Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता

Bihar Board Class 11 Political Science धर्मनिरपेक्षता Textbook Questions and Answers

धर्मनिरपेक्षता के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी बातें धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है? कारण सहित बताइए।
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय होना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ड) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक शैक्षित संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबन्धन समितियों की नियुक्ति करना।
(छ) किसी मंदिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।
उत्तर:
निम्नलिखित कथन धर्मनिरपेक्षवाद के अनुकूल हैं –

(क) एक धार्मिक समूह द्वारा प्रभावित की अनुपस्थित:
धर्मनिरपेक्षवाद की प्रथम एवं सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शर्त राज्य और धर्म का अलग-अलग होना है परन्तु धर्मनिरपेक्षवाद के लिए यह भी आवश्श्यक है कि अन्तर या अंतः धार्मिक प्रभावित नहीं होनी चाहिए क्योंकि धर्मनिरपेक्षता में समानता स्वतंत्रता में समानता स्वतंत्रता, भेदभाव एवं शोषण का अभाव भी शामिल है।

(ङ) किसी भी अल्पसंख्यक समुदाय को अलग शिक्षा संस्थाओं को बनाने की अनुमति देना:
धर्मनिरपेक्षता किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा शैक्षिक संस्थाओं को खोलने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाता भारत में अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित कोई संस्था (शैक्षिक) समानता के आधार पर सरकारी सहायता प्राप्त कर सकती है। शिक्षा का उद्देश्य पथ प्रदर्शन है।

धर्मनिरपेक्षता पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।
धर्मनिरपेक्षता के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11

धर्मनिरपेक्षता पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 Bihar Board प्रश्न 3.
धर्म निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती है।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षवाद का तात्पर्य धर्म के मामले में राज्य का उदासीन होना है। इसका तात्पर्य यह कि किसी धर्म के मामले में रुचि नहीं रखनी चाहिए। राज्य को न तो किसी धर्म को आश्रय देना चाहिए और न ही किसी धर्म के विरुद्ध भेदभाव करना चाहिए। लोगों को धर्म के मामले में स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए, यह सोचते हुए कि यह उनका व्यक्तिगत मामला है।

धर्मनिरपेक्षवाद केवल इस बात से संबंधित नहीं है कि राज्य और धर्म को अलग होना चाहिए बल्कि उसे सामाजिक व्यवस्था पर आधारित समानता की स्थापना पर भी जोर देना चाहिए और इसका उद्देश्य अंतः धार्मिक प्रभुता और शोषण को समाप्त करने को होना चाहिए। धर्म निरपेक्षवाद द्वारा धर्म के अंदर स्वतंत्रता और समानता को भी बढ़ावा देना चाहिए। धर्मनिरपेक्षवाद एक विचार है। इसकी धर्म से समानता नहीं स्थापित की जा सकती। यह धर्मनिरपेक्ष का पहलू है।

धर्मनिरपेक्षता के क्वेश्चन आंसर Bihar Board Class 11 प्रश्न 4.
क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।
(क) धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।
उत्तर:
नहीं, हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि धर्मनिरपेक्षवाद का सम्बन्ध धार्मिक पहचान से नहीं है। हम इसका समर्थन नहीं करते। धर्मनिरपेक्षवाद धार्मिक पहचान में कोई बाधा नहीं डालता। धर्मनिरपेक्षवाद धर्म व्यक्ति का निजी मामला है और यह राज्य और धर्म को अलग-अलग मानता है। व्यक्ति अपने मनपसंद धार्मिक पहचान को कायम रख सकता है।

(ख) धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अंदर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षवाद एक धार्मिक समूह या विभिन्न सामाजिक समूह में असमानता के विरुद्ध है, सही है।

धर्मनिरपेक्षवाद का केवल यही अर्थ नहीं है कि धर्म और राजनीति एक दूसरे से अलग हैं बल्कि यह भी है कि एक धार्मिक समुदाय में यह समानता पर भी जोर देता है। यह बात विभिन्न धार्मिक समूहों में भी देखने को मिलती है। यह सभी धार्मिक समूहों में भेदभाव के सभी रूपों को समाप्त करना चाहता है। एक ऐसा राज्य जो धर्मनिरपेक्ष माना जाता है उसको सिद्धान्तों ओर उद्देश्यों के प्रति समर्पित होना चाहिए जो कम से कम गैर-धार्मिक स्रोतों से लिया गया है। उसके अंत में शांति, धार्मिक स्वतंत्रता, समानता और भेदभाव से स्वतंत्रता शामिल होनी चाहिए।

(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षवाद की उत्पत्ति पश्चिमी ईसाइयत से हुई है। यह भारत के अनुकूल नहीं है-सही है। यह सर्वथा सही है कि धर्मनिरपेक्षवाद की उत्पत्ति पश्चिम से विशेष रूप में अमरीका में उत्पन्न हुई है जिसमें राज्य और राजनीति का स्पष्ट रूप से पृथकता है। राज्य धर्म के मामले में न तो हस्तक्षेप करेगा और न ही धर्म राज्य के मामले में हस्तक्षेप करेगा। दोनों का स्वतंत्र क्षेत्र में अपनी सीमा है। उसी प्रकार राज्य किसी धार्मिक संस्था की सहायता नहीं कर सकता।

यह किसी शैक्षिक संस्था, जो धार्मिक समुदाय द्वारा संचालित हो, उसकी वित्तीय सहायता नहीं कर सकता। धर्म सर्वथा, व्यक्तिगत मामला है और कानून की या राज्य नीति का मामला नहीं है। इस विचार के लिए कोई स्थान नहीं है कि एक समुदाय अपनी मनपसंद का कार्य करने को स्वतंत्र है। समुदाय पर अधिकार या अल्पसंख्यक अधिकार का थोड़ा क्षेत्र इसमें अवश्य है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद की हू-ब-हू अनुकृति नहीं है। केवल समान अवधारणा यह है कि राज्य और धर्म दोनों अलग हैं और राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता दोनों में पर्याप्त असमानता है। राज्य को सभी धर्मों का आदर करने का अधिकार है परन्तु भेदभाव करने का कोई अधिकार नहीं है। भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद अल्पसंख्यक अधिकार समर्थक है और धार्मिक संस्थाओं द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थाओं की आर्थिक मदद भी करता है।

धर्मनिरपेक्षता के पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 11 प्रश्न 5.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्ही और बातों पर है। इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
अनेक पश्चिमी और अमरीकी देशों के समान भारतीय धर्म निरपेक्षवाद राज्य और धर्म के अलगाव पर जोर देता है। परन्तु यह न केवल शर्त है बल्कि भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद का लक्षण है। यह निश्चित रूप से इससे कहीं अधिक है। इसका उद्देश्य विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच भेदभाव को समाप्त करना है। यह अंतर और अंतर्धार्मिक समुदायों में समानता और न्याय की स्थापना करता है। भारत में शोषण के अनेक मामले मिलते हैं। ये न केवल अंतर्धार्मिक समूहों में होते हैं बल्कि उसी धार्मिक समुदायों में भी होते हैं।

भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद उसे समाप्त करता है। भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद का दूसरा पहलू यह है कि सामाजिक सुधार लाने के लिए यह धार्मिक मामले में हस्तक्षेप कर सकता है। पं. नेहरू ने स्वयं भेदभव समाप्त करने संबन्धी और गलत सामाजिक बुराइयां जैसे-दहेज प्रथा, सती प्रथा के विरुद्ध कानून निर्माण में अहम् भूमिका निभाई। उन्होंने महिलाओं के अधिकार में वृद्धि और सामाजिक स्वतंत्रता के लिए भी महत्त्वपूर्ण कार्य किए। नेहरू के लिए धर्मनिरपेक्षवाद का तात्पर्य साम्प्रदायिकता का पूर्ण विरोध था।

धर्मनिरपेक्षता Class 11 Question Answer Bihar Board प्रश्न 6.
सैद्धान्तिक दूरी क्या है? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता का भारतीय दृष्टिकोण और पश्चिमी दृष्टिकोण का समान महत्त्वपूर्ण लक्षण है-राज्य और धर्म का अलगाव। राज्य को न तो सैद्धान्तिक होना चाहिए और न धर्म की स्थापना करनी चाहिए। इसलिए धर्मनिरपेक्षवाद का यह सुनिश्चित सिद्धान्त है कि राज्य धार्मिक कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा। इसी प्रकार धर्म भी राज्य के किसी कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा। राज्य का अपना कोई निजी धर्म नहीं होना चाहिए और धर्म को व्यक्तिगत मामले के रूप में छोड़ देना चाहिए। राज्य और धर्म दोनों का अपना स्वतंत्र क्षेत्र होना चाहिए।

Bihar Board Class 11 Political Science धर्मनिरपेक्षता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

कक्षा 11 धर्मनिरपेक्षता पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 1.
धर्मनिरपेक्ष राज्य की परिभाषा लिखिए। (Define the secular state)
उत्तर:
एच. बी. कामथ के अनुसार “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो ईश्वर रहित राज्य है, न ही वह अधर्मी राज्य है न ही धर्म-विरोधी है। धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का यह अर्थ है कि इसमें ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जाता है।”

Dharmnirpekshta Question Answer Bihar Board प्रश्न 2.
पंथ निरपेक्ष अथवा धर्मनिरपेक्षता से क्या आशय है? (Define the term Secular)
उत्तर:
पंथ या धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ (Meaning of the word Secular):
धर्म या पंथ निरपेक्ष शब्द अंग्रेजी भाषा के सेक्युलर (Secular) शब्द का हिन्दी पर्याय है। सेक्युलर शब्द लैटिन भाषा के सरकुलम (Surculam) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है- ‘संसार या युग’।

धर्मनिरपेक्षता के प्रश्न उत्तर कक्षा 11 Bihar Board प्रश्न 3.
पंथ निरपेक्ष राज्य धर्मों के प्रति सहिष्णु किस प्रकार है? (A Secular state is tolerate towards all the religions How?)
उत्तर:
पंथ निरपेक्ष राज्य इस बात का प्रतिपादन करता है कि सभी धर्म आधारभूत रूप में एक है। अतः धर्म के आधार पर एक दूसरे के प्रति असहनशीलता का व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। हम चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हों, हमारे द्वारा यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि एकमात्र हमारा धर्म ही सत्य का प्रतिपादन करता है। हमारे द्वारा अन्य सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए।

धर्मनिरपेक्षता प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 4.
“धर्मनिरपेक्षता विश्व राज्य की आदर्श पूर्ति में सहायक है” व्याख्या कीजिए। (Explain the Secularism is helpful in making a idealistic globally state)
उत्तर:
विश्व राज्य एक अत्याधिक उदार और भव्य आदर्श है, जिसकी प्राप्ति धीरे-धीरे ही की जा सकती है। पंथ निरपेक्ष राज्य मानवीय स्वतन्त्रता और समानता पर आधरित होता है। इसके द्वारा प्रेम, दया, सहिष्णुता, सहयोग और मानवीय सद्भावना के गुणों पर जोर दिया जाता है। इस बात का भी प्रयत्न किया जाता है कि सभी व्यक्ति धर्म, जाति और अन्य भेदों पर विचार किए बिना परस्पर बन्धुत्व के विचार को अपना लें। पंथ निरपेक्षता के विचार की उदार व्याख्या है कि मानव-मानव है और उसके संदर्भ में जाति, धर्म, राष्ट्रीयता और अन्य किसी भेद को महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए। विश्व राज्य का आदर्श भी यही कहता है और इस प्रकार धर्मनिरपेक्षता विश्व राज्य के आदर्श की पूर्ति में सहायक है।

Dharmnirpekshta Class 11 Question Answer Bihar Board प्रश्न 5.
पंथ निरपेक्ष राज्य की शासन प्रणाली का आधार क्या होता है? (What is the base of the government in a Secular state?)
उत्तर:
पंथ निरपेक्ष राज्य धर्म से पृथकता पर आधारित होने के कारण आवश्यक रूप से भौतिक होता है और इसके अन्तर्गत मनुष्यों के नैतिक एवं आध्यात्मिक हितों की साधना नहीं हो सकती। प्रो. पुन्ताम्बेकर ने इस विषय में कहा है “इसके अन्तर्गत किसी धर्म या नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं होता। पंथनिरपेक्ष राज्य गाँधीवादी राज्य हो ही नहीं सकता न तो वह प्राचीन धार्मिक विचारधाराओं पर और न सांस्कृतिक विचारों पर चल सकता है।”

धर्मनिरपेक्षता Class 11 Bihar Board प्रश्न 6.
धर्मनिरपेक्षता का मूल आधार क्या है? (What is main base of Secularism?)
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता का मूल आधार निम्नलिखित हैं –

  1. पंथ निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता।
  2. सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता।
  3. धार्मिक कट्टरता को निरूत्साहित करना।
  4. सर्वाधिकार का विरोध।
  5. सभी नागरिकों को समान अधिकार।
  6. शासन द्वारा धार्मिक शिक्षा का निषेध।
  7. व्यक्तियों को अन्य धर्मों में दखल देने का अधिकार नहीं।
  8. नैतिकता के नियमों को अस्वीकार नहीं करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

Dharmnirpekshta Ke Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में पंथ-निरपेक्षता के कौन-से आदर्श पाए जाते हैं? (What ideals of Secularism is to be given in Indian constitution?)
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता के आदर्श-भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता या पंथ-निरपेक्षता सम्बन्धी निम्नलिखित चार आदर्श दृष्टिगत होते हैं –
(क) राज्य अपने को किसी धर्म विशेष से सम्बद्ध नहीं करेगा, न ही किसी धर्म विशेष के अधीन रहेगा।
(ख) राज्य जब किसी व्यक्ति को धार्मिक मान्यता, आचरण एवं प्रचार-प्रसार सम्बन्धी स्वतंत्रता प्रदान करेगा, तो वह किसी व्यक्ति विशेष को अपेक्षाकृत (Preferential) सुविधा नहीं देगा।
(ग) किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध धर्म अथवा धार्मिक विचार के आधार पर राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा।
(घ) राज्य के अधीन किसी पद को प्राप्त करने हेतु सभी के धर्मावलम्बियों को समान अवसर प्राप्त होंगे।

प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्ष राज्य की प्रमुख परिभाषाएँ लिखिए। (Write the definitions of a Secular state)
उत्तर:
धर्मनिरपेक्ष राज्य की कुछ परिभाषाएँ निम्नांकित हैं –
(क) जॉर्ज ऑसलर के शब्दों में “धर्मनिरपेक्ष का अर्थ इस विश्व या वर्तमान जीवन से सम्बन्धित है तथा जो धार्मिक या द्वैतवादी विचारों से बन्धा हुआ न हो।” इस दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष राज्य से अभिप्राय एक ऐसे राज्य से होता है जो संसारिक, लौकिक और ऐच्छिक है तथा जिसका अपना कोई धर्म नहीं। ऐसा राज्य धर्म के नाम पर व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करता।

यह राज्य धर्म को व्यक्ति की व्यक्तिगत और आन्तरिक वस्तु मानते हुए धर्म को राजनीति से पृथक रखने में विश्वास रखता है। इस प्रकार का राज्य किसी धर्म विशेष का प्रचार-प्रसार नहीं करता, बल्कि यह सभी धर्मों को समान मानते हुए धार्मिक सहिष्णुता का पोषण करता है।”

(ख) एच.बी.कामथ के अनुसार, “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो ईश्वर. रहित राज्य है, न ही वह अधर्मी राज्य है और न ही धर्म-विरोधी। धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का यह अर्थ है कि इसमें ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जाता है।”

(ग) डोनाल्ड स्मिथ के शब्दों में, “धर्मनिरपेक्ष राज्य, वह राज्य है जिसके अंतर्गत-विषयक, व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है, जो व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय धर्म को बीच में नहीं लाता, जो संवैधानिक रूप से किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है और न किसी धर्म की उन्नति का प्रयत्न करता है और न ही किसी धर्म के मामले में हस्तक्षेप करता है।”

(घ) लक्ष्मीकान्त मैत्र के शब्दों में, “धर्मनिरपेक्ष राज्य से मेरा अभिप्राय यह है कि ऐसा राज्य धर्म या जाति के आधार पर किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भेद-भाव नहीं करता है। इसका अर्थ यह है कि राज्य की ओर से किसी विशिष्ट धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं होगी।”

प्रश्न 3.
पंथ निरपेक्ष राज्य मानव-धर्म पर आधारित होता है। स्पष्ट कीजिए। (The Secular State is based on Humanism Clarify)
उत्तर:
पंथ निरपेक्ष राज्य किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं होता है और इसके द्वारा किसी प्रकार की धार्मिक क्रियाओं का सम्पादन भी नहीं किया जाता है किन्तु धर्म से पृथ्कता का तात्पर्य यह नहीं है कि पंथ निरपेक्ष राज्य पूर्ण रूप से भौतिक या अनाध्यात्मिक हो। इस प्रकार के राज्य को अधर्मी, विधर्मी, धर्म-विरोधी, अनाचारी या अधार्मिक नहीं कहा जा सकता है।

इसका कारण यह है कि किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित न होने पर भी इस प्रकार का राज्य सत्य, अहिंसा, प्रेम और विश्व-बन्धुत्व आदि सर्वमान्य सिद्धान्तों के प्रति आस्था रखता है और इसका धर्म और नैतिकता से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित नहीं होता, वरन् सभी धर्मों का सार मानव-धर्म पर आधारित होता है।

प्रश्न 4.
पंथ निरपेक्षता की आलोचना के कोई तीन बिन्दु लिखिए। (Write three points of criticis of Secularism)
उत्तर:
(क) प्रासन-प्रणाली का आधार भौतिक:
आलोचकों के अनुसार पंथ निरपेक्ष राज्य, राज्य की धर्म से पृथकता पर आधारित होने के कारण आवश्यक रूप से भौतिक होता है और इसके अन्तर्गत मनुष्यों के नैतिक एवं आध्यात्मिक हितों की साधना नहीं हो सकती। प्रो. पुन्ताम्बेकर ने इस सम्बन्ध में कहा है, “इसके अन्तर्गत किसी धर्म-या नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं होता। पंथ निरपेक्ष राज्य गाँधीवादी राज्य हो ही नहीं सकता न तो वह प्राचीन धार्मिक विचारधाराओं पर और न सांस्कृतिक विचारों पर चल सकता है।”

(ख) राज्य का छिन्न हो जाना सम्भव:
आलोचकों का कथन है कि राज्य में एक धर्म विशेष को मान्यता देने से धार्मिक एकता के आधार पर एक ऐसी राजनीतिक एकता स्थापित हो जाती है, जो राज्य को स्थायित्व प्रदान करती है। किन्तु धर्म से पृथक होने के कारण पंथ निरपेक्ष राज्य में इस प्रकार की धार्मिक एकता नहीं होती है और इस प्रकार की धार्मिक एकता के अभाव में राज्य के छिन्न-भिन्न हो जाने की आशंका बनी रहती हैं आलोचकों के अनुसार एक पंथ निरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के जो अनुयायी होते हैं, उनके द्वारा धार्मिक भेदों के कारण परस्पर निरन्तर लड़ाई-झगड़े राज्य की एकता को नष्ट कर देते हैं।

(ग) लोककल्याणकारी नहीं हो सकता:
लोककल्याणकारी राज्य जनहित और सामाजिक कल्याण पर आधारित होता है और लोककल्याण की यह भावना नैतिक आदशों और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ही उत्पन्न हो सकती है लेकिन पंथ निरपेक्ष सत्य धर्म और नैतिकता के प्रति उदासीन होता है और इस कारण यह कभी सच्चा लोककल्याणकारी राज्य नहीं हो सकता। आलोचकों के अनुसार, राज्य में लोककल्याण की भावनाओं का पतन हो जाता है और इसमें उन स्वार्थपूर्ण तत्त्वों को बढ़ावा मिलता है, जो लोककल्याण के विरुद्ध होते हैं।

प्रश्न 5.
पंथ निरपेक्षता के पक्ष में तीन तर्क दीजिए। (Give three arguments in favour of the Secularism)
उत्तर:
1. पंथ निरपेक्ष राज्य की आलोचनाएँ मिथ्या धारणा पर आधारित हैं:
पंथ निरपेक्ष राज्य की आलोचना करते हुए जो विभिन्न बातें कही जाती है।, वे सभी इस मिथ्या धारणा पर आधारित है कि पंथ निरपेक्ष राज्य धर्म-विरोधी राज्य होती है, जबकि वस्तुस्थिति इसके नितान्त विपरीत है। पंथ निरपेक्ष राज्य धर्म-विरोधी राज्य नहीं होता वरन् सभी धर्मों के सार मानव धर्म’ पर आधारित वास्तविक आध्यत्मिक राज्य होता है। इस प्रकार का राज्य, उसके कानून और सत्ता, सब कुछ नैतिकता पर आधारित होते हैं। न्यायमूर्ति रामास्वामी के शब्दों में “पंथ निरपेक्ष राज्य का तात्पर्य यह नहीं है कि कानून नैतिक आचार-विचार में पृथक हों।”

2. राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति पंथ निरपेक्ष राज्य में ही सम्भव:
एक राज्य जिसके अन्तर्गत विविध धर्मों के अनुयायी रहते हैं, यदि किसी एक विशेष धर्म को अन्य धर्म के अनुयायी राज्य के प्रति उदासीनता का भाव अपना लेते हैं और बहुसंख्यक तथा अल्पसंख्यक वर्ग में सदैव ही संघर्ष की स्थिति बनी रहती है लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य के अन्तर्गत सभी धर्मों के अनुयायियों को समान समझा जाता है और स्वतन्त्रता तथा समानता पर आधारित यह मातृभाव राष्ट्रीय एकता के लक्ष्य की प्राप्ति में बहुत अधिक सहायक होता है।

इतिहास इस बात का साक्षी है कि अकबर की पंथ निरपेक्षता ने मुगल साम्राज्य को एकता और सुदृढ़ता प्रदान की, लेकिन औरंगजब की धार्मिक पक्षपात की नीति ने मुगल साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया। भारतीय संविधान सभा के सदस्यों का भी यही विचार था कि पंथ निरपेक्षता ही राज्य की एकता को बनाए रख सकती है और इसलिए उन्होंने भारत के लिए पंथ निरपेक्षता के आदर्श की अपनाया।

3. पंथ निरपेक्षता लोकतंत्र के आदर्श की पूरक:
पंथ निरपेक्षता का आदर्श लोकतंत्र के विचार का भी पूरक है। लोकतंत्र का आदर्श मूल रूप से समानता और स्वतंत्रता की धारणा पर आधारित है और पंथ निरपेक्ष राज्य में इन दोनों ही आदर्शों को उचित महत्त्व प्रदान किया जाता है। पंथ निरपेक्ष राज्य सभी धर्मों को समान समझाता है ओर पंथ निरपेक्षता की धारण धार्मिक क्षेत्र में व्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी आधारित है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि पंथ निरपेक्षता का विचार मूल रूप से लोकतन्त्रात्मक ही है।

आलोचक कहते हैं कि पंथ निरपेक्ष राज्य विकृत होकर तानाशाही का रूप ग्रहण कर लेता है, किन्तु वास्तव में इस प्रकार की आशंका पंथ निरपेक्ष राज्य की अपेक्षा धर्माचार्य राज्य में ही अधिक है। धर्माचार्य राज्य में शासन अपने आपको ईश्वर का प्रतिनिधि बतलाकर जनता पर मनमाने अत्याचार करते हैं। भूतकाल में इन धर्माचार्य राज्य में धर्म के नाम पर दूसरे धर्मों के अनुयायियों पर जिस प्रकार के अत्याचार किए गए, उनकी कल्पना ही भयावह है। पंथ निरपेक्ष राज्य तो सर्वाधिकारवाद की धारणा का विरोधी होने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा समानता पर आधारित होने के कारण अधिनायकवाद का विरोधी और प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था का पूरक है।

प्रश्न 6.
पंथ निरपेक्षता के कोई तीन मूल आधार लिखिए। (Write Three Tenets of Secularism)
उत्तर:
पंथ निरपेक्षता के मूल आधार-पंथ निरपेक्ष राज्य को सही रूप में समझने के लिए पंथ निरपेक्ष राज्य की विशेषताओं का अध्ययन उपयोगी है। पंथ निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

1. धर्म समाज का सामूहिक कार्य न होकर व्यक्ति का व्यक्तिगत कार्य है:
प्राचीन और मध्य युग में धर्म को सामान्यतया समाज का सामूहिक कार्य माना जाता था और राजा तथा प्रजा सभी के द्वारा राजा के नेतृत्व में प्राकृतिक शक्तियों की पूजा की जाती थी लेकिन धार्मिक जीवन के दो अंग (विश्वास और आडम्बर) होते हैं, उनमें पंथ निरपेक्ष राज्य विश्वास को ही महत्त्वपूर्ण मानता है। उसकी मान्यता है कि धर्म आन्तरिक विश्वास की वस्तु है। अतः धर्म को समाज का सामूहित कार्य न माना जाकर व्यक्ति का व्यक्तिगत कार्य माना जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक जीवन व्यतीत करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए।

2. पंथ निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता:
धर्म और राज्य के पारस्परिक सम्बन्ध की दृष्टि से दो प्रकार के राज्य होते हैं – पंथ निरपेक्ष राज्य और धर्माचार्य राज्य। धर्माचार्य राज्य का अपना एक विशेष धर्म होता है और उसके द्वारा इस धर्म की वृद्धि के लिए विशेष प्रयत्न किए जाते हैं। पाकिस्तान इस्लामी राज्य के रूप में धर्माचार्य राज्य का एक उदाहरण है लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता। यह सभी धर्मों को समान समझता है और इसके द्वारा किसी विशेष धर्म के प्रभाव को बढ़ाने या कम करने का कोई प्रयत्न नहीं किया जाता।

3. धर्म विशेष पर आधारित न होते हुए भी अधार्मिक नहीं:
पंथ निरपेक्ष राज्य किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं होता है और इसके द्वारा किसी प्रकार की धार्मिक क्रियाओं का सम्पादन भी नहीं किया. जाता है किन्तु धर्म से पृथकता का तात्पर्य यह नहीं है कि पंथ निरपेक्ष राज्य पूर्ण रूप से भौतिक या अनाध्यात्मिक हो। इस प्रकार के राज्य को अधर्मी, विधर्मी, धर्मविरोधी, अनाचारी या अधार्मिक नहीं कहा जा सकता है। इसका कारण यह है कि किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित न होने पर भी इस प्रकार का राज्य सत्य, अहिंसा, प्रेम और विश्व-बन्धुत्व आदि सर्वमान्य सिद्धान्तों के प्रति आस्था रखता है और इसका धर्म एवं नैतिकता से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित नहीं होता, वरन् सभी धर्मों का सार ‘मानव धर्म’ पर आधारित होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में पंथ निरपेक्षता की विस्तृत विवेचना कीजिए। (Discuss in detail the Secularism in India) अथवा, भारत में पंथ निरपेक्षता पर एक निबन्ध लिखिए। (Explain the Secular Character of Indian Democracy) अथवा, भारत में पंथ निरपेक्षता पर एक निबन्ध लिखिए। (Write an essay on Secularism in India)
उत्तर:
भारत में पंथ निरपेक्षता-भारत में सदैव से ही धर्म का जीवन के अन्तर्गत विशेष महत्त्व रहा है किन्तु कालांतर में धर्म के संकुचित रूप का प्रचलन हो गया, उसके आडम्बरमय रूप को ही सब कुछ समझ लिया गया और इससे भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक प्रगति को गहरा आघात पहुँचा। भारतीय समाज में धर्म के नाम पर इतने अधिक रूपान्तर प्रचलित हो गए कि इससे समाज विभिन्न टुकड़ों में विभक्त हो गया और राष्ट्रीय एकता को भीषण आघात पहुँचा।

सदियों तक परतन्त्रता इन परिस्थितियों का स्वाभाविक परिणाम हुआ धार्मिक मत-मतान्तरों के इन दुष्परिणामों को देखते हुए भारतीय संविधान के निर्माताओं द्वारा पंथ निरपेक्षता के आदर्श को अपनाया गया लेकिन संविधान सभा के अनेक प्रमुख सदस्यों द्वारा यह बात नितान्त स्पष्ट कर दी गयी कि पंथ निरपेक्षता का आशय धर्म-विरोध से नहीं है और भारत राज्य एक धर्म-विरोधी राज्य न होकर नैतिकता, आध्यात्मिक और मानव धर्म पर आधारित एक वास्तविक धार्मिक राज्य होगा। पंथ निरपेक्षता, के आदर्श को प्राप्त करने के लिए भारतीय संविधान के अन्तर्गत निम्न व्यवस्थाएँ की गयी हैं –

1. अस्पृश्यता का अन्त:
पंथ निरपेक्षता का उदार आदर्श इस बात पर बल देता है कि सामाजिक जीवन में भी जाति या अन्य किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस दृष्टि से संविधान की धारा 17 के द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया गया है। इस प्रकार धर्म की आड़ में भारतीय समाज के अन्तर्गत मनुष्य, मनुष्य पर जो अत्याचार करते रहे, उसे इस व्यवस्था के आधार पर समाप्त कर दिया गया है।

2. धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं:
संविधान के द्वारा नागरिकों को यह विश्वास दिलाया गया है कि धर्म के आधार पर उनके साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। संविधान की धारा 15 (ii) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान में प्रवेश से नहीं रोका जाएगा। धारा 16 (i) के अनुसार सार्वाजनिक पदों पर नियुक्तियाँ करने में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

3. धार्मिक स्वतंत्रता:
भारतीय संविधान के द्वारा प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी है और संविधान की धारा 25 के द्वारा प्रत्येक नागरिक को यह मौलिक अधिकार दिया गया है कि वह किसी भी धर्म में विश्वास और उसके अनुसार आचरण करे। इसका अभिप्राय यह है कि किसी भी नागरिक को किसी धर्म विशेष का पालन करने या न करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

4. धार्मिक संस्थाओं की स्थापना और धर्म-प्रचार की स्वतंत्रता:
संविधान के द्वारा धर्म को सामूहिक स्वतंत्रता भी प्रदान की गयी है। संविधान की धारा 26 में कहा गया है कि प्रत्येक सम्प्रदाय को धार्मिक तथा परोपकारी उद्देश्यों के लिए संस्थाएँ स्थापित करने और उन्हें चलाने, धार्मिक मामलों का प्रबंध करने, चल तथा अचल सम्पत्ति रखने और प्राप्त करने और ऐसी सम्पत्ति को कानून के अनुसार प्रबंध करने का अधिकार है। संविधान के द्वारा नागरिकों को धर्म के प्रचार और प्रसार की स्वतंत्रता दी गयी है किन्तु उनके द्वारा उस सम्बन्ध में लोभ, लालच और अन्य साधनों का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

5. धार्मिक कार्यों के लिए किया जाने वाला व्यय कर-मुक्त:
भारतीय संविधान अपने नागरिकों को न केवल धार्मिक स्वतंत्रता और धार्मिक संस्थाओं की स्थापना की स्वतंत्रता प्रदान करता है, वरन् इस सम्बन्ध में संविधान के अनुच्छेद 27 में कहा गया है कि “धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए खर्च की जाने वाली सम्पत्ति पर कोई कर नहीं लगाया जाएगा”। संविधान की इस व्यवस्था से यह नितान्त स्पष्ट है कि भारत राज्य एक धर्मविरोधी राज्य नहीं, वरन् विशुद्ध धर्म को प्रोत्साहित करने वाला राज्य है।

6. धार्मिक शिक्षा का निषेध:
पंथ निरपेक्षता की परम्परा के अनुरूप संविधान की धारा 28 में कहा गया है कि किसी सरकारी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती तथा गैर-सरकारी, किन्तु सरकार से आर्थिक सहायता या मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में किसी को धार्मिक शिक्षा या उपासना में भाग लेने को बाध्य नहीं किया जा सकता। इस सभी उपबन्धों से यह नितान्त स्पष्ट है कि भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है, धर्म-विरोधी राज्य नहीं।

इस. पथ सिंपेक्ष राज्य के अन्तर्गत उच्च धार्मिक पदाधिकारी पद ग्रहण के समय ईश्वर के नाम पर शपथ ले सकते हैं। भारत राज्य के सर्वोच्च पदाधिकारी धार्मिक उपासना आदि में भाग ले सकते हैं। मार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए किए जाने वाले व्यय पर कर-मुक्ति की व्यवस्था की गयी है और शिक्षण संस्थाओं में नैतिक शिक्षा प्रारम्भ करने पर भी विचार किया जा रहा है। भारतीय इतिहास और संविधान में प्रतिपादित लोकतंत्र एवं लोककल्याण के आदर्श को दृष्टि में रखते हुए कहा जा सकता है कि भारत के लिए पंथ निरपेक्षता का यह आदर्श ही नितान्त औचित्यपूर्ण है –

भारत के सम्बन्ध में स्थिति यह है कि भारत देश ‘विविधता में एकता’ का आदर्श उदाहरण रहा है और हमारे संविधान-निर्माता ‘सर्वधर्म समभाव’ के प्रति निष्ठा रखते थे। अत: उनके द्वारा पंथ निरपेक्षता के आदर्श को अपनाया गया लेकिन एक पंथ निरपेक्ष राज्य की स्थिति को पूर्ण अंशों में ‘पंथ निरपेक्ष समाष (Secular Society) में ही प्राप्त किया जा सकता है और भारतीय जीवन का चिन्ताजनक तथ्य यह है कि हम इक्कीसवीं सदी तक भी पंथ निरपेक्ष समाज की स्थिति को प्राप्त नहीं कर सके हैं। अभी हाल ही के वर्षों में तो भारतीय समाज में धर्म पर आधारित भेदों ने अधिक तीव्र रूप धारण कर लिया है। इस स्थिति का समाधान केवल यही है भारतीय नागरिक ‘सर्वधर्म समभाव’ और ‘सभी धर्मों के प्रति सद्भाव एवं सम्मान’ की स्थिति को अपने मन, मस्तिष्क और हृदय में सदैव के लिए संजो लें।

न केवल भारत, वरन् विश्व के अन्य प्रगतिशील राज्यों द्वारा भी पंथ निरपेक्षता के मार्ग को अपनाया गया है वर्तमान समय में पाकिस्तान, लीबिया, युगाण्डा, सउदी, अरब, बंग्लादेश और मध्य-पूर्व के अन्य कुछ राज्य ही धर्माचार्य राज्य के उदाहरण हैं। वर्तमान युग पंथ निरपेक्षता का ही युग है तथा अब तो रूस और पूर्वी यूरोप के अन्य राज्यों ने भी ‘धर्म-विरोध’ की स्थिति का त्याग कर यथार्थ रूप में पंथ निरपेक्षता की स्थिति को अपना लिया है।

प्रश्न 2.
पंथ या धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? पंथ निरपेक्षता के मूल सिद्धान्तों का परीक्षण कीजिए। (What do you mean by Secularism? Examine the fundamental principles of Secularism)
उत्तर:
पंथ या धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ (Meaning of the Word Secular):
धर्म या पंथ-निरपेक्ष शब्द ‘अंग्रेजी’ भाषा के ‘सेक्युलर’ (Secular) शब्द का हिन्दी पर्याय है। सेक्युलर (Seculare) शब्द, लैटिन भाषा के ‘सरकुलम’ (Surculam) शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है-संसार अथवा युग। धर्मनिरपेक्ष राज्यों की कुछ परिभाषाएँ निम्नंकित हैं –

1. जार्ज ऑसलर के शब्दों में “धर्मनिरपेक्ष का अर्थ इस विश्व या वर्तमान जीवन से सम्बन्धित है तथा जो धार्मिक या द्वैतवादी से बंधा हुआ न हो।” इस दृष्टि से धर्मनिरपेक्ष राज्य से अभिप्राय एक ऐसे राज्य से होता है जो सांसारिक, लौकिक और ऐच्छिक है तथा जिसका अपना कोई धर्म नहीं। ऐसा राज्य धर्म के नाम पर व्यक्ति-व्यक्ति के मध्य किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करता। यह राज्य धर्म को व्यक्ति की व्यक्तिगत और आन्तरिक वस्तु मानते हुए धर्म को राजनीति से पृथक रखने में विश्वास रखता है। इस प्रकार का राज्य किसी धर्म विशेष का प्रचार-प्रसार नहीं करता, बल्कि यह सभी धर्मों को समान मानते हुए धार्मिक सहिष्णुता का पोषण करता है।

2. एच.बी.कामथ के अनुसार, “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य न तो ईश्वर रहित राज्य है, न ही यह अधर्मी राज्य है और न ही धर्म-विरोधी। धर्मनिरपेक्ष राज्य होने का यह अर्थ है कि इसमें ईश्वर के अस्तित्व को नहीं माना जाता है।”

3. डोनाल्ड स्मिथ के शब्दों में, “धर्मनिरपेक्ष राज्य, वह राज्य है जिसके अन्तर्गत धर्म-विषयक, व्यक्तिगत एवं सामूहिक स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है, जो व्यक्ति के साथ व्यवहार करते समय धर्म को बीच में नहीं लाता, जो संवैधानिक रूप से किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है और न किसी धर्म की उन्नति का प्रयत्न करता है और न ही किसी धर्म के मामले में हस्तक्षेप करता है।”

4. लक्ष्मीकान्त मिश्र के शब्दों में, “धर्मनिरपेक्ष राज्य से मेरा अभिप्राय यह है कि ऐसा राज्य धर्म या जाति के आधार पर किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई भेद-भाव नहीं करता है। इसका अर्थ यह है कि राज्य की ओर से किसी विशिष्ट धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं होगी।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य से अभिप्राय एक ऐसे राज्य से है जिसका कोई अपना धर्म नहीं होता और जो धर्म के आधार पर व्यक्तियों में कोई भेद-भाव नहीं करता। इसका अर्थ एक धर्म-विरोधी, अधार्मिक या ईश्वर रहित राज्य से नहीं बल्कि एक ऐसे राज्य से है जो धार्मिक मामलों में पूर्णतया तटस्थ रहता है क्योंकि यह धर्म को व्यक्ति की व्यक्तिगत वस्तु मानता है। पंथ निरपेक्षता के मूल आधार-पंथ निरपेक्ष राज्य को सही रूप में समझने के लिए पंथ निरपेक्ष राज्य की विशेषताओं का अध्ययन उपयोगी होगा। पंथ निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्न इस प्रकार हैं –

1. धर्म समाज का सामूहिक कार्य न होकर व्यक्ति का व्यक्तिगत कार्य है:
प्राचीन और मध्य युग में धर्म को सामान्यता समाज का सामूहिक कार्य माना जाता था और राजा तथा प्रजा सभी के द्वारा राजा के नेतृत्व में प्राकृतिक शक्तिओं की पूजा की जाती थी लेकिन धार्मिक जीवन के दो अंग (विश्वास और आडम्बर) होते हैं, उनमें पंथ निरपेक्ष राज्य विश्वास को ही महत्त्वपूर्ण मानना है। उसकी मान्यता है कि धर्म आन्तरिक विश्वास की वस्तु है, अतः धर्म को समाज का सामूहिक कार्य न माना जाकर व्यक्ति का व्यक्तिगत कार्य माना जाना चाहिए और सभी व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक जीवन व्यतीत करने की स्वतंत्रता चाहिए।

2. पंथ निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता:
धर्म और राज्य के पारस्परिक सम्बन्ध की दृष्टि से दो प्रकार के राज्य होते हैं-पंथ निरपेक्ष राज्य और धर्माचार्य राज्य। धर्माचार्य राज्य का अपना एक विशेष धर्म होता है और उसके द्वारा इस धर्म की वृद्धि के लिए विशेष प्रयत्न किए जाते हैं। पाकिस्तान इस्लामी राज्य के रूप में धर्माचार्य राज्य का एक उदाहरण है। लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता। यह सभी धर्मों को समान समझता है और इसके द्वारा किसी विशेष धर्म के प्रभाव को बढ़ाने या कम करने का कोई प्रयत्न नहीं किया जाता।

3. धर्म विशेष पर आधारित न होते हुए भी अधार्मिक नहीं:
पंथ निरपेक्ष राज्य किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं होता है और इसके द्वारा किसी प्रकार के धार्मिक क्रियाओं का सम्पादन भी नहीं किया जाता है किन्तु धर्म से पृथ्कता का तात्पर्य यह नहीं है कि पंथ निरपेक्ष राज्य पूर्ण रूप से भौतिक या अनाध्यात्मिक हो। इस प्रकार के राज्य सत्य, अहिंसा, प्रेम और विश्व-बन्धुत्व आदि सर्वमान्य सिद्धान्तों के प्रति आस्था रखता है और इसका धर्म एवं नैतिकता से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित नहीं होता, वरन् सभी धर्मों के सार ‘मानव धर्म’ पर आधारित होता है।

4. सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता:
पंथ निरपेक्ष राज्य इस बात का प्रतिपादन करता है कि सभी धर्म आधारभूत रूप से एक है। अतः धर्म के आधार पर एक-दूसरे के प्रति असहनशीलता का बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। हम चाहे किसी भी धर्म के अनुयायी हों, हमारे द्वारा यह नहीं सोचा जाना चाहिए कि एकमात्र हमारा धर्म ही सत्य का प्रतिपादन करता है। हमारे द्वारा अन्य सभी धर्मों का सम्मान किया जाना चाहिए।

5. धार्मिक कट्टरता (Bigotry) को निरुत्साहित करना:
पंथ निरपेक्ष राज्य धार्मिक उदारवाद का प्रशंसक और धार्मिक कट्टरता का विरोधी होता है। इसके द्वारा राष्ट्रीय एकता और शक्ति के हित में ऐसा प्रगातिशील संस्थओं को प्रोत्साहित किया जाता है जो धार्मिक कट्टरता और कठमुल्लापन के प्रभाव को कम करने के लिए कार्य करती हैं।

6. सर्वाधिकार का विरोध:
सर्वाधिकार का तात्पर्य यह है कि राज्य व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन पर नियत्रंण रखे लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य की मान्यता यह है कि धर्म व्यक्ति के आन्तरिक विश्वास और व्यक्तिगत जीवन की वस्तु है और इसलिए राज्य के द्वारा उस समय तक व्यक्ति के धार्मिक जीवन में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि व्यक्ति का धार्मिक जीवन सार्वजनिक हित में बाधक न हो। इस प्रकार पंथ निरपेक्षता का आदर्श इस विचार पर आधारित है कि राज्य का अधिकार व कार्यक्षेत्र सर्वव्यापी न होकर प्रतिबन्धित और सीमित होना चाहिए।

7. सभी नागरिकों को समान अधिकार:
पंथ निरपेक्ष राज्य अपने सभी नागरिकों को किसी भी वर्ग के साथ बिना कोई पक्षपात किए सामाजिक और राजनीतिक अधिकार प्रदान करता है। सरकारी सेवाओं या जीवन के अन्य क्षेत्रों में धर्म, जाति, वर्ग या अन्य किसी आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

8. पंथ निरपेक्ष राज्य मौलिक रूप से लोकतन्त्रात्मक:
लोकतन्त्र का विचार मूल रूप से समानता और स्वतंत्रता की धारणा पर आधारित है और पंथ निरेपक्ष राज्य में इन दोनों ही विचारों को उचित महत्त्व प्रदान किया गया है। पंथ निरपेक्ष राज्य सभी धर्मों को समान समझता है।

9. पंथ निरपेक्ष राज्य का सर्वोच्च कर्त्तव्य लोककल्याण:
धर्म के दो पक्ष होते हैं लौकिक और पारलौकिक। पक्ष का तात्पर्य है ईश्वर की सेवा, पूजा आराधना कर आगे आने वाले जीवन को सुधारना और लौकिक पक्ष का तात्पर्य है मानव जाति की सेवा कर स्वयं अपने और अन्य व्यक्तियों के इसी जीवन को सुधारना। पंथ निरपेक्ष राज्य धर्म के लौकिक रूप में विश्वास करता है और इसके द्वारा सामूहिक रूप से अपने सभी नागरिकों के कल्याण का कार्य करता है।

10. शासन द्वारा धार्मिक शिक्षा का निषेध-पंथ निरपेक्ष राज्य स्वयं धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं करता और सामान्यतया उसके द्वारा ऐसी संस्थाओं को आर्थिक सहायता भी प्रदान नहीं की जाती, जिनके पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा के लिए निश्चित और महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।

11. नैतिकता के नियमों को अस्वीकार नहीं करता:
पंथ निरपेक्ष राज्य में धार्मिक शिक्षा के निषेध का तात्पर्य यह नहीं लिया जाना चाहिए कि राज्य नैतिकता के नियमों को स्वीकार नहीं करता। नैतिकता पंथ निरपेक्ष राज्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण आधार है और संस्कृतियों से सम्बन्धित व्यक्ति सामूहिक रूप से राज्य के कल्याण हेतु कार्य करता है। इस प्रकार से विभिन्न हितों और धार्मिक मतों के बीच सहयोग उनमे निहित सामान्य नैतिक भावना के आधार पर ही सम्भव होता है। इस प्रकार एक सच्चा पंथ निरपेक्ष राज्य नैतिकता को अस्वीकार नहीं करता और न ही उसके द्वारा ऐसा किया जाना चाहिए।

12. व्यक्तियों को अन्य धर्मों का अधिकार नहीं:
पंथ निरपेक्ष राज्य में सभी नागरिकों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक जीवन व्यतीत करने का तो अधिकार होता है, किन्तु उन्हें अन्य धर्मों के विरोध का अधिकार नहीं होता। उनके द्वारा ऐसा कोई भी कार्य नहीं किया जा सकता है जिससे अन्य धर्मों के अनुयायियों की धार्मिक भावना को आघात पहुँचे।

13. कोई भी पंथ निरपेक्ष राज्य के कानूनों से मुक्त नहीं:
पंथ निरपेक्ष राज्य के अन्तर्गत कोई भी धर्म या उस धर्म से सम्बन्धित पुरोहित वर्ग राज्य के कानूनों से मुक्त नहीं होता। यदि धर्म या उसके सिद्धान्त, उसके अनुयायियों या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए हानिकारक हैं, तो राज्य कानून द्वारा ऐसे हानिकारक सिद्धान्तों व धार्मिक व्यवहारों की मनाही कर सकता है।

प्रश्न 3.
पंथ निरपेक्षता की धारणा की आलोचना कीजिए। (Criticism the Concept of Secularism)
उत्तर:
प्राचीन और मध्य युग में धर्म और राजनीति का गठबन्धन था, लेकिन इस प्रकार के गठबन्धन के परिणामस्वरूप धर्म और राजनीति दोनों, का ही स्वरूप विकृत हो गया। इसलिए इस प्रकार से धर्माचार राज्य के विरुद्ध प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुई और धर्म या राजनीति के पृथक्करण पर आधारित पंथ निरपेक्षता के विचार का उद्य हुआ किन्तु पंथ निरपेक्षता के विचार या पंथ निरपेक्षता की भी आलोचना की जाती है। इस प्रकार की आलोचना के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –

1. शासन-प्रणाली का आधार भौतिक:
आलोचना के अनुसार पंथ निरपेक्ष राज्य, राज्य की धर्म से पृथकता पर आधारित होने के कारण आवश्यक रूप से भौतिक होता है इसके अन्तर्गत मनुष्यों के नैतिक एवं आध्यात्मिक हितों की साधना नहीं हो सकती। प्रो. पुन्ताम्बेकर ने इस सम्बन्ध में कहा है, “इसके अन्तर्गत किसी धर्म या नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं होता। पंथ निरपेक्ष राज्य गाँधीवादी राज्य हो ही नहीं सकता …… न तो वह प्राचीन धार्मिक विचारधाराओं पर और न सांस्कृतिक विचारों पर चल सकता है।”

2. राज्य का छिन्न-भिन्न हो जाना सम्भव:
आलोचकों का कथन है कि राज्य में एक धर्म विशेष को मान्यता देने से धार्मिक एकता के आधार पर एक ऐसी राजनीतिक एकता स्थापित हो जाती है, जो राज्य में इस प्रकार की धार्मिक एकता नहीं रहने देती है और इस प्रकार की धार्मिक एकता के अभाव में राज्य के छिन्न-भिन्न हो जाने की आशंका बनी रहती है। आलोचकों के अनुसार एक पंथ निरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के जो अनुयायी होते हैं, उनके द्वारा धार्मिक भेदों के कारण परस्पर एवं निरन्तर लड़ाई-झगड़े राज्य की एकता को नष्ट कर देते हैं।

3. लोककल्याणकारी राज्य नहीं हो सकती:
लोककल्याणकारी राज्य जनहित और सामाजिक कल्याण पर आधारित होता है और लोककल्याण की यह भावना नैतिक आदर्शों और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ही उत्पन्न हो सकती है लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य धर्म और नैतिकता के प्रति उदासीन होता है और इस कारण यह कभी सच्चा लोककल्याणकारी राज्य नहीं हो सकता। आलोचकों के अनुसार, राज्य में लोककल्याण की भावनाओं का पतन हो जाता है और इसमें उन स्वार्थपूर्ण तत्त्वों को बढ़ावा मिलता है, जो लोककल्याण के विरुद्ध होते हैं।

4. सरलता से विकृत हो सकता है:
आलोचकों का यह भी कथन है कि पंथ निरपेक्ष राज्य में शासन का कोई नैतिक आधार नहीं होता, इसलिए इस प्रकार का राज्य सरलतापूर्वक विकृत हो सकता है और तानाशाही का रूप ग्रहण कर सकता है। राज्य में धार्मिक तथा नैतिक भावनाओं का पोषण न होने के कारण इस बात की आशंका रहती है कि कोई व्यक्ति शासन-शक्ति हथिया कर तानाशाही की स्थापना न कर ले जैसा कि मुसोलिनी ने 1922 ई. में और हिटलर ने 1933 ई. में किया।

5. धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था न होने के दुष्परिणाम:
राज्य के अन्तर्गत शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती है। इस प्रकार की धार्मिक शिक्षा के अभाव में विद्यार्थी पूर्ण भौतिकता के वातावरण में पलकर बड़े होते है और नैतिक-अनैतिक मार्ग से भौतिक साधनों की प्राप्ति ही उनके द्वारा अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बना लिया जाता है। जिस देश की युवा पीढ़ी नैतिक और धार्मिक आचरण से हटकर इस प्रकार का कलुषित मार्ग अपना लेती है। उस देश का भविष्य अन्धकारमय ही कहा जा सकता है।

6. बहुसंख्यक धार्मिक वर्ग की भावनाओं को आघात:
एक राज्य के अन्तर्गत धर्म की दृष्टि से जो वर्ग बहुमत में है, सदैव ही यह चाहता हैं कि उसे राज्य के अन्तर्गत अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त होना चाहिए। धर्म की दृष्टि से बहुमत वर्ग को विशेष स्थिति प्राप्त होने या धर्माचार्य राज्य होने पर इस बहुमत वर्ग के द्वारा राज्य के प्रति धर्म मिश्रित देशभक्ति का दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है और वे राज्य के कल्याण को अपना विशेष कर्तव्य समझते हैं लेकिन पंथ निरपेक्ष राज्य में जब बहुमत और अल्पमत वर्ग को समान स्थिति प्राप्त होती है तो बहुमत वर्ग को अल्पमत वर्ग के लिए अपनी भावनाओं और हितों पर अंकुश रखना होता है। इससे बहुमत वर्ग की भावनाओं पर आघात पहुँचता है और वे राज्य के प्रति उस श्रद्धा-भक्ति का परिचय नहीं दे पाते, जिसका परिचय वे दे सकते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
इनमें से कौन धर्म निरपेक्ष राज्य नहीं है –
(क) नेपाल
(ख) अमेरिका
(ग) भारत
(घ) पाकिस्तान
उत्तर:
(घ) पाकिस्तान

प्रश्न 2.
‘धर्म से जीवन के विभिन्न कार्यों में संगति आती हैं और इससे उसको दिशा प्राप्त होती है।’ धर्म निरपेक्षता के सम्बन्ध में यह कथन किस महापुरुष का है?
(क) शंकराचार्य
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) डॉ. राधाकृष्णन
(घ) विनोबा भावे
उत्तर:
(ग) डॉ. राधाकृष्णन

प्रश्न 3.
‘अस्पृश्यता का अन्त’ का वर्णन किस अनुच्छेद में किया गया है?
(क) अनुच्छेद – 14
(ख) अनुच्छेद – 17
(ग) अनुच्छेद – 23
(घ) अनुच्छेद – 12
उत्तर:
(ख) अनुच्छेद – 17