Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 6 पुष्पी पादपों का शारीर

Bihar Board Class 11 Biology पुष्पी पादपों का शारीर Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
विभिन्न प्रकार के मेरिस्टेम की स्थिति तथा कार्य बताइए।
उत्तर:
मेरिस्टेम (Meristem):
इसके अन्तर्गत आने वाले ऊतक की कोशिकाओं में कोशिका विभाजन की क्षमता पाई जाती है। यह ऊतक पौधे के वर्धी भागों में पाया जाता है। मेरिस्टेम की कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली एवं जीवित होती है। इनमें सघन कोशिकाद्रव्य तथा स्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है। कोशिकाओं के मध्य अन्तराकोशिकीय अवकाश नहीं पाया जाता। स्थिति के आधार पर मेरिस्टेम निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है –
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चित्र – मेरिस्टेम (स्थिति के आधार पर)।

  1. शीर्षस्थ मेरिस्टेम (Apical meristem)
  2. अन्तर्विष्ट मेरिस्टम (Intercalary meristem)
  3. पाीय मेरिस्टेम (Lateral meristem)।

1. शीर्षस्थ मेरिस्टेम (Apical Meristem):
यह जड़ तथा तने के शिखर पर पाया जाता है। इसकी कोशिकाओं में निरन्तर कोशिका विभाजन के फलस्वरूप जड़ तथा तने की लम्बाई में वृद्धि होती रहती है। अतः ये जड़ तथा तने के वृद्धि बिन्दु (growing points) कहलाते हैं। शीर्षस्थ मेरिस्टेम से ही अन्तर्विष्ट तथा पाशवीय मैरिस्टेम कोशिकाओं का निर्माण होता है। शीर्षस्थ मेरिस्टेम की कोशिकाओं से पौधों के विभिन्न ऊतक तन्त्र का निर्माण होता है। हैन्सटीन (Hanstein, 1870) के अनुसार शीर्षस्थ मेरिस्टेम कोशिकाओं को तीन क्षेत्रों में विभाजित करते हैं –

  • डर्मेटोजन (dermatogen)
  • पेरीब्लेम (periblem) तथा
  • प्लीरोम (plerome)।

श्मिट (Schmidt, 1924) के अनुसार शीर्षस्थ मैरिस्टेम को – दो क्षेत्रों में विभाजित करते हैं –

  • ट्यूनिका (tunica) तथा
  • कॉर्पस (corpus)

2. अन्तर्विष्ट मेरिस्टेम (Intercalary meristem):
यह पर्व के आधार पर, पर्व-सन्धि के आधार पर या पर्वसन्धियों पर पाया जाता है। इसका निर्माण शीर्षस्थ मेरिस्टेम से होता है। इसके द्वारा लम्बाई में वृद्धि होती है।

3. पावीय मेरिस्टेम (Lateral meristem):
यह पार्श्व स्थिति में पाया जाता है। उत्पत्ति के आधार पर यह प्राथमिक अथवा द्वितीयक होता है। प्राथमिक पावीय मेरिस्टेम का निर्माण शीर्षस्थ मेरिस्टेम से होता है। द्वितीयक पावीय मेरिस्टेम का निर्माण स्थायी मृदूतक कोशिकाओं से होता है। पावीय मेरिस्टेम के कारण जड़ तथा तने की मोटाई में वृद्धि (द्वितीयक वृद्धि) होती है।

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प्रश्न 2.
कॉर्क कैम्बियम ऊतकों से बनता है जो कॉर्क बनाते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कॉर्क एधा (कैम्बियम) का निर्माण द्वितीयक वृद्धि के समय वल्कुट क्षेत्र में होता है। कॉर्क एधा कोशिकाओं का निर्माण जीवित मृदूतक कोशिकाओं से होता है। कॉर्क एधा कोशिकाओं से विभाजन के फलस्वरूप कोशिकाएँ परिधि की ओर कॉर्क (फेलम) बनाती है। कॉर्क कोशिकाएँ सुबेरिनमद (suberized) होने के कारण मृत हो जाती हैं।

ये कोशिकाएँ सघन होती हैं, इनमें अन्तराकोशिकीय अवकाश (intercellular space) नहीं होते। ये कोशिकाएँ जल के लिए अपारगम्य होती हैं। कोशिकाओं में वायु भरी रहती है। कॉर्क पौधे को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करती है। कॉर्क एक कुसंवाहक (bad conductor) का कार्य करती है। कॉर्क एधा से केन्द्र की ओर द्वितीयक वल्कुट (फेलोडर्म) का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
चित्रों की सहायता से काष्ठीय एन्जियोस्पर्म के तने में द्वितीयक वृद्धि के प्रक्रम का वर्णन कीजिए। इसकी क्या सार्थकता है?
उत्तर:
द्वितीयक वृद्धि (Secondary Growth):
शीर्षस्थ विभज्योतक की कोशिकाओं के विभाजन, विभेदन और परिवर्द्धन के फलस्वरूप प्राथमिक ऊतकों का निर्माण होता है। अतः शीर्षस्थ विभज्योतक के कारण पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इन्हें प्राथमिक वृद्धि कहते हैं। द्विबीजपत्री तथा जिम्नोस्पर्स आदि काष्ठीय पौधों में पार्श्व विभज्योतक के कारण तने तथा जड़ की मोटाई में वृद्धि होती है। इस प्रकार मोटाई में होने वाली वृद्धि की द्वितीयक वृद्धि (secondary growth) कहते हैं। जाइलम और फ्लोएम के मध्य विभज्योतक की संवहन एधा (vascular cambium) तथा वल्कुट या परिरम्भ में विभज्योतक को कॉर्क एधा (cork cambium) कहते हैं।

द्वितीयक वृद्धि-द्विबीजपत्री तना (Secondary Growth : Dicot Stem):
द्वितीयक वृद्धि संवहन एधा (vascular cambium) तथा कॉर्क एधा (cork cambium) की क्रियाशीलता के कारण होती हैं।

संवहन एधा की क्रियाशीलता (Activity of Vascular Cambium):
द्विबीजपत्री तने में संवहन बण्डल वर्षी (open) होते हैं। संवहन बण्डलों के जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य अन्तः पूलीय एधा (intrafascicular cambium) होती है। मज्जा रश्मियों की मृदूतक कोशिकाएँ जो अन्त: पूलीय एधा के मध्य स्थित होती हैं, विभज्योतकी होकर आन्तरपूलीय एधा (interfascicular cambium) बनाती हैं। पूलीय तथा आन्तरपूलीय एधा मिलकर संवहन एधा का घेरा बनाती है।

संवहन एधा वलय (vascular cambium ring) की कोशिकाएँ तने की परिधि के समानान्तर तल अर्थात् स्पर्शरेखीय तल (tangential plane) में ही विभाजित होती हैं। इस प्रकार प्रत्येक कोशिका के विभाजन से जो नई कोशिकाएँ बनती है उनमें से केवल एक जाइलम या फ्लोएम की कोशिका में रूपान्तरित हो जाती है, जबकि दूसरी कोशिका विभाजनशील (meristematic) बनी रहती है।

परिधि की ओर बनने वाली कोशिकाएँ फ्लोएम के तत्वों में तथा केन्द्र की ओर बनने वाली कोशिकाएँ जाइलम के तत्वों में परिवर्द्धित हो जाती हैं। बाद में बनने वाला संवहन ऊतक क्रमश: द्वितीयक जाइलम (secondary xylem) तथा द्वितीयक फ्लोएम (secondary phloem) कहलाता है। ये संरचना तथा कार्य में प्राथमिक जाइलम तथा फ्लोएम के समान होते हैं।
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चित्र-पूलीय एधा की कोशिका का क्रमिक विभाजन; जाइलम और फ्लोएम का निर्माण।

कॉर्क एधा की क्रियाशीलता (Activity of Cork Cambium):
संवहन एधा की क्रियाशीलता से बने द्वितीयक ऊतक पुराने ऊतकों पर दबाव डालते हैं जिसके कारण भीतरी (केन्द्र की ओर उपस्थित) प्राथमिक जाइलम अन्दर की ओर दब जाता है। इसके साथ ही परिधि की ओर स्थित प्राथमिक फ्लोएम नष्ट हो जाता है। इससे पहले कि बाह्य त्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ एक निश्चित सीमा तक खींचने के बाद टूट-फूट जाएँ, अधस्त्वचा (hypodermis) के अन्दर की कुछ मृदूतंकीय कोशिकाएँ विभज्योतक (meristem) होकर कॉर्क एधा (cork cambium) बनाती हैं। कॉर्क एधा कभी-कभी वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ (pericycle) आदि से बनती है।

कॉर्क एधा तने की परिधि के समानान्तर विभाजित होकर बाहर की ओर सुबेरिनयुक्त (suberized) कॉर्क या फेलम (cork or phellem) का निर्माण करती है। यह तने के अन्दर के भीतरी ऊतकों की सुरक्षा करती है।

कॉर्क एधा से केन्द्र की ओर बनने वाली मृदूतकीय (parenchymatous), स्थूलकोणीय अथवा दृढ़ोतकी कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट (phelloderm) का निर्माण करती हैं। कॉर्क एधा से बने फेलम तथा फेलोडर्म को पेरीडर्म (periderm) कहते हैं। पेरीडर्म में स्थान-स्थान पर गैस विनिमय के लिए वातरन्ध्र (lenticels) बन जाते हैं। द्वितीयक जाइलम वसन्त काष्ठ तथा शरद् काष्ठ में भिन्नित होता है। इसके फलस्वरूप कुछ पौधों में स्पष्ट वार्षिक वलय बनते हैं।
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चित्र-द्विबीजपत्री तने की द्वितीयक वृद्धि की क्रमिक अवस्थाएँ।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में विभेद कीजिए –
(अ) ट्रैकीड तथा वाहिका
(ब) पैरेन्काइमा तथा कॉलेन्काइमा
(स) रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ
(द) खुला तथा बन्द संवहन बण्डल।
उत्तर:
(अ) ट्रैकीड तथा वाहिका में अन्तर (Difference between Tracheid and Vessel):
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(ब) पैरेन्काइमा (मृदूतक) तथा कॉलेन्काइमा (स्थूलकोण ऊतक) में अन्तर (Difference between Parenchyma and Collenchyma):
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(स) रसदारु तथा अन्तःकाष्ठ में अन्तर (Difference between Sapwood and Heartwood):
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(द) खुले तथा बन्द संवहन बण्डल में अन्तर (Difference between Open and Closed Type Vascular Bundle):
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में शारीर के आधार पर अन्तर कीजिए –
(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल
(ब) एकबीजपत्री तना तथा द्विबीजपत्री तना।
उत्तर:
(अ) एकबीजपत्री मूल तथा द्विबीजपत्री मूल में अन्तर (Difference between Monocot and Dicot Root):
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(ब) एकबीजपत्री तने तथा द्विबीजपत्री तने में अन्तर (Differences between Monocot and Dicot Stem):
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प्रश्न 6.
आप एक शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शी से अवलोकन करें। आप कैसे पता करेंगे कि यह एक बीजपत्री तना अथवा द्विबीजपत्री तना है? इसके कारण बताइए।
उत्तर:
शैशव तने की अनुप्रस्थ काट का सूक्ष्मदर्शीय अवलोकन करके निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर एकबीजपत्री या द्विबीजपत्री तने की पहचान करते हैं –

(क) तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण (Anatomical Characters of Stem):

  • बाह्य त्वचा पर उपचर्म (cuticle), रन्ध्र (stomata) तथा बहुकोशीय रोम पाए जाते हैं।
  • अधस्त्वचा (hypodermis) उपस्थित होती है।
  • अन्तस्त्वचा प्रायः अनुपस्थित या अल्पविकसित होती
  • परिरम्भ (pericycle) प्रायः बहुस्तरीय होता है।
  • संवहन बण्डल संयुक्त (conjoint), बहिःफ्लोएमी (collateral) या उभयफ्लोएमी (bicollateral) होते हैं।
  • प्रोटोजाइलम एण्डार्क (endarch) होता है।

(ख) एकबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण (Anatomical Characters of Monocot Stem):

  • बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम अनुपस्थित होते हैं।
  • अधस्त्वचा दृढ़ोतक (sclerenchymatous) होती है।
  • भरण ऊतक (ground tissue) वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ तथा मज्जा में अविभेदित होता है।
  • संवहन बण्डल भरण ऊतक में बिखरे रहते हैं।
  • संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी तथा अवर्धी (closed) होते हैं।
  • संवहन बण्डल चारों ओर से दृढ़ोतक से बनी बण्डल आच्छद से घिरे होते हैं।
  • जाइलम वाहिकाएँ (vessels) ‘V’ या ‘Y’ क्रम में व्यवस्थित रहती हैं।

(ग) द्विबीजपत्री तने के आन्तरिक आकारिकी लक्षण (Anatomical Characters of Dicot Stem):

  • बाह्य त्वचा पर बहुकोशिकीय रोम पाए जाते हैं।
  • अधस्त्वचा (hypodermis) स्थूलकोण ऊतक से बनी होती है।
  • संवहन बण्डल एक या दो घेरों में व्यवस्थित होते हैं।
  • भरण ऊतक वल्कुट, अन्तस्त्वचा, परिरम्भ, मज्जा तथा मज्जा रश्मियों में विभेदित होता है।
  • संवहन बण्डल संयुक्त, बहि:फ्लोएमी या उभयफ्लोएमी और वर्धा (open) होते हैं।
  • जाइलम वाहिकाएँ रेखीय (linear) क्रम में व्यवस्थित होती हैं।

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प्रश्न 7.
सूक्ष्मदर्शी किसी पौधे के भाग की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित शारीर रचना दिखाती है –
(अ) संवहन बण्डल संयुक्त, फैले हुए तथा उसके चारों ओर स्क्लेरेन्काइमी आच्छद हैं।
(ब) फ्लोएम पैरेन्काइमा नहीं है।
आप कैसे पहचानोगे कि यह किसका है?
उत्तर:
एकबीजपत्री तने की आन्तरिक आकारिकी या शारीर में संवहन बण्डल भरण ऊतक बिखरे रहते हैं। संवहन बण्डल संयुक्त तथा अवर्धी होते हैं। संवहन बण्डल के चारों ओर स्क्लेरेन्काइमा बण्डल आच्छद (bundle sheath) होती है। फ्लोएम में फ्लोएम मृदूतक का अभाव होता है। अतः सूक्ष्मदर्शी में प्रदर्शित पौधे का भाग एकबीजपत्री तना हैं।

प्रश्न 8.
जाइलम तथा फ्लोएम को जटिल ऊतक क्यों कहते हैं?
उत्तर:
जटिल ऊतक (Complex Tissue):
इसका निर्माण दो या अधिक प्रकार की कोशिकाओं से होता है। सभी कोशिकाएँ मिलकर किसी कार्य को सामूहिक रूप से क्रियान्वित करती हैं। जाइलम तथा फ्लोएम जटिल ऊतक हैं। जाइलम का निर्माण वाहिनिकाओं (tracheids), वाहिकाओं (vessels), काष्ठ मृदूतक तथा काष्ठ रेशों से होता है।

कोशिकाएँ मिलकर जल एवं खनिज पदार्थों के संवहन का कार्य करती हैं। फ्लोएम का निर्माण चालनी नलिकाओं (sieve tubes), सहकोशिकाओं (companion cells), फ्लोएम मृदूतक तथा फ्लोएम रेशे (phloem fibres) से होता है। संभी कोशिकाएँ परस्पर मिलकर कार्बनिक भोज्य पदार्थों के स्थानान्तरण का कार्य करती हैं।

प्रश्न 9.
रन्ध्री तन्त्र क्या है? रन्ध्र की रचना का वर्णन कीजिए और इसका चिन्हित चित्र बनाइए।
उत्तर:
रन्ध्री तन्त्र (Stomatal Apparatus):
रन्ध्र (stomata) मुख्यतया पत्तियों की सतह पर पाए जाते हैं। रन्ध्र (stoma or pore), रक्षक कोशिकाएँ (guard cells) तथा सहायक कोशिकाएँ (subsidiary cells) मिलकर रन्ध्री तन्त्र बनाती हैं।

रन्ध्र की संरचना (Structure of Stomata):
पौधों के वायवीय, हरे तथा कोमल भागों की बाह्य त्वचा पर पाए जाने वाले छिद्रों को रन्ध्र (stomata) कहते हैं। यह दो वृक्काकार कोशिकाओं से घिरा होता है। इन कोशिकाओं को द्वार कोशिकाएँ (guard cells) कहते हैं। द्वार कोशिकाएँ स्टोमा या रन्ध्र (stoma) को छोटा-बड़ा करने या बन्द करने का कार्य करती हैं। द्वार कोशिकाओं के जीवद्रव्य में क्लोरोप्लास्ट्स होते हैं। इनकी बाहरी भित्ति पतली तथा भीतरी (रन्ध्र की ओर वाली) भित्ति स्थूल होती है। द्वार कोशिकाओं को घेरने वाली इन कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएँ (accessory cells) कहते हैं।

कार्य (Function):
रन्ध्र सामान्यत: दिन के समय खुले रहते हैं तथा रात्रि के समय बन्द हो जाते हैं। इनके द्वारा गैसों का आदान-प्रदान होता है। वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी रन्ध्रों के द्वारा होती है। रन्ध्र के नीचे उपस्थित अधोरन्ध्रीय गुहा (substomatal cavity) के द्वारा पौधे का सम्बन्ध बाह्य वातावरण के साथ बना रहता है।
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चित्र-पत्ती की बाह्य त्वचा में रन्ध्र (बाई) तथा रन्ध्र की विस्तृत संरचना (दाईं)।

रन्ध्रों का वितरण (Distribution of Stomata):
पौधों के लगभग सभी वायवीय भागों पर रन्ध्र मिलते हैं। पत्तियाँ प्रकाश संश्लेषण, श्वसन और वाष्पोत्सर्जन के प्रमुख अंग हैं। अतः इन्हीं पर सबसे अधिक रन्ध्र पाए जाते हैं। सामान्य रूप से द्विबीजपत्री पौधों की पत्तियों के एक ही तल पर प्रकाश पड़ता है (पृष्ठाधारी = dorsiventral)। अतः इन पत्तियों की निचली सतह (abaxial surface) पर ही रन्ध्र पाए जाते हैं और यदि ऊपरी सतह पर होते भी हैं तो इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम होती है। एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों (आइसोबाइलेटरल isobilateral) की दोनों सतह पर रन्ध्र लगभग बराबर संख्या में होते हैं।

जल पर तैरने वाली पत्तियों (जैसे-कमल) की निचली सतह और जल में डूबी पत्तियों को दोनों सतहों पर रन्ध्र नहीं पाए जाते हैं। शुष्कोद्भिद् पौधों की पत्तियों पर रन्ध्र बहुत कम होते हैं। ये गड्ढों या खाँचों में धंसे हुए होते हैं। कभी-कभी रन्ध्रों के ऊपर बहुत-से रोम आदि पाए जाते हैं। गर्तपय रन्ध्रों के कारण पौधे पर वायुमण्डल की शुष्कता का कम प्रभाव पड़ता है। जैसे-कनेर (Nerium), कन्तला (Agave) आदि में। पत्ती की सतह पर रन्ध्रों की संख्या सामान्य रूप से 250-300 प्रतिवर्ग मिमी होती है। यह संख्या 14 से 1038 प्रति वर्ग मिमी तक हो सकती है। रन्ध्र सम्पूर्ण पत्ती का लगभग 1.2% भाग घेरते हैं।

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प्रश्न 10.
पुष्पी पादपों में तीन मूलभूत ऊतक तन्त्र बताइए। प्रत्येक तन्त्र के ऊतक बताइए।
उत्तर:
पुष्पी पादप के मूलभूत ऊतक तन्त्र (Fundamental Tissue System of Flowering Plants):
पुष्पी पादपों में ऊतक तन्त्र निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं –

1. अधिचर्म ऊतक तन्त्र (Epidermal Tissue System):
इसका निर्माण शीर्षस्थ मेरिस्टेम की त्वचाजन (dermatogen) से होता है। यह मुख्यतया मृदूतकी कोशिकाओं से बना होता है। इसके अन्तर्गत बाह्यत्वचा या मूलीय त्वचा आती है। अधिचर्म की कोशिकाएँ अनियमित अथवा बहुभुजीय दिखाई देती हैं। अनुप्रस्थ काट में कोशिकाएँ ढोलकनुमा (barrel shaped) दिखाई देती हैं।

बाह्यत्वचा (epidermis) की कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) के आवरण से ढकी रहती है। बाह्यत्वचा पर स्थान-स्थान पर रन्ध्र (stomata) पाए जाते हैं। प्रत्येक रन्ध्र दो रक्षक कोशिकाओं (guard cells) से घिरा होता है। वृक्काकार रक्षक कोशिकाओं की भीतरी सतह स्थूल तथा बाहरी सतह पतली भित्ति वाली होती है।

रक्षक कोशिकाओं में हरितलवक पाए जाते हैं। रक्षक कोशिकाओं के चारों ओर स्थित हरितलवक रहित सहायक कोशिकाएँ (subsidiary cells) होती हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की आशून अथवा श्लथ दशा पर निर्भर करता है। बाह्यत्वचा पर बहुकोशिकीय रोम या ट्राइकोम्स (trichomes) होते हैं। जड़ो की मूलीय त्वचा (epiblemma) पर उपचर्म तथा रन्ध्रों का अभाव होता है। मूलीय त्वचा से एककोशिकीय मूलरोम (root hairs) निकलते हैं। चित्र के लिए प्रश्न 9 का चित्र देखिए)।

2. भरण ऊतक तन्त्र (Ground Tissue System) इसका निर्माण शीर्षस्थ मेरिस्टेम के पेरीब्लेम (periblem) तथा प्लीरोम (plerome) स्तर से होता है। भरण ऊतक तन्त्र का निर्माण मृदूतक (parenchyma), स्थूलकोण ऊतक तथा दृढ़ोतक (sclerenchyma) से होता है। भरण ऊतक तन्त्र को मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है –

(क) वल्कुट (Cortex):
यह सामान्यतया मृदूतक (parenchyma) से बना स्तर है। इसे अधस्त्वचा (hypodermis), सामान्य वल्कुट (general cortex) तथा अन्तस्त्वचा (endodermis) में विभाजित करते हैं। अधस्त्वचा तने में पाया जाता है। द्विबीजपत्री तने में यह स्थूलकोण (collenchyma) से तथा एकबीजपत्री तने में दृढ़ोतक (sclerenchyma) से बना होता है। जड़ तथा पत्ती में अधस्त्वचा का अभाव होता है। वल्कुट का सबसे भीतरी स्तर अन्तस्त्वचा (endodermis) कहलाता है। जड़ में यह स्तर स्पष्ट होता है। जाइलम के सम्मुख स्थित मार्ग कोशिकाओं (passage cells) को छोड़कर शेष कोशिकाओं में अपारगम्य कैस्पेरियन पट्टियाँ (casparian strips) पाई जाती हैं।

(ख) परिरम्भ (Pericycle):
यह मृदूतक तथा दृढ़ोतक कोशिकाओं से बना होता है। जड़ों में परिरम्भ एकस्तरीय तथा तनों में बहुस्तरीय होता है।

(ग) मज्जा (Pith):
यह जड़ तथा तनों का केन्द्रीय भाग होता है। यह मृदूतकी कोशिकाओं से बना होता है। कभी-कभी ये कोशिकाएँ स्थूलित हो जाती हैं। इसका कार्य सामान्यतया भोजन संचय करना है।

(घ) मज्जा रश्मि (Medullary Rays):
ये द्विबीजपत्री तनों में पाई जाती हैं। ये मृदूतकी कोशिकाओं से बनी होती हैं। मज्जा रश्मि जल एवं भोजन वितरण में सहायक होती है।

3. संवहन ऊतक तन्त्र (Vascular Tissue System):
यह शीर्षस्थ मेरिस्टेम के प्लीरोम (Plerome) स्तर से बनता है। जाइलम तथा प्लोएम संवहन ऊतक का कार्य करते हैं। जाइलम तथा फ्लोएम संवहन पूल (vascular bundle) में व्यवस्थित होते हैं। संवहन पूल निम्नलिखित तीन प्रकार के होते है –

(क) संयुक्त (Conjoint)
(ख) अरीय (Radial)
(ग) संकेन्द्री (Concentric)

संयुक्त संवहन पूल तनों में, अरीय संवहन पूल जड़ों में तथा संकेन्द्री संवहन पूल कुछ एकबीजपत्री पौधों में पाए जाते हैं। वर्धी संयुक्त संवहन पूल में जाइलम तथा फ्लोएम के मध्य विभज्योतकी एधा कोशिकाएँ पाई जाती हैं।

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प्रश्न 11.
पादप शारीर का अध्ययन हमारे लिए कैसे उपयोगी है?
उत्तर:
फार्माकोनोसी (Pharmaconosy) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत औषधीय महत्त्व के पदार्थों के स्रोत, विशेषताओं और उनके उपयोग का अध्ययन प्राकृतिक अवस्था में किया जाता है। यह अध्ययन मुख्य रूप से पौधों के शारीर (anatomy) पर निर्भर करता है। इमारती लकड़ी (timber) की दिन-प्रतिदिन कमी होती जा रही है, इसीलिए अच्छी इमारती लकड़ी के स्थान पर खराब इमारती लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है। शारीर अध्ययन द्वारा लकड़ी को किस्म (quality) का पता लगाया जा सकता है।

शरीर अध्ययन द्वारा एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री तने और जड़ की पहचान की जा सकती है। जीवाश्म शारीर (fossil anatomy) अध्ययन द्वारा प्राचीनकालीन पौधों का ज्ञान होता है। इससे जैवविकास का ज्ञान होता है कि आधुनिक पौधों की उत्पत्ति किस प्रकार हुई है। सूक्ष्मदर्शीय अध्ययन द्वारा चाय, कॉफी, तम्बाकू, केसर, हींग, वनस्पति रंगों, पादप औषधियों में मिलावट (adulteration) का अध्ययन किया जा सकता है। मिलावट के कारण इनकी आन्तरिक संरचना में भिन्नता आ जाती है।

प्रश्न 12.
परिचर्म क्या है? द्विबीजपत्री तने में परिचर्म कैसे बनता है?
उत्तर:
परिचर्म (Periderm) कॉर्क एधा की जीवित मृदूतक कोशिका से परिचर्म का निर्माण होता है। कॉर्क एधा या कागजन (cork cambium or phellogen) की कोशिकाएँ विभाजित होकर परिधि की ओर जो कोशिकाएँ बनाती हैं, वे सुबेरिनयुक्त (suberinized) कोशिकाएँ होती हैं। सुबेरिनयुक्त कोशिकाओं से बना यह स्तर कॉर्क या फेलम (cork or phellem) कहलाता है। कॉर्क एधा (cork cambium) से भीतर की ओर बनने वाली मृदूतकीय कोशिकाएँ द्वितीयक वल्कुट या फ्लोडर्म (phelloderm) बनाती है। फेलम (कॉर्क), कॉर्क एधा तथा द्वितीयक वल्कुट मिलकर पेरिचर्म (Periderm) बनाती हैं।

प्रश्न 13.
पृष्ठाधर पत्ती की भीतरी रचना का वर्णन चिन्हित चित्रों की सहायता से करो।
उत्तर:
पृष्ठाधारी पत्ती की आन्तरिक संरचना-पृष्ठाधारी पत्ती. की उदग्र काट में बाह्य त्वचा, पर्ण मध्योतक तथा संवहन बण्डल स्पष्ट दिखाई देते हैं। ऊपरी बाह्य त्वचा पर उपचर्म का मोटा स्तर होता है। निचली सतह पर प्रचुर संख्या में रन्ध्र पाए जाते हैं। पृष्ठ बाह्य त्वचा के नीचे लम्बी खम्भ कोशिकाओं की एक यो दो पर्त होती हैं।

हरित लवक युक्त ये कोशिकाएँ प्रकाश संश्लेषण के लिए विशिष्टीकृत होती हैं। गोलाकार या अण्डाकार मृदूतक कोशिकाओं के मध्य बड़े-बड़े अन्तराकोशिकीय अवकाश पाए जाते हैं। स्पंजी पैरेन्काइमा के बीच में वायु गुहिकाएँ पायी जाती हैं। संवहन पूल संयुक्त बहि:फ्लोएमी तथा मध्य आदिदारुक होते हैं। इनके चारों ओर बण्डल आच्छद पायी जाती है।
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चित्र-द्विबीजपत्री की अनुप्रस्थ काट

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प्रश्न 14.
त्वक् कोशिकाओं की रचना तथा स्थिति उन्हें किस प्रकार विशिष्ट कार्य करने में सहायता करती हैं?
उत्तर:
त्वक् कोशिकाएँ (Epidermal Cells):
ये पादप शरीर के सभी भागों पर सबसे बाहरी रक्षात्मक आवरण बनाती हैं। यह प्राय: एक कोशिका मोटा स्तर होता है। कोशिकाएँ अनुप्रस्थ काट में ढोलकनुमा (barrel shaped) दिखाई देती है। बाहर से देखने पर ये अनियमित आकार की फर्श के टाइल्स की तरह अथवा बहुभुजीय दिखाई देती हैं। ये परस्पर एक-दूसरे से मिलकर अखण्ड सतह बनाती हैं।

ये कोशिकाएँ मृदूतकीय कोशिकाओं का रूपान्तरण होती हैं। इन कोशिकाओं में कोशिकाद्रव्य की मात्रा बहुत कम होती है तथा प्रत्येक कोशिका में एक बड़ी रिक्तिका होती है। पौधे के वायवीय भागों की त्वक कोशिकाएँ उपचर्म (cuticle) से ढकी होती है, परन्तु मूलीय त्वचा की कोशिकाओं पर उपचर्म का रक्षात्मक आवरण नहीं होता।

र तने, पत्ती आदि की त्वक् कोशिकाओं के मध्य रन्ध्र (stomata) पाए जाते हैं। रन्ध्र द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरे होते हैं। द्वार कोशिकाएँ वृक्काकार होती हैं। द्वार कोशिकाओं के चारों ओर पाई जाने वाली कोशिकाओं को सहायक कोशिकाएँ कहते हैं। रन्ध्रों का खुलना तथा बन्द होना रक्षक कोशिकाओं का आशूनता पर निर्भर करता है। रन्ध्र वाष्पोत्सर्जन तथा गैसों के आदान-प्रदान का कार्य करते हैं। रन्ध्रों की स्थिति, संख्या, संरचना, उपचर्म की मोटाई आदि वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करती है।

जड़ों को त्वक कोशिकाओं से एककोशिकीय मूलरोम बनते हैं। ये मृदा से जल एवं खनिज लवणों का अवशोषण करते हैं। तने और पत्तियों की त्वक कोशिकाओं से बहुकोशिकीय रोम बनते हैं। पत्ती एवं तने की रोमयुक्त सतह वाष्पोत्सर्जन की दर को नियन्त्रित करने में सहायक होती है। रन्ध्रों के रोमों से ढके रहने के कारण मरुद्भिद् पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है। त्वक कोशिकाएँ वातावरणीय दुष्प्रभारों से पौधों की सुरक्षा करती है।