Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

Bihar Board Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बताइए कि आपात काल के बारे में निम्नलिखित कथन सही है या गलत –
(क) आपातकाल की घोषणा 1975 में इंदिरा गाँधी ने की।
(ख) आपातकाल में सभी मौलिक अधिकार निष्क्रिय हो गये।
(ग) बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति के मद्देनजर आपातकाल की घोषणा की गई थी।
(घ) आपात काल के दौरान के अनेक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
(ङ) सी.पी.आई. ने आपातकाल की घोषणा का समर्थन किया।
उत्तर:
(क) – सही
(ख) – सही
(ग) – गलत
(घ) – सही
(ङ) – सही

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा अपातकाल की घोषणा के संदर्भ से मेल नहीं खाता है।
(क) सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान
(ख) 1974 की रेल हड़ताल
(ग) इलाहाबाद उच्चन्यायलय का फैसला
(घ) शाह कमीशन की रिपोर्ट का निष्कर्ष
उत्तर:
(ख) 1974 की रेल हड़ताल

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में मेल बैठाएं:

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 6 कांग्रेसी प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Part - 2 img 1
उत्तर:
(1) – (ख)
(2) – (क)
(3) – (ग)
(4) – (घ)

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प्रश्न 4.
किन कारणों से 1980 में मध्यावधि चुनाव करवाने पड़े?
उत्तर:
आपतकाल की स्थिति 1977 में समाप्त हुई व 1971 में संसदीय चुनाव किये गये। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ प्रमुख विरोधी दलों ने मिलकर जनता पार्टी का गठन किया जिसे बाबू जयप्रकाश नारायण व आचार्य कृपलानी का आशीर्वाद प्राप्त था। इनमें प्रमुख दल सोसलिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, कांग्रेस ओल्ड व भारतीय लोक दल थे। बाद में जगजीवन राम की कांग्रेस फार डोमोक्रेसी भी जनता पार्टी में शामिल हो गयी। ये सभी दल आपातकालीन समय में प्रमुख विरोधी दल थे तथा इनके प्रमुख नेता जेल में बन्द थे।

चुनाव में जनता पार्टी को भारी सफलता मिली परन्तु 351 सीटों के बावजूद यह सरकार केवल 18 महीने ही चल पायी क्योंकि प्रधानमंत्री के पद पर ही झगड़ा हो गया जिसके कारण श्री मोजराजी भाई देसाई को प्रधानमंत्री बनाने के साथ-साथ श्री जगजीवन राम को और चौधरी चरण सिंह को भी उपप्रधानमंत्री बनाना पड़ा।

जनता पार्टी में इतने अधिक आन्तरिक मतभेद थे कि एक पार्टी के रूप में ये कार्य नहीं कर सके व 18 महीने बाद सरकार गिर गई व पार्टी का कई हिस्सों में विभाजन हो गया। जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस को बाहरी समर्थन से केन्द्र में सरकार बनाई परन्तु चार महीने बाद कांग्रेस के द्वारा समर्थन वापस लेने के कारण चौधरी चरण सिंह की सरकार भी गिर गई। चौधरी चरण सिंह ने लोकसभा भंग करके नये चुनाव कराने की सिफारिश की जिसको तत्कालीन राष्ट्रपति श्री एन. संजीवा रेड्डी ने स्वीकार कर लिया। इस प्रकार से 1980 में चुनाव आवश्यक हुए।

प्रश्न 5.
जनता पार्टी ने 1977 में शाह आयोग को नियुक्त किया था। इस आयोग की नियुक्ति क्यों की गई थी और इसके क्या निष्कर्ष थे?
उत्तर:
1977 के मई में जनता पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री. जे.सी. शाह की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन 25 जून 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा सत्ता के दुरूपयोग, अत्याचार के विभिन्न आरोपों में विभिन्न पहलुओं की जाँच के लिए किया गया था। आयोग ने विभिन्न प्रकार के साक्ष्यों की जाँच तथा गवाहों के बयान दर्ज किये आयोग ने अपनी रिपोर्ट में विभिन्न तथ्यों के आधार पर अपने निष्कर्ष दिये जिन पर सरकार ने विचार विमर्श कर स्वीकार की।

शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि इस अवधि में बहुत सारी ज्यादतियाँ हुई। इसके अतिरिक्त भारतीय संविधान के साथ जरूरत से ज्यादा छेड़छाड़ की गयी। सरकारी अधिकारियों ने अपने पदों व अधिकार का दुरूपयोग किया। लोगों की स्वतन्त्रता व अधिकारों का हनन किया गया। प्रेस पर अनावश्यक पाबन्दियाँ लगाई गयी। शाह आयोग का निष्कर्ष था कि निवारक नजरबन्दी के कानून के तहत लगभग एक लाख ग्यारह हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। शाह आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि दिल्ली बिजली आपूर्ति निगम के महाप्रबन्धक को दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के दफ्तर से 21 जून 1975 की रात दो बजे मौखिक आदेश मिला कि सभी अखबारों की बिजली आपूर्ति काट दी जाये।

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प्रश्न 6.
1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
उत्तर:
विभिन्न आर्थिक व राजनीतिक कारणों से गैर कांग्रेसी राजनीतिक दलों ने देश के विभिन्न भागों में आन्दोलन प्रारम्भ किये हुए थे। जगह-जगह हड़ताल बाँध व धरनों का आयोजन किया जा रहा था। बिहार में विद्यार्थी भी इस आन्दोलन में कूद पड़ें थे। प्रशासन एक प्रकार से ठप्प हो गया था। क्षेत्रीय आन्दोलनों का प्रभाव राष्ट्रीय स्तर पर पड़ रहा था। यद्यपि 1971 में भारी सफलता प्राप्त करके चुनावों में श्रीमती इंदिरा गाँधी विजयी हुई थी। 1974 में तो देश में एक प्रकार से अराजकता की स्थिति हो गयी थी। कई राज्यों में नक्सलवादी गतिविधियाँ फैल रही थी। 1975 में जय प्रकाश नारायण ने जनता के संसद मार्च का नेतृत्व किया।

सरकार ने विरोधी दलों के आन्दोलन को दबाने के लिए 25 जून 1975 के दिन आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी जिसके निम्न कारण बताए –

  1. आपातकालीन स्थिति को घोषणा संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत की गयी जिसका अर्थ है कि आन्तरिक गड़बड़ी के कारण आपातकालीन स्थिति की घोषणा की गई।
  2. सरकार का कहना था कि चुनी हुई सरकारों को काम करने नहीं दिया जा रहा था।
  3. जगह-जगह आन्दोलन व धरनों का आयोजन हो रहा था।
  4. अनेक क्षेत्रों में आन्दोलनों के कारण हिंसक घटनाएं हो रही थी।
  5. सेना व पुलिस को बगावत व विद्रोह के लिए उकसाया जा रहा था।
  6. साम्प्रदायिक उन्माद को हवा दी जा रही थी।
  7. राष्ट्रीय एकता व अखंडता को खतरा हो रहा था।
  8. राजनैतिक अस्थिरता उत्पन्न करने का प्रयास किया जा रहा था।
  9. कानून के शासन को खतरा उत्पन्न हो रहा था।
  10. अर्थव्यवस्था का संकट और गहरा रहा था।

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प्रश्न 7.
1977 के चुनावों के बाद पहली दफा केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी। ऐसा किन कारणों से सम्भव हुआ?
उत्तर:
1977 के चुनाव में पहली बार केन्द्र में कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी व पहली बार ही विपक्षी दलों की सरकार केन्द्र में बन पायी हालांकि 1967 के चुनाव में भी गैर-कांग्रेसवाद के नारे पर विपक्षी दलों ने इक्ट्ठे होकर चुनाव लड़े थे परन्तु केन्द्र में तो कांग्रेस सरकार बना पायी थी हालांकि 1967 के चुनावों में कांग्रेस को 9 राज्यों में सरकार गवानी पड़ी थी। इस बार अर्थात् 1977 के चुनावों में अनेक कारणों से कांग्रेस विरोधी धारणा ज्यादा तेज थी जिसके कारण उत्तर भारत में तो कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया था। यहाँ तक की श्रीमती इंदिरा गाँधी भी रायबरेली से चुनाव हार गयी थी। 1977 के चुनाव में कांग्रेस के प्रमुख कारण निम्न थे –

  1. देश का आर्थिक संकट
  2. आवश्यक चीजों की कीमतों में वृद्धि
  3. सभी विरोधी दलों का एक जुट हो जाना
  4. जनता पार्टी का निर्माण
  5. जय प्रकाश नारायण का विरोधी दलों को आशीर्वाद
  6. आपातकाल की ज्यादतियाँ
  7. न्यायपालिका व कार्यपालिका का टकराव
  8. संविधान को पूरा बदलने का प्रयास
  9. प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला
  10. जनमत का विरोध
  11. नागरिकों की स्वतन्त्रता पर हमला
  12. अधिकारियों द्वारा ज्यादतियाँ
  13. नागरिकों की धार्मिक भावनाओं पर हमला
  14. मौलिक अधिकारों का हनन
  15. भारत के संघीय स्वरूप में परिवर्तन

प्रश्न 8.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?

  1. नागरिकों के अधिकारों की दशा तथा नागरिकों पर इसका असर।
  2. कार्यपालिका और न्यायपालिका के सम्बन्ध।
  3. जनसंचार माध्यमों के कामकाज।
  4. पुलिस और नौकरशाही की कार्यवाहियाँ।

उत्तर:
1. नागरिकों के अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर-आपातकाल की स्थिति में राजव्यवस्था के अनेक पक्षों पर प्रभाव पड़ा। 25 जून 1975 को देश में जब संविध न के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल स्थिति की घोषणा की गयी तो इसका मौलिक अधि कारों पर असर इस प्रकार से पड़ा कि सभी मौलिक अधिकार को स्थगित कर दिया। जिसके फलस्वरूप उनकी नागरिक के रूप में अनेक सुविधाएँ, अधिकार व स्वतन्त्राएँ समाप्त हो गयी।

नागरिकों के विचारों की अभिव्यक्ति, घूमने फिरने व सभाएँ आयोजित करने पर रोक लगा दी गयी। इस प्रकार से आपातकाल में नागरिकों का जीवन अत्यन्त घुटन का जीवन हो गया सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जिसके अन्दर किसी व्यक्ति को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जाता था कि उसने कोई अपराध किया है बल्कि इसलिए कि वह इस आशंका पर कि वह अपराध कर सकता है। आपातकाल के समय में नागरिकों पर अनेक ज्यादतियाँ की गई।

2. कार्यपालिका और न्यायपालिका के सम्बन्ध:
आपातकाल स्थिति की घोषणा का कार्यपालिका व न्यायपालिका के सम्बन्धों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा सरकार ने न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार में कमी कर दी। उच्च न्यायलयों को अनेक संघीय विषय पर मुदकमें सुनने का अधिकार न रहा व इसी प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय से भी प्रान्तीय विषयों से संबंधित मुकदमें सुनने का अधिकार ले लिया।

कई प्रमुख पदों के चुनावों में सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया। अनेक विषयों पर सर्वोच्च न्यायालय की वह उच्च न्यायालय की न्यापुनः शक्ति में कमी कर दी। 42वें संविधान संशोधन के द्वारा न्यायपालिका की शक्तियों में काफी कमियाँ की गई। इंदिरा गाँधी के खिलाफ उच्च न्यायालय इलाहाबाद के निर्णय की पृष्ठ भूमि में भी संविधान में कई संशोधन करके न्यायपालिका की शक्तियों को प्रभावित किया।

3. जनसंचार के माध्यमों के काम काज:
आपातकाल की स्थिति की घोषणा का सबसे अधिक बुरा प्रभाव प्रेस व मीडिया पर पड़ा। आपातकालीन प्रावधानों के अन्तर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस की आजादी पर रोक लगा दी। समाचार पत्रों को कहा गया कि वे कुछ भी छापने से पहले छापने की अनुमति ले। इस प्रकार से प्रेस सेंसरशिप लागू कर दी।

अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक संस्थाओं जैसे आर.एस.एस. व जमाते इस्लाम पर पाबन्दियाँ लगा दी। अनेक प्रमुख अखबारों इण्डियन एक्सप्रेस और स्टेट्समेन जैसे अखबारों ने इस प्रेस सेंसरशिप का विरोध किया। जो अखबार सरकार के आदेशों का पालन नहीं करते थे उनकी बिजली काट दी जाती थी। कई अखबारों को इन सब कारणों से बन्द करना पड़ा। इसके विरोध में अनेक बुद्धजीवियों ने अपने पदक बापिस कर दिये।

4. पुलिस व नौकरशाही की कार्यवाहियाँ:
आपातकाल के समय में पुलिस व नौकरशाही की भूमिका की सबसे अधिक आलोचना हुई है क्योंकि इन अधिकारियों ने अपनी शक्तियों का व अपनी स्थितियों का दुरूपयोग किया। राजनीतिज्ञों को खुश करने के लए इन्होंने सरकार की गलत नीतियों को भी पूरे जोश के साथ लागू किया।

उदाहरण के तौर पर परिवार नियोजन की नीति व कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जबरदस्ती की गई व लोगों की धार्मिक भावनाओं का मजाक उड़ाया गया। पुलिस व नौकरशाही के द्वारा सत्ता का खुला दुरूपयोग किया गया। इनके डर से दिल्ली के गरीब इलाकों के निवासियों को बड़े पैमाने पर विस्थापित होना पड़ा। शहरों के सुन्दरीकरण के नाम पर लोगों के घरों को उजाड़ दिया गया।

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प्रश्न 9.
भारत की दलीय प्रणाली पर आपातकाल का किस तरह असर हुआ? अपने उत्तर की पुष्टि उदाहरणों से करें।
उत्तर:
भारत में बहुदलीय प्रणाली है अर्थात् भारतीय राजनीति में व चुनावी प्रक्रिया में अनेक दल सक्रिय रहते हैं ये दल विभिन्न आधारों पर बनते रहते हैं। इनमें कुछ क्षेत्रीय दल है व कुछ राष्ट्रीय दल है। 1967 तक के चुनावों में सभी दल अलग-अलग चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ते रहे हैं जिसका लाभ सीधा कांग्रेस को मिलता रहा। 1967 तक के पहले सभी चुनावों का प्रभुत्व रहा। 1967 के चुनावों में पहली बार कछ विरोधी दलों ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा परन्तु कांग्रेस के केन्द्र में प्रभुत्व को नहीं तोड़ पायी परन्तु कांग्रेस के जनाधार में कमी अवश्य आ गयी।

राज्यों में कांग्रेस को सरकारें गवानी भी पड़ी। इसके बाद 1971 के मध्याविधि चुनाव में सभी विरोधी दलों ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ विशाल गठबन्धन बनाया परन्तु इन चुनावों में फिर भी कांग्रेस को ही विशाल बहुमत मिला व कांग्रेस इस चुनाव के बाद इंदिरा गाँधी और अधिक शक्तिशाली प्रधानमंत्री के रूप में उभरकर आयी और इस प्रकार से 1971 के चुनाव तक भी कांग्रेस का ही प्रभुत्व रहा। साम्यवादी दल भी अक्सर कांग्रेस के साथ ही रहे।

1975 में देश में आपातकालीन स्थिति लगने के बाद प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया गया व 18 महीने तक सभी राजनीतिक गतिविधियों पर पाबन्दियाँ लगा दी गई। 18 महीने के अन्दर सभी गैर कांग्रेसी नेताओं में कांग्रेस विरोधी व इंदिरा गाँधी विरोधी भावना बढ़ गयी। जैसे ही 1977 में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने चुनावों की घोषणा की, सभी विरोधी दलों के नेताओं ने अपने मत-भेद, विचारधारा व कार्यक्रम भुलाकर केवल एक ही कार्यक्रम बनाया कि इस चुनाव में कांग्रेस को हटाया जाये। अतः सभी दलों ने अपने दलों का एक पार्टी में विलय कर जनता पार्टी के नाम से एक दल का निर्माण किया।

इसमें प्रमुख रूप से समाजवादी पार्टी, कांग्रेस ओल्ड, भारतीय लोक दल व भारतीय जन संघ शामिल हुए बाद में बाबू जगजीवन राम के नेतृत्व वाली कांग्रेस फार डेमोक्रेसी पार्टी भी जनता पार्टी में शामिल हो गई। इस प्रकार मुख्य रूप से दो प्रकार के दल इस चुनाव में रहे एक कांग्रेस व साम्यवादी दलों का गठबन्धन व दूसरा जनता पार्टी।

इस प्रकार से आपातकाल स्थिति के अनुभव से भारत में पहली बार दो दलीय प्रणाली के विकास का आभास हुआ। जनता पार्टी एक प्रकार सभी हितों, विचारधाराओं व कार्यक्रमों का प्रतिनिधित्व कर रही थी। चुनावों में जनता पार्टी को भारी सफलता मिली व इसकी सरकार भी बनी परन्तु मात्र 18 महीने में यह जनता पार्टी की सरकार जनता पार्टी के विभाजन के कारण गिर गई व भारत में फिर बहुदलीय प्रणाली का दौर आ गया।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दें।
1977 के दौरान भारतीय लोकतन्त्र, दो दलीय व्यवस्था के जितना नजदीक आ गया था उतना पहले कभी नहीं आया। बहरहाल अगले कुछ सालों में मामला पूरी तरह बदल गया। हारने के तुरन्त बाद कांग्रेस दो टूकड़ों में बंट गई जनता पार्टी में भी बड़ी अफरा-तफरी मची। डेविड वटलर, अशोक लाहिडी और प्रणव राय –

(क) किन वजहों से 1977 में भारत की राजनीति दो दलीय प्रणाली के समान जान पड़ रही थी?
(ख) 1977 में दो से ज्यादा पार्टियाँ अस्तित्व में थी। इसके बावजूद लेखकगण इस दौर को दो दलीय प्रणाली के नजदीक क्यों बात रहे हैं?
(ग) कांग्रेस और जनता पार्टी में किन कारणों से टूट पैदा हुई?

उत्तर:
(क) 1977 के चुनावों में भारतीय दलीय प्रणाली के स्वरूप में निश्चित रूप से कुछ परिवर्तन नजर आ रहे थे। पहली बार चुनाव मुख्य रूप से दो दलों के बीच हुआ। यद्यपि 1971 के चुनाव में विरोधी दलों ने एक विशाल गठबन्धन बनाकर चुनाव लड़ा था परन्तु 1977 का चुनाव स्पष्ट राय से दो राजनीतिक दलों के बीच लड़ा गया एक कांग्रेस व दूसरी जनता पार्टी जिसमें सभी प्रमुख विरोधी दलों का विलय हो गया था। इस प्रकार 1977 में भारतीय दलीय प्रणाली दो दलीय जान पड़ रही थी।

(ख) निश्चित रूप से 1977 के चुनाव में दो पार्टियाँ अस्तित्व में थी परन्तु इस दौर को इस प्रकार की दो दलीय व्यवस्था नहीं कहा जा सकता जैसी कि ब्रिटेन व अमेरिका में प्रचलित है अतः लेखक ठीक ही कहते हैं कि 1977 में भारत में दलीय प्रणाली दो दलीय प्रणाली के नजदीक अवश्य थी परन्तु स्पष्ट दो दलीय प्रणाली नहीं थी क्योंकि जनता पार्टी एक राजनीतिक दल नहीं था बल्कि कुछ राजनीतिक दलों का मिश्रण था। इसको साधारण भाषा में खिचड़ी कहा जाता था जो 1979 में जनता पार्टी के विभाजन के समय सच भी सिद्ध हो गयी।

(ग) जनता पार्टी कांग्रेस में विभाजन अलग-अलग समय पर अवश्य हुआ परन्तु दोनों में विभाजन के कारण समान ही नजर आते हैं। कांग्रेस में विभाजन 1978 में हुआ जब कांग्रेस के पास सत्ता नहीं थी व जनता पार्टी में विभाजन 1979 में हुआ जब जनता पार्टी सत्ता में तो थी परन्तु विभिन्न पदों के लिए आपसी लड़ाई जारी थी। वास्तव में जनता पार्टी के संगठित राजनीतिक दल के रूप में स्थापित ना हो सकी। आपसी अन्तर विरोध के कारण जनता पार्टी में विभाजन हुआ।

Bihar Board Class 12 Political Science लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1979 के बाद आर्थिक संकट के प्रमुख कारण क्या थे जिनसे आन्दोलन प्रारम्भ हुए।
उत्तर:
भारत आजादी के बाद से ही आर्थिक संकट का शिकार रहा क्योंकि भारत को अंग्रेजों से एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था मिली। यह आर्थिक संकट सत्तर के दशक में और अधिक गहरा हो गया जिसके तत्कालीन कारण निम्न थे:

  1. 1971 में हुई बांग्लादेश युद्ध का आर्थिक भार।
  2. उन करोड़ों बांग्लादेशियों के आर्थिक बोझ का जो भारत में शरणार्थियों के रूप में भारत की सीमा पार करके भारत में रह रहे थे।
  3. 1971 के युद्ध में उन युद्ध बन्दियों का आर्थिक बोझ जिन्होंने लाखों की संख्या में भारतीय फौजों के सामने आत्म समर्पण कर दिया था।
  4. भारत के खिलाफ 1971 के युद्ध के बाद अमेरिका के द्वारा लगाये गये आर्थिक बन्धनों का प्रभाव।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में वृद्धि।
  6. मानसून की विफलता के कारण कृषि पैदावाद में भारी कमी।

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प्रश्न 2.
नक्सलवादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी बंगाल, बिहार, आन्ध्र प्रदेश में चल रहा नक्सलवादी आन्दोलन उन लोगों का समूह है जो क्रांतिकारी तरीके से यहाँ तक कि हिंसात्मक तरीके से भी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में तुरन्त परिवर्तन व सम्पूर्ण परिवर्तन करना चाहते हैं ये लोग धनी भूमि-स्वामियों से जमीन छीनकर भूमिहीन लोगों में बांटते हैं। इन राज्यों के ये हिंसक आन्दोलन सरकारों के प्रयासों से भी समाप्त नहीं हुए अब ये आन्दोलन झारखंड जैसे राज्यों में भी सक्रिय है फिलहाल राज्यों के 75 जिले नक्सलवादी आन्दोलन से प्रभावित है नक्सलवादी मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा से प्रभावित है।

प्रश्न 3.
केशवानन्द भारती के 1973 के विषय में बताइये।
उत्तर:
आजादी के बाद से ही यह विवाद का विषय बन गया था कि क्या संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है या नहीं। 1967 तक के निर्माण में न्यायालयों ने इसका उत्तर हाँ में दिया परन्तु 1967 में गोलकनाथ केस सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों को संशोधित नहीं कर सकती जिसके प्रभाव को समाप्त करने के लिए संसद ने संविधान में संशोधन किये जिनकी 1973 में केशवानन्द भारती केस में चुनौती दी इसमें निर्णय हुआ कि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती हो भले ही मौलिक अधिकार हो परन्तु संविधान को मूल रचना में परिवर्तन नहीं कर सकती।

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प्रश्न 4.
1975 में आपातकाल स्थिति की घोषणा के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
सत्तर के दशक में देश आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था। 1971 के चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती थी परन्तु फिर भी सारे देश में राजनीतिक आन्दोलन चल रहे थे। 25 जून 1975 को श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपात स्थिति की घोषणा की जिसके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. बिहार का विद्यार्थी आन्दोलन।
  2. गुजरात आन्दोलन जिसमें चुनी हुई सरकार को कार्य करने नहीं दिया जा रहा था।
  3. राष्ट्र की एकता व अखंडता को खतरा।
  4. आन्तरिक गड़बड़ी जिससे प्रशासन ठप्प हो गया था।
  5. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय के संदर्भ में श्रीमती इंदिरा गाँधी से इस्तीफे की माँग।

प्रश्न 5.
श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपात स्थिति की घोषणा किस प्रकार से की।
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 25 जून 1975 को देश में आपात स्थिति की घोषणा करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति फकरुद्दीन अली अहमद को मौखिक सलाह दी जिसको मानकर उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आन्तरिक गड़बड़ी के कारण आपातकाल की स्थिति की घोषणा कर दी। श्रीमती गाँधी ने इस निर्णय के लिए मंत्रिमंडल की भी कोई औपचारिक बैठक नहीं की। मंत्रिमंडल को भी इसकी सूचना 26 जून की सुबह को दी गई। देश में इस बार आपातकाल की स्थिति की घोषणा प्रथम बार की गई थी। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश को यह बताने का प्रयास किया कि आपातकाल की स्थिति की घोषणा के लिए विरोधी दल जिम्मेवार हैं।

प्रश्न 6.
आपातकाल की स्थिति की घोषणा के तुरन्त परिणाम क्या थे।
उत्तर:
आपातकालीन स्थिति की घोषणा के तुरन्त परिणाम निम्न थे:

  1. नागरिकों के मौलिक अधिकार स्थगित हो जाते हैं।
  2. देश का संघात्मक स्वरूप समाप्त हो जाता है।
  3. देश का प्रशासनिक स्वरूप एकात्मक हो जाता है।
  4. सभी प्रकार के आन्दोलनों पर पाबन्दियाँ लगा दी।
  5. निवारक नजरबन्दी कानून का लागू होना।
  6. सभी विषयों पर संसद को कानून बनाने का अधिकार
  7. राष्ट्रपति के हाथों में पूरे देश का शासन आ जाता है।

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प्रश्न 7.
42 वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी।
उत्तर:
42 वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएँ अथवा प्रावधान निम्न थे –

  1. संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद धर्मनिर्पेक्ष शब्द जोड़े गये।
  2. न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार में कटौती की गई।
  3. संसद व विधान सभा के कार्य काल में वृद्धि की गई।
  4. राज्य की नीति के निर्धारित तत्वों को मौलिक अधिकारों से अधिक वरीयता दी गई।
  5. राष्ट्रपति की स्थिति भी कमजोर की गई क्योंकि उसके लिए मंत्रिमंडल की सलाह को मानना आवश्यक किया गया।
  6. संसद की शक्तियों में वृद्धि की गई।
  7. भारतीय संघीय स्वरूप में भी परिवर्तन किया। जिसमें सूचियों के विषयों को बदला गया।

प्रश्न 8.
आपात स्थिति की घोषणा के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आपात स्थिति की घोषणा के पक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं –

  1. पूरे देश में आर्थिक व राजनीतिक अस्थिरता का दौर था।
  2. पुलिस व सेना को उकसाया जा रहा था कि वे बगावत कर दें।
  3. चुनी हुई सरकारों को हटाये जाने की मांग की जा रही थी।
  4. देश की एकता व अखंडता का खतरा उत्पन्न हो रहा था।
  5. प्रशासन व कानून व्यवस्था चरमरा गई थी।
  6. देश विरोधी व समाज विरोध व अन्य तोड़-फोड़ की गतिविधियाँ जारी थी।
  7. विदेशी ताकतों का हस्तक्षेप सम्भव था।

प्रश्न 9.
आपातकाल स्थिति की घोषणा के विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
आपातकाल स्थिति के विपक्ष में भी निम्न तर्क दिये जा सकते हैं –

  1. बांध व हड़ताले शान्ति पूर्ण थे व नागरिकों के राजनीतिक अधिकार भी हैं।
  2. आर्थिक संकट के लिए सरकार की नीतियाँ दोषी थी।
  3. कीमतें मंहगी हो रही थी।
  4. देश में प्रचलित हालातों को उच्च तरीकों से भी हल किया जा सकता था।
  5. आपातकाल की स्थिति को गलत तरीके से लगाया गया।
  6. इससे न्यायालय की गरिमा की अवहेलना की गई।

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प्रश्न 10.
तुर्कमान गेट घटना के बारे में समझाइये।
उत्तर:
आपातकालीन स्थिति के दौरान दिल्ली के गरीब इलाके के निवासियों को बड़े पैमाने पर विस्थापित होना पड़ा। इन गरीब विस्थापित लोगों को यमुना नदी के जिस निर्जन इलाके में इन लोगों को बसाया गया। इसी उद्देश्य की एक घटना तुर्कमान गेट इलाके की एक बस्ती की है। आपातकाल स्थिति की यह बहुत ही चर्चित घटना है।

इस इलाके की झुग्गी झोपड़ियों को उजाड़ दिया गया व इलाके के सैंकड़ों लोगों की जबरन ही नसबन्दी कर दी गई। यह कार्य अधिकारियों ने अपने आंकड़े पूरे करने के लिए किये। नसबन्दी के केस के लिए कोटा निर्धारित कर दिया जिसको पूरा करने के लिए बीच के लोगों ने गरीब लोगों को छोटे-छोटे लालच देकर नसबन्दी करा दी। इस तरह कुछ लोग अगर सरकार द्वारा प्रायोजित प्रयासों के शिकार हुए तो कुछ लोगों ने कानून जमीन हासिल करने के लालच में दूसरों को बलि का बकरा बनाया व ऐसा करके खुद को विस्थापित होने से बचाया।

प्रश्न 11.
1975 की आपातकाल स्थिति के अनुभव से हमें क्या सबक मिला?
उत्तर:
आपातकाल की स्थिति की घोषणा संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत की गयी। सबसे पहले बात यह है कि जब तक आपातकालीन स्थिति के लिए प्रयाप्त कारण ना हो आपातकाल की स्थिति की घोषणा नहीं होनी चाहिए। दुसरा सबक इस बात का कि आपातकाल स्थिति की घोषणा करने का तरीका सही होना चाहिए।

श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल स्थिति की घोषणा बिना मंत्रिमंडल की सलाह के राष्ट्रपति को मौखिक रूप से आदेश जारी करने के लिए कहा जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति ने स्वीकार कर लिया इस प्रकार का तरीका गलत था। इसमें भी सुधार हुआ। आपाताकाल में नागरिकों के अधिकारों का हनन हुआ व एक प्रकार से अफसर ज्ञाही का बोलबाला रहा। देश में एक प्रकार का अधिनायकवाद रहा इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आपातकालीन स्थिति का अनुभव गलत था।

प्रश्न 12.
जनता पार्टी का गठन किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
जनता पार्टी का गठन 1977 में श्री जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से उस समय हुआ जब सभी विरोधी दलों के प्रमुख नेता जेल में थे। इन नेताओं ने 1977 में होने वाले चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ एक जुट होकर लड़ने का फैसला किया। इसमें प्रमुख दल थे कांग्रेस (ओल्ड) समाजवादी पार्टी, भारतीय लोकदल व भारतीय जनसंघा कांग्रेस फार डेमोक्रेसी भी बाद में जनता पार्टी में शामिल हो गयी।

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प्रश्न 13.
जनता पार्टी की सरकार 1977 में किस प्रकार से बनी।
उत्तर:
1977 के चुनाव में जनता पार्टी को इसके सहयोगियों को भारी सफलता मिली। श्रीमती इंदिरा गाँधी की कांग्रेस का उत्तरी भारत व मध्य भारत में पूरी तरह से सफाया हो गया। यहाँ तक कि खुद श्रीमती इंदिरा गाँधी भी रायबरेली से चुनाव हार गयी। जनता पार्टी व इसकी सहयोगी दलों को लोकसभा की 330 सीटे मिली जिसमें से अकेले जनता पार्टी को 295 सीटें प्राप्त हुई इस प्रकर से राष्ट्रपति ने औपचारिक रूप से जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।

इस प्रकार से इन परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया था कि इस चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर थी यह आपातकाल स्थिति की घोषणा के खिलाफ एक जनता की प्रतिक्रिया थी। प्रधानमंत्री के पद पर जनता पार्टी के तीन प्रमुख नेताओं के विवाद ने खुशी के माहौल को निराशा में बदल दिया क्योंकि श्री मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह व बाबू जगजीवन राम ने प्रधानमंत्री के पद के लिए अपना-अपना दावा रखा। अन्तः में विचार विमर्श के बाद मोरारजी देसाई देश के प्रधान मंत्री बने व चौधरी चरण सिंह व जगजीवन राम देश के उपप्रधानमंत्री बने।

प्रश्न 14.
जनता पार्टी की सरकार गिरने के क्या प्रमुख कारण थे?
उत्तर:
जनता पार्टी की सरकार के गिरने के प्रमुख कारण निम्न थे –

  1. जनता पार्टी का टूटना। वास्तव में जनता पार्टी केवल कुछ खास परिस्थितियों का ही परिणाम था।
  2. जनता पार्टी के घटकों में ताल मेल नहीं था।
  3. कुछ प्रमुख नेताओं की पद लोलपता।
  4. प्रमुख घटकों में व्यक्ति पूजा।
  5. जनता पार्टी के घटकों में आपसी मतभेदों का जारी रहना।

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प्रश्न 15.
कांग्रेस व्यवस्था किस प्रकार से दोबारा सत्ता में आयी।
उत्तर:
जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई जो मात्र चार महीने ही चली। चौधरी चरण सिंह ने लोकसभा भंग कर दी। जिससे 1980 में लोकसभा में मध्यावधि चुनाव हुए। इन चुनावों में जनता पार्टी हो हार का मुंह देखना पड़ा व कांग्रेस को पुनः सफलता मिली। श्रीमती इंदिरा गाँधी फिर से देश की प्रधानमंत्री बनी। कांग्रेस की पुनः जीत का प्रमुख कारण जनता पार्टी का विभाजन रहा। कांग्रेस की इस प्रकार से पुर्नस्थापना हुई।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आपातकाल स्थिति की घोषणा के कौन से प्रमुख आर्थिक व राजनीतिक कारण थी?
उत्तर:
आपातकाल स्थिति की घोषणा के प्रमुख आर्थिक व राजनीतिक कारण निम्न थे –

आर्थिक कारण:

  1. 1971 की बांग्लादेश की लड़ाई का आर्थिक बोझ।
  2. बांग्लादेश के शरणार्थियों का आर्थिक बोझ।
  3. 1971 की लड़ाई में कैदियों पर लम्बे समय तक किये गये खर्च का आर्थिक बोझ।
  4. मानसून की विफलता।
  5. 1974 का खाद्यान्न संकट।
  6. आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि।

राजनीतिक कारण:

  1. गुजरात आन्दोलन।
  2. बिहार में विद्यार्थी आन्दोलन।
  3. चुनी हुई सरकारों के खिलाफ आन्दोलन।
  4. गुजरात में आन्दोलन का मोरारजी भाई देसाई का नेतृत्व।
  5. जय प्रकाश नारायण का नेतृत्व व उनके द्वारा संसद मार्च।
  6. देश के अनेक हिस्सों में कानून व व्यवस्था का खराब होना।
  7. देश की एकता व अखण्डता को खतरा।

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प्रश्न 2.
बिहार के आन्दोलन का कांग्रेस के खिलाफ चल रहे आन्दोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
यूँ तो कांग्रेस सरकार की सरकारों के खिलाफ पूरे देश में विरोध पनप रहा था परन्तु बिहार व गुजरात में आन्दोलन का रूप अधिक उग्र था। बिहार के आन्दोलन में विद्यार्थी भी शामिल हो गये थे व श्री जयप्रकाश नारायण इसका नेतृत्व कर रहे थे। इसी प्रकार से गुजरात में भी आन्दोलन बहुत सक्रिय था जिसका नेतृत्व मोरारजी देसाई कर रहे थे। श्री जयप्रकाश नारायण ने इस आन्दोलन को अहिंसात्मक तरीके से पूरे देश में चलाने की अपील की जिसका व्यापक प्रभाव पड़ा। इन आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य केन्द्र व प्रान्तों की कांग्रेस सरकारों को हटाना था। इस आन्दोलन में महंगाई व आर्थिक संकट को मुख्य मुद्दा बनाया। श्री जयप्रकाश नारायण ने इस आन्दोलन को सम्पूर्ण क्रान्ति का नाम दिया जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण व्यवस्था में परिवर्तन करना था।

प्रश्न 3.
आपातकाल स्थिति की घोषणा से पहले कार्यपालिका व न्यायपालिका में चल रहे टकराव पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
प्रारम्भ से ही कार्यपालिका व न्यायपालिका के बीच मतभेद रहे हैं। परन्तु संविधान संशोधन के प्रश्न पर सत्तर के दशक के बाद कार्यपालिका व न्यायपालिका में विवाद और अधिक गहराया था। संसद की मौलिक अधिकारों के संशोधन के अधिकार पर न्यायपालिका का 1967 तक यह दृष्टिकोण रहा है कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है।

परन्तु 1967 में प्रसिद्ध गोलकवाद केस में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती जिससे कार्यपालिका व न्यायपालिका में टकराव बढ़ गया। सरकार ने इस निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिए संविधान में कुछ संशोधन किये जिनको फिर 1973 में केशवानन्द केस में चुनौती दी गयी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस केस के निर्णय में निश्चित किया कि संसद संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है। भले ही मौलिक अधिकार ही क्यों ना हो परन्तु संसद संविधान की मूल रचना को नहीं बदल सकती। इस प्रकार से कार्यपालिका व न्यायपालिका में टकराव चलता रहा आपातकालीन स्थिति में 42वां संविधान संशोधन कर न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार में कमी दी गई।

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प्रश्न 4.
देश में आपातकालीन स्थिति की घोषणा के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
देश में आपातकाल स्थिति की घोषणा के निम्न कारण बताये गये –

  1. आन्तरिक गड़बड़ी
  2. पुलिस व सैनिकों में बगावत का डर
  3. देश की एकता अखण्डता को खतरा
  4. आर्थिक संकट
  5. राजनीतिक अस्थिरता का डर
  6. राज्यों में कानून व्यवस्था का खराब होना
  7. चुनी हुई सरकारों के खिलाफ आन्दोलन
  8. प्रशासन का ठप्प होना
  9. अराजकता की स्थिति
  10. हिंसा का माहौल

प्रश्न 5.
आपात स्थिति लागू होने के क्या परिणाम थे।
उत्तर:
आपातकाल की स्थिति के निम्न परिणाम सामने आये। देश में 25 जून 1975 को आपात स्थिति की घोषणा की गई थी –

  1. मौलिक अधिकारों का हनन होना (स्थगत होना)
  2. संविधान का संघीय स्वरूप समाप्त हो जाता है देश की सभी शक्तियाँ केन्द्र के पास आ जाती है। इस प्रकार से संविधान एकात्मक हो जाता है।
  3. केन्द्र सरकार की शक्तियाँ बढ़ जाती है।
  4. देश का प्रजातन्त्रीय स्वरूप प्रभावित होता है।
  5. प्रेस पर पाबन्दियाँ लगा दी गयी।
  6. सभी दलों के प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
  7. न्यायालय की शक्तियाँ कम कर दी गई।
  8. संसद का कार्य काल बढ़ा दिया गया।
  9. लोगों की स्वतंत्रता समाप्त हो गई।
  10. संविधान में व्यापक संशोधन किये गये।
  11. राष्ट्रपति की स्थिति कमजोर कर दी गई।
  12. देश में एक प्रकार से आतंक का माहौल पैदा हो गया।

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प्रश्न 6.
आपातकाल स्थिति में न्यायापालिका की शक्तियों व क्षेत्राधिकार में क्या परिवर्तन किये गये?
उत्तर:
आपातकाल की स्थिति में संविधान में व्यापक परिवर्तन किये गये। प्रेस व मीडिया की शक्तियों व स्वतंत्रता को भी प्रभावित किया। इसके साथ-साथ न्यायपालिका की शक्तियों व क्षेत्राधिकार में परिवर्तन कर दिया। इलाहाबाद उच्च न्यायाल के संदर्भ में आपातकालीन स्थिति के संविधान में संशोधन कर यह व्यवस्था की कि सर्वोच्च न्यायालय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति व स्पीकर के चुनाव सम्बन्धी किसी झगड़े को सर्वोच्च न्यायपालिका के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिया।

42 वें संविधान संशोधन से संविधान में व्यापक परिवर्तन किये गये। सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधि कार कम कर दिये गये। सर्वोच्च न्यायालय अब कई राज्यों के विषयों से सम्बन्धित झगड़े नहीं सुन सकती थी। इसी प्रकार राज्यों की उच्च न्यायालय केन्द्र में विषयों से सम्बन्धित झगड़े नहीं सुन सकती थी। इस प्रकार से आपातकालीन स्थिति में न्यायालय के क्षेत्राधिकार में व्यापक परिवर्तन किया गया।

प्रश्न 7.
42 वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएँ समझाइये।
उत्तर:
संविधान में 42 वां संशोधन 1976 में किया गया। उस समय देश में आपातकाल की स्थिति थी। इस संविधान संशोधन ने संविधान में बड़े पैमाने पर परिवर्तन कर दिये अतः इसे लघु संविधान भी कहा जाता है। इसमें निम्न मुख्य प्रावधान थे:

  1. संविधान की प्रस्तावना में संशोध न कर दो नये शब्द जोड़े एक समाजवाद व दूसरा धर्मनिरपेक्ष।
  2. लोकसभा व राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल पांच वर्ष की जगह 6 वर्ष कर दिये गये।
  3. राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों को मौलिक अधिकारों के स्थान पर अधिक प्राथमिकता की व्यवस्था कर दी।
  4. राष्ट्रपति को मन्त्रीमंडल की सलाह मानने के लिए बाध्य कर दिया।
  5. न्यायपालिका की शक्तियों व क्षेत्राधिकार में कमी कर दी गई।
  6. नागरिकों की स्वतंत्रताओं में कमी की गई।
  7. समवर्ती सूची में नये विषयों को जोड़ गया।
  8. कई राज्यों के विषयों को केन्द्र सूची में शामिल कर दिया।
  9. प्रेस की स्वतन्त्रता को प्रभावित किया।
  10. केन्द्र व प्रान्तों के सम्बन्धों को प्रभावित किया।

प्रश्न 8.
शाह आयोग की नियुक्ति का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
आपातकाल की स्थिति के समाप्त होने के साथ-साथ लोकसभा के चुनाव भी 1977 में कराये गये जिसमें जनता पार्टी ने चुनाव जीता व सरकार बनाई। कांग्रेस को इस चुनाव में आपातकाल स्थिति की ज्यादतियों की सजा भुगतनी पड़ी। यहाँ तक की श्रीमती इंदिरा गाँधी व उनके प्रमुख मंत्री चुनाव हार गये।

जनता पार्टी ने सरकार बनाने के बाद आपातकाल में हुई विभिन्न ज्यादतियों को जनता के सामने लाने के लिए जस्टिस जे.सी. शाह की अध्यक्षता में मई 1977 में एक आयोग का गठन किया गया जिसको शाह आयोग के नाम से जाना जाता है। इसका प्रमुख कार्य 25 जून 1975 के दिन घोषित आपातकाल के दौरान की गई कार्यवाही तथा इस दौरान सत्ता के दुरूपयोग, अतिचार और सदाचार के विभिन्न आरोपों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना था। आयोग ने अपने कार्य में विभिन्न साक्षों की जाँच की विभिन्न लोगों के बयान दर्ज करे। व इस आधार पर अपनी रिपोर्ट दी।

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प्रश्न 9.
शाह कमीशन रिपोर्ट की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
1977 में चुनाव में सफलता प्राप्त करने के बाद आपातकाल में कांग्रेस सरकार द्वारा की गई ज्यादतियों का अध्ययन करने के लिए शाह आयोग की नियुक्ति की जिसकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं:

  1. नजरबन्दी निवारक कानून का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग किया गया।
  2. 676 राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार हुई।
  3. आपातकाल के दौरान लगभग एक लाख लोगों की गिरफ्तारी की गई।
  4. अखबारों की बिजली पूर्ति को काटने के लिए बिजली आपूर्ति निगम के अधिकारियों को उपराज्यपाल के द्वारा मौखिक आदेश दिये गये।
  5. दो दिन के बाद अखबारों की बिजली जारी की गई।
  6. बिना किसी अधिकारिक पद के गैर सरकारी लोग सरकारी पदों का इस्तेमाल व दुरूपयोग कर रहे थे।
  7. श्रीमति इंदिरा गाँधी के पुत्र श्री संजय गाँधी ने सरकारी कार्यों की दिन प्रतिदिन गतिविधियों में हस्तक्षेप किया।
  8. परिवार नियोजन के कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए अधिकारियों ने जबरदस्ती मासूम व युवा नागरिकों की नसबन्दी की जिससे उनका शेष जीवन ही बेकार हो गया।
  9. अनुशासन के नाम पर अधिकारियों ने अनावश्यक रूप से अपने तहत काम करने वाले कर्मचारियों को परेशान किया।

प्रश्न 10.
आपातकाल स्थिति के अनुभव से हमें क्या सबक मिला?
उत्तर:
यद्यपि हम आपातकाल स्थिति की घोषणा के आदेश को उचित नहीं ठहरा सकते परन्तु इस अनुभव से भारतीय प्रजातन्त्र की अनेक कमजोरियां व मजबूरियाँ सामने अवश्य आ गयी। कई आलोचक कहते हैं कि आपातकाल के दौरान भारत में प्रजातंत्र समाप्त हो गया था क्योंकि कानून का शासन नहीं था। संविधान को पूर्णतः बदल दिया गया था। मौखिक आदेशों पर सरकार चल रही थी। बिना सत्ता के लोग सत्ता का दुरूपयोग कर रहे थे।

ऐसी स्थिति में ऐसा भी सोचा जाने लगा था। कि भारत में चुनाव नहीं होगें परन्तु यह सोच गलत सिद्ध हुई क्योंकि इन परिस्थितियों में भी चुनावों की घोषणा की व चुनाव समय पर निष्पक्ष तरीके से सम्पन्न हुआ। इस अनुभव से नागरिकों स्वतंत्रता के महत्त्व का पल लगा। इस अनुभव से यह भी समझा गया कि संविधान के प्रावधानों का किस प्रकार से प्रयोग करना चाहिए। जनता ने यह भी समझा दिया कि भारत में तानाशाही व्यवस्था स्वीकारीय नहीं है।

प्रश्न 11.
पुलिस व नौकरशाही की आपातकाल के समय की भूमिका समझाइये।
उत्तर:
आपातकालीन के अनेक बुरे अनुभवों में आम जनता के लिए सबसे बुरा अनुभव यह रहा कि उनको पुलिस व नौकरशाही की ज्यादितयों का शिकार होना पड़ा। सरकार की नीतियों को लागू करने अपने बड़े अधिकारों व नेताओं की वाह-वाह लूटने के लिए पुलिस व नौकरशाही के अधिकारियों ने जनता पर ज्यादतियाँ व अत्याचार किये। अनेक निर्दोष नागरिकों पर अत्याचार किये गये। आपातकाल स्थिति के दौरान ऐसा लगता था कि पुलिस व नौकरशाही के अधिकारों शासक दल के यंत्र बन गये हैं।

शाह आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में इस तथ्य को उजागर किया कि आपातकाल स्थिति मे पुलिस व नौकरशाही की भूमिका सबसे अधिक आपत्तिजनक रही। उन्होंने जनता के सेवक के रूप में नहीं बल्कि जनता के शोषण के रूप में कार्य किया। इंदिरा गाँधी के 20 सूत्रीय कार्यक्रम व संजय गाँधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम को लागू करने के लिए पुलिस व सरकारी अधिकारियों ने आपस में प्रतियोगिता की जिसका शिकार जनता बनी। वास्तव में आपातकाल की अगर कुछ सकारात्मक बाते हैं तो वे पुलिस व अधिकारियों की ज्यादतियों के कारण धूमल हो गयी।

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प्रश्न 12.
जनता पार्टी के उदय व 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की सफलता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आपातकाल स्थिति में सभी दलों के प्रमुख नेताओं को जेल में डाल दिया गया। यहाँ तक श्री जयप्रकाश नारायण व आचार्य कृपलानी को भी जेल में डाल दिया गया। 1977 में संसदीय चुनावों की घोषणा की गई। सभी विरोधी दलों के नेताओं ने इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ एक जुट होकर चुनाव लड़ने का निर्णय किया। इसके लिए सभी दलो ने वैचारिक मतभेद भुलाकर जनता पार्टी का गठन किया। इसमें सोसलिस्ट पार्टी, कांग्रेस ओल्ड भारतीय जनसंघ पार्टी व भारतीय लोक दल शामिल थे। बाद में बाबू जगजीवन राम की कांग्रेस फार डेमोक्रेसी ने भी जनता पार्टी में विलय कर लिया। जनता पार्टी ही कांग्रेस के खिलाफ मुख्य विरोधी दल था। 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को भारी सफलता मिली। 543 में से 352 सीट प्राप्त कर जनता पार्टी ने केन्द्र में प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई।

प्रश्न 13.
1977 में सरकार बनाने के बाद जनता पार्टी के कौन से प्रमुख निर्णय थे?
उत्तर:
1977 में केंद्र में गैर-कांग्रेसी सरकार बनने से चारों ओर खुशी का वातावरण था क्योंकि जनता को 18 महीने की आपातकाल की घुटन के बाद स्वरूप रूप में सांस लेने का अवसर मिला था। जनता पार्टी ने सरकार के बनने के बाद लोगों को राहत देने के लिए निम्न प्रमुख निर्णय लिये –

  1. जनता पार्टी ने आपातकाल में किये 42 वें संविधान संशोधन को सभी नकारात्मक प्रावधानों को समाप्त करते हुए 44वां संविधान संशोधन किया।
  2. लोकसभा व राज्य विधान सभाओं के कार्य काल को 6 वर्ष से 5 वर्ष कर दिया गया।
  3. राष्ट्रपति की स्थिति को पहले जैसी सम्मानजनक स्थिति प्रदान की।
  4. सम्पत्ति का मौलिक अधिकार समाप्त किया गया। अब यह केवल कानूनी अधिकार रह गया।
  5. न्यायपालिका का क्षेत्राधिकार पहले की तरह किया गया।
  6. आपत्तिजनक कानून जैसे डी.आई.आर. व पिसा समाप्त किये गये।
  7. मौलिक अधिकारों को नीति निर्देशक तत्वों के स्थान पर प्राथमिकता का स्थान दिया गया।

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प्रश्न 14.
जनता पार्टी की सरकार किस प्रकार से गिरी?
उत्तर:
देश में 1977 के चुनाव के बाद प्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार का बड़े उत्साह व उम्मीद के साथ स्वागत किया गया था परन्तु जल्द ही जनता को निराशा का मुँह देखना पड़ा। जनता पार्टी की सरकार बनने के समय में जनता पार्टी के घटकों में प्रधानमंत्री के पद को लेकर खींचातानी प्रारंभ हो गयी। प्रधानमंत्री के पद के लिए तीन घटकों के तीन दावेदार सामने आ गये थे कांग्रेस ओल्ड के श्री मोरारजी भाई देसाई, भारतीय लोकदल के चौधरी चरण सिंह व कांग्रेस फार डेमोक्रेसी के बाबू जगजीवन राम। अन्त में जय प्रकाश नारायण के हस्तक्षेप से मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री व जगजीवनराम व चरण सिंह को उपप्रधानमंत्री बनाया। इस प्रकार सभी घटकों में खींचा-तानी चलती रही। 1979 में चौधरी चरण सिंह जनता पार्टी से अलग हो गये जिससे जनता पार्टी की सरकार गिर गई व जनता पार्टी में कई विभाजन हुए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आपातकाल स्थिति की घोषणा के कारण व इसके परिणामों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आपातकाल स्थिति की घोषणा के कारण:
श्रीमती इंदिरा गाँधी की कांग्रेस सरकार ने देश में 25 जून 1975 को आपातकाल स्थिति की घोषणा के निम्न कारण हैं –

  1. देश में आन्तरिक गड़बड़ी।
  2. देश की एकता व अखण्डता को खतरा।
  3. आर्थिक संकट।
  4. पूरे देश के विभिन्न राज्यों में राजनीतिक आन्दोलन।
  5. चुनी हुई सरकारों का कार्य न करने देना।
  6. आन्दोलन कर्मियों के द्वारा पुलिस व सरकारी कर्मचारियों को बगावत के लिए उकसाना।
  7. प्रशासन का ठप्प हो जाना।
  8. अराजकता की स्थिति का पैदा होना।
  9. कानून व्यवस्था को लोगों के द्वारा अपने हाथों में लेना।
  10. विरोधी दलों का गैर-जिम्मेवार हो जाना।

आपातकाल स्थिति की घोषणा के परिणाम:
18 महीने चली आपातकाल स्थिति के अनेक भयंकर परिणाम रहे जिनमें प्रमुख निम्न हैं –

  1. बड़ी संख्या में विरोधी दलों के नेताओं की गिरफ्तारी।
  2. नागरिकों के मौलिक अधिकार का स्थगन।
  3. नागरिकों की स्वतंत्रताओं का हनन।
  4. न्यायपालिका की शक्तियाँ में कमी।
  5. नजबरन्दी निवारक कानून का दुरूपयोग।
  6. भारतीय संविधान के संघीय स्वरूप की समाप्ति।
  7. प्रेस व मीडिया की स्वतंत्रता की समाप्ति क्योंकि इन पर सेंसरशिप लागू कर दी गईं।
  8. 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन किये गये।
  9. राष्ट्रपति की स्थिति में परिवर्तन।
  10. पुलिस व नौकरशाही के द्वारा सत्ता का दुरूपयोग इस प्रकार से देश में उक्त कारणों से आपात स्थिति की घोषणा की गयी जिनके गम्भीर परिणामों भी सामने आये।

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प्रश्न 2.
जनता पार्टी के बनने व टूटने की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सत्तर का दशक भारतीय अर्थव्यवस्था व राजनीति दोनों के लिए दुखद रहा। विभिन्न कारणों से देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था। जिसके प्रमुख कारण 1971 के पाकिस्तान के युद्ध का परिणाम व इसका प्रभाव व प्राकृतिक विपदाओं का प्रभाव जैसे मानसून का फेल हो जाना व सूखा पड़ना आदि। इन कारणों से देश में अवाक वस्त्रों की कीमतें बहुत बह गयी जिमर्क कारण देश में असन्तोष फैल गया। इससे आर्थिक संकट की राजनीति प्रारम्भ हो गयी व देश के अनेक भागों में आन्दोलन प्रारम्भ हो गये। बिहार व गुजरात में ये आन्दोलन बड़े पैमाने पर हुए जिनका नेतृत्व विद्यार्थी वर्ग कर रहा था। जयप्रकाश नारायण व मोरारजी भाई देसाई भी इस आन्दोलन में विरोधी दलों के साथ हो गये।

आन्दोलन से उत्पन्न स्थिति के कारण श्रीमति इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल स्थिति की घोषणा कर दी व विरोधी दलों के प्रमुख लागों को जेल में डाल दिया गया। 25 जून 1975 के 18 महीने बाद देश में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने संसदीय चुनावों की घोषणा की जेल में ही सभी विरोधी दलों ने यह निर्णय किया कि वे 1977 के चुनाव में इंदिरा गाँधी व कांग्रेस के खिलाफ एक पार्टी के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेंगे ताकि कांग्रेस की हार को निश्चित किया जा सके। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए श्री जयप्रकाश नारायण व आचार्य कृपलानी की प्रेरणा से प्रमुख विरोधी दलों ने मिलकर व अपने दलों का एक दल में विलय करके जनता पार्टी का गठन किया।

1977 के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ एक कार्यक्रम व एक नेता के तहत चुनाव लड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता मिली व कांग्रेस को देश के अधिकांश भाग में हार का मुंह देखना पड़ा। यहाँ तक की रायबरेली संसदीय चुनाव क्षेत्र से श्रीमती इंदिरा गाँधी चुनाव हार गयी। जनता पार्टी ने लोकसभा में 213 बहुमत प्राप्त कर केन्द्र में सरकार बनाई परन्तु जनता पार्टी अपनी इस ताकत के बोझ को झेल न सकी और बनने के साथ-साथ इसमें दरार पड़ गयी। प्रधानमंत्री के पद पर इसके घटक दलों में तनाव पैदा हो गया जो अन्ततः इसके विभाजन व जनता पार्टी की सरकार के पतन का कारण बना। लोकदल के चौधरी चरण सिंह अपने घटक के साथ अलग हो गये व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई जो केवल 4 महीने चली।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
निम्न में से किस कारण से 1975 में आपातकाल स्थिति की घोषणा की?
(अ) आन्तरिक गड़बड़ी
(ब) बाहरी युद्ध
(स) वित्तीय संकट
(द) ग्रह युद्ध
उत्तर:
(अ) आन्तरिक गड़बड़ी

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प्रश्न 2.
संविधान के किस अनुच्छेद के तहत आपातकाल स्थिति की घोषणा की?
(अ) 352
(ब) 356
(स) 358
(द) 360
उत्तर:
(अ) 352

प्रश्न 3.
सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा किसने दिया?
(अ) चौधरी चरण सिंह
(ब) राम मनोहर लोहिया
(स) जयप्रकाश नारायण
(द) आचार्य कृपलानी
उत्तर:
(स) जयप्रकाश नारायण

प्रश्न 4.
निम्न में से जनता पार्टी का घटक कौन-सा दल नहीं था?
(अ) भारतीय लोकदल
(ब) सोसलिस्ट पार्टी
(स) कांग्रेस फार डेमोक्रेसी
(द) कांग्रेस आई
उत्तर:
(द) कांग्रेस आई

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक व्यवस्था का संकट

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन कथन सही है?
(क) 25 जून, 1975 को इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की उद्घोषणा की।
(ख) आपातकाल के दौरान सभी विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया।
(ग) लोकनायक जयप्रकाश ने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया।
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
इंदिरा गाँधी ने भारत में आपताकाल की घोषणा कब की थी?
(क) 18 मई, 1975
(ख) 25 जून, 1975
(ग) 5 जुलाई, 1975
(घ) 10 अगस्त, 1975
उत्तर:
(ख) 25 जून, 1975

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प्रश्न 7.
जनता पार्टी की सरकार कब बनी?
(क) 1974 में
(ख) 1977 में
(ग) 1980 में
(घ) 1983 में
उत्तर:
(ख) 1977 में

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की स्थापना कब हुई?
(क) 1945 में
(ख) 1947 में
(ग) 1950 में
(घ) 1952 में
उत्तर:
(क) 1945 में

प्रश्न 9.
1975 में भारत में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत की गई?
(क) अनुच्छेद, 352
(ख) अनुच्छेद, 355
(ग) अनुच्छेद, 356
(घ) अनुच्छेद, 360
उत्तर:
(क) अनुच्छेद, 352

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प्रश्न 10.
1977 में पहली बार केन्द्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनवाने का मुख्य श्रेय किन्हें दिया जाता है?
(क) जयप्रकाश नारायण
(ख) मोरारजी देसाई
(ग) जगजीवन राम
(घ) कृपलानी
उत्तर:
(क) जयप्रकाश नारायण

प्रश्न 11.
किस राजनीतिक दल ने 1975 में आपातकाल की घोषणा का स्वागत किया था?
(क) जनसंघ
(ख) अकाली दल
(ग) डी०एम०के०
(घ) सी०पी०आई०
उत्तर:
(घ) अकाली दल

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प्रश्न 12.
1973 में तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश किन्हें बनाया गया था?
(क) न्यायमूर्ति के० सुव्वाराव
(ख) न्यायमूर्ति ए० एन० रे
(ग) न्यायमूर्ति वाई० चन्द्रचूड़
(घ) न्यायमूर्ति एच० आर० खन्ना
उत्तर:
(ख) न्यायमूर्ति ए० एन० रे

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकालीन घोषणा के संदर्भ में मेल नहीं खाता है –
(क) सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान
(ख) 1974 का रेल हड़ताल
(ग) नक्सलवादी आंदोलन
(घ) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष
उत्तर:
(ग) नक्सलवादी आंदोलन

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प्रश्न 14.
संविधान ने किस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया है?
(क) अंग्रेजी
(ख) हिन्दी
(ग) उर्दू
(घ) हिन्दुस्तानी
उत्तर:
(ख) हिन्दी

II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 6 कांग्रेसी प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Part - 2 img 2
उत्तर:
(1) – (य)
(2) – (स)
(3) – (द)
(4) – (अ)
(5) – (ब)

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

Bihar Board Class 12 Political Science कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही है।
(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन नई राज्यों में विधान सभा के चुनाव वह हार गई।
(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधान सभा के भी।
(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टिया के समर्थन से एक गठबन्धन सरकार बनाई।
(घ) कांग्रेस केन्द्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(क) 1967 के चुनावों में कांग्रेस लोकसभा चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधान सभा के चुनाव वह हार गई।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का मेल करें:

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Part - 2 img 1
उत्तर:
(1) – (घ)
(2) – (क)
(3) – (ख)
(4) – (ग)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है।
(क) जय जवान जय किसान
(ख) इंदिरा हटाओ
(ग) गरीबी हटाओं
उत्तर:
(क) लाल बहादुर शास्त्री
(ख) विपक्षी दल
(ग) श्रीमती इंदिरा गाँधी

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प्रश्न 4.
1971 के ग्रैंड अलाइंस के बारे में कौन-सा कथन ठीक है?
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एक जुट होकर किया था।
उत्तर:
(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरुनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गये हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(ग) प्रत्येक मामले पर गुप्त मतदान करना।
(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(क) पार्टी के अध्यक्ष का पद बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है अतः उसकी सलाह अथवा आदेश महत्त्वपूर्ण होता है जिसका पालन करना चाहिए। हालांकि अगर वह गलत हो तो उसको अध्यक्ष से कहा जाना चाहिए कि वह गलत है प्रजातंत्र में इस प्रकार की सलाह देना गलत नहीं है। इससे पार्टी मजबूत ही होगी।

(ख) बहुमत के द्वारा आमतौर से निर्णय लिये जाते हैं। अतः किसी भी राजनीतिक दल में भी किसी विषय पर निर्णय बहुमत के आधार पर लिया जा सकता है।

(ग) कोई भी दल बिना आन्तरिक प्रजातंत्र के मजबूत नहीं हो सकता अतः प्रत्येक मंच पर व प्रत्येक विषय पर खुलकर विचार विमर्श, बहस व आम सहमति बननी चाहिए। और अगर आवश्यक हो तो मतदान भी कराया जा सकता है। गुप्त मतदान ही ज्यादा प्राकृतिक व प्रजातान्त्रीय माना जाता है। क्योंकि गुप्त तदान में ही व्यक्ति स्वतन्त्रता से अपना निर्णय ले सकता है।

(घ) किसी भी मंच पर, संस्था में व राजनीतिक दल में सलाह व मशवरा व परामर्श की प्रक्रिया होनी ही चाहिए। जिससे उसमें सभी सदस्यों में एक प्रकार का जुड़ाव बना रहता है किसी भी राजनीतिक दल के वरिष्ठ व अनुभवी व्यक्तियों को पार्टी में उचित सम्मान व स्थान मिलना ही चाहिए व विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर उनके परामर्श व विचारों को सम्मान अवश्य ही मिलना चाहिए ताकि वे पार्टी में अपनी सकारात्मक भूमिका अदा कर सकें।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
(क) कांग्रेस पार्टी में आश्चर्यजनक नेतृत्व का अभाव
(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट
(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लाभ बंदी को बढ़ाना
(घ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद
उत्तर:
(क) उपरोक्त कारणों से 1967 में कांग्रेस की हार का प्रमुख कारण कांग्रेस पार्टी के पास करिश्माई नेतृत्व का अभाव था। क्योंकि 1964 में पंडित जवाहरलाल का देहान्त होने के बाद कांग्रेस का नेतृत्व श्री लाल बहादुर शास्त्री ने संभाला जिनकी 1966 में मृत्यु हो गई। इसके बाद श्रीमति इंदिरा गाँधी ने नेतृत्व संभाला जिनको राजनीतिक व प्रशासनिक अनुभव अधि क नहीं था। वे कांग्रेस के सीनियर नेताओं के गुट पर निर्भर थी। इस कारण से 1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभाव में कमी आयी।

(घ) अन्य दूसरा कारण कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी के कारण कई राज्यों की हारा था। इस चुनाव में गैर-कांग्रेसी दलों ने एक गठबन्धन बना लिया जिससे गैर-कांग्रेसी वोट का विभाजन नहीं हुआ क्योंकि इससे पहले गैर-कांग्रेसी वोट विभाजित हो जाते थे जिसका लाभ कांग्रेस को मिलता था । परन्तु 1967 के चुनाव में ऐसा नहीं हुआ। अतः कांग्रेस की वोट व सीटों में कमी आने का एक यह भी कारण था।

प्रश्न 7.
1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
1970 के दशक में श्रीमती इंदिरा गाँधी अत्यन्त लोकप्रिय हो गयी थी। 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद अपनी पार्टी अर्थात् नई कांग्रेस पर उसका प्रभुत्व था। पुरानी कांग्रेस व नई कांग्रेस के बीच संघर्षो को उसने वैचारिक संघर्ष करा दिया। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपनी नीतियों में समाजवादी व साम्यवादी आधार देकर किसानों व मजदूरों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया। इंदिरा गाँधी का नारा था कि ‘गरीबी हटाओं’ अत्यन्त प्रभावकारी सिद्ध हुआ इंदिरा गाँधी ने अपनी लोकप्रियता को बढ़ाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की संवृद्धि के लिए अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रारम्भ किये जिनमें से प्रमुख निम्न थे –

  1. प्रिवीपर्स की समाप्ति
  2. बैंकों को राष्ट्रीकरण
  3. ग्रामीण भू-स्वामित्व और शहरी सम्पदा के परसीमन
  4. सामाजिक व आर्थिक विषमताओं व असमानताओं की समाप्ति
  5. भूमिहीन किसानों के लिए सुविधाएँ
  6. दलित व आदिवासियों के लिए विशेष कार्यक्रम
  7. जमीन सुधारों पर जोर
  8. नौजवानों के लिए रोजगार के अनेक अवसर
  9. अल्पसंख्यकों में विश्वास उत्पन्न करने के लिए अनेक उपाय
  10. गरीबी उन्मूलन योजनाओं का प्रारम्भ

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प्रश्न 8.
1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में सिंडीकेट का क्या अर्थ है? सिंडीकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर:
1960 के दशक में कांग्रेस के भीतर ताकतवर व प्रभावकारी नेताओं के समूह को ‘सिंडीकेट’ के नाम से जाना जाता था। इस संगठन के नेताओं का कांग्रसे पार्टी का नियन्त्रण था। सिंडीकेट के प्रमुख नेता मद्रास के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके कामराज थे। इस संगठन में कुछ राज्यों के प्रमुख ताकतवर नेता भी थे। जैसे बम्बई से एस. के. पाटिल मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, आन्ध्र प्रदेश के एन. संजीवा रेड्डी व पश्चिमी बंगाल के अतुल्य घोष थे।

लाल बहादुर शास्त्री व श्रीमती इंदिरा गाँधी दोनों ही सिंडिकेट के समर्थन से ही प्रधानमंत्री बने। इंदिरा गाँधी व लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल के निर्माण में भी सिंडिकेट की अहम भूमिका रही। यहाँ तक की सरकार की नीतियों के निर्धारण व क्रियान्वयन में भी सिंडिकेट की अहम भूमिका रही परन्तु इंदिरा गाँधी के शक्तिशाली बनने के बाद यह गुट धीरे-धीरे शक्तिहीन हो गया। 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में इस गुट के उम्मीदवार श्री एन. संजीवा रेड्डी के हारने के बार इंदिरा गाँधी की कांग्रेस ही वास्तविक कांग्रेस के रूप में उभर कर आयी।

यद्यपि सिंडिकेट के नेताओं को प्रारम्भ में यह उम्मीद थी कि इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री के रूप में उनके परामर्श पर ही कार्य करेंगी परन्तु ऐसा केवल थोड़े दिन ही रहा इसके बाद इंदिरा गाँधी ने अपने व्यक्ति व अपनी नीतियों के आधार पर अपना अलग जनाधार बना लिया धीरे-धीरे उसने सिंडीकेट के नेताओं को हाशिए पर ला खड़ा किया यद्यपि प्रारम्भ में सिंडीकेट ने कांग्रेस के प्रत्येक निर्णय में निर्णायक भूमिका निभाई परन्तु बाद में कांग्रेस पर पूर्णतः श्रीमती इंदिरा गाँधी का ही नियंत्रण हो गया। 1960 की कांग्रेस पर सिंडीकेट का नियन्त्रण था । परन्तु 1970 की कांग्रेस पर श्रीमती इंदिरा गाँधी का नियन्त्रण हो गया।

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प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई।
उत्तर:
1967 के आम चुनावों में कांग्रेस का प्रभुत्व कम होता नजर आया क्योंकि 1967 के चुनाव में कांग्रेस के हाथ से कई राज्यों की सरकारें निकल गई अर्थात् कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, केरल, उड़ीसा, मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार नहीं बन पायी व केन्द्र में भी कांग्रेस पार्टी केवल साधारण बहुमत से ही सरकार बना पायी। 1967 के चुनाव के बाद कांग्रेस के बीच आन्तरिक स्तर पर सत्ता संघर्ष प्रारम्भ हो गया। कांग्रेस का एक बड़ा प्रभावशाली नेताओं का गुट सरकार पर नियंत्रण करना चाहता था परन्तु इंदिरा गाँधी धीरे-धीरे अपना नियंत्रण सरकार व पार्टी पर बनाने के प्रयास में लगी थी।

कांग्रेस के बीच अर्थात् इंदिरा गाँधी व सिडीकेट के बीच सत्ता संघर्ष की लड़ाई 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में आमने-सामने आ गयी जब कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ राष्ट्रपति पद के लिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. वी.वी गिरी को न केवल खड़ा किया बल्कि उसकी जीत भी निश्चित की जिसके कारण श्रीमती इंदिरा गाँधी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया। जिसके फलस्वरूप 1969 में कांग्रेस में औपचारिक रूप से विभाजन हो गया व धीरे-धीरे पुरानी कांग्रेस क्षीण हो गई व इंदिरा गाँधी की नई कांग्रेस ही वास्तविक कांग्रेस उभर कर आयी। इस विवरण से पता लगता है कि 1969 में कांग्रेस के विभाजन के प्रमुख कारण निम्न विषय थे –

  1. सिंडीकेट का प्रभावकारी रुख
  2. सिंडीकेट व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बीच सत्ता संघर्ष
  3. राष्ट्रपति का चुनाव जिसमें श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ डॉ. वी.वी. गिरी को खड़ा किया।
  4. श्रीमती इंदिरा गाँधी की अपनी स्वतन्त्र रूप से कार्य करने की शैली।
  5. कांग्रेस की आन्तरिक गुटबाजी
  6. इंदिरा गाँधी की बढ़ती हुई लोकप्रियता

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़े और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दें।
उत्तर:
इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यन्त केन्द्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया। जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरूआती दशकों में एक संघीय लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गये लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार को नीतियाँ भी बनानी थी-1970 के दशक के शुरूआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।

(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अन्तर था।
(ख) लेखक ने क्यों कहा कि सत्तर के दशक में कांग्रेस मर गई?
(ग) कांग्रेस पार्टी में आये बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर कि तरह पड़ा?

उत्तर:
(क) यद्यपि पंडित जवाहर लाल नेहरू व श्रीमती इंदिरा गाँधी दोनों के ही करिश्माई व्यक्तित्व थे परन्तु दोनों की कार्य शैली भिन्न थी पंडित नेहरू का पार्टी पर व्यापक प्रभाव स्वयं ही था परन्तु दोनों की कार्य शैली भिन्न थी पंडित नेहरू का पार्टी पर व्यापक प्रभाव स्वयं ही था परन्तु इंदिरा गाँधी ने एक राजनीतिक योजना के तहत पार्टी पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस में आन्तरिक प्रजातन्त्र स्थापित किया। जबकि इंदिरा गाँधी की कार्य शैली में अधिनायकवाद झलकता था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के समय वरिष्ठ कांग्रेसियों को सम्मानजक स्थान प्राप्त था परन्तु श्रीमती इंदिरा गाँधी ने उन्हीं लोगों को हाशिये पर रख दिया जिन वरिष्ठ नेताओं ने इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने में मदद की थी।

पंडित जवाहर लाल नेहरू एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापक नजरिया रखने वाले नेता थे जबकि श्रीमती इंदिरा गाँधी की राजनीति सत्ता राजनीति तक ही सीमित थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू एक धैर्यवान नेता थे जो सभी की सुनते वे सभी के विचारों की कदर करते थे जबकि श्रीमती इंदिरा गाँधी विरोध सुनना पसंद नहीं करती थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू में आम सहमति व समायोजन की क्षमता थी जो श्रीमती इंदिरा गाँधी में नहीं थी।

(ख) लेखक ने सही ही कहा कि सत्तर के दशक में कांग्रेस मर गई क्योंकि सत्तर के दशक में कांग्रेस की न तो वे संस्कृति थी, ना ही वह नेतृत्व था और ना ही वह प्रभाव था जो साठ के दशक में था सत्तर के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी का नेतृत्व था जो साठ के दशक के नेहरू शास्त्री के नेतृत्व से बिल्कुल भिन्न था। नेहरू व शास्त्री के नेतृत्व में प्रजातंत्रीयवाद, धैर्य व खुलापन था परन्तु ये सभी गुण श्रीमती इंदिरा गाँधी में नहीं थे।

इंदिरा गाँधी में अधिनायकवाद व रूढ़ता थी। इसके अलावा सत्तर की कांग्रेस की संस्कृति साठ के दशक की संस्कृति से भिन्न थी। सत्तर के दशक में कांग्रेस में ही गुटबाजी व सत्ता संघर्ष था जबकि साठ के दशक में सहनशीलता व्यापकता व आपसी सूझबूझ, सामजस्य व संवाद की संस्कृति थी। पुरानी कांग्रेस में मूल्यों पर आधारित राजनीति थी। सत्तर के दशक में अवसरवाद व गुटबाजी की राजनीति थी साठ के दशक में राष्ट्रीय आन्दोलन के समय का राष्ट्रवाद व संस्कृति थी लेकिन सत्तर के दशक में राष्ट्रीय आन्दोलन का जज्बा धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था। साठ के दशक में सेवा की राजनीति थी लेकिन सत्तर के दशक में वोट व सत्ता की राजनीति थी अतः लेखक ने सही कहा कि सत्तर के दशक में कांग्रेस मर चुकी थी उसकी जगह दूसरी कांग्रेस ने दूसरे रूप में अवतार लिया।

(ग) 1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के देहान्त व 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के देहान्त के बाद कांग्रेस में नेतृत्व का संकट अर्थात् एक रिक्त स्थान पैदा हो गया। 1966 में श्री लाल बहादुर शास्त्री के देहान्त के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी का प्रधानमंत्री तो अवश्य बनाया गया परन्तु कांग्रेस पर सिंडिकेट का नियंत्रण था। सिंडिकेट कांग्रेस के विभिन्न राज्यों के शक्तिशाली व प्रभावशाली लोगों का समूह था जिनके प्रमुख नेता श्री कामराज थे।

धीरे-धीरे श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपना प्रभाव बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया व समाजवादी व साम्यवादी विचारधारा के आधार पर किसान व मजदूरों के हित सम्बन्धी नीतियाँ बनाना प्रारम्भ किया। कांग्रेस में भी सिंडिकेट के नेताओं व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बीच सत्ता संघर्ष प्रारम्भ हो गया जो 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में सामने आ गया जो बाद में कांग्रेस के विभाजन के रूप में बदल गया। 1967 के चुनाव में ही गैर-कांग्रेसवार की राजनीति का प्रभाव प्रारम्भ हो गया था जिसके परिणाम स्वरूप 1967 के चुनावों में 9 राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारें बनीं। 1971 में भी कांग्रेस के विरुद्ध मुख्य विरोधी दलों ने एक बड़ा एन्टी कांग्रेस अलाइंस बनाया परन्तु इनको अधिक सफलता नहीं मिली। गैर-कांग्रेसवाद ने ही गठबन्धन की राजनीति को जन्म दिया।

Bihar Board Class 12 Political Science कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पंडित जवाहर लाल नेहरू की भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में भूमिका समझाइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के समय पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रथम नम्बर के नेता थे जिनके नेतृत्व में सभी को विश्वास था अतः आजादी के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ही देश के प्रथम प्रधानमंत्री के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम विदेश मंत्री भी बने। वे एक करिश्माई व्यक्तित्व के नेता थे। कांग्रेस के संगठन व सरकार पर उनका पूर्ण नियंत्रण था।

भारत के राष्ट्रनिर्माण राज्य निर्माण में उनकी अहम भूमिका थी अतः पंडित जवाहर लाल नेहरू को आधुनिक भारत का निर्माता कहा जाता है। उन्होंने भारत की विभिन्न समस्याओं को निश्चित समय में हल करने के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था प्रारम्भ की। पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत को औद्योगिक रूप से विकसित राज्य बनाना चाहते थे। भारत की विदेश नीति के निर्माता भी पंडित जवाहर लाल नेहरू ही थे तथा उन्होंने विश्व राजनीति में भी सक्रिय भूमिका अदा की। पंडित नेहरू के बाद अनेक प्रकार की अनिश्चिताएँ उत्पन्न हुई।

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प्रश्न 2.
लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री कार्यकाल में मुख्य चुनौतियाँ कौन-कौन सी थी?
उत्तर:
पंडित जवाहर लाल नेहरू के देहान्त के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने। उनका प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल बहुत छोटा रहा परन्तु इस छोटे काल में उनको कई प्रकार की चुनौतियाँ झेलनी पड़ी जिनमें प्रमुख निम्न थीं:

  1. सिंडीकेट का प्रभाव
  2. 1962 में हुई चीन युद्ध का प्रभाव
  3. भारत पाक युद्ध 1965
  4. अनेक प्राकृतिक विपदाएँ

प्रश्न 3.
लाल बहादुर शास्त्री ने किन क्षेत्रों को प्राथमिकता दी।
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री ने प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लगाया। उनका जीवन बहुत ही सीधा साधा था। उनकी जीवन शैली व कार्य शैली से लगता था कि उनकी निम्न प्रमुख प्राथमिकता है –

  1. कृषि विकास व किसान की स्थिति में सुधार।
  2. मिलिट्री तैयारियाँ व जवान की सन्तुष्टि।

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 4.
1967 के आम चुनावों में मुख्य मुद्दे क्या थे?
उत्तर:
1967 का आम चुनाव श्रीमती इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में हुए । इस चुनाव में निम्न प्रमुख मुद्दे थे:

  1. प्राकृतिक विपदाओं को प्रभाव
  2. गम्भीर खाद्य संकट
  3. विदेशी मुद्रा-भंडार में कमी
  4. औद्योगिक उत्पादन और निर्यात में गिरावट
  5. 1962 व 1965 के युद्धों का प्रभाव
  6. आर्थिक संकट
  7. कीमतों में भारी वृद्धि
  8. कांग्रेस में करिश्माई नेतृत्व का अभाव

प्रश्न 5.
गैर-कांग्रेसवाद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1952 से लेकर 1962 तक के चुनावों में कांग्रेस को ही बार-बार सफलता मिलती रही जिससे चुनावी राजनीति पर कांग्रेस का ही प्रभुत्व रहा। गैर-कांग्रेसी वोट विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों में बँट जाती थी जिससे कांग्रेस को ही अधिक सीटें व अधिक वोट प्राप्त होती थी। 1967 के चुनाव में इस स्थिति को रोकने के लिए विरोधी दलों में गठबन्धन बनाये तथा कांग्रेस के खिलाफ अलग-अलग उम्मीदवार खड़ा न करके एक संयुक्त उम्मीदवार को खड़ा किया। गैर-कांग्रेसी विरोधी दलों ने एक प्रकार की भावना का नारा दिया कि इस बार कांग्रेस को हराना है। इस भावना को गैर-कांग्रेसवाद के नाम से जाना जाता है। गैर-कांग्रेसवाद की भावना का चुनाव में प्रभाव दिखायी दिया।

प्रश्न 6.
1967 के चुनाव के परिणाम बताइये।
उत्तर:
1967 के चुनावों में पहली बार कांग्रेस को झटका लगा अर्थात् चुनावी राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आयी। कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आयी। कांग्रेस को 1967 के चुनावों में 9 राज्यों में हार का मुहँ देखना पड़ा। जहाँ कांग्रेस की सरकार नहीं बन सकी ये राज्य थे हरियाणा, पंजाब, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मद्रास व केरल। इसके अलावा केन्द्र में भी कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आयी। कांग्रेस की सीटों व वोटों के प्रतिशत में भी गिरावट आयी जिसके फलस्वरूप कांग्रेस को केन्द्र में केवल साधारण बहुत ही प्राप्त हुआ । इस प्रकार 1967 के आम चुनाव में गैर-कांग्रेसवाद के कारण के प्रभुत्व में गिरावट आयी।

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प्रश्न 7.
मिले जुले संगठन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब कई सारे राजनीतिक दल सरकार बनाने के उद्देश्य के चुनाव में एक साथ इकट्ठा होकर चुनाव लड़ते हैं उसे मिला जुला संगठन या मिली जुली सरकार कहते हैं। 1967 के चुनावों में पहली बार गैर-कांग्रेसी दलों ने साथ चुनाव लड़कर साझी सरकारें कई राज्यों में बनाई इन मिली जुली व्यवस्था का उद्देश्य कांग्रेस को सत्ता से दूर करना था। भारतीय राजनीतिक में मिली जुली सरकारों का दौर 1967 में प्रारम्भ हुआ जो भिन्न-भिन्न समय पर भारतीय राजनीति को प्रभावित करता रहा है। इस समय भी देश में मिली जुली सरकारों का दौर चल रहा है।

प्रश्न 8.
दल बदल से आप क्या समझते हैं? दल बदल के संदर्भ में आया राम गया राम का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
भारत राजनीतिक को दलबदल की प्रवृत्ति में सबसे अधिक प्रभावित किया है। जब कोई सदस्य उस राजनीतिक दल को अन्य दल में शामिल होने के लिए छोड़ देता है जिस दल से उसने चुनाव जीता हो, उस स्थिति को दल बदल की स्थिति कहते हैं। 1967 के बाद दल बदल की प्रवृति ने सरकारों को बनाने व सरकारों के गिराने का काम किया है। भारत में इस प्रवृत्ति को रोकने के प्रयास किये गये हैं। इसको रोकने के लिए 1985 में 52वां संविधान किया गया परन्तु यह संशोधन की दलबदल को रोकने में असफल रहा है। दल बदल के सन्दर्भ में आया राम गया राम की कहावत का सम्बन्ध हरियाणा से है जब एक व्यक्ति ने (गया लाल) ने 15 दिनों के अन्दर 3 बार दल बदल किया।

प्रश्न 9.
सिंडिकेट से आप क्या समझते हैं।
उत्तर:
सिंडिकेट नेहरू के बाद कांग्रेस में उभरा उन शक्तिशाली नेताओं का गुट था जो विभिन्न राज्यों से सम्बन्धित थे व जिनका कांग्रेस संगठन पर नियंत्रण था। इन नेताओं में प्रमुख रूप से मद्रास में कामराज, महाराष्ट्र से एस. के. पाटिल, कर्नाटक से निजिलगप्पा व पश्चिमी बंगाल से अरूण घोष थे। नेहरू के देहान्त के बाद लाल बहादुर शास्त्री व श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनाने में सिंडिकेट के नेताओं की प्रमुख भूमिका थी। सिंडीकेट के नेताओं को यह विश्वास था कि श्रीमती इंदिरा गाँधी अनुभवहीन के कारण कमजोर प्रधानमंत्री होगी व उनके परामर्श पर गर्व करेगी।

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प्रश्न 10.
‘सिंडीकेट’ गुट के नेताओं की चुनौती से निपटने के लिए क्या रणनीति बनाई?
उत्तर:
सिंडीकेट गुट के नेताओं ने श्रीमती इंदिरा गाँधी को इसलिए प्रधानमंत्री ने बनाया था कि वह कमजोर नेता रहेगी व उनके परामर्श व निर्देश पर निर्भर रहेगी। परन्तु उसने ऐसा नहीं किया व धीरे-धीरे अपनी नीतियों के माध्यम से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने लगी। लोगों पर व पार्टी पर अपना प्रभाव स्थापित कर लिया। इसके लिए श्रीमती गाँधी ने अपनी नीतियों में समाजवादी व साम्यवादी विचाराधारा को शामिल कर लिया व किसानों, मजदूरों व समाज के कमजोर वर्गों के लिए अनेक कार्यक्रम प्रारम्भ किये। इसके लिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपना दस सूत्रीय कार्यक्रम तैयार किया जिनमें प्रिवीपर्स समाप्त करना, बैंकों का राष्ट्रीकरण करना व ग्रामीण व शहरी सम्पत्ति पर पाबन्दी लगाना शामिल था।

प्रश्न 11.
कांग्रेस के 1967 के चुनाव में कमजोर प्रदर्शन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व को झटका लगा । कई राज्यों में यह सरकार नही बना सकी व केन्द्र में भी केवल साधारण बहुत प्राप्त हुआ कई दलों के समर्थन से सरकार बनी। इसी प्रकार से प्रभाव में कमी आने के निम्न कारण थे:

  1. चीन व पाकिस्तान के युद्धों का प्रभाव
  2. मानसुन फेल हो जाने के कारण खाद्यान्न में कमी
  3. आवश्यक चीजों की कीमतों में बढ़ोत्तरी
  4. करिश्माई नेतृत्व का अभाव
  5. कांग्रेस की गुटबाजी
  6. श्रीमती इंदिरा गाँधी की अनुभव हीनता
  7. कई सारे क्षेत्रीय दलों के विकास का कारण

प्रश्न 12.
राष्ट्रपति के 1969 के चुनाव में कांग्रेस का अधिकारिक उम्मीदवार क्यों सफल नहीं हो सका?
उत्तर:
1969 के सष्ट्रपति के चुनाव के समय श्रीमती इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री थीं जबकि कांग्रेस संगठन पर सिंडीकेट गुट का नियंत्रण था। इस गुट ने एन. संजीवा रेड्डी को कांग्रेस का अधिकारिक उम्मीदवार राष्ट्रपति पद के लिए घोषित कर दिया। उधर श्रीमती इंदिरा गाँधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति डा. वी. वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़ा कर दिया तथा प्रचार किया। जिससे कांग्रेस का असली उम्मीदवार चुनाव हार गया व वी. वी गिरी चुनाव जीत गये।

प्रश्न 13.
1969 में कांग्रेस के विभाजन के प्रमुख कारण बताइये।
उत्तर:
1967 के चुनाव से पहले ही कांग्रेस में गुटबाजी प्रारम्भ हो गई थी। कांग्रेस पर कुछ बड़े नेताओं का एक गुट हावी था जिसकी सिंडीकेट के नाम से जाना जाता था। 1967 के चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व में कमी आ गयी व 1969 में कांग्रेस का औपचारिक रूप से विभाजन हो गया। इसके निम्न प्रमुख कारण थे।

  1. सिंडीकेट जो कि कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं का गुट का अत्याधिक प्रभाव।
  2. कांग्रेस के बीच गुटबाजी। सिंडीकेट ग्रुप में श्रीमती इंदिरा गाँधी में गुटबाजी प्रारम्भ हो गयी थी।
  3. श्रीमती इंदिरा गाँधी का प्रभावशाली व्यक्तित्व।
  4. श्रीमती गाँधी की समाजवादी व साम्यवादी नीतियाँ जो कांग्रेस की पूंजीवादी लांबी के लोगों को पसंद नहीं थी।
  5. राष्ट्रपति के चुनाव में टकराव।

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प्रश्न 14.
प्रिवीपर्स के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
श्रीमती इंदिरा गाँधी के अनेक साहसिक कदमों में से प्रिवीपर्य को समाप्त करना भी एक साहसिक कदम था। जिसका उद्देश्य सामजवादी विचाधारा पर समाज का निर्माण करना था। प्रिवीपर्य वह व्यवस्था थी जिसके तहत पूर्व राजा व महाराजाओं को कुछ निजी संपदा रखने का अधिकार दिया गया व साथ-साथ सरकार की ओर से उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी दिये जायेंगे इस प्रकार से प्रिवीपर्स उन राजा महाराजाओं को दी गयी विशेष आर्थिक सुविधा थी जिन्होंने स्वेच्छा से अपने राज्यों को भारतीय संघ में विलय करना स्वीकार कर लिया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू भी प्रिवीपर्स के खिलाफ थे। परन्तु कई नेताओं की ओर से इसे समाप्त करने का विरोध होता रहा था। श्रीमती इंदिरा गाँधी अपने कार्यक्रम 1971 में इसे समाप्त किया।

प्रश्न 15.
1971 के चुनाव में कांग्रेस की सफलता के कारण बताइये।
उत्तर:
1971 के चुनाव से पहले कांग्रेस की काफी कमजोर स्थिति थी। कांग्रेस गुटबाजी का शिकार थी। कांग्रेस की निर्भरता अन्य दलों पर थी। 1971 के चुनाव में गैर-कांग्रेसवाद के नाम पर विपक्ष दलों ने एक बड़ा गठबन्धन बना रखा था परन्तु फिर कांग्रेस को अप्रत्याशित जीत मिली। इसके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. इंदिरा गांधी का करिश्माई व्यक्तित्व।
  2. इंदिरा गाँधी की किसान गरीब व मजदूर समर्पित नीतियाँ।
  3. गरीबी हटाओं का नारा
  4. नई कांग्रेस की राष्ट्रपति के चुनाव में जीत।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में द्वितीय प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री की भूमिका समझाइये।
उत्तर:
लाल बहादुर शास्त्री नेहरू के देहान्त के समय उनके मंत्रिमंडल में मंत्री थे। सिंडीकेट के निर्णय के अनुसार लाल बहादुर शास्त्री को पंडित जवाहर लाल नेहरू का उत्तराधिकारी चुना गया। श्री लाल बहादुर शास्त्री एक सरल, सीधे व ईमानदार व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। लाल बहादुर शास्त्री की नियुक्ति ने उन चर्चाओं पर विराम लगा दिया जो नेहरू जी के अस्वस्थ्य होने के समय चल रही थी कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा। ऐसा भी सोचा जा रहा था। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद भारत में प्रजातंत्र चल पायेगा या नहीं।

लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा उन्होंने अत्यन्त हिम्मत से सामना किया। भारत चीन के बीच 1962 के युद्ध का भारत की आर्थिक व्यवस्था व भारत की विदेश नीति का बुरा प्रभाव पड़ा मानसून फेल हो जाने से खाद्य पदार्थों का संकट पैदा हो गया क्योंकि सूखा पड़ने से कृषि पैदावार में भारी कमी हुई। 1965 में भारत व पाकिस्तान का युद्ध उनके लिए दूसरी बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया। लाल बहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा लगाया। उन्होंने इन चुनौतियों से निपटने के लिए अनेक प्रकार के उपाय किये वे देशवासियों से हिम्मत रखने की अपील की। शान्ति के लिए 1966 के ताशकंद समझौते के बाद उनका निधन हो गया।

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प्रश्न 2.
लाल बहादुर शास्त्री के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी की प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्ति समझाइये।
उत्तर:
1964 से लेकर 1966 के बीच देश के दो प्रधानमंत्रियों की मृत्यु के कारण देश में नेतृत्व का संकट पैदा हो गया मोरारजी देसाई व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बीच प्रधानमंत्री के पद के लिए कड़ा संघर्ष रहा। सिंडीकेट के प्रभाव के कारण श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त किया। वास्तव में यह नियुक्ति गोपनीय मतों के आधार पर हुई। जिसमें श्रीमती इंदिरा गाँधी ने श्री मोरारजी को हराया। श्री मोरारजी देसाई ने इस निर्णय को खुशी से स्वीकार कर लिया। इस प्रकार से सत्ता परिवर्तन शान्ति से हो गया जो एक प्रकार से भारतीय प्रजातंत्र की परिपक्वता की निशानी है।

प्रश्न 3.
चौथे आम चुनाव (1971) के समय की परिस्थितियों को समझाइये।
उत्तर:
भारत की चुनावी राजनीति के इतिहास में 1967 का चौथा आम चुनाव एक ऐसा चुनाव था जिसने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी। इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस के प्रभुत्व को कम करने में सफलता भी प्राप्त की। इस चुनाव में निम्न मुख्य परिस्थितियाँ थी:

  1. इस चुनाव में भारत व चीन के बीच 1962 के युद्ध व भारत पाकिस्तान के बीच 1965 के युद्ध का प्रभाव था।
  2. कांग्रेस में गुटबाजी।
  3. विभिन्न विरोधी दलों का एक होना।
  4. खाद्यान्न संकट।
  5. कांग्रेस में सिंडीकेट का प्रभुत्व।
  6. आर्थिक संकट व कीमतों में वृद्धि
  7. गैर-कांग्रेसवाद का विकास।
  8. कांग्रेस के वोट बैंक में गिरावट।
  9. श्रीमती इंदिरा गाँधी की अनुभव हीनता।
  10. प्राकृतिक विपदाएँ।

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प्रश्न 4.
गैर-कांग्रेसवाद का अर्थ व प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
गैर-कांग्रेसवाद वह स्थिति थी जो विभिन्न विरोधी राजनीतिक दलों में कांग्रेस के खिलाफ उत्पन्न की तथा इस बात के लिए वातावरण बनाने का प्रयास किया कि कांग्रेस के प्रभुत्व को कम किया जाये। विरोधी दलों ने विभिन्न राज्यों में बढ़ती मँहगाई के खिलाफ हड़ताल, धरने व विरोध प्रदर्शन किये। गैर-कांग्रेसवाद के विकास का उद्देश्य यह भी था कि कांग्रेस के खिलाफ पड़ने वाली वोटों को विभाजित होने से रोका जाये क्योंकि गैर-कांग्रेसी वोट विभिन्न दलों के उम्मीदवारों को इसका फायदा ना मिले। 1967 के आम चुनाव में यही हुआ कि गैर-कांग्रेसी वोट विभिन्न उम्मीदवारों में बंट जाने के बजाय एक ही उम्मीदवार को मिली जिससे कांग्रेस की सीटों व मतों के प्रतिशत में भी गिरावट आ गई। इस चुनाव में कांग्रेस को 9 राज्यों में सरकारें खोनी पड़ी व केन्द्र में भी कांग्रेस को केवल साधारण बहुमत ही प्राप्त हुआ।

प्रश्न 5.
चौथे आम चुनाव (1967) में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के कारण व प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
1967 का चौथा चुनाव कांग्रेस के लिए अच्छे वातावरण में नहीं हुआ। देश आर्थिक संकट से गुजर रहा था, आवश्यक चीजों की कीमतें आसमान छू रही थी। इस स्थिति को विरोधी दलों ने सरकार (कांग्रेस) के खिलाफ भुनाया। विरोधी दल इक्टठे हो गये व सारे देश में गैर कांग्रेसवाद का सन्देश फैला रहा था। सभी विरोधी दलों में संगठित होकर कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा। इस चुनाव के दौरान कांग्रेस एक दल के रूप में कमजोर थी क्योंकि कांग्रेस इस दौरान गुटबाजी के दौर से गुजर रही थी। कांग्रेस पर कब्जे के लिए इंदिरा गाँधी के समर्थकों व सिंडिकेट के समर्थकों में सत्ता संघर्ष चल रहा था।

1967 के चुनाव के परिणाम अत्यन्त ही अप्रत्याशित रहे। 1962 के चुनाव तक प्रत्येक चुनाव में कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। 1967 के चुनाव में पहली बार कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आयी। इसका प्रभाव बिल्कुल स्पष्ट था। कांग्रेस को 9 राज्यों हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, तमिलाडू, पश्चिमी बंगाल व केरल में सरकारें गंवानी पड़ी। 1967 के चुनाव में कांग्रेस केन्द्र में केवल साधारण बहुमत से ही सरकार बना पायी।

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प्रश्न 6.
चौथे आम चुनाव के बाद मिली चुली सरकारों को समझाइये।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक राजनीतिक दल भले ही उनकी विचारधारा अलग-अलग हो शासन करने के लिए एक दूसरे के नजदीक आकर सरकार बनाते हैं तो इसे मिली-जुली सरकार कहते हैं। इस समय भारत में भी मिली जुली सरकारों का दौर चल रहा है इसका प्रारम्भ 1967 के चुनाव के बाद ही प्रारम्भ हो गया था जब कई राज्यों में संयुक्त विधायक दलों की सरकार चल रही थी।

1967 के चुनावों के बाद भारत में मिली जुली सरकारों के उदय के निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. विरोधी दलों की गैर कांग्रेसवाद की नीति की सफलता।
  2. विरोधी दलों का मिला जुला गठबन्धन बना। इस प्रकार गठबन्धन की राजनीति का उदय।
  3. कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट।
  4. क्षेत्रवाद का उदय।
  5. कांग्रेस के खिलाफ चुनावी राजनीति।

प्रश्न 7.
दल बदल का अर्थ व इसका भारतीय राजनीति पर प्रभाव समझाइये।
उत्तर:
जब संसद सदस्य अथवा राज्य विधान सभा का निर्वाचित अथवा मनोनीत सदस्य चुने जाने के बाद उस दल को छोड़ देता है जिसके चुनाव चिन्ह पर उसने चुनाव जीता है व किसी निजी लाभ हेतु अन्य दल में शामिल हो जाता है तो उसे दल बदल कहा जाता है। दल बदल की प्रवृत्ति ने भारतीय राजनीति को अत्याधिक प्रभावित किया भारतीय राजनीति में अपराधीकरण, व्यावसायीकरण व अस्थिरता दल बदल का ही परिणाम है राजीव गाँधी की सरकार ने 1985 में 52 वां संविधान संशोधन करके इस बदल को रोकने का प्रयास किया परन्तु दल बदल घटने की बजाय बढ़ गया है 1967 के बाद से आज तक भी दल बदल भारतीय राजनीति का पर्यायवाची बन गया है।

हरियाणा में दल बदल के सन्दर्भ में आया राम गया राम एक मुहावरा बन गया है। हरियाणा में एक व्यक्ति ने 15 दिन में तीन बार दल बदल का रिकार्ड बनाया। 1979 में हरियाणा में ही चौधरी भजन लाल के पूरे मंत्रिमंडल ने मुख्यमंत्री सहित दल बदल करके पार्टी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गये। इस प्रकार पूरी सरकार जनता पार्टी की सरकार से कांग्रेस की सरकार बन गयी। इस प्रकार से दल बदल भारतीय राजनीति में केन्द्र के स्तर पर भी व प्रान्तों के स्तर पर भी मौजूद है।

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प्रश्न 8.
सिंडीकेट से आप क्या समझते हैं? कांग्रेस में सिंडीकेट व श्रीमती इंदिरा गाँधी के संघर्ष को समझाइये।
उत्तर:
पंडित जवाहर लाल नेहरू के देहान्त के बाद कांग्रेस में गुटबाजी प्रारम्भ हो गयी। कांग्रेस में कुछ राज्यों के वरिष्ठ नेताओं का एक समूह प्रभावकारी व शक्तिशाली गुट के रूप में उभर कर निकला जिसने कांग्रेस के प्रत्येक निर्णयों को प्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया। मद्रास के पूर्व मुख्यमंत्री इस गुट के नेता थे। अन्य प्रमुख नेता एस. निजलिगप्पा एस. के. पाटिल व अरूण घोष व एन. सजीव रेड्डी। लाल बहादुर शास्त्री व श्रीमती इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने में इस गुट की अहम भूमिका थी। कांग्रेस में इस गुट को सिंडिकेट के नाम से जाना जाता है। बाद में जैसे-जैसे श्रीमती गाँधी ने अपने निर्णय स्वयं लेने प्रारम्भ किये तो सिंडिकेट के साथ संघर्ष प्रारम्भ हो गया। श्रीमती इंदिरा गाँधी कुछ कल्याणकारी निर्णय स्वयं लिए जिससे संषर्घ और बढ़ गया। 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों गुट आमने-सामने आ गये व 1969 में ही कांग्रेस में विभाजन हो गया।

प्रश्न 9.
1969 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव की परिस्थितियों को समझाइये।
उत्तर:
जाकिर हुसैन की मृत्यु के बाद राष्ट्रपति का चुनाव कराना आवश्यक हो गया। कांग्रेस पहले से ही गुटबाजी का शिकार बनी हुई थी। कांग्रेस में सिंडीकेट गुट इंदिरा गाँधी गुट में संघर्ष चल रहा था। राष्ट्रपति के पद के लिए कांग्रेस की ओर से श्री. संजीवा रेड्डी को अधिकारिक उम्मीदवार बनाया गया परन्तु श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपनी ओर से तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री वी. वी. गिरी को राष्ट्रपति पद के लिए स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में ना केवल खड़ा किया बल्कि कांग्रेस के अधिकारिक उम्मीदवार श्री एन. संजीवा रेड्डी के खिलाफ डा. वी.वी. गिरी की जीत को निश्चित किया।

इस घटना में कांग्रेसी का अन्दरूनी संघर्ष और तेज हो गया। सिंडिकेट ने असली कांग्रेस का दावा करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी को कांग्रेस विरोधी गतिविधियों के इलजाम में निष्कासित कर दिया परन्तु कांग्रेस पर इंदिरा गाँधी ने पहले ही अपना प्रभाव जमाया हुआ था। इस संघर्ष के परिणाम स्वरूप 1969 में कांग्रेस में औपचारिक रूप से विभाजन हो गया। इंदिरा गाँधी की कांग्रेस ही बाद में वास्तविक कांग्रेस उभर कर आयी जिसको 1971 के चुनाव में भारी सफलता मिली।

प्रश्न 10.
1969 में कांग्रेस के विभाजन के कारण समझाइये।
उत्तर:
राष्ट्रपति के चुनाव में 1969 में ही कांग्रेस के बीच आपसी संघर्ष अत्याधिक गहरा गया। सिंडीकेट के नेताओं ने प्रारम्भ में यह सोचा था कि श्रीमती इंदिरा गाँधी अनुभवहीन है अतः उनके निर्देश पर व परामर्श पर कार्य करेगी परन्तु ऐसा नहीं हुआ। श्रीमती ने अपनी सत्ता का अपने तरीके से प्रयोग किया। समाज के विभिन्न वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम प्रारम्भ किये। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इसे कांग्रेस के बीच वैचारिक संघर्ष का नाम दिया। श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपनी नीतियों में समाजवादी व साम्यवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया जिससे कांग्रेस का पूंजीपति वर्ग भी इंदिरा जी से नाराज हुआ। कांग्रेस के बीच का यह संघर्ष अन्ततः कांग्रेस के विभाजन के रूप में बदल गया।

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प्रश्न 11.
1971 के चुनाव के संदर्भ में विशाल गठबंधन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1967 के चुनाव में कांग्रेस की सरकार को केवल साधारण बहुमत ही प्राप्त था व सरकार की निश्चितता व स्थिरता के लिए वह छोटे-मोटे दलों जैस साम्यवादी दलों पर निर्भर थी। 1969 के राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के विभाजन के बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी की स्थिति और भी अधिक कमजोर हो गयी थी। इसके अलावा आर्थिक संकट व बढ़ी हुई कीमतों को लेकर विपक्षीय दलों को गिराने के प्रयास किये जा रहे थे। इस स्थिति से छुटकारा पाने के लिए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 1971 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी। इस चुनाव में गैर-कांग्रेसी दलों ने इंदिरा कांग्रेस को हटाने के लिए मिलकर एक बड़ा संगठन बनाया जिसे विशाल गठबन्धन कहा गया। इस संगठन में प्रमुख रूप से एस. एस. पी. भारतीय जनसंघ, स्वतन्त्र पार्टी व भारतीय क्रान्तिदल। इन दलों का पूरे देश में एक ही नारा था कि ‘इन्दिरा हटाओ’ इंदिरा कांग्रेस को गठबन्धन केवल साम्यवादी पार्टी के साथ था।

प्रश्न 12.
1971 के मध्यावति चुनाव का महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
1971 के मध्यावधि चुनाव में मुख्य मुकाबला कांग्रेस साम्यवाद दल गठबन्धन व गैर कांग्रेसी दलों के विशाल गठबंधन के बीच था। विशाल गठबन्धन में कई विरोधी दल शामिल थे। इसमें मुख्य रूप एस. एस. पी., भारतीय जन संघ, स्वतन्त्र पार्टी व भारतीय क्रान्ति दल। पुरानी कांग्रेस का अधिक प्रभाव नहीं था। इस चुनाव में मुख्य मुद्दा आर्थिक संकट व मंहगाई का था। इस मुद्दे पर ही गैर-कांग्रेसी दल सरकार को हटाना चाहते थे। उनका प्रमुख नारा ‘इंदिरा हटाओं’ था। 1971 के चुनावों परिणामों ने सभी को चकित कर दिया। इंदिरा कांग्रेस को सबसे अधिक कमजोर स्थिति में समझा जा रहा था क्योंकि सभी विरोधी दलों ने एक मजबूत विशाल संगठन बना लिया था। परन्तु इस चुनाव में सबसे अधिक सफलता इंदिरा कांग्रेस को ही मिली। इसने लोकसभा की 375 सीटें प्राप्त कर व 48.4% वोट प्राप्त किये। इससे यह भी साबित हो गया कि इंदिरा कांग्रेस ही वास्तविक कांग्रेस है।

प्रश्न 13.
1971 की बंगला देश युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
1971 के चुनाव के बाद भारत को एक और युद्ध का सामना करना पड़ा। इससे पहले भी भारत को 1962 में चीन के साथ व 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा था जिनका भारत की अर्थव्यस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा था। इन्हीं के कारण भारत में कीमतें ऊंची हो गयी थी। 1971 में भारत के ऊपर एक प्रकार से युद्ध थोपा गया था क्योंकि भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी भाग में वहाँ के नागरिकों के ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ मानवीय आधार पर हस्तक्षेप किया। इस युद्ध के अन्य कारण निम्न थे –

  1. पूर्वी पाकिस्तान में राजनीतिक व सैनिक संकट
  2. पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर सैनिक अत्याचार
  3. भारत में पूर्वी पाकिस्तान से लाखों की संख्या में शरणार्थियों का आना।
  4. पूर्वी पाकिस्तान में आन्तरिक कलह
  5. भारत द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में मानवीय आधार पर हस्तक्षेप
  6. भारत पर पाकिस्तान का आक्रमण
  7. बड़ी शक्तियों का हस्तक्षेप

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प्रश्न 14.
कांग्रेस की पुर्नस्थापना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कांग्रेस का इतिहास स्पष्ट रूप से बताता है कि 1952 के प्रथम चुनाव से लेकर 1962 तक कांग्रेस का प्रभुत्व सारे देश पर रहा। केन्द्र में व लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस की सरकारें रही। पंडित जवाहर लाल नेहरू के करिश्माई नेतृत्व ने इस प्रभुत्व को बनाये रखा परन्तु नेहरू के बार 1967 में जब चौथा चुनाव हुआ तो कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट आ गयी। देश के 9 राज्यों में कांग्रेस सरकार नहीं बना पायी। वोट प्रतिशत भी घटा।

कांग्रेस की स्थिति में लगातार गिरावट आयी। 1966 में श्रीमती इंदिरा गाँधी व सिंडिकेट के बड़े नेताओं में सत्ता संघर्ष प्रारम्भ हो गया जो 1969 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में खुलकर सामने आ गया व कांग्रेस 1969 में ही औपचारिक रूप से विभाजित हो गई। इस प्रकार से कांग्रेस में 1967 से लेकर 1969 तक गिरावट का दौर रहा। परन्तु 1971 में हुए मध्यावधि चुनाव ने इंदिरा कांग्रेस ने फिर कांग्रेस को नया जीवन दिया। सभी विराधी दलों के द्वारा कांग्रेस के खिलाफ विशाल गठबन्धन बनाकर चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस ने 48.4% वोट प्राप्त करके लोकसभा की 375 सीटें प्राप्त की। इससे यह भी सिद्ध हो गया कि इंदिरा कांग्रेस ही वास्तविक कांग्रेस है। इसी को ही कांग्रेस व्यवस्था की पुर्नस्थाना कहते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1967 के चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व में गिरावट के प्रमुख कारण क्या थे व 1971 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस व्यवस्था का पुर्नस्थापना कि प्रकार से हुई।
उत्तर:
1967 के चौथे आम चुनाव में कांग्रेस के प्रभुत्व में भारी गिरावट आयी। कांग्रेस को देश के 9 राज्यों में सरकारें गवानी पड़ी । वास्तव में 1964 में पंडित जवाहर लाल नेहरू के देहान्त के बाद ही कांग्रेस के प्रभाव में कमी आ गयी थी। श्री लाल बहादुर शास्त्री का कार्यकाल अत्यन्त छोटा था परन्तु घटनात्मक था क्योंकि उनके ही कार्यकाल में 1965 में भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था 1962 में पहले ही भारत व चीन के बीच युद्ध हुआ था। इन दोनों युद्धों के कारण भारत में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। 1967 के चुनाव के प्रभुत्व में गिरावट प्रमुख कारण निम्न थे –

  1. करिश्माई नेतृत्व का अभाव।
  2. 1962 व 1965 के युद्धों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव।
  3. सूखा पड़ने से कृषि पैदावार में कमी, जिससे खाद्यान्न का संकट पैदा हो गया।
  4. कांग्रेस में आन्तरिक गुटबाजी का प्रभाव।
  5. सभी विरोधी दलों का कांग्रेस के खिलाफ संगठित होना।
  6. कांग्रेस में सिंडिकेट व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बीच सत्ता के बीच सत्ता संघर्ष।
  7. मानसून का फेल होना।
  8. आर्थिक संकट व आवश्यक चीजों की कीमतों में वृद्धि।

1967 से लेकर 1971 तक कांग्रेस का समय अच्छा नहीं रहा। इस बीच में श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस अनिश्चितता व अस्थिरता को दूर करने के लिए 1971 में मध्यावधि चुनाव की घोषणा करी दी। 1971 के इस चुनाव में सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ विशेषकर श्रीमती इंदिरा गाँधी के खिलाफ एक विशाल गठबन्धन बना लिया जिसका उद्देश्य इंदिरा कांग्रेस को सत्ता से हटाना था। परन्तु चुनावों के परिणामों ने विराधी दलों की आशाओं पर पानी फेर दिया। इस चुनाव में इंदिरा कांग्रेस को 48.4% वोट मिली। जिसके आधार पर कांग्रेस की लोकसभा की 375 सीटें मिली। इस प्रकार से कांग्रेस को फिर प्रभुत्व प्राप्त हो गया। जिसे कांग्रेस का पुर्नस्थापना कहा गया।

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली : चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना

प्रश्न 2.
निम्न पर टिप्पणियाँ लिखिए।

  1. प्रिवीपर्स
  2. मिली-जुली सरकारें
  3. दल बदल
  4. सिंडिकेट।

उत्तर:
1. प्रिवीपर्स:
देश की आजादी के बाद देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलय की व्यवस्था के उद्देश्य से विभिन्न स्तर पर प्रयास किये गये। सरकार की ओर से तत्कालीन शासक परिवारों को निश्चित मात्रा में निजी संपदा रखने का अधिकार दिया गया व उन्हें कुछ विशेष भत्ते भी देने की व्यवस्था भी की गयी। इस प्रकार की निजी संपदा रखने व भत्तों को प्रिवीपर्स कहा गया। प्रिवीपर्स की राशि इस बात निर्भर करेगी। जिस राज्य का विलय है उसका विस्तार, राजस्व और क्षमता कितनी है। 1970 में श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपनी समाजवादी नीतियों के संदर्भ में समाप्त कर दिया। इंदिरा गाँधी के इस कदम की अनेक क्षेत्रों में प्रशंसा की गई व कुछ क्षेत्रों में आलोचना भी हुई।

2. मिली-जुली सरकारें:
जब कई राजनीतिक दल मिलकर सरकार बनाते हैं उन्हें मिली जुली सरकारें कहते हैं। कांग्रेस के प्रभुत्व के समय तक केन्द्र व राज्यों में कांग्रेस की ही सरकारें रहीं। परन्तु 1967 में प्रथम बार अनेक राज्यों में गैर-कांग्रेसी दलों ने कांग्रेस के खिलाफ संयुक्त रूप से चुनाव लड़कर मिल-जुली सरकार बनी। इसके बाद मिली-जुली सरकारों का दौर भारत में चल रहा है। आज भी भारत में केन्द्र तथा प्रान्तों में मिली जुली सरकारों चल रही हैं।

3. दल बदल:
जब कोई संसद सदस्य व राज्य विधान सभा का सदस्य अपने उस राजनीतिक दल से त्यागपत्र देकर जिसके टिकट व चुनाव चिन्ह पर उसने चुनाव जीता है, किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है तो उसे दल बदल कहते हैं। दल बदल की प्रवृत्ति ने भारतीय राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया है।

4. सिंडीकेट:
सिंडिकेट कांग्रेस के 1960 के दशक के उन शक्तिशाली व प्रभावकारी नेताओं का गुट था जिसने अपने समय में कांग्रेस के प्रत्येक निर्णय को प्रभावित किया इस गुट के प्रमुख नेता कामराज, एन, संजीवा रेड्डी, एस. के. पाटिल व निजलगप्पा थे। सिंडिकेट के नेताओं में व श्रीमती इंदिरा गाँधी के बीच संघर्ष से कांग्रेस में 1969 में विभाजन हो गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
पंडित जवाहरलाल नेहरू का देहान्त किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1964
(ब) 1963
(स) 1965
(द) 1966
उत्तर:
(अ) 1964

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प्रश्न 2.
प्रिविपर्स का सम्बन्ध किससे था?
(अ) जमींदारों से
(ब) पूंजीपत्तियों से
(स) देशी रियासतों से
(द) किसानों से
उत्तर:
(स) देशी रियासतों से

प्रश्न 3.
सिंडिकेट निम्न में से किन पार्टी के नेताओं का गुट था।
(अ) साम्यवादी दल
(ब) समाजवादी पार्टी
(स) कांग्रेस
(द) जनसंघ
उत्तर:
(स) कांग्रेस

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प्रश्न 4.
गरीबी हटाओं का नारा किसने लगाया था।
(अ) पंडित जवाहर लाल नेहरू
(ब) श्रीमती इंदिरा गाँधी
(स) साम्यवादी दल
(द) लाल बहादुर शास्त्री
उत्तर:
(ब) श्रीमती इंदिरा गाँधी

प्रश्न 5.
‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने किस चुनाव को अपना मत्कारी प्रभाव दिखया?
(अ) 1971 का मध्यावधि चुनाव
(ब) 1967 का चौथा चुनाव
(स) 1957 का दूसरा चुनाव
(द) 1991 में
उत्तर:
(अ) 1971 का मध्यावधि चुनाव

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प्रश्न 6.
कांग्रेस पार्टी को भंग कर लोक सेवक संघ गठित करने का सुझाव किसने दिया था।
(अ) जय प्रकाश नारायण
(ब) एम. एन. राय
(स) महात्मा गाँधी
(द) अरविंद
उत्तर:
(स) महात्मा गाँधी

प्रश्न 7.
1967 में कांग्रेस व्यवस्था को चुनौती मिली, परिणामस्वरूप निम्न बातों में क्या असंगत है।
(अ) कई राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें
(ब) कांग्रेस में अन्तर्कलह
(स) 1969 में राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की हार
(द) सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति में ह्रास
उत्तर:
(द) सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति में ह्रास

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प्रश्न 8.
1967 में स्थापित राज्यों की गैर कांग्रेसी सरकारों ने किस संवैधानिक पद को समाप्त किए जाने की मांग की?
(अ) राज्यपाल
(ब) उपराष्ट्रपति
(स) वित्त आयोग के अध्यक्ष
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) राज्यपाल

प्रश्न 9.
ताशकंद समझौता कब और किसके बीच किया गया?
(अ) 10 जनवरी 1966, भारत-पाक
(ब) 11 जनवरी 1966, भारत-पाक
(स) 20 जनवरी 1970, भारत-चीन
(द) 1965 भारत-पाक
उत्तर:
(अ) 10 जनवरी 1966, भारत-पाक

प्रश्न 10.
जवाहर लाल नेहरू का देहांत कब हुआ?
(अ) 27 मई, 1964
(ब) 30 मई 1957
(स) 27 मई, 1960
(द) 28 मई, 1963
उत्तर:
(अ) 27 मई, 1964

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प्रश्न 11.
लाल बहादुर शास्त्री का निधन कब हुआ?
(अ) 10/11 जनवरी, 1966
(ब) जून, 1996
(स) 4 जनवरी, 1996
(द) 5 मार्च, 1963
उत्तर:
(अ) 10/11 जनवरी, 1966

प्रश्न 12.
कांग्रेस पार्टी का केन्द्र में प्रभुत्व कब तक रहा?
(अ) 1947-1977 तक
(ब) 1947-1970 तक
(स) 1947-1960 तक
(द) 1947-1990 तक
उत्तर:
(अ) 1947-1977 तक

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प्रश्न 13.
भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही तथा प्रतिबद्ध न्यायपालिका की धारणा को किसने जन्म दिया?
(अ) इंदिरा गाँधी
(ब) लाल बहादुर शास्त्री
(स) मोरारजी देसाई
(द) जवाहरलाल नेहरू
उत्तर:
(अ) जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 14.
किसने का है सम्प्रदायवाद फासीवाद का रूप है?
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) जवाहरलाल नेहरू
(स) सरदार पटेल
(द) बी. आर. अम्बेदकर
उत्तर:
(ब) जवाहरलाल नेहरू

II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 5 कांग्रेसी प्रणाली चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Part - 2 img 2
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (य)
(3) – (ब)
(4) – (द)
(5) – (अ)

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

Bihar Board Class 12 Political Science भारत के विदेश संबंध Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इन बयानों के आगे सही या गलत का निशान लगाइये।
(क) गुट-निरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों की सहायता हासिल कर सका।
(ख) अपने पड़ोसी देशों के साथ भारत के सम्बन्ध शुरूआत से ही तनावपूर्ण रहे।
(ग) शीतयुद्ध का असर भारत-पाक सम्बन्धों पर भी पड़ा।
(घ) 1971 की शांति और मैत्री की संधि संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत की निकटता का परिणाम थी।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) सही
(घ) गलत

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित का सही जोड़ा मिलाए –

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 4 भारत के विदेश संबंध Part - 2 img 1
उत्तर:
(क) – (2)
(ख) – (3)
(ग) – (4)
(घ) – (1)

प्रश्न 3.
नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतंत्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की विदेश नीति के निर्माता माने जाते हैं। वे भारत के प्रधानमंत्री के साथ-साथ भारत के प्रथम विदेशमंत्री भी थे। उनका यह मानना था कि देश की एकता अखंडता के लिए एक दूरदर्शी, प्रभावशाली व व्यवहारिक विदेश नीति का निर्माण व इसका सही संचालन अति आवश्यक है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू 1949 में संविधान सभा की एक बहस में कहा था कि आजादी बुनियादी तौर पर विदेशी सम्बन्धों से ही बनती है। यही आजादी की कसौटी भी है। बाकी सारा कुछ तो स्थानीय स्वायत्तता है। एक बार विदेशी संबंध अपने हाथ से निकलकर दूसरे के हाथ में चले जाये तो फिर जिस हद तक आपके हाथ से ये संबंध छूटे और जिन मसलों में छूटे-वहाँ तक आप आजाद नहीं रहते।

एक राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में हुआ ऐसे में भारत ने अपनी विदेश नीति में अन्य सभी देशों की सप्रभुत्ता का सम्मान करने और शांति कायम करके अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने का लक्ष्य सामने रखा। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिस तरह किसी व्यक्ति या परिवार के व्यवहारों को अंदरी और बाहरी धारक निर्देशित करते हैं उसी तरह एक देश की विदेश नीति पर भी घरेलू व अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण का असर पड़ता है।

आपकी विदेश नीति व आपके अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में सम्बन्धों के ऊपर आपकी आर्थिक व राजनीतिक स्वतंत्रता निर्भर करती है। विकासशील देशों के पास अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संसाधनों का अभाव होता है जिसके लिए उसे विकसित देशों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है अतः उसी के अनुरूप उनको अपनी विदेश नीति भी निश्चित करनी पड़ती है दूसरे विश्व युद्ध के बाद अनेक विकासशील देशों ने ताकतवार देशों की मर्जी के अनुसार अपनी विदेश नीति तय की थी।

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प्रश्न 4.
“विदेश नीति का निर्धारण घरेलू जरूरत और अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों के दोहरे दबाव में होता है।” 1960 के दशक में भारत द्वारा अपनाई गई विदेश नीति से एक उदाहरण देते हुए अपने उत्तर की पुष्टि करें।
उत्तर:
निश्चित रूप से विदेश नीति के निर्माण में अन्तरिक व वाह्य परिस्थितियाँ प्रमुख रूप में निर्धारण का काम करती है। किसी भी देश की विदेशी नीति के निम्न प्रमुख तत्व होते हैं –

  1. राष्ट्रीय हित
  2. देश की जनसंख्या व विचारधारा
  3. आर्थिक परिस्थितियाँ
  4. कृषि व उद्योग विकास की स्थिति
  5. विज्ञान व तकनीकी विकास
  6. भौगोलिक व सामरिक स्थिति

उपरोक्त आन्तरिक तत्वों के अलावा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी किसी देश की विदेश नीति के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनमें निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तनाव
  2. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण मुद्दे
  3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग
  4. विचारधारा का प्रभुत्व
  5. सामूहिक विषय जैसे आंतकवाद मानव अधिकार व पर्यावरण की समस्या आदि
  6. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर युद्ध का खतरा
  7. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर गुटबाजी

1960 के दशक में भारत की स्थिति आन्तरिक स्तर पर भी व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खराब थी। भारत कृषि के क्षेत्र में व उद्योग के क्षेत्र में भी पिछड़ा हुआ था। नियोजित अर्थव्यवस्था के आधार पर आर्थिक विकास के कार्य में लगा था जिसके लिए उसको अन्य देशों की आर्थिक व वैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता थी।

अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत के पास प्रयाप्त अनाज पैदा करने की क्षमता नहीं थी। बेरोजगारी व गरीबी देश में व्याप्त थी। आर्थिक विकास के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी मदद की आवश्यकता थी। इन सभी आन्तरिक स्थितियों ने भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया। इसी प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय तत्वों ने भी भारत की विदेश नीति को प्रभावित किया। विदेश नीति के दो प्रमुख उद्देश्य थे प्रथम राष्ट्र की एकता व अखंडता को निश्चित करना व दूसरे आर्थिक विकास प्राप्त करना।

उस समय अर्थात् 1960 के दशक में दुनिया दो गुटों में बँटी थी कि अमेरिका का गुट व दूसरा सोवियत संघ के नेतृत्व का गुट। दोनों अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे। अतः उनके प्रभाव से बंधने के लिए गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया व राष्ट्रीय एकता अखंडता को निश्चित करने के लिए पंचशील का सिद्धांत व संयुक्त राष्ट्र का ना केवल प्रारम्भिक सदस्य बना बल्कि विश्व शांति को बढ़ाना अपनी विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य बनाया।

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प्रश्न 5.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने के लिए कहा जाये तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक उसी तरह यह भी बताएं कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के सम्बन्ध में निर्णय लेने के सन्दर्भ में निम्न दो बातों को बदला जा सकता है –

  1. परमाणु नीति
  2. निःशस्त्रीकरण

भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्वों में भारत की परमाणु नीति व निशस्त्रीकरण का समर्थन दो प्रमुख तत्व रहे हैं। अब समय आ गया है कि इन विषयों के सम्बन्ध में आज की परिस्थितियों की माँग के अनुसार कुछ आवश्यक बदलाव लाये जाये। भारत की परमाणु नीति रही है कि भारत परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए ही करेगा व किसी भी परमाणु हथियार बनाने व उन्हें युद्ध के लिए प्रयोग करने का कार्य नहीं करेगा।

परंतु आज के युग में ना केवल पाँच सदस्यों अर्थात् अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन व फ्रांस के पास परमाणु बम है अथवा बम बनाने की क्षमता है बल्कि अन्य और विकसित देशों जैसे इजराइल, जर्मन, कोरिया, इन्डोनेशिया, ब्राजील व पाकिस्तान के पास भी या तो बम है अथवा परमाणु बम बनाने की क्षमता है। यह तो निश्चित है कि इन नई परमाणु शक्तियों के पास परमाणु शक्ति का युद्ध के लिए प्रयोग करने की योजनाएँ हैं इस स्थिति में भारत को अपनी परमाणु क्षमता बनाने व दिखाने की आवश्यकता है जिसके लिए उसे अपनी विदेश नीति में बदलाव करना चाहिए।

दूसरे शस्त्रीकरण का सम्बन्ध शस्त्रों के बनाने व उसके खरीदने की स्थिति से है, यद्यपि भारत ने इसका विरोध किया है परंतु जब हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में चीन व अमेरिका से शस्त्र खरीदकर हमारे खिलाफ प्रयोग किये जा रहे हैं तो इसे भी इस नीति को बदलकर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र खरीदने चाहिए। जिन विषयों को हम बनाये रखना चाहेंगे वे हैं –

  1. गुट निरपेक्षता का सिद्धांत
  2. पंचशील का सिद्धांत क्योंकि ये दोनों सिद्धांत सदा प्रांसागिक रहेंगे।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए:
(क) भारत की परमाणु नीति।
(ख) विदेश नीति के मामलों में सर्व-सहमति
उत्तर:
(क) भारत की परमाणु नीति:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू भारत की विदेश नीति के निर्माता थे। वे विश्व शांति में सबसे बड़े समर्थक थे अतः उन्होंने परमाणु ऊर्जा के लड़ाई व युद्ध में प्रयोग करने के किसी भी स्तर पर प्रयास करने का विरोध किया। भारत की विदेश नीति में भी उन्होंने यह निश्चित किया कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग केवल विकास कार्यों व शांति के लिए ही करेगा।

भारत की परमाणु ऊर्जा के संस्थापक डॉ. भावा थे जिन्होंने पंडित नेहरू के निर्देश पर परमाणु ऊर्जा का शांति के प्रयोग करने के लिए अनेक अनुसंधान किए। भारत ने 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया जिसके फलस्वरूप दुनिया के अनेक देशों ने भारत के खिलाफ प्रतिकूल प्रतिक्रिया की।

भारत सदैव परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण क्षेत्र में प्रयोग का ही समर्थक रहा व विश्व के देशों पर परमाणु विस्फोट रोकने के लिए एक व्यापक संधि के लिए जोर डाला। भारत ने परमाणु प्रसार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए की गई संधियों का विरोध किया क्योंकि ये संधियाँ पक्षपातपूर्ण थी।

इसी कारण से भारत ने 1995 में बनी (सी.टी.-बी.टी.) व्यापक परमाणु निरीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये। 1998 में भारत में फिर परमाणु विस्फोट किये। अब परमाणु ऊर्जा के सम्बन्ध में भारत की नीति यह है कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग शांति के लिए करेगा लेकिन आत्म रक्षा के लिए परमाणु क्षमता बनाने का अपना विकल्प खुला रखेगा।

(ख) विदेश नीति के मामले पर सर्वसहमति:
भारत की विदेश नीति की यह विशेषता रही है कि भारतीय विदेश नीति के निश्चित मूल तत्व रहे हैं सरकार व विरोधी दलों व अन्य जनमत निर्माण करने वाले वर्गों के बीच इन तत्वों पर आमतौर से सहमति रही है अगर इन तत्वों में किसी प्रकार का परिवर्तन करने की जरूरत पड़ी तो उस पर भी आम राय अर्थात् आम सहमति बनी। जैसे परमाणु शक्ति के प्रयोग के सम्बन्ध में व परमाणु परीक्षण करने के सम्बन्ध में आम सहमति रही। पंचशील गुट निरपेक्षता, पड़ोसियों के साथ सम्बन्ध व बड़ी शक्तियों के साथ सम्बन्धों पर आमतौर से सर्व सहमति रही है।

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प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति का निर्माण शांति और सहयोग के सिद्धांतों को आधार मानकर हुआ। लेकिन 1962 से 1972 की अवधि यानि महज दस सालों में भारत को तीन युद्धों का सामना करना पड़ा। क्या आपको लगता है कि यह भारत की विदेश नीति की असफलता है अथवा आप इसे अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम मानेंगे? अपने मंतव्य के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारत को विदेश के निर्माता पंडित जवाहरलाल नेहरू थे। वे प्रधानमंत्री के साथ-साथ भारत के विदेश मंत्री भी थे। उनके अनुसार भारत की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता व अखंडता को सुरक्षित करना व भारत का आर्थिक विकास निश्चित करना था। इस उद्देश्य के अनुरूप भारत के विदेशों से सम्बन्धों का निर्धारण किया। पंचशील व गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों को अपनाया गया।

दुर्भाग्यवश भारत को 1962 से लेकर 1972 के दशक में तीन युद्धों को झेलना पड़ा जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा। 1962 में चीन के साथ युद्ध हुआ, 1965 में भारत को पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ा व तीसरा युद्ध 1971 में भारत को पाकिस्तान के साथ ही करना पड़ा। यह सच है कि भारत को 1962 से 1972 के दशक में तीन युद्धों का सामना करना पड़ा परंतु यह नहीं कहा जा सकता कि ये भारत की विदेश नीति भी असफलता का परिणाम था। भारत ने चीन के साथ 1954 में पंचशील का समझौता किया चीन ने इस समझौते को तोड़ा तो यह चीन के द्वारा किया गया विश्वासघात था।

चीन ने एक बड़ा भारत का हिस्सा अपने कब्जे में ले लिया परंतु बाद में भी वह अपनी पुरानी सीमा पर बापिस चला गया। धीरे-धीरे भारत व चीन के सम्बन्धों में फिर सुधार हो गया। इसी प्रकार से भारत व पाकिस्तान के बीच कश्मीर के गुद्दे पर तनाव व मतभेद 1948 से ही लगातार रहे जो 1965 में युद्ध के रूप में बदल गया।

1971 में बंगलादेश व पाकिस्तान के बीच आपसी समस्या में भारत के हस्तक्षेप के कारण 1971 का युद्ध हुआ। भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्ध अब धीरे-धीरे सुधर रहे हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि 1962-1972 के बीच तीन युद्ध भारत की विदेश नीति की असफलता नहीं बल्कि तत्कालीन परिस्थितियों का ही परिणाम है।

प्रश्न 8.
क्या भारत की विदेश नीति से झलकता है कि क्षेत्रीय स्तर की महाशक्ति बनना चाहता है? 1971 के बंगलादेश युद्ध के संदर्भ में इस प्रश्न पर विचार करें।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के किसी भी तत्व से यह नहीं झलकता कि भारत अपने क्षेत्र में प्रभुत्व जमाकर क्षेत्रीय महाशक्ति बनना चाहता है। भारत की विदेश नीति के दो प्रमुख तत्वों नं. 1 पंचशील नं. 2 पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने की नीति के अनुसार भारत का यह सिद्धांत है कि कोई भी किसी अन्य के अन्दरूनी मामले में हस्तक्षेप नहीं कर वे अपासी सहयोग को बढ़ाये।

साथ-साथ पंचशील का यह भी सिद्धांत है कि सभी एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता अखंडता व प्रभुसत्ता का सम्मान करे तथा एक-दूसरे पर आक्रमण ना करे। शांतिपूर्ण सह अस्तित्व का सिद्धांत भी भारतीय विदेश नीति का प्रमुख तत्व है। गुट निरपेक्षता का उद्देश्य यह है कि तृतीय विश्व के देशों की राष्ट्रीय एकता व अखंडता सुरक्षित रहे व आर्थिक विकास में सभी तृतीय विश्व के विकासशील व अविकसित देश आपस में सहयोग करें।

1971 के बंगलादेश के संदर्भ में ऐसा कहा जाता रहा है कि भारत ने पाकिस्तान के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप करके पाकिस्तान का विभाजन कराया व इस क्षेत्र में अपना दबदबा बनाना चाहता है। भारत के कई ऊँचे प्रमुख देश जैसे श्रीलंका नेपाल भी कुछ ऐसा ही सोचने लगे हैं परंतु सच्चाई यह नहीं है। भारत ईमानदारी के साथ गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत व पंचशील के सिद्धांत पर चल रहा है।

भारत ने सार्क (दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के गठन व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अतः यह कहना गलत है कि भारत ने एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में व्यवहार किया है। बंगलादेश में भारत ने मानवीय आधारों पर हस्तक्षेप किया व सार्क के सभी देशों के साथ विशेषकर छोटे राज्यों जैसे नेपाल, भूटान व मालद्वीप जैसे देशों के साथ बड़े भाई की भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 9.
किसी देश का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह से उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति का उदाहरण देकर इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर:
किसी देश की विदेश नीति के कुछ निश्चित निर्धारक तत्व होते हैं जिनका सम्बन्ध उस देश की आन्तरिक स्थिति जैसे, सामाजिक आर्थिक स्थिति, वैज्ञानिक तकनीकी विकास, भौगोलिक सामरिक स्थिति, विचारधारा, सैनिक शक्ति व संधि-समझौते पर निर्भर करती है व साथ अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति व अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण पर निर्भर करती है परंतु देश का शासक दल व उसका नेता भी उस देश की विदेश नीति को निश्चित रूप से प्रभावित करता है भारत के सन्दर्भ में भी हम इस तथ्य को समझ सकते हैं।

भारत के प्रथम प्रधानममंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री के साथ-साथ देश के विदेश मंत्री भी रहे। भारत की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचारों की, प्राथमिकताओं की दृष्टिकोणों की व व्यक्तित्व की इतनी अधिक छाप है कि उन्हें भारत की विदेश नीति का निर्माता कहा जाता है। 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू रहे।

उन्होंने भारत की गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों के आधार पर सभी देशों व महाशक्तियों के साथ बराबर के सम्बन्ध रखें। उन्होंने भारत के विकास में सोवियत संघ का भी सहयोग लिया व अमेरिका से भी मदद ली। परंतु इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री बनाने के बाद, भले ही भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत वही रहे परंतु इंदिरा गाँधी ने भारतीय सम्बन्धों को सोवियत संघ की ओर अधिक मोड़ दिया व 1971 में सोवियत संघ के साथ संधि की।

जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमंत्री रहे श्री मोरारजी देशाई के समय में भारतीय सम्बन्धों का रूप अमेरिका की ओर रहा। इसी प्रकार परमाणु ऊर्जा के प्रयोग के लिए भारत की सदैव यह नीति रही कि परमाणु परीक्षण नहीं करेंगे व परमाणु शक्ति का प्रयोग केवल शान्तिपूर्ण उपयोग के लिए किया जायेगा परंतु एन. डी. ए. की सरकार में प्रधानमंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस नीति में व्यापक परिवर्तन कर 1998 में कई परमाणु परीक्षण किये। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि किसी देश की विदेश नीति उसके नेतृत्व पर भी निर्भर करती है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

गुट निरपेक्षता का व्यापक अर्थ है अपने को किसी भी सैन्य गुट में शामिल ना करना …… इसका अर्थ होता है चीजों को यथासंभव सैन्य दृष्टिकोण से न देखना और इसको कभी जरूरत आन पड़े तब भी किसी सैन्य गुट के नजरिये को अपनाने को जगह स्वतंत्र रूप से स्थिति पर विचार करना तथा सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ते कायम करना …… जवाहरलाल नेहरू

(क) नेहरू सैन्य गुटों से दूरी क्यों बनाना चाहते थे?
(ख) क्या आप मानते हैं कि भारत-सोवियत मैत्री की संधि से गुट निरपेक्षता के सिद्धांतों का उलंघन हुआ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(ग) अगर सैन्य गुट न होते तो क्या गुटनिरपेक्षता की नीति बेमानी होती?

उत्तर:
(क) पंडित जवाहरलाल नेहरू गुट निर्पेक्ष आंदोलन के संस्थापक थे। गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का उद्देश्य एशिया अफ्रीका व लेटिन अमेरिका के देशों को अमेरिका व सोवियत संघ के सैनिक गठबंधनों (नेटो व वार्षा सन्धि) से अलग रखना था ताकि इन देशों की स्वतंत्रता, राष्ट्रीय एकता व अखंडता को किसी प्रकार का कोई नया खतरा पैदा हो।

सोवियत संघ व अमेरिका इन नये स्वतंत्र देशों को अपने-अपने प्रभाव में लाने का प्रयास कर रहे थे जिसके लिए उन्होंने सैनिक गठबंधन बनाये थे। पंडित नेहरू ने इन नये स्वतंत्र देशों को गुट निरपेक्षता की नीति के माध्यम से यह समझाने का प्रयास किया कि किसी सैनिक गठबंधन की सदस्यता लेने पर उनकी स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। गुट निरपेक्षता का उद्देश्य इन नये देशों में आपसी सहयोग को बढ़ाना था।

(ख) अगस्त 1971 में भारत ने सोवियत संघ के साथ मित्रता व सहयोग की सन्धि की जो किसी भी प्रकार का कोई सैनिक समझौता नहीं था। इस प्रकार के सहयोग के समझौते तो भारत व अमेरिका के बीच भी चल रहे थे। अत: सोवियत संघ के साथ यह समझौता गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत का उलंघन नहीं करता। यह समझौता समय की कसौटी पर खरा उतारा। 1971 (दिसम्बर) को जब भारत व पाकिस्तान के युद्ध के दौरान अमेरिका ने अपना सातवाँ बेडा बंगाल की खाड़ी में भेजा तो सोवियत संघ ने इसका जवाब दिया जिससे अमेरिका को पीछे हटना पड़ा।

(ग) अगर सोवियत संघ व अमेरिका के सैन्य गुट ना बनते तो हो सकता है कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन का यह स्पष्ट रूप न होता। परंतु यह तो निश्चित ही है कि द्वितीय विश्व के बाद दुनिया दो गुटों में बँट गयी थी। एक साम्यवादी गुट जिसका नेतृत्व सोवियत संघ कर रहा था व दूसरा पूँजीवादी गुट जिसका नेतृत्व अमेरिका कर रहा था।

दोनों ही गुट अपना-अपना प्रभाव इन क्षेत्रों पर बढ़ाने के लिए आर्थिक मदद की पेशकश कर रहे थे। अत: इस सन्दर्भ में भी गुटनिरपेक्षता का सिद्धांत प्रासांगिक है। गुटरिपेक्षता के सिद्धांत का उद्देश्य यह भी है कि निर्णय विषय की योग्यता पर किया जाये व मान सम्मान व उचित शर्तों पर किसी से सहायता ली जाये।

Bihar Board Class 12 Political Science भारत के विदेश संबंध Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध व विदेश नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विज्ञान व तकनीकी ने विश्व को एक छोटा सा गाँव बना दिया जिस प्रकार से एक छोटे समाज में आपस में अन्तर निर्भरता होती है उसी प्रकार से विश्व के सभी देशों में आपसी अन्तर निर्भरता बढ़ रही है यातायात, संचार, व्यापार के क्षेत्र व साथ-साथ खेल व संस्कृति के क्षेत्र में विभिन्न देशों के बीच सम्बन्धों में विस्तार हो रहा है।

विभिन्न देशों के बीच विभिन्न क्षेत्र में चल रहे सम्बन्धों को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं। एक देश दूसरे देश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्धों का संचालन करने के लिए जिस नीति व दृष्टिकोण को अपनाता है उसे उस देश की विदेश नीति कहते हैं। प्रत्येक देश की अपनी एक विदेश नीति होती है जिसको विभिन्न आन्तरिक व वाह्य परिस्थितियाँ निश्चित करती हैं।

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प्रश्न 2.
विदेश नीति व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के सम्बन्ध में राज्य की नीति निर्देशक तत्वों में दिये गये निर्देशों को समझाइये।
उत्तर:
भारत में संविधान के चौथे भाग में राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय के अनुच्छेद 51 में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों को निश्चित करने के निर्देश दिये गये हैं। इनकी मुख्य सैद्धान्तिक बाते निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. सभी देशों के बीच आपसी सम्बन्धों को मजबूत करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान रखना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अपनी जिम्मेदारियों को निभाना।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को बातचीत व मध्यस्थता से तय करना।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व समझाइये।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व निम्न हैं –

  1. पंचशील
  2. गुटनिरपेक्षता
  3. अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा व शान्ति को बढ़ाना
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों को मजबूत करना
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रजातंत्रीयकरण में सहायता करना
  6. रंगभेद की नीति का विरोध करना
  7. निःशस्त्रीकरण में सहायता करना

प्रश्न 4.
द्विध्रुवी विश्व से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया दो गुटों में बँट गयी। एक साम्यवादी गुट जिसका नेतृत्व सोवियत संघ ने किया व दूसरा गुट पूँजीवादी देशों का था जिसका नेतृत्व अमेरिका ने किया। इस प्रकार से विभाजित दो गुटों की दुनिया को द्विध्रुवी विश्व कहा गया। 1950 के बाद एशिया अफ्रीका व लेटिन अमेरिका में साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद टूट रहा था व नये देश स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में आ रहे थे। दोनों ही गुट अर्थात् साम्यवाद गुट व पूँजीवादी गुट सैनिक गठबंधनों के आधार पर व आर्थिक सहायता के आधार पर इन नये स्वतंत्र देशों को अपने-अपने प्रभाव में लाने का प्रयास कर रहे थे। पूँजीवादी देशों में सैनिक गठबंधन नेटो व सेन्टो थे व साम्यवादी देशों का सैनिक गुट वारसा सन्धि था। इस प्रकार से पूरी दुनिया दो गुटों में बँटती नजर आ रही थी।

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प्रश्न 5.
पंचशील के पाँच प्रमुख सिद्धांतों को समझाइये।
उत्तर:
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों की आधारशिला पंचशील था जिस पर 1954 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू व चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ ऐनलाई ने हस्ताक्षर किया। वास्तव में पंचशील भारत व चीन के बीच ही सम्बन्धों की आधारशिला नहीं थी बल्कि यह विश्व के सभी देशों के बीच सम्बन्धों की बुनियाद थी। पंचशील भारत की विदेश नीति का प्रमुख तत्व है। इसके प्रमुख सिद्धांत निम्न हैं –

  1. एक-दूसरे के देशों की एकता, प्रभुसत्ता व अखंडता का सम्मान रखना।
  2. एक-दूसरों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप ना करना।
  3. आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  4. आपसी मतभेदों व झगड़ों को बातचीत से हल करना।
  5. सह अस्तित्व का सिद्धांत।

प्रश्न 6.
गुट निरपेक्षता के सिद्धांत से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुट निरपेक्षता का शाब्दिक अर्थ है कि किसी भी गुट के साथ ना जुड़ना। ऐतिहासिक सन्दर्भ में गुट निरपेक्षता का सिद्धांत नये स्वतंत्र देशों के किसी भी सैनिक गुट से अलग रहने का था। जैसा कि हम जानते हैं कि द्वितीय युद्ध के बाद अमेरिका व सोवियत संघ के नेतृत्व में सैनिक गुट बने थे जो तृतीय विश्व के देशों पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे। वास्तव में गुट निरपेक्षता का अर्थ इससे अधिक कुछ और भी है। इसका अर्थ है कि किसी भी विषय पर योग्यता के आधार पर निर्णय लेना।

प्रश्न 7.
सार्क के आठ सदस्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
सार्क एक क्षेत्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशिया के देशों के मध्य विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग हो बढ़ाना है। प्रारम्भ में इसमें 7 सदस्य थे अब एक सदस्य बढ़ने से इसकी संख्या 8 हो गयी है जो निम्न हैं –

  1. पाकिस्तान
  2. भारत
  3. श्रीलंका
  4. नेपाल
  5. बांगला देश
  6. मालदीव
  7. माइमार

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प्रश्न 8.
शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व के स्तर पर सोवियत संघ व अमेरिका दो महाशक्ति के रूप में उभर कर आयी। यूरोप के देश भी द्वितीय महायुद्ध में राजनीतिक रूप से व सैनिक रूप से कमजोर हो गये थे। दोनों ही महाशक्तियाँ अपने सैनिक गठबंधनों के माध्यम से दुनिया में अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिससे अमेरिका व सोवियत संघ के बीच तनाव बढ़ता गया। दोनों गुटों के बीच के तनाव को शीत युद्ध कहा गया।

शीत युद्ध के विश्व राजनीति को लम्बे समय तक प्रभावित किया। शीत युद्ध का अर्थ था कि किसी प्रकार के वास्तविक युद्ध के बिना तनाव बने रहना। इसमें एक प्रकार की मनोवैज्ञानिक लड़ाई रहती है जिसमें एक-दूसरे के हितों को प्रभावित करना व नुकसान करने का प्रयास किया जाता रहा है। 1950 से 1990 तक के कार्यकाल में शीतयुद्ध अपनी चर्म अवस्था में दुनिया में रहा है।

प्रश्न 9.
भारत व पाकिस्तान के बीच सम्बन्धों में तनाव के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर:
भारत व पाकिस्तान का उदय बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण व हिंसात्मक परिस्थितियों में हुआ। आज भी भारत व पाकिस्तान के बीच मुख्य विषय निम्न हैं जो दोनों देशों के बीच बाधा बने हैं –

  1. कशमीर की समस्या
  2. धर्म के आधार पर उग्रवाद व साम्प्रदायिकता
  3. सीमा से सम्बन्धित झगड़े
  4. पाकिस्तान के द्वारा भारत में उग्रवादियों को मदद देना
  5. पाकिस्तान के द्वारा हथियारों को इकट्ठा करना।

प्रश्न 10.
अफ्रिकन व एशियन एकता में पंडित जवाहरलाल नेहरू के योगदान को समझाइये।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू ना केवल भारत की विदेश नीति के निर्माता थे बल्कि विश्व राजनीति में भी उनका बड़ा योगदान था। पंडित नेहरू अफ्रिकन देशों व एशियन देशों के बीच मित्रता व सहयोग के सबसे बड़े समर्थक थे जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास भी किये।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1955 में वाड्ग सम्मेलन किया जिसका उद्देश्य अफ्रीका व एशियन देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ाना था। गुट निर्पेक्ष आंदोलन को लोकप्रिय बनाने व विकसित केरने का भी यही उद्देश्य था। भारत ने एशिया व अफ्रिकन देशों में सहयोग को बढ़ाने का प्रयास 1947 में ही प्रारम्भ कर दिया था। गाँधीजी ने भी अपना मिशन दक्षिण अफ्रीका में प्रारम्भ किया था।

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प्रश्न 11.
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में प्रमुख बाधक तत्व समझाइये।
उत्तर:
भारत व चीन के बीच सम्बन्धों का विस्तार व विकास 1954 में हुऐ पंचशील समझौते के आधार पर हुआ भारत प्रथम देश था जिसने 1949 में अस्तित्व में आयी साम्राज्यवादी सरकार को मान्यता दी। परंतु बाद में भारत व चीन के बीच सम्बन्ध बिगड़ गये जिनके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. सीमा विवाद
  2. तिब्बत के सम्बन्ध में दृष्टिकोण
  3. तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाईलामा को राजनीतिक शरण देना
  4. चीन के द्वारा पाकिस्तान को सैनिक मदद देना
  5. चीन का कशमीर के सम्बन्ध में दृष्टिकोण
  6. भारत के खिलाफ उत्तर-पूर्वी राज्यों में उग्रवादियों को मदद देना।

प्रश्न 12.
भारत व चीन के बीच युद्ध का भारत की साम्यवादी पार्टी पर क्या प्रभाव?
उत्तर:
भारत पर चीन के द्वारा 1962 में हुए सैनिक आक्रमण का भारत की राजनीतिक स्थिति पर व्यापक प्रभाव पड़ा तत्कालीन रक्षा मंत्री व कुछ सैनिक अधिकारियों को अपने-अपने पदों से हाथ धोना पड़ा। भारत की साम्यवादी पार्टी में 1964 में विभाजन हुआ जिसका एक वर्ग CPI (M) चीन के नजदीक आ गया व दूसरा गुट (CPI) साम्यवादी दल सोवियत संघ के नजदीक गया जो कांग्रेस को समर्थन देता रहा।

प्रश्न 13.
कारगिल घटना को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
1999 के शुरूआती महीनों में भारतीय इलाके की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोड, काकसर व बतालिक पर अपने को मुजाहिद्दिन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान की सेना का इसमें पूरा-पूरा हाथ था जिसको निश्चित कर भारतीय सेना ने आवश्यक कार्यवाही प्रारम्भ की।

इन हालात से दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो गई जिसको कारगिल की घटना के नाम से जाना जाता है। 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई ने भारत व पाकिस्तान के बीच बने आपसी दिरवास को फिर संकट में डाल दिया पूरे विश्व का इस घटना की ओर ध्यान केन्द्रित हुआ क्योंकि इसने पूरे दक्षिण एशिया के क्षेत्र में तनाव पैदा कर दिया था। यह लड़ाई केवल कारगिल के इलाके तक ही सीमित रही।

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प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति को समझाइये।
उत्तर:
भारत परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल केवल शात्तिपूर्ण उद्देश्य के लिए ही करेगा। यह भारत की विदेश नीति का प्रमुख तत्व था। पंडित जवाहरलाल नेहरू परमाणु ऊर्जा के किसी भी रूप में सैनिक प्रयोग के विरुद्ध थे। परंतु भारत किसी भी ऐसे प्रयास का समर्थन नहीं करेगा जो पक्षपात व्यवहार पर आधारित हो जैसा कि बड़ी परमाणु शक्तियों, अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, ब्रिटेन व फ्रांस ने एन.पी.टी. की सन्धि के बारे में किया जिसका उद्देश्य विकासशील देशों पर परमाणु परीक्षण के लिए पाबंदी लगाना था जबकि परमाणु हथियार बनाने व रखने का अधिकार इनके पास था। इसी आधार पर भारत ने सी.टी.-बी.टी. पर भी हस्ताक्षर नहीं किये। भारत ने 1998 के विस्फोट करने के बाद दुनिया को अपनी परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में क्षमता दिखा दी है।

प्रश्न 15.
संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की विदेश नीति समझाइये।
उत्तर:
संयुक्त प्रगतिशील मोर्चे की सरकार भी लगभग उन्हीं सिद्धांतों के आधार पर विदेश नीति का संचालन कर रही है जो प्रारम्भ से भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व रहे हैं। यू.पी.ए. सरकार ने उदारीकरण व विश्वीकरण की नीति को बढ़ाया है व परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में अमेरिका के साथ अधिक सहयोग के लिए समझौता भी किया है। चीन व सोवियत संघ के साथ भी भारत के अच्छे सम्बन्ध हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी देश की विदेश नीति के आन्तरिक व वाह्य मुख्य तत्व समझाइये।
उत्तर:
किसी देश की विदेश नीति उसकी आन्तरिक स्थिति व अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम होते हैं। प्रमुख तत्व निम्न हैं –

  1. ऐतिहासिक व सांस्कृतिक परिवेश
  2. भौगोलिक व सामरिक स्थिति
  3. आर्थिक व वाणिज्य की स्थिति
  4. राष्ट्रीय हित
  5. वैज्ञानिक व तकनीकी विकास
  6. सैनिक क्षमता
  7. विचारधारा
  8. राष्ट्र का नेतृत्व
  9. तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति
  10. शासक दल की प्राथमिकताएँ
  11. लोगों का राष्ट्रीय चरित्र
  12. राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप

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प्रश्न 2.
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? इसमें अध्ययन की आवश्यकता व महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
किसी भी देश का व्यवहार व्यक्ति के व्यवहार जैसा ही होता है जिस प्रकार किसी व्यक्ति के व्यवहार को उसका व्यक्तिगत हित प्रभावित करता है, उसी प्रकार से एक राष्ट्र का व्यवहार भी उसके राष्ट्रीय हित से प्रभावित होता है विश्व में बढ़ते हुए अन्तर्राष्ट्रीयवाद में एक देश के दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों में विस्तार हुआ है। आपस में आदान-प्रदान व सहयोग के अनेक क्षेत्रों का विकास हुआ है।

जिन बातों को ध्यान में रखकर व जिस नीति के तहत कोई राष्ट्र अन्य देशों के साथ अपने सम्बन्ध तय करता है उसे उस देश की विदेश नीति कहते हैं। एक देश अन्य देशों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सम्बन्धों को अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कहते हैं जिनका स्वरूप लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले कुछ दशकों में अन्तर्राष्ट्रवाद का स्वरूप बढ़ा है आपस में देशों के बीच संघर्ष, मतभेद, व सहयोग को अध्ययन करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन महत्त्वपूर्ण बन गया। वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन एक स्वतंत्र विषय बन गया है।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख निर्धारक तत्व क्या हैं? इनकी सैंवाधानिक स्थिति समझाइये।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्माता जिस प्रकार से भारत में सामाजिक व आर्थिक विकास के स्वरूप के सम्बन्धों में चिंतित थे व आवश्यक निर्देश संविधान में निश्चित किये उसी प्रकार से उन्होंने भारत की विदेश नीति व अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत की भूमिका के बारे में भी दिशा निर्देश दिये जिनका विवरण भारतीय संविधान के चौथे भाग में राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में अनुच्छेद 51 में किया गया है जिसकी मुख्य बातें निम्न हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून व अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों के प्रति सम्मान व वचन बद्धता को कायम रखना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मजबूत करने में सहायता देना।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मतभेदों व झगड़ों को बातचीत के माध्यम से हल करना।

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प्रश्न 4.
गुट निरपेक्षता के सिद्धांत का अर्थ व उदय का इतिहास समझाइये।
उत्तर:
द्वितीय युद्ध के बाद विश्व दो गुटों में बँट गया। एक साम्यवादी गुट व दूसरा पूँजीवादी गुट। साम्यवादी गुट का नेतृत्व सोवियत संघ ने किया व पूँजीवादी गुट का नेतृत्व अमेरिका ने किया। दोनों ही गुट एशिया व अफ्रीका में उपनिवेशवाद टूटने के उपरान्त अस्तित्व में आये नये स्वतंत्र देशे पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे व अपने-अपने सैनिक गठबंधनों में शामिल कर रहे थे जिससे इन स्वतंत्र देशों की स्वतंत्रता को खतरा हो रहा था।

इस स्थिति को देखकर भारत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री, मिश्र के राष्ट्रपति नासर, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सहारनों व यूगोस्लोविया के राष्ट्रपति मार्शल टिटो ने गुट निरपेक्षता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसका उद्देश्य इन नये देशों को इन महाशक्तियों के सैनिक गठबंधनों से दूर रखना था । गुट निरपेक्षता का अर्थ है किसी गुट में शामिल ना होना। इस सिद्धांत का यह भी उद्देश्य था कि अफ्रीका, एशिया व लेटिन अमेरिकन देशों के बीच में आपसी सहयोग बढ़े। धीरे-धीरे यह विचार एक आंदोलन बन गया। गुट निरपेक्षता का अर्थ यह भी है कि प्रत्येक देश स्वतंत्र नीति अपनाये व मुद्दों की योग्यता के आधार पर निर्णय ले।

प्रश्न 5.
गुट निर्पेक्ष आंदोलन का विकास व महत्व समझाइये।
उत्तर:
गुटनिर्पेक्ष आंदोलन का उदय व विकास द्वितीय युद्ध के बाद उत्पन्न शीत युद्ध के सन्दर्भ में हुआ। द्वितीय युद्ध की समाप्ति के बाद तृतीय युद्ध तो नहीं हुआ परंतु विश्व के अनेक क्षेत्रों में युद्ध जैसी स्थितियाँ पैदा होने से तनाव जारी रहा। इस तनाव पूर्ण स्थिति को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शीत युद्ध का नाम दिया गया। इसका मुख्य कारण उस समय की दो महान शक्तियों सोवियत संघ व अमेरिका के बीच लगातार तनाव रहा। कोरिया संकट व हँगरी संकट अरब-इजराइल युद्ध, पाकिस्तान व भारत के बीच कशमीर विवाद ऐसे विषय रहे जिन पर अमेरिका व सोवियत संघ आमने-सामने दिखाई भी दिए जिससे युद्ध तो नहीं हुआ परंतु युद्ध जैसी परिस्थितियाँ व्यापक रही।

दोनों ही महाशक्तियों नये स्वतंत्र देशों पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ा रहे थे जिससे इनकी स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो रहा था। इस प्रभाव को नियमित करने व एशिया व अफ्रीका के देशों की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने के लिए गुटरिपेक्षता के सिद्धांत पर आधारित गुट निर्पेक्ष आंदोलन का विकास हुआ। इसकी आवश्यकता व महत्त्व को समझते व स्वीकार करते हुए इसका विकास हुआ। प्रारम्भ में इसकी सदस्य संख्या 25 थी, परंतु 2004 तक इसकी संख्या 103 हो गयी जो इसकी आवश्यकता व महत्त्व को दर्शाता है इसका प्रथम शिखर सम्मेलन 1961 में हुआ था।

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प्रश्न 6.
आज के विश्व में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की प्रासांगिकता समझाइये।
उत्तर:
गुटनिर्पेक्ष आंदोलन अपने अस्तित्व से आज तक विश्व राजनीति में विशेषकर तृतीय विश्व के देशों के राजनीतिक व आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है आज विश्व के लगभग 200 देशों में से 103 सदस्य देश गुटनिर्पेक्ष आंदोलन के सदस्य हैं। जिस समय गुट निर्पेक्ष आंदोलन 1961 में अस्तित्व में आया उस समय विश्व दो गुटों में बँटा था। एक सोवियत संघ का गुट व दूसरा अमेरिका का गुट। दोनों गुटों के बीच शीतयुद्ध का दौर था।

अब क्योंकि विश्व में, सोवियत संघ टूटने से इस गुट का प्रभाव समाप्त हो गया है व विश्व की रचना का स्वरूप ही बदल गया है अत: इस प्रकार के प्रश्न उठने लगे हैं कि क्या अब गुटनिर्पेक्ष आंदोलन के अस्तित्व की कोई प्रासांगिकता है? इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि भले ही विश्व रचना का स्वरूप बदल गया हो परंतु गुटनिर्पेक्ष आंदोलन की प्रासांगिकता आज भी है क्योंकि इसका उद्देश्य तृतीय विश्व में देशों के लिए स्वतंत्रता है।

प्रश्न 7.
पंडित जवाहरलाल नेहरू की भारत की विदेश नीति के निर्माता के रूप में भूमिका समझाइये।
उत्तर:
पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत की विदेश नीति का निर्माता कहना न्यायोचित है क्योंकि वे देश के प्रथम प्रधानमंत्री ही नहीं थे बल्कि भारत के प्रथम विदेशमंत्री भी थे कांग्रेस के प्रमुख नेता थे व चमत्कारिक व्यक्ति के धनी थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू को अन्तर्राष्ट्रीय विषयों की अच्छी समझ थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू अफ्रोएशियन एकता व इन देशों के आर्थिक विकास के बहुत बड़े समर्थक थे। सोवियत संघ की नियोजित अर्थव्यवस्था से वे बहुत प्रभावित थे। चीन व भारत के आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ आधार देने के लिए उन्होंने 1954 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री के साथ पंचशील का समझौता किया।

पंचशील का समझौता ना केवल भारत व चीन के बीच सम्बन्धों का आधार था बल्कि विश्व के देशों में आपसी सम्बन्धों को मजबूत आधार देने के लिए एक मजबूत सेतू था। दुनिया के गरीब देशों के आर्थिक विकास व उनकी स्वतंत्रता को निश्चित करने के लिए पंडित नेहरू ने गुटनिरपेक्षता के सिद्धांत के प्रतिपादन व इसके विकास में अपना विशेष योगदान दिया। पंडित नेहरू का न केवल भारत की विदेश नीति के निर्माण में योगदान था, बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को मजबूत करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय के विकास में भी पंडित नेहरू का अथाह योगदान रहा।

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प्रश्न 8.
भारत की विदेश नीति के प्रमुख तत्व समझाइये जिन्होंने इसके निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की विचारधारा, प्राथमिकता व दृष्टिकोणों की अमिट छाप है। जिन प्रमुख तत्वों ने भारत की विदेश नीति के निर्धारण में अहम भूमिका अदा की हैं वे निम्न हैं –

  1. गुट निरपेक्षता
  2. पंचशील
  3. संयुक्त राष्ट्र को मजबूत करना
  4. अन्तर्राष्ट्रवाद का विकास करना
  5. सैनिक गुटों का विरोध करना
  6. निशस्त्रीकरण में सहयोग करना
  7. रंग भेद की नीति का विरोध करना
  8. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का प्रजातंत्रीयकरण करना
  9. पड़ोसी देशों के साथ अच्छे सम्बन्ध कायम करना
  10. मानव अधिकारों की रक्षा करना

प्रश्न 9.
चीन भारत का दोस्त भी रहा व दुश्मन भी। समझाइये।
उत्तर:
चीन के साथ भारत के पुराने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत की आजादी के बाद से भी भात व चीन के अच्छे सम्बन्ध रहे हैं दोनों देशों में सांस्कृतिक कृषि व व्यापार के क्षेत्रों में आदान-प्रदान होता रहा है। चीन में साम्यवादी दल की सरकार 1949 में अस्तित्व में आयी। भारत सबसे पहला देश था जिसने उसे मान्यता दी।

1954 में दोनों देशों के बीच पंचशील का समझौता हुआ जिसके आधार पर दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का विस्तार हुआ। परंतु 1959 के बाद तिब्बत पर भारत के दृष्टिकोण को लेकर व भारत के द्वारा तिब्बत के आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को भारत में शरण देने के कारण दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में तनाव पैदा हो या जो पहले सीमा विवाद में बदला व बाद में 1962 में सैनिक युद्ध में बदल गया।

चीन ने भारत पर आक्रमण कर भारत के एक बड़े क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया व भारत के सिक्किम व अरूणाचल प्रदेश तक के राज्यों पर अपना दावा कायम करने लगा। हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा देने वाला चीन भारत के हर क्षेत्र में विरोधी बन गया । पाकिस्तान के साथ 1965 में होने वाले युद्ध में भी चीन ने भारत के खिलाफ पाकिस्तान को सैनिक मदद दी व कश्मीर के मुद्दे पर भी पाकिस्तान को राजनीतिक व कूटनीतिक मदद दी। यदि इस समय भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में सुधार है फिर भी कड़वाहट व तनाव का एक लम्बा अध्याय भी जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 10.
भारत व चीन के बीच तिब्बत के प्रश्न पर उत्पन्न विवाद को समझाइये।
उत्तर:
तिब्बत भारत व चीन के बीच मध्य एशिया में एक मशहूर पठार है। ऐतिहासिक रूप से तिब्बत भारत व चीन के बीच विवाद का एक बड़ा विषय रहा है। तिब्बत का इतिहास इसके स्वतंत्र रूप से रहने की इच्छा के संघर्ष का इतिहास है। 1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के बहुमत के लोगों ने चीन के नियंत्रण का विरोध किया।

भारत व चीन के पंचशील के समझौते के समय चीन के प्रधानमंत्री ने इसे भारत की स्वीकृति समझा अत: जब भारत के सम्मुख तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा ने तिब्बत के लोगों के मत को रखा तब नेहरू ने तिब्बत के लोगों के प्रति अपना समर्थन दिया जिस पर चीन ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। भारत द्वारा दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने के कारण भारत व चीन के बीच सम्बन्ध और भी अधिक तनावपूर्ण हो गये।

प्रश्न 11.
भारत के विभाजन के मुख्य कारणों को समझाइये।
उत्तर:
भारतीय समाज को धर्म के आधार पर बाँटने का कार्य अंग्रेजों ने बहुत पहले ही कर दिया। मुस्लिम लीग का गठन 1906 में हुआ जो प्रारम्भ में तो उदारवादी राष्ट्रवादी पार्टी थी परंतु बाद में वह साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीति करने लगी। मोहम्मद अली जिन्ना के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन मुस्लिम लीग ने ही किया। 1940 में मुस्लिम लीग ने भारत के विभाजन पर अलग पाकिस्तान बनने की माँग औपचारिक रूप से रख दी। मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की माँग को अपने दो राष्ट्र के सिद्धांत पर उचित ठहराया। इस प्रकार से भारत का विभाजन हुआ। इसके निम्न प्रमुख कारण थे –

  1. अंग्रेजों की साम्प्रदायिक नीतियाँ
  2. अंग्रेजों की फूट डालो व राज्य करो की नीति
  3. अंग्रेजों का सामाजिक व आर्थिक पिछड़ापन
  4. मोहम्मद अली जिन्ना की हठधर्मी
  5. कांग्रेस की कुछ गलत नीतियाँ
  6. जिन्ना की सीधी कार्यवाही का निर्णय
  7. हिन्दू मुस्लिम झगड़े
  8. हिन्दू उग्रवाद

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 4 भारत के विदेश संबंध

प्रश्न 12.
भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध व तनाव के प्रमुख विषय क्या हैं?
उत्तर:
अगस्त 1947 में भारत का विभाजन हुआ जिसके कारण भारत व पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ। यह विभाजन व्यापक हिंसात्मक माहौल में हुआ जिसने अनेक प्रश्न पीछे छोड़ दिये जो आज भी भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध व तनाव का कारण बने हुए हैं। 1947 से अब तक तीन युद्ध भारत व पाकिस्तान के बीच हो चुके हैं ये विषय निम्न हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. कशमीर की समस्या
  3. उग्रवादियों का भारत में प्रवेश व हिंसात्मक कार्यवाही करना
  4. भारत में पाकिस्तान उग्रवादियों का हस्तक्षेप
  5. परमाणु परीक्षण
  6. पाकिस्तान के द्वारा जरूरत से ज्यादा सैनिक सामग्री इकट्ठा करना
  7. भारत का विश्व शक्ति के रूप में उभरना
  8. कशमीर के प्रश्न का अन्तर्राष्ट्रीयकरण पर नियंत्रण
  9. सीमा क्षेत्र में हस्तक्षेप करना
  10. कारगिल घटना

प्रश्न 13.
भारत व पाकिस्तान के बीच 1971 के युद्ध के प्रमुख कारण व परिणाम समझाइये।
उत्तर:
1970 के बाद पाकिस्तान के पूर्वी भाग में पश्चिमी पाकिस्तान के खिलाफ जनादेश आया व अपने ऊपर दोयम नागरिक की तरह व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने लगे। इस पर पूर्वी पाकिस्तान की आवामी पार्टी के नेता शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया व विरोध करने वाले नागरिकों पर अत्याचार किये गये। वहाँ पर एक प्रकार से आन्तरिक कलह की स्थिति पैदा हो गई।

लाखों की संख्या में बंगला देशी शरणार्थी भारत की सीमा में घुस आये जिनके कारण भारत पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ा इन परिस्थितियों में भारत बांगलादेश में मानवीय आधार पर हस्तक्षेप किया जिसके कारण पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया जो 16 दिसम्बर 1971 तक चला। 16 दिसम्बर 1971 को बांगलादेश एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आ गया। पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया। 1972 में शिमला में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री व श्रीमति इंदिरा गाँधी के बीच समझौता हुआ। शिमला समझौते को भारत व पाकिस्तान के बीच भावी सम्बधों का आधार माना गया।

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प्रश्न 14.
भारत की परमाणु नीति को समझाइये।
उत्तर:
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की प्राथमिकता भारत के आर्थिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक विकास की थी अत: वे परमाणु ऊर्जा का प्रयोग केवल औद्योगिक विकास के लिए ही करना चाहते थे व परमाणु ऊर्जा के किसी भी रूप में सैनिक प्रयोग के विरुद्ध थे अतः उन्होंने कभी भी परमाणु परीक्षण नहीं किया व महाशक्तियों पर परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए जोर देते रहे। परंतु 1971 के युद्ध के बाद इंदिरा गाँधी ने नेहरू की इस नीति में परिवर्तन किया व 1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण किया। जिसे भारत ने शांतिपूर्ण परीक्षण करार दिया।

भारत ने महाशक्तियों के द्वारा बनाई गई 1968 की परमाणु अनुसार सन्धि का विरोध किया क्योंकि यह सन्धि पक्षपात पर आधारित थी। भारत ने 1995 में बनी व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध सन्धि का भी इस आधार पर विरोध किया व हस्ताक्षर नहीं किये। 1998 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने पुनः परमाणु परीक्षण किया व अपनी परमाणु हथियार रखने की क्षमता को दर्शाया। भारत की इस समय इस सम्बन्ध में नीति यह है कि भारत परमाणु ऊर्जा का प्रयोग शांति के लिए करेगा परंतु अपने विकल्प खुले भी रखेगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत और पाकिस्तान व भारत के चीन के बीच सम्बन्धों में मुख्य बाधक तत्वों अर्थात् विषयों को समझाइये।
उत्तर:
भारत व पाकिस्तान दो अलग-अलग राज्य के रूप में हिंसात्मक वातावरण में अस्तित्व में आये। दोनों राज्यों के बीच लगातार तनाव पूर्ण सम्बन्ध रहे हैं व 1947 से 1971 तक तीन युद्ध व 2000 में कारगिल घटना भी हो चुकी है भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव के मुख्य कारण निम्न विषय हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. साम्प्रदायिकता का विरासत
  3. उग्रवादियों की पाकिस्तान में ट्रेनिंग व उनका भारत में हस्तक्षेप करना
  4. जम्मू व कशमीर की समस्या
  5. पाकिस्तान के द्वारा सैनिक हथियार इकट्ठे करना व उनका भारत के खिलाफ प्रयोग करना
  6. कशमीर के मुद्दे का पाकिस्तान के द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय करण करना
  7. परमाणु परीक्षण करना
  8. अक्ष्यचिन का विषय

चीन व भारत के सम्बन्धों में तनाव के विषय:
प्रारम्भ में भारत व चीन के बीच अच्छे सम्बन्ध रहे। 1949 में भारत ने सबसे पहले चीन की साम्यवादी सरकार को मान्यता दी। परंतु 1959 के बाद इन के रिश्तों में तनाव आ गया जबकि 1954 में भारत व चीन के बीच पंचशील का समझौता हुआ व दोनों देशों के बीच हिन्दी चीनी भाई-भाई के नारे लगाये गये। तिब्बत के विषय पर दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में तनाव पैदा हो गया जो 1962 में युद्ध में बदल गया जिसमें भारत का एक बड़ा क्षेत्र उसने अपने कब्जे में ले लिया यद्यपि भारत व चीन के बीच सम्बन्धों में सुधार तो हुआ परंतु निम्न विषय तनाव के कारण आज भी बने हुए हैं –

  1. सीमा विवाद
  2. तिब्बत का विषय
  3. दलाईलामा को भारत द्वारा राजनीतिक शरण देना
  4. कशमीर के मुद्दे पर चीन का पाकिस्तान को समर्थन
  5. चीन द्वारा पाकिस्तान को सैनिक सामग्री देना
  6. उत्तर पूर्वी राज्यों में चीन के द्वारा उग्रवादियों को समर्थन देना।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्न में से सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का निर्माता किसे कहा जाता है?
(अ) पंडित जवाहरलाल नेहरू
(ब) कृष्णा मेनन
(स) सरदार पटेल
(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(अ) पंडित जवाहरलाल नेहरू

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प्रश्न 2.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन का प्रथम शिखर सम्मेलन कहाँ पर हुआ?
(अ) वैलग्रेड
(ब) वाडूंगा
(स) काहिरा
(द) देहली
उत्तर:
(अ) वैलग्रेड

प्रश्न 3.
पंचशील का समझौता किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1955
(स) 1961
(द) 1965
उत्तर:
(अ) 1954

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प्रश्न 4.
वाडूंगा सम्मेलन किस वर्ष में हुआ?
(अ) 1954
(ब) 1961
(स) 1955
(द) 1965
उत्तर:
(स) 1955

II. मिलान वाले प्रश्न

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 4 भारत के विदेश संबंध Part - 2 img 2
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (घ)
(4) – (ब)
(5) – (अ)

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

Bihar Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘बॉम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है।
(क) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(ग) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(घ) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया था।
उत्तर:
(ख) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।

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प्रश्न 2.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था।
(क) नियोजन
(ख) उदारीकरण
(ग) सहकारी खेती
(घ) आत्म निर्भरता
उत्तर:
(ख) उदारीकरण

प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार ग्रहण किया गया था।
(क) बॉम्बे प्लान से
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभव से
(ग) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से
(घ) किसान संगठनों की मांगों से
उत्तर:
(ख) सोवियत खेमे के देशों के अनुभव से

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें।
Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Part - 2 img 1
उत्तर:
(क) – (ii)
(ख) – (i)
(ग) – (ii)
(घ) – (iv)

प्रश्न 5.
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
उत्तर:
आजादी के समय भारत के सामने अनेक प्रकार की सामाजिक व राजनीतिक समस्याएँ थी जिनका हल निकालने के लिए भारत ने नियोजित अर्थव्यवस्था को अपनाया। परन्तु नियोजन की यह प्रक्रिया इतनी सहज व सरल नहीं हो पायी व अनेक प्रकार के मतभेदों के दायरे में आ गयी सबसे पहले मतभेद वैचारिक था। वैचारिक स्तर पर भारतीय नेतृत्व में प्रमुख रूप से दो वर्ग थे। प्रथम उदारवादी चिन्तक जो विकास का पश्चिमी उदारवादी मॉडल अपनाना चाहते थे व दूसरा वर्ग उन नेताओं व चिंतकों का था जो साम्यवादी समाजवादी मॉडल को अपनाने के पक्ष में था।

दूसरा मतभेद प्राथमिकताओं को लेकर था। कुछ लोग निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दे रहे थे व अन्य सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ व निवेश के पक्ष में थे ताकि राज्य के माध्यम से आर्थिक विकास हो ताकि उसका अधिक से अधिक लाभ जनता तक पहुँच सके। तीसरा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग था। जिस पर विभिन्न सोच के लोगों में मतभेद था। कुछ लोग जैसे पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत की गरीबी, बेरोजगारी की समस्या का हल औद्योगिकरण के द्वारा करना चाहते थे जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि ग्रामीण क्षेत्र कृषि की कीमत पर अगर औद्योगिकरण किया जाता है तो वह कृषि क्षेत्र के लिए हानिकारक होना इसी संदर्भ में ग्रामीण बनाम शहरी मुद्दा भी इस अवसर पर रहा कि ग्रामीण क्षेत्र को अधिक निवेश व विकास की जरूरत है शहरी विकास ग्रामीण विकास की कीमत पर नहीं होना चाहिए।

इस प्रकार से नियोजन की प्रक्रिया कई प्रकार के मतभेदों से घिरी रही लेकिन क्योंकि सभी राष्ट्रीय हितों से प्रेरित थे अतः मतभेद होते हुए भी समायोजन व आम सहमति के माध्यम से मतभेद दूर किए गए तथा उचित रास्ता अपनाया गया। जैसे निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था अपनाई गई। ग्रामीण क्षेत्र के साथ शहरी क्षेत्र का विकास भी निश्चित किया गया। इसी प्रकार से कृषि विकास व औद्योगिक विकास में भी सम्बन्ध स्थापित किया गया।

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प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना 1951 में बनी जिसका कार्यकाल 1956 तक का था इस पंचवर्षीय योजना का सबसे प्रथम उद्देश्य गरीबी को दूर करना था। इस योजना को तैयार करने में जुटे विशेषज्ञों में एक के. एन. राज थे। पहली पंचवर्षीय योजना का मुख्य क्षेत्र अर्थात् प्राथमिकता कृषि विकास पर था। इसी योजना के अन्तर्गत खाद्य और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन का सबसे बुरा असर कृषि पर पड़ा था अतः कृषि के विकास की ओर सबसे अधिक ध्यान देने की जरूरत थी। कृषि को उचित रूप से उपयोगी बनाने के लिए इसी योजना में भूमि सुधारों पर जोर दिया गया।

दूसरी पंचवर्षीय योजना का समय 1957 से 1962 तक का था। इस पंचवर्षीय योजना के प्रमुख रूप से निर्माता पी.सी. महालनोबिस थे। यह योजना प्रथम पंचवर्षीय योजना से इस रूप में मिली थी कि इसमें जोर औद्योगीकरण पर दिया। अर्थात् इस योजना कि प्राथमिकता औद्योगिक विकास पर थी जबकि प्रथम योजना में प्राथमिकता कृषि विकास पर थी। प्रथम योजना का मूलमंत्र था धीरज, लेकिन दूसरी योजना की कोशिश तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। संरक्षण की इस नीति से निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारत 1960 के दशक में खाद्य के संकट से जूझ रहा था। कृषि पैदावार व जनसंख्या विस्तार में अनुपात बिगड़ रहा था। अनाज की कमी के कारण अमेरिका की गलत नीतियों व दबावों के बावजूद भी अमेरिका से अनाज का आयात करना पड़ रहा था। इसी समय पर सूखे के कारण अनाज उत्पादन का संकट और अधिक गहरा गया था। 1962 के चीन युद्ध व 1965 के पाकिस्तान के युद्ध ने अनाज के संकट को और बढ़ा दिया। अनाज खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा भी चुकानी पड़ती थी।

इस स्थिति से निपटने के लिए कुछ नए उपयों का सूत्रपात किया गया जिसमें से एक थी हरित क्रान्ति। हरित क्रान्ति का अर्थ था विज्ञान तकनीकी, रसायनिक खाद, उन्नत बीजों का प्रयोग करके अन्न उत्पादन को बढ़ाना। 1960 के दशक में ही भारत में हरित क्रान्ति का सूत्रपात किया गया। इसका प्रयोग पहले केवल उन राज्यों में किया गया जो पहले से ही अपेक्षाकृत संसाधन रखने वाले राज्य थे। इन राज्यों में हरियाणा, पंजाब व उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र थे। निश्चित रूप से हरित क्रान्ति से अन्न पैदावार में बड़ी क्रान्ति आयी।

हरित क्रान्ति के दो निम्न सकारात्मक परिणाम –

  1. जमीन का उचित प्रयोग।
  2. अनाज उत्पादन में वृद्धि।

हरित क्रान्ति के दो निम्न नकारात्मक परिणाम थे –

  1. केवल कुछ ही राज्यों तक इसका प्रभाव सीमित रहा।
  2. अनाज की गुणवत्ता में कमी आयी।

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प्रश्न 8.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि-विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे?
उत्तर:
(1951 – 1956) तक की प्रथम पंचवर्षीय योजना में उम्मीद के अनुसार कृषि क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता दी गई क्योंकि कृषि भारत का एक बड़ा क्षेत्र था वह भारत की 80% जनता ग्रामों में रहती थी खेती क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या इसके प्रबन्धन की कमी व इसके सही प्रकार से उपयोग का अभाव था। अत: कृषि का विकास की अत्यन्त आवश्यकता थी ताकि भारतीय समाज की मूल समस्याएँ बेरोजगारी व गरीबी को दूर किया जा सके।

परन्तु इसी बीच एक अन्य सोच का जन्म हुआ जिसमें कृषि के स्थान पर औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने पर बल दिया गया क्योंकि गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने के लिए कृषि के स्थान पर उद्योगों को अधिक उपयुक्त समझा गया। इस विचार को दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) में लागू किया गया। पी.सी. महालनोबिस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों और योजनाकारों की एक टोली ने यह योजना तैयार की थी। इस योजना में औद्योगीकरण पर दिए गए जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया। परन्तु कुछ नए मुद्दों व समस्याओं अर्थात् विवादों का भी जन्म हुआ। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा कृषि बनाम उद्योग बना विवाद यह था कि किस क्षेत्र में अधिक संसाधन लगाए जाए।

कुछ लोगों का यह मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता देने से कृषि विकास के हितों का नुकसान हुआ है। जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशात्रियों ने एक वैकल्पिक योजना का खाका तैयार किया जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर बल दिया। उनका तर्क यह था कि अगर औद्योगीकरण ही करना है तो कृषि के क्षेत्र में औद्योगीकरण किया जाना चाहिए ताकि ग्रामों में रहने वाले लोगो को रोजगार मिले व उनके जीवन में सुधार किया जा सके। जबकि अन्य वर्ग के लोगों का यह मानना था कि बगैर भारी औद्योगीकरण के गरीबी का निवारण नहीं किया जा सकता। इन लोगों का मानना था कि ग्रामीण व कृषि विकास के लिए भी औद्योगीकरण विकास आवश्यक है।

प्रश्न 9.
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता” इस विचार के पक्ष में व विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका के बारे में काफी विवाद रहा। कुछ लोग सार्वजनिक क्षेत्र के पक्ष में थे जिसमें राज्य को अधिक से अधिक भूमिका दी जाती है जबकि अन्य वर्ग आर्थिक विकास के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दी जाती है जबकि अन्य वर्ग आर्थिक विकास के क्षेत्र में निजी क्षेत्र को अधिक महत्व देते थे तथा राज्य के क्षेत्र को सीमित करना चाहते थे। अन्त में बीच का रास्ता अर्थात् मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया लेकिन यह निश्चित है कि सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया क्योंकि भारत अर्थव्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों पर बनाना चाहता था।
उपरोक्त कथन के पक्ष में तर्क निम्न है। पक्ष में –

  1. व्यक्तिगत विकास के लिए अधिक उपयुक्त होता।
  2. औद्योगिक विकास की रफ्तार तेज होती।
  3. रोजगार के अधिक अवसर प्राप्त होते।
  4. गरीबी दूर करने में अधिक सहायक होता।
  5. आर्थिक गतिविधियाँ तेज होती जिससे आर्थिक विकास तेज होता।
  6. विदेशी मुद्रा कमाने में सहायक होता।

विपक्ष में –

  1. संविधान की भावना के प्रतिकूल होता।
  2. समाज में असमानताएँ व विषमताएँ बढ़ती।
  3. कृषि क्षेत्र का विकास रुक जाना।
  4. ग्रामीण व शहरी क्षेत्र में टकराव बढ़ता।
  5. पूँजीपतियों में वृद्धि होती।
  6. सामाजिक न्याय का उद्देश्य प्राप्त नहीं होता।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें –
आजादी के बाद के आरम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए। इससे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज ठहराया गया।

(क) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ख) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका संबंध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(ग) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्री: और इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?

उत्तर:
(क) आजादी के बाद में प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपी जिनमें से एक आर्थिक गतिविधियों के निजी क्षेत्र में करने की पक्षधर थी दूसरी विचारधारा के लोग वे थे जो आर्थिक गतिविधियों को सार्वजनिक क्षेत्र में देकर राज्य की एक बड़ी भूमिका के पक्षधर थे। दोनों दबावों के मद्देनजर मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों में की गई।

(ख) कांग्रेस की सरकार के निर्णय ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाई और उसके बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाए। सरकार ने ये कार्य बड़े-बड़े पूँजीपतियों व उद्योगपतियों के समूह के दबाव में उठाये।

(ग) कांग्रेस पार्टी एक अनुशासित दल जिसमें पंडित जवाहर लाल नेहरू का चमत्कारिक व प्रभावशाली नेतृत्व था। अतः यह मानना गलत ही होगा कि कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व व प्रान्तीय नेतृत्व में किसी प्रकार का अन्त:विरोध था। अधिकांश राज्यों में कांग्रेस दल की ही सरकारें थीं जिनको केन्द्र के लगभग सभी निर्णय मान्य होते थे।

Bihar Board Class 12 Political Science नियोजित विकास की राजनीति Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की प्रमुख विरासतें समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद ब्रिटिश साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद को निम्न प्रमुख आर्थिक विरासतें मानी जा सकती हैं –

  1. आर्थिक गरीबी
  2. बेरोजगारी
  3. क्षेत्रीय असंतुलन
  4. आर्थिक पिछड़ापन
  5. विकसित स्रोतों का अभाव
  6. प्रति व्यक्ति कम आय
  7. अर्थव्यवस्था में पूँजीवादी व सामन्तवादी प्रवृतियाँ
  8. कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था

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प्रश्न 2.
आजादी के बाद आर्थिक विकास की प्रमुख दृष्टिकोण कौन-कौन से थे?
उत्तर:
आजादी के बाद भारत के सामने आर्थिक विकास के बड़ी चुनौती थी जिसमें अनेक प्रकार की आर्थिक समस्याएँ थीं जिनको दूर करने के लिए कई प्रकार की विधियाँ व माडल थे जिनमें से कुछ प्रमुख निम्न थे।

1. समाजवादी सिद्धान्त:
समाजवादी चिन्तक, भारत की अर्थव्यवस्था का निर्माण समाजवादी सिद्धान्तों पर करना चाहते थे जिससे समाज में व्याप्त असमानता, अन्याय व शोषण को दूर किया जा सके। समाजवादी चिन्तन का दूसरा पक्ष यह था कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में राज्य की अधिक से अधिक भूमिका हो।

2. उदारवादी पूँजीवादी सिद्धान्त:
उदारवादी चिन्तक खुली व मार्केट अर्थव्यवस्था का निर्माण करना चाहते थे जिससे राज्य के कम से कम नियन्त्रण व हस्तक्षेप से आर्थिक विकास किया जा सके।

प्रश्न 3.
नियोजित आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
नियोजित आर्थिक विकास का अर्थ है कि आर्थिक विकास के क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ इस प्रकार से की जाए जिनसे निश्चित समय अवधि में निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। तथा जिससे उपलब्ध श्रोतों का अधिक से अधिक प्रयोग व उपयोग करके उत्तम परिणाम प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 4.
मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों अर्थात् निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र में की जाती है। निजी क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप व नियन्त्रण न्यूनतम होता है व आर्थिक गतिविधियाँ खुली प्रतियोगिता के आधार पर की जाती है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जन्म देता है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ पर आर्थिक गतिविधियाँ खुली प्रतियोगिता के आधार पर की जाती है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को जन्म देता है। दूसरी ओर सार्वजनिक क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जहाँ पर आर्थिक गतिविधियों में राज्य का अधिक से अधिक नियन्त्रण व हस्तक्षेप होता है। इसमें लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर चीजों का उत्पादन किया जाता है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया था। 1990 तक भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में दबदबा रहा परन्तु 1990 के बाद भारत में निजी क्षेत्र का महत्त्व बढ़ रहा है।

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प्रश्न 5.
योजना आयोग क्या है? इसके प्रमुख कार्य क्या हैं?
उत्तर:
योजना आयोग एक महत्त्वपूर्ण संस्था है जिसका उद्देश्य भारत में नियोजन की क्रिया का संचालन करना है यह एक गैर संवैधानिक संस्था है वह इसका स्वरूप व भूमिका एक परामर्शदाता के रूप में होता है। इसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं व एक उपाध्यक्ष व कुछ सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इसके निम्न कार्य हैं –

  1. स्रोतों का मूल्यांकन करना
  2. योजनाओं के लिए प्राथमिकता निश्चित करना
  3. योजनाओं का बीच में मूल्यांकन करना
  4. उद्देश्यों को निश्चित करना
  5. योजनाओं के लिए वजट निश्चित करना
  6. राज्यों की योजनाओं को मंजूरी देना

प्रश्न 6.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना का समय 1951 से 1956 का था जिसका निर्माण श्री के. एन. राज ने किया था। क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए प्रथम योजना में प्राथमिकता के तौर पर कृषि को महत्व दिया गया। कृषि की स्थिति बहुत खराब थी। जमीन की सिंचाई के साधन उपयुक्त नहीं थे। प्राकृतिक जल पर ही खेती चलती थी। अधिकांश लोग ग्रामों में रहते थे जिनका सम्बन्ध जमीन व कृषि से था। इसलिए इस प्रथम योजना में कृषि विकास को ज्यादा प्राथमिकता दी गई।

प्रश्न 7.
निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र में मुख्य अन्तर समझाइए।
उत्तर:
निजी व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई। दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएँ व क्षेत्र हैं। दोनों में निम्न प्रमुख अन्तर हैं।

  1. निजी क्षेत्र उदारवादी पूँजीवादी चिन्तन पर आधारित हैं। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र समाजवादी चिन्तन पर आधारित हैं।
  2. निजी क्षेत्र में आर्थिक क्षेत्रों का केन्द्रीकरण होता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में श्रोतों का विकेन्द्रीकरण होता है।
  3. निजी क्षेत्र में राज्य की सीमित भूमिका होती है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
  4. निजी क्षेत्र में व्यक्तिगत लाभ को महत्व दिया जाता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में सर्वहित को महत्व दिया जाता है।
  5. निजी क्षेत्र प्रतियोगिता पर आधारित होता है। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र सभी के सहयोग पर आधारित होता है।

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प्रश्न 8.
जमीन सुधार उपायों का क्या उद्देश्य या?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। कृषि मुख्य रूप से जमीन पर आधारित है। आजादी के समय जमीन का प्रबन्ध उचित नहीं था। इसका वितरण व रखरखाव भी ठीक नहीं था जिसके कारण इसका उपयोग भी पूर्ण नहीं होता था जिससे पैदावार भी कम होती थी। आजादी के बाद भारत सरकार ने जमीन सुधार कार्यक्रम के तहत जमीन के प्रबन्धन व वितरण को न्यायोचित बनाने के लिए विभिन्न उपाय प्रारम्भ किए जिसमें प्रमुख था जमींदारी प्रणाली को समाप्त करना, चकबन्दी करना व जमीन की अधिकतम सीमा पर सीलिंग करना। इस प्रकार से जमीन को उन लोगों को सौंपा जो वास्तव में खेत पर खेती करते थे इस प्रकार से इन उपायों से जमीन की गुणवत्ता बढ़ी व साथ साथ पैदावार भी बढ़ा व हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुए।

प्रश्न 9.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना की प्राथमिकता क्या थी?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल 1956-1962 तक का था। प्रथम पंचवर्षीय योजना के बाद यह महसूस किया गया कि बिना औद्योगिक विकास की रफ्तार को तेज किए बिना भारत की मूल समस्याओं जैसे गरीबी, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर नहीं किया जा सकता अतः द्वितीय पंचवर्षीय योजना में औद्योगिक विकास को प्राथमिकता दी गई तथा आर्थिक विकास की गतिविधियों को तेज किया गया। इस योजना में भारत की अर्थव्यवस्था में रचनात्मक व संगठनात्मक. परिवर्तन किए गए।

प्रश्न 10.
गाँधीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
जहाँ एक तरफ भारत में भारतीय अर्थव्यवस्था की समाजवादी चिन्तन व उदारवादी चिन्तन के आधार पर बनाने वाले लोग एक वर्ग गाँधीवादियों का था जो भारतीय अर्थव्यवस्था को गाँधीवादी सिद्धान्तों पर बनाना चाहता था इसमें प्रमुख रूप से जे.सी. कुमारप्पा व चौधरी चरण सिंह के नाम लिए जा सकते हैं। गाँधीवादी चिन्ता व सिद्धान्त की निम्न विशेषताएँ हैं –

  1. कृषि विकास पर अधिक जोर।
  2. ग्राम विकास को प्राथमिकता देने वाली नियोजन प्रक्रिया।
  3. छोटे व लघु उद्योगों का विकास।
  4. सादा जीवन।
  5. आत्मनिर्भरता।
  6. अपने श्रोतों में ही जीना।

प्रश्न 11.
भारत में आजादी के बाद पहले दो दशकों में आर्थिक विकास की कौन-सी नीति अपनाई गई और क्यों?
उत्तर:
यद्यपि भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया लेकिन आर्थिक विकास के क्षेत्र में भारत में अधिक जोर सार्वजनिक क्षेत्र में रहा जिसके कारण अधिकांश आर्थिक गतिविधियाँ राज्य के नियन्त्रण में की गई। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत में संविधान की भावना के अनुरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों के आधार बनाना था ताकि वर्षों से चल रही गरीबी, बेरोजगारी सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर किया जा सके। इस कारण इन दर्शकों में निजी क्षेत्र को सीमित भूमिका दी गई।

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प्रश्न 12.
समाजवादी विचारधारा के आधार पर आर्थिक नीतियों के मुख्य परिणाम समझाइए।
उत्तर:
भारत में समाजवादी विचारधारा अधिक लोकप्रिय रही जिसके आधार पर आर्थिक नीतियाँ बनाई गई। इसकी निम्न प्रमुख सफलताएँ हैं –

  1. नियोजित आर्थिक विकास राज्य के नियन्त्रण व निर्देशन में चला।
  2. समाज में व्याप्त सामाजिक व आर्थिक असमानताओं को दूर किया गया।
  3. गरीब वर्ग का जीवन स्तर उठाया गया।
  4. सामाजिक न्याय को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
  5. सामन्तवादी व पूँजीवादी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण लगा।
  6. समाजवादी चिन्तन पर प्रजातन्त्र का विकास हुआ।

प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत में 1960 के दशक में अनाज व अन्य खाद्यान्न का गम्भीर संकट था। खाद्यान्न अभाव के कारण अमेरिका से पी.एल. 480 के तहत अनाज आयात करना पड़ा। खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से कुछ एक अन्य राज्यों में जहाँ स्रोत उपलब्ध थे विज्ञान व तकनीकी का प्रयोग कर उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग करके अनाज की पैदावार बढ़ाने का प्रयास किया इसमें रासायनिक खाद व दवाइयों का भी प्रयोग किया। इस प्रकार से अनाज पैदावार में बढ़ोत्तरी को हरित क्रान्ति कहा गया। इसका लाभ केवल उन विकसित राज्यों तक ही सीमित रहा जो पहले से ही समृद्ध थे। जैसे पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश। हरित क्रान्ति के पीछे डा. एम.एस. स्वामीनाथन का विचार एक प्रेरणा थी।

प्रश्न 14.
भारत में खाद्य संकट के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर:
भारत को 1960 के दशक में खाद्य संकट से गुजरना पड़ा इसका एक प्रमुख कारण यह था किस अन्न की पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में बड़ा अन्तर था। जमीन का बड़ा भाग खेती के लिए उपयुक्त नहीं था। उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश, व बिहार सबसे ज्यादा प्रभावित थे।

इस संकट के प्रमुख कारण निम्न थे –

  1. खाद्य पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में बड़ा अन्तर
  2. 1965 व 1962 के युद्धों का प्रभाव
  3. प्राकृतिक संकट
  4. विदेशी मुद्रा का संकट
  5. भूमि का अन्याय संगत बँटवारा
  6. सिंचाई के साधनों का अभाव

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प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति की मुख्य उपलब्धियाँ समझाइए।
उत्तर:
हरित क्रान्ति भारत में उस समय जबकि भारत एक बड़े खाद्य संकट से गुजर रहा था। हरित क्रान्ति की निम्न उपलब्धियों मान सकते हैं –

  1. खाद्य पैदावार में वृद्धि
  2. कृषि में विज्ञान का प्रयोग
  3. किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ
  4. कृषि का मशीनीकरण किया गया
  5. उन्नत बीज बनाने व रासायनिक खाद्य बनाने वाले कारखाने लगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आजादी के बाद आर्थिक विकास के सम्बन्ध में कौन-सी प्रमुख धारणाएँ व विधियाँ थी?
उत्तर:
जब देश आजाद हुआ तो कई प्रकार की सामाजिक व आर्थिक समस्याएँ हमें ब्रिटिश साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद की विरासत में मिली, जिनमें प्रमुख रूप से गरीबी, बेरोजगारी व क्षेत्रीय असन्तुलन व अनपढ़ता थी। वास्तव में ये समस्याएँ उस समय के नेतृत्व के सामने बड़ी चुनौतियाँ थी। विभिन्न स्तरों पर इस पर लम्बी बहस हुई कि इन सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को हल करने के लिए विकास का कौन-सा मॉडल अपनाया जाए।

उस समय दुनिया में प्रमुख रूप से दो मॉडल प्रचलित थे, एक तो समाजवादी मॉडल एक पश्चिमी उदारवादी पूँजीवादी मॉडल। यद्यपि भारत में समाजवादी चिन्तन का व्यापक प्रभाव था परन्तु उदारवादी विचारधारा के आधार पर स्वतंत्र अर्थव्यवस्था के समर्थन भी मौजूद थे। कांग्रेस में अनेक नेता यहाँ तक कि पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे भी समाजवादी सिद्धान्तों से प्रभावित थे। कांग्रेस ने स्वयं गुवाहाटी अधिवेशन में समाजवादी सिद्धान्तों को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में भी बाद में समाजवाद जोड़ा गया व संविधान में ही चौथे भाग में अर्थात् राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों के अध्याय में समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्था को बनाने का निर्देश दिया गया है। लेकिन पूँजीवादी विचारकों की भावी मजबूत थी। जिन्होंने अपना दबाव बनाया व भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया।

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प्रश्न 2.
नियोजित आर्थिक विकास की राजनीति से आप क्या समझते हो?
उत्तर:
देश की आजादी के बाद विभिन्न सामाजिक आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए व उपलब्ध स्रोतों का उचित प्रयोग करने के लिए एक निश्चित तकनीकी व विधि की आवश्यकता थी जिस पर विचार करने व निर्णय लेने की प्रक्रिया विभिन्न स्तर पर प्रारम्भ हुई। इसी को ही नियोजित आर्थिक विकास की राजनीति कहते हैं। विभिन्न दृष्टिकोणों व विचारधाराओं के समर्थक अपने-अपने तरीकों से इस बात का प्रयास कर रहे थे कि भारत की समस्याओं का हल उनकी विचारधारा के माध्यम से हो सकता है। विकास का कार्यक्रम जब प्रारम्भ हुआ तो विभिन्न स्तर पर कई प्रकार के विवाद पैदा हो गए। नियोजकों व स्थानीय लोगों में विवाद पैदा हुए। इस प्रकार विकास की प्रक्रिया का राजनीतिकरण हो गया।

प्रश्न 3.
वामपंथी व दक्षिण पंथी राजनीतिक दलों से आप क्या समझते हैं।
उत्तर:
आमतौर से राजनीतिक दलों को उनकी विचारधारा, कार्यविधि व प्राथमिकता के आधार पर तीन भागों में बाँटते हैं –

  1. वामपंथी
  2. दक्षिणपंथी व
  3. केन्द्रपंथी

वामपंथी वे राजनीतिक दल होते हैं जो कि सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक परिवर्तन तेजी से समाज में आमूल परिवर्तन करके लाना चाहते हैं। ये राज्य की भूमिका को सीमित करना चाहते हैं। आमतौर से वामपंथी दल किसान मजदूर व अन्य गरीब वर्गों के हितेशी माने जाते हैं। भारत में साम्यवादी दलों को वामपथी दल कहा जाता है ये उस सरकार का समर्थन करते हैं जो समाज के कमजोर वर्गों के हितों को सुरक्षित करें।

उधर दक्षिणपंथी वे राजनीतिक दल के होते हैं सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में स्थिरता अर्थात् यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं अर्थात् कोई बड़ा क्रांतिकारी परिवर्तन का विरोध करते हैं। ये राजनीतिक दल परम्पराओं में विश्वास करते हैं व पुरानी परम्पराओं को बनाए रखना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना, अकाली दल व मुस्लिम लीग को हम दक्षिणपंथी दल मान सकते हैं। इसके अलावा जो राजनीतिक दल बीच का रास्ता अपनाते हैं उनको केन्द्रपंथी कहते हैं। कांग्रेस, जनतादल व अन्य दल केन्द्रपंथी है।

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प्रश्न 4.
समाजवादी समाज से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताएँ समझाए।
उत्तर:
एक ऐसा समाज जिसकी सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था को समाजवादी सिद्धान्तों पर बनाया जाता है। अर्थात् समता व न्याय के आधार पर बनाया जाता है उसे समाजवादी समाज कहते हैं। भारतीय संविधान सभा में ही यह निर्णय लिया गया था कि भारत की सामाजिक आर्थिक नीतियाँ समाजवादी सिद्धान्तों पर, निर्धारित की जाएंगी। राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों में समाजवादी सिद्धान्तों का वर्णन किया गया है। इसकी निम्न प्रमुख विशेषताएँ हैं –

  1. अधिक से अधिक सामाजिक व आर्थिक नीतियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में। अर्थात् राज्य को अधिक से अधिक जिम्मेवारी।
  2. सामाजिक आर्थिक समानताएँ व न्याय प्रमुख उद्देश्य।
  3. सामाजिक आर्थिक प्रजातन्त्र का निर्माण करना।
  4. विभिन्न प्रकार की विषमताओं को दूर करना।
  5. पूँजीवादी व सामन्तवादी प्रवृत्तियाँ समाप्त करना।

प्रश्न 5.
विकास से आप क्या समझते हैं? भारत में आर्थिक सामाजिक विकास से जुड़ी अवधारणाओं को समझाइए।
उत्तर:
विकास शब्द का अर्थ अलग-अलग व्यक्तियो के लिए अलग-अलग है। वास्तव में विकास शब्द का अर्थ उपलब्ध स्रोतों का सर्वोत्तम प्रयोग करके अर्थात् स्रोतों का नियोजित वैज्ञानिक व विवेकपूर्ण आधार पर प्रयोग करके एक आधुनिक समाज का निर्माण करना है। विकास शब्द का अर्थ मनुष्य के शारीरिक मानसिक व बौद्धिक विकास से है। विकास शब्द का सम्बन्ध, एक विवेकयुक्त, व आत्मनिर्भर समाज का गठन करना है। विकास समाज की मूल रचना, मूल्य व सोच में सकारात्मक परिवर्तन करता है। विकास का सम्बन्ध परिवर्तन व आधुनिकीकरण से है। भारत में सामाजिक आर्थिक विकास के लिए मुख्य रूप से दो प्रकार के मॉडल की वकालत की गई थी। प्रथम समाजवादी चिन्तन में आधार पर मॉडल व दूसरा उदारवादी पूँजीवादी मॉडल।

समाजवाद का प्रभाव उन दिनों पूरी दुनिया में था। भारत में समाजवादी चिन्तन के आधार पर समाज का विकास करने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ थीं। कांग्रेस के अनेक नेता समावादी मॉडल के पक्षधर रहे। प्रारम्भ में भारत में कई दशकों समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर सामाजिक आर्थिक विकास किया गया। परन्तु कुछ लोग उदारवादी पूँजीवादी मॉडल के पक्षधर थे जो राज्य को कम से कम क्षेत्र देकर व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतन्त्रता के पक्षधर रहे। अन्त में भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के मॉडल को भारत के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए अपनाया गया।

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प्रश्न 6.
योजना की प्रक्रिया से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व है।
उत्तर:
योजना वह प्रक्रिया है जिसमें संसाधनों का वैज्ञानिक तरीके से अधिक से अधिक उपयोग करके कम से कम समय व खर्च में अधिक से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके। योजना एक वैज्ञानिक व क्रमबद्ध प्रक्रिया है। इसकी निम्न विशेषता है।

  1. यह एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है।
  2. इसमें निश्चित उद्देश्य तय किया जाता है।
  3. उद्देश्यों व लक्ष्यों को कम से कम समय में प्राप्त कराने की योजना होती है।
  4. योजनाएँ निश्चित समय के लिए निश्चित उद्देश्य तय किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
योजना आयोग का गठन व कार्य समझाइए?
उत्तर:
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत का वैज्ञानिक पद्धति से। विकास करना चाहते थे। भारत की सामाजिक आर्थिक समस्याओं को क्रमबद्ध तरीके से हल करना चाहते थे। वे सोवियत संघ की योजना प्रक्रिया से अत्यन्त प्रभावित थे। अतः उन्होंने भारत में नियोजन की प्रक्रिया प्रारम्भ की। नियोजन की प्रक्रिया का संचालन करने के लिए उन्होंने 1950 में योजना आयोग का गठन किया। योजना आयोग का एक उपाध्यक्ष होता है। जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। इसके अलावा योजना आयोग के कई सरकारी व गैर सरकारी सदस्य होते हैं। कुछ मन्त्री इसके पदेन सदस्य होते हैं। भारत का प्रधानमंत्री योजना आयोग का पदेन अध्यक्ष होता है। योजना आयोग का स्वरूप एक सलाहकार संस्था के रूप में होता है।

योजना आयोग का कार्य –

  1. पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण करना।
  2. स्रोतों का अवलोकन करना।
  3. योजनाओं की प्राथमिकता निश्चित करना।
  4. योजनाओं के लक्ष्यों को प्राप्त करना।
  5. योजनाओं के बीच में प्रगति प्राप्त करना व मूल्यांकन करना।
  6. योजना की प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को दूर करना।
  7. विभिन्न प्रकार की सलाह प्रदान करना।

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प्रश्न 8.
मिश्रित अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद दो प्रकार की विचारधाराओं के आधार पर भारत के आर्थिक विकास के लिए प्रतियोगिता व बहस जारी थी। समाजवादी चिन्तन के लोग अधिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में चाहते थे जबकि उदारवादी चिन्तक पूँजीवाद के विस्तार के पक्षधर थे। इस विवाद को समाप्त करने के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था की निम्न विशेषताएँ हैं।

  1. आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों में चलाए जाने की व्यवस्था अर्थात् निजी क्षेत्र व: सार्वजनिक क्षेत्र में भी थी।
  2. निजी क्षेत्र भी सरकार की नीतियों का नियमों के तहत ही काम करता है।
  3. दोनों ही क्षेत्रों को विकसित करने के अवसर।
  4. राज्य की ही अन्तिम जिम्मेदारी सामाजिक व आर्थिक विकास की होती है।

प्रश्न 9.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का प्रमुख क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
प्रथम पंचवर्षीय योजना का समय 1951 से 1956 तक का था। इस समय देश की आर्थिक दशा ठीक नहीं थी। खाद्य के क्षेत्र में अत्यधिक अभाव था। देश की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खेती को ही माना जाता था। देश का अधिकांश भाग ग्रामों में था जो कि खेती पर निर्भर रहते थे अत: कृषि के विकास को ही प्रथम पंचवर्षीय योजना में प्राथमिकता मिली। प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रमुख निर्माताओं में श्री के.एन.राज एक थे। उनका मानना था कि प्रारम्भिक दशकों में आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी ही रखनी चाहिए क्योंकि तेज रफ्तार से आर्थिक विकास को नुकसान होगा। इसी योजना में बाँध निर्माण और सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया।

कृषि को ही भारत में विभाजन का सबसे अधिक खामयाजा उठाना पड़ा था। भाखड़ा नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धन राशि निश्चित की गई थी। इन सभी का उद्देश्य सिंचाई के साधन बढ़ाकर कृषि के क्षेत्र में पैदावार बढ़ाना था क्योंकि अभी तक अनाज पैदावार व जनसंख्या वृद्धि में एक बड़ा अन्तर था। कृषि पूरी तरह प्रकृति पर निर्भर करती है। अतः इस स्थिति में प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास पर प्राथमिकता देना आवश्यक था व उचित भी था। इस योजना में ही जमीन सुधार जैसे कार्यक्रम प्रारम्भ किए गए व अधिक से अधिक जमीन को कृषि के लिए तैयार किया गया।

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प्रश्न 10.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का प्रमुख प्राथमिकता का क्षेत्र क्या था?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का समय 1956-1961 तक का था। इसके निर्माता श्री पी. सी. महालनोबिस थे। इस योजना का प्राथमिक क्षेत्र औद्योगिक विकास था। पहली योजना का मूलतंत्र था धीरज परन्तु द्वितीय पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य तेज गति से संरचनात्मक बदलाव करने की थी। यद्यपि प्रथम पंचवर्षीय योजना में खाद्य पूर्ति के लिए कृषि विकास को आवश्यक समझा गया था परन्तु द्वितीय पंचवर्षीय योजना में गरीबी व बेरोजगारी को दूर करने के लिए औद्योगिक विकास को जरूरी समझा गया अत: इसे प्राथमिक स्थान दिया गया। रोजगार को ही लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए आवश्यक समझा गया। औद्योगीकरण पर दिए गए इस बल ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।

प्रश्न 11.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के आधार पर किए गए औद्योगीकरण में प्रारम्भिक वर्षों में कौन-कौन-सी प्रमुख समस्याएँ सामने आयी?
उत्तर:
द्वितीय पंचवर्षीय योजना में गरीबी व बेरोजगारी जैसी प्रमुख समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य से औद्योगिक विकास पर जोर दिया गया जबकि प्रथम योजना कृषि विकास को प्रथमिकता मिली थी। औद्योगीकरण की प्रक्रिया के प्रारम्भिक चरणों में कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ा। क्योंकि भारत प्रौद्योगिकी की दृष्टि से पिछड़ा हुआ था। अत: विश्व बाजार से तकनीकी खरीदने के लिए अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ी।

इसके अतिरिक्त उद्योगों ने कृषि की अपेक्षा निवेश को अधिक आकर्षित किया। क्योंकि इस योजना में कृषि को उचित प्राथमिकता नहीं मिल पायी। अत: खाद्यान्न संकट बढ़ गया। भारत में योजनाकारों को उद्योग व कृषि के बीच सन्तुलन साधने में भारी कठिनाई आई। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति के सम्बन्ध में भी योजनाकारों व अन्य विशेषज्ञों में मतभेद था। कुछ लोग कृषि से जुड़े उद्योगों के पक्ष में थे व अन्य भारत में विकास के लिए भारी उद्योगों की स्थापना के पक्ष में थे। इसके अलावा औद्योगीकरण की नीति को लागू करने में भी स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। अनेक सामाजिक संगठनों व वातावरण बचाओ अभियान से जुड़े लोगों ने भी भारी औद्योगीकरण का विरोध किया।

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प्रश्न 12.
भारत में समाजवादी व्यवस्था निर्माण की प्रमुख विशेषाएँ समझाइए।
उत्तर:
1950 के दशक में समाजवादी विचारधारा का पूरी दुनिया की तरह भारत में भी इसका प्रभाव पड़ा भारत की प्रमुख सामाजिक व आर्थिक समस्याओं का हल समाजवादी चिन्तन के माध्यम से देखा गया। अतः भारत के नेतृत्व ने भारत को एक समाजवादी व्यवस्था के आधार पर निर्माण करने का निर्णय लिया जिसके आधार पर सरकारों को निर्देश दिए गए कि वे सामाजिक आर्थिक नीतियाँ समाजवादी सिद्धान्तों के आधार पर बनाएँ। इसकी प्रमुख निम्न विशेषताएँ हैं।

  1. पैदावार व वितरण के साधनों पर सामूहिक नेतृत्व।
  2. असमानताओं व अन्याय को समाप्त करना।
  3. सामाजिक व आर्थिक न्याय प्राप्त करना।
  4. राज्य की मुख्य भूमिका।
  5. सार्वजनिक क्षेत्र का विकास।

प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति का अर्थ व महत्त्व समझाइए।
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद से खाद्यान्न संकट चल रहा था। इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि कृषि के लिए जमीन का सही उपयोग नहीं चल रहा था। अधिकांश जमीन पर सिंचाई की सुविधा नहीं थी। जमीन का प्रबन्ध भी उचित नहीं था खेती करने का ढंग भी परम्परागत था। प्रथम पंचवर्षीय योजना में हालाँकि खेती को प्राथमिकता दी गई थी परन्तु कृषि उत्पादन में इतनी वृद्धि नहीं हो पायी कि हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएँ।

1970 के दशक में कृषि वैज्ञानिक श्री एम.एस.स्वामीनाथन के विचारों व प्रयासों के आधार पर भारत के उत्तरी राज्यों विशेषकर पंजाब हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैदावार बढ़ाने के उद्देश्य से कृषि के लिए वैज्ञानिक व तकनीकी का प्रयोग किया गया। नए उपकरण व मशीनों का प्रयोग किया गया। अधिक पैदावार देने वाले उन्नत बीजों का प्रयोग किया। रासायनिक खाद व दवाइयों का प्रयोग कर अनाज पैदावार में अत्यधिक वृद्धि की गई। इस प्रकार से इन नई विधियों व रासायनिक खाद के प्रयोग से पैदावार में हुई वृद्धि को हरित क्रान्ति के नाम से जाना गया। हरित क्रान्ति प्रारम्भ में केवल कुछ विकसित राज्यों तक ही सीमित रही व इसका लाभ भी उच्च किसानों व बड़े जमींदारों को मिला इस कारण से किसानों में भी हरित क्रान्ति के प्रभावों के कारण विशिष्ट वर्ग पैदा हो गया।

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प्रश्न 14.
जमीन सुधार से आप क्या समझते हैं? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
आजादी के बाद कृषि के क्षेत्र में कम पैदावार का सबसे बड़ा कारण यह था कि जमीन का ना तो सही प्रबन्धन था और ना ही इसका समुचित प्रयोग किया जा रहा था। जिसके नाम पर जमीनें थी वे उस पर खेती करते नहीं थे व जो वास्तव में खेती करते थे उनके नाम जमीन नहीं होती थी। दूसरा कारण यह था कि जमीन का उचित प्रयोग भी नहीं हो पाता था इन सभी को दूर करने के लिए भारत में आजादी के बाद जमीन सुधार कार्यक्रम चलाया गया जिसके तहत जमीन की चकबन्दी की गई। जमींदारी प्रणाली को समाप्त किया गया जो अपने आप में एक बड़ा कदम था। इसके अलावा जमीन पर सीलिंग लगा कर यह निश्चित किया गया कि एक नाम पर अधिक से अधिक कितनी जमीन हो सकती है। इस प्रकार से कृषि के क्षेत्र में सम्बन्ध बदले व जमीन की उपयोगिता भी बढ़ी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में नियोजित विकास की राजनीति समझाइए।
उत्तर:
भारत एक कल्याणकारी राज्य है। लोगों के जन कल्याण के लिए श्रोतों का समुचित प्रयोग व आर्थिक विकास का लक्ष्य प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक था। इसके लिए भारत में नियोजन की प्रक्रिया का आरम्भ किया गया। 1950 में योजना आयोग का गठन किया गया व 1951 में प्रथम पंचवर्षीय योजना तैयार की गई।

प्रथम पंचवर्षीय योजना में कार्य को प्राथमिकता दी गई क्योंकि कृषि ही भारत की सबसे प्रमुख पूँजी है व भारत की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर करती है। अतः ग्रामीण विकास भारत समाज के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए आवश्यक समझा गया। नियोजन की प्रक्रिया जो पंडित जवाहर लाल नेहरू के कुशल निर्देशन में प्रारम्भ हुई, राजनीतिकरण व विवादों के घेरे से नहीं बच पायी। इस सम्बन्ध में जो प्रमुख विवाद सामने आए वो निम्न प्रकार के थे।

1. वैचारिक विवाद-सबसे प्रमुख विवाद नियोजन के सम्बन्ध में अपनाई जाने वाली विचारधारा के सम्बन्ध में उत्पन्न हुआ जो समाजवादी चिन्तक थे वे चाहते थे कि आर्थिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में दी जाए जिनके संचालन में राज्य की अधिक से अधिक भूमिका हो। सार्वजनिक क्षेत्र में ही अधिक निवेश हो। परन्तु दूसरी ओर उदारवादी चिन्तक इस बात पर जोर देते थे कि व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को विकसित करने के लिए अधिक से अधिक भूमिका व महत्व निजी क्षेत्र के विकास को दिया जाए।

2. कृषि बनाम उद्योग-आर्थिक नियोजन के क्षेत्र में इसका प्रमुख विवाद कृषि बनाम उद्योग से सम्बन्धित था। दूसरी पंचवर्षीय योजना में जब उद्योगों के विकास को प्राथमिकता दी गई अनेक गाँधीवादी नेताओं व विचारकों ने विरोध किया कि कृषि विकास की कीमत पर उद्योग विकास करना ग्रामीण क्षेत्र के लिए हानिकारक रहेगा क्योंकि देश के अधिकतम लोग खेती पर अर्थात् कृषि पर निर्भर करते हैं। अतः भारी उद्योग देश के हित में नहीं है।

3. सार्वजनिक क्षेत्र बनाम निजी क्षेत्र-भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने पर तो समझौता हो गया परन्तु इसके दोनों क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी जिससे एक विवाद को जन्म मिला।

4. ग्रामीण क्षेत्र बनाम शहरी क्षेत्र-नियोजन की राजनीति के संदर्भ में ही ग्रामीण क्षेत्र व शहरी क्षेत्र की भावनाओं को जन्म मिला।

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प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? सार्वजनिक क्षेत्र की सफलता व असफलता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
ऐसी अर्थव्यवस्था जहाँ पर आर्थिक गतिविधियाँ निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों में की जाती है, उसे मिश्रित अर्थव्यवस्था कहते हैं। भारत में एक लम्बी बहस के बाद यह निश्चित किया गया कि भारत के सामाजिक व आर्थिक विकास में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र दोनों को ही अपनी अपनी भूमिका निभाने देना चाहिए। अत: भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है। सार्वजनिक क्षेत्र समाजवादी चिन्तन पर कार्य करता है। जबकि निजीक्षेत्र उदारवादी चिन्तन पर कार्य करता है। भारत में अधिकांश महत्त्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियाँ सार्वजनिक क्षेत्र में हैं।

पहले कुछ दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत उत्साह से कार्य हुआ परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों से कोई अधिक लाभ नहीं हुआ। पहले दशकों में सार्वजनिक क्षेत्र ने स्टील उत्पादन, बीज उत्पादन, तेल उत्पादन, खाद उत्पादन, दवाइयों के उत्पादन व सीमेंट उत्पादन में अच्छे परिणाम दिए परन्तु इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र में कई प्रकार के दोष पैदा हो गए जिससे इसके परिणाम पर ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा बल्कि निजी क्षेत्र को विकसित होने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इस सबके परिणामस्वरूप 1990 के बाद निजीकरण, उदारीकरण व वैश्वीकरण के प्रभाव में सार्वजनिक क्षेत्र का महत्व काफी घट गयीं।

सार्वजनिक क्षेत्र के दोष –

  1. निष्क्रियता।
  2. लाल फीताशाही।
  3. उपक्रम का आभाव।
  4. भ्रष्टाचार।
  5. पैदावार में गिरावट।
  6. सरकारीकरण का माहौल।
  7. जिम्मेवारी व जवाबदेही का अभाव।

सार्वजनिक क्षेत्र में उपरोक्त दोष होने के कारण सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व घट गया। सरकार को भी अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा। कई महत्वपूर्ण अनुसंधान बंद किए गए व इन गतिविधियों को निजी क्षेत्र में लाया गया। आज ऐसी स्थिति है कि सार्वजनिक क्षेत्र में चलने वाली महत्वपूर्ण गतिविधियाँ जैसे, यातायात, संचार व्यवस्था, बीमा, बैंकिंग, उड्यान को भी निजी क्षेत्र में दे दिया गया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

I. निम्नलिखित विकल्पों में सही का चुनाव कीजिए।

प्रश्न 1.
किस देश से भारत में योजना की प्रक्रिया की प्रेरणा ली गई?
(अ) अमेरिका
(ब) सोवियत संघ
(स) चीन
(द) जापान
उत्तर:
(ब) सोवियत संघ

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 2.
किस वर्ष में योजना आयोग का गठन किया गया?
(अ) 1950
(ब) 1952
(स) 1948
(द) 1955
उत्तर:
(अ) 1950

प्रश्न 3.
प्रथम पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था?
(अ) 1956-1961
(ब) 1951-1956
(स) 1950-1955
(द) 1948-1953
उत्तर:
(ब) 1951-1956

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति

प्रश्न 4.
द्वितीय योजना की प्राथमिकता का विषय क्या था?
(अ) कृषि
(ब) उद्योग
(स) टूरिज्म
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) उद्योग

II. मिलान वाले प्रश्न एवं उनके उत्तर

Bihar Board Class 12 Political Science Solutions chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Part - 2 img 2
उत्तर:
(1) – (स)
(2) – (द)
(3) – (य)
(4) – (ब)
(5) – (अ)

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 1.
भारतीय-स्वतन्त्रतान्दोलनस्य अनुपमः सेनानी कः आसीत् ?
(a) वीर कुंवर सिंहः
(b) महात्मा गाँधी:
(c) कालीदासः
(d) भैरवानन्दः
उत्तर-
(a) वीर कुंवर सिंहः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 2.
कुँवरसिंहस्य पिताः कः आसीत् ?
(a) साहेबभीम सिंहः
(b) साहेबजादा सिंहः
(c) राधा राम सिंहः
(d) भरव सिंहः
उत्तर-
(b) साहेबजादा सिंहः

प्रश्न 3.
कुँवरसिंहस्य जन्म कस्मिन् ग्रामे अभवत् ?
(a) भोजपुरे
(b) मथिलाग्रामे
(c) जगदीशपुरग्रामे
(d) शाहाबादे
उत्तर-
(c) जगदीशपुरग्रामे

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प्रश्न 4.
कुँवरसिंहः वस्या भक्तः आसीत् ।
(a) देव्याः
(b) विष्णुः
(c) गणेशः
(d) शिवः
उत्तर-
(a) देव्याः

प्रश्न 5.
कस्य कन्यया कँवरसिंहस्य विवाहः अभवत् ?
(a) कालिदासस्य
(b) भैरवसिंहस्य
(c) साहेबजादासिंहस्य
(d) फतेहनारायणसिंहस्य
उत्तर-
(d) फतेहनारायणसिंहस्य

प्रश्न 6.
कूषां दमनचक्रेणं वीरपुत्राः निगृहीताः ?
(a) न्यायव्यवस्थायां
(b) ज्वालां
(c) आंग्लानां
(d) आरवेते
उत्तर-
(c) आंग्लानां

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 7.
भोजपुरमण्डलं कुत्र विधते?
(a) बिहारप्रान्ते
(b) उत्तरप्रदेशे
(c) झारखण्डे
(d) वने
उत्तर-
(a) बिहारप्रान्ते

प्रश्न 8.
कति सैनिकैः सह कुँवरसिंहऽनवरं पराजितवान् ?
(a) 550
(b) 1000
(c) 100
(d) 500
उत्तर-
(d) 500

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 9.
कुंवरसिंहः कं खड्गेन खण्डितवान् ?
(a) हस्तं
(b) दंतं
(c) पादम्
(d) कर्ण
उत्तर-
(a) हस्तं

प्रश्न 10.
भारते आंग्लविद्रोहस्य ज्वाला प्रखररूपेण कदा प्रजवलिता आसीत् ?
(a) 1857
(b) 1845
(c) 1847
(d) 1947
उत्तर-
(b) 1845

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 11.
भारतस्य प्रथमः स्वतन्त्रता संग्रामः कदा अभवत् ?
(a) 1857
(b) 1845
(c) 1947
(d) 1789
उत्तर-
(a) 1857

प्रश्न 12.
विजयदिवसः कदा घोषितः ?
(a) 23 अप्रैल 1858
(b) 25 अप्रैल 1858
(c) 25 अप्रैल 1958
(d) 27 अप्रैल 1858
उत्तर-
(a) 23 अप्रैल 1858

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 12 वीर कूँवर सिंहः

प्रश्न 13.
कुंवरसिंहः कदा दिवंगतः?
(a) 1854
(b) 1856
(c) 1858
(d) 1859
उत्तर-
(c) 1858

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

प्रश्न 1.
भारते कूषां संख्या अधिका अस्ति ?
(a) नगराणाम्
(b) ग्रामाणाम्
(c) वनेषु
(d) नद्यः
उत्तर-
(b) ग्रामाणाम्

प्रश्न 2.
भारतं कूषां देशः अस्ति?
(a) नगराणां
(b) वस्तूनां
(c) ग्रामाणां
(d) स्वर्गस्य
उत्तर-
(c) ग्रामाणां

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

प्रश्न 3.
अद्य ग्रामे कस्य कल्पना नास्ति?
(a) स्वर्गस्य
(b) नगरस्य
(c) वनस्य
(d) वैज्ञानिकी
उत्तर-
(a) स्वर्गस्य

प्रश्न 4.
देशे ग्रामापेक्षया कूषां संख्या क्रमशः वर्धते ?
(a) ग्रामाणां
(b) नगराणां
(c) वनेषु
(d) वस्तुनां
उत्तर-
(b) नगराणां

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

प्रश्न 5.
विदेशेषु आमेऽपि कीदृशी समृद्धिः आगता?
(a) राज्ञी
(b) महात्मा
(c) वस्तुनां
(d) वैज्ञानिकी
उत्तर-
(d) वैज्ञानिकी

प्रश्न 6.
प्रचीनकाले ग्राम्यजीवनं कीदृशं आसीत् ?
(a) बहुसुखयम्
(b) सुखयम्
(c) वनम्
(d) दुखम्
उत्तर-
(a) बहुसुखयम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 11 ग्राम्यजीवनम्

प्रश्न 7.
अस्माकं देशे जनाः कुत्र वसन्ति ?
(a) ग्रामे नगरे च
(b) ग्रामे वने च
(c) ग्रामे
(d) नगरे
उत्तर-
(a) ग्रामे नगरे च

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

प्रश्न 1.
सामूहिकरूपेण नमाजस्थानम् कः कथ्यते ?
(a) ईद
(b) रोजा
(c) इफ्तार
(d) ईदगाह
उत्तर-
(d) ईदगाह

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

प्रश्न 2.
भारतः कः प्रधानादेशः अस्ति ?
(a) धर्मप्रधानाः
(b) कर्मप्रधानाः
(c) देवप्रधानाः
(d) रोजा
उत्तर-
(a) धर्मप्रधानाः

प्रश्न 3.
महम्मदीयानां सर्वोत्तमः उत्सवः कः मन्यते ?
(a) रोजा
(b) इफ्तार
(c) ईद
(d) नमाज
उत्तर-
(c) ईद

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

प्रश्न 4.
ईदपर्वाणि महम्मदीयाः चंद्र विलोक्य का प्रारम्भन्ते ?
(a) इफ्तार
(b) ईद
(c) नमाज
(d) रोजा
उत्तर-
(d) रोजा

प्रश्न 5.
नमाजस्थानं किं कथ्यते ?
(a) रोजा
(b) ईदगाहः
(c) ईद
(d) मंदिर
उत्तर-
(b) ईदगाहः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

प्रश्न 6.
ईदपर्वाणि व्रतधारिणः किं कुर्वन्ति ?
(a) उपवासं
(b) भोजनम्
(c) नृत्यम्
(d) अनुष्ठानम्
उत्तर-
(a) उपवासं

प्रश्न 7.
ईदावसरे यत् दानं भवति तम् किं कथ्यते ?
(a) जकात
(b) फिरता
(c) जकात इतिफितरा च
(d) ईदम्
उत्तर-
(c) जकात इतिफितरा च

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 10 ईद-महोत्सवः

प्रश्न 8.
हिन्दूनाम् मुख्योत्सवाः कः अस्ति ?
(a) ईद
(b) क्रिस्मस
(c) दीपावली
(d) नमाज
उत्तर-
(c) दीपावली

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

प्रश्न 1.
पद्मश्री जगदम्बा देवी कस्यां कलायां प्रसिद्धा? |
(a) मूर्तिकलायां
(b) चित्रकलायां
(c) संगीतकलायाम्
(d) विद्यायाम्
उत्तर-
(b) चित्रकलायां

प्रश्न 2.
‘जट-जटिन’ इति लोकनृत्यम् कस्मिन् अञ्चले प्रसिद्धम् ?
(a) मिथिलायाम्
(b) अयोध्याम्
(c) भोजपुरामण्डले
(d) पटना मण्डले
उत्तर-
(a) मिथिलायाम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

प्रश्न 3.
मण्डपाभ्यन्तरे कूषां मूर्तयः स्थाप्यन्ते ?
(a) संगीतम्
(b) चित्रम्
(c) गजानाम्
(d) नृत्यं
उत्तर-
(c) गजानाम्

प्रश्न 4.
नाट्यं कतमो वेदः कवयते ?
(a) पञ्चम्
(b) त्रयः
(c) सप्तम्
(d) चत्वारः
उत्तर-
(a) पञ्चम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

प्रश्न 5.
कलासु प्रमुखं किम् ?
(a) संगीतम्
(b) चित्रकला
(c) नृत्यम्
(d) मूर्तिकला
उत्तर-
(a) संगीतम्

प्रश्न 6.
झिझिया कम् अस्ति ?
(a) नृत्यम्
(b) चित्रकला
(c) मूर्तिकला
(d) गीतम्
उत्तर-
(a) नृत्यम्

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 9 बिहारस्य संस्कृतिकं वैभवम्

प्रश्न 7.
अल्पना कम् अस्ति?
(a) गीतम्
(b) मूर्तिकला
(c) चित्रकला
(d) नाट्यम्
उत्तर-
(c) चित्रकला

प्रश्न 8.
क्रीडनकम् कम् अस्ति ?
(a) गीतम्
(b) नृत्यम्
(c) नाट्यम
(d) मूर्तिकलां
उत्तर-
(d) मूर्तिकलां

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

प्रश्न 1.
मनुष्यरूपेण कू मृगाश्चसन्ति ?
(a) विद्याहीनाः
(b) धनहीनाः
(c) गुणहीनाः
(d) रत्नहीनाः
उत्तर-
(c) गुणहीनाः

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

प्रश्न 2.
महात्मनाम् विपदि किम् लक्षणम् भवति ?
(a) धैर्यम्
(b) धनम्
(c) आभुषणाम्
(d) वस्त्रम्
उत्तर-
(a) धैर्यम्

प्रश्न 3.
का धियः जाड्यम् हरति ?
(a) सत्यसंगति
(b) सत्संगति
(c) कुसंगति
(d) विद्या
उत्तर-
(b) सत्संगति

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

प्रश्न 4.
दिक्षु कीर्ति कः तनोति ?
(a) विद्याहीना
(b) सत्संगति
(c) धनहीनाः
(d) मुर्खः
उत्तर-
(b) सत्संगति

प्रश्न 5.
उत्तमजनाः ………. न परित्यजन्ति ।
(a) नरं
(b) न्यायात्
(c) परार्धभिन्न
(d) प्रारब्धकार्य
उत्तर-
(d) प्रारब्धकार्य

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

प्रश्न 6.
धीराः ……….. पद्यः न प्रविचलन्ति ।
(a) न्यायात्
(b) उत्तमजनाः
(c) परार्धभिन्ना
(d) नरं
उत्तर-
(a) न्यायात्

प्रश्न 7.
सज्जनानाम् मैत्री दिनस्य ……….. छाया इव भवति ।
(a) उत्तमजनाः
(b) परार्धभिन्ना
(c) नरं
(d) न्यायात्.
उत्तर-
(b) परार्धभिन्ना

प्रश्न 8.
ज्ञानलवदुर्विदग्धं ………. ब्रह्मपि न रञ्जयति ।
(a) नरं
(b) सत्संगतिः
(c) महात्मा
(d) नीतिनिपुणाः
उत्तर-
(a) नरं

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 8 नीतिपधानिः

प्रश्न 9.
विनैः पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानाः ……… न परित्यजन्ति ।
(a) महात्मा
(b) विघ्नविहताः
(c) उतमजनाः
(d) विशेषज्ञा
उत्तर-
(c) उतमजनाः

Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 10 अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 3 Chapter 10 अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव Text Book Questions and Answers, Notes.

Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 10 अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव

Bihar Board Class 8 Social Science अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहर, मध्यकालीन शहर से किस प्रकार भिन्न थे ? कक्षा में चर्चा करें।
उत्तर-
मध्यकालीन शहर परम्परागत व्यवसायों, शासन-सत्ता के केन्द्र व मन्दिरों के केन्द्र होने के कारण विकसित हुए थे। जबकि औपनिवेशिक शहर, अंग्रेजों के आधुनिक व्यवसाय-वाणिज्य के कारण विकसित हुए थे। औपनिवेशिक शहरों के विकास के साथ-साथ मध्यकालीन शहरों में वस्तुओं के उत्पादन कम होने लगे, उन वस्तुओं की मांग घटने लगी और ये शहर उजड़ने लगे।

Bihar Board Class 8 Social Science History Solutions Chapter 10 अंग्रेजी शासन एवं शहरी बदलाव

प्रश्न 2.
भागलपुर एक व्यावसायिक शहर था। क्या आप इस विचार से सहमत हैं ?
उत्तर-
हाँ, मैं इस विचार से सहमत हूँ कि भागलपुर एक व्यावसायिक शहर था। यहां प्राचीनकाल से ही तसर सिल्क का कपड़ा तैयार होता था जिस

कारण इसे सिल्क सिटी कहा जाता था। यहां के बने उत्कृष्ट व कलात्मक .. कपड़ों की माँग यूरोपीय देशों में भेजा जाता था जहाँ इसकी बहुत मांग थी।

प्रश्न 3.
आप किसी शहर के शैक्षणिक, धार्मिक, सार्वजनिक एवं सरकारी भवन की सूची बनाएँ तथा जानकारी प्राप्त करें कि इनका निर्माण कब हुआ? आप यह बताएं कि इसका उपयोग किस काम के लिए किया जाता है?
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
सही या गलत बताएँ

  1. भागलपुर शहर का विकास औपनिवेशिक शहरों से भिन्न परम्परागत शहर के रूप में हुआ।
  2. मुस्लिम काल में भागलपुर शहर सूफी संस्कृति का केन्द्र नहीं था।
  3. उन्नीसवीं सदी में भागलपुर में बंगाली और मारवाड़ी समुदाय का आगमन हुआ।
  4. भारत में आधुनिक शहरों का विकास औद्योगीकरण के साथ हुआ।
  5. प्रेसिडेंसी शहरों में ‘गोरे’ और ‘काले’ लोग अलग-अलग इलाकों में रहते थे।

उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. सही

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के जोड़े बनाएँ

  1. प्रेसिडेंसी शहर – (क) बरेली, जमालपुर
  2. रेलवे शहर – (ख) बम्बई, कलकत्ता, मद्रास
  3. औद्योगिक शहर – (ग) कानपुर, जमशेदपुर

उत्तर-

  1. प्रेसिडेंसी शहर – (ख) बम्बई, कलकत्ता, मद्रास
  2. रेलवे शहर – (क) बरेली, जमालपुर
  3. औद्योगिक शहर – (ग) कानपुर, जमशेदपुर

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प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों को भरें

  1. भागलपुर नगरपिालिका की स्थापना ………… ई० में हुई थी।
  2. भागलपुर में सिल्क कपड़ा उत्पादन का केन्द्र ……….. और था।
  3. भागलपुर में सांस्कृतिक गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संस्कृतिकर्मी ………….. थे। ।
  4. रेलवे स्टेशन कच्चे माल का ……… और आयातित वस्तुओं का …………… था।
  5. कालजयी उपन्यास ………….. की रचना शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ने की थी।

उत्तर-

  1. 1864
  2. चम्पानगर, नाथनगर मोहल्ला
  3. शरतचन्द्र, अशेंदु बाबु, हरिकुंज
  4. संग्रह केन्द्र, वितरण बिन्दु
  5. देवदास ।

आइए विचार करें

प्रश्न (i)
शहरीकरण का आशय क्या है ?
उत्तर-
व्यापारिक एवं राजनीतिक कारणों से किसी क्षेत्र में होनेवाली – विकास एवं समृद्धि के उस क्षेत्र में शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। धार्मिक केन्द्र के रूप में भी जब किसी क्षेत्र में आस-पास के लोगों का वहां आकर बसना शुरू हो जाता है तो उस क्षेत्र में शहरीकरण शुरू हो जाता है।

किसी क्षेत्र में जब अमीर वर्ग एवं गरीब वर्ग दोनों रहते हों और वहां व्यापार फलना-फूलना शुरू हो जाता है तो उस क्षेत्र में शहरीकरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।

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प्रश्न (ii)
अठारहवीं सदी में नये शहरी केन्द्रों के विकास की प्रक्रिया पर प्रकाश डाले?
उत्तर-
अठारहवीं सदी में शहरों की स्थिति में बदलाव आने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक गतिविधियों में परिवर्तन के साथ पुराने शहर पतनोन्मुख हुए और नए शहरों का विकास होने लगा। मुगल सत्ता के धीरे-धीरे कमजोर होने के कारण शासन से संबद्ध शहरों का पतन होने लगा। नई क्षेत्रीय शासन केन्द्र लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगापटम, पुणा, नागपुर, बड़ौदा आदि नये शहरी केन्द्रों के रूप में स्थापित होने लगे। व्यापारी, शिल्पकार, कलाकार, प्रशासक तथा अन्य विशिष्ट सेवा प्रदान करने वाले लोग इन नये शासक केन्द्रों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे । व्यापारिक व्यवस्था में परिवर्तन के कारण भी शहरी केन्द्रों में बदलाव के चिह्न देखे गये।

यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने मुगल काल में ही विभिन्न स्थानों पर अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए जैसे पुर्तगालियों ने गोवा में, डचों ने मछलीपट्टनम में, अंग्रेजों ने मद्रास (चेन्नई) में, फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी (पुदुचेरी) में । व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के कारण इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास शहर विकसित होने लगे । जब व्यापारिक गतिविधियां अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं तब पुराने व्यापारिक केन्द्र और बंदरगाह अपना महत्त्व खोने लगे।

प्रश्न (iii)
ग्रामीण एवं शहरी अर्थव्यवस्था के अंतर को स्पष्ट करें?
उत्तर-
गाँव के लोगों का मुख्य काम खेती होता है जबकि शहरों में अन्य तरह के व्यवसाय किए जाते हैं। गाँवों में अधिकांशतः किसान और खेती के कामों से जुड़े मजदूर व छोटे-मोटे काम करने वाले लोग और छोटे स्तर पर सब्जियाँ, राशन व अन्य दैनिक कामों में आने वाले वस्तुओं के छोटे दुकानदार रहते हैं। जबकि शहरों में छोटे-मध्यम बड़े व्यापारी, शिल्पकार, शासक तथा ‘अधिकारी रहते हैं। पहले अक्सर शहरों की किलेबंदी की जाती थी, जो ग्रामीण

क्षेत्रों से इसके अलगाव को चिह्नित करती थी। शहरों का ग्रामीण जनता पर प्रभुत्व होता था और वे खेती से प्राप्त करों और अधिशेष के आधार पर फलते-फूलते थे। अत: ग्रामीण एवं शहरी अर्थव्यवस्था में स्पष्ट और बड़ा अंतर था।

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प्रश्न (iv)
भागलपुर शहर एक व्यावसायिक एवं सांस्कृतिक नगर था। कैसे?
उत्तर-
प्राचीन भागलपुर शहर की पहचान एक व्यावसायिक और ‘सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में रही है। घने मुहल्लों और दर्जनों बाजार से घिरा भागलपुर एक महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक एवं व्यावसायिक शहरी केन्द्र था। शायरी एवं नृत्य संगीत आमतौर पर मनोरंजन के साधन थे । इस शहर में ऐशो-आराम सिर्फ कुछ अमीर लोगों के हिस्से में आते थे। अमीर और गरीब के बीच फासला बहुत गहरा था। यहाँ व्यापारी, अधिकारी, सरकारी छोटे-बड़े कर्मचारी, कारीगर, जुलाहे, बुनकर, मजदूर; हर वर्ग के लोग रहते थे।

रेलवे का विकास और शहर से सटे रेलवे और गंगा नदी के किनारे बसे होने के कारण शहर की व्यापारिक गतिविधियों में और भी तेजी आई जिससे महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक शहर के रूप में इसे विकसित होने का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ बैंकिंग, कम्पनियों के विक्रय एजेंट, हड्डी के काम के अतिरिक्त सिल्क, सूती, ऊनी कपड़े, किराना, अनाज, तेल का थोक व्यापार होता था। इस शहर का सबसे प्रसिद्ध उद्योग तसर सिल्क का कपड़ा तैयार करना था। यह व्यवसाय बहुत पुराने समय से चला आ रहा था। जिसके कारण इसे सिल्क सिटी भी कहा जाता है। यहाँ का कपड़ा यूरोपीय देशों को भेजा जाता था, जहाँ इसकी बहुत मांग थी।

भागलपुर की सांस्कृतिक विरासत भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं रही है। इस शहर में अनेक नामी-गिरामी साहित्यकारों, संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी, शिल्पकार, संगीतकारों एवं फोटोग्राफों का जमघट लगा रहता था । नामी लेखक शरतचन्द्र, विभूति भूषण बंधोपाध्याय, रविन्द्रनाथ टैगोर भागलपुर प्रवास कर चुके थे। प्रसिद्ध लेखक बलाई चंद्र मुखर्जी उर्फ बनफूल ने यहाँ लंबे समय तक लेखन कार्य किया था। साहित्यकार व रंगकर्मी राधाकृष्ण सहाय यहीं के थे जिन्होंने कई रचनाओं का बंगला से हिन्दी में अनुवाद किया। शरतचन्द्र ने कालजयी उपन्यास ‘देवदास’, विभूति भूषण बंधोपाध्याय ने ‘पथेर पांचाली’ का सृजन भागलपुर में ही रहकर किया। अतः भागलपुर शहर एक व्यावसायिक एवं सांस्कृतिक नगर था।

प्रश्न (v)
भागलपुर को सिल्क सिटी (रेशमी शहर) कहा जाता है। ‘क्यों?
उत्तर-
भागलपुर शहर का सबसे प्रसिद्ध उद्योग तसर सिल्क का कपड़ा तैयार करना था। यह व्यवसाय यहाँ बहुत पुराने समय से चला आ रहा था। इसलिए इस शहर को सिल्क सिटी भी कहा जाता है। यहाँ 1810 में करीब 3275 करघे चल रहे थे। इस व्यवसाय का प्रमुख केन्द्र चम्पानगर और नाथनगर मुहल्ला था। रेशम और सूत की मिलावट से ‘बाफ्टा’ तैयार किया जाता था। यहाँ का कपड़ा यूरोपीय देशों को भेजा जाता था, जहाँ इसकी बहुत मांग थी। इन्हीं कारणों से भागलपुर को सिल्क सिटी (रेशमी शहर) कहा ‘जाता था।

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प्रश्न (vi)
शहरों के सामाजिक परिवेश को समझाएँ।
उत्तर-
शहरों में कई तरह के व्यवसाय किये जाने से यहाँ हर वर्ग के लोग रहते हैं। शहरों में व्यापारी, शिल्पकार, शासक, अधिकारी, कामगार, मजदूर, बुनकर, जुलाहे प्रायः हर वर्ग के लोग रहते हैं। पर वहाँ मुख्य तौर पर तीन वर्ग दिखते हैं। एक तो बहुत अमीर लोग जो शासन या व्यापार से जुड़े होते हैं। दूसरे, मध्य वर्ग जो कि शासन से जुड़े अधिकारी या कर्मचारी होते हैं और तीसरे मजदूर या घरों में काम करने वाले कामगार और अन्य बेहद गरीब लोग । अमीर लोग सुविधा सम्पन्न घरों या आलीशान, भवनों में रहते हैं जबकि गरीब लोग झुग्गी-झोंपड़ियों में, जहाँ सुविधा बिल्कुल नगण्य होती है।

आइए करके देखें

प्रश्न (i)
आप अपने राज्य के किसी शहर के इतिहास का पता लगाएँ तथा शहर के फैलाव और आबादी के बसाव के बारे में बताएँ । साथ ही शहर में संचालित व्यावसायिक, शैक्षणिक व सांस्कृतिक गतिविधियों के विषय में जानकारी दें।
संकेत-
यह परियोजना कार्य है, शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।
अथवा, पाठ में भागलपुर शहर का दिया गया ब्यौरा देखें।

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 7 ज्ञानं भारः क्रियां विना

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 7 ज्ञानं भारः क्रियां विना

प्रश्न 1.
प्रथमः युवक किम् अकरोत्
(a) अस्थिसञ्चयम्
(b) चर्मभासरूधिरं
(c) वृक्षादवतीर्य
(d) सिंहेन
उत्तर-
(a) अस्थिसञ्चयम्

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प्रश्न 2.
चर्ममांसरूधिरं कून संयोजितम् ?
(a) प्रथमः
(b) द्वितीयेन
(c) तृतीया
(d) चतुर्थेन
उत्तर-
(b) द्वितीयेन

प्रश्न 3.
चतुर्थः वृक्षादवतीर्य कुत्र गतः ?
(a) मार्गम्
(b) जलम्
(c) वनम्
(d) गृहम्
उत्तर-
(d) गृहम्

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प्रश्न 4.
विद्यायाः का उत्तमा?
(a) धन
(b) रूपयम्
(c) बुद्धि
(d) संस्कृति
उत्तर-
(c) बुद्धि

प्रश्न 5.
योऽपि कून व्यापादिताः ?
(a) मृगेन
(b) सिंहेन
(c) वृक्षे
(d) गृहम्
उत्तर-
(b) सिंहेन

Bihar Board 9th Sanskrit Objective Answers Chapter 7 ज्ञानं भारः क्रियां विना

प्रश्न 6.
कदाचित् तैः ………… मन्त्रितम् ।
(a) विप्रैः
(b) मित्रैः
(c) विद्या
(d) साधुभिः
उत्तर-
(b) मित्रैः

प्रश्न 7.
राजपरिग्रहः ………… विना न लभ्येत ।
(a) रत्नं
(b) धनं
(c) बुद्धिं
(d) विद्यां
उत्तर-
(d) विद्यां

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प्रश्न 8.
त्रयोऽपि ………. व्यापादिताः।
(a) सिंहेन
(b) दस्युना
(c) मृगेन
(d) प्रेरितः
उत्तर-
(a) सिंहेन

प्रश्न 9.
……….. चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।
(a) विशाल
(b) अल्प
(c) तुच्छः
(d) उदार
उत्तर-
(d) उदार

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प्रश्न 10.
तृतीयः पुरुषः सुबुद्धिना ……….।
(a) विद्यां
(b) वारितः
(c) प्रेरितः
(d) उदारः
उत्तर-
(c) प्रेरितः