BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 2 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
भारत में स्त्री उत्थान के लिए उठाए गए कदमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्त्री उत्थान के लिए उठाए गए कदम (Steps taken for upliftment of Women)- स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारत ने स्त्रियों की दशा में सुधार लाने के लिए बहुत-से कदम उठाए गए हैं-
1. महिला अपराध प्रकोष्ठ तथा परिवार न्यायपालिका (Cells of crimes against Women and family courts)- यह महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सुनवाई करते हैं। विवाह, तलाक, दहेज, पारिवारिक मुकदमे भी सुनते हैं।

2. सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भर्ती (Recruitment of woman in government)- लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। अब तो वायुसेना, नौसेना तथा थलसेना और सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों में अधिकारी पदों पर स्त्रियों की भर्ती पर लगी रोक को हटा लिया गया है। सभी क्षेत्रों में महिलाएँ कार्य कर रही हैं।

3. स्त्री शिक्षा (Women Education)- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में स्त्री शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है।

4. राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women)- 1990 के एक्ट के अंतर्गत एक राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है। महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, असम एवं गुजरात राज्यों में भी महिला आयोगों की स्थापना की जा चुकी है। ये आयोग महिलाओं पर हुए अत्याचार, उत्पीड़न, शोषण तथा अपहरण आदि के मामलों की जाँच पड़ताल करते हैं। सभी राज्यों में महिला आयोग स्थापित किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है और इन आयोगों को प्रभावी बनाने की मांग भी जोरों पर है।

5. महिलाओं का आरक्षण (Reservation of Seats for Women)- महिलाएँ कुल जनसंख्या की लगभग 50 प्रतिशत हैं परंतु सरकारी कार्यालयों, संसद, राज्य विधान मंडलों आदि में इनकी संख्या बहुत कम है। 1993 के 73वें व 74वें संविधान संशोधनों द्वारा पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। संसद तथा राज्य विधानमंडलों में भी इसी प्रकार आरक्षण किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है। यद्यपि इस ओर प्रयास किया जा रहा है परंतु सर्वसम्मति के अभाव में जब भी यह विधेयक संसद में लाया जाता है तो विभिन्न दल लग जाते हैं। अभी तक यह विधेयक पारित नहीं कराया गया है यद्यपि सभी राजनैतिक दल इसके समर्थन में बातें तो बहत करते हैं पर किसी ने ईमानदारी से इस विधेयक का समर्थन करने की ओर ध्यान नहीं दिया है।

उपर्युक्त प्रयासों के अतिरिक्त अखिल भारतीय महिला परिषद् तथा कई अन्य महिला संगठन स्त्रियों के अत्याचार, उत्पीड़न और अन्याय से बचाने, उन पर अत्याचार तथा बलात्कार करने वाले अपराधियों को दंड दिलवाने तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

प्रश्न 2.
द्रविड़ आंदोलन पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
द्रविड़ आंदोलन (Dravidian Movement)
I. प्रस्तावना (Introduction)- द्रविड़ आंदोलन भारत के क्षेत्रीय आंदोलनों में से एक शक्तिशाली आंदोलन था देश की राजनीति में यह आंदोलन क्षेत्रीयवादी भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था।

II. आंदोलन का बदला स्वरूप (Changing natue of the movement)- सर्वप्रथम इस आंदोलन के नेतृत्व के एक हिस्से. की आकांक्षा (aspiration) एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र बनाने की थी, परंतु आंदोलन ने तभी सशस्त्र संघर्ष (Armed Rebellion) का मार्ग नहीं अपनाया। इस आंदोलन के प्रारंभ में द्रविड़ भाषा में एक बहुत ज्यादा लोकप्रिय नारा दिया था जिसका हिंदी रूपान्तर है- ‘उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन-दिन घटता जाए’।

द्रविड़ आंदोलन अखिल दक्षिण भारतीय संदर्भ में अपनी बात रखता था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों से समर्थन न मिलने के कारण यह आंदोलन धीरे-धीरे तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया।

उपर्युक्त नारे में यह स्पष्ट है इसके संचालक देश के उत्तर और दक्षिण दो विशाल भागों में विभाजन चाहते थे।

III. नेतृत्व और तरीके (Leadership and Methods)- द्रविड़ आंदोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए, के हाथों में था। पेरियार ने अपने नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन की माँग आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बहसें (Public Debates) और चुनावी मंच (Election plateforms) का ही प्रयोग किया।

IV. आंदोलन के राजनैतिक उत्तरदायी संगठन (Political Sucessor organisation of the Movement)-
(a) द्रविड़ आंदोलन की प्रक्रिया से एक राजनैतिक संगठन ‘द्रविड़ कषगम’ का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व (Domination of the Brahman) की खिलाफत (विरोध) करता था तथा उत्तरी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था।

(b) कालांतर में द्रविड़ कषगाम दो धड़ों में बंट गया और आंदोलन की समूची राजनीतिक विरासत द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पाले में केंद्रित हो गई। 1953-54 के दौरान डी. एम. के. ने तीन सूत्रीय आंदोलन के साथ राजनीति में कदम रखा। आंदोलन की तीन माँगें थी-पहली, कल्लाकुडभ नामक रेलवे स्टेशन का नया नाम डालमियापुरम समस्त किया जाए और स्टेशन का मूल नाम दुबारा दिया जाए। संगठन की यह माँग उत्तर भारतीय आर्थिक प्रतीकों के विरोध को प्रकट करती थी। दूसरी माँग इस बात को लेकर थी कि स्कूली पाठ्यक्रम में तमिल संस्कृति के इतिहास को ज्यादा महत्त्व दिया जाए। संगठन की तीसरी माँग राज्य सरकार की व्यावसायिक शिक्षा नीति को लेकर थी। संगठन के अनुसार यह नीति समाज में ब्राह्मण दृष्टिकोण को बढ़ावा देती थी। डी० एम० के० के हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के खिलाफ थी।

V. डी० एम० के० की सफलताएँ (Success of DMK)- 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलन की सफलता ने डी० एम० के० को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया। राजनीतिक आंदोलनों के एक लंबे सिलसिले के बाद डी० एम० के० को 1967 के विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हाथ लगी। तब से लेकर आज तक तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ दलों का वर्चस्व कायम है।

VI. डी० एम० के० का विभाजन एवं कालांतर की राजनैतिक घटनाएँ (Division of DMK and Political events)- डी० एम० के संस्थापक सी० अन्नादुरै की मृत्यु के बाद दल में दो फाड़ हो गया। इसमें एक दल मूल नाम यानी डी. एम. के. को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक कहने लगा। यह दल स्वयं को द्रविड़ विरासत का असली हकदार बताता था। तमिलनाडु की राजनीतिक में ये दोनों दल चार दशकों से दबदबा बनाए हुए हैं। इनमें से एक दल 1996 से केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा रहा है।

1990 के दशक में एम०डी०एम०के०, पी०एम०के० डी०एम०डी० जैसे कई अन्य दल अस्तित्व में आए। तमिलनाडु की राजनीति में इन सभी दलों ने क्षेत्रीय गौरव के मुद्दे को किसी न किसी रूप में जिंदा रखा है। एक समय क्षेत्रीय राजनीति को भारतीय राष्ट्र के लिए खतरा माना जाता था। लेकिन तमिलनाडु की राजनीति क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच सहकारिता की भावना का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 3.
असम आंदोलन सांस्कृतिक अभियान आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असम आंदोलन का स्वरूप नि:संदेह असम आंदोलन सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की (मुख्यतः) मिली-जुली अभिव्यक्ति था। हम निम्न तथ्यों और बिंदुओं के आधार पर इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं-
(i) असम पूर्वोत्तर में सबसे बड़ा और ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीनतम राज्य रहा है। कुल मिलाकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में 7 राज्य हैं जिनमें चलाए गए समय-समय पर आंदोलन असम आंदोलन के हिस्से ही हैं। पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर अप्रवासी आए हैं। इससे एक खास समस्या पैदा हुई है। स्थानीय जनता इन्हें ‘बाहरी’ समझती है और ‘बाहरी”लोगों के खिलाफ उसके मन में गुस्सा है।

भारत के दूसरे राज्यों अथवा किसी अन्य देश से आए लोगों को यहाँ की जनता रोजगार के अवसरों और राजनीतिक सत्ता के एतबार से एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है। स्थानीय लोग बाहर से आए लोगों के बारे में मानते हैं कि ये लोग यहाँ की जमीन हथिया रहे हैं। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस मसले ने राजनीतिक रंग ले लिया है और कभी-कभी इन बातों के कारण हिंसक घटनाएँ भी होती हैं।

(ii) 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन ‘बाहरी’ लोगों के खिलाफ चले आंदोलनों का सबसे अच्छा उदाहरण है। असमी लोगों को संदेह था कि बांग्लादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई थी। लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जाएगी। कुछ आर्थिक मसले भी थे। असम में तेल, चाय और कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है।

(iii) 1979 में ऑल असम स्टूडेंटस् यूनियन (आसू-AASU) ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। ‘आसू’ एक छात्र-संगठन था और इसका जुड़ाव किसी भी राजनीतिक दल से नहीं था। ‘आसू’ का आंदोलन अवैध अप्रवासी, बंगाली और अन्य लोगों के दबदबे तथा मतदाता दर्ज कर लेने के खिलाफ था। आंदोलन की माँग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए। इस आंदोलन ने नए तरीकों को आजमाया और असमी जनता के हर तबके का समर्थन हासिल किया।

इस आंदोलन को पूरे असम में समर्थन मिला आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रासद घटनाएँ भी हुई। बहुत-से लोगों को जान गंवानी पड़ी और धन-संपत्ति का नुकसान हुआ। आंदोलन के दौरान रेलगाड़ियों की आवाजाही तथा बिहार स्थित बरौनी तेलशोधक कारखाने को तेल-आपूर्ति रोकने की भी कोशिश की गई।

(iv) समझौता (Agreement)- छह साल की सतत अस्थिरता के बाद राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘आसू’ के नेताओं से बातचीत शुरू की । इसके परिणामस्वरूप 1985 में एक समझौता के अंतर्गत तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश-युद्ध के दौरान अथवा उसके बाद के सालों में असमय आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा। आंदोलन की कामयाबी के बाद ‘आसू’ और असमगण संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर अपने को एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में संगठित किया। इस पार्टी का नाम असमगण परिषद् रखा गया। असमगण परिषद् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आई थी कि विदेशी लोगों की समस्या को सुलझा लिया जाएगा और एक ‘स्वर्णिम असम’ का निर्माण किया जाएगा।

(v) शांति प्रदेश और क्षेत्र (Peace in Province and Area)- असम-समझौता से शांति कायम हुई और प्रदेश की राजनीति का चेहरा भी बदला लेकिन अप्रवास’ की समस्या का समाध न नहीं हो पाया। ‘बाहरी’ का मसला अब भी असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में राजनीति में एक जीवंत मसला है। यह समस्या त्रिपुरा में ज्यादा गंभीर है क्योंकि यहाँ के मूलनिवासी खुद अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक बन गए हैं। मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों में भी इसी भय के कारण चकमा शरणार्थियों को लेकर गुस्सा है।

प्रश्न 4.
“मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है।” इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्यों क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धंधों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा देती है। ये आर्थिक संगठन बनेंगे तो लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। रोजगारी गरीबी को दूर करती है। समृद्धि का प्रतीक राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय का बढ़ाना प्रमुख सूचक है।

जब लोगों को रोजगार मिलेगा, गरीबी दूर होगी तो, आर्थिक विषमता कम करने के लिए साधारण लोग भी अपने-अपने आर्थिक संगठनों में आवाज उठाएँगे। श्रमिकों को उनका उचित हिस्सा, अच्छी मजदूरियों/वेतनों, भत्तों, बोनस आदि के रूप में मिलेगा तो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने परिवार के जनों को शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संवादवहन आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतयों से गहरा संबंध रखती है।

हर देश अपने यहाँ कृषि, उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों (देशों) से सहयोग माँगते हैं और उन्हें पड़ोसियों को सहयोग देना होता है। वे चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले वे अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात करना चाहते हैं। ये तभी संभव होगा जब क्षेत्रों और राष्ट्रीय स्तर पर शांति होगी। बिना शांति के विकास नहीं हो सकता। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन पूरा व्यय नहीं कर सकते। पूरा उत्पादन हुए बिना समृद्धि नहीं आ सकती। संक्षेप में क्षेत्रीय आर्थिक संगठन विभिन्न देशों में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता, यातायात सुविधाओं के विस्तार, विद्युत उत्पादन वृद्धि में सहायक होते हैं। यह सब मूल्कों की शांति और समृद्धि को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.
अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ?
उत्तर:
अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि सरकार अन्य पिछड़ी जाति के लिए आयोग नियुक्त कर सकती है। पहली बार 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में इस प्रकार का आयोग नियुक्त किया गया। इस आयोग ने 2399 जातियों को पिछड़ी जातियों में सम्मिलित किया। 1978 में वी.वी. मंडल की अध्यक्षता में इस आयोग ने 3743 प्रजातियों को पिछड़ी जाति में शामिल करने की सिफारिश की। कमीशन ने 27 प्रतिशत नौकरियाँ अन्य पिछड़ी जाति के लिए आरक्षितं की।

1998-99 से निम्न कार्यक्रम अन्य पिछड़े वर्ग के लिए शुरू किया गया।

  1. परीक्षा पूर्व कोचिंग अन्य पिछड़े वर्ग के उन लोगों के बच्चों के लिए जिनकी आय एक लाख रु. से कम हो।
  2. अन्य पिछड़े वर्ग के लड़के-लड़कियों के लिए हॉस्टल।
  3. प्री-मैट्रिक छात्रवृतियाँ।
  4. पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृतियाँ।
  5. सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक दशा सुधारने के लिए कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों की सहायता करना।

प्रश्न 6.
‘भारत विभाजन की सर्वाधिक जटिल कठिनाई अल्पसंख्यकों की थी।’ इस कथन की लगभग 100-150 शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तावना (Introduction)- भारत का विभाजन देश और लोगों के लिए अत्यधिक दुखदायी घटना थी। इस विभाजन से देश के समक्ष अनेक समस्याएँ और कठिनाई उपस्थित थीं लेकिन इन सभी में विभाजन की अबूज या जटिल कठिनाई अथवा समस्या अल्पसंख्यकों की थी।

अल्पसंख्यक (Minority)- अल्पसंख्यक का यहाँ संबंध देश-विभाजन के बाद अस्तित्व में आए दोनों देशों-भारत और पाकिस्तान की सीमाओं के दोनों ओर अल्पसंख्यक अर्थात् भारत से जाने वाले मुस्लिम और पाकिस्तान से आने वाले लाखों हिंदू और सिख आबादी से है। भारत के हिस्से में आए पंजाब और बंगाल के लाखों की संख्या में मुसलमानों की आजादी थी। इसका विस्थापन और पुनर्वास दोनों देशों की सरकारों के समक्ष जटिल कठिनाइयाँ थीं।

समस्या की जटिलता (Complexity ofProblem)- (i) भारत से जाने वाले मुसलमान लाखों की संख्या में पंजाब, बंगाल और दिल्ली उसके आस-पास के क्षेत्रों, विभाजन के कारण बड़ी कठिनाई, दुविधा और संकट में पड़ गए। इलाके में भी मुसलमानों की एक बड़ी आबादी थी। ये सब लोग एक तरह से साँसत में थे। इन लोगों ने पाया कि हम तो अपने ही घर में विदेशी बन गए। जिस जमीन पर वे और उनके पुरखे सदियों से आबाद रहे उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। बड़ी जल्दी हिंसा नियंत्रण से बाहर हो गई। दोनों के पास एकमात्र रास्ता यही बचा था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दें। कई बार तो उन्हें ऐसा चंद घंटों की मोहलत के अंदर करना पड़ा।

(ii) 1947 ई० में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। आबादी का यह स्थानांतरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानांतरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेहरमी से मारा। लाहौर, अमृतसर और कलकत्ता जैसे शहर सांप्रदायिक अखाड़े में बदल गए। जिन क्षेत्रों में ज्यादातर हिंदू अथवा सिख आबादी थी। उन क्षेत्रों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी तरह मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्रों में हिंदू और सिख भी नहीं गुजरते थे।

(iii) दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अकसर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी। कल तक जो लोगों का अपना वतन हुआ करता था वहीं की पुलिस अथवा स्थानीय प्रशासन अब इन लोगों के साथ रुखाई का बरताव कर रहा था। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था। अकसर लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की।

(iv) सीमा के दोनों ओर हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरन शादी करनी पड़ी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई मामलों में यह भी हुआ कि खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला।

(v) बहुत-से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। जो लोग सीमा पार करने में किसी तरह सफल रहे उन्होंने पाया कि अब वे बेठिकाना हो गए हैं। इन लाखों शरणार्थियों के लिए देश की आजादी का मतलब था महीनों और कभी-कभी सालों तक किसी शरणार्थी शिविर में जिंदगी काटना।।

प्रश्न 7.
भारतीय किसान यूनियन, किसानों की दुर्घटना की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दे (Issued raised by Bhartiya Kisan Union)-

  • बिजली के दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया।
  • 1980 के दशक के उत्तरार्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकण के प्रयास हुए और इस क्रम में नगदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा। भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोतरी करने,
  • कृषि उत्पादों के अंतर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियाँ हटाने,
  • समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करना।
  • किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की माँग की।

सफलताएँ (Success)- (i) जिला समाहर्ता के दफ्तर के बाहर तीन हफ्तों तक डेरा डाले रहे। इसके बाद इनकी माँग मान ली गई। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धारणा था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस-पास के गाँवों से उन्हें निरंतर राशन-पानी मिलता रहा। मेरठ के इस धरने को ग्रामीण शक्ति को या कहें कि काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रदर्शन माना गया।

(ii) बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठाई। महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आंदोलन को ‘इंडिया’ की ताकतों (यानी शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ ‘भारत’ (यानी ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम करार दिया।

(iii) 1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। इस अर्थ में किसान आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक-आंदोलन था।

(iv) इस आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीतिक मोल-भाव की क्षमता का हाथ था। यह आंदोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार के लिए नगदी फसल उपजाते थे। बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य उन समुदायों के बीच से बनाए जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति में पहुँच था। महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन और कर्नाटक को रैयत संघ ऐसे किसान-संगठनों के जीवंत उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का संक्षेप में विवरण दीजिए।
अथवा, गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में गोवा का विलय आसानी से नहीं हुआ। इसका कारण पुर्तगालियों फ्रांसीसीयों का जिद्दी दृष्टिकोण था। वह इसे अपनी इज्जत का चिह्न समझते थे और वे इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे। उनका यह दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत था जो इसे पुर्तगालियों द्वारा भारत के आक्रमण की कार्यवाही और उसे जबरदस्ती हथियाये रखने का अपने देश के सम्मान के लिए एक धब्बा मानते थे। भारतीय सरकार ने भरसक कोशिश की कि पुर्तगालियों को गोवा छोड़कर जाने के लिए राजी करे। गोवा को प्राप्त करने के लिए पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में अपना कार्यालय खोला ताकि वहाँ की सरकार को गोवा छोड़ने के लिए राजी किया जा सके लेकिन आखिरकार 1953 को यह कार्यालय बंद कर दिया गया क्योंकि भारत के तमाम कटनीतिज्ञ प्रयास विफल रह गए।

अब भारतवासियों ने गोवा राष्ट्रीय कमेटी का गठन किया ताकि गोवा में आजादी के कार्य के लिए संलग्न सभी राष्ट्रवादी पार्टियों की गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित किया जा सके और गोवा को भारत संघ में शामिल किया जा सके। 18 जून, 1954 को अनेक सत्याग्रही कैद कर लिए गए जब उन्होंने गोवा में भारतीय ध्वज लहराया। 22 जुलाई को क्रांतिकारियों ने दादर-नागर हवेली को आजाद करा लिया। इस कार्य में जनसंघ और गोवावादी लोगों की पार्टी (Goan Peoples party) का संयुक्त रूप से क्रांतिकारियों को समर्थन प्राप्त था।

15 अगस्त, 1955 को गोवा की आजादी ने एक नाटकीय मोड़ लिया। इस दिन हजारों भारतवासी चलकर गोवा में प्रवेश कर गए। ऐसा ही दमन और दीव में भी हुआ। इस प्रक्रिया में 200 प्रदर्शनकारी शहीद हो गए।

पुर्तगाल की इस गलत कार्यवाही से भारत भौंचक्का रह गया। हमारे प्रधानमंत्री ने पुर्तगालियों की निंदा की। सभी प्रमुख शहरों में हड़ताल हुई। नवंबर 1961 में पुर्तगालियों ने भारत के एक जहाज पर हमला करके कुछ लोगों को मार दिया। अंततः भारतीय सेना ने कारवाई की और ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) की कार्यवाही रंग लाई। 19 दिसंबर, 1961 को गोवा व दमन दीव पूरी तरह आजाद हो गया।

प्रश्न 9.
‘भारत में सिक्किम विलय’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में सिक्किम का विलय (Annexation of Sikkim in India)-
1. पृष्ठभूमि (Background)- मतलब यह कि तब सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को सँभाल नहीं सके।

2. सिक्किम में लोकतंत्र तथा विजयी पार्टी का सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास (Democracy in Sikkim and Victorious party’s efforts to connect Sikkim with India)- एक बड़ा हिस्सा नेपालियों का था। नेपाली मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे-से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदाय के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया। सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम काँग्रेस को भारी विजय मिली। वह पार्टी सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने के पक्ष में थी।

3. सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य (प्रांत ) बनाया गया (Sikkim was declared 22nd State (orprovince) of India)- विधानसभा ने पहले भारत के ‘सह-प्रान्त’ बनने की कोशिश की और इसके बाद 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया और जनमत संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तत्काल मान लिया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया। चोग्याल ने इस फैसले को नहीं माना और उसके समर्थकों ने भारत सरकार पर साजिश रचने तथा बल-प्रयोग करने का आरोप लगाया। बहरहाल, भारत संघ में सिक्किम के विलय को स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था। इस कारण यह मामला सिक्किम की राजनीति में कोई विभेदकारी मुद्दा न बन सका।

प्रश्न 10.
गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगे, 2002 पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठभूमि (Background)- कहा जाता है गोधरा (गुजरात) रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी इस हिंसा का तात्कालिक उकसाना बहुत ही हानिकारक और दुखदायी साबित हुआ। अयोध्या (उत्तर प्रदेश) की ओर से आ रही एक ड़ी की बोगी कार सेवकों से भरी हुई थी और न जाने किस कारण से उसमें आग लग गई।

इस आग की दुर्घटना में 57 व्यक्ति जीवित जलकर मर गए। कुछ लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि गोधरा के खड़े रेल के डिब्बे में आग मुसलमानों ने लगायी होगी अथवा लगवाई होगी।

अफवाहें बड़ी खतरनाक और हानिकारक होती है। गोधरा की दुर्घटना से जुड़ी-अफवाह जंगल की आग की तरह संपूर्ण गुजरात में फैल गई। अनेक भागों में मुसलमानों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक चलता रहा। लगभग 1100 व्यक्ति इस हिंसा में मारे गए।

मुसलमानों के विरुद्ध हुए दंगों को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पीड़ित भुक्तभोगियों के परिजनों को राहत देने और दोषी दंगाईयों को तुरंत कानून के हवाले करने एवं पर्याप्त दंड देने के लिए कहा गया। आयोग का यह कहना था पुलिस और सरकारी मशीनरी ने अपने राजधर्म का निर्वाह नहीं किया है सरकार ने अनेक लोगों को राहत दी है। अनेक लोगों पर मुकदमें चल रहे हैं लेकिन यह गानना पड़ेगा कि आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के कारण दंगे करना या कराना हमारे देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था (System) के किसी भी तरह से अनुकूल नहीं है।

प्रश्न 11.
भारत अमेरिका समझौता का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की परमाणु नीति दो बातों पर निर्भर करती है। भारत के पड़ोसी चीन और पाकिस्तान · परमाणु शक्ति सम्प न राष्ट्र हैं, अतः सुरक्षात्मक आवश्यकता है कि भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न दुश्मनों से अपनी सुरक्षा व्यवस्था निश्चित करने के लिए परमाणु नीति को अपनाये। परमाणु नीति के संदर्भ में दूसरी बात यह है कि भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमाणु संयंत्रों की जरूरत है।

1974 तथा बाद में 1999 में दो बार भारत परमाणु परीक्षण कर चुका है। इस कारण अमेरिका सहित विश्व के सभी विकसित राष्ट्रों का इसे कोपभाजन होना पड़ा। फिर भी भारत ने स्पष्ट किया कि उसके सभी परीक्षण शांतिपूर्ण कार्यों के लिए हैं।

भारत पर अमेरिका द्वारा प्रारंभ से ही एन. पी. टी. तथा सी. टी. बी. टी. जैसे संधियों पर हस्ताक्षर करने का दबाव पड़ता रहा है। इसका अर्थ है कि भारत परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता है। भारत इन संधियों को भेदभाव पूर्ण मानता है। भारत की स्पष्ट नीति है कि जबतक विश्व के कुछ देश परमाणु शक्ति सम्पन्न रहेंगे या परमाणु परीक्षण का अधिकार रखेंगे, तब तक भारत अपने को इससे वंचित रखने का निर्णय नहीं ले सकता है। भारत की घोषणा है-

  • भारत हथियारों की दौड़ से बाहर रहकर आवश्यक परमाणु अवरोधक शक्ति बना रहेगा।
  • भारत भविष्य में भूमिगत परमाणु विस्फोट नहीं करेगा।
  • भारत ने स्वेच्छा से इनका पहले प्रयोग न करने के सिद्धांत को स्वीकार किया है।

बदलते संदर्भ में परमाणु कार्यक्रमों को जारी रखते हुए भारत अमेरिका से अपने संबंध सुधारने तथा आवश्यक समझौता करने का निर्णय लिया। इस हेतु प्रयत्न वाजपेयी सरकार के समय से ही किया जा रहा था। अंतत: 2008 में राष्ट्रपति बुश तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच समझौता सम्पन्न हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 2016 में आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, तकनीकी एवं हथियार संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किया है जिसके कारण दोनों देशों का संबंध अधिक मधुर हुआ है।

प्रश्न 12.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
(a) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर।
(b) कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध।
(c) जनसंचार माध्यमों के कामकाज।
(d) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ।
उत्तर:
(a) सबसे बड़ी बात यह हुई कि आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए। उनके पास अब यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। इस प्रावधान के अंतर्गत लोगों को गिरफ्तार इसलिए नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत इस प्रावधान के अंतर्ग लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं।

सरकार ने आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी अधिनियमों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे। आपातकाल का विरोध और प्रतिरोध की कई घटनाएँ घटी। पहली लहर में जो राजनैतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गए थे वे भूमिगत हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई।

(b) गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष से किन्हीं और ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, लेकिन सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों को गिरफ्तारी का कारण बताना कतई जरूरी नहीं है। अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

1976 के अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिक से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बन्द हो गए। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में एक माना गया।

(c) आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस का आजादी पर रोक लगा दी। समाचारपत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेनी जरूरी है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘स्टेट्समैन’ जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छापने से रोका जाता था उनकी जगह ये अखबार खाली छोड़ देते थे। ‘सेमिनार’ और ‘मेनस्ट्रीम’ जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने की जगह बंद होना मुनासिब समझा। सेंसरशिप को धत्ता बताते हुए गुपचुप तरीके से अनेक न्यूजलेटर और लीफलेट्स निकले।

(d) पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गईं। पुलिस हिरासत में कई लोगों की मौत हुई। नौकरशाही मनमानी करने लगे। बड़े अधिकारी, समय की पाबंदी और अनुशासन के नाम पर तानाशाही नजरिए से हर मामले में मनमानी करने लगे। पुलिस और नौकरशाही ने जबरदस्ती परिवार नियोजन को थोपा। अनाधिकृत ढाँचे गिराए। रिश्वतखोरी बढ़ गई।

प्रश्न 13.
आजकल अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पारंपरिक सहयोग को क्यों महत्त्वपूर्ण समझा जा रहा है ? समझाइए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और पारस्परिक सहयोग- (i) आज की दुनिया परस्पर बहुत समीप आ गई है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर मँडराते इन अनेक अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए सैन्य-संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की जरूरत है। आतंकवाद से लड़ने अथवा मानवाधिकारों को बहाल करने में भले ही सैन्य-बल की कोई भूमिका हो (और यहाँ भी सैन्यबल एक सीमा तक ही कारगर हो सकता है) लेकिन गरीबी मिटाने, तेल तथा बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति बढाने, अप्रवासियों और शरणार्थियों की आवाजाही के प्रबंधन तथा महामारी के नियंत्रण से सैन्य-बल के प्रयोग से मामला और बिगड़ेगा।

(ii)ज्यादा प्रभावी यही होगा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से रणनीतियाँ तैयार की जायें। सहयोग द्विपक्षीय (दो देशों के बीच) क्षेत्रीय, महादेशीय अथवा वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है और विभिन्न देश इससे निपटने के लिए कितने इच्छुक तथा सक्षम हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर की अन्य संस्थाएँ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन (संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि) (एमनेस्टी इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, निजी संगठन तथा दानदाता संस्थाएँ, चर्च और धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन, सामाजिक और विकास संगठन) व्यवसायिक संगठन और निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ (जैसे नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा) शामिल हो सकती हैं।

(iii) सहयोग मूलक सुरक्षा में भी अंतिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी उन सरकारों से निबटने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे सककती है जो अपनी जनता को मार रही हो अथवा गरीबी, महामारी और प्रलयंकारी घटनाओं की मार झेल रही जनता के दु:ख-दर्द की उपेक्षा कर रही हो। ऐसी स्थिति में सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा का जोर होगा कि बल-प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से और सामूहिक रूप में किया जाए न कि कोई एक देश अंतर्राष्ट्रीय और स्वयंसेवी संगठन समेत अन्यों की मर्जी पर कान दिए बगैर बल प्रयोग का रास्ता अख्तियार करे।

प्रश्न 14.
विश्व स्तर पर असमानता किस प्रकार के खतरे उत्पन्न करती है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असमानता और विश्व के लिए खतरे- (i) विश्व स्तर पर यह असमानता उत्तरी गोलार्द्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से अलग करती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में असमानता अच्छी-खासी बढ़ी है। यहाँ कुछ देशों ने आबादी की रफ्तार को काबू में किया है और आय को बढ़ाने में सफल रहे हैं जबकि बाकी देश ऐसा नहीं कर पाये हैं। उदाहरण के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा सशस्त्र संघर्ष अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के दक्षिणवर्ती देशों में होते हैं। यह इलाका दुनिया का सबसे गरीब इलाका है। 21वीं सदी के शुरूआती समय में इस इलाके के युद्धों में शेष दुनिया की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मारे गए।

(ii) दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद गरीबी के कारण अधिकाधिक लोग बेहतर जीवन खासकर आर्थिक अवसरों की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक मतभेद उठ खड़ा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कायदे कानून अप्रवासी (जो अपनी मर्जी से स्वदेश छोड़ते हैं) और शरणार्थी (जो युद्ध प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होते हैं) में भेद करते हैं।

(iii) सामान्यतया उम्मीद की जाती है कि कोई राज्य शरणार्थियों को स्वीकार करेगा लेकिन उन्हें अप्रवासियों को स्वीकारने की बाध्यता नहीं होती। शरणार्थी अपनी जन्मभूमि को छोड़ते हैं जबकि जो लोग अपना घर-बार छोड़ चुके हैं परंतु राष्ट्रीय सीमा के भीतर ही उन्हें “आंतरिक रूप से विस्थापित जन” कहा जाता है। सन् 1990 के दशक के शुरूआती सालों में हिंसा से बचने के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने वाले पंडित “आंतरिक रूप से विस्थापित जन” के उदाहरण हैं।

प्रश्न 15.
भारत में विपक्षी दलों के उदय पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
(i) आपातकाल लागू होने के पहले की बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक-दूसरे के नजदीक आ रही थी। चुनाव के ऐन पहले इन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक नया दल बनाया। नयी पार्टी ने जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकार किया। कांग्रेस के कुछ नेता भी जो आपातकाल के खिलाफ थे, इस पार्टी में शामिल हुए।

(ii) कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवन राम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी बनाई। इस पार्टी का नाम ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ था और बाद में यह पार्टी भी जनता पार्टी में शामिल हो गई।

(iii) 1977 ई० के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी में चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों पर जोर दिया।

(iv) हजारों लोगों की गिरफ्तारी और प्रेस की सेंसरशिप की पृष्ठभूमि में जनमत कांग्रेस के विरुद्ध था। जनता पार्टी के गठन के कारण यह भी सुनिश्चित हो गया कि गैर-कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल आ पड़ी थी।

(v) लेकिन चुनाव के अंतिम नतीजों ने सबको चौंका दिया। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली थी। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर जीत गई थी और उसे स्पष्ट बहुमत मिला था। उत्तर भारत में चुनावी माहौल कांग्रेस के एकदम खिलाफ था। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी। राजस्थान और मध्य प्रदेश में उसे महज एक-एक सीट मिली। इन्दिरा गांधी रायबरेली से और उनके पुत्र संजय गांधी अमेठी से चुनाव हारे।