BSEB Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 5 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Business Economics Important Questions Short Answer Type Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
आय विधि से सम्बन्धित सावधानियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
आय विधि से संबधित सावधानियाँ ये हैं

  • गैर-कानूनी ढ़ग से कमाई गयी आय (जैसे-तस्करी, कालाबाजारी, जुआ, चोरी, डाका, आदि से प्राप्त आय) पर
  • हस्तारण आय (जैसे-छात्रवृति, वृद्धावस्था पेंशन, बेकारी भत्ता आदि) को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करना चाहिए।
  • स्व उद्योग के लिए उत्पादन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए।
  • निगम कर लाभ का एक अंग है। अतः इसे अलग से राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय को व्यय विधि से कैसे मापा जाता है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की विभिन्न विधियों में व्यय विधि भी एक है। राष्ट्रीय आय को व्यय विधि से निम्न रूप से मापा जा सकता है-

व्यय विधि:
‘निजी अंतिम उपयोग व्यय + सरकारी अंतिम अपयोग – सकल घरेलू पूँजी निर्माण + शुद्ध निर्यात = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष करं – मूल्य ह्रास।
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आया
= राष्ट्रीय आय।

प्रश्न 3.
मुद्रा की विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
व्यापार में विभिन्न पक्षों के बीच मुद्रा विनिमय या भुगतान के माध्यम का काम करती है। भुगतान का काम लोग किसी भी वस्तु से कर सकते हैं परन्तु उस वस्तु में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए। कोई भी वस्तु अलग-अलग समय काल एवं परिस्थितियों में अलग हो सकती है। जैसे पुराने समय में लोग विनिमय के लिए कौड़ियों, मवेशियों, धातुओं अन्य लोगों के ऋणों का प्रयोग करते थे। इस प्रकार के विनिमय में समय एवं श्रम की लागत बहुत ऊँचीहोती थी। विनिमय के लिए मुद्रा को माध्यम बनाए जाने में समय एवं श्रम की लागत की बचत, होती है। आदर्श संयोग तलाशने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने से व्यापार प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

प्रश्न 4.
वस्त एवं सेवा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा में निम्नलिखित अन्तर हैं-
वस्तु:

  1. वस्तु भौतिक होती है अर्थात् वस्तु का आकार होता है। उसे छू सकते हैं।
  2. वस्तु के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में अन्तर पाया जाता है।
  3. वस्तु का भविष्य के लिए भण्डारण कर सकते हैं।
  4. उदाहरण-मेज, किताब, वस्त्र आदि।

सेवा:

  1. सेवा अभौतिक होती है। वस्तु सेवा का कोई आकार नहीं होता है। उसे छू नहीं सकते हैं।
  2. सेवा का उत्पादन एवं उपभोग काल एक ही होता है।
  3. सेवा का भविष्य के लिए भण्डारण नहीं कर सकते हैं।
  4. उदाहरण-डॉक्टर की सेवा, अध्यापक की सेवा।

प्रश्न 5.
मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा की भूमिका बताइए।
उत्तर:
मूल्य की इकाई एवं भुगतान का माध्यम लेने के बाद मुद्रा मूल्य के भण्डार का कार्य भी सहजता से कर सकती है। मुद्रा का धारक इस बात से आश्वस्त होता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मालिक उनके बदले मुद्रा को स्वीकार कर लेते हैं। अर्थात् मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण मुद्रा का धारक उसके बदले कोई भी वांछित चीज खरीद सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में कार्य करती है।

मुद्रा के अतिरिक्त स्थायी परिसंपत्तियों जैसे भूमि, भवन एवं वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे बचत, ऋण पत्र आदि में भी मूल्य संचय का गुण होता है और इनसे कुछ आय भी प्राप्त होती है। परन्तु इनके स्वामी को इनकी देखभाल एवं रखरखाव की जरूरत होती है, इसमें मुद्रा की तुलना में कम तरलता पायी जाती है और भविष्य में इनका मूल्य कम हो सकता है। अतः मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में अन्य चीजों से बेहतर है।

प्रश्न 6.
नकद साख पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ग्राहक की साख सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक द्वारा ग्राहक के लिए उधार लेने की सीमा के निर्धारण को नकद साख कहते हैं। बैंक का ग्राहक तय सीमा तक की राशि का प्रयोग कर सकता है। इस राशि का प्रयोग ग्राहक को आहरण क्षमता से तय किया जाता है। आहरण क्षमता का निर्धारण ग्राहक की वर्तमान परिसंपत्तियों के मूल्य, कच्चे माल के भण्डार, अर्द्धनिर्मित एवं निर्मित वस्तुओं के भण्डारन एवं हुन्डियों के आधार पर किया जाता है। ग्राहक अपने व्यवसाय एवं उत्पादक गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों पर . अपना कब्जा करने की कार्यवाही शुरू कर सकता है। ब्याज केवल प्रयुक्त ब्याज सीमा पर चुकाया जाता है। नकद साख व्यापार एवं व्यवसाय संचालन में चिकनाई का काम करती है।

प्रश्न 7.
मुद्रा की आपूर्ति क्या होती है ?
उत्तर:
मुद्रा रक्षा में सभी प्रकार की मुद्राओं के योग को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। मुद्रा की आपूर्ति में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।

  • मुद्रा की आपूर्ति एक स्टॉक है। यह किसी समय बिन्दु के उपलब्ध मुद्रा की सारी मात्रा को दर्शाता है।
  • मुद्रा के स्टॉक से अभिप्राय जनता द्वारा धारित स्टॉक से है। जनता द्वारा धारित स्टॉक समस्त स्टॉक से कम होता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा की आपूर्ति के चार वैकल्पिक मानों के आँकड़े प्रकाशित (M1, M2, M3, M4) है।

जहाँ M1 = जनता के पास करेन्सी+जनता की बैंकों में माँग जमाएँ
M2 = M + डाकघरों के बचत बैंकों में बचत जमाएँ
M3 = M2 + बैंकों की निबल समयावधि योजनाएँ
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठन की सभी जमाएँ।

प्रश्न 8.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अर्थशास्त्र का वह भाग जिसमें समूची अर्थव्यवस्था से संबंधित विभिन्न योगों या औसतों का अध्ययन किया जाता है, समष्टि अर्थशास्त्र कहलाता है। उदाहरण के लिए, कुल रोजगार, राष्ट्रीय आय, कुल उत्पादन, कुल निवेश, कुल उपभोग, कुल बचत, समग्र माँग, समग्र पूर्ति, सामान्य कीमत स्तर, मजदूरी स्तर, लागत, संरचना, स्फीति, बेरोजगारी, भुगतान शेष, विनिमय दरें, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियाँ आदि समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। दूसरे शब्दों में, इसे योगमूलक अर्थशास्त्र (Aggregative ecomomics) भी कहा जाता है जो विभिन्न योगों के बीच आपसी संबंधों, उनके निर्धारण एवं उनमें उतार-चढ़ाव के कारणों की जाँच करता है। इस प्रकार, समष्टि का संबंध समूची अर्थव्यवस्था के कार्यव्यवहार से होता है।

प्रश्न 9.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयाँ लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कठिनाइयाँ है-

  • इस प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापने की कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती. है। अतः वस्तु विनिमय लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में एक बाधा है।
  • आवश्यकताओं का दोहरा संयोग विनिमय का आधार होता है। व्यवहार में दो पक्षों में हमेशा एवं सब जगह परस्पर वांछित संयोग का तालमेल होना बहुत मुश्किल होता है।
  • स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई होती है। दो पक्षों के बीच सभी लेन-देनों का निपटारा साथ के साथ होना मुश्किल होता है अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों के संबंध में वस्तु की किस्म, गुणवत्ता, मात्रा आदि के संबंध में असहमति हो सकती है।

प्रश्न 10.
भारत में नोट जारी करने की क्या व्यवस्था है ?
उत्तर:
भारत में नोट जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था कहा जाता है। जारी की गई मुद्रा के लिए न्यूनतम सोना व विदेशी मुद्रा सुरक्षित निधि में रखी जाती है।

प्रश्न 11.
भारत में मुद्रा की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर:
भारत में मुद्रा की पूर्ति करते हैं-

  • भारत सरकार।
  • केन्द्रीय बैंक
  • व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 12.
वाणिज्य बैंक कोषों का अन्तरण किस प्रकार करते हैं ?
उत्तर:
वाणिज्य बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन राशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों, जैसे-चेक, ड्राफ्ट, विनिमय, बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

प्रश्न 13.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
2 अक्टूबर 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए। इनका कार्यक्षेत्र एक राज्य के या दो जिले तक सीमित रखा गया। ये छोटे और सीमित किसानों, खेतिहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु-उद्योगों, वाणिज्य, व्यापार तथा अन्य क्रियाओं के विकास में सहयोग करते हैं। .

प्रश्न 14.
श्रम विभाजन व विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है ?
उत्तर:
श्रम विभाजन एवं विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में लोग अभीष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 15.
कीमत नम्यता वस्तु बाजार में सन्तुलन कैसे बनाए रखती है ?
उत्तर:
कीमत नम्यता (लोचनशीलता) के कारण वस्तु व सेवा बाजार में सन्तुलन बना रहता है। यदि वस्तु की माँग, आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है अर्थात् अतिरेक माँग की स्थिति पैदा हो जाती है तो वस्तु बाजार में कीमत का स्तर अधिक होने लगता है। कीमत के ऊँचे स्तर पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा उत्पादक वस्तु आपूर्ति अधिक मात्रा में करते हैं। वस्तु की कीमत में वृद्धि उस समय तक जारी रहती है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है। नीची को माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति कम करते हैं। माँग व पूर्ति में परिवर्तन वस्तु की माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है।

प्रश्न 16.
वास्तविक मजदूरी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रमिक अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाओं के प्रतिफल के रूप में कुल जितनी उपयोगिता प्राप्त कर सकते हैं उसे वास्तविक मजदूरी कहते हैं। दूसरे शब्दों में श्रमिक की अपनी आमदनी से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता को वास्तविक मजदूरी कहते हैं। वास्तविक मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की मौद्रिक मजदूरी एवं कीमत स्तर से होता है। वास्तविक मजदूरी एवं मौद्रिक मजदूरी में सीधा संबंध होता है अर्थात् ऊँची मौद्रिक मजदूरी दर पर वास्तविक मजदूरी अधिक होने की संभावना होती है। वास्तविक मजदूरी व कीमत स्तर में विपरीत संबंध होता है। कीमत स्तर अधिक होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थात् वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 17.
मजदूरी-कीमत नभ्यता की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
मजदूरी-कीमत नम्यता का आशय है कि मजदूरी व कीमत में लचीलापन। वस्तु-श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन होने पर मजदूरी दर व कीमत में स्वतंत्र रूप से. परिवर्तन को मजदूरी-कीमत नम्यता कहा जाता है। श्रम बाजार में श्रम की माँग बढ़ने से मजदूरी दर बढ़ जाती है तथा श्रम की माँग कम होने से श्रम की मजदूरी दर कम हो जाती है। इसी प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत माँग कम होने से कीमत घट जाती है। मजदूरी कीमत नम्यता के कारण श्रम एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलन बना रहता है।

प्रश्न 18.
व्यष्टि स्तर एवं समष्टि स्तर उपयोग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
व्यष्टि स्तर पर उपभोग उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है जिन्हें विशिष्ट समय एवं विशिष्ट कीमत पर परिवार खरीदते हैं। व्यष्टि स्तर पर उपभोग वस्तु की कीमत, आय एवं संपत्ति, संभावित आय एवं परिवारों की रूचि अभिरूचियों पर निर्भर करता है।

समष्टि स्तर पर केन्ज ने मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की रचना की है। केन्ज के अनुसार अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है लोग अपना उपभोग बढ़ाते हैं परन्तु उपभोग में वृद्धि की दर राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर से कम होती है। आय के शून्य स्तर पर स्वायत्त उपभोग किया जाता है। स्वायत्त उपभोग से ऊपर प्रेरित निवेश उपभोग प्रवृति एवं राष्ट्रीय आय के स्तर से प्रभावित होता है।
C = \(\overline{\mathrm{C}}\) + by
जहाँ C उपभोग, \(\overline{\mathrm{C}}\) स्वायत्त निवेश, b सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, y राष्ट्रीय आय।

प्रश्न 19.
वितरण फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
प्रत्येक सरकार की एक राजकोषीय नीति होती है। राजकोषीय नीति के माध्यम से प्रत्येक सरकार समाज में आय के वितरण में समानता या न्याय करने की कोशिश करती है। सरकार से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

प्रश्न 20.
निजी व सार्वजनिक वस्तुओं में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर:
निजी एवं सार्वजनिक वस्तुओं में दो मुख्य अन्तर होते हैं जैसे-

  • निजी वस्तुओं का उपयोग व्यक्तिगत उपभोक्ता तक सीमित होता है लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी विशिष्ट उपभोक्ता तक सीमित नहीं होता है, ये वस्तुएँ सभी उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है।
  • कोई भी उपभोक्ता जो भुगतान देना नहीं चाहता या भुगतान करने की शक्ति नहीं रखता निजी वस्तु के उपभोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग से किसी को वंचित रखने का कोई तरीका नहीं होता है।

प्रश्न 21.
सार्वजनिक उत्पादन एवं सार्वजनिक बन्दोबस्त में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सार्वजनिक बन्दोबस्त (व्यवस्था) से अभिप्राय उन व्यवस्थाओं से है जिनका वित्तीयन सरकार बजट के माध्यम से करती है। ये सभी उपभोक्ताओं को बिना प्रत्यक्ष भुगतान किए मुफ्त में प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन सरकार प्रत्यक्ष रूप से भी कर सकती है अथवा निजी क्षेत्र से खरीदकर भी इनकी व्यवस्था की जा सकती है।

सार्वजनिक उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं सेवाओं से है जिनका उत्पादन सरकार द्वारा संचालित एवं प्रतिबंधित होता है। इसमें निजी या विदेशी क्षेत्र की वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यवस्था की अवधारणा सार्वजनिक उत्पादन से भिन्न है।

प्रश्न 22.
राजकोषीय नीति के प्रयोग बताएँ।
उत्तर:
General Theory of Income, Employment, Interest and Money में जे० कीन्स ने राजकोषीय नीति के निम्नलिखित प्रयोग बताएँ हैं-

  • इस नीति का प्रयोग उत्पादन-रोजगार स्थायित्व के लिए किया जा सकता है। व्यय एवं कर नीति में परिवर्तन के द्वारा सरकार उत्पादन एवं रोजगार में स्थायित्व पैदा कर सकती है।
  • बजट के माध्यम से सरकार आर्थिक उच्चावचनों को ठीक कर सकती है।

प्रश्न 23.
राजस्व बजट और पूँजी बजट का अन्तर क्या है ?
उत्तर:
राजस्व बजट : सरकार की राजस्व प्राप्तियों एवं राजस्व के विवरण को राजस्व बजट कहते हैं।
राजस्व प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती हैं-
(i) कर राजस्व एवं (ii) गैर कर राजस्व।
राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किए गए खर्चों का विवरण है।

राजस्व बजट में वे मदें आती हैं जो आवृत्ति किस्म की होती हैं और इन्हें चुकाना नहीं पडता है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

पूँजी बजट : सरकार की पूँजी प्राप्तियों एवं पूँजी व्यय के विवरण को पूँजी बजट कहते हैं।
पूँजी प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है :
(i) ऋण प्राप्तियाँ एवं (ii) गैर ऋण प्राप्तियाँ।

पूँजी व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के लिए पूँजी निर्माण पर किये गये व्यय को दर्शाता है।
पूँजी घाटा = पूँजीगत व्यय – पूँजीगत प्राप्तियाँ
पूँजीगत राजस्व सरकार के दायित्वों को बढ़ाता व पूँजीगत व्यय से परिसंपत्तियों का अर्जन होता है।

प्रश्न 24.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय का तीन वर्गों में बाँटते हैं-
(i) राजस्व व्यय एवं पूँजीगत व्यय- राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किया गया व्यय होता है। इस व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है।

पूँजीगत व्यय भूमि, यंत्र-संयंत्र आदि पर किया गया निवेश होता है। इस व्यय से परिसंपत्तियों का निर्माण होता है।

(ii) योजना व्यय एवं गैर योजना व्यय- योजना व्यय में तात्कालिक विकास और निवेश : ममें शामिल होती हैं। ये मदें योजना प्रस्तावों के द्वारा तय की जाती है। बाकी सभी खर्च गैर योजना व्यय होते हैं।

(iii) विकास व्यय तथा गैर विकास व्यय- विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर-विभागीय उद्यमों के गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, सरकार द्वारा गैर विभागीय उद्यमों एवं स्थानीय निकायों को प्रदत ऋण भी शामिल किए जाते हैं।
गैर-विकास व्यय में प्रतिरक्षा, आर्थिक अनुदान आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 25.
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव बताइए।
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  • अर्थव्यवस्था में जितना अधिक खुलापन होता है. गुणक का मान उतना कम होता है।
  • अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा खुली होती है व्यापार शेष उतना ज्यादा घाटे वाला होता है।

खुली अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को जन्म देती है। खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक का प्रभाव उत्पाद व आय पर कम होता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था का अधिक खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए कम लाभप्रद या कम आकर्षक होता है।

प्रश्न 26.
विदेशी मदा की पर्ति को समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती है उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं।

विदेशी विनिमय की पूर्ति को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं-

  • निर्यात दृश्य व अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं।
  • विदेशों द्वारा उस देश में निवेश।
  • विदेशों से प्राप्त हस्तांतरण भुगतान।

विदेशी विनिमय की दर तथा आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। ऊँची विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की अधिक आपूर्ति होती है।

प्रश्न 27.
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था पर चर्चा करें।
उत्तर:
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। परन्तु इस व्यवस्था में स्थिर घोषित विनिमय दर के दोनों ओर 10 प्रतिशत उतार-चढ़ाव मान्य होने चाहिए। इससे सदस्य देश अपने भुगतान शेष के समजन का काम आसानी से कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी देश का भुगतान शेष घाटे का है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस देश को अपनी मुद्रा की दर 10 प्रतिशत तक घटाने की छूट होनी चाहिए। मुद्रा की दर कम होने पर दूसरे देशों के लिए उस देश की वस्तुएँ एवं सेवाएँ सस्ती हो जाती हैं जिससे विदेशों में उस देश की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है और उस देश को विदेशी मुद्रा पहले से ज्यादा प्राप्त होती है।

प्रश्न 28.
चालू खाते व पूँजीगत खाते में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चालू खाते व पूँजीगत खाते में निम्नलिखित अंतर है-
चालू खाता:

  1. भुगतान शेष के चालू खाते में वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात व आयात शामिल करते हैं।
  2. भुगतान शेष के चालू खाते के शेष का एक देश की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश का चालू खाते का शेष उस देश के पक्ष में होता है तो उस देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।

पूँजी खाता:

  1. भुगतान शेष के पूँजी खातों में विदेशी ऋणों का लेन-देन, ऋणों का भुगतान व प्राप्तियाँ, बैकिंग पूँजी प्रवाह आदि को दर्शाती है।
  2. भुगतान शेष का देश की राष्ट्रीय आय का प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है ये केवल परिसम्पतियों की मात्रा को दर्शाते हैं।

प्रश्न 29.
भुगतान शेष की संरचना के पूँजी खाते को समझाएँ।
उत्तर:
पूँजी खातों में दीर्घकालीन पूँजी के लेन-देन को दर्शाया जाता है। इस खाते में निजी व सरकारी पूँजी लेन-देन, बैंकिंग पूँजी प्रवाह में अन्य वित्तीय विनिमय दर्शाए जाते हैं।

पँजी खाते की मदें : इस खाते की प्रमुख मदें निम्नलिखित है-
(i) सरकारी पूँजी का विनिमय : इससे सरकार द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण तथा विदेशों को दिए गए ऋणों के लेन-देन, ऋणों के भुगतान तथा ऋणों की स्थितियों के अलावा विदेशी मुद्रा भण्डार, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भंडार विश्व मुद्रा कोष के लेन-देन आदि को दर्शाया जाता है।

(ii) बैंकिंग पंजी : बैंकिंग पूँजी प्रवाह में वाणिज्य बैंकों तथा सहकारी बैंकों की विदेशी लेनदारियों एवं देनदारियों को दर्शाया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक के पूँजी प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं।

(iii) निजी ऋण : इसमें दीर्घकालीन निजी पूँजी में विदेशी निवेश ऋण, विदेशी जमा आदि को शामिल करते हैं। प्रत्यक्ष पूँजीगत वस्तुओं का आयात व निर्यात प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 30.
वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है ? इसकी क्या कमियाँ हैं ?
उत्तर:
वस्तु विनिमय वह प्रणाली होती है जिसमें वस्तुओं व सेवाओं का विनिमय एक-दूसरे के लिए किया जाता है उसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

वस्तु विनिमय की निम्नलिखित कमियाँ है-

  • वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापन करने के लिए एक सामान्य इकाई का अभाव। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में लेखे की कोई सामान्य इकाई नहीं होती है।
  • दोहरे संयोग का अभाव- यह बड़ा ही विरला अवसर होगा जब एक वस्तु या सत्र के मालिक को दूसरी वस्तु या सेवा का ऐसा मालिक मिलेगा कि पहला मालिक जो देना चाहता है और बदले में लेना चाहता है दूसरा मालिक वही लेना व देना चाहता है।
  • स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई- वस्तु विनिमय में भविष्य के निर्धारित सौदों का निपटारा करने में कठिनाई होती है। इसका मतलब है वस्तु के संबंध में, इसकी गुणवत्ता व मात्रा आदि के बारे में दोनों पक्षों में असहमति हो सकती है।
  • मूल्य में संग्रहण की कठिनाई- क्रय शक्ति के भण्डारण का कोई ठोस उपाय वस्तु विनिमय प्रणाली में नहीं होता है क्योंकि सभी वस्तुओं में समय के साथ घिसावट होती है तथा उनमें तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण निम्न स्तर का होता है।

प्रश्न 31.
मुद्रा की सट्टा माँग और ब्याज की दर में विलोम संबंध क्यों होता है ?
उत्तर:
एक व्यक्ति भूमि, बॉण्ड्स. मुद्रा आदि के रूप में धन को धारण कर सकता है। अर्थव्यवस्था में लेन देन एवं सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग के योग मुद्रा की कुल माँग कहते हैं। सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग का ब्याज की दर के साथ उल्टा संबंध होता है। जब ब्याज की दर ऊँची होती है तब सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऊँची ब्याज पर सुरक्षित आय बढ़ने की आशा हो जाती है। परिणामस्वरूप लोग सट्टा उद्देश्य के लिए जमा की गई मुद्रा की निकासी करके उसे बाँड्स में परिवर्तित करने की इच्छा करने लगता है। इसके विपरीत जब ब्याज दर घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती है तो लोग सट्टा उद्देश्य के लिए मद्रा की माँग असीमित रूप से बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 32.
एकाधिकार तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
एकाधिकार प्रतियोगिता तथा एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में निम्नलिखित अंतर हैं-
एकाधिकार प्रतियोगिता:

  • एकाधिकार बाजार को उस स्थिति को प्रकट करता है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक विक्रेता होता है संक्षेप में एकाधिकार का ऊर्जा है सभी प्रकार की प्रतियोगिता का अभाव। इस बाजार में फर्म ही उद्योग है और उद्योग ही फर्म है।

एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता:

  • एकाधिकार प्रतियोगिता वह स्थिति है, जिसमें मिलती-जुलती वस्तुओं के विक्रेता होता है। प्रत्येक विक्रेता की वस्तु अन्य विक्रेताओं से किसी-न-किसी रूप से भिन्न-भिन्न होती है।

प्रश्न 33.
सन्तुलन कीमत तथा सन्तुलन मात्रा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
संतुलन कीमत-संतुलन कीमत वह कीमत है जिसपर माँग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं। या जहाँ क्रेताओं की खरीद या बिक्री एक-दूसरे के समान होती है। संतुलन मात्रा-संतुलन मात्रा वह मात्रा होती है जिसपर माँग की मात्रा तथा पूर्ति की मात्रा दोनों बराबर होती है।

प्रश्न 34.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष को दूर करने में किस प्रकार सहायक होती है ?
उत्तर:
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनियम की कमियाँ निम्न रूप से दूर हो जाती है-

  • विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग को तलाशने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। दोहरे संयोग को तलाशने में प्रयुक्त ऊर्जा व समय की बचत होती है।
  • लेखे का इकाई के रूप में मुद्रा का प्रयोग होने पर वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को मापने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  • मूल्य संचय के लिए मुद्रा के प्रयोग से धन व सम्पति संग्रह करने में कठिनाई समाप्त हो जाती है।
  • स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मुद्रा का प्रयोग करने से माँग गुणवता आदि के संबंध में कोई असहमति नहीं होती है।

प्रश्न 35.
अपूर्ण रोजगार तथा अति पूर्ण रोजगार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
अपूर्ण रोजगार संतुलन- अपूर्ण रोजगार की स्थिति से तात्पर्य संतुलन की उस स्थिति से है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल माँग उसकी पूर्ति के बराबर नहीं होती है। इस स्थिति में सभी योग्य स्वस्थ व्यक्तियों को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं।

अतिपूर्ण रोजगार संतुलन- अतिपूर्ण रोजगार की स्थिति से तात्पर्य संतुलन की उस स्थिति से है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल माँग उनकी पूर्ति के बराबर होती है। इस स्थिति में सभी योग्य स्वस्थ व्यक्तियों को प्रचलित मजदूरी दर पर रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 36.
निवेश गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निवेश गुणांक का सीमांत उपयोग प्रवृति (MPC) से प्रत्यक्ष संबंध है। MPS के बढ़ने पर निवेश गुणांक बढ़ता है तथा कम होने पर कम होता है।