Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 15 संचार व्यवस्था

Bihar Board 12th Physics Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 15 संचार व्यवस्था

प्रश्न 1.
वर्ल्ड वाइड वेब (www) का आविष्कारक कौन था ?
(a) जे.सी.आर. लिकलाइडर
(b) टिम-वर्नर्स-ली
(c) अलेक्जेन्डर ग्राहम बेल
(d) सेमुअल एफ. बी. मोर्स
उत्तर-
(b) टिम-वर्नर्स-ली

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प्रश्न 2.
प्रकाशिक तंतु में प्रकाश सिग्नल के प्रेषण के लिए प्रयुक्त सिद्धांत है –
(a) परावर्तन
(b) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(c) व्यतिकरण
(d) विवर्तन
उत्तर-
(b) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा पॉइंट-टू-पॉइंट कम्यूनिकेशन मोड का उदाहरण है ?
(a) रेडियो
(b) टेलीवीजन
(c) टेलीफोनी
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(c) टेलीफोनी

प्रश्न 4.
संचार व्यवस्था के आवश्यक तत्व हैं
(a) प्रेपित्र एवं अभिग्राही
(b) अभिग्राही एवं संचार चैनल
(c) प्रेषित्र एवं संचार चैनल
(d) प्रेषित्र, संचार चैनल एवं अभिग्राही
उत्तर-
(d) प्रेषित्र, संचार चैनल एवं अभिग्राही

प्रश्न 5.
किसी माध्यम में संचरण के समय सिग्नल की सामर्थ्य की हानि है –
(a) अभिग्रहण (Reception)
(b) अवशोषण
(c) प्रेषण
(d) क्षीणन
उत्तर-
(d) क्षीणन

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प्रश्न 6.
विद्युत परिपथ का प्रयोग करके किसी सिग्नल की बढ़ती हुई सामर्थ्य की विधि को कहते हैं
(a) प्रवर्धन
(b) मॉडुलन
(c) डिमॉडुलन
(d) प्रेषण
उत्तर-
(a) प्रवर्धन

प्रश्न 7.
मॉडेम ऐक ऐसी युक्ति है जो सम्पन्न करती है-
(a) मॉडुलन
(b) डिमॉडुलन
(c) दिष्टीकरण
(d) मॉडुलन एवं डिमॉडुलन
उत्तर-
(d) मॉडुलन एवं डिमॉडुलन

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सी विद्युत संचार व्यवस्था में प्रयुक्त आधारभूत . शब्दावली नहीं है ?
(a) ट्रांसड्यूसर
(b) प्रेषित्र
(c) टेलीग्राफ
(d) क्षीणन
उत्तर-
(c) टेलीग्राफ

प्रश्न 9.
वह युक्ति जो अभिग्राही एवं प्रेषित का संयोजन होती है –
(a) प्रवर्धक
(b) पुनरावर्तक
(c) ट्रांसड्यूसर
(d) मॉडुलक
उत्तर-
(b) पुनरावर्तक

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प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा ट्रांसड्यूसर नहीं है ?
(a) लाउडस्पीकर
(b) प्रवर्धक
(c) माइक्रोफोन
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(b) प्रवर्धक

प्रश्न 11.
निम्न में से संचार व्यवस्था का कौन-सा आवश्यक तत्व नहीं है ?
(a) प्रेषित
(b) ट्रांसड्यूसर
(c) अभिग्राही
(d) संचार चैनल
उत्तर-
(b) ट्रांसड्यूसर

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प्रश्न 12.
उच्चतर डाट दर के लिए अधिक बैण्डचौड़ाई किसका प्रयोग करके प्राप्त की जाती है?
(a) उच्च आवृत्ति वाहक तरंग
(b) उच्च आवृत्ति श्रव्य तरंग
(c) निम्न आवृत्ति वाहक तरंग
(d) निम्न आवृत्ति श्रव्य तरंग
उत्तर-
(a) उच्च आवृत्ति वाहक तरंग

प्रश्न 13.
मूल स्टेशन (Base station) से मोबाइल संचार के लिए, आवश्यक आवृत्ति बैण्ड क्या होगा?
(a) 540 – 1600 kHz
(b) 200 – 325 MHz
(c) 5.9-6.42 GHz
(d) 840 – 935 MHz
उत्तर-
(d) 840 – 935 MHz

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प्रश्न 14.
निम्न में से कौन-सा संचार के प्रसारण विधा का उदाहरण है ?
(a) रेडियो
(b) टेलीविजन
(c) मोबाइल
(d) (a) एवं (b) दोनों
उत्तर-
(d) (a) एवं (b) दोनों

प्रश्न 15.
FM प्रसारण को AM प्रसारण की तुलना में प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि (a) यह शोर कम करता है।
(b) उद्धरण काफी अच्छी गुणवत्ता का होता है।
(c) यह अधिक शोर करती है।
(d) (a) एवं (b) दोनों।
उत्तर-
(d) (a) एवं (b) दोनों।

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प्रश्न 16.
30 MHz से 300 MHz आवृत्ति की रेडियो तरंगें किससे संबंधित होती हैं?
(a) उच्च आवृत्ति बैण्ड (High frequency band)
(b) बहुत उच्च आवृत्ति बैण्ड (Very high frequency band)
(c) अत्याधिक उच्च आवृत्ति बैण्ड (Ultra high frequency band)
(d) परम उच्च आवृत्ति बैण्ड (Super high frequency band)
उत्तर-
(b) बहुत उच्च आवृत्ति बैण्ड (Very high frequency band)

प्रश्न 17.
उपग्रह संचार की डाउनलिंक में प्रयुक्त आवृत्ति बैण्ड है –
(a) 9.5 से 2.5 GHz
(b) 896 से 901 MHz
(c) 3.7 से 4.2 GHz
(d) 840 से 935 MHz
उत्तर-
(c) 3.7 से 4.2 GHz

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प्रश्न 18.
एक TV संचरित एण्टीना 81 m लम्बा है । यदि अभिग्राही एण्टीना भू-स्तर पर है तो यह कितना सेवा क्षेत्र कवर कर सकता है ? (पृथ्वी की त्रिज्या = 6.4 x 106 m)
(a) 3258 km2
(b) 4180 km2
(c) 251 km2
(d) 1525 km2
उत्तर-
(a) 3258 km2
(a) वह कार्यकारी (सेवा) क्षेत्रफल जिसे यह घेर सकता है,
A = πd2
A = π(2hR) = 22 x 2 x 81 x 64 x 106m2 = 3258 km2

प्रश्न 19.
सूक्ष्मतरंग प्रसारण सेवा के द्वारा प्रयुक्त संचारण की विधा है
(a) आकाश तरंग
(b) व्योम तरंग
(c) भू-तरंग
(d) (a) एवं (c) दोनों
उत्तर-
(b) व्योम तरंग

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प्रश्न 20.
सामान्य रूप से UHF परास में आवृत्तियां किसके द्वारा संचरित होती हैं ?
(a) भू-तरंग
(b) व्योम तरंग
(c) पृष्ठ तरंग
(d) आकाश तरंग
उत्तर-
(d) आकाश तरंग

प्रश्न 21.
विद्युतचुम्बकीय तरंग के मुड़ने की घटना जिससे वे पृथ्वी की ओर मुड़ जाती है, प्रकाशिकी की निम्न में से कौन-सी घटना के समान है ?
(a) परावर्तन
(b) ध्रुवण
(c) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(d) विक्षेपण
उत्तर-
(c) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन

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प्रश्न 22.
दृष्टिरेखीय संचार में भू-अभिग्राही किसके कारण तरंगों को सीधे प्राप्त नहीं कर सकता है ?
(a) उसकी निम्न आवृत्ति के कारण
(b) पृथ्वी की वक्रता के कारण
(c) उसकी उच्च तीव्रता के कारण
(d) छोटे एण्टीना के कारण
उत्तर-
(b) पृथ्वी की वक्रता के कारण

प्रश्न 23.
एक TV प्रेषण टॉवर की ऊँचाई 240 m है । इस टॉवर से प्रसारण सिग्नल किस दूरी पर दृष्टिरेखीय संचार के द्वारा प्राप्त होगा? (पृथ्वी की त्रिज्या = 6.4 x 106mbb m)
(a) 100 km
(b) 110 km
(c) 55 km
(d) 120 km
उत्तर-
(c) 55 km
(c) यहाँ, h = 240 m, R = 6.4 x 106 m
प्रेषित से पृथ्वी पर अधिकतम दूरी जिस तक सिग्नल प्राप्त हो सकता है, है –
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प्रश्न 24.
संचरण किस की विधा से, रेडियो तरंगें एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजी जा सकती है ?
(a) भू-तरंग संचरण
(b) व्योम तरंग संचरण
(c) आकाश तरंग संचरण
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 25.
जब टॉवर की ऊँचाई 21% बढ़ायी जाती है, तो प्रभावित TV टॉवर की प्रेषण परास कितने प्रतिशत प्रभावित होगी?
(a) 10%
(b) 20%
(c) 30%
(d) 40%
उत्तर-
(a) 10%

प्रश्न 26.
वे तरंगें जो आयनमण्डल के द्वारा नीचे मुड़ती हैं, हैं –
(a) भू-तरंगें
(b) पृष्ठ तरंगें
(c) आकाश तरंगें
(d) व्योम तरंगें
उत्तर-
(d) व्योम तरंगें

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प्रश्न 27.
वह मॉडुलन जिसमें स्पंद अवधि मॉडुलक सिग्नल के अनुसार परिवर्तित होती है, कहलाता है
(a) PAM
(b) PPM
(c) PWM
(d) PCM
उत्तर-
(c) PWM

प्रश्न 28.
यदि प्रेषित करने वाले एण्टीना की लम्बाई एवं सिग्नल की तंरंगदैर्घ्य दोनों ही दो गुनी कर दी जाएँ, तो एण्टीना के द्वारा विकरित क्षमता होगी –
(a) दोगुनी
(b) आधी
(c) नियत
(d) चौथाई
उत्तर-
(c) नियत

प्रश्न 29.
एक आयाम मॉडुलित तरंग को चित्र में दर्शाया गया है । शीर्ष वाहक वोल्टता का मान एवं शीर्ष सूचना वोल्टता का मान क्रमशः हैं –
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(a) 30 V, 20V
(b) 10 V, 15 V
(c) 15 V, 30V
(d) 20 V, 35 V
उत्तर-
(a) 30 V, 20V

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प्रश्न 30.
300 W वाहक को 75% गहराई के लिए माडुलित किया जाता है। माडुलित तरंग में कुल क्षमता होगी.
(a) 200 w
(b) 284 W
(c) 320 wi
(d) 384w
उत्तर-
(d) 384w
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यहाँ, प्रेषण पथ = 5 km
प्रेषण पथ में हुआ ह्यास = – 2 db km-1 x 5 km = – 10 dB
कुल प्रवर्धक लाभ = 10 dB + 20 dB = 30 dB
सिग्नल का सम्पूर्ण लाभ = 30dB – 10 dB = 20 dB
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प्रश्न 31.
आयाम मॉडुलित तरंग के लिए गणितीय व्यंजक को पहचानिए ।
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उत्तर-
(c)

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चालक पदार्थ से बने असीमित आवेशित पतली चादर की सतह के निकट स्थित किसी बिन्दु पर विद्युतीय क्षेत्र का मान होता है
\((a) \varepsilon_{0} \sigma
(b) \frac{\sigma}{\varepsilon_{0}}
(c) \frac{\sigma}{2 \varepsilon_{0}}
(d) \frac{1}{2} \sigma \varepsilon_{0}\)
उत्तर-
\((c) \frac{\sigma}{2 \varepsilon_{0}}\)

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प्रश्न 2.
C1 = 2μF तथा C2= 4μF के दो संधारित्रों को श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है और उनके सिरों के बीच 1200 वोल्ट (V) का विभवान्तर आरोपित किया जाता है । 2μF वाले संधारित्र के सिरों के बीच का विभवान्तर होगा :
(a)400 V
(b) 600 V
(c) 800 V
(d) 900 V
उत्तर-
(c) 800 V

प्रश्न 3.
दिए गये चित्र में, यदि आवेश Q पर कुल प्रभावी बल शून्य है, तो \(\frac{\mathbf{Q}}{\mathbf{q}}\) का मान है –
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उत्तर-
(b)

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प्रश्न 4.
जब किसी वस्तु को आवेशित किया जाता है, तो उसका द्रव्यमान –
(a) बढ़ता है
(b) घटता है
(c) अचर रहता है
(d) बढ़ या घट सकता है
उत्तर-
(d) बढ़ या घट सकता है

प्रश्न 5.
किसी सूक्ष्म विद्युत द्विध्रुव के मध्य बिन्दु से बहुत दर ‘r’ दूरी पर विद्युत विभव समानुपाती होता है –
\((a) r
(b) \frac{1}{r}
(c) \frac{1}{r^{2}}
(d) \frac{1}{r^{3}}\)
उत्तर-
\((c) \frac{1}{r^{2}}\)

प्रश्न 6.
प्रभावी धारिता 5µF को प्राप्त करने के लिए सिर्फ 2uF के कम-से-कम कितने संधारित्र की आवश्यकता होगी?
(a) 4
(b) 3
(c) 5
(d) 6
उत्तर-
(a) 4

प्रश्न 7.
किसी चालक का विशिष्ट प्रतिरोध बढ़ता है
(a) तापमान बढ़ने से
(b) अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल बढ़ने से
(c) लम्बाई घटने से
(d) अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल घटने से |
उत्तर-
(a) तापमान बढ़ने से

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प्रश्न 8.
किसी चालक के संवहन वेग (vd) तथा आरोपित विद्युत क्षेत्र (E) के बीच सम्बन्ध है –
(a) Vd∝ √E
(b) Vd ∝ E
(c) Vd ∝ E 2
(d) Vd = Constant |
उत्तर-
(b) Vd ∝ E

प्रश्न 9.
एक आवेश ‘q’, विद्युत क्षेत्र ‘E’ तथा चुम्बकीय क्षेत्र ‘B’ की संयुक्त उपस्थिति में गतिमान हो तो, उस पर लगने वाला बल होगा :
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 15 संचार व्यवस्था - 8
उत्तर-
(c)

प्रश्न 10.
Mचुम्बकीय आघूर्ण वाले छड़ चुम्बक को दो समान टुकड़ों में तोड़ा जाता है तो प्रत्येक नये टुकड़ों का चुम्बकीय आघूर्ण है
(a) M
(b) M/2
(c) 2M
(d) Zero
उत्तर-
(b) M/2

प्रश्न 11.
\(\frac{1}{2} \varepsilon_{0} \mathbf{E}^{2}\) के विमीय सूत्र के समतुल्य विमा की राशि है –
\((a) \frac{\mathrm{B}^{2}}{2 \mu_{0}}
(b) \frac{1}{2} \mathrm{B}^{2} \mu_{0}
(c) \frac{\mu_{0}^{2}}{2 B}
(d) \frac{1}{2} B \mu_{0}^{2}\)
उत्तर-
\((a) \frac{\mathrm{B}^{2}}{2 \mu_{0}}\)

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प्रश्न 12.
एक वृत्ताकार लूप की त्रिज्या R है, जिसमें I धारा प्रवाहित हो रही है, तथा जिसके केन्द्र पर चुम्बकीय क्षेत्र B है । वृत्त के अक्ष पर उसके केन्द्र से कितनी देरी पर चुम्बकीय क्षेत्र का मान B/8 होगा –
(a) √2R
(b) 2R
(c) √3R
(d) 3R
उत्तर-
(c) √3R

प्रश्न 13.
चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण एक सदिश राशि है, जो निर्दिष्ट होती है
(a) दक्षिण से उत्तर ध्रुव
(b) उत्तर से दक्षिण ध्रुव
(c) पूरब से पश्चिम दिशा
(d) पश्चिम से पूरब दिशा
उत्तर-
(a) दक्षिण से उत्तर ध्रुव

प्रश्न 14.
एक तार जिसका चुम्बकीय द्विध्रुव आघूर्ण M तथा लम्बाई L है, को त्रिज्या r के अर्धवृत्त के आकार में मोड़ा जाता है। नया द्विध्रुव आघूर्ण क्या होगा?
\((a) \mathrm{M}
(b) \frac{\mathrm{M}}{2 \pi}
(c) \frac{M}{\pi}
(d) \frac{2 M}{\pi}\)
उत्तर-
\((d) \frac{2 M}{\pi}\)

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प्रश्न 15.
किसी बंद परिपथ का प्रतिरोध 10 ओम है । इस परिपथ से t समय (सेकेण्ड) में, चुम्बकीय फ्लक्स (वेवर में) Φ = 6t2 – 5t + 1 से परिवर्तित होता है। t= 0.25 सेकेण्ड पर परिपथ में प्रवाहित धारा (एम्पियर में) होगी –
(a) 0.4
(b) 0.2
(c) 2.0
(d) 4.0
उत्तर-
(b) 0.2

प्रश्न 16.
किसी प्रत्यावर्ती परिपथ में धारा i = 5cos wt, एम्पियर तथा विभव V= 200 sin wt वोल्ट है। परिपथ में शक्ति हानि है
(a) 20W
(b) 40W.
(c) 1000W
(d) zero
उत्तर-
(d) zero

प्रश्न 17.
किसी विद्युत चुम्बकीय विकिर्ण की ऊर्जा 13.2 Kev है। यह विकिर्ण जिस क्षेत्र से संबंधित है, वह है
(a) दृश्य प्रकाश
(b) किरण
(c) पराबैंगनी
(d) अवरक्त
उत्तर-
(b) किरण

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प्रश्न 18.
एक संयुक्त सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्य लेंस से बना प्रतिबिम्ब
(a) काल्पनिक व छोटा
(b) वास्तविक व छोटा
(c) वास्तविक व बड़ा
(d) काल्पनिक व बड़ा
उत्तर-
(c) वास्तविक व बड़ा

प्रश्न 19.
एक उत्तल लेंस को ऐसे द्रव में डुबाया जात है, जिसका अपवर्तनांक लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक के बराबर हो, तो लेंस की फोकस दूरी –
(a) शून्य हो जाएगी
(b) अनन्त होगी
(c) घट जाएगी
(d) बढ़ जाएगी
उत्तर-
(b) अनन्त होगी

प्रश्न 20.
माध्यम I से माध्यम II को जाने वाली प्रकाश-पुंज के लिए क्रांतिक कोण θ है। प्रकाश का वेग माध्यम I में v है, तो प्रकाश का वेग माध्यम II में होगा –
\((a) v(1-\cos \theta)
(b) \frac{v}{\sin \theta}
(c) \frac{v}{\cos \theta}
(d) v(1-\sin \theta)\)
उत्तर-
\((b) \frac{v}{\sin \theta}\)

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प्रश्न 21.
एक सूक्ष्मदर्शी को 1 इंच की दूरी पर अवस्थित वस्तु के लिए उपयोग किया जाता है। यदि m = 5 (आवर्धन क्षमता 5 गुणा) करनी है, तो प्रयुक्त लेंस की फोकस दूरी होनी चाहिए
(a) 0.2″
(b) 0.8″
(c) 1.2″
(d) 5″
उत्तर-
(c) 1.2″

प्रश्न 22.
दूर दृष्टिदोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त लेंस होता है
(a) उत्तल
(b) अवतल
(c) बेलनाकार
(d) समतल-उत्तल
उत्तर-
(a) उत्तल

प्रश्न 23.
किसी प्रिज्म पर एकवर्णी प्रकाश के आपतित होने पर निम्न में से कौन-सी घटना होती है ?
(a) वर्ण-विक्षेपण
(b) विचलन
(c) व्यतिकरण
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(a) वर्ण-विक्षेपण

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प्रश्न 24.
प्रकाश तंतु संचार निम्न में से किस घटना पर आधारित है ?
(a) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन
(b) प्रकीर्णन
(c) परावर्तन
(d) व्यतिकरण
उत्तर-
(a) पूर्ण आन्तरिक परावर्तन

प्रश्न 25.
दो उन तरंगों के व्यतिकरण से उत्पन्न अधिकतम परिणामी आयाम का मान होगा, जिसे प्रकट किया जाता है –
(a) 7
(b) 5
(c) 1
(d) 25
उत्तर-
(b) 5

प्रश्न 26.
तरंग का कलान्तर Φ का पथान्तर ∆x से सम्बद्ध है –
\((a) \frac{\lambda}{\pi}
(b) \frac{\pi}{\lambda} \phi
(c) \frac{\lambda}{2 \pi} \phi
(d) \frac{2 \pi}{\lambda} \phi\)
उत्तर-
\((c) \frac{\lambda}{2 \pi} \phi\)

प्रश्न 27..
मानव नेत्र की विभेदन क्षमता (मिनट में ) होती है
\((a) \frac{1}{60}
(b) 1
(c) 10
(d) \frac{1}{2}\)
उत्तर-
\((a) \frac{1}{60}\)

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प्रश्न 28.
किसी m द्रव्यमान तथा आवेश के कण को V विभव द्वारा त्वरित किया जाता है । कण की दे-ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य होगी
\((a) \frac{V h}{\sqrt{2 q m}}
(b) \frac{q}{\sqrt{2 m V}}
(c) \frac{h}{\sqrt{2 q m V}}
(d) \frac{m h}{\sqrt{2 q V}}\)
उत्तर-
\((c) \frac{h}{\sqrt{2 q m V}}\)

प्रश्न 29.
1014 Hz आवृत्ति की 6.62J विकिर्ण ऊर्जा में फोटॉन्स की संख्या होगी –
(a) 1010
(b) 1015
(c) 1020
(d) 1025
उत्तर-
(c) 1020

प्रश्न 30.
हाइड्रोजन परमाणु में इलेक्ट्रॉन का न्यूनतम कोणीय संवेग होगा –
\((a) \frac{h}{\pi} J s
(b) \frac{h}{2 \pi} J s
(c) \mathrm{h} \pi \mathrm{Js}
(d) 2 \pi h J s\)
उत्तर-
\((b) \frac{h}{2 \pi} J s\)

प्रश्न 31.
किसी नमूना का परमाणु क्रमांक Z तथा द्रव्यमान संख्या A है । इसके परमाणु में न्यूट्रॉन्स की संख्या होगी
(a) A
(b) Z
(c) A + Z
(d) A – Z
उत्तर-
(d) A – Z

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प्रश्न 32.
नाभिकीय अभिक्रिया में संरक्षित भौतिक राशियाँ है –
(a) कुल आवेश
(b) रेखीय संवेग
(c) कोणीय संवेग
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 33.
‘फैक्स’ का अर्थ है
(a) फुल एक्सेस ट्रान्समिशन
(b) फैक्सीमाइल टेलीग्राफी
(c) फेक्च्यूअल ऑटो एक्सेस
(d) फीड ऑटो एक्सचेंज
उत्तर-
(b) फैक्सीमाइल टेलीग्राफी

प्रश्न 34.
एक अर्द्धचालक को TK से T,K ताप पर ठंडा किया जाता है, तो इसका प्रतिरोध –
(a) बढ़ेगा
(b) घटेगा
(c) नियत रहेगा
(d) पहले घटेगा फिर बढ़ेगा
उत्तर-
(a) बढ़ेगा

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प्रश्न 35.
यदि ट्रांजिस्टर के धारा नियतांक a तथा B हैं तो
(a) α β = 1
(b) β > 1, α < 1
(c) α = β
(d) β < 1, α > 1
उत्तर-
(b) β > 1, α < 1

Bihar Board Class 11th Hindi रचना निबंध लेखन

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1. भारत के प्रथम राष्ट्रपति : देशरत्न राजेन्द्र प्रसाद

अपनी सादगी, पवित्रता, सत्यनिष्ठा, योग्यता और विद्वान से भारतीय ऋषि परम्परा को पुनर्जीवित कर देने वाले, देशरत्न के उच्चतम पद से विभूषित राजेन्द्र बाबू का पूरा नाम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह है। अपनी सादगी और सरलता के कारण किसान जैसा व्यक्तित्व पाकर भी पहले राष्ट्रपति बनने का गौरव पाने वाले इस महान व्यक्ति का जन्म 3 दिसम्बर सन् 1884 ई. के दिन बिहार राज्य के सरना जिले के एक मान्य एवं संभ्रान्त कायस्थ परिवार में हुआ था। पूर्वज तत्कालीन हथुआ राज्य के दीवान रह चुके थे।

उर्दू भाषा में आरम्भिक शिक्षा पाने के बाद उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता आ गए। आरम्भ से अन्त तक प्रथम श्रेणी में हर परीक्षा पास करने के बाद वकालत करने लगे। कुछ ही दिनों में इनकी गणना उच्च श्रेणी के श्रेष्ठतम वकीलों में होने लगी। लेकिन रौलेट एक्ट से आहत होकर इनका स्वाभिमानी मन देश की स्वतंत्रता के लिए तड़प उठा और गाँधी जी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलनों में भाग लेकर देशसेवा में जुट गए।

आरम्भ में राजेन्द्र बाबू राष्ट्रीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले से, बाद में महात्मा गाँधी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से सर्वाधिक प्रभावित रहे। इन दोनों का प्रभाव इनके जीवन में स्पष्ट दिखाई देता था। इन दोनों ने ही इन्हें महान बनाया। सन् 1905 ई. में पूना में स्थापित ‘सर्वेण्ट्स आफ इण्डिया’ सोसाइटी की तरफ आकर्षित होते हुए भी राजेन्द्र बाबू अपनी अन्त:प्रेरणा से गाँधी जी के चलाए कार्यक्रमों के प्रति सर्वात्मभाव से समर्पित हो गए और फिर आजीवन उन्हीं के बने भी रहे।

राजेन्द्र बाबू विद्वान और विनम्र तो थे ही, अपूर्व सूझ-बूझ वाले एवं संगठन शक्ति से सम्पन्न व्यक्ति भी थे। इस कारण इन्हें जीवनकाल में और स्वतंत्रता संघर्ष काल में भी अधिकतर इसी प्रकार के कार्य सौंपे जाते रहे। अपनी लगन एवं दृढ़ कार्यशक्ति से शीघ्र ही इन्होंने गाँधीजी के प्रिय पात्रों के साथ-साथ शीर्षस्थ राजनेताओं में भी परम विशिष्ट एवं महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया था।

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आरम्भ में इनका कार्यक्षेत्र अधिकतर बिहार राज्य ही रहा। असहयोग आन्दोलन में सफलतापूर्वक भाग ले कर और शीर्षस्थ पद पाकर ये बिहार के किसानों को उनके उचित अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करने लगे। बिहार राज्य में नव जागृति लाकर स्वतंत्रता संघर्ष के लिए खड़ा कर देना भी इन्हीं के कुशल एवं निःस्वार्थ नेतृत्व का कार्य था। सन् 1934 में बिहार राज्य में आने वाले भूकम्प के कारण उत्पन्न विनाशलीला के अवसरल पर राजेन्द्र बाबू ने जिस लगन और कुशलता से पीड़ित जनता को राहत पहुँचाने का कार्य किया, वह एक अमर घटना तो बन ही गया, उसने सारे बिहार राज्य को इनका अनुयायी भी बना दिया।

अपने व्यक्तित्व में पूर्ण, कई बातों में स्वतंत्र विचार रखते हुए भी राजेन्द्र बाबू गाँधीजी का विरोध कभी भूलकर भी नहीं किया करते थे। हर आदेश का पालन और योजना का समर्थन नतमस्तक होकर किया करते थे इसका प्रमाण उस समय भी मिला, जब हिन्दी भाषा का कट्टर अनुयायी एवं समर्थन होते हुए भी इन्होंने गाँधीजी के चलाए हिन्दोस्तानी भाषा के आन्दोलन को चुपचाप स्वीकार कर लिया।

राष्ट्रपति भवन के वैभवपूर्ण वातावरण में रहते हुए भी इन्होंने अपनी सादगी और पवित्रता को कभी भंग नहीं होने दिया। हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने जैसे कुछ प्रश्नों पर इनका प्रधानमंत्री से मतभेद भी बना रहा, पर इन्होंने अपने पद की गरिमा को कभी भंग नहीं होने दिया। दूसरी बार का राष्ट्रपति पद का समय समाप्त होने के बाद ये बिहार के सदाकत आश्रम में जाकर निवास करने लगे। सन् 1962 में उत्तर-पूर्वी सीमांचल पर चीनी आक्रमण का सामना करने का उद्घोष करने के बाद शारीरिक एवं मानसिक अस्वस्थता में रहते हुए इनका स्वर्गवास हो गया। इन्हें मरणोपरान्त ‘भारत रत्न’ के पद से विभूषित किया गया। भारतीय आत्मा इनके सामने हमेशा नतमस्तक रहेगी।

2. यदि मैं प्रधानमंत्री होता

यदि मैं प्रधानमंत्री होता-अरे ! यह मैं क्या सोचने लगा। प्रधानमंत्री बनना कोई बच्चों का काम है क्या? प्रधानमंत्री कितना भारी शब्द है यह, जिसे सुनते ही एक ओर तो कई तरह के दायित्वों का अहसास होता है जबकि दूसरी ओर स्वयं ही एक अनजाने गर्व से उठ कर तनने भी लगता है। भारत जैसे महान लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बनना वास्तव में बहुत बड़े गर्व और गौरव की बात है, इस तथ्य से भला कौन इन्कार कर सकता है। प्रधानमंत्री बनने के लिए लम्बे और व्यापक जीवन अनुभवों का, राजनीतिक कार्यों और गतिविधियों का प्रत्यक्ष अनुभव रहना बहुत ही आवश्यक हुआ करता है।

प्रधानमंत्री बनने के लिए जनकार्यों और सेवाओं की पृष्ठभूमि में रहना भी जरूरी है और इस प्रकार के व्यक्ति का अपना जीवन भी त्याग-तपस्या का आदर्श उदाहरण होना चाहिए। एक और महत्वपूर्ण बात भी जरूरी है। वह यह कि आज के युग में छोटे-बड़े प्रत्येक देश और उसके प्रधानमंत्री को कई तरह के राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय दबावों, कूटनीतियों के प्रहारों को झेलते हुए कार्य करना पड़ता है। अतः प्रधानमंत्री बनने के लिए व्यक्ति को चुस्त-चालाक, कूटनीति कुशल और दबाव एवं प्रहार कर सकने योग्य वाला होना भी बहुत। आवश्यक माना जाता है ! निश्चय ही मेरे पास ये सारी योग्यताएँ और कलायें नहीं हैं, फिर भी अक्सर मेरे मन-मस्तिष्क को यह बात मथती रहा करती है, रह-रहकर गंज-गूंज उठा करती है कि यदि मैं प्रधानमंत्री होता, तो?

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यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो,? सबसे पहले मेरा कर्तव्य स्वतंत्र भारत के नागरिकों के लिए विशेषकर युवा पीढ़ी के लिए, पूरी सख्ती और कर्मठता से काम लेकर एक राष्ट्रीय चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा एवं उपायों पर बल देता। छोटी-बड़ी विकास-योजनाएँ आरम्भ करने से पहले यदि हमारे अभी तक के प्रधानमंत्री राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देते और उसके बाद विकास-योजनाएँ चालू करते, तो वास्तव में उनका लाभ आम आदमी तक भी पहुँच पाता। आज हमारी योजनायें एवं सभी सरकारी-अर्द्धसरकारी विभाग आकण्ठ निठल्लेपन और भ्रष्टाचार में डूब कर रह गई हैं, एक राष्ट्रीय चरित्र होने पर इस प्रकार की सम्भावनाएँ स्वतः ही समाप्त हो जाती। इस कारण यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो प्राथमिक आधार पर यही कार्य करता।

आज स्वतंत्र भारत में जो संविधान लागू है, उसमें बुनियादी कमी यह है कि वह देश का अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक, अनुसूचित जाति, जनजाति आदि के खानों में बाँटने वाला तो है, उसने। हरेक के लिए कानून विधान भी अलग-अलग बना रखे हैं जबकि नारा समता और समानता का लगाया जाता है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो संविधान में रह गई इस तरह की कमियों को दूर करवा कर सभी के लिए एक शब्द ‘भारतीय’ और संविधान कानून लागू करवाता ताकि विलगता की सूचक सारी बातें स्वतः ही खत्म हो जाती भारत केवल भारतीयों का रह जाए न कि अल्पसंख्याक, बहुसंख्यक आदि का।।

3. गंगा प्रदूषण गंगा, भारतीय जन-मानस, बल्कि स्वयं समूची भारतीयता की आस्था का जीवन्त प्रतीक है, मात्र एक नदी नहीं। हिमालय की गोद में पहाड़ी घाटियों से नीचे उतर कल्लोल करते हुए मैदानों की राहों पर प्रवाहित होने वाली गंगा पवित्र तो है ही, वह मोक्षदायिनी के रूप में भारतीय भावनाओं में समाई है। भारतीय सभ्यता-संस्कृति का विकास गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों विशेषकर गंगा तट के आस-पास ही हुआ है। गंगा जल वर्षों तक बोतलों, डिब्बों आदि में बन्द रहने पर भी कभी खराब नहीं होता और न ही उसमें कोई कीड़े लगते हैं। वही भारतीयता की मातृवत् पूज्या गंगा आज प्रदूषित होकर गन्दे नाले जैसी बनती जा रही है, यह भी एक वैज्ञानिक परीक्षणगत एवं अनुभवसिद्ध तथ्य है।

पतित पावनी गंगा के जल के प्रदूषित होने के बुनियादी कारण क्या हैं, उन पर कई बार विचार एवं दृष्टिपात किया जा चुका है। एक कारण तो यह है कि भारत के प्रायः सभी प्रमुख नगर गंगा तट पर और उसके आस-पास बसे हुए हैं। उन नगरों में आबादी का दबाव बहुत बढ़ गया है। वहाँ से मल-मूत्र और गन्दे पानी की निकासी की कोई सुचारू व्यवस्था न होने के कारण इधर-उधर बनाए गए छोटे-बड़े सभी गन्दे नालों के माध्यम से बहकर वह गंगा नदी में आ मिलता है। परिणामस्वरूप कभी खराब न होने वाला गंगाजल भी बाकी वातावरण के समान आज बुरी तरह से प्रदूषित होकर रह गया है।

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एक दूसरा प्रमुख कारण गंगा-प्रदूषण का यह है कि औद्योगीकरण की बढ़ती प्रवृत्ति ने भी इसे बहुत प्रश्रय दिया है। हावड़ा, कोलकाता, बनारस, कानपुर आदि जाने कितने औद्योगिक नगर गंगा तट पर ही बसे हैं। यहाँ लगे छोटे-बड़े कारखानों से बहने वाला रासायनिक दृष्टि से प्रदूषित पानी, कचरा आदि भी गन्दे नालों तथा अन्य मार्गों से आकर गंगा में ही विसर्जित होता है। इस प्रकार के तत्त्वों ने जैसे बाकी वातावरण को प्रदूषित कर रखा है, वैसे गंगाजल को भी बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है।

वैज्ञानिकों, का यह भी मानना है कि सदियों से आध्यात्मिक भावनाओं से अनुप्रमाणित होकर गंगा की धारा में मृतकों की अस्थियाँ एवं अवशिष्ट राख तो बहाई ही जा रही है, अनेक लावारिस और बच्चों की लाशें भी बहा दी जाती हैं। बाढ़ आदि के समय मरे पशु भी धारा में आ मिलते हैं। इन सबने भी जल-प्रदूषण की स्थितियाँ पैदा कर दी हैं। गंगा के निकास स्थल और आस-पास के वनों-वृक्षों का निरन्तर कटाव, वनस्पतियों औषधीय तत्वों का विनाश भी प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है। इसमें सन्देह नहीं कि ऊपर जितने भी कारण बताए गए हैं, गंगा-जल को प्रदूषित करने में न्यूनाधिक उन सभी का हाथ अवश्य है।

4. बाल-मजदूर समस्या

बाल-मन सामान्यतया अपने घर-परिवार तथा आस-पास की स्थितियों से अपरिचित रहा करता है। स्वच्छन्द रूप से खाना-पीना और खेलना ही वह जानता एवं इन्हीं बातों का प्रायः अर्थ भी समझा करता है। कुछ और बड़ा होने पर तख्ती, स्लेट और प्रारम्भिक पाठमाला लेकर पढ़ना-लिखना सीखना शुरू कर देता है। लेकिन आज परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बन गईं और बन रही हैं कि उपर्युक्त कार्यों का अधिकार रखने वाले बालकों के हाथ-पैर दिन-रात मेहनत मजदूरी के लिए विवश होकर धूल-धूसरित तो हो ही चुके हैं, अक्सर कठोर एवं छलनी भी हो चुके होते हैं।

चेहरों पर बालसुलभ मुस्कान के स्थान पर अवसाद की गहरी रेखाएँ स्थायी डेरा डाल चुकी होती हैं। फूल की तरह ताजा गन्ध से महकते रहने योग्य फेफड़ों में धूल, धुआँ, भरकर उसे अस्वस्थ एवं दुर्गन्धित कर चुके होते हैं। गरीबीजन्य बाल मजदूरी करने की विवश्ता ही इसका एकमात्र कारण मानी जाती हैं ऐसे बाल मजदूर कई बार तो डर, भय, बलात कार्य करने जैसी विवशता के बोझ तले दबे-घुटे प्रतीत होते हैं और कई बार बड़े बूढों की तरह दायित्वबोध से दबे हुए भी। कारण कुछ भी हो, बाल मजदूरी न केवल किसी एक स्वतंत्र राष्ट्र बल्कि समूची मानवता के माथे पर कलंक है।

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छोटे-छोटे बालक मजदूरी करते हुए घरों, ढाबों, चायघरों, छोटे होटलों आदि में तो अक्सर मिल ही जायेंगे, छोटी-बड़ी फैक्टरियों के अन्दर भी उन्हें मजदूरी का बोझ ढोते हुए देखा जा सकता है। काश्मीर का कालीन-उद्योग, दक्षिण भारत का माचिस एवं पटाखा उद्योग, महाराष्ट्र, गुजरात और बंगाल का बीड़ी उद्योग तो पूरी तरह से बाल-मजदूरों के श्रम पर ही टिका हुआ है। इन स्थानों पर सुकुमार बच्चों से बारह-चौदह घण्टे काम लिया जाता है, पर बदले में वेतन बहुत कम दिया जाता है, अन्य किसी प्रकार की कोई सुविधा नहीं दी जाती। यहाँ तक कि इनके स्वास्थ्य का भी ध्यान नहीं रखा जाता।

इतना ही नहीं, यदि ये बीमार पड़ जाये तब भी इन्हें छुट्टी नहीं दी जाती बल्कि काम करते रहना पड़ता है। यदि छुट्टी कर लेते हैं तो उस दिन का वेतन काट लिया जाता है। कई मालिक तो छुट्टी करने पर दुगुना वेतन काट लेते हैं। ढाबों, चायघरों आदि में या फिर हलवाइयों की दुकानों पर काम कर रहे बच्चों की दशा तो और भी दयनीय होती है। कई बार तो उन्हें बचा-खुचा जूठन ही खाने-पीने को बाध्य होना पड़ता है। बेचारे वहीं बैंचों पर या भट्टियों की बुझती आग के पास चौबीस घण्टों में दो-चार घण्टे सोकर गमी-सर्दी काट लेते हैं।

बात-बात पर गालियाँ तो सुननी ही पड़ा करती है, मालिकों के लात-घूसे भी सहने पड़ते हैं। यदि किसी से काँच का गिलास या कप-प्लेट टूट जाता है तो उस समय मार-पीट और गाली-गलौज के साथ जुर्माना तक सहन करना पड़ता है। यही मालिक अपनी गलती से कोई वस्तु इधर-उधर रख देता और न मिलने पर इन बाल मजदूरों पर चोरी करने का इल्जाम लगा दिया जाता है। इस प्रकार बाल मजदूरों का जीवन बड़ा ही दयनीय एवं यातनापूर्ण होता है।

5. शिक्षक दिवस : 5 सितम्बर

समाज को सही दिशा देने में शिक्षक की अहम् भूमिका होती है। वह देश के भावी नागरिकों अर्थात् बच्चों के व्यक्तित्व संवारने के साथ-साथ उन्हें शिक्षित भी करता है। इसलिए शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कार्यों का मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का दिन ही शिक्षक दिवस कहलाता है। हालांकि डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् जो कि 1962 से 1967 तक भारत के राष्ट्रपति भी रहे। उनके जन्म दिवस के अवसर पर ही शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे संस्कृतज्ञ, दार्शनिक होने के साथ-साथ शिक्षा शास्त्री भी थे। राष्ट्रपति बनने से पूर्व उनका शिक्षा क्षेत्र ही सम्बद्ध था।

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1920 से 1921 तक वे विश्वविख्यात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर रहे। राष्ट्रपति बनने के बाद जब उनका जन्म दिवस सार्वजनिक रूप से आयोजित करना चाहा तो उन्होंने जीवन का अधिकतर समय शिक्षक रहने के नाते इस दिवस को शिक्षकों का सम्मान करने हेतु शिक्षक दिवस मनाने की बात कही। उस समय से प्रतिवर्ष यह दिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

शिक्षकों द्वारा किये गये श्रेष्ठ कार्यों कर मूल्यांकन कर उन्हें सम्मानित करने का भी यही दिन है। इस दिन स्कूलों कालेजों में शिक्षक का कार्य छात्र खुद ही संभालते हैं। इस दिन राज्य सरकारों द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण के प्रति समर्पित और छात्र-छात्राओं के प्रति अनुराग रखने वाले शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। शिक्षक राष्ट्रनिर्माण में मददगार साबित होते हैं वहीं वे राष्ट्रीय संस्कृत के संरक्षक भी हैं।

वे बालकों में सुसंस्कार तो डालते ही हैं उनके अज़ानता रूपी अंधकार को दूर कर उन्हें देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व भी वहन करते हैं। शिक्षक राष्ट्र के बालकों को न केवल साक्षर ही बनाते हैं बल्कि अपने उपदेश द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा चक्षु भी खोलते हैं। वे बालकों में हित-अहित, भला-बुरा सोचने की शक्ति उत्पन्न करते हैं। इस तरह वे राष्ट्र के समग्र विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

शिक्षक उस दीपक के समान हैं जो अपनी ज्ञान ज्योति से बालकों को प्रकाशमान करते हैं। महर्षि अरविन्द ने अपनी एक पुस्तक जिसका शीर्षक ‘महर्षि अरविन्द के विचार’ में शिक्षक के संबंध में लिखा है अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के माली होते हैं वे संस्कार की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उनहें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। इटली के एक उपन्यासकार ने शिक्षक के बारे में कहा है कि शिक्षक उस मोमबत्ती के समान है जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देती है। संत कबीर ने तो गुरु को ईश्वर से भी बड़ा माना है। उन्होंने गुरु को ईश्वर से बड़ा मानते हुए कहा है कि

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो मिलाय॥

शिक्षक को आदर देना समाज और राष्ट्र में उनकी कीर्ति को फैलाना केन्द्र व राज्य सरकारों का कर्त्तव्य ही नहीं दायित्व भी है। इस दायित्व को पूरा करने का शिक्षक दिवस एक अच्छा दिन है।

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6. स्वतंत्रता दिवस : 15 अगस्त

स्वतंत्रता दिवस को देश की स्वतन्त्रता का जन्म दिवस भी कह सकते हैं। क्योंकि इसी दिन देश को गुलामी से मुक्ति मिली थी। 1947 से पूर्व लगभग दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों ने भारत में . राज्य किया। जबकि भारत आदि काल से हिन्दू भूमि रहा है। अंग्रेजों से पूर्व करीब बारह सौ ‘वर्षों तक मुगलों ने भारत पर शासन किया। इसके बाद कूटनीति में माहिर अंग्रेजों ने विलासी, भोगी और सत्ता पाने के लिए पारिवारिक षड़यंत्रों में उलझे रहे। मुगलों को खदेड़ कर अपना शासन भारत में स्थापित किया। इनके काल में वैज्ञानिक उन्नति से देश प्रगति पर अग्रसर हुआ।

उन्होंने अपनी कूटनीति के चलते भारत से श्रीलंका और बर्मा को अलग उन्हें स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित किया। बंगाल को भी दो भागों में विभाजित करने के प्रयास में थे। पर जनमत विरोध के कारण इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। इसी दिन दिल्ली के लालकिले पर पहली बार यूनियन जैक के स्थान पर सत्य और अहिंसा का प्रतीक तिरंगा झंडा लहराया गया था।

यह राष्ट्रीय पर्व प्रतिवर्ष प्रत्येक नगर में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। विद्यालयों में छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बड़े उल्लास और उत्साह के साथ आयोजित करते हैं। हमारे स्कूल में भी अन्य वर्षों की भाँति इस वर्ष यह उत्सव बहुत ही उत्साह के साथ मनाया गया। स्कूल के सभी छात्र स्कूल के प्रांगण में एकत्रित हुए। यहाँ अध्यापकों ने उपस्थिति ली, जिससे यह मालूम हो गया कि कौन-कौन नहीं आया है। हालांकि कार्यक्रम शुरू होने के बाद भी विद्यार्थियों का आना जारी था ! उपस्थिति पूर्ण होने के बाद मंच का संचालन कर रहे शिक्षक ने उन छात्रों से आगे आने को कहा जिन्हें कार्यक्रम के लिए चुना गया था। शिक्षक की इस उद्घोषणा के बाद कार्यक्रम के लिए चयनित छात्र अन्य छात्रों से अलग हो चुके थे।

इसके बाद प्रधानाचार्य ने प्रभात फेरी में चलने के लिए विद्यार्थियों को संकेत दिया। स्कूल के छात्र तीन-तीन की पंक्ति बनाकर सड़क पर चलने लगे। सबसे आगे चल रहे विद्यार्थी के हाथ में तिरंगा झण्डा था, उसके पीछे विद्यार्थी तीन-तीन की पंक्तियों में चल रहे थे। सभी छात्र देशभक्ति से ओत-प्रोत गीत गाते हुए जा रहे थे। बीच-बीच में अचानक वे ‘भारत माता की जय’, हिन्दुस्तान जिन्दाबाद-जिन्दाबाद के नारे बुलन्द आवाज में लगा रहे थे। इस प्रकार प्रभात फेरी नगर के प्रमुख चौराहों से होते हुए जिलाधीश के नारे बुलन्द आवाज में लगा रहे थे। इस प्रकार प्रभात फेरी नगर के प्रमुख चौराहों से होते हुए जिलाधीश के आवास के सामने से निकली। अन्त में प्रभात फेरी स्कूल परिसर में आकर रुकी। जहाँ ध्वजारोहण की तैयारियां पूरी हो चुकी थी।

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ठीक आठ बजे स्कूल के प्रधानाचार्य के ध्वजारोहण किया और उपस्थित सभी छात्रों ने तिरंगे को सलामी दी। इस अवसर पर राज्य के शिक्षामन्त्री तथा शिक्षा अधिकारी द्वारा भेजे गये संदेश पढ़कर सुनाए गए। इसके बाद शुरू हुए खेल व सांस्कृतिक कार्यक्रम। सांस्कृतिक कार्यक्रम के तहत जलियाँवाला बाग पर आधारित एक नाटक का मंचन किया गया। इसके अलावा कुछ छात्रों ने देश भक्ति से ओत-प्रोत अपनी रचनाएँ सुनाई। कार्यक्रम के अंत में विभिन्न क्षेत्रों में अव्वल रहे छात्रों को क्षेत्र के प्रमुख समाजसेवी व स्वतंत्रता सेनानी श्री जसवंत सिंह ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया, और छात्रों के मध्य मिष्ठान वितरण हुआ।

राष्ट्रीय स्तर पर इस पर्व का मुख्य आयोजन दिल्ली के लाल किले में होता है। इस समारोह को देखने के लिए भारी जनसमूह उमड़ पड़ता है। लाल किला मैदान व सड़कें जनता से खचाखच भरी होती हैं। यहाँ प्रधानमंत्री के आगमन के साथ ही समारोह का शुभारम्भ हो जाता है। सेना के तीनों अंगों जल, थल और नौसेना की टुकड़ियाँ तथा एन.सी.सी. के कैडिट सलामी देकर प्रधानमंत्री का स्वागत करते हैं। प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर बने मंच पर पहुँच कर जनता का अभिनन्दन स्वीकार करते हैं और राष्ट्रीय ध्वज लहराते हैं।

ध्वजारोहण के समय राष्ट्र ध्वज को सेना द्वारा इक्कत्तीस तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री राष्ट्र की जनता को बधाई देने के बाद देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। साथ ही पिछले वर्ष पन्द्रह अगस्त से इस वर्ष तक की काल में घटित प्रमुख घटनाओं पर चर्चा करते हैं। भाषण के अंत में तीन बार वे जय हिन्द का घोष करते हैं। जिसे वहाँ उपस्थित जनसमूह बुलन्द आवाज में दोहराता है। लाल किले पर इस अवसर पर रोशनी की जाती है।

7. भारतीय किसान

त्याग और तपस्या का दूसरा नाम है किसान। वह जीवन भर मिट्टी से सोना उत्पन्न करने की तपस्या करता रहता है। तपती धूप, कड़ाके की ठंड तथा मूसलाधार बारिश भी उसकी इस साधना को तोड़ नहीं पाते। हमारे देश की लगभग सत्तर प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में निवास करती है। जिनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। एक कहावत है कि भारत की आत्मा किसान है जो गाँवों में निवास करते हैं। किसान हमें खाद्यान्न देने के अलावा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को भी सहेज कर रखे हुए हैं। यही कारण है कि शहरों की अपेक्षा गाँवों में भारतीय संस्कृति और सभ्यता अधिक देखने को मिलती है। किसान की कृषि ही शक्ति है और यही उसकी भक्ति है।

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वर्तमान संदर्भ में हमारे देश में किसान आधुनिक विष्णु है वह देशभर को अन्न, फल, साग, सब्जी आदि दे रहा है लेकिन बदले में उसे उसका पारिश्रमिक तक नहीं मिल पा रहा है। प्राचीन काल से लेकर अब तक किसान का जीवन अभावों में ही गुजरा है। किसान मेहनती होने के साथ-साथ सादा जीवन व्यतीत करने वाला होता है। समय अभाव के कारण उसकी आवश्यकतायें भी बहुत सीमित होती हैं। उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता पानी है। यदि समय पर वर्षा नहीं होती है तो किसान उदास हो जाता है। इनकी दिनचर्या रोजना लगभग एक सी ही रहती है। किसान ब्रह्ममुहूर्त में सजग प्रहरी की भाँति जाग उठता है। वह घर में नहीं सोकर वहाँ सोता है जहाँ उसका पशुधन होता है। उठते ही पशुधन की सेवा, इसके पश्चात् अपनी कर्मभूमि खेत की ओर उसके पैर खुद-ब-खुद उठ जाता है। उसका स्नान, भोजन तथा विश्राम आदि जो कुछ भी होता है वह एकान्त वनस्थली में होता है।

वह दिनभर कठोर परिश्रम करता है। स्नान भोजन आदि अक्सर वह खेतों पर ही करता है। साँझ ढलते समय वह कंधे पर हल रख बैलों को हाँकता हुआ घर लौटता है। कर्मभूमि में काम करने के दौरान किसान चिलचिलाती धूप में तनिक भी विचलित नहीं होता। इसी तरह मूसलाधार बारिश या फिर कड़ाके की ठंड की परवाह किये बगैर किसान अपने कृषि कार्य में जुटा रहता है।

किसान के जीवन में विश्राम के लिए कोई जगह नहीं है। निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है। कैसी भी बाधा उसे अपने कर्तव्यों से डिगा नहीं सकती। अभाव का जीवन व्यतीत करने के बावजूद वह संतोषी प्रवृत्ति का होता है। इतना सब कुछ करने के बाद भी वह अपने जीवन की आवश्यकतायें पूरी नहीं कर पाता। अभाव में उत्पन्न होने वाला किसान अभाव में जीता है और अभाव में इस संसार से विदा ले लेता है। अशिक्षा, अंधविश्वास तथा समाज में व्याप्त कुरीतियाँ उसके साथी हैं। सरकारी कर्मचारी, बड़े जमींदार, बिचौलिया तथा व्यापारी उसके दुश्मन हैं। जो जीवन भर उसका शोषण करते रहते हैं।

आज से पैंतीस वर्ष पहले के किसान और आज के किसान में बहुत अंतर आया है। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात किसान के चेहरे पर कुछ खुशी देखने को मिली है। अब कभी-कभी उसके मलिन-मुख पर भी ताजगी दिखाई देने लगती है। जमीदारों के शोषण से तो उसे मुक्ति मिल ही चुकी है परन्तु फिर भी वह आज भी पूर्ण रूप से सुखी नहीं है। आज भी 20 या 25 प्रतिशत किसान ऐसे हैं जिनके पास दो समय का भोजन नहीं है। शरीर ढकने के लिए कपड़े नहीं हैं। टूटे-फूटे मकान और टूटी हुई झोपड़ियाँ आज भी उनके महल बने हुए हैं।

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हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से किसान के जीवन में कुछ खुशियाँ लौटी हैं। सरकार ने ही किसानों की ओर ध्यान देना शुरू किया है। उनके अभावों को कम करने के प्रयास में कई योजनाएँ सरकार द्वारा चलाई जा रही हैं। किसानों को समय-समय पर गाँवों में ही कार्यशाला आयोजित कर कृषि विशेषज्ञों द्वारा कृषि क्षेत्र में हुए नये अनुसंधानों की जानकारी दी जा रही है। इसके अलावा उन्हें रियायती दर पर उच्च स्तर के बीज, आधुनिक कृषि यंत्र, खाद आदि उपलब्ध कराये जा रहे हैं। उनकी आर्थिक स्थिति सुधारने व व्यवसायिक खेती करने के लिए सरकार की ओर से बहुत कम ब्याज दर पर ऋण मुहैया कराया जा रहा है। खेतों में सिंचाई के लिए नहरों व नलकूपों का निर्माण कराया जा रहा है। उन्हें शिक्षित करने के लिए गाँवों में रात्रिकालीन स्कूल खोले जा रहे हैं। इन सब कारणों के चलते किसान के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। उसकी आर्थिक स्थिति भी काफी हद तक सुदृढ़ हुई है।

8. होली-रंग और उमंग का त्योहार

त्योहार जीवन की एकरसता को तोड़ने और उत्सव के द्वारा नई रचनात्मक स्फूर्ति हासिल करने के निमित्त हुआ करते हैं। संयोग से मेल-मिलाप का अनूठा त्योहार होने के कारण होली में यह स्फूर्ति हासिल करने और साझेपन की भावना को विस्तार देने के अवसर ज्यादा हैं। देश में मनाये जाने वाले धार्मिक व सामाजिक त्योहारों के पीछे कोई न कोई घटना अवश्य जुड़ी हुई है। शायद ही कोई ऐसी महत्वपूर्ण तिथि हो, जो किसी न किसी त्योहार या पर्व से संबंधित न हो।

दशहरा, रक्षाबन्धन, दीपावली, रामनवमी, वैशाखी, बसंत पंचमी, मकर संक्रांति, बुद्ध पूर्णिमा आदि बड़े धार्मिक त्योहार हैं। इनके अलावा कई क्षेत्रीय त्योहार भी हैं। भारतीय तीज त्योहार साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे हैं। रंगों का त्योहार होली धार्मिक त्योहार होने के साथ-साथ मनोरंजन का उत्सव भी है। यह त्योहार अपने आप में उल्लास, उमंग तथा उत्साह लिए होता है। इसे मेल व एकता का पर्व भी कहा जाता है।

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हंसी ठिठोली के प्रतीक होली का त्योहार रंगों का त्योहार कहलाता है। इस त्योहार में लोग पुराने बैरभाव त्याग एक दूसरे को गुलाल लगा बधाई देते हैं और गले मिलते हैं। इसके पहले दिन पूर्णिमा को होलिका दहन और दूसरे दिन के पर्व को धुलेंडी कहा जाता है। होलिका दहन के दिन गली-मौहल्लों में लकड़ी के ढेर लगा होलिका बनाई जाती है। शाम के समय महिलायें-युवतियाँ उसका पूजन करती हैं। इस अवसर पर महिलाएँ शृंगार आदि कर सजधज कर आती हैं। बृज क्षेत्र में इस त्योहार का रंग करीब एक पखवाड़े पूर्व चढ़ना शुरू हो जाता है।

होली भारत का एक ऐसा पर्व है जिसे देश के सभी निवासी सहर्ष मनाते हैं। हमारे तीज त्योहार हमेशा साझा संस्कृति के सबसे बड़े प्रतीक रहे है।। यह साझापन होली में हमेशा दिखता आया है। मुगल बादशाहों की होली की महफिलें इतिहास में दर्ज होने के साथ यह हकीकत भी बयाँ करती हैं कि रंगों के इस अनूठे जश्न में हिन्दुओं के साथ मुसलमान भी बढ़-चढ़कर शामिल होते हैं। मीर, जफर और नजीर की शायरी में होली की जिस धूम का वर्णन है, वह दरअसल लोक परंपरा और सामाजिक बहुलता का ही रंग है। होली के पीछे एक पौराणिक कथा प्रसिद्ध है।

इस संबंध में कहा जाता है कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा को भगवान का नाम न लेने का आदेश दे रखा था। किन्तु उसके पुत्र प्रहलाद ने अपने पिता के इस आदेश को मानने से इंकार कर दिया। उसके पिता द्वारा बार-बार समझाने पर भी जब वह नहीं माना तो दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के अनेक प्रयास किए किन्तु उसका वह बाल भी बांका न कर सका।

प्रहलाद जनता में काफी लोकप्रिय भी था। इसलिए दैत्यराज हिरण्यकश्यप को यह डर था कि अगर उसने स्वयं प्रत्यक्ष रूप से प्रहलाद का वध किया तो जनता उससे नाराज हो जाएगी। इसलिए वह प्रह्लाद को इस तरह मारना चाहता था कि उसकी मृत्यु एक दुर्घटना जैसी लगे। ‘ दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में जलेगी नहीं। मान्यता है कि होलिका नित्य प्रति कुछ समय के लिए अग्नि पर बैठती थी और अग्नि का पान करती थी। हिरण्यकश्यप ने होलिका की मदद से प्रहलाद को मारने की ठानी।

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उसने योजना बनाई कि होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ जाए तो प्रह्लाद मारा जाएगा और होलिका वरदान के कारण बच जाएगी। उसने अपनी उस योजना से होलिका को अवगत कराया। पहले तो होलिका ने इसका विरोध किया लेकिन बाद में दबाव के कारण उसे हिरण्यकश्यप की बात माननी पड़ी।

योजना के अनुसार होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई और लकड़ियों में आग लगा दी गई। प्रभु की कृपा से वरदान अभिशाप बन गया। होलिका जल गई, मगर प्रहलाद को आँच तक न पहुँची। तब से लेकर हिन्दू होली के एक दिन पहले होलिका जलाते हैं। इस त्यौहार को ऋतुओं से संबंधित भी बताया जाता है। इस अवसर पर किसानों द्वारा अपने खेतों में उगाई फसलें पककर तैयार हो जाती हैं। जिसे देखकर वे झूम उठते हैं। खेतों में खड़ी पकी फसल की बालियों को भूनकर उनके दाने मित्रों व सगे-संबंधियों में बाँटते हैं।

होलिका दहन के अगले दिन धुलेंडी होती है। इस दिन सुबह आठ बजे के बाद से गली-गली में बच्चे एक-दूसरे पर रंग व पानी डाल होली की शुरूआत करते हैं। इसके बाद तो धीरे-धीरे बड़ों में भी होली का रंग चढ़ाना शुष्क हो जाता है और शुरू हो जाता है होली का हुड़दंग। अधेड़ भी इस अवसर पर उत्साहित हो उठते हैं। दस बजते-बजते युवक-युवतियों की टोलियाँ गली-मौहल्लों से निकल पड़ती हैं। घर-घर जाकर वे एक दूसरे को गुलाल लगा व गले मिल होली की बधाई देते हैं। गलियों व सड़कों से गुजर रही टोलियों पर मकानों की छतों पर खड़े लोगों द्वारा रंग मिले पानी की बाल्टियाँ उड़ेल दी जाती है। बच्चे पिचकारी से रंगीन पानी फेंककर गुब्बारे मारकर होली का आनन्द लेते हैं ! चारों ओर चहल-पहल दिखाई देती है।

जगह-जगह लोग टोलियों में एकत्र हो ढोल की थाप पर होली है भई होली है की तर्ज पर गाने गाते हैं। वृद्ध लोग भी इस त्योहार पर जवान हो उठते हैं। उनके मन में भी उमंग व उत्सव का रंग चढ़ जाता है। वे आपस में बैठ गप-शप व ठिठोली में मस्त हो जाते हैं और ठहाके लगाकर हंसते हैं। अपराहन दो बजे तक रंगों का खेल समाप्त हो जाता है। घर से होली खेलने बाहर निकले लोग घर लौट आते हैं। नहा-धोकर शाम को फिर बाजार में लगे मेला देखने चल पड़ते हैं।

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9. विजयादशमी : दशहरा (दुर्गापूजा)

हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले त्यौहारों का किसी न किसी रूप में कोई विशेष महत्व जरूर है। इन पर्वो से हमें जीवन में उत्साह के साथ-साथ विशेष आनन्द की प्राप्ति होती है। हम इनसे परस्पर प्रेम औरी भाईचारे की भावना ग्रहण कर अपने जीवन-रथ को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाते हैं। साथ ही इन त्यौहारों से हमें सच्चाई, आदर्श और नैतिकता की शिक्षा भी मिलती है। हिन्दुओं के प्रमुख धार्मिक त्यौहारों में होली, रक्षा-बन्धन, दीपावली तथा जन्माष्टमी की तरह दशहरा (विजयादशमी) भी है।

दशहरा मनाने का कारण यह है कि इस दिन महान पराक्रमी और मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान राम ने महाप्रतापी व अभिमानी लंका नरेश रावण को पराजित ही नहीं किया अपितु उसका अन्त करके उसके राज्य पर भी विजय प्राप्त की थी। इस खुशी और उल्लास में यह त्यौहार प्रति वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नव स्वरूपों की नवरात्र पूजन के पश्चात् अश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन कर यह त्यौहार मनाया जाता है। एक अन्य कथा के अनुसार महिषासुर नामक एक राक्षस था। राज्य की जनता उसके अत्याचार से भयभीत थी। दुर्गा माँ ने उसके साथ युद्ध किया। युद्ध के दसवों दिन आखिरकार महिषासुर का माँ दुर्गा ने वध कर डाला। इस खुशी में यह पर्व विजय के रूप में मनाया जाता है। बंगाल के लोग इसीलिए इस पर्व को दुर्गा पूजा के रूप में मनाते हैं।

हिन्दी भाषी क्षेत्रों में नवरात्रों के दौरान भगवान राम पर आधारित लीला के मंचन की प्रथा प्रचलित है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से रामलीला मंचन का आरम्भ होकर दशमी के दिन रावण वध की लीला मंचित कर विजय पर्व विजयादशमी मनाया जाता है। रावण वध से पहले भगवान राम से संबंधित झांकियाँ निकाली जाती हैं।

बंगाल में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। वहाँ के लोगों में यह धारणा है कि इस दिन ही महाशक्ति दुर्गा ने कैलाश पर्वत को प्रस्थान किया था। इसके लिए दुर्गा की याद में लोग दुर्गा पूजा उत्सव मनाते हैं। इसके तहत अश्विन शुक्ल सप्तमी से दशमी (विजयादशमी) तक यह उत्सव मनाया जाता है। इसके लिए एक माह पूर्व से ही तैयारियाँ शुरू कर दी जाती हैं। बंगाल में इन दिनों विवाहित पुत्रियों को माता-पिता द्वारा अपने घर बुलाने की भी प्रथा है। रात भर पूजा, उपासना और अखण्ड पाठ एवं जाप करते है।।

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दुर्गा माता की मूर्तियाँ सजा-धजा कर बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ उनकी झांकियां निकाली जाती है। बाद में माँ दुर्गा की मूर्तियों को पवित्र जलाशयों, नदी तथा तालाबों में विसर्जित कर दिया जाता है। दशहरा का त्यौहार मुख्य रूप से राम-रावण युद्ध प्रसंग से ही जुड़ा है। इसको प्रदर्शित करने के लिए प्रतिपदा से दशमी तक रामलीलाएं मंचित की जाती हैं। दशमी के दिन राम रावण के परस्पर युद्ध के प्रसंगों को दिखाया जाता है। इन लीलाओं को देखकर भक्तजनों के अन्दर जहाँ भक्ति भावना उत्पन्न होती है, वहीं दुष्ट रावण के प्रति क्रोध भी उत्पन्न होता है।

इस दिन बाजारों में मेला सा लगा रहता है। शहर ही नहीं छोटे-छोटे गाँवों में इस दिन मेले लगते हैं। किसानों के लिए इस त्यौहार का विशेष महत्व है। वे इस समय खरीफ की फसल काटते हैं। इस दिन सत्य के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय विधि से पूजन भी किया जाता है। प्राचीन काल में वर्षाकाल के दौरान युद्ध करना प्रतिबंधित था। विजयादशमी पर शस्त्रागारों से शस्त्र निकालकर उनका शास्त्रीय विधि से पूजन किया जाता था। शस्त्र पूजन के पश्चात् ही शत्रु पर आक्रमण और युद्ध किया जाता था।

10. विज्ञान अभिशाप या वरदान

अंधविश्वास के अंधकार से निकलकर मानव बुद्धि और तर्क की शरण ली। इस तरह विज्ञान का विस्तार होने लगा। विज्ञान धर्म ग्रन्थों या उपदेशकों में कही बातों को तब तक सत्य नहीं मानता जबतक कि वह तर्क द्वारा या आँखों के प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा तर्क सिद्ध न हो जाय। इस प्रकार धर्म और विज्ञान दो विरोधी धाराएँ हो गयी। धर्म की आड़ में जो लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि कर रहे थे उनके हितों को विज्ञान से काफी धक्का पहुँचाया।

विज्ञान ने मनुष्य को असीमित शक्तियाँ प्रदान की हैं। विज्ञान के कारण ही समय व स्थान की दूरी बाधायें खत्म हो गयी है और कई गम्भीर रोगों पर विजय प्राप्त करने में सफलता मिली है। आज विश्व विज्ञान रूपी स्तम्भ पर टिका हुआ है। यही कारण है कि वर्तमान युग विज्ञान युग कहलाता है। विज्ञान इस आशा की सफलता व उन्नति का श्रेय विश्व के कुछ देशों को जाता है। इनमें जापान, अमेरिका, जर्मनी, रूस, इंग्लैंड आदि देश शामिल हैं। इन देशों में एक से बढ़कर एक आविष्कार कर विज्ञान को चरम सीमा तक पहुंचा दिया है। विज्ञान से अभिप्राय प्राकृतिक शक्तियों के विशेष ज्ञान से है। विज्ञान से हम किसी भी चीज का ऊपरी अध्ययन न करके उसकी तह तक पहुंचने का प्रयत्न करते हैं।

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विज्ञान भौतिक जगत की घटनाओं जैसे सूर्य, चन्द्र, ग्रह नक्षत्र आदि, चिकित्सा जीव, वनस्पति, पशु-पक्षी तथा मनुष्य जगत का सब प्रकार से गंभीर अध्ययन करता है। पृथ्वी के गर्भ में स्थित तरह-तरह की धातुओं, मिट्टी के विभिन्न प्रकार, वातावरण, समुद्र की गहराई व पर्यावरण का अध्ययन भी करता है। विज्ञान में चिन्तन, तर्क, प्रयोग तथा परीक्षण के बिना किसी बात को ठीक नहीं माना जाता। विज्ञान प्रत्यक्ष में विश्वास रखता है परोक्ष में नहीं। आज ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जिसमें विज्ञान की पहुँच न हो। हमारे जीवन को सुख-सुविधा सम्पन्न बनाने में भी विज्ञान का ही हाथ है। आज विज्ञान द्वारा रेलवे, मोटर, ट्राम, मेट्रो रेल, जलयान, वायुयान, राकेट आदि बनाये जा चुके हैं। जिनके द्वारा स्थान की दूरी में भारी कमी आयी है। यातायात के इन साधनों से मानव को पहुँचने में जहाँ वर्षों या महीनों लग जाते थे, अब उन स्थानों पर विज्ञान के कारण वह कुछ ही दिनों में या घंटों में पहुँच जाता है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण चाँद की यात्रा है।

विज्ञान के साधन द्वारा हम केवल दूर से दूर स्थान पर ही नहीं पहुँच सकते अपितु सैकड़ों किलोमीटर की दूरी पर रखी वस्तुओं को देखने में भी हम समर्थ हो गये हैं। आज टेलीविजन द्वारा न केवल हजारों किलोमीटर दूर स्थित किसी नगर में घटी घटना को देख सकते हैं बल्कि उसका आँखों देखा हाल भी सुन सकते हैं। विज्ञान ने सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में कम आश्चर्यजनक चमत्कार नहीं किया है। तार, टेलीफोन, सेलुलर फोन, इंटरनेट, कम्प्यूटर आदि यंत्रों द्वारा समाचारों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर संचार किया जा रहा है। एक समय था जब किसी को संदेश भेजने में हफ्ते से माह भर तक का समय लग जाता था लेकिन आज स्थिति कुछ और है।

विज्ञान द्वारा की गई नई-नई खोजों से जहाँ हमें लाभ हुआ है वहीं कई हानियाँ भी हुई हैं। स्वचालित हथियारों, पनडुब्बी, विमान भेदी तोपें, विषैली गैस, परमाणु बम आदि भी विज्ञान की ही देन है। नवीनतम उपकरणों व यंत्रों का प्रयोग करते समय जरा सी भी भूल मानव जीवन को नष्ट कर सकती है। आकाश में उड़ता विमान थोड़ी सी खराबी आने पर उसमें सवार सैकड़ों यात्रियों को परलोक पहुँचा सकता है। जिनका प्रयोग मानव हित में नहीं है। इसलिए यह कहना बड़ा मुश्किल है कि विज्ञान मानव का शत्रु है या मित्र। हालांकि इन सब चीजों का उपयोग और दुरुपयोग करना मानव के हाथ में ही है। वैज्ञानिक अनुसंधानों तथा यंत्रों का प्रयोग मानव हित में ही किया जाना चाहिए।

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11. दूरदर्शन से लाभ व हानियाँ दूरदर्शन मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान प्रसार एवं सामान्य प्रचार का महत्वपूर्ण, सशक्त तथा प्रभावशाली साधन है। इसका मुख्य कारण है कि दूरदर्शन में श्रव्य एवं दृश्य दोनों ही साधनों की विशेषताओं का समावेश है। विज्ञान के सर्वश्रेष्ठतम अविष्कारों में से दूरदर्शन एक है। विश्व के सभी विकसित या विकासशील देशों में दूरदर्शन ने अपनी लोकप्रियता में वृद्धि की है। महाभारत काल में संजय ने दिव्यदृष्टि द्वारा धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखों देखा हाल बताया था पर आज के इस युग में जे. आर. बेयर्ड द्वारा अविष्कृत दूरदर्शन का अविष्कार समस्त विश्व के लिए महत्वपूर्ण हो गया है। सारे विश्व में घटित होने वाली घटनाएँ चाहे वे जल में हो या फिर भूमि या आकाश में अपने घर बैठ कर आज का मनुष्य सरलता से देख सकता है और उसका आनन्द प्राप्त कर सकता है।

दूरदर्शन का अविष्कार उन्नीसवीं शताब्दी के आस-पास होना माना जा सकता है। उसके बाद से अब तक इस क्षेत्र में काफी प्रगति हो चुकी है। दूरदर्शन को अंग्रेजी में टेलीविजन कहा जाता है। इसका आविष्कार महान् वैज्ञानिक बेयर्ड ने किया था। टेलीविजन सर्वप्रथम लंदन में 1925 में देखा गया। इसके बाद से इसका प्रचार-प्रसार इतना बढ़ गया कि आज यह विश्व के हर कोने में लोकप्रिय हो गया है। हमारे देश भारत में टेलीविजन का आरम्भ 15 सितम्बर 1959 को हुआ।

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दूरदर्शन का शाब्दिक अर्थ है दूर की वस्तुओं या घटनाओं को उसी रूप में देखना जैसा कि वे हैं। एक समय था जब रेडियो घर-घर में देखने को मिल जाता था। उसी तरह अब टेलीविजन का प्रवेश घर-घर हो चुका है। इसकी लोकप्रियता के कई कारणों में से एक कारण यह भी है कि इसे बड़ी आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। आजकल मनोरंजन के साधनों में दूरदर्शन सबसे सक्षम साधन है। इतना अच्छा साधन जो कि घर बैठे ही सभी प्रकार के कार्यक्रम दिखा दे। सारे विश्व की झांकी प्रस्तुत कर दे और क्या हो सकता है।

यही कारण है कि यह जन-जन में लोकप्रिय हो गया है। दूरदर्शन पर हिन्दी, अंग्रेजी सहित कई अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार, लोक संगीत, फिल्म आदि कार्यक्रम देखे जा सकते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी के बाद से तो दूरदर्शन का और विस्तार हो गया। पहले इस पर सिर्फ सरकार का ही नियंत्रण था। अब निजी क्षेत्र के भी इसमें उतर जाने से अधिक लोकप्रिय होने के साथ-साथ इसके क्षेत्र का विस्तार भी हो गया है। निजी चैनलों के आ जाने से अब इसके द्वारा बच्चे से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक अपना मनोरंजन कर सकता है।

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वर्तमान दूरदर्शन मात्र मनोरंजन का ही साधन नहीं है। इसके द्वारा विश्व के किसी कोने में क्या अनुसंधान हो रहा है, किसी बड़े हादसे का घटना स्थल से सीधा प्रसारण आदि को भी देखा जा सकता है। पहले दूरदर्शन पर हर एक घंटे बाद ही समाचार आते थे लेकिन अब निजी चैनलों के 24 घंटे के समाचार चैनल आ गये हैं। इनमें समाचार तो प्राप्त होते ही हैं साथ ही घटना स्थल को भी देखा जा सकता है।

दूरदर्शन के दुष्प्रभाव भी हैं। एक ओर दूरदर्शन जहाँ हमें देश-विदेश के इतिहास व उनकी संस्कृति, नृत्य, कला-संगीत संबंधी ज्ञान व खेल क्षेत्र की उपलब्धियाँ, उद्योग धंधों से सम्बन्धि त जानकारी आदि प्रदान कर समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। वहीं उसके द्वारा कुछ कार्यक्रमों के प्रसारण द्वारा समाज के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। निजी चैनलों द्वारा दिखाये जा रहे धारावाहिकों में हिंसा, दुराचार, भ्रष्टाचार, नशाखोरी आदि दिखाकर वह बच्चों व युवा वर्ग पर बुरा असर डाल रहा है। समाचार पत्रों में कई बार पढ़ने को मिलता है कि फलां किशोर ने अपराध फलां धारावाहिक को देख कर किया। तस्करी, डकैती, चोरी की अभिनव गतिविधियों की जानकारी भी प्रदान करता है। अतः प्रत्यक्ष रूप से अवांछनीय कार्यों के प्रति उन्हें प्रोत्साहित भी करता है। सिनेमा की फिल्में दिखाने में काफी समय दिया जाता है। इस कारण बच्चे अपनी पढ़ाई तथा गृहणियाँ गृह कार्य की उपेक्षा करने लगी हैं।

12. कम्यूटर : आज की आवश्यकता

20वीं सदी में कम्यूटर क्षेत्र में आयी क्रान्ति के कारण सूचनाओं की प्राप्ति और इनके संसाधन में काफी तेजी आयी है। इस क्रांति के कारण ही हर किसी क्षेत्र का कम्यूटरीकरण संभव हो पाया है। स्थिति यह है कि माइक्रो प्रोसेसर के बिना अब किसी मशीन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पिछले चार दशकों में कम्प्यूटर की पहली चार पीढ़ियाँ क्रमश: वैक्यूम ट्यूब तकनीकी, ट्रांजिस्टर और प्रिंटेड सर्किट तकनीकी, इंटिग्रेटेड सर्किट तकनीकी और वैरी लार्ज स्केल इंटिग्रेटेड तकनीकी पर आधारित थी। चौथी पीढ़ी की तकनीकी में माइक्रो प्रोसेसरों का वजन केवल कुछ ग्राम तक ही रह गया।

आज पाँचवीं पीढ़ी के कम्प्यूटर तो कृत्रिम बुद्धि वाले बन गये हैं। वास्तव में कम्प्यूटर एनालॉग या डिजिटल मशीनें ही हैं। अंकों को एक सीमा में परस्पर भिन्न भैतिक मात्राओं में परिवर्तित करने वाले कम्प्यूटर एनालॉग कहलाते हैं। जबकि अंकों का इस्तेमाल करने वाले ‘कम्प्यूटर डिजिटल कहलाते हैं। एक तीसरी तरह के कम्प्यूटर भी हैं जो हाइब्रिड कहलाते हैं। इनमें अंकों का संचय और परिवर्तन डिजिटल रूप में होता है लेकिन गणना एनालांग रूप में होती है।

विज्ञान क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का आयाम जुड़ने से हुई प्रगति ने हमें अनेक प्रकार की सुविधाएँ प्रदान की हैं। इनमें मोबाइल फोन, कम्प्यूटर तथा इंटरनेट का विशिष्ट स्थान है। कम्प्यूटर का विकास गणना करने के लिए विकसित किये यंत्र केलकुलेटर से जुड़ा है। इससे जहाँ कार्य करने में समय कम लगता है वहीं मानव श्रम में भी कमी आई है। यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। पहले ये कुछ सरकारी संस्थानों तक ही सीमित थे लेकिन आज इनका प्रसार घर-घर में होने लगा है।

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जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ समस्यायें भी तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। इन समस्याओं से जूझना व उनका समुचित हल निकालना मानव के लिए चुनौती रहा है। इन समस्याओं में एक समस्या थी गणित की। इस विषय की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यकता पड़ती है। प्रारंभ में आदि मानव उंगलियों की सहायता से गणना करता था। विकास के अनुक्रम में फिर उसने कंकड़; रस्सी में गाँठ बाँधकर तथा छड़ी पर निशान लगाकर गणना करना आरम्भ किया। करीब दस हजार वर्ष पहले अबेकस नामक मशीन का आविष्कार हुआ। इसका प्रयोग गिनती करने तथा संक्रियायें हल करने के लिए किया जाता था।

वर्तमान में कम्प्यूटर संचार का भी एक महत्वपूर्ण साधन बन गया है। कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से देश के प्रमुख नगरों को एक दूसरे के साथ जोड़े जाने की प्रक्रिया जारी है। भवनों, मोटर-गाड़ियों, हवाई जहाजों आदि के डिजाइन तैयार करने में कम्प्यूटर का व्यापक प्रयोग हो रहा है। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में तो कम्प्यूटर ने अद्भुत कमाल कर दिखाया है। इसके माध्यम से करोड़ों मील दूर अंतरिक्ष के चित्र लिए जा रहे हैं। मजे की बात यह है कि इन चित्रों का विश्लेषण भी कम्प्यूटर द्वारा ही किया जा रहा है।

कम्प्यूटर नेटवर्क द्वारा देश विदेश को जोड़ने को ही इंटरनेट कहा जाता है। नेटवर्क केवल एक ही कम्प्यूटर से नहीं जुड़ा होता अपितु कई सारे कम्प्यूटर जो देश-विदेश में हैं को इंटरनेट नेटवर्क द्वारा आपस में जोड़ता है। इंटरनरेट की शुरूआत 1969 में अमेरिका के रक्षा विभाग ने शुरू की थी। 1990 में इसका व्यक्तिगत व व्यापारिक सेवाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा। वर्तमान में इसके प्रयोगकर्ता पच्चीस प्रतिशत की दर से प्रति माह बढ़ रहे हैं। इंटरनेट द्वारा हम एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर पर उपस्थित व्यक्ति को संदेश भेज सकते हैं।

13. विद्यार्थी और अनुशासन : अनुशासन का महत्त्व

अनुशासन की दृष्टि से प्रथम चरण हमारा नौनिहाल विद्यार्थी हो सकता है। प्रारंभ से ही .. यदि हमारा जीवन अनुशासित होगा तो हम तमाम समस्याओं का समाधान एक स्वस्थ और निरपेक्ष तथ्यों पर हम भविष्य में कर सकते हैं। अन्यथा समस्याएँ ज्यों की त्यों बनी रहेंगी चाहे कितनी सरकारें क्यों न बदल जाएँ, चाहे कितनी पीढ़ियों क्यों न गुजर जाएँ। यदि देश की विभिन्न समस्याओं की गहराई में जाकर देखें तो उसमें से कुछ ऐसी बातें मिलती हैं जो देश की विभिन्न समस्याओं को जन्म देती हैं।

जिनमें आर्थिक और राजनीतिक महत्त्व के साथ ही साथ देश की राष्ट्र भाषा, धर्म, संस्कृति और खानपान के आधार पर ही लोगों में अनुशासन तोड़ने अथवा समस्याएँ खड़ी करने के लिए प्रेरित होने के प्रसंग मिलते हैं। देश में व्याप्त इन समस्याओं के निराकरण के लिए देश के प्रत्येक नागरिक को अनुशासन प्रिय होना चाहिए। अनुशासन प्रिय होने के लिए हमें स्वप्रेरणा के आधार पर कार्य करना होगा। वैलेंटाइन के अनुसार-अनुशासन बालक की चेतना का परिष्करण है। बालक की उत्तम प्रवृत्तियों और इच्छाओं को सुसत्कृत करके हम अनुशासन के उद्देश्य को पूरा कर सकते हैं।

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अनुशासन से अभिप्राय नियम, सिद्धान्त तथा आदेशों का पालन करना है। जीवन को आदर्श तरीके से जीने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है। अनुशासन का अर्थ है खुद को वश में रखना। अनुशासन के बिना व्यक्ति पशु समान है। विद्यार्थी का जीवन अनुशासित व्यक्ति का जीवन कहलाता है। इसे विद्यालयों के नियमों पर चलना होता है। शिक्षक का आदेश मानना पड़ता है। ऐसा करने पर वह बाद में योग्य, चरित्रवान व आदर्श नागरिक कहलाता है। विद्यार्थी जीवन में ही बच्चे में शारीरिक व मानसिक आदि गुणों का विकास होता है।

उसे अपना भविष्य सुखमय बनाने के लिए अनुशासन में रहना जरूरी है। यदि हम किसी काम को व्यवस्था के साथ-साथ अनुशासित होकर करते हैं तो हमें उस कार्य को करने में कोई परेशानी नहीं होती। इसके अलावा हमें कार्य करते समय भय, शंका अथवा गलती होने का कोई डर नहीं होता। यदि हम अनुशासनहीनता, बिना नियम तथा उचित विचार किए किसी कार्य को करते हैं तो हमें उस कार्य में गलती होने का डर लगा रहता है। इससे जहाँ व्यवस्था भंग होती वहीं कार्य भी बिगड़ जाता है परेशानी बढ़ने के साथ-साथ उन्नति का मार्ग भी बंद हो जाता है। इसलिए सफलता प्राप्त करने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है।

जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन की आवश्यकता होती है। अनुशासित व्यक्ति निरन्तर प्रगति पथ पर अग्रसर होता जाता है। यह प्रगति चाहे व्यक्तिगत हो या फिर मानसिक दोनों के लिए अनुशासन जरूरी है। वर्तमान में विद्यार्थी अनुशासन हीनता का पर्याय हो गया है। विद्यालय से लेकर घर तक ऐसी कोई जगह नहीं बची है जहाँ विद्यार्थी की उदंडता न देखने को मिलती हो। प्राचीन काल से चली आ रही गुरुकुल प्रणाली के समाप्त होने को आधुनिक शिक्षा पद्धति से ऐसा हुआ माना जाता है। हालांकि इसके लिए हमारा सामाजिक वातावरण भी कम दोषी नहीं है। आज हर विद्यार्थी स्वतंत्र रहना चाहता है। विद्यालय या कालेज उसे जेल नजर आते हैं। वह एक तरह से स्वतंत्र रहना चाहता है।

14. पुस्तकालय

मानव शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए जिस प्रकार हमें पौष्टिक तथा संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए ज्ञान की प्राप्ति आवश्यक है।

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मस्तिष्क को बिना गतिशील बनाये ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यालय जाकर गुरु की शरण लेनी पड़ती है। इसी तरह ज्ञान अर्जित करने के लिए पुस्तकालय की सहायता लेनी पड़ती है। लोगों को शिक्षित करने तथा ज्ञान देने के लिए एक बड़ी राशि व्यय करनी पड़ती है। इसलिए स्कूल कालेज खोले जाते हैं और उनमें पुस्तकालय स्थापित किये जाते हैं। जिससे कि ज्ञान चाहने वाला व्यक्ति सरलता से ज्ञान प्राप्त कर सके।

पुस्तकालय के दो भाग होते हैं। वाचनालय तथा पुस्तकालय। वाचनालय में देशभर से प्रकाशित दैनिक अखबार के अलावा साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक पत्र-पत्रिकाओं का पठन केन्द्र है। यहाँ से हमें दिन प्रतिदिन की घटनाओं की जानकारी मिलती है। पुस्तकालय विविध विषयों और इनकी विविध पुस्तकों का भण्डारगृह होता है। पुस्तकालय में दुर्लभ से दुर्लभ पुस्तक भी मिल जाती है।

भारत में पुस्तकालयों की परम्परा प्राचीनकाल से ही रही है। नालन्दा, तक्षशिला के पुस्तकालय विश्वभर में प्रसिद्ध थे। मुद्रणकला के साथ ही भारत में पुस्तकालयों की लोकप्रियता बढ़ती चली गई। दिल्ली में दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी की सैकड़ों शाखाएँ हैं। इसके अलावा दिल्ली में एक नेशनल लाइब्रेरी भी है।

पुस्तकें मनुष्य की मित्र होती हैं। एक ओर जहाँ वे हमारा मनोरंजन करती हैं वहीं वह हमारा ज्ञान भी बढ़ाती हैं। हमें सभ्यता की जानकारी भी पुस्तकों से ही प्राप्त होती है। पुस्तकें ही हमें प्राचीनकाल से लेकर वर्तमानकाल के विचारों से अवगत कराती है। इसके अलावा पुस्तकें संसार के कई रहस्यों से परिचित कराती हैं। कोई भी व्यक्ति एक सीमा तक ही पुस्तक खरीद सकता हैं। सभी प्रकाशित पुस्तकें खरीदना सबके बस की बात नहीं है। इसलिए पुस्तकालयों की स्थापना की गई। पुस्तकालय का अर्थ है पुस्तकों का घर। यहाँ हर विषय की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं इनमें विदेशी पुस्तकें भी शामिल होती हैं। विद्यालय की तरह पुस्तकालय भी ज्ञान का मंदिर है। पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं।

इनमें पहले पुस्तकालय वे हैं जो स्कूल, कालेज तथा विश्वविद्यालय के होते हैं। दूसरी प्रकार के पुस्तकालय निजि होतें हैं। ज्ञान प्राप्ति के शौकीन व्यक्ति अपने-अपने कार्यालयों या घरों में पुस्तकालय बनाकर अपना तथा अपने परिचितों का ज्ञान अर्जन करते हैं। तीसरे प्रकार के पुस्तकालय राजकीय पुस्तकालय होते हैं। इनका संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। इन पुस्तकों का लाभ सभी लोग उठा सकते हैं। चौथी प्रकार के पुस्तकालय . सार्वजनिक होते हैं। इनसे भी सरकारी पुस्तकालयों की तरह लाभ उठा सकते हैं। इनके अतिरिक्त स्वयंसेवी संगठनों व सरकार द्वारा चल पुस्तकालय चलाये जा रहे हैं। यह पुस्तकालय एक वाहन पर होते हैं। हमारा युग ज्ञान का युग है। वर्तमान मे ज्ञान ही ईश्वर है व शक्ति है। पुस्तकालय से ज्ञान वृद्धि में जो सहायता मिलती है वह और कहीं से सम्भव नहीं है। विद्यालय में विद्यार्थी केवल विषय से संबंधित ज्ञान प्राप्त कर सकता है लेकिन पुस्तकालय ज्ञान का खजाना है।

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15. आतंकवाद

आतंकवाद विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या है। इस समस्या का वास्तविक. व अंतिम समाधान अहिंसा द्वारा ही संभव है। आतंकवाद को परिभाषित करना सरल नहीं है। क्योंकि यदि कोई पराजित देश स्वतंत्रता के लिए शस्त्र उठाता है तो वह विजेता के लिए आतंकवाद होता है। स्वतंत्रता के लिए भारतीय क्रांतिकारी प्रयास अंग्रेजों की दृष्टि में आतंकवाद था। देश के अंदर आतंकवाद. व्यवस्था के प्रति असंतोष से उपजता है। यह अति शोषण और अति पोषण से पनपता है। यदि असंतोष का समाधान नहीं किया जाए तो वह विस्फोटक होकर अनेक रूपों में विध्वंस करता है और निरपराधियों के प्राणों से उनकी प्यास नहीं बुझती। आतंकवाद को निष्प्रभावी बनाने के लिए उनको जीवित रखने वाली परिस्थितियों को नष्ट करना आवश्यक है। असहिष्णुता, अवांछित अनियंत्रित लिप्सा, अत्याधुनिक शस्त्रों की सुलभता आतंकवाद को जीवित रखे हुए हैं। पूर्वांचल का आतंकवाद व कश्मीर का आतंकवाद धर्मों के नाम पर विदेशों से धन व शस्त्र पाकर पुष्ट होता है।

वर्तमान में आतंकवाद हमारे देश के लिए ही नहीं बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक समस्या बन गया है। आतंकवाद से अभिप्राय अपने प्रभुत्व व शक्ति से जनता में भय की भावना का निर्माण कर अपना उद्देश्य सिद्ध करने की नीति ही आतंकवाद कहलाती है। हमारा देश भारत सबसे अधिक आतंकवाद की चपेट में है। पिछले दस-बारह वर्षों में हजारों निर्दोष लोग इसके शिकार हो चुके हैं। अब तो जनता के साथ-साथ सरकार को भी आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान शासन प्रणाली तथा शासकों को हिंसात्मक हथकंडे अपनाकर समाप्त करना या उनसे अपनी बातें मनवाना ही आतंकवाद का मुख्य उद्देश्य है।।

भारत में आतंकवाद की शुरुआत बंगाल के उत्तरी छोर पर नक्सलवादियों ने की थी। 1967 में शुरू हुआ यह आतंकवाद तेलंगाना, श्री काकूलम में नक्सलियों ने तेजी से फैलाया। 1975 में लगे आपातकाल के बाद नक्सलवाद खत्म हो गया।

आतंकवाद के मूल में सामान्यतः असंतोष एवं विद्रोह की भावनायें केन्द्रित रहती हैं। धीरे-धीरे अपनी बात मनवाने के लिए आतंकवाद का प्रयोग एक हथियार के रूप में किया जाना सामान्य सी बात हो गयी। तोड़-फोड़, अपहरण, लूट-खसोट, बलात्कार, हत्या आदि करके अपनी बात मनवाना इसी में शामिल है। असंतुष्ट वर्ग चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र में हो या व्यक्तिगत क्षेत्र में अपनी अस्मिता प्रमाणित करने के लिए यही मार्ग अपनाता है। आज देश के कुछ स्वार्थी तत्वों ने क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है इससे सांस्कृतिक टकराव, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार तथा भाषायी मतभेद को बढ़ावा मिल रहा है। ये सभी तत्व आतंकवाद को पोषण करते हैं। भाषायी राज्यों के गठन में भारत में आतंकवाद को पनाह दी। इन प्रदेशों के नाम पर जमकर खून-खराबा हुआ। मिजोरम समस्या, गोरखालैण्ड आन्दोलन, कथक उत्तराखंड, खालिस्तान की मांग जैसे कई आन्दोलन थे जिन्होंने क्षेत्रवाद को बढ़ावा दिया।

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वर्तमान में कश्मीर समस्या आतंकवाद का कारण बनी हुई है। हालांकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही कश्मीर में घुसपैठिये हथियारों की समस्या उत्पन्न हो गयी थी। भारत पाक सीमा परं आतंकवादियों से सेना की मुठभेड़ आम बात हो गयी थी। अंतत: यह समस्या कारगिर युद्ध के रूप में सामने आई। आज वर्तमान में भी पाकिस्तारन की सीमा पार से आतंकवादी गतिविधियाँ जारी हैं। कथित पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में बम विस्फोटों की घटनाएँ देखने को मिल रही हैं। भारतीय संसद पर हमला, गुजरात का अक्षरदाम मंदिर हमला, कश्मीर के रघुनाथ मंदिर पर हमले की कार्यवाही आतंकवाद का ही हिस्सा है।

इसी तरह 13 दिसम्बर 2001 को 11 बजकर 40 मिनट पर भारत के संसद भवन पर भी आतंकवादियों ने हमला किया। इसमें हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिल पायी और संसद भवन के सुरक्षाकर्मियों के साथ हुई मुठभेड़ में हमले को अंजाम देने आये आतंकवादियों को मार गिराया आतंकवादी ए. के. 47 राइफलों और ग्रेनेडों से लैस थे। ये उग्रवादी एक सफेद एम्बेसडर कार से संसद परिसर में घुसे थे। कार में भारी मात्रा में आर. डी. एक्स था। संसद भवन में घुसते समय इन्होंने उपराष्ट्रपति के काफिले में शामिल एक कार को भी टक्कर मारी थी। सुरक्षाकर्मियों तथा आतंकवादियों के बीच करीब आधे घंटे तक गोलीबारी जारी रही। इस दौरान संसद भवन परिसर में दहशत और अफरातफरी का माहौल था। यदि आतंकवादी अपने मकसद में सफल हो जाते तो कई केन्द्रीय मंत्रियों सहित सैकड़ों सांसदों को जान से हाथ धोना पड़ता।

कुल मिलाकर यदि इस पर जल्दी ही काबू न पाया गया तो यह समूचे विश्व के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इसलिए जरूरी है कि आतंकवाद पर विजय प्राप्त करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, सामाजिक आदि सभी स्तरों से प्रयास किये जाएँ।

16. रेल दुर्घटना का दृश्य

सोमवार का दिन था और सुबह का समय। फरीदाबाद से दिल्ली जाने वाली पहली गाड़ी छूट चुकी थी। रात जोरों से हुई बारिश के कारण रिक्शा न मिलने की वजह से मुझे स्टेशन चार किलोमीटर पैदल चलकर आना पड़ा था। यही कारण था कि मेरी पहली ट्रेन छूट चुकी थी। खैर आधा घंटा प्लेटफार्म पर अखबार पढ़कर बिताया। तभी पलवल-दिल्ली के बीच चलने वाली शटल ट्रेन आ गई। यह ट्रेन नई दिल्ली होते हुए पुरानी दिल्ली स्टेशन जाती है। ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही मैं उस पर सवार हो गया। उसमें सवार कुछ लोग ताजा राजनीतिक हालातों पर चर्चा कर रहे थे। तो कुछ लोग इन सबसे बेखबर हो ताश खेलने में व्यस्त थे। कुछ ऐसे भी लोग थे जो अन्य तरह से अपना मनोरंजन कर रहे थे।

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गाड़ी फरीदाबाद से चलकर तुगलकाबाद पहुँची। यहाँ ट्रेन में सवार काफी यात्री उतरे। यहाँ से ट्रेन पर चढ़ने वाले लोगों की संख्या बमुश्किल आठ-दस ही रही होगी। यहाँ से ट्रेन रवाना हुए अभी पाँच-सात मिनट ही हुए होंगे कि अचानक एक झटके के साथ गाड़ी रुक गई। ट्रेन में सवार लोगों ने सोचा हो सकता है आगे कोई दिक्कत होगी इसलिए सिगनल न मिलने के कारण गाड़ी रुकी होगी। गाड़ी रुकते ही कुछ लोग जो हमसे आगे वाले डिब्बों में सवार थे गाड़ी से उतरकर शोर मचाने लगे। आग लग गयी, जिस डिब्बे में मैं सवार था उसमें भी भगदड़ मची इस दौरान मची भगदड़ में कुछ लोगों को चोट आ गयी। मैने ट्रेन से नीचे उतरकर देखा तो इंजन के बाद पाँचवें डिब्बे में से धुआँ उठ रहा था।

ट्रेन से उतरने के बाद मैं भी उस डिब्बे की ओर दौड़ा जिसमें आग लगी हुई थी। आग की चपट में आया डिब्बा वातानुकूलित था। उसमें एक ही परिवार के करीब पच्चीस सदस्य थे। उनके साथ कुछ छोटे बच्चे भी थे। बच्चों को बचाने के क्रम में परिवार के बड़े सदस्य जिसे जैसे मौका मिला वे बच्चों को ले डिब्बों से बाहर कूदे। जैसे ही मैं वहाँ पहुँचा तो पता लगा कि डिब्बे में उनका जरूरी सामान के साथ-साथ एक वृद्ध महिला भी डिब्बे में ही है। यह सुन मेरे से रहा नहीं गया और मैंने किसी तरह डिब्बे में घुसने का प्रयास किया। कुछ देर के संघर्ष के बाद किसी तरह मुझे डिब्बे के अन्दर पहुँचने में सफलता मिल गयी। डिब्बे की एक कोने वाली सीट पर वृद्ध महिला अपने मुँह और नाक को बंद किये बैठी थी।

यदि मैं उसे दो चार मिनट और वहाँ से बाहर न निकालता तो उसका बचना मुश्किल था। मैंने उसे किसी तरह अपने कंधे पर लादा और वहाँ जो सामान पड़ा था उसमें से एक अदद ब्रीफकेस लेकर मैं किसी तरह गेट तक पहुँचा। तभी बाहर खड़ी भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्लाया कि रुको-रुको हम तुम्हारी मदद के लिए आ रहे हैं। मेरे समक्ष दिक्कत यह थी कि मैं वृद्धा को कंधे पर लेकर कूदता तो मुझे तो चोट आती ही वृद्धा भी इस क्रम में घायल हो जाती।।

खैर बाहर खड़े लोगों की मदद से मैंने वृद्धा को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। मेरे डिब्बे से उतरते ही अचानक डिब्बे में एक हल्का सा विस्फोट हुआ और आग तेजी से बढ़ गयी। शायद विस्फोट उस डिब्बे में लगे एयर कम्प्रेशन में हुआ होगा। तब तक वहाँ पर अग्नि शमन विभाग व पुलिस कर्मचारी भी पहुँच चुके थे। उन लोगों ने चुटैल लोगों को अस्पताल पहुंचाया। मैं किसी तरह बस पकड़ कर अपने कालेज पहुँचा। कालेज पहुँचने पर कुछ लोग मेरे कपड़े देखकर दंग थे। जब मैंने उन्हें रेल हादसे की जानकारी दी तो उन्हें पता लगा कि मेरी यह दशा ऐसी क्यों हुई।

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कालेज से घर लौटने पर पता चला कि घर के सदस्यों को रेल हादसे की जानकारी मिल चुकी थी और लोग मेरे को लेकर चिंतित थे। मुझे सकुशल घर लौटा देख मेरी माता जी ने मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया। मुझे माता जी को यह बताते हुए बहुत खुशी हो रही थी कि आप द्वारा दी गई शिक्षा से आज मैं एक जीवन बचाने में सफल रहा।

17. निरक्षरता

हमारे देश में छः करोड़ तीस लाख बच्चे ऐसे हैं जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा। जाहिर है इसकी वजह भारत जैसे विकासशील देश की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि है। ऐसे में गरीब ग्रामीण परिवारों की ज्यादातर लड़कियों के लिए स्कूल जाना एक स्वप्न है। गाँवों में यह देखकर दुःख होता है कि पाँच सात वर्ष की आयु की लड़कियाँ दस-दस घंटे काम करती हैं। ऐसे परिवारों के बच्चे बहुत छोटी उम्र से ही अपने परिवार या अपने माता-पिता के काम में हाथ बँटाने लगते हैं। इस प्रकार जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं लड़कों के मुकाबले लड़कियों पर काम का बोझ बढ़ता जाता है।

वर्ष 1998-99 के आंकड़ों के अनुसार केरल और हिमाचल प्रदेश ही ऐसे राज्य हैं जहाँ छः से चौदह वर्ष की स्कूल न जाने वाली लड़कियों की संख्या पाँच प्रतिशत से कम है। स्त्री शिक्षा का स्तर शेष देश में चिन्ताजनक है। इसकी एक अहम् वजह यह भी है कि दूरदराज के कई ग्रामीण इलाकों में स्कूल प्राय: इतने दूर होते हैं कि परिवार वालों की राय में लड़कियों को वहाँ भेजना जोखिम भरा होता है। ग्रामीण इलाकों में महिला अध्यापकों के न होने के कारण भी लड़कियाँ स्कूल जाने से हिचकती हैं। या फिर वे बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। गाँव ही नहीं शहरों में भी ऐसे बहुत से स्कूल हैं जहाँ अध्यापक हैं तो पढ़ने के लिए कमरे नहीं, यदि कमरे हैं तो अध्यापक नहीं हैं। यदि सब सुविधा है तो अध्यापक स्कूल से नदारत मिलेंगे।

विभिन्न राज्यों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में स्कूल के शिक्षकों के हजारों पद खाली पड़े हैं। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जुड़ी स्थायी। संसद समिति भी अपनी 93वीं रिपोर्ट में इस तथ्य पर चिंता जता चुकी है। दूरदराज के गाँव तथा आदिवासी इलाकों में अव्वल तो स्कूलों की संख्या बहुत कम हैं जो हैं भी उनमें अध्यापक जाने में रुचि नहीं दिखाते। ग्रामीण बच्चों की सुविधा के लिए स्कूल एक किलोमीटर के दायरे में खोले गये हैं। इनका सर्वेक्षण करने पर पता चला कि इन स्कूलों में पर्याप्त सुविधाएँ नहीं हैं।

स्कूलों की इमारत खस्ताहाल है। सर्वेक्षण के अनुसार 84 प्रतिशत स्कूलों में शौचालय नहीं पाये गये तथा 54 प्रतिशत स्कूलों में पाने का पानी नहीं था। पुस्तकालय, खेल के मैदान किताबों की बात तो दूर 12 प्रतिशत स्कूलों में केवल एक ही अध्यापक थे। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को सार्थक शिक्षा देने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। आज से 90 वर्ष पूर्व ‘सभी को शिक्षा नीति की परिकल्पना गोपाल कृष्णधा गोखले ने की थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब भारत का संविधान बना तो उसमें भी चौदह साल तक के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा और अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही गयी साथ ही यह भी कहा गया कि इस लक्ष्य को हमें 1960 तक हासिल कर लेना है।

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लेकिन यह लक्ष्य बीसवीं सदी तक तो पूरा हो नहीं सका अब इसे वर्ष 2010 तक के लिए बढ़ा दिया गया है। .. मनुष्य के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा से मनुष्य का जहाँ सर्वांगीण विकास होता है वहीं वह उसका आर्थिक और सामाजिक उत्थान करने की सामर्थ्य भी देती है। इस प्रकार बौद्धिक स्तर के साथ-साथ मनुष्य का जीवन स्तर भी ऊँचा उठता है, विशेषकर स्त्रियों में। महिला शक्तिकरण में भी शिक्षा का प्रमुख योगदान है। लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर कई कायक्रम बनाये गये लेकिन उनमें साक्षरता की गति विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों में उतनी नहीं बढ़ी है जितनी बढ़नी चाहिए थी।

शिक्षा भले ही हमारे मूलभूत आवश्यकताओं में से एक हो पर सरकार शिक्षा पर कुल घरेलू सकल उत्पाद का मात्र छः प्रतिशत व्यय करती है। इसमें प्राथमिक शिक्षा का हिस्सा आज भी नाम मात्र को है। बेहतर होगा कि निरक्षरता उन्मूलन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में वहीं के पढ़े-लिखे युवाओं को जिम्मेदारी सौंपी जाए।

18. मानवाधिकार

मानव के रूप में क्या अधिकार हों और किस सीमा तक किसी रूप में उनकी प्रत्याभूति शासन की ओर से हो इस संबंध में मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही विवाद चला आ रहा है। सामान्यतः मानव के मौलिक अधिकारों में जीवन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीविका का अधिकार, वैचारिक स्वतंत्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, संगठन बनाने का अधिकार तथा स्वतंत्र रूप से धार्मिक विश्वास का अधिकार आदि पर चर्चा की जाती है।

सैनिक एवं प्रतिक्रियावादी शासकों द्वारा मानवीय अधिकारों के भद्दे दुरुपयोग ने ही जनसाधारण में एक नवीन जागृति उत्पन्न की है। जहाँ कहीं भी मानव अधिकारों को नकारा गया है वहीं अन्याय, क्रूरता तथा अत्याचार का नग्न ताण्डव देखा गया। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मानवता बुरी तरह से अपमानित हुई और जनमानस की अवस्था निरंतर बिगड़ती चली गयी। यद्यपि मानव अधिकारों की जानकारी तथा इन्हें प्राप्त करने के लिए स्त्री, बच्चों तथा पुरुषों ने मानव अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए नियमित संघर्ष द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत ही प्रारंभ हुआ।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव अधिकारों की मान्यता व एकता का विचार विश्व के समक्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के साथ आया ताकि संयुक्त राष्ट्र संघ के विधान के अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि उसका एक उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय रूप ही अंतर्राष्ट्रीय समस्या के समाधान तथा जाति, लिंग, भाषा या धर्म के सब प्रकार के भेदभाव के बिना मानव अधिकारों, मौलिक अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं के संवर्धन व प्रोत्साहन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना होगा।

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इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक सामाजिक परिषद ने 1946 में मानव अधिकार आयोग की स्थापना की। इस आयोग को मानव अधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया। आयोग की सिफारिशों के आधार पर 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक घोषणा पत्र जारी किया। इसे अब मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र के नाम से जाना जाता है। 1950 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर को प्रति वर्ष मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।

भारत हमेशा से मानव अधिकारों के प्रति सजग रहा है और विश्व मंच पर मानव अधिकारों का समर्थन करता रहा है। श्रीलंका, फिजी तथा फिलीस्तीन तथा दक्षिझा अफ्रीका आदि देशों के संबंध में भारतीय नीति इसका ज्वलंत उदाहरण है। मानव अधिकारों का हनन तथा उनका उल्लंघन विश्व के समक्ष एक गंभीर समस्या बनी हुई है। यह आधुनिक सभ्यता पर लगा हुआ एक काला धब्बा साबित हो रहा है। यदि मानव अधिकारों के उल्लंघन के क्रम को रोका नहीं गया तो एक ऐसी आँधी का रूप धारण कर लेगा जो संपूर्ण मानवता को तिनके की भाँति उड़ा ले जाएगा।

19. मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर

भारतीय क्रिकेट की शान व विश्व के नंबर एक बल्लेबाज का रुतबा रखने वाले मास्टर बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने बहुत ही कम समय व उम्र में क्रिकेट में ऐसे रिकार्ड बना डाले हैं जिन्हें तोड़ना इतना आसान नहीं। रन बनाने व नये कीर्तिमान बनाने की भूख अभी उनकी मिटी नहीं है। क्रिकेट इतिहास के स्वर्णिम पन्नों पर वे अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। 1989 में अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में सचिन का कदम रखना तमाम भारतीयों के जेहन में आज भी कैद है।

बीते वक्त में हमेशा भारतीयों की उम्मीदों की पतवार सचिन का बल्ला ही बना है। यही वजह है कि आज भी सचिन की बल्लेबाजी में वही ताजगी नजर आती है। अपने एक साक्षात्कार में सचिन ने कहा था कि-मैं आगे खेलना और सिर्फ खेलना चाहता हूँ। मैं अब तक जो चाहता रहा वह मुझे मिलता रहा। क्रिकेट के बिना मैं जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता।।

भारतीय क्रिकेट की शमां रोशन करने वाले तेंदुलकर महज एक बेमिसाल क्रिकेटर ही नहीं बल्कि देश के क्रिकेट प्रेमियों के होंठों की मुस्कान भी हैं। उनका बल्ला चलने पर देश में दीवाली सी मनायी जाने लगती है और नहीं चलने पर शमशान-सी मुर्दनी छा जाती है। परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ 1989 में पहला मैच खेलने वाले सोलह बरस के सचिन ने महान लेग स्पिनर अब्दुल कादिर की जमकर धुनाई करते हुए एक ही ओवर में चार चौक्के लगाते हुए 27 रन बनाकर सनसनी फैला दी थी। विश्व कप 2003 में पाकिस्तान के रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से पहचाने जाने वाले शोएब अख्तर के पहले ही ओवर में 18 रन बनाये थे। अपने ही रिकार्ड तोड़ने और नये रिकार्ड बनाने की कहानी तो वह कई सालों से लिखते आ रहे हैं।

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कई बार भारत की जीत और हार के बीच खड़े होने वाले तेंदुलकर ने जिस कौशल से दबावों का सामना किया है उसने उन्हें कुंदन बना दिया। उन्होंने साबित कर दिखाया कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी प्रतिभा के प्रसून प्रस्फुटित होते हैं। सचिन का बनाया रिकार्ड ही उनकी प्रतिभा की बानगी देने के लिए काफी है।

सचिन के तीसवें जन्म दिवस पर फिल्म अभिनेता व महानायक अमिताभ बच्चन ने सचिन को जन्म दिन की बधाई देते हुए कहा हम उम्मीद करते हैं कि आपके जीवन के आने वाले सत्तर वर्ष और भी ज्यादा चमत्कारी होंगे। आप अपने खेल प्रदर्शन से यूँ ही हमेशा देशवासियों के दिलों पर राज करते रहोगे। स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने सचिन के बारे में टिप्पणी करते हए कहा कि मैं सचिन को धरती पर भेजा गया ईश्वर का चमत्कार मानती हूँ सचिन भी एक अभिनवकृति है और एक चमत्कार है और मैं उसको नमस्कार करती हूँ। रिकार्ड दर रिकार्ड कायम करके क्रिकेट जगत की जीवित किंवदन्ति बन चुके सचिन तेन्दुलकर को खेल में वही मुकाम हासिल है जो संगीत में लता मंगेशकर को और अदाकारी में अमिताभ बच्चन को प्राप्त है। मजे की बात यह है कि तीनों-लता मंगेशकर को और अदाकारी में अमिताभ बच्चन को प्राप्त है। मजे की बात यह है कि तीनों-लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन और सचिन तेन्दुलकर एक दूसरे के जबरदस्त फैन हैं।

लता मंगेशकर व अमिताभ बच्चन की बधाई स्वीकारते हुए तेन्दुलकर ने कहा कि मेरे पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं मैं क्या कहूँ। सचिन ने कहा कि मुझे जब तेज खेलना होता है तो मैं लता मंगेशकर जी का तेज गीत गुनगुनाने लगता हूँ और धीमे खेलने के लिए कोई दर्द भरा नग्मा याद कर लेता हूँ। इस पर लता ने कहा कि मुझे रियाज के समय जब कोई लम्बी तान छेड़नी होती है तो मैं सचिन का छक्का याद कर लेती हूँ अमिताभ के शो कौन बनेगा करोड़पति के दौरान सचिन ने फिल्मों और अमिमताभ की अदाकारी के प्रति अपनी दीवानगी का इजहार करते हुए कहा कि मैंने अमिताभ बच्चन की फिल्म अमर अकबर एन्थेनी करीब दस बार देखी। आज भी जब कभी मौका मिलता है तो मैं उस फिल्म को देखना पसंद करता हूँ।

20. लोकपाल बिल/लोकपाल विधेयक

लोकपाल उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किये जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित्त पद है। संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सेमिनार में राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों के आचरण तथा कर्तव्य पालन की विश्वसनीयता तथा पारदर्शिता को लेकर दुनिया की विभिन्न प्रणालियों में उपलब्ध संस्थाओं की जाँच कर गई। स्टॉकहोम में हुए इस सम्मेलन में वर्षों पूर्व आम आदमी की प्रशासन के प्रति विश्वसनीयता तथा प्रशासन के माध्यम से आम आदमी के प्रति सत्तासीन व्यक्तियों की जवाबदेही बनाए रखने के सम्बन्ध में विचार-विमर्श हुआ। लोक सेवकों के आचरण की जाँच और प्रशासन के स्वस्थ मानदंडों को प्रासंगिक बनाए रखने के संदर्भो की पड़ताल भी की गई।

Bihar Board Class 11th निबंध लेखन

वर्तमान में समाजसेवी अन्ना हजारे लोकपाल बिल लाने के लिए देशवासियों को प्रेरित कर रहे हैं एवं राजनीतिज्ञों से मिल रहे हैं लेकिन अन्ना हजारे व भारत सरकार के बीच आम सहमति न बन पाने के कारण यह विधेयक चर्चा के घेरे में है। प्रश्न यह है कि भारत में लोकपाल विधेयक के दायरे में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय मंत्रियों, शीर्ष न्यायपालिका व लोकसभा अध्यक्ष आदि को रखा जाए। इसके लिए हमें विभिन्न देशों में विद्यमान लोकपाल के दायरे में आने वाले मंत्रियों, लोकसेवकों व न्यायपालिका के सन्दर्भ की परिस्थितियों का अध्ययन करके भारतीय संविधान का आदर करते हुए, भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल लोकपाल के दायरे में लोकसेवकों व मंत्रियों आदि को रखा जाए।

देश में गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार को रोकने के लिए जन लोकपाल बिल लाने की माँग करते हुए अन्ना हजारे आमरण अनशन पर बैठ गए। जतर-मंतर पर सामाजिक कार्यकर्ता हजारे का समर्थन करने हजारों लोग जुटे। आइए जानते हैं जन लोकपाल बिल के बारे में इस कानून के तहत केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।

यह संस्था इलेक्शन कमीशन और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार में स्वतंत्र होगी। किसी भी मुकदमें की जाँच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा। भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।

भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा। अगर किसी नागरिक का काम समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।

लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएँ मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।

लोकपाल/लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जाँच दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा। सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटी-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।

लोकपाल को व्यापक शक्तियाँ देने वाले भ्रष्टाचार निरोधक कानून लागू करने की माँग पर आमरण अनशन पर बैठे अन्ना हजारे को चहुंओर से समर्थन मिल रहा है। अन्ना हजारे का विरोध सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में व्याप्त असमानताओं पर है। जानिए आखिर क्या है सरकार द्वारा प्रस्तावित और जनलोकपाल विधेयक में मुख्य अंतर-
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21. वर्षा ऋतु

भास्कर की क्रोधाग्नि से प्राण पाकर धरा शांत और शीतल हुई। उसको झुलसे हुए गाल पर रोमावली सी खड़ी हो गई। वसुधा हरी-भरी हो उटा। पीली पड़ी, पत्तियों और मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छा गईं। उपवन में पुष्प खिल उठे। कुंजों में लताएँ एक-दूसरे से आलिंगनबद्ध होने लगीं। सरिता-सरोवर जल से भर गए। उनमें कमल मुकुलित बदन खड़े हुए। नदियाँ इतरातीं, इठलाती अठखेलियाँ करती, तट-बंधन तोड़ती बिछुड़े हुए पति सागर से मिलने निकल पड़ी।

सम्पूर्ण वायुमंडल शीतल और सुखद हुआ। भवन, मार्ग, लता-पादप धुले से नजर आने लगे। वातावरण मधुर और सुगंधित हुआ। जनजीवन में उल्लास छा गया। पिकनिक और सैर-सपाटे का मौसम आ गया। पेड़ों पर झूले पड़ गए। किशोर-किशोरियाँ पेंगे भरने लगीं। उनके कोकिल कंठी से मल्हार फूट निकला। पावस में बरती वारिधारा को देखकर प्रकृति के चतुर चितरे सुमित्रानन्दन पंत का हृदय गा उठा ‘पकड़ वारि की धार झूलता है रे मेरा मन।’ कविवर सेनापति को तो वर्षा में नववधू के आगमन का दृश्य दिखाई देता है-

इस ऋतु में आकाश में बादलों के झंड नई-नई क्रीड़ा करते हुए अनेक रूप धारण करते हैं। मेघमलाच्छादित गगन-मंडल इन्द्र को वज्रपात से चिंगारी दिखाने क समान विघुलता की बार-बार चमक और चपलता देखकर वर्षा में बन्द भी भीगी बिल्ली बन जाते हैं। मेघों में बिजली की चमक में प्रकृति सुन्दरी के कंकण मनोहारिणी छवि देते हैं। घनघोर गर्जन से ये मेघ कभी प्रलय मचाते तो कभी इन्द्रधनुषी सतरंगी छटा से मन मोह लत वन-उपवन तथा बाग-बगीचों में यौवन चमका। पेड़-पौधे स्व न्द गते हुए मस्ती में झूम उठे। हरे पत्ते की हरी डालियाँ रूपी का कर गगन को स्पर्श क क मचल उठे पवन वेग से गुजित तथा कपित वृक्षावली सिर हिलाकर चित्त को अपनी ओर ले ल वर्षा का रस रसाल के रूप में टिप-टिप गिरता हुआ टपका बन जाता है तो मंद-मंद गिरता जाम मानो भादों के नामकरण संस्कार को सूचित कर रही हो। ‘बाबा जी के बाग में दुशाला आढ़े खड़ी हुई’ मोतियों से जड़ी कूकड़ी की तो बात ही निराली है।

वर्षा का वीभत्सव रूप है अतिवृष्टि। अतिवृष्टि से जल-प्रलय का दृश्य उपस्थित होता है। दूर-दूर तक जल ही जल। मकान, सड़क, वाहन, पेड़-पौधे, सब जल मग्न। जीवनभर के संचित सम्पत्ति, पदार्थ जल देवता को अर्पित तथा जल प्रवाह के प्रबल वेग में नर-नारी, बालक-वृद्ध तथा पशु बह रहे है। अनचाहे काल का ग्रास बन रहे हैं ! गाँव के गाँव अपनी प्रिय स्थली को छोड़कर शरणार्थी बन सुरक्षित स्थान पर शरण लेने को विवश हैं। प्रकृति प्रकोप के सम्मुख निरीह मानव का चित्रण करते हुए प्रसाद जी लिखते हैं हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह एक पुरुष भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।

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वर्षा से अनेक हानियाँ भी हैं। सड़कों पर और झोपड़ियों में जीवन व्यतीत करने वाले लो. भीगे वस्त्रों में अपना समय गुजारते हैं। उनका उठना-बैठना, सोना-जागना, खाना-पीना दुश्वार हो जाता है। वर्षा से मच्छरों का प्रकोप होता है, जो अपने वंश से मानव को बिना माँग मलेरिया दान कर जाते हैं। वायरल फीवर, टायफॉइ बुखार, गैस्ट्रो एंटराइटिस, डायरिया, डीसेन्ट्री, कोलेरा आदि रोग इस ऋतु के अभिशाप हैं।

22. दहेज प्रथा/दहेज-दानव

आज दहेज की प्रथा को देश भर में बुरा माना जाता है। इसके कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती हैं, कितने घर बर्बाद हो जाते हैं। आत्महत्याएँ भी होती देखी गई हैं। नित्य-प्रत्ति तेल डालकर बहुओं द्वारा अपने आपको आग लगाने की घटनाएँ भी समाचार-पत्रों में पढ़ी जाती हैं। पति एवं सास-ससुर भी बहुओं को जला देते या हत्याएँ कर देते हैं। इसलिए दहेज प्रथा को आज कुरीति माना जाने लगा है। भारतीय सामाजिक जीवन में अनेक अच्छे गुण हैं, परन्तु कतिपय बुरी रीतियाँ भी उसमें घुन की भाँति लगी हुई हैं। इनमें एक रीति दहेज प्रथा की भी है।

विवाह के साथ ही पुत्री को दिए जाने वाले सामान को दहेज कहते हैं। इस दहेज में बर्तन, वस्त्र, पलंग, सोफा, रेडियो, मशीन, टेलीविजन आदि की बात ही क्या है, हजारों रुपया नकद भी दिया जाता है। इस दहेज को पुत्री के स्वस्थ शरीर, सौन्दर्य और सुशीलता के साथ ही जीवन को सुविधा देने वाला माना जाता है। दहेज प्रथा का इतिहास देखा जाए तब इसका प्रारम्भ किसी बुरे उद्देश्य से नहीं हुआ था। दहेज प्रथा का उल्लेख मनु स्मृति में ही प्राप्त हो जाता है, जबकि वस्त्राभूषण युक्त कन्या के विवाह की चर्चा की गई है। गौएँ तथा अन्य वाहन आदि देने का उल्लेख मनुस्मृति में किया गया है। समाज में जीवनोपयोगी सामग्री देने का वर्णन भी मनुस्मृति में किया गया है, परन्तु कन्या को दहेज देने के दो प्रमुख कारण थे।

पहला तो यह कि माता पिता अपनी कन्या को दान देते समय यह सोचते थे कि वस्त्रादि सहित कन्या को कुछ सामान दे देने उसका जीवन सुविधापूर्वक चलता रहेगा और कन्या को प्रारम्भिक जीवन में कोई कष्ट न होगा। दूसरा कारण यह था कि कन्या भी घर में अपने भाईयों के समान भागीदार है, चाहे वह अचल सम्पत्ति नहीं लेती थी, परन्तु विवाह के काल में उसे यथाशक्ति धन, पदार्थ आदि दिया जाता था, ताकि वह सुविधा से जीवन व्यतीत करके और इसके पश्चात भी उसे जीवन भर सामान मिलता रहता था। घर भर में उसका सम्मान हमेशा बना रहता था। पुत्री जब भी पिता के घर आती थी, उसे अवश्य ही धन-वस्त्रादि दिया जाता था। इस प्रथा के दुष्परिणामों से भारत के मध्ययुगीन इतिहास में अनेक घटनाएँ भरी पड़ी हैं।

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धनी और निर्धन व्यक्तियों को दहेज देने और न देने की स्थिति में दोनों में कष्ट सहने पड़ते रहे। धनियों से दहेज न दे सकने से दुःख भोगना पड़ता रहा है। समय के चक्र में इस सामाजिक उपयोगिता की प्रथा ने धीरे-धीरे अपना बुरा रूप धारण करना आरम्भ कर दिया और लोगों ने अपनी कन्यओं का विवाह करने के लिए भरपूर धन देने की प्रथा चला दी। इस प्रथा को खराब करने का आरम्भ धनी वर्ग से ही हुआ है क्योंकि धनियों को धन की चिंता नहीं होती। वे अपनी लड़कियों के लिए लड़का खरीदने की शक्ति रखते हैं।

इसलिए दहेज-प्रथा ने जघन्य बुरा रूप धारण कर लिया और समाज में यह कुरीति-सी बन गई है। अब इसका निवारण दुष्कर हो रहा है। नौकरी-पेशा या निर्धनों को इस प्रथा से अधिक कष्ट पहुँचता है। अब तो बहुधा लड़के को बैंक का एक चैक मान लिया जाता है कि जब लड़की वाले आयें तो उनकी खाल खींचकर पैसा इकट्ठा कर लिया जाये ताकि लड़की का विवाह कर देने के साथ ही उसका पिता बेचारा कर्ज से भी दब जाये।

दहेज प्रथा को सर्वथा बंद नहीं किया जाना चाहिए परन्तु कानून बनाकर एक निश्चित मात्रा तक दहेज देना चाहिए। अब तो पुत्री और पुत्र का पिता की सम्पत्ति में समान भाग स्वीकार किया गया है। इसलिए भी दहेज को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए और लड़कों को माता-पिता द्वारा मनमानी धन दहेज लेने पर प्रतिबंध लग जाना चाहिए। जो लोग दहेज में मनमानी करें उन्हें दण्ड देकर इस दिशा में सुधार करना चाहिए। दहेज प्रथा को भारतीय समाज के माथे पर कलंक के रूप में नहीं रहने देना चाहिए।

23. बाढ़ का दृश्य

बाढ़ भूकंप जैसी ही एक प्राकृतिक आपदा है। ऐसी स्थिति में पानी अपना विनाशकारी रूप धारण कर लेता है। ज्यादा बारिश के कारण जब भूमि की जल संचूषण की शक्ति समाप्त हो जाती है तो उसकी परिणति बाढ़ के रूप में होती है। पहाड़ों से वर्षा जल के साथ हजारों टन मिट्टी बहकर नदियों में आ जाती है। इस कारण नदियों, सरोवरों तथा जलाशयों का तल ऊपर उठने के कारण पानी उसके तटों को लांघता हुआ खेत-खलिहानों, गाँवों में फैलना शुरू हो जाता है। पानी की यही स्थिति बाढ़ कहलाती है। बाढ़ का सीधा संबंध जल या भूमि से है। आज उपभोक्तावादी संस्कृति के कारण सड़कों व इमारतों का जाल सा बिछ गया है। इस कारण मैदान नाममात्र का रह गये हैं और हरित क्षेत्रों में कमी आती जा रही है। वर्षा जल सोखने के लिए जमीन खाली नहीं रह गयी है।

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एक बार मुझे भी बाढ़ की समस्या से दो चार होने का अवसर मिला मैं उन दिनों लगातार चार दिनों की विद्यालय में पड़े अवकाश के कारण गाँव गया हुआ था। गाँव पहुँचने पर माताजी ने बताया पिछले कई दिनों से मूसलाधार बारिश हो रही है। अभी मुझे गाँव में रहते दो दिन ही हुए थे कि एक रात को गाँव में शोर होता सुनाई पड़ा। लोग चिल्ला रहे थे कि गाँव में रामपुर की ओर से तेजी से पानी बढ़ता चला आ रहा है। पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया जब मैंने शोर का कारण माताजी को बताया तो वे बोली बेटा जल्द से जल्द हमें अपना जरूरी सामान संभाल लेना चाहिए क्योंकि दस साल पहले भी गाँव मे जब बाढ़ आयी थी तो रामपुर की ओर से ही गाँव में बाढ़ का पानी घुसा था। उस साल आयी बाढ़ ने गाँव के करीब-करीब सभी लोगों को बेघर कर दिया था। आज तो गाँव में फिर भी काफी पक्के मकान हो गये हैं।

हम लोग अभी बात कर ही रहे थे कि जोरों की बरसात फिर शुरू हो गयी। ऐसे में सामान को सुरक्षित जगह पर ले जाना भी जरूरी था। पिताजी अस्वस्थ थे सो मुझे ही सारा सामान किसी सुरक्षित जगह पर रखना था। हमारा मकान तिमजिला था। मैंने सोचा क्यों न सामान जो ज्यादा जरूरी है उसे तीसरी मंजिल पर रख दूँ। माताजी ने भी मेरी हाँ में हाँ मिला दी। फिर क्या था थोड़ी ही देर में मैंने जरूरी सामान ऊपर ले जाकर रख दिया। सारा सामान को बचाना भी मुश्किल था। वैसे भी बाहर बारिश हो रही थी। कुछ ही देर बाद गाँव में मुनादी करवा दी गयी कि लोग अपने घरों की छतों पर चले जाएँ कुछ ही देर में गाँव मे बाढ़ का पानी घुसने वाला है।

हमारे आस-पड़ोस के वे लोग जिनके मकान या तो कच्चे थे या फिर एक मंजिला था। मैंने उन्हें भी अपनी छत पर बुला लिया। हालांकि उनका सभी सामान तो सुरक्षित जगहों पर नहीं रखवाया जा सका क्योंकि गाँव में पानी भरना शुरू हो गया था। जो थोड़ा सामान सुरक्षित रखा जा सका वह रखवा दिया गया। हमारे पड़ोस में रहने वाली एक बुढ़िया बाहर की दुनिया से बेखबर अपनी झोपड़ी में थी। उसकी याद सहसा मेरी माताजी को आ गयी। गली में पानी भरने लगा था। मैं किसी प्रकार उस बुढ़िया को उसकी झोपड़ी से बाहर लाया। गली में पानी भरता देख वह मेरे साथ आने को तैयार नहीं थी। ऊपर छत से देख रही मेरी माताजी ने जब उनसे मेरे साथ चले आने को कहा तो वह किसी तरह तैयार हुई। खैर किसी तरह मैं उसे अपनी छत पर ले आया। जब तक मैं वापस फिर उसकी झोपड़ी में पहुँचता उसमें पानी भर चुका था। पूरे गाँव में बाढ़ को लेकर हाहाकार मचा हुआ था। थोड़ी ही देर में बारिश ने लोगों पर रहम खाते हुए अपनी तेजी कुछ कम कर दी।

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बारिश थमते ही कुछ लोग जो अपना सामान सुरक्षित जगहों पर नहीं रख पाये थे अपनी छतों से उतर कर नीचे आ गये। गलियों में पानी तो आ गया था लेकिन इतना नहीं आया था कि लोग को आवाजाही में परेशानी हो। कुछ लोगों को मैंने देखा कि अनाज की बोरियों को ट्रैक्टर ट्राली में रख पास ही स्थित एक टीले पर बसे गाँव की ओर चल दिए। शायद पहले वहाँ पहाड़ रहा होगा। वे लोग अपने साथ बच्चे भी ले जा रहे थे। मेरे ख्याल से वे लोग टीले वाले गाँव पहुँचे भी नहीं होंगे फिर से बारिश शुरू हो गयी। इस पर गाँव में एक बार फिर शोर होने लगा। क्योंकि कुछ लोग बारिश कम होने व पानी का बहाव कम होने के कारण छतों से नीचे उतर आये थे। लोगों का भरपूर प्रयास था कि किसी तरह जितना हो सके सामान बर्बाद होने से बच जाए तो अच्छा ही है।

कुछ ही देर में गाँव की गलियों तक सड़कों पर करीब दो से ढाई फुट पानी भर चुका था। गलियों व सड़कों के किनारे बने मकानों से पानी की लहरें टकरा रही थी। ऐसे में जो मकान कच्चे थे उनकी दीवार आदि ढह गयी थी। कुछ झोपड़ियों के छप्पर पानी में बह रहे थे। मकान गिरने पर छपाक की आवाज सुनाई देती। पुराने पड़ गये पेड़ भी धीरे-धीरे गिरने लगे। गाँव वालों का सारा सामान भी बह गया। बाढ़ के कारण गाँव के वे लोग बेघर हो गये जिनके मकान ‘कच्चे थे। लोगों का घरों में रखा अनाज पानी के कारण सड़ गया था। कुछ लोगों के पशु भी बह गये थे।

बाढ़ से मुक्ति तो मिल गयी लेकिन अगले दिन धूप निकलने पर जब सड़ांध उठी तो लोगों का जीना दूभर हो गया। गाँव में कई बीमारियाँ अपने पैर पसारने लगी। सरकार की ओर से सफाई आदि करवायी गयी। बेघर हो चुके लोगों की तंबुओं में रहने की अस्थायी व्यवस्था की गयी। सरकार की ओर से उन्हें घर बनाने के लिए आसान किस्तों में ऋण दिया गया। गाँव. में शिविर लगाकर लोगों को गाँव में रोगों के उपचार की सुविधा उपलब्ध करायी गयी। इनके अलावा कई स्वयंसेवी संगठनों ने भी बाढ़ पीड़ितो की जो मदद हो सकती थी की।

24. पर्यावरण प्रदूषण : प्रदूषण का स्वरूप व परिणाम

पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इस ताप का प्रभाव ध्वनि की गति पर भी पड़ता है। तापमान में एक डिग्री सेल्सियस ताप बढने पर ध्वनि की गति लगभग साठ सेंटीमीटर प्रति सेकेण्ड बढ़ जाती है। आज हर ध्वनि की गति तीव्र है और श्रवण शक्ति का ह्रास हो रहा है। यही कारण है कि आज बहुत दूर से घोड़ों के टापों की आवाज जमीन पर कान लगाकर नहीं सुनी जा सकती। जबकि प्राचीन काल में राजाओं की सेना इस तकनीक का प्रयोग करती थी।

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बढ़ते उद्योगों, महानगरों के विस्तार तथा सड़कों पर बढ़ते वाहनों के बोझ ने हमारे समक्ष कई तरह की समस्या खड़ी कर दी हैं। इनमें सबसे भयंकर समस्या है प्रदूषण। इससे हमारा पर्यावरण संतुलन तो बिगड़ ही रहा है साथ ही यह प्रकृति प्रदत्त वायु व जल को भी दूषित कर रहा है। पर्यावरण में प्रदूषण कई प्रकार के हैं। इनमें मुख्य रूप से ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण शामिल हैं। इनसे हमारा सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगा है। तरह-तरह के रोग उत्पन्न होने लगे हैं।

औद्योगिक संस्थाओं का कूड़ा-करकट रासायनिक द्रव्य व इनसे निकलने वाला अवजल नाली-नालों से होते हुए नदियों में गिर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंत्येष्टि के अवशेष तथा छोटे बच्चों के शवों को नदी में बहाने की प्रथा है। इनके परिणामस्वरूप नदी का पानी दूषित हो जाता है। हालांकि नदी के इस जल को वैज्ञानिक तरीके से शोधित कर पेय जल बनाया जाता है। लेकिन इस कथित शुद्ध जल के उपयोग से कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं। इनमें खाद्य विषाक्तता तथा चर्म रोग प्रमुख हैं। प्रदूषित जल मानव जीवन को ही नहीं कई अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है। इससे कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है। प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने के कारण उनमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता व उसके अन्य पक्षों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है।

प्रातः से ही हम ध्वनि प्रदूषण का शिकार होने लगते हैं। इस समय मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों में कीर्तन मण्डलियों द्वारा लाउडस्पीकर चलाकर भजन गाये जाते हैं। यह भी ध्वनि प्रदूषण का एक बहुत बड़ा हानिप्रद कारण है। इन पर अंकुश लगाने में हमारा धर्म आड़े आ जाता है। यही कारण है कि इस पर कानूनी अंकुश लगाने में सफलता नहीं मिल पा रही है। इसके अतिरिक्त मोटरों, कारों, ट्रकों, बसों, स्कूटरों आदि के तेज आवाज वाले हार्न, तेज गति व आवाज से दौड़ती रेलें, कल-कारखानों के बजते भोंपू व मशीनों की आवाज भी ध्वनि प्रदूषण फैलाती है। संगीत की कोकिल ध्वनि चित्त को जहाँ शांति व खुशी प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर वाहनों का शोर हमें कान की व्याधि का शिकार बना रहा है। ध्वनि व शोर में कोई अधिक अंतर नहीं है। शोर वह ध्वनि है जिसे हम नहीं चाहते। अधिक तीव्रता एवं प्रबलता की ध्वनि ही शोर कहलाती है।

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बड़े शहरों के खुले वातावरण में तीस डेसीबल का शोर हर समय रहता है। कभी-कभी यह पचास से डेढ़ सौ डेसीबल तक बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि किसी सोये हुए व्यक्ति की निद्रा चालीस डेसीबल के शोर से खुल जाती है। पहले प्रातः चिड़ियों की चहचहाट से नींद खुलती थी लेकिन अब मोटर वाहनों की शोरगुल से नींद खुलती है। अकेले दिल्ली में सड़कों पर दौड़ते वाहनों एवं कर्कश कोलाहल से करीब सवा करोड़ की आबादी में से अधिकतर लोग शोर जनित बहरेपन के शिकार हैं। ऐसे लोगों की फुस्फुटाहट सुनाई देती। पचास डेसीबल का शोर हमारे श्रवण शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। दीवाली पर चलाये जाने वाले पटाखों का शोर दौ सौ डेसीबल से भी अधिक होता है।

ध्वनि प्रदूषण कानों की श्रवण शक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही यह तन मन की शक्ति को भी प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव चिड़चिड़ा और असहिष्णु को जाता है। इसके अलावा अन्य कई विकार पैदा होने लगते हैं।

हमें प्रदूषण से बचने के लिए हरित क्षेत्र विकसित करना होगा। इसके अतिरिक्त आवासीय क्षेत्रों में चल रही औद्योगिक इकाइयों को वहाँ से स्थानांतरित कर इन इकाइयों से निकलने वाले कचरे को जलाकर नष्ट करने जैसे कुछ उपाय अपनाकर प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

25. समाचार पत्र और उसकी उपयोगिता

समाचार पत्र ही एक ऐसा साधन है जिससे लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली फली-फूली। समाचार पत्र शासन और जनता के बीच माध्यम का काम करते हैं। समाचार पत्रों की आवाज जनता की आवाज कही जाती है। विभिन्न राष्ट्रों के उत्थान एवं पतन में समाचार पत्रों का बड़ा हाथ होता है। एक समय था जब देश के निवासी दूसरे देशों के समाचार के लिए भटकते थे। अपने ही देश की घटनाओं के बारे में लोगों को काफी दिनों बाद जानकारी मिल पाती थी। समाचार पत्रों के आने से आज मानव के समक्ष दूरी रूपी कोई दीवार या बाधा नहीं है।

किसी भी घटना की जानकारी उन्हें समाचार पत्रों से प्राप्त हो जाती है। विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच की दूरी इन समाचार पत्रों ने समाप्त कर दी है। मुद्रण कला के विकास के साथ-साथ समाचार पत्रों के विकास की कहानी भी जुड़ी है। वर्तमान में समाचार पत्रों का क्षेत्र अपने पूरे यौवन पर है। देश का कोई नगर ऐसा नहीं है जहाँ से दो-चार समाचार पत्रा प्रकाशित न होते हों। समाचार पत्र से अभिप्राय समान आचरण करने वाले से है। इसमें क्योंकि सामाजिक दृष्टिकोण अपनाया जाता है इसलिए इसे समाचार पत्र कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्थान समाचार पत्र है। समाचार पत्र निकालने के लिए कई लोगों की आवश्यकता होती है। इसलिए यह व्यवसाय पैसे वाले लोगों तक ही सीमित है।

Bihar Board Class 11th निबंध लेखन

किसी भी समाचार पत्र की सफलता उसके समाचारों पर निर्भर करती है। समाचारों का दायित्व व सफलता संवाददाता पर निर्भर करती है। समाचार पत्र एक ऐसी चीज है जो राष्ट्रपति भवन से लेकर एक खोमचे तक में देखने को मिल जाएगा। समाचार पत्रों के माध्यम से हम घर बैठे विश्व के किसी भी कोने का समाचार पा लेते हैं।

समाचार पत्रों से लाभ यह है कि इनमें एक तरफ समाचार जहाँ विस्तृत रूप से प्रकाशित होते हैं वहीं इनमें छपी सामग्री को हम काफी दिनों तक संभाल कर रख सकते हैं। दूरदर्शन या टीवी. चैनलों द्वारा प्राप्त समाचारों से संबंधित जानकारी हम भविष्य के लिए संभाल कर नहीं रख सकते हैं। इसके अलावा यह क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने के कारण जो हिन्दी या अंग्रेजी नहीं जानते उन तक को समाचार उपलब्ध करवाते हैं।

26. भारत में हरित क्रान्ति

हरियाली का वास्तव में मानव-जीवन में यों ही बड़ा महत्त्व माना जाता है। हरा होना यानी सुखी और समृद्ध होना माना जाता है। इसी प्रकार जब किसी स्त्री को ‘गोद हरी’ होने का आशीर्वाद दिया जाता है, तो उसका अर्थ होता है गोद भरना यानी पुत्रवती होना। सो कहने का तात्पर्य है कि भारत में हरियाली या हरेपन को खिलाव, विकास एवं सब तरह से सुख-समृद्धि का प्रतीक माना गया है। हरित क्रान्ति का अर्थ भी देश का अनाजों या खाद्य पदार्थों की दृष्टि से सम्पन्न या आत्मनिर्भर होने का जो अर्थ लिया जाता है, वह सर्वथा उचित ही है।

ऐसा माना जाता है कि इस भारत भूमि पर ही फल-फूलों या वृक्षों पौधों के बीजों आदि को अपने आप पुनः उगते देखकर कृषि कार्य करके अपने खाने-पीने की समस्या का समाधान करने यानि खेती उगाने की प्रेरणा जागी थी। यहीं से यह चेतना और क्रिया धरती के अन्य देशों में भी गई। यह तथ्य इस बात से भी स्वतः उजागर है कि इस धरती पर मात्र भारत ही ऐसा देश है, जिसे आज भी कृषि प्रधान या खेतीबाड़ी प्रधान देश कहा और माना जाता है। लेकिन यही देश जब विदेशी आक्रमणों का शिकार होना आरम्भ हुआ, दूसरे इसकी जनसंख्या बढ़ने लगी, तीसरे समय के परिवर्तन के साथ सिंचाई आदि की व्यवस्था और नवीन उपयोगी औजारों-साधनों का प्रयोग न हो सका, चौथे विदेशी शासकों की सोची-समझी राजनीति और कुचालों का शिकार होकर इसे कई बार अकाल का शिकार होकर भूखों मरना पड़ा। अपना घर-बार त्यागना और अपनों तक को, अपने खेत तक को बेच खाने के लिए बाध्य होते रहना पड़ा है।

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उपर्युक्त तथ्यों को दिन के प्रकाश की तरह सामने उजागर रहने पर भी स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे तथाकथित भारतीय पर वस्तुतः पश्चिम के अन्धानुयायी बाँध और कल-कारखाने लगाने की होड़ में तो जुट गए पर जिन लोगों को यह सब करना है, उनका पेट भरने की दिशा में कतई विचार न कर पाए। खेतीबाड़ी को आधुनिक बनाकर हर तरह से उसे बढ़ावा देने के स्थान पर अमेरिका से .पी.एल. 480 जैसा समझौता करके उसके बचे-खुचे घटिया अनाज पर निर्भर करने लगे। इसका दुष्परिणाम सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध के अवसर पर उस समय सामने आया, जब अमेरिका ने अनाज लेकर भारत आ रहे जहाज रास्ते में ही रुकवा दिए।

पाकिस्तान के नाज-नखरे उठाकर उसका कटोरा हमेशा हर प्रकार से भरा रखने की चिन्ता करने वाले अमेरिका ने सोचा कि इस तरह भूखों मरने की नौबत पाकर भारत हथियार डाल देगा। लेकिन उस समय के भारतीय धरती से सीधे जुड़े भारतीय प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी ईजाद किया। फलस्वरूप भारत में अनाजों के बारे में आत्मनिर्भर बनने के एक नए युग का सूत्रपात हुआ-हरित क्रान्ति लाने का युग। कहा जा सकता है कि भारत में युद्ध की आग से हरित क्रानित लाने का युग आरम्भ हुआ और आज की तरह शीघ्रता से चारों ओर फैलकर उसने देश को हरा-भरा बना भी दिया अर्थात खाद्य अनाजों के बारे में देश को पूर्णतया आत्मनिर्भर कर दिया।

हरित क्रान्ति ने भारत की खाद्य समस्या का समाधान तो किया ही, उसे उगाने वालों के जीवन को भी पूरी तरह से बदलकर रख दिया अर्थात् उनकी गरीबी भी दूर कर दी। छोटे-बड़े सभी किसान को समृद्धि और सुख का द्वार देख पाने में सफलता पा सकने वाला बनाया। खेती तथा अनाजों के काम-धंधों से जुड़े अन्य लोगों को भी काफी लाभ पहुँचा। सुख के साधन पाकर किसानों का उत्साह बढ़ा, तो उन्होंने दालें, तिलहन, ईख और हरे चारे आदि को अधिक मात्रा में उगाना आरम्भ किया। इससे इन सब चीजों के अभावों की भी कमी हुई।

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हरित क्रान्ति लाने में खेोतेहर किसानों का हाथ तो है, इसके लिए नए-नए अनुसन्धान और प्रयोग में लगी सरकारी गैर-सरकारी संस्थाओं का भी निश्चय ही बहुत बड़ा हाथ है। उन्होंने उन्नत किस्म के बीजों का विकास तो किया ही है, खेतों की मिट्टी का निरीक्षण-परीक्षण कर यह भी बताया कि कहाँ की खेती और मिट्टी में कौन-सा बीज बोने से ज्यादा फल तथा लाभ मिल सकता है। नये-नये कीटनाशकों, खादों का उचित प्रयोग करना भी बताया। फलस्वरूप हरित क्रान्ति सम्भव हो सकी।

27. लोकप्रिय नेता-पूर्व प्रधानमंत्री : अटल बिहारी बाजपेयी

सफल वक्ता के रूप में ख्यातिलब्ध अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 को हुआ। आपके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी स्कूल शिक्षक थे। आपके दादा पंडित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के जाने माने विद्वान थे। अटल जी के नाम से प्रसिद्ध श्री वाजपेयी जी की शिक्षा विक्टोरिया कालेज में हुई। वर्तमान में इस कालेज का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई कालेज कर दिया गया है। राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए श्री वाजपेयी कानपुर चले गये। जहाँ उन्होंने डी.ए.वी. कालेज से राजनीतिशास्त्र में एम.ए. पास किया।

इसके बाद उन्होंने कानून की शिक्षा पायी। उल्लेखनीय है कि श्री वाजपेयी के पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी भी नौकरी से अवकाश लेने के बाद अटल जी के साथ ही कानून की शिक्षा लेने उनके कालेज आ गये। बाप-बेटे दोनों कालेज के एक ही कमरे में रहते थे। अटल जी कानून की शिक्षा पूरी नहीं कर पाये।

श्री वाजपेयी अपने प्रारम्भिक जीवन में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गये। इसके अलावा वह आर्य कुमार सभा के भी सक्रिय सदस्य रहे। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के तहत उन्हें जेल जाना पड़ा। 1946 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उन्हें अपना प्रचारक बनाकर लड्डुओं की नगरी संडीला भेजा। उनकी प्रतिभा को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका का संपादक बना दिया। इसके बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना मुखपत्र पात्रचजन्य शुरू किया जिसका पहले संपादक श्री वाजपेयी जी को बनाया गया। वाजपेयी जी ने पत्रकारिता क्षेत्र में कुछ ही वर्षों में अपने को स्थापित कर ख्याति अर्जित कर ली बाद में वे वाराणसी से प्रकाशित चेतना, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक स्वदेश और दिल्ली से प्रकाशित वीर अर्जुन के संपादक रहे।

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श्री वाजपेयी जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। अपनी क्षमता, बौद्धिक कुशलता व सफल वक्ता की छवि के कारण श्री वाजपेयी श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी के निजी सचिव बन गये। श्री वाजपेयी ने 1955 में पहली बार लोक सभा चुनाव लड़ा। उस समय वह विजयालक्ष्मी पंडित द्वारा खाली की गयी लखनऊ लोकसभा सीट से उप चुनाव हार गये। आज भी श्री वाजपेयी का चुनाव क्षेत्र लखनऊ ही है।

1957 में बलरामपुर सीट से चुनाव जीतकर श्री वाजपेयी लोकसभा में गये लेकिन 1962 में वे कांग्रेस की सुभद्र जोशी से चुनाव हार गये। 1967 में उन्होंने फिर इस सीट पर कब्जा कर लिया। 1971 में ग्वालियर, 1977 और 1980 में नई दिल्ली, 1991, 1996 तथा 1998 में लखनऊ सीट से विजय प्राप्त की। आप दो बार राज्य सभा के सदस्य भी रहे। 1968 से 1973 तक आप जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 1977 में जनता दल के विभाजन के बाद भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई। जिसके आप संस्थापक सदस्यों में शामिल थे।

1962 में आपको पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 1994 में आप श्रेष्ठ सांसद के रूप में गोविन्द बल्लभ पन्त और लोकमान्य तिलक पुरस्कारों से नवाजे गये। आपातकाल के बाद मोरार जी देसाई जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने आपको अपने मंत्रिमंडल में विदेश मंत्री बनाया। विदेश मंत्री पद पर रहते हुए आपने पड़ोसी देशों खासकर पाकिस्तान के साथ मधुर संबंध बनाने की पहल कर सबको चौंका दिया। संयुक्त राष्ट्र महासभा में आपने अपनी मातृ भाषा हिन्दी में भाषण देकर एक नया इतिहास रचा।

श्री वाजपेयी एक प्रखर नेता होने के साथ-साथ कवि व लेखक भी हैं। आपने अनेक पुस्तकें लिखीं हैं जिनमें उनके लोकसभा में भाषणों का संग्रह, लोकसभा में अटल जी’, ‘मृत्यु या हत्या ‘ए ‘अमर बलिदान’, ‘कैदी कविराय की कुण्डलियाँ, ‘न्यू डाइमेन्शन ऑफ इण्डियन फॉरेन पालिसी’, फोर डिकेट्स इन पार्लियामेन्ट आदि प्रमुख हैं। आपका काव्य संग्रह ‘मेरी इक्यावन कविताएँ प्रमुख है।

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विनम्र, कुशाग्र बुद्धि एवं अद्वितीय प्रतिभा सम्पन्न श्री वाजपेयी 19 मार्च, 1998 को संसदीय लोकतन्त्र के सर्वोच्च पद पर प्रधानमन्त्री के रूप में दुबारा आसीन हुए। लगभग 22 माह पहले भी वे इस पद को सुशोभित कर चुके थे लेकिन अल्प मत में होने के कारण उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था। विशाल जनादेश ने श्री वाजपेयी से स्थायी और सुदृढ़ सरकार देने का आग्रह किया था।

2004 के लोकसभा चुनाव में राजग की हार के बाद श्री वाजपेयी जी को प्रधानमन्त्री पद से त्यागपत्र देना पड़ा। तत्पश्चात् वे भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष बनाये तथा राजग के चेयरमैन पद पर आसीन किये गये।

28. डॉ. हरिवंशराय बच्चन : हिन्दी कविता का एक और सूर्यास्त

प्रखर छायावाद और आधुनिक प्रगतिवाद के मुख्य स्तम्भ माने जाने वाले डॉ. हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को प्रयाग के पास स्थित अमोढ़ गाँव में हुआ था। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा कायस्थ पाठशाला, सरकारी पाठशाला से प्राप्त की। इसके बाद की पढ़ाई उन्होंने इलाहाबाद के राजकीय कालेज और विश्व विख्यात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से की। पढ़ाई खत्म करने के बाद वे शिक्षक पेशे से जुड़ गये और 1941 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे।

इसके बाद वे पी.एच.डी. करने इंग्लैंड चले गये जहाँ 1952 से 1954 तक उन्होंने अध्ययन किया। हिन्दी के इस विद्वान ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की डिग्री डब्ल्यू. बी. येट्स के कार्यों पर शोध कर प्राप्त की। यह उपलब्धि प्राप्त करने वाले वे पहले भारतीय बने। अंग्रेजी साहित्य में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डॉ. की उपाधि लेने के बाद उनहोंने हिन्दी को भारतीय जन की आत्म भाषा मानते हुए इसी क्षेत्र में साहित्य सृजन का महत्वपूर्ण फैसला लिया। वे आजीवन हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में लगे रहे। कैम्ब्रिज से लौटने के बाद उन्होंने एक वर्ष पूर्व पद पर कार्य किया।

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इसके बाद उन्होंने आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र में भी काम किया। वह सोलह वर्षों तक दिल्ली में रहे और उसके बाद विदेश मंत्रालय में दस वर्षों तक हिन्दी विशेषज्ञ जैसे महत्वपूर्ण पद पर रहे। इन्हें राज्य सभी में छः वर्ष तक के लिए विशेष सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया। और 1972 से 1982 तक वह अपने पुत्रों अमिताभ व अजिताभ के साथ कभी दिल्ली कभी मुम्बई में रहे। बाद में उन्होंने दिल्ली में ही रहने का फैसला किया। यहाँ वह गुलमोहर पार्क में सौपान में रहने लगे। तीस के दशक से 1983 तक हिन्दी काव्य और साहित्यस की सेवा में वे लगे रहे।

डॉ. हरिवंशराय बच्चन द्वारा लिखी गयी ‘मधुशाला’ हिन्दी काव्य की कालजयी रचना मानी जाती है। इसमें उन्होंने शराब व मयखाना के माध्यम से प्रेम सौन्दर्य, पीडा, दु:ख, मृत्यु और जीवन के सभी पहलुओं को अपने शब्दों में जिस तरह से पेश किया ऐसे शब्दों का मिश्रण और कहीं देखने को नहीं मिलता। आम लोगों के समझ में आसानी से समझ में आ जाने वाली इस रचना को आज भी गुनगुनाया जाता है। डॉ. बच्चन जब खुद इसे गाकर सुनाते थे तो वे क्षण बहुत कृपा थी। भारतेन्दु ने अपनी जीवन काल में अनेक-पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। इसके अलावा उन्होंने सभाओं साहित्यिक गोष्ठियों तक कुछ साहित्यकारों को भी जन्म दिया। जीवन के अन्तिम पड़ाव में भारतेन्दु की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गयी थी। उन्हें क्षय रोग हो गया था। सम्वत् 1949 में हिन्दी साहित्य का यह प्रकाश पुंज सदैव के लिए लुप्त हो गया।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी देश प्रेम प्रधान रचनाओं द्वारा राष्ट्रीय जागरण का प्रथम उद्घोष किया। भारतेन्दु देश की दुर्दशा पर भगवान से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि-

गयो राज, धन, तेज, रोष, शान नसाई।
बुद्धि, वीरता, श्री, उछाह, सूरत बिलाई।
आलस, कायरपना निरुद्यमता अब छाई,
रही मूढ़ता, बैर, परस्पर, कलह, लड़ाई।

सामाजिक समस्याओं का चित्रण उन्होंने अपनी कई कविताओं में किया है। देश में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों व सामाजिक, धार्मिक आदि विषयों पर उन्होंने अपनी लेखनी चलाई।

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29. एड्स

एड्स रोग आज पूरे विश्व में एक महामारी का रूप धारण कर चुका है। आये दिन अखबारों में इसके प्रकोप के कारण हुई मृत्यु के आँकडे से पता चलता है। इसकी जानकारी या अज्ञानता से आँकड़ों में किसी प्रकार की गिरावट नहीं आ रही। सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं के बावजूद इस रोग के रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। लोगों में इस रोग को लेकर कई तरह की भ्रांतियाँ हैं व उनमें भय व्याप्त है। देश की सांस्कृतिक सभ्यता व सामाजिक परिवेश में इसके रोगी पाना असंभव सा लग रहा था लेकिन देश में पश्चिमी सभ्यता की काली छाया पड़ने से बड़े-बड़े शहरों में इसके रोगी पाये जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति से ओत-प्रोत हो विलासिता पूर्ण जीवन बिताने में विश्वास रखती है।

भारत में एड्स का मामला 1986 में प्रकाश में आया था। वर्ष 1987 में सरकार द्वारा एड्स नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया। राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के हिसाब से भारत में एच. आई. वी. संक्रमित रोगियों की संख्या 1998 में तैंतीस लाख थी। वर्ष 2000 में यह संख्या बढ़कर 38 लाख 70 हजार हो गई थी।

वर्तमान में विश्व वैज्ञानिक प्रगति के कारण जहाँ मानव ने कई रोगों पर विजय प्राप्त करने में सफलता पाई है वहीं उसे कुछ नये रोगों से दो-चार होना पड़ रहा है। एक समय था जब क्षय रोग, काली खाँसी, हैजा, प्लेग, मलेरिया आदि रोग मौत के कारण माने जाते थे। इनमें से किसी रोग का नाम सुनते ही लोगों में भय उत्पन्न हो जाता था। धीरे-धीरे चिकित्सा क्षेत्र में किये जा रहे अनुसंधानों व खोजों द्वारा चिकित्सा विशेषज्ञों ने इन रोगों का उपचार ढूंढ निकाला है। बावजूद इसके कई नये रोगों के नाम समाचार पत्रों में पढ़ने व देखने को मिल रहे हैं। इनमें से कुछ रोग ऐसे हैं जिन पर अभी शोध व अनुसंधान चल रहे हैं।

एड्स रोग को लेकर समाज में तरह-तरह की भ्रांतियाँ हैं। दरअसल एड्स के बारे में ज्यादातर लोगों को सही जानकारी न होने के कारण इस रोग का लोगों में भय व्याप्त है। वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अनुसार जब किसी व्यक्ति के शरीर में एड्स का विषाणु (एच. आई. वी.) प्रवेश करता है तो वह व्यक्ति एच. आई. वी. से संक्रमित कहलाता है। उस व्यक्ति के संक्रमित होने के दस से पन्द्रह साल बाद उसके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे खत्म होनी शुरू हो जाती है। दरअसल एच.आई. वी. के संक्रमण से रक्त में प्रतिरोधक क्षमता को कायम रखने का काम करने वाली CD नामक कोशिकाएँ धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।

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चिकित्सकों के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में इन कोशिकाओं की संख्या प्रति एक क्यूबिक मिलीलीटर रक्त में कम से कम एक हजार होनी चाहिए। लेकिन एच. आई. वी. संक्रमित व्यक्ति के शरीर में संक्रमण के दस पन्द्रह साल बाद इनकी संख्या घटकर महज दो सौ या इससे नीचे चली जाती है तो वह व्यक्ति एड्स रोगी कहलाता है। एड्स अपने आप में कोई रोग नहीं है। एड्स से ही अभी तक किसी की मौत नहीं हुई है। लेकिन समाज में अधिकांश लोगों का मानना है कि एड्स एक जानलेवा बीमारी है। दरअसल एड्स पीड़ित व्यक्ति में प्रतिरोधक क्षमता कम होने से उसे यदि कोई और बीमारी जैसे-टी. बी., मलेरिया, उल्टी, दस्त या अन्य कोई बीमारी हो जाती है तो उसके लिए उपचार कारगर नहीं रह जाता क्योंकि उसके शरीर का प्रतिरोधक तंत्र करीब-करीब नष्ट हो चुका होता है। इसलिए एड्स रोगी के शरीर पर दवाओं का असर नहीं पड़ता और वह मौत के मुँह में चला जाता है।

अब तक एड्स का न तो कोई टीका उपलब्ध है और न ही कोई प्रभावी दवा ही। हालांकि एटिरेट्रोवायरल दवाएँ बाजार में मौजूद हैं जिनसे एड्स रोगी की आयु थोड़ी बढ़ जाती है। यह दवा रक्त में मौजूद एच.आई.वी. विषाणुओं की संख्या को बढ़ाने से रोकती है। एड्स का विषाणु दो से चार, चार से आठ के क्रम में अपनी वृद्धि करता है। यदि कोई महिला एच. आइ. वी. संक्रमित है तो उससे उत्पन्न होने वाली संतान के एच. आई. वी. संक्रमित होने की आशंका चालीस से पचास फीसदी तक रहती है। लेकिन संक्रमित माँ का स्तन पान करने वाले बच्चों के एच. आई. वी. संक्रमित होने की वैज्ञानिकों द्वारा अभी तक पुष्टि नहीं की गई है। सावधानी बरतने के लिए चिकित्सक एच. आई. वी. संक्रमित माँ को यह सलाह अवश्य देते हैं कि वह अपने बच्चे को स्तन पान न कराये।।

एड्स के ज्यादा मामले असुरक्षित यौन संबंधों के कारण फैलते हैं। एड्स पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार को यौन शिक्षा लागू करनी चाहिए। लेकिन इस शिक्षा के लागू करने के बावजूद भी ग्रामीणों अशिक्षितों को इस रोग के बारे में जागृत करने और इससे बचाव के उपाय बताने के लिए सरकार को ऐसा सूचना तंत्र विकसित करना होगा जो किसी भी भाषा जानने वाले को आसानी से समझ आ सके। इसके लिए धर्म गुरुओं और नेताओं को आगे आना होगा।

30. चाँदनी रात में नौका-विहार

नौका-विहार करना एक अच्छा शौक, एक स्वस्थ खेल, एक प्रकार का श्रेष्ठ व्यायाम तो है ही सही, मनोरंजन का भी एक अच्छा साधन है। सुबह-शाम या दिन में तो लोग नौकायन या नौका-विहार किया ही करते हैं, पर चाँदनी रात में ऐसा करने का सुयोग कभी कभार ही प्राप्त हो पाता है। गत वर्ष शरद पूर्णिमा की चाँदनी में नौका विहार का कार्यक्रम बनाकर हम कुछ मित्र (पिकनिक) मनाने के मूड में सुबह सवेरे ही खान-पान एवं मनोरंजन का कुछ समान लेकर नगर से कोई तीन किलोमीटर दूर बहने वाली नदी तट पर पहुँच गए।

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वर्षा बीत जाने के कारण नदी तो यौवन पर थी ही, शरद ऋतु का आगमन हो जाने के कारण प्राकृतिक वातावरण भी बड़ा सुन्दर सुखद, सजीव और निखार पर था। लगता था कि वर्षा ऋतु के जल ने प्रकृति का कण-कण, पत्ता-पत्ता धो-पोंछ कर चारों ओर सजा संवार दिया है। मन्द-मन्द पवन के झोंके चारों ओर सुगन्धी को विखेर वायुमण्डल और वातावरण को सभी तरह से निर्मल और पावन बना रहे थे। उस सबका आनन्द भेगते हुए आते ही घाट पर जाकर हमने नाविकों से मिलकर रात में नौका विहार के लिए दो नौकायें तै कर ली और फिर खाने-पीने, खेलने, नाचने गाने, गप्पे और चुटकलेबाजी में पता ही नहीं चल पाया कि सारा दिन कब बीत गया। शाम का साया फैलते ही हम लोग चाय के साथ कुछ नाश्ता कर, बाकी खाने-पीने का सामान हाथ में लेकर नदी तट पर पहुँच गए। वहाँ तै की गई दोनों नौकाओं के नाविक पहले से ही हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे। सो हम लोगों के सवार होते ही उन्होंने चप्पू सम्हाल कलछल बहती निर्मल जलधारा पर हंसिनी-सी तैरने वाली नौकायें छोड़ दी।

तब तक शरद पूर्णिमा का चाँद आकाश पर पूरे निखार पर आकर अपनी उजली किरणों से अमृत वर्षा करने लगा था। हमने सुन रखा था कि शरद पूर्णिमा की रात चाँद की किरणें अमृत बरसाया करती हैं, सो उनकी तरफ देखना एक प्रकार की मस्ती और पागलपन का संचार करने वाला हुआ करता है। इसे गप्प समझने वाले हम लोग आज सचमुच उस सबका वास्तविक अनुभव कर रहे थे। चप्पू चलने से कलछल करती नदी की शान्त धारा पर हंसिनी-सी नाव धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी। किनारे क्रमशः हमसे दूर छिटकते जा रहे थे। दूर हटते किनारों और उन पर उगे वृक्षों के झाड़ों की परछाइयाँ धारा में बड़ा ही सम्मोहक सा दृश्य चित्र प्रस्तुत करने लगी थीं। कभी-कभी टिटीहरी या किसी अन्य पक्षी के एकाएक चहक उठने, किसी अनजाने पक्षी के पंख फड़फड़ा कर हमारे ऊपर से फुर्र करके निकल जाने पर वातावरण जैसे कुछ सनसनी सी उत्पन्न कर फिर एकाएक रहस्यमय हो जाता। फटी और विमुग्ध आँखों से सब देखते सुनते हम लोग लगता कि जैसे अदृश्यर्श्व परीलोक में आ पहुँचे हों।

31. नक्सलवाद

1960 में नक्सलवाद बंगाल के दार्जिलिंग जिले में किसान आन्दोलन के रूप में प्रारम्भ हुआ। 1967 में इसे नक्सली आन्दोलन कहा गया। 1969 में पी.सी.आई. की स्थापना हुई।

नक्सलवादी आन्दोलन के तीन घोपित उद्देश्य थे

  • खेत जोतने वाले को खेत का हक मिले।
  • विदेशी पूँजी की ताकत समाप्त की जाये।
  • वर्ग और जाति के विरूद्ध संघर्ष प्रारम्भ किया।

1960-70 के दशक में मूल नक्सली आन्दोलन को कुचलने के बाद इसमें बिखराव हुआ और नई-नई शाखाओं-

प्रमुख नक्सली संगठन तथा उनके संस्थापक

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प्रभावित राज्य-आन्ध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्ट्र, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार।

कुल मौतें-नक्सली हिंसा से 2005 में 669 मौतें।

नक्सली हिंसा से निपटने के लिए सरकार की रणनीति

  1. नक्सलियों और आधारभूत ढाँचे व सहायक प्रणाली के विरूद्ध एक समन्वित प्रभावी पुलिस कार्यवाही को प्रभावी बनाने के लिए सम्मुन्नत सूचना संग्रहण और साझा तन्त्र का निर्माण करना।
  2. नक्सली हिंसा से प्रभावित क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने सहित त्वरित सामाजिक, आर्थिक विकास के उद्देश्य से जन शिकायतों के प्रभावी निराकरण व समुन्नत वितरण सम्ममा तन्त्र सुनिश्चित करने के लिए प्रशासनिक मशीनरी का सुदृढीकरण करना तथा उसे अधिक पारदर्शी उत्तरदायी व संवेदनशील बनाना और स्थानीय समूहों को प्रोत्साहित करना जैसे-छत्तीसगढ़ का सल्वा जुड़म अभियान।
  3. प्रभावित राज्यों द्वारा नक्सली गुटों के साथ शांति वार्ता करना यदि हिंसा का रास्ता छोड़ने और हथियार त्यागने के लिए तैयार हों।

32. भारत-पाक सम्बन्ध

महात्मा गाँधी और पं. नेहरू जैसे देश के कर्णधारों ने सन् 1947 के भयानक साम्प्रदायिक रक्तपात के फलस्वरूप अंग्रेजों का देश के विभाजन का प्रस्ताव इसलिए स्वीकार कर लिया था कि यह झगड़ा हमेशा के लिए शान्त एवं समाप्त हो जायेगा और दोनों देश अच्छे पड़ोसी के नाते एक-दूसरे उन्नति में सहयोग देते रहेंगे। उस समय राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन जैसे कुछ महान विचारक इसके विपरीत थे और पाकिस्तान को विष वृक्ष की संख्या देते थे, परन्तु बहुमत के आगे उन लोगों की आवाज धीमी पड़ गई और पाकिस्तान बन गया।

तब से आज तक 50 वर्ष हो चुके हैं, पाकिस्तान ने भारत के विरोध को अपनी विदेश नीति का प्रमुख लक्ष्य बनाया हुआ है। अब तक जितने भी शासक पाकिस्तान में आये, उन्होंने एक स्वर से भारत का विरोध किया और वहाँ की जनता को भड़काया। परिणामस्वरूप आज तक पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के ऊपर अत्याचार और बलात्कार होते रहे हैं। जनवरी सन् 1964 में पूर्वी पाकिस्तान में हुए बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे और हिन्दुओं का महाभिनिष्क्रमण तथा 1971 के गृह युद्ध के परिणामस्वरूप नवोदित बंगला देश में क्रूर नरसंहार, असंख्य शरणार्थियों के रूप में भारत में आ जाना, पाकिस्तान की बर्बरता पूर्ण नीति का ज्वलन्त उदाहरण है। जनवरी 1964 में हुए पूर्वी पाकिस्तान के साम्प्रदायिक दंगों पर अपने विचार प्रकट करते हुए लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि “देश का बँटवारा समस्याओं का युक्तिसंगत समाधान सिद्ध नहीं हुआ।”

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भारत के प्रति घृणा, कटुता और वैमनस्यपूर्ण नीतियों के कारण ही पाकिस्तान ने 9 अप्रैल, 1965 को कच्छ की सीमाओं पर आक्रमण कर दिया। इससे पूर्व पश्चिमी बंगाल की सीमा पर स्थित कूच बिहार, भकावाड़ी, तीसे बीघा, रटर-खरिया आदि स्थानों पर उसके आक्रमण हो ही रहे थे। 7 अप्रैल 1965 को स्वराष्ट्र मन्त्री ने लोकसभा को यह सूचना दी कि कच्छ-सिन्ध सीमा के दक्षिण में कंजर कोट कच्छ इलाके में पाकिस्तानी भारतीय सीमा में घुस आये हैं। इसके बाद 9 अप्रैल, 1965 से 1 मई, 1965 तक दोनों ओर से युद्ध चलता रहा। अन्त में 2 मई, 1965 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री विल्सन के हस्तक्षेप से युद्ध विराम हुआ।

लेकिन दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों के समझौते के हस्ताक्षरों की स्याही भी अभी सूख न पाई थी कि पाकिस्तान ने 9 अगस्त, 1965 को कश्मीर पर पुनः भयानक आक्रमण कर दिया। यद्यपि भारत-पाक संघर्ष, द्वन्द्व और युद्ध की कहानी पाकिस्तान के जन्म के साथ-साथ प्रारम्भ हो गयी थी। तब से किसी न किसी रूप में इस कहानी की पुनरावृत्ति होती रही, परन्तु जिसे घोषित युद्ध कहते हैं वह यही था। वह यही युद्ध था जिसमें भारतीयों ने पाकिस्तानियों के दाँत खट्टे किये थे और उन्हें रूला दिया था। अगस्त 1965 में पाकिस्तान ने अपने मजाहिद आक्रमणकारियों को कश्मीर में भेजकर अक्टूबर 1947 को आक्रमण की पुनरावृत्ति की थी।

माओ-त्से-तुंग की नीति अपना कर पाकिस्तान ने आजाद कश्मीर तथा अपनी नियमित सेना को गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया। इसके लिए मरी में कैम्प, खोला गया था। अप्रैल 1965 से ये तैयारियाँ खूब जोर-शोर से चल रही थीं। इन्हें 5-6 हजार घुसपैठियों को बाकायदा टुकड़ियों और कम्पनियों में बांटकर तथा आधुनिक हथियारों से लैस करके 5 अगस्त, 1965 और उसके आस-पास के दिनों में पाकिस्तान ने कश्मीर में भेजना प्रारम्भ कर दिया। यही इस युद्ध का प्रारम्भ था।

इतने बड़े संघर्ष के बाद भी भारत ने अपनी अद्वितीय सहनशीलता और सहअस्तित्व की भावना का परिचय देते हुए ताशकंद घोषणा को स्वीकार किया और उस पर बराबर अमल किया। इतना होने पर भी पाकिस्तान ने सदैव भारत की मैत्री का प्रस्ताव ठुकराया है और भारत को खा जाने की सदैव धमकियाँ देता रहा है ऐसा क्यों? इसका केवल एक ही उत्तर है कि पाकिस्तान की नींव ही घृणा, द्वेष, कटुता, संकीर्णता, स्वार्थ और वैमनस्य पर रखी गई है। इस नीति को वहाँ का प्रत्येक शासक बढ़ावा देता रहा है। इससे उनको लाभ भी हुआ है कि वे वहाँ की जनता को भारत के विरोध के अलावा कुछ और सोचने का मौका ही नहीं देना चाहते अन्यथा उनका तख्ता पलट जायेगा। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात जहाँ भारत अपनी आर्थिक विकास की योजनाओं में लग गया वहाँ पाकिस्तानी जनता को उनके मूल अधिकारों तथा देश की वास्तविकता से दूर रखा जा सके।

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33. नारी का महत्त्व

छायावादी कवि पन्त ने तो नारी को देवी माँ सहचरि, सखी प्राण कहकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए हैं और उन्होंने अपने शब्दों में लिखा है-

यत्र नार्याऽस्तु पूजयन्ते
समन्ते तत्र देवता।

जैसे आदर्श उद्घोष से नारी का सम्मान किया है। नारी सृष्टि का प्रमुख उद्गम स्रोत है। नारी के अभाव में समाज की कल्पना ही नहीं की जा सकती। सृष्टि सृजन से ही नारी का अस्तित्व रहा है। देव से लेकर मानव तक नारी ही जन्मदात्री रही है। बिना नारी के पुरुष अधूरा है। नारी के अभाव में घर-घर नहीं होता। चारदीवारी से घिरा घर घर नहीं कहा जाता। नारी का प्रमुख आधार है। विश्व में नारी का महत्व क्या रहा है यह तो एक विचारणीय विषय है। इस पर एक ग्रन्थ लिखा जा सकता है। मानव सृष्टि में पुरुष और नारी के रूप में आदि शक्ति ने दो अपूर्ण शरीरों का सृजन किया है।

एक के बिना दूसरा अपंग है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं अथवा समाज रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। पुरुष को सदैव से शक्तिशाली माना जाता रहा है और स्त्री को अबला नारी। यही कारण है कि नारी को बेचारी अबला आदि कहकर पीछे छोड़ दिया जाता है। नारी को तो अर्धांगिनी कहा जाता है, किन्तु पुरुष रूपी समाज का ठेकेदार . अपने को अर्धांग कहकर परिचय नहीं कराया गया है जो कि नारी के महत्व को कम करता है। एक प्रश्न विचारणीय है “यदि नारी अर्धांगिनी है तो उसका अद्धरंग कहाँ? उत्तर में पुरुष ही समझ में आता है। जो बहाव नारी का समाज में होना चाहिए वह महत्व पुरुष समाज में नारीको नहीं मिल पाता।

आँचल में दूध आँखों में पानी,
ओ अबला नारी तेरी यही कहानी॥

आज के युग में नारी वर्ग को कोई सम्मान नहीं दिया गया है। आज नारी के साथ द्रोपदी की तरह व्यवहार हो रहा है। नारी को इस संसार रूपी जगत में कौरवों रूपी दानवों ने कुचल दिया है। उसका घोर अपमान किया है और उसको नारी का महत्व नहीं दिया। नारी द्वापर काल से ही पीड़ित चली आ रही है। मत्य और नवीन युग में आकर स्थिति और बिगड़ गई। समाज में उसकी पीड़ा का कोई उपचार नहीं। नारी ने पुरुष की तुलना में जो अन्तर पाया, उसी को अपनी दयनीय स्थिति का कारण मान लिया। उसके मन में भावुकता अधिक समय तक न टिक सकी।

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उसने अपने को मार्ध मानने के अतिरिक्त शेष हुतलिया मानने का निश्चय कर लिया। उसने अपने शील का परित्याग नहीं किया, किन्तु बाह्य जगत से कठोर संघर्ष करने का निश्चय कर लिया। नारी ने कभी शील परित्याग नहीं किया, किन्तु सर्वत्र कठोर संघर्ष करने का निश्चय कर प्राचीन काल से ही आन्दोलन करती चली आ रही है। रवना, लीलावती, अमयार तथा गार्गी की कथायें किसी से छिपी नहीं हैं। स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सिद्ध कर दिया कि आज भी नारी सब प्रकार से पूर्ण शक्तिशाली है, किसी पुरुष से कम नहीं।

34. भारत व धर्मनिरपेक्षता

धर्मनिरपेक्षता हमारी संवैधानिक व्यवस्था की सामाजिक चेतना और मानवता का सार तत्व है। हमारा स्वराज आंदोलन, छोटे-मोटे भटकावों के बावजूद मूलतः धर्मनिरपेक्ष था। हमारे राष्ट्रीय नेताओं और जनता ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध धर्मनिरपेक्षता की तलवार से लड़ाई लड़ी। 1895 से लेकर संविधान निर्माण में किये गये अनेक प्रयोगों में धर्म, लिंग या अन्य बातों के भेदभाव से मुक्त समाज में मानव अधिकारों के मूल्य पर जोर दिया जाता रहा। पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा 15 सितम्बर 1946 को संविधान सभा में रखे गये उद्देश्यों के प्रस्ताव में धर्मनिरपेक्ष समाज में अंतर्भूत समाज के मूल्य तथा मानव अधिकारों पर जोर दिया गया।

अंत में संविधान की प्रस्तावना, मूलभूत अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों के अध्यायों में भारत की कानून व्यवस्था के सर्वोपरि तत्वों के रूप में धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद और सामाजिक न्याय को रेखांकित किया गया। एक व्यक्ति एक मूल्य चाहे वह धार्मिक हो या अधार्मिक। फिर इस संबंध में सारे संदेह दूर करने के लिए संविधान के 42वें संशोधन के अंतर्गत जीवन का तानाबाद है। क्योंकि यह मात्र एक अभूत सिद्धांत, दार्शनिक मत अथवा सांस्कृतिक विलास नहीं है बल्कि यह हमारी मिली जुली विरासत के सूक्ष्म तंतुओं का प्राण है।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य या सरकार को कोई धर्म नहीं है। उसके राज्य में सभी निवासी अपना धर्म मानने के लिए स्वतंत्र हैं। राज्य या शासन किसी को कोई धर्म मानने को विवश नहीं कर सकता। इसके लिए हर व्यक्ति स्वतंत्र है। सरकार या राज्य किसी धर्म में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं। भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया था। उसमें धर्मनिरपेक्ष के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया था। संविधान की इस धारा या नियम के अनुसार भारत का प्रत्येक नागरिक धार्मिक विश्वास के संबंध में स्वतंत्र है। सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक अधिकार प्राप्त हैं। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है। प्रजातंत्र में प्रजा या जनता को सर्वोपरि स्वीकार किया जाता है। व्यक्ति की श्रेष्ठता तथा सम्मान को महत्व दिया जाता है। उसके व्यक्तिगत विचारों को आदर की दृष्टि से देखा जाता है। राज्य की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं।

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मनुष्य जाति के प्रारम्भिक इतिहास में ऐसा नहीं था। पहले धर्म को श्रेष्ठ समझा जाता था तथा मनुष्य को राज्य के धर्म का पालन करना अनिवार्य था। राजा ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था। उसे दैवी अधिकार प्राप्त थे। धार्मिक गुरु की सलाह ही सब कुछ थी। कोई भी नागरिक राज्य या धर्म का विरोधी करने पर दंड का भागी होता था। धर्म के नाम पर सारे संसार का इतिहास रक्त से सना हुआ है। अपना धर्म श्रेष्ठ मानते हुए राजाओं तथा उनके समर्थकों ने दूसरे धर्म के लोगों पर भयानक अत्याचार किए। लोग धार्मिक अंधविश्वासों का पालन करते थे। हर जगह धर्म का हस्तक्षेप था। भारत में भी मनुष्यता के व्यक्तिगत जीवन के अतिरिक्त उसके राजनैतिक जीवन.पर धर्म का पूर्ण प्रभुत्व था। समय-समय पर हमारे दोष में कभी हिन्दू धर्म, कभी बौद्ध धर्म, कभी इस्लाम धर्म तथा कभी ईसाई धर्म का बोलबाला रहा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्रजातंत्र की लहरों ने धर्म को उसके स्थान से गिरा दिया है। परिवर्तन ने व्यक्ति तथा इसकी स्वतंत्रता को सबसे ऊँचा स्थान दिया है। अब धर्म एक व्यक्तिगत वस्तु समझी जाती है। हमारे विचारकों ने स्वीकार किया है कि धर्म का राज्य से कोई संबंध नहीं है। धर्म तो मनुष्य की अपनी विचारधारा या संपत्ति है। वह इस मामले में स्वतंत्र है। वह चाहे धर्म का पालन करे, न करे अथवा किसी धर्म को बदलकर नया धर्म ग्रहण करे यह उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। राज्य को धर्म या धार्मिक बातों से दूर रहना चाहिए।

धर्मनिरपेक्ष भारत में सभी धर्म तथा उनके मानने वाले एक समान हैं। हमारे संविधान निर्माताओं ने धार्मिक पाखंड को हटा दिया है। धर्मनिरपेक्ष भारत संसार का एक महान राष्ट्र है। इस सिद्धान्त ने पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं को समाप्त कर दिया है। इससे सभी देशों में हमारा सम्मान बढ़ा है। आज का भारत अनेकता में एकता का श्रेष्ठ उदाहरण है। इस देश में सभी धर्मों तथा उनके मानने वालों का एक समान सम्मान है। यह हमारे प्रजातंत्र की सफलता है।

35. परिश्रम का महत्व

सफलता प्राप्त करने के लिए परिश्रम आवश्यक है। बिना परिश्रम के कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। मेहनत कर विशेष रूप से मन लगाकर किया जाने वाला मानसिक या शारीरिक श्रम परिश्रम कहलाता है। सृष्टि की रचना से लेकर आज की विकसित सभ्यता मानव परिश्रम का ही परिणाम है। जीवन रूपी दौड़ में परिश्रम करने वाला ही विजयी रहता है। इसी तरह शिक्षा क्षेत्र में परिश्रम करने वाला ही पास होता है। उद्यमी तथा व्यापारी की उन्नति भी परिश्रम में ही निहित है।

Bihar Board Class 11th निबंध लेखन

मानव जीवन में समस्याओं का अम्बार है। जिन्हें वह अपने परिश्रम रूपी हथियार से दिन-प्रतिदिन दूर करता रहता है। कोई भी समस्या आने पर जो लोग परिश्रमी होते हैं वे उसे अपने परिश्रम से सुलझा लेते हैं और जो लोग परिश्रमी नहीं होते वह यह सोचकर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते हैं कि समस्या अपने आप सुलझ जायेगी। ऐसी सोच रखने वाले लोग जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते। परिश्रमी व्यक्ति को सफलता मिलने में हो सकता है देर अवश्य लगे लेकिन सफलता उसे जरूर मिलती है। यही कारण है कि परिश्रमी व्यक्ति निरन्तर परिश्रम करता रहता है।

सृष्टि के आदि से अद्यतन काल तक विकसित सभ्यता मानव के परिश्रम का ही फल है। पाषण युग से मनुष्य वर्तमान वैज्ञानिक काल में परिश्रम के कारण ही पहुँचा। इस दौरान उसे कई बार असफलता भी हाथ लगी लेकिन उसने अपना परिश्रम लगातार जारी रखा। परिश्रम से ही लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। आजकल के समय में जिसके पास लक्ष्मी है वह क्या नहीं पा सकता। परिश्रम से शारीरिक तथा मानसिक शक्तियों का विकास होता है। कार्य में दक्षता आती है। साथ ही साथ मानव में आत्मविश्वास जागृत होता है।

परिश्रम का महत्व जीवन विकास के अर्थ में निश्चय ही सत्य और यथार्थ है। आज विज्ञान प्रदत्त जितनी भी सुविधाएँ मानव भोग रहा है वे परिश्रम का ही फल है। विज्ञान की विभिन्न सुविधाओं के द्वारा मनुष्य जहाँ चाँद पर पहुँचा है वहीं वह मंगल ग्रह पर जाने का प्रयास किये हुए हैं। यदि परिश्रम किया जाय तो किसी भी इच्छा को अवश्य पूरा किया जा सकता है। यह बात अलग है कि सफलता मिलने में कुछ समय लग जाए।

जीवन में सुख और शान्ति पाने का एक मात्र उपाय परिश्रम है। परिश्रम रूपी पथ पर चलने वाले मनुष्य को जीवन में सफलता संतुष्टि ओर प्रसन्नता प्राप्ति होती है। वह हमेशा उन्नति की ओर अग्रसर रहता है। आलसी व्यक्ति जीवन भर कुण्ठित और दु:खी रहता है। क्योंकि वह सब कुछ भाग्य के भरोसे पाना चाहता है। वह परिश्रम न कर व्यर्थ की बातें सोचता रहता है। ठीक इसके विपरीत परिश्रम करने वाला व्यक्ति अपना जीवन स्वावलंबी तो बनाता ही है श्रेष्ठता भी प्राप्त करता है।

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36. क्रिकेट मैच का आँखों देखा हाल

सर्दियाँ शुरू होते ही भारत भर में क्रिकेट का बुखार सिर चढ़कर बोलने लगता है। हालांकि गली मोहल्लों में बच्चों को बारह महीने क्रिकेट खेलते देखा जा सकता है लेकिन सर्दियों के दौरान देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं होगा जहाँ गली-मोहल्लों में बच्चों को क्रिकेट खेलते न देखा जाए। बड़े खेल के मैदानों में तो इन दिनों और कोई दूसरा खेल खेलते मुश्किल से ही कोई नजर आए। क्रिकेट की शुरूआत इंग्लैंड से हुई थी लेकिन इसके प्रति वहाँ के लोगों में अब रुचि दिनों-दिन कम होती जा रही है। इसके अलावा अन्य देशों में भी अब इस खेल को अवकाश के दिन का खेल माना जाने लगा है।

हमारे देश में इस खेल का बुखार अभी जारी है। एक बार मुझे भी अंतर्राष्ट्रीय तो नहीं लेकिन हाँ राज्य स्तरीय क्रिकेट मैच देखने का शुभ अवसर मिल गया। हमारे घर के पास ही एक बड़ा खेल का मैदान है। यहाँ अक्सर छोटे-बड़े टूर्नामेंट चलते रहते हैं। इस मैदान में दिन में क्रिकेट आदि के मैच खेले जाते हैं तो रात में वॉलीबाल, हैंडबाल आदि के मैच खेले जाते हैं। एक दिन रविवार को मेरा मन हुआ कि चलो कहीं कोई खेल प्रतियोगिता देखी जाए। घर से निकलते ही मुझे मेरा एक मित्र मिल गया। उसने मुझसे कहा अरे भई सुबह-सुबह कहाँ तैयार होकर निकल रहे हो। तुम्हें पता है कि आज बड़े वाले खेल के मैदान में जो क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा है उसका फाइनल मैच है। टूर्नामेंट का आयोजन एक निजी संस्था द्वारा कराया जा रहा था।

टूर्नामेंट में दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ छ: टीमों ने भाग लिया था। उनमें से आज सेमीफाइनल में पहुँची टीमों का फाइनल मैच था। फाइनल मैच होने के कारण बच्चों सहित बड़ों की भी वहाँ संख्या काफी थी। मैच के आयोजकों द्वारा मैच देखने आये लोगों के लिए बैठने की अच्छी व्यवस्था की गई थी। भीड़ के कारण सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस की भी सहायता ली गई थी। मैच देखने आये लोगों के बैठने की व्यवस्था काफी अच्छी की गयी थी।

टूर्नामेंट का फाइनल मैच शक्तिनगर क्रिकेट क्लब तथा न्यूलाइट क्रिकेट क्लब के मध्य खेला गया। मैच सुबह नौ बजकर तीस मिनट पर शुरू हुआ। टॉस शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम ने जीता और क्षेत्र रक्षण का जिम्मा संभाल न्यूलाइट क्रिकेट क्लब को बल्लेबाजी के लिए आमंत्रित किया। मैच चालीस ओवरों का था। न्यूलाइट क्रिकेट क्लब के प्रारम्भिक बल्लेबाज बहुत सस्ते में ही आउट हो गये। मध्य क्रम में खेलने आये क्लब के बल्लेबाजों ने विरोधी टीम के गेंदबाजों की धुनाई करनी शुरू कर दी। अपने तेज गेंदबाजों को पिटते देख शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम ने अपने स्पिनरों को गेंदबाजी का जिम्मा सौंपा। ये गेंदबाज एक हद तक न्यूलाइट क्रिकेट क्लब के बल्लेबाजों द्वारा की जा रही धुंवाधार बल्लेबाजी पर अंकुश लगाने में सफल रहे। बावजूद इसके न्यूलाइट क्रिकेट क्लब ने चालीस ओवर में सात विकेट खोकर 250 रन का स्कोर खड़ा किया।

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करीब 30 मिनट के विश्राम के बाद मैदान पर शक्तिनगर क्रिकेट क्लब के शुरुआती बल्लेबाज मैदान पर उतरे। इसके बाद न्यूलाइट क्रिकेट क्लब के कप्तान ने अपने खिलाड़ियों को अपनी रणनीति के तहत क्षेत्र रक्षण के लिए मैदान में खड़ा कर दिया। न्यूलाइट क्रिकेट क्लब को पहले ही ओवर मे विकेट पाने में सफलता मिल गयी। पहले ओवर में विकेट खो देने के कारण शक्तिनगर क्रिकेट क्लब के बल्लेबाजों ने बिना किसी जोखिम के धीरे-धीरे रन बटोरे। 12 ओवर समाप्त होने पर शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम अपने चार विकेट केवल 60 रनों पर ही गवाँ चुकी थी।

न्यूलाइट क्रिकेट क्लब द्वारा तेज गेंदबाजों को हटा स्पिनर लगा देने से कोई खास फायदा नहीं हुआ बल्कि विरोधी टीम अपने खाते में आसानी से रन बटोरती चली जा रही थी। खेल धीमा हो चुका था। क्योंकि 35 ओवर की समाप्ति पर शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम केवल 140 रन ही बटोर सकी थी। उसके सात बल्लेबाज आउट हो चुके थे। अपनी जीत को आश्वस्त मान न्यूलाइट क्रिकेट क्लब के खिलाड़ियों ने मैच में अपनी पूरी जान लगा दी थी।

अंतिम तीन ओवरों में विरोधी टीम के बल्लेबाजों ने गेंदबाजों की जमकर धुनाई की लेकिन वह मैच नहीं जीत सके। शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम के नौ खिलाड़ी 212 रन पर आउट हो गये थे अंतिम जोड़ी मैदान में थी। इसी दौरान चालीस ओवर की समाप्ति पर अम्पायर ने सीटी बजाते हुए मैच खत्म होने का संकेत दिया। मैच खत्म होने के बाद मैन ऑफ दि मैच विजयी टीम के आक्रामक बल्लेबाज जिसने 10 गेंदों पर 22 रन बनाये थे को दिया गया। इस प्रकार न्यूलाइट क्रिकेट क्लब टूर्नामेंट की ट्रॉफी जीत गया। मैच के अंत में टूर्नामेंट की आयोजक कंपनी के चेयरमैन ने विजेता टीम को ट्रॉफी प्रदान की और उन्हें जीत कर बधाई दी। टूर्नामेंट की रनर्सअप रही शक्तिनगर क्रिकेट क्लब की टीम को उन्होंने पुरस्कार स्वरूप 20 हजार रुपये का चैक दिया।

37. मादक द्रव्य व्यसन-युवा पीढ़ी का भटकाव

पश्चिमी संस्कृति वाले देशों का अनुकरण करते हुए आज भारतीय युवा पीढ़ी में बढ़ती मादक पदार्थों का सेवन एक गंभीर समस्या का रूप धारण करती जा रही है। प्रकृति प्रदत्त मादक पदार्थों के सेवन की संस्कृति बहुत प्राचीन रही है। प्राचीन समय में लोग इन पदार्थों का इसलिए सेवन करते थे कि उन्हें आध्यात्मिक चिंतन तथा मनन के लिए उत्प्रेरक माना जाता था। साधु-संत अथवा योगियों का पेय पदार्थ का सेवन प्रगतिशील, आधुनिकता तथा बौद्धिकता का पर्याय मानकर तथा मूड परिवर्तन करने के लिए किया जा रहा है।

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साधारणतया नशीली या मादक वस्तुएँ वे होती हैं जिनका सेवन से उसकी आदत पड़ जाती है जैसे तंबाकू, काफी, शराब आदि। इनके लगातार सेवन से आदत तो पड़ सकती है परंतु उन्हें छोड़ने में उतनी शारीरिक या मानसिक पीड़ा नहीं पहुँचती है कि उन वस्तुओं, द्रव्यों से जिनका प्रयोग शुरू की आदत की लत या व्यसन में परिवर्तित कर देता है। दूसरा यह कि नशीले पदार्थ जिनके सेवन से लोग इनके ऊपर पूरी तरह से आश्रित हो जाते हैं और जिन्हें इन पदार्थों का दास कहा जा सकता है। इसमें अफीम, कोकिन तथा स्मैक का नाम सरलता से लिए जा सकते हैं।

युवा पीढ़ी में इन दोनों पदार्थों का सेवन करने के मामले बहुत तेजी से प्रकाश में आ रहे हैं। इनकी मुख्य वजह माता-पिता में कटुता, झगड़े, बच्चों पर ध्यान न देना आदि है। माता-पिता में कटुता और झगड़ों का असर बच्चों पर भी पड़ता है। घर में स्नेह और सम्मान न मिलने पर वह बाहर की ओर देखता है। घर के वातावरण से मुक्ति के लिए वह दोस्तों के साथ रहना ज्यादा अच्छा मानता है। यदि ऐसे में नशेबाज मित्रों की संगत हो जाए तो नशे की लत पड़ना स्वाभाविक है।

इसके अलावा आज के युवा वर्ग द्वारा इन नशीले पदार्थों का सेवन अधिक करने के कारण हैं-पाठ्यक्रमों की नीरसता, मशीनी अध्ययन शैली, मौजूदा सामाजिक परिवेश, सिनेमा का प्रभाव, अच्छी आमदनी, गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा आदि युवा वर्ग में नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करने का कारण हैं। शिक्षित कहा जाने वाला वर्ग इसे बौद्धिक व्यक्तित्व में निखार, आंतरिक शक्यिों में वृद्धि, स्मरण शक्ति बढाने तथा अधिक परिश्रम करने के नाम पर अंगीकार कर रहा है। इन नशीली दवाओं के चपेट में युवक ही नहीं युवतियाँ भी तेजी से आती जा रही हैं।

38. पर्यावरण प्रदूषण : प्रदूषण का स्वरूप व परिणाम

पर्यावरण प्रदूषण के कारण ही पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। इस ताप का प्रभाव ध्वनि को गति पर भी पड़ता है। तापमान में एक डिग्री सेल्सियस ताप बढने पर ध्वनि की गति लगभग सात सेंटीमीटर प्रति सेकेण्ड बढ़ जाती है। आज हर ध्वनि की गति तीव्र है और श्रवण शक्ति का ह्रास हो रहा है। यही कारण है कि आज बहुत दूर से घोड़ों के टापों की आवाज जमीन पर कान लगाकर नहीं सुनी जा सकती। जबकि प्राचीन काल में राजाओं की सेना इस तकनीक का प्रयोग करती थी।

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बढ़ते उद्योगों, महानगरों के विस्तार तथा सड़कों पर बढ़ते वाहनों के बोझ ने हमारे समक्ष कई तरह की समस्या खड़ी कर दी हैं। इनमें सबसे भयंकर समस्या है प्रदूषण। इससे हमारा पर्यावरण संतुलन तो बिगड़ ही रहा है साथ ही यह प्रकृति प्रदत्त वायु व जल को भी दूषित कर रहा है। पर्यावरण में प्रदूषण कई प्रकार के हैं। इनमें मुख्य रूप से ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण शामिल हैं। इनसे हमारा सामाजिक जीवन प्रभावित होने लगा है। तरह-तरह के रोग उत्पन्न होने लगे हैं।

औद्योगिक संस्थाओं को कूड़ा-करकट रासायनिक द्रव्य व इनसे निकलने वाला अवजल नाली-नालों से होते हुए नदियों में गिर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अंत्येष्टि के अवशेष तथा छोटे बच्चों के शवों को नदी में बहाने की प्रथा है। इनके परिणामस्वरूप नदी का पानी दूषित हो जाता है। हालांकि नदी के इस जल को वैज्ञानिक तरीके से शोधित कर पेय जल बनाया जाता है। लेकिन इस कथित शुद्ध जल के उपयोग से कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं। इनमें खाद्य विषाक्तता तथा चर्म रोग प्रमुख हैं। प्रदूषित जल मानव जीवन को ही नहीं कई अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित करता है। इससे कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है। प्रदूषित जल से खेतों में सिंचाई करने के कारण उनमें उत्पन्न होने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता व उसके अन्य पक्षों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है।

शुद्ध वायु जीवित रहने के साथ-साथ हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं। शुद्ध वायु का स्रोत वन, हरे-भरे बाग व लहलहाते पेड़-पौधे हैं। क्योंकि यह जहाँ प्रदूषण के भक्षक हैं वहीं यह हमें आक्सीजन प्रदान करते हैं। बढ़ती जनसंख्या के कारण आवास की समस्या उत्पन्न होने लग रही है। मानव ने अपनी आवासीय पूर्ति के लिए वन क्षेत्रों और वृक्षों का भारी मात्रा में दोहन किया। इसके अलावा हरित पट्टियों पर कंकरीट के जाल रूपी सड़कें बिछा दी हैं। इस कारण हमें शुद्ध वायु नहीं मिल पा रही। इसके अतिरिक्त कारखानों से निकलने वाली विषैली गैसें, धुंआ, कूड़े-कचरों से उत्पन्न गैस वायु को प्रदूषित कर रही है। रही सही कसर पेट्रोलियम पदार्थ से चलने वाले वाहनों ने पूरी कर दी है।

स्कूटर, मोटरसाइकिल, कार, बस, ट्रक आदि वाहन दिन रात सड़कों पर दौड़ रहे हैं। इनसे जो धुंआ निकलता है उसमें कार्बनडाय ऑक्साइड, सल्फ्यूरिक ऐसिड और शीशे के तत्व शामिल होते हैं। जो हमारे वायुमंडल में घुसकर उसे प्रदूषित करते हैं। दिल्ली जैसे महानगर में वायु को प्रदूषित करने में वाहनों की अहम् भूमिका है। वायु को प्रदूषित करने में इनका हिस्सा साठ प्रतिशत तथा शेष कारखानों व अन्य स्रोतों के जरिये होता है। वायु प्रदूषण से श्वास सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। इसके अलावा यह हमारे नेत्रों व त्वचा को भी प्रभावित करती है।

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ध्वनि प्रदूषण कानों की श्रवण शक्ति के लिए तो हानिकारक है ही, साथ ही यह तन मन की शक्ति को भी प्रभावित करता है। ध्वनि प्रदूषण के कारण मानव चिड़चिड़ा और असहिष्णु को जाता है। इसके अलावा अन्य कई विकार पैदा होने लगते हैं।

हमें प्रदूषण से बचने के लिए हरित क्षेत्र विकसित करना होगा। इसके अतिरिक्त आवासीय क्षेत्रों में चल रही औद्योगिक इकाइयों को वहाँ से स्थानांतरित कर इन इकाइयों से निकलने वाले कचरे को जलाकर नष्ट करने जैसे कुछ उपाय अपनाकर प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण पाया जा सकता है।

39. समाचार पत्र और उसकी उपयोगिता

समाचार पत्र ही एक ऐसा साधन है जिससे लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली फली-फूली। समाचार पत्र शासन और जनता के बीच माध्यम का काम करते हैं। समाचार पत्रों की आवाज जनताकी आवाज कही जाती है। विभिन्न राष्ट्रों के उत्थान एवं पतन में समाचार पत्रों का बड़ा हाथ होता है। एक समय था जब देश के निवासी दूसरे देशों के समाचार के लिए भटकते थे। अपने ही देश की घटनाओं के बारे में लोगों को काफी दिनों बाद जानकारी मिल पाती थी। समाचार पत्रों के आने से आज मानव के समक्ष दूरी रूपी कोई दीवार या बाधा नहीं है।

किसी भी घटना की जानकारी उन्हें समाचार पत्रों से प्राप्त हो जाती है। विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के बीच की दूरी इन समाचार पत्रों ने समाप्त कर दी है। मुद्रण कला के विकास के साथ-साथ समाचार पत्रों के विकास की कहानी भी जुड़ी है। वर्तमान में समाचार पत्रों का क्षेत्र अपने पूरे यौवन पर है। देश का केई नगर ऐसा नहीं है जहाँ से दो-चार समाचार पत्र प्रकाशित न होते हों। समाचार पत्र से अभिप्राय समान आचरण करने वाले से है। इसमें क्योंकि सामाजिक दृष्टिकोण अपनाया जाता है इसलिए इसे समाचार पत्र कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्थान समाचार पत्र है। समाचार पत्र निकालने के लिए कई लोगों की आवश्यकता होती है। इसलिए यह व्यवसाय पैसे वाले लोगों तक ही सीमित है।

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किसी भी समाचार पत्र की सफलता उसके समाचारों पर निर्भर करती है। समाचारों का दायित्व व सफलता संवाददाता पर निर्भर करती है समाचार पत्र एक ऐसी चीज है जो राष्ट्रपति भवन से लेकर एक खोमचे तक में देखने को मिल जाएगा। समाचार पत्रों के माध्यम से हम घर बैठे विश्व के किसी भी कोने का समाचार पा लेते हैं।

समाचार पत्रों के लाभ यह है कि इनमें एक तरफ समाचार जहाँ विस्तृत रूप से प्रकाशित होते हैं वहीं इनमें छपी सामग्री को हम काफी दिनों तक संभाल कर रख सकते हैं। दूरदर्शन या टीवी. चैनलों द्वारा प्राप्त समाचारों से संबंधित जानकारी हम भविष्य के लिए संभाल कर नहीं रख सकते हैं। इसके अलावा यह क्षेत्रीय भाषाओं में प्रकाशित होने के कारण जो हिन्दी या अंग्रेजी नहीं जानते उन तक को समाचार उपलब्ध करवाते हैं।

Bihar Board Class 11th Hindi रचना पत्र लेखन

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पत्र का महत्त्व

As keys do open chests, So letters open breasts

-James Howel

उक्त अंगरेजी विद्वान् के कथन का आशय यह है कि जिस प्रकार कुजियाँ बक्स खोलती हैं, उसी प्रकार पत्र (letters) हृदय के विभिन्न पटलों को खोलते हैं। मनुष्य की भवनाओं की स्वाभाविक अभिव्यक्ति पत्राचार से भी होती है। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान पत्रों द्वारा ही सम्भव है। पत्रलेखन दो व्यक्तियों के बीच होता है। इसके द्वारा दो हृदयों का सम्बन्ध दृढ़ होता है। अतः पत्राचार ही एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय सम्बन्ध स्थापित करता है। पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र-इस प्रकार के हजारों सम्बन्धों की नींव यह सुदृढ़ करता है। व्यावहारिक जीवन में यह वह सेतु है, जिससे मानवीय सम्बन्धों की परस्परता सिद्ध होती है। अतएव पत्राचार का बड़ा महत्त्व है।

❖ पत्रलेखन एक कला है :

आधुनिक युग में पत्रलेखन को ‘कला’ की संज्ञा दी गयी है। पत्रों में आज कलात्मक अभिव्यक्तियाँ हो रही हैं। साहित्य में भी इनका उपयोग होने लगा है। जिस पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावकारी होगा। एक अच्छे पत्र के लिए कलात्मक सौन्दर्यबोध और अन्तरंग भावनाओं का अभिव्यंजन आवश्यक है। एक पत्र में उसके लेखक की भावनाएँ ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उसका व्यक्तित्व (personality) भी उभरता है। इससे लेखक के चरित्र, दृष्टिकोण, संस्कार, मानसिक स्थिति, आचरण इत्यादि सभी एक साथ झलकते हैं। अतः, पत्रलेखन एक प्रकार की कलात्मक अभिव्यक्ति है। लेकिन, इस प्रकार की अभिव्यक्ति व्यावसायिक पत्रों की अपेक्षा सामाजिक तथा साहित्यिक पत्रों में अधिक होती है।

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❖ अच्छे पत्र की विशेषताएं :

एक अच्छे पत्र की पाँच विशेषताएं हैं-
(क) सरल भाषाशैली,
(ख) विचारों की सुस्पष्टता,
(ग) संक्षेप और सम्पूर्णता,
(घ) प्रभावान्विति,
(ङ) बाहरी सजावट .

(क) सरल भाषाशैली-पत्र की भाषा साधारणतः सरल और बोलचाल की होनी चाहिए। शब्दों के प्रयोग में सावधानी रखनी चाहिए। ये उपयुक्त, सटीक, सरल और मधुर हों। सारी बात सीधे-सादे ढंग से स्पष्ट और प्रत्यक्ष लिखनी चाहिए। बातों को घुमा-फिराकर लिखना उचित नहीं।

(ख) विचारों की सुस्पष्टता-पत्र में लेखक के विचार सुस्पष्ट और सुलझे होने चाहिए। कहीं भी पाण्डित्य-प्रदर्शन की चेष्टा नहीं होनी चाहिए। बनावटीपन नहीं होना चाहिए। दिमाग पर बल देनेवाली बातें नहीं लिखी जानी चाहिए।

(ग) संक्षिप्त और सम्पूर्णता-पत्र अधिक लम्बा नहीं होना चाहिए। वह अपने में सम्पूर्ण और संक्षिप्त हो। उसमें अतिशयोक्ति, वाग्जाल और विस्तृत विवरण के लिए स्थान नहीं है। इसके अतिरिक्त, पत्र में एक ही बात को बार-बार दुहराना एक दोष है। पत्र में मुख्य बातें आरम्भ में लिखी जानी चाहिए। सारी बातें एक क्रम में लिखनी चाहिए। इसमें कोई भी आवश्यक तथ्य छूटने न पाये। पत्र अपने में सम्पूर्ण हो, अधूरा नहीं पत्रलेखन का सारा आशय पाठक के दिमाग पर पूरी तरह बैठ जाना चाहिए। पाठक को किसी प्रकार की उलझन में छोड़ना ठीक नहीं। ,

(घ) प्रभावान्विति-पत्र का पूरा असर पढ़नेवाले पर पड़ना चाहिए। आरम्भ और अन्त में नम्रता ओर सौहार्द के भाव होने चाहिए।

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(ङ) बाहरी सजावट-पत्र की बाहरी सजावट से हमारा तात्पर्य यह है कि

  • उसका कागज सम्भवतः अच्छा-से-अच्छा होना चाहिए;
  • लिखावट सुन्दर, साफ और पुष्ट हो;
  • विरामादि चिह्नों का प्रयोग यथास्थान किया जाय;
  • शीर्षक, तिथि, अभिवादन, अनुच्छेद और अन्त अपने-अपने स्थान पर क्रमानुसार होने चाहिए;
  • विषय-वस्तु के अनुपात से पत्र का कागज लम्बा-चौड़ा होना चाहिए।

पत्रों के प्रकार
सामान्यतः पत्र तीन प्रकार के हैं—

  • सामाजिक पत्र (Social letters),
  • व्यापारिक पत्र (Commercial letters) और
  • सरकारी पत्र (Official letters)। यहाँ प्रथम एवं तृतीय प्रकार के पत्रों का सामान्य परिचय दिया जाता है।

सामाजिक पत्राचार-गैरसरकारी पत्रव्यवहार को ‘सामाजिक पत्राचार’ कहते हैं। इसके अन्तर्गत वे पत्रादि आते हैं, जिन्हें लोग अपने दैनिक जीवन के व्यवहार में लाते हैं। इस प्रकार के पत्रों के अनेक रूप प्रचलित हैं। कुछ के उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  • सम्बन्धियों के पत्र।
  • बधाई पत्र।
  • शोक पत्र।
  • परिचय पत्र।
  • निमन्त्रण पत्र।
  • विविध पत्र।

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पत्रलेखन सभ्य समाज की एक कलात्मक देन है। मनुष्य चूँकि सामाजिक प्राणी है इसलिए वह दूसरों के साथ अपना सम्बन्ध किसी-न-किसी माध्यम से बनाये रखना चाहता है। मिलते जुलते रहने पर पत्रलेखन की तो आवश्यकता नहीं होती, पर एक-दूसरे से दूर रहने पर एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के पास पत्र लिखता है। सरकारी पत्रों की अपेक्षा सामाजिक पत्रों में कलात्मकता अधिक रहती है।

क्योंकि इनमें मनुष्य के हृदय के सहज उद्गार व्यक्त होते हैं। इन पत्रों को पढ़कर हम किसी भी व्यक्ति के अच्छे या बुरे स्वभाव या मनोवृत्ति का परिचय आसानी से पा सकते हैं। खासकर व्यक्तिगत पत्रों (personal letters) में यह विशेषता पायी जाती है। एक अच्छे सामाजिक पत्र में सौजन्य, सहृदयता और शिष्टता का होना आवश्यक है। तभी इस प्रकार के पत्रों का अभीष्ट प्रभाव हृदय पर पड़ता है। इसके कुछ औपचारिक नियमों का निर्वाह करना चाहिए।

पहली बात यह कि पत्र के ऊपर दाहिनी ओर पत्रप्रेषक का पता और दिनांक होना चाहिए। दूसरी बात यह कि पत्र जिस व्यक्ति को लिखा जा रहा हो-जिसे ‘प्रेषिती’ भी कहते हैं-उसकी प्रति, सम्बन्ध के अनुसार ही समुचित अभिवादन या सम्बोधन के शब्द लिखने चाहिए। यह पत्रप्रेषक और प्रेषिती के सम्बन्ध पर निर्भर है कि अभिवादन का प्रयोग कहाँ, किसके लिए, किस तरह किया जाय।

अँगरेजी में प्रायः छोटे-बड़े सबके लिए ‘My dear’ का प्रयोग होता है, किन्तु हिन्दी में ऐसा नहीं होता। पिता को पत्र लिखते समय हम प्रायः पूज्य पिताजी’ लिखते हैं। शिक्षक अथवा गुरुजन को पत्र लिखते समय उनके प्रति आदरभाव सूचित करने के लिए ‘आदरणीय’ या ‘श्रद्धेय’ -जैसे शब्दों का व्यवहार करते हैं। यह अपने-अपने देश के शिष्टाचार और संस्कृति के अनुसार चलता है। अपने से छोटे के लिए हम प्रायः ‘प्रियवर’, ‘चिरंजीव’ -जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। समान स्तर के व्यक्तियों के लिए समान्यतः ‘प्रिय’ शब्द व्यवहत होता है।

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इस प्रकार, पत्र में वक्तव्य के पूर्व

  • सम्बोधन,
  • अभिवादन और वक्तव्य के अन्त में
  • अभिवेदन का, सम्बन्ध के आधार अलग-अलग ढंग होता है।

इनके रूप इस प्रकार हैं सम्बन्ध-

यहाँ ध्यातव्य है कि जो सम्बन्ध स्पष्ट नहीं हैं, या जिन सम्बन्धों में आत्मीयता नहीं है, बल्कि मात्र व्यावहारिकता है, वहाँ ‘प्रमाण’ या ‘शुभाशीर्वादि’-जैसे किसी अभिवादन की आवश्यता नहीं है।

❖ कुछ उदाहरण

अभिभावक (मामा) के नाम पत्र

कनॉड पैलेस, नई दिल्ली
15.12.2011

पूज्य मामाजी,
सादर प्रणाम !

लगभग दो महीनों से आपका कोई समाचार नहीं मिला। इसलिए चिन्ता हो रही है ! आशा है, आप मुझे भूले नहीं हैं। आपके सिवा अब इस संसार में मेरा है कौन ? आपने जिस उद्देश्य से मुझे हजारों मील दूर यहाँ भेजा है, उसकी पूर्ति में मैं जी-तोड़ परिश्रम कर रहा हूँ। आपने चलते समय कहा था-‘उदय, तुमसे मैं अधिक आशा रखता हूँ।’ ये शब्द अभी तक कानों में गूंज रहे हैं। मेरा अध्ययन सुचारु रूप से चल रहा है।

यहाँ और काम ही क्या है ? इस शहर में आकर्षण की कमी नहीं है, मुझे अपनी धुन के सामने उसका कोई मूल्य नहीं दीखता। टेस्ट का परीक्षाफल कल ही सुनाया गया है। आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैंने इसमें सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया है। अब विश्वविद्यालय की परीक्षा के दो महीने रह गये हैं। लगभग पन्द्रह दिनों के बाद परीक्षा-शुल्क जमा करना होगा। इस समय कुछ काम की पुस्तकें खरीदना भी आवश्यक है ताकि अन्तिम परीक्षा में भी मैं अपना प्रशंसनीय स्थान बना सकूँ और आपकी आशा पूरी हो सके। इन सबमें लगभग डेढ़ सौ रुपये खर्च होंगे।

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अतः, लौटती डाक से कृप्या रुपये भेज देने की व्यवस्था करें। विशेष, कुशल है। आपका आशीर्वाद मेरा एकमात्र सम्बल है।

आपका स्नेहाकांक्षी,
धन्नजय कुमार

पानेवाले का नाम और पता

पिता के नाम पुत्र का पत्र

साइंस कॉलेज, पटना
05.12.2011

पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम !

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मैं यहाँ आनन्द से हूँ। मैं यहाँ कई अच्छे सहपाठियों को मित्र बना चुका हूँ, जो अच्छे स्वभाव के, परिश्रमी और अध्ययनशील है। मैं कॉलेज में अभी नया हूँ, फिर भी सबका स्नेह प्राप्त है। इस कॉलेज के प्राचार्य और प्राध्यापक सभी अच्छे हैं और हम पर पूरा ध्यान रखते हैं। हिन्दी परिषद् का सहायक मन्त्री बन गया हूँ। कॉलेज की अन्य परिषदों में भी काम करना चाहता हूँ, पर समय का इतना अभाव है कि कॉलेज-जीवन के सभी कार्यक्रमों में भाग लेना सम्भव नहीं है। पढ़ना अधिक है, पढ़ाई भी काफी हो चुकी है इसलिए मैं।

कहीं बाहर जा नहीं पाता। यहाँ का जीवन बड़ा व्यस्त है, हर मिनट कीमती मालूम होता है। फिर कॉलेज के छात्रों में अध्ययन की प्रतियोगिता भी रहती है। हर छात्र दूसरे से आगे बढ़ जाना चाहता है। ऐसी हालत में जी-तोड़ परिश्रम आवश्यक है। तभी मैं अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण हो सकता हूँ। आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वार्षिक परीक्षा में मेरा परीक्षाफल सन्तोषजनक रहेगा। शेष कुशल है। कृपया पत्रोत्तर देंगे। पूजनीया माताजी को मेरा सादर प्रणाम कहें।

आपका स्नेहाकांक्षी,
शशिकांत सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

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मित्र के नाम मित्र का पत्र

कॉलेज ऑफ कॉमर्स, पटना
12-11-1986

प्रिय मित्र,
मैंने अपने पिता को 4 नवम्बर तक अपना मासिक खर्च देने को लिखा है, किन्तु वह मुझे अभी नहीं मिला है। ऐसा लगता है कि मेरे पिताजी घर में नहीं हैं, अवश्य वह दौरे पर गये होंगे। सम्भवतः मेरे रुपये एक सप्ताह बाद आ सकेंगें।

अतः, मेरा अनुरोध है कम-से-कम दस रुपये, काम चलाने के लिए मुझे भेजकर तुम मेरी सहायता करो। मेरे रुपये ज्योंही आ जायेंगे, लौटा दूंगा। आशा है, इस मौके पर तुम मेरी अवश्य मदद करोगे। तुम्हारे पत्र की प्रतीक्षा में-

तुम्हारा,
प्रदीप कुमार सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

माता के नाम पुत्र का पत्र

छावनी, दानापुर कैन्ट

पूज्यनीया माताजी,
सादर प्रणाम !

आपका पत्र मिला। पढ़कर प्रसन्नता हुई। यह जानकर बड़ी खुशी हुई कि मीना की शादी तय हो गयी है और अगले साल मार्च में उसका विवाह होनेवाला है। आशा है, तब तक मेरी परीक्षा समाप्त हो जायेगी।।

इन दिनों मेरी स्कूली परीक्षा चल रही है। हर दिन परीक्षा की तैयारी कर परीक्षा में बैठता हूँ। ईश्वर की कृपा और आपलोगों के आशीर्वाद से सारे प्रश्नपत्र सन्तोषप्रद हैं। आशा करता हूँ कि शेष प्रश्नपत्र भी सन्तोषप्रद रहेंगे। आप चिन्ता न करें। मेरा स्वास्थ्य ठीक है।

पिताजी चण्डीगढ़ से कब लौटेंगे ? लौटने पर आप उन्हें मेरा प्रणाम कहें। शेष, कुशल है। अपना समाचार दें। मीना को मेरा आशीर्वाद।

Bihar Board Class 11th Hindi रचना पत्र लेखन

आपका स्नेहाकांक्षी,
शशांक सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

छोटे भाई के नाम बड़ी बहन का पत्र

प्रिय जितेन्द्र,

शुभाशीर्वाद !

बहुत दिनों से तम्हारा पत्र नहीं मिला। जी लगा है। आशा है, तुम मन लगाकर वार्षिक परीक्षा की तैयारी में लगे हो। शायद इसलिए तुमने पत्र नहीं लिखा। तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि पटना के कॉलेज में मेरी बहाली हो गयी है। मैं हिन्दी के प्राध्यापक-पद पर नियुक्त हुई हूँ। वेतन के रूप में 15325 रु. मिलेंगे। अब तुम्हें किसी तरह की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। पिताजी की आमदनी इतनी नहीं कि वे तुम्हारी पढाई के खर्च का पूरा भार अपने कन्धों पर उठा सकें। तुम तो जानते हो कि उन्होंने अपनी सारी रही-सही पूँजी हमारी पढ़ाई में लगा दी।

दो छोटे भाई और हैं। उन्हें भी शिक्षा देनी है। मैंने निश्चय किया है कि तुम्हारी पढ़ाई में होनेवाला सारा खर्च अब मैं तुम्हें भेजेंगी। अपने दो छोटे भाइयों को भी यहाँ बुला लूँगी ओर किसी स्कूल में नाम लिखा दूंगी। पिताजी का भार हलका करना हमलोगों का कर्तव्य है। भगवान् चाहेगा, तो हमारे कष्ट जल्द ही दूर हो जायेंगे। तुम खूब मन लगाकर पढ़ो, ताकि अगली परीक्षा में अपने वर्ग में सर्वप्रथम स्थान बना सको। तब मुझे बेहद खुशी होगी। पत्रोत्तर देना।

तुम्हारी शुभाकांक्षिणी,
सबिता सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

पिता के पास स्कूल के साथियों के साथ बिहार एवं झारखण्ड की यात्रा की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए।

हनुमान नगर, पटना-4
12.08.2013

पूज्य पिताजी
सादर प्रणाम

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कल मेरी परीक्षा समाप्त हो गयी। आशा है, सभी पत्रों में अच्छे अंक आयेंगे। मेरे विद्यालय से छात्रों का एक दल बिहार के कुछ चुने हुए स्थानों का भ्रमण करने के लिए जानेवाला है। मैं भी इस दल के साथ रहना चाहता हूँ।

हमलोग पटना से रवाना होकर पहले गया जायेंगे। वहाँ हमलोग बोधगया और विष्णुपद के मन्दिर देखेंगे। गया से हमलोग राजगीर जायेंगे। राजगीर के गर्म कुण्ड में स्नान कर हम नालन्दा के खण्डहरों के दर्शन करेंगे। वहाँ से हम सिन्दरी जायेंगे। सिन्दरी में एशिया का सबसे बड़ा खुद का कारखाना है। वहाँ से हमारा विचार जमशेदपुर जाने का है। जमशेदपुर के इस्पात के कारखाने को देखकर हम राँची लौटेंगे। वहाँ हम हटिया का कारखाना देखेंगे।

राँची के बाद हमारी छोटानागपुर की यात्रा समाप्त हो जायेगी। वहाँ से हम बस द्वारा बख्तियारपुर पहुंचेंगे। फिर, रेलगाड़ी से बरौनी के लिए प्रस्थान करेंगे। उत्तर बिहार में हम दो ही स्थान. देखेंगे-कोशी का बाँध और वैशाली। कोशी का बाँध आधुनिक भारत का तीर्थस्थान है, वैशाली प्राचीन भारत का। वैशाली से हाजीपुर होते हुए हम पटना लौट आयेंगे।

हमारी यह यात्रा लगभग तीन सप्ताह की होगी। आपसे अनुरोध है कि मुझे इसमें शामिल होने की अनुमति दें। और, साथ ही दो सौ रुपये भी भेजने की कृपा करें।

माँ को प्रणाम। अराध्या और प्रेरणा को प्यार।

आपका आज्ञाकारी पुत्र,
जितेन्द्र कुमार

पानेवाले का नाम और पता

Bihar Board Class 11th Hindi रचना पत्र लेखन

अपने मित्र को एक पत्र लिखें, जिसमें यह बताएं कि आपने पिछली गर्मी की छुट्टी कैसे बितायी।

कचहरी रोड, बिहार शरीफ
30.11.13

प्रिय नरेश,
सप्रेम नमस्ते।

तुम्हारा पत्र मिला। यह जानकर खुशी हुई कि तुम पिछली गर्मी की छुट्टी में अपने चाचा के यहाँ भागलपुर गए थे। मैं भी गर्मी की छुट्टी में घर में नहीं था। मैं तुम्हें इस पत्र में यह बता रहा हूँ कि मैंने गर्मी की छुट्टी कैसे बितायो।

ज्योंही मेरा स्कूल बन्द हुआ, मैं घर चला गया। मेरी माँ मुझे देखकर बहुत ही प्रसन्न हुई। लगभग एक सप्ताह तक मैं घर रहा। मैंने यह समय अपने मित्रों से मिलने एवं उनके साथ घूमने में बिताया। उसके बाद मैं राँची चला गया। वहाँ मेरे चाचा रहते हैं। शेष छुट्टी मैंने राँची में ही बितायी। राँची बड़ा ही सुन्दर जगह है। वहाँ बहुत-सी चीजें देखने के लायक हैं। मैंने सभी प्रमुख चीजों को देखा। वहाँ की जलवायु भी अच्छी है। मैं रोज सुबह एक घण्टा अपने चाचाजी के साथ टहलता था। रास्ते में वे मुझे नई-नई बातें बताते थे। वहाँ की जलवायु से मेरे स्वास्थ्य में भी बहुत सुधार हुआ। शाम को लगभग दो घण्टे तक मेरे चासनी मुझे पढ़ाते थे। इस तरह, मैंने छुट्टी का हर तरह से सदुपयोग किया। छुट्टी समाप्त होने पर मैं राँची से सीधे स्कूल ही आ गया।

तुम्हारा अभिन्न,
राकेश कुमार

पानेवाले का नाम और पता

अपने पिता को एक पत्र लिखें, जिसमें अपने विद्यालय के वार्षिक पुरस्कार-वितरण का वर्णन करें।

ईसलामपुर हैदरचक (नालंदा)
11.11.13

पूज्य पिताजी,
सादर प्रणाम।

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि हमारे स्कूल का वार्षिक पुरस्कार-वितरण-समारोह कल सम्पन्न हुआ और उसमें मुझे दो पुरस्कार मिले। एक सप्ताह पूर्व से ही इस समारोह की तैयारी हो रही थी। स्कूल का हॉल अच्छी तरह सजाया गया था। बिहार के राज्यपाल इस समारोह के सभापति थे।

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निश्चित समय पर राज्यपाल स्कूल में पधारे। द्वार पर प्रधानाध्यापक एवं शिक्षकों ने उनका स्वागत किया। कार्यवाही प्रारम्भ दो छात्रों द्वारा स्वागतगान से हुआ। उन्होंने राज्यपाल को माला पहनायी। उसके बाद प्रधानाध्यापक ने एक रिपोर्ट पढ़ी, जिसमें स्कूल के इतिहास एवं इसकी प्रगति की चर्चा की गयी। इसके उपरान्त संगीत, नृत्य एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गये। इसके बाद पुरस्कार-वितरण आरम्भ हुआ।

राज्यपाल पुरस्कार पानेवाले छात्रों से हाथ मिलाते जाते थे। पुरस्कार पानेवाला विद्यार्थी पुरस्कार ग्रहण कर गद्गद हृदय से अध्यक्ष से हाथ मिलाता तथा उनके आगे सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम करता था। मुझे भी दो पुरस्कार मिले। अन्त में अध्यक्ष ने एक छोटा, पर शिक्षाप्रद भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में हमें अनुशासनप्रिय होने की नेक सलाह दी। इसके बाद प्रधानाध्यापक ने राज्यपाल एवं आगन्तुक सज्जनों का धन्यवाद किया और ‘जन-गण-मन’ के सामूहिक गान के बाद सभा की कार्यवाही समाप्त हुई।

माँ को मेरा प्रणाम कहेंगे और पप्पू को प्यार।

आपका प्रिय पुत्र,
रिषिकेश

पानेवाले का नाम और पता

अपने विद्यालय की किसी विशेष घटना (मनोरंजक घटना) का वर्णन करते हुए अपने मित्र को पत्र लिखें

एस. एस. एकैडमी
एकंगरसराय
18.12.13

प्रिय मित्र,
सस्नेह नमस्कार।

इधर बहुत दिनों से तुम्हारा पत्र नहीं मिला है। क्यों ? अच्छे तो हो न ?

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कल मेरे स्कूल का वार्षिकोत्सव था। एक सप्ताह पहले से ही इसकी तैयारी हो रही थी। सामूहिक गान के लिए कुछ लड़कों को तैयार किया गया था। वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिए भी कुछ लड़के तैयार किये गये थे। वाद-विवाद का विषय था ‘आज की परीक्षा-पद्धति’। इस अवसर पर एक नाटक (प्रहसन) भी खेला गया।

सुबह से ही स्कूल को सजाया गया। इस अवसर पर विशेष अतिथि थे श्री जयप्रकाश नारायण। उन्होंने अपने छोटे, पर सारगर्भ भाषण में विद्यार्थियों की समस्याओं पर प्रकाश डाला और उन्हें अनुशासित रहने की सलाह दी। इस अवसर पर विद्यालय का पारितोषिक-वितरण-समारोह भी सम्पन्न हुआ। प्रहसन (नाटक) के प्रदर्शन से तो सभी आगन्तुक हँसते-हँसते लोट-पोट हो गये ओर सबने यह स्वीकार किया कि यह एक विशेष मनोरंजक दृश्य ही था। अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम से भी लोगों का मनोरंजन हुआ। इस तरह कल का दिन स्कूल के लिए महत्त्वपूर्ण रहा।

माँ को प्रणाम।

तुम्हारा,
पानेवाले का नाम और पता

बधाई पत्र

हिलसा, नालन्दा
05.01.2014

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प्रिय रेणु,

यह जानकर प्रसन्नता हुई कि तुम बी. ए. परीक्षा अच्छे अंकों से पास कर गयी हो। तुम्हारी इस शानदार सफलता पर मैं तुम्हें बधाई देती हूँ और आशा करती हूँ कि अगली परीक्षाओं में भी तुम्हें इसी प्रकार सफलता मिलती रहेगी। चूँकि तुम परीक्षा में प्रथम आयी हो, इसलिए विश्वविद्यालय की ओर से छात्रवृत्ति और स्वर्णपदक दोनों तुम्हें मिलेंगे। मेरा पूर्ण विश्वास है कि तुम अपनी पढ़ाई जारी रखोगी और एम. ए. में नाम लिखाने का प्रबन्ध करोगी। मेरा तो विचार है कि तुम्हें आइ. ए. एस. की प्रतियोगिता परीक्षा में भी सम्मिलित होना चाहिए। भगवान् तुम्हारा पथ प्रशस्त करें !

मैं कुशल से हूँ, तुम्हारा कुशल चाहती हूँ।

तुम्हारी,
रीभा सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

परिचयात्मक पत्र

अगमकुआँ, पटना
22.12.2013

प्रिय भाई,

पत्रवाहक रामलाल मेरे अत्यन्त प्रिय मित्र हैं। इसी वर्ष पटना विश्वसिद्यालय से इन्होंने एम. ए. परीक्षा पास की है। इन दिनों ये अनुसन्धानकार्य कर रहे हैं। नई दिल्ली में एक सप्ताह रहकर ये कुछ आवश्यक शोधकार्य करना चाहते हैं। ये प्रगतिशील, प्रतिभाशाली और सुयोग्य युवक हैं। आपको इनसे मिलकर खुशी होगी। ये आपके साथ एक सप्ताह ठहरेंगे। यदि आप इनके रहने और खाने-पीने का समुचित प्रबन्ध कर दें और यथासम्भव आवश्क सुविधाएँ दें तो मैं अत्यन्त आभारी होऊँगा। पत्रोत्तर देंगे।

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आपका,
विष्णुदेव प्रसाद

पानेवाले का नाम और पता

निमंत्रण पत्र

विष्णुदेव भवन
हनुमान नगर पटना
20.01.2014

प्रिय भाई पंकज जी,

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि अगले 27 नवम्बर को मेरे नये मकान का विधिवत् उद्घाटन होने जा रहा है और उसी दिन हमलोग गृहप्रवेश करेंगे। इस शुभावसर पर आपकी और आपकी धर्मपत्नी को हमलोग आमंत्रित करते हैं। आशा है, इस आयोजन में सम्मिलित होकर हमें कृतार्थ करेंगे। हम आपकी प्रतीक्षा में रहेंगे।

भवदीप,
शशिभूषण

पानेवाले का नाम और पता

शोक पत्र

रामनगर,
वाराणसी
05:10.2013

प्रिय श्रीमती स्नेहलताजी,

Bihar Board Class 11th Hindi रचना पत्र लेखन

आपके आदरणीय पति की असाययिक मृत्यु का समाचार सुनकर इतना दुःख हुआ कि उसे शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकती। आप पर तो मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा है। किन्तु क्या किया जाय, मृत्यु पर हमारा वश भी तो नहीं ! इस दुःखद घड़ी में मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति दे और आपको इतना साहस और शक्ति दे कि आप इस वियोग को सहन कर सकें। आप और आपके बच्चों के प्रति हार्दिक सहानुभूति है। यदि मैं ऐसे अवसर पर आपकी सेवा कर सकूँ, तो मुझे खुशी होगी। आदेश दें।

भवदीया,
उषाकिरण सिन्हा

पानेवाले का नाम और पता

आवेदन पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाध्यापाक,
लोयला हाई स्कूल, पटना

मान्य महोदय,
सविनय निवेदन है कि मेरे घर में 27 नवम्बर, 2013 ई. को गृहप्रवेश का आयोजन किया गया था। अतः, उक्त तिथि को मैं अपने वर्ग में उपस्थित न हो सका।

सादर प्रार्थना है कि आप उस दिन का अनुपस्थिति-दण्ड माफ कर देने की कृपा करें। इसके इसके लिए मैं कृतज्ञ होऊँगा।

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आपका आज्ञाकारी छात्र
अनमोल
पंचम वर्ग

अम्बाला,
10.01.2014

सम्पादक के नाम पत्र

सेवा में,
श्री सम्पादक,
दैनिक नवभारत,
दिल्ली

प्रिय महोदय,

आपके लोकप्रिय दैनिक द्वारा मैं अधिकारियों का ध्यान दूकान-कर्मचारियों की दुर्दशा की ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ।

यद्यपि दूकान-कर्मचारियों के काम के घण्टों को सीमित करने के लिए तथा उन्हें अन्य सुविधाएँ देने के लिए कानून बना दिया गया है, पर कोई भी दूकान-मालिक इस कानून का यथोचित पालन नहीं कर रहा है। फलतः, कर्मचारियों को काफी कष्ट उठाना पड़ रहा है। सरकार से अनुरोध है कि कानून का उल्लंघन करनेवालों के विरुद्ध कड़ी कारवाई की जाय।

कृपया इस पत्र को अपने पत्र में प्रकाशित कर कृतार्थ करें।

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आपका सद्भावी
ममता सिन्हा
सचिव, दूकान कर्मचारी संघ

9-8-1986

सूचीपत्र मांगने के लिए पुस्तक-विक्रेता को पत्र

नेहरूनगर
आरा, शाहाबाद
12.10.13

सेवा में,
श्री मैनेजर, भारती भवन,
पटना-4

महोदय,
हमें अपने पुस्तकालय के लिए लगभग पाँच हजार रुपए की पुस्तकें खरीदनी हैं। आप कृपया अपना सूचीपत्र अविलम्ब भेज दें। और, यह भी लिखें कि पुस्तकालय के लिए खरीदी जानेवाली पुस्तकों पर आप कितना कमीशन देंगे।

आपका सद्भावी,
निशु सिन्हा

फीस माफ करने के लिए

सेवा में,
श्रीयुत् प्रधानाध्यापक,
मारवाड़ी पाठशाला, पटना सिटी।

महोदय,
सविनिय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय में कक्षा दशम (क) का एक गरीब विद्यार्थी हूँ। मेरे पिता की आय बहुत कम है। वे एक प्राथमिक विद्यालय में अध्यापक हैं। मेरे अतिरिक्त, मेरे चार भाई-बहनों की पढ़ाई का बोझ भी मेरे पिताजी पर है। ऐसी दशा में मेरी पढ़ाई का बोझ सँभाल पाना उनके लिए सम्भव नहीं।

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अतएव, ऐसी परिस्थिति में यदि आप कृपा कर मेरी फीस माफ कर दें, तो मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी छात्र,
अंशु कुमार
कक्षा दशम (क) क्रमांक 10

18-01-14

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Bihar Board 12th History Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 1.
किस भारतीय शासक को नेपोलियन की संज्ञा दी गई है ?
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) कनिष्क
(c) समुद्रगुप्त
(d) हर्षवर्द्धन
उत्तर-
(c) समुद्रगुप्त

प्रश्न 2.
सोलह महाजनपदों में सबसे शक्तिशा महाजनपद क्रौन था ? .
(a) मगध
(b) अवन्ती
(c) कोशल
(d) गांधार
उत्तर-
(a) मगध

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 3.
किस शिलालेख में अशोक के कलिंग विजय का उल्लेख है ?
(a) प्रथम
(b) सप्तम
(c) दशम
(d) तेरहवाँ
उत्तर-
(d) तेरहवाँ

प्रश्न 4.
कनिष्क की राज्यारोहण-तिथि है
(a) 48 ई.
(b) 78 ई.
(c) 88 ई.
(d) 98 ई.
उत्तर-
(b) 78 ई.

प्रश्न 5.
धम्म महामात्रों को किसने नियुक्त किया?
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) बिंदुसार
(c) अशोक
(d) कनिष्क
उत्तर-
(c) अशोक

प्रश्न 6.
अशोक किस वंश का शासक था ?
(a) नन्द वंश
(b) मौर्य वंश
(c) गुप्त वंश
(d) चोल वंश
उत्तर-
(b) मौर्य वंश

प्रश्न 7.
भारतीय इतिहास का कौन-सा काल स्वर्ण-काल के नाम से जाना जाता है ?
(a) मौर्य काल
(b) गुप्त काल
(c) मुगल काल
(d) अंग्रेजों का काल
उत्तर-
(b) गुप्त काल

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 8.
प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की थी?
(a) कालिदास
(b) बाणभट्ट
(c) हरिसेन
(d) पतंजलि
उत्तर-
(c) हरिसेन

प्रश्न 9.
मौर्यकालीन ‘टकसाल’ का प्रधान कौन था ?
(a) कोषाध्यक्ष
(b) मुद्राध्यक्ष
(c) पण्याध्यक्ष
(d) लक्षणाध्यक्ष
उत्तर-
(d) लक्षणाध्यक्ष

प्रश्न 10.
‘राजतरंगिणी’ के लेखक कौन थे?
(a) पंतजलि
(b) बाणभट्ट
(c) विशाखदत्त
(d) कल्हण
उत्तर-
(d) कल्हण

प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र और इंडिका से किस राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है?
(a) मौर्य वंश
(b) कुषाण वंश
(c) सातवाहन वंश
(d) गुप्त वंश
उत्तर-
(a) मौर्य वंश

प्रश्न 12.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब हुई थी?
(a) छठी शताब्दी ईसा पूर्व में
(b) पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में
(c) चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में
(d) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में
उत्तर-
(c) चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में

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प्रश्न 13.
पतंजलि के महाभाष्य से हमें जानकारी मिलती है
(a) गुप्त काल की
(b) मौर्य काल की
(c) प्राक् मौर्य काल की
(d) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में|
उत्तर-
(a) गुप्त काल की

प्रश्न 14.
अर्थशास्त्र के लेखक कौन थे?
(a) बाल्मीकि
(b) मनु
(c) कौटिल्य
(d) वेदव्यास
उत्तर-
(c) कौटिल्य

प्रश्न 15.
चौथी बौद्ध संगीति किस शासक के काल में हुई थी?
(a) अशोक
(b) अजातशत्रु
(c) कालाशोक
(d) कनिष्क
उत्तर-
(d) कनिष्क

प्रश्न 16.
वज्जि को सामाजिक ग्रन्थों में कहा गया है-
(a) गणसंघ
(b) गणतंत्र
(c) राजतंत्र
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(a) गणसंघ

प्रश्न 17.
‘जनपद’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है
(a) जहाँ लोग मवेशी रखते हैं
(b) जहाँ लोग अपना घर बनाते हैं
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) (a) और (b) दोनों

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प्रश्न 18.
पंच चिह्न वाले सिक्के बने होते थे
(a) सोने के
(b) चाँदी के
(c) ताँबे के
(d) (b) एवं (c) दोनों के
उत्तर-
(d) (b) एवं (c) दोनों के

प्रश्न 19.
अशोक द्वारा प्रघारित बौद्ध धर्म कहाँ प्रचलित नहीं हुआ ?
(a) सोरिया
(b) ब्रिटेन
(c) श्रीलंका
(d) जापान
उत्तर-
(b) ब्रिटेन

प्रश्न 20.
पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की गई थी
(a) मुंडकं द्वारा
(b) बिंबिसार द्वारा
(c) उदयभद्र द्वारा
(d) अजातशत्रु द्वारा
उत्तर-
(c) उदयभद्र द्वारा

प्रश्न 21.
प्रसिद्ध ग्रंथ ‘इंडिका’ रचना किसने की थी?
(a) कौटिल्य
(b) मेगास्थनीज
(c) अलबेरूनी
(d) इत्सिंग
उत्तर-
(b) मेगास्थनीज

प्रश्न 22.
प्राचीन भारत में ‘धम्म’ की शुरूआत किस शासक ने की थी?
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) चन्द्रगुप्त-II
(c) अशोक
(d) कनिष्क
उत्तर-
(c) अशोक

प्रश्न 23.
‘भारत का नेपोलियन’ किस शासक को कहा जाता है
(a) अशोक को
(b) समुद्रगुप्त को
(c) अकबर को
(d) चन्द्रगुप्त मौर्य को
उत्तर-
(b) समुद्रगुप्त को

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प्रश्न 24.
महावीर ने पार्श्वनाथ के सिद्धांतों में नया सिद्धांत क्या जोड़ा?
(a) अहिंसा
(b) ब्रह्मचर्य
(c) सत्य
(d) अपरिग्रह
उत्तर-
(b) ब्रह्मचर्य

प्रश्न 25.
किस भारतीय शासक को नेपोलियन की संज्ञा दी गई है? (2009A, 2013A)
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) कनिष्क
(c) समुद्रगुप्त
(d) हर्षवर्द्धन
उत्तर-
(c) समुद्रगुप्त

प्रश्न 26.
सोलह महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद कौन था? (2009A, 2013A)
(a) मगध
(b) अवन्ती
(c) कौशल
(d) गांधार
उत्तर-
(a) मगध

प्रश्न 27.
किस शिलालेख में अशोक के कलिंग विजय का उल्लेख है? (2009A,2011A)
(a) प्रथम
(b) सप्तम
(c) दशम
(d) तेहरवा
उत्तर-
(d) तेहरवा

प्रश्न 28.
कनिष्क की राज्यारोहण तिथि है? [2009A. 2011A
(a) 48 ई.
(b) 78 ई.
(c) 88 ई.
(d) 98 ई.
उत्तर-
(b) 78 ई.

प्रश्न 29.
धम्म महामात्रों को किसने नियुक्त किया? (2009A,2012A,2019A)
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) बिंदुसार
(c) अशोक
(d) कनिष्क
उत्तर-
(c) अशोक

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 30.
अशोक किस वंश का शासक था? (2010A,2014 )
(a) नन्द वंश
(b) मौर्य वंश
(c) गुप्त वंश
(d) चोल वंश
उत्तर-
(b) मौर्य वंश

प्रश्न 31.
भारतीय इतिहास का कौन-सा काल स्वर्ण काल के नाम से जाना जाता है?
(a) मौर्य काल
(b) गुप्त काल
(c) मुगल काल
(d) अंग्रेजों का काल
उत्तर-
(b) गुप्त काल

प्रश्न 32.
प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की थी? (2010A, 2013A, 2015A,2016A]
(a) कालिदास
(b) वाणभट्ट
(c) हरिषेण
(d) पतंजलि
उत्तर-
(a) कालिदास

प्रश्न 33.
मौर्यकालीन ‘टकसाल’ का प्रधान कोन था? (2011A)
(a) कोषाध्यक्ष
(b) मुद्राध्यक्ष
(c) पण्याध्यक्ष
(d) लक्षणाध्यक्ष
उत्तर-
(d) लक्षणाध्यक्ष

प्रश्न 34.
‘राजतरंगिणी’ के लेखक कौन थे? (2011A)
(a) पतंजलि
(b) वाणभट्ट
(c) विशाखादत्त
(d) कल्हण
उत्तर-
(d) कल्हण

प्रश्न 35.
अर्थशास्त्र और इंडिका से किस राजवंश के विषय में जानकारी मिलती है? (2009A, 2012A)
(a) मौर्य वंश
(b) कुषाण वंश
(c) सातवाहन वंश
(d) गुप्त वंश
उत्तर-
(a) मौर्य वंश

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 36.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब हुई थी? (2011A)
(a) छठी शताब्दी ईसा पूर्व में
(b) पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में
(c) चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में
(d) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व
उत्तर-
(c) चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में

प्रश्न 37.
पतंजलि के महाभाष्य से हमें जानकारी मिलती है- (2011A)
(a) गुप्त काल की
(b) मौर्य काल की
(c) प्राक् मौर्य काल की
(d) तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में
उत्तर-
(c) प्राक् मौर्य काल की

प्रश्न 38.
अर्थशास्त्र के लेखक कौन थे? (2015A, 2010)
(a) बाल्मीकि
(b) मनु
(c) कौटिल्य
(d) वेदव्यास
उत्तर-
(c) कौटिल्य

प्रश्न 39.
बिम्बिसार का संबंध किस वंश से है?
(a) हर्यक से
(b) गुप्त से
(c) मौर्य से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(a) हर्यक से

प्रश्न 40.
वज्जि को सामाजिक ग्रन्थों में कहा गया है (2015A)
(a) गणसंघ
(b) गणतंत्र
(c) राजतंत्र
(d) इनमें से सभी
उत्तर-
(a) गणसंघ

प्रश्न 41.
‘जनपद’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है– (2015A)
(a) जहाँ लोग मवेशी रखते हैं
(b) जहाँ लोग अपना घर बनाते हैं
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 42.
पंच चिह्न वाले सिक्के बने होते थे (2015A)
(a) सोने के
(b) चाँदी के
(c) ताँबे के
(d) (b) एवं (c) दोनों के
उत्तर-
(d) (b) एवं (c) दोनों के

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 43.
अशोक द्वारा प्रचारित बौद्ध धर्म कहाँ प्रचलित नहीं हुआ? (2015A)
(a) सोरिया
(b) ब्रिटेन
(c) श्रीलंका
(d) जापान
उत्तर-
(b) ब्रिटेन

प्रश्न 44.
पाटलिपुत्र नगर की स्थापना की गई थी (2015A)
(a) मुंडक द्वारा
(b) बिंबिसार द्वारा
(c) उदयिन द्वारा
(d) अजातशत्रु द्वारा
उत्तर-
(c) उदयिन द्वारा

प्रश्न 45.
प्रसिद्ध ग्रंथ ‘इंडिका’ की रचना किसने की थी? (2010, 2014,2019A)
(a) कौटिल्य
(b) मेगास्थनीज
(c) अलबेरूनी
(d) इत्सिंग
उत्तर-
(b) मेगास्थनीज

प्रश्न 46.
प्राचीन भारत में ‘धम्म’ की शुरूआत किस शासक ने की था? (2016A)
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(c) अशोक
(d) कनिष्क
उत्तर-
(c) अशोक

प्रश्न 47.
महावीर ने पाश्वनाथ के सिद्धान्तों में नया सिद्धान्त क्या जोड़ा? (2015A,2016)
(a) अहिंसा
(b) ब्रह्मचर्य
(c) सत्य
(d) अपरिग्रह
उत्तर-
(b) ब्रह्मचर्य

प्रश्न 48.
कलिंग युद्ध कब हुआ था?
(a) 261 ई० पू०
(b)251 ई० पू०
(c) 263 ई० पू०.
(d) 253 ई० पू०
उत्तर-
(a) 261 ई० पू०

Bihar Board 12th History Objective Answers Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

प्रश्न 49.
फूट डालकर विजय प्राप्त करने का कार्य सर्वप्रथम किस राजा ने किया?
(a) अजातशत्रु
(b) पुष्यमित्र शुंग
(c) अशोक
(d) समुद्रगुप्त
उत्तर-
(a) अजातशत्रु

प्रश्न 50.
जीवक वैद्य किस वंश के काल में था?
(a) मौर्य
(b) गुप्त
(c) हर्यक
(d) कुषाण
उत्तर-
(c) हर्यक

प्रश्न 51.
अपने स्वयं के खर्चे से सुदर्शन झील की मरम्मत किसने कराई?
(a) अशोक
(b) कनिष्क
(c) रुद्रदमन
(d) स्कन्दगुप्त
उत्तर-
(c) रुद्रदमन

प्रश्न 52.
पाटलिपुत्र नगर की स्थापना उदयन ने किस नदी के संगम पर की?
(a) गंगा
(b) सोन
(c) पुनपुन
(d) इन सभी के संगम पर
उत्तर-
(d) इन सभी के संगम पर

प्रश्न 53.
समस्त भारत ही नहीं एशिया एवं यूरोप में सर्वप्रथम हूणों को परास्त करने का श्रेय किस शासक को जाता है?
(a) अशोक
(b) स्कन्दगुप्त
(c) समुद्रगुप्त
(d) नेपोलियन
उत्तर-
(b) स्कन्दगुप्त

प्रश्न 54.
यूरोप का समुद्रगप्त कौन था?
(a) हिटलर
(b) नेपालियन
(c) बिस्मार्क
(d) मुसोलिनी
उत्तर-
(b) नेपालियन

प्रश्न 55.
किसके अभिलेख में भूमिदान का उल्लेख मिलता है?
(a) अशोक
(b) समुद्रगुप्त
(c) प्रभावती गुप्त
(d) इन सभी के
उत्तर-
(c) प्रभावती गुप्त

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प्रश्न 56.
भूमि अनुदान से सम्बन्धित प्रथम अभिलेखीय प्रमाण किसका है?
(a) मौर्यकाल
(b) सातवाहनकाल
(c) शुंगकाल
(d) गुप्तकाल
उत्तर-
(b) सातवाहनकाल

प्रश्न 57.
510 ई. में सती प्रथा के साक्ष्य वाला प्रथम अभिलेख कहाँ मिला
(a) एरण (सागर)
(b) गुर्जरा (दतिया)
(c) मस्की
(d) जूनागढ़
उत्तर-
(a) एरण (सागर)

प्रश्न 58.
अशोक ने महेन्द्र और संघ मित्रों को बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कहाँ भेजे थे?
(a) श्रीलंका
(b) ब्रिटेन
(c) बांग्लादेश
(d) पाकिस्तान
उत्तर-
(a) श्रीलंका

प्रश्न 59.
किस विद्वान ने मात्र अभिलेखों के आधार पर अशोक का इतिहास लिखने का श्लाध्य प्रयास किया है?
(a) विसेण्ट स्मिथ
(b) जेम्स प्रिंसेज
(c) काशी प्रसाद जायसवाल
(d) देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर
उत्तर-
(d) देवदत्त रामकृष्ण भण्डारकर

प्रश्न 60.
मौर्य कला का निम्न में से कौन सर्वाधिक महत्वपूर्ण नमूना है?
(a) चैत्य
(b) स्तूप
(c) गुहावास्तुकला
(d) स्तम्भ
उत्तर-
(d) स्तम्भ

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प्रश्न 61.
गुप्तों के काल में कौन चीनी यात्री भारत आया? (2014)
(a) ह्वेनसांग
(b) फाह्यान
(c) इत्सिंग
(d) वांगहृनत्से
उत्तर-
(b) फाह्यान

प्रश्न 62.
मेगास्थनीज भारत में किसके दरबार में आया?
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) बिन्दुसार
(c) अशोक
(d) पुष्यमित्र शुंग
उत्तर-
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य

प्रश्न 63.
समुद्र गुप्त की जानकारी होती है
(a) मथुरा अभिलेख से
(b) प्रयाग प्रशस्ति से
(c) बसंखेरा अभिलेख से
(d) एहौल अभिलेख से
उत्तर-
(b) प्रयाग प्रशस्ति से

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प्रश्न 64.
नवरत्न किस शासक के दरबार में रहते थे?
(a) अशोक
(b) कनिष्क
(c) समुद्रगुप्त
(d) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
उत्तर-
(d) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य

प्रश्न 65.
अभिज्ञान शाकुन्तलम् के रचनाकार हैं
(a) कालिदास
(b) वाणभट्ट
(c) अश्वघोष
(d) कौटिल्य
उत्तर-
(a) कालिदास

प्रश्न 66.
प्राचीन भारत में अभिलेख की शुरूआत किस शासक ने की?
(a) चन्द्रगुप्त मौर्य
(b) अशोक
(c) चन्द्रगुप्त
(d) समुद्रगुप्त
उत्तर-
(b) अशोक

प्रश्न 67.
किस शासक को प्रियदर्शी कहा गया है?
(a) अशोक
(b) समुद्रगुप्त
(c) चन्द्रगुप्त
(d) बिन्दुसार
उत्तर-
(a) अशोक

प्रश्न 68.
मेगास्थनीज ने अपने यात्रा वृतांत में भारत के समाजों को कितने वर्गों में विभाजित किया है?
(a) छः
(b) सात
(c) आठ
(d) पाँच
उत्तर-
(b) सात

प्रश्न 69.
एलौरा में कैलाश मन्दिर किस राजवंश ने निर्मित कराया? (2009,12)
(a) चोल
(b) पल्लव
(c) चालुक्य
(d) राष्ट्रकूट
उत्तर-
(d) राष्ट्रकूट

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प्रश्न 70.
पुराणों की संख्या कितनी है? (2015, 2016,2019A)
(a) 16
(b) 18
(c) 20
(d) 19
उत्तर-
(b) 18

प्रश्न 71.
तक्षशिला विश्वविद्यालय कहाँ स्थित था?
(a) पाकिस्तान
(b) बांग्लादेश
(c) भारत
(d) वर्मा
उत्तर-
(a) पाकिस्तान

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 3 सफेद कबूतर

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 3 सफेद कबूतर (न्गुयेन क्वांग थान)

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 3 सफेद कबूतर (न्गुयेन क्वांग थान)

सफेद कबूतर पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सफेद कबूतर कहानी के आधार पर कहानी के नायक सिपाही की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख करें। .
अथवा,
‘सफेद कबूतर’ शीर्षक कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
‘सफेद कबूतर’ कहानी का नायक कर्मठ, कर्तव्यपरायण और देशभक्त सिपाही है। 36 वर्षों से वियतनाम और अमेरिका का युद्ध चल रहा था। इसी युद्ध के दौरान वह देश के स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सेना में भर्ती होता है। यद्यपि कुछ ही समय पहले उसकी शादी हुई है। अपनी नव-विवाहिता पत्नी का मोह छोड़कर वह देश की रक्षा के लिए सेना में भर्ती हो जाता है।

आने वाले सिपाही जीवन की सारी जरूरतों को फौजी की ओर से मिलने वाले झोले में भर चुकने के बाद वह अपने अफसर से कुछ देर की छुट्टी लेकर अपनी पत्नी से मिलने जाता है। घर पर पत्नी के साथ खाना खाया और उसके कुछ ही देर बाद वह जिला हेडक्वार्ट्स की ओर लौट जाता है, जहाँ लाम की ओर जाने वाली बस उसी की प्रतीक्षा में रूकी हुई है।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 3 सफेद कबूतर (न्गुयेन क्वांग थान)

सिपाही को अपने देश के प्रति अटूट आस्था है। वह जिस तरह चोरी छिपे सैगोन शहर में घुसता है और कष्ट झेलता है, उसकी देशभक्ति का परिचायक है। सैगोन में कई महीने तक उसने छिप-छिपकर गुजारे, कभी सड़क पर फेरी लगाते हुए तो कभी रिक्शा चालक या गोदी मजदूर की पोशाक पहनकर। महीनों उसे फुटपाथ पर या पुलों के नीचे या होटलों में सोना पड़ता है। लेकिन कष्टों के लिए उसके चेहरा जरा-सा कभी शिकन तक नहीं होता। वह खुशी-खुशी अपनी कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता जाता है।

इस तरह आठ वर्षों तक लम्बी अवधि व्यतीत कर युद्ध समाप्त होने पर वह अपने घर के लिए प्रस्थान करता है। अपनी पत्नी को इस आठ वर्षों के बीच उसने कभी कोई समाचार तक नहीं भेजा था। रास्ते पर अपनी आँखों में पत्नी का चित्र संजोए हुए घर जाता है। उस समय उसकी पत्नी घर पर नहीं थी। तभी उसकी नजर एक पायजामा पर पड़ती है। वह बेहाल हो जाता है और पत्नी से मिलने के लिए बैचैन हो उठता है। तभी एक आठ साल का लड़का आता है और उसे अजनबी समझकर माँ को इस बात की सूचना देने के लिए भागता है।

सिपाही भी उसके पीछे आता है। उसकी पत्नी अन्य औरतों के साथ खुदाई के काम में लगी हुई है। वह उस टोली की अगुआ थी और खुदाई का काम उसी की देखरेख में चल रहा था। जब सिपाही पत्नी के पास हुंचता है तो वह खुदाई के स्थान पर बम होने की बात कहती है। बम शक्तिशाली है, जिसे निष्क्रिय करना जरूरी है। एक कर्तव्यनिष्ठ सिपाही होने के नाते वह तुरंत अपना झोला खोलता है और स्पैनर निकाल कर डिटोनेटर का पेंच घुमाने लगता है।

इस तरह हम देखते हैं कि सिपाही का चरित्र एक सच्चे देशभक्त और कर्तव्यनिष्ठ सिपाही के गुणों से मंडित है। लेखिका के द्वारा रचित सफेद कबूतर नामक पाठ के माध्यम से यह बात कट होनी है कि कबूतर विश्व शान्ति का प्रतीक है। वस्तुतः सफेद कबूतर नामक पाठ में सिपाही के चरित्र के माध्यम से लेखिका ने वियतनाम की युद्ध के विध्वंसक पक्ष को उजागर किया है और यह बतलाया है कि संसार में युद्ध के स्थान पर शान्ति का वातावरण स्थापित करना चाहिए।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 3 सफेद कबूतर (न्गुयेन क्वांग थान)

सफेद कबूतर पाठ का सारांश – गूयेन क्वांग थान

प्रश्न-
गूयेन क्वांग थान द्वारा लिखित ‘सफेद कबूतर’ नामक पाठक का सारांश लिखें।
उत्तर-
न्यूयेन क्वांग थान वियतनाम के कहानीकारों में सर्वाधिक ख्यात हैं। उनकी कहानियाँ में स्वस्थ जीवन-मूल्यों का सफलतापूर्वक प्रकाशन हुआ है। उनकी कहानियाँ कहानी-कला की कसौटी पर खरी उतरती दृष्टिगत होती हैं।

‘सफेद कबूतर’ कहानीकार नगूयेन क्वांग थान विचरित एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इस कहानी में फौजी जीवन का मनोवैज्ञानिक चित्रण प्रस्तुत हुआ है।

एक फौजी है जो आठ वर्षों बाद अपने घर लौटता है। अपनी पुरानी चीजें उसे अत्यधिक प्रिय लगती हैं। ऐसी ही एक चीज है फौज से मिला उसका वह पुराना झोला, जिसे अपनी पीठ पर कसे अपने गाँव लौटता है। अपने झोले को मजबूती देने के लिए उसने उसमें लोहे के तार का इस्तेमाल किया है। कंधे पर रखे इस झोले के तार कभी-कभी उसके कंधे में गड़ते भी हैं पर बिना किसी परवाह किये झोला वह अपने कंधे पर रखता है।

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फौजी की पत्नी और बच्चे गाँव में ही रहते हैं। फौजी जब अपने गाँव आता है तो अपनी पत्नी और बच्चे को याद करने की कोशिश करता है। अपनी पत्नी को वर्षों से उसने पत्र भी नहीं लिखे थे इसलिए उसे विस्मरण होता है। कहानीकार के शब्दों में-“अचानक उसकी नजर . तार पर सूखते, बच्चों के नए-नए पाजामों पर गई तो उसका दिल बल्लिवों-सा उछल पड़ा। काँपते हाथों से उसने एक पाजामा उतारा और उससे बच्चे की ऊंचाई का अंदाज लगाने की कोशिश करने लगा। ठीक उसी वक्त हाथ में गुलेल थामे वह लड़का स्वयं कमरे में दाखिल हुआ और एक अजनबी को पाजामा टटोलते देखकर ठिठक गया।”

दोनों एक-दूसरे को अवश्य देख रहे थे पर दोनों के मध्य संवादहीनता की स्थिति थी। इसी बीच लड़का अजनबी को देखकर चिल्लाना चाहा पर उसे चोर न समझकर उस बच्चे ने यह अनुमान करते हुए कि ‘यह व्यक्ति कहीं उसका पिता तो नहीं।’ उसे यह भी ध्यान हुआ कि उसकी माँ प्रायः उसके पिता की याद किया करती है। लड़के को क्या सूझा कि वह माँ को बुलाने दौड़ गया। बच्चे को दौड़े जाते देखकर अजनबी चकित हुआ। इधर खेतों में अन्य औरतों के बीच खड़ी उसकी पत्नी ने किसी से यह कहते सुना कि उसके घर की ओर सिपाही को जाते देखा गया है।

उलझन में पड़ी उसकी पत्नी यह अनुमान करने लगी कि-“यह सिपाही कौन हो सकता था? उसका पति या कोई और? अगर वह सिपाही उसका पति नहीं था, तब भी तो उससे उसका मिलना जरूरी था। हो सकता है वह बुरी खबर या मृत्यु का संदेश लाया हो, क्योंकि पिछले आठ वर्षों में पति का एक भी खत उसे नहीं मिला था।”

उसकी पत्नी का अपने घर किसी सिपाही के आने से काफी घबराहट हुई पर वहाँ से तत्क्षण उसका घर लौटना मुश्किल था क्योंकि सुबह वहाँ निकट मिट्टी में एक अमरीकी बम निकला ‘ था जिसके फटने से पूर्व किसी को मालूम नहीं हो सका था। वहाँ खुदाई का काम काफी से से चल रहा था। उसकी पत्नी मजदूरों की टोली की अगुआ थी और खुदाई-कार्य उसी की देख में हो रहा था।

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अंत में वह फौजी अपनी पत्नी के पहुंचने पर पहचान लिया जाता है क्योंकि फौजी की बोली और दक्षिण प्रांतों वाला उसका लहजा उसकी पत्नी की समझ से बाहर नहीं था। इसके पश्चात् फौजी ट्रैनिंग प्राप्त वह फौजी मिट्टी के नीचे गड़े-पड़े एक एम. के. 52 नामक जानलेवा बम को निष्क्रिय करने के लिए उसके डिटोनेटर को घुमाने लगता है। इस बीच विश्वास और अविश्वास के द्वन्द्व में उलझे फौजी को पुनः एक सफेद कबूतर उड़ता प्रतीत हुआ।

प्रस्तुत कहानी युद्ध और पृष्ठभूमि में रचित होने के कारण जिजोविषा और आशा की किरण दिखाती. हुई विश्वास और अविश्वास के तनाव में उलझाती अवश्य है पर इस कहानी का अंत सकारात्मक सोच में होता है और कहानीकार का अभीष्ट भी यही है। नि:संदेह स्वस्थ जीवन-मूल्य दर्शाती यह कहानी तात्त्विक दृष्टि से कहानीकार गूयेन क्वांग थान की एक सशक्त रचना है।

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 2 नया कानून

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 2 नया कानून (सआदत हसन मंटो)

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 2 नया कानून (सआदत हसन मंटो)

नया कानून पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘नया कनून’ के आधार पर मंगू का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर-
‘नया कानून’ कहानी का नायक मंगू एक कोचवान है। वह घोड़ा चला कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। मंगू अन्य कोचवानों की अपेक्षा अधिक जागरूक और – स्वाभिमानी है। वह देश-विदेश की जानकारी अड्डे के अन्य कोचवानों को देता रहता है।

देश गुलाम था। मुंगू भी गुलामी का दंश झेल रहा था गोरे को वह देखना नही चाहता है। उसकी आकृति से ही उसे घृणा थी। जब कभी वह किसी गोरे के सुखी-सफेद चेहरे को देखता तो उसे मितली-सी आ जाती। वह कहा करता था कि उनके लाल झुर्रियों से भरे चेहरे को देखकर उसे वह लाश याद आ जाती है, जिसके जिस्म पर से ऊपर की झिल्ली गल-गलकर झड़ रही हैं।

जब कभी किसी शराबी गोरे से उसका झगड़ा हो जाता तो सारा दिन उसकी तबीयत खिन्न रहती और गोरे को गाली देता रहता। वह कहा कहता-“आग लेने आए थे। अब घर के मालिक ही बन गए हैं। नाक में दम कर रखा है। इन बन्दरों के औलाद ने। ऐसे रोब गाँठते हैं, जैसे हम उनके बाबा के नौकर हों।” इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि मंगू गोरे से घूणा करता था।

मंगू गोरों के अत्याचार से ऊब चुका था। वह चाहता था कि कोई दूसरा भले ही आ जाए लेकिन ये गोरे लोग हिन्दुस्तान छोड़ दें। एक दिन एक सवारी से उसे जानकारी मिलती है कि नया कानून ‘इण्डियन ऐक्ट’ पहली अप्रैल से लाग होना। मंगू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वह सोचता था कि नया कानून आने से उसे अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति मिल जाएगी इस बात की वह अन्य कोचवानों से भी कहता है।

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नया कानून को वह ‘रूस वाले बादशाह’ के असर का नतीजा समझता था। मंगू स्वभाव से बहुत जल्दबाज था। वह हर चीज का असली रूप देखने के लिए न सिर्फ इच्छुक था, अपितु उसे खोजता भी रहता था। तभी तो उसकी पत्नी उसके इस तरह की बेकरारियों को देखकर प्रायः कहा करती थी-“अभी कुआँ खोदा भी नहीं गया और तुम प्यास से बेहाल हो रहे हो।”

पहली अप्रैल को ‘नया कानून’ का प्रभाव देखने जब मंगू सड़क पर निकला तो उसे कुछ भी नयापन नहीं दिखाई पड़ा। अपनी घोड़ागाड़ी से सड़कों पर इधर-उधर दौड़ रहा था। एक गोरा ने उसे इशारा किया। मंगू ने पाँच रुपये किराया बताया। इस पर गोरा ने उसे दो-तीन बेंत लगा दी। मंगू को गोरे से वैसे ही नफरत थी। बेत पड़ते ही चोटिले सर्प जैसे उस गोरे पर मंग ने वार कर दिया और पागलों की तरह उसे पीटता रहा।

आखिर पुलिस के दो सिपाहियों ने किसी तरह उसे रोक पाया और पकड़ कर थाने ले गया। मंगू थाने जाते समय और थाना में भी नया कानून, नया कानून की रट लगा रहा था। उसका सुनने वाला वहाँ कोई नहीं था। मंगू में ईमानदारी पूरी तरह भरी हुई है। वह पक्का देशभक्त है और गुली की जंजीर को तोड़ फेंकने की बेसब्री उसमें है। गोरे को वह देखना नहीं चाहता। बगैर अपशब्द के उसका नाम तक नहीं लेता।

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नया कानून पाठ का सारांश – सआदत हसन मंटो (1912-1955)

प्रश्न-
सआदत हसन मंटो द्वारा लिखित ‘नया कानून’ नामक पाठ का सारांश.लिखें।
उत्तर-
सआदत हसन मंटो (1912-1955) उर्दू साहित्य के अन्तर्गत सर्वाधिक चर्चित कहानीकार के रूप में मान्य हैं। उर्दू साहित्य में यथार्थवाद का नया दौर उन्हीं के कहानी-लेखन से आरंभ होता है। उनकी प्रमुख कहानियाँ है। उनकी प्रमुख कहानियाँ हैं-लाइसेंस, खोल दो, हतक, काली सलवार, टोबा टेक सिंह आदि।

‘नया कानून’ कहानीकार मंटो की एक यथार्थवादी कहानी है। गुलामी की पृष्ठभूमि में विचरित इस कहानी में आजादी मिलने के साथ लागू होने वाले नये कानून की प्रतीक्षा को केन्द्र में रखकर समाज के निचले तबके का प्रतिनिधि मंगू तांगेवाले को माध्यम बनाकर कहानीकार ने नये कानून के प्रति एक उमंगभरी उत्सुकता को बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से दर्शाया है।

मंगू एक तांगेवाला है। अपने अड्डे पर वह तांगेवालों के बीच सर्वाधिक अक्लमंद और दीन-दुनिया की खबर रखने वाला अत्यंत सजग व्यक्ति है। यह सजगता उसके स्तर की सीमा में है। वह तांगे चलाता हुआ तांगे में बैठे सवारियों में 1 अप्रैल से लागू होने वाले नये कानून के बारे में सुनता है। यह सुनकर वह मन-ही-मन काफी उत्साहित होता है। वह सोचता है कि अब गोरों की हुकूमत इस देश पर नहीं रहेगी तो उनके जुल्म भी नहीं हसने पड़ेंगे।

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समाज से मंगू को बेहद नफरत थी जिसका कारण उनके द्वारा ढोया जाने वाला जुर्म था जो मंगू खुद भी अपने तांगा चलाने के क्रम में झेल चुका था। अपने नांगे पर सवार मारवाड़ियों में नये कानून के लागू होने के साथ भावी परिवर्तन की होनेवाली बातचीत मंग ने काफी गंभीरता से सुनी थी। मारवाड़ियों की बात से प्रसन्न होकर पहली अप्रील के आने का बेसब्री से इंतजार करता है।

पहली अप्रील को मंगू उत्साह और खुशी से भर अपने तांगे में घोड़ों को जोतकर बाहर निकलता है । बाजारों का चक्कर लगाते हुए वह देखता है कि सबकुछ पूर्ववत है बदला कुछ भी नहीं है। हर काम पूर्ववत् अपने समय से होता हुआ देखकर जैसे वह बेचैन होता है।

अचानक किसी सवारी ने मंगू को अपनी ओर बुलाया। वह सवारी कोई दूसरा नहीं वह गोरा ही था जो पूर्व में एक दिन उसकी पिटाई कर चुका था। मंगू को नई उजरी गोरे के रूप में दिखायी दी। मंगू को उससे नफरत हुई फिर न चाहते हुए यह सोचकर दि इनके पैसे छोड़ना भी बेवकूफी है वह चलने को तैयार हो गया। घोड़े को चाबुक दिखलाकर वह तांगे चलाते हुए आगे बढ़ा। अपने इस सवारी से उसने व्यंग्य अंदाज में पूछा ‘साहब बहादुर, कहाँ जाना माँगता है?’ गोरे ने सिगरेट का धुआँ निगलते हुए जवाब दिया-“जाना मांगटा या फिर गड़बड़ करेगा?”

यह सुनकर मंगू को वह सवारी साफ तौर पर वही गोरा समझ में आया। गोरा को भी पिछले वर्ष की घटना मंगू की बात सुनते ही याद हो आयी । फिर क्या था हीरा मंडी का भाड़ा पाँच रुपये होने की बात मंगू के मुख से सुनते ही गोरे ने मंगू को अपनी छड़ी से तांगे से नीचे उतरने का इशारा किया। गोरा की तरफ मंगू ऐसे देखने लगा जैसे वह गोरा की पीस डालना चाह रहा हो। आखिरकार नाटे कद के गोरे को उसने चूंसा मार पलक झपकते ही गोरे की ठोड़ी के नीचे जमने के बाद गोरे को खुद से परे हटा तांगे से नीचे उतरकर उसकी धड़ाधड़ पिटाई करनी शुरू दी।

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गोरा खुद को मंगू के वजनी घूसों से बचाने लगा। मंगू ने इस बार खुद पिटाई न खाकर गोरे की पिटाई जी भरकर की और यह कहते हुए कि-“पहली अप्रैल को भी वही अकड़ पहली अप्रैल को भी वही अकड़ फूं … अब हमारा राज है बच्चा।” गोरा उस्ताद मंगू की पकड़ में था जिससे गोरे को छुड़ाना तत्क्षण पहुंचे दो सिपाहियों के लिए मुश्किल हो रहा था।

अंत में मंगू गिरफ्तार कर थाने ले जाया गया जहाँ वह पागल की तरह चिल्लाता रहा-‘नया कानून, नया कानून’ किन्तु उसकी एक नहीं सुनी गई। हवालात में उसे बंद कर दिया गया।

प्रस्तुत कहानी में उस्ताद मंगू के चरित्र के मनोवैज्ञानिक चित्रण के माध्यम से आजादी मिलने के साथ लागू होने वाले नये कानून की प्रतीक्षा से उत्पन्न उमंग भरी उत्सुकता को दर्शाया गया है। कथ्य, शिल्प और भाषा सभी दृष्टियों से यह कहानीकार मंटो की सर्वोत्कृष्ट कहानी है।

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 1 पागल की डायरी

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 1 पागल की डायरी (लू शुन)

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions प्रतिपूर्ति Chapter 1 पागल की डायरी (लू शुन)

पागल की डायरी पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
30 वर्ष तक अन्धकार में रहने के पश्चात् जब पागल की डायरी कहानी का नायक बहार निकला तो उसे क्या अनुभव हुआ ?
अथवा,
‘पागल की डायरी’ के नायक को क्यों ऐसा अनुभव हुआ कि सभी लोग उसी की बात कर रहे हैं।
उत्तर-
‘पागल की डायरी’ कहानी का नायक तीस वर्षों तक अन्धकार में समय गुजारने के पश्चात् जब बाहर कदम रखा तो उसे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। सभी लोग उसे एक विचित्र नजर से घूरते थे। यहाँ तक कि चाओ साहब भी उसे देखकर डर गए। उनके घर के आस-पास सात-आठ दूसरे लोग भी थे जो उसी के विषय में डरे हुए से फुसफुसा कर आपस में बातें कर रहे थे। कोई भी व्यक्ति उसके सामने आने की हिम्मत नहीं करते लेकिन सभी उसका खून कर देना चाहते थे। लेकिन वह डरा नहीं, साहस नहीं खोया, अपनी राह चलता गया।

कुछ बच्चे उसके आगे आगे जा रहे थे, वे भी सहमे हुए डरे हुए उसी की ही बात कर रहे थे। उसने सोचा कि इन बच्चों का मैंने क्या बिगाड़ा है। इन्होंने तो मुझे पहले कभी देखा भी नहीं है। हठात् उसने बच्चों के पुकारा, मरग सभी बच्चे भाग गए। उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था उसका किसी से झगड़ा भी नहीं है। तीस वर्ष पहले सिर्फ पुराने पंथी समाज का, सामन्ती उत्पीड़न का विरोध किया था। लेकिन उस विराध से चाओ साहब का क्या लेना-देना। वह राह चलते लोगों का उसके विरुद्ध भड़काते रहते हैं। अजीब परिस्थिति है। वह जिधर नजरें उठाता है, उधर ही लोग उसकी हत्या करने के घात में हैं। इस तरह, वह अजीब परेशानी का अनुभव कर रहा था।

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प्रश्न 2.
‘पागल की डायरी’ में तत्कालीन समाज का कैसा चित्र प्रस्तुत किया गया है?
उत्तर-
प्राचीन काल में चीन में सामन्ती प्रथा थी। सामंत अत्यन्त क्रूर और अत्याचारी थे। बिना अच्छी तरह साचे-विचारे कभी भी किसी को कठघरे में बन्द करवा देते। लोगों से बेगार लिया करते। कहानीकार ने लिखा है-“इन लोगों को देखा-कई लोगों को मजिस्ट्रेट कठघरे में. बन्द करवा चुके हैं। बहुत से लोग आस-पास के अमीर-उमरावों से मार खा चुके हैं, बहुतों की बीबियों को सरकारी अमले के लोग छीन ले गए हैं।” जहाँ तक सेठ साहूकारों की बात है, वे भी कम अत्याचारी नही थे। कर्ज समय पर नहीं चुकाने पर उनके चिह्न अमानवीय व्यवहार करते ‘थे। यही कारण है कि साहूकारों के जुर्म से बचने के लिए लोग आत्महत्या करने से भी नहीं चुकते थे। लेकिन आम जनता मूक थी।

वे इनके अन्याय सहन के अभ्यस्त हो चुके थे। किसी में भी उनके विरुद्ध प्रतिवाद का स्वर मुखरित करने की हिम्मत नहीं थी। समाज के लोग आदमखोर बन चुके थे। भूख की ज्वाला शान्त करने के लिए अपनी संतान तक को नहीं बख्सते, उन्हें भी मार कर खा जाते। एक औरत अपने बेटे को पीट-पीटकर कर चीखकर कहती है, “बदमाश कहीं का तेरी चमड़ी उधेड़ दूंगी। तेरी बोटी-काट डालूँगी।”

इतना ही नहीं वे लोग निरीह राहगीरों तक को भी नहीं छोड़ते थे। जैसा कि कहानीकार में लिखा है-“कुछ दिन पहले की बात है। शिशु भेड़िया गाँव से हमारा एक आसामी फसल के चौपट होने की खबर देने आया था। उसने मेरे बड़े भाई को बताया कि गांव के सब लोगों ने मिलकर देहात के एक बदनाम दिलेर गुंडे को घेर लिया और कलेजा निकाल दिया, उन्हें तेल में तला और बाँट कर खा गए कि उनका हौसला भी बढ़ जाए।”

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इस तरह हम पाते हैं कि चीन की तत्कालीन समाज बर्बर, आदमखोर, विचारहीन तथा क्रूरता की पराकाष्ठा पर था।

प्रश्न 3.
‘पागल की डायरी’ कहानी के नायक को कैसे ज्ञात हुआ कि उसका बड़ा भाई आदमखोर है और उसकी हत्या करना चाहता है?
उत्तर-
एक दिन कहानी का नायक कोठरी में बंद रहते-रहते ऊब गया। वहाँ उसका दम घुट रहा था। उसने छन से आँगन में निकलने की इच्छा प्रकट की। छन ने उसके बड़े भाई की सहमति पर उसे घर से बाहर निकलने के लिए दरवाजा खोल दिया। उसी क्षण उसका बड़ा भाई एक बुजुर्ग को साथ लेकर आ गया। बुजुर्ग का परिचय उसने हकीम के रूप में भाई से कराया। दरअसल वह बुजुर्ग कोई और नहीं एक जल्लाद था। वह नब्ज टटोलने के बहाने उसके शरीर में माँस का अनुमान लगा रहा था।

वह अभी दुबला पतला था, अत: उसे बेफिक्र होकर खाने और आराम करने की सलाह देकर वहाँ से चला जाता है। बाहर आने पर हकीम और बड़े भाई में जो बातचीत हुई उससे स्पष्ट हो गया कि उसका भाई उसे खा जाने के लिए षड्यंत्र रच रहा था। लेकिन कायरता के कारण घटना को अंजाम देने में असमर्थ था। बड़े भाई ने पाँच वर्ष की छोटी बहन को मार कर खा गया था। उसकी माँ सिर्फ रोती रही, बोली कुछ भी नहीं। इन बातों से कहानी के नायक को पता चला कि उसका भाई आदमखोर है और उसकी भी हत्या करने को तत्पर है।

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प्रश्न 4.
‘पागल की डायरी’ के नायक का भाई ने कब और किस बात पर क्रोधित होकर उसे पागल घोषित कर दिया?
उत्तर-
एक दिन कथा-नायक अपने भाई से कुछ कहने की अनुमति मांगी। भाई का आदेश पाकर, कहना प्रारंभ किया। आदिम अव्यवस्था में प्रायः लोग नर-माँस खा लेते होंगे। पर जब लोगों का जीवन बदला उनके विचार बदले तो वे नर-माँस खाना छोड़ दिया। वे अपना जीवन सुधारना चाहते थे, अतः उनमें मानवता आ गई। लेकिन कुछ लोग आज भी मरगमच्छों की तरह नर-मांस खाए जा रहे हैं। नर-मांस नहीं खाने वाले लोग, नर-माँस खाने वाले को हेय की दृष्टि से देखते हैं।

प्राचीन अभिलेख के अनुसार ई या ने अपने बेटे का माँस ही राज्य के राजा हान को परोसा था। लेकिन अब तो सब कुछ बदल गया है, सिर्फ नहीं बदले हैं यहाँ के लोग। पिछले साल भी शहर में एक अपराधी की गर्दन काट दी गई थी। खून बहता देख तपेदिक का एक मरीज ने उसके खून में रोटी डुबोकर खायी थी। आप लोग आज मुझे खाने को व्याकुल हैं। फिर कल आपकी बारी आएगी। ये लोग आपको भी खा जायेंगे। फिर ये लोग आपस में एक-दूसरे को नहीं छोड़ेंगे। अगर आप लोग इस मार्ग को छोड़ दें तो सभी सुख-चैन से रह सकेंगे।

हमलोग आपस में एक दूसरे पर दया कर सकते हैं। पर आप लोग अपनी लालच नहीं दबा पा रहे हैं। छोटे भाई की इन उपदेशात्मक बातों को सुनकर बड़ा भाई क्रोधित हो गया। वह अपने छोटे भाई को पागल घोषित कर दिया क्योंकि वह तो आदमखोर था। अपने भाई का माँस खाने के लिए व्याकुल था।

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पागल की डायरी पाठ का सारांश – लू शुन (1880-1936)

प्रश्न-
लू शुन द्वारा लिखित ‘पागल की डायरी’ नामक पाठ का सारांश लिखें।
उत्तर-
लू शुन (1880-1936) चीनी कथाकारों में सर्वाधिक ख्यात हैं। साहित्यकार और विचारक के रूप में वे जितने महान थे उतनी ही महानता उन्हें एक क्रांतिकारी लेखक के रूप में भी प्राप्त है। चीन की सांस्कृतिक क्रांति के मुखिया होने के कारण वे राष्ट्रनायक के रूप में मान्य है। उनकी कहानियाँ समाज के प्रति मानवीय संवेदना को उजागर करती है। उनकी अधि कांश कहानियाँ सन् 1918 से लेकर 1925 के मध्य लिखी गई हैं। चीनी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद को प्राप्त है, वही पहचान चीनी कहानी-साहित्य के क्षेत्र में लू शुन को प्राप्त है। उनकी कहानियों में खुग-इ-ची, औषधि मेरा पुराना घर, गुजरे जमाने का दर्द, नववर्ष की पूजा, एक पागल की डायरी प्रमुख हैं।

‘पागल की डायरी’ महान क्रांतिकारी कहानीकार लू शुन की सर्वाधिक सशक्त, यथार्थवादी और प्रभावकारी कहानी है। इसमें पुरातनपंथी समाज का यथार्थ विश्लेषित हुआ है। सामाजिक यथार्थ का ऐसा निर्मम विश्लेषण अन्यत्र दुर्लभ है। इस कहानी में किये गये पागल के निम्न कथन में सामंतवाद के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का उद्घोष स्पष्ट ध्वनित होता है-“मैं इस ओर ध्यान देता हूँ पर हमारे इतिहास में तो इसका कोई क्रमबद्ध विवरण है ही नहीं, फिर मैंने शब्दों के भीतर छिपे अर्थों को पढ़ना शुरू किया तो पाया कि पूरी किताब तीन ही शब्दों से भरी पड़ी है-लोगों को खाओ।”

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लेखक ने स्कूल के दिनों के दो साथी थे। दोनों भाई थे जिनके नाम अज्ञात हैं, जो लेखक नहीं बताता है। उन दोनों भाइयों से लेखक या काफी मेल-मिलाप रहता था पर इधर दोनों से संपर्क प्रायः टूट गया था। जब कहीं से लेखक ने उन दोनों भाइयों में से एक बीमार होने के बारे में सुना तो अपने गाँव जाते हुए लेखक ने दोनों साथियों से मिलने का मन बनाया। बल्कि वहाँ पहुँचकर लेखक एक भाई से मिला भी जिससे लेखक को यह जानकारी मिली कि उसका छोटा भाई बीमार है। दूर से मिलने आये अपने लेखक साथी से मिलकर मित्र को अपने प्रति लेखक का स्नेह कहीं अधिक महसूस हुआ।

बाद में अपने मित्र से लेखक को यह मालूम हुआ कि उसका छोटा भाई अब ठीक है और वह सरकारी नौकरी में लग गया है। यह बताने के बाद लेखक को उसके मित्र ने हँसते-हँसते मोटी-मोटी जिल्दों में लिखी दो डायरी दिखायी तत्पश्चात् दोनों डायरी लेखक की ओर बढ़ाते हुए उसके मित्र ने यह कहा कि-“अगर कोई इस डायरी को पढ़ ले तो भाई की बीमारी का रहस्य समझ जाएगा और अपने पुराने दोस्त को दिखा देने में हर्ज क्या है।”

अपने घर लाकर लेखक ने दोनों डायरी आद्यंत पढ़ डाली जिसमें मित्र के भाई की बीमारी का रहस्य यह मालूम हुआ कि-“बेचारा नौजवान अजीब आतंक और मानसिक यंत्रणा से पीड़ित था। लिखावट बहुत उलझी-उलझी असंबद्ध थी। कुछ बेसिरपैर के आरोप भी थे। पृष्ठों पर तारीखें नहीं थीं। जगह-जगह स्याही के रंग और लिखावट के अंतर से अनुमान हो सकता था किये जब-तब आगे-पीछे लिखी गई चीजें होंगी। कुछ बातें संबद्ध भी जान पड़ती थीं और समझ में आ जाती थीं।”

लेखक के उस मित्र का छोटा भाई नौकरी मिलने से पूर्व बीमार था। उसकी बीमारी का रहस्य यह था कि वह युवा बेरोजगारी के दिनों में डिप्रेशन का शिकार था। आतंक और मानसिक यंत्रण से पीड़ित उस युवा को अपनी ओर घूरते चाओ परिवार का कुत्ता देखकर यह लगता कि वह उसका खून करना चाहता है। भय और आतंक के कारण उसे लगता कि दिखायी देने वाले सारे लोग आदमखोर हैं-

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“मैं निडर हूँ, साहसी हूँ, इसीलिए तो वे लोग मुझे खा जाने के लिए और अधिक आतुर हैं, ताकि मेरा दमदार कलेजा खाकर उनका हौसला और बढ़ सके। बूढा हकीम उठकर चल दिया। जाते-जाते भैया के कान में कहता गया, “इसे अभी खाना है!” भैया ने झुककर हामी भर दी। अब समझ में आया! विकट रहस्य खुल गया। मन को धक्का तो लगा, पर यह तो होना ही था। मुझे मालूम ही था, मेरा अपना ही भाई मुझे खा डालने के षड्यंत्र में शामिल है! यह आदमखोर मेरा अपना ही बड़ा भाई है! मैं एक आदमखोर का छोटा भाई हूँ!

मुझे दूसरे लोग खा जाएंगे, लेकिन फिर भी मैं एक आदमखोर का छोटा भाई हूँ!” अपना बड़ा भाई भी उस युवा को आदमखोर दिखायी दिया! तभी तो वह कहता है-“बड़ा भाई का क्या कहना, वे तो आदमखोर हैं ही। जब मुझे पढ़ाते थे तो अपने मुँह से कहते थे, “लोग अपने बेटों को एक-दूसरे से बदलकर उन्हें खा जाते हैं” और.एक बार एक बदमाश के लिए उन्होंने कहा था कि उसे मार डालने से ही क्या होगा, “उसका गोश्त खा डालें और उसकी खाल का बिछावन बना डालें” तब मेरी उम्र कच्ची थी। सुनकर दिल देर तक धड़कता रहा।

जब शिशु-भेड़ियाँ गाँव के आसामी ने एक बदमाश का कलेजा निकालकर खा जाने की बात कही थी-तब भी भैया को कुछ बुरा नहीं लगा था। सुनकर चुपचाप सिर हिलाते रहे थे, जैसे ठीक ही हुआ हो। मुझसे छिपा गया है, वे तो पहले की तरह खूखार है। चूँकि “बेटों को एक-दूसरे से बदलकर उन्हें खा जाना” संभव है, तो फिर हर चीज को बदला जा सकता है, हर किसी को खाया जा सकता है। उन दिनों भैया जब ऐसी बातें समझाते थे तो मैं सुन लेता था, सोंचता नहीं था।

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पर अब खूब समझ में आता है कि ऐसी बातें कहते समय उनके मुँह में नर-माँस का स्वाद भर आता होगा और उनका मन मनुष्य को खाने के लिए व्याकुल हो उठता होगा।” ___कभी उसे लगता कि चाओ परिवार का कुत्ता जो बबरशेर की तरह खूखार, खरहे की तरह कातर, लोमड़ी की तरह धूर्त है फिर उसकी ओर घूरते हुए भौंक रहा है। उसे यह भी लगता है कि परिणाम के भय से वे (चाओ) मार डालने को तैयार नहीं है, पर षड्यंत्र रचकर जाल बिछाने में पीछे नहीं है। आत्महत्या कर लेने के लिए जैसे विवश कर रहे हैं। अनेक पुरुषों और स्त्रियों के बर्ताव के साथ वह अपने बड़े भाई का रंग-ढंग भी काफी गंभीरता से भाँप रहा है।

नर-माँस खाने वाले आदिम लोग की बात याद करने की कोशिश वह अवश्य करता है पर उसका क्रमबद्ध इतिहास उसे नहीं मिलता है। फिर भी उसे यह लगता है कि सारे लोग उसे खा जाना चाहते हैं बल्कि सारे लोगों में उसे अपना बड़ा भाई भी शामिल नजर आता है तभी तो वह भाई से कहता है-

“बात कुछ खास नहीं है, पर कह नहीं पा रहा हूँ। भैया, आदिम व्यवस्था में तो शायद सभी लोग थोड़ा बहुत नर-माँस खा लेते होंगे। जब लोगों को जीवन बदला, उनके विचार बदले, तो उन्होंने नर-माँस त्याग दिया। वे लोग अपना जीवन सुधारना चाहते थे। इसलिए वे सभ्य बन गए, उनमें मानवता आ गई। परंतु कुछ लोग अब भी खाए जा रहे हैं मगरमच्छों की तरह।

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कहते हैं जीवों का विकास होता है, एक जीव से दूसरा जीव बन जाता है। कुछ जीव विकास करके मछली बन गए हैं, पक्षी बन गए हैं, बदर बन गए हैं। ऐसे ही आदमी भी बन गया है।” एक पुरानी कहानी का हवाला देते हुए वह यह भी कहता है कि-“पुराने समय में ई या ने अपने बेटे को उबालकर च्ये और चओ के सामने परोस दिया था।”

एक दिन दरवाजे बंद कोठरी में खाना खाते हुए चापस्टिके ने जैसे ही उठाई तो उसे अपनी छोटी बहन की मृत्यु की घटना स्मृत हो आयी-“वह भैया की ही करतूत थी। तब मेरी बहन केवल पाँच वर्ष की थी। कितनी प्यारी और निरीह थी वह ! याद आती है तो चेहरा आँखों के सामने घूम जाता है।

माँ रो-रोकर बेहाल हो रही थी। भैया माँ को सांत्वना देकर समझा रहे थे, कारण शायद यह था कि स्वयं ही बेचारी को खा गए थे। इसलिए माँ को इस तरह रोते देखकर उन्हें शर्म आ रही थी।” उसे नर-माँस खाने वाले आदमखोर के रूप में अपने पूर्वज भी दिखायी देते हैं जो धीरे-धीरे सभ्य हुए। वह नहीं चाहता है कि नई पीढ़ी के छोटे बच्चे नर-माँस खाने की ओर बढ़ें।

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प्रस्तुत कहानी में चीन में लंबे समय तक चले सामंती उत्पीड़न के इतिहास की प्रस्तुति हुई है। ‘नर-माँस खाने’ की बात से यहाँ सामंती उत्पीड़न ही संकेतित हुआ है। अपनी बेराजगारी के दिनों में डिप्रेशन का शिकार वह युवा लोगों को देखकर लगातार यही सोचता रहा कि सभी लोग जिनमें उसका अपना भाई भी शामिल है, उसे खा जाना चाहते हैं। वस्तुतः इस कहानी में चीन के तत्कालीन सामन्ती समाज में शोषण को दर्शाया गया है।

Bihar Board 12th Chemistry Objective Answers Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

Bihar Board 12th Chemistry Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Chemistry Objective Answers Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

Question 1.
बीमारियों के उपचार के लिए रसायनों का उपयोग कहलाता है
(a) कीमोथेरैपी
(b) फिजियोथेरैपी
(c) एंजियोथेरैपी
(d) पॉलीथेरैपी
Answer:
(a) कीमोथेरैपी

Question 2.
कुछ औषधियाँ एन्जाइम की एक्टिव साइट पर नहीं जुड़ती हैं,बल्कि एन्जाइम की अन्य साइट पर जुड़ती हैं । यह साइट कहलाती
(a) एलोस्टेरिक साइट
(b) सब्स्ट्रेट साइट
(c) आयनिक साइट
(d) कॉम्पिटेटिव साइट
Answer:
(a) एलोस्टेरिक साइट

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Question 3.
वे औषधियाँ जो रिसेप्टर साइट से जुड़ती हैं तथा इसके प्राकृतिक कार्य को रोकती हैं, कहलाती हैं
(a) एगोनिस्टिक औषधियाँ
(b) एन्टागोनिस्टिक औषधियाँ
(c) एन्टीमाइक्रोबियल औषधियाँ
(d) एलोस्टेरिक औषधियाँ
Answer:
(b) एन्टागोनिस्टिक औषधियाँ

Question 4.
वह औषधि जो ज्वर निवारक के साथ-साथ दर्द निवारक भी होती है, वह है
(a) क्लोरोक्वीन
(b) पेनिसिलीन
(c) क्लोरडाइएजेपॉक्साइड
(d) 4-ऐसीटामाइडोफिनॉल
Answer:
(d) 4-ऐसीटामाइडोफिनॉल

Question 5.
वे औषधियाँ जो चिन्ता एवं मानसिक तनाव से ग्रसित व्यक्ति को दी जाती हैं, कहलाती हैं
(a) प्रशान्तक
(b) दर्द निवारक
(c) एन्टीमाइक्रोबिअल्स
(d) प्रतिजैविक
Answer:
(a) प्रशान्तक

Question 6.
निम्न में से किसे लत उत्पन्न किये बिना ही दर्द निवारक की तरह प्रयुक्त किया जाता है?
(a) मॉर्फीन
(b) ऐस्प्रिन
(c) हेरोइन
(d) कोडाइन
Answer:
(b) ऐस्प्रिन

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Question 7.
निम्न में से कौन-सा प्रशान्तक की भाँति कार्य नहीं करेगा ?
(a) इक्वैनिल
(b) एनाल्जिन
(c) मेप्रोबेमेट
(d) क्लोरडाइएजेपॉक्साइड
Answer:
(b) एनाल्जिन

Question 8.
निम्न में से कौन-सी नारकोटिक दर्द निवारक है ?
(a) आइबुप्रोफेन
(b) ऐस्प्रिन
(c) पारासीटामॉल
(d) मॉर्फीन
Answer:
(d) मॉर्फीन

Question 9.
वे रासायनिक पदार्थ जिन्हें उच्च ज्वर में तापमान को कम करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, कहलाते हैं
(a) दर्द निवारक
(b) ज्वर निवारक
(c) एन्टीथिस्टेमीन
(d) प्रशान्तक
Answer:
(b) ज्वर निवारक

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Question 10.
टरफेनाडाइन को सामान्यतः इस रूप में प्रयुक्त किया जाता है
(a) एन्टीहिस्टामाइन
(b) प्रतिजैविक
(c) एन्टीमाइक्रोवियल
(d) एन्टीफर्टिलिटी औषधि
Answer:
(a) एन्टीहिस्टामाइन

Question 11.
निम्न में से कौन-सा एन्टासिड की भाँति कार्य नहीं करेगा ?
(a) सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट
(b) मैगनीशियम हाइड्रॉक्साइड
(c) सोडियम कार्बोनेट
(d) ऐलुमिनियम कार्बोनेट
Answer:
(c) सोडियम कार्बोनेट

Question 12.
बार्बीट्यूरेट्स इस रूप में कार्य करते हैं
(a) निद्राकारी अर्थात् सोने की क्रिया को उत्पन्न करने वाला एजेन्ट
(b) नॉन-नारकोटिक्स दर्द निवारक
(c) न्यूरोट्रान्समिटर्स का एक्टिवेयर
(d) एन्टीएलर्जिक औषधि
Answer:
(a) निद्राकारी अर्थात् सोने की क्रिया को उत्पन्न करने वाला एजेन्ट

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Question 13.
नीचे दी गई संरचना कहलाती है
Bihar Board 12th Chemistry Objective Answers Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन 1
(a) प्रोन्टोसिल
(b) सल्फेपिरीडीन
(c) क्लोरेमफेनिकॉल
(d) क्लोरोक्सिलेनॉल
Answer:
(c) क्लोरेमफेनिकॉल

Question 14.
एन्टीमाइक्रोबियल औषधियों में शामिल हैं
(i) पूतिरोधी
(ii) प्रतिजैविक
(iii) कीटाणुनाशक
(a) (i) एवं (ii)
(b) (i) एवं (iii)
(c) (ii) एवं (iii)
(d) (i), (ii) एवं (iii)
Answer:
(d) (i), (ii) एवं (iii)

Question 15.
डिटॉल के मुख्य घटक हैं
(a) क्लोरोमफेनिकॉल + ग्लिसरॉल
(b) ऐल्कोहॉल में आयोडीन का 2-3% विलयन
(c) फिनॉल का 0.2% विलयन
(d) क्लोरॉक्सिलेनॉल एवं टरपीनिऑल
Answer:
(d) क्लोरॉक्सिलेनॉल एवं टरपीनिऑल

Question 16.
वह औषधि जो मलेरिया के उपचार में प्रभावी है
(a) ऐस्प्रिन
(b) क्विनीन
(c) मॉर्फीन
(d) एनाल्जिन
Answer:
(b) क्विनीन

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Question 17.
एक एस्टर जो दवा के रूप में प्रयुक्त की जाती है
(a) एथिल ऐसीटेट
(b) मेथिल ऐसीटेट
(c) मेथिल सेलिसिलेट
(d) एथिल बेन्जॉएट
Answer:
(c) मेथिल सेलिसिलेट

Question 18.
निम्न में से कौन-सा प्रतिजैविक नहीं है ?
(a) क्लोरोमफेनिकॉल
(b) ऑफलोक्सेसिन
(c) पेनिसिलीन
(d) प्रोन्टोसिल
Answer:
(d) प्रोन्टोसिल

Question 19.
निम्न में से कौन-सा प्रतिजैविक बेक्टेरिसिडल है?
(a) एरिथ्रोमाइसिन
(b) टेट्रासिसलीन
(c) पेनिसिलीन
(d) क्लोरेमफेनिकॉल
Answer:
(c) पेनिसिलीन

Question 20.
वह एन्टीबायोटिक जो कैंसर कोशिकाओं की कुछ विशेष स्ट्रेन्स के विरुद्ध प्रभावी होती है
(a) डिजीडेजिरीन
(b) सल्फेनिलएमाइड
(c) वनकोमाइसिन
(d) ऑफलोक्सेसिन
Answer:
(a) डिजीडेजिरीन

Question 21.
निम्न में से कौन-सा यौगिक एक दर्द निवारक (एनाल्जेसिक) को
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Answer:
(a)

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Question 22.
निम्न में से कौन-सा एन्टीडिप्रेसेन्ट नहीं होता है ?
(a) इप्रोनिआजिड
(b) फेनेल्जिन
(c) ईक्वैनिल
(d) सैल्वरसैन
Answer:
(d) सैल्वरसैन

Question 23.
निम्न में से कौन-सा प्रतिजैविक (एन्टीबायोटिक) नहीं है?
(a) पेनिसिलन
(b) ऑक्सिटॉक्सिन
(c) एरिथ्रोमाइसिन
(d) टेट्रासिकलिन
Answer:
(b) ऑक्सिटॉक्सिन

Question 24.
कौन-सा एक ब्रॉड स्पेक्ट्रम एन्टीबायोटिक है ?
(a) क्लोरोरेमफेनिकॉल
(b) प्लाज्मोक्विन
(c) जाइलोकेन
(d) एन्टीसेप्टिक
Answer:
(a) क्लोरोरेमफेनिकॉल

Question 25.
उस कृत्रिम स्वीटनर का नाम बताएँ जो सूक्रोज का व्युत्पन्न है।
(a) सैकेरीन
(b) सूक्रोलोज
(c) सूक्रोबेन्जामाइड
(d) एस्पार्टम
Answer:
(b) सूक्रोलोज

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Question 26.
निम्न में से कौन-सा फूड एडिटिव नहीं है ?
(a) प्रिजर्वेटिव
(b) स्वीटनिंग एजेन्ट
(c) फ्लेवर्स
(d) ऑक्सीडेन्ट्स
Answer:
(d) ऑक्सीडेन्ट्स

Question 27.
निम्न में से कौन-सा जैव-अनिम्नकरणीय अपमार्जक का एक उदाहरण है?
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Answer:
(c)

Question 28.
नैरो स्पेक्ट्रम एन्टीबायोटिक………..के विरुद्ध सक्रिय होती हैं।
(a) ग्राम धनात्मक या ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया
(b) केवल ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया
(c) एकल जीव या एक रोग
(d) ग्राम धनात्मक एवं ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया दोनों
Answer:
(d) ग्राम धनात्मक एवं ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया दोनों

Question 29.
वे यौगिक जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर सामान्य एन्टीडिप्रेसेन्ट क्रिया करते हैं, इस वर्ग से संबंधित होते हैं
(a) दर्द निवारक
(b) प्रशान्तक
(c) नारकोटिक दर्द निवारक
(d) एन्टीहिस्टामिन
Answer:
(b) प्रशान्तक

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Question 30.
यौगिक जो साबुन से मिलकर पूतिरोधी गुण देता है, है
(a) सोडियम लॉराइलसल्फेट
(b) सोडियम डोडेसिलबेंजीनसल्फोनेट
(c) रोजिन
(d) बाइथयोनल
Answer:
(d) बाइथयोनल

Question 31.
इक्वैनिल है
(a) कृत्रिम स्वीटनर
(b) प्रशान्तक
(c) एन्टीहिस्टामिन
(d) एन्टीफर्टीलिटी औषधि
Answer:
(b) प्रशान्तक

Question 32.
निम्न में कौन-सा साबुन के झाग के गुण हो बढ़ाता है ?
(a) सोडियम कार्बोनेट
(b) सोडियम रोजिनेट
(c) सोडियम स्टीरेट
(d) ट्राइसोडियम फॉस्फेट
Answer:
(b) सोडियम रोजिनेट

Question 33.
ग्लिसरॉल को साबुन में मिलाया जाता है। यह कार्य करता है
(a) फिलर के रूप में
(b) झाग को बढ़ाना
(c) तीव्र शुष्कीकरण को रोकना
(d) साबुन को दानेदार बनाना
Answer:
(c) तीव्र शुष्कीकरण को रोकना

Question 34.
पॉलीएथिलीन-ग्लाइकॉल्स किस प्रकार के अपमार्जकों के बनाने में प्रयुक्त किया जाता है ?
(a) धनायनिक अपमार्जक
(b) ऋणायनिक अपमार्जक
(c) अन-आयनिक अपमार्जक
(d) साबुन
Answer:
(c) अन-आयनिक अपमार्जक

Bihar Board 12th Chemistry Objective Answers Chapter 16 दैनिक जीवन में रसायन

Question 35.
निम्न में से कौन-सा शरीर में औषधि कार्य के लिए लक्ष्य (Target) अणु नहीं होता है ?
(a) कार्बोहाइड्रेट
(b) लिपिड
(c) विटामिन
(d) प्रोटीन
Answer:
(c) विटामिन

Question 36.
निम्न में से कौन-से रसायन को पकाने के ताप पर खाद्य पदार्थों की – मिठास के लिए मिलाया जा सकता है तथा यह कैलोरी नहीं देता
(a) सूक्रोज
(b) ग्लूकोज
(c) एस्पार्टम
(d) सूक्रेलोज
Answer:
(d) सूक्रेलोज

Question 37.
निम्न में से कौन-सा भोजन के पौष्टिक मान को नहीं बढ़ाएगा?
(a) खनिज
(b) कृत्रिम स्वीटनर्स
(c) विटामिन
(d) ऐमीनो अम्ल
Answer:
(b) कृत्रिम स्वीटनर्स

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

Bihar Board 12th Physics Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 1.
परम शून्य पर, Si किस रूप में कार्य करता है’
(a) धातु
(b) अर्धचालक
(c) विद्युतरोधी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) विद्युतरोधी

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 2.
ठोसों में बैण्ड संरचना की अभिव्यक्ति किस कारण होती है ?
(a) हाइजनबर्ग के अनिश्चितता सिद्धांत के कारण
(b) पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के कारण
(c) बोर के अनुरूपता सिद्धांत के कारण
(d) बोल्ट्जमान नियम के कारण
उत्तर-
(b) पाउली के अपवर्जन सिद्धांत के कारण

प्रश्न 3.
उस प्रकाश की तरंगदैर्ध्य बताएँ जो डायमण्ड (हीरा) के संयोजकता बैण्ड से चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित कर सकती है। ऊर्जा अन्तराल 5.50 ev है।
(a) 226 nm
(b) 312 nm
(c) 5432 nm
(d) 550 nm
उत्तर-
(a) 226 nm
(a) ऊर्जा अन्तराल, Eg = \(\frac{h c}{\lambda}\) ; \(\lambda=\frac{h c}{E_{g}}\)
यहाँ, ऊर्जा अन्तराल = 5.50 eV
hc = 1240 eV nm लेकर
∴ \(\lambda=\frac{1240 \mathrm{eV} \mathrm{nm}}{5.5 \mathrm{eV}}=226 \mathrm{nm}\)

प्रश्न 4.
आबन्धन का वह प्रकार जो विद्युत के अच्छे चालकों में होता है
(a) वान्डर वाल
(b) सहसंयोजी
(c) आयनिक
(d) धात्विक |
उत्तर-
(d) धात्विक |

प्रश्न 5.
शुद्ध अर्धचालक में, चालक इलेक्ट्रॉनों की संख्या 6 × 1018 प्रति घन मी है। 1 cm × 1 cm × 1 mm आकार के नमूने में कितने होल । होंगे?
(a) 3 × 1010
(b) 6 × 1011
(c) 3 × 1011
(d) 6 × 1010
उत्तर-
(b) 6 × 1011

प्रश्न 6.
यदि एण्टिमनी की कम मात्रा को जर्मेनियम क्रिस्टल में मिलाया जाता है, तो
(a) इसका प्रतिरोध बढ़ जाता है।
(b) यह p-प्रकार का अर्धचालक बन जाता है।
(c) अर्धचालक में होल की अपेक्षा मुक्त इलेक्ट्रॉन अधिक होंगे।
(d) इनमें से कोई नहीं। |
उत्तर-
(c) अर्धचालक में होल की अपेक्षा मुक्त इलेक्ट्रॉन अधिक होंगे।

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 7.
n-प्रकार के अर्धचालक में जब सभी दाता अवस्थाएँ भर जाती हैं, तो दाता अवस्थाओं में कुल आवेश घनत्व हो जाता है –
(a) 1
(b) >1
(c) < 1, किन्तु शून्य नहीं (d) शून्य उत्तर- (b) >1

प्रश्न 8.
एक अर्धचालक में इलेक्ट्रॉन एवं होल सान्द्रता 6 x 108 प्रति मी के बराबर है। निश्चित अशुद्धता के साथ मादन (अपमिश्रण) करने पर, इलेक्ट्रॉन सान्द्रता 9 × 1012 प्रति मी3 बढ़ जाती है। नई होल सान्द्रता होगी –
(a) 2 × 104 प्रति मी3
(b) 2 × 102 प्रति मी3
(c) 4 × 104 प्रति मी3
(d) 4 × 102 प्रति मी3
उत्तर-
(c) 4 × 104 प्रति मी3
(c) चूँकि, nenh = ni2 ,
यहाँ ni = 6 × 108 प्रति मी एवं ne = 9 × 1012 प्रति मी3
∴ \(n_{h}=\frac{n_{i}}{n_{e}}=\frac{\left(6 \times 10^{8}\right)^{2}}{9 \times 10^{12}}=4 \times 10^{4}\) प्रति मी3

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा कथन किसी डायोड के अवक्षय क्षेत्र (Depletion region) के लिए सही नहीं है ?
(a) यहाँ गतिशील आवेश होते हैं।
(b) होल एवं इलेक्ट्रॉन की बराबर संख्या होती है, जो क्षेत्र को उदासीन बनाती है।
(c) होल एवं इलेक्ट्रॉन का पुन:संयोजन होता है।
(d) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) यहाँ गतिशील आवेश होते हैं।

प्रश्न 10.
0.3 V का विभव प्राचीर p-n संधि में स्थित है। यदि अवक्षय क्षेत्र 1µm चौड़ा हो, तो इस क्षेत्र में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता क्या होगी?
(a) 2 × 105 V m-1
(b) 3 × 105 V m-1
(c) 4 × 105 V m-1
(d) 5 × 105 V m-1
उत्तर-
(b) 3 × 105 V m-1
(b) विद्युत क्षेत्र, \(E=\frac{V}{d}=\frac{0.3}{1 \times 10^{-6}}=3 \times 10^{5} \mathrm{Vm}^{-1}\)

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 11.
अग्र एवं पश्च अभिनति सिलिकॉन p-n संधि में आवेश वाहकों की गति के लिए प्रभावी क्रियाविधि है –
(a) अग्र अभिनति में अनुगमन, पश्च अभिनति में विसरण
(b) अग्र अभिनति में विसरण, पश्च अभिनति में अनुगमन
(c) अग्र एवं पश्च अभिनति दोनों में विसरण
(d) अग्र एवं पश्च अभिनति दोनों में अनुगमन
उत्तर-
(b) अग्र अभिनति में विसरण, पश्च अभिनति में अनुगमन

प्रश्न 12.
संधि डायोड में विकसित विभव प्राचीर किसके प्रवाह का विरोध करता है?
(a) केवल दोनों क्षेत्रों में अल्पसंख्यक वाहकों का
(b) केवल बहुसंख्यक वाहकों का
(c) p क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनों का
(d) p क्षेत्र में होलों का
उत्तर-
(b) केवल बहुसंख्यक वाहकों का

प्रश्न 13.
p-n संधि में बिना मुक्त इलेक्ट्रॉनों एवं होलों वाला क्षेत्र है –
(a) n-क्षेत्र
(b) p-क्षेत्र
(c) अवक्षय क्षेत्र
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) अवक्षय क्षेत्र

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 14.
यदि VA <VB तो बिंदुओं A एवं B के मध्य चित्र में दर्शाए गए परिपथ का समतुल्य प्रतिरोध होगा –
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 1
(a) 10Ω
(b) 20Ω
(c) 5Ω
(d) 40Ω
उत्तर-
(b) 20Ω

प्रश्न 15.
चित्र में दर्शाए गए परिपथ में दो डायोडों में से प्रत्येक का अग्र प्रतिरोध 30Ω तथा पीछे की ओर का प्रतिरोध अनन्त है। यदि बैटरी 3V की है, तो 50Ω प्रतिरोध में से धारा (ऐम्पियर में ) होगी?
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 2
(a) शून्य
(b) 0.01
(c) 0.02
(d) 0.03
उत्तर-
(c) 0.02
(c) परिपथ में ऊपरी डायोड D1 पश्च अभिनत है तथा निचला डायोड D2 अग्र अभिनत है। इस प्रकार ऊपरी डायोड संधि में धारा नहीं . होगी। प्रभावी परिपथ चित्र में दर्शाएं गए अनुसार होगा।
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 6

प्रश्न 16.
परम शून्य ताप पर, संयोजकता बैण्ड पूर्णतः घिरा होता है
(a) 4N संयोजकता इलेक्ट्रॉनों द्वारा
(b) 4N ऊर्जा स्तरों द्वारा
(c) 2N संयोजकता इलेक्ट्रॉनों द्वारा
(d) 2N ऊर्जा स्तरों द्वारा
उत्तर-
(a) 4N संयोजकता इलेक्ट्रॉनों द्वारा

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 17.
पूर्ण तरंग संधि डायोड दिष्टकारी में निवेशी ए.सी. (ac) का rms मान 20 V है। प्रयुक्त ट्रांसफॉर्मर 1 : 2 अनुपात के प्राथमिक एवं द्वितीयक फेरे वाला उच्चायी ट्रांसफॉर्मर है । दिष्टीकृत निर्गत में dc वोल्टेज होगा
(a) 12V
(b) 24V
(c) 36V
(d) 42V
उत्तर-
(c) 36V
(c) यहाँ, निवेश Vrms = 20 V .
निवेशी वोल्टेज का शिखर मान
\(V_{0}=\sqrt{2} V_{r m s}=\sqrt{2} \times 20=28.28 \mathrm{V}\)
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 7

प्रश्न 18.
50 Hz मुख्य आवृत्ति से संचालित होने वाले किसी अर्द्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ में, उर्मिका में मौलिक होगी –
(a) 25 Hz
(b) 50 Hz
(c) 70.7 Hz
(d) 100 Hz
उत्तर-
(b) 50 Hz

प्रश्न 19.
जेनर डायोड की नियमन (Regulation) क्रिया के दौरान क्या होता
(a) श्रेणी प्रतिरोध (Rs) में धारा परिवर्तित होती है।
(b) जेनर के द्वारा दिया गया प्रतिरोध परिवर्तित हो जाता है ।
(c) जेनर प्रतिरोध नियत होता है।
(d) (a) एवं (b) दोनों
उत्तर-
(d) (a) एवं (b) दोनों

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 20.
एक p-n संधि डायोड को 2.5ev के बैण्ड अन्तराल वाले अर्धचालक से बनाया गया है। सिग्नल तरंगदैर्ध्य क्या होगी?
(a) 6000 Å
(b) 6000 nm
(c) 4000 nm
(d) 5000 Å
उत्तर-
(d) 5000 Å
(d) जब आपतित फोटॉन की ऊर्जा बैण्ड अन्तराल से अधिक या बराबर होती है केवल तभी संसूचन होता है ।
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 8

प्रश्न 21.
p-n-p ट्रांजिस्टर परिपथ में, संग्राहक धारा 10 mA है । यदि 90% होल संग्राहक तक पहुँचते हैं, तो क्रमशः उत्सर्जक एवं आधार धाराएं होंगी –
(a) 10 mA, 1 mA
(b) 22 mA, 11 mA
(c) 11 mA, 1 mA
(d) 20 mA, 10 mA
उत्तर-
(c) 11 mA, 1 mA

प्रश्न 22.
जब p-n संधि डायोड में वोल्टेज ड्रॉप 0.65 V से 0.70 V तक बढ़ जाता है, तो डायोड धारा में परिवर्तन 5 mA होता है । डायोड का गतिक प्रतिरोध क्या होगा?
(a) 20Ω
(b) 50Ω
(c) 10Ω
(d) 80Ω
उत्तर-
(c) 10Ω

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 23.
द्विध्रुवीय संधि ट्रांजिस्टर के भारी एवं हल्के मादित क्षेत्र क्रमशः हैं
(a) आधार एवं उत्सर्जक
(b) आधार एवं संग्राहक
(c) उत्सर्जक एवं आधार
(d) संग्राहक एवं उत्सर्जक
उत्तर-
(c) उत्सर्जक एवं आधार

प्रश्न 24.
एक प्रवर्धक का वोल्टेज लाभ 100 है । dB में वोल्टेज लाभ क्या होगा?
(a) 20 dB
(b) 40 dB
(c) 30 dB
(d) 50 dB
उत्तर-
(b) 40 dB

प्रश्न 25.
एक ट्रांजिस्टर का धारा लाभ 30 है । यदि संग्राहक प्रतिरोध 6 ke हो, निवेशी प्रतिरोध हो, 1 kΩ हो तो इसका वोल्टेज लाभ क्या होगा?
(a) 90
(b) 180
(c) 45
(d) 360
उत्तर-
(b) 180
(b) वोल्टता धारा = धारा लाभ × प्रतिरोध लाभ
धारा लाभ \(\times \frac{R_{C}}{R_{1}}=30 \times \frac{6}{1}=180\)

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प्रश्न 26.
उभयनिष्ठ उत्सर्जक विधा में जुड़े ट्रांजिस्टर में, Rc = 4k2,
R1 = 1.k2, Ic = 1 mA एवं IB = 20 μA है। वोल्टेज लाभ होगा
(a) 100
(b) 200
(c) 300
(d) 400
उत्तर-
(b) 200

प्रश्न 27.
एक दोलित्र और कुछ नहीं होता बल्कि एक प्रवर्धक होता है जिसमें
(a) अधिक लाभ होता है।
(b) धनात्मक पुनर्भरण होता है।
(c) कोई पुनर्भरण नहीं होता है।
(d) ऋणात्मक पुनर्भरण होता है।
उत्तर-
(b) धनात्मक पुनर्भरण होता है।

प्रश्न 28.
उस उभयनिष्ठ उत्सर्जक प्रवर्धक में वोल्टेज लाभ क्या है, जहाँ निवेशी प्रतिरोध 3Ω तथा लोड प्रतिरोध 24Ω एवं B = 61 है ?
(a) 8.4
(b) 488
(c) 240
(d) 0
उत्तर-
(b) 488
(b) वोल्टता लाभ, \(A_{V}=\beta \frac{R_{0}}{R_{i}}=\frac{61 \times 24}{3}=488\)
चूँकि ट्रांसफॉर्मर, ट्रांसफॉर्मर अनुपात् 1: 2 वाला उच्चायी ट्रांसफॉर्मर होता है, डायोड में लगाए गए ट्रांसफॉर्मर के निर्गत वोल्टेज का अधिकतम मान होगा

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प्रश्न 29.
NAND गेट के संयोजन को चित्र में दर्शाया गया है। समतुल्य परिपथ होगा –
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 3
(a) AND गेट
(b) NOR गेट
(c) OR गेट
(d) NOT गेट
उत्तर-
(c) OR गेट

प्रश्न 30.
बूलियन बीजगणित (Algebra) आवश्यक रूप से किस पर आधारित होता है ?
(a) संख्या
(b) सत्यता
(c) तर्क
(d) प्रतीक
उत्तर-
(c) तर्क

प्रश्न 31.
चार लॉजिक गेटों के प्रतीकात्मक प्रदर्शन यहाँ दिये गये हैं । OR, NOT एवं NAND के लिए तर्क प्रतीक क्रमशः हैं
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 4
(a) (iv), (i), (iii)
(b) (iv), (ii), (i)
(c) (i), (iii), (iv)
(d) (iii), (iv), (ii)
उत्तर-
(b) (iv), (ii), (i)

प्रश्न 32.
बूलियन बीजगणित में, यदि A = 1 तथा B = 0, तो A + B̄ का मान होगा –
(a) A
(b) AB
(c) A+ B
(d) (a) एवं (c) दोनों
उत्तर-
(d) (a) एवं (c) दोनों

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प्रश्न 33.
बाइनरी संख्या (11010.101)2 के समतुल्य दशमलव है
(a) 9.625
(b) 25.265
(c) 26.625
(d) 26.265
उत्तर-
(d) 26.265

प्रश्न 34.
एक 220 Vac सप्लाई को चित्र में दर्शाए गए अनुसार A एवं B बिन्दुओं के बीच जोड़ा जाता है। संधारित्र में विभवान्तर V क्या होगा?
Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ - 5
(a) 220 V
(b) 110 V
(c) 0 V
(d) 220 12 V
उत्तर-
(d) 220 12 V

Bihar Board 12th Physics Objective Answers Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी : पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ

प्रश्न 35.
होल (कोटर) है –
(a) इलेक्ट्रॉन का प्रतिकण
(b) जब एक इलेक्ट्रॉन सहसंयोजक बन्ध को छोड़ता है तो उत्पन्न होने वाला रिक्त स्थान
(c) मुक्त इलेक्ट्रॉनों की अनुपस्थिति
(d) कृत्रिम रूप से उत्पन्न कण
उत्तर-
(b) जब एक इलेक्ट्रॉन सहसंयोजक बन्ध को छोड़ता है तो उत्पन्न होने वाला रिक्त स्थान

Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

मातृभूमि पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यह कविता किसे संबोधित है?
उत्तर-
यह कविता माता, मातृभूमि और मातृभाषा को सम्बोधित है।

प्रश्न 2.
कवि ने स्वयं को मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ना कहा है। उन्होंने अपनी गति की तुलना समुद्र से की है। कवि ने ऐसी तुलना क्यों की है? काव्य पंक्तियों को उद्धत करते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि ने स्वयं को मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता कहा है। उन्होंने अपनी गति की तुलना समुद्र से करते हुए कहा है कि-“और मैं मेले में खोए बच्चे-सा दौड़ता हूँ तुम्हारी ओर जैसे वह समुद्र जो दौड़ता आ रहा है छाती के सारे बटन खोले हहाता।”

कवि आर्थिक उदारीकरण के आधुनिक युग में सामाजिक विषमता के मेले में खो गया है। मेले में खोए बच्चे को अगर उसकी जननी का अक्स अकस्मात दिखाई पड़े तो उत्कट अभिलाषा से आवेशित होकर वह तूफानी वेग से अपनी माता की ओर दौड़ पड़ता है-अपनी मैया के ममता भरी आँचल के शीतल छाँव में। समुद्री तूफान को कोई सीमा या दिशा रुकावट नहीं डाल सकती वैसे ही माँ और शिशु का मिलन कवि द्वारा बच्चे की गति की तुलना समुद्री गति से कर कवि ने वात्सल्य की वाटिका को गौरवान्वित किया है।

वस्तुतः कवि के दृष्टिकोण, सोच और संवेदना एक स्वावलम्बी, समृद्ध और समतामूलक समाज का मूर्त रूप देखना चाहता है और आशा की किरण देखते ही समुद्री वेग से अपने लक्ष्य को पाने के लिए दौड़ता है। कवि वैश्विकता से उपजे घोर आर्थिक विषमता के बीच अपने को मेले में खोए बच्चों के रूप में पाता है।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

प्रश्न 3.
‘वे मजदूर सो सोख रहे हैं बारिश मिट्टी के ढेले की तरह’ कवि ने मजदूरों के लिए ऐसी उपमा क्यों दी हैं?
उत्तर-
कवि ने मजदूर को मिट्टी के ढेले सादृश्य प्रतिपादित किया है। इस कविता में आर्थिक विषमता पर करारा व्यंग किया गया है। मिट्टी के ढेले के समान मजदूर अतृप्त रहता है। मिट्टी के ढेले पर बारिश पड़ने पर वह सोख लेता है उसी प्रकार मजदूर जो कि आर्थिक विपन्नता से भरे हैं, थोड़ी सी मजदूरी से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाते। आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान युग में आर्थिक गति की बाढ़ सी आ गई है, परन्तु मजदूरों का उनका उचित मेहताना भी नहीं मिलता; वे आर्थिक विषमता से अभिशप्त है।

वैश्विकता के इस युग में वर्षा (अर्थ) का अधिक से अधिक हिस्सा हड़प लेने की मनसा लिए हमारे प्रतिनिधि (साँद) खुलेआम विचरण कर रहे हैं। हमारे परिवेश में उपलब्ध साधन केवल दबंगों के निमित्त ही रह जाता है। मजदूर तो कोमल हाड़-मांस से सृजित है परन्तु अभिशप्त है, वर्षा की बूंदे सोखने के लिए। जब तक वे वर्षा में भीगेगे नहीं तबतक उनके परिवार की जठराग्नि शान्त नहीं होगी। मजदूरी रूपी वर्षा तो उनके परिवार में ऐसे ही विलीन हो जाता है जैसे वर्षा की बूंदों को मिट्टी की ढेले सोख लेता है।

प्रश्न 4.
नीचे उद्धत काव्य पंक्तियों का मर्म उद्घाटित करें
“घर के आँगन में वो नवोढ़ा भींगती नाचती और काले पंखों के नीचे कौवो के सफेद रोएँ तक भीगते और इलाइची के छोटे-छोटे दाने इतने प्यार से गुत्थमगुत्था ये सब तुम्ही तो हो”
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के ध्वजावाहक कविवर अरुण कमल रचित ‘मातृभूति’ शीर्षक कविता से उद्धत हैं। कवि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए जड़ और चेतन दोनों में मातृभूमि की तस्वीर देखता है।

वर्षा प्रकृति का वरदान है जिससे पृथ्वी पर जीवन का संचार होता है। परन्तु वर्षा में घर के आँगन में नव नवेली दुल्हन भींगती है और कौओं के उपरी पंख भिंगने के बाद आवरण से ढंका सफेद रोएँ भी भीग गये हैं। इलाइची के दाने भी वर्षा की बूंदों से तृप्त होकर आपस में गुथमगुत्था हो गए हैं। इन सभी रूपों में “हे मातृभूमि तुम्हीं तो प्रतिबिंबित होती हो।”

कवि ने समाज में विभाजित आर्थिक विषमता जो कि क्रमशः उच्चवर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्नवर्गों की दशा और दिशा की ओर संकेत किया है।

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प्रश्न 5.
“आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की”-यह कैसी भाप है? इस भाप के इतना फैलने में किस तरह की व्यंजना है?
उत्तर-
कवि समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता से व्याकुल है। वह परोक्ष रूप से हमारी शोषणपूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था पर की करारी चोट की है। साथ ही साथ हमें आर्थिक विषमताजन्य स्थिति और परिस्थिति को समाप्त करने की दिशा में सोचने के लिए वाध्य करती है।

कवि का इशारा आर्थिक उदारीकरण की ओर है। कवि कहना चाहता है जब भीख माँगने आशय है कि औद्योगिक क्रान्ति, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के इस दौड़ में मानवीय संवेदना स्वयं तक सिमट कर रह गई है। बौद्धिक छल-बल के बीच मानव कराह रही है।

प्रश्न 6.
कई दिनों से भूखे-प्यासे कवि को माँ किस रूप में दिखलाई पड़ती है? कवि ने किन स्थानों के बच्चों का उल्लेख कविता में किया है, और क्यों?
उत्तर-
कविवर अरुण कमल ने विपन्नता की मार से त्रस्त भूखे बच्चों की मार्मिक चित्रण किया है। भूखे बच्चे माँ की ओर मेवा, अखरोट, मखाना और काजू अर्थात सुख समृद्धि देने वाली करुणामय देवी के रूप दिखलाई पड़ती है।

कवि ने प्रकृति के क्रूर मजाक का शिकार आन्ध्रप्रदेश के किसानों के बच्चे, उड़ीसा के कालहाँड़ी के बच्चे और झारखण्ड के पलामू के बच्चे की दारुण दशा का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। प्रकृति के श्राप से अभिशप्त इन क्षेत्रों में पानी का तल काफी नीचे और जमीन ऊपर होने के कारण इन्हें ‘मौत का दूत’ के रूप में दुनियाँ देखती है। कवि चाहता है कि इन क्षेत्रों का भी उद्धार हो और वहाँ भी विकास की रोशनी पहुँचाई जाय।

प्रश्न 7.
“ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ
इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ
इनके भींगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से”
-इन पंक्तियों का अर्थ लिखें। कवि ने यहाँ ‘भींगे केश’ क्यों लिखा है? अपनी कल्पना से उत्तर दें।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी विचारधारा के कवि अरुण कमल रचित ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि का दृष्टिकोण, सोच और संवेदना में दृढ़ता, गहराई, व्यापकता और अमोघता परिलक्षित होती है।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

कवि कहना चाहता है कि मामूली कर्ज के बदले में पराधीन बेगारी की जिंदगी जीने के लिए अभिशप्त अपने यतीम और अनाथ बच्चों को अपने श्यामल हाथों से आशीर्वाद देकर उनको बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराकर उसके जीवन को सँवार दो हे मातृभूमि।

कवि ने मातृभूमि से अपनी हाथों से ‘भीगे केश’ संवारने का अनुरोध किया है। ‘भीगे केश’ से कवि का अभिप्राय ‘गरीबी का बवंडर में उलझी जिंदगी’ से है। औद्योगीकरण, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के चक्रव्यूह में शोषित, दलित मानवता को पीसते देखकर कवि व्यथित हो उठा है। आधुनिक जीवन-शैली में जो त्वरित गति रो परिवर्तन हो रहा है उसका दुःप्रभाव समाज के साधनहीन वेवश गरीब मजदूर और किसानों पर पड़ रहा है।

बौद्धिक छल-बल के कारण व्यवहार और विचार में कहीं साम्यता नहीं है। समाज का एक बड़ा वर्ग कृषि जमीदारों तथा आधुनिक औद्योगिक जमींदारों की चक्की के दो पाटों के बीच उनकी स्वार्थपरता का शिकार हो रहा है। उनकी जिन्दगी ‘भींगे केश’ की भाँति इलझ कर खुद तक सिमट गई सी प्रतीत होती है।

प्रश्न 8.
‘तुम किसकी माँ हो मातृभूमि’-इस प्रश्न का मूल भाव आपके विचार में क्या है?
उत्तर-
‘तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि’ के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि वैश्विकता के इस आधुनिक युग में आज समाज का एक बड़ा तबका यतीम अंत अनाथ सदृश कृषि अथवा औद्योगिक बंधुआ मजदूर बनने को अभिशप्त है। समाज का एक तबका विकास की बाढ़ से सिंचित है तो दूसरा तबका शोषण, उत्पीड़न तथा भुखमरी का शिकार है।

वह मातृभूमि से पूछता है कि तुम किसकी माँ हो-सम्पन्नता के साँढ़ की या निर्धनता रूपी बकरा की। एक तरफ विकास का गगा बह रही है तो दूसरे तरफ साधनहीनता का रेगिस्तान। वस्तुतः कवि कहना चाहता है कि मानवीय जीवन में हम विकास की अनगिनत सोपानों पर बढ़े परन्तु बौद्धिक छल-बल के बीच मानवता पीस रही है, कराह रही है। संक्रमण के इस काल में मातृभूमि को ही फैसला लेना है ताकि मानवता खुशियों से लहलहा उठे।

प्रश्न 9.
और मैं भींज रहा हूँ
नाच रही धरती नाचता आसमान मेरी कील पर नाचता-नाचता
मैं खड़ा रहा भीजता बीचों-बीच।
-इन पंक्तियों का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
कविवर अरुण कमल ने समाज में व्याप्त विषमता पर करारा चोट किया है। कवि आसमान और धरती के बीच खड़ा भीग रहा है। समाज का एक वर्ग अट्टालिकाओं और महलों के साये में विलासी जिन्दगी बिता रहा है तो दूसरा वर्ग आश्रय देने में असमर्थ झोपड़ी में शोषण पूर्ण तथा घोर विषम अर्थव्यवस्था में जी रहा है। कवि दोनों के बीच का केन्द्र अर्थात मध्यम वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कवि का भाव दोनों के बीच अर्थात् धरती और आसमान के बीच ‘भीजना’ है। कवि की संवेदना में व्यापक गहराई, अक्षुण्ण दृढ़ता, व्यापकता और अमोघता यथार्थ रूप में परिलक्षित होता है।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

प्रश्न 10.
कविता में कवि ने स्वयं के भींगने को ‘भींजना’ कहा है जबकि सिंधु घाटी का चौड़े पट्टे वाला साँढ़, बच्चों के केश, नवोढ़ा या कौए के पंखों के लिए ‘भींगना’ ऐसा क्यों? क्या इसका कोई भौगोलिक भाषाई आधार है?
उत्तर-
कविता में कवि ने सिंधु घाटी का चौड़े पट्टे वाला साँढ़ को कृषि और औद्योगिक जमींदार तथा बच्चे, नवोढ़ा या कौए को यतीम, अनाथ और बंधुआ मजदूर का प्रतीक और खुद को दोनों के बीच अर्थात् मध्यम वर्ग का प्रतिनिधि के रूप में रेखांकित किया है।

कवि ने स्वयं के लिए ‘भींजना’ कहकर अपने गँवई भाषा भोजपुरी के प्रति श्रद्धा प्रदर्शित किया है। सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीन काल से ही समुन्नत एवम् सपन्नता के शिखर पर है। कवि का भोजपुर क्षेत्र अभी भी विकास की रोशनी से कोशों दूर है। दोनों क्षेत्रों के भौगोलिक और भाषाई आधार में जमीन और आसमान का अन्तर है।

प्रश्न 11.
शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधान है। उसके सावधान शब्द प्रयोगों के कुछ उदाहरण कविता से चून कर उनका अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रगतिशील यथार्थवादी कवि अरुण कमल ने शब्दों के प्रयोग में परंपरा से अपना एक जीवंत और स्वतंत्र संबंध बनाया है। उनके शब्दों में हिन्दी और भारतीय धातु और प्रकृति है, तो वैश्विक उसका परिवेश और प्रत्यय। शब्दों के प्रयोग में कवि अपनी पीढ़ी में अतिशय सावधानी बरतने के कारण इनकी उपलब्धियाँ चढ़ती दोपहरी के समान है। भोजपुरी शब्दों का कविता में अतिशय प्रयोग कर कवि ने अपनी गँवई भाषा के प्रति श्रद्धा अर्पित की है।

कवि के सावधान शब्द प्रयोगों के उदाहरण भीजता, बँक, हहाता, ओट, छेके, बारिश, नवोदा, गुत्थमगुत्था, खुबनियाँ, चौखट, श्यामल, धूसर, छप्परों, देहरी, टेक, बंधुआ, अनाथ, सँवार और तकती आदि हैं। जिसका अर्थ क्रमशः भींजना, आच्छादित, उत्कट अभिलाषा से भरना, हलचल पैदा करती, सहारा, आरक्षित, वर्षा, नई नवेली दुल्हन, एक दूसरे से गुंथा हुआ, एक प्रकार का मेवा, कमरा का निकास द्वारा, साँवला, धूल से भरा, झोपड़ी का छत, दरवाजा, सहारा, मामूली कर्ज के बदले पराधीन बेगारी जिन्दगी जीने के लिए अभिषप्त व्यक्ति, सजाना है।

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

प्रश्न 12.
इस कविता में ‘माँ’ और मातृभूमि की छवियाँ एक-दूसरे में घुल-मिलकर एकाकार हो जाती है। तथा देश और काल के पटल पर माँ की प्रतिमा व्याप्ति और विस्तार पा जाती है। इस दृष्टि से कविता पर विचार करें और एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के उन्नायक कवि अरूण कमल ने ‘मातृभूमि’ कविता में आधुनिक भावबोध, सामयिक जीवनानुभव, संवेदना और कलात्मक उत्कृर्ष की प्राणाणिक और प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। इस कविता में जननी, जनमभूमि की मातृ-प्रतिमाएँ बिना अधिदैविक अथवा धार्मिक-दार्शनिक प्रतिपत्तियों, आशयों या विवक्षाओं के, एक दुसरे में घुल-मिलकर एकाकार हो जाती हैं।

मातृभूमि के संदर्भ में कवि के वैचारिक बिन्दुओं की आधुनिक परिवेश में अनन्य प्रस्तोता सदृश दिखते हैं। इस कविता में भारतीय सामाजिक और आर्थिक विषमता का अतीत तथा वर्तमान के सन्दर्भ में व्यंगात्मक चित्र प्रतिबिंबित किया गया है। हमारी मातृभूमि अपनी समृद्धि तथा उत्कर्ष के कारण विश्व के तल पर अतुलनीय तथा अन्यतम वर्तमान समय सुख-समृद्धि के साध्य की प्राप्ति के लिए अपेक्षित साधनों के वहन का सुखद काल है जिसका समुचित उपयोग से इसका भविष्य भी सिद्धि और सफलता का स्वर्णिम काल होगा।

कवि जननी और जन्मभूमि से आग्रह करता है कि औद्योगिक क्रान्ति, बौद्धिक जागरण और वैश्विकता के इस युग में भी समाज का एक बड़ा तबका शोषित, दलित तथा दारुण जीवन जीने को अभिशप्त है, उसकी जिन्दगी सँवार दो माँ! माँ तो वात्सल्य की वाटिका होती है। जिससे उसके पुत्र चैन की नींद लेते हैं। कवि ममता की मंजूषा से आग्रह करता है कि हे माँ, करूणामयी छाँव में तुम्हारी संतानों को तुम्हारे अलावे कोई भी देख नहीं सकता, एक तुम ही हो जो इन्हें शान्ति के शिविर और स्नेह के सुख-सदन तक पहुँचा सकती हो। माँ को बच्चों के दुःख से द्रवित होना पड़ता है।

कवि कहना चाहता है बौद्धिक छल-बल के बीच माँ की संतानों का एक तबका आर्थिक उदारीकरण की चक्का में पिसकर कराह रहा है। संकट की इस घड़ी से मुक्ति की युक्ति के लिए अन्वेषण-कार्य करने के लिए कवि माँ से प्रार्थना करता है।

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वस्तुतः कविवर अरुण कमल आधुनिक समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता, सामाजिक तनाव और वैमनस्यता को दूर करने के लिए माँ का आशीर्वाद चाहता है। उनका कहना है कि समाज के सारे अनर्थों की जड़ समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता और बौद्धिक छल-बल है। अगर हम प्रत्येक मनुष्य को अधिकार दें तो सारे अनर्थ एक ही साथ समाप्त हो जाएँगे।

हमें ऐसा समझना चाहिए कि भिन्न-भिन्न तबके के लोग एक दूसरे से भिन्न नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसे-शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में किसी भी अंग के पीड़ित अथवा आनंदित होने से पूरा शरीर पीड़ित अथवा आनंदित होता है, उसी प्रकार किसी भी तबका के पीड़ित तथा आनंदित होने से सम्पूर्ण भारतवासियों को पीड़ा अथवा आनन्द की अनुभूति होनी चाहिए।

अगर कोई तबका आहत हो जाए तो दूसरे तबके का कर्तव्य है कि उसके जख्मों पर स्नेह का लेप लगा दे तो आहतों को पीड़ा अनुभव न हो पाएगा। कवि भारतवासियों से संकीर्णता के दायरे से ऊपर उठकर अपने विशाल हृदय का परिचय देने की आशा करता है, ताकि गरीब और अमीर घुल-मिल-कर एकाकार हो जाएँ।

प्रश्न 13.
मातृभूमि कविता का भावार्थ लिखिए? [B.M.2009(A)]
उत्तर-
अपने समकालीन समाज के विद्रूप चेहरे को प्रस्तुत करने वाली कविता मातृभूमि है, जिसके यशस्वी रचनाकार अरुण कमल हैं।

यहाँ कवि भारत के बच्चों के उस वर्ग की चर्चा करता है जो प्राकृतिक आपदाओं में अपने माँ-बाप खो चुका है और वर्तमान में पेट भरने के लिए कहीं बाल मजदूरी या बंधुआ मजदूरी कर रहा है। इनके दु:खों का कहीं अंत नहीं। ये बच्चे ममता से वंचित हैं। इनके सिर पर छत नहीं है। वर्षा में भीगते हुए ये अपना शोषण करा रहे हैं। कवि का ‘भींगे केश’ का उपयोग इस संदर्भ में है कि मौसम की मार से इनका बचाव करने वाला कोई नहीं। ये बच्चे ममता से पूर्णतः वंचित है। इन्हें भी स्नेह, प्यार, ममत्व भरा स्पर्श चाहिए, जो मातृभूमि ही दे सकती है। इसलिए मातृभूमि से कवि इन बच्चों के जीवन में प्रेम, आशा, ममता का संचार करने का आग्रह करता है।

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मातृभूमि भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के वचन परिवर्तित करें
पौधों, रास्ता, बकरियाँ, पेड़, मजदूर, पंखों, कौवों, रोटी, रूमाल, तश्तरी, गिलास, छप्परों, हाथों, किसानों।
उत्तर-
पौधों-पौधा, रास्ता-रास्ते, बकरियाँ-बकरी, पेड़-पेड़ों, मजदूर-मजदूरों, पंखों-पंख, कौवों-कौवा, रोटी-रोटियाँ, रूमाल-रूमालें, तश्तरी-तश्तरियाँ, गिलास-गिलासों, छप्परों, छप्पर, हाथों-हाथ, किसानों-किसान।

प्रश्न 2.
अनाथ शब्द में कौन-सा समास है?
उत्तर-
अनाथ शब्द में न समास है। नञ् समाज तत्पुरुष समास का वह भेद है जिसका प्रथम पद न, ना, अन् जैसे निषेधवाचक होता है।

  • अनाथ = न, नाथ
  • अनिष्ठ = न, इष्ट
  • अनजाना = न, जाना आदि।

प्रश्न 3.
कविता में उनपंक्तियों को चुनें जिनमें निजवाचक सर्वनामों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
निवाचक सर्वनाम ‘आप’ है, जिसका उपयोग निश्चय, निरकारण, सर्वसाधारण और अवधारणा के अर्थ में होता है।

मातृभूमि कविता में निजवाचक सर्वनाम (आप) का प्रयोग हुआ ही नहीं है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखें आसमान, धरती, समुद्र, पेड़, माँ, दूध।
उत्तर-

  • आसमान – गगन, व्योम, आकाश
  • धरती – धरा, धरित्रि, पृथ्वी, भूमि
  • समुद्र-सागर, अर्णव, अम्बुपति
  • पेड़ – वृक्ष, रुख, तरु
  • माँ – माता, जननी
  • दूध – पय

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों से विशेषण चनें
उत्तर-
(क) और काले पंखों के नीचे कौवों के सफेद रोयें तक भीगते।
विशेषण-काले, सफेद

(ख) तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की।
विशेषण-इतनी गर्म।

(ग) धरती. का रंग हरा होता है, फिर सुनहला फिर धूसर।
विशेषण-हरा, सुनहला, धूसर।

(घ) इनके भीगे केश सँवार दो अपने श्यामल हाथों से।
विशेषण-भींगे, श्यामल।

(ङ) मेरे थके माथे पर हाथ फेरती तुम्हीं तो हो मुझे प्यार से तकती।
विशेषण-थके।

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अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

मातृभूमि दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मातृभूमि शीर्षक कविता का परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर-
अरुण कमल द्वारा रचित ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता समसामयिक कविता में एक दुर्लभ उदाहरण है। इसकी संवेदना, विषय-वस्तु और कलात्मकता अपने ढंग की अकेली है। इस कविता में मातृभूमि, जननी और मातृभाषा की मातृ-प्रतिमाएँ एक-दूसरे से घुलमिल गई है। मातृभूमि का चित्रण यहाँ कवि ने पारम्परिक ढंग से आधिदैविक अथवा धार्मिक-दार्शनिक भावभूमि पर नहीं किया है। इस कविता में माँ, मातृभूमि और अंशत: मातृभाषा की मिली-जुली प्रतिमा व्यक्ति, देश और काल की सीमित परिधियों से अलग होकर एक विशद् चेतन सत्ता बन जाती है, जो दुःख-ताप, रोग-शोक को हरने वाली करुणा तथा तृप्ति-सुख, शान्ति-प्रेम और वात्सल्य से परिपूर्ण है।

अरुण कमल की यह कविता प्रतिपादित करती है कि आज का सामान्य मानव अपनी त्रासद स्थितियों से भयभीत है। यहाँ के बच्चे यतीम, अनाथ है, दुख-दर्द से आहत है। कवि मातृभूमि की दया के प्रति आस्थावान है। उसे विश्वास है कि अभावग्रस्त भारत की संतानों का जीवन ज्यांतित होगा, नई आशा की ज्योति फूटेगी, और कलुषित जीवन का क्रन्दर दूर होगा, अंधेरे से प्रकाश की ओर लोग बढ़ेगे। इसीलिए तो कवि कहता है-“ये यतीम, ये अनाथ, ये बंधुआ, इनके माथे पर हाथ फेर दो माँ”।

प्रश्न 2.
मातृभूमि शीर्षक कविता की समीक्षा करें।
उत्तर-
अरुण कमल की ‘मातृभूमि’ कविता पारस्परिक ढंग से मातृभूमि की वंदना एवं उनकी उपादेयता स्पष्ट करने वाली कविताओं से सर्वथा भिन्न है। यह समसामयिक कविताओं में अपनी विषय-वस्तु, संवेदना और अप्रतिम कलात्मकता के कारण अत्यन्त ही दुर्लभ उदाहरण है। यह मातृभूमि ही है, जिसके कण-कण में हमारी जिन्दगी की धड़कनें कैद हैं। पग-पग पर हम इसके उपकारों में उपकृत होते रहते हैं। जीवन शतदल का खिलना, इसी पर निर्भर है। हम अपनी पीड़ा, वेदना और अन्तर्दाह को मातृभूमि की छत्र-छाया में ही भूल जाते हैं।

मातृभूमि में अगाध ममत्व है, प्रेम और दया है। इसकी गोद में असंतोष के कांटे नहीं फूल ही फूल है। हमारी मातृभूमि का धरातल सुविस्तृत है। पीड़ित मन की वेचैनी एवं उसके अभावग्रस्त जीवन, उपेक्षित शोषितों के अन्तर्दाह को शामिल करनेवाली यह मातृभूमि ही है। कवि ने स्पष्ट किया है कि सभी अनाथ, यतीम व्यक्ति जो जीवनव्यापी विसंगतियों एवं विकृतियों को झेलते हुए जी रहे हैं, उसके लिए मातृभूमि आस्थामयी माँ की तरह है, जो उसके कष्टों को दूर करती है। तभी तो कवि कहता है-

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“कई दिनों से भूखा-प्यासा तुम्हें ही तो ढूँढ रहा था चारों तरफ
आज जब भीख में मुट्ठी भर अनाज भी दुर्लभ है
तब चारों तरफ क्यों इतनी भाप फैल रही है गर्म रोटी की,
लगता है मेरी माँ आ रही है, नक्काशीदार रुमाल से ढंकी तश्तरी में,
खुबानियाँ अखरोट मखाने और काजू भरे।”

इस कविता में मातृभूमि का स्वरूप एक आस्थामयी माँ के रूप में अंकित है, जो हमारी हताशा को दूर करती है। माँ की तरह हमारी धरती माँ हमें दुलार देती है, प्यार और स्नेह देती है। जीवन को जीवन बनाये रखने की शक्ति हम मातृभूमि से ही प्राप्त करते हैं। कवि मातृभूमि रूपी माँ की करुणा का आकांक्षी है। वह अभावग्रस्त यतीम, अनाथ, बन्धुता लोगों के प्रति अत्यधि क संवेदनशील है। वह चाहता है कि मातृभूमि इन यतीमों, अनाथों के दुःख-दर्द को दूर कर दे। माँ वात्सल्यमयी है, वह रोग-शोक को हरने वाली एक विराट् चेतना सत्ता है।

मातृभूमि लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘मातृभूमि’ कविता में प्रकृति का कैसा चित्रण किया गया है?
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में प्रकृति को माँ माना गया है। वह माँ रूपा प्रकृति वर्षा के रूप में स्नेह वर्षा कर रही है। धान के पौधों से वह इस तरह ढंकी हैं कि रास्ता तक नहीं दिखाई पड़ता है। सत् होती वर्षा में पशु, पक्षी मनुष्य सब भीग रहे हैं। साँढ़ बीच सड़क पर खड़ा भीग रहा है। कौओं के रोंये तक भींग गये हैं।

प्रश्न 2.
‘मातृभूमि’ कविता में वर्षा के विवरण की समीक्षा कीजिए।
उत्तर-
‘मातृभूमि’ कविता में मूलतः वर्षा में भींगने का वर्णन हुआ है। कवि स्वयं के भींगने शाग्रस्त पत्र उन्ह हम धरती भीगते साँढ़ तथा मजदूर के भींगने, नवोढ़ा स्त्री के भीगते नाचन तथा कौओं के भींगने का वर्णन करता है।

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प्रश्न 3.
‘मातृभूमि’ कविता में बच्चे का कैसा चित्रण किया गया है?
उत्तर-
‘मातृभूमि’ कविता में बच्चों का कई बार उल्लेख हुआ है। बच्चे उन स्थानों के किसानों के बच्चे है जिन किसानों ने अलाभकर खेती से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। अतः ये बच्चे अनाथ हैं, यतीम हैं और बंधुआ हैं। वस्तुत: कवि ने यहाँ बच्चे को प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया है। ये धरती पर कृषि-कर्म पर आरित जितने भी किसान हैं उन्हें हम धरती-पुत्र भी कहते हैं। इसीलिए कवि ने किसानों को माँ धरती का दुर्दशाग्रस्त पुत्र कहा है।

मातृभूमि अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्षा में भींगने का सुख कौन-कौन ले रही हैं?
उत्तर-
वर्षा में भींगने का सुख मजदूर, नवोढ़ा स्त्री, कौए और साँढ़ ले रहे हैं। स्वयं कवि भी यह सुख ले रहा है।

प्रश्न 2.
आंध्र के किसानों के बच्चे कैसे हैं?
उत्तर-
आंध्र के किसानों के बच्चे भूखे, यतीम और अनाथ हैं, बंधुआ हैं।

प्रश्न 3.
कवि को रास्ता क्यो नहीं सूझ रहा है?
उत्तर-
धान के पौधों से धरती हँकी है। बढ़े हुए पौधों ने अधिक फैलकर रास्तों को भी बैंक लिया है। इसलिए कवि को रास्ता नहीं सूझता है।

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प्रश्न 4.
बच्चे रसोई घर की देहरी पर क्यों खड़े हैं?
उत्तर-
बच्चे यतीम और अनाथ हैं। इनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है। अतः ये भोजन की आशा में रसोईघर की देहरी पर खड़े हैं।

प्रश्न 5.
कवि मातृरूप भूमि के बच्चों के विषय में क्या अनुरोध करता है?
उत्तर-
कवि मातृरूपा भूमि से बच्चों के माथे पर हाथ फेरने तथा इनके भींगे केशों को अपने श्यामल हाथों से सँवार देने का अनुरोध करता है।

प्रश्न 6.
मातृभूमि शीर्षक कविता किससे संबोधित है?
उत्तर-
मातृभूमि शीर्षक कविता मातृभूमि के साथ-साथ मातृप्रतिमाओं को सम्बोधित है।

प्रश्न 7.
मातृभूमि में किन बातों का समावेश है?
उत्तर-
मातृभूमि में इन बातों का समावेश है-
(क) अगाध ममता
(ख) प्रेम और दया
(ग) फूल-ही-फूल इत्यादि।

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मातृभूमि वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएं

प्रश्न 1.
‘मातृभूमि’ कविता के कवि कौन हैं?
(क) विद्यापति
(ख) मीराबाई
(ग) अरुण कमल
(घ) कबीर
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 2.
अरुण कमल का जन्म कब हुआ था?
(क) 1950 ई०
(ख) 1953 ई०ई०
(ग) 15, फरवरी, 1954
(घ) 1952 ई०
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 3.
अरुण कमल का जन्म स्थान कहाँ है?
(क) झारखंड
(ख) बनारस
(ग) बलिया
(घ) बिहार
उत्तर-
(घ)

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प्रश्न 4.
अरुण कमल की माता का नाम क्या था?
(क) सुरेश्वरी देवी
(ख) सरस्वती देवी
(ग) वीणा देवी
(घ) मीना देवी
उत्तर-
(क)

प्रश्न 5.
अरुण कमल के पिता का नाम क्या था?
(क) भरद्वाज मुनि
(ख) बाल्मीकि
(ग) कपिल देव मुनि
(घ) जाझवल्क्य मुनि
उत्तर-
(ग)

प्रश्न 6.
अरुण कमल को पुरस्कार मिला
(क) भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार (1980)
(ख) सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार (1989)
(ग) श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1996)
(घ) रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1996)
(ङ) शमशेर सम्मान (1997)
उत्तर-
(सभी)

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
…………… हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के महत्वपूर्ण कवि हैं।
उत्तर-
अरुण कमला

प्रश्न 2.
तपोमय इसलिए कि इसमें रात-दिन का …………… है।
उत्तर-
होम और पावनता।

प्रश्न 3.
अरुण कमल ने ………. अपना एक जीवंत स्वतंत्र संबंध बनाया है।
उत्तर-
परंपरा से।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता नवीनतम कविता संग्रह …………….. से ली गई है।
उत्तर-
पुतली में संसार।

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प्रश्न 5.
हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भावधारा के उन्नयाक कवि द्वारा रचित …….. उत्कृष्ट रचना है।
उत्तर-
मातृभूमि।

प्रश्न 6.
इस कविता में कवि ने माता के सम्पन्न एवं समृद्ध भंडार तथा उनके विपन्न संतानों की ……………. चर्चा की है।
उत्तर-
मार्मिक।

प्रश्न 7.
यह कविता …………….. को संबोधित है।
उत्तर-
माता और मातृभूमि।

प्रश्न 8.
कवि व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए ……………. में मातृभूमि की तस्वीर देखता है।
उत्तर-
जड़ और चेतन दोनों।

प्रश्न 9.
प्रकृति के श्राप से अभिशप्त इन क्षेत्रों में पानी का तल काफी नीचे और जमीन ऊसर होने के कारण इन्हें ……………. के रूप में दुनियाँ देखती है।
उत्तर-
मौत का दूत।

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मातृभूमि कवि परिचय – अरूण कमल (1954)

अरुण कमल का जन्म 15 फरवरी, 1954 को बिहार के नासरीगंज में हुआ था। वे हिन्दी की प्रगतिशील यथार्थवादी भाव धारा के प्रबल समर्थक और महत्त्वपूर्ण कड़ी हैं। इनका लेखन आँठवें दशक से शुरू हुआ, जो बिना किसी रुकावट के जारी है। समय के साथ सोच चिंतन में निखार, दृष्टि विस्तार, संवेदना की गहनता, सबका परिचय इनके क्रमागत लेखन से प्राप्त होता है।

कवि अपने कर्म क प्रति आस्थावान है, वह किसी दूसरे की संवेदना का वाहक नहीं है। वह जो कुछ है, पूरी निष्ठा से है। कवि श्रम में निष्ठा रखता है। उसे विश्वास है कि अपने पर विश्वास जमाकर हम अपना और संसार दोनों का भाग्य बदल सकते हैं। कवि स्वांतः सुखाय से प्रेरित होकर कविता नहीं करता, बल्कि वह जग को देखता है, भोगता है, भोगे जा रहे सुख-दुःख से गहरे प्रभावित होकर, तब उसे कविता का रूप देता है। इसीलिए उसमें ऊष्मा है, वजन है, प्रभावोत्पादकता है।

अरुण कमल हिन्दी के होकर भी अपनी माटी, मातृभाषा के दामन को लेकर चलने में विश्वास रखते हैं, इसलिए वे परम्परा से लोहा लेते भी नजर आते हैं। उनकी कविताओं में विषय-वस्तु, संवेदना, कलात्मक और समसामयिकता तीनों का मणिकांचन संयोग मिलता है। कवि को अपने पर भरोसा है, अपनी कलम पर विश्वास है। अरुण जी विश्व नियामक का एक अंश मानते हुए लिखते हैं-

“चारों ओर अंधेरा छाया
मैं भी उठू जला लूँ बत्ती
जितनी भी है दीप्ति भुवन में
सब मेरी पुतली में कसती”

स्वदेश के अनेक भागों तथा विदेशों की साहित्यिक यात्राएँ करने वाले अरूण जी अंग्रेजी के शिक्षक और हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका आलोचना के सम्पादक हैं। पत्रकारिता ने उनकी दृष्टि को और पैना कर दिया है। महान् लेखिका महाश्वेता देवी की टिप्पणी है-“अरुण कमल ने जीवन और संघर्ष दोनों को नये बिम्बों में प्रकट किया है। वे खेतों, बधारों और मैदानों के कवि हैं, उनकी कविताएँ मनुष्य के स्वाभिमान के लिए संघर्ष करती हैं।”

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 12 मातृभूमि (अरुण कमल)

अरुण कमल जी का सृजन अभी जारी है। अभी वैचारिकता के कई पड़ाव आयेंगे। कल्पनाओं की नई ऊँचाइयाँ वे छूते दिखेंगे। अभी उनको लेकर कोई अन्तिम राय नहीं बनायी जा सकती। मातृभूमि के प्रति आज कवि संवेदनाशील है तो कल उसके भाव कुछ और हो सकते हैं।

अरुण कमल वास्तविकता के धरातल पर संभावनाओं के कुशल चितेरे हैं। वस्तुतः कवि अरुण कमल आधुनिक हिन्दी के हितों के एक सशक्त हिन्दी कवि हैं।

मातृभूमि कविता का सारांश

हमारे पाठ्य-पुस्तक दिगंत भाग-1 में संकलित आधुनिक काल के चिंतक, कवि अरुण कमल रचित. मातृभूमि शीर्षक कविता एक ही साथ वर्षा ऋतु, शिशु-माँ सम्बन्ध और मन को झकझोर देने वाली घटनाओं तथा समस्याओं का दस्तावेज है।

संध्या का समय, वर्षा की झड़ी लगी है और कवि धरती से ऊपर और आसमान के नीचे उसमें भीग रहा हैं। जिस तरह से भींगने की प्रक्रिया चल रही है, कवि कल्पना लोक में चला जाता है और यह धरती उसे अपनी माँ नजर आने लगती है, जो कहीं दूरी पर है और बीच में धान के बड़े-बड़े पौधे से रास्ता दीख नही रहा है। अचानक माँ तक पहुँचने के लिए लड़का बदहवास होकर दौड़ता है, जैसे समुद्र अपनी लहरों के माध्यम से अनर्गलाओं को तोड़ता किनारे की ओर दहाता हुआ दौड़ता है।

दूर कहीं कंदराओं से पूजा के क्रम में शंख घोष होता है, जो अंधकार के बितान में आलोड़न उत्पन्न करती है। – बकरियाँ पहली ही बौछार से अपने को बचाती पेड़ों की शरण में है तो लम्बा-चौड़ा हट्टा-कट्टा साँढ़ जिसकी तस्वीर सिन्धु घाटी की सभ्यता पढ़ते समय देखा था, वह बेखबर सड़क के बीचो-बीच रास्ता रोके खड़ा है। मजदूर अभी-भी अपने काम पर डटे हुए हैं। दिन-भर श्रम करने से उसके शरीर की नमी समाप्त हो गयी है। उनके ऊपर वर्षा की बूंदें पड़ती हैं और उनके शरीर के द्वारा सोख ली जाती है। जैसे सूखी मिट्टी का ढेला पानी सोख लेता है।

आँगन में बिखरे सामानों को बचाने के लिए एक नयी-नवेली दुल्हन अपने पूरे शृंगार के साथ वर्षा में भीगते हुई बिखरे सामानों को इकट्ठा करने में आँगन में दौड़ती नाचती आती है। पेड़ों पर पत्ती की मुरझट में छिपे कौवे अब अपने रोमान्त (पंख के नीचे के ऊजले रोये) तक भीग चुके हैं। कवि को यह सारा कुछ मातृभूमि का ही विस्तृत रूप दीखता है, जो एक-दूसरे से इलायची के दानों की तरह एक-दूसरे से सम्बद्ध (गुत्थम गुत्थ) हैं।

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कवि बच्चा, बना कह रहा है कि कई दिनों से भूखा-प्यासा वह माँ को खोज रहा था, क्योंकि चारों तरफ रोटी की गर्म भाप का आभास तो होता था, किन्तु वास्तविकता में एक मुट्ठी अनाज भी कहीं से नहीं मिला। लेकिन हे मातृभूमि ! जबसे तुम्हें देखा है, लगता है तश्तरी में सूखे मेवे को समाप्त कर रुका ही है कि तुम गर्म दूध से भरा गिलास लिए तुम मेरे लिए आ रही हो। फिर कवि कल्पना करता है कि उसकी तरह सैकड़ों बच्चे तुम्हारी रसोई के दरवाजे पर खाना पाने के लिए खड़े हैं। हरी-भरी धरती पर फसल उगती है, पकती है और फिर खेत खाली हो जाते हैं। घरों में अन्न पकाने की प्रक्रिया शुरू होती है। फिर भी बच्चों को भोजन नहीं मिल पाता।

आखिर, काला-हाँडी, आन्ध्र, पलामू के पट्टन नरौदा पटिया के बच्चों के लिए अन्न क्यो नहीं है। इनका जीवन इतना रूखा-सूखा क्यों है? ये बंधुओ बने अपने बचपन को बेच रहे हैं। इन अनाथ-यतीम बच्चों को भी तुम्हारी ममता की आवश्यकता है। ऐसा तो नहीं कि तुम केवल मेरी माँ हो, तुम्हारा हाथ मेरे माथे पर फिर रहा है और मैं तुम्हारी ममता की बौछार में भींज रहा हूँ। लगता है आज धरती और आसमान दोनों मेरी धूरी पर मेरे इंगित पर नाच रहे हैं।

कविता अति बौद्धिक और वैचारिक पृष्ठ-भूमि की है। कवि एक ही साथ बच्चा और वयस्क दोनों नजर आता है। मातृभूमि कभी धरती तो कभी कवि को माँ के रूप में अनुभूत होती है।

किन्तु मुख्य कथ्य यही है कि इस धरती पर असमानता क्यों है। प्रकृति काला हाँडी, आन्ध्रप्रदेश आदि स्थानों पर इतनी निष्ठुर क्यों है। भोजन के अभाव में बेटा मर जाए तो माँ की ममता का महत्त्व ही क्या रह जायेगा। वास्तव में मातृभूमि के सभी सपूतों को अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन अवश्य उपलब्ध रहना चाहिये जिससे जीवन-स्तर में सुधार हो सके।

मातृभूमि कठिन शब्दों का अर्थ

हहाना-उत्कट अभिलाषा से भर उठना। कंदरा-गुफा। हिलाइती-हिलाती, हचचल पैदा करती। नवोढ़ा-नयी-नवेली दुलहन। नक्काशीदार-बेल-बूटेदार। यतीम-बेसहारा। श्यामल-साँवला। तकती-देखती। गुत्थमगुत्था-एक-दूसरे में गुंथा हुआ। दुर्लभ-आसानी से न मिलने वाला। खुबानियाँ-एक प्रकार का मेवा। कालाहाँडी-उड़ीसा का एक क्षेत्र जहाँ की जमीन ऊसर है, वहाँ पानी का तल नीचे है, वहाँ जीवन बहुत दूभर है, यह स्थान भूख से मरने वाले निवासियों का पर्याय बन चुका है। बंधुआ-जो मामूली कर्ज के बदले में पराधीन बेगारी की जिंदगी जीने के लिए अभिशक्त हो।

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मातृभूमि काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. आज इस शाम …………….. मेरी माँ मेरी मातृभूमि।
व्याख्या-
अरुण कमल रचित ‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों का चित्र यह है कि संध्या काल में हो रही वर्षा में कवि भीग रहा है। स्वभावतः ऊपर आसमान है और पैरों तले धरती। वह बीचों बीच हैं। इस भींगत क्षण में अचानक उसके भीतर एक अनुभूति कौंधती है। इस अनुभूति में वह मातृभूमि अर्थात अपनी जन्मभूमि का जननी के रूप में अनुभव करता है। कवि का अभिप्राय यह है कि धरती और माँ दोनों दो भौतिक अस्तित्व हैं। इन दोनों को एक अनुभव करना किसी विशिष्ट क्षण में संभव होता है। कवि के जीवन में इस एकात्मकता की अनुभूति वर्षा में भी गाते हुए क्षण में संभव हुई है।

2. धान के पौधों ने तुम्हें …………….. अंधकार को हिलोरती।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने एक चित्र खींचा है। चित्र के अनुसार धरती, धान की फसल से इनती भरी हुई है कि धरती पूरी तरह ढक गयी है। रास्ता तक इतना ढंक गया है कि दिखाई नहीं पड़ता है कवि अपने को मेले में खो गये बच्चे की तरह अनुभव करता है। ऐसे बच्चे में अपनी माँ को खोजने की तीव्र उत्कंठा होती है और पा जाने पर वह बेतहाशा माँ की तरफ दौड़ पड़ता है। कवि इसी प्रकार की आतुरता से ध रती की ओर दौड़ पड़ता है। इस दौड़ने की ललक और तीव्रता को व्यक्त करने के लिए यह दूसरा चित्र देता है।

वह चित्र है समुद्र का। समुद्र में जब ज्वार उठता है तो पानी का आवेग बड़ी तीव्रता से तट की ओर दौड़ता है और तट की धरती को अपने भीतर समेट लेता है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने कोई कोट पहन रखा हो और उसके सारे बटन खोलकर हटाता हुआ तट की और उसे अपनी छाती में चिपका लेने के लिए दौड़ रहा हो।

यहाँ यह टिप्पणी करना आवश्यक समझता है कि छाती के सारे बटन खोले हहाते समुद्र के दौड़ते आने का यह बिम्ब कहीं से भी कविता की सुन्दरता में कोई योगदान नहीं देता। यदि बटन खोलने से कवि का कोई विशेष अभिप्राय है, तो वह स्पष्ट नहीं है। इसी तरह कन्दराओं से अन्धकार को हिलोरती आने वाली शंख-ध्वनि का क्यों वर्णन हुआ है यह स्पष्ट नहीं है। यदि इसका अर्थ प्रकाश का शंखनाद है और अन्धेरेपन को तोड़ने का उपक्रम है तो उसका प्रयोजन व्यक्त नहीं है।

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3. वे बकरियाँ जो पहली बूंद …………….. पूरी सड़क छेके।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में बारिश होने से घटित दो चित्र दिये गये हैं। प्रथम वर्षा की पहली बूंद गिरते हो बकरियाँ भागकर किसी घर या वृक्ष के नीचे छिप जाती हैं। यह उनकी स्वाभाविक वृत्ति हैं। इसके विपरीत साँढ़ बड़े मजे से सड़क पर भींगता खड़ा रहता है। साँढ़ के प्रसंग में कवि ने तीन विशेषताओं का उल्लेख किया है। प्रथम यह कि उसके अगले पैरों से लेकर मुँह के बीच गले के नीचे पट्टा जैसा भाग लटका है वह काफी चौड़ा है।

अर्थात् साँढ़ लम्बे चौड़े डील डौल वाला है। द्वितीय यह कि कवि को सड़क पर भींगता वह भारी-भरकम साँढ़ सिन्धु घाटी की खुदाई में मिले उपादान पर बने साँढ़ के चित्र की याद दिलाते हैं। तृतीय साँढ़ पूरी सड़क छेककर खड़ा है। इन चित्रों के माध्यम से संभवतः कवि यह बताना चाहता है वर्षा क्रान्ति का विस्फोट है। जब क्रान्ति होती है तो बकरी जैसे लोग भाग खड़े होते हैं जबकि साँढ़ जैसे बलवान लोग पर्वत की तरह अडिग भाव से डटे रहते हैं। साँढ़ और बकरी के इस बिम्ब को ‘योग्य जन जीता है’ की उक्ति की व्याख्या के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है।

4. वे मजदूर जो सोख रहे हैं ……………. वे सब तुम्हीं तो हो।
व्याख्या-
अरुण कमल ने अपनी मातृभूमि कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में वर्षा भीगते कुछ . लोगों के चित्र दिये हैं। प्रथम चित्र उस मजदूर का है जिसका शरीर ढेले की तरह वर्षा के जल को सोख रहा है अर्थात् मजदूर भीगता हुआ भी अपने काम में तन्मय है। दूसरा चित्र उस नवविवाहिता का है जो घर से बाहर न निकलने के लिए विवश है।

अतः वह घर के आँगन में भीग रही है और भींगने की प्रसन्नता को नाच-नाच कर व्यक्त कर रही है। अर्थात् वर्षा उस नवोढ़ा के लिए आनन्ददायक है। तीसरा चित्र कौवे का है। वह कहीं बैठा भीग रहा है। उसके पंख तो गीले हो ही गये हैं। पंखों के नीचे जो हल्के सफेद रंग के रोये हैं वे भी भींग गये हैं। अत: वह भींगते रहने को विवश है।

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चौथा चित्र इलायची का जिसके भीतर दाने आपस में इस तरह चिपके हैं मानो प्यार के अतिरेक में गुत्थमगुत्था हो गये हैं। कवि बताना चाहता है कि हे मातृरूपा मातृभूमि इन सभी चित्रों में तुम्हारी ही अभिव्यक्ति है तुम्हारी ही तन्मयता तुम्हारा ही उल्लास और प्यार व्यक्त है।

5. कई दिनों से भूखा प्यासा …………….. दूध का गिलास लिए।
व्याख्या-
अरूण कमल ने अपनी प्रस्तुत पंक्तियों में धरती के मातृरूप को चिह्नित करने के लिए एक चित्र दिया है। कवि के माध्यम से भूखे प्यासे लोग कई दिनों से चारों तरफ मातृरूपा भूमि को ढूँढ रहे हैं। दूँढने का कारण स्पष्ट है। कवि इच्छा और यथार्थ की विषमता का विडम्बना भरा चित्र अंकित करता है कि आज जब भूखे लोगों को भीख में एक मुट्ठी अनाज दुर्लभ है। तब चारों तरफ गर्म रोटी की, इतनी भाप क्यों फैल रही है? कवि का तात्पर्य संभवतः यह है कि एक तरफ लोग रोटी के लिए तड़प रहे हैं और दूसरों की भूख को उत्तेजित कर रही है।

लेकिन शायद यह अभिप्राय कवि का नहीं है। रोटियों की भाप से भूखे लोगों को अनुमान होता है कि शायद माँ नक्काशीदार रूमाल से ढंकी तश्तरी में खुबानी, अखरोट, काजू भरे और हाथ में गर्म दूध का गिलास लिए आ रही है।

6. ये सारे बच्चे तुम्हारी रसोई ……………. फिर टोकसो रहे माँ।
व्याख्या-
कवि अरुण कमल ने अपनी ‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में भूमि को माँ के रूप में चित्रित किया है। जिस तरह भूख लगने पर बच्चे रसोई घर की चौखट पर जाकर खड़े तो जाते हैं भोजन पाने की प्रत्याशा में, उसी तरह भारतमाता के भूखे बेटे गरीब बेटे न जाने कवि से इसके रसोई घर की चौखट पर खड़े इस बात के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं कि धरती माँ के द्वारा दिये गये अन्न-धन में से उन्हीं भी उनका उचित भाग मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। धरती पौधों से हरी होती है, फिर अन्न की बालियों से सुनहली और फिर उनके कट जाने पर धूसर।

उसका रंग बदलता रहता है अर्थात् इसी तरह प्रत्येक वर्ष बीतता जाता है। जिनके पास अन्न होता है वे पकाते हैं जिसका धुंआ छप्परों से निकलता है और इसी तरह क्रम चलता रहता है। लेकिन जो बच्चे बेघर हो गये हैं वे वहीं के नहीं हैं। वे मातृरूपा धरती की देहरी पर भूखे ही सो गये हैं। अर्थात् उनकी दशा नहीं बदली है।

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ये बच्चे कालाहांडी, आंध्रप्रदेश, पलामू आदि स्थानों के उन किसानों के, धरती पुत्रों के बेटे हैं जिनके पिताओं ने कृषि-कर्म की निरन्तर उपेक्षा की है। बढ़ती लागत और कम होती आय तथा कर्ज से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। यहाँ कवि का तात्पर्य कम उम्र वाले बच्चों से नहीं है। उसका आशय कृषि-कर्म से जुड़े उन हजारों किसानों से है जो अब तक आत्महत्या कर चुके हैं या कर रहे हैं।

7. ये यतीम ये अनाथ ये बंधुआ ……………. तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि?
व्याख्या-
अरुण कमल की ‘मातृभूमि’ शीर्षक कविता की प्रस्तुत पंक्तियाँ अत्यन्त मार्मिक हैं। कवि भूखे किसानों को यतीम, अनाथ और बंधुआ मानते हुए धरती माँ से प्रार्थना करता है कि अपने श्यामल हाथ इनके माथे पर फेर दो, इनके भीगे केशों को सँवार दो। अर्थात् इन्हें विपन्नता से मुक्ति का आशीर्वाद दो। यहीं कवि एक ज्वलन्त प्रश्न उठता है।

तुम किसकी माँ हो मेरी मातृभूमि? स्पष्टतः वह सीधा सवाल पूछना चाहता है समाज से, व्यवस्था से कि धरती किसकी है उपजाते-बेकार अन्न, उपजाने वाले किसानों को या उनके द्वारा उपजाये अन्न को शोषण के बल पर हस्तगत कर मौज उड़ाने वाले अमरलता सदृश परजीवी लोगों की? प्रश्न की भंगिमा में आक्रोश है। कृषक-विरोधी सारे तत्त्वों के प्रति और यह स्पष्ट घोषणा भी कि धरती की सेवा करने वाले पुत्रों की है शोषकों की नहीं।

8. मेरे थके माथे पर हाथ फरेती …………….. भीगता बीचोंबीच।
व्याख्या-
‘मातृभूमि’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अरुण कमल ने माँ और मातृभूमि में तदाकारता का बोध व्यक्त किया है। अनुभव करता है कि मातृरूपा भूमि उसे प्यार से ताक रही है, उसके माथे पर हाथ फेर रही है और वह भींग रहा है। उसे लगता है कि वह ध रती-आसमान के बीचोंबीच कील की तरह खड़ा है और उसी कील पर धरती नाच रही है, आसमान नाच रहा है।

यहाँ कवि को ऐसी प्रतीति दो कारणों से होती है। प्रथम यह कि वर्षा में मग्न धरती के स्नेह से उत्पन्न आनन्द की अभिव्यक्ति हो रही है। दूसरे कवि सारी प्रकृति में लय की विराट कल्पना करता है जिस लय के फलस्वरूप यह सारा संसार किसी विराट् सत्ता के संकेत पर नृत्य करता होता है।

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 11 पृथ्वी

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Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 11 पृथ्वी (नरेश सक्सेना)

 Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions पद्य Chapter 11 पृथ्वी (नरेश सक्सेना)

पृथ्वी पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कवि को पृथ्वी की तरह क्यों लगती है?
उत्तर-
विद्वान कवि नरेश सक्सेना रचित पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी और एक आम स्त्री के गुण-धर्म का साम्य स्थापित किया गया है। ऊपरी तौर पर बात पृथ्वी की हुई है, जबकि तात्पर्य स्त्री से है। कवि को पृथ्वी स्त्री की तरह लगती है, क्योंकि एक स्त्री अपने पूरे जीवनकाल अनेक भूमिकाओं में अनेक केन्द्रों (धूरियों) के चारों तरफ घूमती रहती है। क्षमा, दया, प्यार, ममता, त्याग, तपस्या की प्रति नें बनी स्त्री अपना सर्वस्व औरों को पूर्ण करने में, बुरे को अच्छा बनाने में, गुणी को और अधिक गुणवान बनाने में न्योछावर कर देती है।

इस प्रक्रिया में उसे जो उपेक्षाएँ मिलती हैं तनाव मिलता है, सहानुभूति की जगह आलोचना मिलती है, उससे उसके भीतर आक्रोश-विद्रोह की ज्वाला भी धधकती है। कभी-कभी वह अपना संतुलन खो देती है और अपने ही संसार को बिखरने के कगार पर आ जाता है। किन्तु दूसरे ही क्षण वह अपने आक्रोश-विद्रोह की आग को शिवम् बनाकर, नया रूप देकर ऐसा कुछ सार्थक मूल्यवान प्रस्तुत करती है कि संसार चकित रह जाता है। यही सब कुछ पृथ्वी भी बड़े फलक पर करती है। यही कारण है कि कवि को पृथ्वी स्त्री की तरह लगती है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी के काँपने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पृथ्वी के भीतर की बनावट स्थायी न होकर परतदार है। हवा, पानी (समुद्र का) और भूगर्भ ताप के प्रभाव से परतों का स्थान बदलता रहता है। जिसके प्रभाव से प्रतिदिन दुनिया के किसी-न-किसी हिस्से में भूकंप के झटके आते रहते हैं। किन्तु जब यह प्रक्रिया बहुत तीव्रता से होती है, तब भयंकर तबाही वाला भूकंप आता है, इसी को कवि ने पृथ्वी का काँपना कहा है!

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प्रश्न 3.
पृथ्वी की सतह पर जल है और सतह के नीचे भी। लेकिन उसके गर्भ के केन्द्र में अग्नि है। स्त्री के सन्दर्भ में इसका क्या आशय है?
उत्तर-
कविवर सक्सेना ने ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता में नारी की सहनशीलता और उग्रता को पृथ्वी के माध्यम से रेखांकित एवं विश्लेषित किया है। जिस प्रकार पृथ्वी के सतह और सतह के नीचे जल है, ठीक उसी प्रकार नारी का हृदय करुणा, दया, सहनशीलता, ममता का अथाह सागर है। पृथ्वी के गर्भ के केन्द्र में अग्नि है, जो ज्वालामुखी के रूप विस्फोटित होता है। नारी भी जब क्रोधाग्नि से आवेगित होती है, तो गृहस्थी-रूपी गाड़ी चरमरा जाती है। कवि ने नारी के गौरव का अंकन उसके कर्ममय जीवन के आँगन में स्वस्थ रूप में प्रतिबिंबित किया है। पृथ्वी और नारी के रहस्यों का अन्वेषण-कार्य कवि की तकनीकी दृष्टिकोण से कर दोनों के समानता को उद्घाटित किया है।

प्रश्न 4.
पृथ्वी कायेलों को हीरों में बदल देती है। क्या इसका कोई लक्ष्यार्थ है? यदि हाँ तो स्पष्ट करें।
उत्तर-
कोयला और हीरा रासायनिक भाषा में कार्बन के अपरूप (Altropes) है। पृथ्वी के गर्भ में प्राकृतिक वानस्पतिक जीवाश्म जब गर्भस्थ ऊष्मा ऑक्सीजन की अल्पता तथा भूगर्भीय मा दबाव से जब जल जाते हैं तो कोयला बना जाता है। यही जीवाश्म यदि बहुत अधिक दाब और ताप झेलता है तो हीरा जैसी कीमती कठोर पदार्थ बन जाता है।

कवि के इस पंक्ति लक्ष्यार्थ है कि नारी अपने त्याग, अपनी तपस्या और बलिदान की अग्नि में साधारण पात्र को भी सुपात्र बना देती है। संसार में जितनी भी महान् विभूतियाँ हैं। सबका निर्माण माँ रूपी धधकती भट्ठी में ही हुआ है। स्त्रियों ने सारा दुःख गरल अपमान पीकर सहकर एक से बढ़कर एक नवरत्न उत्पन्न किए हैं। कोयले को हीरा अर्थात् मूर्ख को विद्वान बनाने की साधनात्मक कला स्त्रियों को ही आती है।

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प्रश्न 5.
“रलों से ज्यादा रत्नों के रहस्यों से भरा है तुम्हारा हृदय” -कवि ने इस पंक्ति के माध्यम से क्या कहना चाहा है?
उत्तर-
महाकवि नरेश सक्सेना ने पृथ्वी के विषय में कहा है कि ‘रत्नों से ज्यादा रत्नों के रहस्यों से भरा है, तुम्हारा हृदय’-पृथ्वी की रहस्यों की गूढ़ती को प्रतिबिंबित करता है। पृथ्वी के गर्भ से प्राप्त हीरा, कोयला, सोना, लोहा इत्यादि जैसे दृश्य रत्नों से तो व्यक्ति परिचित हो जाता है, परन्तु पृथ्वी के हृदय (अन्दर) में पानी, अग्नि जो एक दूसरे के प्रबल शत्रु हैं, वे एक साथ कैसे रह पाते हैं। कवि विस्मय प्रकट करते हुए कहता है कि रत्नों का निर्माण प्रक्रिया के दौरान पृथ्वी को कितना दबाव, आर्द्रता और ताप को सहना पड़ता है, यह भी अज्ञात (पृथ्वी की जानता) है।

पृथ्वी के रहस्यों का समय-समय पर जनहित में कुछ महामानव (वैज्ञानिक) उद्घाटित करने का अंशतः प्रयास किया है। अनेकों रहस्यों से परिचित होने के बावजूद अभी भी पृथ्वी के सम्पूर्ण रहस्य को जानना एक अनछुआ पहलू, शोध का विषय है। कवि कहना चाहता है कि पृथ्वी के गर्भ से निकले रत्नों के गुण-दोष से हम परिचित हो जाते हैं परन्तु उसके हृदय के अन्दर व्याप्त रहस्यों का जटिलता से पूर्णत: परिचित होने में हम अब भी असफल हैं।

प्रश्न 6.
“तुम घूमती हो तो घूमती चली जाती हो” यहाँ घूमना का क्या अर्थ है?
उत्तर-
कविवर नरेश सक्सेना ने यहाँ पृथ्वी और नारी की समानता का बिंबात्मक चित्र प्रस्तुत किया है। कवि कहता है कि पृथ्वी अपने केन्द्र मे घूती हुई अपनी दैनिक और वार्षिक गति के द्वारा अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है। खनिज सम्पदा, वन सम्पदा और थल सम्पदा को अपने ऊपर निवास करने वाले जीव-जन्तुओं को पृथ्वी मुफ्त में उपहार स्वरूप देकर दनका लालन-पालन में सदा गतिमान रहती है।

कवि के अनुसार नारी भी अपनी गृहस्थी के केन्द्र में गतिमान रहकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती है। अपनी सेवा, त्याग, ममता, सहिष्णुता, स्नेह की बारिश अपने परिवार को पुष्पित एवं पल्लवित करती है। वह सदा पृथ्वी की तरह बिना थके हुए अपने कर्तव्य-पथ पर घूमती रहती है। कवि ने पृथ्वी और नारी के कर्तव्य निर्वहन को ‘घूमना’ से प्रतिबिंबित किया है।

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प्रश्न 7.
क्या यह कविता पृथ्वी और स्त्री को अक्स-बर-अक्स रखकर देखने में सफल रही है इस कविता का मूल्यांकन अपने शब्दों में करें।
उत्तर-
आधुनिक संश्लिष्ट जीवन पद्धति के हिस्सेदार विद्वान कवि नरेश सक्सेना का कवि अभियंता एक तीर से दो शिकार सफलतापूर्वक कर लेता है।

पृथ्वी शीर्षक कविता समानान्तर चलने वाली दो कविताओं का संयोजन है। कवि को ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी में जितने गुण-अवगुण हैं उसी का लघु संस्करण एक आम स्त्री है। पृथ्वी की जो भी गतिविधियों हैं, जो भी अवदान है ठीक वैसी ही गतिविधियों स्त्री की भी हैं। पृथ्वी भी धारण करती है (इसीलिए इसका एक नाम धरती है) स्त्री भी धारण करती इसलिए इसका भी एक नाम है।

पृथ्वी एक से बढ़कर एक अमूल्य-बहुमूल्य रत्न अपने गर्भ से निकाल कर धरणी दे चुकी है जिससे अपने संतान को उसका जीवन अधिक सुख-सुविधा सम्पन्न हो सका है। पृथ्वी जीवन के उपकरण साधन संसाधन उपलब्ध कराती है। पानी, वायुमंडल, प्राकृतिक सम्पदा सब कुछ पृथ्वी के अवदान हैं।

एक स्त्री पृथ्वी की तरह मसृण भावनाओं संवेदनाओं को अपने हृदय में धारण करती है। आदर्श, सर्वोच्च जीवन मूल्यों की वह उत्पादिका, संरक्षिका और वाहिका है। सृष्टि का वस्तुजगत सत्य है जिसे स्त्री अपनी कल्पना, ममता, कठोरता, अनुशासन, उद्बोधन, प्रेरणा, सहायता, सहचरता आदि के द्वारा सत्यम, शिवम् और सुन्दरम में परिणत कर देती है।

पृथ्वी की गतिद्वय सतत् है और इसी सातत्य के कारण जीवन शेष है जीवन प्रवाहमान है। एक स्त्री का तपसचर्या वाला जीवन भी सतत् है जिसके कारण सृष्टि का सृजन का महत् यज्ञ जारी है।

इस प्रकार निश्चय ही पृथ्वी और स्त्री एक-दूसरे के बिम्ब प्रतिबिम्ब ही हैं।

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पृथ्वी भाषा की बात।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची लिखें पृथ्वी, जल, अग्नि, स्त्री, दिन, हीरा।
उत्तर-

  • पृथ्वी – धरती,
  • जल – पानी,
  • अग्नि – आग,
  • स्त्री – पत्नी,
  • दिन – दिवस,
  • हीरा – हीरक।

प्रश्न 2.
कभी-कभी कांपती हो’ में ‘कभी-कभी’ में कौन-सा समास है? ऐसे चार अन्य उदाहरण दें।
उत्तर-
‘कभी-कभी’ में अव्ययीभाव समास है। व्याकरण का नियम है कि ‘संज्ञा की द्विरूक्ति वाले शब्द अव्ययी भाव होते हैं अव्ययीभाव समास वहाँ होता है जहाँ समस्त सामासिक पद क्रिया विशेषण (अव्यय) के रूप में प्रयुक्त होता है। अव्ययीभाव सामासिक पद का रूप लिंग, वचन आदि के कारण कभी-कभी नहीं बदलता।

अन्य उदाहरण-कभी-कभी, हाथों-हाथ, दिनों-दिन, रातों-रात, कोठे-कोठे, आप-ही-आप, एका-एक, मुहाँ-मुँह आदि।

प्रश्न 3.
इन शब्दों से विशेषण बनाएँ-
स्त्री, पृथ्वी, केन्द्र, पर्वत, शहर, सतह, अग्नि
उत्तर-

  • संज्ञा – विशेषण
  • स्थी – स्त्रैण
  • पृथ्वी – पार्थिव
  • केंद्र – केन्द्रीय
  • पर्वत – पर्वतीय
  • शहर – शहरी
  • सतह – सतही
  • अग्नि – आग्नेय

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प्रश्न 4.
इस कविता में पृथ्वी प्रस्तुत है और स्त्री अप्रस्तुत। आप प्रस्तुत और अप्रस्तुत के भेद स्पष्ट करते हुए इस कविता से अलग चार उदाहरण दें।
उत्तर-
काव्य शास्त्र के अनुसार प्रस्तुत को ही उपमेय और अप्रस्तुत को उपमान कहा जाता है। उपमेय उपमान का उपयोग अपना और रूपक अलंकार में सर्वाधिक होता है।

कतिपय उदाहरण-

  • प्रस्तुत – अप्रस्तुत
  • आँख – मीन, पंकज (कमल के फूल)
  • मुख – चन्द्र
  • मन – मयर
  • उरोज – शीर्षफल (बेल)
  • जंध – कदली स्तम्भ

प्रश्न 5.
‘पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो’-यह प्रश्न वाचक वाक्य है या संकेत वाचक। उदारण के साथ इन दोनों वाक्य प्रकारों का अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में ‘पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो’ वाक्य तीन बार प्रयुक्त हुआ है। ‘क्या’ का प्रयोग होने के बावजूद यह प्रश्न वाचक वाक्य नहीं है क्योंकि कहीं भी प्रश्न वाचक चिह्न का उपयोग नहीं हुआ है। प्रश्न वाचक वाक्य से किसी प्रकार प्रश्न पूछे जाने का बोध होता है और वाक्यांत में प्रश्न वाचक चिह्न लगा रहता है। जैसे-

क्या तुम पढ़ रहे हो? तुम क्या पढ़ रहे हो?
तुम जी रहे हो न? तुम्हें कौन नहीं जानता?
कौन क्या जानता है?

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संकेत वाचक वाक्य का ही उदाहरण है “पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो”। संकेत वाचक वाक्य में कोई संकेत या शर्त सूचित होता है।

यदि बचाया होता तो आज मजा करते।
तुम क्या खयाली पुलाव पकाते हो कुछ काम करो।
आपकी दृष्टि में क्या करना चाहिए।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्य-प्रयोग द्वारा लिंग-निर्णय करें पृथ्वी, स्त्री, केन्द्र, गर्भ, जल, अँधेरा, उजाला, ताप, हृदय, प्रक्रिया, गृहस्थी, घरबार।
उत्तर-
पृथ्वी (स्त्री.)-हमारी पृथ्वी गोल है।
स्त्री (स्त्री)-राम की स्त्री मर गई।
केन्द्र (पु.)- पृथ्वी का केन्द्र कहाँ स्थित है।
गर्भ (पु.)-पृथ्वी के गर्भ में रत्न भरा है।
जल (पु.)- इस तालाब का जल मीठा है।
अँधेरा(पु.)-यहाँ दिन में भी अँधेरा है।।
उजाला(पु.)-यहाँ दिन-रात उजाला ही रहता है।
ताप (पु.)- सूर्य के ताप से जीवाणु नष्ट हो जाते हैं।
हृदय (पु.)-आपका हृदय महान है।
प्रक्रिया (स्त्री.)-तुम्हारी ऐसी प्रक्रिया अशोभनीय है।
गृहस्थी (स्त्री.)-आपकी गृहस्थी कैसी है।
घरबार (पु.)-उसका घरबार सँवर चुका है।

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अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

पृथ्वी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के नारीरूप का संक्षेप में विवेचन करें।
उत्तर-
पृथ्वी कविता में इस पंक्ति की आवृत्ति हुई है-“पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो” इससे स्पष्ट है कि पृथ्वी को स्त्री मानने के प्रति कवि के मन में आग्रह है। इस आग्रह के कारण कवि ने पूरी कविता में पृथ्वी को नारीपरक अर्थ देने का प्रयास किया है।

पृथ्वी को नारी मानकर कवि ने धरती पर उगे पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं तथा बसे हुए नगरों तथा गाँवों के सम्मिलित रूप को उसकी गृहस्थी कहा है।

इसी तरह नारी भीतर-बाहर तरल होती है। लेकिन कभी-कभी प्रचण्ड रूप धारण कर अपने अग्निगर्भा होने का प्रमाण देती है। ज्वालामुखी मों फूटनेवाली पृथ्वी भी अग्निगर्भा है।

धरती रत्नगर्भ है। अनेक रत्न उसे खोदने पर प्राप्त होते है।। स्त्री भी एक से एक तेजस्वी और मूल्यवान संतानों को जन्म देने के कारण रत्नगर्भा है। इन तीन विशेषताओं के आलोक में हम कह सकते हैं कि कवि ने स्त्री और पृथ्वी में साम्य अनुभव कर पृथ्वी को नारीरूप माना है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर-
समीक्षा : ‘पृथ्वी’ नरेश सक्सेना की एक ऐसी सशक्त कविता है जो उनकी मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती है। पृथ्वी में निरंतर गतिशीलता बनी रहती है, वह अपने केन्द्र पर सतत घूमने के साथ ही एक ओर केन्द्र के चारों ओर घूमती रहती है। वह कभी-कभी अपने अन्तर की ज्वालाओं से द्रवित हो, अपनी ऊपरी सतह पर कंपन उत्पन्न पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न कर देती है।

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पृथ्वी की तुलना कवि ने एक स्त्री से की है, और एक कटु सत्य का अन्वेषण किया है। कवि का दृष्टिकोण आस्थामूलक दिशा की खोज करने का है। स्त्री में जिजीविषा है, आस्था है, वह अपने मन की गहराइयों में उठनेवाली आकुल तरंगों को रोक कर जीवन के सारे प्रश्नों को हल करती है। पृथ्वी की ऊपरी सतह पर जल है, और नीचे भी जल है, लेकिन उसके गर्भ में, गर्भ के केन्द्र में अग्नि है, यही अग्नि उसे उपादेय बनाती है।

वस्तुतः इसी ताप और आर्द्रता से कोयले को हीरे में बदलने की क्षमता होती है। कवि ने कविता में पृथ्वी की तुलना नारी से की है, जो नर को शक्तिवान बनाती है, जिसमें ममता, वात्सल्य, के लिए त्याग, कोमलता एवं मधुरता की मात्रा पुरुषों की उपेक्षा अधिक होती है। स्त्री हमें पुत्ररत्न देती है। वह जीवन की प्रत्येक धड़कनों से कल्याणकारिणी होती है उसका हृदय पृथ्वी की तरह ही रहस्यों से भरा रहता है।

प्रश्न 3.
नरेश सक्सेना की कविता ‘पृथ्वी’ का भाव-सारांश प्रस्तुत करें।
उत्तर-
देखें-कविता-परिचय, सारांश एवं समीक्षा।

पृथ्वी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि पूरे विश्वास के साथ पृथ्वी को स्त्री क्यों नहीं मान पाता है?
उत्तर-
कवि नयी कविता का कवि है। वह आशंका, जिज्ञासा और यथार्थता की भूमि पर स्थित है। वह पृथ्वी और स्त्री में इतनी समानता नहीं अनुभव कर पाता कि पूरे विश्वास से पृथ्वी का मानवीकरण कर उसे स्त्री मान ले।

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प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता का संक्षेप में परिचय दीजिए।
उत्तर-
नरेश सक्सेना की ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता ‘समुद्र पर हो रही बारिश’ संकलन में संकलित है इस कविता में प्रकृति (पृथ्वी) मानवीय रागों एवं संवेदनाओं की प्रतिच्छाया के रूप में उभरी है। पृथ्वी और स्त्री में एकरूपता स्थापित करते हुए कवि ने भारतीय नारी के आत्म-संघर्ष, आत्मदान और त्याग का अत्यन्त ही सादगीपूर्ण चित्रण किया है कवि की यह कविता अनुभूति की गंभीरता एवं तन्मयता की दृष्टि से अत्यन्त मार्मिक है।

पृथ्वी तो मानो एक भारतीय नारी है, जिसके बाहर भी (आँखों में) जल है और सतह के नीचे भी जल है, लेकिन नारी अग्निगर्भा भी है। पृथ्वी के नीचे जैसे आग है, वैसे ही भारतीय नारी के भीतर आग है जो रत्नों को उत्पन्न करती है। नारी में अगर कोमलता, महणता है, जो कठोरता भी है। पठित कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि पृथ्वी की तरह स्त्री भी अद्भुत गरिमा एवं गौरव से परिपूर्ण होती है।

पृथ्वी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि क्यों पृथ्वी से बार-बार पूछता है कि क्या तुम कोई स्त्री हो?
उत्तर-
कवि पृथ्वी की गति और क्रियाकलाप में जो विशेषताएँ पाता है वही स्त्रियों में भी पाता है। अतः वह बार-बार स्त्री होने की बात पूछता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वी शीर्षक कविता किस काव्य संकलन से ली गई है?
उत्तर-
नरेश सक्सेना द्वारा लिखित पृथ्वी नामक कविता समुद्र पर हो रही है बारिश नामक काव्य संकलन से ली गई है।

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प्रश्न 3.
पृथ्वी शीर्षक कविता में किस बात की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी की गतिशीलता और उसके चक्र की अभिव्यक्ति हुई है। साथ ही इसमें स्त्री के आत्म-संघर्ष की भी अभिव्यंजना हुई है।

प्रश्न 4.
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी के साथ किसकी एकरूपता स्थापित हुई है।
उत्तर-
पृथ्वी शीर्षक कविता में पृथ्वी के साथ स्त्री की एकरूपता स्थापित हुई है।

प्रश्न 5.
पृथ्वी के घूमते रहने से क्या होता है?
उत्तर-
पृथ्वी के घूमते रहने से दिन और रात तथा मौसम में परिवर्तन होता है। .

पृथ्वी वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ

प्रश्न 1.
‘पृथ्वी’ कविता के कवि हैं
(a) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(b) नागार्जुन
(c) त्रिलोचन
(d) नरेश सक्सेना
उत्तर-
(d) नरेश सक्सेना

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प्रश्न 2.
नरेश सक्सेना का जन्म कब हुआ था?
(a) 1939 ई.
(b) 1945 ई.
(c) 1936 ई.
(d) 1940 ई.
उत्तर-
(a) 1939 ई.

प्रश्न 3.
नरेश सक्सेना की शिक्षा कहाँ हुई?
(a) पटना
(b) राँची
(c) जबलपुर
(d) बनारस
उत्तर-
(c) जबलपुर

प्रश्न 4.
नरेश सक्सेना का जन्मस्थान है
(a) उत्तरप्रदेश
(b) हिमाचल प्रदेश
(c) दिल्ली
(d) मध्यप्रदेश
उसर-
(d) मध्यप्रदेश

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प्रश्न 5.
नरेश सक्सेना की वृत्ति है
(a) जल निगम में उपप्रबंधक
(b) टेक्नोलॉजी कमिशन के कार्यकारी निदेशक
(c) त्रिपोली के वरिष्ठ सलाहकार
(d) सरकारी सेवा से निवृत्ति
उत्तर-
(a) जल निगम में उपप्रबंधक

प्रश्न 6.
नरेश सक्सेना को ‘पहला सम्मान’ कब मिला?
(a) 2006 में
(b) 1990 में
(c) 2004 में
(d) 1995 में
उत्तर-
(a) 2006 में

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
नरेश सक्सेना बीसवीं शती के सातवें दशक में ……………………… के रूप में आए है।
उत्तर-
महत्वपूर्ण कवि।

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प्रश्न 2.
प्रस्तुत कविता ……………………… कवि का ठोस साक्ष्य है।
उत्तर-
पृथ्वी।

प्रश्न 3.
यह कविता ………………… से संकलित है।
उत्तर-
समुद्र पर हो रही है बारीश।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता को कवि ने ……………… के साथ ढालकर दुर्लभ उदाहरण प्रस्तुत किया
उत्तर-
विज्ञान और तकनीक।

प्रश्न 5.
…………………… शीर्षक कविता में पृथ्वी की गति की चर्चा करते हुए भारतीय नारी की जीवन-शैली के ऊपर प्रकाश डाला है।
उत्तर-
पृथ्वी

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प्रश्न 6.
प्रस्तुत कविता में पृथ्वी की तुलना ……………………… से की गई है।
उत्तर-
स्त्री।

प्रश्न 7.
नारी और पृथ्वी दोनों के ……………………… का भण्डार से भरा पड़ा है।
उत्तर-
रहस्यों।

प्रश्न 8.
नारी की तुलना पृथ्वी से करना कवि की ……………………… नहीं है।
उत्तर-
अतिशयोक्ति।

प्रश्न 9.
नारी पृथ्वी की ……………………… है।
उत्तर-
प्रतिमूर्ति।

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पृथ्वी कवि परिचय – नरेश सक्सेना (1939)

नरेश सक्सेना का जन्म 1939 ई. में ग्वालियर मध्य प्रदेश में हुआ है। वे बीसवीं शदी के सातवें दशक में एक अच्छे और विश्वसनीय कवि के रूप में जाने जाते हैं।

जिस कवि ने आजादी के 20 वर्षों के बाद का भारत देखा हो, पहली बार उस कवि की कविताओं में कल्पना का अंश, मनोरंजन का अंश आ ही नहीं सकता। पाकिस्तान का दो-दो बार हमला करना, चीन का भारत पर हमला करना, भुखमरी, अकाल सबको देखने, भोजने वाले नरेश मेहता को मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न होती है और मानवीय मूल्यों, आदर्शों का उत्स नारी है।

नारी का हृदय है तो वे नाम की वर्तमान विपन्न विषण्ण स्थिति को देखकर क्षुब्ध हो उठते हैं। आरम्भिक दौर में नरेश सक्सेना काव्यान्दोलन से जुड़े। किन्तु समय की कटु कठोर सच्चाइयों ने इन्हें बाध्य किया और ये अपेक्षाकृत अधिक बौद्धिकता, वैचारिकता और संवेदनशीलता के साथ कविता रचने लगे। समकालीन घटनाओं पर इनकी लेखनी खूब चली। कोई घटना, अनछुई नहीं रह सकी।

सक्सेना जी ने “मैं” को अपने काव्य का उपजीव्य नहीं बनाया। ये पूर्णतः निर्वैयक्तिक और वस्तुपरक होकर, तटस्थ होकर लिखते हैं। उन्हें कवि कर्म और उत्पाद के बीच के सम्बन्ध पर संदेह है।

“जैसे चिड़ियों की उड़ान में
शामिल होते हैं पेड़”

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क्या कविताएँ होंगी मुसीबत में हमारे साथ? कवि को लगता है कि कविताओं से जीवन को नहीं चलाया जा सकता। कविता के सहारे संघर्ष नहीं किया जा सकता। नरेश सक्सेना को अपनी रचनाओं से राग, मोह नहीं है। कवि की प्रतीक्षा आगे के कई विषय करते मिलते हैं।

आज का जीवन कितना संघर्षपूर्ण प्रतियोगितात्मक है, इसे स्वयं नरेश सक्सेना ने भोगा। जल निगम के उपप्रबंधक पत्रिकाओं के सम्पादक और टेलीविजन रंगमंच के लेखक के रूप में चुनौतियों से दो-चार होना आज भी जारी है। फिर भी उनका हृदय कटु भावनाओं से भरा नहीं है, बल्कि उनमें मानवीय संवेदनाएँ भरी पड़ी हैं।

वस्तुतः ये दृष्टिकोण के विस्तार और संवेदनाओं की प्रगाढ़ता के भीतर ही युगधर्म के प्रचलित सरोकारों यथा, राजनीति, सामाजिकता एवं प्रतिबद्धताओं और उनके वास्तविक अर्थपूर्ण रुख, रुझानों को अपना बनाते चलते हैं। अभियंता का जीवन जीने वाला जब कवि कर्म को अपनाता है तो उसकी रचना दृष्टि ज्यादा तथ्यपरक होती है। वस्तु को वह वस्तुपरक ढंग से रखता है। भाषा नपी-तुली होती है। कविता में ज्ञान-विज्ञान के तथ्यों का – समायोजन एक कठोर संयमित साधना का ही प्रतिफलन है।

नरेश मेहता का काव्य संसार ठोस साक्ष्यों पर आधारित है। किन्तु प्रभाव में वही मसृणता . प्राप्त होता है।

मेहता भी बिम्बों के सृजनहार है। मुक्त छंद तो आजादी के बाद का कविता धर्म ही बन गया। किन्तु मुक्त छंद में भी बातें प्रभावशाली बन जाती हैं, मारक क्षमता प्राप्त कर लेती हैं।

मेहता जी का मुक्त छंद भी हमें नई वैचारिक भूमि उपलब्ध कराता है। वास्तव में समसामयिक जीवन की समस्याओं और संघर्षों से नरेश का गहरा लगाव स्पष्ट होता है। ऐसा करते हुए उनका दृष्टिकोण संवेदना मानवीय पक्ष का उजागर करता है।

पृथ्वी कविता का सारांश

नरेश सक्सेना रचित ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता समसामयिक जीवन की समस्याओं और संघर्षों से हमारा अद्भुत तरीके से साक्षात्कार करती है।

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प्रस्तुत कविता में कवि पृथ्वी को सम्बोधित करते हुए उसकी भौगोलिक बनावट, उसकी नियति, उसके आक्रोश आदि का लेखा-जोखा तो लेता ही है। कवि पृथ्वी के बहाने नारी, स्त्री जीवन की उच्चता और विडंबना को भी प्रस्तुत करता है।

भूगोल और विज्ञान के सत्य के साथ कवि पृथ्वी से कहता है कि तुम घुमती हो और लगातार। बिना रुके अपने केन्द्र पर तो तुम घूर्णन करती ही हो एक अन्य बाह्य केन्द्र (सूर्य) के परितः पर चक्रण करती है। एक ही साथ दो अलग प्रकृति के घुमाव से क्या तुम्हें चक्कर नहीं आते? तुम्हारी आँखों के आगे अंधेरा नहीं छाता? तुम हमेशा दो विपरीत प्रकृतियों को साथ लिए चलती है। तुम्हारे आधे भाग में सूर्य के कारण उजाला और आधे भाग में तुम्हारी बनावट के कारण अँधेरा होता है। तुम रात-दिन एक करते हुए दिन को रात और रात को दिन में बदलने के लिए गतिमान रहती हो।

अनथक परिश्रम रत रहती हो। तुम्हें हमने कभी चक्कर खाकर गिरते नहीं देखा। हाँ कभी-कभी तुम कॉपती हो जब तुम्हारी आन्तरिक बनावट में कोई विक्षोभ उत्पन्न होता है। तब लगता है कि सम्पूर्ण अस्ति को नास्ति में बदलकर ही दम लोगी। तुमने अपनी गृहस्थी को सजाने-संवारने के लिए पेड़, पर्वत, नदी, गाँव, टीले की व्यवस्था की है लगता है भूकंप की स्थिति में तु अति क्रोध में आकर इन्हें नष्ट करने पर उद्धत हो प्रतिबद्ध हो गई हो।

तुम्हारा सारा स्वभाव एक स्त्री से मिलता है। क्या तुम भी स्त्री हो। स्त्री के भी कम-से-कम दो व्यक्तित्व होते हैं। वह भी पूरे जीवन नर्तन घूर्णन चक्रण में व्यस्त रहती है वह भी विन्यास करती है और आक्रोश की पराकाष्ठा पर वह भी अपने ही संसार को नष्ट करने पर उतारू हो जाती है।

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पृथ्वी तुम्हारी सतह पर जीवन के लिए अपरिहार्य तत्त्व जल प्रचुरता में उपलब्ध है। यह जल तत्व तुम्हारी सतह के नीचे भी है जो शीतलता संचरण संतुलन में लगा है। किन्तु तुम्हारे भी केन्द्र में एक स्त्री की तरह केवल आग दहकता है। क्या तुम्हें भी सदियों से उपेक्षा, तिरस्कार का सामना करना पड़ रहा है जो आक्रोश का पूँजीभूत रूप अग्नि बन गया है। पृथ्वी तुम एक स्त्री की तरह तपस्या साधना करने वाली हो।

एक स्त्री अपने कठोर अनुशासन और मसृण ममत्व के बल पर अपने बच्चे को सर्वगुण सम्पन्न बना देती है। वैसे ही तुम भी अपने क्रोड के चरम ताप, दाब और जल तत्त्व के आर्द्रगुण के सहयोग से वह भी बिना किसी विज्ञापन के कष्टकर जटिल प्रक्रियाओं से गुजर कर कोयले को हीरा बना देती हो। तुम्हारे गर्भ में हृदय में हीरा ही नहीं अन्य अनेक असंख्य रत्न, धातु संरक्षित हैं। उनका रहस्यमय संसार तुम्हारे हृदय की रहस्यमयता को कई गुणा बढ़ा देता है। ठीक जैसे एक स्त्री के असली और सम्पूर्ण भावों की कोई लाख कोशिका करके नहीं पकड़ सकता, पढ़ना-समझना तो बहुत दूर की बात है।

पृथ्वी तुम अपनी अनंत रहस्यमयता के साथ एक स्त्री की तरह ही लगातार सतत् चलायमान हो, घूर्णनरत हो। कवि ने विज्ञान के सायों को मानवीय भावनाओं, क्रियाओं की संगति में रखकर स्वयं एक स्त्री के श्वेत-श्याम पक्ष को सतर्क ढंग से प्रस्तुत किया है।

एक स्त्री का सम्पूर्ण दाम त्यागमय है, गरिमामय है। किन्तु बदले से उसे क्या मिला है? और चाहकर भी, चिड़चिड़ा कर भी एक स्त्री अपने ही घरौंदे को क्यों नहीं रौंदती। शायद इसी लिए कि एक स्त्री का ही वृहत् रूप पृथ्वी. है सकल जीव जड़ चेतन की माँ है।

पृथ्वी कवि की प्रस्तुति बेजोड़ है।

आधुनिक कविता में अलंकारों का वैसे भी कोई महत्त्व नहीं है। जहाँ वैचारिकता का प्रधान्य हो वहाँ तो अलंकार भार स्वरूप ही लगते हैं। फिर भी अनायास रूप से अनुप्रास, उत्प्रेक्षा जैसे अलंकार ‘पृथ्वी’ शीर्षक कविता में प्राप्त हो ही जाते हैं।

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वास्तव में इस कविता में कवि ने पृथ्वी और स्त्री का तुलनात्मक विवेचन करते हुए भारतीय स्त्री के आत्मसंघर्ष, आत्मदान और त्याग को त्याग पर प्रकाश डाला है।

पृथ्वी कठिन शब्दों का अर्थ

आर्द्रता-नमी। गृहस्थी-गृह-व्यवस्था। सतह-ऊपरी तल। प्रक्रिया-किसी काम को करने की प्रणाली।

पृथ्वी काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. पृथ्वी तुम घूमती हो ……… नहीं आते।
व्याख्या-
पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना कहते है। कि पृथ्वी निरन्तर घूम रही है। भौगोलिक तथ्य के अनुसार पृथ्वी की दो गतियाँ हैं-प्रथम वह अपनी धुरी पर घूम रही है, द्वितीय वह वह सूर्य के चारों ओर चक्कर लगा रही है। प्रथम से दिन-रात होते हैं और दूर से ऋतु परिवर्तन। इस तथ्य को व्यक्त करते हुए कवि एक शब्द को पकड़ता है-घूमना। पृथ्वी न जाने कब से, अनन्त काल से घूम रही है। इस आधार पर कवि एक जिज्ञासा करता है-पृथ्वी क्या इस तरह निरन्तर घूमते रहने से तुम्हें चक्कर नहीं आते और इस जिज्ञासा के द्वारा कवि पृथ्वी की जड़ता में मानव-चेतना भर देता है।

2. कभी-कभी काँपती हो……… कोई स्त्री हो।
व्याख्या-
नरेश सक्सेना ने अपनी ‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पृथ्वी को एक मानवी के रूप में देखा है। पृथ्वी काँपती है तो भूकम्प होता है जिससे धरती की सतह भी प्रभावित होती है और उस पर बसे-उगे नगर गाँव पेड़-पौधे आदि भी। इस सहज कम्पन की घटना को चेतना से जोड़ते हुए कवि मानता है कि पृथ्वी कभी-कभी काँपती है। उसका यह काँपना प्राकृतिक सहजता नहीं उसकी चेतना सत्ता का विषय है।

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इस काँपने के कारण कवि को लगता है कि यह एक ऐसी स्त्री का क्रोध में काँपना है जो क्रोध के आवेग में अपनी ही गृहस्थी को नष्ट-भ्रष्ट करती है। यहाँ कवि ने पेड़, पर्वत, नदी, टीले गाँव, शहर आदि के सम्मिलित रूप को पृथ्वी की गृहस्थी माना है और पृथ्वी को गृहस्थिन नारी। मानवीकरण की इस संभावना के बीच कवि प्रश्न करता है कि क्या तुम एक स्त्री हो? स्पष्टतः कवि की दृष्टि में पृथ्वी का आचरण तक तेजस्विनी अग्नि गुण प्रधान नारी का है।

3. तुम्हारी सतह पर कितना जल है …….. सिर्फ अग्नि।
व्याख्या-
‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना ने भौगोलिक तथ्य को काव्यत्व में परिवर्तित किया है। पृथ्वी की सतह पर प्रायः दो-तिहाई भाग में जल है। इसके नीचे भी विभिन्न स्तरों पर जल है जो खुदाई द्वारा ज्ञात होता है। लेकिन यह भी भौगोलिक सच है कि पृथ्वी के भीतर स्थित जल की सतहों से बहुत नीचे भारी मात्रा में आग है। इसलिए धरती अग्निगर्भा है।

कवि की दृष्टि में स्त्री ऊपर से भी जल की तरह तरल है और हृदय के स्तर पर भीतर भी भावनाओं के कारण तरल है। लेकिन उसमें भीतर अग्नि-तत्त्व भी प्रबल है जो प्रायः विशेष परिस्थितियों में उसे ज्वालामुखी बनता देती है और वह चण्डी बन जाती है। इस तरह सभी पृथ्वी में समानता तलाशते हुए कवि पृथ्वी से पूछता है-“क्या तु कोई स्त्री हो?”

4. कितने ताप कितने दबाव ……………… कोई स्त्री हो।
व्याख्या-
‘पृथ्वी’ कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में नरेश सक्सेना ने पृथ्वी के रत्नगर्भा रूप का वर्णन किया है। भौगोलिक सच के अन्तर्गत हम जानते हैं कि धरती के नीचे से कोयला निकलता है। वैज्ञानिकों ने अधिक ताप के स्तर पर कोयला से हीरा बनाकर यह सिद्ध किया है कि उच्चतम ताप की स्थिति होने पर विशेष उपादानों के संयोग के कारण कोयला हीरा बन जाता है। धरती के भीतर से खोदकर ही हम अन्य कई रत्न निकालते हैं ये रत्न ताप, आर्द्रता और दबाव की प्रक्रियाओं के कारण निर्मित होते हैं और धरती का रत्नगर्भा नाम सार्थक करते हैं। यह प्रक्रिया अप्रकट घटित होती है।

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अतः कवि मानता है कि एक चतुर स्त्री की तरह चुपचाप पृथ्वी विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरकर रत्नों का निर्माण कर लेती है। अतः रत्नों से ज्यादा रत्नों की रचना से रहस्य से पृथ्वी का हृदय भरा है। यही स्थिति नारी की होती है वह भी रहस्यमय हृदयवाली होती है। अतः कवि विश्वासपूर्वक जिज्ञासा करता है-“पृथ्वी क्या तुम कोई स्त्री हो?”