BSEB Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
क्या केवल नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है ?
उत्तर:
नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है। नियोजन प्रबंधन का प्राथमिक कार्य है। निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य में क्या करना है, क्यों करना है, किसे करना है, कब करना है, कैसे करना है और किन-किन साधनों के उपयोग से करना है इत्यादि बातों का पहले से ही निर्धारण करना नियोजन कहलाता है। वास्तव में व्यापार की सफलता बहुत हद तक नियोजन पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
अस्थायी अलगाव से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अस्थायी तौर पर जब नियोक्ता किसी कर्मचारी को उसके काम से निलंबन करता है या उसे. हटा देता है तो इसे अस्थायी अलगाव कहा जाता है। इसमें नियोक्ता अपने कर्मचारी को उसके बकाये वेतन और अन्य सुविधाओं को देता है। बाद में चलकर नियोक्ता पुनः उस कर्मचारी की नियुक्ति कर देता है। जब कर्मचारी की पुनः नियुक्ति होती है तब उसी समय से कर्मचारी की वेतन तय होता है।

प्रश्न 3.
विनियोग निर्णय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विनियोग का अर्थ होता है पैसे का किसी भी क्षेत्र में निवेश करना। विशेष रूप से अंश और ऋण में पैसे का विनियोग करना लाभदायक होता है। विनियोग करने के संबंध में उचित निर्णय लेना ही विनियोग निर्णय कहलाता है। सोच-समझकर विनियोग का निर्णय करने से निवेशकों को लाभ के रूप में आय की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 4.
NESI को मॉडल एक्सचेंज क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
NESI को विभिन्न कारणों से मॉडल एक्सचेंज कहा जाता है। ये कारण निम्न हैं-

  • राष्ट्रव्यापी बाजार उपलब्ध कराना,
  • व्यापार में कुशलता निष्पक्षता एवं पारदर्शिता लाना
  • समान रूप से उच्च किस्म की सेवाएं प्रदान करना
  • राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि को सभी निवेशकों की पहुँच में लाना
  • ऋण बाजार का विकास करना
  • लागतों में कमी लाना
  • अखिल भारतीय स्तर पर सेवायें प्रदान करना।

प्रश्न 5.
संदेशवाहन शब्द को लैटिन शब्द भाषा के “Communis” शब्द से लिया गया है। इसका क्या अर्थ हैं ?
उत्तर:
संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Comminis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है-Common। किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके।

प्रश्न 6.
“प्रबन्ध एक सरल विज्ञान है।” कैसे ?
उत्तर:
किसी विषय का व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है, प्रबन्ध भी व्यवस्थित ज्ञान है। विज्ञान की विशेषतायें इसमें पाई जाती हैं। प्रबंध के अनेक सार्वभौमिक सिद्धान्त हैं जो सभी जगह लागू होते हैं। विज्ञान की भाँति प्रबन्ध भी कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है।

प्रश्न 7.
अधिकार का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी के प्रबंधक अपने अधीनस्थों को प्रबंध सम्बन्धी कार्य करने की जिम्मेदारी देता है। तो इसे अधिकार कहा जाता है। अधिकार मिलने से ही अधीनस्थ कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन अच्छी तरह से कर सकते हैं। वास्तव में औद्योगिक युग में कोई भी व्यक्ति न तो सभी कार्य स्वयं कर सकता है और न ही सभी निर्णय स्वयं ले सकता है। अतः वह कुछ कार्य दूसरों को सौंप देता है। इस प्रकार अपने कार्यभार का कुछ भाग दूसरे व्यक्तियों को सौपना ही भारार्पण या अधिकार कहलाता है।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबंध संबंधी शक्ति प्राप्त करना ही अधिकार कहलाता है।

प्रश्न 8.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा है ?
उत्तर:
ऐसा कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अन्धा है। क्योंकि जब नियोजन की प्रक्रिया अच्छी तरह से नहीं होती है तो व्यवसायिक संस्था को नियंत्रण भी अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता है। नियोजन और नियंत्रण दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक कार्य है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। नियोजन के बिना नियंत्रण अर्थहीन है तथा नियंत्रण नियोजन के बिना अंधा है। वास्तव में नियंत्रण नियोजन को उदेश्यपूर्ण बनाता है एवं नियोजन नियंत्रण को निर्देशन प्रदान करता है।

प्रश्न 9.
वितरण माध्यम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
वितरण माध्यम वस्तुओं को उत्पादक (निर्माता) से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का वह मार्ग है जिसमें वे सभी व्यक्ति एवं संस्थाओं सम्मिलित की जाती है जो बिना किसी परिवर्तन के इनको पहुँचाने का कार्य करती है। निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। उपयुक्त माध्यम वह है जो मितव्ययी हो तथा अधिकतम लाभप्रद हो।

प्रश्न 10.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं ?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धान्त सार्वभौमिक है क्योंकि प्रबंध के सभी सिद्धान्त सार्वभौमिक योग्यता और उपयोगिता पर आधारित है। यह मानव के प्रत्येक क्षेत्र आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक में लागू होता है। प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता पड़ती है। अतः प्रबंध की उपयोगिता सार्वभौमिक है।

प्रश्न 11.
नियंत्रण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
नियंत्रण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उद्देश्य की जानकारी करना (Determining objectives) – इस बात का पता लगाना कि क्या किया जाना है और किस समय किया जाना है।
  • साधनों की जानकारी करना (Determining of Resources) – किसी कार्य को करने के लिए कितनी पूँजी और मानवीय शक्ति की आवश्यकता है।
  • विचलन का पता लगाना (Determining of deviation) – प्रतिमानों एवं निष्पादन में विचलन का पता लगाना और संशोधन करना।

प्रश्न 12.
पूँजी संरचना से क्या आप समझते हैं ?
उत्तर:
पूँजी संरचना से आशय पूँजी के दीर्घकालीन साधनों के पारस्परिक अनुपात से है। इसमें समस्त दीर्घकालीन कोष सम्मिलित होते हैं, जैसे – अंश पूँजी, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण तथा संचितियाँ।

प्रश्न 13.
उच्च स्तरीय प्रबंध के किन्ही तीन कार्यों को बताएं।
उत्तर:
उच्च स्तरीय प्रबंध के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उच्च स्तरीय प्रबंधक संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं।
  • निर्धारित उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधक द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
  • निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा विभिन्न साधनों की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 14.
नियंत्रण आगे देखना है। समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण का उद्देश्य व्यवसाय के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति है। यही कारण है कि सुधारक कार्यवाहियाँ इस प्रकार की जाती हैं कि भविष्य में उन कमियों और गलतियों को न दोहराया जाए जो कि वर्तमान में की गयी है। इस प्रकार नियंत्रण प्रक्रिया कार्य की वास्तविक प्रगति की समीक्षा ही नहीं वरन् भविष्य के उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति भी है।

प्रश्न 15.
प्रबंध के नियंत्रण कार्य में प्रयोग होने वाले ‘विचलन’ शब्द का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
नियंत्रण प्रक्रिया का अगला तीसरा स्तर प्रमाप (विचलन) और वास्तविक हुए कार्यों के बीच आने वाले अंतर के कारणों को मालूम करना है। इससे यह तथ्य मालूम करने का प्रयत्न किया जाता है कि जो अंतर आया है वह गलत योजना बनने के कारण आया है या योजना ठीक तरह से लागू करने के कारण आया है।

प्रश्न 16.
मुद्रा बाजार क्या है ?
उत्तर:
मुद्रा बाजार (Money market) वह केन्द्र या बाजार है जिसमें मुद्रा एवं अल्पावधि वित्तीय आस्तियाँ जो मुद्रा के निकट के प्रतिरूप हैं, ली और दी जाती हैं। मुद्रा बाजार में मुद्रा विनिमय-पत्रों, प्रतिज्ञा-पत्रों व अल्पकालीन बिलों को मुद्रावत (near money) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
विपणन के दो तत्वों को बताइए।
उत्तर:
विपणन के दो तत्व निम्नलिखित हैं-

  • बाजार तथा
  • ग्राहक

प्रश्न 18.
उत्पाद के मूल्य संबंधी निर्णय से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
मूल्य निर्धारण विपणन-मिश्रण का दूसरा तत्व है। मूल्यों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को अधिक प्रतीत न हो, संस्था प्रतियोगिता में टिककर उचित लाभ प्राप्त कर सके तथा सरकारी नियंत्रणों से भी अपने आपको बचा सके।

प्रश्न 19.
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है। कैसे ?
उत्तर:
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है, क्योंकि विज्ञापन खराब-से-खराब वस्तुओं और सेवाओं को अच्छा-से-अच्छा बना देता है। विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, वह वास्तव में होता नहीं है। विज्ञापन द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जिससे क्रेता आसानी से भ्रमित हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
उद्यमिता क्या है?
उत्तर:
उद्यमितया या साहसिक कार्यों का अर्थ है-कार्यों को देखना, विनियोग करना, उत्पादन के अवसरों को देखना, उपक्रम को संगठित करना और नई विधि से उत्पादन करना, पूँजी प्राप्त करना, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना, उच्च पद के अधिकारी, प्रबंधकों का चयन जो संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करेंगे।

प्रश्न 21.
प्रबंध में हेनरी फेयोल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबंध में हेनरी फेयोल का महत्वपूर्ण योगदान है। फेयोल ने प्रबंध के लिए 14 सिद्धांत दिए हैं-

  • कार्य विभाजन
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व
  • अनुशासन
  • आदेश की एकता
  • निर्देश की एकता
  • केन्द्रीयकरण या विकेन्द्रीकरण
  • व्यक्तिगत हित सामान्य हित के अधीन
  • कर्मचारियों
  • सोपान श्रृंखला
  • व्यवस्था अथवा क्रमबद्धता
  • समता
  • कर्मचारियों में स्थायित्व
  • पहल क्षमता
  • सहयोग की भावना

प्रश्न 22.
नियोजन की सीमाएँ लिखें।
उत्तर:
नियोजन की सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  • नियोजन पर किए गए व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
  • नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
  • नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किए जाते हैं।
  • संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
  • नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।

प्रश्न 23.
क्या जवाबदेही को सौंपा जा सकता है ?
उत्तर:
जवाबदेही के संबंध में उल्लेखनीय बात है कि प्रबंधक अपने जवाबदेही का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है किन्तु जवाबदेही मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी की दशा में प्रबंध संचालक अपने कर्तव्यों के लिए संचालक मण्डल के प्रति उत्तरदायी होगा।

वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है परंतु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कंपनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही जवाबदेह होगा। संक्षेपण में हम यह कह सकते. हैं कि केवल अधिकारों को ही सौंपी जा सकता है जवाबदेही को नहीं।

प्रश्न 24.
वित्तीय नियोजन के महत्व समझाइए।
उत्तर:
पूँजी आधुनिक उद्योगों की जीवन-संजीवनी है। कोई भी उद्योग, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में पूँजी का प्रबंध न हो। कोई भी व्यवसाय शुरू करने का विचार मन में आने की स्थिति से लेकर उसके प्रवर्तन, संचालन, विस्तार और उसके समापन तक सभी परिस्थितियों में पूँजी की आवश्यकता होती है।

आवश्यकतानुकूल एवं समय पर वित्त का प्रबंध न होने पर बड़ी से बड़ी और अच्छी-सेअच्छी योजनाएँ भी असफल हो जाती हैं। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे वित्तीय आयोजन भली-भाँति करें। कम्पनी की भावी सफलता वित्तीय आयोजन की सुदृढ़ता पर ही निर्भर करती है।

यदि इसके निर्माण में पर्याप्त ज्ञान, तकनीकी अनुभव और दूरदर्शिता का प्रयोग किया जाता है तो भविष्य के लिए वरदान सिद्ध होगी। इसके विपरीत अदूरदर्शिता, अपरिपक्व ज्ञान एवं अनुभवहीनता के आधार पर जल्दबाजी में बनाई गई वित्तीय योजना कम्पनी के भविष्य और अंशधारियों के हितों के लिए स्थायी खतरा बन जाती है। उपक्रम के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि भली प्रकार से वित्तीय नियोजन (Financial Planning) किया जाए।

प्रश्न 25.
स्थायी पूँजी की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • इसका उपयोग स्थायी संपत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
  • यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
  • इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।

प्रश्न 26.
शेयर बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर:
शेयर बाजार एक ऐसा संगठित बाजार है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। ये प्रतिभूतियाँ वे हैं जो शेयर बाजार की सूची में सम्मिलित हों और जो पहले ही किसी संस्था द्वारा जारी की गई हों। जैसे-सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निर्गमित कंपनियों द्वारा निर्गमित अंश एवं ऋणपत्र, सरकार तथा नगरपालिका द्वारा जारी किये गये ब्रांड आदि तथा विभिन्न प्रयासों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियाँ। शेयर बाजार में प्रतिभूतियों का लेन-देन विनियोग या सट्टे के लिए कुछ निश्चित नियमों के अनुसार किया जाता है।

प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अनुसार, ‘स्टॉक एक्सचेंज का आशय व्यक्तियों के एक ऐसे संगठन या संस्था से है, चाहे वह समामेलित हो या न हो, जिसकी स्थापना प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय और लेन-देन में सहायता नियमन तथा नियंत्रण करने के उद्देश्य से की गई हो।’

प्रश्न 27.
विपणन मिश्रण की क्या विचारधारा है ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण का अर्थ (Meaning of marketing mix) – विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण कहलाता है।

परिभाषा – विपणन मिश्रण की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. डॉ० आर० एस० डावर के अनुसार, ‘निर्माताओं के द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन-मिश्रण (Marketing mix) का निर्माण करती हैं।’
  2. कीली एवं लेजर के अनुसार, ‘विपणन मिश्रण उस बड़ी बैटरी की युक्तियों से बना है जिसको क्रेताओं का किसी विशेष वस्तु की खरीद करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से काम में लाया जा सकता है।
  3. फिलिप कोटलर के अनुसार, ‘एक फर्म का उद्देश्य अपने विपणन घरों के लिए सर्वोत्तम विन्यास (Setting) को खोजना है। यह विन्यास विपणन-मिश्रण कहलाता है।’

विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता/उत्पादक विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण (Marketing mix) कहलाता है। प्रत्येक विक्रेता अनेक घटकों (वस्तु का ब्राण्ड, मूल्य, पैकिंग, विज्ञापन, वितरण, अनुसंधान आदि) का मिश्रण (mix) इस प्रकार करता है कि एक निश्चित समय पर सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।

विपणन रीति-नीति (Marketing Strategy) का एक भाग/हिस्सा विपणन-मिश्रण (Marketing mix) है। विपणन रीति-नीति के अंतर्गत दो बातों का अध्ययन होता है-

  • बाजार लक्ष्यों की परिभाषा देना (Definition of Market Targets)
  • विपणन-मिश्रण का संयोजन (Composition of marketing mix) जबकि विपणन-मिश्रण उपकरणों का संयोग (Combination) है जिसके माध्यम से विपणन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 28.
लेबल के विभिन्न प्रकार क्या है ?
उत्तर:
लेबल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं
(i) ब्रांड लेबल – ऐसा लेबल जिस पर केवल वस्तु के ब्रांड का नाम लिखा हो, ब्रांड लेबल कहलाता है। इस लेबल पर वस्तु के ब्रांड के नाम के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी जाती है।

(ii) श्रेणी लेबल – यह एक ऐसा लेबल होता है जिस पर लिखे शब्द या अंक उस वस्तु की क्वालिटी या श्रेणी को प्रदर्शित करते हैं। जैसे-जब इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड, कोलकाता उषा ब्रांड के नाम से पंखे बनाती है जो कि क्वालिटी के आधार पर अनेक प्रकार के हैं। इसी आधार पर उन पर Delux, Prima व Continentel के लेबल लगे होते हैं। इस प्रकार के लेबल श्रेणी लेबल कहलाते हैं।

(iii) विवरणात्मक लेबल – इन लेबलों पर उत्पादन का पूर्ण विवरण लिखा होता है। जैसे-

  • वस्तु किन-किन चीज को मिलाकर तैयार की जाती है
  • वस्तु का प्रयोग किस प्रकार किया जाए
  • वस्तु के विभिन्न प्रयोग
  • प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
  • उत्पादक का नाम
  • उत्पादक की तिथि
  • बैच नम्बर आदि। इस तरह के लेबलों का प्रयोग प्रायः दवाई निर्माता करते हैं।

प्रश्न 29.
साझेदारी की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:
साझेदारी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. साझेदारी की स्थापना के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों का होना अनिवार्य है।
  2. साझेदारों के बीच समझौता होना चाहिए जो लिखित या मौखिक हो सकता है।
  3. किसी वैद्य व्यापार को चलाने के लिए साझेदारी की स्थापना होती है।
  4. समझौते का उद्देश्य व्यवसाय के लाभ-हानि का बँटवारा करना होता है।
  5. साझेदारी फर्म के सभी साझेदारों को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने का अधिकार होता है।

इस प्रकार प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेन्ट भी होता है और स्वामी भी।

प्रश्न 30.
प्रबन्ध के चार कार्यों की विवेचना कीजिए। अथवा, प्रबन्ध के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रबन्ध के चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. नियोजन- यह प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पहले से ही कार्य नीति निर्धारण करना कि क्या करना है, कब, किसे और कैसे करना है नियोजन कहलाता है।
  2. नियुक्तिकरण- इसके अंतर्गत व्यक्तियों से पदों को भरा जाता है ताकि कार्यों का निष्पादन किया जा सके।
  3. संगठन-नियोजन तो किसी विचार को लिख देना मात्र ही है, लेकिन इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए मानव समूह की आवश्यकता होती है। मानव समूह को व्यवस्था में बाँधने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न छोटे-छोटे कार्यों में बाँटा जाता है।
  4. नियंत्रण- यह प्रबंध का अंतिम तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके अंतर्गत प्रबंधक यह देखता है कि कार्य निश्चित योजना के अंतर्गत हो रहा है या नहीं।

प्रश्न 31.
वित्तीय प्रबंध के कार्यों का संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के कार्यों को दो भागों में बाँटा जाता है-
1. प्रशासनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय पूर्वानुमान
  • वित्तीय नियोजन
  • कोषों की प्राप्ति
  • वित्तीय निर्णय
  • विनियोग निर्णय
  • आय का प्रबंध
  • वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन
  • वित्त नियंत्रण

2. नैत्यिक या दैनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय अभिलेख रखना
  • वित्तीय विवरणों को तैयार करना
  • रोकड़ शेष बनाए रखना
  • महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रलेखों को सुरक्षित रखना

प्रश्न 32.
नियुक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
नियुक्तिकरण से आशय प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए योग्य पदाधिकारियों की नियुक्ति, चुनाव, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदावनति, स्थानांतरण, सेवा समाप्ति आदि से संबंधित नियम सिद्धांत तथा समस्याओं से है।

पीटर ड्रकर के अनुसार, “प्रबंध के प्रमुख रूप से तीन उत्तरदायित्व हैं – (i) प्रबंध कार्य, (ii) श्रमिकों का प्रबंध, (iii) मैनेजर्स का प्रबंध।