Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 1 Sensing and Identification of Entrepreneurial Opportunities

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 1 Sensing and Identification of Entrepreneurial Opportunities

Question 1.
Is it necessary to give due consideration on internal resources before initiating a particular decision ?
(A) Yes, it is necessary
(B) No, not necessary
(C) Necessary for external resources
(D) None of the above
Answer:
(A) Yes, it is necessary

Question 2.
Which of the following is a element of sensing the opportunities ?
(A) Ability to perceive
(B) Insight into the change
(C) Innovative quality
(D) All of the these
Answer:
(D) All of the these

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 1 Sensing and Identification of Entrepreneurial Opportunities

Question 3.
Which of the following is a kind of opportunities ?
(A) First opportunity
(B) Created opporutnity
(C) Last opportunity
(D) None of the these
Answer:
(B) Created opporutnity

Question 4.
Which of the following factors affecting identification of bussiness opportunities ?
(A) Volume of internal demand
(B) Created opportunity
(C) Existing opportunities in the environment
(D) None of the above
Answer:
(A) Volume of internal demand

Question 5.
Business opportunity relates with
(A) Commercially feasible projects
(B) Personal feasible projects
(C) Niether (a) nor (b) above
(D) None of the above
Answer:
(A) Commercially feasible projects

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Question 6.
The products which are more in demand are more……..
(A) Profitable
(B) Lossable
(C) More profitable
(D) None of the above
Answer:
(A) Profitable

Question 7.
It is to give due consideration on internal resources before initi ating a particular decision.
(A) Necessary
(B) Unnecessary
(C) Lossable
(D) Profitable
Answer:
(A) Necessary

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 13 महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे

Bihar Board Class 12 History महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए क्या किया?
उत्तर:
महात्मा गांधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए निम्नलिखित कार्य किये –

  1. महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले के परामर्शानुसार एक वर्ष तक ब्रिटिश भारत की यात्रा की ताकि वे इस भूमि और इसके लोगों को अच्छी तरह जान सकें।
  2. गांधी जी ने अपने को आम लोगों की वेशभूषा धारण की। उन्होंने खादी के वस्त्र पहने, हाथ में लाठी उठाई, चरखा काता। हरिजनों के हितों, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार किया और उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त की। उन्होंने अपने भाषणों में यह बार-बार दोहराया कि भारत गाँवों में बसता है। किसानों और गरीब लोगों की समृद्धि और खुशहाली के बिना देश की उन्नति नहीं हो सकती।
  3. उन्होंने आम लोगों यथा-किसान और मजदूरों के दुःख दूर करने के लिए. चंपारण, खेड़ा और अहमदाबाद में आंदोलनों का सूत्रपात अकेले किया।
  4. वे आम व्यक्ति की तरह भगवान की पूजा करते थे और जन-सेवा में लगे रहते थे।

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प्रश्न 2.
किसान महात्मा गांधी को किस तरह देखते थे?
उत्तर:

  1. गांधी जी को किसान अपना हमदर्द मानते थे। इसीलिए जब उन्होंने फरवरी 1916 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में किसानों या आम आदमियों को देखा तो वे दुःखी हो गये। इसके लिए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में आयोजकों की निन्दा की।
  2. गरीब किसान भूराजस्व को कम कराने तथा भूराजस्व की दर कम करवाने के लिए अधिकारियों, जमींदारों, को शोषण से मुक्त होने तथा समस्याओं को दूर करने की आशा गाँधी जी को समक्ष मानते है।
  3. किसानों को सेषण से मुक्त होने तथा समस्थाओं को दूर करने की आशा गाँधी जी पर टीकी थी।
  4. वे जानते थे कि केवल गाँधी जी ही उनके कुटीर उद्योगों को बर्बाद होने से बचा सकते हैं।
  5. किसान गांधी जी को लोकप्रिय नेता और अपने में से एक समझते थे। उनका यह मानना था कि वे उन्हें अंग्रेजों की दासता, जमींदारों के शोषण और साहूकारों के चंगुल से अहिंसात्मक आन्दोलनों और शांतिपूर्ण प्रतिरोधों द्वारा बचायेंगे।

प्रश्न 3.
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया था?
उत्तर:
नमक कानून स्वतंत्रता संघर्ष का महत्त्वपूर्ण मुद्दा बनने के कारण –

  1. महात्मा गांधी ने घोषणा की कि नमक मनुष्य की बुनियादी जरूरत है और सभी लोगों द्वारा प्रयोग किया जाता है। इस पर ब्रिटिश सरकार का एकाधिकार रहना मानव जाति के प्रति घोर अत्याचार है।
  2. नमक उत्पादन और विक्रय पर राज्य के एकाधिकार को तोड़ना आवश्यक है।
  3. लोगों को नमक बनाने से रोकना नागरिक अधिकारों को घोर दमन है। भारतीय घर में नमक का प्रयोग अपरिहार्य था परन्तु इसके बावजूद उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया। फलस्वरूप लोगों को ऊँचे दामों पर नमक खरीदना पड़ता था।

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प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्त्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन में अखबार का महत्त्व –

  1. इनसे देश में होने वाली घटनाओं, नेतागणों और अन्य लोगों की गतिविधियों, विचारों आदि की जानकारी मिलती है।
  2. उदाहरण के लिए-नमक आन्दोलन के विषय में अमेरिकी समाचार पत्रिका ‘टाइम’ का आरंभ में गांधी जी की हँसी उड़ाना है परन्तु बाद में इस आंदोलन से अंग्रेज शासकों की नींद हराम होने की बात करना स्वयमेव दर्शाता है कि वह आंदोलन कितना प्रभावशाली था इनमें आंदोलनकारियों का मनोबल बड़ा होगा।
  3. लेखकों, कवियों, पत्रकारों, साहित्यकारों और विचारकों के नजदीक लाकर आम-जनता को एक नई दिशा में आगे बढ़ाते हैं।
  4. अखबार जनमत का निर्माण और इसकी अभिव्यक्ति करते हैं। यह सरकार और सरकारी अधिकारियों तथा आम लोगों के विचारों और समस्या के विषय में जानकारी देकर व्यष्टि स्तर पर श्रेष्ठ कार्य करने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 5.
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर:
चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक चुनने के कारण –

  1. महात्मा गांधी मशीनीकरण के विरुद्ध थे। उनका मानना था कि मशीनों ने मानव को गुलाम बनाकर उनका स्वास्थ्य प्रभावित किया है तथा श्रमिकों के हाथों से काम और रोजगार छीन लिया है।
  2. चरखा स्वयं में एक सहज और सरल मशीन था जो प्रत्येक व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता था।
  3. उन्होंने मशीनों की आलोचना की और चरखे को ऐसे मानव समाज के प्रतीक रूप में देखा जिसमें मशीनों और प्रौद्योगिकी को अधिक महत्त्व नहीं दिया जायेगा।
  4. गांधी जी के अनुसार भारत एक गरीब देश है। चरखा गरीबों को पूरक आमदनी प्रदान करेगा। वे स्वावलंबी बनेंगे और गरीबी तथा बेरोजगारी से उन्हें छुटकारा मिलेगा।
  5. महात्मा गांधी मानते थे कि मशीनों से श्रम बचाकर लोगों को मौत के मुँह में ढकेलना या उन्हें बेरोजगार करके सड़क पर फेंकना एक बराबर है। चरखा धन के केन्द्रीकरण को रोकने में भी सहायक है।

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प्रश्न 6.
असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन एक प्रतिरोध के रूप में –
1. औपनिवेशिक सरकार ने ‘रोलेट एक्ट’ पारित कर दिया जिसके अनुसार दोष सिद्ध हुए बिना ही किसी को भी जेल में बंद किया जा सकता था। गांधी जी ने इसके विरुद्ध अभियान चलाया। इसी को लेकर जलियाँवाला बाग में एक सभा हो रही थी। वहाँ जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। जिनमें सैकड़ों लोग मारे गये। गांधीजी ने इसके विरोध में असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया।

2. उन्होंने लोगों से अपील की कि वे सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और न्यायालय में न जाएँ तथा कर न चुकाएँ। उन्होंने कहा कि स्वेच्छा से इसका पालन करें जिससे स्वराज्य मिल सके। इस प्रकार उन्होंने लोगों से प्रतिरोध करने की अपील की।

3. असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था क्योंकि राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज अधिकारियों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जिन्होंने अमृतसर के जलियाँवाला बाग में प्रदर्शनकारियों और जलसे में भाग लेने वालों की गोलियों से निर्मम हत्या कर दी थी।

4. खिलाफत आन्दोलन के साथ चलाया गया यह असहयोग आंदोलन देश के हिन्दू और मुसलमानों का अन्यायी ब्रिटिश सरकार को आगे ऐसे जघन्य कार्यों से रोकने का प्रतिरोध करने का था।

5. इंस प्रतिरोध को सरकारी अदालतों का बहिष्कार करके संपन्न किया गया था।

6. विदेशी शिक्षा संस्थाओं और सरकारी विद्यालयों और कॉलेजों के समान्तर राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाएँ खोलना भी एक प्रतिरोध ही था।

7. उत्तरी आंध्र की पहाड़ी जनजातियों द्वारा वन्य कानूनों की अवहेलना किया जाना। अवध के किसानों द्वारा कर न चुकाया जाना और कुमाऊँ के किसानों द्वारा औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से इन्कार किया जाना भी एक प्रतिरोध ही था।

प्रश्न 7.
गोलमेज सम्मेलन से हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया?
उत्तर:
गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से नतीजा न निकलने के कारण:
दाण्डी यात्रा ने अंग्रेजों को यह अहसास करा दिया कि उनका शासन अधिक दिन नहीं चलने वाला है। अब भारतीयों को सत्ता में हिस्सा देकर ही शान्त किया जा सकता था। इसके लिए आयोजित तीन गोलमेज सम्मेलन निम्नलिखित कारणों से बिफल रहे –

  1. प्रथम गोलमेज सम्मेलन (नवम्बर 1930) में वायसराय इर्विन ने कैदियों की रिहाई और तटीय इलाकों में नमक उत्पादन की अनुमति देने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया।
  2. 1931 के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में मुस्लिम लीग और डा. अम्बेडकर की पार्टी ने कांग्रेस को एकमत से समर्थन न दिया।
  3. तीसरे गोलमेज सम्मेलन में इंग्लैण्ड की लेबर पार्टी द्वारा भाग न लिए जाने के कारण कांग्रेस ने इसका बहिष्कार कर दिया था।

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प्रश्न 8.
महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला?
उत्तर:
महात्मा गांधी द्वारा राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप में बदलाव:
1. 1915 में भारत आकर गाँधी जी ने आंदोलन के निम्नलिखित पहलू तय किए –

  • सत्याग्रह
  • अहिंसा
  • शांति
  • गरीबों के प्रति सच्ची सहानुभूति
  • महिलाओं का सशक्तिकरण
  • साम्प्रदायिक सद्भाव
  • अस्पृश्यता का विरोध
  • कल्याणकारी कार्यक्रम
  • कुटीर उद्योग धंधे
  • चरखा, खादी आदि के अपनाने पर बल
  • रंगभेद और जातीय भेद का विरोध

2. महात्मा गांधी ने अपने भाषणों को देकर और पत्र:
पत्रिकाओं में लेख छपवाकर एवं पुस्तकों के माध्यम से औपनिवेशिक शासन में भुखमरी, निम्न जीवन स्तर, अशिक्षा, अंधविश्वास और सामाजिक फूट के कारणों का खुला पर्दाफाश किया तथा इसके लिए ब्रिटिश सरकार को ही एकमात्र दोषी साबित कर दिया।

3. गांधी जी ने राष्ट्रीय आन्दोलन में ग्रामीण लोगों, श्रमिकों, सर्वसाधारण, महिलाओं और युवाओं आदि सभी को शामिल कर लिया था। वे मानते थे कि जब तक ये सभी लोग राष्ट्रीय संघर्ष से नहीं जुडेंगे तब तक ब्रिटिश सत्ता में शांतिपूर्ण, अहिंसात्मक आन्दोलनों और सत्याग्रहों आदि से नहीं हटाया जा सकता।

4. गांधी जी ने अहमदाबाद और खेड़ा में गरीब किसानों और श्रमिकों के लिए आंदोलन चलाकर यह सिद्ध कर दिया था कि वे आम जनता के साथ हैं।

5. गांधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। असहयोग आंदोलन के साथ खिलाफत आंदोलन को जोड़ कर उन्होंने साबित कर दिया था कि एकता रहने पर ही स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकती है।

6. वे अपने सभी अनुयायियों एवं राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं को बड़े सरल ढंग से समझाते थे कि अहिंसात्मक ढंग से शांतिपूर्ण सत्याग्रह ही प्रबुद्ध, न्यायप्रिय, उदार, मानवतावादी तथा लोकतंत्र समर्थक लोगों का विश्वास जीत सकता है।

7. उन्होंने स्त्री और पुरुष दोनों को आंदोलन में समान रूप से जोड़ा।

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प्रश्न 9.
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में क्या पता चलता है? ये स्त्रोत सरकारी ब्यौरों से किस तरह भिन्न होते हैं?
उत्तर:
निजी पत्रों और आत्मकथाओं से किसी व्यक्ति के बारे में मिलने वाली जानकारी और सरकारी ब्यौरों से इनकी भिन्नता –
1. निजी पत्रों और आत्मकथाओं से लेखक के भाव और उसके भाषा स्तर की जानकारी मिलती है।

2. निजी पत्र से विभिन्न घटनाओं और व्यक्तियों के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लिखे गए पत्र और पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा महात्मा गांधी को लिखे गए पत्र।

3. विभिन्न नेताओं, संगठनों द्वारा लिखे गये .पत्रों से सरकार के दृष्टिकोण, व्यवहार, प्रशासन की आंतरिक जानकारी पर बतायी विशेष के विचारों की झलक मिलती है।

4. आत्मकथाएँ व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन काल, जन्म स्थान उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि, शिक्षा, व्यवसाय, रुचियों, प्राथमिकताओं, कठिनाइयों, जीवन में आए उतार-चढ़ाव तथा जीवन से जुड़ी अन्य घटनाओं के बारे में भी बताती हैं।

5. निजी पत्र और आत्मकथायें सरकारी ब्यौरों से भिन्न होती हैं। सरकारी ब्यौरे प्रायः उलटबाँसी वाले या रहस्यपूर्ण होते हैं। ये सरकार और लिखने वाले लेखकों के पूर्वाग्रहों, नीतियों और दृष्टिकोण आदि से प्रभावित होते हैं। निजी पत्र व्यक्तियों के मध्य आपसी संबंध, विचारों के आदान-प्रदान और निजी स्तर से जुड़ी सूचनाएँ देने के लिए होते हैं। किसी व्यक्ति की आत्मकथा उसकी ईमानदारी, निष्पक्षता और सत्यपरक स्व-मूल्यांकन को दर्शाती है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
दाण्डी मार्च के मार्ग का पता लगाइए। गुजरात के नक्शे पर इस यात्रा के मार्ग चिन्हित कीजिए और उस पर पड़ने वाले मुख्य शहरों व गाँवों को चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
दाण्डी मार्च अहमदाबाद (गुजरात) के निकट स्थित साबरमती आश्रम से शुरू हुआ तथा दाण्डी समुद्र तट तक गया।
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परियोजना कार्य

प्रश्न 11.
दो राष्ट्रवादी नेताओं की आत्मकथाएँ पढ़िए। देखिए कि उन दोनों में लेखकों ने अपने जीवन और समय को किस तरह अलग-अलग प्रस्तुत किया है और राष्ट्रीय आन्दोलन की किस प्रकार व्याख्या की है। देखिए कि उनके विचारों में क्या भिन्नता है। अपने अध्ययन के आधार पर एक रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान घटी कोई एक घटना चुनिए। उसके विषय में तत्कालीन नेताओं द्वारा लिखे गये पत्रों और भाषणों को खोज कर पढ़िए। उनमें से कुछ अब प्रकाशित हो चुके हैं। आप जिन नेताओं को चुनते हैं उनमें से कुछ आपके इलाके भी हो सकते हैं। उच्च स्तर पर राष्ट्रीय नेतृत्व की गतिविधियों को स्थानीय नेता किस तरह देखते थे इसके बारे में जानने की कोशिश कीजिए। अपने अध्ययन के आधार पर आन्दोलन के बारे में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन : सविनय अवज्ञा और उससे आगे Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
रोलेट एक्ट के प्रावधान बताइए।
उत्तर:

  1. ब्रिटिश सरकार द्वारा रोलेट एक्ट 1919 में पारित किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को बिना सुनवाई का अवसर दिए किसी भी समय गिरफ्तार किया जा सकता है।
  2. वस्तुतः यह अधिनियम भारतीयों द्वारा चलाए गए सभी तरह के आंदोलनों को रोकने के लिए पास किया गया। गाँधी जी सहित अन्य नेताओं ने इसका जमकर विरोध किया।

प्रश्न 2.
असहयोग आन्दोलन के शुरू होने के मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:
गाँधी जी ने 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे –
1. रोलेट एक्ट:
प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 ई. में रोलेट एक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असंतुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन चलाया।

2. जलियाँवाला बाग की दुर्घटना:
रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जलियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलायी गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित सर्वप्रथम सत्याना वहाँ उन्होंने विा और घटना से दुःखी होकर असहयोग आन्दोलन आरंभ कर दिया।

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प्रश्न 3.
दक्षिण अफ्रीका में गाँधी जी की दो उपलब्धियाँ बताइए।
उत्तर:

  1. दक्षिण अफ्रीका में ही महात्मा गाँधी ने सर्वप्रथम सत्याग्रह के रूप में प्रचलित अहिंसात्मक विरोध की अपनी विशिष्ट तकनीक का इस्तेमाल किया।
  2. वहाँ उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द बढ़ाने का प्रयास किया तथा उच्च जातीय भारतीयों को निम्न जातियों और महिलाओं के प्रति भेदभाव वाले व्यवहार को चेताया।

प्रश्न 4.
1905-07 के स्वदेशी आन्दोलन के तीन प्रमुख नेताओं के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक।
  2. बंगाल के विपिन चन्द्र पाल।
  3. पंजाब के लाला लाजपत राय।

प्रश्न 5.
बारदोली आन्दोलन का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
बारदोली में मजदूरों और किसानों के आन्दोलन को राष्ट्रीय आन्दोलन का अंग माना गया तथा उनके आर्थिक और सामाजिक उत्थान के उद्देश्य पर विचार किया गया।

प्रश्न 6.
26 जनवरी 1930 ई. को जनता द्वारा ली गई स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा के दो मुख्य पहलू लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रथम राजनीति पहलू था: “हम यह विश्वास करते हैं कि यदि कोई सरकार लोगों को उनके मूल अधिकारों से वंचित रखती है और माँग उठाने पर निर्दयता से दमनचक्र चलाती है तो लोगों को भी यह अधिकार है कि वे उसे बदल दें या समाप्त कर दें।”
  2. द्वितीय आर्थिक पहलू था-“भारत को आर्थिक दृष्टि से बर्बाद कर दिया गया है। हम लोगों से आय के अनुपात में बहुत अधिक धन वसूला जाता है ….. हम ऐसी सरकार के सामने कदापि नहीं झुकेंगे जिसने हमारे देश को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है।”

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प्रश्न 7.
गांधी जी ने चम्पारन सत्याग्रह क्यों शुरू किया?
उत्तर:

  1. चम्पारन (बिहार) में यूरोप के व्यापारी किसानों से नील की खेती कराते थे और उनके ऊपर अनेक प्रकार के अत्याचार करते थे। उन्हें उत्पादन का उचित मूल्य नहीं दिया जाता था।
  2. महात्मा गांधी अफ्रीका के अपने आन्दोलन के अनुभव का प्रयोग चम्पारन में करना चाहते थे। राष्ट्रीय आंदोलन में किसानों का सहयोग पाने के लिए ऐसा करना आवश्यक था।

प्रश्न 8.
1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम की दो प्रमुख धारायें क्या थी?
उत्तर:

  1. इसके अंतर्गत विधान परिषदों का आकार बढ़ाया गया और निर्वाचन की व्यवस्था की गई।
  2. प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली लागू की गई और प्रांतीय सरकारों को अधिक अधि कार दिये गये।

प्रश्न 9.
खिलाफत आन्दोलन की असहयोग आन्दोलन में क्या भूमिका थी?
उत्तर:

  1. खिलाफत आन्दोलन ने मुसलमानों को राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
  2. मुसलमानों ने 1920 ई. में खिलाफत आन्दोलन चलाकर अंग्रेजों को किसी भी तरह का सहयोग देना बंद कर दिया था।

प्रश्न 10.
अखिल भारतीय प्रजामंडल आन्दोलन क्यों आरंभ किया गया?
उत्तर:
देशी राज्यों में जनता की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनैतिक दशा अत्यंत खराब थी। राजा जनता के स्वास्थ्य और शिक्षा की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं देते थे। वे राज्य के स्रोत का उपयोग राजकुमारों के ऐश्वर्य के लिए करते थे। इस शोचनीय दशा में सुधार लाने के लिए अखिल भारतीय प्रजामंडल नामक आन्दोलन आरंभ किया गया।

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प्रश्न 11.
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन का महत्त्वपूर्ण पक्ष क्या था? अथवा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में दो कौन-कौन से प्रस्ताव पास किये गये? अथवा, स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कांग्रेस के 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव पास किया और निर्णय लिया कि प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी का दिन सम्पूर्ण भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाए। इस प्रकार 26 जनवरी 1930 का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।
  2. इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य की मांग का प्रस्ताव किया।

प्रश्न 12.
1935 के भारत सरकार के अधिनियम की क्या मुख्य विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं:

  1. केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गयी। इस संघ में प्रांतों का सम्मिलित होना आवश्यक था, जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।
  2. संघीय विधान मंडल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।
  3. यह भी निश्चित किया गया कि प्रांतों के प्रतिनिधि जनता के द्वारा चुने जाएँ और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।
  4. केन्द्र के विषयों को रक्षित (Reserved) और प्रदत्त (Transferred) दो भागों में बाँटकर दोहरा शासन स्थापित किया गया। रक्षित विषय गर्वनर-जनरल के अधीन थे। जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गए। मंत्रियों को विधान मंडल के सामने उत्तरदायी ठहराया गया।

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प्रश्न 13.
महात्मा गांधी की तुलना अब्राहम लिंकन से क्यों की जाती है?
उत्तर:
एक धर्मांध अमेरिकी ने लिंकन को मार दिया था क्योंकि उन्होंने नस्ल या रंग भेद को दूर करने का संकल्प लिया था। दूसरी ओर एक धर्मांध हिंदू ने गांधी की जीवन लीला इसलिए समाप्त कर दी क्योंकि वे भाईचारे का प्रचार कर रहे थे।

प्रश्न 14.
केबिनेट मिशन से क्या आशय है? भारतीय नेताओं के साथ इसकी बातचीत के क्या नतीजे निकले?
उत्तर:
16 मई, 1946 के दिन इंग्लैण्ड के श्रमिक दल की सरकार ने भारत की स्वतंत्रता के बारे में यहाँ के नेताओं से अंतिम बातचीत करने जो तीन सदस्यीय दल भेजा उसे कैबिनेट मिशन कहा गया इसके संघीय व्यवस्था के लिए कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों को मध्यस्त कर लिया था।

प्रश्न 15.
भारत को स्वतंत्रता किस प्रकार मिली?
उत्तर:
मुस्लिम लीग को पृथक राष्ट्र माँग को मानकर भारत और पाकिस्तान नामक दो राज्यों में विभाजन करने के बाद।

प्रश्न 16.
प्रजामंडल आंदोलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारतीय रियासतों (562) की जनता ने अपनी आजादी तथा अन्य सुविधाओं को माँगा। भूमिकर की कमी और बंधुआ मजदूरी की समाप्ति को लेकर आन्दोलन चलाया।

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प्रश्न 17.
भारत छोड़ो आन्दोलन कब और क्यों चलाया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात भारत को स्वतंत्रता देने से इंकार कर दिया जबकि युद्ध पूर्व इसका वचन दिया गया था। इसके विरोध में 8 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया।

प्रश्न 18.
राष्ट्रीय आन्दोलन में राजघरानों के लोगों को क्यों शामिल किया गया?
उत्तर:

  1. लगभग 563 राज्यों की रियासतों के बिना भारत सम्पूर्ण नहीं था।
  2. कांग्रेस इन राजघरानों को देश का अभिन्न अंग मानती थी।

प्रश्न 19.
प्रांतों में कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र क्यों दे दिए?
उत्तर:
1939 ई. के द्वितीय महायुद्ध में इंग्लैण्ड भी शामिल था। भारत के वायसराय लिनलिथगो ने कांग्रेस से उचित परामर्श लिए बिना ही भारत को इस युद्ध में शामिल कर दिया। इस बात से नाराज होकर कांग्रेसी मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिए।

प्रश्न 20.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया?
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों को भेजने के लिए कांग्रेस को किसी तरह राजी करने के लिए।

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प्रश्न 21.
‘खुदाई खिदमतगार आन्दोलन’ कहाँ और क्यों चलाया जा रहा था? इसके प्रमुख नेता कौन थे?
उत्तर:

  1. ‘खुदाई खिदमतगार आन्दोलन’ पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत में किसानों द्वारा सरकार की मालगुजारी नीति के खिलाफ चलाया जा रहा था।
  2. इस आन्दोलन के प्रमुख नेता खान अब्दुल गफ्फार खान थे।

प्रश्न 22.
“साम्प्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की? इसके प्रावधान क्या थे?
उत्तर:

  1. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने 16 अगस्त 1932 में।
  2. दलितों को हिन्दुओं से अलग मानकर अलग प्रतिनिधित्व दिया जाय और दलित वर्गों के लिए एक अलग निर्वाचक मंडल दिया जाए।

प्रश्न 23.
शिमला कांफ्रेंस कब और क्यों हुई थी? इसके उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  1. शिमला कांफ्रेंस 25 जून 1945 को शिमला में हुई।
  2. इसका उद्देश्य स्वच्छ राजनीतिक वातावरण बनाने के लिए सभी दलों के नेताओं को एकमत करना था।

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प्रश्न 24.
वेवल योजना कब और क्यों बनाई गई।
उत्तर:

  1. वेवल योजना 14 जून, 1945 को लार्ड वेवल द्वारा बनाई गई।
  2. इसका उद्देश्य भारत में व्याप्त जनाक्रोश को कम करने का था।

प्रश्न 25.
गांधी जी ने साबरमती आश्रम की स्थापना क्यों की?
उत्तर:

  1. इसे राष्ट्रीय आन्दोलन के एक मुख्य केन्द्र के रूप में उपयोग में लाया जाना था।
  2. इसे चरखा चलाने, सूत कातने, खादी बनाने, शिक्षा का प्रचार करने, हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने तथा हरिजनों का कल्याण करने जैसे रचनात्मक कार्यों का केन्द्र बनाया जाना था।

प्रश्न 26.
चम्पारण सत्याग्रह शुरू करने के दो कारण बताइए।
उत्तर:

  1. चम्पारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहें बहुत अत्याचार करते थे।
  2. भारतीय किसानों ने यूरोप के इन व्यापारियों से अपने शोषण के विरुद्ध गाँधी जी से सहयोग की अपील की थी।

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प्रश्न 27.
बारदौली आन्दोलन क्यों किया गया?
उत्तर:

  1. यहाँ किसानों और बटाईदारों की दशा बहुत खराब थी वे लगान में कमी, बेदखली से सुरक्षा और कर्ज से राहत चाहते थे। परंतु अंग्रेजी सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही थी।
  2. 1928 में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने किसानों के साथ टैक्स न देने का आन्दोलन चलाया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता आन्दोलन में बाल गंगाधर तिलक का क्या योगदान था? उनके कोई दो महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन में लाल, बाल और पाल तीन महान् विभूतियाँ थीं जो गरम दल के सिरमौर नेताओं के रूप में जानी जाती हैं। बाल अर्थात् बाल गंगाधर तिलक ने अनेक ऐसे कार्य किये जिनके लिये भारत उनका सदैव ऋणी रहेगा। यहाँ उनके दो प्रमुख योगदानों का वर्णन किया जा रहा है –
1. राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार:
बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रवादी विचारों का प्रचार करने के लिए गीतों, लेखों और भाषणों की सहायता ली। उन्होंने ‘मराठा’ और ‘केसरी’ समाचारपत्र निकाले जिनमें राष्ट्रवाद के विचार छपते थे। इन समाचारों में भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए दिलेर, आत्मनिर्भर और निःस्वार्थी बनने की प्रेरणा दी।

2. होमरूल लीग की स्थापना:
जेल से छूटते ही एनी बेसेन्ट की सहायता से होमरूल की स्थापना की। तिलक जी ने होमरूल के लिए देश में जोरदार प्रचार किया और-“स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा”-नारा दिया।

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प्रश्न 2.
स्वदेशी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
स्वदेशी आन्दोलन:
स्वदेशी का अर्थ है – “अपने देश का” स्वतंत्रता संद्यर्ष में इसका अर्थ था – विदेशी वस्तुओं का परित्याग। देश के उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा, दस्तकारों को काम मिलेगा, बेरोजगारी व गरीबी कम होगी तथा सारे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार आयेगा। इस आन्दोलन से देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत हुई। इससे भारत में अंग्रेजी माल की माँग प्रायः समाप्त हो गई। इसका प्रभाव इंग्लैण्ड के उद्योगों पर बहुत बुरा पड़ा। कांग्रेस पार्टी ने 1905 अधिवेशन में स्वेदशी आन्दोलन को पक्का समर्थन दे दिया। इससे कांग्रेस के कार्यक्रमों और नीतियों में परिवर्तन दिखाई देने लगा।

इस आन्दोलन को सफल बनाने में विद्यार्थियों का बहुत योगदान रहा। उन्होंने स्वयं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग शुरू कर दिया था। समाज के सभी वर्गों से अपील की गई कि वे विदेशी वस्तुओं का प्रयोग बंद करें और अपने देश में बनी वस्तुओं को इस्तेमाल में लाएँ। इस बात का लोगों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि जो लोग विदेशी वस्तुएँ खरीदते थे या बेचते थे, नाइयों ने उन लोगों के बाल काटने बंद कर दिये और धोबियों ने उनके कपड़े धोने छोड़ दिये। इस सामाजिक बहिष्कार के भय से लोगों ने विदेशी माल खरीदना छोड़ दिया। अन्त में यही आन्दोलन विदेशी शासन से छुटकारा दिलाने की एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बना।

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प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन क्या है? इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
प्रथम महायुद्ध में अंग्रेज तुर्की के सुल्तान के विरुद्ध लड़े थे। इस युद्ध में उन्होंने भारतीय मुसलमानों का सहयोग भी प्राप्त किया था मुसलमानों ने अंग्रेजों का साथ इस शर्त पर दिया था कि युद्ध के बाद तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार किया जाएगा। परन्तु युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने वहाँ के सुल्तान के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। मुसलमान तुर्की के सुल्तान को अपना खलीफा (धार्मिक नेता) मानते थे इसलिए वे अंग्रेजों से नाराज हो गये और अंग्रेजों के विरुद्ध एक आन्दोलन आरंभ कर दिया। इसी आन्दोलन को खिलाफत आंदोलन कहा जाता है। यह आन्दोलन अली बन्धुओं ने गांधी जी के साथ मिलकर चलाया।

महत्त्व:
भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में खिलाफत आन्दोलन का बड़ा महत्त्व है। इसी के कारण हिन्दू और मुसलमान एकता को बल मिला। स्वतंत्रता आन्दोलन सबल बना। अंग्रेजी सरकार जनता के सहयोग से वंचित हो गयी।

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प्रश्न 4.
1919 ई. के अधिनियम के अंतर्गत लागू की गई द्वैध शासन प्रणाली के क्या दोष थे?
उत्तर:
1919 ई. के अधिनियम ने प्रांतीय विषयों को दो भागों में विभाजित, (आरक्षित तथा हस्तांतरित) कर दिया। आरक्षित विषयों में वित्त, कानून तथा व्यवस्था को रखा गया। इन सभी विषयों को गवर्नर के अधीन कर दिया गया। हस्तान्तरित विषयों में स्थानीय स्वशासन, शिक्षा एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विषय थे जिनके ऊपर मंत्रियों का अधिकार था। ये मंत्री विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी होते थे। गवर्नर मंत्रियों व काउन्सिल के सदस्यों को नामजद कर सकता था और उनको हटा भी सकता था। वह विधान सभा द्वारा बनाये किसी कानून को रद्द भी कर सकता था। वह मंत्रियों या विधान सभा की सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं था। इसे भारतीयों ने अस्वीकार कर दिया, क्योंकि निम्नलिखित कमियाँ थी –

  • इन सुधारों के उपरांत भी प्रमुख विभाग गवर्नर के अधीन रहे।
  • परिषदों के चुनावों में कुछ ही प्रभावशाली लोग मतदान कर सकते थे।
  • इस अधिनियम ने कोई उत्तरदायी सरकार नहीं दी।
  • प्रांतों के अंदर शुरू की गई इस द्वैध शासन प्रणाली में अनेक दोष थे।

प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया गया और क्यों असफल हो गया?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन चलाये जाने के कारण:
यह आन्दोलन महात्मा गांधी ने सन् 1921 में चलाया। इस आन्दोलन का उद्देश्य अंग्रेज सरकार के साथ असहयोग करने का था। इसको चलाने के चार कारण इस प्रकार थे –

  1. जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या करना और पंजाब में लोगों पर अत्याचार करना।
  2. सन् 1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा मान्टेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार अधिनियम पारित करके प्रांतों में द्वैध शासन लागू किया जाना तथा भारतीय लोगों के विचारों को महत्त्व न दिया जाना। (iii) स्वराज्य देने के वचन का पालन न करना।
  3. टर्की साम्राज्य के खलीफा को अपदस्थ करना।

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प्रश्न 6.
नेहरू रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं? इस रिपोर्ट को किन लोगों ने तैयार किया?
उत्तर:
नेहरू रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:
नेहरू जी ने अपनी रिपोर्ट सन् 1928 ई. में ब्रिटिश सरकार के सम्मुख रखी। इसमें निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं:

  1. भारत को डोमिनियम स्टेटस (अधिराज्य का दर्जा) दिया जाए।
  2. प्रांतों में स्वायत्त शासन स्थापित हो।
  3. सभी रियासतें संघ में शामिल हों।
  4. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश बने।
  5. देश में नवीन चुनाव प्रणाली शुरू की जाए।
  6. केन्द्र में जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार बने।
  7. जनता को मौलिक अधिकार दिये जाएँ।

नेहरू रिपोर्ट का महत्त्व:
ब्रिटिश सरकार ने 1935 के भारत सरकार अधिनियम में नेहरू रिपोर्ट के आधार पर कई धाराएँ अधिनियमित की। इस प्रकार नेहरू रिपोर्ट का भारतीय संविधान के संदर्भ में बहुत महत्त्व है।

इस रिपोर्ट की तैयारी में जुड़े चार नाम:
इस रिपोर्ट पंडित जवाहर लाल नेहरू, मोतीलाल. नेहरू, कृष्णामेनन और मदनमोहन मालवीय ने तैयार किया। इन चारों के अतिरिक्त एक पांचवाँ नाम चितरंजन दास का है जिन्होंने इस रिपोर्ट को तैयार कराने में अपना बहुमूल्य योगदान दिया।

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प्रश्न 7.
असहयोग आन्दोलन की वापसी के तुरंत बाद कांग्रेस में क्या मतभेद उत्पन्न हुए? इन मतभेदों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रथम असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद कांग्रेस:
1922-28 के दौरान भारतीय राजनीति में बड़ी-बड़ी घटनाएँ घटी। कांग्रेस में भारी मतभेद उभर गए। एक गुट (परिवर्तनवादी) के प्रतिनिधि चितरंजन दास और मोतीलाल नेहरू थे जिन्होंने बदली हुई परिस्थितियों में एक नए प्रकार की राजनीतिक गतिविधि का सुझाव दिया। उनका कहना था कि राष्ट्रवादियों ने विधानसभाओं में प्रवेश करके सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में बाधा डालनी चाहिए। सरकार की कमजोरियों को सामने लाना चाहिए तथा जन-उत्साह जगाकर राजनीतिक विरोध को और अधिक प्रखर बनाना चाहिए।

“अपरिवर्तनवादी” कहे जाने वाले दूसरे गुट के नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ. अंसारी, बाबू राजेन्द्र प्रसाद तथा दूसरे लोगों ने विधानमंडलों में जाने का विरोध किया। उन्होंने चेतावनी दी कि संसदीय राजनीति में भाग लेने से राष्ट्रवादी उत्साह कमजोर पड़ेगा और नेताओं के बीच प्रतिद्वंद्विता पैदा होगी। इसके विपरीत लोग चरखा चलाने, चरित्र-निर्माण, हिन्दू-मुस्लिम एकता, छूआछूत उन्मूलन तथा गाँवों में और गरीबों के बीच रचनात्मक कार्य किए जाएं उनका कहना था कि इससे देश धीरे-धीरे जन-संघर्ष के एक नए दौर के लिए तैयार होगा।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित उद्धरण को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिए:
उत्तर:
“आधुनिक युग में संसार ने एक नया चमत्कार देखा कि एक छोटा – सा मानव जिसको आप में से कोई भी नहीं देख सकता है, एक मानव इतना छोटा और नाजुक निकला और यह कहकर” मैं तीन दिन में समुद्र पर जाऊँगा और कुछ कानून प्रतीक रूप में तोगा।” उसके हाथ में केवल एक लाठी थी। प्रत्येक उस पर हँसा और मैं भी हँसी। “कैसे वह छोटा व्यक्ति संसार के सबसे बड़े शक्तिशाली साम्राज्य से लड़ेगा? “और जैसे यात्रा चली, दिन शाम में परिवर्तित हुआ। हमने अपनी आँखों से देखा कि संसार का इतिहास बदल रहा है। हमने देखा कि सम्पूर्ण भारत जोश में उठ रहा है।” (सरोजनी नायडु का एक भाषण, मद्रास में अगस्त 1934)
1. इसमें किस व्यक्ति का उल्लेख किया गया है?
उत्तर:
इसमें भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उल्लेख है।

2. कौन-सा चमत्कार इस व्यक्ति ने किया था?
उत्तर:
गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ किया। इस आंदोलन में गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध अहिंसक रहने का निश्चय किया। इसमें पूर्ण स्वराज्य को अपना लक्ष्य बनाया गया था। उन्होंने समर्थकों के साथ डांडी की यात्रा की।

3. उन्होंने कौन-सा कानून तोड़ा?
उत्तर:
गांधी जी अपने कुछ अनुयायियों के साथ 200 मील की कठिन यात्रा करके भारत के पश्चिमी समुद्री तट डांडी पहुँचे और वहाँ के जल से नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा। नमक बनाने पर सरकार का एकाधिकार था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि अंग्रेजों को पता लग जाये कि भारतीयों को उनके कानूनों की जरा भी परवाह नहीं है।

4. किस प्रकार सारा भारत जोश में उमड़ पड़ा?
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन सारे भारत में शीघ्र फैल गया। समस्त भारत में ब्रिटिश शासन के विरोध में प्रदर्शन हुए। विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया। किसानों ने भू-राजस्व नहीं दिया। इस आन्दोलन में भारतीय महिलाओं ने भी भाग लिया। यह आन्दोलन उत्तर-पश्चिमी सीमा तक पहुँच गया तथा खान अब्दुल गफ्फार खाँ, जो सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध थे, ने लालकुर्ती नामक खुदाई खिदमतगारों का संगठन बनाया। इसी समय पेशावर में प्रदर्शनकारियों पर गढ़वाली सैनिकों ने गोली चलाने से इंकार कर दिया। इस प्रकार भारतीय फौज में राष्ट्रवाद का आरंभ हुआ।.

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प्रश्न 9.
भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में सांप्रदायिकता की राजनीति की क्या भूमिका थी?
उत्तर:
स्वराज्य के संघर्ष के दिनों में देश में प्रमुख रूप से दो ही पार्टी ऐसी थी जिनको साम्प्रदायिक कहा जाता था –

  1. मुस्लिम लीग,
  2. हिन्दू महासभा।

इन दोनों ही पार्टियों ने संकीर्णता से काम किया। मुस्लिम लीग की करारी हार हुई। हिन्दू महासभा के नुमाइन्दे भी हार गये। मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के अन्दर धार्मिक भावनाओं को भड़काना शुरू कर दिया। उनके नेताओं ने कहा कि हिन्दुस्तान दो भागों में बँटा हुआ है –

  1. हिन्दू और
  2. मुसलमान।

इस जहर का असर दोनों संप्रदायों में हुआ। मुस्लिम लीग ने 1940 ई. में लाहौर अधिवेशन में अलग राज्य पाकिस्तान की माँग पूरी ताकत के साथ की। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू महासभा ने हिन्दुस्तान को हिन्दुओं की भूमि कहा जिससे मुसलमानों को आत्मग्लानि हुई और उन्होंने भी द्विराष्ट्र सिद्धान्त प्रतिपादित करके सीधी कार्यवाही को अंजाम दे दिया। दूसरे शब्दों में, ऐसी राजनीति ने हिन्दुस्तान का विभाजन करवा दिया।

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प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन क्यों शुरू किया गया? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
सिविल नाफरमानी अथवा सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरंभ 1930 में गांधी जी के नेतृत्व में हुआ। यह आंदोलन दो चरणों में चला और 1933 ई. के अंत तक चलता रहा। इसके कारणों और इसकी प्रगति के महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है:

कारण:

  1. 1928 ई. में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया।
  2. सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया।
  3. बारदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गांधी जी को सरकार के विरुद्ध आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
  4. गांधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखी, परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गांधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरंभ कर दिया।

महत्त्व:
सिविल नाफरमानी आन्दोलन वास्तव में उस समय तक का सबसे बड़ा जन-संघर्ष था। इस आंदोलन में देश के सभी भागों तथा सभी वर्गों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। लोगों ने बड़ी संख्या में जेल-यात्रा की परन्तु सरकार के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। यद्यपि 1934 में यह आंदोलन समाप्त हो गया लेकिन यह स्वतंत्रता सेनानियों का तब तक मार्ग-दर्शन करता रहा जब तक कि देशं स्वतंत्र नहीं हो गया।

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प्रश्न 11.
सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों आरंभ किया गया?
उत्तर:
12 मार्च 1930 ई. को गांधी जी के दाण्डी मार्च से आरंभ किया गया यह आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से चलाया गया –
1. अंग्रेजी सरकार की दमनकारी नीतियों का विरोध करना –

  • 1928 ई. में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया।
  • सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को अस्वीकार कर दिया।
  • गांधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखी, परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इसके विपरीत सरकार ने अपनी दमनकारी नीति जारी रखी। उदाहरण के लिए साइमन कमीशन का विरोध करने वाले भारतीयों पर भीषण अत्याचार किए गए।

2. सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करना:
अंग्रेजी सरकार ने नमक बनाने पर रोक लगा दी और नमक पर कर लगा दिया। इसका साधारण जनता पर बुरा प्रभाव पड़ा। गांधी जी सरकार के इस कानून तथा ऐसे कई अन्य अन्यायपूर्ण कानूनों का विरोध करना चाहते थे। वह सरकार को दिखाना चाहते थे कि जनता उसके किसी भी गलत कानून का पालन नहीं करेगी।

3. राष्ट्रीय आंदोलन में जनसाधारण का अधिक से अधिक सहयोग प्राप्त करना:
गांधी जी जनसाधारण की शक्ति को समझते थे। वह जानते थे कि आम जनता के सहयोग के बिना कोई भी आन्दोलन सफल नहीं हो सकता। फिर, राष्ट्रीय आंदोलन को सशक्त बनाने तथा अंग्रेजी सरकार को झुकाने के लिए समस्त भारतीय जनता का सहयोग आवश्यक था। सविनय अवज्ञा आंदोलन द्वारा गांधी देश की समस्त जनता को राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल करना चाहते थे।

4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का राष्ट्रीय आंदोलन के विकास पर प्रभाव:
सविनय अवज्ञा आंदोलन वास्तव में उस समय तक का सबसे बड़ा जन-संघर्ष था। इस आंदोलन में देश के सभी भागों तथा सभी वर्गों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। लोगों ने बड़ी संख्या में जेल-यात्रा की परन्तु सरकार के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया। यद्यपि 1934 में यह आंदोलन समाप्त हो गया फिर भी यह स्वतंत्रता सेनानियों का तब तक मार्ग-दर्शन करता रहा जब तक कि देश स्वतंत्र नहीं हो गया।

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़िए और अंत में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: “मैं आपको एक छोटा-सा मंत्र देता हूँ। आप इस मंत्र को अपने हृदय में अंकित कर लीजिए और आपकी हर साँस के साथ इस मंत्र की ध्वनि गूंजनी चाहिए। मंत्र है – “करो या मरो”। अर्थात् या तो भारत को हम स्वतंत्र कराएँगे या स्वतंत्रता के प्रयास में हम अपने प्राणों की आहूति दे देंगे। दासता की शाश्वतता देखने के लिए हम जीवित नहीं रहेंगे।”
(क) इस गद्यांश में वर्णित “छोटा मंत्र’ कौन-सा है?
(ख) यह मंत्र किसने दिया और किस आंदोलन के सम्बन्ध में दिया गया?
(ग) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस आंदोलन की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘छोटा मंत्र’ है “करो या मरो”।
(ख) यह मंत्र महात्मा गांधी ने दिया था। उन्होंने यह मंत्र ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के संबंध में दिया था।
(ग) भारत छोड़ो आंदोलन की भूमिका –

  1. भारत छोड़ो आन्दोलन एक महान् जन आन्दोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने का था। इस आन्दोलन में सभी वर्गों के नर-नारियों ने भाग लिया।
  2. इस आन्दोलन ने लोगों में स्वतंत्रता के प्रति अद्वितीय उत्साह एवं देश भक्ति की भावना का सृजन किया।
  3. सरकार ने लगभग सभी नेताओं को जेल में डाल दिया और यह आन्दोलन नेतृत्वहीनता के बावजूद दो साल तक चलता रहा। अंग्रेजी सरकार को यह आभास हो गया कि भारत के लोग तब तक चैन से नहीं बैठेंगे जब तक कि उन्हें स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो जाती।
  4. इस आन्दोलन ने भारत के लोगों के सामने एकमात्र लक्ष्य प्रस्तुत किया-यह लक्ष्य था अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए इस देश के लोगों ने अभूतपूर्व एकता का प्रदर्शन किया।
  5. भारत छोड़ो आंदोलन – के कारण यू. पी. में बलिया तथा मिदनापुर में लोगों का उत्साह विद्रोह की सीमाओं को छूने लगा। इन इलाकों से ब्रिटिश सत्ता लगभग समाप्त हो गई थी।

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प्रश्न 13.
कैबिनेट मिशन से क्या आशय है?
उत्तर:
फरवरी, 1946 ई. में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से विचार-विमर्श के लिए मंत्रियों का एक शिष्टमंडल (Cabinet Mission) भेजा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री श्री एटली ने घोषणा की कि हमारा विचार शीघ्र ही भारत को आजाद कर देने का है और अल्पसंख्यक दल को बहुसंख्यक दल की प्रगति के मार्ग में बाधा नहीं बनने दिया जाएगा। इसमें पाकिस्तान की माँग को ठुकरा दिया गया था, तथापि भारत में एक संघ शासन की स्थापना करने और जिसमें भारतीय प्रांतों के चार क्षेत्र बनाए जाने की संस्तुति दी गई थी।

विदेश नीति, सुरक्षा एवं संचार को छोड़कर बाकी सभी विषयों में प्रत्येक क्षेत्र को पूर्ण स्वतंत्रता दी जाए और हर क्षेत्र का अपना पृथक् संविधान हो। शिष्ट मंडल ने संविधान सभा के गठन का सुझाव दिया। इसके सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा न होकर साम्प्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर प्रांतीय सभाओं में करना था। राज्यों के प्रतिनिधियों को मनोनीत करने का अधिकार उनके राजाओं को दिया गया। कांग्रेस को हिन्दुओं के प्रतिनिधि मनोनीत करने का अधिकार दिया गया तथा मुस्लिम लीग को मुस्लिम प्रतिनिधियों को मनोनीत करने का अधिकार मिला।

प्रश्न 14.
साइमन कमीशन भारत में क्यों आया? भारत में इसका विरोध क्यों हुआ?
उत्तर:
1927 ई. में इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा नियुक्त कमीशन के अध्यक्ष सर जॉन साइमन कमीशन कहा गया है। यह कमीशन 1928 ई. में भारत पहुँचा। इसका उद्देश्य 1919 ई. के कानूनी सुधारों के परिणामों की जाँच करना था। इस कमीशन में भारतीय सदस्य न होने के कारण इसका स्थान-स्थान पर विरोध किया गया। यह कमीशन जहाँ भी गया, वहीं इसका स्वागत किया गया। स्थान-स्थान पर ‘साइमन कमीशन वापस जाओ’ के नारे लगाये गये। जनता के इस शांत प्रदर्शन को सरकार ने बड़ी कठोरता से दबाया। लाहौर में इस कमीशन का विरोध करने के कारण लाला लाजपत राय पर लाठियाँ बरसाई गईं। कुछ दिनों में उनकी मृत्यु हो गई थी। देश के सभी राजनीतिक दलों ने सरकार की इस नीति की कड़ी आलोचना की।

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प्रश्न 15.
गोलमेज काँफ्रेंस तथा गांधी-इरविन समझौता के विषय में क्या जानते हैं?
उत्तर:
गोलमेज काँफ्रेंस 1930 ई. तथा गाँधी-इरविन समझौता:
तत्कालीन वायसराय श्री इरविन ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का अन्तिम उद्देश्य भारत में डोमीनियन सरकार की स्थापना करने का है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह सर्वसम्मत हल ढूँढना चाहती है। इस सम्बन्ध में उन्होंने इंग्लैण्ड में गोलमेज काँफ्रेंस किए जाने की योजना पर प्रकाश डाला। 12 नवम्बर, 1930 ई. को लन्दन में गोलमेज काँफ्रेंस का प्रथम अधिवेशन प्रारम्भ हुआ। काँग्रेस अपने आन्दोलन में व्यस्त थी। इस कारण इस सम्मेलन में उसका कोई भी प्रतिनिधि उपस्थित न हो सका।

ब्रिटिश सरकार की घोषणाओं से वातावरण में सुधार हुआ और सरकार ने महात्मा गांधी आदि नेताओं को जेल से रिहा कर दिया। इस अनुकूल वातावरण में गाँधी-इरविन समझौता हुआ और गाँधी जी गोलमेज कॉंफ्रेंस के द्वितीय अधिवेशन में भाग लेने लन्दन गए। वहाँ उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिली और वे निराश होकर भारत आए। यहाँ उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस प्रकार पुनः संघर्ष आरम्भ हो गया। गोलमेज काँफ्रेंस का तीसरा अधिवेशन भी हुआ किन्तु काँग्रेस का उससे कोई सम्बन्ध नहीं था।

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प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वराज्य दल की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन में स्वराज्य दल की भूमिका:
स्वराज्यवादियों ने 1923 ई. में अपने स्वराज दल की स्थापना की। इन स्वराज्यवादियों ने केन्द्रीय व्यवस्थापिका में रहकर अंग्रेजों से भारत में पूर्ण उत्तरदायी शासन की माँग की और बंगाल के दमनकारी आदेशों को समाप्त करके गोलमेज अधिवेशन की माँग की। उस गोलमेज अधिवेशन में भारत के अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने के लिए नया संविधान बनाया जाये। स्वराज्यवादियों का प्रभाव बंगाल और मध्य प्रान्त में था जहाँ पर इन्होंने अंग्रेजों द्वारा लागू द्वैध शासन को ठप्प कर दिया।

इन लोगों ने न मन्त्रिमण्डल बनाया न दूसरे मन्त्रिमण्डल को काम करने दिया। इन स्वराज्यवादियों की माँग को पूरा करने के लिए गोलमेज अधिवेशन बुलाया गया था। साईमन कमीशन भी इन्हीं लोगों के कारण भारत आया था परन्तु इन्हें संतुष्ट करने में सफल नहीं हो सका। अंत में ये स्वराज्यवादी कांग्रेस में शामिल हो गये।

प्रश्न 17.
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड:
कुछ नेताओं के गिरफ्तार करने से जनता क्रुद्ध हो गई और उसने एक मुठभेड़ में कुछ अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। अंग्रेज इस काण्ड से बौखला उठे। जब अपने नेताओं की गिरफ्तारी के विरुद्ध लगभग बीस हजार जनता 13 अप्रैल, 1919 को (बैसाखी के दिन) अमृतसर के जलियाँवाला बाग में शान्तिपूर्ण वातावरण में एक सार्वजनिक सभा में भाग ले रही थी उसी समय जनरल डायर ने सभा को गैर-कानूनी घोषित करके अंग्रेज सैनिकों को मशीनगन से गोलियाँ चलाने की आज्ञा दी।

इस स्थान से निकलने का एक ही संकरा रास्ता था। और इसी पर सैनिक खड़े होकर मशीनगनों से जनता को भून रहे थे। इस हत्याकाण्ड में हजारों व्यक्ति मारे गए। अब पंजाब में कई स्थानों पर मार्शल लॉ लागू किया गया। इस हत्याकांड की तीव्र प्रतिक्रिया हुई और जांच करने की मांग उठाई गई किन्तु सरकार ने श्री हण्टर समिति को जांच करने का आदेश दिया। उसने डायर के कार्य पर पर्दा डालने का प्रयास किया और इंग्लैण्ड में हण्टर समिति की अत्यधिक प्रशंसा की गई। इससे भारतीयों को अंग्रेजों की न्यायप्रियता पर विश्वास न रहा, कुपित भारतीयों ने स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।

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प्रश्न 18.
अगस्त प्रस्ताव 1940 की प्रमुख विशेषतायें क्या थीं?
उत्तर:
अगस्त 1940 का प्रस्ताव:
सांविधिक गतिरोध को दूर करने के लिए वायसराय द्वारा 8 अगस्त, 1940 को एक घोषणा की गई जिसमें “भारतीय का लक्ष्य औपनिवेशिक स्वराज्य घोषित किया गया”। इस घोषणा को ही अगस्त-प्रस्ताव (August-offer) कहा जाता है। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

  1. वायसराय को अपनी कार्यकारिणी समिति का विस्तार करने का अधिकार मिला। वह भारतीय प्रतिनिधियों को उसमें नियुक्त कर सकता था।
  2. वायसराय भारत के समस्त वर्गों के प्रतिनिधित्व वाली एक युद्ध-सलाहकार समिति (War Advisory Committee) की नियुक्ति कर सकता था।
  3. अल्पसंख्यकों को विश्वास दिलाया गया कि सभी राजनीतिक दलों की सहमति मिलने पर ही ब्रिटिश सरकार किसी एक दल को सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करेगी।
  4. संविधान का निर्माण अल्पसंख्यकों के हितों को ध्यान में रखकर भारत के नेताओं द्वारा ही किया जाएगा।
  5. भारतीय जनता ब्रिटिश सरकार की सहायता के लिए तत्पर रहे।

प्रश्न 19.
पूना समझौता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पूना समझौता:
मैकडॉनल्ड एवार्ड की घोषणा के समय गाँधी जी जेल में थे। उन्होंने वहीं आमरण अनशन (20 सितम्बर, 1932) प्रारम्भ कर दिया। इस घोषणा से सरकार के कान पर तक नहीं रेंगी। पं. मदन मोहन मालवीय के विशेष प्रयास से डा. अम्बेडकर ने, पूना में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार हरिजनों के विशेषाधिकार दिए गए। बाद में सरकार ने भी इसे स्वीकार कर लिया और गाँधी जी ने अपना आमरण व्रत तोड़ दिया। यह समझौता पूना समझौता (Poona Pact) के नाम से प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 20.
साम्प्रदायिक निर्णय (Communal Award) की क्या शर्ते थी?
उत्तर:
साम्प्रदायिक निर्णय की शर्ते –

  1. मैकडॉनल्ड एवार्ड ने विशेष हितों, अल्पसंख्यकों तथा बहुमत में होते हुए भी बंगाल व पंजाब में मुसलमानों के लिए पृथक् निर्वाचन पद्धति की व्यवस्था को यथापूर्व बनाए रखा।
  2. पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के अतिरिक्त सभी विधान-मण्डलों में महिलाओं के तीन प्रतिशत स्थान आरक्षित किए गए। इन स्थानों को विभिन्न सम्प्रदायों में बाँटा जाना था।
  3. उन प्रान्तों में जिनमें मुसलमान अल्पसंख्यक थे; भारात्मक (Weightage) प्रतिनिधित्व दिया गया।
  4. भारत के हरिजनों को एक विशिष्ट अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में मान्यता दी गई और उन्हें पृथक निर्वाचन पद्धति के द्वारा अपने प्रतिनिधि चुनने तथा साधारण निर्वाचन क्षेत्रों में अतिरिक्त मत देने का अधिकार दिया गया।
  5. भारतीय ईसाइयों व आंग्ल भारतीयों को भी पृथक् निर्वाचन क्षेत्र प्रदान किए गए।

प्रश्न 21.
क्रिप्स योजना-1942 के मुख्य सुझाव क्या थे?
उत्तर:
क्रिप्स योजना-1942:
सर स्टेफर्ड क्रिप्स को इंग्लैण्ड की सरकार ने मार्च, 1942 में भावी शासन व्यवस्था की योजना लेकर भारत भेजा। इस योजना के मुख्य सुझाव निम्नलिखित थे –

  1. युद्ध के पश्चात् भारत को डोमीनियन राज्य (Dominion State) घोषित किया जाएगा अर्थात् ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारत को स्वशासी राज्य बना दिया जाएगा।
  2. युद्धोपरान्त संविधान सभा गठित की जाएगी जो भारत के लिए संविधान बनाएगी।
  3. यदि कोई प्रान्त अथवा देशी राज्य उक्त निर्मित संविधान को स्वीकार न करे तो उसे डोमीनियन से पृथक् होने की स्वतन्त्रता होगी। मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की माँग इसी योजना के तहत स्वीकार कर ली गई थी।
  4. गवर्नर-जनरल तथा गवर्नरों की परिषद् में भारतवासियों को प्रतिनिधित्व दिए जाने की व्यवस्था थी। उपर्युक्त प्रस्ताव भविष्य में प्रभावी थे अतः सभी दलों ने इन्हें अस्वीकार कर दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
खिलाफत आन्दोलन के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन का विकास:
27 दिसम्बर 1919 ई. को खिलाफत कमेटी ने भारतीय मुसलमानों से 17 अक्टूबर को देश भर में खिलाफत दिवस मनाने, हड़तालें, भूख हड़ताल तथा प्रार्थना करने की अपील की। मांगें स्वीकार न करने की दशा में देशव्यापी आन्दोलन चलाने का निर्णय भी लिया गया। ब्रिटिश सरकार ने मुसलमानों की मांग को नकार दिया। मुसलमानों ने इसके विरोध में खिलाफत आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन के तीन उद्देश्य थे –

  • तुर्की समाज के विघटन को रोकना।
  • तुर्की पर कठोर सन्धि शर्ते लागू न होने देना।
  • तुर्की के सुल्तान की ‘खलीफा’ पदवी को बनाए रखना।

24 नवंबर 1919 ई. को दिल्ली में एक अखिल भारतीय खिलाफत सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन का सभापतित्व महात्मा गांधी ने किया। इस सम्मेलन में गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार पर मुसलमानों को दिए अपने वचन को तोड़ने का आरोप लगाया। उन्होंने हिन्दुओं से आग्रह किया कि इस संकट के समय मुसलमानों की सहायता करें तथा खिलाफत आन्दोलन में सम्मिलित हों।
महात्मा गांधी के सुझाव पर जनवरी 1920 ई. को डॉक्टर अंसारी के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल वायसराय विन्सफोर्ड से मिला तथा उसे मुसलमानों के क्षुब्ध विचारों से अवगत कराया। इसका कोई परिणाम न निकला। मार्च 1920 में अली बन्धु ब्रिटिश प्रधानमंत्री लायड जार्ज से भेंट करने तथा उसे खिलाफत के वायदे का स्मरण करवाने के लिए लंदन गए परन्तु यह शिष्टमंडल भी निराश वापस पहुँचा।

भारतीय मुसलमानों का असंतोष तब और अधिक भड़क उठा जब ब्रिटेन ने तुर्की के साथ अगस्त 1920 को सेवर्स की सन्धि स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। इस सन्धि के द्वारा तुर्की के साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया गया तथा तुर्की के सुल्तान को लगभग बन्दी की स्थिति में ले लिया गया। इस कारण मुस्लिम लीग ने खिलाफत आन्दोलन को तीव्र करने का निर्णय किया । महात्मा गाँधी ने 1920 ई. में सरकार के विरुद्ध संयुक्त रूप से असहयोग आन्दोलन चलाने का सुझाव दिया। इस सुझाव को खिलाफत आन्दोलन के नेताओं ने स्वीकार कर लिया। हिन्दुओं तथा मुसलमानों की इस एकता ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन को एक नई दिशा प्रदान की और असहयोग आन्दोलन को एक मजबूत आधार स्तंभ दिया।

जुलाई 1921 ई. में एक प्रस्ताव द्वारा खिलाफत आन्दोलन ने यह घोषणा की कि कोई मुसलमान ब्रिटिश भारत की सेना में भर्ती न हो। सरकार ने राजद्रोह का आरोप लगाकर अली बन्धुओं को गिरफ्तार कर लिया। गाँधी जी ने सरकार के इस निर्णय की घोर आलोचना की तथा लोगों से आह्वान किया कि इस प्रस्ताव को सैकड़ों सभाओं में पढ़कर सुनाया जाए। खिलाफत आन्दोलन का अंत: फरवरी 1922 में चौरी-चौरा की घटना के कारण महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की। इस निर्णय से खिलाफत आन्दोलन को धक्का पहुँचा, क्योंकि दोनों आन्दोलन संयुक्त रूप से चलाए जा रहे थे।

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प्रश्न 2.
1935 के भारत सरकार अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। इस अधिनियम के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –
केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन –

  1. केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गई। इस संघ में प्रांतों का सम्मिलित होना आवश्यक था जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।
  2. संघीय विधान मंडल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रांतों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रांतो के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।
  3. यह भी निश्चित किया गया कि प्रांतों के प्रतिनिधि जनता के द्वारा चुने जाएँ और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।
  4. केन्द्र के विषयों को रक्षित रक्षित विषय गवर्नर-जनरल के अधीन थे। जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गए । मंत्रियों को विधान मंडल के समान उत्तरदायी ठहराया गया।
  5. विधान मंडल को बजट के 20 प्रतिशत भाग पर मत. देने का अधिकार दिया गया।
  6. गवर्नर-जनरल को कुछ विशेषाधिकार दिये गये।
  7. जब तक भारतीय संघात्मक सरकार की स्थापना नहीं हो जाती तब तक केंद्र का शासन 1919 ई. के एक्ट में किये गए संशोधन के अनुसार चलाया जायेगा।

प्रांतीय सरकारों में परिवर्तन:

  1. बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उड़ीसा और सिन्ध के दो प्रान्त बनाये गये।
  2. बंगाल, बिहार, असम, बम्बई, मद्रास और उत्तरप्रदेश में विधान मंडल के दो सदनों की व्यवस्था की गयी और शेष प्रांतों में एक ही सदन बनाया गया। उच्च सदन का नाम विधान परिषद् और निम्न सदन का विधान सभा रखा गया।
  3. विधान परिषद् के कुछ सदस्य गर्वनर द्वारा मनोनीत किये जाते थे और विधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता था।
  4. प्रांतों में मत देने का अधिकार स्त्रियों, परिगणित जातियों और मजदूरों को भी दिया गया।
  5. प्रांतों से दोहरे शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर स्वायत्त शासन (Autonomy) की स्थापना की गई। सभी प्रांतीय विषय एक मंत्रिमंडल को सौंप दिये गये। मंत्रियों का चुनाव बहुमत प्राप्त राजनैतिक दल में से किया जाता था। प्रधानमंत्री शासन विभाग का कार्य मंत्रियों में बाँट देता था। मंत्रिमंडल विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी था।
  6. प्रांतों के गवर्नरों को विशेष अधिकार दिए गए।
  7. प्रांत में विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर गवर्नर विधान सभा को भंग करके प्रांत का शासन अपने हाथ में ले सकता था।
  8. गवर्नरों को अध्यादेश तथा गवर्नरी एक्ट जारी करने का भी अधिकार था।

इण्डिया कौंसिल में परिवर्तन:
इंडिया कौंसिल भंग कर दी गई। भारत के मंत्री को कम से कम तीन और अधिक से अधिक 6 सलाहकारों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।

अन्य परिवर्तन –

  • उच्च न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए तथा 1935 ई. के एक्ट के अर्थ के बारे में मतभेद का निर्णय करने के लिए दिल्ली में फैडरल कोर्ट (Federal Court) की स्थापना की गई।
  • रेलवे विभाग प्रशासन के लिए एक संघीय रेलवे सत्ता (Federal Railway Authority) की व्यवस्था की गई।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित उद्धरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: “अगस्त आंदोलन से अत्यधिक लाभ हुआ। स्त्रियों में बहुत जागृति आई। दमन के दौरान गाँवों की स्त्रियों को भी अत्यधिक कष्ट उठाने पड़े। उनका शहर के निवासियों को लेशमात्र भी खेद नहीं है। कांग्रेस की पराजय नहीं हुई है। यह पहले से अधिक शक्तिशाली हुई है।”
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन क्यों आरंभ किया गया?
(ब) इस आन्दोलन में स्त्रियों की क्या भूमिका थी?
(स) इस आन्दोलन का भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
(अ) भारत छोड़ो आन्दोलन आरंभ होने के कारण निम्नलिखित हैं –

  • भारत से अंग्रेजों का शासन समाप्त करने के उद्देश्य से 1942 ई. के अगस्त माह में भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हुआ।
  • क्रिप्स मिशन की असफलता से भारत की जनता रूष्ट हो गई। उसे फाँसीवाद विरोधी शक्तियों से अभी भी पूरी सहानुभूति थी, लेकिन देश की राजनीतिक स्थिति खराब होती जा रही थी।
  • युद्ध के कारण वस्तुओं की कमी हो गई थी तथा वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे थे।
  • जैसे-जैसे जापानी फौजें भारत की ओर बढ़ रही थी, वैसे-वैसे भारतीय जनता और नेताओं का भय बढ़ रहा था क्योंकि वे समझते थे कि अंग्रेजों से शत्रुता निकालने के लिए जब जापानी सेना बम बरसाएगी तो भारतीय जनता व्यर्थ में उनका शिकार बन जाएगी।

(ब) इस आंदोलन में स्त्रियों की भूमिका –

  • स्त्रियों ने इस आन्दोलन में अपनी भूमिका सक्रिय रूप से निभाई।
  • उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध जुलूसों एवं धरनों में पुरुषों का कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया।
  • अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी तथा बम्बई की उषा मेहता इस काल की प्रमुख महिला नेता थी।
  • वे स्थान-स्थान पर झंडे, पोस्टर तथा हाथों में तख्तियाँ लेकर प्रदर्शन करतीं थी।
  • महिलाओं ने धन के अलावा अपने गहने भी राष्ट्रीय आंदोलन को मजबूत बनाने के लिए दे दिये।
  • स्त्रियाँ विदेशी शराब की दुकानों तथा विदेशी माल बेचने वाली दुकानों पर धरने देतीं तथा जो व्यक्ति इस माल को खरीदता उसका घेराव करती थीं।

(स) स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्व –
इसने राष्ट्रीय आन्दोलन की तीव्रता को प्रदर्शित किया क्योंकि जैसे ही गांधी जी को गिरफ्तार करने की खबर फैली, लोग भड़क उठे। रेलों की पटरियाँ उखाड़ दी गईं। सरकारी इमारतें जलाई जाने लगीं। टेलीफोन के तार काट दिए गए। पुलिस थानों को आग लगा दी गई।

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प्रश्न 4.
महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों शुरू किया? इसके विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन:
महात्मा गाँधी आरम्भ में अंग्रेजों के पक्ष में थे परन्तु प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने से पूर्व वे अंग्रेजों के कार्यों से असन्तुष्ट हो गए। कारण अथवा परिस्थितियाँ –

  1. भारतीयों ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों को पूरा सहयोग दिया था परन्तु महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों ने भारतीय जनता का खूब शोषण किया।
  2. प्रथम महायुद्ध के दौरान भारत में प्लेग आदि महामारियाँ फूट पड़ी। परन्तु अंग्रेजी सरकार ने उसकी ओर कोई ध्यान न दिया।
  3. गांधी जी ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने का प्रचार इस आशा से किया था कि वे भारत को स्वराज्य प्रदान करेंगे। परन्तु युद्ध की समाप्ति पर ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी की आशाओं पर पानी फेर दिया।
  4. 1919 ई. में ब्रिटिश सरकार ने रोलेट एक्ट पास कर दिया। इस काले कानून के कारण जनता में रोष फैल गया।
  5. रोलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन के लिए अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक विशाल जनसभा हुई। अंग्रेजों ने एकत्रित भीड़ पर गोलियाँ चलायीं जिससे हजारों लोग मारे गये।
  6. सितम्बर 1920 ई. में कांग्रेस ने अपना अधिवेशन कलकत्ता में बुलाया। इस अधिवेशन में ‘असहयोग आन्दोलन’ का प्रस्ताव रखा गया जिसे बहुमत से पार सकर दिया गया। असहयोग

आन्दोलन का कार्यक्रम अथवा उद्देश्य: असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम की रूपरेखा इस प्रकार थी –

  1. विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी माल का प्रयोग किया जाए।
  2. ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गयी उपाधियाँ तथा अवैतनिक पद छोड़ दिये जाएँ।
  3. स्थानीय संस्थाओं में मनोनीत भारतीय सदस्यों द्वारा तयागपत्र दे दिये जाएँ।
  4. सरकारी स्कूलों तथा सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाए।
  5. ब्रिटिश अदालतों तथा वकीलों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाए।
  6. सैनिक, क्लर्क तथा श्रमिक विदेशों में अपनी सेवाएँ अर्पित करने से इन्कार कर दें।

आन्दोलन की प्रगति तथा अन्त:
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम को जनता तक पहुँचाने के लिए महात्मा गाँधी तथा मुस्लिम नेता डॉ. अन्सारी, मौलाना अबुल कलाम आजाद तथा अली बन्धुओं ने सारे देश का भ्रमण किया। शीघ्र ही यह आन्दोलन बल पकड़ गया। जनता ने सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर दिया। बीच चौराहों पर विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि तथा गाँधी जी ने ‘केसरे-हिन्द’ की उपाधि का त्याग कर दिया। इसी बीच उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को आग लगा दी। इस हिंसात्मक घटना के कारण गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी।

महत्त्व:

  1. असहयोग आन्दोलन के कारण कांग्रेस ने सरकार से सीधी टक्कर ली।
  2. भारत के इतिहास में पहली बार जनता ने बढ़-चढ़ कर इस आन्दोलन में भाग लिया।
  3. असहयोग आन्दोलन में ‘स्वदेशी’ का खूब प्रसार किए जाने लगे।

देश के उद्योग:
धंधों का विकास हुआ। सच तो यह है कि गाँधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन ने भारत के स्वाधीनता-संग्राम को एक नयी दिशा प्रदान की।

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प्रश्न 5.
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गाँधी का क्या स्थान है?
उत्तर:
प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों ने अंग्रेजों की तन-मन-धन से सहायता की थी। उनका अंग्रेजों की न्यायप्रियता पर विश्वास था। अप्रैल 1918 ई. में दिल्ली में एक युद्ध सम्मेलन बुलाया गया। गाँधी जी ने इसमें भाग लिया था। उन्होंने अंग्रेजों को मित्र जानकर संकट में उनकी सहायता की। युद्ध समाप्त होने के पश्चात् अंग्रेजों ने मुँह मोड़ लिया। उन्होंने भारतीयों को किसी प्रकार का अधिकार न दिया तथा इसके विपरीत राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के लिए कमर कस ली। विवश होकर गाँधी जी ने असहयोग का मार्ग अपनाया।

गाँधी जी द्वारा चलाये जाने वाले असहयोग आन्दोलन के लिए उत्तरदायी तत्त्व निम्नलिखित थे –

1. प्रथम विश्व युद्ध (First World War):
प्रथम विश्व युद्ध राष्ट्रीयता तथा आत्मनिर्णय के सिद्धांत (Principle of Self Determination) के आधार पर लड़ा गया था। युद्ध के बाद इन सिद्धांतों के आधार पर यूरोप में कुछ नये राष्ट्रों का जन्म हुआ। इससे एशिया के देशों में राष्ट्रीयता का अंकुर फूट पड़ा। इसके फलस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में भी एक नया मोड़ आना स्वाभाविक था।

2. रोलेट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह (Satyagraha Against Rowlett Act):
सन् 1919 ई. में मांटेग्यू चेम्सफोर्ड योजना भारतीय कांग्रेस ने ठुकरा दी। इसके अनुसार प्रान्तीय विधानसभाओं में सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई थी। कांग्रेस ने इसके विरुद्ध आन्दोलन छेड़ा और अंग्रेजों ने इसे दबाने के लिए रोलेट एक्ट का सहारा लिया। इस एक्ट द्वारा किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए बन्दी बनाया जा सकता था। गांधी जी ने इसे ‘काला कानून’ कहा और इसके विरुद्ध सत्याग्रह किया। लाखों व्यक्तियों ने हड़तालों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया।

3. असहयोग आन्दोलन (Non-Cooperation Movement):
भारतीय हितों पर चोट पड़ते ही भारतीय जनता कराह उठी। ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीति का विरोध करने के लिए गाँधी जी ने एक अनोखे हथियार का आविष्कार किया जो विश्व में अपने किस्म का पहला था – असहयोग आन्दोलन। गाँधी जी ने छात्रों, प्रशासनिक कर्मचारियों, अध्यापकों, वकीलों, दुकानदारों का आवाह्न किया, सभी असहयोग आंदोलन के लिए तैयार हो गये।

4. सत्याग्रह (Satyagraha):
गाँधी जी बिना किसी को सताये या दुःखी किये स्वयं भूख हड़ताल करते, धरना देते, आमरण अनशन करते तो हजारों की संख्या में लोग भी उनका अनुसरण करने लगते थे। उनका सत्याग्रह पूरे देश का सत्याग्रह माना जाता था।

5. अहिंसा (Non-Violence):
गाँधी जी ‘अहिंसा परमो धर्म’ में विश्वास रखते थे। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीकों से आत्मबल के द्वारा साम्राज्यवादी शक्ति के घुटने टिकवा दिए थे।

6. साम्प्रदायिक सद्भावना (CommunalGoodwill):
गाँधी जी ने अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति को समझ लिया था। अतः उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता बनाए रखने के हर सम्भव प्रयास किए। वे हिन्दू-मुस्लिम दोनों को अपनी दो आँखें समझते थे। जब कभी साम्प्रदायिक तत्त्व साम्प्रदायिकता की आग भड़काने की कोशिश करते, गाँधी जी स्वयं जाकर मैत्री एवं सद्भावना का वातावरण तैयार करने का प्रयत्न करते थे।

7. हरिजनों का कल्याण (Welfare of the Harijans):
भारत में उच्च जातियों का निम्न वर्ग के लोगों के साथ ताल-मेल नहीं बैठ रहा था। अतः अपने प्रति घृणा और तिरस्कार को देखकर वे ईसाई बन रहे थे। उन्होंने सर्वप्रथम उन्हें ‘हरिजन’ नाम दिया। उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए गाँधी जी ने ‘हरिजन’ नामक पत्रिका निकाली। गाँधी जी ने हरिजनों की गंदी बस्तियों में स्वयं अपने हाथों से सफाई की। इससे इन्होंने हरिजनों का हृदय जीत लिया।

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प्रश्न 6.
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) के योगदान की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
भारत छोड़ो आन्दोलन:
क्रिप्स मिशन (मार्च, 1942 ई.) की असफलता के पश्चात् भारतीय नेताओं ने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वाधीनता देने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसी स्थिति में देश में अंग्रेजों के प्रति भीषण उत्तेजना फैल गई। 7 अगस्त, 1942 ई. को कांग्रेस की महासमिति की बैठक बम्बई में हुई और 8 अगस्त, 1942 ई. को अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के सामने गाँधी जी ने अपना ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। गँधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अंग्रेजों को ऐतिहासिक प्रस्ताव रखा। गाँधी जी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर करने के लिए एक विशाल सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने का निर्णय किया गया। गाँधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा देते हुए कहा कि “हमने कांग्रेस को बाजी पर लगा दिया है या तो यह विजयी होगी या समाप्त हो जाएगी। “महात्मा गाँधी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे आन्दोलन शुरू करने से पूर्व सरकार को एक अन्तिम मौका और देंगे तथा वायसराय से मिलेंगे।

किन्तु सरकार ने उन्हें यह अवसर नहीं दिया। 9 अगस्त को सुबह होने से पूर्व ही गाँधी जी तथा अनेक कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया तथा कांग्रेस को एक बार पुनः अवैध संगठन घोषित कर दिया। गाँधी जी तथा अन्य नेताओं की गिरफ्तारी का समाचार पाते ही देश के विभिन्न भागों में हड़ताल तथा जुलूस निकाले गए। सरकार ने बर्बरतापूर्वक इन शान्त प्रदर्शनकारियों का दमन किया। इसी कारण भारतीय लोग एकदम भड़क उठे। लगभग 70,000 से अधिक व्यक्तियों को जेल में बन्दी बनाया गया। अनेक गांवों के लोगों पर सामूहिक जुर्माने किए गए तथा उन पर कोड़े बरसाए गए। आखिरकार सरकार इस आन्दोलन को दबाने में सफल हो गई

भारत छोड़ो का महत्त्व अथवा योगदान:
वस्तुतः 1942 ई. का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ थोड़े ही दिन तक चल सका। इसने स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रवादी चेतना तथा शीघ्र स्वतन्त्रता प्राप्ति की आकांक्षा लोगों में बहुत प्रबल हो चुकी है। तथा लोग देश की आजादी के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने के लिए तैयार हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार इस विद्रोह की आग में औपनिवेशिक स्वराज्य की सारी इच्छा पूर्णतया जल गई। भारत अब पूर्ण स्वतन्त्रता से कम कुछ नहीं चाहता था ……. इसकी तुलना फ्रांस के ऐतिहासिक बेस्टीले पतन अथवा रूस की अक्टूबर क्रांति से की जा सकती है। जवाहरलाल नेहरू ने इस आन्दोलन के बारे में कहा, “1942 ई. में जो कुछ हुआ, उस पर मुझे गर्व है” कुछ विद्वानों की राय है कि इसी आन्दोलन ने भारतीय पक्ष को दूसरे देशों के सामने स्पष्ट किया। इसी आन्दोलन की व्यापकता के कारण अमेरिका एवं चीन जैसे देशों ने इंग्लैण्ड की सरकार पर भारत की स्वतंत्रता पर शीघ्र निर्णय लेने के लिए दबाव डाला।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता कौन नहीं था?
(अ) बाल गंगाधर तिलक
(ब) विपिनचन्द्र पाल
(स) लाला लाजपत राय
(द) मिर्जा गालिब
उत्तर:
(द) मिर्जा गालिब

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प्रश्न 2.
लखनऊ समझौता कब हुआ?
(अ) 1916
(ब) 1915
(स) 1917
(द) 1919
उत्तर:
(अ) 1916

प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
(अ) गांधी जी और नेहरू
(ब) शौकत अली और मुहम्मद अली
(स) मोहम्मद अली जिन्ना
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) शौकत अली और मुहम्मद अली

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प्रश्न 4.
‘काला विधेयक’ किसे कहा जाता है?
(अ) रोलेट एक्ट
(ब) अलबर्ट बिल
(स) 1919 का एक्ट
(द) 1935 का एक्ट
उत्तर:
(अ) रोलेट एक्ट

प्रश्न 5.
असहयोग आन्दोलन कब शुरू हुआ?
(अ) 1918
(ब) 1919
(स) 1921
(द) 1922
उत्तर:
(ब) 1919

प्रश्न 6.
भारत में साइमन कमीशन कब आया?
(अ) 1926
(ब) 1927
(स) 1928
(द) 1929
उत्तर:
(स) 1928

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प्रश्न 7.
तुम मुझे खून दो, मै तुम्हें आजादी दूंगा’ किसका कथन था?
(अ) भगतसिंह
(ब) रासबिहारी बोस
(स) मोहन सिंह
(द) सुभाष चन्द्र बोस
उत्तर:
(द) सुभाष चन्द्र बोस

प्रश्न 8.
लाल कुर्ती का नेतृत्व किसने किया था?
(अ) महात्मा गाँधी
(ब) अब्दुल गफ्फार खां
(स) पं. जवाहर लाल नेहरू
(द) मौलाना आजाद
उत्तर:
(ब) अब्दुल गफ्फार खां

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प्रश्न 9.
प्रथम पूर्ण स्वराज्य कब मनाया गया?
(अ) 26 जनवरी 1922
(ब) 26 जनवरी 1929
(स) 26 जनवरी 1930
(द) 26 जनवरी 1950
उत्तर:
(स) 26 जनवरी 1930

प्रश्न 10.
दूसरा गोलमेज सम्मेलन कब हुआ?
(अ) 1931 के प्रारंभ में
(ब) 1931 के अंत में
(स) 1932
(द) 1933
उत्तर:
(ब) 1931 के अंत में

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प्रश्न 11.
महात्मा गाँधी को सर्वप्रथम ‘महात्मा किसने कहा?
(अ) रवीन्द्रनाथ टैगोर
(ब) पं. जवाहर लाल नेहरू
(स) बाल गंगाधर तिलक
(द) मोहम्मद अली जिन्ना
उत्तर:
(अ) रवीन्द्रनाथ टैगोर

प्रश्न 12.
‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन कब शुरू हुआ?
(अ) अगस्त 1942
(ब) अगस्त 1940
(स) अगस्त 1944
(द) अगस्त 1946
उत्तर:
(अ) अगस्त 1942

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य

Bihar Board Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभाल कर क्यों रखे जाते थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स संभालकर रखने के कारण –

  1. आंकड़े और जानकारियों के आधार पर शासन को सुचारु रूपसे चलाने के लिए।
  2. व्यापारिक गतिविधि यों का विस्तृत ब्यौरा व्यापार को कुशलता से प्रोन्नत करने के लिए।
  3. शहरों के विस्तार के साथ शहरी नागरिकों के रहन-सहन, आचार-विचार, शैक्षिक जागरूकता, राजनीतिक रूझान आदि का अध्ययन करने के लिए।
  4. किसी स्थान की भौगोलिक बनावट और भू-दृश्यों को भलीभाँति समझने के बाद उन स्थानों पर शहरीकरण, साम्राज्य विस्तार आदि करने के लिए।
  5. जनसंख्या के आकार में होने वाली सामाजिक बढ़ोत्तरी का अध्ययन करके तद्नुसार प्रशासनिक तौर-तरीकों, नियम-कानूनों आदि को बनाने तथा उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए।

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प्रश्न 2.
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जगणना संबंधी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?
उत्तर:
औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जगणना संबंधी आँकड़ों का उपयोग –

  1. यह भारत में शहरीकरण की प्रवृत्ति के अनुसार जन-सुविधाएँ, आवाम एवं अन्य व्यवस्था करने में सहायक थे।
  2. इनसे बीमारियों से होने वाली मृत्यु, उम्र, लिंग, जाति एवं व्यवसाय के विषय में जानकारी मिलती है।
  3. औपनिवेशिक काल के वर्गीकरण, विन्यास आदि का गहन अध्ययन करके उपयुक्त निष्कर्ष लेने के लिए भी जनसंख्या के आँकड़े सहायक बनते हैं।
  4. तत्कालीन जनगणना आयुक्तों की आकलन और परिकलन की कमियों को समझकर सही निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए।
  5. जनगणना एक ऐसा साधन थी जिसके आधार पर आबादी के विषय में सामाजिक जानकारियों को सरल आँकड़ों में परिवर्तित किया जाता था। परन्तु इस जानकारी में कई भ्रम थे।
  6. इन आंकड़ों के आधार पर ही अंग्रेज छल साधित कानून बनाकर भारतीय जनता को अपने जाल में बुरी तरह फँसा लेते थे सैन्य व्यवस्था भी इसी आधार पर की जाती थी।
  7. जहाँ की आजादी तीव्रता से बढ़ती थी अंग्रेज यह अनुमान लगा लेते थे कि वे इलाके समृद्ध हैं अतः इसी आधार पर भू-राजस्व एवं अन्य करों का निर्धारण करते थे।

प्रश्न 3.
“व्हाइट” और “ब्लैक” टाउन शब्दों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
व्हाइट और ब्लैक टाउन शब्दों का महत्त्व –

  1. औपनिवेशिक शहरों में गोरों (Whites) अर्थात् अंग्रेजों और कालों (Blacks) अर्थात् भारतीयों की अलग-अलग बस्तियाँ होती थीं। उस समय के लेखन में भारतीयों की बस्तियों को “ब्लैक टाउन” और गोरों की बस्तियों को “व्हाइट टाउन” कहा जाता था।
  2. इन शब्दों का प्रयोग नस्ली भेद प्रकट करने के लिए किया जाता था। अंग्रेजों की राजनीतिक सत्ता की मजबूती के साथ ही यह नस्ली भेद भी बढ़ता गया।
  3. इन दोनों बस्तियों के मकानों में भी अंतर होता था। भारतीय एजेंटों और बिचौलियों ने बाजार के आस-पास ब्लैक टाउन में परम्परागत ढंग के दालान मकान बनवाये। सिविल लाइन्स में बँगले होते थे। सुरक्षा के लिए इनके आस-पास छावनियाँ भी बसाई जाती थी।
  4. व्हाइट्स टाउन साफ सुथरे होते थे जबकि ब्लैक टाउन गंदे होते थे। यहाँ बीमारी फैलने का डर होता था।

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प्रश्न 4.
प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में भारतीय व्यापारियों की दशा:
विशेष रूप से बम्बई के व्यापारियों ने अपनी आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत कर ली थी। बम्बई में व्यापार की एक महत्त्वपूर्ण वस्तु अफीम थी। भारतीय व्यापारी और बिचौलियों ने इस व्यापार से बहुत लाभ कमाया। उन्होंने बम्बई की अर्थव्यवस्था को मालवा, राजस्थान और सिंध जैसे अफीम उत्पादक इलाकों के साथ जोड़ दिया। कालांतर में ये व्यापारी पूँजीपति बन गए। पूँजीपति वर्ग में पारसी, मारवाड़ी, कोंकणी, मुसलमान, गुजराती, बनिये, बोहरा, यहूदी आदि विभिन्न समुदायों के लोग थे।

अमेरिका के गृहयुद्ध के समय भारतीय व्यापारियों और बिचौलियों के लिए कपास का व्यापार मुनाफे का सौदा था। भारतीय व्यापारियों ने इसका खूब लाभ उठाया। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भारतीय व्यापारी कॉटन मिल जैसे नए उद्योगों में अपना पैसा लगाने लगे। निर्माण गतिविधियों में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

प्रश्न 5.
औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्त्व किस हद तक घुलमिल गये थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक मदास में शहरी और ग्रामीण तत्त्वों का घुल-मिल जाना:

  1. मद्रास शहर अनेक गाँवों को मिलाकर विकसित किया गया। यहाँ विविध समुदायों के लिए व्यवसाय एवं रोजगार के अवसर थे। अनेक प्रकार के कार्यवाही कई समुदाय मद्रास आकर यहीं बस गए।
  2. प्रारंभ में कंपनी के अधीन नौकरी पाने वालों में स्थानीय ग्रामीण वेल्लालार जाति थे। इन्होंने ब्रिटिश शासन के कारण मिले अवसरों का सर्वाधिक लाभ उठाया।
  3. तेलुगु कोमाटी समुदाय एक शक्तिशाली ताकतवर व्यावसायिक समूह था। इसका शहर के अनाज व्यवसाय पर नियंत्रण था।
  4. पेरियार और वन्नियार गरीब तबके का अधिसंख्यक कामगार वर्ग था । ये सभी लोग मद्रास शहर में ही रच-बस गए। उपर्युक्त तथ्य दर्शाते हैं कि मद्रास एक अर्ध ग्रामीण शहर बन गया था।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अठारहवीं शताब्दी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण किस तरह हुआ?
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण –

  1. मुगल साम्राज्य का पतन होने के साथ ही पुराने नगरों का अस्तित्व समाप्त हो गया और क्षेत्रीय शक्तियों का विकास होने के कारण नये नगर बनने लगे। इनमें लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपट्म, पूना, नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर आदि उल्लेखनीय हैं।
  2. व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य व्यवसायी पुराने नगरों से यहाँ आने लगे। यहाँ उनको काम तथा संरक्षण उपलब्ध था। चूँकि राज्यों के बीच युद्ध होते रहते थे इसलिए भाड़े के सैनिकों के लिए भी काम था।
  3. मुगल साम्राज्य के अधिकारियों ने कस्बे और गंज (छोटे स्थायी बाजार) की स्थापना की। इन शहरी केन्द्रों में यूरोपीय कम्पनियों ने भी धाक जमा ली। पुर्तगालियों ने पणजी में, डचों ने मछलीपट्टनम्, अंग्रेजों ने मद्रास तथा फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी में अपने व्यापार केन्द्र खोल लिए।
  4. 18 वीं शताब्दी में स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान जलमार्ग आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। भारत में पूँजीवाद और वाणिज्यवाद को बढ़ावा मिलने लगा।
  5. मध्यकालीन शहरों-सूरत, मछलीपट्टनम् तथा ढाका का पतन हो गया।
  6. प्लासी युद्ध के पश्चात् अंग्रेजी व्यापार में वृद्धि हुई और मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई जैसे शहर आर्थिक राजधानियों के रूप में स्थापित हुए।
  7. ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के केन्द्र बन गये।
  8. इन शहरों को नये तरीके से बसाया गया और भवनों तथा संस्थानों का निर्माण किया गया। रोजगार के विकास के साथ ही यहाँ लोगों का आगमन भी तेज हो गया।

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प्रश्न 7.
औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नये तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:
औपनिवेशिक शहर में सामने वाले नये तरह के सार्वजनिक स्थान और उनके उद्देश्य –

  1. 18 वीं शताब्दी तक मद्रास, कलकत्ता और बम्बई महत्त्वपूर्ण बन्दरगाह बन गये। यहाँ की बस्तियों में वस्तुओं के विशाल भंडार और कई कारखाने भी खुल गए थे।
  2. यूरोपीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धा के कारण सुरक्षा के उद्देश्य से बस्तियों का दुर्गीकरण किया गया। भारतीयों की बस्तियाँ किलों से बाहर होती थीं। नस्ली भेदभाव के कारण गोरों के शहर को श्वेत शहर (White Town) और भारतीयों के शहर को ब्लैक शहर (Black Town) कहा जाने लगा।
  3. रेल परिवहन की सुविधा बढ़ने के साथ ही अन्य शहर भी बंदरगाह के शहरों से जुड़ गये। कलकत्ता के बाहरी शहरों में यूरोपियों ने अपनी जूट मिलें खोली ली।
  4. मद्रास की आबादी तृतीयक क्षेत्र या सेवा व्यवसाय (Tertiary Sector) में अधिक लगी हुई थी।
  5. भारत के दो औद्योगिक शहर-कानपुर और जमशेदपुर थे। कानपुर में चमड़े की वस्तुएँ, ऊनी और सूती कपड़े बनते थे जबकि जमशेदपुर में स्टील का उत्पादन होता था। अंग्रेजों के पक्षपातपूर्ण रवैये के कारण भारत कभी भी एक आधुनिक औद्योगिक देश नहीं बन पाया।

प्रश्न 8.
उन्नीसवीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन-सी थी?
उत्तर:
19 वीं सदी में नगर नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ –

  1. शासक वर्ग के लिए नस्ली भेद-भाव पर आधारित क्लब, रेसकोर्स और रंगमंच बनाए गए थे।
  2. अमीर भारतीय एजेंटों और बिचौलियों के विस्तृत मकान ब्लैक टाउन में थे। वे अंग्रेज स्वामियों को खुश करने के लिए रंगीन पार्टियों करते थे और समाज में हैसियत दिखाने के लिए मंदिर बनवाते थे।
  3. मजदूर वर्ग के लोग शहर के विभिन्न इलाकों में कच्ची झोंपड़ियाँ बनाकर रहते थे। ये अपने यूरोपीय और भारतीय स्वामियों के लिए खाना पकाने, पालकी ढोने, गाड़ी ढोने, चौकीदारी, भारवाहक तथा निर्माण कार्यों और गोदी मजदूर के रूप में कार्य करते थे।
  4. 1857 के विद्रोह से अंग्रेज आशंकित रहने लगे। अपनी सुरक्षा के लिए उन्होंने ‘सिविल लाइन्स’ के नाम से नए शहरी इलाके विकसित किये। इसमें केवल अंग्रेज रहते थे और यहाँ की बस्तियों को छावनियों के रूप में विकसित किया गया।
  5. ब्लैक टाउन में स्वच्छता का अभाव था और शोरगुल होता था। प्रारंभ में अंग्रेजों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया परन्तु 1860-70 में प्लेग और हैजा फैलने के बाद अपने स्वास्थ्य की सलामती के लिए उन्होंने स्वच्छता कार्यों की ओर ध्यान देना आरम्भ किया था।
  6. किन स्थापत्य शैलियों के आधार पर इमारतें और भवन बनवाए जाएँ, यह भी एक चिंता का विषय था। पाश्चात्य स्थापत्य शैली, भारतीय स्थापत्य शैली, ग्रीक रोमन स्थापत्य शैली अथवा गॉथिक शैली विकल्प के रूप में थे।
  7. औपनिवेशिक शासन शहरों के रख-रखाव, सुधार और अन्य कार्यों को लागू करने के लिए पर्याप्त धन की जरूरत थी अत: एक लाटरी कमेटी का गठन किया गया।
  8. यातायात के साधनों की व्यवस्था भी एक समस्या थी।

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प्रश्न 9.
नए शहरों में सामाजिक संबंध किस हद तक बदल गए?
उत्तर:
नए शहरों के सामाजिक संबंधों में बदलाव –

  • नये शहरों का सामाजिक जीवन अति सम्पन्नता और अति-निर्धनता का मिश्रित रूप था।
  • यहाँ की जिन्दगी अति व्यस्त थी। यहाँ यातायात के साधन घोड़ा गाड़ी, ट्राम या बस थे काम करने और आवास का स्थान अलग-अलग बनवाया गया था।
  • नए नगरों में टाउन हाल, पार्क, रंगशाला और सिनेमा हॉल जैसे सार्वजनिक स्थल थे।
  • यहाँ कई सामाजिक समूह थे और समान के विभिन्न वर्गों के लोग काम करने के लिए यहाँ आते थे।
  • मद्रास, बम्बई और कलकत्ता के नक्शे पुराने भारतीय शहरों से भिन्न थे। इनमें बनाए गए भवनों पर औपनिवेशिक उद्भव की स्पष्ट छाप थी।
  • अंग्रेजों और यूरोपियों के लिए हिल स्टेशन आदर्श स्थान बन गये थे। यहाँ की इमारतें यूरोपीय स्थापत्य शैली की होती थी। रेल परिवहन शुरू होने के साथ ही हिल स्टेशनों में अनेक प्रकार के लोग पहुँचने लगे थे। भारतीयों ने भी वहाँ रहना शुरू कर दिया।
  • जिन हिल स्टेशनों में चाय और कॉफी के बागान लगाए गए थे, वहाँ बड़ी संख्या में मजदूर आने लगे। इस तरह ये स्थान हिल स्टेशन यूरोपीय लोगों के लिए पर्यटन स्थल ही नहीं बल्कि व्यवसायिक आय का माध्यम भी बन गए थे।
  • मध्यवर्गीय वर्ग-क्लर्कों, शिक्षकों, वकीलों, डाक्टरों, इंजीनियरों और लेखाकार की मांग बढ़ने लगी। यहाँ शिक्षितों की संख्या अधिक थी।
  • समय के अनुसार तेजी से बदलाव आ रहे थे औरतें भी नौकरानी, फैक्ट्री मजदूर, शिक्षिका, रंगकर्मी और फिल्म कलाकारों के रूप में कई कार्य संपन्न कर रही थी।
  • मेहनत वश मजदूर शहरों के आकर्षण से प्रभावित होकर यहाँ रह रहे थे लेकिन उनकी आमदनी इतनी नहीं थी कि वे अपनी जीविका चला सकें।
  • नगरों में नस्ली-भेद-भाव चरम पर था। मद्रास में व्हाइट टाउन और ब्लैक टाउन में क्रमशः यूरोपीय और भारतीय अलग-अलग रहते थे। कम्पनी के लोगों को भारतीयों से विवाह करने की अनुमति नहीं थी।
  • यूरोपीय ईसाई होने के कारण डच और पुर्तगाल के नागरिकों को भी अंग्रेजों के साथ रहने की छूट थी। यूरोपियों के कम संख्या में थे अतः प्रशासकीय कार्य इन लोगों को भी सौंपे गए थे। मद्रास शहर का विकास मुट्ठी भर गोरों की आवश्यकता और सुविधाओ के अनुसार किया जा रहा था।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
भारत के नक्शे पर मुख्य नदियों और पर्वत श्रृंखलाओं को पारदर्शी कागज लगाकर रेखांकित करें। बम्बई, कलकत्ता और मद्रास सहित इस अध्याय में उल्लिखित दस शहरों को चिन्हित कीजिए और उनमें से किन्हीं दो शहरों के बारे में संक्षेप में लिखिए कि उन्नीसवीं सदी के दौरान उनका महत्त्व किस तरह बदल गया। उनमें से एक औपनिवेशिक शहर तथा दूसरा उससे पहले का शहर होना चाहिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर नगर, योजना , स्थापत्य img 1

19 वीं शताब्दी का एक औपनिवेशिक शहर:

1. बम्बई:
बम्बई भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक विशाल बन्दरगाह है। यह शहर सात द्वीपों को मिलाकर बना है। प्रारंभ में यह पुर्तगाल के अधीन था। बंदरगाह होने के कारण यह औपनिवेशिक भारत की व्यापारिक राजधानी थी। 19 वीं शताब्दी तक भारत का आधा निर्यात और आयात इसी बंदरगाह से होता था। इस व्यापार की महत्वपूर्ण वस्तु अफीम थी। यहाँ कई पूँजीपति का विकास हुआ। 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यह विश्व व्यापार से जुड़ गया। यहाँ पर बनवाई गई अनेक बड़ी इमारतें यूरोपीय शैली पर आधारित थीं।

19 वीं शताब्दी से पहले का एक प्राचीन शहर:

2. दिल्ली:
दिल्ली एक प्राचीन शहर है। यहाँ से महाभारत कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। उस समय यह शहर इन्द्रप्रस्थ के रूप में जाना जाता था। 17 वीं शताब्दी में इसे शाहजहाँनाबाद कहा जाता था। इसको मुगल सम्राट शाहजहाँ ने बसाया था। यहाँ अनेक बड़ी इमारतें बनायी गईं जिनके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं। अंग्रेजों के शासन काल में नई दिल्ली की नींव रखी गई और 1911 ई. में इसे राजधानी के रूप में चुना गया। आज यह शहर भारत की राजधानी है। दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहाँ संसद सदस्य और राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि के आवास और कार्यालय हैं। यहाँ सभी प्रदेशों और संघ राज्यों के निवासी और प्रतिनिधि रहते हैं।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
पता लगाइए कि आपके कस्बे या गाँव में स्थानीय प्रशासन कौन-सी सेवाएँ प्रदान करता है। क्या जलापूर्ति, आवास, यातायात और स्वास्थ्य एवं स्वच्छता आदि सेवायें भी उनके हिस्से में आती हैं? इन सेवाओं के लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की जाती है? नीतियाँ कैसे बनाई जाती हैं? क्या शहरी मजदूरों या ग्रामीण इलाकों के खेतीहर मजदूरों के पास नीति निर्धारण में हस्तक्षेप का अधिकार होता है? क्या उनसे राय ली जाती है? अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
अपने शहर या गाँव में पाँच तरह की इमारतों को चुनिए। प्रत्येक के बारे में पता लगाइये कि उन्हें कब बनाया गया, उनको बनाने का फैसला क्यों लिया गया। उनके लिए संसाधनों की व्यवस्था कैसे की गई, उनके निर्माण का जिम्मा किसने उठाया और उनको बनाने में कितना समय लगा। उन इमारतों के स्थापत्य या वास्तु शैली संबंधी आयामों का वर्णन करिए और औपनिवेशिक स्थापत्य से उनकी समानताओं या भिन्नताओं को चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
18 वीं शताब्दी के नगरों में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
यूरोप, रोम और इटली की स्थापत्य शैली के भवन बनने लगे। बम्बई, मद्रास और कलकत्ता जैसे विशाल ग्राम्य-शहर विकसित हुए तथा परंपरागत शहरों का महत्त्व लगातार घटने लगा।

प्रश्न 2.
मदास, बम्बई और कलकत्ता में अंग्रेज कब बसे और बम्बई उनके अधिकार में कैसे आया?
उत्तर:
1639 में मद्रास तथा 1690 में कलकत्ता में। पुर्तगाली शासक ने अंग्रेज राजकुमार के साथ अपनी पुत्री का विवाह कराते समय बम्बई को दहेज में दिया।\

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प्रश्न 3.
भारत में जनगणना कब शुरू हुई?
उत्तर:

  1. अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास 1872 में किया गया।
  2. 1881 से दशकीय (प्रत्येक 10 साल बाद) जनगणना की एक नियमित व्यवस्था बन गई।

प्रश्न 4.
कस्बा और गंज में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. ग्रामीण इलाके के एक छोटे नगर को कस्बा कहा जाता है। यह सामान्यतः स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति का केन्द्र होता है।
  2. एक छोटे स्थायी बाजार को गंज कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने अपने आधार कहाँ-कहाँ स्थापित किए? उनके क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:

  1. पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी में, डचों ने 1605 में मछलीपट्टनम् में, अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1973 में पांडिचेरी में अपने आधार स्थापित किए।
  2. इन आधारों में व्यापारिक गतिविधियाँ बढ़ी और इनके आसपास नगर विकसित होने लगे।

प्रश्न 6.
व्हाइट और ब्लैक टाउन में क्या अंतर था?
उत्तर:

  1. ये दोनों शब्द नस्ली-भेदभाव के प्रतीक थे। अंग्रेजों द्वारा उत्पन्न किया गया था। अंग्रेजों ने पुराने कस्बों के आसपास के खेतों और चरागाहों को साफ करवा कर ‘सिविल लाइन्स’ के नाम से आवासीय क्षेत्र बनवाए। इन क्षेत्रों को व्हाइट टाउन कहा गया।
  2. सिविल लाइन के अलावा अन्य क्षेत्रों को ब्लैक टाउन कहा गया। यहाँ भारतीयों के आवास थे परन्तु यहाँ रहन-सहन का स्तर व्हाइट टाउन से निम्न था।

प्रश्न 7.
1853 में रेलवे का आगमन होने के बाद आर्थिक गतिविधि के केन्द्र परम्परागत शहरों से दूर क्यों जाने लगे?
उत्तर:
विदेशी व्यापार बढ़ाने के लिए।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 12 औपनिवेशिक शहर : नगर, योजना , स्थापत्य

प्रश्न 8.
जनगणना के दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. जनगणना से आबादी के विषय में सामाजिक जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं, परन्तु आबादी को कई वर्गों में बाँटने के कारण ऐसी जानकारियाँ एकदम सही नहीं पाई जाती।
  2. लोगों द्वारा जनगणना के कर्मचारी को सही जानकारी का न दिया जाना।

प्रश्न 9.
मद्रास के नये ब्लैक टाउन की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  1. मद्रास का नया ब्लैक टाउन परम्परागत भारतीय शहरों जैसा ही था। वहाँ मन्दिर और बाजार के आसपास आवासीय मकान बनाये गये थे।
  2. मकान गलियों के किनारे स्थित थे। अलग-अलग गलियों में अलग-अलग जाति के लोग रहते थे। जैसे चिन्ताद्रीपेठ इलाका केवल बुनकरों के लिए था। वासरमेनपेठ में रंगसाज और धोबी रहते थे। रोयापुरम में ईसाई मल्लाह रहते थे जो कम्पनी के लिए काम करते थे।

प्रश्न 10.
औपनिवेशिक काल में यातायात के विकास का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. औपनिवेशिक काल में घोड़ा गाड़ी, ट्राम और बसों के रूप में यातायात का विकास हुआ। अब नगर के लोग केन्द्र से दूर जाकर भी बस सकते थे।
  2. समय के साथ काम करने और रहने की जगह दोनों एक-दूसरे से अलग होती गई। घर से कार्यालय या फैक्ट्री जाना आसान हो गया।

प्रश्न 11.
राइटर्स बिल्डिंग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों की ईस्ट इण्डिया कंपनी के मुख्य प्रशासकीय कार्यालय समुद्र तट से दूर बनाये गये। कलकत्ता में स्थित राइटर्स बिल्डिंग इसका उदाहरण था।
  2. यह अंग्रेजों का कार्यालय था। यहाँ राइटर्स का अर्थ क्लर्कों से था। यह ब्रिटिश शासन में नौकरशाही के बढ़ते कद का संकेत था।

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प्रश्न 12.
भारतीय नगरों में मजदूर वर्ग की क्या स्थिति थी?
उत्तर:

  1. भारतीय नगरों में मजदूर वर्ग के लोग अपने यूरोपीय और भारतीय स्वामियों के लिए खानसामा, पालकी वाहक, गाड़ीवान, चौकीदार, पोर्टर और निर्माण व गोदी मजदूर के रूप में विभिन्न सेवायें उपलब्ध कराते थे।
  2. वे शहर के विभिन्न इलाकों में कच्ची झोंपड़ियों में रहते थे।

प्रश्न 13.
छावनियों का क्या महत्त्व था?
उत्तर:

  1. छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल था। इसके साथ भारतीय कस्बों की धनी और अव्यवस्थित बस्तियों के विपरीत व्यवस्थित शहरी जीवन का एक नमूना था।
  2. छावनियों को सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। छावनियों में यूरोपीय कमान के अंतर्गत भारतीय सैनिक तैनात किये जाते थे। यहाँ चौड़ी सड़कें, बड़े बगीचे में बंगले, बैरक, परेड मैदान और चर्च आदि थे।

प्रश्न 14.
पहला हिल स्टेशन कब बना? हिल स्टेशन क्यों बनाये गये?
उत्तर:

  1. पहला हिल स्टेशन शिमला था जिसकी स्थापना गोरखा युद्ध (1815-16) के दौरान किया गया।
  2. हिल स्टेशन फौजियों को ठहरने, सरहद की चौकसी करने और दुश्मन के खिलाफ आक्रमण करने के लिए बनाये गये।

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प्रश्न 15.
बम्बई भारत का सरताज शहर कैसे बना?
उत्तर:

  1. 1861 ई. में यह कपास का मुख्य निर्यातक केन्द्र बन गया। इंग्लैण्ड में अमेरिकी गृह युद्ध के कारण वहाँ से कपास नहीं आती थी। इसलिए दक्कन की सारी कपास बम्बई बंदरगाह से भेजी जाती थी।
  2. 1869 में स्वेज नहर खुल गया जिससे विश्व अर्थव्यवस्था के साथ बम्बई के संबंध मजबूत हो गये। इससे बम्बई सरकार और भारतीय व्यापारियों को खूब लाभ हुआ और वह भारत का सरताज शहर बन गया।

प्रश्न 16.
वैलेंज्ली ने कलकत्ता मिनट्स (1803) में किन बातों की ओर ध्यान आकृष्ट किया?
उत्तर:

  1. यह सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी है कि वह इस विशाल शहर (कलकत्ता) में सड़कों, नालियों और जलमार्गों में सुधार की समग्र व्यवस्था बनाये।
  2. मकानों तथा सार्वजनिक भवनों के निर्माण व प्रसार के विषय में स्थायी नियम बनाकर और हर प्रकार की गड़बड़ियों को नियंत्रित करने के लिए स्थायी नियम बनाये जिससे स्वास्थ्य, सुरक्षा और सुविधा मिल सके।

प्रश्न 17.
दुबाश लोग कौन थे?
उत्तर:

  1. ये लोग ब्लैक टाउन में रहते थे और स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों को बोलना जानते थे।
  2. वे एजेंट और व्यापारी के रूप में कार्य करते थे और भारतीय समाज और गाँवों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे। वे सम्पत्ति एकत्र करने के लिए सरकार में अपनी पहुँच का इस्तेमाल करते थे।

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प्रश्न 18.
कलकत्ता का निर्माण कैसे हुआ?
उत्तर:

  1. कलकत्ता को सुतानाती, कोलकाता और गोविन्दपुर नामक तीन गाँवों को मिलाकर बनाया।
  2. इन तीनों के सबसे दक्षिण में पड़ने वाले गोविन्दपुर गाँव की जमीन को साफ करने के लिए वहाँ के व्यापारियों और बुनकरों को हटाने का आदेश जारी कर दिया गया।

प्रश्न 19.
मद्रास (चेन्नई) प्रेसीडेंसी कैसे बनाई गई थी?
उत्तर:

  1. 1801 में लार्ड डलहौजी ने कर्नाटक के पिठू नवाब पर एक नई संधि लाद दी और उसे विवश किया कि वह पेंशन लेकर अपना राज्य कंपनी को सौंप दे।
  2. इस प्रकार मैसूर से मालाबार समेत जो क्षेत्र छीने गये थे, उनमें कर्नाटक को मिलाकर मद्रास प्रेसीडेंसी बनाई गई थी जो 1947 तक जारी रही।

प्रश्न 20.
मध्यकालीन दक्षिण भारत के शहरों की विशेषतायें बताइए।
उत्तर:

  1. दक्षिण भारत, मदुराई और कोचीपुरम् जैसे नगरों का मुख्य केन्द्र मंदिर होता था।
  2. ये नगर महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र थे।
  3. धार्मिक संस्थानों का सर्वोच्य अधिकारी और मुख्य संरक्षक प्रायः शासक होता था।
  4. धार्मिक त्यौहारों को प्रायः मेलों के रूप में मनाया जाता था।

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प्रश्न 21.
ग्रामीण इलाकों और कस्बों में क्या अंतर थे?
उत्तर:

  1. ग्रामीण अंचलों में लोग खेती, जंगलों से संग्रहण या पशुपालन द्वारा जीवन का निर्वाह करते थे। इसके विपरीत कस्बों में शिल्पकार, व्यापारी, प्रशासक तथा शासक आदि रहते थे।
  2. कस्बों और शहरों की किलेबंदी की जाती थी। यह किलेबंदी इन्हें ग्रामीण क्षेत्रों से अलग करती थी।

प्रश्न 22.
चाल से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. बम्बई में जगह की कमी और भीड़भाड़ को ध्यान में रखकर एक विशेष प्रकार की इमारतें बनवाई गई जिनको चाल कहा गया।
  2. ये बहुमंजिला इमारतें थीं। इनमें एक-एक कमरे वाली आवासीय इकाईयाँ बनाई जाती थीं। इमारत के सभी कमरों के सामने एक खुला बरामदा या गलियारा और बीच में दालान था।
  3. इस प्रकार की इमारतों में बहुत थोड़ी जगह में कई परिवारों के अनेक सदस्य रहते थे। इनके बीच सहयोग और भाईचारा था।

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प्रश्न 23.
बम्बई में व्हाइट ब्लाक में इमारतों की विशेषतायें बताइये।
उत्तर:

  1. यहाँ की इमारतें यूरोपीय शैली पर आधारित थीं। इनमें शाही प्रदर्शन दिखाई देता था। एक अनजान देश में जाना-पहचाना सा भूदृश्य रचने और उपनिवेश में भी घर जैसा महसूस करने की अंग्रेजों की चाह इस शैली से प्रतिबिम्बित होती थी।
  2. अंग्रेजों को प्रतीत होता था कि यूरोपीय शैली उनकी श्रेष्ठता, अधिकार और सत्ता की प्रतीक होगी।
  3. वे सोचते थे कि यूरोपीय ढंग की दिखने वाली इमारतों से औपनिवेशिक स्वामियों और भारतीय प्रजा के बीच फर्क और फासला साफ दिखने लगेगा।

प्रश्न 24.
नव गॉथिक शैली तथा इंडो सारसिनिक शैलियों के दो-दो भवनों का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. नव गॉथिक शैली: यूनिवर्सिटी हाल, विक्टोरिया टर्मिनस।
  2. इंडो-सारसिनिक शैली: गेटवे आफ इंडिया, ताज महल होटल।

प्रश्न 25.
जनगणना में कौन सी कमियाँ थी?
उत्तर:

  1. जनगणना के आंकड़े किसी पूर्वाग्रह से प्रेरित हो सकते हैं।
  2. ये आंकड़े कई महत्त्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी नहीं देते हैं। जिन तथ्यों की ये जानकारी देते हैं, हो सकता है कि वे भी सही न हों।

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प्रश्न 25.
19 वीं शताब्दी में बम्बई और कलकत्ता में उद्योगों की स्थापना के क्या कारण थे?
उत्तर:

  1. इन नगरों की जनसंख्या अधिक थी इसलिए यहाँ सस्ता श्रम उपलब्ध था।
  2. ये नगर रेलवे नेटवर्क द्वारा शेष भारत से जुड़े हुए थे। यहाँ देश के विभिन्न भागों से बड़ी मात्रा में निर्यात के लिए कच्चा माल आता था।

प्रश्न 26.
औपनिवेशिक काल में बम्बई, कलकत्ता तथा मद्रास में जनसंख्या वृद्धि के क्या कारण थे?
उत्तर:

  1. इन नगरों में रोजगार के अधिक अवसर थे।
  2. ये नगर प्रशासन और सत्ता के केन्द्र थे।
  3. इनमें नये भवनों तथा संस्थानों का विकास हुआ।

प्रश्न 27.
कलकत्ता की लॉटरी कमेटी (1817) क्या थी?
उत्तर:

  1. लॉटरी कमेटी लॉटरी बेचकर नगर नियोजन के लिए पैसा एकत्र करती थी।
  2. लार्ड वैलेज्ली के जाने के बाद कलकत्ता नगर के नियोजन का कार्य सरकार की सहायता से इसी कमेटी ने किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
18 वीं शताब्दी की व्यापार व्यवस्था में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
18 वीं शताब्दी की व्यापार व्यवस्था में परिवर्तन –

  1. मुगल साम्राज्य के अधि कारियों ने कस्बे और गंज की स्थापना की। इन शहरी केंद्रों में यूरोपीय कंपनियों ने भी धाक जमा ली। इनमें पुर्तगाली, डच, अंग्रेजी और फ्रांसीसी मुख्य थे।
  2. यहाँ व्यापारिक केन्द्रों के साथ-साथ नगर भी विकसित किये गये।
  3. भारत में पूँजीवाद और वाणिज्यवाद को बढ़ावा मिलने लगा। मध्यकालीन शहरों यथा-लाहौर, दिल्ली तथा आगरा का महत्त्व कम होने लगा।
  4. प्लासी युद्ध के पश्चात् अंग्रेजी व्यापार में वृद्धि हुई और मद्रास, कलकत्ता और बम्बई जैसे शहर आर्थिक राजधानियों के रूप में स्थापित हुए।

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प्रश्न 2.
औपनिवेशिक काल की जनगणना में क्या दोष थे?
उत्तर:

  1. जनगणना के द्वारा समसामयिक सामाजिक जानकारियाँ प्राप्त की जाती हैं परन्तु अनेक लोग इस प्रक्रिया में मदद नहीं देते थे या जनगणना आयुक्तों को गलत जवाब देते थे।
  2. ऊँची जाति के लोग अपने घर की औरतों के बारे में जानकारी देने से हिचकते थे। उनके बारे में सार्वजनिक दृष्टि या सार्वजनिक जाँच को सही नहीं माना जाता था।
  3. शहरों के लोग अपनी पहचान वास्तविक से ऊँची हैसियत की देते थे। फेरी लगाने वाले या काम न रहने पर मजदूरी करने वाले लोग जनगणना कर्मचारी को यह बताते थे कि वे व्यापारी हैं।
  4. मृत्युदर और बीमारियों से संबंधित आंकड़ों को एकत्र करना भी असंभव था। क्योंकि लोग इसकी सूचना नहीं देते थे।
  5. इतिहासकारों को जनगणना जैसे स्रोतों का भारी एहतियात से इस्तेमाल करना पड़ता है और आंकड़ों की सावधानी से जॉच करनी पड़ती है।

प्रश्न 3.
नक्शों के गुण-दोषों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
नक्शे के गुण-दोष:

  1. सर्वेक्षण पद्धतियों और वैज्ञानिक औजारों के विकास तथा ब्रिटिश सरकार की आवश्यकताओं ने मानचित्रों की बड़ी सावधानी के साथ तैयार करने पर बल दिया।
  2. सर्वे ऑफ इंडिया (भारत सर्वेक्षण) द्वारा अनेक नक्शे बनाये गये। इसका गठन 1878 ई. में हुआ। उसक समय तैयार किये गये नक्शों से हमें पर्याप्त जानकारी मिलती है।
  3. नक्शों से अंग्रेज शासकों की सोच में निहित भेदभाव भी उजागर हो जाता है। उदाहरण के लिए-शहर में गरीबों की बड़ी-बड़ी बस्तियों को नक्शे पर चिन्हित नहीं किया गया क्योंकि शासकों के लिए ये महत्त्वहीन थे।
  4. इससे यह भी ज्ञात हुआ कि नक्शे पर मौजूद रिक्त स्थान अन्य विकास योजनाओं के लिए उपलब्ध हैं।

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प्रश्न 4.
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औपनिवेशिक शहरों के स्वरूप में क्या बदलाव आया?
उत्तर:
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में औपनिवेशिक शहरों के स्वरूप में बदलाव –

  1. 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेज भारतीयों से आशंकित रहने लगे। उन्होंने वे अपनी बस्तियाँ अलग बनाने का निश्चय किया।
  2. पुराने कस्बों के आसपास मौजूद चरागाहों और खेतों को साफ कर दिया गया और सिविल लाइन्स नाम से नए शहरी इलाके विकसित किये गये। यहाँ केवल गोरों को बसाया गया।
  3. छावनियों को सुरक्षित स्थानों के रूप में विकसित किया गया। यहाँ यूरोपीय कमान के अंतर्गत भारतीय सैनिक तैनात किये गये। ये मुख्य शहर से जुड़े थे और यूरोपीयों के लिए पूर्णतः सुरक्षित स्थान थे।
  4. सिविल लाइन्स को स्वास्थ्यप्रद बनाया गया।

पश्न 5.
औपनिवेशिक भारत में उद्योगों के विकास की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में औद्योगिक विकास की स्थिति –

  1. रेलवे नेटवर्क का विस्तार होने पर अनेक शहर बंदरगाहों से जुड़ गये।
  2. कई शहरों में कच्चा माल और सस्ते श्रमिकों का आवागमन आसान हो गया और फलस्वरूप वहाँ कारखाने लगाए जाने लगे।
  3. 1850 के दशक के बाद भारतीय व्यापारियों और उद्यमियों ने बम्बई में सूती कपड़ा मिलें लगाईं। कलकत्ता के बाहरी इलाकों में यूरोपियों के स्वामित्व वाली जूट मिलें खोली गईं। यह भारत में आधुनिक उद्योगों के विकास की शुरूआत थी।
  4. यद्यपि कलकत्ता, बम्बई और मद्रास आर्थिक दृष्टि से मजबूत हो चुके थे परन्तु उनकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से फैक्टरी उत्पादन पर आधारित नहीं थी। यहाँ की अधिकांश आबादी तृतीयक व्यवसाय में लगी थी। कानपुर और जमशेदपुर ही औद्योगिक नगरों की गिनती में थे।

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प्रश्न 6.
औपनिवेशिक शासन में हिल स्टेशनों की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर:
हिल स्टेशनों की स्थापना के कारण –

  1. ये हिल स्टेशन फौजियों को ठहराने, उनका ईलाज करवाने, सीमा की देख-रेख करने और शत्रु पर आक्रमण करने के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान थे।
  2. हिल स्टेशनों की जलवायु इंग्लैण्ड की जलवायु जैसी ठंडी और मृदु थी।
  3. गर्म मौसम में बीमार होने के भय से वे इन हिल स्टेशनों में समय बिताना आवश्यक समझते थे।
  4. इन हिल स्टेशनों को सेनेटोरियम के रूप में भी विकसित किया गया। सिपाहियों को यहाँ विश्राम करने और इलाज करने के लिए भेजा जाता था।
  5. हिल स्टेशन ऐसे अंग्रेजों और यूरोपियनों के लिए भी आदर्श स्थान थे जो अपने घर जैसी मिलती-जुलती बस्तियाँ बसाना चाहते थे। उनकी इमारतें यूरोपीय शैली की होती थीं।

प्रश्न 7.
अंग्रेजों ने भारत में सफाई एवं स्वच्छता पर क्यों ध्यान दिया?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा भारत में सफाई एवं स्वच्छता पर ध्यान देने के कारण –

  1. ब्लैक टाउन प्रायः गंदे रहने के कारण वहाँ प्लेग और हैजा जैसी फैली और हजारों लोगों की मृत्यु हो गई।
  2. ब्रिटिश अधिकारियों को भय था कि कहीं ये बीमारियाँ ब्लैक टाउन से व्हाइट टाउन में न फैल जाएँ।

प्रश्न 8.
औपनिवेशिक शहरों में कामगारों या श्रमिकों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
औपनिवेशिक शहरों में कामगारों की स्थिति –

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब और बेरोजगार लोग काम की खोज में शहरों की ओर कूच कर रहे थे।
  2. कुछ लोगों को शहरं में नए अवसरों का स्रोत दिखाई दे रहा था जबकि कुछ अन्य को एक भिन्न जीवन शैली का आकर्षण खींच रहा था।
  3. शहर में खर्च की लागत को कम करने के लिए अधिकांश पुरुष प्रवासी अपना परिवार गाँव में छोड़कर आते थे।
  4. शहर की जिंदगी मजदूरों के लिए संघर्षपूर्ण थी। नौकरी अस्थाई थी, खाना महंगा था और आवास का खर्च उठाना मुश्किल था। इन कठिनाइयों के बावजूद कामगारों ने वहाँ प्रायः अपनी एक अलग जीवंत शहरी संस्कृति रच ली थी।
  5. वे धार्मिक त्यौहारों, तमाशों और स्वांग आदि में उत्साहपूर्वक हिस्सा लेते थे जिनमें प्रायः उनके भारतीय और यूरोपीय मालिकों का मजाक उड़ाया जाता था।

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प्रश्न 9.
नए शहरों में औरतों के सामाजिक बदलाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नए शहरों के महिला समाज में बदलाव –

  1. शहरों में औरतों को नये अवसर प्राप्त हुए। पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के माध्यम से मध्यवर्गीय औरतें खुद को अभिव्यक्त करने का प्रयास कर रही थीं।
  2. अब औरतें परम्परा से हटकर कार्य कर रही थीं। रूढ़िवादियों को यह भय सताने लगा कि इससे पुरुषों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
  3. यहाँ तक कि सुधारक भी औरतों की शिक्षा के समर्थक होने के बावजूद उन्हें उच्च शिक्षित नहीं देखना चाहते थे। वे औरतों को माँ और पत्नी की परम्परागत भूमिका में देखना चाहते थे और उनका घर से बाहर निकलना उनके लिए गंवारा नहीं था।
  4. आगे चलकर सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की उपस्थिति बढ़ने लगी। वे फैक्ट्री मजदूर, नौकरानी, शिक्षिका, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार के रूप में शहर के नए व्यवसायों में दाखिल होने लगी।

प्रश्न 10.
गारेर मठ क्या था? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
गारेर मठ:

  1. कलकत्ता में नवनिर्मित फोर्ट विलियम के आसपास एक विशाल जगह छोड़ दी गई जिसे स्थानीय लोग मैदान या गारेर मठ कहने लगे थे।
  2. खाली मैदान रखने का उद्देश्य यह था कि अगर शत्रु की सेना किले की ओर बढ़े तो उस पर किले से बिना किसी बाधा के गोलीबारी की जा सके।
  3. जब कलकत्ता में अंग्रेजों की स्थिति मजबूत हो गयी तो वे फोर्ट से बाहर मैदान के किनारे पर आवासीय इमारतें बनाने लगे।
  4. फोर्ट के आस-पास की विशाल खुली जगह (जो अभी भी मौजूद है) यहाँ की एक पहचान बन गई। यह कलकत्ता में नगर नियोजन की दृष्टि से प्रथम उल्लेखनीय काम था।

प्रश्न 11.
मद्रास में कौन-कौन से समुदाय आकर बस गये?
उत्तर:
मदास में बसने वाले समुदाय:
मद्रास में विविध समुदाय बसे थे जो निम्नलिखित हैं:

  1. दुबाश: ये ऐसे भारतीय थे जो स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों बोलना जानते थे। वे एजेंट और व्यापारी के रूप में काम करते थे और भारतीय समाज व गोरों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते थे।
  2. वेल्लालार: यह एक स्थानीय ग्रामीण जाति थी। इसने ब्रिटिश शासन के मौकों का लाभ उठाया।
  3. तेलुगु कोमाटी समुदाय: यह एक ताकतवर व्यावसायिक समूह था। इसका शहर की अनाज व्यवस्था पर नियंत्रण था।
  4. पेरियार और वन्नियार: यह गरीब कामगार वर्ग था। ये मुस्लिम आबादी के मुख्य केन्द्र थे।

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प्रश्न 12.
मद्रास में व्हाइट टाउन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मद्रास में व्हाइट टाउन की प्रमुख विशेषताएँ –

  1. मद्रास में व्हाइट टाउन सेंट जार्ज किले के आस-पास केन्द्रित था। वहाँ अधिक यूरोपीय रहते थे।
  2. दीवारों और बुओं से इसे एक खास किस्म की घेरेबंदी का रूप दे दिया गया था।
  3. किले के भीतर निवास करने का निर्णय रंग और धर्म के आधार पर किया जाता था। कंपनी के लोगों को भारतीयों के साथ विवाह करने की अनुमति नहीं थी।
  4. यूरोपीय ईसाई होने के कारण डच और पुर्तगालियों को वहाँ रहने की छूट थी। प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था की संरचना भी गोरों के पक्ष में थी।
  5. संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी यूरोपीय लोग शासक थे और मद्रास का विकास शहर में रहने वाले नाम-मात्र की जरूरतों और सुविधाओं के अनुसार किया जा रहा था।

प्रश्न 13.
भवन निर्माण की नव-गॉथिक शैली की क्या विशिष्टताएँ थी?
उत्तर:
नव-गॉथिक शैली की विशेषताएँ:

  1. इसमें ऊँची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें और बारीक साज-सज्जा होती थी।
  2. इस शैली का जन्म इमारतों में विशेषरूप से गिरिजाघरों से हुआ था। ये गिरिजाघर मध्यकाल में उत्तरी यूरोप में बनाए गए थे।
  3. नव-गॉथिक शैली को इंग्लैण्ड में 19वीं सदी के मध्य में दोबारा अपनाया गया।
  4. औपनिवेशिक सरकार ने बम्बई में बुनियादी ढाँचे का निर्माण करवाते समय इसी शैली को चुना।
  5. इस शैली में निर्मित इमारतें बम्बई का सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय हैं।

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प्रश्न 14.
अंग्रेज उपनिवेश बनाने का खर्च भारत से उगाहते थे उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
उपनिवेश बनाने का खर्च:
ब्रिटिश कम्पनी का भारत में शासन करने का उद्देश्य यहाँ की संपदा और संसाधनों के शोषण करने का था। वह आरम्भ से ही इस नीति पर आश्रित थी कि भारतीय उन्हें इस देश को जीतने का खर्च स्वयं दें। उदाहरण के लिए कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने 1683 में मद्रास के अधिकारियों को लिखा-‘हमारी इच्छा है कि आप धीरे-धीरे नगर (मद्रास) को किलाबंद करें और किले को इतना मजबूत बनाएँ कि वह किसी भारतीय राजा या भारत में डच शक्ति के आक्रमण के सामने अडिग रहे। हम आप से यह भी चाहते हैं कि आप अपना काम इस प्रकार जारी रखें कि नगर निवासी ही सारी मरम्मत और किलाबंदी का खर्च उठायें।

प्रश्न 15.
औपनिवेशिक काल में लॉटरी कमेटी का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
औपनिवेशिक काल में लॉटरी कमेटी –

  1. कलकत्ता में नगर नियोजन के कार्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार की लॉटरी कमेटी की सहायता ली गई।
  2. लॉटरी कमेटी का यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि नगर सुधार के लिए पैसे की व्यवस्था जनता के बीच लॉटरी बेचकर की जाती थी।
  3. वस्तुतः शहर के विकास के लिए धन की व्यवस्था करना नागरिकों की जिम्मेदारी मानी जाती थी न कि सरकार की। इसलिए लॉटरी कमेटी की स्थापना की गई।
  4. लॉटरी कमेटी की प्रमुख गतिविधियों में शहर के हिन्दुस्तानी आबादी वाले हिस्से में सड़क निर्माण और नदी किनारे ‘अवैध कब्जे’ हटाने जैसे कार्य शामिल थे।

प्रश्न 16.
16 वीं तथा 17 वीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा बसाये गए शहरों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
16 वीं तथा 17 वीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा बसाये गए शहरों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ –

  1. 16 वीं तथा 17 वीं शताब्दियों में मुगलों द्वारा बसाये गए शहरों में घनी जनसंख्या थी।
  2. यहाँ के विशाल भवन और पुष्पों के बाग शाही समृद्धि के द्योतक थे।
  3. आगरा, दिल्ली और लाहौर शाही प्रशासन तथा सत्ता के महत्त्वपूर्ण केन्द्र थे। साम्राज्य के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में रहने वाले मनसबदारों और जागीरदारों का इन सत्ता केन्द्रों में आवास निर्माण करना उनकी प्रतिष्ठा का मानक था।
  4. इन नगरों के शिल्पकार कुलीनवर्ग के परिवारों के लिए विशेष प्रकार के हस्तशिल्प का उत्पादन करते थे। शहर के बाजारों में ग्रामीण अंचलों से निवासियों और सेना के लिए अनाज लाया जाता था।
  5. राजकोष भी शाही राजधानी में ही स्थित था इसलिए राज्य का राजस्व नियमित रूप से राजधानी में ही आता रहता था।
  6. सम्राट एक किलेबंद महल में रहता था और नगर एक दीवार से घिरा था। इसमें अलग-अलग द्वारों से आवागमन पर नियंत्रण रखा जाता था।

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प्रश्न 17.
रेलवे के आरम्भ से शहरीकरण की प्रक्रिया किस प्रकार तेज हुई?
उत्तर:
रेलवे और शहरीकरण की प्रक्रिया –

  1. अंग्रेजों के लिए इस देश से कच्चा माल ले जाना सुगम हो गया क्योंकि रेलमार्ग उत्पादन केन्द्रों को मुख्य बन्दरगाहों से जोड़ते थे।
  2. रेलमार्गों के विकास के कारण कम्पनी के आयात और निर्यात व्यापार को बढ़ावा मिला।
  3. रेलमार्गों के कारण ही अंग्रेजी प्रशासन में दृढ़ता आई और अंग्रेजों के लिए भारत पर शासन करना सरल हो गया। अब सैनिकों को शीघ्र तथा सुरक्षापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता था।
  4. अंग्रेजों के लिए उत्तरी-पश्चिमी भारत पर अधिकार दृढ़ करना सरल हो गया।
  5. रेलों के आरम्भ होने से आधुनिक उद्योग स्थापित करने में सुविधा रही।

प्रश्न 18.
उत्तर-पूर्वी राज्यों को हिल स्टेशनों की खानें क्यों कहा जाता है?
उत्तर:

  1. उत्तर: पूर्वी राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम आते हैं, जो पहाड़ियों से भरे पड़े हैं।
  2. ये अधिकांश राज्य बहुत सुन्दर प्राकृतिक दृश्यों से घिरे हैं। यहाँ कई छोटी-छोटी नदियाँ, झरने और सुन्दर वन हैं।
  3. यहाँ कई प्रकार के जंगली पशु-पक्षी मिलते हैं।
  4. इन दृश्यों में देशी और विदेशी दोनों प्रकार के पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता है।
  5. जम्मू-कश्मीर राज्य भी अपने रमणीक स्वास्थ्यवर्धक स्थलों और घाटियों के लिए प्रसिद्ध है।

प्रश्न 19.
“ब्रिटिश सरकार ने अपनी जाति श्रेष्ठता जताने के लिए सोच समझकर मद्रास शहर का विकास किया।” उचित तर्क देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:

  1. मद्रास के किले में रहने का निर्णय रंग और धर्म के आधार पर लिया जाता था।
  2. कंपनी के लोगों को भारतीयों के साथ विवाह करने की अनुमति नहीं थी। यूरोपीय ईसाई होने के कारण डचों और पुर्तगालियों को वहाँ रहने की छूट थी।
  3. फोर्ट सेंट जार्ज, व्हाइट टाउन का केन्द्र बन गया। वहाँ अधिकतर यूरोपीय रहते थे। दीवारों और बुजों ने इसे एक विशेष प्रकार की घेरेबंदी प्रदान की।
  4. मद्रास का विकास वहाँ रहने वाले मुट्ठी भर गोरों की आवश्यकताओं और सुविधाओं को ध्यान में रखकर किया गया था।
  5. ब्लैक टाउन का विकास किले के बाहर हुआ था। इस आबादी को भी सीधी पहाड़ियों में बसाया गया था जो कि औपनिवेशिक शहरों की मुख्य विशेषता थी।
  6. प्रशासकीय और न्यायिक व्यवस्था भी गोरों के पक्ष में थी। संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी यूरोपीय लोग शासक थे।

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प्रश्न 20.
बम्बई के सार्वजनिक भवनों के निर्माण में अंग्रेजों द्वारा प्रयोग में लाई गई किन्हीं दो वास्तुकला शैलियों का वर्णन कीजिए। प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
बम्बई के सार्वजनिक भवनों के निर्माण में अंग्रेजों द्वारा प्रयोग में लाई गई दो मुख्य शैलियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. नव शास्त्रीय शैली (New Classic Style)
  2. गॉथिक शैली (Gothic Style)

1. नव शास्त्रीय शैली:
इस शैली में बड़े-बड़े स्तम्भों के पीछे रेखागणितीय संरचनायों का निर्माण किया जाता था। इस शैली का उद्भव मूल रूप से प्राचीन रोम की भवन निर्माण शैली से हुआ था। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए उसे विशेष रूप से अनुकूल माना जाता था। 1833 ई. में बम्बई का टाउन हॉल इसी शैली के अनुसार बनाया गया था। 1860 के दशक में बनाई गयी अनेक व्यावसायिक इमारतों के समूह को एल्फिस्टन सर्कल कहा जाता था। बाद में इसका नाम बदलकर हॉर्निमान सर्कल रख दिया गया था।

2. गॉथिक शैली:
गॉथिक शैली का जन्म विशेष रूप से मध्यकालीन गिरजाघर से हुआ था। इस शैली को इंग्लैंड में 19 वीं शताब्दी के मध्य में दोबारा अपनाया था। इस शैली की इमारतों में ऊँची उठी हुई छतें, नोकदार मेहराबें और बारीक साज सज्जा दिखाई पड़ती है। सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय जैसी कई शानदार इमारतें इसी शैली में बनाई गईं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कलकत्ता के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कलकत्ता (कोलकाता) का वर्णन:

  • कलकत्ता शहर तीन गाँवों सूतानाती, कोलकाता और गोविंदपुर को मिला कर बनाया गया था।
  • अंग्रेजों ने अनेक क्षेत्रों के पुराने बुनकरों और कारीगरों को हटने का आदेश दिया। शहर के मध्य नये बनाये गये फोर्ट विलियम के आस-पास के विशाल मैदान को खाली जगह के रूप में छोड़ दिया गया।
  • लार्ड वैलेज्ली ने 18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में अपने लिए गवर्नमेंट हाउस के नाम एक विशाल महल बनवाया जो अंग्रेजी सत्ता का प्रतीक माना जाने लगा।
  • वैलेन्ली कलकत्ता के आस-पास के जंगलों, गंदे तालाबों, जल निकासी की खस्ता हालात और बदबू फैलाने वाले गंदे पानी के ठहराव को देखकर बहुत चिंतित हो गया था। इसलिए स्वच्छता की दृष्टि शहर के बीचों-बीच में खुले स्थान छोड़े गये।
  • अनेक बाजारों, घाटों, कब्रिस्तानों और चमड़े साफ करने की इकाइयों को हटा दिया गया।
  • शहर को साफ करने के लिए 1817 में ‘लाटरी कमेटी’ का गठन किया गया। इस कमेटी ने शहर में स्वास्थ्य और सफाई के लिए एक नया नक्शा बनवाया।
  • सड़क निर्माण और अवैध बस्तियों को हटाने का कार्य शुरू किया गया।
  • भयंकर बीमारियों के दिनों में सरकार ने बड़ी मात्रा में स्वास्थ्य सुविधायें प्रदान करके कलकत्तावासियों की सहायता की।
  • जिन बस्तियों में सूर्य की रोशनी और साँस लेने के लिए हवा का प्रबंध नहीं था। वहाँ गंदे बस्तियों को उखाड़ फेंकने का कार्य किया गया।
  • तीनों औपनिवेशिक शहरों में नियोजन कार्य के अंतर्गत विशाल और भव्य इमारतें बनाई गईं।
  • राइटर्स नाम बिल्डिंग अंग्रेजों द्वारा कलकत्ता में बनाई गई। मूल रूप से उसे ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकरों के लिए बनाया गया था ताकि जब वे भारत में आएँ तो उन्हें इसमें ठहराया जा सके। बाद में इसका उपयोग प्रशासनिक कार्यालय के रूप में किया जाने लगा।
  • कोलकाता महानगर विकास प्राधिकरण (Calcutta Mahanagar Development Authority) के 1600 करोड़ रुपये की लागत वाले कोलकाता वृहत् नगर कार्यक्रम पर काम चल रहा है। इन योजनाओं में 1267.35 करोड़ रुपये का निवेश होने का अनुमान है। इनमें से 18 परियोजनायें पूर्ण हो चुकी हैं।

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प्रश्न 2.
बम्बई या मुम्बई नगर के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बम्बई या मुम्बई नगर का विकास:
वर्तमान मुम्बई का नाम मुंबादेवी के नाम से लिया गया है। यह नगर सात द्वीपों को मिलाकर विकसित हुआ है। ऐसा कहा जाता है कि मुंबई में सबसे पहले व्यापारी तथा कृषक, चौदहवीं शताब्दी के मध्य में आकर बसे। ऐलीफेंटा की गुफाएँ तथा बालेश्वर मंदिर के भवन का एक भाग इसी काल में बनाए गए थे।

भारत में पुर्तगाली बस्तियों के राज्यपाल फ्रांसिस अल्मेड़ा (Francis Almeda) ने 1534 ई. में गुजरात के शासक बहादुरशाह से मुंबई के मुख्य द्वीप छीन लिए थे। उसने बेंसिन (Bassein) के स्थान पर एक दुर्ग बनाया। बांद्रा में सेंट एंड्रयू चर्च भी इसी काल में बनाया गया था। 1961 ई. में इंग्लैण्ड के सम्राट चार्ल्स द्वितीय को मुंबई द्वीप पुर्तगाल की राजकुमारी के साथ विवाह में दहेज स्वरूप मिला।

चार्ल्स द्वितीय ने इसको ईस्ट इंडिया कंपनी को दे दिया था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने जार्ज ओक्सेंडन को मुंबई नगर का प्रथम राज्यपाल (Governor) नियुक्त किया। मुंबई के दूसरे गवर्नर गेरॉल्ड गियर (Gerald Aungier) ने इस द्वीप को एक व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया। उसने निपुण श्रमिकों तथा व्यापारियों को इस ब्रिटिश बस्ती में बसने के लिए कई रियायतें प्रदान की। इन अवसरों का लाभ, गुजराती, पारसी, बोहरा, यहूदी तथा सूरत तथा डियू (Dew) जैसे भारतीय बनिया वर्ग ने लिया। मुंबई की जनसंख्या 1661 में 10,000 से बढ़कर 1675 ई. में 60,000 हो गई।

अंग्रेजों ने 1817 ई. में मराठों पर विजय पाने के पश्चात् मुंबई में बड़े पैमाने पर भूमि का सुधार करके उद्योग स्थापित किए। 1784 से लेकर 1845 तक का काल मुंबई के विकास का स्वर्ण काल था जब इन साठ वर्षों में सात द्वीपों को जोड़कर इसको एक महानगर बना दिया गया। इस काल में एक नियमित नागरिक प्रशासन स्थापित किया गया। 1853 ई. में थाणे और मुंबई के बीच 36 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का उद्घाटन किया गया। यह भारत में सबसे पहली रेलवे लाइन थी। इसके चार वर्ष पश्चात् मुंबई में पहली कपड़ा मिल की स्थापना की गई। इन कपड़ा मिलों के स्थापित होने से बहुसंख्या में मराठी श्रमिक मुंबई की (slums) में बस गए। अब नगर ने एक निश्चित आकार ले लिया था।

1857 ई. में भारतीयों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया परन्तु उनका निर्दयता से दमन कर दिया गया। चार्ल्स फोरजेट (Charles Forjett) ने बहुसंख्यक भारतीयों को यह झूठा आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने दिवाली के अवसर पर मुंबई को बम से उड़ाने का षड्यंत्र बनाया था। कुछ निर्दोष लोगों को तोप से उड़ा दिया गया।

1861 ई. में अमेरिका में गृह युद्ध छिड़ जाने तथा 1869 में स्वेज नहर के खुल जाने से मुंबई से कपास आदि के निर्यात से मुंबई मुख्य व्यापारिक केन्द्र बन गया। The Great Indian Peninsular Railway के बनने से भारत में यात्रा करना आसान हो गया। नगर में व्यापार तथा संचार के साधनों का जाल फैल जाने से मगर समृद्ध होता गया। सरकार ने इस नगर में फ्लोरा फाऊंटेन, विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन (अब छत्रपति शिवाजी) जैसे भवन और हैंगिंग गार्डन तथा झीलें बनवाई।

1872 ई. में मुंबई नगरपालिका की स्थापना की गई। 1890 ई० में प्लेग फैला और उसने कई लोगों की जाने ले ली। नगर में एक ओर सरकार की सत्ता का प्रदर्शन है परंतु दूसरी ओर साधारण लोगों की दुर्दशा आज भी दिखाई देती है।

श्रमिक वर्ग के लोगों को आवासीय मकानों की समस्या का सामना करना पड़ा है। मिलों से काम करने वाले श्रमिकों के परिवार गाँवों में और वे महानगर में अपनी आजीविका कमाते आरंभ में मिल मालिकों ने अपने कारखानों के निकट बस्तियाँ स्थापित करके मजदूरों के रहने का प्रबंध किया। सेना के बैरकों की भांति प्रत्येक भवन में तीन मंजिली इमारतें होती थीं। प्रत्येक मंजिल में एक कमरा प्रति मजदूर रहने के लिए दिया जाता था तथा उनका एक साझा शौचालय होता था।

कई बार कई चालों का समूह एक खुले आंगन के इर्द-गिर्द बना होता था। इन चालों के समूह को बाड़ी (Wadi) कहते थे। नगर में मिलों की संख्या बढ़ जाने और मजदूरों के परिवार भी यहाँ आने के कारण चालों में रहने वाले लोगों की संख्या बहुत बढ़ गई। इसके साथ-साथ मिलों के इर्द-गिर्द गंदी बस्तियाँ भी अस्तित्व में आ गई। 1864 ई० में मुंबई के गवर्नर वार्टल फ्रेयर (Bartel Frere) ने मुंबई दुर्ग के बड़े-बड़े कमरों को गिरवा दिया। अब खंडहर सेंट जार्ज अस्पताल के पास इन कमरों के खण्डहर दिखाई पड़ते हैं। इन सबको तोड़कर बड़े-बड़े भवन बनाये गये जो नगर का केन्द्रीय भाग हैं। 20 वीं शताब्दी के आरम्भ से प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को बचाने के लिए विशेष उपाय किये गए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन महानगर नहीं है?
(अ) मद्रास
(ब) कलकत्ता
(स) बम्बई
(द) इलाहाबाद
उत्तर:
(द) इलाहाबाद

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प्रश्न 2.
मद्रास, कलकत्ता तथा बम्बई तीनों शहरों की एक सामान्य विशेषता क्या थी?
(अ) तीनों, शहर ब्रिटिश राज की राजधानियां थी
(ब) तीनों शहरों के लोग केवल अंग्रेजी भाषा-भाषी थे
(स) तीनों शहर मूलतः मत्स्य संग्रहण तथा बुनकरों के गाँव थे
(द) तीनों शहर विदेशी टकराव केन्द्र रहे हैं
उत्तर:
(स) तीनों शहर मूलतः मत्स्य संग्रहण तथा बुनकरों के गाँव थे

प्रश्न 3.
शाहजहाँ नाबाद को किसने बसाया था?
(अ) अकबर ने
(ब) जहाँगीर ने
(स) शाहजहाँ ने
(द) औरंगजेब ने
उत्तर:
(स) शाहजहाँ ने

प्रश्न 4.
1857 के विद्रोह के पूर्व दिल्ली के कोतवाल कौन थे?
(अ) गंगाधर नेहरू
(ब) मोतीलाल नेहरू
(स) अरुण नेहरू
(द) जवाहर लाल नेहरू
उत्तर:
(अ) गंगाधर नेहरू

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प्रश्न 5.
ब्रिटिश काल में पहला हिल स्टेशन किसे बनाया गया था?
(अ) शिमला
(ब) दार्जिलिंग
(स) नैनीताल
(द) मनाली
उत्तर:
(अ) शिमला

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में कौन औपनिवेशिक काल का नहीं है?
(अ) इंडिया गेट
(ब) अजमेरी गेट
(स) तुर्कमान गेट
(द) दिल्ली गेट
उत्तर:
(अ) इंडिया गेट

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प्रश्न 7.
शाहजहाँनाबाद कहाँ था?
(अ) कलकत्ता
(ब) दिल्ली
(स) मुम्बई
(द) मद्रास (चेन्नई)
उत्तर:
(ब) दिल्ली

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में दिल्ली का कोतवाल कौन था?
(अ) गंगाधर नेहरू
(ब) मोतीलाल नेहरू
(स) जवाहरलाल नेहरू
(द) इंदिरा गाँधी
उत्तर:
(अ) गंगाधर नेहरू

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प्रश्न 9.
भारत में जनगणना कब नहीं हुई?
(अ) 1972
(ब) 1981
(स) 1991
(द) 1993
उत्तर:
(द) 1993

प्रश्न 10.
भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई?
(अ) 1853
(ब) 1852
(स) 1851
(द) 1850
उत्तर:
(अ) 1853

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित में कौन-सा फोर्ट (किला) ब्रिटिश काल का नहीं है?
(अ) फोर्ट सेंट जार्ज (मद्रास)
(ब) फोर्ट विलियम (कलकत्ता)
(स) फोर्ट (बम्बई)
(द) रेड फोर्ट (दिल्ली)
उत्तर:
(द) रेड फोर्ट (दिल्ली)

प्रश्न 12.
पहला हिल स्टेशन शिमला कब स्थापित हुआ?
(अ) 1815-16
(ब) 1818
(स) 1835
(द) 1850
उत्तर:
(अ) 1815-16

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प्रश्न 13.
बम्बई की इमारतों में कौन-सी शैली नहीं थी?
(अ) नवशास्त्रीय शैली
(ब) नव-गॉथिक शैली
(स) इंडो-सारसिनिक शैली
(द) इंडो-ग्रीक शैली
उत्तर:
(द) इंडो-ग्रीक शैली

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में कौन मिश्रित स्थापत्य शैली थी?
(अ) नवशास्त्रीय शैली
(ब) नव-गॉथिक शैली
(स) इंडो-सारसिनिक शैली
(द) अमरीकी शैली
उत्तर:
(स) इंडो-सारसिनिक शैली

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरूआत

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरूआत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 15 संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरूआत

Bihar Board Class 12 History संविधान का निर्माण : एक नए युग की शुरूआत Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
उद्देश्य प्रस्ताव में किन आदर्शों पर जोर दिया गया था?
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य आदर्श –

  1. प्रभुता सम्पन्न स्वतन्त्र भारत की स्थापना और उसके सभी भू-भागों और सरकार के अंगों की सभी प्रकार की शक्ति और अधिकारों का स्रोत जनता का रहना।
  2. भारत के सभी लोगों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, पद अवसर और कानून के समक्ष समानता, कानून और सार्वजनिक नैतिकता के अंतर्गत विचार अभिव्यक्ति के अधिकार, विश्वास, निष्ठा, पूजा, व्यवसाय, संगठन और कार्य की स्वतंत्रता की गारंटी देना।
  3. अल्पसंख्यकों, पिछड़े और जनजाति वाले क्षेत्रों, दलित और अन्य वर्गों के लिए सुरक्षा के समुचित उपाय करना।

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प्रश्न 2.
विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे?
उत्तर:

  1. कुछ लोग आदिवासियों को मैदानी लोगों से अलग देख कर उन्हें विशेष आरक्षण देना चाहते थे।
  2. अन्य प्रकार के लोग दमित वर्ग के लोगों को हिंदुओं से अलग करके देख रहे थे और वह उनके लिए अधिक स्थानों का आरक्षण चाहते थे।
  3. कुछ विद्वान मुसलमानों को ही अल्पसंख्यक कह रहे थे। उनके अनुसार उनका धर्म रीति-विाज आदि हिन्दुओं से बिल्कुल अलग है।
  4. सिक्ख लीग के कुछ सदस्य सिक्ख धर्म के अनुयायियों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने और अल्पसंख्यकों को सुविधायें देने की मांग कर रहे थे।
  5. मद्रास के बी. पोकर बहादुर ने 27 अगस्त, 1947 के दिन संविधान सभा में अल्पसंख्यकों को पृथक् निर्वाचिका देने की मांग की और कहा कि मुसलमानों की जरूरतों को गैर-मुसलमान अच्छी तरह नहीं समझ सकते हैं।

प्रश्न 3.
प्रांतों के लिए ज्यादा शक्तियों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए?
उत्तर:

  1. मद्रास के सदस्य के. सन्तनम ने कहा कि न केवल राज्यों को बल्कि केन्द्र को मजबूत बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है।
  2. उन्होंने बताया कि केन्द्र के पास जरूरत से ज्यादा उत्तरदायित्व होंगे तो वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पायेगा। उसके कुछ दायित्वों में कमी करके उन्हें राज्यों को सौंप देने से केन्द्र ज्यादा मजबूत हो सकता है।
  3. सन्तनम ने केन्द्र को अधिक राजकोषीय अधिकार देने का भी विरोध किया। उनके अनुसार ऐसा करने से राज्यों की आर्थिक स्थिति कमजोर हो जायेगी और वे विकास कार्य नहीं कर सकेंगे। उन्होंने संघीय व्यवस्था को समाप्त करके एकल व्यवस्था को स्थापित करने की वकालत की।
  4. प्रांतों के अन्य अनेक सदस्य भी इसी प्रकार की आशंकाओं से परेशान थे। उनका कहना था कि समवर्ती सूची और केन्द्रीय सूची में कम से कम विषय रखे जाएँ एवं राज्यों को अधिक अधिकार दिए जाएँ।

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प्रश्न 4.
महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए?
उत्तर:
हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा –
1. महात्मा गाँधी का मानना था कि हिंदुस्तानी भाषा में हिंदी के साथ-साथ उर्दू भी शामिल है और दो भाषाएँ मिलकर हिंदुस्तानी भाषा बनाती हैं।

2. वह हिंदू और मूसलमान दोनों के द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं और दोनों की संख्या अन्य सभी भाषा-भाषियों की तुलना में अधिक है। यह हिन्दू और मुसलमानों के साथ-साथ उत्तर और दक्षिण में भी खूब प्रयोग में लाई जा सकती है।

3. गाँधी जी यह जानते थे कि हिंदी और उर्दू में संस्कृत के साथ-साथ अरबी और फारसी के शब्द भी मध्यकाल से प्रयोग हो रहे हैं। जब ऐसा है तो हिन्दुस्तानी भाषा सभी लोगों के लिए समझने में सहज है।

4. गाँधी जी हिंदुस्तानी भाषा को देश के हिंदू और मुसलामनों में सद्भावना और प्रेम बढ़ाने वाली भाषा मानते थे। उनको कहना था कि इससे दोनों सम्प्रदायों के लोगों में परस्पर मेल-मिलाप, प्रेम, सद्भावना ज्ञान का आदान-प्रदान बढ़ेगा और यही भाषां देश की एकता को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

5. महात्मा गाँधी का कहना था जो लोग हिंदी को हिंदुओं की और उर्दू को केवल मुसलमानों की भाषा बनाकर भाषा के क्षेत्र में धार्मिकता और साम्प्रदायिकता का घृणित खेल खेलना चाहते हैं वे वस्तुतः संकीर्ण मनोवृत्ति के हैं।

प्रश्न 5.
वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया?
उत्तर:
संविधान का स्वरूप तय करने वाली ऐतिहासिक ताकतें निम्नलिखित हैं:

  1. संविधान का स्वरूप तय करने वाली प्रथम ऐतिहासिक ताकत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी जिसने देश के संविधान को लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
  2. मुस्लिम लीग ने देश के विभाजन को बढ़ावा दिया परन्तु उदारवादी और विभाजन के बाद भी विभिन्न दबाव समूहों या राजनैतिक दलों से जुड़े रहने वाले मुसलमानों ने भी भारत को धर्म निरपेक्ष बनाए रखने तथा सभी नागरिकों की अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाये रखने में सक्षम सांविधिक प्रावधानों को समर्थन दिया।
  3. समाजवादी विचारधारा या वामपंथी विचारधारा वाले लोगों ने संविधान में समाजवादी ढाँचे की सरकार बनाने, भारत को कल्याणकारी राज्य बनाने और समान काम के लिए समान वेतन, बंधुआ मजदूरी समाप्त करने, जमींदारी उन्मूलन करने के प्रावधानों को प्रविष्ट कराया।
  4. एन. जी. रांगा और जयपाल सिंह जैसे आदिवासी नेताओं ने संविधान का स्वरूप तय करते समय इस बात की ओर ध्यान देने के लिए जोर दिया कि संविधान में आदिवासियों की सुरक्षा तथा उन्हें आम आदमियों की दशा में लाने के प्रावधान प्रविष्ट किए जाएँ।

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प्रश्न 6.
दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावें:

  1. अस्पृश्यों (अछूतों) की समस्या को केवल संरक्षण और बचाव से हल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके लिए जाति भेदभाव वाले सामाजिक नियमों, कानूनों और नैतिक मान्यताओं को समाप्त करना जरूरी है।
  2. हरिजन संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं। आबादी में उनको हिस्सा 20-25 प्रतिशत है। उन्हें समाज और राजनीति में उचित स्थान नहीं मिला है और शिक्षा और शासन में उनकी पहुँच नहीं है।
  3. डा. अम्बेडकर ने संविधान का द्वारा अस्पृश्यता का उन्मूलन करने, तालाबों, कुओं और मंदिरों के दरवाजे सभी के लिए खोले जाने और निम्न जाति के लोगों को विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिये जाने का समर्थन किया।
  4. मद्रास के नागप्पा ने दमित जाति के लोगों हेतु सरकारी नौकरियों और विधायिकाओं में आरक्षण का दावा किया।
  5. मध्य प्रांत के दमित जातियों के एक प्रतिनिधि श्री के जे खाण्डेलकर ने दलित जातियों के लिए विशेष अधिकारों का दावा किया।

प्रश्न 7.
संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच क्या संबंध देखा?
उत्तर:

  1. प्रारम्भ में सन्तनम जैसे सदस्यों ने केन्द्र के साथ राज्यों को भी मजबूत करने की बात कही। अनेक शक्तियाँ केन्द्र को सौंप देने से वह निरंकुश हो जायेगा और ज्यादा उत्तरदायित्व रहने के कारण वह प्रभावी ढंग से काम नहीं कर पायेगा।
  2. ड्राफ्ट कमेटी के चेयरमेन डॉ. बी. आर अम्बेडकर ने कहा कि वे एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र सरकार की स्थापना करना चाहते हैं।
  3. 1946 और 1947 में देश के विभिन्न भागों में सांप्रदायिक दंगे और हिंसा के दृश्य दिखाई दे रहे थे। इससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा था और देश अनेक टुकड़ों में विभाजित हो रहा था। इसका संदर्भ देते हुए अनेक सदस्यों ने सुझाव दिया कि केन्द्र को अधिक अधिकार देकर उसे मजबूत बनाना चाहिए जिससे वह इन दंगों का दमन कर सके और साम्प्रदायिकता समाप्त कर सके।
  4. संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि शक्तिशाली रहने पर ही केन्द्र सरकार सम्पूर्ण देश के हित की योजना बना पाएगी और आर्थिक संसाधनों को जुटा पाएगी।
  5. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस देश के विभाजन के पूर्व इस बात से सहमत थी कि प्रांतों को पर्याप्त स्वायत्तता दी जायेगी परन्तु लीग द्वारा विभाजन कराए जाने के पश्चात् कांग्रेस का विचार बदल गया क्योंकि यदि केन्द्र सरकार अधिक शक्तिशाली रहती तो लीग ऐसा नहीं कर सकती थी।
  6. औपनिवेशिक शासन व्यवस्था समाप्त होने के तुरंत बाद नेताओं ने यह महसूस किया कि केन्द्र ही अव्यवस्था पर अंकुश लगा सकता है और देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।

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प्रश्न 8.
संविधान सभा ने भाषा के विवाद को हल करने के लिए क्या रास्ता निकाला?
उत्तर:
संविधान सभा द्वारा भाषा के विवाद को हल करने के लिए किये गए उपाय:
1. संविधान की भाषा के मुद्दे पर कई महीनों तक बहस होती रही और कई बार तनाव भी उत्पन्न हुआ। वस्तुत: यह देश अनेक भाषाओं और संस्कृतियों का देश था ऐसे में इसे भाषा की दृष्टि से सूत्रबद्ध करने की समस्या थी।

2. गांधी जी का मानना था कि हिंदी और उर्दू के मेल से बनी हिंदुस्तानी भारतीय जनता के एक बहुत बड़े भाग और यह विविध संस्कृतियों के आदान-प्रदान से समृद्ध हुई एक साझी भाषा है। वह हिन्दुओं और मुसलमानों को, उत्तर और दक्षिण के लोगों को एकजुट कर सकती है।

3. भाषा को लेकर भी संविधान सभा में गर्मागर्म बहस हुई। कोई स्पष्ट हल न निकलने की दशा में एक भाषा समिति बनाई गई तथा उसकी संस्तुति के अनुसार देवनागरी को राज्यभाषा का दर्जा देने की बात सभी सदस्यों ने स्वीकार की ली। राष्ट्रभाषा के रूप में उसके वर्चस्व को नकार दिया गया जबकि उत्तर भारत के लगभग सभी नेता इसको राष्ट्रभाषा को दर्जा दिलाने के लिए बहुत व्यग्र थे।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 9.
वर्तमान भारत के राजनीतिक मानचित्र पर यह दिखाइए कि प्रत्येक राज्य में कौन-कौन सी भाषाएँ बोली जाती हैं। इन राज्यों की राजभाषा को चिन्हित कीजिए। इस मानचित्र की तुलना 1950 के दशक के प्रारंभ के मानचित्र से कीजिए। दोनों मानचित्रों में आप क्या अंतर पाते हैं? क्या इन अंतरों से आपको भाषा और राज्यों के आयोजन के संबंधों के बारे में कुछ पता चलता है? वर्तमान भारतीय राज्यों में भाषाओं में परिवर्तन-1950 के पश्चात् कई राज्यों का पुनर्गठन हुआ और उनके भाषायी चरित्र में कुछ उल्लेखनीय परिवर्तन आए हैं –

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  1. अरुणाचल: अरुणाचल के कई लोगों ने गत 60 वर्षों में प्रमुख भाषाओं के साथ-साथ हिंदी और अंग्रेजी सीखी है ।
  2. असम में: असमी के साथ हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव ज्यादा बढ़ा है। अन्य क्षेत्रीय भाषाएँ कम हुई हैं।
  3. आंध्र प्रेदश में तेलुगू भाषा अधिक प्रमुख हुई है। शहरों में हिंदी और अंग्रेजी भाषा का विकास हुआ है।
  4. उड़ीसा में उड़िया के साथ-साथ आदिवासियों की स्थानीय भाषाएँ बोली जाती हैं। हिंदी, अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार अधिक हुआ है।
  5. उत्तर प्रदेश में हिंदी के साथ-साथ अवधी, ब्रजभाषा, भोजपुरी, उर्दू और अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार है।
  6. कर्नाटक में कन्नड़ के साथ-साथ दक्षिण भारत की तमिल, तेलुगू, हिंदी और अंग्रेजी भाषा शहरी क्षेत्रों में अधिक बढ़ी है।
  7. केरल में मलयालम के साथ-साथ उर्दू, तमिल, कन्नड़, मलयालम और कुछ शहरों में हिंदी और अंग्रेजी का प्रचार-प्रसार बढ़ा है।
  8. गुजरात में गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है और मराठी का कम हुआ है।
  9. गोवा में पुर्तगाली भाषा का प्रभाव कम हुआ है, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  10. जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी, ढोंगरी, लद्दाखी के साथ-साथ उर्दू और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  11. तमिलनाडु में तमिल, कन्नड़, तेलुगू के साथ हिंदी, अंग्रेजी शहरों में बढ़ी है।
  12. त्रिपुरा में अंग्रेजी, हिंदी का प्रभाव बढ़ा है और बंगला का प्रभाव कम हुआ है।
  13. पंजाब में पंजाबी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  14. पश्चिमी बंगाल में बंगला और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  15. बिहार में हिंदी, उर्दू, संथाली और भोजपुरी का प्रभाव बढ़ा है।
  16. मणिपुर में मणिपुरी, थाडो, कंगकुल और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  17. मध्य प्रदेश में हिंदी, गॉडी, भीली और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  18. मिजोरम में लुशाई, बंगला और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  19. मेघालय में खासी, गारो और बंगला का प्रभाव कम हुआ है।
  20. राजस्थान में हिंदी, भीली, उर्दू और शहरों में अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  21. सिक्किम में नेपाली, भोटिया, हिंदी और अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ा है।
  22. हरियाणा में हिंदी, उर्दू और पंजाबी का प्रभाव कम हुआ है।
  23. हिमाचल प्रदेश में हिंदी, किन्नौरी और पंजाबी का प्रभाव कम हुआ है।
  24. छत्तीसगढ़ में भीली, गाँडी, और शहरों में हिंदी का प्रभाव बढ़ा है।
  25. दिल्ली में हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी का प्रभाव बढ़ा है।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 10.
हाल के वर्षों के किसी एक महत्त्वपूर्ण संवैधानिक परिवर्तन को चुनिए। पता लगाइए कि यह परिवर्तन क्यों हुआ, परिवर्तन के पीछे कौन-कौन से तर्क दिए गए और परिवर्तन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या थी? अगर संभव हो, तो संविधान सभा की चर्चाओं को देखने की कोशिश कीजिए। (http:/parliamenttofindia.nic.in/is/debases/debates.htm) यह पता लगाइए कि मुद्दे पर उस वक्त कैसे चर्चा की गई। अपनी खोज पर संक्षिप्त रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 11.
भारतीय संविधान की तुलना संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा फ्रांस अथवा दक्षिणी अफ्रीका के संविधान से कीजिए। ऐसा करते हुए निम्नलिखित में से किन्हीं दो विषयों पर गौर कीजिए-धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकार और केन्द्र एवं राज्यों के बीच संबंध। यह पता लगाइए कि इन संविधानों में अंतर और समानताएँ किस तरह से उनके क्षेत्रों के इतिहासों से जुड़ी हुई हैं।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संविधान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
संविधान उन नियमों तथा सिद्धांतों के संचित समूह या पुस्तक को कहते हैं जिनके अनुसार किसी देश का शासन चलाया जाता है। इसमें वे सर्वोच्य कानून होते हैं जिन्हें नागरिक व सरकार दोनों को मानना पड़ता है। इसी में ही सरकार की शक्तियों तथा नागरिकों के अधिकारों व कर्त्तव्यों का वर्णन होता है। किसी भी देश का शासन चलाने के लिए कुछ मौलिक कानूनों या नियमों की आवश्यकता होती है। इन मौलिक कानूनों या नियमों को देश के संविधान में लिख दिया गया है। संविधान प्रत्येक अधिकारी की शक्तियों की व्याख्या करता है। उदाहरण के लिए-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल, राज्यपाल आदि की शक्तियों का वर्णन।

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प्रश्न 2.
भारतीय संविधान का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
भारत के संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया। 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा बुलाई गई। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा इसके अस्थायी अध्यक्ष थे। 11 दिसम्बर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को स्थायी अध्यक्ष चुना गया। इस संविधान सभा के द्वारा 2 वर्ष 11 मास 18 दिन के अथक प्रयास द्वारा 26 नवम्बर, 1949 को यह संविधान संपूर्ण हुआ और ऐतिहासिक दिवस 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया।

प्रश्न 3.
किसी देश के लिए संविधान का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
संविधान सरकार की शक्ति का स्रोत है। सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियाँ क्या हैं-वे क्या कर सकते हैं आदि संविधान में वर्णित है। संविधान के दो मुख्य उद्देश्य होते हैं:

  1. सरकार के विभिन्न अंगों के आपसी संबंधों की व्याख्या करना।
  2. सरकार और नागरिकों के सम्बन्धों का वर्णन करना। संविधान की सबसे अधिक उपयोगिता इस बात में है कि यह सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोक सकता है। इस दृष्ट्रि से संविधान प्रत्येक देश का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रलेख होता है।

प्रश्न 4.
संविधान में प्रस्तावना की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान में प्रस्तावना की आवश्यकता इसलिए है ताकि संविधान के लक्ष्यों, उद्देश्यों तथा सिद्धांतों का संक्षिप्त और स्पष्ट वर्णन किया जा सके। सरकार के मार्गदर्शक सिद्धांतों का वर्णन भी प्रस्तावना में ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त संविधान का आरंभ एक प्रस्तावना से करने की एक संवैधानिक परम्परा बन गयी है। अमेरीका, स्विट्जरलैण्ड, आयरलैण्ड, जापान, जर्मनी और चीन तथा बांग्लादेश के संविधान का आरंभ प्रस्तावना से ही होता है। भारत में भी संविधान निर्माताओं ने संविधान का आरम्भ प्रस्तावना से ही किया है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि प्रस्तावना समूचे संविधान की विषय-वस्तु का दर्पण है।

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प्रश्न 5.
भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
पं. जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस के 31 दिसम्बर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग का प्रस्ताव पारित कराया था और 26 जनवरी, 1930 का दिन सारे भारत में ‘स्वतंत्रता दिवस’ के रूप में मनाया गया था। इसके बाद प्रति वर्ष 26 जनवरी को इसी रूप में मनाया जाने लगा। इसी पवित्र दिवस की यादगार को ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने संविधान को 26 जनवरी, 1950 से लागू किया।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त बन्धुत्व की भावना का अर्थ बताइए।
उत्तर:
डॉ. अम्बेडकर के अनुसार बन्धुत्व का अर्थ सभी भारतीयों में भ्रातृ-भाव है। उनके शब्दों में यह एक ऐसा सिद्धांत है जो सामाजिक जीवन को एकत्व एवं सुदृढ़ता प्रदान करता है।

प्रश्न 7.
भारत के संविधान में किन विषयों में संशोधन करने के लिए साधारण प्रक्रिया अपनायी जाती है?
उत्तर:

  1. राज्यों के नाम परिवर्तन करना।
  2. राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करना।
  3. राज्यों में विधान परिषद् की स्थापना या समाप्ति आदि।

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प्रश्न 8.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में वर्णित दो मार्गदर्शक सिद्धांतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1. सम्प्रभुता (Sovereignty):
भारतीय संविधान में भारत की जनता को सम्प्रभु (sovereign) बताया गया है । संविधान की प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ से अभिप्राय भारत की जनता से है।

2. समाजवाद (Socialist):
यद्यपि समाजवादी शब्द भारत के संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया था परन्तु इस व्यवस्था को आरम्भ से ही अपनाया गया है।

प्रश्न 9.
भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने में भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था है?
उत्तर:
भारतीय संविधान ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भी ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द 42 वें संशोधन द्वारा 1976 में जोड़ा गया है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं और न राज्य नागरिकों को कोई धर्म विभेद अपनाने की प्रेरणा देता है। वह सभी धर्मों का आदर करता है तथा नागरिकों को अपनी इच्छानुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकारों में से एक है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से किन तीन बातों पर प्रकाश डालती है?
उत्तर:

  1. संवैधानिक शक्ति का स्रोत क्या है?
  2. भारतीय शासन व्यवस्था कैसी है? तथा
  3. संविधान के उद्देश्य क्या हैं?

प्रश्न 11.
राजनैतिक और आर्थिक न्याय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1. राजनैतिक न्याय:
राजनैतिक न्याय का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को धर्म, जाति, रंग आदि भेदभाव के बिना समान राजनीतिक अधिकार (सत्ता में भागीदारी) प्राप्त हों। सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार प्राप्त हों।

2. आर्थिक न्याय:
आर्थिक न्याय से अभिप्राय है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आजीविका कमाने के समान अवसर प्राप्त हों तथा उसके कार्य के लिए उचित वेतन प्राप्त हो।

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प्रश्न 12.
प्रभुतासम्पन्न राज्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. प्रभुतासम्पन्न राज्य से तात्पर्य एक ऐसे राज्य से है जो सभी दृष्टियों से आजाद हो। वह राष्ट्र के हित में युद्ध कर सकता है, शांति समझौता कर सकता है और राज्य किसी बाहरी हस्तक्षेप के बिना प्रशासन तथा अर्थव्यवस्था चला सकता है।
  2. ऐसे राज्य में जनता की प्रतिनिधि सरकार बनाते हैं और राज्य के मुखिया का निर्वाचन होता है।

प्रश्न 13.
देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुए।
उत्तर:
1. देशी रियासतों का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल (लौह पुरुष) ने किया।

2. एकीकरण की प्रक्रिया से उन्होंने छोटी रियासतों को पड़ोसी राज्यों में मिला दिया। कई अन्य छोटी रियासतों को मिलाकर उनका एक संघ बनाया। कुछ बड़ी-बड़ी रियासतों को राज्य के रूप में मान्यता दी। कुछ पिछड़े हुए तथा शासन व्यवस्था ठीक न होने वाले राज्यों को केन्द्र की देख-रेख में रखा गया।

प्रश्न 14.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए ‘हम भारत के लोग’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ यह है कि भारत की सर्वोच्य सत्ता भारत के लोगों में केंद्रित है और भारतीय संविधान के स्त्रोत कोई और नहीं बल्कि भारत की जनता है।

प्रश्न 15.
भारतीय शासन व्यवस्था की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. भारत सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न गणराज्य है।
  2. भारत समाजवादी राज्य है।

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प्रश्न 16.
भारत एक गणराज्य कैसे है?
उत्तर:
भारत में कार्यपालिका का अध्यक्ष राष्ट्रपति, अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचक मंडल द्वारा 5 वर्ष के लिए चुना जाता है और यह पद आनुवंशिक नहीं है। इसलिए भारत एक गणराज्य है।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘राजनीतिक जन्मपत्री’ किसने कहा है? क्या वे संविधान बनाने वाली समिति के सदस्य थे?
उत्तर:
के. एम. मुंशी ने प्रस्तावना को राजनीतिक जन्मपत्री कहा है। के. एम. मुंशी संविधान सभा के सदस्य थे।

प्रश्न 18.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को क्या घोषित किया गया था?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक प्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था।

प्रश्न 19.
क्या प्रस्तावना न्यायसंगत है?
उत्तर:
प्रस्तावना न्यायसंगत है क्योंकि –

  1. प्रस्तावना को संविधान के भाग के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है।
  2. प्रस्तावना में वर्णित उद्देश्यों को यदि सरकार पूरा नहीं करती तो हम इसके लिए न्यायालय में उसे चुनौती नहीं दे सकते।

प्रश्न 20.
भारत के संविधान की प्रस्तावना में दिए गए शब्द ‘प्रतिष्ठा और अवसर की समता’ का अर्थ बताइए।
उत्तर:
इससे अभिप्राय यह है कि भारतीयों को प्रत्येक स्थिति में सदैव एक समान समझा जाएगा। किसी के साथ धर्म, जन्म स्थान, छोटे या बड़े के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।

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प्रश्न 21.
संविधान सभा की पहली और अंतिम बैठक कब हुई थी?
उत्तर:

  1. संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई।
  2. इसकी अंतिम बैठक 24 जनवरी, 1950 को हुई थी।

पश्न 22.
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे? इस सभा में प्रारूप समिति ने अपनी संस्तुतियां कब प्रस्तुत की थी?
उत्तर:

  1. संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० बी० आर० अम्बेडकर थे।
  2. इस समिति ने संविधान सभा में अपनी संस्तुतियाँ 4 नवम्बर, 1948 को प्रस्तुत की थीं।

प्रश्न 23.
राज्य के नीतिनिर्देशक तत्त्व न्याय निर्योग्य हैं। क्यों?
उत्तर:

  1. भारत के संविधान के भाग 4 में नागरिकों के कल्याण के लिए राज्यों को कुछ निर्देश दिये गये हैं, परन्तु ये न्याय योग्य (Enforceable) नहीं हैं।
  2. न्याय निर्योग्य से तात्पर्य यह है कि यदि सरकार इन्हें लागू नहीं करती थी, इनके विरुद्ध कोई कार्य करती है तो नागरिक उन्हें करवाने के लिए न्यायालय की शरण नहीं ले सकते हैं। राज्य के नीतिनिर्देशक तत्त्वों को लागू कराने के लिए न्यायालय सक्षम नहीं हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
संविधान सभा की क्या भूमिका थी? इस सभा के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर:
संविधान सभा की प्रथम बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में हुई परंतु 11 दिसम्बर को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को संविधान का स्थायी चेयरमैन चुन लिया गया। इस संविधान सभा ने संविधान निर्माण का कार्य 2 वर्ष 11 मास 18 दिन में अर्थात् 26 नवम्बर, 1949 को पूरा किया। ऐतिहासिक महत्त्व के कारण यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को ही लागू किया गया। संविधान सभा की महत्त्वपूर्ण भूमिका भारत के लिए एक नये संविधान को तैयार करने की थी।

प्रश्न 2.
संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ किसने प्रस्तुत किया? इसके मुख्य उपबन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution):
संविधान सभा के सामने 13 दिसम्बर, 1946 को पं. जवाहर लाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस उद्देश्य प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया कि “संविधान सभा भारत के लिए एक ऐसा संविधान बनाने का दृढ़ निश्चय करती है जिसमें –

(क) भारत के सभी निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त हो; विचार, भाषण, अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतंत्रता हो; अवसर और कानून के समक्ष समानता हो और उनमें परस्पर भाईचारा हो।

(ख) अल्पसंख्यक वर्गों, अनुसूचित जातियों और पिछड़ी जातियों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था हो।”

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प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के मौलिक ढाँचे से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1973 में ‘केशवानन्द भारती’ नामक विवाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि संसद संविधान में संशोधन करके मूल अधिकारों में कमी कर सकती है परन्तु संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती जिससे संविधान का मौलिक ढाँचा ही बदल जाए। सरकार को इससे संतोष नहीं हुआ और 1976 में 42 वां संशोधन पास करके यह व्यवस्था की गई कि संविधान संशोधनों को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। मिनर्वा मिल्स विवाद (1980) में उच्चतम न्यायालय ने इस धारा को अवैध घोषितं कर दिया। वर्तमान स्थिति यह है कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है परन्तु इसके मौलिक ढाँचे को नष्ट करने का उसे कोई अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश श्री सीकरी ने निम्न बातों को मौलिक ढाँचे में शामिल माना था –

  1. संविधान की सर्वोच्चता का सिद्धांत।
  2. शासन का लोकतांत्रिक और गणतंत्रीय स्वरूप।
  3. धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत।
  4. कार्यपालिका, विधानमंडल और न्यायपालिका के बीच शक्तियों का बंटवारा।
  5. संविधान का संघात्मक ढाँचा।

प्रश्न 4.
संविधान को प्रस्तावना की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
संविधान को प्रस्तावना की आवश्यकता:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्त्व निम्न प्रकार है:
1. इससे संविधान के दर्शन का बोध होता है। संविधान की प्रस्तावना एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रलेख है। यह संविधान के मुख्य उद्देश्यों, विचारधाराओं, लक्ष्यों तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालती है। इसके द्वारा यह पता लगता है कि संविधान निर्माता देश में किस प्रकार का सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक ढाँचा तैयार करना चाहते थे।

2. प्रस्तावना का कानूनी महत्त्व भी है। डॉ. डी. डी. बसु ने लिखा है कि जहाँ संविधान का कानूनी भाग अस्पष्ट है वहाँ उसकी व्याख्या करने के लिए तथा उसे स्पष्ट करने के लिए प्रस्तावना की सहायता ली जा सकती है। प्रस्तावना संविधान के अंतर्गत स्थापित संस्थाओं व अधिकारियों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है और जब भी किसी उपबन्ध के बारे में कोई मतभेद उत्पन्न होता है तो उसे हल करने में सहायता करती है।

3. संविधान की प्रस्तावना से संवैधानिक शक्ति का बोध होता है। प्रस्तावना यह स्पष्ट करती है कि संविधान को बनाने, स्वीकार करने तथा भारत पर लागू करने वाली अंतिम सत्ता जन इच्छा या जनादेश है। भारत का प्रत्येक नागरिक प्रभुसत्ता का अभिन्न अंग है।

4. प्रस्तावना में भारतीय शासन के ढाँचे को प्रजातांत्रिक घोषित किया गया है। प्रस्तावना अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का निर्देशन और उसके कार्यों का नियमन भी करती है।

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प्रश्न 5.
राजकोषीय संघवाद क्या है? इससे केन्द्र और राज्यों में राजकोष का बंटवारा कैसे हुआ?
उत्तर:
राजकोषीय संघवाद –
1. संविधान सभा में कुछ सदस्यों के विरोध के बावजूद अन्य सदस्यों ने केन्द्र को शक्तिशाली बनाने पर जोर दिया। राजकोष में भी केन्द्र को अधिक हिस्सा देने पर जोर दिया गया। इसी को राजकोषीय संघवाद कहा गया।

2. कुछ करों जैसे-सीमा शुल्क और कम्पनी कर से होने वाली आय केन्द्र सरकार के पास रखी गई।

3. कुछ अन्य मामलों जैसे-आयकर और आबकारी शुल्क से होने वाली आय राज्य और केन्द्रीय सरकारों के बीच बाँट दी गई तथा अन्य मामलों में होने वाली आय (जैसे राज्य स्तरीय) पूरी तरह राज्यों को सौंप दी गई।

4. राज्य सरकारों को अपने स्तर पर भी कुछ अधिभार और कर वसूलने का अधिकार दिया गया। उदाहरण के लिए वे जमीन और संपत्ति कर, बिक्रीकर तथा बोतल-बंद शराब पर अलग से कर वसूल कर सकते थे।

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान की विशालता के कारण बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की विशालता के कारण:
भारतीय संविधान निम्नलिखित तथ्यों के कारण विशाल है:

  1. भारत में केन्द्र और राज्यों के लिए एक संयुक्त संविधान की व्यवस्था की गई है। प्रांतों के लिए कोई पृथक् संविधान नहीं है।
  2. संविधान के तृतीय भाग में मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या की गई है।
  3. संविधान के चौथे भाग में राजनीति के निर्देशक सिद्धांत शामिल किए गए हैं।
  4. संविधान में 18वें भाग में अनुच्छेद 352 से लेकर 360 तक राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की व्यवस्था की गई है।

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प्रश्न 7.
कौन से चार देशों के संविधान का भारतीय संविधान पर प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
संविधान निर्माताओं का लक्ष्य एक अच्छे संविधान का निर्माण करना था, इसलिए उन्होंने भारत की तथ्य और परिस्थितियों के अनुकूल विदेशी संविधानों के जो हिस्से/नियम या उपबंध दिखाई दिए, उन्हें भारत के संविधान में अन्तःस्थापित कर लिया। भारतीय संविधान पर निम्नलिखित देशों के संविधानों का प्रभाव पड़ा:

1. ब्रिटिश संविधान:
भारत में संसदीय शासन प्रणाली भारत की देन है। भारत के मंत्रिमंडल की शक्तियाँ व स्थिति लगभग वही है जो ब्रिटिश मंत्रिमंडल की है।

2. अमेरिकन संविधान:
अमेरिकन संविधान की प्रस्तावना से भारतीय संविधान की प्रस्तावना मिलती-जुलती है। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार, सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ, उप-राष्ट्रपति का पद इत्यादि अमेरिकन संविधान से मिलते-जुलते हैं।

3. कनाडा का संविधान:
कनाडा के संविधान का भी भारत के संविधान पर काफी प्रभाव पड़ा है। कनाडा के संघीय राज्य की भांति भारत को ‘राज्यों का संघ’ (Union of States) कहा गया है।

4. जर्मन संविधान:
नए संविधान में राष्ट्रपति को जो संकटकालीन शक्तियाँ दी गई हैं, वे जर्मनी के वाइमर संविधान से ली गई हैं।

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन की क्या व्यवस्था थी?
उत्तर:
भारतीय संविधान में न्यायिक पुनरावलोकन या न्यायिक पुनर्निरीक्षण:
न्यायिक पुनरावलोकन या न्यायिक पुनर्निरीक्षण वह शक्ति है जिसके द्वारा विधानमंडल के कानूनों तथा कार्यपालिका के आदेशों की जांच की जा सकती है और यदि ये कानून अथवा आदेश संविधान के विरुद्ध हों तो उनको असांविधिक या अवैध घोषित किया जा सकता है। न्यायालय कानून की उन्हीं धाराओं को अवैध घोषित करते हैं, जो संविधान के विरुद्ध होती हैं न कि समस्त कानून को। भारत में सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त है। 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने गोलकनाथ बनाम भारत सरकार के मुकद्म में यह निर्णय दिया कि संसद को मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं है।

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प्रश्न 9.
राज्य सूची के बारे में आप क्या जानते हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राज्य सूची में 66 विषय दिए गए हैं। भारतीय संविधान में केन्द्र और राज्यों में शक्तियों का विभाजन किया गया है। राज्य सूची के विषयों पर साधारण स्थिति में राज्य को कानून बनाने का अधिकार है। इस सूची में सार्वजनिक स्वास्थ्य, पुलिस, न्याय, प्रशासन, जेल, सफाई, स्थानीय शासन, मादक पेय, सार्वजनिक निर्माण कार्य, गैस व गैस निर्माण, आयकर, मनोरंजन कर, विलासिता की वस्तुओं पर कर, विज्ञापन पर कर, व्यापार एवं वाणिज्य तथा कृषि एवं बिक्री कर आदि सम्मिलित हैं।

सामान्यतः उन सभी विषयों को राज्य सूची में रखा गया है जिनका सम्बन्ध जन-कल्याण से है, परन्तु 42 वें संशोधन के बाद राज्य सूची के विषयों की संख्या घटकर 62 रह गई है क्योंकि शिक्षा, जंगली जानवर (वन्य जीव), पक्षियों की रक्षा और नाप तौल समवर्ती सूची में रख दिए गए हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची पर संसद कानून बना सकती है। ये विशेष परिस्थितियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. देश में संकटकाल की घोषणा होने पर।
  2. किसी राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति उत्पन्न होने पर।
  3. राज्य सभा द्वारा इस आशय का प्रस्ताव पारित किए जाने पर।
  4. दो या दो से अधिक राज्यों के विध निमंडल की इच्छा पर।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की किन्हीं चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. भारत का संविधान लिखित तथा विस्तृत है। इसमें 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियाँ हैं और उन्हें 24 भागों में बांटा गया है।
  2. भारत का संविधान सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना करता है। भारत पूर्ण रूप से आन्तरिक तथा बाहरी मामलों में प्रभुसत्ता सम्पन्न है । इसका उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है।
  3. भारत का संविधान अनेक स्रोतों से तैयार किया गया संविधान है।
  4. भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है।
  5. भारत का संविधान लचीला और कठोर है।

प्रश्न 11.
केन्द्रीय संघवाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
भारतीय संघवाद को केन्द्रीय संघवाद भी कहा जाता है। इसका अभिप्राय यह है कि भारत में संघात्मक शासन होते हुए भी केन्द्र सर्वाधिक शक्तिशाली है। वे बातें जिनके कारण केन्द्र अधिक शक्तिशाली बन गया है, निम्नलिखित हैं –

  1. केन्द्रीय सरकार की शक्तियाँ बहुत व्यापक हैं। उदाहरणार्थ-केन्द्र सूची में 97 विषय रखे गए हैं।
  2. संसद किसी नए राज्य का निर्माण या उसके आकार को घटा या बढ़ा सकती है।
  3. राज्यों के अपने संविधान नहीं हैं।
  4. संविधान दोहरी नागरिकता के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है।
  5. भारत में एकीकृत न्यायपालिका है।
  6. अखिल भारतीय सेवाओं तथा राज्यपालों पर केन्द्र का नियंत्रण है।
  7. आर्थिक दृष्टि से राज्य सरकारें केन्द्र पर निर्भर हैं।
  8. आपातकाल की घोषणा हो जाने पर केन्द्रीय सरकार का स्वरूप एकात्मक हो जाता है।

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प्रश्न 12.
भारत में संघात्मक व्यवस्था के साथ-साथ शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना क्यों की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में जहाँ एक ओर संघात्मक शासन की स्थापना की गई है वहीं दूसरी ओर केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
1. विदेशी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए (Toresist the foreighattacks):
हमारे संविधान निर्माताओं ने देश के इतिहास से पाठ सीखा कि जब भी केन्द्र निढाल हुआ तब-तब विदेशी आक्रमण हुए । इसलिए उन्होंने शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना का निर्णय लिया ।

2. राष्ट्रीय एकता की स्थापना के लिए (For establishment of National Integ rity):
भारत शताब्दियों तक छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त रहा परन्तु ब्रिटिश शासन काल में यहाँ एकता का प्रादुर्भाव हुआ। संविधान निर्माता उस राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना चाहते थे अतः उन्होंने शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की।

3. भारतीय रियासतों की समस्या (The problem of Indian States):
1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो यहाँ 500 से अधिक देशी रियासतें थीं। इन रियासतों को भारतीय संघ में विलय करने के लिए भी केन्द्र को शक्तिशाली बनाना अनिवार्य था।

4. देश की विभिन्न समस्याओं का सामना (To face the multipleproblems):
देश के सामने कई समस्याएँ और चुनौतियाँ खड़ी थीं। साम्प्रदायिक दंगे, कश्मीर की समस्या, विस्थापितों की पुनर्स्थापना, देश की बाह्य आक्रमणों से रक्षा आदि समस्याओं का मुकाबला करने
के लिए शक्तिशाली केन्द्र बनाना अनिवार्य था।

5. आर्थिक उन्नति के लिए (For economic progress):
भारत जब 1947 में स्वतंत्र हुआ तो भारत की आर्थिक व्यवस्था बहुत खराब थी। देश के लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाने के लिए आर्थिक योजनाओं का आरम्भ करना आवश्यकं था। इस कार्य को अच्छी प्रकार संपन्न करने के लिए भी एक शक्तिशाली केन्द्र स्थापित करने की आवश्यकता थी।

प्रश्न 13.
समवर्ती सूची किसे कहते हैं? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। एक सूची संघ सूची है जिस पर केन्द्र द्वारा कानून बनाये जाते हैं। दूसरी सूची राज्य सूची है। इसमें दिए गए विषयों पर साधारण परिस्थितियों में राज्य सरकारें नियम बनाती हैं। कुछ विषय ऐसे भी होते हैं जिन पर केन्द्र तथा राज्य दोनों मिलकर कानून बना सकते हैं परन्तु टकराव की स्थिति में केन्द्र द्वारा बनाया गया कानून ही प्रभावी रहता है। इस तीसरी सूची को ही समवर्ती सूची (Concurrent list) कहा जाता है। इस सूची में 47 विषय हैं। इसमें विवाह, तलाक, दण्ड विधि, दीवानी कानून, न्याय, समाचार पत्र, पुस्तकें तथा छापाखाने, आर्थिक-सामाजिक योजना, कारखने इत्यादि आते हैं।

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प्रश्न 14.
ऑपरेशन विजय क्या है? इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
ऑपरेशन विजय एवं इसका महत्त्व:

  1. भारतीयों के अनुनय-विनय का तिरस्कार करते हुए गोवा में पुर्तगालियों ने राष्ट्रवादियों पर हमले करने शुरू कर दिये और गोवा छोड़ने से इन्कार कर दिया। फलस्वरूप भारत ने गोवा की आजादी के लिए ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) नामक सैनिक कार्यवाही की।
  2. ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही 17-18 दिसम्बर, 1961 को शुरू की गई। इस कार्यवाही के कमाण्डर जरनल जे० एन० चौधरी थे। 19 दिसम्बर, 1961 को ‘ऑपरेशन विजय’ नामक कार्यवाही पूरी सफलता के साथ समाप्त हो गयी।
  3. यह कार्यवाही भारतीय स्वतंत्रता को पूर्ण करने वाली कार्यवाही थी।
  4. गोवा, दमन, दीव, हवेली आदि में भारत का तिरंगा फहराया गया। गोवा की स्वतंत्रता से भारतीयों के स्वाभिमान में वृद्धि हुई।
  5. गोवा भारत का अंग बन गया। भारत में विदेशियों की अनधिकृत उपस्थिति और वर्चस्व समाप्त हो गया।

प्रश्न 15.
भारतीय संविधान में ‘आपातकालीन प्रावधान’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के भाग 18 के अनुसार देश में आंतरिक या बाहरी संकट उत्पन्न हो जाने पर आपातकाल घोषित किए जाने की व्यवस्था है। आपातकाल घोषित करने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है। जिन तीन प्रावधानों के अनुसार भारत को आपातकाल की घोषणा की जा सकती है ये निम्नलिखित हैं:

1. युद्ध, विदेशी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह की स्थिति या इनकी आशंका की अवस्था में उत्पन्न हुआ संकट (अनुच्छेद 352):
यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश में गंभीर संकट विद्यमान है अर्थात् युद्ध या बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या भारत के किसी भाग की सुरक्षा खतरे में पड़ने वाली है तो वह इस आपातकाल की घोषणा कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप शासन की सारी शक्तियाँ केन्द्र के हाथों में आ जाती हैं।

2. किसी राज्य में संवैधानिक शासन की विफलता की अवस्था में उत्पन्न हुआ संकट (अनुच्छेद 356):
इस अनुच्छेद के अनुसार यदि किसी राज्य में शासन, संविधान के अनुसार न चल रहा हो तो राष्ट्रपति उस राज्य में आपातकाल की घोषणा कर सकता है और वहाँ का शासन अपने हाथों में ले सकता है। राष्ट्रपति शासन लागू होने के दौरान उस राज्य के लिए कानून निर्माण का कार्य संसद द्वारा ही किया जाता है।

3. वित्तीय संकट (अनुच्छेद 360):
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 360 में कहा गया है कि यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि देश की आर्थिक स्थिरता संकट में पड़ गई है तो वह सम्पूर्ण सत्ता अपने हाथ में ले सकता है।

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प्रश्न 16.
भारतीय समाज द्वारा समाजवाद के आदर्श को प्राप्त करने के मुख्य उपाय बताइए।
उत्तर:

  1. सभी सामाजिक भेदभाव और असमानताएं दूर करनी होंगी। कानून की दृष्टि में कोई भी ऊँचा नीचा, धनी गरीब अथवा छूत-अछूत नहीं होना चाहिए।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि का समान बँटवारा होना चाहिए। बेगार का उन्मूलन कर देना चाहिए।
  3. सभी नागरिकों को जाति, धर्म, वर्ण तथा क्षेत्रवाद के बिना मतदान करने तथा चुने जाने के अधिकार देने चाहिए।
  4. महाजनों, पूँजीपतियों को समाज के कमजोर वर्गों का शोषण करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और मजदूरों को कारखानों तथा अन्य संस्थानों के प्रबंध में भागीदार बनाया जाना चाहिए।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान के निर्माताओं को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा? अथवा, भारतीय संविधान के निर्माताओं के कार्य किस प्रकार के थे? विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के निर्मताओं की समस्यायें:

  1. भारतीय संविधान निर्माताओं के सामने अनेक समस्यायें थीं। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य देश की अखण्डता को बनाए रखना था क्योंकि पाकिस्तान से खतरा था।
  2. दूसरी विकट समस्या देशी रियासतों की थी। उन्हें यह अधिकार दिया गया था कि वे किसी भी देश में शामिल हो सकते हैं।
  3. इसके अतिरिक्त जनजातियों की भी समस्या थी। इसके क्षेत्रों को भारत में पूर्णतया शामिल करना था।
  4. संविधान निर्माताओं के समक्ष नए संविधान के माध्यम से स्वतंत्र भारत का निर्माण करने और गरीबों की आर्थिक स्थिति को सुधारने की चुनौती खड़ी थी।
  5. भारत की स्थिति सुदृढ़ करना और विश्व में अपने सम्मान को बढ़ाना भी संविधान निर्माताओं का विचारणीय मुद्दा था।

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प्रश्न 18.
ब्रिटिश काल में भारत में संवैधानिक सुधारों की क्या सीमायें थीं?
उत्तर:
ब्रिटिश काल में संवैधानिक सुधारों की सीमायें –

  1. ब्रिटिश भारत में संवैधानिक सुधार प्रतिनिध्यात्मक सरकार के लिए बढ़ती मांग के उत्तर में दिए गए थे।
  2. ब्रिटिश भारत के विभिन्न कानूनों (1909, 1919 और 1935) को पारित करने की प्रक्रिया में भारतीयों की कोई प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं थी। इन्हें औपनिवेशिक सरकार ने ही लागू किया था।
  3. प्रांतीय निकायों का चुनाव करने वाले निर्वाचक मंडल का विस्तार अवश्य हो रहा था परन्तु भारतीयों को कम प्रतिनिधित्व दिया गया।
  4. 1935 में भी यह मताधिकार वयस्क जनसंख्या के 10-15% भाग तक ही सीमित था। सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की व्यवस्था लागू नहीं हुई थी।
  5. 1935 के कानून के अंतर्गत निर्वाचित विधायिकाएँ ब्रिटिश शासन के ढांचे में ही काम कर रही थीं। वे अंग्रेजों द्वारा नियुक्त गवर्नर के प्रति उत्तरदायी थीं।

प्रश्न 19.
संविधान सभा का निर्माण कैसे हुआ? क्या यह एक दल का ही समूह था?
उत्तर:
संविधान सभा का गठन –

  1. संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव 1946 के प्रांतीय चुनावों के आधार पर किया गया था। संविधान सभा में ब्रिटिश प्रांतों से भेजे गये सदस्यों के अतिरिक्त रियासतों के प्रतिनिधि भी शामिल थे।
  2. संविधान सभा में पूरे देश के उच्च नेता शामिल थे। पं० जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि कांग्रेस के नेता थे।
  3. अन्य दलों के सदस्यों में डॉ. भीमराव अंबेडकर, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी तथा फ्रेंक एंथनी प्रमुख थे।
  4. श्रीमती सरोजिनी नायडू तथा विजय लक्षमी पंडित इसकी महिला सदस्या थीं।
  5. इस प्रकार संविधान सभा पूरे देश का प्रतिनिधित्व करती थी। मुस्लिम लीग द्वारा इसकी आरंभिक बैठकों का वहिष्कार किया गया। इसलिए संविधान सभा एक ही दल का समूह बनकर रह गई। सभा के 82% सदस्य कांग्रेस के थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान एक संविधान सभा द्वारा निर्मित हुआ। इस सभा के प्रधान भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने इसका प्रारूप बनाने के लिए 7 सदस्यों की एक प्रारूप समिति बनाई। इस समिति के अध्यक्ष डॉ० भीमराव अम्बेडकर थे। यह संविधान 9 दिसम्बर, 1946 से 26 नवम्बर, 1949 तक बन कर तैयार हुआ। इस प्रकार संविधान को पूर्णत: तैयार करने में 2 वर्ष 11 मास 18 दिन लगे। यह संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इस संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

1. लिखित एवं विशालतम संविधान (Written and Lengthiest Constituion):
भारत का संविधान विश्व के अधिकतर संविधानों की तरह एक लिखित संविधान है। यह संसार भर में सबसे विशाल संविधान है। 26 जनवरी, 1950 को भारत में लागू किया गया, संविधान 22 भागों में विभाजित था। इसमें 395 अनुच्छेद और 19 अनुसूचियाँ थीं। आजकल 12 अनुसूचियाँ हैं। संविधान निर्माताओं ने विश्व के विभिन्न संविधानों का अध्ययन करके इसमें अच्छी-अच्छी बातों को प्रविष्ट किया। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य, नीतिनिर्देशक तत्त्व तथा केन्द्र व राज्यों की व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के संगठन तथा कार्यों का भी विस्तृत वर्णन किया गया है।

2. सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना (Creation of a Sovereign, Socialist, Secular, Democratic Republic): भारतीय संविधान ने भारत को सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य घोषित किया है। इसका अर्थ है कि भारत पूर्ण रूप से स्वतंत्र तथा सर्वोच्च सत्ताधारी है और किसी अन्य सत्ता के अधीन नहीं है। भारत का लक्ष्य समाजवादी समाज की स्थापना करना है और भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है। यहाँ पर लोकतंत्रीय गणराज्य की स्थापना की गई है क्योंकि राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचक-मंडल द्वारा 5 वर्ष की अवधि के लिए होता है।

3. जनता का अपना संविधान (People’s own Constitution):
भारत के संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह जनता का अपना संविधान है और इसे जनता ने स्वयं अपनी इच्छा से अपने ऊपर लागू किया है। हमारे संविधान में आयरलैण्ड के संविधान की तरह ऐसा कोई अनुच्छेद नहीं है जिससे यह स्पष्ट होता हो कि भारतीय संविधान को जनता ने स्वयं बनाया है तथापि इस बात की पुष्टि संविधान की प्रस्तावना कराती है: “हम भारत के लोग, भारत में एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य स्थापित करते हैं। अपनी इस संविधान सभा में 26 नवम्बर, 1949 को इस संविधान को अंगीकार हैं।”

4. अनेक स्त्रोतों से तैयार किया हुआ अद्वितीय संविधान (A Unique Constitution Derived from many Sources):
हमारे संविधान में अन्य देशों के संविधानों के अच्छे सिद्धांतों तथा गुणों को सम्मिलित किया गया है। हमारे संविधान निर्माताओं का उद्देश्य एक अच्छा संविधान बनाना था, इसलिए उनको जिस देश के संविधान में कोई अच्छी बात दिखाई दी, उसको उन्होंने सविधान में शामिल कर लिया। संसदीय शासन प्रणाली को इंग्लैण्ड के संविधान से लिया गया है। संघीय प्रणाली अमेरिका तथा राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत हमने आयरलैण्ड के संविधान से लिए हैं। इस प्रकार भारत का संविधान अनेक संविधानों के गुणों का सार है।

5. संविधान की सर्वोच्चता (Supremacy of the Constitution):
भारतीय संविधान की एक अन्य विशेषता यह है कि यह देश का सर्वोच्च कानून है। कोई कानून या आदेश इसके विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है। सरकार के सभी अंगों को संविधान के अनुसार कार्य करना पड़ता है। यदि संसद कोई ऐसा कानून पास करती है जो संविधान के विरुद्ध हो या राष्ट्रपति ऐसा आदेश जारी करता है जो संविधान के साथ मेल नहीं खाता तो न्यायपालिका ऐसे कानून और आदेश को अवैध घोषित कर सकती है।

6. धर्म-निरपेक्ष राज्य (Secular State):
भारत के संविधान के अनुसार भारत एक धर्म-निरपेक्ष गणराज्य है। 42 वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द जोड़ा गया है। धर्म-निरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं। नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है और वे अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपना सकते हैं, इच्छानुसार अपने इष्ट देव की पूजा कर सकते हैं तथा अपने धर्म का प्रचार कर सकते हैं। अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करने के बारे में है।

7. लचीला तथा कठोर संविधान (Flexible and Rigid Constitution):
भारत का संविधान लचीला भी है और कठोर भी। यह न तो इंग्लैण्ड के संविधान की भांति अत्यंत लचीला है और न ही अमेरिका के संविधान की भांति कठोर है। संविधान की कुछ बातें तो ऐसी हैं जिनमें संशोधन करना बड़ा सरल है और संसद साधारण बहुमत से उसे बदल सकती है। संविधान के तका कुछ अनुच्छेदों में संशोधन करना बड़ा कठिन है। मि. व्हीयर (Wheare) ने ठीक ही कहा है कि, “भारतीय संविधान के निर्माताओं ने कठोर तथा लचीले संविधान के मध्य का मार्ग अपनाया है।”

8. संघात्मक-संविधान परंतु एकात्मक प्रणाली की ओर झुकाव (Federal Consti tution with a Unitary Bias):
यद्यपि हमारे संविधान के किसी अनुच्छेद में ‘संघ’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है फिर भी भारतीय संविधान संघात्मक सरकार की स्थापना करता है। संविधान की धारा 1 में कहा गया है, “भारत राज्यों का एक संघ है” (India is a Union of States) इस समय भारत में 28 राज्य और 7 संघीय क्षेत्र हैं जिसमें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली भी शामिल है। भारत के संविधान में संघात्मक सरकार की सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं, परन्तु इसके बावजूद हमारे संविधान का झुकाव एकात्मक स्वरूप की ओर है। प्रायः ऐसा कहा जाता है कि “भारतीय संविधान आकार में संघात्मक परन्तु भावना में एकात्मक है।”

9. संसदीय सरकार (Parlimamentary Form of Government):
भारतीय संविधान ने भारत में संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की। राष्ट्रपति राज्य का अध्यक्ष है परन्तु उसकी शक्तियाँ नाम-मात्र की हैं- वास्तविक नहीं। अनुच्छेद 74 के अनुसार, उसके परामर्श तथा सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् की व्यवस्था की गई है और वास्तव में वही कार्यपालिका है। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह से ही करता है और इसका संसद के साथ घनिष्ठ संबंध है। अधिकतर मंत्री संसद सदस्यों में से ही लिए जाते हैं और वे अपने कार्यों के लिए संसद के निम्न सदन लोकसभा के प्रति उत्तरदायी हैं। लोकसभा अविश्वास का प्रस्ताव पास करके मंत्रिपरिषद् को जब चाहे अपदस्थ कर सकती है, अर्थात् मंत्रिमंडल लोकसभा के प्रासाद-पर्यन्त ही अपने पद पर रह सकता है।

10. द्वि-सदनीय विधानमंडल (Bicameral Legislature):
हमारे संविधान की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके द्वारा केन्द्र में द्वि-सदनीय विधानमंडल की स्थापना की गई है। संसद के निम्न सदन को लोकसभा (Lok Sabha) तथा उच्चसदन को राज्यसभा (Rajya Sabha) कहा जाता है। लोकसभा की शक्तियाँ और अधिकार राज्यसभा की शक्तियों और अधिकारों से अधिक हैं।

11. मौलिक अधिकार (Fundamental Rights):
भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 14 से 32 तक भारतीयों को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार केवल नागरिकों को ही प्राप्त नहीं हैं बल्कि इनमें कई ऐसे अधिकार भी हैं जो राज्य में रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त हैं। 44 वें संशोधन से पूर्व संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परन्तु 44 वें संशोधन के अंतर्गत सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकालकर कानूनी अधिकार बनाने की व्यवस्था की गई है। अत: 44वें संशोधन के बाद 6 मौलिक अधिकार रह गए हैं जो कि इस प्रकार हैं –

  • समानता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

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प्रश्न 2.
भारत में केन्द्र और राज्यों के मध्य विधायी सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
केन्द्र और राज्यों के मध्य व्यवस्थापिका या विधायी सम्बन्धों का तात्पर्य ऐसे सम्बधों से है जो कानून बनाने की शक्ति से सम्बन्धित हैं। भारतीय संविधान में केन्द्र तथा राज्यों में व्यवस्थापिका की शक्तियों का बंटवारा विषयों की तीन सूचियाँ बनाकर किया गया है। ये सूचियाँ हैं:

  1. संघ सूची
  2. राज्य सूची और
  3. समवर्ती सूची। केन्द्र व राज्य की कानून बनाने की शक्ति का विस्तृत वर्णन नीचे दिया गया है।

1. संघ सूची (Union List):
संघ सूची में राष्ट्रीय महत्त्व के 97 विषयों का उल्लेख किया गया है। इन विषयों का सम्बन्ध सम्पूर्ण राष्ट्र से है। इनमें प्रमुख विषय है: देश की सुरक्षा, विदेशी सम्बन्ध, युद्ध, सन्धि, रेल, वायुयान, समुद्री जहाज, डाकघर, टेलीफोन, प्रसारण, विदेशी व्यापार, नोट व मुद्रा, रिजर्व बैंक, जनगणना और आयकर इत्यादि। संघ सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को ही प्राप्त है। राज्यों के विधानमंडल संघ सूची पर किसी भी अवस्था में कानून बनाने का अधिकार नहीं रखते।

2. राज्य सूची (State List):
राज्य सूची में ऐसे 66 विषय रखे गये हैं जो स्थानीय महत्त्व के हैं। उदाहरणार्थ-कानून व व्यवस्था, पुलिस, जेल, न्याय, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्थानीय स्वशासन, कृषि, सिंचाई, राजस्व और औद्योगिक विकास इत्यादि। इन 66 विषयों पर सामान्य अवस्था में राज्यों के विधानमंडलों को ही कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन विशेष अवस्था या संकटकाल में इनमें से किसी विषय को या सभी विषयों को केन्द्र सरकार को दिया जा सकता है।

3. समवर्ती सूची (Concurrent List):
समवर्ती सूची में 47 विषय हैं। ये स्थानीय महत्त्व के विषय हैं, परंतु यदि इन विषयों पर कानून बनाए जाएं तो एकात्मकता की भावना बढ़ेगी और देश का कल्याण होगा। इसी कारण इस सूची पर केन्द्र सरकार व राज्य सरकार दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार प्राप्त है। इस सूची के विषय हैं-दण्ड प्रक्रिया, मजदूर हित, कारखाने, नजरबन्दी, विवाह विच्छेद, आर्थिक योजना, सामाजिक योजना, मूल्य नियंत्रण, बिजली, समाचार पत्र, छापेखाने इत्यादि। इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संघ व राज्य सरकार को प्राप्त है किन्तु इस सूची के किसी भी विषय पर यदि टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाए तो केन्द्र द्वारा बनाया गया कानून ही प्रभावी रहता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कब अस्तित्व में आया?
(अ) 26 जनवरी, 1930
(ब) 15 अगस्त, 1942
(स) 15 अगस्त, 1947
(द) 26 जनवरी, 1950
उत्तर:
(स) 15 अगस्त, 1947

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा संविधान सभा से संबंधित नहीं है?
(अ) 11 सत्र
(ब) 365 दिन
(स) समितियाँ
(द) उपसमितियाँ
उत्तर:
(ब) 365 दिन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में किसने भारतीय संविधान के विषय में अपने विचार व्यक्त नहीं किए थे।
(अ) गणेश उत्सव समिति
(स) निम्न जातियों के समूह
(ब) ऑल इंडिया वर्णाश्रम स्वराज्य संघ
(द) विजयनगरम् के जिला शिक्षा संघ
उत्तर:
(अ) गणेश उत्सव समिति

प्रश्न 4.
संविधान सभा का अध्यक्ष कौन था?
(अ) जवाहरलाल नेहरू
(ब) वल्लभ भाई पटेल
(स) राजेन्द्र प्रसाद
(द) बी. आर. अम्बेडकर
उत्तर:
(स) राजेन्द्र प्रसाद

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से केन्द्रीय विधि मंत्री कौन था?
(अ) बी. आर. अम्बेडकर
(ब) के. एम. मुंशी
(स) कृष्णास्वामी अय्यर,
(द) बी. एन. राव
उत्तर:
(अ) बी. आर. अम्बेडकर

प्रश्न 6.
उद्देश्य प्रस्ताव कब पेश किया गया?
(अ) 9 दिसम्बर, 1946
(ब) 13 दिसम्बर, 1946
(स) 16 मई, 1946
(द) 26 जून, 1946
उत्तर:
(ब) 13 दिसम्बर, 1946

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से अंतरिम सरकार का सदस्य कौन नहीं था?
(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(ब) जवाहरलाल नेहरू
(स) अर्जुन सिंह
(द) सरदार पटेल
उत्तर:
(स) अर्जुन सिंह

प्रश्न 8.
हिन्दू धर्म में सुधार के प्रयास किसने किये?
(अ) राजा राममोहन राय
(ब) विवेकानन्द
(स) मायावती
(द) मुलायम सिंह
उत्तर:
(ब) विवेकानन्द

प्रश्न 9.
अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचिका बनाने का तर्क किसने दिया?
(अ) बी. पोकर बहादुर
(ब) जवाहरलाल नेहरू
(स) महात्मा गांधी
(द) सरदार पटेल
उत्तर:
(अ) बी. पोकर बहादुर

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प्रश्न 10.
संविधान सभा में आदिवासियों के कल्याण के लिए किसने आवाज उठाई?
(अ) पोकर बहादुर
(ब) जयपाल सिंह
(स) जवाहरलाल नेहरू
(द) बी. आर. अम्बेडकर
उत्तर:
(ब) जयपाल सिंह

प्रश्न 11.
केन्द्र सरकार कौन से अनुच्छेद के अधीन राज्य के अधिकार अपने हाथ में ले लेती है?
(अ) अनुच्छेद 351
(ब) अनुच्छेद 352
(स) अनुच्छेद 353
(द) अनुच्छेद 356
उत्तर:
(स) अनुच्छेद 353

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प्रश्न 12.
संविधान सभा में हिंदी का समर्थन किसने किया?
(अ) महात्मा गांधी
(ब) आर. वी. धुलेकर
(स) जी. दुर्गाबाई
(द) शंकरराव देव
उत्तर:
(ब) आर. वी. धुलेकर

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति , स्मृति , अनुभव Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 14 विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव

Bihar Board Class 12 History विभाजन को समझना : राजनीति, स्मृति, अनुभव Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?
उत्तर:
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग की माँग:
उपमहाद्वीप के मुस्लिम-बहुल इलाकों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग करते हुए प्रस्ताव पेश किया। इस अस्पष्ट से प्रस्ताव में कहीं भी विभाजन या पाकिस्तान का उल्लेख नहीं था। इस प्रस्ताव को लिखने वाले पंजाब के प्रधानमंत्री और यूनियनिस्ट पार्टी के नेता सिकन्दर हयात ने 1 मार्च, 1941 को पंजाब असेम्बली को संबोधित करते हुए घोषणा की थी वह ऐसे पाकिस्तान की अवधारणा का विरोध करते हैं जिसमें यहाँ मुस्लिम शासन और शेष स्थानों पर हिंदू राज स्थापित होगा। यदि ऐसा है तो पंजाब के खालसा ऐसे मुस्लिम राज का विरोध करते हैं। उन्होंने संघीय इकाइयों की स्वायत्तता के आधार पर एक ढीले-ढीले (संयुक्त) महासंघ बनाने के अपने विचारों को पुनः दोहराया।

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प्रश्न 2.
कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बंटवारा बहुत अचानक हुआ?
उत्तर:
1940 का पाकिस्तान प्रस्ताव अस्पष्ट था परन्तु 1947 में पाकिस्तान के गठन से लोगों को आश्चर्य हुआ। दूसरी जगह जाने वाले लोग सोच रहे थे कि जैसे ही शांति बहाल होगी, वे वापस लौट आयेंगे। प्रारंभ में मुस्लिम लीग या स्वयं जिन्ना ने भी पाकिस्तान की सोच को गंभीरता से नहीं उठाया था। द्वितीय विश्व युद्ध के कारण ब्रिटिश सरकार स्वतंत्रता के विषय में चुप थी परन्तु “भारत छोड़ो” आन्दोलन ने उन्हें इस विषय में सोचने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 3.
आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?
उत्तर:
विभाजन के विषय में आम लोग यह सोचते थे कि यह विभाजन स्थायी नहीं होगा अथवा शांति बहाली के पश्चात् सभी लोग अपने मूल स्थान लौट आयेंगे। वे मानते थे कि पाकिस्तान के गठन का मतलब यह कदापि नहीं होगा कि एक देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले लोगों को वीजा और पासपोर्ट की जरूरत पड़ेगी। जो लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों और जानकारों से बिछुड़ जाएंगे, वह हमेशा के लिए बिछड़े रहेंगे। जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों की जाने-अनजाने में अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि दोनों देशों के लोग पूर्णरूप से हमेशा के लिए जुदा हो जायेंगे। आम लोगों का ऐसा सोचना उनके भोलेपन या अज्ञानता और यथार्थ से आँखें बंद कर लेने के समान था।

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प्रश्न 4.
विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी की दलील क्या थी?
उत्तर:
विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी की दलील –

  1. विभाजन के खिलाफ महात्मा गांधी यह दलील देते थे कि विभाजन उनकी लाश पर होगा। ये विभाजन के कट्टर विरोधी थे।
  2. महात्मा गांधी को विश्वास था कि वे देश में धीरे-धीरे साम्प्रदायिक एकता पुनः स्थापित हो जायेगी, इसलिए विभाजन की कोई आवश्यकता नही है।
  3. भारत के लोग घृणा और हिंसा का रास्ता छोड़ देगे और सभी मिलकर दो भाइयों की तरह अपनी सभी समस्याओं का निदान कर लेंगे।
  4. वह यह मानते थे कि अहिंसा, शांति, साम्प्रदायिक भाईचारे के विचारों को हिंदू और मुसलमान दोनों मानते हैं। उन्होंने हर जगह हिंदू और मुसलमानों से शांति बनाये रखने, परस्पर प्रेम और एक-दूसरे की रक्षा करने का अनुरोध किया।
  5. गांधी जी यह स्वीकार करते थे कि सैंकड़ों साल से हिंदू, मुस्लिम इकट्ठे रहते आ रहे हैं। वे. एक जैसी वेशभूषा धारण करते हैं, एक जैसा भोजन खाते हैं, इसलिए शीघ्र ही आपसी घृणा भूल जायेंगे और वे पहले की तरह एक-दूसरे के दुःख-सुख में हिस्सा लेंगे।

प्रश्न 5.
विभाजन को दक्षिण एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?
उत्तर:
विभाजन: दक्षिण एशिया के इतिहास का एक ऐतिहासिक मोड़ –

  1. विभाजन तो इससे पहले भी हुए परन्तु यह विभाजन इतना व्यापक हिंसात्मक था कि दक्षिण एशिया के इतिहास में इसे एक नए ऐतिहासिक मोड़ के रूप में देखा गया।
  2. विभाजन के दौरान हिंसा अनेक बार हुई। दोनों सम्प्रदायों के नेता इतने भयंकार दुष्परिणामों की आशा भी नहीं कर सकते थे।
  3. इस विभाजन के दौरान भड़के साम्प्रदायिक दंगों के कारण लाखों लोग मारे गये और नये सिरे से अपनी जिंदगी शुरू करने के लिए विवश हुए।

निम्नलिखित पर एक लघु निबन्ध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?
उत्तर:
ब्रिटिश भारत के बँटवारे के कारण:
15 अगस्त, 1947 ई. ‘को भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति’ विश्व इतिहास की एक उल्लेखनीय घटना है। अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र तो कर दिया, पर उसे दुर्बल बनाने के लिए उसे दो भागों-भारत और पाकिस्तान में विभाजित कर दिया। गांधी जी भारत का विभाजन बिल्कुल नहीं चाहते थे। देश का विभाजन होने के प्रमुख कारण इस प्रकार थे:
1. अंग्रेजों का षड्यंत्र:
भारत का विभाजन अंग्रेजों के षड्यंत्र का परिणाम था। उन्होंने भारत को दुर्बल बनाये रखने के लिए इसका विभाजन किया। 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से अंग्रेज जान गए थे कि उन्हें भारत छोड़ना ही है। उन्होंने योजना बना ली कि यदि भारत को स्वतंत्र करना ही है तो उसे विभाजित कर दिया जाये।

2. मुस्लिम लीग की स्थापना:
अंग्रेजों से प्रेरणा तथा संरक्षण पाकर मुसलमानों ने अपने हितों की रक्षा के लिए 1906 ई. में मुस्लिम लीग की स्थापना की। अपने हितों के लिए अंग्रेजों के भक्त बने रहे। अंग्रेजों द्वारा मार्ले-मिण्टो सुधारों में मुसलमानों को अलग से प्रतिनिधि चुनने का अधिकार देकर साम्प्रदायिकता का विकास किया।

3. कांग्रेस की दुर्बल नीति:
कांग्रेस ने लीग को प्रसन्न करने के लिए उसकी अनुचित बातों को मानकर उसे बढ़ावा दे दिया। 1916 ई. में कांग्रेस ने लखनऊ समझौते के अनुसार मुसलमानों के अलग प्रतिनिधित्व को स्वीकार करके भारत में सम्प्रदायवाद को स्वीकार कर लिया। इसके बाद खिलाफत आन्दोलन को असहयोग आन्दोलन में शामिल करना और सी. आर. योजना में लीग को अधिक रियायतें देना कांग्रेस की दुर्बल नीति के परिणाम थे। इससे जिन्ना को विश्वास हो गया कि कांग्रेस उसकी माँग का विरोध नहीं करेगी। यही कारण था कि उसने पाकिस्तान की मांग की।

4. अंतरिम सरकार की असफलता:
अंतरिम सरकार में कांग्रेस का बहुमत था लेकिन लीग उसके प्रत्येक काम में बाधा डालती थी। इससे देश में रचनात्मक कार्यों की अपेक्षा रक्तपात और दंगों को बढ़ावा मिला। अंतरिम सरकार की असफलता से यह स्पष्ट हो गया कि कांगेस और मुस्लिम लीग मिल कर कार्य नहीं कर सकते। कहीं गृहयुद्ध न छिड़ जाये इसलिए एक आवश्यक बुराई के रूप में गांधी जी तथा अन्य राष्ट्रीय नेताओं ने विभाजन को स्वीकार कर लिया।

5. हिंदू-मुस्लिम दंगे:
अंग्रेजों से बढ़ावा पाकर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग को पूरा करवाने के लिए देश भर में हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाये। बंगाल और पंजाब में तैमूर और नादिरशाह के अत्याचारों की याद एक बार फिर से ताजा हो गयी। फिर से राष्ट्रीय नेताओं ने लाखों बेकसूर लोगों का खून बहाने की बजाय मुस्लिम लीग की मांग की।

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प्रश्न 7.
बंटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?
उत्तर:
बंटवारे के समय औरतों के अनुभव –

  1. बंटवारे के दौरान औरतों को अनेक दर्दनाक कष्टों का सामना करना पड़ा । अनेक विद्वानों और इतिहासकारों ने इस दर्द को महसूस किया। अनेक औरतों का बलात्कार हुआ, उन्हें अगवा किया गया और उन्हें बार-बार बेचा-खरीदा गया।
  2. औरतें अजनबियों के साथ जिंदगी गुजारने के लिए विवश की गई। इससे कुछ नये पारिवारिक संबंध विकसित किये गये। भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने इन्सानी संबंधों की और बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया।
  3. अनेक औरतों को नये परिवार से निकाल कर पुराने परिवारों में भेजने का निश्चय किया गया। इस संबंध में उनसे कोई सलाह नहीं ली गई और उनके अधिकारों का तिरस्कार किया गया । लगभग 30 हजार औरतों को बरामद किया गया और उन्हें भारत या पाकिस्तान भेजा गया।
  4. कई औरतों ने उस हिंसा भरे वातावरण में अपनी इज्जत की रक्षा के लिए अथक परन्तु निष्फल प्रयास किये।
  5. पुरुष अपनी बीवी, बेटी तथा बहन को अपने शत्रु के नापाक इरादों से बचाने के लिए उनकी हत्या कर देता था। खालसा गाँव की घटना इसका उदाहरण है जिसमें 90 औरतों ने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी।
  6. संभवतः पुरुष भी औरतों को ऐसा करने के लिए उकसाते थे। प्रतिवर्ष 13 मार्च को इसे शहादत के रूप में मनाया जाता है और इससे सिक्ख औरतें प्रेरणा प्राप्त करती है।

प्रश्न 8.
बंटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?
उत्तर:
1. गाँधी जी सहित अनेक कांग्रेस के नेता मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की मांग छोड़ने के लिए राजी करने में विफल रहे।

2. मुस्लिम लीग ने अधिक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए मांगकर कुछ कांग्रेसयिों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि शायद कुछ समय बाद गाँधी जी देश की एकता को पुनः स्थापित करने में कामयाब हो जायेंगे परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

3. कुछ कांग्रेसी नेता सत्ता के प्रति ज्यादा लालायित थे। वे चाहते थे कि चाहे देश का विभाजन हो लेकिन अंग्रेज चले जाएँ और उन्हें सत्ता तुरंत मिल जाये।

4. मुस्लिम लीग के द्वारा प्रत्यक्ष कार्यवाही करने की धमकी और बंगाल में उसके द्वारा बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे भड़काना, हिंदू महासभा जैसे साम्प्रदायिक दल के द्वारा हिंदू राष्ट्र को उठाना और कुछ अंग्रेज अधिकारियों द्वारा यह घोषित कर देना कि यदि लीग और कांग्रेस किसी निर्णय पर नहीं पहुंचेंगे तो भी अंग्रेज भारत को छोड़कर चले जायेंगे। कांग्रेस जानती थी कि 90 वर्ष बीतने के बाद भी अंग्रेज अपनी महिलाओं, बच्चों आदि के लिए वे खतरे नहीं उठाना चाहते थे जो उन्होंने 1857 के विद्रोह के दौरान अनुभव किये थे।

5. मुस्लिम लीग की अन्य कई कार्यवाहियों ने कांग्रेस की सोच को बदल डाला। 1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुल थी वहाँ मुस्लिम लीग की सफलता, मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल न करना और जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार बल देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही।

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प्रश्न 9.
मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसानों की पड़ताल कीजिए। मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में हमारी समझ को किस तरह विस्तार मिलता है?
उत्तर:
मौखिक इतिहास के फायदे/नुकसान एवं मौखिक इतिहास की पद्धतियों से विभाजन के बारे में समझ का विस्तार –
1. मौखिक वृत्तांत, संस्करण, डायरियाँ, पारिवारिक इतिहास और स्वलिखित ब्यौरों से तकसीम (बंटवारा) के दौरान आम लोगों की कठिनाइयों और मुसीबतों को समझने में सहायता मिलती है।

2. लाखों लोग बंटवारे की पीड़ा तथा एक मुश्किल दौर को चुनौती के रूप में देखते हैं।

3. भारत का विभाजन अगस्त, 1947 में हुआ। लाखो लोगों ने बंटवारे की पीड़ा और उसके अश्वेत (काले) दौर को देखा। उनके लिए यह केवल संवैधानिक विभाजन या राजनैतिक पार्टियों की दलगत राजनीति का मामला नहीं था। मौखिक इतिहास की गवाही देने वाले और सुनने वाले लोगों के लिए यह बदलाव का ऐसा वक्त था जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी।

4. 1946 से 1950 तक और उसके बाद भी जारी रहने वाले इन परिवर्तनों से निपटने के लिए इतिहासकारों को मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक और सामाजिक समायोजन की आवश्यकता थी। यूरोपीय महाध्वंस की भाति देश के विभाजन को एक राजनैतिक घटना के रूप में नहीं देखना चाहिए अपितु इसकी पीड़ा को झेलने वाले लोगों के अनुभवों का प्रेक्षण और अध्ययन भी करना चाहिए। किसी घटना की वास्तविकता को स्मृतियों और अनुभव से भी आकार प्राप्त होता है।

5. मौखिक स्रोतों में व्यक्तिगत स्मृतियाँ महत्त्वपूर्ण हैं। इसकी विशेषता यह है कि उनसे अनुभवों और स्मृतियों को और बारीकी से समझने का मौका मिलता है। इससे इतिहासकारों को बंटवारे जैसी घटनाओं के दौरान लोगों के साथ क्या-क्या हुआ, इस बारे में बहुरंगी और सजीव वृत्तांत लिखने की योग्यता मिलती है।

6. मौखिक विवरण अपने-आप नहीं मिलते। उन्हें साक्षात्कार के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। साक्षात्कार में भी लोगों के दर्द, अहसास और सूझबूझ से काम लेना पड़ता है। यहाँ यह भी मुश्किल आती है कि सभी लोग आपबीती सुनाने के लिए तैयार नहीं होते। उदाहरण के लिए यदि किसी औरत का बलात्कार हुआ है तो इस बारे में वह अपना मुँह कैसे खोल सकती है। ऐसी पीड़ित महिला के साथ सघन और उपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए आत्मीय संबंध विकसित करना होगा। इसके अलावा याददाश्त की समस्या आती है। मौखिक इतिहासकारों को विभाजन के वास्तविक अनुभवों की बनावटी यादों के जाल से बाहर निकालने के लिए चुनौतीपूर्ण काम भी करना पड़ता है।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
दक्षिण एशिया के नक्शे पर कैबिनेट मिशन प्रस्तावों में उल्लिखित भाग क, ख और ग को चिन्हित कीजिए। यह नक्शा मौजूदा दक्षिण एशिया के राजनैतिक नक्शे से किस तरह अलग है?
उत्तर:
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परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
यूगोस्लाविया के विभाजन को जन्म देने वाली नृजातीय हिंसा के बारे में पता लगाइए। उसमें आप जिन नतीजों पर पहुँचते हैं, उनकी तुलना इस अध्याय में भारत विभाजन के बारे में बताई गई बातों से कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
पता लगाइए कि क्या आपके शहर, कस्बे, गाँव या आसपास के किसी स्थान पर दूर से कोई समुदाय आकर बसा है (हो सकता है आपके इलाके में बंटवारे के समय आए लोग भी रहते हों)। ऐसे समुदायों के लोगों से बात कीजिए और अपने निष्कर्षों को एक रिपोर्ट में संकलित कीजिए। लोगों से पूछिए कि वे कहाँ से आए हैं, उन्हें अपनी जगह क्यों छोड़नी पड़ी और उससे पहले व बाद में उनके कैसे अनुभव रहे। यह भी पता लगाइए कि उनके आने से क्या बदलाव पैदा हुए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बंटवारे की हिंसा और जर्मन होलोकॉस्ट में क्या अंतर था?
उत्तर:

  1. 1947-48 में भारतीय उपमहाद्वीप में हत्या की कोई सरकारी मुहिम नहीं चली जबकि नाजीवादी शासन में यही हो रहा था।
  2. भारत विभाजन के समय जो “नस्ली सफाया” हुआ वह सरकारी निकायों की नहीं बल्कि धार्मिक समुदायों के स्वयंभू प्रतिनिधियों की कारगुजारी थी।

प्रश्न 2.
भारत का बंटवारा किस प्रकार महाध्वंस (होलोकास्ट) था?
उत्तर:

  1. इसमें हिंसा का भयंकर रूप दिखाई देता है। कई लाख लोग मारे गये, अनेक औरतों का बलात्कार हुआ और अपहरण हुआ, करोड़ों परिवार उजड़ गये और रातों-रात अजनबी जमीन पर शरणार्थी (Refugee) बनकर रह गये।
  2. इसमें नुकसान का हिसाब लगाना मुश्किल है। एक अनुमान के अनुसार इस महाध्वंस के शिकार 2 लाख से 5 लाख लोग बने।

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प्रश्न 3.
ब्रिटिश सरकार के अगस्त प्रस्ताव को कांग्रेस ने क्यों अस्वीकार कर दिया था।
उत्तर:
अगस्त प्रस्ताव में भारत को औपनिवेशिक राज्य का दर्जा देने का प्रावधान रखा गया था। कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया, क्योंकि उनकी मांग पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने की थी।

प्रश्न 4.
लखनऊ समझौते (1916) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. यह समझौता दिसम्बर 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के आपसी तालमेल को दर्शाता है।
  2. इस समझौते के अंतर्गत कांग्रेस ने पृथक चुनाव क्षेत्रों को स्वीकार किया। समझौते ने कांग्रेस के मध्यमार्गियों, उग्रपंथियों और मुस्लिम लीग के लिए एक संयुक्त राजनीतिक मंच प्रदान किया।

प्रश्न 5.
कांग्रेस मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र क्यों दिया?
उत्तर:
भारतीय नेताओं ने द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग देने के लिए अंग्रेजों के सामने यह शर्त रखी कि उन्हें स्वतंत्रता प्रदान करने पर ही उनका सहयोग संभव होगा। अंग्रेजों से संतोषजनक उत्तर न मिलने पर कांग्रेस मंत्रिमंडल ने अक्तूबर-नवम्बर, 1939 ई. में त्यागपत्र दे दिया।

प्रश्न 6.
मस्जिद के सामने संगीत से साम्प्रदायिकता को कैसे बढ़ावा मिलता है?
उत्तर:
रूढ़िवादी मुसलमान इसे अपनी नमाज या इबादत में खलल मानते थे।

प्रश्न 7.
1937 के चुनाव में मुस्लिम लीग के प्रभाव क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. मुस्लिम लीग संयुक्त प्रांत, बम्बई और मद्रास में लोकप्रिय थी।
  2. बंगाल में मुस्लिम लीग का सामाजिक आधार काफी कमजोर था और उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत एवं पंजाब में नहीं के बराबर था। सिंध में भी उसकी स्थिति कमजोर थी।

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प्रश्न 8.
20 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में साम्प्रदायिकता में क्यों वृद्धि हुई?
उत्तर:

  1. 1920 और 1930 के दशकों में कई घटनाओं की वजह से तनाव उभरे। मुसलमानों को मस्जिद के सामने संगीत, गो रक्षा आन्दोलन और आर्य समाज की शुद्धि की कोशिशें जैसे मुद्दों पर गुस्सा आया।
  2. दूसरी ओर हिंदू 1923 के बाद प्रचार और संगठन के विस्तार से उत्तेजित हुए। जैसे-जैसे लोग दूसरे समुदायों के खिलाफ लामबंद होकर अधिक एकजुटता बनाने लगे, देश के विभिन्न विभिन्न भागों में दंगे फैलते गए।

प्रश्न 9.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को क्यों अस्वीकार कर दिया?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन में शीघ्र स्वशासन स्थापित करने का प्रस्ताव अवश्य था, परन्तु सत्ता का हस्तान्तरण करने से संबंधित उपबंधं नहीं रखे गए थे। कांग्रेस ने इसको नहीं माना जबकि मुस्लिम लीग ने इसमें पाकिस्तान का प्रावधान न रहने के कारण अस्वीकार किया।

प्रश्न 10.
कैबिनेट मिशन का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
कैबिनेट मिशन का उद्देश्य भारतीय नेताओं से सत्ता हस्तांतरण की शर्तों पर बातचीत करने का था।

प्रश्न 11.
“1946 में भारतीय जनता में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध व्यापक असंतोष एवं बगावत एक चुनौती थी।” दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. यद्यपि अंतरिम सरकार की योजना पर कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों सहमत थे परन्तु समूहबद्धता के मुद्दे पर सहमति नहीं थी।
  2. वायसराय मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों को परिषद् की सदस्यता नहीं दी। इसका मुसलमानों ने कड़ा विरोध किया और प्रत्यक्ष कार्यवाही की धमकी दी।

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प्रश्न 12.
आजादी के बाद भी गांधी जी क्यों दुःखी थे?
उत्तर:

  1. भारत विभाजन के कारण और।
  2. दोनों राज्यों में रक्तपात तथा दंगों के भड़क उठने के कारण।

प्रश्न 13.
भारत में औरतों की बरामदगी का क्या आंकड़ा था?
उत्तर:

  1. औरतों के अधिकारों को नकारते हुए कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को बरामद किया गया।
  2. इनमें 22 हजार मुस्लिम औरतों को भारत से और 8 हजार हिंदू और सिक्ख औरतों को पाकिस्तान से निकाला गया। यह मुहिम 1954 में जाकर खत्म हुई।

प्रश्न 14.
प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. अन्तरिम सरकार में मुसलमानों को मनोनीत करने के कांग्रेस के अधिकार को मुस्लिम लीग ने स्वीकार नहीं किया और जुलाई के अंत में कैबिनेट मिशन के तथाकथित समझौते को भी अस्वीकार कर दिया।
  2. मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की अपनी मांग को असली जामा पहनाने के लिए 16 अगस्त 1946 को ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ मनाने की घोषणा की। मुसलमानों ने कलकत्ता दंगे किए और चारों ओर मारकाट एवं खून खराबे का दृश्य उपस्थित कर दिया।

प्रश्न 15.
हिंदू महासभा के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. हिंदुओं का महत्त्वपूर्ण संगठन हिंदू महासभा थी। इसकी स्थापना 1915 में हुई तथा इसका प्रभाव उत्तर भारत तक सीमित रहा।
  2. यह पार्टी हिन्दुओं के बीच जाति एवं सम्प्रदाय के अंतर को खत्म कर हिंदू समाज में एकता पैदा करने की कोशिश करती थी।

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प्रश्न 16.
द्विराष्ट्र सिद्धान्त का क्या अर्थ है? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास की एक मिथ्या धारणा थी?
उत्तर:

  1. द्विराष्ट्र सिद्धांत के अनुसार भारत में हिंदुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र हैं, इसलिए वे एक होकर नहीं रह सकते।
  2. यह सिद्धांत इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक साँझी संस्कृति का विकास किया। 1857 की क्रांति में भी वे एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 17.
क्रिप्स मिशन क्यों असफल हो गया?
उत्तर:

  1. मुस्लिम लीग ने क्रिप्स मिशन प्रस्तावों को इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि इन प्रस्तावों में पाकिस्तान के निर्माण का कहीं जिक्र नहीं था।
  2. ब्रिटिश सरकार युद्ध (द्वितीय विश्व युद्ध) के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। अत: कांग्रेस भी इन प्रस्तावों से सहमत न थी।

प्रश्न 18.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई? इसकी क्या मांग थी?
उत्तर:

  1. मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में ढाका में हुई।
  2. 1940 के दशक में यह पार्टी भारतीय महाद्वीप के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों की स्वायत्तता या फिर पाकिस्तान की मांग करने लगी।

प्रश्न 19.
1909 में मुसलमानों के लिए बनाये गए पृथक् चुनाव क्षेत्रों का साम्प्रदायिक राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. पृथक् चुनाव मुसलमानों के आरक्षित क्षेत्र थे। इनमें केवल मुस्लिम उम्मीदवार को ही टिकट दी जाती थी और उन्हीं में से प्रतिनिधि चुने जा सकते थे।
  2. इस प्रणाली से राजनेता साम्प्रदायिक नारे लगाकर अपना पक्ष मजबूत कर सकते थे।

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प्रश्न 20.
कांग्रेस ने संयुक्त प्रांत में मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन सरकार क्यों नहीं बनाई?
उत्तर:

  1. संयुक्त प्रांत में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत प्राप्त था।
  2. मुस्लिम लीग जमींदारी प्रथा का समर्थन कर रही थी जबकि कांग्रेस इसे समाप्त करना चाहती थी।

प्रश्न 21.
13 मार्च को सिक्ख शहादत कार्यक्रम क्यों करते हैं?
उत्तर:
रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के दंगों के दौरान 90 महिलाओं ने शत्रुओं के गलत इरादों से बचने के लिए कुएँ में छलाँग लगाकर अपनी जान दे दी। महिलाओं के इस कृत्य को शहादत नाम दिया गया तथा प्रतिवर्ष इस घटना की याद में कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं।

प्रश्न 22.
मुहाजिर कौन लोग हैं?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और हैदराबाद के पचास और साठ के दशक में पाकिस्तान जाने वाले उर्दूभाषी लोग।

प्रश्न 23.
आत्मकथाओं के अध्ययन में इतिहासकारों को पेश आने वाली दो समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. लेखक अपनी स्मृति के आधार पर आत्मकथा लिखता है अतः विस्तृत घटनाएँ उसके लेखन में नहीं आ पाती।
  2. आत्मकथा का लेखक प्रायः लोगों के सामने अपनी छवि को स्वच्छ दिखाने का प्रयास करता है इस कारण उसकी त्रुटियाँ इतिहासकारों से छिपी रह जाती है।

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प्रश्न 24.
कांग्रेस ने 1940 ई. में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद के नेतृत्व में व्यक्तिगत सत्याग्रह क्यों किया?
उत्तर:

  1. कांग्रेस भारत को अंग्रेजों से शीघ्र आजाद कराना चाहती थी। वह चाहती थी कि ब्रिटिश सरकार उसे आश्वासन दे दे कि द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होते ही भारत को आजाद कर दिया जायेगा। गांधी जी ने इसीलिए व्यक्तिगत नागरिक अवज्ञा आन्दोलन 17 अक्तूबर, 1940 को शुरू किया।
  2. सरकार ने शीघ्र ही लगभग 30 हजार सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया। इसमें कई प्रमुख नेता यथा-सरोजनी नायडू, अरुणा आसफ अली और सी. राजगोपालाचारी थे।

प्रश्न 25.
उर्दू कवि मोहम्मद इकबाल का ‘उत्तर पश्चिमी मुस्लिम राज्य’ से क्या आशय था?
उत्तर:
भारत संघ के भीतर ही इन इलाकों को स्वायत्त इकाई बनना।

प्रश्न 26.
1945 में जिन्ना की सत्ता हस्तान्तरण की वार्ता किन दो मांगों के कारण टूट गयी?
उत्तर:

  1. प्रस्तावित कार्यकारिणी सभा के लिए मुस्लिम सदस्यों के चुनाव का अधिकार केवल मुस्लिम लीग को ही दिया जायेगा।
  2. लीग को इस सभा में साम्प्रदायिक आधार पर निषेध राधिकार भी दिया जाए।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1906 में मस्लिम लीग की स्थापना के कारण बताइए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग की स्थापना:
सन् 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के कारण निम्नलिखित थे –
1. अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो नीति:
अंग्रेजों की नीति फूट डालकर राज करने की थी। उन्होंने हिन्दू और दूसलमानों के बीच साम्प्रदायिकता को खूब उछाला। भारत के हिन्दुओं को उन्होंने मुसलमानों का शासक बताया। 1905 में लार्ड कर्जन ने बंग-भंग करके साम्प्रदायिकता को खूब फैलाया। उन्होंने नये प्रांत में मुसलमानों के बहुमत का दावा किया। अपने प्रभाव में लेने के लिए अंग्रेजों ने ढाका के नवाब सलीमुल्ला खाँ को थपथपाया और मुस्लिम सम्प्रदाय के धार्मिक नेता आगा खाँ को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काया।

2. शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन:
मुस्लिम समाज में बहुत कम लोग शिक्षित थे। थोड़े से लोग जो अपने को शिक्षित मानते थे, वे भी धार्मिक स्थानों (मस्जिद) में पढ़े थे जिसके कारण उनके विचार संकीर्ण थे।

3. सैयद अहमद खाँ की भूमिका:
हालाँकि सैयद अहमद खाँ अपने को शिक्षित और बुद्धिवादी मानता था परन्तु उसने साम्प्रदायिकता बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। उसने हिन्दू और मुसलमानों को कभी साथ न जुड़ पाने वाले दो अलग-अलग राष्ट्र बताया।

4. पृथक् निर्वाचन का अधिकार देकर:
अंग्रजों (लार्ड मिन्ट) ने मुसलमानों को साम्प्रदायिकता के आधार पर पृथक् निर्वाचन का अधिकार दे दिया। इससे मुसलमान अपने-आपको हिन्दुओं से अलग मानने लगे।

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प्रश्न 2.
बँटवारे के दौरान अब्दुल लतीफ (मुस्लिम) ने शोधकर्ता (हिन्दू) की क्या-क्या सहायता की और क्यों की?
उत्तर:

  1. अब्दुल लतीफ पंजाब विश्वविद्यालय लाहौर का एक मुस्लिम कर्मचारी था। उसने शोधकर्ता को शोध के लिए पुस्तकें और फोटो कापियाँ उपलब्ध कराई।
  2. शोधकर्ता के प्रति उसका रवैया अत्याधिक सहानुभूतिपूर्ण था।
  3. वह विभाजन के समय अपने पिता की जान बचाने वाले हिन्दू और संपूर्ण हिन्दू जाति का स्वयं को कर्जदार मानता था।

प्रश्न 3.
मुसलमानों में पृथकवादी विचारधारा भरने में सैयद अहमद खाँ का क्या योगदान है?
उत्तर:
इतिहासकारों का कहना है कि सैयद अहमद खाँ का प्रभाव उन दिनों मुसलमानों पर बहुत था। उनका प्रारंभिक जीवन एक शिक्षा शास्त्री और समाजसुधारक का था और इसी कारण उनका मुसलमानों पर काफी प्रभाव पड़ा। उनके विचार कट्टरवादी और रुढ़िवादी थे। उन्होंने मुसलमानों की धार्मिक नब्ज पर हाथ डालकर उनको कट्टरवाद् और अलगाववाद की ओर प्रोत्साहित किया। 1880 ई. में उन्होंने स्पष्ट घोषणा की कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग विचार हैं, अलग-अलग कौम हैं और ये कभी एक हो ही नहीं सकतीं। उन्होंने अंग्रेजों के प्रति भक्ति और वफादारी दिखाई और अंग्रेजों के शासन की जगह-जगह प्रशंसा की। सैयद अहमद खाँ ने अंग्रेजों की चापलूसी करके साम्प्रदायिकता को निरन्तर आगे बढ़ाया। सन् 1985 में जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई तो सैयद अहमद खाँ ने बनारस के राजा शिवप्रसाद के साथ मिलकर इसका विरोध किया।

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प्रश्न 4.
भारत में साम्प्रदायिकता के विकास के कारण बताइए।
उत्तर:
भारत में साम्प्रदायिकता के विकास के कारण –
1. इतिहास के गलत तथ्य:
अंग्रेजों ने इतिहास में गलत तथ्यों को पढ़ाया और लिखा। उन्होंने मध्यकाल को मुगलकालीन या मुसलमानों का काल कहा। उन्होंने बताया कि हिन्दुस्तान में मुस्लिम लोग हमेशा शासक रहे और हिन्दू शासित। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति को कभी भी मिली-जुली संस्कृति नहीं बताया।

2. उग्र राष्ट्रवादी:
कुछ उग्र राष्ट्रवादियों ने प्राचीन भारतीय संस्कृति को अधिक महत्व दिया और मध्यकालीन संस्कृति की अवहेलना की।

3. मुस्लिम लीग की स्थापना:
सन् 1906 में गठित मुस्लिम लीग को अंग्रेजों ने अपना पूरा सम्मान दिया। इसके बदले में मुसलमानों ने बंग-भंग का समर्थन किया। मुसलमानों को किया।

4. देश का पिछड़ापन:
देश आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ था। फिर भी मुसलमानों ने देश के पिछड़ेपन को साम्प्रदायिकता, जातपात और प्रान्तीयता के आधार पर हल करना चाहा। अंग्रेज भी ऐसा ही चाहते थे। वह हर काम ऐसा चाहते थे जिससे देश में अधिक से अधिक साम्प्रदायिकता बढ़े और हिन्दू तथा मुसलमानों में फूट पड़े।

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प्रश्न 5.
भारत विभाजन के संबंध में मौखिक इतिहास या मौखिक स्रोतों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारत विभाजन के संबंध में मौखिक इतिहास या मौखिक स्रोतों का महत्त्व –
1. मौखिक इतिहास में इतिहासकारों को गरीबों और कमजोरों, गेहूँ के खाली बोरों को बेचकर चार पैसे का जुगाड़ करने और थोक भाव पर खुदरा गेहूँ बेचने वाले शरणार्थियों, बिहार में बन रही सड़क पर काम के बोझ से दबी मध्यवर्गीय बंगाली विधवा आदि के विषय में जानने और इनसे अधिकारिक तौर पर छिपाई गई बातों के उद्घाटन करने का मौका मिलता है।

2. अभी भी अनेक इतिहासकार मौखिक इतिहास के विषय में शंकालु है। वे इसे अस्वीकर करते हुए कहते हैं कि मौखिक जानकारियों में सटीकता नहीं होती और उनसे घटनाओं का जो क्रम उभरता है वह प्रायः सही नहीं होता।

3. भारत विभाजन के रूझानों की पहचान करने और अपवादों को चिन्हित करने के पर्याप्त साक्ष्य मिलते हैं।

प्रश्न 6.
राष्ट्रवादियों ने किस प्रकार की आर्थिक नीति शुरू की?
उत्तर:
स्वतन्त्रता का संघर्ष आर्थिक विकास का भी युद्ध था। ब्रिटिश नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया था। भारतीय आर्थिक नीति पर गाँधी जी और रूसी नीति का गहरा प्रभाव था। गाँधी जी को विश्वास था कि मूल भारत गाँव में बसता है। चरखा कातना, खादी को बढ़ावा देना और गाँव में छोटे काम-धन्धे चलाना आदि इसी सिलसिले के कार्य थे।

प्रश्न 7.
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद का राष्ट्रीय आन्दोलन में क्या योगदान है?
उत्तर:
मौलाना अब्दुल कलाम आजाद (1888-1958):
मौलाना आजाद का मक्का में जन्म हुआ। 1857 ई. के विद्रोह के अवसर पर उनके पूर्वज मक्का चले गए थे। 1898 ई. में उनके माता-पिता फिर भारत लौट आए और कलकत्ता में बस गए। उन्होंने उच्च इस्लामी शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने उर्दू में लिखना शुरू किया और क्रांतिकारियों के साथ हो गए। उन्होंने 1912 ई. में उर्दू साप्ताहिक ‘अलहिलाल’ शुरू किया। इसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा। 1920 ई. में मौलाना गाँधी जी के निकट आ गए। 1925 ई. में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन के अध्यक्ष बनाए गए। उन्हीं की अध्यक्षता में भारत छोड़ो आन्दोलन’ का घोषणा-पत्र पास हुआ। वह विधान परिषद् के सदस्य भी थे। मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री भी थे। वह बहुत ही दूरदर्शी स्वभाव रखते थे।

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प्रश्न 8.
पाकिस्तान सम्बन्धित प्रस्ताव मार्च 1940 में किस प्रकार पारित हुआ।
उत्तर:
1. भारतीय नेताओं से सलाह किये बिना दूसरे विश्व युद्ध में भारत को घसीट लिया गया तो कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने प्रान्तों में त्यागपत्र दे दिया। इससे मुस्लिम लीग प्रसन्न हुई और इस दिन को उसने ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया।

2. लीग ने सरकार से यह आश्वासन चाहा कि भारत का संविधान बनाने की समस्या पर पुनः विचार करेगी और मुस्लिम लीग के नेताओं को विश्वास में लिए बिना ब्रिटिश सरकार कांग्रेस को नए संविधान बनाने का अधिकार नहीं देगी।

3. 1940 में जिन्ना की अध्यक्षता में मुस्लिम लीग ने ‘द्विराष्ट्र सिद्धान्त’ की घोषणा की जिसके अनुसार कहा गया कि भारत में हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं और किसी भी क्षेत्र में उनके हित एक जैसे नहीं हैं।

4. जिन्ना के अनुसार पाकिस्तान का गठन ही भारत में साम्प्रदायिक समस्या का स्थायी समाधान है।

5. उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी भारत के दो हिस्से स्वतंत्र पाकिस्तान राष्ट्र का निर्माण करेंगे क्योंकि इनमें मुसलमान बहुसंख्यक हैं। इनका इशारा पूर्वी बंगाल, पश्चिमी बंगाल, सिंध और उत्तर पश्चिमी प्रांत की ओर था। लगभग एक दशाब्दी पहले 29 दिसम्बर 1930 को इसी प्रकार के विचारों को मोहम्मद इकबाल ने भी प्रकट किया था।

प्रश्न 9.
पृथक् चुनाव मण्डलों के निर्माण से भारतीय राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पृथक् चुनाव मण्डलों के निर्माण का प्रभाव:
इस सुधारों में अलग-अलग चुनाव मण्डलों की प्रणाली भी आरम्भ की गई। इसमें सभी मुसलमानों को मिलाकर उनके अलग चुनाव क्षेत्र बनाए गए। इन क्षेत्रों से केवल मुसलमान प्रतिनिधि ही चुने जा सकते थे। यह काम अल्पसंख्यक मुस्लिम सम्प्रदाय की सुरक्षा के नाम पर किया गया। सच्चाई यह थी कि यह काम हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने और भारत में ब्रिटिश शासन को बनाए रखने के उद्देश्य से किया गया था। अलग-अलग चुनाव मण्डलों की यह प्रणाली इस धारणा पर आधारित थी कि हिन्दुओं और मुसलमानों के राजनीतिक और आर्थिक हित अलग-अलग हैं।

यह एक अवैज्ञानिक धारणा थी, क्योंकि राजनीतिक या आर्थिक हितों अथवा राजनीतिक संगठन का आधार धर्म नहीं हो सकता। इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस प्रणाली के व्यवहार में आने से बहुत घातक परिणाम निकले। इसने भारत के एकीकरण की प्रक्रिया में निरन्तर बाधा खड़ी की। यह प्रणाली देश में हिन्दू और मुस्लिम, दोनों तरह की साम्प्रदायिकता के विकास का प्रमुख कारण सिद्ध हुई। मध्यवर्गीय मुसलमानों के शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने तथा उनको भारतीय राष्ट्रवाद की मुख्य धारा में शामिल करने की बजाए, अलग-अलग चुनाव मण्डलों की इस प्रणाली ने राष्ट्रवादी आन्दोलन में जगह-जगह रोड़े लगाने का काम किया। इस प्रकार केवल अलगाववादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिला।

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प्रश्न 10.
लखनऊ समझौता (1916 ई.) के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1916 में कांग्रेस-लीग लखनऊ समझौता:
1909 के सुधारों के पश्चात् घटित घटनाओं ने मुस्लिम लीग को कांग्रेस के निकट लाने में सहायता पहुँचाई। बंगाल विभाजन के बाद की घटनाओं से सिद्ध हो गया था कि सरकार हिन्दुओं के मूल्य पर मुसलमानों को प्रसन्न नहीं करेगी, साथ ही लार्ड हार्डिंग ने दोनों धर्मों के लोगों के प्रति निष्पक्षता का व्यवहार किया। अब तक भारत के मुसलमान अंग्रेजों को तुर्की के मित्र व रूस के शत्रु समझते थे किन्तु अंग्रेजों का रूसियों से समझौता हो जाने से भारतीय मुसलमानों की आँखें खुल गईं। तुर्की व इटली के युद्ध में अंग्रेजों ने तुर्की के प्रति जो नीति अपनाई, उससे भारतीय मुसलमान शकित हो उठे।

1915 ई. में लीग का अधिवेशन बम्बई में होना निश्चित हुआ। दोनों दलों के नेताओं में विचार-विनिमय हुआ और 1916 ई. में लखनऊ में दोनों दलों के बीच समझौता सम्पन्न हो गया। इस समझौते की निम्नलिखित साम्प्रदायिक धाराओं को कांग्रेस ने स्वीकार किया –

  1. मुसलमानों के लिए साम्प्रदायिक चुनाव क्षेत्र प्रदान किया जाए।
  2. अल्पसंख्यकों को विशेष सुविधाएँ दी जाएँ।
  3. अल्पसंख्यकों को ऐसे विधेयक के निषेध का अधिकार दिया जाए जो उन्हें स्वीकार न हों।

प्रश्न 11.
मुसलमानों में उग्र राष्ट्रवाद के विकास का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मुसलमानों में उग्र राष्ट्रवाद के विकास में सम्प्रदायवाद ने सक्रिय भूमिका निभाई। साम्प्रदायिक भावना ने इस बात को जन्म दिया कि भारतीय राष्ट्र नाम की कोई वस्तु नहीं है और न हो सकती है। इसकी बजाय यहाँ केवल हिन्दू राष्ट्र, मुस्लिम राष्ट्र आदि है।

1870 के दशक से पहले मुसलमानों में किसी प्रकार की साम्प्रदायिक राजनीति का अस्तित्व ही नहीं था। यह तो उपनिवेशवाद की देन है। 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिन्दू तथा मुसलमान दोनों मिलकर लड़े थे। देश में राष्ट्रवादी आन्दोलन का उदय होने से अंग्रेजों को अपने साम्राज्य की चिंता हुई। वे नहीं चाहते थे कि हिन्दू और मुसलमान एकजुट होकर राष्ट्रीय भावना को विकसित करें। उन्होंने बांटो और राज्य करो की नीति को धर्म के अतिसंवेदनशील पहलू में बड़ी ही चालाकी से प्रविष्ट कर दिया। उन्होंने मुसलमान जमींदारों, भू-स्वामियों और नव शिक्षित वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने का निर्णय लिया।

उन्होंने उनके मस्तिष्क में यह बात डालने का प्रयास किया कि उनके हित हिन्दुओं के हितों से अलग हैं। यदि उन्हें उन्नति करनी है तो उन्हें एक अलग संख्या में संगठित होना चाहिए। धार्मिक अलगाववाद की प्रवृत्ति के विकास में सैयद अहमद खाँ की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। वे अपने जीवन के अंतिम दिनों में रूढ़िवादी बन गए थे। उन्होंने घोषणा की कि हिन्दुओं और मुसलमानों के हित समान नहीं बल्कि अलग-अलग हैं। इस तरह उन्होंने उग्र राष्ट्रीयता की नींव रखी। उन्होंने 1885 में कांग्रेस की स्थापना का भी कड़ा विरोध किया। सच तो यह है कि मुसलमानों में शिक्षा के अभाव तथा इतिहास की गलत धारणाओं के कारण संकुचित विचारों का जन्म हुआ। इससे ही उग्र राष्ट्रीयता को बल मिला।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1922 से 1944 ई. तक मुस्लिम लीग की नीतियों में आये परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुस्लिम लीग की नीतियों में आये परिवर्तन –
1. असहयोग आन्दोलन तथा खिलाफत आन्दोलन द्वारा स्थापित हिन्दू-मुस्लिम एकता का दौर शीघ्र ही समाप्त हो गया। 1922 ई. में गाँधी जी ने जब असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया तो देश में साम्प्रदायिक दंगे आरम्भ हो गये। दिल्ली, नागपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, बन्नू, कोहाट आदि सभी स्थानों पर साम्प्रदायिक दंगों का प्रचण्ड रूप देखने को मिला। सरकार ने भी साम्प्रदायिक दंगों को रोकने की बजाय उन्हें और अधिक भड़काने की नीति अपनायी। इस प्रकार हिन्दू-मुस्लिम एकता को भी आघात पहुँचा।

2. खिलाफत आन्दोलन के बाद मुस्लिम लीग में दो विचारधाराएँ उभरने लगीं। इसके कुछ नेता चाहते थे कि लीग को कट्टर साम्प्रदायिकता के मार्ग पर लाया जाए। इस मार्ग में लीग के राष्ट्रवादी नेता बहुत बड़ी बाधा थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस के साथ मिलकर ही कार्य किया जाए, इसी में देश का कल्याण है। इस आपसी मतभेद के कारण लीग में दो दल बनने लगे। 1927-28 में साइमन कमीशन के आगमन के प्रश्न पर दोनों दलों में मतभेद और .. भी गहरा हो गया। जिन्ना तथा उसके अनुयायी साइमन के बहिष्कार के पक्ष में थे जबकि मोहम्मद शफी के समर्थक साइमन कमीशन का स्वागत करना चाहते थे। इस कारण लीग में स्पष्ट फूट रह गयी।

3. लीग की फूट के बाद जिन्ना ने राजनीति त्याग दी और इंग्लैण्ड में वकालत करने लगे। साम्प्रदायिकता का रंग चढ़ने लगा। उन्होंने अपने सिद्धान्तों का गला घोंट दिया और हिन्दुओं के विरुद्ध जहर उगलना आरम्भ कर दिया। इसी समय लीग ने उन्हें फिर से अपना नेता स्वीकार कर लिया और लीग के दो दल फिर से एक हो गए।

4. साइमन कमीशन की असफलता के पश्चात् भारत-सचिव लॉर्ड बर्केनहेड ने भारतीयों को इस बात की चुनौती दी कि वे स्वयं कोई ऐसा संविधान तैयार कर लें जिससे भारत के सभी राजनीतिक दल सहमत हों। सरकार की इस चुनौती के जवाब में नेहरू रिपोर्ट (1928 ई.) तैयार की गई, परन्तु जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट के जवाब में अपना एक चौदह-सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया। यह कार्यक्रम साम्प्रदायिक भावनाओं से परिपूर्ण था।

5. 1931 ई. में इमाम अली की अध्यक्षता में राष्टवादी मुसलमानों ने एक सम्मेलन बुलाया। यह सम्मेलन देहली में बुलाया गया इसमें जिन्ना के चौदह सूत्री कार्यक्रम के विरुद्ध भावी संविधान के विषय में कुछ बातें स्वीकार की गयी। इन शर्तों तथा जिन्ना की चौदह-सूत्री मांगों में विशेष अन्तर नहीं था।

6. जिन्ना की चौदह-सूत्री कार्यक्रम की योजना को स्वीकृति मिलने के पश्चात् मुस्लिम साम्प्रदायिकता निरन्तर उग्र रूप धारण करती गयी। प्रथम गोलमेज सम्मेलन में लीग ने अपनी मांगों को दोहराया। दूसरी गोलमेज कान्फ्रेंज में यही मांगें फिर दोहरायी गयी परन्तु साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के प्रश्न पर कोई ठोस निर्णय न लिया जा सका। 16 अगस्त, 1932 ई. के दिन मैकडानल्ड ने अपना निर्णय दिया जिसे ‘साम्प्रदायिक निर्णय’ कहा जाता है। इसकी अधिकांश शर्ते वही थी जो जिन्ना के ‘चौदह-सूत्री’ मांग पत्र में कही गयी थी। इससे स्पष्ट होता है कि यह निर्णय सरकार की ओर से साम्प्रदायिकता भड़काने का एक खुला प्रयास था।

7. 1935 ई. में ब्रिटिश संसद ने भारत के सम्बन्ध में एक परिषद् अधिनियम पास किया। इसके अनुसार 1937 ई. में देश में चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस तो अनेक प्रान्तों में मंत्रिमण्डल बनाने में सफल रही, परन्तु मुस्लिम लीग बुरी तरह असफल रही। कांग्रेस की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर लीग के नेताओं को ईर्ष्या होने लगी। 1938 ई. में लीग ने ‘पृथक राज्य’ का नारा लगाना आरम्भ कर दिया। तत्पश्चात् द्वितीय महायुद्ध आरम्भ होने पर जब भारतीयों से बिना पूछे उनके युद्ध में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी गई तो कांग्रेस मंत्रिमंडलों ने त्याग-पत्र दे दिये। इस अवसर पर लीग खुशी से झूम उठी । इसी खुशी में जिन्ना साहब ने 22 दिसम्बर 1939 ई. का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की।

8. सर सैयद अहमद खाँ तथा प्रिंसिपल बेक ने मुस्लिम लीग की स्थापना से पूर्व इस बात का प्रचार किया था कि भारत में दो राष्ट्र है। 23 मार्च 1940 ई. को लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने इस सिद्धान्त का समर्थन किया और पाकिस्तान का अलग राज्य प्राप्त करना अपना अंतिम उद्देश्य घोषित किया।

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प्रश्न 2.
स्वाधीनता संघर्ष के दौरान भारत में साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अंग्रेजों ने किन तत्त्वों का सहारा लिया?
उत्तर:
स्वाधीनता संघर्ष के दौरान भारत में साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अंग्रेजों ने निम्नलिखित तत्त्वों का सहारा लिया:

साम्प्रदायिकता को उकसाना (Instigating Communalism):
1857 ई. के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दुओं और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रजों के विरुद्ध युद्ध किया। इस आपसी सद्भाव को तोड़ कर अंग्रेज राष्ट्रीय आन्दोलन की जड़ें खोखली करना चाहते थे। उन्होंने तरह-तरह की नीतियों द्वारा साम्प्रदायिकता को उभारा।

1. फूट डालो और शासन करो की नीति (The policy of divide and rule):
अंग्रेजों ने कभी हिन्दुओं का पक्ष लिया और मुसलमानों को दूसरे लोगों द्वारा भड़काया तथा कभी मुसलमानों का पक्ष लेकर हिन्दुओं को अन्य पक्षों द्वारा भड़काया। इसका मुख्य उद्देश्य था-दोनों पक्षों के बीच गहरी खाई पैदा करना। उन्होंने मुसलमानों को 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के लिए प्रेरणा दी। इससे पूर्व 1905 ई. में बंगाल विभाजन द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकता को तोड़ने को प्रयास किया गया। 1909 ई. में मिन्टो-मार्ले सुधारों द्वारा मुसलमानों के लिए अलग से चुनाव क्षेत्र सुरक्षित कर दिए गये।

2. भारतीय इतिहास अध्यापन (Teaching of Indian History):
अंग्रेजों ने स्कूलों और कॉलेजों में भारतीय इतिहास का अध्यापन इस ढंग से कराना शुरू किया कि दोनों सम्प्रदायों के बीच द्वेष की भावनाएँ जन्म लें। उन्होंने पढ़ाना शुरू किया कि मुसलमान सदा से ही शासक रहे हैं और हिन्दू शासित। मुसलमान शासकों का क्रूर और अत्याचारी रूप दिखाया गया तथा हिन्दू प्रजा को पीड़ित जनता के रूप में चित्रित किया गया। इससे भारत की मिली-जुली संस्कृति का रूप बिगाड़ दिया गया।

3. मुस्लिम लीग की स्थापना (Establishmentof MuslimLeague):
अंग्रेजों ने प्रचार किया कि कांग्रेस तो हिन्दू हितों की रक्षक संस्था है और मुस्लिम हितों की ओर कदापि ध्यान नहीं देती। ऐसी स्थिति में मुसलमानों को अलग से अपना दल बनाना चाहिए। इसी के फलस्वरूप 1906 ई. में मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। आगे चलकर इसी ने पाकिस्तान की मांग की।

4. देश का आर्थिक पिछड़ापन (Economic backwardness of the country):
इस समय शिक्षित भारतीयों में बेकारी की गंभीर समस्या थी । मुसलमान भी आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए थे। अंग्रेजों ने जातिवाद के आधार पर इस समस्या के हल के लिए कदम उठाया क्योंकि अंग्रेज साम्प्रदायिकता के भड़काने में किसी भी तत्त्व को सहारा बना सकते थे।

5. हिन्दू महासभा (Hindu Mahasabha):
हिन्दुओं के बीच हिन्दू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को बल मिला। हिन्दू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिन्दुओं का देश है-यह कह कर उन्होंने मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काया। उनके प्रभाव में आकर मुसलमानों ने दो राष्ट्रों के सिद्धांत को मान लिया।

6. सर सैयद अहमद खाँ:
सर सैयद अहमद खाँ ने (1817-1880 ई.) पृथक्तावादी प्रवृत्तियों तथा साम्प्रदायिक प्रवृत्तियों के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। निःसंदेह वे एक महान समाज सुधारक थे। जीवन के अन्तिम दिनों में वह भी अंग्रेजों के स्वर में स्वर मिलाकर बोलने लगे तथा राजनीति में अनुदार हो गए। उनहोंने 19 वीं सदी के नौंवे दशक में अपने पहले के उदार विचारों को त्याग दिया तथा घोषणा की कि हिन्दुओं व मुसलमानों के राजनीतिक हित समान नहीं अपितु भिन्न तथा एक-दूसरे के ठीक विपरीत हैं। उन्होंने अपने मुसलमान भाइयों को अंग्रेजी शासन का राजभक्त बनने का परामर्श दिया तथा उन्हें समझाया कि वे अंगेजी शिक्षा प्राप्त करके ही उनकी प्रगति संभव है। उन्होंने ब्रिटिश अधिकारियों के हृदय से मुसलमानों के प्रति घृणा व संदेह दूर करने का भी प्रयास किया।

7. कांग्रेस के प्रति सरकारी रुख में परिवर्तन:
लार्ड मिन्टो के पश्चात् वायसराय लार्ड हार्डिंग की नियुक्ति हुई। उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों की पर्याप्त जानकारी थी। उनकी धारणा थी कि शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध होगा। इस समय तक उग्र दल ने कांग्रेस को छोड़ दिया था और कांग्रेस पर नरम दल का आधिपत्य था। लार्ड हार्डिंग ने कांग्रेस को अपनी ओर मिलाने ही श्रेयस्कर समझा। कांग्रेस ने भी प्रत्युत्तर में सरकार के साथ सहयोग की नीति अपनानी शुरू कर दी। कांग्रेस द्वारा मिन्टो-मार्ले सुधारों को कार्यान्वित किए जाने से मुस्लिम लीग, अपना प्रभुत्व खो बैठी। कांग्रेस के एक प्रतिनिधि मण्डल को लार्ड हार्डिंग से भेंट करने की अनुमति दे दी गई तथा 1911 में जार्ज पंचम और उसकी महारानी के भारत आने पर बंगाल विभाजन का अंत मुसलमानों से किसी तरह का परामर्श लिए बिना ही कर दिया गया । इससे कांग्रेस तो खुश हुई परन्तु मुसलमानों ने इसकी कटु आलोचना की।

8. नवउदित मुस्लिम नेता:
साम्प्रदायिकता के विकास में मोहम्मद अली जिन्ना और हकीम अफजल खाँ जैसे नेताओं का विशेष हाथ रहा। इन लोगों ने मुस्लिम लीग को साम्प्रदायिकता की ओर बढ़ाया। मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग रखी और अपनी इस मांग पर अंत तक अड़े रहे। उन्हीं की जिद के फलस्वरूप भारत का विभाजन हुआ।

9. मुसलमानों में शैक्षिक तथा आर्थिक पिछड़ापन:
मुस्लिम वर्ग हिन्दुओं की तुलना में आधुनिक शिक्षा, व्यापार, वाणिज्य और उद्योग के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ था। अंग्रेजों को फूट डालने में इससे भी पर्याप्त सहायता प्राप्त हुई। जब अंग्रेजों ने उन्हें सहायता का आश्वासन दिया तो अशिक्षित मुसलमानों को यह विश्वास हो गया कि कांग्रेस का विरोध करके तथा सरकार के प्रति निष्ठावान रहकर ही वे अधिक उन्नति कर सकते हैं।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित उद्धरण को ध्यानपूर्वक पढ़िए और इसके नीचे दिए गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए:
“हालात की मजबूरी थी और यह महसूस किया गया कि जिस रास्ते पर हम चल रहे हैं उसके द्वारा गतिरोध को दूर नहीं किया जा सकता है। अतः हमको देश का बंटवारा स्वीकार करना पड़ा।” पंडित जवाहर लाल नेहरू

  1. मुस्लिम लीग ने गतिरोध क्यों उत्पन्न किया?
  2. उन परिस्थितियों को बताइए जिनके कारण 1947 में भारत का विभाजन हुआ।

अथवा, 1942 से 1947 के बीच उन कारकों का विश्लेषण कीजिए जो भारत की स्वतंत्रता और विभाजन के लिए उत्तरदायी थे।
उत्तर:
1. मुस्लिम लीग की ओर से गतिरोध के कारण:
मुस्लिम लीग भारत का विभाजन चाहती थी। उसकी नजर में हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग कौम अथवा राष्ट्र हैं। ये दोनों कभी एक नहीं हो सकते। दोनों ने 1937 के चुनाव में भाग लिया, लेकिन मुस्लिम लीग चुनाव हार गई। जिन्ना ने कांग्रेस का विरोध किया और कहा कि मुसलमान अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में समा जाने का खतरा है। 1940 में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पारित करके आजादी के बाद भारत को दो भागों में बाँटने की मांग रख दी। हिन्दुस्तान और पाकिस्तान दो स्वतंत्र राष्ट्र होंगे।

20 फरवरी, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि जून 1948 तक अंग्रेज भारत का शासन सौंपकर चले जाएंगे। मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान पाने के लिए साम्प्रदायिक दंगे करा दिये । अंग्रेज अब भी फूट डालो और शासन करो की नीति पर चल रहे थे। नये वायसराय माउंटबेटन भी पाकिस्तान बनाना चाहते थे। मुस्लिम लीग को यह आशंका थी कि आजादी के बाद चुनावों के माध्यम से मुस्लिम लीग कभी भी सत्ता में नहीं आ पायेगी। इसलिए उसने पाकिस्तान पाने के लिए गतिरोध पैदा किया।

2. 1947 में भारत विभाजन के कारण –

(I) एटली की घोषणा:
20 फरवरी, 1947 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने घोषणा की कि अंग्रेज जून, 1948 में भारत को सत्ता सौप देंगे। मुस्लिम लीग को लगा कि भारत की आजादी निकट है और मुस्लिम लीग आजादी के बाद कभी सत्ता में नहीं आ सकती, क्योंकि वह 1937 के चुनावों की हार देख चुकी थी। उसने अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग रख दी। 1946 में मुस्लिम लीग ने बिहार, बंगाल और बम्बई में साम्प्रदायिक दंगे करा दिये जिनमें लगभग 1000 हिन्दू और मुसलमानों की जानें गई।

(II) लार्ड माउण्टबेटन और उसकी योजना:
सत्ता हस्तांतरण करने के उद्देश्य से लार्ड माउण्टबेटन ने लार्ड वेवल का स्थान लिया और भारत आते ही मुस्लिम लीग व कांग्रेस के नेताओं से विचार-विमर्श किया। निष्कर्ष निकाल कर वह 18 मई, 1947 को लंदन गये। जहाँ ब्रिटेन की सरकार के साथ विचार-विमर्श किया और 4 जून, 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम पास कर दिया। 15 अगस्त, 1947 को उन्होंने भारत विभाजन की एक योजना रखी जिसे लार्ड माउण्टबेटन की योजना कहते हैं।

(III) राजनैतिक दलों द्वारा लार्ड माउण्टबेटन योजना को स्वीकृति:
कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों पार्टियों ने इस योजना को स्वीकार कर लिया। मुस्लिम लीग की मांग पूरी हो रही थी उसे पाकिस्तान मिल रहा था। 15 अगस्त, 1947 को भारत की आजादी के साथ ही इसका दो राष्ट्रों-भारत व पाकिस्तान में विभाजन भी हो गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विभाजन के दौरान लगभग कितने लोग अपने वतन से उजड़ गये?
(अ) एक करोड़
(ब) दस लाख
(स) एक लाख
(द) दस हजार
उत्तर:
(अ) एक करोड़

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प्रश्न 2.
महाध्वंस या होलोकास्ट की घटना कहाँ हुई?
(अ) फ्रांस
(ब) जर्मनी
(स) इंग्लैण्ड
(द) जापान
उत्तर:
(ब) जर्मनी

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से मुसलमानों की रूढ़ छवि कौन नहीं है?
(अ) मुसलमानों की क्रूरता
(ब) मुसलमानों की कट्टरता
(स) मुसलमानों की गंदगी
(द) मुसलमानों की दयालुता
उत्तर:
(द) मुसलमानों की दयालुता

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प्रश्न 4.
विभाजन की स्मृतियाँ किसने जिंदा नहीं रखी हैं?
(अ) सांप्रदायिक टकराव
(ब) हिंसा की कहानियाँ
(स) सांप्रदायिक विश्वास
(द) सांप्रदायिक विश्वास
उत्तर:
(स) सांप्रदायिक विश्वास

प्रश्न 5.
आर्य समाज ने कौन-सा कार्य नहीं किया?
(अ) भारतीय हिंदू सुधार आन्दोलन चलाया
(ब) मुसलमानों के प्रति घृणा का भाव भरा
(स) वैदिक ज्ञान का पुनरुत्थान किया
(द) विज्ञान को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा
उत्तर:
(ब) मुसलमानों के प्रति घृणा का भाव भरा

प्रश्न 6.
सांप्रदायिक राजनीति का आखिरी बिंदु क्या था?
(अ) 1909 में मुसलमानों के लिए बनाये गये चुनाव क्षेत्र
(ब) 1919 में पृथक् चुनाव क्षेत्र
(स) देश का बंटवारा
(द) मस्जिद के सामने संगीत
उत्तर:
(स) देश का बंटवारा

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प्रश्न 7.
1937 के चुनाव में किसको अधिक सफलता मिली?
(अं) कांग्रेस
(ब) मुस्लिम लीग
(स) दोनों को
(द) किसी को नही
उत्तर:
(अं) कांग्रेस

प्रश्न 8.
पाकिस्तान का नाम सबसे पहले किसने दिया?
(अ) सिकन्दर हयात खान
(ब) मोहम्मद इकबाल
(स) चौधरी रहमत अली
(द) मौलाना आजाद
उत्तर:
(स) चौधरी रहमत अली

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प्रश्न 9.
विभाजन की घटना कैसी थी?
(अ) अचानक घटित घटना
(ब) नियोजित घटना
(स) लम्बी घटना
(द) छोटी घटना
उत्तर:
(अ) अचानक घटित घटना

प्रश्न 10.
विभाजन से कौन सहमत नहीं था?
(अ) कांगेस
(ब) मुस्लिम लीग
(स) खान अब्दुल गफ्फार खान
(द) पं. जवाहर लाल नेहरू
उत्तर:
(स) खान अब्दुल गफ्फार खान

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान

Bihar Board Class 12 History विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100 से 150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
बहुत सारे स्थानों पर विद्रोही सिपाहियों ने नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से क्या आग्रह किया? .
उत्तर:
विद्रोही सिपाहियों द्वारा नेतृत्व संभालने के लिए पुराने शासकों से आग्रह –

  1. विद्रोही सिपाही पुराने शासकों से सहयोग के लिए आंदोलन को और अधिक प्रखर बनाना चाहते थे।
  2. वे पुराने शासकों का नेतृत्व चाहते थे, क्योंकि उन्हें युद्ध करने और शासन करने का पर्याप्त अनुभव था। मेरठ आदि के सिपाहियों ने बहादुरशाह को नेतृत्व संभालने के लिए मजबूर कर दिया था।
  3. वे अपने विद्रोह की विधिक-मान्यता देना चाहते थे। जब बहादुरशाह ने नेतृत्व स्वीकार कर लिया तो उनका विद्रोह वैध हो गया।
  4. इसी प्रकार कानपुर में नाना साहिब, आरा में कुंवर सिंह, लखनऊ में बिरजिस कद्र आदि को शहर के लोगों और उनकी जनता ने नेतृत्व संभालने के लिए विवश किया जिसे उन्हें स्वीकार करना पड़ा।

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प्रश्न 2.
उन साक्ष्यों के बारे में चर्चा कीजिए जिनसे पता चलता है कि विद्रोही योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम कर रहे थे?
उत्तर:
विद्रोहियों के योजनाबद्ध और समन्वित ढंग से काम करने के साक्ष्य –

  1. अवध मिलिट्री पुलिस पर कैप्टेन हियर्से की सुरक्षा का उत्तरदायित्व था। यह दायित्व भारतीय सिपाहियों पर था। यहीं 41 वीं नेटिव इन्फेंट्री भी तैनात थी। इन्फेंट्री की दलील थी कि अवध मिलिट्री डियर्स की हत्या कर दे या उसे गिरफ्तार करके 41 वीं नेटिव इन्फेंट्री के हवाले कर दे परंतु मिलिट्री पुलिस ने दोनों दलीलें खारिज कर दी।
  2. विद्रोह के सुनियोजन विषय में एक इतिहासकार चार्ल्स बाल के लेख से पता चलता है। उसके अनुसार सिपाहियों की पंचायतें कानपुर सिपाही लाइन में जुटती थी। स्पष्ट है कि कुछ निश्चित फैसले अवश्य लिये जाते होंगे।
  3. सिपाही लाइनों में रहते थे और सभी की जीवन शैली एक जैसी थी। वे प्रायः एक से थे। ऐसे में कोई योजना बनाना उनके लिए आसान था।

प्रश्न 3.
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
उत्तर:
1857 के घटनाक्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की भूमिका-अंग्रेजों ने भारत में लगभग धर्म-निरपेक्ष नीति को अपनाया तथा बलपूर्वक किसी का धर्म परिवर्तन कभी नहीं किया। अंग्रेज लोगों का उद्देश्य भारत में धर्म-प्रसार नहीं वरन् धन प्राप्ति था। परंतु व्यापारियों के साथ भारत आए धर्म-प्रचारकों ने ईसाई मत का प्रसार प्रारंभ कर दिया। इस मत के प्रसार के लिए सरकारी कोष से धन दिया जाता था तथा ईसाई बनने वाले व्यक्तियों को पद प्रदान करने में प्राथमिकता मिलती थी।

हिन्दू धर्म और इस्लाम के विरुद्ध खुल्लमखुल्ला अनेक बातों का प्रचार करते थे। वे धर्म के अवतारों तथा पैगम्बरों की निन्दा करते तथा उनको गालियाँ देते थे तथा सरकार उनको रोकने का प्रयास नहीं करती थी। इसलिए भारतीयों को इन धर्म-प्रचारकों से घृणा होने लगी थी। लार्ड विलियम बैंटिक ने एक नियम पास किया जिसके अनुसार ईसाई धर्म को अपनाने पर ही हिन्दू पिता की सम्पत्ति में पुत्र को भाग मिल सकता था।

इसके अतिरिक्त डलहौजी की गोद-निषेध नीति ने भी हिन्दू धर्मावलम्बियों को असन्तुष्ट किया क्योंकि गोद लेने की प्रथा धार्मिक थी। हिन्दू धर्म के अनुसार नि:संतान व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिल सकती अतः उसे किसी निकट संबंधी को गोद लेकर सन्तानहीनता के कलंक से मुक्त होना पड़ता था। किन्तु डलहौजी के निषेध करने पर हिन्दुओं में बहुत असंतोष फैला। एक नियम द्वारा कारागार में बन्दियों को अपना जलपान रखने से रोक दिया गया। इससे हिन्दुओं की शंका और बढ़ गई कि उनको ईसाई बनाया जा रहा है। शिक्षा पद्धति से भी भारतीय असंतुष्ट थे क्योंकि मिशन स्कूलों में बच्चे के मस्तिष्क में हिन्दू एवं मुस्लिम धर्म के विरुद्ध बातें भरकर उसे ईसाई धर्म की ओर आकर्षित किया जाता था।

ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रधान ने ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमन्स में यह विचार व्यक्त किया, “परमेश्वर ने भारत का विस्तृत साम्राज्य इंग्लैण्ड को इसलिए सौंपा है कि ईसा का झण्डा भारत के एक कोने से दूसरे कोने तक सफलतापूर्वक लहराता रहे। प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का पूर्ण प्रत्यन करना चाहिए कि समस्त भारतीयों को ईसाई बनाने के महान कार्य किसी प्रकार की बाधा उपस्थित न होने पाए।”

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प्रश्न 4.
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए क्या तरीके अपनाए गये?
उत्तर:
विद्रोहियों के बीच एकता स्थापित करने के लिए अपनाये गए तरीके:

  1. विद्रोह के समय लोगों की जाति और धर्म का स्थान नहीं दिया गया। विद्रोहियों द्वारा जारी की गई घोषणाओं में जाति और धर्म का भेदभाव किये बिना समाज के सभी वर्गों का आह्वान किया जाता था।
  2. अनेक घोषणायें मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की ओर से या उनके नाम पर जारी की गई थीं परंतु उनमें भी हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखा जाता था।
  3. इस विद्रोह को एक ऐसे युद्ध के रूप में पेश किया जा रहा था जिसमें हिन्दू और मुसलमान दोनों का लाभ-हानि बराबर था।
  4. अंग्रेजों के आगमन से पूर्व की हिन्दू-मुस्लिम एकता का पुनस्मरण कराया जाता था और मुगल साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न समुदायों के सह-अस्तित्व का गुणगान किया जाता था।
  5. बहादुरशाह के नाम से जारी की गई घोषणा में मुहम्मद और महावीर दोनों की दुहाई देते हुए जनता से इस विद्रोह में शामिल होने के लिए अपील की जाती थी।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों ने विद्रोह को कुचलने के लिए क्या कदम उठाये?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा विद्रोह को कुचलने के लिए उठाये गये कदम निम्नलिखित है –

  1. प्राप्त साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि अंग्रेजों ने इस विद्रोह का दमन बड़ी कठिनाई से किया। उन्होंने सैनिक टुकड़ियाँ लगाने से पूर्व उनकी सहायता के लिए कुछ कानून और मुकदमों की घोषणायें की।
  2. उन्होंने सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया। फौजी अफसरों को आदेश दिया गया कि विद्रोह में भाग लेने वालों पर मुकदमा चलाया जाए और सजा-ए-मौत दी जाए।
  3. विद्रोह के दमन के लिए ब्रिटेन से आई सेना को कलकत्ता और पंजाब में लगा दिया गया। जून 1857 से सितम्बर 1857 के बीच उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। दोनों पक्षों की भारी हानि हुई।
  4. गंगा घाटी में विद्रोह का दमन धीमा रहा। सैनिक टुकड़ियाँ गाँव-गाँव में जाकर विद्रोह का दमन कर रहा था।
  5. सैन्य कार्यवाही के साथ अंग्रेजों ने ‘फूट डालो’ की नीति भी अपनाई।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
अवध में विद्रोह इतना व्यापक क्यों था? किसान, ताल्लुकदार और जमींदार उसमें क्यों शामिल हुए?
उत्तर:
अवध में विद्रोह के व्यापक होने और किसान ताल्लुकदार और जमींदारों के उसमें शामिल होने के कारण –

  • 1856 ई. में अवध को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य का अंग घोषित कर दिया गया। अवध के विलय से अनेक क्षेत्रों और रियासतों में असंतोष छा गया।
  • अवध के अधिग्रहण से नवाब की गद्दी समाप्ति के साथ ताल्लुकदार भी तबाह हो गये। उनकी सेना और सम्पत्ति दोनों खत्म हो गईं। एकमुश्त बंदोबस्त के अंतर्गत अनेक ताल्लुकदारों की जमीन छीन ली गई।
  • ताल्लुकदारों से सत्ता हस्तांतरण का परिणाम किसानों की दृष्टि से बुरा हुआ। हालांकि ताल्लुकदार किसानों से खूब राजस्व और अन्य मदों से धन वसूल करते थे। परंतु किसानों के हितैषी भी थे। वे गाहे-बगाहे विभिन्न स्थितियों में सहायता भी करते थे परंतु अब उनकी सारी आशायें समाप्त हो गयीं। इसके परिणामस्वरूप ताल्लुकदार और किसान अंग्रेजों से रुष्ट हो गये और उन्होंने नवाब की पत्नी बेगम हजरत के नेतृत्व में विद्रोह में साथ दिया।
  • किसान फौजी बैरकों में जाकर सिपाहियों से मिल गये। इस प्रकार किसान भी सिपाहियों के विद्रोही कृत्यों में शामिल होने लगे।

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प्रश्न 7.
विद्रोही क्या चाहते थे? विभिन्न सामाजिक समूहों की दृष्टि में कितना फर्क था?
उत्तर:
विद्रोहियों की इच्छाएँ और सामाजिक समूहों की दृष्टि में अंतर:
विद्रोही क्या चाहते थे, इस बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता। जो स्रोत उपलब्ध हैं उनसे अंग्रेजों की सोच का पता चलता है। विद्रोही प्रायः अनपढ़ थे इसलिए कुछ लिख भी नहीं सकते थे। केवल उनके द्वारा जारी कुछ घोषणाओं और इश्तहारों का ज्ञान होता है और उनसे विशेष जानकारी नहीं मिलती। उनकी मुख्य इच्छाएँ निम्नलिखित थी:

1. एकता की कल्पना:
1857 के विद्रोहियों में एकता के विचारों का दर्शन होता है। उनके द्वारा जारी घोषणाएँ जाति व धर्म से ऊपर होती थीं। अनेक घोषणाएँ मुस्लिम राजकुमारों या नवाबों की ओर से होती थी। देश में एकता स्थापित करने के लिए विद्रोह को हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिए बराबर लाभ-हानि के रूप में पेश किया जा रहा था। हालांकि अंग्रेजों ने इसमें बाधा डालने की अनेक कोशिशें की थी।

2. उत्पीड़न का विरोध:
विद्रोही अंग्रेजों द्वारा पैदा की जाने वाली पीड़ाओं का विरोध करना चाहते थे। इसके लिए वे समय-समय पर अंग्रेजों की निन्दा करते थे। लोग इस बात से क्रुद्ध थे कि छोटे-बड़े जमीन मालिकों की जमीन छीन ली गयी है और विदेशी व्यापार ने दस्तकारों और बुनकरों को तबाह कर दिया है। विद्रोही चाहते थे कि उनका रोजगार, धर्म, सम्मान और उनकी अस्मिता बनी रहे।

3. वैकल्पिक सत्ता की तलाश:
विद्रोही चाहते थे कि अंग्रेजों के स्थान पर किसी भारतीय सत्ता का शासन हो जिससे उनके कष्ट कम हो सकें और उनकी बेइज्जती न हो। इसीलिए विद्रोह के प्रारम्भ में दिल्ली, लखनऊ और कानपुर जैसे स्थानों पर अंग्रेजी सत्ता के समाप्त होते ही वहाँ मुगल शासन की तर्ज पर शासन स्थापित किया गया और अनेक नियुक्तियाँ की गईं। वस्तुतः वे अब अंग्रेजों से छुटकारा पाना चाहते थे।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से क्या पता चलता है? इतिहासकार इन चित्रों का किस तरह से विश्लेषण करते हैं?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के बारे में चित्रों से प्राप्त जानकारी और इतिहासकारों द्वारा इनका विश्लेषण:
1857 के विद्रोह विषयक चित्र महत्त्वपूर्ण जानकारी देते हैं और इतिहासकारों ने इनका निम्नवत विश्लेषण किया है –
1. अंग्रेजों द्वारा निर्मित कुछ चित्रों में अंग्रेजों को बचाने और विद्रोहियों को कुचलने वाले अंग्रेजी नायकों का गुणगान किया गया है। 1859 में टॉमस जोन्स बार्कर द्वारा बनाया गया चित्र ‘रिलीफ ऑफ लखनऊ’ इसी श्रेणी का उदाहरण है। जब विद्रोही सेना ने लखनऊ पर घेरा डाल दिया तो लखनऊ के कमिश्नर हेनरी लारेंस ने ईसाइयों को एकत्र किया और अति सुरक्षित रेजीडेंसी में शरण ली। बाद में कॉलेन कैम्पबेल नामक कमांडर ने एक बड़ी सेना को लेकर रक्षक सेना को छुड़ाया।

2. बार्कर की ही एक अन्य पेंटिंग में कैम्पबेल के आगमन के क्षण को आनन्द मनाते हुए दिखाया गया है। कैनवस के मध्य में कैम्पबेल, ऑट्रम और हेवलॉक हैं। चित्र के अगले भाग में पड़े शव और घायल इस घेराबंदी के दौरान हुई लड़ाई की गवाही देते हैं। जबकि मध्य भाग में घोड़ों की विजयी तस्वीरें हैं। इससे ज्ञात होता है कि अब ब्रिटिश सत्ता और नियंत्रण बहाल हो चुका है। इस प्रकार के चित्रों से इंग्लैण्ड स्थित जनता में अपनी सरकार के प्रति भरोसा पैदा किया जाता था।

3. ब्रिटिश अखबारों में भारत में हिंसा के चित्र और खबरें खूब छापती थीं। जिनको देखकर और पढ़कर ब्रिटेन की जनता प्रतिशोध और सबक सिखाने की मांग कर रही थी।

4. निःसहाय औरतों और बच्चों के चित्र भी बनाये गये। जोजेफ लोएल पेंटल के ‘स्मृति चित्र’ (In memorium) में अंग्रेज औरतें और बच्चे एक घेरे में एक-दूसरे से लिपटे दिखाई देते हैं। वे लाचार और मासूम दिख रहे हैं।

5. कुछ अन्य रेखाचित्रों और पेंटिंग्स में औरतें उग्र रूप में दिखाई गयी हैं। इनमें वे विद्रोहियों के हमले से अपना बचाव करती हुई नजर आती हैं। उन्हें वीरता की मूर्मि के रूप में दर्शाया गया है।

6. कुछ चित्रों में ईसाईयत की रक्षा हेतु संघर्ष को दिखाया गया है। इसमें बाइबिल को भी दिखाया गया है।

7. इन चित्रों में बदले की भावना के उफान में अंग्रेजों द्वारा विद्रोहियों की निर्मम हत्या का प्रदर्शन है।

8. 1857 के विद्रोह को एक राष्ट्रवादी दृश्य के रूप में चित्रित किया गया। इस संग्राम में कला और साहित्य को बनाये रखा गया। कलाओं में झाँसी की रानी को घोड़े पर सवार एक हाथ में तलवार और दूसरे में घोड़े की रास थामे दिखाया गया है। वह साम्राज्यवादियों का सामना करने के लिए रणभूमि की ओर जा रही हैं।

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प्रश्न 9.
एक चित्र और एक लिखित पाठ को चुनकर किन्हीं दो स्रोतों की पड़ताल कीजिए और इस बारे में चर्चा कीजिए कि उनसे विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर:
पाठ्य पुस्तक में अनेक चित्र और लिखित पाठ दिए गए हैं। इनके आधार पर विजेताओं और पराजितों के दृष्टिकोण के बार में बताया जा सकता है। यहाँ चित्रकार फेलिस बिएतो का एक चित्र लेते हैं। इसमें लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह द्वारा बनवाए गए रंग बाग (Pleasure Garden) के खण्डहरों में चार व्यक्ति दिखाये गए हैं। 1857 के विद्रोह में इसकी रक्षा के लिए 2000 से अधिक विद्रोही सिपाही तैनात थे।

उनको कैम्पबेल के नेतृत्व वाली सेना ने मार डाला। इसके अहाते में नरकंकाल पड़े हुए दिखाई देते हैं। विजेताओं का दृष्टिकोण का दृष्टिकोण ऐसे चित्रों को बनवा कर लोगों में आतंक पैदा करने का था। इस चित्र की भयावहता लोगों में दहशत उत्पन्न कर सकती है। पराजितों का दृष्टिकोण इससे अलग हो सकता है। उनकी दृष्टि से कैम्पबेल के प्रति क्रोधाग्नि धधक सकती है। वे कैम्पबेल को निर्दयी व्यक्ति कह सकते हैं। वे इस चित्रण को झूठा भी कह सकते हैं क्योंकि इतने विद्रोहियों की हत्या एक साथ संभव नहीं है। ”

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
भारत के मानचित्र पर कलकत्ता (कोलकाता), बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) को चिह्नित कीजिए जो 1857 में ब्रिटिश सत्ता के तीन मुख्य केंद्र थे। मानचित्र 1 और 2 को देखिए तथा उन इलाकों को चिह्नित कीजिए जहाँ विद्रोह सबसे व्यापक रहा। औपनिवेशिक शहरों से ये इलाके कितनी दूर या कितनी पास थे।
उत्तर:
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परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
1857 के विद्रोही नेताओं में से किसी एक की जीवनी पढ़ें। देखिए कि उसे लिखने के लिए जीवनीकार ने किन स्रोतों का उपयोग किया है। क्या उनमें सरकारी रिपोर्टों, अखबारी खबरों, क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियों, चित्रों और किसी अन्य चीज का इस्तेमाल किया गया है? क्या सभी स्रोत एक ही बात करते हैं या उनके बीच फर्क दिखाई देते हैं? अपने निष्कर्षों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 12.
1857 पर बनी कोई फिल्म देखिए और लिखिए कि उसमें विद्रोह किस तरह दर्शाया गया है। उसमें अंग्रेजों, विद्रोहियों और अंग्रेजों के भारतीय वफादारों को किस तरह दिखाया गया है? फिल्म किसानों, नगरवासियों, आदिवासियों, जमींदारों ताल्लुकदारों आदि के बारे में क्या कहती है? फिल्म किस तरह की प्रतिक्रिया को जन्म देना चाहती है?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1857 विद्रोह के दो सामान्य कारण बताइए।
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए भारत का खूब आर्थिक शोषण किया तथा विभिन्न तरीकों से भारत का धन इंग्लैण्ड पहुँचा दिया।
  2. ब्रिटिश सरकार के सभी प्रशासनिक क्षेत्रों में व्यापक भ्रष्टाचार था। जनता के कल्याण की दिशा में अंग्रेज सरकार सर्वथा मौन और निष्करूण थी।

प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह की शुरूआत कब हुई? उसमें विद्रोहियों ने क्या किया?
उत्तर:

  1. विद्रोह का विस्फोट 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में हुआ।
  2. मेरठ में सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध अपना विद्रोह घोषित कर दिया। उन्होंने हथियार और गोला-बारूद वाले शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया और गोरों के बंगलों, कार्यालय, जेल, अदालत तथा सरकारी खजाने को तहस-नहस कर दिया।

प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण बताइये।
उत्तर:

  1. निश्चित तिथि से पहले यह विद्रोह फूट पड़ने के कारण सम्पूर्ण भारत और यहाँ के सभी लोग इसमें एक साथ भाग नहीं ले सके और अंग्रेज सतर्क हो गये।
  2. भारतीय सैनिकों के पास हथियार आदि साधनों का अभाव था। इसके विपरीत अंग्रेजों के पास अच्छे हथियार, वायरलेस तथा बड़ी सेना थी।

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प्रश्न 4.
1857 का विद्रोह एक ‘जन विद्रोह’ जैसे था?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन, दुष्चरित्र तथा उनकी कूटनीतियों के कारण सभी भारतीय असन्तुष्ट थे।
  2. अंग्रेजों के आर्थिक शोषण से समूची भारतीय जनता तंग आ गयी थी। इन्होंने भारत के परम्परागत ढाँचे को नष्ट कर दिया था। किसान, दस्तकार, हस्तशिल्पी, जमींदार तथा देशी राजा सभी को निर्धनता की आग में झोंक दिया गया था।

प्रश्न 5.
1857 के विद्रोह में नाना साहब का क्या योगदान रहा है?
उत्तर:

  1. पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया और सिपाहियों की सहायता से अंग्रेजों को कानपुर से भगा दिया।
  2. विद्रोह में बहादुरशाह द्वितीय को भारत का बादशाह घोषित करने के बाद इस विद्रोह को मान्यता दी गई। इससे हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला। वे स्वयं भी दिल्ली शासक के सूबेदार बने।

प्रश्न 6.
झाँसी की रानी क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर:

  1. झाँसी की रानी अपने साहस और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रसिद्ध है। स्त्री होने के बावजूद उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध अद्वितीय साहस का परिचय दिया। उन्होंने झाँसी में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया।
  2. झाँसी को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाये जाने के पश्चात् झाँसी की रानी ने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिया और अनेक स्थानों पर अंग्रेजों को पराजित किया। इसके लिए वे अंतिम क्षण तक लड़ती रही।

प्रश्न 7.
1857 ई. की क्रांति के दो महत्त्वपूर्ण परिणाम बताइए।
उत्तर:

  1. इस विद्रोह के फलस्वरूप हिन्दू-मुसलमानों में एकता आ गयी। इस विद्रोह में दोनों ने मिलकर भाग लिया था।
  2. इस विद्रोह के परिणामस्वरूप अंग्रेज भारतीयों से सशंकित हो गये। उन्होंने कालांतर में प्रशासन, सेना और नागरिक सेवा में भारी फेर-बदल किया।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह के चार प्रमुख केंद्रों और उनके नेताओं के नाम बताइये।
उत्तर:

  1. दिल्ली: बहादुरशाह द्वितीय।
  2. झाँसी: रानी लक्ष्मीबाई।
  3. जगदीशपुर (बिहार): कुंअर सिंह।
  4. लखनऊ: बेगम हजरत महल।
  5. कानपुर: नाना साहब और तात्या टोपे।

प्रश्न 9.
1857 के विद्रोह में बहादुरशाह द्वितीय की क्या भूमिका रही?
उत्तर:

  1. बहादुरशाह द्वितीय ने 1857 के विद्रोह का परोक्ष रूप से नेतृत्व किया और यह विद्रोह हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बन गया।
  2. उन्होंने अन्य राजाओं को पत्र लिखे कि वे अंग्रेजों से युद्ध करने और उन्हें भारत से बाहर भगाने के लिए भारतीय राज्यों का एक महासंघ बनाएँ और एकजुट होकर युद्ध करें।

प्रश्न 10.
1857 के विद्रोह में कुंअर सिंह की क्या भूमिका रही?
उत्तर:

  1. बिहार के आरा जिले के जगदीशपुर में जन्मे जमींदार कुंअर सिंह ने 1857 के विद्रोह का बिहार में नेतृत्व किया और बुढ़ापे में भी युद्ध कौशल दिखाकर युवकों को प्रेरित किया।
  2. उन्होंने बिहार में तो अंग्रेजों के छक्के छुड़ाये ही, नाना साहब के साथ अवध और मध्य भारत में भी अंग्रेजों से लोहा लिया।

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प्रश्न 11.
ज्योतिष की भविष्यवाणी ने 1857 के विद्रोह को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:

  1. किसी ज्योतिष ने भविष्यवाणी की कि भारत उनकी गुलामी (जून 1757) के 100 वर्षों के पश्चात् 23 जून 1857 को अंग्रेजों से आजाद हो जायेगा।
  2. इस भविष्यवाणी से विद्रोही उत्साहित हो गये और उन्होंने विद्रोह का कार्य तेज कर दिया।

प्रश्न 12.
शाहमल कौन थे?
उत्तर:

  1. शाहमल उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगना के ग्रामीण थे। वह एक जाट कुटुम्ब से संबंधित थे जो 84 गाँवों में फैला हुआ था।
  2. शाहमल ने 84 गाँव के मुखियाओं और काश्तकारों को संगठित किया और उनको अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए तैयार किया। इसके लिए उन्होंने गुप्तचरों का भी हैरतअंगेज नेटवर्क स्थापित कर लिया था।

प्रश्न 13.
तात्या टोपे कौन थे?
उत्तर:
तात्या टोपे नाना साहब के निष्ठावान सेवक और पक्के देशभक्त थे। उन्होंने गोरिल्ला सेना के बल पर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये। कालपी में उन्होंने अंग्रेज जनरल बिड़हन को पराजित किया। कैम्पबेल के नेतृत्व में अंग्रेजों से हारने के बाद भी ग्वालियर में तात्या टोपे में अंग्रेजों के विरुद्ध रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया। रानी झाँसी की मृत्यु के पश्चात वे अंग्रेजों द्वारा पकड़ लिये गये और उन्हें फांसी दे दी गई।

प्रश्न 14.
फिरंगी शब्द का प्रयोग क्यों किया गया?
उत्तर:

  1. यह फारसी का शब्द है जो संभवतः फ्रैंक (जिससे फ्रांस का नाम पड़ा है) निकला है।
  2. इस अपशब्द को उर्दू और हिन्दी में पश्चिम के लोगों (अंग्रेजों) का मजाक उड़ और कभी-कभी अपमान करने की दृष्टि बोला जाता है।

प्रश्न 15.
मई-जून 1857 में ब्रिटिश शासन की क्या स्थिति थी?
उत्तर:

  1. मई-जून 1857 में ब्रिटिश शासन विद्रोहियों के आगे झुकने के लिए विवश था।
  2. अंग्रेज अपनी जिंदगी और घर-बार बचाने में लगे हुए थे। एक ब्रिटिश अधिकारी ने लिखा-‘ब्रिटिश शासन ताश के किले की तरह बिखर गया है।’

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प्रश्न 16.
1857 के विद्रोह में साहूकार तथा धनवान लोग विद्रोहियों के क्रोध का शिकार क्यों बने?
उत्तर:

  1. 1857 के विद्रोह में प्रायः साहूकार और धनवान लोग अंग्रेजों के पिठू बन गये थे।
  2. ये लोग निर्धनों गरीब और किसानों का शोषण करते थे।

प्रश्न 17.
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूस थे। इन्हें प्रयोग करने से पहले चर्बी को दाँत से छीलना पड़ता था। कहा गया कि कारतूस में गाय और सूअर की चबीं का प्रयोग किया गया है। यह कार्य हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए आपत्तिजनक था। सैनिकों ने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया और विद्रोह पर उतारू हो गये।

प्रश्न 18.
विद्रोह से संबंधित चित्रों में मिस ह्वीलर को किस रूप में पेश किया गया है?
उत्तर:

  1. विद्रोह से संबंधित चित्रों में मिस ह्वीलर मध्य में दृढ़तापूर्वक खड़ी दिखायी गयी है। वह अकेले ही विद्रोहियों को मौत की नींद सुलाते हुए अपनी इज्जत की रक्षा करती दिखाई गई है।
  2. ऐसे चित्रों को प्रदर्शित कर अंग्रेजों की हौसला अफजाई की जाती थी।

प्रश्न 19.
सहायक संधि की दो शर्ते बताइये।
उत्तर:

  1. अंग्रेज अपने सहयोगी की बाहरी और आंतरिक चुनौतियों से रक्षा करेंगे।
  2. सहयोगी पक्ष के भूक्षेत्र में एक ब्रिटिश सैनिक दुकड़ी तैनात रहेगी। सहयोगी पक्ष (सहायक संधि मानने वाला राज्य) को इस टुकड़ी के रख-रखाव की व्यवस्था करनी होगी।

प्रश्न 20.
अवध के अधिग्रहण से ताल्लुकदारों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. इसके कारण ताल्लुकदार तबाह हो गये। उनकी जागीरें और किले छीन लिये गये। कई पीढ़ियों से उनकी जमीन और सत्ता पर अपना कब्जा था।
  2. ताल्लुकदारों की सेना भी समाप्त कर दी गई। पहले इनके पास हथियारबंद सिपाही होते थे। उनके दुर्गों को ध्वस्त कर दिया गया।

प्रश्न 21.
“बंगाल आर्मी की पौधशाला” किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:

  1. अवध को “बंगाल आर्मी की पौधशाला” कहा गया है।
  2. बंगाल आर्मी के अधिकांश सिपाही अवध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाँवों से भर्ती होकर आए थे। उनमें अधिकांश ब्राह्मण या ‘ऊँची जाति’ के थे।

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प्रश्न 22.
भारत में ब्रिटिश शासन का कारीगरों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  1. इंग्लैण्ड निर्मित वस्तुओं के आयात से बुनकर, सूती वस्त्र निर्माता, बढ़ई, लोहार, मोची आदि बेरोजगार हो गये।
  2. इनकी स्थिति इतनी खराब हुई कि वे भिखारी की हालत में पहुँच गये।

प्रश्न 23.
1857 की क्रांति के दो सामाजिक कारण बताइए।
उत्तर:

  1. रूढ़िवादी भारतीयों को अंग्रेजों द्वारा सती प्रथा को समाप्त करने (1829) तथा विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने की नीति पर आपत्ति थी।
  2. भारतीयों को लगता था कि अंग्रेज पश्चिमी विज्ञान तथा पश्चिमी (अंग्रेजी) शिक्षा के माध्यम से भारत का पश्चिमीकरण कर रहे हैं।

प्रश्न 24.
मौलवी अहमदुल्ला शाह क्यों प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:

  1. इस्लाम के प्रचारक मौलवी अहमदुल्ला ने गाँव-गाँव अंग्रेजों के विरुद्ध जिहाद का प्रचार किया।
  2. चिनहट के प्रसिद्ध संघर्ष में उसने हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में लड़ने वाली सेना के दाँत खट्टे कर दिये । वह अपनी वीरता और सामाजिक सेवा के कारण लोकप्रिय रहे।

प्रश्न 25.
शाहमल का 1857 के विद्रोह में क्या योगदान था?
उत्तर:

  1. शाहमल ने उत्तर प्रदेश के एक गाँव चौरासीदस के काश्तकारों तथा मुखियाओं को संगठित किया।
  2. उसने एक अंग्रेज अधिकारी के बंगले पर अधिकार कर उसे न्याय भवन की संज्ञा दी तथा अंग्रेजों के विरुद्ध किसानों को जुलाई 1857 तक विप्लव करने की प्रेरणा दी तथा विद्रोह का नेतृत्व किया।

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प्रश्न 26.
1857 के विद्रोह में अवध के ताल्लुकदार क्यों शामिल हुए?
उत्तर:

  1. लार्ड डलहौजी ने 1856 ई. में अवध राज्य का अधिग्रहण कर लिया था। इसे आजाद कराने के लिए ताल्लुकदारों ने विद्रोह में भाग लिया।
  2. ताल्लुकदार अंग्रेजों की कूटनीति से भयभीत थे। विद्रोह में भाग लेकर वे अपने भय को समाप्त करना चाहते थे।

प्रश्न 27.
हेनरी हार्डिंग का 1857 के गदर से क्या संबंध था?
उत्तर:

  1. हेनरी हार्डिंग ने सैनिक शस्त्रों के आधुनिकीकरण का प्रयास किया। उसने ही चर्बी वाले कारतूस जारी किये।
  2. उसने जिस रायल एनफील्ड राइफलों का इस्तेमाल शुरू किया, उनमें चर्बी कारतूसों का प्रयोग किया। इसके खिलाफ भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किया।

प्रश्न 28.
मंगल पाण्डेय कौन था?
उत्तर:

  1. आधुनिक भारतीय इतिहास में मंगल पाण्डेय को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वह बैरक पुर (बंगाल) की 34वीं बटालियन का एक सामान्य सिपाही था।
  2. उसने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था?
उत्तर:
अनेक अंग्रेज इतिहासकारों का विचार है कि 1857 ई. की यह क्रांति केवल सैनिक विद्रोह ही थी। इनके अनुसार यह नए कारतूसों के जारी करने से ही आरम्भ हुआ। कुछ अन्धविश्वासी ब्राह्मण तथा मुसलमान सैनिकों ने अपने साथियों में यह समाचार फैला दिया कि कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी है और इससे भड़कर सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। सर जॉन लॉरेंस (Sir John Lawrence), सर जेम्स औटरम (Sir James Outram), प्रसिद्ध इतिहासकार पी. ई. राबर्ट्स (P.E. Roberts) आदि उपर्युक्त विचार से सहमत है। इन यूरोपीय लेखकों का मत है कि इस विद्रोह के पीछे प्रजा का कोई हाथ नहीं था और कुछ भारतीय शासक इस क्रांति में इसलिए मिल गए क्योंकि अपनी पेंशनें और गद्दियाँ छिन जाने के कारण वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे।

जन साधारण का सहयोग इन विद्रोही सैनिकों तथा शासकों को प्राप्त नहीं था। अपने मत के पक्ष में वे कई तर्क देते हैं –

  1. सर्वप्रथम उनका कहना है कि यह विद्रोह उत्तर के थोड़े से भाग में ही फैला और सारे देश की जनता ने इनमें भाग नहीं लिया। पंजाब और अनेक देशी रियासतें इससे बिल्कुल अलग रही और अंग्रेजों की वफादार बनी रहीं।
  2. दूसरे, बहादुरशाह, नाना साहब और झाँसी की रानी आदि शासकों के अतिरिक्त बाकी किसी भारतीय शासक ने इसमें भाग नहीं लिया।
  3. तीसरे, देश के किसान लोग तथा अन्य नागरिक बिल्कुल शांत रहे और उन्होंने अधिक संख्या में विद्रोहियों का साथ न दिया।
  4. चौथे, यह विद्रोह शहरों तक ही सीमित रहा। गाँवों को इससे कोई सरोकार नहीं था।
  5. पाँचवें, यह विद्रोह थोड़ी-सी. अंग्रेजी सेना ने ही दबा दिया था। इससे यह संकेत मिलता है कि सभी भारतीय इस विद्रोह के पीछे न थे और न ही कोई स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीयता की भावनाओं से प्रेरित होकर ही यह विद्रोह उठ खड़ा हुआ था।

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प्रश्न 2.
1857 का विद्रोह स्वतः था अथवा ध्यानपूर्वक बनाई गई योजना का परिणाम? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दें। अथवा, 1857 का विद्रोह ‘प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ के नाम से जाना जाता है। क्या यह एक योजनाबद्ध विद्रोह था?
उत्तर:
अधिकांश भारतीय इतिहासकार 1857 के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से पुकारते हैं। इसके पीछे उनका तर्क यह है कि युद्ध अंग्रेजों की शोषण और आधिपत्य करने की नीतियों के विरुद्ध था। इस विचारधारा में वीर सावरकर और अशोक मेहता का नाम आता है। उनके अनुसार इस युद्ध में जितने लोगों ने भाग लिया वे सभी देशभक्त तथा राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रात थे। अनेक स्थानों पर भारतीयों ने अंग्रेजों की सहायता की।

उनको गद्दार कह कर उनका बहिष्कार किया गया। इस विद्रोह में भाग लेने वालों में न कोई हिन्दू धर्म का था और न कोई मुस्लिम धर्म का। सब भारतीय थे और सभी ने समान रूप से अपने विदेशी शत्रु से लड़ाई लड़ी। मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर ने राजपूतों को कहा कि अंग्रेजों को भगाकर कोई भी राजदूत राजा इस गद्दी का मालिक बन सकता है। छोटे-छोटे लोगों यथा-मल्लाहों ने भी नदी पार करने के लिए नाव न देकर अंग्रेजों का विरोध किया। सावरकर ने अपनी पुस्तक में यह सिद्ध करना चाहा है कि यह युद्ध स्वतत्रता संग्राम था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद व जवाहर लाल नेहरू ने इस युद्ध को देशभक्तों का देशद्रोहियों (विदेशी शत्रु) के खिलाफ लड़ा जाने वाला युद्ध कहा है।

यह युद्ध कोई आकस्मिक नहीं था। इसमें समाज के साधारण लोगों से लेकर सेना के देशभक्त सैनिकों का पूरा सहयोग और योगदान था। इस युद्ध को असमय का युद्ध तो कह सकते हैं, परंतु यह देश की स्वतंत्रता का पहला संग्राम था। यह अवश्य कह सकते हैं कि इस संग्राम को शुरू करने वाले असंगठित थे। नेतृत्व अलग-अलग था। लड़ने के स्थान और समय को भी पूर्व निश्चित नहीं किया गया था। यदि ऐसा होता तो इस संग्राम का परिणाम कुछ और ही होता।

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प्रश्न 3.
1857 ई. में भारतीय सिपाहियों के असंतोष के कारणों का वर्णन कीजिए। अथवा, 1857 ई. के महान विद्रोह के सैनिक कारण बताइए। अथवा, वे कौन से कारण थे जिनकी वजह से ब्रिटिश शासन के खिलाफ सैनिक विद्रोह भड़क उठा और वे उस विद्रोह के प्रमुख आधार बने।
उत्तर:
1857 ई. के महान विद्रोह के प्रमुख सैनिक कारण –

  • कंपनी के भारतीय सैनिकों को अंग्रेज सैनिक व अधिकारी हेय दृष्टि से देखते थे। उनके साथ समानता का व्यवहार नहीं किया जाता था। उनके लिए उन्नति के सभी मार्ग बंद थे।
  • कंपनी के सैनिकों को लड़ाई में जाने पर विदेशी भत्ते के रूप में अतिरिक्त भत्ता दिया जाता था। लड़ाई खत्म होने पर अनेक जीते हुए प्रदेशों को कंपनी के अधिकार क्षेत्र में मिला लिया जाता था और भारतीय सैनिकों को दिया जाने वाला अतिरिक्त भत्ता बंद कर दिया जाता था। इस प्रकार वेतन में अचानक कमी के कारण सैनिकों में असंतोष फैला।
  • लार्ड कैनिंग के काल में जो सर्वभारतीय नियम पास हुआ उससे भी सैनिकों के मन में रोष की भावना उत्पन्न हो गई क्योंकि बहुत से सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे।

प्रश्न 4.
1857 ई. के विद्रोह के सामान्य कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह के सामान्य कारण निम्नलिखित थे –

  • लार्ड डलहौजी की राज्य-अपहरण नीति के कारण अनेक भारतीय शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये।
  • अंग्रेजों ने भारत को इंग्लैण्ड के कारखानों के लिए कच्चा माल खरीदने और तैयार माल बेचने की मण्डी समझा था। उन्होंने भारतीय व्यापार तथा उद्योगों को नष्ट करने के पूरे प्रयत्न किए जिससे देश में गरीबी फैल गई। यही कारण था कि लोग ब्रिटिश शासक से घृणा करने लगे थे।
  • भारतीय सैनिकों में भी अंग्रेजों के प्रति असंतोष था। उन्हें अंग्रेज सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन दिया जाता था। उनके साथ बुरा व्यवहार भी किया जाता था। वे इस अन्याय को अधिक देर तक सहन नहीं कर सकते थे।
  • 1856 ई. में सरकार ने सैनिकों से पुरानी बन्दूकें वापस लेकर उन्हें नई ‘एन्फील्ड राइफलें’ दी। इन राइफलों में गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग होता था। भारतीय सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इंकार कर दिया। धीरे-धीरे यह घटना इतना गंभीर रूप धारण कर गई कि इसने 1857 ई. की क्रांति का रूप ले लिया।

प्रश्न 5.
19 वीं शताब्दी के पूर्वाध में भारत में अंग्रेजी राज के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों का व्यवहार कैसा था? उनकी 1857 के विद्रोह के प्रति क्या धारणा बनी?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अंग्रेजी राज के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों का व्यवहार उदार, मित्रवत् तथा सहानुभूतिपूर्ण था। उन्हें ब्रिटिश सरकार की नैतिकता तथा सच्चाई में विश्वास था। वे मानते थे कि अंग्रेजों ने भारत में कानून का राज्य, कानून की समानता तथा राजनैतिक एकीकरण की स्थापना की है। अंग्रेजों ने भारतीयों का आधुनिक विचारों तथा शिक्षा पद्धति से परिचय कराया। वे भारत की प्रगति के लिए इसको अपने विशाल साम्राज्य का अंग बनाये रखना चाहते थे। 1857 के विद्रोह के प्रति तत्कालीन सुशिक्षित भारतीयों की अच्छी धारणा नहीं बनी। उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलना भी पसंद नहीं किया। उन्होंने विद्रोहियों को किसी तरह का सहयोग भी नहीं दिया। यही कारण था कि विद्रोह विफल रहा। उनकी ऐसी धारणा विद्रोह के बाद धीरे-धीरे बदलने लगी और वे ब्रिटिश शासन को भारतीयों के लिए असहनीय तथा अन्यायपूर्ण मानने लगे।

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प्रश्न 6.
1857 के विद्रोह की घटना के लिए लार्ड डलहौजी कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
1857 के विद्रोह को भड़काने में डलहौजी की राज्य:
हड़पने की नीति विशेष उत्तरदायी रही। वह साम्राज्यवादी गवर्नर जनरल था। येन-केन-प्रकारेण ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। साम्राज्य विस्तार के लिए उसने भारतीय रियासतों के नि:संतान नरेशों को दत्तक पुत्र होने के अधिकार से बंचित कर दिया और उनके राज्य को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर दिया। सतारा, नागपुर, झाँसी, जौनपुर, सम्भलपुर आदि राज्य समाप्त कर दिए गये। अनेक शासकों पर कुशासन और अयोग्यता का आरोप लगाकर उनके राज्य हड़प लिए गए।

डलहौजी की इस नीति के कारण भारतीय शासकों में विद्रोह की भावना फैल गई और वे अंग्रेजों से लोहा लेने के कटिबद्ध हो गए। पेशवा बाजीराव द्वितीय ने नाना साहब को दत्तक पुत्र के रूप में अपनाया था। पेशवा ने अपने जीवन का अंतिम भाग कानपुर ने निकट बिठूर में बिताया था। लार्ड डलहौजी ने राज्यापहरण नीति के अंतर्गत नाना साहब को पिता की उपाधि तथा वार्षिक पेंशन से वंचित कर दिया। इससे हिन्दुओं की भावनाओं को बहुत अधिक ठेस पहुंची।

इसी प्रकार अंग्रेजों ने झाँसी की रानी के साथ भी अनुचित व्यवहार किया। उनके पति द्वारा गोद लिये गए पुत्र को उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर किया गया और झाँसी को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। इससे भारतीयों ने अंग्रेजों को देश से बाहर खदेड़ने का संकल्प ले लिया तथा इनकी परिणति 1857 के विद्रोह में देखी गई।

प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिए कि पाश्चात्य शिक्षा प्राप्त भारतीयों में किन कारणों से 1857 के विद्रोह के प्रति सहानुभूति नहीं थी? अथवा, पश्चिमी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने इस विद्रोह से अपने को अलग क्यों रखा? अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
विद्रोह में शिक्षित भारतीयों की भूमिका:
आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने विद्रोह का समर्थन नहीं किया। उनकी यह गलत धारणा बनी थी कि ब्रिटिश शासन उनके आधुनिकीकरण में सहायक बनेगा। वे सोचते थे कि, अंग्रेजों का विद्रोह करने वाले देश की प्रगति में बाधक बन रहे हैं। कालान्तर में इन्हीं शिक्षित भारतीयों ने अपने अनुभव से सीखा कि विदेशी शासन देश को आधुनिक बनाने में सक्षम नहीं है। वह उसे दरिद्र बनाएगा तथा पिछड़ा हुए बनाए रखेगा। 1858 ई. के विद्रोह के पश्चात की घटनाएँ संकेत देती हैं कि शिक्षित भारतीय अति अज्ञानी और स्वार्थी थे। उन्हें अंग्रेजी शासन की वास्तविकता का ज्ञान केवल उस समय हुआ जब उनकी गर्दन भी मरोड़ी जाने लगी। इस सत्य का परिचय मिलते ही उन्होंने कालान्तर (20वीं शताब्दी की शुरूआत) में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक शक्तिशाली आधुनिक राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया।

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प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह में रानी लक्ष्मीबाई की क्या भूमिका रही?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई:
1857 ई. के विद्रोह में मध्य भारत की सेना का नेतृत्व झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने किया। उसने सेना का संगठन करके अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया। उसका दमन करने के लिए मार्च 1858 ई. में ह्यू रोज झाँसी की ओर चला। रानी के नेतृत्व में उसकी सेना ने अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिए। रानी के निमंत्रण पर तांत्या टोपे अपनी सेना लेकर उसकी मदद के लिए चल पड़ा परंतु मार्ग में ही सन ह्यू रोज ने उसे हरा दिया। अंग्रेजों ने निरंतर हमले किए परंतु वे झाँसी पर अधिकार करने में असफल रहे। अंग्रेजों ने कूटनीतिक चाल चली तथा कुछ सैनिकों को अपनी ओर मिला लिया । इन सैनिकों ने दक्षिण का द्वार खोल दिया।

अंग्रेजी सेना उस द्वार से झाँसी में घुस गई। शीघ्र ही दूसरा द्वार भी टूट गया तथा वहाँ से भी अंग्रेजी सेना अंदर आ गई। रानी ने अपने बच्चे को कमर से बाँधा तथा वह अंग्रेजी सेना को चीरती हुई झाँसी से बाहर निकल गई तथा तात्या टोपे के पास कालपी पहुँची। जब कालपी को अंग्रेजी ने जीत लिया तो लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर की ओर कूच किया। अंग्रेजों तथा उनके बीच भीषण युद्ध छिड़ गया। उसकी बहादुरी देखकर अंग्रेज सेनापति भी दंग रह गया। रणभूमि में वीरता के साथ लड़ते हुए उसने अपने प्राण त्याग दिए।

प्रश्न 9.
1857 ई. के विद्रोह की असफलता में निहित कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. समय से पहले घटित होना:
विद्रोह की निर्धारित तिथि 31 मई 1857 थी लेकिन चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार करने पर दंडित किए जाने से सैनिकों ने इस विद्रोह को समय-पूर्व अंजाम दे दिया था।

2. एक नेता का अभाव:
पूरे विद्रोह का संचालन करने वाला एक नेता न था। सभी अपने-अपने क्षेत्र में नेतृत्व कर रहे थे। ऐसी स्थिति में आपसी ताल-मेल न बन पाया।

3. असंतुष्ट राजाओं का नेतृत्व:
जमींदार और देशी राजा अंग्रेजों से प्रसन्न न थे अतः मौका मिलते ही वे विद्रोह में शामिल हो गए। जनसाधारण उनके साथ न था क्योंकि अंग्रेजों की तरह जनसाधारण शोषण के प्रतीक दिखाई पड़ता था।

4. युद्ध सामग्री और रसद का अभाव:
अंग्रेजी सेना के पास बंदूकें और तोपें थीं परंतु भारतीय लोग लाठी, भाले, फरसे, कुल्हाड़ी आदि से लड़े। उनके पास खाने-पीने का सामान और अन्य कोई ऐसे साधन भी नहीं थे जिनसे वे हथियारों और अन्न की आपूर्ति सुनिश्चित कर पाते।

प्रश्न 10.
1857 के जन विद्रोह का प्रमुख केन्द्र दिल्ली क्यों बना?
उत्तर:
दिल्ली मुगल साम्राज्य की राजधानी थी। यद्यपि मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था परंतु जनता के मन में विद्रोह के समय भी मुगल-साम्राज्य के प्रति सम्मान का भाव था। जब अंग्रेजों ने मुगल सम्राट का अपमान किया तो भारत की सम्पूर्ण जनता के कान खड़े हो गये। दिल्ली के इसी महत्त्व को ध्यान में रखकर विद्रोह की सारी योजना बहादुरशाह जफर (द्वितीय) के नेतृत्व में बनाई गई और यहीं से चपाती और कमल के फूल के माध्यम से विद्रोह का प्रचार समूचे देश में किया गया। विद्रोह का आरम्भ भी दिल्ली से 60 किमी. की दूरी पर मेरठ में हुआ।

दिल्ली में ही अधिकांश क्रांतिकारी एकत्र हुए थे और दिल्ली में ही अनेक अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला गया। दिल्ली के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही विद्रोहियों ने विजय के पश्चात् बूढ़े मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को दिल्ली का बादशाह घोषित कर दिया। भौगोलिक दृष्टि से भी दिल्ली भारत का केन्द्र थी।

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प्रश्न 11.
सहायक संधि क्या थी?
उत्तर:
सहायक संधि:
सहायक संधि की प्रथा लॉर्ड वैलेजली ने चलाई थी। यह संधि कंपनी और देशी राज्यों के बीच होती थी। इस संधि को मानने वाले देशी राज्यों को कंपनी आन्तरिक तथा बाहरी संकट के समय सहायता का वचन देती थी। देशी राज्यों को इसके बदले में निम्नलिखित शर्तों का पालन करना पड़ता था –

  1. देशी राजा को अपने राज्य में स्थायी रूप से अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी। उसका सारा खर्च उसे ही सहन करना पड़ता था।
  2. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेज रेजीडैण्ट रखना पड़ता था।
  3. वह अपने राज्य में अंग्रेजों के सिवाय किसी भी यूरोपियन को नौकरी नहीं दे सकता था।
  4. वह कंपनी की आज्ञा के बिना किसी भी अन्य राज्य से युद्ध अथवा संधि नहीं कर सकता था।
  5. उसे आपसी झगड़ों को निपटाने के लिए अंग्रेजों को पंच मानना पड़ता था।

प्रश्न 12.
दक्षिण भारत में विद्रोह के कौन-कौन से प्रमुख नेता थे।
उत्तर:
दक्षिण भारत में विद्रोह के प्रमुख नेता –

  1. सतारा के रंगो बापूजी गुप्ते
  2. हैदराबाद के सोना जी पड़ित, रंगो पागे, मौलवी सैयद
  3. कर्नाटक के भीमराव मुण्डर्गी, छोटा सिंह
  4. कोल्हापुर के अण्णाजी फड़नवीस, तात्या मोहिते
  5. मद्रास के गुलाम गौस और सुल्तान बख्श, चिगलपेट के अन्तागिरी
  6. कोयम्बटूर के मुलबागल स्वामी
  7. केरल के विजय कुदारत कुंजी माया और मुल्लासली मोनजी सरकार

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प्रश्न 13.
अंग्रेजी नीति से अवध के ताल्लुकदार किस प्रकार प्रभावित हुए?
उत्तर:

  1. अंग्रेजों ने ताल्लुकदारों के ऊपर अनेक प्रतिबंध लगा दिये और उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई।
  2. ताल्लुकदार की जमीन छीन ली गई जिससे उनकी शक्ति तथा सम्मान को भारी ठेस लगी।
  3. भूराजस्व की माँग लगभग दुगुनी कर दी गई जिससे ताल्लुकदारों में रोष फैल गया।
  4. 1856 की एकमुश्त बंदोबस्त के अधीन उन्हें उनकी जमीनों से बेदखल किया जाने लगा। कुछ ताल्लुकदारों के तो आधे से भी अधिक गाँव हाथ से जाते रहे।
  5. ताल्लुकदारों के दुर्ग ध्वस्त कर दिये गए और उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया।

प्रश्न 14.
सहायक संधि ने अंग्रेजी राज्य के प्रसार में किस प्रकार सहायता की?
उत्तर:
अंग्रेजी राज्य के प्रसार में सहायक संधि का योगदान –
1. सहायक संधि को सबसे पहले निजाम हैदराबाद ने स्वीकार किया क्योंकि वह मराठों से डरा हुआ था। निजाम ने बैलोरी तथा कड़ापाह के प्रदेश अंग्रेजों को दे दिए। उसने अंग्रेजी सेना के व्यय के लिए 24 लाख रुपये वार्षिक देना भी स्वीकार किया।

2. वैलेंजली ने सूरत तथा तंजोर के राजाओं को पेंशन देकर इन दोनों राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

3. 1891 ई. में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने उसके पुत्र अली हुसैन की पेंशन नियत कर दी और उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया।

4. कुछ समय पश्चात् वैलेजली ने टीपू सुल्तान को परास्त करके मैसूर की राजगद्दी पर एक हिन्दू शासक को बिठा दिया। उसे भी अंग्रेजों की सहायक-संधि स्वीकार करनी पड़ी।

5. पेशवा बाजीराव द्वितीय ने भी मराठों के आपसी संघर्ष के कारण सहायक संधि स्वीकार कर ली। उसके ऐसा करते ही मराठा सरदारों तथा अंग्रेजों में युद्ध छिड़ गया। वैलेजली ने उन्हें पराजित कर दिया और उन पर सहायक-संधि लाद दी।

सच तो यह है कि वैलेजली की सहायक संधि से भारत में अंग्रेजी राज्य की सीमाएँ काफी विस्तृत हो गईं। इसके अतिरिक्त भारत में अंग्रेजों की स्थिति काफी दृढ़ हो गई। भारत में अंग्रेजी सत्ता की काया ही पलट गई। इस विषय में किसी ने ठीक ही कहा है वैलेजली के नेतृत्व के सात वर्षों में इतने क्रांतिकारी परिवर्तन हुए कि इस काल को ब्रिटिश सत्ता के विकास का एक युग स्वीकार किया गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1857 ई. की महान क्रांति या भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के मुख्य कारण क्या थे? अथवा, भारत में 1857 के विद्रोह के कारण लिखिए। अथवा, उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके फलस्वरूप सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया। देश के अनेक भागों में इस विद्रोह ने लोकप्रिय रूप क्यों लिया? अथवा, भारत में 1857 के विद्रोह के मूल कारणों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
1. राजनीतिक कारण:

  • लार्ड वैलेजली और डलहौजी को विस्तारवादी नीतियों से भारतीय जनता का माथा ठनका कि अंग्रेज भारत को हड़पना चाहते हैं। झाँसी, कानपुर, जैतपुर, नागपुर तथा अवध जैसे राज्य अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के शिकार बने।
  • मुगल साम्राज्य को हड़पने और सम्राट को राजमहल से बाहर निकालने पर मुसलमान भड़क उठे।
  • झाँसी के प्रदेश को अपने साम्राज्य में मिलाने और हिन्दू नरेशों की पेंशन बंद करके उनकी उपाधियाँ छीनने से हिन्दू वर्ग अंग्रेजों से रुष्ट हो गया।
  • कई राज्यों का विलीनीकरण करके वहाँ की सेना भंग कर दी गई। केवल अवध में ही 1000 सैनिकों को पदमुक्त कर दिया गया। इस तरह बड़े पैमाने पर सैनिकों में रोष बढ़ गया। वे विद्रोह को भड़काने में सहायता देने लगे।

2. आर्थिक कारण:

  • एक ओर अंग्रेजों का व्यापार भारत में फैलता जा रहा था किन्तु दूसरी ओर भारतीय व्यापार और उद्योग धन्धे समाप्त होते जा रहे थे।
  • बंगाल और दक्षिण के जागीरदारों की जागीरें छीन ली गईं। इनामी भूमि पर भी कर लगा दिया गया।
  • शिक्षित भारतीयों को उच्च पद नहीं दिए जाते थे। इससे उनके आत्म सम्मान को भारी आघात लगता था।
  • भारत का धन और कच्चा माल इंग्लैण्ड के उद्योगों में खपता जा रहा था। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था टूटती जा रही थी। लोगों के उद्योग धन्धे समाप्त हो गए थे। उनकी कृषि पर निर्भरता बढ़ती जा रही थी।

3. सामाजिक और धार्मिक कारण:
(I) सामाजिक सुधार (Social Reforms):
बाल विवाह, सती प्रथा और पर्दा प्रथा पर रोक लगा दी गई। विधवाओं पर फिर से विवाह करवाने के लिए कानून बनाया गया। इससे कट्टर हिन्दुओं को लगा कि अंग्रेज भारतीय समाज की मूलभूत मान्यताओं को उखाड़ कर उनके धर्म पर आघात कर रहे हैं। वे अंग्रेजों के कट्टर शत्रु बन बैठे।

(II) पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार (Spreading of Western Education):
पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के कारण मुल्ला-मौलवियों तथा पंडितों की पाठशालाओं और मदरसों को गहरा आघात लगा। वे भी अंग्रेजों के शत्रु बन बैठे।

(III) ईसाई धर्म का प्रचार (Preaching of Christianity):
निम्न वर्ग के लोगों को तरह-तरह के प्रलोभन देकर वे धर्म परिवर्तन के लिए तैयार किया जाने लगा। इन प्रलोभनों में धन, नौकरियाँ, सामाजिक स्तर पर समानता का व्यवहार करने की गारंटी दी जाती थी। बैंटिक ने कानून में इस आशय का संशोधन कर दिया कि यदि कोई धर्म परिवर्तन करता है, तो उसे अपनी पैतृक सम्पत्ति में अपने अन्य सहोदरों के बराबर हिस्सा मिलेगा। इससे हिंदू समाज में खलबली मच गई। हिंदुओं को प्रतीत होने लगा कि भारत में ईसाई धर्म के प्रचार के लिए अंग्रेजों ने पूरी तरह से कमर कस ली है। ऐसी स्थिति में उनका अंग्रेजों को अपना शत्रु समझना स्वाभाविक था। भारत में पहले ही जातिवाद और छुआछूत के कारण भीषण सामाजिक भिन्नता थी। उस पर ईसाई धर्म विष-बेल की तरह उन पर छाने लगा था।

4. सैनिक कारण:
(I) भारतीय सैनिक समझते थे कि कई युद्धों में अंग्रेजों की जीत का मुख्य कारण वही लोग थे। उन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर युद्ध लड़ें, परंतु बदले में उन्हें न पदोन्नति और न वेतन ही बढ़ाया गया। इसके विपरीत अंग्रेज सैनिकों के लिए दोनों ही द्वार खुले थे। इससे भारतीय सैनिक भड़क उठे।

(II) बंगाली सैनिकों में से अधिकांश ब्राह्मण और ठाकुर होने के कारण छुआछूत के प्रति संवेदनशील थे। अवध के ब्रिटिश साम्राज्य में विलीनीकरण के बाद अवध की सेना भंग कर दी गई। हजारों सैनिक बेकार हो गए। जनरल सर्विसेज इंग्लिशमेंट एक्ट (General Services Engishment Act) पास किया गया जिसके अनुसार भारतीय सैनिकों को विदेशों में भेजा जा सकता है। ब्राह्मण लोग समझते थे कि समुद्र पार करने का अर्थ धर्म गंवाना है। वे अंग्रेजों को हिन्दू धर्म का विरोधी समझने लगे।

(III) अफगान युद्ध और क्रीमिया युद्ध में अंग्रेजों की हार से भारतीयों के हौसले बुलंद हो गए थे। उन्हें समझ में आ गया कि अंग्रेजों को हराया जा सकता था।

5. तात्कालिक कारण:
सैनिकों को जो कारतूस दिए जाते थे उन्हें प्रयोग में लाने से पहले दाँतों से छीलता पड़ता था। उन कारतूसों पर एक प्रकार की चिकनाई लगी होती थी। सैनिकों को जब पता चला कि यह सुअर और गाय की चर्बी है तो हिन्दू और मुसलमान दोनों ही सम्प्रदायों के लोग भड़क उठे। उन्होंने इसको अंग्रजों की धर्मभ्रष्ट करने की एक गहरी चाल समझा। उसी कारण का उन्होंने इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया।

जिन सिपाहियों ने चिकनाई युक्त कारतूसों को प्रयोग करने से मना किया, उन्हें मृत्यु दंड की सजा दे दी गई। इससे सैनिकों ने विद्रोह करने की ठान ली। पहले उनके धर्म फिर सम्मान पर तथा अब उनकी जान पर आघात होने लगा था। मई, 1857 ई. में मेरठ और दिल्ली में विद्रोह को आग भड़क उठी। समय की आवाज को पहचान कर कई भारतीय राजा भी विद्रोह में शामिल हो गए। इनमें मुगल बादशाह बहादुरशाह द्वितीय, नाना साहब, लक्ष्मीबाई तथा अवध की बेगम जीनत महल आदि प्रमुख थे।

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प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह की प्रकृति का विश्लेषण कीजिए। अथवा, क्या 1857 का विद्रोह एक सैनिक विद्रोह था? अथवा, 1857 के विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम कहना कहाँ तक उचित है? अथवा, क्या 1857 के विद्रोह का स्वरूप लोकप्रिय था? अपने उत्तर की पुष्टि कारण बताते हुए कीजिए। अथवा, 1857 के विद्रोह में जन समभागिता की मात्रा निर्धारित कीजिए।
उत्तर:
1857 के विद्रोह का स्वरूप:
1857 के विद्रोह के स्वरूप के बारे में विद्वानों के विभिन्न मत पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों की राय से यह एक सैनिक विद्रोह था। कुछ अन्य विद्वान इसको प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मानते हैं। उनके अनुसार इसका उद्देश्य भारत में अंग्रेजी शासन को समाप्त करने का था। इनमें से दो मतों का विवेचन इस प्रकार है –

प्रथम मत-यह एक सैनिक विद्रोह था:
इस मत के समर्थक सर जॉन लारेन्स, सर जॉन सीले, जेम्स आउट्रम, थम्पसन पी. ई. राबर्टस् और गैरेट इत्यादि पाश्चात्य विद्वान हैं, वे इसको पूर्णतया एक सैनिक विद्रोह मानते हैं। सर जॉन लारेन्स के विचारानुसार, “यह सैनिक विद्रोह मात्र” था जिसका तात्कालीन कारण कुछ और न होकर केवल कारतूस वाली घटना थी। इसका संबंध किसी पिछली सुनियोजित योजना से नहीं था।” सर जोन लारेन्स के कथन पर सहमति प्रकट करते हुए पी. ई. राबर्टस लिखते हैं-“यह (1857 ई. का विद्रोह) एक विशुद्ध सैनिक विद्रोह था।” थम्पसन व गैरेट के शब्दों में, “विद्रोहियों के इस प्रयास को संगठित राष्ट्रीय आंदोलन बताना भारतीय साहस व योग्यता का उपहास करना है। उल्लेखनीय है कि इसे एक सैनिक टुकड़ी ने कुचल दिया था।” जो लोग उपर्युक्त मत से सहमत नहीं हैं, उनके अनुसार इसको सैनिक विद्रोह इसलिए नहीं कहा जा सकता कि –

1. इसमें सभी सैनिकों ने भाग नहीं लिया। उस समय की तीन प्रेसिडेन्सियों में से केवल एक प्रेसिडेन्सी के सिपाहियों ने अंग्रेजों का विरोध किया। 25 प्रतिशत से अधिक भारतीय सैनिकों ने किसी भी समय एक साथ भाग नहीं लिया।

2. इस विद्रोह में केवल सैनिकों ने नहीं, बल्कि देशी राजाओं, नवाबों व जमींदारों ने भी भाग लिया। इस विद्रोह में अनेक बेकार शिल्पकारों व अवध के सैनिकों ने भी भाग लिया।

3. जितने सैनिकों ने विद्रोह में भाग लिया उनका एक मात्र उद्देश्य अपने हितों अथवा स्वार्थों की रक्षा करना नहीं था। वे तो भारत को विदेशी सत्ता से छुटकारा दिलाना चाहते थे।

4. यदि यह केवल सैनिक विद्रोह था तो अंग्रेजी सरकार ने गैरसैनिक जनता पर क्यों जुल्म ढाये? अंग्रेजों ने न केवल विद्रोही सिपाहियों को कुचला बल्कि दिल्ली, अवध, मध्य भारत, उत्तर पश्चिमी प्रान्तों तथा आगरा के लोगों के विरुद्ध भी भीषण और बेरहम लड़ाई छेड़ी । उन्होंने अनेक गाँवों को जला दिया तथा ग्रामीण व शहरी जनता का कत्लेआम किया।

दूसरा मत-यह एक राष्ट्रीय विद्रोह था:
अनेक भारतीय इतिहासकारों व विद्वानों ने इस विद्रोह को भारतीय जनता का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा है। इस मत के प्रवर्तक विनायक दामोदर वीर सावरकर हैं। उन्होंने सर्वप्रथम 1909 ई. में अपने ‘भारत की स्वतंत्रता का युद्ध’ नामक ग्रंथ में 1857 ई. के विद्रोह को भारत के लोगों का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा। उनके विचारों का समर्थन के. एम. पाणिक्कर, अशोक मेहता, जे. सी. विद्यालंकार व जवाहरलाल नेहरू ने भी किया है तथा इसे राष्ट्रीय क्रांति अथवा प्रथम स्वतंत्रता संग्राम माना है। इन विद्वानों के अनुसार इस विद्रोह का उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर खदेड़ कर एक राष्ट्रीय शासक को सत्ता सौंपने का था।

इसका क्षेत्र बहुत व्यापक था और यह विद्रोह चर्बी के कारतूस वाली घटना से शीघ्र फैल गया तथा इनमें सैनिकों, कई जमींदारों, कई राजाओं के साथ-साथ साधारण वर्ग के अनेक लोगों ने भी भाग लिया था। डा. पाणिक्कर के शब्दों में, “क्रांति का उद्देश्य अंग्रेजों को भारत से बाहर निकाल कर देश में एक राष्ट्रीय राज्य की स्थापना करने का था। इस दृष्टिकोण से यह गदर अथवा विप्लव न होकर एक राष्ट्रीय क्रांति थी”। कुछ इसी प्रकार के विचार पंडित नेहरू ने भी अपनी पुस्तक ‘Discovery of India’ में व्यक्त किए हैं। यह सैनिक क्रांति से कहीं अधिक था, यह जल्द ही फैल गया तथा इसने लोकप्रिय विद्रोह और भारतीय स्वाधीनता के संग्राम का रूप धारण कर लिया।

अशोक मेहता ने अपनी पुस्तक “1857 ई. की महान क्रांति” में लिखा है-“1857 ई. का विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह न होकर एक सामाजिक ज्वालामुखी था। इसमें दबी हुई शक्तियों ने अभिव्यक्ति प्राप्त की।” किन्तु कुछ विद्वान 1857 ई. के विद्रोह को निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर जन क्रांति या प्रथम स्वतंत्रता संग्राम नहीं मानते हैं –

  • यह विद्रोह कुछ ही प्रांतों एवं विशेषकर शहरों तक सीमित रहा।
  • इस विद्रोह में अवध को छोड़कर अन्य किसी भी प्रान्त की साधारण जनता ने भाग नहीं लिया था।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार इस । विद्रोह से पहले आधुनिक राष्ट्रीयता की भावना का भारत में पूर्णतया अभाव था। इस भावना के अभाव में हुए किसी भी विद्रोह को राष्ट्रीय क्रांति या स्वतंत्रता संग्राम कहना गलत है। यदि यह भावना अंग्रेजों में होती तो अंग्रेज इस विद्रोह को कदापि नहीं कुचल सकते थे।

निष्कर्ष:
संक्षेप में 1857 ई. के संगठन व स्वरूप के विषय में हम कह सकते हैं कि –

  • यह विद्रोह सुनियोजित था परंतु इसकी शुरूआत अकस्मात हो गई।
  • यह विद्रोह केवल सैनिक विद्रोह नहीं था क्योंकि इसमें सेना के अतिरिक्त जमींदारों, जागीरदारों, देशी राजाओं व अन्य लोगों ने भी भाग लिया।
  • यह प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था किन्तु इसके पीछे राष्ट्रीयता की भावना या शक्ति नहीं थी।
  • विद्रोह का क्षेत्र सम्पूर्ण भारत न होते हुए भी बहुत विस्तृत था।
  • यह राष्ट्रीय आंदोलन का पूर्वाभ्यास था।

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प्रश्न 3.
वे कौन से कारण थे जिनकी वजह से ब्रिटिश शासन के खिलाफ सिपाही विद्रोह भड़क उठा? वे इस विद्रोह के मुख्य आधार क्या थे? अथवा, उन कारणों का उल्लेख कीजिए जिनके फलस्वरूप सिपाहियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया।
उत्तर:
1. दुर्बल अंग्रेजी सेना व जीर्ण-शीर्ण हथियार:
ब्रिटिश सेना को प्रथम अफगान युद्ध (1838-42 ई.) पंजाब के दो युद्धों (1845 व 1849 ई.) एवं क्रीमिया के युद्ध (1854-56 ई.) में करारी हार झेलनी पड़ी। इसके अतिरिक्त अनेक योग्य सैनिक अधिकारियों को गैर सैनिक विभागों में नियुक्त कर देने के कारण अंग्रेज सेना की कमाण्ड बूढ़े व निकम्मे अधिकारियों के हाथ में रह गई। इससे भारतीय सैनिकों को विद्रोह करने के लिए प्रोत्साहन मिला।

2. संख्या में असमानता:
सेना में भारतीयों की संख्या अंग्रेजों से कहीं बढ़कर थी। डलहौजी जब भारत से गया तो सेना में 2,38,000 देशी व 45,322 अंग्रेज सैनिक थे। सेना का वितरण भी दोषपूर्ण था। दिल्ली व इलाहाबाद के सम्पूर्ण सैनिक देशी थे। यहाँ तक कि इन सेनाओं के अधिकारी भी देशी थे। सैनिक संख्या की असमानता ने देशी सैनिकों को निडर बना दिया।

3. भारतीय सैनिकों से भेदभाव व उनमें असंतोष:
अनेक कारणों से भारतीय सैनिक – अंग्रेज सरकार से रुष्ट थे। एक भारतीय सैनिक को केवल 9 रुपये प्रति माह मिलते थे, परंतु एक मामूली से अंग्रेज सैनिक को कई गुना वेतन (अर्थात् 60 या 70 रु० प्रति माह) मिलता था । इतना वेतन भारतीय सैन्य अधिकारी को भी नहीं मिलता था दूसरी बात यह थी कि उनके लिए उन्नति के सारे मार्ग बंद थे।

4. विदेशी भत्ते बंद करना:
ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ने शुरू में उन सभी सैनिकों को विदेशी भत्ते के रूप में अतिरिक्त भत्ता दिया जो किसी भी भारतीय राज्य या क्षेत्र में लड़ने जाते थे। धीरे-धीरे कंपनी का साम्राज्य बढ़ता गया तथा एक आदेश द्वारा उन सभी क्षेत्रों में भारतीय को विदेशी भत्ता दिया जाना बंद कर दिया गया जिन क्षेत्रों को कंपनी साम्राज्य में मिला लिया जाता था। इस तरह कुल वेतन में आई कमी ने भारतीय सैनिकों में ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अनुशासनहीनता व असंतोष को बढ़ावा दिया।

5. समुद्र पार करने का आदेश:
बहुत से भारतीय सैनिकों ने द्वितीय बर्मा युद्ध में लड़ने के लिए जाने से इसलिए इंकार कर दिया क्योंकि उन दिनों देश में समुद्र पार करना धर्म के विरुद्ध समझा जाता था। सरकार ने यह नियम बना दिया कि सरकार भारतीय सैनिकों को कभी भी देश के किसी भाग या समुद्र पार करने का आदेश दे सकती है। वे ऐसा करने से इंकार नहीं कर सकते थे। इससे भारतीय सैनिकों में बहुत असंतोष फैला।

6. चर्बी वाले कारतूस:
विद्रोह का तत्कालीन कारण चर्बी लगे कारतूस थे। इन कारतूसों को दांत से काटकर प्रयोग किया जाता था। यह अफवाह फैल गई कि इन कारतूसों में गाय व सूअर की चर्बी लगी है। इससे हिन्दू व मुसलमान सैनिक भड़क उठे। सैनिकों को यह विश्वास हो गया कि अंग्रेजों ने जान-बूझकर उनका धर्म भ्रष्ट करने के लिए ही कारतूसों में चबी का प्रयोग किया है।

7. अवध का विलीनीकरण:
अंग्रेजों की बंगाल में तैनात सेना में अवध और पश्चिमी प्रान्त के सैनिक थे। 1856 ई. में अवध के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय से बंगाल में तैनात सेना कुद्ध हो गयी। इस विलीनीकरण से अवध के सैनिक बेकार हो गये और उनके रोष में और अधिक वृद्धि हुई।

8. सेना का वितरण:
सैनिक दृष्टि से सभी महत्त्वपूर्ण स्थान भारतीय सैनिकों के कब्जे में थे। इलाहाबाद, कानपुर और दिल्ली जैसे महत्त्वपूर्ण स्थान भारतीय सैनिकों के नियंत्रण में थे। इस भावना ने सैनिकों के मन में विद्रोह को जन्म दिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सहरी क्या है?
(अ) रमजान के दिनों का भोजन
(ब) रोजे के दिनों में सूरज उगने से पहले का भोजन
(स) अपवित्र भोजन
(द) नगरीय भोजन
उत्तर:
(ब) रोजे के दिनों में सूरज उगने से पहले का भोजन

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प्रश्न 2.
1857 का विद्रोह किसके द्वारा शुरू हुआ?
(अ) सिपाहियों द्वारा
(ब) दस्तकारों द्वारा
(स) ताल्लुकदारों द्वारा
(द) देशी राजाओं द्वारा
उत्तर:
(अ) सिपाहियों द्वारा

प्रश्न 3.
दत्तकता के आधार पर किस रियासत का विलय नहीं किया गया?
(अ) अवध
(ब) झाँसी
(स) सतारा
(द) दिल्ली
उत्तर:
(द) दिल्ली

प्रश्न 4.
विद्रोही किससे नाराज नहीं थे?
(अ) देशभक्तों से.
(ब) उत्पीड़कों से
(स) सूदखोरों से
(द) अंग्रेजों से
उत्तर:
(अ) देशभक्तों से.

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प्रश्न 5.
विद्रोह के दिनों में क्या नहीं था?
(अ) बाजारों में सब्जियों का अभाव था
(ब) सब्जियों सड़ी मिलती थी
(स) लोगों की आमदनी बढ़ गई थी
(द) चारों ओर गंदगी दिखाई दे रही थी
उत्तर:
(स) लोगों की आमदनी बढ़ गई थी

प्रश्न 6.
फांस्बां सिक्टन कौन था?
(अ) एक अंग्रेज जमींदार
(ब) बिजनौर का ताल्लुकदार
(स) बिजनौर का तहसीलदार
(द) देशी ईसाई पुलिस इंस्पैक्टर
उत्तर:
(द) देशी ईसाई पुलिस इंस्पैक्टर

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प्रश्न 7.
एक फकीर विद्रोह का प्रचार कहाँ कर रहा था?
(अ) दिल्ली.
(ब) मेरठ
(स) कानपुर
(द) लखनऊ
उत्तर:
(ब) मेरठ

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किससे विद्रोह प्रभावित नहीं हुआ?
(अ) अफवाह
(ब) गाय और सूअर की चर्बी वाली कारतूस
(स) ब्राह्मणों द्वारा पूजा
(द) भविष्यवाणी
उत्तर:
(स) ब्राह्मणों द्वारा पूजा

प्रश्न 9.
शिक्षा में सुधार किसके काल में शुरू हुआ?
(अ) लार्ड कार्नवालिस
(ब) लार्ड वैलेजली
(स) लार्ड विलियम बैंटिक
(द) लार्ड हार्डिंग
उत्तर:
(स) लार्ड विलियम बैंटिक

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में किस राज्य का अधिग्रहण नहीं किया गया?
(अ) काशी
(ब) अवध
(स) सतारा
(द) झाँसी
उत्तर:
(अ) काशी

प्रश्न 11.
“ये गिलास फल (Cherry) एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।” किसने कहा था?
(अ) लार्ड कार्नवालिस
(ब) लार्ड वैलेजली
(स) लार्ड डलहौजी
(द) लाई बैंटिक
उत्तर:
(स) लार्ड डलहौजी

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित में किस स्थान पर विद्रोह नहीं हुआ था?
(अ) दिल्ली
(ब) लखनऊ
(स) झाँसी
(द) मद्रास (चेन्नई)
उत्तर:
(द) मद्रास (चेन्नई)

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

Bihar Board Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था?
उत्तर:
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती था। इसके निम्नलिखित कारण थे-

  1. बंगाल के दिनाजपुर जिले के धनी किसानों को जोतदार कहा जाता था। इनके पास जमीन के बड़े-बड़े रकबे होते थे। कहीं-कहीं तो यह हजारों एकड़ का होता था।
  2. स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर इनका नियंत्रण था। वे क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर शक्ति प्रयोग करते थे।
  3. ये लोग गाँवों में रहते थे और गरीब ग्रामीणों के बड़े वर्ग:पर नियंत्रण रखते थे।
  4. ये किसानों के पक्षधर और लगान बढ़ाए जाने के मुद्दे पर जमींदार के कट्टर विरोधी थे। ये अंग्रेज अधिकारियों के कार्यों पर रोक भी लगाते थे।
  5. ये खुद खेती नहीं करते थे और अपनी जमीन बटाईदारों को खेती करने के लिए दे देते थे। उनसे वे उपज का आधा भाग लेते थे। इस प्रकार ये बिना मेहनत धनवान हो जाते थे।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 10 उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन

प्रश्न 2.
जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे?
उत्तर:
जमींदारों द्वारा अपनी जमींदारियों पर नियंत्रण रखने के उपाय –

  1. राजस्व की अत्यधिक माँग और अपनी भूसम्पदा की नीलामी से जमींदार तंग आ गये थे। इससे बचने के लिए जमींदारों ने नया षड्यंत्र सोच लिया। संपदा की फर्जी बिक्री ऐसी ही एक रणनीति थी।
  2. बर्दमान के राजा ने पहले तो अपनी जमींदारी का कुछ भाग अपनी माँ के नाम कर दिया क्योंकि कंपनी ने यह नियम बनाया था कि स्त्रियों की सम्पत्ति को छीना नहीं जायेगा।
  3. नीलामी की प्रक्रिया में एजेंटों और नौकरों को शामिल किया गया। इस प्रकार संपदा पर जमींदार का अधिकार बना रहता था।
  4. जमींदार कंपनी को राजस्व समय पर नहीं देते थे और इस प्रकार बकाया राजस्व राशि का बोझ बढ़ता गया। जब भूसंपदा का कुछ भाग नीलाम किया गया तो जमींदार के संबंधियों ने ही ऊँची बोली लगाकर खरीद लिया परंतु रकम का भुगतान नहीं किया। यही प्रक्रिया बार-बार चलती रही।
  5. कुछ दिनों के बाद लोगों ने बोली लगाना बंद कर दिया। कंपनी को कम दाम पर जमीन जमींदार को बेचनी पड़ी।
  6. जमींदारों ने नीलामी से बचने के लिए अन्य कई तरकीबें निकालीं। वे संपदा खरीदने वालों को जमीन पर कब्जा नहीं करने देते थे या मार-पीटकर भगा देते थे।

प्रश्न 3.
पहाडिया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शाई?
उत्तर:

  1. स्थायी कृषि विस्तार के साथ बाहरी लोगों और पहाड़ियों के बीच संघर्ष तेज हो गया था। वे ग्रामवासियों का अनाज और पशु झपटने लगे।
  2. 1770 ई. के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ियों के प्रति कठोरता की नीति अपनाई और उन पर आक्रमण शुरू कर दिया।
  3. 1780 के दशक के भागलपुर के कलक्टर ऑगस्ट्स क्लीवलैंड ने शांति स्थापना का प्रस्ताव रखकर पहाड़ी मुखियाओं का वार्षिक भत्ता निश्चित किया ताकि वे अपने आदमियों को नियंत्रण में रख सकें। पहाड़िया लोग अंग्रेजों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे और उनसे घृणा करने लगे।
  4. पहाड़ियों के लिए एक अन्य खतरा इनके क्षेत्रों में संस्थालों का प्रवेश बन गया । जहाँ कुदाल पहाड़ियों की रक्षक थी, वहीं हल संथालों का सुदृढ़ अस्त्र बन गया। अब इन दोनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया।

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प्रश्न 4.
संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया?
उत्तर:
संथालों द्वारा ब्रिटिश शासन के विरुद्ध-विद्रोह के कारण:

  1. ब्रिटिश अधिकारियों ने संथालों को दामिन-इ-कोह में बसने के लिए निमंत्रण दिया । यहाँ संथालों के गाँवों और जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई। वे व्यापारिक फसलों की खेती करते थे परंतु ब्रिटिश सरकार ने उनकी जमीन पर भारी कर लगा दिया।
  2. 1850 ई. के दशक तक संथाल लोग स्वायत्त शासन चाहते थे परंतु ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं की। फलस्वरूप संथालों ने विद्रोह कर दिया।
  3. 1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद संथाल परगने का निर्माण कर दिया गया। इस प्रकार उनका क्षेत्र सीमित कर दिया गया।

प्रश्न 5.
दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे?
उत्तर:
दक्कन के रैयत का ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध होने के कारण –
1. जब भारत से इंग्लैण्ड में कपास का निर्यात हो रहा था तो महाराष्ट्र के निर्यात व्यापारी और साहूकार रैयत को खूब ऋण दे रहे थे। अमेरिका में गृहयुद्ध की समाप्ति और वहाँ से इंग्लैण्ड में कपास का निर्यात पुनः होने से ये ऋणदाता ऋण देने में उत्सुक नहीं रहे। यह भी एक कारण था कि दक्कन के रैयत क्रुद्ध हो गये।

2. ऋणदाताओं ने देखा कि भारतीय कपास की माँग घटती जा रही है और कपास की कीमतों में भी गिरावट आ रही है। यही कारण था कि उन्होंने अपना कार्य व्यवहार बंद करने, रैयत की अग्रिम राशियाँ प्रतिबंधित करने और बकाया ऋणों को वापस लेने का निर्णय लिया।

3. 1830 ई. के पश्चात् राजस्व का नया बंदोवस्त लागू किया गया जिसमें भूराजस्व 50 से 100 प्रतिशत बढ़ा दिया गया। इतना भारी लगान देने के लिए रैयतों को ऋण लेना अनिवार्य हो गया परंतु ऋणदाताओं ने ऋण देने से मना कर दिया। रैयत इस बात से अधिक नाराज था कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया है कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा है और गाँव की प्रथाओं का उल्लंघन कर रहा है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए (लगभग 250 से 300 शब्दों में)

प्रश्न 6.
इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई?
उत्तर:
इस्तमरारी बंदोबस्त के बाद बहुत सी जमींदारियों के नीलाम होने के कारण –
1. 1793 ई. में चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा इस्तमरारी बंदोबस्त लागू कर दिया गया। इसके अंतर्गत निश्चित भूराजस्व लम्बे समय के लिए निर्धारित कर दिया गया और इसे निश्चित तिथि पर भुगतान करना होता था। निश्चित भूराजस्व जमा न करने पर जमींदारों की भूमि नीलाम कर दी जाती थी।

2. बंगाल में राजस्व के भुगतान की समस्या बढ़ती जा रही थी जबकि ब्रिटिश अधिकारी यह आशा कर रहे थे कि इस्तमरारी बंदोबस्त लागू होने के पश्चात् यह समस्या हल हो जायेगी। वस्तुतः 1770 ई. के पश्चात् बंगाल में बार-बार अकाल पड़ रहे थे एवं खेती की पैदावार घटती जा रही थी। इसलिए किसान भूराजस्व नहीं दे पा रहे थे। ऐसे में जमींदार भी भूराजस्व देने में असमर्थ हो जाते थे। फिर तो भूमि का नीलाम होना निश्चित था।

3. जमींदारों के अधीन अनेक गाँव यहाँ तक कि 400 गाँव भी होते थे। कई गाँव मिलकर एक जमींदार के अधीन राजस्व सम्पदा बनाते थे। इस संपदा पर कंपनी राजस्व की कुल माँग का निर्धारण करती थी। इसके बाद जमींदार अलग-अलग गाँवों के लिए भूराजस्व निश्चित करता था और वसूल करता था। इस प्रकार यह एक जटिल कार्य था। जब जमींदार निर्धारित राजस्व को समय पर जमा न कर पाता था तो उनकी संपदा (भूमि) का नीलाम कर दिया जाता था।

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प्रश्न 7.
पहाडिया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस रूप में भिन्न थी?
उत्तर:
पहाड़िया लोगों और संथालों की आजीविका में अंतर –
1. 18 वीं शताब्दी के परवर्ती दशकों के राजस्व अभिलेखों से ज्ञात होता है कि पहाड़िया जंगल की उपज से अपनी जीविका चलाते थे और झूमकर खेती किया करते थे। जंगल को साफ करके बनाई गई जमीन पर लोग खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और ज्वार-बाजरा उगा लेते थे। कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे और फिर उसे परती छोड़कर नये इलाके में चले जाते थे। जमीन की खोई हुई उर्वरता फिर से लौट आए, इसीलिए ऐसा किया जाता था। संथाल लोग स्थायी खेती करते थे। वे परिश्रम से जंगल को साफ करके खेतों की जुताई करते थे। इनकी जमीन चट्टानी थी लेकिन उपजाऊ थी। बुकानन के अनुसार वहाँ तम्बाकू और सरसों की अच्छी खेती होती थी।

2. पहाड़िया लोग गुजारे वाली और खाद्य पदार्थों की खेती अधिक करते थे जबकि संथाल लोग व्यापारिक और नकदी फसलों की खेती करते थे।

3. पहाड़िया लोग जंगल साफ करने और खेती करने के लिए कुदाल का प्रयोग करते थे। वे जंगल काटने के लिए हल का प्रयोग नहीं करते थे और उपद्रवी थे। इसके विपरीत संथाल आदर्श बाशिंदे थे, क्योंकि उन्हें जंगलों का सफाया करने में कोई हिचक नहीं थी और वे भूमि की गहरी जुताई करते थे।

4. जंगलों में पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल, बेचने के लिए रेशम के कोया और राल और काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ, एकत्र करते थे। संथाल लोग इस प्रकार का कार्य नहीं करते थे।

5. पहाड़िया लोग प्रायः उन मैदानों पर आक्रमण किया करते थे जहाँ के स्थाई किसान खेती-बाड़ी करते थे। अभाव या अकाल के वर्षों में स्वयं को जीवित रखने के लिए ऐसे आक्रमण किये जाते थे। संथाल लोग इस प्रकार के कार्यों में रुचि नहीं लेते थे।

6. मैदानों में रहने वाले जमींदार पहाड़ी मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज देकर उनसे शांति खरीदनी पड़ती थी। पहाड़िया लोग व्यापारियों से पथकर लिया करते थे। पथकर लेकर वे व्यापारियों की रक्षा करते थे। संथाल ऐसा कार्य नहीं करते थे।

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प्रश्न 8.
अमेरिकी गृहयुद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
अमेरिकी गृहयुद्ध का भारत में समुदाय के जीवन पर प्रभाव –
1. 1860 के दशक से पूर्व ब्रिटेन अमेरिका से कपास आयात करता था जिसके बंद होने की आशंका बनी रहती थी। 1857 में ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य कंपनी की आय बढ़ाने के लिए विश्व के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था। भारत को ऐसा देश समझा गया जो अमेरिका से कपास की आपूर्ति बंद हो जाने की स्थिति में ब्रिटेन को कपास भेज सकता है। भारत से कपास का निर्यात, सस्ते दामों पर ब्रिटेन को होता था। रैयतों को इससे बहुत घाटा उठाना पड़ता था।

2. 1861 में अमेरिकी गृह-युद्ध छिड़ने के कारण कपास में कमी आने लगी और उसका दाम बढ़ने लगा। भारत और अन्य देशों से कपास की आपूर्ति होने लगी। इसके कारण भारतीय रैयतों को कपास का अच्छा दाम मिलने लगा।

3. दक्कन में किसानों को कपास उगाने के लिए खूब ऋण दिया गया । फलस्वरूप दक्कन से कपास के उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि हुई।

4. इंग्लैंड में कपास के कुल आयात का 90% भाग भारत से आयात होता था। परंतु कपास की उत्पादन की वृद्धि से भी रैयतों को पर्याप्त लाभ नहीं हुआ। वे कर्ज में दबे रहे।

5. 1865 ई. तक अमेरिका में शांति बहाल होने के साथ ही ब्रिटेन में अमेरिका से कपास पुनः आने लगी। इसके कारण भारतीय कपास के निर्यात में कमी आ गई। महाराष्ट्र में साहूकारों ने कर्ज देना बंद कर दिया और किसानों से ऋणों की वसूली करने लगे। इस प्रकार रैयतों को ऋण मिलना भी बंद हो गया और वे तबाह होने लगे।

प्रश्न 9.
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में क्या समस्याएँ आती हैं?
उत्तर:
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के विषय में आने वाली समस्याएँ:
किसानों का इतिहास लिखने में सरकारी स्रोतों के उपयोग के बारे में अनेक समस्याएँ आती हैं जो निम्नलिखित हैं –
1. सरकारी स्रोत सरकार के कार्यों से सम्बद्ध होते हैं। किसानों के बारे में इनसे विस्तृत और सही रिपोर्ट नहीं मिलती है।

2. सरकारी स्रोत में उल्लिखित विवरण सरकार के पक्ष में होते हैं। उसमें सरकारी कमियों को नहीं दिखाया जाता था। किसानों के हित की बात की जाती है परंतु अहित के बारे में नहीं लिखा जाता।

3. सरकारी स्रोत घटनाओं के बारे में सरकारी सरोकार और अर्थ प्रतिबिंबित करते हैं। उदाहरण के लिए-दक्कन दंगा आयोग से विशिष्ट रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग का स्तर विद्रोह का कारण था।

4. संपूर्ण प्रमाण प्रस्तुत करने के बाद आयोग ने यह सूचित किया था कि सरकारी माँग किसानों के गुस्से की वजह नहीं थी। इसमें पूरा दोष ऋणदाताओं या साहूकारों का ही था, जबकि ऐसा नहीं था। इसमें सरकारी माँग बहुत कुछ उत्तरदायी थी। ब्रिटिश सरकार यह मानने को कभी तैयार नहीं थी कि जनता में असंतोष या क्रोध सरकारी कार्यवाही के कारण उत्पन्न हुआ था।

5. सरकारी रिपोर्ट किसानों के इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए उपयोगी है परंतु उन्हें सावधानीपूर्वक पढ़ना पड़ेगा अन्य का तथ्य गलत हो सकते हैं।

6. सरकारी स्रोतों से प्राप्त जानकारी का समाचारपत्रों, गैर सरकारी वृत्तान्तों, विधिक अभिलेखों और यथासंभव मौखिक स्रोतों से संकलित साक्ष्य के साथ मिलान करके उनकी विश्वसनीयता की जाँच करनी पड़ेगी।

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मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
उपमहाद्वीप के बाह्यरेखा मानचित्र (खाके) में इस अध्याय में वर्णित क्षेत्रों को अंकित कीजिए। यह भी पता लगाइये कि क्या ऐसा भी कोई इलाका था जहाँ इस्तमरारी बंदोबस्त और रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू थी। ऐसे इलाकों को मानचित्र में भी अंकित कीजिए।
उत्तर:
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परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
फ्रांसिस बुकानन ने पूर्वी भारत के अनेक जिलों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उनमें से एक रिपोर्ट पढ़िए और इस अध्याय में चर्चित विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हुए उस रिपोर्ट में ग्रामीण समाज के बारे में उपलब्ध जानकारी को संकलित कीजिए। यह भी बताइए कि इतिहासकार लोग ऐसी रिपोर्टों का किस प्रकार उपयोग कर सकते हैं।
उत्तर:
छात्र स्वयं करे।

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प्रश्न 12.
आप जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ के ग्रामीण समुदाय के वृद्धजनों से चर्चा कीजिए और उन खेतों में जाइए जिन्हें वे अब जोतते हैं। यह पता लगाइए कि वे क्या पैदा करते हैं, वे अपनी रोजी-रोटी कैसे कमाते हैं, उनके माता-पिता क्या करते थे, उनके बेटे-बेटियाँ अब क्या करते हैं और पिछले 75 सालों में उनके जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए हैं। अपने निष्कर्षों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History उपनिवेशवाद और देहात : सरकारी अभिलेखों का अध्ययन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जमींदार राजस्व क्यों नहीं अदा कर पाते थे?
उत्तर:

  1. सरकार के भूराजस्व की प्रारंभिक मांगें बहुत ऊँची थी, क्योंकि स्थाई बंदोबस्त में कई वर्षों तक एक निश्चित भूराजस्व का अनुबंध किया गया था। कंपनी ने महसूस किया कि आगे चलकर कीमतों में बढ़ोत्तरी होने और खेती का विस्तार होने से आय में वृद्धि होगी परंतु कंपनी उस वृद्धि में अपने हिस्से का दावा नहीं कर सकेगी।
  2. 1793 में कृषि वस्तुओं की दरें नीची थीं। इस कारण रैयत के लिए जमींदारों के ऊँची राजस्व राशि चुकाना मुश्किल था।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद का क्या अर्थ है ? उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:

  1. उपनिवेशवाद वह विचारधारा है जिसमें एक ताकतवर देश दूसरे कमजोर देश पर अधिकार कर लेता है और उनके संसाधनों का मनमाने ढंग से उपयोग करने लगता है।
  2. भारत कभी ब्रिटेन का एक उपनिवेश था। ब्रिटेन के उपनिवेशवाद की वजह से ही भारत गुलाम हुआ और उसके संसाधनों का शोषण हुआ।

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प्रश्न 3.
इस्तमरारी बंदोबस्त कब, किसने और कहाँ लागू किया? इसमें क्या व्यवस्था की गई?
उत्तर:

  1. इस्तमरारी बंदोबस्त 1793 ई. में बंगाल के गवर्नर चार्ल्स कार्नवालिस द्वारा बंगाल प्रान्त में लागू किया गया।
  2. इस बंदोबस्त के अंतर्गत बंगाल की सम्पूर्ण कृषि योग्य भूमि जमींदार को दे दी गई। इस सम्पदा पर निर्धारित भूराजस्व को जमींदार निश्चित समय पर सरकारी खजाने में जमा करते थे अन्यथा उनकी जमीन नीलाम कर दी जाती थी।

प्रश्न 4.
1770 के दशक में बंगाल की ग्रामीण अर्थव्यवस्था क्यों खराब हो गई?
उत्तर:

  1. बंगाल में बार-बार अकाल पड़ रहे थे और खेती की पैदावार घटती जा रही थी।
  2. खेती के विकास के लिए सरकार कोई निवेश नहीं कर रही थी जबकि राजस्व की दर लगातार बढ़ाई जा रही थी।

प्रश्न 5.
जोतदार और मंडल जमींदार से क्यों नहीं डरते थे?
उत्तर:

  1. जोतदार एक धनी रैयत होता था जबकि मंडल गाँव का मुखिया होता था। दोनों जमींदार के अधीन होते थे। वे डरते नहीं थे बल्कि जमींदारों को परेशान देखकर खुश होते थे।
  2. वस्तुत: जमींदार आसानी से उन पर अपनी ताकत का इस्तेमाल नहीं कर सकता था। जमींदार बाकीदारों पर मुकदमा तो चला सकता था मगर न्यायिक प्रक्रिया बहुत लंबी होती थी।

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प्रश्न 6.
ताल्लुकदार कौन थे?
उत्तर:

  1. ताल्लुकदार का शाब्दिक अर्थ है-वह व्यक्ति जिसके साथ ताल्लुक या सम्बन्ध हो। परंतु आगे चलकर ताल्लुक का अर्थ क्षेत्रीय इकाई हो गया। ताल्लुकदार क्षेत्रीय इकाई का स्वामी होता था।
  2. ब्रिटिश सरकार ने इस्तमरारी बंदोबस्त के अधीन बंगाल के राजाओं और ताल्लुकदारों के साथ अनुबंध किया।

प्रश्न 7.
सूर्यास्त कानून क्या है?
उत्तर:

  1. फसल अच्छी हो या खराब, राजस्व का ठीक समय पर भुगतान जरूरी था। इस कानून के अनुसार निश्चित तिथि को सूर्य डूबने तक भुगतान हो जाना चाहिए।
  2. यदि ऐसा नहीं होता तो जमींदारी को नीलाम किया जा सकता था। इस प्रकार जमींदार को जमीन से हाथ, धोना पड़ता था।

प्रश्न 8.
19 वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में जमींदारों की स्थिति कैसे मजबूत बनी?
उत्तर:

  1. इस अवधि में राजस्व के भुगतान संबंधी नियमों को लचीला बना दिया गया था। इससे गाँवों पर जमींदार की सत्ता और अधिक मजबूत हो गई।
  2. 19 वीं शताब्दी के प्रारंभ में कृषि उत्पादों की कीमतों में बढ़ोत्तरी होने लगी थी।

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प्रश्न 9.
गाँवों में जोतदारों की शक्ति, जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली होती थी। क्यों?
उत्तर:

  1. जमींदार शहर में रहते थे और राजस्व की वसूली के लिए गाँवों में अपने अमलों (अधिकारी) को भेजते थे। जोतदार गाँवों में रहते थे और गरीब ग्रामवासियों के एक बड़े वर्ग पर नियंत्रण रखते थे।
  2. जब जमींदार गाँवों में लगान बढ़ाना चाहते थे तो जोतदार इसका विरोध करते थे और अंग्रेज अधिकारियों के कार्यों में बाधा उत्पन्न करने थे। इससे वे अपने साथ के रैयतों में लोकप्रिय थे।

प्रश्न 10.
पहाड़िया लोगों के जीविका के क्या साधन थे?
उत्तर:

  1. राजमहल के जंगलों में रहने वाले पहाड़िया लोग खाने के लिए महुआ के फूल एकत्र करते थे, बेचने के लिए रेशम का कोया, राल और काष्ठ कोयला बनाने के लिए लकड़ियाँ एकत्र करते थे।
  2. पेड़ों के नीचे जमने वाली घासों पर उनके पशु जीवित रहते थे और ये घासें पशुओं के लिए चरागाह बन जाती थी।

प्रश्न 11.
पहाड़िया लोगों के आवास और स्वभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. वे लोग जंगलों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े थे। वे इमली के पेड़ों के बीच बनी अपनी झोंपड़ियों में रहते थे और आम के पेड़ों के नीचे आराम करते थे।
  2. वे सम्पूर्ण प्रदेशों को अपनी निजी भूमि मानते थे और यह भूमि उनकी पहचान और जीवन का आधार थी। वे शहरी लोगों को अपनी जमीन में घुसने देना नहीं चाहते थे। उनके मुखिया लोग अपने समूह में एकता बनाये रखते थे और अपने झगड़े आपस में ही निपटा लेते थे।

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प्रश्न 12.
संथाल लोग राजमहल की पहाड़ियों में कैसे पहुँचे?
उत्तर:

  1. संथाल लोग बंगाल में जमींदारों के लिए नई भूमि तैयार करने और खेती के विस्तार के लिए भाड़े पर काम करते थे। ब्रिटिश उद्यमियों ने इन्हें राजमहल पहाड़ियों में बसने का न्यौता दिया।
  2. अंग्रेज अधिकारी पहाड़ियों के कृषि कार्य से संतुष्ट नहीं थे। संथाल मेहनती थे और जंगल को शीघ्र साफ करके खेत तैयार कर देते थे और खेतों की अच्छी जुताई करते थे।

प्रश्न 13.
पाँचवीं रिपोर्ट क्या है?
उत्तर:

  1. भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के प्रशासनिक तौर तरीकों तथा क्रियाकलापों व तैयार की गई और ब्रिटिश संसद में पेश की गई रिपोर्ट को पाँचवीं रिपोर्ट कहते हैं। यह रिपोर्ट 1002 पृष्ठों की थी जिसमें 800 से अधिक पृष्ठ परिशिष्टों के थे।
  2. इसमें जमींदारों और रैयतों की अर्जियाँ, भिन्न-भिन्न जिलों के कलेक्टरों की रिपोर्ट, राजस्व विवरणियों से सम्बन्धित सांख्यिकीय तालिकाएँ और अधिकारियों की बंगाल और मद्रास के राजस्व तथा न्यायिक प्रशासन पर लिखित टिप्पणियाँ शामिल की गई थीं।

प्रश्न 14.
पाँचवीं रिपोर्ट की दो कमियाँ बताइये।
उत्तर:

  1. पाँचवीं रिपोर्ट लिखने वाले कंपनी के कुप्रशासन की आलोचना करने का आशय रखते थे। उल्लेखनीय है कि पाँचवीं रिपोर्ट में परम्परागत जमींदारी सत्ता के पतन का वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण है।
  2. जमींदारों द्वारा जमीन खोने का भी अतिरंजित वर्णन किया गया है। जब जमींदारियाँ नीलाम की जाती थी, तो जमींदार नए-नए हथकंडे अपनाकर अपनी जमींदारी को बचा लेते थे और बहुत कम जमीन छीनी जाती थी।

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प्रश्न 15.
महालवाड़ी व्यवस्था के दोष बताइए।
उत्तर:
दोष:
इस भूमि व्यवस्था में निम्नलिखित दोष थे:
1. नम्बरदारों के विशेषाधिकार:
नम्बरदारों व अन्य विशिष्ट लोगों की सरकार तक पहुँच थी क्योंकि ये ही सरकार के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करते थे। इस स्थिति का वे अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग करते थे। इस व्यवस्था में भी मध्यस्थता करने वाले व्यक्ति विद्यमान रहते थे।

2. छोटे किसानों की दयनीय स्थिति:
गाँवों के बड़े-बड़े जमींदार तथा मान्यता प्राप्त व्यक्ति अपनी स्थिति का लाभ उठाकर छोटे किसानों पर अत्याचार करते थे और उनसे बेगार लेते थे। वे इन किसानों की भूमि को अपने अधिकार में कर लेते थे और अन्ततः बड़े किसानों के नौकर के रूप में काम करने पर मजबूर हो जाते थे। इन कारणों से उनकी स्थिति दयनीय बन गई थी।

प्रश्न 16.
रैयतवाड़ी राजस्व प्रणाली क्या है?
उत्तर:

  1. रैयत का अर्थ किसान है। यह प्रणाली कंपनी और रैयत के मध्य लगान संबंधी सीधा इकरारनामा (ठेका) थी। इसके अनुसार समय-समय पर लगान बढ़ाया जा सकता था।
  2. यह राजस्व प्रणाली मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसियों में लागू की गई।

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प्रश्न 17.
किसानों के सूपा आंदोलन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. किसान व्यापारियों और साहूकारों से चिढ़े हुए थे। उन्होंने पूना जिले के सूपा गाँव में आंदोलन शुरू कर दिया। यहाँ एक मंडी थी जहाँ अनेक व्यापारी और साहूकार रहते थे।
  2. 12 मई, 1875 को आस-पास के ग्रामीण इलाकों के किसान एकत्र हो गये। उन्होंने व्यापारियों और साहूकारों पर आक्रमण कर दिया और उनकी बहियाँ तथा ऋणपत्र जला दिये, उनकी दुकानें लूट ली और कुछ मामलों में तो साहूकारों के घरों में आग भी लगा दी।

प्रश्न 18.
डेविड रिकार्डो कौन था?
उत्तर:

  1. डेविड रिकार्डों इंग्लैंड का एक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री था। भारत में ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने महाविद्यालयी जीवन में रिकार्डों के विचारों का अध्ययन किया था।
  2. 1820 के दशक में महाराष्ट्र में ब्रिटिश अधिकारियों में बंदोबस्त की शर्त तय करने के लिए रिकार्डो के विचारों का सहारा लिया।

प्रश्न 19.
जमींदारों को कृषकों से लगान (भू-राजस्व) एकत्र करने में किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था?
उत्तर:

  1. प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों की फसल खराब हो जाने से वे लगान देने में असमर्थ हो जाते थे। कभी-कभी उपज का दाम भी बहुत गिर जाता था।
  2. किसान कभी-कभी स्वयं भी भूराजस्व देने में विलम्ब करते थे जबकि जमींदारों के समय पर लगान जमा करना होता था।

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प्रश्न 20.
दामिन-ए-कोह क्या है?
उत्तर:

  1. 1832 में अंग्रेजों ने राजमहल के पहाड़ी प्रदेश में जमीन के एक बहुत बड़े भाग को सीमित कर दिया और इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया।
  2. यहाँ संथालों को कृषि करने के लिए प्रेरित किया गया। इस भूमि को ‘दामिन-ए-कोह’ नाम दिया गया।

प्रश्न 21.
ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना कब हुई? इसके क्या उद्देश्य थे?
उत्तर:

  1. ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना 1857 में हुई।
  2. इस संघ का उद्देश्य विश्व के प्रत्येक भाग में कपास के उत्पादन को प्रोत्साहित करना था जिससे कि इंग्लैण्ड की मैनचेस्टर कॉटन कंपनी का विकास हो सके। उल्लेखनीय है कि भारत को इसके लिए अनुकूल माना गया और प्रोत्साहन के लिए कपास उगाने वाले किसानों को खूब कर्ज दिया गया।

प्रश्न 22.
दक्कन दंगा आयोग क्यों स्थापित किया गया?
उत्तर:

  1. दक्कन में हुए दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए जिस आयोग की स्थापना की गई उसे दक्कन दंगा आयोग कहते हैं।
  2. ब्रिटिश सरकार 1857 के विद्रोह की याद से चिंतित थी। वह नहीं चाहती थी कि भारत में फिर से इसी प्रकार का विद्रोह हो।

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प्रश्न 23.
जमींदारी को नियंत्रित और उनकी आजादी समाप्त करने के लिए अंग्रेजी कंपनी ने क्या कदम उठाये?
उत्तर:

  1. जमींदारों से स्थानीय न्याय तथा स्थानीय पुलिस व्यवस्था का अधिकार छीन लिया गया।
  2. उनकी कचहरियों को कंपनी द्वारा नियुक्त कलेक्टर के अधीन कर दिया गया।
  3. जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया गया।
  4. सीमा शुल्क लेने का अधिकार छीन लिया गया।

प्रश्न 24.
1832 ई. के बाद कृषकों को ऋण लेने के लिए विवश होना पड़ा। क्यों?
उत्तर:

  1. 1832 ई. के बाद कृषि उत्पादों के मूल्यों में तेजी से गिरावट आई और लगभग डेढ़ दशक तक यही स्थिति बनी रही। इसके कारण किसानों की आमदनी घट गई।
  2. 1832-34 के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रो में अकाल फैल गया। इसमें जन-धन की विपुल हानि हुई। वस्तुतः किसानों के पास खाने को पर्याप्त खाद्यान्न भी न रहा। दूसरी भूराजस्व की बकाया राशि भी बढ़ती जा रही थी। ऐसी स्थिति में ऋण लेने के अलावा किसानों के पास कोई अन्य विकल्प शेष न रहा।

प्रश्न 25.
बटाईदार (बकगादार) कौन थे?
उत्तर:

  1. बटाईदार एक प्रकार के किसान थे जो जोतदारों की जमीन पर खेती करते थे। वे अपने हल का प्रयोग करके फसल उगाते थे।
  2. उपज तैयार होने पर ये लोग उसका आधा भाग जोतदार को देते थे।

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प्रश्न 26.
ग्रामीण जोतदार जमींदारों से अधिक शक्तिशाली क्यों होते थे?
उत्तर:

  1. जोतदार गाँवों में गरीब किसानों के साथ रहते थे। किसानों को उनका समर्थन प्राप्त था, जमींदार शहरों में रहते थे और किसानों पर उनका नियंत्रण नाममात्र के लिए था।
  2. जमींदारों की नीलाम होने वाली जमींदारी प्राय: जोतदार ही खरीदते थे।

प्रश्न 27.
ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ तथा मैनचेस्टर में कॉटन कंपनी की स्थापना कब हुई? इनका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:

  1. ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ की स्थापना 1857 में हुई और मैनचेस्टर कॉटन कंपनी 1859 में बनी।
  2. इनका उद्देश्य विश्व के सभी स्थानों पर कपास के उत्पादन को बढ़ावा देने का था।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जोतदारों की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जोतदारों की स्थिति –

  1. बंगाल के दिनाजपुर जिले के किसानों को जोतदार कहा गया है। 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में इनके पास बड़े-बड़े रकबे होते थे जो कभी-कभी कई हजार एकड़ तक विस्तृत होते थे।
  2. स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी उनका नियंत्रण होता था और इस प्रकार वे उस क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर व्यापक शक्ति का प्रयोग करते थे।
  3. उनकी जमीन का काफी बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था और उन्हें उपज का आधा भाग मिलता था।
  4. गाँवों में जोतदारों की शक्ति जमींदारों की ताकत की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली थी। वे गाँवों में रहते थे और ग्रामीणों में काफी लोकप्रिय थे। इसके विपरीत जमींदार शहरों में रहते थे और गाँवों में उनकी धाक नहीं थी।
  5. जोतदार ग्रामीणों को जमींदारों के विरुद्ध भड़काते थे और उन्हें भूराजस्व न देने के लिए प्रेरित करते थे। वे जमींदारों से विल्कुल भी नहीं डरते थे।

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प्रश्न 2.
भारत में इस्तमरारी बंदोबस्त या स्थायी भूमि व्यवस्था किस प्रकार लागू की गई?
उत्तर:
भारत में इस्तमरारी या स्थायी भूमि व्यवस्था-पिट के इण्डिया एक्ट के अनुसार भारत में कंपनी ने राजस्व एकत्र करने की प्रणाली में सुधार करना था। 1786 ई. में कंपनी के. डायरेक्टरों ने कार्नवालिस को लिखा कि वह जमींदारों के साथ पहले 10 वर्ष के लिए एक समझौता करें तथा यह व्यवस्था यदि संतोषजनक सिद्ध हो तो इसे स्थायी बना दिया जाए।

कार्नवालिस ने कोई जल्दबाजी ने की। उसने बंगाल प्रशासन के एक अनुभवी सदस्य सर जान शोर को राजस्व एकत्र करने की व्यवस्था की जाँच करने का कार्य सौंपा। सर जान शोर ने 1789 ई. तक यह जाँच पूरी की तथा 10 वर्ष के लिए भूमि व्यवस्था की सिफारिश की। इसको बाद में स्थायी व्यवस्था बनाने की सिफारिश की गई थी। कार्नवालिस स्वयं इस निर्णय को स्थायी बनाने के पक्ष में था क्योंकि प्रधानमंत्री पिट तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल के प्रधान सदैव कार्नवालिस की पीठ पर थे। सर जॉन शोर की सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं तथा 1793 ई. में स्थायी भूमि. व्यवस्था लागू कर दी गई। इससे जमींदार सरकार के समर्थक बन गए।

प्रश्न 3.
कंपनी ने जमींदारों को किस प्रकार नियंत्रित अथवा विनियमित किया?
उत्तर:
कंपनी द्वारा अपनाए गए जमींदारों को नियंत्रित एवं विनियमित करने के उपाय –

  1. यद्यपि कंपनी जमींदारों का आदर करती थी परंतु उन्हें अपने नियंत्रण में रखना चाहती थी। उसने जमींदारों की सैनिक टुकड़ियों को भंग कर दिया सीमा शुल्क समाप्त कर दिया गया और उनकी कचहरियों का निरीक्षण करने के लिए कलेक्टरों की नियुक्ति कर दी।
  2. जमींदारों से न्याय एवं स्थानीय पुलिस की व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।
  3. कलेक्टर कार्यालय की स्थापना करके जमींदारों के अधिकार को पूरी तरह सीमित एवं प्रतिबंधित कर दिया गया।
  4. कहीं-कहीं तो खुलेआम आदेश दिया गया कि राजा तथा उसके अधिकारियों के सम्पूर्ण प्रभाव और प्राधिकार को खत्म कर देने के लिए सर्वाधिक प्रभावशाली कदम उठाए जाएँ।

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प्रश्न 4.
ब्रिटिश सरकार ने भारत में नई राजस्व प्रणालियाँ क्यों लागू की?
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में नई राजस्व प्रणालियाँ लागू करने के कारण –

  1. 1810 ई. के पश्चात् कृषि की कीमत बढ़ गई। इससे उपज के मूल्य में वृद्धि हुई और बंगाल के जमींदारों की आमदनी भी बढ़ गई।
  2. राजस्व की माँग इस्तमरारी बंदोबस्त के अंतर्गत तय की गई थी इसलिए ब्रिटिश सरकार इस बढ़ी हुई आय में अपने हिस्से का कोई दावा नहीं कर सकती थी।
  3. ब्रिटिश सरकार अपने वित्तीय संसाधनों को बढ़ाना चाहती थी। इसलिए उसे. भूराजस्व को अधिक से अधिक बढ़ाने के तरीकों पर विचार करना पड़ा।
  4. नीतियाँ निर्धारित करने वाले अधिकारी इंग्लैंड के जाने-माने अर्थशास्त्री डेविड रिकार्डों के विचारों से प्रभावित थे। उसके अनुसार भूस्वामी को उस समय लागू औसत लगानों को प्राप्त करने का हक होना चाहिए।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड में ईस्ट इण्डिया कंपनी के विरुद्ध किन बातों को लेकर विरोध होता था?
उत्तर:
इंग्लैंड में ईस्ट इण्डिया कंपनी के विरुद्ध विरोध की बातें –

  1. भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन की स्थापना के साथ इंग्लैंड में उसकी आलोचना होने लगी। अनेक लोग भारत तथा चीन के साथ व्यापार पर ईस्ट इण्डिया कंपनी के एकाधिकार का विरोध करते थे। वस्तुत: कुछ अन्य समूह भी भारत तथा चीन के साथ व्यापार में हिस्सेदार बनना चाहते थे।
  2. लोग उस शाही फरमान को रद्द करने की मांग कर रहे थे जिसके अंतर्गत इस कंपनी को एकाधिकार दिया गया था।
  3. ऐसे निजी व्यापारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी जो भारत के साथ व्यापार में रुचि ले रहे थे और ब्रिटेन के उद्योपगति ब्रिटिश विनिर्याताओं के लिए भारत का बाजार खुलवाने के लिए उत्सुक थे।
  4. कंपनी के कुशासन और अव्यवस्थित प्रशासन के विषय में प्राप्त सूचना पर ब्रिटेन में तीव्र प्रतिक्रिया हो रही थी।
  5. अधिकारियों के लोभ-लालच और भ्रष्टाचार की घटनाओं को ब्रिटेन के समाचार-पत्रों में व्यापक रूप से उछाला जा रहा था।

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प्रश्न 6.
बुकानन कौन था? उसकी प्रेक्षण शक्ति का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बुकानन एवं उसकी प्रेक्षण शक्ति –

  1. फ्रांसिस बुकानन एक चिकित्सक था। भारत आने के बाद बंगाल चिकित्सा सेवा में कार्य किया। उसने लार्ड वेलेज्ली की शल्य चिकित्सा भी की।
  2. बुकानन में अद्भुत प्रेक्षण शक्ति थी। उसने पत्थरों, चट्टानों और वहाँ की भूमि के भिन्न स्तरों तथा परतों को ध्यानपूर्वक देखा और उत्पादन के लिए अध्ययन किया।
  3. उसने व्यापारिक दृष्टि से मूल्यावन पत्थरों तथा खनिजों को खोजने की कोशिश की।
  4. उसने लौह खनिज, अबरक, ग्रेनाइंट तथा साल्ट-पीटर से संबंधित सभी स्थानों का पता लगाया। वह भूमि का प्रेक्षण उसकी उत्पादकता के आधार पर करता था।

प्रश्न 7.
रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोष:
1. व्यवस्था स्थायी न होना:
इस व्यवस्था की सबसे बड़ी कमी यह थी कि यह स्थायी न थी। इसके कारण किसानों की भूमि में रुचि उत्पन्न नहीं की जा सकी। किसानों को यह आशंका रहती थी कि उनका लगान अधिक आंका गया है अत: वे नए समझौते करने के लिए उत्साहित नहीं होते थे।

2. जमीन जब्त किए जाने की व्यवस्था:
रैयतवाड़ी व्यवस्था के अनुसार जब तक किसान अपनी भूमि का मालिक केवल लगान दिए जाने तक रहता था। यदि लगान देने में वह किसी कारणवश असमर्थ हो जाता था तो उसकी भूमि सरकार जब्त कर लेती थी।

3. सरकारी कर्मचारी द्वारा लगान अधिक आंकना:
वैज्ञानिक व्यवस्था होते हुए भी सरकारी कर्मचारी सामान्यतः ऊँची दर से लगान आँकते थे, जिससे किसान का न केवल उत्साह भंग होता था बल्कि लगान चुकाने की एक कठिन समस्या बन जाती थी।

4. लगान वसूल करने वाले कर्मचारियों के अत्याचार:
लगान वसूल करने वाले कंपनी के कर्मचारी किसानों पर घोर अत्याचार करते थे और बड़ी कड़ाई से लगान वसूल करते थे। किसान डर के मारे महाजन से ऊँची दरों पर कर्ज लेकर भी लगान चुकाते थे और भविष्य के लिए सदा कर्जदार बने रहते थे। किसान जमींदारों के चंगुल से निकलकर राज्य के चंगुल में फंस गए लेकिन बाद में सरकार ने स्पष्ट किया कि राजस्व कर नहीं बल्कि लगान है।

5. प्राकृतिक प्रकोपों के समय भी सुविधाओं का अभाव:
सरकार की ओर से कृषि उत्पादन में किसी प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं होती थी। उपज बढ़ाने लिए किसान को ही प्रयास करना होता था। प्राकृतिक प्रकोपों-अनावृष्टि अथवा अतिवृष्टि-के समय भी उन्हें किसी प्रकार की राहत नहीं दी जाती थी। इसके विपरीत इन कठिन परिस्थितियों में भी उन्हें समय पर पूरा लगान देना होता था।

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प्रश्न 8.
ब्रिटिश-शासन की भूराजस्व व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश-शासन की भू-राजस्व व्यवस्था:
यह तीन प्रकार की थी:
1. स्थाई बंदोबस्त:
लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई. में बंगाल में स्थाई बंदोबस्त आरम्भ किया। इसके अंतर्गत लगान सदा के लिए निश्चित कर दिया गया और लगान एकत्र करने वालों को जमींदार बना दिया गया।

2. रैयतवाड़ी:
मद्रास और बम्बई प्रेसिडेन्सियों में रैयतवाड़ी बंदोबस्त आरम्भ किया गया। यह कंपनी और रैयत (किसान) के मध्य लगान संबंधी सीधा इकरारनामा (ठेका) था। समय-समय पर लगान बढ़ाया जा सकता था।

3. महालवाड़ी:
इसके अंतर्गत लगान का समझौता कंपनी और गाँव या महाल के मध्य हुआ। यह उत्तर और मध्य भारत में लागू किया गया।

प्रश्न 9.
स्थाई बंदोबस्त के तीन दूरगामी परिणाम बताइये।
उत्तर:
स्थाई बंदोबस्त के दूरगामी परिणाम –

  1. कंपनी की लगान राशि निश्चित हो गई जिससे उसे बजट बनाने में सुविधा हो गई।
  2. इस व्यवस्था के कारण किसानों का शोषण बढ़ गया। जमींदारों को रैयत द्वारा दी जाने वाली लगान की राशि निश्चित की गयी थी तथापि जमींदारों ने किसान से ली जाने वाली लगान की राशि निश्चित नहीं की थी। वे किसानों से मनमानी दर पर राजस्व वसूल करने लगे।
  3. इस बंदोबस्त ने किसानों की दशा बद से बदतर बना डाली। जमींदारों के दलाल किसानों पर और अधिक अत्याचार करते थे।

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प्रश्न 10.
इस्तमरारी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
1. स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement):
इस व्यवस्था में सबसे ऊँची बोली लगाने वाले व्यक्ति को भू-राजस्व इकट्ठा करने का अधिकार दिया जाता था। इससे न तो रैयत (किसान) और न ही जमींदार, कृषि में सुधार करने का प्रयास करते थे क्योंकि वे जानते थे कि आगे लगान इकट्ठा करने का अधिकार और किसी को मिल सकता है। स्थायी बंदोबस्त की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं –

  • जमींदारों और मालगुजारों को भू-स्वामी बना दिया गया।
  • काश्तकारों का दर्जा गिर गया और वे बटाईदार होकर रह रहे थे। जमींदार स्वेच्छा से किसान को भूमि जोतने के लिए देता था अन्यथा किसान हाथ पर हाथ धरे रहता था।
  • भू-राजस्व निश्चित होने के कारण सरकार की आय भी निश्चित हो गई थी।
  • अगर भू-राजस्व समय पर जमा नहीं कराया जाता था तो किसान की भूमि नीलाम कर दी जाती थी या उसे जब्त कर लिया जाता था।

प्रश्न 11.
महालवाड़ी राजस्व व्यवस्था की विशेषतायें बताइये।
उत्तर:
महालवाड़ी राजस्व व्यवस्था की विशेषताएँ:
जिस प्रकार बंगाल में स्थायी भूमि व्यवस्था तथा दक्षिण में रैयतवाड़ी भूमि व्यवस्था लागू थी। उसी प्रकार उत्तर प्रदेश के अधिकांश भागों तथा पंजाब व मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों में महालवाड़ी (ग्रामानुसार) भूमि व्यवस्था प्रारंभ की गई। इस व्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं –

1. लगान का एक निश्चित अवधि के लिए निर्धारण:
इस व्यवस्था में लगान 30 या 20 वर्ष की निश्चित अवधि के लिए निर्धारित किया जाता था और इस अवधि के पश्चात् उसका पुनर्निर्धारण होता था।

2. समझौता सरकार व सम्पूर्ण ग्राम के साथ था:
महालवाड़ी भूमि व्यवस्था के अन्तर्गत समझौता रैयतवाड़ी के अनुसर अलग-अलग किसानों के साथ नहीं, बल्कि सारे गाँव के साथ किया जाता था। इस प्रकार लगान की अदायगी के लिए सारा गाँव सम्मिलित रूप से तथा गाँव का प्रत्येक किसान अलग-अलग, सारे ग्राम के लगान के प्रति उत्तरदायी था।

3. ग्राम के नम्बरदार की विशेष भूमिका:
ग्राम की ओर से सरकार के द्वारा दिए जाने वाले सम्पूर्ण लगान के संबंध में समझौते पर ग्राम का नम्बरदार हस्ताक्षर करता था। उसकी दोनों पक्षों के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण स्थिति हो जाती थी।

4. लगान देते रहने तक किसान जमीन का मालिक:
प्रत्येक ग्रामवासी सम्पूर्ण ग्राम द्वारा जाने वाली राशि में अपनी जोत का भाग देता था तथा अन्यों को अपना-अपना भाग देने को प्रोत्साहित करता था, जिससे सम्पूर्ण ग्राम का भाग दिया जा सके। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं दे पाता था, तो उसे बेदखल कर दिया जाता था।

5. किसानों की भूमि का ब्यौरा:
सरकारी कर्मचारी ग्राम के नम्बरदार तथा ग्राम पंचायत से परामर्श करके किसानों के लगान निश्चित करते थे। किसानों को उनकी जमीन का अधिकार-पत्र मिले हुए थे। इन पर लगान की राशि अंकित की जाती थी। सम्पूर्ण ग्राम की जमीन के नक्शे में इस बात का विवरण होता था कि किस व्यक्ति के पास कितनी भूमि है तथा उससे कितना लगान प्राप्त होना है।

6. जमीन की उत्पादकता की जानकारी:
चूँकि सरकार को एक निश्चित समय के पश्चात् लगान की राशि निर्धारित करनी होती थी। इस कारण समय-समय पर जमीन की उत्पादकता की जाँच करने का अवसर भी सरकार को प्राप्त हो जाता था। एक बार निर्धारित की गई राशि उस सम्पूर्ण अवधि भर चलती थी।

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प्रश्न 12.
अंग्रेजों ने जमींदारों के साथ समझौता करके और कृषकों के अधिकारों की अवहेलना करके भयंकर भूल की। क्यों?
उत्तर:
अंग्रेजों की भयंकर भूल-अंग्रेजों ने भिन्न:
भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न भू-राजस्व प्रणालियाँ लागू कर रखी थीं। पूरे साम्राज्य में एक जैसी भू-राजस्व प्रणाली न थी। बंगाल, बिहार और उड़ीसा में स्थायी बंदोबस्त था परंतु दक्षिणी-पश्चिमी भारत में रैयतवाड़ी प्रथा थी, जबकि उत्तरी भारत के कुछ क्षेत्रों में महालवाड़ी प्रथा थी। इन तीनों प्रथाओं से कंपनी और जमींदारों के हित साधन तो होते थे परंतु किसान शोषण की चक्की में पिसता जाता था। भूमि सुधारों की ओर किसी का भी ध्यान न था। वे अपना काम केवल कर वसूल करना समझते थे।

अंग्रेज अपने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए चाय, जूट, अफीम, कहवा, नील आदि की खेती पर जोर देते थे। जमींदार भी बड़े-बड़े शहरों में सुंदर बंगलों में रहकर क्लिासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते थे। उनके कारिंदे किसानों से बड़ी बेरहमी से कर वसूल करते थे। समय पर कर देने के लिए किसान अपने पशु, घर, गहने आदि गिरवी रख देता या। बेच देता था गाँव का महाजन ऊँची दर पर कर्ज देता था। अकाल आदि प्राकृतिक विपदाओं में भी किसानों को सरकार की ओर से कोई सहायता न मिलती थी। उन्हें सिंचाई जैसी मूल आवश्यकता को पूरा करने में भी सरकार की ओर से कोई सहायता न दी जाती थी।

प्रश्न 13.
स्थायी बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त से क्या लाभ हुए?
उत्तर:
स्थाई बन्दोबस्त से लाभ (Benefit of Permanent Settlement):

  1. कंपनी को एक निर्धारित समय पर एक निश्चित धन राशि मिल जाती थी।
  2. अंग्रेज वफादार जमींदारों से लाभ कमाते थे और बेईमान जमींदारों की भूमि नीलाम कर देते थे।
  3. कंपनी भू-राजस्व की वसूली से संबंधित बेकार के खर्चों से बच गई।
  4. जमींदारों को भी काफी लाभ पहुँचा, क्योंकि इस व्यवस्था के अनुसार इन्हें सरकारी कोष में एक निश्चित धनराशि ही जमा करवानी पड़ती थी लेकिन वे किसानों से मनमानी धनराशि लेते थे।
  5. भूमि जमींदारों की बपौती बन गई।
  6. जमींदार पूँजीपति बन गये। उनके पास बड़े-बड़े बंगले और विलास सामग्री आ गई।

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प्रश्न 14.
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? उसके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव क्या थे?
उत्तर:
रैयतवाड़ी व्यवस्था:
दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम भारत में लागू की गई इस व्यवस्था के अन्तर्गत किसान भू-राजस्व का भुगतान करते रहने तक ही भूमि का स्वामी था। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना था कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले से प्रचलित थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित ‘त्रुटियाँ थीं –

  • भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
  • भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
  • सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।

प्रभाव (Effect):

  • इससे समाज ने असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
  • सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा ही होता रहा।

प्रश्न 15.
पहाड़िया लोगों के जीवन की मुख्य विशेषतायें बताइए।
उत्तर:
पहाडिया लोगों के जीवन की विशेषतायें –

  1. पहाड़िया लोग पूरे प्रदेश को अपनी निजी भूमि मानते थे।
  2. वे इमली के पेड़ों के नीचे झोपड़ियाँ बनाकर रहते थे और आम की छाया में आराम करते थे।
  3. वे अपने प्रदेश में बाहरी लोगों के प्रवेश पर विरोध करते थे।
  4. उनके मुखिया अपने-अपने समूह में एकता बनाये रखते थे और उनके आपसी लड़ाई-झगड़े निपटाते थे। जनजातियों तथा मैदानी लोगों से लड़ाई छिड़ने पर वे अपने-अपने कबीले का नेतृत्व करते थे।
  5. वे जंगलों में शिकार करते थे और झूम खेती करते थे। जंगल से वे खाद्य पदार्थ, रेशम का कोया तथा लकड़ी भी एकत्र करते थे।

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प्रश्न 16.
जमींदार रैयत (किसान) से भूराजस्व की वसूली कैसे करते थे? उनके लिए भूराजस्व वसूली एक समस्या क्यों थी?
उत्तर:
जमींदारों द्वारा रैयत से भूराजस्व की वसूली –

  1. रैयत से भूराजस्व की वसूली के लिए जमींदार अपने एक अधिकारी को भेजता था जिसको ‘अमला’ कहा जाता था।
  2. राजस्व वसूली में कई परेशानियाँ होती थीं। खराब फसल तथा उपज की निम्न कीमत होने पर रैयत भूराजस्व नहीं देता था।
  3. रैयत भूराजस्व देने में जानबूझकर विलम्ब करता था।
  4. धनी किसान और गाँव का मुखिया किसान को भूराजस्व न देने के लिए बहका देता था। वे जमींदार को परेशान देखकर खुश होते थे।
  5. कभी-कभी वे जमींदार को मिलने वाले भूराजस्व के भुगतान में जानबूझ कर देरी का देते थे।

प्रश्न 17.
दक्कन दंगम आयोग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
दक्कन दंगा आयोग –

  1. अंग्रेजी सरकार 1857 के विद्रोह के बाद से चितित थी। उसने बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि दंगों के कारणों की छानबीन करने के लिए एक जाँच आयोग की स्थापना की जाए।
  2. उसे विशेष रूप से यह जाँच करने के लिए कहा गया था कि क्या सरकारी राजस्व की माँग भी स्तर विद्रोह का कारण था।
  3. इसमें सभी साक्ष्य यह प्रमाणित करने के लिए पेश किये गये थे कि सरकार की राजस्व मांग विद्रोह का कारण नहीं थी।
  4. दक्कन दंगा रिपोर्ट इतिहासकारों को उन दंगों का अध्ययन करने की आधार सामग्री उपलब्ध कराती है।
  5. आयोग ने दंगा पीड़ित जिलों में जाँच पड़ताल कराई। रैयत वर्गों, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए, भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राजस्व की दरों, कीमतों और ब्याज के बारे में आँकड़े एकत्र किये और जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों का संकलन किया।

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प्रश्न 18.
1770-80 में पहाड़ियों के प्रति ब्रिटिश अधिकारियों की नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1770-80 में पहाड़ियों के प्रति ब्रिटिश अधिकारियों की नीति –

  1. 1770 के दशक में ब्रिटिश अधिकारियों ने पहाड़ियों को खत्म कर देने की क्रूर नीति अपना ली और उनका संहार करने लगे।
  2. 1780 के दशक में भागलपुर के कलेक्टर आगस्टस क्लीवलैंड ने शांति स्थापना की नीति अपनायी।
  3. शाति नीति के अंतर्गत पहाड़िया मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया गया। बदले में उन्हें अपने आदमियों को नियंत्रित करने की जिम्मेदारी लेनी थी।
  4. मुखियाओं से यह आशा भी की गयी कि वे अपनी बस्तियों में शांति व्यवस्था बनाए रखेंगे और अपने जाति के लोगों को अनुशासन में रखेंगे।
  5. इस नीति के अपनाने से मुखियाओं की शक्ति क्षीण हो गयी और अपने समुदाय में सम्मान कम हो गया। उन्हें अंग्रेजों के अधीनस्थ कर्मचारी के रूप में समझा जाने लगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ब्रिटिश शासन काल में भारतीय किसानों की दरिद्रता के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारतीय कृषकों की दरिद्रता के कारण भारतीय किसानों की दरिद्रता को समझने के लिए निम्नलिखित बातों को समझना आवश्यक है –
1. भूमि की नई-नई व्यवस्थाएँ:
बंगाल, बिहार व उड़ीसा की दीवानी पर अधिकार हो जाने के पश्चात् अंग्रेजों ने राजस्व के माध्यम से अधिकाधिक धन प्राप्त करने के उपाय किए। इनमें उनके द्वारा प्रचलित विभिन्न भूमि व्यवस्थाएँ थीं। इन व्यवस्थाओं में नीलामी के द्वारा कई प्रकार के पट्टों पर भूमि दिए जाने की व्यवस्था तथा स्थायी भूमि प्रबंध आदि सम्मिलित थीं। प्रत्येक व्यवस्था में राजस्व वसूल करने वाले नये व्यक्ति होते थे और वे एक बार में किसानों से अधिकाधिक धन वसूल करने का प्रयास करते थे। किसान के सामने समर्पण करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग न था। इन व्यवस्थाओं ने भारतीय किसान की स्थिति को दयनीय बना डाला।

2. किसानों में असुरक्षा की भावना:
भूमि की विभिन्न व्यवस्थाओं के कारण भारतीय किसान को सदा भय बना रहता था कि उसकी भूमि उसके पास रहेगी भी या नहीं। नीलामी में किसानों को अपनी भूमि अपने पास रखने के लिए ऊँची बोली लगानी पड़ती थी। कई बार तो यह बोली इतनी ऊँची हो जाती थी कि किसान को राजस्व देना असंभव हो जाता था। स्थायी समझौते के अंतर्गत पुराना पट्टा और किसान को जमीन की गारंटी देने वाला कबूलियत का तरीका बनाए रखा गया किन्तु व्यवहार में जमींदार अपने पट्टेदार को किसी न किसी बहाने से बेदखल करने का अधिकार रखता था। जमींदारों की उसके ऊपर कृपा बनी रहे और उसकी भूमि न छिन जाए, इसके लिए किसान को भारी मूल्य चुकाना पड़ता था।

3. किसानों ने भी भूमि की उपेक्षा की:
असुरक्षा की भावना के कारण किसानों ने भूमि की उपेक्षा की और पैदावार बढ़ाने की ओर ध्यान नहीं दिया। उन्हें भय रहता था कि उनके द्वारा तैयार की गई भूमि को जमींदार कहीं किसी दूसरे किसान को न दे। इससे उपज में कमी हुई और इसका प्रभाव अंततः किसानों की आर्थिक स्थिति पर पड़ा। सरकार द्वारा किए गए अस्थायी समझौते से भी किसान को भय रहता था कि अगली बार उसका किराया बढ़ सकता है।

4. जमींदारों ने भरपूर शोषण किया:
स्थायी भूमि प्रबंध में जिन जमींदारों को भूमि प्राप्त हुई उनको शासकों का संरक्षण प्राप्त था। वे इस स्थिति का लाभ उपायों से भी उनका शोषण करने लगे। किसान को भूमि छिन जाने का भय तो था ही, साथ ही शासन के भय के कारण भी उनकी असहाय स्थिति थी और उन्हें जमींदार की दया पर ही जीवन व्यतीत करने को मजबूर होना पड़ा था।

5. खेतों का छोटे:
छोटे भागों में बंट जाना-नगरों में उद्योगों के नष्ट हो जाने के कारण कारीगर ग्रामों में चले गए और इससे कृषि पर बोझ बढ़ गया। किसान की भूमि छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गई। जनसंख्या वृद्धि ने खेतों के छोटे होने की प्रक्रिया को और अधिक तेज कर दिया। खेतों के इतने छोटे-छोटे टुकड़े हो गये कि ये जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी बन गईं। इससे किसानों की दरिद्रता बढ़ना स्वाभाविक ही था।

6. ग्रामोद्योगों का पतन:
अंग्रेजों के आगमन का दुष्परिणाम न केवल नगरों के उद्योगों पर हुआ बल्कि ग्रामों के उद्योग भी धीरे-धीरे नष्ट हो गये। इन उद्योगों के समाप्त होने से ग्रामों में बड़ी संख्या में लोग बेकार हो गए और मजबूरन उन्हें कृषि पर निर्भर होना पड़ा। ये लोग भूमिहीन किसान बन गए और अपने जीविकोपार्जन के लिए किसानों की भूमि पर मजदूरों के रूप में खेती का काम करने लगे। इन भूमिहीन किसानों की दशा और अधिक खराब हो गई।

7. सरकार की उपेक्षा:
कृषकों की आर्थिक स्थिति बिगड़ रही थी किन्तु विदेशी सरकार ने उनकी दशा सुधारने का कभी प्रयास नहीं किया। वे परम्परागत तरीकों से ही कृषि करते थे। खेती के सुधरे हुए तरीके, नए औजारों का प्रयोग तथा अच्छे बीज व खाद का प्रयोग उन्हें नहीं आता था। सरकार ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया। कृषि पर बोझ बढ़ता गया, राजस्व व अन्य उपायों से कृषक का शोषण होता रहा, उपज घटती रही और सरकार की उपेक्षा की बनी रही, परिणामस्वरूप किसान की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।

8. साहूकारों द्वारा शोषण:
कृषक की दुर्बल स्थिति का साहूकार ने भी लाभ उठाया। वह साहूकार से कर्ज लिए बिना खेती की व्यवस्था नहीं कर सकता था। आमतौर से साहूकार थोड़े से कर्ज के लिए भी किसान की भूमि अपने पास रख लेते थे। ऊँची ब्याज दर के कारण किसान के लिए ब्याज देना भी कठिन हो जाता था, मूल धन लौटाना तो दूर की बात थी। अन्ततः किसान को अपनी भूमि से हाथ धोना पड़ता था। साहूकारों व महाजनों के इन कार्यों से सरकार भली-भाँति परिचित थी, किन्तु उसने भी किसानों की सहायता का प्रयास नहीं किया।

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प्रश्न 2.
इस्तमरारी बंदोबस्त के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस्तमरारी बंदोबस्त के गुण या विशेषताएँ:
1. कंपनी की प्रशासन क्षमता में वृद्धि:
किसानों से मिलने वाली मालगुजारी कंपनी की आमदनी का मुख्य स्रोत थी। कंपनी के योग्यतम् कर्मचारियों को इस राजस्व को एकत्र करने के लिए लगाना पड़ता था। फलस्वरूप दूसरे विभागों का कार्य ठीक से नहीं हो पाता था। इस व्यवस्था के कारण सरकार योग्य व्यक्तियों को अन्य विभागों में लगाने की सुविधा प्राप्त कर पाई। इस प्रकार प्रशासनिक व्यवस्था की क्षमता बढ़ना स्वाभाविक था।

2. कंपनी के व्यय में कमी:
भूमि के बार-बार प्रबंध करने में सरकार का बहुत अधिक धन खर्च होता था। अनेक अतिरिक्त कर्मचारियों और अधिकारियों को इस कार्य में लगाया जाता था और अतिरिक्त भत्ता देना पड़ता था। सरकार इस काम से अलग हो इसलिए उसकी बचत बढ़ गयी।

3. जमींदारों के हितों में वृद्धि:
जमींदारों को कानूनी रूप से भूमि का स्थायी मान लिया गया। उन्हें इस व्यवस्था से सर्वाधिक लाभ हुआ । अब वे भूमि में रुचि लेने लगे तथा उपज को बढ़ाने का प्रयत्न करने लगे। राज्य का भाग तो निश्चित ही था। अतिरिक्त उपज जमींदारों के हाथ में ही रहनी थी। इसके कारण वे समृद्ध हो गये। इस प्रकार इस व्यवस्था ने उनके हितों में वृद्धि की।

4. किसानों को प्रोत्साहन:
इस व्यवस्था से कृषक वर्ग को बहुत प्रोत्साहन मिला। उन्हें अपने खेत का पट्टा मिल गया था जिस पर भूमि की माप और लगान लिखा होता था। उन्हें तब तक बेदखली का भय नहीं रहता था जब तक कि वे लगान अदा करते रहते थे। इस प्रकार वे लगान देकर मन से खेती करने लगे।

5. उद्योग और व्यापार में उन्नति:
भूमि के स्थायी प्रबंध से व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। इस व्यवस्था से जमींदारों की आमदनी बढ़ गयी। उन्होंने अपने अतिरिक्त धन को उद्योग तथा व्यापार में लगाया। फलस्वरूप बंगाल में अनेक उद्योगों की स्थापना की गयी।

6. बंगाल प्रान्त की समृद्धि:
इस व्यवस्था से बंगाल में कृषि की पर्याप्त उन्नति हुई और कृषि उत्पादन बढ़ गया। बंगाल में खाने-पीने की वस्तुओं की कमी नहीं रही। उद्योग और व्यापार की उन्नति से भी बंगाल में समृद्धि आ गयी।

7. अंग्रेज समर्थक वर्ग का उदय:
राजनैतिक दृष्टि से अंग्रेजों को इस व्यवस्था से बहुत अधिक लाभ हुआ। जमींदार भूमि के स्वामी बन गये थे। इसके फलस्वरूप वे बहुत अधिक धनी हो गये। उन्हें यह सम्मान और सम्पत्ति अंग्रेजों के कारण प्राप्त हुई थी। वे अंग्रेजों के समर्थक और विश्वासपात्र बन गये। अंग्रेजों के राज्य को स्थायी बनाने में जुट गये। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में इन्होंने अंग्रेजों का साथ दिया।

इस्तमरारी बंदोस्बत के दोष:

1. जमींदारों पर विपरीत प्रभाव:
यद्यपि स्थायी व्यवस्था अन्ततः जमींदारों के लिए लाभदायी सिद्ध हुई तथापि इसके उस समय के प्रभाव उनके लिए विनाशकारी सिद्ध हुए। इस व्यवस्था के द्वारा निश्चित भू-राजस्व की दरें बहुत ऊँची थीं। उस समय उपज बहुत कम थी। बहुत से जमींदार धन की अदायगी समय पर न कर सके और राज्य ने उनकी भूमि तथा जायदाद बेचकर यह धन पूरा कर लिया। बहुत से जमींदार अपनी जमींदारी से ही वंचित हो गये। उस समय यह व्यवस्था जमींदारों के हितों के प्रतिकूल सिद्ध हुई।

2. राज्य की भविष्य की आय वृद्धि पर प्रतिबंध:
इस स्थायी व्यवस्था ने राज्य के भावी हितों की अवहेलना कर दी। कुछ समय के पश्चात् भूमि की उपज बढ़ गई क्योंकि जमींदारों ने भूमि में रुचि लेना तथा उपज बढ़ाने के लिए इस पर धन खर्च करना प्रारंभ कर दिया था। सरकार अपने निर्धारित हिस्से से अधिक राजस्व की मांग नहीं कर सकती थी।

3. कृषकों के हितों की उपेक्षा:
कार्नवालिस का उद्देश्य वास्तव में कंपनी की आय को बढ़ाने तथा न्यूनतम खर्च पर अधिकतम लगान वसूल करने का था। उसे किसानों के हितों से कोई सहानुभूति न थी। उनके अधिकारों तथा हितों की अवहेलना करके उन्हें जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया। जमींदार किसानों से मनमाना व्यवहार करने लगे और विभिन्न प्रकार से धन वसूल करने लगे।

4. जमींदारों के कारकूनों द्वारा किसानों पर अत्याचार:
इस व्यवस्था का एक अन्य दोष यह था कि धीरे-धीरे सम्पूर्ण अधिकार जमींदारों के नौकरों के हाथों में आ गए। वास्तव में उपज के बढ़ जाने से जमींदार बहुत धनवान हो गए। अब उन्होंने ग्रामों में रहना बंद कर दिया तथा बड़े-बड़े नगरों में जाकर शाही जीवन व्यतीत करने लगे। उनके कारकून (नौकर) कृषकों पर खूब अत्याचार करते थे।

5. अन्य प्रान्तों पर बोझ:
बंगाल का प्रान्त धीरे-धीरे कम आय देने वाला प्रान्त बन गया जबकि राज्य सरकार का खर्च दिन प्रतिदिन बढ़ रहा था। ऐसी दशा में इस खर्च का भार अन्य प्रान्तों पर डाला गया।

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प्रश्न 3.
ब्रिटिश नीतियों का भारत के किसानों पर क्या असर पड़ा, इसका विवेचन कीजिए। उन कारकों को स्पष्ट कीजिए जिनके कारण ग्रामीण दरिद्रता पैदा हुई तथा भारत में बहुधा अकाल पड़े।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों के कारण किसानों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई। कृषि की दशा भी खराब हो गई जिसके कारण किसान निर्धन हो गये। संक्षेप में, कृषि तथा किसानों पर ब्रिटिश शासन के निम्नलिखित प्रभाव पड़े –

1. भूमि का स्वामित्व:
अंग्रेजों से पूर्व भारत में भूमि आजीविका कमाने का साधन थी। इसे न तो खरीदा जा सकता था और न बेचा जा सकता था। भूमि पर कृषि करने वाले, उपज का एक निश्चित भाग भूमि-कर के रूप में सरकार को दे दिया करते थे परंतु अंग्रेजों ने इस आदर्श प्रणाली को समाप्त कर दिया। लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भूमि का स्थायी बंदोबस्त लागू किया। इसके अनुसार भूमि सदा के लिए जमींदारों को दे दी गई। उन्हें सरकारी खजाने में निश्चित कर जमा करना होता था। वे यह जमीन अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को दे सकते थे। इस तरह भूमि पर कृषि करने वालों का दर्जा एक नौकर जैसा हो गया। स्वामी सेवक बन गये और राजस्व की वसूली करने वाले जमींदारों के सेवक स्वामी बन गये।

2. कृषकों का शोषण:
अंग्रेजी शासन के अधीन भूमि की पट्टेदारी की तीन विधियाँ आरम्भ हुई-स्थायी प्रबंध, रैयतवाड़ी प्रबंध तथा महलवाड़ी प्रबंध। इन तीनों विधियों के परिणामस्वरूप किसानों को ऐसे अनेक कष्ट करने पड़े, जिन्हें सुनकर मन दहल जाता है। भूमि का स्वामी अपने-आपको गाँव का भाग नहीं समझता था। उसे अपनी रैयत अथवा खेतिहर किसान से कोई सहानुभूति नहीं थी। वह किसानों को जब चाहे बेदखल कर सकता था। इस नियम का सहारा लेकर वह किसानों से मनचाही रकम ऐंठने लगा। भूमि की सारी अतिरिक्त उपज वह स्वयं हड़प जाते थे और किसानों के पास बस इतना माल रह जाता था जिससे उनके प्राण बचे रह सकें।

रैयतवाड़ी प्रथा के अनुसार किसानों के कष्ट और अधिक बढ़ गए। किसान भूमि के स्वामी तो मान लिए थे, परंतु कर की दर इतनी अधिक थी कि उनके लिए कर अदा करना बड़ा कठिन था। कर जमा कराने के नियम बड़े कठोर तथा अमानवीय थे। निश्चित तिथि को सूर्यास्त होने से पूर्व यदि किसान अपना लगान नहीं चुका पाता था तो उसकी भूमि नीलाम कर दी जाती थी। कर चुकाने के लिए मजबूर किसान साहूकारों से ऋण लिया करते थे। बस, एक बार ऋण लेने पर किसान साहूकार के चंगुल में बुरी रह फंस जाते थे। साहूकार सूद तथा किसानों की निरक्षता का सहारा लेकर उनकी जमीन हड़प लेते थे। किसान से अधिक पैसे ऐंठने के लिए तरह-तरह के प्रपंच रचे जाते थे। वास्तव में, वह किसान जो भू-स्वामी हुआ करता था, अंग्रेजी राज्य की छाया में मजदूर बनकर रह गया।

3. कृषि का पिछड़ापन:
अंग्रेजी शासन के अधीन कृषक के साथ-साथ कृषि की दशा भी बिगड़ने लगी। कृषक पर भारी कर लगा दिये गए। जमींदार उससे बड़ी निर्दयता से रकम ऐंठता था। जमींदार स्वयं तो शहरों में रहते थे। उनके मध्यस्थ किसानों की उपज का अधिकतर भाग ले जाते थे। जमींदार की दिलचस्पी पैसा कमाने में थी। वह भूमि सुधारने में विश्वास नहीं रखता था। इधर किसान दिन-प्रतिदिन निर्धन तथा निर्बल होता जा रहा था, अतः वह भूमि में धन तथा श्रम दोनों ही नहीं लगा पा रहा था। उसे एक और हानि हुई। इंग्लैंण्ड का मशीनी माल आ जाने से ग्रामीण उद्योग-धन्धे नष्ट हो गये, अत: खाली समय में वह औद्योगिक गतिविधियों से जो पैसे कमाया करता था, अब बंद हो गया। भूमि के अधिकार सिद्धांत ने उनके जीवन में मुकद्दमेबाजी का नवीन अध्याय आरम्भ किया। मुकद्दमों पर उसका समय तथा धन दोनों ही नष्ट होने लगे और कृषि पिछड़ने लगी। संक्षेप में, अंग्रेजों की भूमि नीति ने कृषक के उत्साह को बड़ी ठेस पहुंचाई जो अन्ततः कृषि के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

किसानों की दरिद्रता के कारण:
ब्रिटिश शासनकाल में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। उनकी निर्धनता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। उनकी निर्धनता के कारणों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –

  • ब्रिटिश शासनकाल में जमींदारी प्रथा प्रचलित थी। भूमि के स्वामी बड़े-बड़े जमींदार होते थे। किसानों का वे शोषण करते थे। वे उनसे बेगार भी लेते थे।
  • किसानों के खेती करने के ढंग बहुत पुराने थे। कृषि के लिए अच्छे बीज तथा खाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध न होने के कारण किसानों को केवल वर्षा
    पर निर्भर रहना पड़ता था।
  • ब्रिटिश सरकार ने किसानों की दशा सुधारने की ओर कोई ध्यान, नहीं दिया।
  • किसान प्रायः साहूकारों से ऋण लेता था जिस पर उसे भारी ब्याज देना पड़ता था। सरकार की ओर से उन्हें ऋण देने का कोई प्रबंध नहीं था।
  • किसानों को भारी भूमि-कर देना पड़ता था। यह भी इनकी निर्धनता का एक बहुत बड़ा कारण था।

अकाल पड़ने के कारण:
भारत में अंग्रेजी काल में अनेक बार अकाल पड़े जिनमें हजारों लोग मारे गये। भारत में अकाल पड़ने के निम्नलिखित कारण थे –

  • जमींदारी प्रथा आरम्भ होने से कृषकों की भूमि में कोई रुचि न रही। जमींदार भी भूमि को सुधारने के लिए पूँजी लगाने को तैयार नहीं थे। परिणामस्वरूप अन्न का उत्पादन बहुत कम हो गया जो अकाल का कारण बना।
  • अंग्रेज भारत में किसानों को ऐसी फसलें बोने के लिए विवश करते थे जिनसे उन्हें केवल कच्चा माल प्राप्त हो।
  • कंपनी के अनेक कर्मचारी मुनाफाखोरी के लिए अन्न का संग्रह कर लेते थे जिससे अनाज का कृत्रिम अभाव उत्पन्न हो जाता था।
  • यातायात के साधनों का अभाव और सरकारी उदासीनता भी अकाल का कारण बनती थी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक शासन भारत में कब से शुरू हुआ?
(अ) 1757 ई.
(ब) 1857 ई.
(स) 1919 ई.
(द) 1947 ई.
उत्तर:
(अ) 1757 ई.

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प्रश्न 2.
1793 ई. में इस्तमरारी बंदोबस्त किसने लागू किया था?
(अ) लार्ड क्लाइव
(ब) वारेन हेस्टिंग्स
(स) लार्ड कार्नवालिस
(द) लार्ड वैलेजलि
उत्तर:
(स) लार्ड कार्नवालिस

प्रश्न 3.
जमींदार क्या थे?
(अ) भूमि के स्वामी थे
(ब) राजस्व समाहर्ता थे
(स) ग्राम पंचायत के मुखिया थे
(द) किसानों को नियंत्रित करते थे
उत्तर:
(ब) राजस्व समाहर्ता थे

प्रश्न 4.
अंमला कौन था?
(अ) जोतदार का अधिकारी था
(ब) किसानों का स्वामी था
(स) गाँव का प्रभावशाली व्यक्ति था
(द) जमींदार का एक अधिकार था
उत्तर:
(द) जमींदार का एक अधिकार था

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प्रश्न 5.
जोतदार कौन-सा कार्य नहीं करता था?
(अ) जोतदार जमींदार को परेशान करते थे
(ब) वे शहरों में रहते थे
(स) वे गाँवों में रहते थे
(द) रैयतों को एकजुट करके रखते थे
उत्तर:
(ब) वे शहरों में रहते थे

प्रश्न 6.
भू-सम्पदा की नीलामी से बचने के लिए जमींदार कौन-सी तरकीब अपनाते थे?
(अ) जमीन की फर्जी बिक्री करते थे
(ब) जमीन पर खेती नहीं करते थे
(स) जोतदारों से कर्ज लेते थे
(द) जमीन का लगान बढ़ा देते थे
उत्तर:
(अ) जमीन की फर्जी बिक्री करते थे

प्रश्न 7.
पाँचवीं रिपोर्ट कितने पृष्ठों की है ?
(अ) 1000
(ब) 1002
(स) 2002
(द) 3002
उत्तर:
(ब) 1002

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प्रश्न 8.
विलियम होजेज कौन था?
(अ) एक ब्रिटिश कलाकार
(ब) एक ब्रिटिश कवि
(स) एक ब्रिटिश इतिहासकार
(द) एक धर्म प्रचारक
उत्तर:
(अ) एक ब्रिटिश कलाकार

प्रश्न 9.
ऑगस्टस क्लीवलैंड ने शांति के लिए पहाड़ियों को क्या देना चाहा?
(अ) सभी किसानों को वार्षिक भत्ता
(ब) जमींदारों को वार्षिक भत्ता
(स) पहाड़िया मुखियाओं को वार्षिक भत्ता
(द) कठोर दंड
उत्तर:
(स) पहाड़िया मुखियाओं को वार्षिक भत्ता

प्रश्न 10.
दामिन-इ-कोर किसका इलाका था?
(अ) बंगाल के जमींदारों
(ब) संथालों
(स) पहाड़ियों
(द) बंगाल के जोतदारों
उत्तर:
(ब) संथालों

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 2 राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ

Bihar Board Class 12 History राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाणों की चर्चा कीजिए। हड़प्पा के नगरों के प्रमाण से ये प्रमाण कितने भिन्न हैं?
उत्तर:
आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण तथा हड़प्पा के नगरों से भिन्नता: आरम्भिक ऐतिहासिक नगरों में शिल्पकला के उत्पादन के प्रमाण स्वरूप अभिलेख, ग्रंथ, सिक्के तथा चित्र मिलते हैं। ये प्रमाण विभिन्न ऐतिहासिक पक्षों के बारे में पूर्ण जानकारी देने में असमर्थ हैं। 1830 सा०यु० में भारतीय अभिलेखों के अध्ययन की कुछ नई महत्त्वपूर्ण विधियाँ अस्तित्त्व में आईं।

ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक अधिकारी जेम्स प्रिंसेप.ने प्राचीन शिलालेखों तथा सिक्कों में प्रयोग की गई ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपियों को पहली बार पढ़ा। इन अभिलेखों में पियदस्सी अर्थात् अशोक के विषय में वर्णन किया गया था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक भारत के महान् शासकों में से एक था।

यूरोपीय तथा भारतीय इतिहासकार अब विभिन्न भाषाओं में लिखे गए अभिलेखों तथा ग्रंथों की सहायता से उन महत्त्वपूर्ण वंशों के तिथिक्रम में इतिहास का वर्णन करने लगे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में शासन किया।

इस प्रकार विद्वानों को प्राचीन भारतीय राजनीतिक इतिहास की खोज करने की नई दिशा मिली। इसी के परिणामस्वरूप 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक प्राचीन भारत के राजनीतिक इतिहास की रूपरेखा सामने आई। इसके बाद विद्वानों ने राजनीतिक परिवर्तनों और आर्थिक तथा सामाजिक विकासों के बीच संबंध का पता लगाने की दिशा में कार्य किया। ज्ञात हुआ कि ऐसे संबंध परोक्षतः बने थे।

ये हड़प्पा नगरों के प्रमाणों से आरंभिक ऐतिहासिक नगरों के प्रमाण भिन्न थे। ऐसा इसलिए कि इन पर अंकित लिपि को पढ़ लिया गया है, इसलिए कुछ बातें स्पष्ट हो गयी हैं। हड़प्पा नगरों के प्रमाणों की लिपि पढ़ी नहीं जा सकी है। इसलिए स्पष्ट नहीं है। हड़प्पा से साक्ष्य भी कम ही प्राप्त हुए हैं।

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प्रश्न 2.
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षणे का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
महाजनपदों के विशिष्ट अभिलक्षण:
1. बौद्ध धर्म और जैन धर्म के ग्रंथों में महाजनपदों या 16 राज्यों के नाम मिलते हैं। इन ग्रंथों में महाजनपदों के नाम आपस में नहीं मिलते फिर भी अवन्ति, वत्स, कोशल, मगध, कुरु तथा पंचाल जैसे महाजनपदों के नामों का कई बार उल्लेख हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि ये महाजनपद अन्य जनपदों से अधिक शक्तिशाली थे। यह सभी जनपद गंगा-यमुना की घाटियों में स्थित थे।

2.  इन महाजनपदों के इतिहास की पूर्ण जानकारी नहीं मिलती, तथापि इनसे छठी शताब्दी सा०यु०पू० में भारत की राजनीतिक स्थिति के बारे में कुछ अनुमान लगा सकते हैं। उस समय राजनीतिक एकता का अभाव था। इन 16 राज्यों के शासक आपस में लड़ते रहते थे। इन महाजनपदों की राजनीतिक उपलब्धियों के बारे में बहुत कम परंतु उनके शासन प्रबंध के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

3. अधिकांश महाजनपदों के मुखिया राजा कहे गए हैं। इन जनपदों में से कई जनपदों को गण तो कई को संघ कहा जाता था। वस्तुत: इन राज्यों में सत्ता अल्प प्रभावशाली तथा शक्तिशाली लोगों के हाथों में केन्द्रित थी। इसको समूह शासन नाम दिया गया है। महावीर तथा बुद्ध दोनों ऐसे गणराज्यों के राजकुमार या युवराज थे। वज्जि संघ-जैसे कुछ राज्यों में, राजा ही संयुक्त रूप में भूमि आदि संसाधनों पर नियंत्रण रखते थे।

4. प्रत्येक महाजनपद की एक राजधानी होती थी और उसके आस-पास दुर्ग बने होते थे। नगरों के विकास, सैन्य प्रबंध तथा उच्च अधिकारियों के वेतन भुगतान हेतु संसाधनों की आवश्यकता होती थी।

5. लगभग छठी शताब्दी सा०यु०पू० के पश्चात् ब्राह्मणों ने संस्कृत भाषा के धर्मशास्त्रों की रचना का कार्य आरम्भ कर दिया था। इन धर्मशास्त्रों में शासकों तथा अन्य सामाजिक वर्गों के लिए नियम लिखे होते थे।

6. ये धर्मशास्त्र कृषकों, व्यापारियों तथा कारीगरों से कर तथा उपहार एकत्रित करने का अधिकार महाजनपद के शासक को देते थे। धन संग्रह करने के लिए पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण करने की मनाही नहीं थी। धीरे-धीरे कुछ शक्तिशाली राज्यों ने स्थायी सेनाएँ तथा अधिकारियों की भर्ती कर ली। अन्य शासक अपनी आवश्यकतानुसार किसानों में से ही सैनिकों की भर्ती कर लेते थे।

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प्रश्न 3.
सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण इतिहासकार कैसे करते हैं?
उत्तर:
इतिहासकारों द्वारा सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण:
इतिहासकार सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करने के लिए विभिन्न प्रकार के ऐतिहासिक स्रोतों-साहित्य और पुरावस्तुओं का सहारा लेते हैं। पुरातत्त्व की खोज से पूर्व साहित्यिक ग्रन्थों के आधार पर इतिहास लिखा गया था। उदाहरण के लिए-आर्यों के जीवन का इतिहास वैदिक ग्रंथों के आधार पर पुनर्निर्मित किया गया है।

बौद्धकाल और जैनकाल का अनेक विवरण इस काल के ग्रंथों में वर्णित बातों के आधार पर दिया गया है। मौर्यकालीन जनजीवन की बहुत कुछ जानकारी बौद्ध और जैन ग्रंथों से होती है। भारत में समय-समय पर विदेशी यात्रियों का आगमन होता रहा है। उन्होंने अपने यात्रा विवरण में भारत के कई क्षेत्रों का वर्णन किया है।

उदाहरण के लिए-यूनानी यात्री मेगस्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में 302 सा०यु०पू० से 298 सा०यु०पू० तक रहा। उसने अपनी पुस्तक इंडिका में भारत के आम लोगों के जीवन का रोचक वर्णन किया है। कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र मौर्यकालीन जनजीवन का इतिहास प्रस्तुत करता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इतिहासकार साहित्य के आधार पर सामान्य लोगों के जीवन का पुनर्निर्माण करते हैं।

पुरातात्विक साधन यथा-अभिलेख, सिक्के, मूर्तियाँ, स्मारक, भवनावशेष और मनके भी लोगों के जीवन का वर्णन करने में इतिहासकारों की मदद करते हैं। उदाहरण के लिए-कुषाण काल में सोने के सिक्के अधिक मिलने से ऐसा प्रतीत होता है कि सामान्य लोगों की आर्थिक दशा अच्छी थी। हड़प्पा के स्थलों से बैलगाड़ी के खिलौने मिलना इतिहासकारों के इस उल्लेख का आधार बनता है कि लोग परिवहन के साधन के रूप में बैलगाड़ी का प्रयोग करते थे।

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प्रश्न 4.
पाण्ड्य सरदार (स्रोत 3) को दी जानेवाली वस्तुओं की तुलना दंगुन गाँव (स्रोत 8) की वस्तुओं से कीजिए। आपको क्या समानताएँ और असमानताएँ दिखाई देती हैं?
उत्तर:
समानताएँ:
दोनों जगह दी गई सामग्रियों में फूल शामिल हैं। दोनों ही जगह दान में फूल दिए गए हैं।

असमानताएँ:
पाण्ड्य सरदारों को दी जाने वाली वस्तुएँ दंगुन गाँव की वस्तुओं से अधिक हैं। इसमें दैनिक जीवन के उपयोग की अधिक वस्तुएँ शामिल हैं। दंगुन गाँव में वस्तुओं की संख्या कम है। यहाँ प्रभावती गुप्त ने सम्पूर्ण गाँव की सम्पत्ति और करारोपण की व्यवस्था को भी दान में दे दिया है।

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प्रश्न 5.
अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याओं की सूची बनाइए।
उत्तर:
अभिलेखशास्त्रियों की कुछ समस्याएँ –

  1. कई अभिलेखों के अक्षरों को हल्के ढंग से उत्कीर्ण किया गया है। इसीलिए समय के साथ वे अक्षर घिस भी गये हैं। उन्हें पढ़ने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  2. अनेक अभिलेखों के अक्षर लुप्त हो गये हैं। ऐसे अनेक प्रसंगों से माध्यम से जोड़कर पढ़ा जाता है।
  3. अभिलेखों में वर्णित बातों का अर्थ निकालना एक दुष्कर कार्य है, क्योंकि कुछ अर्थ किसी विशेष स्थान या समय से संबंधित होते हैं।
  4. अभिलेख हजारों की संख्या में प्राप्त हुए हैं परंतु उनमें से कुछ के अर्थ ही निकाले जा सके हैं और अधिकतर अभिलेख सुरक्षित भी नहीं हैं।
  5. प्रायः अभिलेखों में उन्हें तैयार करने वाले लोगों का ही उल्लेख होता है। इसलिए अन्य विवरण के लिए प्रत्यक्ष उपायों का सहारा लेना पड़ता है।

निम्नलिखित पर एक लघु निबंध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए। अशोक के अभिलेखों में इनमें से कौन-कौन से तत्त्वों के प्रमाण मिलते हैं?
उत्तर:
मौर्य प्रशासन के प्रमुख अभिलक्षण एवं अशोक के अभिलेखों के तत्त्व:
1. केन्द्रीय प्रशासन:
केन्द्रीय प्रशासन के मुख्य अंग राजा, मंत्रिपरिषद् तथा उच्च सरकारी अधिकारी आदि थे। राजा सर्वेसर्वा होता था। सारा नागरिक एवं सैनिक प्रशासन उसी की इच्छानुसार चलता था। वह एक शानदार महल में बड़े ठाट-बाट से रहता था परंतु प्रजा की भलाई को भी कभी नहीं भूलता था। राजा को परामर्श देने के लिए एक मंत्री-परिषद् होती थी।

प्रत्येक मंत्री के पास कोई-न-कोई विभाग होता था। राजा तथा मंत्रियों की सहायता के लिए अध्यक्ष, अमात्य, राजुक और प्रादेशिक जैसे अनेक अधिकारी होते थे। नियुक्ति के बाद भी धम्म-महामात्त नाम के अधिकारी उनके कार्यों पर नजर रखते थे। ये सब अधिकारी बड़े चरित्रवान और ईमानदार होते थे।

2. प्रान्तीय प्रशासन:
इतने बड़े राज्य के कार्य को भली प्रकार चलाने के लिए देश को निम्नलिखित चार प्रान्तों में विभक्त किया गया था -(क) मध्य प्रान्त: इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। इस प्रान्त का कार्य राजा स्वयं चलाता था। (ख) उत्तर-पश्चिमी प्रान्त: इसकी राजधानी तक्षशिला थी। (ग) पश्चिमी प्रान्त: इसकी राजधानी उज्जैन थी। (घ) दक्षिणी प्रान्त: इसकी राजधानी स्वर्णगिरि थी।

ये प्रान्त गवर्नरों के अधीन होते थे जो प्रायः राजवंश से सम्बन्ध रखते थे। इन प्रांतीय गवर्नरों तथा अधिकारियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती थी। इस कार्य के लिए विशेष गुप्तचर छोड़ रखे थे जो राज्य में होने वाली प्रत्येक घटना की सूचना देते रहते थे। प्रान्त आगे जिलों में विभक्त थे जिनके अधिकारी को ‘स्थानिक’ कहते थे। इसके पश्चात् आजकल की तहसीलों की भांति मए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू चार गाँव से लेकर दस गाँवों के ऊपर ‘गोप’ नामक अधिकारी नियुक्त किए थे। प्रत्येक गाँव का अधिकारी ‘ग्रामिक’ कहलाता था।

3. नगर प्रबंध:
मेगस्थनीज के वृत्तान्त से पता चलता है कि पाटलिपुत्र जैस बड़े नगरों के लिए विशेष नागरिक-प्रबंध की व्यवस्था की गई थी। इस नगर के लिए तीस सदस्यों की एक समिति थी, जो छ: बोड़ों में विभक्त की गई थी। प्रत्येक प्रबंध-बोर्ड में पाँच सदस्य होते थे। ये बोर्ड निम्न ढंग से अपना कार्य करते थे – (क) पहले बोर्ड का कार्य कला-कौशल की देखभाल करना, कारीगरों के वेतन नियत करना तथा दु:ख में उनकी सहायता करना आदि था।

(ख) दूसरे बोर्ड का कार्य विदेशियों की देखभाल करना, उनके लिए सुख सामग्री उपलब्ध कराना तथा उनकी निगरानी रखना आदि था। (ग) तीसरे बोर्ड का कार्य जन्म-मरण का हिसाब रखना था ताकि कर आदि लगाने तथा अन्य प्रबंध करने में सुविधा रहे। (घ) चौथे बोर्ड का कार्य व्यापार का प्रबंध करना, तौल में बाटों तथा माल के पैमाने की जांच-पड़ताल करना और कानून के विरुद्ध चलने वालों को दण्ड देना आदि था। (ड़) छठे बोर्ड का कार्य वस्तुओं की बिक्री पर लगे हुए विक्रय-कर को एकत्र करने का था।

4. आय एवं व्यय:
सरकार की आय का सबसे बड़ा साधन भूमि-कर था। जो प्रायः भूमि की उर्वरता के हिसाब से 1/4 से 1/6 भाग तक लिया जाता था। आय के अन्य साधन-खानों से कर, वनों से आय, सीमा से बाहर जाने वाली वस्तुओं पर कर, जलयानों पर कर और जुर्माना इत्यादि थे। इस प्रकार जो धन इकट्ठा होता था उसे राजा और दरबार, सेना के अधिकारियों के वेतन, अस्पतालों व सड़कों के बनाने, दान देने, सिंचाई के साधनों को सुधारने आदि पर व्यय किया जाता था। इस प्रकार आय और व्यय का ढंग बड़ा सुव्यवस्थित था।

5. न्याय प्रबंध:
मौर्य राजा न्याय की ओर विशेष ध्यान देते थे और स्वयं भी बड़ी लगन से न्याय करते थे। गाँव में पंचायतें न्याय का कार्य करती थीं और नगर में नगर-कचहरियाँ थीं। इनमें नागरिकों तथा अधिकारियों दोनों के मामलों की सुनवाई और न्याय होता था। इन स्थानीय न्यायालयों (Local Courts) की अपील प्रान्तीय न्यायालयों में की जाती थी।

इन प्रान्तीय न्यायालयों के ऊपर एक केन्द्रीय न्यायालय था जो पाटलिपुत्र में स्थित था। प्रान्तों की अपील राजा स्वयं सुना करता था। दण्ड बड़े कठोर थे। जुर्माना करना तथा कोड़े लगाने से लेकर हाथ-पांव आदि काट देना और जघन्य अपराध के लिए प्राण दण्ड देना प्रचलित था। अशोक के समय में दण्ड-व्यवस्था कुछ हल्की कर दी गई थी। न्याय प्रबंध इतना अच्छा था कि चोरी और अन्य अपराध बहुत कम हुआ करते। इस विषय में मेगस्थनीज भी लिखता है कि पारलिपुत्रं, जिसकी जनसंख्या कोई 6,00,000 थी, वहाँ 8 पौंड (लगभग 120 रुपये) से अधिक किसी भी दिन चोरी नहीं होती थी।

6. प्रजा हितकारी कार्य:
मौर्य सम्राटों ने प्रजा के हित को ध्यान में रखकर ही सभी कार्य संपन्न किए। देश को छोटे-छोटे भागों में बांटना, एक सुव्यवस्थित न्याय-प्रणाली चलाना, अधिकारियों को कटोर दण्ड देना, घूसखोर अधिकारियों पर जासूस छोड़ना और लोगों के नैतिक स्तर को ऊँचा करने के लिए धम्म-महामात्त नाम के अधिकारियों की नियुक्ति करना आदि इस बात को स्पष्ट करते हैं कि मौर्य शासकों ने जनहित को सर्वोपरि महत्व दिया। केवल यही नहीं, देश में सिंचाई के लिए तालाब और नहरें बनाई गईं, व्यापार की उन्नति के लिए सड़कें बनाई गई तथा उनके दोनों और छायादार वृक्ष लगाए गए ताकि प्रजा सुख से रह सके।

7. सैनिक प्रबंध:
चन्द्रगुप्त मौर्य के पास एक विशाल सेना थी। इसमें कोई 6,00,000 पैदल; 30,000 घुड़सवार; 9,000 हाथी और 8,000 रथ थे। प्रत्येक हाथी पर प्रायः चार व्यक्ति और रथ पर तीन व्यक्ति हुआ करते थे। इस प्रकार उसकी सेना 7,00,000 के लगभग थी। इस समस्त सेना को नगद वेतन दिया जाता था। केवल उन्हीं व्यक्तियों को सिपाही चुना जाता था जो बड़े वीर व धैर्यवान होते थे। सेना का नेतृत्व राजा स्वयं करता था। इतनी बड़ी सेना के प्रबंध के लिए तीस सदस्यों का एक पृथक् सेना-विभाग था। इस विभाग की छ: समितियाँ थीं जिनके अधिकार में –

  1. सामुद्रिक बेड़े
  2. यातायात
  3. पैदल सेना
  4. घुड़सवार सेना
  5. रथ तथा
  6. हाथियों आदि का प्रबंध होता था।
  7. सारी मौर्य सेना अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित थी।

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प्रश्न 7.
यह बीसवीं शताब्दी के एक सुविख्यात अभिलेखशास्त्री डी.सी. सरकार का वक्तव्य है: भारतीयों के जीवन, संस्कृति और गतिविधियों का ऐसा कोई पक्ष नहीं है जिसका प्रतिबिंब अभिलेखों में नहीं है: चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अभिलेख इतिहास के लिखित साधन हैं और इतिहास की रचना में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है। अशोक ने अभिलेखों का पर्याप्त विस्तार किया। यह अशोक के जीवन, उसके अशोक के महान् कार्यों और धर्म तथा उपाधियों के बारे में बताते हैं। यह सब स्रोत “देवनाप्रिय” तथा “पियदस्सी” के नाम से अंकित हैं।

इन अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उसका शासन-प्रबंध सहानुभूतिपूर्ण था। अपने चौथे अभिलेख में उसने कहा है कि “जिस प्रकार एक व्यक्ति अपने बच्चों के लिए एक सुयोग्य परिचारिका का प्रबंध करता है, उसी प्रकार मैं चाहता हूँ कि मेरे अधिकारी भी प्रजा के साथ सद्व्यवहार करें और सुयोग्य हों।” इन्हीं अभिलेखों से अशोक के राज्य विस्तार का पता चलता है। धार और अजमेर में तो चट्टानों पर संस्कृत नाटक तक खुदे मिले हैं। इलाहाबाद का अभिलेख हरिषेण ने लिखा था।

इसमें 33 पंक्तियाँ हैं। यह अभिलेख हमें समुद्रगुप्त की नियुक्ति, उसकी विजयों तथा उसके महान कार्यों के बारे में बताता है। महरौली के लौह स्तंभ में न केवल हमें चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के महान कार्यों का वर्णन मिलता है बल्कि यह भी ज्ञात होता है कि उस समय तक धातु कला काफी विकसित हो चुकी थी।

इस प्रकार इतिहास के निर्माण में अभिलेख अत्यन्त सहायक हैं। अभिलेखों के महत्त्व के बारे में स्मिथ (Smith) महोदय का कहना है, “प्रारम्भिक हिन्दू इतिहास में घटनाओं की तिथि का जो ठीक-ठीक ज्ञान अभी तक प्राप्त हो सका है वह प्रधानतः अभिलेखों के साक्ष्य पर आधारित है।”

प्रश्न 8.
उत्तर-मौर्यकाल के विकसित राजत्व के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उत्तर-मौर्यकाल में विकसित राजत्व के विचार:
भारत के दक्षिणी क्षेत्रों में चोल, चेर, और पाण्ड्य जैसी सरदारियों का उदय हुआ। सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था। ये स्थायी और समृद्ध होते थे। इन राज्यों के विषय में तमिल संगम ग्रंथों से जानकारी मिलती है। व्यापार आदि से सरदारों को पर्याप्त आमदनी होती थी। इनमें मध्य एवं पश्चिम भारत के शासक सातवाहन और उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर और पश्चिम में शासन करने वाले मध्य मूल के शक शासक शामिल थे।

प्राचीन भारतीय राजाओं ने अपनी महत्त बढ़ाने के लिए अपना नाम देवी-देवताओं से जोड़ा। इसके अच्छे उदाहरण कुषाण शासक हैं। उन्होंने अपने सिक्कों एवं मूर्तियों के माध्यम से राजधर्म उत्कीर्ण कराए। मथुरा स्थित माट के एक देवस्थान पर कुषाण शासकों की एक विशाल मूर्ति स्थापित की गई है। ऐसी मूर्तियाँ अन्य कोई स्थानों पर भी दिखाई देती हैं। ऐसा अपनी महत्त बढ़ाने के लिए किया गया। प्रसिद्ध कुषाण शासक कनिष्क ने अपने नाम के आगे ‘देवपुत्र’ जोड़ा था। इस प्रकार राजत्व के विचार का निरंतर विकास हो रहा था।

चौथी शताब्दी के गुप्त सम्राटों के काल में राजत्व की नई विचारधारा पनपी। ये अपने को सम्राट कहते थे और इनके अधीन सामन्त होते थे। ये सम्राट सेना स्थानीय संसाधन के लिए सामंतों पर निर्भर थे। कभी-कभी सामन्त शासक पर भारी पड़ता था और शासक को हटाकर स्वयं सम्राट बन जाता था। गुप्त सम्राटों ने अपने नाम के सिक्के चलवाये, मुद्रायें बनवायी और प्रशस्तियाँ लिखवायीं। उन्होंने महाराजाधिराज जैसी बड़ी-बड़ी उपाधियाँ धारण की। प्रत्यागप्रशस्ति से समुद्रगुप्त के लिए लिखा गया है – “वे देवताओं में कुबेर, वरूण, इन्द्र और यम के तुल्य हैं।”

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प्रश्न 9.
वर्णित काल में कृषि के तौर-तरीकों में किस हद तक परिवर्तन हुए?
उत्तर:
कृषि के तौर-तरीकों में परिवर्तन:
उत्तर वैदिक काल में लोहे की खोज हो चुकी थी और सर्वप्रथम इसका प्रयोग हल के फाल और तीरों के फलक बनाने में किया गया। इससे कृषि के तौर तरीकों में भारी परिवर्तन हुए। छठी शताब्दी सा.यु.पू. से गंगा और कावेरी की घाटियों के उर्वर कछारी क्षेत्र में हल का प्रयोग बढ़ गया था। जिन क्षेत्रों में भारी वर्षा होती थी वहाँ उर्वर भूमि की जुताई लोहे के फाल वाले हलों से की जाने लगी। इसके अलावा गंगा घाटी में धान की रोपाई की वजह से उपज में भारी वृद्धि होने लगी। इससे पहले किसानों को पर्याप्त मेहनत करनी पड़ती थी।

यद्यपि लोहे के फाल वाले हल की वजह से फसलों की उपज बढ़ने लगी लेकिन ऐसे हलों का उपयोग उपमहाद्वीप के कुछ गिने-चुने भागों तक सीमित था। पंजाब और राजस्थान जैसी अर्धशुष्क जमीन वाले क्षेत्रों में लोहे के फाल वाले हल का प्रयोग 20 वीं शताब्दी में शुरू हुआ। पूर्वोत्तर और मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले किसानों ने कुदाल का उपयोग किया क्योंकि ऐसे इलाकों के लिए कुदालों से खुदाई करनी अधिक उपयोगी थी।

इस युग में उपज बढ़ाने के लिए सिंचाई के विभिन्न साधनों का उपयोग किया गया। कृषकों ने कुँओं, तालाबों और कहीं-कहीं नहरों के माध्यम से भी खेती की सिंचाई की। व्यष्टि स्तर पर प्रत्येक किसान और कृषक समुदायों ने मिलकर सिंचाई के साधन विकसित किए। व्यक्तिगत रूप से तालाबों, कुँओं और नहरों जैसे सिंचाई साधन प्रायः राजा या प्रभावशाली लोगों ने विकसित किए। उनके इन कामों का उल्लेख आर्यलेखों में है। सुदर्शन झील का उल्लेख कई अभिलेखों में मिलता है।

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प्रश्न 10.
मानचित्र 1 और 2 की तुलना कीजिए और उन महाजनपदों की सूची बनाइए जो मौर्य साम्राज्य में शामिल रहे होंगे। क्या इस क्षेत्र में अशोक के कोई अभिलेख मिले हैं?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य में शामिल महाजनपद

  1. गांधार
  2. मगध
  3. काशी
  4. वत्स
  5. अवन्ति।

अशोक के अभिलेख: गांधार के तक्षशिला, काशी में सारनाथ, वत्स में कौशाम्बी आदि से अशोक के अभिलेख मिले हैं।

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
एक महीने के अखबार एकत्रित कीजिए। सरकारी अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यों के बारे में दिये गये वक्तव्यों को काटकर एकत्रित कीजिए। समीक्षा कीजिए कि इन परियोजनाओं के लिए आवश्यक संसाधनों के बारे में खबरों में क्या लिखा है? संसाधनों को किस प्रकार से एकत्र किया जाता है और परियोजनाओं का उद्देश्य क्या है? इन वक्तव्यों को कौन जारी रखता है और उन्हें क्यों और कैसे प्रसारित किया जाता है? इस अध्याय के चर्चित अभिलेखों के साक्ष्यों से इनकी तुलना कीजिए। आप इनमें क्या समानताएँ और असमानताएँ गते हैं?
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 12.
आज प्रचलित पाँच विभिन्न नोटों और सिक्कों को इकट्ठा कीजिए। इनके दोनों ओर आप जो देखते हैं उनका वर्णन कीजिए। इन पर बने चित्रों, लिपियों और भाषाओं, माप, आकार या अन्य समानताओं और असमानताओं के बारे में एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। इस अध्याय में दर्शित सिक्कों में प्रयुक्त सामग्रियों, तकनीकों, प्रतीकों, उनके महत्त्व और सिक्कों के संभावित कार्य की चर्चा करते हुए इनकी तुलना कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History राजा, किसान और नगर : आरंभिक राज्य और अर्थव्यवस्थाएँ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
1830 ई. में प्रिंसेप द्वारा लिपियों के अर्थ निकालने के क्या लाभ हुए?
उत्तर:

  1. इस खोज से आरम्भिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को एक नई दिशा मिली।
  2. भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की वंशावलियों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में लिखे अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग किया।

प्रश्न 2.
गण और संघ राज्यों में शासन कैसे चलता था?
उत्तर:

  1. गण और संघ राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था।
  2. इस समूह का प्रत्येक व्यक्ति राजा कहलाता था। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध इन्हीं गुणों से संबंधित थे।

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प्रश्न 3.
सा.यु.पु. छठी शताब्दी को परिवर्तनकारी काल क्यों माना जाता है?
उत्तर:

  1. इस काल में आरम्भिक राज्यों एवं नगरों का उदय हुआ। यह लोहे के प्रयोग और सिक्कों के विकास से सम्भव हुआ।
  2. इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ।

प्रश्न 4.
मगध नये-नये धार्मिक आन्दोलनों का केन्द्र क्यों बना?
उत्तर:

  1. उन दिनों मगध राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र था। यहाँ के शासकों द्वारा बौद्ध या जैन धर्म स्वीकार किए जाने की दशा में इन धर्मों के प्रचार-प्रसार की सम्भावना काफी अधिक थी।
  2. सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र भी मगध ही था। वहाँ से धर्म प्रचार करके आगे बढ़ना सुगम था। इस कारण मगध धार्मिक आन्दोलनों का केन्द्र बना।

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प्रश्न 5.
धर्मशास्त्र कब लिखे गये? इनका क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. लगभग छठी शताब्दी सा.यु.पू. में धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचना शुरू की गई।
  2. इनमें शासक सहित अन्य के लिए नियमों का निर्धारण किया गया और यह अपेक्षा की जाती थी कि शासक क्षत्रिय वर्ण से ही बनाए जाएँ।

प्रश्न 6.
“पंचमार्कड या आहत मुद्रायें’ नामक पद का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
इन मुद्राओं पर कोई-न-कोई चिह्न अंकित होता था। कई बार इन पर शासक की आकृति, उनके वंश चिह्न और कई बार तिथि भी अंकित रहती थी। ऐसी पंचमाड या आहत मुद्रायें इतिहास को जानने में बड़ी उपयोगी सिद्ध होती है।

प्रश्न 7.
विवेचन करें कि छठी सदी सा.यु. से चौथी सदी तक नगर विकास के कौन-कौन से कारण थे?
उत्तर:

  1. बौद्ध काल में बड़े-बड़े राज्य अस्तित्व में आ चुके थे। उनकी राजधानियों का बड़े-बड़े नगरों के रूप में विकसित होना स्वाभाविक था।
  2. सिक्कों के आविष्कार ने व्यापार को प्रोत्साहन दिया और इस कारण भी अनेक व्यापारिक केन्द्र बड़े-बड़े नगरों में परिणित हो गए। ये नगर प्रायः नदियों के किनारे बसे हुए थे और जल-मार्ग द्वारा दूसरे नगरों से जुड़े हुए थे। इस व्यापार ने भी उन्हें वैभवशाली बनाने में बड़ी सहायता की।
  3. कुछ स्थान औद्योगिक इकाइयों के रूप में भी उभरे और शीघ्र ही बड़े नगरों में तब्दील हो गए थे।

प्रश्न 8.
‘उत्तरी काला पालिशदार अवस्था’ नामक पद स्पष्ट करें।
उत्तर:
एन.बी.पी. फेज या ‘उत्तरी काला पालिशदार अवस्था’ मिट्टी के बर्तन बनाने की उस अवस्था को कहते हैं जब चमकीले पालिशदार बर्तन धनी व्यक्तियों की खाने की मेजों को सजाते थे। ऐसी अवस्था भारत में छठी शताब्दी सा.यु.पू. में थी।

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प्रश्न 9.
‘धम्म’ शब्द का आशय 20-30 शब्दों में स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘धम्म’ सामाजिक व्यवहार के उन नियमों को कहा जाता है जो नैतिकता पर आधारित होते हैं। इन्हें लोकाचार के नियम भी कहा जा सकता है। बड़ों का आदर करना, छोटों से प्यार करना आदि सभी आचार, विचार और व्यवहार के नियम इस कोटि में आते हैं। कलिंग की विजय के पश्चात् अशोक ने ऐसे ही ‘धम्म का प्रचार किया।

प्रश्न 10.
महावीर स्वामी अथवा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन करें।
उत्तर:
महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन जीने का सरल मार्ग दिखाया। उनके अनुसार मनुष्य को त्रिरत्न अर्थात् शुद्ध चरित्र, शुद्ध दर्शन और शुद्ध आचरण का पालन करना चाहिए। उन्होंने मोक्ष-प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया। उनका कहना था कि इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम मार्ग है। उनके अनुसार पशु, वायु, अग्नि तथा वृक्ष सभी वस्तुओं में आत्मा है और इन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए।

उन्हें वेद-निहित, अनुष्ठान एवं कर्मकाण्ड, जाति-पाति या यज्ञ तथा बलि में विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण मनुष्य जन्म लेता है और आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें।

प्रश्न 11.
लिपि शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर:
वास्तव में ‘लिपि’ और ‘दिपी’ शब्दों का एक ही अर्थ है। अपने शिलालेखों में अशोक ने लिपि का प्रयोग किया जो सम्भवतः ईरानी शब्द ‘दिपि’ से ही लिया गया था। प्राचीन ईरानियों के लिए ‘दिपी’ का जो महत्त्व था वही भारतीयों के लिए ‘लिपि’ का था।

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प्रश्न 12.
कलिंग युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अशोक ने कलिंग (या आधुनिक उड़ीसा) के साथ 261 सा.यु.पू. में एक युद्ध लड़ा। इस युद्ध के बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े –

  1. इस युद्ध के विनाश को देखकर अशोक इतना विचलित हुआ कि उसने युद्ध का मार्ग सदा के लिए त्याग दिया और धर्म-विजय का गर्ग अपना लिया।
  2. अशोक अब बौद्ध धर्म का अनुयायी हो गया और इस धर्म का इतने बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया कि यह एक विश्व धर्म बन गया।

प्रश्न 13.
मौर्य वंश के पतन के दो मुख्य कारण लिखें।
उत्तर:

  1. अशोक ने कलिंग के युद्ध के पश्चात् जब बौद्ध धर्म को अपना लिया तो उसकी सारी गतिविधियाँ बंद-सी हो गईं। इस कारण मौर्य साम्राज्य की सीमाएँ अरक्षित हो गई।
  2. विदेशी आक्रमणकारियों ने विशेषकर हिन्द-यूनानियों और हिन्द-पार्थियनों ने, इस कमजोरी का लाभ उठाकर देश पर आक्रमण करने शुरू कर दिये। उनके भयंकर आक्रमण के सामने, सैनिक शक्ति में शिथिल, मौर्य साम्राज्य न टिक पाया।

प्रश्न 14.
सिकंदर भारत पर आक्रमण क्यों करना चाहता था?
उत्तर:

  1. इसका पहला कारण यह दिया जाता है कि सिकंदर एक महान् विजेता था जो भारत को जीत कर अपने नाम को चार चांद लगाना चाहता था।
  2. दूसरा कारण यह बताया जाता है कि वह भारतीय संस्कृति की महानता के विषय में बहुत कुछ सुन चुका था इसलिए वह स्वयं इस तथ्य की सत्यता को भारत आकर परखना चाहता था ।

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प्रश्न 15.
मनुस्मृति में सीमाओं का क्या महत्त्व बताया गया है?
उत्तर:

  1. मनुस्मृति आरम्भिक भारत का सबसे प्रसिद्ध विधिग्रंथ है।
  2. इसके अनुसार राज्य की सीमाओं की अनभिज्ञता से विश्व में विवाद होते हैं। सीमाओं की पहचान के लिए शासक के लिए शासक ने गुप्त निशान जमीन में गाड़कर रखने चाहिए।

प्रश्न 16.
राजगाह का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. राजगाह मगध की राजधानी थी। इस शब्द का शब्दिक अर्थ-‘राजाओं का घर’ है। यह आधुनिक बिहार के राजगीर का प्राकृत नाम है।
  2. पहाड़ियों के बीच बसा राजगाह एक किलेबंद शहर था। बाद में चौथी शताब्दी सा.यु.पू. में पाटलिपुत्र को राजधानी बनाया गया।

प्रश्न 17.
दक्षिण के सरदारों के क्या कार्य थे?
उत्तर:

  1. सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था। उसका कार्य विशेष अनुष्ठान का संचालन करना, युद्ध के समय नेतृत्व करना और विवादों को सुलझाने में मध्यस्थ की भूमिका निभाना आदि था।
  2. वह अपने अधीन एक लोगों से भेंट लेता था और अपने समर्थकों में प्राप्त भेंट का वितरण करता था। सामान्य रूप से एक सरदार के अधीन-कोई स्थायी सेना या अधिकारी नहीं होते थे।

प्रश्न 18.
यूनानी यात्री मेगस्थनीज द्वारा वर्णित सैन्य-प्रबंध के लिए जिम्मेदार छः उपसमितियों के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. नौसेना का संचालन करना।
  2. यातायात और खानपान व्यवस्था संभालना।
  3. पैदल सैनिकों का प्रशिक्षण, मार्गदर्शन और युद्ध में संचालन करना।
  4. अश्वारोहियों का संचालन।
  5. स्थारोहियों का संचालन।
  6. हाथियों की सेना (गज-सेना) का संचालन।

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प्रश्न 19.
समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा जाता है। क्यों?
उत्तर:
भारत का नेपोलियन समुद्रगुप्त-समुद्रगुप्त ने मगध राज्य को शक्तिशाली बनाया तथा छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर देश में राजनैतिक एकता की स्थापना की।

समुद्रगुप्त को महान् सैनिक सफलताओं के कारण डॉ. वी.ए. स्मिथ ने उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है। नेपोलियन ने लगभग सारे यूरोप को जीता था और समुद्रगुप्त ने भी सारे भारत को जीता था। भारत में कोई भी शासक उसकी सत्ता को चुनौती देने वाला न था।

प्रश्न 20.
मेगस्थनीज कौन था?
उत्तर:

  1. मेगस्थनीज यूनानी राजदूत था और चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था।
  2. उसने अपनी यात्रा का विवरण अपने ग्रंथ ‘इण्डिका’ में किया। इस ग्रंथ से चन्द्रगुप्त मौर्य और उसकी समकालीन शासन-व्यवस्था के विषय में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

प्रश्न 21.
श्रेणी के क्या कार्य थे?
उत्तर:
प्रत्येक श्रेणी (गिल्ड) एक व्यवसायिक संगठन थी। यह जन-साधारण से धन लेती और ऋण देती थी। मंदिर, बाग, विश्राम गृह आदि भी यही श्रेणी लोगों के लिए बनवाती थी। वह सदस्यों की सुरक्षा भी करती थी।

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प्रश्न 22.
गुप्त वंश की जानकारी के मुख्य स्रोत क्या हैं?
उत्तर:
इलाहाबाद और सांची के अभिलेख, भूमि अनुदान संबंधी दस्तावेज, सिक्के और फाह्यान एवं कालीदास की साहित्यिक कृतियाँ।

प्रश्न 23.
इलाहाबाद या प्रयाग-स्तम्भ अभिलेख का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
इलाहाबाद या प्रयाग का स्तम्भ अभिलेख गुप्तकाल का एक महान् ऐतिहासिक स्रोत है। इस अकेले स्रोत पर बहुत कुछ समुद्रगुप्त की महानता निर्भर करती है। इस अभिलेख की 33 लाइनें हैं जो संस्कृत भाषा में हैं। इस लेख के रचयिता समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण थे जिसने अपने आश्रयदाता की विजयों और सैनिक पराक्रमों का वर्णन किया है।

प्रश्न 24.
दिल्ली के लौह-स्तम्भ अभिलेख का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
दिल्ली में कुतुबमीनार के पास लौह-स्तम्भ पर किसी चन्द्र नामक राजा का अभिलेख खुदा हुआ मिला है। यह अभिलेख अब चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से जोड़ा जाता है। इस अभिलेख से पता चलता है कि चन्द्र ने पश्चिमोत्तर दिशा और बंगाल में निरंतर विजयें प्राप्त की और अपने वंश की कीर्ति को चार-चाँद लगा दिये।

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प्रश्न 25.
समूह शासन या ओलीगार्की का क्या अर्थ है?
उत्तर:

  1. जहाँ सत्ता, पुरुषों के एक समूह के साथ में रहती है समूह शासन कहलाता है। गणराज्यों में इसी प्रकार की शासन व्यवस्था थी।
  2. यह प्राचीन भारत का प्रजातांत्रिक शासन था और शासन के सभी कार्य सर्वसहमति से कराए जाते थे।

प्रश्न 26.
सरदारी प्रथा क्या है?
उत्तर:

  1. सरदारी प्रथा चोल, चेर और पाण्ड्य राज्यों में प्रचलित थी। सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता था जिसका पद वंशानुगत भी हो सकता था और नहीं भी।
  2. सरदार के कार्यों में विशेष अनुष्ठान संपन्न करना/करवाना, युद्ध के समय नेतृत्व करना और विवादों को सुलझाने में मध्यस्थता की भूमिका निभानी आदि शामिल हैं।

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प्रश्न 27.
‘धम्म’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:

  1. अनेक विद्वानों ने ‘धम्म’ का अर्थ अशोक के धर्म से लगाया है। अशोक ने अपने अभिलेखों के माध्यम से ‘धम्म का प्रचार किया।
  2. धम्म’ में बड़ों के प्रति आदर, सन्यासियों और ब्राह्मणों के प्रति उदारता, सेवकों और दासों के साथ उदार व्यवहार तथा दूसरे के धर्मों और परम्पराओं का आदर करना शामिल है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
महाजनपदों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
महाजनपदों का महत्त्व-प्राचीन भारतीय इतिहास में उपर्युक्त महाजनपदों का उत्थान अपना विशेष महत्त्व रखता है। सर्वप्रथम, इन महाजनपदों में राजतंत्रों के साथ-साथ गणतंत्रों का भी उत्थान हुआ। यहाँ का प्रमुख प्रबंधक प्रजातंत्रीय सिद्धांतों के अनुसार लोगों द्वारा चुना जाता था। राजतंत्र वाले महाजनपदों की शासन प्रणाली को देखने पर यह ज्ञात होता है कि वहाँ पर तानाशाह नहीं थे।

शासक प्रजा-सेवक होते थे और प्रजा की भलाई के कार्यों में लीन रहते थे। तीसरा महत्त्व यह था कि विभिन्न राजतंत्र और गणतंत्र धीरे-धीरे आपस में मिलते जा रहे थे और भारत एक अखंड राजनीतिक इकाई का रूप धारण करता जा रहा था। मगध शासकों ने विभिन्न राजनीतिक इकाइयों को जीतकर एक शक्तिशाली साम्राज्य की नींव रखी। इस तरह उन्होंने भारत को एक अखंड राजनीतिक इकाई का स्वरूप दिया।

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प्रश्न 2.
मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के क्या कारण थे?
उत्तर:
मगध साम्राज्य के शक्तिशाली होने के निम्न कारण थे –
1. महत्त्वाकांक्षी शासक:
साम्राज्य विस्तार की अपनी महत्त्वाकांक्षा पूरी करने के लिए तत्कालीन शासकों ने विभिन्न ढंग अपनाये। बिम्बिसार ने पड़ोसी प्रदेशों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करके अपनी सीमाओं को सुरक्षित कर लिया।

अजातशत्रु ने वैशाली और कोशल को अपनी शक्ति के बल पर हथिया लिया। महापद्मनन्द ने कोशल और कलिंग को हड़प लिया। साम, दाम, दण्ड, भेद सभी तरह की नीतियों का सहारा लेकर मगध का उत्थान किया गया।

2. प्राकृतिक सम्पदा:
मगध राज्य के प्राकृतिक साधन बड़े विशाल थे। मगध में लोहे. की खान प्रचुर मात्रा में रहने के कारण हथियार, उद्योग-धंधे, कृषि सम्बन्धी राज्य का विकास करना आसान हो गया।

3. अनुकूल स्थान पर राजधानी:
मगध की, एक ओर तो पहाड़ियों से घिरी राजधानी राजगृह थी, तो दूसरी ओर गंगा, गंडक और सोन के संगम पर स्थित राजधानी पाटलिपुत्र थी। इन तक आक्रमणकारी आसानी से नहीं पहुंच पाता था। प्राकृतिक सुरक्षा से परिपूर्ण ये राजधानियाँ भी मगध साम्राज्य के उत्थान का एक बड़ा कारण सिद्ध हुईं।

4. सैनिक शक्ति:
मगध की सेना में हाथी, घोड़े एवं रथ थे। हाथियों द्वारा शत्रु सेना के घोड़े रौंद दिए जाते थे जिसके कारण उनमें भगदड़ मच जाती थी। किलों के विशाल दरवाजों को तोड़ने में भी हाथियों की सहायता ली जाती थी। रथों और घोड़ों का उचित प्रयोग काफी लाभकारी सिद्ध होता था।

5. उपजाऊ भूमि:
गंगा के आसपास स्थित होने के कारण मगध राज्य में उपजाऊ भूमि की कमी नहीं थी। अत; देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में कृषि का बड़ा सहयोग था। इससे राज्य में समृद्धि की लहर दौड़ गई।

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प्रश्न 3.
सा.यु.पू. छठी शताब्दी में वत्स राज्य के उत्थान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वत्स राज्य-इस राज्य में आधुनिक इलाहाबाद के आसपास के प्रदेश शामिल थे। यह राज्य बड़ा वैभवशाली और सम्पन्न था। इसकी राजधानी कौशाम्बी में थी। यह नगर यमुना नदी के तट पर एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। बुद्ध के समय इस राज्य पर उदयन नामक शासक शासन करता था। उसे मगध के शासक अजातशत्रु और अवन्ति के राजा प्रद्योत से युद्ध करने पड़े।

उदयन ने मगध के राजा से विवाह-सम्बन्ध कायम किए। अवन्ति के शासक प्रद्योत ने इस पर आक्रमण किया किन्तु वह असफल रहा और उसे अपनी लड़की का विवाह उदयन ई करना पड़ा। शुरू में उदयन बौद्ध धर्म का विरोधी था परंतु बाद में उसने इस धर्म को अपना कर राज्य-धर्म घोषित किया। उदयन के उत्तराधिकारी दुर्बल शासक होने के कारण यह राज्य उसकी मृत्यु के पश्चात् अवन्ति राज्य में विलीन हो गया।

प्रश्न 4.
बौद्ध युग में आर्थिक उन्नति के क्या कारण थे?
उत्तर:
बौद्ध युग में आर्थिक उन्नति के कारण –

  1. बौद्ध युग में वाराणसी, कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, कपिलवस्तु, अयोध्या, तक्षशिला तथा वैशाली जैसे नगरों का विकास होने के कारण न्यापार की उन्नति हुई।
  2. उस काल में धातु के सिक्के चलाये गये।
  3. उस काल में स्थल तथा जल दोनों मार्गों से व्यापार होता था। लंका, वर्मा, जावा, सुमात्रा और मलाया आदि देशों के साथ जलमार्ग से व्यापार होता था।
  4. विभिन्न व्यवसाय वाले शिल्पकारों ने अपने आपको विभिन्न संधों में संगठित कर लिया था।
  5. कृषि-योग्य भूमि की कुल आय का 1/6 भाग कर के रूप में लिया जाता था।
  6. धान के अलावा जौ, दालें, ज्वार, गन्ना, बाजरा तथा कपास की फसलें भी उगायी जाती थीं।

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प्रश्न 5.
बुद्ध के समय मुख्य गणराज्यों की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुख्य गणराज्यों की दशा:
बुद्ध कालीन मुख्य गणराज्यों में कपिलवस्तु के शाक्य, पावा और कुशीनगर के मल्ल, वैशाली के लिच्छवि आदि विशेषकर प्रसिद्ध थे। इन राज्यों के राजनीतिक इतिहास के विषय में काफी कम जानकारी मिली है। शाक्य लोगों का राज्य हिमालय की तराई में नेपाल और भारत की सीमा के आस-पास स्थित था।

महात्मा बुद्ध भी इसी वंश के थे। ये लोग काफी समय से प्रजातंत्र के सिद्धांतों के अनुसार राज्य करते रहे। अन्त में कोशल के शासक विरुद्ध के समय इस राज्य को कोशल साम्राज्य में मिला लिया गया। मल्ल लोगों की दो शाखाएँ थीं-एक पावा के स्थान से (जहाँ महावीर स्वामी की मृत्यु हुई थी) और दूसरी कुशीनगर के स्थान से (जहाँ महात्मा बुद्ध का देहांत हुआ था) राज्य करती थी। अन्त में मल्ल लोगों का साम्राज्य अजातशत्रु के समय मगध राज्य में मिला लिया गया।

प्रश्न 6.
जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जैन धर्म और बौद्ध धर्म में अंतर:
1. प्रचार संगठन में अन्तर:
बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए जो संगठन बनाया गया, वह जैन धर्म के संगठन से कहीं अधिक अच्छा था। मठों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं का काम सुव्यवस्थित होता था। वे प्रायः एक स्थान से दूसरे स्थान को घूमा करते थे।

प्रचार की व्यवस्था ठीक न होने के कारण जैन धर्म बहुत फैल न सका जबकि बौद्ध धर्म आज भी संसार के बड़े धर्मों में गिना जाता है। जैन धर्म के भिक्षु अपने कार्य में इतने चतुर नहीं थे और न उनका धर्म बौद्ध धर्म की भाँति एक प्रचारक धर्म था।

2. वेष-भूषा में अंतर:
जैनमत वालों के दो बड़े अंग हैं-श्वेताम्बर (Svetambaras) जो श्वेत रंग के कपड़े पहनते हैं और दिगम्बर (Digambaras) जो बिल्कुल नग्न रहते हैं। इनका नग्न रहना अध्यात्मिक उन्नति में एक बड़ी बाधा रही। बौद्ध मत के भिक्षु नग्न नहीं रहते।

3. विभिन्न धार्मिक ग्रन्थ:
बौद्धों के अपने अलग धर्म ग्रन्थ हैं, जिन्हें वे त्रिपिटक अथवा तीन टोकरियाँ (Triptakas or Three Baskets) कहते हैं, जबकि जैनियों का धर्म ग्रंथ अंग (Angas) कहलाता है।

4. भिन्न पूज्य व्यक्ति:
बौद्धों के पूज्य व्यक्ति बोधिसत्व (Bodhisattvas) हैं परंतु जैनियों के उपास्य व्यक्ति 24 तीर्थंकर (Trithankaras) हैं।

5. मोक्ष के विभिन्न साधन:
जीवन में मानसिक शांति पाने के लिए बौद्धमत वाले बुद्ध के बताए हुए अष्टमार्ग पर चलते हैं जबकि जैनमत वाले अपने त्रिरत्नों का अनुपालन करते हैं।

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प्रश्न 7.
अशोक के धर्म (धम्म) के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अशोक ने अपनी जनता के नैतिक उत्थान के लिए लोगों के सामने कुछ नैतिक नियम रखे। इन्हीं नियमों के समूह को धम्म कहा जाता है। अशोक द्वारा प्रतिपादित धम्म के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित थे –

  1. अशोक का मुख्य सिद्धांत था-बड़ों का आदर। उसके अनुसार शिष्यों को अपने गुरुजनों का मान करना चाहिए। सभी को ऋषियों, ब्राह्मणों तथा वृद्ध पुरुषों का आदर करना चाहिए।
  2. इस धम्म के अनुसार बड़जें को परिवार के सदस्यों, सम्बन्धियों, सेवकों, निर्धनों तथा दासों के साथ अच्छा और नम्र व्यवहार करना चाहिए।
  3. प्रत्येक मनुष्य को अपने बुरे कर्मों को फल अपने अगले जन्म में भुगतान पड़ता है। मनुष्य ने हमेशा अच्छे कर्म करने चाहिए।
  4. अहिंसा अशोक धम्म का मूल मंत्र है। इसके अनुसार किसी भी जीव को मन, वचन तथा कर्म से कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए।
  5. सभी मनुष्यों को समय-समय पर अपने कृत कार्यों का विश्लेषण करना चाहिए।
  6. ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार और झूठ पाप है। मनुष्य को इन पापों से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 8.
अजातशत्रु की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजातशत्रु (Ajatsatru,495 to 462 B.C.E.):
अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अजातशत्रु मगध के सिंहासन पर 395 सा०यु०पू० के लगभग बैठा। उसने बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार लगभग 32 वर्ष अर्थात् 462 सा०यु०पू० तक राज्य किया। अजातशत्रु एक बड़ा सफल तथा महत्त्वाकांक्षी राजा था जिसने राज्य का विस्तार करने में कोई कसर न छोड़ी।

1. अजातशत्रु की विजयें:
सबसे पहले अजातशत्रु को कोशल के राजा प्रसेनजित (Prasenjit) के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करनी पड़ी। प्रसेनजित ने काशी प्रदेश पहले मगध के शासक बिम्बिसार (अजातशत्रु के पिता) को दिया था लेकिन बिम्बिसार की मृत्यु के पश्चात् उसको पुनः अपने राज्य में मिला लिया था। युद्ध का मुख्य कारण यही बना।

इस युद्ध में कोशल के शासक प्रसेनजित की पराजय हुई, परंतु अजातशत्रु ने इस शत्रुता को एक सफल कूटनीतिज्ञ की भाँति मित्रता में बदल लिया। प्रसेनजित ने अपनी पुत्री का विवाह अजातशत्रु से कर दिया और अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त काशी का प्रदेश भी उसे दहेज में दे दिया। इस प्रकार अपने पिता की भाँति अजातशत्रु ने भी विवाह सम्बन्धों से अपनी शक्ति को बहुत बढ़ाया।

2. अजातशत्रु की सबसे बड़ी विजय लिच्छवियों (Lichchhavis) के लगभग 36 राज्यों के संघ को जीतने की थी। इस कार्य को पूरा करने में लगभग 16 वर्ष (484 से 468 सा०यु०पू० तक) लग गए। इस संघ को पराजित करना कोई सरल कार्य नहीं था, क्योंकि एक तो वे लड़ाके और दृढ़ स्वभाव के थे और दूसरा उनमें बड़ी एकता थी।

अजातशत्रु इन सब कठिनाइयों को अच्छी प्रकार जानता था। उसने बड़ी सावधानी से युद्ध की तैयारी की। सबसे पहले उसने विश्वसनीय मंत्री वस्सकरा (Vassakara) को लिच्छिवि लोगों में फूट डालने के लिए भेज दिया जो अपने कार्य में तीन वर्ष पश्चात् सफल हुआ और इस प्रकार उन लोगों की एकता जाती रही। दूसरे, अजातशत्रु ने लिच्छिवि प्रदेश के पास गंगा नदी के तट पर पाटलिपुत्र के नए नगर की नींव रखी ताकि उन लोगों पर सुगमता से आक्रमण किया जा सके।

तीसरे, मगध-शासक ने इस युद्ध में कई नये ढंग के अच्छे अस्त्रों का प्रयोग किया। इस प्रकार अजातशत्रु अपने उद्देश्य में सफल हुआ। लिच्छिवि लोगों के सारे-के-सारे प्रदेश को मगध राज्य में मिला लिया गया। अजातशत्रु का यश इस विजय से चारों और फैल गया। अवन्ति का सुप्रसिद्ध शासक प्रद्योत अजातशत्रु की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर ईर्ष्या करने लगा, परंतु वह अजातशत्रु के विरुद्ध कुछ भी करने में असमर्थ था, क्योंकि अजातशत्रु अब बहुत शक्तिशाली हो चुका था। इस प्रकार अपनी विजयों से अजातशत्रु ने ममध राज्य की सीमाओं का बहुत विस्तार किया।

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प्रश्न 9.
शिलाओं पर उत्कीर्ण अशोक के राज्यादेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शिलाओं पर उत्कीर्ण राज्यादेश:
शिलाओं पर उत्कीर्ण राज्यादेश चार प्रकार के मिले हैं –

(क) इनमें सबसे प्रसिद्ध शिला-राज्यादेश हैं जो शाहवाजगढ़ी (पेशावर जिला), मनसेरा (जिला हजारा), गिरनार (काठियावाड़), मासकी (मैसूर), दौली तथा जुगादा (कलिंग प्रदेश), कालसी (जिला देहरादून) आदि स्थानों पर मिले हैं। इनमें अशोक की धर्म-यात्राओं, अहिंसा नीति, धर्म के नियमों, धर्म-महामान्यों की नियुक्ति जैसे विषयों पर लिखा गया है।

(ख) दूसरे प्रकार के शिलालेख दो लघु राज्यादेशें (The Two Minor Rock Edicts) के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये संसराम (पूर्वी बंगाल), रूपनाथ (मध्य प्रदेश), बैरात (राजस्थान) इत्यादि अनेक स्थानों पर पाए गए हैं। इनमें अशोक ने बौद्ध धर्म पर अपनी निष्ठा (विश्वास) प्रकट की है।

(ग) तीसरे प्रकार के दो शिला लेख कलिंग राज्यादेश (Two Kalinga Edicts) कहलाते हैं। क्योंकि ये दोनों कलिंग प्रदेश (दौली और जोगादा आदि) में पाए गए हैं। इनमें अशोक के प्रान्तीय राज्य-प्रबंध का वर्णन है।

(घ) चौथे प्रकार का लेख भाबरू राज्यादेश (The Bhabru Edicts) के नाम से प्रसिद्ध है। यह राजस्थान में स्थित एक शिला पर अंकित है। इस लेख में अशोक ने भिक्षुओं के नियमों की विवेचना की है।

प्रश्न 10.
मौर्य काल में भाषा और लिपि के क्षेत्र में क्या प्रगति हुई है?
उत्तर:
मौर्य काल में शिक्षित वर्ग की भाषा संस्कृत और आम-बोलचाल की भाषा पाली थी। अशोक ने पाली भाषा को राजभाषा बना दिया और अपने शिलालेखों में भी इसका प्रयोग किया। इन कारणों से इस भाषा का भी इस काल में बड़ा विकास हुआ। इस काल में दो लिपियों का प्रयोग होता था-ब्राह्मी लिपि और खरोष्टी लिपि। खरोष्टी लिपि का प्रयोग अशोक ने उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त के शिलालेखों में किया । यह लिपि दायें से बायें लिखी जाती थी।

इस काल में अनेक उत्तम ग्रन्थों की रचना हुई। चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री चाणक्य ने संस्कृत भाषा में राजनीति के सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की। इसमें उसने राजनीति एवं शासन-सम्बन्धी सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। इसकी तुलना मैक्यावली (Micheavelli) के ग्रन्थ ‘प्रिन्स’ (Prince) के साथ की जाती है।

वात्सायन ने ‘कामसूत्र’ की रचना की इसी युग में की थी। इसी युग में गृहसूत्र, धर्मसूत्र और वेदांगों की रचना हुई-ऐसा विद्वानों का मत है। इस काल में संस्कृत व्याकरण पर पाणिनी ने ‘अष्टाध्यायी’ नामक ग्रंथ लिखा। अन्य दो और पतञ्जलि उत्तर-मौर्य युग में हुए।

मौर्यकाल में बौद्ध और जैन साहित्य का भी काफी विकास हुआ। अशोक ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में तीसरा बौद्ध सम्मेलन आयोजित कराया। इसी काल में बौद्ध धर्म के त्रिपिटिक ग्रंथों का संकलन किया गया। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान् तिस्स ने ‘कथावथु’ नामक ग्रंथ की रचना भी इसी काल में की। जैन साहित्य का भी काफी विकास हुआ। प्रसिद्ध जैन विद्वान-भद्रबाहु तथा प्रभव ने ग्रंथों की रचना की।

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प्रश्न 11.
मौर्य साम्राज्य के महत्त्व का आकलन कीजिए।
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य का महत्त्व –

  1. भारतीय इतिहास ही नहीं, विश्व इतिहास में मौर्य साम्राज्य का बहुत अधिक महत्त्व है। ब्रिटिश काल में भारत एक औपनिवेशिक देश था। ऐसे में मौर्य साम्राज्य इतिहासकारों के लिए उत्साहवर्धक था। भारत में महाजनपद रूप से गणतंत्र पद्धति का यह पहला साम्राज्य था।
  2. मौर्यकालीन पुरातत्त्व और मूर्तियों ने सिद्ध कर दिया है कि चौथी-तीसरी सदी सा०यु०पू० में भारत में एक साम्राज्य मौजूद था।
  3. अशोक के अभिलेख अन्य देशों से भिन्न थे। इनमें संदेश लिखे थे।
  4. अशोक एक चक्रवर्ती सम्राट था। इससे राष्ट्रवादी नेताओं को बहुत प्रेरणा मिली।
  5. मौर्य साम्राज्य में कुछ कमियाँ रहने के कारण यह साम्राज्य मात्र 150 वर्ष तक ही चल पाया और इसका विस्तार भी सम्पूर्ण उपमहाद्वीप में नहीं था।

प्रश्न 12.
पाण्ड्य चेर और चोल राज्य के अन्तर्गत वाणिज्य केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तीनों ओर समुद्र से घिरा होने के कारण पाण्ड्य, चेर और चोल जैसे सुदूर, दक्षिणी राज्यों के शासकों का शुरू से ही सामुद्रिक गतिविधियों के प्रति बड़ा अनुराग रहा। उनकी आय का एक बड़ा साधन व्यापार से होने वाली आय थी।

यह व्यापार उत्तर के मगध साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के बीच होता था। चेर, चोल और पाण्ड्य राजाओं के काल में कई स्थान वाणिज्य केन्द्रों के रूप में उभर कर सामने आये। विशेषकर चोल राज्य में स्थित उरैयुर (Uraiyur), पुहार या कावेरीपट्टनम (Puhar or Kaveripattanam), पाण्ड्य राज्य में स्थित मदुरै (Madurai), तथा चेर राज्य में स्थित मुजिरी (Muzairis) (ट्रांगनोर) महत्त्वपूर्ण वाणिज्य-केन्द्र था।

ऐसे वाणिज्य-केन्द्र गर्म मसालों, विशेषकर काली मिर्च तथा सूती कपड़े, मलमल और रेशम के ऊपर तरह-तरह की नक्काशीदार बुनाई के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। ये प्रसिद्ध वाणिज्य-केन्द्र दोनों उत्तर और रोमन साम्राज्य से अपने व्यापारिक सम्बन्धों के कारण बड़े समृद्ध बन गये। रोमन साम्राज्य का बहुत सा सोना, अनेक भारतीय वस्तुओं के बदले भारत आने लगा। इसके परिणामस्वरूप दक्षिणी राज्य उत्तरोत्तर धनी बनते चले गये।

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प्रश्न 13.
भारत पर सिकंदर के आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1. भारत में थोड़ा समय ठहरना:
सिकंदर भारत में केवल 19 महीने रहा और यह सारा समय उसने लगभग लड़ने में व्यतीत किया। लड़ाई के वातावरण में भारतवासी यूनानियों को और यूनानी भारतवासियों को अच्छी प्रकार न समझ सके। ऐसी अवस्था में भारत पर यूनानी सभ्यता का प्रभाव पड़ना लगभग असंभव था।

2. केवल सीमावर्ती आक्रमण:
सिकंदर भारत के आन्तरिक भागों तक नहीं जा सका। उसका आक्रमण सीमा पर की गई डकैती जैसा था। इस प्रकार सिकंदर के आक्रमण का कोई विशेष प्रभाव पड़ने की सम्भावना बहुत कम थी।

3. मौर्य वंश के उदय में सहायक:
सिकंदर के आक्रमण से पंजाब की रियासतें एवं लड़ाकू जातियाँ अब इतनी दुर्बल हो गई कि चन्द्रगुप्त मौर्य उन्हें आसानी से पराजित कर पाया। यदि ऐसा न होता तो चन्द्रगुप्त को उन्नति करने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता क्योंकि अनेक राजाओं से लड़ना पड़ता।

4. भारतीय एकता के कार्य में सहायता:
रियासतों तथा लड़ाकू जातियों को सिकंदर द्वारा कुचले जाने का एक अन्य प्रभाव यह भी हुआ कि भारतीय एकता की स्थापना करने तथा एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित करने में काफी आसानी रही।

5. यूरोपीय देशों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध:
सिकंदर के आक्रमण ने पूर्व और पश्चिम राज्यों के मध्य सम्पर्क बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। अब लोगों को चार मार्गों का पता चल गया जिनसे भारतीय व्यापारी, कारीगर तथा धर्म प्रचारक अन्य देशों को गए और अन्य देशों के लोग भारत आए। इस प्रकार भारत और यूरोप के व्यापारिक सम्बन्ध भी पहले से अब काफी अच्छे हो गए।

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प्रश्न 14.
गुप्तकालीन कला, साहित्य और विज्ञान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन कला, साहित्य और विज्ञान:
गुप्त सम्राट कला, साहित्य और विज्ञान के पोषक थे। कला के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी प्रशंसनीय उपलब्धियाँ रही हैं। वास्तुकला के क्षेत्र में उन्होंने अनेक मंदिरों एवं भवनों का निर्माण करवाया। मथुरा का शिव मंदिर और देवगढ़ इसी काल में बनाया गया।

गुप्तकाल में निर्मित अजन्ता की गुफायें विश्व प्रसिद्ध हैं। गुप्तकालीन मठ तथा स्तूप भी भवन निर्माण कला के उत्तम उदाहरण हैं। इसी के साथ मूर्तिकला, चित्रकला, संगीतकला और मुद्राकला आदि की भी खूब उन्नति हुई। प्रस्तर मूर्तियों में बुद्ध, बोधिसत्व, विष्णु, शिव और सूर्य आदि की मूर्तियाँ कलात्मकता की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं।

गुप्तकाल में साहित्य की भी खूब उन्नति हुई। गुप्तकालीन कालिदास के ग्रन्थ-अभिज्ञान शाकुन्तलम् मेघदूत और कुमारसम्भव, विशाखादत्त का देवीचन्द्रगुप्तम्। भास का स्वप्नवासवदत्ता आदि प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं। गुप्तकाल में लिखे गये सभी नाटक सुखान्त हैं।

विज्ञान और गणित के क्षेत्र में गुप्तकाल की उपलब्धियाँ महान् हैं। दशमलव पद्धति का जन्म इसी काल में हुआ। आर्यभट्ट उस काल का एक ज्योतिषी एवं गणितज्ञ था। उसने पता लगाया कि पृथ्वी गोल है तथा अपनी धूरी पर सूर्य के चारों ओर घुमती है।

प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर ने (वृहद्संहिता) और योगमाया जैसे अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे। आयुर्वेद के क्षेत्र में नागार्जुन ने रसायनशास्त्र की रचना की। गुप्तकाल में धातु कर्म काफी विकसित था। नालन्दा से प्राप्त बुद्ध की तांबे की मूर्तियाँ अत्यन्त आकर्षक हैं। दिल्ली में महरौली स्थित लोहे का स्तम्भ भी धातुकला एवं इंजीनियरिंग का एक आकर्षक नमूना है। इस प्रकार गुप्तकाल में कला, साहित्य एवं विज्ञान की अभूतपूर्व उन्नति हुई।

प्रश्न 15.
गुप्तकालीन सामाजिक एवं आर्थिक जीवन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ:
गुप्तकाल में ब्राह्मणों का महत्त्व बढ़ गया था। उन्हें राजाओं से पर्याप्त भूमि अनुदान प्राप्त हुआ। वर्ण-संकर के कारण अनेक जातियों और उपजातियों का जन्म हुआ।

विदेशियों को क्षत्रिय वर्ण में रखा गया। भूमि अनुदान द्वारा पिछड़े लोग उच्च वर्ण और कबायली निम्नवर्ग में शामिल हो गये। शूद्रों में ‘चाण्डाल’ नामक नई अछूत जाति बनी। उन्हें नगर से बाहर रहना पड़ता। गुप्तकाल में स्त्रियों की दशा पतनोन्मुखी थी। वे उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकती थीं। बाल-विवाह का प्रचलन था और स्त्रियों का अधिकार केवल स्त्री-धन (वस्त्र और आभूषण) तक सीमित जाति बनी थी। उच्च वर्ण के लोग सभी प्रकार से सुखी थे।

आर्थिक जीवन:
गुप्तकाल का आर्थिक जीवन सुखी और सम्पन्न था। गुप्त शासकों ने सर्वाधिक स्वर्ण-मुद्रायें जारी की। इस काल में तांबे की बहुत कम मुद्रायें मिलती हैं। भारत का रेशम व्यापार बंद हो गया था। इस काल में कृषि की उन्नति हुई परंतु किसानों से बड़े पैमाने पर पेगार लिया जाता था। अनेक क्षेत्रों में परती भूमि का उपयोग किया गया। आंतरिक व्यापार विकसित था।

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प्रश्न 16.
‘पेरिप्लस ऑफ एरीथ्रियन सी’ का लेखक कौन है? उसने व्यापार के विषय में क्या लिखा है?
उत्तर:
पेरिप्लस ऑफ एरीशियन सी:

  1. पेरिप्लस ऑफ एरीथियन सी का लेखक एक यूनानी समुद्री यात्री था।
  2. उसने समुद्र द्वारा होने वाले विदेशी व्यापार दर्शाने के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की सूची तैयार की थी।
  3. वह यह दिखाना चाहता था कि भारत से काली मिर्च तथा दाल-चीनी जैसे गर्म मसाले निर्यात किये जाते थे।
  4. इनके बदले में पुखराज, मूंगे तथा हीरे जैसी बहुमूल्य वस्तुओं का आयात किया जाता था।

प्रश्न 17.
भारत के राजनैतिक इतिहास के निर्माण में जेम्स प्रिसेंप का क्या योगदान है?
उत्तर:
जेम्स प्रिसेंप का योगदान –

  1. जेम्स प्रिसेंप ईस्ट इण्डिया कंपनी के एक अधिकारी थे। उन्होंने ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का अर्थ निकाला। इन लिपियों का प्रयोग प्रारम्भिक अभिलेखों और सिक्कों में किया गया है।
  2. उन्होंने यह जानकारी प्राप्त की कि अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी अर्थात् सुन्दर मुख – आकृति वाले राजा का नाम लिखा है। कुछ अभिलेखों में राजा का नाम अशोक भी लिखा था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक सर्वाधिक लोकप्रिय शासकों में से एक था।
  3. प्रिसेंप की इस खोज से आरम्भिक भारत के राजनीतिक इतिहास के अध्ययन को नई दिशा मिली, क्योंकि भारतीय और यूरोपीय विद्वानों ने उपमहाद्वीप पर शासन करने वाले प्रमुख राजवंशों की पुनर्रचना के लिए विभिन्न भाषाओं में उत्कीर्ण अभिलेखों और ग्रंथों का उपयोग किया।
  4. इस प्रकार 20वीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों तक उपमहाद्वीप के राजनैतिक इतिहास का ढाँचा तैयार हो गया।

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प्रश्न 18.
छठी शताब्दी सा.यु.पू. के गणराज्यों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
छठी शताब्दी सा.यु.पू. के गणराज्य:
1. छठी शताब्दी सायु०पू० में निम्नलिखित गणराज्य थे:

  • (क) कुशीनारा के मल्ल
  • (ख) पावा के मल्ल
  • (ग) कपिलवस्तु के शाक्य
  • (घ) रामग्राम के कोलिय
  • (झ) वैशाली के लिच्छवि।

2. इन राज्यों की शासन पद्धति राजतंत्रीय राज्यों (महाजनपदों) से भिन्न थी। इनमें कोई राजा नहीं होता था। शासन सत्ता लोगों द्वारा चुने गये किसी मुखिया के हाथ में होती रहती। इनका पद पैतृक नहीं था।

3. सरकार का सारा कार्य चुने गए सदस्य आपसी परामर्श से करते थे।

4. छठी शताब्दी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गणराज्य वज्जियों का था। यह राज्य आठ गणों का एक संघ था जिनमें से लिच्छवी गण बहुत ही महत्त्वपूर्ण था।

प्रश्न 19.
अशोक को ‘महान्’ क्यों कहा जाता है? अथवा, अशोक का इतिहास में क्या स्थान है?
उत्तर:
इतिहास में अशोक का स्थान –

  1. अशोक न केवल भारत का अपितु विश्व का भी एक महान् सम्राट माना जाता है। उसमें मनुष्यता कूट-कूट कर भरी थी और उसने प्रजा तथा मानव सेवा के लिए हर उपाय किये। बह लोगों को धार्मिक तथा नैतिक उपदेश देने में जुट गया। संसार में शायद ही किसी सम्राट ने ऐसा किया हो।
  2. अशोक एक विशाल साम्राज्य का राजा था। उसका साम्राज्य पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत था।
  3. अशोक ने बौद्ध धर्म को विश्व के लगभग सभी देशों में फैला दिया। एक छोटे से धर्म को विश्व धर्म बना देने वाले व्यक्ति को महान् कहना उचित ही है।
  4. अशोक एक सहनशील सम्राट था और सभी धर्मों का आदर करता था।
  5. अशोक अपनी प्रजा को अपनी संतान के समान समझता था। राज्य की ओर से अनाथों तथा विधवाओं को विशेष सुविधा दी जाती थी। उसने पशुओं की रक्षा के लिए भी अस्पताल खुलवाये।

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प्रश्न 20.
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबंध की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चन्द्रगुप्त मौर्य का शासन प्रबंध –

  1. केन्द्रीय शासन का मुखिया स्वयं सम्राट होता था। उसकी शक्तियाँ असीम थी। उसकी सहायता के लिए कई मंत्री होते थे।
  2. सम्पूर्ण मौर्य साम्राज्य चार प्रान्तों में विभाजित था प्रांत के मुखिया को कुमार कहते थे। वह प्रायः राज घराने का ही कोई व्यक्ति होता था।
  3. नगरों का शासन नगराध्यक्ष के हाथ में होता था। बड़े-बड़े नगरों के प्रबंध के लिए 30-30 सदस्यों की परिषदें थीं।
  4. प्रत्येक परिषद् पाँच-पाँच सदस्यों के छः बोर्डों में विभाजित थी। गाँवों का शासन पंचायतों के हाथ में था।
  5. न्याय के लिए दीवानी और फौजदारी अदालतें थीं। प्रजा के हित की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था।
  6. चन्द्रगुप्त मौर्य का सैनिक संगठन भी उच्च कोटि का था। सेना में 6 लाख पैदल, 36 हजार घुड़सवार 9 हजार हाथी और 8 हजार रथ शामिल थे।

प्रश्न 21.
अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कौन-कौन से कार्य किये?
उत्तर:
अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए किये ये कार्य:

  1. कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और प्रचार के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
  2. उसने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों का प्रचार करने के साथ ही उनका भी पालन किया। ये सिद्धांत जनता के कल्याण से सम्बन्धित थे।
  3. उसने बौद्ध धर्म के नियमों को स्तभों, शिलाओं तथा गुफाओं पर खुदवाया । ये नियम आम बोलचाल की भाषा में खुदवाये थे, ताकि साधारण लोग भी इन्हें पढ़ सकें।
  4. बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अनेक स्तूप और बिहार बनवाये जो बौद्ध धर्म के प्रचार केन्द्र बन गये। स्तूप महात्मा बुद्ध की याद दिलाते थे जबकि बिहार में बौद्ध अनुयायी निवास करते थे तथा बौद्ध शिक्षा ग्रहण करते थे।
  5. वह विहारों और बौद्ध भिक्षुओं की सहायता भी करता था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बौद्धयुगीन व्यापार एवं वाणिज्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बौद्धयुगीन व्यापार एवं वाणिज्य:

व्यावसायिक संघ और श्रेणियाँ:
इस काल की एक मुख्य विशेषता यह भी थी कि भिन्न-भिन्न व्यवसाय करने वालों या शिल्पकारों ने अपने-आपको विभिन्न संघ में संगठित कर रखा था। एक ही धंधा करने वालों का प्रायः अपना अलग शिल्प-संघ या श्रेणी होती थी। बौद्ध साहित्य में इस प्रकार की अनेक श्रेणियों के उल्लेख मिलते हैं।

प्रत्येक श्रेणी का अपना अलग अध्यक्ष होता था जो ‘प्रमुख’, ‘ज्येष्ठक’ या ‘श्रेष्ठिन’ के नाम से पुकारा जाता था। इस अध्यक्ष का समाज में बड़ा सम्मान था। विभिन्न व्यावसायिक संघ या श्रेणियाँ अपने सदस्यों के पारस्परिक झगड़ों को निपटाती थी और उनके माल के निर्माण और क्रय-विक्रय में सहायता देती थी।

व्यापार और वाणिज्य:
उस समय व्यापार जल और थल दोनों मार्गों से होता था। अपने सामान की बिक्री के लिए व्यापारियों ने बड़े-बड़े बाजार बना रखे थे। कुछ व्यापारी अपना सामान बैलगाड़ी, ऊँटों अथवा घोड़ों की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी ले जाते थे। ऐसे व्यापारी चोर-डाकुओं से बचने के लिए प्रायः कारवाँ (Caravan) के रूप में चलते थे। कई बार कुछ राज्य कारवाँ के साथ सशस्त्र सैनिक भी भेज देते थे।

बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि उन दिनों भारत के व्यापारिक संबंध लंका, वर्मा, जावा, सुमात्र, मलाया, अरब और कई पाश्चात्य देशों से भी थे। भारत से जिन वस्तुओं का निर्यात होता था उनमें-सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र, कंबल, कालीन, औषधियाँ, इत्र, तेल, हाथी-दाँत का सामान, मोती, रत्न आदि वस्तुएँ विशेष उल्लेखनीय हैं। उस समय के प्रसिद्ध बन्दगाह-भृगुकच्छ (आधुनिक भडोंच), सुपारक (आधुनिक सुपारा) और ताम्रलिप्ति (पश्चिम बंगाल में स्थित तामलुक) आदि थे।

शिल्पकारों की भांति व्यापारियों ने भी अपने-आपको व्यापारिक संघों में संगठित कर रखा था। प्रायः सबसे धनी व्यापारी अध्यक्ष पद को ग्रहण करता था और उसे ‘श्रेष्ठिन’ या ‘सेठी’ कहा जाता था।

सिक्कों का आरम्भ:
वैदिक युग में लेन-देन में प्रायः चीजों का आदान-प्रदान ही होता था परंतु बौद्धकाल में मौद्रिक विनिमय ने स्थान ले लिया था। उस समय की कुछ प्रमुख मुद्राओं के नाम बौद्ध साहित्य में इस प्रकार दिये गये हैं-काकणिक, माषक, अर्द्धमाषक, पद, अर्द्धपद, कहापण (कर्षापण) तथा अर्द्धकर्षाण आदि।

ये सिक्के ताँबे और चाँदी आदि के होते थे। सोने के सिक्के भी थे जिन्हें निक्ख (या निष्क) और सुवण्ण (या सुवर्ण) कहा जाता था। इस समय ब्याज पर धन देने की प्रथा भी चल पड़ी थी और हुण्डियों तथा ऋण-पत्रों का प्रयोग भी होने लगा था।

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प्रश्न 2.
अशोक के राज्यादेशों और शिलालेखों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अशोक के राज्यादेशों और शिलालेखों का महत्त्व:
अशोक के शिलालेख और राज्यादेश इतिहासकारों के लिए अमूल्य वस्तु हैं क्योंकि उनसे उसके विषय में बहुत सी बातों का पता चलता है। संभव है कि इन लेखों के बिना हमें अशोक के बारे में बहुत कम मालूम होता।

इनके विषय में ठीक ही कहा गया है, ये अभिलेखों के अनोखे संग्रह ही हैं जो अशोक की आन्तरिक भावनाओं और आदर्शों को हमारे सामने ला देते हैं और सदियों के बारे में भी सम्राट के लगभग वही शब्द हमारे कानों में गूंजने लगते है।” इन राज्यादेशों से हमें निम्नलिखित आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त होती हैं:

1. अशोक का राज्य विस्तार:
अशोक के बहुत-से लेख सीमांत प्रदेशों से मिले हैं। इनसे उसके साम्राज्य में सम्मिलित प्रदेशों और उनकी सीमाओं की जानकारी मिलती है।

2. अशोक का व्यक्तिगत धर्म:
इन्हीं लेखों से हमें यह भी पता चलता है कि अशोक का धर्म क्या था? अशोक का पशुओं का वध रोकना, महात्मा बुद्ध से सम्बन्धित सभी स्थानों की यात्रा करना, अन्य देशों में धर्म प्रचारक भेजना और एक धर्म रक्षक की भाँति भिक्षुओं के लिए नियम बनाना आदि सब बातों का हमें इन्हीं राज्यादेशों से पता चलता है।

3. अशोक का विश्व धर्म:
इसके अतिरिक्त इन्हीं लेखों से उस धर्म का पता चलता है, जिसे अशोक संसार के सामने रखना चाहता था। बड़ों का आदर करना चाहिए, छोटों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, सत्य बोलना चाहिए, दान देना चाहिए आदि गुणों का हमें इन राज्योदेशों से पता चलता है जो अशोक के प्रचारित धम्म के मुख्य सिद्धांत थे।

4. अशोक के राजत्व के आदर्श:
अशोक के शिलालेखों या राज्यादेशों से उसके राजत्व के आदर्श का भी पता चलता है। अशोक का आदर्श लोगों पर शासन करना नहीं वरन् उनकी सेवा करना तथा उनमें नैतिकता का संचार करना था।

अशोक ने किस प्रकार एक पिता की भाति अपनी प्रजा पर राज्य किया, किस प्रकार उनके लिए कुएँ बनवाए, सरायं बनवाईं, छायादार वृक्ष लगवायें, अस्पताल बनवाये, अधिकारियों को लोक सेवा का पाठ पढ़ाया, आदि सब बातों का ज्ञान हमें इन्हीं राज्यादेशों से ही होता है।

5. अशोक का चरित्र:
अशोक के चरित्र पर भी इन शिलालेखों से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इन लेखों से हमें पता चलता है कि किस प्रकार वह हर समय लोगों की सेवा के लिए तत्पर रहता था और उनके लिए केवल इस लोक में ही नहीं वरन् परलोक में भी सुख-समृद्धि की कामना करता था।

6. मौर्य कला:
ये राज्यादेश बड़ी-बड़ी शिलाओं, स्तम्भों तथा गुफाओं पर खुदे हुए थे। इतने बड़े और भारी स्तम्भों को इतनी दूर किस प्रकार ले जाया गया होगा-यह आज भी आश्चर्य में डाल देने वाली बात है। पत्थरों को काटकर बनाए गए भिन्न-भिन्न पशु-पक्षी आज भी अपनी चमक बरकरार रखे हुए हैं।

7. शिक्षा प्रचार:
सारे देश में पाए गए ये राज्यादेश सर्व साधारण के पढ़ने के लिए थे। इन्हें देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अशोक के समय लोग काफी पढ़े-लिखे होंगे और शिक्षा का प्रचार भी काफी हुआ होगा।

8. प्रचलित भाषा:
ये लेख संस्कृत भाषा में न होकर प्राकृत (लोगों की बोल-चाल की भाषा) में हैं। इनसे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन दिनों प्राकृत भाषा ही जन-साधारण की भाषा रही होगी।

9. अशोक का अन्य देशों से सम्बन्ध:
अशोक का अन्य देशों के साथ बड़ा मैत्रीपूर्ण व्यवहार था, इसका ज्ञान भी हमें राज्यादेशों से ही मिलता है।

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प्रश्न 3.
मेगस्थनीज ने भारत के विषय में क्या लिखा है?
उत्तर:
मेगस्थनीज का विवरण:
मेगस्थनीज एक यूनानी इतिहासकार था जो यूनानी शासक सेल्यूकस की ओर से चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में भेजा गया था। वह कोई पाँच वर्ष (302 साव्यु०पू० से 298 सान्यु०पू० तक) भारत में रहा।

उसने भारत का वृत्तान्त अपनी सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘इण्डिका’ (Indica) में लिखा है। इस पुस्तक का विशेष ऐतिहासिक महत्त्व है। इससे तीसरी शताब्दी सा०यु०पू० की राजनीतिक एवं सामाजिक अवस्थाओं के सम्बन्ध में बड़ी जानकारी प्राप्त होती है।

1 राजा के विषय में:
मेगस्थनीज ने राजा के विषय में बहुत-कुछ लिखा है। वह लिखता है कि राजा बड़ी शान से रहता था और उसका राजमहल अपने ढंग का एक अद्वितीय सुन्दर महल था। राजा महल के एक कमरे में दो रातें इकट्ठी नहीं बिताता था। वह बहुत कम लोगों से मिलता-जुलता था और केवल निम्नलिखित चार कार्यों के लिए महल छोड़ता था:

  • (क) युद्ध में जाने के लिए
  • (ख) न्याय करने के लिए
  • (ग) यज्ञ या हवन के लिए तथा
  • (घ) शिकार अथवा भ्रमण के लिए।

राजा की देख-रेख के लिए गुप्तचर नियुक्त थे। इन गुप्तचरों में स्त्रियाँ अधिक थी। राजा अपने प्रधानमंत्री चाणक्य (कौटिल्य) का बहुत आदर करता था, जो महल के पास ही एक झोपड़ी में रहता था।

2. सैनिक संगठन के विषय में:
चन्द्रगुप्त की एक बड़ी विशाल सेना थी जिसकी संख्या लगभग सात लाख थी। जिसमें 6,00,000 पैदल; 30,000 घुड़सवार; 9,000 हाथी और लगभग 8,000 रथ थे। हर एक रथ में 3 व्यक्ति होते थे। मेगस्थनीज लिखता है कि समस्त सेना की व्यवस्था तीस सदस्यों की एक प्रथक् समिति करती थी। सेना-विभाग के छ: उप-विभाग थे। इनके अधिकार में –

  • पैदल सेना
  • घुड़सवार सेना
  • जल-सेना
  • रथ
  • हाथी और
  • सामग्री पहुँचाने का प्रबंध था।

3. सिविल प्रशासन के विषय में:
सिविल प्रबंध के विषय में भी मेगस्थनीज ने बहुत-कुछ लिखा है। वह लिखता है कि राजा निरंकुश था और उसके अधिकार असीमित थे। राजा ने सब प्रकार की सूचनायें प्राप्त करने के लिए अपने गुप्तचर छोड़ रखे थे। प्रजा पर कई प्रकार के कर लगाए गए थे। आय का सबसे बड़ा साधन भूमि-कर था जो कुल उपज का पाँचवा भाग होता था।

बिक्री की चीजों के आवोगमन और सरकारी नौकाओं पर बैठकर नदी पार करने पर भी कर लगाए गए थे। प्रजा की भलाई की और भी विशेष ध्यान दिया जाता था । जल-सिंचाई के लिए नहरें और यात्रा के लिए सड़कें बनी हुई थीं। सड़कों पर यात्रियों की सुविधा के लिये मील के पत्थर लगे हुए थे। इन सड़कों पर जाने वाले यात्रियों की रक्षा का पूरा-पूरा प्रबंध था और थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनी हुई थीं। सड़कों पर दोनों ओर छायादार वृक्ष भी लगे हुए थे। इन सब कारणों से व्यापार का अभूतपूर्व विस्तार हुआ।

मेगस्थनीज ने लिखा है कि कानून बड़े कठोर थे और छोटे-छोटे अपराधों के लिए भी हाथ-पाँव काट दिए जाते थे। देश में न्यायालय भी थे। राजा न्याय करने के लिए उत्सुक रहता था। सारा देश प्रान्तों में बंटा हुआ था और उन प्रान्तों पर योग्य अधिकारी नियुक्त थे। ये देश में शान्ति व्यवस्था बनाए रखते थे। मेगस्थनीज लिखता है कि प्रान्त, जिलों में बंटे हुए थे और प्रत्येक जिले में कई गाँव होते थे। गाँव के मुखिया को गोप (Gope) कहते थे।

4. पाटलिपुत्र के नगर-प्रशासन के विषय में:
मेगस्थनीज ने चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी के विषय में बहुत-कुछ लिखा है। उसके अनुसार यह नगर गंगा और सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ था और बड़ा शोभनीय था। इस नगर के चारों ओर लकड़ी की एक चौड़ी दीवार थी, जो कि एक गहरी खाई से घिरी हुई थी। इसमें सदा पानी भरा रहता था।

राजमहल सुन्दरता और सजधज में अद्वितीय था। इसमें सुन्दर बाग और फल-फूलों वाले वृक्ष थे तथा सब प्रकार के मनोरंजन के साधन थे। इस नगर के प्रबंध के लिए तीस सदस्यों की एक समिति थी। समिति छ: उप-समितियों में बँटी हुई थी जिनके अधिकार में कला-कोशल, विदेशियों की देख-भाल, जनसंख्या की गिनती, व्यापार, बिकने वाली वस्तुएँ और कर वसूली का प्रबंध इत्यादि था।

5. भारतीय समाज के विषय में:
मेगस्थनीज लिखता है कि समाज सात वर्गों में विभक्त था –

  • (क) दार्शनिकों का राज्य में बड़ा नाम था।
  • (ख) परिषद्-सदस्य राजा को सलाह देते थे और राज्य के कार्य में उसकी सहायता करते थे।
  • (ग) तीसरी श्रेणी सैनिकों की थी। वे लड़ाई के समय युद्धरत रहते थे, अन्यथा आराम करते थे।
  • (घ) चौथी श्रेणी अन्य छोटे-छोटे अधिकारियों की थी, जो राज्य-प्रबंध में राजा और गवर्नरों की सहायता करते थे।
  • (ड) पाँचवीं श्रेणी कृषकों की थी जिनका कार्य देश के लिए अनाज पैदा करना था।
  • (च) छठी श्रेणी व्यापारियों तथा शिल्पकारों की थी। ये देश के व्यापार की ओर ध्यान देते थे।
  • (छ) सातवीं श्रेणी गड़रियों आदि की थी। ये भेड़-बकरी इत्यादि चराकर तथा शिकार करके अपना जीवन-निर्वाह करते थे।

मेगस्थनीज ने लिखा है कि लोग सत्यावादी थे। चोरी आदि की घटनायें बहुत कम होती थीं। लोग एक-दूसरे पर विश्वास रखते थे और मुकदमेबाजी बहुत कम थी। ब्राह्मणों का समाज में विशेष स्थान था और सब उनका आदर करते थे। प्रजा बड़ी प्रसन्न थी और देश बड़ा उपजाऊ तथा समृद्ध था। लोग सादा जीवन व्यतीत करते थे और घरों में ताला आदि नहीं लगाते थे। दास-प्रथा को लोग नहीं जानते थे। वह यह भी लिखता है कि यहाँ के लोगों के खाने का कोई समय नहीं था और वे हर वक्त खाते रहते थे।

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प्रश्न 4.
मौर्यकालीन कला-कौशल का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मौर्यकालीन कला:
1. भवन-निर्माण-कला (Architecture): मौर्य शासकों ने जो भवन बनवाए उन्हें देखकर विदेशी यात्री भी चकित रह गए। ये भवन अधिकतर लकड़ी के थे, इसलिए मौर्यकालीन शिल्प-कला की सुन्दरता के कोई विशेष नमूने हम नहीं देख पाए हैं। यूनानी लेखकों से पता चलता है कि मौर्य शासकों द्वारा बनाए गये राजमहल अपनी सुन्दरता के लिए सारे संसार में प्रसिद्ध थे।

केवल यही नहीं, चीनी यात्री फाह्यान (Fahien) का भी यही कहना है कि, “अशोक का राजमहल इतना सुन्दर तथा शानदार था कि उसे मनुष्यों ने नहीं बल्कि देवताओं ने बनवाया होगा।” इन राजमहलों के अतिरिक्त मौर्य शासकों ने अपने साम्राज्य को कई हजार स्तूपों (Stupas) से सजाया। ये स्तूप ईंटों अथवा पत्थरों द्वारा बनाए हुए गुम्बद के आकार के थे। इनकी गोलाई नीचे से ऊपर की ओर कम होती जाती थी। इन सब स्तूपों में साँची स्तूप (Sanchi Stupa) और भरहुत स्तूप (Bharhut Stupa) विशेष उल्लेखनीय हैं।

2. वास्तुकला (Sculpture):
मौर्य काल में पत्थर को तराश कर सुन्दर-सुन्दर स्तम्भ, पशु-पक्षी, मूर्तियाँ, गुफाएँ आदि बनाने की कला से जितनी उन्नति की, भारतीय इतिहास के शायद ही किसी काल में इतनी हुई हो। मौर्यकालीन कला के सर्वोत्कृष्ट नमूने अशोक के स्तम्भ हैं। ये स्तम्भ 50 से 60 फुट ऊँचे हैं और इनका वजन 50 टन है। आश्चर्य की बात है कि इतने लम्बे-चौड़े और भारी स्तम्भ एक ही टुकड़े से काटकर कैसे बनाए गए होंगे। यद्यपि ये स्तम्भ इतने भारी हैं फिर भी इन्हें सुनार के आभूषणें सी सफाई तथा सुन्दरता से बनाया गया है। प्रत्येक स्तम्भ के सिरे पर एक अलग शीर्ष (Capital) बनाया गया है।

इन शीर्षों पर बने हुए पशु-पक्षियों के चिह्न अपनी सुन्दरता में बेजोड़ हैं। सारनाथ (Sarnath) के स्तम्भ का तीन शेरों वाला शीर्ष मौर्य काल की उन्नति का जीता-जागता नमूना है। इसको आधुनिक भारतीय मुद्रा में भी अपनाया गया है। मौर्यकालीन वास्तुकला का एक अन्य नमूना ठोस चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ हैं। पत्थरों को काटकर गुफाएँ बनाना कितना कठिन कार्य है परंतु मौर्य काल में इसका बड़ी कुशलता के साथ किया गया।

3. पालिश करने की कला (Art of Polishing):
मौर्य काल में कठोर पत्थर को साफ करके पालिश करने की कला इतनी उन्नत थी कि आज के युग में ऐसा कर पाना संभव नहीं है। गया के पास गुफाओं की दीवारों पर इस प्रकार की पालिश की गई है कि वे शीशे के समान चमकती हैं। दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्थित अशोक की लाट पर इतनी चमकदार पालिश है कि अंग्रेज पादरी हेबर (Bishop Haber) जैसे बहुत-से लोगों को अनेक बार यह भ्रम हुआ कि यह स्तम्भ पत्थर का है अथवा धातु से ढालकर बनाया गया है।

4. स्थापत्य कला (Art of Engineering):
अशोक के काल में पहाड़ों के बड़े-बड़े – टुकड़े काटे गये, संभाले गये और तराश कर ऐसे स्तम्भों के रूप में लाये गए, जिनमें प्रत्येक का वजन लगभग 50 टन और ऊँचाई 50 फुट थी। पत्थरों के ये बड़े-बड़े टुकड़े सम्भवतः चुनार (Chunar) की पहाड़ियों से काटे गये थे। आज भी वहाँ ऐसे अच्छे पत्थर मिलते हैं। ये स्तम्भ हमें दूर-दूर के स्थानों में मिलते हैं। इन्हें इतनी दूर तक किस प्रकार ले जाया गया होगा यह एक आश्चर्य में डाल देने वाली बात है।

इस कठिनाई का ज्ञान हमें एक उदाहरण से आसानी से लग म ए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) सकता है। 1356 में सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने अम्बाला जिले में स्थित तोपरा नामक स्थान से एक स्तम्भ दिल्ली लाना चाहा। कहते हैं कि इसको लाने में 8,400 मनुष्य लगे और 42 पहिए वाले छकड़े का प्रयोग किया गया। इस प्रकार एक पहिये को खींचने के लिए लगभग 200 व्यक्ति लगाए गए थे। इससे ज्ञात होता है कि अशोक के समय में स्थापत्य कला ने कितनी उन्नति की।

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प्रश्न 5.
अशोक के धम्म का क्या अर्थ है? उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइए। इसका अशोक की साम्राज्य नीति पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
‘धम्म’ का अर्ध:
अशोक ने अपने ‘धम्म’ के कारण विश्वभर में ख्याति प्राप्त कर ली थी। वस्तुतः कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपने जीवन का उद्देश्य मनुष्य सहित जीव मात्र का कल्याण करना बना लिया था। उसका विश्वास था कि उच्च कोटि के नैतिक जीवन के बिना कोई व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। उसने लोगों के जीवन की नैतिकता सुनिश्चित करने के लिए ही ‘धम्म’ का महान् बीड़ा उठाया। कुछ इतिहासकारों का विश्वास है कि अशोक का धर्म बौद्ध धर्म पर आधारित था, क्योंकि वह अहिंसा में विश्वास रखता था।

डा. आर. जी. भण्डारकर के अनुसार, “अशोक का धर्म, धर्म-निरपेक्ष बौद्ध धर्म के अतिरिक्त कुछ नहीं था।” डॉ. एन. के. शास्त्री ने भी ऐसा ही कुछ कहा है, “अशोक ने बौद्ध धर्म को एक शुष्क बौद्ध ज्ञान की खोज के स्थान पर एक आकर्षक, भावात्मक एवं लोकप्रिय धर्म में परिवर्तित कर दिया।

“यह अलग बात है कि ऐसी धारणाएँ सही प्रतीत नहीं होती। बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्यों एवं अष्टमार्ग का उल्लेख है परंतु अशोक के धम्म में इसका कोई जिक्र नहीं है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार अशोक का धर्म वैदिक धर्म पर आधारित था, क्योंकि अशोक स्वर्ग में विश्वास रखता था परंतु इस विचार को नहीं माना जा सकता, क्योंकि अशोक का विश्वास रीति-रिवाजों तथा बलि आदि प्रथा में नहीं था।

अशोक के धम्म का उल्लेख उसके अभिलेखों में बार-बार आता है। इनका अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि धम्म वस्तुतः नैतिक जीवन व्यतीत करने के नियमों का संग्रह था । यह प्रत्येक धर्म में मिलता है और प्रत्येक धर्म इस पर आधारित है। यह कोई नया धर्म नहीं था । डा. राधा कुमुद मुकर्जी (R.K. Mookerjee) ने लिखा है

“His origniality lay not in idea of Dhamma but in the practical measures for its adoption by the people.”

अशोक के धम्म की विशेषतायें:
अशोक के धम्म के उपर्युक्त सिद्धांत का अध्ययन करने पर वह निष्कर्ष निकलता है कि इसकी कुछ खास विशेषतायें थीं जिसके कारण यह इतनी शीघ्रता से देश-विदेश में फैल गया और जनता में इस सीमा तक लोकप्रिय हो गया । इस धम्म की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित थीं

1. नैतिकता:
अशोक के धम्म की सबसे बड़ी विशेषता इसका नैतिकता पर आधारित होना है। इसीलिए इस धर्म को नैतिकता का नियम अथवा पवित्रता का नियम (Law of Piety) कहा जाता है। वस्तुतः अशोक का धम्म कोई विशेष धर्म न होकर नैतिकता के सिद्धांतों का एक संग्रह था। अर्थात् उसका धर्म मानवता का धर्म था जिसे कोई भी मनुष्य प्रत्येक देश तथा प्रत्येक काल में अपने जीवन को कल्याणमय बनाने के लिए अपना सकता था। इस प्रकार सभी नैतिक गुणों का समावेश होने के कारण ही उसका धर्म इतनी शीघ्रता से सारे संसार में लोकप्रिय हो गया।

2. सहनशीलता:
अशोक के धम्म की दूसरी महान् विशेषता इसकी सहिष्णुता थी। स्वयं बौद्ध धर्म का अटल भक्त होते हुए भी अशोक ने कभी भी अपने धम्म को दूसरों पर लादने को कोशिश नहीं की और न कभी दूसरे धर्मों को हेय दृष्टि से देखा। अपने धर्म के साथ-साथ वह दूसरे धर्मों को भी सम्मान देता था। उसके इस गुण ने लोगों पर अत्यन्त गहरा प्रभाव डाला और लोगों ने बड़ी तत्परता से उसके पवित्रता के नियमों को अपना लिया।

3. सार्वभौमिकता:
अशोक के धम्म की दूसरी बड़ी विशेषता इसके सार्वभौमिक होने की थी। यह धम्म एक संकीर्ण सम्प्रदाय न होकर मानवता का धर्म था जिसे प्रत्येक व्यक्ति नि:संकोच अपना सकता था।

डॉ. आर. के. मुकर्जी के अनुसार, ‘अशोक ने अपने धर्म में उन सिद्धांतों का समावेश किया जो सर्वमान्य हैं और जिन्हें सारी मानव जाति पर लागू किया जा सकता है। उसका धर्म न केवल बौद्ध धर्म था बल्कि सभी धर्मों का सार अथवा निचोड़ था जिसे कोई देश अथवा जाति किसी भी समय अपना सकती थी।

इस प्रकार नैतिकता, सहिष्णुता और सार्वभौमिकता के कारण ही अशोक का धर्म न केवल भारत अपितु नेपाल, सीरिया और लंका आदि देशों में भी लोकप्रिय हो पाया।

अशोक के धम्म का उसकी साम्राज्य नीति पर प्रभाव:

  • (क) अशोक ने किसी नवीन धर्म का प्रतिपादन नहीं किया। उसका धम्म उच्च नैतिक आदर्शों का संग्रह मात्र था। वह धार्मिक मतभेदों का अन्त करके सभी धर्मों में समन्वय तथा एकता लाना चाहता था।
  • (ख) अशोक के उच्च धार्मिक आदर्शों एवं सिद्धांतों ने उसे जन-कल्याण के कार्यों की ओर प्रेरित किया।
  • (ग) अशोक ने दिग्विजय के स्थान पर धर्म-विजय को अपनी साम्राज्य नीति का आधार बनाया।
  • (घ) अशोक की प्रबल धार्मिक भावना तथा धर्म-प्रचार के कारण उसके साम्राज्य में अपराधों की संख्या कम हो गयी।
  • (ड) अशोक ने अपनी साम्राज्य नीति में अहिंसा, सहनशीलता और आपसी मेल-जोल को स्थान दिया।
  • (च) इससे प्रजा में राजभक्ति को बढ़ावा मिला।

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प्रश्न 6.
मौर्य साम्राज्य के पतन के कौन-कौन से कारण थे? इसमें अशोक कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण:
अशोक मौर्य वंश का सबसे महान् शासक था किन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् कोई पचास वर्ष (322-185 सा०यु०पू०) में ही इतना बड़ा साम्राज्य नष्ट-भ्रष्ट हो गया। इसे जानने के लिए हम सब बड़े उत्सुक हो जाते हैं कि इस साम्राज्य का इतना शीघ्र पतन होने के क्या कारण थे ? इन कारणों का उल्लेख निम्नवत किया जा सकता है –

1. कमजोर उत्तराधिकारी:
चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अशोक जैसे शासकों में इतनी सामर्थ्य तथा बुद्धि नहीं थी कि एक विशाल साम्राज्य को सम्भाल सकें। अशोक के उत्तराधिकारी दशरथ, सम्प्रति और बृहद्रथ बहुत कमजोर थे। वे शासन की बागडोर संभाल न सके और ऐसे में मौर्य साम्राज्य का पतन होना स्वाभाविक ही था।

2. उत्तराधिकार व्यवस्था का अभाव:
मौर्य साम्राज्य में उत्तराधिकारी को नियुक्त करने का कोई विशेष नियम न था। कहा जाता है कि अशोक के उत्तराधिकारी कुणाल को उसकी सौतेली माता द्वारा अन्धा करवा दिया गया। इस प्रकार राजकुमारों के आपसी झगड़ों और उनमें बहु-विवाह की प्रथा ने राजमहल को षड्यंत्रों का अड्डा बना दिया। ऐसे वातावरण में मौर्य साम्राज्य का पतन अवश्यम्भावी ही था।

3. आन्तरिक विद्रोह:
आन्तरिक विद्रोहों ने भी मौर्यों के पतन में बड़ा भारी भाग लिया । अशोक की मृत्यु के पश्चात् कमजोर उत्तराधिकारी राज्य करने लगे जिसका दूर-दूर के राज्यों के गवर्नरों ने भी पूरा लाभ उठाया। कंधार प्रान्त में वीरसेन और कश्मीर में जुलक स्वतंत्र हो गए। डॉ. त्रिपाठी (Dr. Tripathi) के अनुसार, “इन विद्रोहों ने शासकों की शक्ति क्षीण कर दी और जब तूफान फट पड़ा तो वे उसके साथ ही बह गए।”

4. विदेशों में राजदूतों का न होना:
प्राचीन शासन-व्यवस्था में विदेशी विभाग प्रायः नहीं होता था और विदेशों में दूत आदि भी नहीं भेजे जाते थे। इसके कारण पड़ोसी देशों की आंतरिक स्थिति और योजना का कोई संकेत नहीं मिल पाता था। किसी बात का पता उस समय चलता था जब शत्रु सिर पर आ जाता था। यह कमी भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण बनी।

5. विदेशी आक्रमण:
मौर्य साम्राज्य को पतन की ओर जाते देख कर बाहर के आक्रमणकारियों ने भी भारत की ओर अपने कदम बढ़ाए। उन्होंने बार-बार भारत पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए और देश को बहुत हानि पहुँचाई। हिन्द-यूनानियों तथा हिन्द-पार्धियनों के आक्रमणों ने मौर्य साम्राज्य को बड़ा धक्का पहुँचाया।

6. धन की कमी:
अशोक के उत्तराधिकारी कुछ काल तक अपने-आप को आन्तरिक विद्रोहों तथा विदेशी आक्रमणों से बचाते रहे परंतु धीरे-धीरे उनकी आर्थिक दशा खराब होती गई। धन की कमी और उसके अनुचित प्रयोग के कारण मौर्य वंश के अंतिम राजा साम्राज्य के लगातार बढ़ते दायित्वों को न सँभाल पाए।

अशोक का उत्तरदायित्व:
अनेक राजवंशों की भाँति अन्त में मौर्य वंश का भी अनेक कारणों से पतन होना आवश्यक था। इस पतन में अशोक का बड़ा उत्तरदायित्व था जो निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है:

1. सैनिक शक्ति की कमी:
मौर्य साम्राज्य के पतन का सबसे बड़ा कारण सैनिक शक्ति का क्षीण होना था। कलिंग विजय के पश्चात् अशोक ने अन्य देशों को जीतना छोड़ दिया। इससे सैन्य-शक्ति को बड़ा धक्का लगा। जब सिपाहियों के लिए लड़ने का कोई काम न रहा, तो वे युद्ध कला को भूलने लगे और अशोक के राज्यकाल के चालीस वर्षों में वे बिल्कुल नकारा तथा आलसी हो गए। अशोक के पश्चात् दूरस्थ प्रदेशों में विद्रोह होने लगे तो ऐसे सैनिक उनको दबाने में असमर्थ रहे।

2. ब्राह्मणों की तीव्र प्रतिक्रिया:
श्री पी.एच. शास्त्री का कहना है कि मौर्य वंश के पतन का मुख्य कारण अशोक की ब्राह्मण-विरोधी नीति थी। बौद्ध धर्म को अपना लेने तथा राजकोष से केवल बौद्ध भिक्षुओं की सहायता करने से ब्राह्मणों की दशा खराब हो गई और समाज में उनका सम्मान घटने लगा।

अशोक से पहले प्रतिष्ठा प्राप्त इस वर्ग के लोग मौर्य शासकों तथा उनकी नीति के घोर विरोधी हो गए और अन्त में एक ब्राह्मण सेनापति पुष्यमित्र (Pushyamitra) ने ही मौर्य वंश के अंतिम शासक बृहद्रथ का वध करके इस वंश को समाप्त कर दिया।

3. मौर्य साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार:
उन दिनों आवागमन के साधन बहुत सीमित थे। हिमालय से लेकर सुदूर दक्षिण तक और बंगाल से हिन्दूकुश पर्वत तक फैले हुए इस विशाल साम्राज्य को परिवहन साधनों के अभाव में बनाए रखना कठिन हो गया था। चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक जैसे शक्तिशाली सम्राटों के लिए ऐसा करना किसी सीमा तक संभव था परंतु बृहद्रथ जैसे कमजोर भला इतने बड़े साम्राज्य को कब तक अपने अधीन रख सकते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अभिलेखों की निम्नलिखित में कौन सीमा नहीं है?
(अ) अभिलेख देश के कुछ ही भागों में मिलते हैं।
(ब) कुछ अभिलेखों के अक्षर हल्के हैं।
(स) कुछ अभिलेखों के अक्षर लुप्त हो गये हैं।
(द) अभिलेख के तथ्य का अर्थ निकालना कठिन है।
उत्तर:
(अ) अभिलेख देश के कुछ ही भागों में मिलते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत में सबसे अधिक अभिलेख किसके मिले हैं?
(अ) अशोक
(ब) समुद्रगुप्त
(स) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
(द) कनिष्क
उत्तर:
(अ) अशोक

प्रश्न 3.
जेम्स प्रिंसेप ने अशोककालीन ब्राह्मी लिपि का अर्थ कब निकाला?
(अ) 1738 ई०
(ब) 1838 ई०
(स) 1938 ई०
(द) 1947 ई०
उत्तर:
(ब) 1838 ई०

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प्रश्न 4.
आह्त सिक्कों को किसने जारी किया?
(अ) राजा ने
(ब) व्यापारियों ने
(स) नागरिकों ने
(द) उपर्युक्त सभी ने
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी ने

प्रश्न 5.
उत्तरी कृष्ण मार्जित पात्र के साथ क्या नहीं मिला है?
(अ) मोबाइल
(ब) सोने की वस्तुएँ
(स) चाँदी की वस्तुएँ
(द) उपकरण
उत्तर:
(अ) मोबाइल

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प्रश्न 6.
प्रभावती गुप्त कौन थी?
(अ) समुद्रगुप्त की पुत्री
(ब) चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री
(स) कुमारगुप्त की पुत्री
(द) स्कन्दगुप्त की पुत्री
उत्तर:
(ब) चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री

प्रश्न 7.
राजा के आतंक से तंग आकार लोग क्या करते थे?
(अ) घर में अपने को बंद करते थे।
(ब) राजा को मार देते थे।
(स) घर को छोड़कर जंगल में भाग जाते थे।
(द) आत्महत्या कर लेते थे।
उत्तर:
(स) घर को छोड़कर जंगल में भाग जाते थे।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन सामन्तों से संबंधित नहीं था?
(अ) राजा से वेतन लेते थे।
(ब) अपना निर्वाह स्थानीय संसाधनों से करते थे।
(स) भूमि पर नियंत्रण रखते थे।
(द) शासकों का आदर करते थे।
उत्तर:
(अ) राजा से वेतन लेते थे।

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प्रश्न 9.
अशोक ने साम्राज्य को अखंड करने के लिए क्या किया?
(अ) शक्तिशाली सेना का निर्माण किया।
(ब) उसने धम्म का प्रचार किया।
(स) सीमा रक्षकों की नियुक्ति की।
(द) सीमा पर तार लगवायें।
उत्तर:
(ब) उसने धम्म का प्रचार किया।

प्रश्न 10.
प्राचीन भारत के एक ऐसे क्षेत्र का नाम बताइए जहाँ राज्य और नगर सघन रूप से बसे थे –
(अ) दक्षिण भारत
(ब) उत्तर-पश्चिमोत्तर प्रान्त
(स) पूर्वी भारत
(द) पश्चिम भारत
उत्तर:
(स) पूर्वी भारत

प्रश्न 11.
प्राचीनतम् अभिलेख किस भाषा में लिखे गये?
(अ) प्राकृत
(ब) संस्कृत
(स) यूनानी
(द) हिन्दी
उत्तर:
(अ) प्राकृत

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प्रश्न 12.
संघ या गणराज्यों में किसका शासन था?
(अ) राजा
(ब) लोगों के समूह का
(स) मंत्रियों का
(द) किसी का नहीं
उत्तर:
(ब) लोगों के समूह का

प्रश्न 13.
सबसे पहले पाटलिपुत्र (पटना) राजधानी कब बनी?
(अ) छठी शताब्दी सा०यु०पू० में
(ब) पाँचवी शताब्दी सा०यु०पू० में
(स) चौथी शताब्दी सा०यु०पू० में
(द) दूसरी शताब्दी साव्यु०पू० में
उत्तर:
(स) चौथी शताब्दी सा०यु०पू० में

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प्रश्न 14.
वह प्रथम सम्राट कौन था जिसने पत्थरों और स्तम्भों पर प्रजा और अधिकारियों के लिए सन्देश खुदवाये?
(अ) अशोक
(ब) कनिष्क
(स) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
(द) हर्षवर्धन
उत्तर:
(अ) अशोक

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 12 History विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Textbook Questions and Answers

उत्तर दीजिए (लगभग 100-150 शब्दों में)

प्रश्न 1.
क्या उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार नियतिवादियों और भौतिकवादियों से भिन्न थे। उपनिषदों में दार्शनिकों के विचार हैं कि लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के बाद जीवन की सम्भावना और पुनर्जन्म के बारे में जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहते हैं।

ऐसा विचार व्यक्त किया जाता है कि पूर्व जन्म के कर्मों से पुनर्जन्म निर्धारित होता है। नियतिवादी या भौतिकवादी लोग विश्वास करते थे कि सब कुछ पूर्व निर्धारित है। तात्पर्य यह है कि व्यक्ति के कर्मों का निर्धारण उसके जन्म से पहले हो जाता है।

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प्रश्न 2.
जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षाओं का संक्षेप में लिखिए। उत्तर-जैन धर्म की महत्त्वपूर्ण शिक्षायें:
1. मोक्ष प्राप्ति:
आत्मा को कर्म बंधन से मुक्त करने को मुक्ति या निर्वाण कहा जाता है। जैन धर्म के अनुसार मोक्ष अर्थात् निर्वाण पाना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। निर्वाण पाने के तीन साधन-सम्यक् विश्वास, सम्यक ज्ञान और सम्यक् चरित्र हैं। जैनी इन्हें त्रिरत्न कहते हैं।

2. अहिंसा:
जैन धर्म में अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है। अहिंसा का अभिप्राय है-किसी जीवधारी को कष्ट न देना। जैनी पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों को भी जीव मानते हैं। उनके अनुसार व्यक्ति को किसी भी जीव (मानव, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे आदि) को मन, वाणी या कर्म से दुःख नहीं देना चाहिए। यही कारण है कि जैनी नंगे पाँव चलते हैं, पानी छानकर पीते हैं तथा मुँह पर पट्टी बाँधते हैं ताकि कोई जीव-हत्या न हो जाए।

3. घोर तपस्या और आत्म-त्याग:
जैनी घोर तपस्या तथा शरीर को अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते हैं। उनका विश्वास है कि भूखे रहकर प्राण त्यागने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।

4. ईश्वर में अविश्वास:
जैनी ईश्वर के अस्तित्त्व को नहीं मानते हैं और ईश्वर की अपेक्षा तीर्थंकरों की पूजा करते हैं।

5. जाति-प्रथा में अविश्वास:
जैन धर्मावलंबियों के अनुसार इस धर्म में विश्वास रखने वाले समान हैं।

6. वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में अविश्वास:
जैन धर्म के अनुसार वेद ईश्वरीय ज्ञान नहीं और संस्कृत पवित्र भाषा नहीं है।

7. यज्ञ और बलि आदि में अविश्वास:
जैनी यज्ञ-हवन को मोक्ष पाने के लिए आवश्यक नहीं समझते। वे पशु-बलि का भी विरोध करते हैं।

8. पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत में विश्वास:
जैनी इस बात में विश्वास रखते हैं कि अच्छे जन्म का कारण बनते हैं और बुरे कर्म बुरे जन्म का। इसलिए व्यक्ति को अच्छा जन्म पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए।

9. उच्च नैतिक जीवन:
महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को चोरी-चुगली, लोभ, क्रोध आदि से दूर रहकर सदाचारी बनने का उपदेश दिया। महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जैन धर्म श्वेताम्बर और दिगम्बर नाम के दो सम्प्रदायों में बाँट गया। श्वेताम्बर सफेद वस्त्र पहनते हैं, जबकि दिगम्बर नंगे रहते हैं।

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प्रश्न 3.
सांची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका की चर्चा कीजिए। अथवा, “सांची के स्तूप के अवशेषों के संरक्षण में भोपाल की बेगमों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।” प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
सांची के स्तूप के संरक्षण में भोपाल की बेगमों की भूमिका –

  1. भोपाल के शासकों, शाहजहाँ बेगम और उनकी उत्तराधिकारी सुल्तानजहाँ बेगम का सांची स्तूप के संरक्षण में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने प्राचीन स्थल के रख-रखाव के लिए आर्थिक अनुदान दिया।
  2. जॉन मार्शल द्वारा सांची के स्तूप पर लिखे गए विस्तृत ग्रंथ के प्रकाशन में सुल्तानजहाँ बेगम ने अनुदान दिया। यही कारण था कि जॉन मार्शल ने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रंथों को सुल्तानजहाँ को समर्पित किया।
  3. सुल्तानजहाँ बेगम ने वहाँ पर एक संग्रहालय और अतिथिशाला बनाने के लिए भी अनुदान दिया।
  4. भोपाल की बेगमों के प्रयास से सांची का स्तूप सुरक्षित रहा और किसी अन्य के हाथ में नहीं जा सका।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित संक्षिप्त अभिलेख को पढ़िए और जवाब दीजिए:
महाराजा हुविष्क (एक कुषाण शासक) के तैंतीसवें साल में गर्म मौसम के पहले महीने के आठवें दिन त्रिपिटक जानने वाले भिक्खु बल की शिष्या, त्रिपिटक जानने वाली बुद्धमिता के बहन की बेटी भिक्खुनी धनवती ने अपने माता-पिता के साथ मधुवनक में बोधिसत्त की मूर्ति स्थापित की।

  1. (क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख कैसे निश्चित की?
  2. (ख) आपके अनुसार उन्होंने बोधिसत्त की मूर्ति क्यों स्थापित की?
  3. (ग) वे अपने किन रिश्तेदारों का नाम लेती है?
  4. (घ) वे कौन-से बौद्ध ग्रंथों को जानती थी?
  5. (ङ) उन्होंने ये पाठ किससे सीखे थे?

उत्तर:

  1. (क) धनवती ने अपने अभिलेख की तारीख हुविष्क (कुषाण शासक) के शासन काल के आधार पर निश्चित की। यह अभिलेख हुविष्क के शासन के तैंतीसवें वर्ष अर्थात् 138 सा०यु० में उत्कीर्ण किया गया।
  2. (ख) धनवती ने बोधिसत्त की मूर्ति बौद्ध धर्म और बुद्ध के सम्मान में स्थापित की।
  3. (ग) धनवती अपनी मौसी बुद्धमिता और अपने माता-पिता का नाम लेती है।
  4. (घ) धनवती को त्रिपिटक का ज्ञान था।
  5. (ङ) उसने यह पाठ बुद्धमिता से सीखा था।

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प्रश्न 5.
आपके अनुसार स्त्री-पुरुषा संघ में क्यों जाते थे?
उत्तर:
स्त्री-पुरुष के संघ में शामिल होने के निम्नलिखित कारण थे –

  1. वे बुद्ध की शिक्षाओं से प्रभावित थे।
  2. वे बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार करना चाहते थे।
  3. कई स्त्रियाँ धम्म की उपदेशिकाएँ बन गई थी।
  4. वे थेरी बनना चाहते थे अर्थात् निर्वाण प्राप्त करना चाहते थे।
  5. वे प्रचलित धार्मिक प्रथा (वैदिक धर्म) से खुश नहीं थे और उसे समाप्त करना चाहते थे।

निम्नलिखित पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए। (लगभग 500 शब्दों में)

प्रश्न 6.
सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान से कहाँ तक सहायता मिलती है?
उत्तर:
सांची की मूर्तिकला को समझने में बौद्ध साहित्य के ज्ञान का योगदान –
1. बौद्ध साहित्य के जातकों में अनेक कहानियाँ दी गई हैं। सांची की मूर्तियों को इनसे जोड़ा जाता है। उदाहरणार्थ-सांची की मूर्तिकला में ऐसा दृश्य है जो वेसान्तर जातक से मिलता है। इसमें एक दानी राजकुमार अपना सब कुछ एक ब्राह्मण को सौंपकर जंगल में चला जाता है।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें सांस्कृतिक विकास img 1

2. सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए इतिहासकारों को बुद्ध के चरित्र लेखन से भी सहायता मिलती है। बौद्ध चरित्र लेखन के अनुसार एक वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई। कई प्रारंभिक मूर्तिकारों ने बुद्ध को मानव रूप में न दिखाकर उनकी उपस्थिति प्रतीकों के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया। उदाहरण के लिए रिक्त स्थान से।

3. बुद्ध के ध्यान की दशा तथा स्तूप परिनिर्वाण के प्रतीक बन गये। चक्र का भी प्रतीक के रूप में प्रयोग किया गया है। यह बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक था।

4. सांची की मूर्तिकला को समझने के लिए इतिहासकारों को लोक परम्परा को समझना पड़ता है। सांची में एक जैसी अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। इनका सीधा संबंध बौद्ध धर्म से नहीं है। कुछ सुन्दर स्त्रियाँ जो तोरणद्वारों के किनारे एक पेड़ पकड़कर झूल रही हैं। इसे शालभंजिका की मूर्ति कहा जाता है। यह उर्वराशक्ति की प्रतीक है।

5. सांची के स्तूप में कई स्थानों पर हाथी, घोड़े, बंदर और गाय, बैल आदि उत्कीर्ण हैं। संभवतः ये मूर्तियाँ मनुष्य के गुणों की प्रतीक हैं। उदाहरणार्थ की मूर्ति शक्ति का प्रतीक है।

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प्रश्न 7.
चित्र 4.2 और 4.3 में सांची से लिए एक दो परिदृश्य दिए गए हैं आपको इनमें क्या नजर आता है? वास्तुकला, पेड़-पौधे, और जानवरों को ध्यान से देखकर तथा लोगों के काम-धंधों को पहचान कर यह बताइए कि इनमें से कौन-से ग्रामीण और कौन-से शहरी परिदृश्य हैं?

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Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें सांस्कृतिक विकास img 3

उत्तर:
चित्र 4.2 में कुछ स्त्रियों को आभूषण धारण किये हुए दिखाया गया है। इस चित्र की बायीं ओर दो झोपड़ियाँ हैं। इनके दरवाजे पर स्त्रियाँ बैठी हुई हैं। इसमें कुछ जानवरों यथा-हिरण, भैंस और घास-फूस की आकृतियाँ हैं। इसमें कुछ योद्धाओं के चित्र हैं जो धनुष-बाण धारण किये हैं और इसके बायीं ओर एक पेड़ है। इसके नीचे सम्भवतः तालाब है जिसमें भैंसे नहा रही हैं। कुछ फर्न और शैवाल भी दिखाये गये हैं। इसके नीचे रेलिंग है। निश्चित रूप से यह ग्रामीण परिदृश्य है।

चित्र 4.3 में सुन्दर पक्के स्तम्भ हैं जिसके ऊपर विभिन्न जानवर यथा-घोड़े, हाथी, शेर आदि दिखाये गये हैं। सम्भवतः यह एक हाल है जिसमें नृत्य संगीत का कार्यक्रम चल रहा है और नगरवासी एकत्रित हैं। नीचे भी वही दृश्य है परंतु भवन के झरोखे भी दिखाई दे रहे हैं। यह निश्चित रूप से शहरी परिदृश्य है।

प्रश्न 8.
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वैष्णववाद और शैववाद के उदय से जुड़ी वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास: वैष्णववाद वह मत है जिसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। विष्णुवाद के अनुयायी विष्णु को सर्वोच्च मानते हैं तथा हरि के नाम से पुकारते हैं। उनकी बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि विष्णु ने भिन्न-भिन्न समय पर भिन्न-भिन्न रूपों में इस धरती पर अवतार लिये। यह अवतार कभी मानव तथा कभी पशु के रूप में प्रकट होते थे। भगवान विष्णु विश्व को संकट से मुक्त कराने के लिए धरती पर बार-बार जन्म लेते हैं। इन अवतारों की संख्या दस है:

  1. मत्स्य
  2. कूर्म
  3. वराह
  4. नरसिंह
  5. वामन
  6. परशुराम
  7. राम
  8. कृष्ण
  9. बुद्ध
  10. कल्कि।

विष्णु की भक्ति से सम्पूर्ण मानव जाति को सुख प्राप्त होता है। विष्णु के कई अवतारों को मूर्तियों के रूप में दिखाया गया है। दूसरे देवताओं की भी मूर्तियों बनाई गईं। शिव को उनके प्रतीक लिंग के रूप में बनाया जाता था। लेकिन उन्हें कई बार मनुष्य के रूप में दिखाया गया है।

शैववाद में शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। लगता है शैववाद सैन्धव सभ्यता से आरंभ हो गया था। वहाँ से अनेक शिवलिंग मिले हैं। शैववाद का उदय ऋग्वेद में दिये गये रुद्र के विचार से हुआ है। शिवजी को नृत्य का देवता अथवा नटराज भी कहते हैं।

शैव मत के अनुयायी शिव व पार्वती को महादेव और महादेवी कहते हैं। पार्वती सुन्दरता तथा नम्रता की देवी है। उसकी दुर्गा अथवा काली के रूप में भी पूजा की जाती है। कुछ शिवभक्त शिव के प्रतीक लोहे के त्रिशूल हाथ में उठाये रखते हैं। अन्य शिवभक्त शिवजी की लिंग के रूप में पूजा करते हैं।

उत्तरी भारत में शिवजी की कई अन्य रूपों में पूजा की जाती है जैसे कि रूद्र, नानीरुद्र, नंदीश, हर, नरेन्द्र, महाकाल, भैरव आदि । आरंभिक शैववाद को पशुपति संप्रदाय कहा जाता था । अर्थात् उन्हें पशुओं का देवता माना जाता था। शिव को बाद में स्वामी अथवा पति माना जाता था इन्हें जीवों को मुक्ति प्रदाता समझा जाता था।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 9.
स्तूप क्यों और कैसे बनाये जाते थे? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
स्तूप निर्माण के कारण:
स्तूप एक पवित्र स्थान माना जाता है क्योंकि इन स्थानों पर महात्मा बुद्ध की अस्थियाँ या उससे सम्बन्धित वस्तुएँ दबायी गई हैं। टीलेनुमा इन स्तूपों की बुद्ध तथा बौद्धधर्म के प्रतीक मानकर पूजा की जाती थी।

अशोकावदान से ज्ञात होता है कि अशोक ने सभी प्रसिद्ध नगरों में स्तूप बनाने का आदेश दिया था। भरहुत, सांची सारनाथ के स्तूप सा०यु०पू० द्वितीय शताब्दी तक बन गये थे।

स्तूप निर्माण की विधि:
इन स्तूपों का निर्माण दान द्वारा किया गया था। दान देने वालों में राजा, शिल्पकार और व्यापारी आदि शामिल थे। इसमें कुछ पुरुष, महिलायें, भिक्षुक और भिक्षुणियाँ भी शामिल थीं। आरंभ में स्तूप अर्द्धगोलाकार रूप में जमाई गई मिट्टी के बनाए जाते थे।

इसे अंड भी कहने थे। आगे चलकर इसमें अनेक वस्तुएँ जुड़ गईं। यह चौकोर और गोल आकारों का मिश्रित रू; बना। अंड के ऊपर छज्जे जैसी आकृति या हर्मिक बनने लगी थी। इसको देवताओं का निवा: माना जाता था। हर्मिका से एक मस्तूल निकलता था जिसे यष्टि कहते थे। स्तूप के चारों ओर वेदिका होती थी। सांची और भरहुत के स्तूपों में तोरणद्वार और वेदिकायें हैं। ये बांस या लकड़ी के घेरे होते थे। इसी प्रकार की कुछ अन्य संरचनायें कुछ दूसरे स्तूपों में मिलती हैं।

मानचित्र कार्य

प्रश्न 10.
विश्व के रेखांकित मानचित्र पर उन इलाकों पर निशान लगाइये जहाँ बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ। उपमहाद्वीप से इन इलाकों को जोड़ने वाले जल और स्थल मार्गों को दिखाइये।
उत्तर:

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें सांस्कृतिक विकास img 4

परियोजना कार्य (कोई एक)

प्रश्न 11.
इस अध्याय में चर्चित धार्मिक परम्पराओं में से क्या कोई परम्परा आपके अड़ोस-पड़ोस में मानी जाती है? आज किन धार्मिक ग्रंथों का प्रयोग किया जाता है? उन्हें कैसे संरक्षित और संप्रेषित किया जाता है? क्या पूजा में मूर्तियों का प्रयोग होता है? यदि हाँ तो क्या ये मूर्तियाँ इस अध्याय में लिखी गई मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं या अलग हैं? धार्मिक कृत्यों के लिए प्रयुक्त इमारतों की तुलना प्रारंभिक स्तूपों और मंदिरों से कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 12.
इस अध्याय में वर्णित धार्मिक परम्पराओं से जुड़े अलग-अलग काल और इलाकों की कम से पाँच मूर्तियों और चित्रों की तस्वीरें इकट्ठी कीजिए। उनके शीर्षक हटाकर प्रत्येक दो लोगों को दिखाइए और उन्हें इसके बारे में बताने को कहिए। उनके वर्णनों की तुलना करते हुए अपनी खोज रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 History विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साण्युपू0 600 से सायु० 600 तक सांस्कृतिक विकास जानने के कौन-कौन से स्रोत हैं?
उत्तर:

  1. साहित्यिक स्रोतों में बौद्ध, जैन और ब्राह्मणों ग्रंथों से जानकारी मिलती है।
  2. पुरातात्विक साधनों में इमारतों, अभिलेखों एवं सांची के स्तूप से विशेष जानकारी मिलती है।

प्रश्न 2.
सांची कहाँ स्थित है?
उत्तर:

  1. यह भोपाल से 20 मील पर उत्तर-पूर्व की ओर पहाड़ी की तलहटी में स्थित एक गाँव है।
  2. यहाँ प्राचीन अवशेषों की भरमार है जिसमें बौद्धकालीन तोरणद्वार और पत्थर की मूर्तियाँ मिलती हैं।

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प्रश्न 3.
सायु०पू० प्रथम शताब्दी को विश्व में युगांतरकारी काल क्यों माना जाता है?
उत्तर:

  1. इस युग में ईरान में जरथुस्ट, चीन में खुंगत्सी, यूनान में सुकरात, प्लेटो, अरस्तू और भारत में महावीर, बुद्ध और अन्य चिंतकों का जन्म हुआ।
  2. उन्होंने जीवन के रहस्यों, जनता और विश्व व्यवस्था के संबंध को समझने का प्रयास किया।

प्रश्न 4.
सांची स्तूप के अवशेषों को यूरोपीय लोगों से कैसे बचाया जा सका?
उत्तर:
शाहजहाँ बेगम के अथक प्रयासों से।

प्रश्न 5.
निर्वाण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
बौद्ध साहित्य में निर्वाण का अर्थ जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करना है। यह हमेशा मनुष्य के सत्कार्यों से संभव होता है।

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प्रश्न 6.
तीर्थंकर का क्या अर्थ है?
उत्तर:

  1. जैन धर्म के संस्थापक महावीर से पहले के 23 धर्म गुरुओं या आचार्यों को तीर्थंकर कहते हैं। महावीर स्वामी को 24 वाँ तीर्थंकर माना जाता है।
  2. जैन लोग तीर्थंकरों की पूजा करते हैं। ये जैनों के लिए हिन्दुओं के देवताओं के समान थे।

प्रश्न 7.
उपनिषदों में किस प्रकार के विचार मिलते हैं?
उत्तर:

  1. उपनिषद् के विचारों से प्रकट होता है कि लोग जीवन का अर्थ, मृत्यु के बाद जीवन की संभावना और पुनर्जन्म के बारे में जानने के इच्छुक थे।
  2. लोग ऐसा उपाय या मार्ग पाने के इच्छुक थे जो उन्हें परम यथार्थ की प्रकृति को समझ सके और उसको अभिव्यक्त करने की योग्यता दे सके।
  3. यज्ञों के महत्त्व के बारे में भी विचार मिलते हैं।

प्रश्न 8.
त्रिपिटक का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  1. विनय पिटक में संघ या बौद्ध मठों में रहने वाले लोगों के लिए नियमों का संग्रह था।
  2. सुत्तपिटक में बुद्ध की शिक्षायें हैं।
  3. अभिधम्म में दर्शन से जुड़े विषय है।

प्रश्न 9.
सुत्तपिटक के अनुसार मनुष्य की मृत्यु के पश्चात् उसके तत्त्व कहाँ मिल जाते हैं?
उत्तर:
इसके अनुसार मृत्यु पश्चात् मनुष्य के शरीर का मिट्टी वाला अंश पृथ्वी में, जल वाला हिस्सा जल में, गर्मी वाला अंश आग में तथा सांस का अंश वायु में वापस मिल जाता है। इसी तरह इन्द्रियाँ भी अंतरिक्ष में विलीन हो जाती है।

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प्रश्न 10.
श्वेताम्बर का क्या अर्थ है?
उत्तर:

  1. जैन धर्म का वह सम्प्रदाय जो श्वेत वस्त्र धाण करता था उसे श्वेताम्बर कहा गया।
  2. इस सम्प्रदाय के अनुयायी प्रायः उत्तर भारत में थे।

प्रश्न 11.
सुत्तपिटक के अनुसार मालिकों को सेवकों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।
उत्तर:
मालिक को अपने नौकरों और कर्मचारियों की पाँच प्रकार से देखभाल करनी चाहिए

  1. उनकी क्षमता के अनुसार उन्हें काम देकर।
  2. उन्हें भोजन और मजदूरी देकर।
  3. बीमार पड़ने पर उनकी परिचर्या करके।
  4. उनके साथ सुस्वाद भोजन बांटकर।
  5. समय-समय पर उन्हें अवकाश देकर।

प्रश्न 12.
मध्यम मार्ग का क्या आशय है?
उत्तर:
मध्यम मार्ग का अर्थ है-विलासिता और कठोर तपस्या दोनों मार्गों से हटकर सहज जीवन बिताना।

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प्रश्न 13.
अष्टांगिक मार्ग क्या है?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध द्वारा निर्वाण प्राप्त करने के लिए जिस मार्ग को अपनाने के लिए कहा गया उसे अष्टांगिक मार्ग कहा जाता है। इस मार्ग के आठ अंग निम्नलिखित हैं –

  1. सम्यक् दृष्टि
  2. सम्यक् वचन
  3. सम्यक् जीविका
  4. सम्यक् स्मृति
  5. सम्यक् संकल्प
  6. सम्यक् कर्म
  7. सम्यक् व्यायाम
  8. सम्यक् समाधि।

प्रश्न 14.
हीनयान सम्प्रदाय के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर:

  1. हीनयान सम्प्रदाय के लोग बौद्ध धर्म के प्राचीन स्वरूप को मानते हैं। वे कट्टरपंथी हैं तथा बौद्ध धर्म के कठोर नियमों का पालन करने पर जोर देते हैं।
  2. उनके विचार से अष्टांगिक मार्ग अपनाकर ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
वज्रयान का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सातवीं शताब्दी में बौद्ध विहार विलासिता के केन्द्र बन गये। अब वहाँ वे सभी कार्य किये जाने लगे जिनपर बुद्ध ने प्रतिबंध लगाया था। बौद्ध धर्म के इस नये स्वरूप को वज्रयान कहा गया।

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प्रश्न 16.
सांची के स्तूप में जानवरों की आकृतियों क्यों उत्कीर्ण हैं?
उत्तर:
मनुष्यों के गुणों का प्रतीक मानकर ही वहाँ जानवरों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की गई हैं। उदाहरणार्थ-हाथी की आकृति शक्ति और ज्ञान की प्रतीक है।

प्रश्न 17.
अजन्ता के चित्रों की प्रमुख विशेषतायें बताइए।
उत्तर:

  1. अजंता के चित्र जातकों की कथायें दिखाते हैं। इनमें राजदरबार का जीवन, शोभा यात्रायें, काम करते हुए स्त्री-पुरुष और त्यौहार मनाने के चित्र दिखाए गए हैं।
  2. कलाकारों ने त्रिविम रूप देने के लिए आभाथेद तकनीक का प्रयोग किया । कुछ चित्र बिल्कुल स्वाभाविक और सजीव लगते हैं।

प्रश्न 18.
गजलक्ष्मी क्या है?
उत्तर:

  1. सांची की मूर्तियों में कमल दल और हाथियों के बीच महिला की मूर्ति उत्कीर्ण है। ये हाथी उनके ऊपर जल छिड़क रहे हैं।
  2. अनेक इतिहासकार उन्हें एक लोकप्रिय देवी गजलक्ष्मी मानते हैं। गजलक्ष्मी सौभाग्य लाने वाली देवी थी जिन्हें प्रायः हाथियों के साथ जोड़ा जाता है।

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प्रश्न 19.
थेरीगाथा क्या है?
उत्तर:

  1. यह एक अद्वितीय बौद्ध ग्रंथ है जो सुत्तपिटक का हिस्सा है। इसमें भिक्षुणियों द्वारा रचित छंदों का संकलन किया गया है।
  2. इससे महिलाओं के सामाजिक और अध्यात्मिक अनुभवों के बारे में अंतर्दृष्टि मिलती है।

प्रश्न 20.
चैत्य किसे कहते हैं?
उत्तर:

  1. शवदाह के पश्चात् शरीर के कुछ अवशेष टीलों पर सुरक्षित रख दिये जाते थे।
  2. अंतिम संस्कार से जुड़े ये टीले ही चैत्य माने गये।

प्रश्न 21.
चार बौद्ध स्थल कहाँ-कहाँ स्थित हैं?
उत्तर:

  1. लुम्बिनी: यहाँ बुद्ध का जन्म हुआ था। यह स्थल नेपाल में है।
  2. बोधगया: यहाँ उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया। यह स्थान बिहार में है।
  3. सारनाथ: यह स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया था।
  4. कुशीनगर: यह स्थान देवरिया, उत्तर प्रदेश में है। यहाँ बुद्ध ने परिनिर्वाण प्राप्त किया था।

प्रश्न 22.
अमरावती के स्तूप की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. अमरावती का स्तूप बौद्धों का सबसे विशाल और शानदार स्तूप था।
  2. इसमें ऊँचे-ऊँचे तोरणद्वार तथा सुंदर मूर्तिया थीं।

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प्रश्न 23.
बोधिसत्व की अवधारणा क्या है?
उत्तर:

  1. बोधिसत्व को एक दयावान जीव माना गया जो सत्कर्मों से पुण्य कमाते थे।
  2. इस पुण्य का प्रयोग वे निर्वाण प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि दूसरों की सहायता करने के लिए करते थे।

प्रश्न 24.
सांची क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:

  1. सांची का स्तूप प्राचीन भारत की स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। पहाड़ी पर स्थित यह स्तूप एक मुकुट सा दिखाई देता है।
  2. सांची के स्तूप से बौद्ध धर्म का इतिहास लिखने हेतु पर्याप्त जानकारियाँ मिली। सांची बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा है।

प्रश्न 25.
नियतवादी और भौतिकवादी किस प्रकार भिन्न थे?
उत्तर:

  1. नियतवादी आजविक परम्परा के थे। उनके अनुसार जीवन में सब कुछ पूर्व निर्धारित है। इसे बदला नहीं जा सकता।
  2. भौतिकवादी उपदेशक लोकायत परम्परा के थे। वे दान-दक्षिणा, चढ़ावा आदि देने को खोखला झूठ और मूों का सिद्धांत मानते थे। वे जीवन का भरपूर आनन्द लेने में विश्वास रखते थे।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वैदिक-काल की यज्ञ-परम्परा का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वैदिक-काल की यज्ञ परम्परा:

  1. सा०यु०पू० 1500 से सा०यु०पू० 1000 तक वैदिक परम्परा का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता हैं। यह एक प्राचीन परम्परा थी।
  2. यज्ञों के समय वैदिक देवताओं अग्नि, इन्द्र और सोम आदि का उच्चारण किया जाता था। ऋग्वेद इनका संग्रह है।
  3. इन यज्ञों के माध्यम से लोग मवेशी, पुत्र प्राप्ति, स्वास्थ्य, लंबी आयु आदि पाने के लिए प्रार्थना करते थे।
  4. प्रारंभ में यज्ञ सामूहिक रूप से किये जाते थे। उत्तर वैदिक-काल (1000 साव्यु०पू० से 500 सा०यु०पू०)। कुछ यज्ञ गृहस्थियों द्वारा किये जाते थे।
  5. राजसूय और अश्वमेध जैसे जटिल यज्ञ सरदार और राजा किया करते थे। इनके अनुष्ठान के लिए उन्हें ब्राह्मण पुरोहितों पर निर्भर रहना पड़ता था।

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प्रश्न 2.
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के क्या प्रभाव पड़े? अथवा, जैन धर्म का कला तथा स्थापत्य के विकास में योगदान बताइए।
उत्तर:
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खण्डन किया। इस कारण देश में जाति-प्रथा के बंधन शिथिल पड़ गए। इस मत के सरल सिद्धांतों की लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने पशु-बलि, कर्मकांड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया। अब वैदिक धर्म एक बार फिर से सरल रूप धारण करने लगा। जैन धर्म में अहिंसा पर बल दिया गया था।

इस सिद्धांत को अपना कर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए। जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। दिलवाड़ा का जैन मंदिर, आबू पर्वत का जैन मंदिर, एलोरा की गुफाएँ तथा खजुराहों के जैन मंदिर कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। इस धर्म के कारण कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की।

प्रश्न 3.
बौद्ध ग्रंथ किस प्रकार तैयार और संरक्षित किये जाते थे?
उत्तर:
बौद्ध ग्रंथ की तैयारी और संरक्षण –

  1. महात्मा बुद्ध चर्चा और बातचीत करते हुए मौखिक शिक्षा देते थे। पुरुष, महिलायें और संभवत: बच्चे इन प्रवचनों को सुनते थे और इन पर चर्चा करते थे।
  2. बुद्ध के किसी भी संभाषण को उनके जीवन काल में नहीं लिखा गया। उनके उपदेश चर्चा के रूप में ही सुरक्षित थे।
  3. बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् पाँचवी-चौथी शताब्दी सा०यु०पू० में उनके शिष्यों ने वरिष्ठ श्रमणों की वैशाली में एक सभा बुलाई। वहाँ पर उनकी शिक्षाओं का संकलन किया गया।
  4. इन संग्रहों को त्रिपिटक कहा जाता था। प्रारंभ में उन्हें मौखिक रूप से संप्रेषित किया जाता था। बाद में लिखकर विषय और लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण किया गया।

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प्रश्न 4.
सामान्य युग पूर्व छठी शताब्दी में नये धार्मिक सम्प्रदायों का उदय होने के कारण बताइये।
उत्तर:

  1. हिन्दू धर्म में कर्मकाण्डों की प्रधानता: ब्राह्मणों तथा पुरोहितों द्वारा अपनी स्वार्थ-सिद्धि के कारण हिंदू धर्म में जटिलता बढ़ गई। साधारण व्यक्ति इस कर्मकाण्डी व्यवस्था को बोझ समझने लगा। पशु बलि के कारण धर्म की पवित्रता समाप्त हो गई।
  2. संस्कृत भाषा का दुरुह होना: वैदिक धर्म की भाषा संस्कृत होने के कारण धर्म साधारण व्यक्ति की समझ से परे हो गया। धर्म के सिद्धांतों को प्रत्येक व्यक्ति अपनी दिन-प्रतिदिन की भाषा में समझना चाहते थे। बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म के प्रवर्तकों द्वारा जन-भाषा में धार्मिक उपदेश दिये गये।
  3. नवीन कृषि-व्यवस्था: कृषि के विस्तार के कारण बैलों तथा अन्य पशुओं की माँग बढ़ने लगी। हिंदू धर्म में बलि के कारण इन पशुओं का अभाव होता जा रहा था। जैन तथा बौद्ध धर्म द्वारा अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया।
  4. दोषपूर्ण वर्ण-व्यवस्था: जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उद्भव का एक महत्त्वपूर्ण कारण दोषपूर्ण वर्ण-व्यवस्था थी। वर्ण-व्यवस्था के कठोर नियमों के अन्तर्गत शूद्रों को समस्त प्रकार के मानवीय अधिकारों से वंचित कर दिया गया।

प्रश्न 5.
हीनयान और महायान में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हीनयान और महायान में अंतर:
1. मूर्ति पूजा:
महायान धर्म वाले बुद्ध को देवता मानने लगे, जबकि हीनयान वाले बुद्ध को केवल महान् मनुष्य ही समझते थे और बुद्ध की मूर्तियाँ बनाने के पक्ष में नहीं थे। महायान धर्मावलम्बियों ने इसके विपरीत उनकी पत्थर की मूर्तियाँ बनानी आरंभ कर दी।

2. तर्क के स्थान पर विश्वास:
हीनयान मत वाले व्यक्तिगत प्रयत्न और अच्छे कर्मों पर जोर देते थे। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अवश्य मिलता है, “जब देवता भी बुरे कर्मों के फल से नहीं बच सकते तो देवताओं की पूजा करने से क्या लाभ ?” परंतु महायान वाले विश्वास और पूजा पर अधिक जोर देते थे, इसलिए उन्होंने बुद्ध की पूजा करनी आरंभ कर दी। इस प्रकार तर्क का स्थान विश्वास ने ले लिया।

3. पाली भाषा के स्थान पर संस्कृत:
महायान सम्प्रदाय की बहुत सी पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखी गईं, जबकि हीनयान सम्प्रदाय वालों की सभी पुस्तकें पाली भाषा में हैं।

4. बौद्ध भिक्षुओं की उपासना:
महायान धर्म में न केवल बुद्ध को भगवान मानकर उनकी उपासना आरंभ हो गई अपनी उपासना और पवित्रता के कारण प्रसिद्धि पाने वाले भिक्षुओं की उपासना भी की जाने लगी और उनकी मूर्तियाँ बनाकर बौद्ध मंदिरों में रखी जाने लगीं।

5. निर्वाण की अपेक्षा स्वर्ग:
महायान मत वालों ने भी अब जन-साधारण के सामने स्वर्ग: को अपनी अंतिम मंजिल बताया। यह परिवर्तन जन-साधारण को आकर्षित करने के लिए किया गया था। वास्तव में बौद्ध धर्म वाले यह अनुभव कर रहे थे कि हिन्दू धर्म उनसे अधिक प्रचारित है, इसलिए उन्होंने ऐसे ढोंग रचने आरंभ किये।

6. प्रार्थना तथा भेंट:
महात्मा बुद्ध ने प्रार्थना और बलि की आवश्यकता पर बल नहीं दिया था। परंतु महायानी बौद्धों ने महात्मा बुद्ध को भगवान मानकर उनकी प्रार्थना आरंभ कर दी । फल–फूल की भेंट भी दी जाने लगी। इस प्रकार बौद्ध धर्म में भी हिन्दू धर्म के तत्वों का समावेश होने लगा। बुद्ध को अवतार समझा जाने लगा।

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प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म में परिवर्तन की घटना से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बौद्ध धर्म में परिवर्तन की घटना : महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् कुछ समय तक भिक्षुओं ने बड़ा पवित्र जीवन व्यतीत किया, जिसके कारण वे लोगों में बड़े प्रिय हो गये थे। धीरे-धीरे उन्होंने संघ के नियमों की अवहेलना करनी आरंभ कर दी।

भिक्षुओं को ऐसा प्रतीत होने लगा कि उनके लिए बुद्ध के बनाए हुए नियमों पर चलना कठिन हो गया है। इससे बौद्ध। धर्म के अनुयायियों में मतभेद पैदा होने लगे। धीरे-धीरे मतभेद इतने बढ़ गए कि पहली शताब्दी सा०यु० में बौद्ध धर्म दो भागों में बँट गया –

  1. हीनयान मत वाले पुराने धर्म को, जिसकी नींव बुद्ध ने रखी थी, और
  2. महायान वाले धर्म के परिष्कृत स्वरूप को मानते थे। इस घटना को बौद्ध धर्म में परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म ने धार्मिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
धार्मिक जीवन पर प्रभाव:

  1. बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने हिन्दू धर्म की बुराइयों को लोगों के सामने रखा। इससे हिन्दू-धर्म का स्वरूप सुधरने लगा।
  2. बौद्ध लोगों ने जाति-पाँति और ऊँच-नीच का विरोध करके धार्मिक एकता की भावना को बढ़ाया।
  3. महात्मा बुद्ध की मूर्तियाँ बनती देखकर हिन्दुओं ने भी अपने देवताओं की मूर्तियाँ बनानी शुरू कर दी। इससे मूर्तिकला ने निखार पाया।
  4. प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० वी० ए० स्मिथ (Dr. V.A. Smith) के अनुसार हिन्दू धर्म और बौद्ध मत वालों के बीच विविध परिचर्चाओं एवं गोष्ठियों ने भक्ति के विभिन्न सम्प्रदायों को जन्म दिया और भक्ति-भावना बढ़ने लगी।

प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के क्या कारण थे?
उत्तर-बौद्ध धर्म की लोकप्रियता के कारण:
1. बौद्ध धर्म में संघ का योगदान:
धर्म का प्रचार करने के लिए इस धर्म में संघों की स्थापना की गई। इनमें पढ़ने तथा पढ़ाने का काम होता था, प्रचार करने के कार्यक्रम बनाए जाते थे और बुरे तथा अपवित्र भिक्षुओं को दण्ड दिया जाता था। इन संघों के माध्यम से प्रचार का काम सुव्यवस्थित ढंग से होता रहा और बौद्ध धर्म लगातार उन्नति करता रहा।

2. समय के साथ परिवर्तन:
बहुत से हिन्दू लोग बौद्ध धर्म की सरलता और सिद्धांतों से आकर्षित होकर इस धर्म में आ गये परंतु उनके लिए राम, कृष्ण, इन्द्र आदि. की पूजा छोड़ना बहुत कठिन था। बौद्ध धर्म ने यह देखकर धीरे-धीरे हिन्दू धर्म की कुछ ऐसी बातें अपना ली जिन्हें जन-साधारण के लिए छोड़ना बहुत कठिन था। बौद्ध धर्म की महायान शाखा में रहकर लोग हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी महात्मा बुद्ध की शिक्षा पर चल सकते थे। इस प्रकार बौद्ध धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

3. बौद्ध धर्म में विश्वविद्यालय:
इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म के प्रचार में तक्षशिला विश्वविद्यालय, गया के महाबोधि विश्वविद्यालय तथा नालंदा विश्वविद्यालय ने विशेष योगदान दिया। इन विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्र भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे। वे बुद्ध धर्म के तत्वों से प्रभावित हुए और वापस लौटने के बाद उन्होंने अपने-अपने देशों में भी बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

4. राज्य संरक्षण:
बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में राजकीय संरक्षण का विशेष हाथ रहा । अशोक, कनिष्क, हर्षवर्धन जैसे अनेक राजाओं ने बौद्ध धर्म को अपनाया तथा इसको राज्यधर्म घोषित करके उसके प्रचार के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी। भिक्षुओं की राजकोष से सहायता की गई और उन्हें हर प्रकार की सुविधाएँ दी गईं।

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प्रश्न 9.
बौद्ध धर्म का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
बौद्ध धर्म पर सामाजिक जीवन का प्रभाव: बौद्ध धर्म ने भारतीय समाज को अनेक प्रकार से प्रभावित किया:

  1. बौद्ध मत वालों ने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया और सब लोगों को बराबरी का स्थान दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे जाति-प्रथा की दृढ़ता दूर होती गई। लोगों में भेदभाव घटने से भाईचारा बढ़ा और जिससे भारतीय समाज एकता के सूत्र में बँधा।
  2. बौद्ध धर्म को छोड़कर वापस हिन्दू धर्म में आने पर लोगों ने अपनी नई जातियाँ बना ली।
  3. लोगों में मांस खाने की प्रवृत्ति कम हो गई और वे मांसाहारी से शाकाहारी बन गए।
  4. किसी जीव-जन्तु को दु:ख न देने की अहिंसा भावना से समाज को एक नई अन्तर्दृष्टि और शक्ति प्रदान की।

प्रश्न 10.
बुद्ध के अनुयायियों में कौन-कौन से वर्ग शामिल थे?
उत्तर:
बौद्ध अनुयायियों के वर्ग:

  1. अनुयायियों में कुछ ऐसे भिक्षु थे जो धम्म के शिक्षक या श्रमण बन गये। उनका जीवन सादा होता था और शिक्षा धर्म अपनाकर जीवन-यापन करने लगे।
  2. बुद्ध के प्रिय शिष्य आनन्द ने महिलाओं को भी बौद्ध धर्म में शामिल कराया। आगे चलकर कई महिलायें धम्म की उपदेशिकाएँ और कुछ थेरी भी बनीं। थेरी ऐसी महिलायें थीं जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया था।
  3. अन्य वर्ग क्रमशः राजा, धनवान, गृहपति और सामान्यजन, कर्मकार, दास तथा शिल्पी थे।

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प्रश्न 11.
गांधार कला के विषय में एक संक्षिप्त निबंध लिखिए।
उत्तर:
गांधार कला:
1. प्रारंभ कला:
गांधार शैली भारतीय कला के विकास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। सम्भवतः गांधार कला का आविर्भाव द्वितीय शताब्दी सा०यु०पू० तक हो चुका था। कनिष्क के शासनकाल में गांधार कला अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुँच गयी थी। गांधार कला के प्रमुख केन्द्र थे-तक्षशिला तथा पुरुषपुर आदि। यह यूनानी तथा भारतीय शैली का समन्वय है।

2. विषय:
गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय है लेकिन इसकी तकनीक यूनानी है। यूनानी शिल्पकारों तथा कलाकारों के धार्मिक विचारों के आधार पर यूनानी रूप तथा वेशभूषा में भगवान बुद्ध की प्रतिमायें निर्मित हैं।

3. विभिन्न नाम:
यूनानी प्रभाव के कारण गांधार कला को इण्डो-ग्रीक, इण्डो-बैक्ट्रियन, इण्डो-हैलेमिक, इण्डो-रोमन, ग्रीको-रोमन तथा ग्रीको-बुद्धिस्ट कला के नाम से भी पुकारा जाता है लेकिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इसे गांधार कला ही कहा जाता है।

4. विशेषताएँ:

  • (क) गांधार कला की विषय-वस्तु भारतीय तथा तकनीक यूनानी है।
  • (ख) गांधार कला में निर्मित मूर्तियाँ साधारतणया स्लेटी पत्थर की हैं।
  • (ग) भगवान् बुद्ध के बाल (hair) यूनानी तथा रोम की शैली में बनाये गये।
  • (घ) मूर्तियों से दर्शित शरीर के अंगों को ध्यानपूर्वक बनाया गया है। मूर्तियों में मोटे तथा सिलवटदार वस्त्र दर्शाए गये हैं।
  • (ड) गांधार शैली में धातु कला तथा अध्यात्म कला का अभाव है।
  • (च) गांधार शैली में बुद्ध यूनान के अपोलो देवता के समान लगते हैं। यह सम्भवतः यूनानी प्रभाव के कारण है।

प्रश्न 12.
बौद्ध धर्म की सांस्कृतिक क्षेत्र में क्या देन है?
उत्तर:
सांस्कृतिक प्रभाव या सांस्कृतिक क्षेत्र में देन:
बौद्ध धर्म ने शिक्षा एवं कला के क्षेत्र में भी अपना अप्रतिम योगदान दिया –
1. बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर ही अशोक, हर्ष और कनिष्क जैसे राजाओं ने सारे देश को सुन्दर विहारों, स्तूपों, मठों, मूर्तियों और स्तम्भों आदि से सजा दिया था। अशोक के बनाये हुए स्तम्भ आज भी अपनी कल्पना के लिए अद्वितीय है। कनिष्क के शासन काल में गांधार कला ने बड़ी उन्नति की। इस काल के बने हुए नमूने, विशेषकर बुद्ध की मूर्तियाँ, अपने सौन्दर्य में अद्वितीय हैं।

2. साहित्य के क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की हजारों पुस्तकें जन-साधारण की भाषा ‘प्राकृत’ में लिखी गईं। इस प्रकार जन-साधारण की भाषा में कए गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट टू (उच्च माध्यमिक) एक नए साहित्य का विकास हुआ। ये साहित्यिक पुस्तकें ऐसी निधि हैं जिसके लिए भारत को अब तक बड़ा गर्व हैहै।

3. बौद्ध धर्म के प्रचारक अन्य देशों में धर्म-प्रचार करने के लिए गए। उनके साथ-साथ भारतीय संस्कृति भी अन्य देशों में फैल गई और भारत का उन देशों के साथ व्यापार सम्पर्क बढ़ने लगा। इस प्रकार आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र में भी बौद्ध धर्म की बड़ी देन है।

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प्रश्न 13.
गुप्तकालीन कलाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन कला:
1. वास्तुकता:
गुप्त-काल सृजन और विकास का युग था। एक ओर वास्तुकला की पूर्ववर्ती कला शैली का चरमोत्कर्ष और दूसरी ओर मंदिर वास्तुकता का विकास भी इसी काल में हुआ।

2. गुफा वास्तुकला:
इसका उत्कर्ष अजन्ता की गुफाओं में देखने को मिलता है।

3. मंदिर-निर्माण कला:
फाह्यान के लेखों से पता चलता है कि बड़े-बड़े नगरों में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण हुआ। इनमें देवगढ़ का पाषाण निर्मित मंदिर और भितरगांव का मंदिर अद्भुत मूर्ति कला के लिए प्रसिद्ध है। भूमर का शिव मंदिर और खोह का एकमुखी शिवलिंग भी प्रसिद्ध है। सारनाथ का धुमेख स्तूप और नालंदा का बौद्ध मंदिर भी इसी काल में बने।

4. मूर्तिकला:
सारनाथ और मथुरा केन्द्र थे। बुद्ध की मूर्तियों के साथ-साथ अब शिव, विष्णु, कार्तिकेय, सूर्य आदि की मूर्तियाँ भी बनाई जाने लगीं। यह कला गांधार और कुषाणकाल की कलाओं से भी अधिक उन्नत थी।

प्रश्न 14.
भारतीय कला में मथुरा कला का क्या योगदान है?
उत्तर:
मथुरा कला का योगदान:
मथुरा की मूर्तिकला का आरंभ पहली शताब्दी सा०यु० में हुआ। इस शैली की मूर्तियाँ इतनी अधिक लोकप्रिय हुईं कि उन्हें तक्षशिला, मध्य एशिया, उत्तरी-पश्चिमी प्रदेश, सरस्वती और सारनाथ आदि प्रदेशों को भेजा गया और भारत के सभी मंदिरों में इन्हें लगाया गया।

मथुरा में मूर्तियाँ लाल रेत के पत्थरों से बनाई जाती थी और उन पर पॉलिश की जाती थी। मथुरा के नागराटे नामक स्थान पर कनिष्क की बिना सिर की मूर्ति और खड़ी हुई लाटें, बुद्ध की कई मूर्तियाँ और यक्ष और यक्षी की मूर्तियाँ इसी कला में बनाई गई हैं। आरंभिक काल में इस स्कूल पर शायद जैन धर्म का प्रभाव पड़ा था। मथुरा के दस्तकारों ने बहुत-सी ऐसी मूर्तियाँ बनायी हैं जिनमें तीर्थंकर पांव पर पांव रखकर ज्ञान-मुद्रा में दिखाए गए हैं।

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प्रश्न 15.
सांची क्यों बच गया जबकि अमरावती नष्ट हो गया?
उत्तर:
सांची स्थल के बचने और अमरावती के नष्ट होने के कारण:
1. अमरावती के स्तूप की खोज साँची-स्तूप से थोड़ा पहले (1796) हो चुकी थी। तब तक विद्वान इस बात के महत्त्व को नहीं समझ पाये थे कि किसी पुरातात्विक अवशेष को उठाकर ले जाने की बजाय खोज की जगह पर ही संरक्षित करना महत्त्वपूर्ण होता है।

2. अमरावती स्तूप के पत्थरों को उठाकर दूसरी जगह ले जाया गया। यही नहीं वहाँ की मूर्तियों को भी संग्रहालयों में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके कारण स्तूप का महत्त्वपूर्ण अवशेष दूसरे स्थानों पर चला गया।

3. सांची की खोज 1818 सा०यु० में हुई। इसके तीन तोरणद्वार खड़े थे और चौथा वहीं पर गिरा हुआ था। टीला भी अच्छी हालत में था। इस स्तूप के तोरणद्वारों को पेरिस या लंदन भेजने की योजना बनाई गई लेकिन राजकीय संरक्षण के कारण अंग्रेजों को इसके स्थान पर प्लास्टिक की प्रतिमूर्तियाँ दे दी गई थी।

प्रश्न 16.
बौद्ध संघ की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
बौद्ध संघ की प्रमुख विशेषतायें:

  1. इसके सदस्य भिक्षु होते थे क्योंकि वे भिक्षा माँगकर जीविका चलाते थे।
  2. आरम्भ में बौद्ध संघ में केवल पुरुष शामिल होते थे, परंतु बाद में महिलाओं को भी अनुमति दे दी गयी। बुद्ध की सौतेली माँ महाप्रजापति गौतमी संघ में प्रवेश पाने वाली पहली भिक्षुणी थी। संघ में कई महिलायें धम्म की उपदेशिकायें बन गईं। आगे चलकर वे थेरी बनीं जिसका अर्थ ऐसी महिलाओं से है जिन्होंने निर्वाण प्राप्त कर लिया है।
  3. यद्यपि बौद्ध संघ के सदस्य विभिन्न सामाजिक वर्गों के थे परंतु सभी का दर्जा समान माना जाता था।
  4. संघ की संचालन पद्धति गणों और संघों की परम्परा पर आधारित थी। लोग बातचीत द्वारा किसी बात पर एकमत होने का प्रयास करते थे। यदि सहमति से किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन हो जाता था तो मतदान द्वारा निर्णय लिया जाता था।

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प्रश्न 17.
बौद्ध परम्परा में महायान की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर:
बौद्ध परम्परा में महायान की उत्पत्ति:
कनिष्क के काल से बौद्ध परम्परा में परिवर्तन दिखाई देने लगता है। पहली शताब्दी सा०यु० के पूर्व बुद्ध को एक मानव माना जाता था और परिनिर्वाण के लिए व्यक्तिगत प्रयास को विशेष महत्त्व दिया जाता था। परंतु धीरे-धीरे इसमें परिवर्तन आने लगा। बहुत से बौद्ध अनुयायी बुद्ध को देवता मानने लगे और मूर्तियाँ बनाकर उनकी पूजा करने लगे। यहीं से महायान परम्परा की शुरूआत हुई।

महायान धर्म में न केवल बुद्ध को भगवान का पद दिया गया बल्कि उनकी उपासना में आरम्भ हो गयी। बौद्ध भिक्षुओं की उपासना भी की जाने लगी और उनकी मूर्तियाँ बनाकर बौद्ध मंदिरों में रखी जाने लगीं। महायान के लोग जन-साधारण के सामने स्वर्ग को अपनी अंतिम मंजिल बताते थे। यह धर्म में एक बड़ा परिवर्तन था और जन-साधारण को आकर्षित करने के लिए किया गया था। बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म से अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए वे हिन्दू देवताओं की भांति बुद्ध की पूजा भी करने लगे।

प्रश्न 18.
जैन धर्म ने भारतीय समाज को कहाँ तक प्रभावित किया?
उत्तर:
जैन धर्म का भारतीय समाज का प्रभाव:

  1. जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खंडन किया। फलस्वरूप देश में जाति-प्रथा के बंधन शिथिल पड़ गए।
  2. जैन धर्म के सिद्धांतों से प्रभावित होकर ब्राह्मणों ने पशुबलि, कर्मकांड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया और वैदिक धर्म एक बार पुनः सरल रूप धारण करने लगा।
  3. जैन धर्म के अहिंसा सिद्धांत ने लोगों को शाकाहारी बनने की प्रेरणा दी। इस प्रकार जानवरों की हत्या कम हो गयी।
  4. जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाये अर्थात् स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास हुआ। दिलवाड़ा का जैन मंदिर, एलोरा की गुफायें तथा खजुराहो के जैन मंदिर इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

प्रश्न 19.
भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी सायु०पू० को महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी सा०यु०पू० का महत्त्व:

  1. इस काल में अनेक राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिवर्तन हुए। भारत में सा०यु०पू० छठी शाताब्दी में 16 महाजनपदों का उदय हुआ।
  2. वैदिक कर्मकाण्डों का प्रभाव धीरे-धीरे घटने लगा। उपनिषदों का महत्त्व बढ़ने से चिंतन का महत्त्व बढ़ने लगा। लोगों का ध्यान मोक्ष प्राप्ति के नये साधन ढूँढ़ने की ओर आकर्षित हुआ। इसके फलस्वरूप समाज में नये दार्शनिक विचारों का प्रतिपादन हुआ।
  3. नई दार्शनिक विचारधारा के फलस्वरूप समाज में नये सामाजिक-धार्मिक सम्प्रदायों का अभ्युदय हुआ। इनकी संख्या लगभग 62 थी। इन्होंने जैन सम्प्रदाय तथा बौद्ध सम्प्रदाय के विचारों पर सबसे अधिक प्रभाव डाला। इससे भारतीय समाज में भारी बदलाव आया।
  4. बौद्ध धर्म और जैन धर्म ने आत्मसंयम तथा तपस्या पर बल दिया । ये विचार उपनिषदों में प्रतिपादित विचारों से मिलते-जुलते थे। इससे उपनिषदों की लोकप्रियता बढ़ने लगी।

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प्रश्न 20.
भारत में बौद्ध धर्म के सामाजिक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में बौद्ध धर्म के सामाजिक प्रभाव:

  1. बौद्ध धर्म के प्रभाव से लोग सदाचारी बन गये और झूठ बोलना, चोरी करना तथा निन्दा करना जैसे दोषों की निवृत्ति हुई।
  2. बौद्ध धर्म ने राजनीति को भी जन-कल्याणकारी स्वरूप दिया। अशोक जैसे शासकों ने युद्ध का परित्याग कर दिया और जनकल्याण के कार्यों में लग गए।
  3. बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने जीवों को मारना और मांस खाना बंद कर दिया।
  4. बौद्ध धर्म ने साहित्य का विकास भी किया। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं और उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक ग्रंथ लिखे गए त्रिपिटक, जातक ग्रंथ आदि इसके उदाहरण है।
  5. बौद्ध धर्म ने स्थापत्य और मूर्ति कला को भी बढ़ावा दिया। अनेक स्तूपों, मठों और विहारों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 21.
बुद्ध की प्रथम संसार-यात्रा से उनका जीवन कैसे बदल गया? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बुद्ध एक दिन भ्रमण के लिए बाहर गये जहाँ उन्होंने निम्न दृश्य देखे जिससे उनका जीवन बदल गया:

  1. उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति देखा जिसके शरीर पर झुरियाँ पड़ी थीं।
  2. एक बीमार व्यक्ति शारीरिक कष्ट से कराह रहा था।
  3. कुछ लोग एक लाश लेकर उसके अंतिम संस्कार के लिए जा रहे थे और रो रहे थे। इन दृश्यों को देखकर बुद्ध का मन विचलित हो गया और उन्हें अनुभूति हुई कि शरीर का क्षय और अंत निश्चित है।
  4. उन्होंने एक गृहत्यागी सन्यासी को देखा जो बुढ़ापे, बीमारी और मृत्यु से निर्भय था और उसने शांति प्राप्त कर ली थी। इन घटना से उन्होंने सन्यास का रास्ता अपनाने का निश्चय किया।

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प्रश्न 22.
बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म में क्या अंतर था।
उत्तर:
बौद्ध धर्म और हिन्दू धर्म में अंतर:

  1. हिन्दू धर्म सर्वशक्तिमान ईश्वर में विश्वास करता है जबकि बौद्ध धर्म ईश्वर के प्रति मौन है।
  2. बौद्ध धर्म अहिंसा पर बल देता है और माँस भक्षण के विरुद्ध है लेकिन हिन्दू धर्म अहिंसा पर अधिक जोर नहीं देता। इसमें पशु एवं नरबलि के प्रावधान भी है।
  3. मोक्ष प्राप्त करने के लिए हिन्दू यज्ञ, बलि और कर्मकाण्ड को आवश्यक मानते हैं परंतु बौद्ध धर्म इसे नहीं मानता।
  4. बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म की भाँति जातीय भेदभाव, ब्राह्मणों और सस्कृत के महत्त्व को नहीं मानता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
गुप्तकालीन कला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गुप्तकालीन कला:
(I) वास्तुकला:
इस काल में वास्तुकला या भवन निर्माण कला की विशेष उन्नति हुई। इस क्षेत्र में गुप्तों के शासन ने एक नए युग को प्रारंभ किया। इस काल के भवन निःसन्देह अद्भुत और शानदार हैं। गुप्तकाल में अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ जिनमें निम्नलिखित प्रसिद्ध हैं –

  • (क) जबलपुर जिले के तिगवा नामक स्थान में विष्णु-मंदिर।
  • (ख) बोध-गया तथा सांची के बौद्ध मंदिर।
  • (ग) देवगढ़ का दशावतार मंदिर।
  • (घ) नागोद राज्य में भुमरा का शिव मंदिर।
  • (ड़) आसाम के दरंग जिले में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर दह परबतिया नामक स्थान में एक मंदिर मिला है जो काफी टूट-फूट गया है परंतु स्थापत्य कला की दृष्टि से यह मंदिर बहुत श्रेष्ठ है। (च) नागोद राज्य के खोह नामक स्थान में एक शिव मंदिर मिला है।
  • (छ) अजयगढ़ राज्य में नचना-कूथर नामक स्थान पर पार्वती का मंदिर।

इन मंदिरों के अतिरिक्त कुछ ईंटों के बने हुए मंदिर भी थे। झांसी का देवगढ़ मंदिर तथा कानपुर के मंदिर उत्कृष्ट स्थापत्य कला के नमूने हैं। इसके अतिरिक्त गुप्त काल की भवन निर्माण कला में अलंकृत स्तम्भों का एक विशेष स्थान है।

(II) मूर्तिकला:
गुप्तकाल में मूर्तिकला का भी चरम विकास हुआ। इस काल की मूर्तिकला की विशेषता शारीरिक सुन्दरता की ओर अधिक ध्यान न देकर भावों को प्रकट करने में है। इस काल की मूर्तिकला पूर्ण रूप से भारतीय है। इस प्रकार मूर्तिकला विदेशी प्रभाव से सर्वथा स्वतंत्र हो गई।

कुषाण काल से पहले जो कलापूर्ण कृतियाँ थीं उनमें केवल भाव ही प्रकट किए जाते थे। कुषाण काल में शारीरिक सुन्दरता पर अधिक ध्यान दिया जाता था परंतु गुप्तकाल में कुषाण युग तथा इससे पूर्वकाल की कलाकृतियों को सुन्दर समन्वय कर दिया गया।

इस काल की मूर्तियाँ भाव-प्रेषण को वरीयता देती हैं। बुद्ध की मूर्तियाँ इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गौतम बुद्ध की आध्यात्मिक अभिव्यक्ति, प्रशांत मुस्कराहट तथा गम्भीर विचारपूर्ण मुद्रा भारतीय मूर्तिकला से अद्भुत निखार पाती है।

इस काल में गौतम बुद्ध की प्रतिमाओं के साथ ही ब्राह्मणों ने भी अपने देवी-देवताओं की मूर्तियों का निर्माण किया। इस काल में विष्णु, शिव, ब्रह्मा, सूर्य तथा देवताओं आदि की मूर्तियाँ । बनाई गईं।

(III) चित्रकारी:
गुप्तकालीन चित्रकला अद्वितीय थी। इसकी चित्रकारी के नमूने हमें अजन्ता और बाघ की कन्दराओं से मिले हैं। ये चित्र हमारे सामने उस काल के जीवन का सजीव चित्र उपस्थित करते हैं। यद्यपि चित्रों का उद्देश्य तथागत के जीवन की घटनाओं का वर्णन करना है परंतु यह लोक जीवन से अलग नहीं है। अजन्ता के चित्रकार प्रकृति के साथ बड़ा प्रेम रखते थे। उन्होंने फलते हुए वृक्ष तथा विचरते हुए पशुओं के सजीव चित्र खींचे हैं।

ग्रिफिन्ज और फर्गुसन ने गुफा नं. XVI में दिवगंत राजकुमारी के जीवन्त चित्रण की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि वेदना और हृदय के भावों को व्यक्त करने में यह चित्रकला के इतिहास में अद्वितीय है।

अजन्ता के चित्रों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। श्रीमती हैरिन्थम का कथन है कि अजन्ता के चित्रों के कारण भारत संपूर्ण मानव-जाति की श्रद्धा का अधिकारी है।

(IV) संगीतकला:
इस काल में चित्रकला की भाँति संगीतकला का भी चरम विकास हुआ। गुप्तकालीन साहित्य से हमें ज्ञात होता है कि इस समय गायन, वादन तथा नृत्य कला का प्रचलन था। समुद्रगुप्त के सिक्कों से ज्ञात होता है कि उसकी वीणावादन में विशेष रुचि थी।

उसकी तुलना नारद ऋषि के साथ की गई है। गुप्तकाल में नृत्य का भी काफी प्रचलन था। इसके लिए शिक्षक भी नियुक्त किए जाते थे और विशेष रूप से नारियों इस कला को सीखती थी। इस सांस्कृतिक और साहित्यिक विकास के कारण ही इस युग को स्वर्ण युग कहते हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि यह कला और साहित्य के चरम विकास का युग था।

(V) मुद्राकला:
प्रारंभ में गुप्तकालीन सम्राटों ने विदेशी मुद्राओं का अनुसरण किया परंतु बाद में भारतीयता से प्रभावित मुद्रायें चलायी। गुप्त सम्राटों की अधिकांश मुद्रायें सोने की हैं परंतु कालान्तर में उन्होंने चाँदी की मुद्रायें भी जारी की, ये मुद्रायें सुन्दर और आकर्षक हैं। इनका आकार तथा इन पर अंकित मूर्तियाँ बड़ी सुन्दर है। इन मुद्राओं पर गुप्त सम्राटों की प्रशस्ति भी लिखी गयी है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि गुप्तकाल में भारतीय साहित्य एवं कला का चहुंमुखी विकास हुआ। हेल महोदय ने गुप्तकाल की प्रशंसा करते हुए लिखा है- भारत उन दिनों शिष्य नहीं बल्कि सम्पूर्ण एशिया का शिक्षक था और पाश्चात्य सुझावों को लेकर उसने उन्हें अपने विचारों के अनुकूल बना लिया।”

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प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे? बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए। अथवा, बुद्ध की शिक्षाओं की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे। उनका जन्म नेपाल के कपिलवस्तु नामक नगर में राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ। उनकी माता का नाम महामाया था। राजा शुद्धोधन के इस पुत्र के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनका विवाह वैशाली की राजकुमारी यशोधरा से हुआ।

उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया । संसार में दु:ख ही दु:ख देखकर उन्होंने घर का त्याग कर दिया और सत्य की खोज में निकल पड़े उन्होंने ज्ञान-प्राप्ति के लिये घोर तपस्या की। अंत में वे सब कुछ छोड़कर गया के समीप एक वृक्ष के नीचे बैठ गये।

यहीं उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उनका नाम ‘बुद्ध’ पड़ गया। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया। यहाँ उनके पाँच शिष्य बन गये। इसके बाद उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ने लगी।

बौद्ध धर्म की शिक्षायें:
चार मौलिक सिद्धांत और अष्टमार्ग-बुद्ध की शिक्षा के चार मौलिक सिद्धांत है –

  • दुनिया दु:खों का घर है।
  • इन दु:खों का कारण वासनाएँ अथवा इच्छाएँ हैं।
  • इन वासनाओं को मार देने से दुःख दूर हो सकते हैं।
  • इन वासनाओं का अन्त करने के लिए मनुष्य को अष्टमार्ग (Eight Fold Path) पर चलना चाहिए।

अष्टमार्ग में निम्नलिखित आठ सिद्धांत है:

  • सम्यक् (शुद्धि) दृष्टि
  • सम्यक् संकल्प
  • सम्यक् वचन
  • सम्यक् आचरण
  • सम्यक् जीवन
  • सम्यक् प्रयत्न
  • सम्यक् स्मृति और
  • सम्यक् समाधि।

इस मार्ग को मध्य मार्ग भी कहते हैं, क्योंकि बुद्ध एक ओर ब्राह्मणों के भोगविलासी के जीवन से घृणा करते थे और दूसरी ओर जैनियों के घोर तपस्या वाले सिद्धांत के विरुद्ध थे। वे इन दोनों के मध्य मार्ग अर्थात् सम्यक जीवन व्यतीत करने पर जोर देते थे।

1. अहिंसा:
बुद्ध ने महावीर स्वामी की भाँति अर्थात् जीवों को कष्ट न पहुँचाने पर काफी जोर दिया। उनका यह विचार था कि मनुष्य को न पशुओं का वध करना चाहिए और न उन्हें तंग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य को प्रत्येक जीवधारी से प्रेम करना चाहिए, परंतु महावीर की भाँति उन्होंने इस बात का प्रचार नहीं किया कि वृक्षों, पत्थरों में भी जीवन होता है।

2. ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन:
बुद्ध ईश्वर के अस्तित्व से संबंधित वाद-विवाद में नहीं पड़ना चाहते थे क्योंकि ऐसा करने से उनका धर्म भी हिन्दू धर्म की भांति समझने में कठिन हो जाता। ईश्वर है या नहीं? और यदि है तो उसका स्वरूप क्या है? वह कहाँ रहता है? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर बहुत वाद-विवाद हो सकता है और ऐसे वाद-विवादों से महात्मा बुद्ध बचना चाहते थे।

3. यज्ञ-बलि और कर्मकाण्ड में अविश्वास:
महावीर की भाँति महात्मा बुद्ध का भी यज्ञ और उसमें दी जाने वाली पशुओं की बलि में कोई विश्वास न था। वे तो वेदों और ब्राह्मणों को श्रेष्ठता को भी नहीं मानते थे। उनके विचारानुसार यह बाह्य आडम्बर की चीजें निर्वाण-प्राप्ति के लिए बिल्कुल निरर्थक हैं, इसलिए ऐसी चीजों का उन्होंने विरोध किया।

4. जाति-प्रथा में अविश्वास:
महात्मा बुद्ध को जात-पात के भेद-भाव को नहीं मानते थे। उन्होंने वर्ण-व्यवस्था का कड़े शब्दों में विरोध किया। उनके विचार से समाज में मनुष्य के गुणों के अनुसार श्रेणियाँ बनाई जानी चाहिए न कि जाति के अनुसार।

5. निर्वाण:
बुद्ध के अनुसार जीवन का मुख्य लक्ष्य अच्छा जीवन व्यतीत करके निर्वाण प्राप्त करना है। कोई भी व्यक्ति चाहे ब्राह्मण हो अथवा शूद्र, अच्छा जीवन व्यतीत करके मानसिक शांति प्राप्त कर सकता है। जब व्यक्ति जीवन-मरण के चक्कर से छूट जाता है तो बौद्ध धर्म में यह स्थिति निर्वाण कहलाती है।

6. कर्म सिद्धांत:
महात्मा बुद्ध कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत को मानते थे। वे कहते थे कि व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसी के अनुसार उसे फल मिलता है। कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों के फल से नहीं बच सकता।

7. शुद्धाचरण पर जोर:
महात्मा बुद्ध ने जीवन को पवित्र बनाने पर बहुत जोर दिया। उनका ध्यान, वाणी और कर्म की सच्चाई तथा पवित्रता की ओर अधिक था। जीवों पर दया करना, सत्य बोलना, चोरी ओर व्यभिचार से बचना, दूसरों की निन्दा न करना आदि तथ्यों को उनके उपदेश का सारांश कहा जा सकता है।

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प्रश्न 3.
महायान की उत्पत्ति कैसे हुई? यह हीनयान से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर:
महायान की उत्पत्ति:
सम्राट कनिष्क के शासन-काल में बौद्ध-धर्म दो भागों में बँट गया-हीनयान और महायान। इसका कारण यह था कि महात्मा बुद्ध ने अनुशासन और अहिंसा के नियमों पर अधिक बल दिया था। भिक्षुओं के लिए यह कठोर जीवन बिताना बहुत कठिन था।

इसके अतिरिक्त इस काल में लोग ज्ञान-मार्ग और कर्म-मार्ग की अपेक्षा भक्ति-मार्ग को अधिक अपना रहे थे। इस परिवर्तन को ध्यान में रखकर बौद्ध धर्म में कुछ सुधार किए गए। यह सुधरा हुआ धर्म महायान कहलाया और बौद्ध-धर्म की प्राचीन शाख हीनयान कहलायी। इन दोनों शाखाओं का मध्य एशिया के उत्तरी भू-भागों में बहुत प्रचार हुआ।

हीनयान और महायान सम्प्रदायों में अन्तर:

  • महायान शाखा के अनुयायी महात्मा बुद्ध को देवता माना और उनकी मूर्तियाँ बनाकर पूजा करने लगे। लेकिन हीनयान शाखा वाले बुद्ध को महान् व्यक्ति मानते थे, देवता नहीं। वे मूर्ति पूजा के पक्ष में भी नहीं थे।
  • महायान शाखा के अनुयायी महात्मा बुद्ध के साथ-साथ कुछ ऐसे बौद्ध भिक्षुओं (बोधिसत्त्वों) की भी पूजा करते थे जिन्होंने आत्म-त्याग द्वारा अपने जीवन को ऊँचा उठा लिया था चाहे घे निर्वाण नहीं पा सके थे। लेकिन हीनयान वाले बोधिसत्त्वों में विश्वास नहीं रखते थे।
  • महायान शाखा के लोग विश्वास और श्रद्धा पर बल देते थे जबकि हीनयान शाखा वाले किसी बात को अपनाने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसते थे।
  • महायान शाखा के अनुसार जीवन का अंतिम लक्ष्य स्वर्ग को पाना है लेकिन हीनयान शाखा के अनुसार अंतिम लक्ष्य निवार्ण प्राप्ति का है।
  • महायान शाखा के लोग अपने प्रचार के लिए संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे लेकिन हीनयान शाखा वालों ने प्रचार करने के लिए पाली भाष्य को अपनाया।
  • महायान धर्म ब्राह्मण धर्म के बहुत निकट है। इसके कई सिद्धांत ब्राह्मण धर्म से मिलते हैं। इसके विपरीत हीनयान ब्राह्मण धर्म के निकट नहीं है।
    वास्तव में महायान धर्म में नवीनता थी क्योंकि इसके सिद्धांत समय के अनुकूल और बहुत सरल थे। बौद्ध भिक्षुओं ने बड़े उत्साह से इसका चीन, जापान, तिब्बत आदि देशों में प्रचार किया।

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प्रश्न 4.
भारत में बौद्ध धर्म के अवनति के कौन-कौन से कारण थे? अथवा, बौद्ध धर्म अपनी ही जन्मभूमि पर महत्त्वहीन हो गया। क्यों? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में बौद्ध धर्म की अवनति के कारण:
सा०यु०पू० छठी शताब्दी में बौद्ध धर्म की स्थापना हुई और छठी शताब्दी ई० तक लोकप्रिय रहा, परंतु उसके बाद उसकी अवनति होने लगी। इस अवनति के निम्नलिखित कारण थे

1. ब्राह्मण धर्म में सुधार:
जब हिन्दू लोग अन्य धर्मों में जाने लगे तो ऊँची जाति वाले लोगों और विशेषकर ब्राह्मणों को अपनी त्रुटियों का ज्ञान हुआ। अपने अस्तित्त्व को बनाए रखने के लिए अब उन्हें हठ छोड़ना पड़ा और अपने आचार-व्यवहार को बदलना पड़ा।

इस प्रकार ब्राह्मण लोग फिर से प्रिय होने लगे और उनके साथ-ही-साथ हिन्दू धर्म भी पतन के मार्ग से बच गया। हिन्दू धर्म में बुद्ध को भी एक अवतार मान लिया गया तथा अहिंसा आदि के सिद्धांत को अपना लिया गया। इसी कारण अब बौद्ध धर्म की ओर लोगों का आकर्षण जाता रहा और हिन्दू धर्म ने अपना खोया हुआ गौरव पुनः प्राप्त कर लिया।

2. बौद्ध संघों में अनाचार:
आरम्भ में भिक्षु लोग बड़े ऊँचे चरित्र के व्यक्ति होते थे और बौद्ध संघों में ऐसे व्यक्ति को ही लिया जाता था जो वास्तव में सदाचारी होता था। धीरे-धीरे इन संघों के पास अकूत धन एकत्र हो गया और स्त्रियों को भी लिया जाने लगा। फिर क्या था, इन संघों में अनाचार फैलने गया और भिक्षु लोग लोक-सेवा छोड़कर ऐश्वर्य की ओर भागने लगे। लोगों ने भिक्षुओं से घृणा करनी आरम्भ कर दी और बौद्धमत को त्यागना आरम्भ कर दिया।

3. बौद्ध धर्म का विभाजन:
कुछ समय तक बौद्ध लोग मिलकर प्रेम-भाव से काम करते रहे, परंतु धीरे-धीरे यह प्रेम-भाव लुप्त होता गया और मतभेद बढ़ने लगे। हीनयान और महायान के अतिरिक्त बौद्ध धर्म के सोलह अन्य टुकड़े हो गए। इस प्रकार लड़ाई-झगड़े, मतभेद और ईर्ष्या-द्वेष के बढ़ जाने से बौद्ध धर्म का शक्तिहीन होना स्वाभाविक ही था। एकता ने बौद्ध धर्म को नई ऊँचाइयाँ दी जबकि फूट ने उनका पतन सुनिश्चित कर दिया।

4. बुद्ध की मूर्ति पूजा:
बौद्ध धर्म का प्रसार उसमें मूर्ति पूजा और अन्य अन्धविश्वास न रहने के कारण हुआ। बौद्ध लोगों ने महात्मा बुद्ध को देवता मानकर उनकी मूर्तियाँ बनानी आरम्भ कर दी और उनकी पूजा करनी शुरू कर दी।

लोगों में यह धारणा बनी कि यदि बुद्ध भी एक देवता थे तो उनमें और हिन्दू धर्म के देवताओं में क्या अंतर है? हिन्दू लोगों ने भी बुद्ध को देवता मान लिया इसलिए बौद्ध धर्म में कोई विशेष अंतर न रहा। धीरे-धीरे यह धर्म में ही विलीन हो गया और कुछ समय पश्चात् भारत से बौद्ध धर्म लुप्त होने लगा।

5. बौद्ध धर्म में हिन्दू-दर्शन और संस्कृत:
धीरे-धीरे बौद्धों ने हिन्दू-दर्शन के कई सिद्धांतों को अपना लिया और परिणामस्वरूप उनका धर्म भी जटिल और गूढ़ बनता गया। यही नहीं, धीरे-धीरे बौद्धों ने लोगों की बोल-चाल की भाषा छोड़कर संस्कृत भाषा को अपना लिया। इससे उनकी भाषा फिर से कठिन हो गई। धर्म और भाषा के कठिन होने से लोगों की रुचि इस धर्म से हट गई।

6. हिन्दू धर्म का फिर से उन्नति करना:
गुप्तकाल में हिन्दू धर्म फिर से अपनी खोई हुई शक्ति को प्राप्त करने लगा। ब्राह्मणों का आदर होने लगा व सुन्दर-सुन्दर मंदिर बनने लगे। हिन्दू धर्म एक बार फिर चमक उठा। इस प्रकार राजाओं का संरक्षण मिलने से हिन्दू धर्म फिर से उन्नति करने लगा और बौद्ध लोग अब हिन्दू धर्म में वापस लौटने लगे।

7. हिन्दू उपदेशकों का काम:
हिन्दू धर्म को फिर से उन्नति की ओर ले जाने और पतन से बचाने के लिए उपदेशकों ने भी सराहनीय कार्य किया। आठवीं और नवीं शताब्दी में कुमारिल भट्ट और शंकराचार्य जैसे प्रकाण्ड विद्वानों ने स्थान-स्थान पर वैदिक धर्म का उपदेश देकर हिन्दू धर्म को बौद्ध धर्म से अच्छा ठहराया और सारे देश में अपने धर्म का डंका बजा दिया। बौद्ध मत वाले ऐसे उपदेशों का सामना न कर सके। इस प्रकार इनका धर्म भारत से धीरे-धीरे लुप्त हो गया।

8. राजाओं के संरक्षण का अंत:
कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजाओं का संरक्षण मिलना बंद हो गया। गुप्त काल में भी बौद्ध धर्म को भरपूर सहायता नहीं मिली। गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने हिन्दू धर्म का प्रचार-प्रसार करने के पर्याप्त प्रयास किए। हर्ष ने बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया परंतु उसकी मृत्यु के बाद संरक्षण मिलना बंद हो गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी में किस अंग्रेज विद्वान ने सांची की यात्रा की?
(अ) मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम
(ब) हीलर
(स) जॉन मार्शल
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) मेजर अलेक्जेंडर कनिंघम

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प्रश्न 2.
सांची कनखेड़ा क्या है?
(अ) एक गाँव का मेला है
(ब) एक गाँव है
(स) एक शहर है
(द) भोपाल का मुख्य उद्योग केन्द्र है
उत्तर:
(ब) एक गाँव है

प्रश्न 3.
शालभंजिका क्या है?
(अ) शाल धारण करने वाली स्त्री को कहते हैं
(ब) वृक्षों की शाखा को पकड़े हुए स्त्री को कहते हैं
(स) सुन्दर स्त्रियों को कहते हैं
(द) सांची की स्त्री मूर्तियों को कहते हैं
उत्तर:
(ब) वृक्षों की शाखा को पकड़े हुए स्त्री को कहते हैं

प्रश्न 4.
अजंता के चित्र में क्या नहीं दिखाया है?
(अ) राजदरबार का दृश्य
(ब) शोभा यात्राएँ
(स) त्यौहार मनाने के चित्र
(द) खेत की जुताई करते हुए कृषक
उत्तर:
(द) खेत की जुताई करते हुए कृषक

प्रश्न 5.
बोधिसत्वों की परम्परा किससे संबंधित थी?
(अ) महायान
(ब) हीनयान
(स) दिगम्बर
(द) श्वेताम्बर
उत्तर:
(अ) महायान

Bihar Board Class 12 History Solutions Chapter 4 विचारक, विश्वास और ईमारतें : सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 6.
वैष्णववाद में कितने अवतारों की कल्पना है?
(अ) 9
(ब) 10
(स) 11
(द) 12
उत्तर:
(ब) 10

प्रश्न 7.
गांधार कला का संबंध किससे था?
(अ) बौद्ध धर्म
(ब) जैन धर्म
(स) शैव धर्म
(द) वैष्णव धर्म
उत्तर:
(अ) बौद्ध धर्म

प्रश्न 8.
बौद्ध ग्रंथों में कितने सम्प्रदायों का उल्लेख है?
(अ) 61
(ब) 62
(स) 63
(द) 64
उत्तर:
(द) 64

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन त्रिपिटक का भाग नहीं है?
(अ) विनय पिटक
(ब) सुत्तपिटक
(स) अभिधम्म पिटक
(द) उत्तराध्ययन सूत्र
उत्तर:
(द) उत्तराध्ययन सूत्र

प्रश्न 10.
लोकायत परम्परा के कौन लोग थे?
(अ) अध्यात्मवादी
(ब) प्रकृतिवादी
(स) भौतिकवादी
(द) सत्यवादी
उत्तर:
(स) भौतिकवादी

प्रश्न 11.
अष्टांगिक मार्ग किसकी खोज थी?
(अ) बुद्ध
(ब) महावीर
(स) चैतन्य महाप्रभु
(द) गोस्वामी तुलसीदास
उत्तर:
(अ) बुद्ध

प्रश्न 12.
बौद्ध संघ में शामिल होने वाली पहली महिला कौन थी?
(अ) सावित्री फुल्ले
(ब) महाप्रजापति गौतमी
(स) कुसुमावती
(द) पुष्पलता
उत्तर:
(ब) महाप्रजापति गौतमी

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प्रश्न 13.
स्तूप किसकी याद में बनाये गये?
(अ) संतो की याद में
(ब) महापुरुषों की याद में
(स) राजाओं की याद में
(द) बुद्ध की याद में
उत्तर:
(द) बुद्ध की याद में

प्रश्न 14.
निम्नलिखित में कहाँ पर स्तूप नहीं है?
(अ) दिल्ली
(ब) भरहुत
(स) सांची
(द) सारनाथ
उत्तर:
(अ) दिल्ली

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प्रश्न 15.
सांची के स्तूप में सर्पो का अंकन क्यों किया गया?
(अ) यहाँ के वृक्ष सर्साकार थे
(ब) यहाँ सर्प अधिक मिलते है
(स) यहाँ सर्प पूजा का केन्द्र था
(द) यह शैव धर्म का केन्द्र था
उत्तर:
(स) यहाँ सर्प पूजा का केन्द्र था

Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 18 हौसले की उड़ान

Bihar Board Class 8 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 3 Chapter 18 हौसले की उड़ान Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 18 हौसले की उड़ान

Bihar Board Class 8 Hindi हौसले की उड़ान Text Book Questions and Answers

गतिविधि

प्रश्न 1.
आप अपने पास-पड़ोस में किसी ऐसी लड़की या औरत के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए जो रूढ़ियों के विरुद्ध आवाज बुलंद की हो।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 18 हौसले की उड़ान

प्रश्न 2.
वैसी महिलाओं की सूची बनाइए जिन्होंने अपने कार्यों से समाज में – एक अलग मुकाम प्राप्त किया है।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हौसले की उड़ान Summary in Hindi

सारांश – खुबसूरत और न्यायप्रिय व्यवस्था निर्माण में शिक्षा और संघर्ष में अहम् भूमिका निभाती है और यह भूमिका यदि बेटियाँ निर्वहण करें तो समाज या देश में अवश्य बदलाव आते हैं। ऐसे ही समाज में बदलाव लाने वाली कुछ बेटियाँ बिहार में हुई हैं जो अपने-अपने ढंग से बिहार को आगे बढ़ाने का काम किया है।

गुड़िया – गुड़िया नोरव प्रखण्ड रोहतास जिला की रहने वाली है। मोअसीन इदरीसी की बेटी मुस्लिम सम्प्रदाय की बंदिशों की चिंता नहीं कर, माता-पिता को ही घर में बंद कर उत्प्रेरण केन्द्र नोखा पहुंची। बाद में उत्प्रेरण केन्द्र के बंद होने पर गाँव के ही स्कूल में अपना नामांकन करवा ली। वह पढ़-लिखकर अध्यापिका बनना चाहती है जिससे वह पढ़ने की ललक रखनेवाली छात्राओं को पढ़ा सके।

Bihar Board Class 8 Hindi Solutions Chapter 18 हौसले की उड़ान

सोनी – कैमूर जिला, चेनारी प्रखंड के मथही गाँव के विष्णुशंकर तिवारी की पुत्री सोनी कैमूर जिला, एथलेटिक्स प्रतियोगिता 400 मीटर एवं 1600 मीटर की दौड़ में प्रथम स्थान पाई, बाद में राज्य स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता जमालपुर में जाकर राज्य स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त किया पुनः राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में चौथा स्थान प्राप्त किया। उसे विश्वास है कि देश स्तर पर वह प्रतिनिधित्व करेगी।

कदम – मुंगेर जिला, बख्तियारपुर प्रखंड के गणेशपुर मुशहरी की रहनेवाली “कदम” नरेगा में बच्चों से काम लेने वाले ठेकेदारों के खिलाफ मोर्चा लेकर बच्चों से काम लेना बंद करवाई। कदम पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहती है।

जैनब खानम – मथुरापुर, कहतरवा पंचायत, जिला-शिवहर निवासी 94 वर्षीय मो० अब्दुल रहेमान की पोती जैनब खानम की पढ़ाई तीसरे वर्ग के बाद छुड़ा दी गई । क्योंकि मुस्लिर सम्प्रदाय में पर्दा-प्रथा जो है । जैनब पढ़ने की बात जब भी अपने माता-पिता से करती थी तो उसके पिता मो० मंसर खान एवं माता फूल बीबी पिटती भी थी। मार खाने के बाद भी वह स्कूल जाती रही। आज वह बी० ए० की छात्रा है तथा लड़कियों के आत्मरक्षार्थ कराटे का प्रशिक्षण दे रही है।

इस प्रकार बिहार में अनेक बेटियाँ हुई हैं जो अपनी दृढ़ इच्छा से बिहार – ही नहीं देश की गौरव को बढ़ाई है।

Bihar Board 12th Hindi Grammar Objective Answers अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

Bihar Board 12th Hindi Objective Questions and Answers

Bihar Board 12th Hindi Grammar Objective Answers अनेक शब्दों के लिए एक शब्द

प्रश्न 1.
जो प्रकाशयुक्त हो-
(A) सूर्य
(B) भास्वर
(C) चन्द्र
(D) तारे
उत्तर:
(B) भास्वर

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प्रश्न 2.
जिसकी राह गलत हो
(A) सुराह
(B) नराह
(C) गुमराह
(D) वाराह
उत्तर:
(C) गुमराह

प्रश्न 3.
जिसकी परीक्षा ली जा चुकी हो
(A) छ:माही परीक्षा
(B) जाँच परीक्षा
(C) फाइनल परीक्षा
(D) परीक्षित
उत्तर:
(D) परीक्षित

प्रश्न 4.
जिसे जीवन से विराग हो गया हो
(A) वीतरागी
(B) सुरागी
(C) सुरागिणी
(D) बीता हुआ राग
उत्तर:
(A) वीतरागी

प्रश्न 5.
जिसकी आशय महान् हो
(A) सुआशय
(B) महाशय
(C) दुर्भाशय
(D) अर्थ
उत्तर:
(B) महाशय

प्रश्न 6.
जिस नारी की बोली कठोर हो
(A) कलजुगहीनार
(B) दुष्टा
(C) कर्कशा
(D) भ्रष्टाचारिणी
उत्तर:
(C) कर्कशा

प्रश्न 7.
जहाँ किताबें छपती हो
(A) पाठशाला
(B) निर्माणशाला
(C) टंकणालय
(D) छापाखाना
उत्तर:
(D) छापाखाना

प्रश्न 8.
किसी काम में दखल देना
(A) हस्तक्षेप
(B) दखलकाम
(C) कामदखल
(D) कर्मशील
उत्तर:
(A) हस्तक्षेप

प्रश्न 9.
पुत्री का पुत्र
(A) पोता
(B) नाती
(C) बेटा
(D) बेटी
उत्तर:
(B) नाती

प्रश्न 10.
कलम की कमाई खानेवाला
(A) कलमी
(B) पढ़ा-लिखा
(C) मसिजीवी
(D) अनपढ़
उत्तर:
(C) मसिजीवी

प्रश्न 11.
जल में रहनेवाली सेना
(A) हवाई सेना
(B) भू सेना
(C) वीर सेना
(D) नौ सेना
उत्तर:
(D) नौ सेना

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प्रश्न 12.
पृथ्वी को धारण करने वाला
(A) महीधर
(B) पार्थिव
(C) आकाशपिंड
(D) भूकम्प
उत्तर:
(A) महीधर

प्रश्न 13.
मृग जैसे नेत्रों वाली को क्या कहते हैं ?
(A) मृगनयनी
(B) मृगनयन
(C) नयनाभिराम नयन
(D) कमलनयन
उत्तर:
(A) मृगनयनी

प्रश्न 14.
सीमित व्यय करने वाले को क्या कहते हैं?
(A) व्ययशील
(B) मितव्ययी
(C) अनव्ययी
(D) कम व्ययी
उत्तर:
(B) मितव्ययी

प्रश्न 15.
गुण-दोष विवेचक
(A) खोटी
(B) विवेचक
(C) आलोचक
(D) खोटा
उत्तर:
(C) आलोचक

प्रश्न 16.
जो कुछ भी नहीं जानता हो
(A) बुद्धिहीन
(B) अक्लहीन
(C) मूर्ख
(D) अज्ञ
उत्तर:
(D) अज्ञ

प्रश्न 17.
जो बहुत कम जानता हो
(A) अल्पज्ञ
(B) बहुज्ञ
(C) सर्वज्ञ
(D) विज्ञ
उत्तर:
(A) अल्पज्ञ

प्रश्न 18.
जिसकी आशा न की गई हो
(A) आशातीत
(B) अप्रत्याशित
(C) आशावान
(D) जोहना
उत्तर:
(B) अप्रत्याशित

प्रश्न 19.
जो पढ़ा हुआ न हो
(A) अपठितव्य
(B) पठितव्य
(C) अपठित
(D) अपठनीय
उत्तर:
(C) अपठित

प्रश्न 20.
जिसे वाणी द्वारा व्यक्त न किया जा सके
(A) असभ्य वाणी
(B) मृदुवाणी
(C) गाली
(D) अनिर्वचनीय
उत्तर:
(D) अनिर्वचनीय

प्रश्न 21.
तीव्र बुद्धि वाला
(A) कुशाग्र
(B) बुद्धिमान
(C) समझदार
(D) आज्ञाकारी
उत्तर:
(A) कुशाग्र

प्रश्न 22.
जिस कन्या का विवाह होने वाला हो
(A) सौभाग्यवती
(B) आयुष्मती
(C) सुहागी
(D) लल्मीनिया
उत्तर:
(B) आयुष्मती

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प्रश्न 23.
जिस कन्या का विवाह हो गया हो
(A) आयुष्मती
(B) लक्ष्मीनिया
(C) सौभाग्यवती
(D) कुमारी
उत्तर:
(C) सौभाग्यवती

प्रश्न 24.
संध्या और रात्रि की बीच की बेला
(A) संध्या
(B) शाम
(C) अपराह्न
(D) गोधूलि
उत्तर:
(D) गोधूलि

प्रश्न 25.
जिसके दर्शन प्रिय माने जाएँ
(A) प्रियदर्शन
(B) दर्पण
(C) दर्शन
(D) प्रिय
उत्तर:
(A) प्रियदर्शन

प्रश्न 26.
जिसे अपने स्थान से हटा दिया गया हो
(A) स्थानापन्न
(B) निलंबित
(C) स्थानान्तरित
(D) विस्थापित
उत्तर:
(C) स्थानान्तरित

प्रश्न 27.
हरा-भरा मैदान
(A) शाद्वल
(B) बेत
(C) चरागाह
(D) उपवन
उत्तर:
(D) उपवन

प्रश्न 28.
उचित मूल्य से कम आँकना
(A) अवमूर्तन
(B) अधिमूल्यन
(C) मूल्यांकन
(D) अवमूल्यन
उत्तर:
(D) अवमूल्यन

प्रश्न 29.
आक्रमण के समय रक्षा करनेवाला
(A) संरक्षक
(B) प्रतिरक्षक
(C) आरक्षक
(D) अभिरक्षक
उत्तर:
(C) आरक्षक

प्रश्न 30.
जिसने दूसरे से लिया ऋण चुका दिया हो
(A) विवर्ण
(B) उद्धण
(C) उत्तमर्ण –
(D) उऋण
उत्तर:
(D) उऋण

प्रश्न 31.
मस्तिष्क संबंधी बेचैनी
(A) पीड़ा
(B) रोग
(C) व्याधि
(D) आधि
उत्तर:
(A) पीड़ा

प्रश्न 32.
प्रिय बोलने वाली स्त्री
(A) मृदुभाषी
(B) प्रियंवदा
(C) मितभाषी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) प्रियंवदा

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प्रश्न 33.
जो व्यक्ति पहले किसी पद पर रहा हो
(A) पदावनत
(B) भूतपूर्व
(C) पूर्व
(D) प्रत्याशित
उत्तर:
(B) भूतपूर्व

प्रश्न 34.
जो जीवन को आघात पहुँचाने वाला हो
(A) साहसिक
(B) सांप्रतिक
(C) संहारक
(D) सांघातिक
उत्तर:
(D) सांघातिक

प्रश्न 35.
जो विधि या कानून के विरुद्ध हो
(A) अनैतिक
(B) अवांछनीय
(C) गैरकानूनी
(D) वैध
उत्तर:
(C) गैरकानूनी

प्रश्न 36.
सूर्योदय से पूर्व का समय
(A) ऊषाकाल
(B) प्रभात
(C) गोधूलि
(D) अवैध
उत्तर:
(A) ऊषाकाल

प्रश्न 37.
निश्चित समयावधि में होनेवाला आदेश
(A) अधिवेश
(B) जनादेश
(C) अधो आदेश
(D) अध्यादेश
उत्तर:
(D) अध्यादेश

प्रश्न 38.
सायंकालीन बेला जंब पशु चरकर लौटते हैं
(A) सायंकाल
(B) सूर्यास्त
(C) गोधूलि
(D) अपराह्न
उत्तर:
(C) गोधूलि

प्रश्न 39.
देखभाल या निरीक्षण करने वाला
(A) निरीक्षक
(B) अन्वेषक
(C) परीक्षक
(D) पर्यवेक्षक
उत्तर:
(D) पर्यवेक्षक

प्रश्न 40.
दूसरे के बच्चे या पालन-पोषण करने वाली स्त्री
(A) दाई
(B) अन्योन्य
(C) धाय
(D) भामिनी
उत्तर:
(C) धाय

प्रश्न 41.
जिसकी काया बहुत बड़ी हो
(A) भीमकाय
(B) वृहद्काय
(C) निश्चयकाय
(D) दीर्घकाय
उत्तर:
(D) दीर्घकाय

प्रश्न 42.
राजाओं का राजा
(A) सम्राट
(B) चक्रवर्ती
(C) महाराज
(D) नृप
उत्तर:
(C) महाराज

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प्रश्न 43.
रक्त से रंगा हुआ
(A) रक्तिम
(B) रक्ताक्त
(C) रक्ताम
(D) रक्तरंजित
उत्तर:
(D) रक्तरंजित

प्रश्न 44.
ऐसी उक्ति जो परम्परागत हो
(A) जनश्रुति
(B) अनुश्रुति
(C) प्रवाद
(D) लोककथा
उत्तर:
(A) जनश्रुति

प्रश्न 45.
जिसका मम किसी दूसरी ओर हो
(A) चंचल
(B) दुविधामय
(C) किंकर्तव्यविमूढ़
(D) अन्यमनस्क
उत्तर:
(D) अन्यमनस्क

प्रश्न 46.
सबको समान रूप से देखनेवाला
(A) समदर्शी
(B) समधर्मी
(C) समरूप
(D) समान्त
उत्तर:
(A) समदर्शी

प्रश्न 47.
जो कोई वस्तु वहन करता है
(A) वाहन
(B) वाहक
(C) ग्राहक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) वाहक

प्रश्न 48.
पत्र या प्रश्नादि के उत्तर की अपेक्षा करनेवाला
(A) उत्तराधिकारी
(B) उत्तरापेक्षी
(C) उत्तरायणी
(D) उत्तरीय
उत्तर:
(B) उत्तरापेक्षी

प्रश्न 49.
जिसमें भला-बुरा समझने की शक्ति न हो-
(A) विज्ञानी
(B) अविवेक
(C) दुर्बुद्धि
(D) अज्ञानी
उत्तर:
(D) अज्ञानी

प्रश्न 50.
जिसने इन्द्रियों को जीत लिया हो
(A) गीतीत
(B) शत्रुघ्न
(C) जितेन्द्रिय
(D) अजातशत्रु
उत्तर:
(C) जितेन्द्रिय

प्रश्न 51.
जो युद्ध में स्थिर रहता है
(A) बहादुर
(B) योद्धा
(C) युधिष्ठिर
(D) अविचल
उत्तर:
(C) युधिष्ठिर

प्रश्न 52.
जो दूसरों का भला चाहने वाला है
(A) परार्थी
(B) परोपकारी
(C) सहृदय
(D) दयालु
उत्तर:
(C) सहृदय

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प्रश्न 53.
जिसका खण्डन न किया जा सके
(A) अटूट
(B) अखंड
(C) अोडित
(D) अखंडनीय
उत्तर:
(D) अखंडनीय

प्रश्न 54.
जो स्त्री अभिनय करती हो
(A) नर्तकी
(B) नटी
(C) नायिका
(D) अभिनेत्री
उत्तर:
(D) अभिनेत्री

प्रश्न 55.
जिससे सबकुछ कहा जा सके
(A) अन्तरंग
(B) सहदय
(C) घनिष्ठ
(D) अभिन्न
उत्तर:
(A) अन्तरंग

प्रश्न 56.
जो दूसरे के बलबूते पर हो
(A) अपरबल
(B) स्वावलम्बी
(C) परावलम्बी
(D) परोपजीवी
उत्तर:
(C) परावलम्बी

प्रश्न 57.
स्वामीरहित जानवर
(A) लाचार
(B) निरीह
(C) अन्ना
(D) लावारिस
उत्तर:
(D) लावारिस

प्रश्न 58.
जिसके बारे में प्रयास करने पर भी न जाना जा सके
(A) अज्ञेय
(B) अज्ञात
(C) अज्ञानी
(D) अनभिज्ञ
उत्तर:
(D) अनभिज्ञ

प्रश्न 59.
दूसरे के प्रतिनिधि के रूप में क्रय-विक्रय आदि करने का अधिकार
(A) अवकरण
(B) उपकरण
(C) अभिकरण
(D) अधिकरण
उत्तर:
(C) अभिकरण

प्रश्न 60.
आग से झुलसा हुआ
(A) ध्वस्त
(B) प्रक्षालित
(C) अनलदग्ध
(D) भग्नावशेष
उत्तर:
(C) अनलदग्ध

प्रश्न 61.
जो सुख-दुख में एक-सा रहे
(A) त्यागी
(B) साधु
(C) ठोरागी
(D) वीतरागी
उत्तर:
(D) वीतरागी

प्रश्न 62.
जिसका रोग का इलाज न हो सके
(A) असाध्य
(B) अशोच्य
(C) क्लिष्ट
(D) दुस्साध्य
उत्तर:
(A) असाध्य

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प्रश्न 63.
जो सहने की शक्ति रखता हो
(A) सधवा
(B) सर्वज्ञ
(C) नश्वर
(D) सहिष्णु
उत्तर:
(D) सहिष्णु

प्रश्न 64.
वह वस्तु जो नाशवान हो.
(A) अमर
(B) अलौकिक
(C) नश्वर
(D) शाश्वत
उत्तर:
(C) नश्वर

प्रश्न 65.
किसी संघ या संस्था के किसी सभा का प्रधान
(A) सभापति
(B) प्रधान
(C) अध्यक्ष
(D) संयोजक
उत्तर:
(A) सभापति

प्रश्न 66.
किसी वस्तु को पढ़ने के बाद उसके बारे में मनन-चिन्तन करना
(A) अध्यवसाय
(B) अध्ययन
(C) स्मरण
(D) अनुशीलन
उत्तर:
(D) अनुशीलन

प्रश्न 67.
जो घटनाएँ एक समान समय घटित हो जाती है
(A) समकालीन
(B) समदर्शी
(C) संक्रामक
(D) समयानुकूल
उत्तर:
(A) समकालीन

प्रश्न 68.
जो समय के अनुकूल चलता आया है
(A) आंशिक
(B) समसामयिक
(C) समकालीन
(D) समयानुकूल
उत्तर:
(D) समयानुकूल

प्रश्न 70.
वह जो कष्ट से छुटकारा दिलाता है
(A) त्राता
(B) उद्धारक
(C) कष्टहर
(D) मुक्तिदाता
उत्तर:
(A) त्राता

प्रश्न 71.
चारों ओर से घेरने वाला
(A) परिधि
(B) परिभव
(C) परिभूत
(D) परिभू
उत्तर:
(A) परिधि

प्रश्न 72.
जानने की इच्छा रखने वाले को कहते हैं
(A) जिज्ञासा
(B) जिज्ञासु
(C) जिजीविषा
(D) जानकार
उत्तर:
(B) जिज्ञासु

प्रश्न 73.
जो मापने में समर्थ हो
(A) प्रतिमान
(B) मानदेय
(C) मापदंड
(D) मानक
उत्तर:
(C) मापदंड

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प्रश्न 74.
शिव का उपासक कहलाता है
(A) शिवम्
(B) शैव
(C) शिवत्व
(D) शंकर
उत्तर:
(B) शैव

प्रश्न 75.
वन में चरने वाला
(A) जीव
(B) जानवर
(C) वनचर
(D) वनानी
उत्तर:
(C) वनचर

प्रश्न 76.
स्वीकार करने योग्य
(A) वरण
(B) वरेण्य
(C) स्वीकृति
(D) स्वीकार
उत्तर:
(B) वरेण्य

प्रश्न 77.
जिस पुरुष की स्त्री मर गई हो
(A) स्त्री विहीन
(B) पत्नीहीन
(C) विधुर
(D) नारी विहीन
उत्तर:
(C) विधुर