Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् समासस्य अवधारणा
BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा
संस्कृत भाषा में दो या अधिक सार्थक शब्दों को एक साथ मिलाकर प्रयुक्त करने की व्यवस्था है। इसे “समास” कहते हैं। इसका अर्थ हैसमसनं समासः । अर्थात् पदों को एक साथ (सम्) रखना (असनम्) । एक साथ रखने पर उसके बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं। दोनों पदों के बीच कैसा सम्बन्ध है इसके आधार पर समास के भेद होते हैं । इस सम्बन्ध को समास के विग्रह द्वारा प्रकट करते हैं। जैसे
- समास का पद – पदों में सम्बन्ध (विग्रह)
- राजपुरुषः – राज्ञः पुरुषः।
- यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य । (शक्ति की सीमा के अन्तर्गत)
- पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः ।
- पाणिपादम् – पाणी च पादौ च तेषां समाहारः।
समास मूलतः चार प्रकार के हैं-
अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि तथा द्वन्द्व । तत्पुरुष के अन्तर्गत कर्मधारय और द्विगु मुख्य रूप से होते हैं इसलिए कहीं-कहीं छह समासों की चर्चा दिखाई पड़ती है।
अव्ययीभाव समास – अव्यय के रूप में रहता है। इसमें प्रायः पूर्व पद के अर्थ की प्रधानता रहती है। जैसे
- शक्तिमनतिक्रम्य = यथाशक्ति ।
- दिनं दिनं प्रति = प्रतिदिनम् ।
- गृहस्य समीपम् = उपगृहम् ।
तत्पुरुष समास – में उत्तर पदार्थ की प्रधानता होती है । इसमें कहीं-कहीं दोनों पदों की विभक्तियाँ भिन्न होती हैं तो व्यधिकरण तत्पुरुष कहलाता है। जैसे
- ग्रामं गतः = ग्रामगतः । (द्वितीया तत्पुरुष)
- ज्ञानेन हीनः = ज्ञानहीनः । (तृतीया तत्पुरुष)
- व्याघ्रात् भयम् = व्याघ्रभयम् । (पञ्चमी तत्पुरुष)
- गंगायाः जलम् = गङ्गाजलम् । (षष्ठी तत्पुरुष)
- काव्ये प्रवीणः = काव्यप्रवीणः । (सप्तमी तत्पुरुष)
- पूर्वपद की विभक्ति के अनुसार इसके भेद किये गये हैं।
तत्पुरुष समास में कभी-कभी दोनों पदों की विभक्तियाँ समान होती हैं,
तब उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
- जैसे- नीलं कमलम् = नीलकमलम्
- वीरः पुरुषः = वीरपुरुषः
- घन इव श्यामः = घनश्यामः
- कुत्सितः पुरुषः = कुपुरुषः
ऐसे ही समास में पूर्वपद संख्या वाचक हो, तो उसे द्विगु कहते हैं। जैसे
- त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
- सप्तानां शतानां समाहारः = सप्तशती
- नवानां रात्रीणां समाहारः = नवरात्रम्
‘न’ का समास किसी पद के साथ होने से उसे “न” समास कहते हैं। न का व्यञ्जन के पूर्व ‘अ’ तथा स्वर के पूर्व ‘अन्’ हो जाता है। जैसे
- न मोघः = अमोघः
- न सिद्धः = असिद्धः
- न अर्थः = अनर्थः
- न आगतः = अनागतः
बहुव्रीहि समास में दोनों पदों के अर्थों से भिन्न अन्य पदार्थ की प्रधानता
होती है । जैसे
- दश आननानि यस्य सः = दशाननः (अर्थात् रावण)
- पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (अर्थात् विष्णु)
- वीणा पाणौ यस्याः सा = वीणापाणिः (अर्थात् सरस्वती)
द्वन्द्वसमास – ‘च’ के अर्थ में होता है, इसलिए इसमें दोनों पदों के अर्थों की प्रधानता होती है। जैसे
- रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
- सुखं च दु:खं च = सुखदुःखें
- पिता च पुत्रश्च = पितापुत्री
- सीता च गीता च = सीतागीत
यह स्मरणीय है कि सन्धि के समान समास भी संस्कृत भाषा की . विशिष्टता है जिससे भाषा में संक्षेपण, अभिनव अर्थ का प्रकाशन एवं बहुव्रीहि समास के प्रयोग से व्यञ्जना वाले अर्थ भी लाये जाते हैं।