BSEB Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
इच्छा और माँग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
इच्छाएँ अनन्त और असीमित होती हैं, परंतु इन असीमित इच्छाओं की पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। इसका संबंध मनुष्य की कल्पनाओं से होता है।

एक निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता किसी वस्तु की जितनी मात्रा खरीदने को इच्छुक तथा योग्य होता है, उसे माँगी गई मात्रा कहा जाता है। इस प्रकार माँगी गई वह मात्रा जो एक निश्चित कीमत पर खरीदी जाती है माँग कहलाती है।

प्रश्न 2.
बाजार कीमत और सामान्य कीमत में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
बाजार कीमत और सामान्य कीमत में निम्नलिखित अंतर है-
बाजार कीमत:

  1. यह अल्पकालीन साम्य द्वारा निर्धारित होता है।
  2. यह अस्थायी संतुलन का परिचायक कहा जाता है।
  3. इस पर माँग पक्ष का ही प्रभाव पड़ता है, पूर्ति पक्ष निष्क्रिय रहती है।
  4. यह औसत लागत व्यय के ऊपर या नीचे होता है।
  5. यह सभी प्रकार की वस्तुओं का हो सकता है।

सामान्य कीमत:

  1. यह दीर्घकालीन साम्य द्वारा निर्धारित होता है।
  2. यह अस्थायी संतुलन की ओर संकेत करता है।
  3. इस पर पूर्ति पक्ष का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  4. यह औसत लागत व्यय के समान या उससे अधिक होने की प्रवृत्ति रखता है।
  5. यह केवल पुनरुत्पादनीय वस्तुओं का ही हो सकता है।

प्रश्न 3.
उत्पादन संभावना वक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वस्तु के पूर्व निर्धारित स्तरों पर उत्पादन होने की दशा में दूसरी वस्तु के अधिकतम संभव उत्पादन को दर्शाने वाली रेखा ही उत्पादन संभावना वक्र है। सामान्यतः यह वक्र दाहिनी ओर ढालू होता है।

प्रश्न 4.
गिफिन विरोधाभास क्या है ? समझाएँ।
उत्तर:
जब उपभोग की दो वस्तुओं में एक वस्तु घटिया वस्तु हो तथा दूसरी श्रेष्ठ वस्तु हो तब गिफिन का विरोधाभास उत्पन्न होता है घटिया वस्तुएँ वे होती हैं जिसका उपभोग अपनी सीमित आय से तथा श्रेष्ठ वस्तु की ऊँची कीमत के कारण करता है ऐसी दशा में घटिया वस्तु की कीमत में जब कमी होती है तब उपभोक्ता कीमत के घटने के कारण सृजित अतिरिक्त क्रयशक्ति से अच्छी वस्तु का उपभोग बढ़ा देता है तथा घटिया वस्तु का उपभोग घटा देता है। इस प्रकार घटिया वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी माँग में कमी होती है। माँग के उस विरोधाभास को गिफिन विरोधाभास के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 5.
सामान्य वस्तुओं और घटिया वस्तुओं में क्या अंतर है ?
उत्तर:
सामान्य वस्तुओं में आय माँग वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है, अर्थात् बायें से दायें ऊपर चढ़ता हुआ होता है। श्रेष्ठ वस्तुओं का धनात्मक ढाल वाला आय माँग वक्र यह बतलाता है कि उपभोक्ता की आय में प्रत्येक वृद्धि उसकी माँग में भी वृद्धि करती है तथा इसके विपरीत आय की प्रत्येक कमी सामान्य दशाओं में माँग में भी कमी उत्पन्न करती है।

वे वस्तुएँ जिन्हें उपभोक्ता हेय दृष्टि से देखता है और पर्याप्त आय न होने पर उपभोग करता है, घटिया वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे-मोटा अनाज, मोटा कपड़ा आदि। ऐसी स्थिति में जैसे-जैसे उपभोक्ता की आय बढ़ती है वह घटिया वस्तुओं का उपभोग घटाकर श्रेष्ठ वस्तुओं का उपभोग बढ़ाता जाता है, अर्थात् घटिया वस्तुओं के लिए आय माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है।

प्रश्न 6.
साधन के घटते प्रतिफल के नियम को समझाइए।
उत्तर:
जिस पैमाने में उत्पादन के साधन बढ़ाने पर उससे कम अनुपात में उत्पादन बढ़े तो उस पैमाने को घटते हुए प्रतिफल की संज्ञा दी जाती है। जैसे-यदि साधनों को 10 प्रतिशत बढ़ाया जाता है तथा उत्पादन 7 प्रतिशत बढ़ता है तो इस दशा को पैमाने के घटते प्रतिफल की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 7.
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार का वर्णन कीजिए।
अथवा, एकाधिकार की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
विशेषताएँ (Features)- एकाधिकार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • एक विक्रेता तथा अधिक क्रेता।
  • एकाधिकारी फर्म और उद्योग में अन्तर नहीं होता।
  • एकाधिकारी बाजार में नई फर्मों के प्रवेश में बाधाएँ होती हैं।
  • वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु नहीं होती।
  • कीमत नियंत्रण एकाधिकारी द्वारा किया जाता है।
  • एकाधिकार में औसत संप्राप्ति और सीमान्त वक्र अलग-अलग होते हैं।
  • एकाधिकारी विभिन्न क्रेताओं से अलग-अलग कीमत वसूल कर सकता है, जिसे कीमत विभेद नीति कहते हैं।

प्रश्न 8.
पूरक वस्तु को उदाहरण के साथ परिभाषित करें।
उत्तर:
वे वस्तुएँ, जिनका एक के बिना दूसरे का प्रयोग संभव नहीं है, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। जैसे-कलम और स्याही, पेट्रोल और कार, मोबाइल और सिम, सूई और धागा पूरक वस्तुएँ हैं। इनमें एक के अभाव में दूसरे का प्रयोग संभव नहीं है। कार है और पेट्रोल नहीं है तो कार नहीं चल सकता। इसे चलाने के लिए पेट्रोल का होना आवश्यक है। इसी तरह बिना सिम के मोबाइल कार्य नहीं कर सकता। मोबाइल को चलाने के लिए सिम का होना आवश्यक है। इस तरह कार और पेट्रोल तथा मोबाइल और सिम पूरक वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 9.
एक तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन के चक्रीय प्रवाह को समझाइए।
अथवा, उत्पादन, आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में होने वाली आर्थिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पादन, आय एवं व्यय का चक्रीय प्रवाह निरंतर चलता रहता है। इसका न आदि है और न अंत। उत्पादन आय को जन्म देता है और प्राप्त आय से वस्तुओं और सेवाओं की माँग की जाती है और माँग को पूरा करने के लिए व्यय किया जाता है। अर्थात् आय व्यय को जन्म देता है। व्यय से उत्पादकों को आय होती है और वह फिर उत्पादन को जन्म देता है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 1

प्रश्न 10.
‘केन्द्रीय बैंक अन्तिम ऋणदाता है।’ कथन को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब व्यावसायिक बैंकों या मुद्रा बाजार की अन्य संस्थाओं को ऋण प्राप्त करने का कोई दूसरा साधन नहीं रहता है तो ऐसी स्थिति में अंतिम ऋणदाता के रूप में केन्द्रीय बैंक उसकी सहायता करता है। इस संबंध में हाटे ने ठीक ही कहा है, “केन्द्रीय बैंक अंतिम समय का ऋणदाता है।”

प्रश्न 11.
विदेशी मुद्रा की माँग एवं पूर्ति के तीन-तीन स्रोत बताइए।
उत्तर:
विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कार्यों के लिए होती है-

  • आयात का भुगतान करने के लिए।
  • विदेशी अल्पकालीन ऋणों के भुगतान के लिए।
  • विदेशी दीर्घकालीन ऋणों के भुगतान के लिए।

एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती है, उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहा जाता है। इसके स्रोत हैं-

  • निर्यात,
  • विदेशों द्वारा देश में निवेश तथा
  • विदेशों से प्राप्त भुगतान।

प्रश्न 12.
कुल राष्ट्रीय उत्पाद तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे इस रूप में व्यक्त किया जाता है-

कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल घरेलू उत्पाद (GDP) + देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय – विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।

लेकिन कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा एक विस्तृत धारणा है, जिसके अंतर्गत शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद आ जाता है।

प्रश्न 13.
कुल घरेलू उत्पाद तथा शुद्ध घरेलू उत्पाद में क्या अंतर है ? बताएँ।
उत्तर:
किसी देश की सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के सकल मूल्य को कुल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। इसमें घिसावट भी शामिल होता है।

इसके विपरीत कुल घरेलू उत्पाद में से घिसावट निकालने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध घरेलू उत्पाद कहा जाता है। यह देश की सीमा में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध मूल्य होता है।

प्रश्न 14.
सरकार के बजट से आप क्या समझते हैं ?
अथवा, सरकारी बजट का अभिप्राय क्या है ?
उत्तर:
आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है।

प्रश्न 15.
खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
1998 के नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन ने एक नये सिद्धांत का प्रतिपादन किया है, जिसे खाद्यान्न उपलब्धता गिरावट सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार बाढ़, सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण खाद्यान्न के उत्पादन में कमी आती है। फलतः खाद्यान्न की पर्ति माँग की तलना में कम हो जाती है। पर्ति के सापेक्ष खाद्यान्न की आंतरिक माँग खाद्यान्न की कीमतों को बढ़ाती है जिसके परिणामस्वरूप निर्धन व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता से वंचित हो जाते हैं और क्षेत्र में भूखमरी की समस्या उत्पन्न होती है।

प्रश्न 16.
एक द्वि-क्षेत्र अर्थव्यवस्था से आय के चक्रीय प्रवाह को दर्शायें।
उत्तर:
परिवार मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए फर्मों को साधन-सेवाएँ प्रदान करते हैं। इन सेवाओं का प्रयोग कर फर्मे वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करते हैं और उत्पादित वस्तुओं को परिवार को उनकी सेवाओं के बदले देती हैं। इस प्रकार परिवार और फर्मों के मध्य साधन सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान या प्रवाह चक्रीय रूप से चलता रहता है। इसे वास्तविक प्रवाह कहा जाता है। वास्तविक प्रवाह का तात्पर्य परिवार और फर्मों के मध्य साधन सेवाओं और वस्तुओं के प्रवाह से है। साधन-सेवाओं और वस्तुओं का भुगतान मुद्रा के रूप में होता है। साधन सेवाओं के बदले फर्मे परिवारों को सेवा भुगतान देती है तथा वस्तु पूर्ति के बदले परिवार फर्मों को वस्तुओं का भुगतान देते हैं। इस प्रकार सेवा भुगतान के रूप में फर्मों से परिवार को तथा . वस्तु भुगतान के रूप में परिवार से फर्मों को निरंतर आय का मुद्रा के रूप में प्रवाह होता है। इसे आय का प्रवाह या मुद्रा प्रवाह कहा जाता है। चित्र के माध्यम से भी इसे दर्शाया जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 2

प्रश्न 17.
उपभोक्ता संतुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अर्थशास्त्र में उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उस स्थिति से है जब एक उपभोक्ता दी हुई आय से एक या दो वस्तुओं को इस प्रकार खरीदता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि होती है और उसमें परिवर्तन लाने की कोई प्रवृत्ति जुड़ी होती है।

प्रश्न 18.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अंतर करें।
उत्तर:
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित अंतर है-
प्रत्यक्ष कर:

  1. इस कर को टाला नहीं जा सकता है।
  2. यह कर प्रगतिशील होता है। आय में वृद्धि के साथ इसमें वृद्धि होती है।
  3. आय कर, सम्पत्ति कर, निगम कर इसके उदाहरण हैं।

अप्रत्यक्ष कर:

  1. जिसे व्यक्ति को यह कर चुकाना पड़ता है वह इसे दूसरे व्यक्ति पर टाल सकता है।
  2. यह प्रगतिशील नहीं होता है।
  3. बिक्री कर, उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।

प्रश्न 19.
दोहरी गणना की समस्या से क्या तात्पर्य है ? इससे कैसे बचा जाता है ?
उत्तर:
दोहरी गणना का तात्पर्य है किसी वस्तु के मूल्य की गणना एक बार से अधिक करना। इसके फलस्वरूप उत्पादित वस्तु और सेवाओं के मूल्य में अनावश्यक रूप से वृद्धि हो जाती है। उदाहरणार्थ, एक किसान एक टन गेहूँ 1400 रु० में आटा मिल को बेचता है। आटा मिल उसका आटा बनाकर 1600 रु० में डबल रोटी बनाने वाले को बेच देता है। डबल रोटी वाला उसका डबल रोटी बनाकर 1800 रु० में दुकानदार को बेचता है और दुकानदार उसे अंतिम ग्राहक को 1900 रु० में बेच देता है। अतः उत्पाद का मूल्य = 1400 रु० + 1600 रु० + 1800 रु० + 1900 रु० = 6700 रु०। इस प्रकार दोहरी गणना के कारण उत्पादन मूल्य 6700 रु० हो जाता है, जबकि वास्तव में केवल 1400 + 200 रु० + 200 रु० + 100 रु० = 1900 रु० के बराबर मूल्य वृद्धि होती है।

दोहरी गणना की समस्या से बचने की दो विधियाँ हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • अंतिम उत्पाद विधि- इस विधि के द्वारा उत्पादन के मूल्य में से मध्यवर्ती के मूल्य को घटा दिया जाता है।
  • मूल्य वृद्धि विधि- इस विधि द्वारा उत्पादन के प्रत्येक चरण में होने वाली मूल्य वृद्धि को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 20.
अल्पाधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक रूप है। अल्पाधिकार बाजार की ऐसी अवस्था को कहा जाता है जिसमें वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते हैं और प्रत्येक विक्रेता पूर्ति एवं मूल्य पर समुचित प्रभाव रखता है। प्रो० मेयर्स के अनुसार, “अल्पाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें विक्रेताओं की संख्या इतनी कम होती है कि प्रत्येक विक्रेता की पूर्ति का बाजार कीमत पर समुचित प्रभाव पड़ता है और प्रत्येक विक्रेता इस बात से परिचित होता है।”

प्रश्न 21.
भुगतान शेष से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भुगतान शेष एक देश के विदेशी सौदों से संबंधित सभी भुगतानों का लेखा-जोखा है। किंडल बर्गर ने भुगतान शेष की परिभाषा इन शब्दों में दी है, “भुगतान शेष से अभिप्राय एक दिये गये समय में संबंधित देश के निवासियों तथा विदेश के निवासियों द्वारा सभी प्रकार के आर्थिक लेन-देन का क्रमवार रखा गया व्यौरा है।” तकनीकी दृष्टि से भुगतान शेष सदैव संतुलित होता है। इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों मदों को शामिल किया जाता है। दोहरी लेखा पद्धति में इसे प्रस्तुत किया जाता है।

प्रश्न 22.
भुगतान शेष तथा व्यापार शेष में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
भुगतान शेष और व्यापार शेष में निम्नलिखित अंतर है-
भुगतान शेष:

  1. भुगतान शेष में दृश्य और अदृश्य दोनों मदें शामिल हैं।
  2. यह एक व्यापक अवधारणा है।
  3. यह सदैव संतुलित रहता है।
  4. विदेशी व्यापार का आशय समझने में यह कम अर्थवान तथा महत्त्वपूर्ण है।

व्यापार शेष:

  1. इसमें केवल दृश्य मदें होती है।
  2. यह एक संकीर्ण अवधारणा है।
  3. इसमें घाटा हो सकता है।
  4. यह विदेशी व्यापार का आशय समझने में अधिक अर्थवान तथा महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 23.
माँग को प्रभावित करने वाले किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख करें।
अथवा, माँग के निर्धारकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
वे तत्व जो किसी वस्तु की मांगी गई मात्रा को प्रभावित करते हैं माँग को निर्धारित करने वाले तत्त्व कहलाते हैं। ये मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-
(i) संबंधित वस्तुओं की कीमतें (Prices of related goods)- प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दी गई वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। जैसे-चाय की कीमत में वृद्धि होने पर सकी प्रतिस्थापन वस्तु कॉफी की माँग में वृद्धि हो जाती है। एक पूरक वस्तु की कीमत में व द्ध होने पर दी गई वस्तु की माँग में कमी हो जाती है। पेट्रोल की कीमत में वृद्धि होने पर टिर गाड़ी की माँग में कमी हो जाती है।

(ii) आय (Income)- उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है यह वस्तु पर निर्भर करता है कि वस्तु सामान्य वस्तु है अथवा घटिया वस्तु है।

(iii) रुचि, स्वभाव आदत (Taste, Preference and Habit)- यदि रुचि, स्वभाव और आदत में परिवर्तन अनुकूल हो तो वस्तु की माँग में वृद्धि होती है।

(iv) जनसंख्या- जनसंख्या बढ़ने पर माँग बढ़ती है और इसमें कमी होने पर माँग में कमी आती है।

(v) संभावित कीमत- वस्तु की संभावित कीमत बढ़ने या घटने पर उसकी वर्तमान माँग में वृद्धि या कमी आयेगी।

प्रश्न 24.
राजकोषीय घाटे से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
राजकोषीय घाटे कुल व्ययों और कुल प्राप्तियों (उधार के अतिरिक्त) के अंतर के समान होता है। सांकेतिक रूप में,
राजकोषीय घाटा = कुल बजटीय व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ + पूँजी प्राप्तियाँ जिसमें ऋण शामिल नहीं है।

यहाँ कुल बजट व्यय = राजस्व व्यय + पूँजी व्यय
राजस्व प्राप्तियाँ = कर राजस्व + गैर कर राजस्व
पूँजी प्राप्तियाँ = पूँजी प्राप्तियाँ ऋण प्राप्तियों के अतिरिक्त
= ऋणों की अदायगी + अन्य प्राप्तियाँ (विनिवेश से प्राप्त)
अतः संक्षेप में राजकोषीय घाटा उधार के बराबर होता है।

प्रश्न 25.
मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह में अंतर करें।
उत्तर:
मौद्रिक प्रवाह में मुद्रा फर्मों से परिवारों को साधन भुगतान के रूप में तथा परिवारों से फर्मों को उपयोग व्यय के रूप में प्रवाहित होती है, जबकि वास्तविक प्रवाह में वस्तुओं का प्रवाह अर्थव्यवस्था के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाता है।

प्रश्न 26.
‘अर्थशास्त्र चयन का तर्कशास्त्र है।’ इसकी विवेचना करें।
अथवा, अर्थशास्त्र में सीमितता का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
दुर्लभता पर जोर देते हुए रॉबिन्स ने कहा कि मानवीय आवश्यकताएँ अनन्त हैं तथा उसकी पूर्ति के साधन सीमित होते हैं। साथ ही, सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग भी संभव होते हैं। ऐसी स्थिति में मनुष्य के सामने चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है कि सीमित साधनों के द्वारा किन-किन आवश्यकताओं की पूर्ति करे तथा किन्हें छोड़ दे। फलतः व्यक्ति आवश्यकता की तीव्रता पर ध्यान देते हुए पहले सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता है। उसके बाद कम महत्त्वपूर्ण आवश्यकता की पूर्ति करता ताकि अधिकतम संतोष की प्राप्ति हो सके। इसी कारण रॉबिन्स ने अर्थशास्त्र को चयन का तर्कशास्त्र कहा है।

प्रश्न 27.
मौद्रिक प्रवाह को परिभाषित करें। अथवा, मुद्रा प्रवाह की परिभाषा दें।
उत्तर:
मौद्रिक प्रवाह का अभिप्राय उस प्रवाह से है जिसमें फर्मों द्वारा उत्पादन के कारकों को उनकी सेवाओं के बदले में ब्याज, लाभ, मजदूरी तथा लगान के रूप में दी गई मुद्रा का प्रवाह फर्मों से परिवार क्षेत्र की ओर होता है। इसके विपरीत उपभोग व्यय के रूप में मुद्रा का प्रवाह परिवार क्षेत्र से फर्मों की ओर होता है।

प्रश्न 28.
बाजार के विस्तार से संबंधित तत्त्व कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
बाजार का विस्तार वस्तु के गुण पर निर्भर करता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • व्यापक माँग
  • व्यापक पूर्ति
  • टिकाऊपन
  • वहनीयता तथा
  • मूल्य में स्थिरता।

बाजार के विस्तार पर देश की आंतरिक स्थिति का भी प्रभाव पड़ता है, जिसके अंतर्गत निम्न बातों का उल्लेख किया जाता है-

  • शांति एवं सुरक्षा
  • यातायात. एवं संवादवाहन के साधन
  • सरकारी नीति
  • मौद्रिक एवं बैंकिंग नीति
  • व्यापार का तरीका
  • उत्पादन का तरीका।

प्रश्न 29.
बाजार के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रतियोगिता के आधार पर बाजार के तीन प्रकार होते हैं-

  • पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- वह बाजार जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है, साथ ही इन दोनों के बीच स्वस्थ प्रतियोगिता भी पायी जाती है, पूर्ण प्रतियोगिता का बाजार कहलाता है।
  • एकाधिकारी बाजार- वह बाजार जहाँ वस्तु की पूर्ति पर व्यक्ति या उद्योग विशेष का पूर्ण नियंत्रण होता है तथा उनके निकट स्थानापन्न वस्तुएँ भी बाजार में उपलब्ध नहीं होती है, एकाधिकारी बाजार कहलाता है।
  • अपूर्ण प्रतियोगिता का बाजार- यह पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार तथा एकाधिकार के बाजार का सम्मिश्रण होता है।

प्रश्न 30.
साख निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
अथवा, साख सृजन की परिभाषा दें।
उत्तर:
अपने नकद कोषों के आधार पर व्यावसायिक बैंकों द्वारा माँग जमाओं का निर्माण करना ही साख निर्माण कहलाता है। प्रायः नकद कोषों से कई गुणा अधिक जमाओं का निर्माण कर दिया जाता है। नकद कोषों तथा जमाओं के बीच अनुपात नकद-कोष अनुपात कहलाता है। बैंकों को अनुभव के आधार पर यह ज्ञात है कि कुल जमा का सिर्फ 10% ही नकदी के रूप में निकाला जाता है। जैसे यदि 100 रु० के नकद कोष के बदले में 1000 रु० की माँग जमाओं का निर्माण किया जाता है तो इसे 10 गुणा अधिक साख निर्माण कहा जायेगा।

प्रश्न 31.
बचत एवं निवेश हमेशा बराबर होते हैं। व्याख्या करें।
उत्तर:
कीन्स के अनुसार आय रोजगार संतुलन निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ बचत एवं निवेश आपस में बराबर होते हैं अर्थात् बचत = निवेश (S = I)

एक अर्थव्यवस्था में विनियोग दो प्रकार के होते हैं-नियोजित विनियोग तथा गैर-नियोजित विनियोग। वस्तुतः नियोजित और गैर नियोजित विनियोग का जोड़ ही वास्तविक विनियोग या कुल विनियोग कहलाता है। संक्षेप में,
IR = Ip + Iu
जहाँ IR = वास्तविक विनियोग
Ip = नियोजित विनियोग तथा
Iu = गैर नियोजित विनियोग

उपर्युक्त समीकरण से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वास्तविक विनियोग केवल उसी स्थिति में ही नियोजित विनियोग के बराबर हो सकता है जबकि गैर नियोजित विनियोग शून्य हो। इसका तात्पर्य यह है कि यह आवश्यक सदैव नियोजित विनियोग के बराबर हो।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि
y = C + I
तो हमारा वास्तव में अभिप्राय यह होता है कि
y = C + IR
तथा y = C + S
दोनों समीकरणों को एक साथ प्रस्तुत करने पर
C + S = C + IR
या S = IR
अतः बचतें सदैव वास्तविक निवेश के समान होती है।

प्रश्न 32.
रेखाचित्र की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के कुशल तथा अकुशल उपयोग की अवस्था की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में संसाधनों के कुशल तथा अकुशल उपयोग की अवस्था को रेखाचित्र की सहायता से निम्न रूप में देखा जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 3
PP = उत्पादन संभावना वक्र
Point A = संसाधनों के कुशल उपयोग को दर्शाता है।
Point B = संसाधनों के अकुशल उपयोग को दर्शाता है।

प्रश्न 33.
सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता में अंतर कीजिए।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपयोग से जो अतिरिक्त उपयोगिता मिलती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं।
जबकि उपभोग की सभी इकाइयों के उपभोग से उपभोक्ता को जो उपयोगिता प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 34.
साधन के प्रतिफल तथा पैमाने के प्रतिफल में अंतर बताइए।
उत्तर:
साधन के प्रतिफल- एक फर्म जब अल्पकाल में उत्पत्ति के कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा में परिवर्तन करती है तब उत्पादन की मात्रा में जो परिवर्तन होते हैं। उन्हें साधन के प्रतिफल के नाम से जाना जाता है। इसकी तीन अवस्थाएँ होती हैं। पहली साधन के बढ़ते प्रतिफल या उत्पत्ति वृद्धि अवस्था, दूसरी साधन के स्थिर प्रतिफल या उत्पत्ति समता तथा तीसरी साधन के घटते प्रतिफल या उत्पत्ति ह्रास अवस्था।

पैमाने के प्रतिफल- पैमाने के प्रतिफल का संबंध सभी कारकों में समान अनुपात में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप कुल उत्पादन में होने वाले परिवर्तन से है। यह एक दीर्घकालीन अवधारणा है।

प्रश्न 35.
चालू कीमत और स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय में भेद करें।
उत्तर:
अगर राष्ट्रीय आय को वर्तमान कीमत से गुणा करके प्राप्त किया जाता है तो उसे चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
NNPMP = GNPMP – Depreciation
साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।
NNP at factor cost = NNP at market price अप्रत्यक्ष कर + अनुदान

चालू कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का बाजार मूल्य + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय – घिसावट

परन्तु अगर राष्ट्रीय आय को किसी समय विशेष की कीमत से गुणा करके जाना जाता है तो उसे स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जैसे- 2011-12 की कीमत पर राष्ट्रीय आय को गुणा कर उस वर्ष की राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।

प्रश्न 36.
चयनात्मक साख नियंत्रण क्या है ?
उत्तर:
वे उपाय जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के कुछ विशेष कार्यों के लिए दी जाने वाली साख के प्रवाह को नियंत्रित करना है, चयनात्मक साख नियंत्रण कहलाते हैं। इसके अंतर्गत निम्नलिखित उपाय किये जाते हैं-

  • ऋणों की सीमान्त आवश्यकता में परिवर्तन
  • साख की राशनिंग
  • प्रत्यक्ष कार्यवाही
  • नैतिक प्रभाव।

प्रश्न 37.
पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में निम्नलिखित अंतर है-
पूर्ण प्रतियोगिता:

  1. इसमें बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है।
  2. इसमें कीमत समान होती है।
  3. कीमत सीमान्त लागत के बराबर होती है।
  4. समरूप वस्तुएँ।
  5. साधनों की पूर्ण गतिशीलता
  6. कोई विक्रय लागत नहीं होती है।

एकाधिकारी प्रतियोगिता:

  1. इसमें बाजार का अपूर्ण ज्ञान होता है।
  2. इसमें कीमत विभेद होता है।
  3. कीमत सीमान्त लागत से अधिक होती है।
  4. निकट स्थानापन्न तथा मिलती-जुलती वस्तुओं का उत्पादन।
  5. साधनों की गतिशीलता अपूर्ण होती है।
  6. विक्रय लागत आवश्यक होती है।

प्रश्न 38.
आर्थिक समस्या को चयन की समस्या क्यों माना जाता है ?
अथवा चनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर:
आवश्यकताएँ असीमित और साधन सीमित होते हैं। सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग होने के कारण इन साधनों एवं असीमित आवश्यकताओं के बीच एक संतुलन बनाने का प्रयास किया जाता है और इसी प्रयास से चुनाव की समस्या उत्पन्न होती है। इस प्रकार आर्थिक समस्या मूलतः चुनाव की समस्या है।

प्रश्न 39.
एक वस्तु की कीमत 15% गिर जाने से उसकी माँग 1,000 इकाइयों से बढ़कर 1,200 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच प्रतिशत विधि द्वारा ज्ञात करें।
उत्तर:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = – 15%
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 4
माँग की लोच = 1.33 (अर्थात् एक से अधिक)

प्रश्न 40.
एक रेखाचित्र की सहायता से अर्थव्यवस्था में न्यून माँग की स्थिति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में आय का संतुलन स्तर पूर्ण रोजगार के स्तर से पहले निर्धारित हो जाता है तब उसे न्यून माँग की दशा कहते हैं।
AD <AS
बगल के रेखाचित्र की सहायता से इसे देखा जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 2, 5
चित्र में AS सामूहिक पूर्ति वक्र है तथा AD न्यूनमाँग स्तर पर सामूहिक माँग और AD1 पूर्ण रोजगार स्तर पर सामूहिक माँग को प्रदर्शित कर रहे हैं। AD पूर्ण रोजगार स्तर पर आवश्यक वांछनीय सामूहिक माँग AN है जबकि उपस्थित सामूहिक माँग CN है।
अतः न्यून माँग = AN – CN = AC

प्रश्न 41.
किसी वस्तु की पूर्ति तथा स्टॉक में क्या अंतर है ?
उत्तर:
किसी वस्तु की उपलब्धता उसकी पूर्ति है, जबकि वस्तु का संग्रहण स्टॉक है। माँग पर पूर्ति निर्भर है, किन्तु स्टॉक पर पूर्ति निर्भर नहीं करती है।

प्रश्न 42.
मौद्रिक लागत क्या है ?
उत्तर:
उत्पत्ति के समस्त साधनों के मूल्य को यदि मुद्रा में व्यक्त कर दिया जाये तो उत्पादक इन उत्पत्ति के साधन की सेवाओं को प्राप्त करने में जितना कुल व्यय करता है, मौद्रिक लागत कहलाती है। जे० एल० हैन्सन के शब्दों में, “किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के साधनों को जो समस्त मौद्रिक भुगतान करना पड़ता है उसे मौद्रिक उत्पादन लागत कहते हैं।