
वृतियों – वृत्ति
उत्तराधिकार- उत्तराधिकारियों
बंदरिया – बंदर

प्रश्न 2.
वाक्य-प्रयोग द्वारा निम्नलिखित शब्दों के लिंग-निर्णय करें
उत्तर-
बंदूक – बंदूक छूट गया।
घाट  – घाट साफ है।
सतह – सतह चिकना है।
अनुसधित्सा- अनुसंधिसा की इच्छा है।
भंडार – भंडार खाली है।
खोज – खोज पुराना है।
अंग – अंग कट गया।
वस्तु – वस्तु अच्छा है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में क्रिया की काल रचना स्पष्ट करें।
(क) उन दिनों उसे जूझना पड़ता था। – भूतकाल
(ख) मनुष्य और आगे बढ़ा – भूतकाल
(ग) यह सबको मालूम है। – वर्तमान कार्ल
(घ) वह तो बढ़ती ही जा रही है। – वर्तमान काल
(ङ) मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा। – भविष्य काल

प्रश्न 4.
‘अस्त्र-शस्त्रों का बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा की निशानी है और उनकी बाढ़ . को रोकना मनुष्यत्व का तकाजा है। इस वाक्य में आए विभक्ति चिन्हों के प्रकार बताएँ।
उत्तर-
शस्त्रों का – षष्ठी विभक्ति
मनुष्य की – षष्ठी विभक्ति
इच्छा की – षष्ठी विभक्ति
उनकी – षष्ठी विभक्ति
बाढ़ को – द्वितीया विभक्ति
मनुष्यत्व का- षष्ठी विभक्ति।

प्रश्न 5.
स्वतंत्रता, स्वराज्य जैसे शब्दों की तरह ‘स्व’ लगाकर पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर-
स्वधर्म, स्वदेश, स्वभाव, स्वप्रेरणा, स्वइच्छा।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के विलोम शब्द लिखें
उत्तर-
पशुता – मनुष्यतां
घृणा – प्रेम
अभ्यास – अनभ्यास
मारणास्त्र – तारणस्त्र
ग्रहण – उग्रास
मूढ – ज्ञानी
अनुवर्तिता – परवर्तिता
सत्याचरण – असत्याचरण:

गिद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कुछ लाख ही वर्षों की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाखून की जरूरत थी. उसकी जीवन-रक्षा के लिये नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। दाँत भी थे, पर नाखून के बाद ही उसका स्थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था। प्रतिद्वन्द्वियों को पछाड़ना पड़ता था। नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डालें काम में लाने लगा (रामचंद्र जी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे।) उसने हड्डियों के भी हथियार बनाए। इन हड्डी के हथियारों में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक का देवताओं के राजा का वज्र, जो दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था। मनुष्य और आगे बढ़ा। उसने धातु के हथियार बनाए।

जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे, वे विजयी हुए। देवताओं के राजा तक को मनुष्यों के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी कि मनुष्यों के पास लोहे के अस्त्र थे। असुरों के पास । अनेक विद्याएँ थीं, पर लोहे के अस्त्र नहीं थे, शायद घोड़े भी नहीं थे। आर्यों के पास ये दोनों चीजें थीं। आर्य विजयी हुए। फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया। नाग हारे, सुपर्ण हारे, यक्ष हारे, गंधर्व हारे, असुर हारे, राक्षस हारे। लोहे के अस्त्रों ने बाजी मार ली। इतिहास आगे बढ़ा। पलीतेवाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने, बमों ने, बमवर्षक वायुयानों में इतिहास को किस कीचड़भरे घाट तक घसीटा है, यह सबको मालूम है। नखधर मनुष्य अब एटम बम पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे हैं।

अब भी प्रकृति मनुष्य को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है, अब भी वह याद दिला देती है कि तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष के पहले के नख-दंतावलंबी जीव हो पशु के साथ एक ही सतह पर विचरण करने वाले और चरने वाले।

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) मनष्य को कब और क्यों नाखन की आवश्यकता थी
(ग) वज्र किसका हथियार था और वह कैसा था?
(घ) असुरों में अनेक विद्याएँ थीं फिर भी आर्यों से क्यों पराजित हुए ?
(ङ) अब भी प्रकृति मानव को क्या याद दिला देती है ?
(च) लेखक ने नख-दंतावलंबी जीव किसे कहा है ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम- नाखून क्यों बढ़ते हैं।
लेखक का नाम- हजारी प्रसाद द्विवेदी।
(ख) जब मनुष्य वनमानुष जैसा जंगली था तब उसे नाखून की आवश्यकता थी क्योंकि मानव नाखून की सहायता से जंगली जीवों से रक्षा करता था; भोजन उपलब्धि में जीवों को मारने में सहायता लेता था।
(ग) वज्र इन्द्र का हथियार था और वह दधीचि की हड्डियों से बना था।
(घ) असुरों के पास अनेक विधाएँ थीं, पर लोहे के अस्त्र नहीं थे। शायद घोड़े भी नहीं थे। आर्यों के पास ये दोनों चीजें थीं इसी कारण आर्य विजयी हुए और असुर पराजित।।
(ङ) मानव को प्रकृति अब भी याद दिला देती है कि तुम्हारे नाखून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम्हारे अन्दर अब भी पशुता विद्यमान है।
(च) मनुष्य को।

2. मानव शरीर का अध्ययन करनेवाले प्राणिविज्ञानियों का निश्चित मत है कि मानव-चित्तं . – की भाँति मानव शरीर में बहुत-सी अभ्यास-जन्य सहज वृत्तियाँ रह गई हैं। दीर्घकाल तक उनकी आवश्यकता रही है। अतएव शरीर ने अपने भीतर एक ऐसा गुण पैदा कर लिया है कि वे वृत्तियाँ अनायास ही, और शरीर के अनजाने में भी, अपने-आप काम करती हैं। नाखून का बढ़ना उसमें से एक है, केश का बढ़ना दूसरा, दाँत का दुबारा उठना तीसरा है, पलकों का गिरना चौथा है। और असल में सहजात वृत्तियाँ अनजान स्मृतियों को ही कहते हैं।

हमारी भाषा में इसके उदाहरण मिलते हैं। अगर आदमी अपने शरीर की, मन की और वाक् की अनायास घटने वाली वृत्तियों के विषय में विचार करे, तो उसे अपनी वास्तविक प्रवृत्ति पहचानने में बहुत सहायता मिले। पर कौन सोचता है ? सोचना तो क्या उसे इतना भी पता नहीं चलता कि उसके भीतर नख बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है।

उनहें काटने की जो प्रवृत्ति हैं, वह उसकी मनुष्यता की निशानी है और यद्यपि पशुत्व के चिह्न उसके भीतर रह गए हैं, पर वह पशुत्व को छोड़ चुका है। पशु बनकर वह आगे नहीं बढ़ सकता। उसे कोई और रास्ता खोजना चाहिए। अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता की विरोधिनी है।

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) प्राणि विज्ञानियों का वृत्तियों के बारे में क्या मत है ?
(ग) लेखक का नख बढ़ाने की प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है?
(घ) मानव शरीर में विद्यमान सहजात वृत्तियाँ क्या-क्या हैं ?
(ङ) नख काटने की प्रवृत्ति किसकी निशानी है?
(च) कौन-सी प्रवृत्ति मनुष्यता की विरोधिनी है ?
(छ) मनुष्य को अपनी वास्तविक प्रवृत्ति पहचानने में क्या मददगार होगा?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम- नाखून क्यों बढ़ते हैं।
लेखक का नाम- हजारी प्रसाद द्विवेदी।
(ख) प्राणी विज्ञानियों का निश्चित मत है कि मानव-चित्त की भाँति शरीर में भी बहुत-सी अभ्यासजन्य सहज वृत्तियाँ विद्यमान हैं। ,
(ग) लेखक नख बढ़ाने की प्रवृत्ति को मानव में अंतर्निहित पशुत्व का प्रमाण मानते हैं।
(घ) नाखून का बढ़ना, केश का बढ़ना, पलकों का गिरना, दाँत का दुबारा उठना इत्यादि मानव शरीर में विद्यमान सहजात वृत्तियाँ हैं।
(ङ) नख काटने की प्रवृत्ति मनुष्यता की निशानी है।
(च) अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति मनुष्यता की विरोधिनी है।
(छ) अगर मनुष्य अपने शरीर की; मन की और वाणी की अनायास घटनेवाली वृत्तियों के विषय में विचार करे, तो उसे अपनी वास्तविक प्रवृत्ति पहचानने में बहुत सहायता मिले।

3. सोचना तो. क्या उसे इतना भी पता नहीं चलता कि उसके भीतर नख बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है, वह उसके पशुत्व का प्रमाण है। उन्हें काटने की जो प्रवृत्ति है, वह उसकी मनुष्यता । की निशानी है और यद्यपि पशुत्व के चिह्न उसके भीतर रह गए हैं, पर वह पशुत्व को छोड़ चुका है। पशु बनकर वह आगे नहीं बढ़ सकता। उसे कोई और रास्ता खोजना चाहिए। अस्त्र बढ़ाने – की प्रवृत्ति मनुष्यता की क्रोिधिनी है।

प्रश्न-
(क) प्राणीविज्ञानी के अनुसार मानव की सहजात वृत्ति क्या है?
(ख) मनुष्यता की विरोधिनी क्या है?
(ग) नाखून बढ़ना और नाखून काटना किसकी निशानी है ?
(घ). ‘पशु बनकर वह आगे नहीं बढ़ सकता’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) प्राणीविज्ञानी के अनुसार मानव की सहजात वृत्ति नाखून बढ़ाना है।
(ख) अस्त्र-शस्त्र जमा करना मनुष्यता की विरोधिनी है।
(ग) प्राणीविज्ञानी के अनुसार नाखून बढ़ाना मानव की सहजात वृत्ति है। यदि मनुष्य नाखून काटता है तो काटने की प्रवृत्ति मनुष्यता की निशानी है।
(घ) आदिकाल में मनुष्य को हिंसक होने की जरूरत थी इसलिए उसके बार-बार नाखून उग आए परन्तु आज मनुष्य सभ्य हो चुका है। वह हिंसा की भावना को नष्ट कर देना चाहता है क्योंकि उसे पता है कि वह हिंसा या पशुता के सहारे आगे नहीं बढ़ सकता। उसे कोई और रास्ता खोजना चाहिए। उसे यह भी ज्ञान है कि अस्त्र-शस्त्र जमा करना मानवता का विरोध करना है।

4. हमारी परंपरा महिमामकी, उत्तराधिकार विपुल और संस्कार उज्ज्वल हैं। हमारे अनजाने में भी ये बातें एक खास दिशा में सोचने की प्रेरणा देती हैं। यह जरूर है कि परिस्थितियों बदल गई हैं। उपकरण नए हो गए हैं और उलझनों की मात्रा भी बहुत बढ़ गई है, पर मूल समस्याएं बहुत अधिक नहीं बदली हैं। भारतीय चित्त जो आज भी अधीनता’ के रूप में न सोचकर ‘स्वाधीनता’ के रूप में सोचता है, वह हमारे दीर्घकालीन संस्कारों का फल है। वह ‘स्व’ के बंधन को आसानी से छोड़ नहीं सकता। अपने-आप पर अपने-आप के द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) हमारी परम्परा कैसी है?
(ग) भारतीय चित्त में ‘स्व’ का भाव किसका प्रतिफल है?
(घ) गद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ- नाखून क्यों बढ़ते हैं।लेखक- हजारी प्रसाद द्विवेदी।।
(ख) हमारी भारतीय परम्परा महिमामयी, उत्तराधिकार विपुल और संस्कार उज्ज्वल हैं। यह . हमारे अनजाने में ही एक खास दिशा में सोचने की प्रेरणा देती है।
(ग) भारतीय चित्त में ‘स्व’ का भाव हमारे दीर्घकालीन संस्कारों का फल है।
(घ) हमारी महिमामयी परंपरा और उज्ज्वल संस्कार ही एक खास दिशा में सोचने की प्रेरणा देते हैं। परिस्थितियों भले बदल गई हैं, पर समस्याएं बदली नहीं हैं। हमारे मानस में ‘स्व’ का जो भाव है, जो आत्म-बंधन की स्वीकृति है, वह दीर्घकालीन संस्कारों का फल है।

5. जातियाँ इस देश में अनेक आई हैं। लड़ती-झगड़ती भी रही हैं, फिर प्रेमपूर्वक बस भी गई हैं। सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना और मुख करके चलनेवाली इन जातियों के लिए सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी।

भारतवर्ष के ऋषियों ने अनेक प्रकार से इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी। पर एक बात उन्होंने लक्ष्य की थी। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है। वह है अपने ही बंधनों से अपने को बाँधना। मनुष्य पशु से किस बात से भिन्न है। आहार-निद्रा आदि पशु-सुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य प्राणियों के। लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न हैं।

उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति संवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है। वह मनुष्य के स्वयं के उद्भावित बंधन हैं। इसीलिए मनुष्य झगड़े-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़-दौड़ने-वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी भी जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। यह मनुष्यमात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए निर्वैर भाव, सत्य और अक्रोध को सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा है
प्रश्न-
(क) मनुष्य को संयमित करनेवाला कौन-सा बंधन है ?
(ख) मनुष्य किन गुणों के कारण पशुओं से भिन्न माना जाता है ?
(ग)लेखक ने ‘स्वाधीनता’ को भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा गुण क्यों माना है ?
(घ) गलत आचरण किसे माना गया है ?
उत्तर-
(क) मनुष्य को संयमित करनेवाला बंधन ‘स्व’ है। मनुष्य इस बंधन को स्वयं ही स्वीकार करता है। यही हमारी संस्कृति की विशेषता है।
(ख) लेखक के अनुसार आहार, निद्रा आदि पशुओं जैसी आदतें मनुष्य की भी है परन्तु
संयम, तप, त्याग, सुख-दुख के प्रति संवेदना आदि गुण उसे पशुओं से भिन्न बनाते हैं।
(ग) ‘स्वाधीनता’ का अर्थ है अपने ऊपर लगाया गया बंधन। अपने पर अपने द्वारा रोक लगाना भारतीय परंपरा है। मन में क्रोध आना पशुता की निशानी है परन्तु विवेक द्वारा संयमित करना मनुष्यता है।
(घ) वचन, मन और शरीर से किये गये असत्याचरण को गलत आचरण माना गया है।

6. मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा? बड़े-बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओं की कमी है, और मशीन बैठाओ, और उत्पादन बढ़ाओ, और धन की वृद्धि करो और बाह्य उपकरणों की ताकत बढ़ाओ। एक बूढा था। उसने कहा था–बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो, आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो; आत्म-तोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो।

उसने कहा-प्रेम ही बड़ी चीज है, क्योंकि वह हमारे भीतर है। उच्छृखलता पशु की प्रवृत्ति है, ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं, पता नहीं। उसे गोली मार दी गई। आदमी के नाखून बढ़ने की प्रवृत्ति ही हावी हुई। मैं हैरान होकर सोचता हूँ बूढ़े ने कितनी गहराई में पैठकर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।

प्रश्न-
(क) बड़े-बड़े नेताओं ने क्या कहा है ?
(ख) बूढ़ा कौन था? उसने क्या-क्या करने की सीख दी है ?
(ग) “एक बूढ़ा था”-लेखक ने किस बूढ़े की ओर संकेत किया है ?
(घ) लेखक हैरान होकर क्यों सोचता है ?
उत्तर-
(क) बड़े-बड़े नेताओं ने मशीन बैठाने, उत्पादन बढ़ाने, धन की वृद्धि करने और बाह्य उपकरणों की ताकत बढ़ाने को कहा है।
(ख) बूढ़ा सत्य और अहिंसा का पुजारी था। यहाँ उसने बाहर नहीं, भीतर की ओर देखने, हिंसा को मन से दूर करने, मिथ्या को हटाने, क्रोध और द्वेष को दूर करने, लोक के लिए कष्ट सहने, प्रेम.की बात सोचने, उच्छृखलता को छोड़कर ‘स्व’ को अपनाने की सीख दी है।
(ग) ‘एक बूढ़ा था’-वाक्यांश में लेखक ने महात्मा गाँधी की ओर संकेत किया है।
(घ) बूढ़े द्वारा अच्छी बातें समझाने पर भी उसे गोली मारी गई। पशुता. या हिंसा को जितनी बार भी समाप्त करने का प्रयास किया जाता है, वह बढ़ती जाती है। वास्तविक चरितार्थता का पाठ पढ़ानेवाला भी गोली का ही शिकार हुआ। लोगों की ऐसी पशुवृत्ति को देखकर लेखक हैरान हो जाता है।

7. सफलता और चरितार्थता में अंतर है। मनुष्य मरणास्त्रों के संचयन से, बाह्य उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु को पा भी सकता है, जिसे उसने बड़े आडंबर के साथ सफलता नाम दे रखा है। परंतु मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है। नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना वाहती है, उसको काट देना उस ‘स्व-निर्धारित आत्म-बंधन का फल है, जो उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है।

प्रश्न-
(क) मनुष्य की चरितार्थता किसमें है?
(ख) मनुष्य ने सफलता का नाम किसे दे रखा है ?
(ग) नाखूनों का बढ़ना और नाखूनों का कटना किस चीज का परिचायक है ?
(घ) सफलता और चरितार्थता में क्या अन्तर है?
उत्तर-
(क) मनुष्य की चरितार्थता आपसी प्रेम, मित्रता और त्याग पर निर्भर करती है वास्तव में उसी का जीवन सफल है. जो दूसरे की भलाई के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दे।
(ख) मनुष्य मरणास्त्रों के संचयन से बाह्य उपकरणों के बाहुल्य से उस वस्तु में भी पा सकता है, जिसे उसने बड़े आडंबर के साथ अर्जित किया है। इसी रूप को मनुष्य ने सफलता का नाम दे रखा है।
(ग) नाखूनों का बढ़ना उस हिंसा का परिणाम है जिसके सहारे वह सफलता पाना चाहता है। दूसरी ओर नाखूनों को काटना आत्म-निर्धारित बंधन का फल है। मनुष्य को अपने बनाए गए बंधनों में ही बंधकर रहना चाहिए तभी मनुष्य-जीवन सफल है।
(घ) अपने बंधन में बंधकर जीवनयापन करना ही सफलता हैं जबकि चरितार्थता आपसी प्रेम, मित्रता और त्याग पर निर्भर करती है। परहित के लिए सर्वस्व अर्पित कर देना ही चरित्रार्थता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्व

सही विकल्प चुनें-

प्रश्न 1.
‘नाखून क्यों बढ़ते हैं किस प्रकार का निबंध है?
(क) ललित
(ख) भावात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) विवरणात्मक
उत्तर-
(क) ललित

प्रश्न 2.
हजारी प्रसाद द्विवेदी किस निबंध के रचयिता हैं ?
(क) नागरी लिपि
(ख) नाखून क्यों बढ़ते हैं
(ग) परंपरा का मूल्यांकन
(घ) शिक्षा और संस्कृति
उत्तर-
(ख) नाखून क्यों बढ़ते हैं

प्रश्न 3.
अल्पज्ञ पिता कैसा जीव होता है ?
(क) दयनीय
(ख) बहादुर
(ग) अल्पभाषी
(घ) मृदुभाषी
उत्तर-
(क) दयनीय

प्रश्न 4.
दधीचि की हड्डी से क्या बना था?
(क) तलवार
(ख) त्रिशूल
(ग) इन्द्र का वज्र
(घ) कुछ भी नहीं
उत्तर-
(ग) इन्द्र का वज्र

प्रश्न 5.
‘कामसूत्र’ किसकी रचना है ?
(क) वात्स्यायन
(ख) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(ग) भीमराव अंबेदकर
(घ) गुणाकर मूले
उत्तर-
(क) वात्स्यायन

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1.
हर……..”दिन नाखून बढ़ जाते हैं।
उत्तर-तीसरे

प्रश्न 2.
सहजात वृत्तियाँ……”स्मृतियों को कहते हैं।
उत्तर-
अनजान

प्रश्न 3.
अस्त्र बढ़ाने की प्रवृत्ति………..विरोधी है।
उत्तर-
मनुष्यता

प्रश्न 4.
“इण्डिपेण्डेन्स’ का अर्थ है…………..।
उत्तर-
अनधीनता

प्रश्न 5.
‘स्व’ का बंधन ……….. का स्वभाव है।
उत्तर-
मनुष्य

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जंगली मनुष्य को नाखून की जरूरत क्यों थी ?
उत्तर-
उसकी (जंगली मनुष्य) जीवन-रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी था।

प्रश्न 2.
मनुष्य का नाखून बढ़ना किस वृत्ति का परिचायक है ?
उत्तर-
नाखून बढ़ना मनुष्य की पाशविक वृत्ति का परिचायक है।

प्रश्न 3.
हड्डी के हथियारों में सबसे मजबूत हथियार किसकी हड्डी से बना था?
उत्तर-
हड्डी के हथियारों में सबसे मजबूत हथियार दधीचि मुनि की हड्डियों से बना था।

प्रश्न 4.
हिरोशिमा का हत्याकांड किसका जीवंत प्रतीक है ?
उत्तर-
हिरोशिमा का हत्याकांड मनुष्य की भयंकर पाशविक वृत्ति का जीवंत प्रतीक है।

प्रश्न 5.
भारतीय संस्कृति की क्या विशेषता है. ?
उत्तर-
भारतीय संस्कृति की विशेषता है अपने-आप पर अपने-आप लगाया हुआ बंधना

प्रश्न 6.
भले और मूढ़ लोगों में क्या अन्तर है ? .
उत्तर-
भले लोग अच्छे-बुरे की जाँच कर हितकर को ग्रहण करते हैं और मूढ़ लोग दूसरों के इशारों पर भटकते रहते हैं।

प्रश्न 7.
महाभारत में सामान्य धर्म किसे कहा गया है?
उत्तर-
महाभारत में निर्वैर भाव, सत्य और क्रोधहीनता को सामान्य धर्म कहा गया है।

प्रश्न 8.
मनुष्य का स्वधर्म क्या है ?
उत्तर-
अपने आप पर संयम और दूसरे के मनोभावों का समादर करना मनुष्य का स्वधर्म है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं लेखक परिचय

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई० में आरत दुबे का छपरा, बलिया (उत्तर । प्रदेश) में हुआ । द्विवेदी जी का साहित्य कर्म भारतवर्ष के सांस्कृतिक इतिहास की रचनात्मक परिणति है । संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, बांग्ला आदि भाषाओं व उनके साहित्य के साथ इतिहास, संस्कृति, धर्म, दर्शन और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की व्यापकता व गहनता में पैठकर उनका अगाध पांडित्य नवीन मानवतावादी सर्जना और आलोचना की क्षमता लेकर प्रकट हुआ है। वे ज्ञान को बोध और पांडित्य की सहृदयता में दाल कर एक ऐसा रचना संसार हमारे सामने उपस्थित करते हैं जो विचार की तेजस्विता, कथन के लालित्य और बंध की शास्त्रीयता का संगम है । इस प्रकार उनमें एकसाथ कबीर, तुलसी और रवींद्रनाथ एकाकार हो उठते हैं। उनकी सांस्कृतिक दृष्टि अपूर्व है। उनके अनुसार भारतीय संस्कृति किसी एक जाति की देन नहीं, बल्कि समय-समय पर उपस्थित अनेक जातियों के श्रेष्ठ साधनांशों के लवण-नीर संयोग से विकसित हुई हैं।

द्विवेदीजी की प्रमुख रचनाएँ हैं – ‘अशोक के फूल’, ‘कल्पलता’, ‘विचार और वितर्क’, ‘कुटज’,’विचार-प्रवाह’, ‘आलोक पर्व’, ‘प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद’ (निबंध संग्रह); ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘चारुचंद्रलेख’, ‘पुनर्नवा’, ‘अनामदास का पोथा’ (उपन्यास); ‘सूर साहित्य’, ‘कबीर’, ‘मध्यकालीन बोध का स्वरूप’, ‘नाथ संप्रदाय’, ‘कालिदास की लालित्य योजना’, ‘हिंदी साहित्य का आदिकाल’, ‘हिंदी साहित्य की भूमिका’, ‘हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास’ (आलोचना-साहित्येतिहास); ‘संदेशरासक’, ‘पृथ्वीराजरासो’, ‘नाथ-सिद्धों की बानियाँ'(ग्रंथ संपादन): ‘विश्व भारती’ (शांति निकेतन) पत्रिका का संपादन । द्विवेदीजी को आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान एवं लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी० लिट् की उपाधि मिली । वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, शांति निकेतन विश्वविद्यालय, . चंडीगढ़ विश्वविद्यालय आदि में प्रोफेसर एवं प्रशासनिक पदों पर रहे । सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हुआ।

हजारी प्रसाद द्विवेदी ग्रंथावली से लिए गए प्रस्तुत निबंध में प्रख्यात लेखक और निबंधकार का मानववादी दृष्टिकोण प्रकट होता है । इस ललित निबंध में लेखक ने बार-बार काटे जाने पर भी बढ़ जाने वाले नाखूनों के बहाने अत्यंत सहज शैली में सभ्यता और संस्कृति की विकाम-गाथा उद्घाटित कर दिखायी है। एक ओर नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की आदिम पाशविक वृत्ति और संघर्ष चेतना का प्रमाण है तो दूसरी ओर उन्हें बार-बार काटते रहना और अलंकृत करते रहना मनुष्य के सौंदर्यबोध और सांस्कृतिक चेतना को भी निरूपित करता है । लेखक ने नाखूनों के बहाने मनोरंजक शैली में मानव-सत्य का दिग्दर्शन कराने का सफल प्रयत्न किया है। यह निबंध नई पीढ़ी में सौंदर्यबोध, इतिहास चेतना और सांस्कृतिक आत्मगौरव का भाव जगाता है।

नाखून क्यों बढ़ते हैं Summary in Hindi

पाठ का सारांश

बच्चे कभी-कभी चक्कर में डाल देने वाले प्रश्न कर बैठते हैं। मेरी छोटी लड़की ने जब उस दिन पूछ.दिया कि आदमी के नाखून क्यों बढ़ते हैं, तो मैं सोच में पड़ गया, हर तीसरे दिन नाखून बढ़ जाते हैं, बच्चे कुछ दिन तक अगर उन्हें बढ़ने दें, तो माँ-बाप अकसर उन्हें डाँटा करते हैं। पर कोई नहीं जानता कि ये अभागे नाखन क्यों इस प्रकार बढ़ा करते हैं। काट दीजिए वे चुपचाप दंड स्वीकार कर लेंगे पर निर्लज्ज अपराधी की भांति फिर छूटते ही सेंध पर हाजिर।

कुछ लाख ही वर्षों की बात है, जब मनुष्य जंगली था; वनमानुष जैसा। उसे नाखून की जरूरत थी। उसकी जीवन-रक्षा के लिए नाखून बहुत जरूरी थे। असल में वही उसके अस्त्र थे। दाँत भी थे पर नाखून के बाद ही उनका स्थान था। उन दिनों उसे जूझना पड़ता था, प्रतिद्वंदियों को पछाड़ना पड़ता था, नाखून उसके लिए आवश्यक अंग था। फिर धीरे-धीरे वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओं का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेंड की डालें काम में लाने लगा। उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये। मनुष्यं और आगे बढ़ा। उसने धातु के हथियार बनाए। पलीतेवाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने, बमों ने, बमवर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट पर घसीटा है, यह सबको मालूम है। नखधर मनुष्य अब एटम बम पर भरोसा करके आगे की ओर चल पड़ा है। पर उसके नाखून अब भी बढ़ रहे थे।

कुछ हजार साल पहले मनुष्य ने नाखून को सुकुमार विनोदों के लिए उपयोग में लाना शुरू किया था। वात्स्यायन के कामसूत्र से पता चलता है कि आज से दो हजार वर्ष पहले का भारतवासी नाखूनों को जम के संवारता था। उनके काटने की कला काफी मनोरंजक बताई गई है। त्रिकोण, वर्तुलाकार, चंद्राकार दंतुल आदि विविध आकृतियों के नाखून उन दिनों विलासी नागरिकों के न. जाने किस काम आया करते थे। उनको सिक्थक (मोम) और अलंक्तक (आलता) से यत्नपूर्वक रगड़कर लाल और चिकना बनाया जाता था। गौड़ देश के लोग उन दिनों बड़े-बड़े नखों को , पसंद करते थे और दक्षिणात्य लोग छोटे नखों को। लेकिन समस्त अधोगामिनी वृत्तियों को और नीचे खींचनेवाली वस्तुओं को भारतवर्ष ने मनुष्योचित बनाया है, यह बात चाहूँ भी तो भूल नहीं सकता।

15 अगस्त को जब अंगरेजी भाषा के पत्र ‘इण्डिपेण्डेन्स की घोषणा कर रहे थे, देशी भाषा के पत्र ‘स्वाधीनता दिवस की चर्चा कर रहे थे। इण्डिपेण्डेन्स का अर्थ है स्वाधीनता ‘शब्द का – अर्थ है अपने ही अधीन’ रहना। उसने अपने आजादी के जितने भी नामकरण किए, स्वतंत्रता, स्वराज्य, स्वाधीनता-उन सबमें ‘स्व’ का बंधन अवश्य रखा। अपने-आप पर अपने-आप के द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृति की बड़ी भारी विशेषता है।

मनुष्य झगड़े-डंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़-दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी भी जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। यह मनुष्यमात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए निर्वैर भाव, सत्य और अक्रोध को सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा है –
एतद्धि विततं श्रेष्ठं सर्वभूतेषु भारत!
निर्वैरता महाराज सत्यमक्रोध एव च।

अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य – की मनुष्यता यही है कि वह सबके दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है।

ऐसा कोई दिन आ सकता है, जबकि मनुष्य के नाखूनों का बढ़ना बंद हो जाएगा। प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा, जिस प्रकार उसकी पूँछ झड़ गई है। उस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी। शायद उस दिन वह मारणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा। .

नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है, जो उसके जीवन में सफलता ले आना चाहती है, उसको काट देना उस ‘स्व’-निर्धारित आत्म-बंधन का पुल है, जो .. उसे चरितार्थता की ओर ले जाती है। कमबख्त नाखून बढ़ते हैं तो बढ़े, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा।

शब्दार्थ

अल्पज्ञ : कम जाननेवाला
दयनीय : दया करने योग्य
बेहया : बिना हया के, निर्लज्ज, वेशर्म
प्रतिद्वंद्वी : विरोधी
नखधर : नख को धारण करनेवाला, नाखून वाला
दंतावलंबी : दाँत का सहारा लेकर जीने वाला
विचरण : घूमना, भटकना
तत:किम : फिर क्या, इसके बाद क्या
असह्य : न सह सकने योग्य
पाशवी वृत्ति : पशु जैसा स्वभाव एवं आचरण
वर्तुलाकार : घुमावदार, गोलाकार
दंतुल : दाँत वाला, जिसके दाँत बाहर निकले हों
दाक्षिणात्य : दक्षिण का (दक्षिण भारतीय)
अभोगामिनी : नीचे की ओर जानेवाली
सहजात वत्ति : जन्म के साथ पैदा होने वाली वृत्ति या स्वभाव
वाक : वाणी, भाषा
निर्बोध : नासमझ, नादान
अनुवर्तिता.: पीछे-पीछे चलना
अरक्षित : जो रक्षित न हो, खुला
अनुसैधित्सा : अनुसंधान की प्रबल इच्छा
सरबस : सर्वस्व, सबकुछ
पर्वसंचित : पहले से इकट्ठा या जमा किया हुआ
समवेदना : दूसरे के दुख को महसूस करना
उद्भावित : प्रकट की गयी, उत्पन्न की गयी
असत्याचरण : असत्य आचरण, लोकविरुद्ध आचरण
निर्वैर : बिना वैर-विरोध के
उत्स : स्रोत, उद्गम, मूल
आत्मतोषण : अपने को संतुष्ट करना, अपने को समझाना ।
चरितार्थता : सार्थकता
नि:शेष : जिसका शेष भी न बचे. सम्पर्ण
तकाजा : माँग