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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
भारत में जनसंख्या वृद्धि की किन्हीं तीन अवस्थाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में जनसंख्या वृद्धि की तीन अवस्थायें निम्नलिखित हैं-

  1. धीमी वृद्धि की अवधि (1901-1921) – 1921 से पूर्व जनसंख्या की वृद्धि धीमी थी क्योंकि इस अवधि में जन्मदर और मृत्युदर दोनों ही उच्च थी। मृत्यु दर ऊँची होने का मुख्य कारण चिकित्सा सविधाओं का अभाव था।
  2. निरंतर वृद्धि की अवधि (1921-51) – इस अवधि में जनसंख्या की वृद्धि निरंतर परंतु मंद गति से हुई। चिकित्सा सुविधाओं ने मृत्युदर को कम किया।
  3. तीव्र वृद्धि की अवधि (1951-81) – इस अवधि में भारत की जनसंख्या लगभग दो गुनी हो गई। चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के कारण मृत्यु दर तेजी से गिरी।
  4. घटी वृद्धि की अवधि – 1981 के बाद जनसंख्या में वृद्धि तो हुई लेकिन वृद्धि दर में पहले की अपेक्षा क्रमिक ह्रास हुआ।

प्रश्न 2.
आंतरिक प्रवास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जनसंख्या के आवास-प्रवास, गमनागमन या प्रवसन से तात्पर्य मानव समूह अथवा व्यक्ति के भौगोलिक स्थान के संबंधों के परिवर्तन से है।संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार ‘प्रवसन एक प्रकार से भौगोलिक परिवर्तन जिसमें रहने और पहुँचने का स्थान बदल जाता है। इसमें आवास-प्रवास स्थायी होता है।डेविड हीर के अनुसार, “अपने सामान्य निवास स्थान से किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसना स्थानान्तरण कहा जाता है।” जे० बोग के अनुसार, “प्रवास शब्द आवास के उन परिवर्तनों के लिए आरक्षित होता है जो किसी व्यक्ति के सामुदायिक संबंधों को पूर्णरूपेण परिवर्तन एवं पुनर्सामंजस्य से संबंधित होते हैं।” ई० एस० ली के अनुसार, “स्थानान्तरण अस्थायी आवास परिवर्तन है। इसमें दूरी का अधिक महत्त्व नहीं है।”

जब मनुष्य अपने प्रदेश या देश से अन्य स्थान या देशों में जाता है तो वह प्रवासी कहलाता है। जैसे-जैसे व्यक्ति बिहार से मुम्बई या चेन्नई जाकर बसता है तो लोग मुम्बई के लिए अप्रवासी होंगे लेकिन बिहार के लिए प्रवासी माने जायेंगे। लेकिन जो व्यक्ति प्रतिदिन एक गाँव या नगर से दूसरे गाँव या नगर काम करने के लिए जायेंगे तो उन्हें दैनिक प्रवासी कहेंगे।

प्रवास के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
(i) भौतिक कारण – भौतिक कारणों के अंतर्गत जलवायु संबंधी परिवर्तन, भूकम्प, ज्वालामुखी, हिमराशियों का घटना-बढ़ना, मिट्टी का उपजाऊ होना, समुद्र तटों का जन्मज्जन तथा निमज्जन होना सम्मिलित किया जाता है। हमारे देश में लोग अधिक गर्मी से बचने के लिए दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवास करते हैं तथा गर्मी समाप्त होते ही पुनः अपने-अपने स्थानों पर वापस आ जाते हैं। बाढ़ भी अधिक संख्या में प्रवास के लिए उत्तरदायी होते हैं।

(ii) आर्थिक कारण – इसमें रोजगार, कृषि, उद्योग, परिवहन, व्यापार आदि शामिल किया गया है। लोग कमाने के लिए बड़ी संख्या में गाँवों से शहरों में जाते हैं। व्यापारी भी व्यापार के लिए एक-दूसरे स्थान पर जाते हैं।

(iii) सामाजिक-सांस्कृतिक कारण – धार्मिक कारणों से भी बड़ी संख्या में प्रवास होता है। 1947 में भारत विभाजन के समय उत्पन्न स्थिति के कारण हिन्दू भारत आये तथा मुस्लिम भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गये।

(iv) राजनीतिक कारण – राजनीतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित स्थानों को प्रवास कर जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास के परिणामों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सामान्यतः प्रवासी अपने साथ अपने मूल देश की तकनीक, धर्म, संस्कृति, परम्परा, रीति-रिवाज, भाषा आदि को भी ले जाते हैं और जहाँ वह बसता है, अपनी सामाजिक परम्पराओं, मूल्यों तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने के यथा संभव प्रयास करता है। प्रवासी नये परिवेश से प्रभावित हुए बिना भी नहीं रह पाता है। अतः अप्रवासी क्षेत्र में नवीन संस्कृति विकसित होती है। भारत के भी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन में यह गुण परिलक्षित होते हैं।

भारत से अंतर्राष्ट्रीय प्रवास होने के कारण यहाँ के जनसंख्या का दबाव अपेक्षाकृत कुछ कम है जो भारत जैसे देशों के लिए सकारात्मक पहलू है। भारत के लोग विश्व के लगभग सभी महादेशों में फैले हुए हैं। प्रवासी समुदाय का संबंध सामान्यतः अपने मूल देश से ही बना रहता है जो दोनों देशों के व्यापारिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक संबंध को प्रगाढ़ करने में सहायक होता है।

भारत के अधिकतर कार्यशील जनसंख्या, अंतर्राष्ट्रीय प्रवास करते हैं, जिससे भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिसका अंततः प्रभाव राष्ट्रीय आय पर पड़ता है। साथ ही देश में स्त्रियों, बच्चों और वृद्धों का अनुपात बढ़ जाता है, जो निर्भर जनसंख्या है।

प्रश्न 4.
प्रवास के सामाजिक जनांकिकीय परिणाम क्या-क्या हैं ?
उत्तर:
ग्रामीण से नगरीय प्रवास नगरों में जनसंख्या की वृद्धि में योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में होन वाले आयु एवं कुशलता चरणात्मक बाह्य प्रवास ग्रामीण जनांकिकीय संघटन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और पूर्वी महाराष्ट्र में होने वाले बाह्य प्रवास इन राज्यों की आयु लिंग संरचना में गंभीर असन्तुलन पैदा कर दिए हैं। ऐसे ही असन्तुलन आदाता राज्यों में हुए।

प्रवास में विभिन्न संस्कृतियों के लोगों का अति मिश्रण होता है। इससे संस्कृति के उद्विकास में सकारात्मक योगदान होता है और यह अधिकतर लोगों के मानचित्र क्षितिज को विस्तृत करता है। इससे नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। जो लोगों में सामाजिक निर्वात और खिन्नता की भावना भर देते हैं।

प्रश्न 5.
भारत में सम्पूर्ण साक्षरता में प्रादेशिक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्रादेशिक स्तर पर साक्षरता दर में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। बिहार में साक्षरता दर 43.53 है जबकि केरल में यह 90.92% है। साक्षरता में केरल का प्रथम स्थान है।

केरल के अलावा 80% से अधिक साक्षरता दर वाले राज्यों में पहले स्थान पर मिजोरम (88.49%) है। गोवा को छोड़कर (82.32%) किसी अन्य राज्य में 80% से अधिक साक्षरता नहीं है।

मेघालय, उड़ीसा, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से थोड़ा कम है।
कारण –

  1. अधिकतर जनसंख्या गाँवों में रहती है।
  2. गरीबी तथा अज्ञानता के कारण साक्षरता दर कम है।
  3. जम्मू-कश्मीर तथा अरुणाचल प्रदेश पर्वतीय राज्य हैं। यहाँ परिवहन के साधनों का अभाव है।

केन्द्रशासित प्रदेशों में क्रमशः लक्षद्वीप (87.52%), दिल्ली (81.82%), चण्डीगढ़ (81.72%), पांडिचेरी (81.49%), अंडमान व निकोबार (81.18%) तथा दमन व दीव (81.9%) हैं।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 1
चित्र : साक्षरता दर

भारत के 22 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है जबकि 13 राज्यों और संघशासित प्रदेशों में औसत से कम है। इसके कारण निम्नलिखित हैं-

  1. उच्च नगरीकरण का कारण उच्च साक्षरता दर है।
  2. उत्तरी-पूर्वी राज्यों में उच्च साक्षरता दर का कारण मिशनरियों का प्रभाव है।
  3. कई राज्यों में साक्षरता के विकास में सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

निम्न साक्षरता दर वाले राज्यों में बिहार, झारखंड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दादरा व नगर हवेली, राजस्थान व आन्ध्र प्रदेश है। इन सभी राज्यों में साक्षरता दर 54 प्रतिशत से 62 प्रतिशत के बीच है।

प्रश्न 6.
भारत के 15 प्रमुख राज्यों में मानव विकास के स्तरों में किन कारकों ने स्थानिक भिन्नता उत्पन्न की है ?
उत्तर:
मानव विकास को प्रभावित करने वाले सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक कारक उत्तरदायी हैं। इनमें शिक्षा महत्त्वपूर्ण है। केरल के मानव विकास सूचकांक का उच्चतम मूल्य इसके द्वारा 2001 में साक्षरता दर शत प्रतिशत (90.92) प्राप्त करने के कारण हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों में निम्न साक्षरता दर है।

आर्थिक कारक (Economic factor) – आर्थिक दृष्टि से विकसित महाराष्ट्र, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्य के विकास सूचकांक अन्य राज्यों से ऊँचे हैं।

उपनिवेश काल में विकसित प्रादेशिक विकृतियाँ और सामाजिक विषमताएँ अब भी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल रही है।

निम्न सारणी भारत के राज्यों का मानव विकास दर्शाती है जो 2001 के सूचकांक के आधार पर है।
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प्रश्न 7.
प्रतिरूप के आधार पर ग्रामीण अधिवासों का वर्गीकरण प्रस्तुत करें।
अथवा, ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रतिरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक-दूसरे से संबंधित हैं। गांव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, स्थलाकृति एवं भू-भाग प्रमुख स्थान रखते हैं। भारत में ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रतिरूप निम्न हैं-

  • रैखिक प्रतिरूप – इस प्रकार के प्रतिरूप के अंतर्गत मकान, सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं। जैसे-गंगा नदी के किनारे स्थित गाँव।।
  • आयताकार प्रतिरूप – ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरापर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इनमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती है।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप – इस प्रकार के ग्रामीण बस्ती झील व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस जाने से विकसित होती है।
  • तारे के आकार का प्रतिरूप-जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उस मार्ग के सहारे मकान का निर्माण हो जाता है। वहाँ इस प्रकार के प्रतिरूप से संबंधित बस्तियाँ विकसित हो जाती है।
  • ‘टी’ आकार, ‘वाई’ आकार एवं ‘क्रॉस’ आकार-‘टी’ के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती है। जबकि ‘वाई’ आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलती है। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहे पर विकसित होती है।

प्रश्न 8.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ (ii) गुच्छित और अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (iii) रैखिक और वृत्ताकार बस्तियाँ।
उत्तर:
(i) ग्रामीण बस्तियाँ (Rural Settlements)-

  1. ग्रामीण बस्तियों के निवासी अधिकतर प्राथमिक कार्यों में संलग्न होते हैं।
  2. ग्रामीण बस्तियों के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि होता है। गाँव के चारों ओर खेत होते हैं।
  3. गाँव के लोग अपने कृषि उत्पादन का अवशेष भाग नगरों में बिक्री को भेजते हैं।
  4. ग्रामीण बस्तियाँ छोटे आकार की होती हैं।
  5. इनकी जनसंख्या कम होती है। प्राय: 10-20 से 1000 व्यक्ति तक रहते हैं।
  6. इनमें आधुनिक सुविधाएँ नहीं होती।

नगरीय बस्तियाँ (Urban Settlements)-

  1. नगरीय बस्तियों के निवासी द्वितीयक और तृतीयक कार्यों में लगे होते हैं।
  2. नगरों में निर्माण उद्योगों द्वारा अनेक वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा अधिशेष उत्पादन को गाँव में भी भेजते हैं।
  3. नगरीय बस्तियों का आकार बड़ा होता है। ये सुव्यवस्थित होती हैं।
  4. कोई भी बस्ती तब तक नगर नहीं कहलाती जबतक उसमें 5000 व्यक्ति न हों।
  5. नगरों में घर और गलियाँ पास-पास होती हैं। यहाँ खुले क्षेत्र कम होते हैं।
  6. इनमें आधुनिक सुविधाएँ होती हैं।

(ii) गुच्छित बस्तियाँ (Clustered Settlements)-

  1. इन बस्तियों में ग्रामीण घरों के संहत खंड पाए जाते हैं।
  2. घरों की दो कतारों को संकरी तथा टेढ़ी-मेढ़ी गलियाँ पृथक् करती हैं।
  3. इन बस्तियों का एक अभिन्यास होता है जो रैखिक, आयताकार, आकृति अथवा कभी-कभी आकृतिविहीन होता है।
  4. इस प्रकार की बस्तियाँ भारत के सघन प्रदेशों में पाई जाती हैं।

अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ (Semi-clustered Settlement)-

  1. सामान्यतया ये बस्तियाँ किसी बड़ी बस्ती के विखण्डन के परिणामस्वरूप बनती हैं।
  2. किसी बड़े संहत गाँव के एक या दो वर्ग स्वेच्छा या मजबूरी से गाँव से अलग बस्ती बनाकर रहते हैं। ये मुख्य गाँव के समीप होती है।
  3. इन बस्तियों में लोग निम्न वर्ग के होते हैं जो प्रायः छोटे महत्त्वहीन कार्यों में लगे होते हैं।
  4. इस प्रकार की बस्तियाँ गुजरात राज्य के मैदानी भागों में पाई जाती हैं।

(iii) रैखिक बस्तियाँ (Linear Settlement)-

  1. इस प्रकार की बस्तियों में मकानों की दो समांतर कतारें होती हैं।
  2. मकान एक-दूसरे के आमने-सामने होते हैं।
  3. इस प्रकार की बस्तियाँ मणिपुर, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में पाई जाती हैं।
  4. इस प्रकार की बस्तियों में प्रमुखतः जनजातियों के लोग पाये जाते हैं।

वृत्ताकार बस्तियाँ (Circular Settlements)-

  1. किसी झील पर तालाब के किनारे इस प्रकार की बस्ती बन जाती है।
  2. इस प्रकार की बस्तियों में प्रायः जुलाहे, धोबी, मछुआरे आदि रहते हैं।
  3. इस प्रकार के गाँव गंगा-यमुना दोआब, मध्य प्रदेश, पंजाब आदि में पाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
नगर बहुप्रकार्यात्मक होते हैं। क्यों ?
अथवा, कार्यों के आधार पर नगरों का विस्तृत कार्यात्मक विवरण प्रस्तुत करें।
उत्तर:
नगरों में अनेक प्रकार के व्यवसाय मिलते हैं। कुछ नगरों में सामाजिक तथा आर्थिक महत्त्व के कार्य किए जाते हैं तो कुछ नगर उद्योग या सैनिक महत्त्व के होते हैं। फिर भी किसी एक कार्य के लिए किसी नगर को विशेष वर्ग में रखा जाता है। इस प्रकार कार्य व्यवस्था के आधार पर नगरों को निम्नलिखित वर्गों में रखा जाता है-

  • प्रशासनिक नगर – राष्ट्र की राजधानियाँ जहाँ पर केन्द्रीय सरकार के प्रशासनिक कार्यालय होते हैं, उन्हें प्रशासनिक नगर कहा जाता है। जैसे-नई दिल्ली, कैनबेरा, लंदन, वाशिंगटन डी. सी.।
  • व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर – व्यापार और वाणिज्य से संबंधित कार्यों की प्रधानता वाले क्षेत्र व्यापारिक एवं व्यावसायिक नगर कहे जाते हैं। जैसे-मुम्बई, कोलकाता, न्यूयार्क, साउपोलो।
  • औद्योगिक नगर – उद्योगों से संचालित होने वाले कार्यों से संबंधित क्षेत्र को औद्योगिक नगर कहते हैं। जैसे-मॉट्रिक, बोस्टन, मैनचेस्टर, अहमदाबाद।
  • परिवहन नगर – वैसे क्षेत्र जहाँ सड़क एवं रेलमार्ग जैसे कार्यों के कारण नगर का विकास होता है, उसे परिवहन नगर कहते हैं। जैसे-भारत के मुगलसराय, शिकांगो, पर्थ, कोलम्बे आदि।
  • खनन नगर – जिन क्षेत्रों में खनिजों को निकालने से संबंधित कार्य किये जाते हैं। वैसे नगर को खनन नगर कहते हैं। जैसे-धनबाद, मेसाबी, हुनान, बोकारो।
  • शैक्षिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ शिक्षा एवं प्रशिक्षण से संबंधित कार्य किये जाते हैं, उस नगर को शैक्षिक नगर कहते हैं। जैसे-दिल्ली, कैम्ब्रिज, पेरिस, इलाहाबाद, रूड़की।
  • सांस्कृतिक नगर – वैसे नगर क्षेत्र जहाँ धार्मिक क्रियाकलापों की प्रधानता होती है, उस नगर क्षेत्र को सांस्कृतिक नगर कहते हैं। जैसे-वाराणसी, मथुरा, प्रयाग, रामेश्वरम्, गया, येरूसलम, मक्का, मदीना आदि।

विशिष्टीकृत नगर भी महानगरों के रूप में विकसित होने के बाद बहुप्रकार्यात्मक बन जाते हैं। तब इनमें उद्योग, व्यापार, प्रशासन और परिवहन आदि प्रकार्य प्रमुख हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
उल्लेखनीय विकास के बावजूद भारतीय कृषि अनेक समस्याओं से ग्रस्त है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यद्यपि कृषि के विकास के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं। कृषि का आधुनिकीकरण तथा पैकेज टेक्नोलॉजी के फलस्वरूप देश में हरित क्रान्ति आई। लेकिन हमारी कृषि अनेक समस्याओं से जूझ रही है। इनको चार वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

  1. पर्यावरणीय,
  2. आर्थिक,
  3. संस्थागत,
  4. प्रौद्योगिकीय।

1. पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors) – पर्यावरण कारकों में मानसून का अनिश्चित स्वरूप है। वर्षा की नियमित और पर्याप्त आपूर्ति नहीं होती। मानसून की अवधि में भी वर्षा का वितरण असमान है जिससे इस अवधि में भी फसलों को पर्याप्त जल नहीं मिल पाता। इसके अतिरिक्त कृषि योग्य उपजाऊ मृदा के क्षेत्र अर्धशुष्क और उप-आर्द्र हैं जिनमें फसलें सिंचाई के बिना नष्ट हो जाती हैं। इसलिए सिंचाई की सुविधाओं का विकास आवश्यक है।

2. आर्थिक कारक (Economic Factors) – आर्थिक कारकों में कृषि में निवेश है। किसान अच्छे बीज तथा उर्वरक नहीं खरीद सकते। विभिन्न प्रकार की कृषि मशीनों तथा नलकूप आदि का प्रबन्ध नहीं कर सकते। विपणन असुविधाओं के कारण तथा उचित ब्याज दर पर बैंकों से ऋण न मिलने के कारण किसान कृषि में अधिक निवेश नहीं कर सकते। इसका प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है।

3. संस्थागत कारक (Institutional Factors) – जनसंख्या के बढ़ते दबाव के कारण खेतों का छोटा तथा बिखरा होना एक समस्या है। इस प्रकार से जोत अनार्थिक हो जाती है। इन कारणों से किसान अपने खेतों की देखभाल पूर्ण रूप से नहीं कर सकता। न ही वह प्रत्येक खेत पर नलकूप या अन्य मशीन लगा सकता है।

इसके अतिरिक्त जमींदारी व्यवस्था भी इसमें बाधक है। किसान को भू-स्वामित्व नहीं मिलता। इसलिए वह उन खेतों पर निवेश नहीं करता है।

4. प्रौद्योगिकीय कारक (Technological Factors) – कृषि के पुराने तरीके अक्षम हैं। उनसे उत्पादन को बढ़ाया नहीं जा सकता। अभी तक प्रौद्योगिकी का उपयोग सीमित क्षेत्रों में हुआ है। जैसे-पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में। अधिकतर भागों में किसान आज परम्परागत साधनों का उपयोग कर रहा है जिससे उत्पादन कम होता है। अभी भी देश में दो-तिहाई भाग पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध नहीं है। वर्षा पर ही निर्भर रहना पड़ता है और केवल एक ही फसल उत्पन्न की जाती है।

ये सब समस्यायें कृषि की उत्पादकता और इसका गहनता को निम्न बनाए हुए हैं।

प्रश्न 11.
रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बताइए एवं कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम लिखें।
उत्तर:
रोपण कृषि दो शताब्दी पुरानी कृषि पद्धति है। इसका प्रादुर्भाव ब्रिटिश जनजातियों के साथ हुआ। इस कृषि पद्धति के विकास में यूरोप तथा अमरीका पूँजी निवेश करता था। इसमें चाय, कहवा, नारियल, केला, मसाले, रबड़, कोको आदि मुख्य फसलें हैं।

रोपण कृषि एक व्यावसायिक कृषि पद्धति है जिसमें मानवीय श्रम की प्रधानता होती है। इसमें मशीनों का प्रयोग भी होता है। समशीतोष्ण देशों से ही प्रशासनिक एवं कुशल तकनीकी, श्रमिक कृषि उपकरण, खाद, दवाइयाँ, श्रमिकों के भोजन, वस्त्र, परिवहन सामग्री, औद्योगिक मशीनें मँगाई जाती हैं। श्रमिक भी स्थानीय होते हैं। पौधा रोपण कृषि के अधि कांश क्षेत्र समतलीय होते हैं। ऐसे क्षेत्र उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बिखरे मिलते हैं। विश्व में रोपण कृषि दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मिलती है।

प्रमुख फसलें व उनके उत्पादक क्षेत्र : इस पद्धति में रबड़, चाय, गन्ना, कहवा. नारियल, मसाले, कोको, केला आदि प्रमुख फसलें हैं। इन फसलों का विशेष क्षेत्रीय प्रतिरूप भी दृष्टिगोचर होता है। जैसे- रबड़-मलेशिया, इण्डोनेशिया व थाईलैण्ड; गन्ना क्यूबा, पेरू, वेनेजुएला, ब्राजील, पूर्वी अफ्रीका एवं मेगागास्कर; चाय-भारत, चीन, श्रीलंका; कहवा-ब्राजील, कोलम्बिया, दक्षिण भारत; मसाले दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; कोको-ब्राजील, पश्चिमी अफ्रीका; नारियल-दक्षिण भारत, फिलीपीन्स; केला-मध्य अमरीका, भारत तथा पश्चिमी द्वीपसमूह आदि।

प्रश्न 12.
हरित क्रांति की व्याख्या करें।
उत्तर:
हरित क्रांति खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा प्रयुक्त की गई नई तकनीक थी। जिसके अंतर्गत अपने देश की कृषि में आधुनिक विकास के लिए मुख्यतः नए बीज कीटनाशक और रासायनिक उर्वरक का प्रयोग तथा सुनिश्चित जलापूर्ति की अवस्थाओं एवं उपकरणों के प्रयोग के परिणामस्वरूप अनाजों के उत्पादन में वृद्धि हुई, जिसे हरित क्रांति की संज्ञा दी गई।

हरित क्रान्ति के कारण विभिन्न वर्गों और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। खेतिहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। इसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को प्रभावित किया।

भारत में हरित क्रांति की सफलता के लिए निम्नलिखित कार्यक्रम उत्तरदायी रहे हैं-

  • खाद्यान्न फसलों की अधिक उपज देने वाली किस्मों का अधिकाधिक प्रचलन।
  • रासायनिक उर्वरकों की खपत में तेजी से होने वाली वृद्धि।
  • कीटनाशक रसायनों के उपयोग में वृद्धि।
  • भूमि संरक्षण कार्यक्रम।
  • गहन कृषि जिला कार्यक्रम तथा गहन कृषि क्षेत्र कार्यक्रम।
  • बहुफसली कृषि कार्यक्रम।
  • आधुनिक कृषि उपकरण एवं संयंत्रों का अधिक प्रयोग।

प्रश्न 13.
भारतीय कृषि पर भूमंडलीकरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भू-मंडलीय का अर्थ है-‘आर्थिक क्रियाओं का देश की सीमाओं से आगे विस्तार करना अर्थात् देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ देना। भूमंडलीकरण का प्रभाव भारतीय कृषि पर पड़ा है।

  • विदेशी कृषि उत्पादनों का आयात किया जा सकता है भले ही वे देश में पैदा किए जा रहे हों। उदाहरण के लिए आस्ट्रेलिया से सेबों का आयात किया गया है जबकि हमारे देश की मांग देश के उत्पादन से पूरी की जा सकती है लेकिन हम आस्ट्रेलिया से आयात को नहीं रोक सकते।
  • भारतीय किसान को विदेशी उत्पादों के मूल्य तथा गुणवत्ता से मुकाबला करना होगा। यदि हमारे देश का चावल महँगा होगा तो लोग विदेशी चावल खरीदेंगे।
  • अनेक देशों की सरकारें किसानों को उत्पादन में छूट देती हैं जिससे उनके उत्पादन सस्ते होते हैं जबकि भारत में ऐसा कुछ नहीं है।
  • विदेशी किसान जैव प्रौद्योगिकी तथा उन्नत तकनीक का प्रयोग करके अपना उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ा लेता है तथा लागत घटा देता है लेकिन भारत में इस प्रकार की सुविधा नहीं है।
  • भारतीय किसान अपने खेती के पुराने तौर-तरीकों से विदेशी किसान के सामने कैसे टिक पायेगा। उसे भी नई तकनीक अपनाकर अपने उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी तथा लागत घटानी होगी।
  • भूमंडलीकरण के नियमों के अनुसार किसानों को अनुदान नहीं दिये जा सकते। आयात-निर्यात पर लगे सीमा शुल्क जैसे बंधनों को भी हटाना होगा।
  • हमारे देश में कृषि के विकास की बहुत संभावनाएँ हैं। नियोजन के द्वारा उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ानी होगी। व्यापारी और किसानों को संगठन बनाना होगा। सड़कें, बिजली, सिंचाई और ऋण सम्बन्धी सुविधाएँ बढ़ानी होंगी।

प्रश्न 14.
खरीफ की फसल तथा रबी की फसल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
खरीफ फसलें (Kharif Crops)-

  1. यह वर्षा के प्रारंभ में बोई जाती है और शरद ऋतु के आरंभ में काट ली जाती है। (मइ-जून से सितम्बर-अक्टूबर)
  2. भारत में खरीफ फसलों के अंतर्गत अपेक्षाकृत अधिक क्षेत्र है।
  3. चावल, मक्का, मूंगफली, ज्वार-बाजरा तथा मूंग-उर्द इस कृषि मौसम में होती है।

रबी फसलें (Rabi Crops)-

  1. यह फसल अक्टूबर-नवम्बर में जाड़ों के प्रारम्भ में बोई जाती है तथा अप्रैल-मई में गर्मियों में काट ली जाती है।
  2. भारत में रबी फसलों के अंतर्गत कृषि क्षेत्र खरीफ की अपेक्षा कम है। 3. गेहूँ, जौ, चना, अलसी, तोरिया, सरसों इस कृषि ऋतु में पैदा की जाती हैं।

प्रश्न 15.
भारत में गन्ने की खेती का वितरण मिट्टी और जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:

  1. भारत विश्व में गन्ना उत्पादन में सबसे अग्रणी देश है। यह चीनी निर्माण का आधार है। इसके लिए लम्बे वर्धनकाल की आवश्यकता है। यह उष्ण तथा उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा है।
  2. इसके लिए 25-27°C तापमान की आवश्यकता होती है।
  3. 100 सेमी. से अधिक वर्षा होनी चाहिए। अच्छी जल आपूर्ति के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  4. अच्छे जल निकास वाली उपजाऊ मिट्टी में इसकी उपज अधिक होती है।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 3

पंजाब से कन्याकुमारी तक गन्ने की पैदावार की जा रही है। गन्ने की कृषि 33 लाख हेक्टेयर भूमि पर की जा रही है (1998 ई०)। भारत में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, पंजाब, बिहार, आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में भी गन्ने का उत्पादन होता है।

प्रश्न 16.
भारत में चावल के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दीजिए।
उत्तर:
चावल भारत का प्रमुख खाद्यान्न है। उपज की दृष्टि से चावल उत्पादन में भारत का सातवाँ स्थान है। चावल देश के 23% भाग पर पैदा किया जाता है। 2001 ई० में भारत की 44 लाख हेक्टेयर भूमि पर चावल का उत्पादन किया गया तथा इसी वर्ष देश में 8.49 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ। भारत में चावल का उत्पादन 2001 ई० के अनुसार 1913 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया है, फिर भी जापान और कोरिया की तुलना में हमारी प्रति हेक्टेयर उपज बहुत कम है।

भारत में चावल उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं-पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, बिहार तथा उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा आदि। निम्न सारणी में चावल का क्षेत्र तथा उत्पादन दिखाया गया है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 4
सारणी-भारत : प्रमुख राज्यों में चावल का क्षेत्र और उत्पादन (2000-01)
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 5

प्रश्न 17.
भारत में कपास की खेती का विवरण मिट्टी तथा जलवायु सम्बन्धी आवश्यकताओं, क्षेत्रफल, उत्पादन क्षेत्रों और उत्पादन के संदर्भ में दीजिए।
उत्तर:
भारत में कपास की खेती प्राचीन समय से हो रही है। भारत कपास की मूल भूमि है।
उत्पादन दशाएँ : मिट्टी-कपास के लिए उपजाऊ दोमट मिट्टी तथा दक्षिण भारत की काली. मृदा सबसे अच्छी रहती है। सुप्रवाहित भूमि इसके लिए अच्छी मानी जाती है।

जलवाय (Climate) – इसकी उपज के लिए 20° से 35° से. तक उच्च तापमान होना चाहिए। पाला कपास की पैदावार कम कर देता है। इसके लिए 50 सेमी. से लेकर 100 सेमी. वर्षा होनी चाहिए। कपास के गोले को पकते समय तेज धूप आवश्यक है।

क्षेत्रफल – 1950-51 में 59 लाख हेक्टेयर भूमि में कपास की खेती की गई थी। 1986-87 में 70 लाख हेक्टेयर तथा 2002-03 में बढ़कर 86 लाख हेक्टेयर हो गया।

उत्पादन (Production) – 1950-51 में कपास का उत्पादन 31 लाख गाँठे (एक गाँठ – 170 किलोग्राम) था जो 2003-04 में बढ़कर 1.35 करोड़ गाँठे हो गया। 1996-97 में कपास का रिकॉर्ड उत्पादन हआ था जो 1.42 करोड गाँठे थीं।

कपास का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 1950-51 में 88 किलोग्राम था जो 2002-03 में बड़कर 193 किलोग्राम हो गई।

भारत में कपास का उत्पादन महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में होता है। इनके अतिरिक्त दक्षिणी कर्नाटक, पश्चिम आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी इसका उत्पादन होता है।

प्रश्न 18.
जल संसाधनों की ह्रास सामाजिक द्वंद्वों और विवादों को जन्म देते हैं। इसे उपयुक्त उदाहरणों सहित समझाइए।
उत्तर:
जल संसाधनों की कमी सामाजिक विवादों और द्वन्द्व को जन्म देती है। यह कथन सही है। यह एक समस्या बन गई है। यह समस्या कई प्रदेशों में विवाद का मूल कारण बन गया है। इसका एक उदाहरण पंजाब और हरियाणा का विवाद है। हरियाणा अपने राज्य की कृषि सिंचाई क्षेत्रों में जल की माँग कर रहा था जो सतलुज से यमुना तक लिंक नहर द्वारा पूर्ण की जानी थी लेकिन उच्चतम न्यायालय का निर्णय हरियाणा के पक्ष में आने पर भी पंजाब अतिरिक्त जल देने को तैयार नहीं हुआ।

कभी-कभी इस प्रकार की समस्याएँ राजनैतिक लाभ भी देती हैं। कनार्टक और तमिलनाडु के मध्य भी इसी प्रकार का जल विवाद है और इस विवाद के कारण तमिलनाडु चुनाव में राजनैतिक दल लाभ उठाते हैं। इस प्रकार के विवाद पीने के पानी के लिये भी उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे-उत्तर प्रदेश की सरकार ने दिल्ली राज्य को निर्धारित मात्रा में भी कम पानी दिया है। इस प्रकार के विवाद अन्य राज्यों में समय-समय पर उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 19.
भारत में गेहूँ के उत्पादन एवं वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में चावल के बाद गेहूँ दूसरा प्रमुख अनाज है। भारत विश्व का 12 प्रतिशत गेहूँ उत्पादन करता है। यह मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय फसल है। कुल गेहूँ उत्पादन का 85 प्रतिशत क्षेत्र भारत के उत्तरी भाग में केन्द्रित है। देश के कुल बोये गये क्षेत्र में लगभग 14 प्रतिशत भू-भाग पर गेहूँ की कृषि की जाती है। गेहूँ का प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश है। पंजाब तथा हरियाणा में प्रति हेक्टेयर गेहूँ की उत्पादकता 4000 किलोग्राम है जबकि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार में प्रति हेक्टेयर पैदावार मध्यम एवं मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-काश्मीर में प्रति हेक्टेयर उत्पादन कम है।

भारत में गेहूँ का उत्पादन विभिन्न राज्यों में निम्न हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 3, 6

प्रश्न 20.
देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
देश में संसार की सतह क्षेत्र का लगभग 2.45% संसार के जल संसाधनों का 4% भाग आता है। देश में वर्षा से प्राप्त कुल जल लगभग 4000 क्यूसेक किमी. है। सतह जल और पुनः प्राप्त योग्य भूमिगत जल से 1.869 क्यूबिक किमी. जल प्राप्त है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1.22 क्यूबिक किमी. है।

सतह जल की उपलब्धि नदियों, झील और तालाब से होती है। ये ही मुख्य स्रोत हैं। भारत में सभी नदियों में औसत वार्षिक प्रवाह 1.869 क्यूबिक किमी० आँका गया है।

भूमिगत जल संसाधन – देश में कुल पुनः प्रतियोग्य भूमिगत जल संसाधन लगभग 432 क्यूबिक किमी. है। इसका 46% गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में है।

झीलें – झीलें भी जल संसाधन हैं। इन जलाशयों में जो समुद्र तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है खारा जल होता है जिसका उपयोग मछली पालने के लिये किया जाता है।

इस जल संसाधन का वितरण असमान है। देश में उत्तरी भारत की नदियाँ सदा नीरा हैं जबकि दक्षिण भारत की नदियाँ मानसून पर निर्भर करती हैं। गंगा ब्रह्मपुत्र सिंधु नदी के जल ग्रहण क्षेत्र विशाल हैं। दक्षिण भारत की नदियों जैसे गोदावरी, कृष्णा और कावेरी में वार्षिक जल प्रवाह का अधिकतर भाग, काम में लाया जाता है।

संभावित भूमिगत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तामिलनाडु राज्यों में भूमिगत जल का उपयोग बहुत अधिक है। गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा और महाराष्ट्र अपने संसाधन का मध्यम दर से उपयोग कर रहे हैं।