Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

(क) सर्वनाम-व्याकरण में सामान्यतः सर्वनाम की परिभाषा यह दी गयी है कि संज्ञा शब्द के स्थान पर आने वाला शब्द सर्वनाम होता है । जैसे वह, यह, कौन, तुम, हम इत्यादि । यह परम्परा अंग्रेजी व्याकरण से चली है जहाँ सर्वनाम को अर्थात् संज्ञा का स्थानापन्न कहते हैं। संज्ञा का बार-बार प्रयोग बचाने के लिए सर्वनाम प्रयुक्त होते हैं। संस्कृत में भी प्राय: इसी अर्थ में सर्वनाम शब्द आते हैं । पाणिनि ने सर्व आदि कुल पैतीस (35) शब्दों को सर्वनाम कहा है (सर्वादीनि सर्वनामानि) इनके शब्द रूप अन्य प्रातिपदिक शब्दों से कुछ भिन्न होते हैं। सर्वनामों में भी सभी लिङ्ग रहते हैं। केवल युष्मद् और अस्मद् का रूप सभी लिङ्गों के लिए एक समान होता है अर्थात् इनमें लिङ्गगत वैशिष्ट्य नहीं रहता । अन्य सभी सर्वनमों के पृथक्-पृथक् लिङ्गों में भिन्न रूप होते हैं । जैसे-सर्व का पुंल्लिङ्ग रूप सर्वः सर्वां-सर्वे इत्यादि है तो स्त्रीलिङ्ग में सर्वा-सर्वे-सर्वाः है, नपुंसकलिङ्ग में सर्वम्-सर्वे सर्वाणि इत्यादि है।

सर्वनामों में तद्, यद्, इदम्, अदस्, युष्मद्, अस्मद्, भवत् और किम् के प्रयोग बहुत प्रचलित हैं इसलिए सामान्यतः इनके रूपों पर पर्याप्त बल दिया जाता है। यह ध्यातव्य है कि युष्मद् और अस्मद् के रूप कुछ जटिल हैं । इनके प्रातिपदिक रूप केवल बहुवचनों में ही दिखाई पड़ते हैं। एकवचन, द्विवचन में न अस्मद् का पता रहता है, न युष्मद् का । इन पर ध्यान देना चाहिए । यह भी ध्यातव्य है कि दिशावाचक पूर्व, दक्षिण और उत्तर शब्द तो सर्वनाम हैं, पश्चिम नहीं । इसी प्रकार संख्यावाचक एक और द्वि सर्वनाम है अन्य संख्याएँ सर्वनाम नहीं हैं।

जिस संज्ञा के स्थान में सर्वनाम आता है उसके उस संज्ञा के लिङ्ग और वचन का ग्रहण करता है। जैसे इयं गङ्गा नदी, तस्यां वर्षपर्यन्तं जलं वर्तते । यहाँ नदी स्त्रीलिङ्ग है इसलिए उसका सर्वनाम ‘तस्याम्’ भी स्त्रीलिङ्ग एकवचन है। उसका सार्वनामिक विशेषण “इयम्” भी वैसा ही है। निम्नलिखित वाक्यांशों में रेखांकित पद सर्वनाम हैं-उत्तरस्य तडागस्य, अन्यस्यां (अपरस्यां) नद्याम्, अपराणि फलानि, एक पुस्तकम्, उभौ बालको, सर्वेभ्यः जनेभ्यः, दक्षिणस्यै दिशाये, एकस्याः नार्याः, सर्वाभिः बालिकाभिः, कस्याः नगर्याः आगच्छसि ? उत्तरस्मिन् भागे हिमालयः, पूर्वस्यां दिशायाम्-ये सार्वनामिक विशेषण हैं किन्तु संस्कृत में सर्वनाम ही हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

(ख) विशेषण-किसी अन्य पद की विशेषता बताने वाले शब्द को विशेषण कहते हैं । “विशेषण” सापेक्ष शब्द है इसलिए इसका विशेष्य के साथ सम्बन्ध होता है । विशेष्य की ही विशेषता विशेषण प्रकट करता है। वह विशेष्य सुबन्त या तिङन्त कोई भी हो सकता है, इसलिए विशेषण के दो भेद होते हैं

  1. सामान्यविशेषण जो सुबन्त की विशेषता बताता है।
  2. क्रियाविशेषण जो तिङन्त अथवा उसके स्थानापन्न क्रिया रूप में प्रयुक्त कृदन्त की विशेषता बताता है । सामान्यतः इन दोनों को पृथक् माना जाता है क्योंकि इनके प्रयोग की विशेषताएँ पृथक्-पृथक् होती हैं।

यहाँ (सामान्य) विशेषण की विवेचना की जाती है। यह विशेषण – विशेष्य का अन्धानुकरण करता है । व्याकरण के वचन, लिङ्ग तथा विभक्ति की दृष्टि से जो स्थिति विशेष्य की होती है वही विशेषण की भी रहती है। इन उदाहरणों में इसे देख सकते हैं-सुन्दरं पुष्पम्, लघूनि चित्राणि, निपुणस्य छात्रस्य, गभीरायां नद्याम्, अस्मिन् गृहे, मूर्खायाः दास्याः, दुर्बलयोः बालकयोः, धवले वस्त्रे, उत्कृष्टानि फलानि, जीर्णात् गृहात्, निर्धनेभ्यः छात्रेभ्यः इत्यादि ।

विशेषण का स्वरूप जैसा होगा (अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त आदि) उस शब्द के ढाँचे पर ही इसका रूप चलेगा। जैसे अकारान्त विशेषण का पुँल्लिग में ‘बालक’ के समान, नपुंसकलिंग में ‘फल’ के समान और स्त्रीलिंग आकारान्त हो जाने पर ‘लता’ के समान रूप होगा। नीचे के उदाहरण देखें-

शीतल (ठंडा)-

  • पुंल्लिग – शीतलः, शीतलौ, शीतला:
  • स्त्रीलिंग – शीतला, शीतले, शीतला:
  • नपुंसकलिंग – शीतलम्, शीतले, शीतलानि

अन्य स्वरा में अन्त होने वाले विशेषणों के रूप उनके संज्ञा-रूपों के समान होते हैं।

जैसे-

  • लघु (छोटा) का रूप
  • पुं. – लघुः लघू, लघवः
  • नपुं – लघु लधुनी, लघूनि (मधु के समान)

नीचे कुछ उपयोगी विशेषण दिये जाते हैं

रंगसम्बन्धी – सफेद = श्वेतः । काला = कृष्णः, श्यामः । लाल = रक्तः अरुणः । पीला = पीतः । नीला = नीलः ।

आकारसम्बन्धी-छोटा = ह्रस्वः, लघुः । बड़ा = विशालः, महान् । मोटा = स्थूलः, पीनः । लम्बा = दीर्घः लम्बः । पतला = कृशः, क्षीणः । लंगड़ा = खञ्जः।

स्वभावसम्बन्धी-अच्छा = सुशीलः, सज्जनः, शोभन:, उत्तमः, सुन्दरः (अर्थ के अनुसार प्रयोग होता है)। सबसे अच्छा = श्रेष्ठः । सुस्त = मन्दः । चालाक = चतुरः, निपुणः, कुशलः । चंचल = चपलः, चञ्चलः । तेज = तीव्रः । बुरा = दुष्टः । पढ़ा-लिखा = शिक्षितः ।

गुणसम्बन्धी-कड़ा = कठोरः । मजबूत = दृढः, सबलः । कमजोर = दुर्बलः। सूखा = शुष्कः । गीला = आर्द्रः । ठंडा = शीतः, शीतलः । गर्म = उष्णः । महीन = सूक्ष्मः । मुलायम = कोमलः, मृदुलः । रूखा = रूक्षः । तीखा = तीक्ष्णः । कड़वा = कटुः । तीता = तिक्तः । गरीब = निर्धनः, दरिद्रः । धनी = धनिकः, धनी । मीठा = मधुरः, मिष्टः । खट्टा = अम्लः । कसेला = कषायः।

मूलत: सर्वनाम रहने वाले शब्द विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इनमें भी विशेष्य के अनुसार लिङ्ग, वचन तथा विभक्ति का प्रयोग होता है । इनका संस्कृत भाषा के दैनिक व्यवहार में बहुत महत्त्व है । इदम् (तीनों लिङ्ग), अदस् (तीनों लिङ्ग), यद् (तीनों लिङ्ग), तद् (तीनों लिङ्ग), एतद् (तीनों लिङ.) एवं किम् (‘तीनों लिङ्ग)-इनका प्रयोग बहुत अधिक देखा जाता है, इसलिए इनके रूपों को संस्कृत वाग्धारा की दृष्टि से स्मरण रखना आवश्यक है। कुछ उदाहरण देखें – के के बालकाः सन्ति ? (कौन-कौन लड़के हैं ?)

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् सर्वनाम विशेषणं क्रियाविशेषणं च

एतस्य गृहस्य (इस घर का)।
असौ बालकः (वह लड़का)।

अस्याः बालिकायाः (इस लड़की का)।
कस्यां पाठशालायाम् (किस पाठशाला में)।
तेषां छात्राणाम् (उन छात्रों का)।
तानि पुष्पाणि (वे फूल)।
तस्मात् नगरात् (उस शहर से)

इसी प्रकार सैकड़ों उदाहरण बनाने का प्रयास करें। इस प्रसंग में अनिश्चय वाचक सार्वनामिक विशेषणों का भी प्रयोग सीखना चाहिए। प्रश्नवाचक सर्वनाम (तथा अव्यय) से ‘चित्’ या ‘चन’ लगाने पर अनिश्चय वाचक शब्द (सार्वनामिक विशेषण या अव्यय) बन जाते हैं। विशेषण में चित्, चन के पूर्व ऊपर के अनुसार विभक्ति लगती है। उदाहरण देखें

  • कोई लड़का (क: + चित् = कश्चित् बालकः)
  • किसी लड़की का (काम् + चित् = काञ्चित् बालिकाम्)
  • (यहाँ सन्धि के नियम लगते हैं)।
  • किसी जगह से (कस्मात् + चित् = कस्माच्चित् स्थानात्)
  • कुछ फूलों को (कानि + चित् = कानिचित् पुष्पाणि)
  • किसी शहर में (कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित् नगरे)
  • चित् के स्थान पर ‘चन’ (हलन्त नहीं) तथा ‘अपि’ का प्रयोग भी देखा जाता है किन्तु सन्धि के नियमों का पालन आवश्यक है। उदाहरण

किसी नदी में = कस्याञ्चित, कस्याञ्चन, कस्यामपि नद्याम् । कुछ मनुष्यों का = केषाञ्चित्, केषाञ्चन, केषामपि मनुष्याणाम् ।

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(ग) क्रिया विशेषण-ऊपर कहा गया है कि विशेषण का ही एक भेद क्रिया विशेषण है जो तिङन्त या क्रिया रूप में प्रयुक्त कृदन्त की विशेषता बतलाता है। क्रिया की विशेषता का अर्थ है उसके प्रकार, स्थान, काल इत्यादि का बोध कराना । इसलिए क्रिया विशेषण इन लक्ष्यों की पूर्ति करते हैं। क्रिया विशेषण अव्यय के रूप में हो जाते हैं इसलिए इनमें लिंग, वचन विभक्ति का प्रश्न नहीं उठता, सदा एकरूप रहते हैं। कुछ लोगों ने भ्रमवश “क्रियाविशेषणे द्वितीया” के रूप में नियम बनाया है। वस्तुतः यह व्यर्थ है। अव्यय के स्वरूप के अनुसार किसी शब्द में “अम्” लगा हो तो वह द्वितीयान्त नहीं होता ।

क्रिया विशेषण अव्यय होते हैं इसलिए अव्ययों के तीनों भेद (मूल अव्यय, प्रत्ययान्त अव्यय तथा अव्ययीभाव समास) यहाँ गृहीत होते हैं।

उदाहरण देखें

मूल अव्यय – वृक्षात् फलं पृथक भवति ।
प्रात: गमिष्यति ।
त्वं पुनः समागतः असि।
पण्डित: उच्चैः वदति ।

प्रत्ययान्त अव्यय – अहम् अन्यत्र पठिष्यामि (स्थानवाचक)।
इदम् उभयथा सिध्यति (प्रकारवाचक)।
यदा सः आगतः तदा वृष्टिः जाता (कालवाचक)।
शिक्षकः कथञ्चित् चलति (प्रकारवाचक)।
अव्ययीभाव समास-अहं यथाशक्ति करिष्यामि ।
प्रधानाध्यापकः उपविद्यालयं समागतः ।
छात्राः प्रतिदिनं परिश्रमं कुर्वन्ति ।