Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 11 मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार InText Questions and Answers

अनुच्छेद 11.1 और 11.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है? (2011, 13, 15, 16)
उत्तर:
नेत्र की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।

प्रश्न 2.
निकट दृष्टिदोष का कोई व्यक्ति 1.2 m से अधिक दूरी पर रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख सकता। इस दोष को दूर करने के लिए प्रयुक्त संशोधक लेंस किस प्रकार का होना चाहिए?
उत्तर:
अवतल लेंस।

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प्रश्न 3.
मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु तथा निकट बिंदु नेत्र से कितनी दूरी पर होते हैं?
उत्तर:
मानव नेत्र की सामान्य दृष्टि के लिए दूर बिंदु अनन्त पर तथा निकट बिंदु 25 cm पर होते हैं।

प्रश्न 4.
अंतिम पंक्ति में बैठे किसी विद्यार्थी को श्यामपटद पढ़ने में कठिनाई होती है। यह विद्यार्थी किस दृष्टिदोष से पीड़ित है? इसे किस प्रकार संशोधित किया जा सकता है?
उत्तर:
विद्यार्थी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित है। इस दृष्टि दोष को संशोधित करने के लिए उसे उचित फोकस दूरी वाले अवतल लेंस का चश्मा पहनना होगा।

Bihar Board Class 10 Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मानव नेत्र अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित करके विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को फोकसित कर सकता है।
ऐसा हो पाने का कारण है –
(a) जरा-दूरदृष्टिता
(b) समंजन
(c) निकट-दृष्टि
(d) दीर्घ-दृष्टि
उत्तर:
(b) समंजन

प्रश्न 2.
मानव नेत्र जिस भाग पर किसी वस्तु का प्रतिबिंब बनाते हैं, वह है –
(a) कॉर्निया
(b) परितारिका
(c) पुतली
(d) दृष्टिपटल
उत्तर:
(d) दृष्टिपटल

प्रश्न 3.
सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी होती है, लगभग –
(a) 25 m
(b) 2.5 cm
(c) 25 cm
(d) 2.5 m
उत्तर:
(c) 25 cm

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प्रश्न 4.
अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन किया जाता है –
(a) पुतली द्वारा
(b) दृष्टिपटल द्वारा
(c) पक्ष्माभी द्वारा
(d) परितारिका द्वारा
उत्तर:
(c) पक्ष्माभी द्वारा

प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति को अपनी दूर की दृष्टि को संशोधित करने के लिए – 5.5 डायॉप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। अपनी निकट की दृष्टि को संशोधित करने के लिए उसे +1.5 डायॉप्टर क्षमता के लेंस की आवश्यकता है। संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की फोकस दूरी क्या होगी
1. दूर की दृष्टि के लिए
2. निकट की दृष्टि के लिए?
हल:
1. दूर की दृष्टि के लिए
P = \(\frac {1}{f}\) (मीटर में)
f = \(\frac {1}{p}\) = – \(\frac {1}{5.5}\) = \(\frac {10}{55}\) = \(\frac {-2}{11}\) m
f = \(\frac {-2}{11}\) x 100 cm = \(\frac {-200}{11}\) cm
f = -18.2 cm = – 0.18 m
ऋणात्मक चिह्न दर्शाता है कि लेंस अवतल है।

2. निकट की दृष्टि के लिए –
f = \(\frac {1}{p}\) = \(\frac {1}{1.5}\)
\(\frac {10}{15}\) x 100 cm = \(\frac {2}{3}\) x 100 cm
= \(\frac {200}{3}\) cm = 66.67 cm = + 0.67 m
धनात्मक चिह्न दर्शाता है कि लेंस उत्तल है।

प्रश्न 6.
किसी निकट-दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिंदु नेत्र के सामने 80 cm दूरी पर है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की प्रकृति तथा
क्षमता क्या होगी?
हल:
इस दोष के निवारण के लिए अवतल लेंस का प्रयोग करना होगा।
अतः
u = – ∞  υ = -80 cm, f = ?
सूत्र \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{ u}\) = \(\frac {1}{ f}\) से,
\(\frac {1}{ -80}\) – \(\frac {1}{ u}\) = \(\frac {1}{ f}\)
– \(\frac {1}{ f}\) = \(\frac {1}{80}\)
अतः फोकस दूरी’ f =-80 cm = -0.8 m
लेन्स की क्षमता P = \(\frac {1}{ f}\) = \(\frac {1}{80}\) D = -1.25 D
अत: आवश्यक लेन्स की प्रकृति अपसारी तथा क्षमता -1.25 D है।

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प्रश्न 7.
चित्र बनाकर दर्शाइए कि दीर्घ-दृष्टि दोष कैसे संशोधित किया जाता है। एक दीर्घ-दृष्टि दोषयुक्त नेत्र का निकट बिंदु 1 m है। इस दोष को संशोधित करने के लिए आवश्यक लेंस की क्षमता क्या होगी? यह मान लीजिए कि सामान्य नेत्र का निकट-बिंदु 25 cm है।
हल:
दीर्घ-दृष्टि दोष का निवारण उत्तल लेंस से किया जाता है।
दिया है, υ = 1 m = -100 cm, u = -25 cm
सूत्र, \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{ u}\) = \(\frac {1}{ f}\) से,
\(\frac {1}{-100}\) – \(\frac {1}{ 25}\) = \(\frac {1}{ f}\)
\(\frac {1 + 4}{100}\) = \(\frac {1}{ f}\)
\(\frac {3}{ 100}\) = \(\frac {1}{ f}\)
f = \(\frac {100}{3}\) cm
f = \(\frac{\frac{100}{3}}{100} \mathrm{m}\) या \(\frac {100}{3}\) x \(\frac {1}{100}\) m
f = \(\frac {1}{3}\) m
अब, क्षमता, P =\(\frac {1}{ f}\) (मीटर में)
\(\frac {1}{ f}\) = m
P = +3D

(a) दीर्घ-दृष्टि दोष युक्त नेत्र का निकट बिंदु
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(b) दीर्घ-दृष्टि दोष युक्त नेत्र
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(c) दीर्घ-दृष्टि दोष का निवारण
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प्रश्न 8.
सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट क्यों नहीं देख पाते?
उत्तर:
सामान्य नेत्र 25 cm से निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाते; क्योंकि 25 cm से निकट रखी वस्तुओं से आने वाली प्रकाश किरण नेत्र के रेटिना पर उचित प्रकार से फोकस नहीं हो पाती, जिस कारण वस्तु का धुंधला प्रतिबिंब बनता है और वह सुस्पष्ट नहीं दिखाई देती।

प्रश्न 9.
जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी का क्या होता है?
उत्तर:
जब हम नेत्र से किसी वस्तु की दूरी को बढ़ा देते हैं तो नेत्र में प्रतिबिंब-दूरी अपरिवर्तित रहती है। ऐसा इसलिए होता है कि जब नेत्र से वस्तु की दूरी बढ़ाई जाती है तो पक्ष्माभी पेशियाँ नेत्र लेंस की फोकस दूरी को समायोजित कर देती हैं जिससे वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिंब रेटिना पर प्राप्त होता है।

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प्रश्न 10.
तारे क्यों टिमटिमाते हैं?
उत्तर:
तारों के प्रकाश के वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के पश्चात् पृथ्वी के पृष्ठ पर पहुँचने तक तारे का प्रकाश निरंतर अपवर्तित होता रहता है। चूँकि वायुमंडल तारे के प्रकाश को अभिलंब की ओर झुका देता है, अतः तारे की आभासी स्थिति उसकी वास्तविक स्थिति से कुछ भिन्न प्रतीत होती है और वे हमें टिमटिमाते हुए प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 11.
व्याख्या कीजिए कि ग्रह क्यों नहीं टिमटिमाते?
उत्तर:
ग्रह तारों की अपेक्षा पृथ्वी के बहुत पास हैं और इसलिए उन्हें विस्तृत स्रोत की भाँति माना जा सकता है। यदि हम ग्रह को बिन्दु-साइज़ के अनेक प्रकाश स्रोतों का संग्रह मान लें तो सभी बिन्दु-साइज़ के प्रकाश-स्रोतों से हमारे नेत्रों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा में कुल परिवर्तन का औसत मान शून्य होगा, इसी कारण टिमटिमाने का प्रभाव निष्प्रभावित हो जाता है।

प्रश्न 12.
सूर्योदय के समय सूर्य रक्ताभ क्यों प्रतीत होता है?
उत्तर:
सूर्योदय के समय सूर्य क्षैतिज के निकट होता है इसलिए सूर्य से आने वाला अधिकांश नीला प्रकाश और कम तरंगदैर्घ्य का प्रकाश वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा दूर प्रकीर्णित कर दिया जाता है। इस प्रकार हमारे नेत्रों तक जो प्रकाश पहुँचता है वह अधिक तरंगदैर्घ्य वाला होता है। यही घटना सूर्योदय के समय सूर्य को रक्ताभ प्रदान करती है।

प्रश्न 13.
किसी अंतरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला क्यों प्रतीत होता है? (2016)
उत्तर:
हम जानते हैं कि अंतरिक्ष में वायुमंडल नहीं होता है जिस कारण वहाँ पर सूर्य का प्रकाश प्रकीर्णित नहीं होता है। यही कारण है कि अंतरिक्षयात्री को आकाश नीले की अपेक्षा काला प्रतीत होता है।

Bihar Board Class 10 Science मानव नेत्र एवं रंगबिरंगा संसार Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव नेत्र द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है
(a) कॉर्निया पर
(b) आइरिस पर
(c) पुतली पर
(d) रेटिना पर
उत्तर:
(d) रेटिना पर

प्रश्न 2.
नेत्र-लेंस होता है
(a) अभिसारी
(b) अपसारी
(c) अपसारी या अभिसारी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) अभिसारी

प्रश्न 3. स्वस्थ आँख के लिए दूर-बिन्दु होता है (2011, 12, 15)
(a) 25 सेमी
(b) 50 सेमी
(c) 100 सेमी
(d) अनन्त पर
उत्तर:
(d) अनन्त पर।

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प्रश्न 4.
स्वस्थ आँख के लिए स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी होती है स्वस्थ नेत्र का निकट बिन्दु होता है (2011)
या स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी है – (2014, 18)
(a) 25 सेमी पर
(b) 50 सेमी पर
(c) 100 सेमी पर
(d) अनन्त पर
उत्तर:
(a) 25 सेमी पर

प्रश्न 5.
निकट दृष्टि दोष से पीड़ित व्यक्ति का दूर बिन्दु स्थित होता है (2013)
(a) 25 सेमी पर
(b) 25 सेमी से कम दूरी पर
(c) अनन्त पर
(d) अनन्त से कम दूरी पर
उत्तर:
(d) अनन्त से कम दूरी पर

प्रश्न 6.
दूर-दृष्टि दोष के कारण प्रतिबिम्ब बनता है – (2012)
(a) रेटिना पर
(b) रेटिना के पीछे
(c) रेटिना के आगे
(d) कहीं नहीं
उत्तर:
(b) रेटिना के पीछे

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य की आँख में रेटिना का क्या कार्य है ?
उत्तर:
मनुष्य की आँख में रेटिना का कार्य वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाना है।

प्रश्न 2.
निकट-दृष्टि दोष निवारण हेतु किस प्रकार के लेंस का प्रयोग किया जाता है ? (2011)
उत्तर:
उचित फोकस-दूरी के अवतल लेंस का।

प्रश्न 3.
दीर्घ दृष्टि दोष निवारण के लिए किस प्रकार के लेंस का उपयोग किया जाता है? (2011, 13, 14)
या दूर-दृष्टि दोष दूर करने के लिए चश्मे में किस प्रकार के लेंस का प्रयोग करना होगा?
उत्तर:
उचित फोकस दूरी के उत्तल लेंस का।

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प्रश्न 4.
एक व्यक्ति के चश्मे के ऊपरी भाग में अवतल लेंस तथा निचले भाग में उत्तल लेंस लगा है। बताइए उस व्यक्ति की आँख में कौन-कौन से दोष हैं? (2018)
उत्तर:
मनुष्य की आँख में निकट-दृष्टि एवं दूर-दृष्टि दोनों दोष हैं।

प्रश्न 5.
एक व्यक्ति के चश्मे में उत्तल लेंस लगा है। बताइए उस व्यक्ति की आँख में ., कौन-सा दोष है ? (2015)
उत्तर:
व्यक्ति की आँख में दूर-दृष्टि दोष है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य की आँख के निकट-बिन्दु तथा दूर-बिन्दु से क्या तात्पर्य है ? स्वस्थ आँख के लिए इनका मान लिखिए। (2015, 17)
उत्तर:
निकट-बिन्दु आँख के अधिक-से-अधिक निकट का वह बिन्दु जिसे आँख अपनी अधिकतम समंजन क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकती है; आँख का निकट-बिन्दु कहलाता है। स्वस्थ आँख के लिए यह दूरी 25 सेमी होती है। दूर-बिन्दु वह दूरतम बिन्दु जिसे आँख बिना समंजन क्षमता लगाये स्पष्ट देख सकती है, आँख का दूर-बिन्दु कहलाता है। सामान्य आँख के लिए यह अनन्त पर होता है।

प्रश्न 2.
स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी किसे कहते हैं ? (2014)
उत्तर:
वह निकटतम बिन्दु जिसे आँख अपनी अधिकतम समंजन क्षमता लगाकर स्पष्ट देख सकती है, आँख का निकट-बिन्दु कहलाता है तथा आँख से इस बिन्दु की दूरी स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी कहलाती है। स्वस्थ आँख के लिए यह दूरी 25 सेमी होती है।

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प्रश्न 3.
दृष्टि दोष क्या है ? इसके प्रकार लिखिए। (2013)
उत्तर:
जब नेत्र में प्रतिबिम्ब रेटिना के आगे या पीछे बनता है तब वस्तु स्पष्ट नजर नहीं आती। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब नेत्र की समंजन क्षमता प्रतिबिम्ब को रेटिना पर बनाने के लिए कम हो जाती है या पूर्णत: समाप्त हो जाती है। इसी को दृष्टि दोष कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है –
1. निकट-दृष्टि दोष
2. दूर-दृष्टि दोष।

प्रश्न 4.
दूर-दृष्टि दोष किसे कहते हैं ? इस दोष के निवारण के लिए किस प्रकार का लेंस प्रयुक्त किया जाता है ? किरण-आरेख द्वारा समझाइए। (2012, 15, 16, 17, 18)
दूर-दृष्टि दोष से क्या तात्पर्य है? इसका निवारण किस प्रकार किया जा सकता है? (2011, 15, 16)
उत्तर:
इस दोष से पीड़ित व्यक्ति को दूर की वस्तुएँ तो स्पष्ट दिखायी देती हैं, परन्तु निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं देतीं। यह दोष निम्नलिखित दो कारणों में से किसी एक कारण से हो सकता
1. नेत्र-लेंस की वक्रता कम हो जाए, जिससे उसकी फोकस दूरी बढ़ जाए।
2. नेत्र-लेंस तथा रेटिना के बीच की दूरी कम हो जाए अर्थात् नेत्र के गोलक का व्यास कम हो जाए।
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इस दृष्टि दोष वाले व्यक्ति का निकट बिन्दु 25 सेमी के स्थान पर अधिक दूरी पर हो जाता है। इस कारण 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना F पर न बनकर रेटिना के पीछे A पर बनता है [देखें चित्र (a)]| दूर-दृष्टि दोष का निवारण इस दोष के निवारण के लिए ऐसे अभिसारी (उत्तल) लेंस की आवश्यकता होगी, जो 25 सेमी दूर-बिन्दु S पर रखी वस्तु (किताब) से आने वाली किरणों को इतना अभिसरित कर दे कि किरणें दूषित आँख के निकट-बिन्दु N से आती हुई नेत्र-लेंस पर आपतित हों तथा प्रतिबिम्ब रेटिना R पर बने [देखें चित्र (b)]। इस प्रकार S पर रखी वस्तु भी आँख को स्पष्ट दिखायी देगी।

प्रश्न 5.
निकट दृष्टि दोष किसे कहते हैं ? इस दोष के क्या कारण हैं? इसके निवारण के लिए किस प्रकार का लेंस प्रयुक्त किया जाता है ? किरण-आरेख द्वारा समझाइए। (2009, 12, 14, 16, 17, 18) या निकट दृष्टि दोष से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
निकट-दृष्टि दोष वाले व्यक्ति को पास की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी देती हैं; परन्तु अधिक दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखायी नहीं देती अर्थात् नेत्र का दूर-बिन्दु अनन्त पर न होकर कम दूरी पर आ जाता है। इस दोष के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
1. नेत्र-लेंस की वक्रता बढ़ जाए जिससे उसकी फोकस दूरी कम हो जाए।
2. नेत्र-लेंस और रेटिना के बीच की दूरी बढ़ जाए अर्थात् नेत्र के गोलक का व्यास बढ़ जाए।
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इस दोष के कारण दूर की वस्तु का प्रतिबिम्ब रेटिना पर न बनकर रेटिना व नेत्र-लेंस के बीच P पर बन जाने से [देखें चित्र (a)] प्रतिबिम्ब स्पष्ट नहीं दिखता। ऐसे मनुष्य का दूर-बिन्दु अनन्त पर न होकर आँख के काफी पास F पर होता है तथा निकट बिन्दु भी 25 सेमी से कम दूरी पर होता है। निकट-दृष्टि दोष का निवारण निकट-दृष्टि दोष में नेत्र का दूर-बिन्दु F अनन्त से कम दूरी पर ऐसी स्थिति में होता है; जहाँ से चलने वाली किरणें बिना समंजन क्षमता लगाये रेटिना पर मिलती हैं देखें चित्र (b)]।

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इस दोष को दूर करने के लिए ऐसे अवतल लेंस का उपयोग किया जाता है कि अनन्तता पर रखी वस्तु से चलने वाली किरणें इस लेंस से निकलने पर, नेत्र के दूर-बिन्दु F से चली हुई प्रतीत हों। तब ये किरणें नेत्र-लेंस से अपवर्तित होकर रेटिना F पर मिलती हैं; जहाँ वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब बन जाता है तथा वस्तु स्पष्ट दिखायी देने लगती है।

प्रश्न 6.
37.5 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेंस की सहायता से 25 सेमी दूर रखी पुस्तक पढ़ने वाले व्यक्ति की दृष्टि में कौन-सा दोष होगा? उसकी आँख से कितनी दूरी पर प्रतिबिम्ब बनेगा? (2009)
हल:
दिया है : f = – 37.5 सेमी (चूँकि लेंस अवतल है) मनुष्य अवतल लेंस की सहायता से पुस्तक को 25 सेमी दूर रखकर स्पष्ट पढ़ सकता है। अत: यदि मनुष्य बिना लेंस के पुस्तक को दूरी पर रखकर पढ़ सकता है, तो लेंस 25 सेमी की दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब υ दूरी पर बनाता है; अत: u = – 25 सेमी, υ = ?
लेंस का सत्र = \(\frac {1}{f}\) – \(\frac {1}{ υ}\) = \(\frac {1}{ u}\) से \(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{ f}\) – \(\frac {1}{ u}\)
= \(\frac {1}{-37.5}\) – \(\frac {1}{25}\) = –\(\frac {2}{75}\) – \(\frac {1}{ 25}\)
= \(\frac {-2-3}{ 75}\) = \(\frac {-5}{75}\)
υ = – \(\frac {75}{5}\) = -15 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब 15 सेमी की दूरी पर बनेगा। पुन: चूँकि वह अवतल लेंस का प्रयोग करता है, अत: व्यक्ति की दृष्टि में निकट दृष्टि दोष है।

प्रश्न 7.
एक निकट दृष्टि दोष वाला मनुष्य अपनी आँख से 10 मीटर से दर की वस्तओं को स्पष्ट नहीं देख सकता। अनन्त पर स्थित किसी वस्तु को देखने के लिए कितनी फोकस दूरी, प्रकृति व क्षमता वाले लेंस की आवश्यकता होगी? (2009, 12, 13, 14, 15, 17)
हल:
इस दोष के निवारण के लिए व्यक्ति को ऐसे लेंस का उपयोग करना होगा, जो अनन्त पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब 10 मीटर की दूरी पर बना सके, अर्थात् = -10, υ = -10 मीटर =1000 सेमी

लेंस के सूत्र
\(\frac {1}{f}\) – \(\frac {1}{ υ}\) = \(\frac {1}{ u}\) से
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{-1000}\) – \(\frac {1}{-r}\)
या \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{-1000}\)
f = -100 सेमी = – 10 मीटर
तथा लेंस की क्षमता =
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= – 0.1 D
चूँकि लेंस की क्षमता ऋणात्मक है; अत: लेंस अवतल होगा।

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प्रश्न 8.
एक निकट दृष्टि दोष वाला व्यक्ति 15 सेमी दूर स्थित पुस्तक को स्पष्टतः पढ़ सकता है। पुस्तक को 25 सेमी दूर रखकर पढ़ने के लिए उसे कैसा और कितनी फोकस-दूरी का लेंस अपने चश्मे में प्रयुक्त करना पड़ेगा? (2009)
हल:
इस व्यक्ति को ऐसी फोकस-दूरी के लेंस का प्रयोग करना चाहिए जिससे कि पुस्तक को 25 सेमी दूर रखने पर उसका प्रतिबिम्ब चश्मे से 15 सेमी की दूरी पर बने अर्थात्
u = – 25 सेमी (उचित चिह्न सहित), υ = – 15 सेमी (उचित चिह्न सहित)
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{f}\) – \(\frac {1}{ υ}\) = \(\frac {1}{ u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{ -15}\) – \(\frac {1}{ (-25)}\) = \(\frac {1}{ -15}\) + \(\frac {1}{ (-25)}\)
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {-10 + 6}{150}\) = \(\frac {4}{150}\) = – \(\frac {2}{75 }\)
f = \(\frac {75}{2}\) = – 37.5 सेमी
चूँकि फोकस-दूरी ऋणात्मक है, अत: उसे 37.5 सेमी फोकस दूरी के अवतल लेंस का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 9.
एक मनुष्य चश्मा पहनकर 25 सेमी दूरी पर रखी पुस्तक पढ़ सकता है। चश्मे में प्रयुक्त लेंस की क्षमता – 2.0 D है। यह मनुष्य बिना चश्मा लगाये हुए पुस्तक को कितनी दूर रखकर पढ़ेगा? हल-इस चश्मे के द्वारा मनुष्य की आँख से 25 सेमी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब उस स्थान पर बनेगाः जहाँ बिना चश्मा लगाये वह पुस्तक को रखकर पढ़ सकता है। माना यह दूरी ५ है तथा u = – 25 सेमी।
:: P = \(\frac {1}{f}\) या – 2 = \(\frac {1}{f}\) या -2f = 1 म
या f = \(\frac {1}{2}\) सेमी या f = – 50 सेमी
लेंस के सूत्र
\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{ u}\) = \(\frac {1}{f}\) से,
\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{ (-25)}\) = \(\frac {1}{(-50)}\) या \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{ 25}\) = – \(\frac {1}{50}\)
या \(\frac {1}{υ}\) = – \(\frac {1}{50}\) – \(\frac {1}{25}\) या \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {-1-2}{ 50}\) = \(\frac {-3}{50}\)
υ = \(\frac {50}{3}\) = – 16.7 सेमी
अत: वह बिना चश्मा लगाये 16.7 सेमी की दूरी पर आँख के सामने रखी पुस्तक को पढ़ सकता है।

प्रश्न 10.
दूर दृष्टि दोष से पीड़ित एक मनुष्य के निकट बिन्दु की दूरी 0.40 मीटर है अर्थात् वह कम से कम 40 सेमी की दूरी तक देख सकता है। इस दोष के निवारण हेतु उपयोग में लाये गये लेंस की प्रकृति बताइए तथा फोकस दूरी व क्षमता का परिकलन कीजिए। स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी 25 सेमी है। (2009, 12, 13, 14)
हल:
इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस का प्रयोग करना चाहिए। इस व्यक्ति द्वारा प्रयोग किये गये उत्तल लेंस की फोकस-दूरी इतनी होनी चाहिए जिससे कि 25 सेमी दूरी पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब आँख के सामने 0.40 मीटर अर्थात् 40 सेमी पर बने। अर्थात् u = – 25 सेमी (उचित चिह्न सहित) υ = – 40 सेमी (उचित चिह्न सहित)
लेंस के सूत्र
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{ υ}\) = \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{ -40}\) – \(\frac {1}{-25}\)
=-\(\frac {1}{40}\) + \(\frac {1}{ 25}\) = \(\frac {-5+ 8}{200}\) = \(\frac {3}{ 200}\)
या लेंस की फोकस दूरी f = \(\frac {200}{3}\) = 66.7 सेमी
लेंस की क्षमता = \(\frac {100}{66.7}\) = 1.5 डायोप्टर

प्रश्न 11.
वर्णान्धता से आप क्या समझते हैं? (2015)
उत्तर:
नेत्र में यह ऐसा दोष होता है जिसके कारण मनुष्य कुछ निश्चित रंगों में अन्तर नहीं कर पाता। यह दोष एक आनुवंशिक दोष है जो जन्मजात होता है। इसका कोई उपचार नहीं है। जिन व्यक्तियों में यह दोष होता है, वे सामान्यत: देख तो ठीक सकते हैं परन्तु ये विभिन्न रंगों में अन्तर नहीं कर सकते।

प्रश्न 12.
प्रकाश के प्रकीर्णन को समझाइए। किस रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम किसका सबसे अधिक होता है ? (2011, 12, 16, 18)
उत्तर:
जब प्रकाश किसी ऐसे माध्यम से गुजरता है जिसमें अति सूक्ष्म आकार के कण (जैसे-धूल व धुएँ के कण, वायु के अणु) विद्यमान हों तो इन कणों के द्वारा प्रकाश का कुछ भाग सभी दिशाओं में फैल जाता है। इस घटना को ‘प्रकाश का प्रकीर्णन’ कहते हैं। प्रयोग द्वारा ज्ञात हुआ है कि लाल रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन सबसे कम तथा बैंगनी रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन ‘सबसे अधिक होता है।

प्रश्ना13.
हीरा क्यों चमकता है ? (2014)
उत्तर:
हीरे से वायु में आने वाली किरण के लिए क्रान्तिक कोण बहुत कम, केवल 24° होता है। अत: जब बाहर का प्रकाश किसी कटे हुए हीरे में प्रवेश करता है तो वह उसके भीतर विभिन्न तलों पर बार-बार पूर्ण परावर्तित होता रहता है। जब किसी तल पर आपतन कोण 24° से कम हो जाता है, तब ही प्रकाश हीरे से बाहर आ पाता है। इस प्रकार हीरे में सभी दिशाओं से प्रवेश करने वाला प्रकाश केवल कुछ ही दिशाओं में हीरे से बाहर निकलता है। अत: इन दिशाओं से देखने पर हीरा अत्यन्त चमकदार दिखाई देता है।

प्रश्न 14.
मरीचिका से क्या तात्पर्य है? (2014)
या रेगिस्तान में मरीचिका दिखाई देती है। कारण स्पष्ट कीजिए। (2016, 17)
उत्तर:
कभी-कभी रेगिस्तान में यात्रियों को दूर से पेड़ के साथ-साथ उसका उल्टा प्रतिबिम्ब भी दिखाई देता है। अतः इन्हें ऐसा भ्रम हो जाता है कि वहाँ कोई जल का तालाब है जिसमें पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा है। परन्तु वास्तव में वहाँ तालाब नहीं होता है। जब सूर्य की गर्मी से रेगिस्तान का रेत गर्म होता है ठण्डी वायु – तो उसे छूकर पृथ्वी के पास की वायु अधिक गर्म (सघन) FAR हो जाती है। इससे कुछ ऊपर तक वाय की परतों का ताप लगातार घटता जाता है। अत: वायु की गर्म वायु – नीचे वाली परतें अपेक्षाकृत विरल होती हैं। जब (विरल) पेड़ से प्रकाश-किरणें पृथ्वी की ओर आती हैं तो उन्हें अधिकाधिक विरल परतों से होकर आना पड़ता है, इसलिए प्रत्येक परत पर अपवर्तित किरण अभिलम्ब से दूर हटती जाती है।
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अत: प्रत्येक अगली परत पर आपतन कोण बढ़ता जाता है तथा किसी विशेष परत पर क्रान्तिक कोण से चित्र बड़ा हो जाता है। इस परत पर किरण पूर्ण परावर्तित होकर ऊपर की ओर चलने लगती है। चूँकि ऊपर वाली परतें अधिकाधिक सघन हैं, अत: ऊपर उठती हुई किरण अभिलम्ब की ओर झुकती जाती है। जब यह किरण यात्री की आँख में प्रवेश करती है तो पृथ्वी के नीचे से आती प्रतीत होती है तथा यात्री को पेड़ का उल्टा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है।

प्रश्न 15.
सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य लाल क्यों दिखाई देता है ?
उत्तर:
उगते अथवा डूबते सूर्य की किरणें वायुमण्डल में काफी अधिक दूरी तय करके हमारी आँख में पहुँचती हैं। इन किरणों का मार्ग में धूल के कणों तथा वायु के अणुओं द्वारा बहुत अधिक प्रकीर्णन होता है। इस प्रकीर्णन के कारण सूर्य के प्रकाश में से नीली व बैंगनी किरणें निकल जाती हैं, क्योंकि इन किरणों का प्रकीर्णन सबसे अधिक होता है। अत: आँख में विशेष रूप से शेष लाल किरणें ही पहुँचती हैं जिसके कारण सर्य लाल दिखाई देता है। दोपहर के समय जब सर्य सिर के ऊपर होता है तब किरणें वायुमण्डल में अपेक्षाकृत बहुत कम दूरी तय करती हैं। अतः प्रकीर्णन कम होता है और लगभग सभी रंगों की किरणें आँख तक पहुँच जाती हैं। अत: सूर्य श्वेत दिखाई देता है।

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प्रश्न 16.
पृथ्वी से आकाश का रंग हल्का नीला क्यों दिखाई देता है ? समझाइये। (2013)
या चन्द्रमा से देखने पर आकाश किस रंग का दिखाई देता है? (2017)
उत्तर:
सूर्य से आने वाला प्रकाश, जिसमें अनेक रंग होते हैं, जब वायुमण्डल में को होकर गुजरता है तो वायु के अणुओं एवं धूल के महीन कणों द्वारा इसका प्रकीर्णन होता है। बैंगनी व नीले रंग के प्रकाश का प्रकीर्णन लाल रंग के प्रकाश की अपेक्षा लगभग 16 गुना अधिक होता है। अत: नीला व बैंगनी प्रकाश चारों ओर बिखर जाता है। यह बिखरा हुआ प्रकाश हमारी आँख में पहुँचता है तथा हमें आकाश नीला दिखाई देता है।

यदि वायुमण्डल न होता (चन्द्रमा पर वायुमण्डल नहीं होता) तो सूर्य के प्रकाश का मार्ग में प्रकीर्णन नहीं होता तथा हमें आकाश काला (dark) दिखाई देता। यही कारण है कि चन्द्रमा के तल से देखने पर आकाश काला दिखाई पड़ता है। अन्तरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी के वायुमण्डल से बाहर पहुँचने पर आकाश काला ही दिखाई देता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव नेत्र के प्रमुख भागों का वर्णन कीजिए। किसी वस्तु का मानव नेत्र से प्रतिबिम्ब बनना किरण आरेख द्वारा स्पष्ट कीजिए। (2010)
या मानव नेत्र का नामांकित चित्र बनाइए तथा रेटिना पर प्रतिबिम्ब का बनना किरण आरेख द्वारा समझाइए। (2010, 11, 12, 17)
या मानव नेत्र का चित्र बनाकर विभिन्न भागों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मानव नेत्र एक प्रकार का कैमरा है। इसके द्वारा फोटो कैमरे की भाँति वस्तुओं के वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनते हैं।
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मानव नेत्र का गोलक (Eye-ball) यह लगभग गोलाकार पिण्ड है, जो सामने के भाग को छोड़कर चारों ओर से दृढ़ अपारदर्शी परत से ढका होता है। इसके प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं –
1. दृढ़-पटल तथा रक्तक-पटल (Sclerotic and Choroid) नेत्र-गोलक की बाहरी अपारदर्शी कठोर परत को दृढ़-पटल कहते हैं। यह श्वेत होता है। दृढ़-पटल नेत्र के भीतरी भागों की सुरक्षा करता है। इसके भीतरी पृष्ठ से लगी काले रंग की झिल्ली होती है, जिसे रक्तक-पटल कहते हैं।

2. कॉर्निया (Cornea) नेत्र-गोलक के सामने का भाग कुछ उभरा हुआ तथा पारदर्शी होता है। इसे कॉर्निया कहते हैं। प्रकाश इसी भाग से नेत्र में प्रवेश करता है।

3. आइरिस (Iris) कॉर्निया के पीछे की ओर रंगीन (काली, भूरी अथवा नीली) अपारदर्शी झिल्ली का एक पर्दा होता है; जिसे आइरिस कहते हैं। इसके बीच में एक छिद्र होता है, जिसे पुतली (pupil) कहते हैं। आइरिस का कार्य नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा को नियन्त्रित करना है। अधिक प्रकाश में यह संकुचित होकर पुतली को छोटा कर देती है तथा कम प्रकाश में पुतली को फैला देती है जिससे नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा बढ़ जाती है। नेत्र में यह क्रिया स्वत: होती है।

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4.  नेत्र-लेंस (Eye-lens) पुतली के पीछे पारदर्शी ऊतकों (tissues) का बना द्वि-उत्तल लेंस होता है, जिसके द्वारा बाहरी वस्तुओं का उल्टा, छोटा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब लेंस के पीछे दृश्य-पटल (retina) पर बनता है। लेंस, मांसपेशियों की एक विशेष प्रणाली, जिसे सिलियरी प्रणाली (ciliary system) कहते हैं, द्वारा टिका रहता है। ये पेशियाँ लेंस पर उपयुक्त दाब डालकर उसके पृष्ठों की वक्रता को बढ़ा-घटा सकती हैं, जिससे लेंस की फोकस दूरी कम या अधिक हो जाती है। इन पेशियों द्वारा लेंस पर ठीक उतना दाब पड़ता है कि बाहरी वस्तु का प्रतिबिम्ब दृश्य-पटल पर स्पष्ट बने।

5. दृष्टि-पटल (Retina) नेत्र-गोलक के भीतर पीछे की ओर रक्तक-पटल के ऊपर पारदर्शी झिल्ली दृष्टि-पटल (रेटिना) होती है। इस परदे पर विशेष प्रकार की तन्त्रिकाओं (nerves) के सिरे होते हैं, जिन पर प्रकाश पड़ने से संवेदन उत्पन्न होते हैं। यह संवेदन तन्त्रिकाओं के एक समूह, जिसे दृष्टि-तन्त्रिका (optic nerve) कहते हैं, के द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।

6. जलीय द्रव तथा कांचाभ द्रव (Aqueous Humor and Vitreous Humor) कॉर्निया तथा नेत्र-लेंस के बीच के स्थान में जल के समान द्रव भरा होता है, जो अत्यन्त पारदर्शी तथा 1.336 अपवर्तनांक का होता है। इसे जलीय द्रव कहते हैं। इसी प्रकार लेंस के पीछे दृश्य-पटल तक का स्थान एक गाढ़े, पारदर्शी एवं उच्च अपवर्तनांक के द्रव से भरा होता है। इसे कांचाभ द्रव कहते हैं। ये दोनों द्रव प्रकाश के अपवर्तन में लेंस की सहायता करते हैं।

7.  पीत बिन्दु (Yellow Spot) दृष्टि-पटल के मध्य में पीला भाग होता है; जिस पर बना प्रतिबिम्ब बहुत ही स्पष्ट होता है।

8. अन्ध बिन्दु (Blind Spot) दृष्टि-पटल के जिस स्थान को छेदकर दृष्टि तन्त्रिकाएँ मस्तिष्क को जाती हैं; उस स्थान पर पड़ने वाले प्रकाश का दृष्टि-पटल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस स्थान को अन्ध बिन्दु कहते हैं।

मानव नेत्र से प्रतिबिम्ब बनना नेत्र के सामने रखी किसी वस्तु से चली प्रकाश की किरणें कॉर्निया पर गिरती हैं तथा अपवर्तित होकर नेत्र में प्रवेश करती हैं। फिर ये क्रमशः जलीय द्रव, लेंस व कांचाभ द्रव में से होती हुई रेटिना पर गिरती हैं; जहाँ वस्तु का उल्टा प्रतिबिम्ब बनता है। प्रतिबिम्ब बनने का सन्देश दुक तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क में पहुँचता है; जिससे यह प्रतिबिम्ब अनुभव के आधार पर सीधा दिखायी देता है।
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प्रश्न 2.
प्रिज्म क्या है ? किसी प्रिज्म द्वारा प्रकाश का अपवर्तन समझाइए। या प्रिज्म क्या है? प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन समझाइए तथा प्रिज्म के पदार्थ के अपवर्तनांक के लिए व्यंजक लिखिए। (2009)
उत्तर:
प्रिज्म प्रिज्म किसी पारदर्शी माध्यम के उस भाग को कहते हैं जो कि किसी कोण पर झुके हुए दो समतल पृष्ठों के बीच में स्थित होता है। इन पृष्ठों को ‘अपवर्तक पृष्ठ’ तथा इनके बीच के कोण को ‘अपवर्तक कोण’ कहते हैं। दोनों पृष्ठों को मिलाने वाली रेखा को ‘अपवर्तक कोर’ कहते हैं। प्रिज्म द्वारा प्रकाश का विचलन माना कि ABC (देखें चित्र) काँच के एक प्रिज्म का मुख्य-परिच्छेद है। कोण BAC अपवर्तक कोण है तथा वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक ang है। माना कि आपतित । किरण PQ, प्रिज्म के पृष्ठ AB के बिन्दु Q पर गिरती है।

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इस पृष्ठ पर किरण अपवर्तन के पश्चात् Q पर खींचे गये अभिलम्ब की ओर झुक कर QR दिशा में चली जाती है। किरण QR पृष्ठ AC पर अपवर्तन के पश्चात् R पर खींचे P गये अभिलम्ब से दूर हट कर, RS दिशा में बाहर निकलती है। स्पष्ट है कि प्रिज्म, PQ दिशा में आने वाली किरण को RS दिशा में विचलित कर देता है। इस प्रकार यह प्रकाश की दिशा में विचलन (deviation) उत्पन्न कर देता है। आपतित किरण PQ को आगे तथा निर्गत किरण RS को पीछे बढ़ाने पर वे बिन्दु D पर काटती हैं। इन दोनों किरणों के बीच बना कोण δ (डेल्टा) ‘विचलन कोण’ (angle of deviation) कहलाता है।

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यदि हम प्रिज्म पर गिरने वाली किरण के आपतन कोण i को बढ़ाते जाएँ तो विचलन कोण δ का मान घटता जाता है तथा एक विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम हो जाता है। आपतन कोण और बढ़ाने पर विचलन कोण फिर बढ़ने लगता है।

इस प्रकार एक, और केवल एक ही, विशेष आपतन कोण के लिए विचलन कोण न्यूनतम होता है। इस न्यूनतम विचलन कोण को ‘अल्पतम विचलन कोण’ (angle of minimum deviation) कहते हैं। यदि किसी प्रिज्म का कोण A तथा किसी रंग की किरण के लिए अल्पतम विचलन कोण δ. हो, तो प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
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प्रश्न 3.
वर्ण विक्षेपण से क्या तात्पर्य है। उदाहरण देकर समझाइए। (2011, 17)
एक किरण आरेख द्वारा प्रिज्म से श्वेत प्रकाश के विक्षेपण को समझाइए। (2016, 17)
या प्रिज्म में श्वेत प्रकाश के गुजरने पर न्यूनतम व अधिकतम विचलन किन रंगों का होता (2018)
उत्तर:
प्रकाश का विक्षेपण जब सूर्य के प्रकाश की संकीर्ण प्रकाश-पुंज को प्रिज्म के एक फलक पर डाला जाता है, तो प्रिज्म के दूसरे पटल या फलक से निर्गत प्रकाश सात रंगों में विभाजित हो जाता है तथा इसे पर्दे पर लेने पर सात रंगों की एक पट्टी प्राप्त होती है। प्रकाश का इस प्रकार सात रंगों में विभाजित होना प्रकाश का विक्षेपण या वर्ण-विक्षेपण कहलाता है। प्रकाश के विक्षेपण के दौरान पर्दे पर प्राप्त विशेष क्रम में सात रंगों की पट्टी को स्पेक्ट्रम कहते हैं; जिसका अर्थ है रंगों का मिश्रण।

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श्वेत प्रकाश के विक्षेपण के दौरान प्राप्त सात रंगों में एक क्रम होता है जो इस प्रकार है, नीचे से ऊपर की ओर बैंगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) तथा लाल (Red)। इन रंगों के क्रम को याद रखने के लिए शब्द ‘VIBGYOR’ को याद रखें; जो इन रंगों के अंग्रेजी भाषा के शब्दों के पहले अक्षर से बना है।

परिक्षेपण का कारण यह है कि विभिन्न रंगों के प्रकाश का अपवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। बैंगनी प्रकाश का अपवर्तन (विचलन) सबसे अधिक तथा लाल प्रकाश का अपवर्तन (विचलन) सबसे कम होता है। इसी कारण बैंगनी रंग स्पेक्ट्रम में सबसे नीचे तथा लाल रंग स्पेक्ट्रम में सबसे ऊपर प्राप्त होता है।

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प्रश्न 4.
आवश्यक किरण आरेख खींचकर प्रिज्म की सहायता से पुष्टि कीजिए कि सूर्य का श्वेत प्रकाश विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण है। (2016)
उत्तर:
किसी झिरों से आते हुए सूर्य के प्रकाश को यदि किसी प्रिज्म में से गुजारा जाए, तो प्रिज्म के दूसरी ओर रखे पर्दे पर वर्णक्रम (spectrum) प्राप्त होता है। इस वर्णक्रम में प्रिज्म के आधार की ओर से बैंगनी (Violet), जामुनी (Indigo), नीला (Blue), हरा (Green), पीला (Yellow), नारंगी (Orange) और लाल (Red) रंग प्राप्त होते हैं। प्रिज्म द्वारा सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम प्राप्त होने के दो कारण हो सकते हैं –
1. सूर्य का प्रकाश विभिन्न रंगों के प्रकाश से मिलकर बना है। प्रिज्म इन रंगों को अलग-अलग कर देता है।
2. प्रिज्म अपने में से गुजरने वाले प्रकाश को विभिन्न रंगों में रंग देता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रयोग करते हैं –

यदि हम एक प्रिज्म पर सूर्य के प्रकाश की पतली किरण डालें तथा पर्दे के स्थान पर वैसा ही दूसरा प्रिज्म उल्टा करके इस प्रकार रखें कि उनके संलग्न फलक समान्तर हों, तो दूसरे प्रिज्म से बाहर निकलने वाला प्रकाश पुनः श्वेत हो जाता है। इस प्रयोग में पहले प्रिज्म द्वारा अलग-अलग किये गये रंगों को दूसरे प्रिज्म ने पुन: जोड़ दिया जिससे श्वेत प्रकाश बन गया। यदि प्रिज्म प्रकाश को रँगता, तो दूसरे प्रिज्म से श्वेत प्रकाश न निकलता बल्कि और रंग निकलते। इससे सिद्ध होता है कि श्वेत प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है। प्रिज्म श्वेत प्रकाश को केवल अवयवी रंगों में विभक्त कर देता है।
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Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 14 हमारे इतिहासकार के.पि. जायसवाल, ए.एस.अल्तेकर

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 1 Chapter 14 हमारे इतिहासकार के.पि. जायसवाल, ए.एस.अल्तेकर Text Book Questions and Answers, Notes.

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Bihar Board Class 6 Social Science हमारे इतिहासकार के.पि. जायसवाल, ए.एस.अल्तेकर Text Book Questions and Answers

अभ्यास

प्रश्न 1.
दिए गए चार विकल्पों में से उत्तर को चुनें :

प्रश्न (i)
काशीप्रसाद जयसवाल का सम्पर्क लन्दन में किससे नहीं हुआ ?
(क) श्याम जी कृष्ण वर्मा
(ख) लाला हरदयाल
(ग) सारवरकर
(घ) जवाहर लाल नेहरू
उत्तर-
(घ) जवाहर लाल नेहरू

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प्रश्न (ii)
के0 पी0 जयसवाल ने सबसे पहले किस विश्वविद्यालय में योगदान दिया ?
(क) मद्रास विश्वविद्यालय
(ख) कलकत्ता विश्वविद्यालय
(ग) पटना विश्वविद्यालय
(घ) लाहौर विश्वविद्यालय
उत्तर-
(ख) कलकत्ता विश्वविद्यालय

प्रश्न (iii)
के0 पी0 जयसवाल मर्मज्ञ थे :
(क) इस्लामिक कानून
(ख) हिन्दू कानून
(ग) इसाई कानून
(घ) अंग्रेजी कानून
उत्तर-
(ख) हिन्दू कानून

प्रश्न (iv)
पटना संग्रहालय की स्थापना किनके प्रयासों का परिणाम है ?
(क) ए० एस० अल्तेकर
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) के0 पी0 जयसवाल
(घ) यदुनाथ सरकार
उत्तर-
(ग) के0 पी0 जयसवाल

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प्रश्न (v)
के0 पी0 जयसवाल के बारे में क्या सही नहीं है ?
(क) पटना विश्वविद्यालय में योगदान दिया।
(ख) ये एक अच्छे अधिवक्ता नहीं थे।
(ग) रामधारी सिंह दिनकर से इनके नजदीकी संबंध थे।
(घ) 1942 में इनकी पुस्तक हिन्दू पोलिटी’ प्रकाशित हुई।
उत्तर-
(घ) 1942 में इनकी पुस्तक हिन्दू पोलिटी’ प्रकाशित हुई।

प्रश्न (vi)
ए0 एस0 अल्तेकर पटना विश्वविद्यालय के पूर्व किस विश्वविद्यालय में कार्यरत थे ?
(क) मद्रास विश्वविद्यालय
(ख) बंबई विश्वविद्यालय
(ग) कलकत्ता विश्वविद्यालय
(घ) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ।
उत्तर-
(घ) बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ।

प्रश्न (vii)
ए० एस० अल्तेकर ने अपनी डी० लिट0 उपाधि प्राप्त की।
(क) राष्ट्रकुटों के इतिहास पर
(ख) गुप्तों के इतिहास पर
(ग) मौर्यों के इतिहास पर
(घ) चालुक्यों के इतिहास पर
उत्तर-
(क) राष्ट्रकुटों के इतिहास पर

प्रश्न 2.
के0 पी0 जयसवाल ने इतिहास लेखन में कौन-कौन से विषयों को उठाया?
उत्तर-
के0 पी0 जयसवाल ने इतिहास लेखन में हिन्दू विचार, दर्शन, धर्म , शासन, गणराज्य एवं सामाजिक व्यवस्था, विषयों को उठाया।

प्रश्न 3.
के0पी0 जयसवाल एक अच्छे शैक्षणिक स्तर पर संगठनकर्ता थे। कैसे ?
उत्तर-
के0 पी0 जयसवाल पुरालिपि और प्राचीन मुद्रा के ज्ञाता थे। अशोक के अभिलेख राज्यारोहण की तिथि, ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति तथा भुवनेश्वर मंदिर के अभिलेखों का सम्पादन, अयोध्या का शुंग अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख, महरों का अध्ययन तथा अनेक अभिलेखों का तिथिक्रम के अनुसार व्याख्या की। अतः ये अच्छे शैक्षणिक -स्तर पर संगठनकर्ता थे।

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प्रश्न 4.
ए० एस० अल्ते कर की विशेषज्ञता किन-किन क्षेत्रों में थी ?
उत्तर-
ए0 एस0 अल्तेकर कुम्हरार, वैशाली और सोनपुर जगहों पर उत्खनन करवाया। द ऐंटिक्वेरियन रिमेन्स ऑफ बिहार’ इनके प्रयास से पुस्तक छपी। प्राचीन भारतीय शासन पद्धति’ ग्रंथ लिखी । राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति प्रेम था। पुराभिलेखों एवं मुद्राशास्त्र के ज्ञाता थे। ‘लीडर’ पत्र में लिखा कि वेद पढ़ने का अधिकार स्त्री और शूद्र को है। राष्ट्रभाषा प्रेम, खादी कपड़ा पहनते थे।

प्रश्न 5.
ए० एस० अल्तेकर को क्यों हड़बड़िया’ कहा जाता था ?
उत्तर-
इतिहास लेखन में किसी बात से नहीं बँधे थे। ये हमेशा व्यस्त रहने में विश्वास करते थे। वे मानते थे कि यदि पुस्तक की पांडुलिपि तैयार हो जाए तो प्रकाशित कर देना चाहिए। इसे संवारने का काम नये शोध पत्रों पर छोड़ देना चाहिए। इसी कारण से उन्हें ‘हड़बड़िया’ कहा जाता था

प्रश्न 6.
इतिहास कैसे लिखा जाता है ? क्या आवश्यक शर्ते हैं ?
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें।

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प्रश्न 7.
आप अपने पास उपलब्ध सिक्कों एवं आसपास के पुराने भवनों को देखकर शिक्षक की मदद से तत्कालीन इतिहास लिखने का प्रयास करें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें।

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पाठ का सारांश

  • डा० अनंत सदाशिव अल्तेकर महान पुरातत्वविद् एवं इतिहासकार थे।
  • डा० अल्तेकर ने पटना वि०वि० में योगदान के पूर्व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पुरातत्व, मुद्राशास्त्र एवं सांस्कृतिक उत्थान के लिए … प्रशंसनीय कार्य किया।
  • बिहार के राज्यपाल आर० आर० दिवाकर द्वारा संपादित पुस्तक ‘बिहार श्रू द एजेज’ के प्रकाशन में डा० अल्तेकर का महत्वपूर्ण योगदार रहा।
  • डा० अल्तेकर पटना विश्वविद्यालय से अवकाश करने के बाद के०पी० जायसवाल शोध संस्थान के पूर्णकालिक निदेशक बने और जीवन पर्यन्त रहे।
  • डा० अल्तेकर ने कुम्हरार, वैशाली और सोनपुर आदि जगहों का उत्खनन
    भी करवाया।
  • डा०अल्तेकर छात्र जीवन से ही प्रतिभा सम्पन्न एवं अत्यंत मेधावी थे।
  • डा०अल्तेकर को 1954 में अमेरिका में अतिथि व्याख्याता के रूप में बुलाया गया। इसी वर्ष भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान देने वेस्टइंडीज गए।
  • काशी प्रसाद जयसवाल मिर्जापुर उत्तर प्रदेश के निवासी थे लेकिन इनकी कर्मभूमि पटना थी।
  • काशी प्रसाद जयसवाल की आर्थिक स्थिति बचपन से अच्छी नहीं थी।
  • काशी प्रसाद जयसवाल ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से इतिहास में एम०ए० की डिग्री हासिल की।
  • 1910 में स्वदेश लौटकर कलकत्ता में इन्होंने वकालत शुरू किया।
  • जायसवाल साहब पुरालिपि और प्राचीन मुद्रा के ज्ञाता थे।
  • जायसवाल साहब बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी के संस्थापक सदस्य थे।
  • के०पी० जायसवाल को एक दूसरी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ इंडिया’ (150 ई० से 350 ई० तक) 1930 में प्रकाशित हुई।

Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 13 संस्कृति और विज्ञान

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 1 Chapter 13 संस्कृति और विज्ञान Text Book Questions and Answers, Notes.

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Bihar Board Class 6 Social Science संस्कृति और विज्ञान Text Book Questions and Answers

अभ्यास

प्रश्न 1.
अभिज्ञान शाकुन्तलम् की रचना कालिदास ने की। यह क्या है?
(क) उपन्यास
(ख) नाटक
(ग) कहानी
(घ) कविता
उत्तर-
(ख) नाटक

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प्रश्न 2.
मंदिर के महत्वपूर्ण भाग जहाँ देवताओं की प्रतिमा रखी जाती थी?
(क) प्रदक्षिणापथ
(ख) गोपुरम
(ग) गर्भगृह
(घ) दालान
उत्तर-
(ग) गर्भगृह

प्रश्न 3.
दशावतार मंदिर में किस देवता की प्रतिमा है?
(क) विष्णु
(ख) शिव
(ग) बुद्ध
(घ) ब्रह्मा
उत्तर-
(क) विष्णु

प्रश्न 4.
इनमें से सबसे पहले किस पुस्तक की रचना हुई?
(क) ऋग्वेद
(ख) रामायण
(ग) महाभारत
(घ) पुराण
उत्तर-
(ग) महाभारत

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प्रश्न 5.
इनमें से ‘तमिल साहित्य कौन है ?
(क) देवी चंद्रगुप्तम
(ख) कुमारसंभवम्
(ग) मृच्छकटिकम
(घ) सिलपदिकारम
उत्तर-
(घ)

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें 

प्रश्न 1.
दिल्ली (मेहरौली) के लौह स्तम्भ के बारे में पाँच वाक्य लिखें।
उत्तर-
दिल्ली के लौह स्तम्भ में ऐसे तकनीक का प्रयोग हुआ कि आज तक इसमें जंग नहीं लगा.है। धातु कला काफी विकसित थी। यह अवशेष कुतुबमीनार परिसर में है। जंग न लगना तकनीक की जानकारी हमें प्राप्त नहीं है।

प्रश्न 2.
ऐतिहासिक महत्व के दो इमारतों के बारे में नाम के साथ पाँच पक्तियाँ लिखें।
उत्तर-
गुप्त काल के सर्वोत्कृष्ट मंदिर देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। यहाँ विष्णु की मूर्ति है। मंदिर का शिखर 12 मीटर ऊँचा है। इस मंदिर में चार मंडप चारों दिशाओं में स्थित है। गर्भ गृह में मूर्तियाँ स्थित हैं।

उदय गिरि में गुहा मंदिर है, जिसे चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का सेनापति वीर सेन ने बनवाया। इसके सामने गर्भ गृह और सामने मंडप है। इसमें वराह अवतार की विशाल मूर्ति है।

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प्रश्न 3.
बौद्ध बिहार से क्या समझते हैं ? यह किस धर्म से संबंधित है?
उत्तर-
बौद्ध बिहार का मतलब बौद्ध दशन, जहाँ बौद्ध से जुड़ी सभी प्रकार की वस्तुएँ एकत्रित हों। यह बौद्ध धर्म से संबंधित है। आइये चर्चा करें !

प्रश्न 4.
अपने गाँव के मंदिर में जाकर उनकी तुलना किसी प्राचीन मंदिर से करें। इसमें आप अपने परिवार के – किसी सदस्य की मदद ले सकते हों।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें ।

प्रश्न 5.
अजंता की गुफाएँ कहाँ हैं ? शिक्षक की सहायता से इनके महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त करो ।
उत्तर-
अजन्ता की गुफा उत्तरप्रदेश में है। यहाँ चित्रकारी की गई है। बुद्ध और बोधिसत्व का चित्र, ततीय जातक कथाओं की चित्रकारी। पशु, पक्षी, वृक्ष, नदी, पुरुष आदि के चित्र से वेशभूषा, सजावट की’ जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
किसी दो महत्वपूर्ण महाकाव्यों के बारे में अपने घर/विद्यालय में चर्चा करें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें ।

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प्रश्न 7.
किसी जातक कथा के विषय में अपने परिवार के किसी सदस्य या शिक्षक से जानकारी प्राप्त करो, जो तुम्हारी नैतिक शिक्षा प्राप्त करने में मददगार साबित होगा।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें ।

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पाठ का सारांश

  • अभिज्ञानशकुन्तलम का विषय-वस्तु राजा दुष्यंत और शकुन्तला का मिलन है
  • गुप्तकाल के सर्वोत्कृष्ट मंदिर, झांसी (उत्तर प्रदेश) जिले में देवगढ़ का दशावतार मंदिर है।
  • बौद्ध गुहामंदिरों में अजन्ता, बाघ तथा सितनवासल की गुफाएँ महत्वपूर्ण हैं।
  • विष्णु की प्रसिद्ध मूर्ति देवगढ़ दशावतार मंदिर में है।
  • भारतीय इतिहास में चौथी से सातवीं सदी का समय सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक प्रगति के दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है।
  • पुराण महाकाव्यकाल – चौथी सदी के प्रारंभ से सातवीं सदी के मध्य तक का समय जिसमें पुराणों, रामायण, महाभारत एवं तमिल साहित्यों का वर्तमान रूप में संकलन हुआ तथा अन्य लौकिक महालाव्यों की रचना हई (जिसके काल इसे) महाकाव्य काल कहते हैं।
  • कुमारसंभव में शिव-पार्वजी के प्रेम और प्रणय दृश्यों का वर्णन
  • अभिज्ञानशाकुन्तलम् में साहित्य और नाट्य कला दोनों की गुणात्मकता चरमोत्कर्ष पर दिखाई देती है।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 15 प्रायिकता Ex 15.1

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 15 प्रायिकता Ex 15.1 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 15 प्रायिकता Ex 15.1

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 15 प्रायिकता Ex 15.1

प्रश्न 1.
एक क्रिकेट मैच में, एक महिला बल्लेबाज खेली गई 30 गेंदों में 6 बार चौका मारती है। चौका न मारे जाने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
खेली गई गेदों की संख्या, n(S) = 30
वह गेंद जिन पर महिला ने चौके नहीं मारे
n(E) = 30 – 6 = 24
अतः प्रायिकता p(E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\)
= \(\frac{24}{30}\) = \(\frac{4}{5}\)

प्रश्न 2.
2 बच्चों वाले 1500 परिवारों का यदृच्छया चयन किया गया है और निम्नलिखित आंकड़े लिख लिए गए हैं:
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यदृच्छया चुने गए उस परिवार की प्रायिकता ज्ञान कीजिए, जिसमें
(i) दो लड़कियाँ हों (ii) एक लड़की हो (iii) कोई लड़की न हो। साथ ही यह भी जाँच कीजिए कि इन प्रायिकताओं का योग 1 है या नहीं।
उत्तर:
परिवारों की कुल संख्या n(S) = 1500,
(i) दो लड़कियाँ रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E1) = 475
∴ एक परिवार में दो लड़कियां होने की प्रायिकता
p(E1) = \(\frac{n(E_1)}{n(S)}\)
= \(\frac{475}{1500}\) = \(\frac{19}{60}\)

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(ii) एक लड़की रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E2) = 814
एक परिवार में एक लड़की के होने की प्रायिकता
n(E2) = \(\frac{n(E_2)}{n(S)}\)
= \(\frac{814}{1500}\) = \(\frac{407}{750}\)

(iii) कोई भी लड़की न रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E3) = 211
बिना लड़की वाले परिवारों को प्रायिकता
\(\frac{n(E_3)}{n(S)}\) = \(\frac{n(E_3)}{n(S)}\) = \(\frac{211}{1500}\)
∴ कुल प्रायिकता = तीनों प्रायिकताओं का योग
= \(\frac{19}{60}\) + \(\frac{407}{750}\) + \(\frac{211}{1500}\) = \(\frac{1500}{1500}\) = 1

प्रश्न 3.
अध्याय 14 के अनुच्छेद 14.4 का बाहरण 5 सौजिए। कक्षा के किसी एक विद्यार्थी का जन्म अगस्त में होने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कुल विद्यार्थियों की संख्या n(S) = 40
अगस्त में जन्म लेने वाले विद्यार्थीयों की कुल संख्या
n(E) = 6
∴ अभीष्ट प्राषिकता, p (E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\) = \(\frac{6}{40}\) = \(\frac{2}{30}\)

प्रश्न 4.
तीन सिक्कों को एक साथ 200 बार उछाला जाता है तथा इनमें विभिन परिणामों की वारंवारताएं ये हैं :
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यदि तीनों सिक्कों को पन: एक साथ जठाला जाए तो दो चित के आने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
तीन सिक्कों को एक साथ उडालने की कुल संख्या n(S) = 200
दो चित आने की प्रायिकता n(E) = 72
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\) = \(\frac{72}{200}\) = \(\frac{9}{25}\).

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प्रश्न 5.
एक कंपनी ने यदृच्छया 2400 परिवार चुनकर एक घर की आय सार और वाहनों की संख्या के बीच संबंध स्थापित करने के लिए उनका सर्वेक्षण किया। एकषित किए गए आंकड़े नीचे सारणी में दिए गए हैं।
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मान लीजिए एक परिवार चुना गया है। प्रायिकता ज्ञात कीजिए कि चुने गए परिवार
(i) की आय Rs 10000-13000 प्रति माह है और उसके पास केवल दो वाहन है।
(ii) की आय प्रति माह Rs 16000 या इससे अधिक है और उसके पास केवल 1 वाहन है।
(iii) की आव Rs 7000 प्रति माह से कम है और उसके पास कोई वाहन नहीं है।
(iv) की आयर 13010-16000 प्रति माह के अन्तराल में है और उसके पास 2 से अधिक वाहन हैं।
(v) जिसके पास 1 से अधिक वाहन नहीं है।
उत्तर:
कम्पनी द्वारा चुने गये कुल परिवारों की संख्या,
n(S) = 2400
(i) दो बाहन रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E1) = 29
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E1) = \(\frac{n(E_1)}{n(S)}\) = \(\frac{29}{2400}\)

(ii) एक वाहन रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E2) = 579
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E2) = \(\frac{n(E_2)}{n(S)}\) = \(\frac{579}{2400}\)

(iii) वाहन नहीं रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E3) = 10
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E3) = \(\frac{n(E_3)}{n(S)}\) = \(\frac{10}{2400}\) = \(\frac{1}{240}\)

(iv) दो से अधिक साइन रखने वाले परिवारों की संख्या
n(E4) = 25
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E4) = \(\frac{n(E_4)}{n(S)}\) = \(\frac{25}{2400}\) = \(\frac{1}{96}\)

(v) वह परिवार जिसके पास 1 से अधिक वाहन नहीं है n(E5) = जान नहीं रखने वाले परिवार + एक वाहन वाले परिवार
= (10 + 0 + 1 + 2 + 1) + (160 + 305 + 535 + 469 + 579) = 2062
अतः अभीष्ट प्रायिकता p(E5) = \(\frac{n(E_5)}{n(S)}\) = \(\frac{2062}{2400}\) = \(\frac{1031}{1200}\)

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प्रश्न 6.
अध्याय 14 की सारणी 14.7 लीजिए।
(i) गणित की परीक्षा में एक विद्यार्थी द्वारा 20% कम अंक प्राप्त करने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
(ii) एक विद्यार्थी द्वारा 60 या इससे अधिक अंक प्राप्त करने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
कुल विद्यार्थियों की संख्या n(S) = 90
(i) 20 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी
n(E1) = 7
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E1) = \(\frac{n(E_1)}{n(S)}\) = \(\frac{7}{90}\)

(ii) 60 या इससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी
n(E2) = 15 + 8 = 23
∴ अभीष्ट प्राविकता p(E2) = \(\frac{n(E_2)}{n(S)}\) = \(\frac{23}{90}\)

प्रश्न 7.
सांख्यिकी के बारे में विद्यार्थियों का मत जानने के लिए 200 विद्यार्थियों का सर्वेक्षण किया गया। प्राप्त आंकड़ों को नीचे दी गई सारणी में लिख लिया गया है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 15 प्रायिकता Ex 15.1
प्राधिकता ज्ञात कीजिए कि बच्छया चुना गया विद्यार्थी
(i) सांख्यिकी पसंद करता है.
(ii) सांख्यिकी पसंद नहीं करता है।
उत्तर:
विद्यार्थियों की कुल संख्या, n(S) = 200
(i) सोख्यिकी पसन्द करने वाले विद्यार्थियों की संख्या
n(E1) = 135
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E1) = \(\frac{n(E_1)}{n(S)}\) = \(\frac{135}{200}\) = \(\frac{27}{40}\)

(ii) सांख्यिकी न पसन्द करने माले विद्यार्थियों की संख्या
n(E2) = 65
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E2) = \(\frac{n(E_2)}{n(S)}\) = \(\frac{65}{200}\) = \(\frac{13}{40}\)

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प्रश्न 8.
प्रश्नावली 14.2 का प्रश्न 2 देखिए। इसको अनुभाविक प्रायिकता क्या होगी कि इंजीनियर
(i) अपने कार्यशाला से 7 km से कम दूरी पर रहती है ?
(i) अपने कार्यस्थल से 7 km या इससे अधिक दूरी पर रहते है?
(iii) अपने कार्यस्थल से \(\frac{1}{2}\) km या इससे कम दूरी पर रहते है?
उत्तर:
इंजीनियरों की कुल संख्या n(S) = 40
(i) 7 किमी से दूर रहने वाले इंजीनियरों की संख्या
n(E1) = 9
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E1) = \(\frac{n(E_1)}{n(S)}\) = \(\frac{9}{40}\)

(ii) 7 किमी या उससे अधिक दूरी पर रहने वाले इंजीनियरों की संख्या
n(E2) = 9
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E2) = \(\frac{n(E_2)}{n(S)}\) = \(\frac{13}{40}\)

(ii) किमो या इससे कम दूरी पर रहने वाले इंजीनियरों की संख्या
n(E3) = 9
∴ अभीष्ट प्रायिकता p(E3) = \(\frac{n(E_3)}{n(S)}\) = \(\frac{0}{40}\) = 0

प्रश्न 9.
क्रियाकलाप : अपने विद्यालय के गेट के सामने से एक समय-अंतराल में गुजरने वाले दो पहिया, तीन पहिया और चार पहिया वाहनों की बारंबारता लिख लीजिए। आष द्वारा देखे गए वाहनों में से किसी एक वाहन का दो पहिया वाइन होने की प्रायिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
स्वयं आँकड़े एकत्रित करें तथा अभीष्ट प्रायिकता प्राप्त करें।

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प्रश्न 10.
क्रियाकलाप : आप अपनी कक्षा के विद्यार्थियों से एक 3 अंक वाली संख्या लिखने को काहिए। आप कक्षा से एक विद्यार्थी को यदृच्छया चुन लीजिए। इस बात की प्रायिकता क्या होगी कि उसके द्वारा लिखी गई संख्या 3 से भाज्य है? याद रखिए कि कोई संख्या 3 से भाज्य होती है, यदि उसके अंकों का योग 4 से भाज्य हो।
उत्तर:
समस्या : स्वयं ओंकड़े एकत्रित करें तथा अभीष्ट प्राषिकता ज्ञात करें।

प्रश्न 11.
आटे की जन ग्यारह थैलियों में, जिन पर 5 kg अंकित है, वास्तव में आटे के निम्नलिखित भार (kg में) हैं:
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बच्च्या चुनी गई एक प्रैली में 5 kg से अधिक आटा होने की प्रायिकता क्या होगी?
उत्तर:
पैलियों की कुल संख्या n(S) = 11
5 kg से अधिक वजन वाली थैलियाँ n(E) = 7
∴ अभीष्ट प्राविकता = p(E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\) = \(\frac{7}{11}\)

प्रश्न 12.
प्रश्नावली 14.2 के प्रश्न 5 में आपसे 30 दिनों तक एक नगर की प्रति वायु में सल्फर डाइ-आक्साइड की भाग प्रति मिलियन में सांद्रता से संबंधित एक बारंबारता बंटन सारणी बनाने के लिए कहा गया था। इस सारणी की सहायता से इनमें से किसी एक दिन अंतराल (0.12 – 0.16) में सल्फार डाइ-ऑक्साइड के सांद्रण होने की प्राषिकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिनों की कुल संख्या, n(S) = 30, दिए गए वर्ग-अन्तराल में SO2 की सांगता n(E) = 2
∴ अभीष्ट प्राविकता = p(E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\) = \(\frac{2}{30}\) = \(\frac{1}{15}\)

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प्रश्न 13.
प्रश्नावली 14.2 के प्रश्न 1 में आपसे एक कक्षा के 30 विद्यार्थियों के रक्त-समूह से संबंधित बारंबारता बंटन सारणी बनाने के लिए कहा गया था। इस सारणी की सहायता से इस कक्षा में यदच्छया चुने गए एक विद्याओं का रक्त समूह AB होने की प्राविकता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थियों की कुल संख्या n(S) = 30
रक्त समूह AB रखने वाले विद्यार्थियों की संख्या n(E) = 3
∴ अभीष्ट प्राविकता = p(E) = \(\frac{n(E)}{n(S)}\) = \(\frac{3}{30}\) = \(\frac{1}{10}\)

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन InText Questions and Answers

अनुच्छेद 10.1 से 10.2.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
अवतल दर्पण के मुख्य फोकस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
अवतल दर्पण का मुख्य फोकस अवतल दर्पण के मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिंदु जहाँ पर मुख्य अक्ष के समानांतर किरणें परिवर्तित होने के पश्चात् मिलती हैं; अवतल दर्पण का मुख्य फोकस कहलाता है।

प्रश्न 2.
एक गोलीय दर्पण की वक्रता त्रिज्या 20 cm है। इसकी फोकस दूरी क्या होगी? (2014, 16, 17, 18)
हल:
हम जानते हैं,
R =2f
f = \(\frac {R}{2}\)
दिया है,
R = \(\frac {20}{2}\)
f = 10 cm
अतः गोलीय दर्पण की फोकस दूरी 10 cm है।

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प्रश्न 3.
उस दर्पण का नाम बताइए जो बिंब का सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बना सके।
उत्तर:
अवतल दर्पण बिंब का सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिंब बनाता है।

प्रश्न 4.
हम वाहनों में उत्तल दर्पण को पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में वरीयता क्यों देते हैं?
उत्तर:
हम वाहनों में उत्तल दर्पण को पश्च-दृश्य दर्पण के रूप में वरीयता देते हैं; क्योंकि यह वस्तुओं (दूर स्थित भी) का सीधा, पूर्ण तथा छोटा प्रतिबिंब बनाता है।

अनुच्छेद 10.2.3 और 10.2.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
उस उत्तल दर्पण की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए जिसकी वक्रता त्रिज्या 32 cm है।
हल:
हम जानते हैं,
R = 2f
∴ f = \(\frac {R}{2}\)
दिया है,
R = 32 cm
∴ f = \(\frac {32}{2}\)
∴ f = 16 cm
अत: उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 16 cm है।

प्रश्न 2.
कोई अवतल दर्पण अपने सामने 10 cm दूरी पर रखे किसी बिंब का तीन गुना आवर्धित (बड़ा) वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। प्रतिबिंब दर्पण से कितनी दूरी पर है?
हल:
दिया है,
u = 10 cm तथा आवर्धान क्षमता m = 3
हम जानते हैं,
m = \(\frac {-υ}{u}\)
या 3u = υ
u = -30 cm
∴ प्रतिबिंब अवतल दर्पण के सामने ध्रुव से 30 cm की दूरी पर बनेगा।

अनुच्छेद 10.3, 10.3.1 और 10.3.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
वायु में गमन करती प्रकाश की एक किरण जल में तिरछी प्रवेश करती है। क्या प्रकाश किरण अभिलंब की ओर झुकेगी अथवा अभिलंब से दूर हटेगी? बताइए क्यों ?
उत्तर:
यदि वायु में गमन करती प्रकाश की एक किरण जल में तिरछी प्रवेश करती है तो यह अभिलंब की ओर झुकेगी; क्योंकि जल में प्रवेश करने पर इसका वेग कम हो जाता है।

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प्रश्न 2.
प्रकाश वायु से 1.50 अपवर्तनांक की काँच की प्लेट में प्रवेश करता है। काँच में प्रकाश की चाल कितनी है? निर्वात् में प्रकाश की चाल 3 x 10 m/s है।
हल:
दिया है, काँच का अपवर्तनांक ng = 1.50
सूत्र ng = \(\frac{c}{υ_{g}}\) से
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प्रश्न 3.
सारणी 10.3 से अधिकतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम को ज्ञात कीजिए। न्यूनतम प्रकाशिक घनत्व के माध्यम को भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
अधिकतम प्रकाशिक घनत्व का माध्यम हीरा जबकि न्यूनतम प्रकाशिक घनत्व का माध्यम वायु है।

प्रश्न 4.
आपको केरोसिन, तारपीन का तेल तथा जल दिए गए हैं। इनमें से किसमें प्रकाश सबसे अधिक तीव्र गति से चलता है? सारणी 10.3 में दिए गए आँकड़ों का उपयोग कीजिए।
उत्तर:
प्रकाश जल में सबसे अधिक तीव्र गति से चलेगा; क्योंकि इसका अपवर्तनांक केरोसिन तथा तारपीन के तेल से कम होता है।

प्रश्न 5.
हीरे का अपवर्तनांक 2.42 है। इस कथन का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रश्न में उल्लिखित कथन का अभिप्राय यह है कि हीरे का प्रकाशिक घनत्व बहुत अधिक है जिसके कारण प्रकाश की चाल इसमें बहुत धीमी होगी। (निर्वात् में प्रकाश की चाल की 1 गुनी)

अनुच्छेद 10.3.3 से 10.3.8 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी लेंस की 1 डायॉप्टर क्षमता को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब किसी लेंस की फोकस दूरी 1 मीटर होती है तो उसकी क्षमता 1 डायॉप्टर होती है।

प्रश्न 2.
कोई उत्तल लेंस किसी सुई का वास्तविक तथा उलटा प्रतिबिंब उस लेंस से 50 cm दूर बनाता है। यह सुई, उत्तल लेंस के सामने कहाँ रखी है, यदि इसका प्रतिबिंब उसी साइज़ का बन रहा है जिस साइज़ का बिंब है। लेंस की क्षमता भी ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, प्रतिबिंब की दूरी, υ = 50 cm
m = 1
p = \(\frac{1}{f}\) = ?
∴ m = \(\frac{υ}{u}\)
∴ 1 = \(\frac{υ}{u}\) ⇒ υ = u
∴ u = -50 cm
∴ वस्तु की दूरी = 50 cm
∴ \(\frac{1}{υ}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\) = \(\frac{1}{50}\) – \(\frac{1}{50}\) = \(\frac{1}{f}\) = \(\frac{1+1}{50}\) = \(\frac{1}{f}\)
∴ f = 25cm
लेंस की क्षमता P = \(\frac{1}{25}\) x 100
∴ P = 4 डायॉप्टर

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प्रश्न 3.
2 m फोकस दूरी वाले किसी अवतल लेंस की क्षमता ज्ञात कीजिए। (2018)
हल:
दिया है, फोकस दूरी, f = -2 m
अवतल लेंस की क्षमता, P = \(\frac{1}{f}\)
∴ p = – \(\frac{1}{2}\)
∴ P= – 0.5 डायॉप्टर

Bihar Board Class 10 Science प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा पदार्थ लेंस बनाने के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता?
(a) जल
(b) काँच
(c) प्लास्टिक
(d) मिट्टी
उत्तर:
(d) मिट्टी

प्रश्न 2.
किसी बिंब का अवतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब आभासी, सीधा तथा बिंब से बड़ा पाया गया। वस्तु की स्थिति कहाँ होनी चाहिए?
(a) मुख्य फोकस तथा वक्रता केंद्र के बीच
(b) वक्रता केंद्र पर
(c) वक्रता केंद्र से परे
(d) दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच
उत्तर:
(d) दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच

प्रश्न 3.
किसी बिंब का वास्तविक तथा समान साइज़ का प्रतिबिंब प्राप्त करने के लिए बिंब को उत्तल लेंस के सामने कहाँ रखें?
(a) लेंस के मुख्य फोकस पर
(b) फोकस दूरी की दोगुनी दूरी पर
(c) अनंत पर
(d) लेंस के प्रकाशिक केंद्र तथा मुख्य फोकस के बीच
उत्तर:
(b) फोकस दूरी की दोगुनी दूरी पर

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प्रश्न 4.
किसी गोलीय दर्पण तथा किसी पतले गोलीय लेंस दोनों की फोकस दूरियाँ-15 cm हैं। दर्पण तथा लेंस संभवतः हैं –
(a) दोनों अवतल
(b) दोनों उत्तल
(c) दर्पण अवतल तथा लेंस उत्तल
(d) दर्पण उत्तल तथा लेंस अवतल
उत्तर:
(a) दोनों अवतल

प्रश्न 5.
किसी दर्पण से आप चाहे कितनी ही दूरी पर खड़े हों, आपका प्रतिबिंब सदैव सीधा प्रतीत होता है। संभवतः दर्पण है –
(a) केवल समतल
(b) केवल अवतल
(c) केवल उत्तल
(d) या तो समतल अथवा उत्तल
उत्तर:
(d) या तो समतल अथवा उत्तल

प्रश्न 6.
किसी शब्दकोष (dictionary) में पाए गए छोटे अक्षरों को पढ़ते समय आप निम्न में से कौन-सा लेंस पसंद करेंगे?
(a) 50 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस
(b) 50 cm फोकस दूरी का एक अवतल लेंस
(c) 5 cm फोकस दूरी का एक उत्तल लेंस
(d) 5 cm फोकस दूरी का एक अवतल लेंस
उत्तर:
(b) 50 cm फोकस दूरी का एक अवतल लेंस

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प्रश्न 7.
15 cm फोकस दूरी के एक अवतल दर्पण का उपयोग करके हम किसी बिंब का सीधा प्रतिबिंब बनाना चाहते हैं। बिंब का दर्पण से दूरी का परिसर (range) क्या होना चाहिए? प्रतिबिंब की प्रकृति कैसी है? प्रतिबिंब बिंब से बड़ा है अथवा छोटा? इस स्थिति में प्रतिबिंब बनने का एक किरण आरेख बनाइए।
उत्तर:
अवतल दर्पण से वस्तु का सीधा प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए वस्तु को दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के बीच रखना होगा। अतः वस्तु की दर्पण के ध्रुव से दूरी 0 cm से अधिक तथा 15 cm से कम कुछ भी हो सकती है। वस्तु का प्रतिबिम्ब सीधा तथा आभासी है तथा आकार में वस्तु से बड़ा है। अभीष्ट किरण आरेख संलग्न चित्र में प्रदर्शित है।
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प्रश्न 8.
निम्न स्थितियों में प्रयुक्त दर्पण का प्रकार बताइए
(a) किसी कार का अग्र-दीप (हैडलाइट)
(b) किसी वाहन का पार्श्व/पश्च-दृश्य दर्पण
(c) सौर भट्ठी अपने उत्तर की कारण सहित पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
(a) कार की हैडलाइट में अवतल दर्पण का प्रयोग होता है; क्योंकि इसके द्वारा एक शक्तिशाली व समानांतर प्रकाशपुंज प्राप्त होता है।
(b) वाहन के पार्श्व/पश्च-दृश्य दर्पण में उत्तल दर्पण का प्रयोग होता है; क्योंकि इसके द्वारा पीछे आ रहे वाहनों का सीधा, छोटा व पूर्ण प्रतिबिंब प्राप्त होता है।
(c) सौर भट्ठी में अवतल दर्पण का प्रयोग होता है; क्योंकि यह सूर्य-प्रकाश की किरण को संकेन्द्रित कर देता है जिससे ऊष्मा प्राप्त होती है।

प्रश्न 9.
किसी उत्तल लेंस का आधा भाग काले कागज़ से ढक दिया गया है। क्या यह लेंस किसी बिंब का पूरा प्रतिबिंब बना पाएगा? अपने उत्तर की प्रयोग द्वारा जाँच कीजिए। अपने प्रेक्षणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हाँ, यह लेन्स वस्तु का पूर्ण प्रतिबिम्ब बना सकेगा। प्रायोगिक सत्यापन प्रयोग विधि सर्वप्रथम प्रकाशिक बैंच पर एक स्टैंड में उत्तल लेन्स लगाते हैं। लेन्स की फोकस – दूरी से कुछ अधिक दूरी पर, स्टैंड पर एक जलती. हुई मोमबत्ती रखते हैं। अब लेन्स के दूसरी ओर से मोमबत्ती को देखते हैं। अब लेन्स के आधे भाग को काला कागज चिपकाकर ढक देते हैं। पुन: लेन्स के दूसरी ओर से मोमबत्ती को देखते हैं। प्रेक्षण प्रथम दशा में मोमबत्ती का पूरा तथा उल्टा प्रतिबिम्ब दूसरी ओर से दिखाई देता है।

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कागज चिपकाने के बाद भी मोमबत्ती का पूरा प्रतिबिम्ब दिखाई देता है, परन्तु इसकी तीव्रता पहले की तुलना में कम हो जाती है। व्याख्या मोमबत्ती के किसी बिन्दु से चलने वाली विभिन्न किरणें लेन्स के विभिन्न भागों से अपवर्तित होकर किसी एक-ही बिन्दु पर मिलेंगी। आधा लेन्स काला कर देने पर भी उस बिन्दु पर प्रकाश किरणें आएँगी अर्थात् मोमबत्ती का पर्दे पर पूरा प्रतिबिम्ब प्राप्त होगा, परन्तु प्रतिबिम्ब की तीव्रता घट जाएगी, क्योंकि प्रकाश किरणों की संख्या कम हो जाएगी।
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प्रश्न 10.
5 cm लंबा कोई बिंब 10 cm फोकस दूरी के किसी अभिसारी लेंस से 25 cm दूरी पर रखा जाता है। प्रकाश किरण-आरेख खींचकर बनने वाले प्रतिबिंब की स्थिति, साइज़ तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, h1 = 5 cm, u=-25 cm तथा f = + 10 cm
सूत्र
\(\frac{1}{υ}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{1}{u}\) + \(\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{1}{10}\) – \(\frac{1}{25}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{5-2}{50}\) = \(\frac{3}{50}\)
υ =\(\frac{50}{3}\) = 16.66 cm
अतः प्रतिबिंब लेंस की दूसरी तरफ 16.66 cm की दूरी पर प्राप्त होगा तथा वास्तविक व उलटा होगा।
अब,
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h2= – 3.33 cm
अत : प्रतिबिंब उलटा तथा 3.33 cm ऊँचाई का होगा।

प्रश्न 11.
15 cm फोकस दूरी का कोई अवतल लेंस किसी बिंब का प्रतिबिंब लेंस से 10 cm दूरी पर बनाता है। बिंब लेंस से कितनी दूरी पर स्थित है? किरण आरेख खींचिए।
हल:
दिया है,
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f = -15 cm, y = -10 cm तथा u = ?
सत्र = \(\frac{1}{υ}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{10}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{-15}\)
\(\frac{1}{-10}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{-15}\)
\(\frac{-1}{10}\) + \(\frac{-1}{15}\) = \(\frac{1}{u}\)
\(\frac{1}{u}\) = \(\frac{-3 + 2}{30}\)
u = -30 cm
अतः वस्तु अवतल दर्पण से 30 cm दूर रखी है।

प्रश्न 12.
15 cm फोकस दूरी के किसी उत्तल दर्पण से कोई बिंब 10 cm दूरी पर रखा है। प्रतिबिंब की स्थिति तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, f = 15 cm, u = -10 cm, y = ?
सूत्र,
\(\frac{1}{υ}\) + \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
– \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{15}\) + \(\frac{1}{10}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{2+3}{30}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{5}{30}\) = \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{5}{30}\) = u = \(\frac{30}{5}\)
υ = 6 cm
अतः प्रतिबिंब दर्पण के पीछे 6 cm दूर प्राप्त होगा तथा आभासी और सीधा होगा।

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प्रश्न 13.
एक समतल दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन +1 है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
धनात्मक चिह्न का अर्थ है कि समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिंब आभासी और सीधा है तथा प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार जितना है।

प्रश्न 14.
5.0 cm लंबाई का कोई बिंब 30 cm वक्रता त्रिज्या के किसी उत्तल दर्पण के सामने 20 cm दूरी पर रखा गया है। प्रतिबिंब की स्थिति, प्रकृति तथा साइज़ ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, u =-20 cm, R = 30 cm, h1 = 5.0 cm
तथा f = \(\frac{R}{2}\) = \(\frac{30}{2}\) = 15m
सूत्र, \(\frac{1}{υ}\) + \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{u}\) + \(\frac{1}{-20}\) = \(\frac{1}{+15}\)
\(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{15}\) + \(\frac{1}{20}\) = \(\frac{4 + 3}{60}\) = \(\frac{7}{60}\) u = \(\frac{60}{7}\)cm = 8.57 cm
अतः प्रतिबिंब दर्पण के पीछे 8.57 cm दूर बनेगा।
सूत्र m = \(\frac{h_{2}}{h_{1}}\) = \(\frac{-υ}{u}\)से,
\(\frac{h_{2}}{h_{1}}\) = \(\frac{8.57}{20}\)
h2 = \(\frac{8.57 \times 5}{20}\frac{-υ}{u}\) = 2.175 cm
अतः प्रतिबिंब आभासी, सीधा और 2.175 cm ऊँचा है।

प्रश्न 15.
7.0 cm साइज़ का कोई बिंब 18 cm फोकस दूरी के किसी अवतल दर्पण के सामने 27 cm दूरी पर रखा गया है। दर्पण से कितनी दूरी पर किसी परदे को रखें कि उस पर वस्तु का स्पष्ट फोकसित प्रतिबिंब प्राप्त किया जा सके? प्रतिबिंब का साइज़ तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है, h1 = 7 cm, u=-27 cm, f = -18 cm, υ = ?, h2 = ?
सूत्र, \(\frac{1}{υ}\) – \(\frac{1}{u}\) = \(\frac{1}{f}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{1}{f}\) – \(\frac{1}{u}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{1}{-18}\) + \(\frac{1}{27}\)
\(\frac{1}{υ}\) = \(\frac{-3+2}{54}\)
\(\frac{1}{υ}\) = – \(\frac{1}{54}\)
υ = – 54 cm
अतः पर्दे को दर्पण के सामने 54 cm दूर रखना होगा।
अब
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h2 = -14 cm
प्रतिबिंब वास्तविक, उल्टा तथा 14 cm ऊँचा होगा।

प्रश्न 16.
उस लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए जिसकी क्षमता -2.0 D है। यह किस प्रकार का लेंस है?
हल:
दिया है, लेंस की क्षमता, P = -2.0D
सूत्र,
P = \(\frac{1}{f}\) से,
∴ – 2 = \(\frac{1}{f}\)
f = – \(\frac{1}{2}\) n
f = \(\frac{-1}{2}\) x 100 cm = -50 cm
चूँकि फोकस दूरी ऋणात्मक है; अतः लेंस अवतल होगा।

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प्रश्न 17.
कोई डॉक्टर +1.5 D क्षमता का संशोधक लेंस निर्धारित करता है। लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। क्या निर्धारित लेंस अभिसारी है अथवा अपसारी?
हल:
दिया है, लेंस की क्षमता, P = +1.5 D
p = \(\frac{1}{f}\) से,
∴ + 1.5 = \(\frac{1}{f}\)
f = \(\frac{1}{1.5}\)m = \(\frac{10}{15}\)m = \(\frac{2}{3}\)m = + 0.67 m
चूँकि लेंस की फोकस दूरी धनात्मक है; अतः लेंस की प्रकृति अभिसारी होगी।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समतल दर्पण की फोकस दूरी होती है – (2014)
(a) शून्य
(b) अनन्त
(c) 25 सेमी
(d) – 25 सेमी
उत्तर:
(b) अनन्त

प्रश्न 2.
यदि किसी वस्तु को एक दर्पण के सामने निकट रखने पर प्रतिबिम्ब सीधा बने, किन्तु दूर रखने पर उल्टा प्रतिबिम्ब बने तो वह दर्पण होगा – (2015)
(a) समतल दर्पण
(b) अवतल दर्पण
(c) उत्तल दर्पण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अवतल दर्पण

प्रश्न 3.
किसी अवतल दर्पण द्वारा आभासी, सीधा तथा आवर्धित प्रतिबिम्ब बनता है। वस्तु की स्थिति होगी – (2017)
(a) ध्रुव व फोकस के बीच
(b) फोकस तथा वक्रता केन्द्र के बीच
(c) वक्रता केन्द्र पर
(d) वक्रता केन्द्र से पीछे
उत्तर:
(a) ध्रुव व फोकस के बीच

प्रश्न 4.
संयुग्मी फोकस सम्भव है केवल –
(a) उत्तल दर्पण में
(b) अवतल दर्पण में
(c) समतल दर्पण में
(d) साधारण काँच में
उत्तर:
(b) अवतल दर्पण में

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प्रश्न 5.
किसी 10 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल दर्पण के सामने 20 सेमी की दूरी पर एक वस्तु रखी है, तो वस्तु का प्रतिबिम्ब –
(a) दर्पण के पीछे बनेगा
(b) दर्पण तथा फोकस के बीच बनेगा
(c) फोकस पर बनेगा
(d) दर्पण के वक्रता केन्द्र पर बनेगा
उत्तर:
(d) दर्पण के वक्रता केन्द्र पर बनेगा

प्रश्न 6.
एक अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या 20 सेमी है। इसकी फोकस दूरी होगी (2018)
(a) -20 सेमी
(b) -10 सेमी
(c) + 40 सेमी
(d) + 10 सेमी
उत्तर:
(d) +10 सेमी

प्रश्न 7.
किसका दृष्टिक्षेत्र सबसे अधिक होता है? (2017)
(a) समतल दर्पण
(b) उत्तल दर्पण
(c) अवतल दर्पण
(d) उत्तल लेंस
उत्तर:
(b) उत्तल दर्पण

प्रश्न 8.
उत्तल दर्पण से प्रतिबिम्ब सदैव बनता है –
(a) वक्रता-केन्द्र तथा फोकस के बीच
(b) वक्रता-केन्द्र तथा अनन्त के बीच
(c) ध्रुव तथा फोकस के बीच
(d) कहीं भी बन सकता है यह वस्तु की स्थिति पर निर्भर करता है
उत्तर:
(c) ध्रुव तथा फोकस के बीच

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प्रश्न 9.
उत्तल दर्पण के सामने रखी किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनता है – (2012)
(a) वस्तु की स्थिति पर ही
(b) दर्पण के सामने वस्तु की स्थिति से दुगुनी दूरी पर
(c) दर्पण के सामने वस्तु की स्थिति से आधी दूरी पर
(d) दर्पण के पीछे
उत्तर:
(d) दर्पण के पीछे

प्रश्न 10.
उत्तल दर्पण से बनने वाले प्रतिबिम्ब की प्रकृति है – (2018)
(a) वास्तविक व सीधा
(b) आभासी व सीधा
(c) आभासी व उल्टा
(d) वास्तविक व उल्टा
उत्तर:
(b) आभासी व सीधा

प्रश्न 11.
एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 10 सेमी है। दर्पण की वक्रता त्रिज्या होगी (2011, 12, 13, 14, 16)
(a) 10 सेमी
(b) 20 सेमी
(c) 30 सेमी
(d) 40 सेमी
उत्तर:
(b) 20 सेमी

प्रश्न 12.
यदि आपतन कोणा तथा परावर्तन कोणr हो तब अपवर्तित किरण विचलित होगी – (2013)
(a) i – r
(b) i+r
(c) i × r
(d) \(\frac{sini}{sinr}\)
उत्तर:
(a) i – r

प्रश्न 13.
यदि दो माध्यमों के सीमा-पृष्ठ पर एक प्रकाश-किरण लम्बवत् आपतित होती है तो अपवर्तन कोण होगा – (2013)
(a) 0°
(b) 45°
(c) 60°
(d) 90°
उत्तर:
(a) 0°

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प्रश्न 14.
निम्न में से किसके सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव सीधा, आभासी तथा छोटा बनता है? (2012)
(a) उत्तल लेंस
(b) अवतल लेंस
(c) अवतल दर्पण
(d) समतल दर्पण।
उत्तर:
(b) अवतल लेंस

प्रश्न 15.
किसी वस्तु तथा उसके प्रतिबिम्ब की लेंस के प्रकाशिक केन्द्र से दूरी क्रमशः 10 सेमी और 30 सेमी है। वस्तु के प्रतिबिम्ब तथा वस्तु की लम्बाई का अनुपात होगा – (2017)
(a) 1
(b) 1 से अधिक
(c) 1 से कम
(d) अनन्त
उत्तर:
(c) 1 से कम

प्रश्न 16.
यदि उत्तल लेंस के सामने वस्तु 2f पर रखी जाए, तब उसका प्रतिबिम्ब बनेगा – (2011, 16)
(a) अनन्त पर
(b) 2 F पर
(c) F पर
(d) F तथा प्रकाशिक केन्द्र के बीच
उत्तर:
(b) 2 F पर

प्रश्न 17.
एक मीटर फोकस दूरी के उत्तल लेन्स की क्षमता होगी – (2018)
(a) – 1D
(b) + 2D
(c) + 1D
(d) + 1.5D
उत्तर:
(c) +1D

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प्रश्न 18.
50 सेमी फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस की क्षमता होगी (2012, 13, 14, 15, 16)
(a) -2 डायोप्टर
(b) + 2 डायोप्टर
(c) +0.02 डायोप्टर
(d) – 0.02 डायोप्टर
उत्तर:
(b) +2 डायोप्टर

प्रश्न 19.
एक उत्तल लेंस की क्षमता 5 D है। इसकी फोकस दूरी है – (2018)
(a) +50 सेमी
(b) -50 सेमी
(c) +20 सेमी
(d) -20 सेमी
उत्तर:
(c) + 20 सेमी

प्रश्न 20.
-10 D क्षमता वाले लेंस की फोकस दूरी होगी – (2015, 17)
(a) 10 सेमी
(b) 10 मीटर
(c) -10 सेमी
(d) -10 मीटर
उत्तर:
(c) -10 सेमी

प्रश्न 21.
निर्वात् में प्रकाश की चाल होती है – (2018)
(a) 3 × 107 मी / से
(b) 2 × 108 मी / से
(c) 3 × 108 मी / से
(d) 3 × 1010 मी / से
उत्तर:
(c) 3 × 108 मी / से

प्रश्न 22.
पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के लिए आवश्यक शर्त होती है – (2018)
(a) प्रकाश किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाए
(b) प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाए
(c) आपतन कोण का मान, क्रान्तिक कोण से कम हो ।
(d) आपतन कोण का मान, क्रान्तिक कोण के बराबर हो
उत्तर:
(b) प्रकाश किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाए

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आपतित किरण एवं परावर्तित किरणों के बीच का कोण 60° है। आपतन कोण कितना है ?
हल:
चूँकि आपतन कोण एवं परावर्तन कोण बराबर होते हैं। अत: आपतन कोण = \(\frac{60°}{2}\) = 30°

प्रश्न 2.
गोलीय दर्पण की फोकस दूरी तथा वक्रता-त्रिज्या में क्या सम्बन्ध है ? (2013, 14, 15, 17)
उत्तर:
गोलीय दर्पण की फोकस दूरी, वक्रता-त्रिज्या की आधी होती है।
अर्थात् f =  \(\frac{r}{2}\)

प्रश्न 3.
किस प्रकार के दर्पण से सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनते हैं ?
उत्तर:
उत्तल दर्पण से सदैव आभासी प्रतिबिम्ब बनते हैं।

प्रश्न 4.
किस दर्पण की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है तथा किसकी धनात्मक?
उत्तर:
अवतल दर्पण की फोकस दूरी ऋणात्मक तथा उत्तल दर्पण की धनात्मक होती है।

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प्रश्न 5.
सदैव आभासी, सीधा तथा आकार में वस्तु से छोटे प्रतिबिम्ब को प्राप्त करने के लिए कौन-सा दर्पण प्रयुक्त करना चाहिए? या किस दर्पण से वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव ही सीधा, आभासी व छोटा दिखायी देता है? (2011, 15)
उत्तर:
उत्तल दर्पण।

प्रश्न 6.
अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण से बनने वाले आभासी प्रतिबिम्ब में क्या अन्तर होता है? (2018)
उत्तर:
अवतल दर्पण से बनने वाले आभासी प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु से बड़ा होता है जबकि उत्तल दर्पण से बनने वाले आभासी प्रतिबिम्ब का आकार वस्तु से छोटा होता है।

प्रश्न 7.
वस्त की किस स्थिति में अवतल दर्पण वास्तविक व आकार में बराबर प्रतिबिम्ब बनाता है ?
उत्तर:
जब वस्तु अवतल दर्पण के वक्रता केन्द्र पर स्थित हो।

प्रश्न 8.
जब वस्तु अवतल दर्पण के वक्रता केन्द्र पर हो, तब उसका प्रतिबिम्ब कहाँ तथा किस प्रकार का बनेगा?
उत्तर:
प्रतिबिम्ब वक्रता-केन्द्र पर ही बनेगा। यह वस्तु के आकार का, वास्तविक तथा उल्टा होगा।

प्रश्न 9.
अवतल दर्पण के दो उपयोग लिखिए। (2016)
उत्तर:
1. अवतल दर्पण को दाढ़ी बनाते समय प्रयोग किया जाता है।
2. कान, नाक व गले की जाँच करने के लिए डॉक्टरों द्वारा प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
एक दर्पण, वस्तु का सीधा व आकार में छोटा प्रतिबिम्ब बनाता है, यह किस प्रकार का दर्पण है? प्रतिबिम्ब वास्तविक है अथवा आभासी?
उत्तर:
क्योंकि प्रतिबिम्ब सीधा व छोटा है; अत: दर्पण, उत्तल दर्पण है तथा प्रतिबिम्ब आभासी

प्रश्न 11.
सड़क पर लगे बल्बों के पीछे किस प्रकार के परावर्तक दर्पण का प्रयोग किया जाता है? इस दर्पण का एक और उपयोग लिखिए। (2012)
उत्तर:
उत्तल दर्पण का। इस दर्पण का उपयोग दूरदर्शी में भी किया जाता है।

प्रश्न 12.
एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 10 सेमी है। इसके द्वारा किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब अधिक-से-अधिक कितनी दूरी पर बनाया जा सकता है? (2014)
उत्तर:
अधिकतम 10 सेमी की दूरी पर।

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प्रश्न 13.
एक दर्पण की फोकस दूरी f है। यदि इसे दो भागों में काट दिया जाता है तो प्रत्येक भाग की फोकस दूरी क्या होगी?
उत्तर:
दर्पण को काटने पर फोकस दूरी के मान में कोई परिवर्तन नहीं होगा। अत: फोकस दूरी f ही रहेगी।

प्रश्न 14.
एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 10 सेमी है। एक वस्तु इसकी मुख्य अक्ष पर ध्रुव से 20 सेमी की दूरी पर रखी जाती है। वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए। (2017)
हल:
दिया है : फोकस दूरी (f) = + 10
सेमी, दर्पण से वस्तु की दूरी (u) = – 20 सेमी,
दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = ?
दर्पण के सूत्र \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) से
\(\frac {1}{10}\) = \(\frac {1}{2}\) – \(\frac {1}{20}\)
अथवा \(\frac {1}{u}\) = \(\frac {1}{10}\) + \(\frac {1}{20}\) = \(\frac {3}{20}\)
∴ υ = \(\frac {20}{3}\) = +6.7 सेमी
अत: प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे 6.7 सेमी की दूरी पर बनेगा।

प्रश्न 15.
यदि प्रकाश-किरण काँच के गुटके पर लम्बवत् गिरे तो अपवर्तन कोण कितना होगा? विचलन कोण कितना होगा?
उत्तर:
दोनों ही शून्य होंगे।

प्रश्न 16.
किस रंग के प्रकाश के लिए काँच का अपवर्तनांक अधिकतम और न्यूनतम होता है? (2011, 13, 15, 16, 17)
उत्तर:
बैंगनी रंग के प्रकाश के लिए अधिकतम तथा लाल रंग के प्रकाश के लिए न्यूनतम।

प्रश्न 17.
काँच, निर्वात एवं जल में से प्रकाश की चाल किसमें सबसे कम होती है तथा क्यों?
उत्तर:
काँच में, क्योंकि इसका अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है।

प्रश्न 18.
संलग्न चित्र के अनुसार प्रकाश की किरण वायु से किसी माध्यम में प्रवेश करती है। वायु के सापेक्ष माध्यम का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए। (2015, 17)
0 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
हल:
यहाँ आपतन कोण (i) = 90° – 60° = 30°
तथा अपवर्तन कोण (r) = 90° – 45° = 45°
∴ वायु के सापेक्ष माध्यम का अपवर्तनांक
n = \(\frac {sini}{sinr}\) = \(\frac {sin 30}{sin 45}\) = \(\frac{1 / 2}{1 / \sqrt{2}}\)
\(\frac{\sqrt{2}}{2}\) = \(\frac{1}{\sqrt{2}}\)

प्रश्न 19.
काँच के प्रिज्म के पदार्थ के लिए अपवर्तनांक का सूत्र लिखिए। या यदि किसी प्रिज्म का कोण A तथा अल्पतम विचलन कोण gm हो तो प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक n बताइए। (2015)
उत्तर:
काँच के प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
n = \(\frac{\sin \left(\frac{A+\delta_{m}}{2}\right)}{\sin \frac{A}{2}}\)

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प्रश्न 20.
वायु में प्रकाश की चाल 3 x 108 मीटर/सेकण्ड है। उस माध्यम में प्रकाश की चाल ज्ञात कीजिए जिसका वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक 1.5 है। (2011, 13, 15, 16)
हल:
वायु के सापेक्ष माध्यम का अपवर्तनांक
0 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
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प्रश्न 21.
जल में प्रकाश की चाल 2.25 x 108 मी/से है। यदि जल का अपवर्तनांक \(\frac {4}{3}\) हो तो निर्वात् में प्रकाश की चाल ज्ञात कीजिए। (2017)
द्रल:
जल का निर्वात ले
निर्वात् में प्रकाश की चाल हल-जल का निर्वात् के सापेक्ष अपवर्तनांक =
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निर्वात् में प्रकाश की चाल = \(\frac {4}{3}\) x 2.25 x 108 मी/से
= 3.0 x 108 मी/से

प्रश्न 22.
वाय के सापेक्ष जल तथा काँच के अपवर्तनांक क्रमश: 4/3 एवं 3/2 हैं। जल का काँच के सापेक्ष अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।(2011, 13, 15, 16, 17)
हल:
प्रश्नानुसार, anw = 4/3 तथा ang =3/2
∴ जल का काँच के सापेक्ष अपवर्तनांक = img

प्रश्न 23.
वायु तथा काँच में प्रकाश की चालें क्रमश: 3 x 10 मीटर/सेकण्ड तथा 2 x 108 मीटर/सेकण्ड हैं। वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए। (2011, 13, 17)
हल:
वायु में प्रकाश की चाल हल-वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक
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प्रश्न 24.
काँच का वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक 1.5 है। वायु का काँच के सापेक्ष अपवर्तनांक की गणना कीजिए। (2014, 16)
हल:
वायु का काँच के सापेक्ष अपवर्तनांक
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= \(\frac {1}{1.5}\) = 0.67

प्रश्न 25.
किसी लेंस के प्रकाशिक केन्द्र से क्या तात्पर्य है? (2017)
उत्तर:
लेंस के अन्दर मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जिससे होकर जाने वाली प्रकाश की किरणें अपवर्तन के पश्चात् आपतित किरण के समान्तर निकल जाती हैं, लेंस का प्रकाशिक केन्द्र कहलाता है।

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प्रश्न 26.
एक प्रकाश-किरण पतले लेंस से अपवर्तन के पश्चात् बिना विचलित हुए सीधी निकल जाती है। उस बिन्दु का नाम बताइए।
उत्तर:
प्रकाशिक केन्द्र।

प्रश्न 27.
किस लेंस की फोकस दूरी ऋणात्मक होती है ?
उत्तर:
अवतल लेंस की।

प्रश्न 28.
किस लेंस द्वारा बना प्रतिबिम्ब सदैव आभासी व छोटा होता है ?
उत्तर:
अवतल लेंस द्वारा।

प्रश्न 29.
अवतल लेंस के सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब कहाँ बनेगा?
उत्तर:
फोकस बिन्दु व लेंस के बीच बनेगा।

प्रश्न 30.
किसी लेंस में वस्तु की लम्बाई तथा उसके प्रतिबिम्ब की लम्बाई में 1 : 4 का अनुपात है। इस दशा में तथा में अनुपात बताइए। (2014, 15)
उत्तर:
u : υ = 4 : 1

प्रश्न 31.
एक वस्तु का उत्तल लेंस द्वारा किसी पर्दे पर तीन गुना बड़ा प्रतिबिम्ब बनता है। यदि वस्तु तथा पर्दे की स्थितियाँ बदल दी जाएँ तो उस दशा में आवर्धन कितना होगा? (2011)
उत्तर:
\(\frac {1}{3}\) गुना।

प्रश्न 32.
किसी लेंस की क्षमता से आप क्या समझते हैं? (2014, 18)
उत्तर:
लेंस की प्रकाश की किरणों को अभिसरित या अपसरित करने की क्षमता को लेंस की क्षमता कहते हैं।

प्रश्न 33.
लेंस की क्षमता का सूत्र लिखिए।
या लेंस की फोकस दूरी तथा शक्ति (क्षमता) के बीच सम्बन्ध बताने वाला सूत्र लिखिए।
उत्तर:
लेंस की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होती है, जबकि फोकस दूरी को मीटर में नापा गया हो।
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प्रश्न 34.
लेंस की क्षमता का मात्रक लिखिए। या चश्मों के लेंसों की क्षमता किसमें नापते हैं ?
उत्तर:
लेंस की क्षमता डायोप्टर में मापते हैं।

प्रश्न 35.
किस लेंस की क्षमता धनात्मक तथा किस लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है ?
उत्तर:
उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 36.
किसी लेंस की क्षमता – 2.0 डायोप्टर है। इसकी फोकस दूरी कितनी है तथा लेंस किस प्रकार का है ? (2012, 13, 14, 17)
हल:
लेंस की फोकस दूरी (f) सेमी में = \(\frac {100}{p}\) = \(\frac {100}{-2.0}\) = -5.0 सेमी (अवतल लेंस)

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
परावर्तन के नियम लिखिए। उत्तर- समतल तल से परावर्तन के निम्नलिखित दो नियम हैं
प्रथम नियम:
तल पर अभिलम्ब तथा आपतित किरण के बीच का कोण और तल पर अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण के बीच / का कोण बराबर होते हैं, अर्थात्
आपतन कोण ∠i = परावर्तन कोण ∠r
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द्वितीय नियम आपतित किरण, अभिलम्ब तथा परावर्तित किरण सभी एक ही तल; जैसे कागज के तल में होते हैं।

प्रश्न 2.
अवतल दर्पण में आभासी प्रतिबिम्ब बनने का किरण आरेख बनाइए। इसके लिए वस्तु की स्थिति का उल्लेख कीजिए। (2011)
उत्तर:
अवतल दर्पण के सामने ध्रुव व फोकस के बीच रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब आभासी बनता है। चित्र में वस्तु OO’, ध्रुव P तथा मुख्य फोकस F के बीच में है। O’ से मुख्य अक्ष के समान्तर चलने वाली किरण O’ A परावर्तित होकर मुख्य फोकस F में से होकर जाती है। दूसरी किरण O’B दर्पण पर अभिलम्बवत् गिरती है, अतः परावर्तित होकर उसी मार्ग पर लौट जाती है। ये दोनों परावर्तित किरणें दर्पण के पीछे बिन्दु। से आती हुई प्रतीत होती हैं। अत: I’ बिन्दु O’ का आभासी प्रतिबिम्ब है। I’ से मुख्य अक्ष पर लम्ब II’, वस्तु OO’ का पूरा प्रतिबिम्ब है। यह प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है तथा आभासी, सीधा व आकार में वस्तु से बड़ा है।
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प्रश्न 3.
उत्तल दर्पण में प्रतिबिम्ब किस प्रकार का बनता है ? किरण आरेख खींचकर दर्शाइए।
किरण आरेख खींचकर दिखाइए कि उत्तल दर्पण से वस्तु का प्रतिबिम्ब सदैव आभासी,सीधा व छोटा बनता है।
एक उत्तल दर्पण के सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब किरण आरेख द्वारा दर्शाइए।
उत्तल दर्पण तथा उसके फोकस के बीच स्थित वस्तु के बने प्रतिबिम्ब की स्थिति तथा प्रकृति को आवश्यक किरण आरेख द्वारा समझाइए। (2011)
उत्तर:
उत्तल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब सदैव ही वस्तु से छोटा, सीधा, आभासी तथा ध्रुव व फोकस के बीच बनता है। वस्तु AB के A बिन्दु से दो किरणें, AM (मुख्य अक्ष के समान्तर) तथा AN वक्रता केन्द्र की दिशा में उत्तल दर्पण से टकराकर क्रमश: MR (फोकस से आती हुई) तथा NA (वक्रता केन्द्र से आती हुई) की दिशा में परावर्तित हो जाती हैं।
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(देखें चित्र)। पीछे बढ़ाने पर ये किरणें बिन्दु A’ पर मिलती हैं, इस प्रकार बिन्दु A का प्रतिबिम्ब बिन्दु A’ होगा। A’ से मुख्य अक्ष पर लम्ब A’B’ डाला। अतः वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A’B’ होगा। यह प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा, सीधा तथा आभासी है।

प्रश्न 4.
अवतल दर्पण के सम्मुख स्थित वस्तु में प्रतिबिम्ब का बनना किरण आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए जबकि वस्तु की स्थिति –

  1. वक्रता केन्द्र से अधिक दूरी पर
  2. वक्रता केन्द्र पर
  3. वक्रता केन्द्र तथा फोकस के बीच में
  4. फोकस तथा दर्पण के ध्रव के बीच हो। (2014)

उत्तर:
1. जब वस्तु दर्पण के वक्रता केन्द्र से अधिक दरी पर रखी हो प्रतिबिम्ब की स्थिति वक्रता केन्द्र तथा फोकस के बीच में,
आकार वस्तु से छोटा,
प्रकृति वास्तविक एवं उल्टा।
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2. जब वस्तु दर्पण के वक्रता केन्द्र पर रखी हो
प्रतिबिम्ब की स्थिति वक्रता केन्द्र पर,
आकार वस्तु के बराबर,
प्रकृति वास्तविक एवं उल्टा।
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3. जब वस्तु दर्पण के वक्रता केन्द्र तथा फोकस के – बीच में रखी हो में,
प्रतिबिम्ब की स्थिति वक्रता केन्द्र तथा अनन्त के बीच
आकार वस्तु से बड़ा (आवर्धित)
प्रकृति वास्तविक एवं उल्टा।
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4. जब वस्तु दर्पण के ध्रुव व उसके फोकस के बीच में रखी हो
प्रतिबिम्ब की स्थिति दर्पण के पीछे,
आकार वस्तु से बड़ा,
प्रकृति आभासी व सीधा।
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प्रश्न 5.
संयुग्मी फोकस किसे कहते हैं ?
उत्तर:
संयुग्मी फोकस Conjugate Focus उन दो बिन्दुओं को संयुग्मी फोकस कहते हैं जिनमें से एक बिन्दु पर रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब दूसरे बिन्दु पर बनता है अर्थात् वस्तु तथा प्रतिबिम्ब की स्थिति को आपस में बदला जा सके। यदि कोई वस्तु उत्तल दर्पण के सामने रखी है तब उसका प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है तथा आभासी होता है, अतः प्रतिबिम्ब के स्थान पर वस्तु रखने से परावर्तन नहीं होगा। इसका यह अर्थ हुआ कि संयुग्मी फोकस केवल अवतल दर्पण में ही सम्भव है, उत्तल दर्पण में नहीं।

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प्रश्न 6.
15 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल दर्पण के सामने 30 सेमी की दूरी पर 2 सेमी लम्बाई की एक वस्तु रखी है। बनने वाले प्रतिबिम्ब की स्थिति, आकार तथा प्रकृति ज्ञात कीजिए
हल:
प्रश्नानुसार f = -15 सेमी (अवतल दर्पण), u = – 30 सेमी, O = 2 सेमी, υ = ?, I = ?
दर्पण के सूत्र, \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{-15}\) = \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{30}\) = \(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{30}\) – \(\frac {1}{15}\) = \(\frac {1 – 2}{30}\) = \(\frac {-1}{30}\)
∴ υ = -30 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने 30 सेमी की दूरी पर बनेगा।
\(\frac {I}{O}\) = \(\frac {υ}{u}\)
∴ \(\frac {I}{2}\) = –\(\frac {-30}{-30}\) = -1
I = -2 सेमी
∴ प्रतिबिम्ब की लम्बाई 2 सेमी होगी तथा यह वास्तविक व उल्टा होगा।

प्रश्न 7.
एक अवतल दर्पण के सामने 10 सेमी की दूरी पर रखी वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब 30 सेमी दूर बनता है। दर्पण की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है : दर्पण से वस्तु की दूरी (u) = – 10 सेमी
दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = – 30 सेमी,
फोकस दूरी (f) = ?
दर्पण के सूत्र \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {I}{υ}\) + \(\frac {I}{u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{(-30)}\) + \(\frac {1}{(-10)}\) = –\(\frac {1}{30}\) – \(\frac {1}{10}\) = – \(\frac {4}{30}\)
f = –\(\frac {30}{4}\) = -7.5 सेमी
अत: अवतल दर्पण की फोकस दूरी (f) = 7.5 सेमी।

प्रश्न 8.
एक उत्तल दर्पण से 25 सेमी दूर रखी एक वस्तु के प्रतिबिम्ब की लम्बाई वस्तु की लम्बाई की आधी होती है। दर्पण की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। (2014)
हल:
दिया है, दर्पण से वस्तु की दूरी u = -25 सेमी
∴ उत्तल दर्पण से सीधा तथा आभासी प्रतिबिम्ब बनता है; अत: रेखीय आवर्धन m = \(\frac {1}{2}\)
सूत्र m = – \(\frac {υ}{u}\) से,
\(\frac {1}{2}\) = \(\frac {u}{-25}\) = \(\frac {u}{25}\)
u = \(\frac {25}{2}\) = 12.5 सेमी
दर्पण सूत्र
\(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) = \(\frac {1}{f}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{12.5}\) + \(\frac {1}{-25}\)
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {2}{25}\) – \(\frac {1}{25}\)= \(\frac {2-1}{25}\) = \(\frac {1}{25}\)
अतः उत्तल दर्पण की फोकस दूरी f = 25 सेमी

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प्रश्न 9.
एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 10 सेमी है। एक वस्तु को दर्पण के सम्मुख कहाँ रखा जाए कि वस्तु के आधे आकार का प्रतिबिम्ब बने?
हल:
दिया है : फोकस दूरी (f) = 10 सेमी,
आवर्धन (m) = \(\frac {1}{2}\),
माना वस्तु को दर्पण के सम्मुख u दूरी पर रखा जाए। तब
आवर्धन के सूत्र, m = \(\frac {υ}{u}\) से,
\(\frac {1}{2}\) = – \(\frac {u}{u}\)
u = – \(\frac {u}{2}\) सेमी
दर्पण के सूत्र \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{10}\) = \(\frac {2}{u}\) + \(\frac {1}{u}\) = \(\frac {1}{u}\) = – \(\frac {1}{u}\) = – 10 सेमी
अत: वस्तु को उत्तल दर्पण के सम्मुख 10 सेमी दूर रखा जाए।

प्रश्न 10.
एक अवतल दर्पण की वक्रता-त्रिज्या 40 सेमी अर्थात् फोकस दूरी 20 सेमी है। दर्पण से 30 सेमी की दूरी पर रखी वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए। क्या यह वास्तविक होगा?
(2011, 12, 13)
हल:
दिया है: अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या, = -40 सेमी,
फोकस दूरी (f) =

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दर्पण से वस्तु की दूरी (u) = -30
सेमी, दर्पण से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = ?
दर्पण के सूत्र
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\)से,
अथवा – \(\frac {1}{20}\) = \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{30}\)
अतः \(\frac {1}{υ}\) = – \(\frac {1}{20}\) + \(\frac {1}{30}\) = – \(\frac {1}{60}\)
υ = -60 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब अवतल दर्पण से 60 सेमी की दूरी पर वस्तु की ओर, उल्टा व वास्तविक बनेगा।

प्रश्न 11.
एक 15 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल दर्पण से कितनी दूरी पर एक वस्तु रखी जाये कि उसका 5 गुना बड़ा वास्तविक प्रतिबिम्ब बने? प्रतिबिम्ब की स्थिति भी ज्ञात कीजिए। (2016)
हल:
दिया है, अवतल दर्पण की फोकस दूरी, f = – 15 सेमी, आवर्धन m = 5
वास्तविक प्रतिबिम्ब के लिए आवर्धन ऋणात्मक होगा। m =-\(\frac {υ}{u}\) = -5 ⇒ υ = 5u
सूत्र \(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) से
\(\frac {1}{-15}\) = \(\frac {1}{5u}\) + \(\frac {1}{u}\) या \(\frac {1+5}{5u}\) = – \(\frac {1}{15}\)
या 5u = -90 ⇒  u = -18 सेमी तथा υ = 5u = -90 सेमी
अतः स्पष्ट है कि वस्तु दर्पण के सामने 18 सेमी की दूरी पर रखी जाये। इस स्थिति में प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने 90 सेमी की दूरी पर बनेगा।

प्रश्न 12.
प्रकाश के अपवर्तन के नियमों का उल्लेख कीजिए। (2013, 15)
या स्नैल का अपवर्तन सम्बन्धी नियम लिखिए।
उत्तर:
प्रकाश के अपवर्तन के निम्नलिखित दो नियम हैं –
1. आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा आपतन-बिन्दु पर अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।
2. किन्हीं दो माध्यमों के लिए तथा एक ही रंग के प्रकाश के लिए, आपतन कोण की ज्या (sine)
तथा अपवर्तन कोण की ज्या (sine) का अनुपात एक नियतांक होता है। यदि आपतन कोण i तथा अपवर्तन कोण r है तो
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इस नियम को ‘स्नैल का नियम’ (Snell’s law) भी कहते हैं।

प्रश्न 13.
किसी माध्यम के अपवर्तनांक से क्या तात्पर्य है ? (2017)
उत्तर:
यदि प्रकाश का अपवर्तन निर्वात से किसी माध्यम में होता है, तब आपतन कोण के sine तथा अपवर्तन कोण के sine के अनुपात को उस माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनांक कहते हैं। इसे n से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 14.
वायु के सापेक्ष किसी द्रव का क्रान्तिक कोण 45° है। उस द्रव का अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए। (2012, 13, 14, 16, 18)
हल:
वायु के सापेक्ष द्रव का अपवर्तनांक = \(\frac {1}{ sin C}\)
जहाँ C वायु के सापेक्ष द्रव का क्रान्तिक कोण है।
\(\frac {1}{sin 45°}\) = \(\frac{1}{1 / \sqrt{2}}\) = \(\sqrt{2}\)

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प्रश्न 15.
यदि 1.5 अपवर्तनांक वाले काँच के प्रिज्म का कोण 60° है, तो प्रिज्म के अल्पतम विचलन कोण का मान क्या होगा? (sin 49° = 0.75) (2016)
हल:
दिया है, प्रिज्य कोण A = 60°,
काँच का अपवर्तनांक, n =1.5, 6m = ?
सूत्र प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक
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अत: प्रिज्य का अल्पतम विचलन कोण = 38°

प्रश्न 16.
लेंस के प्रथम फोकस एवं द्वितीय फोकस की परिभाषा दीजिए। एक उत्तल लेंस द्वारा किसी वस्तु के प्रतिबिम्ब बनने का किरण आरेख खींचिए, जब वस्तु2F पर रखी हो। (2017, 18)
उत्तर:
प्रथम फोकस: लेंस के मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जिससे चलकर आने वाली किरणें (उत्तल लेंस में) या जिसकी ओर चलकर आने वाली किरणें (अवतल लेंस में) अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती हैं लेंस का प्रथम फोकस कहलाता है।
द्वितीय फोकस: मुख्य अक्ष के समान्तर चलने वाली किरणें लेंस से अपवर्तन के पश्चात् मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती हैं (उत्तल लेंस) अथवा मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु से निकलती हुई प्रतीत होती हैं (अवतल लेंस) वह बिन्दु लेंस का द्वितीय फोकस कहलाता है।
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प्रश्न 17.
एक उत्तल लेंस के सामने उसके प्रकाशिक केन्द्र और फोकस के बीच एक वस्तु रखी है। किरण आरेख खींचकर प्रतिबिम्ब का बनना दर्शाइए। प्रतिबिम्ब की प्रकृति भी बताइए। (2013, 16, 17)
उत्तर:
वस्तु लेंस के सामने उसके प्रकाशिक केन्द्र और फोकस के बीच में है (देखें चित्र)-बिन्दु O’ से मुख्य अक्ष के समान्तर किरण O’ A, लेंस से निकलकर AF दिशा में जाती है तथा दूसरी किरण O’C सीधी निकल जाती है। ये दोनों किरणें पीछे बढ़ाने पर I’ पर मिलती हैं। अत: I’ बिन्दु O’ का आभासी प्रतिबिम्ब है। I’ से मुख्य अक्ष पर लम्ब II’, वस्तु OO’ का पूरा प्रतिबिम्ब है। यह प्रतिबिम्ब लेंस के उसी ओर बनता है तथा आभासी, सीधा व वस्तु से बड़ा है।
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प्रश्न 18.
उत्तल लेंस के फोकस पर स्थित वस्तु के प्रतिबिम्ब का बनना आरेख खींचकर दर्शाइए। बने हुए प्रतिबम्ब की प्रकृति एवं स्थिति भी लिखिए। (2014)
उत्तर:
वस्तु प्रथम फोकस F’ पर है (चित्र)-O’ से मुख्य अक्ष के समान्तर चलने वाली किरण O’A, अपवर्तन के पश्चात् द्वितीय फोकस F से होकर जाती है। दूसरी किरण O’C जो प्रकाशिक-केन्द्र C में को गुजरती है, सीधी चली जाती है। दोनों निर्गत किरणें आपस में समान्तर हैं, अतः अनन्तता पर मिलेंगी। स्पष्ट है कि प्रतिबिम्ब अनन्तता पर, वास्तविक, उल्टा व वस्तु से बड़ा होगा।
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प्रश्न 19.
15 सेमी फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस से 30 सेमी की दूरी पर स्थित वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति एवं दूरी ज्ञात कीजिए। (2016, 17)
हल:
दिया है, f = 15 सेमी, u=-30 सेमी, υ = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{15}\) = \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{-30}\)
या \(\frac {1}{15}\) = \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{30}\)
या \(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{15}\) – \(\frac {1}{30}\) = \(\frac {1}{30}\)
⇒ υ = 30 सेमी
∴ प्रतिबिम्ब की स्थिति लेंस के दूसरी ओर लेंस से 30 सेमी की दूरी पर होगी
तथा प्रतिबिम्ब की वस्तु से दूरी = 30 + 30 = 60 सेमी

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प्रश्न 20.
10 सेमी फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस से 20 सेमी दूर 10 सेमी लम्बी एक मोमबत्ती रखी गयी है। लेंस से बने मोमबत्ती के प्रतिबिम्ब की स्थिति, प्रकृति तथा लम्बाई ज्ञात कीजिए। (2013, 14, 17, 18)
हल:
दिया है, u=-20 सेमी, f = 10 सेमी, υ = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{10}\) = \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{-20}\)= \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{20}\)
या \(\frac {1}{u}\) = \(\frac {1}{10}\) – \(\frac {1}{20}\) = \(\frac {1}{20}\) या υ = 2.0 सेमी
चूँकि υ का मान धनात्मक है, अतः प्रतिबिम्ब लेंस से 20 सेमी की दूरी पर लेंस के दूसरी ओर बनेगा।
आवर्धन, m = \(\frac {I}{O}\) = \(\frac {υ}{u}\)
∴ \(\frac {I}{10}\) = \(\frac {20}{-20}\).
या  I = -1 x 10 = -10 सेमी
∴ प्रतिबिम्ब 10 सेमी लम्बा तथा उल्टा बनेगा व वास्तविक होगा।

प्रश्न 21.
20 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल लेंस के सामने लेंस से 30 सेमी दूर रखी वस्तु के प्रतिबिम्ब की स्थिति ज्ञात कीजिए। (2011, 13)
हल:
दिया है, लेंस की फोकस दूरी f = – 20 सेमी, लेंस से वस्तु की दूरी (u) = -30 सेमी तथा लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{-20}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{-30}\)
या \(\frac {1}{υ}\) =\(\frac {1}{30}\) – \(\frac {1}{20}\)
या \(\frac {1}{υ}\) =\(\frac {2-3}{60}\) = \(\frac {-1}{60}\)
या υ = 60 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब वस्तु की ओर ही लेंस से 60 सेमी की दूरी पर बनेगा।

प्रश्न 22.
एक उत्तल लेंस की फोकस दूरी 50 सेमी है। किसी वस्तु के दो गुना वास्तविक प्रतिबिम्ब को प्राप्त करने के लिए उसे लेंस से कितनी दूर रखना होगा? (2012, 14, 18)
हल:
दिया है, उत्तल लेंस की फोकस दूरी = 50 सेमी
प्रतिबिम्ब वास्तविक है, अत: आवर्धन ऋणात्मक होगा।
आवर्धन m = \(\frac {υ}{u}\) = -2
अथवा υ = -2u,
लेंस के सूत्र,
\(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = –\(\frac {1}{2u}\) – \(\frac {1}{u}\) = – \(\frac {3}{2u}\)
अतः वस्तु की स्थिति (u) = \(\frac {3}{2}\) x 50 =-75 सेमी
अत: वस्तु को लेंस से 75 सेमी की दूरी पर रखना चाहिए।

प्रश्न 23.
एक उत्तल लेंस से 15 सेमी दूर रखी वस्तु का दोगुना बड़ा वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है। लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। (2016)
हल:
दिया है, उत्तल लेंस से वस्तु की दूरी, u = -15 सेमी
चूँकि प्रतिबिम्ब वास्तविक है, अत: आवर्धन ऋणात्मक होगा।
आवर्धन m = \(\frac {υ}{u}\) = -2 या υ = -2u
υ = -2 x (-15) = 30 सेमी
लेंस के सूत्र, \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{30}\) – \(\frac {1}{-15}\)= \(\frac {1}{30}\) =\(\frac {1}{15}\) – \(\frac {3}{30}\)
f = \(\frac {3}{30}\) = 10 सेमी
अतः लेंस की फोकस दूरी 10 सेमी है।

प्रश्न 24.
उत्तल लेंस से 30 सेमी दूर स्थित एक वस्तु का वास्तविक प्रतिबिम्ब 20 सेमी दूर बनता है। लेंस की फोकस दूरी ज्ञात कीजिए। स्वच्छ किरण आरेख भी खींचिए। (2015, 16)
हल:
दिया है, u = -30 सेमी, υ = 20 सेमी, फोकस दूरी f = ?
लेंस के सूत्र = \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
\(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{20}\) – (\(\frac {1}{30}\)) = \(\frac {1}{20}\) =\(\frac {1}{30}\) – \(\frac {3 + 2}{60}\) या f = \(\frac {60}{5}\) = 12 सेमी
लेंस की फोकस दूरी 12 सेमी है।
किरण आरेख इस प्रकार होगा –
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प्रश्न 25.
5 सेमी ऊँचाई की एक वस्तु 25 सेमी फोकस दूरी वाले अवतल लेंस से 50 सेमी की दूरी पर रखी है। बनने वाले प्रतिबिम्ब की ऊँचाई एवं स्थिति ज्ञात कीजिए। (2015)
हल:
दिया है, लेंस से वस्तु की दूरी (u) = -50 सेमी,
लेंस की फोकस दूरी (f) = -25 सेमी,
लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) से,
– \(\frac {1}{25}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{-50}\) या
\(\frac {1}{υ}\) = – \(\frac {1}{25}\) – \(\frac {1}{50}\) = – \(\frac {3}{50}\)
अत: υ = -50/3 = -16.67 सेमी
अत: प्रतिबिम्ब वस्तु की ही ओर, लेंस से 16.67 सेमी दूरी पर बनेगा।
आवर्धन के सूत्र (m) = \(\frac {υ}{u}\) = \(\frac {I}{O}\) से
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या I = \(\frac {1}{3}\) x 5 = 1.67 सेमी
अतः प्रतिबिम्ब का. आकार I = 1.67 सेमी तथा यह सीधा होगा।

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प्रश्न 26.
उत्तल लेंस से 0.15 मीटर दूरी पर स्थित वस्त का प्रतिबिम्ब दूसरी ओर 0.60 मीटर दूरी पर बन रहा है। यदि वस्तु की लम्बाई 0.15 मीटर हो तो प्रतिबिम्ब की लम्बाई क्या होगी?
(2013)
हल:
दिया है: लेंस से वस्तु की दूरी (u) = – 0.15 मीटर,
वस्तु का आकार (O) = 0.15 मीटर,
लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = 0.60 मीटर,
प्रतिबिम्ब का आकार (I) = ?
आवर्धन के सूत्र m = \(\frac {I}{O}\) = \(\frac {υ}{u}\) से, \(\frac {I}{0.15}\) = \(\frac {0.60}{- 0.15}\)
अथवा प्रतिबिम्ब की लम्बाई (I) = \(\frac {0.60 x 0.15}{0.15}\) = 0.60 मीटर
अर्थात् प्रतिबिम्ब 0.60 मीटर लम्बा, उल्टा व वास्तविक बनेगा।

प्रश्न 27.
एक वस्तु का उत्तल लेंस द्वारा किसी पर्दे पर प्रतिबिम्ब 3 गुना बड़ा बनता है। यदि वस्तु और पर्दे की स्थितियाँ बदल दी जायें तो उस दशा में आवर्धन कितना होगा? (2017)
हल:
हम जानते हैं कि आवर्धन (m) = υ/u
प्रश्नानुसार, 3=υ/u ⇒  υ = 3u
वस्तु तथा पर्दे की स्थितियाँ बदलने पर,
आवर्धन (m) = \(\frac {u}{υ}\) = \(\frac {u}{3u}\) = \(\frac {1}{3}\)

प्रश्न 28.
एक उत्तल लेंस की मुख्य अक्ष पर प्रकाशिक केन्द्र से 36 सेमी दूरी पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब प्रकाशिक केन्द्र से उतनी ही दूरी पर दूसरी ओर बनता है। लेंस की फोकस दूरी तथा रेखीय आवर्धन ज्ञात कीजिए। (2017)
हल:
प्रश्नानुसार u=-36 सेमी, υ = 36 सेमी f = ? तथा m = ?
लेंस के लिए सूत्र, \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\)से,
\(\frac {1}{f}\) = \(\frac {1}{36}\) – (\(\frac {1}{36}\)) = \(\frac {1}{36}\) + \(\frac {1}{36}\) = \(\frac {2}{36}\)
∴ f = \(\frac {36}{2}\) = 18 सेमी
तथा रेखीय आवर्धन, m =\(\frac {υ}{u}\) = \(\frac {36}{-36}\) = -1

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी गोलीय दर्पण (अवतल दर्पण) के लिए सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) का निगमन कीजिए।जहाँ संकेतों का सामान्य अर्थ है। (2012, 13)
या अवतल दर्पण के लिए u, υ तथा में सम्बन्ध लिखिए। (2012, 18)
उत्तर:
माना कि M1M2 एक अवतल दर्पण है जिसका ध्रुव P है, फोकस F है तथा वक्रता केन्द्र C है (देखें चित्र)। इसकी मुख्य अक्ष के किसी बिन्दु पर एक वस्तु AB रखी है। वस्तु के सिरे A से मुख्य अक्ष के. समान्तर चलने वाली आपतित किरण AM दर्पण के बिन्दु M से टकराती है। परावर्तन के पश्चात् यह किरण दर्पण के फोकस F से होकर गुजरती है। दूसरी किरण AO दर्पण के वक्रता केन्द्र C से होकर जाती है तथा परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग से वापस लौट जाती है। दोनों परावर्तित किरणें A’ बिन्दु पर काटती हैं।

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इस बिन्दु A’ से मुख्य अक्ष पर डाला गया लम्ब A’B’, वस्तु AB का प्रतिबिम्ब है। अब माना कि वस्तु AB की दर्पण के ध्रुव से दूरी PB = -1, प्रतिबिम्ब A’B’ की दूरी PB’ = – υ, दर्पण की वक्रता-त्रिज्या PC = – R तथा दर्पण की फोकस दूरी PF = – f है। (ये सभी दूरियाँ चूंकि आपतित किरण के चलने की दिशा के विपरीत दिशा में नापी जाती हैं अर्थात् दर्पण के बायीं ओर हैं; अत: चिह्न परिपाटी के अनुसार ये दूरियाँ ऋणात्मक हैं )।
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त्रिभुज ABC तथा त्रिभुज A’B’C समकोणिक हैं।
अतः \(\frac {AB}{A’B’}\) = \(\frac {CB}{B’C}\) …..(i)
इसी प्रकार, त्रिभुज A’ B’ F तथा त्रिभुज MNF भी समकोणिक हैं।
– \(\frac {MN}{A’B’}\) = \(\frac {NF}{FB’}\) …..(ii)

परन्तु MN = AB है,
अतः \(\frac {AB}{A’B’}\) = \(\frac {NF}{FB’}\) …..(iii)
समीकरण (i) व (iii) की तुलना करने पर,
\(\frac {CB}{B’C}\) = \(\frac {NF}{FB’}\) …..(iv)

माना कि दर्पण पर बिन्दु M, ध्रुव P के बहुत समीप है, तब N व P बिन्दु अत्यन्त निकट होंगे।
उस स्थिति में, NF = PF (लगभग)
यह मान समीकरण (iv) में रखने पर,
\(\frac {CB}{B’C}\)= \(\frac {PF}{FB’}\)
अथवा \(\frac {PB-PC}{PC-PB’}\) = \(\frac {PF}{PB’ – PF}\)
चिह्न सहित मान रखने पर,
\(\frac {-u – (-R)}{-R – (-υ) }\) = \(\frac {-f}{-υ – (-f}\)
परन्तु R = 2f, अत:
\(\frac {-u + 2f}{-2f + υ}\) = \(\frac {-f}{-υ + f}\)
या (-u+2f) (-υ + f) = -f(-2f + υ)
या uυ – uf – 2 fυ + 252 = 2F2 – fy
या uυ – uf – fy = 0
या uf + fy = uυ
दोनों ओर urf से भाग करने पर,
\(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) – \(\frac {1}{f}\)
यही सूत्र अवतल दर्पण के लिए फोकस दूरी तथा दर्पण से वस्तु और प्रतिबिम्ब की दूरियों में सम्बन्ध का सूत्र है।

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प्रश्न 2.
उत्तल दर्पण के लिए सूत्र \(\frac {1}{f}\) =\(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{u}\) का निगमन कीजिए, जहाँ संकेतों के समान्य अर्थ हैं। (2013, 16)
हल:
उत्तल दर्पण के लिए u, तथा f में सम्बन्ध माना, M1M2 एक उत्तल दर्पण है जिसका ध्रुव P, फोकस F तथा वक्रता केन्द्र C है। इसकी मुख्य अक्ष पर कोई वस्तु AB रखी है। वस्तु के सिरे B से मुख्य अक्ष के समान्तर चलने वाली आपतित किरण BD, दर्पण के बिन्दु D पर गिरती है। परावर्तन के पश्चात् यह किरण दर्पण के फोकस F से आती प्रतीत होती है।

दूसरी किरण BI, वक्रता-केन्द्र की सीध में दर्पण पर आपतित होती है तथा परावर्तन के पश्चात् उसी मार्ग में लौट आती है। ये दोनों परावर्तित किरणे B’ से आती हुई प्रतीत होती हैं जो कि B का प्रतिबिम्ब है। B’ से मुख्य अक्ष पर खींचा गया लम्ब A’B’ ही वस्तु AB का आभासी प्रतिबिम्ब है। यह प्रतिबिम्ब फोकस तथा ध्रुव के बीच में है (देखें चित्र)।
0 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
माना, दर्पण के ध्रुव P से, वस्तु की दूरी PA = -u, प्रतिबिम्ब की दूरी PA’ = + υ, दर्पण की वक्रता-त्रिज्या PC =r तथा दर्पण की फोकस दूरी PF = f है। बिन्दु D से मुख्य अक्ष पर अभिलम्ब DN है।
ΔABC तथा ΔCB’A’ समकोणिक हैं।
\(\frac {AB}{A’B’}\) = \(\frac {CA}{A’C}\) ……..(i)
इसी प्रकार, ΔA’B’F तथा ΔNDF समकोणिक हैं।
\(\frac {ND}{A’B’}\) = \(\frac {NF}{A’F}\)
परन्तु DN = AB
\(\frac {AB}{A’B’}\) = \(\frac {NF}{A’F}\) ……….(ii)
A’B’ AF समीकरण (i) व समीकरण (ii) से,
\(\frac {CA}{A’C}\) = \(\frac {NF}{A’F}\)
माना, बिन्दु D दर्पण के ध्रुव P के बहुत समीप है। तब NF = PF (लगभग)
\(\frac {CA}{A’C}\) = \(\frac {PF}{A’F}\)
अथवा \(\frac {PC + PA}{PC – PA}\) = \(\frac {PF}{PF – PA’}\)
इस समीकरण में चिह्न सहित मान रखने पर,
\(\frac {r – u}{r – υ}\) = \(\frac {f}{f – C}\)
\(\frac {+2f – u}{2f – υ}\) = \(\frac {f}{f – υ}\)
अथवा f (2f – υ) = (f – υ) (2f – u)
अथवा 2f2 – υf = 2f2 – uf – 2uf + uυ
υf + uf = uw
दोनों ओर uυf से भाग देने पर,
\(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) – \(\frac {1}{f}\)
वस्तु की प्रत्येक स्थिति के लिए उत्तल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब आभासी, सीधा व वस्तु से छोटा तथा दर्पण के ध्रुव व फोकस के बीच बनता है।

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प्रश्न 3.
रेखीय आवर्धन किसे कहते हैं ? गोलीय दर्पण में बने प्रतिबिम्ब के रेखीय आवर्धन के लिए सूत्र m = – \(\frac {υ}{u}\) स्थापित कीजिए। (2014)
उत्तर:
रेखीय आवर्धन प्रतिबिम्ब की लम्बाई तथा वस्तु की लम्बाई के अनुपात को रेखीय आवर्धन (m) कहते हैं जबकि दोनों लम्बाइयाँ मुख्य अक्ष के लम्बवत् नापी गई हों। चूँकि मुख्य अक्ष के ऊपर की दूरियाँ धनात्मक तथा नीचे की दूरियाँ ऋणात्मक ली जाती हैं, अतः सीधे प्रतिबिम्बों के लिये आवर्धन धनात्मक तथा उल्टे प्रतिबिम्बों के लिये ऋणात्मक होता है। आवर्धन के लिये सूत्र माना कि M1,M2, (देखें चित्र) एक ० अवतल दर्पण है। इसका ध्रुव P, मुख्य फोकस F तथा वक्रता-केन्द्र C है। इसकी मुख्य अक्ष पर एक वस्तु OO’ रखी है जिसका उल्टा – तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब II’ बनता है। अत: वस्तु की नोंक O’ से चलने वाली किरण O’ P, परावर्तन के पश्चात् प्रतिबिम्ब की नोंक I’ से होकर जायेगी। चूँकि अक्ष PO, दर्पण के बिन्दु P पर अभिलम्ब है, अत: ZO’ PO आपतन कोण तथा ∠OPI’ परावर्तन कोण होगा।
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अब ∠O’ PO = ∠OPI’ (परावर्तन का नियम)
∠POO’ = ∠PII’ (समकोण है)
अत: ΔOO’ P तथा ΔII’ P समकोणिक हैं।
\(\frac {II’}{OO’}\) = \(\frac {PI}{PO}\)
माना कि II’ =-y2,OO’ = + y1, PI = -υ तथा PO =-u (चिह्न परिपाटी के अनुसार y1 धनात्मक और u, υ तथा y2 ऋणात्मक हैं)। तब
\(\frac{-y_{2}}{y_{1}}=\frac{-υ}{-u}\)
अत: आवर्धन m = \(\frac{y_{2}}{y_{1}}=-\frac{υ}{u}\)
उत्तल दर्पण के लिए भी आवर्धन का यही सूत्र होगा।

प्रश्न 4.
प्रकाश के पूर्ण आन्तरिक परावर्तन का अर्थ समझाइए। क्रान्तिक कोण तथा अपवर्तनांक के बीच सम्बन्ध का व्यंजक भी स्थापित कीजिए। (2016, 17)
या पूर्ण आन्तरिक परावर्तन को उदाहरण सहित समझाइए। (2012, 13)
उत्तर:
जब कोई प्रकाश की किरण OA (देखें चित्र (a))किसी सघन माध्यम (जैसे काँच) से विरल माध्यम (जैसे वायु) में जाती है तो इसका एक छोटा भाग AC परावर्तित हो जाता है तथा अधिकांश भाग AB अपवर्तित हो जाता है। अपवर्तित किरण AB, अभिलम्ब से दूर हटती है। इस दशा में अपवर्तन कोण (r) आपतन कोण (i) से बड़ा होता है।
0 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन
अब यदि आपतन कोण का मान धीरे-धीरे बढ़ाते जाएँ तो अपवर्तन कोण भी बढ़ता जाता है तथा एक विशेष आपतन कोण के लिए अपवर्तन कोण 90° हो जाता है (देखें चित्र (b))। इस आपतन कोण को ‘क्रान्तिक कोण’ कहते हैं तथा C से प्रदर्शित करते हैं। अत: क्रान्तिक कोण C, सघन माध्यम में बना वह आपतन कोण है जिसके लिए विरल माध्यम में अपवर्तन कोण 90° होता है।

अब यदि आपतन कोण को और बढ़ाएँ अर्थात्, आपतन कोण का मान क्रान्तिक कोण से थोड़ा-सा अधिक कर दें तो प्रकाश विरल माध्यम में बिल्कुल नहीं जाता, बल्कि ‘सम्पूर्ण’ प्रकाश परावर्तित होकर सघन माध्यम में ही लौट आता है [देखें चित्र (c)]। इस घटना को प्रकाश का ‘पूर्ण आन्तरिक परावर्तन’ कहते हैं क्योंकि इसमें प्रकाश का अपवर्तन बिल्कुल नहीं होता; सम्पूर्ण आपतित प्रकाश परावर्तित हो जाता है। किसी पृष्ठ के जिस भाग से पूर्ण आन्तरिक परावर्तन होता है, वह भाग बहुत चमकने लगता है। इस प्रकार पूर्ण परावर्तन केवल तब ही सम्भव है जबकि निम्नलिखित दो शर्त परी हों

  1. प्रकाश सघन माध्यम से विरल माध्यम में जा रहा हो।
  2. आपतन कोण क्रान्तिक कोण से बड़ा हो।

अपवर्तनांक तथा क्रान्तिक कोण में सम्बन्ध यदि विरल माध्यम को 1 से तथा सघन माध्यम को 2 से प्रदर्शित करें तो स्नैल के नियमानुसार सघन माध्यम के सापेक्ष विरल माध्यम का अपवर्तनांक –
2n1 = \(\frac {sini}{sinr}\)
जब आपतन कोण i = क्रान्तिक कोण C, तब अपवर्तन कोण r = 90°
2n1 = \(\frac {sinC}{sin90°}\) = sin C [:: sin 90° = 1]
परन्तु 1n2 = \(\frac{1}{{ }_{1} n_{2}}\) जहाँ 1n2विरल माध्यम के सापेक्ष सघन माध्यम का अपवर्तनांक है।
\(\frac{1}{{ }_{1} n_{2}}\) = sin C अथवा 1n2 = \(\frac {1}{sinC}\)
उगहरणार्थ, यदि प्रकाश काँच से वायु में जा रहा हो तो वायु के सापेक्ष काँच का अपवर्तनांक
ang = \(\frac {1}{sinC}\)

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प्रश्न 5.
एक उत्तल लेंस से 5 सेमी की दूरी पर स्थित एक वस्तु का प्रतिबिम्ब वस्तु की ओर, वस्त से दो गुना बड़ा बनता है। यदि वस्तु को उसी लेंस से 15 सेमी की दूरी पर रखा
जाए, तो उसके प्रतिबिम्ब की स्थिति तथा आवर्धन ज्ञात कीजिए। (2014, 15)
हल:
क्योंकि प्रतिबिम्ब लेंस के उसी ओर बनता है; अत: यह सीधा होगा तथा इसका आवर्धन
धनात्मक होगा।
आवर्धन m = \(\frac {υ}{u}\) = +2 या υ = 2u
:: दिया है : लेंस से वस्तु की दूरी (u) = -5 सेमी,
अतः लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = 2 x (-5) = -10 सेमी, फोकस दूरी (f) = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) – \(\frac {1}{f}\)से.
\(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{-10}\) – \(\frac {1}{-5}\) = \(\frac {1}{10}\) + \(\frac {1}{5}\) – \(\frac {1}{10}\)
अतः f = + 10 सेमी

दूसरी स्थिति में, लेंस से वस्तु की दूरी (u) = -15 सेमी,
लेंस से प्रतिबिम्ब की दूरी (υ) = ?
लेंस के सूत्र \(\frac {1}{υ}\) + \(\frac {1}{u}\) – \(\frac {1}{f}\)से
\(\frac {1}{10}\) + \(\frac {1}{υ}\) – \(\frac {1}{-15}\)
\(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{10}\) – \(\frac {1}{5}\) = \(\frac {1}{30}\)
अतः υ = + 30 सेमी
अतः आवर्धन m = \(\frac {υ}{u}\) = \(\frac {30}{-15}\) = -2
अतः प्रतिबिम्ब लेंस के दूसरी ओर 30 सेमी की दूरी पर, उल्टा तथा दोगुना लम्बा बनेगा।

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2 Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 10 Political Science लोकतंत्र की उपलब्धियाँ Text Book Questions and Answers

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र किस तरह उत्तरदायी एवं वैध सरकार का गठन करता है?
उत्तर-

  • लोकतंत्र एक उत्तरदायी सरकार का निर्माण करता है क्योंकि (a) यह नियमित, स्वतंत्र तथा स्वच्छ तरीके से चुनाव सम्पन्न करता है।
    (b) इसके प्रमुख सार्वजनिक मुद्दों तथा विधेयकों पर जनता के बीच खुली बहस की गुंजाइश होती है। (c) यह सरकार के स्वयं के बारे में तथा उसकी कार्य-शैली के बारे में जानने के लिए जनता को सूचना का अधिकार प्रदान करता है।
  • लोकतंत्र एक जिम्मेवार सरकार प्रदान करता है क्योंकि इसका निर्माण जनता द्वारा निर्धारित प्रतिनिधि करते हैं। ये प्रतिनिधि समाज की समस्याओं पर बहस करते हैं तथा तदनुसार नीतियाँ एवं सरकार बनाते हैं। समस्याओं को सुलझाने के लिए इन्हीं नीतियों एवं कार्यक्रमों को लागू किया जाता है।
  • लोकतंत्र एक वैध सरकार का निर्माण करता है क्योंकि यह जनता की सरकार होती है। यह जनता ही होती है जो अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से सरकार बनाकर स्वयं के ऊपर शासन करवाती है।

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प्रश्न 2.
लोकतंत्र किस प्रकार आर्थिक संवृद्धि एवं विकास में सहायक बनता है ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। यह व्यवस्था खुशहाली एवं विकास की दृष्टि से भी अग्रणी होगी। किसी देश का आर्थिक विकास उस देश की व्यवस्था, आर्थिक प्राथमिकता, अन्य देशों से सहयोग के साथ-साथ वैश्विक स्थिति पर भी निर्भर करती है। लोकतांत्रिक शासन में विकास दर में कमी के बावजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था का चयन सर्वोत्तम होगा क्योंकि इसके अनेक सकारात्मक एवं विश्वसनीय फायदे हैं जिनका एहसास हमें धीरे-धीरे होता है जो अन्ततः सुखद होता है। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यमों से अपने समस्याओं को सरकार के सामने प्रस्तुत करती है। तद्नुरूप सरकार जनता की समस्याओं को हल करने के लिए तत्पर होती है। लोकतंत्र में समान आर्थिक संवृद्धि का अधिकार है। प्रत्येक नागरिक को अपनी रोजी-रोटी, जमीन, चल और अचल सम्पत्ति को रखने का अधिकार है। उनको आर्थिक संवृद्धि और विकास के लिए स्वस्थ वातावरण लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में मिलता है।।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र किन स्थितियों में सामाजिक विषमताओं को पाटने में मददगार होता है और सामंजस्य के वातावरण का निर्माण करता है?
उत्तर-
किसी लोकतंत्र द्वारा विभिन्न सामाजिक विषमताओं के बीच सामंजस्य के वातावरण के निर्माण के लिए निम्नलिखित स्थितियों का होना अनिवार्य है-

  • इसका सरल अर्थ यह है कि चुनाव अथवा निर्णय के मामले में विभिन्न व्यक्ति या समूह अलग-अलग समय में बहुमत का निर्माण कर सकते हैं। यदि किसी को उसके जन्म के आधार पर बहुमत में होने से रोका जाता है तो उस व्यक्ति के लिए लोकतांत्रिक शासन सामंजस्य बिठाने वाला नहीं रह जाता है।
  • लोगों को यह समझना होगा कि लोकतंत्र केवल बहुमत का शासन नहीं है। सरकार एक सामान्य दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व कर सके इसके लिए बहुमत को अल्पमत के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ने निम्नांकित किन मुद्दों पर सफलता पाई है ?
(क) राजनीतिक असमानता को समाप्त कर दिया है।
(ख) लोगों के बीच टकरावों को समाप्त कर दिया है।
(ग) बहुमत समूह और अल्प समूह के साथ एक सा व्यवहार करता है।
(घ) समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े लोगों के बीच आर्थिक पैमाना को कम कर दिया
उत्तर-
(ख) लोगों के बीच टकरावों को समाप्त कर दिया है।

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प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी एक बात लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के अनुरूप नहीं है।
(क) कानून के समक्ष समानता
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) उत्तरदायी शासन-व्यवस्था
(घ) बहुसंख्यकों का शासन
उत्तर-
(घ) बहुसंख्यकों का शासन

प्रश्न 6.
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक एवं सामाजिक असमानताओं के संदर्भ में किया गया कौन-सा सर्वेक्षण सही और कौन गलत प्रतीत होता है (लिखें सत्य/असत्य)

(i) लोकतंत्र ओर विकास साथ-साथ चलते हैं।
उत्तर-
सत्य

(ii) लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में असमानताएँ बनी रहती हैं।
उत्तर-
असत्य

(iii) तानाशाही में असमानताएँ नहीं होती।
उत्तर-
असत्य

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(iv) तानाशाही व्यवस्थाएं लोकतंत्र से बेहतर सिद्ध हुई हैं।
उत्तर-
असत्य

प्रश्न 7.
भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों के संबंध में कौन सा कथन सही अथवा गलत है-
(i) आज लोग पहले से कहीं अधिक मताधिकार की उपादेयता को समझने लगे हैं।
उत्तर-
सही

(ii) शासन की दृष्टि से भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ब्रिटिश काल के शासन से बेहतर नहीं है।
उत्तर-
गलत

(iii) अभिवचित वर्ग के लोग चुनावों में उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं?
उत्तर-
गलत

(iv) राजनीतिक दृष्टि से महिलाएं पहले से अधिक सत्ता में भागीदार बन रही हैं।
उत्तर-
सही

प्रश्न 8.
भारतवर्ष में लोकतंत्र के भविष्य को आप किस रूप में देखते हैं?
उत्तर-
भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था पाई जाती है। इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत जनता अपने प्रतिनिधियों को चुन कर संसद या विधानसभा में भेजती हैं। वे प्रतिनिधि जनता की समस्या को उठाते हैं और उनकी समस्या का निराकरण सरकार से कराने की कोशिश करते हैं। भारतीय लोकतंत्र का अवलोकन करने पर लोकतंत्र के प्रति आशा और निराशा दोनों होती है। हमारी निराशाएं पहले इस रूप में प्रकट होती हैं कि भारत में लोकतंत्र है ही नहीं अथवा भारतः लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है।

कभी-कभी तो ऐसी टिप्पणियाँ भी सुनने को मिलती हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था तमाम शासन-व्यवस्थाओं की तुलना में असफल एवं पंगु है। स्वाभाविक है कि लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अतएव इसकी गति निश्चित तौर पर धीमी होती है। न्याय में विलंब, विकास दर की धीमी रफ्तार के कारण ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र बेहतर नहीं है। राजतंत्र एवं तानाशाही व्यवस्था में इसकी गति तेज तो हो जाती है परंतु उसके व्यापक जन-कल्याण के तत्व एक सिरे से गायब रहते हैं। साथ ही, गुणवत्ता का सर्वथा अभाव दिखता है।

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इन निराशओं के बावजूद आशा की किरण भी प्रस्फुटित होती है। गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आनन-फानन में शीघ्रता से लिये गये निर्णयों के दुष्परिणामों से जब हम मुखातिब होते हैं, तब लगता है कि लोकतंत्र से बेहतर और कोई शासन-व्यवस्था हो नहीं सकती है। इसे जब हम भारतीय लोकतंत्र के 60 वर्षों की अवधि के संदर्भ में देखते हैं तो लगता है कि कार्यक्रम में हम काफी सफल रहे हैं। एक समय था जब लोग “कोई नृप होउ हमें का हानि” के मुहावरे में बातें करते थे।

शासन-व्यवस्था में आम जनता अपने को भागीदार नहीं मानती थी। जनता जज्बातों एवं भावनाओं में अपना वोट करती थी। धनाढ्य एवं आपराधिक छवि के उम्मीदवार जनता के मतों को खरीदने का जज्बा रखते थे। परन्तु, जब हम 2009 में 15वीं लोकसभा के चुनाव का मूल्यांकन करते हैं तो पता चलता है कि भारत की जनता ने एक साथ पूरे देश में आपराधिक छवि के उम्मीदवारों को समूल खारिज कर दिया है। जनता को अब विश्वास हो गया है कि वह अपने मतों से किसी को गिरा एवं उठा सकती है। आज पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र की साख बढ़ी है। और इसकी सफलता से अन्य लोकतांत्रिक देश अनुप्राणित हो रहे हैं। यह सच है कि लोकतंत्र को बार-बार जनता की परीक्षाओं में खरा उतरना पड़ता है।

लोगों को जब लोकतंत्र से थोड़ा लाभ मिल जाता है तो उनकी अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं। वे लोकतंत्र से और अच्छे कार्यों की उम्मीद करने लगते हैं। अतएव आप जब किसी से लोकतंत्र के काम-काज एवं भविष्य पर प्रश्न पूछेगे तो वे अपनी निजी अथवा सार्वजनिक समस्याओं का पिटारा खोल देंगे। लोकतंत्र से जनता की अपेक्षाएँ एवं शिकायतें इस बात का सबूत है कि लोकतंत्र कितना गतिमय एवं सफल है।

जनता का संतुष्ट होना दो बातों का द्योतक है। पहला कि तानाशाही व्यवस्था में जनता जबरन संतुष्ट रहती है और दूसरा कि जनता को लोकतंत्र में रुचि नहीं है। तात्पर्य यह है कि किसी तानाशाह के कार्यों का मूल्यांकन जनता भय के कारण नहीं कर पाती है जबकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता में बैठे लोगों के कामकाज का मूल्यांकन जनता हर रोज करती है। इस परिप्रेक्ष्य में जब भारतीय लोकतंत्र का मूल्यांकन करेंगे तो स्थितियाँ संतोषजनक प्रतीत होंगी। आज भारतवर्ष में जनता का लगातार प्रजा से नागरिक बनने की प्रक्रिया जारी है।

वास्तव में भारतीय लोकतंत्र विकास की ओर निरंतर अग्रसर है। यह सच है कि यहाँ लोकतंत्र के प्रतिश आशाएं और निराशाएं व्याप्त हैं फिर भी लोकतंत्र यहां खूब फल-फूल रहा है। जनता इसके प्रति सकारात्मक रुख अपना रही है। इस तरह भारत में लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल है।

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प्रश्न 9.
भारतवर्ष में लोकतंत्र कैसे सफल हो सकता है?
उत्तर-
भारत वर्ष में लोकतांत्रिक शासन प्रणाली पायी जाती है। भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। परंतु लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुंचा है जहाँ जनता सीधे तौर पर हस्तक्षेप पर सके। अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित हो, यह सच्चाई है। लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बनती हैं, परंतु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलने वाली व्यवस्था नहीं है, बल्कि यहाँ अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है।

भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक होता है कि सरकार प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान कर ताकि वे किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बन सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए लोकतांत्रिक संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र हो। अर्थात् सार्वजनिक हो क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालना उनका लक्ष्य होता है। विडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खास तौर पर राजनीतिक दलों के अन्दर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र की स्वस्थ परम्परा का सर्वथा अभाव दिखता है। जाहिर है कि इसके दुष्परिणाम के तौर पर सत्ताधारी लोगों के चरित्र एवं व्यवहार गैरलोकतांत्रिक दिखेंगे और लोकतंत्र के प्रति हमारे विश्वास में कमी होगी। इसे हम अपनी सक्रिय भागीदारी एवं लोकतंत्र में अटूट विश्वास से दूर कर सकते हैं।

वास्तव में लोकतंत्र के उपर्युक्त तथ्यों का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि लोकतंत्र उपयुक्त तरीकों द्वारा सफल बनाया जा सकता है।

Bihar Board Class 10 History  लोकतंत्र की उपलब्धियाँ Notes

आधुनिक युग में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संसार के लगभग सौ देशों में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान है। लोकतंत्र का लगातार प्रसार एवं उसे मिलने वाला जन-समर्थन यह साबित करता है कि लोकतंत्र अन्य सभी शासन व्यवस्थाओं से बेहतर है। इस व्यवस्था में सभी नागरिकों को मिलने वाला समान अवसर, व्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गरिमा आकर्षण के बिन्दु हैं। साथ ही, उसके आपसी विभेदों एवं टकरावों को कम करने और गुण-दोष के आधार पर सुधार की निरंतर संभावनाएं लोगों को इसके करीब लाती हैं। लोकतंत्र में फैसले किसी व्यक्ति-विशेष द्वारा नहीं  बल्कि सामूहिक आधार पर लिये जाते हैं। यह विशेषता लोकतंत्र का मूल उद्देश्य है।

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

लोकतंत्र के प्रति लोगों की उम्मीदों के साथ-साथ शिकायतें भी कम नहीं होती हैं। लोकतंत्र से लोगों की अपेक्षाएँ इतनी ज्यादा हो जाती हैं कि इसकी थोड़ी सी भी कमी खलने लगती है। कभी-कभी तो हम लोकतंत्र को हर मर्ज की दवा मान लेने का भी खतरा मोल लेते हैं और इसे तमाम सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक विषमता को समाप्त करने वाली जादुई व्यवस्था मान लेते हैं। लोकतंत्र के प्रति यह नजरिया न तो सैद्धांतिक रूप से और न ही व्यावहारिक धरातल पर स्वीकार्य है।

जहाँ तक भारतीय लोकतंत्र की उपलब्धियों का प्रश्न है, इस सन्दर्भ में यह सच्चाई है कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के काले पक्षों को दर्शाने वाले उदाहरण की कमी नहीं है। आजादी के पश्चात विगत 60 वर्षों के इतिहास में भ्रष्टचार में डूबे राजनीतिज्ञ और लोकतांत्रिक संविधान के मूल उद्देश्यों को विनष्ट करने वाली किस्मों की कमी नहीं है। इन तमाम कमजोरियों के बावजूद हमारा लोकतंत्र पश्चिम के लोकतंत्र से नयाब है जो निरंतर विकास एवं परिवर्धन की ओर उन्मुख है। तात्पर्य यह कि हमें लोकतंत्र को एक सर्वोत्तम शासन व्यवस्था के रूप में देखते हुए इसकी उपलब्धियों को मूल्यांकित करना चाहिए। तो आइए, हम लोकतंत्र से अपेक्षित कतिपय मौलिक तत्वों को परखने का प्रयास करें और इसकी तुलना गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था से करते हुए सकारात्मक समझ बनाने की कोशिश करें।

लोकतंत्र एक ऐसी शासन व्यवस्था है जिसमें जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है। इस शासन व्यवस्था को जन-कल्याणकारी मुद्दों से जोड़ कर देखा जाता है। यदि हम लोकतंत्र का मूल्यांकन । करें तो हम देखते हैं कि लोग चुनावों में भाग लेते हैं, अपने प्रतिनिधियों को चुनने या कार्य करते हैं। यह और बात है कि आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि से मजबूत लोगों का दबदबा देखा जाता है। बावजूद इसके जनता में जागरूकता की वृद्धि एवं व्यापक प्रतिरोध से लगातार सुधार की संभावनाएँ बनी रहती हैं। उल्लेखनीय है कि शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के कारण आज लोग अपने मताधिकार का बढ़-चढ़कर उपयोग कर रहे हैं जबकि पूर्व में उन्हें या तो वंचित किया जाता था अथवा उनकी रुचि नहीं रहती थी। इस बात को यदि हम भारतीय संदर्भ में देखें तो स्थितियाँ संतोषप्रद हैं।

लोकतंत्र में बहस-मुबाहिसों के बाद ही फैसले किए जाते हैं। उन फैसलों को विधायिका की लम्बी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। परिणामस्वरूप फैसले में अनिवार्य रूप से देरी होती है। ‘कभी-कभी तो अत्यधिक विलम्ब के कारण लिए गए फैसले भी अप्रासंगिक हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर फैसलों में बिलंब के मामले की तुलना यदि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था से करते हैं तो देखते हैं कि वहाँ फैसले शीघ्र एवं प्रभावी ढंग से लिए जाते हैं। यहाँ गौर करने की बात यह है कि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था में फैसले किसी खास व्यक्ति द्वारा बिना बहस-मुबाहिसों के लिए किए जाते हैं। इन फैसलों को लम्बी विधायी प्रक्रिया से गुजरना भी प्रासंगिक एवं न्यायोचित भी लगते हैं। लोग राहत का भी अहसास करते हैं।

परन्तु इसके फैसलों को यदि हम समग्रता से देखते हैं तो काफी क्षोभ एवं निराशा होती है। कारण स्पष्ट है कि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था के फैसलों में व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों की अधिकता रहती है जो कभी सामूहिक जनकल्याण की दृष्टि से दुरुस्त नहीं होती है। परन्तु, लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोगों को यह जानने का हक होता कि फैसले कैसे एवं किस प्रकार से लिए जाते हैं। तात्पर्य यह है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में पारदर्शिता एवं संतोष का भाव परिलक्षित होता है जबकि गैरलोकतांत्रिक व्यवस्था में इसकी कोई संभावना नहीं रहती है। वास्तव में लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव नियमित रूप से होते है। सरकार जब कानून बनाती है उस पर जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ अपनी जनता के बीच की इसकी चर्चाएं होती है, अतः हम कह सकते हैं कि लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था वैध एवं जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

यह सच है कि समाज में विभिन्न जातियाँ भाषायी एवं सांप्रदायिक समूहों में मतभेदों एवं टकरावों को पूरी तरह से समाप्त कर देने का दावा कोई भी शासन-व्यवस्था नहीं कर सकती है। जैसे मतभेदों के बने रहने के कई सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक कारण है। इनके बीच टकराव तब होते हैं जब इनकी बातों की अनदेखी की जाती है अथवा इन्हें दबाने की कोशिश की जाती है। अक्सर गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में ऐसी प्रवृत्तियाँ देखी जाती हैं। हाल ही के नेपाल की जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी की गई एवं राजपरिवार के इशारे पर दमन का चक्र चलाया , गया। अंततः जनता की ही बीत हुई। सामाजिक मतभेदों एवं अंतरों के बीच बातचीत एवं आपसी समझदारी के माहौल के निर्माण में लोकतंत्र की अहम भूमिका होती है।

लोकतंत्र लोगों के बीच एक दूसरे के सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधताओं के प्रति सम्मान का भाव विकसित करता है। इस बात को दावे के साथ कहा जा सकता है कि विभिनन सामाजिक विषमताओं एवं विविधताओं के बीच संवाद एवं सामंजस्य के निर्माण में सिर्फ लोकतंत्र ही सफल रहा है।

भारतीय लोकतंत्र का परीक्षण एवं अवलोकन पर हमारे मन में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ होती हैं। निराशा भी होती है। लेकिन आशाएँ की जाती हैं। हमारी निराशाएँ पहले इस रूप में प्रकट होती हैं कि भारत में लोकतंत्र है ही नहीं अथवा भारत लोकतंत्र के लिए उपयुक्त नहीं है। कभी-कभी । तो ऐसी टिप्पणियाँ भी सुनने को मिलती हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था तमाम शासन-व्यवस्थाओं की तुलना में असफल एवं पंगु है। स्वाभाविक है कि लोकतंत्र को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। अतएव इसकी गति निश्चित तौर पर धीमी होती है।

न्यचाय में विलम्ब, विकास दर की धीमी रफ्तार के कारण ऐसा लगने लगता है कि लोकतंत्र बेहतर नहीं है। राजतंत्र एवं तानाशाही व्यवस्था में इसकी गति तेज होती है। परन्तु उसके व्यापक जनकल्याण के तत्व एक सिरे से गायब रहते हैं। साथ ही, गुणवत्ता का सर्वथा अभाव दिखता है। इन निराशाओं के बावजूद आशा की किरण फिर भी प्रस्फुटित होती है। गैरलोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में आनन-फानन में शीघ्रता से लिये गये निर्णयों के दुष्परिणामों से जब हम मुखातिब होते हैं तब लगता है कि लोकतंत्र से बेहतर और कोई शासन-व्यवस्था हो ही नहीं सकती है।

निन्देह भारतीय लोकतंत्र की साख पूरी दुनिया में बढ़ी है। निरन्तर इसके विकास से जनता । की भागीदारी का विस्तार हुआ है। फिर की भारतीय लोकतंत्र उतना परिपक्व नहीं हुआ है। कारण कि जनता का जुड़ाव उस स्तर तक नहीं पहुंचा है, जहाँ जनता सीधे-तौर पर हस्तक्षेप कर सके।

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 4 लोकतंत्र की उपलब्धियाँ

अतएव इसकी सफलता के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम जनता शिक्षित-हो। शिक्षा ही उनके भीतर जागरुकता पैदा कर सकती है। यह सच्चाई है लोकतांत्रिक सरकारें बहुमत के आधार पर बन जाती हैं, परन्तु लोकतंत्र का अर्थ बहुमत की राय से चलने वाली व्यवस्था नहीं है बल्कि यहाँ

अल्पमत की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक होता है। भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए * आवश्यक है कि सरकार प्रत्येक नागरिक को यह अवसर अवश्य प्रदान कर ताकि वे । किसी-न-किसी अवसर पर बहुमतं का हिस्सा बन सके। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के साथ-साथ विभिन्न लोकतांत्रिक संस्थाओं के अन्दर आंतरिक लोकतंत्र हो। अर्थात् सार्वजनिक मुद्दों पर बहस-मुबाहिसों में कमी नहीं हो। राजनीतिक दलों के लिए तो यह अति आवश्यक है क्योंकि सत्ता की बागडोर संभालना उनका लक्ष्य होता है। विडम्बना है कि भारतवर्ष में नागरिकों के स्तर पर और खास तौर पर राजनीतिक दलों के अंदर आंतरिक विमर्श अथवा आंतरिक लोकतंत्र की स्वस्थ परंपरा का सर्वथा आभाव दिखता है।

वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की सफलता के अनेक कारण हैं भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था इतनी परिपक्व नहीं हुई है। फिर भी यह विकास की ओर निरन्तर अग्रसर है और इसके उज्ज्वल भविष्य की हम कामना कर सकते हैं।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

Bihar Board Class 11 Sociology समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग Additional Important Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक श्रेणी को परिभाषित कीजिए?
उत्तर:
सामाजिक श्रेणी के अंतर्गत उन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी समाज में समान प्रस्थिति तथा भूमिका होती है। सामाजिक श्रेणी एक सांख्यिकीय संकलन है। इनमें व्यक्तियों की विशिष्ट विशेषताओं के आधार पर उनका वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण के लिए समान व्यवसाय वाले अथवा समान आय वाले व्यक्ति ।

प्रश्न 2.
‘समग्र’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समग्र ऐसे व्यक्यिों का संकलन है, जो एक ही समय व एक ही जगह पर रहते हैं, लेकिन उनमें एक दूसरे के साथ व्यक्तिगत संबंध नहीं पाए जाते हैं। इरविंग गफमेन के अनुसार समग्र व्यक्तियों का ऐसा संकलन है, जिन्में एक-दूसरे के प्रति अंतः क्रिया नहीं पायी जाती है। उदाहरण के लिए 5 फुट लम्बे सभी पुरुषों का संकलन समग्र कहलाएगा।

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प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्राथमिक समूह मे आमने-सामने के घनिष्ठ संबंध होते हैं। प्राथमिक समूह का आकार छोटा होता है। इसके सदस्यों के उद्देश्य एवं इच्छाएँ साधारणतया समान होती हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री कूले के अनुसार, “प्राथमिक समूह से मेरा तात्पर्य उन समूहों से है जो घनिष्ठ, आमने-सामने के संबंध एवं सहयोग के जरिए लक्षित होते हैं। वे प्राथमिक कई दृष्टिकोणों से हैं, लेकिन मुख्य रूप से इस कारण से है कि वे व्यक्ति की समाजिक प्रकृति तथा आदेशों के निर्माण करने में मौलिक हैं……….”

प्रश्न 4.
कूले द्वारा वर्णित प्राथमिक समूह की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री कूले ने अपनी पुस्तक में प्राथमिक समूह की निम्नलिखत विशेषताएँ बतायी हैं –

  • घनिष्ठ आमने-सामने के संबंध
  • तुलनात्मक रूप से स्थापित
  • सीमित आकार एवं सदस्यों की सीमित संख्यासदस्यों के माध्य आत्मीयता
  • सहानुभूति तथा पारस्परिक अभिज्ञान
  • हम की भावना

प्रश्न 5.
द्वितीयक समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
द्वितीयक समूह अपेक्षाकृत आकार में बड़े होते हैं। इनमें घनिष्ठता की कमी पायी जाती है। व्यक्तियों के बीच संबंध अस्थायी, अव्यक्तिगत तथा औपाचारिक होते हैं । इनका लक्ष्य विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति होता है तथा सदस्यता ऐच्छिक होती है। आग्बर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “वे समूह जो घनिष्ठता की कमी का अनुभव प्रस्तुत करते हैं, तो द्वितीयक समूह कहलाते हैं।”

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प्रश्न 6.
औपचारिक समूह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
औपचारिक समूह या तो विशाल होते हैं, या विशाल संगठन का एक हिस्सा होते हैं, उदाहरण के लिए श्रम-संगठन तथा सेना। औपचारिक समूह में सदैव एक नियामक स्तरीकृत संरचना अथवा प्रस्थिति व्यवस्था पायी जाती है।

प्रश्न 7.
अनौपचारिक स्तरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
अनौपचारिक समूह अपेक्षाकृत लघु होते हैं तथा इनका निर्माण अचानक हो जाता है। इन समूहों में समान उद्देश्य तथा पारस्परिक व्यवहार के आधार पर अंतः क्रियाएँ पायी जाती हैं, उदाहरण के लिए बच्चों के खेल समूह तथा टीम आदि अनौपचारिक समूह हैं। अनौपचारिक समूह एक सामाजिक इकाई हैं तथा इनमें समूह की समस्त विशेषताएँ पायी जाती हैं। इसके सदस्यों में अंतर्वैयक्तिक संबंध, संयुक्त गतिविधियाँ तथा समूह से संबद्ध होने की भावना होती है।

प्रश्न 8.
सामाजिक स्तरीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण से तात्पर्य भौतिक या प्रतीकात्मक लाभों तक पहुँच के आधार पर समाज में समूहों के बीच की संरचनात्मक असमानताओं के अस्तित्व से है। अतः स्तरीकरण को सरलतम शब्दों में, लोगों के विभिन्न समूहों के बीच की संरचनात्मक असमानताओं के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
प्रस्थिति किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रस्थिति समाज या एक समूह में एक स्थिति है। प्रत्येक समाज और प्रत्येक समूह में ऐसी कई स्थितियाँ होती हैं और व्यक्ति ऐसी कई स्थितियों पर अधिकार रखता हैं। अतः प्रस्थिति से तात्पर्य सामाजिक स्थिति और इन स्थितियों से जुड़े निश्चित अधिकरों और कर्तव्यों से है। उदाहरण के लिए, माता की एक प्रस्थिति होती है जिसमें आचरण के कई मानक होते हैं और साथ ही निश्चित जिम्मेदारियाँ और विशेषाधिकार भी होते हैं।

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प्रश्न 10.
भूमिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूमिका प्रस्थिति का एक सक्रिय रूप हैं। प्रस्थितियाँ ग्रहण की जाती हैं एवं भूमिकाएँ निभाई जाती हैं। हम यह कह सकते हैं। प्रस्थिति एक संस्थागत भूमिका है। यह वह भूमिका है जो समाज में या समाज की किसी विशेष संस्था में नियमित, मानकीय और औपचारिक बन चुकी है।

प्रश्न 11.
सामाजिक नियंत्रण से क्या आशय है?
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण का तात्पर्य सामाजिक प्रक्रियाओं, तकनीकों और रणनीतियों से है जिनके द्वारा व्यक्ति या समूह के व्यवहार को नियमित किया जाता है। इनका अर्थ व्यक्तियों और समूहों के व्यवहार को नियमित करने के लिए बल प्रयोग से है और समाज में व्यवस्था के लिए मूल्यों व प्रतिमानों को लागू करने से है।

प्रश्न 12.
सामाजिक नियंत्रण के कोई दो औपचारिक साधन बताइए?
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण के दो औपचारिक साधन निम्नलिखित हैं –
1. कानून – कानून सामाजिक नियंत्रण का एक औपचारिक तथा सशक्त साधन है। वर्तमान समय में द्वितीयक तथा तृतीयक समूह लगातार महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं। कानून के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था के लिए प्रारूप नियमों तथा दंडो की व्यवस्था की जाती है। कानून का शासन तथा कानून के सम्मुख समानता आधुनिक युग की विशेषताएँ हैं।

2. राज्य – राज्य सामाजिक नियंत्रण का औपचारिक साधन है। राज्य संप्रभु होता है अतः समस्त संस्थाएँ समितियाँ तथा समुदाय राज्य क अधीन होते हैं। राज्य के नियमों, व्यवस्थाओं तथा कानून के सम्मुख समानता आधुनिक युग की विशेषताएँ हैं।

प्रश्न 13.
औपचारिक सामाजिक नियंत्रण क्या है?
उत्तर:
औपचारिक सामाजिक नियंत्रण के अंतर्गत राज्य, कानून, सरकार, व्यवस्थापिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका व संवैधानिक व्यवस्थाओं को सम्मिलित किया जाता हैसामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधनों में विधिसम्मत व्यवस्था का अनुसरण किया जाता है। प्रत्येक संस्था तथा निकाय आदि के कार्य सुपरिभाषित तथा स्पष्ट होते हैं।

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प्रश्न 14.
अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण क्या है?
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधनों का विकास समाज की आवश्यकताओं के अनुसार स्वतः होता रहता है। प्राथमिक समूहों तथा आदिवासी समाजों में समाजिक नियंत्रण के अनौपचरिक साधन काफी प्रभावशाली होते हैं।

लोकरीतियों, लोकाचारों, प्रथाओं तथा परम्पराओं आदि को समाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधनों में सम्मिलित किया जाता है। ई.ए. रॉस के अनुसार, “सहानुभूति, सामाजिकता, न्याय की भावना तथा क्रोध अनुकूल परिस्थितियों में स्वयं एक वास्तविक प्राकृतिक व्यवस्था अथवा वह व्यवस्था है जिसका कोई ढाँचा या योजना नहीं होती ।”

प्रश्न 15.
समाजशास्त्र में हमें विशिष्ट शब्दावली और संकल्पणाओं के प्रयोग की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
समाजशास्त्र के वे विषय जिन्हें सामान्य लोग नहीं जानते तथा जिनके लिए सामान्य भाषा में कोई शब्द नहीं है, उनके लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र की अपनी एक शब्दावली हो शब्दावली समाजशास्त्र के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह विषय अपने आपमें अपने अनेक संकल्पनाओं को जन्म देता है।

प्रश्न 16.
सामाजिक समूह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सामान्य उद्देश्य या स्वार्थ हेतु एक-दूसरे से अंतः क्रिया करते हैं तथा एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं, तो वे एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 17.
सामाजिक समूह की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
सामाजिक समूह की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना
  • लोगों में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंधों का होन
  • सदस्यों के बीच स्वार्थ अथवा हित का पाया जाना। पारस्परिक हित समूह के संबंध-सूत्र होते है
  • समूह में श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है
  • समूह में पारस्परिक जागरूकता पायी जाती है।

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प्रश्न 18.
मानव द्वारा समूहों की रचना क्यों की गई?
उत्तर:
मनुष्यों द्वारा समूहों की रचना निम्नलिखित कारणों से की गई –

  • मानव आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु।
  • मनुष्य अपने अस्तित्व के लिए प्रारम्भ से ही दूसरे मनुष्यों पर निर्भर है। उदाहरण के लिए शिशु का पालन-पोषण नहीं हो सकता है।
  • समूह मनुष्यों को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • समूह द्वारा भाई-चारे की भावना विकसित होती है जो सामाजिक अंतः क्रिया के लिए जरूरी है।

प्रश्न 19.
समूह की कोई दो विशेषताएँ बताइए?
उत्तर:
समूह की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • कोई एक व्यक्ति समूह की रचना नहीं कर सकता। समूह के सदस्यों के बीच पारस्परिक अंतः क्रिया पायी जाती है। परिवार, जाति तथा नातेदारी आदि समूह के उदाहरण हैं।
  • समूह के सदस्यों के संबंधों में स्थायित्व पाया जाता है। समूह की सदस्यता औपचारिक अथवा अनौपचारिक हो सकती है।

प्रश्न 20.
समूह की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समूह से हमारा तात्पर्य व्यक्तियों के उस संजलन से है जो एक-दूसरे के साथ सामाजिक संबंध रखते हैं।” दूसरे शब्दों में समूह वह है जसमें एकीकृत करने वाले संबंधों के आधार पर कुछ लोग एक स्थान पर एकत्रित होता है।

प्रश्न 21.
सामाजिक नियंत्रण के कोई दो उद्देश्य बताइए?
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण के दो उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
(i) सामाजिक व्यवस्था को कायम रखना-किबाल यंग के अनुसार, “सामाजिक नियंत्रण का उद्देश्य एक विशिष्ट समूह अथवा समाज की समरूपता, एकता एवं निरंतरता को लाना है।” अतः प्रत्येक समाज अथवा समूह सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखता है। समाज के सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे सामाजिक व्यवस्था, मूल्यों तथा प्रतिमानों के अनुरूप कार्य करें।

(ii) सामूहिक निर्णयों का पालन-सामाजिक नियंत्रण के अंतर्गत समाज के सदस्य सामूहिक निर्णयों का पालन करते हैं। सामूहिक निर्णयों के पालन करने से सामाजिक एकरूपता तथा व्यवस्था कायम रहती है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आधुनिक युग में प्राथमिक समूह के क्या-क्या कार्य हैं?
उत्तर:
प्राथमिक समूह समस्त सामाजिक संगठन का केन्द्र बिंदु है। इसका आकार लघु होता है तथा इसमें सदस्यों की संख्या कम होती है।

प्राथमिक समूहों के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं –

  • व्यक्ति के विकास में प्राथमिक समूहों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, उदाहरण के लिए परिवार व्यक्ति के विकास की नर्सरी है।
  • प्राथमिक समूह सामाजिक नियंत्रण के महत्त्वपर्ण अभिकरण हैं, उदाहरण के लिए परिवार तथा मित्र मंडली आदि सदस्यों को समाज के आदर्शों तथा मूल्यों से अवगत कराते हैं।
  • प्राथमिक समूह व्यक्तियों को भावनात्मक तथा मानसिक संतुष्टि प्रदान करते हैं।
  • प्राथमिक समूह व्यक्तियों को समाज में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मंच प्रदान करते हैं प्राथमिक समूहों में व्यक्तियों में समाजिक तथा संस्कारो का पाठ पढ़ाया जाता है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह और द्वितीयक समूह की तुलना कीजिए?
उत्तर:
प्राथमिक समूह तथा द्वितीयक समूह में निम्नलिखित अन्तर हैं –
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प्रश्न 3.
समूह किस प्रकार बनते है?
उत्तर:
(i) मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जन्म के समय केवल एक जैविक समावयव होता है, लेकिन सामाजिक समूहों में उसका समाजीकरण होता है।

(ii) समूह में मनुष्य की जैविक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। इस प्रकार समूहों का निर्माण सामान्य स्वार्थों के कारण होता
है। एडवर्ड सेपीर के अनुसार, “किसी समूह का निर्माण इस तथ्य पर आधारित होता है कि कोई स्वार्थ समूह के सदस्यों को परस्पर बांधे रखता है।”

(iii) समूह निर्माण दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कुछ सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जाता है। बोगार्डस के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो अधिक व्यक्तियों की ऐसी संख्या को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ सामान्य उद्देश्यों पर हो तथा जो एक-दूसरे को प्रेरणा दें, जिनमें सामान्य निष्ठा हो तथा जो सामन्य क्रियाओं में सम्मिलित हों।”

(iv) सामाजिक समूह के निर्माण के लिए सदस्यों में पारस्परिक चेतना तथा अंतः क्रिया का होना बहुत आवश्यक है। केवल भौतिक निकटता के द्वारा समूह का निर्माण नहीं होता है।

(v) समूह के सदस्यों में सहयोग, संघर्ष तथा प्रतिस्पर्धा पायी जाती है।

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प्रश्न 4.
“व्यक्ति का जीवन समूह का जीवन है। चर्चा कीजिए?
उत्तर:
(i) व्यक्ति तथा समूह एक-दूसरे के पूरक हैं। समूह वास्तविक रूप में समाजिक जीवन के केंद्र बिंदु हैं।

(ii) समूह का अर्थ जैसा कि मेकाइवर तथा पेज ने लिखा है कि “मनुष्यों के ऐसे संकलन से है जो एक-दूसरे के साथ सामाजिक संबंध रखते हैं।

(iii) समूह अपनी समस्त आवश्यकताओं के लिए समूह पर निर्भर रहता है। समूह में ही व्यक्ति अपनी क्षमताओं तथा उपलब्धियों का प्रदर्शन करता है। हॉर्टन तथा हंट के अनुसार, “समूह व्यक्तियों का संग्रह अथवा श्रेणियाँ होती हैं, जिनमें सदस्यता एवं अतः क्रिया की चेतना पायी जाती है।”

(iv) समूहों में पाया जाने वाला विभेदीकरण, श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण सामाजिक जीवन व्यतीत करने का अपरिहार्य तत्त्व है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि समूह द्वारा वह सब प्रस्तुत किया जाता है, जो मानव-जीवन के लिए आवश्यक है।

(v) पारस्परिक संबंध, हम की भावना, अंत: क्रिया, सामान्य हित तथा समूह के आदर्श नियम व्यक्ति के सामजिक तथा जैविक अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं। आगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “……. जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति एक साथ मिलते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, तो वे एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।

सारांशः समूह तथा ब्यक्ति इस प्रकार एक-दूसरे के पूरक हैं कि एक के अभाव में दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 5.
समूह के लिए मानकों की सार्थकता बताइए?
उत्तर:
मानक समाज तथा समूह में व्यक्ति का वांछित तथा अपेक्षित व्यवहार है। वे निर्देश, जिनका अनुसरण व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के साथ अंतः क्रिया करते समय करता है, मानक कहलाते हैं।

मानक वस्तुतः समाज में व्यवहार के वे पुंजी है जो व्यक्तियों को परिस्थिति में विशेष में व्यवहार करने के बारे में बतलाता है। ब्रूम तथा सेल्जनिक के अनुसार, “आदर्श मानक व्यवहार की वे रूप-रेखाएँ हैं जो उन सीमाओं का निर्धारण करती हैं जिनके अंदर व्यक्ति अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विकल्पात्मक विधियों की खोज कर सकता है।”

समूह के लिए मानकों की सार्थकता का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) सभी समाजों के मानकों की एक सुपरिभाषित व्यवस्था होती है जो उचित तथा म ए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) समाजशास्त्र वर्ग-11 9 31 अनुचित नैतिक एवं अनैतिक में स्पष्ट भेद करती है। इनका अभाव में सामाजिक व्यवस्था अराजकता ग्रसित हो जाएगी।

(ii) मानक वास्तव में समूह द्वारा मानकीकृत अवधारणाएँ हैं। मानकों के द्वारा व्यक्तियों का व्यवहार सीमित किया जाता है । डेविस के अनुसार, “सामाजिक मानक एक प्रकार का नियंत्रण . है। मानव समाज इन्हीं नियंत्रणों के आधार पर अपने सदस्यों के व्यवहार पर इस प्रकार अंकुश लगाता है, जससे वे सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साधान के रूप में कार्य करते रहें, भले ही उनकी प्राणीशास्त्रीय जरूरतों में इसे बाधा पहुँचती है।”

(iii) मानकों का औचित्य समाज तथा समूह के अनुसार बदलता रहता है।

(iv) जो मानक हमें एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने का निर्देश देते हैं तथा कुछ कार्य करने से रोकते हैं, आदेशात्मक मानक कहलाते हैं। उदाहरण के लिए यातायात के नियमों के अनुसार हम वाहनों को बाई ओर चला सकते हैं लेकिन लालबत्ती होने पर वाहन चलाना यातायात के नियमों के विरुद्ध है। निषेधात्मक मानक है।

(v) मानकों ही द्वारा व्यक्ति के व्यवहार का समाज में निर्धारण होता है। विशेष सामाजिक परिस्थितियों के लिए विशेष मानक निश्चित होते हैं। उहारण के लिए, किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार के समय अन्य व्यक्तियों से अपेक्षा की जाती है कि वे उदास तथा दुःखी होंगे।

(vi) मानक सार्वभौम होते हैं। बीरस्टीड के असार, “जहाँ आदर्श मानक नहीं है, वहाँ समाज भी नहीं है।”

(vii) सामाजिक मानकों का संबंध सामाजिक उपयोगिता से है।

(viii) आदर्श मानक सामाजिक ताने-बाने को दृढ़ता प्रदान करते हैं।

(ix) मानक व्यक्तियों की मनोवृत्तियों तथा उद्देश्यों को प्रभावित करते हैं।

(x) मानक विहीन समाज असंभव है।

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प्रश्न 6.
टिप्पणी लिखिए – (i) प्रदत्त व अर्जित प्रस्थिति, (ii) मानक तथा (iii) भूमिका कुलक।
उत्तर:
(i) (क) प्रदत्त तथा अर्जित प्रस्थिति – समाज में व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण निम्नलिखित दो प्रक्रियाओं के द्वारा होता है

प्रदत प्रस्थिति – लेपियर के अदुसार, “वह परिस्थिति जो एक व्यक्ति के जन्म पर या उसके कुछ क्षण बाद ही प्रदत्त होती है, विस्तृत रूप में निश्चित करती है कि उसका समाजीकरण कौन-सी दिशा लेगा।”

व्यक्ति की प्रदत्त स्थिति क निर्धारण में निम्नलिखित तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं –

  • लिंग
  • आयु
  • नातेदारी तथा
  • सामाजिक कारक

(ख) (ii) अर्जित प्रस्थिति-अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति अपने निजी परिश्रम तथा योग्यता के आधार पर प्राप्त करता है। अर्जित प्रस्थिति आधुनिक समाज की विशेषता है। अर्जित प्रस्थिति के अंतर्गत व्यक्ति के समूह में स्थिति उसमें व्यक्तिगत गुणों के आधार पर निश्चित की जाती है। जिन समाजों के श्रम विभाजन, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण उच्च श्रेणी का होता है, वहाँ अर्जित प्रस्थिति अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है।

मानक – वे निर्देश जिनका पालन समाज में व्यक्ति अन्य व्यक्यिों के साथ अंतः क्रिया करते समय करता है, मानक कहलाते हैं। मानकों द्वारा इस बात का निर्धारण किया जाता है कि परिस्थिति विशेष में व्यक्ति का किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। समाज तथा समूह की प्रकृति के अनुसार मानक बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए एक सामज में किसी कार्य को सामाजिक मान्यता मिलती है, जबकि दूसरे समाज में वही कार्य निंदनीय हो सकता है। मानक दो प्रकार के होते हैं –

  • आदेशात्मक मानक तथा
  • निषेधात्मक मानक

बर्टन राइट के अनुसार, “सामाजिक मानकों की एक सामान्य यह है कि वे व्यवहार के उचित तरीकों को स्पष्ट करते हैं।”

मानकों की विशेषताएँ –

  • उचित तथा अनुचित के आधार पर व्यक्ति के व्यवहार को स्पष्ट करना।
  • मानक सामाजिक नियंत्रण के प्रभाव साधन हैं।
  • मानक सामाजिक संरचना को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • मानकों का विकास सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार होता है।
  • कुछ मानकों की प्रकृति सर्वमान्य होती है।
  • मानकों में समाज के नियमों, आदर्शों, विचारों तथा मूल्यों का समावेश होता है।
  • सामाजिक मानक समूह की अपेक्षाएँ हैं।

(iii) भूमिका-कुलक – समाज में व्यक्ति की प्रस्थिति के अनुसार ही उसका अपेक्षित व्यवहार होता है। लुंडबर्ग के अनुसार, “सामाजिक भूमिका किसी समूह अथवा प्रस्थिति में व्यक्ति से प्रत्याशित व्यवहार का प्रतिमान है।” डेविस के अनुसार, भूमिका वह ढंग है जिसके अनुसार कोई व्यक्ति अपने पद के दायित्वों को वास्तविक रूप से पुरा करता है।” प्रत्येक प्रस्थिति से भूमिका अथवा भूमिकाएँ जुड़ी रहती हैं। व्यक्ति की प्रस्थिति संबद्ध समस्त भूमिकाएँ मिलकर भूमिका-कुलक का निर्माण करती है।

रॉबर्ट मर्टन के अनुसार, “भूमिका कुलक संबंधों का वह पूरक है जिसे व्यक्ति किसी एक सामाजिक स्थिति के धारक के कारण प्राप्त करता है।” उदाहरण के लिए एक स्कूल का विद्यार्थी होने के कारण उस विद्यार्थी होने के कारण उस विद्यार्थी को कक्षध्यक्ष अन्य शिक्षकाओं के इस कुलक को भूमिका-कुलक कहते हैं। अपने परिवार में इस विद्यार्थी का भूमिका-कुलक पृथक् होगा । वह माता-पिता, भाई-बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों से अंतः क्रिया करेगा।

प्रश्न 7.
अंत: समूह तथा बाह्य समूह में अंतर है –
उत्तर:
अंतः समूह तथा बाह्य समूह में निम्नलिखित अंतर हैं –
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प्रश्न 8.
कुछ समाजशास्त्री सामाजिक स्तरीकरण को अपरिहार्य क्यों मानते हैं?
उत्तर:
कुछ सामजशास्त्री सामाजिक स्तरीकरण को निम्नलिखित कारणों से अपरिहार्य मानते हैं –
(i) मानव समाज में असमानता प्रारम्भ से ही पायी जाती है। असमानता पाये जाने का प्रमुख कारण यह है कि समाज में भूमि, धन, संमत्ति, शक्ति तथा प्रतिष्ठा जैसे संसाधनों का वितरण . समान नहीं होता है।

(ii) विद्वानों का मत है कि यदि किसी समाज के समस्त सदस्यों को समानता का दर्जा दे भी दिया जाए तो कुछ समय पश्चात् उस समाज के व्यक्तियों में असमानता आ जाएगी। इस प्रकार में असमानता एक सामाजिक तथ्य है।

(iii) गम्पलोविज तथा ओपेनहीमर आदि समाजशास्त्रियों का मत है कि सामाजिक स्तरीकरण की शुरूआत एक समूह द्वारा दूसरे समूह पर हुई।

(iv) जीतने वाला समूह अपने को उच्च तथा श्रेष्ठ श्रेणी का समझने लगा। सीसल नार्थ का विचार है कि “जब तक जीवन का शांति पूर्ण क्रम चलता रहा, तब तक कोई तीव्र तथा स्थायी श्रेणी-विभाजन प्रकट नहीं हुआ।”

(v) प्रसिद्ध समाजशास्त्री डेविस का मत है कि सामाजिक अचेतना अचेतन रूप से अपनायी जाती है। इसके माध्यम से विभिन्न समाज यह बात कहते हैं कि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पदों पर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों का नियुक्त किया गया है । इस प्रकार प्रत्येक समाज में सामाजिक स्तरीकरण अपरिहार्य है।

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प्रश्न 9.
स्तरीकरण की खुली व बंद व्यवस्था में अंतर स्पष्ट किजिए?
उत्तर:
स्तरीकरण की खुली तथा बंद व्यवस्था में अग्रलिखित अंतर है –
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प्रश्न 10.
औपचारिक तथा अनौपचारिक समूहों में क्या अंतर स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
औपचारिक तथा अनौपचारिक समूहों में निम्नलिखित अंतर हैं –
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प्रश्न 11.
प्रदत्त व अर्जित प्रस्थिति में अंतर बताइए ? उचित उदाहरण देकर समझाए ?
उत्तर:
(i) प्रदत्त प्रस्थिति – प्रदत्त प्रस्थिति वह सामाजिक पद है जो किसी व्यक्ति को उसके जन्म के आधार पर या आयु, लिंग, वंश; जाति तथा विवाह आदि के आधार पर प्राप्त होता है। लेपियर के अनुसार, “वह स्थिति जो एक व्यक्ति जन्म पर या उसके कुछ ही क्षण बाद अभिरोपित होती है, विस्तृत रूप में निश्चित करती है कि उसका समाजीकरण कौन सी दिशा लेगा। अपनी संस्कृति के अनुसार-पुलिंग या स्त्रिीलिंग निम्न या उच्च वर्ग के व्यक्ति के रूप में उसका पोषण किया जो सकेगा। वह कम या अधिक प्रभावशाली रूप में अपनी उस स्थिति से समजीकृत होगा जो उस पर अभिरोपित है।”

प्रदत्त प्रस्थिति का निर्धारण सामाजिक व्यवस्था के मानकों द्वारा निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए उच्च जाति में जन्म के द्वारा किसी व्यक्ति को समाज में जो प्रस्थिति प्राप्त होती है वह उसकी प्रदत्त प्रस्थिति है। इसी प्रकार एक धनी परिवार में जन्म लेने वाले बालक की। सामाजिक प्रस्थिति एक निर्धन परिवार में जन्म लेने वाले बालक से भिन्न होती है।

(ii) अर्जित प्रस्थिति अर्जित प्रस्थिति वह सामाजिक पद है जिसे व्यक्ति अपने निजी प्रयासों से प्राप्त करता है। लेपियर के अनुसार, “अर्जित प्रस्थिति वह स्थिति है, जो साधारणतः लेकिन अनिर्वायता: नहीं किसी व्यक्तिगत सफलता के लिए, इस अनुमान पर पुरस्कारस्वरूप स्वीकृत होती है कि जो सेवाएँ अपने अतीत में की सब भविष्य में भी जारी रहेगी। “उदाहरण के लिए कोई भी व्यक्ति अपने निजी प्रयासों के आधार पर डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, अधिकरी आदि बन सकता है।

प्रश्न 12.
सामाजिक नियंत्रण प्राथमिक समूहों में कैसे कार्य करते हैं?
उत्तर:
(i) प्राथमिक समूहों में सामाजिक नियंत्रण काफी अधिक होता है। परिवार, धर्म वैवाहिक नियम, जनरीतियाँ, रूढ़ियाँ प्रथाएँ गोत्र तथा पड़ोस आदि प्राथमिक समूह हैं।

(ii) प्राथमिक समूह व्यक्ति के व्यवहार तथा सामाजिक आचरण पर कठोर नियंत्रण रखते हैं। पी. एच. लैडिस के अनुसार, “जितना ही एक समूह अधिक समरस होता है उतनी ही अधिक कठोर तथा प्रभावी सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था होती है।”

(iii) प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, ईमानदारी, निष्ठा, विनम्रता तथा न्याय आदि समूहों के प्राथमिक आदर्श होते हैं। प्राथमिक समूहों में एक-दूसरे की भावनाओं तथा मान-मर्यादा का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के लिए परिवार की प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए युवक-युवतियाँ अन्तर्जातीय विवाह के पक्ष में होते हुए भी ऐसा इसलिए नहीं करते हैं, क्योंकि इससे उनके माता-पिता की भावनाओं को ठोस पहुंचेगी।

(iv) प्राथमिक समूहों में प्रतिष्ठा अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। व्यक्ति ऐसे कार्य नहीं करते हैं जिनके उनके परिवार, जाति या समुदाय की प्रतिष्ठा का धब्बा लगे। व्यक्ति यह भी नहीं चाहते हैं कि दूसरे लोग उनका मजाक करें अथवा उनके बारे में अफवाहें उड़ाएँ । प्राथमिक समूह के लोग यह भी सोचते हैं कि दूसरे लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं अथवा क्या मत रखते हैं।

(v) हँसी भी एक अत्यधिक प्रभावशाली समाजिक नियंत्रण है। कोई भी व्यक्ति अपने समूह में हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता है। लैडिस क अनुसार, “हँसी एक प्रसन्नमुखी सिपाही है, ….. यह व्यक्ति की बुद्धिमत्ता की माप है तथा कभी-कभी एक भंयकर हथियार सिपाही है,” . इस प्रकार हम कह सकते है कि सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन तथा विधियाँ प्राथमिक समूहों में प्रभावशाली ढंग से कार्य करते हैं।

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प्रश्न 13.
सामाजिक नियंत्रण में रीति-रिवाजों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
(i) रीति-रिवाज सामाजिक नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। रीति-रिवाज प्राथमिक समूहों में अत्यधिक प्रभावी होते हैं।

(ii) रीति-रिवाज सामूहिक व्यवहार के रूप में समाज में मान्यता प्राप्त कर लेते हैं तथा व्यक्ति इन्हें बिना सोचे-विचारे स्वीकार कर लेता है। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समाज से मान्यता प्राप्त कार्य करने की विधियाँ ही समाज की प्रथाएँ हैं।”

(iii) रीति-रिवाजों को सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में स्वीकार कने के पीछे एक मनोवैज्ञानिक तथ्य भी है। व्यक्ति साधारणतया यह सोचते हैं कि जिस कार्य को उसे पूर्वजों के द्वारा किया गया तथा उसमें उन्हें लाभ हुआ है तो उन कार्यों को जारी रखना चाहिए । इस प्रकार रीति-रिवाजों का पालन करने के पीछे दो भावनाएँ निहित हैं –

  • पूर्वजों की भावनाओं का समान करना।
  • रीति-रिवाजों का स्थायित्व तथा उपयोगिता।

(iv) रीति-रिवाज समाजिक विरासत के. भंडार हैं। इनके द्वारा संस्कृति का संरक्षण किया जाता है तथा उसे (स्वीकृति को) आने वाली पीढ़ी का हस्तांतरित कर दिया जाता है। बोगार्डस के अनुसार, “रीति-रिवाजों तथा परंपराएँ समूह के द्वारा स्वीकृत नियंत्रण की वे पद्धतियाँ है जो सुव्यवस्थिति हो जाती हैं तथा जिन्हें बिना सोचे-विचारे मान्यता प्रदान कर दी जाती है तथा जो. एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती हैं।”

(v) रीति-रिवाजों व्यक्ति के संपूर्ण जीवन के चारों तरफ एक ताना-बाना बुन देते हैं। व्यक्ति के जीवन से मृत्यु तक रीति-रिवाजों का न टूटने वाला सिलसिला जारी रहता है। रीति-रिवाज उनकी मनोवृति, संस्कार तथा आचार, व्यवहार को प्रभावित करते हुए सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख साधन हैं। कोई भी समूह, संप्रदाय तथा समाज रीति-रिवाजों से मुक्त नहीं है। बेकन ने रीति-रिवाजों को ‘मनुष्य के जीवन का प्रमुख न्यायाधीश’ माना है जिन-जातियों में रिति-रिवाजों के उल्लंघन की कल्पना की नहीं की जा सकती है।
अतः हम कह सकते हैं कि समाजिक नियंत्रण में रीति-रिवाजों की महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावशाली भूमिका है।

प्रश्न 14.
लिंग के आधार पर स्तरीकरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर:

  • लिंग के आधार पर भी सामाजिक संस्तरण किया जाता है। इसके अंतर्गत पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग में अंतर किया जाता है।
  • महिला आंदोलन के कारण लिंग पर आधारित भेदभावों को हटाने का सतत् प्रयास किया जा रहा है।
  • वर्तमान समाय में लिंग भेद की अवधारणा जैविक भिन्नता से अलग हो गई है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अनुसार भिन्नता भूमिकाओं तथा संबंधों के संदर्भ में देखी जानी चाहिए।
  • लिंग की भूमिकाएं अलग-अलग संस्कृतियों में भिन्न-भिन्न हो सकती हैं लेकिन लिंग आधारित स्तरीकरण सार्वभौमिक होता है। उदाहरण के लिए, पितृसत्तात्मक समाजों में पुरूषों के कार्यों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है।
  • समाज में राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा संस्कृतिक संरचनाओं पर पुरुषों का दबदबा कायम रहता है।
  • लिंग की समानता के समर्थक शिक्षा, सार्वजनिक अधिकरों में भागीदारी तथा आर्थिक आत्मनिर्भरता के जरिए स्त्रियों को समर्थ बनाए जाने के हिमायती हैं।
  • वर्तमान समय में लिंग पर आधारित असमानताओं को हटाने की बात अधिक जोरदार तरीके से उठायी जा रही है।

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प्रश्न 15.
समाजिक नियंत्रण समाज में किस प्रकार कार्य करता है?
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण समाज में निम्नलिखित प्रकार से कार्य करता है –

  •  सामाजिक नियंत्रण एक बाह्य शक्ति के रूप में समाज अथवा समूह में व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करता है।
  • लैंडिस के अनुसार, “सामाजिक नियंत्रण, व्यक्ति की स्वयं अपने से रक्षा करने तथा समाज को अव्यवस्था से बचाने के लिए आवश्यक है।”
  • सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक तथा औपचारिक साधन सामाजिक व्यवहार में एकता, समरूपता तथा स्थायित्व बनाए रखने का कार्य करते हैं।
  • के यंग के अनुसार, “समाजिक नियंत्रण का उद्देश्य एक विशिष्ट समूह अथवा सामाज की समरूपता, एकता तथा निरन्तरता का लाना है”
  • सामाजिक नियंत्रण के साधन समाज या समूह के अनुरूप बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी समाजों की संरचना भारतीय समाज की संरचना से भिन्न है।
  • इस भिन्नता के कारण सामाजिक नियंत्रण के कार्यों तथा स्वरूपों में भी भिन्नता आ जाती है।
  • सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन अनौपचारिक साधनों के रूप में भी कार्य करते है।
  • ग्रामीण समाजों में प्राथमिक समूह तथा संस्थाएँ जैसे परिवार तथा विवाह संस्था सामाजिक नियंत्रित के प्रभावशाली साधन हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक नियंत्रण क्या है? क्या आप सोचते हैं कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में समाजिक नियंत्रण के साधन अलग-अलग होते हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण का अर्थ – समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। सामाजिक संबंधों को नियमित, निर्देशित तथा सकारात्मक बनाने के लिए उन्हें नियंत्रित किया जाना आवश्यक है। सामाजिक संगठन के अस्तित्व तथा प्रगति के लिए भी नियंत्रिण आवश्यक है। समाजशास्त्रियों द्वारा नियंत्रण के इन प्रकारों को ही ‘सामाजिक नियंत्रण’ कहा गया है।

सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न साधन – सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तथा उसे स्थायित्व एवं निरन्तरता प्रदान के लिए सामाजिक नियंत्रण अपरिहार्य है। वस्तुतः सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न साधन तथा प्रकार सामाजिक संरचना तथा समाज के प्रकार के अनुरूप होते हैं। विभिन्न सामाजशास्त्रियों ने सामाजिक नियंत्रण के विभिन्न प्रकार बताए हैं

(i) ई० ए० रॉस० के अनुसार –

  • जनमत
  • कानून
  • प्रथा
  • धर्म
  • नैतिकता
  • सामाजिक सुझाव
  • व्यक्तित्व
  • लोकरीतियाँ
  • लोकाचार

(ii) किंबाल यंग के अनुसार –

  • सकारात्मक साधन
  • नकारात्मक साधन

(iii) एफ० ई० लूम्बे के अनुसार –

  • बल पर आधारित साधन
  • प्रतीकों पर आधारित साधन

वर्तमान समय में समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक नियंत्रण के साधनों को निम्नलिखित दो प्रकारों में बाँटा गया है –

  • अनौपचारिक साधन तथा
  • औपचारिक साधन

(i) सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन – समाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधनों का विकास स्वतः हो जाता है। समाज की आवश्यकताओं के अनुसार विकसित होने वाले साधन निम्नलिखित हैं –

(a) जनरीतियाँ – जनरीतियाँ सामाजिक व्यवहार की स्वीकृत विधियाँ हैं। सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन हैं। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “जनरीतियाँ समाज में मान्यताप्राप्त अथवा स्वीकृत व्यवहार करने की विधियाँ हैं। जनरीतियाँ सामाजिक संस्कृति की आधारशिलाएँ हैं। जनरीतियों का उल्लंघन आसानी से नहीं किया जा सकता है।

(b) प्रथाएँ – सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में प्रथाएँ भी अत्यंत प्रभावशाली हैं। वास्तव में, प्रथाएँ जनरीतियों का ही विकसित रूप हैं। प्रथाओं का उल्लंघन करना ‘सामाजिक अपराध’ समझा जाता है। बोगार्डस के अनुसार, “प्रथाएँ तथा परंपराएँ समूह के द्वारा स्वीकृत नियंत्रण की वे पद्धतियाँ हैं जो सुव्यवस्थित हो जाती हैं तथा जिन्हें बिना सोचे-विचारे मान्यता दे दी जाती है और जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं।

(c) रूढ़ियाँ या लोकाचार – रूढ़ियाँ या लोकाचार को समूह कल्याण के लिए आवश्यक समझा जाता है। समाज के लोकाचार समाजिक नियंत्रण के सशक्त साधन हैं। लोकाचार मानव व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए मद्यनिषेध तथा एक पत्नी विवाह आदि स्थापित लोकाचर हैं। लोकाचार का उल्लघंन करने पर समाज दंड देता है। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “इसलिये ऐसा तर्क दिया जाता है कि जब जनरीतियाँ अपने साथ में समूह के कल्याण की भावना व अनुचित के मापदंड को जोड़ लेती हैं तो वे रूढ़ियों में बदल जाती हैं।”

(d) धर्म – समाज में मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करने में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धर्म आस्थाओं पर आधारित होता है। धर्म सामाजिक संबंधों स्वरूप को प्रभावित करता है। होबेल के अनुसार, “धर्म अलौकिक शक्ति में विश्वास पर आधारित है जिसमें आत्मवाद तथा मानववाद सम्मिलित हैं।”

(e) जनमत – जनमत भी समाजिक नियंत्रण का अनौपचारिक साधन है। सार्वजनिक अपमान तथ उपहास के कारण व्यक्ति जनमत की अवहेलना नहीं करता है । व्यक्ति सामज द्वारा स्वीकृत प्रतिमानों के अनुरूप ही कार्य करता है। द्वितीयक तथा तृतीयक समूहों में जनमत का प्रभाव काफी अधिक होता है।

(ii) सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन –

(a) कानून-सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधनों में कानून सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। जैसे-जैसे समाज विस्तृत तथा जटिल होता चला जाता है वैसे-वैस प्राथमिक संबंधों के स्थान पर द्वितीयक तथा तृतीयक संबंध अधिक प्रभावशाली हो जाते हैं। आधुनिक समाज में व्यक्तियों के संबंधों को नियमित तथा निर्देशित करने के लिए कानून तथा दंड की व्यवस्था की गई है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि जटिल अथवा आधुनिक समाजों में अनेक जनरीतियों, लोकाचारों तथा प्रथाओं को औपचारीकृत कर कानून का स्वरूप प्रदान कर दिया जाता है।

(b) राज्य – राज्य औपचारिक तरीकों द्वारा सामाजिक नियंत्रण स्थापित करता है। राज्य का कार्यक्षेत्र अत्यधिक व्यापक होता है। राज्य के संवैधानिक कानूनों द्वारा व्यक्तियों पर सामजिक नियंत्रण रखा जाता है।

(c) शिक्षा-शिक्षा औपचारिक सामाजिक नियंत्रण किा अत्यंत सशक्त तथा सर्वव्यापी साधन है। शिक्षा के माध्यम से बच्चों को समाजीकरण किया जाता है। तर्कपूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण के संतुलित विकास हेतु शिक्षा अपरिहार्य है। शिक्षा द्वारा सामाजिक संरचना के उस आधार को विकसित किया जाता है जो व्यक्तियों को सामाजिक विचलन तथा विघटन के नकारात्मक मार्ग से रोकते हैं।

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प्रश्न 2.
समाज के सदस्य के रूप में आप समूहों में और विभिन्न समूहों के साथ अंतः क्रिया करते होंगे। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से इन समूहों को आप किस प्रकार देखते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्र मानव के सामाजिक जीवन का अध्ययन है। मानवीय जीवन की एक पारिभाषिक विशेषता यह है कि मनुष्य परस्पर अंतः क्रिया करता है, बातचीत करता है और सामाजिक सामूहिकता को बनाता भी है। समाजशास्त्र का तुलनात्मक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण दो स्पष्ट अहानिकारक तथ्यों को सामने लाता है। प्रथम, प्रत्येक समाज में चाहे वह प्राचीन अथवा सामंतीय तथा आधुनिक हो, एशियन या यूरोपियन अथवा अफ्रीकन हो, मानवीय समूह और सामूहिकता पाई जाती है।

द्वितीय, विभिन्न समाजों में समूहों और सामूहिकताओं के प्रकार अलग-अलग होते हैं। – किसी भी तरह से लोगों का इक्ट्ठा होना एक सामाजिक समूह बनाता है। समुच्चय केवल लोगों का जमावड़ा होता है जो एक समय में एक ही स्थान पर होते हैं लेकिन एक-दूसरे से कोई निश्चित संबंध नहीं रखते। एक रेलवे स्टेशन अथवा हवाई अड्डा अथवा बस स्टॉप पर प्रतीक्षा करते यात्री अथवा सिनेमा दर्शक समुच्चयों के उदाहरण हैं। इन समुच्चयस को प्रायः अर्ध-समूहों का नाम दिया जाता है।

एक अर्ध-समूह एक समुच्चय अथवा संयोजन होता है, जिसमें संरचना अथवा संगठन की कमी होती है और जिसके सदस्य समूह के अस्तित्व के प्रति अनभिज्ञ अथवा कम जागरूकता होते हैं। सामाजिक वर्गों, प्रस्थिति समूहों, आयु एवं लिंग समूहों व भीड़ को अर्थ-समूह के उदाहरणों के रूप में देखा जा सकता है। जैसा कि उदाहरण दर्शाते हैं, अर्ध-समूह समय और विशेष परिस्थतियों में सामाजिक समूह बन सकते हैं।

उदाहरणार्थ यह संभव है कि एक विशेष सामाजिक वर्ग अथवा जाति अथवा समुदाय से संबंधित व्यक्ति एक सामूहिक निकाय के रूप में संगठित न हो.। उनमें अभी ‘हम’ की भावना आना शेष हो, परन्तु वर्गों और जातियों ने समय के बीतने के साथ-साथ राजनीतिक दलों का जन्म दिया है। उसी प्रकार भारत के विभिन्न समुदायों के लोगों ने लंबे उपनिवेशिक विरोधी संघर्ष के साथ-साथ अपनी पहचान एक सामूहिक और समूह के रूप में विकसित की है: एक राष्ट्र जिसका मिला-जुला अतीत और साझा भविष्य है। महिला आंदोलन ने महिलाओं के समूह और संगठनों का विचार सामने रखा। ये सभी उदाहरण इस बात की ओर ध्यान खींचते हैं कि किस प्रकार सामाजिक समूह उभरते हैं, परिवर्तित होते हैं और संशोधित होते हैं।

एक सामाजिक समूह में कम से कम निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए –

  • निरंतरता के लिए स्थायी अंतः क्रिया
  • इन अंत: क्रियाओं का स्थिर प्रतिमान
  • दूसरे सदस्यों के साथ पहचान बनाने के लिए अपनत्व की भावना
  • सांझी रुचि
  • सामान्य मानकों और मूल्यों को अपनाना
  • एक परिभाषित संरचना।

प्रश्न 3.
अपने समाज में उपस्थित स्तरीकरण की व्यवस्था के बारे में आपका क्या प्रेक्षण है? स्तरीकरण से व्यक्तिगत जीवन कि प्रकार प्रभावित होते हैं?
उत्तर:
हमारे समाज में जाति पर आधारित स्तरीकरण व्यवस्था है, जिसमें व्यक्ति की स्थिति पूरी तरह से जन्म द्वारा प्रदत्त प्रस्थिति पर आधारित होती है न कि उन पदों पर जो व्यक्ति ने अपने जीवन में प्राप्त किए हैं। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि एक वर्ग समाज में उपलब्धि पर कोई योजनाबद्ध प्रतिबंध नहीं होता जो कि प्रजाति और लिंग सरीखी प्रदत्त प्रस्थिति द्वारा थोपा जाता है। हालांकि एक जातिवादी समाज में जन्म द्वारा प्रदत्त एक व्यक्ति की स्थिति को, एक वर्ग समाज की तुलना में ज्यादा पूर्ण ढंग से परिभाषित करती है।

परंपरागत भारतीय समाज में, विभिन्न जातियाँ सामाजिक श्रेष्ठता को श्रेणीबद्ध करती हैं। जाति संरचना में प्रत्येक स्थान दूसरों के संबंध में इसकी शुद्धता या अपवित्रता के रूप में परिभाषित था। इसके पीछे यह विश्वास था कि पुरोहितीय जाति ब्राह्मण जो कि सबसे अधिक पवित्र है, शेष सबसे श्रेष्ठ है और पंचम, जिनको कई बार ‘बाह्य जाति’ कहा गया, सबसे निम्न है। परम्परागत व्यवस्था को सामान्यतः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के चार वर्णों; के रूप में व्यक्त किया गया है। वास्तव में व्यवसाय पर आधारित अनगिनत जाति समूह होते हैं जिन्हें जाति कहा जाता है।

स्तरीकरण की इस व्यवस्था से व्यक्तिगत जीवन बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है। आज भी बहुत से जातिगत भेदभाव उपस्थित है। समाज में निम्न श्रेणी का कार्य करने वाली जातियों को समाज आज भी हेय दृष्टि से देखता है पर साथ ही लोकतंत्र की कार्य प्रणाली ने जाति व्यवस्था को भी प्रभावित किया है। जाति समूह के रूप में सुदृढ़ हुई है। भेदभावग्रस्त जातियों को समाज में अपने लोकतंत्रीय अधिकारों के प्रयोग के लिए संघर्ष करते भी देखा गया है।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक समूह का अर्थ, विशेषताएँ तथा महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) प्राथमिक समूह का अर्थ – प्रसिद्ध समाजशास्त्री कूले द्वारा प्राथमिक समूह की अवधारणा का प्रतिपादन किया गया। कूले ने अपनी पुस्तक Social Organisation में प्राथमिक समूह की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “प्राथमिक समूह से मेरा तात्पर्य उन समूहों से है जिनकी विशेषता आमने-सामने का घनिष्ठ संपर्क तथा सहयोग है । वे प्राथमिक कई दृष्टिकोणों से हैं, परंतु मुख्यतः इस कारण से हैं कि वे व्यक्ति की सामाजिक प्रकृति एवं आदर्शों के निर्माण करने में मौलिक हैं………जिसके लिए ‘हम’ स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।”

कूले की प्राथमिक समूह की परिभाषा से निम्नलिखित बिन्दु स्पष्ट हो जाते हैं –

  • प्राथमिक समूह में आमने-सामने के घनिष्ठ संपर्क होते हैं।
  • प्राथमिक समूह में ‘हम की भावना’ पायी जाती है।
  • प्राथमिक समूह में सहानुभूति तथा एकता पायी जाती है।
  • प्राथमिक समूहों में घनिष्ठ वैयक्तिक संबंध पाए जाते हैं, उदाहरण के लिए परिवार, क्रीड़ा मंडली, मित्र-मंडली तथा पड़ोस आदि प्राथमिक समूह हैं।

(ii) प्राथमिक समूह की विशेषताएँ –

  • शारीरिक समीपता-प्राथमिक समूहों में व्यक्तियों के बीच शारीरिक समीपता पायी जाती है। प्राथमिक समूह के सदस्य साथ-साथ रहते हैं तथा उनमें भावनात्मक घनिष्ठता पायी जाती है। सदस्यों के बीच वैयक्तिक संबंध होते हैं।
  • लघु आकार-प्राथमिक समूहों का आकार छोटा होता है तथा सदस्यों की संख्या कम होती है। समूह के सदस्यों के बीच आमने-सामने के संबंध पाए जाते हैं।
  • निरन्तरता तथा स्थिरता-प्राथमिक समूहों में आपसी संबंधां में निरंतरता तथा स्थिरता पायी जाती है। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों के बीच निरन्तरता तथा स्थिरता पायी जाती है।
  • उद्देश्यों की समानता-प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच उद्देश्यों की समानता पायी जाती है। समूह के सभी सदस्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर प्रयत्न करते हैं। पारस्परिक कल्याण तथा हित प्रमुख उद्देश्य होता है।
  • संबंध स्वयं साध्य होता है-प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच संबंध किसी विशिष्ट उद्देश्य के साधन के रूप में न होकर साध्य होते हैं, उन्हें आर्थिक या सामाजिक पैमानों पर नहीं मापा जा सकता है।
  • उदाहरण के लिए, पिता-पुत्र तथा पति-पत्नी के बीच संबंधों को अनिवार्य रूप से स्वीकार नहीं कराया जाता अपितु वे स्वयं विकसित हो जाते हैं।
  • संबंध वैयक्तिक होते हैं-प्राथमिक समूहों में सदस्यों के बीच वैयक्तिक संबंध पाए जाते हैं। इन संबंधों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भाई तथा बहन के बीच संबंधों का प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता है।
  • स्वाभाविक संबंध-प्राथमिक समूहों के सदस्यों के बीच स्वाभाविक संबंध पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों के बीच संबंध किसी दबाव से स्थापित नहीं होते है, वरन् संबंधों का आधार स्वाभाविक होता है।
  • अत्यधिक नियंत्रण शक्ति-प्राथमिक समूह में नियंत्रण के मानक सामान्य आदर्शों, परंपराओं तथा सांस्कृतिक नियामकों पर आधारित होते हैं।
  • उदाहरण के लिए बच्चों पर माता-पिता का नियंत्रण होता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि नियंत्रण के सूत्र प्राथमिक संबंधों को बाँधे रखते हैं।

(iii) प्राथमिक समूह का महत्व –

  • प्राथमिक समूह सदस्यों को सामाजिक, मानसिक, आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए बच्चों के संतुलित तथा समुचित विकास के लिए परिवार एक स्वाभाविक वातावरण प्रस्तुत करता है।
  • प्राथमिक समूह सामाजिक अनुकूलन में सहायक होते हैं। उदाहरण के लिए बच्चा परिवार, पड़ोस, मित्र-मंडली तथा खेल समूहों में अनुकूलन तथा पारस्परिक सामंजस्य का महत्वपूर्ण पाठ सीखता है।
  • प्राथमिक समूह में सदस्य सहानुभूति, दया तथा सहयोग के गुणों को सीखता है। उदाहरण के लिए संतान के प्रति माता-पिता का त्याग अतुलनीय है।
  • प्राथमिक समूह सामाजिक नियंत्रण तथा संगठन को बनाए रखते हैं। सामाजिक नियंत्रण सामाजिकता को दिशा प्रदान करता है।

प्रश्न 5.
समूहों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक समूहों का वर्गीकरण एक कठिन समस्या है। फिर भी, अनेक समाजशास्त्रियों ने आकार, सदस्य संख्या, उद्देश्य, साधन, स्थिरता, व्यवहार तथा हितों आदि के आधार पर समूहों का वर्गीकरण किया है। प्रमुख समाजशास्त्रियों द्वारा किए गए समूह के वर्गीकरण निम्नलिखित हैं –

(i) कूले के अनुसार –

  • प्राथमिक समूह-प्राथमिक समूहों में आमने-सामने के घनिष्ठ संबंध होते हैं।
  • द्वितीयक समूह-द्वितीय समूह में परोक्ष संबंध पाए जाते हैं। सदस्यों के बीच सामाजिक दूरी होती है।

(ii) एफ. एच. गिडिंग्स के अनुसार –

  • जननिक समूह-परिवार एक जननिक समूह है।
  • इकट्ठे समूह-यह ऐच्छिक समूह होते हैं।

(iii) मिलर के अनुसार

  • उर्ध्वाधर समूह-से समूह आकार में छोटे होते हैं।
  • क्षैतिज समूह-ये समूह आकार में विशाल होते हैं।

(iv) विलियम ग्राहम समनर के अनुसार

  • अंत: समूह-इनमें सामाजिक निकटता तथा हम की भावना पायी जाती है।
  • बाह्य समूह-इनमें सामाजिक दूरी तथा एकता का अभाव होता है।

कुछ समाजशास्त्रियों ने समूहों को निम्नलिखित रूप में भी बाँटा है –

  • औपचारिक समूह-आकार में छोटे होते हैं तथा सदस्यों के बीच वैयक्तिक संबंध पाए जाते हैं।
  • अनौपचारिक समूह-आकर में बड़े होते हैं तथा सदस्यों के बीच अवैयक्तिक संबंध पाए जाते हैं।

(v) जॉर्ज हासन के अनुसार –

  • असामाजिक समूह-असामाजिक समूह समाज के मानकों तथा मूल्यों का विरोधी होता है।
  • आभासी सामाजिक समूह-आभासी सामाजिक समूह अपने हितों के लिए सामाजिक जीवन में भाग लेता है।
  • समाज विरोधी समूह-यह समूह समाज के हितों के विरुद्ध गतिविधियाँ करता है।
  • समाज समर्थक समूह-यह समाज के हितों के लिए रचनात्मक कार्य करता है।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि समाजशास्त्रियों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से समूहों का वर्गीकरण पृथक-पृथक रूपों तथा आधारों पर किया है। व्यक्तियों के उद्देश्य, हित, स्वार्थ तथा संबंध सदैव परिवर्तनशील तथा गतिशील हैं। मानव-व्यवहार की जटिलता के कारण ही अभी तक समाजशास्त्री समूहों का कोई सर्वमान्य वर्गीकरण नहीं दे पाए हैं। इस संबंध में क्यूबर ने उचित ही कहा है कि “समाजशास्त्रियों ने समूहों का वर्गीकरण करने में काफी समय तथा प्रयत्न लगाया है।

यद्यपि शुरू में तो ऐसा करना आसान प्रतीत होता तथापि आगे सोचने पर इसमें बहुत-सी कठिनाइयाँ महसूस होंगी । वास्तव में ये कठिनाइयाँ इतनी अधिक हैं कि अभी तक हमारे पास समूहों का कोई क्रमबद्ध वर्गीकरण नहीं है जो सभी समाजशास्त्रियों को पूर्णतया स्वीकार्य हो।”

प्रश्न 6.
अनौपचारिक सामाजिकरण नियंत्रण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति एवं समूह के व्यवहारों के नियमन की पद्धति प्रत्येक समाज में पायी जाती है। इसी पद्धति को सामाजिक नियंत्रण कहा जाता है। एच. सी. ब्रियरले के अनुसार, “सामाजिक नियंत्रण उन प्रक्रियाओं, चाहे वे नियोजित अथवा अनियोजित हों के लिए सामूहिक शब्द है जिनके द्वारा व्यक्तियों को समूह के रिवाजों तथा जीवन मूल्यों के अनुरूप बनने के लिए शिक्षा दी जाती है, अनुनय किया जाता है या विवश किया जाता है।”

सामाजिक नियंत्रण के दो प्रमुख रूप हैं –

  • औपचारिक साधन तथा
  • अनौपचारिक साधन

1. औपचारिक साधन – सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधनों का विकास समाज में स्वतः हो जाता है। उनके निर्माण अथवा विकास के लिए किसी विशेष अभिकरण की जरूरत नहीं होती है। औपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन गैर-सरकारी होते हैं। ये साधन छोटे अथवा प्राथमिक समूहों में अधिक प्रभावशाली होते हैं । क्रोसबी ने अपनी पुस्तक Interaction in Small Groups में अनौपचारिक नियंत्रण के निम्नलिखित चार मूलभूत प्रकार बताए हैं।

(a) सामाजिक परितोषिक – सामाजिक पारितोषिक के अंतर्गत मुस्कुराना, स्वीकृति की सहमति एवं अधिक परिवर्तन वाले कार्य जैसे कर्मचारी की प्रोन्नति, परितोषिक अनुरूपता आदि सम्मिलित किए जाते हैं। ये सभी कारक प्रत्यक्ष रूप से विचलन को दूर करते हैं।

(b) दंड – दंड के अंतर्गत अप्रसन्नता, आलोचना तथा शारीरिक धमकियाँ आदि सम्मिलित किए जाते हैं। इनमें प्रत्यक्ष रूप से विचलित कार्यों को रोकने का लक्ष्य सम्मिलित किया जाता है।

(c) अनुनय – अनुनय के माध्यम से विचलित व्यक्तियों को सामाजिक नियमों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए कहा जाता है। उदाहरण के लिए, बेसबॉल के खिलाड़ी को जो नियमों का उल्लंघन कता है, खेल के नियमों को गंभीरता पूर्वक पालन करने के लिए अनुनय किया जाता है।

(d) पुनः परिभाषित प्रतिमान-बदली हुई परिस्थितियों तथा मूल्यों में प्रतिमानों को पुनः परिभाषित करना सामाजिक नियंत्रण का एक अन्य जटिल प्रकार है। उदाहरण के लिए, नगरीय परिवेश में काम करने वाली पत्नियों के पति गृह-कार्य करते हैं तथा बच्चों की देखभाल करते हैं। हालांकि, कुछ समय पहले यह सब कुछ अकल्पनीय था।

2. सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन – परिवार, समुदाय, पड़ोस, गोत्र, जनरीतियाँ, सामाजिक रूढ़ियाँ, रीतिरिवाज तथा धर्म आदि सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन हैं।

(a) परिवार – परिवार अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण का एक सशक्त तथा स्थायी साधन है। क्लेयर ने कहा है कि “परिवार से हम संबंधों की वह व्यवस्था समझते हैं जो माता-पिता तथा उनकी संतानों के बीच पायी जाती है।” परिवार सामाजिक नियंत्रण की प्राथमिक म अनौपचारिक पाठशाला है। बर्गेस तथा लॉक के अनुसार, “परिवार बालक पर सांस्कृतिक प्रभाव डालने वाली एक मौलिक समिति है तथा पारिवारिक परम्परा बालक को उसके प्रति प्रारंभिक व्यवहार, प्रतिमान एवं आचरण का स्तर प्रदान करती है।”

(b) समुदाय, पड़ोस तथा गोत्र – समुदाय, पड़ोस तथा गोत्र भी सामाजिक नियंत्रण के अनौपचाकि साधन हैं। उदाहरण के लिए व्यक्ति के व्यवहार तथा कार्यों पर रक्त संबंधों का काफी सामाजिक दबाव रहता है। विवाह के पश्चात् नव-वधू को नए पारिवारिक-परिवेश के साथ अनुकूलन करना पड़ता है। ग्रामीण समुदाय भी अपने सदस्यों पर काफी अधिक नियंत्रण रखते हैं। समुदाय के नियमों की अवहेलना करने पर व्यक्तियों को सामाजिक निन्दा तथा सामाजिक प्रताड़ना अथवा बहिष्कार का सामना करना पड़ता है।

(c) जनरीतियाँ – जनरीतियाँ समूह के सामूहिक व्यवहार का प्रतिमान हैं तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती हैं। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “जनरीतियाँ समाज में मान्यता प्राप्त या स्वीकृत व्यवहार करने की पद्धतियाँ हैं।” गिडिंग्स जनरीतियों को राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों से भी अधिक प्रभावी मानता है। जनरीतियाँ व्यक्तियों के अवैयक्तिक व्यवहार का नियमन करती हैं।

(d) सामाजिक रूढ़ियाँ – सामाजिक रूढ़ियाँ भी सामाजिक नियंत्रण के प्रभावी साधन हैं। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, जब जनरीतियाँ अपने साथ समूह के कल्याण की भावना तथा उचित व अनुचित के प्रभावों को जोड़ लेती हैं तब वे रूढ़ियों में बदल जाती हैं। रूढ़ियों को समाज की स्वीकृति प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए जातीय नियमों की अवहेलना करना निन्दनीय समझा जाता है।

(e) धर्म – धर्म भी सामाजिक नियंत्रण का प्रभावशाली साधन है। हॉबेल के अनुसार, “धर्म अलौकिक शक्ति में विश्वास पर आधारित है जिसमें आत्मवाद तथा मानववाद सम्मिलित हैं।” दुर्खाइम का मत है कि धर्म जीवन का वह पक्ष है जिसका संबंध पवित्र वस्तुओं से है। धर्म पाप तथा पुण्य की धारणा से जुड़ा है। धर्म का उल्लंघन करना ‘पाप’ है अतः धर्म सामाजिक नियंत्रण का सशक्त अनौपचारिक साधन है।

(f) प्रथाएँ – प्रथाएँ भी अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण के साधन हैं। प्रथाएँ सामाजिक व्यवहार हैं तथा व्यक्ति इन्हें बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेते हैं। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समाज से मान्यता प्राप्त कार्य करने की विधियाँ ही समाज की प्रथाएँ हैं। प्रथाएँ व्यक्तित्व के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। प्रथाएँ जन्म से मृत्यु तक व्यक्ति के जीवन को नियमित तथा निर्देशित करती हैं।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

प्रश्न 7.
द्वितीयक समूहों का अर्थ, विशेषताएँ तथा महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) द्वितीयक समूह का अर्थ – द्वितीयक समूह आकार में बड़े होते हैं तथा इनके द्वारा विशिष्ट स्वार्थों की पूर्ति की जाती है। द्वितीयक समूहों में घनिष्ठता, एकता तथा आमने-सामने के संबंधों का अभाव पाया जाता है। संबंधों की प्रकृति अवैयक्तिक होती है। ऑग्बर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “वे समूह जो घनिष्ठता की कमी का अनुभव प्रस्तुत करते हैं, द्वितीयक समूह कहलाते हैं।” केडेविस के अनुसार, “द्वितीयक समूहों को मोटे तौर पर प्राथमिक समूहों के विरोधी समूहों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

एच. टी. मजूमदार के अनुसार, “जब सदस्यों के संबंधों में आमने-सामने के संपर्क नहीं होते हैं, तो द्वितीयक समूह होता है। पी. एच. लैंडिस के अनुसार, “द्वितीयक समूह वे हैं जो संबंधों में अपेक्षाकृत अनिरंतर तथा अवैयक्तिक होते हैं।” रॉबर्ट बीरस्टेड के अनुसार, “वे समूह द्वितीयक हैं, जो प्राथमिक नहीं हैं।”

(ii) द्वितीयक समूहों की विशेषताएँ –
(a) बड़ा आकर – द्वितीयक समूहों का आकार बड़ा होता है इनका विस्तार राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है। उदाहरण के लिए, राजनीतिक दल तथा यूनेस्को आदि द्वितीयक समूह हैं।

(b) सहयोग की प्रकृति – द्वितीयक समूहों के सदस्यों के बीच साधारणतया परोक्ष सहयोग पाया जाता है। द्वितीयक समूहों में व्यक्ति मिलकर काम करने के बजाए एक-दूसरे के लिए कार्य करते हैं। समूह के सदस्यों का सहयोग उद्देश्य विशेष की प्राप्ति तक ही सीमित होता है।

(c) औपचारिक संरचना – द्वितीयक समूह औपचारिक नियमों के द्वारा संचालित होते हैं। सदस्यों के कार्य श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण के नियमों के द्वारा निर्धारित होते हैं।

(d) अस्थायी संबंध – द्वितीयक समूह उद्देश्य की पूर्ति के लिए, कायम किए जाते हैं। सदस्यों के बीच औपचारिक संबंध होते हैं। अतः सदस्यों के बीच स्थायी संबंध नहीं पाए जाते हैं।

(e) सीमित उत्तरदायित्व – द्वितीयक समूहों के सदस्यों के बीच औपचारिक संबंध पाए जाते हैं। वैयक्तिक संबंधों के अभाव में उत्तरदायित्व भी सीमित होता है अतः हम कह सकते हैं कि द्वितीयक समूहों में प्राथमिक समूहों जैसे असीमित उत्तरदायित्व न होकर सीमित उत्तरदायित्व होता है।

(f) ऐच्छिक सदस्यता – द्वितीयक समूहों की सदस्यता आमतौर पर ऐच्छिक होती है। उदाहरण के लिए, लायन्स क्लब या किसी राजनीतिक दल की सदस्यता लेना अनिवार्य नहीं है।

(iii) द्वितीयक समूहों का महत्त्व –

  • द्वितीयक समूह समाजीकरण के व्यापक तथा विस्तृत प्रतिमान प्रस्तुत करते हैं।
  • द्वितीयक समूह मानव प्रगति के द्योतक हैं।
  • द्वितीयक समूह अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की व्याख्या करते हैं।
  • द्वितीयक समूह श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण को बढ़ावा देते हैं।
  • द्वितीयक समूह समाज में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 8.
सामाजिक नियंत्रण के अभिकरणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
अभिकरण एवं साधन संयुक्त रूप से सामूहिक एवं व्यक्तिगत व्यवहार को नियमित करते हैं और सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था को प्रभावशली बनाते हैं। सामाजिक नियंत्रण के प्रमुख अभिकरणों के उल्लेख निम्नलिखित हैं –
(i) परिवार – परिवार सामाजिक नियंत्रण का सबसे महत्वपूर्ण अभिकरण है परिवार को सामाजिक जीवन की सर्वोत्तम पाठशाला कहा गया है। परिवार में बच्चा प्रक्ताओं और परम्पराओं के बीच पतला है। परिवार में माँ का प्यार एवं पिता के संरक्षण में बच्चे पलते हैं। सामाजिक नियंत्रण में परिवार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण है।

(ii) धर्म – सामाजिक नियंत्रण में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। धर्म का प्रभाव प्रत्येक समाज में होता है। प्रत्येक धर्म का आधार किसी शक्ति पर विश्वास है और यह मानव से श्रेष्ठ है। धर्म के विरुद्ध कार्य करने से लोग डरते हैं। लोगों को विश्वास है कि धर्म के अनुकूल कार्य करने में ही उनका हित सुरक्षित होता है।

(iii) प्रथा – प्रथा सामाजिक नियंत्रण का अनौपचारिक सशक्त अभिकरण है। प्रथा का व्यक्ति पर कठोर नियंत्रण होता है। प्रथाएँ समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहार की विधियाँ हैं। प्रथाओं सामाजिक अनुकूलन में सहायता प्रदान करती हैं, प्रथाओं के पीछे समाज के अनुभवों का लम्बा इतिहास होता है।

(iv) कानून – कानून सामाजिक नियंत्रण का महत्वपूर्ण अभिकरण है। वर्तमान युग में कानून सामाजिक नियंत्रण का प्रमुख आधार है।

(v) नैतिकता – नैतिकता सामाजिक नियंत्रण का अनौपचारिक अभिकरण है। नैतिक नियमों की अवहेलना से समाज को भय होता है। वर्तमान समय में नैतिकता का प्रभाव अधिक है।

(vi) शिक्षा – शिक्षा सामाजिक नियंत्रण का प्रभावशाली अभिकरण है। शिक्षा द्वारा व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है। वर्तमान समय में शिक्षा का महत्व दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहा है।

(vii) नेतृत्व – नेता का प्रमुख कार्य अपने अनुयायियों को मार्गदर्शन करना है। नेता का चरित्र उसके अनुयायी को प्रभावित करता है।

(viii) प्रचार – वर्तमान युग प्रचार का युग है। प्रचार द्वारा वस्तु विशेष के गुणों पर प्रकाश डाला जाता है।

(ix) जनमत – जनमत भी सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में प्रमुख भूमिका अदा करता है। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे से संबंधित होते हैं । जनमत व्यक्ति के व्यवहारों को नियंत्रित करता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक नियंत्रण की संस्थाओं का वर्णन करें। किसी एक संस्था की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक नियंत्रण की संस्थाएँ तथा उनके कार्य-सामाजिक संस्थाओं द्वारा व्यक्ति तथा. समूह के व्यवहार को नियंत्रित एवं नियमित किया जाता है। सामाजिक नियंत्रण की विभिन्न संस्थाओं का अध्ययन करने से पहले संस्था का समाजशास्त्रीय अर्थ जान लेना आवश्यक है।

डब्लू. जी. समनर के अनुसार, “एक संस्था एक अवधारणा (विचार, मत, सिद्धांत या स्वार्थ) तथा एक ढाँचे से मिलकर बनती है।” रॉस के अनुसार, “सामाजिक संस्था सामान्य इच्छा से स्थापित या अभिमति प्राप्त संगठित मानव संबंधों का समूह है।” बोगार्डस के अनुसार, “एक सामाजिक संस्था समाज का वह ढाँचा होता है जो मुख्य रूप से सुव्यवस्थित विधियों द्वारा व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु संगठित किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सामाजिक संस्थाएँ व्यक्तियों अथवा समूह की विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु जनरीतियों तथा रूढ़ियों का समूह है।

संस्थाओं के प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं –

  • व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति
  • एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संस्कृति का हस्तांतरण
  • व्यक्तियों के व्यवहार पर नियंत्रण
  • व्यक्तियों के व्यवहार में एकता तथा अनुरूपता उत्पन्न करना
  • समाज की समसामयिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना तथा मार्गदर्शन करना
  • संस्थाएँ व्यक्ति तथा समूह के व्यवहारों को सामाजिक प्रतिमानों के अनुरूप ढालती हैं।

सामाजिक नियंत्रण की प्रमुख संस्थाएँ-सामाजिक नियंत्रण की प्रमुख संस्थाएँ निम्नलिखित हैं –

  • परिवार
  • नातेदारी
  • जाति
  • धर्म
  • राज्य
  • आर्थिक संगठन और
  • शिक्षा

सामाजिक नियंत्रण की उपरोक्त संस्थाओं में राज्य तथा धर्म की संस्थाएँ संभवतः सर्वाधिक शक्तिशाली हैं। संस्थाएँ अनौपचारिक तथा औपचारिक रूप से सामाजिक नियंत्रण करती हैं। राज्य तथा विद्यालय औपचारिक संस्थाएँ हैं जबकि परिवार, नातेदारी, धर्म आदि अनौपचारिक संस्थाएँ हैं।

संस्थाओं के महत्त्व –

  • संस्थाएँ प्रतिस्थापित, प्रतिमानों, मूल्यों तथा अवधारणाओं का अवलंबन करती हैं।
  • संस्थाएँ सामाजिक स्वास्थ्य की प्रतीक हैं।
  • संस्थाओं के द्वारा विचलन, अलगावाद तथा आपराधिक मनोवृत्तियों पर अंकुश लगाया जाता है।
  • संस्थाएँ सामाजिक ढाँचे तथा तान-बाने को बनाए रखती हैं।
  • संस्थाओं द्वारा स्थापित प्रतिमान समाज, समूह तथा समुदाय को व्यवस्थित तथा निर्देशित करते हैं।

परिवार सामाजिक नियंत्रण की एक सार्वभौमिक संस्था है। यह समाज की प्राथमिक इकाई है। व्यक्ति परिवार में ही भाषा, व्यवहार, पद्धति तथा सामाजिक प्रतिमानों को ग्रहण करता है।

यद्यपि परिवार का स्वरूप सार्वदेशिक होता है, तथापि इसकी संरचना में व्यापक भिन्नताएँ पायी जाती हैं –

  • कृषक समाजों तथा जनजाति समाजों में संयुक्त परिवार पाए जाते हैं।
  • औद्योगिक समाजों तथा नगरीय समुदायों में एकाकी परिवार पाए जाते हैं।

परिवार की परिभाषा –

  • मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “परिवार वह समूह है जो यौन संबंधों पर आधारित है तथा काफी छोटा एवं स्थायी है वह बच्चों को प्रजनन और पालन-पोषण की व्यवस्था करने योग्य है।”
  • आग्बर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “परिवार, पति-पत्नी, बच्चों सहित या उनके बिना अथवा मनुष्य अथवा स्त्री अकेले या बच्चों सहित कम या अधिक; स्थिर समिति है।”
  • जुकरमेन के अनुसार, “एक परिवार समूह, पुरुष स्वामी, उसकी स्त्री या स्त्रियों तथा उनके बच्चों को मिलाकर बनता है। कभी-कभी एक या अधिक अविवाहित पुरुषों को भी सम्मिलित किया जा सकता है।”

दी गई परिभाषाओं के आधार पर परिवार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • सार्वभौमिकता
  • भावनात्मक आधार
  • सीमित आकार
  • सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थिति
  • सदस्यों में उत्तरदायित्व की भावना
  • सामाजिक नियमन
  • स्थायी तथा अस्थायी प्रकृति

परिवार के कार्य – एक संस्था के रूप में परिवार सामाजिक संगठन की महत्त्वपूर्ण ईकाई है। परिवार के प्रकार्य बहु-आयामी हैं। मैरिल के अनुसार “किसी भी संस्था के विविध कार्य होते हैं। सम्भवतया समस्त संस्थाओं में परिवार अत्यन्त विविध कार्यों वाली संस्था है।”

परिवार के प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं –
(i) डेविस के अनुसार –

  • संतानोत्पत्ति
  • भरण-पोषण
  • स्थान-व्यवस्था
  • बच्चों का समाजीकरण

(ii) मरडोक के अनुसार –

  • यौनगत
  • प्रजननात्मक
  • आर्थिक
  • शैक्षणिक

(iii) गुडे के अनुसार –

  • बच्चों का प्रजनन
  • पविार के सदस्यों की सामाजिक सदस्यों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा
  • परिवार के सदस्यों की स्थिति का निर्धारण
  • समाजीकरण तथा भावनात्मक समर्थन
  • सामाजिक नियंत्रण।

(iv) मेकाइवर ने परिवार के प्रकार्यों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा है –
(a) अनिवार्य प्रकार्य-इसके अनुसार परिवार के निम्नलिखित प्रकार्य हैं –

  • यौन आवश्यकताओं की पूर्ति
  • प्रजनन तथा पालन-पाषण
  • घर की व्यवस्था।

(b) ऐच्छिक प्रकार्य-ऐच्छिक प्रकार्यों में निम्नलिखित प्रकार्य सम्मिलित किए गए हैं –

  • धार्मिक प्रकार्य
  • शैक्षिक प्रकार्य
  • आर्थिक प्रकार्य
  • स्वास्थ्य संबंधी प्रकार्य तथा
  • मनोरंजन संबंधी प्रकार्य

उपरोक्त समाजशास्त्रियों द्वारा बताए गए परिवार के प्रकार्यों के आधार पर निम्नलिखित प्रकार्य प्रमुख हैं –

  • जैविक प्रकार्य
  • सामाजिक प्रकार्य
  • मनोवैज्ञानिक प्रकार्य
  • आर्थिक प्रकार्य

एक संस्था के रूप में परिवार के कार्य व्यापक हैं। आधुनिक युग में नगरीकरण, औद्योगीकरण, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक संस्थाओं के प्रकार्यों में तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं। अतः आधुनिक परिवार के प्रकार्यों में भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहे हैं।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

प्रश्न 10.
परिवार के कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर:
परिवार समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है। परिवार में ही व्यक्ति का समाजीकरण होता है और वह एक सामाजिक प्राणी बन जाता है। समाज का अस्तित्व बहुत हद तक परिवार नाम की संस्था पर निर्भर है। प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति होती है। जिसे परिवार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित एवं प्रवाहित करता है। परिवार का सार्वभौमिक संस्था के रूप में प्रत्येक समाज में पाया जाता है और परिवार एक संस्था के साथ-साथ समिति भी है। परिवार में प्रेम, सेवा, कर्त्तव्य, सहयोग एवं सहानुभूति की भावना पायी जाती है। परिवार अंग्रेजी शब्द ‘Family’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘Famules’ शब्द से हुई है, जिसके अन्तर्गत माता-पिता, बच्चे नौकर और गुलाम सम्मिलित हैं।

परिवार एक अनोखा संगठन है जिनकी पूर्ति अन्य संगठन, संस्था या समिति द्वारा नहीं हो सकती। परिवार के विभिन्न कार्यों के माध्यम से ही मानव आज सभ्यता के उच्च शिखर पर पहुँच गया है। परिवार के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • जैविकीय कार्य
  • शारीरिक सुरक्षा संबंधी कार्य
  • आर्थिक एवं सामाजिक कार्य
  • सांस्कृतिक कार्य और
  • मनोवैज्ञानिक कार्य

1. जैविक कार्य – इस कार्य के अन्तर्गत परिवार यौन संबंधों की पूर्ति करता है साथ ही मानव अपनी प्रजातीय तत्त्वों की निरंतरता को बनाये रखता है।

शारीरिक सुरक्षा संबंधी कार्य-इस कार्य के अन्तर्गत बूढ़े, असहाय, अनाथ, विधवा तथा रोगी सदस्यों को शारीरिक सुरक्षा मिलती है।

(iii) आर्थिक कार्य-परिवार एक आर्थिक इकाई है। आर्थिक क्षेत्र में भी परिवार के द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पादित होते हैं। उत्पादन का कार्य परिवार द्वारा होता है। परिवार अपने सदस्यों के मध्य श्रम विभाजन का कार्य करता है। सम्पत्ति का निर्धारण परिवार द्वारा होता है।

(iv) सामाजिक कार्य-परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाजीकरण की प्रक्रिया परिवार से ही आरंभ होती है। प्रत्येक समाज के अपने नियम और तरीके होते हैं। सामाजिक कार्य के माध्यम से परिवार समाज पर नियंत्रण रखता है। परिवार समाज को अनुशासन की शिक्षा प्रदान करता है।

(v) सांस्कृतिक कार्य-संस्कृति तत्वों को परिवार के माध्यम से हस्तांतरित करती है । परिवार अपने सदस्यों को सांस्कृतिक विशेषताओं को सिखाने का प्रयत्न करता है।

(vi) वैज्ञानिक कार्य-इस कार्य के अन्तर्गत सबसे महत्वपूर्ण कार्य मानसिक सुरक्षा तथा संतोष प्रदान करना है। अतः उपर्युक्त परिवार के कार्य हैं जो स्वाभाविक रूप से परिवार द्वारा सम्पादित किये जाते हैं।

प्रश्न 11.
समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दार्थ से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में वह जन्म लेता और समाज में ही उसका भरण-पोषण होता है। व्यक्ति समाज से जो कुछ भी सीखता है या अर्जित करता है। उसकी संस्कृति कहलाती है। संस्कृति के अनुरूप ही व्यक्ति अपने आप को ढालने की कोशिश करता है। समाज में अच्छे-बुरे हर प्रकार के लोग निवास करते हैं। बुरे व्यवहारों पर समाज द्वारा जो रोक लगाया जाता है उसे सामाजिक नियंत्रण कहा जाता है।

“दबाव प्रतिमान है जिसके द्वारा समाज में व्यवस्था कायम रखी जाती है तथा स्थापित नियमों को बनाये रखने हेतु जो प्रस्तुत किया जाता है सामाजिक नियंत्रण कहलाता है। “सामाजिक नियंत्रण का अर्थ उस तरीक से है जिससे सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था में एकता एवं स्थायित्व बना रहता है तथा जिसके द्वारा सम्पूर्ण व्यवस्था एक परिवर्तनशील संतुलन के रूप में क्रियाशील रहती है।” उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक नियंत्रण एक विधि है, जिसके द्वारा व्यक्तियों के सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों का पालन कराया जाता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्राथमिक समूह की अवधारणा सर्वप्रथम किस समाजशास्त्री ने दिया?
(a) ऑगबर्न एवं निमकॉफ
(b) डेविस
(c) समनर
(d) कूर्ल
उत्तर:
(b) डेविस

प्रश्न 2.
सामाजिक नियंत्रण का अर्थ उस तरीके से है जिसके द्वारा सम्पूर्ण व्यवसायी एक परिवर्तन संतुलन के रूप में क्रियाशील रहती है?
(a) प्लेटो
(b) रॉस
(c) काम्टे
(d) मेकाइवर
उत्तर:
(b) रॉस

प्रश्न 3.
किस विज्ञान का कहना है? सामाजिक परिवर्तनों से तात्पर्य उन परिवर्तनों से है जो सामाजिक संगठन अर्थात् समाज की संरचना एवं प्रकार्यों में उत्पन्न होते हैं ………………..
(a) फिक्टर
(b) मेकाइवर
(c) किंग्सले डेविस
(d) जिन्सवर्ग
उत्तर:
(c) किंग्सले डेविस

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

प्रश्न 4.
सामाजिक नियंत्रण हो सकता है …………………..
(a) सकारात्मक केवल
(b) सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों
(c) केवल नकारात्मक
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(b) सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों

प्रश्न 5.
नागरिकता के अधिकारों में शामिल है …………………..
(a) सामाजिक
(b) राजनैतिक
(c) नागरिक, राजनीतिक, सामाजिक
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 6.
सामाजिक समूह की एक विशेषता है ……………………..
(a) निरंतरता हेतु दीर्घ अत:क्रिया
(b) लघुस्थायी अन्तःक्रिया
(c) लघु अंतःक्रिया
(d) निरंतरता हेतु अस्थायी क्रिया
उत्तर:
(a) निरंतरता हेतु दीर्घ अत:क्रिया

प्रश्न 7.
प्रत्यक्ष सहयोग पाया जाता है।
(a) प्राथमिक समूहों में
(b) द्वितीयक समूहों में
(c) संदर्भ समूहों में
(d) भीड़ में
उत्तर:
(a) प्राथमिक समूहों में

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र में प्रयुक्त शब्दावली, संकल्पनाएँ एवं उनका उपयोग

प्रश्न 8.
गिलिन एवं गिलिन के अनुसार भीड़ एवं श्रोता समूह किस प्रकार के समूह हैं?
(a) संस्कृतिक समूह
(b) अस्थायी समूह
(c) प्राथमिक समूह
(d) संदर्भ समूह
उत्तर:
(d) संदर्भ समूह

प्रश्न 9.
किसने कहा है? जब दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे से मिलते हैं और एक दूसरे पर प्रभाव डालते हैं तो एक समूह का निर्माण करते हैं।
(a) मेकाइवर
(b) ऑगबर्न एवं निमकॉफ
(c) फिक्टर
(d) वीयर स्टीड
उत्तर:
(b) ऑगबर्न एवं निमकॉफ

Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 12 नए साम्राज्य एवं राज्य

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 1 Chapter 12 नए साम्राज्य एवं राज्य Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 12 नए साम्राज्य एवं राज्य

Bihar Board Class 6 Social Science नए साम्राज्य एवं राज्य Text Book Questions and Answers

अभ्यास

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प्रश्न 1.
समुद्रगुप्त की प्रशस्ति किसने लिखी ?
(क) रविकीर्ति
(ख) हरिषेण
(ग) कालिदास
(घ) अमरसिंह
उत्तर-
(ख) हरिषेण

प्रश्न 2.
हर्षवर्धन किस वंश का राजा था?
(क) गुप्तवंश
(ख) मौर्यवंश
(ग) पुष्यभूति
(घ) मौखरी वंश
उत्तर-
(ग) पुष्यभूति

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प्रश्न 3.
में हरौली के लौह स्तम्भ से किस राजा के बारे में जानकारी मिलती है?
(क) हर्षवर्धन
(ख) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(ग) चन्द्रगुप्त मौर्य
(घ) चन्द्रगुप्त प्रथम
उत्तर-
(ख) चन्द्रगुप्त द्वितीय

प्रश्न 4.
नालन्दा विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को प्रवेश कैसे मिलता था?
(क) राजा के कहने पर
(ख) सवाल पूछकर (जाँच परीक्षा द्वारा)
(ग) पैसा लेकर
(घ) राजा के कर्मचारियों को
उत्तर-
(ख) सवाल पूछकर (जाँच परीक्षा द्वारा)

प्रश्न 5.
एहोल अभिलेख किस राजा की प्रशस्ति है ?
(क) नरसिंह वर्मन
(ख) पुलकेशिन द्वितीय
(ग) हर्षवर्धन
(घ) समुद्रगुप्त
उत्तर-
(ख) पुलकेशिन द्वितीय

आओ याद करें 

प्रश्न 1.
समुद्रगुप्त एवं पुलकेशिन द्वितीय की प्रशस्ति के बारे में तीन-तीन पंक्ति लिखें।
उत्तर-
समुद्रगुप्त गुप्तवंश का सबसे महान शासक था। ये वीणा और अश्वमेघ यज्ञ करते थे। लगभग सम्पूर्ण भारत पर उसका नियंत्रण था। पुलकेशिन द्वितीय चालुक्य वंश का महान राजा था। मालवा और गजरात के राजा के अलावा हर्ष को हराने के बाद परमेश्वर की उपाधि मिली।

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प्रश्न 2.
हर्ष के बारे में हमें किन स्रोतों से जानकारी मिलती है ? हर्ष के बारे में पाँच पंक्ति लिखें।
उत्तर-
हर्ष के बारे में हमें राजकवि वाणभट्ट की कृति हर्ष चरित, मह वन ताम्रपत्र लेखों और हवेनसांग की यात्रा वृतांत से मिलती है। हर्षवर्धन पुष्यभूति वंश का महान शासक था। पिता का नाम प्रभाकरवर्धन था। भाई राजवर्द्धन की हत्या के बाद शशांक से बदला लेने के लिए गद्दी की बागडोर संभाली। बहन राजश्री को सती होने से बचाया। कन्नौज राजधानी बनाया और राज्य का विस्तार पंजाब, बंगाल, मिथिला और बिहार तक किया।

प्रश्न 3.
पुलकेशिन द्वितीय ने हर्ष को क्यों पराजित किया ? इसकी जानकारी हमें कैसे मिलती है ?
उत्तर-
हर्षवर्धन अपने विजय अभियान को जारी रखना चाहता था। वह दक्षिण की ओर के राज्यों को हराना चाहता था। पुलकेशिन द्वितीय को खतरा था। अतः उसने हर्ष को पराजित किया। पुलकेशिन द्वितीय का हर्ष पर विजय की जानकारी उसके दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित एहोल अभिलेख से मिलती है।

आएँ करके देखें 

प्रश्न 4.
समुद्रगुप्त ने जीते हुए राज्यों (राजाओं) के साथ अलग-अलग नीतियों को क्यों अपनाया ? वर्ग में अलग-अलग समूह बनाकर चर्चा करें और प्रत्येक ग्रुप के दो-दो कारणों को ढूँढें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें।

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प्रश्न 5.
समुद्रगुप्त के सिक्के को देखकर जैसा कि पुस्तक में दिया हुआ हैं यह जानने की कोशिश करें कि उसके अन्दर कौन-कौन गुण थे।
उत्तर-
समुद्रगुप्त के सिक्के को देखकर पता चला – कला के क्षेत्र पर ध्यान देना, कर्मकाण्डों पर विश्वास करना।

प्रश्न 6.
दक्षिण भारत के राजवंशों के बारे में लिखें। उनका ग्राम प्रशासन कैसे चलता था? क्या आपके गाँव और शहर में भी वैसी व्यवस्था है ?
उत्तर-
दक्षिण भारत में चालुक्य वंश और पल्लव राजवंशों का शासन था। चालुक्य वंश के राजा पुलकेशिन द्वितीय महान राजा था. जिसने राज्य का विस्तार किया और हर्ष को पराजित किया। पल्लव राजवंश के नरसिंह वर्मन एक महान योद्धा था। उसने पुलकेशिन द्वितीय को हराया और राजधानी वातापी पर अधिकार किया। ग्राम प्रशासन को चलाने के लिए संगठन थे. जिसे उर सभा और नगरम् कहते थे। उर सभा के सदस्य होते. सभा समितियों में बँटा होता, सिंचाई, कृषि व्यवस्था, सड़क, मंदिरों की देख-रेख करता।

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प्रश्न 7.
आप अपने पिताजी की मदद से / परिवार के किसी सदस्य की मदद से परिवार या पड़ोस के एक परिवार की पाँच पीढ़ी के सदस्यों के नाम लिखें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की मदद से स्वयं करें।

प्रश्न 8.
राजा के लिए सेना क्यों आवश्यक थी ? सेनाओं के राजा के साथ चलने से कौन-कौन-सा लाभ एवं हानियाँ थीं। वर्ग में समूह बनाकर चर्चा करें।
उत्तर-
सेना राजा के लिए आवश्यक अंग था। इतने बड़े राष्ट्र को चलाने के लिए शांति व्यवस्था, बाहरी हमलों से बचाने, साम्राज्य का विस्तार करने के लिए सेना की आवश्यकता थी। सेना से राज्य की सुरक्षा होती है। राजा का मान और सम्मान बढ़ता हानि -सेना रखने पर धन का व्यय अधिक होता है। राज्य की आमदनी का ज्यादा हिस्सा सेना पर खर्च होता है जिससे दूसरे क्षेत्रों में विकास में कमी आ जाती है।

Bihar Board Class 6 Social Science नए साम्राज्य एवं राज्य Notes

पाठ का सारांश

  • समुद्रगुप्त को गुप्तवंश का सबसे महान् शासक, माना जाता है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विक्रमादित्य की भी उपाधि धारण की।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद इसका पुत्र कुमारगुप्त उत्तराधिकारी बना।
  • कुमारगुप्त का उत्तराधिकारी स्कन्दगुप्त बना।
  • गुप्तों ने एक प्रभावशाली शासन तंत्र की स्थापना की।
  • हर्ष के संदर्भ में हमें उसके राजकवि बाणभट्ट की कृति हर्ष चरित, – मधुवन, बांसखेड़ा और संजान, ताम्रपत्र लेख एवं ह्वेनसांग के यात्रावृतांत आदि से जानकारी मिलती है।
  • पुलकेशियन द्वितीय के संदर्भ में जानकारी हमें कई अभिलेखों से मिलती है। इनमें पुलकेशियन का दरबारी कवि रविकीर्ति द्वारा रचित एहोल अभिलेख जिससे हर्ष पर विजय आदि के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करते हैं।
  • दक्षिण भारत के राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास में पल्लवों का महत्वपूर्ण स्थान है। पल्लवों का प्रथम महत्वपूर्ण शासक महेन्द्रवर्मन प्रथम (600-630) हुआ। पल्लवों को द्रविड़ शैली के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। पल्लवकालीन वास्तुकला के उदाहरण राजधानी कांचीपुरम् एवं महाबलीपुरम् में पाये जाते हैं।
  • प्राचीन भारत में शिक्षा के जितने भी केन्द्र थे उनमें नालन्दा का – स्थान सर्वोपरि है।
  • भारत के अन्दर के पड़ोसी राज्यों ने ‘उपहार प्रदान कर एवं राजनिष्ठा का प्रमाण देकर’ समुद्रगुप्त के सामने आत्मसमर्पण किया।
  • बाहरी क्षेत्रों के शासक, जो शायद शकों एवं कुषाणों के वंशज थे। इसमें (सिहल प्रदेश) श्रीलंका के भी शासक थे।
  • समुद्रगुप्त के बाद रामगुप्त को हटाकर इसका योग्य पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय शासक बना।
  • दक्षिण दिल्ली के मेहरौली स्थित लौहस्तंभ में चन्द्र नामक शासक का उल्लेख है जिसे चन्द्रगुप्त द्वितीय ही समझा जाता है।
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय का काल शक्ति और समृद्धि का सूचक था।
  • गुप्त साम्राज्य का भारत के राजनीति एवं सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है।
  • आर्यावर्त क्षेत्र के शासकों को समुद्रगुप्त पराजित करके सीधे-सीधे अपने नियत्रंण में कर लिया। इस क्षेत्र में इसने नौ शासकों को पराजित किया।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

Bihar Board Class 11 Sociology समाजशास्त्र एवं समाज Additional Important Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्रीय उपागम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय उपागम द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मानव समाज का एक व्यवस्था के रूप में मनुष्य तथा मनुष्यों के बीच, मनुष्यों तथा समूहों के बीच तथा विभिन्न समूहों के बीच अंत:क्रिया के रूप में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
उन महत्त्वपूर्ण परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिन्होंने समाजशास्त्र का एक विषय के रूप में आविर्भाव अपरिहार्य बना दिया।
उत्तर:
समाजशास्त्र की उत्पत्ति यूरोप में 10वीं सदी में हुई। औद्योगिक क्रांति, नगरीकरण तथा पूँजीवादी व्यवस्था से उत्पन्न होने वाले सामाजिक तथा आर्थिक दुष्परिणामों ने एक विषय के रूप में समाजशास्त्र के आविर्भाव को अपरिहार्य बना दिया।

प्रश्न 3.
उन प्रमुख समाजशास्त्रियों के नामों का उल्लेख कीजिए जिन्हें समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है।
उत्तर:
अगस्त कोंत, एमिल दुर्खाइम, हरबर्ट स्पैंसर, कार्ल मार्क्स तथा बैबर को समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है। इन समाजशास्त्रियों के द्वारा समाज की विभिन्न समस्याओं तथा पहलुओं का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर अध्ययन किया गया।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

प्रश्न 4.
भारत में सर्वप्रथम समाजशास्त्र का अध्ययन कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ?
उत्तर:
भारत में समाजशास्त्र का अध्यापन 1908 में कोलकाता (कलकत्ता) विश्वविद्यालय के राजनीतिक, आर्थिक तथा दर्शन विभाग में प्रारम्भ हुआ।

प्रश्न 5.
भारत में समाजशास्त्र की उत्पत्ति का इतिहास मुंबई (बंबई) विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स से किस प्रकार संबद्ध है?
उत्तर:
पैट्रिक गीड्स को मुंबई (बंबई) विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में समाजशास्त्र का संस्थापक माना जाता है। जी. एस. घुर्ये द्वारा गीड्स के समाजशास्त्रीय प्रतिमानों को आगे जारी रखा गया। 1919 में मुंबई विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र को स्नातकोत्तर स्तर पर राजनीति विज्ञान के साथ जोड़ा गया।

प्रश्न 6.
भारतीय समाज को समझने तथा उसका विश्लेषण करने में प्रसिद्ध सामाजिक क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तथा सामाजिक क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने पैट्रिक गीड्स से भी पहले भारतीय समाज को समझने में अपनी रुचि दिखाई थी। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने यूरोप के प्रसिद्ध समाजशास्त्री अगस्त कोंत तथा हरबर्ट स्पैंसर से विचार-विमर्श के पश्चात् ‘इंडियन सोशियोलॉजिस्ट’ नामक शोध पत्रिका का प्रकाशन किया था।

प्रश्न 7.
भारत के किन तीन विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र की प्रथम पीढ़ी तैयार हुई? तत्कालीन प्रसिद्ध समाजशास्त्रीयों के नाम बताइए।
उत्तर:
भारत के तीन विश्वविद्यालय हैं-कोलकाता, मुंबई तथा लखनऊ। इन विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्रियों की प्रथम पीढ़ी तैयार हुई। समकालीन प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों में राधाकमल मुखर्जी, डी. एन. मजूमदार, एम. एन. श्रीनिवास, के. एम. कपाड़िया, एम. आर. देसाई तथा एस. सी. दुबे आदि के नाम प्रमुख हैं।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र की प्रकृति के विषय में एमिल दुर्खाइम के विचारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र की प्रकृति के विषय में एमिल दुर्खाइम के विचार अधिक स्पष्ट तथा तथ्यात्मक हैं। दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र के द्वारा सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 9.
समाज क्या है?
उत्तर:
समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। मेकाइवर तथा पेज के अनुसार, “समाज रीतियों, कार्य प्रणालियों, अधिकार एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूह और उनके विभागों, मानव व्यवहारों के नियंत्रणों तथा स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है।”

प्रश्न 10.
मानव समाज तथा पशु समाज में दो अंतर बताइए।
उत्तर:
मानव समाज तथा पशु समाज में दो मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं –

  • मानव समाज मूल प्रवृत्तियों को परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित करने की क्षमता रखता है, जबकि पशु सामज पूर्णरूपेण मूल प्रवृत्तियों तथा सहज क्रियाओं पर आधारित है।
  • भाषा का स्पष्ट विकास होने के कारण मनुष्य अपनी एक पीढ़ी का ज्ञान दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित कर सकने में सक्षम है जबकि पशु
  • समाज भाषा का विकास न होने के कारण ज्ञान का हस्तांतरण नहीं कर सकता है।

प्रश्न 11.
मेकाइवर तथा पेज के अनुसार समाज के प्रमुख आधार क्या हैं?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री मेकाइवर तथा पेज के अनुसार समाज के प्रमुख आधार इस प्रकार हैं –

  • रीतियाँ
  • कार्यप्रणालियाँ
  • अधिकार
  • आपसी सहयोग
  • समूह तथा विभाग
  • मानव-व्यवहार का नियंत्रण एवं
  • स्वतंत्रता

प्रश्न 12.
जैमिन शैफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
ग्रामीण जीवन में जैमिन शैफ्ट संबंध मिलते हैं। इसमें हम सामूहिक जीवन का वास्तविक तथा स्थायी रूप पाते हैं। सदस्यों के बीच प्राथमिक संबंध पाये जाते हैं। एफ. टॉनीज ने जैमिन शैफ्ट का अर्थ बताते हुए कहा है कि जैमिन शैफ्ट (समुदाय) के समस्त सदस्य आत्मीयता से व्यक्तिगत और अनन्य रूप से साथ रहते हुए जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रश्न 13.
गैसिल शैफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
एफ. टॉनीज के अनुसार गैसिल शैफ्ट का अर्थ बताते हुए कहा है कि –

  • गैसिल शैफ्ट समाज में लोगों का जीवन है।
  • गैसिल शैफ्ट एक नयी सामाजिक प्रघटना है तथा यह अल्पकालिक व औपचारिक है। इसमें सदस्यों के बीच द्वितीयक संबंध पाये जाते हैं।

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प्रश्न 14.
हेरी एम. जॉनसन द्वारा बताई गई समाज की विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
हेरी एम. जॉनसन ने समाज की निम्नलिखित विशेषताएँ बतायी हैं –

  • निश्चित भू-क्षेत्र
  • संतति
  • संस्कृति तथा
  • स्वावलंबन

प्रश्न 15.
समाज में संतति का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
समाज में संपति का महत्त्व निम्नलिखित है –

  • मनुष्य अपने जन्म के आधार पर ही एक समूह का सदस्य होता है।
  • अनेक समाजों में मनुष्यों की सदस्यता गोद लेने, दासता, जाति या अप्रवास के जरिए भी मिल जाती है लेकिन समूह में नए सदस्यों के लिए पुनरुत्पादन ही मौलिक स्रोत है।

प्रश्न 16.
समाज को एक प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज को एक प्रक्रिया के रूप में निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है –

  • समाज में ही व्यक्ति एक-दूसरे से निरंतर अंत:क्रिया करते हैं। समाज को व्यक्तियों पर थोपा नहीं जाता है, अपितु सहभागियों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाता है।
  • सामाजिक अंत:क्रिया के माध्यम से समाज की रचना तथा पुनर्रचना होती है। संधिवार्ता स्व अन्य तथा प्रतिबिंबिता इसके प्रमुख शब्द हैं।

प्रश्न 17.
क्या समाज स्वतंत्र रूप से स्थिर रह सकता है?
उत्तर:
समाज निश्चित रूप से स्वतंत्र रूप से स्थिर रह सकता है। इस संबंध में निम्नलिखित तथ्य दिये जा सकते हैं –

  • समाज एक मौलिक संस्था है। यह किसी का उप-समूह नहीं है।
  • समाज एक स्थानीय, अपने आप में निहित तथा एकीकृत समूह है।

प्रश्न 18.
समाज का संगठन किस प्रकार सामाजिक नियंत्रणों पर आधारित है?
उत्तर:
समाज के संगठन को सुचारु रूप से चलाने के लिए व्यक्तियों के व्यवहार पर निम्नलिखित परम्पराएँ, रुढ़ियाँ, जनरीतियाँ, संहिताएँ तथा कानून आदि द्वारा समाज की प्रत्येक सामाजिक संरचना सामाजिक नियंत्रण का कार्य करती है।

प्रश्न 19.
अगस्त कोंत को समाजशास्त्र का जनक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
फ्रांस के दार्शनिक अगस्त कोंत सन् 1839 में मानव-व्यवहार का अध्ययन करने वाली सामाजिक विज्ञान की शाखा को समाजशास्त्र का नाम दिया था। इसलिए उन्हें समाजशास्त्र का जनक कहा जाता है।

प्रश्न 20.
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘सोशियस’ तथा ‘लोगोस’ से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ समाज तथा ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का अर्थ है-समाज का विज्ञान।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

प्रश्न 21.
अपनी या अपने दोस्त अथवा रिश्तेदार को किसी व्यक्तिगत समस्या को चिह्नित कीजिए। इसे सामाजशास्त्रीय समझ द्वारा जानने की कोशिश कीजिए।
उत्तर:
आप कोई भी समस्या लें इस प्रश्न को छात्र या छात्राओं को स्वयं हल करना है। जैसे पढ़ाई में मन न लगना, किसी बात से डर लगना, स्कूल जाने में भव, समय के समायोजन को समग्या आदि। इन सभी पर आप आपने परिवार के लोगों की राय या मशविरा ले सकते हैं, शिक्षक से सलाह भी ले सकते हैं।

प्रश्न 22.
अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र मूल रूप से समाज में मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है। एफ. आर. फेयरचाइल्ड तथा अन्य के अनुसार, “अर्थशास्त्र में मनुष्य की उन क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जो आवश्यकताओं की संतुष्टि हेतु मौलिक साधनों की प्राप्ति के लिए की जाती हैं।”

प्रश्न 23.
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र मानव समाज का करते हैं। प्रत्येक आर्थिक घटना का सामाजिक पहलू होता है। आर्थिक पहलुओं का व्यापक अध्ययन करने के लिए उनका समाजशास्त्रीय विश्लेषण आवश्यक है।

मेकाइवर के अनुसार, “इकार, आर्थिक घटनाएँ सदैव सामाजिक आवश्यकताओं तथा। क्रियाओं के समस्त स्वरूपों द्वारा निश्चित होती हैं तथा वे (आर्थिक घटनाएँ) सदैव प्रत्येक प्रकार की सामाजिक क्रियाओं को पुनः निर्धारित, सृजित, स्वरूपित तथा परिवर्तित करती हैं।”

प्रश्न 24.
अर्थशास्त्र तथा समाजशास्त्र में मौलिक अंतर बताइए।
उत्तर:

  • समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का अध्ययन करता है, इसलिए यह एक सामान्य विज्ञान है। अर्थशास्त्र आर्थिक संबंधों का अध्ययन करता है अतएव यह एक विशेष विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र मनुष्य की समस्त सामाजिक गतिविधियों का अध्ययन करता है। अतः समाजशास्त्र का क्षेत्र व्यापक है।
  • अर्थशास्त्र का अध्ययन-क्षेत्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों तक ही सीमित है।
  • अतः अर्थशास्त्र का क्षेत्र समाजशास्त्र की अपेक्षा क व्यापक है।

प्रश्न 25.
राजनीति शास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
राजनीति शास्त्र के अंतर्गत अनेक राजनीतिक संस्थाओं जैसे राज्य सरकार तथा उसके अंगों, संवैधानिक तथा न्यायिक संस्थाओं एवं अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं तथा संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

वेनबर्ग तथा शेबत के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र उन पद्धतियों का अध्ययन है जिनमें कि एक समाज अपने को संगठित करता है तथा राज्य का संचालन करता है।”

प्रश्न 26.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान में अंतर बताएँ।
उत्तर:
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान के साथ घनिष्ठ संबंध है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है तो मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं एवं विचारों का अध्ययन है। मनोविज्ञान की एक प्रमुख शाखा है-सामाजिक मनोविज्ञान इसे मनोविज्ञान समाजशास्त्र भी कहते हैं। सामाजिक मनोविज्ञान में व्यक्ति मनोविज्ञान और समाजशास्त्र दोनों का अध्ययन किया जाता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

प्रश्न 28.
मैक्स वैबर ने समाजशास्त्र को किस रूप में परिभाषित किया है?
उत्तर:
मैक्स वैबर के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया का अर्थपूर्ण बोध कराने का प्रयास करता है।” उनका मत है कि समस्त मानवीय गतिविधियों का संबध क्रिया से होता है। ये क्रियाएँ ही समाजशास्त्र की विषय-वस्तु हैं।

प्रश्न 29.
समाजशास्त्रीय परिपेक्ष्य का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र द्वारा सामाजिक संबंधों का नियामक रूप में तथा प्रयोगात्मक स्तरों पर अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा समाजशास्त्रीय अध्ययन के अंतर्गत निरंतरता तथा परिवर्तन का विश्लेषण तथा व्याख्या भी की जाती है। वस्तुतः यही समाजशास्त्रीय परिपेक्ष्य है।

प्रश्न 30.
अगस्त कोंत के प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ बताइए।
उत्तर:
अगस्त कोंत के प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ इस प्रकार हैं –

  • सामाजिक स्थितिक (सामाजिक संरचना) तथा
  • सामाजिक गतिशीलता (सामाजिक परिवर्तन)।

प्रश्न 31.
अगस्त कोंत के त्रि-स्तरीय नियम को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
भौतिक शास्त्र के नियमों की तर ही समाज में नियम बनाए जा सकते हैं। इसी धारणा को आधार मानकर कोंत ने त्रि-स्तरीय नियम का प्रतिपादन किया –

  • धर्मशास्त्रीय स्थिति
  • तत्त्व मीमांसा स्थिति तथा
  • प्रत्यक्षात्मक स्थिति

कोंत ने पोजिटिविस्ट फिलॉसोफी द्वारा अपनी उपरोक्त धारणा का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत किया।

प्रश्न 32.
मैक्स वैबर की एक प्रसिद्ध कृति का नाम बताइए। समाजशास्त्र की उनकी। परिभाषा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मैक्स वैबर की एक प्रसिद्ध कृति ‘थ्योरी ऑफ सोशल ऑरगेनाइजेशन’ है। मैक्स वैबर के समाजशास्त्र की परिभाषा “यह एक विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं की विवेचनात्मक व्याख्या करने का प्रयत्न करता है, जो अंततः अपने कार्यों के परिणामों में कार्य-कारण सम्बन्धों की व्याख्या प्राप्त करता है।”

प्रश्न 33.
इतिहास की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
इतिहास में अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध तरीके तथा वैज्ञानिक नजरिए से अध्ययन किया जाता है। पार्क के अनुसार, “इतिहास मानव-अनुभवों तथा मानव-प्रकृति का स्थूल विज्ञान है।”

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प्रश्न 34.
‘समाजशास्त्र तथा इतिहास एक-दूसरे के पूरक हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इतिहास तथा समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन करते हैं। प्रत्येक ऐतिहासिक घटना का एक सामाजिक पहलू होता है। वर्तमान समय के सामाजिक परिप्रेक्ष्य को समझने के लिए आवश्यक है कि ऐतिहासिक तथ्यों की समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से व्याख्या की जाए। जी. ई. हॉवर्ड ने सही कहा है कि “इतिहास भूतकाल का समाजशास्त्र है तथा समाजाशास्त्र – वर्तमान इतिहास है।”

प्रश्न 35.
इतिहास तथा समाजशास्त्र में मौलिक अंतर बताइए।
उत्तर:
इतिहासकार के लिए मुख्य अध्ययन की वस्तु ऐतिहासिक घटनाएँ हैं जबकि समाजशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु वे प्रतिमान होते हैं, जिनमें से घटनाएँ घटती हैं। इतिहास में एक जैसी घटनाओं में पायी जाने वाली विभिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में विभिन्न घटनाओं में पायी जाने वाली समानता का अध्ययन किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
धर्मशास्त्र, अधिभौतिक तथा प्रत्यक्षवाद अवस्थाओं में विभेद कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्रीय अगस्त कोंत भौतिक शास्त्र के सिद्धांतों की भाँति समाज के सिद्धांतों का निर्धारण करना चाहते थे। उनका मत था कि सभी समाजों में मानवीय बुद्धि का विकास निम्नलिखित तीन सोपानों से होकर गुजरता है –

  • धर्मशास्त्र का सोपान – धर्मशास्त्र के सोपान के अंतर्गत सभी व्याख्याएँ अति प्राकृतिक होती हैं। इस अवस्था में मानव-मन विभिन्न घटनाओं, पदार्थों तथा वस्तुओं की व्याख्या करने का प्रयत्न करता है।
  • अधिभौतिक सोपान – अधिभौतिक अवस्था के अंतर्गत व्याख्याएँ अति प्राकृतिक न होकर परंपराओं, अंतर्ज्ञान तथा अनुमानों पर आधारित होती हैं लेकिन ये व्याख्याएँ किसी प्रमाण द्वारा समर्थित नहीं होती हैं।
  • प्रत्यक्षवाद का सोपान – प्रत्यक्षता के सोपान के अंतर्गत व्याख्याएँ अवलोकित तथ्यों पर आधारित होती हैं। इस सोपान में तार्किक आधार पर निरीक्षण तथ परीक्षण योग्य सिद्धांतों का विकास किया जाता है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र में एमिल दुर्खाइम का मुख्य संबंध किस बात से था?
उत्तर:
एमिल दुर्खाइम (1858-1917 ई.) ने समाजशास्त्र के क्षेत्र में एकीकरण को समाजशास्त्र के केन्द्रीय अध्ययन की वस्तु स्वीकार किया है। दुर्खाइम का मुख्य संबंध निम्नलिखित बातों से था –

  • सामाजिक तथ्य
  • आत्महत्या तथा
  • धर्म

1. सामाजिक तथ्य – दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र वास्तव में सामाजिक तथ्यों का अध्ययन है। दुर्खाइम का कहना है कि समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र कुछ घटनाओं तक सीमित है। इन्हीं घटनाओं को उसने सामाजिक तथ्य कहा है। दुर्खाइम का मत है कि सामाजिक तथ्य कार्य करने, चिंतन तथा अनुभव की ऐसी पद्धति है जिसका अस्तित्व व्यक्ति की चेतना के बाहर होता है। उसने सामाजिक तथ्य की निम्नलिखित दो विशेषताएँ बतायी हैं-बाह्यता तथा बाध्यता।

2. आत्महत्या – दुर्खाइम ने आत्महत्या की व्याख्या सामाजिक एकता, सामूहिक चेतना, सामाजिकता तथा प्रतिमानहीनता के विशिष्ट संदर्भ में की है। दुर्खाइम ने आत्महत्या के निम्नलिखित तीन प्रकार बताए हैं –

  • परमार्थमूलक आत्महत्या
  • अहंवादी आत्महत्या तथा
  • प्रतिमानहीनता मूलक आत्महत्या।

3. धर्म – धर्म की उत्पत्ति के बारे में दुर्खाइम सामूहिक उत्सवों तथा कर्मकाडों को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। उन्होंने धर्म को पवित्रता की धारणा से संबद्ध किया है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

प्रश्न 3.
“समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की न तो गृह-स्वामिनी है और न ही उनकी दासी है वरन् उनकी बहन मानी जाती है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के सम्बन्ध में प्रश्नान्तर्गत पूछी गई बातों का स्पष्टीकरण इसका प्रकार दी जा सकती है –

  • समाजशास्त्र एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है। गिडिंग्स का मत है कि समाजशास्त्र के द्वारा समाज का व्यापक तथा संपूर्ण अध्ययन में किया जाता है।
  • अतः अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसका संबंध स्वाभाविक है लेकिन समाजशास्त्र का अपना विशिष्ट दृष्टिकोण है।
    समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण ही समाजशास्त्र को एक विशिष्ट स्थान दिलाता है।
  • इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञानों का योग समन्वय मात्र नहीं है।
  • प्रसिद्ध समाजशास्त्री सोरोकिन समाजशास्त्र को एक विशिष्ट सामाजिक विज्ञान मानते हैं।
  • उनका मत है कि समाजशास्त्र अन्य सामाजिक विज्ञानों की तरह एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र के द्वारा ने केवल समाज के सामान्य सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है वरन् विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के मध्य संबंध भी स्थापित किया जाता है।

इस प्रकार, समाजशास्त्र एक स्वतंत्र सामाजिक विज्ञान है। अन्य सामाजिक विज्ञानों से इसके संबंध समानता के आधार पर हैं। इसकी विशिष्ट अध्ययन पद्धतियाँ तथा दृष्टिकोण इसे एक पृथक् सामाजिक विज्ञान बनाते हैं।

प्रश्न 4.
क्या समाज अमूर्त है?
उत्तर:
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है समाज अमूर्त है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री यूटर के अनुसार, “समाज एक अमूर्त धारणा है जो एक समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों की संपूर्णता का ज्ञान कराती है।”

मेकाइवर तथा पेज ने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल कहा है। सामाजिक संबंधों को न तो देखा जा सकता है और न ही स्पर्श किया जा सकता है, उन्हें केवल अनुभव किया जा सकता है। अतः समाज अमूर्त है। यह वस्तु के मुकाबले प्रक्रिया तथा संरचना के मुकाबले गति है।

राइट के अनुसार, “यह (समाज) व्यक्तियों का समूह नहीं है। यह समूह के सदस्यों के बीच स्थापित संबंधों की व्यवस्था है।” राइट ने समाज को सामाजिक संबंधों के समूह के रूप में परिभाषित किया है न कि व्यक्तियों के समूह के रूप में।

समाज के संबंधों का निर्माण तथा विस्तार सामाजिक अंत:क्रियाओं से होता है। चूंकि सामाजिक अंत:क्रियाओं का स्वरूप अमूर्त है। अतः समाज भी अमूर्त है। निष्कर्षतः राइट के शब्दों में कहा जा सकता है कि समाज सार रूप में एक स्थिति, अवस्था अथवा संबंध है, इसलिए आवश्यक रूप से यह अमूर्त है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र के उद्भव के विषय में संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
एक सामाजिक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र का जन्म यूरोप में 19वीं सदी में हुआ। प्रसिद्ध फ्रांसीसी दार्शनिक अगस्त कोंत ने 1839 ई. में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया। हालांकि, कोंत ने शुरू में इस विज्ञान का नाम सामाजिक भौतिकी रखा था। एक पृथक विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र का अध्ययन अमेरिका में 1879 में, फ्रांस में 1989 ई. में, ब्रिटेन में 1907 ई. में तथा भारत में 1919 ई. में शुरू हुआ।

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प्रश्न 6.
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की क्या विशेषता है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की विशेषताओं का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –

  1. समाजाशास्त्र के जनक अगस्त कोंत से लेकर वर्तमान समय तक समाजशास्त्रीय समाजशास्त्र की एक स्वीकार्य परिभाषा निर्धारित करने के लिए सतत् प्रयासरत हैं।
  2. समाजशास्त्री समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र तथा उसके अध्ययन के लिए विभिन्न वैज्ञानिक पद्धतियों को निर्धारित करने में लगे हुए हैं।
    समाजशास्त्र के द्वारा मानव व्यवहार तथा सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।
  3. दुर्खाइम, सोरोकिन तथा हॉबहाउस का मत है कि समाजशास्त्र भी अन्य प्राकृतिक विज्ञानों की भाँति एक सामान्य विज्ञान है।
  4. जहाँ तक समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण का सवाल है, यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र के द्वारा सामाजिक प्रयोगात्मक स्तरों पर अध्ययन किया जाता है।
  5. दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अंतर्गत समाज तथा उससे संबंधित तथ्यों का अध्ययन निरंतरता व वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र क्या है?
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘लोगोस’ से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ है। सामाजिक ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है सामाजिक विज्ञान। समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। विभिन्न विद्वानों का समाजशास्त्र के संबंध में निम्न मत है वार्ड के अनुसार-“समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।” ए. एम. रोज के अनुसार – “समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में तथा संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं।” “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” पार्क तथा बर्गेस “समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन करता है।”

एमिल दुर्खाइम अर्थात् सामाजिक संबंधों का नियामक के रूप में तथा प्रयोगात्मक स्तरों पर क्रमबद्ध ज्ञान को समाजशास्त्र कहा जाता है, जो समाज का विज्ञान है और इसमें समाज के सामूहिक व्यवहारों का सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक कारणों सहित क्रमबद्ध अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 8.
समाज के उद्विकास पर स्पेंसर का क्या दृष्टिकोण है?
उत्तर:
समाज के उद्विकास पर हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903 ई.) के विचारों का निम्नलिखित बिन्दुओं के अंतर्गत अध्ययन किया जा सकता है –

  • अगस्त कोंट की भाँति स्पेंसर भी समाज की व्याख्या उद्विकासीय पद्धति के आधार पर करते हैं।
  • स्पेंसर के दृष्टिकोण में समाज अनेक व्यक्तियों का सामूहिक नाम है।
  • स्पेंसर समाज के पृथक-पृथक अंगों की तुलना सजीव शरीर के अलग-अलग अंगों से करते हैं। उनकी मान्यता है कि जिस प्रकार प्राणी का उद्विकास हुआ, उसी प्रकार समाज भी उद्विकास का परिणाम है।

स्पेंसर सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान बताते हैं –

  • समाज सदैव सरल स्थिति से स्थिति की तरफ आगे बढ़ता है।
  • सामाजिक उद्विकास के साथ-साथ सामाजिक सजातीयता के बजाए सामाजिक विजातीयता की स्थिति बन जाती है।
  • समाज में उद्विकास की प्रक्रिया कम विभिन्नीकृत से अधिक विभिन्नीकृत स्थिति की तरफ तथा निम्न स्तर से उच्च स्तर की तरफ बढ़ती रहती है।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र के उद्गत और विकास का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
समाजशास्त्र का उद्गम यूरोप में हुआ। समाजशास्त्र के अधिकांश मुद्दे एवं सरोकार भी उस समय की बात करते हैं जब यूरोपियन समाज 18वीं और 19वीं सदी के औद्योगिक और पूँजीवाद के आने के कारण गंभीर रूप से परिवर्तन की चपेट में था। जैसे नगरीकरण या कारखानों के उत्पादन, सभी आधुनिक समाजों के लिए प्रासांगिक थे, यद्यपि उनकी कुछ विशेषताएँ हटकर हो सकती थीं, जबकि भारतीय समाज अपने औपनिवेशिक अतीत और अविश्वसनीय विविधता के कारण भिन्न है। भारत का समाजशास्त्र इसे दर्शाता है।

यूरोप में समाजशास्त्र के आरम्भ और विकास को पढ़ना क्यों आवश्यक है? वहाँ से शुरूआत करना क्यों प्रासंगिक है? क्योंकि भारतीय होने के नाते हमारे अतीत अंग्रेजी पूँजीवाद और उपनिवेशवाद के इतिहास से गहरा जुड़ा है। पश्चिम में पूँजीवाद विश्वव्यापी विस्तार पर गया था। उपनिवेशवाद आधुनिक पूँजीवाद एवं औद्योगिकरण का आवश्यक हिस्सा था। इसलिए पश्चिमी समाजशास्त्रियों का पूँजीवाद एवं आधुनिक समाज के अन्य पक्षों पर लिखित दस्तावेज भारत में हो रहे सामाजिक परिवर्तनों को समझने के लिए सर्वथा प्रासंगिक है। इस प्रकार उपर्युक्त कारकों से समाजशास्त्र के उद्गम और विकास का अध्ययन आवश्यक है।

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प्रश्न 10.
‘सभी सामाजिक विज्ञानों के विषय-वस्तु समान है, फिर भी विभिन्न सामाजिक विज्ञान पृथक-पृथक हैं।’ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सभी सामाजिक विज्ञान जैसे राजनीतिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, इतिहास, मानवशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र आदि समाज में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। सामाजिक विज्ञानों की विषय-वस्तु समान होते हुए भी उनके दृष्टिकोण में अंतर पाया जाता है। जिस प्रकार एक वृक्ष की विभिन्न शाखाएँ अलग-अलग दिशाओं की ओर संकेत करती हैं ठीक उसी प्रकार ज्ञान रूपी वृक्ष की विभिन्न शाखाएँ मानव व्यवहार का विभिन्न गतिविधियों का अध्ययन करती हैं।

सामाजिक विज्ञानों को एक-दूसरे से पृथक् करके उनका एकीकृत अध्ययन नहीं किया जा सकता है। उदाहरण के लिए चिकित्सा के लिए अलग-अलग विशेषज्ञ हैं। ठीक उसी प्रकार समाज का अध्ययन करने के लिए अलग-अलग सामाजिक विज्ञान हैं। इस प्रकार, सभी सामाजिक विज्ञानों की विषय-वस्तु समान होते हुए भी दृष्टिकोणों में विभिन्नता पायी जाती है लेकिन विभिन्न विषयों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नताएँ ज्ञान रूपी नदी हैं जिनके उद्गम का स्रोत एक ही है।

जार्ज सिम्पसन ने अपनी पुस्तक ‘Man in Society’ में लिखा है कि “सामाजिक विज्ञानों के बीच एक अटूट एकता है, यह एकता काल्पनिक एकता नहीं है, यह विभिन्न भागों की गतिशील एकता है तथा एक भाग दूसरे प्रत्येक भाग के लिए तथा अन्य भागों के लिए आवश्यक है।’

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ – समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के शब्द ‘लोगोस’ से हुई है। सोशियस का अर्थ है सामाजिक तथा लोगोस का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ है सामाजिक विज्ञान।

समाजशास्त्र की परिभाषा – समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। समाजशास्त्रियों द्वारा समाजशास्त्र की परिभाषा निम्नलिखित रूपों में दी गई है –
1. समाजशास्त्र समाज एक विज्ञान के रूप में – वार्ड के अनुसार, “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।” ओडम के अनुसार, “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता है।” गिडिंग्स के अनुसार, “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

2. समाजशास्त्रीय सामाजिक संबंधों के अध्ययन के रूप में – ए. एम. रोज के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विषय में तथा संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं।”

3. समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के अध्ययन के रूप में – आग्बर्न तथा निमकॉफ के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है।” बेनट तथा ट्यमिन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक जीवन की संरचना तथा कार्यों का विज्ञान है।”

4. समाजशास्त्र समूह में मानव – व्यवहार के अध्ययन के रूप में-पार्क तथा बर्गेस के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” किंबाल यंग के अनुसार, “समाजशास्त्र समूह में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता है।”

5. समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं के अध्ययन के रूप में – एमिल दुर्खाइम के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक प्रघटनाओं का अध्ययन करता है।

6. समाजशास्त्र सामाजिक क्रियाओं के अध्ययन के रूप में – मैक्स वैबर के अनुसार समस्त मानवीय गतिविधियों का सामाजिक संबंध क्रिया से होता है।

प्रश्न 2.
चर्चा कीजिए कि आजकल अलग-अलग विषयों में परस्पर लेन-देन कितना ज्यादा है?
उत्तर:
समाजशास्त्रीय अध्ययन का विषय क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। यह एक दुकानदार और उपभोक्ता के बीच, एक अध्यापक और विद्यार्थी के बीच, दो मित्रों के बीच अथवा परिवार के सदस्यों के बीच की अंतः क्रिया के विश्लेषण को अपना केन्द्रबिन्दु बना सकता है। इसी प्रकार यह राष्ट्रीय मुद्दों जैसे बेरोजगारी अथवा जातीय संघर्ष या सरकारी नीतियों या आदिवासी जनसंख्या के जंगल पर अधिकार या ग्रामीण कों को अपना केन्द्र बिन्दु बना सकता है अथवा वैश्विक सामाजिक प्रक्रिया, जैसे-नए लचीले श्रम कानूनों का श्रमिक वर्ग पर प्रभाव अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम का नौजवानों पर प्रभाव अथवा विदेशी विश्वविद्यालयों के आगमन का देश की शिक्षा-प्रणाली पर प्रभाव की जाँच कर सकता है।

इस प्रकार समाजशास्त्र का विषय परिभाषित नहीं होता कि वह क्या अध्ययन (परिवार या व्यापार संघ अथवा गाँव) करता है बल्कि इससे परिभाषित होता है वह एक चयनित क्षेत्र का अध्ययन कैसे करता है। समाजशास्त्र के ये विवेचित विषय अन्य विषयों के भी अंग हैं। इसलिए अन्य विषय आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और विषय-सामग्री का इनमें परस्पर लेन-देन अनिवार्य है।

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प्रश्न 3.
समाजशास्त्र के जनक के रूप में अगस्त कोंत जाने जाते हैं, कैसे?
उत्तर:
समाजशास्त्र शब्द से संसार को सर्वप्रथम परिचित कराने का श्रेय फ्रांसीसी दार्शनिक तथा समाजशास्त्री अगस्त कोंत को है। सर्वप्रथम अगस्त कोंत ही सामाजिक विचारक थे। जिन्होंने सामाजिक घटनाओं के अध्ययन क्षेत्र की कल्पना या आध्यात्मिक विचारों को दृढ़ता से निकालकर उसे वैज्ञानिक तथ्यों से सींचा। वे 1789 ई. के फ्रांसीसी क्रांति के फलस्वरूप उत्पन्न फ्रांस की राजनीतिक उथल-पुथल सधे प्रभावित थे।

उनकी प्रारंभिक रचनाओं में पुर्नजागरण और परम्पराओं के अवैज्ञानिक विचारों पर प्रत्यक्ष प्रहार किया गया। उन्होंने अवलोकन और प्रयोग पर आधारित समाज के अध्ययन हेतु तार्किक उपागम का विकास किया। कोंत एक ऐसे विज्ञान का सृजन करना चाहते थे जो कि सामाजिक घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से कर सके।

प्रश्न 4.
‘समाज’ शब्द के विभिन्न पक्षों की चर्चा कीजिए। यह आपके सामान्य बौद्धिक ज्ञान की समझ से किस प्रकार अलग है?
उत्तर:
प्रसिद्ध समाजशास्त्री मेकाइवर तथा पेज ने समाज के प्रमुख आधारों को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि “समाज रीतियों, कार्य-प्रणालियों, अधिकार-सत्ता एवं पारस्परिक संयोग, अनेक समूह तथा उनके विभागों, मानव-व्यवहार के नियंत्रणों तथा स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है।”

उपरोक्त परिभाषा के समाज के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –
1. रीतियाँ – रीतियों के अंतर्गत समाज के उन स्वीकृत तरीकों को सम्मिलित किया जाता है, जिन्हें समाज व्यवहार के क्षेत्र में उचित मानता है। रीतियाँ अथवा चलन समाज में मनुष्य की एक निश्चित तथा समाज स्वीकृत व्यवहार करने के लिए बाध्य करते हैं। इस प्रकार रीतियाँ सामाजिक संबंधों को निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहयोग देती हैं।

2. कार्य – प्रणालियाँ – कार्य-प्रणालियों का तात्पर्य सामाजिक संस्थाओं से है। संस्थाएँ वास्तव में प्रस्थापित कार्यविधियाँ होती हैं। समाज के सदस्यों से यह अपेक्षित है कि वे प्रचलित कार्य-प्रणालियों के माध्यम से अपने कार्यों को पूरा करें। कार्य-प्रणालियाँ समाज को एक निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहायक होती हैं।

3. अधिकार – सत्ता-अधिकार-सत्ता भी सामाजिक संबंधों को सुचारू रूप से चलाने तथा नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। प्रसिद्ध समाजशास्त्री जॉर्ज सिमल ने अधिकार-सत्ता पर विशेष जोर दिया है। अधिकार सत्ता तथा अधीनता दो परस्पर संबंधित सामाजिक संबंध हैं। किसी स्थिति में व्यक्ति अधिकार-सत्ता तथा किसी अन्य स्थिति में अधीनता रखता है। अधिकार-सत्ता व्यवहार के प्रतिमानों को परिभाषित तथा परिचालित करती है।

4. पारस्परिक सहयोग – पारस्परिक सहयोग समाज के अस्तित्व को स्थायित्व तथा निरंतरता प्रदान करता है। क्रोप्टकिन ने पारस्परिक सहयोग को अत्यधिक महत्त्व प्रदान किया है। बोगार्डस के अनुसार, “पारस्परिक सहयोग, सहयोग का एक विशिष्ट नाम है।” समाज की प्रगति, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण की प्रक्रियाएँ पारस्परिक सहयोग पर निर्भर हैं। राइट के अनुसार, “यह (समाज) व्यक्तियों का एक समूह नहीं है। यह समूह के सदस्यों के बीच स्थापित संबंधों की व्यवस्था है।”

पारस्परिक सहयोग की अनुपस्थिति में सामाजिक अंतः क्रियाओं की कल्पना नहीं की जाप सकती है।

5. समूह तथा विभाग – समाज विभिन्न समूहों, विभागों तथा उप-विभागों का समीकरण है। मनुष्य इन समूहों तथा विभागों में रहकर ही सामाजिक व्यवहार करता है। समाज एक व्यापक तथा विस्तृत अवधारणा है तथा इसके अंतर्गत राष्ट्र, नगर, गाँव, विभिन्न समुदाय, समितियाँ तथा संस्थाएँ आदि सभी सम्मिलित होते हैं। समूह तथा विभागों के माध्यम से मानव-व्यवहार को एक निश्चित आधार तथा दिशा मिलती है।

6. मानव – व्यवहार का नियंत्रण-सामाजिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए मानव-व्यवहार पर नियंत्रण आवश्यक है। मानव व्यवहार को आपैचारिक तथा अनौपचारिक नियंत्रणें द्वारा नियंत्रित किया जाता है। औपचारिक नियंत्रण के अंतर्गत राज्य द्वारा निर्मित कानून तथा पुलिस व्यवस्था आदि आते हैं। अनौपचारिक नियंत्रण के अंतर्गत परंपराएँ, रूढ़ियाँ जनरीतियाँ तथा रिवाज आदि आते हैं।

7. मानव – व्यवहार की स्वतंत्रताएँ – मानव-व्यवहार में नियंत्रणों के साथ-साथ स्वतंत्रताएँ भी आवश्यक हैं। मनुष्यों को समाज द्वारा प्रतिस्थापित नियमों की संरचना के अंतर्गत व्यवहार करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। स्वतंत्रताओं के माध्यम से सामाजिक प्रतिमानों का विकास होता है जो सामाजिक परिवर्तन तथा प्रगति के लिए जरूरी हैं। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मेकाइवर तथा पेज द्वारा दिए गए समाज के विभिन्न आधार सामाजिक संबंधों के जाल को एक निश्चित स्वरूप प्रदान करने में सहायक हैं।

समाजशास्त्र और सामान्य बौद्धिक ज्ञान-समाजशास्त्रीय ज्ञान ईश्वरमीमांसीय और दार्शनिक अवलोकनों से अलग है। इसी प्रकार समाजशास्त्र सामान्य बौद्धिक अवलोकनों से भी अलग है। सामान्य बौद्धिक वर्णन सामान्यतः उन पर आधारित होते हैं जिन्हें हम प्रकृतिवादी और व्यक्तिवादी वणन कह सकते हैं। व्यवहार का एक प्रकृतिवादी वर्णन इस मान्यता पर निर्भर करता है कि एक व्यक्ति व्यवहार के प्राकृतिक कारणों की पहचान कर सकता है।

अतः समाजशास्त्र सामान्य बौद्धिक अवलोकनों एवं विचारों तथा साथ ही साथ दार्शनिक विचारों दोनों से ही अलग है। यह हमेशा या सामान्यत: भी चमत्कारिक परिणाम नहीं देता लेकिन अर्थपूर्ण और असंदिग्ध संपर्कों की छानबीन द्वारा ही पहुंचा जा सकता है। समाजशास्त्री ज्ञान में बहुत अधिक प्रगति हुई है। ज्यादा प्रगति तो सामान्य रूप से हुई परंतु कभी-कभी नाटकीय उद्भवों से भी प्रगति हुई है।

समाजशास्त्र में अवधारणाओं, पद्धतियों और आँकड़ों का एक पुरा तंत्र है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह किस तरह संयोजित है। यह सामान्य बौद्धिक ज्ञान से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। सामान्य बौद्धिक ज्ञान अपरावर्तनीय है क्योंकि यह अपने उद्गम के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछता है। या दूसरे शब्दों में यह अपने आप से यह नहीं पूछता–“मैं यह विचार क्यों रखता हूँ?” एक समाजशास्त्री को अपने स्वयं के बारे में तथा अपने किसी भी विश्वास के बारे में प्रश्न पूछने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए चाहे वह विश्वास कितना भी प्रिय क्यों न हों-“क्या वास्तव में ऐसा है?”

समाजशास्त्र के दोनों ही उपागम, व्यवस्थित एवं प्रश्नकारी, वैज्ञानिक खोज की एक विस्तृत परंपरा से निकलते हैं। वैज्ञानिक विधियों के इस महत्व को तभी समझा जा सकता है, जब हम अतीत की तरफ लौटे और उस समय की सामाजिक परिस्थिति को समझें जिसमें समाजशास्त्री दृष्टिकोण का उद्भव हुआ था क्योंकि आधुनिक विज्ञान में हुए विकासों का समाजशास्त्र पर गहरा पड़ा था।

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प्रश्न 5.
समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में संबंध की व्याख्या कीजिए। अथवा, समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा राजीतिशास्त्र एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं । यही कारण है कि मोरिस गिंसबर्ग ने कहा है कि “ऐतिहासिक दृष्टि से समाजशास्त्र की मुख्य जड़ें राजनीति एवं इतिहास दर्शन में हैं।” समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अभाव में राजनीतिशास्त्र का अध्ययन अधूरा ही रहेगा । बार्स के अनुसार, “समाजशास्त्र तथा आधुनिक राजनीतिशास्त्र के विषय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि पिछले 30 वर्षों में राजनीतिक सिद्धांत में जो परिवर्तन हुए हैं, वे सभी समाजशास्त्र द्वारा अंकित तथा सुझाए गए विकास के अनुसार ही हुए हैं।

समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र में समानता –
1. समाजशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र दोनों ही समाज में मनुष्य के व्यवहार तथा गतिविधियों का अध्ययन करते हैं। प्रसिद्ध विद्वान अरस्तू के अनुसार, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।”

2. सामाजिक जीवन तथा राजनीतिक जीवन एक-दूसरे से अत्यधिक जुड़े हुए हैं। जी. ई. जी. कॉलिन के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक ही आकृति के दो रूप हैं।’ इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए एफ. जी. विल्सन ने कहा है कि “यह अवश्य स्वीकार कर लेना चाहिए कि आम तौर पर यह फैसला करना कठिन हो जाता है कि विशिष्ट लेखक को समाजशास्त्री, राजनीतिशास्त्री या दर्शनशास्त्री क्या मान जाए?”

3. समाजशास्त्री संस्थाएँ राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं के स्वरूप तथा प्रकृति समाज के स्वरूप तथा प्रकृति से निर्धारित होते हैं । गिडिंग्स के अनुसार, “जिस व्यक्ति को पहले समाजशास्त्र के मूल सिद्धांतों का ज्ञान न हो, उसे राज्य के सिद्धांत की शिक्षा देना वैसा ही है, जैसे न्यूटन के गति सिद्धांत को न जानने वाले को खगोलशास्त्र या ऊष्मा विज्ञान की शिक्षा देना।”

4. मनुष्य के सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में अत्यधिक पारस्परिकता तथा अंत:निर्भरता पायी जाती है। दोनों ही एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। प्रसिद्ध विद्वान गिंसबर्ग के अनुसार, “यह कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र की उत्पत्ति राज्य के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं के अध्ययन हेतु राजनीतिक अन्वेषण के क्षेत्र में विकास के परिणामस्वरूप हुई । उदाहरण के लिए परिवार या सम्पत्ति के स्वरूप और संस्कृति और सभ्यता के अन्य तत्त्व जैसे आचार, धर्म और कला, ये सामाजिक उपज माने जाते हैं तथा एक-दूसरे के संदर्भ में इनका अवलोकन किया जाता है।

समाजशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –
1. समाजशास्त्र का क्षेत्र तथा दृष्टिकोण राजनीतिशास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक तथा विस्तृत है। समाजशास्त्र में सभी सामाजिक संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में राज्य तथा सरकार के संगठन का ही अध्ययन किया जाता है। गार्नर के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र मानव समुदाय के केवल एक रूप-राज्य से संबंधित, समाजशास्त्र मानव समुदाय के सभी रूपों से संबंधित है।”

2. समाजशास्त्र के द्वारा जीवन के समान्य पक्षों का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीतिशास्त्र जीवन के एक विशिष्ट पक्ष का अध्ययन करता है। गिलक्राइस्ट के अनुसार, “समाजशास्त्र मनुष्य का सामाजिक प्राणी के रूप में अध्ययन करता है। चूंकि राजनीति संगठन सामाजिक संगठन का एक विशिष्ट स्वरूप होता है, अतः राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र की अपेक्षा अधिक विशिष्ट शास्त्र है।”

3. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण समग्र है तथा यह चेतन व अचेतन दोनों ही अवस्थाओं का अध्ययन करता है जबकि राजनीतिशास्त्र का दृष्टिकोण एकपक्षीय है तथा यह केवल चेतन अवस्था का ही अध्ययन करता है।

4. समाजशास्त्रीय अध्ययन तथा ज्ञान जीवन के समस्त क्षेत्रों के लिए लाभदायक हैं जबकि राजनीति शास्त्र का ज्ञान केवल राजनीति के लिए लाभदायक है।

5. समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक संगठन तथा विघटन की उत्तरदायी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीतिशास्त्र शास्त्र में मुख्य रूप से राज्य तथा सरकार का अध्ययन किया जाता है जो मूल रूप से संगठित संस्थाएँ हैं।

अंत में गिलक्राइस्ट के शब्दां में हम कह सकते हैं कि “दोनों विज्ञानों की वास्तविक सीमाएँ अनमनीय रूप से परिभाषित नहीं की जा सकतीं। वे कभी-कभी एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करती हैं लेकिन दोनों के बीच एक स्पष्ट सामान्य भेद है।”

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र तथा इतिहास में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए। अथवा, समाजशास्त्र तथा इतिहास के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा इतिहास दोनों ही मानव समाज का अध्ययन करते हैं । इतिहास द्वारा प्रदान किए गए तथ्यों की व्याख्या तथा उनमें समन्वय समाजशास्त्र के द्वारा किया जाता है।

समाजशास्त्र तथा इतिहास में समानताएँ –

  • दोनों ही विषय मानव समाज का अध्ययन करते हैं।
  • समाजशास्त्रीय विश्लेषण ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर किया जाता है।
  • समाजशास्त्र तथा इतिहास दोनों ही मानवीय गतिविधियों तथा घटनाओं का अध्ययन करते हैं।
  • सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए ऐतिहिासिक घटनाओं का अध्ययन आवश्यक है।
  • इतिहास तथा समाजशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता के विषय में जी. ई. हावर्ड ने लिखा है कि, “इतिहास भूतकाल का समाजशास्त्र है और समाजशास्त्र वर्तमान इतिहास है।”
  • समाजशास्त्र के द्वारा ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन हेतु सामाजिक पृष्ठभूमि प्रदान की जाती है । इसी प्रकार समाजशास्त्र अपनी अध्ययन सामग्री के लिए इतिहास पर निर्भर करता है।
  • यही कारण है कि बुलो ने समाजशास्त्र को इतिहास से पृथक् मानने से इंकार कर दिया

समाजशास्त्र तथा इतिहास में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –

  • समाजशास्त्र विभिन्न घटनाओं में पायी जाने वाली समानताओं का अध्ययन करता है; जबकि इतिहास में समान घटनाओं में पायी जाने वाली भिन्नता का अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र के द्वारा समाज का समाजीकरण किया जाता है जबकि इतिहास के द्वारा विशिष्टीकरण तथा वैयक्तिकता की खोज की जाती है।
  • पार्क के अनुसार, “इतिहास जहाँ मानव अनुभवों तथा मानव प्रकृति का मूर्त विज्ञान है, समाजशास्त्र एवं अमूर्त विज्ञान है।”
  • समाजशास्त्र सामाजिक घटनाओं का अध्ययन सामाजिक संबंधों की दृष्टि से करता है जबकि इतिहास में घटनाओं के समस्त पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए समाजशास्त्रीय युद्ध को सामाजिक घटना स्वीकार करके उसका व्यक्तियों के जीवन तथा सामाजिक संस्थाओं पर प्रभाव का अध्ययन करेगा। दूसरी तरफ, इतिहासकार युद्ध तथा उससे संबंधित सभी परिस्थिति का अध्ययन करेगा।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 1 समाजशास्त्र एवं समाज

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र का संबंध स्पष्ट कीजिए। अथवा, समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में समानताएँ तथा विभिन्नताएँ बताइए।
उत्तर:
समाजशास्त्र तथा इतिहास एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। सामाजिक गतिविधियों तथा व्यवहार आर्थिक गतिविधियों तथा व्यवहार से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। समाजशास्त्र तथा इतिहास के पारस्परिक संबंधों के बारे में मेकाइवर ने लिखा है कि “इस प्रकार की आर्थिक घटनाएँ सदेव सामाजिक आवश्यकताओं तथा क्रियाओं के समस्त रूपों से निश्चित होती हैं तथा वे (आर्थिक घटनाएँ) सदैव प्रत्येक प्रकार की सामाजिक आवश्यकताओं व क्रियाओं को पुनर्निर्धारित, सृजित, स्वरूपीकृत एवं परिवर्तित करती हैं।”

वास्तव में आर्थिक संबंधों तथा गतिविधियों का पर्यावरण से सामाजिक संबंध है। थॉमस के अनुसार, “वास्तव में, अर्थशास्त्र समाजशास्त्र के विस्तृत विज्ञान की एक शाखा है…..”।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में समानताएँ –
1. समाजशास्त्रीय अध्ययन तथा अर्थशास्त्रीय अध्ययन समाजरूपी वस्त्र के ताने-बाने हैं। यही कारण है कि सामाजिक कारकों तथा आर्थिक कारकों को पृथक नहीं किया जा सकता है। अनेक विद्वानों ने सामाजिक तथा आर्थिक प्रघटनाओं का मिला-जुला अध्ययन किया है। इन विद्वानों में कार्ल मार्क्स, मैक्स वैबर तथा वेबलन आदि प्रमुख हैं।

2. सामाजिक घटनाओं का आर्थिक पहलू भी होता है। उदाहरण के लिए अपराध, निर्धनता, बेकारी, दहेज आदि सामाजिक घटनाओं का सशक्त आर्थिक पहल है। कार्ल मार्क्स ने तो आर्थिक तत्वों को समाज की एकमात्र गत्यात्मक शक्ति स्वीकार किया है।

समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में विभिन्नताएँ अथवा अंतर –
1. समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन के समस्त पहलुओं तथा गतिविधियों का अध्ययन करता है जबकि अर्थशास्त्र मनुष्य के केवल आर्थिक पहलू का अध्ययन करता है।

2. समाजशास्त्र का अध्ययन, क्षेत्र तथा विषय-सामग्री अधिक व्यापक है जबकि अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रकृति व्यक्तिवादी है।

3. अध्ययन की प्रकृति एवं दृष्टिकोण से समाजशास्त्र समूहवादी सामाजिक विज्ञान है, जबकि अर्थशास्त्र के अध्ययन की प्रकृति व्यक्तिवादी है।

4. समाजशास्त्रीय विश्लेषण बहुकारकीय होते हैं जबकि अर्थशास्त्रीय विश्लेषण में आर्थिक कारकों को ही प्रमुखता तथा महत्त्व प्रदान किया जाता है।

5. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जबकि अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण से मनुष्य एक आर्थिक प्राणी है।

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र की प्रकृति तथा विषय-क्षेत्र की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(i) समाजशास्त्र की प्रकृति-समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धति के निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग करता है –

  • आनुभाविकता
  • सिद्धांत
  • संचयी ज्ञान तथा
  • मूल्य तटस्थता

जबकि दूसरी तरफ, कुछ विद्वान निम्नलिखित तर्कों के आधार पर समाजशास्त्र को एक विज्ञान स्वीकार नहीं करते हैं –

  • वस्तुनिष्ठता का अभाव
  • अवलोकन का अभाव
  • प्रयोग का अभाव
  • विषय-सामग्री मापने का अभाव तथा
  • भीवष्यवाणी का अभाव

समाजशास्त्र के विरुद्ध उपरोक्त वर्णित उपलब्धियों का सूक्ष्म विश्लेषण करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि समाजशास्त्र में विषय-वस्तु का क्रमबद्ध तरीके से वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

समाजशास्त्र में निम्नलिखित विधियों अथवा यंत्रों का प्रयोग किया जाता है –

  • समाजमिति
  • प्रश्नावली
  • अनुसूची
  • साक्षात्कार
  • केस स्टडी

समाजशास्त्री का विषय – क्षेत्र-समाजशास्त्र की परिभाषा तथा प्रकृति की भाँति इसके विषय-क्षेत्र के बारे में भी विद्वानों में मतभेद हैं। वी. एफ. काल्बर्टन का मत है कि “क्योंकि समाजशास्त्र एक ऐसा लचीला विज्ञान है कि यह निर्णय करना कठिन है कि इसकी सीमा कहाँ शुरू होती है तथा कहाँ समाप्त…….”

समाजशास्त्र के क्षेत्र के बारे में समाजशास्त्रियों में निम्नलिखित दो संप्रदाय प्रचलित हैं –
1. विशिष्टीकृत या स्वरूपात्मक संप्रदाय – स्वरूपात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों के विशिष्ट स्वरूपों का अमूर्त दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए यदि किसी बोतल में कोई भी द्रव पदार्थ जैसे दूध या पानी आदि डाला जाए तो बोतल के स्वरूप पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस संप्रदाय के विद्वानों का मत है कि सामाजिक संबंध भी बोतल के समान हैं तथा उनका आकार अंतर्वस्तु के अनुसार नहीं बदलता है।

उदाहरण के लिए संघर्ष, सहयोग तथा प्रतिस्पर्धा के स्वरूप में कोई अंतर नहीं आएगा, चाहे उनका अध्ययन आर्थिक क्षेत्र में किया जाए अथवा राजनीतिक क्षेत्र में। इस संप्रदाय के प्रमुख समाजशास्त्री हैं-जॉर्ज सिमल, स्माल, वीरकांत, मैक्स वैबर तथा वॉन वीडा आदि।

आलोचना –

  • समाजशास्त्र में सामाजिक संबंधों के स्वरूपों के स्वरूप तथा अन्तर्वस्तु के बीच भेद भ्रामक है।
  • स्वरूपात्मक संप्रदाय ने समाजशास्त्र के क्षेत्र को संकुचित बना दिया है।
  • स्वरूपों का अध्ययन अंतर्वस्तुओं से पृथक नहीं किया जा सकता।

सोरोकिन ने ठीक ही कहा है कि “हम एक गिलास को उसके स्वरूप को बदले बिना शराब, पानी या चीनी से भर सकते हैं, परंतु मैं एक ऐसी सामाजिक संस्था के विषय में कल्पना भी नहीं कर सकता जिसका स्वरूप सदस्यों के बदलने पर भी न बदले।”

2. समन्वयात्मक संप्रदाय – समन्वयात्मक संप्रदाय के अनुसार समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जिसका प्रमुख कार्य सामाजिक जीवन की सामान्य दशाओं का अध्ययन करना है। इस संप्रदाय के प्रमुख समाजशास्त्री हैं-दुर्खाइम, हॉबहाउस, सोरोकिन तथा गिंसबर्ग आदि।

आलोचना –

  • समन्वयात्मक संप्रदाय की विचारधारा भ्रामक है।
  • समाजशास्त्र अनेक सामाजिक विज्ञानों का समन्वय मात्र नहीं हो सकता।

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प्रश्न 9.
समाजशास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोणों का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोणों का अध्ययन करने के लिए कुछ प्रमुख समाजशास्त्रियों के विचारों का उल्लेख आवश्यक है –
(i) अगस्त कोंत (-1778-1857 ई.)-फ्रांस के दार्शनिक अगस्त कोंत को समाजशास्त्र का पिता कहा जाता है। उनका मत था कि समाजशास्त्र का स्वरूप वैज्ञानिक है तथा यह समग्र रूप से समाज का अध्ययन करेगा।

कोंत का मत था कि जो उपकरण तथा यंत्र प्राकृतिक विज्ञानों द्वारा प्रयोग में लाये जाते हैं, उनका प्रयोग समाजशास्त्रियों द्वारा किया जाना चाहिए।

अगस्त कोत ने समाजशास्त्र के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए निम्नलिखित विधियों का उल्लेख किया –

  • निरीक्षण
  • परीक्षण
  • ऐतिहासिक तथा
  • तुलनात्मक

अगस्त कोत ने सामाजिक यथार्थ को प्रत्यक्षवाद कहा। उसने प्रत्यक्षवादी समाजशास्त्र की दो मूल अवधारणाएँ बतायीं –

  • स्थिति मूलक तथा
  • गति मूलक

अगस्त कोंत का मत था कि भौतिकशास्त्र के नियमों की भाँति समाज के नियमों का विकास किया जा सकता है तथा इसी आधार पर उन्होंने अपना त्रि-स्तरीय नियम दिया –

  • धर्मशास्त्रीय स्थिति
  • तत्व मीमांसा स्थिति तथा
  • प्रत्यक्षात्मक अथवा वैज्ञानिक स्थिति

अगस्त कोंत के प्रमुख ग्रंथ हैं –

  • Positive Philosophy
  • System of Positive Polity
  • Religion of Humanity

(ii) हरबर्ट स्पेंसर (1820-1903 ई.) –

  • हरबर्ट स्पेंसर का जन्म इंगलैण्ड में हुआ था। कोंत की भाँति उन्होंने भी समाज की व्याख्या उद्विकासीय पद्धति के आधार पर की है।
    स्पेंसर का मत था कि सभी समाज सरलता से जटिलता की ओर बढ़ते हैं।
  • स्पेंसर का विचार था कि जिस प्रकार प्राणी का विकास हआ है, उसी प्रकार समाज का भी विकास हुआ है।
  • स्पेंसर ने समितियों, समुदायों, श्रम-विभाजन, सामाजिक विभेदीकरण, सामाजिक स्तरीकरण, विज्ञान तथा कलात्मक समाजशास्त्र के अध्ययन पर विशेष बल दिया है।
  • स्पेंसर के अनुसार समाजशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र हैं-परिवार, धर्म, राजनीति, सामाजिक नियंत्रण तथा उद्योग आदि।

स्पेंसर के प्रमुख ग्रंथ –

  • Social Statics
  • The study of Sociology
  • The Principles of Sociology

(iii) कार्ल मार्क्स (1818-1883 ई.)-कार्ल मार्क्स का जन्म जर्मनी में हुआ था। यद्यपि मार्क्स ने अपने लेखों में कहीं भी समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग नहीं किया है तथापि उन्होंने ‘सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं का सूक्ष्म निरीक्षण तथा विश्लेषण किया है। – यदि मार्क्स के विचारों को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत रखा जाए तो उनके विचारों का प्रभाव परिवार, संपत्ति, राज्य. विकास तथा स्तरण पर दिखाई देता है।

सामाजिक प्रक्रियाओं को समझने के लिए मार्क्स की निम्नलिखित अवधारणाएँ महत्त्वपूर्ण हैं-द्वंद्वात्मक भौतिकवाद, ऐतिहासिक भौतिकवाद तथ वर्ग तथा वर्ग-संघर्ष की अवधारणा। मार्क्स द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की अवधारणा को आर्थिक प्रघटनाओं की व्याख्या हेतु आवश्यक मानते थे। यही कारण है कि उन्होंने भौतिक जगत में वाद, प्रतिववाद तथा संश्लेषण को प्रमुखता प्रदान की है।

मार्क्स ने कहा है कि आज तक के सभी समाजों का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास है। मार्क्स के अनुसार समाज अपने विकास की प्रक्रिया में इतिहास के निम्नलिखित विकास क्रमों से होकर गुजरता है

  • आदिम साम्यवादी व्यवस्था
  • दास प्रथा
  • कृषि व्यवस्था
  • सामंतवादी व्यवस्था
  • पूँजीवादी व्यवस्था।

मार्क्स का मत था कि वर्ग विहीन समाज संघर्ष के द्वारा प्राप्त हो सकता है। कार्ल मार्क्स के प्रमुख ग्रंथ –

  • The Proverty of Philosophy
  • The Communist Manifesto
  • The First Indian War of Independence

(iv) एमिल दुर्खाइम (1858-1917) – फ्रांसीसी समाजशास्त्री एमिल दुर्खाइम ने समाजशास्त्र के क्षेत्र में अगस्त कोंत की परंपरा का अनुसरण किया है। उनका मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक समाजशासत्र का विकास करना था।

दुर्खाइम का मत है कि समाजशास्त्र का क्षेत्र कुछ घटनाओं तक सीमित है तथा ये घटनाएँ सामाजिक तथ्य हैं । दुर्खाइम के अनुसार सामाजिक तथ्य कार्य करने, चिंतन तथा अनुभव करने की पद्धति है जो व्यक्ति की चेतना से बाहर होता है। बाह्यता बाध्यता सामाजिक तथ्य की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं।

दुर्खाइम ने धर्म को समाज के सदस्यों के मध्य एक शक्तिशाली एकीकरण का माध्यम बताया है। वे धर्म को एक सामाजिक तथ्य बातते हैं।

दुर्खाइम के चिंतन के दो मुख्य केन्द्र हैं –

  • सामाजिक दृढ़ता एवं
  • सामूहिक चेतना।

दुर्खाइम के मुख्य अध्ययन क्षेत्र थे –

  • सामाजिक तथ्य
  • आत्महत्या एवं
  • धर्म

दुर्खाइम के प्रमुख ग्रंथ –

  • Division of Labour in Society
  • Suicide
  • The Elementary forms of Religious Life.

(v) मैक्स वैबर (1864-1920) – मैक्स वैबर का जन्म जर्मनी में हुआ था। वैबर ने समाजशास्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “यह एक विज्ञान है, जो सामाजिक क्रियाओं की विवेचनात्मक व्याख्या करने का प्रयास करता है।”

मैक्स वैबर ने समाजशास्त्र को सामाजिक क्रिया का व्याख्यात्मक बोध बताया है। प्रत्येक क्रिया के लक्ष्य होते हैं। सामाजिक क्रिया के निम्नलिखित चार प्रकार हैं –

  • धार्मिक क्रिया
  • विवेकपूर्ण क्रिया
  • परंपरागत क्रिया
  • भावात्मक क्रिया
  • मैक्स वैबर द्वारा अधिकारी तंत्र, प्राधिकार, सत्ता तथा रजानीति आदि की विस्तारपूर्वक चर्चा की गई है।

मैक्स वैबर ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Methodology of Social Sciences में कहा कि समाजशास्त्र को एक विषय के रूप में बोध की पद्धति को अपनाना चाहिए। मैक्स वैबर ने अपनी अध्ययन विधि को आदर्श रूप कहा है। उसने वस्तुपरकता की बजाए आंतरिकता एवं निरीक्षण-परीक्षण की बजाए बोध पर अधिक बल दिया है।

मैक्स वैबर के प्रमुख ग्रंथ –

  • The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism
  • The Theory of Social and Economic Organisation
  • The City

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प्रश्न 10.
समाजशास्त्र क्या है? समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र-समाजशास्त्र शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘सोशियस’ तथा यूनानी भाषा के ‘लोगोंस’ शब्द से हुई है। ‘सोशियस’ का अर्थ है सामाजिक तथा ‘लोगोस’ का अर्थ है विज्ञान । इस प्रकार शाब्दिक अर्थ के दृष्टिकोण से समाजशास्त्र का अर्थ है सामाजिक अथवा समाज का विज्ञान।

अगस्त कोंत को ‘समाजशास्त्र का पिता’ कहा जाता है। 1839 ई. में उन्होंने समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया था। कोंत का मत था कि समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है तथा यह संपूर्ण समाज का समग्रतापूर्ण अध्ययन करेगा।

हॉबहाउस के अनुसार, ‘समाजशास्त्र मानव मस्तिष्क की अंत:क्रियाओं का अध्ययन करता है।” पार्क तथा बर्गेस के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।” एमिल दुर्खाइम के अनुसार, “समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधियों का अध्ययन है।”

सोरोकिन के अनुसार, “समाजशास्त्र सामाजिक-सांस्कृतिक घटनाओं, सामान्य स्वरूपों तथा विभिन्न प्रकार के अंत:संबंधों का सामान्य विज्ञान है।” प्रसिद्ध समाजशास्त्री मैक्स वैबर ने सामाजिक क्रियाओं को समाजशास्त्र का प्रमुख अध्ययन विषय स्वीकार किया है। समाजशास्त्र समूह में मानव व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है। समाजशास्त्र की वैज्ञानिक प्रकृति की व्याख्या-समाजशास्त्र विज्ञान है अथवा नहीं, इस संबंधों में विद्वानों में अत्यधिक मतभेद हैं।

इस प्रश्न का सही समाधान प्राप्त करने के लिए यह जानना जरूरी है कि विज्ञान किसे कहते हैं तथा विज्ञान द्वारा कौन-कौन सी पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है? जहाँ तक विज्ञान का प्रश्न है-कोई भी विषय सामग्री विज्ञान हो सकती है, यदि उसे क्रमबद्ध तरीके से, वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा प्राप्त किया गया हो।

इस संबंध में गिलिन तथा गिलिन ने लिखा है कि “जिस क्षेत्र में हम अनुसंधान करना चाहते हैं, उसकी ओर एक निश्चित प्रकार की पद्धति ही विज्ञान का वास्तविक चिह्न है।” समाजशास्त्र अन्वेष” हेतु वस्तुनिष्ठता, निष्पक्षता तथा व्यवस्थित सिद्धांतों का अवलंबन करता है।

समाजशास्त्र द्वारा अध्ययन हेतु वैज्ञानिक विविध के निम्नलिखित सोपानों का प्रयोग किया जाता है –
(i) आनुभाविकता – आनुभाविकता का अर्थ है अनुभवों की जानकारी हासिल करना। अवलोकन तथा तार्किकता के आधार पर तथ्यों का सामान्यीकरण किया जाता है। आनुभाविक प्रमाण के आधार पर समाजशास्त्रीय ज्ञान के समस्त पक्षों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जा सकता है।

(ii) सिद्धांत – सिद्धांत समाजशास्त्रीय अध्ययन का केन्द्रीय बिन्दु है। सिद्धांत आनुभाविक तथा तार्किक दोनों होता है। सिद्धांत तथा तथ्य में घनिष्ठ पारस्परिकता होती है। सिद्धांत के माध्यम से जटिल अवलोकनों को सार रूप में अमूर्त तार्किक अंतर्संबंधित अवस्था में प्रस्तुत किया जाता है। सिद्धांत कार्य-कारण संबंधों के वैज्ञानिक तथा तार्किक विश्लेषण में सहायक सिद्ध हो सकता है। सिद्धांतों का मुख्य उद्देश्य सामाजिक प्रघटनाओं तथा प्राकल्पनाओं की प्रकृति को समझने के लिए सामाजिक तथ्यों की व्याख्या करना तथा उनमें अंतर्संबंध स्थापित करना है। इन प्राकलपनाओं की वैधता की जाँच पुनः आनुभाविक अनुसंधान के द्वारा की जा सकती है।

(iii) संचयी ज्ञान – समाजशास्त्री के संचयी ज्ञान अथवा ज्ञान भंडार का व्यवस्थित परीक्षण किया जा सकता है। अत: हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र संचयी ज्ञान है क्योंकि इसके सिद्धांत परस्पर संबद्ध हैं। पुराने सिद्धांतों के आधार पर ही नवीन संशोधित सिद्धांतों को विकसित किया जाता है।

(iv) मूल्य तटस्थता – समाजशास्त्र को एक आदेशात्मक या अग्रदर्शी विज्ञान नहीं कहा जा सकता है। समाजशास्त्र का संबंध विषयों से है। मैक्स वैबर का मत है कि मूल्य-तटस्थता उपागम ही वैज्ञानिक विकास को संभव बना सकता है। वास्तव में, समाजशास्त्र के शोधकर्ता को मूल्यों के बारे में तटस्थ रहना चाहिए। मोरिस गिंसबर्ग का भी मत है कि वस्तुनिष्ठता तथा तार्किकता का अवलंबन करके ही समाजशास्त्र को वैज्ञानिक स्थिति प्रदान की जा सकती है। अतः शोधकर्ता को पूर्वग्रहों तथा पक्षपातों से दूर रहना चाहिए। उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। समाजशास्त्र के द्वारा समाजमिति के पैमाने, प्रश्नावली, अनुसूची, साक्षात्कार तथा केस स्टडी आदि यंत्रों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
आप समाज की अवधारण को कैसे स्पट करेंगे?
उत्तर:
समाज की अवधारणा निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट की जा सकती है –
(i) समाज एक संरचना के रूप में-समाज को समझने के लिए इसे एक संरचना के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसका अभिप्राय है कि समाज अंतर्संबंधित संस्थाओं का ‘अभिज्ञेय’ ताना-बाना है। इस संदर्भ में अभिज्ञेय शब्द अत्यंत महत्वपूर्ण तथा सार्थक है।

(ii) समाज पुनरावर्तन के रूप में-यह धारणा कि समाज संरचनात्मक होते हैं, यह उनके पुनरुत्पादन पर निर्भर है। इस संदर्भ में ‘संस्था’ शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सामाजिक व्यवहार के संस्थागत स्वरूप विश्वास तथा व्यवहार के प्रकारों को बताते हैं तथा जिसकी आवृत्ति तथा पुनरावृत्ति होती रहती है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि उनका सामाजिक पुनरुत्पादन होता रहता है।

(iii) समाज अंतर्विरोध के रूप में यह बात स्वीकार की जाती है कि समाज संरचनात्मक है तथा इसका पुनरुत्पादन होता है लेकिन यह बात नहीं बताई जाती है कि संरचनात्मक तथा पुनरुत्पादन क्यों और कैसे होता है ? प्रसिद्ध विद्वान कार्ल मार्क्स उन आधारों को स्पष्ट करते हैं जिनसे पता चलता है कि विशिष्ट सामाजिक रचनाओं की उत्पत्ति कैसे होती है तथा विशिष्ट उत्पादनों के प्रकारों से इसका क्या संबंध है ? इस प्रकार समाज को स्थायी या शांतिपूर्ण उद्विकास संरचना नहीं कहा जा सकता है लेकिन इसे उत्पादन के बोर में सामाजिक संबंधों के परस्पर विरोधों द्वारा उत्पन्न संघर्षों के एक अस्थायी समाधान के रूप में समझा जा सकता है। इस प्रकार, पूँजीबादी समाज की प्रक्रिया में होने वाली परिवर्तन उत्पादकता के साधनों में होने वाले तनावों तथा अंत:क्रियाओं में पाए जाते हैं।

(iv) समाज संस्कृति के रूप में-समाजशास्त्रियों द्वारा सामाजिक संबंधों के सांस्कृतिक पहलुओं को लगातार महत्त्व प्रदान किया गया है। समाज की रचना सदस्यों की पारस्परिक समझदारी से ही संभव है। मनुष्याओं के द्वारा भाषा का निर्माण किया गया है, क्योंकि उनका (मनुष्य का) अस्तित्व भाषा तथा सांकेतिक रूप से विचारों के आदान-प्रदान पर निर्भर करता है। मैक्स वैबर तथा टालकॉप परसंस ने संस्कृति का संबंध समाज के विचारों तथा मूल्यों की धारणाओं से स्वीकार किया है।

(v) समाज एक प्रक्रिया के रूप में-समाज सामाजिक संबंधे का जाल है तथा सामाजिक संबंधों का निर्माण मनुष्यों के बीच अंतःक्रियाओं से होता है। समाज गतिशील हैं, अत: उसमें निरंतर परिवर्तन होते रहता है। इस प्रकार समाज एक प्रक्रिया है। वास्तव में, जब सामाजिक परिवर्तन निरंतर तथा निश्चयात्मक होता है, तो ऐसे परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है।
सामाजिक प्रक्रिया के मुख्य शब्द निम्नलिखित हैं –

  • संधिवार्ता
  • स्व तथा अन्य तथा
  • प्रतिबिंबता।

समाज का निर्माण तथा पुनःनिर्माण सामाजिक अंतःक्रिया के द्वारा होता है। समाज को व्यक्तियों पर थोपा नहीं जाता है, वरन् सहभागियों द्वारा इसे स्वीकार किया जाता है। मेकाइवर तथा पेज ने सामाजिक प्रक्रिया की परिभाषा करते हुए लिखा है कि “एक प्रक्रिया का तात्पर्य होता है कि अवस्थाओं में अंतर्निहित शक्तियों की क्रियाओं के द्वारा उत्पन्न निरंतर परिवर्तन, जो निश्चित प्रकार से होता है।”
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र सामाजिक प्रतिनिधियों का अध्ययन है, यह किसका कथन है?
(a) मेकाइवर
(b) दुर्थीम
(c) मैक्स वैबर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) दुर्थीम

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प्रश्न 2.
मानवशास्त्र और समाजशास्त्र जुड़वाँ बहनें हैं, किसने कहा है?
(a) मेकाइवर
(b) क्रोवर
(c) हॉवेल
(d) मैक्स बेबर
उत्तर:
(b) क्रोवर

प्रश्न 3.
दोनों विज्ञानों को जोड़नेवाली शाखा कौन है?
(a) समाजशास्त्र और मनोविज्ञान
(b) समाजशास्त्र और मानवशास्त्र
(c) समाजशास्त्र और राजनीतिशास्त्र
(d) समाजशास्त्र और इतिहास
उत्तर:
(d) समाजशास्त्र और इतिहास

प्रश्न 4.
किसका कथन है? सामाजिक प्रक्रियाएँ सामाजिक अन्तःक्रिया के विशिष्ट रूप हैं।
(a) मेकाइवर
(b) ग्रीन
(c) लुण्डवर्ग
(d) गिलिन एवं गिलिन
उत्तर:
(b) ग्रीन

प्रश्न 5.
संगठनकारी सामाजिक प्रक्रिया समूह में एकता संतुलन एवं संगठन बनाये रखने में सहयोग देती है …………………..
(a) सहयोग
(b) समायोजन
(c) समाजीकरण
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 6.
समितियों की विशेषता निम्नलिखित में से क्या है?
(a) संगठन
(b) निश्चित उद्देश्य
(c) मनुष्यों का समूह
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र संबंध स्थापित करती है …………………
(a) व्यक्तिगत समस्या एवं जनहित मुद्दों के बीच
(b) समाज एवं परिवार के बीच
(c) व्यक्ति और परिवार के बीच
(d) उपर्युक्त कोई सही नहीं हैं
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत समस्या एवं जनहित मुद्दों के बीच

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र बँधा हुआ है …………………
(a) दार्शनिक अनुचिंतनों से
(b) ईश्वरवादी व्याख्यानों से
(c) सामान्य बौद्धिक प्रेक्षणों से
(d) वैज्ञानिक कार्यविधियों से
उत्तर:
(d) वैज्ञानिक कार्यविधियों से

प्रश्न 9.
एक समाजशास्त्री का दायित्व है …………………
(a) मूल्यरहित रिपोर्ट तैयार करना
(b) मूल्य रिपोर्ट तैयार करना
(c) सापेक्ष रिपोर्ट तैयार करना
(d) उपर्युक्त सभी तीनों
उत्तर:
(a) मूल्यरहित रिपोर्ट तैयार करना

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प्रश्न 10.
समाजशास्त्र संघ को समझता है …………………..
(a) कला
(b) कला, विज्ञान
(c) कला, विज्ञान और गणित
(d) विज्ञान
उत्तर:
(d) विज्ञान

प्रश्न 11.
समाजशास्त्र में मूल संबंधित होते हैं ………………….
(a) वस्तुओं के नियत से
(b) आचरण के प्रतिमानों से
(c) अनैतिक व्यवहारों से
(d) क्रिया-प्रतिक्रिया से
उत्तर:
(b) आचरण के प्रतिमानों से

प्रश्न 12.
समाजशास्त्र के पिता या जनक कौन थे?
(a) अगस्त कोंत
(b) कार्ल मार्क्स
(c) मैक्स वैबर
(d) हॉव हाउस
उत्तर:
(a) अगस्त कोंत

प्रश्न 13.
समाजशास्त्र के क्षेत्रों को कितने भागों में बाँटा गया है?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पाँच
उत्तर:
(a) दो

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में समाजशास्त्र की विजय सामग्री क्या है?
(a) सभी सामाजिक तथा असामाजिक प्रक्रियाएँ
(b) सभी सामाजिक संस्थाएँ तथा प्रक्रियाएँ
(c) सभी प्रकार की संस्थाएँ
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 15.
किस वैज्ञानिक का मानना है कि समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है?
(a) मेकाइवर
(b) मैक्स बेवर
(c) वार्ड
(d) सारोकिन
उत्तर:
(a) मेकाइवर

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प्रश्न 16.
समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का विज्ञान है, यह किसने कहा है?
(a) सोरोकिन
(b) मेकाइवर
(c) मैक्स बेवर
(d) दुखाईम
उत्तर:
(a) सोरोकिन

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3

प्रश्न 1.
एक संगठन ने पूरे विश्व में 15-44(वर्षों में) की आयु वाली महिलाओं में बीमारी और मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए किए गए सर्वेक्षण से निम्नलिखित आँकड़े (% में) प्राप्त किए :
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 1
(i) ऊपर दी गई सूचनाओं को आलेखीय रूप में निरूपित कीजिए।
(ii) कौन सी अवस्था पूरे विश्व की महिलाओं के खराब स्वास्थ्य और मृत्यु का बड़ा कारण है?
(iii) अपनी अध्यापिका की सहायता से ऐसे दो कारणों का पता लगाने का प्रयास कीजिए जिनकी ऊपर (ii) में मुख्य भूमिका रही हो।
उत्तर:
(i) सूचनाओं का आलेखीय रूप निम्न होगा:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 2
(ii) आलेखसेसर है कि विश्व की महिलाओं के खराब स्वास्थ्य और मृत्यु का बड़ा कारण जनन स्वास्थ्य अवस्था’ है।
(iii) द्वितीय स्थिति में अन्य मुख्य कारण क्षति व अन्य कारण है।

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प्रश्न 2.
भारतीय समाज के विभिन क्षेत्रों में प्रति हजार लड़कों पर लड़कियों की निकटतम दस तक की) आंकड़े नीचे दिए गए हैं।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 3
(i) ऊपर दी गई सूचनाओं को एक दंड आलेख द्वारा निकापित कीजिए।
(i) कक्षा में चर्चा करके, बताइए कि आप इस आलेख से कौन-कौन से निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
उत्तर:
(i) दी गई सूचनाओं का दंड आलेख अग्र है:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 4
(ii) चर्चा करने पर पाते हैं कि प्रति इनार लड़कों पर लड़कियों की संख्या शहर में न्यूनतम व अनुसूचित जनजाति में अधिकतम है।

प्रश्न 3.
एक राज्य के विधान सभा के चनाव में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों द्वारा जौनी गई सीटों के परिणाम नीचे दिए गए हैं:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 5
(i) मतदान के परिणामों को निरूपित करने वाला एक दण्ड आलेख खींचिए।
(ii) किस राजनैतिक पार्टी ने अधिकतम सीटें जीती हैं?
उत्तर:
(i) दंड आलेख निम्न होगा
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 6
(ii) आलेख से स्पष्ट है कि अधिकतम सीटें A पार्टी ने जोती हैं।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3

प्रश्न 4.
एक पौधे की 40 पत्तियों की लंबाइयाँ एक मिलीमीटर तक शुद्ध मापी गई हैं और प्राप्त आँकड़ों को निम्नलिखित सारणी में निरूपित किया गया है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 7
(i) दिए हुए आंकड़ों को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खींचिए।
(ii) क्या इन्हीं आंकड़ों को निरूपित करने वाला कोई अन्य उपयुक्त आलेख है?
(iii) क्या बहसही निष्कर्ष है कि 153 मिलीमीटर लम्बाई वाली पत्तियों की संख्या सबसे अधिक है? क्यों
उत्तर:
(i) वर्ग अंतरालों को संगत बनाने पर निान सारणी प्राप्त जोती हैं।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 8
अत: आपत चित्र निम्न होगा-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 9
(ii) आलेख को बारबारना बहुभुज से भी निरूपित किया जा सकता है।
(iii) सत्य है तथा आलेख से सिद्ध है।

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प्रश्न 5.
नीचे की सारणी में 400 नियॉन लैम्पों के जीवनकाल दिए गए हैं:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 10
(i) एक आयतचित्र की सहायता से दी हुई सूचनाओं को निरूपित कीजिए।
(ii) कितने लैम्पों के जीवनकाल 700 घंटों से अधिक हैं।
उत्तर:
(i) आवचित्र निम्न होगा-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 11
(ii) 700 घंटों से अधिक जीवन-काल वाली लैम्प = 74 + 62 + 48 = 184

प्रश्न 6.
नीचे की दो सारणीवों में प्राप्त किए गए अंकों के अनुसार दो सेवाशनों के विद्यार्थियों का बंटन दिया गया है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 12
दो बारंवारता बहुभुजों की सहायता से एक ही आलेख पर दोनों सेक्शनों के विद्यार्थियों के प्राप्तांक निरूपित कीजिए। दोनों बहुभुजों का अध्ययन करके दोनों सेकशानों के निष्यादनों की तुलना कीजिए।
उत्तर:
बारंबारता बहुभुजों की सारणी निम्न होगी :
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 13
वर्ग चिड़ को x-अक्ष तथा बारंवारता को y-अक्ष पर लेकर वारंवारता बहुभुज निम्न होंगे।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 14

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3

प्रश्न 7.
एक क्रिकेट मैच में दो टीमों A और B द्वारा प्रथम 60 गेंदों में बनाए गए न नीचे दिए गए हैं:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 15
वारंवारता बहुभुजों की सहायता से एक ही आलेख पर दोनों टीमों के आंकड़े निरूपित कीजिए। (संकेत : पहले वर्ग अंतरालों की संतत बनाइए)
उत्तर:
हम देख सकते हैं। कि वर्ग-अन्तराल सतत नहीं है। वर्ग-अन्तराल 1 है। अत: \(\frac{1}{2}\) = 0.5 जोड़ा जायेगा उच्च सीमा में तथा घटाया जायेगा निम्न सीमा से।
अतः वर्ग चिह्न निम्न व्यंजक से प्राप्त करेंगे-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 16
वर्ग चिट के साथ बारम्बारता सारणी निम्न है:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 17
वर्ग चिह्न को X-अक्ष तथा रनों की Y-अक्ष पर लेकर वारंवारणा बहुभुज की सहायता से आलेख निम होगा:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 18

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प्रश्न 8.
एक पार्क में खेल रहे विभिन्न आयु वर्गों के बच्चों की संख्या का एक चादृचिक सर्वेक्षण (random Surney) करने पर निम्नलिखित आँकडे प्राप्त हए:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 19
ऊपर दिए आँकड़ों को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खचिए।
उत्तर:
आयतचित्र के लिए माणी निम्न होगी।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 20
आय X-अक्ष तथा बच्चों की संख्या Y-अक्ष पर लेकर आयतचित्र निम्न होगा-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 21

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प्रश्न 9.
एक स्थानीय टेलीफोन निर्देशिका से 100 कुलनाम (Surname) यदृच्छया लिए गए और उनमें अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों की संख्या का निम्न बारंबारता बंटन प्राप्त किया गया:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 22
(i) दी हुई सूचनाओं को निरूपित करने वाला एक आयतचित्र खीबिए।
(ii) वह वर्ग अंतराल बताइए जिसमें अधिकतम संख्या में कुलनाम हैं।
उत्तर:
(i) आयतचित्र के लिए सारणी निम्न होगी-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 23
वर्णमाला के अधारों की संख्या X-अक्ष पर तथा कुलनामों की संख्या को Y-अक्ष पर लेकर आयतचित्र निम्न होगा-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.3 24
(ii) अधिकाम कुलनाम वर्ग अतंगल 6-8 में पढ़ते हैं।

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Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 11 सुदूर-प्रदेशों से सम्पर्क

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 1 Chapter 11 सुदूर-प्रदेशों से सम्पर्क Text Book Questions and Answers, Notes.

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अभ्यास

आइए याद करें :

प्रश्न 1.
वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
प्रसिद्ध यूनानी शासक कौन था?
(क) कनिष्क
(ख) पुष्यमित्र शुंग
(ग) मिनाण्डर
(घ) चन्द्रगुप्त
उत्तर-
(ग) मिनाण्डर

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प्रश्न 2.
कनिष्क की राजधानी कहाँ थी ?
(क) काबुल
(ख) पेशावर
(ग) अमृतसर
(घ) यारकंद
उत्तर-
(ख) पेशावर

प्रश्न 3.
शुंग वंश का संस्थापक कौन था ?
(क) पुष्यमित्र
(ख) अग्निमित्र
(ग) वृहद्रथ
(घ) यशोवर्मन
उत्तर-
(क) पुष्यमित्र

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प्रश्न 2.
खाली स्थान को भरें :

  1. मौर्यवंश के बाद …………. (शुंगवंश) मगध पर शासन किया।
  2. इण्डो ग्रीक राजा भारत में ………… से आये।
  3. सुदर्शन झील की मरम्मत ……….. ने कराई।
  4. …………. के सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क थे।
  5. कनिष्क ने …………. को राजकीय संरक्षण प्रदान किया।

उत्तर-

  1. मौर्यवंश के बाद पुष्यमित्र (शंगवंश) मगध पर शासन किया।
  2. इण्डो ग्रीक राजा भारत में बैक्ट्रिया से आये।
  3. सुदर्शन झील की मरम्मत रूद्रदामन ने कराई।
  4. कुषाणों के सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क थे।।
  5. कनिष्क ने बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया।

प्रश्न 3.
सुमेलित करें :

  1. महायान – शक
  2. मिनाण्डर – बौद्ध ग्रंथ
  3. रूद्रदामन – सांची
  4. स्तूप – इण्डो ग्रीक
  5. मिलिन्दपह – बौद्ध ग्रंथ

उत्तर-

  1. महायान – बौद्ध धर्म
  2. मिनाण्डर – इण्डो ग्रीक
  3. रूद्रदामन – शक
  4. स्तूप – सांची
  5. मिलिन्दपह – बौद्ध ग्रंथ

आइए चर्चा करें 

प्रश्न 1.
मथुरा शैली एवं गांधार शैली की मूर्तिकला में। समानता एवं असमानता क्या है ?
उत्तर-
मथुरा शैली एवं गांधार शैली दोनों की मूर्तियाँ पत्थर की थीं। मथुरा शैली में बुद्ध और महावीर की मूर्तियों को दिखाने का प्रयास किया गया जबकि गांधार शैली में बौद्ध मूर्तियों में बुद्ध का मुख यूनानी देवता अपोलो और वेशभूषा रोमन देवता टोगा से मिलता-जुलता था।

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प्रश्न 2.
विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रसार में किन लोगों का योगदान था?
उत्तर-
विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रसार में हिन्दू यूनानी (यवन) शासकों तथा धनी व्यापारियों का योगदान था ।

प्रश्न 3.
भारत पर यूनानी सम्पर्क का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
यूनानी सम्पर्क का भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा । भारत में चिकित्सा पद्धति, विज्ञान, ज्योतिष विद्या एवं सिक्के बनाने की कला में परिवर्तन आए जबकि धर्म एवं दर्शन के क्षेत्र में इन नये शासकों पर भारत का प्रभाव पड़ा।

Bihar Board Class 6 Social Science सुदूर-प्रदेशों से सम्पर्क Notes

पाठ का सारांश

  • बैक्ट्रिया के यूनानी भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग से विदेशियों का आक्रमण मौर्योत्तर काल की एक प्रमुख घटना थी।
  • सबसे पहले आक्रमण करने वालों में बैक्ट्रिया के यूनानी थे, जो इतिहास में “इण्डो-ग्रीक” के नाम से विख्यात है।
  • सबसे प्रसिद्ध यूनानी शासक (यवन) मीनाण्डर था, जो बौद्ध साहित्य में मिलिन्द के नाम से जाना जाता था।
  • भारत में यवन राज्य ने अधिक समय तक टिक न सका।
  • विदेशी आक्रमणों की श्रृंखला में यू-ची कबीला महत्वपूर्ण है।
  • यू-ची कबीला की एक शाखा कुषाणों की थी, जिसके नेता कुजुलकडफिसस था।
  • कनिष्क ने मगध पर आक्रमण कर वहां के प्रसिद्ध विद्वान अश्वघोष को अपनी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) ले आया।
  • विदेशी शासकों ने बौद्ध धर्म को प्रश्रय दिया।
  • देश के भीतर बौद्ध धर्म को धनी व्यापारियों द्वारा समर्थन प्राप्त हुआ।
  • व्यापार के माध्यम से बौद्ध धर्म पश्चिमी एवं मध्य एशिया भी पहुंचा।