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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
विनियोग के लाभ लिखें।
उत्तर:
विनियोग के लाभ(Advantages of Investment)- यदि अनुभवी विनियोगकर्ता द्वारा परामर्श लेकर सही योजना में धन का विनियोग किया जाए तो वह बहुत ही लाभकारी होता है। सही योजना में धन का विनियोग करने से व्यक्ति भविष्य के लिए आर्थिक रूप से सुरक्षित हो जाता है। उसे भविष्य के आर्थिक मामलों के लिए चिन्तित नहीं होना पड़ता इसलिए वह वर्तमान में सुख-शांति से रहता है।

धन का विनियोजन निरन्तर करते रहने से व्यक्ति को निरन्तर ही कुछ ब्याज तथा मूल राशि इकट्ठी मिलती रहती है जिससे वह अपने जीवन का स्तर समय-समय पर ऊँचा कर सकता है।

किसी भी आकस्मिक घटना पर यदि धन की आवश्यकता हो तो वह जमा राशि में से व्यय करके विनियोग किए गए धन का लाभ उठा सकता है।

कर की बचत (Tax-Saving)- धन के विनियोग की अधिकतर योजनाओं द्वारा जमा की गई धन राशि पर कर नहीं लगता। यह राशि आयकर से पूर्ण रूप से मुक्त होती है। उदाहरण के लिए बैंक (Bank), डाकघर के बचत बैंक (Saving Banks of Post Office), कैश सर्टिफिकेट्स (Cash Certificates), जीवन बीमा (Life Insurance), यूनिट्स (Units), भविष्य निधि योजना (Provident Fund), जन-साधारण भविष्य निधि योजना (Public Provident Fund), नेशनल सेविंग्स सर्टिफिकेट (National Savings Certificate) इत्यादि।

विनियोग द्वारा प्राप्त की गई राशि आयकर से मुक्त होने के कारण नौकरी वालों के लिए, व्यापारी वर्ग के लिए तथा जन-साधारण के लिए, सभी के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 2.
जीवन बीमा और यूनिट्स में धन का विनियोग करने के लाभ व हानियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जीवन बीमा में विनियोग के लाभ-

  • बीमेदार की मृत्यु के बाद उसके परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • बीमेदार ने यदि किसी से ऋण लिया हुआ हो तब भी उसके निधन के बाद बीमे की राशि उत्तराधिकारी को दी जाती है जो लेनदारों से पूर्ण रूप से सुरक्षित है।
  • बीमेदार के व्यवस्था करने पर उसके निधन के बाद बीमे की धनराशि उत्तराधिकारी को किश्तों में दी जाती है जिससे पूर्ण राशि का एक-साथ अपव्यय न हो।
  • बीमेदार को यह सुविधा है कि यदि वह अपनी आय का एक विशेष भाग जीवन बीमा के प्रीमियम के रूप में देता है तो उसपर उसे आयकर नहीं देना पड़ेगा।

इस योजना में कोई हानि नहीं है।

यूनिट्स में विनियोग के लाभ- यूनिट्स, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया द्वारा चालू किए जाते हैं। कोई भी व्यक्ति 10 रुपये के मूल्य के कम से कम 100 व अधिक से अधिक अपनी इच्छानुसार खरीद सकता है। वार्षिक लाभ का 90% विनियोगकर्ताओं में विभाजित कर दिया जाता है। इस यूनिट पर मंगाई गई धनराशि व उसके लाभांश पर आयकर की छूट है।

यूनिट ट्रस्ट की खराब वित्तीय स्थिति में नियोजक को लाभांश न दिये जाने से हानि हो सकती है। परिपक्वता की अवधि पूरी होने पर भी पैसा मिलने में देरी हो सकती है। यूनिट ट्रस्ट द्वारा पुनः खरीद मूल्य कम करने से भी निवेशक को आर्थिक नुकसान हो सकता है।

प्रश्न 3.
जीवन बीमा और डाकघर में निवेश करने के लाभ व हानियों का ब्यौरा दें।
उत्तर:
जीवन बीमा (Life Insurance)- जीवन बीमा अनिवार्य बचत करने का एक उत्तम साधन है। इसके अन्तर्गत बीमादार अपनी आय में से कुछ बचत करके अनिवार्य रूप से एक निश्चित अवधि तक धन विनियोजित करता है। अवधि पूरी होने पर बीमादार को जमा धन और उसपर अर्जित’ बोनस प्राप्त होता है। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि यदि बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए तो बीमादार द्वारा नामांकित व्यक्ति को बीमे की पूरी राशि बोनस सहित मिल जाती है। इसलिए यह योजना जोखिम (Risk) उठाती है, अनिश्चितता को निश्चितता में बदल देती है।

जीवन बीमा के लाभ- बीमादार जीवन बीमा को निम्न लाभों के कारण अपनाता है-

  1. परिवार संरक्षण (Family Protection)- जीवन बीमा का मुख्य उद्देश्य बीमादार के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। विशेष तौर पर जब बीमादार की आकस्मिक मृत्यु हो जाए।
  2. वृद्धवस्था में आर्थिक सहायता हेतु (Economic Help in Old Age)- अवकाश प्राप्ति या वृद्धावस्था में इस योजना से प्राप्त धन का विनियोजन कर ब्याज इत्यादि से बीमादार आर्थिक दृष्टि से सक्षम हो जाता है।
  3. बच्चों की शिक्षा या विवाह हेतु (For child education or Marriage)- इस योजना में लगाया गया धन बच्चों के बड़ा होने पर उनकी शिक्षा एवं विवाह हेतु आर्थिक सहायता के रूप में प्राप्त होता है।
  4. सम्पत्ति कर की व्यवस्था (For Property Tax)- बीमादार की मृत्यु के बाद सम्पत्ति कर देने के लिए बीमा योजना द्वारा मिला धन राहत देता है।
  5. आयकर में छूट (Relief in Income Tax)- बीमादार अपनी आय का जो अंश बीमा योजना पॉलिसी की किस्त चुकाने के लिए देता है उस पर उसे आयकर में छूट मिलती है।

डाकघर बचत बैंक (Post Office Saving)- बैंक की सुविधा देश के प्रत्येक गाँव तक नहीं पहुँची है परन्तु डाकघर की सुविधा देश के प्रत्येक राज्य के गाँव-गाँव में होने के कारण डाकघर बचत खाता चालू किया गया। भारत सरकार ने इसके द्वारा बचत की आदत को प्रोत्साहन दिया है। दो व्यक्ति परन्तु उनमें से एक बालिग अवश्य संयुक्त रूप से अपना खाता खुलवा सकते हैं। डाकघर बचत खाते का स्थानान्तरण भी करवाया जा सकता है। इस खाते के ब्याज पर आयकर नहीं देना पड़ता है। डाकघर के नियम सम्पूर्ण भारत में एक समान हैं। खाते की न्यूनतम रकम 5 रुपया है। यह कम राशि से खोला जा सकता है।

1. डाकघर में छपे फार्म को भरकर कोई भी व्यक्ति या अधिक व्यक्ति संयुक्त खाता पाँच रुपये जमा कर खोल सकता है।

2. 18 वर्ष से कम उम्र वालों के लिए अभिभावक यह खाता खोल सकते है।

3. डाकघर खाते में भी चेक की सुविधा दी जा सकती है। चेक बुक लेते समय जमाकर्ता के खाते में कम-से-कम 100 रुपए होने चाहिए तथा कभी भी खाते में 50 रुपये से कम नहीं

4. खाता खोलने पर एक पास बुक (Pass Book) दी जाती है जिसमें जमा की गई तथा निकाली गई राशि का पूरा लेखा होता है। यदि वह पासबुक खो जाती है तो 5 रुपये देकर पूरी पास बुक ली जा सकती है।

5. डाकघर में पैसा चेक, मनीऑर्डर, ड्रॉफ्ट तथा नकद के रूप में जमा करवाया जा सकता है। इस खाते की एक विशेषता यह है कि मुख्य डाकघर के अधीन जिस डाकघर में खाता खोला गया हों उसके अधीन किसी भी डाकघर में पैसा जमा करवाया जा सकता है। यदि किसी उप-डाकघर में खाता खोला गया हो तो मुख्य डाकघर में भी पैसा जमा करवाया जा सकता है, परन्तु पैसा केवल उसी डाकघर/उप-डाकघर से निकलवाया जा सकता है जहाँ पर खाता खोला गया है।

6. डाकघर खाते में वर्तमान ब्याज की दर 5.5% है।

7. धन निकलवाते समय निश्चित फार्म भरकर पासबुक के साथ डाकघर में दिया जाता है। लिपिक फार्म पर किए गए हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से मिलान करने पर राशि का भुगतान करता है। यदि हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षर से भिन्न हो तो राशि का भुगतान नहीं किया जाता जब तक कि कोई व्यक्ति जो डाकघर में जमाकर्ता को पहचानता हो, गवाही न दे।

8. खाता खोलने के तीन मास बाद यह किसी भी डाकघर में स्थानान्तरिक किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार क्या हैं ? लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार-

  • मल आवश्यकताएँ- इसके अन्तर्गत न केवल जीने के लिए बल्कि सभ्य जीवन के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति आती है। ये आवश्यकताएँ हैं भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा आदि।
  • जागरूकता- इस अधिकार के अन्तर्गत चयन के लिए आपको विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी देना।
  • चयन- उपभोक्ताओं को सही चयन करने के लिए उचित गुणवत्ता और अधिक कीमत वाली कई वस्तुओं को दिखाना ताकि वे उनमें से उपयुक्त वस्तु खरीद सकें।
  • सनवाई- इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को अपने विचार निर्माताओं के समक्ष रखने का अधिकार है। उपभोक्ता की समस्याओं से निर्माताओं को वस्तु-निर्माण में उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलती है।
  • स्वस्थ वातावरण- इससे जीवन और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करके जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता।
  • उपभोक्ता शिक्षण- सही चयन के लिए वस्तु/सामग्री और सेवाओं को उचित जानकारी व ज्ञान का अधिकार उपभोक्ता को मिलना चाहिए।
  • क्षतिपूर्ति (Redressal)- इसका अर्थ है कि यदि उचित सामान प्राप्त न हुआ हो तो. उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलने का अधिकार। जिस भी उपभोक्ता के साथ अन्याय हुआ हो वह अधिकारी के पास जाकर उचित क्षतिपूर्ति ले सकता है।

प्रश्न 5.
उपभोक्ताओं की समस्याओं का उल्लेख कीजिए। इस संदर्भ में उपभोक्ताओं के क्या दायित्व हैं ?
उत्तर:
उपभोक्ताओं की समस्याएँ (Problems Faced by Consumers)- उपभोक्ताओं को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे अस्थिर कीमतें और दुकानदारों के कुचक्र । अतः यह उपभोक्ताओं के हक में है कि वे इन सभी समस्याओं को जानें और ठगे जाने से बचने के लिए इनके निदान भी जानें। उपभोक्ताओं की कुछ समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. कीमतों में अस्थिरता (Variation in Price)- आपने देखा होगा कि कई दुकानों पर सामान की कीमतें बहुत अधिक होती हैं। ऐसा क्यों है ? ऐसा निम्नलिखित कारणों से हो सकता है-

  • दुकानदार अधिक लाभ कमाता है।
  • यदि वह प्रतिष्ठित दुकानदार है तो दुकान की देख-रेख, सामान के विज्ञापन और खरीद की कीमत को पूरा करता है।
  • दुकान में कम्प्यूटर, एयरकण्डीशन लगे होने के कारण दुकान की लागत अधिक होती है अतः उपभोक्ता से इन सुविधाओं की कीमत वसूल की जाती है।

कई दुकानें विज्ञापन पर बहुत पैसा खर्च करती हैं। घर पर निःशुल्क सामान पहुँचाने की सेवा भी उपभोक्ता से अधिक कीमत लेकर उपलब्ध कराई जाती है।

समृद्ध रियायशी क्षेत्रों में बने नये आकार-प्रकारों के बाजारों में भी सामान की कीमत अधिक होती है।

2. मिलावट (Adulteration)- उपभोक्ताओं के सामने मिलावट की समस्या बहुत गंभीर है। इसका अर्थ है मूल वस्तु की गुणवत्ता, आकार और रचना में से कोई तत्त्व निकाल कर या डालकर परिवर्तन लाना। मिलावट वांछित और प्रासंगिक हो सकती है। क्या आपको स्मरण है इन दोनों में क्या अन्तर है ?

प्रासंगिक मिलावट तब होती है जब दुर्घटनावश दो अलग-अलग वस्तुएँ जिनकी गुणवत्ता अलग-अलग है, मिल जायें और वांछित मिलावट वह होती है जब जान-बूझ कर उपभोक्ता को ठगने और अधिक लाभ कमाने के लिए की जाये।

3. अपूर्ण/धोखा देने वाले लेबल (Inadequate/Misleading Labelling)- प्रतिष्ठित ब्राण्ड की कमियाँ इतनी चतुराई से ढंक दी जाती हैं कि उपभोक्ता असली और नकली लेबल की पहचान नहीं कर पाता। निर्माता निम्न गुणवत्ता वाले सामान को प्रतिष्ठित सामान के आकार और रंग के लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को गुमराह कर देते हैं। उनमें अन्तर इतना कम होता है कि एक बहुत सजग उपभोक्ता ही उसे पहचान सकता है।

एक लेबल में क्या-क्या जानकारी होनी चाहिए यह आप पहले पढ़ चुके हैं। क्या आपको स्मरण है ? पूर्ण जानकारी और सजगता के लिए उसे फिर से पढ़िये। एक अच्छे लेबल से आपको उस वस्तु की रचना, संरक्षण और प्रयोग की पूर्ण जानकारी मिलनी चाहिए। डिब्बा-बन्द वस्तुओं के खराब होने की तिथि से आप उसको सुरक्षा से उपभोग कर सकते हैं। निर्माता वस्तुओं पर उचित प्रयोग के संकेत न देकर उपभोक्ता को ठग लेते हैं।

4. दुकानदारों द्वारा उपभोक्ता को प्रेरित करना (Customer Persuation by Shopkeepers)- दुकानदार उपभोक्ता को एक खास वस्तु/ब्रांड खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं, क्योंकि उस ब्राण्ड पर उन्हें अधिक कमीशन मिलता है। आजकल बाजार में बहुत किस्मों की ब्रेड मिलती है। आपने देखा होगा कि आपके पास का दुकानदार एक खास ब्राण्ड की डबलरोटी ही रखता है। आप जानते हैं क्यों ? एक जागरूक और समझदार उपभोक्ता को चाहिए कि वह उस दुकानदार को अन्य किस्मों की ब्रेड रखने के लिए प्रेरित करे ताकि आप उसमें से अपनी पसंद की ब्रेड चुन सकें। यदि यह’ संभव न हो तो आपको किसी अन्य दुकानं या दुकानदार के पास जाना चाहिए।

5. भ्रामक विज्ञापन (False Advertisement)- उपभोक्ता को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन की सहायता ली जाती है। उपभोक्ता को प्रेरित करने के लिए विज्ञापन एक बहुत ही सबल माध्यम है। वस्तु का विज्ञापन इतनी चतुराई से किया जाता है कि उपभोक्ता उसे खरीदने के लिए तत्पर हो जाता है। चॉकलेट, चिप्स, ठंडे पेय, जूस, जीन्स, टूथपेस्ट तथा अन्य साज-सज्जा के सामान और स्कूटर, गाड़ियाँ इत्यादि से संबंधित विज्ञापन से अधिकतर किशोर उपभोक्ता आकर्षित हो जाते हैं। जब कोई वस्तु विज्ञापित से खरी नहीं उतरती तो उपभोक्ता निराश हो जाते हैं।

6. विलम्बित/अपूर्ण उपभोक्ता सेवाएँ (Delayed and Inadequate Consumer Services)- उपभोक्ता सेवाएँ जैसे स्वास्थ्य, पानी, बिजली, डाक व तार की सुविधा बहुत से घरों में दी जाती है। इन सेवाओं की दोषपूर्ण देख-रेख के कारण ये सेवायें उपभोक्ताओं को असुविधा देती है। उदाहरण-इन सेवाओं से जुड़े कार्यकर्ता जब ठीक से ये सुविधायें उपलब्ध न करा सकें तो उपभोक्ता झुंझला जाते हैं।

उपभोक्ता के दायित्व (Responsibilities of the Consumer)- उपभोक्ता के लिए अपने अधिकारों और दायित्वों के प्रति जागरूक होना अत्यन्त आवश्यक है। उपभोक्ता के निम्नलिखित दायित्व हैं-

  • कुछ भी खरीदने या उपयोग करने से पहले उपभोक्ता का दायित्व है कि वह सही जानकारी प्राप्त करे।
  • उपभोक्ता को सही चयन करना चाहिए। सही चयन का दायित्व उपभोक्ता पर ही होता है।
  • केवल वही वस्तु खरीदें जिसकी गुणवत्ता पर विश्वास हो।
  • यदि असन्तुष्ट हों तो उपभोक्त अदालत में जाएँ और क्षतिपूर्ति प्राप्त करें।

प्रश्न 6.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की मुख्य विशेषताएँ समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ (The Salient Features of Consumer Protection Act)-
(a) कानून का उपयोजन (Application of the Law)- यह अधिनियम वस्तु और सेवाओं दोनों पर लागू होता है। वस्तु वह होती है जिसका निर्माण होता है, उत्पादन होता है और जो उपभोक्ताओं को विक्रेताओं द्वारा बेची जाती है। सेवाओं के अन्तर्गत-यातायात, टेलीफोन, बिजली, सड़कें और सीवर आदि आती हैं। ये अधिकार सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायियों द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

(b) क्षतिपूर्ति तंत्र तथा उपभोक्ता मंच (Redressal Machinary and Consumer Forum)- वस्तुओं और सेवाओं के विरुद्ध परिवेदना निवारण के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत न्यायिक कल्प की स्थापना की गई है। इस तंत्र के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों पर उपभोक्ता मंच बनाये गए हैं। ये मंच उपभोक्ताओं के हित की रक्षा तथा उनके संरक्षण का कार्य करते हैं।

अनुदान की राशि को ध्यान में रखते हुए विभिन्न स्तरों के न्यायिक कल्प तंत्र के समीप जाया जा सकता है। अधिष्ठाता सेवानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता सेनानिवृत या कार्यरत अफसर हो सकता है। जिला तथा राज्य स्तर के मंच पर अधिष्ठाता के अतिरिक्त केवल एक समाज सेविका तथा एक शिक्षा/व्यापार आदि के क्षेत्र में प्रतिष्ठित . व्यक्ति ही होता है।

राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सरकार एक महिला समाज सेविका, एक अधिष्ठाता सहित चार सदस्यों को नियुक्त करती है।

(c) शीघ्र निवारण (Expeditious Disposal)- उपभोक्ताओं को न्याय के लिये अधिक इंतजार न करना पड़े इसके लिये इस अधिनियम के अन्दर सभी मामले का नब्बे दिन के अन्दर निवारण करने की व्यवस्था की गई है। इससे उपभोक्ताओं को संतोषजनक न्याय के लिए अनावश्यक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती है।

(d) सलाहकार समितियाँ (Advisory Bodies)- परिवेदना-निवारण सलाकार निगम जैसे उपभोक्ता संरक्षण परिषद् तथा केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद् की राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर स्थापना की गई है। ये परिषदें उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती हैं। उपभोक्ता प्रशिक्षण तथा अनुसंधान केन्द्र (CERC) उपभोक्ताओं को विज्ञापन से प्रेरित करता है।

प्रश्न 7.
उपभोक्ता शिक्षा के क्या लाभ हैं ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है कि उपभोक्ता स्वयं अपने अधिकार से परिचित हो ताकि वह अपने द्वारा व्यय किये जाने वाले धन का सदुपयोग कर सके। उसके लिए यह आवश्यक है कि वस्तु खरीदने से पहले ही उसे वस्तु की जानकारी हो जिससे विक्रेता या उत्पादक उसे धोखा न दे सके। यह जानकारी वह निम्नलिखित माध्यमों द्वारा प्राप्त कर सकता है-

1. लेबल- इसके द्वारा उपभोक्ता को यह पता चलता है कि बन्द पात्र के अंदर कौन-सी वस्तु है और वह कितनी उपयोगी है।  भारतीय मानक ब्यूरो ने अच्छे लेबल के निम्नलिखित गुण निर्धारित किये हैं- (i) पदार्थ का नाम (ii) ब्रॉण्ड का नाम (iii) पदार्थ का भार (iv) पदार्थ का मूल्य (v) पदार्थ को बनाने में प्रयोग किये गये खाद्य पदार्थों की सूची (vi) बैच या कोड नं. (vii) निर्माता का नाम और पता (viii) स्तर नियंत्रक संस्थान का नाम आदि।

2. प्रमाणन स्तर- प्रमाणन चिह्न हमें किसी वस्तु के स्तर की जानकारी देती है। जब, उपभोक्ता किसी वस्तु को खरीदता है तो उसका स्तर वैसा ही मिलता है। उसकी कहीं भी जाँच की जा सकती है। मानकीकरण का कार्य वस्तुओं की संरचना, उसके संपूर्ण विश्लेषण तथा सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है।

3. विज्ञापन- इसके द्वारा उपभोक्ता अनेक पदार्थों एवं सेवाओं के बारे में ज्ञान प्राप्त करता है। टेलीविजन, रेडियो, पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों आदि में विज्ञापन देखकर वस्तु के बारे में उपभोक्ता ज्ञान प्राप्त करता है। विज्ञापन द्वारा वह अनेक सेवाओं के विषय में जानकारी रखता है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उपभोक्ता शिक्षा के अनेक लाभ हैं जिसका वह समय पर उपयोग कर सकता है। उपभोक्ता शिक्षा के कारण आज जागरुकता बढ़ी है। लोग अपने हितों को लेकर सचेत हैं।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता के क्या अधिकार है ? खरीदारी करते समय उपभोक्ता को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:
“किसी भी उत्पादित वस्तु को खरीदनेवाला उपभोक्ता कहलाता है।” उपभोक्ता द्वारा खरीदी जानेवाली वस्तु उसके लिए किसी प्रकार से हानिकारक नहीं होनी चाहिए तथा उसे खरीद दारी करते समय किसी प्रकार का धोखाधड़ी का सामना न करना पड़े, इसके लिए उपभोक्ताओं के कुछ अधिकार दिये गये हैं, उपभोक्ता शिक्षा उन्हें इस बारे में सजग कराती है। वे निम्नलिखित हैं-

  • सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य पदार्थों, नकली दवाईयाँ आदि के बिक्री पर रोक की माँग कर सकते हैं।
  • जानकारी का अधिकार- उपभोक्ता किसी भी वस्तु की गुणवत्ता, शुद्धता, कीमत, तौल, आदि की जानकारी की माँग कर सकते हैं।
  • चयन का अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि विक्रेता उसे सभी निर्माताओं की बनी हुई वस्तु दिखायें ताकि वह उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उचित कीमत पर गुणवत्ता वाली वस्तु खरीद सके।
  • सुनवाई का अधिकार- खरीदी गई वस्तु में कोई कमी होने पर उपभोक्ता को यह अधिकार है कि ये वस्तु निर्माता विक्रेता तथा संबंधित अधिकारी से शिकायत कर सकते हैं।
  • क्षतिपूर्ति का अधिकार- वस्तुओं तथा सेवाओं से होनेवाले नुकसान की क्षतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार- उपभोक्ता सही जानकारी वह सही चुनाव करने के ज्ञान की मांग कर सके।
  • स्वस्थ वातावरण अधिकार- उपभोक्ता को अधिकार है कि वह ऐसे वातावरण में रहे तथा कार्य करे जो स्वास्थ्यपूर्ण है।

उपभोक्ता शिक्षा के अभाव में आज के सभी उपभोक्ताओं को उक्त सभी अधिकारों की जानकारी नहीं रहती है। जिसके कारण बाजार में खरीदारी करते समय उपभोक्ता को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है, कुछ मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • वस्तुओं में मिलावट- प्रतिदिन की खरीदारी में उपभोक्ता को वस्तुओं में मिलावट का सामना करना पड़ता है। मिलावट का कारण मुनाफाखोरी वस्तुओं की कम उपलब्धता, बढ़ती महंगाई आदि है।
  • दोषपूर्ण माप- तौल के साधन-बाजार में प्राय: मानक माप-तौल के साधनों का प्रयोग नहीं किया जाता है। बल्कि नकली कम वजन के बाँट की जगह ईंट-पत्थर का प्रयोग होता है।
  • वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल- प्रायः उत्पादक वस्तुओं पर अपूर्ण लेबल लगाकर उपभोक्ताओं को धोखा देने का प्रयास करते हैं, जिससे उपभोक्ता भ्रम में गलत वस्तु खरीद लेता है।
  • बाजार में घटिया किस्म की वस्तुओं की उपलब्धि- आजकल उपभोक्ताओं को घटिया किस्म की वस्तुएँ खरीदना पड़ रहा है जिसके लिए अधिक कीमत भी देनी पड़ती है। जैसे-घटिया लकड़ी से बने फर्नीचर रंग करके बेचना, घटिया लोहे के चादरों की आलमारी आदि।
  • नकली वस्तुओं की बिक्री- आज बाजार में नकली वस्तुओं की भरमार है। असली पैकिंग में नकली समान, दवाई, सौंदर्य प्रसाधन, तेल, घी आदि भरकर बेचा जाता है।
  • भ्रामक और असत्य विज्ञापन- प्रत्येक उत्पादन कर्ता अपने उत्पादन की बिक्री बढ़ाने के लिए भ्रामक और असत्य विज्ञापनों का सहारा लेते हैं। वस्तु की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं।
  • निर्माता या विक्रेता द्वारा गलत हथकंडे अपनाना- मुफ्त उपहार, दामों में भारी छूट जैसी भ्रामक घोषणाएँ द्वारा उपभोक्ता धोखा खा जाते हैं और अच्छे ब्राण्ड के धोखे में गलत वस्तु खरीद लेते हैं।
  • मानकीकृत उत्पादनों की कमी- मानकीकरण चिह्न वाली वस्तु अधिक कीमत कम लोकप्रिय जबकि अन्य वस्तुएँ अधिक लोकप्रिय पर कम कीमत की होती है।
  • बाजार की कीमतों में विविधता- उपभोक्ता को एक ही वस्तु की अलग-अलग दूकानों पर अलग-अलग कीमत चुकानी पड़ती है। जैसे स्थानीय कर लगाकर कीमत बढ़ाना, लिखी कीमत पर पर्ची चिपकाकर कीमत बढ़ाना।।
  • वस्तुओं का बाजार में उपलब्ध न होना- कई परिस्थितियों, जैसे-सूखा पड़ना, बाढ़ आना आदि के कारण वस्तु की कीमत बढ़ती है तो दूकानदार वस्तुओं को जमा कर लेते हैं, अधिक कीमत देने पर बेचते हैं अथवा वह सामान बाजार से गायब हो जाती है।

प्रश्न 9.
हमारे जीवन में वस्त्र के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर:
मानव जीवन में भोजन के बाद यदि किसी वस्तु का महत्त्व है तो वह है-वस्त्र। वस्त्र जहाँ हमारे शरीर को धूप और शीत से रक्षा करता है, वहीं मानव सभ्यता की दृष्टि से भी आवश्यक है। वस्त्रविहीन या नंगे रहना मानव में असभ्यता एवं पागलपन माना जाता है। वस्त्रों में मानव शरीर के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।

अतः वस्त्रों के महत्त्व को निम्नांकित बिन्दुओं से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • शरीर को आवरण प्रदान करने हेतु-मनुष्य को अपने नग्न शरीर को ढंकने के लिए वस्त्र की आवश्यकता है।
  • शरीर को गर्म रखने हेतु-विशेषकर ठंढ की ऋतु में ठंढे प्रदेशों में रहनेवाले व्यक्तियों. को गर्म वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • निजी श्रृंगार के लिए-चस्त्र न केवल आवरण प्रदान करते हैं बल्कि सौन्दर्य-वृद्धि में भी सहायक होते हैं। अत: निजी शृंगार के लिए भी वस्त्र धारण किये जाते हैं।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा हेतु-वस्त्रों द्वारा अपनी सम्पन्नता का प्रदर्शन किया जा सकता है। व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति या समाज में अपने स्थान का प्रदर्शन वस्त्रों के माध्यम से कर सकता है।
  • कार्यक्षमता में वृद्धि हेतु-अपनी कार्यक्षमता बनाये रखने के लिए यथा-पानी, गर्मी, ठंडक आदि का बचाव वस्त्रों द्वारा करके अपनी कार्यक्षमता बढ़ा सकता है।
  • विभिन्न प्रयोजनों हेतु-मनुष्य को शरीर के अतिरिक्त भी वस्त्र की आवश्यता है। जैसे-घर सजाने के लिए।
  • अवगुणों को छिपाने हेतु-मानव शरीर की असामान्यता या इनमें कुछ दोष को छिपाने के लिए भी वस्त्र सहायक होता है। शरीर का स्वाभाविक तापमान कायम रखने के लिए भी वस्त्र बहुत आवश्यक है। इससे शरीर स्वस्थ रहता है।
  • किसी भी आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण सुरक्षा हेतु-आघात या बाहरी जीवों के आक्रमण के सुरक्षा हेतु भी वस्त्रों की आवश्यकता होती है।
  • विभागीय पहचान में वस्त्र-मनुष्य अपने कार्यक्षेत्र की पहचान के लिए वस्त्र का उपयोग करता है। पुलिस, पोस्ट मैन, पादरी, चपरासी, नर्स आदि की पहचान उसके द्वारा पहने गये वस्त्र से की जा सकती है।

अतः जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे वस्त्रों का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। आज वस्त्रों का महत्त्व इतना अधिक बढ़ गया है कि कहा जा सकता है-वस्त्रों से व्यक्ति बनता है।

प्रश्न 10.
सिले सिलाये तैयार वस्त्र खरीदते समय किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए ?
अथवा, रेडिमेड वस्त्रों का चयन करते समय किन-किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
रेडिमेड कपड़ों का चयन करते समय या खरीदते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. रेडिमेड वस्त्र के कपड़ों की किस्म को देखना चाहिए। कपड़ा किन रेशों का बना है, उसकी संरचना कैसी है, बुनाई कैसी है आदि।
  2. वस्त्र के रंग पक्के होना चाहिए तथा उनमें उपयोग किये गये अलंकरणों के रंग भी पक्के होना चाहिए।
  3. वस्त्र तैयार करने की कौशलता कैसी है इस पर भी ध्यान देना चाहिए। इसके अंतर्गत कटाई, सिलाई, नमूने, बंद करने के साधन और बाह्य सज्जा एवं अलंकरण का ध्यान किया जाता है।
  4. वस्त्र आरामदायक होना चाहिए।
  5. वस्त्र जिस व्यक्ति के लिए खरीदा जाता है उसके नाम के अनुसार होना चाहिए।
  6. वस्त्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुरूप होना चाहिए।
  7. वस्त्र मूल्य खरीदने वाले की क्षमता के अनुसार होना चाहिए।

प्रश्न 11.
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारकों की सूची बनाएँ। उनका संक्षिप्त विवरण दें।
उत्तर:
वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(i) व्यक्तित्व- कपड़ों का चुनाव करते समय व्यक्तित्व को ध्यान में रखना आवश्यक है। अधिकारी, क्लर्क, होटल कर्मचारी के लिए अपने व्यवसाय को ध्यान में रखना आवश्यक है। वहीं लम्बा, पतला, मोटा, संजीदा व्यक्ति आदि को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करना चाहिए।

(ii) जलवायु- बाजार में कपड़े का चयन करते समय जलवायु का ध्यान रखना भी अत्यन्त आवश्यक हैं। गर्मियों के लिए आसानी से पसीना सूखने वाले कपड़े जैसे सूती, मतलम, रूबिया आदि उपयुक्त रहते हैं तो सर्दियों में गर्मी को बनाये रखने के लिए रेशमी व ऊनी वस्त्र उपयुक्त रहते हैं।

(iii) शारीरिक आकृति- वस्त्रों को शारीरिक रचना के अनुसार भी चुनाव करना चाहिए। मोटे व्यक्ति को मोटाई कम दिखाने वाले वस्त्रों का चयन करना चाहिए। इन्हें चौड़ी आड़ी वाली वस्त्रों को नहीं पहनने चाहिए क्योंकि इनमें मोटाई अधिक दिखाई देती है लम्बे तथा दुबले व्यक्तियों के लिए आड़ी रेखाओं वाले वस्त्रों का चयन किया जाना चाहिए।

(iv) अवसर- अलग-अलग अवसर पर अलग-अलग पोशाक अच्छे लगते हैं। खुशी के मौके पर सुन्दर, भड़कीले, चमकीले तथा कीमती परिधान होनी चाहिए। सार्वजनिक समारोह में परिधान शालीनना, सौम्यता तथा मर्यादा प्रदर्शित करने वाले हों। वस्त्र, मौसम, समय और शरीर के अनुरूप होनी चाहिए। शोक के अवसर पर सफेद रंग वस्त्र होने चाहिए यात्रा, खेल, अवकाश के लिए आरामदायक वस्त्र होनी चाहिए।

(v) व्यवसाय- व्यक्ति को अपने व्यवसाय के अनुसार वस्त्र का चुनाव करना चाहिए। डाक्टर एवं नर्स, शालीन, सौम्य सफेद वस्त्रों का चुनाव करना चाहिए। स्कूल के बच्चे, ऑफिस, शिक्षक आदि के वस्त्र एक समान होने चाहिए। अश्लील या असभ्य वस्त्रों का चयन नहीं करना चाहिए।

(vi) फैशन- वस्त्रों का चुनाव प्रचलित फैशन के अनुसार की करना चाहिए। समय के साथ-साथ फैशन परिवर्तित होता रहता है। फैशन बदलने से परिधान संबंधी अवस्थाई तथा रूचियाँ बदल जाती है।

(vii) आयु- वस्त्र पहनने वाले की आयु भी वस्त्रों के चुनाव को प्रभावित करती है भिन्न-भिन्न आयु वाले व्यक्तियों के लिए भिन्न-भिन्न वस्त्र उपयोगी होते हैं।

प्रश्न 12.
कपड़ों का चयन करते समय कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
कपड़ों का चयन करते समय निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
(i) बाह्य रूप- कपड़ा सुंदर, चिकना एवं चमकदार होना चाहिए। उसमें रंगों का उचित अनुपात में मिश्रण होना चाहिए। सबसे बढ़कर उसे चित्ताकर्षक होना चाहिए।

(ii) रंग- वस्त्रों के रंगों का तापमान एवं मनोभावों पर भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़ता है। लाल, पीला, नारंगी रंग गरम होते हैं। अतः इन रंगों की विशेषता लिये हुए वस्त्रों को गर्मी के मौसम में नहीं खरीदना चाहिए। अत: उपभोक्ता को गर्मी में आंखों तथा शरीर की शीतलता प्रदान करनेवाला रंग जैसे नीला, हरा, बैंगनी रंग वाले वस्त्रों को खरीदना चाहिए। इससे मानसिक संतोष, शांति प्राप्त होता है। सफेद रंग से, पवित्रता एवं ज्ञान का बोध होता है। चककीले, चटकदार रंगवाले वस्त्र बच्चों के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं, तथा प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए हल्के रंग उचित हैं।

(iii) अभिरूचि- वस्त्र के चुनाव में मनुष्य की शिक्षा, अभिरूचि, प्रशिक्षण, संवेग आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। चयन के समय उसकी कई ज्ञानेन्द्रिय क्रियाशील रहती है। वह वस्त्र को ध्यान से देखता है, छूता है ताकि उसके रूप रंग को महसूस कर सके।

(iv) कपड़े-विशेष का मूल्य- आजकल कपड़े का मूल्य बढ़ गया है। अतः कपड़े खरीदते समय प्रत्येक गृहिणी को अपनी मासिक आय को ध्यान में रखना चाहिए।

(v) कपड़ों का पक्का रंग- आजकल विभिन्न प्रकार के रेशों से बनी सुदर-सुंदर रंग के कपड़े उपलब्ध हैं। प्रायः एक प्रकार के रेशों से बने वस्त्रों के विशेष रंग पक्के निकलते हैं तो वही रंग दूसरे प्रकार के रेशों में कच्चे निकल जाते हैं। अतः रंगीन कपड़े खरीदते समय इसकी जांच कर लेनी चाहिए।

(vi) मौसम और जलवायु- कपड़े खरीदते समय मौसम का ध्यान रखना चाहिए। ठंढ के मौसम में ऊनी वस्त्र और गर्मी के मौसम में सूती, सिफॉन जार्जेट ही अच्छे लगते हैं।

(vii) टिकाऊपन- कोई वस्त्र टिकाऊ है या नहीं, यह कपड़े के रेशे के गुण और बनावट पर निर्भर करता हो। ठोस बुने कपड़े अधिक मजबूत और टिकाऊ होते हैं। इसके विपरीत हल्के बुने हुए कपड़े अपेक्षाकृत कमजोर और कम टिकाऊ होते हैं। कुशल गृहिणी कपड़ों को देखकर उसकी मजबूती, टिकाऊपन आदि का सहज ही पता लगा लेती हैं।

(viii) कपड़ों में कलफ- साधारणतः कपड़ों को भली-भांति देखने तथा इसके एक भाग को मसलने से कलफ का भी पता चल जाता है।

(ix) सिकुड़ना- कुछ कपड़े धुलने पर सिकुड़ जाते हैं। ऐसे कपड़ों से मिले वस्त्र उटंग हो जाते हैं। अतः जहाँ तक संभव हो कम-से-कम या नहीं सिकुड़ने वाले वस्त्र ही खरीदना चाहिए।

(x) वर्तमान कीमत- किसी विश्वासी या परिचित दूकान से ही कपड़े खरीदने चाहिए।

प्रश्न 13.
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली पहिलाओं के लिए पोशाक का चुनाव कैसे करेंगी ?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की शारीरिक रचना वाली महिलाओं के लिए पोशाक (Clothes According to Built and Appearance)-
(i) लम्बी और मोटी महिला- इस प्रकार की महिलाओं के लिए वस्त्रों का चुनाव करना बहुत कठिन काम है। इसीलिए ऐसी महिलाओं के लिए वस्त्रों का चयन करते समय अत्यन्त सावधानी बरतनी चाहिए। इसका कारण यह है कि इन महिलाओं को जहाँ एक ओर ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है जो मोटाई काम होने का अहसास कराएँ वहीं दूसरी ओर ऐसे वस्त्रों की जिससे लम्बाई बढ़ती हुई दिखाई न दे। ऐसी वस्त्र-योजना के लिए तिरछी रेखाओं वाले वस्त्र उचित रहते हैं क्योंकि ये ऊपरी भाग की चौड़ाई को कुछ करने का भ्रम पैदा करते हैं। इस वर्ग की महिलाओं के लिए वस्त्रों की सिलाई करते या कराते समय कालर, कफ, योक आदि सीधी रेखाओं में ही रखने चाहिए। इन्हें बहुत चुस्त तथा बहुत ढीले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(ii) मोटी तथा नाटी महिला- मोटी तथा नाटी महिला को भी अपने अनुकूल वस्त्रों के डिजाइन, कटाई आदि का ध्यानपूर्वक चयन करना चाहिए। इन्हें आड़ी रेखा वाले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इनसे न केवल मोटाई ही अधिक दिखाई देती है अपितु कद भी कम प्रतीत होता है। बड़े-बड़े चौड़े कोट, दोहरी छाती वाले कोट, ऊँचे कोट आदि का प्रयोग इन महिलाओं को कदापि नहीं करना चाहिए। बड़े फूल तथा चौड़े बार्डर वाले वस्त्र भी उनके लिए त्याज्य हैं। इन्हें तो केवल . लम्बी रेखाओं वाले वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। इन्हें वस्त्रों की फिटिंग पर भी समुचित ध्यान देना चाहिए। वस्त्र न तो बहुत चुस्त होने चाहिए और न बहुत ही ढीले। वस्त्रों के चुस्त होने पर शारीरिक दोष उभर आते हैं और ढीले वस्त्र चौड़ाई फैलाने वाले होते हैं। ऐसी महिलाओं को एक ही रंग के छोटे नमूने वाले, बिना बैल्ट के छोटे कालर वाले वस्त्र प्रयोग में लाने चाहिए।

(iii) पतली महिला- पतले शरीर वाली महिलाओं के शरीर पर वे सभी वस्त्र फबते हैं जो मोटी महिलाओं के लिए त्याज्य हैं। इन महिलाओं को ऐसे वस्त्रों का चयन करना चाहिए जो पतलेपन को छिपाने वाले हों। तीखे तथा चटक रंग, चुन्नट, झालर, चौड़ी बैल्ट, बड़ी जेबें, फूली हुई बाँहें आदि डिजाइन वाले वस्त्र इन महिलाओं के व्यक्तित्व को अत्यन्त आकर्षक रूप प्रदान करते हैं। कपड़े तथा सिलाई के डिजाइनों का चुनाव करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे लम्बी रेखाओं के स्थान पर आड़ी अथवा भग्न एवं वक्र रेखा वाले हों।

(iv) लम्बी तथा दुबली महिला- इस वर्ग की महिलाओं के लिए जिन वस्त्रों का चयन किया जाए, वे आड़ी रेखाओं से बने डिजाइन के होने चाहिए। ऐसे शरीर पर चेक वाले डिजाइन भी बहुत अच्छे लगते हैं। कोट आदि वस्त्रों की लम्बाई कम रखनी चाहिए जिसका लाभ यह होता है कि लम्बाई कम होने का आभास मिलता है। फिटिंग ढीली रखनी चाहिए क्योंकि इससे भी लम्बाई अखरती नहीं है। कैम्ब्रिक, वायल, सूती साड़ी आदि का प्रयोग इस वर्ग की महिलाओं के व्यक्तित्व को आकर्षक बना देता है।

(v) छोटी तथा दुबली महिला/पुरुष- इन महिलाओं के लिए वस्त्रों को चुनाव करते समय दो बातों का ध्यान रखना पड़ता है-एक तो यह कि उनका शरीर भरा हुआ दिखाई दे, और दूसरा यह कि वे लम्बी प्रतीत हों। लम्बवत् रेखाएँ जहाँ बढ़ी हुई लम्बाई का आभास देती हैं वहीं आड़ी रेखाएँ बढ़ी हुई चौड़ाई का। अतएव इन महिला/पुरुष को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो लम्बाई और चौड़ाई दोनों ही बढ़ाते हुए प्रतीत हों। ऐसी स्थिति में आड़ी-खड़ी रेखाओं के योग से बने डिजाइन सर्वाधिक उपयुक्त रहते हैं। चुस्त पोशाक शारीरिक दुर्बलता को व्यक्त करती है। अतएव इन महिलाओं को शरीर को भरा-पूरा दिखाने वाले ढीली फिटिंग के वस्त्र ही पहनने चाहिए।

(vi) भारी नितम्ब वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइनों के वस्त्र चुनने चाहिए जो नितम्बों की चौड़ाई कम करके दिखाएँ। तिरछे, वृत्ताकार तथा वक्र रेखाओं से बने डिजाइन इस उद्देश्य की पूर्ति में बाधक होते हैं। नितम्ब के पास वस्त्रों की फिटिंग चुस्त नहीं होनी चाहिए। इन्हें मोटी झालर तथा बड़ी-बड़ी जेबों वाले वस्त्र भी नहीं पहनने चाहिए।

(vii) भारी वक्ष वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को वस्त्रों का चयन करते समय सदैव लम्बवत् रेखाओं वाले डिजाइनों का प्रयोग करना चाहिए। तिरछी तथा वक्र रेखाओं वाले डिजाइनों के वस्त्र ऐसे शरीर पर बहुत अच्छे लगते हैं। वस्त्रों की सिलाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि गला V आकार का हो और छाती की फिटिंग चुस्त न हो। यदि कमर के पास चुन्नट अथवा छोटी डार्ट दे दी जाए तो छाती के भारी होने का अहसास नहीं होता।

(viii) मोटी बाँहों वाली महिलाएँ- इस वर्ग की महिलाओं को बिना आस्तीन वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। इसका कारण यह है कि बिना आस्तीन के वस्त्र उन्हीं महिलाओं पर फबते हैं जिनकी बाहें न तो बहुत मोटी होती हैं और न ही पतली। मोटी बाहों वाली स्त्रियों के लिए तो ढीली फिटिंग के बाहों वाले वस्त्र ही शोभा देते हैं।

(ix) निकला हुआ पेट- इस वर्ग की महिलाओं को ऐसे डिजाइन के वस्त्र चुनने चाहिए जिससे पेट थोड़ा दबा हुआ लगे। इस दृष्टि से बहुत तीखे रंगों के ब्लाउज तथा विषम रंगों की साड़ियाँ नहीं चुननी चाहिए। खड़ी रेखाओं वाले वस्त्र इस वर्ग की महिलाओं के लिए अच्छे रहते हैं। फिटिंग कुछ ढीली होनी चाहिए और गले के आस-पास ऐसी सजावट होनी चाहिए जिससे देखने वाले की दृष्टि उसी ओर जाए।

प्रश्न 14.
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव आप किस प्रकार करेंगी ?
उत्तर:
शिशुओं के वस्त्रों का चुनाव (Selection of Clothes for Infants)-
(i) शिशुओं के लिए सूती कपड़ा सर्वोत्तम वस्त्र होता है। सूती वस्त्र में भी कोमल तथा हल्का वस्त्र शिशु की कोमल त्वचा को क्षति नहीं पहुँचाता। सूती वस्त्र में संरध्रता (Porous) होने के कारण शिशु की त्वचा का पसीना सोख लेता है, उसे चिपचिपा नहीं होने देता। शिशुओं के लिए रेशमी या नायलान वस्त्र कष्टदायक होता है।

(ii) शिशु के वस्त्रों को बार-बार गंदे होने के कारण कई बार धोना पड़ता है। इसलिए शिशुओं के वस्त्र ऐसी होने चाहिए जिन्हें बार-बार धोया तथा सुखाया जा सके। वस्त्र ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे घर में न धोया जा सके या जिसे सूखने में बहुत अधिक समय लगता हो।

(iii) शिशुओं के वस्त्र हमेशा साफ तथा कीटाणुरहित होने चाहिए। वस्त्रों को कीटाणुरहित करने के लिए उन्हें गर्म पानी में धोना चाहिए तथा डेटॉल के पानी में भिंगोना चाहिए। इसलिए वस्त्र ऐसा होना चाहिए जो गर्म पानी तथा डेटॉल या कीटाणुनाशक पदार्थ को सहन कर सके।

(iv) उसके गर्म कपड़े भी ऐसे होने चाहिए, जो गर्म पानी में सिकुड़े नहीं।

(v) शिशुओं के कपड़ों की संख्या अधिक होनी चाहिए क्योंकि उसके कपड़े गंदे हो जाने पर दिन में कई बार बदलने पड़ते हैं।

(vi) शिशुओं के कपड़े मांडरहित होने चाहिए तथा कसे इलास्टिक वाले नहीं होने चाहिए।

(vii) शिशुओं के कपड़े सामने, पीछे या ऊपर की ओर खुलने चाहिए, जिससे शिशु को सिर से कपड़ा न डालना पड़े।

(viii) शिशुओं के वस्त्रों में पीछे की ओर बटनों (Buttons) के स्थान पर कपड़े से बाँधने वाली पेटियाँ (ties) या बंधक (faster) होने चाहिए क्योंकि बटन पीछे होने से शिशु के लेटने पर उसे चुभ सकते हैं।

(ix) शिशुओं के कपड़ों के रंग व डिजाइन अपनी रुचि के अनुसार होने चाहिए, परन्तु रंग ऐसे होने चाहिए जो धोने पर निकले नहीं क्योंकि शिशुओं के वस्त्रों को बहुत अधिक धोना पड़ता है।

(x) शिशुओं के वस्त्रों में मजबूती का इतना महत्त्व नहीं होता है क्योंकि शिशुओं की वृद्धि बहुत तीव्र गति से होती है। जब तक शिशु के कपड़ों के फटने की स्थिति आती है, वे छोटे हो चुके होते हैं।

प्रश्न 15.
पूर्व स्कूलगामी स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र, किशोर तथा युवाओं के वस्त्र तथा महिलाओं के लिए वस्त्र किस प्रकार के होने चाहिए?
उत्तर:
I. पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for Pre-school Children)-

  • पूर्व स्कूलगामी बच्चों के वस्त्र कोमल, हल्के तथा सूती होने चाहिए। (3 वर्षीय बच्चे)
  • वस्त्र बहुत ढीले तथा बहुत लम्बे नहीं होने चाहिए क्योंकि इस आयु में बच्चों का ध्यान खेलने में होता है। ढीले तथा लम्बे कपड़े कहीं भी अटक कर फट सकते हैं तथा बच्चे को छति पहुँचा सकते हैं।
  • बच्चों के कपड़े ऐसे रंगों के होने चाहिए जो देखने में आकर्षक एवं उन्हें सुन्दर लगते हों।
  • कपड़ों की सिलाई पक्की होनी चाहिए तथा ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों की उछल-कूद से दबाव पड़ने पर फटे नहीं।
  • बच्चों की वृद्धि बहुत जल्दी होती है, इसलिए वस्त्र ऐसी होनी चाहिए, जिनको आवश्यकता पड़ने पर खोल कर बड़ा किया जा सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको घर में आसानी से धोया जा सकता हो तथा धोने पर जिनका रंग न निकलता हो।
  • बच्चों के वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनको बच्चा स्वयं पहन सकता हो तथा उतार सकता हो।
  • बच्चों के वस्त्रों का इलास्टिक (Elastic) बहुत अधिक कसा नहीं होना चाहिए।

II. स्कूल जाने वाले बच्चों के वस्त्र (Selection of Clothes for School Going Children)-

  • बच्चों के कपड़े खेल-कूद के कारण गंदे हो जाते हैं। इसलिए ऐसे होने चाहिए जो घर में धोए जा सकते हों।
  • बच्चों के कपड़े मजबूत होने चाहिए जो खेलने और उछलकूद को सहन कर सकें और रोज-रोज फटे नहीं।
  • बच्चों के कपड़े नाम में थोड़े बड़े हो सकते हैं तथा इनको बच्चों की वृद्धि के अनुसार बड़ा करने की गुंजाइश होनी चाहिए।
  • बच्चों के वस्त्र कसे हुए तथा तने हुए नहीं होने चाहिए क्योंकि ये बच्चों की सामान्य वृद्धि में बाधक होते हैं। कसे हुए वस्त्र पहनने से वे खेल नहीं सकते, इसलिए कुंठित होते हैं जिससे उनके मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चों के वस्त्र देखने में सुन्दर एवं बच्चों की पसन्द के अनुरूप होने चाहिए। वस्त्र ऐसे होने चाहिए जिनसे बच्चा स्मार्ट (Smart) लगे। यदि बच्चों के वस्त्र बेढब, भद्दे तथा अपने साथियों की पसन्द के अनुरूप नहीं होते तो वे हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं और साथियों से मिलने तथा उनके साथ खेलने में संकोच करते हैं।
  • स्कूल की यूनिफार्म में अधिकतर सफेद रंग ही होता है, इसलिए घर में पहनने वाले वस्त्र रंगीन होने चाहिए।

III. किशोर तथा युवाओं के वस्त्रों का चयन (Selection of Clothes for Adolesents & Youth)- इस आयु-वर्ग के लिए वस्त्रों का चयन सबसे कठिन होता है क्योंकि इस आयु के व्यक्ति परंपरागत कपड़ों के बजाय, कुछ नया, अलग तथा अनोखा वस्त्र पहनना चाहते हैं। ये चाहते हैं कि वे सबसे अलग दिखें और उनकी एक अलग ही पहचान हो। वे वर्तमान प्रचलित फैशन के अनुरूप ही वस्त्र धारण करना चाहते हैं तथा वस्त्रों द्वारा ही अपने साथियों से प्रशंसा एवं स्वीकृति भी प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उनके वस्त्र ऐसे हों जो-

  • उन पर खिलें, सुन्दर लगें और उनके आत्म-सम्मान को बढ़ाएँ।
  • वस्त्र अश्लील न हों।
  • वस्त्र कोमल, लचीले तथा विभिन्न अलंकरणों द्वारा सजाए हुए हों।
  • वस्त्र शरीर की बनावट, त्वचा, आँखों तथा बालों रंग के अनुरूप होने चाहिए।

IV. महिलाओं के लिए वस्त्र (Selection of Clothes for Ladies)-

  • बढ़ती आयु के साथ-साथ शरीर में परिवर्तन आ जाते हैं। उन परिवर्तनों के कारण युवावस्था में जो वस्त्र उन्हें सुन्दर लगा करते थे वे इस आयु में उनके शरीर पर नहीं फबते।
  • उनके कपड़ों के रंग, डिजाइन इत्यादि उनकी शरीर की बनावट के अनुरूप होने चाहिए।
  • इस आयु में वस्त्रों का चुनाव करते समय प्रचलित फैशन की अपेक्षा, व्यवसाय के अनुकूल (Need of Occupation), अवसर (Occasion), ऋतु (Season) तथा कीमत (Money) की ओर अधिक ध्यान दिया जाता है।
  • महिलाओं को रोजमर्रा के लिए ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता होती है, जो सादे, सौम्य, सुन्दर, टिकाऊ तथा आरामदायक हों।

प्रश्न 16.
वस्त्रों का संरक्षण विस्तारपूर्वक लिखें।।
उत्तर:
वस्त्रों का संरक्षण- जितना आवश्यक वस्त्रों को धोना, सुखाना, इस्तरी करना है उतना ही आवश्यक वस्त्रों को संभालना भी है। रखे हुए वस्त्र आवश्यकता पड़ने पर तैयार मिलते हैं। अत: सभी वस्त्रों को सहेज कर रखना चाहिए।

वस्त्रों को रखने के लिए बाक्स या आलमारी का प्रायः प्रयोग किया जाता है। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को रखना अधिक उपयुक्त रहता है क्योंकि उसमें अलग-अलग नाप (Size) के रैक (Rack) बने हुए होते हैं, उनमें वस्त्र रखने से वस्त्रों की इस्तरी खराब नहीं होती और रैक्स (Racks) में अलग-अलग पड़े होने के कारण उनको ढूँढने में कठिनाई नहीं पड़ती। आलमारी (Wardrobe) में वस्त्रों को टांगने की भी सुविधा होती है। हैंगर (Hangers) में वस्त्रों को टाँगने से उनकी तह नहीं बिगड़ती। आलमारी (Wardrobe) में परिधान सम्बन्धी अलंकरण (Dressaccessories) की रखने की व्यवस्था भी होती है जिससे उपयुक्त अलंकरण भी वस्त्रों के साथ पहनने के लिए उपयुक्त समय पर मिल सकें। आलमारी में सबसे नीचे का शेल्फ (Shelf) जूते (Shoes) रखने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

महँगे तथा दैनिक प्रयोग में न आने वाले वस्त्रों को डस्ट-प्रूफ-बैग (Dust-proof-bag) में बन्द करके रखना चाहिए जिससे-

  1. उनको प्रयोग करते समय झाड़ना न पड़े
  2. श्रम तथा समय की बचत हो
  3. वस्त्रों की शोभा बनी रहे
  4. वस्त्रों का जीवन-काल बढे।

वस्त्रों को बन्द करके रखने से पहले उनकी बैल्ट, बो, ब्रोच इत्यादि उतार लेना चाहिए। जेबों को खाली कर देना चाहिए, उनकी जिप और बटन बन्द करके रखना चाहिए, उनको धूप लगवा लेनी चाहिए।

गर्म कपड़ों को अलमारी (Wardrobe) में रखने से पहले अखबार या कागज में लपेट देना चाहिए। इससे उनमें कीड़ा नहीं लगता।अलमारी में रखे वस्त्रों को कीड़ा न लगे। इसके लिए अलमारी में-

  1. कीड़े मारने वाली दवाई डालनी चाहिए।
  2. पालीथिन बैग में मॉथ-प्रूफ पाउडर (Mouth Proof Powder) या नैपथिलीन की गोलियाँ (Napthlene Balls) डालकर रखनी चाहिए।
  3. डी० डी० टी० का स्प्रे अथवा नीम की सूखी पत्तियाँ रखनी चाहिए।
  4. पेराडाइक्लोरो बैंजीन (Para-dy-chloro Benzene) का प्रयोग भी वस्त्रों की कीड़ों से सुरक्षा करता है।
  5. अलमारी की पूर्ण सफाई होनी चाहिए तथा टूटे-फूटे भागों की मरम्मत होती रहनी चाहिए ।

आलमारी में जूते, सैंडिल्स इत्यादि को पॉलिश करके ही रखना चाहिए जिससे आवश्यकता के समय वे तैयार मिलें। संरक्षितं वस्त्रों की समय-समय पर जाँच करते रहनी चाहिए तथा वस्त्रों को रैक्स में रखने का एक निश्चित स्थान बनाए रखना चाहिए।