Bihar Board 12th Hindi Model Papers
Bihar Board 12th Hindi 100 Marks Model Question Paper 2
समय 3 घंटे 15 मिनट
पूर्णांक 100
परिक्षार्थियों के लिए निर्देश
- परीक्षार्थी यथा संभव अपने शब्दों में ही उत्तर दें।
- दाहिनी ओर हाशिये पर दिये हुए अंक पूर्णांक निर्दिष्ट करते हैं।
- इस प्रश्न पत्र को पढ़ने के लिए 15 मिनट का अतिरिक्त समय दिया गया है।
- यह प्रश्न पत्र दो खण्डों में है, खण्ड-अ एवं खण्ड-ब।
- खण्ड-अ में 50 वस्तुनिष्ठ प्रश्न हैं, सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। (प्रत्येक के लिए । अंक निर्धारित है) इनके उत्तर उपलब्ध कराये गये OMR शीट में दिये गये वृत्त को काले/नीले बॉल पेन से भरें। किसी भी प्रकार का व्हाइटनर/तरल पदार्थ/ब्लेड/नाखून आदि का उत्तर पत्रिका
- में प्रयोग करना मना है, अथवा परीक्षा परिणाम अमान्य होगा।
- खण्ड-ब में कुल 15 विषयनिष्ठ प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न के समक्ष अंक निर्धारित हैं।
- किसी तरह के इलेक्ट्रॉनिक यंत्र का उपयोग वर्जित है।
खण्ड-अ
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
श्न संख्या. 1 से 50 तक के प्रत्येक प्रश्न के साथ चार विकल्प दिए गए है, जिनमें से एक सही है। अपने द्वारा चुने गए सही विकल्प को OMR शीट पर चिह्नित करें।(1 x 50 = 50)
प्रश्न 1.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की रचना है।
(a) अर्द्ध नारीश्वर
(b) रोज
(c) जूठन
(d) ओ सदानीरा।
उत्तर:
(a) अर्द्ध नारीश्वर
प्रश्न 2.
जायसी किस शाखा के कवि हैं?
(a) प्रेममार्गी
(b) कृष्णमार्गी
(c) राममार्गी
(d) ज्ञानमार्गी ।
उत्तर:
(a) प्रेममार्गी
प्रश्न 3.
प्रेमचंद किस काल के रचनाकार हैं?
(a) आदि काल
(b) भक्ति काल
(c) रीति काल
(d) आधुनिक काल ।
उत्तर:
(d) आधुनिक काल ।
प्रश्न 4.
नामवर सिंह द्वारा लिखित ‘प्रगति और समाज’ क्या है?
(a) आलोचना
(b) निबंध
(c) एकांकी
(d) आत्मकथा ।
उत्तर:
(b) निबंध
प्रश्न 5.
‘पुत्र-वियोग’ किसकी कविता है?
(a) सुमित्रा नंदन पंत
(b) ज्ञानेन्द्र पति त्रिपाठी
(c) जयशंकर प्रसाद
(d) सुभद्रा कुमारी चौहान ।
उत्तर:
(d) सुभद्रा कुमारी चौहान ।
प्रश्न 6.
‘लहना’ किस कहानी का पात्र है?
(a) रोज
(b) उसने कहा था
(c) जूठन
(d) तिरिछ।
उत्तर:
(d) तिरिछ।
प्रश्न 7.
‘एक लेख और एक पत्र’ के लेखक हैं
(a) मोहन राकेश
(b) नामवर सिंह
(c) भगत सिंह
(d) दिनकर ।
उत्तर:
(d) दिनकर ।
प्रश्न 8.
जयप्रकाश नारायण की रचना है।
(a) जूठन
(b) सम्पूर्ण क्रांति
(c) बातचीत
(d) रोज ।
उत्तर:
(c) बातचीत
प्रश्न 9.
‘बातचीत’ साहित्य की कौन-सी विधा है?
(a) उपन्यास
(b) कहानी
(c) निबंध
(d) नाटक ।
उत्तर:
(b) कहानी
प्रश्न 10.
‘अधिनायक’ के रचनाकार हैं
(a) रघुवीर सहाय
(b) अशोक वाजपेयी
(c) मलयज
(d) भारतेन्दु
उत्तर:
(a) रघुवीर सहाय
प्रश्न 11.
‘ओ सदानीरा’ शीर्षक पाठ के लेखक है
(a) मोहन राकेश
(b) उदय प्रकाश
(c) जगदीशचन्द्र माथुर
(d) नामवर सिंह
उत्तर:
(c) जगदीशचन्द्र माथुर
प्रश्न 12.
‘एक लेख और एक पत्र’ के लेखक हैं
(a) सुखदेव
(b) भगत सिंह
(c) बालकृष्ण भट्ट
(d) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।
उत्तर:
(b) भगत सिंह
प्रश्न 13.
ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचना है
(a) रोज
(b) तिरिछ
(c) जूठन
(d) उसने कहा था।
उत्तर:
(c) जूठन
प्रश्न 14.
‘अधिनायक’ कविता के कवि है
(a) रघुवीर सहाय
(b) गजानन माधव मुक्तिबोध
(c) भूषण
(d) हुमासीदास।
उत्तर:
(a) रघुवीर सहाय
प्रश्न 15.
‘पुत्र वियोग’ कविता के कवि है
(a) ज्ञानेन्द्रपति
(b) जयशंकर प्रसाद
(c) सुभद्रा कुमारी चौहान
(d) सूरदास।
उत्तर:
(c) सुभद्रा कुमारी चौहान
प्रश्न 16.
अर्द्धनारीश्वर’ शीर्षक पाठ के लेखक कौन हैं ?
(a) रामचन्द्र शुक्ल
(b) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(d) जगदीश चंद्र माथुर ।
उत्तर:
(c) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
प्रश्न 17.
‘रोज’ शीर्षक कहानी के लेखक हैं
(a) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(b) अज्ञेय
(c) मोहन राकेश
(d) उदय प्रकाश ।
उत्तर:
(b) अज्ञेय
प्रश्न18.
पं० चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी है
(a) जूठन
(b) रोज
(c) उसने कहा था
(d) तिरिछ ।
उत्तर:
(c) उसने कहा था
प्रश्न 19.
‘प्यारे नन्हे बेटे को’ के कवि कौन हैं?
(a) रघुवीर सहाय
(b) विनोद कुमार शुक्ल
(c) शमशेर बहादुर सिंह
(d) अशोक वाजपेयी ।
उत्तर:
(b) विनोद कुमार शुक्ल
प्रश्न 20.
‘गाँव का घर’ कविता के रचयिता हैं .
(a) विनोद कुमार शुक्ल
(b) गजानन माधव मुक्तिबोध
(c) ज्ञानेंद्रपति
(d) जयशंकर प्रसाद ।
उत्तर:
(c) ज्ञानेंद्रपति
प्रश्न 21.
‘शिक्षा’ शीर्षक निबंध के निबंधकार हैं।
(a) मलयज
(b) मोहन राकेश
(c) उदय प्रकाश
(d) जे० कृष्णमूर्ति
उत्तर:
(d) जे० कृष्णमूर्ति
प्रश्न 22.
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी रचित पाठ का शीर्षक है
(a) रोज
(b) उसने कहा था
(c) सिपाही की माँ
(d) शिक्षा
उत्तर:
(b) उसने कहा था
प्रश्न 23.
सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता का नाम है
(a) प्यारे नन्हें बेटे को
(b) पुत्र-वियोग
(c) हार-जीत
(d) गाँव का घर
उत्तर:
(b) पुत्र-वियोग
प्रश्न 24.
अर्धनारीश्वर’ निबंध के निबंधकार हैं।
(a) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
(b) हजारी प्रसाद द्विवेदी
(c) रामचन्द्र शुक्ल
(d) जगदीशचन्द्र माथुर
उत्तर:
(a) रामधारी सिंह ‘दिनकर’
प्रश्न 25.
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता में लोहा किसका प्रतीक है ?
(a) नमक का
(b) मशीन का
(c) कर्म का
(d) धर्म का
उत्तर:
(c) कर्म का
प्रश्न 26.
भगवान श्रीकृष्ण किस कवि के पूज्य थे?
(a) तुलसीदास
(b) जायसी
(c) कबीरदास
(d) सूरदास
उत्तर:
(d) सूरदास
प्रश्न 27.
आपकी पाठयपुस्तक में नाभादास की कविता किन दो कवियों के बारे में है ?
(a) जायसी एवं सूरदास
(b) कबीर एवं सूरदास
(c) सूरदास एवं तुलसीदास
(d) तुलसीदास एवं कबीरदास
उत्तर:
(b) कबीर एवं सूरदास
प्रश्न 28.
जूठन’ क्या है?
(a) जूठा
(b) कहानी
(c) शब्दचित्र
(d) आत्मकथा
उत्तर:
(d) आत्मकथा
प्रश्न 29.
किस पाठ में यह उद्धरण आया है? .. “फौजी वहाँ लड़ने के लिए हैं, वे भाग नहीं सकते । जो फौज छोड़कर भागता है, उसे गोली मार दी जाती है …………….।”
(a) हँसते हुए मेरा अकेलापन
(b) प्रगति और समाज
(c) सिपाही की माँ
(d) ओ सदानीरा ।
उत्तर:
(c) सिपाही की माँ
प्रश्न 30.
‘तिरिछ’ कहानी के कहानीकार हैं
(a) उदय प्रकाश
(b) बालकृष्ण भट्ट बालका
(c) चन्द्रधर शर्मा गुलेरी
(d) सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उत्तर:
(a) उदय प्रकाश
प्रश्न 31.
पृथ्वी :
(a) ज्ञानेन्द्रपति
(b) त्रिलोचन
(c) मलयज
(d) नरेश सक्सेना
उत्तर:
(d) नरेश सक्सेना
प्रश्न 32.
कलर्क की मौत :
(a) हेनरी लोपेज
(b) गाइ-डि-मोपासा
(c) अंतोन चेखव
(d) लू शून
उत्तर:
(c) अंतोन चेखव
प्रश्न 33.
हार-जीत :
(a) अशोक बाजपेयी
(b) रघुवीर सहाय
(c) ज्ञानेन्द्रपति
(d) शमशेर बहादुर सिंह
उत्तर:
(b) रघुवीर सहाय
प्रश्न 34.
पेशगी:
(a) प्रतिपूर्ति
(b) निबंध
(c) कहानी
(d) अलोचना
उत्तर:
(c) कहानी
प्रश्न 35.
जूठन :
(a) कविता
(b) रेखाचित्र
(c) कहानी
(d) आत्मकथा
उत्तर:
(d) आत्मकथा
प्रश्न 36.
‘कृष्ण’ का विलोम है
(a) काला
(b) सफेद
(c) शुक्ल
(d) उजला
उत्तर:
(b) सफेद
प्रश्न 37.
‘स्थावर’ का विलोम है
(a) स्थिर
(b) जंगम
(c) सरल
(d) बड़ा
उत्तर:
(a) स्थिर
प्रश्न 38.
‘नर’ का विपरीतार्थक शब्द है
(a) पुरुष
(b) व्यक्ति
(c) धनी
(d) नारी
उत्तर:
(d) नारी
प्रश्न 39.
‘स्तुति’ का विलोम है
(a) निन्दा
(b) शिकायत
(c) घृणा
(d) रात्रि
उत्तर:
(a) निन्दा
प्रश्न 40.
‘संध्या’ का विलोम है
(a) प्रात
(b) प्रातः
(c) निशा
(d) द्वेष
उत्तर:
(b) प्रातः
प्रश्न 41.
‘स्वर्ण’ का विशेषण है
(a) स्वर्णाभ
(b) स्वर्णिम
(c) स्वर्णकार
(d) सुवर्ण
उत्तर:
(b) स्वर्णिम
प्रश्न 42.
‘जगत’ का विशेषण है
(a) जागना
(b) जगदीश
(c) जागतिक
(d) जग
उत्तर:
(c) जागतिक
प्रश्न 43.
‘दिन’ का विशेषण है
(a) सुदिन
(b) दैनिक
(c) दिनभर
(d) दिनेश
उत्तर:
(b) दैनिक
प्रश्न 44.
अरण्य’ का समानार्थी (पर्यायवाची) है
(a) विपिन
(b) वपु
(c) रश्मि
(d) विटप
उत्तर:
(a) विपिन
प्रश्न 45.
‘तलवार’ शब्द का विलोम है
(a) चन्द्र
(b) सायक
(c) तुंग
(d) प्रभा
उत्तर:
(b) सायक
प्रश्न 46.
शिव का उपासक कहलाता है
(a) शिवम
(b) शैव
(c) शिवत्व
(d) शंकर
उत्तर:
(b) शैव
प्रश्न 47.
‘अपने पैरों पर खड़ा होना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) दूर जाना
(b) स्वावलंबी होना
(c) प्रिय होना
(d) सुदर होना
उत्तर:
(b) स्वावलंबी होना
प्रश्न 48.
‘आसमान टूटना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) कष्ट होना
(b) अचानक मुसीबत आना
(c) दुर्लभ होना
(d) दुखी होना
उत्तर:
(b) अचानक मुसीबत आना
प्रश्न 49.
‘घाट-घाट का पानी पीना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) प्यास लगना
(b) बहुत अनुभवी होना
(c) मूर्ख होना
(d) अनपढ़ होना
उत्तर:
(b) बहुत अनुभवी होना
प्रश्न 50.
‘त्राहि-त्राहि करना’ मुहावरे का अर्थ है
(a) बहुत दुखी
(b) रोना
(c) नाराज होना
(d) क्रोध करना
उत्तर:
(a) बहुत दुखी
खण्ड-बः
विषयनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी एक पर निबंध लिखिये- (1 x 8 = 8 )
- वसंतु ऋतु,
- दहेज प्रथा,
- मेरे प्रिय कवि,
- महँगाई,
- विज्ञान वरदान या अभिशाप ।
उत्तर:
(i) वसंत ऋतु – भारत में सभी ऋतुओं का दर्शन और अनुभव होता है। ऋतुराज वसन्त की बात ही अलग है । वसन्त ऋत के विषय में विद्वानों का कहना है कि “वसन्त आता नहीं लाया जाता है” । यहाँ वसन्त से तात्पर्य मुस्कुराहट, यौवन, मस्ती आदि से है । कहने का तात्पर्य यह है कि इस ऋतु में मानव, पशु-पक्षी, वनस्पति सभी प्रफुल्ल रहते हैं। यह ऋतु अपनी विशेषताओं के कारण सभी का प्यारा है । फल्गुन से वैशाख तक यह ऋतु अपने स्वाभाविक गुणों से सभी को आनन्दित करती है ।
यह ऋत अंग्रेजी महीनों के मार्च एवं अप्रैल में होती है । वसन्त पंचमी का त्यौहार तो इसी के नाम पर है लेकिन यह पहले ही सम्पन्न हो जाता है । होली का त्यौहार इसी में आता है । वसन्त ऋतु में न अधिक ठंड होती है और न अधिक गर्मी । इस ऋतु में प्रायः आकाश साफ रहता है । इसमें दिन बड़ा होता है और रात छोटी । वन-उपवन में चारों ओर नई-नई कोपलें ही दिखाई पड़ती हैं । वृक्ष, पौधे आदि सभी एक-दूसरे को प्रफुल्लित करते रहते हैं नए-नए फल चारों
ओर दिखाई पड़ते हैं । उनके मधुर रस का पान करके भौरे, तितलियाँ आदि सभी मतवाले होकर इधर-उधर घूमते रहते हैं । आम्रमंजरियाँ भी अपनी गंध से सभी को मादक बना देती हैं । इस ऋतु में ही कोयल की आवाज इधर-उधर गँजती रहती है। इस ऋत में मानव के साथ-साथ वनस्पतियाँ भी प्रसन्न हो जाती हैं।
उन पर नए फूल और फल वातावरण को और भी सुन्दर बना देते हैं। नाना प्रकार के फल मिलते हैं जिसको खाकर मनुष्य नई चेतना को प्राप्त करते हैं। उनका शरीर भी खिल उठता है । सभी प्राणी और वनस्पतियाँ आनन्द के सागर में हिलोरें लेने लगते हैं। ठंड से राहत मिलते ही सभी जल और जलाशय का आनन्द लेने के लिए मचल उठते हैं । होली का त्यौहार भी यह प्रदर्शित करता है कि ठंडक चली गयी है और स्नान से घबराना नहीं है । इस ऋतु में ही रबी फसल कटती है जो मानव जीवन का आधार है।
वसन्त ऋतु में प्रायः भ्रमण का अलग महत्त्व हैं । वसन्त ऋतु में चारों ओर मनमोहक वातावरण में सैर करने से शरीर के साथ-साथ मन भी प्रसन्न होता है। इसे ऋतु का स्वास्थ्यवर्धक ऋतु मानी गई है । कहा गया है कि इस ऋतु में नियमपूर्वक रहने से रोग इत्यादि दर रहते हैं । यह ऋत छात्रों के लिए भी उपयोगी है, क्योंकि वातावरण स्वच्छ रहने से भरपूर पढ़ाई होती है।
अन्त में, यह कह सकते हैं कि विद्वानों का यह कथन कि वसन्त आता नहीं लाया जाता है, सही होते हुए भी वसन्त ऋतु एक अलग रूप प्रस्तुत करता है अर्थात्, इस ऋतु की इतनी विशेषताएं है कि आनन्द, मस्ती, प्रफुल्लित मन, सुन्दर और स्वच्छ वातावरण ही वसन्त का पर्याय हो गया है।
(ii) दहेज प्रथा – आज दहेज की प्रथा को देश भर में बुरा माना जाता है। इसके कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं, कितने घर बर्बाद हो जाते हैं। आत्महत्याएँ भी होती देखी गई हैं। नित्य-प्रति तेल डालकर बहुओं द्वारा अपने आपको आग लगाने की घटनाएँ भी समाचार-पत्रों में पढ़ी जाती हैं। पति एवं सास-ससुर भी बहुओं को जला देते या हत्याएँ कर दते हैं। इसलिए दहेज प्रथा को आज कुरीति माना जाने लगा है। भारतीय सामाजिक जीवन में अनेक अच्छे गुण हैं, परंतु कतिपय बुरी रीतियाँ भी उसमें घुन की भाँति लगी हुई हैं। इनमें एक रीति दहेज प्रथा की भी है। विवाह के साथ ही पुत्री को दिए जाने वाले सामान को दहेज कहते हैं। इस दहेज में बर्तन, वस्त्र, पलंग, सोफा, रेडियो, मशीन, टेलीविजन आदि की बात ही क्या है, हजारों रुपया नकद भी दिया जाता है।
इस दहेज को पुत्री के स्वस्थ शरीर, सौन्दर्य और सुशीलता के साथ ही जीवन को सुविधा देने वाला माना जाता है। दहेज प्रथा का इतिहास देखा जाए तब इसका प्रारम्भ किसी बुरे उद्देश्य से नहीं हुआ था। दहेज प्रथा का उल्लेख मनु स्मृति में ही प्राप्त हो जाता है, जबकि वस्त्राभूषण युक्त कन्या के विवाह की चर्चा की गई है। गौएँ तथा अन्य वाहन आदि देने का उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है। समाज में जीवनोपयोगी सामग्री देने का वर्णन भी मनुस्मृति में किया गया है, परंतु कन्या को दहेज देने के दो प्रमुख कारण थे। पहला तो यह कि माता पिता अपनी कन्या को दान देते समय यह सोचते थे कि वस्त्रादि सहित कन्या को कुछ सामान दे देने उसका जीवन सुविधापूर्वक चलता रहेगा और कन्या को प्रारम्भिक जीवन में कोई कष्ट न होगा।
दूसरा कारण यह था कि कन्या भी घर में अपने भाईयों के समान भागीदार है, चाहे वह अचल सम्पत्ति नहीं लेती थी, परंतु विवाह के काल में उसे यथाशक्ति धन, पदार्थ आदि दिया जाता था, ताकि वह सुविधा से जीवन व्यतीत करके और इसके पश्चात भी उसे जीवन भर सामान मिलता रहता था। घर भर में उसका सम्मान हमेशा बना रहता था। पुत्री जब भी पिता के घर आती थी, उसे अवश्य ही धन-वस्त्रादि दिया जाता था। इस प्रथा के दुष्परिणामों से भारत के मध्ययुगीन इतिहास में अनेक घटनाएँ भरी पड़ी हैं। धनी और निर्धन व्यक्तियों को दहेज देने और न देने की स्थिति में दोनों में कष्ट सहने पडते रहे। धनियों से दहेज न दे सकने से दु:ख भोगना पड़ता रहा है। समय के चक्र में इससामाजिक उपयोगिता की प्रथा ने धीरे-धीरे अपना बुरा रूप धारण करना आरम्भ कर दिया और लोगों ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के लिए भरपूर धन देने की प्रथा चला दी।
इस प्रथा को खराब करने का आरम्भ धनी वर्ग से ही हुआ है क्योंकि धनियों को धन की चिंता नहीं होती । वे अपनी लड़कियों के लिए लड़का खरीदने की शक्ति रखते हैं। इसलिए दहेज-प्रथा ने जघन्य बुरा रूप धारण कर लिया और समाज में यह कुरीति-सी बन गई है। अब इसका निवारण दुष्कर हो रहा है। नौकरी-पेशा या निर्धनों को इस प्रथा से अधिक कष्ट पहुंचता है। अब तो बहुधा लड़के को बैंक का एक चेक मान लिया जाता है कि जब लड़की वाले आयें तो उनकी खाल खींचकर पैसा इकट्ठा कर लिया जाये ताकि लड़की का विवाह कर देने के साथ ही उसका पिता बेचारा कर्ज से भी दब जाये।
दहेज प्रथा को सर्वथा बंद नहीं किया जाना चाहिए परंतु कानून बनाकर एक निश्चित मात्रा तक दहेज देना चाहिए। अब तो पुत्री और पुत्र का पिता की सम्पत्ति में समान भाग स्वीकार किया गया है। इसलिए भी दहेज को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए और लड़कों को माता-पिता द्वारा मनमानी धन दहेज लेने पर प्रतिबंध लग जाना चाहिए। जो लोग दहेज में मनमानी करें उन्हें दण्ड देकर इस दिशा में सुधार करना चाहिए। दहेज प्रथा को भारतीय समाज के माथे पर कलंक के रूप में नहीं रहने देना चाहिए।
(iii) मेरा प्रिय कवि (मैथिलीशरण गप्त) – आधुनिक हिन्दी काव्य-धारा में लोकप्रियता की दृष्टि से गुप्तजी का स्थान सर्वोपरि है। भारतीय जनता का जितना स्नेह, जितनी श्रद्धा गुप्तजी को मिली है वह अन्य किसी कवि को नहीं। इसका स्पष्ट कारण यही है कि गुप्तजी जनता के कवि हैं। जन-जीवन की भावनाओं को उन्होंने अपने कारण में वाणी प्रदान की है। जनमानस की चेतना को उन्होंने व्यक्त किया है। उन्होंने अपनी रचनाओं द्वारा हमारे युग की समस्त समस्याओं और मान्यताओं का सच्चाई के साथ प्रतिनिधित्व किया है, उनके काव्यों में राष्ट्रीय जागरण का महान उद्घोष है, हमारे सामाजिक जीवन के आदर्शों का निरूपण है, देश-प्रेम के सौन्दर्य की झलक है। परिवर्तन की पुकार और राष्ट्र जीवन को ऊँचा उठाने की प्रेरणा है। प्राचीन आदशों की पृष्ठभूमि में गुप्तजी ने नवीन आदशों के महत्त्व खड़े किये हैं। उनकी रचनाओं में प्राचीन आर्य सभ्यता और संस्कृति की मधुर झन्कार है। मानवता के संगीत का पूंज है। उनका साहित्य, जीवन का साहित्य हैं, उनकी कला, कला के लिए न होकर जीवन के लिए है, देश के लिए है। इसीलिए तो गुप्तजी हमारे प्रिय कवि है।
गुप्तजी का काव्य-क्षेत्र बहुत व्यापक है। राष्ट्र-प्रेम, समाज-सेवा, राम-कृष्ण, बुद्ध सम्बन्धी पौराणिक आख्यानों एवं राजपूत, सिक्ख और मुस्लिम प्रधान ऐतिहासिक कथाओं को लेकर गुप्तजी ने लगभग चालीस काव्य ग्रन्थों की रचना की है। इनमें से साकेत, पंचवटी, द्वापर, जयद्रथ वध, यशोधरा, सिद्धराज आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। साकेत द्विवेदी युग का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। मंगला प्रसाद पारितोषिक द्वारा यह महाकाव्य सम्मनित हो चुका है।
काव्य कृतियों की भाँति गुप्तजी के काव्य का भावना क्षेत्र बड़ा विराट है। विधवाओं की करुण दशा, ग्राम सुधार, जाति बहिष्कार, अछूतोद्वार, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य, जनतंत्रवाद, सत्य-अहिंसा की गाँधीवादी नीति आदि सभी विषयों पर गुप्तजी ने सुव्यवस्थित और गम्भीर विचार प्रकट किये हैं। सत्य तो यह है कि गुप्तजी से युग की कोई प्रवृत्ति अछूती नहीं रही । राष्ट्रीयता की दृष्टि से गुप्तजी ने सभी सांस्कृतियों के प्रतीक काव्य लिखे हैं। इसी रूप में गुप्तजी हमारे राष्ट्रीय कवि हैं।
(iv) महँगाई – कमरतोड़ महँगाई का सवाल आज के मानव की अनेकानेक समस्याओं में अहम् बन गया है। पिछले कई साल से उपभोक्ता-वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं । हमारा भारत एक विकासशील देश है और ऐसे देशों में औद्योगीकरण या विभिन्न योजनाओं आदि के चलते मुद्रा-स्फीति तो होती है, किन्तु आज वस्तुओं की मूल्य सीमा का निरन्तर अतिक्रमण होते जा रहे हैं और जन-जीवन अस्त-व्यस्त होता दीखता है । अब तो सरकार भी जनता का विश्वास खोती जा रही है। लोग यह कहते पाए जाते हैं कि सरकारों का शासन-तंत्र भ्रष्ट हो चुका है, जिसके कारण जनता बेईमानी, नौकरशाही तथा मुनाफाखोरी की चक्कियों तले पिस रही है । स्थिति विस्फोटक बन गई है।
यह महँगाई स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद लगातार बढ़ी है। यह भी सत्य है कि हमारी राष्ट्रीय आय बढ़ी है और लोगों की आवश्यकताएँ भी बढ़ी हैं । हम आरामतलब और नाना प्रकार के दुर्व्यसनों के आदी भी हुए हैं । जनसंख्या में भी उत्तरोत्तर वृद्धि हुई है ।
हमारी सरकार द्वारा निर्धारित कोटा-परमिट की पद्धति ने दलालों के नये वर्ग को जन्म दिया है और इसी परिपाटी में विक्रेता तथा उपभोक्ता में संचय की प्रवृत्ति उत्पन्न कर दी है । प्रशासन के अधिकारी दुकानदारों को कालाबाजारी करने देने के बदले घूस तथा उद्योगपतियों को अनियमितता की छूट देने हेतु राजनीतिक पार्टियाँ घूस तथा चन्दा वसूलते हैं।
महँगाई के कारण विभिन्न वर्गों के कर्मचारियों को हड़ताल-आन्दोलन करने के लिए भी बढ़ावा दिया है जिससे काम नहीं करने पर भी कर्मचारियों को वेतन देना पड़ता है, जिससे उतपादन में गिरावट और तैयार माल की लागत में बढ़ोत्तरी होती है ।
महँगाई की समस्या का अन्त सम्भव हो तो कैसे. यह विचारणीय विषय हैं । सरकार वस्तुओं की कीमतों पर अंकुश लगाये, भ्रष्ट व्यक्तियों हेतु दण्ड-व्यवस्था को कठोर बनाये एवं व्यापारी-वर्ग को कीमतें नहीं बढ़ाने को बाध्य करे । साथ ही, देशवासी भी मनोयोगपूर्वक राष्ट्र का उत्पादन बढ़ाने में योगदान करें और पदाधिकारी उपभोक्ता-वस्तुओं की वितरण व्यवस्था पर नियंत्रण रखें। तात्पर्य यह है कि इस कमरतोड़ महँगाई के पिशाच को जनता, पूँजीपति और सरकार के सम्मिलित प्रयास से ही नियंत्रण में किया जा सकता है।
(v) विज्ञान वरदान या अभिशाप विज्ञान के दो रूप – विज्ञान एक शक्ति है, जो नित नए आविष्कार करती है। यह शक्ति न तो अच्छी है, न बुरी। अगर हम उस शक्ति से विज्ञान ‘वरदान’ के रूप में विज्ञान ने अंधों को आँखें दी हैं, बहरों को सुनने की ताकत । लाइलाज रोगों की रोकथाम की है तथा अकाल मृत्यु पर विजय पाई है । विज्ञान की सहायता से यह युग बटन-युग बन गया है। बटन दबाते ही वायु-देवता
हमारी सेवा करने लगते हैं, इंद्र-देवता वर्षा करने लगते हैं, कहीं प्रकाश जगमगाने लगता है तो कहीं शीत-उष्ण वायु के झोंके सुख पहुँचाने लगते हैं। बस, गाड़ी, वायुयान आदि ने स्थान की दूरी को बाँध दिया है । टेलीफोन द्वारा तो हम सारी वसुधा से बातचीत करके उसे वास्तव में कुटुंब बना लेते हैं । हमने समुद्र की गहराइयाँ भी नाप डाली हैं और आकाश की ऊँचाइयाँ भी । हमारे टी.वी., रेडियो, वीडियो में मनोरंजन के सभी साधन कैद हैं। सचमुच विज्ञान ‘वरदान’ ही तो है।
विज्ञान ‘अभिशाप’ के रूप में मनुष्य ने जहाँ विज्ञान से सख के साधन जुटाए हैं, वहाँ दुख के अंबार भी खड़े कर लिये हैं। विज्ञान के द्वारा हमने अणु बम, परमाणु बम तथा अन्य ध्वंसकारी शस्त्र-अस्त्रों का निर्माण कर लिया है । वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया में इतनी विनाशकारी सामग्री इकट्ठी हो चुकी है कि उससे सारी पृथ्वी को अनेक बार नष्ट किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त प्रदूषण की समस्या बहुत बुरी तरह फैल गई है। नित्य नए असाध्य रोग पैदा होते जा रहे हैं, जो वैज्ञानिक उपकरणों के अंधाधुंध प्रयोग करने के दुष्परिणाम हैं।
वैज्ञानिक प्रगति का सबसे बड़ा दुष्परिणाम मानव-मन पर हुआ है। पहले जो मानव निष्कपट था, निस्वार्थ था, भोला था, मस्त और बेपरवाह था, वह अब छली, स्वार्थी, चालाक, भौतिकतावादी तथा तनावग्रस्त हो गया है । उसके जीवन में से संगीत गायब हो गया है, धन की प्यास जाग गई है । नैतिक मूल्य नष्ट हो गए हैं।
प्रश्न 2.
सप्रसंग व्याख्या करें (2 x 4 = 8)
(a) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं अपूर्ण है।
अथवा, बड़ा कठिन है बेटा खोकर,
माँ को अपना मन समझाना ।
(b) जहाँ मरू ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन घाटियों की
मैं सरस बरसात रे मन ।
अथवा, राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
उत्तर:
(a) उक्त पक्ति रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित निबन्ध ‘अर्द्धनारीश्वर’ से ली गयी है। इस पंक्ति के माध्यम से समाज में स्त्री के महत्व को बताया है । उनके अनुसार जिस पुरुष में नारी का गुण समाहित नहीं होता है वह अपूर्ण है । अतः प्रत्येक नर को एक हद तक नारी बनना आवश्यक है । गाँधीजी ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में नारीत्व की भी साधना की थी। उनकी पोती उनपर जो पुस्तक लिखी है उसका नाम ही. ‘बापू मेरी माँ’ है । दया, माया,
सहिष्णुता और भीरूता ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं । किन्तु, क्या उन्हें – अंगीकार करने से पुरुष के पौरुष में कोई अंतर आनेवाले है ? प्रेमचन्द ने सही कहा है कि “पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है।”
(b) व्याख्या-प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ छायावाद के प्रवर्तक कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता से उद्धृत हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जहाँ मरुभूमि की ज्वाला धधकती है और चातकी जल के कण को तरसती है उन्हीं जीवन की घाटियों में मैं (आशा) सरस बरसात बन जाती है। कवि का भाव है कि जिन लोगों का जीवन मरुस्थल की सूखी घाटी के समान (सम्पर्क) से उल्लसित हो उठा है। व्यथा का घोर अंधकार समाप्त हो गया है। कवि जीवन की
अनेक बाधाओं एवं विसंगतियों का भुक्तभोगी एवं साक्षी है । कवि अपने कथन – की सम्पुष्टि के लिए अनेक प्रतीकों एवं प्रकृति का सहारा लेता है यथा-मरु-ज्वाला,
चातकी, घाटियाँ, पवन को प्राचीर, झुलसावै विश्व दिन, कुसुम ऋतु-रत, नीरधर, अश्रु-सर, मधु, मरन्द-मुकलित आदि ।
इस प्रकार कवि ने जीवन के दोनों पक्षों का सूक्ष्म विवेचन किया है। वह अशान्ति, असफलता, अनुपयुक्तता तथा अराजकता से विचलित नहीं है।
(b) अथवा, व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश हमारे पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के रघुवीर सहाय विरचित “अधिनायक” शीर्षक कविता से उद्धत है। इन पंक्तियों में कवि ने उन जनप्रतिनिधियों पर व्यंग्यात्मक कटाक्ष किया है जो इतने दिनों की आजादी के बाद भी आम आदमी की हालत में कोई बदलाव नहीं ला पाये हैं।
प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जानना चाहता है कि वह कौन भाग्य विधाता है जिसका गान हरचरना नाम का एक गरीब विद्यार्थी कर रहा है। वह गरीब विद्यार्थी है। अपनी लाचारी का प्रमाण लिए हुए वह राष्ट्रीय गीत गाता है। कवि का यह कटु व्यंग्य बड़ा ही उचित एवं सामयिक है। सचमुच, आज लाखों गरीब छात्र अपने विद्यालयों में बिना मन के राष्ट्रीय गीत का गान करते हैं। उन्हें नहीं पता कि वे किसका गान कर रहे हैं।
इस प्रकार प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने आज के सत्ताधारी नेताओं पर कटाक्ष किया है। ये सत्ताधारी नेता आज तानाशाह बने हुए हैं।
प्रश्न 3.
अपने पिता को एक पत्र लिखें जिसमें किसी पर्यटन स्थल का वर्णन करें। (1 x 5 = 5 )
उत्तर:
आदरणीय पिता जी
मुसल्लहपुर कोइरी टोला
सादर चरण स्पर्श
पटना
10 मार्च 2018
मैं यहाँ सकुशल हूँ। आशा करता हूँ कि आप लोग भी सकशल होंगे। मैं पिछले सप्ताह राजगीर (बिहार) गया था। यह बड़ा ही दर्शनीय स्थल है। यहाँ गर्म कुंड से सल्फर युक्त पानी गिरता है। जाड़े में स्नान करने में बड़ा ही मजा आता है। रज्जू मार्ग से कुर्सियों पर बैठकर असमान में जाने में बड़ा आनंद आता है। पहाड़ के ऊपर बुद्ध भगवान की स्वर्णिम मूर्तियों हैं। पूजा-पाठ भी चलता रहता है। बुद्ध ने जीवन में मध्यम मार्ग से चलने की प्रेरणा दी थी।
अथवा, अपने प्रधानाचार्य को आवेदन लिखते हुए यह निवेदन करें कि पुस्तकालय में हिन्दी की पत्रिकाएँ मँगवायी जाएँ।
उत्तर:
आपके और माता जी के साथ आनंद में और भी वृद्धि हो जाती । राजगीर में सरकारी पर्यटन ठहराव भवन में भोजन का बड़ा बढ़िया इंतजाम था। यात्रा रोमांचक रही।
आपका प्रिय पुत्र
शशांक सिन्हा अथवा, 8 एम 8.90 फीट रोड ।
बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी, पटना-800026
दिनांक-13 मार्च, 2018
सेवा में
प्रधानाचार्य, लोयला हाई स्कूल
कुर्जी, पटना-800010
विषय-पुस्तकालय में हिंदी की पत्रिकाएँ मँगवाई जाने के लिए
निवेदन ।
महोदय,
विद्यालय में पढ़ाई जाने वाली पुस्तकों के अलावा हमें कुछ अन्य पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए । इससे मनोरंजन तो होता ही है साथ-ही-साथ भाषा का विकास और मन में नए विचारों की उत्पत्ति भी होती है। मुझे और मेरे मित्रों को हिंदी पत्रिकाएँ पढ़ने का बहुत शौक है। पर हमारे पुस्तकालय में इन पत्रिकाओं का अभाव है।
इसलिए आपसे हमारा विनम्र निवेदन है कि आप पुस्तकालय में पत्रिकाओं की संख्या बढ़ाएँ। आशा है कि आप इस पर ध्यान देंगे। मैं इसके लिए आपका अभारी रहूँगा। आपका आज्ञाकारी छात्र शशांक सिन्हा XII-C, क्रमांक-9
प्रश्न 4.
निम्न प्रश्नों में से किन्हीं पाँच के उत्तर 50-70 शब्दों में दें (2 x 5 = 10)
- भगत सिंह के अनुसार देश को कैसे युवकों की आवश्यकता है?
- नामवर सिंह किन कविताओं को श्रेष्ठ मानते हैं?
- तुलसी ने ‘अम्ब’ कहकर किसको संबोधित किया है और क्यों ?
- कबीर विषयक छप्पय में नाभादास ने कबीर के बारे में क्या कहा है ?
- अशोक वाजपेयी रचित ‘हार-जीत’ कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ?
- हरिचरण को हरचरना क्यों कहा गया है ?
- लहना सिंह ने बोधा के प्रति किस त्याग का परिचय दिया था ?
- जयप्रकाश नारायण किस प्रकार का नेतृत्व देना चाहते थे? ।
उत्तर:
(i) भगत सिंह महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी और विचारक थे। भगत सिंह विद्यार्थी और राजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का स्वगात करना
और भाषण सुनना या व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन-मन-धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश-दुनिया के हर समस्याओं से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अत: विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।
(ii) नई कविता के अंदर आत्मपरक कविताओं की एक ऐसी प्रबल प्रवृत्ति थी जो या तो समाज निरपेक्ष थी या फिर जिसकी सामाजिक अर्थवत्ता सीमित थी। इसलिए व्यापक काव्य सिद्धांत की स्थापना के लिए मुक्तिबोध की कविताओं का समावेश आवश्यक था। लेकिन मुक्तिबोध ने केवल लम्बी कविताएँ ही नहीं लिखीं। उनकी अनेक कविताएँ छोटी भी हैं जो कि कम सार्थक नहीं हैं । मुक्तिबोध का समूचा काव्य मूलतः आत्मपरक है। रचना-विन्यास में कहीं वह पूर्णतः नाट्यधर्मी है, कहीं नाटकीय एकालाप है, कहीं नाटकीय प्रगीत है और कहीं शुद्ध प्रगीत भी है। आत्मपरकता तथा भावमयता मुक्तिबोध की शक्ति है जो उनकी प्रत्येक कविता को गति और ऊर्जा प्रदान करती है।
(iii) अंब’ का संबोधन माँ सीता के लिए किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने सीताजी को सम्मानसूचक शब्द ‘अंब’ के द्वारा उनके प्रति सम्मान की भावना प्रदर्शित की है।
(iv) कबीर जी की मति अति गंभीर तथा अन्त:करण भक्ति रस से परिपूर्ण था। भाव भजन में पूर्ण कबीर जाति-पाँति वर्णाश्रम आदि साधारण धर्मों का आदर नहीं करते थे। नाभादास कहते हैं कि कबीर जी ने चार वर्ण, चार आश्रम, छ: दर्शन किसी की आनि कानि नहीं रखी। केवल श्री भक्ति (भागवत धर्म) को ही दृढ़ किया। वहीं ‘भक्ति के विमुख’ जितने धर्म हैं, उन सबको ‘अधर्म’ ही कहा है। उन्होंने सच्चे हृदय से सप्रेम भजन (भक्ति, भाव, बंदगी) के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत आदि को तुच्छ बताया । कबीर ने आर्य, अनार्यादि हिन्दू मुसलमान आदि को प्रमाण तथा सिद्धांत की बात सुनाई। भाव यह है कि कबीर जाति-पाँति के भेदभाव से ऊपर उठकर केवल शुद्ध अन्त:करण से की गई भक्ति को ही श्रेष्ठ मानते हैं।
(v) हिन्दी साहित्य के प्रखर प्रतिभा संपन्न कवि अशोक वाजपेयी की “हार-जीत” कविता अत्यन्त ही प्रामाणिक है। इसमें कवि ने युग-बोध और इतिहास बोध का सम्यक ज्ञान जनता को कराने का प्रयास किया है। इस कविता में जन-जीवन की ज्वलन्त समस्याओं एवं जनता की अबोधता, निर्दोष छवि को रेखांकित किया गया है?
(vi) ‘हरचरना’ हरिचरण का तद्भव रूप है। कवि रघुवीर सहाय ने – अपनी कविता ‘अधिनायक’ में ‘हरचरना’ शब्द का प्रयोग किया है, ‘हरिचरण नहीं। यहाँ कवि ने लोक संस्कृति की पूर्ण अभिव्यक्ति के लिए ठेठ तद्भव शब्दों का प्रयोग किया है। इससे कविता की लोकप्रियता बढ़ती है। कविता में लोच एवं उसे सरल बनाने हेतु तदभव शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
(vii) लहना सिंह ने युद्ध भूमि पर उसने सूबेदारनी के बेटे बोधासिंह को अपने प्राणों की चिन्ता न करके जान बचाई। पर इस कोशिश में वह स्वयं घातक रूप से घायल हो गया। उसने अपने घाव पर बिना किसी को बताये कसकर पट्टी बाँध ली और इसी अवस्था में जर्मन सैनिकों का मुकाबला करता रहा । शत्रुपक्ष की पराजय के बाद उसने सूबेदारनी के पति सूबेदार हजारा सिंह
और उसके पुत्र बोधासिंह को गाड़ी में सकुशल बैठा दिया और चलते हुए कहा “सुनिए तो सूबेदारनी होरों को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था वह मैंने कर दिया……”
सूबेदार पूछता ही रह गया उसने क्या कहा था कि गाड़ी चल दी। बाद में उसने वजीरा से पानी माँगा और कमरबंद खोलने को कहा क्योंकि वह खून से तर था । मृत्यु सन्निकट होने पर जीवन की सारी घटनाएँ चलचित्र के समान घूम गई और अंतिम वाक्य जो उसके मुंह से निकला वह था ‘उसने कहा था।” इसके बाद अखबारों में छपा कि “फ्रांस और बेल्जियम-68 सूची मैदान में घावों से भरा नं. 77 सिक्ख राइफल्स जमादार लहना सिंह । इस प्रकार अपनी बचपन की छोटी-सी मुलाकात में हुए परिचय के कारण उसके मन में सुबेदारनी के प्रति जो प्रेम उदित हुआ था उसके कारण ही उसने सुबेदाग्नी के द्वारा कहे गये वाक्यों को स्मरण रख उसके पति व पुत्र की रक्षा करने में अपनी जान दे दी क्योंकि यह उसने कहा था ।
(viii) आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण कहते हैं कि मैं सबकी सलाह लूंगा, सबकी बात सुनूंगा। छात्रों की बात जितना भी ज्यादा होगा, जितना भी समय मेरे पास होगा, उनसे बहस करूँगा समझेंगा और अधिक से अधिक बात करूंगा। आपकी बात स्वीकार करूँगा, जनसंघर्ष समितियों की लेकिन फैसला मेरा होगा। इस फैसले को सभी को मानना होगा। जयप्रकाश आंदोलन का नेतृत्व अपने फैसले पर करते हैं और कहते हैं कि तब तो इस नेतृत्व का कोई मतलब है, तब यह क्रांति सफल हो सकती है। और नहीं, तो आपस को बहसों में पता नहीं हम किधर बिखर जाएँगे और क्या नतीजा निकलेगा।
प्रश्न 5.
निम्न प्रश्नों में से किन्हीं तीन के उत्तर 150-250 शब्दों में दें (3 x 5 = 15)
- सिपाही की माँ’ की कथा-वस्तु प्रस्तुत करें।
- सुभद्रा कुमारी चौहान की रचना ‘पुत्र-वियोग’ का सारांश लिखें।
- जन-जन का चेहरा एक’ कविता का केन्द्रीय विषय क्या है?
- प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता का सारांश लिखिए।
- लहनासिंह का चरित्र-चित्रण करें।
- अर्द्धनारीश्वर’ में व्यक्त विचारों का सारांश लिखें।
उत्तर:
(i) माँ-बेटी की बातचीत – रात के समय माँ-बेटी आपस में बातचीत करती है। मुन्नी अपनी माँ से कहती है कि मेरी कुछ साहेलियों के कड़े बहुत ही सुन्दर हैं जिन्हें वह सारे गाँव में दिखाती हैं। तब बिशनी उसे प्यार भरे स्वर में कहती है कि तेरा भाई तेरे लिए उनसे भी अच्छे कड़े लाएगा।
स्वप्न की स्थिति – इसके बाद दोनों सो जाती हैं। स्वप्न में बिशनी को मानक (उसका बेटा) दिखाई देता है। वह उससे बातचीत करती है। वह बुरी तरह घायल है और बताता है कि दुश्मन उसके पीछे लगा है। बिशनी उसे लेटने को कहती है पर वह पानी माँगता है। तभी वहाँ एक सिपाही आता है और वह उसे मरा हुआ बताता है। यह सुनकर बिशनी सहम जाती है लेकिन तभी मानक कहता है कि मैं मरा नहीं हूँ। वह सिपाही मानक को मारने की बात कहता है। लेकिन बिशनी कहती है कि मैं इसकी माँ हूँ और इसे मारने नहीं दूँगी। सिपाही मानक को वहशी तथा खूनी बताता है। लेकिन बिशनी उसकी बात को नकार देती है। वह कहती है कि यह बुरी तरह घायल है और इसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है। इसलिए त् इसे मारने का विचार त्याग दे। जवाब में सिपाही कहता है कि अगर मैं इसे नहीं मारूंगा तो यह मुझे मार देगा। बिशनी उसे विश्वास दिलाती है कि यह मुझे नहीं मारेगा। तभी मानक उठ खड़ा होता है और उस सिपाही को मारने की बात कहता है। बिशनी उसे समझाती है लेकिन वह नहीं मानता है और उसकी बोटी-बोटी करने की बात कहता है।
स्वप्न भंग-यह सुनकर बिशनी चिल्लाकर उठ बैठती है । वह जोर-जोर से मानक । मानक ! कहती है। उसकी आवाज सनकर मन्नी वहाँ आती है। माँ की स्थिति देखकर वह कहती है कि तम रोज भैया के सपने देखती हो. जबकि मैंने तुमसे कहा था कि भैया जल्दी आ जाएँगे। फिर वह अपनी माँ के गले लग जाती है। बिशनी उसका माथा चूमकर उसे सोने को कहती है और मन-ही-मन कुछ गुनगुनाने लगती है।
(ii) अपने पुत्र के असामयिक निधन के बाद माँ द्वारा व्यक्त की हुई उसके अंदर की व्यथा का इस कविता में सफल निरूपण हुआ। कवयित्री माँ अपने पुत्र-वियोग में अत्यन्त भावुक हो उठती है। उसकी अन्तर्चेतना को पुत्र का अचानक बिछोह झकझोर देता है। प्रस्तुत कविता में पुत्र के अप्रत्याशिप रूप से असमय निधन से माँ के हृदय में अपने संताप का हृदय-विदारक चित्रण है। एक माँ के विषादमय शोक का एक साथ धीरे-धीरे गहराता और क्रमशः ऊपर की ओर आरोहण करता भाव उत्कंठा अर्जित करता जाता है तथा कविता के अंतिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ-बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म-प्रतीति में
सुलाया करती थी। मंदिर में पूजा-अर्चना किया. मिन्नतें माँगी, फिर भी वह अपने बेटे को काल के गाल से नहीं बचा सकी। वह विवश है। नियति के आगे किसी का वश नहीं चलता। कवयित्री की एकमात्र इच्छा यही है कि पलभर के लिए भी उसका बेटा उसके पास आ जाए अथवा कोई व्यक्ति उसे लाकर उससे मिला दे। कवयित्री उसे अपने सीने से चिपका लेती है तथा उसका सिर सहला-सहलाकर उसे समझती है। कवयित्री की संवेदना उत्कर्ष पर पहुंच जाती है, शोक सागर में डूबती-उतराती बिछोह की पीड़ा असह्य है। वह बेटा से कहती है कि भविष्य में वह उसे छोड़कर कभी नहीं जाए । अपने मृत बेटे को उक्त बातें कहना उसकी असामान्य मनोदशा का परिचायक है। संभवतः उसने अपनी जीवित सन्तान को उक्त बातें कही हों।
सुभद्रा के प्रतिनिध काव्य संकलन ‘मुकल’ से ली गई। प्रस्तुत कविता, – पुत्र-वियोग’ कवयित्री माँ के द्वारा लिखी गई है तथा निराला की ‘सरोज-स्मति’ के बाद हिन्दी में एक दूसरा “शोकगीत” है।
पुत्र के असमय निधन के बाद तडपते रह गए माँ के हृदय के दारूण शोक की ऐसी सादगी भरी अभिव्यक्ति है जो निर्वैयक्तिक और सार्वभौम होकर अमिट रूप में काव्यत्व अर्जित कर लेती है। उसमें एक माँ के विवादमय शोक का एक साथ धीरे-धीरे गहराता और ऊपर-ऊपर आरोहण करता हुआ भाव उत्कटता अर्जन करता जाता है तथा कविता के अंतिम छंद में पारिवारिक रिश्तों के बीच माँ-बेटे के संबंध को एक विलक्षण आत्म-प्रतीति में स्थायी परिणति पाता है।
(iii) ‘जन-जन का चेहरा एक’ का केन्द्रीय भाव काफी व्यापक है । इन कविता में कवि के द्वारा देशों में एकरूपता एवं समानता दर्शायी गई है। उनका मानना है कि कोई व्यक्ति किसी भी देश या प्रान्त के निवासी हो उसकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है या होती है किन्तु उनकी संघर्ष, लाचारी, चेहरों पर विषाद की रेखाएँ झुड़ियों में एकरूपता है । समस्याओं से संघर्ष करने का स्वरूप एवं पद्धति भी एक समान है।
(iv) “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता का नायक भिलाई, छत्तीसगढ़ का रहने वाला है। अपने प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बैठाए अपनी नन्हीं बिटिया से जो घर के भीतर बैठी हुई है पूछता है कि “बतलाओ आस-पास कहाँ-कहाँ लोहा है।” वह अनुमान करता है कि उसकी नन्हीं बिटिया उसके प्रश्न का उत्तर अवश्य देगी। वह बतलाएगी कि चिमटा, कलछल, कडाही तथा जंजीर में लोहा है। वह यह भी कहेगी कि दरवाजे के साँकल (कुंडी) कब्जे, सिटकिनी तथा दरवाजे में फंसे हुए पेंच (स्क्र) के अंदर भी लोहा है। उक्त बातें वह पूछने पर तत्काली कहेगी। उसे यह भी याद आएगा कि लकड़ी के दो खम्भों पर बंधा हुआ तार भी लोहे से निर्मित है जिस पर उसके बड़े भाई की गीली चड्डी है। वह यह कहना भी नहीं भूलेगी कि साइकिल और सेफ्टीपिन में भी लोहा है।
उस दुबली-पतली किन्तु चतुर (बुद्धिमती) नन्हीं बिटिया को कवि शीघ्रातिशीघ्र बतला देना चाहता है कि इसके अतिरिक्त अन्य किन-किन सामग्रियों में लोहा है जिससे उसे इसकी पूरी जानकारी मिल जाए।
कवि उसे समझाना चाहता है कि फाबड़ा, कुदाली, टैंगिया, बसुला, खरपी, बैलगाड़ी के चक्कों का पट्टा तथा बैलों के गले में काँसे की घंटी के अंदर की अंदर की गोली में लोहा है।
कवि की पत्नी उसे विस्तार से बतलाएगी कि बाल्टी, कुएँ में लगी लोहे की घिरनी, हसियाँ और चाकू में भी लोहा है। भिलाई के लोहे की खानों में जगह-जगह लोहे के टीले हैं?
इस प्रकार कवि का विचार है कि वह समस्त परिवार के साथ मिलकर तथा सोच विचार कर लोहा की खोज करेगा । सम्पूर्ण घटनाक्रम को तह तक जाकर वह पता लगा पाएगा कि हर मेहनतकश आदमी लोहा है।
कवि यह मानता है कि प्रत्येक दबी-सतायी, बोझ उठाने वाली औरत लोहा है। लोहा कदम-कदम पर और हर एक गृहस्थी में सर्वव्याप्त है।
कवि इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि हर मेहनतकश व्यक्ति लोहा है तथा हर दबी कुचली, सतायी हुई तथा बोझ उठाने वाली औसत लोहा है। कवि का कहना है
वि हर वो आदमी
जो मेहनतकश लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी बोझ उठानेवाली, लोहा ।
(v) उसने कहा था’ कहानी का नायक लहना सिंह का सूबेदरनी के प्रति प्रेम अत्यन्त दिव्य प्रेम था। बचपन का प्रेम दिव्य प्रेम में विकसित हुआ। सूबेदारनी के पति एवं पुत्र की रक्षा युद्ध में की। लहना सिंह का प्रेम बलिदानी प्रेम है।
बेटे मानक से उसके दुश्मन सिपाही की प्राण रक्षा की अपील माँ बिशनी करती हुई कहती है-नहीं मानक, तू इसे नहीं मारेगा । यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है। इसमी माँ इसके पीछे रो-रोकर पागल हो गयी है। इसके घर में बच्चा होने वाला है। यह मर गया तो इसकी बीबी फाँसी लगाकर मर जाएगी।
कुंती बिशनी से कहती है-बेचारा जल्दी घर वापस आ जाए और आकर बहन के हाथ पीले करे । सब सहेलियाँ तो एक-एक करके चली गयीं।
तब बिशनी कहती है-वह घर देखकर ही क्या करना है, कुंती ? मानक आए तो कुछ हो भी । तुझे पता ही है, आजकल लोगों के हाथ कितने बढ़े बिशनी मानक की इंतजार में है। उसके आने पर ही लड़की की शादी हो पाएगी।
भागी हुई लड़की, जो वर्मा से आई है, से मुन्नी पूछती है कि-तुम जिस रास्ते से आई हो, उस रास्ते से फौजी नहीं भागकर आ सकते ?
तब लड़की उत्तर देती है-नहीं, फौजी वहाँ लड़ने के लिए हैं, वे भाग नहीं सकते। जो फौज छोड़कर भागता है, उसे गोली मार दी जाती है। बिशनी सिहर उठती है। कहती है-फौजियों को भागने की क्या जरूरत है? उन्हें अपनी मियाद पर छुट्टी मिल जाती है। जिसे आना होगा वह छुट्टी लेकर आएगा, भागकर क्यों आएगा?
(vi) अर्द्धनारीश्वर’ निबंध के द्वारा ‘दिनकर’ यह विभेद मिटाना चाहते हैं कि नर-नारी दोनों अलग-अलग हैं। नर-नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते । ‘दिनकर’ पुरुषों के वर्चस्ववादी रवैये से बाहर आकर नारी को समाज में प्रतिष्ठा दिलाना चाहते हैं जिसे पुरुषों से ही समझा जाता है। दिनकर यह दिखलाना चाहते हैं नारी पुरुष से तनिक भी कमतर नहीं है। पुरुषों को भोगवादी दृष्टि छोड़नी होगी जो स्त्री को भोग्या मात्र समझता है। वे नारियों को भी कहते हैं कि उन्हें पुरुषों के कुछ गुण अंगीकार करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए और नहीं वह समझना चाहिए कि उनके नारीत्व को इससे बट्टा लगेगा या कमी आयेगी। पुरुषों को भी स्त्रियोचित गुण अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराना नहीं चाहिए
क्योंकि स्त्री के कुछ गुण शीलता, सहिष्णुता, भीरुता, पुरुषों द्वारा अंगीकार कर लेने पर वह महान बन जाता है। दिनकर तीन भारतीय चिन्तकों का हवाला देते हुए उनकी चिन्तन की दृष्टि से दुखी होते हैं। दिनकर मानते हैं स्त्री भी पुरुष की तरह प्रकृति की बेमिसाल कृति है कि इसमें विभेद अच्छी बात नहीं है। साथ ही नर-नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है। जिसे पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। जीवन की प्रत्येक बडी घटना पुरुष प्रवृत्ति द्वारा संचालित होने से पुरुष में कर्कशता अधिक कोमलता कम दिखाई देती है। यदि इस नियंत्रण में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी। यही नहीं प्रत्येक नर को एक हद तक नारी
ओर प्रत्येक नारी को एक हद तक नर बनाना आवश्यक है। दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं। इसका अच्छा पक्ष है कि पुरुष इसे अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है। उसी प्रकार अध्यवसाय, साहस और शूरता का वरण करने से भी नारीत्व की मर्यादा नहीं घटती । दिनकर अर्द्धनारीश्वर के बारे में कहते हैं कि अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक है कि नारी और नर जब तक अलग है तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात से भी पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे बल्कि यह प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो ।
प्रश्न 6.
संक्षेपण करें (1 x 4 = 4)
ज्ञानी लोग प्रायः मौन साधना इसलिए किया करते हैं कि उनकी जिव्हा से कभी आवेश में या उत्तेजना में अचानक कोई ऐसा कुवाक्य न निकल जाए, जिससे संसार को मुँह दिखाने में शर्म मालूम पड़े और उस समय ज्ञान एवं विद्वता के होते हुए भी हम अपने को सुखी न कर सकें। जितनी मौन साधना की जाएगी, उतनी ही अधिक वाणी को सद्गति प्राप्त होगी तथा आत्मा को विश्व-तोषिणी शांति मिलेगी। प्राचीन भारत के ऋषि-मुनि निर्जन विपिन में वर्षा तक मौन-साधना करके आत्मा के लिए दृढ़ चरित्र और जिव्हा के लिए शीतल अमृत वाणी उपलब्ध करते थे।
उत्तर:
अल्पभाषी होने का महत्त्व-इस गद्यांश में लेखक हमें अल्पभाषी बनने को प्रेरित कर रहे हैं । ज्ञानी लोगों अपनी जिव्हा पर नियंत्रण रखते हैं ताकि वे कभी कुछ ऐसा न कह दें जिससे शार्मिंदा होना पड़े या किसी को बुरा न लगे। वे ऐसा करने के लिए मौन साधना करते हैं। प्राचीन भारत में ऋषि-मुनियों में भी दृढ़ता और जिव्हा पर नियंत्रण मौन साधना से ही आती भी।