BSEB Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 1 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
अन्तः स्त्रावी ग्रंथियाँ
उत्तर:
नलिका विहीन ग्रंथियाँ ही अन्तः स्रावी ग्रंथियाँ कहलाती हैं। इन ग्रंथियों में कोई नलिका नहीं होती है बल्कि इनके चारों ओर सक्त कोशिकाओं का घना छायादार वृक्ष के सदृश जाल बिछा रहता है जिसके माध्यम से ये स्रावी पदार्थ को सीधे रक्त में डाल देते हैं।

प्रश्न 2.
बहिर्तावी ग्रंथियाँ
उत्तर:
नलिका युक्त ग्रंथियों को ही बहिस्रावी ग्रंथियाँ कहा जाता है। यकृत, लार ग्रंथियाँ, आँसूबली ग्रंथियाँ आदि बहिस्रावी ग्रंथियाँ है। ये ग्रंथियाँ स्रावित पदार्थ को नलिका के माध्यम से शरीर के विभिन्न भागों में पहुँचाते हैं।

प्रश्न 3.
थाएरॉइड ग्रंथि
उत्तर:
थाएरॉइड ग्रंथि गर्दन में स्वर यंत्र और श्वासनली के बीच में स्थित रहता है। यह द्विपिण्डकीय होती है तथा दोनों पिण्ड आपस में एक पतले सेतु के द्वारा जुड़े रहते हैं। यह सेतु इस्थमस कहलाता है। थाएरॉइड ग्रंथि का आकार तितलीनुमा होता है। यह ग्रंथि कई छोटी-छोटी, पुटिकाओं की बनी होती है। इन पुटिकाओं के बीच में रक्त कोशिकाओं का जाल बिछा रहता है। पुटकीय कोशिकाएँ एक लसदार तथा पारदर्शक द्रव्य का स्रावण करती है जिसमें थाएरॉइड हारमोन्स उपस्थित रहता है।

प्रश्न 4.
हार्मोन
उत्तर:
अन्तःस्रावी ग्रंथियों से जो स्रावी पदार्थ निकलते हैं उन्हें हार्मोन कहा जाता है। यह रासायनिक यौगिक होते हैं। इसलिए इसे रासायनिक नियामक भी कहा जाता है। कुछ हार्मोन्स तंत्रिकाओं के साथ भी शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करते हैं। इस प्रकार के नियमन को तंत्रिकीय अन्तःस्रावी नियमन भी कहा जाता है। हार्मोन्स रासायनिक रूप से पेप्टाइड्स, स्टॉरायड्स, अमीन्स तथा अमीनो अम्ल के व्युत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 5.
इन्सुलिन
उत्तर:
इन्सुलिन पोलीपेप्टाइड हारमोन है। इसमें 51 प्रकार के अमीनो अम्ल उपस्थित होते हैं। ये अमीनो अम्ल दो प्रकार की शृंखलाओं द्वारा सजे होते हैं। पहली श्रृंखला में 21 अमीनो अम्ल होते हैं तथा दूसरी शृंखला में 30 अमीनो अम्ल एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन 50 यूनिट इन्सुलिन का स्रावण करता है जबकि अग्नाशय में इसकी संग्रह क्षमता 200 यूनिट तक होती है। इन्सुलिन अग्नाशय से हमेशा निकलता रहता है।

प्रश्न 6.
अमीनो अम्ल
उत्तर:
अमीनो अम्ल लम्बे चैन की एक श्रृंखला है। शरीर में इसकी जैविक महत्ता है। इसका पोली पेप्टाइड चैन प्रोटीन कहलाता है। ल्यूसीन, हीस्टोडिन, आइसोल्युसिन प्रमुख अमीनो अम्ल हैं।

प्रश्न 7.
भोजन
उत्तर:
वह खाद्य पदार्थ जिसके खाने से शरीर को प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज, लवण एवं जल की प्राप्ति होती है उसे भोजन कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ भोजन कहलाते हैं। जैसे-चावल, दाल, सब्जी आदि।

प्रश्न 8.
पोषक तत्व
उत्तर:
पोषक तत्व हमारे आहार के वे तत्व हैं जो शरीर की आवश्यकताओं के अनुरूप पोषण प्रदान करते हैं अर्थात् अपेक्षित रासायनिक ऊर्जा देते हैं। इनमें प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. कार्बोहाइड्रेट- यह शरीर की ऊर्जा प्रदान करता है।
  2. प्रोटीन- यह शरीर की वृद्धि करता है यह बच्चों की वृद्धि के लिए आवश्यक होता है।
  3. वसा- इससे शरीर को तीन अम्ल मिलते हैं- लिनोलीन, लिनोलेनिक तथा अरकिडोनिक। शरीर में घुलनशील विटामिनों के अवशोषण के लिए इसकी उपस्थिति आवश्यक है।
  4. कैल्शियम- यह हड्डी के विकास और मजबूती के लिए आवश्यक है।
  5. फॉस्फोरस- यह भी हड्डी के विकास के लिए जरूरी है।
  6. लोहा- गर्भावस्था एवं स्तनपान करानेवाली अवस्था में इसकी विशेष आवश्यकता होती है। यह शरीर की रक्त-अल्पता, हिमोग्लोबिन और लाल रक्तकण प्रदान कर दूर करता है।
  7. विटामिन- यह दो प्रकार का होता है, जल में घुलनशील तथा विटामिन बी, विटामिन सी एवं वसा में घुलनशील तथा विटामिन ए, डी, ई, के। विटामिन भी शरीर की वृद्धि के लिए आवश्यक है एवं यह कई रोगों से बचाव भी करता है।

प्रश्न 9.
पोषण
उत्तर:
शरीर की विभिन्न जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं को संपन्न करने के लिए भोजन में पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता होती। भोजन के अंतर्ग्रहण, पाचन एवं अवशोषण के बाद सजीव द्वारा इन पौष्टिक तत्वों का उपयोग किया जाता है, जिससे शारीरिक वृद्धि होती है, तंतुओं की टूट-फूट की मरम्मत होती है, शरीर को उष्णता प्राप्त होती है तथा विभिन्न क्रियाओं का नियंत्रण होता है, ‘पोषण’ कहलाता है।

प्रश्न 10.
आहार
उत्तर:
व्यक्ति एक दिन में जितना भोजन ग्रहण करता है, भोजन की वह मात्रा उस व्यक्ति का एक दिन का आहार कहलाती है।

प्रश्न 11.
संतुलित आहार
उत्तर:
वह आहार जिसमें पर्याप्त मात्रा में सभी पौष्टिक तत्व (जैसे-कार्बोज, प्रोटीन, वसा, खनिज लवण एवं विटामिन) विद्यमान हों जो व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि एवं विकास के लिए पर्याप्त हों, संतुलित आहार कहलाता है।

प्रश्न 12.
असंतुलित आहार
उत्तर:
जब आहार में एक या एक से अधिक पोषण तत्वों की कमी या अधिकता रहती है तो वैसा आहार असंतुलित आहार कहलाता है।

प्रश्न 13.
तरल आहार
उत्तर:
जब रोगी ठोस आहार को खाने व पचाने में असमर्थ होता है तो उसे पेय के रूप में आहार दिया जाता है। इसे ही तरल आहार कहा जाता है। ऐसे आहार में आमतौर पर मिर्च-मसाले व फोक की मात्रा नहीं होती है। साथ ही तेज सुगंध वाले पदार्थ भी शामिल नहीं किया जाता है। तरल आहार उस रोगी को दिया जाता है जो ठोस भोजन नहीं ले पा रहा हो तीव्र ज्वर, शल्य क्रिया, हृदय रोग, जठरशोथ, दस्त, उल्टी आदि से पीड़ित व्यक्ति को तरल आहार दिया जाता है।

प्रश्न 14.
पूरक आहार
उत्तर:
दूध शिशु का प्रमुख आहार होता है। परंतु जब शिशु 6-7 माह का होता है तब उसकी उदर पूर्ति एवं समग्र पोषण के लिये माता का दूध पर्याप्त नहीं होता है। बल्कि उसकी बढ़ती शारीरिक माँग के लिए अन्य पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति के लिए शिशु को जो आहार दिया जाता है उसे पूरक आहार कहा जाता है। 6 माह तक शिशु को लौह लवण की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उसके शरीर में पर्याप्त मात्रा में लौह लवण उपस्थित रहता है। परंतु उम्र बढ़ने के साथ-साथ लौह लवण की कमी होती जाती है। अत: पूरक आहार द्वारा लौह लवण, आयोडिन एवं आवश्यक विटामिन सी की कमी होती है। इसकी पूर्ति भी पूरक आहार द्वारा दी जाती है। पूरक आहार तीन प्रकार के होते है-पहला तरल पूरक आहार, दूसरा अर्द्धठोस पूरक आहार तथा तीसरा ठोस पूरक आहार।

प्रश्न 15.
आहार नियोजन
उत्तर:
आहार नियोजन का अभिप्राय आहार की ऐसी योजना बनाने से है, जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा संतुलित मात्रा में प्राप्त हो सके। आहार की योजना बनाते समय खाने वाले व्यक्ति की संतुष्टि के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य पर भी ध्यान रखना चाहिए। आहार का नियोजन इस प्रकार करना चाहिए कि आहार लेने वाले व्यक्ति के लिए वह पौष्टिक, सुरक्षित तथा संतुलित हो तथा उसके सामर्थ्य में हो।

प्रश्न 16.
आहार परिवर्तन
उत्तर:
आहार में परिवर्तन को आहार परिवर्तन कहा जाता है। जैसे-रोज रोटी खाने की जगह कभी पुलाव, खीर या पुआपूरी खाना आहार परिवर्तन है। स्वाद तथा स्वास्थ्य दोनों दृष्टिकोण से आहार परिवर्तन आवश्यक है। शारीरिक परिवर्तन तथा विकास की अवस्थाओं में आहार की संरचना में परिवर्तन किया जाता है। उदाहरणार्थ, किशोरी, गर्भवती महिला, धात्री माता तथा रुग्ण अवस्था में परिवर्तित आहार दिया जाता है। इसके अलावा भोजन में नवीनता लाने के लिए भी आहार में परिवर्तन करना आवश्यक होता है।

प्रश्न 17.
भोजन रूपांतरण
उत्तर:
आहार में शारीरिक स्थिति तथा अवस्था के अनुसार परिवर्तन लाया जाता है। आहार दैनिक आवश्यकताओं के अनुसार खाये गये भोजन की कुल मात्रा को कहते हैं। विशेष अवस्था तथा विशेष परिस्थिति में भोजन में परिवर्तन किया जाता है। रुग्नावस्था या विशेष स्वास्थ्य अवस्थाओं में मूल आहार में परिवर्तन लांकर उस अवस्था या स्थिति की आवश्यकताओं को पूरा करने को भोजन रूपान्तरण कहते हैं। आहार परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं- 1. मात्रा में परिवर्तन तथा 2. आहार की गुणवत्ता में परिवर्तन।

प्रश्न 18.
सुपोषण
उत्तर:
सुपोषण वह स्थिति है जिसमें भोजन में सभी पौष्टिक तत्व व्यक्ति की उम्र, लिंग, शारीरिक व मानसिक कार्यक्षमता और अन्य आवश्यकताओं के अनुकूल रहते हैं, सुपोषण कहलाता है।

प्रश्न 19.
कुपोषण
उत्तर:
कुपोषण वह स्थिति है जिसके कारण व्यक्ति के स्वास्थ्य में गिरावट आने लगती है। यह एक या से अधिक तत्वों की कमी, अधिकता या असंतुलन से होती है जिससे शरीर अस्वस्थ या रोगग्रस्त हो जाता है

प्रश्न 20.
कार्बोज
उत्तर:
कार्बोज ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। इसमें रेशे भी पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहते हैं। ये रेशे भोजन की पाचन क्रिया के दौरान आमाशय में क्रमानुकुंचन में सहयोग देकर भोजन को छोटी आँत में भेजने का कार्य करते हैं। इससे भोजन सरलता से पच जाता है। साथ ही यह मल निष्कासन में सहायता करता है और मलबद्धता से बचाता है।

प्रश्न 21.
प्रोटीन
उत्तर:
प्रोटीन ग्रीक भाषा का शब्द प्रोटीआस से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है प्रथम स्थान ग्रहण करने वाला प्रोटीन की खोज डच निवासी मूल्डर ने 1838 में किया था। हमारे आहार में प्रोटीन का मुख्य स्थान है। शरीर की वृद्धि एवं विकास के लिए प्रोटीन नितांत जरूरी है। शरीर में विभिन्न क्रियाकलापों के दौरान विभिन्न कोशिकाओं एवं तन्तुओं की निरंतर टूट-फूट होती रहती है, जिसकी मरम्मत प्रोटीन ही करता है। रक्त, माँसपेशियाँ, यकृत, अस्थि के तन्तु, त्वचा, बाल आदि के निर्माण के लिए प्रोटीन आवश्यक है। प्रत्येक कोशिकाएँ प्रोटीन की बनी होती हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि जीवित रहने के लिए प्रोटीन अनिवार्य है। इसीलिए प्रोटीन को “शरीर की आधारशिला” की संज्ञा दी गई है।

प्रश्न 22.
वसा
उत्तर:
वसा ऊर्जा का सान्द्र स्रोत है। यह शरीर को ऊर्जा एवं उष्णता प्रदान करता है। यह त्वचा के नीचे वसीय उत्तक के रूप में जमा रहता है। आवश्यकता पड़ने पर यह टूटकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। घी, तेल, मूंगफली, वनस्पति घी, सरसों का तेल तथा अन्य सभी तिलहनों में वसा पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। एक ग्राम वसा 9.1 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है।

प्रश्न 23.
विटामिन
उत्तर:
विटामिन कार्बनिक यौगिक है जिसे आवश्यक पोषक तत्व कहा जाता है। शरीर में इसकी आवश्यकता बहुत कम होती है। परन्तु शरीर को स्वस्थ रखने के लिए यह आवश्यक है। यह शरीर को विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करती है तथा शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। यह शरीर में उत्प्रेरक की भाँति कार्य करती है और विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को सम्पन्न करने में सहायता करती है। अतः भोजन में विटामिन युक्त आहार लेना अति आवश्यक है।

प्रश्न 24.
खनिज लवण
उत्तर:
खनिज लवण अकार्बनिक तत्व होते हैं। इसमें कार्बन की मात्रा लेशमात्र भी नहीं होती है। हमारे शरीर के कुल भार का 4 प्रतिशत हिस्सा खनिज लवणों का होता है। इस प्रकार खनिज लवणों की अल्प मात्रा ही शरीर में विद्यमान रहती है। परन्तु अल्प मात्रा में होते हुए भी इनकी महत्ता शरीर निर्माण तथा सुरक्षा की दृष्टि से अमूल्य है। यह शरीर की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ निर्माण का भी कार्य करता है। इसके द्वारा शरीर की विभिन्न क्रियाओं का नियमन भी होता है। भोजन में खनिज लवण की कमी से अनेक बीमारियाँ भी होती है। फलतः हमारा शरीर कुपोषित होकर रोगग्रस्त हो जाता है और हम बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 25.
जल
उत्तर:
जल मनुष्य की एक मौलिक आधारभूत आवश्यकता है। यह घोलक के रूप में कार्य करता है। शरीर की विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए जल आवश्यक है। भोजन के अन्तर्ग्रहण, पाचन, अवशोषण, वहन, उत्सर्जन आदि कार्यों के लिए जल आवश्यक है। सभी भोज्य तत्वों में जल की मात्रा विद्यमान होती है। हमारे शरीर का अधिकांश भाग (66%) जल है। इसके बिना जीवन को जीना संभव नहीं है। इसी कारण कहा जाता है कि जल ही जीवन है।

प्रश्न 26.
कठोर जल
उत्तर:
जल में कैल्सियम तथा मैगनीशियम की उच्च मात्रा होती है तो ऐसे जल को कठोर जल कहा जाता है। इसमें साबुन का झाग देर से बनता है तथा वस्त्र की अशुद्धियाँ भी देर से निकलती है।

प्रश्न 27.
नरम जल
उत्तर:
नरम जल में नमक की मात्रा कम होती है। इस कारण इसमें साबुन का झाग आसानी से बनता है। साथ ही वस्त्र की अशुद्धियाँ आसानी से निकल जाती है।

प्रश्न 28.
जल की अशुद्धियाँ
उत्तर:
जल में दो प्रकार की अशुद्धियाँ पायी जाती हैं। पहला घुलित अशुद्धियाँ तथा दूसरा अघुलित अशुद्धियाँ। घुलित अशुद्धियाँ वे अशुद्धियाँ होती हैं जो घुलित अवस्था में होती हैं। इन्हें छानकर अलग नहीं किया जा सकता है। जैसे-कैल्सियम, मैगनीशियम के कण, शीशा के कण, नमक की अधिकता आदि। इसके विपरीत अघुलित अशुद्धियाँ वे अशुद्धियाँ हैं जिन्हें छानकर अलग किया जा सकता है। जैसे-कूड़ा-करकट, पेड़ के पत्ते आदि।

प्रश्न 29.
निर्जलीकरण
उत्तर:
वह दशा जिसमें शरीर में पानी की कमी हो जाती, निर्जलीकरण कहलाती है। यह रोग नहीं है, बल्कि एक अवस्था है। इससे प्रभावित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है।

प्रश्न 30.
जीवन चक्र घोल या ओ० आर० एस०
उत्तर:
ओ० आर० एस० का अर्थ है ओरल रिहाइड्रेशन सोलुशन। यह सूखे नमकों का विशेष मिश्रण है जो पानी के साथ उचित रूप से पिलाने पर अतिसार में निष्कासित अत्यधिक जल की कमी को पूरा करने में सहायता करता है। शरीर में जल तथा लवण की कमी के कारण निर्जलता की स्थिति उत्पन्न होती है। इस स्थिति से बचाने के लिए रोगी को ओ० आर० एस० घोल पिलाया जाता है।

प्रश्न 31.
धब्बे
उत्तर:
वह निशान जो कपड़े के रंग को खराब कर दे उसे धब्बे या दाग कहा जाता है। बहुत सावधानी बरतने पर भी कपड़ों में दाग-धब्बे पड़ ही जाते हैं। यह दाग-धब्बे केवल कपड़े की सुंदरता को ही कम नहीं करती है, बल्कि इससे हमारी असावधानी भी प्रदर्शित होती है। धब्बे के कारण वस्त्र पहनने लायक नहीं रहते। अतः धब्बे को छुड़ाना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 32.
प्राणिज्य धब्बे
उत्तर:
प्राणिज्य पदार्थों के द्वारा लगने वाले धब्बे को प्राणिज्य धब्बा कहा जाता है। इन धब्बों में प्रोटीन होता है। इसलिए इसे छुड़ाते समय गर्म पानी का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि गर्म पानी से ये पक्के हो जाते हैं। ठण्डे पानी से रगड़कर इसे साफ किया जाता है।

प्रश्न 33.
वानस्पतिक धब्बे
उत्तर:
पेड़-पौधों से प्राप्त पदार्थों द्वारा लगे धब्बे को वानस्पतिक धब्बे कहा जाता है। जैसेचाय, कॉफी, सब्जी, फल, फूल आदि से लगने वाले धब्बे।

प्रश्न 34.
खनिज धब्बे
उत्तर:
खनिज पदार्थों द्वारा लगे धब्बों को खनिज धब्बा कहा जाता है। जैसे-जंग, स्याही तथा औषधियों द्वारा लगे धब्बे खनिज धब्बे हैं। इसे छुड़ाने के लिए हल्के अम्ल का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 35.
स्टार्च लगाना
उत्तर:
वस्त्र में ताजगी, नवीनता, कड़ापन, चमक, क्रांति, आकर्षण एवं सौंदर्य लाने के लिए स्टार्च का प्रयोग किया जाता है। चावल, गेहूँ, मक्का, आलू शकरकन्द, आरारोट आदि स्टार्च के अच्छे स्रोत हैं।

प्रश्न 36.
विरंजक
उत्तर:
विरंजक प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए जिन तत्वों तथा पदार्थों की सहायता ली जाती हैं उन्हें विरंजक कहा जाता है। खुली धूप, हरी घास, झाड़ियाँ आदि प्राकृतिक विरंजक हैं।

प्रश्न 37.
विरंजन
उत्तर:
वस्त्र के मटमैलेपन, पीलेपन एवं दाग-धब्बों को हटाने तथा अशुद्धियों से मुक्त करने एवं उनपर सफेदी एवं उज्जवलता लाने की प्रक्रिया को विरंजन कहते हैं।

प्रश्न 38.
कपड़ों की वार्षिक देखभाल
उत्तर:
वस्त्र चाहे सस्ता हो या महँगा उसकी उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। वस्त्रों की उचित देखभाल न करने पर हम विभिन्न रोगों के शिकार हो जाते हैं और कीमती-से-कीमती वस्त्र भी नष्ट हो जाते हैं। जब कपड़ों की देखभाल सालाना की जाती है तो उसे वार्षिक देखभाल कहा जाता है। प्रायः ऊनी कपड़ों की देखभाल वार्षिक की जाती है।

प्रश्न 39.
तन्तु
उत्तर:
तन्तु या रेशा वस्त्र निर्माण की मूलभूत इकाई हैं। इसके बिना वस्त्र का निर्माण करना संभव नहीं है। प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे पाए जाते हैं। परन्तु सभी रेशों से वस्त्र निर्माण का कार्य संभव नहीं है क्योंकि सभी रेशों में वे सारे गुण नहीं पाए जाते हैं जो वस्त्र निर्माण के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 40.
प्राकृतिक रेशा
उत्तर:
प्रकृति प्रदत्त वे सभी रेशे जो कि प्रकृति में उपस्थित किसी भी स्रोत से प्राप्त किए जाते हैं प्राकृतिक रेशे कहलाते हैं। ये रेशे कीड़ों, जानवरों, पेड़-पौधों अथवा खनिज पदार्थों के रूप में प्रकृति में विद्यमान रहते हैं।

प्रश्न 41.
वानस्पतिक रेशे
उत्तर:
वे रेशे जो वनस्पति जगत से प्राप्त होते हैं वानस्पतिक रेशे कहलाते हैं। इन रेशों का उद्गम स्थान पेड़-पौधों होते हैं। कपास वनस्पति जगत से प्राप्त सभी रेशों में सर्वश्रेष्ठ है।