Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 8 किशोरों की कुछ समस्याएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 8 किशोरों की कुछ समस्याएँ

Bihar Board Class 11 Home Science किशोरों की कुछ समस्याएँ Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी भी कार्य को सफल होने के लिए क्या आवश्यक है ? [B.M.2009A]
(क) नैतिकता
(ख) अनुशासन
(ग) जानकारी
(घ) भावना
उत्तर:
(ख) अनुशासन

प्रश्न 2.
किशोरावस्था की सामाजिक समस्याओं को भागों में बाँटा गया है –
(क) 2 भागों में
(ख) 4 भागों में
(ग) 6 भागों में
(घ) 8 भागों में
उत्तर:
(ख) 4 भागों में

प्रश्न 3.
किशोर अपराध के कारणों को मुख्यतः वर्गों में बाँटा गया –
(क) 2
(ख) 4
(ग) 6
(घ) 8
उत्तर:
(क) 2

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प्रश्न 4.
“समस्याओं की आयु” कहा जाता है –
(क) बाल्यावस्था
(ख) किशोरावस्था
(ग) युवावस्था
(घ) प्रोढ़ावास्था
उत्तर:
(ख) किशोरावस्था

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अवनतिशील तथा अग्रशील स्मृतिलोप क्या है ?
उत्तर;
अवनतिशील (Retrograde) तथा अग्रशील (Anterograde) स्मृतिलोपअवनतिशील स्मृति लोप का परिणाम भूतकाल की बातें भूलने वाला होता है जबकि अग्रशील का परिणाम. कुछ नया सीखने की अयोग्यता है। दोनों को मिलाकर Global Amnsia होता है, जिससे स्मरण-शक्ति पर अग्रशील प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2.
नशीली दवा क्या होती है ?
उत्तर:
नशीली दवाएँ (Drugs)-दवा एक रासायनिक पदार्थ है। जब इसका दुरुपयोग किया जाता है तब वह शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव डालती है। दुष्प्रभाव डालने वाली दवाएँ नशीली दवाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 3.
किन्हीं दो नशीली दवाओं के नाम बताएँ जिनसे किशोरों को नशे की आदत हो सकती है।
उत्तर:
1. Opium
2. Heroin

प्रश्न 4.
‘किशोर-अपराध’ (Juvenile Delinquency) से आप क्या समझती हैं ?
उत्तर:
किसी भी प्रकार के असामाजिक व्यवहार को किशोर-अपराध कहा जा सकता है। किशोर, जो समाज की सुविधाओं का प्रयोग तो करता है किन्तु समाज द्वारा जिस व्यवहार की उससे आशा की जाती है, वह नहीं करता। ऐसे ही किशोर को किशोर-अपराधी कहा जाता है। अतः सामाजिक व्यवहार में असफलता ही ‘किशोर-अपराध’ है।

प्रश्न 5.
उदासीनता (Depression) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
जब किशोर जीवन के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाता है तो ऐसी स्थिति को उदासीनता कहा जाता है।

प्रश्न 6.
ऐसी दो परिस्थितियों के नाम लिखें जब किशोर दबाव या तनाव (Tension) का अनुभव करते हैं।
उत्तर:
किशोरावस्था में आते ही किशोरों को प्रौढ़ावस्था के उत्तरदायित्व निभाने के लिए तैयार होना पड़ता है। इस कारण बढ़ता हुआ किशोर तनाव में रहने लगता है।

दो परिस्थितियाँ निम्न हैं जब वे तनाव का अनुभव करते हैं –

  • जब उसका आकार आवश्यकता से अधिक बढ़ने लगता है।
  • जब वह अपने माता-पिता की आकांक्षा के अनुरूप शैक्षिक जीवन स्तर पर खरा नहीं उतर पाता।

प्रश्न 7.
किशोरावस्था की सामाजिक समस्याओं को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
किशोरावस्था की सामाजिक समस्याओं (Social Problems of Adolescence) को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है

  • प्रतिष्ठा की समस्या (Problem of Fame)।
  • स्वतन्त्रता की समस्या (Problem of Independence)।
  • जीवन दर्शन की समस्या (Problem of Philosophy) ।
  • कार्य-सम्बन्धी समस्याएँ (Problem of Profession)।

प्रश्न 8.
बालक को अपराधी कब कहते हैं ?
उत्तर:
जिस बालक के कार्य इतना गंभीर रूप ले लें कि उसे उस कुमार्ग से हटाने के लिए दण्ड देना पड़े ताकि अन्य बालक उससे शिक्षा ग्रहण कर सके। उस बालक को अपराधी कहा जाता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बाल अपराध कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
बाल अपराध के प्रकार (Kinds of Delinquenents)
(क) चुनौती देने वाली बालोपराधिक प्रवृत्तियाँ (Challenging nature of Delinquenents):
किशोरों में इस प्रकार की प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति निम्न रूपों में पायी जाती हैं –

  1. चोरी करना।
  2. झूठ बोलना।
  3. उद्देश्यहीन घूमना।
  4. तंग करना।
  5. लड़ना-झगड़ना।
  6. धूम्रपान करना।
  7. शेखी हांकना।
  8. पलायनशीलता (घर अथवा विद्यालय में)।
  9. दीवार पर लिखना।
  10. स्कूल की चीजें नष्ट करना।

(ख) यौन अपराध (Sex Delinquency): इनको भी दो भागों में बाँटा जा सकता है –

1. भिन्न लिंग अपराध (Different Sex Delinquency):
इसके दो रूप होते हैं –
(क) इच्छा रखने वाले समान अवस्था के सदस्य के साथ।
(ख) इच्छा न रखने वाले छोटी अवस्था के सदस्य के साथ।

2. वे प्रयास अपराध (Same sex Delinquent):
इसके तीन रूप होते हैं –
(क) समलिंग अपराध।
(ख) हस्तमैथुनी।
(ग) निर्लज्ज प्रदर्शन तथा नंगापन।

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प्रश्न 2.
किशोरों में “स्वतंत्रता एवं नियंत्रण” (Independence and Control) की समस्या पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
किशोरावस्था को प्रायः संघर्ष एवं तनाव का काल कहा जाता है क्योंकि किशोरों के सामने कुसमायोजन की अनेक समस्याएँ होती हैं।
किशोरावस्था की एक प्रमुख समस्या है स्वतंत्रता प्राप्त करने की समस्या । जिस कारण कई बार किशोर घर की पाबंदियों के विरुद्ध विद्रोह करते हैं और अपने भाग्य को कोसते हैं।

प्रश्न 3.
‘मानसिक तनाव’ (Mental Tension) या ‘निराशा’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
जब किशोर जीवन के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाने लगता है तो इस स्थिति को मानसिक तनाव या निराशा की स्थिति कहते हैं।
मानसिक तनाव, निराशा या उदासीनता के कारण वह अप्रसन्न रहने लगता है, किसी भी काम में दिलचस्पी नहीं लेता, अपने-आपको कोसता है तथा उसके मन में आत्मघाती विचार आने की संभावना भी बढ़ जाती है।

किशोरों में उदासीनता या निराशा आने के दो निम्न कारण हो सकते हैं –
1. जब किशोर-किशोरी अपने महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हर संभव प्रयत्न करके भी असफल रहते हैं तो मानसिक कुंठा उत्पन्न होती है जो निराशा का कारण है।
2. प्रौढ़ावस्था के उत्तरदायित्व निभाने के लिए जो तैयारी किशोर को करनी पड़ती है, उसका तनाव किशोर के मन पर पड़ता है। वह अपनी पहचान बनाने के लिए चिन्तित रहते हैं और उसके कारण ‘निराशा’ से ग्रस्त हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
शराब के कुप्रभाव क्या हैं ?
उत्तर:
कुप्रभाव (Negative Effects):
इन आदतों का बालकों के तन व मन दोनों पर कुप्रभाव पड़ता है। सांस व हृदय की बीमारियाँ कम आयु में ही घेर लेती हैं। आत्म-विश्वास व आत्म-नियन्त्रण कम हो जाता है। वह अपनी जिम्मेदारी सम्भालने योग्य नहीं रहता । मानसिक व शारीरिक दोनों ही शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। शराब से यकृत (Liver) खराब हो जाता है।

प्रश्न 5.
नशे (Drugs) के कुप्रभाव क्या हैं ?
उत्तर:
नशे से कुछ देर तो व्यक्ति बहुत हल्का महसूस करता है। अपनी परेशानियाँ भूल जाता है पर धीरे-धीरे ये उसके शरीर को खोखला कर देते हैं। नशा न मिलने पर वह भयानक पीड़ा से ग्रस्त होता है व अपनी सुध-बुध खो बैठता है। इसे प्राप्त करने के लिए वह भयंकर से भयंकर अपराध भी कर सकता है। अपने अच्छे-बुरे की उसे पहचान नहीं रहती। इस गलत आदत से छुटकारा भी आसान नहीं है।

प्रश्न 6.
किशोरों में नशे की आदत के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
आज की युवा पीढ़ी की एक गम्भीर समस्या नशे की है। किशोरों में प्रायः नशे की आदत निम्न कारणों से लगती है

  1. हीन भावना।
  2. माता-पिता का कठोर अनुशासन।
  3. अनुचित साथी-समूह की संगति व उनका दबाव।
  4. मित्रों व समाज द्वारा किशोरों की शारीरिक, सामाजिक एवं मानसिक आवश्यकताओं को न समझा जाना।
  5. उत्सुकता।
  6. माता-पिता के कटु सम्बन्धों के कारण अनुभव किया गया तनाव व निराशा।

प्रश्न 7.
किशोर अवस्था में सेक्स संबंधी अपराध किस प्रकार विकसित होते हैं ?
उत्तर:
सेक्स सम्बन्धी अपराध (Sex related delinquency): किशोर इस समय सेक्स के बारे में जानने को बहुत उत्सुक होते हैं। उन्हें इस विषय में सही जानकारी माता-पिता या किसी अन्य से नहीं मिल पाती है । वे अपने साथियों या गलत साहित्य पढ़कर यह जानकारी प्राप्त करते हैं । सिनेमा व टी० वी० पर दिखाए गए अश्लील दृश्यों का भी उन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। किशोरियाँ बिन ब्याही माँ बन जाती हैं व गलत लोगों की संगत में वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर हो जाती हैं। लड़के छेड़खानी, बलात्कार आदि करके अपना भविष्य हमेशा के लिए खराब कर बैठते हैं।

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प्रश्न 8.
पारिवारिक सदस्यों द्वारा अपराध रोकने के कौन-कौन से उपाय हैं ?
उत्तर:
पारिवारिक सदस्यों द्वारा अपराध रोकने के उपाय (Ways to control delinquency by the family members) :

  1. सबका व्यवहार बालकों के प्रति उचित होना चाहिए।
  2. बालकों को दुरुपयोग करने के लिए पैसा न दें।
  3. घर में लड़ाई-झगड़े आदि जैसा गंदा वातावरण नहीं होना चाहिए।
  4. घर में परिवार सीमित रखना चाहिए ताकि प्रत्येक बालक को उचित लालन-पालन दिया जा सके।
  5. बालक को बुरी संगति में नहीं जाने देना चाहिए। उन्हें आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता भी नहीं दी जानी चाहिए तथा उनकी उम्र में पड़ सकने वाली बुरी आदतों से सतर्क रहना चाहिए।

प्रश्न 9.
कुसमायोजन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कुसमायोजन (Maladjustment): किशोर अचानक अपने को अपने साथियों से अलग पाते हैं। उनमें शारीरिक परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं और वे सोचते हैं कि उनके साथी वैसे ही हैं जिससे वे अपने प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण पैदा कर लेते हैं और अपने को सबसे दूर कर लेते हैं। अपनी बेचैनी के कारण वे बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं, झगड़ालू प्रवृत्ति के हो जाते हैं। दोस्ती व परिवार दोनों जगह वे समायोजन स्थापित नहीं कर पाते। इससे वे स्वयं व उनके परिवार के सदस्य सभी कठिनाई महसूस करते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नशीले पदार्थों से अपनी युवा पीढ़ी को किन साधनों द्वारा बचाया जा सकता है ?
उत्तर:
नशे के भयंकर परिणामों को देखते हुए नशीले पदार्थों से अपनी युवा पीढ़ी को निम्नलिखित साधनों से बचाया जा सकता है।
1. किशोरों के लिए अवकाशकाल के सदुपयोग के लिए आवश्यक साधन जुटाना-किशोरों के पास अत्यधिक ऊर्जा होती है जिसका सही ढंग से प्रयोग करना जरूरी है अन्यथा वह अनेक बुराइयों में फंस सकते हैं। यह परिवार, विद्यालय व समाज का उत्तरदायित्व है कि वह किशोरों के स्वस्थ मनोरंजन के लिए आवश्यक साधन जुटाने का प्रबन्ध करें।

2. जनसाधारण को प्रचार माध्यमों द्वारा नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले कुप्रभावों से अवगत कराना-प्रायः किशोर नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले प्रभावों से अनभिज्ञ होते हैं और उन्हें इनका ज्ञान तभी होता है जब वह इसके प्रभाव में इतना आ जाते हैं कि वह उनकी आवश्यकता बन चुकी होती है। प्रसार माध्यमों, जैसे रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा आदि द्वारा बहुत। ही प्रभावी तरीके से नशीले पदार्थों से होने वाले कुप्रभावों को दर्शाया जा सकता है।

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3. नशाबंदी सम्बन्धी नियमों को लागू करना-सरकार ने नशीले पदार्थों के कुप्रभावों को ध्यान में रखते हुए नशाबन्दी सम्बन्धी कई नियम बनाए हैं जो निम्नलिखित हैं

  • नशे से सम्बन्धित सभी चीजों जैसे सिगरेट, शराब आदि का प्रचार करते समय तथा उनके पैकटों पर चेतावनी लिखना अनिवार्य है कि यह पदार्थ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
  • सार्वजनिक स्थानों जैसे होटलों, क्लबों, समारोहों आदि में शराब पीने पर प्रतिबन्ध है। सिनेमाघरों तथा अन्य स्थानों जहाँ पर भीड़ होती है वहाँ धूम्रपान करने की भी मनाही होती है।
  • किशारों को नशीले पदार्थों से बचाने के लिए विद्यालयों, कॉलेजों, छात्रावासों आदि. के निकट इनकी बिक्री पर प्रतिबंध है।
  • नशीली दवाइयों को बेचने वालों, संग्रह करने वालों तथा खरीदने वालों को कड़ा दंड दिया जाता है, जिसमें जमानत नहीं दी जाती है।

परिवार के सदस्यों व समाज को इन नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले किशोरों के साथ सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए तथा यह समझना चाहिए कि यह एक रोग है, जिसका निवारण सम्भव है। इन युवकों को इन नशीले पदार्थों को छोड़ने के लिए प्रेरित करना तथा उसकी सहायता करना आवश्यक है।

कई स्वयंसेवी संस्थाओं एवं सरकारी अस्पतालों में इन किशोरों को दवाइयाँ देकर तथा कड़ी निगरानी में रखकर इस रोग से मुक्ति दिलाई जाती है। किशोरों में नशे की आदत को केवल सरकारी कानूनों से रोकना सम्भव नहीं है। इसके लिए किशोरों के माता-माता, मित्रों, अन्य परिवारजनों, शिक्षकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं को मिलकर एक आन्दोलन के रूप में नशाबन्दी के लिए कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 2.
किशोर-अपराध से आप क्या समझती हैं ? किशोर-अपराध के कारणों को किन वर्गों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
किशोर-अपराध (Juvenile Delinquency): किसी भी प्रकार के असामाजिक व्यवहार को किशोर-अपराध कहा जा सकता है। किशोर, जो समाज की सुविधाओं का प्रयोग तो करता है किन्तु समाज द्वारा जिस व्यवहार की उससे आशा की जाती है, वह नहीं करता।

ऐसे ही किशोर को ‘किशोर: अपराधी’ कहा जाता है। अतः सामाजिक व्यवहार में असफलता ही किशोर-अपराध है। उदाहरण के लिए ऐसे किशोरों को भी अपराधी माना जाता है जो घर से भाग कर आवारागर्दी करते हैं, माता-पिता अथवा संरक्षकों की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, गन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं, चरित्रहीन व्यक्तियों के सम्पर्क में रहते हैं, स्कूल से बिना किसी उचित कारण के अनुपस्थित रहते हैं तथा अनैतिक व अनधिकृत क्षेत्रों में घूमते पाए जाते हैं। किशोर-अपराध अनेक जटिल कारणों के फलस्वरूप होता है तथा इसकी रोकथाम इतनी सरल नहीं है।

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किशोर-अपराध के कारणों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है –
1. व्यक्तिगत कारण (Individual factors)
2. सामाजिक कारण (Social factors)

1. व्यक्तिगत कारण (Individual factors): किशोरों में ऐसे कुछ व्यक्तिगत कारण होते हैं जो उनमें अपराधी प्रवृत्ति जागृत करते हैं, जैसे –

(क) शारीरिक दोष (Physical Defects): किसी भी प्रकार के शारीरिक दोष से ग्रस्त किशोर अपने में कुछ कमी समझने लगता है और हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है और जब उसके दोष पर व्यंग्य किया जाता है तो वह प्रायः असामाजिक व्यवहार अपना लेता है। उसमें समाज के विरुद्ध प्रतिनिया का विकास होता है क्योंकि वह अपने दोष का उत्तरदायी समाज को ही समझने लगता है।

(ख) मन्द बुद्धि होना (Slow mental development): मन्द बुद्धि किशोर प्रायः अनैतिक व्यवहार की ओर सरलता से और शीघ्रता से खिंचते हैं क्योंकि उनमें यह समझने की शक्ति क्षीण होती है कि उचित सामाजिक व्यवहार क्या हैं।

(ग) जल्दी या देर से परिपक्वता होना (Early or late maturity): जब किसी किशोर में अपनी आयु की अपेक्षा जल्द या देर से परिपक्वता आती है तो उसमें समायोजन की कठिनाई होती है क्योंकि ऐसे किशोर अपनी आयु वाले किशोरों से बड़े या छोटे प्रतीत होते हैं। इससे किशोर में असन्तोष उत्पन्न होता है और वह असामाजिक व्यवहार करने लगता है।

2. सामाजिक कारण (Social factors): सामाजिक वातावरण सम्बन्धी अनेक कारण ऐसे हैं जो किशोर में अपराध की प्रवृत्ति जागृत करते हैं। कुछ सामाजिक कारणों का उल्लेख नीचे किया गया है

(क) माता-पिता का व्यवहार (Behaviour of parents): माता-पिता के अवहेलनात्मक व्यवहार से भी किशोरों को कुण्ठाएँ घेर लेती हैं जो उनमें उन्मुक्त व्यवहार को बढ़ावा देती हैं तथा जिससे किशोर अपराधी बन जाते हैं। अध्ययन द्वारा यह स्पष्ट है कि अपराधी किशोरों के माता-पिता, घर तथा बाहर कड़ा अनुशासन रखते हैं और तर्क के स्थान पर दण्ड देने में विश्वास रखते हैं।

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(ख) घर का वातावरण (Home Environment): किशोर अपराध का एक मुख्य कारण घर का अनुचित वातावरण है, जिससे प्रायः परिवार के प्रत्येक सदस्य के सम्मुख समायोजन की समस्या होती है। घर के वातावरण के अनुचित होने के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं माता-पिता के आपसी झगड़े, बिखरा हुआ परिवार, बड़ा परिवार, किशोरों को आवश्यकता से अधिक नियंत्रण में रखना या बिल्कुल स्वतंत्र छोड़ना, घर में अनुशासन का अभाव, परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होना जिससे किशोर की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, किशोर का हीन भावना से ग्रस्त होना या फिर किशोर में श्रेष्ठ होने की भावना का पनपना आदि।

(ग) घर के बाहर का वातावरण (Environment outside home): घर ही नहीं अपितु घर के बाहर का वातावरण भी किशोरों में अपराध प्रवृत्ति जागृत करता है। अध्ययनों द्वारा ज्ञात हुआ है कि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में अपराध प्रवृत्ति अधिक पायी जाती है। प्रायः ऐसे क्षेत्रों में भारी संख्या में प्रौढ़ अपराधी पाए जाते हैं, भीड़-भाड़ अधिक होती है, आस-पास अधिक कारखाने होते हैं या झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्र होते हैं, जिससे किशोरों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है और अपराध की प्रवृत्ति उनमें पनपने लगती है।

प्रश्न 3.
किशोरों की यौन-सम्बन्धी समस्याओं (Problems related to sex) का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
यौन सम्बन्धी समस्याएँ (Problems related to sex): मनुष्यों की अनेक नैसर्गिक प्रवृत्तियों (instincts) में से एक प्रवृत्ति काम (sex) की भी है। काम भावना किशोर के जीवन में अत्यधिक महत्त्व रखती है, अतः उसका उचित विकास आवश्यक है। किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें किशोरों को अपनी लैंगिक भूमिका समझनी, सीखनी व स्वीकारनी होती है।

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अध्ययनों द्वारा यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि किशोरों में यौन-सम्बन्धी समस्याएँ, यौन-सम्बन्धी जिज्ञासा के बढ़ने तथा यौन सम्बन्धी ज्ञान के अभाव से उत्पन्न होती हैं। किशोरों में लिंगीय भेद एवं काम-भावना की सही-सही जानकारी होना तथा काम के प्रति उनका स्वच्छ दृष्टिकोण होना आवश्यक है जिससे वह सुन्दर एवं सफल सामाजिक जीवन व्यतीत कर सकें तथा बुराइयों से बच सकें।

किशोरावस्था में जब किशोर तारुण्य को प्राप्त होते हैं तब उनमें यौन-सम्बन्धी जननेन्द्रियों का विकास एवं किशोरों में शुक्राणु एवं उसके स्राव होते हैं तथा किशोरियों में रजःस्राव होता है जिससे वे अनेक प्रकार की भयभीत करने वाली कल्पनाएँ करते हैं। इन विभिन्न कल्पनाओं से अपने को दोषी ठहराते हैं और लिंग अवयवों के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की ऐसी धारणाएँ बना लेते हैं जो बिल्कुल ही भ्रान्त एवं अशुद्ध होती हैं। कई बार तो किशोरों को यह विश्वास हो जाता है कि वे किसी विशेष रोग से पीडित हैं और हीनभावना के शिकार हो जाते हैं।

यही हीनभावनाएँ किशोरों में अनेक प्रकार की यौन-सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न करती हैं जिनका यदि समय पर निवारण न किया जाए तो किशोर के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है और उसमें अपराध प्रवृत्ति पनपने लगती है। हमारे देश में यौन-सम्बन्धी भ्रान्त धारणाओं व झूठे मानसिक कष्टों तथा हीन-भावना से ग्रस्त किशोर हैं जिन्हें उचित लिंग-सम्बन्धी जानकारी देकर यौन सम्बन्धी समस्याओं से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
किशोर-अपराध की रोकथाम में परिवार और विद्यालय की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
किशोर-अपराध की रोकथाम (Control of children delinquency): रोग चाहे शारीरिक हो अथवा मानसिक प्रायः चिकित्सा से रोकथाम बेहतर होती है। किशोर-अपराध भी एक मानसिक रोग है। जहाँ एक अपराधी किशोर को सुधारना कठिन है वहाँ उचित वातावरण एवं देखभाल से एक किशोर को अपराधी बनने से सहज ही रोका जा सकता है।

किशोर-अपराध रोकने में परिवार की भूमिका (Role of family in the control of child delinquency):
किशोर अपराध रोकने के लिए :

  1. घर का परिवेश स्वस्थ होना चाहिए तथा माता-पिता व अन्य सम्बन्धियों में प्रेमपूर्ण सम्बन्ध होने चाहिए।
  2. किशोरों के प्रति उचित दृष्टिकोण रखना चाहिए। उन्हें न तो अत्यधिक नियंत्रण में रखना चाहिए और न ही खुली छूट देनी चाहिए। इन्हें न तो आवश्यकता से अधिक लाड़-प्यार करना चाहिए और न ही अधिक कठोर व्यवहार करना चाहिए। किशोरों की समस्याएँ हल करने में उनकी सहायता करनी चाहिए तथा सहानुभूतिपूर्वक व्यवहार करना चाहिए।
  3. माता-पिता को किशोर के मनोविज्ञान को समझकर उन्हें उचित निर्देशन देना चाहिए।
  4. किशोरों की बुरी आदतों पर नजर रखनी चाहिए तथा अंकुश लगाना चाहिए।
  5. यौन जिज्ञासा होना किशोर में स्वाभाविक है। किशोरों को आवश्यक यौन शिक्षा देकर उनमें यौन के प्रति स्वस्थ धारणा बनानी चाहिए।
  6. किशोरों के मित्रों का ध्यान रखना चाहिए जिससे वह अपराधियों व बिगड़े हुए लोगों की संगति न कर पाए।
  7. परिवार नियोजित रखना चाहिए। छोटे परिवार में किशोर की उचित देखभाल कर सकते हैं।
  8. किशोर को आवश्यकता से अधिक जेब खर्च नहीं देना चाहिए।

किशोर अपराध रोकने में विद्यालय की भूमिका (Role of school in the control of child delinquency): किशोरों को उपयोगी एवं योग्य नागरिक बनाने में विद्यालय एक शक्तिशाली संस्था है। विद्यालय को केवल शिक्षा प्रदान करने वाली संस्था न बनाकर, एक ऐसी व्यावहारिक संस्था का रूप देना चाहिए जिसमें किशोर विद्यार्थी शिक्षकों को अपना मित्र समझे, स्वयं अनुशासन (Self discipline) में रहना सीखे, उत्तम जीवन मूल्यों व जीवन लक्ष्यों का निर्धारण करे तथा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों एवं कर्तव्यों को समझे, परन्तु जब किशोरों को विद्यालयों में उपयुक्त वातावरण नहीं मिलता तथा विद्यालय के पास उनके लिए पर्याप्त कार्यक्रम नहीं होते हैं और बाहर की दुनिया उन्हें अधिक आकर्षक लगती है तो अपराध की दुनिया में उनका पहला कदम उठता है-विद्यालय से भाग खड़े होने का अर्थात् भगोड़ापन (Truancy)। किशोरों में भगोड़ेपन को रोकने के लिए विद्यालयों को ऐसे सुनियोजित एवं व्यावहारिक कार्यक्रम बनाने चाहिए जिससे समाज व विद्यालय के मूल्यों में टकराव न हो तथा शिक्षकों एवं विद्यार्थियों के सम्बन्ध मधुर एवं प्रजातान्त्रिक हों।

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प्रश्न 5.
किशोर अवस्था में बढ़ती हुई जिज्ञासा और अपूर्ण ज्ञान किस प्रकार बेचैनी उत्पन्न करता है?
उत्तर:
बढ़ती हुई जिज्ञासा और अपूर्ण ज्ञान (Increased curiosity and inadequate knowledge): इस अवस्था में काम (sex) संबंधी अनेक भावनाएँ उत्पन्न होने के कारण, शारीरिक परिवर्तनों के कारण, संबंधों में बदलाव के कारण, बच्चों में अपने संबंध में अनेक जिज्ञासाएँ होती हैं। उन जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए उनको कोई औपचारिक शिक्षा (formal education) नहीं मिलती इसलिए अपनी काम (sex) संबंधी जानकारी के लिए वह घनिष्ठ मित्रों से बात करते हैं।

घनिष्ठ मित्रों से उनकी बातचीत का विषय प्रेम, प्यार, सच्चा प्यार, लैंगिक-संबंध, लैंगिक-क्रियाएं, लैंगिक परिपक्वता लैंगिक-आकर्षण, रजःस्राव, शिश्न (penis), वासना इत्यादि होता है। अपनी जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए कुछ ऐसे खेल भी खेलते हैं जिसमें लैंगिक संतुष्टि मिलती हो जैसे चुंबन लेना (Kiss)। उनकी बढ़ी हुई जिज्ञासा और अपूर्ण ज्ञान उनमें बेचैनी उत्पन्न करता है और उनके संबंधों में अनेक ऐसे परिवर्तन लाता है जो लैंगिक असंतुष्टि उत्पन्न करते हैं, जैसे दीवानापन। उनकी लैंगिक असंतुष्टि शारीरिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है, जैसे उनमें भूख न लगना, नींद न आना आदि।

समय से उनकी जिज्ञासाएँ शांत हो जाएं, उनके स्वास्थ्य पर लैंगिक परिपक्वता बुरा प्रभाव छोड़ने के बजाय अच्छा प्रभव छोड़े इसके लिए आवश्यक है कि उपयुक्त समय पर उन्हें यौन-संबंधी शिक्षा तथा नैतिक शिक्षा प्रदान की जाए। सिर्फ यौन-संबंधी शिक्षा प्रदान करने से उनमें कामुकता की जागृति होती है अत: नैतिक शिक्षा द्वारा वे जागृत कामुकता पर नियंत्रण कर सकारात्मक कार्यों में स्वयं ही अपना ध्यान लगा कर अपराधी होने से बच सकते हैं। इस प्रकार उन्हें अपराधी बनने से पहले ही उचित निर्देशन देकर प्रजातांत्रिक ढंग से नियन्त्रित कर उन्हें उत्तम नागरिक बनाया जा सकता है क्योंकि निवारण ही इलाज से ज्यादा बेहतर है (Prevention is better than cure)