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Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
जान्तव रेशा या प्राणिज रेशा
उत्तर:
जानवरों एवं कीड़ों से प्राप्त रेशे को जान्तव रेशे या प्राणिज रेशे कहते हैं। रेशम या ऊन के रेशे जान्तव रेशे हैं। जान्तव रेशे प्रोटीन के बने होते हैं। रेशम और ऊन के रेशे ताप के कुचालक होते हैं। इस कारण इनके वस्त्र सर्दी में ठंड से बचाव के लिए पहने जाते हैं।

प्रश्न 2.
कृत्रिम रेशा
उत्तर:
कृत्रिम रेशे वे रेशे हैं जिनका उद्गम प्रकृति प्रदत्त रेशे नहीं है, बल्कि जिन्हें बनाने के लिए विभिन्न रासायनिक पदार्थों को रासायनिक एवं यांत्रिक विधियों द्वारा रेशे का रूप दिया जाता है।

प्रश्न 3.
धन व्यवस्थापन
उत्तर:
धन व्यवस्थापन का अभिप्राय है सभी प्रकार की आय का आयोजन, नियंत्रण तथा मूल्यांकन करना जिससे परिवार के लिए अधिकतम संतुष्टि प्राप्त की जा सके। धन का अधिक होना अपने-आप में आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं है, क्योंकि व्यवस्थापन के बिना अधिक धन का अपव्यय हो सकता है। जबकि अच्छे संचालन सीमित आय से भी अधिकतम संतुष्टि प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 4.
पारिवारिक आय
उत्तर:
सदस्यों की सम्मिलित आय को पारिवारिक आय कहते हैं। ग्रॉस तथा क्रैण्डल ने इसकी परिभाषा इन शब्दों में दी है- “पारिवारिक आय मुद्रा, वस्तुओं, सेवाओं तथा संतोष का वह प्रवाह है, जिसे परिवार के अधिकार से उसकी आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को पूरा करने एवं उत्तरदायित्वों के निर्वाह के लिए प्रयोग किया जाता है।” इस प्रकार पारिवारिक आय में वेतन, मजदूरी, ग्रेच्युटी, पेंशन, ब्याज तथा लाभांश, किराया, भविष्य निधि आदि सभी को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 5.
मौद्रिक आय
उत्तर:
परिवार के सभी सदस्यों को एक निश्चित समय में कार्य करने के बाद मुद्रा के रूप में जो आय प्राप्त होती है उसे मौद्रिक आय कहते हैं। इसमें परिवार के सभी कमाने वाले सदस्यों का वेतन, व्यापार से प्राप्त धन, मकान किराये के रूप में प्राप्त धन, मजदूरी, पेशन एवं ग्रेच्युटी, ब्याज एवं लाभांश सम्मिलित है।

प्रश्न 6.
वास्तविक आय
उत्तर:
वास्तविक आय वस्तुओं एवं सेवाओं का वह प्रवाह है जो पारिवारिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक निश्चित अवधि में उपलब्ध रहता है।

प्रश्न 7.
आत्मिक आय
उत्तर:
परिवार के सदस्यों द्वारा प्रयोग की गई मौद्रिक एवं वास्तविक आय द्वारा प्राप्त अनुभवों से जो संतुष्टि मिलती है उसे आत्मिक आय कहा जाता है।

प्रश्न 8.
बचत
उत्तर:
धन का वह भाग, जो आज की आय से कल के प्रयोग के लिए अलग रखा जाता है, बचत कहलाता है। देशपाण्डे ने बचत को परिभाषित करते हुए कहा है कि “बचत मनुष्य की आय का वह भाग है, जो वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति में उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि भविष्य के उपभोग के लिए समझ-बूझ कर अलग उत्पादन रूप में रखा जाता है और सम्पत्ति को पूँजी का स्वरूप दिया जाता है।” अतः स्पष्ट है कि बचत वह धन है जो वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति में उपयोग नहीं किया जाता बल्कि भविष्य के उपभोग के लिए जान-बूझकर अलग रखा जाता है।

प्रश्न 9.
डाकघर
उत्तर:
डाकघर एक सरकारी संस्थान है। यह धन को सुरक्षित रखने का एक अच्छा माध्यम माना जाता है। डाकघर की सुविधा बैंकों से अधिक स्थानों पर उपलब्ध है। दूर-दराज के क्षेत्रों में रहनेवालों के लिये डाकघर अधिक सुविधाजनक होते हैं। डाकघर प्रायः हर आवासीय कॉलोनी में होते हैं। डाकघर में विनियोग की सुविधा को बहुत ही सरल रखा गया है। एक अनपढ़ व्यक्ति भी थोड़े से ज्ञान से अपना धन जमा करा सकता है। डाकघर योजनाएँ बैंकों की योजनाओं से काफी मिलती-जुलती हैं। डाकघरों द्वारा बहुत-सी योजनाएँ चालू की गई जो निम्नलिखित हैं-

  • डाकघर बचत खाता
  • डाकघर सावधि जमा योजना
  • रेकरिंग डिपॉजिट
  • मासिक आय योजना
  • किसान विकास पत्र
  • राष्ट्रीय बचत पत्र
  • 15 वर्षीय जनभविष्य निधि
  • राष्ट्रीय बचत योजना खाता
  • सेवा निवृत्ति होने वाले सरकारी कर्मचारियों के लिए जमा योजना आदि।

प्रश्न 10.
निवेश
उत्तर:
जिस बचत राशि पर व्यास मिलता है उसे बिनियोग या निवेश कहा जाता है। बैंक, डाकघर, यूनिटा ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, जीवन बीमा निगम, शेयर, प्रोविडेण्ट फंड आदि निवेश के माध्यम हैं।

प्रश्न 11.
शेयर
उत्तर:
शेयर वह इकाई है जिसमें कम्पनी की कुल पूँजी विभाजित की जाती है। किसी कम्पनी के शेयर खरीदने से आप उसके आंशिक रूप से मालिक हो जाते हैं। कम्पनी द्वारा अर्जित लाभ सभी शेयरधारकों में बराबर बाँट दिया जाता है। शेयर की कीमत बाजार में घटते-बढ़ते रहते है।

प्रश्न 12.
ऋण पत्र
उत्तर:
ऋण-पत्र कम्पनी द्वारा दिया गया वह प्रमाण पत्र है जिसमें कम्पनी में विनियोग किये गये धन का प्रमाण होता है। ऋण पत्र का अर्थ है कि आप कम्पनी को ऋण दे रहे हैं। ऋण पत्र लेने वाले को निश्चित अन्तराल पर ब्याज राशि दी जाती है।

प्रश्न 13.
बचत खाता
उत्तर:
व्यक्ति अपनी आय से बचे हुए धन को जिस खाते में जमा करता है उसे बचत खाता कहा जाता है। बैंक, डाकघर आदि में बचत खाता खुलवाया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति बचत खाते से पैसा निकाल सकता है।

प्रश्न 14.
क्रेडिट कार्ड
उत्तर:
आजकल बैंक अपने ग्राहकों को क्रेडिट कार्ड की सुविधा उपलब्ध करा रही है। इसके माध्यम से ग्राहक देश या विदेश में एक निश्चित राशि तक की खरीददारी करके बिल का भुगतान कर सकता है। फलतः क्रेडिट कार्ड धारकों को खरीददारी के लिए नकद राशि की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

प्रश्न 15.
चालू खाता
उत्तर:
चालू खाता व्यापारी वर्ग के लिए उपयुक्त रहता है। कारण कि इस खाते में से आवश्यकता पड़ने जितनी बार चाहें रूपया निकाला जा सकता है। इसी कारण इस खाते में जमा राशि पर व्याज नहीं मिलता है।

प्रश्न 16.
भविष्य निधि योजना
उत्तर:
भविष्य निधि योजना नौकरी करने वाले व्यक्तियों के लिए एक अनिवार्य योजना है। इसके अन्तर्गत प्रतिमाह वेतन से एक निश्चित राशि भविष्य निधि में जमा करवा दी जाती है। आवश्यकता पड़ने पर तीन माह के वेतन जितनी राशि ऋण के रूप में इससे ली जा सकती है जिसका भुगतान कर्मचारी आसान किश्तों में करता है।

प्रश्न 17.
बॉण्ड्स
उत्तर:
बॉण्ड्स सरकारी तथा गैरसरकारी कम्पनियों द्वारा निश्चित अवधि के लिए जारी किए जाते हैं। इस पर अधिक व्याज मिलता है, परन्तु जमा राशि की सुरक्षा की सरकार की गारण्टी नहीं होती है। फिर भी कम्पनी की साख के अनुसार इनके बॉण्ड्स का प्रचलित हैं।

प्रश्न 18.
उपभोक्ता
उत्तर:
जो व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वस्तुओं या सेवाओं को खरीदता है और उसका उपभोग करता है उसे उपभोक्ता कहा जाता है। किसी-न-किसी रूप में हम सभी उपभोक्ता हैं।

प्रश्न 19.
उपभोक्ता संरक्षण
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण का अर्थ है उपभोक्ता के हितों की रक्षा। इसके लिए उपभोक्ता को अपने अधिकारों के प्रति जागृत होना आवश्यक है। उपभोक्ता अपने अधिकारों के प्रति जागृत हों इसके लिए कई सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाएँ कार्यरत हैं।

प्रश्न 20.
उपभोक्ता शिक्षा
उत्तर:
उपभोक्ता शिक्षा से वस्तु या ली गई सेवा की पूर्ण जानकारी मिलती है। इससे महत्त्वपूर्ण चयन की क्षमता, तर्क, विभिन्न मानक चिह्नों एवं बाजार की पूरी जानकारी मिलती है जिससे कानूनी उपायों, वितरण प्रणाली, अच्छा और सस्ता माल कहाँ मिलता है, जिससे धन का सदुपयोग करने के पूर्ण संतोष प्राप्त हो।

प्रश्न 21.
उपभोक्ता शोषण
उत्तर:
उपभोक्ता शोषण के कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं-

  • शिक्षा का अभाव
  • भ्रामक विज्ञापन
  • अधूरी शिक्षा
  • अधूरी जानकारी
  • विक्रय के बाद सेवा की असंतोषजनक सुविधा
  • कृत्रिम अभाव
  • कीमतों में अस्थिरता
  • मिलावट
  • तोल में गड़बड़ी

अतः कोई भी वस्तु खरीदने से पहले उस वस्तु के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करना जरूरी है।

प्रश्न 22.
उपभोक्ता के कर्त्तव्य
उत्तर:
उपभोक्ता के निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं-

  • उचित कीमतं तथा गुणवत्ता वाली वस्तु खरीदना चाहिए।
  • खरीदने से पहले माप-तौल की जाँच करनी चाहिए।
  • वस्तु खरीदने से पूर्व उस पर लगे लेबल को ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए।
  • विश्वसनीय या सरकारी दुकानों से खरीदारी करनी चाहिए।
  • वस्तु खरीदते समय उसका बिल या नकद रसीद तथा गारंटी कार्ड अवश्य लेना चाहिए।
  • मानकीकरण चिह्न वाली वस्तु ही खरीदनी चाहिए।
  • निर्माता के निर्देशानुसार वस्तु का प्रयोग करना चाहिए।
  • तस्करी वाली वस्तुएँ तथा काला बाजार से वस्तुएँ नहीं खरीदना चाहिए।

प्रश्न 23.
भारतीय मानक ब्यूरो
उत्तर:
भारतीय मानक संस्थान (ISI) को ही अब भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) कहा जाता है। इसी संस्थान के नाम पर इसका प्रमाणन चिह्न ISI है। 1952 के ISI अधिनियम के अंतर्गत भारतीय मानक ब्यूरो को किसी भी पदार्थ तथा प्रणाली के लिए मानक स्थापित करने का अधिकार है। इसमें लगभग सभी भोज्य पदार्थ, बिजली के उपकरण, बर्तन तथा सौंदर्य प्रसाधन शामिल है। किसी भी निर्माता को अपने उत्पादन पर ISI चिह्न लगाने की अनुमति तभी दी जाती है यदि उत्पादन पूरी निर्माण प्रक्रिया में BIS के मानकों के अनुसार तैयार किया गया है। खाद्य संसाधन इकाई को ISI चिह्न तभी दिया जाता है यदि वहाँ स्वास्थ्यकर वातावरण हो और अपने पदार्थ के परीक्षण के लिए जाँच सुविधाएँ उपलब्ध हों। यह उत्पादनकर्ता की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह अपने उत्पाद के लिए ISI चिह्न लेना चाहता है या नहीं।

प्रश्न 24.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम
उत्तर:
उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया। उस अधिनियम में कुल 31 धाराएँ है। विभिन्न धाराओं में उपभोक्त संरक्षण संबंधी निर्देश हैं। यह अधिनियम वस्तु और सेवाओं दोनों पर लागू होता है। सेवाओं के अन्तर्गत बिजली पानी, सड़कें आदि आते हैं।

प्रश्न 25.
एगमार्क
उत्तर:
एगमार्क से कृषि उत्पाद की गुणवत्ता तथा शुद्धता आँकी जाती है। एगमार्क का अर्थ है कृषि विक्रय। उत्पाद की गुणवत्ता को उसके आकार, किस्म, उत्पादन, भार, रंग, नमी, वसा की मात्रा तथा दूसरे रासायनिक और भौतिक लक्षणों द्वारा आँका जाता है। एगमार्क वाले उत्पाद फुटकर दुकानों, सुपर बाजार व डिपार्टमेंटल स्टोर्स से खरीदे जा सकते हैं। कुछ एगमार्क उत्पाद इस प्रकार हैं-चावल, गेहूँ, दालें, नारियल तेल, मूंगफली तेल, सरसों का तेल, शुद्ध घी, मक्खन, शहद, मसाले।
Bihar Board 12th Home Science Important Questions Short Answer Type Part 2, 1

प्रश्न 26.
एफ० पी० ओ०
उत्तर:
Fruit Product Order (F.P.O.)- फल-सब्जियों से बने पदार्थ सम्बन्धी यह आदेश 1946 में भारत सरकार द्वारा भारतीय रक्षा कानून के अन्तर्गत बनाया गया। F.P.O. द्वारा फल व सब्जियों की गुणवत्ता का न्यूनतम स्तर आवश्यक रूप से रखने का प्रावधान है। इसके अन्तर्गत औद्योगिक इकाइयों में स्वच्छता का वातावरण होना चाहिए। कारखाने में तैयार पदार्थों की उचित पैकिंग, मार्का व लेबल होना चाहिए। F.P.O. मार्क वाले पदार्थ हैं-जैम, जैली, मामलेड, कैचअप, स्कैवाश, अचार, चटनी, चाशनी, सीरप इत्यादि।
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प्रश्न 27.
संवेग
उत्तर:
संवेग शरीर की एक प्रभावपूर्ण एवं जटिल प्रक्रिया है। यह प्राणी की उत्तेजित अवस्था है जिसमें शारीरिक प्रतिक्रियाएँ अभिव्यक्त होती है। बालक के जीवन में संवेगों का विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 28.
समाजीकरण
उत्तर:
समाजीकरण का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसके माध्यम से असहाय तथा असामाजिक मानव शिशु विकसित होने पर एक सामाजिक प्राणी के रूप में रूपांतरित हो जाता है। इस प्रकार एक प्राणीशास्त्री शिशु को सामाजिक प्राणी बनाने की प्रक्रिया ही समाजीकरण है।

प्रश्न 29.
मौखिक अवस्था
उत्तर:
समाजीकरण की पहली अवस्था को मौखिक अवस्था कहा जाता है। इसमें शिशु मौखिक रूप से दूसरों पर निर्भर रहता है। इस समय शिशु अपनी देखभाल के लिए संकेत देने लगता है तथा अपना सुख-दुःख अपने हाव-भाव से प्रकट करता है। इसलिए इसे मौखिक अवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 30.
अपंग बालक
उत्तर:
अपंग बालक वैसे बालक को कहा जाता है जिनकी मांसपेशियों तथा हड्डियों का विकास दोषपूर्ण होता है। इसके अन्तर्गत विकृत शरीर अंग वाले बालकों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 31.
प्रतिभाशाली बालक
उत्तर:
जिन बालकों की बौद्धिक क्षमताएँ सर्वोत्तम होती है उन्हें प्रतिभाशाली बालक कहा जाता है। ऐसे बालक देश तथा समाज के हर क्षेत्र में पाये जाते हैं। ये विशिष्ट बालक होते हैं और सामान्य बालकों से पृथक आवश्यकताएँ रखते हैं।

प्रश्न 32.
अपराधी बालक
उत्तर:
जो बालक समाज तथा कानून द्वारा बनाये गये नियमों की अवहेलना करते हैं और एक निश्चित आयु से कम आयु के होते हैं, बाल अपराधी कहलाते हैं।

प्रश्न 33.
विकलांगता
उत्तर:
विकलांगता वह है जो किसी क्षति अथवा अक्षमता से किसी व्यक्ति की होने वाला वह नुकसान जो उसे उसकी आयु, लिंग, सामाजिक तथा सांस्कृतिक कारकों से संदर्भित सामान्य भूमिका को निभाने से रोकता है।

प्रश्न 34.
मील का पत्थर
उत्तर:
मील पत्थर बालक के वृद्धि तथा विकास में विराम चिह्नों का कार्य करते हैं। शारीरिक विकास के मील पत्थर सिर से पंजे की ओर अग्रसर होते हैं। अत: बालक पहले अपने सिर पर नियंत्रण रखना सीखता है, तब शरीर, भुजाओं तथा टाँगों पर नियंत्रण रखना सीखता है। ये मील पत्थर माता-पिता को चिकित्सा संबंधी राय बताने के लिए एक मार्गदर्शक प्रदान करते हैं।

प्रश्न 35.
स्थायी दाँत
उत्तर:
दाँत निकलने की प्रक्रिया एक निरंतर प्रक्रिया है जो 25 वर्ष तक चलती है। दाँत दो प्रकार के होते हैं-अस्थायी दाँत तथा स्थायी दाँत। सभी अस्थायी दाँत निकलने के बाद स्थायी दाँत निकलने प्रारम्भ होते हैं। स्थायी दाँत छः वर्ष से निकलना प्रारम्भ होते हैं। अस्थायी दाँतों की अपेक्षा ये बड़े होते हैं। इसकी अधिकतम संख्या 32 होती है। इसके टूटने के बाद पुनः दाँत नहीं निकलता है।

प्रश्न 36.
जीवाणु
उत्तर:
जीवाणु एक कोशीय जीव है। सर्वप्रथम एंटोनी वान ल्यूवेन हॉक ने 1675 ई० में अपने ही द्वारा विकसित सूक्ष्मदर्शी की सहायता से जीवाणुओं को देखा। तब से जीवाणुओं की हजारों प्रजातियों को पहचाना जा चुका है। जीवाणु सभी जगहों पर पाये जाते हैं तथा इनका आमाप (size) सूक्ष्म होता है। जीवाणु का औसत आमाप 1.25 μm (1 μm = mm) व्यास का होता है। सबसे छोटे जीवाणु की लम्बाई दंडरूप जीवाणु की होती है जो 0.15 μm होता है। सबसे बड़ा सर्पिल आकार का जीवाणु होता है जो 15 μm लम्बा 1.5 μm तथा व्यास वाला होता है। अनुकूल तापमान पोषण, आर्द्रता जैसे वातावरण में जीवाणुओं की संख्या में बढ़ोतरी बहुत तेजी से होती है। प्रजनन का सबसे सामान्य तरीका है कोशिका विभाजन या द्विखंडन। कुछ जीवाणु उपयोगी तथा कुछ हानिकारक होते हैं। कुछ उपयोगी जीवाणु दूध को दही में बदलता है और कुछ मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं, परंतु अधिकांश जीवाणु के कारण विभिन्न प्रकार के रोग होते हैं। जैसे-टॉयफाइड, येन्जाइटिश, हैजा आदि।

प्रश्न 37.
विषाणु
उत्तर:
विषाणु जीवाणु से भी सूक्ष्म होते हैं। इनकी उपस्थिति का पता या तो उनके परपोषी पर हो रहे प्रभाव के द्वारा लगाया जा सकता है या उन्हें इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में देखकर। वे केवल जीवित कोशिकाओं के अंदर गुणन करते हैं। किसी विशिष्ट परपोषी कोशिका के अलावा विषाणु का संवर्द्धन करना असंभव है। यह अत्यन्त परपोषी गुण वायरस के समानुपाती सरल संरचना से जुड़ा हुआ है। एक विषाणु में कुछ मात्रा में आनुवांशिक पदार्थ DNA या RNA के रूप में एक सुरक्षित प्रोटीन आवरण से घिरा रहता है। अन्य सूक्ष्म जीवों के विपरीत विषाणु की कोशिकीय संरचना नहीं होती। विषाणु प्रत्येक जगह पाये जाते हैं। जैसे-हवा, जल, मृदा यहाँ तक की जीवित शरीर में भी। विषाणु को क्रिस्टलित किया जा सकता है तथा अनेक वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

प्रश्न 38.
सम्प्राति या उद्भवन काल
उत्तर:
संक्रामक रोगाणुओं के व्यक्ति के शरीर में प्रवेश से लेकर रोग के लक्षणों के प्रकट होने तक की अवधि को सम्प्राति काल अथवा उद्भवन काल कहा जाता है। प्रत्येक रोग का सम्प्राति काल पृथक होता है। यह संक्रामक रोग की प्रथम अवस्था है। इस अवस्था में रोगाणु शरीर में प्रवेश करता है और शीघ्रता से वृद्धि करता है।

प्रश्न 39.
संक्रामक रोग
उत्तर:
संक्रामक रोग शरीर में जीवाणु तथा विषाणु के रूप में प्रवेश करते हैं तथा उपयुक्त तापमान तथा वातावरण प्राप्त करके तीव्र गति से वृद्धि करते हैं। यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलता है। संक्रामक रोग प्रतिनिधियों के द्वारा होता है। जीवाणु, विषाणु तथा कृमि सूक्ष्म कीटाणु होते हैं जिनसे संक्रामक रोग फैलते हैं। वायु, जल, भोजन तथा कीड़ों को काटना संक्रमन रोग के माध्यम से होते हैं। अस्वच्छ वातावरण में रोग के जीवाणु तथा विषाणु पनपते हैं जो मानव में प्रविष्ट होकर रोग का कारण बनते हैं।

प्रश्न 40.
रोध क्षमता
उत्तर:
प्रकृति ने मनुष्य को रोगों से लड़ने की स्वाभाविक क्षमता प्रदान की है, इस क्षमता को रोग प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता दो प्रकार की होती है- (i) प्राकृतिक प्रतिरक्षण एवं (ii) कृत्रिम प्रतिरक्षण।

प्राकृतिक प्रतिरक्षण के अंतर्गत श्वेत रक्ताणु द्वारा एन्टी टॉक्सिन का निर्माण होता है जो संक्रमण से बचाता है। बच्चों में माता के दूध से त्वचा, नाक के बाल तथा अंगों के श्लेष्मा से प्रतिरक्षण होता है। जबकि कृत्रिम प्रतिरक्षण टीके द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 41.
प्राकृतिक या जन्मजात रोध क्षमता
उत्तर:
वह रोधक्षमता, जो प्रकृति द्वारा जन्मजात पायी जाती है, उसे प्राकृतिक जन्मजात रोधक्षमता कहा जाता है। इस क्षमता को प्राकृतिक रोगप्रतिरोध क्षमता भी कहते हैं। यह क्षमता शरीर में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले रोग विरोधी तत्वों के कारण होती है। यह क्षमता शरीर में तभी बनी रह सकती है जब शरीर में उपस्थित श्वेत रक्त-कण शक्तिशाली हों। ऐसा संभव है जब व्यक्ति का आहार संतुलित तथा पौष्टिक हो और उसने जन्म के तत्काल बाद कोलेस्ट्रम तथा माता का दूध पीया हो।