Bihar Board 12th Hindi Model Papers

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

समय 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक 100

परिक्षार्थियों के लिए निर्देश

  1. परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
  2. दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
  3. इस प्रश्न पत्र को पढ़ने के लिए 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
  4. यह प्रश्न पत्र दो खण्डों में है, खण्ड-अ एवं खण्ड-ब।
  5. खण्ड-अ में 50 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। (प्रत्येक के लिए । अंक निर्धारित है) इनके उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR शीट में दिये गये वृत्त को काले/नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार का व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का उत्तर पत्रिका
  6. में प्रयोग करना मना है, अथवा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा।
  7. खण्ड-ब में कुल 15 विषयनिष्ठ प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न के समक्ष अंक निर्धारित हैं।
  8. किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का उपयोग वर्जित है।

खण्ड-अ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 50 तक वस्तुनिष्ठ प्रश्न है जिसके साथ चा विकल्प दिए गए हैं, जिनमें से एक सही है । अपने द्वारा चुने गए सह विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें। (50 x 1 = 50)

बहुविकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर दें।

प्रश्न 1.
‘बातचीत’ शीर्षक के चरनाकार हैं :
(a) जगदीश चन्द्र माथुर
(b) बालकृष्ण भट्ट
(c) रामचन्द्र शुक्ल
(d) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(b) बालकृष्ण भट्ट

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

प्रश्न 2.
“उषा’ शीर्षक कविता के रचयिता है:
(a) सुभद्रा कुमारी चौहान
(b) ज्ञानेन्द्रपति
(c) जयशंकर प्रसाद
(d) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(d) शमशेर बहादुर सिंह

प्रश्न 3.
‘अर्द्धनारीश्वर’ शीर्षक के रचनाकार हैं :
(a) रामचन्द्र शुक्ल
(b) जगदीश चन्द्र माथुर
(c) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(d) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
उत्तर:
(d) रामधारी सिंह ‘दिनकर’

प्रश्न 4.
‘प्रेम के पीर’ के कवि कौन हैं :
(a) जायसी
(b) नाभादास
(c) जयशंकर प्रसाद
(d) सुभद्रा कुमार चौहान
उत्तर:
(a) जायसी

प्रश्न 5.
‘रोज’ शीर्षक कहानी के लेखक कौन हैं :
(a) अज्ञेय
(b) मलयज
(c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(d) नामवर सिंह
उत्तर:
(a) अज्ञेय

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सी रचना प्रसाद जी की नहीं हैं :
(a) देवदासी
(b) कामायनी
(c) झरना
(d) आँसू
उत्तर:
(c) झरना

प्रश्न 7.
पं0 चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी का नाम है :
(a) तिरिछ
(b) जूठन
(c) उसने कहा था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उसने कहा था

प्रश्न 8.
श्री कृष्ण ने किस पर आक्रमण किया था ?
(a) रावण पर
(b) कंस पर
(c) सहस्रबाहु पर
(d) इनमें से किसी पर नहीं
उत्तर:
(b) कंस पर

प्रश्न 9.
निम्नांकित में से कौन-से रचनाकार बिहार के हैं ?
(a) शमशेर बहादुर सिंह
(b) रामधारी सिंह दिनकर
(c) मोहन राकेश
(d) जगदीश चन्द्र माथुर .
उत्तर:
(b) रामधारी सिंह दिनकर

प्रश्न 10.
तुलसीदास अपना पेट कैसे भरते थे ?
(a) कविताएँ करके
(b) कथावाचन से
(c) रामकथा गाकर
(d) राम श्री राम का नाम लेकर
उत्तर:
(d) राम श्री राम का नाम लेकर

प्रश्न 11.
‘शिक्षा’ शीर्षक निबंध के निबंधाकार कौन हैं ?
(a) जे० कृष्णमूर्ति
(b) उदय प्रकाश
(c) मलयज
(d) मोहन राकेश
उत्तर:
(a) जे० कृष्णमूर्ति

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

प्रश्न 12.
‘गाँव का घर’ कविता के कवित हैं :
(a) ज्ञानेन्द्रपति
(b) जयशंकर प्रसाद
(c) रघुवीर सहाय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ज्ञानेन्द्रपति

प्रश्न 13.
ओ सदानीरा’ शीर्षक में किस महापुरुष की चर्चा है ?
(a) बाल गंगाधर तिलक
(b) महात्मा गांधी
(c) सदन मोहन मालवीय
(d) चन्द्रशेखर आजाद’
उत्तर:
(b) महात्मा गांधी

प्रश्न 14.
‘भगवान श्री कृष्ण’ किस कवि के पूज्य थे ?
(a) सूरदास
(b) तुलसीदास
(c) नाभादास
(d) कबीरदास
उत्तर:
(a) सूरदास

प्रश्न 15.
‘जूठन’ शीर्षक की विद्या क्या है?
(a) कहानी
(b) शब्द-चित्र
(c) आत्मकथा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कहानी

प्रश्न 16.
‘जयशंकर प्रसाद’ की श्रेष्ठ कृति है :
(a) कामायनी
(b) लहर
(c) आँसू
(d) चित्राधार
उत्तर:
(a) कामायनी

प्रश्न 17.
निम्नांकित में कौन अज्ञेय का उपन्यास नहीं है :
(a) अपने-अपने अजनबी
(b) नदी के द्वीप
(c) शेखर : एक जीवन
(d) त्रिवेणी
उत्तर:
(d) त्रिवेणी

प्रश्न 18.
‘मुक्तिबोध’ का जन्म हुआ था :
(a) रामगढ़ में
(b) भोपाल में
(c) श्योपुर में
(d) वाराणसी में
उत्तर:
(c) श्योपुर में

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

प्रश्न 19.
‘मालती’ किस शीर्षक की पात्रा है ?
(a) रोज की
(b) जूठन की
(c) ओ सदानीरा की
(d) तिरिछ की
उत्तर:
(a) रोज की

प्रश्न 20.
सुभद्रा कुमारी चौहान की मृत्यु का कारण था :
(a) महामारी
(b) कार दुर्घटना
(c) फाँसी
(d) गोली
उत्तर:
(b) कार दुर्घटना

प्रश्न 21.
‘रजनीश’ का संधि-विच्छेद है :
(a) रज + नीश
(b) रजनी + ईश
(c) रजणी + इश
(d) राज + ईश
उत्तर:
(b) रजनी + ईश

प्रश्न 22.
‘पावन’ का सन्धि-विच्छेद है :
(a) पा + वन
(b) पो + अन
(c) पौ + अन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पौ + अन

प्रश्न 23.
‘सत्कार’ का संधि-विच्छेद है :
(a) सत + कार
(b) सत् + कार
(c) सम् + कार
(d) स + आकार
उत्तर:
(b) सत् + कार

प्रश्न 24.
“विद्यालय का संधि-विच्छेद है :
(a) विद्या + आलय
(b) विद्या + लय
(c) विद्या + अलय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विद्या + आलय

प्रश्न 25.
‘दिनेश’ का संधि विच्छेद है :
(a) दिन + ईश
(b) दिन + इश
(c) दिन + नेश
(d) दीन + ईश
उत्तर:
(a) दिन + ईश

प्रश्न 26.
‘आगमन’ में कौन-सा उपसर्ग है?
(a) अ
(b) आ
(c) आग्
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आ

प्रश्न 27.
‘पूर्णिमा’ के कौन-सा प्रत्यय है ?
(a) इमा
(b) ईमा
(c) एमा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इमा

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प्रश्न 28.
‘जलज’ कौन-सा समास है ?
(a) तत्पुरुष
(b) अव्ययीभाव
(c) कर्मधारय
(d)द्वन्द्व
उत्तर:
(a) तत्पुरुष

प्रश्न 29.
‘देवालय’ कौन-सा समास है ?
(a) कर्मधारय
(b) अव्ययीभाव
(c) तत्पुरुष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) तत्पुरुष

प्रश्न 30.
‘लम्बोदर’ कौन-सा समास है ?
(a) बहुव्रीहि
(b) तत्पुरुष
(c) कर्मधारय
(d) द्वन्द्व
उत्तर:
(a) बहुव्रीहि

प्रश्न 31.
‘रात-दिन’ कौन-सा समास है :
(a) द्विगु
(b) बहुव्रीहि
(c) द्वन्द्व
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) द्वन्द्व

प्रश्न 32.
‘प्रतिदिन’ कौन-सा समास है :
(a) अव्ययीभाव
(b) बहुव्रीहि
(c) द्वन्द्व
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अव्ययीभाव

प्रश्न 33.
‘आग’ का पर्यायवाची शब्द है :
(a) व्योम
(b) पयोज
(c) अग्नि
(d) पीयूष
उत्तर:
(c) अग्नि

प्रश्न 34.
‘ईश्वर’ का पर्यायवाची शब्द है :
(a) आत्मा
(b) परमात्मा
(c) देवेन्द्र
(d) शंकर
उत्तर:
(b) परमात्मा

प्रश्न 35.
‘अन्धकार’ का विलोम है :
(a) प्रकाश
(b) दिन
(c) उजला
(d) सूर्य
उत्तर:
(a) प्रकाश

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

प्रश्न 36.
‘अदेह’ का विलोम है :
(a) विदेह
(b) सुदेह
(c) सदेह
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सदेह

प्रश्न 37.
‘गोरा’ का विलोम है :
(a) गौर
(b) काला
(c) कुरूप
(d) श्यामला
उत्तर:
(b) काला

प्रश्न 38.
‘ठण्ढ़ा’ का विलोम है :
(a) अग्नि
(b) गर्म
(c) वाष्प
(d) चिनगारी
उत्तर:
(b) गर्म

प्रश्न 39.
“दिवाकार’ का विलोम है :
(a) निशाकर
(b) निशाचर
(c) रजनी
(d) तमस
उत्तर:
(a) निशाकर

प्रश्न 40.
‘साधारण’ का विपरीतार्थक शब्द है :
(a) असामान्य
(b) असाधारण
(c) अस्वाभाविक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) असाधारण

प्रश्न 41.
‘जिसका आचरण अच्छा है’ के लिए एक शब्द है :
(a) दुराचारी
(b) सदाचारी
(c) सबल
(d) बलवान
उत्तर:
(b) सदाचारी

प्रश्न 42.
‘जिसके पास धन हो’ के लिए एक शब्द है :
(a) निर्धन
(b) निर्दयी
(c) कठोर
(d) जिज्ञासु
उत्तर:
(a) निर्धन

प्रश्न 43.
‘घोड़ा बेचकर सोना’ मुहावरा का अर्थ है :
(a) गहरी नींद में सोना
(b) निश्चिंत होना
(c) अधिक मुनाफा. कमाना ।
(d) व्यापार करना
उत्तर:
(b) निश्चिंत होना

प्रश्न 44.
‘चैन की बंशी बजाना’ मुहावरा का अर्थ है :
(a) मनोरंजन करना
(b) सुखी रहना
(c) समृद्ध होना
(d) आराम से रहना
उत्तर:
(b) सुखी रहना

प्रश्न 45.
‘राई का पहाड़ बनाना’ मुहावरा का अर्थ है :
(a) चुगली करना
(b) छोटी बात को बढ़ा चढ़ा कर कहना
(c) असंभव को संभव करना
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) छोटी बात को बढ़ा चढ़ा कर कहना

प्रश्न 46.
‘हाथ पाँव मारना’ मुहावरा का अर्थ है:
(a) प्रयास करना
(b) नदी में तैरना
(c) पिटाई करना
(d) इशारा करना
उत्तर:
(a) प्रयास करना

प्रश्न 47.
‘हवा में बातें करना’ महावरे का अर्थ है:
(a) धीरे चलना
(b) तेज दौड़ता
(c) बहुत तरक्की करना ।
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बहुत तरक्की करना ।

प्रश्न 48.
‘धर्म’ का विशेषण है:
(a) धार्मिक
(b) धर्मज्ञ
(c) धर्मा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) धार्मिक

प्रश्न 49.
‘राष्ट्र’ का विशेषण है :
(a) राष्ट्रीयता
(b) राष्ट्रीय
(c) राष्ट्रवाद
(d) राष्ट्रसंघ
उत्तर:
(b) राष्ट्रीय

प्रश्न 50.
‘चरित्र’ का विशेषण है :
(a) चारित्रिक
(b) चरित्रवान
(c) सुचरित्र
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चारित्रिक

खण्ड-ब

विषयनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक पर निबंध लिखें (1 x 8 = 8)
विद्यार्थी जीवन में खेल कूद, होली, दहेज प्रथा, सामाजिक अभिशाप, आधुनिक भारतीय नारी, विज्ञान का चमत्कार।
उत्तर:
(क) विद्यार्थी जीवन और खेलकूद :
खेलों का जीवन में उतना ही महत्त्वपूर्ण स्थान है जितना अन्न, विद्या अथवा मनोरंजन का । प्राचीनकाल में खेलों की विविध प्रतियोगिताएँ, होती थीं। धीरे-धीरे प्रतियोगिताएँ जिला स्तर से प्रदेश और फिर प्रदेश से देश अथवा राष्ट्र-स्तर पर आ पहुँची। आज यह स्थिति है कि क्रिकेट, हॉकी, मुक्केबाजी, तीर-अंदाजी, बास्केटबॉल, फुटबॉल, मल्ल-युद्ध आदि का विश्व-खेलों में ऊँचा स्थान है। विश्व-खेलों के माध्यम से विश्व-भर के खिलाड़ी एक स्थान पर इकट्ठे होते हैं। विश्व-खेलों का आयोजन विश्व-एकता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । खेल मैत्री-भावना को बढ़ावा देते हैं । खेलों के आयोजन प्रतिभा के विकास में सहायक होते हैं । जीवन की नीरसता खेलों से टूटती है। प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को आगे बढ़ने का मौका मिलता है। खेलों को जीवन में महत्त्व देते समय नैतिक आचरण करने की आदत डालनी चाहिए । जीवन में खेलों को महत्त्वपूर्ण स्थान न देने का मुख्य कारण खेलों के विषय में उचित प्रशिक्षण न देना है। योग्य खेल-विशेषज्ञों के सान्निध्य में खिलाडियों की प्रतिभा में निखार वैज्ञानिक परिवेश में होता है।

खेलों से हमारा शरीर हृष्ट-पुष्ट तथा सुगठित बनता है। आज के भोले-भाले बालकों को कल के भारत का महान युवा बनना है। इसीलिए स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “मेरे बच्चो ! तुम्हें गीता नहीं, फुटबॉल चाहिए । मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी मांसपेशियाँ लोहे की हों, नसें फौलाद की हों और मस्तिष्क उसी पदार्थ का बना हो, जिससे कि आकाश में कौंधने वाली बिजली बनी होती है।’
खेलों से हमारा भरपूर मनोरंजन होता है, हमारी कार्यक्षमता बढ़ती है। यदि मनुष्य नियमपूर्वक बराबर खेलता रहे तो वह आजीवन युक्त बना रहता है। खेलों से हममें सहनशीलता, संवेदनशीलता, संगठन, सहयोग, विश्वास, साहस, अनुशासन तथा आज्ञाकारिता की भावना जगती है।

आज का युग भौतिक युग है। आज के मशीनी युग में खेलों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। अच्छा स्वास्थ्य अच्छे मन का भी सूचक है-‘अच्छे तन अच्छा मन’ इसीलिए तो कहा गया है। खेलों को जीवन के
लिए वरदान कहा जा सकता है। स्पष्ट है कि स्वस्थ तन के अभाव में स्वस्थ मस्तिष्क का बनना संभव नहीं है। शरीर को ऐसा बनाने में खेलों का अपना महत्त्व है। खेल जीवन को सार्थक तथा रोचक बनाते हैं।

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

(ख) होती अथवा मेरा प्रिय त्योहार :
होली मेरा प्रिय त्योहार है। यह अपनी झोली में रंग और गुलाल लेकर आती है। यह उल्लास, आनंद और मस्ती का त्योहार है। होली चैत मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है । इसके एक दिन पहले (प्राय:) होलिकादहन होता है। होलिकादहन की पीछे होलिका (हिरण्यकश्यपु की बहन) हिरण्यकश्यपु और उसके विष्णुभक्त पुत्र प्रह्लाद की जो पौराणिक कथा है, वह सर्वविदित है। समाजशास्त्रियों को कथन है कि कृषि-प्रधान देश भारत के सारे पर्व फसल के साथ जुड़े हुए हैं। होली रबी फसल की आशा (की शुखी) में मनाई जाती है। अगजा’ के दिन ‘संवत’ में लोग गेहूँ की कच्ची बालियाँ भूनकर खाते हैं । ‘होली’ का अर्थ दुग्धपूर्ण अनाज का भूना हुआ रूप होता है। अगजा’ (होलिकादहन) के लिए गाँवों और शहरों में निश्चित स्थान पर होलिकादहन होता है। निश्चित समय पर लोग एकत्र होते हैं। बच्चों द्वारा एकत्र किए गए लकड़ी-गोयठे और घास-पात में आग लगाई जाती है। आग लगते ही लोग ढोल पर थाप दे-देकर होली गाने लगते हैं। अजीब आनंद का वातावरण छा जाता है। वहाँ हँसी-ठिठोली भी खूब होती है। कभी-कभी बच्चे और युवक अतिरिक्त उत्साह में किसी की चौकी या झोपड़ी ही ‘आगजा’ में डाल देते हैं। यह अशोभनीय है। इससे रंग में भंग होता है।

दूसरे दिन खूब धूमधाम से होली शुरू होती है। रंग, गुलाल, नए वस्त्र और रंग-अबीर से रंगे-पुते मुस्कुराते-हँसते चेहरे-यही है इस पर्व की पहचान । घर-घर तरह-तरह के पकवान पकते हैं। सभी एक-दूसरे से आनंदविह्वल होकर मिलते हैं। इस दिन कोई किसी का शत्रु नहीं होता । भाँग और शराब पीकर तथा लोगों पर रोड़े-भरी कीचड़ फेंककर इस त्योहार का मजा किरकिरा नहीं करना चाहिए । जीवन में रस का संचार करनेवाली होली का अभिनंदन तभी सार्थक होगा जब हम संप्रदाय, जाति, धर्म तथा ऊँच-नीच की भावना और विद्वेष से ऊपर उठकर सबको गले लगाने के लिए तैयार होंगे।

(ग) दहेज-प्रथा ….. सामाजिक अभिशाप :
विवाह के समय कन्या के माता-पिता वर पक्ष को जो वस्राभूषण, धन तथा समान देते हैं, उसे दहेज कहते हैं। प्राचीनकाल में इसे ‘यौतक’ या ‘स्रीधन’ कहा जाता था। ‘मनुस्मृति’ में कहा गया है, “मातुस्तु यौतक यत् स्यात् कुमारी भाग एवं सः।” प्राचीनकाल में ‘यौतक’ (दहेज) देने की प्रथा तो थी, पर उसमें किसी प्रकार का दबाव नहीं था। ऐसा नहीं था कि वरपक्ष के लोग कन्यापक्ष के लोगों से जबरदस्ती धन लेते हों। यह पूर्णत: कन्यापक्ष की समार्थ्य और श्रद्धा पर आधृत था।

पर, समय के साथ ही सारी स्वस्थ परंपराएँ लुप्त होती गयीं और उनके स्थान पर रूढ़ियों ने अपना अधिकार जमा लिया। कन्या के विवाह के अवसर पर श्रद्धा से दी जानेवाली राशि अब अनिवार्यता हो गई यहीं से प्रारंभ होता है दहेज का क्रूर नाटक जिसने आज सम्पूर्ण भारतीय समाज को अपने खूनी पंजों के आघात से लहूलुहान कर दिया है। धन के अभाव में पिता अपनी पुत्रियों का विवाह योग्य वर से नहीं कर पाता । वह किसी तरह अपना कर्तव्य पूरा करना चाहता है। किशोरी कन्याओं का विवाह अधेड़ या कभी-कभी उनके पिता की उम्र के पुरुषों से कर दिया जाता है। आज भारतीय समाज में दहेज के कारण ही अविवाहित कन्याओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

वह समाज की गिरावट का ही प्रमाण है कि आज कन्या की श्रेष्ठता, शील, सौंदर्य और गुणों से नहीं बल्कि उसके माँ-बाप के धन से आँकी जाती है। कन्या की कुरूपता दहेज की चमक-दमक में छिप जाती है। दहेज आधुनिक युग में घोर अभिशाप बन गया है । इस सामाजिक कलंक को दूर करने के लिए शिक्षित युवक-युवतियों को आगे आना होगा। सामाजिक संस्थाओं और सरकार को भी इस दशा में कारगर कदम उहाना चाहिए । दहेज प्रथा को दूर करने में महिलाओं की सक्रिय भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उन्हें नारियों में जागरूकता, चेतना और दृढ़ इच्छाशक्ति भरनी होगी ताकि नारियाँ इस कुप्रथा के विरुद्ध संघर्ष कर समाज में उचित आदर प्राप्त कर सकें।

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

(घ) आधुनिक भारतीय नारी :
दुनिया के कुछ भागों में यह विश्वास प्रचलित है कि जब परमात्मा ने मानव को उत्पन्न किया तो मानव ने स्वयं को एकाकी पाया, मनुष्य ने परमात्मा से साथी माँगा, परमात्मा ने वायु से शक्ति, सूर्य से गर्मी, हिम से शीत, पारे से चंचलता, तिलियों से सौन्दर्य और मेघ-गर्जन से शोर लेकर स्त्री पुरुष की ‘शरीराद्ध’ और अर्धांगिनी मानी गयी तथा ‘श्री’ और ‘लक्ष्मी’ के रूप में वह मनुष्य के जीवन को सुख और समृद्धि से दीप्त और पुंजित करने वाली कही गयी, उसका आगमन पुरुष के लिए शुभ, सौरभमय और सम्मानजनक था।

हिन्दू समाज में कोई भी धार्मिक कार्य बिना पत्नी के सम्पन्न नहीं होता, इसीलिए वह ‘धर्मपत्नी’ अथवा सहधर्मिणी भी कही जाती है । ‘मनु’ के अनुसार केवल पुरुष कोई वस्तु नहीं, वह अपूर्ण है। स्री, स्वदेह तथा सन्तान ये तीनों ही मिलकर पुरुष (पूर्ण) होता है। गृह की शोभा और सम्पन्नता स्त्री के व्यक्तित्व का विकास एक दूसरे का पूरक है। नारी स्नेह और सौजन्य की प्रतिमा है, त्याग और समर्पण की मूर्ति है, दुष्ट मर्दन में चण्डी, संग्राम में कैकेयी, श्रद्धा में शबरी, सौन्दर्य में दमयन्ती, सुगृहिणी में सीता, अनुराग में राधा, विद्वता में गार्गेयी और राजनीति में लक्ष्मीबाई के तुल्य है। नारी का अपमान मानवता का सबसे बड़ा अपराध है। उसकी उपेक्षा मनुष्य के अस्तित्व को जर्जर, नीरस और व्यर्थ पर देती है।

शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ नारी को भी स्वच्छन्द परिवेश में श्वाँस लेने का पूर्णसुखद अवसर सुलभ अवश्य हुआ है किन्तु आर्थिक असमानता, शिक्षा के अभाव में ग्रामीण नारियों का जीवन ‘चूल्हा चक्की’ से ऊपर नहीं उठ सका है और आज भी नारकीय यन्त्रणा ही उनकी हिस्से में है। ‘गृहलक्ष्मी’ तो ये अवश्य है किन्तु तिजोरी की चाभी पुरुष के पास ही रहती है, ‘अन्नूपर्णा’ अवश्य हैं वे किन्तु कौन-सी ‘सब्जी’ बनेगी, पति की ही बात चलती है। धनलोलुपों द्वारा नारी-शरीर का खुला क्रय-विक्रय आज भी सामयिक है। कुछ शहर मर्दो में चाहे वह भाई हो या पति, इस नरक से उबरने की इच्छा भी नहीं मानते । उनका तर्क है कि पेट भरा होने के बाद ही सूझता है कि कौन धंधा सही है, कौन गलत भारत में तमाम शहर ऐसे हैं जहाँ औरतों को आज भी जिन्दा माँस की तश्तरी से ज्यादा महत्त्व नहीं दिया जाता है। हर शहर में वेश्यालय सिनेमा घरों की तरह हाउस-फूल जा रहे हैं। ये वेश्यायें देह सुख के लिए ऐसा नहीं करतीं, अपितु आर्थिक असमानता एवं दुरावस्था से वे अभिशप्त हैं।

भारतीय संस्कृति का परित्याग कर, पश्चिमी अनुकरण कर नारी चैन से नहीं कर सकती है। समाज के साथ-साथ नारी का भी दायित्व है कि अपने प्रति, अपने कर्तव्यों के प्रति, अपने आदर्शों के प्रति सचेष्ट रहे। उसे शकुन्तला भी बनना होगा, सीता भी, राधा भी बनना होगा और लक्ष्मीबाई भी, कस्तूरबा भी, सरोजिनी, नायडू भी। भारतीय नारी का आदर्श महान।

(ङ) विज्ञान: वरदान का अभिशाप :
आज विज्ञान के महत्त्व को, उसको उपादेयता को नकारा नहीं जा सकता है। चाहे वह घर का रसोईघर हो या समर-भूमि; विज्ञान के चमत्कार तथा प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं। प्रकृति पर विज्ञान की विजय-यह एक किंवदंती नहीं, एक प्रत्यक्ष सत्य है । चन्द्रमा पर मनुष्य का अभियान, ट्यूब बेबी, रॉकेट, अणुबम आदि विज्ञान की उत्कृष्ट देन हैं। सैकड़ों-हजारों मील लम्बी दूरियाँ भी मनुष्य पैदल ही तय करता था । आज वायुमान के सहारे हम कुछ ही घंटों में भारत से लंदन पहुँच जाते हैं। कभी चन्द्रमा यात्रा की बात कोरी कल्पना समझी जाती थी, परन्तु जब बन्द मानव चन्द्रमा की सतह पर उतरे तो सम्पूर्ण विश्व दाँतों तले ऊँगलियाँ दबाकर रह गया । आज जीवन का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जहाँ विज्ञान की किरणें नहीं पहुँची हों।

विज्ञान हमारे लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इसकी उपयोगिता जीवन के हर क्षेत्र में सिद्ध है। क्षण-क्षण, पल-पल हम विज्ञान के चमत्कारों का नजारा देखते हैं, संबंधित कहानियाँ सुनते हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का संकेत करके हम उसके महत्त्व की उपादेयता का सहज अनुभव कर सकते हैं। विज्ञान के अद्भुत चमत्कारों ने एक नयी क्रांति पैदा कर दी है, एक नया अध्याय जोड़ दिया है।

आवागमन के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियाँ विशिष्ट एवं विलक्षण हैं। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक जगह से दूसरी जगह जाना गहन समस्या था। आज विज्ञान के कारण इस क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए हैं। रेलगाड़ियाँ, मोटरकार, बसें, वायुयान आदि इतनी तेज सवारियाँ निकल आयी हैं कि बातों-ही-बातों में हम लम्बी-लम्बी दूरियाँ तय कर लेते हैं। तार, टेलीफोन, वायरलेस आदि यंत्रों के आविष्कार के कारण हम घर बैठे मुम्बई, कोलकाता, लंदन में रहनेवाले लोगों से बाते कर लेते हैं। नदी, समुद्र, पहाड़ आज हमारे आवागमन के मार्ग में किसी प्रकार को अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकते।

चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियों ने संजीवनी बूटी का काम किया है। पुराने जमाने में छोटी-छोटी बीमारी के कारण लोगों की मृत्यु हो जाती थी।

आज शायद ही ऐसा कई रोग है, जिसकी दवा सुलभ नहीं है, जिसका निदान संभव नहीं है। क्या यह विलक्षण चमत्कार नहीं है कि विश्व से चेचक, प्लेग, मलेरिया आदि रोगों का उन्मूलन हो गया। आज बड़े-बड़े असाध्य रोगों की भी अच्छी एवं प्रभावकारी औषधियाँ निकल रही हैं। दिन-प्रतिदिन नये-नये प्रयोग हो रहे हैं, नये-नये उपकरण एवं नयी-नयी जीवनरक्षक औषधियाँ निकल रही है। मनुष्य का हृदय विकृत या क्षतिग्रस्त हो जाने पर उसे बदल दिया जा सकता है और मनुष्य को नयी जिन्दगी दी जा सकती? अंधे को आँखों की रोशनी, विकलांगों के विकृत अंगों में सुधार, दिल और दिमाग में परिवर्तन वैज्ञानिक चमत्कारों की ही देन हैं।

आवागमन या चिकित्सा ही नहीं, प्रायः सभी क्षेत्रों में विज्ञान की बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ सामने आयी हैं । चन्द्रमा पर मानव की विजय से लेकर पाकशालाओं एवं शयनकक्षों में आराम एवं सुख-सुविधाओं की सारी चीजों की व्यवस्था विज्ञान के ही चमत्कार हैं। रेडियो, सिनेमा, टेलिविजन, वीडियो आदि सारी-की-सारी चीजें विज्ञान की ही देन हैं। कम्प्यूटर ने एक नये युग की शुरूआत की है।

प्रत्येक वस्तु के दो पक्ष होते हैं-श्वेत और श्याम । विज्ञान भी इसका अपवाद नहीं है। विज्ञान यदि वरदान है तो अभिशाप भी बना है। विज्ञान ने यदि हमारे अधरों पर मुस्कुराहट बिखेरी है तो इसने हमारी आँखों में अश्रुकरण भी संजोये हैं। विज्ञान ने परमाणु बम तथा अनेक गैसों, हथियारों एवं शस्त्रास्त्रों का आविष्कार किया है, जो मानव समुदाय का समूल विनाश करते हैं । हिरोशिमा और नागासाकी पर मानवता के ध्वंस का तांडव नृत्य क्या हम भूल पाये हैं ? स्वयं बमपर्षक जहाज के चालकों ने पश्चाताप किया है।

आज बड़े-बड़े देश परमाणु-शक्ति की खोज इसलिए नहीं कर रहे हैं कि उनका प्रयोग मनुष्य के कल्याण एवं शान्तिपूर्ण प्रयोजनों के लिए किया जायेगा, वरन् उनका प्रयोग मानवता को ध्वस्त करने के लिए किया जायेगा। संहार अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण पर सभी देश अपनी बजट राशि में वृद्धि कर रहे हैं। बड़े-बड़े देश एवं महाशक्तियाँ इन्हीं संहारक हथियारों के बलबूते पर छोटे तथा कमजोर देश पर अपना आधिपत्य बनाये रखना चाहती है।

इन बमों के विस्फोट से निकली विषैली गैसों के कारण वातावरण दूषित हो गया है, अनेकानेक बीमारियाँ फैल रही हैं। विशेषज्ञों का कथन है कि यदि इसी प्रकार ये विषैली गैसें वातावरण को दूषित करती रही तो आनेवाले बच्चे शारीरिक एवं मानसिक रूप से विकृत होंगे। मशीन के अधिकाअधिक अविष्कार के कारण बेकारी की समस्या बढ़ती जा रही है। जहाँ मशीनों का अधिक उपयोग हो रहा है, वहाँ मनुष्य बेकार होते जा रहे हैं।

विज्ञान एक वरदान भी है और एक अभिशाप भी । विज्ञान अपने-आपमें न तो अभिशाप है और न वरदान । विज्ञान का वरदान होना या अभिशाप होना वैज्ञानिकों और राजनीतिज्ञों पर निर्भर करता है। सबसे मूल बात यह है कि हम इसका प्रयोग किस प्रकार तथा किसलिए करते हैं।

यदि हम विज्ञान का प्रयोग मानव-कल्याण के लिए करते हैं तो हमारे लिए सबसे बड़े वरदान है और यदि हम इसका प्रयोग नर-संहार के लिए करते हैं, तो यह मानव-जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो की सप्रसंग व्याख्या करें : (4 x 2 = 8)

(क) आत्महत्या एक घृणित अपराध है । यह पूर्णतः कायरता का कार्य है।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ भगत सिंह लिखित कहानी एक लेख और एक पत्र से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक कहते हैं, कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा । इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता । हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक से अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है । प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। आत्महत्या को कायरता’ इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं । इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

(ख) नारी और नर एक ही द्रव्य की ढ़ली दो प्रतिमाएँ हैं।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर के निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गई है। निबंधकार दिनकर का मानना है कि नर-नारी पूर्ण रूप से
समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । अर्थात् नरों  में नारियों के गुण आएँ तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती बल्कि

उसकी पूर्णता में वृद्धि होती है । दिनकर को यह रूप कहीं देखने को नहीं मिलता है । इसलिए वे क्षुब्ध हैं। उनका मानना है कि संसार में सर्वत्र पुरुष हैं और स्री-स्री । वे कहते हैं कि नारी समझाती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगेगा। इसी प्रकार पुरुष समझता है कि त्रियोचित गुण अपनाकर वह ौण हो जायेगा। इस विभाजन से दिनकर दुखी है। यही नहीं भारतीय समाज को जानने वाले तीन बड़े चिंतकों रवीन्द्रनाथ, प्रेमचंद, प्रसाद के चिंतन से भी दुखी हैं । दिनकर मानते हैं कि यदि ईश्वर ने आपस में धूप और चाँदनी का बँटवारा नहीं किया तो हम कौन होते हैं आपसी गुणों को बाँटने वाले ।

(ग) पूरब पश्चिम से आते हैं।
नंगे बूचे नर-कंकाल
सिंहासन पर, बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ रघुवीर सहाय की कविता ‘अधिनायक’ से ली गई हैं। कवि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था पर साहसपूर्ण प्रतिक्रिया, इसके कथित परिवेश व्यंग्य करता है। भारतीय समाज में फैली अव्यवस्था, ऊँचा-नीच समानता-असमानता पर कलरा कुठाराघात करते हुए पूँजीवादी

जनतंत्र की आड़ में किये जा रहे शोषण, दमन और अन्याय के खिलाफ विद्रोह करता है।

कवि लोकतांत्रिक व्यवस्था पर चोट करते हुए, उस पर कटाक्ष करते हुए कहता है कि इस व्यवस्था में एक तरफ तो चारों दिशाओं से भूख की चीत्कार सुनाई दे रही है, बदन पर पहनने के लिए वस्त्र नहीं है, तो दूसरी ओर सत्ता पर कुंडली मारे लोग शोषण के चक्र चला रहे हैं।

कवि लोकतंत्र के मूल्यों के भ्रष्टीकरण से आहत है। इसीलिए कवि मनुष्य और मनुष्य के बीच समानता और सामाजिक न्याय की लड़ाई के प्रति अपने को प्रतिशत किए हुए है। वह हर ऐसे हर अमानवीय और क्रूर हरकत के खिलाफ आवाज उठाता है जिससे समानता और भाइचारे के जनवादी मूल्य खंडित होते हैं।

(घ) बड़ा कठिन है बेटा खोकर
माँ को अपना मन समझाना।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘शोक गीत पुत्र वियोग’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री की असीम पुत्र प्रेम की व्यंजना हुई है। कविता माँ का हृदय बड़ा कोमल होता है। वह एक पुत्र को पाने के लिए तरह-तरह की मिन्नतें माँगती हैं। पत्थर को देवता मानकर शीश नचवाती है। नौ माह तक कष्ट झेलती हुई अनेक तकलीफ सहती हुई उसे पाती है । उसे पाने के बाद उसे पढ़ाती-लिखाती, संस्कार देती है। इस तरह पुत्र उसके जीवन का अहम हिस्सा बन जाता है। वह रोता है तो मनाती है, चुप कराती है।

इस तरह पुत्र-प्रेम में वह बँध जाती है। परन्तु इसी बीच जब उसके पुत्र की असमय मृत्यु हो जाती है तो उसका जीवन सूना-सूना हो जाता है । वह पुत्र प्रेम के कारण बेचैन सी हो जाती है। उसे लगता है बिछुड़े हुए पुत्र से एक बार वह मिल लेती, पलभर के लिए प्यार कर लेती । परन्तु यह सब नहीं हो पाता। इसलिए वह मन को समझा नहीं पाती । बेटा खोकर एक माँ को अपने मन को . समझाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 3.
अपने कॉलेज के प्रधानाचार्य को एक आवेदन पत्र लिखें, जिसमें कॉलेज परिसर में हिन्दी-दिवस आयोजित करने की अनुमति की माँग हो। (1 x 5 = 5)

उत्तर:
सेवा में,
प्रधानाचार्य महोदय
पटना कॉलेजिएट स्कूल, पटना ।
श्रीमांगी,

सविनय निवेदन है कि अपने विद्यालय के सभी छात्रों की हारदीक इच्छा है कि विद्यालय परिसर में हिन्दी दिवस आयोजित की जाय । हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, हिन्दी की समृद्धि में ही देश की समृद्धि निहित है।

अतः आपसे आग्रह है कि विद्यालय परिसर में हिन्दी दिवस आयोजित करने की अनुमति प्रदान करने की कृपा करें। इसके लिए आपका सदा आभारी रहेंगे।

निवेदन
छात्रगण पटना कॉलेजिएट स्कूल,
पटना
दिनांक 10.02.2019

अथवा
अपने पिताजी को एक पत्र लिखें, जिसमें गर्म कपड़े खरीदने के लिए रुपये की मांग हो।

परीक्षा भवन
……. केन्द्र
10.02.2019

पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम ।

आशा है आप व परिवार के अन्य सभी सदस्य सकुशल और सानन्द होंगे। इस बार मैं आपको पत्र जल्दी न भेज सका क्योंकि मेरी परीक्षा हो रही है। उसी की तैयारी में लगा रहा । इस समय यहाँ भीषण ठंड पर रही है। मेरे पास गर्म कपड़े अपर्याप्त हैं।

अतः गर्म कपड़ा खरीदने के लिए आप मुझे 500 रुपये भेज दें। मेरी ओर से पूज्यमाता जी को सादर चरण वंदना । अशोक और सीमा को प्यार । मेरे योग्य कोई सेवा हो तो अवश्य लिखें। पत्रोत्तर शीघ्र दें तथा रुपये भी जल्दी भिजवाएँ।

आपका सुपुत्र
शशांक सिन्हा

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

प्रश्न 4.
निम्नांकित प्रश्नों में से ‘किन्हीं पाँच के उत्तर दें। (2 x 5 = 10)

(i) भ्रष्टाचार की जड़ क्या है ? क्या आप जे0 पी0 के विचारों से सहमत हैं?
उत्तर:
भ्रष्टाचार की जड़ सरकार की गलत नीतियाँ है । इन गलत नीतियों के कारण भूख है, महँगाई है, भ्रष्टाचार हैं, कोई काम नहीं जनता का निकलता है बगैर रिश्वत दिए । सरकारी दफ्तरों में, बैंकों में, हर जगह, टिकट लेना है उसमें, जहाँ भी हो, रिश्वत के बगैर काम नहीं जनता का होता है। हर प्रकार के अन्याय के नीचे जनता दब रही है। शिक्षा-संस्थाएँ भ्रष्ट हो रही है। हमारे नौजवानों का भविष्य अंधेरे में पड़ा हुआ है । जीवन उनका नष्ट हो रहा है इस प्रकार चारो ओर भ्रष्टाचार व्याप्त है। इसे दूर करने के लिए समाजवादी तरीके से सरकार ऐसी नीतियों बनाएँ जो लोक कल्याणकारी हो।

(ii) अगर मनुष्य में वाशक्ति न होती तो क्या होता?
उत्तर:
हममें वाक्शक्ति न होती तो मनुष्य गूंगा होता, वह मूकबधिर होता। मनुष्य को सृष्टि की सबसे महत्वपूर्ण देन उसकी वाक्शक्ति है। इसी वाक्शक्ति के कारण वह समाज में वार्तालाप करता है। वह अपनी बातों को अभिव्यक्त करता है और उसकी यही अभिव्यक्त वाक्शक्ति भाषा कहलाती है। व्यक्ति समाज में रहता है। इसलिए अन्य व्यक्ति के साथ उसका पारस्परिक सम्बन्ध और कुछ जरूरतें होती हैं जिसके कारण वह वार्तालाप करता है। यह ईश्वर द्वारा दी हुई मनुष्य की अनमोल कृति है। इसी वाक्शक्ति के कारण वह मनुष्य है। यदि हममें इस वाक्शक्ति का अभाव होता तो मनुष्य जानवरों की भाँति ही होता । वह अपनी क्रियायों को अभिव्यक्त नहीं कर पाता । जो हम सुख-दुख इंद्रियों के कारण अनुभव करते हैं वह अवाक् रहने के कारण नहीं कर पाते।

(iii) लहना सिंह कौन है ?
उत्तर:
लहनासिंह एक सामान्य किसान परिवार का है । वह सिपाही की नौकरी करता है और अपने दायित्व के प्रति सजग रहता है।

(iv) मालती कौन थी?
उत्तर:
मालती रोज कहानी की एक पात्रा है। वह एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए पंगु बने व्यक्तित्व की प्रतिमूर्ति है।

(v) लहना सिंह के साथी का क्या नाम है ?
उत्तर:
लहना सिंह के साथी का नाम हजारा सिंह है।

(vi) राम का नाम सुनते ही तुलसीदास की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसीदास के इस भरोसे का कारण स्पष्ट करें ?
उत्तर:
तुलसी कहते हैं कि हे प्रभु मैं अत्यन्त दीन सर्वसाधनों से हीन मनमलीन दुर्बल और पापी मनुष्य हूँ फिर भी आपका नाम लेकर अपना पेट भरता हूँ। तुलसी को यह विश्वास है कि उनके राम कृपालु हैं, दयानिधान हैं वे हर बात को अच्छी तरह समझकर उसका समाधान करते हैं यही उनके भरोसे का कारण है।

(vii) पुत्र के लिए उसकी माँ क्या-क्या करती है ?
उत्तर:
पुत्र के लिए माँ हर कदम पर सचेत होकर चलती है। उसे डर लगा रहता है कि कहीं उसे लू न लग जाए, कहीं उसे सर्दी न लग जाय, उस भय से उसे अपने गोद से भी नहीं उतारती । उसे अपने आँचल की ओट में छिपाये रहती है। जब पुत्र माँ कहकर पुकारता है तो माँ सभी काम छोड़कर दौड़ी चली आती है। पुत्र के न सोने पर उसे थपकी देती है, कभी लोरियाँ गाकर सुलाती है। उसकी आँखें अपने पुत्र के मुख पर मलिनता देखकर रात भर जाग जाती हैं। माँ पुत्र को पाने के लिए मिन्नतें माँगती हैं। कहीं दूध, बताशा, नारियल इत्यादि चढ़ावे के रूप में चढ़ाती हैं। पत्थर जैसे अमूर्त वस्तु को देवता मानकर पुत्र प्राप्ति की इच्छा के लिए मिन्नतें माँगती है। इस तरह पुत्र के लिए माँ का प्रेम असीम है।

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

(viii) ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के बारे में कवि का क्या कहना है?
उत्तर:
कवि प्रातः नभ के सौन्दर्य से अभिभूत हो जाता है । उसे सुबह का आकाश मानो ‘राख से लीपा हुआ चौका’ के समान लगता है। आकाश जब सुबह में स्वच्छ रहता है तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सारा आकाश राख से लीपे हुए गीले चौके के समान हो गया है।

(ix) ‘जन जन का चेहरा एक’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
पीड़ितऔर संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है। यह जनता दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत है और अपने कर्म और श्रम से न्याय, शांति और बंधुत्व की दिशा में प्रयासरत है। कवि इस जनता में एक अंतवर्ती एकता देखता है। इसलिए कवि ‘जन-जन का चेहरा एक’ कहता है।

(x) ‘पद्मावत’ के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
पद्मावत के रचनाकार जायसी है।

प्रश्न 5.
निम्नांकित प्रश्नों में से किन्हीं तीन के उत्तर दें : (3 x 5 = 15)

(i) विशनी केवल मानक की माँ नहीं है बल्कि हर सिपाही की माँ है, कैसे?
उत्तर:
एकांकी के दूसरे भाग में विशनी स्वप्न में जो घटना घटती है उसमें जो संवाद होता है उस संवाद से उसमें किसी भी सिपाही की माँ की हँढा तजा सकता है । जब सिपाही मानक को खदेड़ते हुए विशनी के पास ले आता है तो मानक को गले से लिपटी जाता है और सिपाही के पूछने पर कि इसकी तू क्या लगती है विशनी का जबाव आता है-मैं इसकी माँ हूँ। मैं तूझे इसे मारने नहीं दूंगी। तब सिपाही का जबाव आता है यह हजारों का दुश्मन है वे उसको खोज रहे हैं तब विशनी कहती हैं-तू भी तो आदमी है, तेरा भी घर-बार होगा। तेरी भी माँ होगी। तू माँ के दिल को नहीं समझता। मैं अपने बच्चे को अच्छी तरह से जानती हूँ। साथ ही जब मानक का पटलकर सिपाही पर होता है तब विशनी मानक को यह कहती है कि बेटा ! तू इसे नहीं मारेगा । तुझे तेरी माँ की सौगन्ध इसे नहीं मारेगा इन संवादों से पता चलता है कि विशनी मानक को जितना बचाना चाहती है उतना ही उस सिपाही को भी । उसका दिल दोनों के लिए एक है। अतः उसमें किसी भी सिपाही की माँ को ढूँढ़ा जा सकता है।

करते हैं। उनका साहित्य महज आक्रोश और प्रतिक्रिया से परे समता न्याय और मानवीयता पर टिकी नई पूर्णत्तर सामाजिक चेतना और संस्कृति बोध की आहट है। उनके लेखन में अनुभव की सच्चाई और वास्तव बोध से उपजी नवीन रचना संस्कृति की अभिव्यक्ति है । दलित जीवन के रोष और आक्रोष को वे अपने संवेदनात्मक रचनानभवों की भट्ठी में गलाकर रचना की एक नई इनारत पेश करते हैं। जिसका परिप्रेक्ष्य मानवीय है।

(iii) ओ सदानीरा’ का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
जगदीशचंद्र माथुर ‘ओ सदानीरा’ शीर्षक निबंध के माध्यम से गंडक नदी को निमित्त बनाकर उसके किनारे की संस्कृति और जीवन प्रवाह की अंतरंग झाँकी पेश करते हैं जो स्वयं गंडक नदी की तरह प्रवाहित दिखलाई पड़ता है। सर्वप्रथम चंपारन क्षेत्र की प्राकृतिक वातावरण का वर्णन करते हुए उसकी एक-एक अंग का मनोहारी अंकन करते है। जेसे छायवादी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण देखा जा सकता है उसी तरह निबंध में भी देखा जा सकता है।

एक अंश देखिए-“बिहार के उत्तर-पश्चिम कोण के चंपारण इस क्षेत्र की भूमि पुरानी भी और नवीन भी। हिमालय की तलहटी में जंगलों की गोदी से उतारकर मानव मानो शैशव-सुलभ अंगों और मुस्कान वाली धरती को ठुमक-ठुमककर चलना सिखा रहा है।” इसके साथ माथुर संस्कृति के गर्त में जाकर नदियों में बाढ़ आना उन्हें लगता है जैसे उन्मत्त यौवना वीरांगना हो जो प्रचंड नर्तन कर रही हो। उन्हें साठ-बासठ की बाढ़ रामचरितमानस के क्रोधरूपी कैकयी की तरह दिखलाई पड़ती है। वे बताते हैं नदियों में बाढ़ आना मनुष्यों के उच्छृखलता के कारण हैं। यदि महावन जो चंपारन से गंगा तट तक फैला हुआ था न कटता तो बाढ़ न आती ।

माथुर तर्क देते हैं कि वसुंधराभोगी मानव और धर्मोधमानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। क्योंकि वसुंधरा भोगी मानव अपने भोग-विलास के लिए जंगलों की कटाई कर रहा है तो धर्मांध मानव पूजा-पाठ के सड़ी गली सामाग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर उसे दूषित कर रहा है। माथुर मध्ययुगीन समाज की सच्चाई भी बताते हैं कि आक्रमण के कारण या अपनी महत्वाकांक्षा की तृप्ति के लिए मुसलमान शासकों ने अंधाधुंध जंगलों की कटाई की । इसी तरह यहाँ अनेक संस्कृति आये और वहीं रच-बस गये। सभी ने उसका दोहन ही किया । इस मिली-जुली संस्कृति का परिणाम कीमियो प्रक्रिया है। चंपारन के प्रत्येक स्थल पर प्राचीन युग में लेकर आधुकिन युग में

है। चंपारन के प्रत्येक स्थल पर प्राचीन युग में लेकर आधुकिन युग में गाँधी के चंपारण आने तक के पूरा इतिहास को अपने लेखनी के माध्यम से अच्छे-बुरे प्रभाव को खंगालते हैं। इस परिचय के संदर्भ में कहीं भी कला संस्कृति उसकी भाषा उनकी आँखों से ओझल नहीं हो पाती। – अंत में गंडककी महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि ओ सदानीरा । ओ चक्रा ! ओ नारायणी । ओ महागंडक ! युगों से दीन-हीन जनता इन विविध नामों से तुझे संबोधित करती रही है। आ तेरे पूजन के लिए जिस मंदिर की प्रतिष्ठित हो रही है, उसकी नींव बहुत गाढ़ी हैं। इसे तू ठुकरा न पाएगी।

Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 1

(iv) कविता की बिंब योजना’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
कविता में शमशेर ने दो तरह के बिंब प्रस्तुत किए हैं जो एक जीवन से जुड़ती हैं जिसे मानवीय व्यापार करते हैं दूसरा प्रकृति से जुड़ता है जिसे प्राकृतिक व्यापार करते हैं। इस प्रकार दोनों को मिलाकर कवि ने प्रकृति का मानवीकरण कर दिया है। यह छायावाद की लक्षण है। शमशेर नयी कविता के कवि हैं और उनमें भी लक्षण दिखाई पड़ते हैं।

कविता का प्रथम वाक्य
प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ।
प्रातः का नभ इतना नीला था कि नीला शंख लग रहा था । शंख जिप प्रकार ध्वनित होता है उसी प्रकार प्रात: में हवा चलने के कारण प्रातः भी ध्वनित होता है।

भोर का नभ-अर्थात् अब सुबह हो रही है सूर्य की लाली दिगन्त में छा गई है। प्रातः के बाद भोर शब्द का प्रयोग गाँव में दिन का शुरुआत के साथ जीवन के कार्य-व्यापार का बिंब खड़ा करता है।

राख से लीपा हआ चौका (अभी गीला पड़ा है

भोर होने के साथ ही गृहिणी पहले चौका लीपती है और उसके बाद कोई कार्य करती है। भोर का आकाश इतना नीला या स्याह है कि लगता है जैसे राख से लीप दिया गया हो । भोर का आकाश अभी गीला इसलिए है कि वह ओसपूर्ण है, उसमें आर्द्रता है।

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे घुल गई हो ।
सुबह चौका लीपने के बाद गृहिनी सिलवट पर मसाला पीसती है। . पीसने के बाद सिलवट धुल जाने पर भी थोड़ी देर के लिए केसर की लालिमा बनी रहती है। उसी प्रकार सूर्योदय होने के पूर्व भी इसी प्रकार आकाश लगता है।

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने ।
जब सब काम से गृहिणी निवृत्त हो लेती है तब उसका ध्यान बच्चों पर जाता है और बच्चों को वह स्लेट लेकर पढ़ने बैठाती है। बच्चे स्लेट पर खड़िया से लिखने के साथ खूब रगड़ भी देते हैं। प्रकृति के संदर्भ में विंब यह है कि सूर्य की लाली इस प्रकार छा गई है जैसे लाल खड़िया किसी ने मल दी हो।

नील जल में या किसी की गौर
झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।
गृहिणी स्नान करती है तब उर्मिला लहरें गौर वर्ण से संयोग कर झिलमिलाती प्रतीत होती हैं। इसी प्रकार सूर्योदय होने पर जल में किरणें पड़ती हैं तो वह झिलमिलाता प्रतीत होता है।

(v) सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म सन् 16 अगस्त 1904 ई. को प्रयाग के निहालपुर मुहल्ले में हुआ था। उनका विद्यार्थी जीवन प्रयाग में ही बीता । कास्थवेट गर्ल्स कॉलेज से आपने शिक्षा प्राप्त करने के बाद नवलपुर के सुप्रसिद्ध वकील डॉ. लक्ष्मण सिंह के साथ आपका विवाह हो गया । आपकी रुचि साहित्य में बाल्यकाल से ही थी। प्रथम काव्य रचना

आपने 15 वर्ष की आयु में ही लिखीं थी। राष्ट्रीय आन्दोलन में बराबर सक्रिय भाग लेती रहीं। कई बार जेल गयी। काफी दिनों तक मध्यप्रांत असेम्बली की कांग्रेस सदस्या रहीं और साहित्य एवं राजनीतिक जीवन में समान रूप से भाग लेकर अन्त तक देश की एक जागरूक नारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाती रहीं। 1948 ई. में अप्रैल में आपका स्वर्गवास हो गया।

(vi) ‘उषा’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
उषा’ हिन्दी साहित्य के नयी कविता के कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित प्राकृतिक सौन्दर्यपरक कविता है । इस कविता में कवि ने सूर्यादय के पूर्व के उषाकालीन आकाशीय स्वरूप और सौन्दर्य का मोहक चित्रण किया है। कवि ने इसके चित्रण में भिन्न-भिन्न उपमानों की सहायता भी ली है।

सूर्योदय के पूर्व का काल उषाकाल कहलाता है । उस समय आकाश बिल्कुल नीला और स्वच्छ रहता है। उसकी नीलिमा के बीच आनेवाला उजाला हल्के रूप में झाँकता-सा नजर आता है । प्रातः काल की उस वेला में आकाश नीले राख-सा लगता है। हल्के अंधकार के आवरण में बँके रहने के कारण संपूर्ण आकाश राख से लीपे हुए गीले चौक के समान लगता है।

फिर, धीरे-धीरे सूर्य की हल्की लालिमा की झलक उभरने लगती है। तब उसका स्वरूप कुछ बदल-सा जाता है और उस समय आकाश को देखकर ऐसा लगता है कि आकाश वह काली सिल हो जो जरा-सा लाल केसर से धुली हुई हो या वैसा स्लेट ही जिसपर खड़ियां चाक मल दी गई हो । अंत में कवि ने उषाकालीन आकाश के प्राकृतिक सौन्दर्य को प्रभावपूर्ण रूप से प्रस्तुत करने के लिए अंतिम उपमान लगाकर चर्चा करते हुए कहा है कि उस समय आकाश के वक्ष पर उषा कालीन दृश्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में झिलमिलाती गोरी कोई काया खड़ी हो ।

इसी परिवेश में सूर्योदय होता है। फिर सूर्य की किरणें विकीर्ण होने लगती हैं और आकाश की गोद में चल रहा उषा का यह जादू और उसका नजारा सब समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 6.
संक्षेपण करें: (1 x 4 = 4)

दूसरों की निन्दा करने का एक प्रमुख कारण दूसरे के प्रति ईर्ष्या-द्वेष भी होता है। कुछ लोग ईर्ष्या-द्वेष से दूसरों की निंदा करते हैं । इस प्रकर की निंदा सरस होती है। उसमें आनंद नहीं आता । निंदा करने का जो आनंद समर्पित भाव से निंदा करने में आता है, वह ईर्ष्या-द्वेष रखकर निंदा करने में नहीं आता है। निन्दा करने वाला सदा दुखी और अशान्त रहता है। उससे दूसरों की उन्नति, प्रगति सुख, समृद्धि सहन नहीं होती । अपनी असमर्थता और हीनता के कारण उसमें ईर्ष्या-द्वेष उत्पन्न होता है। दूसरों की निन्दा करने पर उसे थोड़ी-सी शान्ति मिलती है। ऐसा निन्दक दया का पात्र होता है।
उत्तर:
शीर्षक-निन्दा ईर्ष्या-द्वेष से प्रेरित होकर दूसरी की निन्दा करते हैं जो सरल नहीं होती है। लेकिन समर्पित भाव से निन्दा करने में आनन्द आता है। निन्दक सदा दुःखी और अशांत रहता है। उससे दूसरे की अच्छाई सहन नहीं होती है।