Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 6 एक लेख और एक पत्र

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 6 एक लेख और एक पत्र

 

एक लेख और एक पत्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न

एक लेख और एक पत्र Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
‘एक लेख और एक पत्र के लेखक हैं’ :
उत्तर–
भगत सिंह।

एक लेख और एक पत्र प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 2.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है?
उत्तर–
देश सेवा के बदले दी गई फाँसी को।

Ek Lekh Aur Ek Patra Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार आत्महत्या क्या है?
उत्तर–
कायरता।

एक लेख और एक पत्र Objective Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 4.
भगत सिंह सरकार के किस राय पर खपा थे?
उत्तर–
छात्र को राजनीति से दूर रखने की राय पर।

एक लेख और एक पत्र का सारांश Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 5.
विद्यार्थी को राजनीति में क्यों भाग लेना चाहिए?
उत्तर–
विद्यार्थी देश के भावी कर्णधार होते हैं।

Ek Lekhak Aur Ek Patra Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 6.
भगत सिंह के आदर्श पुरुष कौन थे? उत्तर–करतार सिंह सराबा।

Ek Patra Aur Ek Lekh Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 7.
सन् 1926 में भगत सिंह ने किस दल का गठन किया?
उत्तर–
नौजवान भारत सभा।

एक लेख और एक पत्र वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Ek Lekh Aur Ek Patra Bhagat Singh Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
भगत सिंह का जन्म कब हुआ था?
(क) 28 सितम्बर, 1907 ई.
(ख) 10 सितम्बर, 1910 ई.
(ग) 15 जून, 1901 ई.
(घ) 17 फरवरी, 1908 ई.
उत्तर–
(क)

Hindi Class 12th Bihar Board प्रश्न 2.
1941 ई. में भगत सिंह किस पार्टी की ओर आकर्षित हुए?
(क) गदर पार्टी
(ख) नेशनल पार्टी
(ग) स्वतंत्र पार्टी
(घ) राष्ट्रवादी पार्टी
उत्तर–
(क)

Class 12 Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
भगत सिंह सदैव किसका चित्र पॉकेट में रखते थे?
(क) गुरु गोविन्द सिंह
(ख) गुरुनानक
(ग) महात्मा बुद्ध
(घ) करतार सिंह सराया
उत्तर–
(घ)

Bihar Board Class 12 Hindi प्रश्न 4.
भगत सिंह किस उम्र से क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय हुए?
(क) 12 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 10 वर्ष
(घ) 15 वर्ष
उत्तर–
(क)

प्रश्न 5.
भगत सिंह कब चौरीचौरा कांड में शरीक हुए?
(क) 1922 ई.
(ख) 1925 ई.
(ग) 1928 ई.
(घ) 1930 ई. .
उत्तर–
(क)

प्रश्न 6.
भगत सिंह ने नौजवान–सभा की शाखाएँ कहाँ–कहाँ स्थापित की?
(क) पटना–दिल्ली
(ख) कानुपुर–कलकत्ता
(ग) अजमेर–गाजीपुर
(घ) विभिन्न शहरों में
उत्तर–
(घ)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
भगत सिंह को ………. षड्यंत्र केस में फांसी की सजा हुई थी।
उत्तर–
लाहौर

प्रश्न 2.
भगत सिंह के पिता सरदार ………… थे।
उत्तर–
किशन सिंह

प्रश्न 3.
भगत सिंह ………. परिवार स्वाधीनता सेनानी थे।
उत्तर–
संपूर्ण

प्रश्न 4.
भगत सिंह का ……… खडकड़कलाँ, पंजाब में है।
उत्तर–
पैतृक गाँव

प्रश्न 5.
बाद में भगत सिंह ने ………….. कॉलेज, लाहौर से एफ. ए. किया।
उत्तर–
नेशनल

प्रश्न 6.
भगत सिंह का जन्म ………. हुआ था।
उत्तर–
28 सितम्बर, 1907 ई.

प्रश्न 7.
भगत सिंह ने बी. ए. के बाद पढ़ाई छोड़ दी और ……… दल में शामिल हो गए।
उत्तर–
क्रांतिकारी

एक लेख और एक पत्र पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए?
उत्तर–
विद्यार्थियों को राजनीति में भाग इसलिए लेना चाहिए क्योंकि उन्हें ही कल देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नहीं लेंगे तो आने वाले समय में देश की भली–भाँति नहीं सँभाल पाएँगे, जिससे देश का विकास न हो सकेगा।

प्रश्न 2.
भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं?
उत्तर–
भगत सिंह की विद्यार्थियों से बहुत–सी अपेक्षाएँ हैं। वे चाहते हैं कि विद्यार्थी राजनीति तथा देश की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करें और उनके सुधार के उपाय सोचने की योग्यता पैदा करें। वे देश की सेवा में तन–मन–धन से जुट जाएँ और अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे न हटें।

प्रश्न 3.
भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।
उत्तर–
भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर–बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।।

क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है। जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था। इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कष्ट के संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है। हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दु:खमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं।

खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों ‘चिन्ताओं’ दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं। इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये। वे जानते थे मेरे इन कष्टों, दु:खों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आन्दोलन कर बैठेगी। अतः भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है।

प्रश्न 4.
भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।
उत्तर–
क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस सन्दर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुन्दर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।

भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक–से–अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।

प्रश्न 5.
भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं?
उत्तर–
सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती है। उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दूख कष्ट सहने का प्रेरणा मिलती है। इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं। ये कहानियाँ हमें जीव संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं। इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं।

सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन की उस भावना को अनुभव करें। उनके कारणों पर सोचे–विचारें। हम जैसे क्रान्तिकारियों का सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता को ऐसी स्थितियाँ में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते–हँसते बर्दाश्त करना चाहिए। भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधि यों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 6.
‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता।’ भगत सिंह के इस कथन का आशय बताएँ। इससे उनके चिन्तन का कौन–सा पक्ष उभरता है? वर्णन करें।
उत्तर–
सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि क्रांतिकारी शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब–विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका पुरजोर विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह संघर्ष आवश्यक हो अनुचित नहीं। संघर्ष आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना हो तो अन्यायपूर्ण। इस संदर्भ में रूस की जारशाही का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही जारशाही का तख्ता उलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रान्ति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिन्तन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें
(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपम है।
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।
उत्तर–
(क) भगत सिंह का मानना है कि विपत्तियाँ मनुष्य को पूर्ण बनाती हैं। अर्थात् मनुष्य सुख की स्थिति में तो बड़े ही आराम से रहता है। लेकिन जब उस पर कोई दुख आता है तो वह उसे दूर करने के प्रयास करता है जिससे उसका ज्ञान तथा कार्यक्षमता बढ़ती है और वह पूर्णतः पाता है।

(ख) भगत सिंह के अनुसार यदि मनुष्य यह सोचने लगे कि अगर मैं कोई कार्य नहीं करूंगा तो वह कार्य नहीं होगा तो यह पूर्णतः गलत है। वास्तव में मनुष्य विचार को जन्म देनेवाला नहीं होता, अपितु परिस्थितियाँ विशेष विचारों वाले व्यक्तियों को पैदा करती हैं। अर्थात् हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है।

(ग) भगत सिंह कहते हैं कि हमें एक बार किसी लक्ष्य या उद्देश्य का निर्धारण करने के बाद उस पर अडिग रहना चाहिए। हमें विश्वास रखना चाहिए कि हम अपने लक्ष्य को अवश्य प्राप्त कर लेंगे।

प्रश्न 8.
‘जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।’ आज जब देश आजाद है भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे। अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
उत्तर–
भगत सिंह का यह विचार है कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतः भुला देना चाहिए, बहुत ही उत्तम तथा श्रेष्ठ है। आज जब देश आजाद है तब भी भगत सिंह को यह विचार पूर्णतः प्रासंगिक है, क्योंकि किसी भी काल या परिस्थिति में देश या समाज मनुष्य से ऊपर ही रहता है। यदि देश का विकास होगा तो ही वहाँ रहनेवाले लोगों का विकास होगा। वहीं यदि देश पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो वहाँ के निवासियों को भी कष्टों का सामना करना पड़ेगा। इसलिए हमें सदैव अपने से पहले देश की श्रेष्ठता, विकास तथा मान–सम्मान के विषय में सोचना चाहिए। साथ ही इसके लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 9.
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं?
उत्तर–
भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए इच्छा व्यक्त करते हुए कहा है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाए। वे ऐसा समय इसलिए चुनते हैं क्योंकि वे नहीं चाहते कि यदि कोई सम्मानपूर्ण या उचित समझौता होना हो तो उन जैसे व्यक्तियों का मामला उसमें कोई रूकावट उत्पन्न करे।

प्रश्न 10.
भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करें।
उत्तर–
महान क्रांतिकारी भगत सिंह ने इस पत्र में तीन–चार सवालों पर विचार किया है जिनमें आत्महत्या, जेल जाना, कष्ट सहना, मृत्युदण्ड और रूसी साहित्य है।

भगत सिंह का आत्महत्या के संबंध में विचार है कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर लेना मनुष्य की कायरता है। यह कायर व्यक्ति का काम है। एक क्षण में समस्त पुराने अर्जित मूल्य खो देना मूर्खता है अत: व्यक्ति को संघर्ष करना चाहिए। दूसरा जेल जाना भगत सिंह व्यर्थ नहीं मानते क्योंकि रूस की जारशाही का तख्ता पलट बंदियों का बंदीगृह में कष्ट सहने का कारण बना। अतः यदि आन्दोलन को तीव्र करना है तो कष्ट सहन से नहीं डरना चाहिए।

देश सेवा के क्रम में क्रांतिकारी को ढेरों कष्ट सहने पड़ते हैं–जेल जाना, उपवास करना इत्यादि अनेकों दण्ड। अतः भगत सिंह कहते हैं कि हमें कष्ट सहने से नहीं डरना चाहिए क्योंकि विपत्तियाँ ही व्यक्ति को पूर्ण बनाती हैं।

मृत्युदण्ड के बारे में भगत सिंह के विचार हैं कि वैसी मृत्यु सुन्दर होगी जो देश सेवा के संघर्ष के लिए हो। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट आदर्श के लिए दी गई फाँसी एक आदर्श, सुन्दर मृत्यु है। अतः क्रांतिकारी को हँसते–हँसते फाँसी का फंदा डाल लेना चाहिए। रूसी साहित्य में वर्णित कष्ट दुख, सहनशक्ति पर फिदा है भगत सिंह। रूसी साहित्य में कष्ट सहन की जो भावना है उसे हम अनुभव नहीं करते। हम उनके उन्माद और चरित्र की असाधारण ऊँचाइयों के प्रशंसक है परन्तु इसके कारणों पर सोच विचार करने की चिन्ता कभी नहीं करते। अतः भगत सिंह का विचार है कि केवल विपत्तियाँ सहन करने के लिए साहित्य के उल्लेख ने ही सहृदयता, गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य में ऊँचाई उत्पन्न की है।

इस प्रकार हम पाते हैं कि भगत सिंह की वैचारिकता सीधे यथार्थ के धरातल पर टिकी हुई . आजीवन संघर्ष का संदेश देती है।

एक लेख और एक पत्र भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के प्रत्यय निर्दिष्ट करें कायरता, घृणित, पूर्णतया, दयनीय, स्पृहणीय, वास्तविकता, पारितोषिक।
उत्तर–
कायरता–ता, घृणित–इत, पूर्णतया–तया, दयनीय–इय, स्पृहणीय–इय, वास्तविकता–ता, पारितोषिक–इक।

प्रश्न 2.
‘हास्यास्पद’ शब्द में ‘आस्पद’ प्रत्यय हैं इस प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर–
‘आस्पद’ प्रत्यय से बने पाँच शब्द–विवादास्पद, घृणास्पद, संदेहास्पद, करुणास्पद, प्रेरणास्पद।

प्रश्न 3.
हमारे विद्यालय के प्राचार्य आ रहे हैं। इस वाक्य में ‘हमारे विद्यालय के प्राचार्य’ संज्ञा पदबंध है। वह पद समूह जो वाक्य में संज्ञा का काम करे, संज्ञा पदबन्ध कहलाता है। इस तरह नीचे दिए गए वाक्यों से संज्ञा पदबंध. चुनें
(क) बंदी होने के समय हमारी संस्था के राजनीतिक बंदियों की दशा अत्यन्त दयनीय थी।
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं के आधार पर संगठित हमारी पार्टी अपने लक्ष्यों और आदर्शों की तुलना में क्या कर सकती थी?
(ग) मैं तो यह भी कहूँगा कि साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स, वास्तव में इस विचार को जन्म देनवाला नहीं था।
उत्तर–
(क) राजनीतिक बंदियों
(ख) कुछ मुट्ठी भर कार्यकर्ता
(ग) साम्यवाद का जन्मदाता मार्क्स।

प्रश्न 4.
पर्यायवाची शब्द लिखें वफादारी, विद्यार्थी, फायदेमंद, खुशामद, दुनियादारी, अत्याचार, प्रतीक्षा, किंचित्।
उत्तर–
वफादारी–विश्वसनीयता, विद्यार्थी–छात्र, फायदेमंद–लाभदायक, खुशामद–मिन्नत दुनियादारी–सांसारिकता, अत्याचार–अन्याय, प्रतीक्षा–इन्तजार, किंचित्–कुछ।

प्रश्न 5.
विपरीतार्थक शब्द लिखें
सयाना, उत्तर, निर्बलता, व्यवहार, स्वाध्याय, वास्तविक, अकारण
उत्तर–

  • सयाना – मूर्ख
  • उत्तर – प्रश्न
  • निर्बलता – सबलता
  • व्यवहार – सिद्धान्त
  • स्वाध्याय – अध्यापन
  • वास्तविक – अवास्तविक
  • अकारण – कारण

एक लेख और एक पत्र भगत सिंह लेखक परिचय।

जीवन–परिचय–
भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 के दिन वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) में हुआ। इनका पैतृक गाँव खटकड़कलाँ, पंजाब था। इनकी माता का नाम विद्यावती एवं पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। इनका सम्पूर्ण परिवार स्वाधीनता संग्राम में शामिल था। इनके पिता और चाचा अजीत सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी थे। अजीत सिंह को देश से निकाला दिया गया था इसलिए वे विदेश जाकर मुक्तिसंग्राम का संचालन करने लगे। भगत सिंह के छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी जेल गए और जेल की यातनाओं के कारण सन 1910 में उनका निधन हो गया। भगत सिंह के फाँसी चढ़ने के बाद उनके भाई कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह को जेल में रखा गया, जहाँ वे सन् 1946 तक रहे। इनके पिता भी अनेक बार जेल गए।

भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव बंगा में हुई। इसके बाद लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल से आगे की पढ़ाई की। बाद में नेशनल कॉलेज, लाहौर से एम.ए. किया। बी.ए. के दौरान इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गए। भगत सिंह का बचपन से ही क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा और गदर पार्टी से विशेष लगाव था। करतार सिंह सराबा की कुर्बानी को उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा जबकि उस समय उनकी आयु महज आठ वर्ष थी। जब वे बारह वर्ष के थे तो जलियाँवाला बाग का हत्याकांड हुआ। इस हत्याकांड का उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे वहाँ की मिट्टी लेकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में कूद पड़े। सन् 1922 में चौराचौरी कांड के बाद इनका कांग्रेस और महात्मा गाँधी से मोहभंग हो गया।

सन् 1923 में ये घर छोड़कर कानपुर चले गए और गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से जुड़ गए। सन् 1926 में अपने नेतृत्व में पंजाब में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया, जिसकी शाखाएँ विभिन्न शहरों में थी। सन् 1928 से 1931 तक चन्द्रशेखर आजाद के साथ मिलकर “हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ’ का गठन किया और क्रांतिकारी आन्दोलन को बड़े स्तर पर प्रारम्भ किया। इन्होंने 8 अप्रैल, सन् 1929 के दिन बटुकेश्वर दत्त और राजगुरू को साथ लेकर केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका तथा गिरफ्तार हो गए। स्वाधीनता सेनानियों के घर में जन्म लेने के कारण बचपन से ही इनके मन में देश की स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का जज्बा था।

इनके भीतर संकल्प, त्याग, कर्म आदि की अमोघ शक्ति थी। महज तेईस वर्षों में ही वे राष्ट्रीयता, देशभक्ति, क्रान्ति और युवाशक्ति के प्रतीक बन गए। भारत माँ के इस महान सपूत को अनेक कष्टों के बाद 23 मार्च सन् 1931 के दिन शाम 7 बजकर 33 मिनट पर ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।

भगत सिंह कोई साहित्यकार न थे लेकिन इन्होंने काफी लिखा है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–

पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या (हिन्दी में 1924), विश्वप्रेम (मतवाला में 1924 में प्रकाशित लेख), युवक (मतवाला में 1924 में प्रकाशित हिन्दी लेख), मैं नास्तिक क्यों हूँ (1939–31), अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीति, सत्याग्रह और हड़तालें, बम का दर्शन, भारतीय क्रान्ति का आदर्श आदि लेख।

टिप्पणियाँ एवं पत्र जो विभिन्न प्रकाशकों द्वारा भगत सिंह के दस्तावेज के रूप में प्रकाशित हैं। शचीन्द्रनाथ सान्याल की पुस्तक ‘बंदी जीवन’ और ‘डॉन ब्रीन की आत्मकथा’ का अनुवाद इत्यादि भी सम्मिलित है।

एक लेख और एक पत्र पाठ के सारांश

भगत सिंह महान क्रान्तिकारी और स्वतंत्रता सेनानी और विचारक थे। भगत सिंह विद्यार्थी और राजनीति के माध्यम से बताते हैं कि विद्यार्थी को पढ़ने के साथ ही राजनीति में भी दिलचस्पी लेनी चाहिए। यदि कोई इसे मना कर रहा है तो समझना चाहिए कि यह राजनीति के पीछे घोर षड्यंत्र है। क्योंकि विद्यार्थी युवा होते हैं। उन्हीं के हाथ में देश की बागडोर है। भगत सिंह व्यावहारिक राजनीति का उदाहरण देते हुए नौजवानों को यह समझाते हैं कि महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचन्द्र बोस का स्वगात करना और भाषण सुनना यह व्यावहारिक राजनीति नहीं तो और क्या है। इसी बहाने वे हिन्दुस्तानी राजनीति पर तीक्ष्ण नजर भी डालते हैं। भगत सिंह मानते हैं कि हिन्दुस्तान को इस समय ऐसे देश सेवकों की जरूरत है जो तन–मन–धन देश पर अर्पित कर दें और पागलों की तरह सारी उम्र देश की आजादी या उसके विकास में न्योछावर कर दे। क्योंकि विद्यार्थी देश–दुनिया के हर समस्याओं से परिचित होते हैं। उनके पास अपना विवेक होता है। वे इन समस्याओं के समाधान में योगदान दे सकते हैं। अतः विद्यार्थी को पॉलिटिक्स में भाग लेनी चाहिए।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 2 सूरदास के पद

 

सूरदास के पद वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Surdas Ke Pad Class 12 Bihar Board प्रश्न 1.
सूरदास का जन्म कब हुआ था?
(क) 1478 ई. में
(ख) 1470 ई. में
(ग) 1475 ई. में
(घ) 1472 ई. में
उत्तर-
(क)

सूरदास के पद अर्थ सहित Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
सूरदास की अभिरुचि किसमें थी?
(क) पर्यटन
(ख) गायन
(ग) नृत्य
(घ) लेखन
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12 Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
सूरदास किस भक्ति के कवि हैं?
(क) कृष्ण भक्ति
(ख) रामभक्ति
(ग) देश भक्ति
(घ) मातृभक्ति
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12th Bihar Board प्रश्न 4.
इनमें से सूरदास की कौन-सी रचना है?
(क) कड़बक
(ख) छप्पय
(ग) पद
(घ) पुत्र-वियोग
उत्तर-
(ग)

सूरदास के पद कक्षा 12 Bihar Board प्रश्न 5.
सूरदास जी के गुरु कौन थे?
(क) महाप्रभु वल्लभाचार्य
(ख) महावीर गौतम बुद्ध
(ग) महाप्रभु चौतन्य
(घ) महाप्रभु महावीर स्वामी
उत्तर-
(क)

Surdas Ke Pad Class 12 Notes Bihar Board प्रश्न 6.
‘साहित्य लहरी’ के रचनाकार कौन हैं?
(क) नन्ददास
(ख) सूरदास
(ग) नाभादास
(घ) तुलसीदास
उत्तर-
(ख)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Surdas Ki Abhiruchi Kis Mein The Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
जागिए, ब्रजराज ……. कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृन्द संकुचित भए, भुंग लता भूले।।
उत्तर-
कुँवर

Surdas Ko Abhiruchi Kisme Thi Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
बिधु मलीन रवि ………. गावत नर नारी।
सूर-स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी।।
उत्तर-
प्रकाश

Surdas Class 12 Bihar Board प्रश्न 3.
तमचुर खर-रोर सुनहु, बोलत बनराई।
राँभति गो खरिकनि में,
………. हित धाई।।
उत्तर-
बछरा

प्रश्न 4.
बरी, बरा, बेसन बहु भाँतिनि, व्यंजन विविध अगनियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रूचि मानत ……… दोनियाँ।।
उत्तर-
दधि

प्रश्न 5.
जेंवत ……… नंद की कनियाँ
केछुक खात, कछू धरनि गिरावत,
उत्तर-
स्याम

सूरदास के पद अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सूरदास हिन्दी साहित्य के किस काल के कवि हैं
उत्तर-
भक्तिकाल के।

प्रश्न 2.
सूरदास का जन्म रुमकता नामक गाँव में किस सन् में हआ?
उत्तर-
1478 ई. में

प्रश्न 3.
सूरदास के काव्य की भाषा कौन-सी है?
उत्तर-
ब्रज भाषा।

प्रश्न 4.
सूरदास के काव्य में किस रस का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
वात्सल्य।

सूरदास के पद पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है?
उत्तर-
सूरदास रचित “प्रथम पद” में वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। वात्सल्य रस के पदों की विशेषता यह है कि पाठक जीवन की नीरस और जटिल समस्याओं को भूलकर उनमें तन्मय और विभोर हो उठता है। प्रथम पद में दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की सूचना देते हुए जगाया जा रहा है।

प्रश्न 2.
गायें किस ओर दौड़ पड़ी?
उत्तर-
भोर हो गयी है, दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने का संकेत देते हुए जगाया जा रहा है। प्रथम पद में भोर होने के संकेत दिए गए हैं-कमल के फूल खिल उठे है, पक्षीगण शोर मचा रहे हैं, गायें अपनी गौशालाओं से अपने-अपने बछड़ों की ओर दूध पिलाने हेतु दौड़ पड़ी।

प्रश्न 3.
प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
प्रथम पद में विषय, वस्तु चयन, चित्रण, भाषा-शैली व संगीत आदि गुणों का प्रकर्ष दिखाई पड़ता है। इस पद में दुलार भरे कोमल स्वर में सोए हुए बालक कृष्ण को भोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है। कृष्ण को भोर होने के विभिन्न संकेतों जैसे-कमल के फूलों का खिलना, मुर्ग का बांग देना, पक्षियों का चहचहाना, गऊओं का रंभाना, चन्द्रमा का मलिन होना, रवि का प्रकाशित होना आदि के बारे में बताया जा रहा है। इन सबके माध्यम से कृष्ण को जगाने का प्रयास किया जा रहा है।

प्रश्न 4.
पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
महाकवि सूर को बाल-प्रकृति तथा बाल-सुलभ अंतरवृत्तियों के चित्रण की दृष्टि से विश्व साहित्य में बेजोड़ स्वीकार किया गया है। उनके वात्सल्य वर्णन की विद्वानों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

लाल भगवानदीन लिखते हैं, “सूरदास जी ने बाल-चरित्र का वर्णन में कमाल कर दिया है, यहाँ तक कि हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस विषय में इनकी समता नहीं कर सके हैं। हमें संदेह है कि बालकों की प्रकृति का जितना स्वाभाविक वर्णन सूर ने किया है, उतना किसी अन्य भाषा के कवि ने किया है अथवा नहीं।”

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल कहते हैं, “जितने विस्तृत और विशद् रूप से सूर ने बाल लीला का वर्णन किया है, उतने विस्तृत रूप में और किसी कवि ने नहीं किया। कवि ने बालकों की अन्त:प्रकृति में भी पूरा प्रवेश किया है और अनेक बाल भावों की सुन्दर स्वाभाविक व्यंजन की है।”

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते हैं, “यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल और हृदयग्राही चित्र खींचा है कि आश्चर्य होता है। माता संसार का ऐसा पवित्र रहस्य है जिसकी कवि के अतिरिक्त और किसी को व्याख्या करने का अधिकार नहीं है।”

यहाँ प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से ओतप्रोत हैं और ‘सूरसागर’ में हैं। इन पदों में सूर की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है। प्रथम पद में बालक कृष्ण को सुबह होने के संकेत देकर जगाना, दूसरे पद में नंद द्वारा गोदी में बैठाकर भोजन कराना वात्सल्य भाव के ही उदाहरण हैं। बालक कृष्ण की क्रियाओं, सौन्दर्य तथा शरारतों का मार्मिक चित्रण इन पदों में है। अतः दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना है।

प्रश्न 5.
काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट करें
(क) कछुक खात कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद-रनियाँ।
(ख) भोजन करि नंद अचमन लीन्है माँगत सूर जुठनियाँ।
(ग) आपुन खाक, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के कवि सूरदासजी ने बालक कृष्ण के खाने के ढंग का अत्यन्त स्वाभाविक एवं सजीव वर्णन किया है। पद ब्रज शैली में लिखा गया है। भाषा की अभिव्यक्ति काव्यात्मक है। यह पद गेय और लयात्मक प्रवाह से युक्त है। अतः यह पक्ति काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसमें वात्सल्य रस है। इसमें रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस की भी अभिव्यक्ति है। बालक कृष्ण के भोजन के बाद नंद बाबा श्याम का हाथ धोते हैं। यह देख सूरदास जी भक्तिरस में डूब जाते हैं। वे बालक कृष्ण की जूठन नंदजी से माँगते हैं। इस पद्यांश को ब्रज शैली में लिखा गया है। बाबा नंद का कार्य वात्सल्य रस को दर्शाता है तथा सूरदास की कृष्ण भक्ति अनुपम है। अभिव्यक्ति सरल एवं सहज है। इसमें रूपक अलंकार है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में बालक कृष्ण के बाल सुलभ व्यवहार का वर्णन है। कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे हैं तथा कुछ नन्द बाबा के मुँह में डाल रहे हैं। इस शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् अनुपम है। इसे ब्रजशैली में लिखा गया है। इसमें वात्सल्य रस का अपूर्व समावेश है। इस पद्यांश में रूपक अलंकार का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न 6.
कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं?
उत्तर-
बालक कृष्ण अपने बालसुलभ व्यवहार से सबका मन मोह लेते हैं। भोजन करते समय कृष्ण कुछ खाते हैं तथा कुछ धरती पर गिरा देते हैं। उन्हें मना-मना कर खिलाया जा रहा है। यशोदा माता यह सब देख-देखकर पुलकित हो रही है। विविध प्रकार के भोजन जैसे बड़ी, बेसन का बड़ा आदि अनगिनत प्रकार के व्यंजन हैं।

बालक कृष्ण अपने हाथों में ले लेते हैं, कुछ खाते हैं तथा जितनी इच्छा करती है उतना खाते हैं, जो स्वादिष्ट लगती है उसे ग्रहण करते हैं। दोनी में रखी दही में विशेष रुचि लेते हैं। मिश्री मिली दही तथा मक्खन को मुँह में डालते हुए उनकी शोभा का वर्णन नहीं किया जा सकता। इस प्रकार कृष्ण खाते समय अपनी लीला से सबका मन मोह लेते हैं।

सूरदास के पद भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ।
उत्तर-

  • मलिन-मलिन हृदय से प्रभु स्मरण नहीं हो सकता।
  • रस-काव्य में रस न हो तो व्यर्थ है।
  • भोजन-भोजन एकान्त में करना चाहिए।
  • रूचि-मेरी रुचि अध्ययन-अध्यापन की है।
  • छवि-श्रीकृष्ण की छवि अत्यन्त मनोहारी है।
  • दही-दही को भोजन में शामिल करना चाहिए।
  • माखन-दूध को विलोने से माखन निकलता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दो के पर्यायवाची दें
उत्तर-

  • धरनि-पृथ्वी, धरती, धरा, भू
  • रवि-सूर्य, भास्कर, भानु
  • अम्बुज-कमल, जलज, पंकज
  • कमल-जलज, पंकज, अम्बुज

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें
उत्तर-

  • शब्द – मानक रूप
  • धरनी – धरती
  • गो – गाय
  • कँवल – कमल
  • विधु – विधु
  • स्याम – श्याम
  • प्रकास – प्रकाश
  • बनराई – वनराही

प्रश्न 4.
निम्नलिखित के विपरीतार्थक शब्द लिखें
उत्तर-

  • शब्द – विपरीतार्थक शब्द
  • मलिन – स्वच्छ (निर्मल)
  • नार – नारायण
  • संकुचित – विस्तृत
  • धरणी – आकाश
  • विधु – रवि

प्रश्न 5.
पठित पदों के आधा पर सूर के भाषिक विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर-
पठित पदों में सूरदास ने साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में माधुर्य, लालित्य तथा सौन्दर्य का अद्भुत मिश्रण है। दोनों पदों में वात्सल्य रस की अभिव्यंजना हुई है जिसके लिए गेय शैली का प्रयोग किया गया है। अत: दोनों पदों में संगीतात्मकता व लयात्मकता विद्यमान है।

प्रश्न 6.
विग्रह करते हुए समास बताएँ।
उत्तर-
नंद जसोदा-नंद और जसोदा-द्वन्द्व समसस
ब्रजराज-ब्रज का राजा-तत्पुरुष समास खग
रोर-खग का शोर-तत्पुरुष समास
अम्बुजकरधारी-अम्बुज को हाथ में धारण करनेवाला (श्रीकृष्ण)-बहुव्रीहि समास।

सूरदास के पद कवि परिचय सुरदास (1478-1583)

जीवन-परिचय-
महाप्रभु बल्लभाचार्य के शिष्य तथा गोस्वामी विट्ठलनाथ द्वारा प्रतिष्ठित अष्टछाप के प्रथम कवि महाकवि सूरदास हिन्दी साहित्याकाश के सर्वाधिक प्रकाशमान नक्षत्र हैं। वस्तुतः कृष्ण भक्ति की रसधारा को समाज में बहाने का श्रेय सूरदास को ही जाता है।

महाकवि सूरदास के जन्मस्थान एवं काल के बारे में अनेक मत हैं। अधिकांश साहित्यकारों का मत है कि महाकवि सूरदास का जन्म 1478 ई. में आगरा और मथुरा के बीच स्थित रुमकता नाम गाँव में हुआ था। कुछ अन्य लोग बल्लभगढ़ के निकट सीही नामक ग्राम को उनका जन्मस्थान बताते हैं।

जब वे गऊघाट पर रहते थे तो एक दिन उनकी भेंट महाप्रभु बल्लभाचार्य से हुई। सूर ने अपना एक भजन बड़ी तन्मयता से महाप्रभु को गाकर सुनाया, जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। बल्लभचार्य के आदेश से ही सूरदास ने कृष्ण लीला का गान किया। उनके अनुरोध पर ही सूरदास श्रीनाथ के मन्दिर में आकर भजन-कीर्तन करने लगे। वे निकट के गाँव पारसोली में रहते थे। वहीं से नित्य-प्रति श्रीनाथ जी के मन्दिर में आकर भजन गाते और चले जाते। उन्होंने मृत्युकाल तक इस नियम का पालन किया। 1583 ई. में पारसोली में ही इनका देहांत हो गया।

रचनाएँ-सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य ग्रंथ मिलते हैं-

  • सूरदास,
  • सूर सारावली,
  • साहित्य लहरी।

काव्यगत विशेषताएँ-सूरदास वात्यसल्य, प्रेम और सौंदर्य के अमर कवि हैं। उनके काव्य के प्रमुख विषय हैं-विनय और आत्मनिवेदन, बालवर्णन, गोपी-लीला, मुरली-माधुरी और गोपी विरह।

सूरदास के पद कविता का सारांश

प्रस्तुत दोनों पद वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं जो सगुण भक्तिधारा की कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास द्वारा रचित काव्य ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इन पदों में कवि की काव्य और कला से संबंधित विशिष्ट प्रतिभा की अपूर्व झलक मिलती है।

प्रथम पद में प्यार-दुलार भरे कोमल-मधुर स्वर में सोए हुए बालक को यह कहते हुए जगाया जा रहा है कि व्रजराज कृष्ण उठो, सुबह हो गई है। प्रकृति के अनेक दृष्टांतों तथा गाय-बछड़ों के क्रियाकलापों का वर्णन कर माता यशोदा उन्हें बहुत प्यार से उठने के लिए कह रही हैं। – द्वितीय पद में पिता नंद बाबा की गोद में बैठकर बालक कृष्ण को भोजन करते हुए चित्रित किया गया है। इसमें अन्य बालकों की तरह ही कृष्ण के भोजन करने का अत्यंत स्वाभाविक वर्णन है। सूर वात्सल्य का कोना-कोना झाँक आए थे। वे बालकों की आदतों, मनोवृत्तियों तथा बाल मनोविज्ञान का गहरा ज्ञान रखते थे, यह उनके इस पद में स्पष्ट देखा जा सकता है। बच्चे के भोजन करने, कुछ खाने, कुछ गिराने, कुछ माता-पिता को खिलाने, खाते-खाते शरीर पर गिरा लेने आदि के इन सुपरिचित दृश्यों और प्रसंगा में कवि-हृदय का ऐसा योग है कि ये प्रसंग रिट बन गए हैं।

कविता का भावार्थ
जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल-कुसुम फूले।
कुमुद-वृंद संकुचित भए, भुंग लता भूले।
तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई॥
राँभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई।
बिधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी।
सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी॥

प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश मध्यकालीन सगुण भक्तिधारा की कृष्णभक्ति शाखा के प्रमुख कवि ‘सूरदास’ द्वारा रचित उनके विख्यात ग्रंथ ‘सूरसागर’ से उद्धृत है। इस पद में सोए हुए बालक कृष्ण को दुलार भरे कोमल मधुर स्वर में भोर होने की बात कहते हुए जगाने का वर्णन है।

व्याख्या-बालक कृष्ण को जगाने के लिए माँ यशोदा सुबह होने के बहुत से प्रमाण देती है। वह बहुत ही दुलार से उसे कहती है, हे ब्रजराज कुँवर, अर्थात् ब्रज के छोटे राजकुमार! जाग जाओ, उठ जाओ। उठकर देखो-कितने सुन्दर कमल के फूल खिल गए हैं। रात को खिलने वाली कुमुदनियाँ सकुचा गई हैं, अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है क्योंकि भोर में कुमुदनियाँ मुरझा जाती हैं। चारों ओर भँवरे मंडरा रहे हैं और मुर्गा आवाज (बाँग) दे रहा है। हर तरफ पक्षियों की चहचहाहट फैली है। पेड़-पौधों पर बैठे पक्षियों का मधुर संगीत गूंज रहा है। गाएँ भी बाड़ों में जाने के लिए रंभा रही हैं, वे अपने बछड़ों सहित जाना चाहती हैं। चन्द्रमा के प्रकाश की काँति क्षीण हो गई है अर्थात् रात्रि समाप्त हो गई है, वहीं सूर्य का प्रकाश चारों ओर फैल गया है। नर-नारी मधुर स्वर में गा रहे हैं कि हे श्याम! सुबह हो गई है इसलिए उठ जाओ। वे अंबुज करधारी अर्थात् कमल को हाथ में धारण करने वाले कृष्ण को सुबह होने का संकेत देकर जगाना चाहते हैं।

पद-2
2. जेंवत स्याम नंद की कनियाँ।
कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ।
बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगानियाँ।
डारत, खात, लेत अपनैं कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ।
मिस्त्री, दधि, माखन मिम्रित करि मुख नावत छबि धनियाँ।
आपुन खात नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ।
जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं, तिहूँ भुवनियाँ।
भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ॥

व्याख्या-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक दिगन्त भाग-2 के “पद” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सूरदास हैं। सूरदासजी भक्तिधारा के अन्यतम कवि हैं। उपरोक्त ‘पद’ में इन्होंने बालक कृष्ण की बाल सुलभ चपलता तथा चिताकर्षक लीलाओं का दिग्दर्शन कराते हुए उनके (कृष्ण) द्वारा भोजन करते समय का रोचक विवरण प्रस्तुत किया है।

बालक कृष्ण नंदबाबा की गोद में बैठकर खा रहे हैं। कुछ खा रहे हैं, कुछ भूमि पर गिरा देते हैं। इस प्रकार उनके भोजन करने का ढंग से प्राप्त होनेवाली शोभा को माँ यशोदा (नंद की अत्यन्त प्रभुदित भाव से देख रही हैं। बेसन से बनी बरी-बरा विभिन्न प्रकार के अनेक व्यंजन को अपने हाथों द्वारा खाते हैं, कुछ छोड़ देते हैं। दोनी (मिट्टी के पात्र) में रखी हुई दही में विशेष रुचि ले रहे हैं उन्हें दही अति स्वादिष्ट लग रहा है। मिश्री मिलाया हुआ दही तथा माखन (मक्खन) को अपने मुख में डाल लेते हैं, उनकी यह बाल सुलभ-लीला धन्य है। वे स्वयं भी खा रहे हैं तथा नंद बाबा के मुँह में भी डाल रहे हैं। यह शोभा अवर्णनीय हैं अर्थात् इस शोभा के आनंद का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिस रस का पान नंद बाबा और यशोदा माँ कर रही हैं, जो प्रसन्नता उन दोनों को हो रही है वह तीनों लोक में दुर्लभ हैं। नंदजी भोजन करने के बाद कुल्ला करते हैं। सूरदासजी जूठन माँगते हैं, उस जूठन को प्राप्त करना वे अपना सौभाग्य मानते हैं।

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Bihar Board Class 12 English Song of Myself Text Book Questions and Answers

A. Work in small groups and discuss these questions

Song Of Myself Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 1.
How will you express your feeling when you feel delighted?
Answer:
I laugh and sing.

Song Of Myself Questions And Answers Bihar Board Class 12 English Question 2.
Which type of song do you like to sing?
Answer:
I like to sing a song that appeals to my heart.

Bihar Board Class 12 English Book Very Short Type Questions and Answer

B. 1. 1. Read the following sentences and write ‘T’ for true and ‘F’ for false statements

(a) The poet enjoys himself and sings for the self.
(b) The speaker is different from others.
(c) The poet discards nature’s beauty.
(d) Every atom of blood is the same in all human beings.
(e) The poet is associated with a particular school of thought.
(f) The poet has overcome his greed.
Answer:
(a) T, (b) T, (c) F, (d) T, (e) T, (f) T.

B. 1.2. Answer the following questions briefly

Song Of Myself Ka Question Answer Bihar Board Class 12 English Question 1.
Who is the speaker in this poem?
Answer:
Walt Whitman is the speaker of this poem.

Question Answer Of Song Of Myself Bihar Board Class 12 English Question 2.
How old is he?
Answer:
He is thirty-seven years old.

Song Of Myself Summary Class 12 Bihar Board Question 3.
Why does the speaker use ‘you’ twice?
Answer.
The speaker uses ‘you’ twice to press on a similarity of blood in all human beings.

Song Of Myself Questions Bihar Board Class 12 English Question 4.
What is meant by ‘Nature without check with original energy’?
Answer:
Harbour and Hazard are meant by Nature without check with original energy.

Song Of Myself Class 12 Bihar Board Question 5.
What is the theme of the poem?
Answer:
The theme of the poem is a reflection of individualistic thought. It gives the message of the oneness of human beings.

Song Of Myself Summary Class 12 In Hindi Bihar Board Question 6.
How does the speaker establish a relation between ‘me’ and ‘you’?
Answer:
The speaker establishes the relation between ‘me’ and ‘you’. He says that our parents are the same and our blood is similar.

Song Of Myself Answer Key Bihar Board Class 12 English Question 7.
What does he observe in summer?
Answer:
He observes a spear of grass.

Song Of Myself Discussion Questions Bihar Board Class 12 English Question 8.
What has formed the speaker’s blood?
Answer:
The soil, the air and the birthplace formed the speaker’s blood.

Song Of Myself Summary In Hindi Bihar Board Class 12 English Question 9.
What does he hope to do?
Answer:
He hopes to do the work which he wants to continue till death.

Question 10.
What does he want to do with creeds?
Answer:
He wants to know the system of thoughts with creeds in abeyance.

Question 11.
What does he want to speak about?
Answer:
He wants to speak at every hazard.

C. l. Bihar Board Class 12 English Book Long Answer Question

Question 1.
Give a summary of the poem.
Answer:
See summary.

Question 2.
What similarities does the poet draw between two human beings?
Answer:
The poet’Walt Whitman’ tells something about the similarities between two human beings. The poet wants to say that human beings are the same in many ways as they bom in similar ways. Their blood is the same. Everything is the same in all human beings.

Question 3.
Explain the line ‘Hoping to cease not till death’.
Answer:
The line ‘Hoping to cease not till death’ means the poet Walt Whitman does not want to die. He knows that there are people who quarrelled for religions. He hopes to change the situation through his efforts. There are high thoughts about religious belief in his mind. So, he has expressed such view in the line “hoping to cease not till death”.

Question 4.
Comment on the subjectivism (Personal feeling) in the poem?
Answer:
The poem “Song of Myself’ is composed by the poet Walt Whitman. He tells about himself in this poem. He never thinks anything wrong about religious beliefs and system of thought. He becomes very sad when he sees a human being quarrelling with another human being only for religion. But there is nothing to quarrel in these things. He feels like a spear which gives pain in human beings. Also, it gives him pain when he listens about quarrelling people in the same way for religion.

Question 5.
Why does the poet not want to bother himself with “Creeds and Schools”
Answer:
The poet does not want to bother himself with “Creeds and schools” because he thinks about religious tolerance. His mind is quite free from this problem. He knows that there are different religious beliefs and system of thoughts in the world. Still, he does not bother himself with it. He knows that everyone is the same in all condition. Take birth’ from different parents have no difference among them and they are similar in all respects. Their blood is the same.

Question 6.
What does the poet mean by ‘Nature without check with original energy’?
Answer:
The poet means to say, “nature without check with original energy”, that he believes in good and bad aspects of life and he favours to tell about every danger or fear, which he hopes to acquire through nature without check unrestricted nature and original energy.

C. 3. Composition

Write a short essay in about 150 words on the following
(a) Religion does not teach hatred.
Answer:
Every individual when bom, does not belong to any religion, but immediately after birth a particular religion recognise him. It is a matter of Relief and faith of people belonging to a different religion. A person tends to love and respect his religion. He becomes very possessive about his religion. If people belonging to other religion tries to hurt his sentiments by talking ill of his religion and tries to damage or bring destruction the person gets shattered. He is ready to fight for his religion as he feels that his existence is in danger. He tries to protect his religion from his enemies. But this is something which should be avoided.

As every individual is bom with religion, one should try to have respect for other religions. All religions must be respected equally. It should be respected by all. All religion teaches you to love your family, your country and the people. Religion will never teach you to kill people of a different religion. We should regard every human being as our own brother. People who fight with others in the name of his religion are not followers of their religion. He tries to misinterpret the Teachings of religion. If we want others to respect our religion we should also learn to respect other’s religion.

(b) Life is a grand battle.
Answer:
Life is a great challenge. A person with a bold mind and strong body is ready to accept it. He is not being fearful. Life is made up of different problems. It is always and rightly said that life is not a bed of roses. This is very much true. Human beings are all the time putting up great strength to overcome these problems. Right from the time, we are bom we are snuggling for survival. Life is a grand battle, this does not mean that the universe is a battlefield and we are the soldiers. Battle-field means it is made up of difficult situation which needs to be handled carefully. We should be like soldiers who are ready to act for any adverse situation and save ourselves. We should not be scared of facing the challenges. A person who faces the challenge with a strong will is never shattered out always move ahead in life. These kinds of people become strong mentally, physically and emotionally. So folks life is a grand battle—face it, win it, rejoice it and try to bring happiness for yourself and your people.

D. Word Study
D. 2. Word-formation

Read the following lines carefully
Hoping to cease not till death Retiring back a while
In the above lines, ‘hoping’ and ‘retiring’ are derived by adding ‘ing’ to ‘hope’ and ‘retire’ respectively.

Ex. 1. Select five words from your day-to-day life and add the suffix ‘ing’ to them to form new words.
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D. 3. Word-meaning

Ex.1. Write the antonyms of the following words and use them in your sentences:
perfect cease hope permit original
Answer:
perfect — imperfect — Ram is always imperfect in his books,
cease — starts — Life starts at the age of 40.
hope — hopeless — Gita is a hopeless girl,
permit — refuse — I refuse to do this work,
original — xerox — I want to xerox of my mark sheets.

E. Grammar

Ex.1. Read the following line from the poem:
1 celebrate me and sing myself
In the given line ‘myself is a reflexive pronoun which has been used twice. Its usage in both the clauses is different. In the first clause, it is a reflexive pronoun, but in the second, it is objected to a verb (‘sing’).
Supply related reflexive pronouns in the following list:

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Poem 2 Song of Myself 1

Ex. 2. Construct meaningful sentences with the help of the following verbs. Do not forget to use ‘reflexive pronouns’ after the verbs; for, these verbs are always followed by them:
enjoy serving absent help control
Answer:
enjoy — We enjoy ourselves very much.
serve — They are happy to serve themselves.
absent — He got absent himself.
help — One should always help ourselves.
control — He has controlled himself.

Comprehension Based Questions with Answers

1. Read the above extract poem and answers the questions that follow: [B.M. 2009 A]
I celebrate myself, and«ing myself,
And what I assume you shall assume,
for every atom belonging to me as good belongs to you.
I loafe and invite my soul,
I lean and loafe at my ease observing a spear of summer grass My tongue, every atom of my blood, from this soil, this air,
Bom here of parents, bom here from parents the same, and their parents the same,
I now thirty-seven years bid in perfect health begin,

Questions.
(a) Who is “I” in the first line of the poem?
(b) What the speaker says about himself?
(c) What thing he hopes from other persons?
(d) Why he expects so from others?
(e) What he does for his own satisfaction?
(f) What similarities does he find between his and other’s parents?
(g) How old is he now?
Answers:
(a) “I” in the first line of the poem is the poet “Walt Whitman” himself.
(b) The speaker, who is the poet himself expresses that he celebrates as well as sings himself.
(c) He hopes from other persons that whatever he adopts or take for guranted, they should also undertake the same.
(d) He expects so because according to him that every atom which he possesses, it present with them also.
(e) He wanders free from cares and anxieties. He also invites his soul.
(f) He observes that his parents and parents of others have got similarities and fundamentally there is no difference between them.
(g) He is now thirty-seven years old.

2. Read the above extract poem and answers the questions that follow: [B.M. 2009 A]
Hoping to cease not till death,
Creeds and schools in abeyance,
Retiring back a while sufficed at what they are, but never forgotten,
I harbour for good or bad, I permit to speak at every hazard,
Nature without check with original energy.

Questions.
(a) What does he hope for himself?
(b) What are the things he wants to forget?
(c) What are those things which are sufficient but unforgettable?
(d) To whom the speaker relies upon?
(e) What does the speaker mean in his expression? “Nature without check with original energy.”
Answer:
(a) He is hopeful of not to cease till death. He thinks to move ahead as long as he is alive.
(b) He wants to forget the religious beliefs and systems of thought for a temporary period.
(c) Religious beliefs and system of thought are sufficiently enough and they cannot be forgotten.
(d) The speaker believes in both good and bad aspects.
(e) The speaker wants to say that harbour and hazard is meant by Nature without check with original energy.

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Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 12 तिरिछ

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 12 तिरिछ

 

तिरिछ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

तिरिछ कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म हुआ था।
(क) 1 जनवरी, 1952 ई.
(ख) 5 जनवरी, 1950 ई.
(ग) 2 मार्च, 1940 ई.
(घ) 5 जनवरी, 1955 ई.
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी का सारांश लिखिए Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम उदय प्रकाश की कैसी कृतियाँ हैं?
(क) कविता-संग्रह
(ख) नाटक-संग्रह
(ग) एकांकी-संग्रह
(घ) निबंध-संग्रह
उत्तर-
(क)

Tirich Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
“तिरछी’ लेख का संबंध किनसे है?
(क) लेखक के पिताजी से
(ख) लेखक के मित्र से
(ग) लेखक के बेटे से
(घ) लेखक की पत्नी से
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी का उद्देश्य Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
उदय प्रकाश जी किस पत्रिका का सहायक संपादक थे?
(क) संडेमेल (नई दिल्ली)
(ख) इंडिया टूड़े
(ग) फिल्म-स्टार
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(क)

तिरिछ कहानी की समीक्षा Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा विभाग में उदय प्रकाश ने क्या किया?
(क) अध्ययन
(ख) अध्यापन
(ग) लिपिकीय कार्य
(घ) शोध-कार्य
उत्तर-
(ख)

तिरछी कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 6.
दरियाई घोड़ा, तिरिछ, पीली छतरी वाली लड़की किनकी कृतियाँ हैं?
(क) मोहन राकेश
(ख) रांगेय राघव
(ग) उदय प्रकाश
(घ) अमरकांत
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Tirichh Class 12 Bihar Board प्रश्न 1.
उदय प्रकाश का जन्म ………… अनूपपुर म. प्र. में हुआ था।
उत्तर-
सीतापुर

तिरिछ’ कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
उदय प्रकाश के पिताजी …….. थे।
उत्तर-
प्रेमकुमार सिंह

Tirich Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
उदय प्रकाश की माताजी …… थीं।
उत्तर-
गंगादेवी

प्रश्न 4.
उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवरी ………. को हुआ था।
उत्तर-
1952 ई.

प्रश्न 5.
‘तिरछी’ के लेखक ………… हैं।
उत्तर-
उदय प्रकाश

प्रश्न 6.
‘तिरछी’ एकबार मैंने ………… था।
उत्तर-
देखा

तिरिछ अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तिरिछ’ क्या है?
उत्तर-
छिपकली प्रजाति का विषैला जीव।

प्रश्न 2.
‘तिरिछ’ के लेखक कौन हैं :
उत्तर-
उदय प्रकाश।

प्रश्न 3.
“तिरिछ’ किसका पर्याय बनकर उभरा है?
उत्तर-
आतंक का।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ कहानी किस शैली में लिखी गई है?
उत्तर-
आत्मकथात्मक शैली।।

प्रश्न 5.
उदय प्रकाश ने किस पत्रिका के संपादन विभाग में काम किया?
उत्तर-
दिनमान।

प्रश्न 6.
‘अमेद्य’ शब्द का अर्थ लिखिए।
उत्तर-
जिसे भेदा न जा सके।

तिरिछ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लेखक के पिता के चरित्र का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश के पिता अन्तर्मुखी और ग्रामीण संवेदना के व्यक्ति हैं। उनकी मितभाषिता व गंभीरता उन्हें एक रहस्य-पुरुष की छवि प्रदान करती है। उनकी संतान कम से कम उन्हें इसी रूप में देखती है। पिता शहर से आतंकित हैं। भरसक वे शहर जाने से कतराते हैं। अपनी सहजता, गंभीरता और गँवईपन के बावजूद बच्चों के लिए वे अभ्यारण्य हैं। आधुनिकता के उपकरण सहज जीवन बोध पर किस तरह हावी हो गये हैं इसका पता ‘तिरिछ’ कहानी में मिलता है। लेखक के पिता अपने स्वभाव के अनुरूप स्वयं ही लाचार और दयनीय बन जाते हैं।

आज की जटिल जीवन की स्थितियों में सहजता कितनी खतरनाक हो सकती है लेखक के पिता इससे अनभिज्ञ हैं। अस्तित्व की रक्षा के लिए दृढ़ता आवश्यक है। लेखक के पिता की सहजता उन्हें किसी तरह के प्रतिरोध करने से रोकती है। उन्हें जब धतूरे का काढ़ा दिया जाता है तो वे उसे सहज स्वीकार कर लेते हैं। शायद यह जानते हुए भी कि धतूरा घातक नशीला पदार्थ होता है। लेखक के पिता एक प्रतीकात्मक भूमिका अदा करते हैं।

वे कहानीकार के हाथ में एक औजार के रूप में प्रयुक्त हुए हैं, जिसके माध्यम से वह न्याय व्यवस्था, प्रशासन व्यवस्था और आर्थिक व्यवस्था में व्यक्त अमानवीयता को उद्घाटित करता है। लेखक के पिता नयी परस्थितियों और जीवन-मूल्यों से परिचित नहीं लगते हैं। अतः वे इससे आक्रांत होते हैं। वे मितभाषी व गंभीर तो हैं पर दृढ़ नहीं हैं। उनके स्वभाव में आक्रामकता नहीं है। शहर में उनके साथ जो कुछ भी अमानवीय व्यवहार होता है इससे उनकी दयनीयता ही प्रकट होती है।

प्रश्न 2.
तिरिछ क्या है? कहानी में यह किसका प्रतीक है?
उत्तर-
तिरिछ एक बेहद जहरीला जीव है जिसके काटने से व्यक्ति का बचना नामुमकिन हो जाता है। यह जैसे ही आदमी को काटता है, वैसे ही वहाँ से भागकर किसी जगह पेशाब करता है और उस पेशाब में लेट जाता है। अगर तिरिछ ऐसा कर दे तो आदमी बच नहीं सकता। वहीं तिरिछ काटने के लिए तभी दौड़ता है जब उससे नजर टकरा जाए। कहानी में तिरिछ मृत्यु का प्रतीक है। जिस भीषण यथार्थ के शिकार बाबूजी बनते हैं, बेटे के सपने में तिरिछ बनकर प्रकट होता है।

प्रश्न 3.
अगर तिरिछ को देखो तो उससे कभी आँख मत मिलाओ। आँख मिलते ही वह आदमी की गंध पहचान लेता है और फिर पीछे लग जाता है। फिर तो आदमी चाहे पूरी पृथ्वी का चक्कर लगा ले, तिरिछ पीछे-पीछे आता है। क्या यहाँ तिरिछ केवल जानवर भर है? यदि नहीं, तो उससे आँख क्यों नहीं मिलानी चाहिए?
उत्तर-
इस पाठ में वर्णित “तिरिछ” संभवतः एक विषैला जन्तु नहीं, अपितु मानव की हिंसात्मक पाशविक प्रवृत्तियाँ प्रतीत होती हैं। यद्यपि तिरिछ एक खतरनाक विषैला जानवर होता है जिसके काटने से मनुष्य की प्रायः मृत्यु हो जाती है। किन्तु मानव की हिंसक तथा दानवी गतिविधियाँ उससे अधिक, अत्यन्त घातक तथा मर्मान्तक (असह्य) पीड़ादायी होती हैं। उससे मनुष्य घुल-घुलकर मौत के मुँह में चला जाता है। कथाकार ने तिरिछ से आँख नहीं मिलाने का परामर्श दिया है, क्योंकि तिरिछ की प्रकृति है, परस्पर आँखें मिल जाने पर वह अपने शिकार पर आक्रमण कर देता है तथा अपने विषैले दाँत उसके शरीर में गड़ा देता है।

यहाँ पर कहानीकार दुर्जन एवं तिरिछ के समान खतरनाक व्यक्तियों से आँखें नहीं मिलाने के लिए कहता है। इसका निहितार्थ यह है कि हमें ऐसे व्यक्तियों से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहिए तथा उनसे किसी प्रकार का पंगा भी नहीं लेना चाहिए। उनसे दूर ही रहना चाहिए। अवांछनीय व्यक्तियों से ना तो मित्रता अच्छी होती है और ना ही शत्रुता। उनसे आँखें मिलाना श्रेयस्कर नहीं।

प्रश्न 4.
“तिरिछ’ लेखक के सपने में आया था और वह इतनी परिचित आँखों से देखता था कि लेखक अपने आपको रोक नहीं पाता था। यहाँ परिचित आँखों से क्या आशय है?
उत्तर-
“तिरिछ लेखक के सपने में आता था”-सपना मनुष्य नींद में देखता है, जाग्रतावस्था में सपने नहीं आते, कल्पनाएँ आती हैं, भाव आते हैं। कुछ सपने हमारे जीवन में घटित घटनाओं पर आधारित होते हैं तो कुछ कल्पना की उड़ान अथवा आधारहीन होते हैं। लेखक द्वारा कही गई इस उक्ति में संभवतः वैसे मानवीय चेहरों का वर्णन है जो तिरिछ की तरह ही क्रूर है। वह उसे परिचित-सा प्रतीत होता है अर्थात् वह इस प्रकार देखता है मानों वह उसकी परिचित तथा घनिष्ठ संपर्क वाला व्यक्ति है। अतः लेखक का स्वयं को नहीं रोक पाना स्वाभाविक है। लेखक को उसकी वास्तविकता का ज्ञान नहीं है, उसकी हिंसक प्रवृत्ति की जानकारी नहीं है।

परिचित आँखों का अर्थ है कि वह व्यक्ति मानो परिचित हो। यह मानवीय दुर्बलता है कि यदि कोई व्यक्ति इस प्रकार आत्मीयता से देखता हो जैसे वह हमारे निकट संपर्क वाला व्यक्ति है तो स्वभावतः हम उस ओर आकर्षित हो जाते हैं। अतः, जब तिरिछ को स्वप्न में परिचित आँखों से देखता था तो लेखक उसमें अपनत्व पाता था तथा उस ओर आकृष्ट हो जाता था।

प्रश्न 5.
व्याख्या करें :
(क) वैसे, धीरे-धीरे मैंने अनुभवों से यह जान लिया था कि आवाज ही ऐसे मौके पर मेरा सबसे बड़ा अस्त्र है।
(ख) जैसे जब मेरी फीस की बात आई थी, उस समय हमारे पास आखिरी गिलास भी गुम हो गया था और सब लोग लोटे में पानी पीते थे।
(ग) आश्चर्य था कि इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह से जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मैंने उसे मारने की कोई कोशिश नहीं की थी।
(घ) मुझे यह सोचकर एक अजीब-सी राहत मिलती है और मेरी फंसती हुई साँसें फिर से ठीक हो जाती हैं कि इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की है।

कहानी में तिरिछ आतंक का पर्याय बनकर आया है। उसी के कारण लेखक के डरावने सपने आते हैं। यह आतंक शहरी आधुनिकता एवं जीवन दृष्टि का और सत्ता की निरंकुशता का। एक तरफ आतंक और यंत्रणा से उपजी बेचैनी है, तनाव और असहायता का भाव निहित है तो दूसरी ओर शहरी या कहें आधुनिक मनुष्य की संवेदनहीनता और अमानवीयता छिपी हुई है। यहीं मूल्यों का संक्रमण सर्वाधिक दृष्टिगोचर होता है। परंपरा ओर आधुनिकता अथवा पुराने और नए द्वन्द्व से जहाँ नवीन भावबोध का सृजन हुआ वहीं कुछ विकृतियों ने भी जन्म लिया।

संवेदना का क्षरण हुआ। इस क्षरण ने अजनबीपन, अकेलापन, घुटन और संत्रास जैसे भावबोध दिए। दूसरे भावबोध के कारण लेखक हमेशा डरा हुआ महसूस करता। उसे डरावने सपने आते। जब सपने में मृत्यु के करीब होता तो वह जोर-जोर से बोलने लगता और दूसरी आवाज के सहारे सपने से बाहर निकलता। इस पूरी दुनिया में उसकी आवाज ही अपनी थी जो उसे मृत्यु के मुँह में जाने स बचा लेती है।

(ख) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी से ली गई है। इसके लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में विद्वान लेखक ने अपने मन की व्यथा व्यक्त की हे।

उपर्युक्त सन्दर्भ में लेखक के घर की और अपनी जीवन की बहुत-सी समस्याओं का अंत पिताजी ही करते थे। यह उद्धरण लेखक की आर्थिक समस्याओं को उठाता है। जैसा कि हमारे समाज में होता है कि घर की सारी समस्याओं का निपटारा घर के मुखिया पिताजी द्वारा ही होता हो गर्व की बात है। परला तरह पिता ने अपने दायित्व फीस मिलना पुत्र कलर की बदहाली है।

आर्थिक कमी को ही व्यजित करती है। साथ ही गिलास के गुम होने पर लोटे में पानी पीना आर्थिक तंगी का ही बयान करता है। एक रिटायर्ड हेडमास्टर की चुप्पी उसके घर की बदहाली का ही संकेत देती है परन्तु पुनः दो-तीन दिन के बाद फीस मिलना पुत्र के लिए गर्व की बात बन जाती है। आखिर किसी तरह पिता ने अपने दायित्व का निर्वाह किया। यह दायित्व का निर्वहन ही गर्व की बात है। परन्तु लेखक द्वारा कहा गया कथन मध्यवर्गीय ग्रामीण जीवन की आर्थिक बदहाली की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।

(ग) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं।

लेखक को सपने में तिरिछ आते रहने के कारण कहीं न कहीं उनमें भय घर कर गया था। इसी कारण इतने लम्बे अर्से से उसके अड्डे को इतनी अच्छी तरह जानने के बावजूद कभी दिन में आकर मारने की कोई कोशिश नहीं की। यह ‘आश्चर्य’ डर का प्रतिरूप था। हमारे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जो हमारे मन में घर कर जाती हैं जिसके कारण हम हमेशा डरे से रहते हैं। यही डर हमें उससे अलगाती है। यही वजह थी कि सबकुछ जानने के बाद भी उसने मारने की कोशिश नहीं की। जब वही सपने उसे आने बंद हो गये तो उसने जाकर ‘तिरिछ’ को जलाया और अपने को विजित महसूस करने लगा।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक दिगंत भाग-2 के तिरिछ शीर्षक कहानी का एक अंश है। इस सारगर्भित कहानी के लेखक उदय प्रकाश हैं। इन पंक्तियों में लेखक अपने पिताजी के विषय में वर्णन कर रहा है। उसके पिताजी शहर में जाकर विभिन्न स्थानों पर वहाँ के लोगों (निवासियों) की हिंसक कारवाईयों के शिकार हो जाते हैं। उनको काफी चोटें आती हैं और वे मरनासन्न हो जाते हैं। उन स्थितियों में भी लेखक एक अजीब-सी राहत महसूस करता है तथा उसकी फंसती हुई सांसें सामान्य हो जाती हैं। वह ऐसा अनुभव करता है कि उसके पिताजी को अब कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा।

वह ऐसा इसलिए सोचता है कि अब उनके पिताजी को ऐसा विश्वास होने लगा होगा कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ वह एक सपना था। उनकी नींद खुलते ही सब ठीक हो जाएगा। पुनः वह यह भी आशा व्यक्त करता है कि उसके पिताजी फर्श पर सोते हुए उसे और उसकी छोटी बहन को भी देख सकेंगे। लेखक की इस उक्ति में अजीब विरोधाभास है। लेखक के पिता बुरी तरह घायल हो गए हैं। उनकी स्थिति चिन्ताजनक हो गई है। फिर भी वह आशा करता है कि वे स्वस्थ हो जाएँगें, उन्हें कोई दर्द महसूस नहीं होगा और वे लेखक तथा उसकी छोटी बहन को फर्श पर लेटे हुए देखेंगे।

यहाँ भी लेखक के प्रतीकात्मक भाषा-शैली का प्रयोग किया है। संभवतः हिंसात्मक, भीड़ द्वारा उनके पिताजी की बेरहमी से पिटाई तथा उनका सख्त घायल होना, उनकी विपन्नता, प्रताड़ना तथा त्रासदपूर्ण स्थिति को इंगित करता है। प्रतीकात्मक भाषा द्वारा लेखक ने अपने विचारों को प्रकट किया है ऐसा अनुभव होता है। लेखक का इस क्रम में आगे चलकर यह कहना कि “और जैसे ही वे जागेंगे सब ठीक हो जाएगा या नीचे फर्श पर सोते हुए मैं और छोटी बहन दिख जाएंगे” लेखक के पिताजी एवं परिवार की सोचनीय आर्थिक दशा का सजीव वर्णन मालूम पड़ता है।।

प्रश्न 6.
तिरिछ को जलाने गए लेखक को पूरा जंगल परिचित लगता है, क्यों?
उत्तर-
लेखक को पूरा जंगल परिचित इसलिए लगता है कि इसी जगह से कई बार सपने में तिरिछ से बचने के लिए भागा था। लेखक गौर से हर तरफ देखता है कि और उसने सपने के बाद थानू को बताया भी था कि एक सँकरा-सा नाला इस जगह बहता है। नाले के ऊपर .. जहाँ बड़ी-बड़ी चट्टानें हैं वहीं कीकर का एक बहुत पुराना पेड़ है, जिस पर बड़े मधुमक्खी के छत्ते हैं। लेखक को एक भूरा रंग का चट्टान मिलता है जो बरसात भर नाले के पानी में आधी डूबी रहती थी। लेखक को उसी जगह तिरिछ की लाश भी मिल जाती है। सपने में आयी बातों का सच होना लेखक को जंगल से परिचित कराता है। इसीलिए लेखक को जंगल परिचित लगता है। क्योंकि इन सब चीजों को वह सपने में देख चुका था।

प्रश्न 7.
‘इस घटना का संबंध पिताजी से है। मेरे सपने से है और शहर से भी है। शहर के प्रति जो एक जन्मजात भय होता है, उससे भी है।’ यह भय क्यों है?
उत्तर-
‘तिरिछ’ कहानी के लेखक के पिता को शहर इतना आतंकित करता है कि वे शहर जाने से बार-बार कतराते हैं, नहीं जाने के बहाने ढूँढ़ते हैं। शहर की संवेदनशीलता उसके भय का कारण है। कहानी में वर्णित शहर में जब पिता डरते-डरते शहर जाते हैं तो उनके साथ हुए अमानवीय व्यवहार से लगता है कि शहर की संवेदना मर गई है। शहर का प्रत्येक व्यक्ति अपने स्वार्थ से ओत-प्रोत है। नयी पीढ़ी अराजक एवं हिंसक हो गयी है। शहर की आत्मीयता सिमट गयी है इसलिए पिता की सहायता के लिए आगे कोई नहीं बढ़ता बल्कि उसकी स्थितियों से मुँह चुरा लेता है। आधुनिकता की यह विडम्बना शहर के भयावह रूप को रेखांकित करती है।

इस प्रकार एक ठेठ ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में किस तरह से खुद को अजनबी असहाय और अकेला. महसूस करता है उपर्युक्त दृष्टांत इसका परिचय देते हैं।

प्रश्न 8.
कहानी में वर्णित ‘शहर’ के चरित्र से आप कितना सहमत हैं?
उत्तर-
कहानी में शहर का अत्यन्त सजीव तथा रोमांचकारी वर्णन किया गया है। शहरी जीवन की विसंगतियों तथा विकृतियों का भी इसमें सफल निरूपण है। शहर में आधुनिकता से उपजा द्वन्द्व भीषण और यथार्थ है।

लेखक के पिताजी सुदूर गाँव में रहते थे तथा ग्रामीण परिवेश में ही उनकी शैली है। शहर की आधुनिकता से वे कटे-से हैं, अनभिज्ञ-से हैं। यदा-कदा किसी कार्यवश वे शहर जाते हैं एवं कार्य सम्पादित होने के बाद लौट आते हैं। शहर की संस्कृति उन्हें रास नहीं आती है।

एक बार वे कचहरी के काम से शहर आते हैं। उनके साथ कठिनाई यह थी कि शहर। की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसी क्रम में वे भटकते हुए कई स्थानों में चले जाते हैं। उस क्रम में उनके प्रति लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है। उनकी गवई वेष-भूषा और चाल-ढाल से शहर के उन इलाकों के लोग उनके प्रति गलत धारणा बना लेते हैं जिनकी परिणति एक त्रासदी में होता है। उनके ऊपर अनेक प्रकार के जुल्म ढाए जाते हैं। उन्हें अपमान, तिरस्कार तथा प्रताड़ना का चूंट पीना पड़ता है।

वे सबसे पहले स्टेट बैंक की एक शाखा में जाते हैं। वहाँ के कर्मचारी उन्हें शराबी, पागल और बाद में डकैत (अपराधी) समझ बैठते हैं, तथा उनकी जमकर पिटाई करते हैं। उनके कागजात एवं रुपए-पैसे छीन लेते हैं। किसी तरह वहाँ से निकलकर वे पुलिस थाना पहुँचे। कमीज नदारत थी, पैंट फटी थी। दारोगा ने उन्हें पागल समझकर सिपाही. द्वारा घसीटवाकर थाने से बाहर करवाया।

वहाँ से वे इतवारी कॉलोनी आए, धोती भी उस समय तक उतर चुकी होती है केवल चड्डी शेष बची थी। इसके बाद इतवारी कॉलोनी तथा नेशरनल रेस्टोरेन्ट में भी उन्हें पागल या चोर-उचक्का समझा गया तथा वहाँ पत्थर मारकर मरनासन्न कर दिया गया। अन्त में सिविल लाइन्स में मोचियों की गुमटी के पास पहुंचे तथा एक मोची की गुमटी में घुस गए। वह उनके गाँव के पासवाले टोले का था। उसने उन्हें पहचान लिया। कुछ ही क्षणों में उनकी मृत्यु हो जाती है।

इस प्रकार स्टेट बैंक, पुलिस थाना, एतवारी कॉलोनी तथा नेशनल रेस्टोरेन्ट इन सभी स्थानों में जब लेखक के पिताजी जाते हैं, तो उन्हें डकैत, अपराधी, शराबी, पागल आदि समझकर उनपर निर्मम प्रहार किया गया। कपड़े फाड़ दिए गए, अथवा उतरवा लिए गए। बेरहमी से पिटाई की परिणति उनकी.दुःखद मृत्यु में हुई। अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में वे मोचियों की कॉलोनी में पहुँचते हैं। केवल वहीं कुछ सहानुभूति की झलक मिलती है।

इस प्रकार शहरी तथा ग्रामीण जीवन के बीच उपजी खाई का इसमें चित्रण है। शहर की आधुनिक संस्कृति से उपजी विकृति तथा द्वन्द्व का ज्वलन्त उदाहरण है लेखक के पिताजी की करुण-गाथा। लेखक से तिरिछ जैसे विषैले जन्तु को प्रतीक स्वरूप कहानी में प्रतिस्थापित किया है। कहानी में वर्णित शहर का चरित्र पूर्णतया उचित एवं निर्विवाद रूप से सत्य है।

प्रश्न 9.
लेखक के पिता के साथ एक दिक्कत यह भी थी कि गाँव या जंगल की पगडंडियाँ तो उन्हें याद रहती थीं, शहर की सड़कों को वे भूल जाते थे। इसके पीछे क्या कारण हो सकता है? आप क्या सोचते हैं? लिखें।
उत्तर-
लेखक के पिताजी का सम्पूर्ण जीवन गाँव में बीता। वह ग्रामीण जीवन शैली के अभ्यस्त थे। शहर केवल आवश्यक कार्य पड़ने पर ही आते थे तथा कार्य सम्पादित कर फौरन वापिस चले जाते थे। यह स्वाभाविक है कि जिससे हमारा लगाव रहता है, उस स्थान से हम पूर्ण परिचित हो जाते हैं तथा पूर्णतया जुड़ जाते हैं।

लेखक के पिताजी गाँव में रहते थे। स्वभावतः वे प्रकृति-प्रेमी थे। पहाड़, वन, नदी, झरना आदि प्रकृति की अमूल्य धरोहर के प्रति उनका स्वाभाविक आकर्षण था। प्रतिदिन वे पहाड़ एवं जंगल की ओर टहलने निकल जाते थे। शहर से उनका संबंध सीमित था। यदा-कदा आवश्यक कार्यवश जाते थे तथा कार्य करके फौरन वापस लौट आते थे। शहरी जीवन से भी उनका लगाव नहीं था। अतः उन्हें शहर की सड़कों की जानकारी नहीं थी तथा वे सड़कों को प्रायः भूल जाते थे।

यहाँ निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य को जो वस्तु प्रिय होती है उसकी उसे विस्तृत जानकारी रहती है। उसी प्रकार जिसके प्रति उसे कोई अभिरूचि नहीं होती उसके प्रति उत्सुकता भी नहीं होती तथा वहाँ पर वह भटक जाता है।

प्रश्न 10.
स्टेट बैंक के कैशियर अग्निहोत्री, नेपाली चौकीदार थापा, असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता, थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह के चरित्र का परिचय अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर-
कैशियर अग्निहोत्री-कैशियर अग्निहोत्री, शहर के देशबन्धु मार्ग पर स्थित स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में कैशियर है। वे डरपोक चरित्र के व्यक्ति इसलिए हो गये थे कि आए दिन बैंकों में लूट-डकैती होती रहती थी। इसलिए उन्हें हर व्यक्ति लुटेरा के रूप में नजर आता था। इस बात का पता इस तरह से हो सकता है कि जिस समय लेखक के पिता कैशियर अग्निहोत्री के पास पहुँचते हैं कैशियर डर कर घंटी बजा देता है। यह कथन वर्तमान समाज में पुलिस तंत्र की कलई भी खोलता है। हर व्यक्ति अपने को असुरक्षित महसूस करता है।

नेपाली चौकीदार थापा-लेखक के पिता को चौकीदार थापा द्वारा दबोचे जाने से यही लगता है कि वह छोटा चौकीदार अपने काम के प्रति बहुत सजग है, परन्तु पिता को बिना सोचे-समझे पीटना उसकी मानसिक कमजोरी का द्योतक है। अपने काम के प्रति सजग रहने का मतलब यह नहीं है कि बिना सोचे-समझे अधिकारियों के कहने पर किसी दूसरे को जान तक ले ले। यह चौकीदार के लुच्चेपन का प्रतीक है।

असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर मेहता : मेहता स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट ब्रांच मैनेजर पद पर थे। मैनेजर मेहता थोड़ी सूझ-बूझ वाले व्यक्ति नजर आते हैं, क्योंकि जब पिता को मारा-पीटा जा रहा था तब मेहता ने दरियादिली दिखाते हुए तलाशी लेकर बाहर निकाल देने को कहा।

थाने के एस. एच. ओ. राघवेन्द्र प्रताप सिंह : राघवेन्द्र प्रताप सिंह शहर के थाने में एस. एच. ओ. थे। उनमें भोजन पसंदी से तो यही लगता है कि वह कडुवे चीज को नापसंद करते थे। परन्तु उनकी पत्नी द्वारा 13 साल में रहने के बावजूद पत्नी को राघवेन्द्र प्रताप सिंह के भोजन का स्वाद पता नहीं चला था। इसका अर्थ है राघवेन्द्र प्रताप विभिन्न स्वादों के आकांक्षी व्यक्ति हैं। इससे दूसरा अर्थ यह भी ध्वनित होता है कि वे अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ नहीं निभाते हैं। करेले की वजह से उनका मूड ऑफ हो जाता है। यह गैरजिम्दाराना व्यक्तित्व है।

प्रश्न 11.
लेखक के पिता अपना परिचय हमेशा, “राम स्वारथ प्रसाद ……… एक्स स्कूल हेडमास्टर ……….. एंड विलेज हेड ऑफ बकेली के रूप में देते थे, ऐसा क्यों? स्कूलऔर गाँव के बिना वे अपना परिचय क्यों नहीं देते?
उत्तर-
एक ग्रामीण संवेदना का व्यक्ति शहरी वातावरण में अपने को असुरक्षित पाता है। शहर का अजनबीपन, कुंठा, संत्रास, आधुनिकता की बौखलाहट, नयी पीढ़ी की जल्दीबाजी, शहर की संवेदनहीनता, संकुचित दृष्टि, व्यक्तिवादिता जैसे प्रवृत्तियाँ। कमोवेश व्यक्ति को अपने अस्तित्व और पहचान के लिए पद और व्यक्ति जहाँ से गुजरता है उसका परिचय देना पड़ता है। नयी पीढ़ी इतनी संवेदनहीन हो गयी है कि जल्दीबाजी के कारण पिता की कोई बात पूरी नहीं सुनता और उसके परिणाम का निर्णय ले लेती है।

अतः पिता को अपनी अस्तित्व और पहचान के लिए गाँव का परिचय देना पड़ता है। उनकी संवेदनहीनता को समझकर ही गाँव का परिचय जोर-जोर से आवाज में देते हैं। कोई उनके दुख को सुनने-समझने के प्रयास नहीं करता। यहाँ शिक्षित मध्यवर्ग एवं बौद्धिक वर्ग की स्वार्थपरता एवं उपभोक्तावादी मूल्यों के बढ़ते प्रभाव व्यक्ति की पहचान का संकेत देते हैं।

प्रश्न 12.
हालाँकि थान कहता है कि अब तो यह तय हो गया कि तिरिछ के जहर से कोई नहीं बच सकता। ठीक चौबीस घंटे बाद उसने अपना करिश्मा दिखाया और पिताजी की मृत्यु हुई। इस अवतरण का अभिप्राय स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक के दोस्त थानू को पिता की मृत्यु का कारण स्पष्ट नहीं होने के कारण प्रचलित विश्वास कि तिरिछ के जहर से कोई बच नहीं सकता, पुष्ट करता है। और ये जड़ीभूत मान्यताएँ पुष्ट होकर परंपरा बनती हैं। ये हमारा तब तक पीछा नहीं छोड़ती जब तक कि उससे न बचा जाए।.वे हमें समय से बहुत पीछे खींच ले जाती है। यह एक तरह से समय का समय से टकराव है। एक ही समय में दो भिन्न प्रकार के सत्य अपने अस्तित्व का आभास देते हैं। इस प्रकार ऐसी मान्यताओं से पुराने विश्वास को बल मिलता है और वे जड़ीभूत हो जाती है।

पिता को तिरिछ काटने के बाद धतूरा का काढ़ा पिलाना क्या है? पिता इस विश्वास का खंडन भी नहीं कर पाता और शहर जाने से पहले ही त्रासदी का शिकार हो जाता है। उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ हो जाता है और उन्हें पागल घोषित कर शहरी युवकों, लोगों द्वारा पीट-पीट कर मार दिया जाता है। यदि इन प्रचलित विश्वासों को न माना जाता तो शायद पिता बच सकते थे।

ठीक चौबीस घंटे बाद पिता की मृत्यु शहर की अमानवीयता और क्रूरता को प्रकट करती है। समय और समाज का अतिक्रमण व्यक्ति को मृत्यु के निकट पहुँचा देता है।

प्रश्न 13.
लेखक को अब तिरिछ का सपना नहीं आता, क्यों?
उत्तर-
लेखक उदय प्रकाश को अब तिरिछ का सपना नहीं आने का कारण लेखक को सपना सत्य प्रतीत होना था। परन्तु अब लेखक विश्वास करता है कि यह सब सपना है। अभी आँख खोलते ही सब ठीक हो जायेगा।

इससे पहले लेखक को सपने की बात प्रचलित विश्वास सपने सच हुआ करते सत्य प्रतीत होती थी। लेखक फैंटेसी में जीता था परन्तु अनुभव से यह जान गया कि सपना बस सपना भर हैं।

लेखक ने जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए दुःस्वप्न का प्रयोग किया है। परन्तु जैसे ही लेखक का भ्रम टूटता है तो उसे डर नहीं लगता और तिरिछ के सपने नहीं
आते।

तिरिछ भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पदों में कौन-सा समास है
जन्मजात, भारी-भरकम, संवाददाता, बीचो-बीच, नीलकंठ, चौराहा, टेढ़ा-मेढ़ा, इधर-उधर, चुंगीनाका।
उत्तर-

  • जन्मजात – जन्म से जुड़ा हुआ-तत्पुरुष
  • भारी-भरकम – भारी और भरकम-द्वन्द्व
  • संवाददाता – संवाद का दाता-तत्पुरुष
  • बीचोबीच बीच और बीच-द्वन्द्व
  • नीलकण्ठ – कंठ है नीला जिसका-बहुब्रीहि
  • चौराहा – चार राहों का समाहार-द्विगु
  • टेढ़ा-मेढ़ा – टेढ़ा और मेढ़ा-द्वन्द्व
  • इधर-उधर – इधर या उधर-वैकल्पिक द्वन्द्व
  • चुंगीनाका – चुंगी के लिए नाका-तत्पुरुष

प्रश्न 2.
कहानी से व्यक्तिवाचक संज्ञा को चुनें।
उत्तर-
व्यक्तिवाचक संज्ञा-थापा, थपियाल साहब, एस. एच. ओ राघवेन्द्र प्रताप सिंह, अग्निहोत्री, मैनेजर मेहता।

प्रश्न 3.
कहानी के शिल्प पर अपने शिक्षक से चर्चा करें और एक संक्षिप्त टिप्पणी लिख।
उत्तर-
कहानी जिस. विशेषता के बल पर टिकी होती है उसे कहानी का शिल्प कहते हैं। इसके अन्तर्गत भाषा, शैली और संवाद आते हैं।

भाषा-कहानीकार की रचना की सारी विशेषताएँ भाषा के माध्यम से ही हमारे सामने आती है। इसलिए कहानी की संरचना का प्राण भाषा को कहा जाता है। शब्दों के द्वारा ही कथा में रोचकता, पात्रों में सजीवता और परिवेश में स्वाभाविकता आती है। रचनात्मक का भाषा पर जितना अधिक अधिकार होगा, उसकी रचना उतनी ही उत्कृष्ट होगी।

शैली-कहानी चाहे घटनाप्रधान हो या चरित्र प्रधान, उसकी विषयवस्तु ऐतिहासिक हो या समकालीन, चाहे वह जिस दृष्टि या उद्देश्य से लिखी गयी हो, प्रत्येक कहानीकार का लिखने का अपना अंदाज होता और कहानीकार इसी कारण विशिष्ट होता है। कहानी लिखने की कई शैलियाँ प्रचलित हैं। घटनाप्रधान कहानियाँ प्रायः वर्णात्मक शैली में लिखी जाती हैं जिसमें लेखक घटनाओं का वर्णन करता है। चरित्रप्रधान कहानियों में लेखक मनोविश्लेषणात्मक का प्रयोग करता है और पात्रों के अंतर्द्वन्द्व को प्रस्तुत करता है। कथानक आवश्यकतानुसार आत्मकथात्मक शैली का पूर्वदीप्ति शैली, फंतासी शैली, भी प्रयोग करता है।

संवाद-कहानी के विभिन्न पात्र आपस में बातचीत करते हैं, उन्हें ही हम संवाद कहते हैं। संवादों से कहानी आगे बढ़ती है। विभिन्न पात्रों के चरित्र पर प्रकाश पड़ता है। संवाद के द्वारा कथनी में नाटकीयता लायी जा सकती है और लम्बे चौड़े वर्णन से बचा जा सकता है। ‘तिरिछ’ कहानी आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है। इसमें जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया गया है जो एक पद्धति भी है और शिल्प का नया प्रयोग भी। मिथकों, विश्वासों, धारणाओं और मान्यताओं का सहारा लेकर एक रचनाकार यथार्थ को प्रभावी बनाने का प्रयास करता है। आज के जटिल यथार्थ को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने के लिए जादुई यथार्थवाद का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
नीचे लिखे वाक्यों से संज्ञा एवं सर्वनाम चुनें
(क) लेकिन बहुत जल्द हमें वह नाला मिल गया।
(ख) तिरिछ उसमें जल रहा था।
(ग) मेरा अनुमान है कि उस समय पिताजी को बहुत प्यास लगी होगी।
(घ) उसने घंटी भी बजा दी।
उत्तर-
संज्ञा-नाला, तिरिछ, घंटी, पिताजी।
सर्वनाम-प्यास, वह, हमें, उसने, मेरा।

तिरिछ लेखक परिचय उदय प्रकाश (1952)

जीवन-परिचय-
समसामयिक हिन्दी लेखन में अग्रणी एवं महत्वपूर्ण लेखक उदय प्रकाश का जन्म 1 जनवारी, 1952 के दिन अनूपपुर, मध्यप्रदेश में स्थित सीतापुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम गंगा देवी और पिता का नाम प्रेम कुमार सिंह था। इन्होंने बी.एस-सी. करने के उपरांत सागर विश्वविद्यालय, सागर मध्यप्रदेश से हिन्दी में एम.ए. किया। इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा विभाग में कुछ समय तक अध्यापन भी किया। इसके बाद मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग में विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी के रूप में कार्यरत रहे।

इन्होंने ‘दिनमान’ के संपादन विभाग में भी कार्य किया। नई दिल्ली से प्रकाशित होने वाले ‘संडेमेल’ में सहायक संपादक भी रहे। वहीं प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के टेलीविजन विभाग में विचार और पटकथा प्रमुख भी रहे। साथ ही इन्होंने टाइम्स रिसर्च फाउंडेशन में पत्रकारिता का अध्यापन भी किया। उदय प्रकाश जी निरंतर स्वतंत्र लेखन, फिल्म निर्माण और अखबारों तथा फिल्मों के लिए लेखन में रत हैं। पिछले दो दशकों में समसामयिक हिन्दी लेखन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे निरंतर लेखन कार्य में रत हैं।

रचनाएँ-उदय प्रकाश जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कहानी-दरियाई घोड़ा, तिरिछ और अंत में प्रार्थना, पॉल गोमरा का स्कूटर, पीली छतरी वाली लड़की, दत्तात्रेय के दुख, अरेबा-परेबा, मोहनदास, मेंगोसिल आदि।
कविता संग्रह-सुनो कारीगर, अबूतर-कबूतर, रात में हारमोनियम आदि। निबंध-आलोचना-ईश्वर की आँख।
अनुवाद-कला-अनुभव, इन्दिरा गाँधी की आखिरी लड़ाई, लाल घास पर नीले घोड़े, रोम्याँ का भारत।
फिल्म-टी.वी.-इन्होंने अनेक धारावाहिकों तथा फिल्मों के स्क्रिप्ट लिखे हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ-उदय प्रकाश जी ने अपने विषय-चयन, सीधी-सादी भाषा, ताजगी भरे मुहावरों और अनौपचारिक संवेदना के कारण पाठकों को आकृष्ट किया। कविता, कहानी, निबन्ध, लेख-टिप्पणियाँ, आलोचना और टेलीविजन फिल्म आदि के लिए लेखन के तमाम क्षेत्रों में इन्होंने नवीन प्रयोग किए। पिछले बीस वर्षों की श्रेष्ठ हिन्दी कहानियों में आधी से ज्यादा इन्हीं की होंगी। इनका साहित्य तथ्य और कथ्य का विपुल विस्तार लिए है।

तिरिछ पाठ के सारांश

‘तिरिछ’ कहानी का कथानक लेखक के पिताजी से सम्बन्धित है। इसका संबंध लेखक के सपने से भी है। इसके अतिरिक्त, कहानी में शहर के प्रति जो जन्मजात भय होता है उसकी विवेचना भी इस कहानी में की गई है। गाँव एवं शहर की जीवन-शैली का इसमें तुलनात्मक अध्ययन अत्यन्त सफलतापूर्वक किया गया है। गाँव की सादगी तथा शहर का कृत्रिम आचरण इसमें प्रतिबिम्बित होता है।

लेखक के पिताजी जो पचपन साल के वयोवृद्ध व्यक्ति हैं, उनकी विशिष्ट जीवन शैली है। वह मितभाषी हैं। उनका कम बोलना, हमेशा मुँह में तम्बाकू का भरा रहना भी है। बच्चे उनका आदर करते थे तथा उनकी कम बोलने की आदत के कारण सहमे भी रहते थे। घर की आर्थिक स्थिति संतोषजनक नहीं थी।

एक दिन शाम को जब वे टहलने निकले तो एक विषैले जन्तु तिरिछ ने उन्हें काट लिया। उसका विष साँप की तरह जहरीला तथा प्राणघातक होता है। रात में झाड़-फूंक तथा इलाज चला दूसरे दिन सुबह उन्हें शहर की कचहरी में मुकदमे की तारीख के क्रम में जाना था। घर से वे गाँव के ही ट्रैक्टर पर सवार होकर शहर को रवाना हुए। तिरिछ द्वारा काटे जाने की घटना का वर्णन ट्रैक्टर पर सवार अन्य लोगों से करते हैं। ट्रैक्टर पर सवार उनके सहयात्री पं. रामऔतार ज्योतिषी के अलावा वैद्य भी थे। उन्होंने रास्ते में ट्रैक्टर रोककर उनका उपचार किया। धतूरे की बीज को पीसकर उबालकर काढ़ा बनाकर उन्हें पिलाया गया। ट्रैक्टर आगे बढ़ा तथा शहर पहुँचकर लेखक के पिताजी ट्रैक्टर से उतरकर कचहरी के लिए रवाना हुए।

यह समाचार पं. रामऔतार ने गाँव आकर बताया, क्योंकि वे (लेखक के बाबूजी) शाम को घर नहीं लौटे थे, विभिन्न स्रोतों से उनके विषय में निम्नांकित जानकारी प्राप्त हुई। ट्रैक्टर से उतरते समय उनके सिर में चक्कर आ रहा था तथा कंउ सूख रहा था। गाँव के मास्टर नंदलाल, जो उनके साथ थे, उन्होंने बताया। इस बीच वे स्टेट बैंक की देशबन्धु मार्ग स्थित शाखा, सर्किट हाउस के निकट वाले थाने में क्रमशः गए। उक्त स्थानों ने उन्हें अपराधी पवृत्ति तथा असामाजिक तत्व समझकर काफी पिटाई की गई और वे लहू-लुहान हो गए। अंत में वे इतवारी कॉलोनी गए।

वहाँ उनको कहते सुना गया, “मैं राम स्वारथ प्रसाद, एक्स स्कूल हेडमास्टर एंड विलेज हेड ऑफ….. ग्राम बकेली …।” किन्तु वहाँ उन्हें पागल समझकर कॉलोनी के छोटे-बड़े लड़कों ने उनपर पत्थर बरसाकर रही-सही कसर निकाल दी। उनका सारा शरीर लहू-लुहान हो गया। घिसते-पिटते लगभग शाम छ: बजे सिविल लाइन्स की सड़क की पटरियों पर बनी मोचियों की दुकान में से गणेशवा मोची की दुकान के अन्दर चले गए। गणेसवा मोची उनके बगल के गाँव का रहनेवाला था। उसने उन्हें पहचाना। कुछ ही देर में उनकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार इस कहानी के द्वारा लेखक ने सांकेतिक भाषा शैली में आधुनिक शहरों में विकृतियों एवं विसंगतियों पर कटाक्ष किया है। दूषित मानसिकता से ग्रसित शहरी जीवन-शैली “तिरिछ” की तरह भयानक तथा विषैली हो गयी है। वास्तविकता की तह में गए बगैर हम दरिन्दगी तथा अमानवीय कृत्यों पर उतर आते हैं।

लेखक का मन्तव्य (उद्देश्य) निम्नांकित पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है, “इस समय पिताजी को कोई दर्द महसूस नहीं होता रहा होगा, क्योंकि वे अच्छी तरह से पूरी तार्किकता और गहराई के साथ विश्वास करने लग गए होंगे कि यह सब सपना है और जैसे ही वे जागेंगे, सब कुछ ठीक हो जाएगा।” लेखक पुनः कहता है-“इसके पीछे पहली वजह तो यही थी कि उन्हें यह बहुत अच्छी तरह से पता था कि वे ठेले सपने के भीतर जा रहे हैं और इससे किसी को कोई चोट नहीं आएगी।” इससे (इन पंक्तियों से) कहानी में लेखक का संदेश स्पष्ट परिलक्षित होता है।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 1 कड़बक

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 1 कड़बक

 

कड़बक वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Kadbak Ka Saransh Bihar Board Class 12th  प्रश्न 1.
जायसी के पिता का नाम था।
(क) शेख ममरेज
(ख) शेख परवेज
(ग) शेख मुहम्मद
(घ) इकबाल
उत्तर-
(क)

Karbak Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
मल्लिक मुहम्मद जायसी का जन्म हुआ था।
(क) 1453 ई. में
(ख) 1445 ई. में
(ग) 1492 ई. में .
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग)

Kadbak Ka Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
इनमें से जायसी की कौन-सी रचना है?
(क) छप्पय
(ख) कड़बक
(ग) कवित्त
(घ) पद
उत्तर-
(ख)

कड़बक कविता का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
जायसी का जन्म स्थान था।
(क) बनारस
(ख) दिल्ली
(ग) अजमेरी
(घ) अमेठी
उत्तर-
(घ)

कड़बक शब्द का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जायसी थे।
(क) धनवान
(ख) बलवान
(ग) फकीर
(घ) विद्वान
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Karbak Kavita Ka Arth Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
कवि बचपन से ही ……….. और स्वभावतः संत थे।
उत्तर-
मृदुभाषी, मनस्वी

Kadbak Class 12 Bihar Board प्रश्न 2.
मल्लिक मुहम्मद जायसी ………. कवि हैं।
उत्तर-
प्रेम की पीर के

कड़बक का अर्थ Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. माता प्रसाद गुप्त आदि विद्वानों द्वारा ……… नाम से ग्रंथ प्रकाशित हुआ।
उत्तर-
जायसी ग्रंथावली

कड़बक का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
किसान होते हुए भी ये सदा ………. का जीवन गुजारे।
उत्तर-
फकीरी

Karbak Kavita Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
जायसी के उज्जवल अमर कीर्ति का आधार ……. है।
उत्तर-
पद्मावत

कड़बक अति लघु उत्तरीय प्रश्न

Kadbak Ka Saransh In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
‘पद्मावत’ के कवि का क्या नाम हैं?
उत्तर-
मलिक मुहम्मद जायसी।

Karbak Poem In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
मलिक मुहम्मद जायसी किस शाखा के कवि हैं?
उत्तर-
ज्ञानमार्गी।

Hindi Book Class 12 Bihar Board 100 Marks प्रश्न 3.
‘फूल मरै पै मरै न वासु’ का क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
मनुष्य मर जाता है पर उसका कर्म रहता ही है।

प्रश्न 4.
‘कड़बक’ के कवि हैं :
उत्तर-
जायसी।

कड़बक पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से क्यों की है?
उत्तर-
कवि ने अपनी एक आँख की तुलना दर्पण से इसलिए की है क्योंकि दर्पण स्वच्छ व निर्मल होता है, उसमें मनुष्य की वैसी ही प्रतिछाया दिखती है जैसा वह वास्तव में होता है। कवि स्वयं को दर्पण के समान स्वच्छ व निर्मल भावों से ओत-प्रोत मानता है। उसके हृदय में जरा-सा भी कृत्रिमता नहीं है। उसके इन निर्मल भावों के कारण ही बड़े-बड़े रूपवान लोग उसके चरण पकड़कर लालसा के साथ उसके मुख की ओर निहारते हैं।

प्रश्न 2.
पहले कड़बक में कलंक, काँच और कंचन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
अपनी कविताओं में कवि जायसी ने कलंक, काँच और कंचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।

जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम करता है। उसकी प्रभा के आगे चन्द्रमा का काला धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्त्तियों के सामने उनके एकाध-दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं। कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किये जाने पर सुमेरु पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों की संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही वह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है।

यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है। ‘काँच’ शब्द की अर्थक्ता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना घरिया में (सोना गलाने के पात्र को घरिया कहते हैं) गलाए काँच असली स्वर्ण रूप को नहीं प्राप्त कर सकता है ठीक उसी प्रकार इस संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठमा नहीं प्राप्त हो सकती।

उपरोक्त शब्दों की चर्चा करते हुए कवि ने लोक जगत को यह बताने की चेष्टा की है कि किसी भी जन का अपने लक्ष्य शिखर पर चढ़ने के लिए जीवन रूपी घरिया में स्वयं को तपाना पड़ता है। निखारना पड़ता है। उक्त शब्दों के माध्यम से कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि गुणी होने के लिए सतत संघर्ष और साधना की जरूरत है। यही एक माध्यम है जिसके कारण जीवन रूपी सुमेरू, चाँद या कच्चे सोने को असली रूप दिया जा सकता है। गुणवान व्यक्ति सर्वत्र और सर्वकाल में पूजनीय हैं वंदनीय हैं।

कहने का तात्पर्य है कि एक आँख से अंधे होने पर भी जायसी अपनी काव्य प्रतिभा और कृतित्व के बल पर लोक जगत में सदैव आदर पाते रहेंगे।

प्रश्न 3.
पहले कड़बक में व्यंजित जायसी के आत्मविश्वास का परिचय अपने शब्दों में दें।
उत्तर-
महाकवि मलिक मुहम्मद जायसी अपनी कुरूपता और एक आँख से अंधे होने पर शोक प्रकट नहीं करते हैं बल्कि आत्मविश्वास के साथ अपनी काव्य प्रतिभा के बल पर लोकहित की बातें करते हैं। प्राकृतिक प्रतीकों द्वारा जीवन में गुण की महत्ता की विशेषताओं का वर्णन करते हैं।

जिस प्रकार चन्द्रमा काले धब्बे के कारण कलंकित तो हो गया किन्तु अपनी प्रभायुक्त आभा से सारे जग को आलोकित करता है। अत: उसका दोष गुण के आगे ओझल हो जाता है।

जिस प्रकार बिना आम्र में मंजरियों या डाभ के नहीं आने पर सुबास नहीं पैदा होता है, चाहे सागर का खारापन उसके गुणहीनता का द्योतक है। सुमेरू-पर्वत की यश गाथा भी शिव-त्रिशूल के स्पर्श बिना निरर्थक है। घरिया में तपाए बिना सोना में निखार नहीं आता है ठीक उसी प्रकार कवि का जीवन भी नेत्रहीनता के कारण दोष-भाव उत्पन्न तो करता है किन्तु उसकी काव्य-प्रतिभा के आगे सबकुछ गौण पड़ जाता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि कवि का नेत्र नक्षत्रों के बीच चमकते शुक्र तारा की तरह है। जिसके काव्य का श्रवण कर सभी जन मोहित हो जाते हैं। जिस प्रकार अथाह गहराई और असीम आकार के कारण समुद्र की महत्ता है। चन्द्रमा अपनी प्रभायुक्त आभा के लिए सुखदायी है। सुमेरू पर्वत शिव-त्रिशूल द्वारा आहत होकर स्वर्णमयी रूप को ग्रहण कर लिया है। आम भी डाभ का रूप पाकर सुवासित और समधुर हो गया है। घरिया में तपकर कच्चा सोना भी चमकते सोने का रूप पा लिया है।

जिस प्रकार दर्पण निर्मल और स्वच्छ होता है-जैसी जिसकी छवि होती है-वैसा ही प्रतिबिम्ब दृष्टिगत होता है। ठीक उसी प्रकार कवि का व्यक्तित्व है। कवि का हृदय स्वच्छ और निर्मल है। उसकी कुरूपता और एक आँख के अंधेपन से कोई प्रभाव नहीं पड़नेवाला। वह अपने लोक मंगलकारी काव्य-सृजनकार सारे जग को मंगलमय बना दिया है। इसी कारण रूपवान भी उसकी प्रशंसा करते हैं और शीश नवाते हैं। उपरोक्त प्रतीकों के माध्यम से कवि ने अपने आत्मविश्वास का सटीकर चित्रण अपनी कविताओं के द्वारा किया है।

प्रश्न 4.
कवि ने किस रूप में स्वयं को याद रखे जाने की इच्छा व्यक्त की है? उनकी इस इच्छा का मर्म बताएँ।
उत्तर-
कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी स्मृति के रक्षार्थ जो इच्छा प्रकट की है, उसका वर्णन अपनी कविताओं में किया है।

कवि का कहना है कि मैंने जान-बूझकर संगीतमय काव्य की रचना की है ताकि इस प्रबंध के रूप में संसार में मेरी स्मृति बरकरार रहे। इस काव्य-कृति में वर्णित प्रगाढ़ प्रेम सर्वथा नयनों की अश्रुधारा से सिंचित है यानि कठिन विरह प्रधान काव्य है।

दूसरे शब्दों में जायसी ने उस कारण का उल्लेख किया है जिससे प्रेरित होकर उन्होंने लौकिक कथा का आध्यात्मिक विरह और कठोर सूफी साधना के सिद्धान्तों से परिपुष्ट किया है। इसका , कारण उनकी लोकैषणा है। उनकी हार्दिक इच्छा है कि संसार में उनकी मृत्यु के बाद उनकी कीत्ती नष्ट न हो। अगर वह केवल लौकिक कथा-मात्र लिखते तो उससे उनकी कार्ति चिर स्थायी नहीं होती। अपनी कीर्ति चिर स्थायी करने के लिए ही उन्होंने पद्मावती की लौकिक कथा को सूफी साधना का आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित किया है। लोकैषणा भी मनुष्य की सबसे प्रमुख वृत्ति है।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट करें-जौं लहि अंबहि डांभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई॥
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ कड़बक (1) से उद्धृत की गयी है। इस कविता के रचयिता मलिक मुहम्मद जायसी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने अपने विचारों को प्रकट करने का काम किया है। जिस प्रकार आम में नुकीली डाभे (कोयली) नहीं निकलती तबतक उसमें सुगंध नहीं आता यानि आम में सुगन्ध आने के लिए डाभ युक्त मंजरियों का निकलना जरूरी है। डाभ के कारण आम की खुशबू बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार गुण के बल पर व्यक्ति समाज में आदर पाने का हकदार बन जाता है। उसकी गुणवत्ता उसके व्यक्तित्व में निखार ला देती है।

काव्य शास्त्रीय प्रयोग की दृष्टि से यहाँ पर अत्यन्त तिरस्कृत वाक्यगत वाच्य ध्वनि है। यह ध्वनि प्रयोजनवती लक्षण का आधार लेकर खड़ी होती है। इसमें वाच्यार्थ का सर्वथा त्याग रहता है और एक दूसरा ही अर्थ निकलता है।।

इन पंक्तियों का दूसरा विशेष अर्थ है कि जबतक पुरुष में दोष नहीं होता तबतक उसमें गरिमा नहीं आती है। डाभ-मंजरी आने से पहले आम के वृक्ष में नुकीले टोंसे निकल आते हैं।

प्रश्न 6.
‘रकत कै लेई’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
कविवर जायसी कहते हैं कि कवि मुहम्मद ने अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। मैंने इस कथा को रक्त रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। यही सोचकर मैंने इस ग्रन्थ का निर्माण किया है कि जगत में कदाचित, मेरी यही निशानी शेष बची रह जाएगी।

प्रश्न 7.
महम्मद यहि कबि जोरि सनावा’-यहाँ कवि ने ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग किस अर्थ में किया है?
उत्तर-
‘मुहम्मद यहि कबि जोरि सुनावा’ में ‘जोरि’ शब्द का प्रयोग कवि ने ‘रचकर’ अर्थ में किया है अर्थात् मैंने यह काव्य रचकर सुनाया है। कवि यह कहकर इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि मैंने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है, उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है।

प्रश्न 8.
दूसरे कड़बक का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
दूसरे कड़बक में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है कि उसने रत्नसेन, पद्मावती आदि जिन पात्रों को लेकर अपने ग्रन्थ की रचना की है उनका वास्तव में कोई अस्तित्व नहीं था, अपितु उनकी कहानी मात्र प्रचलित रही है। परन्तु इस काव्य को जिसने भी सुना है उसी को प्रेम की पीड़ा का अनुभव हुआ है। कवि ने इस कथा को रक्त-रूपी लेई के द्वारा जोड़ा है और इसकी गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगोया है। कवि ने इस काव्य की रचना इसलिए की क्योंकि जगत में उसकी यही निशानी शेष बची रह जाएगी। कवि यह चाहता है कि इस कथा को पढ़कर उसे भी याद कर लिया जाए।

प्रश्न 9.
व्याख्या करें
“धनि सो पुरुख जस कीरति जासू।
फूल मरै पै मरै न बासू ॥”
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ जायसी लिखित कड़बक के द्वितीय भाग से उद्धत की गयी है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि का कहना है कि जिस प्रकार पुष्प अपने नश्वर शरीर का त्याग कर देता है किन्तु उसकी सुगन्धित धरती पर परिव्याप्त रहती है, ठीक उसी प्रकार महान व्यक्ति भी इस धाम पर अवतरित होकर अपनी कीर्ति पताका सदा के लिए इस भवन में फहरा जाते हैं। पुष्प सुगन्ध सदृश्य यशस्वी लोगों की भी कीर्तियाँ विनष्ट नहीं होती। बल्कि युग-युगान्तर उनकी लोक हितकारी भावनाएँ जन-जन के कंठ में विराजमान रहती है।

दूसरे अर्थ में पद्मावती की लौकिक कथा को आध्यात्मिक धरातल पर स्थापित करते हुए कवि ने सूफी साधना के मूल-मंत्रां को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया है। इस संसार की नश्वरता की चर्चा लौकिक कथा काव्यों द्वारा प्रस्तुत कर कवि ने अलौकिक जगत से सबको रू-ब-रू कराने का काम किया है। यह जगत तो नश्वर है केवल कीर्तियाँ ही अमर रह जाती हैं। लौकिक जीवन में अमरता प्राप्ति के लिए अलौकिक कर्म द्वारा ही मानव उस सत्ता को प्राप्त कर सकता है।

कड़बक भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें
शब्द – पर्यायवाची शब्द
उत्तर-

  • नैन आँख, नेत्र, चक्षु, दृष्टि, लोचन, खिया, अक्षि।
  • आम रसाल, अंब, आंब, आम्र।
  • न्द्रमा शशि, चाँद, अंशुमान, चन्दा, चंदर, चंद।।
  • रक्त खून, रूधिर, लहू, लोहित, शोषित।
  • राजा नरेश, नृप, नृपति, प्रजापति, बादशाह, भूपति, भूप।
  • फूल सुगम, सुकुम, पुष्प, गुल।

प्रश्न 2.
पहले कड़बक में कवि ने अपने लिए किन उपमानों की चर्चा की है, उन्हें लिखें।
उत्तर-
पहले कड़बक में कवि ने चाँद, सूक, अम्ब, समुद्र, सुमेरू, घरी, दर्पण आदि उपमानों का प्रयोग अपने लिए किए हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखें
उत्तर-

  • शब्द – मानक रूप
  • त्रिरसूल – त्रिशूल
  • दरपन – दर्पण
  • निरमल – निर्मल
  • पानि – पानी
  • नखत – नख
  • प्रेम – पेम
  • रकत – रक्त
  • कीरति – कीर्ति

प्रश्न 4.
दोनों कड़बक के रस और काव्य गुण क्या हैं?
उत्तर-
जायसी के दोनों कड़बकों में शांत रस का प्रयोग हुआ है। दोनों कड़बकों में माधुर्य गुण है।

प्रश्न 5.
पहले कड़बकों से संज्ञा पदों को चुनें।
उत्तर-
संज्ञा पद-नयन, कवि, मुहम्मद, चाँद, जंग, विधि, अवतार, सूक, नख, अम्ब, डाभ, . सुगंध, समुद्र, पानी, सुमेरु, तिरसूल, कंचन, गिरि, आकाश, धरी, काँच, कंचन, दरपन, पाउ, मुख।

प्रश्न 6.
दूसरे कड़बक से सर्वनाम पदों को चुनें।
उत्तर-
यह, सो, अस, यह, मकु, सो, कहाँ, अब, अस, कँह, जेई, कोई, जस, कई, जरा, जो।

कड़बक कवि परिचय मलिक मुहम्मद जायसी (1492-1548)

कवि-परिचय-
मलिक मुहम्मद जायसी निर्गुण धारा की प्रेममार्गी शाखा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। जायसी जाति के मुसलमान होते हुए भी साहित्य में सुर और तुलसी के समान ही महत्व रखते हैं। इसका कारण जायसी की भारतीय संस्कृति में निष्ठा, धर्म के प्रति आस्था एवं हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के समन्वय पर बल देना है। उनका जन्म रायबरेली जिले के जायस नामक ग्राम में सन् 1492 ई. में हुआ था। इसलिए वे जायसी नाम से प्रसिद्ध हुए। चेचक के प्रकोप ने जायसी को कुरूप बना दिया था। उनकी कुरूपता को देखकर दिल्ली का पठान बादशाह हँस पड़ा था। तब जायसी ने उसको संबोधित करते हुए कहा-

मोहि का हँसित कि हँसित कोहारहिं।

अर्थात् मुझ पर क्या हँसते हो, मेरे उस बनाने वाले कुम्हार पर हँसो। जायसी उच्च कोटि के विद्वान थे। इस विद्वता का कारण उनका बहुश्रुत होना था। वे ज्योतिष विद्या, वेदांत एवं हठयोग में निपुण थे। उनकी रचनाओं को देखने से विदित होता है कि जायसी के ऊपर तत्कालीन मत-मतांतरों का भी प्रभाव था। अमेठी के राजा के दरबार में उनका बड़ा सम्मान था। उनकी मृत्यु सन् 1542 ई. में हुई।

रचनाएँ-जायसी की तीन प्रमुख रचनाएँ उपलब्ध हैं-

  • पद्मावत,
  • अखरावट,
  • आखिरी कलाम।

काव्यगत विशेषताएँ-जायसी के काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों का सफल निर्वाह है। उनके काव्य का मुख्य रस शृंगार है। उन्होंने शृंगार रस के दोनों पक्षों का अद्भुत चित्रण किया है।

जायसी संयोग श्रृंगार के चित्रण की अपेक्षा वियोग श्रृंगार के चित्रण में अधिक सफल रहे हैं। नागमती का विरह वर्णन बड़ा ही अद्भुत है। उनके विरह में व्यापकता, मार्मिकता तथा गंभीरता का उत्कृष्ट वर्णन है। प्रेममार्गी शाखा में प्रेम की पीड़ा को अधिक महत्व दिया जाता है। जायसी ने उसी पीड़ा का वर्णन नागमती के विरह वर्णन के माध्यम से किया है। शृंगार रस के साथ-साथ करुण रस, वात्सल्य रस, भयानक रस एवं अद्भुत रस आदि का प्रसंगानुकूल चित्रण है।

कड़बक कविता का सारांश

यहाँ प्रस्तुत दोनों ‘कड़बक’ मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य ‘पद्मावत’ के क्रमशः प्रारम्भिक और अन्तिम छंदों से लिए गए हैं। – प्रारंभिक स्तुति खंड से उद्धृत प्रथम कड़बक में कवि और काव्य की विशेषताएँ निरूपित करते हुए दोनों के बीच एक अद्वैत की व्यंजना की गई है। इसमें कवि एक विनम्र स्वाभिमान से अपनी रूपहीनता और एक आँख के अंधेपन को प्राकृतिक दृष्टांतों द्वारा महिमामंडित करते हुए रूप को गौण तथा गुणों को महत्वपूर्ण बताते हुए हमारा ध्यान आकर्षित किया है। कवि ने इस तथ्य को प्रस्तुत किया है कि उसके इन्हीं गुणों के कारण ही ‘पद्मावत’ जैसे मोहक काव्य की रचना संभव हो सकी।।

द्वितीय कड़बक उपसंहार खंड से उद्धृत है, जिसमें कवि द्वारा अपने काव्य और उसकी कथा सृष्टि का वर्णन है। वे बताते हैं कि उन्होंने इसे गाढ़ी प्रीति के नयन जल में भिगोई हुई रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है इसी क्रम में वे आगे कहते हैं कि अब न वह राजा रत्नसेन है और न वह रूपवती रानी पद्मावती है, न वह बुद्धिमान सुआ है और न राघवचेतन या अलाउद्दीन है ! इनमें से किसी के न होने पर भी उनके यश के रूप में कहानी शेष रह गई है। फूल झड़कर नष्ट हो जाता है, पर उसकी खुशबू रह जाती है। कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि एक दिन उसके न रहने पर उसकी कीर्ति सुगन्ध की तरह पीछे रह जाएगी। इस कहानी का पाठक उसे दो शब्दों में याद करेगा। कवि का अपने कलेजे के खून से रचे इस काव्य के प्रति यह आत्मविश्वास अत्यन्त सार्थक और बहुमूल्य है।

कविता का भावार्थ

कड़बक-1
एक नैन कबि मुहमद गुनी। सोई बिमोहा जेईं कवि सुनी।
चाँद जइस जग विधि औतारा। दीन्ह कलंक कीन्ह उजिआरा।
जग सूझा एकई नैनाहाँ। उवा सूक अस नखतन्ह माहाँ।
जौं लहि अंबहि डाभ न होई। तौ लहि सुगंध बसाई न सोई।
कीन्ह समुद्र पानि जौं खारा। तौ अति भएउ असूझ अपारा।
जौं सुमेरु तिरसूल बिनासा। भा कंचनगिरि लाग अकासा।
जौं लहि घरी कलंक न पर। काँच होई नहिं कंचन करा।
एक नैन जस दरपन औ तेहि निरमल भाउ।
सब रूपवंत गहि मुख जोवहिं कइ चाउ।।

भावार्थ-गुणवान मुहम्मद कवि का एक ही नेत्र था। किन्तु फिर भी उनकी कवि-वाणी में वह प्रभाव था कि जिसने भी सुनी वही विभुग्ध हो गया। जिस प्रकार विधाता ने संसार में सदोष, किन्तु प्रभायुक्त चन्द्रमा को बनाया है, उसी प्रकार जायसी जी की कीर्ति उज्जवल थी किन्तु उनमें अंग-भंग दोष था। जायसी जी समदर्शी थे क्योंकि उन्होंने संसार को सदैव एक ही आँख से देखा। उनका वह नेत्र अन्य मनुष्यों के नेत्रों से उसी प्रकार अपेक्षाकृत तेज युक्त था। जिस प्रकार कि तारागण के बीच में उदित हुआ शुक्रतारा। जब तक आम्र फल में डाभ काला धब्बा (कोइलिया) नहीं होता तबतक वह मधुर सौरभ से सुवासित नहीं होता। समुद्र का पानी खारयुक्त होने के कारण ही वह अगाध और अपार है।

सारे सुमेरु पर्वत के स्वर्णमय होने का एकमात्र यही कारण है कि वह शिव-त्रिशूल द्वारा नष्ट किया गया, जिसके स्पर्श से वह सोने का हो गया। जब तक घरिया अर्थात् सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया नहीं जाता तबतक वह स्वर्ण कला से युक्त अर्थात् चमकदार नहीं होता। जायसी अपने संबंध में गर्व से लिखते हुए कहते हैं कि वे एक नेत्र के रहते हुए भी दर्पण के समान निर्मल और उज्जवल भाव वाले हैं। समस्त रूपवान व्यक्ति उनका पैर पकड़कर अधिक उत्साह से उनके मुख की ओर देखा करते हैं। यानि उन्हें नमन करते हैं।

नोट-कहते हैं कि जायसी बायीं आँख के अन्धे थे। यह एक अंग-दोष था, किन्तु जायसी जी ऐसा मानने से इनकार करते हैं।” जग सूझा एनै कई नाहाँ। उआ सूक जस नखतन्ह माहा’। आदि अनेक उक्तियों से वह अपने पक्ष की पुष्टि करते हैं। आशय है-अंगहीन होने पर भी गुणी व्यक्ति पूजनीय होता है।

कड़बक-2
मुहमद यहि कबि जोरि सुनावा। सुना जो पेम पीर गा पावा।
जोरी लाइ रकत कै लेई। गाढ़ी प्रीति नैन जल भेई।
औ मन जानि कबित उस कीन्हा। मकु यह रहै जगत महँ चीन्हा।
कहाँ सो रतन सेनि अस राजा। कहाँ सुवा असि बुधि उपराजा।
कहाँ अलाउद्दीन सुलतानू। कहँ राघौ जेई कीन्ह बखानू।
कहँ सुरूप मदुमावति रानी। कोइ न रहा जग रही कहानी।
धनि सो पुरुख जस कीरति जासू। फूल मरै पै मरै न बासू।
केइँ न जगत बेंचा केई न लीन्ह जस मोल।
जो यह पढे कहानी हम सँवरै दुइ बोल॥

भावार्थ-‘मुहम्मद जायसी कहते हैं कि मैंने इस कथा को जोड़कर सुनाया है और जिसने भी इसे सुना उसे प्रेम की पीड़ा प्राप्त हो गयी। इस कविता को मैंने रक्त की लेई लगाकर जोड़ा है और गाढ़ी प्रीति को आँसुओं से भिगो-भिगोकर गीली किया है। मैंने यह विचार करके निर्माण किया है कि यह शायद मेरे मरने के बाद संसार में मेरी यादगार के रूप में रहे। वह राजा रत्नसेन अब कहाँ? कहाँ है वह सुआ जिसने राजा रत्नसेन के मन में ऐसी बुद्धि उत्पन्न की? कहाँ है सुलतान आलाउद्दीन और कहाँ है वह राघव चेतन जिसने अलाउद्दीन के सामने पद्मावती का रूप वर्णन किया।

कहाँ है वह लावण्यवती ललना रानी पद्मावती। कोई भी इस संसार में नहीं रहा, केवल उनकी कहानी बाकी बची है। धन्य वही है जिसकी कीर्ति और प्रतिष्ठा स्थिर है। पुष्प के रूप में उसका शरीर भले ही नष्ट हो जाए परन्तु, उसकी कीर्ति रूपी सुगन्ध नष्ट नहीं होती। संसार में ऐसे कितने हैं जिन्होंने अपनी कीर्ति बेची न हो और ऐसे कितने हैं जिन्होंने कीर्ति मोल न ली हो? जो इस कहानी को पढ़ेगा दो शब्दों में हमें याद करेगा।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 5 रोज

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 5 रोज

 

रोज वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

रोज कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
रोज शीर्षक निबंध के लेखक कौन है?
(क) नामवर सिंह
(ख) अज्ञेय
(ग) मोहन राकेश
(घ) उदय प्रकाश
उत्तर-
(ख)

Gangrene Kya Hai Class 12 Hindi प्रश्न 2.
अज्ञेय का जन्म कब हुआ था?
(क) 7 मार्च, 1911 ई.
(ख) 8 जनवरी 1910 ई.
(ग) 9 मार्च, 1909 ई.
(घ) 7 मार्च, 1908 ई.
उत्तर-
(क)

Roj Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
अज्ञेय हिन्दी के अलावा किस भाषा के जानकार थे?
(क) हिन्दी
(ख) उर्दू
(ग) संस्कृत
(घ) सिंहली
उत्तर-
(ग)

Roj Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
अज्ञेय की अभिरूचि किसमें-किसमें थी?
(क) बागवानी में
(ख) पर्यटन में
(ग) अध्ययन में
(घ) बागवानी, पर्यटन, अध्ययन आदि
उत्तर-
(घ)

रोज की कहानी Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा अज्ञेय को कौन पुरस्कार मिला था?
(क) राजेन्द्र पुरस्कार
(ख) पद्मश्री
(ग) भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
(घ) अर्जुन पुरस्कार
उत्तर-
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

Bihar Board Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
मालती के पति का नाम ……… है।
उत्तर-
महेश्वर

रोज कहानी का सारांश लेखन Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
अज्ञेय का जन्म स्थान कसेया ……….. उत्तर प्रदेश में है।
उत्तर-
कुशीनगर

Bihar Board 12th Hindi Book Pdf Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
अज्ञेय के पिताजी………….. शास्त्री जी थे।
उत्तर-
पं. हीरानंद

रोज कहानी में मालती को देखकर लेखक ने क्या सोचा Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
अज्ञेय ने …….. में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उत्तर-
1925 ई.

रोज कहानी का सारांश लिखिए Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
अज्ञेय जी एकांतप्रिय …………… स्वभाव के थे।
उत्तर-
अंतर्मुखी

प्रश्न 6.
उनका व्यक्तित्व सुंदर, लंबा, ………. शरीर वाला था।
उत्तर-
गठीला

रोज अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अज्ञेय की कौन-सी कहानी ‘गैंग्रीन’ शीर्षक नाम से प्रसिद्ध है?
उत्तर-
रोज।

प्रश्न 2.
‘रोज’ शीर्षक निबन्ध के लेखक कौन हैं?
उत्तर-
अज्ञेय।

प्रश्न 3.
अज्ञेय मूलतः क्या हैं?
उत्तर-
कवि।

प्रश्न 4.
‘छोड़ा हुआ रास्ता’ कहानी के लेखक हैं :
उत्तर-
अज्ञेय।

प्रश्न 5.
अज्ञेय जी ने इंटर कहाँ से किया?
उत्तर-
मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज।

प्रश्न 6.
अज्ञेय जी ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की किस कृति का हिन्दी में अनुवाद किया है?
उत्तर-
कुलवधू।

प्रश्न 7.
लेखक कितने वर्ष बाद मालती से मिलने आया था?
उत्तर-
दस।

रोज पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मालती के घर का वातावरण आपको कैसा लगा? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
कहानी के प्रथम भाग में ही मालती के यन्त्रवत् जीवन की झलक मिल जाती है जब वह अतिथि का स्वागत केवल औपचारिक ढंग से करती है। अतिथि उसके दूर के रिश्ते का भाई है। जिसके साथ वह बचपन में खूब खेलती थी पर वर्षों बाद आए भाई का स्वागत उत्साहपूर्वक नहीं कर पाती बल्कि जीवन की अन्य औपचारिकताओं की तरह एक और औपचारिकता निभा रही है। हम देखते हैं कि मालती अतिथि से कुछ नहीं पूछती बल्कि उसके प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर ही देती है। उसमें अतिथि की कुशलता या उसके वहाँ आने का उद्देश्य या अन्य समाचारों के बारे में जानने की कोई उत्सुकता नहीं दिखती। यदि पहले कोई उत्सुकता, उत्साह जिज्ञासा या किसी बात के लिए उत्कंठा भी थी तो वह दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद शेष नहीं रही।

विगत दो वर्षों में उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है जिसे उसका रिश्ते का भाई भाँप लेता है। अत: मालती का मौन उसके दम्भ का या अवहेलना का सूचक नहीं बल्कि उसके वैवाहिक जीवन की उत्साहहीनता, नीरसता और यान्त्रिकता का ही सूचक है। यह एक विवाहित नारी के अभावों में घुटते हुए पंगु बने व्यक्तित्व की त्रासदी का चित्रण है। यह एक नारी के सीमित घरेलू परिवेश में बीतते ऊबाऊ जीवन का चित्रण है।

प्रश्न 2.
‘दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो’, यह कैसी शाप की छाया है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जब लेखक दोपहर के समय मालती के घर पहुँचा तो उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि मानो वहाँ किसी शाप की छाया मँडरा रही हो। यह शाप की छाया उस घर में रहने वाले लोगों के बीच अपनेपन तथा प्रेमभाव का न होना थी। वहाँ रहने वाला परिवार एक ऊब भरी, नीरस और निर्जीव जिन्दगी जी रहा था। माँ को अपने इकलौते बेटे के चोट लगने या उसके गिरने से कोई पीडा नहीं होती है। इसी प्रकार एक पति को अपने काम-काज से इतनी भी फुर्सत नहीं है कि वह अपनी पत्नी के साथ कुछ समय बिता सके। इस कारण उसे एकाकी जीवन जीना पड़ता है। इस प्रकार यह शाप पति-पत्नी और बच्चे तीनों को ही भुगतना पड़ता है।

प्रश्न 3.
लेखक और मालती के संबंध का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर-
लेखक और मालती के बीच एक घनिष्इ संबंध है। मालती लेखक की दूर के रिश्ते की बहन है, लेकिन दोनों के बीच मित्र जैस संबंध है। दोनों बचपन में इकट्ठे खेले लड़े और पिटे हैं। दोनों की पढ़ाई भी साथ ही हुई थी। उनका रिश्ता सदा मित्रतापूर्ण रहा था, वह कभी भाई-बहन या बड़े-छोटे के बंधन में नहीं बंधे थे।

प्रश्न 4.
मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है? कहानी में . महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है? अपने विचार दें।
उत्तर-
कहानीकार अज्ञेय ने महेश्वर के नित्य कर्म का जो संक्षिप्त चित्र प्रस्तुत किया है पता चलता है कि वह रोज सबेरे डिस्पेन्सरी चला जाता है दोपहर को भोजन करने और कुछ आराम करने के लिए आता है, शाम को फिर डिस्पेन्सरी जाकर रोगियों को देखता है। उसका जीवन भी रोज एक ही ढर्रे पर चलता है। एक यांत्रिक जीवन की यन्त्रणा पहाड़ के एक छोटे स्थान पर मालती का पति भी भोग रहा है। यांत्रिक जीवन के संत्रास के शिकार सिर्फ बड़े शहरों के ही लोग नहीं हैं पहाड़ों के एकान्त में उसके शिकार मालती और महेश्वर भी है। महेश्वर भी इस एक एक ढर्रे पर चलती हुई खूटे पशु की तरह उसी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाली जिन्दगी से उकताए हुआ है।

कहानी के महेश्वर एक कटा हुआ पात्र है, परन्तु जब कहीं भी कहानी में उपस्थित होता है तो उसकी उपस्थिति माहौल को तनावपूर्ण और अवसादग्रस्त बनाती है। उसकी बदलती मन:स्थिति वातावरण को और अधिक नीरस और ऊबाउ बनाती है।

प्रश्न 5.
गैंग्रीन क्या है?
उत्तर-
पैंग्रीन एक खतरनाक रोग है। पहाड़ियों पर रहने वाले व्यक्तियों पैरों में काँटा चुभना आम बात है। परन्तु काँटा चुभने के बाद बहुत दिनों तक छोड़ देने के बाद व्यक्ति का पाँव जख्म का शक्ल अख्तियार कर लेता है जिसका इलाज मात्र पाँव का काटना ही है। कभी-कभी तो इस रोग से पीड़ित रोगी की मृत्यु तक हो जाती है।

प्रश्न 6.
कहानी से उन वाक्यों को चुनें जिनमें ‘रोज’ शब्द का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
सर्वप्रथम कहानी का शीर्षक ही रोज है। इसके अलावे कई स्थानों पर रोज शब्द का प्रयोग हुआ है।

  • मालती टोककर बोली, ऊँहूँ मेरे लिए तो यह नई बात नहीं है रोज ही ऐसा होता है..।
  • क्यों पानी को क्या हुआ? रोज ही होता है, कभी वक्त पर आता नहीं।
  • मैं तो रोज ऐसी बातें सुनती हूँ।
  • मालती का जीवन अपनी रोज की नियत गति से बहा जा रहा था और एक चन्द्रमा की चन्द्रिका के लिए एक संसार के लिए रूकने को तैयार नहीं था।
  • मालती ने रोते हुए शिशु को मुझसे लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए कहा, “इसको चोटें लगती ही रहती है, रोज ही गिर पड़ता है।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट करें-मुझे ऐसा लग रहा था कि इस घर पर जो छाया घिरी हुई है, वह अज्ञात रहकर भी मानो मुझे वश में कर रही है, मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव-सा हो रहा हूँ जैसे हाँ जैसे…..यह घर जैसे मालती।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक वातावरण, परिस्थिति और उसके प्रभाव में ढलते हुए एक गृहिणी के चरित्र का चित्रण अत्यन्त कलात्मकता रीति से किया है। अतिथि तो मालती के घर में कई वर्षों बाद कुछ समय के लिए आया है पर अतिथि को लगता है कि उस घर पर कोई काली छाया मँडरा रही है। उसे अनुभव होता है कि इस घर पर जो छाया घिरी हुई है वह अज्ञात रह कर मानों मुझे भी वश में कर रही है मैं भी वैसा ही नीरस निर्जीव सा हो रहा हूँ जैसे हाँ-जैसे यह घर जैसे मालती। लगता है कि अतिथि भी उस काली छाया का शिकार हो गया है, जो उस घर पर मँडरा रही है। यहाँ मालती के अन्तर्द्वन्द्व के साथ अतिथि का अन्तर्द्वन्द्व भी चित्रित हुआ है। उस घर की जड़ता, नीरसता, ऊबाहट ने जैसे अनाम अतिथि को भी आच्छादित कर लिया है। अतिथि भी घर की जड़ता का शिकार हो जाता है।

प्रश्न 8.
‘तीन बज गए’, ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’, कहानी में घंटे की इन खड़कों के साथ-साथ मालती की उपस्थिति है। घंटा बजने का मालती से क्या संबंध है?
उत्तर-
‘तीन बज गए’ ‘चार बज गए’, ‘ग्यारह बज गए’ से लगता है कि मालती प्रत्येक घंटा मिनती रहती है। समय उसके लिए पहाड़ जैसा है। एक घंटा बीतने पर उसे लगता हे चलो एक मनहूस घंटा तो बीता। घर में नौकर नहीं है तो बर्तन माँजने के लिए पानी चाहिए जो रोज ही वक्त पर नहीं आता है। मालती के इस कथन में कितनी विवशता है” रोज ही होता है आज शाम को सात बजे आएगा। “उस घर में बच्चे का रोना, उसके द्वारा प्रत्येक घंटा की गिनती करना, महेश्वर का सुबह, शाम डिस्पेन्सरी जाना सब कुछ एक जैसा है। यह सब कुछ एक जैसा उसके एक ढर्रे पर चल रही नीरस, ऊबाउ जिन्दगी का परिणाम है कि वह घंटे गिनने को मजबूर है। जैसे ही उसका घंटा पार होता है थोड़ी वह राहत महसूस करती है।

प्रश्न 9.
अभिप्राय स्पष्ट करें :
(क) मैंने देखा, पवन में चीड़ के वृक्ष….गर्मी में सूखकर मटमैले हुए चीड़ के वृक्ष धीरे-धीरे गा रहे हों…….कोई राग जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं अशांतिमय है, उद्वेगमय नहीं।
(ख) इस समय मैं यही सोच रहा था कि बड़ी उद्धत और चंचल मालती आज कितनी सीधी हो गई है, कितनी शांत और एक अखबार के टुकड़े को तरसती है…..यह क्या…यह.
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रोज शीर्षक कहानी से उद्धत है। इसमें विद्वान लेखक अज्ञेय जी ने प्रकृति के माध्यम से जीवन के उन पक्षों का रहस्योद्घाटन करने की कोशिश की गई जिससे मानव जीवन प्रभावित है। इन पंक्तियों में लेखक द्वारा चाँदनी का आनन्द लेना, सोते हुए बच्चे का पलंग से नीचे गिर जाना, ऐसे प्रसंग हैं जो नारी के जीवन को विषम स्थिति के सूचक हैं। लेखक द्वारा प्रकृति से जुड़कर नारी की अन्तर्दशाओं को देखना एक सूक्ष्म निरीक्षण है। चीड़ के वृक्ष का गर्मी से सूखकर मटमैला होना मालती के नीरस जीवन का प्रतीक है।

चीड़ के वृक्ष जो धीरे-धीरे गा रहे हैं कोई राग जो कोमल है यह नारी के कोमल भावनाओं के प्रतीक है। किन्तु करुण नहीं अशान्तिमय है किन्तु उद्वेगमय नहीं। यह मालती के नीरस जीवन का वातावरण से समझौता का प्रतीक है। हमें यह जानना चाहिए कि जहाँ उद्वेग होगी, वहीं सरसता होगी। परन्तु मालती के जीवन में सरसता नहीं है। वह जीवन के एक ढर्रे पर रोज-रोज एक तरह का काम करने, एकरस जीवन, उसकी सहनशीलता आदि उसके जीवन को ऊबाऊ बनाते हैं। मालती के लिए यह एक त्रासदी है। जहाँ नारी की आशा-आकांक्षा सब एक घुटनभरी जिन्दगी में कैद हो जाती है।

नारी के जीवन में जो राग-रंग होने चाहिए यहाँ कुछ नहीं है। यहाँ दुख की स्थिति यह है कि घुटनभरी जिन्दगी को सरल बनाने के बजाए उससे समझौता कर लेती है। यही उसके अशान्ति का कारण है। मालती को अपना जीवन मात्र घंटों में दिखाई देता है। वह घंटों से छूटने का प्रयास करने के बजाय उसके निकलने पर थोड़ी राहत महसूस तो करती है। परन्तु घंटे के फिर आगे आ जाने पर नीरस हो जाती है। यही राग है जो कोमल है, किन्तु करुण नहीं, अशान्तिमय है।

मालती की जिजीविषा यदा-कदा प्रकट होती है जो समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है। इसके मूल में उसकी पति के प्रति निष्ठा और कर्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करती है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है जो इसमें विश्वास करती है कि यही उसके

जीवन का सच है, इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। यही कारण है उसके दाम्पत्य जीवन में रोग की कमी व्यजित होती है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ प्रतिष्ठित साहित्यकार अज्ञेय द्वारा रचित रोज शीर्षक पाठ से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से लेखक मालती के बचपन के दिनों को याद करता है कि मालती कितनी चंचल लड़की थी। जब हम स्कूल में भरती हुए थे तो हम हाजिरी हो चुकने के बाद चोरी से क्लास से भाग जाते थे और दूर के बगीचों के पेड़ों पर चढ़कर कच्ची अमियाँ तोड़-तोड़ खाते थे।।

मालती पढ़ती भी नहीं थी, उसके माता-पिता तंग थे। लेखक इसी प्रसंग से जुड़ा एक वाक्य सुनाता है कि मालती के पिता ने एक किताब लाकर पढ़ने को दी। जिसे प्रतिदिन 20-20 पेज. पढ़ना था। मालती रोज उतना पन्ना फाड़ते जाती थी। इस प्रकार पूरी किताब फाड़कर फेंक डाली।

लेखक उपर्युक्त बातों के आलोक में आज की मालती जिसकी शादी हो गई। और उसके बच्चे भी हैं, उसमें आये बदलाव को लेकर चिंतित है। आज मालती कितनी सीधी हो गई है। जिंदगी एक दर्रे में होने के कारण मालती यंत्रवत कर्त्तव्यपालन को मजबूत है। लेखक ने देखा कि पति महेश्वर ने मालती को आम लाने के लिए कहा। आम अखबार के एक टुकड़े में लिपटे थे। अखबार का टुकड़ा सामने आते ही मालती उसे पढ़ने में ऐसी तत्लीन हो गयी है, मानो उसे अखबार पहली बार मिला हो। इससे पता चलता है कि वह अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकलकर दुनिया के समाचार जानने को उत्सुक है। वह अखबार के लिए भी तरस गई थी। उसके जीवन के अनेक अभावों में अखबार का अभाव भी एक तीखी चुभन दे गया। यह जीवन की जड़ता के बीच उसकी जिज्ञासा और जीवनेच्छा का प्रतीक है। इस तरह लेखक एक मध्यवर्गीय नारी को अभावों में भी जीने की इच्छा का संकेत देखता है और जीवन संघर्ष की प्रेरणा देता है।

प्रश्न 10.
कहानी के आधार पर मालती के चरित्र के बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
प्रस्तुत काहनी ‘रोज’ की मालती मुख्य पात्र तथा नायिका है। बचपन में वह बंधनों से पड़े उन्मुक्त और स्वच्छंद रहकर चंचल हिरणी के समान फुदकती रहती है। उसका रूप-लावण्य बरबस ही लोगों को आकर्षित करता है। महज चार-पाँच वर्षों के अन्तराल में ही विवाहिता है, एक बच्चे का माँ भी है। उसके जीवन में मूलभूत परिवर्तन सहज ही दृष्टिगोचर होता है। वह वक्त के साथ समझौता करनेवाली कुशल गृहिणी तथा वात्सल्य की वाटिका है। चार साल पहले मालती उद्धात और चंचल था। विवाहोपरान्त उसने अपने जीवन को यंत्रवत् बना लिया है। उसका शरीर जीर्ण-शीर्ण होकर कान्तिविहीन हो गया है। वह शांत और सीधी बन गई है। वह अपने जीवन को परिवार की धुरी पर नाचने के लिए छोड़ देती है। मालती भारतीय मध्यवर्गीय समाज के घरेलू स्त्री के जीवन और मनोदशा का सजीव प्रतीक केन्द्रित करने के लिए बाध्य करती है।

प्रश्न 11.
बच्चे से जुड़े प्रसंगों पर ध्यान देते हुए उसके बारे में अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
रोज’ शीर्ष कहानी की नायिका मालती का पुत्र टिटी बाल-सुलभ रस से परिपूरित है। यद्यपि वह दुर्बल, बीमार तथा चिड़िचिड़ा है तथापि वह ममता को एकांकी जीवन का आधार से रात ग्यारह बजे तक घर के कार्यों में अपने को व्यस्त रखती है। अपरिचितों को देखकर बच्चों . की प्रतिक्रिया का सजीव जिक्र इन पंक्तियों से स्पष्ट होता है ___मैंने पंक्तियों के अध्ययन लेखक का मनोविज्ञान पकड़ को भी दर्शाता है। वास्तव में बच्चा एकांत समय का बड़ा ही सारगर्भित समय बिताने में सोपान का कार्य करता है। बच्चे के साथ अपने को मिलाकर एक अनन्य आनन्द की प्राप्ति होती है। बच्चे की देखभाल करने के लिए माता-पिता को ध्यान देना पड़ता है और इससे इनमें सजगता आती है। ____वास्तव में बच्चा मानव-जीवन की अमूल्य निधि है। बच्चे में घुल-मिलकर मनुष्य अपने दुष्कर समय को समाप्त कर सकता है।

रोज भाषा की बात

प्रश्न 1.
उद्वेगम, शान्तिमय शब्दों में ‘मय’ प्रत्यय लगा हुआ है। ‘मय’ प्रत्यय से पाँच अन्य शब्द बनाएँ।
उत्तर-
‘मय’ प्रत्यय से बने अन्य शब्द-जलमय, दयामय, ध्यानमय, ज्ञानमय, भक्तिमय।

प्रश्न 2.
दिए गए वाक्यों में कारक चिह्न को रेखांकित करें और वह किस कारक का चिह्न है, यह भी बताएँ।
(क) थोड़ी देर में आ जाएँगें।
(ख) मैं कमरे के चारों तरफ देखने लगा।
(ग) हम बचपन से इकट्ठे खेले हैं।
(घ) तभी किसी ने किवाड़ खटखटाए।
(ङ) शाम को एक-दो घंटे फिर चक्कर लगाने के लिए जाते हैं।
(च) एक छोटे क्षण भर के लिए मैं स्तब्ध हो गया।
उत्तर-
(क) में-अधिकरण कारक।
(ख) के-संबंध कारक।
(ग) से-करण कारक।
(घ) ने-कर्ता कारक।
(ङ) को, के लिए-सम्प्रदान कारक।
(च) के लिए-सम्प्रदान कारक।

प्रश्न 3.
उसने कहा, “आ जाओ।” यहाँ “आ जाओ” संयुक्त क्रिया है, पाठ से ऐसे पाँच वाक्य चुनें जिनमें संयुक्त क्रिया का प्रयोग हुआ हो।
उत्तर-
उसने कहा “आ जाओ” में संयुक्त क्रिया है। पाठ से ऐसे पाँच वाक्य निम्नलिखित हैं जिनमें संयुक्त क्रिया है

  • कोई आता-जाता है तो नीचे से मँगा लेते हैं।
  • तुम कुछ पढ़ती-लिखती नहीं?
  • एक काँटा चुभा था, उसी से हो गया।
  • हर दूसरे-चौथे दिन एक केस आ जाता है।
  • वह मचलने लगा और चिल्लाने लगा।

प्रश्न 4.
आपने दिगंत (भाग-1) में प्रेमचन्द की कहानी ‘पूस की रात’ पढ़ी थी, ‘पूस की रात’ की भाषा और शिल्प को ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत कहानी की भाषा और शिल्प पर विचार कीजिए। दोनों कहानीकारों में इस आधार पर भिन्नता के कुछ बिन्दुओं को पहचानिए और उसे कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कहानी की भाषा और शिल्प ‘पूस की रात’ के समान ही सरल, सहज तथा प्रसंगानुकूल है। भाषा में कहीं भी ठहराव की स्थिति नहीं है और वह कथ्य को प्रवाह के साथ आगे बढ़ाती है। भाषा में विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग है। मुहावरों के प्रयोग से भावों को सरलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है। संवाद शैली के कारण वाक्य छोटे-छोटे हैं जिससे भाषा का प्रवाह दुगुना हो गया है। चित्रात्मकता, भावानुकूलता तथा काव्यात्मकता जैसे गुण भी भाषा में विद्यमान हैं। वर्णनात्मक शैली के प्रयोग से कथ्य को बिलकुल सरल बना दिया गया है।

दोनों कहानीकारों की भाषा में भिन्नता के कुछ बिन्दु शब्द प्रयोग- रोज’ आधुनिक परिवेश पर आधारित कहानी है। इसलिए इसमें देशज शब्दों का प्रयोग कम है जबकि ‘पूस की रात’ में देशज शब्दों का भरपूर प्रयोग है।

संवादात्मक शैली-‘रोज’ कहानी में संवादात्मक शैली का प्रयोग प्रमुखता से किया गया है जबकि ‘पूस की रात’ में सीमित संवाद है।

आम बोलचाल की भाषा-दोनों ही कहानियों में आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया है। लेकिन जहाँ ‘रोज’ कहानी में भाषा शहरी परिवेश की है तो वहीं ‘पूस की रात’ में भाषा ग्रामीण परिवेश पर आधारित है।

छात्र अन्य बिन्दु खोजकर कक्षा में प्रस्तुत करें।

प्रश्न 5.
नीचे दिए गए वाक्यों में अव्यय चुनें
(क) अब के नीचे जाएँगे तो चारपाइयाँ ले आएँगे।
(ख) एक बार तो उठकर बैठ भी गया था, पर तुरंत ही लेट गया।
(ग) टिटी मालती के लेटे हुए शरीर से चिपट कर चुप हो गया था, यद्यपि कभी एक-आध सिसकी उसके छोटे से शरीर को हिला देती थी।
उत्तर-
(क) तो
(ख) तो, पर
(ग) यद्यपि।

रोज लेखक परिचय सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय (1911-1987)

जीवन-परिचय :
हिन्दी के आधुनिक साहित्य में प्रमुख स्थान रखने वाले साहित्यकार सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 के दिन कुशीनगर, उत्तर प्रदेश के कसेया नामक स्थान पर हुआ। वैसे इनका मूल निवास कर्तारपुर, पंजाब था। इनकी माता का नाम व्यंती देवी और पिता का नाम हीरानंद शास्त्री था जो कि प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता थे। अज्ञेय . जी की प्रारम्भिक शिक्षा लखनऊ में घर पर ही हुई। सन् 1925 में इन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की तथा सन् 1927 में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर किया। इसके उपरांत सन् 1929 में फोरमन कॉलेज, लाहौर, पंजाब से बी.एससी. किया और फिर लाहौर से एम.ए. (अंग्रेजी, पूवार्द्ध) किया। क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने तथा गिरफ्तार हो जाने के कारण इनकी पढ़ाई बीच में ही रूक गई।

इनका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली था तथा ये सुन्दर व गठीले शरीर के स्वामी थे। इनका स्वभाव एकांतप्रिय अंतर्मुखी था तथा ये एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे। गंभीर, चिन्तनशील एवं मितभाषी व्यक्तित्व के स्वामी अज्ञेय जी अपने मौन तथा मितभाषण के लिए प्रसिद्ध थे। पिताजी का तबादला बार-बार होते रहने के कारण इन्हें परिभ्रमण का संस्कार बचपन में ही मिला था। इन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, तमिल आदि कई भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। ये बागवानी, पर्यटन आदि के अलावा कई प्रकार के पेशेवर कार्यों में दक्ष थे। इन्होंने यूरोप, एशिया, अमेरिका सहित कई देशों की साहित्यिक यात्राएँ भी की थी।

अज्ञेय जी को साहित्य अकादमी, भारतीय ज्ञानपीठ, मुगा (युगास्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि पुरस्कार प्रदान किए गए। देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में इन्हें ‘विजिटिंग प्रोफेसर’ के रूप में आमंत्रित किया गया। इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं आदि में कार्य किया। जैसे-सैनिक (आगरा), विशाल भारत (कोलकाता), प्रतीक, (प्रयाग), दिनमान (दिल्ली), नया प्रतीक (दिल्ली), नवभारत टाइम्स (नई दिल्ली), थॉट, वाक एवरीमैंस (अंगेजी में सम्पादन)। साहित्य के इस महान साधक का निधन 4 अप्रैल, सन् 1987 के दिन हुआ।

रचनाएँ :
अज्ञेय जी अद्भुत प्रतिभा के स्वामी थे। इन्होंने दस वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखना आरम्भ कर दिया था। वहीं बचपन में ही खेलने के उद्देश्य से ‘इन्द्रसभा’ नामक नाटक लिखा। ये घर में एक हस्तलिखित पत्रिका ‘आनन्दबन्धु’ निकालते थे। इन्होंने सन् 1924-25 में अंग्रेजी में एक उपन्यास लिखा। सन् 1924 में ही इनकी पहली कहानी इलाहाबाद की स्काउट पत्रिका ‘सेवा’ में प्रकाशित हुई और इसके बाद इन्होंने नियमित रूप से लेखन कार्य प्रारम्भ कर दिया। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

कहानी संकलन-विपथगा, जयदोल, ये तेरे प्रतिरूप, छोड़ा हुआ रास्ता, लौटती पगडंडियाँ आदि।

उपन्यास-शेखर : एक जीवनी (प्रथम भाग 1941), द्वितीय भाग 1944), नदी के द्वीप (1952), अपने-अपने अजनबी (1961)।

नाटक-उत्तर प्रियदर्शी (1967)।

कविता संकलन-भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, आँगन के पार द्वार; कितनी नावों में कितनी बार, सदानीरा, ऐसा कोई घर आपने देखा है आदि।

यात्रा साहित्य-अरे यायावर रहेगा याद (1953), एक बूंद सहसा उछली (1961)। निबन्ध-त्रिशंकु, आत्मनेपद, आलवाल, अद्यतन, भवंती, अंतरा, शाश्वती, संवत्सर आदि।

रोज पाठ के सारांश।

कहानी के पहले भाग में मालती द्वारा अपने भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं है, बल्कि कर्तव्यपालन की औपचारिकता अधिक है। वह अतिथि का कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, पर पंखा अवश्य झलती है। उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देती है। बचपन की बातूनी चंचल लड़की शादी के दो वर्षों बाद इतनी बदल जाती है कि वह चुप रहने लगती है। उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है। अतिथि का आना उस घर के ऊपर कोई काली छाया मँडराती हुई लगती है।

मालती और अतिथि के बीच के मौन को मालती का बच्चा सोते-सोते रोने से तोड़ता है। वह बच्चे को संभालने के कर्तव्य का पालन करने के लिए दूसरे कमरे में चली जाती है। अतिथि एक तीखा प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर वह एक प्रश्नवाचक हूँ से देती है। मानो उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। यह आचरण उसकी उदासी, ऊबाहट और यांत्रिक जीवन की यंत्रणा को प्रकट करता है। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद नारी कितनी बदल जाती है वह कहानी के इस भाग में प्रकट हो जाती है। कहानी के इस भाग में मालती कर्त्तव्यपालन की औपचारिकता पूरी करती प्रतीत होती है पर से कर्त्तव्यपालन में कोई उत्साह नहीं है जिसमें उसके नीरस, उदास, यांत्रिक जीवन की ओर संकेत करता है। अतिथि से हुए उसके संवादों में भी एक उत्साहहीनता और ठंढापन है। उसका व्यवहार उसकी द्वन्दग्रस्त मनोदशा का सूचक है। इस प्रकार कहानीकार बाह्य स्थिति और मन:स्थिति के संश्लिष्ट अंकन में सफल हुआ है।

रोज कहानी के दूसरे भाग में मालती का अंतर्द्वन्द्वग्रस्त मानसिक स्थिति, बीते बचपन की स्मृतियों में खोने से एक असंज्ञा की स्थिति, शारीरिक जड़ता और थकान का कुशल अंकन हुआ है। साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, पानी, सब्जी, नौकर आदि के अभावों का भी उल्लेख हुआ है। मालती पति के खाने के बाद दोपहर को तीन बजे और रात को दस बजे ही भोजन करेगी और यह रोज का क्रम है। बच्चे का रोना मालती का देर से भोजन करना, पानी का नियमित रूप से वक्त पर न आना, पति का सबेरे डिस्पेन्सरी जाकर दोपहर को लौटना और शाम को फिर डिस्पेन्सरी में रोगियों को देखना यह सब कुछ मालती के जीवन की सूचना देता है अथवा यह बताता है कि समय काटना उसके लिए कठिन हो रहा है।

इस भाग में मालती, महेश्वर, अतिथि के बहुत कम क्रियाकलापों और अत्यन्त संक्षिप्त संवादों के अंकन से पात्रों की बदलती मानसिक स्थितियों को प्रस्तुत किया गया है जिससे यही लगता है कि लेखक का ध्यान बाह्य दृश्य के बजाए अंतर्दृश्य पर अधिक है। कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर की यांत्रिक दिनचर्या, अस्पताल के एक जैसे ढर्रे रोगियों की टांग काटने या उसके मरने के नित्य चिकित्सा कर्म का पता चलता है, पर अज्ञेय का ध्यान मालती के जीवन संघर्ष को चित्रित करने पर केन्द्रित है।

महेश्वर और अतिथि बाहर पलंग पर बैठकर गपशप करते रहे और चाँदनी रात का आनन्द लेते रहे पर मालती घर के अन्दर बर्तन मांजती रही, क्योंकि यही उसकी नियति थी।

बच्चे का बार-बार पलंग से नीचे गिर पड़ना और उस पर मालती की चिड़चिड़ी प्रतिक्रिया मानो पूछती है वह बच्चे को संभाले या बर्तन मले? यह काम-नारी को ही क्यों करना पड़ता है? क्या यही उसकी नियति है? इस अचानक प्रकट होने वाली जीवनेच्छा के बावजूद कहानी का मुख्य स्वर चुनौती के बजाए समझौते का और मालती की सहनशीलता का है। इसमें नारी जीवन की विषम स्थितियों का कुशल अंकन हुआ है। बच्चे की चोटें भी मामूली बात है, क्योंकि वह रोज इन चोटों को सहती रहती है। ‘रोज’ की ध्वनि कहानी में निरन्तर गूंजती रहती है।

कहानी ‘का अंत ‘ग्यारह’ बजने की घंटा-ध्वनि से होता है और तब मालती करुण स्वर में कहती है “ग्यारह बज गए” उसका घंटा गिनना उसके जीवन की निराशा और करुण स्थिति कान्द्रत ह। को प्रकट करता है। कहानी एक रोचक मोड़ पर वहाँ पहुँचती है, जहाँ महेश्वर अपनी पत्नी को आम धोकर लाने का आदेश देता है। आम एक अखबार के टुकड़े में लिपटे हैं। जब वह अखबार का टुकड़ा देखती है, तो उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। उसके घर में अखबार का भी अभाव है। वह अखबार के लिए भी तरसती है। इसलिए अखबार क टुकड़ा हाथ में आने पर वह उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है।

यह इस बात का सूचक है कि अपनी सीमित दुनिया से बाहर निकल कर वह उसके आस-पास की व्यापक दुनिया से जुड़ना चाहती है। जीवन की जड़ता के बीच भी उसमें कुछ जिज्ञासा बनी है जो उसकी जिजीविषा की सूचक है। मालती की जिजीविषा के लक्षण कहानी में यदा-कदा प्रकट होते हैं, पर कहानी का मुख्य स्वर चुनौती का नहीं है, बल्कि समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है जो उसके मूल में उसकी पति के प्रतिनिष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करता है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है जो इसमें विश्वास करती है कि यह उसके जीवन का सच है।

इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। जिस प्रकार से समाज के सरोकारों से वह कटी हुई है उसे रोज का अखबार तक सीमित नहीं है। जिससे अपने ऊबाउपन जीवन से दो क्षण निकालकर बाहर की दुनिया में क्या कुछ घटित हो रहा है उससे जुड़ने का मौका मिल सके। ऐसी स्थिति में एक आम महिला से अपने अस्तित्व के प्रति चिन्तित होकर सोचते उसके लिए संघर्ष करने अथवा ऊबाऊ जीवन से उबरने हेतु जीवन में कुछ परिवर्तन लाने की उम्मीद ही नहीं बचती।

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 7 ओ सदानीरा

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 7 ओ सदानीरा

 

ओ सदानीरा वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

O Sadanira Question Answer Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
माथुर जी को किस उपाधि से विभूषित किया गया।
(क) विद्या वारिधि
(ख) विद्यासागर
(ग) विद्यारत्न
(घ) विद्याभूषण
उत्तर–
(क)

ओ सदानीरा का सारांश Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 2.
जगदीश चंद्र माथुर को कौन अवार्ड मिला था?
(क) कालिदास अवार्ड
(ख) तुलसीदास अवार्ड
(ग) कबीरदास अवार्ड
(घ) सूरदास अवार्ड
उत्तर–
(क)

O Sadanira Ka Saransh Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 3.
माथुर जी को किस सम्मान से सम्मानित किया गया था?
(क) बिहार राजभाषा पुरस्कार
(ख) तुलसी दास अवार्ड
(ग) पं. बंगाल राजभाषा पुरस्कार
(घ) पंजाब राज्य
उत्तर–
(क)

O Sadanira Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
माथुर जी के किस एकांकी का मंचन 1936 ई. में हुआ?
(क) मेरी बाँसुरी
(ख) मोर का तार
(ग) रीढ़ की हड्डी
(घ) दस तस्वीरें
उत्तर–
(क)

ओ सदानीरा’ निबंध Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 5.
“मेरी बाँसुरी’ एकांकी का किस पत्रिका में प्रथम प्रकाशन हुआ था?
(क) सरस्वती
(ख) ज्ञानकोश
(ग) भारत–भारती
(घ) गंगा
उत्तर–
(क)

ओ सदानीरा कहानी Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 6.
माथुर जी के निबंध कैसे हैं?
(क) ललित
(ख) जटिल
(ग) सरल
(घ) असाधारण
उत्तर–
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

ओ सदानीरा निबंध किस पुस्तक से लिया गया Bihar Board Class 12th Hindi प्रश्न 1.
बसुंधरा भोगी मानव और ……… एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उत्तर–
धर्मांध

प्रश्न 2.
उनका. …….. बिहार था।
उत्तर–
कार्यक्षेत्र

प्रश्न 3.
किन्तु उन्होंने एक मनस्वी लेखक के रूप में अपनी पहचान ………. में बनाई।
उत्तर–
नेहरू–युग

प्रश्न 4.
इनमें से एक निबंध उनकी पुस्तक ……….. से यहाँ प्रस्तुत है।
उत्तर–
बोलते क्षण

प्रश्न 5.
जब गौतम बुद्ध इन नदियों के किनारे–किनारे ………. से मल्लों, मौयाँ, और शक्यों को उपदेश देने जाया करते थे तब ये नदियाँ संयमित थीं।
उत्तर–
पाटलिपुत्र

प्रश्न 6.
बाढ़ आती थी पर इनती …………… नहीं।
उत्तर–
प्रचंड

ओ सदानीरा अति लघु उत्तरीय प्रश्न।

प्रश्न 1.
जगदीशचन्द्र माथुर मूलतः क्या हैं?
उत्तर–
नाटककार।

प्रश्न 2.
‘ओ सदानीरा’ के लेखक हैं :
उत्तर–
जगदीशचन्द्र माथुर।

प्रश्न 3.
‘ओ सदानीरा’ किस नदी को निमित्त बनाकर लिखा गया है?
उत्तर–
गंडक।

प्रश्न 4.
‘ओ सदानीरा’ निबंध बिहार के किस क्षेत्र की संस्कृति पर लिखी गई है?
उत्तर–
चम्पारण।

प्रश्न 5.
चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर–
जंगलों का कटना।

प्रश्न 6.
पुंडलीक जी कौन थे?
उत्तर–
शिक्षक।

प्रश्न 7.
जगदीशचन्द्र का जन्म किस दिन हुआ?
उत्तर–
16 जुलाई, 1917।

प्रश्न 8.
‘ओ सदानीरा! ओ चक्र।…..। इसे तू ठुकरा न पाएगी। यह वाक्य किसे संबोधित करके लिखा गया है?
उत्तर–
गंडक नदी।

ओ सदानीरा पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ की प्रचंडता के बढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर–
चम्पारण क्षेत्र में बाढ़ का प्रमुख कारण जंगलों का कटना है। जंगल के वृक्ष जल राशि को अपनी जड़ों में थामे रहते हैं। नदियों को उन्मुक्त नवयौवना बनने से रोकते हैं। उत्ताल वृक्ष नदी की धाराओं की गति को भी संतुलित करने का काम करते हैं। यदि जलराशि नदी की सीमाओं से ज्यादा हो जाती है, तब बाढ़ आती ही हैं, लेकिन जब बीच में उनकी शक्तियों को ललकारने वाले ये गगनचुम्बी वन न हो तब नदियाँ प्रचण्ड कालिका रूप धारण कर लेती हैं। वृक्ष उस प्रचण्डिका को रोकने वाले हैं। आज चम्पारण में वृक्ष को काटकर कृषियुक्त समस्त भूमि बना दी गई है। अब उन्मुक्त नवयौवना को रोकने वाला कोई न रहा, इसलिए अपनी ताकत का अहसास कराती है। लगता है मानो मानव के कर्मों पर अट्टाहास करने के लिए उसे दंड देने के लिए नदी में भयानक बाढ़ आते हैं।

प्रश्न 2.
इतिहास की कीमिआई प्रक्रिया का क्या आशय है?
उत्तर–
कीमिआई प्रक्रिया पारे को सोने में बदलने की एक प्रक्रिया है, जिसमें पारे को कुछ विलेपनों के साथ उच्च तापक्रम पर गर्म किया जाता है। लेखक ने पाठ के संदर्भ में कीमिआई प्रक्रिया का आशय देते हुए कहा है कि जिस प्रकार पारा दूसरे प्रकार का पदार्थ है और उसे कुछ पदार्थों के संगम से बिल्कुल भिन्न पदार्थ का उद्भव हो जाता है, उसी तरह सुदूर दक्षिण की संस्कृति और रक्त इस प्रदेश की निधि बनकर एक अन्य संस्कृति का निर्माण कर गए।

प्रश्न 3.
धाँगड़ शब्द का क्या आशय है?
उत्तर–
धाँगड़ शब्द का अर्थ ओराँव भाषा में है–भाड़े का मजदूर। धाँगड़ एक आदिवासी जाति है, जिसे 18वीं शताब्दी के अंत में नील की खेती के सिलसिले में दक्षिण बिहार के छोटानागपुर पठार के चम्पारण के इलाके में लाया गया था। धाँगड़ जाति आदिवासी जातियाँ–ओराँव, मुंडा, लोहार इत्यादि के वंशज हैं, लेकिन ये अपने आपको आदिवासी नहीं मानते हैं। धाँगड़ मिश्रित ओराँव भाषा में बात करते हैं और दूसरों के साथ भोजपुरिया मधेसी भाषा में।

धाँगड़ों का सामाजिक जीवन बेहद उल्लासपूर्ण है, स्त्री–पुरुष ढलती शाम के मंद प्रकाश में अत्यन्त मनोहारी सामहिक नृत्य करते हैं।

प्रश्न 4.
थारुओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दें।
उत्तर–
थारुओं को कला मूलतः उनके दैनिक जीवन का अंग है। जिस पात्र में धान रखा जाता है वह सींक का बनाया जाता है। उसमें कई तरह के रंगों तथा डिजाइनों का प्रयोग होता है। सींक की रंग–बिरंगी टोकरियों के किनारे सीप की झालर लगाई जाती है। झोपड़ियों में प्रकाश के लिए जो दीपक लगाए जाते हैं उनकी आकृति भी कलापूर्ण है। शिकारी और किसान के काम के लिए जो पदार्थ मूंज से बनाए जाते हैं, उनमें भी सौन्दर्य और उपयोगिता का अद्भुत मिश्रण दिखाई पड़ता है। लेकिन सबसे मनोहर था नववधू का एक अनोखा अलंकरण जो मात्र आभूषण ही नहीं था।

नववधू जब पहली बार अपने पति के लिए खेत में खाना लेकर जाती तो अपने मस्तक पर एक सुन्दर पीढ़ा रखती जिससे तीन लटें–वेणियों की भाँति लटकी रहती थीं। हर लट में धवल सीपों और एक बीज विशेष के सफेद दाने पिरोए होते थे। पीढ़े के ऊपर सींक की कलापूर्ण टोकरी में भोजन रखा होता था। टोकरी को दोनों हाथों से सँभाले जब लाज भरी वधू धीरे–धीरे खेत की ओर बढ़ती तो सीप की वेणियाँ रजत–कंकणों की भाँति झंकृत हो उठतीं।

प्रश्न 5.
अंग्रेज नीलहे किसानों पर क्या अत्याचार करते थे?
उत्तर–
अंग्रेज नीलहे किसानों पर बहुत से अत्याचार करते थे। किसानों से जबरदस्ती नील की खेती करवाई जाती थी। उन्हें कुल भूमि के एक निश्चित भाग पर नील की खेती करने के लिए बाध्य किया गया तथा बाद में इससे मुक्त करने के लिए मोटी रकमें ली गई। इन गोरे ठेकेदारों ने बहुत कम अदायगी में हजारों एकड़ जमीन ले ली। इसके अतिरिक्त किसानों की कई तरह के कर तथा नजराने भी देने पड़ते थे।।

प्रश्न 6.
गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली?
उत्तर–
गंगा पर पुल बनाने में अंग्रेजों ने इसलिए दिलचस्पी नहीं ली ताकि दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चम्पारन में देर से पहुँचे। इस तरह चंपारण पर बरसों तक ब्रिटिश साम्राज्य की छत्रछाया वाला शासन चलता रहा।

प्रश्न 7.
चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधीजी ने क्या किया?
उत्तर–
चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गाँधीजी ने अनेकों काम किए। उनका विचार था कि ग्रामीण बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था किए बिना केवल आर्थिक समस्याओं को सुलझाने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए उन्होंने तीन गाँवों में आश्रम विद्यालय स्थापित किया–बड़हरवा, मधुबन और भितिहरवा। कुछ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को तीनों गाँवों में तैनात किया। बड़हरवा के विद्यालय में श्री बवनजी गोखले और उनकी पत्नी विदुषी अवन्तिकाबाई गोखले ने चलाया। मधुबन में नरहरिदास पारिख और उनकी पत्नी कस्तूरबा तथा अपने सेक्रेटरी महादेव देसाई को नियुक्त किया। भितिहरवा में वयोवृद्ध डॉक्टर देव और सोपन जी ने चलाया। बाद में पुंडारिक जी गए। स्वयं कस्तूरबा भितिहरवा आश्रम में रहीं और इन कर्मठ और विद्वान स्वयंसेवकों की देखभाल की।

प्रश्न 8.
गाँधीजी के शिक्षा संबंधी आदर्श क्या थे?
उत्तर–
गाँधीजी शिक्षा का मतलब सुसंस्कृत बनाने और निष्कलुष चरित्र निर्माण समझते थे। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आचार्य पद्धति के समर्थक थे अर्थात् बच्चे सुसंस्कृत और निष्कलुष चरित्र वाले व्यक्तियों के सान्निध्य से ज्ञान प्राप्त करें। अक्षर ज्ञान को वे इस उद्देश्य की प्राप्ति में विधेय मात्र मानते थे।

वर्तमान शिक्षा पद्धति को वे खौफनाक और हेय मानते थे क्योंकि शिक्षा का मतलब है–बौद्धिक और चारित्रिक विकास, लेकिन यह पद्धति उसे कुंठित करती है। इस पद्धति में बच्चों को पुस्तक रटाया जाता है ताकि आगे चलकर वे क्लर्क का काम कर सकें, उनका सर्वांगीण विकास से कोई सरोकार नहीं है।

गाँधीजी जीविका के लिए नये साधन सीखने के इच्छुक बच्चों के लिए औद्योगिक शिक्षा के पक्षधर थे। तात्पर्य यह नहीं था कि हमारी परंपरागत व्यवसाय में खोट है वरन् यह कि हम ज्ञान प्राप्त कर उसका उपयोग अपने पेशे और जीवन को परिष्कृत करने में करें।

प्रश्न 9.
पुंडलीक जी कौन थे?
उत्तर–
पुंडलीक जी भितिहरवा आश्रम विद्यालय के शिक्षक थे। गाँधीजी ने उन्हें बेलगाँव से सन् 1917 में बुलाया था शिक्षा देने और ग्रामीणों के भयारोहरण के लिए।

पुंडलीक जी, गाँधीजी के आदर्शों को सच्चे दिल से मानने वाले बड़े ही निर्भय पुरुष थे। पहले एक कायदा था कि साहब जब आएँ तो गृहपति उसके घोड़े की लगाम पकड़े। एक दिन एमन साहब, जो उस समय बड़े अत्याचारी थे आए तो पुंडलिक जी ने कहा, “नहीं, उसे आना है तो मेरी कक्षा में आए मैं लगाम पकड़ने नहीं जाऊँगा।” पुंडलिक जी ने गाँधीजी से सीखी निर्भीकता गाँव वालों को दी। यही निर्भीकता चम्पारण अभियान की सबसे बड़ी देन है।

प्रश्न 10.
गाँधीजी के चम्पारण के आन्दोलन की किन दो सीखों का उल्लेख लेखक ने किया है? इन सीखों को आज आप कितना उपयोगी मानते हैं?
उत्तर–
गाँधीजी के दो सीख है पहली निर्भीकता और दूसरी सत्य का आचरण। निर्भीकता जीवन का बहुत महत्वपूर्ण आचरण है, जिसके ना होने से पशुता और मनुष्यता में फर्क कठिन हो जाता है। सत्य के लिए निर्भीकता निहायत जरूरी है। निर्भीक होने का अर्थ है अपनी सच्ची बात पर अडिग रहना। निर्भीक होना और उदंड होना अलग है। उदंडता एक निषिद्ध आचरण है, जबकि निर्भीक होना निहायत जरूरी।

सत्य का आचरण एक ऐसी चीज है, जिससे ना होने पर संसार का अस्तित्व ही संकट में ही जाए। बिना तथ्य की जानकारी के कोई बात कहना, अफवाह उड़ाना है। विश्वास की नींव सत्य के आचरण पर ही टिकी है। गाँधीजी बिना कोई बात परखें सत्यता की जाँच के नहीं कहा करते थे। यह उनके जीवन का सबल था। यही हमारे जीवन का भी होना चाहिए क्योंकि इसके न होने से हम मानव कहलाने का गौरव खो देते हैं और हमारा अस्तित्व जो विश्वास की बुनियाद पर खड़ा है समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 11.
यह पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़े करता है?
उत्तर–
हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण एक प्रश्न, एक समस्या लेकर उपस्थित होता है। उसमें अपने जीवन के घटनाक्रमों से अनेक बातों को सीखने तथा समझने का अवसर मिलता है। ऐसे अनेक प्रश्न हमारे इर्द–गिर्द मंडराते रहते हैं जिनसे निपटने के लिए अनर्थक तथा सार्थक प्रयास अपेक्षित हैं तथा इस दिशा में हमारा व्यावहारिक ज्ञान सहायक होता है।

प्रस्तुत पाठ में हमारे समक्ष इसी प्रकार के कतिपय प्रश्न उपस्थित हुए हैं। पहली समस्या यह है कि हमारे अनुत्तरदायित्वपूर्ण रवैये से वनों का निरन्तर विनाश किया जा रहा है। चम्पारण की शस्य श्यामला भूमि जो हरे–भरे वनों से आच्छादित था, वहाँ एक लम्बे अरसे से वृक्षों का काटना जारी है। उसने हमारे पर्यावरण को तो प्रभावित किया ही है, हमारी नदियों में वर्षाकाल में अप्रत्याशित बाढ़ एवं तबाही का दृश्य प्रस्तुत किया है वृक्षों के क्षरण से उनके तटों में जल–अवरोध की क्षमता का ह्रास है। वनों का विनाश कर कृषि योग्य भूमि बनाने, भवन, कल कारखानों एवं उद्योगों की स्थापना करने से इन सारी विपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। वृक्षों की घटती संख्या तथा धरती की हरियाली में निरंतर हास से वर्षा की मात्रा भी काफी घट गई है।

इस पाठ में चंपारण में प्रवाहित होने वाली नदियाँ गंडक, पंडई, भसान, सिकराना आदि नदियाँ किसी जमाने में वनश्री के ढके वक्षस्थल में किलकारती रहती थीं, अब विलाप करती हैं निर्वस्त्र हो गई हैं। इससे अनेकों समस्याओं ने जन्म लिया है–नदियों का कटाव, अप्रत्याशित वीभत्स बाढ़ की विनाश लीला, पर्यावरण प्रदूषण, अनियमित तथा कम मात्रा में वर्षा का होना आदि।

हमें इन समस्याओं से निदान हेतु वनों की कटाई पर तत्काल रोक तथा वृक्षारोपण करना होगा। सौभाग्य से गंडक घाटी योजना के अन्तर्गत सरकार द्वारा नहरों का निर्माण कर गंडक को दुरवस्था से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया। इसी प्रकार की अनेक योजनाएँ अन्य नदियों . के साथ भी अपेक्षित है।

प्रश्न 12.
अर्थ स्पष्ट कीजिए
(क) वसुंधरा भोगी मानव और धर्मान्ध मानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उत्तर–
प्रस्तुत पंक्तियाँ जगदीशचन्द्र माथुर ने मनुष्य की पाश्विक प्रवृत्ति एवं दूषित मानसिकता का वर्णन किया है। एक तरफ मनुष्य जंगल काटे जा रहा है, खेतों को पशु, पक्षियों आदि को नष्ट कर रहा है। नदियों पर बाँध बनाकर उसे नष्ट कर रहा है तो दूसरी ओर धर्मान्ध मानव गंगा को मइया कहता है पर अपने घर की नाली, कूड़ा–करकट पूजन–सामग्री जो प्रदूषण ही फैलाते हैं गंगा नदी में प्रवाहित करता है। इस प्रकार दोनों इस प्रकृति को नष्ट करने में लगे हुए हैं। इसलिए कहा जाता है कि वसुंधरा भोगी मानव और धर्मान्धमानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

(ख) कैसी है चंपारण की यह भूमि? मानो विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी निधियों को सौंपने के लिए प्रस्तुत करती है।
उत्तर–
चम्पारण की यह गौरवशाली भूमि महान है। यहाँ अनेक आक्रमणकारी तथा बाहरी व्यक्ति आए। उन्होंने या तो इस पावन भूमि को क्षति पहुँचाई या आकर बस गए। किन्तु धन्य है इसकी सहनशीलता एवं उदारता। इसने इन सबको भुला दिया, क्षमा कर दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि इसने विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी निधियों को सौंप दिया इसने किसी प्रकार का प्रतिकार नहीं किया। स्वयं को उन आततायियों के हाथों समर्पित कर दिया। उन्हें अपनी निधियों से समृद्ध किया।

प्रश्न 13.
लेखक ने पाठ में विभिन्न जाति के लोगों के विभिन्न स्थानों से आकर चम्पारण और उसके आस–पास बसने का जिक्र किया है। वे कहाँ–कहाँ से और किसलिए वहाँ आकर बसे?
उत्तर–
चंपारण में विभिन्न जाति के लोग समय–समय पर भिन्न–भिन्न स्थानों से आकर बस गए। पहले पहल यहाँ कर्णाट वंश के लोग आये। ये दक्षिण से थे और यहाँ आकर इस प्रदेश के रक्त और निधि बने। कर्णाट वंश के लोग मिथिला और नेपाल विजय के लिए आए थे। थारू और धाँगड़ जातियाँ यहाँ आजीविका की खोज में आई। यहाँ धाँगड़ों को गोरे अंग्रेज और रामनगर के तत्कालीन राजा नील की खेती के लिए लाए थे। दक्षिण बिहार के गया जिले से भुपईड लोग भी इसी तरह नील की खेती के लिए हिमालय की तलहटी में लाए गए। संभवतः ये मुसहर वर्ग के अंग है। राजकुल वंश के वंशज आक्रमणकारियों से त्रस्त होकर यहाँ आए। उर्वरा भूमि से संपदा प्राप्त करने के लिए पछाँही जमींदार और गोरे साहब ब्रिटिश साम्राज्य के कोने में वैभवशाली साम्राज्य स्थापित करने आए। यहाँ पूर्वी बंगाल के शरणार्थी भी त्रस्त होकर यहाँ आए। यहाँ के अशोक स्तम्भ स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि यहाँ कभी मौर्य साम्राज्य का शासन रहा था।

प्रश्न 14.
पाठ में लेखक नारायण का रूपक रचता है और वह सांग रूपक है। रूपक का पूरा विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर–
भारतवर्ष के रूपकों का सर्वथा पूर्व और प्रारम्भिक रूप ऋग्वेद में प्रार्थना मंत्रों और संवादों के रूप में मिलता है। यह तो निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि भारत में न्यूटन ने अपना पूर्ण रूप किसी समय का धारण किया पर इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका बीज भी वेदों में ही था। जैसा भरत मुनि के उल्लेख से स्पष्ट है अर्थात् अभिनय या नाट्य का मूल कर्मकांड के मंत्रों के संग्रह यजुर्वेद में मिलता है। यज्ञ–भागादि की क्रिया में स्वांग भरने (सांग भरना) की अपेक्षा कई प्रसंगों में होती है यही क्रिया धीरे–धीरे विकसित होकर अंकुरित और पल्लवित हुई होगी।

किसी भी अवस्था के अनुकरण को नाट्य कहते हैं। यह अनुकरण चार प्रकार के अभिनयों द्वारा अनुकार्य और अनुकर्ता की एकता प्रदर्शित करने से पूर्ण होता है। नाटक के पात्र के साथ एकता दिखाने के लिए अभिनेता को उठना–बैठना, चलना–फिरना इत्यादि सब व्यवहार। उसी के समान वस्त्राभूषण पहनने चाहिए और उसी के समान अनुभूति भी दिखलानी चाहिए। नाट्य ‘शास्त्रकारों ने रूपक के सहायक या उपकरण नृत्य और नृत्त माने हैं। किसी भाव को प्रदर्शित करने के लिए विशेष के अनुकरण को नृत्य कहते हैं। इसमें आर्थिक अभिनय की प्रधानता रहती है। लोग इसे नकल या तमाशा कहते हैं। अभिनय रहित केवल नाचने को नृत्य कहते हैं। जब इन दोनों के साथ गीत और कथन मिल जाते हैं तब रूपक का पूर्ण रूप उपस्थित हो जाता है। शास्त्रकारों का कहना है कि नृत्य भावों के आश्रित और नृत्य ताल तथा सय के आश्रित रहते हैं और रूपक रसों के आश्रित रहते हैं। इस प्रकार रसों का संचार करने में अनुभव, विभाव आदि सहायक होते हैं, उसी प्रकार नाटकीय रसों की परिपुष्टि में नृत्य आदि भी सहायक का काम लेते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर दो भेद किए गए हैं–

  • रूपक तथा
  • उप रूपक। रूपकों में रस की प्रधानता रहती है।

उपरूपक में नृत्य, नृत्त आदि की। नृत्य मार्ग, नृत्त जैसी भिन्न–भिन्न देशों, भिन्न–भिन्न प्रकार का महत्व होता है।

प्रश्न 15.
नीलहे गोरों और गाँधीजी से जुड़े प्रसंगों का अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर–
चंपारण में रैयतों और किसानों पर नीलहे गोरों का अत्याचार चरमोत्कर्ष पर था। ये नीलहे–गोरे उसके साथ पशुवत् व्यवहार करते थे। पूरे चंपारण पर उन दिनों उनका साम्राज्य था। जिस रास्ते पर नीलहे साहब की सवारी जाती उस पर हिन्दुस्तानी अपने जानवर नहीं ले जा सकते थे। यदि किसी रैयत के यहाँ उत्सव या शादी विवाह होते तो साहब के यहाँ नजराना भेजना पड़ता था। यहाँ तक कि साहब के बीमार पड़ने पर उनके इलाज के लिए भी रैयतों से वसूली होती। अमोलवा कोठी के साहब एमन का भीषण आतंक चंपारण में व्याप्त था। किसी भी रैयत की झोपड़ी में आग लगा देना, किसी को जेल में ठूस देना उनका रोज का काम था। तत्कालीन शासन निलहे गोरों के हाथ का पुतला था। उनके प्रभाव का प्रमाण गंगा नदी पर पुल का नहीं बनना था, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि दक्षिण बिहार के बागी विचारों का असर चंपारण में जल्दी से पहुँचे।

महात्मा गाँधी के कदम चंपारण की धरती पर सन् 1917 ई. के अप्रैल माह में पहले पहल पड़े। गाँधीजी चंपारण की रैयत को भय और अत्याचार के चंगुल से बचाने के लिए वहाँ के कुछ स्थानीय व्यक्तियों के आग्रह पर यहाँ आए। उन व्यक्तियों के प्रमुख सर्व श्री रामदयाल सह, हरवंस सहाय, रामनौमी प्रसाद, राजकुमार शुक्ल आदि थे। श्री राजकुमार शुक्ल की मृत्यु सन् 1930 के आस–पास हो गई। महात्मा गाँधी ने वहाँ की ग्रामीण जनता की सामाजिक अवस्था के सुधार का कार्य किया। उन्होंने ग्रामीण बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करने का निश्चय किया। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने तीन ग्रामीण विद्यालयों की स्थापना की, बड़हरवा, मधुबन और भितहरवा तीनों विद्यालयों में गुजरात और महाराष्ट्र से कार्यकर्ता, विद्यालय संचालन के लिए आए। इनमें श्री बबन जी गोखले, श्रीमती अवन्तिका बाई गोखले, श्री देवदास गाँधी, श्री नरहरि दास पारिख तथा गाँधी जी के सेक्रेटरी श्री महादेव देसाई थे। महात्मा गाँधी, कस्तूरबा तथा कृपलानी जी भी वहाँ कुछ दिनों तक रहे।

प्रश्न 16.
चौर और मन किसे कहते हैं? वे कैसे बने और उनमें क्या अंतर है?
उत्तर–
चंपारण में गंडक घाटी के दोनों ओर विभिन्न आकृतियों के ताल दिख पड़ते हैं। ये कहीं उथले तो कहीं गहरे हैं, सभी प्रायः टेढ़े–मेढ़े किन्तु शुभ्र एवं निर्मल जल से पूर्ण हैं। इन तालों को चौर और मन कहते हैं। चौर उथले ताल होते हैं जिसमें पानी जाड़ों और गर्मियों में कम हो जाता है। इनके द्वारा खेती भी होती है। मन विशाल और गहरे ताल है। ‘मन’ शब्द मानस का अपभ्रंश है। ये मन ओर चौर मानों गंडक के उच्छंखल नर्तन के समय बिखरे हुए आभूषण हैं। जब बाह ली है तो तंटों का उल्लंघन कर नदी दूसरा पथ पकड़ लेती है। पुराने पथ पर रह जाते हैं ये चौर और मन, जिनकी गहराई तल को स्पर्श कर धरती के हृदय से स्रोत को फोड़ लाई।

प्रश्न 17.
कपिलवस्तु से मगध के जंगलों तक की यात्रा बुद्ध ने किस मार्ग से की थी?
उत्तर–
लौरिया नंदनगढ़ से एक नदी रामपुरवा और भितिहरवा होते हुए उत्तर में नेपाल के लिए भिखना थोरी तक जाती है। उस नदी का नाम है ‘पइंड’। इसी के सहारे भगवान बुद्ध ने कपिल से मगध तक की यात्रा की थी। लौरियां नंदनगढ़ में सम्राट अशोक द्वारा बनवाया हुआ कलापूर्ण स्तम्भ है।

ओ सदानीरा भाषा की बात

प्रश्न 1.
इन पदों के समास निर्दिष्ट करें सदानीरा, शस्यश्यामला, नववधू, महानायक, तीर्थयात्रा, शिक्षाप्राप्त।
उत्तर–

  • सदानीरा – बहुब्रीहि समास
  • शस्यश्यामला – तत्पुरुष समास
  • नववधू – कर्मधारय समास
  • महानायक – कर्मधारय समास
  • तीर्थयात्रा – षष्ठी तत्पुरुष समास
  • शिक्षाप्राप्त – द्वितीय तत्पुरुष समास

प्रश्न 2. निम्नलिखित शब्दों का सन्धि विच्छेद करें विक्रमादित्य, चित्रोपम, निष्कंटक, उल्लास, इत्यादि
उत्तर–

  • विक्रमादित्य – विक्रम + आदित्य
  • चित्रोगम – चित्र + उपम
  • निष्कंटक – निः + कंटक
  • उल्लास – उत् + लास
  • इत्यादि – इति + आदि

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाएँ मलीन, कमाई, पुल, छत्रछाया, प्रबंध, आदर्श
उत्तर–

  • मलीन – उसका वस्त्र मलीन है।
  • कमाई – आजकल नेताओं की कमाई अच्छी है।
  • पुल – पुल चौड़ा है।
  • छत्रछाया – आपकी छत्रछाया में मैं रहना चाहता हूँ।
  • प्रबंध – इस अस्पताल का प्रबंध बहुत अच्छा है।
  • आदर्श – गाँधीजी एक आदर्श पुरुष थे।

प्रश्न 4.
रेखांकित उपवाक्यों की बताएँ
(क) सुल्तान घोड़े से उतरा और तलवार से उसने एक विशाल विटप के तने पर आघात किया।
(ख) उसके गिरते ही बिजली सी दौड गई उसके सैनिकों में, ओर हजारों तलवारें घने वन के वृक्षों पर टूट पड़ी।
(ग) वे लगभग एक साल रहे और फिर अंग्रेज सरकार ने उन्हें जिले से निर्वासित कर दिया।
उत्तर–
(क) सुल्तान. घोड़े से उतरा–संज्ञा उपवाक्य
(ख) उसके गिरते ही बिजली सी दौड़ गई–क्रियाविशेषण उपवाक्य
(ग) वे लगभग एक साल रहे–क्रियाविशेषण उपवाक्य।

ओ सदानीरा लेखक परिचय जगदीशचन्द्र माथुर (1917–1978)

जीवन–परिचय–
प्रतिभाशाली लेखक, नाटककार एवं संस्कृतिकर्मी जगदीशचन्द्र माथुर का जन्म 16 जुलाई, सन् 1917 को शाहजहाँपुर, उत्तरप्रदेश में हुआ था। इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी विषय में एम.ए. किया। इसके बाद सन् 1941 में आई.सी.एस. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। ये प्रशिक्षण के लिए अमेरिका गए और बाद में बिहार के शिक्षा सचिव नियुक्त किए गए। इन्होंने सन् 1944 में बिहार के सुप्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव वैशाली महोत्सव का बीजारोपण किया। ये ऑल इंडिया रेडियो में महानिदेशक भी रहे और इन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार के पद पर भी कार्य किया। ये हार्वर्ड विश्वविद्यालय के विजिटिंग फेलो रहने के अतिरिक्त अन्य कई महत्त्वपूर्ण कार्यों से जुड़े रहे। अपने उल्लेखनीय कार्यों के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें विद्या वारिधि की उपाधि, कालिदास अवार्ड और बिहार राजभाषा पुरस्कार प्रमुख है। 14 मई, सन् 1978 को इनका निधन हो गया।

रचनाएँ–
जगदीशचन्द्र माथुर जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

सन् 1936 में प्रथम एकांकी ‘मेरी बाँसुरी’ का मंचन व ‘सरस्वती’ में प्रकाशन। पाँच एकांकी नाटकों का संग्रह ‘भोर का तारा’ सन् 1946 में प्रकाशित।

इनके अतिरिक्त ‘ओ मेरे सपने’ (1950), ‘मेरे श्रेष्ठ रंग एकांकी’, ‘कोणार्क’ (1951), ‘बंदी’ (1954), ‘शारदीया’ (1959), ‘पहला राजा’ (1969), ‘दशरथ नंदन’ (1974), ‘कुँवर सिंह की टेक’ (1954), ‘गगन सवारी’ (1958) के अलावा दो कठपुतली नाटक।

‘दस तस्वीरें’ और ‘जिन्होंने जीना जाना’ में रेखाचित्र और संस्मरण है। ‘परंपराशील नाट्य’ (1960) उनकी समीक्षा दृष्टि का परिचायक है।

‘बहुजन संप्रेषण के माध्यम’ जनसंचार पर लिखी विशिष्ट पुस्तक है और ‘बोलते क्षण’ निबन्ध संग्रह है।

साहित्यिक विशेषताएँ–जगदीशचन्द्र माथुर एक प्रतिभाशाली लेखक, नाटककार एवं प्रशासक थे। वे साहित्य के क्षेत्र में बिहार की विशिष्ट प्रतिभा के रूप में जाने जाते हैं। नाटक के शास्त्रीय तथा लोकरूप उनके आकर्षण का केन्द्र रहे। उनके नाट्यलेखन में रंगमंच की . कल्पनाशील सक्रिय चेतना समाहित है। अर्थात् इनकी नाट्य कृतियाँ मंचन तथा अभिनेता की दृष्टि से सफल मानी जाती है। उनके साहित्य में कहीं भी संकीर्णता नहीं आई है। अपितु उनके लेखन में एक उदार दृष्टिकोण प्रकट होता है। सौन्दर्यप्रियता और लालित्यबोध उनकी अभिरुचि के अंग थे। वे रचना में एक सुव्यवस्था, सुरुचि और कलात्मकता को आवश्यक मानते थे तथा इसका ध्यान उन्होंने अपनी समस्त रचनाओं में रखा है।

ओ सदानीरा पाठ के सारांश

जगदीशचन्द्र माथुर ‘ओ सदानीरा’ शीर्षक निबन्ध के माध्यम से गंडक नदी को निमित्त बनाकर उसके किनारे की संस्कृति और जीवन प्रवाह की अंतरंग झाँकी पेश करते हैं जो स्वयं गंडक नदी की तरह प्रवाहित दिखलाई पड़ता है। सर्वप्रथम चम्पारण क्षेत्र की प्रकृति वातावरण का वर्णन करते हुए उसकी एक–एक अंग का मनोहारी अंकन करते हैं। जैसे छायावादी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण देखा जा सकता है उसी तरह निबंध में भी देखा जा सकता है। एक अंश देखिए–”बिहार के उत्तर–पश्चिम कोण के चम्पारण इस क्षेत्र की भूमि पुरानी भी और नवीन भी। हिमालय की तलहटी में जंगलों की गोदी से उतारकर मानव मानो शैशव–सुलभ अंगों और मुस्कान वाली धरती को ठुमक–ठुमककर चलना सिखा रहा है।” इसके साथ माथुर संस्कृति के गर्त में जाकर आना उन्हें लगता है जैसे उन्मत्त यौवना वीरांगना हो जो प्रचंड नर्तन कर रही हो।

उन्हें साठ–बासठ की बाढ़ रामचरितमानस के क्रोधरूपी कैकयी की तरह दिखलाई पड़ती है। वे बताते हैं नदियों में बाढ़ आना मनुष्यों के उच्छृखलता के कारण हैं। यदि महाजन जो चम्पारण से गंगा तट तक फैला हुआ था न कटता तो बाढ़ न आती। माथुर तर्क देते हैं कि वसुंधराभोगी मानव और धर्मांधमानव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। क्योंकि वसुन्धरा भोगी मानव अपने भोग–विलास. के लिए जंगलों की कटाई कर रही है तो धर्मांध मानव पूजा–पाठ के सड़ी–गली सामग्री को गंगा नदी में प्रवाहित कर उसे दूषित कर रहा है। माथुर मध्ययुगीन समाज की सच्चाई भी बताते हैं कि आक्रमण के कारण या अपनी महत्त्वाकांक्षा की तृप्ति के लिए मुसलमान शासकों ने अंधाधुंध जंगलों की कटाई की।

इसी तरह यहाँ अनेक संस्कृति आये और यहीं रच–बस गये। सभी ने उसका दोहन ही किया। इस मिली–जुली संस्कृति का परिणाम कीमियो प्रक्रिया है। चम्पारण के प्रत्येक स्थल पर प्राचीन युग से लेकर आधनिक युग में गाँधी के चम्पारण आने तक के पूरा इतिहास को अपने लेखनी के माध्यम से अच्छे–बुरे प्रभाव को खंगालते हैं। इस परिचय के संदर्भ में कहीं भी कला संस्कृति उसकी भाषा उनकी आँखों से ओझल नहीं हो पाती।।

अंत में गंडक की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि ओ सदानीरा ! ओ चक्रा! ओ नारायणी। ओ महागंडक ! युगों से दीन–हीन जनता इन विविध नामों में तुझे संबोधित करती रही है। और तेरे पूजन के लिए जिस मन्दिर की प्रतिष्ठा हो रही है, उसकी नींव बहुत गहरी और मजबूत हैं। इसे तू ठुकरा न पाएगी।

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 3 A Pinch of Snuff

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Bihar Board Class 12 English A Pinch of Snuff Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 12 English Book Textual Questions and Answers

A. Answer the following questions orally (Answer to these questions may vary from person to person)

A Pinch Of Snuff Question Answer Bihar Board Class 12 Question 1.
Do guests visit your house frequently? How do you espond to them?
Answer:
Yes guests frequently visit our house. We entertain them as best we can.

A Pinch Of Snuff Ka Question Answer Bihar Board Class 12 Question 2.
Do you like all of them equally? How often do you entertain your guests gladly?
Answer:
No, I don’t like all of them equally. I don’t entertain all of them gladly.

Pinch Of Snuff Question Answer Bihar Board Class 12 Question 3.
At times you may have to welcome a guest whom you don’t like much. How do you do this?
Answer:
I try to neglect such a guest if possible. But it is not always possible.

B. 1.1. Complete the following sentences on the basis of what you have studied
(a)……….. was coming to visit the narrator’s family.
(b) The narrator was ……………… on probation.
(c) Nanukaka was to stay for ………….. days.
(d) Nanukaka was coming to Delhi to……………..
(e)……………….informed the under secretary about Nanukaka’s visit.
(f) The under secretary had to put a charpoy for himself in back verandah because…………………..
(g) Nanukaka was related to the narrator as he was…………………………..
Answer:
(a) Nanukaka, (b) an under secretary, (c) two or three, (see a minister, (e) His mother, (f) his mother had installed nanukaka in his bedroom, (g) his mother’s brother.

B. 1.2. Answer the following questions briefly
A Pinch Of Snuff Long Question Answer Bihar Board Class 12 Question 1.
The news that made the mother happy disturbed her son. Why news that made the mother happy disturbed her son. Why were their responses to different?
Answer:
Nanukaka was mother’s brother. She loved him and was happy to know that he was coming to stay with them. But for the narrator his stay meant inconvenience. He was expected to be at nanukaka’s back and call during his stay.

Question Answer Of A Pinch Of Snuff Bihar Board Class 12 Question 2.
Do you have a similar experience ? Has your response to the news of the arrival of any guest ever been different from that of other meambers of the family ?
Answer:
Yes, I have had a similar experience. The news of the arrival of my cousin made me happy but my family was disturbed. I and my cousin are best
of friends. When she arrives, we spend most of our time together. She comes from a small town and likes to go to movies, restaurants, shopping complexes, museums and the zoo. I spend money don’t allow her to spend any. My family does not like my going out with her and spending so much money.

Question 3.
‘Had to travel second on a third elase ticket? But it was all arranged quite amicably ?’ What ‘arrangement’ Nanukaka is referring to ? How can such arrangement be amicable?
Answer:
Nanukaka was a very clever man. He could manage to come out of any difficult situation. He must have explained to the ticket collector why he had to travel second class in a third class ticket. Then he might have bribed him too. This arrangement was amicable because both the ticket collector and Nanukaka were gainers, and the kitten travelled free.

B. 2. 1. Write T for True and ‘F’ for False statements
(a) It was very easy for the narrator to get sent on a foreign assignment,
(b) Ratiram was the son of Sohanlal Ratiram.
(c) Sohanlal Ratiram was the Party boss in Delhi.
(d) Nanukaka went to Lala Sohanlal because they both were Zamindars.
(e) Nanukaka visited Lala Sohanlal in the guise of an astrologer.
(f) Nanukaka’s meeting with Sohanlal Ratiram was very successful.
Answer:
(a) False (b) True (c) True (d) False (e) False (f) True.

B. 2.2. Answer the following questions briefly 
Question 1.
The under secretary always obeyed Nanukaka, although he was never willing to do so, Why?
Answer:
The under secretary was never willing to serve Nanukaka as his Secretary or his driver. But he had to obey him because his mother insisted on it. He could not displease his mother.

Question 2.
“This tie-and -collar business is no good these days.” What did Nanukaka mean to say?
Answer:
It was a time when India had v/on her independence only a few years ago. People did not like tie-and-collar. They liked native clothes.

Question 3.
How did the under secretary change his appearance to accompany Nanukaka?
Answer:
The under secretary changed into a close-collar Jadhpuri coat and put on a turban, to accompany Nanukaka.

Question 4.
Who is a zamindar? Do you know any zamindar in you locality? What do the people in your locality think about him?
Answer:
A zamindar is an owner of large lands. There is a zamindar in our locality. People think he is very rich and powerful.

Question 5.
How did Nanukaka impress Sohanlal Ratiram?
Answer:
Sohanlal Ratiram wanted to send his son as a Trade Commissioner to Hajrat Barkat Ali, the ambassador of India is Beirut. But his efforts had failed because Hajrat Barkat Ali refused to have him. Nanukaka pretended that Hajrat Barkat Ali was his close friend. When Sohanlal heard this, he was eager to meet Nanukaka. Nanukaka assured that it was quite easy for him and he would surely help him.

Question 6.
What important information did he collect at Ratiram’s place?
Answer:
Nanukaka wanted to meet a minister to get some work done. He learnt that the minister wanted to get his daughter married to a prince of Ninnore. The proposal was being considered but the horoscopes were not exchanged yet.

Question 7.
Who is a prince? Do we have any prince now? If yes, do they enjoy the same privileges which they used to do?
Answer:
A prince was a raja of an Indian princely state. But there are no longer any princely states in India now. The princes do not enjoy the privileges they used to enjoy under the British rule.

B.3. Answer the following questions briefly
Question 1.
Who was the second important person Nanukaka had planned to meet?
Answer:
The second important person Nanukaka had planned to meet was ‘ the welfare minister.

Question 2.
What preparation did he make to meet him?
Answer:
He firstly managed to get an enormous, outlandish car to drive to the minister’s office. Secondly he got undersecretary dressed in his Jodhpur coat and turban and lastly he dressed and sat on the car in a manner that he looked a heriditary pundit from a princely state.

Question 3.
What new role did Nanukaka give the Under-Secretary to play?
Answer:
This time he made the under secretary play a role of the driver of the car, in which he went to the minister’s office. The under secretary was dressed as a liveried chauffer.

Question 4.
How did he manage to impress, the Sikka Auto dealers?
Answer:
He managed to impress Sikka Auto dealers by the demonstration of his wealth. He made a plan with the Dhobi. According to this plan, when he went to Sikka Auto dealers, the Dhobi came with an old coat of Nanukaka in his hand showed him the cheque saying that he left a cheque of Rs. 1000 in his coat. It v as a part of his plan. The manager was impressed with his status, Nanukaka managed to show him.

Question 5.
What did he do at minister’s residence?
Answer:
With an idea to produce (present) his image of a big zamindar and highly rich person ot nigh repute Nanukaka did the following at minister’s residence

  • Firstly he managed a luxuries car for his visit to minister’s residence.
  • The writer sat on the chauffer’s (driver) seat in a white Jodhpur coat and the orange turban.
  • Navnukaka set on the back in a royal dress, looking like a hereditary pandit (asuologer) and drove to the minister residence.
  • At minister’s residence he asked to the minister’s secretary the visiter’s book as he had not time due to some other urgent appointment and that too he did not like to disturb the minister.
  • Nanukaka wrote his name, the writer’s (undersecretary) Delhi address as his own and added in his introductory note, “Hereditary Astrolonger to the Maharaja of Ninnore”. Thus he left a deep impression on them of his personality.
  • Without speaking anything more and directing the writer to take him to “Maharaja Sutkatta’s palace”. And the car immediately left the place. He was warmly saluted by the secretary and orderly while leaving minister’s house.

Question 6.
How did he impress the minster?
Answer:
He came in an outlandish car with a uniformed chauffer. Secondly he dressed himself like a hereditary pundit from princely state. While visiting minister’s residence and then after getting into the car he shouted loudly to take him to a maharaja’s palace to show he had contacts with many aristocrates. Lastly he wrote his name in the visitors book as the Hereditary Astrologer to the Maharaja of Ninnore. This is what he did to impress the minister.

Question 7.
‘Is the under-secretary impressed with Nanukaka at any point? When and Why? Find out the evidence from the story.
Answer:
Yes, finally, he was impressed with Nanukaka after he had used his wit to accomplish his mission. He was impressed with Nanukaka for the way he used his brain and finally had a meeting with the minister. The evidence which proves Nanukaka’s dealing with the minister impressed the under secretary deeply for his presence of mind. In the last, he says that if minister comes to know about the reality, he is sure that Nanukaka will deal with the situation without allowing a single fold of his anghocha to fall of place.

C. 1. Bihar Board Class 12 English Book Long Answer Questions

Question 1.
Nanukaka tells lots of lies. Why does he do so? Does he succeed in his pursuit?
Answer:
Nanukaka tells lots of lies to have a meeting with the welfare minister. Nanukaka makes many false statements because if he had not done so, he could not have met the minister in two-three days. He would have to wait for months to get an appointment for his meeting with the minister. Yes, Nanukaka was successful in his pursuit of meeting the minister. He did not only manage the meeting with minister in his own sweetwill but with his brain, he met minister in only two days.

Question 2.
What impression does Nanukaka make on you ? Do you like him ? Attempt character sketch of Nanukaka?
Answer:
Nanukaka makes impression of a clever, witted and sensible man on me who knows very well how to be successful in his pursuit. He doesn’t hesitate to speak lies in the matter of his work. No I do not like him. Nanukaka is quick witted, clever man who does not hesitate in telling a lie to gain his goal. It is a bad thing. He is cunning and knows how to use situations to his profit. He has the ability of deceiving people easily and he can do and speak anything to complete his mission and work. He is a funny man.

Question 3
Suppose you have Nanukaka as your uncle. How would you behave with him ? Explain in detail.
Answer:
If Nanukaka has been my uncle, I would behave very nicely with him because he is my uncle, my mother’s brother. I would take part in his affairs and help him possibly as much I could. I would share my thoughts with him and would take interest in his talks. I would respond nicely to him and would like to be a part of his adventuous comedy. I would respect him and follow whatever he says, wholeheartedly. I would never show my disregard and do the most to help him out. I would show my affection to him and make him feel what can I do being my uncle. I would show him that loved him very much and do for him and proud to have him as my uncle.

Question 4.
Nanukaka made a big promise to Sohanlal Ratiram. Did he even fulfil his promise?
Answer:
Nanukaka promised Sohanlal to talk about his son’s promotion with the ambassador Hazrat Barkat Ali. Sohanlal said that some body has poisoned the mind of the ambassador about his son and he would be obliged if Nanukaka would persuade for his son the ambassador as Nanukaka to that he was a schoolmate of the ambassador Hazrat Barkat Ali and was or very good terms with him. No, Nanukaka never fulfilled his promise. And even if he had wanted to, he could not because he had fabricated a false story to Sohan Lai. He didnot know the ambassador at all then how could he writen to him.

Question 5.
Can a person like Nanukaka be more successful in the present society? Give reasons.
Answer:
Yes, a persn like Nanukaka will be more successful in the society because now world is changed. People who are well behaved, simple, pious and moral by high are taken to be foolish. They always have to suffer because of their goodness but on the other hand, people who are clever, cunning, crafty are thought to be wise efficient and humane. People who speak lies, are really mean and selfish. Though, they manage to do their work easily. Nanukaka happened to be the person of the same category of mean and crafty people. It is quite evident from his manners of conducting the issues and managing the things through all possible wroung acts to achieve his mission and he was able to succeed in fulfilling his own selfish end. In the present society, deceitful and deceptive deceptive people are given more respect than the truthful and good people. Secondly clever people outwit every body and Nanukaka happens to representing such persons (of the same colour and nature). He easily-outwitted the minister and Sohanlal.

Question 6.
How did he impress the minister?
Answer:
After writing his name in the visitors’ book, he told his ‘chauffeur’ to drive to Maharaja Sutkatta’s palace because he had to return the horscopes. This trick impressed the minister. He believed that the ‘astrologer’ was comparing the horoscopes of the daughter of Maharaja of Sutkatta also. That’s why the minister came to see him next morning.

Question 7.
Is the under secretary impressed with Nanukaka at any point? When and why? Find out the evidence from the story?
Answer:
The under secretary is impressed with Nanukaka when the Welfare Minister, whom he wanted to meet, comes to see Nanukaka early in the morning. The minister gladly does what Nanukaka wants him to do. It is indeed a miracle.

Question 8.
Write the summary of the short story “A Pinch of Snuff”. [Board Exam. 2009]
or, Describe the main idea contained in the story “A Pinch of Snuff” [Simple Paper 2009 (A)]
Answer:
The short story “A Pinch of Snuff” is initially taken from “contemporary Indian short stories in English”. The story begins with the visit of Nanukaka, the maternal uncle of the narrator at his house. The narrator who is an under-secretary in the government becomes much worried apprehending his months long stay at his residence in Delhi, for meeting some minister. It is due to the fact that ministers do not meet people easily. But his mother has informed him about her brother Nanukaka’s ability to manage his meeting with the minister very well in a couple of days and that has removed his worriedness. The narrator receives nanukaka, and comes along with him at his residence. From there he drove Nanukaka to the North Block to meet the minister.

They return back being disappointed as the meeting could not be meterilised. Again on the persuation of Nanukaka they go to Sohanlal Rati Ram, the party Boss in Delhi. Nanukaka cleverly manages to hold a long talk with him. He also gives Sohanlal false assurances about his son’s posting in Balance Ministery through the ambassdor Hazrat Barkat Ali. They return back in happy mood. The next morning again Nanukaka insists him to meet welfare minister. A prineely otlandish luxary car is being arranged from a show-room furnishing false information to them. At minister’s bunglow, Nanukaka plays a trick showing himself “Hereditary Astrologer to the Maharaja of Ninnore”. Being highly impresseed with this introduction, the welfare inister rushes to Nanukka, at narrator’s, residence. After fulfiling his mission Nanukaka returns back from Delhi leaving the narrator peaceful. He (the narrator) is also being astonished to see the witty and clever act of nanukaka.

The main idea of this short story depicts the fradulant act of Nanukaka, who does not hesitate to tell a lie for his selfish ends and to achieve his mission. Due to his falsehood he could meet the minister very soon. The writer becomes surprised to see nanukaka’s ability in deceiving people by manipulation. But the writer’s motive is not to glorify nanukaka’s undesirable and nefarious acts. He also intends to disclose the affairs of the modem society and warn people to become careful against such activities. This story also delivers message that cunning and crafty people like Nanukaka become successful in their wrong and immoral acts, befooling others. Simple, pious and morally high people have to suffer much because of their goodness. The accuracy and the profound comedy of malgaokar’s narrative has built up reader’s excitement. “A pinch of Snuff’ means snuff to be taken in small quantity. The story has the sense of humour just like Nanukaka’s pinch of snuff and it revolves around him. The title of the story itself signify the very meaing therein and many things to learn by us as well.

C. 3. Compositon

Write a paragraph of about 100 words on each of the following
Question 1.
A scene at the railway platform.
Answer:
The railway platform is a very interesting place particularly when the station is big and over-crowded round the clock. Different kinds of people can be seen there. People from different parts of the country with different languages, dress, food items and topics of conversation can be seen theire. Beggars make an ugly seen but vendors and porters make it a colourful place. It was watch a railway platform closely we can also see happy people going home and sad people leaving their dear ones. Some are eager to et a seat others are ready to fight. Thieves and robbers, pick-pockets and policemen all remain busy in their jobs. I like the railway platform.

Questions 2.
Influence of an astrologer.
Answer:
An astrologer tells our future by looking up the stars. We do not know anything about the future. But we always want to know it ahead of its coming, some people think that they would be better equipped to face the future if they know it before-hand. Some people want to determine their present course keeping the future in mind. So almost everybody is interested in the prediction of an event. And here comes the astrologer. He reads the star and tells the future. This is the way astrologer is consulted before any big event. The astrologer gets the most important place.

D. Word Study
D. 1. Dictionary Use

Ex. 1. Correct the spelling of the following words :
mustach, assinment, ambasador, secretry, campainer, cautiond, genuine, casualy, leiger, hearditary.
And. moustache, assignment, ambassador, secretary, campaigner, cautioned, genuine, casually, leisure, hereditary.

D. 2. Word-formation

Read the following sentences carefully
(a) Mother’s announcement shook me.
(b) He seldom sees, er, visitors without a previous appointment.
in the first sentence ‘announcement’, which is a noun, is derived from announce which is a verb. Similarly, in the second sentence ‘appointment’ is derived from ‘appoint’. Nouns can be derived by adding different suffixes such as ‘-menton, ’-ance’ etc. Use suffixes to the verbs given below to make them noun :
impress, arrange transact, explain, acquint, manage, demonstrate, marry.
Answer:
impression, arrangement, transaction, explanation, acquintance, management, demonstration marrige.

D. 3. Word-meaning

Ex. 1. Find from the lesson words the meanings of which have been given on the left hand side. The last part of each word is given on the right hand side

in a friendly manner and without argument   …………………ably.
large in size or quantity    ………………………mous.
atracting your interest or attention   …………………..king.
small nail with a flat top   ……………………cks.
correct according to law    …………………..mate.
extremely strange and unusual   ………………..dish.

Answer:
Comfortably, enormous, breath taking, tracks, legitmate, outlanddish.

D. 4. Phrases

Ex. 1. Read the lesson carefully and find out the sentences in which the following phrases have been used, use these phrases in sentences of your own at daggers drawn, drop in, as soon as, turn out, of course, try out.
Answer:
at daggers drawn — enemies were at daggers drawn against each other.
drop in — Anand asked Raju to drop in Anju at home.
as soon as — Bijay touched his parents feet as soon as he saw them.
turnout — The project has turned out to be a success,
of course — of course the party will support the proposal.
try out — The driver said to try out for the screw properly in the market

E. Grammar

Ex. 1. Read the following sentences carefully You’ve got a close-collar Jadhpur coat, haven’t you ?
(It is) Amazing, Isn’t it ?
In the above examples ‘haven’t you ? and ‘Isn’t it ? are tag-questions. Write tag-questions for the following sentences
1. Amod was speaking in an unusually loud voice………………..
2. That should be quite simple………………
3. Nanukaka chucked his tongue several times…………….
4. You will do the work…………….
5. Gulu is eating a mango……………..
Answer:
1. wasn’t he?
2. shouldn’t it?
3. didn’t he?
4. won’t you?
5. isn’t he?

The main aim is to share the knowledge and help the students of Class 12 to secure the best score in their final exams. Use the concepts of Bihar Board Class 12 Chapter 3 A Pinch of Snuff English Solutions in Real time to enhance your skills. If you have any doubts you can post your comments in the comment section, We will clarify your doubts as soon as possible without any delay.

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 8 सिपाही की माँ

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 8 सिपाही की माँ

 

सिपाही की माँ वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Sipahi Ki Maa Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
मोहन राकेश का जन्म कब हुआ था?
(क) 8 जनवरी, 1925 ई.
(ख) 7 फरवरी, 1920 ई.
(ग) 7 मार्च, 1921 ई.
(घ) 2 जनवरी, 1922 ई.
उत्तर-
(क)

Sipahi Ki Maa Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
‘आखिरी चट्टान तक’ किसके द्वारा लिखित यात्रा वृत्तांत है?
(क) मोहन राकेश
(ख) अनूपलाल मंडल
(ग) देवराज
(घ) दिनकर
उत्तर-
(क)

सिपाही की माँ कहानी का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
मानक क्या करता है?
(क) सेना के सिपाही है
(ख) खिलाड़ी है
(ग) शिक्षक है
(घ) पहलवान है
उत्तर-
(क)

Sipahi Ki Man Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
‘विशनी किस एकांकी की पात्रा है?
(क) लहरों के राजहंस
(ख) आधे-अधूरे
(ग) सिपाही की माँ
(घ) पैर तले की जमीन
उत्तर-
(ग)

Sipahi Ki Man Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
मैं इसे अभी मार दूंगा। अभी इसकी बोटी-बोटी अलग कर दूंगा, किसने कहा?
(क) मानक ने
(ख) सिपाही ने
(ग) विशनी ने
(घ) दीनू ने
उत्तर-
(क)

प्रश्न 6.
नहीं मानक, तू इसे नहीं मारेगा? यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है। किसने कहा?
(क) विशनी ने
(ख) मानक ने
(ग) कुन्ती ने
(घ) दीनू ने
उत्तर-
(क)

प्रश्न 7.
ब्रम्मा की दूरी चौधरी ने कितना बताया था?
(क) कई सौ कोस दूर
(ख) सौ कोस
(ग) दो सौ कोस
(घ) पचास कोस
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
मोहन राकेश का जन्म स्थान जंडीवाली गली, अमृतसर ……. में है।
उत्तर-
पंजाब

प्रश्न 2.
मोहन राकेश का बचपन का नाम …………… गुगलानी था।
उत्तर-
मदन मोहन

प्रश्न 3.
मोहन राकेश की माता का नाम ……….. था।
उत्तर-
बच्चन कौर

प्रश्न 4.
करमचंद गुगलानी जी का साहित्यिक सांस्कृतिक …………… से जुड़ाव था।
उत्तर-
संस्थाओं

प्रश्न 5.
मोहन राकेश ने एम. ए. (संस्कृत) ………….. से किया था।
उत्तर-
लाहौर

प्रश्न 6.
मोहन राकेश का जन्म …………… को हुआ था।
उत्तर-
8 जनवरी, 1925 ई.

प्रश्न 7.
मोहन राकेश के अंधेरे बंद कमरे (1961 ई.), न आने वाला कल (1970 ई.), अंतराल (1972 ई.) आदि सभी …….. हैं।
उत्तर-
उपन्यास

सिपाही की माँ अति लघु उत्तरीय प्रश्न।

प्रश्न 1.
मानक की माँ का क्या नाम है?
उत्तर-
विशनी।

प्रश्न 2.
‘सिपाही की माँ’ एकांकी के एकांकीकार हैं :
उत्तर-
मोहन राकेश।

प्रश्न 3.
मोहन राकेश की एकांकी का शीर्षक है :
उत्तर-
सिपाही की माँ।

प्रश्न 4.
‘अषाढ़ का एक दिन’ किसकी रचना है?
उत्तर-
मोहन राकेश की।

प्रश्न 5.
विशनी मानक को लड़ाई में क्यों भेजती है?
उत्तर-
पैसा कमाने के उद्देश्य से।

प्रश्न 6.
मानक किस युद्ध में सिपाही बनकर लड़ने गया था?
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध में।।

प्रश्न 7.
मोहन राकेश ने हिन्दी में एम. ए. कहाँ से किया?
उत्तर-
ओरियंटल कॉलेज, जालंधर से

प्रश्न 8.
मोहन राकेश किस पत्रिका के सम्पादक रहे?
उत्तर-
सारिका।

सिपाही की माँ पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बिशनी और मुन्नी को किसकी प्रतीक्षा है, वे डाकिए की राह क्यों देखती है?
उत्तर-
बिशनी और मुन्नी को अपने घर के इकलौते बेटे मानक की प्रतीक्षा है। वे उसकी चिट्ठी आने के इंतजार में डाकिए की राह देखती है।

प्रश्न 2.
बिशनी मानक को लड़ाई में क्यों भेजती है?
उत्तर-
बिशनी के घर की हालत बहुत खराब है। उसे अपनी बेटी का ब्याह भी करना है। इसलिए वह मानक को लड़ाई में भेजती है।

प्रश्न 3.
सप्रसंग व्याख्या करें
(क) यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है।
(ख) वर-घर देखकर ही क्या करना है, कुंती? मानक आए तो कुछ हो भी। तुझे पता ही है, आजकल लोगों के हाथ कितने बढ़े हुए हैं।
(ग) नहीं, फौजी वहाँ लड़ने के लिए हैं, वे नहीं भाग सकते। जो फौज छोड़कर भागता है, उसे गोली मार दी जाती है।
उत्तर-
(क) प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हिन्दी साहित्य के प्रमुख कथाकर एवं नाटककार मोहन राकेश द्वारा रचित उनके एकांकी ‘सिपाही की माँ’ से अवतरित है। यहाँ एक माँ अपने बेटे को गलत कार्य करने से रोक रही है।

व्याख्या-
मानक को मारने के लिए उसके पीछे एक सिपाही आता है। वह मानक को हर हाल में मारना चाहता है। लेकिन तभी मानक खड़ा हो जाता है और उसी को मारने लगता है। यह देखकर उसकी माँ उसे रोकती हुई कहती है कि तू इसे नहीं मारेगा ! यह भी हमारी तरह गरीब है। अर्थात् युद्ध में जो सिपाही लड़ते और मरते हैं। उनका युद्ध से कोई लेना-देना नहीं होता है। वे तो अपनी छोटी-छोटी मजबूरियों के कारण युद्ध में शामिल होते हैं जिसके बदले में उन्हें अपनी जान तक गंवानी पड़ती है।

(ख) प्रसंग-पूर्ववत्।
बिशनी से मिलने उसकी पड़ोसन कुन्ती आती है और वह मुन्नी के लिए रिश्ता ढूँढने की बात कहती है। तब बिशनी उसे अपनी मजबूरी बताती है।

व्याख्या-
बिशनी कुंती से कहती है कि वर देखकर कोई लाभ नहीं है क्योंकि हमारे पास रुपए तो है नहीं जो विवाह किया जा सके। इसलिए जब मानक आएगा तभी कुछ हो सकता है। वैसे भी आजकल शादी-ब्याह में बहुत अधिक खर्चे होते हैं। अर्थात् बिशनी स्पष्ट कहती है कि उसके पास रुपए-पैसे बिल्कुल भी नहीं हैं इसलिए जब उसका बेटा आएगा तभी शादी के बारे में कुछ सोचा जा सकता है।

(ग) प्रसंग-पूर्ववत्।
यहाँ बर्मा से आई लड़कियाँ फौज के नियमों के बारे में बता रही हैं।

व्याख्या-
जब मुन्नी बर्मा से आई लड़कियों से पूछती है कि फौजी युद्ध से भागकर नहीं आ सकते तब उनमें से एक लड़की कहती है कि फौजी वहाँ लड़ने के लिए गए हैं। वे वहाँ से भाग नहीं सकते हैं। अगर कोई भागने की कोशिश भी करता है तो उसे गोली मार दी जाती है।

प्रश्न 4.
‘भैया मेरे लिए जो कड़े लाएँगे, वे तारों और बंतो के कड़ों से भी अच्छे होंगे न’ मुन्नी के इस कथन को ध्यान में रखते हुए उसका परिचय आप अपने शब्दों में दीजिए।
उत्तर-
मुन्नी ‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी को एक प्रमुख पात्र है। मुन्नी सिपाही मानक की बहन और बिशनी की पुत्री है। उसकी उम्र इस लायक हो गई है कि शादी की जा सके। वह एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से संबंध रखती है। उसके सारे सपने उसके भाई सिपाही मानक के साथ जुड़े हुए हैं। वह गाँव की लड़कियों को कड़े पहने देखकर अपने माँ से कहती माँ भैया मेरे लिए जो कड़े लायेंगे वे तारों और बंतों के कड़ों से भी अच्छे होंगे ना। मुन्नी अपने भाई से बेइंतहा प्रेम करती है। अपने भाई के लड़ाई में जाने के बाद मानक की चिट्ठी का इंतजार बड़ी बेसब्री से करती है। वह स्वभाव से भोली, निश्छल एवं साहसी है। क्योंकि उसके सारे सपने अरमान उसके भाई मानक के साथ जुड़े हुए हैं और वही पूरा करने वाला भी है।

प्रश्न 5.
बिशनी मानक की माँ है, पर उसमें किसी भी सिपाही की माँ को ढूँढ़ा जा सकता है। कैसे?
उत्तर-
बिशनी मोहन राकेश द्वारा लिखित ‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी की प्रमुख पात्र है। एकांकी के दूसरे भाग में बिशनी स्वप्न में जो घटना घटती है उसमें जो संवाद होता है उस संवाद से उसमें किसी भी सिपाही की माँ को ढूँढ़ा जा सकता है। जब सिपाही मानक को खदेड़ते हुए विशनी के पास ले जाता है तो मानक की गले से लिपट जाता है और सिपाही के पूछने पर कि इसकी तू क्या लगती है विशनी का जवाब आता है-मैं इसकी माँ हूँ। मैं तुझे इसे मारने नहीं दूँगी। तब सिपाही का जवाब आता है यह हजारों का दुश्मन है वे उसको खोज रहे हैं तब बिशनी कहती है-तू भी तो आदमी है तेरा भी घर-वार होगा।

तेरी भी माँ होगी। तू माँ के दिल को नहीं समझता। मैं अपने बच्चे को अच्छी तरह से जानती हूँ। साथ ही जब मानक पलटकर सिपाही पर बन्दूक तान देता है तब बिशनी मानक को यह कहती है कि बेटा। तू इसे नहीं मारेगा। तुझे तेरी माँ की सौगन्ध तू इसे नहीं मारेगा इन संवादों से पता चलता है कि बिशनी मानक को जितना बचाना चाहती है उतना ही उस सिपाही को भी जो उसके बेटे को मारने के लिए खदेड़ रहा था। उसका दिल दोनों के लिए एक है। अत: उसमें किसी भी सिपाही की माँ को ढूँढ़ा जा सकता है।

प्रश्न 6.
एकांकी और नाटक में क्या अन्तर है? संक्षेप में बताएँ।
उत्तर-
एकांकी और नाटक में निम्नलिखित अंतर है

  1. एकांकी में एक ही अंक होते हैं और उस एक अंक में एक से अधिक दृश्य होते हैं जबकि नाटक में एक से अधिक अंक या एक्ट होते हैं और प्रत्येक अंक कई दृश्यों में विभाजित होकर . प्रस्तुत होता है।
  2. एकांकी नाटक में एकल कथा होती है अर्थात् वहाँ केवल आधिकारिक कथा प्रासंगिक नहीं। साथ ही नाटक में आधिकारिक कथा आकार की दृष्टि से छोटी होती है तथा कोई एक लक्ष्य लेकर चलती है।
  3. एकांकी और नाटक में क्रिया व्यापार की सत्ता प्रधान होती है। इसे संघर्ष या द्वन्द्व कहा. जाता है। यही कथा और पात्र को लक्ष्य तक पहुँचाता है। एकांकी में यह क्रिया व्यापार सीधी रेखा में चलता है लेकिन नाटक में प्रायः टेढ़ी-सीधी रेखा चलती है। नाटक में इतर प्रसंगों के लिये अवसर होता है लेकिन एकांकी में भटकने की गुंजाइश नहीं होती है।
  4. एकांकी में यथासाध्य जरूरी स्थितियों को ही कहने की चेष्टा की जाती है जबकि नाटक में देशकाल और वातावरण को थोड़े विस्तार से चित्रित करने का अवसर होता है।
  5. भारतीय दृष्टि से नाटक में कथा को नियोजित संघटित करने के लिए अर्थ, प्रकृति, कार्यावस्था और नाट्य सन्धि का विधान किया गया है लेकिन एकांकी में इनकी आवश्यकता नहीं पड़ती है।

प्रश्न 7.
आपके विचार में इस एकांकी का सबसे सशक्त पात्र कौन है और क्यों?
उत्तर-
मेरे विचार से ‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी का सबसे सशक्त पात्र बिशनी है। सम्पूर्ण एकांकी में बिशनी धूरी का कार्य करती है जिसके चारों तरफ एकांकी के सभी पात्र घूमते हुए नजर आते हैं। उसे सम्पूर्ण एकांकी का केन्द्र बिन्दुः भी कहा जा सकता है।

बिशनी एक माँ है। माँ के सारे गुण एवं लक्षण उसमें वर्तमान हैं। इकलौते सिपाही बेटे को वह फौज में भेजने में जरा भी संकोच नहीं करती है। साथ ही पुत्र के प्रति ममता सहन ही परिलक्षित होती है मानक के पत्र की प्रतीक्षा पर भी वह पुत्र की कुशलता के प्रति चिन्तित है।

बिशनी एक अविवाहित पुत्री की माँ है। पुत्री के विवाह की चिन्ता ही उसके सारे दुखों का कारण है। यह सहज और स्वाभाविक है। वह एक भारतीय एवं ग्रामीण नारी की प्रतिमूर्ति है। भला एक भारतीय नारी को अपनी जवान पुत्री की चिन्ता क्यों न हो। पुत्री को अपना भार नहीं समझती। बार-बार प्रत्येक अवसर पर वह उसके माथे को चूम लेती है। वह उसे एक वरदान के रूप में मानती है।

बिशनी माँओं में माँ है। वह एक सामान्य माँ नहीं है। अपने पुत्र की चिन्ता उसे है। साथ ही दूसरे के पुत्र का भी उतना ही ख्याल रखती है। वह हर हाल में दुश्मन सिपाही की अपने पुत्र से रक्षा करने का सशक्त प्रयास करती है। किसी भी हाल में वह मानक को उसे मारने नहीं देती। धक्के खाकर भी वह बार-बार और जोरदार विरोध करती है। बिशनी में एक सहज ग्रामीण नारी के गुण भी कभी-कभी दिखाई पड़ते हैं। गाँव के चौधरी के प्रति उसका विचार सामान्य नारी के समान है। वह चौधरी की किसी बात पर भरोसा नहीं करती लेकिन उसमें कोई कपट दिखाई नहीं पड़ता वह निष्कपट है। वह एक अच्छी माँ, अच्छी पड़ोसन और अच्छी अभिभावक है। एक अच्छी नारी के सभी अच्छे गुण उसमें वर्तमान हैं। अत: बिशनी इस एकांकी की सबसे सशक्त पात्र हैं।

प्रश्न 8.
दोनों लड़कियाँ कौन हैं?।
उत्तर-
‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी में दो लड़कियों के नाम से दो पात्र हैं। एक को पहली लड़की व दूसरी को दूसरी लड़की के रूप में संबोधित किया गया है। दोनों लड़कियाँ बर्मा की रंगून नगर की है। द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जब जापानी व हिन्दुस्तानी सेना बर्मा में युद्ध कर रही थी तब वहाँ भयंकर रक्तपात हुआ था। लाखों बर्मा निवासी घर-द्वार छोड़कर भारत की सीमा में घुस आये थे। उन्हीं में से दो लड़कियों ने अपने परिवार के ग्यारह सदस्यों के साथ दुर्गम एवं बीहड़ जंगलों एवं दलदलों को पार करते हुए भारत में प्रवेश किया था। उन्हीं दोनों लड़कियों की भेंट इस एकांकी की मुख्य पात्र बिशनी से हो जाती है एवं खाने के लिए अन्न की माँग करती है। बिशनी इन्हें भर कटोरा चावल देती है।

प्रश्न 9.
कुन्ती का परिचय आप किस तरह देंगे?
उत्तर-
कुन्ती “सिपाही की माँ” शीर्षक एकांकी में एक प्रमुख पात्र है। यह एक अच्छी पड़ोसन के रूप में रंगमंच पर प्रस्तुत हुई है। यद्यपि कुन्ती की भूमिका थोड़े समय के लिये है। तब भी उसे थोड़े में आँका नहीं जा सकता। वह बिशनी की पुत्री मुन्नी के विवाह के लिये चिन्नित है। वह स्वयं मुन्नी के लिये वर-घर खोजने को भी तैयार है। वह बिशनी को सांत्वना भी देती है। बिशनी के पुत्र मानक के बर्मा की सकुशल लौटने की बात भी वह करती है। बिशनी के प्रति उसकी सहानुभूति उसके शब्दों में स्पष्ट दिखाई पड़ती है। वह कहती है तू इस तरह दिल क्यों हल्का कर रही है। कुन्ती बर्मा के लड़कियों के प्रति थोड़ा कठोर दिखाई देती है। उनके हाव-भाव एवं पहनावे तथा भिक्षाटन पर थोड़ा क्रुद्ध भी हो जाती है। उनका इस तरह से भिक्षा माँगना कतई अच्छा नहीं लगता है। यह कहती भी है-‘हाय रे राम ! ये लड़कियाँ कि….!.

प्रश्न 10.
मानक और सिपाही एक दूसरे को क्यों मारना चाहते हैं?
उत्तर-
मानक वर्मा की लड़ाई में भारत की ओर से अंग्रेजों के साथ लड़ने गया था। और दूसरी ओर के पक्ष जापानी थे। सेना एक दूसरे का दुश्मन है। क्योंकि वे अपने-अपने देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। मानक और सिपाही अपने को एक दूसरे का दुश्मन समझते हैं इसलिए वे एक-दूसरे को मारना चाहते हैं।

प्रश्न 11.
मानक स्वयं को वहशी और जानवर से भी बढ़कर क्यों कहता है?
उत्तर-
‘सिपाही की माँ” शीर्षक एकांकी में मानक एक फौजी है। वह बर्मा में हिन्दुस्तानी फौज की ओर से जापानी सेना से युद्ध कर रहा है। मानक और दुश्मन सिपाही एक-दूसरे को घायल करते हैं। मानक भागता हुआ अपनी माँ के पास आता है। दुश्मन सिपाही उसका पीछा करते हुए वहाँ पहुँच जाता है। मानक की माँ मानक को बचाना चाहती है। इस पर दुश्मन सिपाही मानक को वहशी और जानवर कहकर पुकारते हैं। मानक का पौरुष जग उठता है तो घायल अवस्था में भी वह खड़ा होकर सिपाही को मारने का प्रयास करता है और क्रोध की स्थिति में वह स्वयं को वहशी और जानवर से भी बढ़कर कहता है। मानक का ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं है। समय और परिस्थिति के अनुसार उसका कहना यथार्थ है? दर्शकों की नजर में मानक की उक्ति प्रभावकारी एवं आकर्षक है।

प्रश्न 12.
मुन्नी के विवाह की चिन्ता न होती तो मानक लड़ाई पर न जाता, वह चिन्ता भी किसी लड़ाई से कम नहीं है? क्या आप इस कथन से सहमत हैं? अपना पक्ष दें
उत्तर-
हम इस कथन से पूर्णतः सहमत हैं कि चिन्ता भी किसी लड़ाई से कम नहीं है। उसके भीतर एक लड़ाई चलती रहती है अर्थात् वह मानसिक रूप से बेचैन रहता है। जिस प्रकार युद्ध में घात-प्रतिघात का दौर चलता है उसी प्रकार उसके मन में भी ऐसी ही स्थिति बनी रहती है। बिशनी और मानक को मुन्नी के विवाह की चिन्ता है, इसीलिए मानक लड़ाई पर गया है। यह चिन्ता भी किसी लड़ाई के समान ही है क्योंकि इस कारण उन्हें बहुत से प्रयास करने पड़ते हैं। युद्ध के समान ही जब तक यह चिन्ता समाप्त नहीं हो जाती तब तक इससे पीड़ित लोग परेशान ही रहते हैं।

प्रश्न 13.
सिपाही के घर की स्थिति मानक के घर से भिन्न नहीं है, कैसे। स्पष्ट करें।
उत्तर-
“सिपाही की माँ” शीर्षक एकांकी में सिपाही एवं मानक दो ऐसे पात्र हैं जिनके घर की स्थिति एक-दूसरे से भिन्न नहीं है। मानक के घर में माँ और कुँआरी बहन मुन्नी है। मानक की माँ मानक का समाचार पाने की चिन्ता में सदा परेशान रहती है। मानक की माँ एक साधारण निम्न मध्यवर्गीय महिला है। मानक की बहन मुन्नी अपने भाई के आने की प्रतीक्षा बेसब्री से करती है। घर में गरीबी है। मुन्नी का विवाह मानक की आय पर ही निर्भर है। घर की स्थिति ऐसी है कि अगर युद्ध में मानक को कुछ हो गया तो उसकी माँ एवं छोटी बहन मुन्नी का इस धरती पर रहने का कोई अर्थ नहीं। घर का सारा दारोमदार मानक पर निर्भर है। वर्मा में युद्ध चल रहा है, यह जानकर मानक की माँ की स्थिति बहुत ही बुरी हो जाती है। सपने में वह बहुत बुरी घटना को देखती है।

दूसरे सिपाही के घर की स्थिति भी मानक के घर की स्थिति में समान है। सिपाही की माँ बर्मा में युद्ध का समाचार सुनकर पागल हो गई है। पत्नी सिपाही के मरने पर फाँसी लगाकर जान देने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। उसके पेट में छ: माह का बच्चा भी है। दोनों घरों की समान स्थिति का संकेत मानक की माँ स्वयं उस समय देती है जब मानक सिपाही को जान से मारने पर आमादा है। मानक की माँ कहती है-“यह भी हमारी तरह गरीब आदमी है।”

प्रश्न 14.
पठित एकांकी में दिए गए रंग-निर्देशों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठित एकांकी में दिए गए रंग-निर्देशों में निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ हैं

  • रंगमंचयिता-एकांकी में दिए गए अधिकांश रंग-निर्देश रंगमंच पर इसकी प्रस्तुति की दृष्टि में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
  • अभिनव में सहायक-ये रंग-निर्देश अभिनय में भी सहायक है। कई स्थानों पर तो अभिनय की स्थितियों का भी वर्णन है।
  • सरल तथा सहज-अधिकांश रंग-निर्देश सरल तथा सहज है जिन्हें आसानी से अपनाया जा सकता है।
  • चित्रात्मकता-ये रंग-निर्देश चित्रात्मकता से पूर्ण है। इन्हें पढ़ते समय समस्त दृश्य आँखों के समक्ष आ जाते हैं।
  • कथ्य विस्तार में सहायक-कई स्थानों पर रंग-निर्देशों के सहारे कथ्य को आगे बताया गया है।
  • पात्रों का चरित्र-चित्रण-कुछ रंग-निर्देश ऐसे भी हैं जिनके द्वारा लेखक ने पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को उजागर किया है।।

प्रश्न 15.
“सिपाही की माँ’ की संवाद योजना की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
‘सिपाही की माँ’ एकांकी की संवाद योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • सरल तथा सहज-एकांकी की संवाद योजना अत्यन्त सरल तथा सहज हैं जिन्हें पाठक या श्रोता सहजता से समझ लेता है।
  • संक्षिप्तता-संक्षिप्तता इस एकांकी की संवाद योजना की प्रमुख विशेषता अधिकांश संवाद कुछ शब्दों या एक-दो वाक्यों के हैं।
  • भावपूर्ण-एकांकी के अधिकांश संवाद भावपूर्ण है।
  • कथानक को आगे बढ़ाने में सहायक-एकांकी के अधिकतर संवाद कथानक को निश्चित प्रवाह के साथ आगे बढ़ाने में सहायक हैं।
  • रोचकता-एकांकी में प्रयुक्त संवाद रोचकता से भरपूर हैं जिससे कथानक में बोझिल या दुरुहता नहीं आई है।
  • पात्रानुकूल-संवाद पूर्णतः पात्रानुकूल है जिससे पात्रों की मनःस्थिति तथा चरित्र के समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है। कुछ संवाद तो पात्रों की क्रियाओं को भी व्यक्त करते हैं।

सिपाही की माँ भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध लिखें झाग, पिलसन, शायत, ब्रम्मा, चरित्तर, विदवान, समुंदर, मुलक, फिकर
उत्तर-
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 8 सिपाही की माँ 1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यों में संज्ञा, सर्वनाम एवं विशेषण पद चुनें
(क) मानक कहता था कि जहाज इत्ता बड़ा होता है कि हमारे जैसे चार गाँव एक जहाज में आ जाएँ।
(ख) वे सारा शहर ढूँढ़ आए हैं, पर कहीं दस गज मलमल नहीं मिलती।
(ग) हमने रास्ते में सैकड़ों सिपाहियों की गली-सड़ी लाशें देखी थीं।
(घ) यह तो मरता हुआ कबूतर भी आँखों से नहीं देख सकता।
(ङ) जब तक मैं सामने हूँ इसकी आँखों का रंग नहीं बदलेगा।
उत्तर-
Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 8 सिपाही की माँ 2

प्रश्न 3.
“मैया आप छुट्टी लेकर आ रहे हो’ यहाँ ‘आप’ कौन-सा सर्वनाम है?
उत्तर-
यहाँ ‘आप’ अन्य पुरुष सर्वनाम है।

प्रश्न 4.
‘दिल हलका करना’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘दिल हलका करना’ का अर्थ है-सांत्वना देना या तसल्ली देना।

प्रश्न 5.
अर्थ की दृष्टि से निम्नलिखित वाक्यों की प्रकृति बताएँ
(क) क्या पता है ये ब्रम्मा से आई है या कहाँ से आई है?
(ख) दिनों का कोई हिसाब नहीं है, माँजी।
(ग) उसके कड़ों के मोती तारों की तरह चमकते हैं।
(घ) तू ऐसा क्यों हो रहा है, बेटे?
उत्तर-
(क) प्रश्नवाचक वाक्य
(ख) संदेहवाचक वाक्य
(ग) विधानवाचक वाक्य
(घ) प्रश्नवाचक वाक्य

प्रश्न 6.
रेखांकित अंश किस पदबंध के उदाहरण हैं?
(क) यह दिल का बहत भोला है।
(ख) यह तो मरता हुआ कबूतर भी नहीं देख सकता।
(ग) क्यों री, डाक वाली गाड़ी ही थी?
(घ) हमारे घर की हालत बहुत खराब है।
(ङ) तू इसकी आँखों का रंग नहीं पहचानती।
उत्तर-
(क) विशेष्य पदबंध
(ख) संज्ञा पदबंध
(ग) संज्ञा पदबंध
(घ) सर्वनाम पदबंध
(ङ) संज्ञा पदबंध।

सिपाही की माँ लेखक परिचय मोहन राकेश (1925-1972)

जीवन-परिचय-
बीसवीं सदी के उत्तरवर्ती युग के प्रमुख कथाकार एवं नाटककार मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, सन् 1925 को जड़वाली गली, अमृतसर, पंजाब में हुआ। इनका बचपन का नाम मदन मोहन गुगलानी था। इनकी माता का नाम बच्चन कौर एंव पिता का नाम करमचन्द गुगलानी था। इनके पिता पेशे से वकील थे लेकिन साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हुए थे। राकेश जी ने लाहौर से संस्कृत में एम.ए. किया और फिर ओरिएंटल कॉलेज, जालंधर से हिन्दी में एम.ए. किया। इसके बाद इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया और ‘सारिका’ के कार्यालय में भी नौकरी की। सन् 1947 के आसपास इन्हें एलफिस्टन कॉलेज, मुम्बई में हिन्दी के अतिरिक्त भाषा प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। ये कुछ समय तक डी. ए.वी कॉलेज, जालंधर में प्रवक्ता भी रहे। सन् 1960 में इन्हें पुनः दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में नियुक्त किया गया। वहीं सन् 1962 में ये ‘सारिका’ के संपादक बन गए। इसके बाद इन्होंने स्वतन्त्र लेखन करना शुरू किया और इसी दौरान 3 दिसम्बर, सन् 1972 के दिन इनका निधन हो गया।

रचनाएँ-मोहन राकेश की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

कहानी संग्रह-इंसान के खंडहर (1950), नए बादल (1957), जानवर और जानवर (1958), एक और जिन्दगी (1961), फौलाद का आकाश (1972), वारिस (1972)।

उपन्यास-अँधेरे बंद कमरे (1961), न आनेवाला कल (1970), अंतराल (1972)। नाटक-आषाढ़ का एक दिन (1958), लहरों के राजहंस (1963), आधे-अधूरे (1969)।

साहित्यिक विशेषताएँ-मोहन राकेश ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे। ये बीसवीं सदी के उत्तरवर्ती युग के प्रमुख कथाकार एवं नाटककार थे। इन्होंने कई श्रेष्ठ कहानियाँ तथा उपन्यास लिखे। नाटक के क्षेत्र में तो ये विशिष्ट प्रतिभा माने जाते हैं। हिन्दी के आधुनिक रंगमंच को नई दिशा देने में इनका प्रमुख योगदान था। इसलिए ये आधुनिक हिन्दी नाटक और रंगमंच की युगांतकारी प्रतिभा के रूप में सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध हो चुके हैं। इनके नाटकों की परिकल्पना अत्यन्त ठोस, जटिल तथा नवीन है। इनसे प्रेरणा प्राप्त करके अनेक साहित्यकारों ने साहित्य सृजन किया।

भाषा-शिल्प की विशेषताएँ-मोहन राकेश का अद्भुत भाषा शिल्प उनके साहित्य को प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में सरलता तथा सहजता के साथ-साथ भावानुकूलता, . प्रसंगानुकूलता, प्रवाहमयता तथा चित्रात्मकता जैसे गुण भी विद्यमान है।

सिपाही की माँ पाठ के सारांश।

‘सिपाही की माँ’ शीर्षक एकांकी मोहन राकेश द्वारा लिखित “अंडे के छिलके तथा अन्य एकांकी” से ली गई है।

चिट्ठी का इंतजार-गाँव का एक साधारण घर है जिसमें बिशनी नाम की महिला अपनी चौदह वर्ष की लड़की मुन्नी के साथ रहती है। उनके घर का इकलौता बेटा लड़ाई के लिए बर्मा गया हुआ है और वह दिन-रात उसकी चिट्ठी का इंतजार करती रहती है। गाँव में डाक की गाड़ी आती है तो मुन्नी अपनी चिट्ठी लेने जाती है पर चिट्ठी नहीं आती है जिससे वो कुछ उदास हो जाती है। उसकी माँ भी चिट्ठी न आने से बहुत दुखी है। लेकिन वह माँ को बार-बार यही समझाती है कि जल्दी ही चिट्ठी आएगी। फिर वे दोनों बर्मा की दूरी को लेकर बातचीत करती है। इसी बीच मुन्नी यह कह देती है कि कहीं चिट्ठी लाने वाला जहाज डूब गया हो जिस कारण उसकी माँ उसे डाँटती है।

मुन्नी की शादी की चर्चा-तभी वहाँ पड़ोस में रहने वाली कुंती आ जाती है। पहले वह वर्मा की लड़ाई के विषय में बातचीत करती है और फिर मुन्नी की शादी के बारे में पूछती है। साथ ही वह मुन्नी की शादी जल्द-से-जल्द करने को कहती है। फिर वह कहती है कि तुम्हारा लड़का जो युद्ध में गया है वह पता नहीं कब तक आएगा, क्योंकि लड़ाई का कोई पता नहीं है कि वह कब तक चलती रहे।

बर्मा से दो लड़कियों का आगमन-उसी समय वहाँ दीनू कुम्हार आता है और बताता है कि दो जवान लड़कियाँ अजीब से कपड़े पहने घर-घर जाकर आटा-दाल माँग रही है। यह बताकर दीनू वहाँ से चला जाता है। इतने में वे लड़कियाँ वहाँ आ जाती है और दाल-चावल माँगती है। जब विशनी और कुंती उनके बारे में पूछती है तो वे बताती है कि मैं बर्मा से आई हुँ। वहाँ भीषण लड़ाई चल रही है जिस कारण हमारा घर-बार छिन गया है, मैं बड़ी ही मुश्किल से जंगल के रास्ते अपनी जान बचाकर आई हुँ।

जब मुन्नी उनसे.फौजियों के बारे में पूछती है तो वे बताती है कि जो फौज छोड़कर भागता हैं, उसे गोली मार दी जाती है। फिर वे बर्मा की नाटकीय स्थिति का वर्णन करती है जिसे सुनकर बिशनी काँप उठती है। उसे अपने बेटे की चिन्ता सताने लगती है तथा कुंती और मुन्नी उसे ढाँढ़स बंधाती है। मुन्नी कहती है कि मेरा दिल कहता है कि भैया आप ही आएँगे। जिसे सुनकर बिशनी कुछ हिम्मत जुटाकर बोलती है तेरा दिल ठीक कहता है बेटी ! चिट्ठी न आई तो वह आप ही आएगा।

माँ-बेटी की बातचीत-रात के समय माँ-बेटी आपस में बातचीत करती है। मुन्नी अपर्न माँ से कहती है कि मेरी कुछ सहेलियों के कड़े बहुत ही सुन्दर हैं जिन्हें वह सारे गाँव में दिखाती हैं। तब बिशनी उसे प्यार भरे स्वर में कहती है कि तेरा भाई तेरे लिए उनसे भी अच्छे कड़े लाएगा।

स्वप्न की स्थिति : इसके बाद दोनों सो जाती हैं। स्वप्न में बिशनी को मानक (उसका बेटा) दिखाई देता है। वह उससे बातचीत करती है। वह बुरी तरह घायल है और बताता है कि दुश्मन उसके पीछे लगा है। बिशनी उसे लेटने को कहती है पर वह पानी माँगता है। तभी वहाँ एक सिपाही आता है और वह उसे मरा हुआ बताता है। यह सुनकर बिशनी सहम जाती है लेकिन तभी मानक कहता है कि मैं मरा नहीं हूँ। वह सिपाही मानक को मारने की बात कहता है। लेकिन बिशनी कहती है कि मैं इसकी माँ हूँ और इसे मारने नहीं दूंगी। सिपाही मानक को वहशी तथा खूनी बताता है।

लेकिन बिशनी उसकी बात को नकार देती है। वह कहती है कि यह बुरी तरह घायल है और इसकी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है। इसलिए तू इसे मारने का विचार त्याग दे। जवाब में सिपाही कहता है कि अगर मैं इसे नहीं मारूँगा तो यह मुझे मार देगा। बिशनी उसे विश्वास दिलाती है कि यह तुझे नहीं मारेगा। तभी मानक उठ खड़ा होता है और उस सिपाही को मारने की बात कहता है। बिशनी उसे समझाती है लेकिन वह नहीं मानता है और उसकी बोटी-बोटी करने की बात कहता है।

स्वज भंग-यह सुनकर बिशनी चिल्लाकर उठ बैठती है। वह जोर-जोर से मानक ! मोनक ! कहती है। उसकी आवाज सुनकर मुन्नी वहाँ आती है। माँ की स्थिति देखकर वह कहती है कि तुम रोज भैया के सपने देखती हो, जबकि मैंने तुमसे कहा था कि भैया जल्दी आ जाएँगे। फिर वह अपनी माँ के गले लग जाती है। बिशनी उसका माथा चूमकर उसे सोने को कहती है और मन-ही-मन कुछ गुनगुनाने लगती है।

Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 2 Bharat is My Home

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Bihar Board Class 12 English Bharat is My Home Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 12 English Book Objective Type Questions and Answers

1. Name the author of the prose piece “Bharat is my Home” [Sample Paper 2009 (A)]
(a) Bertrand Russell
(b) Dr Zakir Hussain
(c) Shiga Naoya
Answer:
(a) Bertrand Russell

2. “Bharat is my Home” is the description [Sample Paper 2009 (A)]
(a) about the religion of India
(b) about the distress of the country
(c) about his pledge to the service of the totality of India’s culture
Answer:
(c) about his pledge to the service of the totality of India’s culture

3. Dr.Zakir Hussain took the oath as [Sample Paper 2009 (A)]
(a) Prime minister
(b) Chief of the army staff
(c) President of India
Answer:
(c) President of India

4. Name the author of the following prose piece [Sample Paper 2009 (A)]
(a) Bharat is My Home
(b) A Pinch of Snuff
(c) The Earth
Answer:
(a) Bharat is My Home

Bihar Board Class 12 English Very Short Type Questions and Answer

Bharat Is My Home Question Answer Bihar Board Class 12 Question 1.
On what occasion Dr.Zakir Hussain expressed his view through his address, “India is my Home”? [Sample Paper 2009 (A)]
Answer:
Dr Zakir Hussain expressed this view after taking oath as President of India.

Bharat Is My Home Questions And Answers Bihar Board Class 12 Question 2.
What does he expres in his speech he delivered after taking the oath of the president of India? [Sample Paper 2009 (A)]
Answer:
He pledges himself to the loyalty of our past culture.

Bharat Is My Home All Question Answer Bihar Board Class 12 Question 3.
What is the idea of Dr.Zakir Hussain about education? [Sample Paper 2009 (A)]
Answer:
In Dr Hussain’s opinion about education is that it is a prime instrument of National Purpose.

Bharat Is My Home Full Chapter Bihar Board Class 12 Question 4.
What did Dr.Radhakrishnan bring to the Presidency?
Answer:
Dr.Radhakrishnan brought to the presidency mental equipment, a degree of learning and wealth of experience rarely to be found anywhere.

Bharat Is My Home Ka Question Answer Bihar Board Class 12 Question 5.
What oath did Dr.Zakir Husain take of?
Answer:
Dr.Zakir Husain took the oath as President.

Bharat Is My Home Objective Question Answer Question 6.
What is the business of education?
Answer:
The business of education should be the growth of national culture and national character.

Bharat Is My Home Pdf Bihar Board Class 12 Question 7.
What did Dr.Zakir Husain pledge himself to?
Answer:
Dr.Zakir Husain pledged himself to the loyalty of our past culture. He pledged himself to the service of totality to our country’s culture. He pledged his loyalty to his country irrespective of religion or language. The whole Bharat is his home. So, he pledged to work for the welfare of the people of the country.

Bharat Is My Home Objective Bihar Board Class 12 Question 8.
What does ‘Work one’s self mean? What is its end product?
Answer:
‘Work on one’s self means work for the individual. The work on self is to follow the urge towards moral development as a free person and under self- imposed discipline. Its end-product is a free moral personality. We should not ignore our end-product.

Bharat Is My Home Question And Answer Bihar Board Class 12 Question 9.
What shall we dedicate ourselves to?
Answer:
We shall dedicate ourselves to work for the peace of the strong nation. According to Mahatma Gandhi power should be used only for moral purposes.

Bharat Is My Home Objective Questions Pdf Bihar Board Class 12 Question 10.
When was Dr.Zakir Husain born?
Answer:
Dr. Zakir Husain was bom in 1897.

Bharat Is My Home Summary In Hindi Bihar Board Class 12 Question 11.
How long did Dr.Zakir Husain live?
Answer:
Dr.Zakir Husain lived for 72 years. He was born in 1897 and died in

Bharat Is My Home Ka Hindi Bihar Board Class 12 Question 12.
On what occasion did Dr.Zakir Husain deliver this speech?
Answer:
Dr.Zakir Husain delivered this speech in 1967 after taking the oath as president of India.

Question 13.
Why does Dr.Zakir Husaine call India “the young State of an ancient people”?
Answer:
Dr.Zakir Husain called India “The Young State of an ancient people”. It is so because our past is not dead and static. If is alive and dynamic. Our ancient culture is alive and we can make our future on the basis of our ancient people’s blessings.

Bihar Board Class 12 English Book Textual Questions and Answers

Write ‘True’ or ‘False’
Question 1.
Read the following sentences and write ‘T’ for True and ‘F’ for
(i) Dr.Radha Krishnan did not bring to the Presidency a mental equipment and degree of erudition.
(ii) According to Zakir Hussain, Dr.Radhakrishnan never Lost his faith in the essential humanity of man.
(iii) Dr.Zakir Hussain was of the opinion that the process of constant renewal of our past is, indeed the process of growth of national culture and national character.
(iv) Dr.Zakir Hussain did not pledge himself to the Loyalty of our past culture.
(v) Dr.Zakir Hussain stressed upon the need to follow the urge towards moral development as a free person.
Answer:
(i) False (ii) True (iii) True (iv) False (v) True.

Question 2.
Read the following sentences and write ‘T’ for True and ‘F* for false statements
(i) I have just taken the oath of nationality to the constitution of India.
(ii) Dr.Zakir Husain was a great nationalist.
(iii) The individual can grow in full perfection without a corresponding advance of the collective social existence.
(iv) The past is dead and static.
(v) We can neglect the end-product only at our peril.
(vi) This dual effort wall gives to the life of our state a special flavour.
Answer:
(i) False (ii) True (iii) False (iv) False (v) True (vi) True.

A. Work in small groups and discuss the following
Question1.
Charity begins at home.
Answer:
This well-known saying means that the first duty of a person is to care for his own family. This is true enough. If we do not set our own house in order, how can we help and care for others? So one must, first of all, improve oneself and one’s family before one can think of helping others.

Question 2.
The entire world is a family.
Answer:
People in the old times did not think beyond their family or their tribe. But our ancestors preached that the whole world is a family. This means that we should be broadminded and love every human being irrespective of caste, colour, creed or nationality. Today it has far greater relevance than ever before. Today the world is like a village. We all are neighbours. We should live like a family, to encourage peace and love. If we live like a family, there will be no war and no hatred.

Question 3.
Individual and family are interdependent
Answer:
There can be no two opinions that individual and family are interdependent. The family looks after each individual member. The individual can attain full stature with the help of the family. But family consists of an individual. Each individual must care for the family so that family is healthy, united and prosperous. The family is like our body, and its different organs are its members. Each organ contributes to the development of the body, and the body nourishes each organ.

B. 1.1. Complete the following sentences on the basis of the lesson:
(a) Dr.Radhakrishnan never lost his faith in
(b) Dr.Radhakrishnan always championed.
(c) Dr.Zakir Husain entered the office of the President in a spirit of
(d) According to Dr.Zakir Husain, the value remains
(e) according to Dr.Zakir Husain The value remains
Answer:
(a) the essential humanity of man, (b) the right of tall men to live in dignity and with justice, (c) prayerful humanity and dedication, (d) eternally valid, (e) primary instrument of national purpose.

B. 1.2. Answer the following questions briefly 
Question 1.
What did Dr Radhakrishnan bring to Presidency?
Answer:
Dr Radhakrishnan brought to the office of the President a rare degree of learning and wealth of experience. He had a firm belief in the essential humanity of man, the right of all men to live in dignity with justice and oneness of all true spiritual values.

Question 2.
What oath did Dr Zakir Husain take off?
Answer:
Dr Zakir Husain was elected as the President of India. He took the oath of loyalty to the Constitution.

Question 3.
What is the business of education?
Answer:
According to Dr Zakir Husain, the business of education is constantly to renew the process of growth of national culture and national character.

Question 4.
What did Dr Zakir Husain pledge himself to?
Answer:
Dr Zakir Husain committed himself to the service of the totality of India’s culture. He pledged to serve the people and work for their welfare irrespective of religion, language, caste, colour or creed.

Question 5.
What does ‘work on one’s self mean? What is its end-product?
Answer:
Work on oneself means to follow the urge towards moral development as a free person under self-imposed discipline. Its end-product is a free moral personality.

Question 6.
What shall we dedicate ourselves to?
Answer:
We should dedicate ourselves for the improvement of ourselves to serve the society for a better, a juster and a more graceful way of life.

Question 7.
When was Dr. Zakir Husain bom ?
Answer:
Dr Zakir Husain was born in Hyderabad in 1897.

Question 8.
How long Dr. Zakir Husain live?
Answer:
Dr Zakir Husain died in 1969. He lived till he was seventy-two years old.

Question 9.
On what occasion did Dr Zakir Husain deliver this speech?
Answer:
Dr Zakir Husain was elected the third President of India in 1967. He delivered this speech after taking the oath of the office of the President.

Question 10.
Why does Dr Zakir Husain call India “he young state of an ancient people”?
Answer:
India is an ancient civilization. The history of her people goes back to thousands of years. But it is a new state that was born after India own freedom in August 1947 and became a Republic on 26th January 1950.

C. 1. Bihar Board Class 12 English Long Answer Questions

Question 1.
‘This work, as I see it, has two aspects”. What are the two aspects of the works ? Explain in your own words.
Answer:
The two aspects of work are (i) individual works and (ii) social works. According to the author Individual work means work on one’s self. This type of work is to follow the urge towards moral development as a free person and under self-imposed discipline. Its end-product is a free moral personality. On the other hand, social work is work for the society around. The individual can not grow in full perfection without social help. So, we should get ourselves whole-heartedly engaged in two aspects of work.

Question 2.
What did Dr Zakir Husain say about material and cultural life, individual and social development giving Special flavour to India?
Answer:
Dr.Zakir Husain in his speech has said about material and cultural life, individual and social development in India.
Material and cultural life: Regarding the material life of our people, the author says that we should work more and more, our work should be silent, sincere, solid and steady. Regarding our cultural life, the author is sincere. He says that our culture is alive and dynamic. Our past culture is inherited by our ancient sages right from Aadipurush, Mannu to St. Tulsidas. It is still alive and progressing day by day.
Individual and social development: “Regarding individual and social development, Dr Zakir Husain, says that both individual and social development of our country is co-related to each other. For individual development there are two types of work. One work for personal benefit both financial and moral. But for ‘ two type of personal gains one must go to society. The author says that the individuality can not grow in full perfection without social help.

Question 3.
‘Power should be used only for moral purposes’ Explain.
Answer:
Power plays a dominant role in human society, the power of the manpower of society and the power of the state are the main kinds of power. According to Mahatma Gandhi power should be used only for moral purposes. If a strong man is engaged in work, there is peace. Regarding state power the author says that the state to us will not be just an organisation of power but a moral organisation. So, the moral purpose of power is essential for all-round development of the society.

Question 4.
‘The past is not dead and static’. How does Dr.Zakir Husain emphasises the significance of past?
Answer:
According to Dr.Zakir Husain there is a great significance of our past history. To him, we should pledge our loyalty to our past culture. We should not mind from where our past culture came and who brought the culture. The important thing is that our past glory is of great value. Our past glory and culture is the base on which the growth of our national culture and national character depends. So, the author is right to say that our past history is not dead and static. It is still alive and dynamic. Our prospect of future depends on the importance of past.

Question 5.
What does Zakir Husain exhort us to do to build the new life of the nation?
Answer:
The author in his speech has tried his best to advise us to labour hard to build the new life of the nation. To him, our family of the nation is big. We are continuously growing very fast. We shall have to participate in building its new life. He advises the people of India not to sit idle. Our work for the nation is hard, but we should not be discouraged. He says that the situation of the country demands of us work, work and work more, silent and sincere work, solid and steady reconstruction of the whole material and cultural life of our people.

Question 6.
In what context does Dr.Zakir Husain say ‘Bharat is my home’.
Answer:
In his presidential speech Dr.Zakir Husain expresses his national feelings. He loves his nation. He says that he is devoted to the loyalty of our past culture. He also promises to work for the development of our ancient culture. He pledges himself to work for the strength of the nation and its progress and for the welfare of its people without distinctions of caste, colour and creed. He says that “The whole of Bharat is my home and its people are my family”. He is proud of being a citizen of Bharat. He says that it is the greatness of the people that they have chosen him to make him the head of this family. He pledges to make his home ‘Bharat’ strong and beautiful. He would make the life of the people prosperous and graceful. Here, a strong feeling of nationality of the author is clearly expressed. Zakir Husain was a great nationalist.

C. 3. Composition

Write a paragraph in about 100 words on each of the following:
(a) Write a summary of Dr Zakir Husain’s speech in about 150 words.
Answer:
Dr Zakir Husain calls India a young state with ancient civilization and culture to which all the ethnic groups comprising the people of India contributed. He pledges to uphold the timeless values realised by the people through thousands of years. He pledges to serve all the people irrespective of their caste, creed, language and religion. He believes that the process of growth of national culture and national character is constant, and education is a prime instrument of national purpose because the quality of character depends on the quality of education. He says that the task of reconstruction of the material and cultural life of people demands sincere and steady efforts. For this, each person should develop himself into a moral personality through self-discipline, and then serve society to achieve a better, a juster and more graceful society. He endorses Gandhiji’s view that power should be used only for moral purposes.

(b)Write a short essay in about 150 words on ‘Unity in diversity’.
Answer:
‘Unity in diversity’ is a special feature of India. She is an ancient land with a culture and civilization that has evolved over thousands of years. Though a number of ethnic groups live in India, this ancient civilization binds them all together. India is a vast land. It has a number of different geographic and climatic zones. There are the Himalayas with snow-capped hills and mountains. Then there is the dry and sandy desert of Rajasthan. There is hot climate in the south that lies surrounded by the sea. Bengal and Gujarat are so different. Because of climatic and local conditions, the clothes and food habits and lifestyle of people are as varied as possible. Languages are so different. Hindi of north and Kannad and Tamil of the South seem to have no relation. Yet India is firmly tied by the ancient values, civilization and culture. There is unity in diversity.

(c) Write a speech to be delivered on Teachers’ Day justifying the celebration of Dr Radhakrishnan’s birthday as Teacher’s Day.
Answer:
Dr. Radhakrishnan has been the President of India. When he was asked how he would like his birthday to be celebrated, he replied that it could be celebrated a Teacher’s Day, Indeed Dr Radhakrishnan considered himself a foremost teacher. He was a professor of philosophy at Calcutta University and later at Oxford University. He was the first Indian to be appointed as a professor there. He has been the Vice-Chancellor of Andhra University and Banaras Hindu University. He was also the President of UNESCO. Indeed he was one of the greatest teachers India can be rightly proud of. Dr. Zakir Husain also greatly admired him and appreciated his contribution as a teacher. According to him, Dr Radhakrishnan devoted his lifetime to the pursuit of knowledge and truth. He explained Indian philosophical thought to the world. Dear friends, I think we are happy that on this teacher’s day, when we pay our regards to our one teachers, we also remember the great teacher and son of India, Dr. Radhakrishnan.

(d) You have been elected as the President of your school’s Student Council. Make a diary entry about changes you propose to introduce for the betterment of your school.
Answer:

3rd April, 20.

Dear Diary,

Today I am happy. I have been elected President of Students’Council. I plan to make the school better. There are no proper arrangements for drinking water. I’ll to have a few freshwater containers placed in different places. So it will be easier for students to get water and there be no crowding. There is no canteen in our school. Students go outside to buy eatables from hawkers in the recess. I will have a canteen in the school. !

Our library has very few newspapers and magazines. I will introduce a few more magazines. Our school organizes very few debates/quiz contests. I will have more inter-house contests.

The toilets in the school are very dirty. Til see they are regularly cleaned.

D. WORD STUDY
D. 1. Dictionary use

Ex. 1. Correct the spelling of the following words
Answer:
confes — confess
overwelmed — overwhelmed
errudition — erudition
prayfull — prayful
prejumption — presumption
inascapably — inescapably

Ex. 2. Lookup a dictionary and write two meanings of the following words—the one in which it is used in the lesson and the other which is more common.
Answer:
brought: (i) come with (him)
(ii) caused to be in a state or position
degree: (i) amount feeling or quality
(ii) the course of study in a university
enter: (i) come into a place
(ii) become a member of an organisation
dead: (i) no longer living
(ii) complete or absolute (silence)
renewal: (i) starting again
(ii) extension of time for which it is valid

D.2. Word-formation

Read carefully the following sentences taken from the lesson…………the word ‘renewal’ is derived from the adjective ‘new* by adding a suffix ‘-al’ and a prefix ‘re-‘ to it Point out which words the following are derived from:
Answer:
renewal — new
myself — my
totality — total
constantly — constant
building — build

D. 3. Word-meaning

Ex. 1. Match the words given in column A with their meanings given in column B :
Bihar Board Class 12 English Book Solutions Chapter 2 Bharat is My Home

Ex. 2. Fill in the blanks with suitable adjectives: new special dual long prayerful
(a) Dr.Zakir Husain entered the office in a spirit of……………. humility.
(b) It is a Constitution of a…………… state.
(c) The choice of this office has been made due to…………….. association.
(d) This…………….. effort will give to the life of our state a flavour.
Answer;
(a) prayerful, (b) new, (c) long, (d) special, dual.

D. 4. Phrases

Ex. 1. Read the lesson carefully and find out the sentences in which the following phrases have been used. Then use these phrases in sentences of your own.
Answer:
(a) the pursuit of : He works day and night in pursuit of excellence.
(b) bring to : Please bring the matter to the notice of the Principal immediately.
(c) approximation of : The account is given by the witness was an approximation of the truth.
(d) bring forth : Our new Principal has brought forth many remarkable improvements.

E. Grammar

Read the following sentences from the lesson carefully
I must confess that
I can only assure you that

Mark the use of modal auxiliaries * ‘must’ and ‘can’ – in the sentences given above.

Ex. 1. Find out other modal auxiliaries used in the lesson and tell the specific meaning in which these modal auxiliaries have been used.
Answer:
must — bound to
can — be capable of
may — possibility
I may be forgiven — please forgive me.

The main aim is to share the knowledge and help the students of Class 12 to secure the best score in their final exams. Use the concepts of Bihar Board Class 12 Chapter 2 Bharat is My Home English Solutions in Real time to enhance your skills. If you have any doubts you can post your comments in the comment section, We will clarify your doubts as soon as possible without any delay.

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 4 अर्द्धनारीश्वर

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions

Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 4 अर्द्धनारीश्वर

 

अर्द्धनारीश्वर वस्तुनिष्ठ प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

Ardhnarishwar Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
दिनकर की कुरुक्षेत्र की रचना क्या है?
(क) काव्य
(ख) नाटक
(ग) निबंध
(घ) उपन्यास
उत्तर–
(क)

Ardhnarishwar Ka Question Answer Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
दिनकर की ‘संस्कृति के चार अध्याय’ किस विधा में है?
(क) उपन्यास
(ख) कहानी
(ग) गद्य–विद्या
(घ) काव्य
उत्तर–
(ग)

अर्धनारीश्वर निबंध का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
रामधारी सिंह दिनकर की रचना है
(क) अर्द्धनारीश्वर
(ख) रोज।
(ग) ओ सदानीरा
(घ) जूठन
उत्तर–
(क)

Ardhnarishwar Summary In Hindi Bihar Board Class 12th प्रश्न 4.
दिनकर जी किस सभा के सांसद थे?
(क) विधान सभा
(ख) विधान परिषद्
(ग) लोक सभा
(घ) राज्य सभा
उत्तर–
(घ)

अर्धनारीश्वर का सारांश Bihar Board Class 12th प्रश्न 5.
दिनकर को कौन राष्ट्रीय सम्मान मिला था?
(क) पद्म श्री
(ख) भारत रत्न
(ग) पद्मभूषण
(घ) पद्मविभूष।
उत्तर–
(ग)

6. ‘दिनकर कवि के साथ और क्या थे?
(क) नाटककार
(ख) उपन्यासकार
(ग) गद्यकार एकांकीकार
(घ) एकांकीकार
उत्तर–
(ग)

रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

अर्धनारीश्वर रामधारी सिंह दिनकर Bihar Board Class 12th प्रश्न 1.
रामधारी सिंह का ……….. उपनाम था।
उत्तर–
दिनकर

Ardhnarishwar Kahani Ka Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 2.
दिनकर का जन्म ……… गाँव में हुआ था।
उत्तर–
सिमरिया

Ardhnarishwar Saransh Bihar Board Class 12th प्रश्न 3.
दिनकर के पिता का नाम ………… था
उत्तर–
रवि सिंह

Ardhnarishwar Class 12 Bihar Board प्रश्न 4.
दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा ………. में हुई थी।
उत्तर–
गाँव

प्रश्न 5.
धर्मसाधक महात्मा और साधु ………. से भय खाते थे।
उत्तर–
नारियों

प्रश्न 6.
प्रेमचंद ने कहा है कि–”पुरुष जब नारी का गुण लेता है तब वह ……….. बन जाता है।
उत्तर–
देवता

प्रश्न 7.
‘उर्वशी’ काव्यकृति पर दिनकर को …………… पुरस्कार मिला।
उत्तर–
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला

अर्द्धनारीश्वर अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिनकर किस युग के कवि हैं?
उत्तर–
छायावादोत्तर युग के।

प्रश्न 2.
रामधारी सिंह “दिनकर’ की रचना है :
उत्तर–
अर्द्धनारीश्वर।

प्रश्न 3.
अर्द्धनारीश्वर में किसके गुण का समन्वय है?
उत्तर–
पुरुष और नारी दोनों के।

प्रश्न 4.
‘अर्द्धनारीश्वर’ शीर्षक निबंध के निबंधकार कौन हैं?
उत्तर–
रामधारी सिंह दिनकर।

प्रश्न 5.
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को किस कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला?
उत्तर–
संस्कृति के चार अध्याय।

प्रश्न 6.
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म किस दिन हुआ?
उत्तर–
23 सितम्बर 1908

अर्द्धनारीश्वर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता’। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? अपना पक्ष रखें
उत्तर–
रामधारी सिंह दिनकर लेखक नारी के गुण की चर्चा करते हुए कहते हैं कि दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता नारी के गुण है। इस गुण के कारण नारी विनम्र और दयावान होती है। इस गुण का अच्छा पक्ष यह है कि यदि पुरुष इन गुणों को अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बचा जा सकता है। पुरुष सदियों से अपने आपको शक्तिशाली मानता आया है। उसने नारियों को घर की चारदीवारी में सीमित किया। घर का जीवन सीमित और बाहर की जीवन असीमित, निस्सीम होता गया। पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा कि अपना रक्त बहाते समय कुछ नहीं सोचता कि क्या होनेवाला है। स्त्रियों के गुण दया, माया, सहिष्णु और भीरुता पुरुषों के गुण पौरुष, इत्यादि इनके विपरीत है। अतः लेखक कहता है कि यह वार्ता यदि कुंती और गांधारी के बीच हुई होती तो यह महाभारत न हुआ होता। पुरुष में क्रोधादि गुण होते हैं जिसमें समर्पण के बदले अहम का भाव अधिक होता है। दुर्योधन के अहम के कारण यह महाभारत हुआ।

प्रश्न 2.
अर्द्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होती? आज इसकी क्या सार्थकता है?
उत्तर–
अर्द्धनारीश्वर, शंकर और पार्वती का काल्पित रूप है। अर्द्धनारीश्वर के द्वारा स्त्री और पुरुष के गुणों को एक एक कर यह बताया गया है कि नर––नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं बल्कि उनकी पूर्णता. में वृद्धि ही होती है। आज इसकी जरूरत इसलिए है कि पुरुष समाज वर्चस्ववादी है और उसने वह समझ रखा है कि पुरुष में स्त्रीयोचित गुण आ जाने पर स्त्रैण हो जाता है। उसी प्रकार स्त्री समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगता है।

इस प्रकार पुरुष के गुणों के बीच एक प्रकार का विभाजन हो गया है तथा विभाजन की रेखा को लाँघने में नर और नारी दोनों को भय लगता है। इसलिए अर्द्धनारीश्वर की जरूरत है। संसार में पुरुषों के समान ही स्त्रियाँ हैं। जिस प्रकार पुरुषों को सूर्य की धूप पर बराबर अधिकार है उसी तरह नारियों का भी यह अधिकार है। पुरुष ने नारी को षड्यंत्रों के जरिये उसे अपने अधीन कर रखा है। दिनकर इस पुरुष वर्ग एवं स्त्री वर्ग की समझाना चाहते हैं कि नारी–नर पूर्ण रूप से समान हैं। पुरुष यदि नारियों के कुछ गुण अपना ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है और नारी पुरुषों के गुण अपना ले तो भय से मुक्त हो सकती है। इसीलिए अर्द्धनारीश्वर की कल्पना की गई है।

प्रश्न 3.
रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन से दिनकर क्यों असन्तुष्ट हैं?
उत्तर–
रवीन्द्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचन्द के चिन्तन में दिनकर असन्तुष्ट इसलिए हैं कि वे अर्द्धनारीश्वर रूप उनके चिन्तन में कहीं प्रकट नहीं हुआ। बल्कि नारी को नीचा दिखाने, उसे अधीन करने की ही बात कही गयी है। दिनकर मानते हैं कि अर्द्धनारीश्वर की कल्पना से इस बात के संकेत हैं कि नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। दिनकर पाते हैं कि यह दृष्टि रवीन्द्रनाथ के पास नहीं है। वे नारी के गुण यदि पुरुष में आ जाएँ तो उसको दोष मानते हैं। नारियों को कोमलता ही शोभा देती है। वे कहते हैं कि नारी यदि नारी हय की होइवे कर्म–कीर्ति, वीर्यबल, शिक्षा–दीक्षा तार? अर्थात् नारों की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है, केवल पृथ्वी की शोभा, केवल आलोक, केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में हैं।

कर्मकीर्ति, वीर्यबल और शिक्षा–दीक्षा लेकर वह क्या करेगी? प्रेमचन्द ने कहा है कि “पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है, किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षसी हो जाती है।” इसी प्रकार प्रसाद जी इड़ा के विषय में यदि कहा जाय कि इड़ा वह नारी है जिसने पुरुषों के गुण सीखे हैं तो निष्कर्ष निकलेगा कि प्रसादजी भी नारी. की पुरुषों के क्षेत्र से अलग रखना चाहते हैं। नारियों के प्रति इस तरह के भाव तीन बड़े चिन्तकों को शोभा नहीं देता है। इसीलिए दिनकर इनके चिन्तन से दुखी है। नारी संसार में सर्वत्र नारी है और पुरुष पुरुष।

प्रश्न 4.
प्रवृत्तिमार्ग ओर निवृत्तिमार्ग क्या है?
उत्तर–
प्रवृत्तिमार्ग : प्रवृत्तिमार्ग को गृहस्थ जीवन की स्वीकृति का मार्ग है। दिनकरजी के अनुसार गृहस्थ जीवन में नारियों की मर्यादा बढ़ती है। जो पुरुष गृहस्थ जीवन को अच्छा मानते हैं उन्हें प्रवृत्तिमार्गी माना जाता है। जो प्रवृत्तिमार्गी हुए उन्होंने नारियों को गले से लगाया। नारियों का सम्मान दिया। प्रवृत्तिमार्गी जीवन में आनन्द चाहते थे और नारी आनन्द की खान है। वह ममता की प्रतिमूर्ति है। वह दया, माया, सहिष्णुता की भंडार है।

निवृत्तिमार्ग : निवृत्तिमार्ग गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करनेवाला मार्ग है। गृहस्थ जीवन को अस्वीकार करना नारी को अस्वीकार करना है। निवृत्ति मार्ग से नारी की मान मर्यादा गिरती है। जो निवृत्तिमार्गी बने उन्होंने जीवन के साथ नारी को भी अलग ढकेल दिया क्योंकि वह उनके किसी काम की चीज नहीं थी। उनका विचार था कि नारी मोक्ष प्राप्ति में बाधक है। यही कारण था कि प्राचीन विश्व में जब वैयक्तिक मुक्ति की खोज मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी साधना मानी जाने लगी, तब झुंड के झुंड विवाहित लोग संन्यास लेने लगे और उनकी अभागिन पत्नियों के .. सिर पर जीवित वैधव्य का पहाड़ टूटने लगा। बुद्ध, महावीर, कबीर आदि संत महात्मा निवृत्तिमार्ग के समर्थक थे।

प्रश्न 5.
बुद्ध ने आनन्द से क्या कहा?
उत्तर–
बुद्ध ने आनन्द से कहा कि आनंद ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु अब वह केवल पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी . होने का अधिकार दे दिया है।

प्रश्न 6.
स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है?
उत्तर–
स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे पुरुष की मंशा खुद को श्रेष्ठ साबित करने की है। ऐसा करके पुरुष अपनी दुर्बलता को भी छिपाता है। साथ ही वह नारी को दबाकर रखने के लिए भी ऐसा करता है।

ऐसा कहना बिल्कुल भी उचित नहीं है क्योंकि इससे नारी के हृदय को ठेस पहुंचती है। वैसे भी नारी आदरणीय तथा श्रद्धा के योग्य है। समाज में उसका भी बराबर का स्थान है। इसलिए ऐसा कहना पूर्णतः गलत है।

प्रश्न 7.
नारी के पराधीनता कब से आरम्भ हुई?
उत्तर–
नारी की पराधीनता तब आरंभ हुई जब मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया, . . जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से जिंदगी दो टुकड़ों में बँट गई। घर का जीवन सीमित और बाहर का जीवन विस्तृत होता गया, जिससे छोटी जिन्दगी बड़ी जिन्दगी के अधिकाधिक अधीन हो गई। नारी की पराधीनता का यह संक्षिप्त इतिहास है।

प्रश्न 8.
प्रसंग स्पष्ट करें–
(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर–
व्याख्या–
(क) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ रचित निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि यह कहना चाहता है कि जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लताएँ फलती–फूलती हैं उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है। वह पुरुष के पराधीन है। इस कारण नारी का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया। उसके सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा यहाँ तक कि जीवन और मरण भी पुरुष की मर्जी पर हो गये। उसका सारा मूल्य इस बात पर जा ठहरा है कि पुरुषों की इच्छा पर वह है। वृक्ष की लताएँ वृक्ष के चाहने पर ही अपना पर फैलाती है।

उसी प्रकार स्त्री ने भी अपने को आर्थिक पंगु मानकर पुरुष को अधीनता स्वीकार कर ली और यह कहने को विवश हो गयी कि पुरुष के अस्तित्व के कारण ही मेरा अस्तित्व है। इस परवशता के कारण उसकी सहज दृष्टि भी छिन गयी जिससे यह समझती कि वह नारी है। उसका अस्तित्व है। एक सोची–समझी साजिश के तहत पुरुषों द्वारा वह पंगु बना दी गई। इसीलिए वह सोचती है कि मेरा पति मेरा कर्णधार है मेरी नैया वही पार करा सकता है, मेरा अस्तित्व उसके होने के कारण को लेकर है। वृक्ष लता को अपनी जड़ों से सींचकर उसे सहारा देकर बढ़ने का मौका देता है और कभी दमन भी करता है। इसी तरह एक पत्नी भी इसी दृष्टि से अपने पति को देखती है।

(ख) प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर के निबंध अर्द्धनारीश्वर से ली गयी है। निबन्धकार दिनकर कहते हैं कि नारी में दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता जैसे स्त्रियोचित गुण होते हैं। इन गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है। यदि इन गुणों को पुरुष अंगीकार कर ले तो पुरुष के पौरुष में कोई दोष नहीं आता और पुरुष नारीत्व से पूर्ण हो जाता है। इसीलिए निबंधकार अर्द्धनारीश्वर की कल्पना करता है जिससे पुरुष स्त्री का गुण और स्त्री पुरुष का गुण लेकर महान बन सके। प्रकृति ने नर–नारी को सामान बनाया है पर गुणों में अंतर है। अत: निबन्ध कार नारीत्व के लिए एक महान पुरुष गाँधीजी का हवाला देता है कि गाँधीजी ने अन्तिम दिनों में नारीत्व की ही साधना की थी।

प्रश्न 9.
जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्म क्षेत्र है। कैसे?
उत्तर–
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपने निबन्ध ‘अर्द्धनारीश्वर’ में नर–नारी के . समान महत्व पर प्रकाश डाला है। उनके अनुसार नर–नारी एक–दूसरे के पूरक हैं। नर में नारीत्व का गुण एवं नारी में पौरुष का गुण सहज ही दृष्टिगोचर होता है।

इस संसार में नर और नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है। परन्तु पुरुषों ने अन्याय से अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर लिया है। जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना आज केवल पुरुष–प्रवृत्ति से संचालित होती हुई दिखाई देती है। इसीलिए उसमें कर्कशता अधिक और कोमलता कम दिखाई देती है। यदि इस नियंत्रण और संचालन में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी। जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं बाहर भी है। आज नारियों को हर क्षेत्र में कार्य मिल रहा है और उसे वे बड़ी समझदारी से उतनी ही मजबूती के साथ करती है जितने कि पुरुष। यदि पुरुष अपना वर्चस्ववादी रवैया कम करें तो यह संभव है। इस प्रकृति के द्वारा इनमें कोई विभेद नहीं किया गया है तो हम कौन होते हैं उनका विभेद करनेवाले। अतः पुरुष जिसे अपना कार्यक्षेत्र मानता है वह नारियों का भी कर्मक्षेत्र है।

प्रश्न 10.
‘अर्द्धनारीश्वर’ निबन्ध में दिनकरजी के व्यक्त विचारों का सार रूप प्रस्तुत करें।
उत्तर–
‘अर्द्धनारीश्वर’ निबंध के द्वारा ‘दिनकर’ यह विभेद मिटाना चाहते हैं कि नर–नारी दोनों अलग–अलग हैं। नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। ‘दिनकर’ पुरुषों के वर्चस्ववादी रवैये से बाहर आकर नारी को समाज में प्रतिष्ठा दिलाना चाहते हैं जिसे पुरुषों से हीन समझा जाता है। दिनकर यह दिखलाना चाहते हैं नारी पुरुष से तनिक भी कमतर नहीं है। पुरुषों को भोगवादी दृष्टि छोड़नी होगी जो स्त्री को भोग्या मात्र समझता है। वे नारियों को भी कहते हैं कि उन्हें पुरुषों के कुछ गुण अंगीकार करने में हिचकिचाना नहीं चाहिए और नहीं वह समझना चाहिए कि उनके नारीत्व को इससे बट्टा लगेगा या कमी आयेगी। पुरुषों को भी. स्त्रियोचित गुण अपनाकर समाज में स्त्रैण कहलाने से घबराना नहीं चाहिए क्योंकि स्त्री के कुछ गुण शीलता, सहिष्णुता, भीरुता, पुरुषों द्वारा अंगीकार कर लेने पर वह महान बन जाता है।

दिनकर तीन भारतीय चिन्तकों का हवाला देते हुए उनकी चिन्तन की दृष्टि से दुखी होते हैं। दिनकर मानते हैं स्त्री भी पुरुष की तरह प्रकृति की बेमिसाल कृति है कि इसमें विभेद अच्छी बात नहीं। साथ ही नर–नारी दोनों का जीवनोद्देश्य एक है। जिसे पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। जीवन की प्रत्येक बड़ी घटना पुरुष प्रवृति द्वारा संचालित होने से पुरुष में कर्कशता अधिक कोमलता कम दिखाई देती है। यदि इस नियंत्रण में नारियों का हाथ हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी।

यही नहीं प्रत्येक नर को एक हद तक नारी ओर प्रत्येक नारी को एक हद तक नर बनाना आवश्यक है। दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता ये स्त्रियोचित गुण कहे जाते हैं। इसका अच्छा पक्ष है कि पुरुष इसे अंगीकार कर ले तो अनावश्यक विनाश से बच सकता है। उसी प्रकार अध्यवसाय, साहस और शूरता का वरण करने से भी नारीत्व की मर्यादा नहीं घटती। दिनकर अर्द्धनारीश्वर के बारे में कहते हैं कि अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक है कि नारी और नर जब तक अलग है तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात से भी पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे बल्कि यह प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो।

अर्द्धनारीश्वर भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित से संज्ञा बनाएँ कल्पित, शीतल, अवलम्बित, मोहक, आकर्षक, वैयक्तिक, विधवा, साहसी
उत्तर–

  • कल्पित – कल्पना
  • शीतल – शीत
  • अवलम्बित – अवलम्ब
  • मोहक – मोह
  • आकर्षक – आकर्षण
  • वैयक्तिक – व्यक्ति
  • विधवा – वैधन्य
  • साहसी – साहस

प्रश्न 2.
वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग–निर्णय करें। संन्यास, आयुष्मान, अंतर्मन, महौषधि, यथेष्ट, मनोविनोद।
उत्तर–
संन्यास (पु.)–रमण ने चौथेपन में संन्यास धारण कर लिया था।
आयुष्मान (पु.)–तुम आयुष्मान रहो।
अंतर्मन (पु.)–अपने अंतर्मन से पूछो।
महौषधि (स्त्री.)–लक्ष्मण को संजीवनी जैसी महौषधि की जरूरत पड़ी।
यथेष्ट (पु.)–उसने आपका यथेष्ट कार्य किया।
मनोविनोद (स्त्री.)–मनोविनोद अच्छा लगता है।

प्रश्न 3.
अर्थ की दृष्टि से नीचे लिखे वाक्यों की प्रकृति बताएँ।
(क) संसार में सर्वत्र पुरुष पुरुष हैं और स्त्री स्त्री।
(ख) किन्तु पुरुष और स्त्री में अर्द्धनारीश्वर का यह रूप आज कहीं भी देखने में नहीं आता।
(ग) कामिनी तो अपने साथ यामिनी की शांति लाती है। . (घ) यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ों में बँट गई।
(ङ) विचित्र बात तो यह है कि कई महात्माओं ने ब्याह भी किया और फिर नारियों . की निन्दा भी की।
उत्तर–
(क) विधिवाचक
(ख) निषेधात्मक
(ग) संकेतवाचक
(घ) विधिवाचक
(ङ) निषेधवाचक

प्रश्न 4.
बट्टा लगाना का क्या अर्थ है?
उत्तर–
घाटा देना।

अर्द्धनारीश्वर लेखक परिचय रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908–1974)

जीवन परिचय :
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितम्बर, 1908 ई. के दिन बिहार राज्य के बेगूसराय जिले के सिमरिया नामक स्थान पर हुआ। इनकी माता का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था। इनकी पत्नी श्यामवती देवी थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा – गाँव और उसके आसपास के इलाके में हुई। इन्होंने सन् 1928 में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया और सन् 1932 में पटना कॉलेज से इतिहास विषय में बी.ए. (ऑनर्स) किया।

सन् 1925 में इनकी पहली कविता ‘छात्र सहोदय’ में प्रकाशित हुई। इसके अतिरिक्त भी इनकी कई रचनाएँ छात्र जीवन के दौरान ही प्रकाशित हो गई। 21 वर्ष की अवस्था में इनकी पहली कविता पुस्तक ‘प्रणभंग’ प्रकाशित हुई। अध्ययन प्राप्त करने के बाद इन्होंने एच. ई. स्कूल, . बरबीघा में प्रधानाध्यापक का पद ग्रहण किया। इसके बाद वे सब–रजिस्ट्रार नियुक्त किए गए और फिर जनसंपर्क विभाग एवं बिहार विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर बन गए। बाद में वे भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के रूप में प्रतिष्ठित हुए।

वहीं इन्होंने हिन्दी सलाहकार के रूप में भी कार्य किया। वे राज्यसभा में सांसद भी रहे। इन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी एवं ‘उर्वशी’ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं इन्हें ‘पद्मभूषण’ एवं अन्य कई अलंकरणों से भी सम्मानित किया गया। इनकी श्रेष्ठ रचनाओं के कारण इन्हें राष्ट्रकवि कहा गया। साहित्य के इस पुरोध का निधन 24 अप्रैल, 1974 के दिन हुआ, जो साहित्य तथा देश के लिए एक अपूरणीय क्षति थी।

रचनाएँ : रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य कृतियाँ–प्रणभंग (1929), रेणुका (1935), हुंकार (1938), रसवंती (1940), कुरुक्षेत्र (1946), रश्मिरथी (1952), नीलकुसुम (1954), उर्वशी (1961), परशुराम की प्रतीक्षा (1963), कोमलता और कवित्व (1964), हारे की हरिनाम (1970) आदि।

गद्य कृतियाँ–मिट्टी की ओर (1946), अर्धनारीश्वर (1952), संस्कृति के चार अध्याय (1956), काव्य की भूमिका (1958), वट पीपल (1961), शुद्ध कविता की खोज (1966), दिनकी की डायरी (1973) आदि।

साहित्यिक विशेषताएँ : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जितने बड़े कवि थे उतने ही श्रेष्ठ गद्यकार भी थे। उनके गद्य में भी काव्य के अनुरूप ही ओज, पौरुष तथा उत्साह दिखाई देता है। ये छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवि थे। इन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत–प्रगीत, काव्य–नाटक आदि अनेक काव्य–शैलियों में उत्कृष्ट रचनाएँ प्रस्तुत की हैं।

२गद्य के क्षेत्र में दिनकर जी ने कई उल्लेखनीय कृतियाँ दी हैं जो उनके युग की उपलब्धि मानी जा सकती है। उनके गद्य में विषय–वस्तु और शैली की दृष्टि से पर्याप्त वैविध्य है। साथ ही उनके व्यक्तित्व का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।

अर्द्धनारीश्वर पाठ के सारांश

राष्ट्रकवि दिनकर अर्द्धनारीश्वर निबंध के माध्यम से यह बताते हैं कि नर–नारी पूर्ण रूप से समान हैं एवं उनमें एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकते। अर्थात् नरों में नारियों के गुण आए तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती बल्कि उसकी पूर्णता में वृद्धि होती है। दिनकर को यह रूप कहीं देखने को नहीं मिलता है। इसलिए वे क्षुब्ध हैं। उनका मानना है कि संसार में : सर्वत्र पुरुष और स्त्री हैं। वे कहते हैं कि नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में बट्टा लगेगा। इसी प्रकार पुरुष समझता है कि स्त्रियोचित गुण अपनाकर वह स्त्रैण . हो जायेगा। इस विभाजन से दिनकर दुखी है।

यही नहीं भारतीय समाज को जाननेवाले तीन बड़े चिन्तकों रवीन्द्रनाथ, प्रेमचन्द, प्रसाद के चिन्तन से भी दुखी हैं। दिनकर मानते हैं कि यदि ईश्वर ने आपस में धूप और चाँदनी का बँटवारा नहीं किया तो हम कौन होते हैं आपसी गुणों को बाँटने वाले। वे नारी के पराधीनता का संक्षिप्त इतिहास बताने के संदर्भ में कहते हैं कि पुरुष वर्चस्ववादी तरीके अपनाकर नारी को गुलाम बना लिया है। जब कृषि व्यवस्था का आविष्कार किया जिसके चलते नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ों में बँट गई। नारी पराधीन होकर अपने समस्त मूल्य भूल गयी।

अपने अस्तित्व की अधिकारिणी भी नहीं रही। उसे यह लगने लगा कि मेरा अस्तित्व पुरुष को होने से है। समाज ने भी नारी को भोग्या समझकर उसका उपभोग खूब किया। वसुंधरा भोगियों ने नारी को आनन्द की खान मानकर उसका जी भर उपभोग किया। दिनकर मानते हैं कि नर और नारी एक ही द्रव्य की दली दो प्रतिभाएँ हैं। जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। अतः अर्द्धनारीश्वर केवल इसी बात का प्रतीक नहीं है कि नारी और नर जब तक अलग हैं तब तक दोनों अधूरे हैं बल्कि इस बात का भी कि जिस पुरुष में नारीत्व की ज्योति जगे; बल्कि यह कि प्रत्येक नारी में भी पौरुष का स्पष्ट आभास हो।