Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 6 एक लेख और एक पत्र

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 6 एक लेख और एक पत्र

 

एक लेख और एक पत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न

एक लेख और एक पत्र Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
‘एक लेख और एक पत्र के लेखक हैं’ :
उत्तर–
भगत सिंह।

एक लेख और एक पत्र प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 2.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है?
उत्तर–
देश सेवा के बदले दी गई फाँसी को।

Ek Lekh Aur Ek Patra Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार आत्महत्या क्या है?
उत्तर–
कायरता।

एक लेख और एक पत्र Objective Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 4.
भगत सिंह सरकार के किस राय पर खपा थे?
उत्तर–
छात्र को राजनीति से दूर रखने की राय पर।

एक लेख और एक पत्र का सारांश Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 5.
विद्यार्थी को राजनीति में क्यों भाग लेना चाहिए?
उत्तर–
विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं।

Ek Lekhak Aur Ek Patra Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 6.
भगत सिंह के आदर्श पुरुष कौन थे? उत्तर–करतार सिंह सराबा।

Ek Patra Aur Ek Lekh Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 7.
सन् 1926 में भगत सिंह ने किस दल का गठन किया?
उत्तर–
नौजवान भारत सभा।

एक लेख और एक पत्र वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Ek Lekh Aur Ek Patra Bhagat Singh Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
भगत सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 28 सितम्बर, 1907 ई.
(ख) 10 सितम्बर, 1910 ई.
(ग) 15 जून, 1901 ई.
(घ) 17 फरवरी, 1908 ई.
उत्तर–
(क)

Hindi Class 12th Bihar Board प्रश्न 2.
1941 ई. में भगत सिंह किस पार्टी की ओर आकर्षित हुए?
(क) गदर पार्टी
(ख) नेशनल पार्टी
(ग) स्वतंत्र पार्टी
(घ) राष्ट्रवादी पार्टी
उत्तर–
(क)

Class 12 Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
भगत सिंह सदैव किसका चित्र पॉकेट में रखते थे?
(क) गुरु गोविन्द सिंह
(ख) गुरुनानक
(ग) महात्मा बुद्ध
(घ) करतार सिंह सराया
उत्तर–
(घ)

Bihar Board Class 12 Hindi प्रश्न 4.
भगत सिंह किस उम्र से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हुए?
(क) 12 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 10 वर्ष
(घ) 15 वर्ष
उत्तर–
(क)

प्रश्न 5.
भगत सिंह कब चौरीचौरा कांड में शरीक हुए?
(क) 1922 ई.
(ख) 1925 ई.
(ग) 1928 ई.
(घ) 1930 ई. .
उत्तर–
(क)

प्रश्न 6.
भगत सिंह ने नौजवान–सभा की शाखाएँ कहाँ–कहाँ स्थापित की?
(क) पटना–दिल्ली
(ख) कानुपुर–कलकत्ता
(ग) अजमेर–गाजीपुर
(घ) विभिन्न शहरों में
उत्तर–
(घ)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
भगत सिंह को ………. षड्यंत्र केस में फांसी की सजा हुई थी।
उत्तर–
लाहौर

प्रश्न 2.
भगत सिंह के पिता सरदार ………… थे।
उत्तर–
किशन सिंह

प्रश्न 3.
भगत सिंह ………. परिवार स्वाधीनता सेनानी थे।
उत्तर–
संपूर्ण

प्रश्न 4.
भगत सिंह का ……… खडकड़कलाँ, पंजाब में है।
उत्तर–
पैतृक गाँव

प्रश्न 5.
बाद में भगत सिंह ने ………….. कॉलेज, लाहौर से एफ. ए. किया।
उत्तर–
नेशनल

प्रश्न 6.
भगत सिंह का जन्म ………. हुआ था।
उत्तर–
28 सितम्बर, 1907 ई.

प्रश्न 7.
भगत सिंह ने बी. ए. के बाद पढ़ाई छोड़ दी और ……… दल में शामिल हो गए।
उत्तर–
क्रांतिकारी

एक लेख और एक पत्र पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए?
उत्तर–
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग इसलिए लेना चाहिए क्योंकि उन्हें ही कल देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नहीं लेंगे तो आने वाले समय में देश की भली–भाँति नहीं सँभाल पाएँगे, जिससे देश का विकास न हो सकेगा।

प्रश्न 2.
भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं?
उत्तर–
भगत सिंह की विद्यार्थियों से बहुत–सी अपेक्षाएँ हैं। वे चाहते हैं कि विद्यार्थी राजनीति तथा देश की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करें और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करें। वे देश की सेवा में तन–मन–धन से जुट जाएँ और अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे न हटें।

प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।
उत्तर–
भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर–बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।।

क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है। जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था। इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कष्ट के संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है। हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दु:खमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं।

खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों ‘चिन्ताओं’ दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं। इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये। वे जानते थे मेरे इन कष्टों, दु:खों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आन्दोलन कर बैठेगी। अतः भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।
उत्तर–
क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस सन्दर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुन्दर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।

भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक–से–अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।

प्रश्न 5.
भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं?
उत्तर–
सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती है। उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दूख कष्ट सहने का प्रेरणा मिलती है। इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं। ये कहानियाँ हमें जीव संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं। इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं।

सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन की उस भावना को अनुभव करें। उनके कारणों पर सोचे–विचारें। हम जैसे क्रान्तिकारियों का सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता को ऐसी स्थितियाँ में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते–हँसते बर्दाश्त करना चाहिए। भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधि यों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।’ भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ। इससे उनके चिन्तन का कौन–सा पक्ष उभरता है? वर्णन करें।
उत्तर–
सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब–विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं। संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण। इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रान्ति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिन्तन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें
(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपम है।
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
उत्तर–
(क) भगत सिंह का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं। अर्थात् मनुष्य सुख की स्थिति में तो बड़े ही आराम से रहता है। लेकिन जब उस पर कोई दुख आता है तो वह उसे दूर करने के प्रयास करता है जिससे उसका ज्ञान तथा कार्यक्षमता बढ़ती है और वह पूर्णतः पाता है।

(ख) भगत सिंह के अनुसार यदि मनुष्य यह सोचने लगे कि अगर मैं कोई कार्य नहीं करूंगा तो वह कार्य नहीं होगा तो यह पूर्णतः गलत है। वास्तव में मनुष्य विचार को जन्म देनेवाला नहीं होता, अपितु परिस्थितियाँ विशेष विचारों वाले व्यक्तियों को पैदा करती हैं। अर्थात् हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है।

(ग) भगत सिंह कहते हैं कि हमें एक बार किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करने के बाद उस पर अडिग रहना चाहिए। हमें विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेंगे।

प्रश्न 8.
‘जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।’ आज जब देश आजाद है भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे। अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
उत्तर–
भगत सिंह का यह विचार है कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतः भुला देना चाहिए, बहुत ही उत्तम तथा श्रेष्ठ है। आज जब देश आजाद है तब भी भगत सिंह को यह विचार पूर्णतः प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी काल या परिस्थिति में देश या समाज मनुष्य से ऊपर ही रहता है। यदि देश का विकास होगा तो ही वहाँ रहनेवाले लोगों का विकास होगा। वहीं यदि देश पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो वहाँ के निवासियों को भी कष्टों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हमें सदैव अपने से पहले देश की श्रेष्ठता, विकास तथा मान–सम्मान के विषय में सोचना चाहिए। साथ ही इसके लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 9.
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं?
उत्तर–
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए इच्छा व्यक्त करते हुए कहा है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए। वे ऐसा समय इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि यदि कोई सम्मानपूर्ण या उचित समझौता होना हो तो उन जैसे व्यक्तियों का मामला उसमें कोई रूकावट उत्पन्न करे।

प्रश्न 10.
भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें।
उत्तर–
महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने इस पत्र में तीन–चार सवालों पर विचार किया है जिनमें आत्महत्या, जेल जाना, कष्ट सहना, मृत्युदण्ड और रूसी साहित्य है।

भगत सिंह का आत्महत्या के संबंध में विचार है कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेना मनुष्य की कायरता है। यह कायर व्यक्ति का काम है। एक क्षण में समस्त पुराने अर्जित मूल्य खो देना मूर्खता है अत: व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए। दूसरा जेल जाना भगत सिंह व्यर्थ नहीं मानते क्योंकि रूस की जारशाही का तख्ता पलट बंदियों का बंदीगृह में कष्ट सहने का कारण बना। अतः यदि आन्दोलन को तीव्र करना है तो कष्ट सहन से नहीं डरना चाहिए।

देश सेवा के क्रम में क्रांतिकारी को ढेरों कष्ट सहने पड़ते हैं–जेल जाना, उपवास करना इत्यादि अनेकों दण्ड। अतः भगत सिंह कहते हैं कि हमें कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि विपत्तियाँ ही व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं।

मृत्युदण्ड के बारे में भगत सिंह के विचार हैं कि वैसी मृत्यु सुन्दर होगी जो देश सेवा के संघर्ष के लिए हो। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट आदर्श के लिए दी गई फाँसी एक आदर्श, सुन्दर मृत्यु है। अतः क्रांतिकारी को हँसते–हँसते फाँसी का फंदा डाल लेना चाहिए। रूसी साहित्य में वर्णित कष्ट दुख, सहनशक्ति पर फिदा है भगत सिंह। रूसी साहित्य में कष्ट सहन की जो भावना है उसे हम अनुभव नहीं करते। हम उनके उन्माद और चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक है परन्तु इसके कारणों पर सोच विचार करने की चिन्ता कभी नहीं करते। अतः भगत सिंह का विचार है कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के लिए साहित्य के उल्लेख ने ही सहृदयता, गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य में ऊँचाई उत्पन्न की है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि भगत सिंह की वैचारिकता सीधे यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई . आजीवन संघर्ष का संदेश देती है।

एक लेख और एक पत्र भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय निर्दिष्ट करें कायरता, घृणित, पूर्णतया, दयनीय, स्पृहणीय, वास्तविकता, पारितोषिक।
उत्तर–
कायरता–ता, घृणित–इत, पूर्णतया–तया, दयनीय–इय, स्पृहणीय–इय, वास्तविकता–ता, पारितोषिक–इक।

प्रश्न 2.
‘हास्यास्पद’ शब्द में ‘आस्पद’ प्रत्यय हैं इस प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर–
‘आस्पद’ प्रत्यय से बने पाँच शब्द–विवादास्पद, घृणास्पद, संदेहास्पद, करुणास्पद, प्रेरणास्पद।

प्रश्न 3.
हमारे विद्यालय के प्राचार्य आ रहे हैं। इस वाक्य में ‘हमारे विद्यालय के प्राचार्य’ संज्ञा पदबंध है। वह पद समूह जो वाक्य में संज्ञा का काम करे, संज्ञा पदबन्ध कहलाता है। इस तरह नीचे दिए गए वाक्यों से संज्ञा पदबंध. चुनें
(क) बंदी होने के समय हमारी संस्था के राजनीतिक बंदियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी।
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के आधार पर संगठित हमारी पार्टी अपने लक्ष्यों और आदर्शों की तुलना में क्या कर सकती थी?
(ग) मैं तो यह भी कहूँगा कि साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स, वास्तव में इस विचार को जन्म देनवाला नहीं था।
उत्तर–
(क) राजनीतिक बंदियों
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ता
(ग) साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स।

प्रश्न 4.
पर्यायवाची शब्द लिखें वफादारी, विद्यार्थी, फायदेमंद, खुशामद, दुनियादारी, अत्याचार, प्रतीक्षा, किंचित्।
उत्तर–
वफादारी–विश्वसनीयता, विद्यार्थी–छात्र, फायदेमंद–लाभदायक, खुशामद–मिन्नत दुनियादारी–सांसारिकता, अत्याचार–अन्याय, प्रतीक्षा–इन्तजार, किंचित्–कुछ।

प्रश्न 5.
विपरीतार्थक शब्द लिखें
सयाना, उत्तर, निर्बलता, व्यवहार, स्वाध्याय, वास्तविक, अकारण
उत्तर–

  • सयाना – मूर्ख
  • उत्तर – प्रश्न
  • निर्बलता – सबलता
  • व्यवहार – सिद्धान्त
  • स्वाध्याय – अध्यापन
  • वास्तविक – अवास्तविक
  • अकारण – कारण

एक लेख और एक पत्र भगत सिंह लेखक परिचय।

जीवन–परिचय–
भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 के दिन वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) में हुआ। इनका पैतृक गाँव खटकड़कलाँ, पंजाब था। इनकी माता का नाम विद्यावती एवं पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। इनका सम्पूर्ण परिवार स्वाधीनता संग्राम में शामिल था। इनके पिता और चाचा अजीत सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी थे। अजीत सिंह को देश से निकाला दिया गया था इसलिए वे विदेश जाकर मुक्तिसंग्राम का संचालन करने लगे। भगत सिंह के छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी जेल गए और जेल की यातनाओं के कारण सन 1910 में उनका निधन हो गया। भगत सिंह के फाँसी चढ़ने के बाद उनके भाई कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह को जेल में रखा गया, जहाँ वे सन् 1946 तक रहे। इनके पिता भी अनेक बार जेल गए।

भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव बंगा में हुई। इसके बाद लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल से आगे की पढ़ाई की। बाद में नेशनल कॉलेज, लाहौर से एम.ए. किया। बी.ए. के दौरान इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गए। भगत सिंह का बचपन से ही क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा और गदर पार्टी से विशेष लगाव था। करतार सिंह सराबा की कुर्बानी को उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा जबकि उस समय उनकी आयु महज आठ वर्ष थी। जब वे बारह वर्ष के थे तो जलियाँवाला बाग का हत्याकांड हुआ। इस हत्याकांड का उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे वहाँ की मिट्टी लेकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में कूद पड़े। सन् 1922 में चौराचौरी कांड के बाद इनका कांग्रेस और महात्मा गाँधी से मोहभंग हो गया।

सन् 1923 में ये घर छोड़कर कानपुर चले गए और गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से जुड़ गए। सन् 1926 में अपने नेतृत्व में पंजाब में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया, जिसकी शाखाएँ विभिन्न शहरों में थी। सन् 1928 से 1931 तक चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर “हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ’ का गठन किया और क्रांतिकारी आन्दोलन को बड़े स्तर पर प्रारम्भ किया। इन्होंने 8 अप्रैल, सन् 1929 के दिन बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू को साथ लेकर केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका तथा गिरफ्तार हो गए। स्वाधीनता सेनानियों के घर में जन्म लेने के कारण बचपन से ही इनके मन में देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का जज्बा था।

इनके भीतर संकल्प, त्याग, कर्म आदि की अमोघ शक्ति थी। महज तेईस वर्षों में ही वे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, क्रान्ति और युवाशक्ति के प्रतीक बन गए। भारत माँ के इस महान सपूत को अनेक कष्टों के बाद 23 मार्च सन् 1931 के दिन शाम 7 बजकर 33 मिनट पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

भगत सिंह कोई साहित्यकार न थे लेकिन इन्होंने काफी लिखा है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–

पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या (हिन्दी में 1924), विश्वप्रेम (मतवाला में 1924 में प्रकाशित लेख), युवक (मतवाला में 1924 में प्रकाशित हिन्दी लेख), मैं नास्तिक क्यों हूँ (1939–31), अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति, सत्याग्रह और हड़तालें, बम का दर्शन, भारतीय क्रान्ति का आदर्श आदि लेख।

टिप्पणियाँ एवं पत्र जो विभिन्न प्रकाशकों द्वारा भगत सिंह के दस्तावेज के रूप में प्रकाशित हैं। शचीन्द्रनाथ सान्याल की पुस्तक ‘बंदी जीवन’ और ‘डॉन ब्रीन की आत्मकथा’ का अनुवाद इत्यादि भी सम्मिलित है।

एक लेख और एक पत्र पाठ के सारांश

भगत सिंह महान क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी और विचारक थे। भगत सिंह विद्यार्थी और राजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का स्वगात करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन–मन–धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश–दुनिया के हर समस्याओं से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अतः विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 1 अरमान

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 1 अरमान Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 1 अरमान

Bihar Board Class 6 Hindi अरमान Text Book Questions and Answers

प्रश्न अभ्यास

पाठ से –

अरमान कविता का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 1.
प्रस्तुत कविता में गरीबों को गले लगाने एवं सुखी बनाने की बात क्यों की गई है?
उत्तर:
समाज में जो लोग गरीब हैं, भिखारी हैं या समाज में जो लोग सहायता से वंचित हैं ऐसे लोगों को गले लगाने एवं सुखी बनाने से हमारे समाज में समता आयेगी। लोग सुखी होंगे। अतः सुखमयी, समतापूर्ण समाज की स्थापना के लिए कविता में गरीबों को गले लगाने एवं सुखी बनाने की बात की गई है।

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
इस कविता में हारे हुए व्यक्ति के लिए क्या कहा गया है ?
उत्तर:
इस कविता में हारे हुए व्यक्ति के लिए कहा गया है कि-हारकर बैठना या अपने उम्मीदों को मारकर बैठना कायरता एवं अज्ञानता है। ऐसे हतोत्साहित लोगों के दिमाग में फिर से उत्साह जगाने की आवश्यकता है।

Armaan Kavita Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
इन पंक्तियों के भाव स्पष्ट कीजिए-
रोको मत, आगे बढ़ने दो,
आजादी के दीवाने हैं।
हम मातृभूमि की सेवा में,
अपना सर्वस्व लगाएंगे।
उत्तर:
आजादी हमारी अभीष्ट (प्रिय) वस्तु है। हमें आजादी पाने के लिए आगे बढ़ने दो, इस पुनीत कार्य से हमें मत रोको । हम अपनी जन्मभूमि (मातृभूमि) की सेवा में अपना तन-मन-धन सब कुछ लगा देंगे।

Armaan Poem In Hindi Question Answer Bihar Board Class 6 प्रश्न 4.
बूढ़े और पूर्वजों का मान बढ़ाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
बूढे और पूर्वजों का मान बढ़ाने के लिए हमें कर्तव्यपरायण, लगन के पक्के और सत्यनिष्ठ बनना चाहिए। क्योंकि हमारे पूर्वज वीर, धुन के पक्के आर सच्च थ। उनका अनुकरण करने से उनके मान-सम्मान की वृद्धि होगी।

पाठ से आगे –

Bihar Board Class 6 Hindi Solution In Hindi  प्रश्न 1.
इस कविता का कौन-सा अंश आपको ज्यादा झकझोरता है ? विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इस कविता का वह अंश हमको ज्यादा झकझोरता है जिसमें कवि ने कहा है कि –

जो लोग गरीब भिखारी हैं,
जिन पर न किसी की छाया है।
हम उनको गले लगाएंगे,
हम उनको सुखी बनाएँगे।

क्योंकि आज भी हमारा समाज विषमतापूर्ण है। समाज के बहुत लोग गरीब हैं। भिक्षाटन करके जीते हैं। समाज में कुछ लोग सहायता से वंचित हैं। ऐसे लोगों की सहायता कर के ही समतापूर्ण सुखी समाज की स्थापना सम्भव है।

अरमान कविता का सारांश Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 2.
आपके भी कुछ शौक या अरमान होंगे, उनको पूरा करने के लिए, आप क्या करना चाहेंगे? ।
उत्तर:
हमारा भी शौक या अरमान है। वह है-समतापूर्ण सुखी समाज की स्थापना करना । जो लोग समाज में गरीब हैं जिनको कोई मदद नहीं करता है। ऐसे लोगों की मदद कर उन्हें सुखी बनाना ही हम अपना कर्तव्य बनाना चाहेंगे।

Bihar Board Solution Class 6 Hindi प्रश्न 3.
जन्मभूमि या मातृभूमि के प्रति कैसा लगाव होना चाहिए ?
उत्तर:
जन्मभूमि या मातृभूमि के प्रति हमारा सेवा का लगाव होना चाहिए क्योंकि जन्मभूमि से बढ़कर कुछ नहीं है। अत: जन्मभूमि की सेवा में या उसके उत्थान में हमें तन-मन-धन सब कुछ लगा देना चाहिए। श्रीराम ने भी कहा थी-हे लक्ष्मण ! माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी अधिक सुखकारी है। “जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसि”।

Bihar Board Class 6 Hindi Solution प्रश्न 4.
यदि आप चाहते हैं कि देश आप पर अभिमान करे तो इसके लिए आपको क्या काम करना होगा?
उत्तर:
हम चाहते हैं कि देश हम पर अभिमान करें। इसके लिए हमको अपने-आप में देवत्व गुण लाना होगा। दीन-दुखियों की सेवा तथा हतोत्साहित लोगों का उत्साह बढ़ाना होगा । मातृभूमि की सेवा करना होगा तथा अपने इरादे के पक्के होना होगा। कर्त्तव्यनिष्ठ और सत्यप्रिय होना होगा।

व्याकरण

Bihar Board Class 6 Hindi प्रश्न 1.
रोको, मत जाने दो।
रोको मत, जाने दो।
उपर्युक्त वाक्यों में अल्प विराम चिह्न का प्रयोग अलग-अलग स्थानों पर हुआ है। जिससे उस वाक्य का अर्थ बदल गया है। इस प्रकार के कुछ और वाक्य बनाइए।
उत्तर:
सोचो मत, काम करो।
सोचो, मत काम करो।

वह देश कौन-सा है कविता का प्रश्न उत्तर Class 6 Bihar Board प्रश्न 2.
अर + मान = अरमान । इस उदाहरण के आधार पर ‘मान’ लगाकर नए शब्द बनाइए।
उत्तर:
अप + मान = अपमान । अभि + मान = ‘अभिमान । सम् + मान = सम्मान । बुद्धि + मान = बुद्धिमान । गति + मान = गतिमान ।

कुछ करने को –

Class 6 Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
पता कीजिए कि देश के लिए किन-किन लोगों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया।
उत्तर:
महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, जयप्रकाश नारायण, विनोबा – भावे, चन्द्रशेखर आजाद, जवाहरलाल नेहरू इत्यादि ।

किसलय हिंदी बुक बिहार क्लास 6 Solution Bihar Board प्रश्न 2.
हर व्यक्ति का अपना कोई न कोई अरमान होता है। आप अपने अरमान के बारे में दस पंक्तियों में लिखिए और अपने शिक्षक को सुनाइए।
उत्तर:
मुझे अपना अरमान है कि मैं महान देशभक्त कहलाऊँ। क्योंकि देशभक्ति ही सच्ची भक्ति है । देशभक्ति के लिए हम अपना सर्वस्व लुटा देंगे। सच्ची देश भक्ति बेसहारा को सहारा देकर होती है। समाज में कुछ लोग हतोत्साहित लोग हैं उनके बीच उत्साह जगाकर उनको कर्तव्य पथ पर लाने का अरमान भी हमारे दिल में है। इससे समाज के बेकार लोग कामयाबी पाएँगे जिससे देश की उन्नति होगी। लाचार, गरीब, दु:खी लोगों की मदद करना हम पुनीत कर्म मानते हैं।

अरमान Summary in Hindi

कविता का सार-संक्षेप

प्रत्येक ठाक्ति का कुछ अरमान होता है। कवि श्री रामनरेश त्रिपाठी जी अपने अरमानों के माध्यम से मानव को संदेश देते हैं कि मनुष्य को देवत्व गुणों का आधान करना चाहिए। ऐसा तभी सम्भव है जब हम समाज के गरीब बेसहारा लोगों को सहारा देंगे। समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो निराशा की मार से हतोत्साहित हैं, हमें उनके बीच उत्साहं को फिर से जगाकर कर्तव्यपरायण बनाना चाहिए। ___तन, मन, धन से मातृभूमि (जन्मभूमि) की सेवा करना भी प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है।

हमें अपने पूर्वजों के मान-सम्मान को बढाने के लिए अपने धुन का पक्का होना चाहिए तथा सत्य का अनुसरण करना चाहिए क्योंकि हमारे पूर्वज वीर, कर्तव्यनिष्ठ और सत्यप्रिय थे।

अर्थ-लेखन

है शौक यही अरमान यही,
हम कुछ कर के दिखलाएंगे।
मरने वाली दुनिया में हम,
अमरों में नाम लिखाएंगे।
अर्थ – हमारा शौक या अरमान यही है कि हमें कुछ कर दिखलाएँ । यह संसार नश्वर है जहाँ लोग मर जाते हैं। लेकिन जिनकी कृति इस संसार में रहती है वे अमर हो जाते हैं मेरा भी अरमान है कि हम भी अपनी कृति कायम कर अमरों में नाम लिखावें।

जो लोग गरीब भिखारी हैं,
जिन पर न किसी की छाया है।
हम उनको गले लगाएंगे,
हम उनको सुखी बनाएँगे।
अर्थ – समाज में जो लोग गरीब हैं, भिखारी हैं या जो समाज में सहायता से वंचित हैं, ऐसे लोगों को गले लगाकर उनकी मदद करेंगे, उनको सुखी बनाएँगे।

जो लोग हारकर बैठे हैं,
उम्मीद मारकर बैठे हैं।
हम उनके बुझे दिमागों में,
फिर से उत्साह जगाएँगे।

अर्थ – समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो जीवन से निराश होकर हतोत्साहित हो गये हैं। हम उनके अज्ञानता को दूर कर फिर से उत्साहित करेंगे।

रोको मत, आगे बढ़ने दो,
आजादी के दीवाने हैं।
हम मातृभूमि की सेवा में,
अपना सर्वस्व लगाएँगे।

अर्थ – हमें पुनीत कर्म की ओर बढ़ने दो, देश-धर्म से हमें मत रोको, क्योंकि हम आजादी के दीवाने हैं। आजादी हमारा प्रिय है। हम अपनी मातृभूमि की सेवा में अपना सब कुछ लगा देंगे।

हम उन वीरों के बच्चे हैं,
जो धुन के पक्के सच्चे थे।
हम उनका मान बढ़ाएंगे,
हम जग में नाम कमाएँगे।

अर्थ – हमारे पूर्वज वीर, धुन के पक्के और सच्चे थे। हम भी अपने पूर्वजों का अनुकरण कर उनका पान-सम्मान बढ़ाएँगे। हम संसार में नाम कमाएँगे।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 6 बहादुर

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 6 बहादुर Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 6 बहादुर

Bihar Board Class 10 Hindi बहादुर Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

बहादुर कहानी का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
लेखक को क्यों लगता है कि जैसे उस पर एक भारी दायित्व आ गया हो?
उत्तर-
लेखक महोदय की पत्नी दिन-रात ‘नौकर-चाकर’ की माला जपती थी। उनका साला नौकर को लाकर सामने खड़ा कर दिया था। अब लेखक महोदय के ऊपर एक भारी दायित्व आ गया था कि नौकर के साथ घर में अच्छा बवि हो। नौकर घर के अनुकुल ढल जाया और यहाँ टिक जाय।

बहादुर पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
अपने शब्दों में पहली बार दिखे बहादुर का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
नौकर यानी बहादुर का शरीर चौड़ा और कद छोटा था। गोरा रंग और मुँह चपटा था। वह उजला हाफ पैंट और सफेद कमीज, भूरे रंग का जूता और गले में रूमाल बंधा था।

Bahadur Class 10 Hindi Question Answer प्रश्न 3.
लेखक को क्यों लगता है कि नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया था?
उत्तर-
लेखक महोदय के सभी भाई और रिश्तेदार ऊंचे पद पर थे। इसलिए उनलोगों के पास नौकर-चाकर था। जब उनकी बहन के विवाह में सभी रिश्तेदारों का मिलन हुआ तो लेखक महोदय की पत्नी नौकर को देखकर ईर्ष्यालु हो गई। इसके बाद से घर में नौकर रखने के लिए परेशान करने लगी। अब लेखक महोदय को नौकर रखना बहुत जरूरी हो गया।

Bahadur Chapter Ka Question Answer प्रश्न 4.
साले साहब से लेखक का कौन-सा किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा?
उत्तर-
लेखक को साले साहब से एक दुखी लड़का का किस्सा असाधारण विस्तार से सुनना पड़ा। किस्सा था कि वह एक नेपाली था, जिसका गाँव नेपाल और बिहार की सीमा पर था। उसका बाघ युद्ध में मारा गया था और उसकी माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी। माँ चाहती थी कि लड़का घर के काम-धाम में हाथ बँटाये, जबकि वह पहाड़ या जंगलों में निकल जाता और पेड़ों पर चढ़कर, चिड़ियों के घोंसलों में हाथ डालकर उनके बच्चे पकड़ता या फल तोड़-तोड़कर खाता। एक बार उसने भैंस की पिटाई की जिसके चलते माँ ने भी उसे खूब पीटा। अत्यधिक पिटाई के चलते लड़के का मन माँ से फट गया। रातभर जंगल में छिपा रहा, सुबह होने पर घर से राह खर्च के लिए चोरी से ‘कुछ रुपया लेकर भाग गया।

Bahadur Chapter In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 5.
बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
उत्तर-
बहादुर कभी-कभी पशुओं को चराने के लिए ले जाता था। एक बार उसने अपनी माँ की प्यारी भैंस को बहुत मारा। मार खाने के उपरान्त भैंस उसकी मां के पास पहुंच जाती है। माँ को आभास होता है कि लड़के ने इसको काफी मारा है। माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की। लड़के का मन माँ से फट गया और वह पूरी रात जंगल में छिपा रहा। अंततः सुबह में घर पहुंचकर चुपके से कुछ रुपया लिया और घर से भाग गया।

Bahadur Kahani Class 10th प्रश्न 6.
बहादुर के नाम से “दिल” शब्द क्यों उड़ा दिया गया ? विचार करें।
उत्तर-
प्रथम बार नाम पूछने में बहादुर ने अपना नाम दिलबहादुर बताया। यहां दिल शब्द का अभिप्राय भावात्मक परिवेश में है। उपदेश देने के दरम्यान उसे कहा जा रहा था कि किसी के साथ भावुकता से पेश नहीं होकर दिमाग से अधिक कार्य करना है। सामाजिक तो उदारता से .. दूर रहकर मन और मस्तिष्क से केवल अपने घर के कार्यों में लीन रहने का उपदेश दिया गया। इस प्रकार से निर्मला द्वारा उसके नाम से दिल शब्द उड़ा दिया गया।

Bahadur Class 10 Hindi प्रश्न 7.
व्याख्या करें –
(क) उसकी हँसी बड़ी कोमल और मीठी थी, जैसे फूल की पंखुड़िया बिखर गई हों।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के वहादुर’ शीर्षक कहानी से ली गई हैं। इन पक्तियों का संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
जब लेखक शाम को दफ्तर से घर आते थे तो बहादुर सहज भाव से उनके पास आता था और उन्हें एक बार देखकर सिर झुका लेता था तथा धीरे-धीरे मुस्कुराने लगता था। घर की मामूली-सी. घटनाओं को लेखक से सुनाया करता था। कभी कहता-बाबूजी, बहिनजी की सहेली आयीं थीं तो कभी कहता बाबूजी, भैया सिनेमा गया था। इसके बाद वह ऐसी हँसी हँसता था कि लगता था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा किस्सा कह दिया हो। उसके निश्छल, निष्कलुष हाव-भाव से प्रभावित होकर ही लेखक ने लिखा है-उसकी हंसी बड़ी कोमल थी और मीठी थी लगता था फूल की पंखड़ियों बिखरी हुई हों।

इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर की निश्छलता, निर्मलता, ईमानदारी और आत्मीय व्यवहार का यथोचित रेखांकन किया है। बहादुर बच्चा था। उसके होठों पर कोमलता और मिठास थी, फूलों के खिलने जैसा उसकी खिलखिलाहट थी। इस प्रकार उक्त पंक्तियों में लेखक ने बहादुर के कोमल भावों व्यवहारों, ईमानदारी, आत्मीय । संबंधों का सटीक वर्णन किया है।

(ख) पर अब बहादुर से भूल-गलतियों अधिक होने लगी थीं।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी. पाठ से ली गयी हैं। इसका संदर्भ बहादुर से जुड़ा हुआ है।
बहादुर को लेखक का पुत्र किशोर बराबर पीट करता था। कुछ दिन बीतने पर लेखक की पत्नी भी बहादुर को मारने-डाँटने लगी थी। लेखक को ऐसा विश्वास था कि हो सकता है घर में मार खाने, गाली-सुनने के कारण बहादुर दुखी होकर रहने लगा था और इसी कारण उससे कई भूलें हो जाती होंगी। ऐसी स्थितियों को लेखक कभी-कभी रोकना चाहते थे। लेकिन बाद में चुप हो जाया करते थे क्योंकि उनके विचार में नौकर-चाकर तो मार-पीट खाते ही रहते हैं, ऐसा ही भाव था।

इस कारण वे भी बहादुर की मदद नहीं कर पाते थे और बहादुर दीन-हीन रूप में, असहाय – बनकर लेखक की पत्नी और पुत्र से डाँट-मारपीट खाता तो और सहता था।

इन पंक्तियों का मूल आशय यह है कि लेखक की मानसिकता भी दो तरह की थी। वे भी सबल. की आलोचना नहीं कर पाते हैं। गरीबों के प्रति नौकर के प्रति उनका भी भाव दोयम दर्जे का था। इसी कारण बहादुर की मानसिक स्थिति संतुलित नहीं रह पाती थी।

(ग) अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो संतोष होता।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी हैं। इन . पंक्तियों का संबंध उस काल से है जब बहादुर चोरी के इल्जाम और मारपीट, गाली-गलौज से तंग आ चुका था। अचानक सिल उठाते वक्त वह गिर गया और दो टुकड़ा हो। अब क्या था बहादुर घर छोड़कर भाग गया। उसे खोजने के लिए लेखक के लड़के किशोर ने शहर का कोना-कोना छान डाला लेकिन बहादुर का कहीं अता-पता नहीं था।

वह बहादुर के लिए बहुत दुःखी था। वह उसके सुख-दुख को याद कर माँ से कह रहा था-माँ, अगर वह मिल जाता तो मैं उससे माफी मांग लेता किन्तु अब उसे नहीं मारता-पीटता, गालियाँ नहीं देता। उसने हमलोगों को बहुत सुख दिया। बहुत सेवा की। गलती हम लोगों से ही हुई। माँ अगर वह कुछ चुराकर भी ले गया होता तो हमलोगों को संतोष होता। लेकिन वह तो हमलोगों का क्या अपना भी सब ‘सामान छोड़ गया।
इन पंक्तियों से यही आशय निकलता है कि आदमी को सद्व्यवहार करना चाहिए। दुर्व्यवहार के कारण कष्ट भोगना पड़ता है।

(घ) यदि मैं न मारता, तो शायद वह न जाता।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘बहादुर’ कहानी पाठ से ली गयी हैं। यह पंक्ति बहादुर से संबंधित है।
लेखक बहादुर के भाग जाने पर अफसोस करता है और कहता है कि अगर मैं, उसे नहीं मारता तो वह भागता नहीं, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक को अपने आप पर, अपने द्वारा किए गए अमानवीय व्यवहार पर खेद होता है।

जब निर्मला बहादुर के लिए रोने लगती है तब ये वाक्य लेखक उसी समय चारपाई पर बैठकर सिर झुकाकर कह रहे हैं। लेखक इस घटना पर रोना चाहता है किन्तु भीतर ही भीतर छटपटा कर रह जाता है। एक छोटी-सी भूल जीवन में कितना दुख दे जाती है-अब लेखक को समझ में बात आती है। वह पहले से सचेत रहता तो ऐसी घटना कभी नहीं घंटती।

इन पंक्तियों का आशय यह है कि आदमी के साथ सद्व्यवहार होना चाहिए। संदेह के बीज बड़े भयानक होते हैं। उनका प्रतिफल भी कष्टदायक होता है। आज बहादुर के साथ दुर्व्यवहार मारपीट चाहे गाली-गलौज नहीं किया जाता संदेह के आधार पर चोर नहीं ठहराया जाता तो वह नहीं भागता। अतः, संदेह और दुर्व्यवहार से इन्सान को बचना चाहिए।

Bahadur Question Answer Bihar Board Class 10 प्रश्न 8.
काम-धाम के बाद रात को अपने बिस्तर पर गये बहादुर का लेखक किन शब्दों में चित्रण करता है?चित्र का आशय स्पष्ट करें?
उत्तर-
निर्मला ने बहादुर को एक फटी-पुरानी दरी दे दी थी। घर से वह एक चादर भी ले आया था। रात को काम-धाम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बसखट पर अपना बिस्तर बिछाता था। वह बिस्तरे पर बैठ जाता और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाईं ओर काफी झुकी रहती थी। फिर वह छोटा-सा आइना निकालकर बन्दर की तरह उसमें अपना मुँह देखता था। वह बहुत ही प्रसन्न नजर आता था।

इसके बाद कुछ और भी चीजें जेब से निकालकर बिस्तर पर खेलता था। गीत गाता था। पुरानी स्मृतियों में खो जाता था। इससे उसके बाल मन की स्वाभाविकता की झलक मिलती है। उसके अंत:करण में निहित विरह का भाव गीत में मुखरित होता था। इसके माध्यम से लेखक ने बालसुलभ मनोदशा, स्वच्छंदता के आनंद की स्मृति का चित्रण किया है।

बहादुर कहां से भाग कर आया था Bihar Board Class 10 प्रश्न 9.
बहादुर के आने से लेखक के घर और परिवार के सदस्यों पर कैसा प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
बहादुर के आने से घर के सदस्यों को आराम मिल रहा था। घर खूब साफ और चिकना रहता। सभी कपड़े चमाचम सफेद दिखाई देते। निर्मला की तबीयत काफी सुधर गई। अब परिवार का कोई सदस्य एक भी काम स्वयं नहीं करता है। सभी बहादुर को आवाज देकर काम बताता था और उस कार्य को वह पूरा करता था। सभी रात में पहले ही सो जाते और सबेरे आठ, बजे से पहले न उठते थे।

बहादुर शीर्षक कहानी की निर्मला कौन थी Bihar Board Class 10 प्रश्न 10.
किन कारणों से बहादुर ने एक दिन लेखक का घर छोड़ दिया ?
उत्तर-
लेखक के घर में प्रारंभ में बहादुर को अच्छा से रखा गया। धीरे-धीरे लेखक का लड़का उस पर दबाव डालकर काम करवाने लगा। कुछ समय पश्चात् पत्नी एवं पुत्र दोनों उसकी पिटाई बात-बात पर कर देते थे। एक रिश्तेदार लेखक के घर पर एक दिन आया और रुपये खो जाने की बात कहते हुए बहादुर पर चोरी का आरोप मढ़ दिया। उस दिन लेखक ने बहादुर की पिटाई कर दी। बार-बार प्रताड़ित होने से एवं मार खाने के कारण एक दिन अचानक बहादुर भाग गया।

प्रश्न 11.
बहादुर पर चोरी का आरोप क्यों लगाया जाता है और उस पर इस आरोप का क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
प्रायः ऐसा देखा जाता है कि लोग घर के नौकर को हेय दृष्टि से देखते हैं। किसी मामले में उसे दोषी मान लेना आसान लगता है। रिश्तेदार ने सोचा कि नौकर पर आरोप लगाने से लोगों को लगेगा कि ऐसा हो सकता है। बहादुर इस आरोप से बहुत दुःखी होता है। उसके … अंतरात्मा पर गहरी चोट लगती है। उस दिन से वह उदास रहने लगता है। उस घटना के बाद से उसे अधिक फटकार का सामना करना पड़ता है। उसे काम में मन नहीं लगता है।

प्रश्न 12.
घर आये रिश्तेदारों ने कैसा प्रपंच रचा और उसका क्या परिणाम निकला?.
उत्तर-
लेखक के घर आए रिश्तेदारों ने अपनी झूठी प्रतिष्ठा कायम करने के लिए रुपया-चोरी का प्रपंच रचा। उनका कहना था कि मैं बच्चों के लिए मिठाई नहीं ला सका इसलिए मिठाई मंगाने के लिए कुछ रुपया निकालकर यहाँ रखा था। लेकिन बाद में हमलोग उलझे हुए रहे इसी दरम्यान रुपये की चोरी हो गई। उन्होंने बहादुर पर इस चोरी का दोषारोपण किया। इस आरोप से बहादुर को पिटाई लगी।

उस दिन से लोग उसे हर हमेशा फटकार लगाने लगे। वह उदास और अन्यमनस्क रूपं से रहकर काम करता था। अंतत: घर से अचानक चला गया। रिश्तेदार के प्रपंच के चलते लेखक के घर का काम करने वाले बहादुर के जाने की घटना घटी और घर अस्त-व्यस्त हो गया।

प्रश्न 13.
बहादुर के चले जाने पर सबको पछतावा क्यों होता है?
उत्तर-
बहादुर घर के सभी कार्य को कुशलतापूर्वक करता था। घर के सभी सदस्य को आराम मिलता था। किसी भी कार्य हेतु हर सदस्य बहादुर को पुकारते रहते थे। वह घर के कार्य से सभी
को मुक्त रखता था। साथ रहते-रहते सबसे हिलमिल गया था। डॉट-फटकार के बावजूद काम . करते रहता था। यही सब कारणों से उसके चले जाने पर सबको पछतावा होता है।

प्रश्न 14.
बहादुर, किशोर, निर्मला और कथावाचक का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
बहादुर बहादुर लेखक महोदय का नौकर था। वह एक नेपाली था। उसके पिता का देहावसान युद्ध में हो गया था। माता जी घर चलाती थीं। एक दिन माँ ने बहादुर को बहुत मारा। बहादुर घर छोड़कर भाग गया। और लेखक महोदय के यहाँ नौकरी करने लगा।

किशोर-किशोर लेखक महोदय का लड़का था। जो अपना सारा काम बहादुर से ही करवाता था। धीरे-धीरे बहादुर पर हाथ भी छोड़ने लगा। बहादुर को घर छोड़कर भागने में किशोर का वर्ताव अधिक कारगर हुआ।

निर्मला – निर्मला लेखक महोदय की पत्नी थी। जिसे नौकर रखने का बहुत शौक था। पहले-पहल बहादुर के आने पर काफी लाड़-प्यार दिया। लेकिन धीरे-धीरे व्यवहार बदलने लगा। यहाँ तक की उसे मारने भी लगी। परिणाम हुआ बहादुर भाग गया। बहादुर के भाग जाने पर काफी विलाप की।

कथावाचक – कथावाचक लेखक महोदय का साला है। जो बहादुर के बारे में पूरी कहानी असाधारण विस्तार सुनाता है। बहादुर को लेकर कथावाचक ही आता है। वह अपनी बहन की नौकर रखने की इच्छा को पूरा करता है।

प्रश्न 15.
निर्मला को बहादुर के चले जाने पर किस बात का अफसोस हुआ।
उत्तर-
निर्मला एक भावुक महिला थी। बहादुर के रहने से उसे बहुत आराम मिला था। लेकिन लेखक का रिश्तेदार जब उनके घर में आया तब उसने रुपया चोरी का प्रपंच रचा जिसका शिकार बहादुर को बनाया। निर्मला को बहादुर पर गुस्सा आया और उसे पीट दिया। उसके बाद से कई बार उसे फटकारते रहती थी। अंत में जब रिश्तेदार की सच्चाई का आभास हुआ और यह बात समझ में आ गई कि बहादुर निर्दोष था और उसने रुपये की चोरी नहीं की थी तब उसे पश्चाताप हुआ। वह यह सोचकर अफसोस कर रही थी कि वह बिना बताये क्यों चला गया। वह अपने साथ कुछ लेकर भी नहीं गया था।
उसकी कर्मठता, ईमानदारी को याद करके निर्मला ने अपने द्वारा किये गये व्यवहार के लिए अफसोस किया।

प्रश्न 16.
कहानी छोटा मुंह बड़ी बात कहती है। इस दृष्टि से ‘बहादुर’ कहानी पर विचार करें
उत्तर-
बहादुर कहानी में सबसे बड़ी बात होती है कि एक दिन बहादुर बिना कुछ कहे और बिना सामान लिये भाग गया। यह घटना तो छोटी थी लेकिन बहुत बड़ी-बड़ी बात कह गई। सभी को अपने व्यवहार पर पछतावा होने लगा। हर आदमी अपने-आप को नीचा अनुभव करने लगा। किशोर बहादुर के मिलने पर उससे माफी मांगने को भी तैयार था।

प्रश्न 17.
कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए। लेखक ने इसका शीर्षक ‘नौकर’ क्यों नहीं रखा?
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी में एक बालक का चित्रण किया गया है। बालक जो लेखक के घर में नौकर का काम करता है कहानी का मुख्य पात्र है। इसमें बहादुर नौकरी करने के पूर्व स्वच्छंद में था। वह माँ से मार खाने के बाद घर से भाग गया था। उसके बाद लेखक के घर काम करने के लिए रखा जाता है। यहाँ उसके नौकर के रूप में चित्रण के साथ-साथ उसके बाल-सुलभ मनोभाव का चित्रण भी किया गया है। ईमानदार, कर्मठ एवं सहनशील बालक के रूप में चित्रित है। प्रताड़ना, झूठा आरोप उसे पसंद नहीं था।

अंतत: फिर वह भागकर स्वछंदु हो जाता है। साथ ही लेखक के पूरे परिवार पर अपने अच्छे छवि का चित्र अंकित कर जाता है ऐसे में बहादुर ही इसका नायक कहा जा सकता है। इस कहानी के केन्द्र में बहादुर है। अत: यह शीर्षक सार्थक है। इसमें बालक को केवल नौकर की भूमिका में नहीं रखा गया है बल्कि उसमें विद्यमान अन्य गुणों की चर्चा की गई है। इसलिए नौकर शीर्षक नहीं रखा गया।

प्रश्न 18.
कहानी का सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
उत्तर के लिए कहानी का सारांश देखें।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्य में प्रयोग करते हुए अर्थ स्पष्ट करें
उत्तर-
मारते-मारते मुँह रंग देना- (बहुत मार मारना) निर्मला नौकर को मारते-मारते मुँह रंग दिया।
हुलिया टाइट करना- (बुरा हाल करना) किशोर नौकर को इतना मारता कि हुलिया टाइट हो जाता।
हाथ खुलना- (मारने की आदत होना) आजकल निर्मला का हाथ भी नौकर पर खुलने लगा है।
मजे में होना- (खशी में होना) दिन मजे में बीतने लगे।
बातों की जलेबी छनना– (लंबी-चौडी बातें होना) मोहन अपने दोस्तों के बीच बातों की जलेबी छानता है।
कहीं का न रहना- (बरे फंसना) बहादुर के भाग जाने पर निर्मला कहीं का न रही।
नौ दो ग्यारह होना- (भाग जाना) मौका मिलते ही नौकर नौ दो ग्यारह हो गया।
खाली हाथ जाना- (साथ में कुछ नहीं ले जाना) सोहन घर जाते वक्त खाली हाथ चला गया।
बुरे फंसना-(संकट में फंसना) यात्रा के बीच में बस खराब होने जाने से मैं बुरा फंस गया।
पेट में लबी दाढ़ी-(धूर्तता करना) मोहन के बातों पर मत जाओ उसके पेट में लंबी दाढ़ी है।
चहल-पहल मचना- (खशी होना) मामा जी के आते ही घर में चहल-पहल मच गया।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य में प्रयोग करते हुए लिंग-निर्देश करें
उत्तर-
रूमाल – रूमाल छोटा है।
ओहदा – ओहदा बड़ा है।
भरण – पोषण वह अपने बेटा का भरण-पोषण ठीक से नहीं करता है।
इज्जत – मेरे घर में नौकर को भी इज्जत से रखा जाता है।
झनझनाहट – उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी।
फरमाइश – बहादुर सबका फरमाइश पूरा करता था।
छेडखानी – छेड़खानी करना अच्छा नहीं है।
पुलई – वह पेड़ की पुलई पर नजर आता है।
फिक्र – फिक्र मत करो। चादर चादर परानी है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों की बनावटें बदलें-
(क) सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा की उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, : जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। .
उत्तर-
सहसा भारी दायित्व आने के कारण मैं उस व्यक्ति की तरह गंभीर हो गया था।

(ख) माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी।
उत्तर-
माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी इसलिए उसको बहुत मारती थी।

(ग) मार खाकर भैंसं मागी-मागी उसकी मां के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी।
उत्तर-
मार खाकर मैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई। वह कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी।

(घ) मैं उससे बातचीत करना चाहता था, पर ऐसी इच्छा रहते हुए भी मैं जानबूझकर गंभीर हो जाता था और दूसरी ओर देखने लगता था।
उत्तर-
मैं उससे बातचीत करना चाहता लेकिन ऐसी इच्छा रहते हुए भी जानबूझकर गंभीर होकर दूसरी ओर देखने लगता था।

(ङ) मिला कमी-कभी उससे पूछती की बहादुर, तुमको अपनी मं की याद आती है।
उत्तर-
निर्मला कभी-कभी उससे पूछती थी कि बहादुर तुमको अपनी माँ की याद आती है।

प्रश्न 4.
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों के प्रकार बताएँ
(क) वह मारता क्यों था।
(ख) वह कुछ देर तक उससे खेलता था।
(ग) दिन मजे में बीतने लगे।
(घ) इसी तरह की फरमाइशें।
(ङ) देख-बे मेरा काम सबसे पहले होना चाहिए।
(च) रास्ते में कोई ढंग की दुकान नहीं मिली थी, नहीं तो उधर से ही लाती।
उत्तर-
(क) प्रश्नवाचक वाक्य।
(ख) विधानवाचक वाक्य।
(ग) विधानवाचक वाक्य।
(घ) विधानवाचक वाक्य।
(ङ) आज्ञार्थक वाक्य।
(च) संकेतवाचक वाक्य।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति को हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और आँखों को बुरी तरह मल रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्र। ठिगना चकइठ शरीर, गोरा रंग और चपटा मुंह। वह सफेद नेकर, आधी बांह की ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने भाई को। निश्चय ही वह पंच-बराबर हो गई थी।

प्रश्न
(क) प्रस्तुत गद्यांश किस पाठ से लिया गया है ? और इसके लेखक कौन हैं.?
(ख) परिवार के सभी सदस्य किसे घेरकर खड़े थे? और क्यों ?
(ग) नवागन्तुक कौन था? उसका संक्षिप्त चित्रण करें।
(घ) निर्मला कौन थी? और वह पंच-बराबर कैसे हो गई थी?
(ङ) लेखक गंभीर क्यों हो गया था?
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश ‘बहादुर’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक अमरकांत हैं।
(ख) परिवार के सभी सदस्य नवागन्तुक को घेरकर खड़े थे। यह नवागन्तुक घर के लिए नौकर बनने के लिए आया था। सभी सदस्य नौकर पाकर उस नवागन्तुक को देखने के लिए खड़े थे।
(ग) नवागन्तुक एक नेपाली युवक था। वह माँ द्वारा मार खाने के बाद अपने घर से भाग गया था। लेखक के साले साहब उस नौकर को लाये थे। उसकी अवस्था बारह-तेरह वर्ष की थी। उसका कद ठिगना और चकइठ था। गोरा रंग और चपटा मुंह वाला वह नवागन्तुक सफेद नेकर पहने हुआ था। उसके गले में स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा हुआ था।
(घ) निर्मला लेखक की पत्नी थी। लेखक के सभी भाइयों के पास नौकर थे। अपनी गोतनियों एवं रिश्तेदारों की तरह उसे भी नौकर रखने की दिली इच्छा थी। नौकर पाकर वह भी उनके बराबर हो गई थी।
(ङ) घर के मुखिया होने के नाते नौकर को पाकर लेखक का गंभीर होना लाजिमी था। -घर गृहस्थी का निर्वहण करना मुखिया का परम कर्तव्य होता है। उसके ऊपर भी एक सदस्य का बोझ. पड़ गया था।

2. उसको लेकर मेरे साले साहब आए थे। नौकर रखना कई कारणों से बहुत जरूरी हो गया था। मेरे सभी भाई और रिश्तेदार अच्छे ओहदों पर थे और उन सभी के यहाँ नौकर थे। मैं जब बहन की शादी में घर गया तो वहाँ नौकरों का सुख देखा। मेरी दोनों भाभियाँ रानी की तरह बैठकर चारपाइयाँ तोड़ती थीं, जबकि निर्मला को सबेरै से लेकर रात तक खटना पड़ता था। मैं ईर्ष्या से जल गया। इसके बाद नौकरी पर वापस आया तो निर्मला दोनों जून ‘नौकर-चाकर’ की माला जपने लगी। उसकी तरह अभागिन और दुखिया स्त्री और भी कोई इस दुनिया में होगी? वे लोग दूसरे होते हैं, जिनके भाग्य में नौकर का सुख होता है ।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) नीकर को लेकर कौन आए थे?
(ग) लेखक ने कहाँ नौकरों का सुख देखा?
(घ) लेखक भाग्यशाली किसे मानते हैं?
(ङ) लेखक को ईर्ष्या क्यों होता है?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बहादुर।
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) नौकर को लेकर लेखक के साले साहब आए थे।
(ग) लेखक जब बहन की शादी में घर गये तब उन्होंने वहाँ नौकरों का सुख देखा।
(घ) लेखक कहते हैं कि जिनको नौकर का सुख प्राप्त होता है वे भाग्यशाली होते हैं।
(ङ) लेखक की पत्नी निर्मला को रात-दिन खाना पकाना पड़ता था। उनकी भाभियों के यहाँ नौकर थे इसलिए उन्हें आराम था। अपने भाभी को रानी की तरह चारपाइयाँ तोड़ते देखकर लेखक ईर्ष्या से जल जाते हैं।

3. पहले साले साहब से असाधारण विस्तार से उसका किस्सा सुनना पड़ा। वह एक नेपाली था, जिसका गाँव नेपाल और बिहार की सीमा पर था। उसका बाप युद्ध में मारा गया था और उसकी. माँ सारे परिवार का भरण-पोषण करती थी। माँ उसकी बड़ी गुस्सैल थी और उसको बहुत मारती थी। माँ चाहती थी कि लड़को घर के काम-धाम में हाथ बटाये, जबकि वह पहाड़ या .जंगलों में निकल जाता और पेड़ों.पर चढ़कर चिड़ियों के घोंसलों में हाथ डालकर उनके बच्चे पकड़ता या फल तोड़-तोड़कर खाता। कभी-कभी वह पशुओं को चराने के लिए ले जाता था।

उसने एक बार उस भैंस को बहुत मारा, जिसको उसकी माँ बहुत प्यार करती थी, और इसीलिए जिससे वह बहुत चिढ़ता था। मार खाकर भैंस भागी-भागी उसकी माँ के पास चली गई, जो कुछ दूरी पर एक खेत में काम कर रही थी। माँ का माथा ठनका। बेचारा बेजुबान जानवर चरना छोड़कर वहाँ क्यों आएगा? जरूर लौंडे ने इसको काफी मारा है। वह गुस्से से पागल हो गई। जब लड़का आया तो माँ ने भैंस की मार का काल्पनिक अनुमान करके एक डंडे से उसकी दुगुनी पिटाई की और उसको वहीं कराहता हुआ छोड़कर घर लौट आई। लड़के का मन माँ से फट गया और वह रात भर जंगल में छिपा रहा।

जब सबेरा होने को आया तो वह घर पहुंचा और किसी तरह अन्दर चोरी-चुपके घुस गया। फिर उसने घी की हडिया में हाथ डालकर माँ के रखे रुपयों में से दो रुपये निकाल लिए। अन्त में नौ-दो ग्यारह हो गया। वहाँ से दस मील की दूरी पर बस-स्टेशन था, वहाँ गोरखपुर जानेवाली बस थी।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) लेखक ने किनसे और किसका किस्सा विस्तार से सुना?
(ग) नौकर की माँ कैसी थी और वह उसके प्रति क्या व्यवहार करती थी?
(घ) लड़के का मन मों से क्यों फट गया?
(ङ) लड़के ने माँ के रुपये में से कितना निकाल लिया और उसके बाद क्या किया?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम बहादुर।
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) लेखक ने अपने साले साहब से उनके द्वारा नौकर के रूप में लाये गये लड़कों की । कहानी विस्तार से सुनी।
(ग) नौकर की माँ गुस्सैल स्वभाव की थी। वह उसको बहुत मारती थी।
(घ) एक दिन भैंस को मारने के बदले माँ ने उस लड़का की खूब पिटाई की जिससे उसका मन माँ से फट गया।
(ङ) लड़के ने घी की हंडिया में हाथ डालकर माँ के रखे रुपयों में से दो रुपये निकाल लिये और अंततः वहाँ से भाग गया।

4. निर्मला ने उसको एक फटी-पुरानी दरी दे दी थी। घर से वह एक चादर भी ले आया था। रात को काम-धाम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बँसखट पर अपना बिस्तर बिछाता था। वह बिस्तरे पर बैठ जाता और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता, जो बाईं ओर काफी झुकी रहती थी। फिर वह एक छोटा-सा आईना निकालकर बन्दर की तरह उसमें अपना मुँह देखता था। वह बहुत ही प्रसन्न नजर आता था।

उसके बाद कुछ और भी चीजें उसकी जेब से निकलकर उसके बिस्तर पर सज जाती थीं कुछ गोलियाँ, पुराने ताश की एक गड्डी, कुछ खूबसूरत. पत्थर के टुकड़े, ब्लेड, कागज की नावें। वह कुछ देर तक उनसे खेलता था। उसके बाद वह धीमे-धीमे स्वर में गुनगुनाने लगता था। उन पहाड़ी गानों का अर्थ हम समझ नहीं पाते थे, पर उसकी मीठी उदासी सारे घर में फैल जाती, जैसे कोई पहाड़ की निर्जनता में अपने किसी बिछुड़े हुए साथी को बुला रहा हो।

प्रश्न-
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिएँ।
(ख) निर्मला ने बहादुर को सोने के लिए क्या व्यवस्था दी थी?
(ग) रात को काम करने के बाद बहादुर कहाँ सोता था ?
(घ)बहादुर सोते समय अपनी जेब से क्या निकालता था और क्या-क्या करता था?
(ङ) बहादुर के गीत का लेखक के घर में क्या प्रभाव पड़ता था ?
उत्तर
(क) पाठ का नाम बहादर
लेखक का नाम अमरकांत।
(ख) निर्मला ने बहादुर को एक फटी-पुरानी दरी एवं एक टूटी हुई बँसखट सोने के लिए दी थी।
(ग) रात को काम करने के बाद वह भीतर के बरामदे में एक टूटी हुई बँसखट पर सोता था।
(घ) बहादुर रात को सोते समय बिस्तर पर बैठ जाता था और अपनी जेब में से कपड़े की एक गोल-सी नेपाली टोपी निकालकर पहन लेता। फिर एक छोटा-सा आइना निकालकर उसमें अपना मुँह देखता।
(ङ) जब वह रात में सोते समय गीत बजाता था जब पहाड़ी गीत की मीठी उदासी सारं घर में फैल जाती और लगता कि कोई पहाड़ निर्जनता में अपने किसी बिछड़े हुए साथी को बुला रहा है।

5. उसके स्वर में एक मीठी झनझनाहट थी। मुझे ठीक-ठीक याद नहीं कि मैंने उसको क्या हिदायतें दी। शायद यह कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करे और घर को अपना घर समझे। इस घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज्जत से रखा जाता है। जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। अगर वह यहाँ रह गया तो ढंग-शऊर सीख जाएगा, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाएगा और उसकी जिंदगी सुधर जाएगी। निर्मला ने उसी समय कुछ व्यावहारिक उपदेश दे डाले थे। इस मुहल्ले में बहुत तुच्छ लोग रहते हैं, वह न किसी के यहाँ जाए और न किसी का काम करे। कोई बाजार से कुछ लाने की कहे तो वह ‘अभी आता ‘ हूँ’ कहकर अन्दर खिसक जाए। उसको घर के सभी लोगों से सम्मान और तमीज से बोलना चाहिए। और भी बहुत-सी बातें। अन्त में निर्मला ने बहुत ही उदारतापूर्वक लड़के के नाम में से ‘दिल’ शब्द उड़ा दिया।

प्रश्न
(क) लेखक ने दिलबहादुर को कौन-कौन सी हिदायतें दी थीं?
(ख) दिलबहादुर को पाकर लेखक के मन में उसके प्रति कौन-सी मनोदशाएँ जागृत हो गई?
(ग) निर्मला ने दिलबहादुर को कौन-कौन-सी व्यावहारिक शिक्षा दी?
(घ) निर्मला ने दिलबहादुर को बहादुर कैसे बना दिया ?
उत्तर-
(क) लेखक ने दिलबहादुर को हिदायत देते हुए कहा कि उसे शरारतें छोड़कर ठीक. ढंग से काम करना चाहिए। इस घर को अपना ही घर समझना चाहिए। जो हम खाते हैं वही नौकर भी खाते हैं। नौकर-चाकर भी परिवार का ही अंग होता है।
(ख) दिलबहादुर को पाकर लेखक का मन अन्दर ही अंन्दर प्रफुल्लित हो उठा। वह अपनी पत्नी की बात रखने में सफल हो गया था। लेखक अन्तर्मन से सोचने लगा कि यदि यह लड़का इस घर में टिक गया तो वह भी हमारे लड़कों की तरह पढ़-लिख जायेगा और उसकी जिन्दगी भी सुधर जायेगी।
(ग) निर्मला संभवतः व्यावहारिक शिक्षा देने में निपुण थी। उसने दिलबहादुर से कहा कि इस मुहल्ले में वह किसी के घर आना-जाना न करे। बाहर का कोई व्यक्ति कोई सामान लाने के लिए कहे तो अभी आया कहकर घर में घुस जाये। घर के सभी सदस्यों के साथ अच्छी तरह से व्यवहार करे।
(घ) निर्मला को दिलबहादुर कहने में अजीबोगरीब लगता था। व्यावहारिक कुशलता एवं अच्छा लगने के उद्देश्य से उसने दिलबहादुर के नाम से दिल को हटाकर बहादुर नाम दे डाला। दिलबहादुर से वह बहादुर बन गया।

6. दिन मजे में बीतने लगे। बरसात आ गई थी। पानी रुकता था और बरसता था। मैं अपने को बहुत ऊँचा महसूस करने लगा था। अपने परिवार और सम्बन्धियों के बड़प्पन तथा शान-बान पर मुझे सदा गर्व रहा है। अब मैं मुहल्ले के लोगों को पहले से भी तुच्छ समझने लगा। मैं किसी से सीधे मुँह बात नहीं करता। किसी की ओर ठीक से देखता भी नहीं था। दूसरों के बच्चों को मामूली-सी शरारत पर डाँट-डपट देता। कई बार पड़ोसियों को सुना चुका था जिसके पास कलेजा है, वही आजकल नौकर रख सकता है। घर के स्वांग की तरह रहता है। निर्मला भी सारे मुहल्ले में शुभ सूचना दे आई थी-आधी तनख्वाह तो नौकर पर ही खर्च हो रही है, पर रुपया-पैसा कमाया किसलिए जाता है ? वे तो कई बार कह ही चुके थे तुम्हारे लिए दुनिया के किसी कोने से नौकर जरूर लाऊँगा वही हुआ।

प्रश्न
(क) लेखक अपने को ऊँचा क्यों समझने लगा था ?
(ख) नौकर को पाकर लेखक के व्यवहार में कौन-सा परिवर्तन आ गया था? और क्यों?
(ग) लेखक की पत्नी निर्मला ने पड़ोसियों को क्या खबर सुनाई थी?
(घ) घर में नौकर किस तरह होता है ?
(ङ) रुपया-पैसा किसलिए कमाया जाता है ?
उत्तर-
(क) लेखक के भाइयों एवं रिश्तेदारों के घर में नौकर-चाकर थे। सर्वगुण सम्पन्न होने के बाद भी लेखक का घर नौकरविहीन था। बहादुर के आने के साथ ही लेखक भी अपने भाइयों एवं रिश्तेदारों के समतुल्य हो गया था। पड़ोसियों के घर में नौकर नहीं थे। आत्मबड़प्पन ‘ और ईर्ष्यावश ही लेखक अपने को ऊँचा समझने लगा था।
(ख) नौकर के आते ही लेखक के मन में विविध धारणाएँ उत्पन्न होने लगीं। पड़ोसी जीवनयापन करना नहीं जानते हैं ये ऐशोआराम से काफी दूर रहनेवाले हैं। मानव स्वभाववश ईर्षालु हो जाता है। लेखक भी अपने पड़ोसियों से जलने लगता है उनके बच्चों को डाँटने-झपटने लगता है। वह लोगों से कहने लगता है नौकर रखना सबके वश की बात नहीं है। लेखक के मन में ऐसे विचार उन्मादवश आने लगे। उन्माद में मनुष्य सही गलत का विचार छोड़ देता है। झूठी भावनाओं में मनुष्य बह जाता है।
(ग) नारी स्वभाव से आत्मप्रशंसक होती है। निर्मला भी इससे वंचित नहीं रह पाती है। वह पड़ोसियों के समक्ष अपनी बात सर्वोपरि रखना चाहती है। वह कहती है कि आधी कमाई तो नौकर पर ही खर्च हो जाती है।
(घ) घर में नौकर-स्वांग की तरह होता है।
(ङ) रुपया-पैसा अपनी मान-मर्यादा स्थापित करने के लिए कमाया जाता है। रुपये की सार्थकता मान-मर्यादा रखने में ही है। पत्नी की भंगिमाओं की पूर्ति करना पति का दायित्व होता है। लेखक की पत्नी को नौकर चाहिए बस उसने घर में नौकर रख लिया।

7. पर अब बहादुर से भूल-गलतियाँ अधिक होने लगी थीं। शायद इसका कारण मार-पीट और गाली-गलौज हो। मैं कभी-कभी इसको रोकना चाहता था, फिर यह सोचकर चुप लगा जाता कि नौकर-चाकर तो मार-पीट खाते ही रहते हैं।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख)बहादुर से भूल-गलतियाँ क्यों होने लगी थीं?
(ग) लेखक द्वारा मार-पीट न रोकने से उसका कैसे स्वभाव का पता चलता है ?
(घ) नौकर के साथ मार-पीट क्या आप उचित मानते हैं ? अपने कथन के समर्थन में तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर-
(क) पाठ-बहादुरा लेखक-अमरकांता .
(ख) अधिक मार-पीट और गाली-गलौज के कारण बहादुर का आत्म-विश्वास डिग गया था, वह अनमना-सा हो गया था, इसलिए उससे ज्यादा गलतियाँ होने लगी थीं।
(ग) लेखक द्वारा मार-पीट न रोकने से उसके दब्बू स्वभाव का पता चलता है।
(घ) नौकर के साथ मार-पीट करना उचित नहीं है। उन्हें प्यार से समझाना चाहिए क्योंकि वे भी इन्सान हैं।

8. यही तो अफसास है। कोई भी सामान नहीं ले गया है। उसके कपड़े, उसका बिस्तर, उसके जूते-सभी छोड़ गया है। पता नहीं उसने हमें क्या समझा? अगर वह कहता तो मैं उसे रोकती थोड़े ? बल्कि उसको खूब अच्छी तरह पहना-ओढ़ाकर भेजती, हाथ में उसकी तनख्वाह के रुपये रख देती। दो-चार रुपये और अधिक दे देती। पर वह तो कुछ ले नहीं गया”

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख) प्रस्तुत कथन किसका है और उसे किस बात का अफसोस है? (ग) प्रस्तुत गद्यांश में मालकिन का कौन-सा भाव व्यक्त है ?
(घ) “पर वह तो कुछ ले नहीं गया’ कथन के पीछे कौन-सी कसक है?
उत्तर-
(क) पाठ-बहादुर। लेखक-अमरकात।
(ख) प्रस्तुत कथन मालकिन का है और उसे इस बात का आश्चर्य है कि बहादुर कुछ ले नहीं गया।
(ग) प्रस्तुत कथन से मालकिन का अपराध-बोध प्रकट होता है।.
(घ) दरअसल, बहादुर पर मेहमानों ने चोरी का इल्जाम लगाया और मालकिन और लेखक ‘ने भी डाँटा और पीटा था। किन्तु बहादुर घर छोड़ते हुए कुछ लेकर नहीं गया, अपितु अपने कपड़े आदि भी छोड़ गया। ‘पर वह कुछ ले ही नहीं गया’ कथन के पीछे बहादुर को झूठ-मूठ चोर समझने की कसक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें –

प्रश्न 1.
‘बहादुर’ के कहानीकार कौन हैं ?
(क) नलिन विलोचन शर्मा
(ख) अमरकांत
(ग) विनोद कुमार शुक्ल
(घ) अशोक वाजपेयी
उत्तर-
(ख) अमरकांत

प्रश्न 2.
‘बहादुर’ कैसी कहानी है ?
(क) ऐतिहासिक
(ख) मनोवैज्ञानिक
(ग) सामाजिक
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर-
(ग) सामाजिक

प्रश्न 3.
बहादुर अपने घर से क्यों भाग गया था?
(क) गरीबी के कारण
(ख) माँ की मार के कारण
(ग) शहर घूमने के लिए
(घ) भ्रमवश
उत्तर-
(ख) माँ की मार के कारण

प्रश्न 4.
निर्मला’ कौन थी?
(क) शिक्षिका
(ख) बहादुर की माँ
(ग) कथाकार की पत्नी
(घ) कथाकार की पड़ोसन
उत्तर-
(ग) कथाकार की पत्नी

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति ।

प्रश्न 1.
बहादुर को लेकर…………साहब आए थे।
उत्तर-
साले

प्रश्न 2.
………का कर्जा तो जन्म भर भरा जाता है।
उत्तर-
माँ-बाप

प्रश्न 3.
बहादुर घर में……..की तरह नाचता था।
उत्तर-
फिरकी

प्रश्न 4. ………खाकर वह गिरते-गिरते बचा।
उत्तर-तमाचा

प्रश्न 5.
मुझे एक अजीव-सी…….का अनुभव होने लगा।
उत्तर-
लघुता

अतिलघु उत्तरीय प्रश्व

प्रश्न 1.
बहादुर का अपने घर से भागने का कारण क्या था ?
उत्तर-
बहादुर की माँ उसे हमेशा काफी मारा-पीटा करती थी। अतः एक दिन बुरी तरह पीटे जाने पर वह घर से भाग गया।

प्रश्न 2.
लेखक ने बहादुर को पहले दिन क्या हिदायत दी ?
उत्तर-
उना लेखक ने उसे हिदायत दी कि वह शरारतें छोड़कर ढंग से काम करे और घर को अपना घर समझे।

प्रश्न 3.
बहादर का व्यवहार लेखक के परिवार के प्रति कैसा था?
उत्तर-
बहादुर का व्यवहार लेखक के परिवार के प्रति अत्यन्त शालीनतापूर्ण था, वह बहुत हँसमुख तथा मेहनती था।

प्रश्न 4.
निर्मला ने बहादुर को क्या उपदेश दे डाले थे?
उत्तर-
निमला ने बहादुर को समझाया था कि वह मुहल्ले के लोगों से हेल-मेल नहीं बढावे. उनका कोई काम न करे तथा किसी के घर आना-जाना न करे।

प्रश्न 5.
किशोर का व्यवहार बहादुर के प्रति कैसा था? .
उत्तर-
किशोर के सभी काम बहादुर द्वारा किए जाने पर भी किशोर उसके साथ दुर्व्यवहार करता तथा अक्सर मारा पीटा करता था।

प्रश्न 6.
घर में नौकर किस तरह होता है ?
उत्तर-
घर में नौकर “स्वांग” की तरह होता है।

प्रश्न 7.
बहादुर से भूल-गलतियाँ क्यों होने लगी थीं ?
उत्तर-
अधिक मीरपीट और गाली गलौज के कारण बहादुर का आत्म विश्वास डिग गया था, वह अनमना सा हो गया था। इसलिए उससे ज्यादा गलतियाँ होने लगी थीं।

बहादुर लेखक परिचय

हिन्दी के सशक्त कथाकार अमरकांत का जन्म जलाई 1925 ई० में नागरा, बलिया (उत्तरप्रदेश) में हुआ था। उन्होंने गवर्नमेंट हाईस्कूल, बलिया से हाईस्कूल की शिक्षा पायी । कुछ समय तक उन्होंने गोरखपुर और इलाहाबाद में इंटरमीडिएट की पढ़ाई की, जो 1942 के स्वाधीनता संग्राम में शामिल होने से अधूरी रह गयी, और अंततः 1946 ई० में सतीशचंद्र कॉलेज बलिया से इंटरमीडिएट किया। उन्होंने 1947 ई० में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी० ए० किया और 1948 ई० में आगरा के दैनिक पत्र ‘सैनिक’ के संपादकीय विभाग में नौकरी कर ली।

आगरा में ही वे ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ में शामिल हुए और वहीं से कहानी लेखन की शुरुआत की। बाद में वे दैनिक अमृत. पत्रिका इलाहाबाद, दैनिक ‘भारत’ इलाहाबाद, मासिक पत्रिका ‘कहानी’ इलाहाबाद तथा ‘मनोरमा’ इलाहाबाद के भी संपादकीय विभागों से सम्बद्ध रहें । अखिल भारतीय कहानी.प्रतियोगिता में उनकी कहानी ‘डिप्टी कलक्टरी’ पुरस्कृत हुई थी। उन्हें कथा लेखन के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ भी प्राप्त हो चुका है।

आजादी के बाद के हिंदी कथा साहित्य के महत्त्वपूर्ण कथाकार अमरकांत की कहानियों में मध्यवर्ग, विशेषकर निम्न मध्यवर्ग के जीवनानुभवों और जिजीविषा का बेहद प्रभावशाली और अंतरंग चित्रण मिलता है। अक्सर सपाट नजर आनेवाले कथनों में भी वे अपने जीवंत मानवीय संस्पर्श के कारण अनोखी आभा पैदा कर देते हैं। अमरकांत के व्यक्तित्व की तरह उनकी भाषा में भी एक खास किस्म का फक्कड़पन है । लोकजीवन के मुहावरों और देशज शब्दों के प्रयोग से उनकी भाषा में एक ऐसी चमक पैदा हो जाती है जो पाठकों को निजी लोक में ले जाती है।

अमरकांत के कई कहानी संग्रह और उपन्यास हैं। ‘जिंदगी और जोंक’, ‘देश के लोग’, ‘मौत का नगर’, ‘मित्र-मिलन’, ‘कुहासा’ आदि उनके कहानी संग्रह हैं और सूखा पत्ता’, ‘आकाशपक्षी’, – ‘काले उजले दिन’, “सुखजीवी’, “बीच की दीवार’, ‘ग्राम सेविका आदि उपन्यास हैं। उन्होंने ‘वानर सेना नामक एक बाल उपन्यास भी लिखा है।

अमरकांतकी प्रस्तुत कहानी में मंझोले शहर के नौकर की लालसा वाले एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में काम करनेवाले बहादुर की कहानी है – एक नेपाली गवई गोरखे की । परिवार का नौकरी-पेशा मुखिया तटस्थ स्वर में बहादुर के आने और अपने स्वच्छंद निश्छल स्वभाव की आत्मीयता के साथ नौकर के रूप में अपनी सेवाएं देने के बाद एक दिन स्वभाव की उसी स्वच्छंदता के साथ हर हृदय में एक कसकती अंतर्व्यथा देकर चले जाने की कहानी कहता है। . लेखक घर के भीतर और बाहर के यथार्थ को बिना बनाई-सँवारी सहज परिपक्व भाषा में पूरी कहानी बयान करता है । हिंदी कहानी में एक नये नायक को यह कहानी प्रतिष्ठित करती है।

बहादुर Summary in Hindi

पाठ का सारांश

सहसा मैं काफी गंभीर हो गया था, जैसा कि उस व्यक्ति की हो जाना चाहिए, जिस पर एक भारी दायित्व आ गया हो। वह सामने खड़ा था और आँखों को बुरी तरह मलका रहा था। बारह-तेरह वर्ष की उम्रा ठिगना चकइरु शरीर, गोरा रंग और चपटा मुँह। वह सफेद नेकर, आधी बांह की. ही सफेद कमीज और भूरे रंग का पुराना जूता पहने था। उसके गले स्काउटों की तरह एक रूमाल बंधा था। उसको घेरकर परिवार के अन्य लोग खड़े थे। निर्मला चमकती दृष्टि से कभी लड़के को देखती और कभी मुझको और अपने भाई को। निश्चय ही वह पंच-बराबर हो .. गई थी।

निर्मला को अपने भाभियों के पास नौकर को देखकर नौकर रखने की इच्छा बहुत प्रबल हो गई थी। उसका भाई एक नौकर लाकर बहन के यहाँ रख देता है। पहले उसके बारे में पूरी कहानी असाधारण विस्तार से बताता है। दिलबहादुर नाम का यह नेपाली गँवइ गोरखा है। उसका पिता युद्ध में मारा गया था। माता जी घर चलाती थी। एक दिन माता जी ने शरारत करने पर दिलबहादुर को बहुत मार मारा। वह वहाँ से भाग गया और लेखक. महोदय के यहाँ नौकरी करने के लिए आ गया। वह मेहनती और भोला-भाला लड़का था। उसके आने पर घर के सभी लोग बहुत स्वागत किया।

निर्मला प्रेम से बहादुर कहने लगी। घर के कामों में वह सहयोग देने लगा। वह घर की सफाई करता, कमरों में पोंछा लगाता, अंगीठी जलाता, चाय बनाता और पिलाता। दोपहर में कपड़े धोता और बर्तन मलता। वह रसोई बनाने की भी जिद करता, पर निर्मला स्वयं सब्जी और रोटी बनाती। निर्मला को उसकी बहुत फिक्र रहती। दिन मजे से बीतने लगे। निस्संदेह बहादुर की वजह से सबको खूब आराम मिल रहा था।

घर खूब साफ और चिकना रहता। कपड़े चमाचम सफेदा निर्मला की तबीयत भी काफी सुधर गई। अब कोई एक खेर भी न टसकाता था। किसी को मामूली से मामूली काम करना होता, तो वह बहादुर को आवाज देता। ‘बहादुर एक गिलास पानी।”बहादुर, पेन्सिल नीचे गिरी है, उठाना।’ इसी तरह की फरमाइशें। बहादुर घर में फिरकी की तरह नाचता रहता। सभी रात में पहले ही सो जाते थे और सबेरे, आठ बजे के पहले न उठते थे।

किशोर अपना सारा काम बहादुर से करवाता। जूते में पॉलिश, साइकिल की सफाई, कपड़ो की धुलाई और इस्त्री भी। इतने सारी फरमाइशों में कोई गड़बड़ी हो गई तो बुरी-बुरी गाली देना, मार-पीट, गर्जन-तर्जन आदि चालू हो गया। धीरे-धीरे निर्मला का हाथ भी खुल गया। अब बहादुर को मारनेवाला दो लोग हो गये। कभी-कभी एक गलती पर दोनों लोग मारते थे।

एक दिन रविवार को निर्मला के रिश्तेदार घर पर मिलने के लिए आये। घर में बड़ी चहल-पहल मच गई। नाश्ता पानी के बाद बातों की जलेबी छनने लगी। इसी समय एक घटना हो गई। अचानक रिश्तेदार की पत्नी ने चोरी इलजाम नौकर पर लगा दिया। सबलोगों ने बारी-बारी से पूछा। लेकिन बहादुर नही-नहीं कहता रहा। पहले लेखक महोदय ने बहादुर को मारा। फिर बाद में निर्मला ने भी बहादुर को मारा। इस घटना के बाद बहादुर काफी डॉट-मार खाने लगा। वह . उदास रहने लगा और काम में लापरवाही करने लगा।

एक दिन मैं दफ्तर से विलम्ब से आया। निर्मला आँगन में चुपचाप सिर पर हाथ रखकर . बैठी थी। अन्यं लड़कों का पता नहीं था, केवल लड़की अपनी माँ के पास खड़ी थी। अंगीठी अभी नहीं जली थी। आँगन गंदा पड़ा था, बर्तन बिना मले हुए रखे थे। सारा घर जैसे काट रहा था।

क्या बात है ?- मैंने पूछा – बहादुर भाग गया। -भाग गया! क्यों ? पता नहीं।
निर्मला आँखों पर आँचल रखकर रोने लगी। मुझे क्रोध आया। मैं चिल्लाना चाहता था, पर भीतर-ही-भीतर कलेजा जैसे बैठ रहा हो। मैं वहीं चारपाई पर सिर झुकाकर बैठ गया। मुझे एक अजीब-सी लघुता का अनुभव हो रहा था। यदि मैं न मारता, तो शायद वह न जाता।

शब्दार्थ

पंच-बराबर : दो पक्षों के बीच निर्णायक की तरह, होना, पंच की तरह
ओहदा : पद
जन : वक्त
बंजुबान : मूक, भाषाविहीन
हिदायत : चेतावनी, सावधानी
शरारत : चंचलता, बदमाशी
शऊर : ढंग, शिष्टाचार, सलीका
तुच्छ : नगण्य, क्षुद्र
फरमाइश : आग्रह, निवेदन
नेकर : पैंट
पुलई : पेड़ की सबसे ऊंची शाखा
सवांग : सगा, परिवार का सदस्य
फिरकी : नाचने वाली घिरनी .
कायल : आकांक्षी, अभ्यस्त, आदी
दायित्व : जिम्मेदारी
दर्पण : आईना
खूँट : साड़ी के आँचल से बंधी हुई गाँठ.
घाघ : घुटा हुआ, चतुर
होडना : मंथना, मॅथाना
अलगनी : कपड़े डालने के लिए बंधी लंबी रस्सी, खूँटी

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

 

सूरदास के पद वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Surdas Ke Pad Class 12 Bihar Board प्रश्न 1.
सूरदास का जन्म कब हुआ था?
(क) 1478 ई. में
(ख) 1470 ई. में
(ग) 1475 ई. में
(घ) 1472 ई. में
उत्तर-
(क)

सूरदास के पद अर्थ सहित Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
सूरदास की अभिरुचि किसमें थी?
(क) पर्यटन
(ख) गायन
(ग) नृत्य
(घ) लेखन
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12 Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
सूरदास किस भक्ति के कवि हैं?
(क) कृष्ण भक्ति
(ख) रामभक्ति
(ग) देश भक्ति
(घ) मातृभक्ति
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12th Bihar Board प्रश्न 4.
इनमें से सूरदास की कौन-सी रचना है?
(क) कड़बक
(ख) छप्पय
(ग) पद
(घ) पुत्र-वियोग
उत्तर-
(ग)

सूरदास के पद कक्षा 12 Bihar Board प्रश्न 5.
सूरदास जी के गुरु कौन थे?
(क) महाप्रभु वल्लभाचार्य
(ख) महावीर गौतम बुद्ध
(ग) महाप्रभु चौतन्य
(घ) महाप्रभु महावीर स्वामी
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12 Notes Bihar Board प्रश्न 6.
‘साहित्य लहरी’ के रचनाकार कौन हैं?
(क) नन्ददास
(ख) सूरदास
(ग) नाभादास
(घ) तुलसीदास
उत्तर-
(ख)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Surdas Ki Abhiruchi Kis Mein The Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
जागिए, ब्रजराज ……. कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृन्द संकुचित भए, भुंग लता भूले।।
उत्तर-
कुँवर

Surdas Ko Abhiruchi Kisme Thi Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
बिधु मलीन रवि ………. गावत नर नारी।
सूर-स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी।।
उत्तर-
प्रकाश

Surdas Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
तमचुर खर-रोर सुनहु, बोलत बनराई।
राँभति गो खरिकनि में,
………. हित धाई।।
उत्तर-
बछरा

प्रश्न 4.
बरी, बरा, बेसन बहु भाँतिनि, व्यंजन विविध अगनियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रूचि मानत ……… दोनियाँ।।
उत्तर-
दधि

प्रश्न 5.
जेंवत ……… नंद की कनियाँ
केछुक खात, कछू धरनि गिरावत,
उत्तर-
स्याम

सूरदास के पद अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास हिन्दी साहित्य के किस काल के कवि हैं
उत्तर-
भक्तिकाल के।

प्रश्न 2.
सूरदास का जन्म रुमकता नामक गाँव में किस सन् में हआ?
उत्तर-
1478 ई. में

प्रश्न 3.
सूरदास के काव्य की भाषा कौन-सी है?
उत्तर-
ब्रज भाषा।

प्रश्न 4.
सूरदास के काव्य में किस रस का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
वात्सल्य।

सूरदास के पद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है?
उत्तर-
सूरदास रचित “प्रथम पद” में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है।

प्रश्न 2.
गायें किस ओर दौड़ पड़ी?
उत्तर-
भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं-कमल के फूल खिल उठे है, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ी।

प्रश्न 3.
प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
प्रथम पद में विषय, वस्तु चयन, चित्रण, भाषा-शैली व संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष दिखाई पड़ता है। इस पद में दुलार भरे कोमल स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है। कृष्ण को भोर होने के विभिन्न संकेतों जैसे-कमल के फूलों का खिलना, मुर्ग का बांग देना, पक्षियों का चहचहाना, गऊओं का रंभाना, चन्द्रमा का मलिन होना, रवि का प्रकाशित होना आदि के बारे में बताया जा रहा है। इन सबके माध्यम से कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रश्न 4.
पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
महाकवि सूर को बाल-प्रकृति तथा बाल-सुलभ अंतरवृत्तियों के चित्रण की दृष्टि से विश्व साहित्य में बेजोड़ स्वीकार किया गया है। उनके वात्सल्य वर्णन की विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

लाल भगवानदीन लिखते हैं, “सूरदास जी ने बाल-चरित्र का वर्णन में कमाल कर दिया है, यहाँ तक कि हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस विषय में इनकी समता नहीं कर सके हैं। हमें संदेह है कि बालकों की प्रकृति का जितना स्वाभाविक वर्णन सूर ने किया है, उतना किसी अन्य भाषा के कवि ने किया है अथवा नहीं।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं, “जितने विस्तृत और विशद् रूप से सूर ने बाल लीला का वर्णन किया है, उतने विस्तृत रूप में और किसी कवि ने नहीं किया। कवि ने बालकों की अन्त:प्रकृति में भी पूरा प्रवेश किया है और अनेक बाल भावों की सुन्दर स्वाभाविक व्यंजन की है।”

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं, “यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। माता संसार का ऐसा पवित्र रहस्य है जिसकी कवि के अतिरिक्त और किसी को व्याख्या करने का अधिकार नहीं है।”

यहाँ प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से ओतप्रोत हैं और ‘सूरसागर’ में हैं। इन पदों में सूर की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। प्रथम पद में बालक कृष्ण को सुबह होने के संकेत देकर जगाना, दूसरे पद में नंद द्वारा गोदी में बैठाकर भोजन कराना वात्सल्य भाव के ही उदाहरण हैं। बालक कृष्ण की क्रियाओं, सौन्दर्य तथा शरारतों का मार्मिक चित्रण इन पदों में है। अतः दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना है।

प्रश्न 5.
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करें
(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ।
(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्है माँगत सूर जुठनियाँ।
(ग) आपुन खाक, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है। अतः यह पक्ति काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं। यह देख सूरदास जी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूठन नंदजी से माँगते हैं। इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है। कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं?
उत्तर-
बालक कृष्ण अपने बालसुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जा रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही है। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अनगिनत प्रकार के व्यंजन हैं।

बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगती है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही में विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं।

सूरदास के पद भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ।
उत्तर-

  • मलिन-मलिन हृदय से प्रभु स्मरण नहीं हो सकता।
  • रस-काव्य में रस न हो तो व्यर्थ है।
  • भोजन-भोजन एकान्त में करना चाहिए।
  • रूचि-मेरी रुचि अध्ययन-अध्यापन की है।
  • छवि-श्रीकृष्ण की छवि अत्यन्त मनोहारी है।
  • दही-दही को भोजन में शामिल करना चाहिए।
  • माखन-दूध को विलोने से माखन निकलता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दो के पर्यायवाची दें
उत्तर-

  • धरनि-पृथ्वी, धरती, धरा, भू
  • रवि-सूर्य, भास्कर, भानु
  • अम्बुज-कमल, जलज, पंकज
  • कमल-जलज, पंकज, अम्बुज

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें
उत्तर-

  • शब्द – मानक रूप
  • धरनी – धरती
  • गो – गाय
  • कँवल – कमल
  • विधु – विधु
  • स्याम – श्याम
  • प्रकास – प्रकाश
  • बनराई – वनराही

प्रश्न 4.
निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखें
उत्तर-

  • शब्द – विपरीतार्थक शब्द
  • मलिन – स्वच्छ (निर्मल)
  • नार – नारायण
  • संकुचित – विस्तृत
  • धरणी – आकाश
  • विधु – रवि

प्रश्न 5.
पठित पदों के आधा पर सूर के भाषिक विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
पठित पदों में सूरदास ने साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में माधुर्य, लालित्य तथा सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना हुई है जिसके लिए गेय शैली का प्रयोग किया गया है। अत: दोनों पदों में संगीतात्मकता व लयात्मकता विद्यमान है।

प्रश्न 6.
विग्रह करते हुए समास बताएँ।
उत्तर-
नंद जसोदा-नंद और जसोदा-द्वन्द्व समसस
ब्रजराज-ब्रज का राजा-तत्पुरुष समास खग
रोर-खग का शोर-तत्पुरुष समास
अम्बुजकरधारी-अम्बुज को हाथ में धारण करनेवाला (श्रीकृष्ण)-बहुव्रीहि समास।

सूरदास के पद कवि परिचय सुरदास (1478-1583)

जीवन-परिचय-
महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्य तथा गोस्वामी विट्ठलनाथ द्वारा प्रतिष्ठित अष्टछाप के प्रथम कवि महाकवि सूरदास हिन्दी साहित्याकाश के सर्वाधिक प्रकाशमान नक्षत्र हैं। वस्तुतः कृष्ण भक्ति की रसधारा को समाज में बहाने का श्रेय सूरदास को ही जाता है।

महाकवि सूरदास के जन्मस्थान एवं काल के बारे में अनेक मत हैं। अधिकांश साहित्यकारों का मत है कि महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में आगरा और मथुरा के बीच स्थित रुमकता नाम गाँव में हुआ था। कुछ अन्य लोग बल्लभगढ़ के निकट सीही नामक ग्राम को उनका जन्मस्थान बताते हैं।

जब वे गऊघाट पर रहते थे तो एक दिन उनकी भेंट महाप्रभु बल्लभाचार्य से हुई। सूर ने अपना एक भजन बड़ी तन्मयता से महाप्रभु को गाकर सुनाया, जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। बल्लभचार्य के आदेश से ही सूरदास ने कृष्ण लीला का गान किया। उनके अनुरोध पर ही सूरदास श्रीनाथ के मन्दिर में आकर भजन-कीर्तन करने लगे। वे निकट के गाँव पारसोली में रहते थे। वहीं से नित्य-प्रति श्रीनाथ जी के मन्दिर में आकर भजन गाते और चले जाते। उन्होंने मृत्युकाल तक इस नियम का पालन किया। 1583 ई. में पारसोली में ही इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य ग्रंथ मिलते हैं-

  • सूरदास,
  • सूर सारावली,
  • साहित्य लहरी।

काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास वात्यसल्य, प्रेम और सौंदर्य के अमर कवि हैं। उनके काव्य के प्रमुख विषय हैं-विनय और आत्मनिवेदन, बालवर्णन, गोपी-लीला, मुरली-माधुरी और गोपी विरह।

सूरदास के पद कविता का सारांश

प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं जो सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इन पदों में कवि की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है।

प्रथम पद में प्यार-दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक को यह कहते हुए जगाया जा रहा है कि व्रजराज कृष्ण उठो, सुबह हो गई है। प्रकृति के अनेक दृष्टांतों तथा गाय-बछड़ों के क्रियाकलापों का वर्णन कर माता यशोदा उन्हें बहुत प्यार से उठने के लिए कह रही हैं। – द्वितीय पद में पिता नंद बाबा की गोद में बैठकर बालक कृष्ण को भोजन करते हुए चित्रित किया गया है। इसमें अन्य बालकों की तरह ही कृष्ण के भोजन करने का अत्यंत स्वाभाविक वर्णन है। सूर वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए थे। वे बालकों की आदतों, मनोवृत्तियों तथा बाल मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान रखते थे, यह उनके इस पद में स्पष्ट देखा जा सकता है। बच्चे के भोजन करने, कुछ खाने, कुछ गिराने, कुछ माता-पिता को खिलाने, खाते-खाते शरीर पर गिरा लेने आदि के इन सुपरिचित दृश्यों और प्रसंगा में कवि-हृदय का ऐसा योग है कि ये प्रसंग रिट बन गए हैं।

कविता का भावार्थ
जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृंद संकुचित भए, भुंग लता भूले।
तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई॥
राँभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई।
बिधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि ‘सूरदास’ द्वारा रचित उनके विख्यात ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इस पद में सोए हुए बालक कृष्ण को दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में भोर होने की बात कहते हुए जगाने का वर्णन है।

व्याख्या-बालक कृष्ण को जगाने के लिए माँ यशोदा सुबह होने के बहुत से प्रमाण देती है। वह बहुत ही दुलार से उसे कहती है, हे ब्रजराज कुँवर, अर्थात् ब्रज के छोटे राजकुमार! जाग जाओ, उठ जाओ। उठकर देखो-कितने सुन्दर कमल के फूल खिल गए हैं। रात को खिलने वाली कुमुदनियाँ सकुचा गई हैं, अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है क्योंकि भोर में कुमुदनियाँ मुरझा जाती हैं। चारों ओर भँवरे मंडरा रहे हैं और मुर्गा आवाज (बाँग) दे रहा है। हर तरफ पक्षियों की चहचहाहट फैली है। पेड़-पौधों पर बैठे पक्षियों का मधुर संगीत गूंज रहा है। गाएँ भी बाड़ों में जाने के लिए रंभा रही हैं, वे अपने बछड़ों सहित जाना चाहती हैं। चन्द्रमा के प्रकाश की काँति क्षीण हो गई है अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है, वहीं सूर्य का प्रकाश चारों ओर फैल गया है। नर-नारी मधुर स्वर में गा रहे हैं कि हे श्याम! सुबह हो गई है इसलिए उठ जाओ। वे अंबुज करधारी अर्थात् कमल को हाथ में धारण करने वाले कृष्ण को सुबह होने का संकेत देकर जगाना चाहते हैं।

पद-2
2. जेंवत स्याम नंद की कनियाँ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ।
बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगानियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ।
मिस्त्री, दधि, माखन मिम्रित करि मुख नावत छबि धनियाँ।
आपुन खात नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं, तिहूँ भुवनियाँ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ॥

व्याख्या-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक दिगन्त भाग-2 के “पद” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूरदास हैं। सूरदासजी भक्तिधारा के अन्यतम कवि हैं। उपरोक्त ‘पद’ में इन्होंने बालक कृष्ण की बाल सुलभ चपलता तथा चिताकर्षक लीलाओं का दिग्दर्शन कराते हुए उनके (कृष्ण) द्वारा भोजन करते समय का रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।

बालक कृष्ण नंदबाबा की गोद में बैठकर खा रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ भूमि पर गिरा देते हैं। इस प्रकार उनके भोजन करने का ढंग से प्राप्त होनेवाली शोभा को माँ यशोदा (नंद की अत्यन्त प्रभुदित भाव से देख रही हैं। बेसन से बनी बरी-बरा विभिन्न प्रकार के अनेक व्यंजन को अपने हाथों द्वारा खाते हैं, कुछ छोड़ देते हैं। दोनी (मिट्टी के पात्र) में रखी हुई दही में विशेष रुचि ले रहे हैं उन्हें दही अति स्वादिष्ट लग रहा है। मिश्री मिलाया हुआ दही तथा माखन (मक्खन) को अपने मुख में डाल लेते हैं, उनकी यह बाल सुलभ-लीला धन्य है। वे स्वयं भी खा रहे हैं तथा नंद बाबा के मुँह में भी डाल रहे हैं। यह शोभा अवर्णनीय हैं अर्थात् इस शोभा के आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस रस का पान नंद बाबा और यशोदा माँ कर रही हैं, जो प्रसन्नता उन दोनों को हो रही है वह तीनों लोक में दुर्लभ हैं। नंदजी भोजन करने के बाद कुल्ला करते हैं। सूरदासजी जूठन माँगते हैं, उस जूठन को प्राप्त करना वे अपना सौभाग्य मानते हैं।

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Bihar Board Class 12 English Song of Myself Text Book Questions and Answers

A. Work in small groups and discuss these questions

Song Of Myself Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 1.
How will you express your feeling when you feel delighted?
Answer:
I laugh and sing.

Song Of Myself Questions And Answers Bihar Board Class 12 English Question 2.
Which type of song do you like to sing?
Answer:
I like to sing a song that appeals to my heart.

Bihar Board Class 12 English Book Very Short Type Questions and Answer

B. 1. 1. Read the following sentences and write ‘T’ for true and ‘F’ for false statements

(a) The poet enjoys himself and sings for the self.
(b) The speaker is different from others.
(c) The poet discards nature’s beauty.
(d) Every atom of blood is the same in all human beings.
(e) The poet is associated with a particular school of thought.
(f) The poet has overcome his greed.
Answer:
(a) T, (b) T, (c) F, (d) T, (e) T, (f) T.

B. 1.2. Answer the following questions briefly

Song Of Myself Ka Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 1.
Who is the speaker in this poem?
Answer:
Walt Whitman is the speaker of this poem.

Question Answer Of Song Of Myself Bihar Board Class 12 English Question 2.
How old is he?
Answer:
He is thirty-seven years old.

Song Of Myself Summary Class 12 Bihar Board Question 3.
Why does the speaker use ‘you’ twice?
Answer.
The speaker uses ‘you’ twice to press on a similarity of blood in all human beings.

Song Of Myself Questions Bihar Board Class 12 English Question 4.
What is meant by ‘Nature without check with original energy’?
Answer:
Harbour and Hazard are meant by Nature without check with original energy.

Song Of Myself Class 12 Bihar Board Question 5.
What is the theme of the poem?
Answer:
The theme of the poem is a reflection of individualistic thought. It gives the message of the oneness of human beings.

Song Of Myself Summary Class 12 In Hindi Bihar Board Question 6.
How does the speaker establish a relation between ‘me’ and ‘you’?
Answer:
The speaker establishes the relation between ‘me’ and ‘you’. He says that our parents are the same and our blood is similar.

Song Of Myself Answer Key Bihar Board Class 12 English Question 7.
What does he observe in summer?
Answer:
He observes a spear of grass.

Song Of Myself Discussion Questions Bihar Board Class 12 English Question 8.
What has formed the speaker’s blood?
Answer:
The soil, the air and the birthplace formed the speaker’s blood.

Song Of Myself Summary In Hindi Bihar Board Class 12 English Question 9.
What does he hope to do?
Answer:
He hopes to do the work which he wants to continue till death.

Question 10.
What does he want to do with creeds?
Answer:
He wants to know the system of thoughts with creeds in abeyance.

Question 11.
What does he want to speak about?
Answer:
He wants to speak at every hazard.

C. l. Bihar Board Class 12 English Book Long Answer Question

Question 1.
Give a summary of the poem.
Answer:
See summary.

Question 2.
What similarities does the poet draw between two human beings?
Answer:
The poet’Walt Whitman’ tells something about the similarities between two human beings. The poet wants to say that human beings are the same in many ways as they bom in similar ways. Their blood is the same. Everything is the same in all human beings.

Question 3.
Explain the line ‘Hoping to cease not till death’.
Answer:
The line ‘Hoping to cease not till death’ means the poet Walt Whitman does not want to die. He knows that there are people who quarrelled for religions. He hopes to change the situation through his efforts. There are high thoughts about religious belief in his mind. So, he has expressed such view in the line “hoping to cease not till death”.

Question 4.
Comment on the subjectivism (Personal feeling) in the poem?
Answer:
The poem “Song of Myself’ is composed by the poet Walt Whitman. He tells about himself in this poem. He never thinks anything wrong about religious beliefs and system of thought. He becomes very sad when he sees a human being quarrelling with another human being only for religion. But there is nothing to quarrel in these things. He feels like a spear which gives pain in human beings. Also, it gives him pain when he listens about quarrelling people in the same way for religion.

Question 5.
Why does the poet not want to bother himself with “Creeds and Schools”
Answer:
The poet does not want to bother himself with “Creeds and schools” because he thinks about religious tolerance. His mind is quite free from this problem. He knows that there are different religious beliefs and system of thoughts in the world. Still, he does not bother himself with it. He knows that everyone is the same in all condition. Take birth’ from different parents have no difference among them and they are similar in all respects. Their blood is the same.

Question 6.
What does the poet mean by ‘Nature without check with original energy’?
Answer:
The poet means to say, “nature without check with original energy”, that he believes in good and bad aspects of life and he favours to tell about every danger or fear, which he hopes to acquire through nature without check unrestricted nature and original energy.

C. 3. Composition

Write a short essay in about 150 words on the following
(a) Religion does not teach hatred.
Answer:
Every individual when bom, does not belong to any religion, but immediately after birth a particular religion recognise him. It is a matter of Relief and faith of people belonging to a different religion. A person tends to love and respect his religion. He becomes very possessive about his religion. If people belonging to other religion tries to hurt his sentiments by talking ill of his religion and tries to damage or bring destruction the person gets shattered. He is ready to fight for his religion as he feels that his existence is in danger. He tries to protect his religion from his enemies. But this is something which should be avoided.

As every individual is bom with religion, one should try to have respect for other religions. All religions must be respected equally. It should be respected by all. All religion teaches you to love your family, your country and the people. Religion will never teach you to kill people of a different religion. We should regard every human being as our own brother. People who fight with others in the name of his religion are not followers of their religion. He tries to misinterpret the Teachings of religion. If we want others to respect our religion we should also learn to respect other’s religion.

(b) Life is a grand battle.
Answer:
Life is a great challenge. A person with a bold mind and strong body is ready to accept it. He is not being fearful. Life is made up of different problems. It is always and rightly said that life is not a bed of roses. This is very much true. Human beings are all the time putting up great strength to overcome these problems. Right from the time, we are bom we are snuggling for survival. Life is a grand battle, this does not mean that the universe is a battlefield and we are the soldiers. Battle-field means it is made up of difficult situation which needs to be handled carefully. We should be like soldiers who are ready to act for any adverse situation and save ourselves. We should not be scared of facing the challenges. A person who faces the challenge with a strong will is never shattered out always move ahead in life. These kinds of people become strong mentally, physically and emotionally. So folks life is a grand battle—face it, win it, rejoice it and try to bring happiness for yourself and your people.

D. Word Study
D. 2. Word-formation

Read the following lines carefully
Hoping to cease not till death Retiring back a while
In the above lines, ‘hoping’ and ‘retiring’ are derived by adding ‘ing’ to ‘hope’ and ‘retire’ respectively.

Ex. 1. Select five words from your day-to-day life and add the suffix ‘ing’ to them to form new words.
Golden Series Passport

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Poem 2 Song of Myself

D. 3. Word-meaning

Ex.1. Write the antonyms of the following words and use them in your sentences:
perfect cease hope permit original
Answer:
perfect — imperfect — Ram is always imperfect in his books,
cease — starts — Life starts at the age of 40.
hope — hopeless — Gita is a hopeless girl,
permit — refuse — I refuse to do this work,
original — xerox — I want to xerox of my mark sheets.

E. Grammar

Ex.1. Read the following line from the poem:
1 celebrate me and sing myself
In the given line ‘myself is a reflexive pronoun which has been used twice. Its usage in both the clauses is different. In the first clause, it is a reflexive pronoun, but in the second, it is objected to a verb (‘sing’).
Supply related reflexive pronouns in the following list:

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Poem 2 Song of Myself 1

Ex. 2. Construct meaningful sentences with the help of the following verbs. Do not forget to use ‘reflexive pronouns’ after the verbs; for, these verbs are always followed by them:
enjoy serving absent help control
Answer:
enjoy — We enjoy ourselves very much.
serve — They are happy to serve themselves.
absent — He got absent himself.
help — One should always help ourselves.
control — He has controlled himself.

Comprehension Based Questions with Answers

1. Read the above extract poem and answers the questions that follow: [B.M. 2009 A]
I celebrate myself, and«ing myself,
And what I assume you shall assume,
for every atom belonging to me as good belongs to you.
I loafe and invite my soul,
I lean and loafe at my ease observing a spear of summer grass My tongue, every atom of my blood, from this soil, this air,
Bom here of parents, bom here from parents the same, and their parents the same,
I now thirty-seven years bid in perfect health begin,

Questions.
(a) Who is “I” in the first line of the poem?
(b) What the speaker says about himself?
(c) What thing he hopes from other persons?
(d) Why he expects so from others?
(e) What he does for his own satisfaction?
(f) What similarities does he find between his and other’s parents?
(g) How old is he now?
Answers:
(a) “I” in the first line of the poem is the poet “Walt Whitman” himself.
(b) The speaker, who is the poet himself expresses that he celebrates as well as sings himself.
(c) He hopes from other persons that whatever he adopts or take for guranted, they should also undertake the same.
(d) He expects so because according to him that every atom which he possesses, it present with them also.
(e) He wanders free from cares and anxieties. He also invites his soul.
(f) He observes that his parents and parents of others have got similarities and fundamentally there is no difference between them.
(g) He is now thirty-seven years old.

2. Read the above extract poem and answers the questions that follow: [B.M. 2009 A]
Hoping to cease not till death,
Creeds and schools in abeyance,
Retiring back a while sufficed at what they are, but never forgotten,
I harbour for good or bad, I permit to speak at every hazard,
Nature without check with original energy.

Questions.
(a) What does he hope for himself?
(b) What are the things he wants to forget?
(c) What are those things which are sufficient but unforgettable?
(d) To whom the speaker relies upon?
(e) What does the speaker mean in his expression? “Nature without check with original energy.”
Answer:
(a) He is hopeful of not to cease till death. He thinks to move ahead as long as he is alive.
(b) He wants to forget the religious beliefs and systems of thought for a temporary period.
(c) Religious beliefs and system of thought are sufficiently enough and they cannot be forgotten.
(d) The speaker believes in both good and bad aspects.
(e) The speaker wants to say that harbour and hazard is meant by Nature without check with original energy.

The main aim is to share the knowledge and help the students of Class 12 to secure the best score in their final exams. Use the concepts of Bihar Board Class 12 Poem 2 Song of Myself English Solutions in Real time to enhance your skills. If you have any doubts you can post your comments in the comment section, We will clarify your doubts as soon as possible without any delay.

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 12 तिरिछ

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 12 तिरिछ

 

तिरिछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

तिरिछ कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म हुआ था।
(क) 1 जनवरी, 1952 ई.
(ख) 5 जनवरी, 1950 ई.
(ग) 2 मार्च, 1940 ई.
(घ) 5 जनवरी, 1955 ई.
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी का सारांश लिखिए Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम उदय प्रकाश की कैसी कृतियाँ हैं?
(क) कविता-संग्रह
(ख) नाटक-संग्रह
(ग) एकांकी-संग्रह
(घ) निबंध-संग्रह
उत्तर-
(क)

Tirich Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
“तिरछी’ लेख का संबंध किनसे है?
(क) लेखक के पिताजी से
(ख) लेखक के मित्र से
(ग) लेखक के बेटे से
(घ) लेखक की पत्नी से
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी का उद्देश्य Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
उदय प्रकाश जी किस पत्रिका का सहायक संपादक थे?
(क) संडेमेल (नई दिल्ली)
(ख) इंडिया टूड़े
(ग) फिल्म-स्टार
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी की समीक्षा Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में उदय प्रकाश ने क्या किया?
(क) अध्ययन
(ख) अध्यापन
(ग) लिपिकीय कार्य
(घ) शोध-कार्य
उत्तर-
(ख)

तिरछी कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 6.
दरियाई घोड़ा, तिरिछ, पीली छतरी वाली लड़की किनकी कृतियाँ हैं?
(क) मोहन राकेश
(ख) रांगेय राघव
(ग) उदय प्रकाश
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Tirichh Class 12 Bihar Board प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म ………… अनूपपुर म. प्र. में हुआ था।
उत्तर-
सीतापुर

तिरिछ’ कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
उदय प्रकाश के पिताजी …….. थे।
उत्तर-
प्रेमकुमार सिंह

Tirich Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
उदय प्रकाश की माताजी …… थीं।
उत्तर-
गंगादेवी

प्रश्न 4.
उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवरी ………. को हुआ था।
उत्तर-
1952 ई.

प्रश्न 5.
‘तिरछी’ के लेखक ………… हैं।
उत्तर-
उदय प्रकाश

प्रश्न 6.
‘तिरछी’ एकबार मैंने ………… था।
उत्तर-
देखा

तिरिछ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तिरिछ’ क्या है?
उत्तर-
छिपकली प्रजाति का विषैला जीव।

प्रश्न 2.
‘तिरिछ’ के लेखक कौन हैं :
उत्तर-
उदय प्रकाश।

प्रश्न 3.
“तिरिछ’ किसका पर्याय बनकर उभरा है?
उत्तर-
आतंक का।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ कहानी किस शैली में लिखी गई है?
उत्तर-
आत्मकथात्मक शैली।।

प्रश्न 5.
उदय प्रकाश ने किस पत्रिका के संपादन विभाग में काम किया?
उत्तर-
दिनमान।

प्रश्न 6.
‘अमेद्य’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर-
जिसे भेदा न जा सके।

तिरिछ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के पिता के चरित्र का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश के पिता अन्तर्मुखी और ग्रामीण संवेदना के व्यक्ति हैं। उनकी मितभाषिता व गंभीरता उन्हें एक रहस्य-पुरुष की छवि प्रदान करती है। उनकी संतान कम से कम उन्हें इसी रूप में देखती है। पिता शहर से आतंकित हैं। भरसक वे शहर जाने से कतराते हैं। अपनी सहजता, गंभीरता और गँवईपन के बावजूद बच्चों के लिए वे अभ्यारण्य हैं। आधुनिकता के उपकरण सहज जीवन बोध पर किस तरह हावी हो गये हैं इसका पता ‘तिरिछ’ कहानी में मिलता है। लेखक के पिता अपने स्वभाव के अनुरूप स्वयं ही लाचार और दयनीय बन जाते हैं।

आज की जटिल जीवन की स्थितियों में सहजता कितनी खतरनाक हो सकती है लेखक के पिता इससे अनभिज्ञ हैं। अस्तित्व की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। लेखक के पिता की सहजता उन्हें किसी तरह के प्रतिरोध करने से रोकती है। उन्हें जब धतूरे का काढ़ा दिया जाता है तो वे उसे सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद यह जानते हुए भी कि धतूरा घातक नशीला पदार्थ होता है। लेखक के पिता एक प्रतीकात्मक भूमिका अदा करते हैं।

वे कहानीकार के हाथ में एक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जिसके माध्यम से वह न्याय व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था में व्यक्त अमानवीयता को उद्घाटित करता है। लेखक के पिता नयी परस्थितियों और जीवन-मूल्यों से परिचित नहीं लगते हैं। अतः वे इससे आक्रांत होते हैं। वे मितभाषी व गंभीर तो हैं पर दृढ़ नहीं हैं। उनके स्वभाव में आक्रामकता नहीं है। शहर में उनके साथ जो कुछ भी अमानवीय व्यवहार होता है इससे उनकी दयनीयता ही प्रकट होती है।

प्रश्न 2.
तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है?
उत्तर-
तिरिछ एक बेहद जहरीला जीव है जिसके काटने से व्यक्ति का बचना नामुमकिन हो जाता है। यह जैसे ही आदमी को काटता है, वैसे ही वहाँ से भागकर किसी जगह पेशाब करता है और उस पेशाब में लेट जाता है। अगर तिरिछ ऐसा कर दे तो आदमी बच नहीं सकता। वहीं तिरिछ काटने के लिए तभी दौड़ता है जब उससे नजर टकरा जाए। कहानी में तिरिछ मृत्यु का प्रतीक है। जिस भीषण यथार्थ के शिकार बाबूजी बनते हैं, बेटे के सपने में तिरिछ बनकर प्रकट होता है।

प्रश्न 3.
अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा ले, तिरिछ पीछे-पीछे आता है। क्या यहाँ तिरिछ केवल जानवर भर है? यदि नहीं, तो उससे आँख क्यों नहीं मिलानी चाहिए?
उत्तर-
इस पाठ में वर्णित “तिरिछ” संभवतः एक विषैला जन्तु नहीं, अपितु मानव की हिंसात्मक पाशविक प्रवृत्तियाँ प्रतीत होती हैं। यद्यपि तिरिछ एक खतरनाक विषैला जानवर होता है जिसके काटने से मनुष्य की प्रायः मृत्यु हो जाती है। किन्तु मानव की हिंसक तथा दानवी गतिविधियाँ उससे अधिक, अत्यन्त घातक तथा मर्मान्तक (असह्य) पीड़ादायी होती हैं। उससे मनुष्य घुल-घुलकर मौत के मुँह में चला जाता है। कथाकार ने तिरिछ से आँख नहीं मिलाने का परामर्श दिया है, क्योंकि तिरिछ की प्रकृति है, परस्पर आँखें मिल जाने पर वह अपने शिकार पर आक्रमण कर देता है तथा अपने विषैले दाँत उसके शरीर में गड़ा देता है।

यहाँ पर कहानीकार दुर्जन एवं तिरिछ के समान खतरनाक व्यक्तियों से आँखें नहीं मिलाने के लिए कहता है। इसका निहितार्थ यह है कि हमें ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए तथा उनसे किसी प्रकार का पंगा भी नहीं लेना चाहिए। उनसे दूर ही रहना चाहिए। अवांछनीय व्यक्तियों से ना तो मित्रता अच्छी होती है और ना ही शत्रुता। उनसे आँखें मिलाना श्रेयस्कर नहीं।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ लेखक के सपने में आया था और वह इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक अपने आपको रोक नहीं पाता था। यहाँ परिचित आँखों से क्या आशय है?
उत्तर-
“तिरिछ लेखक के सपने में आता था”-सपना मनुष्य नींद में देखता है, जाग्रतावस्था में सपने नहीं आते, कल्पनाएँ आती हैं, भाव आते हैं। कुछ सपने हमारे जीवन में घटित घटनाओं पर आधारित होते हैं तो कुछ कल्पना की उड़ान अथवा आधारहीन होते हैं। लेखक द्वारा कही गई इस उक्ति में संभवतः वैसे मानवीय चेहरों का वर्णन है जो तिरिछ की तरह ही क्रूर है। वह उसे परिचित-सा प्रतीत होता है अर्थात् वह इस प्रकार देखता है मानों वह उसकी परिचित तथा घनिष्ठ संपर्क वाला व्यक्ति है। अतः लेखक का स्वयं को नहीं रोक पाना स्वाभाविक है। लेखक को उसकी वास्तविकता का ज्ञान नहीं है, उसकी हिंसक प्रवृत्ति की जानकारी नहीं है।

परिचित आँखों का अर्थ है कि वह व्यक्ति मानो परिचित हो। यह मानवीय दुर्बलता है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार आत्मीयता से देखता हो जैसे वह हमारे निकट संपर्क वाला व्यक्ति है तो स्वभावतः हम उस ओर आकर्षित हो जाते हैं। अतः, जब तिरिछ को स्वप्न में परिचित आँखों से देखता था तो लेखक उसमें अपनत्व पाता था तथा उस ओर आकृष्ट हो जाता था।

प्रश्न 5.
व्याख्या करें :
(क) वैसे, धीरे-धीरे मैंने अनुभवों से यह जान लिया था कि आवाज ही ऐसे मौके पर मेरा सबसे बड़ा अस्त्र है।
(ख) जैसे जब मेरी फीस की बात आई थी, उस समय हमारे पास आखिरी गिलास भी गुम हो गया था और सब लोग लोटे में पानी पीते थे।
(ग) आश्चर्य था कि इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह से जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मैंने उसे मारने की कोई कोशिश नहीं की थी।
(घ) मुझे यह सोचकर एक अजीब-सी राहत मिलती है और मेरी फंसती हुई साँसें फिर से ठीक हो जाती हैं कि इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की है।

कहानी में तिरिछ आतंक का पर्याय बनकर आया है। उसी के कारण लेखक के डरावने सपने आते हैं। यह आतंक शहरी आधुनिकता एवं जीवन दृष्टि का और सत्ता की निरंकुशता का। एक तरफ आतंक और यंत्रणा से उपजी बेचैनी है, तनाव और असहायता का भाव निहित है तो दूसरी ओर शहरी या कहें आधुनिक मनुष्य की संवेदनहीनता और अमानवीयता छिपी हुई है। यहीं मूल्यों का संक्रमण सर्वाधिक दृष्टिगोचर होता है। परंपरा ओर आधुनिकता अथवा पुराने और नए द्वन्द्व से जहाँ नवीन भावबोध का सृजन हुआ वहीं कुछ विकृतियों ने भी जन्म लिया।

संवेदना का क्षरण हुआ। इस क्षरण ने अजनबीपन, अकेलापन, घुटन और संत्रास जैसे भावबोध दिए। दूसरे भावबोध के कारण लेखक हमेशा डरा हुआ महसूस करता। उसे डरावने सपने आते। जब सपने में मृत्यु के करीब होता तो वह जोर-जोर से बोलने लगता और दूसरी आवाज के सहारे सपने से बाहर निकलता। इस पूरी दुनिया में उसकी आवाज ही अपनी थी जो उसे मृत्यु के मुँह में जाने स बचा लेती है।

(ख) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की हे।

उपर्युक्त सन्दर्भ में लेखक के घर की और अपनी जीवन की बहुत-सी समस्याओं का अंत पिताजी ही करते थे। यह उद्धरण लेखक की आर्थिक समस्याओं को उठाता है। जैसा कि हमारे समाज में होता है कि घर की सारी समस्याओं का निपटारा घर के मुखिया पिताजी द्वारा ही होता हो गर्व की बात है। परला तरह पिता ने अपने दायित्व फीस मिलना पुत्र कलर की बदहाली है।

आर्थिक कमी को ही व्यजित करती है। साथ ही गिलास के गुम होने पर लोटे में पानी पीना आर्थिक तंगी का ही बयान करता है। एक रिटायर्ड हेडमास्टर की चुप्पी उसके घर की बदहाली का ही संकेत देती है परन्तु पुनः दो-तीन दिन के बाद फीस मिलना पुत्र के लिए गर्व की बात बन जाती है। आखिर किसी तरह पिता ने अपने दायित्व का निर्वाह किया। यह दायित्व का निर्वहन ही गर्व की बात है। परन्तु लेखक द्वारा कहा गया कथन मध्यवर्गीय ग्रामीण जीवन की आर्थिक बदहाली की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।

(ग) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं।

लेखक को सपने में तिरिछ आते रहने के कारण कहीं न कहीं उनमें भय घर कर गया था। इसी कारण इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मारने की कोई कोशिश नहीं की। यह ‘आश्चर्य’ डर का प्रतिरूप था। हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जो हमारे मन में घर कर जाती हैं जिसके कारण हम हमेशा डरे से रहते हैं। यही डर हमें उससे अलगाती है। यही वजह थी कि सबकुछ जानने के बाद भी उसने मारने की कोशिश नहीं की। जब वही सपने उसे आने बंद हो गये तो उसने जाकर ‘तिरिछ’ को जलाया और अपने को विजित महसूस करने लगा।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में लेखक अपने पिताजी के विषय में वर्णन कर रहा है। उसके पिताजी शहर में जाकर विभिन्न स्थानों पर वहाँ के लोगों (निवासियों) की हिंसक कारवाईयों के शिकार हो जाते हैं। उनको काफी चोटें आती हैं और वे मरनासन्न हो जाते हैं। उन स्थितियों में भी लेखक एक अजीब-सी राहत महसूस करता है तथा उसकी फंसती हुई सांसें सामान्य हो जाती हैं। वह ऐसा अनुभव करता है कि उसके पिताजी को अब कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।

वह ऐसा इसलिए सोचता है कि अब उनके पिताजी को ऐसा विश्वास होने लगा होगा कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ वह एक सपना था। उनकी नींद खुलते ही सब ठीक हो जाएगा। पुनः वह यह भी आशा व्यक्त करता है कि उसके पिताजी फर्श पर सोते हुए उसे और उसकी छोटी बहन को भी देख सकेंगे। लेखक की इस उक्ति में अजीब विरोधाभास है। लेखक के पिता बुरी तरह घायल हो गए हैं। उनकी स्थिति चिन्ताजनक हो गई है। फिर भी वह आशा करता है कि वे स्वस्थ हो जाएँगें, उन्हें कोई दर्द महसूस नहीं होगा और वे लेखक तथा उसकी छोटी बहन को फर्श पर लेटे हुए देखेंगे।

यहाँ भी लेखक के प्रतीकात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया है। संभवतः हिंसात्मक, भीड़ द्वारा उनके पिताजी की बेरहमी से पिटाई तथा उनका सख्त घायल होना, उनकी विपन्नता, प्रताड़ना तथा त्रासदपूर्ण स्थिति को इंगित करता है। प्रतीकात्मक भाषा द्वारा लेखक ने अपने विचारों को प्रकट किया है ऐसा अनुभव होता है। लेखक का इस क्रम में आगे चलकर यह कहना कि “और जैसे ही वे जागेंगे सब ठीक हो जाएगा या नीचे फर्श पर सोते हुए मैं और छोटी बहन दिख जाएंगे” लेखक के पिताजी एवं परिवार की सोचनीय आर्थिक दशा का सजीव वर्णन मालूम पड़ता है।।

प्रश्न 6.
तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता है, क्यों?
उत्तर-
लेखक को पूरा जंगल परिचित इसलिए लगता है कि इसी जगह से कई बार सपने में तिरिछ से बचने के लिए भागा था। लेखक गौर से हर तरफ देखता है कि और उसने सपने के बाद थानू को बताया भी था कि एक सँकरा-सा नाला इस जगह बहता है। नाले के ऊपर .. जहाँ बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं वहीं कीकर का एक बहुत पुराना पेड़ है, जिस पर बड़े मधुमक्खी के छत्ते हैं। लेखक को एक भूरा रंग का चट्टान मिलता है जो बरसात भर नाले के पानी में आधी डूबी रहती थी। लेखक को उसी जगह तिरिछ की लाश भी मिल जाती है। सपने में आयी बातों का सच होना लेखक को जंगल से परिचित कराता है। इसीलिए लेखक को जंगल परिचित लगता है। क्योंकि इन सब चीजों को वह सपने में देख चुका था।

प्रश्न 7.
‘इस घटना का संबंध पिताजी से है। मेरे सपने से है और शहर से भी है। शहर के प्रति जो एक जन्मजात भय होता है, उससे भी है।’ यह भय क्यों है?
उत्तर-
‘तिरिछ’ कहानी के लेखक के पिता को शहर इतना आतंकित करता है कि वे शहर जाने से बार-बार कतराते हैं, नहीं जाने के बहाने ढूँढ़ते हैं। शहर की संवेदनशीलता उसके भय का कारण है। कहानी में वर्णित शहर में जब पिता डरते-डरते शहर जाते हैं तो उनके साथ हुए अमानवीय व्यवहार से लगता है कि शहर की संवेदना मर गई है। शहर का प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ से ओत-प्रोत है। नयी पीढ़ी अराजक एवं हिंसक हो गयी है। शहर की आत्मीयता सिमट गयी है इसलिए पिता की सहायता के लिए आगे कोई नहीं बढ़ता बल्कि उसकी स्थितियों से मुँह चुरा लेता है। आधुनिकता की यह विडम्बना शहर के भयावह रूप को रेखांकित करती है।

इस प्रकार एक ठेठ ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में किस तरह से खुद को अजनबी असहाय और अकेला. महसूस करता है उपर्युक्त दृष्टांत इसका परिचय देते हैं।

प्रश्न 8.
कहानी में वर्णित ‘शहर’ के चरित्र से आप कितना सहमत हैं?
उत्तर-
कहानी में शहर का अत्यन्त सजीव तथा रोमांचकारी वर्णन किया गया है। शहरी जीवन की विसंगतियों तथा विकृतियों का भी इसमें सफल निरूपण है। शहर में आधुनिकता से उपजा द्वन्द्व भीषण और यथार्थ है।

लेखक के पिताजी सुदूर गाँव में रहते थे तथा ग्रामीण परिवेश में ही उनकी शैली है। शहर की आधुनिकता से वे कटे-से हैं, अनभिज्ञ-से हैं। यदा-कदा किसी कार्यवश वे शहर जाते हैं एवं कार्य सम्पादित होने के बाद लौट आते हैं। शहर की संस्कृति उन्हें रास नहीं आती है।

एक बार वे कचहरी के काम से शहर आते हैं। उनके साथ कठिनाई यह थी कि शहर। की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसी क्रम में वे भटकते हुए कई स्थानों में चले जाते हैं। उस क्रम में उनके प्रति लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। उनकी गवई वेष-भूषा और चाल-ढाल से शहर के उन इलाकों के लोग उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं जिनकी परिणति एक त्रासदी में होता है। उनके ऊपर अनेक प्रकार के जुल्म ढाए जाते हैं। उन्हें अपमान, तिरस्कार तथा प्रताड़ना का चूंट पीना पड़ता है।

वे सबसे पहले स्टेट बैंक की एक शाखा में जाते हैं। वहाँ के कर्मचारी उन्हें शराबी, पागल और बाद में डकैत (अपराधी) समझ बैठते हैं, तथा उनकी जमकर पिटाई करते हैं। उनके कागजात एवं रुपए-पैसे छीन लेते हैं। किसी तरह वहाँ से निकलकर वे पुलिस थाना पहुँचे। कमीज नदारत थी, पैंट फटी थी। दारोगा ने उन्हें पागल समझकर सिपाही. द्वारा घसीटवाकर थाने से बाहर करवाया।

वहाँ से वे इतवारी कॉलोनी आए, धोती भी उस समय तक उतर चुकी होती है केवल चड्डी शेष बची थी। इसके बाद इतवारी कॉलोनी तथा नेशरनल रेस्टोरेन्ट में भी उन्हें पागल या चोर-उचक्का समझा गया तथा वहाँ पत्थर मारकर मरनासन्न कर दिया गया। अन्त में सिविल लाइन्स में मोचियों की गुमटी के पास पहुंचे तथा एक मोची की गुमटी में घुस गए। वह उनके गाँव के पासवाले टोले का था। उसने उन्हें पहचान लिया। कुछ ही क्षणों में उनकी मृत्यु हो जाती है।

इस प्रकार स्टेट बैंक, पुलिस थाना, एतवारी कॉलोनी तथा नेशनल रेस्टोरेन्ट इन सभी स्थानों में जब लेखक के पिताजी जाते हैं, तो उन्हें डकैत, अपराधी, शराबी, पागल आदि समझकर उनपर निर्मम प्रहार किया गया। कपड़े फाड़ दिए गए, अथवा उतरवा लिए गए। बेरहमी से पिटाई की परिणति उनकी.दुःखद मृत्यु में हुई। अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में वे मोचियों की कॉलोनी में पहुँचते हैं। केवल वहीं कुछ सहानुभूति की झलक मिलती है।

इस प्रकार शहरी तथा ग्रामीण जीवन के बीच उपजी खाई का इसमें चित्रण है। शहर की आधुनिक संस्कृति से उपजी विकृति तथा द्वन्द्व का ज्वलन्त उदाहरण है लेखक के पिताजी की करुण-गाथा। लेखक से तिरिछ जैसे विषैले जन्तु को प्रतीक स्वरूप कहानी में प्रतिस्थापित किया है। कहानी में वर्णित शहर का चरित्र पूर्णतया उचित एवं निर्विवाद रूप से सत्य है।

प्रश्न 9.
लेखक के पिता के साथ एक दिक्कत यह भी थी कि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ तो उन्हें याद रहती थीं, शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? आप क्या सोचते हैं? लिखें।
उत्तर-
लेखक के पिताजी का सम्पूर्ण जीवन गाँव में बीता। वह ग्रामीण जीवन शैली के अभ्यस्त थे। शहर केवल आवश्यक कार्य पड़ने पर ही आते थे तथा कार्य सम्पादित कर फौरन वापिस चले जाते थे। यह स्वाभाविक है कि जिससे हमारा लगाव रहता है, उस स्थान से हम पूर्ण परिचित हो जाते हैं तथा पूर्णतया जुड़ जाते हैं।

लेखक के पिताजी गाँव में रहते थे। स्वभावतः वे प्रकृति-प्रेमी थे। पहाड़, वन, नदी, झरना आदि प्रकृति की अमूल्य धरोहर के प्रति उनका स्वाभाविक आकर्षण था। प्रतिदिन वे पहाड़ एवं जंगल की ओर टहलने निकल जाते थे। शहर से उनका संबंध सीमित था। यदा-कदा आवश्यक कार्यवश जाते थे तथा कार्य करके फौरन वापस लौट आते थे। शहरी जीवन से भी उनका लगाव नहीं था। अतः उन्हें शहर की सड़कों की जानकारी नहीं थी तथा वे सड़कों को प्रायः भूल जाते थे।

यहाँ निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य को जो वस्तु प्रिय होती है उसकी उसे विस्तृत जानकारी रहती है। उसी प्रकार जिसके प्रति उसे कोई अभिरूचि नहीं होती उसके प्रति उत्सुकता भी नहीं होती तथा वहाँ पर वह भटक जाता है।

प्रश्न 10.
स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री, नेपाली चौकीदार थापा, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता, थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह के चरित्र का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर-
कैशियर अग्निहोत्री-कैशियर अग्निहोत्री, शहर के देशबन्धु मार्ग पर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कैशियर है। वे डरपोक चरित्र के व्यक्ति इसलिए हो गये थे कि आए दिन बैंकों में लूट-डकैती होती रहती थी। इसलिए उन्हें हर व्यक्ति लुटेरा के रूप में नजर आता था। इस बात का पता इस तरह से हो सकता है कि जिस समय लेखक के पिता कैशियर अग्निहोत्री के पास पहुँचते हैं कैशियर डर कर घंटी बजा देता है। यह कथन वर्तमान समाज में पुलिस तंत्र की कलई भी खोलता है। हर व्यक्ति अपने को असुरक्षित महसूस करता है।

नेपाली चौकीदार थापा-लेखक के पिता को चौकीदार थापा द्वारा दबोचे जाने से यही लगता है कि वह छोटा चौकीदार अपने काम के प्रति बहुत सजग है, परन्तु पिता को बिना सोचे-समझे पीटना उसकी मानसिक कमजोरी का द्योतक है। अपने काम के प्रति सजग रहने का मतलब यह नहीं है कि बिना सोचे-समझे अधिकारियों के कहने पर किसी दूसरे को जान तक ले ले। यह चौकीदार के लुच्चेपन का प्रतीक है।

असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता : मेहता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर पद पर थे। मैनेजर मेहता थोड़ी सूझ-बूझ वाले व्यक्ति नजर आते हैं, क्योंकि जब पिता को मारा-पीटा जा रहा था तब मेहता ने दरियादिली दिखाते हुए तलाशी लेकर बाहर निकाल देने को कहा।

थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह : राघवेन्द्र प्रताप सिंह शहर के थाने में एस. एच. ओ. थे। उनमें भोजन पसंदी से तो यही लगता है कि वह कडुवे चीज को नापसंद करते थे। परन्तु उनकी पत्नी द्वारा 13 साल में रहने के बावजूद पत्नी को राघवेन्द्र प्रताप सिंह के भोजन का स्वाद पता नहीं चला था। इसका अर्थ है राघवेन्द्र प्रताप विभिन्न स्वादों के आकांक्षी व्यक्ति हैं। इससे दूसरा अर्थ यह भी ध्वनित होता है कि वे अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ नहीं निभाते हैं। करेले की वजह से उनका मूड ऑफ हो जाता है। यह गैरजिम्दाराना व्यक्तित्व है।

प्रश्न 11.
लेखक के पिता अपना परिचय हमेशा, “राम स्वारथ प्रसाद ……… एक्स स्कूल हेडमास्टर ……….. एंड विलेज हेड ऑफ बकेली के रूप में देते थे, ऐसा क्यों? स्कूलऔर गाँव के बिना वे अपना परिचय क्यों नहीं देते?
उत्तर-
एक ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में अपने को असुरक्षित पाता है। शहर का अजनबीपन, कुंठा, संत्रास, आधुनिकता की बौखलाहट, नयी पीढ़ी की जल्दीबाजी, शहर की संवेदनहीनता, संकुचित दृष्टि, व्यक्तिवादिता जैसे प्रवृत्तियाँ। कमोवेश व्यक्ति को अपने अस्तित्व और पहचान के लिए पद और व्यक्ति जहाँ से गुजरता है उसका परिचय देना पड़ता है। नयी पीढ़ी इतनी संवेदनहीन हो गयी है कि जल्दीबाजी के कारण पिता की कोई बात पूरी नहीं सुनता और उसके परिणाम का निर्णय ले लेती है।

अतः पिता को अपनी अस्तित्व और पहचान के लिए गाँव का परिचय देना पड़ता है। उनकी संवेदनहीनता को समझकर ही गाँव का परिचय जोर-जोर से आवाज में देते हैं। कोई उनके दुख को सुनने-समझने के प्रयास नहीं करता। यहाँ शिक्षित मध्यवर्ग एवं बौद्धिक वर्ग की स्वार्थपरता एवं उपभोक्तावादी मूल्यों के बढ़ते प्रभाव व्यक्ति की पहचान का संकेत देते हैं।

प्रश्न 12.
हालाँकि थान कहता है कि अब तो यह तय हो गया कि तिरिछ के जहर से कोई नहीं बच सकता। ठीक चौबीस घंटे बाद उसने अपना करिश्मा दिखाया और पिताजी की मृत्यु हुई। इस अवतरण का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक के दोस्त थानू को पिता की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण प्रचलित विश्वास कि तिरिछ के जहर से कोई बच नहीं सकता, पुष्ट करता है। और ये जड़ीभूत मान्यताएँ पुष्ट होकर परंपरा बनती हैं। ये हमारा तब तक पीछा नहीं छोड़ती जब तक कि उससे न बचा जाए।.वे हमें समय से बहुत पीछे खींच ले जाती है। यह एक तरह से समय का समय से टकराव है। एक ही समय में दो भिन्न प्रकार के सत्य अपने अस्तित्व का आभास देते हैं। इस प्रकार ऐसी मान्यताओं से पुराने विश्वास को बल मिलता है और वे जड़ीभूत हो जाती है।

पिता को तिरिछ काटने के बाद धतूरा का काढ़ा पिलाना क्या है? पिता इस विश्वास का खंडन भी नहीं कर पाता और शहर जाने से पहले ही त्रासदी का शिकार हो जाता है। उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ हो जाता है और उन्हें पागल घोषित कर शहरी युवकों, लोगों द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाता है। यदि इन प्रचलित विश्वासों को न माना जाता तो शायद पिता बच सकते थे।

ठीक चौबीस घंटे बाद पिता की मृत्यु शहर की अमानवीयता और क्रूरता को प्रकट करती है। समय और समाज का अतिक्रमण व्यक्ति को मृत्यु के निकट पहुँचा देता है।

प्रश्न 13.
लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता, क्यों?
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश को अब तिरिछ का सपना नहीं आने का कारण लेखक को सपना सत्य प्रतीत होना था। परन्तु अब लेखक विश्वास करता है कि यह सब सपना है। अभी आँख खोलते ही सब ठीक हो जायेगा।

इससे पहले लेखक को सपने की बात प्रचलित विश्वास सपने सच हुआ करते सत्य प्रतीत होती थी। लेखक फैंटेसी में जीता था परन्तु अनुभव से यह जान गया कि सपना बस सपना भर हैं।

लेखक ने जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए दुःस्वप्न का प्रयोग किया है। परन्तु जैसे ही लेखक का भ्रम टूटता है तो उसे डर नहीं लगता और तिरिछ के सपने नहीं
आते।

तिरिछ भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में कौन-सा समास है
जन्मजात, भारी-भरकम, संवाददाता, बीचो-बीच, नीलकंठ, चौराहा, टेढ़ा-मेढ़ा, इधर-उधर, चुंगीनाका।
उत्तर-

  • जन्मजात – जन्म से जुड़ा हुआ-तत्पुरुष
  • भारी-भरकम – भारी और भरकम-द्वन्द्व
  • संवाददाता – संवाद का दाता-तत्पुरुष
  • बीचोबीच बीच और बीच-द्वन्द्व
  • नीलकण्ठ – कंठ है नीला जिसका-बहुब्रीहि
  • चौराहा – चार राहों का समाहार-द्विगु
  • टेढ़ा-मेढ़ा – टेढ़ा और मेढ़ा-द्वन्द्व
  • इधर-उधर – इधर या उधर-वैकल्पिक द्वन्द्व
  • चुंगीनाका – चुंगी के लिए नाका-तत्पुरुष

प्रश्न 2.
कहानी से व्यक्तिवाचक संज्ञा को चुनें।
उत्तर-
व्यक्तिवाचक संज्ञा-थापा, थपियाल साहब, एस. एच. ओ राघवेन्द्र प्रताप सिंह, अग्निहोत्री, मैनेजर मेहता।

प्रश्न 3.
कहानी के शिल्प पर अपने शिक्षक से चर्चा करें और एक संक्षिप्त टिप्पणी लिख।
उत्तर-
कहानी जिस. विशेषता के बल पर टिकी होती है उसे कहानी का शिल्प कहते हैं। इसके अन्तर्गत भाषा, शैली और संवाद आते हैं।

भाषा-कहानीकार की रचना की सारी विशेषताएँ भाषा के माध्यम से ही हमारे सामने आती है। इसलिए कहानी की संरचना का प्राण भाषा को कहा जाता है। शब्दों के द्वारा ही कथा में रोचकता, पात्रों में सजीवता और परिवेश में स्वाभाविकता आती है। रचनात्मक का भाषा पर जितना अधिक अधिकार होगा, उसकी रचना उतनी ही उत्कृष्ट होगी।

शैली-कहानी चाहे घटनाप्रधान हो या चरित्र प्रधान, उसकी विषयवस्तु ऐतिहासिक हो या समकालीन, चाहे वह जिस दृष्टि या उद्देश्य से लिखी गयी हो, प्रत्येक कहानीकार का लिखने का अपना अंदाज होता और कहानीकार इसी कारण विशिष्ट होता है। कहानी लिखने की कई शैलियाँ प्रचलित हैं। घटनाप्रधान कहानियाँ प्रायः वर्णात्मक शैली में लिखी जाती हैं जिसमें लेखक घटनाओं का वर्णन करता है। चरित्रप्रधान कहानियों में लेखक मनोविश्लेषणात्मक का प्रयोग करता है और पात्रों के अंतर्द्वन्द्व को प्रस्तुत करता है। कथानक आवश्यकतानुसार आत्मकथात्मक शैली का पूर्वदीप्ति शैली, फंतासी शैली, भी प्रयोग करता है।

संवाद-कहानी के विभिन्न पात्र आपस में बातचीत करते हैं, उन्हें ही हम संवाद कहते हैं। संवादों से कहानी आगे बढ़ती है। विभिन्न पात्रों के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। संवाद के द्वारा कथनी में नाटकीयता लायी जा सकती है और लम्बे चौड़े वर्णन से बचा जा सकता है। ‘तिरिछ’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है। इसमें जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया गया है जो एक पद्धति भी है और शिल्प का नया प्रयोग भी। मिथकों, विश्वासों, धारणाओं और मान्यताओं का सहारा लेकर एक रचनाकार यथार्थ को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है। आज के जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
नीचे लिखे वाक्यों से संज्ञा एवं सर्वनाम चुनें
(क) लेकिन बहुत जल्द हमें वह नाला मिल गया।
(ख) तिरिछ उसमें जल रहा था।
(ग) मेरा अनुमान है कि उस समय पिताजी को बहुत प्यास लगी होगी।
(घ) उसने घंटी भी बजा दी।
उत्तर-
संज्ञा-नाला, तिरिछ, घंटी, पिताजी।
सर्वनाम-प्यास, वह, हमें, उसने, मेरा।

तिरिछ लेखक परिचय उदय प्रकाश (1952)

जीवन-परिचय-
समसामयिक हिन्दी लेखन में अग्रणी एवं महत्वपूर्ण लेखक उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवारी, 1952 के दिन अनूपपुर, मध्यप्रदेश में स्थित सीतापुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम गंगा देवी और पिता का नाम प्रेम कुमार सिंह था। इन्होंने बी.एस-सी. करने के उपरांत सागर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से हिन्दी में एम.ए. किया। इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा विभाग में कुछ समय तक अध्यापन भी किया। इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग में विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे।

इन्होंने ‘दिनमान’ के संपादन विभाग में भी कार्य किया। नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘संडेमेल’ में सहायक संपादक भी रहे। वहीं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के टेलीविजन विभाग में विचार और पटकथा प्रमुख भी रहे। साथ ही इन्होंने टाइम्स रिसर्च फाउंडेशन में पत्रकारिता का अध्यापन भी किया। उदय प्रकाश जी निरंतर स्वतंत्र लेखन, फिल्म निर्माण और अखबारों तथा फिल्मों के लिए लेखन में रत हैं। पिछले दो दशकों में समसामयिक हिन्दी लेखन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे निरंतर लेखन कार्य में रत हैं।

रचनाएँ-उदय प्रकाश जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानी-दरियाई घोड़ा, तिरिछ और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा-परेबा, मोहनदास, मेंगोसिल आदि।
कविता संग्रह-सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम आदि। निबंध-आलोचना-ईश्वर की आँख।
अनुवाद-कला-अनुभव, इन्दिरा गाँधी की आखिरी लड़ाई, लाल घास पर नीले घोड़े, रोम्याँ का भारत।
फिल्म-टी.वी.-इन्होंने अनेक धारावाहिकों तथा फिल्मों के स्क्रिप्ट लिखे हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ-उदय प्रकाश जी ने अपने विषय-चयन, सीधी-सादी भाषा, ताजगी भरे मुहावरों और अनौपचारिक संवेदना के कारण पाठकों को आकृष्ट किया। कविता, कहानी, निबन्ध, लेख-टिप्पणियाँ, आलोचना और टेलीविजन फिल्म आदि के लिए लेखन के तमाम क्षेत्रों में इन्होंने नवीन प्रयोग किए। पिछले बीस वर्षों की श्रेष्ठ हिन्दी कहानियों में आधी से ज्यादा इन्हीं की होंगी। इनका साहित्य तथ्य और कथ्य का विपुल विस्तार लिए है।

तिरिछ पाठ के सारांश

‘तिरिछ’ कहानी का कथानक लेखक के पिताजी से सम्बन्धित है। इसका संबंध लेखक के सपने से भी है। इसके अतिरिक्त, कहानी में शहर के प्रति जो जन्मजात भय होता है उसकी विवेचना भी इस कहानी में की गई है। गाँव एवं शहर की जीवन-शैली का इसमें तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त सफलतापूर्वक किया गया है। गाँव की सादगी तथा शहर का कृत्रिम आचरण इसमें प्रतिबिम्बित होता है।

लेखक के पिताजी जो पचपन साल के वयोवृद्ध व्यक्ति हैं, उनकी विशिष्ट जीवन शैली है। वह मितभाषी हैं। उनका कम बोलना, हमेशा मुँह में तम्बाकू का भरा रहना भी है। बच्चे उनका आदर करते थे तथा उनकी कम बोलने की आदत के कारण सहमे भी रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी।

एक दिन शाम को जब वे टहलने निकले तो एक विषैले जन्तु तिरिछ ने उन्हें काट लिया। उसका विष साँप की तरह जहरीला तथा प्राणघातक होता है। रात में झाड़-फूंक तथा इलाज चला दूसरे दिन सुबह उन्हें शहर की कचहरी में मुकदमे की तारीख के क्रम में जाना था। घर से वे गाँव के ही ट्रैक्टर पर सवार होकर शहर को रवाना हुए। तिरिछ द्वारा काटे जाने की घटना का वर्णन ट्रैक्टर पर सवार अन्य लोगों से करते हैं। ट्रैक्टर पर सवार उनके सहयात्री पं. रामऔतार ज्योतिषी के अलावा वैद्य भी थे। उन्होंने रास्ते में ट्रैक्टर रोककर उनका उपचार किया। धतूरे की बीज को पीसकर उबालकर काढ़ा बनाकर उन्हें पिलाया गया। ट्रैक्टर आगे बढ़ा तथा शहर पहुँचकर लेखक के पिताजी ट्रैक्टर से उतरकर कचहरी के लिए रवाना हुए।

यह समाचार पं. रामऔतार ने गाँव आकर बताया, क्योंकि वे (लेखक के बाबूजी) शाम को घर नहीं लौटे थे, विभिन्न स्रोतों से उनके विषय में निम्नांकित जानकारी प्राप्त हुई। ट्रैक्टर से उतरते समय उनके सिर में चक्कर आ रहा था तथा कंउ सूख रहा था। गाँव के मास्टर नंदलाल, जो उनके साथ थे, उन्होंने बताया। इस बीच वे स्टेट बैंक की देशबन्धु मार्ग स्थित शाखा, सर्किट हाउस के निकट वाले थाने में क्रमशः गए। उक्त स्थानों ने उन्हें अपराधी पवृत्ति तथा असामाजिक तत्व समझकर काफी पिटाई की गई और वे लहू-लुहान हो गए। अंत में वे इतवारी कॉलोनी गए।

वहाँ उनको कहते सुना गया, “मैं राम स्वारथ प्रसाद, एक्स स्कूल हेडमास्टर एंड विलेज हेड ऑफ….. ग्राम बकेली …।” किन्तु वहाँ उन्हें पागल समझकर कॉलोनी के छोटे-बड़े लड़कों ने उनपर पत्थर बरसाकर रही-सही कसर निकाल दी। उनका सारा शरीर लहू-लुहान हो गया। घिसते-पिटते लगभग शाम छ: बजे सिविल लाइन्स की सड़क की पटरियों पर बनी मोचियों की दुकान में से गणेशवा मोची की दुकान के अन्दर चले गए। गणेसवा मोची उनके बगल के गाँव का रहनेवाला था। उसने उन्हें पहचाना। कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार इस कहानी के द्वारा लेखक ने सांकेतिक भाषा शैली में आधुनिक शहरों में विकृतियों एवं विसंगतियों पर कटाक्ष किया है। दूषित मानसिकता से ग्रसित शहरी जीवन-शैली “तिरिछ” की तरह भयानक तथा विषैली हो गयी है। वास्तविकता की तह में गए बगैर हम दरिन्दगी तथा अमानवीय कृत्यों पर उतर आते हैं।

लेखक का मन्तव्य (उद्देश्य) निम्नांकित पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है, “इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा, क्योंकि वे अच्छी तरह से पूरी तार्किकता और गहराई के साथ विश्वास करने लग गए होंगे कि यह सब सपना है और जैसे ही वे जागेंगे, सब कुछ ठीक हो जाएगा।” लेखक पुनः कहता है-“इसके पीछे पहली वजह तो यही थी कि उन्हें यह बहुत अच्छी तरह से पता था कि वे ठेले सपने के भीतर जा रहे हैं और इससे किसी को कोई चोट नहीं आएगी।” इससे (इन पंक्तियों से) कहानी में लेखक का संदेश स्पष्ट परिलक्षित होता है।

Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 1 कब, कहाँ और कैसे

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 3 Chapter 1 कब, कहाँ और कैसे Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 1 कब, कहाँ और कैसे

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पाठगत प्रश्नोत्तर

Bihar Board Class 8 Social Science Solution प्रश्न 1.
प्राचीन काल में मनुष्य की जिंदगी में आने वाले पांच मुख्य परिवर्तन क्या हो सकते हैं।
उत्तर-
प्राचीन काल में मनुष्य का जीवन मुख्य रूप से कृषि पर आधरि था। धीरे-धीरे अन्य आर्थिक कार्यों का विस्तार हुआ जिससे वाणिज्य-व्यापार का विस्तार शुरू हुआ । इससे गाँव प्रधान विश्व में शहरी जीवन की रफ्तार बढ़ने लगी। धीरे-धीरे महत्वपूर्ण परिवर्तन के बतौर प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान का समाज में विस्तार हुआ। लोगों की विचारधरा व रहन-सहन में भी बदलाव आया।

वस्तुतः हम कह सकते हैं कि प्राचीन काल में मनुष्य की जिंदगी में पांच मुख्य परिवर्तन इस प्रकार हैं

  1. वाणिज्य-व्यापार का विस्तार
  2. शहरीकरण का बढ़ना
  3. विश्व के अन्य भागों का समुद्री मार्ग से मुख्यतः जुड़ना
  4. प्रौद्योगिकी व
  5. विज्ञान व वैज्ञानिक सोच का विस्तार होना।

Bihar Board Class 8 History Solution प्रश्न 2.
मध्य काल में सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में आए पांच मुख्य – परिवर्तन क्या हो सकते हैं ?
उत्तर-
मध्य काल में सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कई परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। मध्ययुगीन आर्थिक जीवन मुख्य रूप से कृषि पर आधारित था। पर, कृषि के साथ-साथ इस युग में अन्य आर्थिक गतिविधियां बढ़ने लगीं । इससे वाणिज्य-व्यापार व शहरी जीवन की रफ्तार बढ़ने लगी । खेतों की कुड़ाई के लिए फावड़ा या कुदाल की जगह हल का उपयोग होने से कृषि कर्म को विकास मिला ।

खेती में प्रौद्योगिकी के समावेश से कृषि से लाभ बढ़ गया। 13वीं शताब्दी में चरखे और धुनकी के प्रयोग से सूती कपड़े की गुणवत्ता व उत्पादन में वृद्धि हुई। इस युग में कागज का व्यापक उपयोग शुरू होने की क्रान्तिकारी सामाजिक घटना घटी जिससे ज्ञान का आविष्कार और प्रसार सम्भव हुआ। समुद्री व्यापार में बढ़ोतरी हुई। इससे नयी विचारधारा और प्रौद्योगिकी का विश्व के अन्य भागों में प्रसार सम्भव हुआ। विश्व के लोगों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने से हर जगह नये रीति-रिवाज, पहनावा और खान-पान में परिवर्तन हुए।

इन सामाजिक बदलावों ने राजनीतिक क्षेत्रों को भी गहरे प्रभावित किया । अन्य देशों में व्यापार करने जाने के बहाने प्रबल यूरोपीय शासक अन्य विश्व भू-भाग पर अपने उपनिवेश बसाने लगे । वे अन्य देशों की शासन व्यवस्था की अपने अधीन करने लगे। शोषित देशों के शासक आपसी झगड़े में व्यस्त होने से फूट के कारण अधीन हो गये अपने देशे को विदेशी हुकूमत से मुक्ति दिलाने के लिए एकजुट होने लगे । फ्रांस और अमेरिका में हुए जन-विद्रोह के बाद वहां बनी गणतांत्रिक सरकारों के प्रभाव से अन्य देश भी ‘राष्ट्र’ के रूप में संगठित होने लगे। इन अधीन देशों में भी जन-विद्रोह होने लगे और वहां के शासक-परिवार के लोग व सामंत व आम जनता विदेशी शासन के खिलाफ विद्रोह कर अपने देश को स्वतंत्र करने में लग गये।

Bihar Board Class 8 History Book Solution प्रश्न 3.
साम्राज्यवाद किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सैनिकों के द्वारा अथवा अन्य तरीकों से विदेशी भू-भाग के प्रदेशों को अपने अधीन कर अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने को ही साम्राज्यवाद कहते हैं।

Atit Se Vartman Class 8 Solutions प्रश्न 4.
अत्याचार और शोषण के शिकार हमारे देश में किस प्रकार की सरकार है ? उसके नीति निर्देशक सिद्धान्तों पर चर्चा करें।
उत्तर-
हमारे देश में वैसी राज्य सरकारें अत्याचार और शोषण की शिकार हैं, जो केन्द्र में बनी सरकार की पार्टी या राजनीतिक संगठन से अलग हैं। यानी केन्द्र में जिस पार्टी की सरकार है उस पार्टी से जुड़े लोग अन्य राज्यों में भी सरकार बनाए हैं तो उनको तो. सारी सुविधएँ मिलती हैं पर जिन राज्यों में केन्द्र में सरकार बनाये पार्टी से अलग दल की सरकार है तो उसे केन्द्र अत्याचार और शोषण का शिकार बनाता है। ऐसा राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण होता है जिससे देश के ही हिस्से, उन राज्यों की दशा खराब होने लगती वैसे हर राज्य के मुख्य नीति-निर्देशक सिद्धान्त जनता को बेहतर शसन देने से सम्बन्धित होता है।

कब कहाँ और कैसे Class 8 प्रश्न 5.
आधुनिक काल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
प्रायः अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध को (1750 ई. के बाद). आधुनिक काल का प्रारंभ माना जाता है। आधुनिक शब्द का इस्तेमाल जब समय के सन्दर्भ में किया जाता है तो इसका अर्थ अतीत का सबसे नजदीक का हिस्सा होता है जो पिछले लगभग तीन सौ वर्षों से संबंधित है।

Bihar Board Solution Class 8 Social Science प्रश्न 6.
क्या आप भारतीय इतिहास को समझने के इस तरीके से सहमत हैं? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर-
कक्षा में चर्चा स्वयं करना है आपको । नहीं, मैं भारतीय इतिहास को समझने के इस तरीके से सहमत नहीं हूँ। धर्म के आधार पर किसी भू-भाग की शासन-व्यवस्था, आम जनता का जीवन या वहां के इतिहास को समझने ।

की कोशिश करना मेरी दृष्टि से गलत है। किसी कालखंड को धर्मों के आधार  पर बाँटना मेरी दृष्टि से संकीर्ण विचारधारा है।

Kab Kahan Aur Kaise Class 8 प्रश्न 7.
इतिहास को हम अलग-अलग कालखंडों में बाँटने की कोशिश क्यों करते हैं ? चर्चा करें।
उत्तर-
इतिहास एक अति व्यापक विषय व विचार-क्षेत्र है। अतः अध्ययन की सुविधा से व विचार-विनिमय की सुविधाओं के लिए हम इतिहास को भिन्न कालखंडों में बाँटने की कोशिश करते हैं।

कब, कहाँ और कैसे Class 8 प्रश्न 8.
स्रोतों का स्मरण करते हुए निम्न तालिका को भरने का प्रयास करें
Bihar Board Class 8 Social Science Solution
उत्तर-
Bihar Board Class 8 History Solution

Bihar Board Class 8 Geography Solution प्रश्न 9.
आप अपने जिले के रिकार्ड रूम में जाकर अपने जिले से संबंधित क्या-क्या जानकारियाँ प्राप्त करना चाहेंगे? इन जानकारियों की एक सूची बनाएँ।
उत्तर-
मैं अपने जिले के रिकार्ड रूम से इन जानकारियों को प्राप्त करना चाहूँगा

  1. मेरे जिले की आर्थिक विकास दर क्या है ?
  2. यहाँ कितने प्रतिशत लोग साक्षर हैं ?
  3. निरक्षरों का प्रतिशत क्या है?
  4. स्वास्थ्य के क्षेत्र में जन-घनत्व के अनुपात में सरकारी सुविधाएँ किस प्रतिशत में हैं व किन हालात में हैं?
  5. गरीबी-रेखा के नीचे रहने वाले लोग कितने हैं?
  6. अचानक जिनकी संपत्ति कई गुणा बढ़ गई उनकी आमदनी का जरिया क्या है व क्या उन्होंने सरकार को उचित टैक्स दिया है ?

Class 8 Social Science Bihar Board प्रश्न 10.
आत्मकथा एवं जीवनी के संबंध में अपने शिक्षक की सहायता से चर्चा करें।
उत्तर-
अपनी स्वयं की कथा लिखना जहाँ ‘आत्मकथा’ कहलाती है, वहीं अन्य किसी व्यक्ति के जीवन की कथा का संकलन ‘जीवनी’ कहलाती है।

Bihar Board Solution Class 8 History प्रश्न 11.
अगर आपने कुछ कहानियों एवं ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित फिल्म देखी है तो वर्ग में साथियों के बीच चर्चा करें।
उत्तर-
हाँ मैंने सिनेकार रिचर्ड एटेनबरो की फिल्म ‘गाँधी’ देखी थी। उसमें भारतीय जीवन की बदहाली और उसके संपर्क में आकर विकसित होते, एक मानव से महामानव के रूप में विकसित होते, संघर्षशील, विचारवान और ऊर्जावान व्यक्ति के रूप में गाँधीजी का उचित चित्रण व मूल्यांकन किया गया

Bihar Board Class 8 Sst Solution प्रश्न 12.
कैमरे का आविष्कार कब हुआ और ऐतिहासिक स्रोत के रूप में फोटो का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
करीब 200 साल पहले कैमरे का आविष्कार हुआ था। भारत में इसका इस्तेमाल 1850 ई. के दौरान शुरू हुआ । मुगल साम्राज्य के अंतिम बादशह बहादुरशाह द्वितीय का फोटो उपलब्ध है । वह पहला और आखिरी मुगल बादशाह था जिसकी फोटो कैमरे से खींची गई थी । ऐतिहासिक स्रोत के रूप में व्यक्तियों, स्थानों और वस्तुओं के फोटो बहुत उपयोगी जीवित होते हैं। इससे इतिहास को समझने में मदद मिलती है ।।

अभ्यास-प्रश्न

Bihar Board Class 8th Social Science Solution प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों को भरिए-

(क) पूँजीपतियों का मुख्य उद्देश्य था अधिक-से-अधिक ……… कमाना।
उत्तर-
मुनाफा।

(ख) पंद्रहवीं शताब्दी में एक नये आंदोलन की शुरूआत हुई जिसे ………….. कहते हैं।
उत्तर-
पुनर्जागरण।

(ग) मशीनों से वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया को ……….. क्रांति
कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक।

(घ) ………. में सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित रखा जाता है।
उत्तर-
अभिलेखागारों।

(ङ) समय के साथ देश और राज्य की ………. सीमाओं में परिवर्तन होते रहते हैं।
उत्तर-
भौगोलिक।

Bihar Board Class 8 Social Science Solution In Hindi प्रश्न 2.
सही और गलत बताइए।

(क) वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ है प्रश्न प्रस्तुत कर प्रयोग द्वारा ज्ञान
प्राप्त करना।
उत्तर-
सही।

(ख) अंग्रेज इतिहासकार जेम्स मिल का भारतीय इतिहास का धर्म के आधार पर बांटना उचित था।
उत्तर-
गलत।

(ग) अमरीकी स्वतंत्रता संग्राम’ के बाद वहाँ के लोगों ने गणतंत्र प्रणाली की शुरूआत नहीं की।
उत्तर
गलत ।

(घ) ऐतिहासिक स्रोतों से एक आम आदमी के बारे में भी जानकारी मिलती है।
उत्तर-
गलत।

(ङ) आजादी के पहले हमारे देश की जो भौगोलिक सीमा की आजादी के बाद भी वही रह गई।
उत्तर-
गलत।

आइए विचार करें

Bihar Board Class 8 History प्रश्न (i)
मध्यकाल और आधुनिक काल के ऐतिहासिक स्रोतों में आप क्या फर्क पाते हैं । उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर-
मध्यकाल के ऐतिहासिक स्रोत जैसे अभिलेख पत्थरों, चट्टानों, ताम्रपत्रों, पाण्डुलिपियों की मदद से कुछ खास लोगों, विशेषतः शासकों के बारे में कुछ ही जानकारियाँ मिलती हैं। पर आधुनिक काल में ऐतिहासिक स्रोतों की संख्या अधिक व व्यापक जानकारी वाले और अधिक प्रमाणिक हो गये । आधुनिक युग में इन स्रोतों की संख्या और विविधता में और भी वृद्धि

एक स्पष्ट उदाहरण से इसे समझा जा सकता है। मध्यकाल में हाथ से पाण्डुलिपियां बनती थी जिनकी संख्या बेहद सीमित होती थी। पर आधुनिक युग में छापेखाने (प्रेस) के आविष्कार से सरकारी विभाग की कार्रवाइयों तक के दस्तावेज की कई प्रतियां बनना संभव हो गया । इन महत्त्वपूर्ण दस्तावेजों की प्रतियाँ को अभिलेखागारों एवं पुस्तकालयों में देखा जा सकता है। अब ये भी बड़े महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत साबित हो रहे हैं।

Bihar Board Class 8 Social Science प्रश्न (ii)
जेम्स मिल ने भारतीय इतिहास को जिस प्रकार काल खंडों में बांटा, उससे आप कहाँ तक सहमत हैं।
उत्तर-
1817 ई. में स्कॉटलैंड के अर्थशास्त्री, इतिहासकार और राजनीतिक दार्शनिक जेम्स मिल ने तीन खंडों में (हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया) ब्रिटिश भारत का इतिहास नामक एक पुस्तक लिखी । अपनी इस किताब में जेम्स मिल ने भारत के इतिहास को हिन्दू-मुस्लिम और ब्रिटिश इन तीन काल खंडों में बांटा । यह विभाजन इस विचार पर आधारित था कि शासकों का धर्म ही एकमात्र महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक परिवर्तन होता है।

कालखंड के इस निर्धारण को उस वक्त लोगों ने मान भी लिया । पर ऐसा करना गलत था। किसी भी स्थान या देश के इतिहास का निर्धारण मात्र उस देश के शासक के धर्म पर नहीं होता। इसके पीछे कई कारक होते हैं जिनमें आर्थिक, सांस्कृतिक, वैचारिक और राजनीतिक आदि कारण शमिल होते हैं । जेम्स मिल का भारतीय इतिहास के कालखंड को बांटने का जो आधार है यानी शासकों का धर्म ही ऐतिहासिक परिवर्तन का आधार है-बेहद दकियानूसी विचार है और मैं ऐसे संकीर्ण विचार से सहमत नहीं हूँ।

Bihar Board Class 8 History Book प्रश्न (iii)
सरकारी दस्तावेजों को हम कैसे और कहाँ-कहाँ सुरक्षित रख सकते हैं ?
उत्तर-
अभिलेखागारों एवं पुस्तकालयों में हम सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित रख सकते हैं। साथ ही तहसील के दफ्तर, कलेक्टरेट, कमिश्नर के दफ्तर, कचहरी आदि के रिकॉर्ड रूमों में भी सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित रखा जाता है। अब तो सीडी बनाकर भी सरकारी दस्तावेजों को सुरक्षित रखा जाने लगा है।

प्रश्न (iv)
यूरोप में हुए परिवर्तन किस प्रकार आधुनिक काल के निर्माण में सहायक हुए।
उत्तर-
आधुनिक काल के निर्माण में, यूरोप में हुए परिवर्तनों ने बहुत .. महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । यूरोप में ‘पुनर्जागरण’ का आंदोलन फैला । इसके तहत लागों ने आंदोलन कर स्वतंत्र रूप से सोचना शुरू किया और राजनीतिक

इसका असर विश्व के अन्य भागों में भी हुआ। जिसके परिणामस्वरूप आधुनिक युग के कई देशों में गणतांत्रिक सरकारों की स्थापना संभव हुई।

साथ ही, यूरोप में शुरू हुई औद्योगिक क्रान्ति का असर पूरे विश्व पर पड़ा। लगभग हर देश इससे प्रभावित हुआ। इससे अन्य देशों में भी

लगा और मशीनों पर और उससे बने सामानों पर लोग निर्भर होने लगे । इन

यूरोपीय घटनाओं ने आधुनिक काल की प्रगतिशील दुनिया के निर्माण में महती भूमिका निभाई।

आइए करके देखें

प्रश्न (i)
भारत में पहली और आखिरी जनगणना कब हुई पता करें? इसके द्वारा कुछ ऐसे तथ्यों एवं सूचनाओं का संकलन करें जिसका उपयोग हम ऐतिहासिक स्रोत के रूप में कर सकें।
उत्तर-
(यह परियोजना कार्य है। अपने शिक्षक की सहायता से आप स्वयं करें।)

भारत में पहली जनगणना 1872 में हुई थी जबकि आखिरी जनगणना 2011 में हुई।

Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 3 कर्मवीर

Bihar Board Class 8 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 3 Chapter 3 कर्मवीर Text Book Questions and Answers, summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 3 कर्मवीर

Bihar Board Class 8 Hindi कर्मवीर Text Book Questions and Answers

प्रश्न – अभ्यास

पाठ से

कर्मवीर कविता का प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 8 प्रश्न 1.
कर्मवीर की पहचान क्या है ?
उत्तर:
कर्मवीर विघ्न-बाधाओं से घबड़ाते नहीं। वे भाग्य-भरोसे नहीं रहते । कर्मवीर आज के कार्य को आज ही कर लेते हैं। जैसा सोचते हैं वैसा ही बोलते हैं तथा जैसा बोलते हैं, वैसा ही करते हैं । कर्मवीर अपने समय को व्यर्थ नहीं जाने देते । वे अलसाते भी नहीं। कर्मवीर समय का महत्व सदैव देते हैं। वे परिश्रम करने से जी नहीं चुराते हैं । कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कठिन कार्य कर दिखाते हैं। कर्मवीर कार्य करने में थकतें नहीं हैं। जिस कार्य को आरम्भ करते उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। उलझनों के बीच भी वे उत्साहित दिखते हैं।

कर्मवीर की पहचान क्या है उत्तर Bihar Board Class 8 प्रश्न 2.
अपने देश की उन्नति के लिए आप क्या-क्या कीजिएगा?
उत्तर:
अपने दंश की उन्नति के लिए हम कर्मनिष्ठ बनेंगे। समय का महत्व देंगे । मन-वचन कर्म तीनों से एक रहेंगे । कठिन-से-कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबराएँगे। जिस कार्य में हाथ डालेंगे उसे करके ही दम लेंगे। आलस्य कभी नहीं करेंगे और कभी भी अपने कार्य को कल के भरोसे नहीं टालेंगे।

Karmveer Poem Question Answer In Hindi प्रश्न 3.
आप अपने को कर्मवीर कैसे साबित कर सकते हैं ?
उत्तर:
हमें अपने को कर्मवीर साबित करने के लिए कर्तव्यनिष्ठ बनना होगा । समय का महत्व हमें देना होगा। परिश्रमी बनना पड़ेगा तथा आलस्य को त्यागना होगा। मन-वचन और कर्म से एक रहना होगा । उपरोक्त कर्मवीर , के गुणों को अपने में उतारकर हम अपने को कर्मवीर साबित कर सकते हैं। उपरोक्त कर्मवीर के गुणों को अपने में उतारकर हम अपने को कर्मवीर साबित कर सकते हैं।

पाठ से आगे

कर्मवीर कविता के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 8 प्रश्न 1.
परिश्रमी के द्वारा मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। कैसे?
उत्तर:
जो परिश्रमी है उसे मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। । परिश्रमी व्यक्ति कभी आलस्य नहीं दिखाते । अगर परिश्रमी व्यक्ति मन-वचन और कर्म से एक, बना रहे तो कार्य में सफलता अवश्य मिलती है। परिश्रमी व्यक्ति को समय का महत्व समझना चाहिए । इस प्रकार कहा जा सकता है कि कर्मवीर के सारे गुणों को अपना कर परिश्रमी व्यक्ति को कर्मनिष्ठ होना चाहिए जिससे मनोवांछित लक्ष्य की प्राप्ति किया जा सकता है।

Bihar Board Class 8 Hindi Book Solution प्रश्न 2.
कल करें से आज ………………. बहुरि करेगा कब।” से संबंधित अर्थ वाले पंक्तियों को लिखिए।
उत्तर:
उपरोक्त अर्थ वाले पंक्तियाँ हैंआज करना है जिसे करते उसे है आज ही। काम करने की जगह बातें बनाते नहीं।

Karmveer Poem Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
आप किसे अपना आदर्श मानते हैं और क्यों?
उत्तर:
हम अपना आदर्श महात्मा गाँधी को मानते हैं क्योंकि हम सादगी,… सच्चाई और अहिंसा पर विश्वास करते हैं तथा सतत् प्रयत्नशील रहने का प्रयास करते हैं। ये सब आदर्श महात्मा गाँधीजी में मौजूद थे।

व्याकरण

Karamveer Kavita Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
दिये गये शब्दों से विपरीतार्थक शब्द-युग्म बनाइए जैसे-अमीर-गरीब।
उत्तर:

  1. दुःख – सुख
  2. कठिन – आसान
  3. भलाई – बुराई
  4. सुख – दुःख
  5. जनम – मरणं
  6. बुराई – भलाई
  7. सपूत – कपूत
  8. मरन – जनम
  9. कपूत – सपूत
  10. समर्थक – विरोधी
  11. विरोधी – समर्थक
  12. असंभव – संभव
  13. नभ – तल
  14. फूल – शूल
  15. आरंभ – अन्त
  16. बुरा – भला
  17. वीर – कायर
  18. संभव – असंभव
  19. तल – नभ
  20. शुल – फूल
  21. अंत – आदि
  22. भला – बुरा
  23. कायर – वीर।

कर्मवीर कविता का अर्थ Bihar Board Class 8 प्रश्न 2.
सामान्य वाक्य-रेगिस्तान में जल ढूँढ़ना बहुत कठिन है। – मुहावरेदार वाक्य-रेगिस्तान में जल ढूँढना लोहे के चने चबाने की तरह है।
उक्त उदाहरण की तरह निम्नलिखित सामान्य वाक्यों को भी

मुहावरेदार वाक्यों में बदलिए

(क) सामान्य वाक्य-रमेश अपनी माँ का प्यारा लड़का है।
उत्तर:
मुहावरेदार वाक्य-रमेश अपनी माँ का आँखों का तारा है।

(ख) सामान्य वाक्य-पुलिस को देखते ही चोर भाग गए।
उत्तर:
मुहावरेदार वाक्य पुलिस को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गये।

कर्मवीर Summary in Hindi

(कर्म के प्रति निष्ठा ही व्यक्ति की सफलता का निर्धारण ………….. निर्माण करते हैं।)

देखकर बाधा …………………….. मिले फूले-फले।

अर्थ – कर्मवीर अनेक बाधाओं और विघ्नों को देखकर भी घबराते नहीं हैं। वे भाग्य के भरोसे रहकर दुःख नहीं भोगते और पछताते भी नहीं। काम कितना ही कठिन हो लेकिन वे उकताते नहीं । भीड़ में चंचल बनकर अपनी वीरता नहीं दिखलाते हैं। उनके एक आन (प्रतिज्ञा) से बुरे दिन भी अच्छे में बदल जाते हैं।

आज करना है जिसे ……………………… वे कर जिसे सकते नहीं॥

अर्थ – कर्मवीर आज का काम आज ही कर लेते हैं। वे जो सोचते हैंवही कहते हैं तथा सोचे-कहे को ही करते भी हैं। ऐसे लोग वही करते हैं जो उनका मन कहता है लेकिन सदैव सबकी बात सुनते हैं ।
वो अपनी मदद स्वयं करते हैं भूलकर भी वे दूसरे से मदद के लिए मुँह नहीं ताकते।

जो कभी अपने समय ……………………. औरों के लिए॥

अर्थ – कर्मवीर अपने समय को व्यर्थ नहीं बिताते काम करने की जगह बातें नहीं बनाते हैं। किसी भी काम को कल के लिए नहीं टालते । वे परिश्रम करने से कभी नहीं जी चुराते हैं। ऐसे कोई काम नहीं जो उनके करने से नहीं होता । वे समाज में उदाहरण स्वयं बन जाते हैं।

चिलचिलाती धूप को …………………………. खोल वे सकते नहीं।

अर्थ – चिलाचलाती धूप भी उनके लिए चाँदनी बन जाती है। काम पड़ने पर वे शेर का भी सामना कर लेते हैं । वे हँस-हँसकर कठिन से कठिन काम – को कर लेते हैं। जो ठान लेते उनके लिए वह कठिन काम नहीं रह जाता ।
लम्बी दूरी तय करने के बाद भी वे थकते नहीं। कौन ऐसी समस्या है जिसे कर्मवीर सुलझा नहीं लेते।

काम को आरम्भ ……………….. उज्जवल रतन ॥

अर्थ – कर्मवीर जिस काम को आरम्भ करते हैं उसे बिना किये हुए नहीं , छोड़ते । जिस काम को करने लगते उससे भूलकर भी मुख नहीं मोड़ते । वे आकाश-सुमन तोड़ने जैसी वृथा बातें नहीं करते । करोड़ों की संपत्ति हो जाये लेकिन वे मन में कभी भी अहंकार नहीं लाते हैं। कर्मवीर के हाथ में कोयला भी हीरा बन जाता है। शीशा को भी चमकीला (शुद्ध) रत्न बना देते हैं।

पर्वतों को काटकर सड़कें …………………….. तार की सारी क्रिया ॥

अर्थ-कर्मवीर पर्वतों को भी काटकर सड़क बना देते हैं। मरुभूमि में भी सैकड़ों नदियाँ बहा देते हैं। समुद्र के गर्भ में भी वे जलयान (जहाज) चला देते हैं। जंगल में भी वे मंगल रचा देते हैं। अकाश-पताल का रहस्य भी उन्होंने बताया। सूक्ष्म से सूक्ष्म क्रिया के बारे में भी उन्होंने ही बतलाया।

स्थल को वे कभी ………………… अपना ठीक करके ही टलें।

अर्थ – कर्मवीर कार्य-स्थल के बारे में नहीं पूछते । किसी भी स्थल पर असम्भव कार्य को सम्भव कर दिखाते हैं। जहाँ उन्हें अधिक उलझनें दिखती वहाँ वे अपने कार्य को और भी अधिक उत्साह से करते हैं। विरोधी उनके कर्म मार्ग में भले ही सैंकड़ों अड़चने डाल दें लेकिन वे अपना कार्य पूरा करके ही निकलते हैं।

सब तरह से आज ……………….. भलाई भी तभी॥

अर्थ – आज सम्पन्न जितने देश हैं जो बुद्धि-विद्या, धन-सम्पदा से परिपूर्ण देश है। उन देशों को सम्पन्न बनाने में कर्मवीरों का ही हाथ है। जिस देश की जितनी उन्नति हुई है उन देशों में उतने ही कर्मवीर हैं। जिस देश में जितने कर्मवीर पैदा लेंगे उतना ही उस देश और समाज की भलाई होगी।

Bihar Board Class 7 English Book Solutions Chapter 1 Sympathy

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BSEB Bihar Board Class 7 English Book Solutions Chapter 1 Sympathy

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Bihar Board Class 7 English Sympathy Text Book Questions and Answers

A. Warmer

The teacher will read out the following text to the learners and discuss the questions that follow:

A thirsty old man is sitting beside the road. He says, ‘water ! water ! water !. Suraj and Ravi are friends. They hear the old man’s cry. Suraj ignores it but Ravi stops near the old man. He takes out his water bottle. He gives the bottle to the thirsty man. The man takes the. bottle and drinks water. He thanks Ravi.

  1. Why does Ravi and top near the thirsty man ?
  2. Why does the man thank Ravi ?
  3. Do you ever feel sorry for a person in grief ?

Answer:

  1. Ravi feels pity for the thirsty old man. He stops near him to give him his own water to drink.
  2. The man thanks Ravi for parting with his own water to quench his thirst.
  3. Yes, I do feel sorry for a person in grief.

B. Let’s Comprehend

B. 1. Think and Tell.

Answer the following questions in word/phrasea/sentence.

Sympathy Poem Questions And Answers Class 7 Bihar Board Question 1.
Who was in sorrow ?
Answer:
The poet was in sorrow.

Sympathy Poem Class 7 Bihar Board Question 2.
What did the proud man give to the poet’?
Answer:
Gold.

Bihar Board Class 7 English Book Solution Question 3.
Who bound the head of the poet in hour of sorrow ?
Answer:
A poor man bound the head of the poet in hour of grief.

Bihar Board Class 7 English Solution In Hindi Question 4.
Which is greater – gold or sympathy ?
Answer:
Sympathy is greater.

B. 2. Think and Write

B. 2. 1. Write ‘T’ for true and ‘F’ for false statements

  1. The proud man watched the poet day and night. [ ]
  2. The proud man’s looks were cold. [ ]
  3. The poet did not return money to the proud man. [ ]
  4. The poor man went away by ignoring the poet. [ ]
  5. The poet was unable to pay back the deeds of a poor man. [ ]
  6. Sympathy cannot be paid back. [ ]

Answer:

  1. False
  2. True
  3. False
  4. False
  5. True
  6. True

B. 2. 2. Answer the following questions in one sentence

Class 7th English Sympathy Question Answer Bihar Board Question 1.
Who did not tell a kind word ?
Answer:
The proud man did not tell a kind word to the poet.

Sympathy Poem In Hindi Class 7 Bihar Board Question 2.
What did the poor man give to the poet to eat ?
Answer:
The poor man gave bread to the poet to eat.

Sympathy Chapter Class 7 Bihar Board Question 3.
What did the poor man do for the poet when he (the poet) lay in want and grief ?
Answer:
The poor man watched night and day and gave bread to eat. He also bound the poet’s head.

B. 2. 3. Answer the following questions in not more than 50 words.

Bihar Board Solution Class 7 English Question 1.
How did the proud man help the poet when he was in deep sorrow you like this way of helping a person in need ?
Answer:
The proud man saw that the poet was in sorrow and deep distressed. He laid in pain and wanted help. The proud man gave him gold but his looks were cold. He didn’t even say a kind word. No, I don’t like this way of helping a person in need.

Bihar Board Class 7 English Solutions Question 2.
Sympathy can not be compared with gold. Explain.
Answer:
Sympathy can never be compared with gold. No doubt, gold is precious but it is less precious than sympathy. Sympathy is a heaven’s gift. Gold can be purchased, it can be sold. It can be paid back. But heavenly sympathy can’t be paid back. It is-greater than gold.

Sympathy Poem Questions And Answers Bihar Board Question 3.
Have you ever shown sympathy to any one ? If yes,
give details.
Answer:
Yes, Whenever I see anyone in sorrow I feel pity. Then, I try to show my sympathy for him by helping him or her. Once, a friend of mine was crying alone. He was unable to pay his school fees. I asked him to take the money of mine which I had saved as my pocket money. When he paid his fees from my money,! really felt very happy.

C. Word Study

C. 1. Match the words in Column ‘ A’ with their meanings given in Column ‘B’.

Bihar Board Class 7 English Solution

Answer:

Sympathy Class 7th English Bihar Board

C. 2. Look at the rhyming words given below:

  1. gold – cold
  2. heard. – word

Now think of more rhyming words to fill in the blanks given below:

  1. way – clay
  2. gray – pray
  3. pain – lane
  4. air – care
  5. look – nook
  6. slow – flow
  7. bed – led
  8. man – pan
  9. sun – bun

D. Let’s Talk

Talk in pairs about the value of Sympathy.
Do yourself.

E. Composition

Question 1.
Write five sentences on’Sympathy’.
Answer:
Feeling pity and tenderness for others is sympathy. It is a heavenly feeling. Nothing can be compared to it. The heart that possess sympathy is praised by all and loved by God. Sympathy is the most precious and beautiful feeling on the earth.

F. Translation (अनुवाद) 

Translate the following stanza into Hindi

Question 1.
“How shall I pay him back ,
For ail he did to me ?
Oh, gold is great,
but greater far Is heavenly sympathy.”
Answer:
“कैसे मैं उसे वापस कर पाऊंगा ।
वह सब जो उसने किया मेरे लिये ?
आह, सोना कीमती है, किन्तु
अनमोल है सुखद सहानुभूति ।

G. Activity (गतिविधि)

Question 1.
With the help of the teacher, have a discussion in you class on the significance of providing help to . those who need it. Make a list of the learners who are willing to help. Make a team of such learners and also elect a leader of the team.
Do yourself.

Question 2.
Look at the picture carefully and describe the situation in your own words.
Answer:
Ravi and Suraj saw an old man sitting by the road side. Ravi feels sympathy for the old man who was thirsty and cried for water. Ravi gave the old man his own water to drink. So. looked at this scene surprisingly.

Sympathy Summary in English

‘Sympathy’ is a heart touching nice piece of poetry. The poem is written by the great poet Charles Mackay. The poet wants to underline in this poem that all the wealths and riches of the world are far mean to sympathy. Sympathy is the best. It is a gift from the Almighty which is the most precious.

Once, the poet was in sorrow. He was helped by gold by a proud rich man who didn’t speak even a nice word to him. The poet’s sorrow passed away and he returned him back the gold he had given to him, with thanks. Then, again the poet once lay in sorrow. This time a poor man served him day and night. He gave him bread and his loving care. The poet felt helpless to pay him back for his heavenly sympathy.

Sympathy Summary in Hindi

‘सिम्पैथी’ दिल को छू लेने वाली एक बेहतरीन कविता है। प्रस्तुत कविता महान कवि चार्ल्स मके द्वारा लिखित है। कवि प्रस्तुत कविता के माध्यम से यह रेखांकित करना चाहता है कि दुनिया की तमाम धन-सम्पदा और ऐश्वर्य भी सहानुभूति के समक्ष तुच्छ है । सहानुभूति श्रेष्ठ है। यह मानव को परमेश्वर द्वारा प्रदत्त सबसे कीमती उपहार है। एक बार कवि दुख में था। उसकी मदद एक अमीर घमंडी व्यक्ति ने स्वर्ण देकर की पर उसके एक भी मीठा वचन न कहा। कवि का दुख बीता

और उसने उसे उसका स्वर्ण सधन्यवाद वापस कर दिया । पुन: एक बार कवि कष्ट में पड़ा था। इस बार एक गरीब व्यक्ति ने उसकी रात-दिन सेवा की, खाने को रोटी दी, उसका सिर प्रेमपूर्वक दबाया। कवि स्वस्थ होने पर उस गरीब व्यक्ति की सेवा और सहानुभूति को वापस चुका पाने में स्वयं को बेहद – असमर्थ महसूस कर रहा था।

Sympathy Hindi Translation of The Chapter

मैं कष्ट में पड़ा था, अत्यंत दुखित हो;
मेरे दु:खी कराहों को एक घमंडी व्यक्ति ने सुना
वह निर्भाव था, उदासीन, उसने मुझे स्वर्ण दिया,
पर, एक भी मीठी बोली नहीं।

मेरा दुख गुजर गया; मैंने लौटा दिया उसे
वह स्वर्ण को दिया था उसने मुझे,
फिर तन के खड़ा हो अपना धन्यवाद दिया उसे,
और उसके दान को धन्यवाद दिया।

मैं मदद को पड़ा था, कष्ट और पीड़ा में;
एक गरीब व्यक्ति मेरी राह से गुजरा,
मेरा सिर दबाकर सेवा किया, खाने को रोटी दी,
रात-दिन उसने मेरी सेवा की,

कैसा चुका पाऊँगा. उसे वापस
जो सब किया उसने मेरे लिये?
आह, स्वर्ण कीमती है, पर उससे भी
कहीं कीमती है स्वर्गिक सहानुभूति ।

Sympathy Glossary

Spake [स्पेक] = बोला | Sorrow [सॉरो] = कष्ट | Pain [पेन] = दर्द, कष्ट | Distressed [डिस्ट्रेस्ड] = दुखी । Heard [हर्ड) = सुना। Erect [इरेक्ट] = सीधा, तनकर । Deep [डीप] = गहरे I Charity [चैरिटी] = दान । Watched [वाच्ड] = देखभाल किया Passed [पास्ड) = गुजारा । Pay back [पे बैक] = लौटाना । Want [वान्ट] = आवश्यकता । Heavenly [हेवेनली] = सुखद | Looks [लुक्स] = भाव, रूप | Sympathy [सिम्पैथी) = सहानुभूति । Way [वे] = रास्ता | Beside the road [बिसाइड द रोड] = सड़क के किनारे । Ignore [इगनोर] = उपेक्षा करना । Grief [ग्रीफ] = दु:ख, क्लेश । Proud [प्राउड] = घमंड | Cold [कोल्ड) =’ उदासीन । Blessed [ब्लेस्ड] = आशीर्वाद दिया । Bound [बाउन्ड] = शरीर की मालिश करना, शरीर दबाना । Thirsty [थस्र्टी] = प्यासा । Back again [बैक अगेन] = वापस चुकाना ।

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 1 कड़बक

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 1 कड़बक

 

कड़बक वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Kadbak Ka Saransh Bihar Board Class 12th  प्रश्न 1.
जायसी के पिता का नाम था।
(क) शेख ममरेज
(ख) शेख परवेज
(ग) शेख मुहम्मद
(घ) इकबाल
उत्तर-
(क)

Karbak Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
मल्लिक मुहम्मद जायसी का जन्म हुआ था।
(क) 1453 ई. में
(ख) 1445 ई. में
(ग) 1492 ई. में .
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)

Kadbak Ka Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
इनमें से जायसी की कौन-सी रचना है?
(क) छप्पय
(ख) कड़बक
(ग) कवित्त
(घ) पद
उत्तर-
(ख)

कड़बक कविता का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
जायसी का जन्म स्थान था।
(क) बनारस
(ख) दिल्ली
(ग) अजमेरी
(घ) अमेठी
उत्तर-
(घ)

कड़बक शब्द का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जायसी थे।
(क) धनवान
(ख) बलवान
(ग) फकीर
(घ) विद्वान
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Karbak Kavita Ka Arth Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
कवि बचपन से ही ……….. और स्वभावतः संत थे।
उत्तर-
मृदुभाषी, मनस्वी

Kadbak Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
मल्लिक मुहम्मद जायसी ………. कवि हैं।
उत्तर-
प्रेम की पीर के

कड़बक का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. माता प्रसाद गुप्त आदि विद्वानों द्वारा ……… नाम से ग्रंथ प्रकाशित हुआ।
उत्तर-
जायसी ग्रंथावली

कड़बक का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
किसान होते हुए भी ये सदा ………. का जीवन गुजारे।
उत्तर-
फकीरी

Karbak Kavita Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जायसी के उज्जवल अमर कीर्ति का आधार ……. है।
उत्तर-
पद्मावत

कड़बक अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Kadbak Ka Saransh In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
‘पद्मावत’ के कवि का क्या नाम हैं?
उत्तर-
मलिक मुहम्मद जायसी।

Karbak Poem In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
मलिक मुहम्मद जायसी किस शाखा के कवि हैं?
उत्तर-
ज्ञानमार्गी।

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks प्रश्न 3.
‘फूल मरै पै मरै न वासु’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मनुष्य मर जाता है पर उसका कर्म रहता ही है।

प्रश्न 4.
‘कड़बक’ के कवि हैं :
उत्तर-
जायसी।

कड़बक पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की है?
उत्तर-
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ व निर्मल होता है, उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रतिछाया दिखती है जैसा वह वास्तव में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानता है। उसके हृदय में जरा-सा भी कृत्रिमता नहीं है। उसके इन निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग उसके चरण पकड़कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते हैं।

प्रश्न 2.
पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
अपनी कविताओं में कवि जायसी ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।

जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम करता है। उसकी प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्त्तियों के सामने उनके एकाध-दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं। कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किये जाने पर सुमेरु पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों की संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही वह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है।

यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है। ‘काँच’ शब्द की अर्थक्ता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना घरिया में (सोना गलाने के पात्र को घरिया कहते हैं) गलाए काँच असली स्वर्ण रूप को नहीं प्राप्त कर सकता है ठीक उसी प्रकार इस संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठमा नहीं प्राप्त हो सकती।

उपरोक्त शब्दों की चर्चा करते हुए कवि ने लोक जगत को यह बताने की चेष्टा की है कि किसी भी जन का अपने लक्ष्य शिखर पर चढ़ने के लिए जीवन रूपी घरिया में स्वयं को तपाना पड़ता है। निखारना पड़ता है। उक्त शब्दों के माध्यम से कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि गुणी होने के लिए सतत संघर्ष और साधना की जरूरत है। यही एक माध्यम है जिसके कारण जीवन रूपी सुमेरू, चाँद या कच्चे सोने को असली रूप दिया जा सकता है। गुणवान व्यक्ति सर्वत्र और सर्वकाल में पूजनीय हैं वंदनीय हैं।

कहने का तात्पर्य है कि एक आँख से अंधे होने पर भी जायसी अपनी काव्य प्रतिभा और कृतित्व के बल पर लोक जगत में सदैव आदर पाते रहेंगे।

प्रश्न 3.
पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर-
महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी अपनी कुरूपता और एक आँख से अंधे होने पर शोक प्रकट नहीं करते हैं बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित की बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गुण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करते हैं।

जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अत: उसका दोष गुण के आगे ओझल हो जाता है।

जिस प्रकार बिना आम्र में मंजरियों या डाभ के नहीं आने पर सुबास नहीं पैदा होता है, चाहे सागर का खारापन उसके गुणहीनता का द्योतक है। सुमेरू-पर्वत की यश गाथा भी शिव-त्रिशूल के स्पर्श बिना निरर्थक है। घरिया में तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोष-भाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा की तरह है। जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं। जिस प्रकार अथाह गहराई और असीम आकार के कारण समुद्र की महत्ता है। चन्द्रमा अपनी प्रभायुक्त आभा के लिए सुखदायी है। सुमेरू पर्वत शिव-त्रिशूल द्वारा आहत होकर स्वर्णमयी रूप को ग्रहण कर लिया है। आम भी डाभ का रूप पाकर सुवासित और समधुर हो गया है। घरिया में तपकर कच्चा सोना भी चमकते सोने का रूप पा लिया है।

जिस प्रकार दर्पण निर्मल और स्वच्छ होता है-जैसी जिसकी छवि होती है-वैसा ही प्रतिबिम्ब दृष्टिगत होता है। ठीक उसी प्रकार कवि का व्यक्तित्व है। कवि का हृदय स्वच्छ और निर्मल है। उसकी कुरूपता और एक आँख के अंधेपन से कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला। वह अपने लोक मंगलकारी काव्य-सृजनकार सारे जग को मंगलमय बना दिया है। इसी कारण रूपवान भी उसकी प्रशंसा करते हैं और शीश नवाते हैं। उपरोक्त प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अपने आत्मविश्वास का सटीकर चित्रण अपनी कविताओं के द्वारा किया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।
उत्तर-
कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।

कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।

दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका , कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीत्ती नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कार्ति चिर स्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिर स्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना का आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकैषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट करें-जौं लहि अंबहि डांभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई॥
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक (1) से उद्धृत की गयी है। इस कविता के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभे (कोयली) नहीं निकलती तबतक उसमें सुगंध नहीं आता यानि आम में सुगन्ध आने के लिए डाभ युक्त मंजरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुशबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है।

काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहाँ पर अत्यन्त तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है। यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है। इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है।।

इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जबतक पुरुष में दोष नहीं होता तबतक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं।

प्रश्न 6.
‘रकत कै लेई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
कविवर जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद ने अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित, मेरी यही निशानी शेष बची रह जाएगी।

प्रश्न 7.
महम्मद यहि कबि जोरि सनावा’-यहाँ कवि ने ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है?
उत्तर-
‘मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा’ में ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग कवि ने ‘रचकर’ अर्थ में किया है अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। कवि यह कहकर इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि मैंने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है।

प्रश्न 8.
दूसरे कड़बक का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
दूसरे कड़बक में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उसने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है। परन्तु इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। कवि ने इस कथा को रक्त-रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। कवि ने इस काव्य की रचना इसलिए की क्योंकि जगत में उसकी यही निशानी शेष बची रह जाएगी। कवि यह चाहता है कि इस कथा को पढ़कर उसे भी याद कर लिया जाए।

प्रश्न 9.
व्याख्या करें
“धनि सो पुरुख जस कीरति जासू।
फूल मरै पै मरै न बासू ॥”
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ जायसी लिखित कड़बक के द्वितीय भाग से उद्धत की गयी है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किन्तु उसकी सुगन्धित धरती पर परिव्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भवन में फहरा जाते हैं। पुष्प सुगन्ध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्तियाँ विनष्ट नहीं होती। बल्कि युग-युगान्तर उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है।

दूसरे अर्थ में पद्मावती की लौकिक कथा को आध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल-मंत्रां को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है। इस संसार की नश्वरता की चर्चा लौकिक कथा काव्यों द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सबको रू-ब-रू कराने का काम किया है। यह जगत तो नश्वर है केवल कीर्तियाँ ही अमर रह जाती हैं। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है।

कड़बक भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें
शब्द – पर्यायवाची शब्द
उत्तर-

  • नैन आँख, नेत्र, चक्षु, दृष्टि, लोचन, खिया, अक्षि।
  • आम रसाल, अंब, आंब, आम्र।
  • न्द्रमा शशि, चाँद, अंशुमान, चन्दा, चंदर, चंद।।
  • रक्त खून, रूधिर, लहू, लोहित, शोषित।
  • राजा नरेश, नृप, नृपति, प्रजापति, बादशाह, भूपति, भूप।
  • फूल सुगम, सुकुम, पुष्प, गुल।

प्रश्न 2.
पहले कड़बक में कवि ने अपने लिए किन उपमानों की चर्चा की है, उन्हें लिखें।
उत्तर-
पहले कड़बक में कवि ने चाँद, सूक, अम्ब, समुद्र, सुमेरू, घरी, दर्पण आदि उपमानों का प्रयोग अपने लिए किए हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें
उत्तर-

  • शब्द – मानक रूप
  • त्रिरसूल – त्रिशूल
  • दरपन – दर्पण
  • निरमल – निर्मल
  • पानि – पानी
  • नखत – नख
  • प्रेम – पेम
  • रकत – रक्त
  • कीरति – कीर्ति

प्रश्न 4.
दोनों कड़बक के रस और काव्य गुण क्या हैं?
उत्तर-
जायसी के दोनों कड़बकों में शांत रस का प्रयोग हुआ है। दोनों कड़बकों में माधुर्य गुण है।

प्रश्न 5.
पहले कड़बकों से संज्ञा पदों को चुनें।
उत्तर-
संज्ञा पद-नयन, कवि, मुहम्मद, चाँद, जंग, विधि, अवतार, सूक, नख, अम्ब, डाभ, . सुगंध, समुद्र, पानी, सुमेरु, तिरसूल, कंचन, गिरि, आकाश, धरी, काँच, कंचन, दरपन, पाउ, मुख।

प्रश्न 6.
दूसरे कड़बक से सर्वनाम पदों को चुनें।
उत्तर-
यह, सो, अस, यह, मकु, सो, कहाँ, अब, अस, कँह, जेई, कोई, जस, कई, जरा, जो।

कड़बक कवि परिचय मलिक मुहम्मद जायसी (1492-1548)

कवि-परिचय-
मलिक मुहम्मद जायसी निर्गुण धारा की प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। जायसी जाति के मुसलमान होते हुए भी साहित्य में सुर और तुलसी के समान ही महत्व रखते हैं। इसका कारण जायसी की भारतीय संस्कृति में निष्ठा, धर्म के प्रति आस्था एवं हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के समन्वय पर बल देना है। उनका जन्म रायबरेली जिले के जायस नामक ग्राम में सन् 1492 ई. में हुआ था। इसलिए वे जायसी नाम से प्रसिद्ध हुए। चेचक के प्रकोप ने जायसी को कुरूप बना दिया था। उनकी कुरूपता को देखकर दिल्ली का पठान बादशाह हँस पड़ा था। तब जायसी ने उसको संबोधित करते हुए कहा-

मोहि का हँसित कि हँसित कोहारहिं।

अर्थात् मुझ पर क्या हँसते हो, मेरे उस बनाने वाले कुम्हार पर हँसो। जायसी उच्च कोटि के विद्वान थे। इस विद्वता का कारण उनका बहुश्रुत होना था। वे ज्योतिष विद्या, वेदांत एवं हठयोग में निपुण थे। उनकी रचनाओं को देखने से विदित होता है कि जायसी के ऊपर तत्कालीन मत-मतांतरों का भी प्रभाव था। अमेठी के राजा के दरबार में उनका बड़ा सम्मान था। उनकी मृत्यु सन् 1542 ई. में हुई।

रचनाएँ-जायसी की तीन प्रमुख रचनाएँ उपलब्ध हैं-

  • पद्मावत,
  • अखरावट,
  • आखिरी कलाम।

काव्यगत विशेषताएँ-जायसी के काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों का सफल निर्वाह है। उनके काव्य का मुख्य रस शृंगार है। उन्होंने शृंगार रस के दोनों पक्षों का अद्भुत चित्रण किया है।

जायसी संयोग श्रृंगार के चित्रण की अपेक्षा वियोग श्रृंगार के चित्रण में अधिक सफल रहे हैं। नागमती का विरह वर्णन बड़ा ही अद्भुत है। उनके विरह में व्यापकता, मार्मिकता तथा गंभीरता का उत्कृष्ट वर्णन है। प्रेममार्गी शाखा में प्रेम की पीड़ा को अधिक महत्व दिया जाता है। जायसी ने उसी पीड़ा का वर्णन नागमती के विरह वर्णन के माध्यम से किया है। शृंगार रस के साथ-साथ करुण रस, वात्सल्य रस, भयानक रस एवं अद्भुत रस आदि का प्रसंगानुकूल चित्रण है।

कड़बक कविता का सारांश

यहाँ प्रस्तुत दोनों ‘कड़बक’ मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के क्रमशः प्रारम्भिक और अन्तिम छंदों से लिए गए हैं। – प्रारंभिक स्तुति खंड से उद्धृत प्रथम कड़बक में कवि और काव्य की विशेषताएँ निरूपित करते हुए दोनों के बीच एक अद्वैत की व्यंजना की गई है। इसमें कवि एक विनम्र स्वाभिमान से अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधेपन को प्राकृतिक दृष्टांतों द्वारा महिमामंडित करते हुए रूप को गौण तथा गुणों को महत्वपूर्ण बताते हुए हमारा ध्यान आकर्षित किया है। कवि ने इस तथ्य को प्रस्तुत किया है कि उसके इन्हीं गुणों के कारण ही ‘पद्मावत’ जैसे मोहक काव्य की रचना संभव हो सकी।।

द्वितीय कड़बक उपसंहार खंड से उद्धृत है, जिसमें कवि द्वारा अपने काव्य और उसकी कथा सृष्टि का वर्णन है। वे बताते हैं कि उन्होंने इसे गाढ़ी प्रीति के नयन जल में भिगोई हुई रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है इसी क्रम में वे आगे कहते हैं कि अब न वह राजा रत्नसेन है और न वह रूपवती रानी पद्मावती है, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन है ! इनमें से किसी के न होने पर भी उनके यश के रूप में कहानी शेष रह गई है। फूल झड़कर नष्ट हो जाता है, पर उसकी खुशबू रह जाती है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि एक दिन उसके न रहने पर उसकी कीर्ति सुगन्ध की तरह पीछे रह जाएगी। इस कहानी का पाठक उसे दो शब्दों में याद करेगा। कवि का अपने कलेजे के खून से रचे इस काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यन्त सार्थक और बहुमूल्य है।

कविता का भावार्थ

कड़बक-1
एक नैन कबि मुहमद गुनी। सोई बिमोहा जेईं कवि सुनी।
चाँद जइस जग विधि औतारा। दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा।
जग सूझा एकई नैनाहाँ। उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ।
जौं लहि अंबहि डाभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई।
कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा। तौ अति भएउ असूझ अपारा।
जौं सुमेरु तिरसूल बिनासा। भा कंचनगिरि लाग अकासा।
जौं लहि घरी कलंक न पर। काँच होई नहिं कंचन करा।
एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कइ चाउ।।

भावार्थ-गुणवान मुहम्मद कवि का एक ही नेत्र था। किन्तु फिर भी उनकी कवि-वाणी में वह प्रभाव था कि जिसने भी सुनी वही विभुग्ध हो गया। जिस प्रकार विधाता ने संसार में सदोष, किन्तु प्रभायुक्त चन्द्रमा को बनाया है, उसी प्रकार जायसी जी की कीर्ति उज्जवल थी किन्तु उनमें अंग-भंग दोष था। जायसी जी समदर्शी थे क्योंकि उन्होंने संसार को सदैव एक ही आँख से देखा। उनका वह नेत्र अन्य मनुष्यों के नेत्रों से उसी प्रकार अपेक्षाकृत तेज युक्त था। जिस प्रकार कि तारागण के बीच में उदित हुआ शुक्रतारा। जब तक आम्र फल में डाभ काला धब्बा (कोइलिया) नहीं होता तबतक वह मधुर सौरभ से सुवासित नहीं होता। समुद्र का पानी खारयुक्त होने के कारण ही वह अगाध और अपार है।

सारे सुमेरु पर्वत के स्वर्णमय होने का एकमात्र यही कारण है कि वह शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किया गया, जिसके स्पर्श से वह सोने का हो गया। जब तक घरिया अर्थात् सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया नहीं जाता तबतक वह स्वर्ण कला से युक्त अर्थात् चमकदार नहीं होता। जायसी अपने संबंध में गर्व से लिखते हुए कहते हैं कि वे एक नेत्र के रहते हुए भी दर्पण के समान निर्मल और उज्जवल भाव वाले हैं। समस्त रूपवान व्यक्ति उनका पैर पकड़कर अधिक उत्साह से उनके मुख की ओर देखा करते हैं। यानि उन्हें नमन करते हैं।

नोट-कहते हैं कि जायसी बायीं आँख के अन्धे थे। यह एक अंग-दोष था, किन्तु जायसी जी ऐसा मानने से इनकार करते हैं।” जग सूझा एनै कई नाहाँ। उआ सूक जस नखतन्ह माहा’। आदि अनेक उक्तियों से वह अपने पक्ष की पुष्टि करते हैं। आशय है-अंगहीन होने पर भी गुणी व्यक्ति पूजनीय होता है।

कड़बक-2
मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा। सुना जो पेम पीर गा पावा।
जोरी लाइ रकत कै लेई। गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई।
औ मन जानि कबित उस कीन्हा। मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा।
कहाँ सो रतन सेनि अस राजा। कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा।
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू। कहँ राघौ जेई कीन्ह बखानू।
कहँ सुरूप मदुमावति रानी। कोइ न रहा जग रही कहानी।
धनि सो पुरुख जस कीरति जासू। फूल मरै पै मरै न बासू।
केइँ न जगत बेंचा केई न लीन्ह जस मोल।
जो यह पढे कहानी हम सँवरै दुइ बोल॥

भावार्थ-‘मुहम्मद जायसी कहते हैं कि मैंने इस कथा को जोड़कर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा प्राप्त हो गयी। इस कविता को मैंने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है और गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगो-भिगोकर गीली किया है। मैंने यह विचार करके निर्माण किया है कि यह शायद मेरे मरने के बाद संसार में मेरी यादगार के रूप में रहे। वह राजा रत्नसेन अब कहाँ? कहाँ है वह सुआ जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की? कहाँ है सुलतान आलाउद्दीन और कहाँ है वह राघव चेतन जिसने अलाउद्दीन के सामने पद्मावती का रूप वर्णन किया।

कहाँ है वह लावण्यवती ललना रानी पद्मावती। कोई भी इस संसार में नहीं रहा, केवल उनकी कहानी बाकी बची है। धन्य वही है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा स्थिर है। पुष्प के रूप में उसका शरीर भले ही नष्ट हो जाए परन्तु, उसकी कीर्ति रूपी सुगन्ध नष्ट नहीं होती। संसार में ऐसे कितने हैं जिन्होंने अपनी कीर्ति बेची न हो और ऐसे कितने हैं जिन्होंने कीर्ति मोल न ली हो? जो इस कहानी को पढ़ेगा दो शब्दों में हमें याद करेगा।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 3 ग्रीम-गीत का मर्म

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 3 ग्रीम-गीत का मर्म Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 3 ग्रीम-गीत का मर्म

Bihar Board Class 9 Hindi ग्रीम-गीत का मर्म Text Book Questions and Answers

 

ग्राम गीत का मर्म Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 1.
‘ग्राम-गीत का मर्म’ निबंध में व्यक्त सुधांशुजी के विचारों को सार रूप में प्रस्तुत करें।
उत्तर-
पाठ का सारांश देखें।

Gram Geet Ka Marm Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 2.
जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का ग्राम-गीत है। लेखक के इस कथन का क्या आशय है।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ – पाठ से उद्धृत हैं। इसमें लेखक ने कला-गीत .और ग्राम-गीत का संबंध जीवन से उद्घाटित किया है।

सुधांशु जी ने बताया है कि ग्राम-गीत संभवतः वह जातीय आशु कवित्व है, जो कर्म या क्रीड़ा के तल पर रचा गया है। गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है। इस तथ्य के माध्यम से सुधांशुजी ने दार्शनिक विचारों को हमारे सामने रखकर सत्य को उजागर किया है।

Gram Geet Ka Marm Question Answer प्रश्न 3.
गार्हस्थ्य कर्म विधान में स्त्रियाँ किस तरह के गीत गाती हैं?
उत्तर-
चक्की पीसते समय, धान कूटते समय, चर्खा काटते समय, अपने शरीरी श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं।

Gram Git Ka Marm Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 4.
मानव जीवन में ग्राम-गीतों का क्या महत्व है?
उत्तर-
मानव जीवन में ग्राम-गीतों का महत्व मुख्य रूप से पारिवारिक जीवन से है। ग्राम-गीतों का महत्व मानव जीवन में पुरुष और स्त्रियों में अलग-अलग है। पुरुष और स्त्रियों के गीतों के तुलनात्मक अध्ययन में ग्राम-गीतों की प्रकृति स्त्रैण ही रही. परुषत्व का आक्रमण उन पर नहीं किया जा सका। स्त्रियों ने जहाँ कोमल भावों की अभिव्यक्ति की वहाँ पुरुषों ने अवश्य ही अपने संस्कारवश प्रेम को प्राप्त करने के लिए युद्ध-घोषणा की। इस प्रकार मनुष्य की दो सनातन प्रवृत्तियों-प्रेम और युद्ध का वर्णन भी ग्राम-गीतों में मिलता है। तत्वतः ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि है। इसलिए मानव जीवन में ग्राम-गीतों का बहुत ही व्यापक महत्व है।

ग्राम गीत का मर्म निबंध Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 5.
“ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं।” आशय । स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु लिखित “ग्राम-गीत का मर्म” पाठ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने ग्रामगीत के उद्गम स्थान की खोज बड़े ही मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक ढंग से की है।

लेखक का कहना है कि ग्राम-गीत हृदय की वाणी है। जैसी परिस्थिति आई इसकी उद्भावना व्यक्तिगत जीवन के उल्लास-विषाद को लेकर हुई। मानव जातीयता में उसकी सारी वैयक्तिक विशेषता अंतर्निहित हो गई। वह व्यक्ति को साथ लेकर भी उसको, प्रधान न रख, उपलक्ष्य बनाकर भावों की स्वाभाविक मार्मिकता के साथ अग्रसर हुए।

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solution प्रश्न 6.
ग्राम-गीत की प्रकृति क्या है?
उत्तर-
ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी भी वह कला-गीत में आकर पौरुषपूर्ण हो गई। लेकिन मुख्य रूप से ग्राम-गीत की पद्धति स्त्रैण ही रही।

Gram Geet Ki Prakriti Kya Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 7.
कला-गीत और ग्राम-गीत में क्या अंतर है?
उत्तर-
ग्राम-गीत की रचना में जिस पद्धति और संकल्प का विधान था, कला-गीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया। अत्यधिक संस्कृत तथा परिष्कत होने के बाद भी कला-गीत अपने मल ग्राम-गीत से कला-गीत के परि
परिवर्तन में एक बात उल्लेखनीय है कि ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी, वह कला-गीत में आकर पौरुषपूर्ण हो गई। स्त्री और पुरुष रचयिता के दृष्टिकोण में जो सूक्ष्म और स्वाभाविक भेद हो सकता है, वह ग्राम-गीत और कला-गीत की अंतप्रकृति में बना रहा ग्राम-गीत में स्त्री की ओर से पुरुष के प्रति प्रेम की जो आसन्नता थी, वह कला-गीत में बहुधा पुरुष के उपक्रम के रूप में परिवर्तित होने लगी।

Bihar Board 9th Class Hindi Book Solution प्रश्न 8.
‘ग्राम-गीत का ही विकास कला-गीत में हुआ है।’ पठित निबंध को ध्यान में रखते हुए उसकी विकास-प्रक्रिया पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
कला-गीत के अंतर्गत मुक्तक और प्रबंध काव्य दोनों का समावेश है। इनके इतिहास का अनुसंधान करने पर ग्राम-गीतों पर ही आकर ठहरना पड़ता है। इसमें संन्देह नहीं कि ग्राम-गीतों से ही काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण कविताओं का विकास हुआ है। यही ग्राम-गीत क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया है, जिसका संस्कार अब तक वर्तमान है। ग्राम-गीत भी प्रथमतः व्यक्तिगत उच्छवास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया; किन्तु इन भावनाओं ने समष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समाविष्ट में ही तिरोहित हो गई और इस प्रकार उसे लोक-गीत की संज्ञा प्राप्त हुई। ग्राम-गीत को कला-गीत के रूप में आते-आते कुछ समय तो लगा ही, पर उसमें सबसे मुख्य बात यह रही कि कला-गीत अपनी रूढ़ियाँ बनाकर चले।।

Godhuli Bhag 1 Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 9.
ग्राम-गीतों में प्रेम-दशा की क्या स्थिति है? पठित निबंध के आधार पर उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर-
प्रेम-दशा जितनी व्यापकत्व विधायनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं। प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय, जुगप्सा में नहीं।

गोधूलि भाग 1 Class 9 Bihar Board Hindi प्रश्न 10.
‘प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है, वह क्रोध, शोक, विस्मय, उत्साह, जुगुप्सा आदि में नहीं।” आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ शीर्षक से उद्धृत की गई हैं। इसमें लेखक ने प्रेम की क्या-क्या दशा होती है उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण बड़े ही मार्मिक ढंग से किया है।

लेखक का कहना है कि विरहाकुल पुरुष पशु, पक्षी, लता-द्रुम सबसे अपनी वियुक्त प्रिय का पता पूछ सकता है, किन्तु क्रुद्ध, मनुष्य अपनी शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछता पाया जाता। यही कारण है कि प्रेमिका या प्रेमी प्रकृति के साथ अपने जीवन का जैसा साहचर्य मानते हैं, वैसा और कोई नहीं। मनोविज्ञान का यह तथ्य काव्य में एक प्रणाली के रूप में समाविष्ट कर लिया गया है। प्रिय के अस्तित्व की सृष्टि-व्यापिनी भावना से जीवन और जगत की कोई वस्तु अलग नहीं कर सकती। यही लेखक का आशय है जो दार्शनिक आधार पर सत्य साबित होता है।

प्रश्न 11.
ग्राम-गीतों में मानव-जीवन के किन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं?
उत्तर-
ग्राम-गीतों में मानव जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं जिनमें मनुष्य साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास, विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा-सका है और अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में उसने कृत्रिम शिष्टाचार का प्रतिबंध भी नहीं माना है।

प्रश्न 12.
गीत का उपयोग जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है। निबंधकार ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
मनोरंजन के विविध रूप और विधियाँ हैं। स्त्री प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्म-विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है, उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है। चक्की पिसते, समय, धान कूटते समय, चर्खा कातते समय अपने शरीरश्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं जिसमें उसका अभिप्रायः यह रहता है कि परिश्रम के कारण जो थकावट आई है उससे ध्यान हटाकर अन्यथा मनोरंजन में चित्त संलग्न किया जा सके।

प्रश्न 14.
किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर जो काव्य रचना की जाती थी। किन स्वाभाविक गुणों के कारण साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्व की प्रतिष्ठा बनती थी?
उत्तर-
राजा-रानी, राजकुमार या राजकुमारी या ऐसे ही समाज के किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर काव्य रचना की जो प्रणाली बहुत प्राचीन काल से चली आ रही थी और जिसका संस्कृत साहित्य में विशेष महत्व था। उसका प्रधान कारण यह था कि वैसे विशिष्ट व्यक्तियों के लिए साधारण जनता के हृदय पर उनके महत्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी। उनमें धीरोदात्त, दक्षता, तेजस्विता, रूढ़वंशता, वाग्मिता आदि गुण स्वभाविक माने जाते थे।

प्रश्न 15.
ग्राम-गीत की कौन-सी प्रवृत्ति अब काव्य गीत में चलने लगी है?
उत्तर-
बच्चे अब भी राजा, रानी, राक्षस, भूत, जानवर आदि की कहानियाँ सुनने को ज्यादा उत्कठित रहते हैं। साधारण तथा प्रत्यक्ष जीवन में जो घटनाएँ होती रहती हैं, उनके अतिरिक्त जो जीवन से दूर तथा अप्रत्यक्ष है, उनके संबंध में कुछ जानने की लालसा तथा उत्कंठा अधिक बनी रहती है। मानव जीवन का पारस्परिक संबंध सूत्र कुछ ऐसा विचित्र है कि जिस बात को हम एक काल और एक देश में बुरा समझते हैं उसी बात को दूसरे काल और दूसरे देश अच्छा मान लेते हैं। यही बात ग्राम-गीत की प्रकृति से काव्यगीत की है।

प्रश्न 16.
ग्राम-गीत के मेरूदण्ड क्या हैं?
उत्तर-
हमारी दरिद्रता के बीच में भी संपत्तिशालीनता का यह रूप हमारे भाव को उद्दीप्त करने के लिए ही उपस्थित किया गया है। ऐसे वर्णन कला-गीत में चाहे विशेष महत्व प्राप्त न करें, किन्तु ग्राम-गीत के वे मेरुदण्ड समझे जाते हैं।

प्रश्न 17.
‘प्रेम दशा जितनी व्यापक विधायिनी होती है, जीवन में उतनी और कोई स्थिति नहीं।’ प्रेम के इस स्वरूप पर विचार करें तथा आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ लक्ष्मी नारायण सुधांशु द्वारा लिखित ‘ग्राम-गीत का मर्म’ शीर्षक से उद्धृत की गई हैं। इसमें लेखक ने प्रेम-दशा का जो रूप होता है उसका बड़ा ही सुन्दर रूप प्रस्तुत किया है।
लेखक ने बताया है कि प्रेम या विरह में समस्त प्रकृति के साथ जीवन की जो समरूपता देखी जाती है वह क्रोध, शोक, उत्साह, विस्मय, जुगुप्सा आदि में नहीं। विरहाकुल. पुरुष पशु, पक्षी, लता, द्रुम सबसे अपनी वियुक्त प्रिया का पता पूछ सकता है किन्तु क्रुध मनुष्य अपने शत्रु का पता प्रकृति से नहीं पूछ सकता। प्रेम के इस स्वरूप पर लेखक ने दार्शनिकता की छाप छोड़ी है।

प्रश्न 18.
‘कला-गीतों में पशु-पक्षी, लता-दुम आदि से जो प्रश्न पूछे गए हैं, उनके उत्तर में, वे प्राय मौन रहे हैं। विरही यक्ष मेघदूत भी मौन ही रहा है। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? यदि हैं तो अपने विचार दें।
उत्तर-
हाँ. मैं लेखक के मत से सहमत हूँ क्योंकि कला-गीतों में कलात्मकता की भावना ऐसी है कि बहुत से प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं लेकिन ग्राम-गीत मौन नहीं रहता। क्योंकि ग्राम-गीतों में ऐसे वर्णन बहुत हैं जहाँ नायिका अपने प्रेमी की खोज में बाघ, भालू, साँप आदि से उसका पता पूछती चलती है। आदिकवि वाल्मीकि ने विरह-विह्वल राम के मुख से सीता की खोज के लिए न जाने कितने पशु-पक्षी, लता-द्रुम आदि से पता पुछवाया है। इसके अतिरिक्त सीता के अनुसंधान तथा उनके पास राम का प्रणय संदेश पहुँचाने के लिए, जो हनुमान को दूत बनाकर तैयार किया, वह काव्य में इस परिपाटी का मार्ग-दर्शक ही हो गया।

प्रश्न 19.
‘ग्राम-गीत का मर्म’ निबंध के इस शीर्षक में लेखक ने ‘मर्म’ ‘ शब्द का प्रयोग क्यों किया है? विचार कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने ग्राम-गीत के मर्म का उद्घाटन करते हुए। काव्य और जीवन में उसके महत्व का निरूपण किया है। ग्राम-गीत का उद्भव और उसकी प्रवृत्ति का अनुसंधान करते हुए उन्होंने प्रतिपादित किया है कि जीवन की शुद्धता और गांवों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है उनका परवर्ती कला-गीतों में नहीं।

निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

1. ग्राम-गीतों में मानव-जीवन के उन प्राथमिक चित्रों के दर्शन होते हैं, जिनमें मनुष्य साधारणतः अपनी लालसा, वासना, प्रेम, घृणा, उल्लास, विषाद को समाज की मान्य धारणाओं से ऊपर नहीं उठा सका है और अपनी हृदयगत भावनाओं को प्रकट करने में उसने कृत्रिम शिष्टाचार का प्रतिबंध भी नहीं माना है। उनमें सर्वत्र रूढ़िगत जीवन ही नहीं है, प्रत्युत्त कहीं-कहीं प्रेम, वीरता, क्रोध, कर्तव्य का भी बहुत रमणीय वाह्म तथा अंतर्विरोध दिखाया गया है। जीवन की शुद्धता और भावों की सरलता का जितना मार्मिक वर्णन ग्राम-गीतों में मिलता है, उतना परवर्ती कलागीतों में नहीं।
(क) इसके पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) ग्राम-गीतों में किन चित्रों के दर्शन होते हैं?
(ग) ग्राम-गीतों में आए चित्रों की क्या विशेषताएँ हैं?
(घ) “कृत्रिम शिष्टाचार के प्रतिबंध” और ‘रूढ़िगत जीवन’ का क्या अभिप्राय है?
(ङ) ग्राम-गीतों की मूल विशेषता का परिचय दें।
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) ग्राम-गीत हमारे प्रारंभिक जीवन से जुड़े होते हैं। उन गीतों में मानव जीवन के विभिन्न प्रकार के वैसे प्राथमिक चित्रों का अंकन मिलता है जिनमें सामान्य और साधारण रूप से आम आदमी की सामाजिक मान्य धारणाओं में बँधी लालसाओं, वासनाओं, प्रेम-घृणा, उल्लास तथा विषाद की भावनाएँ प्रतिबिंबित रहती

(ग) ग्राम-गीतों में आए चित्र हमारे प्राथमिक जीवन से जुड़े होते हैं। उन चित्रों में आम आदमी की सामान्य दुःख-सुख, हर्ष-विषाद, क्रोध, घृणा आदि की वैसी सामान्य भावनाएँ अंकित रहती हैं जो सामान्य रूप से सामाजिक मान्य धारणाओं से नियंत्रित रहती हैं। ऐसी भावनाओं को प्रकट करने में ग्राम-गीतकार बनावटी शिष्टाचार के प्रतिबंध से अपने-आपको मुक्त रखते हैं। फलत: वे भावनाएँ स्वाभाविक रूप से अभिव्यंजित होती है।

(घ) ‘कृत्रिम शिष्टाचार के प्रति-ध’ का यहाँ यह मतलब है कि ग्राम-गीतों में आम आदमी की सामान्य भावनाओं को प्रकट करने का जो रूप है वह बिल्कुल स्वाभाविक और मनुष्य की सामान्य कृति के अनुरूप है। उसमें किसी प्रकार की शिष्टाचारगत अस्वाभाविकता और कृत्रिमता, अर्थात बनावटीपन नहीं मिलता। इसी तरह रूढ़िगत जीवन का यहाँ अर्थ है-परंपरागत जीवन की मान्यताओं, जीवन-शैलियों और जीवन-पद्धतियों से जुड़ा जीवन।

(ङ) ग्राम-गीतों की मूल विशेषता यह होती है कि उन गीतों में मानव-जीवन की सरलता और शुद्धता का बड़ा ही मार्मिक चित्रण मिलता है। ये गीत कृत्रिम जीवन-शैली की कलुषित छाया से बिल्कुल. मुक्त होते हैं। इसीलिए इन गीतों में सामान्य जीवन के स्वाभाविक और निष्कलुष सौंदर्य के अंकन अपने मौलिक रूप में मिलते हैं। ग्राम-गीतों की यह मौलिक और दुर्लभ विशेषता कलागीतों में भी नहीं मिलती, क्योंकि वहाँ किसी-न-किसी रूप में कृत्रिमता के प्रभाव की छाया विद्यमान रहती ही है।

2. जीवन का आरंभ जैसे शैशव है, वैसे ही कला-गीत का ग्राम-गीत है। ग्राम-गीत संभवतः वह जातीय आशु कवित्व है, जो कर्म या क्रीड़ा के ताल पर रचा गया है। गीत का उपयोग जीवन के महत्त्वपूर्ण समाधान के अतिरिक्त साधारण मनोरंजन भी है, ऐसा कहना अनुपयुक्त न होगा। मनोरंजन के विविध रूप और विधियाँ हैं। स्त्री प्रकृति में गार्हस्थ्य कर्म-विधान की जो स्वाभाविक प्रेरणा है, उससे गीतों की रचना का अटूट संबंध है। चक्की पीसते समय, धान कूटते समय, चर्खा कातते समय, अपने शरीर-श्रम को हल्का करने के लिए स्त्रियाँ गीत गाती हैं। उस समय उनका अभिप्राय साधारणतः यही रहता है कि परिश्रम के कारण जो थकावट आई रहती है, उससे ध्यान हटाकर अन्यथा मनोरंजन – में चित्त संलग्न किया जा मैके। इनके, अतिरिक्त कुछ ऐसे गीत भी हैं, जो भाव के उमंग में गाए जाते हैं। जन्म, मुंडन, यज्ञोपवीत, विवाह, पर्व-त्योहार आदि के अवसर पर जो गीत गाए जाते हैं, उनमें उल्लास और उमंग की ही प्रधानता रहती है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) कला-गीत और ग्राम-सीत में क्या संबंध है?
(ग) गीत का उपयोग किस रूप में और किस क्षेत्र में किया जाता
(घ) ग्राम-गीत गायन में स्त्रियों का साधारणतः अभिप्राय क्या रहता है?
(ङ) भाव की उमंग में किस प्रकार के गीत गाए जाते हैं?
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) कला-गीत और ग्राम-गीत में वही संबंध है जो जीवन और शैशव के बीच का संबंध है। ग्राम-गीत, कला-गीत के प्रारंभिक स्वरूप होते हैं। ग्राम-गीत वस्तुतः काल क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो जाते हैं।

(ग) गीत का उपयोग एक ओर जीवन के महत्वपूर्ण समाधान के रूप में किया जाता है तो दसरी ओर साधारण मनोरंजन के क्षेत्र में भी वे उपयोगी प्रमाणित होते हैं। मनोरंजन के कई रूप और विधियाँ हैं। गार्हस्थ जीवन में स्त्रियाँ जो कर्म विधान करती हैं उससे गीतों की रचना का बड़ा निकट का संबंध है।

(घ) ग्राम-गीत गायन के ये कई अवसर होते हैं, जैसे-चक्की पीसते समय, धान. कूटते समय, चरखा काटते समय, स्त्रियाँ ग्राम-गीत गाती है। उस समय गीत गायन का उनका साधारणतः अभिप्राय यही रहता है कि उन कार्यों से उत्पन्न थकावट से आये ध्यान को हटाकर मन को मनोरंजन में लगा सके।

(ङ) कुछ ऐसे ग्राम-गीत होते हैं जो विशुद्ध रूप से भाव की उमंग के क्रम में गाए जाते हैं। इन गीतों के गायन में परिश्रम और थकावट की कोई बात ही नहीं उठती है। भाव की उमंग में गाए जानेवाले वे गीत हैं जो जन्म, मुंडन. यज्ञोपवीत, विवाह, पर्व-त्योहार आदि के अवसर पर गाए जाते हैं। इन गीतों में उल्लास और उमंग की ही प्रधानता होती है।

3. किंतु सब मिलाकर ग्राम-गीतों की प्रकृति स्त्रैणं ही रही, पुरुषत्व का ‘आक्रमण उनपर नहीं किया जा सका। स्त्रियों ने जहाँ कोमल भावों की ही अभिव्यक्ति की, वहाँ पुरुषों ने अवश्य ही अपने संस्कारवश प्रेम को प्राप्त करने के लिए युद्ध घोषणा की। इस प्रकार मनुष्य की दो सनातन प्रवृत्तियों-प्रेम और युद्ध-का वर्णन भी ग्राम-गीतों में मिलता है। तत्त्वतः ग्राम-गीत हृदय की वाणी है, मस्तिष्क की ध्वनि नहीं। इनकी उद्भावना व्यक्तिगत जीवन के उल्लास-विषाद को लेकर भले ही हुई हो, किंतु मानव-जातीयता में उसकी सारी वैयक्तिक विशेषता अंतर्निहित. हो गई है। उनकी अपूर्वता इसी बात में है कि वे व्यक्ति को साथ लेकर भी उसको, प्रधान न रख, उपलक्ष्य बनाकर भावों की स्वाभाविक मार्मिकता के साथ अग्रसर हुए हैं।
(क) इस गद्यांश के पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) सब मिलाकर ग्राम-गीतों की प्रकृति “स्त्रैण” ही रही। इस कथन का क्या मतलब है?
(ग) ग्राम-गीतों से पुरुषों का कैसा संबंध रहा है?
(घ) ग्राम-गीतों की क्या विशेषताएँ हैं और उनकी उद्भावना कैसे
(ङ) ग्राम-गीतों की अपूर्वता किस बात में है?
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक का नाम-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) इस कथन से लेखक का मतलब यह है कि ग्राम-गीतों से प्रायः स्त्रियों का स्वर ही जुड़ा रहता है और उन गीतों में स्त्री-प्रकृति की ही कार्यशीलता का प्राधान्य मिलता है। लेखक के अनुसार ग्राम-गीतों का मुख्य विषय पारिवारिक जीवन होता है और उसमें स्त्रियों की भूमिका अधिक होती है। दूसरी बात यह है कि ग्राम-गीतों में जो भी कोमल भावों की अभिव्यक्ति मिलती है वह स्त्रियों की ही देन है।

(ग) ग्राम-गीतों से कुछ हद तक पुरुषों का भी संबंध रहा है। यह बात सर्वविदित है कि ग्राम-गीतों में प्रेम ऐसे कोमल भाव के साथ-साथ न्यूनाधिक्य मात्रा में क्रोध और युद्ध के भी वर्णन मिलत हैं। ये कठोर भाव और दृश्य संस्कारवश पुरुषों से जुड़े होते हैं, क्योंकि प्रेम को पाने के लिए युद्ध की घोषणा पुरुष ही करता है।

(घ) ग्राम-गीतों की यह विशेषता है कि वे भाव-प्रधान होते हैं। भाव का प्रत्यक्ष संबंध हृदय से होता है। इसलिए ग्राम-गीतों को हृदय की वाणी कहा जाता है। वहाँ बुद्धि की प्रखरता, अर्थात् मस्तिष्क की ध्वनि के लिए कोई स्थान नहीं है। इन गीतों की उद्भावना जीवन के उल्लास, विषाद से प्रेरित होने के साथ-साथ मानव जातीयता में अंतर्निहित वैयक्तिक विशेषता के कारण होती है।

(ङ) इन गीतों की अपूर्वता इस बात में है कि ये गीत वैयक्तिक भावना को साथ लेकर भी उसको प्रधान स्थान नहीं देते। उनकी खासियत, भावों की स्वाभाविक मार्मिकता की अभिव्यंजना के साथ जुड़ी हुई है।

4. इसमें संदेह नहीं कि ग्राम-गीतों से ही काल्पनिक तथा वैचित्र्यपूर्ण
कविताओं का विकास हुआ है। यही ग्राम-गीत क्रमशः सभ्य जीवन के अनुक्रम से कला-गीत के रूप में विकसित हो गया है, जिसका संस्कार अब तक वर्तमान है। ग्राम-गीत भी प्रथमतः व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदना को लेकर उद्गीत किया गया, किंतु इन भावनाओं ने समष्टि का इतना प्रतिनिधित्व किया कि उनकी सारी वैयक्तिक सत्ता समष्टि में ही तिरोहित हो गई और इस प्रकार उसे लोक-गीत की संज्ञा प्राप्त हुई। ग्राम गीत को कला-गीत के रूप में आते-आते कुछ समय तो लगा ही, पर उसमें सबसे मुख्य बात यह रही कि कला-गीत अपनी रूढ़ियाँ बनकर चले।
(क) लेखक और पाठ के नाम लिखिए।
(ख) ग्राम-गीत कला-गीत के रूप में कैसे विकसित हो गए हैं?
(ग) ग्राम-गीत को लोकगीत की संज्ञा कैसे प्राप्त हुई?
(घ) कला-गीत की क्या विशेषताएँ होती हैं?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक का नाम-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) लेखक के अनुसार ग्राम. गीतों के द्वारा ही काल्पनिक एवं विचित्र कविताओं को विकास का आधार मिला है। ये ग्राम-गीत जब क्रमशः सभ्य जीवन का अनुक्रमन करते हैं तब उस अनुक्रम की प्रक्रिया से वे कला-गीत के रूप में विकसित होते हैं।

(ग) सामान्य रूप से ग्राम-गीतों में व्यक्तिगत उच्छ्वास और वेदनाओं का प्राधान्य होता है, लेकिन उन व्यक्त भावनाओं में समष्टि का बड़ा सबल प्रतिनिधित्व हो जाता है। जब इस प्रक्रिया में वैयक्तिक सत्ता की चेतना समष्टि में ही विलीन हो जाती है तब अपने इस नये स्वरूप में उन गीतों को लोक-गीतों की संज्ञा मिलती है।

(घ) ग्राम-गीतों को कला-गीतों के स्वरूप धारण में कुछ समय तो लग ही जाता है, लेकिन वहाँ प्रधान बात यह परिलक्षित होती है। कि कला-गीत अपनी रूढ़ियों, दूसरे शब्दों में परम्पराओं से मुक्त होकर नहीं चलते। रूढ़ियाँ उनके साथ जुड़ी ही रहती है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक के कथन का आशय यह है कि ग्राम-गीतों द्वारा ही काल्पनिकता तथा विचित्र कथाओं का जन्म और विकास संभव है। आज के ये ग्राम-गीत ही जीवन के अनुक्रम को माध्यम के रूप में पाकर कल जाकर कला-गीत के रूप में विकिसित होते हैं। ग्राम-गीतों में व्यक्त वैयक्तिक चेतना या भावना ही समष्टि का प्रतिनिधित्व पाकर लोक-गीत की संज्ञा-प्राप्त करती है।

5. ग्राम-गीत की रचना में जिस प्रकृति और संकल्प का विधान था, कला-गीत में उसकी उपेक्षा करना समुचित न माना गया। अत्यधिक । संस्कृत तथा परिष्कृत होने के बाद भी कला-गीत अपने मूल ग्राम-गीत के संस्कार से कुछ बातों में मुक्ति पा सका और यह उस समय तक संभव नहीं; जब तक मानव-प्रकृति को ही विषय मानकर काव्य रचनाएँ की जाती रहेंगी। ग्राम गीत से कला-गीत के परिवर्तन में एक बात । उल्लेखनीय रही कि ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी, वह कला-गीत में आकर कुछ पौरुषपूर्ण हो गई। स्त्री और पुरुष-रचयिता के दृष्टिकोण में जो सूक्ष्म और स्वाभाविक भेद हो सकता है, वह ग्राम-गीत और कला-गीत की अंतः प्रकृति में बना रहा। ग्राम-गीत में स्त्री की ओर से पुरुष के प्रति प्रेम की जो आसन्नता थी, वह कला-गीत में बहुधा पुरुष के उपक्रम के रूप में परिवर्तित होने लगी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) कला-गीत में किसकी उपेक्षा करना समुचित नहीं माना गया और क्यों?
(ग) ग्राम-गीत से कला-गीत के परिवर्तन में कौन-सी बात उल्लेखनीय
(घ) ग्राम-गीत तथा कला-गीत की अंतः प्रकृति में कौन-सी बात बनी रही?
(ङ) ग्राम-गीत और कला-गीत में व्यंजित प्रेम के स्वरूप का अंतर बतलाएँ।
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) ग्राम-गीत की रचना की जो अपनी खास प्रकृति थी और संकल्प का जो विधान था, कला-गीत में उसकी उपेक्षा करना या उसे छोड़कर चलना समुचित नहीं माना गया। इसका कारण यह था कि वे कला-गीत के अपरिहार्य अंग थे।

(ग) ग्राम-गीत से कला-गीत के परिवर्तन में यह एक बात उल्लेखनीय रही कि ग्राम-गीत में रचना की जो प्रकृति स्त्रैण थी वहाँ कला-गीत में कुछ हद तक बदलकर पौरुषपूर्ण हो गई।

(घ) ग्राम-गीत और कला-गीत के रचयिता क्रमशः स्त्री और पुरुष थे। इन दोनों प्रकार के रचयिताओं के दृष्टिकोण में जो कुछ सूक्ष्म और स्वाभाविक भेद थे, वे कला-गीत और ग्राम-गीत की अंतः प्रकृति में बने रहे।

(ङ) ग्राम-गीत और कला-गीत के व्यंजित प्रेम में अंतर यह था कि ग्राम-गीतों में पुरुषोन्मुख स्त्री-प्रेम की निकटता की व्यंजना अधिक थी, और कला-गीतों में प्रेम की वह निकटता पुरुष के उपक्रम, अर्थात् प्रारंभिक प्रेमावस्था के रूप में बदलती चली गईं।

6. राजा-रांनी, राजकुमार या राजकुमारी या ऐसे समाज के किसी विशिष्ट वर्ग के नायक को लेकर काव्य रचना की जो प्रणाली बहुत प्राचीन काल से चली आ रही थी और जिसका संस्कृत-साहित्य में विशेष महत्त्व था, उसका प्रधान कारण यह था कि वैसे विशिष्ट व्यक्तियों के लिए साधारण जनता के हृदय पर उसके महत्त्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी। उनमें धीरोदात्तता, दक्षता, तेजस्विता, रूढ़वंशता, वाग्मिता आदि गुण स्वाभाविक माने जाते थे। मानव होते हुए भी उनकी महत्ता, विशिष्टता, प्रतिष्ठा आदि का प्रभावनोत्पादक संस्कार जनता के चित्त पर पड़ा था। ऐसे चरित्र को लेकर काव्य-रचना करने में रसोत्कर्ष का काम, बहुत-कुछ सामाजिक धारणा के बल पर ही चल जाता था, किंतु साधारण जीवन के चित्रण में कवि की प्रतिभा का बहुत-सा अंश, अपने चरित्र नायक में विशिष्टता प्राप्त कराने की चेष्टा में ही खर्च हो जाता है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) काव्य-रचना की कौन-सी प्रणाली बहुत दिनों से चली आ रही
थी और कहाँ उसकी महत्ता बहुत ज्यादा थी?
(ग) उस महत्त्व के विशिष्ट कारण क्या थे?
(घ) विशिष्ट व्यक्तियों में कौन-से चारित्रिक गुण स्वाभाविक माने जाते थे?
(ङ) साधारण जीवन के चित्रण में कवि का क्या प्रयास रहता है?
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु

(ख) हमारे समाज में बहुत दिनों से ऐसी काव्य-प्रणाली चली आ रही थी जिसमें राजा, रानी, राजकुमार ऐसे समाज के विशिष्ट वर्ग के लोगों को केंद्र में रखकर काव्य की रचना की जाती थी। संस्कृत साहित्य में इसी काव्य-प्रणाली का विशेष महत्त्व था।

(ग) उस काव्य-प्रणाली की महत्ता का कारण यह था कि वैसे तथाकथित विशिष्ट व्यक्तियों के लिए समाज के सभी वर्गों के लोगों के दिल-दिमाग में उनके महत्व की प्रतिष्ठा बनी हुई थी।

(घ) उन विशिष्ट व्यक्तियों के चरित्र में इन चारित्रिक गुणों को स्वाभाविक माना जाता था-उनकी धीरोदात्तता, दक्षता, तेजस्विता, रूढ़वंशता, वाग्मिता आदि। सामान्य लोगों के दिलों पर उन विशिष्ट व्यक्तियों की प्रतिष्ठा, महत्ता तथा विशिष्टता आदि का प्रभावपूर्ण संस्कार जमा हुआ था।

(ङ) साधारण जीवन के चित्रण में कवि का प्रयास यही रहता था कि वे अपनी प्रतिभा का ज्यादा उपयोग अपने चरित्र नायक को विशिष्टता प्रदान करने में ही करते थे। वे यही चाहते थे कि उनके चरित्र नायक की सामान्य लोगों के बीच विशेष स्थिति बनी रहे और वे विशेष सम्मान के पात्र बने रहें।

7. बच्चे अब भी राजा-रानी, राक्षस, भूत, जानवर आदि की कहानियाँ सुनने को ज्यादा उत्कंठित रहते हैं। नानी की कहानियाँ ऐसी ही हुआ करती हैं। साधारण तथा प्रत्यक्ष जीवन में जो घटनाएं होती रहती हैं, उनके अतिरिक्त जो जीवन से दूर तथा अप्रत्यक्ष हैं, उनके संबंध में कुछ जानने की लालसा तथा उत्कंठा अधिक बनी रहती हैं। बच्चों की भाँति उन मनुष्यों को भी, जिनका मानसिक विकास नहीं हुआ रहता, वैसी कहानियाँ ज्यादा रुचिकर मालूम होती हैं। ग्राम-गीतों की रचना में ऐसी प्रवृत्ति प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। मानव-जीवन का पारस्परिक संबंध-सूत्र कुछ ऐसा विचित्र है कि जिस बात को हम एक काल और एक देश में बुरा समझते हैं, उसी बात को हम दूसरे काल और दूसरे देश में अच्छा मान लेते हैं।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) बच्चे अब भी क्या सुनने के लिए ज्यादा उत्कंठित रहते हैं?
(ग) ग्राम-गीतों में कैसी प्रवृत्ति प्रायः सर्वत्र पाई जाती है?
(घ) मानव-जीवन के संबंध-सूत्र की क्या विचित्रता होती है?
(ङ) इस गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) बच्चे अब भी राजा-रानी, राक्षस, भूत, जानवर आदि की कहानियाँ सुनने को ज्यादा उत्कठित रहते हैं। नानी की कहानियाँ इसीलिए उनके लिए ज्यादा प्रिय होती हैं क्योंकि इनमें ऐसे ही पात्रों की कहानियाँ ज्यादा होती हैं। वे पात्र जीवन से दूर के और अप्रत्यक्ष होते हैं।

(ग) ग्राम-गीतों में साधारण और प्रत्यक्ष जीवन की घटित घटनाओं तथा जीवन से दूर की और अप्रत्यक्ष बातों को जानने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है।

(घ) मानव-जीवन के पारस्परिक संबंध-सूत्र की कुछ ऐसी विचित्रता होती है कि आज जो बात किसी देश और कालविशेष में ग्राह्य या अच्छी लगती है, कल वही बात दूसरे देश और समयांतर में अग्राह्य और बुरी लगने लग जाती है। मनुष्य की इस मानसिक वृत्ति की विचित्रता का परिचय ग्राम-गीतों में वर्णित देवी-देवताओं, भूत-प्रेतों तथा राजा-रानियों की कहानियों के संदर्भ में ज्यादा मिलता है।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने ग्राम-गीतों की रचना की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला है। इस क्रम में लेखक का यह कथन है कि बच्चे ग्राम-गीतों में आई राजा-रानी भत-प्रेत राजकमार-राजकमारी की कहानियों को सनने के लिए ज्यादा व्यग्र और उत्कठित रहते हैं। इसी कारण नानी की या दूर की कहानियाँ उनके लिए विशेष प्रिय होती हैं। मानसिक दृष्टि से अविकसित लोगों की भी यही बच्चों वाली मानसिकता होती है। हाँ, कालक्रम में समय और स्थान में परिवर्तन के साथ लोगों की यह प्रवृत्ति बदल भी जाती है।

8. उच्च वर्ग के लोगों के प्रति समाज में विशिष्टता की धारणा ज्यों-ज्यों कम होने लगी, त्यों-त्यों निम्न वर्ग के प्रति हमारे हृदय में आदर का भाव जमने लगा और इस प्रकार काव्य में ऐसे पात्रों को सामान्य स्थान प्राप्त होने लगा। हृदय की उच्चता-विशालता किसी में हो, चाहे वह राजा हो या भिखारी, उसका वर्णन करना ही कवि-कर्म है। ग्राम-गीत में दशरथ, राम, कौशल्या, सीता, लक्ष्मण, कृष्ण, यशोदा के नाम बहुत आए हैं और उनसे जन-समाज के बीच संबंध का प्रतिनिधित्व कराया गया है। श्वसुर के लिए दशरथ, पति के लिए राम या कृष्ण, सास के लिए कौशल्या या यशोदा, देवर के लिए लक्ष्मण आदि सर्वमान्य हैं। इसका कारण हमारा वह पिछला संस्कार भी है, जो धार्मिक महाकाव्यों ने हमारे चित्त पर डाला है।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) काव्य में कब और कैसे निम्न वर्ग के पात्रों को सामान्य स्थान प्राप्त होने लगा?
(ग) कवि-कर्म क्या है?
(घ) ग्राम-गीतों में दशरथ, राम, कौशल्या, कृष्ण और लक्ष्मण को समाज के बीच किन संबंधों का प्रतिनिधित्व कराया गया है?
(ङ) धार्मिक महाकाव्यों ने हमारे चित्त पर क्या प्रभाव डाला है?
उत्तर-
(क) पाठ-ग्राम-गीत का मर्म, लेखक-लक्ष्मी नारायण सुधांशु।

(ख) उच्च वर्ग के तथाकथित सम्मानित लोगों के प्रति समाज में जैसे-जैसे विशिष्टता की धारणा कमने लगी, वैसे-वैसे हमारे हृदय में निम्न वर्ग के लोगों के प्रति आदर और सम्मान का भाव पुष्ट होने लगा और इस रूप में काव्य में निम्न वर्ग के पात्रों को सामान्य स्थान प्राप्त होने लगा।

(ग) लेखक के अनुसार कवि-कर्म यह है कि वह (कवि) अपनी कविता में ऐसे लोगों के वर्णन को स्थान दे जिनका चरित्र उदात्त हो तथा जो हृदय की उदारता, उच्चता और विशालता के गुणों से भूषित हों। कवि इस कर्म के अनुष्ठान में यह नहीं देखता है कि उसके काव्य में वर्णित व्यक्ति उच्च वर्ग का है या निम्न वर्ग का दीन-हीन भिखारी। आर्थिक स्थिति और स्तर की बात का कवि-कर्म में कोई स्थान नहीं है।