Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र) Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

Bihar Board Class 11 Philosophy ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र) Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
प्रमाणशास्त्र (Theory of knowledge) का महत्त्व है –
(क) तर्क विद्या के महत्त्व को बढ़ाने के कारण
(ख) धर्म विद्या के महत्त्व को बढ़ाने के कारण
(ग) नीतिशास्त्र के महत्त्व को बढ़ाने के कारण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) तर्क विद्या के महत्त्व को बढ़ाने के कारण

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प्रश्न 2.
प्रमा है –
(क) ज्ञान का वास्तविक रूप
(ख) ज्ञान का अवास्तविक रूप
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ज्ञान का वास्तविक रूप

प्रश्न 3.
‘उपमान’ का शाब्दिक अर्थ होता है –
(क) सादृश्यता या समानता के द्वारा संज्ञा-संज्ञि सम्बन्ध का ज्ञान होना
(ख) समानुपात के द्वारा संज्ञा-संज्ञि सम्बन्ध
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सादृश्यता या समानता के द्वारा संज्ञा-संज्ञि सम्बन्ध का ज्ञान होना

प्रश्न 4.
न्याय – दर्शन के अनुसार ‘शब्द’ के क्या अर्थ हैं?
(क) विश्वासी और महान पुरुष के वचन के अर्थ का ज्ञान
(ख) ‘शब्द’ के अर्थ का ज्ञान
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) विश्वासी और महान पुरुष के वचन के अर्थ का ज्ञान

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प्रश्न 5.
पद हैं –
(क) आकृति विशेष
(ख) जाति-विशेष
(ग) प्राकृति विशेष
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
न्याय दर्शन के अनुसार शब्द होते हैं –
(क) नित्य (Eternal)
(ख) अनित्य (Not-eternal)
(ग) उपर्युक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) अनित्य (Not-eternal)

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प्रश्न 7.
गौतम के अनुसार न्याय के प्रकार हैं –
(क) पूर्ववत् अनुमान
(ख) शेषवत् अनुमान
(ग) समान्तयो दृष्टि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(घ) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 8.
पंचावयव में प्रतिज्ञा का कौन-सा स्थान है?
(क) पहला
(ख) दूसरा
(ग) तीसरा
(घ) चौथा
उत्तर:
(क) पहला

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प्रश्न 9.
न्याय की ज्ञानमीमांसा (Nyaya theory of knowledge) का पहला अंग है –
(क) अनुमान
(ख) प्रत्यक्ष
(ग) उपमान
(घ) शब्द
उत्तर:
(ख) प्रत्यक्ष

प्रश्न 10.
न्याय दर्शन के प्रतिपादक हैं –
(क) महर्षि गौतम
(ख) महर्षि कणाद
(ग) महर्षि कपिल
(घ) महात्मा बुद्ध
उत्तर:
(क) महर्षि गौतम

प्रश्न 11.
न्याय दर्शन को कितने खण्डों में बाँटा गया है –
(क) चार
(ख) तीन
(ग) दो
(घ) पाँच
उत्तर:
(क) चार

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प्रश्न 12.
न्यायशास्त्र के अनुसार ज्ञान के स्वरूप है –
(क) प्रभा (Real knowledge)
(ख) अप्रभा (Non-real Knowledge)
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों

प्रश्न 13.
न्याय के अनुसार प्रमाण है –
(क) प्रत्यक्ष एवं अनुमान
(ख) प्रत्यक्ष एवं उपमान
(ग) अनुमान एवं शब्द
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 14.
ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान कहलाता है –
(क) प्रत्यक्ष (Perception)
(ख) उपमान (Comparison)
(ग) शब्द (Verbal authority)
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) प्रत्यक्ष (Perception)

प्रश्न 15.
मीमांसा दर्शन के प्रर्वतक कौन थे?
(क) महर्षि जेमिनी
(ख) महर्षि गौतम
(ग) महर्षि कणाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) महर्षि जेमिनी

प्रश्न 16.
परार्थानुमान में कितने वाक्यों (Propositions) की आवश्यकता होती है –
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(घ) पाँच

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प्रश्न 17.
न्याय दर्शन के अनुसार पदार्थों की संख्या है –
(क) 8
(ख) 5
(ग) 16
(घ) 14
उत्तर:
(ग) 16

प्रश्न 18.
प्रयोजनानुसार अनुमान होते हैं –
(क) स्वार्थानुमान एवं परमार्थानुमान
(ख) पूर्ववत् एवं शेषवत् अनुमान
(ग) सामान्य तो दृष्टि अनुमान
(घ) परमार्थानुमान केवल
उत्तर:
(क) स्वार्थानुमान एवं परमार्थानुमान

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प्रश्न 19.
‘अक्षपाद’ नाम से कौन जाने जाते हैं?
(क) महर्षि गौतम
(ख) महर्षि नागार्जुन
(ग) महर्षि कपिल
(घ) महर्षि चर्वाक
उत्तर:
(क) महर्षि गौतम

Bihar Board Class 11 Philosophy ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र) Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रमाण’ के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
गौतम के अनुसार प्रमाण के चार प्रकार हैं। वे हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान एवं शब्द।

प्रश्न 2.
न्याय-दर्शन के अनुसार ‘शब्द’ (Verbal Authority) के अभिप्राय को स्पष्ट करें।
उत्तर:
न्याय-दर्शन के अनुसार, ‘शब्द’ चौथा प्रमाण है। किसी विश्वासी और महान पुरुष के वचन के अर्थ (meaning) का ज्ञान ही शब्द प्रमाण है।

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प्रश्न 3.
उपमान क्या है? अथवा, उपमान (Comparison) का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
न्याय-दर्शन के अनुसार ‘उपमान’ को प्रमाण का तीसरा भेद बताया गया है। उपमान का शाब्दिक अर्थ होता है, सादृश्यता या समानता के द्वारा संज्ञा-संज्ञि-संबंध का ज्ञान होना।

प्रश्न 4.
न्याय दर्शन के प्रवर्तक कौन थे?
उत्तर:
न्याय दर्शन के प्रवर्तक गौतम ऋषि माने जाते हैं।

प्रश्न 5.
व्याप्ति-सम्बन्ध क्या है?
उत्तर:
दो वस्तुओं के बीच एक आवश्यक सम्बन्ध जो व्यापक माना जाता है, इसे ही . व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal relation) से जानते हैं। जैसे-धुआँ और आग में व्याप्ति सम्बन्ध है।

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प्रश्न 6.
अनुमान क्या है?
उत्तर:
अनुमान का अर्थ होता है, एक बात से दूसरी बात को जान लेना। यदि कोई बात हमें प्रत्यक्ष या आगमन के द्वारा जानी हुई है तो उससे दूसरी बात भी निकाल सकते हैं। इसी को अनुमान कहते हैं। गौतम अनुमान को प्रमाण का दूसरा भेद मानते हैं।

प्रश्न 7.
प्रमाणशास्त्र (Theory of knowledge) का न्याय दर्शन में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
पूरे न्याय दर्शन का महत्त्व उसके प्रमाणशास्त्र को लेकर है, जिसमें शुद्ध विचार के नियमों का वर्णन है। उन नियमों के पालन से तत्त्व-ज्ञान प्राप्त करने के उपायों पर प्रकाश डाला गया है। तर्क विद्या के महत्त्व को बढ़ाने के कारण न्याय दर्शन को लोग ‘न्याय-शास्त्र’ कहकर पुकारते हैं, जो भारतीय तर्कशास्त्र (Indian logic) का प्रतीक बन गया है।

प्रश्न 8.
न्याय दर्शन को कितने खण्डों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर:
न्याय दर्शन को चार खण्डों में बाँटा जाता हैं वे हैं-प्रमाणशास्त्र, संसार सम्बन्धी विचार, आत्मा एवं मोक्ष विचार तथा ईश्वर-विचार।

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प्रश्न 9.
‘प्रमाण’ क्या है?
उत्तर:
‘प्रमा’ को प्राप्त करने के जितने साधन हैं, उन्हें ही ‘प्रमाण’ कहा गया है। गौतम के अनुसार प्रमाण के चार साधन हैं।

प्रश्न 10.
प्रत्यक्ष (Perception) क्या है?
उत्तर:
वे सभी ज्ञान जो हमें ज्ञानेन्द्रियों (Sense Organs) के द्वारा प्राप्त होते हैं, उन्हें हम प्रत्यक्ष (Perception) कहते हैं। प्रत्यक्ष तभी संभव है, जब इन्द्रियाँ और पदार्थ के बीच सम्पर्क हो।

प्रश्न 11.
‘प्रमा’ (Real knowledge) क्या है?
उत्तर:
न्यायशास्त्र में ज्ञान के दो स्वरूप बताए गए हैं-प्रमा और अप्रमा। प्रमा ही ज्ञान का वास्तविक रूप है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपमान एवं अनुमान (Comparison and inference) के बीच सम्बन्धों की व्याख्या करें। अथवा, उपमान एवं अनुमान के बीच क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
अनुमान प्रत्यक्ष के आधार पर ही होता है लेकिन अनुमान प्रत्यक्ष से बिल्कुल ही भिन्न क्रिया है। अनुमान का रूप व्यापक है। उसमें उसका आधार व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal relation) रहता है, जिसमें निगमन यानि निष्कर्ष में एक बहुत बड़ा बल रहता है तथा वह सत्य होने का अधिक दावा कर सकता है। दूसरी ओर, उपमान भी प्रत्यक्ष पर आधारित है, लेकिन अनुमान की तरह व्याप्ति-सम्बन्ध से सहायता लेने का सुअवसर प्राप्त नहीं होता है।

उपमान से जो कुछ ज्ञान हमें प्राप्त होता है उसमें कोई भी व्याप्ति-सम्बन्ध नहीं बतलाया जा सकता है। अतः उपमान से जो निष्कर्ष निकलता है वह मजबूत है और हमेशा सही होने का दावा कभी नहीं कर सकता है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अनुमान को उपमान पर उस तरह निर्भर नहीं करना पड़ता है जिस तरह उपमान अनुमान पर निर्भर करता है। सांख्य और वैशेषिक दर्शनों में ‘उपमान’ को एक स्वतंत्र प्रमाण नहीं बताकर अनुमान का ही एक रूप बताया गया है। अगर हम आलोचनात्मक दृष्टि से देखें तो पाएँगे कि उपमान भले ही ‘अनुमान’ से अलग रखा जाए लेकिन अनुमान का काम ‘उपमान’ में हमेशा पड़ता रहता है।

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प्रश्न 2.
पदार्थ-प्रत्यक्ष (Object-Perception) का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी ज्ञान की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हमारे सामने कोई पदार्थ वस्तु या द्रव्य हो। जब हमारे सामने ‘गाय’ रहेगी तभी हमें उसके सम्बन्ध में किसी तरह का प्रत्यक्ष भी हो सकता है। अगर हमारे सामने कोई पदार्थ या वस्तु नहीं रहे तो केवल ज्ञानेन्द्रियाँ ही प्रत्यक्ष का निर्माण नहीं कर सकती हैं। इसलिए प्रत्यक्ष के लिए बाह्य पदार्थ या वस्तु का होना आवश्यक है। न्याय दर्शन में सात तरह के पदार्थ बताए गए हैं। वे हैं-द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष समवाय एवं अभाव। इनमें ‘द्रव्य’ को विशेष महत्त्व दिया जाता है। इसके बाद अन्य सभी द्रव्य पर आश्रित हैं।

प्रश्न 3.
प्रमाण-शास्त्र (Theory of knowledge) के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
पूरा न्याय-दर्शन गौतम के प्रमाण सम्बन्धी विचारों पर आधारित है। प्रमाणशास्त्र ज्ञान प्राप्त करने के साधनों (Sources of knowledge) पर प्रकाश डालने का प्रयास करता है। न्यायशास्त्र में ज्ञान के दो रूप बताए गए हैं-प्रमा और अप्रमा। प्रमा ही ज्ञान का वास्तविक रूप है। प्रमा को प्राप्त करने के जितने साधन बताए गए हैं, उन्हें ही ‘प्रमाण’ कहते हैं।

प्रमाण के सम्बन्ध में जो विचार पाए जाते हैं, उन्हें ही प्रमाण-शास्त्र के नाम से पुकारते हैं। न्याय-शास्त्र में प्रमाण के चार प्रकार बताएँ गए हैं। दूसरे शब्दों में गौतम के अनुसार चार तरह के शब्दों से वास्तविक ज्ञान यानि ‘प्रमा’ की प्राप्ति हो सकती है। वे हैं – प्रत्यक्ष (Perception), अनुमान (Inference), उपमान (Comparison) एवं शब्द (Verbal Authority)।

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प्रश्न 4.
न्याय-दर्शन के आधार पर ‘पद’ के अर्थ को स्पष्ट करें। अथवा, भारतीय दर्शन में ‘पद’ के अर्थ को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जिस किसी शब्द में अर्थ या संकेत की स्थापना हो जाती है, उसे ‘पद’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में शक्तिमान शब्द को हम पद कहते हैं। किसी पद या शब्द में निम्नलिखित अर्थ या संकेत को बतलाने की शक्ति होती है –

1. व्यक्ति-विशेष (Individual):
यहाँ ‘व्यक्ति’ का अर्थ है वह वस्तु जो अपने गुणों के साथ प्रत्यक्ष हो सके। जैसे-हम ‘गाय’ शब्द को लें। वह द्रव्य या वस्तु जो गाय के सभी गुणों की उपस्थिति दिखावे गाय के नाम से पुकारी जाएगी। न्याय-सूत्र के अनुसार गुणों का आधार-स्वरूप जो मूर्तिमान द्रव्य है, वह व्यक्ति है।

2. जाति-विशेष (Universal):
अलग-अलग व्यक्तियों में रहते हुए भी जो एक समान गुण पाया जाए उसे जाति कहते हैं। पद में जाति बताने की भी शक्ति होती है। जैसे-संसार में ‘गाय’ हजारों या लाखों की संख्या मे होंगे लेकिन उन सबों की ‘जाति’ एक ही कही जाएगी।

3. आकृति-विशेष (Form):
पद में आकृति (Form) को बतलाने की शक्ति होती है। आकृति का अर्थ है, अंगों की रचना। जैसे-सींग, पूँछ, खूर, सर आदि हिस्से को देखकर हमें ‘जानवर’ का बोध होता है। इसी तरह, दो पैर, दो हाथ, दो आँखें, शरीर, सर आदि को देखकर आदमी (मानव) का बोध होता है।

प्रश्न 5.
‘परार्थानुमान’ से आप क्या समझते हैं? अथवा, पंचावयव (Five-membered syllogisem) के अर्थ को स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब हमें दूसरों के सामने तथ्य (facts) के प्रदर्शन की जरूरत पड़ती है तो अपने अनुमान से दूसरे को सहमत करने की जरूरत पड़ती हैं, वहाँ हमारा अनुमान परार्थानुमान (knowledge for others) कहलाता है। परार्थानुमान में हमें अपने विचारों को सुव्यवस्थित करना पड़ता है तथा अपने वाक्यों को सावधानी और आत्मबल (Self Confidence) के साथ एक तार्किक शृंखला (Logical Chain) में रखना पड़ता है।

इसलिए परार्थानुमान में हमें पाँच वाक्यों (Five propositions) की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार के अनुमान में पाँच भाग होते हैं। इसे ही पंचावयव (Five membered syllogism) के नाम से पुकारा जाता है। गौतम के अनुसार अनुमान में पाँच वाक्यों का होना बिल्कुल ही आवश्यक है। इसे हम निम्नलिखित ढंग से उदाहरण के रूप में रख सकते हैं –

(क) पहाड़ पर आग है। – प्रतिज्ञा
(ख) क्योंकि इसमें धुआँ है। – हेतु
(ग) जहाँ-जहाँ धुआँ होता है, वहाँ-वहाँ आग होती है। – व्याप्ति
(घ) पहाड़ पर धुआँ है। – उपनय
(ङ) इसलिए पहाड़ पर आग है। – निगमन

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 6.
क्या शब्द ‘नित्य’ (Eternal) है?
उत्तर:
नित्य का मतलब है कि जिसका न तो आदि हो और न अन्त (End)। इसी तरह अनित्य का मतलब होता है जिसका आदि और अन्त जाना जा सकें। क्या शब्द नित्य है ? इस संबंध में न्याय-दर्शन एवं मीमांसा-दर्शन के विद्वानों में मतभेद पाए जाते हैं। मीमांसा दर्शन के प्रवर्तक महर्षि जेमिनि का कहना है कि ‘शब्द’ नित्य (Eternal) है।

कहने का मतलब इसका आदि और अंत नहीं होता है। शब्द की न तो उत्पत्ति होती है और न इनका विनाश हो सकता है। ‘शब्द’ का अस्तित्व तो अनादि काल से है। उनके अनुसार शब्द के ऊपर एक आवरण रहता है जिस कारण उसे हम हमेशा सुन नहीं सकते। जब वह आवरण हट जाता है तो वह सुनाई पड़ता हैं। जेमिनि ऋषि का तर्क है कि ‘शब्द’ का विनाशक कारण तो कुछ भी देखने को मिलता नहीं है, तो फिर उसका विनाश कैसे होगा?

न्याय-दर्शन मीमांसा के मत का खंडन करते हुए यह बतलाता है कि शब्द अनित्य (Note eternal) है। कहने का मतलब शब्द का जन्म होता है और उसका विनाश भी होता है। अभिप्राय यह है कि शब्द का आदि और अन्त दोनों सम्भव है। गौतम के अनुसार ‘शब्द’ का विनाशक कारण है, लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ता है। अगर हमारी इच्छा हो तो उस विनाश कारक को अनुमान (Inference) के द्वारा जान सकते हैं वात्स्यायन भी गौतम की बात का जोरदार समर्थन करते हैं।

न्याय-दर्शन के विद्वानों का तर्क है कि शब्द की उत्पत्ति’ होती है, अभिव्यक्ति नहीं। अभिव्यक्ति तो उसकी होती है जो पहले से रहता है तथा जो आवरण में छिपे रहने के कारण दिखाई नहीं पड़ता है। ऐसी बात शब्द के साथ नहीं है। न्याय दर्शन के समर्थकों का कहना है कि अगर शब्द नित्य है तो वह ‘शाश्वत’ क्यों नहीं बना रहता यानि हमेशा कायम क्यों नहीं रहता? अतः शब्द उत्पन्न होने पर ही सुनाई पड़ता है। इसलिए शब्द अनित्य (Not-eternal) है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शब्द क्या है? शब्द के मुख्य प्रकारों या भेदों की व्याख्या करें। अथवा, न्याय दर्शन के अनुसार शब्द के अर्थ को स्पष्ट करें। शब्द के मुख्य प्रकारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
बौद्ध, जैन, वैशेषिक दर्शन शब्द को अनुमान का अंग मानते हैं जबकि गौतम के अनुसार ‘शब्द’ चौथा प्रमाण (Source of knowledge) है। अनेक शब्दों एवं वाक्यों द्वारा जो वस्तुओं का ज्ञान होता है उसे हम शब्द कहते हैं। सभी तरह के शब्दों से हमें ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है। अतः ऐसे ही शब्द को हम प्रमाण मानेंगे जो यथार्थ तथा विश्वास के योग्य हो।

भारतीय विद्वानों के अनुसार ‘शब्द’ तभी प्रमाण बनता है जब वह विश्वासी आदमी का निश्चयबोधक वाक्य हो, जिसे आप्त वचन भी कह सकते हैं। संक्षेप में, “किसी विश्वासी और महान पुरुष के वचन के अर्थ (meaning) का ज्ञान ही शब्द प्रमाण है।” अतः रामायण, महाभारत या पुराणों से जो ज्ञान हमें मिलते हैं, वह प्रत्यक्ष, अनुमान और उपमान के द्वारा नहीं मिलते हैं, बल्कि ‘शब्द’ (verbal authority) के द्वारा प्राप्त होते हैं।

‘शब्द’ के ज्ञान में तीन बातें मुख्य हैं। वे हैं-शब्द के द्वारा ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया। शब्द ऐसे मानव के हों जो विश्वसनीय एवं सत्यवादी समझे जाते हों, कहने का अभिप्राय, जिनकी बातों को सहज रूप में सत्य मान सकते हों। शब्द ऐसे हों जिनके अर्थ हमारी समझ में हो। कहने का अभिप्राय है कि यदि कृष्ण के उपदेश को यदि अंग्रेजी भाषा में हिन्दी भाषियों को सुनाया जाए तो उन्हें समझ में नहीं जाएगी।

शब्द के प्रकार या भेद (Kinds or Forms of Types of Verbal Authority):
शब्द के वृहत् अर्थानुसार कान का जो विषय है वह ‘शब्द’ कहलाता है। इस दृष्टिकोण से शब्द के दो प्रकार होते हैं –

1. ध्वनि-बोधक (Inarticulate) शब्द:
जिसमें केवल एक ध्वनि या आवाज ही कान को सुनाई पड़ती है, उससे कोई अक्षर प्रकट नहीं होता है। जैसे–मृदंग या सितार की आवाज को, गधे का रेंगना आदि।

2. वर्ण-बोधक (Articulate) शब्द:
जिसमें कंठ, तालु आदि के संयोग से स्वर-व्यंजनों का उच्चारण प्रकट होता है। जैसे-मानव की आवाज-पानी, हवा, आम, मछली आदि।

वर्ण-बोधक शब्द के भी दो रूप होते हैं –

3. सार्थक (meaningful) शब्द:
सार्थक शब्दों में कुछ-न-कुछ अर्थ छिपे रहते हैं। जैसे-धर्म, कॉलेज, पूजा, पुस्तक, भवन आदि।

4. निरर्थक (unmeaningful) शब्द:
निरर्थक शब्द के अर्थ प्रकट नहीं होते हैं। जैसे – आह, ओह, उफ, खट, पट आदि। तर्कशास्त्र में हमारा सम्बन्ध केवल सार्थक शब्दों से ही रहता है क्योंकि तर्कशास्त्र का विषय विचार है। कोई भी विचार सार्थक शब्दों द्वारा ही प्रकट किए जाते हैं।

नैयायिकों ने शब्द के दो प्रकार बताए हैं। वे निम्नलिखित हैं –

1. दृष्टार्थ (Perceptible) शब्द:
दृष्टार्थ शब्द उसे कहेंगे जिसका ज्ञान प्रत्यक्ष (Percep tion) के द्वारा प्राप्त हो सकता है। यह भी आवश्यक नहीं है कि सभी शब्दों का प्रत्यक्ष हमें हमेशा ही हो। जैसे-हिमालय पहाड़, आगरा का ताजमहल, नई दिल्ली का संसद भवन आदि की बात की जाए तो वे दृष्टार्थ शब्द होंगे क्योंकि उनका प्रत्यक्ष संभव है।

2. अदृष्टार्थ (Inperceptible) शब्द:
अदृष्टार्थ शब्द वे हैं जो सत्य तो माने जाते हैं, लेकिन प्रत्यक्ष की पहुँच से बिल्कुल बाहर रहते हैं। ऐसे शब्द आप्त वचन या विश्वसनीय लोगों के मुँह से सुनाई पड़ते हैं, यदि उन शब्दों का प्रत्यक्षीकरण करना चाहें तो संभव नहीं है।

जैसे-ईश्वर, मन, आत्मा, अमरता आदि ऐसे शब्द हैं जिन्हें हम सत्य तो मान लेते हैं लेकिन उसका प्रत्यक्षीकरण संभव नहीं है। इसी तरह बड़े-बड़े महात्माओं एवं ऋषि-मुनियों की पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति आदि बातों का प्रत्यक्षीकरण संभव नहीं है। सूत्र के आधार पर नैयायिकों ने शब्द के दो भेद बताए हैं। वे हैं-वैदिक शब्द (Words of Vedas) एवं लौकिक शब्द (Words of human being)।

वैदिक शब्द (Words of vedas of God):
भारतवर्ष में ‘वेद’ आदि ग्रन्थ है। वैदिक वचन ईश्वर के वचन माने जाते हैं। ऐसे शब्द की सत्यता पर संदेह की बातें नहीं की जा सकती हैं। इसे हम ब्रह्मवाक्य नाम से जानते हैं। वैदिक शब्द सदा निर्दोष, अभ्रान्त, विश्वास-पूर्ण तथा पवित्र माने जाते हैं। कहने का अभिप्राय वैदिक शब्दों को बहुत से भारतीय स्वतः एक प्रमाण मानते हैं। वैदिक शब्द या वाक्य तीन प्रकार के हैं –

(क) विधि वाक्य:
विधि वाक्य में हम एक तरह की आज्ञा या आदेश पाते हैं। जैसे-जो स्वर्ग की इच्छा रखते हैं, वे अग्निहोत्र होम करें।

(ख) अर्थवाद:
अर्थवाद वर्णनात्मक वाक्य के रूप में हम पाते हैं। इसके चार प्रकार माने जाते हैं –

(i) स्तुतिवाक्य:
स्तुति-वाक्य में किसी काम का फल बतलाकर किसी की प्रशंसा की जाती है। जैसे-अमुक यज्ञ को पूरा कर अमुक व्यक्ति ने यश की प्राप्ति की।

(ii) निंदा वाक्य:
निंदा वाक्य में बुरे काम के फल को बतलाकर उसकी निंदा की जाती है। जैसे-पाप कर्म करने से मनुष्य नरक में जाता है।

(iii) प्रकृति वाक्य:
प्रकृति वाक्य में मानव के द्वारा किए हुए कामों में विरोध दिखलाया जाता है। जैसे-कोई पूरब मुँह होकर आहुति करता है और कोई पश्चिम मुँह।

(iv) पुराकल्प वाक्य:
पुराकल्प वाक्य ऐसी विधि को बतलाता है जो परम्परा से चली आती है। जैसे-‘महान संतगण’ यही कहते आते हैं, अतः हम इसे ही करें।

(ग) अनुवाद:
अनुवाद वैदिक वाक्य का तीसरा रूप कहा जा सकता है। इसमें पहले से। कही हुई बातों को दुहरा (repeat) किया जाता है।

लौकिक शब्द (Words of human beings):
सामान्य रूप से मनुष्य के वचन को हम लौकिक शब्द कह सकते हैं। लौकिक शब्द वैदिक शब्द की तरह पूर्णतः सत्य होने का दावा नहीं कर सकता है। मनुष्य के वचन झूठे भी हो सकते हैं। यदि लौकिक शब्द किसी महान् या विश्वसनीय पुरुष के द्वारा कहे जाएँ तो वे शब्द भी वैदिक वचन की तरह सत्य माने जाते हैं।

मीमांसा – दर्शन में भी शब्द के दो भेद बताए गए हैं। वे हैं-‘पौरुषेय’ और ‘अपौरुषेय’। नैयायिकों ने जिस शब्द को लौकिक कहा है, उसी को मीमांसा-दर्शन में ‘पौरुषेय’ कहा जाता है। जैसे मनुष्य के वचन या आप्तवचन ‘पौरुषेय’ शब्द कहलाते हैं। दूसरी ओर, वैदिक शब्द को मीमांसा-दर्शन में ‘अपौरुषेय’ शब्द से पुकारा जाता है। मीमांसा-दर्शन वैदिक शब्द की सत्यता एवं प्रामाणिकता को सिद्ध करना ही अपना लक्ष्य मानता है। अतः वहाँ ‘शब्द-प्रमाण’ का सहारा आवश्यक हो जाता है।

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प्रश्न 2.
न्याय-दर्शन के परिप्रेक्ष्य में वाक्य (sentence) के अर्थ को स्पष्ट करें। वाक्य को अर्थपूर्ण होने के लिए किन-किन बातों की आवश्यकता पड़ती है? अथवा, नैयायिकों के अनुसार वाक्य को अर्थपूर्ण होने हेतु किन-किन बातों की जरूरत होती है?
उत्तर:
न्याय-शास्त्र के विद्वान के अनुसार, ‘पदों के समूह का नाम वाक्य है।’ किसी वाक्य से जो अर्थ निकलता है, उसे ‘शब्द-बोध’ या वाक्यार्थ ज्ञान (verbal cognition) कहा जाता हैं। सभी पदों के समूह को हम वाक्य नहीं कह सकते हैं, बल्कि ऐसे ही पदों का समूह वाक्य कहलाता है, जिसका अर्थ निकले। किसी भी वाक्य को अर्थपूर्ण होने के लिए चार बातें आवश्यक हैं।

वे हैं-आकांक्षा, योग्यता, सन्निधि या आसक्ति एवं तात्पर्य। यहाँ इस तथ्य को स्पष्ट कर देना प्रासंगिक प्रतीत होता है कि प्राचीन न्याय-दर्शन में केवल तीन बातों, यथा-आकांक्षा, योग्यता एवं आसक्ति को आवश्यक माना गया है जबकि नव्य-न्याय के अनुसार ‘तात्पर्य’ को भी आवश्यक ‘माना गया है।

1. आकांक्षा:
वाक्य होने के लिए पदों को आपस में एक-दूसरे की अपेक्षा रहती है, जिसे ही हम आकांक्षा कहते हैं। कहने का मतलब जब एक पद दूसरे के साथ अपना सम्बन्ध स्थापित करता है, तभी वाक्य से अर्थ निकलता है। जैसे, जब हम ‘मनुष्य’ और ‘मरणशील’ में सम्बन्ध स्थापित करते हुए कहते हैं कि ‘मनुष्य’ मरणशील है तो यह वाक्य का उदाहरण है।

2. योग्यता:
वाक्यों के पदों के द्वारा जिन वस्तुओं का बोध होता है, यदि उसमें कोई विरोध नहीं हो तो इस विरोधाभाव (Absence of contradiction) को ‘योग्यता’ कहते हैं। उदाहरण के लिए, हम यदि कहें कि ‘आग से प्यास बुझायी जाती है, तो इस वाक्य में योग्यता का अभाव है।’ यदि हम कहते हैं कि ‘पानी से प्यास बुझती है’ तो इस वाक्य में योग्यता का भाव है।

3. सन्निधि या आसक्ति:
वाक्य में पदों (Terms) का एक-दूसरे से समीपता (Near ness) होना ही ‘सन्निधि’ या ‘आसक्ति’ है। कहने का अभिप्राय यदि पदों के बीच समय (time) या स्थान (Place) की बहुत ही लम्बी दूरी हो तो आकांक्षा और योग्यता रहते हुए भी अर्थ नहीं निकल सकता है। अतः पदों की निकटता वाक्य के लिए आवश्यक है। यदि हम एक पेज में लिखें ‘मनुष्य’ फिर दो-चार पन्ने के बाद लिखें ‘मरणशील’ है तो उससे वाक्य का निर्माण नहीं होगा क्योंकि सभी पद बहुत दूर-दूर हैं। यद्यपि सबों में वाक्य बनाने की ‘आकांक्षा’ और ‘योग्यता’ मौजूद है।

4. तात्पर्य:
नव्य-नैयायिकों को अनुसार ‘तात्पर्य’ का जानना किसी वाक्य के लिए बहुत आवश्यक है। कहने का मतलब है कि किसी ‘पद’ का अर्थ, समय और स्थान के साथ बदल सकता है। अतः बोलनेवाले या लिखनेवाले का अभिप्राय भी समझना आवश्यक है। जैसे- कनक, Page, Light का अर्थ क्रमशः सोना या धतूरा, नौकर या पृष्ठ, प्रकाश या हल्का होता है। अतः वाक्य लिखते समय ‘पद’ के प्रयुक्त अर्थ को लिखना आवश्यक है ताकि वाक्य को समझने में कठिनाई न हो।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 3.
हेत्वाभास से आप क्या समझते हैं? हेत्वाभास के मुख्य प्रकारों की संक्षेप में व्याख्या करें? अथवा, हेत्वाभास क्या है? इसके भेदों को लिखें।
उत्तर:
अनुमान करना मनुष्य का स्वभाव है। साथ ही गलती करना भी मानव का स्वभाव है। अनुमान करते समय जब हमसे भूल होती है तो भारतीय तर्कशास्त्र में हेत्वाभास कहा जाता है। ‘हेत्वाभास’ का व्यवहार संकुचित एवं वृहत् दोनों अर्थों में होता है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में सत्य को दो रूप में देखा जाता है। वे हैं आकारिक (Formal) एवं वास्तविक (material)। इसलिए वहाँ अनुमान में दो तरह की भूलें हो सकती है। वे हैं-आकारिक एवं वास्तविक। लेकिन भारतीय तर्कशास्त्र में केवल वास्तविक सत्यता पर ही विचार किया जाता है। अतः यहाँ आकारिक दोष की चर्चा नहीं की जाती है।

हेत्वाभास वैसा अनुमान है, जिसमें अययार्थ हेतु केवल देखने में हेतु-सा प्रतीत होता है। हेत्वाभास का शाब्दिक अर्थ है-हेतु + आभास। यानि हेतु-सा जिसका आभास हो। वस्तुतः ऐसे हेतु नहीं होने पर वैसा प्रतीत होते हैं। नैयायिकों के अनुसार ऐसे दोष वास्तविक होते हैं, आकारिक नहीं। हेत्वाभास के भेद या प्रकार-नैयायिकों के हेत्वाभास के पाँच प्रकार बताए हैं, जो निम्नलिखित हैं –

1. सव्यभिचार (Irregular Middle):
अनुमान में निष्कर्ष हेतु (Middle term) पर निर्भर करता है। हेतु का साध्य (Major term) के साथ व्याप्ति सम्बन्ध होने से अनुमान शुद्ध हो जाता है। कहने का अभिप्राय हेतु साध्य के साथ नियमित साहचर्य होना चाहिए।

जब तक हेतु तथा साध्य का सम्बन्ध नियत तथा अनौपचारिक (Unconditional) नहीं होगा तबतक उस – व्याप्ति पर आधारित अनुमान भी गलत होगा। इस गलती को भी सव्यभिचार कहते हैं। इस प्रकार के अनुमान में हेतु साख्य के साथ रह भी सकता है और नहीं भी।
जैसे – सभी ज्ञात पदार्थों में आग है।

पहाड़ ज्ञात पदार्थ है।
∴ पहाड़ पर आग है।

यहाँ हेतु (Middle term) एवं साध्य (Major Term) में नियत साहचर्य नहीं है, क्योंकि हेतु साध्य से अलग भी पाया जाता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी ज्ञात पदार्थों में आग हो।

2. विरुद्ध हेतु (Contradictory Middle):
अनुमान में हेतु के आधार पर ही साध्य को सिद्ध किया जाता है जो हम साबित करना चाहते हैं, अगर उसका विपरीत (opposite) ही हेतु द्वारा साबित हो तो अनुमान गलत समझा जाएगा तथा उसे विरुद्ध हेत्वाभास कहते हैं। जैसे-हवा भारी है क्योंकि वह अविरक्त (empty) है। यहाँ अविरक्त पद हेतु है लेकिन यह हल्कापन सिद्ध करता है, न कि भारीपन। अतः यहाँ जो सिद्ध करना है उसका उल्टा हेतु द्वारा सिद्ध होता है।

3. सत्यप्रतिपक्ष हेतु (Inferentially contradicted middle):
जब साध्य के पक्ष तथा विपक्ष में दो समान हेतु रहे तो अनुमान के इस दोष को सत्यप्रतिपक्ष हेत्वाभास कहते हैं। इन दोनों हेतुओं में एक साध्य को प्रमाणित करता है तो दूसरा अप्रमाणित। दोनों हेतुओं का बल बराबर रहता है। जैसे-शब्द नित्य है क्योंकि वह सब जगह सुनाई पड़ता है। शब्द अनित्य है क्योंकि घर की तरह वह एक कार्य है। यहाँ दूसरा अनुमान पहले अनुमान के निष्कर्ष को गलत साबित करता है, दोनों के हेतु बराबर शक्तिशाली हैं। अतः दोनों में कौन सही निष्कर्ष है-यह समझना कठिन है।

4. असिद्ध हेतु (Unproved Middle):
निष्कर्ष हेतु के आधार पर निकलता है। अतः यदि हेतु ही असिद्ध (Unproved) होगा तो उससे सही अनुमान नहीं निकलेगा। यथा, आकाश का फूल सुगन्धित है, क्योंकि फूल सुगन्धित होते हैं। असिद्ध हेत्वाभास भी तीन तरह के होते हैं – आश्रयासिद्ध, स्वरूपासिद्ध एवं अन्यथासिद्ध।

आश्रयासिद्ध:
यदि हेतु का आश्रय भूत अर्थात् पक्ष ही असिद्ध रहे तो उससे उत्पन्न दोष को आश्रयसिद्ध हेत्वाभास कहेंगे। जैसे-आकाश का फूल सुगन्धित है क्योंकि सभी फूल सुगन्धित होते हैं।

स्वरूपासिद्ध:
इसमें दिया हेतु पक्ष में नहीं रहता है। जैसे—आवाज नित्य है क्योंकि वह दृश्य पदार्थ है। यहाँ पक्ष ‘आवाज’ में हेतु-दृश्य पदार्थ का होना असिद्ध है।

अन्यथासिद्ध:
इस तरह के हेत्वाभास के दिए गए हेतु के अभाव में भी साध्य का सिद्ध होना संभव है। जैसे-वह मनुष्य विद्वान है क्योंकि वह ब्राह्मण है। यहाँ ‘ब्राह्मण’ और ‘विद्वान’ के बीच सही अर्थ में व्याप्ति सम्बन्ध नहीं है क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि ब्राह्मण विद्वान ही हों।

5. बाधिक या कालातीत हेतु (Non-inferentially Contradicted Middle):
हेतु से बलशाली दूसरा प्रमाण अगर साध्य को गलत साबित कर दे तो वह अनुमान दोषपूर्ण समझा जाता है। जैसे-आग ठंडी है क्योंकि वह एक द्रव्य है। यहाँ जो बात कही गयी है वह देखने को नहीं मिलती है। प्रत्यक्ष ज्ञान हमें यह बोध कराता है कि आग गर्म है। अतः यहाँ प्रत्यक्ष ज्ञान हेतु से। अधिक बलशाली हेतु को उल्टा ही साबित करता है।

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प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष (Perception) क्या है? प्रत्यक्ष के कितने भेद हैं? अथवा, प्रत्यक्ष के मुख्य प्रकारों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
गौतम ने प्रमाण के चार भेद बताएँ हैं। उन्होंने ‘प्रत्यक्ष’ को ‘प्रमा’ (Real knowledge) की प्राप्ति का पहला प्रमाण माना है। इन्द्रिय एवं वस्तु के संयोग से जिस ज्ञान की उत्पत्ति होती है, उसे हम प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। हमें पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं आँख, नाक, कान, जीभ एवं त्वचा। इनका जब वस्तुओं के साथ संयोग होता है तो जिस अनुभव की उत्पत्ति होती है, उसे हम प्रत्यक्ष कहते हैं।

जैसे-जब कान का संगीत के साथ सम्पर्क होता है तो हमें संगीत का प्रत्यक्ष होता है। अतः इन्द्रिय और वस्तु के सम्पर्क से जिस असंदिग्ध यथार्थ ज्ञान की उत्पत्ति होती है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके अतिरिक्त ‘मन’ (Mind) को छठा ज्ञानेन्द्रिय (Sence organ) बताया गया है। मन एक भीतरी ज्ञानेन्द्रिय (Inner sense organ) है। सुख, दुख, इच्छा, प्रेम आदि का ज्ञान ‘मन’ के द्वारा ही प्राप्त होता है।

प्रत्यक्ष के भेद (Forms of Perception):
प्रत्यक्ष का वर्गीकरण भारतीय तर्कशास्त्र में कई तरह से बताया गया है। कहने का अभिप्राय भिन्न-भिन्न आधार पर प्रत्यक्ष के भिन्न-भिन्न भेद बताए गए हैं। इन्द्रिय का पदार्थ के साथ सम्पर्क होने पर प्रत्यक्ष ज्ञान होता है। इस आधार पर प्रत्यक्ष के दो प्रकार हैं –

  1. लौकिक प्रत्यक्ष (Ordinary perception)
  2. अलौकिक प्रत्यक्ष (Extra-ordinary perception)।

1. लौकिक प्रत्यक्ष:
जब इन्द्रियों के साथ वस्तु का साधारण सम्पर्क (Simple contact) होता है तो हम उसे लौकिक प्रत्यक्ष (ordinary.perception) कहते हैं। जैसे-आँख से जब कमल के फूल का सम्पर्क होता है तो हमें प्रत्यक्ष ज्ञान होता है कि वह फूल लाल, उजला या पीला है। लौकिक प्रत्यक्ष के दो भेद हैं-बाह्य प्रत्यक्ष (External perception) एवं मानस प्रत्यक्ष (Mental perception)।

बाह्य प्रत्यक्ष (External Perception):
बाह्य प्रत्यक्ष हमें अपनी बाहरी ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त होती हैं, जिनकी संख्या पाँच हैं। इसे हम चाक्षुष-प्रत्यक्ष (Visual perception), श्रवण-प्रत्यक्ष (Auditory perception), घ्राणज-प्रत्यक्ष (Olfactory percetion), रासना-प्रत्यक्ष (Taste perception) एवं त्वाचिक-प्रत्यक्ष (Tactual perception) के नाम से जानते हैं।

मानस प्रत्यक्ष:
न्याय-दर्शन में ‘मन’ को एक ज्ञानेन्द्रिय (Sense-organ) के रूप में माना गया है। मन द्वारा जब आन्तरिक अवस्थाओं का प्रत्यक्ष होता है तो उसे मानस-प्रत्यक्ष कहते हैं। मानस प्रत्यक्ष के उदाहरण सुख, दुख, प्रेम, घृणा आदि मनोभावों के अनुभव हैं। मन को न्यायशास्त्र में केन्द्रीय इन्द्रिय के रूप में माना गया है। इस तथ्य को वैशेषिक, सांख्य और मीमांसा दर्शन भी मानते हैं। क्योंकि ‘मन’ सभी प्रकार के ज्ञान के बीच एकता स्थापित करता है।

केवल वेदान्त-दर्शन ‘मन’ को एक आन्तरिक ज्ञानेन्द्रिय नहीं मानता है। लौकिक प्रत्यक्ष के अन्य तीन भेदों की चर्चा की गयी है। वे हैं-निर्विकल्प प्रत्यक्ष, सविकल्प प्रत्यक्ष एवं प्रत्यभिज्ञा। निर्विकल्प प्रत्यक्ष-कभी-कभी पदार्थों का प्रत्यक्ष तो होता है लेकिन उसका स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। उसका सिर्फ आभास मात्र होता है। उदाहरण के लिए, गम्भीर चिन्तन या अध्ययन में मग्न होने पर सामने की वस्तुओं का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाता है। हमें सिर्फ यह ज्ञान होता है कि कुछ है, लेकिन क्या है, इसको नहीं जानते हैं। निर्विकल्प प्रत्यक्ष को मनोविज्ञान में संवेदना के नाम से भी जानते हैं।

सविकल्प प्रत्यक्ष:
जब किसी विषय या वस्तु का प्रत्यक्ष हमें हो तथा उस विषय का ज्ञान भी हमें प्राप्त हो जाए कि वह ‘क्या है’ तो उसे हम सविकल्प प्रत्यक्ष कहते हैं। इसे ही हम मनोविज्ञान में प्रत्यक्षीकरण कहते हैं। मनोविज्ञान में ‘प्रत्यक्षीकरण’ की परिभाषा अर्थपूर्ण संवेदना के रूप में दी गयी है। उदाहरण के लिए, जब कान से कोई आवाज सुनाई पड़ती है तो सुनाई निर्विकल्प प्रत्यक्ष रहता है, लेकिन जब हम यह जान जाते हैं कि वह सुनाई पड़नेवाली आवाज ‘कोयल’ की ही है, तो इसे हम सविकल्प प्रत्यक्ष कहेंगे।

प्रत्यभिज्ञा-न्यायशास्त्र में कुछ नैयायिकों ने निर्विकल्प और सविकल्प प्रत्यक्ष के साथ एक तीसरा लौकिक प्रत्यक्ष के रूप में प्रत्यभिज्ञा की चर्चा की है। प्रत्यभिज्ञा को हम हिन्दी में ‘पहचानना’ कह सकते हैं। ‘प्रत्यभिज्ञा’ का अर्थ है ‘प्रतिगता अभिज्ञान’। कहने का अर्थ है कि जिस विषय का पहले साक्षात्कार हो चुका हो, उसका फिर से अगर प्रत्यक्ष हो तो उसे ‘प्रत्यभिज्ञा’ कहेंगे। यदि हम किसी व्यक्ति को देखकर यह कह बैठते हैं कि यह अमुक लड़की है। जिसको हमने अमुक समय में अमुक स्थान पर देखा था तो इसे हम प्रत्यभिज्ञा कहते हैं। हमें इस तथ्य को स्मरण रखनी चाहिए कि इन की इन तीनों लौकिक प्रत्यक्ष के वर्गीकरण को बौद्ध दर्शन एवं वेदान्त दर्शन नहीं मानते हैं।

2. अलौकिक प्रत्यक्ष:
जब किसी पदार्थ या वस्तु के साथ इन्द्रियों का असाधारण या अलौकिक सम्पर्क हो तो वह अलौकिक प्रत्यक्ष कहलाता है। उदाहरण के लिए हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ कुछ ही जानवरों को देख सकती हैं। सभी जानवरों को साधारण रूप में जानना असंभव है। इसके बावजूद हमें सभी जानवरों के ‘पशुत्व-गुण’ का प्रत्यक्ष हो सकता है। इसे ही हम अलौकिक प्रत्यक्ष कहते हैं। अलौकिक प्रत्यक्ष के तीन भेद यानि प्रकार होते हैं-सामान्य लक्षण, ज्ञान लक्षण एवं योगज।

सामान्य लक्षण:
जाति गुण के द्वारा सम्पूर्ण जाति का प्रत्यक्ष होना सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष कहलाता हैं। मनुष्य का जाति गुण मनुष्यता है। किसी एक मनुष्य में ‘मनुष्यत्व’ को देखकर हम सम्पूर्ण मानव जाति को देख लेते हैं क्योंकि यह गुण सभी मनुष्यों का सामान्य गुण है। सभी मानव का लौकिक प्रत्यक्ष संभव नहीं है। इसलिए हम कहते हैं कि सबों का अलौकिक प्रत्यक्ष होता है।

अतः जाति-गुण के प्रत्यक्ष के द्वारा सम्पूर्ण जाति का प्रत्यक्ष होना सामान्य लक्षण प्रत्यक्ष है। ज्ञान लक्षण-जब हमें एक इन्द्रिय से किसी दूसरी इन्द्रिय के विषय का प्रत्यक्ष होता है तो यह असाधारण या अलौकिक प्रत्यक्ष है, जिसे हम ज्ञान-लक्षण कहते हैं। जैसे-चन्दन देखने से सुगन्धित होने का ज्ञान, चाय देखने से गर्म होने का ज्ञान आदि अलौकिक ज्ञान लक्षण के श्रेणी में आते हैं।

योगज:
योगज ऐसा प्रत्यक्ष है जो भूत, वर्तमान, भविष्य के गुण तथा सूक्ष्म, निकट तथा दूरस्थ सभी प्रकार की वस्तुओं की साक्षात् अनुभूति कराता है। योगज या अन्तर्ज्ञान एक शक्ति हैं जिसे हम बढ़ा-घटा सकते हैं। जब यह शक्ति बढ़ जाती है तो हम दूर की चीजें तथा सूक्ष्म-चीजों का भी प्रत्यक्ष कर पाते हैं। ‘युजान’ की अवस्था में जो मनुष्य होते हैं, उन्हें कुछ ध्यान धारण करने से योगज की शक्ति आ जाती है। भगवान बुद्ध को ‘निर्वाण’ का योग, शंकराचार्य को ‘ब्रह्म का ज्ञान’ तथा तुलसीदास को चित्रकूट के घाट पर चन्दन घिसते समय भगवान राम के ‘दर्शन’ ये सभी योगज के उदाहरण कहे जा सकते हैं।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 5.
पाश्चात्य न्याय वाक्य और पंचावयव में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पाश्चात्य न्याय वाक्य एवं पंचावयव में निम्नलिखित मुख्य अंतर हैं –

  1. पाश्चात्य न्याय वाक्य (Syllogism) में केवल तीन वाक्य होते हैं, जबकि गौतम के पंचावयव में पाँच वाक्य होते हैं।
  2. पश्चात्य न्याय-वाक्य में निष्कर्ष तीसरे या अन्तिम वाक्य के रूप में होता है, लेकिन गौतम के पंचावयव में निष्कर्ष यानि निगमन तीसरे वाक्य के रूप में नहीं रहता है। यह प्रतिज्ञा के रूप में एक जगह पहले वाक्य के रूप में रहता है तथा निगमन के रूप में पाँचवें वाक्य की जगह होता है।
  3. पाश्चात्य न्याय वाक्य में जो वाक्य वृहत् वाक्य (Major premise) के रूप में रहता है वह वाक्य ‘व्याप्ति’ के रूप में ‘पंचावयव’ में तीसरे स्थान के वाक्य में रहता है।
  4. पाश्चात्य न्याय-वाक्य (Syllogism) में उदाहरण देने की कोई जरूरत नहीं होती है उसके लिए कोई जगह भी नहीं रहती है, लेकिन गौतम के पंचावयव में निगमन को मजबूत दिखाने के लिए उदाहरण दिया जाता है तथा उसके लिए ‘व्याप्ति-वाक्य’ के रूप में एक खास स्थान दिया जाता है।
  5. पाश्चात्य न्याय वाक्य में परिभाषा तथा गुण की स्थापना पश्चिमी तरीके से की जाती है जो भारतीय तरीके से भिन्न है। इसलिए दोनों के न्याय-वाक्य का गुण भी आपस में एक-दूसरे से भिन्न श्रेणी का पाया जाता है।
  6. भारतीय नैयायिकों का तर्क है कि पाँच वाक्य होने से हमारा अनुमान अधिक मजबूत होता है जबकि पाश्चात्य न्याय वाक्य में केवल तीन वाक्य ही होते हैं। अतः उनका अनुमान पंचावयव की तरह मजबूत नहीं कहा जा सकता है।
  7. पाश्चात्य न्याय वाक्य में एक ही वाक्य पूर्णव्यापी होता है, जिसे हम वृहत् वाक्य के रूप में जानते हैं। उदाहरणार्थ सभी मनुष्य मरणशील हैं।
  8. पाश्चात्य तर्कशास्त्र में पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना हेतु आगमन की जरूरत पड़ती है, जिसमें कुछ उदाहरणों का निरीक्षण कर हम पूर्णव्यापी वाक्य बनाते हैं। जैसे-मोहन, सोहन, करीम, आदि को मरते देखकर हम पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना करते हैं कि ‘सभी मनुष्य मरणशील हैं।’
  9. भारतीय न्याय दर्शन में ‘आगमन’ के रूप में कोई तर्कशास्त्र अलग नहीं है। जो काम आगमन के द्वारा होता है वह तो उदाहरण सहित ‘व्याप्ति-वाक्य’ में ही हो जाता है।
  10. इस प्रकार स्पष्ट है कि ‘पंचावयव’ में आगमन एवं निगमन दोनों सम्मिलित हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि पाश्चात्य न्याय-वाक्य एवं पंचायवयव’ में मौलिक अंतर है।

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प्रश्न 6.
न्याय-शास्त्र में ज्ञान (Knowledge) के अर्थ को स्पष्ट करें। न्यायशास्त्र के सोलह पदार्थों की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
भारतीय दर्शनों में ज्ञान, बुद्धि एवं प्रत्यय इत्यादि शब्दों का प्रयोग एक अर्थ या एक रूप में नहीं किया जाता है। अतः इन शब्दों के एक अर्थ में प्रयोग की आदत से एक शब्द-भ्रम हो जाता है। अतः इन भ्रमों से बचने के लिए न्याय-सूत्र में उन शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में किया जाता है। ‘ज्ञान’ शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है, व्यापक तथा संकुचित अर्थ में। व्यापक अर्थ में यथार्थ और अयथार्थ दोनों तरह के ज्ञान का बोध कराया जाता है।

संकुचित अर्थ में ज्ञान का मतलब केवल यथार्थ ज्ञान से ही लिया जाता है। न्यायशास्त्र में ज्ञान के दो प्रकार बताए जाते हैं। वे हैं-प्रमा (Real) एवं अप्रमा (Unreal knowledges)। मनुष्य का अनुभव भी दो तरह का होता है यथार्थ और अयथार्थ। यथार्थ अनुभव के द्वारा जो हम ज्ञान प्राप्त करते हैं उसे ‘प्रमा’ कहते हैं, जैसे अपनी आँख से देखकर यह कहना कि दूध उजला होता है। इसके विपरीत, अयथार्थ अनुभव के आधार पर जो हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, उसे ‘अप्रमा’ कहते हैं। जैसे अंधेरी रात में रस्सी को देखकर साँप का ज्ञान होना। प्रमा को प्राप्त करने के लिए जो साधन बताए गए हैं, उन्हें प्रमाण कहा जाता है। न्याय-दर्शन के अनुसार सोलह पदार्थ हैं, वे निम्नलिखित हैं –

1. प्रमाण:
प्रमा को प्राप्त करने के जो साधन हैं, उसे ही प्रमाण कहते हैं। अतः प्रमाण के द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने के सभी उपायों का वर्णन किया जाता है।

2. प्रमेय:
प्रमाण के द्वारा जिन विषयों का ज्ञान हमें होता है, उसे प्रमेय कहते हैं। गौतम के अनुसार प्रमेय की संख्या बारह है –

  • आत्म
  • शरीर
  • उभय ज्ञानेन्द्रियाँ
  • इन्द्रियों के विषय
  • बुद्धि
  • मन
  • प्रवृत्ति
  • दोष
  • प्रैत्यभाव यानि पुनर्जन्म
  • फल
  • दुःख तथा
  • अपवर्ग प्रमेयों का वर्णन किया है, जिनसे मोक्ष की प्राप्ति हो।

3. संशय:
यह मन की वह अवस्था है, जिसमें मन के सामने दो या अधिक विकल्प दिखाई पड़ते हैं। अतः जब एक ही वस्तु के सम्बन्ध में कई परस्पर विरोधी विकल्प उठ जाते हैं तो उसका निश्चित ज्ञान नहीं होता है, उसे ही हम संशय कहते हैं। संशय न तो निश्चित ज्ञान है और न ज्ञान का पूर्ण अभाव। इसे हम भ्रम या विपर्यय भी नहीं कह सकते हैं।

4. प्रयोजन:
जिसके लिए कार्य में प्रवृत्ति होती है उसे ही प्रयोजन कहते हैं। प्रयोजन की प्राप्ति के लिए ही हम कोई कार्य करते हैं। जो कोई कार्य इच्छापूर्वक किया जाता है, उसका प्रयोजन अवश्य रहता है।

5. दृष्टांत:
जिसे देखने से किसी बात का निश्चय हो जाए, उसे दृष्टांत कहते हैं, वाद-विवाद में अपनी बात को साबित करने के लिए इसका सहारा लिया जाता है।

6. सिद्धान्त:
सिद्धान्त उसे कहते हैं जिसके द्वारा किसी वाद-विवाद का अन्तर का विषय साबित हो जाए। कोई विषय जब प्रमाण द्वारा अन्तिम रूप से स्थापित किया जाता है तो उसे सिद्धान्त कहते हैं।

7. अवयव:
अनुमान दो तरह का होता है। वे हैं-स्वार्थानुमान और परार्थानुमान। परार्थानुमान में हम पाँच नियम पूर्ण वाक्यों द्वारा कोई अनुमान निकालते हैं। उन नियमपूर्ण वाक्यों को ही अवयव कहते हैं।

8. तर्क:
तर्क एक प्रकार की काल्पनिक युक्ति है जिसके द्वारा विपक्षी के कथन को दोषपूर्ण और गलत साबित किया जाता है। तर्क के द्वारा ही किसी सिद्धान्त का प्रबल समर्थन होता है।

9. निर्णय:
किसी विषय के सम्बन्ध में निश्चित ज्ञान को ही निर्णय कहते हैं। अत: किसी विषय के सम्बन्ध में उत्पन्न संशय के दूर हो जाने पर हम जिस निश्चय पर पहुँचते हैं, उसे ही निर्णय कहते हैं।

10. बाद:
बाद उस विचार को कहते हैं, जिसमें प्रमाण और तर्क की सहायता से विपक्षी के कथन की पूर्ण खंडन करके अपने पक्ष का समर्थन किया जाता है और वहीं पर लिया गया यह अन्तिम निर्णय किसी स्वीकृत पूर्व स्थापित सिद्धान्त के विरोध में नहीं होता है।

11. जल्प:
जब वादी और प्रतिवादी के वाद-विवाद का उद्देश्य यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना नहीं होता है, तो वह जल्प कहलाता है। इसमें सत्य की प्राप्ति की इच्छा का बिल्कुल ही अभाव रहता है। यहाँ दोनों पक्षों का उद्देश्य केवल विजय प्राप्त करना ही रहता है।

12. वितंडा:
वितंडा वह है जिसमें वादी अपने पक्ष का समर्थन नहीं करता केवल प्रतिवादी के मत का खंडन करता चला जाता है। वितंडा में केवल प्रतिवादी के मत का किसी तरह खंडन करके ही जीतने का प्रयास किया जाता है। जल्प में वादी किसी-न-किसी तरह से अपने मत का प्रतिपादन भी करता है, जिसका अभाव वितंडा में पाया जाता है।

13. छल:
जब प्रतिवादी के शब्दों का वास्तविक अर्थ छोड़कर कोई दूसरा अर्थ ग्रहण करके दोष दिखलाया जाए, तो उसे छल कहते हैं। यह धूर्तता पूर्ण उत्तर है। छल तीन प्रकार का होता है –

(क) वाक्छल
(ख) सामान्य छल
(ग) उपचार छल।

14. जाति:
केवल समानता और असमानता के आधार पर जो दोष दिखाया जाता है उसे जाति कहते हैं। उदाहरण के लिए नैयायिकों का कहना है कि शब्द अनित्य है, क्योंकि वह घर की तरह एक कार्य है। अगर कोई इसका खंडन यह कहकर करना चाहे कि ‘शब्द’ और ‘अशरीरधारी’ में कोई भी व्याप्ति सम्बन्ध नहीं किया जा सकता है।

15. निग्रह स्थान:
इसका शाब्दिक अर्थ होता है पराजय अथवा तिरस्कार का स्थान वाद-विवाद के क्रम में वादी एक ऐसे स्थान पर पहुँच जाता है, जहाँ उसे हार स्वीकार करनी पड़ती है या उसके चलते कोई अपमान सहना पड़ता है तो उसे निग्रह स्थान कहते हैं। निग्रह स्थान के दो कारण होते हैं। वे हैं-अज्ञानता एवं गलत ज्ञान।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 7.
अनुमान क्या है? अनुमान के विभिन्न भेदों की संक्षेप में व्याख्या करें। अथवा, अनुमान से आप क्या समझते हैं? अनुमान के मुख्य प्रकारों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारतीय तर्कशास्त्र में प्रत्यक्ष के बाद अनुमान दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। भारतीय न्यायशास्त्र में अनुमान का महत्त्व पाश्चात्य तर्कशास्त्र के जैसा नहीं माना गया है। भारतीय तर्कशास्त्र में ‘अनुमान’ को केवल ज्ञान प्राप्त करने का एक साधन मात्र माना गया है। अनुमान शब्द के दो भाग मालूम पड़ते हैं-अनु + मान। ‘अनु’ का अर्थ होता है पश्चात् या बाद में तथा ‘मान’ का अर्थ होता है ज्ञान। अतः अनुमान का शाब्दिक अर्थ है बाद में प्राप्त होने वाला ज्ञान।

भारतीय तर्कशास्त्रियों के अनुसार ‘अनुमान’ उस ज्ञान को कहते हैं जो किसी पूर्वज्ञान के बाद प्राप्त होता है। जैसे-आकाश में बादल देखने के बाद अनुमान करते हैं कि वर्षा होगी। न्यायशास्त्र के अनुसार जिसके आधार पर कोई अनुमान निकाला जाए उसे ‘हेतु’ या ‘साधन’ या ‘लिंग’ अथवा ‘चिह्न’ कहते हैं। न्याय-दर्शन में अनुमान को ‘तत्पूर्वक’ भी कहा गया है। इसका अर्थ है-“दो प्रत्यक्ष जिसके पूर्व में हो, वह अनुमान है। ऐसा विचार गौतम का है।” अनुमान के भेद या प्रकार-भारतीय तर्कशास्त्र में अनुमान को हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं। वे हैं –

(अ) प्रयोजन के अनुसार (According to purpose)
(ब) प्राचीन न्याय यानि गौतम के अनुसार (According to Gautam or old Nyana)
(स) नव्य-न्याय के अनुसार (According to New-Nyaya)

यहाँ हम गौतम के विचारानुसार अनुमान के भेदों को समझने का प्रयत्न करेंगे।

प्रयोजन के अनुसार अनुमान के प्रकार (According to purpose):
अनुमान करने में हमारे दो उद्देश्य या प्रयोजन हो सकते हैं-एक तो अपने लिए अनुमान करना और दूसरे लोगों या पराये लोगों के लिए अनुमान करना। इस दृष्टि से अनुमान के दो भेद हैं –

(क) स्वार्थानुमान (Knowledge for oneself)
(ख) परार्थानुमान (Knowledge for others)

स्वार्थानुमान:
जब हम केवल अपने बारे में कुछ जानना चाहते हैं या अपनी शंका को दूर करने के लिए अनुमान करते हैं तो वह स्वार्थानुमान कहलाता है। इसमें तीन ही वाक्यों का प्रयोग होता है। जैसे-पहाड़ पर धुआँ है तो अन्त में हेतु (Middle term) और साध्य (Major term) के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal relation) के द्वारा सम्बन्ध दिखाया जाता है। यथा, जहाँ-जहाँ धुआँ है, वहाँ-वहाँ आग रहती है।

परार्थानुमान:
जो अनुमान दूसरों की शंका मिटाने या समझाने के लिए किया जाता है, उसे हम परार्थानुमान कहते हैं। परार्थानुमान में अनुमान के लिए पाँच वाक्य की आवश्यकता होती है, जिसे गौतम मुनि ने पंचावयव (Five membered syllogism) कहा है। जैसे –

  1. पहाड़ पर आग है। – प्रतिज्ञा
  2. क्योंकि पहाड़ पर धुआँ है।
  3. जहाँ धुआँ रहता है, वहाँ आग रहती है। – यथा रसोईघर (उदाहरण सहित व्याप्ति वाक्य)
  4. पहाड़ पर धुआँ है। – उपनय
  5. इसलिए पहाड़ पर आग है। – निगमन भारतीय तर्कशास्त्र में गौतम के पंचावयव नाम से प्रसिद्ध है।

गौतम या प्राचीन न्याय के अनुसार अनुमान के भेद या प्रकार:
गौतम के अनुसार न्याय के तीन भेद होते हैं –

(क) पूर्ववत् अनुमान (Inference from Cause to Effect)
(ख) शेषवत् अनुमान (Inference from Effect to cause)
(ग) सामान्यतोदृष्टि (Inference from Similarity)

(क) पूर्ववत् अनुमान:
जब हम कारण से कार्य का कोई अनुमान निकालते हैं तो वह पूर्ववत् अनुमान कहलाता है। इसमें भविष्य का अनुमान वर्तमान कारण से भी करते हैं। जैसे-समय से वर्षा देखकर अच्छी फसल का अनुमान करना पूर्ववत् अनुमान है। इसी तरह, बादल देखकर वर्षा का अनुमान पूर्ववत् अनुमान है। यहाँ ‘बादल’ कारण है और उसका कार्य ‘वर्षा’ है। इस तरह का अनुमान व्याप्ति-सम्बन्ध (Universal Relation) पर भी आश्रित रहता है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में यह अनुमान कार्य-कारण के नियम (Law of Causation) पर निर्भर करता है।

(ख) शेषवत् अनुमान:
यह अनुमान भी कार्य-कारण के नियम पर निर्भर करता है। शेषवत् अनुमान में हम कार्य से कारण (from effect to cause) के बारे में कुछ सोचते हैं। अतः जब कोई कार्य दिया रहे और तब उसके कारण (cause) का जो हम अनुमान करेंगे उसे शेषवत् अनुमान कहेंगे। जैसे-सड़क पर पानी देखकर वर्षा का अनुमान, मलेरिया देखकर उसके मच्छर का अनुमान आदि शेषवत् अनुमान के उदाहरण हैं।

(ग) सामान्यतोदृष्टि:
यदि दो पदार्थों या वस्तुओं को साथ-साथ देखें तो एक को देखकर दूसरे का भी अनुमान किया जा सकता है। यह ‘सामान्यतोदृष्टि’ अनुमान कहलाता है। जैसे-जब किसी जानवर में ‘सीग’ देखते हैं तो उसमें ‘पूँछ’ होने का भी अनुमान कर बैठते हैं तो यह सामान्यतोदृष्टि अनुमान है। इसमें कार्य-कारण नियम का सर्वथा अभाव होता है। इसमें अनुमान का आधार सामान्यता की बातें (Point of similarity) तथा दो वस्तुओं के साथ मेल की बातें रहती हैं।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 8.
गौतम के अनुसार ‘पंचावयव’ का विशलेषण करें। अथवा, न्याय दर्शन के अनुसार पाँच वाक्यों (Five propositions) को समझावें।
उत्तर:
परार्थानुमान में हमें अपने विचारों को सुव्यवस्थित करना पड़ता है। अपने वाक्यों को सावधानी और आत्मबल के साथ एक तार्किक शृंखला में रखना पड़ता है। अतः परार्थानुमान में हमें पाँच वाक्यों की जरूरत पड़ती है। इस प्रकार के अनुमान में पाँच हिस्से होते हैं। इसे पंचावयव (Five membered Syllogism) के नाम से पुकारा जाता है।

‘पंचावयव’ का अर्थ ही होता है जिसमें पाँच अवयव या हिस्से हों। न्याय दर्शन में इसे ही गौतम का पंचावयव नाम से जानते हैं। इसे ‘न्याय प्रयोग’ के नाम से भी जानते हैं। मीमांसा दर्शन एवं वेदान्त दर्शन के विद्वानों के अनुमान के निमित्त केवल तीन वाक्यों को ही चर्चा की है। उनके अनुसार पंचावयव में समय और शक्ति की बचत होती है। गौतम के अनुसार पंचावयव में पाँच वाक्यों का होना आवश्यक है। इसे हम निम्नलिखित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं –

  1. पहाड़ पर आग है। – प्रतिज्ञा
  2. क्योंकि पहाड़ पर धुआँ है। – हेतु
  3. जहाँ धुआँ रहता है, वहाँ आग रहती है। – यथा रसोईघर। उदाहरण सहित व्याप्ति वाक्य
  4. पहाड़ पर धुआँ है। – उपनय
  5. इसलिए पहाड़ पर आग है। – निगमन प्रतिज्ञा-प्रतिज्ञा अनुमान का वह वाक्य है जिसे हम साबित करना चाहते हैं।

वाक्यों के क्रम में इसका पहला स्थान होता है। गौतम मुनि के अनुसार जो हमें साबित करना है उसका एक मजबूत संकल्प कर लेना चाहिए। इसीलिए इसे प्रतिज्ञा के नाम से पुकारा जाता है। गौतम के अनुसार जो साध्य विषय है, उसका निर्देशन करना ही प्रतिज्ञा है, जैसे-‘पहाड़ पर आग है’ यह अनुमान में प्रतिज्ञा के रूप में है।

हेतु-हेतु का स्थान न्याय-वाक्य में दूसरा रहता है। यह प्रतिज्ञा का कारण बताता है। प्रतिज्ञा की वास्तविकता दिखाने के लिए जिस कारण को हम सामने वाक्य के रूप में रखते हैं, उसे हेतु कहेंगे। क्योंकि इसमें धुआँ है।’ हेतु वाक्य है। पाश्चात्य तर्कशास्त्र में हेतु के साथ मेल खाते हुए जो वाक्य होते हैं, उसे लघु वाक्य (Minor premise) के नाम से जानते हैं।

उदाहरण सहित व्याप्ति-वाक्य-यह एक पूर्णव्यापी वाक्य के रूप में रहता है। इसका स्थान भारतीय न्याय वाक्यों के क्रम में तीसरा रहता है। इस वाक्य में ‘साध्य’ (Major term) एवं हेतु’ (Middle term) का वह सम्बन्ध दिखाया जाता है जो टूट नहीं सकता है। व्याप्ति-सम्बन्ध बहुत ही मजबूत रहता है, वह टूटता नहीं है। इसका रूप सर्वव्यापक रहता है।

जैसे-‘धुआँ’ और ‘आग’ के बीच व्याप्ति सम्बन्ध है। जैसे रसोईघर का उदाहरण देकर हम यह बताना चाहते हैं कि रसोईघर में जब धुआँ देखते हैं तो वहाँ पर आग मिलती है। अतः इसे हम उदाहरणसहित व्याप्ति वाक्य कहते हैं। वस्तुतः यह अनुमान का मेरुदण्ड है। जब तक इस वाक्य की हम स्थापना नहीं करेंगे तब तक प्रतिज्ञा साबित नहीं होती है।

उपनय-उपनय का स्थान पंचावयव में चौथा है। अनुमान के लिए यहीं पर वह स्थान या पक्ष रहता है यहाँ हम कुछ साबित कर दिखाना चाहते हैं। यहाँ साध्य के अस्तित्व को दिखाने की व्यवस्था की जाती है। ‘पहाड़ पर धुआँ है। उपनय का उदाहरण है। गौतम के अनुसार ‘हेतु’ और ‘साध्य’ का सम्बन्ध उदाहरण के द्वारा देने के बाद अपने पक्ष में उसे स्वींचना ही उपनय कहलाता है। निगमन-निगमन को दूसरे शब्दों में निष्कर्ष भी कहते हैं। निगमन वही वाक्य है जिसमें हम अनुमान के द्वारा कुछ साबित कर दिखला देते हैं।

गौतम के पंचावयव में इसका स्थान पाँचवें वाक्प के रूप में रहता है। स्वार्थानुमान या पाश्चात्य न्याय-वाक्य में इसका स्थान तीसरे वाक्य के रूप में रहता है। गौतम के अनुसार जब प्रतिज्ञा साबित हो जाती है तो उसका रूप ‘निगमन’ का हो जाता है।

उदाहरण के लिए-‘पहाड़ पर आग है’ इसे हम साबित करना चाहते थे, अतः जब तक यह साबित नहीं हुआ था तब तक इसे हम प्रतिज्ञा के नाम से जानते थे लेकिन जब ‘हेतु’, ‘व्याप्ति-वाक्य’ और ‘उपनय’ की सहायता से इसे साबित कर देते हैं तो इसका रूप निगमन का हो जाता है। अतः प्रतिज्ञा जब ‘निगमन’ की अवस्था में आता है तो वहाँ संदेह दूर हो जाता है। इसके एक विश्वास और बल मिल जाता है। वस्तुतः निगमन ही ‘अनुमान’ की अन्तिम सीढ़ी है।

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि गौतम अनुमान की परिपक्वता एवं मजबूती के लिए पाँच वाक्यों का होना आवश्यक बताते हैं। गौतम ने तो केवल पंचावयव को आवश्यक बताया जबकि वात्स्यायन मुनि ने दस अवयव की चर्चा की जो उपयुक्त नहीं जान पड़ता है। मीमांसा एवं वेदान्त दर्शन केवल तीन वाक्यों को ही आवश्यक बताते हैं। वस्तुतः गौतम के पंचावयव का अपना विशेष महत्त्व है। यहाँ पाश्चात्य तर्कशास्त्र की तरह आगमन का अलग अस्तित्व नहीं रखा गया है।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 5 ज्ञान का न्याय सिद्धान्त (प्रमाणशास्त्र)

प्रश्न 9.
प्रमाण-शास्त्र (Theory of knowledge) में प्रमाण के कितने स्त्रोत बताए गए हैं? संक्षेप में व्याख्या करें। अथवा, गौतम के अनुसार वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति के कितने स्त्रोत हैं? अथवा, प्रमा (Real knowledge) प्राप्ति के कितने साधन हैं? विवेचना करें।
उत्तर:
न्याय दर्शन गौतम के प्रमाण-सम्बन्धी विचारों पर आधारित है। न्यायशास्त्र में ज्ञान के दो स्वरूप बताए गए हैं। वे हैं-प्रमा एवं अप्रमा। प्रमा ही ज्ञान का वास्तविक स्वरूप है। प्रमा को प्राप्त करने के जितने साधन बताए गए हैं, उन्हें ही ‘प्रमाण’ कहते हैं। प्रमाण के सम्बन्ध में जो विचार पाए जाते हैं, उन्हें ही प्रमाण-शास्त्र के नाम से पुकारते हैं। गौतम के अनुसार प्रमाण – के चार प्रकार बताए गए हैं। गौतम के अनुसार चार तरह के वास्तविक ज्ञान यानि प्रमा की प्राप्ति हो सकती है। वे हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान एवं शब्द।

1. प्रत्यक्ष (Perception):
न्यायशास्त्र में प्रत्यक्ष को प्रमाण का पहला भेद बताया गया है। प्रत्यक्ष की उत्पत्ति प्रति + अक्षण से हुई है, जिसका अर्थ ‘आँख’ के सामने होना होता है। लेकिन यह संकीर्ण अर्थ है क्योंकि प्रत्यक्ष का मतलब ‘आँख’ के साथ-साथ अन्य इन्द्रियों से रहता हैं कान से सुनना, जीभ से चखना, नाक से सूंघना, चमड़े से छूना भी उसी तरह का प्रत्यक्ष कहलाता है, जिस तरह आँख से देखना। अतः प्रत्यक्ष का अर्थ होता है किसी भी ज्ञानेन्द्रिय के सामने होना। प्रत्यक्ष तभी संभव है जब इन्द्रियाँ (Organs) और पदार्थ (Object) के बीच एक सन्निकर्ष (Contact) हो। प्रत्यक्ष के मुख्य दो भेद होते हैं –

(क) लौकिक प्रत्यक्ष एवं अलौकिक प्रत्यक्ष (Extra-ordinary perception)। लौकिक प्रत्यक्ष के दो भेद बताये गए हैं। वे हैं-बाह्य प्रत्यक्ष (External Perception) एवं मानस-प्रत्यक्ष (Internal Perception) न्यायं दर्शन में मन (Mind) एक ज्ञानेन्द्रिय (Sense-Organ) के रूप में माना गया है। मन कोई बाहरी चीज नहीं है, जिसे हम आँख, कान आदि ज्ञानेन्द्रियों की तरह देख सकें। मन का अस्तित्व शरीर के भीतर माना गया है जो अदृश्य है। हमें अपने जीवन में सुख-दुख, प्रेम-घृणा आदि मनोभावों का अनुभव होता रहता है।

सुख-दुख का ज्ञान हमें आँख, कान, नाक आदि से प्राप्त नहीं हो सकता है। इस ज्ञान की प्राप्ति ‘मन’ के द्वारा की जा सकती है। इसीलिए ‘मन’ से प्राप्त ‘प्रत्यक्ष को मानस-प्रत्यक्ष’ कहते हैं। न्यायशास्त्र के अनुसार ‘मन’ कोई पदार्थ या द्रव्य (Matter) का बना हुआ नहीं रहता है। अतः इसकी ज्ञान-शक्ति भी विशेष प्रकार की होती है। यह सभी प्रकार के ज्ञान के बीच एकता स्थापित करता रहता है इसलिए इसे केन्द्रीय इन्द्रिय (Central organ) कहा जाता है।

2. अनुभव (Inference):
भारतीय तर्कशास्त्र में अनुमान का स्थान प्रत्यक्ष के बाद आता है। तर्कशास्त्र में प्रमाण (Sources of knowledge) के रूप में अनुमान को दूसरा भेद बतलाया गया है। अनुमान का महत्त्व पाश्चात्य दर्शन में तो इतना अधिक है कि समूचे तर्कशास्त्र का विषय ही अनुमान समझा जाता है। इसके अनुसार अनुमान का अर्थ होता है ज्ञात से अज्ञात की ओर जाना। लेकिन भारतीय तर्कशास्त्र में ‘अनुमान’ का महत्त्व पाश्चात्य तर्कशास्त्र के ऐसा नहीं बतलाया गया है।

यहाँ अनुमान को केवल ज्ञान प्राप्त करने का एक साधन मात्र माना गया है। जिसका स्थान प्रत्यक्ष के बाद आता है। ‘अनुमान’ शब्द के दो भाग हैं अनु + मान। ‘अनु’ का अर्थ होता है पश्चात् या बाद में और ‘मान’ का अर्थ होता है ‘ज्ञान’ इसलिए, ‘अनुमान’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘बाद’ में प्राप्त होने वाला ज्ञान। अतः अनुमान उस ज्ञान को कहते हैं जो किसी पूर्वज्ञान के बाद प्राप्त होता है। जैसे-बादल से वर्षा का अनुमान करते हैं, धुएँ से आग का अनुमान करते हैं।

गौतम ने अनुमान को ‘तत्पूर्वकम्’ कहा है क्योंकि ‘तत्पूर्वक’ का अर्थ होता है प्रत्यक्ष मूलक। यदि लक्षण या लिंग दिखाई नहीं पड़े, किन्तु आगमन (शास्त्र) या बड़े महापुरुषों के आप्त वचन से उसका हमें ज्ञान हो तो उसी के बल पर अनुमान किया जा सकता है। अतः अनुमान का अर्थ होता है, एक बात से दूसरी बात को जान लेना। यदि कोई बात हमें प्रत्यक्ष या आगमन के द्वारा जानी हुई है तो उससे दूसरी बात भी निकाल सकते हैं।

इसी को अनुमान कहा जाता अनुमान के लिए एक और पूर्वज्ञान की आवश्यकता रहती है, जिसे व्यक्ति-ज्ञान कहते हैं। व्याप्ति दो वस्तुओं के बीच एक आवश्यक सम्बन्ध है जो व्यापक माना जाता है। जैसे – ‘धुआँ’ और ‘आग’ में व्याप्ति सम्बन्ध है, क्योंकि यह सर्वविदित है कि जहाँ-जहाँ धुआँ रहता है, वहाँ-वहाँ आग पायी जाती है। इसका कारण यह है कि ‘धुआँ’ और ‘आग’ के बीच व्याप्ति-सम्बन्ध है। जिसका ज्ञान हमें पहले से रहना चाहिए तभी उसके बल पर अनुमान निकाला जा सकता है।

अनुमान में पक्षधर्मता होता है। पक्षधर्मता का अर्थ होता है पक्ष (स्थान-विशेष) में लिंग या हेतु या साधन का पाया जाना, जैसे-पहाड़ (स्थान-विशेष) में ‘धुआँ’ का पाया जाना। व्याप्ति ज्ञान से धुआँ और आग का सम्बन्ध जाना जाता है तथा पक्षधर्मता से पहाड़ और धुआँ का सम्बन्ध जानते हैं। दोनों को मिलाकर हम पहाड़ और आग के बीच सम्बन्ध स्थापित करते हैं, यही परामर्श है और इसी के चलते अनुमान होता है।

3. उपमान (Comparison):
न्याय दर्शन में ‘उपमान’ को प्रमाण (Sources of knowledge) के तीसरे भेद के रूप में बतलाया गया है। न्याय-दर्शन और मीमांसा दर्शन उपमानं को एक स्वतंत्र प्रमाण (Independent source of knowledge) के रूप में बतलाया गया है। उपमान का शाब्दिक अर्थ होता है “सादृश्यता’ या ‘समानता’ के द्वारा संज्ञा-संज्ञि-सम्बन्ध का ज्ञान होना।

जिस वस्तु को हमने पहले कभी नहीं देखा हैं और उसके बारे में दूसरों से वर्णन सुना है और अगर उसी से मिलती कोई वस्तु मिलती है तो वहाँ, हम सुनी हुई बातों के साथ उस वस्तु का मिलान करने लगते हैं, जिसे उपमान (Comparison) कहते हैं। उपमा या सादृश्यता के आधार पर जो ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसे उपमिति कहते हैं। उपमान कारण है तो उपमिति उसका फल या कार्य। उपमा के बाद जो ज्ञान हमें प्राप्त होता है, उसे हम उपमिति कहते हैं।

न्याय-दर्शन एवं मीमांसा-दर्शन में उपमान को प्रमाण के लिए महत्त्वपूर्ण माना गया है। आज के युग में बहुत से आविष्कार और अदृश्य पदार्थों का ज्ञान इसी उपमान के द्वारा प्राप्त होता है। आयुर्वेद में उपमान के आधार पर ही अनेक अपरिचित औषधियों और औषधी के द्रव्यों का वर्णन मिलता हैं। उपमान को लेकर सभी भारतीय दार्शनिकों का एक समान मत नहीं है। कुछ विद्वान उपमान को अनुमान का ही एक रूप मानते हैं।

4. शब्द (Verbal Authority):
न्याय दर्शन के अनुसार ‘शब्द’ चौथा प्रमाण है। ‘शब्द’ का अर्थ एक या दो साधारण शब्दों (Words) से नहीं लगाया गया है, बल्कि अनेक शब्दों और वाक्यों के द्वारा जो वस्तुओं का ज्ञान होता है, उसे शब्द (knowledge) के नाम से जाना जाता है। सभी शब्दों से हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है, अतः ऐसे ही ‘शब्द’ को हम प्रमाण मानते हैं, जो यथार्थ हो तथा जो विश्वास के योग्य हो। भारतीय दार्शनिकों के अनुसार ‘शब्द’ तभी प्रमाण बनता है जबकि वह किसी बड़े और विश्वासी आदमी का निश्चय बोधक वाक्य हो जिसे हम आप्त वचन भी कह सकते हैं। दूसरे शब्दों में, “किसी विश्वासी और महान् पुरुष के वचन के अर्थ (Meaning) का ज्ञान ही शब्द प्रमाण है।”

इतिहास का ज्ञान हमें शब्द के द्वारा ही होता है। रामायण, महाभारत या अन्य पुराण का जो ज्ञान लोगों को होता है, उसका ज्ञान प्रत्यक्ष, अनुमान या उपमान नहीं है बल्कि उनका ज्ञान ‘शब्द’ के द्वारा ही प्राप्त होता है। अतः ‘शब्द’ को न्याय-दर्शन में एक स्वतंत्र प्रमाण माना गया है। अतः स्पष्ट है कि ‘शब्द’ ज्ञान प्राप्त करने की क्रिया है। शब्द ऐसे मनुष्य के हों, जो विश्वसनीय और सत्यवादी समझे जाते हों, कहने का अभिप्राय जिनकी बातों को सहज रूप में सत्य मान सकते हैं तथा शब्द ऐसे हों जिनके अर्थ हमारी समझ में हों।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Bihar Board Class 12 Economics प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र –
(a) a मूल बिन्दु से गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
(b) a समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर:
(a) माँग वक्र का ढाल नीचे की ओर या ऋणात्मक होगा।
(b) माँग वक्र का ढाल x – अक्ष (क्षैतिज अक्ष) के समान्तर होगा।
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प्रश्न 2.
नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत लोच की गणना कीजिए।
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उत्तर:
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फर्म का माँग वक्र व उद्योग का माँग वक्र एकदम समान होंगे।
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इकाई 1 से 3 तक माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला है। इकाई 3 से 5 तक माँग क्षैतिज अक्ष के समांतर है इकाई 5 से 6 तक माँग वक्र पुनः ऋणात्मक ढाल वाला है। 5 वीं इकाई के बाद वस्तु की कोई माँग नहीं है।
माँग की लोच
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प्रश्न 3.
जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
जब माँग पूर्णतया लोचदार होती है तो सीमांत आगम का मूल्य शून्य होता है। जब माँग वक्र लोचदार अर्थात् माँग की लोच इकाई से अधिक होती है तब सीमांत आगम धनात्मक होता है।

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प्रश्न 4.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपये और निम्नलिखित माँग सारणी है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 6
अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन मात्रा क्या होगी? जब कुल लागत 1000 रुपये हो तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करें।
उत्तर:
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अल्पकालीन संतुल उस बिन्दु पर होता है जहाँ एकाधिकारी फर्म को अधिकतम आगम प्राप्त होता है। अनुसूची में उत्पादन स्तर 6 पर अधिक आगम 300 फर्म को प्राप्त हो रहा है।
अतः अल्पकालीन साम्य मात्रा = 6
कीमत = 50
कुल लाभ = कुल आगम – कुल लागत
= 300 – 0 = 300
जब कुल लागत 1000 रुपये है तो अल्पकाल में संतुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ एकाधिकारी फर्म की कुल आगम व कुल लागत का अंतर अधिक होता है।
अधिकतम लाभ = कुल आगत – कुल लागत
= 300 – 1000 = -700 रुपये
उपरोक्त सूचना यह दर्शाती है कि फर्म को 700 रुपये की हानि हो रही है। अतः संतुलन अवस्था का प्रश्न ही नहीं उठता है। दीर्घकाल के लिए भी एकाधिकारी फर्म के संतुलन की वही शर्त लागू होती है।

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प्रश्न 5.
यदि अभ्यास 3 का एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र का फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकार करता है और इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाजार माँग और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत संतुलन स्थापित वहाँ होता है जहाँ वस्तु की बाजार माँग व बाजार पूर्ति समान होती है। संतुलन बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा बेची व खरीदी गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य कीमत एवं मात्रा को नीचे चित्र में दिखाया गया है।
माँग वक्र DD, पूर्ति वक्र SS, साम्य बिन्दु E, साम्य कीमत Op, साम्य मात्रा Oq
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 8
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म को शून्य लाभ प्राप्त होता है। इसका अभिप्राय है कि प्रतियोगी फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 6.
उस स्थिति में सीमांत संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र –

  1. धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
  2. समस्तरीय सरल रेखा हो।

उत्तर:
1. कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वाली सीधी रेखा है –
नीचे बताई गई तीन स्थितियाँ हो सकती हैं –

  • यदि कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है लेकिन उसमें समान दर से वृद्धि होती है तो सीमांत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष (x – अक्ष) के समांतर होगा।
  • यदि कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वक्र है और बढ़ती हुई दर से बड़ता है तो सीमांत आगम वक्र का ढाल धनात्मक होता है।
  • यदि कुल वक्र का ढाल धनात्मक परंतु कम दर से बढ़ता है तो सीमांत का ढाल ऋणात्मक होता है।

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प्रश्न 7.
नीचे सारणी में वस्तु की बाजार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 part - 2 img 9
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 part - 2 img 10

  1. सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी।
  2. वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
  3. निर्गत की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत।
  4. संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ।

उत्तर:
1.
सीमांत संप्राप्ति।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 11

सीमांत लागत अनुसूची
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 12

2. उत्पादन स्तर c फर्म की सीमांत लागत व सीमांत आगम दोनों समान हैं। इस उत्पादन स्तर पर MR = MC = 4

3. संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ MR = MC इस शर्त में निम्नलिखित सूचना प्राप्त होती है –
साम्य मात्रा = 6
इकाइयाँ साम्य कीमत = 19

4. साम्य उत्पाद स्तर = 6 इकाई
साम्य उत्पादन स्तर पर
कुल आगम = 114
कुल लागत = 109
कुल लाभ = कुल आगाम – कुल लागत
= 114 – 109 = 5

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प्रश्न 8.
निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो, तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन को जारी रखेगी?
उत्तर:
यदि अल्पकाल में किसी फर्म को हानि उठानी पड़ती है तो वह उत्पादन जारी रखेगी इसका निर्धारण निम्न प्रकार से किया जाता है –
1. यदि उत्पादन के इस स्तर पर सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को ऊपर से काटता है अथवा सीमांत लागत वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है तो फर्म हानि की स्थिति में भी उत्पादन जारी रखेगी क्योंकि उत्पादन के इस स्तर के बाद फर्म को लाभ प्राप्त होगा ऐसा इसलिए संभव होता है कि सीमांत लागत घट रही है।

2. यदि उत्पादन के इस स्तर पर सीमांत लागत वक्र, सीमांत आगम वक्र को नीचे से काटता है अथवा सीमांत लागत वक्र धनात्मक ढाल का है तो फर्म इस उत्पादन स्तर से आगे उत्पादन नहीं करेगी। इस उत्पादन स्तर से आगे उत्पादन करने पर सीमांत लागत में वृद्धि होती है और फर्म की हानि में और बढ़ोतरी होगी।

प्रश्न 9.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में एक फर्म वस्तु की कीमत घटाकर ही ज्यादा इकाइयाँ बेच सकती है। क्योंकि कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि सीमांत आगम वक्र का ढाल ऋणात्मक होगा। एकाधिकारात्मक प्रतियोगी फर्म का औसत आगम, माँग वक्र के समान होता है। अतः इस बाजार में फर्म का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 10.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारात्मक प्रतियोगी बाजार में फर्मों की अधिक संख्या होती है। फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है। इस बाजार में फर्म विभेदीकृत वस्तु का उत्पादन करती है। अल्पकाल में फर्मों की संख्या कम होने के कारण प्रतियोगिता कम पायी जाती है। अतः फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त हो सकता है। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फमें बाजार में प्रवेश कर सकती है।

वस्तु का उत्पादन बढ़ेगा। इससे वस्तु की कीमत घटेगी। नई फर्मों का प्रवेश, उत्पादन में बढ़ोतरी, वस्तु की कीमत में गिरावट का सिलसिला उस सीमा तक रहता है जब तक फर्म का लाभ शून्य नहीं हो जाता है। इस स्तर पर बाजार में प्रवेश पाने के लिए नई फर्मों के पास कोई आकर्षण नहीं रहता है।

इसके विपरीत यदि अल्पकाल में कोई फर्म हानि उठा रही है तो नुकसान उठाने वाली कुछ फर्म उत्पादन बंद करक बाजार छोड़कर बाजार से बाजार जा सकती है। उत्पादन में संकुचन होगा जिससे बाजार कीमत में बढ़ोतरी होगी। फर्मों का प्रवेश, उत्पादन में संकुचन आदि तब तक जारी रहेगा जब तक लाभ शून्य नहीं होगा। इस प्रकार फर्मों का प्रवेश व गमन उस समय रुक जाता है जब दीर्घकाल में लाभ शून्य हो जाता है। यह स्थिति ही दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति होती है।

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प्रश्न 11.
तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकता है।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें एक अधिक परंतु सीमित फर्म होती है अल्पाधिकार कहलाता है। अल्पाधिकारी में एक फर्म निम्नलिखित तीन प्रकार से व्यवहार कर सकती है –
1. यदि वस्तु बाजार में दो फर्म मौजूद होती हैं तो इस संरचना को द्वैदाधिकार कहते हैं। दोनों फर्म मिलकर विलय कर सकती है और प्रतियोगिता न करने का निर्णय कर सकती है। सामूहिक रूप से दोनों फर्मे अपना लाभ अधिकतम कर सकती है। इस स्थिति में दोनों फर्मे अलग-अलग उत्पादन इकाई के रूप में उत्पादन करती है परंतु अधिक लाभ कमाने के लिए एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करती है।

2. यह भी हो सकता है कि दोनों फर्मे आपस में अधिकतम लाभ के लिए उत्पादन की मात्राएँ तय कर सकती हैं। निर्णय के बाद दोनों में से कोई भी फर्म उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन न करने की बात स्वीकार करती है।

3. कुछ अर्थशास्त्री ऐसा भी मानते हैं कि अल्पाधिकार बाजार संरचना में कठोर कीमत नीति काम करती है। अर्थात् बाजार कीमत में बाजार माँग के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है। इस संरचना में कीमत परिवर्तन करना कोई भी फर्म विवेकपूर्ण नहीं मानती है। यदि कोई एक फर्म कीमत बढ़ाने का निर्णय लेती है तो वह फर्म अपने लाभ को कम कर सकती है। यदि दूसरी फर्म कीमत नहीं बदलती है तो पूर्व फर्म को कम माँग का सामना करना पड़ेगा।

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प्रश्न 12.
यदि द्वि – अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार के जैसा हो, तो बाजार माँग वक्र को समीकरण q = 200 – 4p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन और संतुलन बाजार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माँग फलन q = 200 – 4p
जब माँग वक्र एक सीधी रेखा होता है और उत्पादन लागत शून्य होती है तो माँग की आधी पूर्ति करना एकाधिकारी के लिए अधिकतम लाभकारी होता है।

माँग वक्र समीकरण q = 200 – 4p = 200 – 4 × 0 (कीमत स्तर शून्य पर अधिकतम माँग)
फर्म व वस्तु की शून्य इकाइयों की पूर्ति करती है –
फर्म अ के लिए माँग = 200 इकाइयाँ
फर्म अ की आपूर्ति = \(\frac{200}{2}\) इकाइयाँ = 100 इकाइयाँ
फर्म ब के लिए माँग = 200 – \(\frac{200}{2}\)
फर्म ब की आपूर्ति = \(\frac{1}{2}\) (200 – \(\frac{200}{2}\)) = 50 इकाइयाँ
फर्म ब की आपूर्ति 0 से 50 इकाइयाँ तक बदल चुकी है। अतः फर्म अ के लिए माँग = 200 – 50 = 150 इकाइयाँ
अतः फर्म अ आपूर्ति करना चाहेगी \(\frac{150}{2}\) = 75 इकाइयाँ
इन चक्रों का क्रम तब तक जारी रहेगा जब तक दोनों फर्मों की आपूर्ति समान नहीं हो जायेगी। इसकी गणना निम्नलिखित तालिका में की गई है –

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 13

इस प्रकार अन्त में दोनों फर्म समान मात्रा की आपूर्ति करेंगी।
आपूर्ति = \(\frac{200}{2}\) – \(\frac{200}{4}\) + \(\frac{200}{8}\) – \(\frac{200}{16}\) + \(\frac{200}{32}\) – \(\frac{200}{64}\) + …………. = \(\frac{200}{3}\)
बाजार पूर्ति = फर्म अ आपूर्ति + फर्म ब आपूर्ति = \(\frac{200}{3}\) + \(\frac{200}{3}\) = \(\frac{400}{3}\) इकाइया
कीमत निर्धारण q = 200 – 4p
या 4p = 200 – q
= 200 – \(\frac{400}{3}\) (मूल्य प्रतिस्थापित करने पर)
या = \(\frac{200}{3}\)
या p = \(\frac{200}{3×4}\) = \(\frac{50}{3}\)
प्रत्येक फर्म द्वारा की गई आपूर्ति = \(\frac{200}{3}\) इकाइयाँ
दोनों फर्मों द्वारा की गई पूर्ति = \(\frac{400}{3}\) इकाइयाँ
साम्य कीमत = \(\frac{50}{3}\) रु.

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प्रश्न 13.
आय अनन्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर:
अल्पाधिकारी बाजार में वस्तु की कीमत में परिवर्तन मुक्त रूप से माँग में परिवर्तन के अनुसार नहीं होता है। यदि एक फर्म अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तु की कीमत बढ़ा देती है और दूसरी फर्म ऐसा नहीं करती है। कीमत में वृद्धि के कारण पहली फर्म की वस्तु की माँग अधिक मात्रा में घट जायेगी। इससे इस फर्म के कुल आगम में कमी आ जायेगी। अतः कीमत बढ़ाना किसी भी फर्म के लिए विवेकपूर्ण निर्णय नहीं होगा।

दूसरी ओर यदि कोई फर्म कीमत घटाकर कुल लाभ अधिकतम करना चाहती है और दूसरी फर्म इस निर्ण को चुनौती मानकर कीमत को घटा देती है। इस प्रकार कीमत को घटाकर माँग में वृद्धि की हिस्सेदारी दोनों फर्मों को प्राप्त होगी। तरह कीमत घटाकर माँग में वृद्धि का फायदा इस बाजार में कोई फर्म थोड़े समय के लिए उठा सकती है। दूसरी फर्म द्वारा कीमत घटाने पर फम का कुल आगम भी घटेगा और कुल लाभ में भी कमी आयेगी। इसलिए अल्पाधिकार में कीमत स्थिर पाई जाती है।

Bihar Board Class 12 Economics प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एकाधिकार को परिभाषित करो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें एक वस्तु का बाजार में एक अकेला विक्रेता होता है, एकाधिकार कहलाती है।

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प्रश्न 2.
एकाधिकारी फर्म के कुल आगम वक्र की प्रकृति किस बात पर निर्भर करती है?
उत्तर:
कुल आगम वक्र की प्रकृति औसत आगम पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3.
एकाधिकारी फर्म का बाजार माँग वक्र क्या होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म का औसत आगम वक्र ही फर्म का माँग वक्र होता है।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी फर्म द्वारा पूर्ति की गई वस्तु की कीमत का निर्धारण किस पर निर्भर होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म द्वारा पूर्ति की गई वस्तु की मात्रा के आधार पर वस्तु की कीमत का निर्धारण होता है।

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प्रश्न 5.
वह शर्त लिखो जिससे वस्तु बाजार एकाधिकार संरचना रखता है।
उत्तर:
वस्तु बाजार की संरचना एकाधिकारी होती है यदि उस बाजार में केवल एक विक्रेता हो, वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु न हो तथा बाजार बाजार में नई फर्म के प्रवेश पर प्रतिबंध हो।

प्रश्न 6.
सीमांत आगम वक्र की स्थिति और माँग वक्र के ढाल में क्या संबंध होता है?
उत्तर:
ऋणात्मक ढाल वाला माँग वक्र जितना अधिक ढाल होता है सीमांत आगम वक्र उतना ही नीचे होता है।

प्रश्न 7.
औसत आगम वक्र कब नीचे गिरता है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम औसत आगम से कम होती है तब औसत आगम वक्र नीचे गिरता है।

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प्रश्न 8.
कुल आगम वक्र का आकार क्या होगा यदि माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली सीधी रेखा है?
उत्तर:
माँग ऋणात्मक ढाल वाली रेखा होने पर कुल आगम वक्र उल्टे परवलय की तरह का होता है।

प्रश्न 9.
कुल आगम से औसत आगम वक्र की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
उत्पादन के किसी भी स्तर पर कुल आगम वक्र पर स्थित संबंधित बिन्दु से मूल बिन्दु को मिलाने वाली रेखा के ढाल के आधार पर औसत आगम की गणना की जाती है।

प्रश्न 10.
कुल आगम से सीमांत आगम ज्ञात करने की विधि लिखो।
उत्तर:
उत्पादन के किसी भी स्तर कुल आगम वक्र के संबंधित बिन्दु से स्पर्श खींची गई, स्पर्श रेखा के द्वारा सीमांत आगम की गणना की जाती है।

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प्रश्न 11.
साम्य कीमत किससे प्राप्त होती है?
उत्तर:
वह माँग वक्र जिससे साम्य मात्रा प्राप्त होती है साम्य कीमत प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
साम्य मात्रा की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
साम्य कीमत पर खरीदी व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।

प्रश्न 13.
यदि फर्म की लागत शून्य हो तो एकाधिकारी फर्म द्वारा आपूर्ति की गई मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
साम्य की अवस्था में पूर्ति की गई मात्रा उस बिन्दु पर प्राप्त होती है जहाँ सीमांत आगम शून्य होती है।

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प्रश्न 14.
प्रतियोगी फर्म द्वारा पूर्ति की गई साम्य मात्रा किस प्रकार प्राप्त होती है?
उत्तर:
प्रतियोगी फर्म द्वारा पूर्ति की गई साम्य मात्रा उस बिन्दु पर प्राप्त होती है जहाँ औसत आगम शून्य होती है।

प्रश्न 15.
वस्तु बाजार में अल्पाधिकार की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
जब कम संख्या में फर्म एक समान वस्तु का उत्पादन करती है।

प्रश्न 16.
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में दीर्घकाल में लाभ का स्तर क्या होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी वस्तु बाजार में दीर्घकाल में लाभ का स्तर शून्य होता है।

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प्रश्न 17.
अपूर्ण प्रतियोगी वस्तु बाजार में फर्म का लाभ शून्य क्यों होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों का प्रवेश स्वतंत्र होता है। फर्मों की संख्या बढ़ने पर अल्पकाल फर्मों के बीच पूर्ण प्रतियोगिता हो जाती है इसलिए लाभ का स्तर शून्य हो जाता है।

प्रश्न 18.
पूर्ण प्रतियोगिता एवं अपूर्ण प्रतियोगिता के अल्पकालीन साम्य की तुलना करो।
उत्तर:
अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता में पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में उत्पादन मात्रा कम व कीमत ऊँची होती है।

प्रश्न 19.
वस्तु बाजार में एकाधिकार प्रतियोगिता उत्पन्न होने का कारण लिखो।
उत्तर:
वस्तु विभेद के कारण एकाधिकार प्रतियोगिता वस्तु बाजार में उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 20.
कौन से बाजार में दीर्घकाल में भी लाभ का धनात्मक स्तर प्राप्त होता है?
उत्तर:
एकाधिकार में दीर्घकाल में भी लाभ का धनातमक स्तर होता है।

प्रश्न 21.
एकाधिकारी फर्म के संतुलन को परिभाषित करो।
उत्तर:
सीमांत आगम वक्र जहाँ सीमांत लागत वक्र को काटता है उसे फर्म का संतुलन बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 22.
एकाधिकार प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें अनेक क्रेता व विक्रेता होते हैं। विभिन्न फर्म विभेदीकृत वस्तु को बेचती हैं, फर्मों का प्रवेश स्वतंत्र होता है, एकाधिकार प्रतियोगिता कहलाती है।

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प्रश्न 23.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें विशाल संख्या में क्रेता व विक्रेता होते हैं, सभी विक्रेता समांगी वस्तु बेचते हैं, फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है।

प्रश्न 24.
बाजार की परिभाषा दो।
उत्तर:
वह संरचना जिसमें वस्तु के क्रेता व विक्रेता निकट संपर्क में रहकर विनिमय का कार्य करते हैं, बाजार कहलाती है।

प्रश्न 25.
जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक हो तो माँग की लोच क्या होती है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक होता है तो माँग लोचदार होती है।

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प्रश्न 26.
एकाधिकारी फर्म के लिए माँग कब बेलोचदार हो जाती है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम का मूल्य ऋणात्मक होता है तो एकाधिकारी फर्म के लिए माँग बेलोचदार होती है।

प्रश्न 27.
उस बाजार का नाम लिखो जिसमें फर्म स्वयं ही उद्योग होती है?
उत्तर:
एकाधिकार वह बाजार है जिसमें फर्म स्वयं ही उद्योग होती है।

प्रश्न 28.
समांगी वस्तु की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
समांगी उत्पाद से अभिप्राय उद्योग की सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु शक्ल, आकार, स्वाद आदि गुणों में एक समान हों।

प्रश्न 29.
विभेदीकृत वस्तु की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
विभेदीकृत उत्पाद से अभिप्राय उद्योग की विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ जो ‘शक्ल, आकार, स्वाद आदि गुणों में भिन्न हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कुल आगम वक्र से औसत आगम ज्ञात करने की विधि लिखो।
उत्तर:
ज्यामितीय रूप से औसत आगम का मूल्य उत्पाद के किसी भी स्तर पर कुल आगम वक्र से ज्ञात किया जा सकता है। इसकी विधि नीचे लिखी गई है –

  1. कुल आगम वक्र (TR) खींचिए।
  2. उत्पाद का कोई भी स्तर लेकर क्षैतिज अक्ष से लम्ब खींचो।
  3. क्षैतिज अक्ष से लम्ब कुल आगम वक्र को जिस बिन्दु पर काटता है उसको a लिखो।
  4. बिन्दु a को मूल बिन्दु से मिलाओ।
  5. किरण Oa का ढाल ही औसत आगम होता है।
    Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 14

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प्रश्न 2.
अन्य बाजार संरचनाओं की तुलना में एकाधिकारी फर्म के साम्य निर्धारण की विभिन्नता की मान्यताएँ लिखिए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म की मान्यताएँ –

  1. माँग पक्ष की तरफ से बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता है। इसका अभिप्राय है कि उपभोक्ता इस बाजार में कीमत स्वीकारक होते हैं।
  2. वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधन बाजार में माँग पक्ष व पूर्ति पक्ष दोनों पूर्ण प्रतियोगिता होती है।

प्रश्न 3.
वे शर्ते लिखो जिनके आधार पर पूर्ण प्रतियोगी बाजार की संरचना का अनुमान लगाया जाता है।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करती है, पूर्ण प्रतियोगी बाजार कहलाता है –

  1. इस बाजार में एक वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं की भारी संख्या होती है। एक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा कुल बाजार पूर्ति की तुलना में नगण्य होती है। इसी प्रकार एक उपभोक्ता की वस्तु के लिए माँग बाजार माँग की तुलना में नगण्य होती है।
  2. बाजार में फर्मों को प्रवेश व बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
  3. उद्योग में सभी फर्मों का उत्पाद समांगी होता है। दूसरे उद्योग की कोई फर्म प्रतियोगी वस्तु की पूर्ति नहीं करती है।
  4. क्रेता व विक्रेताओं को उत्पाद व उसकी कीमत की पूर्ण जानकारी होती है।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी फर्म के लिए कुल आगम वक्र सीधी रेखा नहीं होता इसकी आकृति माँग वक्र की आकृति पर निर्भर करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुल आगम वक्र बेची गई मात्रा का फलन होता है।
TR = p × q माँग फलन …………….. (i)
q = a – bp ………… (ii)
सभी (i) व (ii) से
TR = p(a – bp)
= ap – bp2
अतः एकाधिकारी फर्म का कुल आगम द्विघात समीकरण है जिसका वर्ग वाला पद ऋणात्मक है। इस प्रकार की समीकरण का चित्र उल्टा परवलय होता है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 15

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प्रश्न 5.
एकाधिकारी फर्म की कीमत बेची गई मात्रा का घटता हुआ फलन है, संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म उत्पाद की अधिक मात्रा की बिक्री कीमत घटाकर ही कर सकती है। दूसरी ओर उत्पाद की कम मात्रा बेचकर फर्म ऊँची प्राप्त कर सकती है। इस प्रकार एकाधिकारी बाजार कीमत पूर्ति की गई मात्रा पर निर्भर करती है। इसलिए एकाधिकारी के लिए कीमत बेची गई मात्रा का घटता प्रतिफल होता है। बाजार माँग वक्र आपूर्ति की गई विभिन्न मात्राओं के लिए उपलब्ध बाजार कीमत को दर्शाता है। एकाधिकार फर्म का माँग वक्र ही बाजार माँग वक्र होता है।

प्रश्न 6.
एकाधिकारी फर्म के संतुलन को समझाइए जब फर्म को लागत वहन करनी पड़ती है।
उत्तर:
फर्म की कुल आगम एवं कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं। कुल आगम वक्र व कुल लागत वक्र के मध्य ऊर्ध्वाधर अंतर एकाधिकारी फर्म के लाभ को दर्शाता है। जब कुल लागत वक्र कुल आगम वक्र से ऊपर स्थित होता है तो इसका अभिप्राय है कि कुल लागत, कुछ आगम से अधिक है। अर्थात् फर्म को ऋणात्मक लाभ या हानि हो रही है।

जिस उत्पादन स्तर पर कुल आगम वक्र, कुल लागत वक्र से ऊपर होता है तो कुल आगम, कुल लागत से अधिक होती है। इसका अभिप्राय है फर्म को लाभ प्राप्त हो रहा है। एकाधिकारी फर्म हमेशा उस उत्पाद स्तर तक उत्पादन करती है जहाँ लाभ अधिकतम होता है। यह उत्पादन स्तर वह स्तर होता है जिस पर कुल आगम वक्र व कुल लागत वक्र के बीच ऊर्ध्वाधर दूरी अधिकतम होती है। फर्म का लाभ उल्टे परवलय द्वारा दर्शाया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 16
उत्पादन स्तर Oq2 से कम स्तर फर्म को हानि होती है।
उत्पादन स्तर 0q2 से 0q3 के मध्य फर्म को लाभ प्राप्त होता है।
उत्पादन स्तर Oq0 पर अधिकतम लाभ प्राप्त होगा। फर्म उत्पादन स्तर Oq0 कीमत स्तर पर वस्तु का विक्रय करेगी।

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प्रश्न 7.
शून्य लागत की स्थिति में एकाधिकारी फर्म के अल्पकालीन संतुलन को समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म स्टॉक नहीं बनाती है। यह फर्म जितना उत्पादन करती है उतनी ही मात्रा में बाजार में बेच देती है। कुल आगम व कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं।
लाभ = कुल आगम – कुल लागत लाभ = कुल आगम (कुल लागत 30) कुल लाभ जब अधिकतम होता है जब फर्म का कुल आगम अधिकतम होता है। जिस उत्पाद स्तर पर कुल आगम अधिकतम होता है उसे साम्य उत्पादन स्तर तथा उस उत्पाद स्तर की कीमत को साम्य कीमत कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 17

प्रश्न 8.
एकाधिकारी फर्म के लिए औसत आगम व सीमांत आगम में संबंध लिखों उत्तर-औसत आगम एवं सीमांत आगम में संबंध –

  1. उत्पादन के सभी स्तरों पर सीमांत आगम वक्र औसत आगम वक्र के नीचे स्थित रहता है।
  2. यदि औसत आगम वक्र अधिक ढालू होता है तो सीमांत आगम वक्र तथा औसत आगम वक्र में ज्यादा अंतर होता है।
  3. यदि औसत आगम वक्र कम ढालू होता है तो सीमांत आगम वक्र तथा औसत आगम वक्र के मध्य अंतर कम होता है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 18

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प्रश्न 9.
एकाधिकारी फर्म के लिए सीमांत आगम तथा माँग लोच में संबंध लिखो।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म के लिए सीमांत आगम तथा कीमत माँग लोच में संबंध –

  1. जब सीमांत आगम का मान धनात्मक होता है तो माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती है।
  2. जब सीमांत आगम का मान ऋणात्मक होता है तो माँग की कीमत लोच इकाई से कम होती है।
  3. जब सीमांत आगम का मूल्य शून्य होता है तो कीमत माँग, लोच इकाई के बराबर होती है।

प्रश्न 10.
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचनाओं के नाम लिखो तथा पूर्ण प्रतियोगी बाजार की दीर्घकाल में अधिकतम लाभ की शर्त लिखो।
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचनाओं के नाम –

  1. एकाधिकार
  2. अपूर्ण प्रतियोगिता तथा
  3. अल्पाधिकार

पूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचना की दीर्घकाल में लाभ की शर्त-वस्तु की कीमत तथा दीर्घकाल सीमांत लागत दोनों बराबर होनी चाहिए। यह फर्म का दीर्घकाल औसत आगम तथा दीर्घकाल सीमांत लागत दोनों बराबर हों।

प्रश्न 11.
एकाधिकार के बारे में कुछ आलोचनात्मक विचार लिखो।
उत्तर:
1. यह माना जाता है कि एकाधिकारी फर्म उपभोक्ताओं की लागत पर लाभ कमाती है। एकाधिकारी फर्म दीर्घकाल में भी लाभ कमाती है। उपभोक्ता भुगतान ज्यादा करते हैं और संतुष्टि कम प्राप्त करते हैं। कुछ अर्थशास्त्री ऐसा भी मानते हैं कि व्यवहार में एकाधिकारी फर्म नहीं होती है क्योंकि सभी वस्तुओं का प्रतिस्थापन इस या उस वस्तु से हो जाता है।

अतः सभी फर्मों को उपभोक्ताओं के हाथ से आय प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता करनी पड़ती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था स्थैतिक होने की बजाय गतिशील होती है इसलिए शुद्ध एकाधिकारी फर्म भी प्रतियोगिता से नहीं बचती है। नई खोजों व तकनीक के प्रयोग से उत्पादित नई वस्तुओं के कारण एकाधिकारी फर्म को प्रतियोगिता के लिए बाध्य कर सकती है।

2. एकाधिकार के बारे में दूसरा पक्ष भी है। कुछ अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि एकाधिकारी समाज के लिए भी उपयोगी हो सकता है। एकाधिकारी फर्म को अधिक लाभ प्राप्त होता है। अतः यह फर्म अनुसंधान व विकास के लिए अधिक कोष जुटा सकती है। प्रतियोगी फर्मों के अनुसंधान व विकास कार्यों के लिए फंड जुटाना मुश्किल होता है। आर्थिक समृद्धता के कारण एकाधिकारी उन्नत एवं आधुनिक उत्पादन तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन लागत को कम कर सकती है। कम उत्पादन लागत वाले उत्पाद को यह प्रतियोगिता की तुलना में नीची कीमत पर उपभोक्ताओं को बेच सकती है।

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प्रश्न 12.
औसत व सीमांत आगम तथा औसत व सीमांत लागत वक्रों सहायता से एकाधिकारी फर्म के साम्य को समझाइए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 19
उत्पादन स्तर Oq0 से कम पर MR का मान MC से अधिक है। इसका अभिप्राय है प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से फर्म को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। फर्म उस स्तर तक उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करती है जब तक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से फर्म के अतिरिक्त लाभ में बढ़ोतरी होती है। उत्पादन स्तर बढ़ाने का सिलसिला Oq0 उत्पाद स्तर बंद हो जायेगा क्योंकि इस उत्पादन स्तर पर MR व MC समान हैं।

उत्पादन बढ़ाने से अतिरिक्त लाभ में वृद्धि नहीं होगी। उत्पादन स्तर Oq0 से अधिक पर MR, MC से कम रह जाती है। इसका अभिप्राय है कि उत्पादन से फर्म को हानि होगी। अतः फर्म उत्पादन स्तर को घटाने का प्रयास करेगी जब तक फर्म की हानि शून्य हो जाए या फर्म की MR व MC समान हो जाए। अतः उत्पादन स्तर Oq0 साम्य उत्पादन स्तर है। इस स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम होगा। लाभ उस बिन्दु पर अधिकतम होता है जहाँ MC व MR दोनों समान होते हैं और MC ऊपर की ओर उठती हुई होती है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित का अर्थ लिखो –
(a) विक्रय लागते
(b) विज्ञापन लागतें तथा
(c) विश्वासोत्पादक विज्ञापन
उत्तर:
(a) विक्रय लागत:
एकाधिकार प्रतियोगी संरचना वाले बाजार में विभिन्न फर्मे विभेदीकृत वस्तु का उत्पादन करती हैं। सभी फर्मों की वस्तुएँ एक-दूसरे के लिए निकट प्रतियोगी होती हैं। अत: प्रत्येक फर्म को अपना उत्पाद उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय बनाने की बहुत आवश्यकता पड़ती है। उत्पाद को उपभोक्ताओं के मध्य लोकप्रिय बनाने अथवा अधिक संख्या में उपभोक्ताओं को उत्पाद की ओर आकर्षित करने के लिए किए गए व्यय को विक्रय लागत कहते हैं।

(b) विज्ञापन लागत:
दूरदर्शन, रेडियो, समाचार पत्रों, मैग्जीन, हैण्ड बिल, पोस्टर आदि के माध्यम से उत्पाद को प्रचारित करने पर किया गया व्यय विज्ञापन लागत कहलाता है।

(c) विश्वासोत्पादक विज्ञापन:
यदि कोई फर्म अधिक क्रय शक्ति वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए खर्च करती है तो इन्हें चित्त आकर्षक लागतें या विश्वासोत्पादक विज्ञापन कहते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन किसी नामीगिरामी व्यक्तित्व (खिलाड़ी/कलाकार/संगीतकार) के माध्यम से दिए जाते हैं।

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प्रश्न 14.
एकाधिकारी बाजार में औसत आगम तथा सीमांत आगम में क्या संबंध होगा?
उत्तर:
एकाधिकारी बाजार संरचना में फर्म का माँग वक्र ही बाजार माँग वक्र होता है। एकाधिकारी को वह कीमत स्वीकार करनी पड़ती है जिसे उपभोक्ता चुकाने को तैयार होते हैं। दूसरे शब्दों में, एकाधिकारी फर्म उस कीमत पर आपूर्ति करती है जिस पर उपभोक्ता अधिकतम माँग करते हैं। अत: एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल का होता है।

फर्म की औसत आगम सदैव कीमत के समान इसलिए होती है क्योंकि औसत आगम वक्र भी ऋणात्मक ढाल वाला होता है। फर्म वस्तु की कीमत घटाकर ही कुल आगम बढ़ोतरी कर सकती है। अतः प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के विक्रय से कुल आगम में बढ़ोतरी घटती दर से होती है या सीमांत आगम भी ऋणात्मक ढाल का होता है। सीमांत आगम वक्र सदैव औसत वक्र से नीचे रहता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 20

प्रश्न 15.
निम्नलिखित की परिभाषा लिखो –
(a) असामान्य लाभ तथा
(b) असामान्य हानि। पूर्ण प्रतियोगिता में उपरोक्त दोनों का फर्मों की संख्या पर प्रभाव भी लिखो।
उत्तर:
असामान्य लाभ-जब फर्म को वस्तु के विक्रय से प्राप्त कुल आगम, उसकी कुल लागत से अधिक होता है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में वस्तु के उत्पादन में आयी कुल लागत पर उसके विक्रय से प्राप्त कुल आगम के अधिशेष को असामान्य लाभ कहते हैं। असामान्य लाभ की स्थिति में पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या बढ़ती है जब तक असामान्य लाभ समाप्त होकर सामान्य लाभ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।

असामान्य हानि-जब फर्म को वस्तु के विक्रय से प्राप्त कुल आगम, उसकी कुल लागत से कम होता है तो फर्म को हानि होती है। हानि को ऋणात्मक लाभ भी कहते हैं। असामान्य हानि की स्थिति में पूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचना में फर्मों की संख्या में कमी आती है। यह कभी उस समय तक जारी रहती है जब जक हानि, शून्य लाभ में नहीं बदल जाती।

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प्रश्न 16.

  1. दीर्घकालिक प्रतियोगी संतुलन में सीमांत लागत और औसत लागत का संबंध लिखो तथा इस बिन्दु पर कीमत और सीमांत लागत का संबंध लिखो।
  2. दीर्घकालीन संतुलन की दशा में पूर्ण प्रतियोगी फर्म दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के किस बिन्दु पर उत्पादन करेगी?

उत्तर:
1. दीर्घकालीन प्रतियोगी संतुलन में सीमांत लागत और औसत लागत दोनों समान होते हैं और सीमांत लागत ऊपर उठती (बढ़ती) हुई होती है दीर्घकालीन संतुलन या समकारी बिन्दु पर कीमत और सीमांत लागत दोनों समान होते हैं। इस बिन्दु पर सीमांत लागत बढ़ती हुई होती है।
p = MC तथा MC बढ़ रही हो

2. MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
उत्तर:
2. MR > MC तथा MC बढ़ रही हो

प्रश्न 17.
बाजारों की संरचना के वर्गीकरण का आधार बताइए।
उत्तर:
बाजार संरचनाओं का वर्गीकरण कई आधार पर किया जाता है। उनमें से कुछ प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तु की प्रकृति-समरूप या वस्तु विभेद।
  2. वस्तु की कीमत-वस्तु की समान या असमान कीमत।
  3. कीमत निर्धारण-कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा, कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा अथवा वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म व उद्योग दोनों के द्वारा।
  4. विक्रेताओं की संख्या-बहुत अधिक, बहुत कम, कम या एक विक्रेता।
  5. बाजार का ज्ञान-पूर्ण या अपूर्ण।
  6. माँग वक्र-पूर्ण लोचशील, लोचशील या बेलोचशील।
  7. साधनों की गतिशीलता-पूर्ण गतिशीलता, अपूर्ण गतिशीलता या गतिशीलता का अभाव।
  8. लाभ-सामान्य – या असामान्य लाभ।

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प्रश्न 18.
विशुद्ध प्रतियोगिता क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशुद्ध प्रतियोगिता की अवधारणा पूर्ण प्रतियोगिता की अवधारणा से संकुचित है। वह बाजार संरचना जिसमें असंख्य विक्रेता एवं क्रेता होते हैं, सभी विक्रेता समरूप वस्तु का विक्रय करते हैं तथा फर्मों को उद्योग में प्रवेश करने व छोड़कर जाने की स्वतंत्रता होती विशुद्ध प्रतियोगिता कहलाती है।

विशुद्ध प्रतियोगिता के लक्षण –
1. फर्मों की अधिक संख्या:
इस बाजार संरचना में क्रेता व विक्रेताओं की बहुत अधिक संख्या होती है। एक विक्रेता, कुल बाजार पूर्ति की तुलना वस्तु की नगण्य मात्रा की पूर्ति करती है इसलिए एक फर्म वस्तु की बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है।

2. समरूप:
इस प्रतियोगिता में विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु समरूप होती है। दूसरे उद्योग में उत्पादित वस्तु/वस्तुओं से एक उद्योग में उत्पादित वस्तु से प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता है। समरूप वस्तु होने के कारण इस बाजार में वस्तु की कीमत समान होती है।

3. फर्मों का उद्योग में प्रवेश व गमन:
इस बाजार में लाभ से प्रभावित होकर कोई भी नई फर्म प्रवेश कर सकती है इसी प्रकार हानि उठाने वाली फर्म बाजार छोड़कर जाने के लिए स्वतंत्र होती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

प्रश्न 19.
एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र लोचदार होने के कारण –
1. विक्रेताओं की अधिक संख्या:
इस बाजार में छोटे-छोटे विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है। एक विक्रेता कुल बाजार पूर्ति का थोड़ा भाग ही पूर्ति करता है। वह बाजार को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाता है।

2. निकट प्रतियोगी वस्तुएँ:
एकाधिकार प्रतियोगी बाजार विभिन्न फर्म विभेदित वस्तु का उत्पादन करती है परंतु उनकी वस्तुएं एक-दूसरे की निकट प्रतिस्थापक होती है। निकट प्रतिस्थापन्नता के कारण इस बाजार में मांग वक्र लोचशील होता है।

प्रश्न 20.
दो फर्मों के विलय से दक्षता में वृद्धि कैसे संभव है? समझाइए।
उत्तर:
प्रतियोगिता से बचने के लिए या अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए कभी-कभी दो या अधिक फर्म अपने निजी अस्तित्व को कायम रखते हुए उत्पादन की मात्रा व कीमत नीति से इस प्रकार से समन्वय करती हैं कि उनके निर्णय एक फर्म द्वारा लिए गए निर्णय प्रतीत होते हैं। इस प्रक्रिया को फर्मों का विलय कहते हैं। विलय होने के बाद इनकी गतिविधियों का संचालन एकाधिकारी फर्म की तरह होता है। विलय के बाद फर्म विशिष्ट सेवाओं का उपयोग कर सकती है। उनमें नई खोज या विकास की भावना बढ़ जाती है। एकता के कारण उपभोक्ताओं से ऊँची कीमत वसूल सकती है।

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प्रश्न 21.
पेटेन्ट अधिकारों का अनुमोदन किस ध्येय से किया जाता है?
उत्तर:
पेटेन्ट अधिकारों का अनुमोदन निम्नलिखित ध्येयों से किया जाता है –

  1. पेटेन्ट अधिकार का अनुमोदन होने पर पेटेन्ट काल में केवल पेटैन्ट अधिकार प्राप्त फर्म वस्तु का उत्पादन/तकनीक का प्रयोग कर सकती है। इससे वस्तु बाजार या उत्पादन तकनीक के क्षेत्र में फर्म का एकाधिकार हो जाता है । एकाधिकार के कारण फर्म उत्पाद के लिए ऊँची कीमत प्राप्त कर सकती है और उसे असामान्य लाभ प्राप्त हो सकता है।
  2. पेटेन्ट अधिकार से फर्मों में नए उत्पाद या नई उत्पादन तकनीक खोजने की प्रवृत्ति प्रबल होती है। इससे आर्थिक विकास को गति प्राप्त होती है।
  3. उत्पादन लागत घटाने वाली तकनीक के प्रयोग से क्रेताओं को सस्ती कीमत पर भी वस्तु प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 22.
पेटेन्ट अधिकार क्या होते हैं? पेटेन्ट का जीवन काल क्या होता है?
उत्तर:
पेटेन्ट अधिकार-इस अधिकार के माध्यम से कानूनी तौर पर यह घोषणा होती है कि जिस फर्म/कंपनी ने नए उत्पाद या नई तकनीक की खोज की है केवल वे फर्म या उससे अनुमति प्राप्त फर्म ही उस वस्तु का उत्पादन या उस उत्पादन तकनीक का प्रयोग कर सकती है। किसी अन्य फर्म के लिए ऐसे उत्पाद या तकनीक का प्रयोग गैर कानूनी करार कर दिया जाता है। पेटेन्ट का कोई सुनिश्चित जीवन काल नहीं होता है। एक पेटेन्ट से दूसरे पेटेन्ट का जीवन काल भिन्न हो सकता है। फिर भी पेटेन्ट का जीवन काल कुछ वर्षों का होता है या जितने वर्ष के लिए फर्म या कंपनी को पेटेन्ट अधिकार प्राप्त होता है उसे पेटेन्ट काल कहते हैं।

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प्रश्न 23.
पूर्ण प्रतियोगिता एवं विशुद्ध प्रतियोगिता में अंतर लिखो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 21
पहली तीन विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता एवं विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए समान होती हैं। अंतिम दो विशेषताएँ केवल पूर्ण प्रतियोगिता के लिए आवश्यक होती हैं विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए आवश्यक नहीं होती है।

प्रश्न 24.
अल्पाधिकारी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार बाजार संरचना की विशेषताएँ –

  1. अल्पाधिकार बाजार में फर्मों की संख्या दो से अधिक परंतु कम होती है।
  2. अल्पाधिकारी फर्म का माँग वक्र अनिश्चित होता है। माँग वक्र की आकृति कोनेदार
  3. अल्पाधिकार में फर्मों में कीमत प्रतियोगिता के अलावा गैर कीमत प्रतियोगिता भी पायी जाती है।
  4. फर्म उत्पादन की मात्रा व कीमत के संबंध में आपसी तालमेल से नीति बनाती है। अथवा तालमेल के अभाव में उनमें कठोर प्रतियोगिता हो जाती है।
  5. प्रत्येक फर्म स्वतंत्र कीमत नीति बना सकती है। परंतु इस नीति को दूसरी फर्मों की नीति को भांपकर ही लागू करने का प्रयास करती है।

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प्रश्न 25.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का मांग वक्र पूर्णतया लोचशील क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी संरचना वाले बाजार में फर्मों की व क्रेताओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है। एक फर्म बाजार आपूर्ति का बहुत छोटा (नगण्य) भाग ही आपूर्ति करती है। अतः अकेली फर्म बाजार पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है। इसलिए फर्म को उद्योग द्वारा तय की गई कीमत पर ही वस्तु की आपूर्ति करनी है। इस बाजार में सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु समरूप होती है। वस्तु विभेद के आधार पर भी फर्म वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। इसी प्रकार एक क्रेता भी वस्तु की पूर्ति तथा कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगी माँग वक्र पूर्णतया लोचशील होता।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वे विभिन्न कारक समझाइए जो एकाधिकार को जन्म देते हैं।
उत्तर:
एकाधिकार के लिए उत्तरदायी कारक –
1. पेटेन्ट अधिकार:
यदि कोई फर्म किसी उत्पाद या उत्पादन तकनीक को खोजने का दावा पेश करती है और उसके दावे की पुष्टि हो जाती है तो उस फर्म को उस उत्पाद या तकनीक के लिए पेटेन्ट अधिकार स्वीकृत किया जा सकता है। पेटेन्ट अधिकार मिलने पर कोई अन्य फर्म उस उत्पाद या तकनीक का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए नहीं कर सकती है। पेटेन्ट अधिकार से फर्मों को अनुसंधान व विकास के कार्यों की प्रेरणा मिलती है।

2. सरकार द्वारा लाइसेंस (अनुज्ञा पत्र):
यदि सरकार कानून के माध्यम से किसी एक वस्तु के उत्पादन का कार्य एक ही फर्म को सौंप देती है तो अन्य फमैं उस वस्तु बजार में कानून की बाध्यता के कारण प्रवेश नहीं कर सकती है। जैसे अंतर राष्ट्रीय दूरभाषा सेवाएं प्रदान कराने का अधिकार वी.एस.एन.एस. (VSNL) कंपनी को भारत सरकार ने प्रदान किया हुआ है।

3. कारटेल का गठन:
यदि कुछ फर्मों का विलय इस प्रकार से हो जाता है कि वे एकाधिकार के लाभ उठायेंगे तो इस गठन को कारटेल कहते हैं। इसके अन्तर्गत फर्म अलग-अलग उत्पादन इकाई के रूप में कार्य करती हैं परंतु उन सभी का निर्णय एक और सामूहिक होता है। जैसे तेल उत्पादक देशों ने OPEC नामक संगठन बनाया हुआ है जो एकाधिकारी की तरह कार्य करता है।

4. बाजार का आकार:
यदि किसी वस्तु की बाजार का आकार इतना छोटा होता है कि मौजूदा एक फर्म के उत्पादन की भी खपत उसमें नहीं हो पाती है तो अन्य फर्मे उसमें प्रवेश नहीं करती हैं।

5. भारी निवेश:
यदि किसी वस्तु के उत्पादन के लिए भारी निवेश की आवश्यकता पड़ती है तो कम वित्तीय संसाधन वाली फम उस वस्तु बाजार में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाती हैं। आदि।

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प्रश्न 2.
रेखाचित्रों की सहायता से पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार के औसत आगम वक्रों का अंतर समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत औसत आगम वक्र:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत औसत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर एक सीधी रेखा होती है। प्रतियोगी फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित की गई कीमत की स्वीकारक होती है। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत उद्योग तय करता है। दी गई कीमत पर वस्तु की कितनी भी मात्रा फर्म बेच सकती है। बिक्री के प्रत्येक स्तर पर कीमत समान रहने के कारण प्रति इकाई बिक्री से प्राप्त आगम समान रहता है। इसलिए पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का औसत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।
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एकाधिकारी फर्म का औसत आगम वक्र:
एकाधिकारी फर्म के औसत आगम वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है। एकाधिकारी फर्म केवल कीमत स्तर को कम करके ही वस्तु की अधिक इकाइयों का विक्रय कर सकती है। निकट प्रतिस्थापन वस्तु न होने के कारण एकाधिकारी द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग बेलोचदार होती है। इसलिए औसत आगम वक्र भी बेलोचदार या कम ढाल वाला होता है।
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प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म कीमत स्वीकारक होती जबकि एकाधिकारी फर्म कीमत निर्धारक होती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु की कीमत का निर्धारण बाजार माँग व बाजार पूर्ति के साम्य द्वारा होता है। बाजार में किसी वस्तु के सभी उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के सामूहिक समूह को उद्योग कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बाजार माँग उद्योग की माँग तथा बाजार पूर्ति उद्योग की पूर्ति है। बाजार माँग की तुलना में व्यक्तिगत माँग लगभग नगण्य होती है इसलिए एक उपभोक्ता बाजार माँग को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी प्रकार एक फर्म वस्तु की बाजार पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है।

अत: फर्म को उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत स्वीकार करके ही अपना उत्पाद बेचना पड़ता है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कीमत स्वीकारक कहा जाता है। एकाधिकार में एक वस्तु के उत्पादन पर एक ही फर्म का अधिकार होता है। अकेला विक्रेता होने के कारण फर्म वस्तु की आपूर्ति को पूरी तरह प्रभावित कर सकती है। इसी कारण एकाधिकारी फर्म कीमत निर्धारक होती है। एकाधिकारी फर्म वस्तु की आपूर्ति को प्रभावित करके वस्तु की कीमत को प्रभावित कर सकती है।

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प्रश्न 4.
स्वतंत्र प्रवेश व गमन का क्या अभिप्राय है? पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत स्वतंत्र प्रवेश व गमन का बाजार पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्र प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि कोई भी फर्म उद्योग में स्वतंत्र रूप से प्रवेश कर सकती है और जब चाहे बाजार छोड़कर जा भी सकती है। स्वतंत्र प्रवेश व गमन का बाजार पर प्रभाव –
1. यदि उद्योग में किसी उत्पाद का मूल्य ऊँचा तय कर दिया जाता है तो मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलता है। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फमैं बाजार में प्रवेश करेंगी। वस्तु की आपूर्ति में वृद्धि होगी और कीमत का स्तर कम हो जायेगा। फर्मों की संख्या बढ़ने से साधन बाजार में साधनों की माँग बढ़ेगी और साधनों की कीमत भी बढ़ जायेगी। इससे औसत लागत में वृद्धि हो जायेगी। कम कीमत व ऊंची औसत लागत के कारण फर्मों को केवल सामान्य लाभ ही मिल पायेगा।

2. यदि उद्योग में वस्तु की कीमत नीची तय की जाती है तो मौजूदा कुछ फर्मों को हानि उठानी पड़ सकती है। अल्पकाल में फर्म कुछ सीमा तक हानि हो वहन कर सकती है लेकिन दीर्घकाल में हानि की स्थिति में फर्म बाजार छोड़कर चली जाती है। उद्योग में फर्मों की संख्या कम होने से आपूर्ति कम हो जायेगी और वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जायेगी। उद्योग को छोड़कर जाने का सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक मौजूदा सभी फर्मों को सामान्य लाभ नहीं मिलेगा। इस प्रकार मुक्त प्रवेश व गमन का बाजार पर यह प्रभाव होता है कि सभी फर्मों को शून्य लाभ या सामान्य लाभ प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में, शून्य लाभ स्तर पर फर्म संतुलन में होती है। संतुलन की अवस्था LAC, LMC व कीमत समान होते हैं।
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प्रश्न 5.
विशेषताओं के आधार पर पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में अंतर:

1. वस्तु की प्रकृति:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत सभी फमें समांगी वस्तु का उत्पादन करती हैं। एकाधिकार में वस्तु समांगी हो भी सकती है और नहीं भी।

2. क्रेता-विक्रेताओं की संख्या:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक वस्तु को बेचने व खरीदने वालों की बहुत विशाल संख्या होती है। जबकि एकाधिकार में एक वस्तु का विक्रय करने वाली केवल एक फर्म होती है लेकिन क्रेता अधिक संख्या में होते हैं।

3. प्रवेश व गमन:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत नई फर्म स्वतंत्र रूप से उद्योग में शामिल हो सकती है। उसके प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। इसी प्रकार हानि उठाने वाली फर्म उद्योग को छोड़कर जाने के लिए भी स्वतंत्र होती है। जबकि एकाधिकार में नई फर्म के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।

4. वस्तु की कीमत:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है और उद्योग द्वारा जय की गई कीमत पर फर्म वस्तु का विक्रय करती है। जबकि एकाधिकारी फर्म स्वयं ही कीमत निर्धारक होती है। पूर्ण प्रतियोगिता बिक्री के प्रत्येक स्तर पर कीमत समान रहती है। लेकिन एकाधिकारी कीमत करके ही वस्तु की अधिक मात्रा का विक्रय कर सकता है।

5. आपूर्ति वक्र:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म के आपूर्ति वक्र का आंकलन उसकी सीमांत आगम वक्र से किया जाता है। फर्म दी गई कीमत पर उत्पाद का विक्रय करती है इस कीमत पर फर्म केवल उत्पाद की मात्रा में ही समन्वय कर सकती है। जबकि एकाधिकार में फर्म के आपूर्ति वक्र का कोई सुनिश्चित आकार नहीं होता है।

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प्रश्न 6.
एकाधिकार एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
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प्रश्न 7.
समझाइए कि दीर्घकाल में निर्बाध प्रवेश/निकासी के कारण एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म के असामान्य लाभ शून्य कैसे हो जाते हैं?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगी बाजार की तुलना में कम होती हैं। सभी फर्मे विभेदित वस्तु का उत्पादन करती हैं। अल्पकाल में प्रतियोगिता का स्तर कम होने के कारण एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म कुछ अधिक कीमत उत्पादकों से वसूल कर असामान्य लाभ कमाती है। प्रवेश की स्वतंत्रता के कारण नई फर्म असामान्य लाभ से आकर्षित होकर बाजार में प्रवेश करने लगती है। नई फर्मों के प्रवेश से बाजार में फर्मों की संख्या बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप बाजार में वस्तु की आपूर्ति बढ़ने लगती है।

इसके कारण मौजूदा फर्मों में प्रतियोगिता का स्तर बढ़ जाता है। अपने उत्पाद को बेचने के लिए फर्मों को कीमत स्तर घटाना पड़ता है। फर्मों के प्रवेश का क्रम उस स्तर तक चलता है जब तक असामान्य लाभ पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता है। दूसरी ओर यदि प्रतियोगी एकाधिकार बाजार में मौजूदा फर्मों को हानि उठानी पड़ती है तो स्वतंत्रता के कारण वे फर्म बाजार से बाहर होने लगती हैं। उद्योग में फर्मों की संख्या कम होने के कारण मौजूदा फर्मों में प्रतियोगिता का स्तर घटने लगता है। परिणामस्वरूप वस्तु की कीमत बढ़ने लगती है और हानि के स्तर में कमी आ जाती है। फर्मों के बाहर जाने की क्रिया उस समय तक चलती है जब तक हानि समाप्त नहीं हो जाती है।

प्रश्न 8.
एकाधिकारी प्रतियोगिता के लक्षणों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी के लक्षण –
1. क्रेता तथा विक्रेताओं की संख्या:
इस बाजार में फर्मों की संख्या अधिक होती है। एक फर्म कुल उत्पादन के एक छोटे भाग का उत्पादन करती है। इस बाजार में क्रेताओं की संख्या भी अधिक होती है। एक क्रेता बाजार माँग का छोटा हिस्सा ही क्रय करता है।

2. वस्तु विभेद:
एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में सभी फर्म रूप, रंग, आकार, गुणवत्ता. आदि गुणों में अलग-अलग वस्तु का उत्पादन करती हैं। अत: इस बाजार में वस्तु विभेद पाया जाता है।

3. प्रवेश पाने व बाहर जाने की स्वतंत्रता:
इस बाजार में नई फर्मों को बाजार में प्रवेश करने व पुरानी फर्मों को उद्योग से बाहर जाने की स्वतंत्रता होती है। यदि इस बाजार में मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता है तो नई फर्म इससे आकर्षित होकर बाजार में प्रवेश कर सकती है। दूसरी ओर यदि फर्मों को हानि होती है तो हानि उठाने वाली फर्म बाजार छोड़कर बाहर जाने के लिए स्वतंत्र होती है।

4. बिक्री लागत:
इस बाजार में वस्तु विभेद होने के कारण बिक्री लागतों का बहुत अधिक महत्त्व होता है। इन लागतों की मदद से एक फर्म अधिक संख्या में उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करके लाभ को बढ़ा सकती है।

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प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
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आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी एकाधिकारी फर्म की MR सारणी नीचे दी जा रही है। उसकी AR तथा TR सारणी बनाइये।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 29

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प्रश्न 2.
प्रौद्योगिकी इस प्रकार की है कि 10 इकाई उत्पादन पर फर्म की दीर्घकालीन औसत लागत न्यूनतम हो जाती है। यह न्यूनतम लागत 15 रुपये है। कल्पना करो कि वस्तु की माँग निम्न सारणी में दी गई है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 30

  • बाजार में बिक्री की कुल मात्रा क्या होगी तथा दीर्घकाल संतुलन में कितनी फर्म कार्यशील होंगी?
  • माना उत्पादन तकनीक में प्रगति के कारण न्यूनतम औसत लागत 12 रुपये हो जाती है और न्यूनतम लागत संयोजन उत्पाद की 8 इकाइयों पर प्राप्त होता है। अब दीर्घकाल में कितनी फर्म कार्य करेंगी?

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 31a
AC = 15
AR = 15 (12000 इकाइयों की माँग पर)
दीर्घकालीन संतुलन की अवस्था में –
AR = AC = 15
फर्मों की संख्या = \(\frac{1200}{10}\) फर्म = 120 फर्म
बाजार में बिक्री की मात्रा 12000 इकाइयाँ
बाजार में कार्यशील फर्मों की संख्या = 120 फर्म

2. AC = 12
AR = 12 (1440 इकाइयों की माँग पर)
अतः दीर्घकालीन संतुलन की अवस्था में –
AR = AC = 12
फर्मों की संख्या = \(\frac{1440}{8}\) = 180
दीर्घकाल में 180 फर्म कार्य करेंगी।

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प्रश्न 3.
एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र नीचे सारणी में दिया गया है। इसकी TR,AR तथा MR सारणियाँ बनाओ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 part - 2 img 33a

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका से कुल आगम तथा औसत आगम तालिका बनाओ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 34
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 35

प्रश्न 5.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 20 रुपये है। फर्म का माँग वक्र नीचे दिया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 36
अल्पकालीन साम्य मात्रा, कीमत तथा कुल लाभ ज्ञात करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 37
एकाधिकारी फर्म का अल्पकालीन संतुलन वहाँ होता है जहाँ फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। तालिका में अधिकतम आगम उत्पादन स्तर 6 पर है।
अल्पकालीन संतुलन उत्पादन स्तर = 6
अल्पकालीन संतुलन कीमत स्तर = 5
कुल लाभ = कुल आगम – कुल लागत
= 30 – 20
= 10
साम्य उत्पादन स्तर = 6
साम्य कीमत = 6
कुल लाभ = 10

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प्रश्न 6.
वस्तु की बाजार माँग व कुल लागत एकाधिकारी फर्म के लिए नीचे दिए गए हैं –
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निम्नलिखित की गणना करो –

  1. सीमांत आगम व लागत अनुसूची बनाओ।
  2. उत्पाद की वह मात्रा जिस पर MR तथा MC समान हों।
  3. साम्य मात्रा एवं वस्तु की साम्य कीमत।

उत्तर:
1. सीमांत आगम तालिका
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2. सीमांत लागत तालिका
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 41

3. उत्पादन इकाई 6 के लिए
MR = MC = 4
साम्य कीमत यह स्तर है जिसमें उत्पादन स्तर पर MR = MC

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एकाधिकार के बारे में मान्यता है –
(A) कि एक फर्म उत्पादित वस्तु की मात्रा का स्टॉक नहीं बनाती है
(B) कि एक फर्म उत्पादित सम्पूर्ण मात्रा को विक्रय के लिए पेश करती है
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

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प्रश्न 2.
फर्म द्वारा प्राप्त लाभ होता है –
(A) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का अंतर
(B) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का योग
(C) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का गुणनफल
(D) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का भागफल
उत्तर:
(A) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का अंतर

प्रश्न 3.
यदि कुल लागत शून्य होती है तो लाभ अधिकतम होता है जब –
(A) कुल आगम न्यूनतम होता है
(B) कुल आगम अधिकतम होता है
(C) कुल आगम धनात्मक होता है
(D) कुल आगम ऋणात्मक होता है
उत्तर:
(C) कुल आगम धनात्मक होता है

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प्रश्न 4.
कुल आगम होता है –
(A) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का योग
(B) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का अंतर
(C) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का गुणनफल
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का गुणनफल

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता में साम्य स्थापित होता है अधिक मात्रा –
(A) ऊँची कीमत पर बेचकर
(B) कम कीमत पर बेचकर
(C) न तो ऊँची कीमत न ही नीची कीमत पर बेचकर
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कम कीमत पर बेचकर

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प्रश्न 6.
यदि कुल लागत वक्र कुल आगम वक्र से ऊपर होता है तो –
(A) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म लाभ कमाती है
(B) लाभ धनात्मक होता है और फर्म लाभ कमाती है
(C) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म को हानि होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म को हानि होती है

प्रश्न 7.
एकाधिकार का लाभ अधिकतम होता है उस उत्पादन स्तर पर जिस पर –
(A) कुल आगम व कुल लागत वक्रों में से ऊर्ध्वाधर दूरी अधिकतम होती है
(B) कुल आगम वक्र, कुल लागत वक्र से ऊपर होता है
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

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प्रश्न 8.
एकाधिकार का लाभ उस उत्पादन स्तर पर अधिकतम होता है जिस पर –
(A) MR = MC तथा MC बढ़ रही हो
(B) MR = MC तथा MC घट रही हो
(C) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
(D) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
उत्तर:
(C) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो

प्रश्न 9.
एकाधिकार में उत्पादित की मात्रा का निर्धारण होता है उस कीमत पर जिस पर –
(A) उपभोक्ता खरीदने को तैयार होते हैं
(B) उत्पादक बेचने को तैयार होते हैं
(C) उपभोक्ता प्राप्त करने को तैयार होते है
(D) उत्पादक देने को तैयार होते हैं
उत्तर:
(C) उपभोक्ता प्राप्त करने को तैयार होते है

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प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगी फर्म होती है –
(A) कीमत निर्धारक
(B) कीमत स्वीकारक
(C) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
(D) (A) तथा (B) दोनों
उत्तर:
(B) कीमत स्वीकारक

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाजार सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वह स्थिति, जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती है उसे साम्य या सन्तुलन की स्थिति कहते हैं। साम्य की अवस्था में मांगी गई मात्रा तथा पूर्ति की गई मात्रा समान होती है। माँग व पूर्ति में परिवर्तन करने के लिए किसी के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती है। बाजार सन्तुलन की अवस्था में सभी फर्मों द्वारा की गई आपूर्ति व सभी उपभोक्ताओं द्वारा की गई माँग के बराबर होती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो फर्म न ही उपभोक्ता किसी परिवर्तन की इच्छा करते हैं। गणितीय रूप से बाजार सन्तुलन को दर्शाया जा सकता है –
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति

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प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार माँग वस्तु की बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। गणितीय रूप में अधिमाँग को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है –
yd > ys
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति

प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार आपूर्ति वस्तु की बाजार माँग से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिशेष आपूर्ति कहते हैं।
ys > ys
जहाँ ys → बाजार माँग तथा
yd बाजार पूर्ति

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प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?

  1. सन्तुलन कीमत से अधिक
  2. सन्तुलन कीमत से कम

उत्तर:
1. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से अधिक है, तो फर्म उस वस्तु की आपूर्ति अधिक मात्रा में करेगी तथा उपभोक्ता उस वस्तु की माँग कम मात्रा में करेंगे। इससे बाजार में सन्तुलन की अवस्था बिगड़ जायेगी। अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। इस स्थिति को चित्र में दर्शाया गया है।
कीमत Op1 > Op
कीमत Op1 कीमत पर
माँगी गई मात्रा = Oyd
पूर्ति की गई मात्रा = Oy5
Oys > oyd
जिसका अभिप्राय अधिशेष आपूर्ति से है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 1

2. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से कम होती है, तो बाजार में उस वस्तु के उत्पादक पूर्ति कम करेंगे तथा उस वस्तु के क्रेता माँग अधिक मात्रा में करेंगे। इस प्रकार बाजार का सन्तुलन बिगड़ जायेगा। इस स्थिति को स्वल्पता या अधिमाँग कहते हैं। इसे चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
कीमत Op1 < Op
कीमत Op1 कीमत पर –
माँग = Oyd
पूर्ति = Oy5
oyd < oy5
जिसका अर्थ है अधिमाँग या स्वल्पता।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 2

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प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या निश्चित होती है, तो साम्य की स्थिति का निर्धारण माँग व पूर्ति के एक साथ काम करने से होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जहाँ फर्मों की संख्या निश्चित होती है क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही कीमत स्वीकारक होते हैं। बाजार पूर्ति वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर सभी फर्म कितनी मात्रा बेचने के लिए तैयार है। इसी प्रकार बाजार माँग चक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर विभिन्न क्रेता वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने को तैयार है।

सन्तुलन वह अवस्था है जहाँ बाजार में माँगी गई मात्रा पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है। ज्यामितीय रूप से साम्य अवस्था वह बिन्दु है, जहाँ बाजार माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस बिन्दु पर वस्तु की माँगी गई मात्रा उसकी पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है इस बिन्दु के अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो अधिमाँग की स्थिति होती है या अधिशेष पूर्ति की। साम्य बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा क्रय व विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य कीमत निर्धारण को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 3
आपूर्ति वक्र SS व माँग DD एक-दूसरे को बिन्दु E पर काटते हैं। अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है। इस बिन्दु पर साम्य कीमत = Op, साम्य मात्रा = Oy

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प्रश्न 6.
मान लिजिए की अभ्यास 5 में सन्तुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
एक फर्म उत्पाद की धनात्मक मात्रा का उत्पादन केवल उस स्थिति में करती है, जब वस्तु कीमत न्यूनतम परिवर्तनशील लागत समान या अधिक होती है। जब बाजार में फर्म का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है, तो हमेशा फर्म उस कीमत पर आपूर्ति करती है, जहाँ किसी फर्म को न तो असामान्य लाभ प्राप्त होता है और न ही हानि होती है। अत: कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होगा, जहाँ वस्तु की कीमत, न्यूनतम अवसर लागत के समान होगी। यदि साम्य कीमत, न्यूनतम औसत लागत से अधिक है, तो फर्म को असामान्य लाभ मिलता है।

कई अन्य फर्मे बाजार में प्रवेश करने लगती है। इससे अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। फर्मों में प्रतियोगिता बढ़ने से वे वस्तु की कीमत कम करेंगे। जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता रहेगा नई फमें बाजार में प्रवेश करती रहेगी, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के समान हो जायेगी, तो फर्मों का प्रवेश बाजार में बन्द हो जायेगा। इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ मिलेगा। अतः मुक्त प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के हमेशा बराबर होगी।
p = Min AC

इस कीमत पर फर्म पूर्तिको माँग के समान समायोजित करने का प्रयास करती है। रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण माँग वक्र तथा p = न्यूनतम AC रेखा द्वारा होता है। साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र, p = AC न्यूनतम रेखा को काटता है स्वतन्त्र प्रवेश व गमन की स्थिति नीचे रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण दिखाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 4
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र रूप से होता है, तो कीमत का निर्धारण न्यूनतम औसत लागत के बराबर होता है। साम्य मात्रा का निर्धारण भी माँग वक्र व न्यूनतम औसत लागत के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है।

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प्रश्न 7.
एक बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती है? ऐसे बाजार में सन्तुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
बाजार में फर्मों के स्वतन्त्र प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि कोई भी फर्म असामान्य लाभ प्राप्त नहीं करेगी। इस स्थिति में फर्म को हानि भी नहीं होगी। साम्य कीमत का निर्धारण उस स्तर पर होगा, जहाँ कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाजार कीमत का स्तर न्यूनतम औसत लागत से अधिक होगा, तो फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश के कारण बाजार पूर्ति में वृद्धि होगी और आपूर्ति आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। सम्पूर्ण उत्पाद को बेचने के लिए फर्मे कीमत घटाती है, ताकि वे अपने सम्पूर्ण उत्पाद को बेच सकें।

जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा नई फर्मों का बाजार में प्रवेश जारी रहता है, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के बराबर हो जाती है, तो फर्मों का प्रवेश रूक जाता है, क्योंकि इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। मौजूदा फर्म साम्य की अवस्था में बाजार छोड़कर नहीं जाती है, क्योंकि उन्हें कोई हानि नहीं उठानी पड़ती है।

साम्य के निर्धारण के आकलन को उस स्थिति में भी स्पष्ट किया जा सकता है, जब वस्तु की बाजार कीमत औसत लागत से कम होती है। जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है, तो साम्य निर्धारण माँग वक्र तथा p = AC न्यूनतम रेखा के कटाव बिन्दु पर होता है। साम्य का निर्धारण, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 5
पूर्ण प्रतियोगी बाजार फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होती है। इसी बिन्दु पर क्रय-विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।
साम्य कीमत = Op0 = Min AC
साम्य मात्रा = Oy0

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प्रश्न 8.
एक बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व गमन इस बात का प्रतीक है कि बाजार पूर्ति उस कीमत पर होती है, जहाँ किसी भी फर्म को न तो असामान्य लाभा प्राप्त है और न ही हानि उठानी पड़ती है। बाजार कीमत उस स्तर पर तय होती है, जहाँ कीमत न्यूनतम AVC के समान होती है। यदि बाजार कीमत न्यूनतम AVC से अधिक होती है, तो फर्मों असामान्य लाभ मिलता है। इससे आकर्षित होकर नई फर्में बाजार में प्रवेश करती है। फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति बढ़ जाती है, जो अधिक आपूर्ति को जन्म देती है। अधिशेष आपूर्ति के कारण बाजार कीमत घटती है, जिससे सारा उत्पादन बेचा जा सके।

नई फर्मों का प्रवेश, जब तक जारी रहता है, तव तक फर्मों का असामान्य लाभ मिलता है। जब कीमत न्यूनतम AVC के समान हो जाती है, तो नई फर्मों का प्रवेश रुक जाता है। इस कीमत पर प्रत्येक मौजूदा फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होगा, इस स्थिति में कोई नई फर्म बाजार में प्रवेश नहीं करेगी। इसके, क्योंकि फर्मों को सामान्य लाभ मिलता है और हानि उठानी नहीं पड़ती है, इसलिए मौजूदा फर्मे बाजार छोड़कर इस स्थिति में बाहर नहीं जाती है। इस अवस्था में फर्म साम्य की स्थिति में है फर्मों की संख्या की व्याख्या, इसके विपरीत स्थिति में भी की जा सकती है, जब फर्मों को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 9.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में –
(I) वृद्धि होती है
(II) कमी होती है
उत्तर:
यदि बाजार में फर्मों की स्ख्या स्थिर है, तो उपभोक्ता की आय साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा को प्रभावित करेगी। इसे नीचे समझाया गया है –

(I) उपभोक्ता की आय में वृद्धि:
1. आय बढ़ने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की खरीद पर कम व्यय करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग में कमी होने के कारण घटिया वस्तु का माँग वक्र नीचे/बायीं ओर खिसक जायेगा। माँग में कमी के कारण पूर्ति आधिक्य की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में कमी आयेगी।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 6

2. आय बढ़ने पर उपभोक्ता सामान्य वस्तु की खरीद पर अधिक व्यय करेगा। अतः सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं/ऊपर की ओर खिसक जायेगा। माँग में वृद्धि के कारण बाजार में माँग की अधिकता के कारण साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 7

(II) उपभोक्ता आय में कमी:
1. आय कम होने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की अधिक खरीद करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र ऊपर/दायीं ओर खिसक जायेगा माँग बढ़ने के कारण पूर्ति में कमी की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 8

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प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते व जुराब एक-दूसरे की पूरक वस्तु है। जूतों की कीमत में वृद्धि का जुराब की माँग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अर्थात् जूतों की कीमत में वृद्धि होने पर जुराबों की माँग में कमी आ जायेगी। अतः जुराबों की मॉग बायीं/नाचे की ओर खिसक जायेगा। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 9

प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की सन्तुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफी व चाय एक-दूसरे की प्रतियोगी वस्तु है। कॉफी की कीमत में परिवर्तन होने पर चाय की माँग में समान दिशा में परिवर्तन होगा। कॉफी की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप चाय की साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 10Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 11

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प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त अगतों की कीमत परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन दो प्रकार से साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करता है –

  1. साधन आगतों की कीमत बढ़ सकती है
  2. साधन आगतों की कीमत घट सकती है

1. साधनों की कीमत में वृद्धि:
साधन आगतों की कीमत में वृद्धि का वस्तु की पूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 12

2. साधनों की कीमत में कमी:
साधन आगतों की कीमत में कमी का वस्तु की पूर्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 13
नई साम्य कीमत घटेगी तथा साम्य मात्रा बढ़ेगी।

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प्रश्न 13.
यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु (y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु x की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
यदि वस्तु (x) की प्रतिस्थापन वस्तु (y) की कीमत बढ़ जायेगी, तो वस्तु (x) सापेक्ष रूप से सस्ती हो जायेगी। इससे वस्तु (x) की माँग में वृद्धि होगी। अर्थात् वस्तु (x) का माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जायेगा। इस परिवर्तन का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 14
नई साम्य कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।

प्रश्न 14.
बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानान्तरण का सन्तुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. जब फर्मों की संख्या स्थिर हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तो माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से बाजार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अधिमाँग के कारण साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसके विपरीत माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से बाजार में माँग कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में कमी उत्पन्न हो जायेगी। माँग वक्र में खिसकाव. के कारण साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 15
इस स्थिति में साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।

2. जब फर्मों का प्रवेश में निर्गम स्वतन्त्र हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतन्त्र होता है, तो साम्य बिन्दु का निर्धारण हमेशा न्यूनतम औसत लागत पर तय होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में किसी भी फेर्म को असामान्य लाभ प्राप्त नहीं होता है। माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में अधिमाँग की स्थिति पैदा हो जाती है, इससे बाजार कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। बढ़ी कोभत पर मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। इससे आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति में बढ़ोतरी हो जायेगी। इससे साम्य कीमत अपने मूल स्तर पर पहुँच जायेगी।

माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में न्यून माँग की स्थिति पैदा होती है इससे बाजार कीमत कम हो जाती है। मौजूदा फर्मों को हानि उठानी पड़ती है। जिन फर्मों को हानि होती है, वे बाजार छोड़कर बाहर चली जाती है । फर्मों के बाहर होने से बाजार आपूर्ति कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत पुनः अपने पूर्व स्तर पर पहुँच जाती है। इस प्रकार फर्मों के मुक्त प्रवेश व निर्गम का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा बढ़ जायेगी। इसी प्रकार माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 16
जब बाजार से फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतंत्र होता है, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन साम्य मात्रा प्रभावित होती है।

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प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर शिफ्ट का सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
नीचे दर्शायी गई तीन स्थितियाँ हो सकती है –
(I) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं वक्र में खिसकाव से ज्यादा हो –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 17

(II) यदि माँग वक्र के दायीं ओर खिसकाव पूर्ति चक्र में खिसकाव से कम हो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 18
नई साम्य कीमत कम हो जायेगी परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।

(III) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के बराबर हो –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 19

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प्रश्न 16.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब –
(I) माँग तथा पूर्ति दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं।
(II) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं।
उत्तर:
(I) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में खिसकाव –

1. माँग व पूर्ति वक्र दोनों में बायीं ओर खिसकाव
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर ज्यादा खिकाव
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 20

(b) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर कम खिसकाव
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 21

(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र में बायीं ओर समान खिसकाव
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 22

(II) दायीं ओर माँग वक्र व पूर्ति वक्र में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में दायीं ओर कम खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 23

(b) माँग वक्र में दायीं ओर पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 24

(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर समान खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 25

(III) माँग व पूर्ति वक्र में विपरीत दिशा में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 26

(b) माँग वक्र में दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 27

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प्रश्न 17.
वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार के माँग वक्र व पूर्ति वक्र तथा श्रम बाजार के माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र में मूलभूत अन्तर होता है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग उपभोक्ता करते हैं और उत्पादक वस्तु की पूर्ति करते हैं। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक करते हैं व श्रम की पूर्ति परिवार करते हैं। वस्तुओं की माँग उपयोगिता पाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की माँग उत्पादकता के कारण की जाती है। वस्तुओं की पूर्ति उत्पादक लाभ कमाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की पूर्ति का उद्देश्य रोजगार व मजदूरी प्राप्त करना होता है। हालाँकि मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा उसी प्रकार होता है। जैसे-वस्तु की कीमत का निर्धरण माँग व पूर्ति की शक्तियाँ करती है।

प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
प्रतियोगी होने के कारण प्रत्येक फर्म लाभ अधिकतम करने के प्रयास करती है। अतः उत्पादक इकाई उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ श्रम की अन्तिम इकाई की लागत उस अतिरिक्त श्रम के नियोजन से फर्म की आय में बढ़ोतरी होती है। श्रम की अन्तिम इकाई की लागत मजदूरी दर के समान होती है। श्रम की अन्तिम इकाई के नियोजन से अतिरिक्त लाभ (आय) उस इकाई की सीमान्त उत्पादकता के समान होती है। अत: फर्म उस बिन्दु तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ –
मजदूरी दर = सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRP1
जहाँ MRp2 = MR × MP2
अथवा MRp2 = p × Mp2 (MR =p प्रतियोगी फर्म के लिए)
अथवा MRp2 = VMp2
अथवा w = VMp2

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प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम की मजदूरी दर का निर्धारण माँग और पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। फर्म लाभ कमाने के उद्देश्य से श्रम की माँग करती है। श्रम के नियोजन पर फर्म को लागत भी उठानी पड़ती है। श्रम को क्रय करने की अतिरिक्त लागत श्रम को दी गई मजदूरी होती है। श्रम के नियोजन से प्राप्त लाभ श्रम की सीमान्त उत्पादकता के समान होता है। एक फर्म श्रम की अधिकतम इकाइयों का नियोजन उस सीमा तक करती है जहाँ श्रम की मजदूरी दर श्रम की सीमान्त आगत उत्पादकता के समान होती है।

श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता ह्रासमान सीमान्त उत्पादकता के नियमानुसार प्राप्त होती है और फर्म हमेशा w = VMp2 = MRp2 के आधार पर उत्पादन करती है। इसका अभिप्राय है श्रम का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है। इस प्रकार श्रम की माँग व पूर्ति श्रम को दी जाने वाली मजदूरी दर में विपरीत सम्बन्ध होता है। श्री की आपूर्ति परिवार करते हैं। परिवार श्रम से प्राप्त मजदूरी तथा आराम के बीच चयन के आधार पर श्रम की आपूर्ति करते हैं। सामान्यतः परिवार ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की ज्यादा आपूर्ति करते हैं।

कोई व्यक्तिगत श्रमिक हो सकते हैं, जो ऊँची मजदूरी दर भी आराम पसन्द करते हैं लेकिन सामान्यत: ऊँची मजदूरी दर पर अधिक श्रम की आपूर्ति द्वारा अधिक कमाना ज्याद पसन्द करते हैं। अतः श्रम का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। जिस बिन्दु पर ऋणात्मक ढाल वाला श्रम माँग वक्र तथा धनात्मक ढाल वाला श्रम का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य की अवस्था में श्रम की माँग व पूर्ति दोनों समान होते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 28
श्रम की साम्य मजदूरी दर Ow तथा साम्य माँग व पूर्ति OL है।

प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, गेहूँ एक ऐसी वस्तु है जिस पर भारत में कीमत नियंत्रण किया जाता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के तेल, चावल आदि पर भी कीमत नियंत्रण का प्रयोग किया जाता है।

कीमत नियन्त्रण के प्रभाव:
सामान्यतः कीमत नियन्त्रण के साथ ही राशन प्रणाली शुरू करनी पड़ती है। कीमत नियन्त्रण के निम्नलिखित तीन प्रभाव होते हैं –

1. प्रायः
उपभोक्ताओं को उपभोग के लिए घटिया वस्तु मिलती है, क्योंकि कीमत नियन्त्रण के कारण उत्पादकों को वस्तु की कीमत मिलती है। उत्पादन लागत को घटाने के लिए वे नीची गुणवत्ता वाली वस्तु उत्पन्न करते हैं।

2. प्रत्येक उत्पादक को उपभोग हेतु वस्तु की निश्चित मात्रा प्राप्त होती है। वस्तु की स्वल्पता के कारण उपभोक्ताओं को लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना पड़ता है।

3. ज्यादातर उपभोक्ताओं को आवश्यकता से कम मात्रा में ही उपभोग के लिए वस्तु मिल पाती है। उनमें से कुछ उपभोक्ता अतिरिक्त मात्रा प्राप्त करने के लिए ऊँची कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। इससे रिश्वत, कालाबाजारी, जमाखोरी जैसी समस्याएँ पैदा हो जाती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें, जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में साथ-साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 29
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र हो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 30

प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं –
qD = 700 – p
qS = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15 मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत क्या होगी? सन्तुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
qD
yD = 700 – p
qS = 500 + 3p p ≥ 15 के लिए
= 0 p ≤ 15 के लिए
15 रुपये से कम कीमत वस्तु पूर्ति मात्रा शून्य है। इसका कारण यह है कि पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन नहीं करती है।

साम्य अवस्था में –
yD = yS
700 – p = 500 + 3p (मूल्य स्थापित करने पर)
या – 3p – p = 500 – 700
या – 4p = – 200
200 या 4p = 200 या p = \(\frac{200}{4}\) या p = 50
p का मूल्य किसी भी समीकरण में प्रतिस्थापित करने पर –
yD = 700 – 50 = 650
yS = 500 + 3 × 50 = 500 + 150 = 650
साम्य कीमत = 50 रुपये
साम्य मात्रा = 650

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प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बर्हिगमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है, जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है –
\(\boldsymbol{q}_{\boldsymbol{f}}^{\boldsymbol{s}}\) = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 20

  1. p = 20 का क्या महत्त्व है?
  2. बाजार में x के लिए किस कीमत पर सन्तुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
  3. सन्तुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।

उत्तर:
1. p = 20 न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत है।
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं करती है। बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन मुक्त होने के कारण साम्य कीमत 20 रु. होगी।

2. साम्यावस्था के लिए साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण 20 रुपये से कम कीमत पर कोई भी फर्म धनात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी क्योंकि 20 रुपये से कम कीमत पर वस्तु बेचने से फर्म को हानि होगी। 20 रुपये से अधिक किसी भी कीमत पर फर्मों का असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फर्म बाजार में प्रवेश करने लगती है। फर्मों का प्रवेश उस समय तक जारी रहता है, जब तक फर्मों का लाभ सामान्य नहीं हो जाता। एक बार कीमत न्यूनतम औसत लागत के समान होते ही साम्य स्थापित हो जाती है। इस अवस्था में फर्मों का प्रवेश व गमन रुक जाता है।

3. बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र है। अतः साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
yS = 8 + 3p
= 8 + 3 × 20 (p का मान रखने पर)
= 8 + 60 = 68 एक फर्म की आपूर्ति
साम्य स्तर पर बाजार माँग yD = 700 – p = 700 – 20 (p का मान रखने पर)
= 680
68 इकाइयों की पूर्ति करती है = 1 फर्म
1 इकाई की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) फर्म
680 इाकइयों की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) × 680 फर्म = 10 फर्म
बाजार में साम्य मात्रा = 680 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = 10

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प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है –
qD = 1000 – p; qS = 700 + 2p
1. सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।

2. अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है –
qS = 400 + 2p
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है ? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?

3. मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह सन्तुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार करेगा?
उत्तर:
1. qD yd = 1000 – p
qSy = 700 + 2p
साम्य अवस्था में yd = ys
100 – p = 700 + 2p
या – 2p – p = 700 – 1000
या – 3p = -300
या 3p = 300 या p = \(\frac{300}{3}\) = 100
p का मान माँग व पूर्ति समीकरणों में प्रतिस्थापित करने पर
yd = 1000 – p = 1000 – 100 = 900
ys = 700 + 2p = 700 + 2 × 100 = 700 + 200 = 900
साम्य कीमत = 100 रुपये
साम्य मात्रा = 900 इकाइयाँ

2. नई आपूर्ति समीकरण ys = 400 + 2p
साम्यावस्था में, ys = ys
1000 – p = 400 – 1000
या – 2p – p = 400 – 1000 या – 3p = 600
या 3p = 600 या p = \(\frac{600}{3}\) p = 200 p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर yd = 1000 – p = 1000 – 200 = 800
ys = 400 + 2p = 400 + 2 × 200 = 400 + 400 = 800
साम्य कीमत = 200 रुपये
साम्य मात्रा = 800 इकाइयाँ
सन्साधनों की कीमत में वृद्धि से पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है लेकिन साम्य मात्रा घट जाती है। अतः परिणाम हमारी अपेक्षाओं को सत्यापित करता है।

3. yd = 1000 – p
ys = 700 + 2p
उत्पादन शुल्क 3 रुपये/इकाई लगाने पर आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। खण्ड (i) में साम्य कीमत 100 रुपये था, 3 रु./इकाई उत्पाद शुल्क आरोपित होने पर फर्म को प्रति इकाई 3 रुपये कम प्राप्त होंगे। अत:
ys = 700 + 2(p – 3)
साम्यावस्था में yd = ys
1000 – p = 700 + 2(p – 3)
या 1000 – p = 700 + 2p – 6 या – 2p – p = 700 – 6 – 1000
या -3p = -306 या 3p = 306
या p = \(\frac{306}{3}\) = 102
p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर –
yd = 1000 – p = 1000 – 102 = 898
ys = 700 + 2(p – 3) = 700 + 2(102 – 3)
= 700 + 2 × 99 = 700 + 198 = 98
नई साम्य कीमत = 102 रुपये
नई साम्य मात्रा = 898 इकाइयाँ

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प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेन्टों के लिए बाजार-निर्धारण किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेन्ट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियन्त्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेन्टों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार सामान्य जन की पहुँच से अधिक किराया अपार्टमेन्ट्स का तय करता है, तो सरकार किराए की उच्चतम सीमा तय कर सकती है, ताकि सामान्य आदमी के लिए आवास प्रयोज्य हो जाएँ। सरकार किराए की सीमा, बाजार किराए से काफी कम तय करेगी। कम किराए पर ज्यादा लोग आपार्टमेन्ट की माँग करेंगे, आपूर्ति पक्ष कम अपार्टमेन्ट किराये देने को तैयार होगा। इससे किराये के मकानों की अधिकता उत्पन्न हो जायेगी। इस स्थिति को नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है। किराया
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 31
अधिक माँग पर काबू पाने के लिए सरकार अपार्टमेन्ट की राशनिंग कर सकती है, जिससे एक व्यक्ति एक से अधिक अपार्टमेन्ट न ले सके। इस व्यवस्था के निम्नलिखित परिणाम होंगे –

  1. कम किराए पर उत्पादक घटिया गुणवत्ता वाले अपार्टमेन्ट का निर्माण कर सकते हैं, ताकि इन्हें निर्मित करने की लागत कम हो जाए।
  2. अधिक माँग या स्वल्पता के कारण सामान्य लोगों को लम्बी कतार में खड़ा होना पड़ेगा।
  3. नियन्त्रित किराए पर सभी चाहने वाले लोगों को किराये पर अपार्टमेन्ट नहीं मिलेंगे। इससे कालाबाजारी, रिश्वतखोरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।

Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साम्य कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह कीमत स्तर, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की जाने वाली मात्रा दोनों बराबर होती है, साम्य कीमत कहलाती है।

प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी ‘बाजार में सन्तुलन कब स्थापित होता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में सन्तुलन तब स्थापित होता है, जब किसी दी गई कीमत पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर हो जाती है।

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प्रश्न 3.
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तब माँग व पूर्ति वक्रों के द्वारा कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तब सन्तुलन माँग व पूर्ति का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं।

प्रश्न 4.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम रोजगार का अधिकतम स्तर क्या होता है?
उत्तर:
प्रत्येक फर्म उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है, जहाँ सीमान्त आगम उत्पादकता श्रम की मजदूरी दर के समान होती है।

प्रश्न 5.
किसी उत्पाद के लिए अधिमाँग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर एक वस्तु के लिए बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इसे अधिक माँग कहते हैं।

प्रश्न 6.
किसी वस्तु की अधिक पूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर वस्तु की बाजार माँग की तुलना में उसकी बाजार पूर्ति अधिक होती है, तो इसे अधिक पूर्ति कहते हैं।

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प्रश्न 7.
बाजार सन्तुलन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति, जिसमें दी गई कीमत पर किसी वस्तु की बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति के समान होती है, साम्य कीमत कहलाती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो उपभोक्ता माँग में परिवर्तन करना चाहते हैं और न ही
उत्पादक पूर्ति में परिवर्तन करना चाहते हैं।

प्रश्न 8.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 9.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तब साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी।

प्रश्न 10.
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य मात्रा पर प्रभाव किस प्रकार निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर दोनों वक्रों के ढाल तथा खिसकाव के स्तर के आधार पर साम्य मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।

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प्रश्न 11.
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य कीमत पर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र के ढाल एवं दोनों में खिसकाव की माप के द्वारा साम्य कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।

प्रश्न 12.
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
यदि माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 14.
साम्य मात्रा पर माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य मात्रा कम हो जाती है।

प्रश्न 15.
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है।

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प्रश्न 16.
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।

प्रश्न 17.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा कम हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।

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प्रश्न 19.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो व पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत घट जाती है।

प्रश्न 20.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो ओर पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है।

प्रश्न 21.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत बढ़ जायेगी।

प्रश्न 22.
एक वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है, क्या साम्य कीमत बदल जायेगी?
उत्तर:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर माँग वक्र बायीं ओर खिसकने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 23.
जब एक वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है। क्या साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार होता है, तो माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा हो, तो साम्य मात्रा कम हो जायेगी।

प्रश्न 24.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।

प्रश्न 25.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 26.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग में माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को क्यों नहीं काटते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के उद्योग में उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होती है। अत: माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं।

प्रश्न 27.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वह उद्योग, जिसके बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं, उसे अक्षम्य उद्योग कहते हैं।

प्रश्न 28.
नियन्त्रित कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी वस्तु के विक्रय मूल्य की अधिकतम सीमा तय करना कीमत नियन्त्रण कहलाता है। उच्चतम कीमत निर्धारण के बाद विक्रेता तय कीमत से ज्यादा कीमत पर अपने उत्पाद को नहीं बेच सकता है।

प्रश्न 29.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर इसका प्रभाव पड़ेगा बताइए।
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी।

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प्रश्न 30.
क्या प्रतियोगी वस्तु की कीमत पूर्णप्रतियोगी बाजार में वस्तु की साम्य कीमत को प्रभावित करती है?
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है। इसके विपरीत प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी से वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे
साम्य कीमत कम हो जाती है।

प्रश्न 31.
क्या अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन का वस्तु की साम्य कीमत पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। अतः साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है।

प्रश्न 32.
समर्थन कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
छोटे उत्पादकों किसानों आदि के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी उत्पाद के घोषित मूल्य को समर्थन मूल्य कहते हैं। प्रायः समर्थन मूल्य सरकार बाजार मूल्य से ज्यादा तय करती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नियन्त्रित कीमत एवं साम्य कीमत में सम्बन्ध लिखो।
उत्तर:
साम्य कीमत वह कीमत स्तर होता है, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई बाजार मात्रा उसकी बाजार पूर्ति के बराबर होती है। जबकि नियन्त्रित कीमत वह कीमत स्तर है, जो सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तय की जाती है। सरकार कीमत नियन्त्रण करने के लिए किसी वस्तु की अधिकतम कीमत तय कर देती है। कीमत नियन्त्रण होने पर उत्पादक बाजार में उससे ज्यादा कीमत पर नहीं बेच सकता है। सामान्यत नियन्त्रित कीमत साम्य कीमत से नीची तय की जाती है। कीमत नियन्त्रण बाजार में वस्तु की स्वल्पता उत्पन्न करती है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 32

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प्रश्न 2.
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्या यह सम्भव है? यदि हाँ, तो समझाइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है, जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 33

प्रश्न 3.
क्या उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करती है? यदि हाँ, तो चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
हाँ, उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों को प्रभावित करती है। उत्पाद शुल्क की दर बढ़ने से सीमान्त लागत बढ़ जाती है। इससे आपूर्ति में कमी आ जाती है। वस्तु की आपूर्ति में कमी होने पर आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, साम्य कीमत बढ़ जाती है परन्तु साम्य मात्रा घट जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 33

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प्रश्न 4.
लागत बचाने वाली तकनीक साम्य कीमत एवं मात्रा को किस प्रकार से प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
लागत बचाने वाली तकनीक का प्रयोग करने से सीमान्त लागत घटने लगती है। परिणामस्वरूप पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत का स्तर कम हो जाता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 34

प्रश्न 5.
क्या अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर बाजार कीमत तथा विनिमय की गई मात्रा पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
उपभोक्ता की अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग में वृद्धि हो जाती है । माँग में वृद्धि के कारण माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 35

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प्रश्न 6.
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि साम्य कीमत को किस प्रकार प्रभावित करती है? चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का उपभोग बढ़ जाता है। वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, इससे माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 36

प्रश्न 7.
एक उद्योग अक्षम्यता से क्या अभिप्राय है। स्पष्ट करो।
उत्तर:
बाजार में कभी-कभी यह स्थिति भी हो सकती है कि किसी वस्तु की बाजार माँग शून्य हो जाती है। ऐसा तब हो सकता है, जब किसी वस्तु की उत्पादन लागत बहुत ऊँची हो। उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होने से उत्पादक कम कीमत पर वस्तु बेच नहीं सकता है और उपभोक्ता इतनी ऊँची कीमत देने को तैयार नहीं होते हैं। इस स्थिति में वस्तु का उत्पादन/आपूर्ति नहीं होती है। माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र विनिमय की किसी धनात्मक मात्रा पर नहीं काटते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 37

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प्रश्न 8.
समर्थन कीमत से किस प्रकार अधिशेष उत्पादन/आपूर्ति किस प्रकार उत्पन्न होती है?
उत्तर:
समर्थन मूल्य या न्यूनतम कीमत सरकार द्वारा किसानों या छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए घोषित किया जाता है। समर्थन मूल्य घोषित करने का उद्देश्य किसी विशिष्ट वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहन देना होता है। सामान्यतः समर्थन मूल्य बाजार कीमत से अधिक घोषित किया जाता है। ऊँची कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा क्रय करते हैं तथा उत्पादक ज्यादा मात्रा उत्पन्न करने की इच्छा करते हैं। इसी कारण बाजार में अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 38

प्रश्न 9.
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ति में बहुत कमी आ जाती है? इस घटना का गेहूँ की बाजार कीमत पर प्रभाव चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ते में बहुत कमी आने का अभिप्राय है गेहूँ का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इस घटना में गेहूँ की कीमत में बहुत बढ़ोतरी होगी लेकिन मात्रा कम हो जायेगी। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 39

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प्रश्न 10.
माना जीन्स के उत्पादन में प्रयोग होने वाली रुई की कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसका जीन्स की बाजार कीमत व साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
रुई जीन्स के उत्पादन में प्रयुक्त एक साधन है। रुई की कीमत बढ़ने पर जीन्स की उत्पादन की सीमान्त लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। जिससे जीन्स का आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा। अर्थात् साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी। परन्तु साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 40

प्रश्न 11.
आय में कमी से साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
आय में कमी का साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –
1. सामान्य वस्तु:
आय में कमी होने पर सामान्य वस्तु की माँग घट जाती है। सामान्य वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर बायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत तथा साम्य मात्रा दोनों घट जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 41

2. घटिया वस्तु:
आय में कमी होने पर घटिया वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। घटिया वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 42

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प्रश्न 12.
उपभोक्ताओं एवं विक्रेताओं के निर्णयों में बाजार में किस प्रकार तालमेल बैठता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में बाजार निर्णय उपभोक्ताओं व क्रेताओं के आपसी संव्यवहारों के द्वारा लिए जाते हैं। बाजार में साम्य का निर्धारण माँग व पूर्ति की शक्तियों के आधार पर होता है। उपयोगिता के स्तर को अधिकतम करने के लिए एक उपभोक्ता वस्तु की सीमान्त उपयोगिता के समान अधिकतम कीमत प्रदान कर सकता है।

दूसरी ओर उत्पादक लाभ को अधिकतम करने के लिए वस्तु की सीमान्त लागत के समान न्यूनतम कीमत स्वीकार कर सकता है। कीमत की अधिकतम एवं न्यूनतम सीमाओं के बीच जहाँ कही माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है साम्य कर निर्धारण हो जाता है। सन्तुलन बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा खरीदी व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की अवस्था में उपभोक्ता व विक्रेता खरीदी व बेची गई मात्रा में परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।

प्रश्न 13.
माँग वक्र में खिसकाव का वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
माँग वक्र में खिसकाव की स्थिति में साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रकृति पर निर्भर करता है । नीचे विभिन्न आपूर्ति वक्रों के साथ में माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव दर्शाए गए हैं –

1. जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है और माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा घट जाती है ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 43

2. जब पर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। माँग में दायीं ओर खिसकाव से साम्य कीमत बढ़ जाती है व माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव को साम्य कीमत कम हो जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 44

3. जब पूर्ति वक्र लोचदार हो:
जब वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है, तो. माँम – बक्र में खिसकाव का साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है। माँग वक्र जब दायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है तथा माँग वक्र जब बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों घट जाती है।
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प्रश्न 14.
चित्र की सहायता से समझाइए कि कीमत नियन्त्रण की स्थिति में राशनिंग घ्रणाली आवश्यक होती है।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर, साम्य कीमत से कम तय करती है परिणामस्वरूप वस्तु की आपूर्ति नियंत्रित कीमत पर माँग की तुलना में कम हो जाती है। अर्थात् बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उपलब्ध कम मात्रा को अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करने के लिए राशनिंग प्रणाली लागू करना आवश्यक हो जाता है। राशनिंग प्रणाली लागू होने पर निम्न आय वर्ग वाले उपभोक्ता भी कम कीमत वस्तु की निर्धारित मात्रा राशनिंग प्रणाली के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 46

प्रश्न 15.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि किस प्रकार से वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा को प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –

1. सामान्य वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि से सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 47

2. घटिया वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर घटिया वस्तु की माँग कम होती है। आय बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। इससे घटिया वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 48

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प्रश्न 16.
यदि सरकार बाजार मजदूरी दर से न्यूनतम मजदूरी ऊँची तय करती है, तो इसका बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार न्यूनतम मजदूरी दर का निर्धारण बाजार मजदूरी दर से ऊपर तय करती है, तो इसका बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा –

  1. यदि सरकार मजदूरी नीति को सख्ती से लागू करती है, तो श्रमिकों को बाजार से ऊँची मजदूरी दर प्राप्त होगी।
  2. ऊँची मजदूरी दर पर आपूर्ति की तुलना श्रम की माँग कम होगी। इससे श्रम बाजार में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होगी।
  3. काम करने की विवशता के कारण कुछ बेरोजगार श्रमिक नीची मजदूरी दर पर काम करने को तैयार हो जाते हैं। श्रमिक वास्तव में ऊँची मजदूरी दर पर हस्ताक्षर करते हैं और वास्तव में पाते हैं कम मजदूरी। इससे श्रम बाजार में कालाबाजारी जन्म लेती है।

प्रश्न 17.
किसी वस्तु के पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखे।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि करते हैं, पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक निम्नलिखित है –

  1. उत्पादन तकनीक में प्रगति।
  2. फर्मों की संख्या में वृद्धि।
  3. उत्पादन शुल्क की दर में कमी।
  4. वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में कमी।
  5. प्राकृतिक कारकों में अनुकूल परिवर्तन।

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प्रश्न 18.
वस्तु के माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग में कमी उत्पन्न करते हैं माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक नीचे दिए गए हैं –

  1. पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि।
  2. वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी।
  3. उपभोक्ता की रुचि अभिरुचियों में प्रतिकूल परिवर्तन।
  4. जलवायु व मौसम में प्रतिकूल परिवर्तन।

प्रश्न 19.
समझाइए कि राशनिंग प्रणाली कालाबाजारी को जन्म देती है।
उत्तर:
जब सरकार नियन्त्रण करती है, तो बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से कम तय किया जाता है। साम्य कीमत से कम कीमत पर वस्तु की बाजार माँग वस्तु की पूर्ति से कम रहती है। राशनिंग प्रणाली लागू करके सरकार वस्तु की उपलब्ध कम मात्रा अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करती है। यदि उच्च आय वर्ग के उपभोक्ताओं को आवश्यकता से वस्तु की कम मात्रा राशन में प्राप्त होती है, तो वे चोरीछिपे ऊँची कीमत देकर वस्तु की तय मात्रा से ज्यादा मात्रा खरीदने की पेशकश करते हैं। परिणामस्वरूप विक्रेता काला बाजार की गतिविधियों में लिप्त होने लगते हैं।

प्रश्न 20.
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखिए।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक –

  1. उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन।
  2. उत्पादन तकनीक में परिवर्तन।
  3. फर्मों की संख्या में परिवर्तन।
  4. सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
  5. उत्पादन शुल्क की दर में परिवर्तन।
  6. प्राकृतिक कारकों में परिवर्तन।

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प्रश्न 21.
माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा अन्य वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग को प्रभावित करते हैं माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे –

  1. सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
  2. उपभोक्ता की आय में परिवर्तन।
  3. उपभोक्ता की रुचि एवं अभिरुचियों में परिवर्तन।
  4. उपभोक्ताओं की संख्या में परिवर्तन।

प्रश्न 22.
वर्ष 2002-03 के लिए मुख्य बजट में चाय पर उत्पाद शुल्क 2 रु./किग्रा. से घटाकर 1रु./किग्रा. कर दिया गया। अन्य बातें समान रहती है। चाय की साम्य कीमत पर इस प्रभाव को दर्शाइए।
उत्तर:
चाय उत्पादन पर उत्पाद शुल्क की दर 2 रु./किग्रा. से 1 रु./किग्रा. कर देने से चाय उत्पादन की सीमान्त लागत प्रति किग्रा 1 रुपये कम हो जायेगी। सीमान्त लागत घटने से चाय की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। अर्थात् चाय का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। इससे चाय की साम्य कीमत घट जायेगी परन्तु साम्य मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 49

प्रश्न 23.
यदि सरकार वस्तु की कीमत का नियन्त्रण बाजार कीमत से कम करती है, तो इसके बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर:
यदि सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर बाजार कीमत से कम तय करती है, तो इसके बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव होंगे –

  1. बाजार कीमत से कम नियन्त्रित कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा में माँग करेंगे तथा उत्पादक कम मात्रा में पूर्ति करेंगे इससे बाजार में वस्तु की स्वल्पता की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
  2. स्वल्पता की समस्या से “पहले आओ पहले पाओ” या “जिसकी लाठी उसकी भैंस” की समस्या पैदा हो सकती है।
  3. दूसरे क्रम पर स्थित समस्या से बचने के लिए सरकार राशनिंग प्रणाली लागू कर सकती है।
  4. राशनिंग प्रणाली लागू होने पर रिश्वतखोरी, जमा खोरी, काला बाजारी जैसी समस्या पनपने लगती है।

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प्रश्न 24.
समर्थन कीमत का बाजार पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार, जो समर्थन मूल्य घोषित करती है, उसका स्तर बाजार कीमत से ऊपर होता है। इससे बाजार में निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं –

  1. बाजार कीमत से ऊपर समर्थन कीमत पर बाजार में वस्तु की आपूर्ति उसकी माँग की तुलना में ज्यादा हो जाती है। इससे बाजार में अधिशेष उत्पादन की समस्या पैदा हो जाती है।
  2. अधिशेष उत्पादन की स्थिति में उत्पादक बाजार में सम्पूर्ण उत्पादन नहीं बेच पाते हैं, बल्कि सरकार को उस अधिशेष उत्पादन को क्रय करने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
  3. अधिशेष उत्पादन को क्रय करके सरकार बफर स्टॉक बनाती है।
  4. उपभोक्ताओं को न्यायोचित कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार को आर्थिक सहायता की व्यवस्था करनी पड़ती है।

प्रश्न 25.
बाजार कीमत व सामान्य कीमत में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 50

प्रश्न 26.
एक उदाहरण की सहायता से फर्मों की संख्या में परिवर्तन से आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव को समझाइए तथा इसका साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
इस विषय में मोबाइल फोन का उदाहरण उपयुक्त रूप से पेश किया जा सकता है। 1990 के मध्य दशक में भारतवर्ष में एयर-टैल, एस्सार आदि गिनी-चुनी कम्पनियों मोबाइल फोन की सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। फर्मों की कम संख्या के कारण ये फर्म काल भेजने-सुनने की ऊँची कीमत उपभोक्ताओं से वसूलती थी। वर्ष 2002 के अन्त तक कुछ नई कम्पनियाँ जैसे-डॉलफिन, हच, टाटा-बिरला आदि इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई अर्थात् मोबाइल क्षेत्र में काम करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि हो गई। इससे मोबाइल फोन सेवा की आपूर्ति बढ़ गई और परिणामस्वरूप मोबाइल सुनने की स्थानीय लागत बिल्कुल समाप्त हो गई। मोबाइल से स्थानीय, एस. टी. डी. आदि पर काल करना सस्ता हो गया है।

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प्रश्न 27.
माना चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटा लिया जाता है। इसका चीनी की साम्य मात्रा व कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
सामान्यत: नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से नीचे तय किया जाता है। चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटाने पर बाजार में साम्य का निर्धारण उस कीमत पर होगा, जहाँ चीनी की बाजार माँग व पूर्ति दोनों समान हो जायेगी। उपभोक्ताओं की खुले बाजार में नियन्त्रित कीमत से ऊँची कीमत पर चीनी क्रय करनी पड़ेगी। अतः उपभोक्ता पक्ष नियन्त्रित कीमत पर चीनी की माँग की तुलना में कम मात्रा में चीनी की माँग करेंगे। दूसरी ओर उत्पादक चीनी की अधिक मात्रा में आपूर्ति करेंगे। साम्य का निर्धारण नियन्त्रित कीमत से ऊपर होगा। उपभोक्ताओं को ज्यादा मात्रा में उपभोग के लिए चीनी प्राप्त होगी। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 51

प्रश्न 28.
अभिरुचि में प्रतिकूल परिवर्तन के कारण माँग में कमी का कोई एक उदाहरण समझाइए।
उत्तर:
इस सम्बन्ध में वायु-यात्रा का उदाहरण पेश किया जा सकता है। 11.9.2001 को अमेरिका स्थित व्यावसायिक टॉवर पर आतंकवादी हमले के बाद से लोग हवाई यात्राओं से डरने लगे। हवाई यात्रा के भय से हवाई यात्रा का माँग वक्र बायीं ओर खिसक गया अर्थात् हवाई यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आ गई। अमरिका में हवाई यात्रा किराए में गिरावट आ गई। कई हवाई यात्रा कम्पनियों को अपना उत्पादन पैमाना संकुचित करना पड़ा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों एवं वक्रों की सहायता से वस्तु की साम्य कीमत एवं साम्य निर्धारण की विधि समझाइए।
उत्तर:
वस्तु बाजार में सन्तुलन की अवस्था उस बिन्दु पर उत्पन्न होती है, जहाँ वस्तु की बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति दोनों समान होते हैं। माँगी अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। पूर्ति अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उत्पादकों द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। उपभोक्ता वस्तु की ऊँची कीमत पर कम इाकइयों की माँग करते हैं तथा इसके विपरीत नीची कीमत पर अधिक इकाइयों की माँग करते हैं। उत्पादक वस्तु की ऊँची कीमत पर अधिक इकाइयों की पूर्ति करते हैं और नीची कीमत पर कम इकाइयों की पूर्ति करते हैं।

लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादक सीमान्त लागत से कम कीमत पर वस्तु नहीं बेच सकते हैं। इसी प्रकार उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि पाने के लिए वस्तु की सीमान्त उपयोगिता से अधिक कीमत नहीं दे सकते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता पक्ष के लिए अधिकतम कीमत देने की सीमा वस्तु की सीमान्त उपयोगिता होती है और उत्पादक के लिए न्यूनतम कीमत स्वीकार करने की सीमा वस्तु की सीमान्त लागत होती है। इन दो न्यूनतम एवं अधिकतम कीमत सीमाओं के बीच में जहाँ कहीं वस्तु की माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य बिन्दु पर कीमत स्तर को साम्य कीमत एवं मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की स्थिति को निम्नलिखित अनुसूची से भी समझाया जा सकता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 52
उपरोक्त अनुसूची में कीमत स्तर 3 पर वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य कीमत स्तरों पर या तो वस्तु माँग अधिक या पूर्ति। अतः तालिका में साम्य कीमत 3 तथा साम्य मात्रा 16 है। साम्य का निर्धारण रेखाचित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। वस्तु का माँग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला होता है तथा पूर्ति वक्र SS धनात्मक ढाल वाला होता है। माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों बिन्दु E पर एक-दूसरे को काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो वस्तु की माँग पूर्ति से ज्यादा है अथवा पूर्ति माँग से ज्यादा है। साम्य बिन्दु से कीमत अक्ष पर खींचे गए लम्ब को p साम्य कीमत स्तर तथा साम्य बिन्दु से मात्रा अक्ष पर खींचे गए लम्ब का पद साम्य मात्रा को दर्शाता है।
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प्रश्न 2.
जब किसी वस्तु के बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों दायीं ओर खिसकते हैं, तो साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकते हैं नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा व कीमत में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी इसे नीचे समझाया गया है –
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव से अधिक है:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा होता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है। इस स्थिति को नीचे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
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2. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र से कम हो:
जब माँग में वृद्धि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि से कम होती है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती . है। इसे नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
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3. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में खिसकाव के समान हो:
जब किसी वस्तु की माँग में वृद्धि उसकी पूर्ति में वृद्धि के बराबर होती है तो वस्तु की समय कीमत पर इस परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
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प्रश्न 3.
साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा जब –

  1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो।
  2. माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो, पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए।
  3. माँग व पूर्ति वक्र दोनों समानुपात में घटते हों।

उत्तर:
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का मतलब है माँग में वृद्धि । माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
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2. यदि माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाता है, तो वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।
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3. माँग व पूर्ति में समानुपात में कमी होने पर वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर खिसक जाते हैं। इस परिवर्तन के होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
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प्रश्न 4.
इस सभी प्रश्नों के माँग और आपूर्ति वक्रों के खिसकाव या उन्हीं वक्रों पर स्थान परिवर्तन द्वारा हल करो।

  1. वर्ष 2001 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगा दी। इसका सिगरेटों की औसत कीमत व बिक्री पर क्या प्रभाव होगा?
  2. खनिज तेल के नये भण्डारों की खोज से डीजल और पेट्रोल की कीमत कम हो जाती है इसका नई कारों के बाजार पर क्या प्रभाव होगा?
  3. नए पर्यावरण नियमों के अनुसार औषध-निर्माताओं की ऐसी उत्पादन विधियों का प्रयोग करने को बाध्य होना पड़ता है, जो महंगी तो रहती है पर जिससे पहले की अपेक्षा हानिकारक रसायनों का उत्सर्जन कम हो जाता है। इनका औषधियों की कीमतों पर क्या प्रभाव होगा?

उत्तर:
1. वर्ष 2001 में भारतवर्ष के सर्वोच्च न्यायालय में सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान वर्जित कर दिया इससे भारत में सिगरेट की माँग कम हो जायेगी। इस परिवर्तन से सिगरेट की साम्य कीमत कम हो जायेगी और साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
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2. कारों के लिए पेट्रोल/डीजल पूरक वस्तु है। पूरक वस्तु की कीमत कम होने से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि पेट्रोल/डीजल की कीमत घटने पर कारों की माँग में वृद्धि हो जायेगी। कार का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। कार की साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
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3. पर्यावरण-मित्र उत्पादन तकनीक का प्रयोग करने पर औषधि उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से औषधि का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।
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इस परिवर्तन का दूसरा रूप भी है। पर्यावरण मित्र उत्पादन तकनीक के प्रयोग से विषैले पदार्थों का स्राव कम मात्रा में होगा। इससे पर्यावरण पहले की तुलना से अच्छा हो जायेगा। स्वस्थ पर्यावरण में लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उत्तम स्वास्थ्य होने पर औषधियों की माँग में कमी आ जायेगी। साम्य कीमत व मात्रा पर औषधियों की माँग व पूर्ति में कमी के स्तर के आधार पर प्रभाव पड़ेगा।

यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में कम होगी, तो औषधियों की साम्य कीमत बढ़ जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में ज्यादा होगी, तो साम्य कीमत कम हो जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति में कमी के समान होगी, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 5.
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी, नीचे समझाया गया है –

1. जब माँग वक्र में कमी पूर्ति वक्र में कमी से अधिक हो:
जब किसी वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से अधिक हो, तो वस्तु की साम्य कीमत कम हो जायेगी तथा साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
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2. जब वस्तु की माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर होगी-जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी के बराबर होगी, तब उस वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
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3. जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम हो-जब वस्तु की मांग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम होगी, तब वस्तु की साम्य कीमत बढ़ जायेगी तथा वस्तु की मात्रा घट जायेगी।
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प्रश्न 6.
चीन टेलीफोन यंत्रों का एक बहुत बड़ा उत्पादक है। यह हाल ही में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना है। अब इसे भारत जैसे अन्य देशों में अपना माल बेचने की छुट हो गई है। कल्पना कीजिए-ये कोई टेलीफोनों की बड़ी भारी खेप का निर्यात कर देता है।

  1. भारत के बाजार में टेलीफोनों की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव होगा?
  2. यदि भारत में टेलीफोनों की खरीदारी पर कुल व्यय पर क्या प्रभाव होगा?

उत्तर:
1. चीन द्वारा भारतवर्ष में भारी संख्या में टेलीफोन उपकरणों का निर्यात करने पर टेलीफोन उपकरणों की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। इससे टेलीफोन उपकरण का आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। उपकरणों की साम्य कीमत घट जायेगी। इसे नीचे समझाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 66

2. यदि भारत में टेलीफोन उपकरणों की माँग पूर्णतया लोचदार है, तो चीन द्वारा भारत बड़ी संख्या में टेलीफोन उपकरणों के निर्यात का साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। साम्य मात्रा बढ़ने से टेलीफोन उपकरणों पर भारत का व्यय बढ़ जायेगा।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 67

प्रश्न 7.
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण समझाइए।
उत्तर:
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। परिवार क्षेत्र श्रम की आपूर्ति करता है तथा श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों की संख्या से न होकर श्रम के घंटों से होता है। जहाँ श्रम माँग व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं मजदूरी दर का निर्धारण उसी बिन्दु पर होता है।

फर्म लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती है। अत: फर्म उस इकाई तक श्रम का नियोजन करती है, जिस पर श्रम की अतिरिक्त लागत तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ दोनों समान हो जाते हैं। श्रम की इकाई को नियोजित करने की अतिरिक्त लागत श्रम की मजदूरी दर होती है तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता के समान होता है। अतः फर्म निम्नलिखित शर्त तक श्रम का नियोजन बढ़ाती है –
मजदूरी = श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRp2
जहाँ MRp2 = MR × Mp2
जब तक MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से ज्यादा होता है फर्म को श्रम का नियोजन बढ़ाना लाभकारी रहता है। जब MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से कम होता है, तो श्रम का नियोजन करना फर्म के लिए हानिकारक रहता है। अतः फर्म को श्रम नियोजन उसी स्थिति में अधिकतम लाभकारी होता है, जब w = mRp2, होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 68

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में चाय के माँग वक्र व पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 500 – p
ys = 300 + 3p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 P < 40 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
साम्य अवस्था में –
yd = ys
500 – p = 300 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-3p – p = 300 – 500
-4p = -200
4p = 200
p = \(\frac{200}{4}\)
p = 50
p का मान रखने पर yd = 500 – 50 = 450
ys = 300 + 3 × 50 = 300+ 150 = 450
चाय की साम्य कीमत = 50 रुपये
चाय की साम्य मात्रा = 450

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प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जूतों के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 1200 – p
ys = 600 + 2p क्योंकि p ≥ 200 के लिए
क्योंकि p < 200 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो । साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
1200 – p = 600 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
-2p – p = 600 – 1200
3p = 600
p = \(\frac{100}{3}\)
p = 200
p का मान प्रतिस्थापित करने पर yd = 1200 – 200 = 1000
ys = 600 + 2 × 200 = 600 + 400 = 1000
जूतों की साम्य कीमत = 200 रुपये
जूतों की साम्य मात्रा = 1000

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प्रश्न 3.
मानिए सी. पी. गाइड्स के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
क्योंकि p < 140 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3000
20p = 3000
p = \(\frac{300}{20}\)
p = 150
p का मान करने पर yd = 10000 – 150 = 9850
साम्य कीमत = 150 रुपये
साम्य मात्रा = 9850

प्रश्न 4.
माना सरकार बी. पी. गाइड्स की बिक्री पर 10 रु./इकाई की दर से उत्पाद शुल्क आरोपित कर देती है प्रश्न 3 में दी गई समीकरण के आधार पर अनुमान लगाइए कि इससे आपूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
सी. पी. गाइड्स की साम्य कीमत व साम्य मात्रा का परिकलन करो।
उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p > 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
गाइड की बिक्री पर कर आरोपित होने पर न्यूनतम औसत लागत बढ़ जायेगी। अतः
ys = 7000 + 19 (p-10) p ≥ 140 के लिए
= 0 p < 140 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (p – 10) (yd व ys के मान रखने पर)
10000 – p = 7000 + 19p – 190
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3190
20p = 3190
p = \(\frac{3190}{20}\) = 1595
yd = 10000 – 159.5
= 9840.5
ys = 7000 + 19 (159.5 – 10)
= 7000 + 3030.5 – 190 = 7000 + 2840.5
= 9840.5
साम्य कीमत = 159.5 रुपये
साम्य मात्रा = 9840.5 इकाइयाँ

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प्रश्न 5.
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल के माँग वक्र व पूर्ति वक्र की समीकरण निम्नलिखित है –
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 80 के लिए
= 0 क्योंकि p < 80 के लिए
किस कीमत पर गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की माँग व आपूर्ति दोनों बराबर हो जायेंगी?
उत्तर:
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p
yd = ys
368 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 8 – 368 – 4p = 360
या 4p = 360 या p = \(\frac{360}{4}\); p = 90
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की साम्य कीमत = 90 रुपये

प्रश्न 6.
टी-शर्ट का माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 368 -p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए

  1. टी-शर्ट की साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
  2. यदि सरकार टी-शर्ट की बिक्री से 12 रु./शर्ट की दर से उत्पाद शुल्क हटा लेती है, तो नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?

उत्तर:
1. yd = 368 – p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
368 – p = 68 + 5p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 5p = 68 – 368
6p = 300
p = \(\frac{360}{6}\)
p = 150

2. सरकार प्रति इकाई विक्रय पर से 12 रु. उत्पाद शुल्क हटा लेती है। उत्पादक को प्रति इकाई 12 रु. अधिक प्राप्त होंगे। अतः पूर्ति होगा।
ys = 68 + 5 (p + 12)
साम्य की अवस्था में –
ys = ys
368 – p = 68 + 5p (p + 12)
(yd व ys के मान रखने पर)
368 – p = 68 + 5p + 60
-p – 5p = 68 + 60 – 368
-6p = -240
6p = 240
p = \(\frac{240}{6}\)
p का मान रखने पर yd = 368 – 40
= 328
ys = 68 + 5 (40 + 12) = 68 + 260
= 7000 + 2840.5 = 328
नई साम्य कीमत = 40 रुपये प्रति इकाई
नई साम्य मात्रा = 328 इकाइयाँ

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में पेन के माँग वक्र व पूर्ति वक्र इस प्रकार है –
yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए

  1. ys = 0, p < 15 के लिए का क्या महत्त्व है?
  2. पेन की साम्य कीमत ज्ञात करो।
  3. पेन की साम्य मात्रा ज्ञात करो।

उत्तर:
1. yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए
ys = 0, p < 15 के लिए का अभिप्राय है, न्यूनतम औसत लागत 15 रुपये है। अत: 15 रुपये प्रति इकाई कीमत से कम पर फर्म वस्तु की शून्य मात्रा की आपूर्ति करेगी।

2. साम्य की अवस्था में yd = ys
700 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-p – 3p = 8 – 700
– 4p = -692
4p = 692
p = \(\frac{692}{4}\)
p = 173
साम्य कीमत = 173 रुपये

3. p का मान प्रतिस्थापित करने पर
yd = 700 – p
= 700 – 173
= 527
ys = 8 + 3p
= 8 + 3 × 173
= 38 + 519
= 3527
साम्य मात्रा = 527 इकाइयाँ

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प्रश्न 8.
यदि माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 400 – p
ys = 240 + 3p
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 24 – 400
-4p = – 160
4p = 160
p = \(\frac{160}{4}\) = 40
p का मान रखने पर –
yd = 400 – p = 400 – 40 = 360
ys = 240 + 3p = 3 × 240 + 3 × 40
240 + 3 × 40 = 240 + 120 = 360
साम्य कीमत = 40 रुपये/इकाई
साम्य मात्रा = 360 इकाइयाँ

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प्रश्न 9.
प्रश्न 8 में दिए गए उत्पादन वक्र की वस्तु के उत्पाद में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से 4रु./इकाई लागत बढ़ जाती है। उसी माँग वक्र का प्रयोग करते हुए नई साम्य कीमत ज्ञात करो तथा नई साम्य मात्रा की गणना करो।
उत्तर:
1. yd = 400-p
ys = 240 + 3(p – 4) (पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा क्योंकि उत्पादक को प्रति इकाई 4 रुपये कम प्राप्त होंगे)
साम्य क अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3(p – 4) (yd व ys के मान रखने पर)
400 – p = 240 + 3p – 12
– p – 3p = 240 – 12 – 400
4p = – 172
4p = 172
p = \(\frac{172}{4}\)
p = 43

2. p का मान रखने पर yd = 400 – p = 400 – 43 = 357
ys = 240 + 3(p – 4) = 240 + 3(43 – 4)
240 + 3 × 39 = 240 + 117 = 357
साम्य कीमत = 43 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 357 इकाइयाँ

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प्रश्न 10.
बाजार माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 3p

  1. साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
  2. माना एक फर्म का आपूर्ति वक्र ys = 0+p, फर्मों की संख्या ज्ञात करो, साम्य मात्रा की पूर्ति कर रही है।

उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 2p

1. साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 4000 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 2p = 4000 – 10000
– 3p = 3 – 6000
3p = 6000
p = \(\frac{6000}{3}\)
p = 2000
p का मान रखने पर
yd = 10000 – p = 10000 – 2000 = 8000
ys = 4000 + 2p
= 4000 + 2 × 2000 = 4000 + 4000 = 8000
साम्य कीमत = 2000 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 8000 इकाइयाँ

2. एक फर्म की आपूर्ति = 0 + 2000 इकाइयाँ (p का मान रखने पर)
= 2000 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = image 68 = \(\frac{8000}{2000}\) = 4 फर्म
फर्मों की संख्या = 4 फर्म

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु की कीमत निर्धारण के जितना समय अधिक होता है उतनी ही ज्यादा महत्ता होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(A) पूर्ति पक्ष की

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प्रश्न 2.
वस्तु की कीमत निर्धारण में अल्पकाल में अधिक भूमिका होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(B) माँग पक्ष की

प्रश्न 3.
वह बाजार, जिसमें फर्मों का प्रवेश व गमन पूर्ण स्वतन्त्र होता है, कहलाता है।
(A) एकाधिकारी
(B) पूर्ण प्रतियोगी
(C) एकाधिकारात्मक प्रतियोगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतियोगी

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प्रश्न 4.
माँग व पूर्ति से ज्यादा वृद्धि होने पर साम्य कीमत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती है या बढ़ती है
(D) न तो घटती है न ही बढ़ती है
उत्तर:
(B) बढ़ती है

प्रश्न 5.
एक वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर समान रूप से खिसकते हैं, तो साम्य कीमत –
(A) घटेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी या बढ़ेगी
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी
उत्तर:
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी

प्रश्न 6.
वस्तु की पूर्ति में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता है यदि वस्तु माँग –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो

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प्रश्न 7.
किसी वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जब वस्तु की पूर्ति –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो

प्रश्न 8.
इकाई लोचदार पूर्ति वक्र है –
(A)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 69

(B)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 70
(C)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 71
(D)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 72
उत्तर:
(C)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 71

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प्रश्न 9.
सामान्य सरकार उच्चतम कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साम्य कीमत से कम

प्रश्न 10.
सरकार समर्थन कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) साम्य कीमत से अधिक

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. बाजार में क्रेताओं व विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है जो कीमत स्वीकारक होते हैं।
  2. सभी उत्पादक सामंगी वस्तु का विक्रय करते हैं।
  3. क्रेताओं एवं विक्रेताओं को एक निश्चित समय अवधि वस्तु उपलब्धता एवं कीमत के बारे में पूर्ण ज्ञान होता है।
  4. बाजार में फर्म का प्रवेश एवं बाह्य गमन स्वतंत्र होता है।

पूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं के प्रभाव:

1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होने के कारण कोई भी विक्रेता वस्तु की पूर्ति को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी प्रकार एक क्रेता वस्तु की माँग को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि बाजार आपूर्ति में एक फर्म की आपूर्ति नगण्य होती है और बाजार माँग की तुलना में एक व्यक्ति की माँग नगण्य होती है। विक्रेताओं-क्रेताओं की विशाल संख्या, समांगी वस्तु एवं बाजार के बारे में पूर्ण जानकारी के कारण पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत एक समान होती है और व्यक्तिगत माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है।

2. फर्म का स्वतंत्र प्रवेश एक बाह्य गमन यह दर्शाता है कि एक फर्म केवल लाभकारी उत्पाद स्तर तक ही उत्पादन करती है। ऐसा न होने पर फर्म बाजार से बाहर चली जायेगी और यदि वर्तमान असामान्य लाभ अर्जित करती है तो नई फर्म बाजार में प्रवेश कर सकती है।

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प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पादित मात्रा को विक्रय करके एक फर्म आगम प्राप्त करती है। उत्पाद की मात्रा एवं प्रति इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद की मात्रा × प्रति इकाई कीमत
TR = Y × P
जहाँ TR – कुल आगम
Y – उत्पादक की मात्रा एवं
P – प्रति इकाई वस्तु की कीमत
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है वह वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। अतः प्रतियोगी फार्म वस्तु की कीमत में परिवर्तन के द्वारा कुल आगम को प्रभावित नहीं कर सकती है वह केवल उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के माध्यम से ही कुल आगम को प्रभावित कर सकती है।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
उत्पाद-कीमत तल में विभिन्न उत्पाद मात्राओं के लिए खींची गई रेखा को कीमत रेखा कहते हैं। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म की कीमत रेखा एवं माँग वक्र समान रेखाएँ होती हैं।

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प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरती है?
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल आगम शून्य होता है। कुल आगम मूल बिन्दु से आरम्भ होता है। जैसे-जैसे उत्पाद में वृद्धि होती है कुल आगम में भी वृद्धि होती है। अतः आगम वक्र मूल बिन्दु से धनात्मक ढाल वाली सीधी रेखा होती है क्योंकि उत्पाद के सभी स्तरों पर वस्तु की कीमत एक समान रहती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 1

प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकार फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद के कुल आगम को औसत आगम कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 2
AR = \(\frac{TR}{y}\) = \(\frac{py}{p}\) (∵TR = py)
अतः औसत आगम प्रति इकाई कीमत के बराबर है।

प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में वृद्धि को सीमांत आगम कहते हैं।
सीमांत आगम = y1 इकाइयों से प्राप्त कुल आगम – (y1 – 1) इकाइयों से प्राप्त कुल आगम
MR = TRy1 – TRy1-1-1 अथवा MR = p × y1 – p(y1 – 1)
अथवा MR = py1 – Py1 + p
अथवा MR = p
इस प्रकार कीमत स्वीकारक फर्म का सीमान्त आगम प्रति इकाई कीमत के समान होता है।

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
निश्चित विक्रय अवधि में कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं।
लाभ = कुल आगम – कुल लागत
यदि उत्पादन स्तर धनात्मक है तो उस उत्पादन स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त है –

  1. सीमांत आगम = सीमांत लागत।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धा बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी धनात्मक स्तर पर सीमांत आगम जो एक फर्म प्रतियोगी लाभ कमाने वाली फर्म के लिए सीमांत लागत के बराबर नहीं होता तो या तो MR का मूल्य MC के मूल्य से ज्यादा होता है या कम।

1. यदि MR का मान MC के मान से ज्यादा है:
इसका अभिप्राय है कि उत्पाद की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से फर्म इस इकाई की लागत से ज्यादा आगम अर्जित कर रही हैं इसे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y0 पर MR, MC से अधिक है। उत्पादन में थोड़ी अधिक मात्रा में वृद्धि करने पर MR, MC से ज्यादा रहता है।

अत: उत्पादन स्तर y0 से y, तक बढ़ाने पर लाभ में बढ़ोतरी होती है। अत: फर्म उत्पादन स्तर y2 से दायीं ओर जब तक उत्पादन बढ़ाती है जब तक MR, MC के समान नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, जब तक MR, MC से ज्यादा रहता है। फर्म उत्पादन स्तर बढ़ाकर लाभ में वृद्धि कर सकती है। अतः MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं होती है।

2. यदि MR का मान MC के मान से कम है:
इसका अभिप्राय उत्पादन की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से, लागत की तुलना में कम आगम प्राप्त करती है। इस स्थिति को चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y3 पर MR का मान MC से कम है। अर्थात् y3 उत्पादन स्तर पर फर्म को हानि उठानी पड़ रही है।

अत: 9. उत्पादन स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम नहीं है। फर्म उत्पादन स्तर y3 से बायीं ओर उत्पादन स्तर को तब तक घटाती है जब तक MR व MC दोनों समान नहीं हो जाते हैं। अतः लाभ अधिकतम करने वाली फर्म का धनात्मक उत्पादन स्तर अधिकतम लाभ का नहीं हो सकता है यदि कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 3

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म उत्पादन के उस स्तर तक उत्पादन करती है जिस पर उसका लाभ अधिकतम होता है। यदि उत्पादन किसी धनात्मक स्तर पर अधिकतम लाभ हो रहा है तो निम्नलिखित शर्ते पूरी होनी चाहिए –

  1. सीमांत आगम (MR) = सीमांत लागत (MC)।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो रही हो।

यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की सीमांत लागत के समान है और MC घट रही है:
इसे चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन के y1, स्तर पर MC व वस्तु की कीमत समान है तथा MC घट रही है। उत्पादन का स्तर अधिकतम लाभ का स्तर नहीं हो सकता है। उत्पादन स्तर में बढ़ोतरी करने पर कीमत या MR, MC से ज्यादा हो जाती है। अर्थात् y1, स्तर से उत्पादन बढ़ाकर फर्म अपने लाभ को बढ़ा सकती है। इस प्रकार यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की कीमत के समान है और MC घट रही है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं है।
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प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकता है, यदि बाजार में कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत AVC कम किसी भी कीमत स्तर पर उत्पादन का धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं कर सकती है। इसे निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है –
उत्पादन के Y1, स्तर पर –
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अतः हानि का मान TFC से ज्यादा है जबकि उत्पादन के शून्य स्तर पर हानि TFC के समान होती है। अतः उत्पादन नहीं करके फर्म अपनी हानि को घटा रही है। अतः न्यूनतम AVC से कम कीमत पर फर्म उत्पादन का कोई स्तर नहीं चुनना पसंद करती है।
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प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाजार सीमांत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उन सभी कीमत स्तरों जो TVC की भरपाई कर सकते हैं, उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करती है। इस बात को निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। माना Y1, उत्पादन का ऐसा स्तर है जो दिए गए स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त को पूरा करता है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत लागत से कम है। उत्पादन के Y1, स्तर पर –
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अत: उत्पादन स्तर Y1, पर शून्य उत्पादन स्तर से कम हानि है जब वस्तु की कीमत SAC से कम परंतु AVC से ज्यादा होती है। अर्थात् एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यदि कीमत, न्यूनतम AVC से ज्यादा होता है तो फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर चयन करना पसंद करती है क्योंकि इससे हानि में कमी आती है।
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प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
किसी दी गई कीमत पर अधिकतम लाभ कमाने वाली फर्म अल्पकाल में उत्पाद की जितनी मात्रा उत्पादन के लिए चयन करती उसे आपूर्ति वक्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आपूर्ति विभिन्न कीमतों पर अधिकतम लाभ के विभिनन उत्पादन स्तरों को दर्शाती है। किसी भी कीमत जो न्यूनतम AVC के समान या अधिक हो फर्म कीमत को संगत उत्पादन की SMC के समान करेगी। ऐसी सभी कीमतों के लिए न्यूनतम AVC से व उससे ऊपर SMC वक्र संगत उत्पादन स्तरों के अधिकतम लाभ स्तरों के संयोजनों को प्रदान करते हैं। एक फर्म का न्यूनतम AVC से तथा उससे ऊपर SMC का ऊपर जाता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है।
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गहरा रेखाखण्ड अल्पकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

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प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में आवश्यकतानुसार समायोजन कर सकती है। अतः दीर्घकाल में स्थिर लागत उत्पन्न नहीं होती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर, फर्म की लागत भी शून्य होती है। अतः शून्य उत्पादन स्तर पर न लाभ न हानि की स्थिति होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के उन स्तरों का चयन करती जिससे उसकी कुल लागत को पूरा किया जा सके। दूसरे शब्दों में, फर्म उत्पादन के उन सभी स्तरों का चयन करती है जिनके लिए कीमतें न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक होती है। न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक सभी कीमतों पर LRMC का ऊपर उठता हुआ भाग दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।
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चित्र में गहरा रेखाखण्ड (LRMC) दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन तकनीक में प्रगति के माध्यम से एक फर्म उत्पादन साधनों की समान मात्रा से अधिक उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में, प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन के समान स्तर को, साधनों की कम इकाइयों के प्रयोग से भी उत्पन्न किया जा सकता है। प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से सीमान्त लागत घट जाती है। अत: SMC वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म उन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है। आवश्यक रूप से, न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः फर्म का आपूर्ति वक्र भी नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म प्रोन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है।

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प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने में एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
प्रति इकाई बिक्री पर सरकार द्वारा लगाए गए शुल्क को इकाई शुल्क कहते हैं। इकाई उत्पादन शुल्क आरोपित करने पर फर्म की सीमांत लागत बढ़ जाती है। इससे सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र को दर्शाता है। अतः कर लगाने पर फर्म का आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। इससे सीमांत लागत बढ़ जाती है। सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः साधनों आगतों की कीमत/लागत बढ़ने से आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 17.
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर बाजार आपूर्ति वक्र में खिसकाव होता है। फर्मों की संख्या बढ़ोतरी होने पर आपूर्ति में वृद्धि होती है अतः बाजार आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसके विपरीत फर्मों की संख्या में कमी होने से बाजार आपूर्ति में कमी आ जाती है। इससे आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

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प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
कीमत परिवर्तन के प्रति वस्तु की आपूर्ति में प्रतिक्रियात्मक परिवर्तन की माप को पूर्ति की लोच कहते हैं।
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प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमान्त संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए । वस्तु की प्रति इकाई बाजार कीमत 10 रुपये है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 12
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 13
प्रति इकाई उत्पाद विक्रय के लिए कीमत 10 रुपये/इकाई है अतः सीमांत आगम MR व औसत आगम AR दोनों कीमत 10 रुपये प्रति इकाई के समान है। जैसे-जैसे फर्म बिक्री का स्तर बढ़ाती है कुल आगत TR एक समान दर से बढ़ती है।

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प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाता जाता है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 15
प्रत्येक विक्रय स्तर पर वस्तु की कीमत एक समान 5 रुपये प्रति इकाई है।

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रुपये दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 17
अधिकतम लाभ का उत्पादन स्तर 7 इकाइयाँ हैं क्योंकि उत्पादन स्तर 8 पर लाभ का स्तर ऋणात्मक है। उत्पाद स्तर 7 पर कुल लागत वक्र नीचे से कुल आगम वक्र को काटेगा।

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प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है: SS1 कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2, में फर्म-2 की पूर्ति साराणि है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 18
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 19

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प्रश्न 23.
एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 , तथा कालम SS2, क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 20
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 21

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प्रश्न 24.
एक बाजार में तीन समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 22
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 23

प्रश्न 25.
10 रुपये प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपये है। बाजार कीमत बढ़कर 15 रु. हो जाती है और फर्म को 150 रु. की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
उत्तर:
कीमत स्तर 10 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 50 रु.
पूत का गई इकाइया (y) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
कीमत स्तर 15 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 150 रु.
पूर्ति की/बेची गई इकाइयाँ (y1) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
कीमत में परिवर्तन ∆p1 = p1 – p0 = 15 – 10 = 5 रु.
मात्रा में परिवर्तन ∆y = y1 – y = 10 – 5 = 5 इकाइयों
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\) = \(\frac{5}{5}\) × \(\frac{10}{5}\) = 2
पूर्ति की लोच = 2

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प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु. से बदलकर 20 रु. हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरम्भिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर:
p = 5 रु.; P1 = 20 रु.
∆p = P1 – p = 20 – 5 = 15 रु;
∆y = 15 इकाइयाँ (दी गई)
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 0.5 = \(\frac{15}{15}\) × \(\frac{5}{y}\) अथवा 0.5 × y = 5
y = \(\frac{5}{0.5}\) = \(\frac{50}{5}\) = 10
y1 = y + ∆y [P1 = 15 पर आपूर्ति होगी क्योंकि पूर्ति में उसी दिशा में परिवर्तन होगा जिस दिशा में कीमत बदलती है]
= 10 + 15
= 25
आरम्भिक उत्पादन स्तर = 10 इकाइयाँ, अंतिम उत्पादन स्तर = 25 इकाइयाँ।

प्रश्न 27.
10 रुपये बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करता है। बाजार कीमत बढ़कर 30 रुपये हो जाती है। फर्म की पूर्ति कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर:
p = 10; y = 4 इकाइयाँ, P1 = 30 रुपये, y1 = ?, es = 1.25
∆p = P1 – p = 30 – 10 = 20 रुपये,
∆y = y1 – y = y1 – 4 इकाइयाँ
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) × \(\frac{10}{4}\)
अथवा 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) अथवा y1 – 4 = 1.25 × 8
अथवा y1 – 4 = 10.00 अथवा y1 = 10 + 4 = 14 इकाइयाँ
नई कीमत पर फर्म 14 इकाइयों की पूर्ति करेगी।

Bihar Board Class 12 Economics पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्थिर लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह उत्पादन लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होती है स्थिर लागत कहलाती है। जैसे इमारत का किराया, स्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

प्रश्न 2.
परिवर्तनशील लागत का अर्थ उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है। जैसे कच्चे माल का मूल्य, अस्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

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प्रश्न 3.
परिवर्तनशील औसत लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद की परिवर्तनशील लागत को औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।

प्रश्न 4.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन आगतों के स्वामी उन्हें पूर्ति करने में जो त्याग, दर्द, कष्ट आदि उठाते हैं, वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 5.
लागत फलन को परिभाषित करो।
उत्तर:
उत्पादन की निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर जो लागत आती है उसे लागत फलन कहते हैं। अथवा उत्पादन मात्रा एवं लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं।

प्रश्न 6.
सीमान्त लागत की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल लागत या कुल परिवर्तनशील लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमांत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 7.
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति बताओ।
उत्तर:
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति अंग्रेजी अक्षर U जैसी होती है।

प्रश्न 8.
औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र की प्रकृति लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC) हमेशा ऋणात्मक ढाल का वक्र होता है।

प्रश्न 9.
बाजार का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बाजार शब्द से अभिप्राय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है जिसमें क्रेता एवं विक्रेता फैले होते हैं और वस्तु विनिमय का व्यापार करते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति जिसमें बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता समांगी वस्तु का विनिमय करते हैं।

प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत स्वीकारक कौन होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्म/उत्पादक कीमत स्वीकारक होती है।

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र किस प्रकृति का होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र पूर्णतः लोचदार होता है। अथवा व्यक्तिगत फर्म का प्रतियोगी बाजार में क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 13.
कुल आगम का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कुल उत्पाद तथा इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद मात्रा × प्रति इकाई कीमत

प्रश्न 14.
लाभ की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, लागत के ऊपर अर्जित कुछ आगम को लाभ कहते हैं।

प्रश्न 15.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत आगम सदैव कीमत के बराबर होती है।

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प्रश्न 16.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमान्त आगम एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत आगम एवं कीमत दोनों एक समान होते हैं।

प्रश्न 17.
आपूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
निश्चित कीमत व निश्चित समय पर कोई फर्म किसी वस्तु की जितनी मात्रा में बिक्री करती है उसे आपूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 18.
आपूर्ति एवं स्टॉक में अंतर लिखो।
उत्तर:
किसी निश्चित समय बिन्दु पर एक फर्म के पास उपलब्ध उत्पाद की मात्रा को स्टॉक कहते हैं। एक निश्चित समय में दी गई कीमत पर उत्पादक वस्तु की जितनी मात्रा बेचने को तैयार होता है उसे आपूर्ति कहते हैं।

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प्रश्न 19.
व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर एक फर्म द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है, व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची कहलाती है।

प्रश्न 20.
बाजार पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर बाजार में उपस्थित सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई उत्पाद की मात्राओं के योग को दर्शाती है उसे बाजार पूर्ति अनुसूची कहते हैं।

प्रश्न 21.
पूर्ति में वृद्धि का अर्थ लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत के अलावा अन्य कारकों के कारण वृद्धि होती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।

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प्रश्न 22.
सीमान्त आगम की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में जितनी वृद्धि होती है उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 23.
समविच्छेद बिन्दु क्या होता है?
उत्तर:
वह बिन्दु जिस पर वस्तु की कीमत औसत लागत के समान होती है उसे समविच्छेद बिन्दु कहते हैं। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 24.
सरकार द्वारा किसी वस्तु की बिक्री पर इकाई उत्पादन शुल्क लगाने पर उसकी पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
उत्पादन शुल्क लगाने पर फर्म का पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

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प्रश्न 25.
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि फर्मों की संख्या में वृद्धि होगी तो पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा। यदि फर्मों की संख्या में कमी होगी तो पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 26.
साधन आगतों की कीमत कम होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
साधन आगतों की कीमत घटने पर आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 27.
यदि दो पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो इनमें से किस वक्र की पूर्ति लोच अधिक होगी?
उत्तर:
वह पूर्ति वक्र जो दूसरे वक्र की तुलना में ज्यादा चपटा होगा उसकी पूर्ति लोच ज्यादा होती है।

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प्रश्न 28.
पूर्ति में कमी की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत में अलावा अन्य कारकों के कारण कमी आती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं।

प्रश्न 29.
पूर्ति में संकुचन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा घटती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 30.
पूर्ति में विस्तार का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में बढ़ोतरी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा बढ़ती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 31.
एक फर्म के आपूर्ति वक्र पर तकनीकी प्रगति का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
तकनीकी प्रगति से एक फर्म का आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लाभ को ज्यामितीय विधि द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कीमत स्तर P1 एवं उत्पादन स्तर y1 पर –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 24

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प्रश्न 2.
यदि MR का मान MC से अधिक हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी विशिष्ट स्तर पर फर्म की सीमांत आगम, सीमांत लागत से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होता है कि उस उत्पादन इकाई के उत्पादन से फर्म को उस इकाई की लागत से अधिक आगम प्राप्त हो रहा है। अर्थात् उस इकाई का उत्पादन लाभकारी है। उत्पादन में थोड़ी अधिक वृद्धि करने पर भी MR, MC से अधिक रहता है।

अर्थात् उत्पादन की कुछ और इकाइयों का उत्पादन बढ़ाकर फर्म लाभ को बढ़ा सकती है। अतः जब MR, MC से अधिक होता है तो फर्म उत्पादन स्तर को बढ़ाने का प्रयास करती है और जब तक MR व MC समान नहीं होते उसके लाभ में भी बढ़ोतरी होती रहती है। इसलिए MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 25
उत्पादन स्तर y0 पर MR > MC लाभ
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR > MC लाभ में बढ़ोतरी
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

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प्रश्न 3.
यदि MR का मान MC से कम हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि किसी विशिष्ट उत्पादन स्तर पर MR, MC से कम होता है, इसका मतलब यह होता है कि उस इकाई का उत्पादन करने पर फर्म को उसकी लागत से कम आगम प्राप्त होता है। अतः उस इकाई. का उत्पादन फर्म के लिए हानिप्रद है। उत्पादन स्तर में थोड़ी कमी से भी MR, MC से कम रहता है अर्थात् फर्म को हानि उठानी पड़ती है लेकिन हानि के स्तर में उत्पादन स्तर में वृद्धि करने पर कमी आती है।

फर्म उत्पादन स्तर को कम करती है, जब तक MR, MC से कम होती है और इस प्रकार उत्पादन स्तर कम करके कुल हानि में भी कमी आती है। उत्पादन स्तर घटाने का सिलसिला उस उत्पादन स्तर तक रहता है जब तक MR व MC समान नहीं होते हैं। अतः यदि MR का मान MC से कम होता है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं हो सकती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 26
चित्र में उत्पादन स्तर y0 पर MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

प्रश्न 4.
दीर्घकालीन समता बिन्दु की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन बढ़ाना उस स्तर तक जारी रखती है जब तक कीमत, न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत (LARC) से अधिक रहती है। जब कीमत न्यूनतम LRAC के समान हो जाती है तो फर्म उत्पादन स्तर न बढ़ाने का निर्णय कर सकती है। यदि कीमत, न्यूनतम LRAC से कम रह जाती है तो फर्म उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से कुल लागत को पूरा नहीं कर सकती है।

अत: फर्म उत्पादन के उस स्तर पर उत्पादन बढ़ाना बंद करती है जहाँ (Min.) LRAC कीमत के बराबर होती है। अतः आपूर्ति वक्र नीचे चला जाता है। अंतिम कीमत उत्पादन स्तर संयोजन वहाँ प्राप्त होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र को नीचे से काटता है। इस बिन्दु पर कीमत, न्यूनतम LRAC दोनों समान हो जाते हैं इस बिन्दु से उत्पादन स्तर घटाने पर कुल TR, कुल लागत से कम हो जाती है। आगे और फर्म को हानि उठानी पड़ती है। अत: फर्म को उस बिन्दु से आगे उत्पादन बढ़ाना पसंद नहीं जहाँ LRAC, कीमत के समान हो जाती है उससे आगे उत्पाद बढ़ाने पर फर्म को उठानी पड़ती है।
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प्रश्न 5.
क्या होता है जब कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक परंतु न्यूनतम औसत लागत से कम होती है?
उत्तर:
माना उत्पादन स्तर y निम्नलिखित दो शर्तों को पूरा करता है –

  1. कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है तथा
  2. कीमत, अल्पकालीन न्यूनतम औसत लागत से कम है।

कीमत का मान न्यूनतम SAC से कम है अर्थात फर्म को हानि पड़ेगी। कीमत का मान न्यूनतम AVC से ज्यादा है इसका अभिप्राय है TR का मान TVC से अधिक होगा। इस स्थिति में फर्म उत्पाद को बेचकर सम्पूर्ण लागत की भरपाई नहीं कर सकती है। फर्म TVC एवं TFC का कुछ भाग उत्पाद को बेचकर पूरा कर रही है। यदि फर्म उत्पादन स्तर शून्य रखने का निर्णय करेगी तो फर्म की कुल हानि कुल स्थिर लागत के समान होगी। इस प्रकार हानि के स्तर को कम करने के लिए फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करने का निर्णय लेगी।
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जब P = Min AVC कुल हानि सम्पूर्ण छायांकित भाग
जब P > Min AVC and
P < Min SAC – हानि क्रोस छायांकित भाग

प्रश्न 6.
संक्षेप में फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु (Shutdown point) समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उस उत्पादन स्तर तक उत्पादन करने का निर्णय करती है जब तक कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत (Min AVC) के समान या इससे अधिक होती है। यदि कीमत स्तर, न्यूनतम AVC से कम हो जाता है तो फर्म अपनी कुल परिवर्तनशील लागत की भरपाई उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से नहीं कर सकती है। अतः यह बिन्दु जिस पर SMC नीचे से AVC वक्र को काटती है फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु होता है।
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प्रश्न 7.
उत्पादक संतुलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
उत्पादक संतुलन उत्पादन की वह स्थिति होती है जब फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। उत्पादक की साम्य अवस्था में फर्म का कुल आगम, कुल लागत समान होता है। गणितीय रूप में उत्पादक संतुलन को नीचे लिखा गया है –
कुल आगम (TR) = कुल लागत (TC)
दूसरे शब्दों में उत्पादक उस स्थिति में साम्य की अवस्था में होता है जब फर्म उत्पाद के लिए मिलने वाला कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है। साम्य की अवस्था में – कीमत (AR) = सीमांत लागत (MC) साम्य की अवस्था में फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

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प्रश्न 8.
संक्षेप में समविच्छेद बिन्द की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
दीर्घकाल में यदि कोई फर्म सामान्य लाभ से कम अर्जित करती है तो वह उत्पादन कतई नहीं करती है। अल्पकाल में कोई फर्म सामान्य लाभ से कम स्तर पर भी उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में फर्म हानि उठाकर भी उत्पादन जारी रख सकती है। लेकिन कोई भी फर्म अल्पकाल में भी उत्पादन नहीं करेगी। यदि उत्पाद की कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से कम रहती है। आपूर्ति वक्र पर वह बिन्दु जिस पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। अल्पकाल में जिस बिन्दु पर SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। दीर्घकाल में समविच्छेद बिन्दु आपूर्ति वक्र RMC वक्र के उस बिन्दु पर होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से काटता है।
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प्रश्न 9.
उदाहरण सहित सामान्य लाभ की परिभाषा समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन करने के लिए फर्म विभिन्न साधन आगतों का प्रयोग करती है। अधिकांशतः साधनों का प्रयोग करने के लिए फर्म इनकी कीमत प्रत्यक्ष रूप से चुकाती है। फर्म उत्पादन में कुछ निजी साधनों का प्रयोग भी करती है। निजी साधनों के बाजार मूल्य को अस्पष्ट लागत कहते हैं। स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों के योग को कुल लागत कहते हैं।

उत्पाद को बाजार में बेचकर फर्म जितना आगम प्राप्त करती है उसे कुल आगम कहते हैं। कुल लागत पर कुल आगम के अधिशेष को लाभ कहते हैं। लाभ का वह स्तर जिस पर फर्म केवल स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतों की भरपाई कर पाती है सामान्य लाभ कहलाता है। दूसरे शब्दों में सामान्य लाभ वह न्यूनतम लाभ होता है जो फर्म को व्यवस्था में बने रहने के लिए अवश्य प्राप्त होना चाहिए। सामान्य लाभ को शून्य लाभ भी कहते हैं क्योंकि इस स्तर पर फर्म की कुल आगम व कुल लागत दोनों एक समान होते हैं।

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प्रश्न 10.
अवसर लागत की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
किसी गति विधि की अन्य सभी वैकल्पिक गतिविधियों के अधिकतम् मूल्य को अवसर लागत कहते हैं। माना पारिवारिक व्यापार में निवेश के अलावा वह उक्त धनराशि को शून्य प्रतिफल के लिए अपनी तिजोरी में रख सकता है अथवा 10 प्र.श. ब्याज पर बैंक में जमा करवा सकता है। अतः वैकल्पिक गतिविधियों में निवेश का अधिकतम प्रतिफल बैंक में धनराशि जमा करवाना है। बैंक जमा करवाना पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है। एक बार घरेलू व्यापार में निवेश करने के बाद अवसर लागत की अवधारणा खत्म हो जाएगी। परंतु जब तक पारिवारिक व्यापार में निवेश नहीं किया जाता है तब तक बैंक जमा से ब्याज के रूप में प्रतिफल पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है।

प्रश्न 11.

  1. इकाई लोचदार पूर्ति वक्र एवं
  2. शून्य लोचदार पूर्ति वक्र बनाइए

उत्तर:
1. धनात्मक ढाल वाला पूर्ति वक्र जो मूल बिन्दु से गुजरता है, इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
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2. क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत पूर्ति वक्र, शून्य लोचदार को दर्शाता है।
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प्रश्न 12.
कोई तीन कारक लिखिए जो आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति को ऊपर/बायीं ओर खिसकाने वाले कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
  2. उत्पाद शुल्क लगाना/उत्पाद शुल्क में वृद्धि
  3. फर्मों की संख्या में कमी
  4. प्रतिस्थापक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 13.
आपूर्ति के नियम का अर्थ लिखो। इसे आपूर्ति अनुसूची एवं वक्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उत्पादक उसकी अधिक करता है तथा वस्तु की कीमत में कमी होने पर उत्पादक वस्तु की कम मात्रा में पूर्ति करता है। इसे पूर्ति का नियम कहते हैं। पूर्ति के नियम को पूर्ति अनुसूची व वक्र की सहायता से समझाया जा सकता है –

पूर्ति अनुसूची:
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पूर्ति अनुसूची विभिन्न कीमतों पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्राओं को दर्शाती है। जैसे जैसे कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो पूर्ति की मात्रा भी बढ़ती है।
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पूर्ति वक्र का ढाल धनात्मक है जो इस बात को दर्शाता है कि पूर्ति की मात्रा वस्तु की कीमत बढ़ने पर बढ़ जाती है।

प्रश्न 14.
समांगी उत्पाद होने का क्या अर्थ है ? बाजार में इसका कीमत निर्धारण में प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
समांगी उत्पाद का अभिप्राय है एक समान वस्तु। इसका मतलब होता है सभी उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ रंग, आकार, शक्ल, स्वाद आदि में एकदम एक जैसी होती है। समांगी वस्तु का परिणाम यह होता है कि बाजार में सभी उत्पादक वस्तु की समान कीमत प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई भी उत्पादक बाजार कीमत से अधिक वसूलने की हिम्मत करता है तो समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण वह वस्तु की मात्रा बाजार में नहीं बेच सकता है। अर्थात समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण एक कीमत स्वीकारक के रूप में कार्य करती है वह स्वयं कीमत का निर्धारण नहीं कर सकती है।

प्रश्न 15.
वे कारक लिखो जो पूर्ति वक्र को नीचे/दायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति वक्र को दायीं ओर खिसकाने के लिए उत्तरदायी कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में कमी
  2. उत्पाद शुल्क में कमी
  3. उत्पादन तकनीक में प्रगति
  4. फर्मों की संख्या में वृद्धि

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प्रश्न 16.
माँग वक्र पर संचरण तथा माँग वक्र में खिसकाव में अंतर लिखो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति की गई मात्रा कम हो जाती है तो इससे पूर्ति वक्र पर संचरण होता है। जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति बढ़ जाती है अथवा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से पूर्ति कम हो जाती है इससे पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

पूर्ति वक्र पर संचरण पूर्ति में विस्तार या संकुचन की स्थिति में होता है जबकि पूर्ति वक्र में खिसकाव पूर्ति में वृद्धि या कमी होने पर होता है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में पूर्ति वक्र पर नीचे ऊपर तथा पूर्ति में संकुचन की स्थिति में ऊपर से नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव नीचे/दायीं ओर होता है व पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।
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प्रश्न 17.
पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन तथा पूर्ति में परिवर्तन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति में वृद्धि तथा अन्य कारकों में वृद्धि तथा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से वस्तु की पूर्ति कमी को पूर्ति में परिवर्तन कहते हैं। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची में बदलाव नहीं होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची बदला जाती है। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र पर संचरण होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

प्रश्न 18.
नीचे चित्र में विभिन्न आपूर्ति वक्र दर्शाए गए हैं। घटते क्रम में पूर्ति लोच की श्रेणियाँ लिखो।
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उत्तर:
पूर्ति वक्र का ढ़ाल पूर्ति की लोच को निर्धारित करता है। वह सीधी रेखा जो मूल बिन्दु से गुजरती है इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाती है। इस वक्र की तुलना अधिक चपटे वक्र की पूर्ति लोच इकाई से अधिक तथा इससे अधिक ऊर्द्धवाधर ढाल वाले वक्र की पूर्ति लोच इकाई से कम होती है। इन तथ्यों के आधार पर चित्र में दर्शाए गए वक्रों की पूर्ति लोच इस प्रकार होगी –

  1. वक्र C अधिक चपटा है वक्र B की तुलना में अतः यह इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
  2. वक्र B, बिन्दु से गुजर रहा है, इसकी पूर्ति लोच इकाई है।
  3. पूर्ति वक्र A अधिक उर्ध्वाधर है वक्र B की अपेक्षा अतः इसकी पूर्ति लोच इकाई से कम है।

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प्रश्न 19.
उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम को सीमांत आगम कहते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम सीमांत आगम नहीं होता है। उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय करने पर कुल आगम में होने वाली बढ़ोतरी को सीमान्त आगम कहते हैं।
MR = TRn – TRn – 1
अतः सीमांत आगम उत्पाद की अंतिम इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम नहीं हो सकता है।

प्रश्न 20.
एक प्रतियोगी फर्म के लिए सीमांत आगम व कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
सीमांत आगम तथा कुल आगम में संबंध –

  1. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है और इसमें बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल आगम अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है लेकिन उसमें घटने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमांत आगम शून्य होता है तब कुल आगम अधिकतम होता है।
  4. जब सीमांत आगम ऋणात्मक होता है तब कुल आगम घटने लगता है।

प्रश्न 21.
एक अप्रतियोगी फर्म के लिए औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध:

  1. जब औसत आगम में वृद्धि होती है, कुल आगम अधिक दर से बढ़ती है।
  2. जब औसत आगम में कमी होती है, कुल आगम में घटती हुई दर से बढ़ोतरी होती है।
  3. औसत आगम तथा कुल आगम किसी भी धनात्मक विक्रय स्तर पर शून्य एवं धनात्मक नहीं हो सकते हैं।

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प्रश्न 22.
पूर्ति में वृद्धि में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जबकि पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर की ओर खिसक जाता है।
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प्रश्न 23.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में वृद्धि में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती . है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं, जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति बढ़ जाती है इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति अनुसूची में बदल जाती है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि की स्थिति में पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।
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प्रश्न 24.
पूर्ति में संकचन तथा पूर्ति में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में कमी होने से वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में प्रति अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति घट जाती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है। जबकि पूर्ति में कमी होने से पूर्ति अनुसूची बदल जाती है। पूर्ति में संकुचन की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर ऊपर नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में कमी की स्थिति में पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 40

प्रश्न 25.
पूर्ति की लोच की परिभाषा दीजिए। पूर्ति की लोच ज्ञात करने के लिए प्रतिशत विधि को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन की माप जो वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण होती है।
माना आरंभिक कीमत (p) पर वस्तु की पूर्ति = q1
कीमत स्तर (p) पर पूर्ति = q1
कीमत में परिवर्तन ∆p = P1 – p
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प्रश्न 26.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में संकुचन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं। अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत घटने से वस्तु की पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति वक्र पर ऊपर से नीचे संचरण होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 42

प्रश्न 27.
वस्तु की पूर्ति एवं समय अवधि में संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. अति अल्पकाल अथवा बाजारकाल इतनी छोटी अवधि होती है कि इसमें फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकती है।
  2. अल्पकाल वह समय अवधि होती है जिसमें फर्म केवल परिवर्तनशील साधन को बदल सकती है जबकि अन्य साधन स्थिर रहते हैं। अत: फर्म उत्पादन के परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर ही उत्पादन को बढ़ा सकती है।
  3. अर्थात फर्म एक सीमित सीमा तक ही वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है।
  4. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। अतः इस अवधि फर्म साधनों के प्रयोग से वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है। इसलिए इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।
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प्रश्न 28.
मूल बिन्दु से गुजरने वाले पूर्ति वक्र की लोच 1 इकाई क्यों होती है।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र के किसी बिन्दु पर \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) का अनुपात पूर्ति लोच कहलाता है जहाँ MY0 मात्रा अक्ष का भाग है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु जहाँ पूर्ति व क्रय विस्तारित पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष को काटता है। Y0 वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से क्षैतिज रेखा पर डाला गया लम्ब क्षैतिज अक्ष को काटता है।

OP0 कीमत अक्ष का वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से खींचा गया लम्ब कीमत अक्ष को काटता है। मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए बिन्दु M तथा O दोनों समान होते हैं। अत: MY0 तथा OY0 दोनों समान होते हैं। इसलिए मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए MY0 व OY0 का अनुपात 1 होता है।
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es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) = \(\frac{\mathrm{OY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) [∵MY0 = OY0]

प्रश्न 29.
पूर्ति लोच को ज्ञात करने की ज्यामीतिय विधि समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की गणना आपूर्ति वक्र के उदगम के आधार पर की जाती है। पूर्ति वक्र पर स्थित किसी बिन्दु s पर MY0 तथा OY0 के अनुपात से पूर्ति लोच की गणना की जाती है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु है जिस पर पूर्ति वक्र या विस्तारित पूर्ति वक्र, मात्रा अक्ष को काटता है, Y0 मात्रा अक्ष पर वह बिन्दु है जिस पर बिन्दु s से क्षैतिज अक्ष पर डाला गया लम्ब मिलता है।
es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\)
यदि MY0 > OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से अधिक होगी
यदि MY0 = OY0 तो पूर्ति की लोच के समान होगी
यदि MY0 < OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से कम होगी
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प्रश्न 30.
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक समान कीमत होने का कारण यह है कि इस बाजार में अधिक क्रेता व विक्रेता समान वस्तु का आदान प्रदान करते हैं। क्रेता व विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। क्रेता न्यूनतम कीमत पर वस्तु का क्रय करते हैं। यदि कोई विक्रेता अपने उत्पाद की ऊँची कीमत तय करता है तो कोई भी क्रेता उसकी वस्तु क्रय नहीं करता है, और उस फर्म को बाजार से बाहर जाना पड़ता है। प्रत्येक फर्म यह जानती है कि बाजार में इसके द्वारा की गई पूर्ति का क्या महत्व है अर्थात बाजार कीमत पर कितनी मात्रा में बिक्री की जायेगी। कोई भी फर्म बाजार कीमत से कम कीमत नहीं स्वीकार कर सकती है इसलिए एक फर्म का माँग वक्र पूर्तियोगिता में पूर्णतया लोचदार होता है।

प्रश्न 31.
पूर्ण प्रतियोगी फर्म का MR व AR का मान स्थिर क्यों होता है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी फर्म के MR व AR वक्र x अक्ष के समांतर होते हैं जो Y – 3 अक्ष को कीमत स्तर p पर काटते हैं। ये दोनों वक्र कीमत रेखा होते हैं। पूर्ण प्रतियोगी फर्म के AR एवं MR का मान समान व स्थिर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत समान रहने के कारण AR व MR का मान स्थिर रहता है।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को समझाइए।

  1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन
  2. समविच्छेद बिन्दु

उत्तर:
1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन:
प्रत्येक उत्पादन इकाई का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। इस लक्ष्य को पाने के लिए फर्म उत्पादन साधनों के ऐसे संयोजनों का चयन करती है जिससे उसकी उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाए। उत्पादन साधनों का ऐसा संयोजन जिसकी लागत न्यूनतम होती है, न्यूनतम लागत संयोजन कहलाता है।

2. समविच्छेद बिन्दु:
वह बिन्दु जिस पर फर्म की कुल आगम उसकी कुल उत्पादन लागत के समान होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिस बिन्दु पर कुल औसत लागत वस्तु की कीमत के बराबर होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। इसका अभिप्राय यह है कि न तो फर्म को हानि होती है और न लाभ। परंतु इस बिन्दु पर फर्म का कुल लाभ अधिकतम होता है।
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प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म की संतुलन/साम्य अवस्था को समझाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म संतुलन की अवस्था में उस बिन्दु पर पहुँचती है जहाँ सीमांत लागत बढ़ती हुई स्थिति में कीमत रेखा को काटती है। पूर्ण प्रतियोगी फर्म की साम्य अवस्था को नीचे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। चित्र में बिन्दु E अधिकतम लाभ की दोनों शर्तों को पूरा करता है इस बिन्दु पर वस्तु की कीमत व सीमांत लागत समान है तथा सीमांत लागत का ऊपर उठाता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है। इस बिन्दु पर कुल लाभ ज्यादा होगा।
कुल आगम = कीमत रेखा के अंतर्गत क्षेत्रफल कुल आगम = क्षेत्रफल
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उत्पादन (इकाइयाँ) उत्पादन स्तर OQ पर फर्म को अधिकतम लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी उत्पादन स्तर पर कुल लाभ बिन्दु E पर लाभ की तुलना में कम होगा। अतः फर्म का संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ सीमांत लागत वक्र का ऊपर उठता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है।

प्रश्न 3.
वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कारक:
1. प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों की प्रकृति:
वस्तु की पूर्ति लोच साधनों की प्रकृति से प्रभावित होती है। यदि वस्तु के उत्पादन में विशिष्ट साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। दूसरी ओर यदि वस्तु के उत्पादन में सामान्य रूप उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है।

2. प्राकृतिक कारक:
प्राकृतिक कारक भी वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करते हैं यदि किसी वस्तु के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। उदाहरण के लिए जैसे टीक लकड़ी के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो इसकी पूर्ति बेलोचदार होती है।

3. जोखिम:
वस्तु की पूर्ति लोच उत्पाद की जोखिम वहन करने की इच्छा पर भी निर्भर करती है। यदि उत्पादक की जोखिम उठाने की अधिक तत्परता/इच्छा होती है तो वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है इसके विपरीत यदि उत्पादक जोखिम उठाने से बचता है तो पूर्ति लोच कम होगी।

4. वस्तु की प्रकृति:
शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की पूर्ति बेलोचदार होती है तथा टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोच अधिक होती है।

5. उत्पादन लागत:
वस्तु की उत्पादन लागत भी पूर्ति लोच को प्रभावित करती है। यदि वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ती है तो पूर्ति बेलोचदार होती है इसके विपरीत यदि उत्पादन लागत घटती है तो पूर्ति की लोच ज्यादा होती है।

6. समयावधि:
पूर्ति लोच समयावधि से बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। उत्पादक के पास जितना अधिक समय होता है पूर्ति उतनी अधिक लोचदार होती है इसके विपरीत फर्म के जितनी कम समयावधि होती है पूर्ति उतनी ही कम लोचदार होती है। समयावधि के आधार पर पूर्ति लोच को निम्न प्रकार भी समझाया जा सकता है –

7. अति अल्पकाल:
यह समय अवधि इतनी कम होती है कि इसमें उत्पादक साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकता है इसलिए पूर्ति लगभग पूर्णतः बेलोचदार होती है।

8. अल्पकाल:
इस समय अवधि में फर्म परिवर्तनशील साधनों की संख्या तो बढ़ा सकती है लेकिन सभी साधनों की संख्या नहीं बढ़ा सकती है अतः इस अवधि में पूर्ति बेलोचदार होती है।

9. दीर्घकाल:
इस अवधि फर्म में सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है अतः कीमत के अनुसार फर्म वस्तु की पूर्ति को बदल सकती है। इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।

10. उत्पादन तकनीक:
यदि वस्तु के उत्पादन की तकनीक जटिल होती है तो इसे बदलने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अतः पूर्ति लोच कम होती है। इसके विपरीत सरल उत्पादन तकनीक से उत्पन्न वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है।

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प्रश्न 4.
संक्षेप में समझाइए कि विभिन्न कारक वस्तु की पूर्ति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक –
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत व उसकी पूर्ति में सीधा संबंध होता है। सामान्यतः ऊँची कीमत पर वस्तु की अधिक पूर्ति की जाती है और नीची कीमत पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्रा कम होती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमत:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत और वस्तु की कीमत में विपरीत संबंध होता है। प्रतियोगी वस्तु की कीमत बढ़ने पर, वस्तु सापेक्ष रूप से सस्ती हो जाती है और उत्पादक के लिए उसे बेचना कम लाभप्रद हो जाता है इसलिए उत्पादक वस्तु की कम पूर्ति करता है।

3. फर्मों की संख्या:
फर्मों की संख्या तथा वस्तु की आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। किसी वस्तु के उत्पादन में जितनी अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है उसकी पूर्ति उतनी ही अधिक होती है तथा फर्मों की संख्या जितनी कम होती है पूर्ति भी उतनी ही कम होती है।

4. फर्म का उद्देश्य:
यदि फर्म का उद्देश्य अधिक लाभ कमाना होता है तो फर्म ऊँची कीमत पर अधिक उत्पादन/पूर्ति करती है। इसके विपरीत यदि कोई फर्म नाम कमाना चाहती है, यह बिक्री अधिक करना चाहती है या रोजगार स्तर को ऊँचा करना चाहती है तो कम कीमत पर भी फर्म अधिक पूर्ति करने का प्रयास करती है।

5. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत तथा वस्तु की पूर्ति में विपरीत संबंध होता है। यदि उत्पादन आगतों की कीमत कम होती है तो उत्पादन लागत कम आती है इससे फर्म अधिक उत्पादन करती है। इसके विपरीत यदि उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ती है तो लागत ऊँची होने के कारण पूर्ति घट जाती है।

6. उत्पादन तकनीक में परिवर्तन:
उत्पादन तकनीक एवं वस्तु की पूर्ति में सीधा संबंध होता है उन्नत उत्पादन तकनीक के प्रयोग से उत्पादन लागत घटती है जिसमें उत्पादक वस्तु की अधिक पूर्ति करता है।

7. भावी कीमत:
यदि उत्पाक को ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में वस्तु की कीमत घटने वाली है तो वर्तमान में वस्तु की अधिक पूर्ति करेगा इसके विपरीत यदि निकट भविष्य में कीमत बढ़ने की संभावना होती है तो उत्पादक वस्तु की वर्तमान पूर्ति को कम करेगा।

8. सरकारी नीति:
सरकार की कर नीति एवं आर्थिक सहायता की नीति भी वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है। कर की ऊँची दर वस्तु की पूर्ति को घटाती है और आर्थिक सहायता वस्तु की पूर्ति को प्रोत्साहित करती है।

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प्रश्न 5.
पूर्ति लोच की विभिन्न श्रेणियों के बारे में समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की श्रेणियाँ –
1. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (शून्य लोचदार पूर्ति):
यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की पूर्ति अप्रभावित रहती है तो पूर्ति लोच शून्य या पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 49
चित्र में कीमत स्तर Op, Op1, Op2, पर पूर्ति की गई मात्रा एक समान OQ रहती है। अतः – पूर्ण बेलोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत होता है।

2. अपूर्ण लोचदार या इकाई से कम लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम होता है तो पूर्ति लोच इकाई से कम होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 50
चित्र में pp1, में प्रतिशत परिवर्तन, पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन QQ1 से ज्यादा है।

3. इकाई लोचदार पूर्तिवक्र:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के समान होता है तो पूर्ति लोच इकाई के बराबर होती है। इकाई लोचदार पूर्ति वक्र मूल बिन्दु से गुजरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 51

4. लोचदार या इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति:
जब कीमत परिवर्तन होने पर पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से ज्यादा होता है तो पूर्ति लोच इकाई से अधिक होती है। इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति वक्र बढ़ाने पर कीमत अक्ष को काटता है।

5. अनन्त लोचदार/पूर्णतया लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में नगण्य परिवर्तन या बिना किसी परिवर्तन के कारण वस्तु की पूर्ति बदल जाती है तो पूर्ति लोच पूर्णतया लोचदार/अनन्त लोचदार कहलाती है। पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 52

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प्रश्न 6.
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक:
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत उसकी बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊँची कीमत पर बाजार पूर्ति अधिक एवं नीची कीमत पर बाजार पूर्ति कम होती है।

2. उत्पादन तकनीक:
बाजार पूर्ति उत्पादन तकनीक से भी प्रभावित होती है। यदि नई एवं उन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन लागत कम हो जाती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है। दूसरी पिछड़ी एवं लागत बढ़ाने वाली तकनीक का प्रयोग करने पर बाजार पूर्ति कम होती है।

3. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत से उत्पादन लागत का निर्धारण होता है। साधनों की कीमत बढ़ने पर उत्पादन लागत बढ़ जाती है इससे बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत उत्पादन साधनों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और बाजार पूर्ति कम हो जाती है।

4. कर नीति:
कर नीति भी बाजार पूर्ति को प्रभावित करती है यदि सरकार उत्पादन शुल्क की दर बढ़ा देती है या आर्थिक सहायता कम कर देती है उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। परिणामतः वस्तु की बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत यदि सरकार शुल्क की दर घटा देती है अथवा आर्थिक सहायता बढ़ा देती है तो उत्पादन लागत घट जाती है इससे बाजार पूर्ति में वृद्धि हो जाती है।

5. फर्मों की संख्या:
यदि किसी वस्तु की उत्पादन में अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है इसके विपरीत वस्तु के उत्पादन में जितनी कम संख्या में फर्म संलग्न होती है वस्तु की बाजार शर्ते उतनी कम होती है।

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प्रश्न 7.
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारकों को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक:
1. तकनीकी परिवर्तन:
उत्पादन की नई एवं प्रोनोत्त तकनीक जो उत्पादन लागत को घटाती है पूर्ति में वृद्धि पैदा करती है जिससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसकी विपरीत पिछड़ी एवं घिसी हुई तकनीक से उत्पादन लागत बढ़ जाती है जो पूर्ति में कमी उत्पन्न करती है परिणामतः पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

2. साधन आगतों की कीमत में परिवर्तन:
साधनों आगतों की कीमतें जैसे मजदूरी दर, कच्चे माल का मूल्य, किराया आदि सीमांत लागत को प्रभावित करते हैं। सीमांत लागत के परिवर्तित होने से पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है। साधन आगतों में वृद्धि (कमी) से सीमांत ज्यादा (कम) हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं (दायीं) ओर खिसक जाता है।

3. करों में परिवर्तन:
उत्पादकों को बिक्री पर कर देना पड़ता है। करों की दर में, परिवर्तन से सीमांत लागत बढ़ जाती है। इस प्रकारा करों में वृद्धि (कमी) से सीमांत लागत में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। अतः करों में वृद्धि (कमी) से पूर्ति वक्र में बायीं (दायी) ओर खिसकाव उत्पन्न होता है।

4. संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन:
दिए गए साधनों से एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है फर्म उस वस्तु के उत्पादन के उत्पादन में ज्यादा प्रयोग करती है जिसका उत्पादन ज्यादा लाभकारी होता है। अतः प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी (वृद्धि) से वस्तु की पूर्ति ज्यादा (कम) हो जाती है परिणामतः पूर्ति वक्र दायों (बायीं) ओर खिसक जाता है।

5. फर्मों की संख्या में परिवर्तन:
फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होने से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र में दायीं (बायीं) और खिसकाव उत्पन्न होता है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका के पूरा करो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 53
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 54

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प्रश्न 2.
एक फर्म की कुल आगम अनुसूची नीचे दी गई है इससे औसत आगम, सीमांत आगम तथा कीमत की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 55
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 56

क्यों औसत आगम प्रत्येक उत्पादन स्तर पर स्थिर है और कीमत हमेशा औसत आगम के बराबर रहती है। इस प्रकार कीमत स्तर 7 रु. है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 57
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 58

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 59
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 60

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार वस्तु की बाजार कीमत 25 रु. है।

  1. 0 – 8 उत्पादन इकाई के लिए फर्म की कुल आगम अनुसूची बनाइए।
  2. माना बाजार कीमत बढ़कर 30 रु. हो जाती है। नया कुल अधिक ढ़ालू या चपटा होगा।

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 61

2. नई कीमत 30 रु. पर कुल आगम अनुसूची
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 62
नया कुल आगम वक्र अधिक ढ़ालू होगा।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 63
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 64

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 65
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 66

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प्रश्न 8.
एकाधिकारी फर्म की माँग अनुसूची नीचे दी गई है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 67
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 68

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका से कुल आगम, औसत आगम तथा सीमांत आगत ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 69
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 70

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका से औसत आगम व सीमांत आगम का परिकलन करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 71
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 72

प्रश्न 11.
जब बाल पैन की कीमत 4रु./इकाई है तो एक बाल पैन निर्माता प्रति दिन 8 पैन बेचता है। जब कीमत बढ़कर 5 रु./इकाई हो जाती है तो वह प्रतिदिन 10 पैन बेचने का निर्णय करता है। पैन की कीमत पूर्ति लोच की गणना करो।
हल:
p = Rs.4 q = 38 पैन
∆p = Rs. (5 – 4) = Rs.1 ∆q = 10 – 8 = 2 पैन
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\) es = \(\frac{2}{1}\) × \(\frac{4}{8}\) = 1 (चरों के मूल्य रखने)
पैन की पूर्ति कीमत लोच = 1

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प्रश्न 12.
जब आम की कीमत 24 रु./किग्रा. है तो एक आम विक्रेता 80 क्विंटल आम प्रतिदिन बेचना चाहता है। यदि आम की पूर्ति लोच 2 है तो आम विक्रेता 30 रु./इकाई आम की कितनी मात्रा बेचेगा?
हल:
p = Rs. 24 प्रति किलो q = 80 क्विंटल
∆p = Rs. (30 – 24) प्रति किलो
∆q = q1 – 80 क्विंटल = Rs.6 प्रति किलो
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) (मूल्य प्रतिस्थापित करने पर)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{4}{80}\)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{1}{20}\) या, q1 – 80 = 20 × 2
q1 = 40 + 80 = 120
30 रु./इकाई कीमत 120 क्विंटल आम बेचेगा। .

प्रश्न 13.
एक वस्तु की पूर्ति लोच 25 है । 5 रु./इकाई पर एक विक्रेता 300 इकाइयों की पूर्ति करता है। 4रु./इकाई कीमत पर वह वस्तु की कितनी मात्रा की पूर्ति करेगा?
हल:
p = Rs. 5
∆p = 4 – 5 = Rs.(-1)
es = 2.5; es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{5}{300}\), 2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{1}{60}\)
या, q1 – 300 = 2.5 × (-1) × 60 = – 150 या, q1 = – 150 + 300 = 150
4 रु./इकाई कीमत पर वह 150 इकाइयाँ बेचेगा।

प्रश्न 14.
8 रु./इकाई कीमत एक वस्तु की आपूर्ति 200 रु./इकाइयाँ हैं । इसकी पूर्ति लोच 1.5 है। यदि वस्तु की कीमत बढ़कर 10 रु./इकाई हो जाए तो नई कीमत पर पूर्ति की गई मात्रा की गणना करो।
हल:
p = 3D 8 रु. प्रति इकाई
∆p = 10 – 8 = 2 रु. प्रति इकाई
q = 200 इकाइयाँ ∆q = q1 – 200
es = 1.5
1.5 = \(\frac{q_{1}-200}{2}\) × \(\frac{1}{25}\) या, q1 – 200 = 1.5 × 2 × 25
या, q1 – 200 = 75 या, q1 = 75 + 200 = 275
नई कीमत पर पूर्ति की गई इकाइयाँ 275

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प्रश्न 15.
वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होने के कारण वस्तु की पूर्ति की गई इकाइयाँ 400 से बढ़कर 450 हो जाती हैं। पूर्ति की लोच की गणना करो।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
पूर्ति में परिवर्तन = 450 – 400 = 50 इकाइयाँ
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{50}{400}\) × 100 = \(\frac{50}{4}\) = 12.5%
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 73
= 1.25
पूर्ति में कीमत लोच = 1.25

प्रश्न 16.
8 रुपये प्रति इकाई कीमत पर एक वस्तु की गई मात्रा 400 इकाइयाँ है। इसकी पूर्ति लोच 2 है। वह कीमत ज्ञात करो जिस पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा?
हल:
p = 8 रुपये प्रति इकाई
∆p = (P1 – 8) रुपये
q = 400 इकाइयाँ
∆q = 600 – 400 = 200 इकाइयाँ
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 74
या, P1 = 2 + 8 = 10
10 रु./इकाई कीमत पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

निम्नलिखित कथनों के लिए सर्वोत्तम विकल्पों का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
आपूर्ति लोच हमें आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन का बोध कराती है –
(A) कीमत में 10 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(B) कीमत में 100 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(C) 50 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
उत्तर:
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण

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प्रश्न 2.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि

प्रश्न 3.
यदि बाजार आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक रहा है तो कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की अपरिवर्तित संख्या
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) फर्मों की संख्या में कमी

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प्रश्न 4.
फर्मों के आपूर्ति वक्रों का क्षैतिज योग होता है –
(A) बाजार आपूर्ति वक्र
(B) व्यक्तिगत आपूर्ति वक्र
(C) बाजार माँग वक्र
(D) व्यक्तिगत माँग वक्र
उत्तर:
(A) बाजार आपूर्ति वक्र

प्रश्न 5.
उत्पाद शुल्क लगाने से –
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है
(B) आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है
(C) आपूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचरण होता है
(D) आपूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचरण होता है
उत्तर:
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है

प्रश्न 6.
यदि आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में कमी
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(C) साधन आगतों की साम्य कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 7.
यदि आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी
(C) साधन आगतों की समान कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी

प्रश्न 8.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) तकनीकी प्रगति
(B) तकनीकी पिछड़ापन
(C) स्थिर तकनीकी
(D) या तो तकनीकी प्रगति या तकनीकी पिछड़ापन
उत्तर:
(A) तकनीकी प्रगति

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प्रश्न 9.
कीमत स्वीकारक फर्म सीमांत आगम होता है –
(A) कीमत से कम
(B) शुद्ध लागत के समान
(C) कीमत के समान
(D) लागत के समान
उत्तर:
(C) कीमत के समान

प्रश्न 10.
किसी फर्म का लाभ वह आगम है जो –
(A) शून्य लागत पर प्राप्त होता है
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है
(C) सकल लागत पर प्राप्त होता है
(D) अतिरिक्त लागत पर होता है
उत्तर:
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म द्वारा प्रयोग किए गए साधनों एवं उत्पादित की गई मात्रा के संबंध को उत्पादन फलन कहते हैं। प्रयोग किए गए साधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पन्न होती है। संसाधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा का निर्धारण तकनीकी के आधार पर होता है। उत्पादन तकनीकी में सुधार होने पर उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
एक आगत का कुल उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
अन्य साधन आगतों के स्थिर रहने पर परिवर्तनशील साधन और उत्पाद के संबंध को कुल उत्पाद के रूप में परिभाषित किया जाता है। गणितीय रूप में कुल उत्पादन का निरूपण निम्न प्रकार किया जाता है –
y = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) जहाँ y कुल उत्पादक परिवर्ती साधन है तथा \(\overline{x_{2}}\), स्थिर साधन। अथवा एक निश्चित समय अवधि में अन्य साधनों को समान रखकर परिवर्तनशील साधन की इकाइयों से फर्म को जितना उत्पादन प्राप्त होता है उसे कुल उत्पादन कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक आगत का औसत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्तनशील साधन से प्राप्त उत्पादन को औसत उत्पाद कहते हैं।
AP1 = \(\frac { TP_{ 1 } }{ x_{ 1 } } \) = \(\frac{f\left(x_{1}, \bar{x}_{2}\right)}{x_{1}}\)
जहाँ AP1 = एक साधन का औसत उत्पाद
TP1 = कुल उत्पाद
x1 = परिवर्तनशील आगत
\(\overline{x_{2}}\) = स्थिर आगत

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प्रश्न 4.
एक आयत का सीमान्त उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने पर कुल उत्पाद में जितनी बढ़ोतरी होती है, उसे सीमान्त कहते हैं।
गणितीय रूप में सीमान्त उत्पाद को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है –
MP1 = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) – ∫(x1 – 1, \(\bar{x}_{2}\))
MP2 = TP at (x1 units) – TP at (x1 – units)

प्रश्न 5.
एक आगत के सीमान्त उत्पाद तथा कुल उत्पाद के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व बढ़ने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व घटने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पाद घटता है।

प्रश्न 6.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाकर उत्पादन करती हैं। दूसरे वाक्यों में अल्पकाल में फर्म केवल परिवर्ती साधन को बढ़ाकर उत्पादन स्तर में परिवर्तन करती है। दीर्घकाल में दो या दो से अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करके फर्म उत्पादन का पैमाना बदलती है।

इस अवधि में कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता है सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। किसी भी उत्पादन प्रक्रिया के लिए दीर्घकाल, अल्पकाल के अपेक्षाकृत एक लम्बी समय अवधि होती है। अलग-अलग उत्पादन प्रक्रियाओं के लिए दीर्घकाल में अलग-अलग अवधि होती है। अल्प एवं दीर्घकाल दोनों को ही घण्टा, दिन, सप्ताह, मास, एवं वर्ष के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है। ये समय अवधियाँ इस बात से निर्धारित होती हैं कि सभी साधनों में परिवर्तन हो सकता है या नहीं।

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प्रश्न 7.
हासमान सीमान्त का नियम क्या है?
उत्तर:
हासमान सीमान्त उत्पाद नियम यह दर्शाता है कि रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद एक साधन का सीमान्त उत्पाद घटता है। जब परिर्वनशील साधन की इकाइयाँ अत्यधिक हो जाती है तो सीमान्त उत्पाद शून्य एवं ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह स्पष्ट करता है कि जब परिवर्ती साधन की इकाइयों का रोजगार स्तर कम होता है तो सीमान्त उत्पाद है लेकिन रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद साधन का सीमान्त उत्पाद घटने लगता है।

प्रश्न 9.
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का स्थिर प्रतिफल का नियम-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में ये अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों से अनुपातिक वृद्धि के समान बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 10.
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का वधमान प्रतिफल:
दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।

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प्रश्न 11.
एक उत्पादन फलन हासमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का हासमान प्रतिफल-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से कम बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का हासमान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 12.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म के लिए उत्पादन व लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं। साधनों की दी गई कीमतों पर एक फर्म साधनों के ऐसे संयोजन का चयन करती है जिसकी लगात न्यनतम होती है। दूसरे शब्दों में एक उत्पादन इकाई प्रत्येक उत्पादन स्तर के लिए न्यूनतम लागत वाले साधन संयोजनों का चुनाव करती है।

प्रश्न 13.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत था कुल लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत (TFC):
उत्पादन के स्थिर साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल स्थिर लागत कहते हैं। अल्प काल में उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर कुल स्थिर लागत सामान रहती है। दूसरे शब्दों में अल्पकाल में एक फर्म की कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है।

कुल परिवर्तनशील लागत (TVC):
उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल परिवर्तनशील लागत भिन्न-भिन्न होती है। दूसरे शब्दों में, एक उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लागत दूसरे उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लगात से भिन्न होती है।

कुल लागत:
कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनशील लागत के योग को कुल लागत कहते हैं।
TC = TFC + TVC

उत्पादन स्तर बढ़ाने के लिए फर्म को परिवर्ती साधन की इकाइयां को अधिक मात्रा में नियोजित करने की जरूरत पड़ती है। अतः कुल परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप कुल लागत में भी वृद्धि होती है परन्तु कुल स्थिर लागत रहती है।

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प्रश्न 14.
एक फर्म की औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC):
एक फर्म के लिए प्रति इकाई उत्पादन पर कुल स्थिर लागत को औसत स्थिर लागत कहते हैं।
AFC = \(\frac{TFC}{y}\)
जहाँ AFC = औसत स्थिर लागत, TFC = कुल स्थिर लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत परिवर्तनशील लागत (AVC):
एक फर्म को प्रति इकाई उत्पादन के लिए जितनी कुल परिवर्तनशील लागत वहन कमी पड़ती है उसे औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।
जहाँ AFC = औसत परिवर्तनशील लागत, TFC = कुल परिवर्तनशील लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत लागत (AC):
एक प्रति इकाई उत्पादन के लिए कुल जितनी लागत वहन करती है उसे औसत लागत कहते हैं।
जहाँ AC = औसत लागत, TC = कुल लागत, y = कुल उत्पादन
अथवा AC = \(\frac{TFC+TVC}{y}\) (∵TC = TFC + TVC)
अथवा AC = \(\frac{TFC}{y}\) + \(\frac{TVC}{y}\)
अथवा AC = AFC + AVC
अत: औसत स्थिर लागत एवं औसत परिवर्तशील लागत के योग को औसत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 15.
क्या दीर्घकाल में कुछ स्थिर लागत हो सकती है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, दीर्घकाल में कोई स्थिर लागत नहीं होती है क्योंकि इस अवधि में एक फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 16.
औसत लागत वक्र कैसा दिखता है? यह ऐसा क्यों दिखता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत व कुल उत्पादन के अनुपात को औसत स्थिर लागत कहते हैं। कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है। कुल उत्पादन (y) की मात्रा बढ़ाने पर औसत स्थिर लागत AFC घटती है। जब उत्पादन शून्य के निकटतम होता है तो औसत स्थिर लागत का मान अत्याधिक होता है। जैसे-जैसे कुल उत्पादन में वृद्धि होती है औसत स्थिर लागत शून्य की ओर जाती है परन्तु शून्य कभी-भी नहीं होती है। इस कारण AFC वक्र एक आयताकार हापरबोला (Rectangular Hyperbola) होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 1

प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमान्त लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र, औसत परिवर्तशील लागत वक्र तथा औसत लागत वक्र का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसे होता है। इन वक्रों के आकार साधन के वर्धमान प्रतिफल, समता प्रतिफल और हासमान प्रतिफल का उत्पादन प्रक्रिया में क्रमशः लागू होना है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 2

उत्पादन (इकाइयाँ) अल्पकालीन सीमान्त लागत व औसत परिवर्तनशील लागत में संबंध –

  1. जब तब AVC घटती है जब तक SMC का मान AVC से कम होता है।
  2. जब SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को काटता है तो उसे बिन्दु पर AVC का मान न्यूनतम होता है और SMC तथा AVC दोनों समान होती हैं।
  3. जैसे ही AVC ऊपर बढ़ने लगती है तो SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है।

अल्पकालीन सीमान्त लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत में संबंध –

  1. जब तक अल्पकालीन औसत लागत घटती है तब तक SMC, AC से कम रहती है।
  2. SMC व AC समान हो जाती है जब SMC वक्र AC वक्र को AC के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से ऊपर काटता है।
  3. जैसे ही SAC में वृद्धि होती है, SMC का स्तर, AC के स्तर से अधिक हो जाता है।

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प्रश्न 18.
क्यों अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर?
उत्तर:
SMC एवं AVC के प्रतिच्छेदन बिन्दु से पूर्व AVC घटती है तथा SMC का मान AVC से कम होता है। प्रतिच्छेदन बिन्दु के दायीं ओर AVC बढ़ने लगती है तथा SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है। SMC वक्र AVC को नीचे से AVC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 3

प्रश्न 19.
किस बिन्दु पर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत को काटता है? अपने स्तर के समर्थन में कारण बताइए।
उत्तर:
SMC वक्र SAC वक्र को SAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है क्योंकि जब तक SAC घटती है, SMC, SAC से कम होती है। जब SAC में वृद्धि होती है तो SMC, SAC की तुलना में ज्यादा दर से बढ़ती है। SMC वक्र, SAC वक्र को नीचे से SAC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 4

प्रश्न 20.
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र ‘U’ के आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
आरम्भ में जब फर्म उत्पादन प्रक्रिया शुरू करती है तो सीमान्त लागत घटती है क्योंकि आरम्भ में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ नियोजित करने पर साधन का वर्धमान प्रतिफल फर्म को प्राप्त होता है। साधन की निश्चित इकाइयों के नियोजन तक ही सीमान्त लागत घटती है। इसके बाद फर्म को साधन का समता प्रतिफल प्राप्त होता है। अत: सीमान्त लागत स्थिर होने लगती है। अन्त में साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है इस अवस्था में सीमान्त लागत वक्र ऊपर उठाने लगता है। इस उत्पादन प्रक्रिया के आरंभिक चरण में सीतान्त लागत घटती है इसके बाद यह लगभग स्थिर होन लगती है और अन्तिम चरण में यह बढ़ने लगती है इसीलिए सीमान्त लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 5

प्रश्न 21.
दीर्घकालीन सीमान्त लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म उत्पादन प्रक्रिया में सभी साधनों को समायोजित कर सकती है। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर शुरू में पैमाने का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। इस स्थिति में उत्पादन की समान मात्रा का उत्पादन करने पर अपेक्षाकृत कम लागत आती है। फर्म जब तक उत्पादन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त करती है तब तक सीमान्त औसत लागत दोनों घटती हैं। इसके बाद समता प्रतिफल प्राप्त होता है अतः समान उत्पादन के लिए समान लागत आती है जिससे औसत व सीमानत लागत दोनों स्थिर हो जाती हैं। अंततः पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर सीमान्त व औसत लागत दोनों बढ़ती हैं। इसलिए सीमान्त व औसत लागत वक्रों का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
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प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका, श्रम का कुल उत्पादन अनुसूची देती है। तदनुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 7
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 8

प्रश्न 23.
नीचे दी गई तालिका, श्रम का औसत उत्पाद अनुसूची बताती है। कुल उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए, जबकि श्रम प्रयोगता के शून्य स्तर पर यह दिखाया गया है कि कुल उत्पाद शून्य है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 9
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 10

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प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका श्रम का सीमान्त उत्पाद अनुसूची देती है। यह भी दिखाया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 11
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 12

प्रश्न 25.
नीचे दी गई तालिका एक फर्म की कुल लागत अनुसूची दर्शाती है। इस इस फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है? फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, अल्पकालीन औसत लागत तथा अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 13
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 14a
नोट:
TFC का मान उत्पादन के शनय स्तर की TC के समान होता है।

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका एक फर्म के लिए कुल लागत अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि औसत स्थिर लागत निर्गत की 4इकाइयों पर 5 रुपये हैं। कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत औसत परिवर्ती लागत, औसत स्थिर लागत, अल्पकालीन औसत लागत, अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची फर्म के निर्गत के तदनुरूप मूल्यों के लिए निकालिए।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 15
उत्तर:
चौथी उत्पादन इकाई की कुल स्थिर लागत = AFC × 4 इकाइयाँ
= Rs.5 × 4
= Rs. 20
उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल स्थिर लागत समान रहती है। अतः सभी स्तरों पर कुल स्थिर लागत 20 रुपया होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 16

प्रश्न 27.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची को निम्नलिखित तालिका में दिया गया है। फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 17
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 18

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प्रश्न 28.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 5L1/2K1/2
निकालएि, अधिकतम संभावित निर्गत जिसका उत्पादन फर्म कर सकती है 100 इकाइयाँ L तथा 100 इकाइयाँ K द्वारा।
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 5L1/2K1/2 जहाँ L = 100 इकाइयाँ और K = 100 इकाइयाँ L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 5 × 1001/2 1001/2 = 5 × 10 × 10 = 500 इकाइयाँ

प्रश्न 29.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 2L2K2
अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा। अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, शून्य इकाई L तथा 10 इकाई Kद्वारा?
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 22 K2
L = 5 एवं
K = 2
L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 2 × 52.22 = 2 × 25 × 4 = 2000 इकाइयाँ
यदि L = 0 और K = 10 तब Y = 2 × 02 × 102
Y = 2× 0 × 100 = 0
L की 5 इकाइयों व K की 2 इकाइयों का प्रयोग करके फर्म उत्पादन कर सकती है = 200 इकाइयाँ तथा L की शून्य व K की 10 इकाई का प्रयोग फर्म उत्पादन कर सकती है = 0.

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प्रश्न 30.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयों K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए जब इसका उत्पादन फलन हैः
Q = 5L + 2K
उत्तर:
उत्पादन फलन
Y = 5L + 2K
L = 0 तथा
K = 10
L तथा K का मान रखने पर Y = 5 × 0 + 2 × 10 = 0 + 20 = 20 इकाइयाँ
फर्म 20 इकाइयों का उत्पादन कर सकती है।

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उत्पादन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उत्पादन से अभिप्राय उन मानवीय क्रियाओं से जिनसे पदार्थों की उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरण चमड़े से जूते बनाया, लकड़ी से फर्नीचर का विनिर्माण आदि।

प्रश्न 2.
उत्पादन तकनीक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक दो प्रकार की होती है –

  1. श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक एवं
  2. पूँजी प्रधान उत्पादन तकनीक

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प्रश्न 3.
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतों के नाम लिखो।
उत्तर:
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतें –

  1. भूमि
  2. श्रम एवं
  3. पूँजी

प्रश्न 4.
कुल भौतिक उत्पाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साधन आगतों के प्रयोग में एक निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तु की इकाइयों को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 5.
औसत भौतिक उत्पाद की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्ती साधन के प्रयोग से उत्पादित भौतिक वस्तुओं की मात्रा को औसत भौतिक उत्पाद कहते हैं। कुल भौतिक उत्पाद औसत भौतिक
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प्रश्न 6.
सीमान्त भौतिक उत्पाद का अर्थ बताओ।
उत्तर:
साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग बढ़ाने पर कुल भौतिक उत्पाद में होने वाली शुद्ध बढ़ोतरी को सीमान्त भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 7.
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा हो तो सीमान्त भौतिक उत्पाद का क्या होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा होता है तब सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक हो। जाता है।

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प्रश्न 8.
सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का सामान्यतः आकार कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 9.
औसत भौतिक उत्पाद वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत भौतिक उत्पाद का आकार सामान्यतः उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 10.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ लिखो।
उत्तर:
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल बताता है कि कुल भौतिक उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा होती है।

प्रश्न 11.
औसत स्थिर लागत का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 12.
सीमान्त लागत का सामान्य आकार बताओ?
उत्तर:
सीमान्त लागत वक्र सामान्यतः अंग्रेजी अक्षर U जैसा होता है।

प्रश्न 13.
परिणम मित्तव्यिता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिणाम मित्तव्यिता का अर्थ है कि जब कोई फर्म अधिक मात्रा में क्रय करती है तो उसे अपेक्षाकृत कीमत कम देनी पड़ती है।

प्रश्न 14.
दीर्घकाल में पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के दो कारण लिखो।
उत्तर:

  1. श्रम विभाजन
  2. परिणाम मित्तिव्यिता

प्रश्न 15.
अस्पष्ट लागत का अर्थ उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म के निजी साधनों को प्रयोग करने की लागत को अस्पष्ट लागत कहते हैं।

प्रश्न 16.
स्पष्ट लागत का अर्थ लिखो। उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
उन साधनों की लागत जिनका भुगतान फर्म से बाहर उनके स्वामियों को किया जाता है स्पष्ट लागत कहते हैं।

उदाहरण:
श्रमिकों को पारिश्रमिक का भुगतान, क्रय किए गए कच्चे माल का मूल्य आदि।

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प्रश्न 17.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
साधन आगतों के स्वामी उनकी आपूर्ति करने में जो त्याग करते हैं कष्ट उठाते है, अर्थ दर्द सहन करते है उन्हें वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 18.
स्थिर लागत क्या होता है?
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर नहीं बदलती है, स्थिर लागत कहलाती है। ये लागत केवल अल्पकाल में ही स्थिर रहती है लेकिन दीर्घकाल में यह लागत बदल जाती है।

प्रश्न 19.
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ रहा है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ता है तो सीमान्त उत्पाद धनात्मक होता है परन्तु उसमें घटने की प्रवृत्ति होती है।

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प्रश्न 20.
जब कुल भौतिक उत्पाद बढ़ रहा होता है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है।
उत्तर:
सीमान्त भौतिक उत्पाद धनात्मक होता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त भौतिक उत्पाद से कुल भौतिक उत्पाद की गणना किस प्रकार से की जाती है।
उत्तर:
किसी भी रोजगार स्तर पर सीमान्त भौतिक उत्पादों के योग को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 22.
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र का आकार कैसा होता है।
उत्तर:
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र मूल बिन्दु से आरम्भ होता है और दायीं ओर ऊपर की ओर उठता है। दूसरे शब्दों में कुल परिवर्तनशील लागत वक्र धनात्मक ढाल का वक्र होता है।

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प्रश्न 23.
कुल स्थिर लागत वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत वक्र x – अक्ष के समान्तर क्षैतिज रेखा होती है?

प्रश्न 24.
निजी लागत की परिभाषा दो।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म द्वारा वहन की गई लागतों को निजी लागत कहते हैं।

प्रश्न 25.
बाह्य बचतों की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाह्य बचतों से अभिप्राय उन लाभों से जो एक उद्योग की सभी फर्मों को प्रात होता हैं।

प्रश्न 26.
आन्तरिक बचतों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
फर्म द्वारा उत्पादन का आकार बढ़ाने पर जो व्यय प्राप्त होते हैं उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं।

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प्रश्न 27.
पैमाने के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में उत्पादन के दो या अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के व्यवहार को पैमाने के प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 28.
साधन के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पादन के अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक साधन की इकाइयों में परिवर्तन करने पर उत्पाद में परिवर्तन के व्यवहार को साधन का प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 29.
उत्पादन के परिवर्तन साधन का मतलब बताओ।
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन जो अल्पकाल में बदले जा सकते हैं अथवा उत्पादन के वे साधन जिनकी मात्रा, उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाती है उत्पादन के परिवर्तनशील साधन कहलाते है। जैसे कच्चा माल, अस्थयी श्रमिक आदि।

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प्रश्न 30.
उत्पादन के स्थिर साधनों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है उन्हें उत्पादन के स्थिर के साधन कहते हैं। जैसे मशीन, फैक्टरी की इमारत आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पैमाने के प्रतिफल का गणितीय निरूपण लिखो।
उत्तर:
माना एक फर्म का उत्पादन फलन है –
y = f(x1, x2)
इस उत्पादन फलन का अभिप्राय यह है कि साधन – 1 की  × इकाइयाँ एवं साधन – 2 की x1, इकाइयों का प्रयोग करने से उत्पाद की y मात्रा का उतपादन होता है। माना फर्म दोनो साधनों को t गुना बढ़ाती है। जहाँ t > 1 गतिणतीय रूप में पैमाने तीनों प्रतिफलों को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है।
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल f(tx1, tx2) > t(x1, X2)
पैमाने का समता प्रतिफल f(tx1, tx2) = t(x1, X2)
पैमाने का हासमान प्रतिफल f(tx1, tx2) < t(x1, x2)

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प्रश्न 2.
कॉब डगलस उत्पादन फलनों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
माना उत्पादन फल
\(y=x_{1}^{\alpha}, x_{2}^{\beta}\)
इस प्रकार के उत्पादन फलन को कॉब डगलस उत्पादन फलन कहते हैं।
मान xc = \(\bar{x}_{1}\), x2 = \(\bar{x}_{1}\), y उत्पादन की मात्रा
\(y_{0}=x \beta_{2}^{-\alpha-\beta}\)
दोनों साधनों t गुना बढ़ोतरी करने पर नया उत्पाद फलन होगा = \(t^{\alpha+\beta} \bar{x}_{1}^{\alpha} \cdot \bar{x}_{2}^{\beta}\)
α + β = 1 के लिए
y1 = ty0 यह पैमाने के समता प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β > 1 के लिए उत्पादन फलन, वर्धमान प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β < 1 के लिए उत्पादन फलन, हासमान प्रतिफल को दर्शाता है।

प्रश्न 3.
आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक क्यों होता है?
उत्तर:
जब सीमान्त उत्पादन धनात्मक होता है तो यदि उत्पादन का समान स्तर उत्पन्न करने के लिए एक साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो दूसरे साधन में परिवर्तन के विपरीत दिशा में दूसरे साधन में विपरीत दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है इसीलिए आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 20

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प्रश्न 4.
आइसोक्वेंट की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक को वैकल्पिक विधि से दर्शाने की विधि को आइसोक्वेंट कहते हैं। दो साधन आगतों के वे सभी संभव समुच्चय जिनसे समान मात्रा में उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पादित की जाती है, आइसोक्वेंट कहलाता है। प्रत्येक आइसोक्वेंट उत्पादन के विशिष्ट स्तर को दर्शाता है और उसे उस उत्पादन स्तर से नामांकित किया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 21

साधन आगतों के समतल में रेखाचित्र उत्पादन स्तर y = y1, y = y2 तथा y = y3 को दर्शाता है। साधन आगतों के दो संयोजन (x’1, x’2) और (x”1,x’2) उत्पादन के समान स्तर y1, को उत्पन्न करते हैं। यदि साधन 2 को समान रखा जाए और साधन 1 को x”1 तक बढ़ाया जाए तो उत्पादन में बढ़ोतरी होती है इससे हम ऊँचे उत्पादन स्तर y2, पर पहुंचते हैं।

प्रश्न 5.
साधन के घटते प्रतिफल के कारण लिखो।
उत्तर:
साधन के घटते प्रतिफल के कारण:
1. उत्पादन साधनों का अधिक उपयोग:
परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर एक सीमा के बाद उत्पादन के स्थिर साधनों का अधिक उपयोग होने लगता है जिससे साधन का घटता प्रतिफल लागू होता है।

2. अपूर्ण प्रतिस्थापन:
उत्पादन के साधन एक-दूसरे के पूर्ण प्रतिस्थापक नहीं होता हैं। एक फर्म एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन लाभपूर्वक एक सीमा तक ही कर सकती है। उस सीमा के बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर प्रतिस्थापन घटते प्रतिफल को जन्म देता है।

3. सहयोग का अभाव:
उत्पादन साधनों में आदर्श संयोग के बाद परिवर्ती साधन की इकाइयों को बढ़ाने पर परिवर्ती साधन व स्थिर साधनों में बेहतर तालमेल होने लगता है जो घटते प्रतिफल का कारण होती है।

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प्रश्न 6.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के क्या कारण है? उनमें से किसी एक को समझाओ।
उत्तर:
उत्पादन पैमाने को बढ़ाने पर एक फर्म को पैमाने बचतें एवं अबचतें प्राप्त होती हैं। जब उत्पादन पैमाने की बचतों का योग अबचतों के योग से ज्यादा है तो पैमाने का वर्धमान प्रतिफल होता है। उत्पादन पैमाने की बचतों को दो वर्गों में बांटा जाता है –

  1. उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें तथा
  2. उत्पादन पैमाने की बाहा बचतें

उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें:
वे बचतें जो फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने के कारण प्राप्त होती हैं आन्तरिक बचतें कहलाती हैं। कुछ आन्तरिक बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. तकनीकी बचतें
  2. श्रम बचतें
  3. प्रबन्धकीय बचतें
  4. वित्तीय बचतें
  5. क्रय-विक्रय की बचतें

प्रश्न 7.
कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
कुल उत्पाद, ओसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध –

  1. रोजगार के एक निश्चित स्तर तक कुल उत्पाद, औसत उत्पाद, तथा सीमान्त उत्पाद तीनों में वृद्धि होती है। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  2. जब औसत उत्पाद व सीमान्त उत्पाद दोनों समान होते हैं तो औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. इसके बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद कम दर से बढ़ता है तथा सीमान्त व औसत उत्पाद दोनों घटते हैं।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल उत्पाद अधिकतम होता है, परन्तु औसत उत्पाद कभी भी शून्य नहीं होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है तो कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 8.
पैमाने के घटते प्रतिफल तथा साधन के घटते प्रतिफल में अन्तर लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में जब दो या अधिक साधन आगतों में अनुपातिक बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक रूप से कम बढ़ोतरी होती है तो उसे पैमाने का घटता प्रतिफल कहते हैं। अल्पकाल में जब अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है तो इसे साधन का घटता प्रतिफल कहते हैं। पैमाने के घटते प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि साधन के घटते प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 9.
साधन के वृद्धि प्रतिफल के पीछे क्या कारण है?
उत्तर:
साधन के वृद्धि प्रतिफल के कारण –

  1. जब परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो स्थिर साधनों का बेहतर उपयोग शुरू हो जाता है।
  2. परिवर्तनशील साधन बढ़ी हुई इकाइयों पर श्रम विभाजन सभव हो जाता है।
  3. परिवर्ती साधन की इकाइयों बढ़ने पर फर्म स्थिर व परिवर्तनशील साधन उत्तम एवं आदर्श संयोग बनाती है।

प्रश्न 10.
उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतों को समझाओ।
उत्तर:
वे बचतें जो किसी फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने पर प्राप्त होती हैं, उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं। कुछ आन्तरिक बचतें इस प्रकार से हैं –
1. श्रम बचतें:
उत्पादन का पैमाने बढ़ाने पर एक फर्म जटिल श्रम विभाजन का प्रयोग कर सकती हैं। जटिल श्रम विभाजन से श्रम की दक्षता एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।

2. प्रबन्धकीय बचतें:
उत्पादन पैमाने का बड़ा आकार फर्म को कुशल एवं दक्ष प्रबन्धक नियोजित करने की अनुमति प्रदान करता है। कुशल एवं दक्ष प्रबन्धकों के कारण उत्पादन में वृद्धि अधिक दर से होती है।

3. तकनीकी बचतें:
उत्पादन का बड़ा आकार होने से उत्पादन की उन्नत एवं विकसित उत्पादन तकनीक का उपयोग करने की संभावना बढ़ जाती है। उन्नत उत्पादन तकनीकी से वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

4. वित्तीय बचते:
बड़े आकार वाली फर्म की साख प्रतिष्ठा उच्च स्तर की होती है। बड़े आकार वाली फर्म कम ब्याज दर पर आसानी से बड़े आकार में ले सकती है।

5. क्रय-विक्रय की बचतें:
एक फर्म जो उत्पादन का आकार बढ़ाती है वह मध्यवर्ती वस्तुओं को विशाल मात्रा में क्रय करती है तथा बड़ी मात्रा में उत्पादन करती है। बड़े आकार में क्रय-विक्रय से फर्म को फायदा होता है।

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प्रश्न 11.
रेक्टेगुलर हाइपरबोला (आयताकार अति परवलय) की अवधारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर:
समीकरण xy = C से प्राप्त वक्र को अति परवलय कहते हैं। जहाँ x तथा y चर मूल्य है एवं c स्थिरांक है।
अतिपरवलंय x – y तल में एक ऋणात्मक ढाल वाला वक्र है। x अथवा y को अनन्त मान के लिजए अतिपरवलय वक्र x – अक्ष (y – अक्ष) के सममित हो जाता है। वक्र के किन्हीं दो बिन्दुओं p तथा q पर ay1.px1, और ay2.qx2, का क्षेत्रफल समान होता है जिसका मान स्थिरांक c के सामन होता है।
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प्रश्न 12.
स्थिर अनुपात एवं परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

  1. स्थिर अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की विभिन्न मात्राओं पर विभिन्न साधनों का अनुपात एक समान रहता है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है।
  2. उत्पादन के स्थिर अनुपात फलन में सभी उत्पादन साधनों में परिवर्तन के कारण उत्पादन की मात्रा बदलती है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की मात्रा उत्पादन के साधन में परिवर्तन के कारण बदलती है।
  3. स्थिर अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन पैमाने में परिवर्तन के कारण होता है जबकि परिवर्ती अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन स्तर में परिवर्तन के कारण होता है।
  4. स्थिर अनुपात फलन का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि परिवर्ती अनुपात फलन का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 13.
बाह्य बचतें क्या हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
किसी उद्योग का समग्र रूप से विस्तार होने पर नए बाजारें, नई उत्पादन तकनीक, विकसित व कुशल प्रबन्धन, जटिल श्रम विभाजन, नई खोजों के विदोहन की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। दूसरे शब्दों में, उद्योग का समग्र विस्तार सभी फर्मों के लिए लाभकारी होता है चाहे फर्म अपना उत्पादन का पैमाना बढ़ाए या ना बढ़ाए। इन्हें बाह्य बचते कहते हैं। कुछ बाह्म बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. सघनता की बचतें
  2. सूचनाओं की बचतें
  3. विकेन्द्रीयकरण की बचतें

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प्रश्न 14.
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर –

  1. अल्पकाल से अभिप्राय उस समय अवधि से है जो स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से कम होती है। जबकि दीर्घकाल यह समय अवधि होती है जिसमें स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से ज्यादा होती है।
  2. अल्पकाल में फर्म उत्पादन के परिर्वनशील साधन में परिवर्तन करके उत्पादन स्तर को बदल सकती है जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन करके उत्पादन का पैमाना बदल सकती है।
  3. अल्पकाल में एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा अन्य साधन स्थिर रहते हैं जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 15.
स्थिर अनुपात उत्पादन फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जब कोई फर्म सभी साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करती है तो यह माना जाता है कि फर्म का उत्पादन पैमाने परिवर्तित होता है। वह उत्पादन फलन जो उत्पादन के पैमाने का अध्ययन करता है उसे स्थिर अनुपात उत्पादन फलन कहते हैं। स्थिर अनुपात उत्पादन फलन उस उत्पादन व्यवहार से संबंधित होता है जिसमें सभी साधनों को अनुपातिक रूप में बदल जाता है। बड़ा उत्पादन पैमाना उत्पादन की अधिकतम क्षमता को व्यक्त करता है तथा छोटा उत्पादन पैमाना उत्पादन की कम क्षमता को व्यक्त करता है। विभिन्न पैमानों पर साधनों का अनुपात स्थिर होता है।

प्रश्न 16.
औसत उत्पाद वक्र उल्टे U आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है जिससे प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन ज्यादा दर से प्राप्त होता है। अतः औसत उत्पाद वक्र ऊपर की ओर उठता है। इसके बाद समता प्रतिफल लागू होता है तो प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन समान दर से प्राप्त होता है। औसत उत्पाद स्थिर हो जाता है। अन्त में जब साधन का ह्यसमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की औसत उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 23

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प्रश्न 17.
आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर सीमान्त उत्पाद क्यों बढ़ता है, इसे कब कम होना चाहिए?
उत्तर:
यह आवश्यक नहीं है कि आरम्भ में सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है। यह उत्पाद के स्थिर साधनों का, परिवर्ती साधन की इकाइयों से अपूर्ण विदोहन ही होता है तो परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर स्थिर साधनों का विदोहन अधिक होने लगता है और साधन का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। जब स्थिर साधनों का परिवर्ती साधन से पूर्ण विदोहन हो जाता है तो इसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है अतः सीमान्त उत्पाद घटने लगता है। आरम्भिक अवस्था में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ की कम मात्रा के कारण स्थिर साधनों का पूर्ण विदोहन नहीं हो पाता है। इसलिए परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर स्थिर के विदोहन में बढ़ोतरी होने लगती है और सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 18.
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध –

  1. जब तक सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है, कुल उत्पाद में अधिक दर से वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद लगभग स्थिर होने लगता है तो कुल उत्पाद एक समान दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त घटता है परन्तु धनात्मक होता है तब कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तब कुल उत्पाद अधिकतम होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तब कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 19.
औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है, औसत उत्पाद में वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद के समान होता है, औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से कम होता है, औसत उत्पाद में कमी होती है।

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प्रश्न 20.
सीमान्त उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U जैसा क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में एक फर्म को परिवर्ती साधन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है। अतः परिवर्ती साधन की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि ज्यादा दर से होती है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र ऊपर कुल ओर उठता है। इसके बाद जब साधन का समता प्रतिफल लागू होता है तो कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि स्थिर हो जाती है या परिवर्ती साधन की अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि समान दर से होता है। अन्त में जब साधन का हासमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की एक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि कम दर से होता है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
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प्रश्न 21.
अवसर लागत की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
दूसरे स्तर के सर्वोत्तम प्रयोग में साधन के मूल्य को उसकी अवसर लागत कहते हैं। प्रत्येक ऐसे साधन की अवसर लागत होती है जिसके वैकल्पिक उपयोग संभव होते हैं। उत्पाद में काम आने वाले फर्म के निजी साधनों की भी अवसर लागत होती है। उदाहरण के लिए एक स्वः नियोजित श्रमिक की अवसर लागत, श्रम बाजार में उस श्रमिक की मजदूरी के बराबर होती हैं यदि वह अपनी सेवाएं दूसरों को प्रदान करें।

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प्रश्न 22.
क्या सीमान्त में स्थिर लागत शामिल होती है? समझाइए।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में बढ़ोतरी को सीमान्त लागत कहते हैं। इस प्रकार सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती है। एक अतिरिक्त लागत परिवर्तन लागत होती है। अतः सीमान्त लागत स्थिर लागत का भाग नहीं हो सकती है क्योंकि स्थिर लागत उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर एक समान रहती है। स्थिर लागत में उत्पादन स्तर में उतार-चढ़ाव होने पर बदलाव नहीं होता है। अतः यह प्रश्न ही नहीं उठता है कि सीमान्त लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।

प्रश्न 23.
आयताकार अति परवलय की विशिष्टता के बारे में लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय के समान होता है। यदि हम औसत स्थिर लागत पर कोई भी बिन्दु लेते हैं तो उस बिन्दु पर AFC तथा उत्पादन मात्रा का गुणनफल एक समान प्राप्त है। यह इसीलिए होता है क्योंकि AFC तथा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर समान रहती है। इस विशिष्टता वाले वक्र को आयताकार अतिपरवलय कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 27

प्रश्न 24.
हासमान प्रतिफल का नियम एवं परिवर्ती अनुपात का नियम में अंतर लिखो।
उत्तर:
हासमान प्रतिफल, परिवर्ती के नियम का परपरागत रूप है। ह्रासमान प्रतिफल के नियम का प्रतिपादन डेविट रिकार्डो ने किया था। यह नियम कृषि क्षेत्र में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में कमी को स्पष्ट करने के लिए प्रतिपादित किया गया था। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम के उपयोग के क्षेत्र का विकास हेतु परिवर्ती अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने यह माना कि हासमान प्रतिफल कृषि क्षेत्र के अलावा उद्योग क्षेत्र में भी लागू होता है। स्थिर साधनों एवं परिवर्ती साधन की इकाइयों के प्रयोग से एक सीमा तक कुल उत्पाद दर से वृद्धि होती है उसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर साधन का ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

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प्रश्न 25.
स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अंतर लिखो।
उत्तर:
1. लागत का वह भाग जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर भी नहीं बदलता है उसे स्थिर लागत कहते हैं जबकि जो लागत उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर बदल जाती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है।

2. स्थिर लागत का संबंध उत्पादन स्तर से नहीं होता है यह लागत शून्य उत्पादन स्तर एवं अधिकतम उत्पादन स्तर पर एक समान होती है। जबकि परिवर्तशील लागत शून्य उत्पादन स्तर पर शून्य होती है और जैसे-जैसे स्तर बढ़ता है परिवर्तनशील लागत बढ़ती है।

3. उदाहरण:
स्थिर लागत – भूमि का किराया स्थायी श्रमिकों की मजदूरी आदि –

परिवर्तनशील लागत –

  1. कच्चे माल का मूल्य
  2. अस्थायी श्रम की मजदूरी आदि

प्रश्न 26.
नीचे श्रम उत्पादन अनुसूची दी गई है। श्रम की औसत एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 28
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 29

प्रश्न 27.
सीमान्त लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागत के संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त लागत, औसत परिवर्तनशील लागत से कम होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत औसत परिवर्तनशील लागत के समान होती है तो औसत परिवर्तनीशल लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 30

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प्रश्न 28.
सीमान्त लागत तथा औसत लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. सीमान्त लागत, औसत लागत से कम होती है तो औसत लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के बराबर होती है तो औसत लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के ज्यादा होती है तो औसत लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 31

प्रश्न 29.
नीचे श्रम की औसत उत्पादकता अनुसूची दी गई है। कुल उत्पादकता एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए। श्रम के शून्य रोजगार स्तर पर कुल उत्पादकता शून्य मानिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 33

प्रश्न 30.
कुल लागत सीमान्त लागतों का योग होती है। संक्षेम में समझाइए।
उत्तर:
नहीं, उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल लागत सीमान्त लागत का योग नहीं होती है। सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती हैं अतिरिक्त लागत परिवर्तनशील लागत होती है। इस प्रकार सीमान्त लागत का योग कुल परिवर्तनशील लागत होती है। सीमान्त लागत का योग कुल लागत नहीं होती है। कुल लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।
इस प्रकार ΣMC # TC
EMC = TVC

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प्रश्न 31.
सीमान्त लागत और कुल लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. दो सतत उत्पादन स्तरों की कुल लागत के अन्तर को सीमान्त लागत कहते हैं।
    MC = TCN – TCNN-1
  2. जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत कम दर से बढ़ती है।
  3. जब सीमान्त लागत न्यूनतम होती है तो कुल लागत समान दर से बढ़ती है।
  4. जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो कुल लागत ज्यादा दर से बढ़ती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साधन के प्रतिफल एवं पैमाने के प्रतिफल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
1. साधन के प्रतिफल में साधन आगतों:
उत्पाद के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिसमें अन्य साधनों की स्थिर इकाइयों के साथ फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है जबकि उत्पादन के पैमाने में साधन आगतों-उत्पाद के उस संबंध का अध्ययन किया जाता है जिसमें फर्म उत्पादन के दो या अधिक साधनों का अनुपातिक नियोजन बढ़ाती है।

2. साधन के प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से होता है जबकि पैमाने के प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से है।

3. साधन के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है जबकि पैमाने के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात स्थिर (समान) होता है।

4. साधन के प्रतिफल में उत्पादन का पैमाना नहीं बदलता जबकि पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन पैमाना बदल जाता है।

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प्रश्न 2.
पैमाने के बढ़ते एवं घटते प्रतिफल क्रमशः दीर्घकालीन औसत लागत के घटते व बढ़ते भाग होते हैं। पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत घटती है। पैमाने के घटते प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत में वृद्धि होती है। आरम्भ में अल्पकाल में स्थिर लागतें अपरिवर्तित रहती हैं इसलिए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर प्रति इकाई कुल लागत में इस कारण से कमी आती है कि साधन के वर्धमान प्रतिफल लागू होने पर कुल परिवर्तनशील लागत कम दर से बढ़ती है।

लेकिन दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। अतः इस अवधि में सभी लागतें परिवर्तनशील होती हैं। उत्पादन पैमाने का वर्धमान प्रतिफल लागू होने से प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत अथवा दीर्घकालन औसत लागत घटती है। इसी प्रकार पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर प्रति इकाई दीर्घकालिन कुल लागत अथवा औसत लागत में वृद्धि होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 34

प्रश्न 3.
साधन के प्रतिफल के परिवर्ती अनुपात का नियम बताइए एवं समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम:
यह नियम साधन आगतों एवं उत्पाद के उस संबंध को बताता है जब फर्म अन्य साधन आगतों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है। यह नियम बताता है कि स्थिर साधनों की निश्चित इकाइयों के साथ परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो आरम्भ में कुल भौतिक उत्पाद में अधिक दर से बढ़ोतरी होती है इसके बाद कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है और अन्त में यह कम होने लगता है।

प्रथम चरण:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है तो एक सीमा तक कुल भौतिक उत्पाद में ज्यादा दर से वृद्धि होती है। इस चरण में सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद बढ़ते है। सीमान्त भौतिक उत्पाद घटने लगता है और इस चरण के अन्त में सीमान्त भौतिक उत्पाद, औसत भौतिक उत्पाद के बराबर हो जाता है।

द्वितीय चरण:
सीमान्त भौतिक उत्पाद व औसत भौतिक उत्पाद के समान होने के बाद जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है। सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद दोनों घटते हैं। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से ज्यादा दर से घटता है। इस चरण के अन्त में सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल भौतिक उत्पाद अधिकतम होता है। लेकिन औसत उत्पाद कभी शून्य नहीं होता है।

तृतीय चरण:
सीमान्त भौतिक कुल उत्पाद उत्पाद शून्य होने के बाद यदि फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल उत्पाद घटने लगता है तो सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है। एक विवेकशील उत्पादक तीसरे चरण में उत्पादन नहीं करता है। वह दूसरे चरण में ही उत्पादन करेगा।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 35

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प्रश्न 4.
पैमाने के प्रतिफल के नियम समझाए।
उत्तर:
पैमाने का प्रतिफल नियम:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि और उत्पाद मात्रा के संबंध को पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।

पैमाने के प्रतिफल के तीन नियम हैं:

1. पैमाने का वर्धमान प्रतिफल-दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में अधिक अनुपातिक वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 36

2. पैमाने का समता प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में समान अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समता प्रतिफल कहते हैं।

3. पैमाने का हासमान प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में कम अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं। रेखाचित्र में बिन्दु A से B तक वर्धमान प्रतिफल, बिन्दु B से C तक समता प्रतिफल तथा C से D तक हासमान प्रतिफल दर्शाया गया है।

संख्यात्मक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूचि नीचे दी गई है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 37

(a) फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है?
(b) औसत स्थिर लागत AFC, औसत परिवर्तनशील लागत AVC,कुल औसत लागत ATC तथा सीमान्त लागत MC की गणना करो।
उत्तर:
(a) शून्य उत्पाद स्तर पर कुल लागत = 60 रुपये, अतः फर्म की कुल स्थिर लागत = 60 रुपये

(b)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 38

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
यदि उत्पादन स्तर 1 पर औसत स्थिर लागत 40 रुपये है तो निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 39
उत्तर:
उत्पादन इकाई – 1 पर AFC 40 रुपये है। अतः कुल स्थिर लागत भी 40 रुपये है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 40

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 3.
एक फर्म की स्थिर लागत 1200 रुपये है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC, AVC, TC और ATC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 41a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 42a

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC एवं AVC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 43a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत = 50 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत 50 रुपये है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांतpart - 2 img 44a

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC व MC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 45a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत 40 रुपये है अंत: कुल स्थिर लागत भी 40 है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 46a

प्रश्न 6.
एक फर्म की स्थिर लागत 2000 रु0 है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करे TVC, AVC, TC तथा AC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 47
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 48

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 49
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 50

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका से AVC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 51a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 52a

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 53a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत = 12 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत TFC = 12 रुपये
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 54a

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प्रश्न 10.
TFC, TVC,AFC,ATC तथा MC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 55a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 56a

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC तथा MC ज्ञात करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 57a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत 90 रु० है। अतः कुल स्थिर लागत 90 रु० होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 58a

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वास्तविक लागत है –
(A) उत्पादन लागत
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत
(C) उत्पाद की कीमत
(D) औसत लागत
उत्तर:
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत

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प्रश्न 2.
मौद्रिक लागत से अभिप्राय है –
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय
(B) उत्पाद का विक्रय मूल्य
(C) कुल परिवर्तनशील लागत
(D) कुल स्थिर लागत
उत्तर:
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय

प्रश्न 3.
सामाजिक लागत निजी लागत में कम होगी यदि –
(A) औसत लागत कम हो रही है
(B) सीमान्त लागत कम हो रही है
(C) औसत लागत बढ़ रही है
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है
उत्तर:
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है

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प्रश्न 4.
किसी वस्तु की मौद्रिक लागत में निम्नलिखित मदें सम्मिलित की जाती है –
(A) स्पष्ट लागते
(B) केवल अस्पष्ट लागते
(C) सामान्य लाभ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
स्पष्ट लागतों में शामिल है –
(A) कच्चे माल की कीमत
(B) श्रमिकों की मजदूरी
(C) उधार पूँजी पर ब्याज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 6.
उत्पादनकर्ता के स्वयं के साधनों का मूल्य –
(A) स्पष्ट लागतें कहलाती हैं
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है
(C) उत्पादनकर्ता का सामान्य लाभ होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) मौद्रिक लागत = स्पष्ट
(B) असामान्य लाभ = मौद्रिक लागत – स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागत
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
(D) स्पष्ट लागत = मौद्रिक लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
उत्तर:
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ

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प्रश्न 8.
अवसर लागत को निम्नलिखित नाम से भी सम्बोधित किया जाता है –
(A) वैकल्पिक लागत
(B) हसतान्तरण आय
(C) त्याग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
वह लागत अथवा आय, जो किसी साधन को उसके परिवर्तन कार्य में बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, उसे –
(A) स्पष्ट लागत कहते हैं
(B) अस्पष्ट लागत कहते हैं
(C) अवसर लागत कहते हैं
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अवसर लागत कहते हैं

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प्रश्न 10.
किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म को जितनी लागत सहन करनी पड़ती है, उसे फर्म की –
(A) औसत लागत कहते हैं
(B) कुल लागत कहते हैं
(C) सीमान्त लागत कहते हैं
(D) अवसर लागत कहते हैं
उत्तर:
(B) कुल लागत कहते हैं

प्रश्न 11.
कुल लागत –
(A) सीमान्त लागत का योग होती है
(B) औसत लागत को वस्तु की मात्रा से गुणा करने पर ज्ञात की जा सकती है
(C) से तात्पर्य किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म द्वारा किया गया वयय है
(D) उपर्युक्त कोई भी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त कोई भी

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प्रश्न 12.
जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है
(D) समान रहती है
उत्तर:
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है

प्रश्न 13.
जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो –
(A) औसत लागत भी बढ़ती है
(B) कुल लागत बढ़ती है
(C) औसत लागत सीमान्त लागत से कम रहती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 14.
उत्पादन शून्य होने पर अल्पकाल में स्थिर लागत
(A) शून्य हो जाती है
(B) धनात्मक रहती है
(C) ऋणात्मक हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) धनात्मक रहती है

प्रश्न 15.
स्थिर लागतों का उत्पादन की मात्रा से –
(A) सम्बन्ध नहीं होता
(B) कोई सम्बन्ध नहीं होता
(C) सम्बन्ध केवल दीर्घकाल में होता है
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है
उत्तर:
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है

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प्रश्न 16.
वस्तु के उत्पादन की मात्रा में किसी अथवा वृद्धि होने पर कुल स्थिर लागत –
(A) समान रहती है
(B) क्रमशः कम या अधिक हो जाती है
(C) क्रमशः अधिक या कम हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहती है

प्रश्न 17.
परिवर्तनशील लागतें उत्पादन की मात्रा के साथ –
(A) कम या अधिक हो सकती हैं
(B) परिवर्तित नहीं होती
(C) प्रारंभ में समान रहती हैं तथा फिर कम होती जाती हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कम या अधिक हो सकती हैं

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से किस लागत वक्र का आकार यू की भाँति होता है?
(A) औसत लागत
(B) औसत परिवर्तनशील लागत
(C) सीमान्त लागत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
उत्पादन लागतें हैं –
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक
(B) वस्तु की बिक्री कीमत
(C) उत्पादनकर्ता का व्यय
(D) मशीनों का लागत
उत्तर:
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक

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प्रश्न 20.
स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागते अंग हैं –
(A) मौद्रिक लागत का
(B) वास्तविक लागत का
(C) अवसर लागत का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(A) मौद्रिक लागत का

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ –

1. क्या उत्पादित किया जाए एवं कितनी मात्रा में:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था को खाद्य सामग्री, आवास अथवा विलासिता पूर्ण वस्तुओं के उत्पादन के लिए चयन करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक अर्थव्यवस्था को कृषि व उद्योग उत्पादों के बीच चयन करना पड़ता है। कि किनका उत्पादन अधिक व किनका उत्पादन कम मात्रा में किया जाए। अन्य शब्दों में उपभोक्ता वस्तुओं व पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के बारे में चयन करना पड़ता है।

2. इन वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए:
वस्तुओं के उत्पादन की दो प्रकार की तकनीक (श्रम प्रधान एवं पूंजी प्रधान) होती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था श्रम प्रधान अथवा पूंजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन कर सकती है। अर्थव्यवस्था को यह चयन करना पड़ता है कि उत्पादन के लिए इन तकनीकों का किस अनुपात में प्रयोग किया जाए।

3. किसके लिए वस्तुओं का उत्पादन क्या जाए:
इस समस्या का संबंध उत्पादन को अर्थव्यवस्था में विभिन्न व्यक्तियों में किस प्रकार आबंटित किया जाए, किसको उत्पादन का अधिक व किसको उत्पादन का कम भाग बांटा जाए। प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ, रोटी, कपड़ा व मकान सभी को आसानी व मुक्त रूप से उपलब्ध हो या नहीं यह समस्या अर्थव्यवस्था को हल करनी पड़ती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निश्चित संसाधनों एवं तकनीकी स्टाक के ज्ञान से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की विभिन्न संभावनाओं के संयोजन को उत्पादन संभावना कहते हैं।

प्रश्न 3.
सीमांत उत्पादन संभावना क्या है?
उत्तर:
सीमांत उत्पादन संभावना वक्र निश्चित संसाधनों व तकनीकी ज्ञान के पूर्ण उपयोग से दो वस्तुओं के उत्पादन की विभिन्न मात्राओं को रेखाचित्र की सहायता से दर्शाता है। यह वक्र एक वस्तु की किसी निश्चित मात्रा के बदले दूसरी वस्तु की अधिकतम संभावित मात्रा तथा दूसरी वस्तु की मात्रा को दर्शाता है। उत्पादन संभावना वक्र पर स्थित प्रत्येक बिन्दु संसाधनों के पूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं। उत्पादन संभावना के अन्दर स्थित बिन्दु संसाधनों के अपूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं इस स्थिति में कुछ संसाधन या तो बेकार पड़े रहते हैं या उनका पूर्ण उपयोग नहीं किया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय part - 2 img 1

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु का दो मुख्य शाखाओं (व्यष्टि व समष्टि) के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बाजार में व्यक्गित आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। इस शाखा में व्यक्तियों के संव्यवहारों के आधार पर वस्तु की कीमत व मात्रा का निर्धारण के निर्धारण सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक इकाइयों के संव्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। जैसे- सामूहिक माँग, सामूहिक पूर्ति, रोजगार आदि। अर्थशास्त्र की इस शाखा में इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है। अर्थव्यवस्था में आय। उत्पाद का स्तर क्या है? कुल उत्पाद का आंकलन किस प्रकार किया जाता है? यह शाखा पूरी अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करती है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 5.
केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाजार अर्थव्यवस्था के भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है। उपभोग, उत्पादन व निवेश के महत्त्वपूर्ण निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों के उचित बंटवारे का प्रयास किया जाता है। केन्द्रीय सत्ता अन्तिम वस्तुओं के न्यायोचित आबंटन के लिए हस्तक्षेप करती है। एक बाजार अर्थव्यवस्था में सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक निर्णय बाजार शक्तियों के आधार पर तय होते हैं। इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक एजेन्ट मुक्त रूप से उत्पादों का विनियम करते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 6.
सकारात्मक आर्थक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से है जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न तंत्र किस प्रकार से कार्य करते हैं। यह विश्लेषण विभिन्न आर्थिक तंत्र के क्रियाकलापों का मूल्यांकन करता है।

प्रश्न 7.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि कोई तंत्र वांछनीय है अथवा नहीं। इसका संबंध इन प्रश्नों से होता है – क्या वांछनीय है? क्या वांछनीय नहीं है? क्या होना चाहिए? क्या नहीं होना चाहिए?

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र:

  1. यह शाखा व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करती है।
  2. कीमत सिद्धांत एवं संसाधन के आबंटन की समस्या का अध्ययन इस शाखा में किया जाता है।
  3. माँग व आपूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन आदि का विश्लेषण किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र:

  1. समष्टि में सामूहिक आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जता है।
  2. इस शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है।
  3. सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें आय एवं रोजगार के