Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 13 उद्यमिता विकास

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 13 उद्यमिता विकास

प्रश्न 1.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करता है :
(A) स्वरोजगार
(B) शिक्षण एवं प्रशिक्षण
(C) कौशल बृद्धि
(D) इनमें से सभी
उत्तर:
(A) स्वरोजगार

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 13 उद्यमिता विकास

प्रश्न 2.
उद्यमितीय लक्षण निम्न से सम्बन्धित हैं:
(A) कार्य सृजक व्यवहार
(B) लाभ सृजन व्यवहार
(C) जोखिम वाहन व्यवहार
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) जोखिम वाहन व्यवहार

प्रश्न 3.
भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम है:
(A) आवश्यक
(B) अनावश्यक
(C) सनय की बर्बादी
(D) धन की बर्बादी
उत्तर:
(A) आवश्यक

प्रश्न 4.
उद्यमिता के उपबन्ध/अवरोध पोधित करते हैं:
(A) नव-सृजन
(B) लाभदायकता
(C) अनिश्चितता
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं |
उत्तर:
(A) नव-सृजन

प्रश्न 5.
उद्यमिता आश्वस्त होती है, के द्वारा :
(A) सहायक
(B) बृहदाकार फर्म
(C) मध्यम फर्म
(D) लघु फर्म |
उत्तर:
(B) बृहदाकार फर्म

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 13 उद्यमिता विकास

प्रश्न 6.
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान स्थित है:
(A) अहमदाबाद
(B) मुम्बई
(C) नई दिल्ली
(D) चेन्नई
उत्तर:
(A) अहमदाबाद

प्रश्न 7.
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान की स्थापना की गयी थी :
(A) महाराष्ट्र सरकार
(B) गुजरात सरकार
(C) मध्य प्रदेश सरकार
(D) तमिलनाडु सरकार
उत्तर:
(B) गुजरात सरकार

प्रश्न 8.
भारतीय विनियोग केन्द्र की स्थापना की गयी थी :
(A) भारत सरकार
(B) मध्य प्रदेश सरकार
(C) महाराष्ट्र सरकार
(D) गुजरात सरकार
उत्तर:
(B) मध्य प्रदेश सरकार

प्रश्न 9.
भारत में उद्यमिता का भविष्य है:
(A) अन्धकार में
(B) उज्जवल में
(C) कठिनाई में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) उज्जवल में

प्रश्न 10.
उद्यमिता………..उत्पन्न करने का एक प्रयास है।
(A) जोखिम
(B) लाभ
(C) नौकरी
(D) व्यवसाय
उत्तर:
(D) व्यवसाय

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प्रश्न 11.
राष्ट्र का सामाजिक एवं आर्थिक विकास……………का परिणाम है:
(A) उद्यमिता
(B) नियोजन
(C) संचालन
(D) सरकार
उत्तर:
(A) उद्यमिता

प्रश्न 12.
उद्यमिता…………..पर आधारित क्रिया है:
(A) ज्ञान
(B) बुद्धि
(C) पूर्वानुमान
(D) मांग
उत्तर:
(A) ज्ञान

प्रश्न 13.
उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है..
(A) ICICI
(B) SBI
(C) इण्डियन बैंक
(D) आई. एफ. एम.
उत्तर:
(A) ICICI

प्रश्न 14.
भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान की स्थापना………….द्वारा की गई थी।
(A) महाराष्ट्र
(B) गुजरात
(C) दिल्ली
(D) बिहार
उत्तर:
(B) गुजरात

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प्रश्न 15.
उद्यमिता नेतृत्व प्रदान नहीं करती :
(A) साझेदारी फर्म
(B) नये निगम विभाजन
(C) नवीन अनुदान उद्यम
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) साझेदारी फर्म

प्रश्न 16.
भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम रहा है :
(A) सफल
(B) असफल
(C) सुधार की आवश्यकता
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(C) सुधार की आवश्यकता

प्रश्न 17.
उद्यमी है:
(A) जन्म लेता
(B) बनाया जाता है
(C) जन्म लेता है एवं बनाया जाता है दोनों
(D) ये सभी
उत्तर:
(C) जन्म लेता है एवं बनाया जाता है दोनों

प्रश्न 18.
भारत में उद्यमिता का भविष्य है:
(A) अन्धकार में
(B) उज्जवल
(C) कठिनाई में
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) उज्जवल

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प्रश्न 19.
निम्न में से कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है :
(A) जोखिम लेना
(B) नवाचार
(C) सृजनात्मक क्रिया
(D) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(D) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन वाक्य उद्यमी के सन्दर्भ में असंगत है:
(A) वह व्यवसाय का स्वामी होता है
(B) वह जोखिम वाहनकता है
(C) उत्पादन क्रियाओं को परिचालित करता है
(D) वह व्यावसायिक अवसरों की खोज करता है
उत्तर:
(C) उत्पादन क्रियाओं को परिचालित करता है

प्रश्न 21.
उद्यमी के कार्य हैं :
(A) व्यावसायिक विचार की कल्पना
(B) परियोजना सम्भाव्यता अध्ययन
(C) उपक्रम को स्थापना करना
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 22.
एक उद्यमी कहा जाता है:
(A) आर्थिक विकास का प्रवर्तक
(B) आधिक विकास का प्रेरक
(C) उपर्युक्त दोनों ही
(D) उपर्युक्त (A) तथा (B) में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों ही

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प्रश्न 23.
निम्न में कौन-सा दृष्टिकोण सामान्यतया सफल उद्यमिता से सम्बन्ध नहीं रखता
(A) प्रतिस्पद्धा एवं सहयोग
(B) दूसरों को प्रभावित करने की इच्छा
(C) नवाचार एवं उत्पाद सुधार
(D) व्यवसाय में स्थिरता
उत्तर:
(D) व्यवसाय में स्थिरता

प्रश्न 24.
उद्यमिता नेतृत्व प्रदान नहीं करती:
(A) साझेदारी फर्म
(B) नये निगम विभाजन
(C) नवीन अनुदान उद्यम
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) साझेदारी फर्म

प्रश्न 25.
सामाजिक उपगम्यता के अनुसार, उद्यमिता है :
(A) भावुकता को प्रक्रिया
(B) भूमिका निष्पादन प्रक्रिया
(C) आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(B) भूमिका निष्पादन प्रक्रिया

प्रश्न 26.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम के आलोचनात्मक मूल्यांकन बिन्दु है।
(A) संगठनात्मक नीतियाँ
(B) उपर्युक्त चयन प्रक्रिया का अभाव
(C) निम्न श्रेणी की तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण
(D) ये सभी
उत्तर:
(D) ये सभी

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प्रश्न 27.
उद्यमिता विकास कार्यक्रम के प्रति भारत के सरकारी तंत्र का दृष्टिकोण है:
(A) विनाशात्मक
(B) नकारात्मक
(C) रचनात्मक
(D) असहयोगात्मक
उत्तर:
(D) असहयोगात्मक

प्रश्न 28.
मेस्लो का आवश्यकताओं का पदानुक्रम सिद्धांत तथा द्वारा शासित होता है कि :
(A) लोग सार्वभौमिक रूप में आवश्यकताओं द्वारा प्रेरित होते हैं
(B) लोग आवश्यकताओं द्वारा सामाजिक रूप में प्रेरित होते हैं
(C) लोग राजनैतिक तौर पर आवश्यकताओं से प्रेरित होते हैं
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) लोग राजनैतिक तौर पर आवश्यकताओं से प्रेरित होते हैं

प्रश्न 29.
कार्य पर स्वयं विकास आवश्यकताएँ पूर्ण की जाती है, के द्वारा :
(A) कार्य में मेहनत
(B) किस्म उत्पाद आश्वस्त करना
(C) प्रशिक्षण कार्यक्रम में भागीदारी
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) प्रशिक्षण कार्यक्रम में भागीदारी

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत विवाद आते हैं:
(A) कंपनी के अंश सम्बन्धी विवाद
(B) दण्डित प्रकृति के विवाद
(C) विक्रेता द्वारा दोषी माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद
(D) नौकरी सम्बन्धी
उत्तर:
(C) विक्रेता द्वारा दोषी माल के विक्रय सम्बन्धी विवाद

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित हुआ था :
(A) 1886 में
(B) 1886 में
(C) 1996 में
(D) 1997 में
उत्तर:
(B) 1886 में

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 3.
भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम प्रभावी है:
(A) 15 अप्रैल, 1986 से
(B) 15 अप्रैल, 1987
(C) 15 अप्रैल, 1988
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) 15 अप्रैल, 1987

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आयोग उपभोक्ता विवादों का निपटारा कर सकता है:
(A) 5 लाख रु. तक
(B) 10 लाख रु. तक
(C) 20 लाख रु. तक
(D) 1 करोड़ रु. से अधिक
उत्तर:
(D) 1 करोड़ रु. से अधिक

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 5.
उपभोक्ता विवाद निवारण एजेन्सीज हैं:
(A) जिला मंच
(B) राज्य आयोग
(C) राष्ट्रीय आयोग
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत शिकायकर्ता से आशय है।
(A) उपभोक्ता
(B) राज्य सरकार
(C) केन्द्रीय सरकार
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

प्रश्न 7.
जिला मंच विवादों का निपटारा कर सकता है:
(A) 5 लाख रु. तक
(B) 10 लाख रु. तक
(C) 15 लाख रु. तक
(D) 20 लाख रु. तक
उत्तर:
(D) 20 लाख रु. तक

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 8.
राज्य आयोग विवादों का निपटारा कर सकता है:
(A) 5 लाख रु. तक
(B) 10 लाख रु. तक
(C) 20 लाख रु. तक
(D) 20 लाख रु. अधिक
उत्तर:
(D) 20 लाख रु. अधिक

प्रश्न 9.
भारत में उपभोक्ता का उत्तरदायित्व है।
(A) गुणवत्ता के प्रति सचेत
(B) खरीद पर रसीद प्राप्त करना
(C) अपने अधिकार के प्रति सचेत
(D) इनमें से सभी
उत्तर:
(D) इनमें से सभी

प्रश्न 10.
उपभोक्ता विवादों के निपटारे की अवस्था तंत्र है………
(A) तीन
(B) पाँच
(C) दस
(D) दो
उत्तर:
(A) तीन

प्रश्न 11.
निम्न में से कौन-सा उपभोक्ता उत्पाद नहीं है ?
(A) कच्चा माल
(B) रेफ्रीजरेटर
(C) पुरानी मूर्तियाँ
(D) जूते
उत्तर:
(A) कच्चा माल

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 12.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता के अधिकार है।
(A) 6
(B) 7
(C) 8
(D) 9
उत्तर:
(A) 6

प्रश्न 13.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत आते हैं:
(A) नौकरी सम्बन्धी विवाद
(B) दोषपूर्ण उत्पाद/सेवा सम्बन्धी विवाद
(C) औद्योगिक दुर्घटना सम्बन्धी विवाद
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) दोषपूर्ण उत्पाद/सेवा सम्बन्धी विवाद

प्रश्न 14.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता न्यायालय से आशय है
(A) जिला फोरम
(B) राज्य आयोग
(C) राष्ट्रीय आयोग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 15.
निम्न में से कौन गैर-सरकारी संगठन नहीं है?
(A) मुम्बाई ग्राहक पंचायत, मुम्बाई
(B) उपभोक्ता संघ, कोलकाता
(C) उपभोक्ता शिक्षा एवं शोध केन्द्र, अहमदाबाद
(D) उपभोक्ता सरंक्षण परिषद्, नई दिल्ली
उत्तर:
(D) उपभोक्ता सरंक्षण परिषद्, नई दिल्ली

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आयोग के सदस्य की अधिकतम आयु हो सकती है
(A) 60 वर्ष
(B) 65 वर्ष
(C) 70 वर्ष
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) 65 वर्ष

प्रश्न 17.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता से आशय है:
(A) माल क्रय करके पुनर्विक्रय करने वाला व्यक्ति
(B) माल क्रय करके पुनर्विक्रय न करने वाला व्यक्ति
(C) भाल के पार्ट्स करके माल संयोजन करने वाला व्यक्ति
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) माल क्रय करके पुनर्विक्रय न करने वाला व्यक्ति

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

प्रश्न 18.
जिला मंच विवादों का निपटारा कर सकता है:
(A) 5 लाख रु. तक
(B) 10 लाख रु. तक
(C) 15 लाख रु. तक
(D) 20 लाख रु. तक
उत्तर:
(D) 20 लाख रु. तक

प्रश्न 19.
भारत में कार्यरत गैर-सरकारी संगठन है।
(A) वॉइस
(B) कॉमन कॉज
(C) दोनों
(D) कोई नहीं
उत्तर:
(C) दोनों

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 12 उपभोक्ता संरक्षण

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 1.
विपणन का लाभ है:
(A) उपभोक्ताओं को
(B) व्यवसायियों को
(C) निर्माताओं को
(D) सभी को
उत्तर:
(D) सभी को

प्रश्न 2.
अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ हैं:
(A) सूक्ष्म नाम
(B) स्मरणीय
(C) आकर्षक
(D) ये सभी
उत्तर:
(D) ये सभी

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 3.
लेबलिंग है:
(A) अनिवार्य
(B) आवश्यक
(C) ऐच्छिक
(D) धन की बर्बादी
उत्तर:
(B) आवश्यक

प्रश्न 4.
विपणन पर व्यय किया गया धन है :
(A) बांदी
(B) अनावश्यक व्यय
(C) ग्राहकों पर भार
(D) विनियोजन
उत्तर:
(D) विनियोजन

प्रश्न 5.
विपणन अवधारणा है।
(A) उत्पादोन्मुखी
(B) विक्रयोन्मुखी
(C) ग्राहकोन्मुखी
(D) ये तीनों
उत्तर:
(D) ये तीनों

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 6.
विज्ञापन का सबसे महंगा साधन है:
(A) विज्ञापन
(B) व्यक्तिगत विक्रय
(C) विक्रय संवर्द्धन
(D) जन-सम्पर्क
उत्तर:
(B) व्यक्तिगत विक्रय

प्रश्न 7.
विज्ञापन का माध्यम है।
(A) नमूने
(B) प्रीमियम
(C) कलेण्डर व डायरी आदि
(D) प्रदर्शन
उत्तर:
(C) कलेण्डर व डायरी आदि

प्रश्न 8.
विपणन प्रबंध अवधारणा का जन्म स्थान है:
(A) इंग्लैण्ड
(B) अमरीका
(C) फ्रांस
(D) जापान
उत्तर:
(B) अमरीका

प्रश्न 9.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है:
(A) ब्राण्ड
(B) लेबलिंग
(C) पैकेजिंग
(D) व्यापार मार्क
उत्तर:
(C) पैकेजिंग

प्रश्न 10.
विपणन व्यय भार है:
(A) उद्योग पर
(B) व्यवसायियों पर
(C) उपभोक्ताओं पर
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) उपभोक्ताओं पर

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 11.
विज्ञापन है:
(A) विनियोग
(B) अनावश्यक
(C) मुद्रा की बर्बादी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) विनियोग

प्रश्न 12.
विपणन मिश्रण में सम्मिलित नहीं होता है:
(A) मूल्य
(B) उत्पाद
(C) प्रोन्नति
(D) उपभोक्ता संरक्षरण
उत्तर:
(D) उपभोक्ता संरक्षरण

प्रश्न 13.
व्यवसाय के लिए विपणन है:
(A) अनिवार्य
(B) विलासिता
(C) आवश्यक
(D) अनावश्यक
उत्तर:
(A) अनिवार्य

प्रश्न 14.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र…
(A) ब्राण्ड
(B) पैकेजिंग
(C) लेबलिंग
(D) ट्रेडमार्क
उत्तर:
(B) पैकेजिंग

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 15.
विपणन प्रबंध अवधारणा का जन्म……………..में हुआ:
(A) जापान
(B) अमेरिका
(C) भारत
(D) इंग्लैण्ड
उत्तर:
(B) अमेरिका

प्रश्न 16.
समाज के द्वारा अक्सर विज्ञापन का विरोध किया जाता है क्योंकि इसमें कभी-कभी होता है:
(A) धोखाधड़ी
(B) मिथ्या वर्णन
(C) अधिक कीमत
(D) इनमें से सभी
उत्तर:
(D) इनमें से सभी

प्रश्न 17.
विपणन में सम्मिलित होता है:
(A) क्रय
(B) विक्रय
(C) भण्डारण
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 18.
निम्न में से कौन-सा उत्पाद नहीं है:
(A) कच्चा माल
(B) रेफ्रिजरेटर
(C) पुरानी मूर्तियाँ
(D) जूते
उत्तर:
(A) कच्चा माल

प्रश्न 19.
अच्छे ब्राण्ड के लिए आवश्यक है :
(A) छोटा नाम
(B) स्मरणीय
(C) आकर्षण डिजायन
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 20.
पैकेज वाली उपभोग्य उत्पादों पर लेबलिंग अनिवार्य है:
(A) सभी पर
(B) कुडेक पर
(C) किसी पर नहीं
(D) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(B) कुडेक पर

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 21.
भौतिक वितरण में समावेशित नहीं होता :
(A) परिवहन
(B) वित्त व्यवस्था
(C) भण्डारण
(D) स्कन्ध नियंत्रण
उत्तर:
(B) वित्त व्यवस्था

प्रश्न 22.
निम्न में से कौन संवर्द्धन सम्मिश्रण का तत्व नहीं है:
(A) विज्ञापन
(B) वैयक्तिक विक्रय
(C) विक्रय संवर्द्धन
(D) उत्पाद विकास
उत्तर:
(D) उत्पाद विकास

प्रश्न 23.
विज्ञापन माना जाता है।
(A) अपव्यय
(B) विनियोग
(C) विलासिता
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) विनियोग

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 24.
सम्भावित उपभोक्ता तक व्यक्तिगत पहूँच स्थापित की जाती है।
(A) विज्ञापन द्वारा
(B) विक्रय संवर्द्धन उपायों द्वारा
(C) वैयक्तिक विक्रय द्वारा
(D) उपर्युक्त में किसी द्वारा नहीं
उत्तर:
(C) वैयक्तिक विक्रय द्वारा

प्रश्न 25.
विक्रय संवर्द्धन के उद्देश्य है।
(A) नयी वस्तु से अवगत कराना मात्र
(B) नये ग्राहक आकर्षित करने हेतु मात्र
(C) प्रतिस्पी का सामना करने हेतु मात्र
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी.

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 26.
निम्न में कौन विक्रय संवर्द्धन उपकरण नहीं है?
(A) नमूने
(B) पैक के अंदर ईनाम
(C) कूपन
(D) वारंटी
उत्तर:
(D) वारंटी

प्रश्न 27.
विपणन अवधारणा का महत्व है:
(A) समाज के लिए
(B) उपभोक्ताओं के लिए
(C) उत्पादक के लिए
(D) इन तीनों के लिए
उत्तर:
(D) इन तीनों के लिए.

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

प्रश्न 28.
अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएं :
(A) सूक्ष्म नाम
(B) स्मीरणय
(C) आकर्षक
(D) ये सभी
उत्तर:
(D) ये सभी

प्रश्न 29.
उत्पाद अन्तर्लय (मिश्र) को प्रभावित करने वाले घटक हैं:
(A) विपणन
(B) उत्पाद
(c) वित्तीय
(D) ये सभी
उत्तर:
(A) विपणन

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 11 विपणन

Bihar Board Class 11th Hindi गद्य रूप

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 11th Hindi गद्य रूप

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प्रश्न 1.
कहानी का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
कहानी का स्वरूप-मनुष्य स्वभाव से कथा-कहानी कहने-सुनने में रुचि रखता है। इसी प्रवृत्ति का साहित्यिक रूप आजकल ‘कहानी’ के नाम से प्रचलित है। पहले इसे ‘गल्प’ अथवा ‘आख्यायिका’ भी कहा जाता था परंतु अब साहित्यशास्त्र में इसे ‘कहानी’ ही कहा जाता है।

‘कहानी’ का स्वरूप इसके नाम से ही स्पष्ट हो जाता है। जिस संक्षिप्त रचना में कोई कया – कही गई हो वह ‘कहानी’ कहलाती है। कथा तो उपन्यास में भी होता है, परंतु वहाँ उसका स्वरूप विस्तृत एवं अनके उपकथाओं तथा सहकथाओं से युक्त होता है। हिन्दी के अमर कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचंद ने कहानी का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया है-

“कहानी एक ऐसी रचना है जिसमें जीवन एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र उसकी शैली तथा उसका कथा-विन्यास सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।”

डॉ० श्रीकृष्ण लाल ने कहानी के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है-

 Bihar Board Class 11th Hindi गद्य रूप

“आधुनिक कहानी साहित्य का एक विकसित कलात्मक स्वरूप है। इसमें लेखक अपनी कल्पना-शक्ति के सहारे कम-से-कम पात्रों अथवा चरित्रों के द्वारा कम-से-कम घटनाओं और प्रसंगों की सहायता से मनोवांछित कथानक, चरित्र, वातावरण, दृश्य अथवा प्रभाव की सृष्टि करता है।”

“आधुनिक कहानी साहित्य का एक विकसित कलात्मक स्वरूप है। इसमें लेखक अपनी कल्पना-शक्ति के सहारे कम-से-कम पात्रों अथवा चरित्रों के द्वारा कम-से-कम घटनाओं और प्रसंगों की सहायता से मनोवांछित कथानक, चरित्र, वातावरण, दृश्य अथवा प्रभाव की सृष्टि करता है।”

स्पष्ट है कि कहानी की मुख्य पहचान है-एकान्विति। अर्थात् घटना या घटनाएँ, पात्र या चरित्र, वातावरण का विचार-सभी किसी एक केन्द्रिय बिन्दु से गुंथे हों। उनमें विविधता, विस्तार या फैलाव न हो। इस दृष्टि से हम कह सकते हैं कि “कहानी एक ऐसी लघु कथात्मक गद्य रचना है जिसमें जीवन की किसी एक रिणति का सरस-सजीव चित्रण होगा।”

कहानी के तत्त्व-प्रत्येक कहानी ‘ जो एक ‘घटना’ या ‘स्थिति’ को लेकर लिखी जाती है। लेखक किसी एक प्रसंग को चुनव उसके चारों ओर कथात्मक ताना-बाना सा बुन देता है। इस बुनावट के लिए वह किसी एक पात्र या कुछ पात्रों की सृष्टि करता है। पात्रों की पहचान अधिकतर उनके द्वारा उच्चारित न्यनोपकथनों (संवादों) से होती है।

पात्रों के कथनोपकथन अथवा लेखक द्वारा किया गया स्थिति चित्रण भाषा के माध्यम से संभव है। भाषा-प्रयोग की कोई विशेष विधि या पद्धति शैली कहलाती है। यह सब मिलकर कहानी में एक विशेष वातावरण का निर्माण करते हैं। अंतत: कहानी समग्र रूप से पाठकों के हृदय पर जो प्रभाव अंकित करती है, वही कहानी का उद्देश्य होता है। इस प्रकार कहानी के छह तत्त्व स्वतः स्पष्ट हैं-

(क) कथानक,
(ख) पात्र और चरित्र-चित्रण,
(ग) संवाद,
(घ) भाषा-शैली,
(ङ) वातावरण,
(च) उद्देश्य।

 Bihar Board Class 11th Hindi गद्य रूप

आवश्यक नहीं कि किसी कहानी में ये सभी तत्त्व समानुपात में ही विद्यमान हों। किसी कहानी में किसी एक तत्त्व या एकाधिक तत्वों की प्रमुखता या न्येनता हो सकती है। कुछ कहानियाँ कथा-विहीन-सी होती हैं तो कुछ कहानियों में किसी चरित्र की प्रधानता न होकर वातावरण ही प्रमुख होता है। भाषा-शैली के बिना तो कहानी का अस्तित्व ही संभव नहीं। हाँ, उद्देश्य का स्पष्ट घोषित होना आवश्यक नहीं। उसका झीना-सा आभास देना ही कहानीकार का काम है।

कहानी के उपर्युक्त तत्वों का संक्षिप्त परिचय आगे दिया जा रहा है-

(क) कथानक-कथानक कहानी का ढाँचा अथवा शरीर है। इसके बिना कहानी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। कथानक जितना सीमित, सुगठित, स्वाभाविक और कुतुहलवर्धक होगा, कहानी उतनी ही प्रभावशाली सिद्ध होगी।

(ख) पात्र और चरित्र-चित्रण-कथानक का विकास पात्रों के माध्यम से होता है। विभिन्न घटनाओं अथवा क्रिया-व्यापारों का माध्यम पात्र ही होते हैं। यही क्रिया-व्यापार पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते हैं। कहानी क्योंकि एक संक्षिप्त गद्य-रचना है, अतः इसमें पात्र-संख्या कम-से-कम होनी चाहिए। चरित्र के भी विविध पक्षों की बजाय कोई एक संवेदनीय पहलू विशेष रूप से उजागर होना चाहिए।

(ग) संवाद-कहानी का नाटकीय प्रभाव उसके संवादों में निहित है। लेखक तो कहानी . में केवल वस्तुस्थिति या वातावरण का संकेत भर देता है। कथा-विकास, चरित्र-विन्यास अथवा विचार-संप्रेषण का कार्य अधिकतर पात्रों के संवाद ही करते हैं। ये संवाद संक्षिप्त, सुगठित, चुस्त शशक्त और. हृदयस्पर्शी होने चाहिए।

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(घ) भाषा-शैली-कहानी की भाषा मूलतः रचनाकार की अपनी रुचि एवं कहानी में चित्रित केवल वस्तुस्थिति या वातावरण का संकेत भर देता है। कथा-विकास, चरित्र-विन्यास अथवा विचार-संप्रेषण का कार्य अधिकतर पात्रों के संवाद ही करते हैं। ये संवाद संक्षिप्त, सुगठित, चुस्त, सशक्त और हृदयस्पर्शी होने चाहिए।

भाषा-शैली में कहानी की भाषा मूलतः हिन्दी रचनाकार की अपनी रुचि एवं कहानी में चित्रित पात्रों तथा परिवेश का दर्पण होती है। इस संबंध में हिन्दी के अमर कहानीकार मुंशी प्रेमचंद का यह कथन महत्त्वपूर्ण है-“कहानी की भाषा बहुत सरल और सुबोध होनी चाहिए….(क्योंकि) आख्यायिका (कहानी) साधारण जनता के लिए लिखी जाती है।”

कहानीकार द्वारा कथा-वर्णन या चरित्र-चित्रण के लिए जो विशेष विधि या पद्धति अपनाई जाती है वही ‘शैली कहलाती है। लेखक अपनी रुचि तथा कहानी की प्रकृति के अनुसार वर्णनात्मक, संवादात्मक, आत्मकथात्मक, पत्रात्मक अथवा डायरीशैली. में से किसी एक को अथवा कुछ शैलियों के समन्वित रूप को ग्रहण कर सकता है। शैली को प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरा प्रयोग, अलंकार आदि भी सहायक हो सकते हैं। इसी प्रकार व्यंग्यात्मक, चित्रात्मक या प्रतीकात्मक शैली का भी यथोचित उपयोग संभव है।

(ङ) वातावरण-नाटक या एकांकी की सफलता के लिए जो महत्त्व मंच-विन्यास का है वही महत्त्व कहानी में वातावरण का है। वास्तव में वातावरण’ कहानी का सबसे सशक्त तत्त्व है। सफल कहानीकार सजीव वातावरण की सृष्टि करके पाठकों के मन-मस्तिष्क पर कहानी का ऐसा प्रभाव अंकित करता है कि वे उसी में तल्लीन हो जाते हैं।

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(च) उद्देश्य-जैसे मानव-शरीर का संचालन बुद्धि और मस्तिष्क द्वारा होता है उसी प्रकार कहानी के सभी सूत्र मूलत: एक प्रेरणा-बिंदु से जुड़े रहते हैं। वही मूल-प्रेरणा-बिन्दु ही कहानी का साध्य, लक्ष्य, कथ्यं, प्रतिपाद्य या ‘उद्देश्य’ होता है। अन्य तत्त्व उसी साध्य के साधन होते हैं। इस संबंध में हिन्दी के कहानी-सम्राट मुंशी प्रेमचंद का निम्नलिखित कथन विशेष महत्त्वपूर्ण है

“जिस कहानी में जीवन के किसी पहलू पर प्रकाश न पड़ता हो, जो सामाजिक रूढ़ियों की तीव्र आलोचना न करती हो, जो मनुष्यों के सद्भावों को दृढ़ न करे या जो मनुष्य में कूतूहल का भाव न जागृत करे, वह कहानी नहीं है।”

प्रश्न 2.
नई कहानी की विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर-
नई कहानी-1930 ई० के आसपास हिन्दी कहानियों में भी असामाजिकता, अनास्था, काम-कुंठाएं, घुटन, संत्रास, अकेलापन, बेसहरापन, अस्तित्ववादी विचार विशेषतः क्षणवाद, जीवन के प्रति वितृष्णा आदि की भावनाएं स्पष्टतः परिलक्षित होने लगीं। उसकी निम्नलिखित विशेषताएँ खुलकर सामने आईं। इन्हीं विशेषताओं के कारण ऐसी कहानियों को ‘नई कहानी’ कहते हैं

  1. ऐसी कहानी (नई कहानी) में प्रायः क्लाइमेक्स या चरमबिन्दु का आग्रह नहीं होता क्योंकि ऐसी कहानियों में विशेष मन:स्थिति के निरूपण पर बल होता है।
  2. नई कहानी की विशेषता चारित्रिक असंगति है।
  3. ऐसी कहानियों में ‘सस्पेन्स’ का अभाव रहता है।
  4. इनमें अंतर्द्वद्वों का सायास चित्रण नहीं होता।
  5. सांकेतिकता, बिम्ब-विधान तथा प्रतीकात्मकता इनमें होती हैं।
  6. इनमें कथातत्त्व नगण्य-सा होता है।
  7. इनमें मुख्यतः मध्यवर्गीय शहरी जीवन के कलुषित, अस्वस्थ एवं कुंठाग्रस्त रूप का उद्घाटन मिलता है।
  8. इनमें आंचलिकता का भी आग्रह दिखाई पड़ता है।

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हिन्दी के नए कहानीकारों में मोहन राकेश, राजेन्द्र यादव, धर्मवीर भारती, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, अमरकांत, मार्कण्डेय, फणीश्वरनाथ रेणु, मन्नू भंडार, राजकमल चौधरी, अमृत राय, रघुवीर सहाय, अजित कुमार, श्रीकांत वर्मा, मधुकर सिंह, मिथिलेश्वर आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
नाटक के तत्वों का उल्लेख कीजिए। अथवा, नाटक के तत्त्वों और प्रकारों का परिचय दीजिए।
उत्तर-
प्राचीन भारतीय आचार्यों के अनुसार नाटक के केवल तीन तत्त्व हैं-वस्तु, नायक और रस। किन्तु, भारतीय और पाश्चात्य समन्वित मतानुसार नाटक के तत्त्व हैं
(क) वस्तु अथवा कथावस्तु
(ख) पात्र और चरित्र-चित्रण
(ग) संवाद अथवा कथोपकथन
(घ) देशकाल अथवा वातावरण
(ङ) भाषा-शैली
(च) उद्देश्य।

(क) वस्तु अथवा कथावस्तु-इसे ही नाटक का ‘प्लॉट’ भी कहा जाता है। नाट्यशास्त्र के अनुसार वह उत्तम नाटकीय कथा है जिसमें सर्वभाव, सर्वकर्म और सर्वरस की प्रवृत्तियाँ और अवस्थाएँ होती हैं। इसमें औदात्य और औचित्य का पद-पद पर ध्यान रखा जाता है। नाटक की विषयवस्तु, प्रसार और अभिनय आदि की दृष्टि से नाटकीय कथावस्तु के भेद किए जाते हैं। विषयवस्तु की दृष्टि से नाटकीय कथाएँ तीन प्रकार की होती हैं-प्रख्यात, उत्पाद्य और मिश्र।

इतिहास-पुराण या लोक-प्रसिद्ध घटना पर आधारित नाटकीय कथावस्तु को ‘प्रख्यात’ कथावस्तु कहते हैं। नितांत काल्पनिक कथा को ‘उत्पाद्य’ कहते हैं। जिस कथा में इतिहास और कल्पना का योग हो उसे ‘मिश्र’ कहते हैं। अभिनय की दृष्टि से नाटकीय कथावस्तु के दो भेद होते हैं-दृश्य तथा सूच्य और संवाद की दृष्टि से इसके तीन भेद हैं-सर्वश्राव्य, नियतश्राव्य और अश्राव्यं।

प्रसार की दृष्टि से दो प्रकार की कथा होती है-आधिकारिक और प्रासंगिक। प्रासंगिक कथा के भी दो उपभेद होते हैं-पताका और प्रकरी। ऊपर के भेदों के भी अनेक उपभेद होते हैं। किन्तु, मुख्य बात यह है कि चूकि नाटक दृश्यकाव्य है, इसलिए इसकी कथावस्तु का उतना ही विस्तार होना चाहिए जितना एक बैठक में देखा जा सके।

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नाटकीय कथावस्तु अनिवार्यतः रोचक होनी चाहिए। उसका समन्वित प्रभाव ऐसा होना चाहिए कि दर्शक लोकमंगल की ओर उन्मुख होते हुए देर तक आनंदमग्न बने रह सकें।

(ख) पात्र और चरित्र-चित्रण-यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी एक नाटक की . सफलता उसकी सजीव और स्वाभाविक पात्र-योजना पर निर्भर करती है। यही कारण है कि संस्कृत आचार्यों ने नेता को नाटक को स्वतंत्र तत्वं मानकर उसके आवश्यक गुणों और भेदों पर विस्तार से विचार किया है। इस दृष्टि से नायक के धीरोदात्त, धीरललित, धीरप्रशांत और धीरोद्धत रूप होते हैं।

इसी तरह नायिकाएँ भी अनेक प्रकार की होती हैं; यथा-दिव्या, कुलस्त्री तथा गणिका आदि। नायक के साथ संबंध और अवस्था के आधार पर भी उनके अनेक भेदोपभेद मिलते हैं। . नायक के विरोधी पुरुष पात्र को प्रतिनायक या खलनायक और नायिका के विरोधी स्त्री. पात्र को प्रतिनायिका या खलनायिका कहते हैं। संक्षेप में, नायक को संघर्षशील, चरित्रवान और लोकमंगलोन्मुख होना चाहिए। अत्याधुनिक नाटकों के मूल्यांकन की कसौटी नायक-नायिका नहीं बल्कि उनका समग्र प्रभाव है।

(ग) संवाद अथवा कथोपकथन-संवाद या कथोपकथन नाटक के प्राण होते हैं क्योंकि अव्यकाव्यों में तो लेखकीय वक्तव्य की गुंजाइश रहती है किन्तु दृश्यकाव्य (नाटक और उनके विभिन्न रूपों) में रंग-संकेत को छोड़कर यह नितांत वर्जित है। इसलिए, कथा-विकास और पात्रों के चरित्र-चित्रण का एकमात्र साधन यह संवाद अथवा कथोपकथन तत्त्व ही रह जाता है। इसके सर्वश्राव्य, नियतश्राव्य, अश्राव्य, आकाशभाषित आदि अनेक भेदोपभेद होते हैं। नाटकीय संवाद को संक्षिप्त, सरस, सरल, सुबोध, मर्मस्पर्शी, प्रवाहमय, प्रभावपूर्ण, पात्रोचित और प्रसंगानुकूल होना चाहिए।

(घ) देशकाल अथवा वातावरण-यह नाटक का बहुत ही महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। इससे दर्शकों में नाटकीय सफलता के प्रति विश्वास जगता है। किन्तु, नाटक में उपन्यास की तरह इसके विस्तृत वर्णन की गुंजाइश नहीं होती। रंग-संकेत अथवा मंच-सज्जा अथवा पात्रों की वेश-भूषा और संवाद से देशकाल अथवा वातावरण का निर्माण किया जाता है। किन्तु, इसे वर्णित नहीं, व्यजित होना चाहिए।

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(ङ) भाषा-शैली-यह नाटक की भाषा सरल, चित्तकर्षक, प्रवाहमय, पात्रानुकूल, प्रसंगानुकूल। और प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। नाटक के लिए व्यास-शैली और मिश्र वाक्य-विन्यास वर्जित हैं। नाटक की भाषा मर्मस्पर्शी और उत्सुकता बनाए रखने में सक्षम होनी चाहिए।

(च) उद्देश्य-यह तत्त्व नाटक का मेरुदंड है। यद्यपि नाटक का मूल उद्देश्य रसोद्बोध है तथापि यह तब तक नहीं हो सकता जब तक नाटक का उद्देश्य जनजीवन को सँवारना और सुन्दर बनाना न हो। पूरे ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में यथार्थ का चित्रण इसका उद्देश्य हो सकता है, किन्तु उस उद्देश्य के गर्भ से आदर्श जीवन के प्रारूप को भी झाँकते रहना चाहिए। संक्षेप में, जन-मन-रंजन और लोक-मंगल को हम नाटक का स्थायी उद्देश्य कह सकते हैं।

विषय और उद्देश्य-भेद से नाटक के कई प्रकार होते हैं; यथा-ऐतिहासिक, पौराणिक, सामाजिक, राजनीतिक, समस्यामूलक आदि।

प्रश्न 4.
नाटक और एकांकी के स्वरूप का विवेचन करते हुए दोनों का अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
नाटक-नाटक ‘दृश्यकाल’ की सर्वप्रमुख विद्या नाटक है। ‘नाटक’ शब्द ‘नट’ से बना है। ‘नट’ का अभिप्राय है-अभिनेता। स्पष्ट है कि जिस साहित्यिक रचना को ‘अभिनय’ के माध्यम से प्रस्तुत किया जा सके उसे ‘नाटक’ कहते हैं।
प्राचीन साहित्यशास्त्र में ‘दृश्य काव्य’ के दो प्रमुख भेद बताए गए हैं-

  • रूपक,
  • उपरूपक।

रूपक’ के दस भेदों में से एक ‘नाटक’ की गणना भी की गई है। परंतु आजकल मंच पर प्रस्तुत की जा सकने वाली प्रत्येक दृश्य रचना ‘नाटक’ कहलाती है।

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उल्लेखनीय है कि वर्तमान युग में प्रत्येक साहित्यिक रचना छपने की सुविधा हो जाने के कारण, ‘पढ़ी’ और ‘सुनी’ भी जा सकती है। फिर नाटक में अन्य साहित्यिक विधाओं की भांति कथा-वर्णन या भाव-संप्रेक्षण नहीं होता। उसकी प्रस्तुत विभिन्न पात्रों के कथनोपकथनों के माध्यम से होती है। उसकी सफलता और सार्थकता इस बात पर निर्भर है कि अभिनेता विभिन्न पात्रों के कथनोपकथनों के विषयवस्तु, प्रसंग, संदर्भ, चरित्र एवं भाव या विचार विशेष के अनुकूल भाव-भंगिमा, मुख-मुद्रा, लहजे तथा चेष्टा आदि के माध्यम से उच्चारित करें। इसलिए ‘नाटक’ अन्य श्रव्य साहित्य की अपेक्षा एक विशिष्ट ‘दृश्य’ साहित्यिक विधा है।

नाटक के तत्त्व-प्रत्येक साहित्यिक रचना कुछ विशेष तत्त्वों के ताने-बाने से गूंथी होती है। उदाहरणतया नाटक के मूलतः कोई-न-कोई कथासूत्र (थीम) होता है। उसी से संबंद्ध घटनाएँ प्रतिघटनाएँ कथानक को विकसित करती हुई लक्ष्य की ओर ले चलती है। यह कथा-विकास पात्रों के कथनोपकथनों के माध्यम से ज्ञात और विकसित होता है। कथनोपकथन नाटक के पात्रों की स्थिति, अवस्था, रुचि आदि के अनुकूल भाषा-शैली में प्रस्तुत किए जाते हैं।

पात्रों के आकार-प्रकार, वार्तालाप और भाषा-प्रयोग के माध्यम से हम जान पाते हैं कि नाटक के कथानक का संबंध किस देश-काल वातावरण अर्थात् युग-परिवेश से है। अंततः इन सभी माध्यमों से स्पष्ट होता है कि नाटक-रचना का मूल उद्देश्य, कथ्य या संदेश क्या है। उसमें नाटककार क्या विचार या दृष्टिकोण व्यक्त करना चाहता है। (उपर्युक्त विवेचना के आधार पर नाटक के सात प्रमुख तत्व माने गए हैं-
(क) कथानक,
(ख) पात्र एवं चरित्र-चित्रण,
(ग) संवाद (कथनोपकथन),
(घ) भाषा-शैली,
(ङ) देश-काल-वातावरण अथवा युग-परिवेश,
(च) उद्देश्य (कथ्य या संदेश),
(छ) रंगमंचीयता अथवा अभिोयता।

(क) कथानक-कथानक को एक प्रकार से नाटक का शरीर (ढाँचा) कहा जा सकता है। विभिन्न घटनाएँ, पात्रों की बातचीत और चेष्टाएँ मूलतः किसी कथात्मक विवरण से ही जुड़ी होती है। अन्य सभी तत्त्व उसी केन्द्रिय कथा-तत्त्व के विकास में सहायक होते हैं।

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नाटक का कथानक स्वाभाविक, सुगठित और रोचक होना चाहिए। तभी पाठकों का, दर्शकों का उससे तादात्म्य हो जाता है।

(ख) पात्र एवं चरित्र-चित्रण-कथानक यदि नाटक का शरीर है तो पात्र उस कथानक रूपी शरीर के अंग हैं। कथात्मक घटनाएँ अपने-आप में शून्य में घटित नहीं होती। उनका पता विभिन्न पात्रों के कथनोपकथन, उनकी चेष्टाओं से पता चलता है। नाटक का थीम और उद्देश्य पात्रों के चरित्र के माध्यम से ही स्पष्ट हो जाता है।

नाटक में पात्रों की संख्या जितनी कम हो, उतना वह अधिक प्रभावशाली बन पाता है। पात्रों के चरित्र की रूपरेखा उनके अपने कथनों और उनकी चेष्टाओं के माध्यम से स्पष्ट होनी चाहिए। कई बार किसी एक पात्र के माध्यम से भी अन्य पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं का आभास मिल जाता है।

(ग) संवाद (कथनोपकथन)-संवाद नाटक का प्राण-तत्त्व है जैसे प्राण के बिना शरीर का अस्तित्व ही निरर्थक होता है उसी प्रकार संवाद के बिना नाटक का ढाँचागत स्वरूप ही साकार नहीं हो सकता।

विविध प्रकार के कथनोकथन ही कथा-विकास, चरित्र-चित्रण तथा उद्देश्य-सिद्धि का आधार होते हैं।

नाटक के संवाद छोटे, सरल वाक्यों में सुगठित, सार्थक, प्रभावशाली और सशक्त होने चाहिए। लंबे और उबाऊ संवाद पाठकों के मन में नाटक के प्रति अरुचि तथा उकताहट पैदा कर सकते हैं।

(घ) भाषा-शैली-नाटक की भाषा-शैली का सीधा संबंध उसके पात्रों और उनके द्वारा उच्चारित कथनोपकथनों से है। भाषा का स्वरूप नाटक में चित्रित देश-काल अर्थात् युग-परिवेश का अनुकूल होना चाहिए। पात्रों की सामाजिक स्थिति, शिक्षा-दीक्षा, रुचि-अभिरुचि भी भाषा के स्वरूप का निर्माण करती है। सर्वप्रमुख बात यह है कि नाटक की भाषा पाठकों (या दर्शकों) के लिए सहज-सुबोध होनी चाहिए।

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शैली का संबंध पात्रों द्वारा किसी कथन के उच्चारण के ढंग, लहजे तथा उसके संशक्त और प्रभावशाली बनाने के लिए अपनाई गई युक्तियों या विधियों से है। जैसे आलंकारिक, चित्रात्मक, प्रतीकात्मक या व्यंग्यात्मक शैली आदि।

(ङ) देश-काल-वातावरण अथवा युग-परिवेश-नाटक के पढ़ते या देखते समय हम यह जान जाते हैं कि उसमें किस युग (जमाने) की किस समयावधि की कथा, स्थितियाँ-परिस्थितियाँ या सामाजिक-राजनैतिक-धार्मिक अवस्था का चित्रण हुआ है। यही तत्त्व युग-परिवेश अथवा नाटक का देश-काल-वातावरण कहलाता है।

(च) उद्देश्य (क्ष्य या संदेश)-कोई भी साहित्यिक रचना बिना किसी विशेष मंतव्य या उद्देश्य के नहीं लिखी जाती। फिर, नाटक तो जन-सामान्य के जीवन और समाज का प्रत्यक्ष प्रतिबिंब होता है। अतः नाटककार उसमें किसी विशेष दृष्टिकोण, विचारधारा अथवा युगीन . समस्याओं तथा उनके समाधान के संकेत विविध पात्रों के माध्यम से करा देता है। वही नाटक का उद्देश्य या संदेश माना जाता है।

(छ) रंगमंचीयता या अभिनेयता-नाटक मूलत: ‘दृश्य’ साहित्य का एक महत्वपूर्ण रूप है इसका रसास्वादन प्रायः मंच (फिल्म के बड़े परदे या दूरदर्शन के छोटे परदे) पर प्रस्तुति के माध्यम से होता है। इसीलिए नाटक में प्रस्तुत किए गए दृश्य असंभव या अकल्पनीय नहीं होने चाहिए। उसकी कथावस्तु में निरंतर जिज्ञासा तथा कौतूहल को बनाए रखने वाली रोचकता हो।

पात्रों के संवाद और अंग-विन्यास आदि सशक्त, प्रभावशाली और भावोतेजक अथवा विचार-प्रेरक हो। यह सब कुछ मंच पर अभिनय द्वारा साकार होता है। अतः नाटक के इस तत्त्व को ‘रंगमंचयिता’ या ‘अभिनेता’ कहा जाता है।

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‘नाटक’ के समान ‘एकांकी’ भी ‘दृश्य’ साहित्य का एक प्रमुख रूप या प्रकार है। नाटक में कई अंक होते हैं। पुनः हर अंक के अंतर्गत कई दृश्यों का समावेश होता है। जैसे श्री चिरंजीत द्वारा लिखित नाटक ‘आधी रात का सूरज’ में दो अंक हैं तथा हर अंक में पुन: दो-दो दृश्य हैं। परंतु ‘एकांकी’ (एक + अंक + ई) का अभिप्राय ही यही है-एक वाला दृश्य साहित्य अथवा नाटक। अंग्रेजी में इसे ‘वन एक्ट प्ले’ भी इसीलिए कहा जाता है। स्पष्ट है कि ‘एकांकी’ में नाटक के समान विविधता नहीं होती। इसी आधार पर ‘एकांकी’ की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है

“जिस अभिनय रचना में एक ही अंक हो, सीमित पात्रों के माध्यम से एक ही प्रभाव घटना नाटकीय शैली में प्रस्तुत की गई हो, उसमें कोई एक ही समस्या विचार-दृष्टि प्रतिपादित हुई हो उसे ‘एकांकी’ कहते हैं।

एकांकी के तत्त्व-नाटक के तत्त्वों से अलग नहीं है। ऊपर बताए गए सातों तत्त्वों (कथानक, पात्र और चरित्र-चित्रण, संवाद, भाषा-शैली, देश-काल-वातावरण, उद्देश्य, रंगमंचीयता) का निर्वाह इसमें भी अपेक्षित है।

नाटक एवं एकांकी में अन्तर।
ये दोनों विधाएँ ‘दृश्य’ साहित्य के अंतर्गत आती हैं। दोनों का संबंध मंच अथवा अभिनय से है। दोनों के आधार-भूत तत्त्व भी समान हैं। फिर भी दोनों में वहीं अंतर है जो ‘महाकाव्य’ और ‘खंडकाव्य’ में या ‘उपन्यास’ और ‘कहानी’ में होता है। संक्षेप में, ‘नाटक’ और ‘एकांकी’ का अंतर इस प्रकार है ___(क) नाटक के कई अंक हो सकते हैं, परंतु एकांकी में केवल एक ही अंक होता है।

(ख) ‘नाटक’ में एक कथासूत्र (मुख्य कथानक) के साथ अनेक उपकथाएँ अथवा सहायक कथाएँ या घटनाएँ जुड़ी हो सकती हैं। ‘एकांकी’ के आरंभ से अंत तक केवल एक ही कथा का निर्वाह किया जाता है।

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(ग) ‘नाटक’ में पात्रं की संख्या पर्याप्त हो सकती है। ‘एकांकी’ में कम-से-कम . (कभी-कभी तो दो-तीन ही) पात्र होते हैं।

(घ) ‘नाटक’ में पात्रों के चरित्र का विकास क्रमशः धीरे-धीरे होता है। कई बार तो किसी पात्र के चरित्र की वास्तविकता बहुत बाद में जाकर स्पष्ट हो पाती है। जैसे-‘आधी रात का सूरज’ नाटक में ‘जगमोहन’ के चरित्र की असलियत का पता तीसरे-चौथे दृश्य में चल पाता है। ‘सुनीता’ के चरित्र की विशेषताएँ तो अंत तक एक-एक करके उद्घाटित होती हैं। परंतु ‘एकांकी’ के एक-दो दृश्यों में ही पात्रों का चरित्र स्पष्टतया प्रतिबिंबित हो जाता है।

प्रश्न 5.
निबंध के तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। अथवा, निबंध के रूप का परिचय दीजिए।
उत्तर-
निबंध का स्वरूप इतना वैविध्यपूर्ण है कि इसके सामान्य तत्त्वों के निर्धारण में प्रायः परस्पर विरोध हो जाता है। दूसरी कठिनाई यह है कि निबंध के आधारभूत सामान्य तत्वों के ओर आज तक सुव्यवस्थित विचार नहीं हुआ है। निबंध के तत्त्वों के संदर्भ में प्रायः लोग निबंध के गुणों की चर्चा करने लगते हैं। इन कठिनाइयों से हम आसानी से बच सकते हैं अगर निबंध को-वस्तुनिष्ठ और आत्मनिष्ठ अथवा ललित-दो भागों में बाँटकर हम इस बात को समझने का प्रयत्न करें। पहले हम वस्तुनिष्ठ निबंध के तत्त्वों पर विचार करेंगे। इसके निम्नलिखित तत्त्व होते हैं-

(क) विषय-वस्तु
(ख) संयोजन अथवा विन्यास
(ग) युक्ति
(घ) तटस्थता
(ङ) भाषा-शैली
(च) उद्देश्य

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(क) विषय-वस्तु-विषय-वस्तु से तात्पर्य उस मूल सामग्री से है जो निबंधकार का प्रतिपाद्य होता है। यह खोजपूर्ण, ज्ञानप्रद और जितना ही मौलिक होगा, निबंध उतना ही मानक और उच्चस्तरीय होगा।

(ख) संयोजन अथवा विन्यास-संयोजन अथवा विन्यास का तापर्य वह कौशल है जिसके आधार पर प्रतिपाद्य से संबंधित सकल सामग्री को निबंधकार व्यवस्थित, संक्षिप्त, प्रभावशाली और विश्वास्य बनाता है। कुछ लोग संक्षिप्तता पर बल देते हैं। किन्तु, संक्षिप्तता को दुर्बोधता का साधन नहीं होना चाहिए। संयोजन अथवा विन्यास निबंध का वह तत्त्व है जिसके द्वारा प्रतिपाद्य सामग्री को आदि, मध्य और अंत अथवा उपसंहार में बाँटा जाता है।

(ग) युक्ति-युक्ति वस्तुनिष्ठ निबंधों का वह सामान्य तत्त्वं है जिसके निबंधकार अपने प्रतिपादन को अधिकाधिक आकर्षक, वेगमय, मान्य और प्रभावशाली बनाता है। यह वह तत्व है जो निबंधकार को उसके प्रतिपाद्य की संभावित आलोचनाओं के प्रति सजग रखता है। इसी तत्त्व के द्वारा प्रतिपाद्य से संबंधित सभी अनुमानित शंकाओं का निरन निबंधकार यथास्थान स्वयं करता चलता है।

(घ) तटस्थता-तटस्थता निबंध का वह गुण है जिसके कारण निबंधकार अपनी लेखकीय भूलों और उनके प्रति भविष्य में होने वाले आरोपों से बचता लाता है। किन्तु, इसकी सीमा के निर्धारण की कोई कसौटी नहीं बनाई जा सकती। निबंध का यह तत्त्व निबंध के प्रति पाठकीय प्रतीति (विश्वास) को जगाए रखता है।

(ङ) भाषा-शैली-निबंध की भाषा विषयानुकूल और यथासंभव सुबोध होनी चाहिए। इसके वाक्यों का विन्यास सार्थक और निर्दोष होना चाहिए। पांडित्य प्रदर्शन और व्यास-शैली निबंध के लिए घातक हैं। फिर भी, विचारात्मक निबंधों के लिए व्यास-शैली को संयमपूर्वक अपनाया जा सकता है। निबंध के लिए पद्य का माध्यम भी कभी अपनाया गया था, किन्तु अब इसका प्रचलन उठ गया है।

(च) उद्देश्य-उद्देश्य निबंध का वह तत्व है जिसके माध्यम से अपने प्रतिपाद्य-विषयक सकल सामग्री की खोज निबंधकार करता और अपने उस विषय के ज्ञान का प्रसार अपने पाठकों .. के बीच करता है। ऐसे निबंधों का यही उद्देश्य भी होता है।

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व्यक्तिनिष्ठ (आत्मनिष्ठ अथवा ललित) निबंध के निम्नलिखित तत्त्व हैं

  • उपेक्षित विषय
  • बिखरे संदर्भ
  • हास्य और व्यंग्य
  • लेखकीय व्यक्तित्व का उद्घाटन और
  • बिखराव के बीच भी एक कलात्मक संयोजन।

प्रश्न 6.
निबंध का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके विभिन्न रूपों (भेदों या प्रकारों) पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर-
निबंध का स्वरूप-‘निबंध’ का एक प्रमुख गद्य-विद्या है। संस्कृत में कहा गया है कि साहित्यकार की लेखन-कुशलता की वास्तविक परख ‘गद्य’ रचना द्वारा होती है-‘गद्य कवींनां निकर्ष वदति।’ आधुनिक युग के महान निबंधकार एवं आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कथन है कि-“यदि गद्य कवियों (साहित्यकारों) की कसौटी है, तो निबंध गद्य की कसौटी है।”

“निबंध’ शब्द का अभिप्राय है-‘भली भाँति बाँधना’। ‘निबंध’ नामक रचना में किसी विशेष . विषय में संबंधित विचारों, भावों, शब्दों का एक सूत्रता अर्थात् तारतम्य में समायोजित किया जाता है। अंग्रेजी विश्वकोष (इनसाइक्लोपीडिया) में निबंध की परिभाषा इस प्रकार दी गई है-“निबंध किसी भी विषय पर अथवा किसी विषय के एक अंग पर लिखित मर्यादित आकार की रचना है।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंध का स्वरूप स्पष्ट करते हुए विस्तार से इसकी व्याख्या की है-“संसार की हर एक बात और बातों से संबंद्ध है। अपने-अपने मानसिक संघटन के अनुसार किसी का मन किसी संबंध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। ये संबंध-सूत्र एक-दूसरे से नथे हुए, पत्तों के भीतर की नसों के समान चारों ओर एक जाल के रूप में फैले रहते हैं। तत्त्वचिंतक या दार्शनिक केवल अपने व्यापक सिद्धांतों के प्रतिपादन के लिए उपयोगी कुछ संबंध-सूत्रों को पकड़कर किस ओर सीधा चलता है और बीच के ब्योरे में कहीं नहीं फंसता।

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पर निबंध-लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र-शाखाओं पर विचारता रहता है, यही उसकी अर्थ-संबंधी व्यक्तिगत विशेषता है।” संक्षेप में निबंध की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है “निबंध वह रचना है जिसमें किसी विशिष्ट विषय से संबंधित तर्कसंगत विचार गुंथे हुए हों।” के प्रकार शैली।

निबंध के प्रकार-निबंध के स्वरूप पर ध्यान देने से उसे दो आयाम महत्त्वपूर्ण प्रतीत होते हैं-
(क) विषयवस्तु,
(ख) शैली।

विषयवस्तु के आधार पर निबंध के दो वर्ग हैं-
(क) विषयनिष्ठ निबंध,
(ख) विषयनिष्ठ निबंध।

(क) विषयनिष्ठ निबंध-जिस निबंध में रचनाकार अपने निजी व्यक्तित्व से अलग, किसी अन्य वस्तु, व्यक्ति, खोज, समस्या, प्रकृति, आदि के संबंध में विचार संयोजित और प्रस्तुत करता है, वह ‘विषयनिष्ठ निबंध’ कहलाता है।

कुछ निबंधों में ये दोनों तत्त्व समन्वित रूप में विद्यमान रहते हैं। लेखक किसी अन्य विषय पर विचार करते हुए उसमें अपने निजी रागात्मक अनुभवों को भी संस्पर्श प्रदान करते हैं।

शैली की दृष्टि से निबंध के कई रूप संभव है। उनमें से ये छह प्रकार प्रमुख हैं

(क) वर्णनात्मक निबंध,
(ख) विवरणात्मक निबंध,
(ग) विवेचनात्मक या विश्लेषणात्मक निबंध
(घ) भावात्मक निबंध,
(ङ) संस्मरणात्मक निबंध,
(च) ललित निबंध।

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(क) वर्णनात्मक निबंध-किसी वस्तु या स्थान आदि का परिचयात्मक वर्णन प्रस्तुत करने वाले निबंध ‘वर्णनात्मक निबंध’ कहलाते हैं। जैसे-दक्षिण गंगा, गोदावारी, हमारी लोकतंत्र का प्रतीक तिरंगा।

(ख) विवरणात्मक निबंध (विवेचनात्मक या विश्लेषणात्मक)-जिन संबंधों में किसी वैज्ञानिक खोज नये आविष्कार, सामाजिक समस्या, दार्शनिक सिद्धांत, साहित्य-समीक्षा, विचार/संजोकर, विविध पहलुओं का विवेचन या विश्लेषण करते हुए विशद विवरण प्रस्तुत किया गया हो उन्हें विवरणात्मक निबंध कहते हैं। जैसे-पर्यटन का महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण-एक अभिशाप, मानव का नया मित्र कंप्यूटर, साहित्य में प्रतीक, राजनीति और विद्यार्थी, दसवीं पंचवर्षीय योजना आदि।

(ग) विवेचनात्मक निबंध-बौद्धिक चिंतन, तर्क-वितर्क और विचार-विमर्श पर आधारित निबंध “विचारात्मक निबंध’ कहलाते हैं। ऐसे निबंधों में प्रायः किसी अमूर्त विषय के विभिन्न … पहलुओं को स्पष्ट किया जाता है। जैसे विश्वशांति, धर्म और विज्ञान, अंतरिक्ष में भारत आदि।

(घ) भावात्मक निबंध-मानव मन की रागात्मक संवेदनाओं, अनुभूतियों, रुचियों-अभिरूचियों आदि से संबंधित निबंध ‘भावात्मक निबंध’ कहलाते हैं। जैसे-सुख-दुःख-एक सिक्के के दो पहलू, भय बिनु होइ न प्रीति, श्रद्धा-भक्ति, जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान इत्यादि।

(ङ) संस्मरणात्मक निबंध-जिन निबंधों में लेखक अपने व्यक्तिगत संपर्क में आने वाले व्यक्तियों यात्रा आदि के अनुभवों, घटना-प्रसंगों आदि से संबंधित निजी-स्मृतियाँ साहित्यिक सौष्ठव के साथ प्रस्तुत करता है वे ‘संस्मरणात्मक निबंध’ कहलाते हैं। जैसे-महादेवी-कृत निबंध रामा, अमृतराय द्वारा लिखित प्रेमचंद आदि।

(च) ललित निबंध-जिस निबंध में किसी भी विषयवस्तु, व्यक्ति, घटना, प्रकृति-सौंदर्य, त्यौहार-पर्व, रोचक अनुभव अथवा सामाजिक-राजनीतिक व्यंग्य आदि के संबंध में एक विशेष आकर्षक, हृदयस्पर्शी और आत्मीय शैली में भाव-प्रवाह संयोजित हो, उसे ‘ललित निबंध’ कहते हैं। जैसे-पीपल के बहाने (विद्या निवास मिश्र), बउरैया कोदो (अमरनाथ), तालाब बाँधता धरम सुभाव (अनुपम मिश्र), रेल-यात्रा (शरद जोशी) आदि।

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प्रश्न 7.
‘निबंध की परिभाषा स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं और शैलियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
निबंध की परिभाषा-“निबंध एक ऐसी गद्य-रचना है जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का यथासंभव स्वत: संपूर्ण मौलिक प्रतिपादन सुगठित वाक्य-विन्यास एवं सुष्ठता-युक्त शैली के माध्यम से किया गया हो।”

निबंध की विशेषताएँ निबंध के परिभाषा और उसके स्वरूप पर विचार करने से कई बातें स्पष्ट हो जाती हैं। जैसे-‘निबंध एक गद्य-रचना’ है। इसमें किसी एक निश्चित, निर्धारित या चुने गए विषय का विवेचन किया जाता है। निर्धारित विषय और उसका विवेचन प्रायः मौलिक होता है अर्थात् उसमें एक नयापन होता है, केवल पहले लिखी या कही जा चुकी बातों का दोहराव नहीं होता।

यह तभी संभव है जब निबंध के लेखक के अपने निजी व्यक्तित्व, चिंतन, सोच-विचार और दृष्टिकोण की उसमें स्पष्ट छाप हो। साथ ही निबंध को प्रभावशाली बनाने के लिए उसकी सुरूचिपूर्ण (रोचक) प्रस्तुति आवश्यक है। इसके अतिरिक्त निबंध चाहे किसी भी विषय से संबंधित हो, उसमें निर्धारित विषय का समग्र संपूर्ण स्पष्टीकरण हो जाना चाहिए। संबद्ध विषय का कोई भी पहलू अस्पष्ट न रहे।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि निबंध में कुछ विशेषताएँ अपेक्षित हैं जिन्हें साहित्याशास्त्र के संदर्भ में निबंध के गुण या तत्व भी कह सकते हैं। ये विशेषताएँ हैं-
(क) उपर्युक्त विषय का चयन,
(ख) मौलिकता,
(ग) लेखक के व्यक्तित्व की छाप
(घ) रोचकता,
(ङ) स्वतः संपूर्णतया।

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(क) उपयुक्त विषय का चयन-निबंध के लिए राई से लेकर पहाड़ तक कोई भी विषय चुना जा सकता है। व्यक्ति, प्राणी, प्राकृतिक, रूप, विचार समस्यात्मक प्रश्न, समाज, साहित्य, इतिहास, विज्ञान-संपूर्ण ब्रह्माण्ड, यहाँ तक कि आत्मा या परमात्मा को भी निबंध का विषय बनाया जा सकता है परंतु निबंध का विषय निर्धारित करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि क्या उसके संबंध में विचार-विर्मश आवश्यक है?

क्या उस संबंध में कोई नई मौलिक अवधारणा स्पष्ट होना जरूरी है। क्या उससे पाठक वर्ग के अधिकतम समुदाय की संतुष्टि संभव है? साथ ही विषय चाहे सीमित हो या व्यापक, निबंध के अंतर्गत उसका संक्षिप्त सुसंबंद्ध, अपने-आप में पूर्ण, रोचक वर्णन-विवेचन होना चाहिए।

(ख) मौलिकता-हम देखते हैं कि किसी एक ही विषय पर, अनेक लेखकों द्वारा, अनेक … निबंध लिखे जाते हैं। परीक्षाओं में प्रायः हजारों या लाखों विद्यार्थी या प्रतियोगी किसी एक ही विषय पर निबंध लिखते हैं। परंतु विभिन्न रचनाकारों द्वारा एक ही विषय पर लिखित निबंध अपने स्वरूप-आकार, प्रतिपादन-शैली एवं विचार-विवेचन में सर्वथा भिन्न हो सकता है। इसका कारण है-निबंध की मौलिकता।

पहले कही या लिखी जा चुकी बातों के भी कई पहलू पुन: नए ढंग से स्पष्ट या व्याख्यायित करने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अतिरिक्त हर लेखक की चिंतन-दृष्टि एवं उसकी प्रस्तुति में अपने स्तर और ढंग का कुछ-न-कुछ नयापन होता है जो : निबंध-लेखन की प्रमुख कसौटी है। यही विशेषता. ‘मौलिकता’ कहलाती है।

(ग) लेखक के व्यक्तित्व की छाप-हर लेखक की भाषा अपनी एक विशिष्ट भंगिमा और शैली लिए रहती है। कुछ लेखक संस्कृतिनिष्ठ, तत्सम-प्रधान शब्दावली का प्रयोग अधिक करते हैं, कुछ सहज-सुबोध, व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करते हैं। किसी भी विषय को पाठकों के लिए सहज-संवेद्य तथा पठनीय बनाने के लिए लेखक अपनी रूचि-अभिरुचि के अनुकूल विधियाँ अपनाता है। कोई लेखक उदाहरण-दृष्टांत, उद्धरण आदि देकर विषय स्पष्ट करता है, कोई तर्क-वितर्क का सहारा लेता है। हर निबंध के अंतर्गत उसके लेखक के व्यक्तित्व की छाप महसूस कर सकते हैं।

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(घ) रोचकता-निबंध-रचना का उद्देश्य तभी सिद्ध हो सकता है जब पाठक-वर्ग उसे पढ़ने में रुचि ले। अथवा-जो निबंध पाठकों के मन में निर्धारित विषय के संबंध में रुचि जागृत करके उन्हें सम्यक् संतोष प्रदान कर सके वही निबंध सफल और सार्थक माना जा सकता है। यह ठीक है कि निबंध को प्रायः गंभीर, गूढ़ सूक्ष्म विषय को भी भाषाप्रवाह, मुहावरे प्रयोग, इतिहास और समाज से संबंद्ध दृष्टांत-उदाहरण शैली अपनाकर पर्याप्त रोचक बना देता है। इस रोचकता नामक तत्त्व के सहारे ही निबंध पठनीय एवं प्रभावशाली बन पाते हैं।

(ङ) स्वत: संपूर्णता-निबंध पढ़ने के बाद यदि पाठक को निर्धारित विषय के संबंध में हर प्रकार की पूरी जानकारी मिल जाय तो समझना चाहिए कि इस निबंध में स्वत: संपूर्णता का गुण विद्यमान है। किसी विषय पर लिखित निबंध के बाद यदि पाठकों को पूरी संतुष्टि न हो, उसके निबंध स्वतः संपूर्ण नहीं है। वास्तव में निबंधकार से यह आशा की जाती है कि वह निर्धारित विषय के संबंध में यथासंभव पूर्ण जानकारी प्रस्तुत करने का प्रयास करे। निर्धारित विषय के प्रत्येक पहलू एवं पक्ष-विपक्ष के संबंध में दिए जा सकने वाले तर्क-वितर्क पर आधारित विमर्श के उपरांत निर्णयात्मक निष्कर्ष से युक्त निबंध ही स्वतः संपूर्ण माना जा सकता है।

प्रश्न 8.
‘निबंध शैली’ का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए, प्रचलित प्रमुख निबंध-शैलियों का संक्षिप्त वर्णन दीजिए।
उत्तर-
निबंध-शैली का अभिप्राय-निबंध के अंतर्गत निर्धारित विषय को स्पष्ट एवं निर्णयक रूप से प्रतिपादित करने के लिए लेखक जिस विशेष विधि और भाषा संबंधी विशेषताओं को अपनाता है उसे “निबंध की शैली’ कहा जाता है।

कोई निबंधकार अपेक्षित विषय को संक्षेप में ही स्पष्ट कर देने में कुशल होता है। किसी लेखक को प्रत्येक विषय को विस्तार से समझने में ही संतोष प्राप्त होता है। कुछ लेखक छोटे-छोटे वाक्यों में भाव-श्रृंखला जोड़कर काव्यमयी शैली में निर्धारित विषय को स्पष्ट करते चले जाते हैं। इसके विपरीत अनेक लेखक अपने गहन दार्शनिक चिंतन के कारण किसी भी विषय को अनेक विधियों से स्पष्ट करते हैं जिसमें सामान्य पाठक निर्धारित विषय पर मन केन्द्रित नहीं रख पाता।

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निबंध-रचना की प्रमुख शैलियाँ-उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि निबंध-रचना की अनेक शैलियाँ संभव है। उनमें से प्रमुख हैं-
(क) समास शैली,
(ख) व्यास शैली,
(ग) धाराप्रवाह शैली,
(घ) विक्षेप अथवा तरंग शैली।

(क) समास शैली-‘समाज’ का अभिप्राय है-संक्षेप। किसी विषय के विशेष पहलू को कम-से-कम शब्दों में स्पष्ट कर देना इस शैली की प्रमुख विशेषता है। लेखक सूत्र-रूप में अपनी . बात कहकर, विषय-वस्तु का स्वरूप स्पष्ट करता चला जाता है। इसमें प्रायः समस्त शब्दावली (दो या दो से अधिक शब्दों को एक ही शब्द में पिरोकर शब्द-संख्या कम करने की प्रवृत्ति) अपनाई जाती है। वाक्य भी छोटे-छोटे सुगठित होते हैं। बालमुकुंद गुप्त निबंध ‘हँसी-खुशी’ समास शैली का अच्छा उदाहरण है।

(ख) व्यास शैली-‘व्यास’ का अभिप्राय है-विस्तार या फैलाव। यह शैली ‘समास’ शैली के बिल्कुल उलटा है। इसमें लेखक हर विषय को विस्तारपूर्वक समझाने के लिए, इसे हर पहलू की व्याख्या करता है। एक ही विचार-बिन्दु को स्पष्ट करने के लिए वह कई तर्क, उदाहरण आदि प्रस्तुत करता है। सर्वसामान्य पाठकों के लिए एक ऐसी शैली में लिखित निबंध अधिक ग्राह्य और सुबोध होते हैं। श्री अमृतराय द्वारा रचित ‘प्रेमचन्द’ शीर्षक इसी शैली का नमूना है।

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(ग) धाराप्रवाह शैली-ललित निबंधों के लिए यह शैली बहुत उपयुक्त रहती है। इस शैली की पहचान या प्रमुख विशेषता यह है कि इसकी भाषा प्रवाहमयी, अनुप्रास-युक्त, नाद-सौंदर्य से विभूषित एवं सरस-कोमल शब्दावली पर आधारित होती है। पाठक ऐसे निबंध को बड़ी रुचि के साथ पढ़ता हुआ आंतरिक तृप्ति महसूस करता है। रामविलास शर्मा द्वारा रचित निबंध ‘धूल’ और डॉ० विद्यानिवास मिश्र का निबंध ‘पीपल के बहाने’ इस शैली के उत्तम उदाहरण हैं।

(घ) विक्षेप अथवा तरंग शैली-जिन संबंधों में किसी मूर्त, ठोस, प्राकृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक विषय का प्रतिपादन न होकर, केवल सूक्ष्म, अमूर्त रागात्मक अनुभूतियों की अभिव्यंजना अधिक होती है, उनकी शैली में कोई सिलसिलेवार तारतम्य या विचार-प्रवाह प्रतीत नहीं होती, ऐसी अव्यवस्थित सी प्रतीत होने वाली शैली ‘विक्षेप’ या ‘तरंग’ शैली कहलाती है। ‘विक्षेप’ का अभिप्राय है-व्यवधान, बीच-बीच में रुकावट, बाधा या मोड़ आ जाना। जब लेखक एक विचार-बिन्दु को भावावेश के साथ प्रस्तुत कर रहा होता है, तभी कोई और भाव-बिंदु उस विषय की दिशा ही बदलता-सा प्रतीत होता है। बहुत गूढ़ दार्शनिक विषय या भक्ति-वैराग्य, उद्दात्त जीवन-मूल्यों आदि से संबंधित निबंधों में इस प्रकार की शैली देखी जा सकती है। अध्यापक पूर्णसिंह के ‘आचरण की सभ्यता’, ‘प्रेम और मजदूरी’ आदि निबंधों में यही शैली अपनाई गई है।

अन्य उल्लेखनीय निबंध-शैलियाँ-निबंध-रचना की विविध विशेषताओं में एक ‘व्यक्तित्व की छाप’ भी है। हर लेखक की निजी व्यक्तिगत रुचि-अभिरूचि, भाषा-प्रयोग की पद्धति, वाक्य-रचना की विधि अपनी कुछ अलग पहचान लिए रहती है। इसलिए प्रत्येक निबंध में कोई एक सवमाय शैली नहीं अपनाई जा सकती। रचनाकार को अपनी अलग लेखन-विधि के अनुसार किसी निबंध में एक विशेष शैली प्रमुख हो जाती है, पर अन्य शैलियों की झलक भी गौण रूप से उसमें समाविष्ट रहती है। ऐसी विभिनन शैलियों में से चार के नाम उल्लेखनीय हैं-
(क) व्यंग्यात्मक शैली,
(ख) चित्रात्मक शैली,
(ग) आलंकारिक शैली,
(घ) सूक्ति-शैली।

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(क) व्यंग्यात्मक शैली-‘व्यंग्य’ का अभिप्राय है-हास्य-विनोद, उपहास या उपालंभ के रूप में ऐसी महत्त्वपूर्ण बात यह देना जो चेहरे पर मुस्कान बिखेरने के साथ ही मन-मस्तिष्क का ध्यान विषय की गंभीरता की ओर आकृष्ट कर सके। बहुत गंभीर विषय को भी कई लेखक चुटीली के माध्यम से ऐसा सरस, रोचक और प्ररणादायक बना देते हैं कि पाठकों के हृदय पर उसकी अमिट एवं अविस्मरणीय छाप अंकित हो जाती है। इस प्रकार शैली ‘व्यंग्यात्मक’ कहलाती है। अमरकाल का निबंध ‘बउरैया कोदो’ तथा शरद जोशी द्वारा रचित ‘रेल यात्रा’ शीर्षक इसी शैली में रचित है।

(ख) चित्रात्मक शैली-किसी भी विषय का स्पष्ट करते समय, उससे संबंधित पहलुओं उदाहरणों, दृष्टातों आदि की ऐसी सजीव प्रस्तुति करना, कि पाठकों के सम्मुख वह विषयवस्तु, स्थिति, दृश्य चित्रवत प्रत्यक्ष-सा हो जाए-‘चित्रात्मक शैली की विशेषता है। इस शैली का उपयोग पूर्णत: स्वतंत्र रूप से नहीं किया जाता। लेखक किसी भी विषय को हृदयस्पर्शी और प्रभावशाली बनाने के लिए बीच-बीच में स्फूट रूप में सचित्रात्मक भाषा और बिंब-योजना आदि का उपयोग करता है। अत: इस शैली की छटा किसी-भी प्रकार के, किसी भी विषय पर आधारित निबंध में देखी जा सकती है। शरद जोशी द्वारा रचित निबंध ‘रेल-यात्रा’ इसका अच्छा उदाहरण है। सुधीर विद्यार्थी द्वारा रचित ‘क्रांति की प्रतमूर्तिः दुर्गा भाभी’ नामक निबंध में भी इस शैली की झलक दिखाई देती है।

(ग) आलंकारिक शैली-वैसे तो अलंकारयुक्त भाषा का प्रयोग प्रायः काव्य-रचना में ही दिखाई देता है, परंतु गद्यकार भी किसी विचार-बिंदु, वस्तुस्थिति अथवा निर्धारित विषय को भली-भाँति स्पष्ट करने के लिए कभी-कभी अलंकारों का सहारा ले लेते हैं। कहीं लेखक सहज प्रवाह के रूप में ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिनमें किसी विशेष वर्ग की आवृति से ‘अनुप्रास’ और ‘नाद-सौंदर्य’ की सृष्टि अनायास हो जाती है। किसी एक पक्ष को स्पष्ट करने के लिए उसकी समता किसी अन्य विषय से दिखाई जाती है, तब उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों की झलक दिखाई देती है। पुनरुक्ति प्रकाश, विप्सा आदि अलंकारों का सौष्ठत तो प्रायः निबंधों में समान शब्दों की आवृत्ति के कारण समाविष्ट होता ही है। यह शैली निबंध को रोचक एवं प्रभावशाली बनाने में बहुत सहायक होती है।

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(घ) सूक्ति-शैली-भाषा को प्रवाहमयी, प्रभावशाली, सहज-स्मरण और हृदय स्पर्शी बनाने के लिए, जब निबंधकार मुहावरों, लोकोक्तियों एवं सूक्तियों का सहारा लेता है तो वह शैली समग्र-रूप से ‘सूक्ति-शैली’ कहलाती है। साहित्यिक और सामाजिक विषयों से संबंधित निबंधों में इस शैली का प्रचुर प्रयोग दिखाई देता है। विचारशील एवं अनुभवी लेखक किसी तथ्य को स्पष्ट करते समय सूत्ररूप में अनायास ही ऐसे संक्षिप्त प्रस्तुत करता है जो जीवन के किसी भी क्षेत्र में उपयोगी एवं ग्रहणीय प्रतीत होते हैं। यही कथन सूक्तियों के रूप में चिरस्मरणीय एवं प्रेरणादायक बन जाते हैं। यह शैली भी पूर्णतः स्वतंत्र रूप में नहीं अपनाई जा सकती। इसका उपयोग एक सहायक या गौण रचना-विधि के रूप में ही होता है। जैसे-“हँसी भीतरी आनंद का बाहरी चिह्न है।” (हँसी-खुशी बालमुकुंद गुप्त), आत्म-शुद्धि अपने अधिकारी के संघर्ष का अविभाज्य अंग है। (प्रेमचंद : अमृतराय) अथवा-‘धर्म को पकड़े रहो, धर्मों को छोड़ दो।” (कबीर साहब की भेंट : दिनकर)।

प्रश्न 9.
‘उपन्यास’ का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके प्रमुख तत्त्वों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
उपन्यास का स्वरूप-‘उपन्यास गद्य-साहित्य की सबसे रोचक एवं लोकप्रिय विधा है। शुष्क विचार-प्रधान गद्य-रचना की अपेक्षा सरस कथा-साहित्य की ओर सर्वमान्य पात्रों की विशेष रुचि होती है। उपन्यास कथा-साहित्य में सर्वप्रमुख है।

साहित्य में ‘उपन्यास’ शब्द अंग्रेजी के ‘नॉवल’ शब्द के पर्याय के रूप में प्रचलित है। ‘नॉवल’ के अभिप्राय है-‘नया’। उपन्यास में प्रचलित सामाजिक घटनाओं, कथाओं या चरित्रों को कल्पना का रंग देकर नए रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसीलिए बंगला शब्दकोश में ‘उपन्यास’ का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया गया है “श्रोताओं और पाठकों के मनोरंजन के निमित्त लिखा गया कल्पित वृत्तांत ‘उपन्यास’ है।”

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‘उपन्यास’ शब्द का अभिप्राय है-भलीभाँति निकट रखना। उपन्यासकार जीवन का यथार्थ को पाठक-समुदाय के लिए एकदम समीप से प्रस्तुत कर देता है। इस दृष्टि से बेकर नामक विद्वान ने ‘उपन्यास’ की पर्याप्त संगत परिभाषा दी है-“उपन्यास वह रचना है जिसमें किसी कल्पित गद्य-कथा के द्वारा मानव-जीवन की व्याख्या की गई हों।”

इस तथ्य को हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक बाबू श्यामसुंदर दास ने बहुत संक्षेप में इस प्रकार स्पष्ट कर दिया है-“उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है।”

हिन्दी के उपन्यास-सम्राट मुंशी प्रेमचंद उपन्यास में कथा से अधिक चरित्र को महत्व देते हैं। क्योंकि कथा (घटनाएँ) तो वास्तविक में मानवीय स्वभाव और चरित्र के स्पष्टीकरण में सहायक होती है। उनका कथन है कि “मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र मान सकता हूँ। मानव-चरित्र पर प्रकाश डालना ही उपन्यास का मूल तत्त्व है।”

उपन्यास की उपर्युक्त परिभाषाओं को ध्यान में रखकर, उसके स्वरूप को सरलता से समझा जा सकता है। इस दृष्टि से बाबू गुलाबराय द्वारा उपन्यास के स्वरूप को इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है . “उपर्युक्त कार्य-कारण श्रृंखला में बँधा हुआ वह गद्य-कथानक है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक विस्तार तथा पेंचीदगी के साथ वास्तविक जीवन का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों से संबंधित वास्तविक या काल्पनिक घटनाओं द्वारा मानव-जीवन के साथ रसात्मक रूप से उदघाटन किया जाता है।”

उपन्यास के तत्त्व
उपन्यास हमारे जीवन का ही वास्तविक प्रतिरूप होता है। जीवन में अनेक प्रकार की विविधता होने के कारण उपन्यास में भी वैविध्य होना स्वाभाविक है। किसी भी उपन्यास में यद्यपि घटनाओं-प्रतिघटनाओं का ताना-बाना उसके कथा-विन्यास का ढाँचा बनाता है, परंतु वे घटनाएँ किन्हीं पात्रों के माध्यम से साकार होती हैं। इन घटनाओं, पात्रों तथा उपन्यास में विचारों आदि की प्रस्तुति के लिए उपन्यासकार तदनुसार भाषा एवं अभिव्यंजना-विधियों का सहारा लेता है। साथ ही, उपन्यास की कथा, पात्र-योजना या भाषा किसी स्थान, समय और युग-विशेष का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रकार उपन्यास-रचना में अनेक पक्ष सहायक होते हैं। इन्हीं को ‘उपन्यास के तत्त्व’ कहते हैं।

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उपर्युक्त विवरण के आधार पर मुख्य रूप से उपन्यास के ये सात तत्व साहित्य-समीक्षकों ने बताएँ हैं-
(क) कथानक,
(ख) पात्र एवं चरित्र-चित्रण,
(ग) संवाद (कथनोपकथन),
(घ) भाषा-शिल्प,
(ङ) देश-काल वातावरण,
(च) उद्देश्य,
(छ) नामकरण।

(क) कथानक-विभिन्न घटनाओं-प्रतिघटनाओं और पात्रों के क्रिया-व्यापार आदि के संयोग से उपन्यास की जो ‘कहानी’ बनती है उसे ‘कथानक’ (या ‘कथावस्तु’) कहा जाता है। यही कथानक उपन्यास रचना का मूल आधार होता है। इसीलिए अंग्रेजी में इसे ‘प्लॉट’ कहते हैं।

कथानक में स्वाभाविकता (विश्वसनीयता या संभाव्यता) आवश्यक है। जीवन में जो कुछ जैसा वास्तव में, स्वाभाविक रूप से होता है, या हो सकता है-वैसा ही कथानक उपन्यास को पठनीय और विश्वसनीय बनाता है। इसके अतिरिक्त कथानक की दूसरी कसौटी है-रोचकता। कथा-विकास में पाठकों का कैतूहल निरंतर बना रहे, इसका ध्यान उपन्यासकार अवश्य रखता है।

इसके लिए घटनाओं का नाटकीय मोड़, जिज्ञासा-मूलक तत्व और मार्मिक प्रसंगों का समावेश उसकी रोचकता बनाए रखने में सहायक होता है। कथानक की सर्वप्रमुख कसौटी है उसकी सुगठितता। उपन्यास की हर घटना परस्पर इस प्रकार गुंथी हुई होनी चाहिए कि कथा-विन्यास में सूत्रबद्धता बनी रहे।

(ख) पात्र एवं चरित्र-चित्रण-पात्र उपन्यास के कथानक रूपी शरीर को गति प्रदान करने वाले अवयव (अंग) है। पात्रों के क्रिया-कलाप ही कथानक का स्वरूप तैयार करते हैं। पात्रों की सजीवता और सक्रियता उपन्यास को रोचक एवं प्रभावशाली बनाए रखती है। आवश्यक है कि उपन्यास के पात्र हमारे जाने-पहचाने, आस-पास के सामाजिक व्यक्तियों जैसे होने चाहिए साथ-ही, उपन्यास में पात्रों की सार्थकता उनके चरित्र पर निर्भर होती है।

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पात्रों के रागात्मक मनोवेगों के आधार पर निर्मित उनके स्वभाव, आचरण और व्यवहार के माध्यम से उनकी चारित्रिक विशेषताओं की रूपरेखा प्रत्यक्ष होती है। मानव-स्वभाव इन्हीं विविध पहलुओं का यथार्थ चित्रण ही ‘चरित्र-चित्रण’ कहलाता है।

(ग) संवाद (कथनोपकथन)-लेखक उपन्यास के कथानक का एक ढाँचा-सा बनाकर, उसके पूर्णता प्रदान करने के लिए पात्रों के आपसी कथनोपकथनों का संयोजन इस प्रकार करता है जिससे पाठक कथानक तथा पात्रों के चरित्र से भलीभाँति परिचित होते रहते हैं। पात्रों का सही अलाप-संलाप ‘संवाद’ कहलाता है। उपन्यास में वही संवाद सार्थक हो पाते हैं जिनसे या तो कथानक के विकास और विन्यास में सहायक मिले अथवा जिनके माध्यम से किसी पात्र के चरित्र का कोई पहलू उजागर हो सके। उपन्यास में समाविष्ट संवाद, संक्षिप्त, सशक्त और हृदयस्पर्शी होना चाहिए।

(घ) भाषा-शिल्प-उपन्यास की ‘भाषा’ की विफलता इस बात पर निर्भर है कि वह उपन्यास के अंतर्गत समाविष्ट पात्रों के स्तर, स्वभाव आदि के अनुकूल हो। ‘शैली’ का संबंध उपन्यासकार की व्यंजना-पद्धति से है। कोई उपन्यास वर्णनात्मक शैली में रचा जाता है। किसी उपन्यास को लेखक किसी विशिष्ट पात्र की ‘आत्मकथा’ के रूप में प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त कुछ उपन्यासकार को पठनीय और प्रभावशाली बनाने के लिए आलंकारिक, चित्रात्मक प्रतीकात्मक आदि विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते हैं।

(ङ) देश-काल वातावरण (युग-परिवेश)-उपन्यास का कथानक जिस परिवेश (पृष्ठभूमि, वातावरण, परिस्थितियों) में घटित होता है उसका संबंध किसी-न-किसी स्थान और समय-विशेष से होता है। कथानक की प्रस्तुति उसी स्थान और समय के अनुरूप होनी चाहिए। कथानक से संबद्ध पात्रों और उनके चरित्र-स्वभाव, भाषा-प्रयोग, दृष्टिकोण आदि भी संबद्ध स्थान और समय अर्थात् युग-परिवेश को समझने में सहायक होते हैं।

(च) उद्देश्य-उपन्यास का कथानक जिन घटनाओं-प्रतिघटनाओं के ताने-बाने से निर्मित होता है उसकी अन्विति अंततः किसी-न-किसी परिणाम के रूप में होती है। वह परिणाम जिस विचार, दृष्टिकोण अथवा चिंतन का परिचायक होता है वही उस उपन्यास का ‘उद्देश्य’ कहलाता है। साथ ही, उपन्यास के पात्र जो कुछ कहते, करते या सोचते हैं, उसके पीछे उनका कोई-न-कोई मंतव्य रहता है। यही मंतव्य समग्र रूप से उपन्यास के उद्देश्य की ओर संकेत करता है।

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उल्लेखनीय है कि उपन्यासकार जिस उद्देश्य या संदेश को पाठक-समुदाय तथा संप्रेषित करने के लिए कोई उपन्यास लिखता है, उसे वह स्वयं उपन्यास में उपदेश के रूप में अपनी ओर से प्रस्तुत नहीं करता। वह जो कुछ भी अपने पास देखता है, अनुभव करता है, उससे जो निष्कर्ष निकलता है, उससे उसके दृष्टिकोण को एक निश्चित दिशा मिलती है। वह चाहता है कि उसकी धारणा, अन्य लोगों तक भी पहुँचे। इसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए वह कुछ घटनाओं और पात्रों का चयन कर, उन्हें अपनी सोच के अनुसार ढालकर, उनके माध्यम से विचार-अभिव्यक्त करता है।

(छ) नामकरण-उपन्यास की शशक्तता, लोकप्रियता और पठनीयता से उसके नाम-विशेष (शीर्षक) का भी विशेष योगदान होता है। प्रेमचन्द के ‘गबन’ या ‘गोदान’ उपन्यास के नाम से ही उसमें चित्रित मूल विचार-सूत्र (थीम) अथवा समस्या का संकेत मिल जाता है। वृंदावनलाल वर्मा का उपन्यास ‘झाँसी की रानी’ भारत का इतिहास की एक वीरांगना का बिंब अनायास ही मन-मस्तिष्क में उभार देता है।

उपन्यास का नामकरण व्यक्ति-विशेष, स्थान-विशेष, घटना-विशेष या विचार-विशेष किसी भी आधार पर हो सकता है। आवश्यक है कि वह नामकरण उपन्यास के कथानक, चरित्र-विन्यास, युग-परिवेश तथा उद्देश्य के अनुरूप पूर्णतया सार्थक हो।

प्रश्न 10.
उपन्यास के प्रमुख प्रकार (भेद या रूप) कौन-कौन से हैं? उनका संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-
प्रत्येक उपन्यास में यद्यपि कथानक, पात्र, चरित्र, युग-परिवेश एवं उद्देश्य आदि तत्व समान रूप से विद्यमान रहते हैं तथापि इसमें से कोई एक तत्त्व प्रमुख होता है तथा अन्य तत्त्व गौण रूप से उसी एक प्रधान तत्त्व के सहायक होते हैं। किसी तत्त्व की इसी प्रमुखता के कारण उपन्यासों के विविध रूप या प्रकार निर्धारित होते हैं।

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कथानक की दृष्टि से तीन प्रकार के उपन्यास होते हैं-

  • चरित्रप्रधान
  • मनोवैज्ञानिक
  • आँचलिक।

उद्देश्य की दृष्टि से उपन्यास मुख्यतः तीन प्रकार के हो सकते हैं-
(क) ऐतिहासिक,
(ख) सामाजिक,
(ग) राजनैतिक।

पात्र एवं चरित्र की दृष्टि से प्रायः दो प्रकार के उपन्यास हैं-
(क) समस्या प्रधान
(ख) वैज्ञानिक।

उपर्युक्त विविध उपन्यास रूपों का संक्षिप्त परिचय आगे दिया जा रहा है।

(क) ऐतिहासिक उपन्यास-जिस उपन्यास की मुख्य कथा का स्रोत या आधार कोई ऐतिहासिक प्रसंग या पात्र हो, वह ‘ऐतिहासिक उपन्यास’ कहलाता है। जैसे-वृदावन लाल वर्मा द्वारा रचित गढ़कुंदार, विराट् की पद्मिनी, मृगनयनी। उल्लेखनीय है कि ऐतिहासिक उपन्यास कोरा इतिहास नहीं होता, उसमें लेखक कल्पना एवं मौलिक उद्भावना की भी समुचित प्रयोग नहीं करता है जिससे उपन्यास में इतिहास का कोई विशेष पक्ष एवं रोचक कथानक के माध्यम से विशेष उजागर हो जाता है।

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(ख) सामाजिक उपन्यास-उपन्यास के पात्र-रूप में चित्रित व्यक्ति-मूलतः समाज के ही घटक या अवयव होते हैं जब उनके माध्यम से उपन्यासकार कतिपय सामाजिक पहलुओं, पारिवारिक अंत: संबंधों, विभिन्न प्रीति-रिवाजों अथवा परंपराओं, को उपन्यास के कथा-विन्यास या चरित्र-चित्रण का केन्द्र बनाता है तो वह ‘सामाजिक उपन्यास’ पृष्टभूमि पर आधारित नहीं होते। इनका कथानक, पात्र-विन्यास आदि पूर्णतः काल्पनिक होता है।

(ग) राजनैतिक उपन्यास-आधुनिक युग में राजनैतिक कारणों से जीवन और समाज में अनेक बदलाव आए हैं। लोकतंत्र और चुनाव-पद्धति का राजनीति से सीधा संबंध है। जब राजनीति के कारण कथानक की दिशा बदल जाती है, चरित्र का स्वरूप निर्धारित होता है अथवा किसी विशेष राजनैतिक विचारधारा से प्रभावित विचार जब परे उपन्यास में व्याप्त रहते हैं तब वह उपन्यास ‘राजनैतिक’ वर्ग की कोटि में आ जाता है।

(घ) चरित्र-प्रधान-उपन्यास-जिस उपन्यास में घटनाओं की बहुलता होकर, कुछ विशेष पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को ही उजागर किया गया हो वह ‘चरित्र-प्रधान-उपन्यास’ कहलाता है। इस प्रकार के उपन्यासों का नामकरण भी प्रायः किसी विशेष पात्र के नाम के आधार पर किया जाता है। जैसे-चारु चंद्रलेख, अनामदास का पौधा आदि। चरित्र प्रधान उपन्यास कथानक की दृष्टि से ऐतिहासिक, सामाजिक या राजनैतिक किसी भी प्रकार का हो सकता है।

(ङ) मनोवैज्ञानिक उपन्यास-यह एक प्रकार से चरित्र प्रधान उपन्यासों का ही एक रूप है। इसमें रचनाकार पात्रों के मानसिक द्वंद्व को उभारने का विशेष प्रयत्न करता है। घटनाए गौण होती है। उनका विन्यास पात्रों को किसी मानसिक प्रवृत्ति, विकृत या अंतर्दशा के चित्रण-हेतु सहायक रूप में किया जाता है। जैनेन्द्र-रचित ‘सुनिता’, इलाचन्द्र जोशी का ‘संन्यासी’ तथा अज्ञेय-रचित ‘शेखरः एक जीवनी’ आदि मनोवैज्ञानिक उपन्यास के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।।

(च) आँचलिक उपन्यास-‘अंचल’ का अभिप्राय है-किसी विशेष क्षेत्र के विशेष वर्ग का पूर्णतया स्थानीय परिवेश। जिस उपन्यास में किसी ऐसे अंचल के पात्रों की गतिविधियों, मानसिक स्थितियों आदि की उन्हीं की स्थानीय भाषा-शैली में चित्रण किया गया हो, वह ‘आँचलिक उपन्यास’ कहलाता है। फणीश्वर नाथ रेणु का ‘मैला आँचल’ उपन्यास इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।

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(छ) समस्या-प्रधान-उपन्यास-वैसे तो प्रत्येक उपन्यास में किसी न किसी सामाजिक राजनैतिक या धार्मिक समस्या की झलक अवश्य मिल जाती है, परंतु जिस उपन्यास का मूल उद्देश्य ही किसी बहुचर्चित समस्या का वास्तविक उजागर करके, उसके विभिन्न पहलुओं, कारणों, परिणामों एवं तत्संबंधी समाधान के उपायों आदि की चर्चा-परिचर्चा कथा-विन्यास अथवा पात्रों के माध्यम से की गई हो, वह ‘समस्या-प्रधान’ उपन्यास कहलाता है। प्रेमचन्द्र द्वारा रचित उपन्यास ‘गबन’ एक ऐसा ही उपन्यास है।

(ज) वैज्ञानिक उपन्यास-कुछ लेखक अब विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों को केन्द्र बनाकर ऐसे उपन्यासों की रचना करने लगे हैं जो चमत्कारी घटनाओं के माध्यम से विशेष शक्तिशाली या ऊर्जावान पात्रों की झलक प्रस्तुत करते हैं। हिन्दी में ऐसे मौलिक उपन्यास लिखने की प्रवृत्ति बहुत कम है। कुछ बाल-उपन्यास अवश्य वैज्ञानिक परिवेश की पृष्ठभूमि पर लिखे जा रहे हैं। अधिकतर वैज्ञानिक उपन्यास अंग्रेजी में प्रस्तुत किए गए है। हाँ, भारत के विज्ञान-पुरुष श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम यद्यपि मूलतः कोई उपन्यासकार नहीं हैं, परंतु उनके द्वारा लिखित ‘अग्नि की उड़ान’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक एक वैज्ञानिक उपन्यास जैसी विशेषताएँ लिए हुए है।

यह भी मूलत: अंग्रेजी में लिखी गई पुस्तक का हिन्दी-अनुवाद है।

प्रश्न 11.
उपन्यास और कहानी में अनार संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपन्यास और कहानी से अंतर-दोनों गद्य-साहित्य की सर्वाधिक लोकप्रिय कथात्मक विधाएँ है। दोनों में कथानक, पात्र, संवाद, भाषा-शिल्प, वातावरण और उद्देश्य नामक तत्त्व समान रूप से विद्यमान होते हैं, परंतु स्वरूप, आकार, प्रभावान्विति तथा संवेदता की दृष्टि से इन विधाओं में पर्याप्त अंतर है।

कुछ लोग केवल सुविधा के लिए ‘उपन्यास’ को कहानी का विस्तृत रूप’ अथवा ‘कहानी’ को ‘उपन्यास का लघु रूप’ कह देते हैं जो उचित नहीं। इस संबंध में हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यशास्त्री बाबू गुलाबराय ने लिखा है “कहानी को छोटा उपन्यास और उपन्यास को बड़ी कहानी कहना ऐसा ही अंसगत है जैसा चौपाया होने की समानता के आधार पर मेढ़क को छोटा बैल और बैल को बड़ा मेढ़क कहना। दोनों के शारीरिक संस्कार और संगठन में अंतर है। बैल चारों पैरों पर समान बल देकर चलता है, तो मेढ़क उछल-उछलकर रास्ता तय करता है। उसी प्रकार कहानीकार बहुत-सी जमीन छोड़ता हुआ छलांग मारकर चलता है। दोनों के गतिक्रम में भेद हैं।”

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उपर्युक्त कथन के आधार पर उपन्यास एवं कहानी के अंतर को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है

(क) उपन्यास का क्षेत्र और आयाम विस्तृत होता है। कहानी का संबंध बहुत ही सीमित क्षेत्र से होता है। कहानी किसी एक स्थल, गाँव, खेत, नदी-तट, कुटिया तक सीमित हो सकती है। उसमें केवल कोई एक आयाम अथवा उस आयाम का भी कोई एक कोण (पहलू) ध्यान का केन्द्र बनता है।

(ख) उपन्यास के कथानक में मुख्य कथा-सूत्र के साथ-साथ अनेक उपकथाएँ और सहकथाएँ जुड़कर उसके फलक को व्यापक बना देती है। उसमें मानव-समुदाय के विभिन्न वर्ग, व्यक्ति और रूप हो सकते हैं। कहानी में कथा का केवल एक सूक्ष्म-सा बिन्दु होता है। वास्तव में, कहानी के अंतर्गत कथा-विकास या कथा-विन्यास जैसी तो कोई बात ही नहीं होती। केवल कोई एक घटना स्थिति अथवा मनोदशा का ही चित्रण कथा या कथांश का अभास देता है।

(ग) उपन्यास में पात्रों की विविधता तथा चरित्रों की अनेकरूपता आवश्यक है। तभी वह मानव-जीवन की बिहंगम झाँकी प्रस्तुत कर पाता है। कहानी में प्रायः किसी एक पात्र तथा उसके
चरित्र के भी किसी एक पहलू की झलक मात्र होती है।

(घ) उपन्यास में कथा-पटल की विराटता तथा पात्रों एवं चरित्रों की विविधता के कारण बहुत से विचार-बिन्दु बिखरे रहते हैं। उन्हीं बिन्दुओं के परस्पर समीकरण अथवा समन्वय-संयोजन के माध्यम से उपन्यास का बहुआयामी उद्देश्य स्पष्ट हो पाता है। कहानी में उद्देश्य की अपेक्षा किसी मानवीय संवेदना को उभारने का प्रयास रहता है।

(ङ) उपन्यास में देशकाल, और युग-परिवेश का दयरा बहुत विस्तृत होता है। प्रकृति के विविध रूप, सृष्टि के अनेक दृश्य, देश, नगर, गाँव, पर्वत, सागर, वन-उपवन आदि बहुत कुछ उपन्यास की परिधि में समाहित हो सकता है। जबकि कहानी में इतनी गुंजाइश नहीं होती। किसी स्थल का कोई एक छोर या अंचल ही उसमें आधार पटल बन पाता है।

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(च) उपन्यास में भाषा के विविध रूप और विविध प्रयोग संभव हैं। पात्रों के वर्ग एवं व्यक्तिगत स्तर के अनुसार भाषा की विभिन्न भंगिमाएँ उपन्यास में प्रदर्शित होना स्वाभाविक है। घटना-वैविध्य तथा परिवेश की व्यापकता के कारण उपन्यास में एक-से अधिक शैलियाँ समन्वित रूप से प्रयुक्त होती दिखाई देती हैं। कहानी में प्रयोगात्मक का कोई अवसर ही नहीं होता। मुख्य संवेदना-बिन्दु के अनुकूल भाषा का सहज-सुबोध रूप ही वस्तुस्थिति के चित्रण का आधार बनता है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित गद्य-विधाओं के संबंध में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-जीवनी, आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र, साक्षात्कार (भेंटवार्ता), फीचर, रिपोर्ताज, पत्र-साहित्य, यात्रा-वृत्त, डायरी।
उत्तर
जीवनी
जिस गद्य-रचना में किसी विशेष व्यक्ति का संपूर्ण जीवन-वृत्तांत प्रस्तुत किया गया हो उसे ‘जीवनी’ कहते हैं। इस विधा का साहित्य की दृष्टि से अपना एक विशेष महत्त्व है। गद्य की. अन्य विधाएँ प्रायः मनोरंजन एवं थोड़े-बहुत संदेश के लिए रची जाती है। जबकि ‘जीवनी’ पाठकों के मन में नई-चेतना और स्फूर्ति पैदा करती है। बड़े-बड़े कर्मयोगी महापुरुषों, स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, वैज्ञानिकों, श्रेष्ठ कलाकारों तथा साहित्य-साधकों, आदियुग-पुरुषों की ‘जीवनी’ हर पाठक को एक नया मार्ग, उत्साह और उद्बोधन प्रदान करती है।

‘जीवनी’ के स्वरूप को संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है-

“जीवन एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति के संपूर्ण जीवन अथवा उसके किसी महत्त्वपूर्ण अंग का वृत्तंतत ऐतिहासिक एवं प्रेरक शैली में प्रस्तुत किया गया हो।”

उल्लेखनीय है कि ‘जीवनी’ में किसी विशिष्ट व्यक्ति का केवल सामान्य जीवन-परिचय नहीं होता, उसमें उसका ‘चरित्र’ भी स्वाभाविक रूप से उद्घाटित हो जाता है। वास्तव में ‘जीवनी’ में ‘जीवन’ कम और ‘चरित्र’ अधिक होता है।

जीवनी की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(क) जीवनी मानव-केन्द्रित होती है। क्योंकि जीवनी वास्तव में ‘मानव’ के लिए किया गया मानव का अध्ययन है।

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(ख) ‘जीवनी’ एक स्वतः संपूर्ण गद्य रचना होनी चाहिए। जिस व्यक्ति की जीवनी लिखी जाए, उसके संबंध में पहले लेखक को हर प्रकार की पूरी जानकारी गहराई के साथ प्राप्त कर लेनी चाहिए।
अपूर्ण या अनुमानित विवरण ‘जीवनी’ के महत्त्व को समाप्त कर देता है।

(ग) संतुलित विवरण ‘जीवनी’ की एक अन्य विशेषता है। लेखक की जीवनी के नायक के जीवन के वही प्रसंग चुनने चाहिए जो सर्वसामान्य पाठकों के लिए आदर्श, प्रेरक अथवा किसी जीवन-सत्य को उद्घाटित करते हों।

(घ) ‘जीवनी’ का विवरण पूर्णतः ‘क्रमबद्ध’ होना चाहिए। जैसे-जैसे नायक के जीवन का क्रमिक विकास हुआ, उसमें क्रमानुसार जो उल्लेखनीय अनुभव और तथ्य जुड़ते गए, उसी क्रम से ‘जीवनी’ में उनका विवेचन किया जाना उचित है।

(ङ) ‘जीवनी’ की सर्वप्रमुख विशेषता है-‘निपक्षता’ उसमें न तो नायक की अति प्रशंसा के पुल बाँधे गए हों, न ही केवल दोष खोज-खोज कर प्रस्तुत किए गए हों। मानव-जीवन गुण-दोषों का समुच्चय है। मनुष्य भूलों से सीखता है, गुणों के सहारे उत्कर्ष प्राप्त करता है।

‘जीवनी’ में इस प्रकार के उतार-चढ़ाव निष्पक्ष रूप से यथासंभव पूरी सच्चाई के साथ प्रस्तुत किए जाने चाहिए।”

हाल ही में प्रकाशित ‘विकसित भारत के स्वप्नद्रष्टा डॉ. अबुल कलाम “जीवनी” विधा का उत्तम उदाहरण है। युगपुरुष नेहरु, युगचारण ‘दिनकर’, किसान से राष्ट्रपति (राजेन्द्र प्रसाद), कलम का सिपाही (प्रेमचंद) आदि हिन्दी के बहुचर्चित जीवनी-ग्रंथ हैं।

आत्मकथा
‘आत्मकथा’ जीवनी का ही एक अपरूप है। जीवनी में नायक जीवन-वृत्त कोई अन्य तटस्थ लेखक प्रस्तुत करता है, जबकि ‘आत्मकथा’ में लेखक स्वयं अपना जीवन-वृत्तांत, अपने अनुभव और निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए पाठकों को अपना सहचिंतक बनाने का प्रयास करता है।

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‘जीवनी’ की अपेक्षा ‘आत्मकथा’ का साहित्यिक और सामाजिक महत्त्व कहीं अधिक है।

आत्मकथा-लेखक अपने संबंध में जितना कुछ जान सकता है कि दूसरों को बता सकता है उतना अन्य लेखक न जान सकता है और न बता सकता है। ‘आत्मकथा’ में लेखक का पाठकों से सीधा संवाद एवं साक्षात्कार संभव है। इसमें आत्मीयता का पुट होने के कारण आद्योपान्त कुतूहल और रोचकता का संस्पर्श बना रहता है।

दूसरी ओर ‘जीवनी’ की अपेक्षा ‘आत्मकथा’ की रचना-प्रक्रिया बड़ी साधनापूर्ण है। स्वयं अपने बारे में लिखना ‘तलवार की धार’ पर चलने के समान है। अपने गुण-ही-गुण बताना जितना अनुचित है उतना ही असंगत केवल अपने दोषों की चर्चा करते रहना है। पं० जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखित ‘मेरी कहानी’ नामक आत्मकथा में इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया है-“किसी आदमी का अपने बारे में कुछ लिखना कठिन भी है और रोचक भी। क्योंकि प्रशंसा या निंदा लिखना खुद हमें बुरा लगता है।”

तात्पर्य है कि ‘आत्मकथा’ की श्रेष्ठता की सबसे बड़ी कसौटी है-“संतुलित प्रस्तुति” हिन्दी में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की आत्मकथा, हरिवंशराय बच्चन द्वारा लिखित ‘नीड़ का निर्माण फिर-फिर’ तथा राहुल सांकृत्यायन-कृत ‘मेरी जीवन-यात्रा’ नामक आत्मकथा-ग्रंथ प्रसिद्ध हैं।

‘जीवनी’ और ‘आत्मकथा’ में अंतर निम्नलिखित है-
(क) ‘जीवन’ में किसी विशेष व्यक्ति का जीवन-वृत्त कोई अन्य लेखक प्रस्तुत करता है। आत्मकथा में नयाक द्वारा स्वयं अपने जीवन के प्रमुख प्रसंग, अनुभव एवं निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाते हैं।
(ख) ‘जीवनी’ एक प्रकार से ‘विषयगत’ (ऑब्जेक्टिव) रचना होती है, जबकि ‘आत्मकथा’ को ‘विषयिगत’ (सब्जेक्टिव) रचना माना जा सकता है।।
(ग) ‘जीवनी’ में अधिकतर वर्णनात्मक शैली होने के कारण, अन्य शैलियों का समावेश अधिक नहीं हो सकता। दूसरी ओर ‘आत्मकथा’ में ‘संस्मतरणात्मक’ शैली, ‘चित्रात्मक’ शैली, . ‘पूर्वदीप्ति’ शैली, ‘चेतना-प्रवाह’ शैली आदि का समावेश भी संभव है।

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संस्मरण
“स्मृति के आधार पर किसी विषय, व्यक्ति, स्थिति आदि के संबंध में लिखित सरस-गद्य रचना ‘संस्मरण’ कहलाती है।”

‘संस्मरण’ में ‘आत्मकथात्मकता’ का थोड़ा-बहुत संस्पर्श भी रहता है, क्योंकि रचनाकार अपने निजी संपर्क और अनुभव में आए प्रसंग ही प्रस्तुत करता है। परंतु यह तो पूरी आत्मकथा या आत्मचरित न होकर उसके किसी एक अंश मात्र की झलक प्रस्तुत करता है। वैसे तो कई अन्य गद्य-विधाओं में भी ‘संस्मरण’ का उपयोग एक शैली के रूप में हो सकता है। जैसे ‘संस्मरणात्मकं निबंध’ आदि। ‘रेखाचित्र’ और ‘यात्रा-वृत्त’ में भी रचनाकार संस्मरण का सहारा लेता है। परंतु अब ‘संस्मरण’ को एक अलग स्वतः संपूर्ण विधा माना जाता है। श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा रचित ‘पथ के साथी’ संस्मरण-विधा का उत्तम उदाहरण है। रामवृक्ष बेनीपुरी ने गाँधीजी के सान्निध्य में रहकर प्राप्त अनुभवों को विभिन्न मार्मिक एवं प्रेरक संस्मरणों के रूप में प्रस्तुत किया है।

रेखाचित्र
‘रेखाचित्र’ एक ऐसी गद्य-विधा है जिसमें रचनाकार किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान अथवा दृश्य के बहिरंग स्वरूप का एक खाका-सा गिने चुने शब्दों में प्रस्तुत कर देता है। ‘हिन्दी-साहित्य कोश’ में ‘रेखाचित्र’ का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया गया है-“रेखाचित्र किसी व्यक्ति, वस्तु, घटना या भाषा का कम-से-कम शब्दों में मर्मस्पशी, भावपूर्ण और सजीव अंकन है।”

‘रेखाचित्र’ की कसौटी के रूप में मुख्य रूप से ये गुण या विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं

(क) एकात्मक विषय-रेखाचित्र में विविधता नहीं होती। केवल किसी एक ही व्यक्ति, एक ही दृश्य, एक ही स्थान, वस्तु आदि का बहिरंग स्वरूप इस प्रकार चित्रित कर दिया जाता है जिससे पाठक उससे आत्मीयता अनुभव करने लगते हैं।

(ख) संवेदनशीलता-रेखाचित्र विधान-प्रधान न होकर प्रायः भावना-प्रधान होता है। उसमें किसी भी विषयवस्तु का चित्रण इस प्रकार किया जाता है जो पाठकों की रागात्मक संवेदनाओं को स्पर्श एवं जागृत करता है।

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(ग) संक्षिप्तता-‘रेखाचित्र’ की सर्वप्रमुख कसौटी है। इसका आकार यथासंभव छोटा होना चाहिए तभी प्रतिपाद्य विषय का स्वरूप उसमें सजीवता से आभासित हो सकेगा।

संस्मरण’ और रेखाचित्र’ में अंतर-
(क) ‘संस्मरण’ प्रायः ‘विषयिगत’ (सब्जेक्टिव) होता है। इसमें लेखक के निजी, व्यक्तिगत, अंतरंग अनुभव स्मृतियों के माध्यम से प्रस्तुत किए जाते हैं। दूसरी ओर ‘रेखाचित्र’ में रचनाकार अपने से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति, वस्तु, स्थान आदि की झलक प्रस्तुत करता है। अत: उसे ‘विषयगत’ (ऑग्जेक्टिव) रचना माना जा सकता है।

(ख) ‘संस्मरण’ में रचनाकार प्रायः किसी विख्यातः लोकप्रिय एवं महान व्यक्ति-संबंधी स्मृतियाँ प्रस्तुत करता है। रेखाचित्र किसी सामान्य व्यक्ति, घटना अथवा स्थिति के संबंध में भी हो सकता है।

(ग) ‘संस्मरण’ में वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, आलंकारिक अथवा प्रतीकात्मक शैली में से किसी एक का या एकाधिक का समन्वित उपयोग हो सकता है। परंतु ‘रेखाचित्र’ में प्रायः ‘चित्रात्मक’ शैली ही सर्वप्रमुख रहती है।

साक्षात्कार (भेंटवार्ता)
अंग्रेजी पत्रकारिता में प्रचलित ‘इंटरव्यू’ नामक विधा के अनुसरण पर हिन्दी में भी ‘साक्षात्कार’ अथवा ‘भेंटवार्ता’ नामक विधा की परम्परा शुरू हुई। परंतु ‘साक्षात्कार’ केवल ‘भेंटवार्ता’ का अभिप्राय स्पष्ट करता है, जबकि ‘इंटरव्यू’ में ‘व्यू’ (विचार) तत्त्व का भी समावेश है। इसलिए इस विधा के लिए ‘भेंटवार्ता’ शब्द अधिक उपयुक्त है।

इसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति से भेंट करके किसी विशेष विषय, विचारधारा, समस्या, चर्चित मुद्दे आदि पर बातचीत की जाती है। इस प्रकार उस विशेष व्यक्ति के तत्संबंधी विचार एवं दृष्टिकोण से पाठकों को अवगत कराना ही इस विधा का लक्ष्य होता है। हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यशास्त्री और समीक्षक डॉ. नागेंद्र ने ‘भेंटवार्ता’ (या ‘साक्षात्कार’) का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया है

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“साक्षात्कार (भेंटवार्ता) से अभिप्राय उस रचना से है, जिसमें लेखक किसी व्यक्ति-विशेष के साथ भेंट करने के बाद, प्रायः किसी निश्चित प्रश्नमाला के आधार पर उसके व्यक्तित्त्व, विचार और दृष्टिकोण आदि के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करता है और फिर गृहीत-प्रभाव या निष्कर्ष को लेखबद्ध रूप दे देता है।”

स्पष्ट है कि इस विद्या के अंतर्गत मुख्यतया चार आयाम (अवयव) समाविष्ट रहता हैं-

(क) वार्ताकार-जो किसी विषय पर, किसी विशेष (प्रख्यात या चर्चित) व्यक्ति से भेंट और बातचीत करता है। वह प्राय: कोई पत्रकार (किसी पत्र या पत्रिका का संपादक, उपसंपादक, संवाददाता या स्तंभ-लेखक) होता है। अब कुछ स्वतंत्र लेखक भी इस विधा के माध्यम से लेखन-कार्य करने लगे हैं।

(ख) भेंटवार्ता को केन्द्र : विशिष्ट व्यक्ति-भेंटवार्ता का नायक सर्वसामान्य नहीं होता। समाज, राजनीति, विज्ञान, प्रशासन, शिक्षा धर्म, कला आदि किसी क्षेत्र में प्रतिष्ठित या चर्चित अथवा किसी विषय के विशेषज्ञ व्यक्ति को ही प्राय: भेंटवार्ता के लिए चुना जाता है। वर्तमान लोकतंत्र में, अब इस धारण में कुछ परिवर्तन आ गया है।

अब भेंटवार्ताकार किसी क्षेत्र के सामान्य लोगों से भी भेंट करके ‘लोक-मत’ की व्यंजना करना उचित मानते हैं। परंतु ऐसी. (सामान्य व्यक्तियों की) भेंटवार्ता का महत्त्व केवल एक समय तक सीमित रहता है-जब तक भेंट के विषय-महँगाई, बिजली-पानी की समस्या, बजट आदि की चर्चा ताजा रहती है। परंतु विशिष्ट व्यक्तियों या विशेषज्ञों से की गई भेंटवार्ताएं स्थायी महत्त्व और दूरगामी प्रभाव वाली होती है।

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(ग) वार्ता का विषय या मुद्दा-भेंटवार्ता का आयोजन उतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितना महत्त्वपूर्ण है-भेंटवार्ता से प्राप्त प्रभावों या निष्कर्षों को कम-से-कम शब्दों में, संतुलित रूप से प्रस्तुत करना। भेंटवार्ता संबंधी विवरण में वार्ताकार को अपनी निजी पसंद-नापसंद की अपेक्षा उस व्यक्ति के अभिमत को रेखांकित किया जाना चाहिए जिसके विचार करने के लिए भेंटवार्ता आयोजित हो। उसमें अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए और न ही कोई अदल-बदल। यथातथ्यता का निर्वाह बहुत आवश्यक है। साथ ही प्रस्तुति रोचक एवं सरस हो तो भेंटवार्ता स्थायी साहित्यिक महत्त्व से युक्त हो जाएगी।

फीचर
‘फीचर’ एक अभिनव गद्य-विधा है। यह विधा भी भेंटवार्ता’ की भाँति पत्रकारिता से शुरू हुई और अब एक प्रचलित एवं महत्त्वपूर्ण साहित्य-विधा के रूप में मान्य है। “किसी सत्य घटना अथवा समसामयिक ज्वलंत विषय के संबंध में विचार-प्रधान परंतु रोचक एवं प्रभावशाली वर्णन-विवेचन ‘फीचर’ कहलाता है।”

‘फीचर’ में निबंध और रेखाचित्र आदि विधाओं की भी कुछ झलक हो सकती है। परंतु यह अधिकतर समसामयिक घटनाओं या विषयों पर एक जानकारी पूर्ण, विचारोत्तेजक गद्य-रचना होती है।

इसमें प्रमुख रूप से ये विशेषताएं होती हैं-

(क) तथ्यात्मकता-फीचर में लेखक विभिन्न तथ्यों, वास्तविक वस्तुस्थितियों और आँकड़ों आदि के आधार पर विवेचन एवं निष्कर्ष प्रस्तुत करता है।
(ख) अनुभव-आधारित विवेचन-फीचर-लेखक को प्रतिपाद्य विषय के संबंध में निजी अनुभवों के ही आधार बनाना चाहिए। अन्य लोगों के मत-विमत आदि की तुलनात्मक समीक्षा अथवा उनके पक्ष-विपक्ष में संभावित तर्क-वितर्क-युक्त विवेचना करते हुए लेखक अपना निष्कर्ष प्रस्तुत करता है।
(ग) रोचकता-फीचर की सर्वप्रमुख विशेषता है रोचकता। फीचर न तो निबंध की भांति शुष्क अथवा नीरस हो, न ही उसमें हल्के हास्य-विनोद, व्यंग्य अथवा उपहास का पुट हो। उसके प्रस्तुति सुरुचिपूर्ण, अर्थप्रवण भाषा एवं प्रभावशाली शैली में होनी चाहिए। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयक फीचर नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते हैं।

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रिपोर्ताज
यह भी पत्रकारिता के माध्यम से प्रतिष्ठित होने वाली एक आधुनिक गद्य-विधा है। अंग्रेजी शब्द ‘रिपोर्ट’ ही साहित्यशास्त्र में ‘रिपोर्ताज’ के रूप में प्रचलित है। समाचारपत्रों में विभिन्न घटनाओं, आयोजनों, सभा-समितियों आदि की रिपोर्ट’ छपती रहती है। वहाँ ‘रिपोर्ट’ का अभिप्राय है-‘किसी विषय (घटना, प्रसंग आदि) का यथातथ्य. (ज्यों-का-त्यों) विवरण। ‘परंतु उसी रिपोर्ट को जब भावात्मकता और रोचकता का साहित्यिक संस्पर्श प्राप्त हो जाता है तो उसे ‘रिपोर्ताज’ कहते हैं। इस दृष्टि से “किसी सत्य घटना का यथातथ्य वर्णन करते हुए भी उसमें कथात्मक सरसता और रोचकता का समावेश कर देना ‘रिपोर्ताज’ कहलाता है।”

एक सफल ‘रिपोर्ताज’ में दो तत्वों का होना आवश्यक है-
(क) तथ्यात्मकता,
(ख) रोचकता।

रांगेय राघव द्वारा रचित ‘तूफानों के बीच’, ‘भदंत आनंद कौसल्यायन-कृत ‘देश की मिट्टी बोलती है’, धर्मवीर भारती-कृत ‘ब्रह्मपुत्र के मोरचे से’ और कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर-रचित ‘क्षण बोले क्षण मुस्काएँ’ शीर्षक रिपोर्ताज-रचनाएँ प्रसिद्ध हैं। आजकल तो विभिन्न राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं पर आधारित नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहते हैं। इन्हीं में से कुछ स्थायी महत्त्व की कालजयी रचनाएँ अलग-पुस्तक के रूप में संकलित होकर साहित्य की अमूल्य निधि बन जाती है।

पत्र-साहित्य
पत्र लिखना एक सामान्य सी बात है। मानव-समाज के अधिकांश कार्य-कलाप पत्र के माध्यम से संपन्न होते हैं। परंतु साहित्य के क्षेत्र में ‘पत्र’ से अभिप्राय केवल उन्हीं चिट्ठियों से है जो किसी विशेष व्यक्ति द्वारा विशेष उद्देश्य, विचार या मानवीय जीवन-मूल्य के संदर्भ में लिखी गई हों। ऐसे पत्रों में कई बार पत्र-लेखकों द्वारा जीवन और जगत के ऐसे शाश्वत सत्यों का उद्घाटन-विवेचन होता है जो पत्र में संबोधित व्यक्ति के साथ-साथ अन्य सहृदय पाठकों के लिए भी ग्रहणीय और चिरस्मरणीय होते हैं।

ऐसे पत्रों को संकलित करके जब किसी विशेष शीर्षक के अंतर्गत प्रकाशित किया जाता है तो वह रचना ‘पत्र-साहित्य’ का एक महत्वपूर्ण अंग बन जाती है। महात्मा गाँधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, प्रेमचंद, प्रसाद अथवा निराला आदि युग-पुरुषों द्वारा समय-समय पर विभिन्न व्यक्तियों को लिखे गए पत्रों के अनेक संकलन हिन्दी संकलन हिन्दी गद्य की अमूल्य निधि बन चुके हैं। हिन्दी में साहित्यिक स्तर पर इस विधा को प्रतिष्ठित करने वाले बालमुकुंद गुप्त द्वारा लिखित ‘शिव शंभु का चिट्ठा’ और ‘शाइस्ता खाँ का पत्र प्रसिद्ध है।

विद्यानिवास मिश्र-लिखित ‘भ्रमरानंद के पत्र’ भी उल्लेखनीय हैं। इसी संदर्भ में महावीर प्रसाद द्विवेदी की ‘पत्रावली’ का नाम उल्लेखनीय है। केदारनाथ अग्रवाल और रामविलास शर्मा के एक-दूसरे को लिखे गए साहित्यिक पत्र ‘मित्र-संवाद’ पं. जवाहर लाल नेहरू लिखित ‘पिता का पत्र पुत्री के नाम’ तथा नेमिचंद्र जैन और मुक्तिबोध का पत्र-व्यवहार ‘पाया पत्र तुम्हारा’ के नाम से बहुचर्चित है।

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यात्रावृत्त
‘यात्रावृत्त’ वास्तव में ‘आत्मकथा’ का ही एक अपरूप है। ‘आत्मकथा’ में रचनाकार अपनी प्रायः पूरी जीवन-गाथा के विविध प्रकार के प्रसंग प्रस्तुत करता है, परंतु ‘यात्रावृत्त’ में केवल विभिन्न स्थलों, तीर्थों, देशों आदि की यात्रा का रोचक, प्रेरक और प्रभावी विवरण प्रस्तुत किया जाता है।

वर्तमान युग में पर्यटन के प्रति विशेष रुचि होने के कारण ‘यात्रावृत्त’ नामक गद्य-विधा अत्यंत उपयोगी एवं लोकप्रिय होती जा रही है। देश-विदेश के महत्त्वपूर्ण, दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त मानव-समुदाय एवं प्रकृति के विराट रूप का साक्षात्कार ये रचनाएँ करा देती हैं। इस संबंध में राहुल सांकृत्यायन लिखित (घुमक्कड़ शास्त्र, मेरी तिब्बत यात्रा) और अज्ञेय लिखित (अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली) के यात्रावृत्तांत बहुत प्रसिद्ध हैं। सीतेश आलोक-कृत ‘लिबर्टी के देश में’ और अमृतलाल बेगड़-कृत ‘सौंदर्य की नदी नर्मदा’ का नाम भी उल्लेखनीय है। इधर, पिछले कुछ वर्षों से मानसरोवर-यात्रा से संबंधित अनेक प्रभावशाली यात्रावृत्त प्रकाशित हुए हैं।

डायरी
‘डायरी’ नाम गद्य-विधा आत्मकथा से मिलती-जुलती प्रतीत होती है। परंतु यह वास्तव में आत्मकथा न होकर लेखक को प्रतिदिन होने वाले कुछ ऐसे अनुभवों का संक्षिप्त सांकेतिक विवरण होता है जो उसके लिए स्मरणी बन जाते हैं। इसमें लेखक तिथि-क्रमानुसार, किसी एक दिन में अपने संपर्क में आने वाले व्यक्तियों, प्रसंगों, अनुभवों आदि के उस विशेष प्रभाव को अंकित करता है, जो लेखक के अतिरिक्त अन्य पाठकों के लिए भी स्मरणीय और महत्त्वपूर्ण जीवन-सत्य के रूप में ग्राह्य बन जाता है।

उदाहरण के लिए, महादेव भाई द्वारा संपादित महात्मा गाँधी की डायरी उल्लेखनीय है। इसी प्रकार मोहन राकेश, शमशेर बहादुर सिंह, त्रिलोचन एवं जयप्रकाश नारायण की डायरी-परक रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं।

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प्रश्न 13.
‘आलोचना’ का स्वरूप करते हुए उसके प्रमुख भेदों का विवेचन कीजिए।
अथवा,
‘समीक्षा’ का स्वरूप बता कर, हिन्दी में प्रचलित विविध समीक्षा-पद्धतियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘आलोचना’ अथवा ‘समीक्षा’ का स्वरूप-साहित्यशास्त्र में ‘आलोचना का अभिप्राय है-“किसी साहित्यिक कृति के गुण-दोषों को विभिन्न दृष्टियों से परख कर उसका सम्यक् विवेचन करना।”

इसे ‘समालोचना’ अथवा ‘समीक्षा’ भी कहा जाता है। आजकल ‘आलोचना’ की बजाय ‘समीक्षा’ शब्द अधिक प्रचलित है।

हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यशास्त्री और समीक्षक डॉ. श्यामसुंदर दास ने आलोचना (समीक्षा) का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कहा है

“साहित्यिक क्षेत्र में ग्रंथों को पढ़कर, उनके गुणों एवं दोषों का विवेचन करना और उनके संबंध में अपना मत प्रकट करना ‘आलोचना’ कहलाता है।”

एक अन्य विदेशी समीक्षक ड्राइव ने आलोचना का स्वरूप इस प्रकार स्पष्ट किया है-“आलोचना वह कसौटी है जिसकी सहायता से किसी रचना का मूल्यांकन किया जाता है।”

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आलोचना के प्रमुख प्रकार (समीक्षा की विविध पद्धतियाँ या शैलियाँ)-समय-समय पर साहित्यिक रचनाओं की आलोचना अथवा समीक्षा करने के लिए आलोचकगण भिन्न-भिन्न शैलियाँ अपनाते रहे हैं। संस्कृत में ‘टीका’ पद्धति प्रचलित रही। साथ ही साहित्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धांतों को आधार बनाकर संस्कृत और हिन्दी में आलोचना की परंपरा चलती रही है। कभी-कभी संक्षेप में ही किसी रचनाकार का साहित्य में स्थान निर्धारित करने के लिए किसी निर्णयात्मक सूक्ति का प्रयोग कर लिया जाता था।

जैसे-‘सूर-सूर तुलसी ससी” अथवा और कवि गढ़िया, नंददास जड़िया’ इत्यादि। आधुनिक युग में पाश्चात्य समीक्षा-पद्धतियों का हिन्दी आलोचना पर विशेष प्रभाव पड़ा। उसके परिणामस्वरूप आलोचना के अनेक रूप या प्रकार प्रचलित हैं। हिन्दी-आलोचना में वस्तुतः प्राचीन भारतीय एवं आधुनिक पाश्चात्य-शैलियों का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है। इस आधार पर, आजकल प्रमुख रूप से आलोचना के ये प्रकार (समीक्षा की पद्धतियाँ या शैलियाँ) प्रचलित हैं

(क) सैद्धांतिक आलोचना,
(ख) व्याख्यात्मक आलोचना,
(ग) निर्णयात्मक आलोचना,
(घ) ऐतिहासिक आलोचना,
(ङ) तुलनात्मक आलोचना,
(च) मनोवैज्ञानिक आलोचना,
(छ) सौष्ठववादी आलोचना,
(ज) प्रगतिवादी (मार्क्सवादी) आलोचना,
(झ) रूपवादी (संरचनावादी) आलोचना या नई समीक्षा।

(क) सैद्धांतिक आलोचना-इस आलोचना-पद्धति के अंतर्गत कुछ आधारभूत शास्त्रीय सिद्धांत अथवा नियम सामने रखकर किसी कृति की समीक्षा की जाती है। उदाहरण के लिए रस, अलंकार, रीति, ध्वनि आदि के शास्त्रीय नियमों के निर्वाह का आकलन करना। इस प्रकार की आलोचना पालोचना का वाल्यांकन कि आलोचना में आलोचक पहले पूर्व-रचित कृतियों के आधार पर कुछ सिद्धांत सामने रख लेता है, . फिर उनकी कसौटी पर किसी रचना की परीक्षा करता है।

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(ख) व्याख्यात्मक आलोचना-इसके अंतर्गत उपस्थित रचना की सम्यक् व्याख्या अथवा विवेचना करके, उसमें विद्यमान साहित्यिक सौंदर्य और मूल भाव का उद्घाटन तथा विवेचन किया जाता है। इसमें आलोचक प्रायः रचना की मूल भावना, उसके प्रतिपाद्य विषय और अभिव्यंजना-कौशल पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है। इसे पाठक के सम्मुख आलोच्य कृति का एक समग्र भाव-चित्र स्पष्ट हो जाता है।

(ग) निर्णयात्मक आलोचना-किसी साहित्यिक रचना के अध्ययन के उपरांत उसके संबंध में सत-असत, सुंदर-असुंदर, पूर्ण-अपूर्ण, उपयोगी-अनुपयोगी आदि का स्पष्ट निर्णय दे देने की . प्रवृत्ति ‘निर्णयात्मक आलोचना’ कहलाती है। आवश्यक यह है कि आलोचना निर्णयात्मकता की प्रवृत्ति में संतुलन बनाए रखें। उसमें किसी प्रकार के पूर्वाग्रह, कटुता अथवा केवल प्रशंसा या – केवल निन्दा की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए।

(घ) ऐतिहासिक आलोचना-इस आलोचराद्धति के अंतर्गत, आलोचक लेखक के युग की परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए, उन्हीं के संदर्भ में रचना एवं रचनाकार का साहित्यिक मूल्यांकन करता है। हर रचनाकार जिस युग में जन्म लेता है, उसकी प्रवृत्तियों, परिस्थितियों, रुचियों, समस्याओं आदि से अवश्य प्रभावित होता है। युगीन धर्म, समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि से संबंधित परिप्रेक्ष्य किसी रचना में कितना और किस प्रकार अभिव्यजित हो पाया है-ऐतिहासिक आलोचना इसका मूल्यांकन करती है।

(ङ) तुलनात्मक आलोचना-इस आलोचना-पद्धति के अंतर्गत दो या अधिक रचनाकारों के द्वारा रचित साहित्य की परस्पर तुलना करके उनका वैशिष्ट्य रेखांकित किया जाता है। मध्ययुग के कवि सूर और तुलसी अथवा देव और बिहार के काव्य की तुलना करते हुए उनके काव्य-कौशल एवं साहित्यिक योगदान के मूल्यांकन की एक लंबी परंपरा चलती रही है। इस प्रकार की आलोचना में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि या तो दोनों कवि एक ही युग के अर्थात् लगभग समकालीन हों, या फिर उनकी रचना का प्रतिपाद्य एक-सा हो।

तुलसी (भक्त) और बिहारी (रीति या शृंगारी कवि) की तुलना असंगत होगी। कई बार एक ही विषय से संबंधित, आगे-पीछे (समय के अंतराल में) रचित कृतियों की समीक्षा की तुलनात्मक दृष्टि से की जाती है। जैसे-संस्कृत और हिन्दी रामकाव्य का, मध्यकालीन और आधुनिक रामकाव्य का, द्विवेदी युग और स्वातंत्र्योत्तर युग के ऐतिहासिक (यां मनोवैज्ञानिक) उपन्यासों के तुलनात्मक अध्ययन आदि।

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(च) मनोवैज्ञानिक आलोचना-किसो साहित्यिक रचना में अंतर्मन के उद्घाटन द्वारा व्यक्ति, परिवार या समाज के जीवन-व्यापार के संगतियों-विसंगतियों, कुंठाओं-वर्जनाओं, द्वंद्वों, विरोधों आदि के मूल में निहित प्रवृत्तियों के विश्लेषण की प्रक्रिया ‘मनोवैज्ञानिक’ आलोचना कहलाती है। आधुनिक युग के मनोविज्ञान-शास्त्री फ्रॉयड के सिद्धांत इस प्रकार की आलोचना-पद्धति का मूल आधार है।

(छ) सौष्ठववादी आलोचना-इस आलोचना-पद्धति में मानवीय सौंदर्य-बोध की कसौटी पर किसी कृति की समीक्षा की जाती है। इसमें सौंदर्यानुभूति के साथ-साथ आत्माभिव्यक्ति को भी एक मानदंड माना जाता है। अधिकांश छायावादी कवियों तथा उनकी कृतियों की समीक्षा इसी पद्धति के आधार पर की गई। इसमें भाषा-लालित्य, कोमल रागात्मक संवेदनाओं के चित्रण तथा बिम्ब, प्रतीक आदि के निर्वाह पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

(ज) प्रगतिवादी आलोचना-इसका मूल आधार मार्क्सवादी सिद्धांत है। इसलिए इसे कभी-कभी ‘मार्क्सवादी आलोचना भी कह दिया जाता है। इस समीक्षा-पद्धति के अंतर्गत समाज की आर्थिक परिस्थितियों तथा वर्ग-संघर्ष के परिपेक्ष्य में किसी साहित्यिक-रचना का मूल्यांकन किया जाता है।

(झ) रूपवादी (संरचनावादी) आलोचना (नई समीक्षा)-यह एक अभिनव समीक्षा-पद्धति है। इसमें साहित्य के परंपरागत प्रतिमानों की बजाय नए प्रतिमानों की कसौटी पर रचना का मूल्यांकन करने की प्रवृत्ति रहती है। यह साहित्य जगत में ‘नई समीक्षा’ के नाम से अधिक प्रचलित है। इस आलोचना-पद्धति के अंतर्गत पद्य अथवा गद्य कृतियों के रूप-विधान पर विशेष ध्यान दिया जाता है। ‘रूपवादी’ अथवा ‘संरचनावादी’ समीक्षा के अनुसार कोई भी साहित्यिक सृजन एक ‘वस्तु’ है। विचार या भाव तो हम उसके साथ जोड़ देते हैं।

रूपवादी आलोचक रचना के मूल रूप-विधान तथा उसके विभिन्न अंगों के अंत:संबंधों की विवेचना करते हुए उसकी रूपगत जटिल संरचना का उद्घाटन एवं आकलन करता है। रचनाकार ने ‘क्या कहा?’-यह जानने के लिए रूपवादी आलोचक यह तलाश करता है कि उसने ‘कैसे कहा है?’ अर्थात् अभिव्यक्ति-प्रक्रिया के विश्लेषण के माध्यम से काव्य का उद्घाटन ‘नई समीक्षा’ का प्रमुख वैशिष्टय है। इसके अनुसार कोई भी साहित्यिक ‘रचना’ नहीं, ‘संरचना’ है जिसके अवयव हैं-भाषागत विविध प्रयोग। शब्द-संरचना, बिम्ब-विधान प्रतीक-योजना आदि इसके प्रमुख प्रतिमाण हैं।

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 10 वित्तीय बाज़ार

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 10 वित्तीय बाज़ार

प्रश्न 1.
मुद्रा बाजार व्यवहार करता है:
(A) अल्पकालीन कोष
(B) मध्यकालीन कोष
(C) दीर्घकालीन कोष
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अल्पकालीन कोष

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प्रश्न 2.
पूँजी बाजार व्यवहार करता है:
(A) अल्पकालीन कोष
(B) मध्यकालीन कोष
(C) दीर्घकालीन कोष
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दीर्घकालीन कोष

प्रश्न 3.
तरलता का निर्माण करता है:
(A) संगठित बाजार
(B) असंगठित बाजार
(C) प्राथमिक बाजार
(D) गौण बाजार
उत्तर:
(D) गौण बाजार

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प्रश्न 4.
नवीन निर्गमित अंशों में व्यवहार करता है:
(A) गौण बाजार
(B) प्राथमिक बाजार
(C) गौण बाजार तथा प्राथमिक बाजार दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) प्राथमिक बाजार

प्रश्न 5.
वैधानिक रूप में सेबी की स्थापना हुई थी :
(A) 1988
(B) 1990
(C) 1992
(D) 1994
उत्तर:
(C) 1992

प्रश्न 6.
स्कन्ध विपणि हित की सुरक्षा करती है :
(A) निवेशक
(B) कंपनी
(C) सरकार
(D) किसी का नहीं
उत्तर:
(A) निवेशक

प्रश्न 7.
सेबी का मुख्य कार्यालय है।
(A) दिल्ली
(B) मुम्बई
(C) कोलकाता
(D) चेन्नई
उत्तर:
(B) मुम्बई

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प्रश्न 8.
विश्व में सबसे पहले स्कन्ध विपणि की स्थापना हुई थी :
(A) दिल्ली
(B) लंदन
(C) अमरीका
(D) जापान
उत्तर:
(B) लंदन

प्रश्न 9.
सन् 2004 में भारत में स्कन्ध विषणियों की संख्या थी :
(A) 20
(B) 21
(C) 23
(D) 24
उत्तर:
(D) 24

प्रश्न 10.
सेबी का क्षेत्रीय कार्यालय स्थित है:
(A) दिल्ली
(B) कोलकाता
(C) चेन्नई
(D) इन तीनों जगह
उत्तर:
(D) इन तीनों जगह

प्रश्न 11.
……….बाजार में नये अंशों का निर्गमन होता है :
(A) प्रारम्भिक
(B) द्वितीय
(C) संगठित
(D) असंगवित
उत्तर:
(A) प्रारम्भिक

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प्रश्न 12.
वाणिज्यिक विपत्र…………….लिखा जाता है।
(A) क्रेता द्वारा
(B) विक्रेता द्वारा
(C) बैंक द्वारा
(D) सरकार द्वारा
उत्तर:
(B) विक्रेता द्वारा

प्रश्न 13.
वाणिज्यिक पत्र की अधिकतम अवधि……..होती है :
(A) 3 महीने
(B) 6 महीने
(C) 12 महीने
(D) 24 महीने
उत्तर:
(C) 12 महीने

प्रश्न 14.
भारत में स्कन्ध विपणियों का भविष्य………….है:
(A) उज्जवल
(B) अंधेरे में
(C) सामान्य
(D) कोई भविष्य नहीं
उत्तर:
(A) उज्जवल

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प्रश्न 15.
भारत में सबसे पहले स्कन्ध विपणि (स्टॉक विनिमय) की स्थापना हुई थी।
(A) 1857 में
(B) 1887 में
(C) 1877 में
(D) 1987 में
उत्तर:
(C) 1877 में

प्रश्न 16.
प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार
(A) एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं
(B) एक-दूसरे को सहयोग देते (संपूरक) है
(C) स्वतंत्र रूप से कार्य करते है
(D) एक-दूसरे को नियंत्रित करते हैं
उत्तर:
(C) स्वतंत्र रूप से कार्य करते है

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) का निपटान (उधार चुकता) चक्र है
(A) टी + 5
(B) टी + 3
(C) टी + 2
(D) टी + 1
उत्तर:
(A) टी + 5

प्रश्न 18.
भारतीय राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) को स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजार) के रूप में मान्यता किस वर्ष में मिली थी?
(A) 1992
(B) 1993
(C) 1994
(D) 1955
उत्तर:
(B) 1993

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प्रश्न 19.
एन. एस. ई. (NSE) के भावी व्यापार की शुरूआत किस वर्ष में
(A) 1999
(B) 2000
(C) 2001
(D)2002
उत्तर:
(B) 2000

प्रश्न 20.
एन.एस.ई. (NSE) के क्लियरिंग एवं निपटारा क्रियाकलाप किसके द्वारा वहन किए जाते हैं?
(A) एन एस. डी. एल.
(B) एन. एस. वाई. ई.
(C) एस. बी. आई.
(D) सी. डी. एल, एल.
उत्तर:
(A) एन एस. डी. एल.

प्रश्न 21.
ओ. टी. सी.ई.आई. (OTCEI) का प्रारम्भ किसकी तर्ज पर हुआ था?
(A) नैसडेक
(B) एन. एस. वाई. ई.
(C) नासाक
(D) एन. एस. ई.
उत्तर:
(A) नैसडेक

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प्रश्न 22.
ओ. टी. सी. ई. आई. (OTCEI) में सूचीबद्ध होने के लिए कितनी न्यूनतम पूँजी की आवश्यकता होती है ?
(A) 5 करोड़ रुपए
(B) 3 करोड़ रुपए
(C) 6 करोड़ रुपए
(D) 1 करोड़ रुपए
उत्तर:
(B) 3 करोड़ रुपए

प्रश्न 23.
राजकोष बिल मूलतः होते हैं :
(A) अल्प कालिक फण्ड उधार के प्रपत्र
(B) दीर्घ कालिक फंड उधार के प्रपत्र
(C) पूँजी बाजार के एक प्रपत्र
(D) उपर्युक्त कुछ भी नहीं
उत्तर:
(A) अल्प कालिक फण्ड उधार के प्रपत्र

प्रश्न 24.
रेपो (REPO) है
(A) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)
(B) रिलायंस पेट्रोलियम
(C) रोड एण्ड प्रोसेस (पढ़ो और प्रक्रम करो)
(D) उपर्युक्त कुछ भी नहीं inामाका 48
उत्तर:
(A) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 9 वित्तीय प्रबंध

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 9 वित्तीय प्रबंध

प्रश्न 1.
वित्तीय प्रबंधन के मुख्य कार्य हैं :
(A) कोषों को प्राप्त करना
(B) कोषों का उपयोग करना
(C) कोषों का आबंटन
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(D) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 2.
वित्तीय प्रबंध है:
(A) कला
(B) विज्ञान
(C) कला और विज्ञान दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कला और विज्ञान दोनों

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प्रश्न 3.
वित्तीय प्रबंध की परम्परागत विचारधारा को त्याग दिया गया था:
(A) 1910-20 में
(B) 1920-30 में
(C) 1930-40 में
(D) 1940-50 में
उत्तर:
(C) 1930-40 में

प्रश्न 4.
वित्तीय प्रबंधक निर्णय लेता है :
(A) वित्तीय
(B) विनियोग
(C) लाभांश
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5.
वित्तीय प्रबंध को आधुनिक विचारधारा है :
(A) कोषों को प्राप्त करना
(B) कोषों का उपयोग करना
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 9 वित्तीय प्रबंध

प्रश्न 6.
स्थायी पूंजी की आवश्यकता…………..अवधि के लिये होती है।
(A) अल्पकालीन अवधि के लिए
(B) दीर्घकालीन अवधि के लिए
(C) दोनों के लिए
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अल्पकालीन अवधि के लिए

प्रश्न 7.
…………..व्यवसाय के संचालन में प्रयुक्त अपेक्षाकृत स्थायी प्रकृति की सम्पत्तियाँ होती हैं जो कि विक्रय के लिए नहीं होती
(A) स्थायी सम्पत्तियाँ
(B) अस्थायी सम्पत्तियाँ
(C) अदृश्य सम्पत्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) स्थायी सम्पत्तियाँ

प्रश्न 8.
“चालू सम्पत्ति का योग ही व्यवसाय की……..”-जे. एस. मिल:
(A) स्थायौ पूँजी
(B) कार्यशील पूँजी
(C) कुल पूँजो
(D) शुद्ध पूँजी
उत्तर:
(A) स्थायौ पूँजी

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 9 वित्तीय प्रबंध

प्रश्न 9.
बैंकों से अधिविकर्ष की सुविधा उपलब्ध होती है।
(A) बचत खातों पर
(B) चालू खातों पर
(C) मियादी जमा खातों पर
(D) इनमें से सभी
उत्तर:
(B) चालू खातों पर

प्रश्न 10.
व्यापारिक साख स्रोत है:
(A) दीर्घकरलौन वित्त का
(B) मध्यकालीन वित्त का
(C) अल्पकालीन वित्त का
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) दीर्घकरलौन वित्त का

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

Bihar Board 12th Business Studies Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 1.
प्रबंधकीय नियंत्रण किया जाता है:
(A) निम्न प्रबंधकों द्वारा
(B) मध्यम स्तरीय प्रबंधकों द्वारा
(C) उच्चतम स्तरीय प्रबंधकों द्वारा
(D) सभी स्तरीय प्रबंधकों द्वारा
उत्तर:
(D) सभी स्तरीय प्रबंधकों द्वारा

प्रश्न 2.
नियंत्रण प्रबंध का कार्य है:
(A) प्रथम
(B) अंतिम
(C) तृतीय
(D) द्वितीय
उत्तर:
(B) अंतिम

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 3.
नियंत्रण प्रबंध का पहलू है :
(A) सैद्धान्तिक
(B) व्यावहारिक
(C) मानसिक
(D) भौतिक
उत्तर:
(B) व्यावहारिक

प्रश्न 4.
नियंत्रण सम्बन्धित है:
(A) परिणाम
(B) कार्य
(C) प्रयास
(D) किसी से नहीं
उत्तर:
(A) परिणाम

प्रश्न 5.
नियंत्रण का कर्मचारी करते हैं :
(A) विरोध
(B) समर्थन
(C) पसंद
(D) इसमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) विरोध

प्रश्न 6.
नियंत्रण क्रिया है:
(A) महंगी
(B) सस्ती
(C) अनार्थिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) महंगी

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 7.
नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य है..
(A) भिन्नता
(B) विचलन
(C) सुधार
(D) हानि |
उत्तर:
(C) सुधार

प्रश्न 8.
बजटरी नियंत्रण प्रबंध का………….नहीं है :
(A) कार्य
(B) हिस्सा
(C) स्थानापन्न
(D) उपरोक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(C) स्थानापन्न

प्रश्न 9.
बजट एक………….अवधि के लिए तैयार किया जाता है :
(A) लम्बी
(B) अल्प
(C) निश्चित
(D) संक्षिप्त
उत्तर:
(C) निश्चित

प्रश्न 10.
बजट प्रबंधकीय नीति का……………..विवरण होता है:
(A) वित्तीय
(B) अंतिम
(C) कार्य का
(D) गैर वित्तीय
उत्तर:
(A) वित्तीय.

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 11.
…………….बजट अल्पकालीन और दीर्घकालीन पूर्ति के लिए बनाये जाते हैं :
(A) सामाजिक
(B) आर्थिक
(C) वित्तीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) वित्तीय

प्रश्न 12.
बजट…………….प्रकार के होते हैं :
(A) 2
(B) 3
(C) 4
(D) 20
उत्तर:
(C) 4

प्रश्न 13.
नियंत्रण आवश्यक है:
(A) लघु उपक्रम के लिए
(B) मध्यम श्रेणी के उपक्रम के लिए
(C) बड़े आकार वाले उपक्रम के लिए
(D) उपरोक्त सभी के लिए |
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी के लिए |

प्रश्न 14.
व्यावसायिक उपक्रम में लिए :
(A) व्यवसाय की स्थापना के समय
(B) व्यवसाय के संचालन के समय
(C) वर्ष के अन्त में
(D) निरंतर
उत्तर:
(D) निरंतर

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 15.
प्रभावी नियंत्रण है
(A) स्थिर
(B) निर्धारित
(C) गत्यात्मक
(D) उपरोक्त सभी |
उत्तर:
(C) गत्यात्मक

प्रश्न 16.
नियंत्रण प्रबंधकीय कार्य है
(A) अनिवार्य
(B) आवश्यक
(C) ऐच्छिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) अनिवार्य

प्रश्न 17.
एक प्रभावी नियंत्रण तंत्र सहायक होता है
(A) संगठनात्मक लक्ष्यों के निष्पादन में
(B) कर्मचारियों की मनोदशा के संवर्धन में
(C) मानकों की यथार्थता के निर्णय में
(D) उपरोक्त सभी में |
उत्तर:
(D) उपरोक्त सभी में |

प्रश्न 18.
एक संगठन का नियंत्रण करना कार्य है :
(A) आगे देखना
(B) पीछे देखना
(C) आगे, साथ-हो-साथ पीछे देखना
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं |
उत्तर:
(C) आगे, साथ-हो-साथ पीछे देखना

Bihar Board 12th Business Studies Objective Answers Chapter 8 नियंत्रण

प्रश्न 19.
प्रबंध अंकेक्षण किसके निष्पादन पर निगरानी रखने की तकनीक है?
(A) कंपनी
(B) कंपनी का प्रबंध
(C) अंशधारी
(D) ग्राहक :
उत्तर:
(D) ग्राहक :

प्रश्न 20.
बजटीय नियंत्रण के लिए तैयारी आवश्यक है
(A) प्रशिक्षण समय सारणी
(B) बजट
(C) नेटवर्क आरेख
(D) उत्तरदायित्व केन्द्र
उत्तर:
(B) बजट

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से सुधारात्मक कार्यवाही में कौन उपयुक्त नहीं है?
(A) विनियोग केन्द्र
(B) एंडोसेंट्रिक केन्द्र
(C) लाभ केन्द्र
(D) लागत केन्द्र
उत्तर:
(B) एंडोसेंट्रिक केन्द्र

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Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Bihar Board 12th History Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 1.
स्थाई बन्दोबस्त जुड़ा था
(a) वारेन हेस्टिंग्स से
(b) वेलजली से
(c) कॉर्नवालिस से
(d) रिपन से
उत्तर-
(c) कॉर्नवालिस से

प्रश्न 2.
संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया
(a) जतरा भगत ने
(b) दुबिया गोसाई ने
(c) भगीरथ ने
(d) सिद्धू एवं कान्हू ने
उत्तर-
(d) सिद्धू एवं कान्हू ने

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 3.
सिद्धू कान्हू ने किस विद्रोह का नेतृत्व किया ?
(a) मुण्डा विद्रोह
(b) संथाल विद्रोह
(c) संन्यासी विद्रोह
(d) हो विद्रोह
उत्तर-
(b) संथाल विद्रोह

प्रश्न 4.
भारत में स्थायी बन्दोबस्त कहाँ लागू किया गया था?
(a) बंगाल
(b) पंजाब
(c) दक्षिण भारत
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(a) बंगाल

प्रश्न 5.
‘दामिन-इ-कोह’ क्या था ?
(a) भू-भाग
(b) उपाधि
(c) तलवार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(b) उपाधि

प्रश्न 6.
संथाल विद्रोह का नेता कौन था ?
(a) बिरसा मुण्डा
(b) सिधो
(c) कालीराम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) बिरसा मुण्डा

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प्रश्न 7.
संथाल विद्रोह कब हुआ?
(a) 1855 ई. में
(b) 1851 ई. में
(c) 1841 ई. में
(d) 1832 ई. में
उत्तर-
(a) 1855 ई. में

प्रश्न 8.
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई ?
(a) 1600 A.D
(b) 1605 A.D
(c) 1610 A.D
(d) 1615 A.D
उत्तर-
(a) 1600 A.D

प्रश्न 9.
स्थायी बंदोबस्त कहाँ लागू किया गया?
(a) बम्बई
(b) पंजाब
(c) बंगाल
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(c) बंगाल

प्रश्न 10.
संथाल विद्रोह का नेता कौन था ?
(a) बिरसा मुण्डा
(b) सिधो
(c) कालीराम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) बिरसा मुण्डा

प्रश्न 11.
कॉर्नवालिस कांड बना
(a) 1797 ई. में
(b) 1775 ई. में
(c) 1805 ई. में
(d) 1793 ई. में
उत्तर-
(d) 1793 ई. में

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प्रश्न 12.
राजमहल की पहाड़ियों में मुख्यतया जो लोग रहे थे। वे थे
(a) पहाड़िया और संथाल लोग
(b) पहाड़िया और भील लोग
(c) पहाड़िया तथा अंग्रेज लोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) पहाड़िया और संथाल लोग

प्रश्न 13.
कंपनी काल में अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता था वह था
(a) कोतवाल
(b) राजा
(c) रैयत
(d) जोतदार
उत्तर-
(b) राजा

प्रश्न 14.
18वीं शताब्दी में बंगाल में नीलामी में कितने प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी होती थी?
(a) 95 प्रतिशत
(b) 99 प्रतिशत
(c) 75 प्रतिशत
(d) 39 प्रतिशत
उत्तर-
(a) 95 प्रतिशत

प्रश्न 15.
इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद कितने प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ हस्तांतरित कर दी गई थीं?
(a) 75 प्रतिशत
(b) 95 प्रतिशत
(c) 15 प्रतिशत
(d) 45 प्रतिशत
उत्तर-
(a) 75 प्रतिशत

प्रश्न 16.
चार्ल्स कॉर्नवालिस का जीवन-काल था
(a) 1838-1905
(b) 1738-1805
(c) 1638-1705
(d) इनमें से कोई भी नहीं
उत्तर-
(b) 1738-1805

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प्रश्न 17.
शिकमी-रैयत को बंगाल में जमीन कौन पट्टे पर देता था ?
(a) रैयत
(b) कंपनी
(c) जमींदार
(d) इक्तेदार
उत्तर-
(a) रैयत

प्रश्न 18.
‘अमला’ किसके द्वारा भेजा अधिकारी होता था ?
(a) दीवान
(b) जमींदार
(c) कोतवाल
(d) मनसबदार
उत्तर-
(b) जमींदार

प्रश्न 19.
प्रायः जोतदार कहाँ रहते थे?
(a) गाँव में
(b) शहरों में
(c) महानगरों में
(d) कस्बों में
उत्तर-
(a) गाँव में

प्रश्न 20.
महाराजा मेहताब चंद्र का जीवन काल था
(a) 1820-1879
(b) 1920-1939
(c) 1729-1799
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 21.
स्थाई बन्दोबस्त जुड़ा था (2011A,2014A )
(a) वारेन हेस्टिंग्स से
(b) वेलजली से
(c) कॉर्नवालिस से
(d) रिपन से
उत्तर-
(c) कॉर्नवालिस से

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प्रश्न 22.
संथाल विद्रोह का नेतृत्व किया (2011A)
(a) जतरा भगत ने
(b) दुबिया गोसाई ने
(c) भागीरथ ने
(d) सिद्ध एवं कान्हू ने
उत्तर-
(d) सिद्ध एवं कान्हू ने

प्रश्न 23.
सिद्धू कान्हू ने किस विद्रोह का नेतृत्व किया? (2012A)
(a) मुण्डा विद्रोह
(b) संथाल विद्रोह
(c) संन्यासी विद्रोह
(d) हो विद्रोह
उत्तर-
(b) संथाल विद्रोह

प्रश्न 24.
भारत में स्थायी बन्दोबस्त कहाँ लागू किया गया था? (2012A, 2015A)
(a) बंगाल
(b) पंजाब
(c) दक्षिण भारत
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(a) बंगाल

प्रश्न 25.
संथाल विद्रोह का नेता कौन था? (2015A)
(a) बिरसा मुण्डा
(b) सिधो
(c) कालीराम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) बिरसा मुण्डा

प्रश्न 26.
संथाल विद्रोह कब हुआ? (2015A, 2018A,2019A)
(a) 1855 ई. में
(b) 1851 ई. में
(c) 1841 ई. में
(d) 1832 ई. में
उत्तर-
(a) 1855 ई. में

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प्रश्न 27.
ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना कब हुई? (2016A)
(a) 1600AD
(b) 1605AD
(c) 1610AD
(d) 1615AD
उत्तर-
(a) 1600AD

प्रश्न 28.
कॉर्नवालिस कोड बना (2015A,2017A,2019A)
(a) 1797 ई. में
(b) 1775 ई. में
(c) 1805 ई. में
(d) 1793 ई. में
उत्तर-
(d) 1793 ई. में

प्रश्न 29.
राजमहल की पहाड़ियों में मुख्यतया जो लोग रहे थे। वे थे
(a) पहाड़िया और संथाल लोग
(b) पहाड़िया और भील लोग
(c) पहाड़िया तथा अंग्रेज लोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) पहाड़िया और संथाल लोग

प्रश्न 30.
कम्पनी काल में अक्सर शक्तिशाली जमींदारों के लिए जो शब्द प्रयोग किया जाता था, वह था
(a) कोतवाल
(b) राजा
(c) रैयत
(d) जोतदार
उत्तर-
(b) राजा

प्रश्न 31.
18वीं शताब्दी में बंगाल में नीलामी में कितने प्रतिशत से अधिक बिक्री फर्जी होती थी?
(a) 95 प्रतिशत
(b) 99 प्रतिशत
(c) 75 प्रतिशत
(d) 39 प्रतिशत
उत्तर-
(a) 95 प्रतिशत

प्रश्न 32.
इस्तमरारी बंदोबस्त लागू किए जाने के बाद कितने प्रतिशत से अधिक जमींदारियाँ हस्तांतरित कर दी गई थीं?
(a) 75 प्रतिशत
(b) 95 प्रतिशत
(c) 15 प्रतिशत
(d) 45 प्रतिशत
उत्तर-
(a) 75 प्रतिशत

प्रश्न 33.
चार्ल्स कॉर्नवालिस का जीवन-काल था
(a) 1838-1905
(b) 1738-1805
(c) 1638-1705
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(b) 1738-1805

प्रश्न 34.
शिकमी-रैयत को बंगाल में जमीन कौन पट्टे पर देता था?
(a) रैयत
(b) कम्पनी
(c) जमींदार
(d) इक्तेदार
उत्तर-
(a) रैयत

प्रश्न 35.
‘अमला’ किसके द्वारा भेजा अधिकारी होता था?
(a) दीवान
(b) जमींदार
(c) कोतवाल
(d) मनसबदार
उत्तर-
(b) जमींदार

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प्रश्न 36.
प्रायः जोतदार कहाँ रहते थे?
(a) गाँव में
(b) शहरों में
(c) महानगरों में
(d) कस्बों में
उत्तर-
(a) गाँव में

प्रश्न 37.
महाराजा मेहताब चंद का जीवनकाल था
(a) 1820-1879
(b) 1920-1939
(c) 1729-1799
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) 1820-1879

प्रश्न 38.
बंगाल और बिहार में स्थायी बन्दोबस्त शुरू करने का श्रेय किसे दिया जाता है? (2018A)
(a) लार्ड कार्नवालिस
(b) लार्ड वेलेस्ली
(c) लार्ड रिपन
(d) लार्ड कर्जन
उत्तर-
(a) लार्ड कार्नवालिस

प्रश्न 39.
भारत आने वाले प्रथम यरोपियन कौन थे?
(a) पुर्तगाली
(b) ब्रिटिश
(c) डच
(d) फ्रांसीसी
उत्तर-
(a) पुर्तगाली

प्रश्न 40.
अंग्रेजों ने सर्वप्रथम अपनी फैक्ट्री कहाँ स्थापित किया था?
(a) हल्दियाँ
(b) मछलीपट्नम
(c) कोचीन
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(b) मछलीपट्नम

प्रश्न 41.
पुर्तगालियों ने गोवा पर कब अधिकार किया? (2018.4,2019A)
(a) 1515
(b) 1512
(c) 1510
(d) 1509
उत्तर-
(c) 1510

प्रश्न 42.
फ्रांसिस बुकानन कौन था?
(a) सैनिक
(b) गायक
(c) अभियन्ता
(d) सर्वेक्षक
उत्तर-
(d) सर्वेक्षक

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प्रश्न 43.
फ्रांसिस बुकानन के विवरण की तुलना इतिहास के किस स्कूल से की गयी है?
(a) एनाल्स
(b) सवाल्टर्न
(c) मार्क्सवादी
(d) साम्राज्यवादी
उत्तर-
(a) एनाल्स

प्रश्न 44.
फ्रांसिस बुकानन के विवरणों से किस जनजाति के बारे में पता चलता है?
(a) गौड़
(b) संथाल
(c) कोल
(d) हुम्मार
उत्तर-
(b) संथाल

प्रश्न 45.
किस रिपोर्ट का सम्बन्ध भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के क्रिया-कलापों से है?
(a) 11वीं रिपोर्ट
(b) 21वीं रिपोर्ट
(c) 5वीं रिपोर्ट
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) 5वीं रिपोर्ट

प्रश्न 46.
रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के जनक थे.
(a) मार्टिन बर्ड
(b) बुकानन
(c) मुनरो एवं रीड
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(c) मुनरो एवं रीड

प्रश्न 47.
महालवाडी बन्दोबस्त किसके द्वारा लाग किया गया? (2019A)
(a) मार्टिन बर्ड
(b) रीड
(c) मुनरो
(d) बुकानन
उत्तर-
(a) मार्टिन बर्ड

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 48.
किस युद्ध में विजय के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा के दीवानी अधिकार प्राप्त कर लिये
(a) प्लासी
(b) बक्सर
(c) पानीपत
(d) हल्दीघाटी
उत्तर-
(b) बक्सर

प्रश्न 49.
भारत में स्थायी रूप से 10 वर्षीय जनगणना का आरम्भ 1881 में किस गर्वनर जनरल के काल में हुआ?
(a) क्लाइव
(b) वारेन हेस्टिंग्स
(c) रिपन
(d) मेयो
उत्तर-
(c) रिपन

प्रश्न 50.
दक्कन दंगा आयोग कब गठित हुआ?
(a) 1875
(b) 1880
(c) 1885
(d) 1890
उत्तर-
(a) 1875

प्रश्न 51.
किस सरकारी रिपोर्ट से भारतीय कृषक जनजातियों की स्थिति का पता चलता है?
(a) बुकानन की रिपोर्ट
(b) पाँचवीं रिपोर्ट
(c) दक्कन दंगा आयोग रिपोर्ट
(d) उक्त सभी से
उत्तर-
(d) उक्त सभी से

प्रश्न 52.
उलगुलान विद्रोह का नेता कौन था?
(a) सिद्ध
(b) गोमधर कुंवर
(c) चित्तर सिंह
(d) विरसामुण्डा
उत्तर-
(d) विरसामुण्डा

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 9 राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार

Bihar Board 12th History Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 9 राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार

प्रश्न 1.
पानीपत का प्रथम युद्ध किस वर्ष हुआ था ?
(a) 1509 ई. में
(b) 1526 ई. में
(c) 1556 ई. में
(d) 1761 ई. में
उत्तर-
(b) 1526 ई. में

प्रश्न 2.
बाबर की आत्मकथा का क्या नाम है?
(a) बाबरनामा
(b) तुजुक-ए-बाबरी
(c) किताब-उल-हिन्द
(d) रेहला
उत्तर-
(a) बाबरनामा

प्रश्न 3.
तम्बाकू पर किस शासक ने प्रतिबंध लगाया ?
(a) अकबर
(b) बाबर
(c) जहाँगीर
(d) शाहजहाँ
उत्तर-
(d) शाहजहाँ

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 9 राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार

प्रश्न 4.
अकबर का संरक्षक कौन था?
(a) फौजी
(b) मुनीम खाँ
(c) अब्दुल रहीम
(d) बैरम खाँ
उत्तर-
(d) बैरम खाँ

प्रश्न 5.
तम्बाकू का सेवन सर्वप्रथम किस मुगल सम्राट ने किया ?
(a) जहाँगीर
(b) शाहजहाँ
(c) बाबर
(d) अकबर
उत्तर-
(a) जहाँगीर

प्रश्न 6.
ताजमहल का निर्माण किसने किया था ?
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) औरंगजेब
(d) शाहजहाँ
उत्तर-
(d) शाहजहाँ

प्रश्न 7.
निम्नलिखित इतिहासकारों में कौन अकबर का समकालीन था ?
(a) फरिस्ता
(b) बदायूनी
(c) मतुल्ला दाउद
(d) मुहम्मद खान
उत्तर-
(d) मुहम्मद खान

प्रश्न 8.
किस प्रशासकीय सुधार के लिए शेरशाह खासतौर पर जाना जाता
(a) बाजार नियंत्रण
(b) भूमि-सुधार व्यवस्था
(c) मनसबदारी व्यवस्था
(d) विधि-नियंत्रण व्यवस्था
उत्तर-
(d) विधि-नियंत्रण व्यवस्था

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प्रश्न 9.
भारत का अंतिम मुगल शासक कौन था ?
(a) शाहजहाँ
(b) औरंगजेब
(c) मुहम्मद शाह
(d) बहादुर शाह जफर
उत्तर-
(d) बहादुर शाह जफर

प्रश्न 10.
भारत का अंतिम मुगल शासक कौन था ?
(a) औरंगजेब
(b) शाहजहाँ
(c) बहादुरशाह जफर
(d) मुहम्मद शाह
उत्तर-
(d) मुहम्मद शाह

प्रश्न 11.
‘दामिन-इ-कोह’ क्या था ?
(a) भूभाग
(b) तलवार
(c) उपाधि
(d) घोड़ा
उत्तर-
(a) भूभाग

प्रश्न 12.
मुगल नाम व्युत्पन्न हुआ है
(a) मध्य एशिया से
(b) मंगोल से
(c) मोगली नामक पुस्तक से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(b) मंगोल से

प्रश्न 13.
मुगल साम्राज्य के वास्तविक संस्थापक थे
(a) अकबर
(b) बाबर
(c) हुमायूँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(b) बाबर

प्रश्न 14.
मुगल साम्राटों में समान्यतया महानतम सम्राट् माना जाता है
(a) जलालुद्दीन अकबर को
(b) नसीरुद्दीन हुमायूँ को
(c) जहाँगीर को
(d) औरंगजेब को
उत्तर-
(a) जलालुद्दीन अकबर को

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प्रश्न 15.
औरंगजेब का देहांत हुआ था
(a) 1857 ई. में
(b) 1707 ई. में
(c) 1907 ई. में
(d) 1607 ई. में
उत्तर-
(b) 1707 ई. में

प्रश्न 16.
बहादुरशाह जफर को उखाड़ फेंका था
(a) मराठों ने
(b) सिक्खों ने
(c) जाटों ने
(d) अंग्रेजों ने
उत्तर-
(d) अंग्रेजों ने

प्रश्न 17.
आलमगीर जिस मुगल सम्राट् की पद्वी थी, उसका नाम था
(a) औरंगजेब
(b) शाहजहाँ
(c) जहाँगीर
(d) बहादुरशाह
उत्तर-
(a) औरंगजेब

प्रश्न 18.
अकबर ने सोच-समझकर जिसको दरबार की मुख्य भाषा बनाया, वह थी
(a) हिंदवी
(b) अरबी
(c) फारसी
(d) तुर्की
उत्तर-
(c) फारसी

प्रश्न 19.
रिपब्लिक के लेखक हैं
(a) प्लेटो
(b) अरस्तू
(c) सुकरात
(d) अबुल फजल
उत्तर-
(a) प्लेटो

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प्रश्न 20.
सुलह-ए-कुल का अर्थ है
(a) अच्छा कुल
(b) पूर्ण शांति
(c) पूर्ण अशांति
(d) सुंदर कुल
उत्तर-
(b) पूर्ण शांति

प्रश्न 21.
अकबर ने जजिया को समाप्त कर दिया था
(a) 1564 ई. में
(b) 1556 ई. में
(c) 1570 ई. में
(d) 1605 ई. में
उत्तर-
(a) 1564 ई. में

प्रश्न 22.
सुईम जिस मुगल सम्राट् का नाम था, वह थे
(a) शाहजहाँ
(b) जहाँगीर
(c) अकबर
(d) कोई भी नहीं
उत्तर-
(a) शाहजहाँ

प्रश्न 23.
बुलंद दरवाजा जिस स्थान पर है, वह है
(a) आगरा
(b) फतेहपुर सीकरी
(c) फतहनगर
(d) फिरोजपुर
उत्तर-
(b) फतेहपुर सीकरी

प्रश्न 24.
औरंगजेब ने अपने जीवन का अंतिम भाग बिताया
(a) पश्चिमी भारत में
(b) उत्तरी भारत में
(c) पूर्वी भारत में
(d) दक्षिणी भारत में
उत्तर-
(d) दक्षिणी भारत में

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प्रश्न 25.
स्थापत्यकला का सबसे अधिक विकास किसके समय में हुआ ?
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) शाहजहाँ
(d) औरंगजेब
उत्तर-
(c) शाहजहाँ

प्रश्न 26.
कैप्टेन हॉकिन्स किस मुगल शासक के दरबार में आया ?
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) शाहजहाँ
(d) औरंगजेब
उत्तर-
(b) जहाँगीर

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में अकबर किस पर अधिकार नहीं कर सका ?
(a) मेवाड़
(b) मारवाड़
(c) चित्तौड़
(d) जोधपुर
उत्तर-
(a) मेवाड़

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में कौन मुगल बादशाह ‘आलमगीर’ के नाम से जाना जाता था ?
(a) जहाँगीर
(b) शाहजहाँ
(c) औरंगजेब
(d) बहादुर शाह
उत्तर-
(c) औरंगजेब

प्रश्न 29.
औरंगजेब ने अपने जीवन का अंतिम भाग बिताया (2009A, 12A, 15A,16A,19A)
(a) पश्चिमी भारत में
(b) उत्तरी भारत में
(c) पूर्वी भारत में
(d) दक्षिणी भारत में
उत्तर-
(d) दक्षिणी भारत में

प्रश्न 30.
स्थापत्यकला का सबसे अधिक विकास किसके समय में हुआ? (2009A, 13A, 16A)
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) शाहजहाँ
(d) औरंगजेब
उत्तर-
(c) शाहजहाँ

प्रश्न 31.
भारत का प्रथम भुगल शासक कौन था? (2019A)
(a) बाबर
(b) अकबर
(c) शेरशाह सूरी
(d) बलबन
उत्तर-
(a) बाबर

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प्रश्न 32.
निम्नलिखित में अकबर किस पर अधिकार नहीं कर सका? (2009A,2012A)
(a) मेवाड़
(b) मारवाड़
(c) चित्तौड़
(d) जोधपुर
उत्तर-
(a) मेवाड़

प्रश्न 33.
निम्नलिखित में कौन मुगल बादशाह ‘आलमगीर’ के नाम से जाना जाता था? (2009A, 2012A. 2014A)
(a) जहाँगीर
(b) शाहजहाँ
(c) औरंगजेब
(d) बहादुर शाह
उत्तर-
(c) औरंगजेब

प्रश्न 34.
पानीपत का प्रथम युद्ध किस वर्ष हुआ था? (2010A,2012A,2014A.2016A)
(a) 1509 ई. में
(b) 1526 ई. में
(c) 1556 ई. में
(d) 1761 ई. में
उत्तर-
(b) 1526 ई. में

प्रश्न 35.
बाबर की आत्मकथा का क्या नाम है? (2012A)
(a) बाबरनामा
(b) तुजुक-ए-बाबरी
(c) किताब-उल-हिन्द
(d) रेहला
उत्तर-
(a) बाबरनामा

प्रश्न 36.
अकबर का संरक्षक कौन था? (2015A,2016A)
(a) फौजी
(b) मुनीम खाँ
(c) अब्दुल रहीम
(d) बैरम खाँ
उत्तर-
(d) बैरम खाँ

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प्रश्न 37.
ताजमहल का निर्माण किसने किया था? (2010A)
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) औरंगजेब
(d) शाहजहाँ
उत्तर-
(d) शाहजहाँ

प्रश्न 38.
निम्नलिखित इतिहासकारों में कौन अकबर का समकालीन था? (2011A)
(a) फरिस्ता
(b) बदायूनी
(c) मतुल्ला दाउद
(d) मुहम्मद खान
उत्तर-
(d) मुहम्मद खान

प्रश्न 39.
किस प्रशासकीय सुधार के लिए शेरशाह खासतौर पर जाना जाता (2011)
(a) बाजार नियंत्रण
(b) भूमि-सुधार व्यवस्था
(c) मनसबदारी व्यवस्था
(d) विधि-नियंत्रण व्यवस्था
उत्तर-
(b) भूमि-सुधार व्यवस्था

प्रश्न 40.
‘दामिन-इ-कोह’ क्या था? (2015A,2014A, 2018A)
(a) भूभाग
(b) तलवार
(c) उपाधि
(d) घोड़ा
उत्तर-
(a) भूभाग

प्रश्न 41.
मुगल नाम व्युत्पन्न हुआ है
(a) मध्य एशिया से
(b) मंगोल से
(c) मोगली नाम पुस्तक से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(b) मंगोल से

प्रश्न 42.
मुगल समान्य का वास्तविक संस्थापक कौन था?
(a) अकबर
(b) बाबर
(c) हुमायूँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) अकबर

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 9 राजा और विभिन्न वृतांत : मुगल दरबार

प्रश्न 43.
मुगल सम्राटों में समान्यतया महानतम सम्राट माना जाता है
(a) जलालुद्दीन अकबर को
(b) नसीरुद्दीन हुमायूँ को
(c) जहाँगीर को
(d) औरंगजेब को
उत्तर-
(a) जलालुद्दीन अकबर को

प्रश्न 44.
औरंगजेब का देहान्त हुआ था
(a) 1857 ई. में
(b) 1707 ई. में
(c) 1907 ई. में
(d) 1607 ई. में
उत्तर-
(b) 1707 ई. में

प्रश्न 45.
बहादुरशाह जफर को उखाड़ फेंका था
(a) मराठों ने
(b) सिक्खों ने
(c) जाटों ने
(d) अंग्रेजों ने
उत्तर-
(d) अंग्रेजों ने

प्रश्न 46.
अकबर ने सोच-समझकर जिसको दरबार की मुख्य भाषा बनाया वह थी
(a) हिंदवी
(b) अरबी
(c) फारसी
(d) तुर्की
उत्तर-
(c) फारसी

प्रश्न 47.
रिपब्लिक के लेखक हैं
(a) प्लेटो
(b) अरस्तू
(c) सुकरात
(d) अबुल फजल
उत्तर-
(a) प्लेटो

प्रश्न 48.
सुलह-ए-कुल का अर्थ है
(a) अच्छा कुल
(b) पूर्ण शांति
(c) पूर्ण अशांति
(d) सुंदर कुल
उत्तर-
(b) पूर्ण शांति

प्रश्न 49.
अकबर ने जजिया को समाप्त कर दिया था
(a) 1564 ई. में
(b) 1556 ई. में
(c) 1570 ई. में
(d) 1605 ई. में
उत्तर-
(a) 1564 ई. में

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प्रश्न 50.
खुर्रम किस मुगल सम्राट का नाम था?
(a) शाहजहाँ
(b) जहाँगीर
(c) अकबर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) शाहजहाँ

प्रश्न 51.
बुलंद दरवाजा जिस स्थान पर है, वह है
(a) आगरा
(b) फतेहपुर सिकरी
(c) फतहनगर
(d) फिरोजपुर
उत्तर-
(b) फतेहपुर सिकरी

प्रश्न 52.
हुमायूँ का भाई कौन था?
(a) कामरान
(b) असकरी
(c) हिन्दाल
(d) ये सभी
उत्तर-
(d) ये सभी

प्रश्न 53.
मुगलकालीन चित्रकला किसके काल में चरमोत्कर्ष पर पहंची?
(a) हुमायूँ
(b) अकबर
(c) जहाँगीर
(d) शाहजहाँ
उत्तर-
(c) जहाँगीर

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प्रश्न 54.
रज्मनामा के नाम से किस ग्रंथ का फारसी अनवाद किया गया?
(a) रामायण
(b) महाभारत
(c) गीता
(d) उपनिषद्
उत्तर-
(c) गीता

प्रश्न 55.
गलबदन बेगम ने किसके आग्रह पर हमायँनामा लिखा
(a) अकबर
(b) हुमायूँ
(c) बाबर
(d) अबुल फजल
उत्तर-
(a) अकबर

प्रश्न 56.
बादशाहनामा किसने लिखा?
(a) फौजी
(b) अबुल फजल
(c) अब्दुल हमीद लाहौरी
(d) निजामुद्दीन अहमद
उत्तर-
(c) अब्दुल हमीद लाहौरी

प्रश्न 57.
यास्सा (राजकीय नियम) किसने लागू किये थे?
(a) तैमूर
(b) चंगेज खाँ
(c) बाबर
(d) अकबर
उत्तर-
(b) चंगेज खाँ

प्रश्न 58.
‘हुमायूँनामा’ का अंग्रेजी अनवाद किसने किया?
(a) हेनरी बेवरीज
(b) जैरेट
(c) ब्लाकमैन
(d) ग्राण्ड डफ
उत्तर-
(a) हेनरी बेवरीज

प्रश्न 59.
लाड़ली बेगम किसकी पुत्री थी?
(a) नूरजहाँ
(b) मुमताज
(c) अस्मा बेगम
(d) जहाँआरा
उत्तर-
(a) नूरजहाँ

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प्रश्न 60.
फतेहपुर सिकरी को राजधानी किसने बनाया? (2019)
(a) अकबर
(b) जहाँगीर
(c) शाहजहाँ
(d) बाबर
उत्तर-
(a) अकबर

प्रश्न 61.
दरबार में अभिवादन का तरीका निम्न में से कौन सा था?
(a) कोर्निश
(b) सजदा
(c) पायवोस
(d) ये सभी
उत्तर-
(d) ये सभी

प्रश्न 62.
अकबर ने किस सन् में दीन-ए-इलाही धर्म चलाया? (2011, 13.1AN )
(a) 1562
(b) 1564
(c) 1579
(d) 1581
उत्तर-
(d) 1581

प्रश्न 63.
दारा एवं शाहजहाँ के पास आगग में रहती थी
(a) जहाँआरा
(b) रोशनआरा
(c) गौहरआरा
(d) ये सभी
उत्तर-
(a) जहाँआरा

प्रश्न 64.
दिल्ली में चाँदनी चौक का निर्माण किसने कराया?
(a) जहाँआरा
(b) रोशनआरा
(c) गौहरआरा
(d) किसी ने नहीं
उत्तर-
(a) जहाँआरा

प्रश्न 65.
बाबर चंगेज खाँ का कौन-सा वंगज था?
(a) पाँचवाँ
(b) सातवाँ
(c) बारहवाँ
(d) चौदहवाँ
उत्तर-
(d) चौदहवाँ

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प्रश्न 66.
गुलबदन बेगम कौन थी?
(a) नर्तकी
(b) गायिका
(c) लेखिका
(d) नायिका
उत्तर-
(c) लेखिका

प्रश्न 67.
अकबर के समय राजकुमारों को अधिकतम कितने का मनसबदार बनाया गया?
(a) 5,000
(b)7,000
(c) 10,000
(d) 12,000
उत्तर-
(d) 12,000

प्रश्न 68.
तुजक-ए-जहाँगीरी की रचना किसने की?
(a) अब्बास खाँ सरवानी
(b) गुलबदन बेगम
(c) जहाँगीर
(d) नूरजहाँ
उत्तर-
(c) जहाँगीर

प्रश्न 69.
तुजक-ए-बाबरी किसने लिखी? (2012)
(a) बाबर
(b) फैजी
(c) अबुल फजल
(d) हुमायूँ
उत्तर-
(a) बाबर

प्रश्न 70.
अकबर का बजीर था
(a) बैरम खाँ
(b) मुनीम खाँ
(c) टोडरमल
(d) अब्दुल रहीम
उत्तर-
(a) बैरम खाँ

प्रश्न 71.
मुगल प्रशासन में जिले को किस नाम से जाना जाता था?
(a) अहार
(b) सूबा
(c) सरकार
(d) दस्तूर
उत्तर-
(c) सरकार

प्रश्न 72.
दीवान-ए-अशरफ का अर्थ है (2017)
(a) भूमि विभाग का अध्यक्ष
(b) वन विभाग का अध्यक्ष
(c) राजस्व विभाग का अध्यक्ष
(d) सेना विभाग का अध्यक्ष
उत्तर-
(c) राजस्व विभाग का अध्यक्ष

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प्रश्न 73.
भारत में सुलह-ए-कुल की नीति का प्रतिपादन किसने किया?
(a) हुमायूँ
(b) अकबर
(c) जहाँगीर
(d) औरंगजेब
उत्तर-
(b) अकबर

प्रश्न 74.
भारत का अंतिम मुगल शासक कौन था? (2018A)
(a) शाहजहाँ
(b) मुहम्मद शाह
(c) औरंगजेब
(d) बहादुर शाह जफर
उत्तर-
(d) बहादुर शाह जफर

Bihar Board Class 11th Hindi साहित्य शास्त्र

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शब्द-शक्ति

प्रश्न 1.
‘शब्द-शक्ति’ का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए उसके स्वरूप का विवेचना कीजिए।
उत्तर-
‘शब्द-शक्ति’ का तात्पर्य-साहित्य मूलतः शब्द के माध्यम से साकार होता है। भारतीय दर्शनशास्त्र में ‘शब्द’ को ‘ब्रह्म’ कहा गया है। जिस प्रकार ब्रह्म इस जगत का स्रष्टा है, उसी की माया का विविध रूपों में प्रसार विश्व की गतिशीलता और क्रियाशीलता का आधार है। यही ‘माया’ ब्रह्म की ‘शक्ति’ भी कहलाती है। उसी प्रकार शब्द की माया अर्थात् शक्ति समस्त भाव जगत या विचार सृष्टि की विधात्री है। गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचतिमानस’ महाकाव्य के आरंभ में कहा है-‘जिस प्रकार जल और उसकी लहर कहने को भले ही अलग हैं पर वास्तव में वे दोनों हैं एक ही, उसी प्रकार ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ नाम अलग होते हुए भी, दोनों एक दूसरे से अभिन्न हैं।’

शब्द अरथ जल बीचि, सम, कहियत भिन्न-न-भिन्न
-रामचरितमानस, (बालकांड)

जैसे वस्त्र से उनका रंग, फूल से उसकी गंध और आग से उसकी तपन अलग नहीं, उसी प्रकार शब्द से उसका अर्थ अलग नहीं। शब्द और अर्थ की इसी ‘अभिन्नता’ का नाम ‘शब्दशक्ति’ है।

‘शब्द-शक्ति’ का स्वरूप-‘शब्द’ की ‘शक्ति’ क्या है-‘अर्थ’। अर्थ के माध्यम से ही किसी शब्द की क्षमता, महत्ता, सुष्टुता और प्रभविष्णुता का पता चल पाता है।

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इस आधार पर ‘शब्द-शक्ति’ की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है। ‘शब्द में अर्थ को सूचित करने की जो क्षमता होती है उस ‘शद्र किन, कहते हैं। इस परिभाषा को अन्य विद्वानों ने कुछ मग्ल-रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया है ‘शब्द का वह व्यापार, जिसके द्वारा किसी अर्थ का बोध होता है, ‘शब्द-शक्ति’। कहलाता है।’ एक उदाहरण द्वारा ‘शब्द-शक्ति’ के स्वरूप को समझना होगा। गष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी का गीत है-

यह मेरी नन्ही तकली,
है नाचती जैसे मछली,
मैं सूत बनाता इसमें,
मैं गाना गाता इसमें,
मैं दिल बहलाता इसमें,
मैं खेल मचाता इसमें,
यह फिरती उछली-उछली,
यह मेरी नन्ही तकली।

इस गीत में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है वे सभी ‘वाचक’ हैं अर्थात् वे अपना अर्थ स्वयं ही बता रहे हैं। यदि किसी शब्द का अर्थ पहले से पता न भी हो तो ‘कोश’ से देखकर या किसी अन्य जानकार से पूछकर मालूम कर सकते हैं। नन्हीं, तकली, मछली, सूत, गाना, दिल, . खेल, आदि के अर्थ प्रसिद्ध और सर्वज्ञात हैं। इस प्रकार के प्रसिद्ध अर्थ अर्थात् मुख्य अर्थ या वाच्य अर्थ कहलाते हैं। अर्थात् ये अर्थ प्रसिद्ध हैं और पहले से पुस्तकों में (कोश, व्याकरण आदि में) में बताए जा चुके हैं। ऐसे वाच्य अर्थ’ या ‘मुख्य अर्थ’ का बोध जिन शब्दों से होता है।

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वे ‘वाचक’ शब्द कहलाते हैं। – अब इसी गीत में आए हुए ‘दिल बहलाता’, ‘खेल मचाता’ और ‘फिरती उछली-उछली’ पर ध्यान दें। ‘बहलाया’ बच्चों को जाता है। दिल बच्चा नहीं। उसे ‘बहलाना’ कैसे संभव है? इस प्रकार ‘बहलाना’ शब्द का मुख्य अर्थ ‘खुश करना’ बाधित (ठीक न लगने वाला) प्रतीत होता है। तब हम बहलाने के लक्षण से यह अर्थ मालूम करेंगे कि जैसे उदास बच्चे को किसी खेल-खिलौने से खुश किया जाता है, उसी प्रकार ‘मेरा उदास मन तकली चलाने से खुश रहता है’ (तकली चलाने में मस्त होकर मन ही उदासी दूर हो जाती है।)

इस तरह हमने एक अन्य अर्थ लक्षित कर लिया। इस अर्थ को ‘लक्ष्यार्थ’ (लक्ष्य अर्थ लक्षण से जाना गया अर्थ, कहते हैं और इस प्रकार का अर्थ देने वाला शब्द ‘लक्षक’ शब्द कहलाता है। इसी प्रकार, ‘खेल मचाना’ या ‘तकली का उछलमा प्रयोगों में भी लक्षक शब्द और लक्ष्यार्थ हैं। उछलते बच्चे (मनुष्य या जीवित प्राणी) है। तकली तो बेजान है, वह कैसे उछली-उछली फिर सकती है। इस तरह ‘उछली’ शब्द के प्रसिद्ध अर्थ ‘कूदना, ऊपर-नीचे होकर मटकना या मस्ती से ‘चलना’ बाधक (रोक) प्रतीक होती है।

अर्थात् यहाँ यह अर्थ (तकली मस्ती में झूमकर उछल रही संगत प्रतीत नहीं होता। तब हम ‘उछलना’ के लक्षण (मस्ती से झूमना) द्वारा यह लक्ष्यार्थ ग्रहण करते हैं कि जैसे बच्चे (या प्राणी) मस्ती में उछलते हैं उसी प्रकार सूत कातते समय तकली का ऊपर-नीचे होना, इधर-उधर हिलना ऐसा लगता है मानों वह मस्ती में उछल-नाच रही है।

अब, इस सारे गीत को एक-बार फिर पढ़ने पर जब हम यह जानते हैं कि तकली चलानेवाले का मन बड़ा खुश है। वह अपनी छोटी-सी तकली चलाते समय खेल-कूद जैसा आनंद अनुभव करता है। तब इसमें छिपा हुआ यह मूढ़ भाव स्पष्ट हो जाता है कि गाँधीजी ने देशवासियों को जो चरखा-तकली चलाकर अपने हाथ से सूत कातकर ‘स्वदेशी’ का संदेश दिया वह बड़ा सुखकर और आनंददायक है। यह ‘छिपा हुआ गूढ अर्थ “व्यंग्यार्थ,(व्यंग्य अर्थ अर्थात् शब्दों के माध्यम से व्यजित (प्रकट होने वाला. नया-सूक्ष्म अर्थ) कहलाता है और इस प्रकार के ‘व्यंग्यार्थ’ (गूढ़ अर्थ) वाले. शब्द (व्यंजक) कहलाते हैं।

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उपर्युक्त पद्यबद्ध उदाहरण के अर्थ-सौंदर्य के विवेचन के आधार पर शब्दशक्ति का स्वरूप भलीभाँति स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 2.
‘शब्द-शक्ति’ के प्रमुख भेद लक्षण-उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
अथवा,
‘शब्द-शक्ति’ कितने प्रकार की है? उसके विभिनन प्रकार (भेद या रूप) लक्षण-उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जब हम साहित्य के किसी भी वंश (पद्य या गद्य) के अर्थ-सौंदर्य पर विचार करते हैं तो पहले यह तथ्य सामने आता है कि उस गद्यांश में प्रयुक्त शब्दों में प्राप्त होने वाले अर्थ-ग्रहण की प्रक्रिया क्या हो सकती है। उदाहरणतया फूल शब्द का अर्थ ग्रहण करने की तीन प्रक्रियाएँ संभव है। एक-उसका शब्दकोश और लोक-व्यवहार में प्रचलित मुख्य अर्थ-किसी पौधे पर उगने वाला वह आकर्षक, रंगीन, सुंदर पदार्थ जिसमें गंध भी होती है। जैसे-गुलाब, गेंदा, चमेली, आदि। दूसरी-‘मेरे जीवन में ‘फूल’ कभी खिले ही नहीं’ इस वाक्य में फूल के अर्थ-ग्रहण की प्रक्रिया बदल जाएगी।

जीवन कोई पेड़-पौधा नहीं जिस पर फूल खिला करते हों। इस प्रकार मुख्य, प्रचलित या वाच्य अर्थ असंगत लगता है। उसकी प्रतीत (अर्थ की प्राप्ति) में बोध (व्यवधान) है। तब नई प्रक्रिया शुरू होती है-‘फूल के गुण लक्षण के आधार पर। फूल आनंददायक होता है। इस लक्षण की सहायता से हम यह अर्थग्रहण करेंगे-मेरे जीवन में कभी सुख-आनंददायक का अवसर आया ही नहीं। तीसरी प्रक्रिया तनिक और भी भिन्न होगी। उसमें इसी ‘फूल’ शब्द का न तो वाच्यार्थ पूर्णतः संगत होगा, न ही लक्ष्यार्थ (सुख-आनंद) उचित प्रतीत होगा। ‘कली फूल बनने से पहले ही मुरझा गई।’

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हो सकता है, इस वाक्य का वाच्यार्य भी अभीष्ट हो कि (आँधी, तूफान या बाढ़ के कारण) कई कलियाँ विकसित होने से पहले ही नष्ट हो गईं। परंतु इसका व्यजित अर्थ बड़ा मार्मिक है-बच्चा यौवन आने से पहले ही काल का ग्रास बन गया अथवा बालिका (भीषण विपत्तियों के कारण) पूर्ण यौवन के सौंदर्य के आगमन से पहले ही उदास, लाचार और मरी-मरी सी हो गई है। या बालक अभी जवान ही नहीं हुआ था कि (पिता आदि के न रहने से) जिम्मेदारी के बोझ से दबकर दुबला-पतला हो गया है” आदि।

इस प्रकार हमने देखा कि किसी शब्द के अर्थ को बोध करने वाला शक्ति अर्थात् शब्द-शक्ति भिन्न-भिन्न रूपों (प्रक्रियाओं) में काम करती है। ऊपर दिए गए ‘फूल’ वाले उदाहरण से स्पष्ट है कि शब्द शक्ति से संदर्भ में शब्द मुख्यतः तीन स्तरों में विभाजित हो सकते हैं-

  • ‘वाच्यार्थ’ का बोध कराने वाले शब्द ‘वाचक’।
  • ‘लक्ष्यार्थ’ का बोध कराने वाले शब्द ‘लक्षक’।
  • ‘व्यंग्यार्थ’ का बोध कराने वाले शब्द ‘व्यंजक’।

पहले स्तर का अर्थ-व्यापार ‘अभिधा’ शब्द-शक्ति का है, दूसरे स्तर का व्यापार ‘लक्षणा’ शब्द-शक्ति का तथा तीसरे स्तर का व्यापार ‘व्यंजना’ शब्द-शक्ति का है। इसी आधार पर ‘शब्द-शक्ति के तीन भेद माने जाते हैं-

  • अभिधा,
  • लक्षणा,
  • व्यंजना।

अभिधा शब्द-शक्ति-‘शब्द के जिस व्यापार या सामर्थ्य से उसके स्वाभाविक (प्रसिद्ध, मुख्य या प्रचलित) अर्थ का बोध होता है, उसे ‘अभिधा’ शब्द-शक्ति कहते हैं।

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‘अभिधा’ शब्द-शक्ति से प्राप्त अर्थ ‘वाच्यार्थ’ या ‘मुख्यार्थ’ तथा ऐसे अर्थ का बोध कराने वाला शब्द ‘वाचक’ शब्द कहलाता है। जैसे-

पंचवटी की छाया में है सुंदर पर्ण-कुटीर बना,
उसके सम्मुख स्वच्छ शिला पर धीर वीर निर्भीक मना,
जाग रहा यह कौन धनुर्धर जबकि भुवन पर सोता है। (मैथिलीशरण गुप्त, पंचवटी)

इन पंक्तियों के सभी शब्द ‘वाचक’ हैं और उनसे मुख्यार्थ या वाच्यार्थ (स्वाभाविक, प्रसिद्ध या प्रचलित अर्थ) का बोध होता है। अतः यहाँ ‘अभिधा’ शब्द-शक्ति है।

लक्षणा शब्द-शक्ति-‘शब्द’ के जिस व्यापार (सामर्थ्य) से, ज्ञात मुख्यार्थ में बोध होने पर, लक्षण के आधार पर किसी अन्य अर्थ का बोध होता है उसे ‘लक्षणा’ शब्द-शक्ति कहते हैं।

‘लक्षणा’ शब्द-शक्ति से ज्ञात अर्थ ‘लक्ष्यार्थ’ तथा उसका बोध कराने वाला शब्द ‘लक्षक’ कहलाता है।जैसे-

सपने में तुम नित आते हो, मैं हूँ अति सुख पाती।
मिलने को उठती हूँ, सौतन आँख प्रथम उठ जाती। (रामनरेश त्रिपाठी)

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‘आँख’ जो स्त्री नहीं, सो वह सौत हो सकती है। प्राणी सोता या जागता (उठता) है, आँख नहीं। इस प्रकार, यहाँ आँख उठ जाती के वाच्यार्थ में बोध है। तब हम ‘सौत’ के लक्षण द्वारा यह लक्ष्यार्थ मालूम करते हैं कि जिस प्रकार किसी स्त्री की सौत (पति की दूसरी पत्नी) उसे पति से मिलने में बाधक बनती है, उसी प्रकार इस कविता में दुखी नायिका को स्वप्न में भी प्रिय-मिलन का सुख अनुभव करने में उसकी आँख बाधक बन जाती है, क्योंकि स्वप्न के समय आँखें बंद होती हैं। नायिका स्वपन में प्रिय को देखकर ज्यों ही उससे मिलने के लिए उठती है तभी आँखें खुल जाती हैं। नायिका का सुख दुःख में बदल जाता है। इस प्रकार, यहाँ ‘लक्षण’ शब्द ‘सौतन’ तथा ‘आँख उठ जाती’ द्वारा लक्ष्यार्थ की प्रतीति हुई है, अतः, “लक्षणा’ शब्द-शक्ति है।

इस विवेचन से स्पष्ट है कि ‘लक्षणा’ शब्द-शक्ति के व्यापार में क्रमशः दो बातें आवश्यक हैं-

  • मुख्यार्थ में बाधा होना, अर्थात् प्रसिद्ध अर्थ का असंगत प्रतीत होना।।
  • लक्षक शब्द के मुख्यार्थ और लक्ष्यार्थ में लक्षण (गुण-स्वभाव आदि की विशेषता) का साम्य होना।

ऊपर के उदाहरण में ‘आँख उठ जाना’ के मुख्यार्थ में बाधक स्पष्ट है-आँख उठती-बैठती जागती-सोती नहीं। यह तो प्राणी के स्वभाव या लक्षण है। फिर सौत के स्वभाव (नायिका के पति-मिलन के सुख में रुकावट डालकर उसे और सताने) तथा ‘आँख के उठ जाने’ के परिणाम में साम्य है। इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण है-

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तलवारों का प्यास बुझाता, केवल तलवारों का पानी।  – (सोहनलाल द्विवेदी, भैरवी)

तलवार कोई ऐसी प्राणी नहीं जिसे प्यास लगे। न तलवार में पानी (जल) होता है जो किसी की प्यास बुझाता है। तलवार का लक्षण (स्वभाव, पहचान) है-वैरी पर वार कर लहू बहाना। यह कार्य तलवार स्वयं नहीं करती, उसे थामने या चलाने वाला वीर योद्धा करता है। उसका जवाब भी कोई वीर-योद्धा ही देकर विरोधी की युद्ध संबंधी इच्छा (प्यास) पूरी करता है। इस तरह यहाँ ‘तलवार प्यास और पानी-लक्षण’ शब्द हैं जिनसे उपर्युक्त लक्ष्यार्थ की प्राप्ति हुई है।

व्यंजना शब्द-शक्ति-‘शब्द के जिस व्यापार का सामर्थ्य से, उसके मुख्यार्थ (वाच्य या प्रसिद्ध अर्थ) अथवा लक्ष्यार्थ से भिन्न किसी अन्य, विशेष, गूढ़ या प्रतीयमान अर्थ का बोध होता है उसे ‘व्यंजना’ शब्द-शक्ति कहते हैं।

व्यंजना शब्द-शक्ति वहाँ होती है जहाँ अभिप्रेत अर्थ स्पष्ट ज्ञात न होकर, प्रकारांतर से सांकेतिक या व्यजित होता है। अत: व्यंजना से प्रतीत होने वाला अर्थ ‘व्यंग्यार्थ’ तथा. व्यंजना-शब्द-शक्ति से युक्त शब्द ‘व्यंजक’ कहलाता है।

उदाहरण-
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।

यहाँ मुख्य (वाक्य) अर्थ यह है कि ‘संत कबीर चलती हुई चक्की को देखकर अत्यंत दुखी हैं, क्योंकि चक्की के दोनों पाटों के बीच में आने वाला कोई भी (दाना) बिना पिसे नहीं रह सकता। यह मुख्यार्थ साधारण है। कवि का अभिप्राय चक्की में पाटों द्वारा अनाज के दानों के पीसे जाने की प्रक्रिया बताना नहीं है-इसे तो सभी जानते हैं। कवि का अभीष्ट अथवा प्रतीयमान अर्थ यह है कि ‘संसार चक्की के समान है।

दिन और रात, या जन्म और मृत्यु इसके दो पाट हैं। इनके बीच फंस जाने के बाद कोई भी जीवन सुरक्षित नहीं रह पाता। व्यंग्यार्थ यह है कि ‘संसार नश्वर है जन्म और मृत्यु के चक्र से कोई भी बच नहीं सकता। ‘चक्की’ और ‘पाट’ ‘व्यंजक’ शब्द है।

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इसी प्रकार-

अबला जीवन हाय ! तुम्हारा यही कहानी।
आँचल में है दूध और आँखों में पानी।  –(मैथिलीशरण गुप्त)

इन पंक्तियों का मुख्य या वाच्य (ज्ञात) अर्थ है-‘हे नारी ! तेरी कहानी बस इतनी-सी है कि तुम्हारे अंचल (वक्ष या स्तनों) में दूध और आँखों पानी है।’ कवि का अभिप्रेत अर्थ इतना ही नहीं। छुपा हुआ (व्यंग्य) अर्थात् प्रतीयमान अथवा अभीष्ट (व्यंजित) अर्थ यह है कि ‘समाज -: में नारी महा-महिमामयी होते हुए भी सदा असहाय, उपेक्षित और अशक्त ही रहती है।

उसके अंत:करण में परिवार-समाज के लिए ममत्व, स्नेह, समर्पण, सौहार्द का ही स्रोत बहता है। वह जीवन भर ममता का अमृत प्रदान करती है। किन्तु बदले में उसे मिलता क्या है-उपेक्षा, तिरस्कार, शोषण, अन्याय और स्वार्थ के रूप में जीवन भर तड़पते हुए रोते रहना, आहें भरकर तिल-तिल जलते रहना।’ इस मार्मिक अर्थ की व्यंजना (प्रतीति) कराने वाले ‘व्यंजक’ शब्द हैं-

  • ‘अंचल पें है दूध’
  • ‘आँखों में पानी’।

क्रमशः इनका व्यंग्यार्थ यातना, आहे और सिसकियाँ।

प्रश्न 3.
‘लक्षण’ और ‘व्यंजना’ शब्द-शक्ति में क्या अंतर है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लक्षण और व्यंजना दोनों शब्द-शक्तियाँ साधारण रूप से जाने-पहचाने, मुख्य अथवा वाच्य अर्थ से कुछ अलग, भिन्न अर्थ का बोध कराती है, इसलिए इन दोनों की अलग-अलग पहचान में कई बार भ्रांति या कठिनाई की संभावना रहती है। दोनों के स्वरूप को पृथक रूप से स्पष्ट करने के लिए, दोनों की निम्नलिखित भिन्नताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है

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(1) लक्षण’ शब्द-शक्ति का अस्तित्व वही मानना चाहिए जहाँ मुख्य (वाक्य या प्रसिद्ध) अर्थ में बाधा (असंगति) हो। ‘व्यंजना’ शब्द-शक्ति के अंतर्गत मुख्यार्थ या वाच्यार्थ में बाधा (असंगति) नहीं होती, अर्थात् मुख्य या वाच्य अर्थ असंगत, असंभव, या असंबद्ध प्रतीत नहीं होता। जैसे-

अँखियाँ हरि दरसन की प्यासी।  –(सूरदास, भ्रमरगीत)

आँखों का भूखा होना संभव नहीं है, वे आहार नहीं करतीं। इस प्रकार ‘भूखी’ शब्द लक्षक है जिसका मुख्य अर्थ ‘खाने को व्याकुल होना’ बाधित अर्थात् असंभव, ‘असंगत या असंबद्ध है। इस असंगति को देखकर ही हम ‘भूख’ के लक्षण ‘व्याकुलता’, ‘उत्सुकता’, ‘तड़प’, ‘तीव्र लालसा’ के आधार पर यह लक्ष्यार्थ प्राप्त करते हैं कि ‘आँखें कृष्ण को देखने के लिए व्याकुल हैं।’

दूसरे ओर व्यंजना के अंतर्गत मुख्य (वाच्य) अर्थ का बाधिक (असंगत) होना वांछनीय नहीं जैसे-

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंक्षी को छाया नहीं फल लागै अति दूर॥ –(कबीर)

मुख्यार्थ स्पष्ट है-‘खजूर के पेड़ की तरह लंबा होने का क्या महत्त्व है? न तो वह पथिक को छाया दे सकता है और न ही आसानी से उसके फल को प्राप्त कर स्वाद लिया जा सकता है।’ यह अर्थ के रहते हुए भी एक अन्य छिपे हुए, गूढ (व्यंग्य) या प्रतीयमान अर्थ की प्रतीति संभव है-‘केवल ऊँचा खानदान होने से ही कोई महान नहीं बन सकता, जब तक कि कोई दूसरों को सुख-सहानुभूति और उपकार-सहायता न दे।’

(2) इसी उदाहरण के आधार पर ‘लक्षण’ और ‘व्यंजना’ शब्द-शक्तियों में एक अन्य अंतर यह भी स्पष्ट हो जाता है कि ‘लक्षण’ शब्द-शक्ति के अंतर्गत तो मुख्य (वाच्य या प्रसिद्ध, ज्ञात) अर्थ तभी लक्ष्य (लक्षित) अर्थ में गुण, स्वभाव या लक्षण संबंधी कोई-न-कोई पारस्परिक संबंध होता है जबकि ‘व्यंजना में ‘मुख्यार्थ’ और ‘व्यंग्यार्थ’ में परस्पर संबंध होना आवश्यक नहीं। जैसे

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फूल काँटों में खिला था, से पर मुरझा गया। -(रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल)

यहाँ व्यंग्यार्थ अर्थात् प्रतीयमान अर्थ यह है कि ‘जीवन संघर्षों और कष्टों से गुजर कर ही . सार्थक और सुखी होता है। ऐश-आराम में मस्त हो जाने पर जीवन की सार्थकता समाप्त हो जाती है। आलस्य, प्रमाद और निष्क्रियता से वह निरर्थक-सा हो जाता है।’ फूल, कांटा, खिलना, मुराना आदि के मुख्य अर्थ से इस प्रतीयमान अर्थ का कोई स्वभाव, लक्षण या गुण संबंधी साम्य नहीं।

(3) लक्षण’ और ‘व्यंजना’ के अंतर को स्पष्ट करने वाला एक अन्य मुख्य तथ्य यह है . कि ‘लक्षण’ द्वारा केवल किसी एक लक्ष्यार्थ का बोध होता है, जबकि व्यंजना शब्द-शक्ति द्वारा एक ही कथन या शब्द के अनेक अर्थों की प्रतीति की जा सकती है। हर सहृदय पाठक का श्रोता अपनी मन:स्थिति, रुचि या प्रवृत्ति के अनुसार प्रतीयमान (अभिप्रेत) अर्थ को प्रतीति कर सकता है।

जैसे-
खून खौलने लगा वीर का, देख-देखकर न संहार।
नाच रही सर्वत्र मौत थी, गूंज रहा था हाहकार॥

खौलनां पानी या दूध का स्वभाव है, नाचना प्राणी का लक्षण है, गूंजना संगीत का। यहाँ मुख्यार्थ में बाँधता (असंगति) स्पष्ट है। लक्ष्यार्थ है-वीर को क्रोध की अनुभूति, असंख्य लोगों की पल-पल मौत और रुदन-चीत्कार की आवाजों का शोर। लक्षण द्वारा प्राप्त यह अर्थ ही ग्राह्य है, अन्य कोई अर्थ संभव नहीं। परंतु नीचे दिए गए उदाहरण में ‘श्याम घटाएँ देखकर मन के उल्लसित होने’ के अनेक प्रतीयमान अर्थ (व्यंग्यार्थ) संभव हैं-

श्यामा घटा अवलोक नाचता।
मन-मयूर था उसका॥

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राधा का किसी गोपी अथवा अन्य किसी कृष्णभक्त के लिए श्याम घटा श्रीकृष्ण की मोहिनी साँवली सूरत की अनुभूति का आभास दे सकती है। यदि कृषक का मन उल्लास से भर रहा है तो श्याम घटाएँ उसे अपनी अब तक की सूखी धरती में धन-धान्य की हरियाली की आशा बँधा रही हैं। तपती दुपहरी में, पसीने से सरोबार थका मुसाफिर श्याम घटाओं में सुखद राहत की अनुभूति कर सकता है।

इस प्रकार, ‘लक्षण’ और ‘व्यंजना’ शब्द-शक्ति के अस्तित्व की पहचान वास्तव में कथन के संदर्भ के आधार पर की जा सकती है। किसी ‘एक शब्द’ का लक्ष्यार्थ या व्यंग्यार्थ कथन में प्रस्तुत भाषिक संरचना के स्वरूप के अनुसार ग्रहण किया जा सकता है।

रस-ध्वनि

प्रश्न 1.
रस का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, काव्य में उसका स्थान और महत्त्व निर्धारित कीजिए।
अथवा,
रस की परिभाषा देकर स्पष्ट कीजिए कि काव्य में रस की क्या स्थिति है?
अथवा,
रस का तात्पर्य क्या है? काव्य के अंतर्गत रस-व्यंजन का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
‘रस’ शब्द का सामान्य प्रचलित अर्थ है-आनंद, स्वाद, सुख या मजा। यह अर्थ लौकिक जीवन में मानव-शरीर को अनुभव होने वाली सुविधाओं से मिलने वाली खुशी से संबंधित है। जैसे-‘कोई दृश्य देखकर हमें बड़ा ‘मजा’ आया।’ ‘अमुक गीत सुनकर कानों में मानों’ ‘रस’ घुल गया’ आदि। परंतु काव्य के अंतर्गत ‘रस’ का अभिप्राय’ एक विशेष प्रकार का अलौकिक आनंद’ है।

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काव्य का आनंद व्यक्ति, स्थान या समय की सीमा में नहीं बंधा रहता। वह शाश्वत, सार्वभौम, सार्वकालिक तथा सार्वजनीत होता है। कालिदास के नाटक, बाल्मीकि के श्लोक, कबीर के पद, तुलसी के दोहे या प्रसाद, पंत आदि के गीत किसी भी युग के, किसी भी वर्ग के पाठक या श्रोता के अंत:करण को समान तृप्ति प्रदान करते हैं। एक प्राचीन ग्रंथ में कहा गया है-“जिस प्रकार एक ब्रह्मयोगी साधक को, साधना के चरम बिन्दु पर पहुँचने के बाद मिलने वाली आत्मानंद की अनुभूति अनिर्वचनीय और अलौकिक होती है उसी प्रकार काव्य द्वारा मिलने वाला आंतरिक आनंद (काव्यास्वाद अर्थात् काव्य का आसवादन) भी अलौकिक होता है।”

संस्कृत के प्राचीन आचार्य भरत ने उचित ही कहा है कि ‘रस के बिना अर्थ-अनुभूति का प्रवर्तन संभव नहीं।’

स्वरूप-संक्षेप में कहें, तो ‘काव्य-अध्ययन’ से अनुभूति होने वाला अलौकिक आंतरिक आस्वाद ही रस है। ‘इस संबंध में ध्यान देने की बात यह है कि काव्य द्वारा उद्भूत अलौकिक आनंदानुभूति का कोई-न-कोई आधारभूत ‘कारण’ होना आवश्यक है। उस ‘कारण’ के साथ कुछ सहायक ‘परिस्थितियाँ’, मिलकर उसे विशेष प्रभावशाली बना देती है। इन दोनों के माध्यम से अंत:करण में अनेक भाव-तरंगों की ‘हलचल’ शुरू हो जाती है।

यह ‘हलचल’ काव्य के पाठक या श्रोता (दर्शक) के हृदय में एक ऐसी विशिष्ट ‘रागात्मक संवेदना’ को जागृत कर देती है जो अंतत: एक ‘अलौकिक आनंद’ का रूप ले लेती है। – इस प्रकार काव्य में निहित अलौकिक आस्वाद (रस) की अभिव्यंजना मुख्य रूप से इन चार घटकों पर आधारित है-कारण, उसमें सहायक परिस्थितियाँ, उनके प्रभाव से होने वाली हलचल सम्म तथा उसके परिणामस्वरूप किसी विशिष्ट रागात्मक संवेदना का आस्वाद।

इन्हीं को प्राचीन आचार्यों ने साहित्यशास्त्र की शब्दावली में क्रमशः विभाव, अनुभव, संचारी भाव तथा स्थायी भाव कहा है। इसी आधार पर भारत के सर्वप्रथम साहित्यशास्त्रीय आचार्य भरत ने अपने नाट्य-शास्त्र’ नामक ग्रंथ में ‘रस’ की यह परिभाषा प्रस्तुत की है

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“विभावानुभावसंचारी संयोगात् रसनिष्पत्तिः” अर्थात् विभाव, अनुभाव और संचारी (भाव) के संयोग से रस की निष्पत्ति (अर्थात् व्यंजना) होती है।

इस परिभाषा में यद्यपि ‘स्थायी भाव’ का उल्लेख नहीं है, तथापि भरत ने बाद में, उक्त परिभाषा को स्पष्ट करते हुए, स्थायी भाव का भी अलग से विवेचन कर दिया है।

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर रस के स्वरूप को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है … “विभाव अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध (जागृत या अभिव्यक्त) होने वाले स्थायी भाव के आस्वाद को ‘रस’ कहते हैं।

एक उदाहरण के माध्यम से ‘रस’ के उपर्युक्त स्वरूप को सरलतापूर्वक स्पष्ट किया जा सकता है-

खेलत हरि निकसब्रज-खोरी।
कटि कछनी पीताम्बर बाँधे, हाथ लिए भौरा चक डोरी।
गए स्याम रवि-तनया के तट, अंग लसत चंदन की खोरी॥
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिए रोरी।
सूर स्याम देखत ही रीझे, नैन-नैन मिलि परी डगोरी॥  –(सूरदास, साहित्य-मंजूषा, भाग-1)

यहाँ कृष्ण और राधा “विभाव’ अर्थात् भाव के कारण है। कृष्ण का फिरकी, लटू आदि घुमाना ‘अभुभाव’ है। उनके हृदय में राधा को देखकर उठने वाले आकर्षण, औत्सुक्य, हर्ष आदि ‘संचारी भाव’ हैं। दोनों का परस्पर प्रेम (आकर्षण) अथवा ‘रति’ स्थायीभाव है जिससे ‘शृंगार’ रस की अभिव्यंजना हुई है।

रस की काव्य में स्थिति अथवा महता

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‘अग्नि पुराण’ में कहा गया है कि “काव्य में भाषा का चाहे जितना भी चमत्कार हो, परंतु उसका जीवन तो रस ही है।” आचार्य वामन कहते हैं कि ‘काव्य की वास्तविक दीप्ति, चमत्कृति या क्रांति उसके रसत्व में ही निहित हैं।” एक अन्य प्रसिद्ध साहित्याशास्त्रीय आचार्य विश्वनाथ ने ‘काव्य का स्वरूप’ ही ‘रसात्मक’ बताते हुए कहा है कि-‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’ अर्थात् रसात्मक रचना ही काव्य है।

स्पष्टतया ‘रस’ काव्य की आत्मा है। काव्य को पढ़ते, सुनते अथवा दृश्य काव्य (नाटक आदि) के रूप में देखते समय हमारा हृदय जो एक विशेष का आंतरिक ‘अलौकिक संतोष, तृप्ति भाव या आस्वाद अनुभव करता है, वही एक विशिष्ट साँचे में ढलकर, साहित्य-शास्त्र की शब्दावली में ‘रस’ कहलाता है।

काव्य में चित्रित अनुभूतियों से जब हमारे अंत:करण की अनुभूतियाँ एकरूप होकर, परस्पर एकरस होकर, हमारे मन-मस्तिष्क को एक आंतरिक तृप्ति का अनुभव या अस्वाद कराती है तब हम ‘व्यक्ति’ मात्र न रहकर रचनाकार, रचना और उसमें विद्यमान पात्रों तथा उस रचना के असंख्य पाठकों, श्रोताओं या दर्शकों जैसा ही सामान्य सहृदय मानव-रूप हो जाते हैं। तब हम आयु, वर्ग, जाति, देश और काल की सीमाओं में बंधे नहीं रहते। हम मानव-मात्र के रूप में प्रेम, करुणा, उत्साह आदि भावों के आस्वाद में निमग्न, तनमय और आत्मविभोर हो जाते हैं।

यही निमग्नता, तन्मयता, आत्मविभोरता काव्य के आस्वाद अथवा ‘रस’ के रूप में अभिव्यक्त होती है। स्पष्ट है कि ‘रस”काव्य का प्राण-तत्त्व है। काव्य-सौष्ठव के अन्य विविध आयाम, उपकरण अथवा माध्यम इसी के द्वारा संचालित अथवा संचालित होते हैं। उदाहरणतया किसी प्राण-हीन शरीर का रंग-रूप, अलंकरण सौष्ठव आदि निरर्थक है। यह निर्जीव है। उसी प्रकार रंस-व्यंजना के अभाव में काव्य-शोभा के अन्य प्रतिमान निरर्थक हैं।

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प्रश्न 2.
‘रस के अंग’ से क्या अभिप्राय है? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
जिस प्रकार मानव-शरीर का संचालन उसके विभिन्न अंगों के माध्यम से संभव है उसी प्रकार रस की परिपूर्णता अर्थात् अभिव्यंजना उसके विभिन्न अंगों के संयोग-सामंजस्य पर आधारित है। ‘रस’ यदि काव्य की आत्मा है, तो ‘भाव’ रस का आधारभूत तत्त्व है। वहीं (भाव) अनेक रूपों, स्थितियों आदि के सोपान करता हुआ, अंततोगत्वा ‘रस-निष्पत्ति’ (रस की अभिव्यंजना) अथवा रसास्वाद की अवस्था तक पहुंचता है। आचार्य भरत ने ‘नाट्यशास्त्र’ में इस प्रक्रिया को एक दृष्टांत के माध्यप से समझाते हुए कहा है-

“जिस प्रकार बीज से वृक्ष, वृक्ष से पत्र-पुष्प, फल का उद्भव होता है उसी प्रकार भाव से रस और रस से अन्य भाव व्यवस्थित होते हैं?”

‘भाव’ से मुख्य रूप से चार स्थितियों या रूपों के माध्यम से ‘रस’ की अवस्था प्राप्त करता है। इन्हीं को साहित्य शास्त्रीय आचार्यों ने ‘रस के चार अंग’ कहा है-

  • विभाव,
  • अनुभाव,
  • संचारी भाव,
  • स्थायी भाव।

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(रस की परिभाषा भी इन्हीं चार अंगों के आधार पर की गई है-“विभाव, अनुभाव और संचारी’ भाव के संयोग से अभिव्यक्त होने वाले स्थायी भाव को ‘रस’ कहते हैं।

(1) विभाव-‘विभाव’ का अभिप्राय है-‘कारण’ अथवा ‘निमित्त’। इस आधार पर कहा जा सकता है कि “विभाव के कारण या निमित्त हैं जो काव्य, नाटक आदि में अंतःकरण की रागात्मक’ संवेदनाओं को तरंगित (उद्बुद्ध, जागृत) करते हैं।”

काव्य-रूप भाव अर्थात् ‘विभाव’ के दो पक्ष स्पष्ट हैं-एक वह जो प्रवृत्त करता है अर्थात् ‘प्रवृति का कारण’ है। दूसरा वह जो प्रवृत्ति होता है अर्थात् ‘प्रवृति से प्रेरित’ है। इन्हीं दोनों पक्षों को साहित्यशास्त्र की शब्दावली में
(1) आलंबन विभाव और
(2) आश्रय विभाव कहा जाता है।

(1) आलंबन विभाव-जो भाव की प्रवृत्ति का मूल कारण हो उसे ‘आलंबन विभाव’ कहते हैं।
(2) आश्रम विभाव-जो आलंबन की ओर प्रवृत्त होने वाला कारण है उसे ‘आश्रय विभाव’ कहते हैं।

‘विभाव’ के उपर्युक्त दोनों पक्षों के अतिरिक्त एक अन्य सहायक पक्ष भी है-‘उद्दीपन विभाव’। उद्दीपन का अभिप्राय है-उद्दीप्त अर्थात् प्रोत्साहित करने अर्थात् प्रवृत्ति को बढ़ाने में सहायक होने वाला।
इस प्रकार ‘विभाव’ के अंतर्गत क्रमशः आलंबन, आश्रय और उद्दीपन-इन तीनों की स्थिति रहती है।

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एक उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी-

खेलत हरि निकसे ब्रज-खोरी।।
कटि कछनी पीतांबर बाँधे, हाथ लिए भौंरा, चक, डोरी॥
मोर-मुकुट, कुंडल सवननि बर, दसन-दमक दामिनी-छवि छोरी॥
गए स्याम रवि-तनया के तट, अंग लसंति चंदन की खोरी॥
औचक ही देखी तहँ राधा, नैन बिसाल भाल दिए रोरी॥
नील बसन फरिया कट पहिरे, बेनी पीठि रुलति झकझोरी॥
संग लरिकिनी चलि इत आवति, दिन-थोरि, अति छबि तन-गोरी।
सूर स्याम देखत ही रीझै, नैन-नैन मिलि परी ठगोरी॥  – (सूरदास, साहित्य-मंजूषा, भाग-1)

यह शृंगार-रस का उदाहरण है। इसमें राधा आलंबन विभाव है। वह हरि (कृष्ण या श्याम) की आकर्षण (प्रेम)-प्रवृत्ति का कारण है। हरि आश्रय विभाव है। यह राधा के आकर्षण भाव से प्रेरित या प्रभावित है। यमुना का तट, राधा की बड़ी आँखें, मस्तक की रोली, नीली लहंगा, झूलती हुई आदि उद्दीपन विभाव हैं। ये आकर्षण (प्रेम)-भाव को उद्दीप्त करने वाले तत्त्व हैं।

(2) अनुभाव-‘अनुभाव’ का अभिप्राय है-‘पीछे (अर्थात् विभाव के पश्चात्) आने वाला भाव’ (अनु + भाव)। आश्रय जब आलंबन के प्रति प्रवृत्त होता है तब उसके द्वारा अनायास या सायाम (अपने-आप ही अथवा प्रयत्न करने पर) कुछ ऐसे हाव-भाव, चेष्टाएँ आदि होती हैं जो आकर्षण (प्रेम) की सांकेतिका या परिचायक होती है। यही ‘आश्रय की चेष्टाएँ (हाव-भाव आदि) ‘अनुभाव’ कहलाती है। साहित्यशास्त्र की शब्दावली में

“भावों का प्रत्यक्ष बोध कराने वाली आश्रय की चेष्टाएँ ‘अनुभाव’ कहलाती है।” उदाहरणतया जनक-वाटिका में सीता श्रीराम की छवि देखते ही मुग्ध हो जाते हैं। राम आलंबन और सीता आश्रय है। सीता राम की छवि बार-बार निहारना चाहती है। वह उपवन में विद्यमान पशु-पक्षियों अथवा पेड़-पौधों को देखने के बहाने बार-बार अपनी दृष्टि पीछे की ओर घुमाती है-

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नख-सिख देखि राम कै सोभा
परबस सिखिन्ह लखी जब सीता
देखन मिस मृग बिहग तरु, फिरइ बहोरि बहोरि।
निरखि-निरखि रघुवीर छवि बाढ़ई प्रीति न थोरि।

यहाँ सीता (आश्रय) का पीछे मुड़ना, नजरें घुमा-घुमाकर देखना आदि चेष्टाएँ ‘अनुभाव’ कहलाएंगी।)

(3) संचारी भाव-‘संचारी’ शब्द का अर्थ है-‘संचरण करने वाले’ अर्थात् ‘चलते रहने वाले’ (बार-बार प्रकट-अप्रकट होते रहने वाले), अस्थिर या चंचल। ये भाव किसी-न-किसी रूप में प्रत्येक रस में संचरण करते हैं, जैसे ‘हर्ष’ नामक भाव ‘अद्भुत’ रस (विस्मय स्थायी भाव) में भी रहता है, ‘शृंगार’ रस में भी और ‘हास्य’ रस में भी। अत: ‘हर्ष’ की गणना संचारी भाव में की जाती है।

इसी प्रकार वैराग्य, ग्लानि, आलस्य, चिंता, मोह, स्मृति, लज्जा, गर्व, उत्सुकता, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। इनका संचरण समय और स्थिति के अनुसार किसी भी रस में हो सकता है। इसी आधार पर “अंत:करण की अस्थिर (चंचल) प्रवृत्तियों या समय और स्थिति के अनुसार सभी रसों में संचरण करते रहने वाले भावों को संचारी भाव कहते हैं।”

मानव-मन की अस्थिर प्रवृत्तियाँ असंख्य हो सकती हैं। फिर भी काव्य-मर्मज्ञ साहित्यशास्त्रीय आचार्यों ने मुख्यतः तैंतीस (33) संचारी भावों का नामोल्लेख किया है। निम्नलिखित उदाहरण से ‘संचारी भाव’ का स्वरूप स्पष्ट हो जाएगा।

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हरि अपनौ आँगन कछू गावत।
तनक-तनक चरननि सौ नाचत, मनही मनहिं रिझावत।
बाँह उठाए काजरी-धौरी, गैयनि टेरि बुलावत।
कबहुँक बाबा नंद पुकारत, कबहुँक घर में आवत।
माखन तनक आवनै कर लै, तनक बदन में नावत।
कबहुँक चितै प्रतिबिंब खंभ में लोनी लिए खवावत।
दूरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत।
सूर स्याम के बाल-चरित, नित नितही देखत भावत॥ – सूरदास साहित्य-मंजूषा भाग-1

यहाँ हरि (शिशु-कृष्ण) आलंबन है। यशोदा (जसुमति) आश्रय है। हर्ष, गर्व, मोह, उत्सुकता, धैर्य आदि संचारी भाव है।

(4) स्थायी भाव-‘स्थायी’ का अभिप्राय है-सदा स्थिर रहने वाले। साहित्यशास्त्र की शब्दावली में कहा जा सकता है कि “जो आंतरीय भाव रस के आस्वाद तक स्थिर रहकर, स्वयं ही रस-रूप में उबुद्ध (अभिव्यक्त) होते हैं उन्हें ‘स्थायी भाव’ कहते हैं।”

ऊपर सूरदास का जो पद दिया गया है उसमें ‘वात्सल्य’ स्थायी भाव है जो कि ‘वात्सल्य’ रस की अभिव्यंजना के रूप में साकार हुआ है।

स्थायी भावों की संख्या अथवा उनके भेदों के संबंध में सर्वप्रथम आचार्य भरत ने अपने नाट्शास्त्र में चर्चा की है। उनके अनुसार स्थायी भाव आठ हैं-रति (स्त्री-पुरुष का प्रेम), हास, शोक, क्रोध, उत्साह, विस्मय, भय, जुगप्सा।

बाद के साहित्यशास्त्रीय आचार्यों ने ‘शम’ नामक नौवें भाव को जोड़कर इस संख्या में एक ही वृद्धि कर दी है। इसके उपरांत श्रीमद्भागवत के प्रभाव से जब काव्य में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं के हृदयस्पर्शी, सरस चित्रण की परंपरा चली तब ‘वात्सल्य’ का दसवाँ स्थायी भाव स्वीकार कर लिया गया।

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प्रश्न 3.
‘रस’ के विभिनन भेदों का परिचय देते हुए, लक्षण, उदाहरण सहित उनका विवेचना कीजिए।
अथवा,
‘रस’ कितने प्रकार के होते हैं? उनके स्वरूप का लक्षण-उदाहरण सहित विवेचन कीजिए।
उत्तर-
‘रस’ मूलतः किसी ‘स्थायी भाव’ की अभिव्यंजना के माध्यम से अनुभव किया जाने वाला आस्वाद अथवा अलौकिक आनंद है। अतः ‘रस’ के उतने ही प्रकार या भेद संभव हैं जितने स्थायी भाव हैं। इस दृष्टि से मानव-मन की विविध भाव-तरंगें-जो ‘संचारी भाव’ कहलाती हैं-जब किसी एक मुख्य या ‘विशिष्ट भाव’ में ही समाहित हो जाती है तो वह ‘विशिष्ट या मुख्य भाव’ ही स्थायी भाव होकर रस-व्यंजना का आधार बनता है। . भारतीय काव्यशास्त्र की परंपरा में सर्वप्रथम उल्लेखनीय नाम आचार्य भरत तथा उनके ग्रंथ ‘नाट्यशास्त्र’ का है।

उन्होंने स्थायी भावों की संख्या आठ बताते हुए, आठ ही रसों का उल्लेख किया है- शृंगार, हास्य, करुणा, रौद्र, वीर, भयानक, बीभत्स, अद्भुत। भरत ने रसों के ये (आठ) भेद मूलतः दृश्यकाव्य (नाटक आदि) के संदर्भ में ही प्रस्तुत किए। बाद में श्रव्यकाव्य के अन्य रूपों (प्रबंधकाव्य, कथा काव्य आदि) के संदर्भ में ‘शांत’ रस को भी मान्यता मिली। तदुपरांत, भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप, श्रीमद्भागवत के आधार पर श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को हृदयस्पर्शी, सरस-चित्रण काव्य का एक प्रमुख विषय बन गया। तब ‘वात्सल्य’ नामक दसवें रस की भी गणना होने लगी।

‘रस की परिभाषा’ एवं उसके ‘स्वरूप’ के अंतर्गत स्पष्ट हो चुका है-स्थायी भाव ही रस के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। तदनुसार दस स्थायी भावों तथा उनसे उबुद्ध होने वाले रसों की क्रम-तालिका इस प्रकार है-

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हम यदि ‘रस’ की मूल परिभाषा पर ध्यान दें तो उपर्युक्त सभी (दस) रसों की परिभाषा निर्धारित करना अत्यंत सरल प्रतीत होगा।

रस की परिभाषा इस प्रकार है-

“विभव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से अभिव्यक्त होने वाले स्थायी भाव को ‘रस’ कहते हैं।”

इस परिभाषा में हम जिस स्थायी भाव का उल्लेख करेंगे, उसी से अभिव्यक्त होने वाले संबंधित रस का नाम भी जोड़ देंगे।

जैसे-“विभाव, अनुभव और संचारी भाव के संयोग से अभिव्यक्त (उबुद्ध) होने वाले . ‘रति’ स्थायी भाव से ‘ श्रृंगार’ रस की व्यंजना होती है।” अथवा ………………………

“उत्साह” स्थायी भाव से ‘वीर’ रस की व्यंजना होती है।”

इसी प्रकार परस्पर संबद्ध अन्य सभी स्थायी भावों तथा ‘रसों’ का नामोल्लेख करते हुए अभीष्ट रस की परिभाषा प्रस्तुत की जा सकती है।

यहाँ उपर्युक्त दस रसों का लक्षण-उदाहरण-सहित स्वरूप-विवेचन किया जा रहा है।

श्रृंगार-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध होने वाले ‘रति’ नामक स्थायी भाव से ‘शृंगार’ रस की अभिव्यंजना होती है।”

‘रति’ अर्थात् प्रेमासक्ति की दो स्थितियाँ संभव हैं-

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  • मिलन,
  • विरह।

इसी आधार पर शृंगार रस के दो भेद माने गए हैं-

  • संयोग शृंगार,
  • वियोग शृंगार।

संयोग श्रृंगार-विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से नायक-नायिका के मिलन के रूप में उबुद्ध स्थायी भाव से ‘संयोग शृंगार’ की अभिव्यक्ति होती है। जैसे-

दुलह श्री रघुवीर बने, दुलही सिय सुंदर मंदिर माहीं।
गावत गीत सबै मिलि सुंदरि, वेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं॥
राम को रूप निहारित जानकी, कंचन के नग की परछाहीं।
या ते सबै सुधि भूलि गईं, कर देखि रही, पल टारत नाहीं। – (तुलसीदास, कवितावली)

यहाँ श्रीराम और सीमा ‘विभाव’ है। राम ‘आलंबन’ है। सजा हुआ मंडप, सुंदरियों के गीत, वेदमंत्रों का पाठ आदि ‘उद्दीपन’ विभाव है। सीता ‘आश्रय’ विभाव है। सीता का नग में राम का झलक देखना, देखते रह जाना, सुध-बुध भूल जाना, हाथ न छोड़ना आदि अनुभाव हैं। हर्ष, विस्मय, क्रीड़ा, अपस्मार, आवेग, मोह आदि संचारी भाव हैं और ‘रति’ स्थायी भाव है जो मिलन-आनंद के संयोग से ‘संयोग शृंगार’ के रूप में अभिव्यक्त हो रहा है।”

वियोग श्रृंगार की स्थिति वहाँ होती है जहाँ ‘रति’ भाव नायक-नायिका के परस्पर अलग (बिछुड़े हुए) होने के रूप में विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से रंस-रूप में अभिव्यक्त होता है।” जैसे-

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रो रो चिंता सहित दिन को राधिका थीं बिताती।
आँखों को थी सजल रखतीं, उन्मना थीं दिखातीं॥
शोभा वाले जलद-वपु को हो रही चातकी थीं।
उत्कंठा थी पर न प्रबला वेदना वद्धिता थी।  – (अयोध्या प्रसाद हरिऔध, प्रियप्रवास)

यहाँ राधा आश्रय विभाव और श्रीकृष्ण आलंबन विभाव हैं (जो गोकुल-वृंदावन छोड़कर मथुरा जा बसे हैं)। राधा का रोना, आँखें सजल रखना, बादलों की ओर (उनमें कृष्ण के साँवले शरीर की झलक पाकर) टकटकी बाँधे रखना आदि अनुभाव हैं.। शंका, दैन्य, चिन्ता, स्मृति, जड़ता, विषाद, व्याधि, उन्माद आदि संचारी भाव हैं। इनके संयोग से ‘रति’ स्थायी भाव प्रिय विरह की वेदना के कारण ‘वियोग शृंगार’ के रूप में अभिव्यक्त हुआ है।

हास्य-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग से उबुद्ध होने वाले ‘हास’ स्थायी भाव से ‘हास्य’ रस की अभिव्यक्ति होती है।” जैसे-

जब सुख का नींद कढ़ा तकिया, इस सिर के नीचे आता है।
तो सच कहता हूँ-इस सिर में, इंजन जैसे लग जाता है।
मैं मेल ट्रेन हो जाता हूँ बुद्धि भी फक-फक करती है।।
सपनों से स्टेशन लाँघ-लाँघ, मस्ती का मंजिल दिखती है।

यहाँ कवि का कथन ही आलंबन और पाठक-श्रोता आश्रय है। कवि कविता पढ़ते समय तकिए पर सिर टिकाने, आँखें बंद करके झूमने आदि का जो अभिनय करेगा वह ‘उद्दीपन’ विभाव होगा। कविता पढ़ या सुन कर हमारा मुस्काना, ‘वाह वाह !’ करना, झूमना आदि अनुभाव हैं। चपलता, हर्ष, आवेग, औत्सुक्य आदि संचारी भाव है। इनके संयोग से ‘हास’ स्थायी भाव की ‘हास्य’ रस के रूप में निष्पत्ति हुई है।

रौद्र-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध होने वाले ‘क्रोध’ स्थायी भाव से ‘रौद्र’ रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है।’

जैसे-
फिर दुष्ट दुःशासन समर में शीघ्रग सम्मुख हो गया !
अभिमन्यु उसको देखते ही क्रोध से जलने लगा!
निःश्वास बारंबार उसका उष्णत चलने लगा!
रे रे नराधम नारकी ! तू था बता अब तक कहाँ?
मैं खोजता फिरता तुझे सब ओर कब से हूँ यहाँ !
मेरे करों से अब तुझे कोई बचा सकता नहीं !
पर देखना, रण-भूमि से तू भाग जाना मत कहीं ! – (मैथिलीशरण गुप्त, जयद्रथ-वध)

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यहाँ अभिमन्यु आश्रय विभाव तथा दुःशासन आलंबन-विभाव है। युद्ध का वातावरण ‘उद्दीपन’ विभाव है। अभिमन्यु का जलना, बार-बार गरम श्वास छोड़ना और कठोर वचन कहना आदि अनुभव है। असूया, अमर्ष, श्रम, धृति, चपलता, गर्व, उग्रता आदि संचारी भाव हैं। इनके संयोग से उबुद्ध ‘क्रोध’ स्थायी भाव से ‘रौद्र’ रस की निष्पत्ति (व्यंजना) हुई है।

करुण-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘शोक’ स्थायी भाव से ‘करुण’ रस की अभिव्यक्ति होती है।” जैसे-

प्रिय मृत्यु का अप्रिय महासंवाद पाकर विष भरा।
चित्रस्थ-सी निर्जीव मानों रह गई हत उत्तरा।
संज्ञा-रहित तत्काल ही फिर वह धरा पर गिर पड़ी।
उस काल मुर्छा भी अहो! हिकतर हुई उसको बड़ी।  – (मैथिलीशरण गुप्त, जयद्रथ-वध)

यहाँ उतरा आश्रय विभाव तथा उसका मृतक प्रियतम अभिमन्यु आलंबन विभाव है। दैन्य, चिंता, स्मृति, जड़ता, विषाद, व्याधि, उन्माद, मूर्छा आदि संचारी भाव हैं। इनके संयोग से उबुद्ध ‘शोक’ स्थायी भाव से ‘करुण’ रस की अभिव्यक्ति हुई है।

बीभत्स-“विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘जुगुप्सा’ स्थायी भाव से ‘बीभत्स’ रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है।” जैसे-

यज्ञ समाप्त हो चुका, तो भी धधक रही थी ज्वाला।
दारुण दृश्य ! रुधिर के छींटे, अस्थिखंड की माला।
वेदी की निर्मम प्रसन्नता, पशु की कतार वाणी।
मिलकर वातावरण बना था, कोई कुत्सित प्राणी  – (जयशंकर प्रसाद, कामायनी)

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(मनु द्वारा यज्ञ में पशु की बलि चढ़ाए जाने के इस दृश्य में) श्रद्धा आश्रय विभाव तथा यज्ञ की वेदी अलंबन विभाव है। धधकती ज्वाला, लहू के छींटे, हड्डियों की माला, बलि चढ़ाए जाते पशु की घबराई चीख आदि वातावरण ‘उद्दीपन’ विभाव हैं। आँखें मूंदना, नाक-भौंह सिकोड़ना, मुँह फेर लेना, कानों पर हाथ रखना या नासिक के छिद्र बंद कराना आदि अनुभाव होंगे। ग्लानि, चिंता, आवेग, विषाद, त्रास आदि संचारी भाव हैं। इन सब के संयोग से उबद्ध ‘जुगुप्सा’ स्थायी भाव से ‘वीभत्स’ रस की अभिव्यक्ति हुई है।

भयानक-
“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘भय’ स्थायी भाव से ‘भयानक’ रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है।” जैसे-

उस सुनसान डगर पर था सन्नाटा चारों ओर,
गहन अँधेरी रात घिरी थी, अभी दूर थी भोर।
सहसा सुनी दहाड़ पथिक ने सिंह-गर्जना भारी,
होश उड़े, सिर गया घूम, हुई शिथिल इंद्रियाँ सारी।

यहाँ पथिक आश्रय विभाग तथा दहाड़ आलंबन विभाव है। सुनसान डगर, सन्नाटा, अंधेरी रात आदि ‘उद्दीपन’ विभाव हैं, होश उड़ जाना, सिर घूमना, इंद्रियाँ शिथिल होना आदि अनुभाव हैं। शंका, दैन्य, चिंता, मोह, जड़ता, विषाद, त्रास आदि संचारी भाव हैं। इन सबके संयोग से उबुद्ध ‘भय’ स्थायी भाव ‘भयानक’ रस के रूप में अभिव्यक्त हो रहा है।

वीर-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘उत्साह’ स्थायी भाव से अभिव्यक्त होने वाला रस ‘वीर’ रस कहलाता है। जैसे-

जिस वीरता से शत्रुओं का सामना उसने किया।
असमर्थ हो उसके कथन में मौन वाणी ने लिया॥
सब ओर त्यों ही छोड़कर निज प्रखतर शर जाल को।
करने लगा वह वीर व्याकुल शत्रु-सैन्य विशाल हो। – (मैथिलीशरण गुप्त, जयद्रथ-वध)

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यहाँ अभिमन्यु आश्रय तथा शत्रु (कौरव-दल के सैनिक) आलंबन विभाव हैं। युद्ध का वातावरण ‘उद्दीपन’ विभाव है। अभिमन्यु का इधर-उधर घुमकर बाण छोड़ना आदि अनुभाव है, असूया, श्रम, चपलता, आवेग, अमर्ष, उग्रता आदि संचारी भाव हैं। इन सबके संयोग से उबुद्ध ‘उत्साह’ स्थायी भाव से ‘वीर’ रस की अभिव्यक्ति हुई है।

अद्भुत-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘विस्मय’ स्थायी भाव। से अभिव्यक्ति होने वाला रस ‘अद्भुत’ कहलाता है।” जैसे-

अस जिय जानि जानकी देखी।
प्रभु पलके लखि प्रीति बिसेखी।
गुरुहिं प्रनाम मनहिं मन किन्हा।
अति लाधवं उठाइ धनु लीन्हा।
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ।
पुनि नभ धुनमंडल सम भयऊ।
लेत चढ़ावत बैंचत गाढ़े।
काहू न लखा देख सबु ठाढ़े।
तेहि छन राम मध्य धन तोरा।
भेर भुवन धुनि घोरा कठोरा।  – (तुलसीदास, रामचरितमानस, बालकांड)

यहाँ श्रीराम आलंबन विभाव तथा राजसभा में विद्यमान अन्य सभी आश्रय विभाव हैं। भारी। शिव-धनुष, सीता की व्याकुलता, स्वयंवर-सभा का वातावरण ‘उद्दीपन’ विभाव है। श्रीराम का सीता की ओर निहारना, सहज भाव से धनुष उठाना, फुरती से चिल्ला चढ़ाना, धनुष तोड़ना आदि हर पालन , जोइ कबहुँ अबतावे। अनुभाव हैं। श्रम, धृति, चलता, हर्ष, आवेग, औत्सुक्य मति आदि संचारी भाव हैं। इन सबके संयोग से उबुद्ध ‘विस्मय’ स्थायी भाव की ‘अद्भुत’ रस के रूप में अभिव्यक्ति हुई है।

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शांत-“विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘शम’ (निर्वेद) स्थायी भाव से अभिव्यक्त होने वाले रस को शांत कहते हैं।” जैसे-

ओ क्षणभंगुर भव राम राम।
भाग रहा हूँ भार देख, तू मेरी ओर निहार देख !
मैं त्याग चला निस्सार देख, अटकेगा मेरा कोन काम !
ओ क्षणभंगुर भव राम राम ! – (मैथिलीशरण गुप्त, यशोधरा)

यहाँ नश्वर संसार आलंबन विभाव है और ‘राम-राम’ करने वाले सिद्धार्थ आश्रय विभाव हैं। संसार की परिवर्तनशीलता, क्षणभंगुरता, रोग-बुढ़ापा आदि ‘उद्दीपन’ विभाव हैं। सिद्धार्थ का उदासीन (विरक्त) होना अनुभाव है। निर्वेद, ग्लानि, चिंता, धृति, मति आदि संचारी भाव हैं। इन सबके संयोग से उबुद्ध ‘शम’ स्थायी भाव को ‘शांत’ रस के रूप में अभिव्यक्ति हुई है।

वत्सल-“विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से उबुद्ध ‘वात्सल्य’ स्थायी भाव से ‘वत्सल’ रस की निष्पत्ति (अभिव्यक्ति) होती है।” जैसे-

जशोदा हरि पालने झुलावै।
हलरावै दलाइ मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै॥
कबहुँ पलक हरि-मुंद लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै॥
सोवत जानि मौन है रहि करि-करि सैन बतावै।
इति अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरे गावै।
जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ, सो नँद भामिनि पावै॥  – (सूरदास, सूरसागर)

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यहाँ कृष्ण आलंबन विभाव और यशोदा आश्रय विभाव है। झूला, कृष्ण का पलकें मूंदना, होंठ फड़काना, इशारे करना आदि ‘उद्दीपन’ विभाव हैं। यशोदा का झूले को झुलाना, कृष्ण को दुलारना-पुचकारना, मधुर गीत गाना आदि अनुभाव हैं। मोह, चपलता, हर्ष, औत्सुक्य आदि संचारी .. भाव हैं। इन सबके संयोग से उबुद्ध ‘वात्सल्य’ भाव से ‘वत्सल’ रस की अभिव्यक्ति हुई है।

(अनेक पुस्तकों में इसको ‘वात्सल्य’ कहा गया जो ठीक नहीं। ‘वात्सल्य’ स्थायी भाव है। रस का नाम ‘वत्सल’ है जैसा कि आचार्य विश्वनाथ ने ‘साहित्यदर्पण’ में कहा है-‘वत्सलं च रसं विदुः।’

प्रश्न 4.
नीचे दिए गए विषयों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ प्रस्तुत कीजिए
(क) विभाव और अनुभाव में अंतर,
(ख) संचारी भाव और स्थायी भाव में अंतर
(ग) वीर रस और रौद्र रस में अंतर
उत्तर-
(क) विभाव और अनुभाव में अंतर-‘विभाव’ मूलतः भाव नहीं, भाव के कारण-मात्र हैं। ‘अनुभाव’ भी वास्तव में स्वयं भाव नहीं, भावों के परिचायक विकार (परिवर्तन या चेष्टाएँ) है। ‘विभाव का संबंध तीन पक्षों से है-आलंबन, उद्दीपन और आश्रय, परंतु ‘अनुभाव’ का संबंध केवल. ‘आश्रय’ से है। ‘विभाव’ कोई व्यक्ति, प्रसंग, पदार्थ या विषय हो सकता है, जबकि अनुभाव किसी एक व्यक्ति (आश्रय) के शरीर को अनायास (अपने-आप) होने वाली या जानबूझकर की जा सकने वाली चेष्टाएँ ही होती हैं।

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(ख) संचारी भाव और स्थायी भाव में अंतर-‘संचारी भाव’ और ‘स्थायी भाव’ दोनों ही आंतरिक भाव हैं। दोनों की स्थिति ‘विभाव’ पर आधारित है। परंतु दोनों में पर्याप्त अंतर भी है-

  1. संचारी भाव अस्थिर होते हैं, जबकि स्थायी भाव स्थिर रहते हैं।
  2. संचारी भाव अनेक रसों में संचारित हो सकते हैं। एक ही रस में कई संचारी भाव तथा एक संचारी भाव अनेक रसों में संभव हैं परंतु कोई एक स्थायी भाव किसी एक ही रस से संबंधित होता है।
  3. संचारी भाव प्रकट होकर विलीन हो जाते हैं। वे आते-जाते, प्रकट-विलीन, होते रहते हैं स्थायी भाव अंत-पर्यंत स्थिर बने रहते हैं और वही रस के रूप में परिणत (उबुद्ध या अभिव्यक्त) होते हैं।
  4. संचारी भाव नदी की लहरों के समान चंचल, गतिशील या संचरणशील है जबकि स्थायी भाव नदी की मूल (अंतर्निहित) जलधारा के समान एकरूप बने रहते हैं।
  5. संचारी भाव अपने वर्ग के अन्य भावों में घुल-मिल सकते हैं या विरोधी भावों से दब सकते या क्षीण हो सकते हैं, परंतु स्थायी भाव न तो अपने वर्ग से और न ही विरोधी वर्ग के भावों से दबते. या क्षीण होते हैं।

(ग) वीर रस और रौद्र रस में अंतर-वीर और रौद्र रस में विभाव तथा संचारी भाव प्रायः एक-से होते हैं। दोनों में ‘शत्रु’ या ‘विरोधी पक्ष’ आलंबन विभाव होता है। दोनों में आश्रय को अनिष्ट की आशंका होती है। असूया, आमर्ष, आवेग, श्रम आदि संचार भाव भी प्रायः दोनों में होते हैं। फिर भी दोनों में पर्याप्त अंतर है। यह तो स्पष्ट ही है कि वीर में ‘उत्साह’ तथा रौद्र में ‘क्रोध’ स्थायी भाव होता है।

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वीर रस में शस्त्र-संचालन, आगे बढ़ना, आक्रमण करना, अपना बचाव करना आदि अनुभाव होंगे, जबकि रौद्र रस में आवेशपूर्ण शब्द, ललकार, आँखें तरेरना, मुट्ठियाँ भींचना, दाँत पीसना आदि अनुभाव होंगे। साथ ही, वीर रस में आश्रय का विवेक बना रहता है, जबकि रौद्र रस में विवेक की मर्यादा नहीं रहती। वास्तव में रौद्र रस वीर रस की पृष्ठभूमि तैयार करता है। जहाँ रौद्र रस की सीमा समाप्त होती है वहीं से वीर रस की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है।

छंद

1. छंद किसे कहते हैं? निम्नलिखित छंदों के लक्षण-उदाहरण दीजिए सोरठा, दोहा, रोला, चौपाई, बरवै, गीतिका, हरिगीतिका, कवित्त, सवैया।
उत्तर-
जिस रचना में मात्राओं और वर्णों की विशेष व्यवस्था और गणना होती है, साथ ही संगीत सम्बंधी लय और गति की योजना रहती है उसे छंद कहते हैं। दूसरे शब्दों में निश्चित वर्णों या मात्राओं की गति, यति, आति से बंधी हुई शब्द योजना को छंद कहते हैं।

सोरठा :
लक्षण-यह भी अर्द्धसममात्रिक छंद है। इसके प्रथम और तीसरे चरणों में ग्यारह-ग्यारह एवं दूसरे और चौथे चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। दोहा की चरण-व्यवस्था को बदल देने से सोरठा हो जाता है। दोहा से अन्तर यह है कि सोरठा के विषम चरणों में अंत्यानुप्रास पाया जाता है।
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दोहा
लक्षण- यह अर्द्धसममात्रिक छंद है। इसके प्रथम और तीसरे चरणों में तेरह-तेरह तथा . द्वितीय और चतुर्थ चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। [विषम चरणों के अन्त में प्रायः (15) क्रम रहता है। चरणांत में ही यति होती है।
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रोला:
लक्षण-यह सममात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं। ग्यारह और तेरह मात्राओं पर यति का विधान था जो अब उठ रहा है।
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चौपाई :
लक्षण-यह चार चरणोंवाला सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती हैं। चरणांत में यति होती है। चरणांत में ये दो कम वर्जित हैं-15। और ऽ ऽ। (अर्थात् जगण और तगण)।
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बरवै :
लक्षण-यह एक अर्द्धसममात्रिक छंद है। इस छंद में कुल चार चरण होते हैं। विषम (प्रथम तथा तृतीय) चरणों में प्रत्येक में बारह और सम (द्वितीय तथा चतुर्थ) चरणों में प्रत्येक में सात मात्राएँ होती हैं। बारह और सात मात्राओं पर विराम और अंत में लघु मात्र होती है।
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गीतिका:
लक्षण-यह एक सममात्रिक छंद है। इसमें कुल चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण की चौदहवीं और बारहवीं मात्रा के बाद विराम (यति) होता है। चरणांत (पादांत) में लघु-गुरु (5) क्रम से मात्राएँ रहती हैं।
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हरिगीतिका:
लक्षण-यह एक सममात्रिक छंद है। इसमें कुल चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक सोलहवीं और बारहवीं मात्राओं के बाद विराम (यति) होता है। प्रत्येक चरण के अंत में गुरु (5) मात्रा होती है।
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कवित्त :
लक्षण-यह वर्णिक छंद है। इसे ‘मनहरण’ या ‘घनाक्षरी’ भी कहते हैं। इसके प्रमुख भेद हैं-मनहरण, रूपघ्नाक्षरी, जनहरण, जलहरण और देवघनाक्षरी। मुख्यतः इस छंद के प्रत्येक चरण में 31 से 33 वर्ण तक पाए जाते हैं। (16)
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सवैया :
लक्षण-यह वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं, मदिरा, मत्तगयंद (मालती), चकोर, दुर्मिल, सुंदरी सुख, उपजाति और किरीट नामक इसके प्रकार हैं।

उदाहरण-
सेस महेस गनेस दिनेस सुरेसहु जाति निरंतर गावै।।
जाहि अनादि अनंत अखंड अछेद अभेद सुबेद बतावै।
जाहि हियै लखि आनंद है जड़ मूढ़ हिये रसखानि कहावै।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाँछ पर नाच नचावै।

अलंकार

प्रश्न 1.
‘अलंकार’ का तात्पर्य स्पष्ट करते हुए काव्य में उसके स्थान एवं महत्व पर प्रकाश डालिए।
अथवा,
काव्य में ‘अलंकार’ से क्या अभिप्राय है? काव्य और अलंकार का अंतः संबंध बताते हुए उदाहरण सहित विवेचन कीजिए।
उत्तर-
‘अलंकार का तात्पर्य अथवा अभिप्राय-‘अलंकार’ शब्द ‘अलंकरण’ से बना है जिसका अभिप्राय है-सजावट। इस दृष्टि से ‘अलंकार’ का तात्पर्य हुआ-सजावट का माध्यम। संस्कृत का प्रसिद्ध उक्ति है-‘अलं करोति इति अलंकारः’ अर्थात् जो अलंकृत करे-सजाए, सुशोभित करे, शोभा बढ़ाए वह अलंकार है इस आधार पर, काव्य के संदर्भ में ‘अलंकार का तात्पर्य है जो भाषा का सौष्ठव बढ़ाए, उसमें चमत्कार पैदा करके उसे प्रभावशाली बना दे।’ अलंकार वाणी के भूषण हैं’-यह उक्ति बहुत प्राचीन है। हम जो भी कहते या लिखते हैं-दूसरों तक अपनी बात प्रभावशाली ढंग से पहुंचाने के लिए। कथन को प्रभावशाली बनाने के लिए जिन अनेक उपकरणों, साधनों या माध्यमों का उपयोग किया जा सकता है उनमें ‘अलंकार’ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

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विशेष प्रतिभाशाली, कल्पनाशील और कला-निपुण वक्ता का रचनाकार अपने कथन को चमत्कारपूर ढंग से प्रस्तुत कर, श्रोताओं या पाठकों के हृदय को छूकर, उन्हें प्रभावित कर सकता है। यह क्षमता प्रदान करने वाला तत्त्व ही ‘अलंकार’ कहलाता है।

काव्य में ‘अलंकार’

जिस प्रकार कोई भूषण (गहना) किसी सामान्य व्यक्ति के आकर्षण, सौंदर्य और प्रभाव को बढ़ाने में सहायक होता है वैसे ही अलंकार वाणी अर्थात् कविता या रचना को सुंदर, आकर्षक और प्रभावशाली बनाते हैं। संस्कृत के प्राचीन आचार्य दंडी ने कहा है-“काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्त्व को अलंकार कहते हैं।” प्रसिद्ध काव्यशास्त्रीय ग्रंथ ‘चंद्रलोक के रचयिता जयदेव न ‘काव्य में अलंकार का महत्त्व’ स्पष्ट करने के लिए बड़ा रोचक उदाहरण दिया है।

वे कहते हैं-‘जिस प्रकार ताप से रहित अग्नि की कल्पना असंभव है, उसी प्रकार अलंकार के बिना काव्य के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।’ ताप अग्नि का गुण है, उसकी पहचान है। इसी प्रकार काव्य में साधारण कथन वाला प्रमुख तत्त्व अलंकार है। अलंकार काव्य में काव्यत्व लाने वाला उपकरण है, उसकी प्रमुख पहचान है।

रीतिकाल के प्रसिद्ध आचार्य केशवदास ने, काव्य में अलंकार का महत्त्व स्पष्ट करते हुए कहा है-

“आभूषणों के बिना नारी और अलंकारों के बिना कविता की शोभा संभव नहीं।’
भूषन बिनु न बिराजई बनिता मित्त। – (केशवदास, कविप्रिया)

(अर्थात् हे मित्र ! कविता और विनता (स्त्री) भूषण के बिना शोभा नहीं पातीं)।

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इसमें कोई संदेह नहीं कि अलंकार के प्रयाग से सामान्य-सी उक्ति भी अत्यंत प्रभावी, चमत्कारिक और मर्मस्पर्शी बन जाती है। कविवर पंत ने ‘गंगा में चल रही नाव’ के एक साधारण दृश्य को ‘अनुप्रास’ और ‘रूपक’ अलंकार के प्रयोग से कैसे संजीव बिंब-सा मनोहारी, प्रभावी और आकर्षक बना दिया है-

मृदु मंद-मंद, मंथर, मंथर
लघु तरणी हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर।
(सुमित्रानंदन पंत, नौका विहार)

यहाँ पहली पंक्ति में ‘अनुप्रास अलंकार’ (म और अनुस्वार की आवृति) के कारण संगीतात्मक लय-प्रवाह का संचार हो गया है। दूसरी पंक्ति में ‘उपमा’ (हंसिनी-सी), तीसरी पंक्ति में ‘रूपक (पालों के पर) के कारण, गंगा में तैरती का बिंब सजीव चलचित्र की भाँति साकार हो गया है।

स्पष्ट है कि काव्य के वास्तविक सौंदर्य का रहस्य अलंकारों पर निर्भर है। परंतु इसका अभिप्राय यह नहीं कि काव्य में अलंकार ही सब कुछ है। अलंकार काव्य की शोभा के बाहरी साधन मात्र हैं साध्य नहीं है। काव्य तो स्वयं ही रमणी, चारु तथा सुंदर है। जो स्वभाव से ही मोहक, आकर्षक या सुंदर है, उसे शोभा या चमत्कार के साधनों की क्या आवश्यकता है? किसी अत्यंत दुर्बल, अरूण और रुग्ण व्यक्ति को चाहे कितने बढ़िया आभूषणों से लाद दिया जाए-वह सुंदर या मोहक नहीं बन सकता।

इसी प्रकार, जिस काव्य में भाव और अर्थ की चारुता या मोहकता नहीं उसे केवल वर्णों या शब्दों की आवृत्ति अथवा उपमानों-रूपकों की भरमार से प्रभावशाली नहीं बनाया जा सकता। काव्य में अलंकार का महत्त्व उतना ही समझना चाहिए जितना स्वाभाविक रूप से एक स्वस्थ, सुंदर, सुरूप और सुडौल शरीर को सजाने में आकर्षक आभूषणों का। तात्पर्य यह है कि काव्य में अलंकारों का संतुलित, सुचारु तथा सुसंगत प्रयोग ही उपयुक्त है।

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तात्पर्य यह है कि ‘अलंकार’ कोरे चमत्कार के लिए नहीं। उनकी महत्ता काव्य की स्वाभाविक चारुता और सुष्टुता में वृद्धि करने में है। अलंकार ‘काव्य के लिए है काव्य ‘अलंकार’ के लिए नहीं है।

प्रश्न 2.
अलंकार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए, उसके प्रमुख भेदों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
काव्य का स्वरूप-‘अलंकार’ शब्द सामान्य रूप से सजावट, शोभा और चमत्कार बढ़ाने वाले उपकरण के लिए प्रयुक्त होता है। भूषण, आभूषण, आवरण आदि इसी के अन्य पर्याय हैं। अलंकार शब्द के इसी अर्थ को ध्यान में रखकर आचार्य दंडी ने कहा है-‘काव्य के शोभा कारक तत्त्व अलंकार कहलाते हैं।” (काव्यादर्श) आचार्य वामन का मत इससे कुछ भिन्न है। उनके कथनानुसार, ‘काव्य के शोभाकारक’ तत्त्व तो गुण हैं, उन गुणों में अतिशयता (वृद्धि का उत्कर्ष) लाने वाले साधन अलंकार हैं। अपने इस मत को वामन ने केवल एक शब्द में समेटते हुए, निष्कर्ष के रूप में आगे यह भी कहा है कि काव्य के अंतर्गत ‘सौंदर्य मात्र अलंकार है-सौंदर्यमलंकारः।

प्रश्न यह है कि अलंकार स्वयं सौंदर्य है अथवा सौंदर्य का हेतु (कारण का साधन) है? अधिकतर विद्वान दूसरे पक्ष के समर्थक हैं। भारतीय काव्यशास्त्र में ‘ध्वनि’ संप्रदाय के प्रवर्तक आनंदवर्धन ने स्पष्टं कहा है कि काव्य में चारुत्व (सुन्दरता, सरसता, रोचकता, चमत्कारता) लाने वाले उपकरण (कारण, साधन या माध्यम) अलंकार है। (ध्वन्यालोक) काव्य में अलंकारों को सर्वप्रथम महत्त्व प्रदान करने वाले आचार्यों में भामह का नाम विशेष उल्लेखनीय है। उनका कथन है कि ‘शब्द और अर्थ को एक विशेष प्रकार (वक्र रूप) से प्रस्तुत करने की युक्ति (शैली) अलंकार है।

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(काव्यालांकार) भामह द्वारा प्रस्तुत किया गया अलंकार का यह लक्षण पर्याप्त सुसंगत है। इसो की व्याख्या करते हुए मध्ययुग के आचार्य मम्मट और विश्वनाथ ने कहा है-‘शरीर में हार, कंगन आदि के समान, काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तथा रस-भाव आदि के उपकारक (अर्थात् रस-भाव को उत्कर्ष प्रदान करने वाले) शब्दार्थ के अस्थिर धर्म (तत्त्व) अलंकार कहलाते हैं।”

उपर्युक्त लक्षण में अलंकारों को ‘शब्दार्थ के अस्थिर धर्म’ कहा गया है तो सर्वथा उचित है। अलंकार काव्य के स्थायी, अभिन्न या अनिवार्य तत्त्व नहीं है। इनका उपयोग आवश्यकता होने पर, या स्वाभाविक रूप से कहीं-कहीं यथोचित रूप से किया जाता या हो जाता है। इस दृष्टि से हिन्दी के विख्यात आलोचक और काव्य-मीमासंक आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत बहुत महत्त्वपूर्ण है _ ‘भावों के उत्कर्ष और वस्तुओं के रूप, गुण और क्रिया का अधिक तीव्र अनुभव कराने में कभी-कभी सहायक होने वाली युक्ति ही अलंकार है।’

संक्षेप में कहा जा सकता है कि साहित्य-रचना में किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार के सौंदर्य का उन्मेष होता है, तब वह अपनी समग्रता में अलंकार पर्याप्त हो जाता है।

अलंकारों के प्रमुख भेद

‘अलंकार’ वास्तव में कथन के विशेष प्रकार का नाम है। विशेष प्रकार के वाग्वैदग्ध्य को ही आचार्यों ने ‘अलंकार’ की संज्ञा दी है। यह वाग्वैदग्ध्य या कथन के प्रकार-विशेष के अनेक रूप संभव है। ‘अलंकार’ क्योंकि मुख्य रूप से काव्य में चारुत्व, चमत्कार और प्रभविष्णुता का संचार करते हैं और काव्य-संरचना ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ के सुसंगत संयोग पर निर्भर है (शब्दार्थों सहितौ काव्यम्) अतः अलंकार के दो प्रमुख भेद तो स्पष्ट ही हैं-

  • शब्दालंकार,
  • अर्थालंकार।

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काव्यगत सौंदर्य अथवा चमत्कार का आधार जहाँ केवल शब्द हो वहाँ ‘शब्दालंकार’ होगा और जहाँ काव्यगत सौन्दर्य अथवा चमत्कार अर्थकेंद्रित होगा, वहाँ ‘अर्थालंकार’ माना जाएगा। कई आचार्य एक ही कथन में ‘शब्द’ और ‘अर्थ’ दोनों का संयुक्त चमत्कार होने की स्थिति में अलंकारों का एक तीसरा भेद भी स्वीकार करते हैं जिसे ‘उभयालंकार’ की संज्ञा दी है। ‘उभय’ का अर्थ है दोनों-अर्थात् शब्द भी और अर्थ भी। इस भेद को ‘शब्दार्थालंकार’ भी कहा जाता है।

अलंकार के उपर्युक्त तीनों भेदों का स्पष्टीकरण नीचे दिए गए उदाहरणों से हो सकता है

शब्दालंकार
“तरिन-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए।” यहाँ ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है। ‘तरनि’ की जगह ‘सूर्य’ ‘तनुजा’ की जगह ‘पुत्री’ अथवा ‘तरुवर’ की जगह ‘वृक्ष’ शब्द प्रयुक्त होने पर यह चमत्कार नहीं रहता। स्पष्ट है कि यह चमत्कार ‘शब्द’ पर आधारित है, अतः यहाँ शब्दालंकार’ है। इसका नाम ‘अनुप्रास’ है।’

अर्थालंकार
“महँगाई बढ़ रही निरंतर, द्रपुद-सुता के चीर सी,
बेकारी बढ़ रही चीरती, अंतर्मन को तीर-सी।”

यहाँ ‘महँगाई’ (उपमेय, प्रस्तुत) की समता ‘द्रोपदी के चीर’ (उपमान, अप्रस्तुत) से की गई है। ‘बेकारी’ की समता ‘तीर’ से की गई है। दोनों में ‘चीरना’ लक्षण एक-सा है। शब्द बदल देने पर भी चमत्कार कम नहीं होगा, क्योंकि उसका आधार ‘अर्थ’ है। अत: यह ‘अर्थालंकार’ है। इसे “उपमा’ कहते हैं।

शब्दार्थालंकार
“अंतद्वीप समुज्जवल रहता सदा स्नेह स्निग्ध होकर।”

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यहाँ ‘स’ वर्ण की आवृत्ति से ‘अनप्रास’ (शब्दालंकार) है। ‘सदा’ की जगह ‘हमेशा’ या स्नेह की जगह ‘प्रेम’ कर देने से चमत्कार नहीं रहेगा। साथ ही यहाँ ‘स्नेह’ के दो अर्थ हैं-‘प्रेम’ और ‘दीप’। ‘अंतर’ (मन) प्रेम से उज्जवल रहता है, ‘दीप’ तेल से। यह भी शब्दालंकार (श्लेष) है। इसके अतिरिक्त ‘अंत:करण’ (उपमेय) को ‘दीप’ उपमान के रूप में प्रस्तुत किया गया है। शब्द बदलकर ‘हृदय’ रूपी ‘दीपक’ भी कह सकते हैं। अर्थ-चमत्कार बना रहेगा। इस प्रकार इस उदाहरण में शब्द के अर्थ-दोनों का चमत्कार होने के कारण ‘शब्दार्थालंकार’ या ‘उभयालंकार’ है।

प्रश्न 3.
प्रमुख शब्दालंकार कौन-से हैं? लक्षण उदाहरण सहित उसका विवेचन कीजिए।
उत्तर-
प्रमुख शब्दालंकार चार हैं-अनुप्रास, यमक, श्लेष, पुनरुक्ततदाभास। इन चारों का लक्षण-उदाहरण सहित विवेचन आगे किया जा रहा है :
(i) अनुप्रास- अनुप्रास’ शब्द का अर्थ है-साथ-साथ रखना (अनु+प्र+आस, क्रमबद्ध रूप से सँजाना)। जब वर्गों को एक विशेष क्रम से इस प्रकार साथ-साथ रखा जाता है (उनकी आवृत्ति की जाती है), तब संरचना में एक लयात्मक नाद के सौंदर्य का समावेश होता है। इस दृष्टि से ‘अनुप्रास’ का यह लक्षण ध्यान देने योग्य है

“जहाँ स्वरों की भिन्नता होने पर भी व्यंजनों से रस के अनुकूल समानता (व्यंजन वर्णों की आवृत्ति) हो वहाँ ‘अनुप्रास’ अलंकार माना जाता है।” जैसे-

मानते मनुष्य यदि अपने को आप हैं,
तो क्षमा कर वैरियों को वीरता दिखाइए।

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यहाँ पहले ‘म’ वर्ण की आवृत्ति एक विशेष क्रम से है। फिर ‘व’ वर्ण की समानता द्वारा भी सौंदर्य की सृष्टि हुई है। अतः ‘अनुप्रास’ अलंकार है।
(ii) यमक-‘यमक’ का अभिप्राय है-‘युग्म’ अर्थात् जोड़ा। काव्य में शब्द-युग्म (एक ही शब्द के दो या अधिक बार) के प्रयोग से तब विशेष चमत्कार आ जाता है जब उनके अर्थ अलग-अलग हों। इस आधार पर हम कह सकते हैं

“जहाँ एक शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हो परंतु हर बार उसका अर्थ भिन्न हो वही ‘यमक’ अलंकार होता है। जैसे-

माला फेरत जुग गया, मिटा न मनका फेर।
कर का मनका डारि कै, मन का मनका फेर। (कबीर)

यहाँ ‘मनका’ शब्द का एक से अधिक बार प्रयोग हुआ है, किन्तु अर्थ अलग-अलग है। पहली पंक्ति में ‘मनका’ का अभिप्राय है-मन का, अर्थात् हृदय का। दूसरी पंक्ति में ‘मनका’ का . अभिप्राय है-माला का दाना। इसी पंक्ति के अंत में पुन:-‘मन का मनका’ फेर अर्थात् हृदय को बदलने (माया से हटकर सत्यकर्मों में लगाने) को कहा गया है। इस प्रकार यहाँ एक ही शब्द ‘मनका’ का अनेक बार प्रयोग होने पर भी, अर्थ भिन्न-भिन्न है, अत: यमक अलंकार है।।

(iii) श्लेष-‘श्लेष’ शब्द का अर्थ है-संयोग। कई शब्द में एक साथ कई अर्थों का संयोग होता है जिनके कारण कथन में विशेष चमत्कार आ जाता है। ‘श्लेष’ शब्द की रचना ‘श्लिष’ धातु से हुई है जिसका अभिप्राय है-‘चिपकना’। जैसे चपड़ा लाख की लकड़ी से ऐसी चिपकी रहती है कि अलग नहीं होती। एक ओर वह लाख प्रतीत होती है, दूसरी ओर से लकड़ी। इसी प्रकार किसी एक शब्द में एक से अधिक अर्थ चिपके होने पर भी कभी एक अर्थ प्रभावित करता है, कभी दूसरा।

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‘श्लेष’ का लक्षण इस प्रकार है-
‘जहाँ एक शब्द से अनेक अर्थों का बोध अभिधा द्वारा हो वहाँ ‘श्लेष’ अलंकार होता है। जैसे-

मेरो भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोई।
जा तन की झाई परै, स्याम हरित दुति होई॥ (बिहार)

यहाँ ‘स्याम’ और ‘हरित’ शब्द में श्लेष है। ‘स्याम’ का अर्थ ‘कृष्ण’ भी है और ‘साँवला’ अर्थात् ‘नील’ भी; हरित का अर्थ ‘मंद’ (हर ली गई) भी है तथा ‘हरि’ भी। राधा के तन की झलक पड़ते ही कृष्ण की दीप्ति भी मंद पड़ जाती है अथवा ‘कृष्ण का साँवला रंग’ (राधा के गोरे रंग की झलक से) हरा प्रतीत होने लगता है। ये दोनों अर्थ संभव हैं जो चमत्कार के आधार हैं। अतः यहाँ ‘श्लेष’ अलंकार है।

(iv) पुनरुक्ततदाभास-‘पुनरुक्ततदाभास’ में चार शब्दों का मेल है-पुनः + उक्त + वत् + आभास। इस आधार पर अर्थ हुआ-पुनः (दोबार) उक्त (कहा गया) वत् (वेसा) आभास (प्रतीत होना)।

जब ऐसा लगे कि एक ही पंक्ति में कोई बात (अनावश्यक रूप से) दोहरा दी गई है, पर वास्तव में ऐसा है कि नहीं-यही चमत्कार का आधार होता है।

“जहाँ अलग-अलग शब्द का जैसा अर्थ देते प्रतीत हो वहाँ ‘पुनरुक्तारापास’ अलंकार होता है।” जैसे-

समय जा रहा और काल है आ रहा।
सचमुच उलटा भाव भुवन में छा रहा। (मैथिलीशरण गुप्त)

यहाँ ‘समय’ और ‘काल’ दोनों का अर्थ ‘वक्त’ (टाइम) प्रतीत होता है। ‘समय’ का अर्थ ‘वक्त’ तो ठीक है परंतु ‘काल’ का अर्थ यहाँ ‘मृत्यु’ है। प्रथम बार समान अर्थ प्रतीत कराने वाले शब्दों के कारण यहाँ चमत्कार है। अतः यहाँ ‘पुनरुक्ततदाभास’ अलंकार है।

प्रश्न 4.
प्रमुख अर्थालंकार कौन-कौन हैं? उन्हें कितना वर्गों में बाँटा जा सकता है? उनका लक्षण उदाहरण सहित विवेचना कीजिए।
उत्तर-
प्रमुख अर्थालंकारों के नाम इस प्रकार हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, भ्रांतिमान, अन्योक्ति, विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय।

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अर्थालंकारों के प्रमुख वर्ग
साहित्यशास्त्रीय ग्रंथों में ‘अर्थालंकारों के वर्ग को ही अधिक महत्व दिया गया है। इनके अंतर्गत कवि-गण अनेक प्रकार से काव्य-सौंदर्य की सृष्टि करते हैं, अतः अर्थालंकारों के अपने उपवर्ग भी संभावित हैं। इनमें से प्रमुख ये हैं-

  1. सादृश्यमूलक अलंकार-जिन अलंकारों में उपमेय (प्रस्तुत) और उपमान (अप्रस्तुत) के साम्य (सादृश्य) द्वारा चमत्कार अथवा सौंदर्य की सृष्टि होती है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि सादृश्यमूलक अलंकार हैं।
  2. विरोधमूलक अलंकार-जिन अर्थालंकारों का सौंदर्य या चमत्कार विरोध की स्थिति पर निर्भर करता है वे “विरोधमूलक’ अलंकार कहलाते हैं। जैसे-विरोध (विरोधाभास), विभावना, विशेषोक्ति आदि।
  3. श्रृंखलामूलक अलंकार-यहाँ चमत्कार उत्पन्न करने वाले कथन एवं श्रृंखला (कड़ी) के रूप में (विशेष क्रम से) परस्पर गूंथे हों, वहाँ ‘शृंखलामूलक’ अलंकार की स्थिति मानी जाती है। कारणमाला, सार, एकावली आदि ऐसे ही अलंकार हैं।
  4. न्यायमूलक अलंकार-जिन अर्थालंकारों के अंतर्गत लोकन्याय अथवा तर्क के आधार पर काव्य-सौंदर्य या चमत्कार की सृष्टि की जाती है वे ‘न्यायमूलक’ अलंकार कहलाते हैं।

उपर्युक्त वर्गों में से दो वर्ग विशेष रूप से चर्चित और प्रचलित हैं-

  • सादृश्यमूलक अलंकार
  • विरोधमूलक अलंकार।।

सादृश्यमूलक अलंकारों के चार घटक या अवयव प्रमुख होते हैं

  • उपमेय-जिस व्यक्ति, वस्तु या भाव की किसी अन्य से समानता की जाती है। इसे ‘प्रस्तुत’ भी कहते हैं।
  • उपमान-जिस व्यक्ति, वस्तु या भाव के साथ ‘उपमेय’ या ‘प्रस्तुत’ की समानता बतलाई . जाती है।
  • साधारण धर्म-‘उपमेय’ और ‘उपमान’ में जिस गुण, लक्षण या विशेषता आदि के कारण समानता होती है।
  • वाचक शब्द-जिस शब्द (सा, जैसा, सम, समान, सदृश आदि) के द्वारा उपमेय और उपमान की समानता व्यक्त की जाती है। एक उदाहरण से उपर्युक्त चारों अवयव स्पष्ट हो जाएंगे।

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“लघु तरिण हंसिनी सी सुंदर” (नौका बिहार, पंत)

यहाँ ‘रिण’ (नौका) उपमेय है। ‘हसिनी’ उपमान है। ‘सौंदर्य साधारण धर्म हैं ‘सी’ दायक शब्द है। (यहाँ उपमा सादृश्यमूलक अलंकार) के चारों अंग विद्यमान हैं।)

प्रमुख अर्थालंकारों का लक्षण-उदाहरण सहित विवेचन आगे किया जा रहा है।।

उपमा-अर्थालंकारों में ‘उपमा’ सर्वप्रमुख है। आचार्य दंडी ने सभी अलंकारों को-‘उपमा’ का मुही प्रपंच (विस्तार) बताया है। आचार्य वामन उपमा को सभी अलंकारों का ‘मूल’ मानते हैं। राजशेखर ने उपमा को सर्वशिरोमणि तथा कवियों की माता कहा है, (अलंकार शेखर) तथा अप्पय दीक्षित का कथन है कि उपमा वह नटी है जो रूप बदल-बदल कर काव्य-रूपी रंगमंच पर कौतुक दिखाकर सब काव्यप्रेमियों के चित्त को मुग्ध करती रहती है।” (चित्रमीमांसा) संस्कृत के अमर कवि कालिदास के विश्व विख्यात होने का आधार यही ‘उपमा’ है-

‘उपमा कालिदासस्य’-‘उपमा’ शब्द का अभिप्राय है-निकट रखकर परखना-मापना अर्थात् दो वस्तुओं को निकट रखकर, उनकी समानता (साम्य, सादृश्य) के आधार पर उनकी विशेषता को परखना ‘उपमा’ की प्रमुख पहचान है। निकट ‘समीप’ रखी जाने वाली दोनों वस्तुओं (पदार्थों, व्यक्तियों, विषयों, भावों आदि) में एक ‘प्रस्तुत’ होती है जिसे ‘उपमेय’ कहते हैं-जिसकी (किसी अन्य वस्तु से) समता की जाती है।

(उपमा दी जाती है।) दूसरी वस्तु ‘अप्रस्तुत’ होती है जिसे ‘उपमान’ कहते हैं-जिससे किसी की समता की जाती है। इन दोनों (प्रस्तुत-अप्रस्तुत या उपमेय-उपमान) में जिस गुण, लक्षण, स्वभाव या विशेषता के आधार पर समानता बतलाई जाती है उसे समान धर्म’ कहा जाता है तथा दो भिन्न वस्तुओं (उपमेय-उपमान) में समानता का बोध कराने वाला (सूचक) शब्द (सा, सम, ‘तुल्य’ समान आदि) वाचक शब्द कहलाता है।

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इस प्रकार ‘उपमा’ अलंकार के चार ‘अंग’ हैं-

  • उपमेय,
  • उपमान,
  • समान धर्म,
  • वाचक शब्द।

‘उपमा’ के लक्षण और उदाहरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी।

लक्षण-‘जहाँ एक ही वाक्य में, दो भिनन वस्तुओं की गुण-स्वभाव, रूप-रंग या किसी अन्य विशेषता संबंधी समानता उपमेय (प्रस्तुत) और उपमान (अप्रस्तुत) के रूप में बताई गई हो वहाँ ‘उपमा’ अलंकार होता है।”

उदाहरण-
महँगाई बढ़ रही निरंतर द्रुपद-सुता के चीर-सी।
बेकारी बढ़ रही चीरती अंतर्मन को तीर-सी।  – (सोहनलाल द्विवेदी, मुक्तिगंधा)

यहाँ ‘महँगाई’ (उपमेय या प्रस्तुत) की समता द्रुपदसुता के चीर (उपमान या अप्रस्तुत) और बेकारी (उपमेय) की समानता तीर (उपमान) से की गई है, अतः ‘उपमा’ अलंकार है।

इस उदाहरण में ‘उपमा’ के चारों अंग हैं-

उपमेय-महँगाई, बेकारी
उपमान-चीर, तीर समान
धर्म-निरंतर बढ़ना,
चीरना वाचक शब्द-सी

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रूपक-‘रूपक’ शब्द का अभिप्राय है-‘रूप धारण करने वाला’। उपमेय की महिला बताने के कई ढंग हैं जिनमें से एक यह भी है कि उसे उपमान का रूप दे दिया जाए अर्थात् उपमेय और उपमान एक साथ हो जाएँ। ‘उपमेय’ में ‘उपमान’ का इस प्रकार, ‘आरोप’ के कारण ही इस अलंकार का नाम ‘रूपक’ अलंकार है।

लक्षण-“जहाँ उपमेय में उपमान का अभेद आरोप किया गया हो अर्थात् उपमेय-उपमान एक रूप बताए जाएं वहाँ ‘रूपक’ अलंकार होता है।” जैसे-

स्नेह का सागर जहाँ लहरा रहा गंभीर।।
घृणा का पर्वत वहीं पर खड़ा लिए शरीर॥  – (सोहनलाल द्विवेदी, कुणाल)

यहाँ स्नेह (उपमेय) में सागर (उपमान) और घृणा (उपमेय) में पर्वत (उपमान) का आरोप हुआ है, अत: रूपक अलंकार है।

‘रूपक’ का एक प्रसिद्ध उदाहरण है-चरण कमल बंद हरिराई।

अर्थात्-मैं हरि के चरण कमलों (चरण रूपी कमलों) की वंदना करता हूँ।

यहाँ चरण (उपमेय) और कमल (उपमान) अभिन्न (एक रूप) बताए गए हैं। चरण में कमल का आरोप है, अर्थात् चरणों में कमलों का रूप दिया गया है, अत: ‘रूपक’ अलंकार है-

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उत्प्रेक्षा-‘उत्प्रेक्षा’ शब्द का अभिप्राय है-‘संभावना’ या ‘कल्पना’। जिस वस्तु (पदार्थ, व्यक्ति, विषय, स्थिति, भाव, आदि) का वर्णन किया जाता है, वह होती तो वही (प्रस्तुत या उपमेय) है, पर उसमें किसी अन्य (श्रेष्ठ) (उपमान) की कल्पना या संभावना करके उसक विशेषता को उजागर करने की एक प्रभावशाली विधि ‘उत्प्रेक्षा’ मानी जाती है। जैसे, किसी बुद्धि वाले विद्यार्थी की स्मरण-शक्ति की गणना-कौशल देखकर हम कहते हैं-“इसका। मानों कम्प्यूटर है। ‘इस प्रकार, हम दिमाग (उपमेय) में, ‘कम्प्यूटर’ (उपमान) की संभावना का लेते हैं। ‘मानो’ शब्द के प्रयोग से स्पष्ट है कि ‘हम मानते (संभावना) करते हैं।’

लक्षण-“जहाँ प्रस्तुत (उपमेय) में अप्रस्तुत (उपमान) की संभावना ‘मानो’, ‘जानो’, ‘मनु’, “जनु’, आदि शब्दों द्वारा की गई हो वहाँ ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार होता है।” जैसे-

उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उनका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा॥  – (मैथिलीशरण गुप्त, जयद्रथ-वध)

यहाँ कांपते तन (उपमेय) में लहराते सागर (उपमान) की संभावना ‘मानो’ शब्द के माध्यम से की गई है। अत: ‘उत्प्रेक्षा’ अलंकार है।

संदेह-जब कोई दूर से किसी ऐसे पदार्थ को देख ले जो कभी तो उसे डरावना जंतु-सा लगे; कभी ढूँठ पेड़ के तने-सा, तो उसके मन में दुविधा होना स्वाभाविक है। यह दुविधा दोनों . संभावित वस्तुओं (उपमेय और उपमान) के सादृश्य के कारण हो सकती हैं। ऐसी मन:स्थिति. का वर्णन काव्य में अनायास चमत्कार ले आता है।

लक्षण-“जहाँ सादृश्य के कारण उममेय और उपमान निश्चित न हो सके कि यह है या वह है-वहाँ ‘संदेह’ अलंकार होता है।”

नयन है या बिजलियाँ ये,
केश है या काले. नाग!

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यहाँ चमकते आँखों (उपमेय) और बिजलियाँ (उपमान) तथा केश (उपमेय) और काले नाम (उपमान) में अनिश्चय की स्थिति बतलाई गई है, अत: ‘संदेह’ अलंकार है।

भांतिमान-रस्सी को साँप समझकर, डर से चीखना कितना विचित्र होगा। यही स्थिति ‘प्रातिमान’ अलंकार में होती है। सादृश्य के कारण उपमेय को उपमान समझ लेना चमत्कार की सृष्टि करता है-उपमेय में उपमान का भ्रम हो जाता है, प्रांति हो जाती है इसलिए इसे भ्रम’ अलंकार या प्रतिमान अलंकार कहा गया है। जैसे-

दुग्ध समझकर रजत-पात्र को लगे चटने तभी बिडोल।

यहाँ बिडाल (विलाव) द्वारा चाँदी) (रजत) के पात्र (बरतन) को दूध समझकर चाटने का चमत्कारपूर्ण वर्णन है, अतः ‘भ्रांतिमान’ अलंकार है।।

अन्योक्ति (अप्रस्तुत प्रशंसा)-‘अन्योक्ति’ (अन्य का कथन) शब्द का अभिप्राय है किसी ‘अन्य’ के माध्यम से अभीष्ट (प्रस्तुत) बात कहना। यहाँ ‘अन्य’ का तात्पर्य ‘अप्रस्तुत’ अर्थात् ‘उपमान’ है। कई बार हमारा कोई प्रियजन जब बहुत दिनों बाद आता है तो हम कहते हैं-‘आज यह सूरज कहाँ से निकला !’ या ‘यह ईद का चाँद कहाँ से आ गया!’ हमारा अभीष्ट वस्तु ‘सूरज’ या ‘चाँद’ नहीं होता ! सूर्य या चाँद तो अप्रस्तुत (उपमान) है।

उनके माध्यम से हम ‘प्रस्तुत’ ‘उपमेय (मित्र) की बातें करते हैं। इस प्रकार के चमत्कार कर सौंदर्य को काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में अप्रस्तुत प्रशंसा’ अलंकार भी कहा गया है, क्योंकि इसमें ‘अप्रस्तुत’ के माध्यम से प्रस्तुत की प्रशंसा, अर्थात् ‘उपमान’ के कथन द्वारा वास्तव में ‘उपमेय’ का वर्णन होता है। आजकल यह अलंकार ‘अन्योक्ति’ के नाम से ही प्रचलित है। जिसका लक्षण इस प्रकार है-

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लक्षण-“जहाँ अप्रस्तुत (उपमान) के वर्णन से प्रस्तुत (उपमेय) का बोध हो वहाँ। ” “प्रस्तुत प्रशंसा’ या ‘अन्योक्ति अलंकार होता है।”

जैसे-
फूल काँटों में खिला था, सेज पर मुरझा गया।  – (रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’)

यहाँ फूल, काँटे, सेज आदि ‘अप्रस्तुत (उपमान) हैं। इनके माध्यम से कवि ने जीवन (प्रस्तुत या टपमेय) का वर्णन किया है जो संघर्ष (काँटों) में विकास पाता है पर ऐश-आराम, आलस्य-मस्ती (सेज) में क्षीण हो जाता है।

इर प्रकार बिहारी के अनेक दोहे, ‘अनयोक्ति’ के उत्तम उदाहरण हैं। जैसे-

मरत पयास पिंजरा परयो, सुवा समै के फेर।
आद दै दै बोलियत, बायस बलि का बेर॥ (बिहार)

(श्राद्ध के दिनों में, समय के फेर से, तोते जैसा सुंदर, समझदार और मधुरभाषी पक्षी तो पिंजरे में पड़ा प्यासा तड़पता रहता है और हलवा-पूरी का भोजन करने के लिए कौओं को आदर-सहित बुलाया जाता है।)

यहाँ ‘तोता’ और ‘कौआ’ अप्रस्तुत है जिनके माध्यम से इस प्रस्तुत अर्थ की प्रतीति कराई गई है-‘कैसा जमाना (बुरा समय) आ गया है ! सज्जन, विद्वान और सच्चे कलाकार तो भूखे मर रहे हैं और गला फाड़-फाड़ कर खुशामद करने वाले धूर्त राजकीय पद, सम्मान और पुरस्कार प्राप्त रहे हैं।

मानवीकरण-‘मानवीकरण’ का अर्थ है-प्रकृति, जड़ या अमूर्त भाव (जो मानव नहीं है) में मानवीय भावनाओं, चेष्टाओं, गुणों आदि की स्थिति बताना। .. “जहाँ प्रकृति आदि या जड़ पदार्थों का मनुष्य के गुण, कार्य, भाव, विचार आदि से युक्त वर्णन किया जाए वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।” जैसे-

“निशा को धो देता राकेश,
चांदनी में जब अलके खोल।”

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यहाँ निशा (रात) और राकेश (चंद्रमा) का मनुष्य की भांति (बाल खोकर धोना आदि) वर्णन है। अतः ‘मानवीकरण’ अलंकार है।

विरोधाभास-‘विरोधाभास’ के शब्द का अभिप्राय है-‘विरोध का आभास अर्थात् प्रतीति (वास्तविकता नहीं)।’ कोई बात इस प्रकार कहना कि जिसमें विरोध प्रतीत हो, पर वास्तव में हो नहीं, चमत्कारपूर्ण होता ही है। यद्यपि ऐसे चमत्कारपूर्ण कथन का सूक्ष्म विवेचन करने से विरोध नहीं रहता, तथापि उससे उत्पन्न चमत्कार का प्रभाव बना ही रहता है।

लक्षण-“जहाँ दो वस्तुओं (कथनों, भावों, आदि) में वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध की प्रतीति कराई जाए वहाँ ‘विरोधाभास’ अलंकार होता है।” जैसे-

या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोय।
ज्यों-ज्यों बड़े स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जल होय॥ (बिहारी सतसई)

यहाँ ‘स्याम (काले-नीले) रंग में डूबकर भी ‘उजला होना’ परस्पर विरोधी बातें प्रतीत होती हैं, किन्तु वास्तव में विरोध नहीं है क्योंकि स्याम का अर्थ ‘श्रीकृष्ण’ है-‘यह प्रेम-ठगा हृदय श्रीकृष्ण में जितना अधिक लीन रहता है उतना ही उजला (आनंदित) होता है। इस प्रकार यहाँ ‘विरोधाभास’ अलंकार है।

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Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Bihar Board 12th Economics Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 1.
Which Economist divided Economics in two branches of micro and macro on the basis of economics activity ?
(A) Marshall
(B) Ricardo
(C) Ragnar Frish
(D) None of these
Answer:
(C) Ragnar Frish

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

 

Question 2.
Which of the following is studied under Micro Eco¬nomics ?
(A) Individual unit
(B) Economic Aggregate
(C) National Income
(D) None of these
Answer:
(A) Individual unit

Question 3.
Which of the following economic activities are included in the subject-matter of Economics ?
(A) Economics Activities related to Unlimited Wants
(B) Economic Activities related to Limited Resources
(C) Both (A) and (B)
(D) None of these
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 4.
The central problem of an economy is :
(A) What to produce
(B) How to produce
(C) How to distribute produced goods
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 5.
Mention the name of the curve which shows economic problem:
(A) Productions Curve
(B) Demand Curve
(C) Indifference Curve
(D) production Possibility Curve
Answer:
(D) production Possibility Curve

Question 6.
Who gave the cardinal concept of utility ?
(A) Marshall
(B) Pigou
(C) Hicks
(D) Samuelson
Answer:
(A) Marshall

Question 7.
Consumer’s behaviour is studied in :
(A) Micro Economics
(B) Macro Economics
(C) Income Analysis
(D) None of these
Answer:
(A) Micro Economics

Question 8.
Which is the First Law of Gossen ?
(A) Law of Demand
(B) Law of Diminishing Marginal Utility
(C) Law of Equi-marginal Utility
(D) Consumer’s Surplus
Answer:
(B) Law of Diminishing Marginal Utility

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 9.
Which element is essential for demand ?
(A) Desire to consumer
(B) Avaiability of adequate resources
(C) Willingness to consume
(D) All to these
Answer:
(D) All to these

Question 10.
Demand Curve generally slopes :
(A) Upward from left to right
(B) Downward from left to right
(C) Parallel to X-axis
(D) Parallel to Y-axis
Answer:
(B) Downward from left to right

Question 11.
With rise in coffee price, the demand of tea :
(A) Rises
(B) Falls
(C) Remains stable
(D) None of these
Answer:
(A) Rises

Question 12.
With a rise in price the demand for ‘Giffin’ goods :
(A) increases
(B) decreases
(C) remains’constant
(D) becomes unstable
Answer:
(A) increases

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 13.
With which method, elasticity of demand is measured ?
(A) Total Expenditure Method
(B) Percentage or Proportionate Method
(C) Point Method
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Question 14.
How many types elasticity of demand has ?
(A) Three
(B) Five
(C) Six
(D) Seven
Answer:
(B) Five

Question 15.
For luxury goods the demand is :
(A) Inelastic
(B) Elastic
(C) Highly elastic
(D) Perfectly Inelastic
Answer:
(C) Highly elastic

Question 16.
In production fucntion, production is a function of:
(A) Price
(B) Factors of Production
(C) Total Expenditure
(D) None of these
Answer:
(B) Factors of Production

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 17.
The basic reason of operating the Law of Diminishing Returns is:
(A) Scarcity of Factors
(B) Imperfect Substitution between Factors
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 18.
Which statement of the following is true ?
(A) AC = TFC – TVC
(B) AC = AFC + TVC
(C) AC = TFC = AVC
(D) AC = AFC + A VC
Answer:
(D) AC = AFC + A VC

Question 19.
The quantity of a goods which the seller is ready to sell in the market at fixed price and time is called ?
(A) Supply
(B) Demand
(C) Elasticity of supply
(D) Elasticity of demand
Answer:
(A) Supply

Question 20.
The measurement of the elasticity of supply is expressed as :
\((A) \frac{\Delta Q_{s} / Q_{s}}{\Delta P / P}
(B) \frac{Q_{s}}{\Delta P} \cdot \frac{1}{P}
(C) \frac{Q_{s}}{Q_{s}} \cdot \Delta P
(D) \frac{\Delta P}{Q_{s}} \cdot \frac{P}{\Delta Q_{s}}\)
Answer:
\((A) \frac{\Delta Q_{s} / Q_{s}}{\Delta P / P}\)

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 21.
Which is a characteristic of the market ?
(A) One Area
(B) Preasence of both Buyers and Sellers
(C) Single Price of the Commodity
(D) All the above
Answer:
(D) All the above

Question 22.
Which factor determines Equilibrium Price ?
(A) Demand for Commodity
(B) Supply of Commodity
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 23.
“Price is determined by Demand and Supply. Whose statment is this” ?
(A)Jevons
(B) Walras
(C) Marshall
(D) None of these.
Answer:
(C) Marshall

Question 24.
Which statement is correct ?
(A) In very short period, supply is perfectly inelastic, price is affected by both demand conditions.
(B) Supply curve elasticity depends on time period
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 25.
Market Price is found in :
(A) Short Period Market
(B) Long Period Market
(C) Very Long Period Market
(D) None of these
Answer:
(A) Short Period Market

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 26.
Which of the following is a stock ?
(A) Wealth
(B) Saving
(C) Export
(D) Profit
Answer:
(A) Wealth

Question 27.
Which one of the following is included in ‘Stock’ ?
(A) Quantity of Money
(B) Wealth
(C) Quantity of wheat stored in warehouse
(D) All the above
Answer:
(D) All the above

Question 28.
Primary sector includes :
(A) Agriculture
(B) Retail trading
(C) Small Industries
(D) All the these
Answer:
(D) All the these

Question 29.
Which one is a component of profit ?
(A) Divident
(B) Undistributed Profit
(C) Corporate Profit Tax
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Question 30.
Which one is included in National Income ?
(A) Rent, Wage, Interest
(B) Rent, Wage, Salary
(C) Rent, Profit, Interest
(D) Rent, Wage, Salary, Interest, Profit
Answer:
(D) Rent, Wage, Salary, Interest, Profit

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 31.
“Money is what money does.” Who said it ?
(A) Hartley Withers
(B) Hawtrey
(C) Thomas
(D) Keynes
Answer:
(A) Hartley Withers

Question 32.
The function of money is :
(A) Medium of Exchange
(B) Measure of Value
(C) Store of Value
(D) All the above
Answer:
(D) All the above

Question 33.
The primary function of Commercial Bank is ?
(A) Accepting Deposits
(B) Advancing Loans
(C) Credit Creation
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Question 34.
Credit money is increased when CRR :
(A) Falls
(B) Rises
(C) Both (A) and (B)
(D) None of these
Answer:
(A) Falls

Question 35.
Central Bank of India is :
(A) Reserve Bank of India
(B) State Bank of India
(C) Central Bank of India
(D) Bank of India
Answer:
(A) Reserve Bank of India

Question 36.
Who is the author of the book ‘General Theory of Employment, Interest and Money’ ?
(A) A.C. Pigou
(B) Malthus
(C) J.M. Keyness
(D) Marshall
Answer:
(C) J.M. Keyness

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 37.
On which factor Keyesian Theory of Employment depends ?
(A) Effective Demand
(B) Supply
(C) Production Efficiency
(D) None of the above
Answer:
(A) Effective Demand

Question 38.
MPC + MPS = ?
(A) ∞
(B) 2
(C) 1
(D) 0
Answer:
(C) 1

Question 39.
Multiplier can be expressed as :
(A) K = \(\frac{\Delta \mathrm{S}}{\Delta \mathrm{I}}\)
(B) K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta l}\)
(C) K = I – S
(D) None of the these
Answer:
(B) K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta l}\)

Question 40.
Which of the following is correct ? .
(A) MPC and multiplier have direct relationship
(B) MPS and multiplier have inverse relationship
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 41.
Which of the following is included in fiscal policy ?
(A) Public Expenditure
(B) Tax
(C) Public Debt
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

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Question 42.
Budget may include :
(A) Revenue Deficit
(B) Finscal Deficit
(C) Primary Deficit
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Question 43.
Which one of the following is a pair of direct tax ?
(A) Excise duty and Wealth Tax
(B) Service Tax and Income Tax
(C) Excise Duty and Service Tax
(D) Wealth Tax and Income Tax
Answer:
(D) Wealth Tax and Income Tax

Question 44.
Which of the following is not a revenue receipt ?
(A) Recovery of Loans
(B) Foreign Grants
(C) Profits of Public Enterprise
(D) Wealth Tax
Answer:
(A) Recovery of Loans

Question 45.
Which of the following is a correct measure of primary deficit ?
(A) Fiscal deficit minus revenue deficit
(B) Revenue deficit minus interest payments
(C) Fiscal deficit minus interest payments
(D) Capital expenditure minus revenue expenditure
Answer:
(C) Fiscal deficit minus interest payments

Bihar Board 12th Economics VVI Objective Questions Model Set 2 in English

Question 46.
Which one is a kind of exchange rate ?
(A) Fixed Exchange Rate
(B) Flexible Exchange Rate
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 47.
Which of the following is true ?
(A) Fixed exchange rate is determined by the government
(B) Flexible exchange rate is determined by market (demand and supply of foreign exchange)
(C) Both (A) and (B)
(D) None of the above
Answer:
(C) Both (A) and (B)

Question 48.
Balance of Trade = ?
(A) Export of Visible Items – Imports of Visible Items
(B) Export of both Visible and Invisible Items – Import of both Visible and Invisible Items
(C) Import of Visible Items – Export of Visible Items
(D) None of the above
Answer:
(A) Export of Visible Items – Imports of Visible Items

Question 49.
Which items are included in Balance of Payments ?
(A) Visible Items
(B) Invisible Items
(C) Capital Transfers
(D) All the above
Answer:
(D) All the above

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Question 50.
Which one is the item of Current Account ?
(A) Import of Visible Items
(B) Expenses of Tourists
(C) Exports of Visible Items
(D) All the above
Answer:
(D) All the above