BSEB Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 1 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति में बुद्धि के स्वरूप को लिखें।
उत्तर:
बौद्धिक प्रतिभाओं और कौशलों का निर्धारण उस सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में होता है जिसमें उसका पालन-पोषण होता है। बुद्धि को अभियोजन की क्षमता माना गया है, अर्थात् जो व्यक्ति जिस समाज में या संस्कृति में पलता है वहाँ उसे अभियोजन करना होता है। चूंकि अलग-अलग संस्कृति के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतिमान अलग-अलग होते हैं, अतः वहाँ बुद्धि प्रदर्शन भी अपनी-अपनी संस्कृति एवं समाज के अनुरूप करता है। अतः यह मानना गलत नहीं होगा कि विभिन्न संस्कृतियों में बुद्धि अलग-अलग व्यवहारों द्वारा परिभाषित होती है क्योंकि किसी. समाज एवं संस्कृति में किस व्यवहार को लाभप्रद एवं अर्थपूर्ण माना गया है, इसमें अन्तर है। अतः बुद्धि को सांस्कृतिक शैली या सांस्कृतिक उत्पाद के रूप में देखा जाता है। बुद्धि में कौन-कौन तत्व शामिल होते हैं, इस विषय में विभिन्न सांस्कृतिक समूहों में भिन्नता है।

प्रश्न 2.
बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्तित्व का वर्णन करें।
उत्तर:
बहिर्मुखी व्यक्तित्व युंग द्वारा बतलाए गए व्यक्तित्व प्रकार का एक प्रमुख भाग है। बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति अधिक सामाजिक एवं खुशमिजाज प्रकृति के होते हैं। इनमें परोपकारिता का गुण अधिक पाया जाता है। सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने की प्रवृत्ति तीव्र होती है। ऐसे लोग आशावादी प्रकृति के होते हैं तथा वे अपना संबंध यथार्थता (realism) से अधिक रखते हैं। ऐसे लोग खाने-पीने की चीजों में अभिरुचि अधिक लेते हैं तथा वे आराम पसंद करते हैं। ऐसे लोग सफल समाजसेवी, नेता तथा उत्तम कलाकार होते हैं।

प्रश्न 3.
मनोविश्लेषणात्मक विधि के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोविश्लेषणात्मक विधि के गुण निम्नलिखित हैं

  • विधियों एवं माध्यमों से मूल्यांकन करने की योग्यता।
  • निर्णय लेने में प्रदत्त संग्रह करते समय एक प्रणालीबद्ध उपागम की उपयोग क्षमता।
  • नैदानिक उद्देश्यों के लिए विभिन्न स्रोतों से प्राप्त प्रदत्तों को समाकलित करना।
  • निदान के उपयोग एवं निरूपण की योग्यता।
  • कौशलों के बढ़ाने एवं अमल में लाने के लिए पर्यवेक्षण के प्रभावी उपयोग की क्षमता।

प्रश्न 4.
मनोवृत्ति निर्माण के सांस्कृतिक कारक का वर्णन करें।
उत्तर:
समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक तथा मानवशास्त्री इस बात से सहमत हैं कि मनोवृत्ति के निर्माण में संस्कृति की अहम भूमिका है। Ruth and Benedict की पुस्तक ‘Pattern of Culture’ तथा Margaret Mead की पुस्तक ‘Sex and Temperament’ में काफी प्रमाण मिलते हैं जो मनोवृत्ति पर संस्कृति के प्रभावों की पुष्टि करते हैं। संस्कृति की भिन्नता के कारण Arapesh जाति के लोग मैत्रीपूर्ण, सहयोगी, दयालु, उदार एवं शांतिप्रिय तथा न्यूगाइना की मुण्डा गुमर जाति के लोग आक्रामक, प्रतियोगी, लड़ाकू, झगड़ालू, निर्दयी होते हैं। उनकी मनोवृत्ति में अन्तर देखा जाता है।

प्रश्न 5.
गौण समूह की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर:
गौण या द्वितीयक समूह के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है। अतः इसका आकार बहुत बड़ा होता है। लिण्डरग्रेन ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है, “द्वितीयक समूह का अधिक अवैयक्तिक होता है तथा सदस्यों के बीच औपचारिक तथा संवेदनात्मक संबंध होता है।” इसकी निम्न विशेषताएँ होती हैं

  • द्वितीयक समूह में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है।
  • इसके सदस्यों में आपस में घनिष्ठ संबंध नहीं होता है।
  • प्राथमिक समूह की तुलना में यह कम टिकाऊ होता है।
  • समूह के सदस्यों के बीच एकता का अभाव होता है।
  • इसके सदस्यों में ‘मैं’ का भाव अधिक होता है।
  • इसके सदस्य कभी-कभी आमने-सामने होते हैं।

प्रश्न 6.
भू-भागीयता या प्रादेशिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निश्चित भू-भाग या निश्चित प्रदेश को प्रादेशिकता कहते हैं। जैसे-उत्तर प्रदेश के रहने से उत्तर प्रदेश का जिला, उसका भू-भाग एवं निवासी के साथ-साथ भाषा, रहन-सहन सब कुछ का बोध होता है। यह निश्चित भू-भाग है।

प्रश्न 7.
साक्षात्कार कौशल क्या है?
उत्तर:
मनोविज्ञान के क्षेत्र में साक्षात्कार की उपयोगिता में प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। साक्षात्कार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच एक उद्देश्यपूर्ण वार्तालाप है। साक्षात्कार को अन्य प्रकार के वार्तालाप की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण संज्ञा दी जा सकती है। क्योंकि उसका एक पूर्व निर्धारित उद्देश्य होता है तथा उसकी संरचना केन्द्रित होती है। साक्षात्कार अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-परामर्शी साक्षात्कार, रेडियो साक्षत्कार, कारक परीक्षक साक्षात्कार, उपचार साक्षात्कार, अनुसंधान साक्षात्कार आदि।

प्रश्न 8.
क्रेश्मर के अनुसार व्यक्तित्व प्रकार को लिखें।
उत्तर:
क्रेश्मर के अनुसार व्यक्तित्व के निम्नलिखित प्रकार हैं-

  • प्रारूप उपागम,
  • विशेषक उपागम तथा
  • अंत:क्रियात्मक उपागम।

प्रश्न 9.
असामान्यता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
असामान्यता सामान्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों का अतिविकसित या अल्पविकसित या छद्म या विकृत रूप है।” अतः असामान्यता एक अवधारणा (Concept) है, जो असामान्य व्यवहारों एवं अनुभवों की सम्यक् व्याख्या करती है। असामान्यता काकरण व्यक्ति के व्यवहारों द्वारा होता है। असामान्य व्यवहार अनियमित (Irregular) को कहते हैं। यह व्यवहार सामान्य व्यवहार से भिन्न होता है। असामान्य व्यवहार सामान्य व्यवहार से विचलित होता है।किस्कर ने असामान्य व्यवहार की व्याख्या करते हुए कहा है, “मानव के व्यवहार और अनुभूतियाँ जो साधारणतः अनोखी, असाधारण या पृथक् हैं, असामान्य समझी जाती है।”

प्रश्न 10.
मानव व्यवहार पर जल प्रदूषण के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण से तात्पर्य जल के भौ क, रासायनिक और जैविक गुणों में ऐसा परिवर्तन से है कि उसके रूप, गंध और स्वाद से मानव के वास्थ्य और कृषि उद्योग एवं वाणिज्य को हानि पहुँचे, जल प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषित जल पीने से विभिन्न प्रकार के मानवीय रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिनमें आँत का रोग, पीलिया, हैजा, टाइफाइड, अतिसार तथा पेचिस रोग प्रमुख हैं।

प्रश्न 11.
शीलगुण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
व्यक्तित्व का निर्माण अनेक प्रकार के शीलगुणों से होता है। शीलगुण आपस में संयुक्त रूप से कार्य करते हैं, जिनसे व्यक्ति के जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में समायोजन को उचित दिशा एवं गति प्राप्त होती है। इसी कारण इसे सामान्य भाषा में व्यक्ति की विशेषताएँ भी कहा जाता है। व्यक्तित्व की स्थायी विशेषताएँ जिनके कारण उनके व्यवहार में स्थिरता दिखाई पड़ती है, शीलगुण के नाम से जानी जाती है।

प्रश्न 12.
आत्महत्या के रोकथाम के उपाय सुझावें।
उत्तर:
आत्महत्या को निम्नलिखित लक्षणों के प्रति सजग रहकर रोका जा सकता है

  • खाने और सोने की आदतों में परिवर्तन।
  • मित्रों, परिवारों और नियमित गतिविधियों से विनिवर्तन।
  • उग्र क्रिया व्यवहार, विद्रोही व्यवहार, भाग जाना।
  • मद्य एवं मादक द्रव्य सेवन।।
  • व्यक्तित्व में काफी परिवर्तन आना।
  • लगातार ऊब महसूस करना।
  • एकाग्रता में कठिनाई।
  • आनंददायक गतिविधियों में अभिरुचि का न होना।

प्रश्न 13.
मनोग्रस्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति कहलाती है। इससे ग्रसित व्यक्ति अक्सर अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है।

प्रश्न 14.
शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व का प्रकारों का वर्णन करें। अथवा, शेल्डन के अनुसार व्यक्तित्व के कौन-कौन से प्रकार हैं?
उत्तर:
मनोवैज्ञानिक शेल्डन द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्रारूप सर्वविदित हैं। शारीरिक बनावट और स्वभाव को आधार बनाते हुए शेल्डन ने गोलाकृतिक, आयताकृतिक और लंबाकृतिक जैसे व्यक्तित्व के प्रारूप को प्रस्तावित किया है। गोलाकृतिक प्रारूप वाले व्यक्ति मोल मृदुल और ओल होते हैं। स्वभाव से वे लोग शिथिल और सामाजिक या मिलनसार होते हैं। आयताकृतिक प्रारूप वाले लोग मजबूत पेशीसमूह एवं सुगठित शरीर वाले होते हैं देखने में आयताकार होता है, ऐसे व्यक्ति ओजस्वी
और साहसी होते हैं। लंबाकृतिक प्रारूप वाले पतले, लंबे और सुकुमार होते हैं। ऐसे व्यक्ति कुशाग्र बुद्धि वाले, कलात्मक और अंतर्मुखी होते हैं।

प्रश्न 15.
प्राथमिक समूह की विशेषताओं को लिखें।
उत्तर:
प्राथमिक समूह की विशेषता निम्नलिखित हैं

  • प्राथमिक समूह में मुखोन्मुख अंत:क्रिया होती है।
  • सदस्यों में घनिष्ठ शारीरिक सामीप्य होता है।
  • इनमें एक उत्साहपूर्ण सांवेगिक बंधन पाया जाता है।

प्रश्न 16.
औपचारिक समूह एवं अनौपचारिक समूह में विभेद करें।
उत्तर:
औपचारिक एवं अनौपचारिक समूह उस मात्रा में भिन्न होते हैं जिस मात्रा में समूह के प्रकार्य स्पष्ट एवं औपचारिक रूप से घोषित किये जाते हैं। एक औपचारिक समूह, जैसे-किसी कार्यालय संगठन के प्रकार्य स्पष्ट रूप से घोषित होते हैं। समूह के सदस्यों द्वारा निष्पादित की जानेवाली भूमिकाएँ स्पष्ट रूप से घोषित होती हैं। .
औपचारिक तथा अनौपचारिक समूह संरचना के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। औपचारिक समूह का निर्माण कुछ विशिष्ट नियमों या विधि पर आधारित होता है और सदस्यों की सुनिश्चित भूमिकाएँ होती हैं।
औपचारिक समूह में मानकों का एक समुच्चय होता है जो व्यवस्था स्थापित करने में सहायक होता है। कोई भी विश्वविद्यालय एक औपचारिक समूह का उदाहरण है। दूसरी तरफ अनौपचारिक समूहों का निर्माण नियमों का विधि पर आधारित नहीं होता है और इस समूह के सदस्यों में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।

प्रश्न 17.
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा का उद्देश्य व्यक्ति को दबाव के विरुद्ध संचारित करना होता है। व्यक्ति के नकारात्मक तथा अविवेकी विचारों के स्थान पर सकारात्मक तथा सविवेक विचार प्रतिस्थापित कर दिए जाएँ। इसके तीन प्रमुख चरण है– मूल्यांकन, दबाव, न्यूनीकरण तकनीकें तथा अनुप्रयोग एवं अनुवर्ती कार्रवाई। मूल्यांकन के अंतर्गत समस्या की प्रकृति पर परिचर्चा करना तथा उसे व्यक्ति/सेवार्थी के दृष्टिकोण से देखना सम्मिलित होता है। दबाव न्यूनीकरण के अंतर्गत दबाव कम करनेवाली तकनीकों जैसे-विश्रांति तथा आत्म-अनुदेशन को सीखना सम्मिलित होते हैं।.

प्रश्न 18.
मनोवृत्ति के स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोवृत्ति या अभिवृत्ति एक प्रचलित शब्द है जिसका व्यवहार हम प्रायः अपने दैनिक जीवन में दिन-प्रतिदिन करते रहते हैं। अर्थात् किसी व्यक्ति की मानसिक प्रतिछाया या तस्वीर को, जो किसी व्यक्ति या समूह, वस्तु, परिस्थिति, घटना आदि के प्रति व्यक्ति के अनुकूल या प्रतिकूल दृष्टिकोण अथवा विचार को प्रकट करता है, मनोवृत्ति या अभिवृत्ति कहते हैं। क्रेच, क्रचफिल्ड तथा बैलेची ने मनोवृत्ति को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “किसी एक वस्तु के संबंध में तीन तंत्रों का टिकाऊ तंत्र मनोवृत्ति कहलाता है।” इन तीनों तंत्रों से मनोवृत्ति का वास्तविक स्वरूप सही ढंग से स्पष्ट होता है। ये तीन तंत्र है-पहला, संज्ञानात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के विश्वास को संज्ञानात्मक संघटक कहते हैं। दूसरा, भावात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु से संबंधित व्यक्ति के संवेगात्मक अनुभव को भावात्मक संघटक कहते हैं। तीसरा, व्यवहारात्मक संघटक अर्थात् किसी वस्तु के प्रति व्यवहार क्रिया करने की तत्परता की व्यवहारात्मक संघटक कहते हैं। इस प्रकार मनोवृत्ति उपर्युक्त तीनों संघटक का एक टिकाऊ तंत्र है।

प्रश्न 19.
व्यवहार चिकित्सा क्या है? अथवा, व्यवहार चिकित्सा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
व्यवहार चिकित्सा, जिसे व्यवहार परामर्श भी कहा जाता है। इस चिकित्सा का आधार अनुबंधन का नियम अथवा सिद्धान्त होता है। इस चिकित्सा पद्धति की प्रमुख मान्यता यह है कि रोगी दोषपूर्ण समायोजन पैटर्न को सीख लेता है, जो स्पष्टतः किसी-न-किसी स्रोत से पुनर्वलित होकर संपोषित होते रहता है। फलतः इस तरह की चिकित्सा में चिकित्सक का उद्देश्य दोषपूर्ण समायोजन पैटर्न या अपअनुकूली समायोजन पैटर्न की जगह पर अनुकूली समायोजन पैटर्न को सीखला देना होता है।

प्रश्न 20.
पूर्वाग्रह का अर्थ लिखें।
उत्तर:
पूर्वाग्रह या पूर्वधारणा अंग्रेजी भाषा के Prejudice का हिन्दी अनुवाद है जो लैटिन भाषा के Prejudicium से बना है। Pre का अर्थ है पहले और Judicium का अर्थ है निर्णय। इस दृष्टिकोण से पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह का शाब्दि अर्थ हुआ पूर्व निर्णय। इस प्रकार, पूर्वाग्रह जैसे कि इसके नाम से स्पष्ट है, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के विपक्ष में पूरी तरह से जानकारी किये बिना ही किसी-न-किसी प्रकार का विचार अथवा धारण बन बैठना है।

प्रश्न 21.
संवेगात्मक बुद्धि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
संवेगात्मक बुद्धि या ई. क्यू. संप्रत्यय की व्याख्या सर्वप्रथम दो अमेरिकी मनोवैज्ञानिक सैलोवे तथा मेयर ने 1990 ई० में किया। हालाँकि इस पद को विस्तृत करने का श्रेय प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को जाता है। इन्होंने संवेगात्मक बुद्धि की परिभाषा देते हुए कहा है कि, “संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य व्यक्ति का अपने तथा दूसरों के मनोभावों को समझना, उनपर नियंत्रण रखना और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उनका सर्वोत्तम उपयोग करना है।” इन लोगों का कहना है कि संवेगात्मक बुद्धि हमारी सफलता का अस्सी प्रतिशत भाग निर्धारित करता है। इस प्रकार संवेगात्मक बुद्धि का तात्पर्य उस कौशल से है जिससे हम अपने आंतरिक जीवन के प्रबंध का संचालन करते हैं और लोगों के साथ तालमेल बिठाकर चलते हैं।

प्रश्न 22.
अभिक्षमता क्या है?
उत्तर:
अभिक्षमता क्रियाओं के किसी विशेष क्षेत्र की विशेष योग्यता को कहते हैं। अभिक्षमता विशेषताओं का ऐसा संयोजन है जो व्यक्ति द्वारा प्रशिक्षण के उपरांत किसी विशेष क्षेत्र के ज्ञान अथवा कौशल के अर्जन की क्षमता को प्रदर्शित करता है। अभिक्षमताओं का मापन कुछ विशिष्ट परीक्षणों द्वारा किया जाता है। किसी व्यक्ति की अभिक्षमता के मापन से इसमें उसके द्वारा भविष्य में किए जाने वाले निष्पादन का पूर्वकथन करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 23.
अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व प्रकार में अंतर बताइए।
उत्तर:
युंग ने व्यक्तित्व का वर्गीकरण व्यवहार की प्रवृत्तियों के आधार पर दो प्रकारों से किया है। इन दोनों प्रकार के व्यक्तियों की अलग-अलग विशेषताएँ एवं गुण हैं जो अग्रलिखित हैं-युग के अनुसार अन्तर्मुखी प्रकार के व्यक्ति एकांतप्रिय एवं आदर्शवादी विचारों के होते हैं, जबकि बहिर्मुखी प्रकार के व्यक्ति समाजप्रिय एवं यथार्थवादी विचार के होते हैं।

दूसरा अंतर यह होता है कि अन्तर्मुखी व्यक्ति आत्मगत दृष्टिकोण वाले होते हैं, लेकिन व्यवहार कुशल नहीं होते हैं। जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति वस्तुगत दृष्टिकोण वाले होते हैं, लेकिन व्यवहार कुशल होते हैं।
तीसरा अंतर यह है कि अंतर्मुखी व्यक्ति कल्पनाशील होते हैं, अत: ये वैज्ञानिक, कवि, दार्शनिक आदि होते हैं, जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति सामाजिक कार्यों में रुचि लेते हैं, अतः ये नेता समाज सुधारक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि होते हैं।

प्रश्न 24.
मानव व्यवहार पर शोरगुल के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर:
मानव व्यवहार पर शोरगुल का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मानव शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की दुविधाओं से त्रस्त हो जाती है।
आत्मभाव में चिड़चिड़ापन, शब्दग्रहण की क्षमता में कमी, कार्य निष्पादन में विलम्ब तथा त्रुटियाँ, सीखने की अभिरूचि क्षीण, ध्यान में अवरोध, निर्णय क्षमता में कमी आदि अवांछनीय लक्षणों का प्रत्यक्ष क्रियाशील शोर के प्रभाव के रूप में देखी जा सकती है।
शोर के कारण मनुष्य जल्दी थक जाता है, उसे स्वयं में ऊर्जा की कमी महसूस होने लगती है। क्रोध प्रकट करना, प्रिय एवं उपयोगी साधनों को भी पटक देना, चिल्लाना, कम सुनना आदि नकारात्मक लक्षण उभरने लगते हैं।

कार्य का निष्पादन पर शोर के प्रभाव को उसकी तीन विशेषताएँ निर्धारित करती हैं, जिन्हें शोर की तीव्रता, भविष्यफकशनीयता तथा नियंत्रणीयता कहते हैं। मनुष्य पर शोर के प्रभावों पर किए गए क्रमबद्ध शोध प्रदर्शित करते हैं कि शोर के दबावपूर्ण प्रभाव केवल उसके तीव्र या मद्धिम होने से ही निर्धारित नहीं होते बल्कि इससे भी निर्धारित होते हैं कि व्यक्ति उसके प्रति किस सीमा तक अनुकूलन हैं, निष्पादन किए जाने वाले कार्य की प्रति क्या है तथा क्या शोर के संबंध में भविष्यकाशन किया जा सकता है और क्या उसे नियंत्रण किया जा सकता है।

शोर कभी-कभी सकारात्मक प्रभाव भी दिखाते हैं। चुनावी लहर में नारे की ध्वनि, भाषण के मध्य में तालियों की गड़गड़ाहट, पूजा-अर्चना के क्रम में जयकार आदि कर्ता में जोश भरने वाले माने जाते हैं।

प्रश्न 25.
साक्षात्कार के प्रमुख अवस्थाओं को लिखें।
उत्तर:
साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता को विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
(i) प्रारंभिक अवस्था- यह साक्षात्कार की सबसे पहली अवस्था है। वास्तव में साक्षात्कार की सफलता उसकी प्रारंभिक तैयारी पर ही निर्भर होती है। यदि इस अवस्था में गलतियाँ होगी तो साक्षात्कार का सफल होना संभव नहीं है।

(ii) प्रश्नोत्तर की अवस्था- साक्षात्कार की यह सबसे लंबी अवस्था है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछता है और साक्षात्कारदाता उसके प्रश्नों को सावधानीपूर्वक सुनता है और कुछ रूककर उसे समझता है, उसके बाद उत्तर देता है। उसके उत्तर देते समय साक्षात्कारकर्ता उसके हाव-भाव, मुखाकृति का भी अध्ययन करता है।

(iii) समापन की अवस्था- साक्षात्कार का यह सबसे अंतिम चरण है। जब साक्षात्कारकर्ता सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाय और ऐसा अनुभव हो कि उसे महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है तो साक्षात्कार का समापन किया जाता है। इस अवस्था में साक्षात्कारदाता के मन में बननेवाल प्रतिकूल अवधारणा का निराकरण करना चाहिए। साक्षात्कारदाता भी जब यह कहता है कि और कुर पूछना है तो उसे प्रसन्नतापूर्वक समापन की सूचना देनी चाहिए तथा सफल साक्षात्कार के लिए उसे । न्यवाद भी देना चाहिए।

प्रश्न 26.
तनाव या दबाव का सामना करने के विभिन्न उपायों को लिखें।
उत्तर:
दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने की उपायों के उपयोग में व्यक्तिगत भिन्नताएँ देखी जाती हैं। एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित दबाव का सामना करने की तीन उपाय निम्नलिखित हैं

  • कृत्य अभिविन्यस्त युक्ति-दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं-यह सब इस अंतर्गत आते हैं।
  • संवेग अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत मन में आभा बनाये रखने के प्रयास तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण म्मिलित हो सकते हैं।
  • परिहार अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 27.
मनोग्रस्ति एवं बाध्यता व्यवहार के बीच विभेद स्थापित करें। .. अथवा, मनोग्रस्ति तथा मनोबाध्यता में अंतर करें।
उत्तर:
जो लोग मनोग्रस्ति-बाध्यता विकार (Obsessive compulsive disorder) से पीड़ित होते हैं वे कुछ विशिष्ट विचारों में अपनी ध्यानमग्नता को नियंत्रित करने में असमर्थ होते हैं या अपने आपको बार-बार कोई विशेष क्रिया करने से रोक नहीं पाते हैं, यहाँ तक कि ये उनकी सामान्य गतिविधियों में भी बाधा पहुंचाते हैं। किसी विशेष विचार या विषय पर चिंतन को रोक पाने की असमर्थता मनोग्रस्ति व्यवहार (Obsessive behaviour) कहलाता है। इससे ग्रसित व्यक्ति अपने विचारों को अप्रिय और शर्मनाक समझता है। किसी व्यवहार को बार-बार की आवश्यकता बाध्यता व्यवहार (compulsive behaviour) कहलाता है। कई तरह की बाध्यता में गिनना, आदेश देना, जाँचना, छूना और धोना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 28.
एकधुवीय विकार क्या है?
उत्तर:
एक ध्रुवीय विषाद को मुख्य विषाद भी कहा जाता है। इसके प्रमुख लक्षणों में उदास मनोदशा, भूख, वजन तथा नींद में कमी तथा क्रिया स्तर में भयंकर क्षुब्धता पायी जाती है। ऐसे व्यक्ति किसी कार्य में जल्द थकान महसूस करने लगते हैं, उनका आत्मसंप्रत्यया ऋणात्मक होता है तथा उनमें आत्म-निन्दा की प्रवृत्ति भी अधिक होती है।

प्रश्न 29.
दुर्भाति विकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
दुर्भीति विकार एक बहुत ही सामान्य दुश्चिता विकार है, जिसमें व्यक्ति अकारण या आयुक्तिक अथवा विवेकहीन डर अनुभव करता है। इसमें व्यक्ति कुछ खास प्रकार की वस्तुओं या परिस्थितियों से डरना सीख लेता है। जैसे जिस व्यक्ति में मकड़ा से दुर्भीति होता है वह व्यक्ति वहाँ नहीं जा सकता है जहाँ मकड़ा उपस्थित हो। जबकि मकड़ा एक ऐसा जीव है जो व्यक्ति विशेष के लिए खतरा पैदा नहीं करता है। फिर भी व्यक्ति में दुर्भाति उत्पन्न हो जाने पर सामान्य व्यवहार को विचलित कर देता है। यद्यपि डरा हुआ व्यक्ति यह जानता है कि उसका डर आधुनिकतम है, फिर भी वह उक्त डर से मुक्त नहीं हो पाता है। इसका कारण व्यक्ति का आंतरिक रूप से चिन्तित होना होता है। व्यक्ति का यह चिन्ता किसी खास वस्तु से अनुकूलित होकर संलग्न हो जाता है। उदाहरणार्थ कुछ महत्त्वपूर्ण दुर्भीतियाँ जैसे बिल्ली से डर एलूरोफोबिया, मकड़ा से डर एरेकनोफोबिया, रात्रि से डर नायक्टोफोबिया तथा आग से डर पायरोफोबिया आदि दुर्भीति के उदाहरण हैं।

प्रश्न 30.
अभिवृत्ति परीक्षण की उपयोगिता का वर्णन करें।
उत्तर:
बी० ए० पारिख ने एन० सी० सी० परीक्षण के प्रति छात्रों की मनोवृत्ति या अभिवृत्ति को मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया है। इसमें 22 एकांश है जो त० सी० सी० प्रशिक्षण एवं उसके विध गतिविधियों या कार्यक्रमों आदि के पक्ष और विषय में छात्रों की मनोवृत्ति क्या है, उसको प्रदर्शित रता है। यह परीक्षण स्वयं पर प्रशासित किया जा सकता है और विषय में छात्रों की मनोवृत्ति क्या है सको प्रदर्शित करना है। उसको पूरा करने में 10 मिनट का समय लगता है।

प्रश्न 31.
क्या विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानसिक विकारों के लिए उपयोगी है?
उत्तर:
विद्युत आक्षेपी चिकित्सा मानिसक विकारों के लिए उपयोगी है। विद्युत आक्षेपी चिकित्सा का मुख्य उद्देश्य है-

    1. रोगों को लक्षणों से मुक्त करना।
    2. रोगी को अपने वातावरण में समायोजन स्थापित करने के योग्य बना देना।
    3. रोगी को आत्मनिर्भर बना देना ताकि वह स्वयं जीवन अर्जन करने का समझ हो सके।
    4. रोगी इस योग्य बना देना कि वह अपने परिवर्तनशील वातावरण के साथ आवश्यकता अनुसार स्थापित करने में समझ हो सके।