Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.
BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन
Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers
प्रश्न 1.
बाजार सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वह स्थिति, जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती है उसे साम्य या सन्तुलन की स्थिति कहते हैं। साम्य की अवस्था में मांगी गई मात्रा तथा पूर्ति की गई मात्रा समान होती है। माँग व पूर्ति में परिवर्तन करने के लिए किसी के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती है। बाजार सन्तुलन की अवस्था में सभी फर्मों द्वारा की गई आपूर्ति व सभी उपभोक्ताओं द्वारा की गई माँग के बराबर होती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो फर्म न ही उपभोक्ता किसी परिवर्तन की इच्छा करते हैं। गणितीय रूप से बाजार सन्तुलन को दर्शाया जा सकता है –
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति
प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार माँग वस्तु की बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। गणितीय रूप में अधिमाँग को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है –
yd > ys
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति
प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार आपूर्ति वस्तु की बाजार माँग से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिशेष आपूर्ति कहते हैं।
ys > ys
जहाँ ys → बाजार माँग तथा
yd बाजार पूर्ति
प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?
- सन्तुलन कीमत से अधिक
- सन्तुलन कीमत से कम
उत्तर:
1. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से अधिक है, तो फर्म उस वस्तु की आपूर्ति अधिक मात्रा में करेगी तथा उपभोक्ता उस वस्तु की माँग कम मात्रा में करेंगे। इससे बाजार में सन्तुलन की अवस्था बिगड़ जायेगी। अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। इस स्थिति को चित्र में दर्शाया गया है।
कीमत Op1 > Op
कीमत Op1 कीमत पर
माँगी गई मात्रा = Oyd
पूर्ति की गई मात्रा = Oy5
Oys > oyd
जिसका अभिप्राय अधिशेष आपूर्ति से है।
2. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से कम होती है, तो बाजार में उस वस्तु के उत्पादक पूर्ति कम करेंगे तथा उस वस्तु के क्रेता माँग अधिक मात्रा में करेंगे। इस प्रकार बाजार का सन्तुलन बिगड़ जायेगा। इस स्थिति को स्वल्पता या अधिमाँग कहते हैं। इसे चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
कीमत Op1 < Op
कीमत Op1 कीमत पर –
माँग = Oyd
पूर्ति = Oy5
oyd < oy5
जिसका अर्थ है अधिमाँग या स्वल्पता।
प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या निश्चित होती है, तो साम्य की स्थिति का निर्धारण माँग व पूर्ति के एक साथ काम करने से होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जहाँ फर्मों की संख्या निश्चित होती है क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही कीमत स्वीकारक होते हैं। बाजार पूर्ति वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर सभी फर्म कितनी मात्रा बेचने के लिए तैयार है। इसी प्रकार बाजार माँग चक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर विभिन्न क्रेता वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने को तैयार है।
सन्तुलन वह अवस्था है जहाँ बाजार में माँगी गई मात्रा पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है। ज्यामितीय रूप से साम्य अवस्था वह बिन्दु है, जहाँ बाजार माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस बिन्दु पर वस्तु की माँगी गई मात्रा उसकी पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है इस बिन्दु के अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो अधिमाँग की स्थिति होती है या अधिशेष पूर्ति की। साम्य बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा क्रय व विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य कीमत निर्धारण को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
आपूर्ति वक्र SS व माँग DD एक-दूसरे को बिन्दु E पर काटते हैं। अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है। इस बिन्दु पर साम्य कीमत = Op, साम्य मात्रा = Oy
प्रश्न 6.
मान लिजिए की अभ्यास 5 में सन्तुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
एक फर्म उत्पाद की धनात्मक मात्रा का उत्पादन केवल उस स्थिति में करती है, जब वस्तु कीमत न्यूनतम परिवर्तनशील लागत समान या अधिक होती है। जब बाजार में फर्म का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है, तो हमेशा फर्म उस कीमत पर आपूर्ति करती है, जहाँ किसी फर्म को न तो असामान्य लाभ प्राप्त होता है और न ही हानि होती है। अत: कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होगा, जहाँ वस्तु की कीमत, न्यूनतम अवसर लागत के समान होगी। यदि साम्य कीमत, न्यूनतम औसत लागत से अधिक है, तो फर्म को असामान्य लाभ मिलता है।
कई अन्य फर्मे बाजार में प्रवेश करने लगती है। इससे अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। फर्मों में प्रतियोगिता बढ़ने से वे वस्तु की कीमत कम करेंगे। जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता रहेगा नई फमें बाजार में प्रवेश करती रहेगी, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के समान हो जायेगी, तो फर्मों का प्रवेश बाजार में बन्द हो जायेगा। इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ मिलेगा। अतः मुक्त प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के हमेशा बराबर होगी।
p = Min AC
इस कीमत पर फर्म पूर्तिको माँग के समान समायोजित करने का प्रयास करती है। रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण माँग वक्र तथा p = न्यूनतम AC रेखा द्वारा होता है। साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र, p = AC न्यूनतम रेखा को काटता है स्वतन्त्र प्रवेश व गमन की स्थिति नीचे रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण दिखाया गया है –
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र रूप से होता है, तो कीमत का निर्धारण न्यूनतम औसत लागत के बराबर होता है। साम्य मात्रा का निर्धारण भी माँग वक्र व न्यूनतम औसत लागत के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है।
प्रश्न 7.
एक बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती है? ऐसे बाजार में सन्तुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
बाजार में फर्मों के स्वतन्त्र प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि कोई भी फर्म असामान्य लाभ प्राप्त नहीं करेगी। इस स्थिति में फर्म को हानि भी नहीं होगी। साम्य कीमत का निर्धारण उस स्तर पर होगा, जहाँ कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाजार कीमत का स्तर न्यूनतम औसत लागत से अधिक होगा, तो फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश के कारण बाजार पूर्ति में वृद्धि होगी और आपूर्ति आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। सम्पूर्ण उत्पाद को बेचने के लिए फर्मे कीमत घटाती है, ताकि वे अपने सम्पूर्ण उत्पाद को बेच सकें।
जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा नई फर्मों का बाजार में प्रवेश जारी रहता है, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के बराबर हो जाती है, तो फर्मों का प्रवेश रूक जाता है, क्योंकि इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। मौजूदा फर्म साम्य की अवस्था में बाजार छोड़कर नहीं जाती है, क्योंकि उन्हें कोई हानि नहीं उठानी पड़ती है।
साम्य के निर्धारण के आकलन को उस स्थिति में भी स्पष्ट किया जा सकता है, जब वस्तु की बाजार कीमत औसत लागत से कम होती है। जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है, तो साम्य निर्धारण माँग वक्र तथा p = AC न्यूनतम रेखा के कटाव बिन्दु पर होता है। साम्य का निर्धारण, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
पूर्ण प्रतियोगी बाजार फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होती है। इसी बिन्दु पर क्रय-विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।
साम्य कीमत = Op0 = Min AC
साम्य मात्रा = Oy0
प्रश्न 8.
एक बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व गमन इस बात का प्रतीक है कि बाजार पूर्ति उस कीमत पर होती है, जहाँ किसी भी फर्म को न तो असामान्य लाभा प्राप्त है और न ही हानि उठानी पड़ती है। बाजार कीमत उस स्तर पर तय होती है, जहाँ कीमत न्यूनतम AVC के समान होती है। यदि बाजार कीमत न्यूनतम AVC से अधिक होती है, तो फर्मों असामान्य लाभ मिलता है। इससे आकर्षित होकर नई फर्में बाजार में प्रवेश करती है। फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति बढ़ जाती है, जो अधिक आपूर्ति को जन्म देती है। अधिशेष आपूर्ति के कारण बाजार कीमत घटती है, जिससे सारा उत्पादन बेचा जा सके।
नई फर्मों का प्रवेश, जब तक जारी रहता है, तव तक फर्मों का असामान्य लाभ मिलता है। जब कीमत न्यूनतम AVC के समान हो जाती है, तो नई फर्मों का प्रवेश रुक जाता है। इस कीमत पर प्रत्येक मौजूदा फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होगा, इस स्थिति में कोई नई फर्म बाजार में प्रवेश नहीं करेगी। इसके, क्योंकि फर्मों को सामान्य लाभ मिलता है और हानि उठानी नहीं पड़ती है, इसलिए मौजूदा फर्मे बाजार छोड़कर इस स्थिति में बाहर नहीं जाती है। इस अवस्था में फर्म साम्य की स्थिति में है फर्मों की संख्या की व्याख्या, इसके विपरीत स्थिति में भी की जा सकती है, जब फर्मों को हानि उठानी पड़ती है।
प्रश्न 9.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में –
(I) वृद्धि होती है
(II) कमी होती है
उत्तर:
यदि बाजार में फर्मों की स्ख्या स्थिर है, तो उपभोक्ता की आय साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा को प्रभावित करेगी। इसे नीचे समझाया गया है –
(I) उपभोक्ता की आय में वृद्धि:
1. आय बढ़ने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की खरीद पर कम व्यय करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग में कमी होने के कारण घटिया वस्तु का माँग वक्र नीचे/बायीं ओर खिसक जायेगा। माँग में कमी के कारण पूर्ति आधिक्य की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में कमी आयेगी।
2. आय बढ़ने पर उपभोक्ता सामान्य वस्तु की खरीद पर अधिक व्यय करेगा। अतः सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं/ऊपर की ओर खिसक जायेगा। माँग में वृद्धि के कारण बाजार में माँग की अधिकता के कारण साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
(II) उपभोक्ता आय में कमी:
1. आय कम होने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की अधिक खरीद करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र ऊपर/दायीं ओर खिसक जायेगा माँग बढ़ने के कारण पूर्ति में कमी की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते व जुराब एक-दूसरे की पूरक वस्तु है। जूतों की कीमत में वृद्धि का जुराब की माँग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अर्थात् जूतों की कीमत में वृद्धि होने पर जुराबों की माँग में कमी आ जायेगी। अतः जुराबों की मॉग बायीं/नाचे की ओर खिसक जायेगा। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की सन्तुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफी व चाय एक-दूसरे की प्रतियोगी वस्तु है। कॉफी की कीमत में परिवर्तन होने पर चाय की माँग में समान दिशा में परिवर्तन होगा। कॉफी की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप चाय की साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त अगतों की कीमत परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन दो प्रकार से साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करता है –
- साधन आगतों की कीमत बढ़ सकती है
- साधन आगतों की कीमत घट सकती है
1. साधनों की कीमत में वृद्धि:
साधन आगतों की कीमत में वृद्धि का वस्तु की पूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
2. साधनों की कीमत में कमी:
साधन आगतों की कीमत में कमी का वस्तु की पूर्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
नई साम्य कीमत घटेगी तथा साम्य मात्रा बढ़ेगी।
प्रश्न 13.
यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु (y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु x की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
यदि वस्तु (x) की प्रतिस्थापन वस्तु (y) की कीमत बढ़ जायेगी, तो वस्तु (x) सापेक्ष रूप से सस्ती हो जायेगी। इससे वस्तु (x) की माँग में वृद्धि होगी। अर्थात् वस्तु (x) का माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जायेगा। इस परिवर्तन का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
नई साम्य कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
प्रश्न 14.
बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानान्तरण का सन्तुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. जब फर्मों की संख्या स्थिर हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तो माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से बाजार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अधिमाँग के कारण साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसके विपरीत माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से बाजार में माँग कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में कमी उत्पन्न हो जायेगी। माँग वक्र में खिसकाव. के कारण साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
इस स्थिति में साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।
2. जब फर्मों का प्रवेश में निर्गम स्वतन्त्र हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतन्त्र होता है, तो साम्य बिन्दु का निर्धारण हमेशा न्यूनतम औसत लागत पर तय होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में किसी भी फेर्म को असामान्य लाभ प्राप्त नहीं होता है। माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में अधिमाँग की स्थिति पैदा हो जाती है, इससे बाजार कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। बढ़ी कोभत पर मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। इससे आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति में बढ़ोतरी हो जायेगी। इससे साम्य कीमत अपने मूल स्तर पर पहुँच जायेगी।
माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में न्यून माँग की स्थिति पैदा होती है इससे बाजार कीमत कम हो जाती है। मौजूदा फर्मों को हानि उठानी पड़ती है। जिन फर्मों को हानि होती है, वे बाजार छोड़कर बाहर चली जाती है । फर्मों के बाहर होने से बाजार आपूर्ति कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत पुनः अपने पूर्व स्तर पर पहुँच जाती है। इस प्रकार फर्मों के मुक्त प्रवेश व निर्गम का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा बढ़ जायेगी। इसी प्रकार माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
जब बाजार से फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतंत्र होता है, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन साम्य मात्रा प्रभावित होती है।
प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर शिफ्ट का सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
नीचे दर्शायी गई तीन स्थितियाँ हो सकती है –
(I) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं वक्र में खिसकाव से ज्यादा हो –
(II) यदि माँग वक्र के दायीं ओर खिसकाव पूर्ति चक्र में खिसकाव से कम हो –
नई साम्य कीमत कम हो जायेगी परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।
(III) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के बराबर हो –
प्रश्न 16.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब –
(I) माँग तथा पूर्ति दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं।
(II) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं।
उत्तर:
(I) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में खिसकाव –
1. माँग व पूर्ति वक्र दोनों में बायीं ओर खिसकाव
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर ज्यादा खिकाव
(b) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर कम खिसकाव
(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र में बायीं ओर समान खिसकाव
(II) दायीं ओर माँग वक्र व पूर्ति वक्र में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में दायीं ओर कम खिसकाव –
(b) माँग वक्र में दायीं ओर पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा खिसकाव –
(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर समान खिसकाव –
(III) माँग व पूर्ति वक्र में विपरीत दिशा में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव –
(b) माँग वक्र में दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव –
प्रश्न 17.
वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार के माँग वक्र व पूर्ति वक्र तथा श्रम बाजार के माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र में मूलभूत अन्तर होता है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग उपभोक्ता करते हैं और उत्पादक वस्तु की पूर्ति करते हैं। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक करते हैं व श्रम की पूर्ति परिवार करते हैं। वस्तुओं की माँग उपयोगिता पाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की माँग उत्पादकता के कारण की जाती है। वस्तुओं की पूर्ति उत्पादक लाभ कमाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की पूर्ति का उद्देश्य रोजगार व मजदूरी प्राप्त करना होता है। हालाँकि मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा उसी प्रकार होता है। जैसे-वस्तु की कीमत का निर्धरण माँग व पूर्ति की शक्तियाँ करती है।
प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
प्रतियोगी होने के कारण प्रत्येक फर्म लाभ अधिकतम करने के प्रयास करती है। अतः उत्पादक इकाई उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ श्रम की अन्तिम इकाई की लागत उस अतिरिक्त श्रम के नियोजन से फर्म की आय में बढ़ोतरी होती है। श्रम की अन्तिम इकाई की लागत मजदूरी दर के समान होती है। श्रम की अन्तिम इकाई के नियोजन से अतिरिक्त लाभ (आय) उस इकाई की सीमान्त उत्पादकता के समान होती है। अत: फर्म उस बिन्दु तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ –
मजदूरी दर = सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRP1
जहाँ MRp2 = MR × MP2
अथवा MRp2 = p × Mp2 (MR =p प्रतियोगी फर्म के लिए)
अथवा MRp2 = VMp2
अथवा w = VMp2
प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम की मजदूरी दर का निर्धारण माँग और पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। फर्म लाभ कमाने के उद्देश्य से श्रम की माँग करती है। श्रम के नियोजन पर फर्म को लागत भी उठानी पड़ती है। श्रम को क्रय करने की अतिरिक्त लागत श्रम को दी गई मजदूरी होती है। श्रम के नियोजन से प्राप्त लाभ श्रम की सीमान्त उत्पादकता के समान होता है। एक फर्म श्रम की अधिकतम इकाइयों का नियोजन उस सीमा तक करती है जहाँ श्रम की मजदूरी दर श्रम की सीमान्त आगत उत्पादकता के समान होती है।
श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता ह्रासमान सीमान्त उत्पादकता के नियमानुसार प्राप्त होती है और फर्म हमेशा w = VMp2 = MRp2 के आधार पर उत्पादन करती है। इसका अभिप्राय है श्रम का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है। इस प्रकार श्रम की माँग व पूर्ति श्रम को दी जाने वाली मजदूरी दर में विपरीत सम्बन्ध होता है। श्री की आपूर्ति परिवार करते हैं। परिवार श्रम से प्राप्त मजदूरी तथा आराम के बीच चयन के आधार पर श्रम की आपूर्ति करते हैं। सामान्यतः परिवार ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की ज्यादा आपूर्ति करते हैं।
कोई व्यक्तिगत श्रमिक हो सकते हैं, जो ऊँची मजदूरी दर भी आराम पसन्द करते हैं लेकिन सामान्यत: ऊँची मजदूरी दर पर अधिक श्रम की आपूर्ति द्वारा अधिक कमाना ज्याद पसन्द करते हैं। अतः श्रम का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। जिस बिन्दु पर ऋणात्मक ढाल वाला श्रम माँग वक्र तथा धनात्मक ढाल वाला श्रम का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य की अवस्था में श्रम की माँग व पूर्ति दोनों समान होते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
श्रम की साम्य मजदूरी दर Ow तथा साम्य माँग व पूर्ति OL है।
प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, गेहूँ एक ऐसी वस्तु है जिस पर भारत में कीमत नियंत्रण किया जाता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के तेल, चावल आदि पर भी कीमत नियंत्रण का प्रयोग किया जाता है।
कीमत नियन्त्रण के प्रभाव:
सामान्यतः कीमत नियन्त्रण के साथ ही राशन प्रणाली शुरू करनी पड़ती है। कीमत नियन्त्रण के निम्नलिखित तीन प्रभाव होते हैं –
1. प्रायः
उपभोक्ताओं को उपभोग के लिए घटिया वस्तु मिलती है, क्योंकि कीमत नियन्त्रण के कारण उत्पादकों को वस्तु की कीमत मिलती है। उत्पादन लागत को घटाने के लिए वे नीची गुणवत्ता वाली वस्तु उत्पन्न करते हैं।
2. प्रत्येक उत्पादक को उपभोग हेतु वस्तु की निश्चित मात्रा प्राप्त होती है। वस्तु की स्वल्पता के कारण उपभोक्ताओं को लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना पड़ता है।
3. ज्यादातर उपभोक्ताओं को आवश्यकता से कम मात्रा में ही उपभोग के लिए वस्तु मिल पाती है। उनमें से कुछ उपभोक्ता अतिरिक्त मात्रा प्राप्त करने के लिए ऊँची कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। इससे रिश्वत, कालाबाजारी, जमाखोरी जैसी समस्याएँ पैदा हो जाती है।
प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें, जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में साथ-साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है।
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र हो –
प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं –
qD = 700 – p
qS = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15 मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत क्या होगी? सन्तुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
qD
yD = 700 – p
qS = 500 + 3p p ≥ 15 के लिए
= 0 p ≤ 15 के लिए
15 रुपये से कम कीमत वस्तु पूर्ति मात्रा शून्य है। इसका कारण यह है कि पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन नहीं करती है।
साम्य अवस्था में –
yD = yS
700 – p = 500 + 3p (मूल्य स्थापित करने पर)
या – 3p – p = 500 – 700
या – 4p = – 200
200 या 4p = 200 या p = \(\frac{200}{4}\) या p = 50
p का मूल्य किसी भी समीकरण में प्रतिस्थापित करने पर –
yD = 700 – 50 = 650
yS = 500 + 3 × 50 = 500 + 150 = 650
साम्य कीमत = 50 रुपये
साम्य मात्रा = 650
प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बर्हिगमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है, जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है –
\(\boldsymbol{q}_{\boldsymbol{f}}^{\boldsymbol{s}}\) = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 20
- p = 20 का क्या महत्त्व है?
- बाजार में x के लिए किस कीमत पर सन्तुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
- सन्तुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
1. p = 20 न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत है।
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं करती है। बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन मुक्त होने के कारण साम्य कीमत 20 रु. होगी।
2. साम्यावस्था के लिए साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण 20 रुपये से कम कीमत पर कोई भी फर्म धनात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी क्योंकि 20 रुपये से कम कीमत पर वस्तु बेचने से फर्म को हानि होगी। 20 रुपये से अधिक किसी भी कीमत पर फर्मों का असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फर्म बाजार में प्रवेश करने लगती है। फर्मों का प्रवेश उस समय तक जारी रहता है, जब तक फर्मों का लाभ सामान्य नहीं हो जाता। एक बार कीमत न्यूनतम औसत लागत के समान होते ही साम्य स्थापित हो जाती है। इस अवस्था में फर्मों का प्रवेश व गमन रुक जाता है।
3. बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र है। अतः साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
yS = 8 + 3p
= 8 + 3 × 20 (p का मान रखने पर)
= 8 + 60 = 68 एक फर्म की आपूर्ति
साम्य स्तर पर बाजार माँग yD = 700 – p = 700 – 20 (p का मान रखने पर)
= 680
68 इकाइयों की पूर्ति करती है = 1 फर्म
1 इकाई की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) फर्म
680 इाकइयों की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) × 680 फर्म = 10 फर्म
बाजार में साम्य मात्रा = 680 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = 10
प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है –
qD = 1000 – p; qS = 700 + 2p
1. सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।
2. अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है –
qS = 400 + 2p
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है ? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?
3. मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह सन्तुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार करेगा?
उत्तर:
1. qD yd = 1000 – p
qSy = 700 + 2p
साम्य अवस्था में yd = ys
100 – p = 700 + 2p
या – 2p – p = 700 – 1000
या – 3p = -300
या 3p = 300 या p = \(\frac{300}{3}\) = 100
p का मान माँग व पूर्ति समीकरणों में प्रतिस्थापित करने पर
yd = 1000 – p = 1000 – 100 = 900
ys = 700 + 2p = 700 + 2 × 100 = 700 + 200 = 900
साम्य कीमत = 100 रुपये
साम्य मात्रा = 900 इकाइयाँ
2. नई आपूर्ति समीकरण ys = 400 + 2p
साम्यावस्था में, ys = ys
1000 – p = 400 – 1000
या – 2p – p = 400 – 1000 या – 3p = 600
या 3p = 600 या p = \(\frac{600}{3}\) p = 200 p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर yd = 1000 – p = 1000 – 200 = 800
ys = 400 + 2p = 400 + 2 × 200 = 400 + 400 = 800
साम्य कीमत = 200 रुपये
साम्य मात्रा = 800 इकाइयाँ
सन्साधनों की कीमत में वृद्धि से पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है लेकिन साम्य मात्रा घट जाती है। अतः परिणाम हमारी अपेक्षाओं को सत्यापित करता है।
3. yd = 1000 – p
ys = 700 + 2p
उत्पादन शुल्क 3 रुपये/इकाई लगाने पर आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। खण्ड (i) में साम्य कीमत 100 रुपये था, 3 रु./इकाई उत्पाद शुल्क आरोपित होने पर फर्म को प्रति इकाई 3 रुपये कम प्राप्त होंगे। अत:
ys = 700 + 2(p – 3)
साम्यावस्था में yd = ys
1000 – p = 700 + 2(p – 3)
या 1000 – p = 700 + 2p – 6 या – 2p – p = 700 – 6 – 1000
या -3p = -306 या 3p = 306
या p = \(\frac{306}{3}\) = 102
p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर –
yd = 1000 – p = 1000 – 102 = 898
ys = 700 + 2(p – 3) = 700 + 2(102 – 3)
= 700 + 2 × 99 = 700 + 198 = 98
नई साम्य कीमत = 102 रुपये
नई साम्य मात्रा = 898 इकाइयाँ
प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेन्टों के लिए बाजार-निर्धारण किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेन्ट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियन्त्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेन्टों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार सामान्य जन की पहुँच से अधिक किराया अपार्टमेन्ट्स का तय करता है, तो सरकार किराए की उच्चतम सीमा तय कर सकती है, ताकि सामान्य आदमी के लिए आवास प्रयोज्य हो जाएँ। सरकार किराए की सीमा, बाजार किराए से काफी कम तय करेगी। कम किराए पर ज्यादा लोग आपार्टमेन्ट की माँग करेंगे, आपूर्ति पक्ष कम अपार्टमेन्ट किराये देने को तैयार होगा। इससे किराये के मकानों की अधिकता उत्पन्न हो जायेगी। इस स्थिति को नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है। किराया
अधिक माँग पर काबू पाने के लिए सरकार अपार्टमेन्ट की राशनिंग कर सकती है, जिससे एक व्यक्ति एक से अधिक अपार्टमेन्ट न ले सके। इस व्यवस्था के निम्नलिखित परिणाम होंगे –
- कम किराए पर उत्पादक घटिया गुणवत्ता वाले अपार्टमेन्ट का निर्माण कर सकते हैं, ताकि इन्हें निर्मित करने की लागत कम हो जाए।
- अधिक माँग या स्वल्पता के कारण सामान्य लोगों को लम्बी कतार में खड़ा होना पड़ेगा।
- नियन्त्रित किराए पर सभी चाहने वाले लोगों को किराये पर अपार्टमेन्ट नहीं मिलेंगे। इससे कालाबाजारी, रिश्वतखोरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।
Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Additional Important Questions and Answers
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
साम्य कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह कीमत स्तर, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की जाने वाली मात्रा दोनों बराबर होती है, साम्य कीमत कहलाती है।
प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी ‘बाजार में सन्तुलन कब स्थापित होता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में सन्तुलन तब स्थापित होता है, जब किसी दी गई कीमत पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर हो जाती है।
प्रश्न 3.
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तब माँग व पूर्ति वक्रों के द्वारा कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तब सन्तुलन माँग व पूर्ति का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं।
प्रश्न 4.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम रोजगार का अधिकतम स्तर क्या होता है?
उत्तर:
प्रत्येक फर्म उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है, जहाँ सीमान्त आगम उत्पादकता श्रम की मजदूरी दर के समान होती है।
प्रश्न 5.
किसी उत्पाद के लिए अधिमाँग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर एक वस्तु के लिए बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इसे अधिक माँग कहते हैं।
प्रश्न 6.
किसी वस्तु की अधिक पूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर वस्तु की बाजार माँग की तुलना में उसकी बाजार पूर्ति अधिक होती है, तो इसे अधिक पूर्ति कहते हैं।
प्रश्न 7.
बाजार सन्तुलन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति, जिसमें दी गई कीमत पर किसी वस्तु की बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति के समान होती है, साम्य कीमत कहलाती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो उपभोक्ता माँग में परिवर्तन करना चाहते हैं और न ही
उत्पादक पूर्ति में परिवर्तन करना चाहते हैं।
प्रश्न 8.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 9.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तब साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी।
प्रश्न 10.
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य मात्रा पर प्रभाव किस प्रकार निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर दोनों वक्रों के ढाल तथा खिसकाव के स्तर के आधार पर साम्य मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।
प्रश्न 11.
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य कीमत पर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र के ढाल एवं दोनों में खिसकाव की माप के द्वारा साम्य कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।
प्रश्न 12.
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 13.
यदि माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
प्रश्न 14.
साम्य मात्रा पर माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य मात्रा कम हो जाती है।
प्रश्न 15.
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है।
प्रश्न 16.
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।
प्रश्न 17.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा कम हो जाती है।
प्रश्न 18.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।
प्रश्न 19.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो व पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत घट जाती है।
प्रश्न 20.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो ओर पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है।
प्रश्न 21.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत बढ़ जायेगी।
प्रश्न 22.
एक वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है, क्या साम्य कीमत बदल जायेगी?
उत्तर:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर माँग वक्र बायीं ओर खिसकने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 23.
जब एक वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है। क्या साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार होता है, तो माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा हो, तो साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
प्रश्न 24.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।
प्रश्न 25.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 26.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग में माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को क्यों नहीं काटते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के उद्योग में उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होती है। अत: माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं।
प्रश्न 27.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वह उद्योग, जिसके बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं, उसे अक्षम्य उद्योग कहते हैं।
प्रश्न 28.
नियन्त्रित कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी वस्तु के विक्रय मूल्य की अधिकतम सीमा तय करना कीमत नियन्त्रण कहलाता है। उच्चतम कीमत निर्धारण के बाद विक्रेता तय कीमत से ज्यादा कीमत पर अपने उत्पाद को नहीं बेच सकता है।
प्रश्न 29.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर इसका प्रभाव पड़ेगा बताइए।
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी।
प्रश्न 30.
क्या प्रतियोगी वस्तु की कीमत पूर्णप्रतियोगी बाजार में वस्तु की साम्य कीमत को प्रभावित करती है?
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है। इसके विपरीत प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी से वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे
साम्य कीमत कम हो जाती है।
प्रश्न 31.
क्या अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन का वस्तु की साम्य कीमत पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। अतः साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है।
प्रश्न 32.
समर्थन कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
छोटे उत्पादकों किसानों आदि के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी उत्पाद के घोषित मूल्य को समर्थन मूल्य कहते हैं। प्रायः समर्थन मूल्य सरकार बाजार मूल्य से ज्यादा तय करती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
नियन्त्रित कीमत एवं साम्य कीमत में सम्बन्ध लिखो।
उत्तर:
साम्य कीमत वह कीमत स्तर होता है, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई बाजार मात्रा उसकी बाजार पूर्ति के बराबर होती है। जबकि नियन्त्रित कीमत वह कीमत स्तर है, जो सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तय की जाती है। सरकार कीमत नियन्त्रण करने के लिए किसी वस्तु की अधिकतम कीमत तय कर देती है। कीमत नियन्त्रण होने पर उत्पादक बाजार में उससे ज्यादा कीमत पर नहीं बेच सकता है। सामान्यत नियन्त्रित कीमत साम्य कीमत से नीची तय की जाती है। कीमत नियन्त्रण बाजार में वस्तु की स्वल्पता उत्पन्न करती है।
प्रश्न 2.
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्या यह सम्भव है? यदि हाँ, तो समझाइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है, जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 3.
क्या उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करती है? यदि हाँ, तो चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
हाँ, उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों को प्रभावित करती है। उत्पाद शुल्क की दर बढ़ने से सीमान्त लागत बढ़ जाती है। इससे आपूर्ति में कमी आ जाती है। वस्तु की आपूर्ति में कमी होने पर आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, साम्य कीमत बढ़ जाती है परन्तु साम्य मात्रा घट जाती है।
प्रश्न 4.
लागत बचाने वाली तकनीक साम्य कीमत एवं मात्रा को किस प्रकार से प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
लागत बचाने वाली तकनीक का प्रयोग करने से सीमान्त लागत घटने लगती है। परिणामस्वरूप पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत का स्तर कम हो जाता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 5.
क्या अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर बाजार कीमत तथा विनिमय की गई मात्रा पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
उपभोक्ता की अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग में वृद्धि हो जाती है । माँग में वृद्धि के कारण माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 6.
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि साम्य कीमत को किस प्रकार प्रभावित करती है? चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का उपभोग बढ़ जाता है। वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, इससे माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है।
प्रश्न 7.
एक उद्योग अक्षम्यता से क्या अभिप्राय है। स्पष्ट करो।
उत्तर:
बाजार में कभी-कभी यह स्थिति भी हो सकती है कि किसी वस्तु की बाजार माँग शून्य हो जाती है। ऐसा तब हो सकता है, जब किसी वस्तु की उत्पादन लागत बहुत ऊँची हो। उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होने से उत्पादक कम कीमत पर वस्तु बेच नहीं सकता है और उपभोक्ता इतनी ऊँची कीमत देने को तैयार नहीं होते हैं। इस स्थिति में वस्तु का उत्पादन/आपूर्ति नहीं होती है। माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र विनिमय की किसी धनात्मक मात्रा पर नहीं काटते हैं।
प्रश्न 8.
समर्थन कीमत से किस प्रकार अधिशेष उत्पादन/आपूर्ति किस प्रकार उत्पन्न होती है?
उत्तर:
समर्थन मूल्य या न्यूनतम कीमत सरकार द्वारा किसानों या छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए घोषित किया जाता है। समर्थन मूल्य घोषित करने का उद्देश्य किसी विशिष्ट वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहन देना होता है। सामान्यतः समर्थन मूल्य बाजार कीमत से अधिक घोषित किया जाता है। ऊँची कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा क्रय करते हैं तथा उत्पादक ज्यादा मात्रा उत्पन्न करने की इच्छा करते हैं। इसी कारण बाजार में अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न 9.
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ति में बहुत कमी आ जाती है? इस घटना का गेहूँ की बाजार कीमत पर प्रभाव चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ते में बहुत कमी आने का अभिप्राय है गेहूँ का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इस घटना में गेहूँ की कीमत में बहुत बढ़ोतरी होगी लेकिन मात्रा कम हो जायेगी। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
प्रश्न 10.
माना जीन्स के उत्पादन में प्रयोग होने वाली रुई की कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसका जीन्स की बाजार कीमत व साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
रुई जीन्स के उत्पादन में प्रयुक्त एक साधन है। रुई की कीमत बढ़ने पर जीन्स की उत्पादन की सीमान्त लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। जिससे जीन्स का आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा। अर्थात् साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी। परन्तु साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
प्रश्न 11.
आय में कमी से साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
आय में कमी का साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –
1. सामान्य वस्तु:
आय में कमी होने पर सामान्य वस्तु की माँग घट जाती है। सामान्य वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर बायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत तथा साम्य मात्रा दोनों घट जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
2. घटिया वस्तु:
आय में कमी होने पर घटिया वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। घटिया वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 12.
उपभोक्ताओं एवं विक्रेताओं के निर्णयों में बाजार में किस प्रकार तालमेल बैठता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में बाजार निर्णय उपभोक्ताओं व क्रेताओं के आपसी संव्यवहारों के द्वारा लिए जाते हैं। बाजार में साम्य का निर्धारण माँग व पूर्ति की शक्तियों के आधार पर होता है। उपयोगिता के स्तर को अधिकतम करने के लिए एक उपभोक्ता वस्तु की सीमान्त उपयोगिता के समान अधिकतम कीमत प्रदान कर सकता है।
दूसरी ओर उत्पादक लाभ को अधिकतम करने के लिए वस्तु की सीमान्त लागत के समान न्यूनतम कीमत स्वीकार कर सकता है। कीमत की अधिकतम एवं न्यूनतम सीमाओं के बीच जहाँ कही माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है साम्य कर निर्धारण हो जाता है। सन्तुलन बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा खरीदी व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की अवस्था में उपभोक्ता व विक्रेता खरीदी व बेची गई मात्रा में परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।
प्रश्न 13.
माँग वक्र में खिसकाव का वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
माँग वक्र में खिसकाव की स्थिति में साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रकृति पर निर्भर करता है । नीचे विभिन्न आपूर्ति वक्रों के साथ में माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव दर्शाए गए हैं –
1. जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है और माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा घट जाती है ।
2. जब पर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। माँग में दायीं ओर खिसकाव से साम्य कीमत बढ़ जाती है व माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव को साम्य कीमत कम हो जाती है।
3. जब पूर्ति वक्र लोचदार हो:
जब वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है, तो. माँम – बक्र में खिसकाव का साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है। माँग वक्र जब दायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है तथा माँग वक्र जब बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों घट जाती है।
प्रश्न 14.
चित्र की सहायता से समझाइए कि कीमत नियन्त्रण की स्थिति में राशनिंग घ्रणाली आवश्यक होती है।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर, साम्य कीमत से कम तय करती है परिणामस्वरूप वस्तु की आपूर्ति नियंत्रित कीमत पर माँग की तुलना में कम हो जाती है। अर्थात् बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उपलब्ध कम मात्रा को अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करने के लिए राशनिंग प्रणाली लागू करना आवश्यक हो जाता है। राशनिंग प्रणाली लागू होने पर निम्न आय वर्ग वाले उपभोक्ता भी कम कीमत वस्तु की निर्धारित मात्रा राशनिंग प्रणाली के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 15.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि किस प्रकार से वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा को प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –
1. सामान्य वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि से सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
2. घटिया वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर घटिया वस्तु की माँग कम होती है। आय बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। इससे घटिया वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 16.
यदि सरकार बाजार मजदूरी दर से न्यूनतम मजदूरी ऊँची तय करती है, तो इसका बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार न्यूनतम मजदूरी दर का निर्धारण बाजार मजदूरी दर से ऊपर तय करती है, तो इसका बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा –
- यदि सरकार मजदूरी नीति को सख्ती से लागू करती है, तो श्रमिकों को बाजार से ऊँची मजदूरी दर प्राप्त होगी।
- ऊँची मजदूरी दर पर आपूर्ति की तुलना श्रम की माँग कम होगी। इससे श्रम बाजार में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होगी।
- काम करने की विवशता के कारण कुछ बेरोजगार श्रमिक नीची मजदूरी दर पर काम करने को तैयार हो जाते हैं। श्रमिक वास्तव में ऊँची मजदूरी दर पर हस्ताक्षर करते हैं और वास्तव में पाते हैं कम मजदूरी। इससे श्रम बाजार में कालाबाजारी जन्म लेती है।
प्रश्न 17.
किसी वस्तु के पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखे।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि करते हैं, पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक निम्नलिखित है –
- उत्पादन तकनीक में प्रगति।
- फर्मों की संख्या में वृद्धि।
- उत्पादन शुल्क की दर में कमी।
- वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में कमी।
- प्राकृतिक कारकों में अनुकूल परिवर्तन।
प्रश्न 18.
वस्तु के माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग में कमी उत्पन्न करते हैं माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक नीचे दिए गए हैं –
- पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि।
- वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी।
- उपभोक्ता की रुचि अभिरुचियों में प्रतिकूल परिवर्तन।
- जलवायु व मौसम में प्रतिकूल परिवर्तन।
प्रश्न 19.
समझाइए कि राशनिंग प्रणाली कालाबाजारी को जन्म देती है।
उत्तर:
जब सरकार नियन्त्रण करती है, तो बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से कम तय किया जाता है। साम्य कीमत से कम कीमत पर वस्तु की बाजार माँग वस्तु की पूर्ति से कम रहती है। राशनिंग प्रणाली लागू करके सरकार वस्तु की उपलब्ध कम मात्रा अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करती है। यदि उच्च आय वर्ग के उपभोक्ताओं को आवश्यकता से वस्तु की कम मात्रा राशन में प्राप्त होती है, तो वे चोरीछिपे ऊँची कीमत देकर वस्तु की तय मात्रा से ज्यादा मात्रा खरीदने की पेशकश करते हैं। परिणामस्वरूप विक्रेता काला बाजार की गतिविधियों में लिप्त होने लगते हैं।
प्रश्न 20.
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखिए।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक –
- उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन।
- उत्पादन तकनीक में परिवर्तन।
- फर्मों की संख्या में परिवर्तन।
- सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
- उत्पादन शुल्क की दर में परिवर्तन।
- प्राकृतिक कारकों में परिवर्तन।
प्रश्न 21.
माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा अन्य वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग को प्रभावित करते हैं माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे –
- सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
- उपभोक्ता की आय में परिवर्तन।
- उपभोक्ता की रुचि एवं अभिरुचियों में परिवर्तन।
- उपभोक्ताओं की संख्या में परिवर्तन।
प्रश्न 22.
वर्ष 2002-03 के लिए मुख्य बजट में चाय पर उत्पाद शुल्क 2 रु./किग्रा. से घटाकर 1रु./किग्रा. कर दिया गया। अन्य बातें समान रहती है। चाय की साम्य कीमत पर इस प्रभाव को दर्शाइए।
उत्तर:
चाय उत्पादन पर उत्पाद शुल्क की दर 2 रु./किग्रा. से 1 रु./किग्रा. कर देने से चाय उत्पादन की सीमान्त लागत प्रति किग्रा 1 रुपये कम हो जायेगी। सीमान्त लागत घटने से चाय की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। अर्थात् चाय का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। इससे चाय की साम्य कीमत घट जायेगी परन्तु साम्य मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
प्रश्न 23.
यदि सरकार वस्तु की कीमत का नियन्त्रण बाजार कीमत से कम करती है, तो इसके बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर:
यदि सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर बाजार कीमत से कम तय करती है, तो इसके बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव होंगे –
- बाजार कीमत से कम नियन्त्रित कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा में माँग करेंगे तथा उत्पादक कम मात्रा में पूर्ति करेंगे इससे बाजार में वस्तु की स्वल्पता की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
- स्वल्पता की समस्या से “पहले आओ पहले पाओ” या “जिसकी लाठी उसकी भैंस” की समस्या पैदा हो सकती है।
- दूसरे क्रम पर स्थित समस्या से बचने के लिए सरकार राशनिंग प्रणाली लागू कर सकती है।
- राशनिंग प्रणाली लागू होने पर रिश्वतखोरी, जमा खोरी, काला बाजारी जैसी समस्या पनपने लगती है।
प्रश्न 24.
समर्थन कीमत का बाजार पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार, जो समर्थन मूल्य घोषित करती है, उसका स्तर बाजार कीमत से ऊपर होता है। इससे बाजार में निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं –
- बाजार कीमत से ऊपर समर्थन कीमत पर बाजार में वस्तु की आपूर्ति उसकी माँग की तुलना में ज्यादा हो जाती है। इससे बाजार में अधिशेष उत्पादन की समस्या पैदा हो जाती है।
- अधिशेष उत्पादन की स्थिति में उत्पादक बाजार में सम्पूर्ण उत्पादन नहीं बेच पाते हैं, बल्कि सरकार को उस अधिशेष उत्पादन को क्रय करने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
- अधिशेष उत्पादन को क्रय करके सरकार बफर स्टॉक बनाती है।
- उपभोक्ताओं को न्यायोचित कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार को आर्थिक सहायता की व्यवस्था करनी पड़ती है।
प्रश्न 25.
बाजार कीमत व सामान्य कीमत में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रश्न 26.
एक उदाहरण की सहायता से फर्मों की संख्या में परिवर्तन से आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव को समझाइए तथा इसका साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
इस विषय में मोबाइल फोन का उदाहरण उपयुक्त रूप से पेश किया जा सकता है। 1990 के मध्य दशक में भारतवर्ष में एयर-टैल, एस्सार आदि गिनी-चुनी कम्पनियों मोबाइल फोन की सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। फर्मों की कम संख्या के कारण ये फर्म काल भेजने-सुनने की ऊँची कीमत उपभोक्ताओं से वसूलती थी। वर्ष 2002 के अन्त तक कुछ नई कम्पनियाँ जैसे-डॉलफिन, हच, टाटा-बिरला आदि इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई अर्थात् मोबाइल क्षेत्र में काम करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि हो गई। इससे मोबाइल फोन सेवा की आपूर्ति बढ़ गई और परिणामस्वरूप मोबाइल सुनने की स्थानीय लागत बिल्कुल समाप्त हो गई। मोबाइल से स्थानीय, एस. टी. डी. आदि पर काल करना सस्ता हो गया है।
प्रश्न 27.
माना चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटा लिया जाता है। इसका चीनी की साम्य मात्रा व कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
सामान्यत: नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से नीचे तय किया जाता है। चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटाने पर बाजार में साम्य का निर्धारण उस कीमत पर होगा, जहाँ चीनी की बाजार माँग व पूर्ति दोनों समान हो जायेगी। उपभोक्ताओं की खुले बाजार में नियन्त्रित कीमत से ऊँची कीमत पर चीनी क्रय करनी पड़ेगी। अतः उपभोक्ता पक्ष नियन्त्रित कीमत पर चीनी की माँग की तुलना में कम मात्रा में चीनी की माँग करेंगे। दूसरी ओर उत्पादक चीनी की अधिक मात्रा में आपूर्ति करेंगे। साम्य का निर्धारण नियन्त्रित कीमत से ऊपर होगा। उपभोक्ताओं को ज्यादा मात्रा में उपभोग के लिए चीनी प्राप्त होगी। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
प्रश्न 28.
अभिरुचि में प्रतिकूल परिवर्तन के कारण माँग में कमी का कोई एक उदाहरण समझाइए।
उत्तर:
इस सम्बन्ध में वायु-यात्रा का उदाहरण पेश किया जा सकता है। 11.9.2001 को अमेरिका स्थित व्यावसायिक टॉवर पर आतंकवादी हमले के बाद से लोग हवाई यात्राओं से डरने लगे। हवाई यात्रा के भय से हवाई यात्रा का माँग वक्र बायीं ओर खिसक गया अर्थात् हवाई यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आ गई। अमरिका में हवाई यात्रा किराए में गिरावट आ गई। कई हवाई यात्रा कम्पनियों को अपना उत्पादन पैमाना संकुचित करना पड़ा।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों एवं वक्रों की सहायता से वस्तु की साम्य कीमत एवं साम्य निर्धारण की विधि समझाइए।
उत्तर:
वस्तु बाजार में सन्तुलन की अवस्था उस बिन्दु पर उत्पन्न होती है, जहाँ वस्तु की बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति दोनों समान होते हैं। माँगी अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। पूर्ति अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उत्पादकों द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। उपभोक्ता वस्तु की ऊँची कीमत पर कम इाकइयों की माँग करते हैं तथा इसके विपरीत नीची कीमत पर अधिक इकाइयों की माँग करते हैं। उत्पादक वस्तु की ऊँची कीमत पर अधिक इकाइयों की पूर्ति करते हैं और नीची कीमत पर कम इकाइयों की पूर्ति करते हैं।
लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादक सीमान्त लागत से कम कीमत पर वस्तु नहीं बेच सकते हैं। इसी प्रकार उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि पाने के लिए वस्तु की सीमान्त उपयोगिता से अधिक कीमत नहीं दे सकते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता पक्ष के लिए अधिकतम कीमत देने की सीमा वस्तु की सीमान्त उपयोगिता होती है और उत्पादक के लिए न्यूनतम कीमत स्वीकार करने की सीमा वस्तु की सीमान्त लागत होती है। इन दो न्यूनतम एवं अधिकतम कीमत सीमाओं के बीच में जहाँ कहीं वस्तु की माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य बिन्दु पर कीमत स्तर को साम्य कीमत एवं मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की स्थिति को निम्नलिखित अनुसूची से भी समझाया जा सकता है।
उपरोक्त अनुसूची में कीमत स्तर 3 पर वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य कीमत स्तरों पर या तो वस्तु माँग अधिक या पूर्ति। अतः तालिका में साम्य कीमत 3 तथा साम्य मात्रा 16 है। साम्य का निर्धारण रेखाचित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। वस्तु का माँग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला होता है तथा पूर्ति वक्र SS धनात्मक ढाल वाला होता है। माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों बिन्दु E पर एक-दूसरे को काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो वस्तु की माँग पूर्ति से ज्यादा है अथवा पूर्ति माँग से ज्यादा है। साम्य बिन्दु से कीमत अक्ष पर खींचे गए लम्ब को p साम्य कीमत स्तर तथा साम्य बिन्दु से मात्रा अक्ष पर खींचे गए लम्ब का पद साम्य मात्रा को दर्शाता है।
प्रश्न 2.
जब किसी वस्तु के बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों दायीं ओर खिसकते हैं, तो साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकते हैं नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा व कीमत में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी इसे नीचे समझाया गया है –
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव से अधिक है:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा होता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है। इस स्थिति को नीचे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
2. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र से कम हो:
जब माँग में वृद्धि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि से कम होती है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती . है। इसे नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
3. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में खिसकाव के समान हो:
जब किसी वस्तु की माँग में वृद्धि उसकी पूर्ति में वृद्धि के बराबर होती है तो वस्तु की समय कीमत पर इस परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
प्रश्न 3.
साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा जब –
- माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो।
- माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो, पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए।
- माँग व पूर्ति वक्र दोनों समानुपात में घटते हों।
उत्तर:
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का मतलब है माँग में वृद्धि । माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
2. यदि माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाता है, तो वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।
3. माँग व पूर्ति में समानुपात में कमी होने पर वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर खिसक जाते हैं। इस परिवर्तन के होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
प्रश्न 4.
इस सभी प्रश्नों के माँग और आपूर्ति वक्रों के खिसकाव या उन्हीं वक्रों पर स्थान परिवर्तन द्वारा हल करो।
- वर्ष 2001 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगा दी। इसका सिगरेटों की औसत कीमत व बिक्री पर क्या प्रभाव होगा?
- खनिज तेल के नये भण्डारों की खोज से डीजल और पेट्रोल की कीमत कम हो जाती है इसका नई कारों के बाजार पर क्या प्रभाव होगा?
- नए पर्यावरण नियमों के अनुसार औषध-निर्माताओं की ऐसी उत्पादन विधियों का प्रयोग करने को बाध्य होना पड़ता है, जो महंगी तो रहती है पर जिससे पहले की अपेक्षा हानिकारक रसायनों का उत्सर्जन कम हो जाता है। इनका औषधियों की कीमतों पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
1. वर्ष 2001 में भारतवर्ष के सर्वोच्च न्यायालय में सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान वर्जित कर दिया इससे भारत में सिगरेट की माँग कम हो जायेगी। इस परिवर्तन से सिगरेट की साम्य कीमत कम हो जायेगी और साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
2. कारों के लिए पेट्रोल/डीजल पूरक वस्तु है। पूरक वस्तु की कीमत कम होने से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि पेट्रोल/डीजल की कीमत घटने पर कारों की माँग में वृद्धि हो जायेगी। कार का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। कार की साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
3. पर्यावरण-मित्र उत्पादन तकनीक का प्रयोग करने पर औषधि उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से औषधि का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।
इस परिवर्तन का दूसरा रूप भी है। पर्यावरण मित्र उत्पादन तकनीक के प्रयोग से विषैले पदार्थों का स्राव कम मात्रा में होगा। इससे पर्यावरण पहले की तुलना से अच्छा हो जायेगा। स्वस्थ पर्यावरण में लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उत्तम स्वास्थ्य होने पर औषधियों की माँग में कमी आ जायेगी। साम्य कीमत व मात्रा पर औषधियों की माँग व पूर्ति में कमी के स्तर के आधार पर प्रभाव पड़ेगा।
यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में कम होगी, तो औषधियों की साम्य कीमत बढ़ जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में ज्यादा होगी, तो साम्य कीमत कम हो जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति में कमी के समान होगी, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
प्रश्न 5.
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी, नीचे समझाया गया है –
1. जब माँग वक्र में कमी पूर्ति वक्र में कमी से अधिक हो:
जब किसी वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से अधिक हो, तो वस्तु की साम्य कीमत कम हो जायेगी तथा साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
2. जब वस्तु की माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर होगी-जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी के बराबर होगी, तब उस वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
3. जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम हो-जब वस्तु की मांग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम होगी, तब वस्तु की साम्य कीमत बढ़ जायेगी तथा वस्तु की मात्रा घट जायेगी।
प्रश्न 6.
चीन टेलीफोन यंत्रों का एक बहुत बड़ा उत्पादक है। यह हाल ही में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना है। अब इसे भारत जैसे अन्य देशों में अपना माल बेचने की छुट हो गई है। कल्पना कीजिए-ये कोई टेलीफोनों की बड़ी भारी खेप का निर्यात कर देता है।
- भारत के बाजार में टेलीफोनों की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव होगा?
- यदि भारत में टेलीफोनों की खरीदारी पर कुल व्यय पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
1. चीन द्वारा भारतवर्ष में भारी संख्या में टेलीफोन उपकरणों का निर्यात करने पर टेलीफोन उपकरणों की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। इससे टेलीफोन उपकरण का आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। उपकरणों की साम्य कीमत घट जायेगी। इसे नीचे समझाया गया है –
2. यदि भारत में टेलीफोन उपकरणों की माँग पूर्णतया लोचदार है, तो चीन द्वारा भारत बड़ी संख्या में टेलीफोन उपकरणों के निर्यात का साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। साम्य मात्रा बढ़ने से टेलीफोन उपकरणों पर भारत का व्यय बढ़ जायेगा।
प्रश्न 7.
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण समझाइए।
उत्तर:
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। परिवार क्षेत्र श्रम की आपूर्ति करता है तथा श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों की संख्या से न होकर श्रम के घंटों से होता है। जहाँ श्रम माँग व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं मजदूरी दर का निर्धारण उसी बिन्दु पर होता है।
फर्म लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती है। अत: फर्म उस इकाई तक श्रम का नियोजन करती है, जिस पर श्रम की अतिरिक्त लागत तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ दोनों समान हो जाते हैं। श्रम की इकाई को नियोजित करने की अतिरिक्त लागत श्रम की मजदूरी दर होती है तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता के समान होता है। अतः फर्म निम्नलिखित शर्त तक श्रम का नियोजन बढ़ाती है –
मजदूरी = श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRp2
जहाँ MRp2 = MR × Mp2
जब तक MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से ज्यादा होता है फर्म को श्रम का नियोजन बढ़ाना लाभकारी रहता है। जब MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से कम होता है, तो श्रम का नियोजन करना फर्म के लिए हानिकारक रहता है। अतः फर्म को श्रम नियोजन उसी स्थिति में अधिकतम लाभकारी होता है, जब w = mRp2, होता है।
आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में चाय के माँग वक्र व पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 500 – p
ys = 300 + 3p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 P < 40 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
साम्य अवस्था में –
yd = ys
500 – p = 300 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-3p – p = 300 – 500
-4p = -200
4p = 200
p = \(\frac{200}{4}\)
p = 50
p का मान रखने पर yd = 500 – 50 = 450
ys = 300 + 3 × 50 = 300+ 150 = 450
चाय की साम्य कीमत = 50 रुपये
चाय की साम्य मात्रा = 450
प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जूतों के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 1200 – p
ys = 600 + 2p क्योंकि p ≥ 200 के लिए
क्योंकि p < 200 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो । साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
1200 – p = 600 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
-2p – p = 600 – 1200
3p = 600
p = \(\frac{100}{3}\)
p = 200
p का मान प्रतिस्थापित करने पर yd = 1200 – 200 = 1000
ys = 600 + 2 × 200 = 600 + 400 = 1000
जूतों की साम्य कीमत = 200 रुपये
जूतों की साम्य मात्रा = 1000
प्रश्न 3.
मानिए सी. पी. गाइड्स के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
क्योंकि p < 140 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3000
20p = 3000
p = \(\frac{300}{20}\)
p = 150
p का मान करने पर yd = 10000 – 150 = 9850
साम्य कीमत = 150 रुपये
साम्य मात्रा = 9850
प्रश्न 4.
माना सरकार बी. पी. गाइड्स की बिक्री पर 10 रु./इकाई की दर से उत्पाद शुल्क आरोपित कर देती है प्रश्न 3 में दी गई समीकरण के आधार पर अनुमान लगाइए कि इससे आपूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
सी. पी. गाइड्स की साम्य कीमत व साम्य मात्रा का परिकलन करो।
उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p > 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
गाइड की बिक्री पर कर आरोपित होने पर न्यूनतम औसत लागत बढ़ जायेगी। अतः
ys = 7000 + 19 (p-10) p ≥ 140 के लिए
= 0 p < 140 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (p – 10) (yd व ys के मान रखने पर)
10000 – p = 7000 + 19p – 190
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3190
20p = 3190
p = \(\frac{3190}{20}\) = 1595
yd = 10000 – 159.5
= 9840.5
ys = 7000 + 19 (159.5 – 10)
= 7000 + 3030.5 – 190 = 7000 + 2840.5
= 9840.5
साम्य कीमत = 159.5 रुपये
साम्य मात्रा = 9840.5 इकाइयाँ
प्रश्न 5.
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल के माँग वक्र व पूर्ति वक्र की समीकरण निम्नलिखित है –
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 80 के लिए
= 0 क्योंकि p < 80 के लिए
किस कीमत पर गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की माँग व आपूर्ति दोनों बराबर हो जायेंगी?
उत्तर:
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p
yd = ys
368 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 8 – 368 – 4p = 360
या 4p = 360 या p = \(\frac{360}{4}\); p = 90
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की साम्य कीमत = 90 रुपये
प्रश्न 6.
टी-शर्ट का माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 368 -p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए
- टी-शर्ट की साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
- यदि सरकार टी-शर्ट की बिक्री से 12 रु./शर्ट की दर से उत्पाद शुल्क हटा लेती है, तो नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?
उत्तर:
1. yd = 368 – p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
368 – p = 68 + 5p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 5p = 68 – 368
6p = 300
p = \(\frac{360}{6}\)
p = 150
2. सरकार प्रति इकाई विक्रय पर से 12 रु. उत्पाद शुल्क हटा लेती है। उत्पादक को प्रति इकाई 12 रु. अधिक प्राप्त होंगे। अतः पूर्ति होगा।
ys = 68 + 5 (p + 12)
साम्य की अवस्था में –
ys = ys
368 – p = 68 + 5p (p + 12)
(yd व ys के मान रखने पर)
368 – p = 68 + 5p + 60
-p – 5p = 68 + 60 – 368
-6p = -240
6p = 240
p = \(\frac{240}{6}\)
p का मान रखने पर yd = 368 – 40
= 328
ys = 68 + 5 (40 + 12) = 68 + 260
= 7000 + 2840.5 = 328
नई साम्य कीमत = 40 रुपये प्रति इकाई
नई साम्य मात्रा = 328 इकाइयाँ
प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में पेन के माँग वक्र व पूर्ति वक्र इस प्रकार है –
yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए
- ys = 0, p < 15 के लिए का क्या महत्त्व है?
- पेन की साम्य कीमत ज्ञात करो।
- पेन की साम्य मात्रा ज्ञात करो।
उत्तर:
1. yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए
ys = 0, p < 15 के लिए का अभिप्राय है, न्यूनतम औसत लागत 15 रुपये है। अत: 15 रुपये प्रति इकाई कीमत से कम पर फर्म वस्तु की शून्य मात्रा की आपूर्ति करेगी।
2. साम्य की अवस्था में yd = ys
700 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-p – 3p = 8 – 700
– 4p = -692
4p = 692
p = \(\frac{692}{4}\)
p = 173
साम्य कीमत = 173 रुपये
3. p का मान प्रतिस्थापित करने पर
yd = 700 – p
= 700 – 173
= 527
ys = 8 + 3p
= 8 + 3 × 173
= 38 + 519
= 3527
साम्य मात्रा = 527 इकाइयाँ
प्रश्न 8.
यदि माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 400 – p
ys = 240 + 3p
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 24 – 400
-4p = – 160
4p = 160
p = \(\frac{160}{4}\) = 40
p का मान रखने पर –
yd = 400 – p = 400 – 40 = 360
ys = 240 + 3p = 3 × 240 + 3 × 40
240 + 3 × 40 = 240 + 120 = 360
साम्य कीमत = 40 रुपये/इकाई
साम्य मात्रा = 360 इकाइयाँ
प्रश्न 9.
प्रश्न 8 में दिए गए उत्पादन वक्र की वस्तु के उत्पाद में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से 4रु./इकाई लागत बढ़ जाती है। उसी माँग वक्र का प्रयोग करते हुए नई साम्य कीमत ज्ञात करो तथा नई साम्य मात्रा की गणना करो।
उत्तर:
1. yd = 400-p
ys = 240 + 3(p – 4) (पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा क्योंकि उत्पादक को प्रति इकाई 4 रुपये कम प्राप्त होंगे)
साम्य क अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3(p – 4) (yd व ys के मान रखने पर)
400 – p = 240 + 3p – 12
– p – 3p = 240 – 12 – 400
4p = – 172
4p = 172
p = \(\frac{172}{4}\)
p = 43
2. p का मान रखने पर yd = 400 – p = 400 – 43 = 357
ys = 240 + 3(p – 4) = 240 + 3(43 – 4)
240 + 3 × 39 = 240 + 117 = 357
साम्य कीमत = 43 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 357 इकाइयाँ
प्रश्न 10.
बाजार माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 3p
- साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
- माना एक फर्म का आपूर्ति वक्र ys = 0+p, फर्मों की संख्या ज्ञात करो, साम्य मात्रा की पूर्ति कर रही है।
उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 2p
1. साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 4000 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 2p = 4000 – 10000
– 3p = 3 – 6000
3p = 6000
p = \(\frac{6000}{3}\)
p = 2000
p का मान रखने पर
yd = 10000 – p = 10000 – 2000 = 8000
ys = 4000 + 2p
= 4000 + 2 × 2000 = 4000 + 4000 = 8000
साम्य कीमत = 2000 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 8000 इकाइयाँ
2. एक फर्म की आपूर्ति = 0 + 2000 इकाइयाँ (p का मान रखने पर)
= 2000 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = image 68 = \(\frac{8000}{2000}\) = 4 फर्म
फर्मों की संख्या = 4 फर्म
वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
वस्तु की कीमत निर्धारण के जितना समय अधिक होता है उतनी ही ज्यादा महत्ता होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(A) पूर्ति पक्ष की
प्रश्न 2.
वस्तु की कीमत निर्धारण में अल्पकाल में अधिक भूमिका होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(B) माँग पक्ष की
प्रश्न 3.
वह बाजार, जिसमें फर्मों का प्रवेश व गमन पूर्ण स्वतन्त्र होता है, कहलाता है।
(A) एकाधिकारी
(B) पूर्ण प्रतियोगी
(C) एकाधिकारात्मक प्रतियोगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतियोगी
प्रश्न 4.
माँग व पूर्ति से ज्यादा वृद्धि होने पर साम्य कीमत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती है या बढ़ती है
(D) न तो घटती है न ही बढ़ती है
उत्तर:
(B) बढ़ती है
प्रश्न 5.
एक वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर समान रूप से खिसकते हैं, तो साम्य कीमत –
(A) घटेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी या बढ़ेगी
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी
उत्तर:
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी
प्रश्न 6.
वस्तु की पूर्ति में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता है यदि वस्तु माँग –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो
प्रश्न 7.
किसी वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जब वस्तु की पूर्ति –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो
प्रश्न 8.
इकाई लोचदार पूर्ति वक्र है –
(A)
(B)
(C)
(D)
उत्तर:
(C)
प्रश्न 9.
सामान्य सरकार उच्चतम कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साम्य कीमत से कम
प्रश्न 10.
सरकार समर्थन कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) साम्य कीमत से अधिक