Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 2 उसने कहा था
उसने कहा था वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
Usne Kaha Tha Question And Answer Bihar Board प्रश्न 1.
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की कहानी कौन–सी है?
(क) जूठन
(ख) रोज़
(ग) उसने कहा था
(घ) तिरिछ
उत्तर–
(ग)
उसने कहा था’ कहानी के प्रश्न उत्तर Pdf Bihar Board प्रश्न 2.
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ जी का जन्म कब हुआ था?
(क) 7 जुलाई, 1883 ई.
(ख) 10 मार्च, 1980 ई.
(ग) 11 जनवरी, 1805 ई.
(घ) 15 फरवरी, 1875 ई.
उत्तर–
(क)
उसने कहा था कहानी के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 3.
चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की वृत्ति क्या थी?
(क) व्यापार
(ख) खेती–बारी
(ग) अध्यापन
(घ) सधुक्कड़ी
उत्तर–
(ग)
Usne Kaha Tha Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
गुलेरी जी ने किस पत्रिका का संपादन किया?
(क) गंगा
(ख) माधुरी
(ग) समन्वय
(घ) समालोचक
उत्तर–
(घ)
Usne Kaha Tha Class 12th Hindi Bihar Board प्रश्न 5.
काशी नगरी प्रचारिणी पत्रिका के गुलेरी जी क्या?
(क) लेखक
(ख) कवि
(ग) संपादक
(घ) संचालक
उत्तर–
(ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
उसने कहा था’ कहानी के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 1.
लहना सिंह के भतीजे का नाम ……… था।
उत्तर–
कीरत सिंह
Usne Kaha Tha Question And Answer Pdf Bihar Board प्रश्न 2.
कहती है तुम ………. हो मेरे मुल्क को बचाने आए हो।
उत्तर–
राजा
लहना सिंह कौन था Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
कुछ दूर जाकर लड़के ने पूछा–”तेरी …….. हो गई।”
उत्तर–
कुड़माई
Usne Kaha Tha Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
उसी ………. के बाग में मखमल की सी हरी घास है।
उत्तर–
फिरंगी मेम
उसने कहा था पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 5.
“जाड़ा क्या है, मौत है और ……… से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।”
उत्तर–
‘निमोनिया’
उसने कहा था अति लघु उत्तरीय प्रश्न
Usne Kaha Tha Question And Answer In Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
‘उसने कहा था’ कहानी के कहानीकार कौन हैं :
उत्तर–
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी।
Usne Kaha Tha Kahani Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 2.
हिन्दी की पहली श्रेष्ठ कहानी कौन–सी है?
उत्तर–
उसने कहा था।
Usne Kaha Tha Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
गद्य का विकास किस काल में हुआ?
उत्तर–
आधुनिक काल।
Usne Kaha Tha Story Question And Answer Bihar Board प्रश्न 4.
कीरत सिंह कौन था?
उत्तर–
लहनासिंह का भतीजा।
प्रश्न 5.
‘उसने कहा था’ कैसी कहानी है?
उत्तर–
फ्लैश बैंक स्टाइल पर आधारित कहानी है।
प्रश्न 6.
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कौन–सी है?
उत्तर–
उसने कहा था।
प्रश्न 7.
किसी कहानी को महान कौन बनाता है?
उत्तर–
कहानी की उद्देश्य।
प्रश्न 8.
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी किस युग के कहानीकार हैं?
उत्तर–
प्रेमचन्द युग के।
प्रश्न 9.
‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है?
उत्तर–
पाँच भागों में।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन–सी कहानी गुलेरी जी की नहीं है?
उत्तर–
पूस की रात।
प्रश्न 11.
पाठ में किस महीने का नाम आया है?
उत्तर–
कार्तिक।
उसने कहा था पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है?
उत्तर–
“उसने कहा था” कहानी पाँच भागों में विभक्त की गई है। इस पूरी कहानी में तीन . भागों में युद्ध का वर्णन है। द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ भाग में युद्ध के दृश्य हैं।
प्रश्न 2.
कहानी के पात्रों की एक सूची तैयार करें।
उत्तर–
कहानी में कई पात्र हैं जिनमें से कुछ प्रमुख हैं और कुछ गौण। कहानी के पात्रों के नाम निम्नलिखित हैं–
लहनासिंह (नायक), सूबेदारनी, सूबेदार हजारासिंह, बोधासिंह (सूबेदार का बेटा), अतरसिंह (लड़की का मामा), महासिंह (सिपाही), वजीरासिंह (सिपाही), लपटन साहब आदि।
प्रश्न 3.
लहनासिंह का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर–
लहनासिंह एक वीर सिपाही है। वह ‘उसने कहा था’ कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है। लेखक ने कहानी में उसके चरित्र को पूरी तरह उभारा है। कहानी में उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं-
- कहानी का नायक–कहानी का समस्त घटनाक्रम लहनासिंह के आस–पास घटता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वो कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है।
- सच्चा प्रेमी–लहनासिंह एक सच्चा प्रेमी है। बचपन में उसके हृदय में एक अनजान भावना ने जन्म लिया जो प्रेम था। यद्यपि उसे अपना प्रेम न मिल सका लेकिन फिर भी उसने सच्चाई से उसे अपने हृदय में बसाए रखा।
- बहादुर तथा निडर–लहनासिंह बहादुर तथा निडर व्यक्तित्व का स्वामी है। तभी तो वह बैठे रहने से बेहतर युद्ध को समझाता है।
- चतुर : लहनासिंह बहादुर होने के साथ–साथ काफी चतुर भी है। इसीलिए उसे लपटन साहब के नकली होने का शक हो गया और उसने चतुराई से उसका भांडा फोड़ दिया।
- सहानुभूति तथा दयालुपन : लहनासिंह के चरित्र में सहानुभूति तथा दया भाव भी विद्यमान है। इसीलिए वह भीषण सर्दी में भी अपने कम्बल और जर्सी बीमार बोधासिंह को दे
देता है। - वचन पालन : सूबेदारनी ने लहनासिंह से अपने पति और बेटे के प्राणों की रक्षा करने की बात कही थी। लेकिन लहना सिंह ने उसे एक वचन की तरह निभाया और इसके लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर दिया।
प्रश्न 4.
पाठ से लहना और सूबेदारनी के संवादों को एकत्र करें।
उत्तर–
पाठ में लहनासिंह और सूबेदारनी के बीच कुछ संवाद हैं जो निम्नलिखित हैं–
बचपन का संवाद–
“तेरे घर कहाँ है?”
“मगरे में–और तेरे!”
“माँझे में; यहाँ कहाँ रहती है?”
“अतरसिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।”
“मैं भी मामा के यहाँ हूँ, उनका घर गुरु बाजार में है।”
इतने में दूकानदार………….लड़के ने मुस्कुराकर पूछा–”तेरी कुड़माई हो गई?” इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर ‘धत्’ कहकर दौड़ गई।
…………लड़के ने फिर पूछा–”तेरी कुड़माई हो गई?” और उत्तर में वही ‘धत्’ मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तब लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली–”हाँ, हो गई।”
“कब?”
“कल–देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू!”
सूबेदार के घर का संवाद
“मुझे पहचाना?”
“नहीं।”
“तेरी कुड़माई हो गई? ‘धत्’–कल हो गई–देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू–अमृतसर में–”सूबेदारनी कह रही है–”मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। ………तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।”
प्रश्न 5.
“कल, देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।” वह सुनते ही लहना की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर–
“कल, देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।” वह सुनते ही लहना को काफी गुस्सा आया। साथ ही वह अपनी सुध–बुध ही खो बैठा। इसीलिए घर वापस आते समय एक लड़के को नाली में धकेल दिया। एक खोमचे वाले के खोमचे बिखेर दिए। एक कुत्ते को पत्थर मारा और एक सब्जीवाले की रेड़ी पर दूध उड़ेल दिया। एक वैष्णवी (पूजा–पाठ करनेवाली) औरत से टकरा गया जिसने उसे अंधा कहा। तब जाकर वह अपने घर पहुँचा।।
प्रश्न 6.
“जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते”, वजीरासिंह के इस कथन का क्या आशय है?
उत्तर–
“जाड़ा क्या है, मौत है और निमोनिया से मरनेवालों को मुरब्बे नहीं मिला करते” वजीरासिंह के इस कथन का आशय है कि वहाँ युद्ध के मैदान में अत्यधिक ठंड पड़ रही है जिस कारण ऐसा लगता है कि मानो उनकी जान ही निकल जाएगी। वैसे भी इस स्थिति में इतने लोगों को निमोनिया हो रहा है कि उन्हें मरने के लिए स्थान भी नहीं मिल रहा है।
प्रश्न 7.
‘कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।’ वजीरा के इस कथन। में किसकी और संकेत है।
उत्तर–
‘कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।’ वजीरा के इस कथन में फ्रांस की मेम की ओर संकेत हैं।
प्रश्न 8.
लहना सिंह के गाँव में आया तुर्की मौलवी क्या कहता था?
उत्तर–
लहना के गाँव में आया तुर्की मौलवी कहता था कि जर्मनी वाले बड़े पंडित हैं। वेद पढ़–पढ़कर उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। गौ को नहीं मारते। हिन्दुस्तान में आ जाएँगे तो गौ हत्या बंद कर देंगे। मंडी में बनियों को बहकाता था कि डाकखाने से रुपए निकाल लो, सरकार का राज्य जाने वाला है।
प्रश्न 9.
‘लहनासिंह का दायित्व बोध और उसकी बुद्धि दोनों ही स्पृहणीय है।’ इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर–
लहनासिंह एक बहुगुण सम्पनन व्यक्तित्व का स्वामी है। उसके चरित्र में विद्यमान गुण, समस्त कहानी में दिखाई पड़ते हैं। लेकिन उसका दायित्व बोध और बुद्धि दोनों ही स्पृहणीय हैं। वह बचपन में एक लड़की से मिला और उससे हृदयगत प्रेम कर बैठा। यद्यपि वह न तो अपना प्रेम प्रकट कर सका और न ही उस लड़की को पा सका। फिर भी जब कई वर्षों बाद वह उसी लड़की से सूबेदारनी के रूप में मिला तो उसकी एक प्रार्थना के बदले में अपने प्राण तक दे दिए। यह उसका दायित्व बोध ही था जिसे उसने मरकर ही पूरा किया। वहीं जब नकली लपटन साहब धोखे से कुछ सिपाहियों को दूसरी जगह भेज देता है तो लहनासिंह अपनी बुद्धि के बल पर उसकी असलियत भाप लेता है और फिर उसे सबक भी सिखाता है।
प्रश्न 10.
प्रसंग एवं अभिप्राय बताएँ :
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है।’ जन्म–भर की घटनाएँ एक–एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ होते हैं; समय की धुंध बिल्कुल ऊपर से छट जाती है। .
उत्तर–
यह प्रसंग उस समय का है जब लहनासिंह घायल हो जाता है और बोधासिंह को अस्पताल ले जाया जाता है। उसी अंत:स्थिति में लहनासिंह वजीरा से पानी मांगता है और लहना अतीत की यादों में खो जाता है।
इन पंक्तियों का अभिप्राय यह है कि मृत्यु के पहले व्यक्ति के मानस की स्मृति में जीवन भर की भोगी हुई घटनाएँ एक–एक कर सामने आने लगती हैं जिसमें किसान जीवन का यथार्थ, लहनासिंह का सपना, गाँव–भर की याद, सूबेदारनी का वचन इत्यादि शामिल है। मृत्यु शाश्वत सत्य है। मृत्यु हरेक व्यक्ति को वरण करती है। कहा भी गया है–’मौत से किसको रूस्तगारी हैं, आज मेरी तो कल तेरी बारी है।’ जीवन के अन्तिम क्षण में मानस पटल के साफ–धवल आईने पर स्मृतियों की रेखाएँ पूर्वानुभावों से सिक्त होकर एक बार फिर सजीव और स्पन्दित हो जाती हैं और यादाश्त की कई परतें अपने आप खुलने लगती हैं। मृत्यु एक ऐसा पड़ाव है जहाँ अतीत का मोह और आगे जाने की चाह दोनों के समाहार से द्वन्द्व की स्थिति पैदा होती है।
यही कारण है कि जब लहनासिंह घायल होता है, मृत्यु शय्या पर पड़ा रहता है तो मोहवश पुरानी स्मृतियाँ यानि उसका इतिहास अपने आगोश में उसे पुनः बाँधती हैं और उसी अतीत के सुखद क्षणों में पुनः जी लेने के लिए उसे उत्तेजित करती हैं। हर आदमी अकेला है और अन्ततः मृत्यु को प्राप्त होता है। इस सच्चाई को बहुत समय तक झुठलाया नहीं जा सकता। यही कारण है कि मानव–मस्तिष्क के ऊपर संदर्भ में कोहरा छाया रहता है, लेकिन जब यह सच्चाई अपने यथार्थ में सच्चाई को एकबारगी प्रकट कर देने को तैयार हो जाती है और मौत बिल्कुल स्पष्ट रूप में सामने आ जाती है तो मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ हो जाती है। जन्म भर की घटनाएँ एक–एक करके सामने आने लगती है। सारे उद्देश्यों के रंग साफ होते हैं समय की धुंध उस पर से बिल्कुल छट जाती है।
प्रश्न 11.
मर्म स्पष्ट करें
(क) अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा भतीजा दोनों यहीं बैठकर आम खाना। जितना बड़ा भतीजा है उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था उसी महीने में इसे लगाया था।
(ख) “और अब घर जाओ तो कह देना कि मुझे जो उसने कहा था वह मैने कर दिया।”
उत्तर–
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी का है। इन पंक्तियों में लहनासिंह का सपना था कि उसका अपने गाँव में बाग हो जिसमें खरबूजे और आम पर फूले जिसे वह अपने भतीजे के साथ खाए।
लहनासिंह स्वप्नवादी व्यक्ति है। ग्राम्य संस्कृति में जन्म लेने की वजह से उसका स्वप्न कल्पतरु की भाँति पुष्पित तथा पल्लवित हुआ है। किसानी संस्कृति जिस तरह से उन्मुक्त वातावरण का द्योतक होती है ठीक उसी तरह से वह वहाँ के जन–जीवन में जान फूंक देने के लिए मानव–मस्तिष्क के अन्दर स्वच्छन्द तथा उन्मुक्त आकाश को विस्तार देता है। आत्मीयता के बोध से लवरेज लहनासिंह का स्वप्न एक बार फिर स्मृतियों में कौंधने लगता है जब वह जीवन की आखिरी छोर पर खड़ा है। सुखद स्वप्न का साकार न होना हृदयगत भावनाओं को जहाँ ठेस पहुँचाती है वहीं दूसरी ओर स्मृतियों की रेखाओं में दग्ध बिजली की आग भी पैदा करता है। लहनासिंह जिस वर्ष आम रोपता है उसी वर्ष उसका भतीजा जन्म लेता है। मधुस्मृतियों का महज यह संयोग ही है जो स्वप्न भविष्य में साकार होकर लहनासिंह को दोहरा आनन्द प्रदान करने वाला है।” लेकिन ऐसा जब नहीं होता है तो किसानों तथा फौजदारी के परितः चुना हुआ उसका हृदयगत भाव एक बार फिर उमड़ता है और स्मृतियों में सुखद स्वप्न को ठेस पहुंचाता है।
(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘उसने कहा था’ शीर्षक कहानी का है, इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब लहनासिंह मरणासन्न स्थिति में है, शत्रुओं की गोलियाँ शरीर में लगी है। उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है। बीते हुए दिन की स्मृतियाँ उसे झकझोर रही है। ऐसी स्थिति में वह वजीरा से कहता है कि वह (वजीरा) जब घर जाएगा तो उस (सुबेदारनी) को कह देगा कि लहना सिंह को उसने जो कहा था, उसने (लहना) वह पूरा कर दिया अर्थात् उसने सूबेदार हजारा सिंह एवं उसके पुत्र बोधासिंह के प्राणों की रक्षा अपने जीवन का बलिदान कर की है। उसने अपने वचन का पालन किया है।
इस प्रकार विद्वान लेखक ने यहाँ पर लहना सिंह के उदार चरित्र का वर्णन किया है। लहना सिंह ने उच्च जीवन सिद्धान्तों के पालन का आदर्श प्रस्तुत किया है। उसका जीवन कर्तव्य परायणता, निष्ठा, उच्च नैतिक मूल्य तथा अपने वचन का पालन करने का एक अनुकरणीय उदाहरण है।
प्रश्न 12.
कहानी का शीर्षक ‘उसने कहा था’ क्या सबसे सटीक शीर्षक है? अगर हाँ तो क्यों, आप इसके लिए कोई दूसरा शीर्षक सुझाना चाहेंगे, अपना पक्ष रखें।
उत्तर–
“उसने कहा था” कहानी की घटनाओं में स्वाभाविक नाटकीयता है जिसकी परिणति मानस–पटल पर विषाद एवं सहानुभूति की अमिट रेखा के रूप में होती है। इसका कथानक मानवीय संवेदना को झकझोर देता है।
“उसने कहा था” शीर्षक किसी घटना विशेष की ओर संकेत करती है एवं जिज्ञासा का : सृजन करता है। जाने की उत्सुकता बनी रहती है।
एक सटीक तथा उपयुक्त शीर्षक के लिए उसकी कहानी की विषयवस्तु का सम्यक् एवं सजीव परिचय देना है। उसकी सार्थकता पाठक में उत्सुकता की सृष्टि करने पर भी निर्भर करती है। इस कहानी में वातावरण की सृष्टि करने में लेखक को अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। आरम्भ से ही एक कौतूहल पाठक को अपने प्रभाव में बाँध लेता है और कहानी के उत्कर्ष बिन्दु पर पहुँचकर विराम लेता है। इसके अतिरिक्त कहानी का प्रभाव मन में गूंजता रहता है।
लहना सिंह अपनी किशोरावस्था में एक अनजान लड़की के प्रति आसक्त हुआ था किन्तु वह उससे प्रणय–सूत्र में नहीं बँध सका। कालान्तर में उस लड़की का विवाह सेना में कार्यरत एक सूबेदार से हो गया। लहना सिंह भी सेना में भरती हो गया। अचानक अनेक वर्षों बाद उसे ज्ञात हुआ कि सूबेदारनी (सूबेदार की पत्नी) ही वह लड़की है जिससे उसने कभी प्रेम किया था। सूबेदारनी ने उससे निवेदन किया कि वह उसके पति तथा सेना में भर्ती एकमात्र पुत्र बोधा सिंह की रक्षा करेगा। लहना सिंह ने कहा था कि वह इस वचन को निभाएगा और अपने प्राणों का बलिदान कर उसने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया।
अत: इस शीर्षक से अधिक उपयुक्त कोई अन्य शीर्षक नहीं हो सकता। यह सबसे सटीक शीर्षक है। अत: मेरे विचार में कोई भी अन्य शीर्षक इतना सार्थक नहीं होगा। मेरे द्वारा अन्य शीर्षक देना सर्वथा अनुपयुक्त होगा।
प्रश्न 13.
‘उसने कहा था’ कहानी का केन्द्रीय भाव क्या है? वर्णन करें।
उत्तर–
‘उसने कहा था’ प्रथम विश्वयुद्ध (लगभग 1915 ई.) की पृष्ठभूमि में लिखी गयी कहानी है। गुलेरीजी ने लहनासिंह और सूबेदारनी के माध्यम से मानवीय संबंधों का नया रूप में नहीं बंध सका सेना में भरती हो गया जिससे उसने कभी प्रेम कथा प्रस्तुत किया है। लहना सिंह सूबेदारनी के अपने प्रति विश्वास से अभिभूत होता है क्योंकि उस विश्वास की नींव में बचपन के संबंध है। सूबेदारनी का विश्वास ही लहना सिंह को उस महान त्याग की प्रेरणा देता है।
कहानी एक और स्तर पर अपने को व्यक्त करती है। प्रथम विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि पर यह एक अर्थ में युद्ध–विरोधी कहानी भी है। क्योंकि लहनासिंह के बलिदान का उचित सम्मान किया जाना चाहिए था परन्तु उसका बलिदान व्यर्थ हो जाता है और लहनासिंह का करूण अंत युद्ध के विरुद्ध में खड़ा हो जाता है। लहनासिंह का कोई सपना पूरा नहीं होता।
उसने कहा था भाषा की बात।
प्रश्न 1.
निम्न शब्दों से विशेषण बनाएँ और उनका वाक्य प्रयोग करें। जल, धर्म, नमक, विलायत, फौज, किताब।
उत्तर–
जल–जलीय–मछली जलीय जीव है।
धर्म–धार्मिक–महात्मा गाँधी धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
नमक–नमकीन–समुद्र का पानी नमकीन होता है।
विलायत–विलायती–हजारा सिंह विलायती अफसर था।
फौज–फौजी–सोहन फौजी है।
किताब–किताबी–यदु किताबी कीड़ा है।
प्रश्न 2.
दिए गए शब्दों के समानार्थी शब्द लिखें मुर्दा, लहू, घाव, झूठ, चकमा, चिट्ठी, घर, राजा, रचना।
उत्तर–
- मुर्दा – लाश, मृतक, शव
- लहू – खून, रक्त
- घाव – जखम, नासूर
- झूठ – असंगत, असत्य
- चकमा – धूर्तता, धोखा
- चिट्ठी – पत्र घर – गृह, आलय
- राजा – नृप, आलय
- रचना – कृति
प्रश्न 3.
रचना के आधार पर इन वाक्यों की प्रकृति बताएँ
(क) राम, राम यह भी कोई लड़ाई है।
(ख) परसों ‘रिलीफ’ आ जाएगी और फिर सात दिन की छुट्टी।
(ग) कहती है, तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।
(घ) इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर ‘धत्’ कहकर दौड़ गई और लड़का मुंह देखता रह गया।
(ङ) हाँ देश क्या है, स्वर्ग है।
(च) मैं तो बुलेल की खड्ड के किनारे मरूंगा।
उत्तर–
(क) सरल वाक्य
(ख) संयुक्त वाक
(ग) मिश्र वाक्य
(घ) संयुक्त वाक्य
(ङ) मिश्र वाक्य
(च) मिश्र वाक्य।
प्रश्न 4.
उत्पत्ति की दृष्टि से इन शब्दों की प्रकृति बताएँ
आवाज, कयामत, आँसू, दही, बिजली, क्षयी, बेईमान, सोत, बावलियों, खाद, सिगड़ी, बादल।
उत्तर–
- आवाज – विदेशज
- कयामत – विदेशज
- आँसू – तद्भव
- दही – तद्भव
- बिजली – देशज
- क्षयी – तत्सम
- बेईमान – देशज
- सोत – तद्भव
- बावलियों – देशज
- खाद – देशज
- सिगड़ी – देशज
- बादल – देशज
उसने कहा था लेखक परिचय चन्द्रधर शर्मा गुलेरी (1883–1922)
जीवन–परिचय : हिन्दी गद्य साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखने वाले चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई, सन् 1883 ई. के दिन जयपुर, राजस्थान में हुआ था। लेकिन इनका मूल निवास स्थान कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश का गुलेर नामक गाँव था। इनके पिता का नाम पं. शिवराम था। इन्होंने बचपन से ही संस्कृत में शिक्षा प्राप्त की। 1899 में इलाहाबाद तथा कोलकाता विश्वविद्यालयों से क्रमश: एंट्रेंस तथा मैट्रिक पास की। सन् 1901 में कोलकाता विश्वविद्यालय से इंटरमीडिएट करने के उपरान्त सन् 1903 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी. ए. किया।
गुलेरी जी सन् 1904 में जयपुर दरबार की ओर से खेतड़ी के नाबालिग राजा जयसिंह के अभिभावक बनकर मेयो कॉलेज, अजमेर में आ गए। इसके बाद इन्हें जयपुर भवन छात्रावास के अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। सन् 1916 में संस्कृत विभाग के अध्यक्ष बनाए गए। अपने अन्तिम दिनों में मदन मोहन मालवीय के निमन्त्रण पर इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्राच्य विभाग के कार्यवाहक प्राचार्य तथा मनीन्द्र चन्द्र नंदी पीठ में प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। साहित्य के इस पुरोधा का निधन 12 सितम्बर, 1922 के दिन हुआ।
रचनाएँ :
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं कहानियाँ–सुखमय जीवन (1911), बुद्ध का काँटा (1911), उसने कहा था (1915)।
निबन्ध–
कछुआ धरम, मारेसि मोहि कुठाँव, पुरानी हिन्दी, भारतवर्ष, डिंगल, संस्कृत की टिप्पणी, देवाना प्रिय आदि।
इसके अतिरिक्त प्राच्यविद्या, इतिहास, पुरातत्व, भाषा विज्ञान और समसामयिक विषयों पर निबन्ध लेखन।
अंग्रेजी निबन्ध–ए पोयम बाय भास, ए कमेंटरी ऑन वात्सयायंस कामसूत्र, दि लिटरेरी क्रिटिसिज्म आदि।
टिप्पणियाँ–अनुवादों की बाढ़, खोज की खाज, क्रियाहीन हिन्दी, वैदिक भाषा में प्राकृतपन आदि।
संपादन–समालोचक, काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका। इसके अतिरिक्त इन्होंने देशप्रेम को लेकर कुछ महत्त्वपूर्ण कविताएँ भी लिखी हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ :
कम लिखकर बहुत अधिक ख्याति प्राप्त करने वाले चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिन्दी गद्य साहित्य के एक प्रमुख लेखक हैं। वे हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं के प्रकांड विद्वान थे। इन्होंने अपनी अभिरुचि के विभिन्न विषयों पर निबंध, लेख, टिप्पणियाँ आदि लिखीं। हिन्दी कहानी के विकास में इनका प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। इन्होंने यथार्थ के संतुलित संधान के साथ आधुनिक कथ्यों वाली महत्त्वपूर्ण कहानियाँ लिखीं। इनकी कहानियों की विषयवस्तु और कथ्य अधिक गंभीर, रोचक तथा समय से आगे की है।
उसने कहा था पाठ के सारांश।
कहानी का प्रारम्भ अमृतसर नगर के चौक बाजार में एक आठ वर्षीय सिख बालिका तथा एक बारह वर्षीय सिख बालक के बीच छोटे से वार्तालाप से होता है। दोनों ही बालक–बालिका अपने–अपने मामा के यहाँ आए हुए हैं। बालिका व बालक दोनों सामान खरीदने बाजार आए थे कि बालक मुस्कुराकर बालिका से पूछता है, “क्या तेरी कुड़माई (सगाई) हो गई?” इस पर बालिका कुछ आँखें चढ़ाकर.”धत्” कहकर दौड़ गई और लड़का मुँह देखता रह गया। ये दोनों …… बालक–बालिका दूसरे–तीसरे दिन एक–दूसरे से कभी किसी दूकान पर कभी कहीं टकरा जाते और वही प्रश्न और वही उत्तर। एक दिन ऐसा हुआ कि बालक ने वही प्रश्न पूछा और बालिका ने उसका उत्तर लड़के की संभावना के विरुद्ध दिया और बोली–हाँ हो गई।’
इस अप्रत्याशित उत्तर को सुनकर लड़का चौंक पड़ता है और पूछता है कब? जिसके प्रत्युत्तर में लड़की कहती है “कल,?. देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू।” और यह कह कर वह भाग जाती है। परन्तु लड़के के ऊपर मानों वज्रपात होता है और वह किसी को नाली में धकेलता है, किसी छाबड़ी वाले की छाबड़ी गिरा देता है, किसी कुत्ते को पत्थर मारता है किसी सब्जी वाले के ठेले में दूध उड़ेल देता है और किसी सामने आती हुई वैष्णवी से टक्कर मार देता है और गाली खाता है। कहानी का पहला भाग यही नाटकीय ढंग से समाप्त हो जाता है।
इस बालक का नाम था लहना सिंह और यही बालिका बाद में सूबेदारनी के रूप में हमारे सामने आती है। . इस घटना के पच्चीस वर्ष बाद कहानी का दूसरा भाग शुरू होता है। लहना सिंह युवा हो गया और जर्मनी के विरुद्ध लड़ाई में लड़ने वाले सैनिकों में भर्ती हो गया और अब वह नम्बर 77 राइफल्स में जमादार है। एक बार वह सात दिन की छुट्टी लेकर अपनी जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी करने घर आया था। वहीं उसे अपने रेजीमेंट के अफसर की चिट्ठी मिलती है कि फौज को लाम (युद्ध) परं जाना है, फौरन चले आओ। इसी के साथ सेना के सूबेदार हजारा सिंह को भी चिट्ठी मिलती है कि उसे और उसके बेटे बोधासिंह दोनों को लाम (युद्ध) पर जाना है अतः साथ ही चलेंगे।
सूबेदार का गाँव रास्ते में पड़ता था और वह लहनासिंह को चाहता भी बहुत था। लहनासिंह सूबेदार के घर पहुंच गया। जब तीनों चलने लगे तब अचानक सूबेदार लहनासिंह को आश्चर्य होता है कि सेना के क्वार्टरों में तो वह कभी रहा नहीं। पर जब अन्दर मिलने जाता है तब सूबेदारनी उसे ‘कुड़माई हो गई’ वाला वाक्य दोहरा कर 25 वर्ष पहले की घटना का स्मरण दिलाती है और कहती है किं जिस तरह उस समय उसने एक बार घोड़े की लातों से उसकी रक्षा की थी उसी प्रकार उसके पति और एकमात्र पुत्र की भी वह रक्षा करे। वह उसके आगे अपना आँचल पसार कर भिक्षा माँगती है। यह बात लहना सिंह के मर्म को छू जाती है।
युद्ध भूमि पर उसने सूबेदारनी के बेटे बोधासिंह को अपने प्राणों की चिन्ता न करके जान बचाई। पर इस कोशिश में वह स्वयं घातक रूप से घायल हो गया। उसने अपने घाव पर बिना किसी को बताये कसकर पट्टी बाँध ली और इसी अवस्था में जर्मन सैनिकों का मुकाबला करता रहा। शत्रुपक्ष की पराजय के बाद उसने सूबेदारनी के पति सूबेदार हजारा सिंह और उसके पुत्र बोधासिंह को गाड़ी में सकुशल बैठा दिया और चलते हुए कहा “सुनिए तो सूबेदारनी होरों को चिट्ठी लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना और जब घर जाओ. तो कह देना कि मुझसे जो उन्होंने कहा था वह मैंने कर दिया…….”
सूबेदार पूछता ही रह गया उसने क्या कहा था कि गाड़ी चल दी। बाद में उसने वजीरा , से पानी माँगा और कमरबन्द खोलने को कहा क्योंकि वह खून से तर था। मृत्यु सन्निकट होने पर जीवन की सारी घटनाएँ चलचित्र के समान घूम गई और अन्तिम वाक्य जो उसके मुँह से निकला वह था “उसने कहा था।” इसके बाद अखबारों में छपा कि “फ्रांस और बेल्जियम–68 सूची मैदान में घावों से भरा नं. 77 सिक्ख राइफल्स जमादार लहना सिंह। इस प्रकार अपनी बचपन की छोटी–सी मुलाकात में हुए परिचय के कारण उसके मन में सूबेदारनी के प्रति जो प्रेम।
उदित हुआ था उसके कारण ही उसने सूबेदारनी के द्वारा कहे गये वाक्यों को स्मरण रख उसके पति व पुत्र की रक्षा करने में अपनी जान दे दी क्योंकि यह उसने कहा था। :