Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

Bihar Board Class 11 Physics कणों के निकाय तथा घूर्णी गति Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 7.1
एक समान द्रव्यमान घनत्व के निम्नलिखित पिंडों में प्रत्येक के द्रव्यमान केंद्र की अवस्थिति लिखिए:
(a) गोला
(b) सिलिंडर
(c) छल्ला तथा
(d) घन। क्या किसी पिंड का द्रव्यमान केंद्र आवश्यक रूप से उस पिंड के भीतर स्थित होता है?
उत्तर:
(a) गोला
(b) सिलिंडर
(c) छल्ला व
(d) घन, चारों का द्रव्यमान केन्द्र उनका ज्यामितीय केन्द्र होता है। नहीं, जहाँ कोई पदार्थ नहीं है। जैसे वलय, खोखले सिलिंडर व खोखले गोले में द्रव्यमान केन्द्र पिंड के बाहर भी हो सकता है।

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प्रश्न 7.2
HCL अणु में दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच पृथकन लगभग 1.27 Å (1Å = 10-10 m) है। इस अणु के द्रव्यमान केंद्र की लगभग अवस्थिति ज्ञात कीजिए।यह ज्ञात है कि क्लोरीन का परमाणु हाइड्रोजन के परमाणु की तुलना में 35.5 गुना भारी होता है तथा किसी परमाणु का समस्त द्रव्यमान उसके नाभिक पर केंद्रित होता है।
उत्तर:
माना द्रव्यमान केन्द्र H परमाणु से x दूरी पर है। माना हाइड्रोजन परमाणु का द्रव्यमान, m1 = m
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तथा क्लोरीन परमाणु का द्रव्यमान m2 = 35.5 m
माना द्रव्यमान केन्द्र (मूलबिन्दु) के सापेक्ष H व Cl \(\vec{r}_{1}\) व \(\vec{r}_{2}\) दूरी पर है।
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या m1\(\vec{r}_{1}\) + m2\(\vec{r}_{2}\) = 0 यहाँ
\(\vec{r}_{1}\) = – x\(\hat { i } \) व \(\vec{r}_{2}\) = (1.27 – x)\(\hat { i } \)
∴ m(-x\(\hat { i } \)) + 35.5m (1.27 – x) \(\hat { i } \) = 0
∴ m(-x\(\hat { i } \)) + 35.5m (1.27 – x)\(\hat { i } \) = 0
∴ x = \(\frac{35.5×1.27}{36.5}\)
= 1.235 = 1.2 Å
अर्थात् द्रव्यमान केन्द्र H – परमाणु से 1.24 Å की दूरी पर Cl परमाणु की ओर है।

प्रश्न 7.3
कोई बच्चा किसी चिकने क्षैतिज फर्श पर एकसमान चाल v से गतिमान किसी लंबी ट्राली के एक सिरे पर बैठा है। यदि बच्चा खड़ा होकर ट्राली पर किसी भी प्रकार से दौड़ने लगता है, तब निकाय (ट्राली + बच्चा) के द्रव्यमान केंद्र की चाल क्या है?
उत्तर:
प्रश्नानुसार, ट्राली एक चिकने क्षैतिज फर्श पर गति कर रही है। इसलिए फर्श के चिकना होने के कारण निकाय पर क्षैतिज दिशा में कोई बाह्य बल नहीं लगता है। परन्तु जब बच्चा दौड़ता है तब बच्चे द्वारा ट्राली पर व ट्राली द्वारा बच्चे पर लगाए गए दोनों ही बल आन्तरिक बल होते हैं।
∴ \(\vec{F}\)ext = 0
संवेग संरक्षण के नियमानुसार M\(\vec{V}\)cm = नियतांक
∴ \(\vec{V}\)cm = नियतांक
अतः द्रव्यमान केन्द्र की स्थित चाल होगी।

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प्रश्न 7.4
दर्शाइये कि a एवं b के बीच बने त्रिभुज का क्षेत्रफल a × b के परिमाण का आधा है।
उत्तर:
माना ∆AOB की संलग्न भुजाओं के सदिश \(\vec{a}\) व \(\vec{b}\)
∴ \(\vec{O}\)A – \(\vec{b}\), \(\vec{O}\)B + \(\vec{a}\) या OA = b, OB = a
माना \(\bar{a}\) तथा \(\bar{b}\) के बीच कोण θ है।

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तथा माना त्रिभुज की ऊँचाई h है।
∴ h = AC
समकोण ∆OCA में,
sin θ = \(\frac{AC}{OA}\)
या AC = OA sin θ
या h = b sin θ …………… (i)
हम जानते हैं कि त्रिभुज AOB का क्षेत्रफल
= \(\frac{1}{2}\) × आधार × ऊँचाई
= \(\frac{1}{2}\) × OB × AC = \(\frac{1}{2}\) × a × h
= \(\frac{1}{2}\) × a × b sin θ
= \(\frac{1}{2}\) ab sin θ ………………. (ii)
पुनः सदिश गुणन के नियम से
\(\vec{a}\) × \(\vec{b}\) = ab sin θ \(\hat { n } \)
या |\(\vec{a}\) × \(\vec{b}\)| = |ab sin θ \(\hat { n } \)]
= ab sin θ [∵|\(\hat { n } \)| = 1] …………….. (iii)
∆AOB का क्षेत्रफल
= \(\frac{1}{2}\) |\(\vec{a}\) × \(\vec{b}\)|
= \(\frac{1}{2}\) \(\vec{a}\) × \(\vec{b}\) का परिमाण।

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प्रश्न 7.5
दर्शाइये कि a (bx c) का परिमाण तीन सदिशों a, b एवं c से बने समान्तर षट्फलक के आयतन के बराबर है।
उत्तर:
माना OABCDEFG एक समान्तर षट्फलक है जिसकी भुजाएँ क्रमश: OA, OC व OE हैं।
माना कि \(\vec{O}\)A = \(\vec{b}\), \(\vec{O}\)C = व \(\vec{O}\)E = \(\vec{a}\)
यहाँ \(\bar{a}\) व समान्तर चतुर्भुज OABC की संलग्न भुजाएँ हैं।
∴ \(\vec{S}\) = \(\vec{b}\) × \(\vec{c}\) = s\(\hat { n } \)
जहाँ \(\hat { n } \), \(\vec{S}\) के अनुदिश एकांक सदिश है जो कि भुजाओं \(\vec{b}\) व \(\vec{c}\) कोण तल के लम्बवत् है, व S तल OABC का क्षेत्रफल है। माना \(\vec{a}\), \(\vec{s}\) से θ कोण पर है।
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∴ \(\vec{a}\) (\(\vec{b}\) × \(\vec{c}\)) = \(\vec{a}\).\(\vec{s}\) = \(\vec{a}\).\(\hat { n } \)S
= a cos θ.S
= hS ……….. (i)
जहाँ h = a cos θ = \(\vec{a}\) के शीर्ष द्वारा समचतुर्भुज OABC पर डाला गया लम्ब EE’ \(\bar{a}\) की ऊँचाई।
पुनः माना V = समषट्फलक OABC = DEFG का आयतन है।
∴ V = तल OABC का क्षेत्रफल × OABC तल पर E से अभिलम्ब
= S × h
समी० (i) व (ii) से,
v = \(\vec{a}\).(\(\vec{b}\) × \(\vec{c}\)) इति सिद्धम्

प्रश्न 7.6
एक कण, जिसके स्थिति सदिश r के x, y, z अक्षों के अनुदिश अवयव क्रमशःx, y, हैं,और रेखीय संवेग सदिश P के अवयव px, Py, Pz हैं, के कोणीय संवेग 1 के अक्षों के अनुदिश अवयव ज्ञात कीजिए। दर्शाइये, कि यदि कण केवल x – y तल में ही गतिमान हो तो कोणीय संवेग का केवल z – अवयव ही होता है।
उत्तर:
माना OX, OY तथा OZ तीन परस्पर लम्बवत् अक्ष हैं। माना x – y तल में स्थिति सदिश \(\vec{O}\)P = \(\vec{r}\) एक बिन्दु P है।
माना रेखीय संवेग \(\vec{P}\) का \(\hat{r}\) से कोण θ है व कोणीय संवेग \(\vec{L}\)। है।
∴ \(\vec{L}\) = \(\hat{r}\) × \(\hat{p}\) …………….. (i)
यह एक संवेग राशि है जिसकी दिशा दाएँ हाथ के नियम से दी जा सकती है। चूँकि \(\hat{r}\) व \(\hat{p}\) तल OXY में हैं।
अतः
\(\vec{r}\) = x\(\hat{i}\) + y\(\hat{j}\) + z\(\hat{k}\)
तथा \(\vec{p}\) = px\(\hat{i}\) + py\(\hat{j}\) + pz\(\hat{k}\) ………….. (ii)
∴ समी० (i) व (ii) से,
\(\vec{L}\) = (x\(\hat{i}\) + y\(\hat{j}\) + z\(\hat{k}\)) × (px\(\hat{i}\) + py\(\hat{j}\) + pz\(\hat{k}\))
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तुलना करने पर,
Lx = yPz – zpy
Ly = zPx – xPz
Lz = xpy – ypx …….. (iii)
समी० (iii) से, x, y व z – अक्षों के अनुदिश \(\vec{z}\) के अभीष्ट घटक प्राप्त होते हैं।

(b) हम जानते हैं कि xy – तल में गतिमान कण पर लगने वाला बलाघूर्ण
iz = xFy – yFz ………….. (i)
जहाँ \(\hat{i}\)z = xy तल में गतिमान गण z अक्ष के अनुदिश लगने वाले बलाघूर्ण का घटक है।
माना xy – \(\vec{v}\) तल में वेग से गतिमान कण का द्रव्यमान = m
इस वेग के vx, व vy घटक क्रमश: x व y – दिशा में हैं। न्यूटन के गति के दूसरे समी० से,
Fx = \(\frac{d}{dt}\) (Px) = \(\frac{d}{dt}\) (mvx) = m\(\frac{d v_{x}}{d t}\)
तथा Fy = \(\frac{d}{dt}\)(Py) = m.\(\frac{d v_{y}}{d t}\) …………….. (ii)
∴ समी० (i) व (ii) से,
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∴ समी० (iii) व (iv) से,
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∴ समी० (v) व (vi) से,
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अतः समीकरण (vii) से यह निष्कर्ष निकलता है, कि xy – तल में गतिमान कण का कोणीय वेग (\(\vec{L}\)) का केवल एक घटक अर्थात् z – अक्ष के अनुदिश है।

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प्रश्न 7.7
दो कण जिनमें से प्रत्येक का द्रव्यमान m एवं चाल v है d दूरी पर, समान्तर रेखाओं के अनुदिश, विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं। दर्शाइये कि इस द्विकण निकाय का सदिश कोणीय संवेग समान रहता है, चाहे हम जिस बिन्दु के परितः कोणीय संवेग लें।
उत्तर:
माना दूरी पर दो समान्तर रेखाओं के अनुदिश गतिमान प्रत्येक कण का द्रव्यमान m है।
माना v प्रत्येक कण विपरीत दिशा में चाल है।
माना कि क्षण t व कण P1 व P2, बिन्दुओं O पर हैं। अब इन दोनों कणों द्वारा बनाए गए निकाय का किसी बिन्दु O के परितः कोणीय संवेग ज्ञात करते हैं। माना प्रत्येक कण का कोणीय संवेग \(\vec{L}\)1 व \(\vec{L}\)2 है।
∴ \(\vec{L}\)1 = \(\vec{r}\)1 × m\(\vec{v}\)
माना कि निकाय का कोणीय संवेग \(\vec{L}\) है।
∴ \(\vec{L}\) = \(\vec{L}\)1 – \(\vec{L}\)2
= \(\vec{r}\)1 × m\(\vec{v}\) – \(\vec{r}\)2 × m\(\vec{v}\)
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अथवा |\(\vec{L}\)| = |\(\vec{L}\)1| – |\(\vec{L}\)2||
= mvr1 sin θ1 – mvr2 sin θ2 ……………. (i)
जहाँ θ1 व θ2, क्रमश: \(\vec{r}\)1, \(\vec{v}\) व \(\vec{r}\)2(-\(\vec{v}\)) के बीच कोण हैं। (चित्र) चूँकि कण की स्थिति समय के सापेक्ष परिवर्तित होती है।
अतः \(\vec{v}\) की दिशा समान रेखा में होगी तथा OM = r1 sin θ1 – r2 sin θ2 = d ……………. (ii)
समी० (i) व (ii) से,
L = mvd
\(\vec{L}\) की दिशा भी \(\vec{r}\) व \(\vec{v}\) के तल के लम्बवत् होती है। जोकि कागज के तल में होगी। यह दिशा समय के साथ अपरिवर्तित रहती है। अर्थात् \(\vec{L}\) परिमाण व दिशा में समान रहता है। अतः यह संरक्षित रहता है।

प्रश्न 7.8
W भार की एक असमांग छड़ को, उपेक्षणीय भार वाली दो डोरियों से चित्र में दर्शाये अनुसार लटका कर विरामावस्था में रखा गया है। डोरियों द्वारा ऊर्ध्वाधर से बने कोण क्रमशः 36.9° एवं 53.1° हैं। छड़ 2 m लम्बाई की है। छड़ के बाएँ सिरे से इसके गुरुत्व केन्द्र की दूरी d ज्ञात कीजिए।
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उत्तर:
माना एक समान छड़ AB का भार W2 है। यह छड़ दो डोरियों OA व O’B से लटकायी गई है। ऊर्ध्वाधर से OA छड़ से 36.9° व O’B छड़ से 53.1° कोण पर है।
<OAA’ = 90° – 36.9°
= 53.1°
इसी प्रकार, <O’ BB’ = 36.9°
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AB – 2M, AC = d मीटर
माना डोरी OA व O’B में तनाव क्रमशः T1 व T2 है। यहाँ वियोजित घटक चित्रानुसार होंगे।
चूँकि छड़ विराम में है, अत: A’B’ अक्ष के अनुदिश व लम्बवत् लगने वाले बलों का सदिश योग शून्य है। अतः
– T1 cos 53.1° + T2 cos 36.9° = 0 ……………. (i)
तथा T1 sin 53.1° + T2 sin 36.9° – W = 0 ………………. (ii)
A के परित: बलाघूर्ण लेने पर व बलाघूर्णों के योग का शून्य रखने पर –
– (T2 sin 36.9°) × 2 + Wd = 0
या T2 = \(\frac{Wd}{2 sin 36.9°}\) …………… (iii)
∴ समी० (ii) व (iii) से,
T1 sin 53.1° = W – T2 36.9°
= W – \(\frac{Wd}{2}\)
∴ T1 = \(\frac{Wd}{sin 53.1°}\) (1 – \(\frac{d}{2}\)) …………….. (iv)
∴ समी० (i), (iii) व (iv) से,
T1 cos 53.1° = T2 cos36.9°
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या 0.5d + 0.8870d = 1
या d = \(\frac{1}{1.3870}\)d = 1
या d = \(\frac{1}{1.3870}\) = 0.721
m = 72.1 सेमी

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प्रश्न 7.9
एक कार का भाग 1800 kg है। इसकी अगली और पिछली धुरियों के बीच की दूरी 1.8 m है। इसका गुरुत्व केन्द्र, अगली धुरी से 1.05 m पीछे है। समतल धरती द्वारा इसके प्रत्येक अगले और पिछले पहियों पर लगने वाले बल की गणना कीजिए।
उत्तर:
माना आगे के पहिए का द्रव्यमान = m ग्राम
∴ (900 – m) kg = प्रत्येक पहिए का द्रव्यमान
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∴ m × 1.05 =(900 – m) × 0.75
या 1.8m = 900 × 0.75
या m = 375 kg
∴ 900 – m = 525 kg
आगे के प्रत्येक पहिये का भार,
W1 = mg = 375 × 9.8
= 3675 न्यूटन
पीछे के प्रत्येक पहिये का भार,
W2 = 525 × 9.8
= 5145 न्यूटन
पृथ्वी द्वारा पहिये पर आरोपित बल = पृथ्वी की प्रतिक्रिया
W2 = 3675 न्यूटन
इसी प्रकार, प्रत्येक पीछे के पहिये पर पृथ्वी द्वारा आरोपित बल = पृथ्वी की प्रतिक्रिया
W2 = 5145 न्यूटन

प्रश्न 7.10
(a) किसी गोले का, इसके किसी व्यास के परितः जड़त्व आघूर्ण 2MR2/5है, जहाँ M गोले का द्रव्यमान एवं R इसकी त्रिज्या है। गोले पर खींची गई स्पर्श रेखा के परितः इसका जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए। (b) M द्रव्यमान एवं R त्रिज्या वाली किसी डिस्क का इसके किसी व्यास के परितः जड़त्व आघूर्ण MR2/4 है। डिस्क के लम्बवत् इसकी कोर से गुजरने वाली अक्ष के परितः इस चकती का जड़त्व आघूर्ण ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
(a) माना व्यास AB के परित: R त्रिज्या के गोले का जड़त्व आघूर्ण IAB है। जबकि गोले का द्रव्यमान m है।
∴ IAB = \(\frac{2}{5}\) MR2
माना गोले के व्यास AB के समान्तर स्पर्शी CD है।
∴ समान्तर x – अक्षों की प्रमेय से,
स्पर्श रेखा के परितः गोले का जड़त्व आघूर्ण
ICD = IAB + MR2
= \(\frac{2}{5}\) MR2 + MR2
= \(\frac{7}{5}\) MR2
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(b) माना M द्रव्यमान तथा R त्रिज्या के गोले के दो कास AB व CD हैं। माना चकती के लम्बवत् इसके द्रव्यमान केन्द्र O से गुजरने वाली अक्ष EF है। चकती के लम्बवत् अक्ष DG है जोकि चकती की परिधि पर स्थित बिन्दु D से गुजरती है। अर्थात् DG, EF के समान्तर है। माना चकती का EF अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण IEF है।
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∴ लम्बवत् अक्षों की प्रमेय से,
IEE = IAB + ICD
= \(\frac{1}{2} M R^{2}\) + MR2 = \(\frac{3}{2} M R^{2}\)

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प्रश्न 7.11
समान द्रव्यमान और त्रिज्या के एक खोखले बेलन और एक ठोस गोले पर समान परिमाण के बल आघूर्ण लगाये गये हैं। बेलन अपनी सामान्य सममित अक्ष के परितः घूम सकता है और गोला अपने केन्द्र से गुजरने वाली किसी अक्ष के परितः एक दिये गये समय के बाद दोनों में कौन अधिक कोणीय चाल प्राप्त कर लेगा?
उत्तर:
माना खोखले बेलन व ठोस गोले के द्रव्यमान व त्रिज्या क्रमश: M व R हैं।
माना खोखले बेलन का सममित के परित: जड़त्व आघूर्ण L1 है तथा ठोस गोले का केन्द्र के परितः जड़त्व आघूर्ण I2 है।
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माना प्रत्येक पर लगाया गया बलाघूर्ण \(\hat { i } \) है। माना α1 व α2, क्रमश: बेलन व गोले पर कोणीय त्वरण हैं।
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माना ω1, व ω2 किसी क्षण t पर बेलन व गोले की कोणीय चाल है।
∴ ω1 = ω0 + α1t ………….. (iv)
व ω2 = ω0 + α2t
= ω0 + 2.5 α1t
समी० (iv) व (v) से
ω2 > ω1 अर्थात् गोले की कोणीय चाल बेलन से अधिक होगी।

प्रश्न 7.12
20 kg द्रव्यमान का कोई ठोस सिलिंडर अपने अक्ष के परितः 100 rad s-1 की कोणीय चाल से घूर्णन कर रहा है। सिलिंडर की त्रिज्या 0.25 m है। सिलिंडर के घूर्णन से संबद्ध गतिज ऊर्जा क्या है? सिलिंडर का अपने अक्ष के परितः कोणीय संवेग का परिमाण क्या है?
उत्तर:
दिया है:
m = 20 किग्रा
R = 0.25 मीटर
ω = 100 रेडियन प्रति सेकण्ड
माना बेलन की अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण I है
तब I = \(\frac{1}{2} M R^{2}\)
= \(\frac{1}{2}\) × 20 × (0.25)2
= 0.625 किग्रा-मीटर2
∴ घूर्णन करते बेलन की गतिज ऊर्जा
K.E. = \(\frac{1}{2}\) Iω2
= \(\frac{1}{2}\) × 0.625 × (100)2
= \(\frac{1}{2}\) × 0.625 × \(\frac{10^{4}}{10^{3}}\) =3125 JKE
हम जानते हैं कि,
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= 62.5 JS

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प्रश्न 7.13
(a) कोई बच्चा किसी घूर्णिका (घूर्णीमंच) पर अपनी दोनों भुजाओं को बाहर की ओर फैलाकर खड़ा है। घूर्णिका को 40 rev/min की कोणीय चाल से घूर्णन कराया जाता है। यदि बच्चा अपने हाथों को वापस सिकोड़ कर अपना जड़त्व आघूर्ण अपने प्रारंभिक जड़त्व आघूर्ण का 2/5 गुना कर लेता है, तो इस स्थिति में उसकी कोणीय चाल क्या होगी? यह मानिए कि घूर्णिका की घूर्णन गति घर्षणरहित है।
(b) यह दर्शाइए कि बच्चे की घूर्णन की नयी गतिज ऊर्जा उसकी आरंभिक घूर्णन की गतिज ऊर्जा से अधिक है। आप गतिज ऊर्जा में हुई इस वृद्धि की व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
(a) माना बच्चे का प्रारम्भिक व अन्तिम जड़त्व आघूर्ण क्रमशः I1 व I2 है।
अतः
∴ I2 = \(\frac{2}{5}\) I1 दिया है।
v1 = 40 rev/min = \(\frac{40}{60}\) rev/min
v2 = ?
∴ ω1 = 2πv1
= \(\frac{2π×40}{60}\) rads-1
= \(\frac{4}{5}\) π रेडियन प्रति सेकण्ड
माना बच्चे को बाहर की ओर हाथ फैलाकर व सिकोड़कर घूर्णीय चाल क्रमश: ω1, व ω2 है।
रेखीय संवेग संरक्षण के नियम से,
I1ω1 = I2ω2
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∴ घूर्णन आवृत्ति v2
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= 100 चक्र प्रति मिनट
∴ v2 = 100 चक्र प्रति मिनट

(b) घूर्णन की प्रा० गतिज ऊर्जा
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स्पष्ट है कि हाथ सिकोड़कर बच्चे की घूर्णन गतिज ऊर्जा, घूर्णन की प्रा० गतिज ऊर्जा से \(\frac{5}{2}\) गुना अधिक है। अन्तिम स्थिति में गतिज ऊर्जा में वृद्धि, बच्चे की आन्तरिक ऊर्जा के कारण होती है।

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प्रश्न 7.14
3 kg द्रव्यमान तथा 40 cm त्रिज्या के किसी खोखले सिलिंडर पर कोई नगण्य द्रव्यमान की रस्सी लपेटी गई है। यदि रस्सी को 30 Nबल से खींचा जाए तो सिलिंडर का कोणीय त्वरण क्या होगा? रस्सी का रैखिक त्वरण क्या है? यह मानिए कि इस प्रकरण में कोई फिसलन नहीं है।
उत्तर:
दिया है:
बेलन का द्रव्यमान,
M = 3 kg
बेलन की त्रिज्या R = 0.4 m
स्पर्शरेखीय बल F = 30 N
a = ?
α = ?
माना खोखले बेलन का अक्ष के परितः जड़त्व घूर्णन है।
अतः I = MR2
= 3(0.4)2
= 0.48 kg m2
माना बेलन पर आरोपित बलाघूर्णन t है।
अतः τ = FR = 30 × 0.4 = 12 Nm
∴ α = \(\frac{τ}{1}\) = \(\frac{12}{0.48}\) = 25 rad-2
α = Rα = 0.4 × 25

प्रश्न 7.15
किसी घूर्णक (रोटर) की 200 rads-1 की एकसमान कोणीय चाल बनाए रखने के लिए एक इंजन द्वारा 180 Nm का बल आघूर्ण प्रेषित करना आवश्यक होता है। इंजन के लिए आवश्यक शक्ति ज्ञात कीजिए। (नोट : घर्षण की अनुपस्थिति में एकसमान कोणीय वेग होने में यह समाविष्ट है कि बल का आघूर्ण शून्य है। व्यवहार में लगाए गए बल आघूर्ण की आवश्यकता घर्षणी बल आघूर्ण को निरस्त करने के लिए होती है।) यह मानिए कि इंजन की दक्षता 100% है।
उत्तर:
दिया है:
ω = 200 रेडियन प्रति सेकण्ड
τ = 180 न्यूटन मीटर
P = ?
सम्बन्ध P = τw से,
P = 180 × 200
= 36000 वॉट
= 36 किलो वॉट

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प्रश्न 7.16
R त्रिज्या वाली समांग डिस्क से R/2 त्रिज्या का एक वृत्ताकार भाग काट कर निकाल दिया गया है। इस प्रकार बने वृत्ताकार सुराख का केन्द्र मूल डिस्क के केन्द्र से R/2 दूरी पर है। अवशिष्ट डिस्क के गुरुत्व केन्द्र की स्थिति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रारम्भिक चकती की त्रिज्या = R
काटकर अलग की गई चकती की त्रिज्या = \(\frac{R}{2}\)
माना A व a चकतियों के क्षे० हैं।
अतः A = πR2
तथा a = π(\(\frac{R}{2}\))2 = \(\frac{\pi R^{2}}{4}\)
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यहाँ O प्रारम्भिक चकती का केन्द्र है।
तथा O1 अलग किए गए गोल भाग का केन्द्र है।
व O2 बचे हुए भाग का केन्द्र है।
p = डिस्क का प्रति एकांक क्षेत्रफल द्रव्यमान है।
माना m1 व m वास्तविक चकती व अलग किए गए चकती के द्रव्यमान है।
अतः m1 = ρA = πR2ρ
तथा m = ρa = \(\frac{\pi R^{2}}{4}\)ρ
माना शेष बचे भाग का द्रव्यमान m है।
अतः m2 = m1 – m
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माना मूल बिन्दु O है।
माना Rcm बचे भाग का द्रव्यमान केन्द्र है।
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ऋणात्मक चिह्न यह व्यक्त करता है कि बचे भाग का द्रव्यमान केन्द्र O से बाईं ओर है जोकि कटे भाग के केन्द्र के विपरीत ओर है।

प्रश्न 7.17
एक मीटर छड़ के केन्द्र के नीचे क्षुर – धार रखने पर वह इस पर संतुलित हो जाती है जब दो सिक्के, जिनमें प्रत्येक का द्रव्यमान 5g है, 12.0 cm के चिह्न पर एक के ऊपर एक रखे जाते हैं तो छड़ 45.0 cm चिह्न पर संतुलित हो जाती है। मीटर छड़ का द्रव्यमान क्या है?
उत्तर:
माना m ग्राम = द्रव्यमान/छड़ की ल० सेमी
माना m मीटर का कुल द्रव्यमान व m = 100 ग्राम है।
जब मीटर केन्द्र पर सन्तुलित होता है, तब प्रत्येक भाग का द्रव्यमान = 50 मी/ग्राम
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माना 12 सेमी चिह्न पर रखे दो सिक्कों का द्रव्यमान m2 है।
m2 = 5 × 2 = 10 ग्राम
द्रव्यमान केन्द्र = 45 सेमी के चिह्न पर (बिन्दु A)
चूँकि छड़ी सन्तुलन में है। अतः बिन्दु A के परित: अलग-अलग द्रव्यमानों का आघूर्ण समान है।
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या (3025 – 1089 – 936)
m = 330 × 2 = 660
या 1000m = 660
या m = 0.66 ग्राम
M = 100m = 100 × 0.66 = 66 ग्राम

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प्रश्न 7.18
एक ठोस गोला, भिन्न नति के दो आनत तलों पर एक ही ऊँचाई से लुढ़कने दिया जाता है।
(a) क्या वह दोनों बार समान चाल से तली में पहुँचेगा?
(b) क्या उसको एक तल पर लुढ़कने में दूसरे से अधिक समय लगेगा?
(c) यदि हाँ, तो किस पर और क्यों?
उत्तर:
माना तल – 1 पर निम्न बिन्दु से शिखर तक चली दूरी व झुकाव क्रमशः l2 व θ1 है।
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तथा तल – 2 पर निम्न बिन्दु से शिखर तक चली दूरी व झुकाव क्रमश: l2 व θ2 है।
स्पष्ट है कि θ1 > θ2
∴ sin θ1 > sin θ2
या \(\frac{\sin \theta_{1}}{\sin \theta_{2}}>1\) > 1 …………….. (i)
प्रत्येक झुके तल की ऊँचाई,
λ = 14 l1 sinθ 1 = l2 sin θ2 (a) है।
तल के शिखर पर, गोले में केवल स्थितिज ऊर्जा होगी। i.e., PE = mgh
जहाँ m = गोले का द्रव्यमान है।
जब गोला शिखर से निम्न बिन्दु तक लुढ़कता है, तो स्थितिज ऊर्जा, रैखिक गतिज ऊर्जा (\(\frac{1}{2}\) Iω2) में परिवर्तित हो जाती है। जहाँ I गोले का जड़त्वाघूर्ण है। माना तल के निम्न बिन्दु पर रेखीय वेग v व कोणीय चाल के ω है।
माना v1 व v2 क्रमशः दोनों तलों (1 व 2) पर निम्न बिन्दु पर रेखीय वेग है।
अत:
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जहाँ K घूर्णन त्रिज्या है।
समी० (ii) व (iii) से स्पष्ट है कि प्रत्येक स्थिति में गोला निम्न बिन्दु पर समान वेग से लौटता है।

(b) हाँ, यह तल – 1 पर तल – 2 से अधिक समय लेगा। यह समय कम झुकाव वाले तल के लिए अधिक होगा।
व्याख्या: माना तल – 1 व तल – 2 पर फिसलने में लिया गया समय क्रमशः t1 व t2 है।
ठोस गोले के लिए,
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हम जानते हैं कि, झुके तल पर वस्तु का त्वरण निम्न है –
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जहाँ θ = झुकाव
माना झुके तल – 1 व 2 पर गोले के त्वरण क्रमशः a1 व a2 है।
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पुनः माना तल 1 व 2 पर फिसलने का समय क्रमश: t1 व t2 2 है। अतः
सूत्र S = ut + \(\frac{1}{2}\)at2 से,
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समी० (iv) को भाग देने पर
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समी० (vi) व (vii) से,
\(\frac{t_{1}}{t_{2}}\) < 1 t1 < t2
समय t, झुकाव कोण θ पर निर्भर करता है। अतः झुकाव कोण जितना कम होगा, गोला लुढ़कने में उतना ही अधिक समय लेगा।

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प्रश्न 7.19
2 m त्रिज्या के एक वलय (छल्ले) का भार 100 kg है। यह एक क्षैतिज फर्श पर इस प्रकार लोटनिक गति करता है कि इसके द्रव्यमान केन्द्र की चाल 20 cm/s हो। इसको रोकने के लिए कितना कार्य करना होगा?
उत्तर:
दिया है:
r = 2 मीटर
m = 100 किग्रा
द्रव्यमान केन्द्र का वेग,
y = 20 cms-1
= 0.20 मीटर/सेकण्ड
रोकने में व्यय कार्य = ?
माना वलय का कोणीय वेग ω है।
अतः ω = \(\frac{v}{r}\) = \(\frac{0.20}{2}\) = 0.10 सेकण्ड/से०
माना वलय का केन्द्र से गुजरती व तल के लम्बवत् अक्ष के परितः जड़त्वाघूर्णन I है।
1 = mr2
= 100 × (2)2
= 400 kgm2
वलय की सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा =वलय की घूर्णन गतिज ऊर्जा + वलय की रेखीय गतिज ऊर्जा
या
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= 2 + 2 + 4J
∴ कार्य ऊर्जा प्रमेय से,
रोकने में व्यय कार्य = वलय की सम्पूर्ण KE
= 4 जूल

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प्रश्न 7.20
ऑक्सीजन अणु का द्रव्यमान 5.30 × 10-26 kg है तथा इसके केन्द्र से होकर गुजरने वाली और इसके दोनों परमाणुओं को मिलाने वाली रेखा के लम्बवत् अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण 1.94 × 10-46 kg m2 है। मान लीजिए कि गैस के ऐसे अणु की औसत चाल 500 m/s है और इसके घूर्णन की गतिज ऊर्जा, स्थानान्तरण की गतिज ऊर्जा की दो तिहाई है। अणु का औसत कोणीय वेग ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है:
ऑक्सीजन अणु का द्रव्यमान
m = 5.30 × 10-26 किग्रा
ऑक्सीजन अणु का जड़त्वाघूर्णन
I = 1.94 × 10-46 किग्रा – मीटर
अणु का मध्य वेग v = 500 ms-1
औसत कोणीय चाल = ?
प्रश्नानुसार, घूर्णन की गतिज ऊर्जा,
\(\frac{2}{3}\) × रैखिक गतिज ऊर्जा KE
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प्रश्न 7.21
एक बेलन 30° कोण बनाते आनत तल पर लुढ़कता हुआ ऊपर चढ़ता है। आनत तल की तली में बेलन के द्रव्यमान केन्द्र की चाल 5 m/s है।
(a) आनत तल पर बेलन कितना ऊपर जायेगा?
(b) वापस तली तक लौट आने में इसे कितना समय लगेगा?
उत्तर:
दिया है:
θ = 30°
तलों में बेलन के द्रव्यमान केन्द्र की चाल, u = 5 मीटर/सेकण्ड

(a) आनत तल पर लुढ़कते बेलन का त्वरण = -a
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माना बेलन ठोस है, तब K2 = \(\frac{R^{2}}{2}\)
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माना तल पर चली दूरी S है।
∴ v = 0
सूत्र v2 = u2 = 2as से,

(b) माना तली तक आने में बेलन को T समय लगता है।
∴ T = 2t जहाँ t आने या जाने का समय है।
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s = 3.83 मीटर
दिया है:
प्रा० वेग = 0
∴ सूत्र s = ut + \(\frac{1}{2}\) at2 से,
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प्रश्न 7.22
जैसा चित्र में दिखाया गया है, एक खड़ी होने वाली सीढ़ी के दो पक्षों BA और CA की लम्बाई 1.6 m है और इनको A पर कब्जा लगा कर जोड़ा गया है। इन्हें ठीक बीच में 0.5 m लम्बी रस्सी DE द्वारा बाँधा गया है। सीढ़ी BA के अनुदिश B से 1.2 m की दूरी पर स्थित बिन्दु F से 40 kg का एक भार लटकाया गया है। यह मानते हुए कि फर्श घर्षण रहित है और सीढ़ी का भार उपेक्षणीय है, रस्सी में तनाव और सीढ़ी पर फर्श द्वारा लगाया गया बल ज्ञात कीजिए। (g = 9.8 m/s2 लीजिए) (संकेत : सीढ़ी के दोनों ओर के संतुलन पर अलगअलग विचार कीजिए)
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उत्तर:
दिया है:
AB = AC = 1.6 मीटर
DE = 0.5 मीटर
AD = DB = AE = EC = \(\frac{1.6}{2}\) = 0.8 मीटर
BF = 1.2 मीटर
AF = 0.4 मीटर
माना रस्सी में तनाव = T
फर्श द्वारा सीढ़ी पर बिन्दु B व C पर आरोपित बल
= N’B NC = ?
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W = 40 kg wt = 40 × 9.8 N = 392 N
माना = A’ = DE का मध्य बिन्दु
∴ DA’ = \(\frac{5}{2}\) = 25 m
DF’ = 125 m चित्र में स्पष्ट है कि
NB = Nc = W = 392 N ………… (i)
माना सीढ़ी AB व AC अलग-अलग सन्तुलन में है। A के परितः विभिन्न बलों का आघूर्ण लेने पर
NB × BC’ = W × DF’ + T × AA’ (AB सीढ़ी के लिए)
या NB × AB cos θ
= W × 0.125 + T × 0.8 sin θ ……………. (ii)

इसी सीढ़ी AC के लिए,
या NC × CC’ = T × AA’
या NC × AC cos θ = T × 0.8 sin θ ……………… (iii)

∆DEF’ में,
cos θ = \(\frac{DF’}{DF}\) = \(\frac{0.125}{0.4}\)
= 0.3125 = cos θ 72.8°
∴ θ = 72.8′
∴ sin θ = 0.9553
tan θ = 3.2305
∴ समी० (ii) व (iv) से,
NB × 0.6 × 0.135 = 0.392 × 0.125 + T × 0.8 × 0.9553
या 0.5 NB = 0.764 + 49 …………… (v)
इसी प्रकार,
NC + 1.6 × 0.3125 = T × 0.8 × 0.9553
या 0.5NC = 0.764T
समी० (v) व (vi) से,
NC + 1.6 × 0.3125 = T × 0.8 x 0.9553
या 0.5NC = 0.764T …………… (vi)
समी० (v) व (vi) से,
0.5NB = 0.5NC + 49
या \(\frac{1}{2}\) (NB – NC) = 49
या NB – NC = 98 ………….. (vii)
समी० (i) व (vii) को जोड़ने पर,
2NB = 392 + 98 = 450
∴ NB = 225 N
∴ NC = NB – 98
= 225 – 98 = 147 N ……. (viii)
∴ समी० (vi) व (viii) से,
0.5 × \(\frac{147}{0.764}\) = 96.2 N

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प्रश्न 7.23
कोई व्यक्ति एक घूमते हुए प्लेटफॉर्म पर खड़ा है। उसने अपनी दोनों बाहें फैला रखी हैं और उनमें से प्रत्येक में 5 kg भार पकड़ रखा है। प्लेटफॉर्म का कोणीय चाल 30 rev/min है। फिर वह व्यक्ति बाहों को अपने शरीर के पास ले आता है जिससे घूर्णन अक्ष से प्रत्येक भार की दूरी 90 cm से बदल कर 20 cm हो जाती है। प्लेटफॉर्म सहित व्यक्ति के जड़त्व आघूर्ण का मान 7.6 kg m2 ले सकते हैं।
(a) उसका नया कोणीय वेग क्या है? (घर्षण की उपेक्षा कीजिए)
(b) क्या इस प्रक्रिया में गतिज ऊर्जा संरक्षित होती है? यदि नहीं, तो इसमें परिवर्तन का स्त्रोत क्या है?
उत्तर:
दिया है:
प्रत्येक हाथ में द्रव्यमान = 5 किग्रा
r1 = 90 cm = 0.90 मीटर
r2 = 20 cm = 0.20 मीटर
आदमी तथा प्लेटफॉर्म का जड़त्व आघूर्ण,
1 = 7.6 kgm2
माना r1 व r2 दूरी पर जड़त्वाघूर्ण क्रमशः I’1 व I’2 है।
तब सूत्र I = mr2 से,
I’1 = 2m × \(r_{\mathrm{1}}^{2}\)
= 2 × 5 × (0.2)2
= 8.1 kgm2
I’2 = 2m × \(r_{\mathrm{2}}^{2}\)
= 2 × 5 × (0.2)2
= 0.4 kgm2
माना r1 व r2 दूरी पर निकाय (व्यक्ति + भार + प्लेटफॉर्म) का जड़त्वाघूर्ण क्रमशः
I1 व I है।
तब –
I1 = I’1 + I = 8.1 + 7.6 = 15.7 kgm2 तथा
I2 = I’2I
= 0.4 + 7.6 = 8.0 kgm2
v1 = 30 rpm = \(\frac{30}{60}\) = \(\frac{1}{2}\) ps
ω1 = 2πv1 = 2π × \(\frac{1}{2}\) = π rads-1
माना r2 दूरी पर नवीन कोणीय चाल ω2 है।
∴ कोणीय संवेग संरक्षण के नियम से,
या I1ω1 = I2ω2
15.7 × π = 8 × ω2
या ω2 = 15.7 \(\frac{π}{8}\)
= 1.9625 π rads-1
∴ कोणीय आवृत्ति v2 निम्न है –
v2 = \(\frac{\omega_{2}}{2 \pi}\) = \(\frac{1.9625}{2π}\) × π rps
= \(\frac{1.9625}{2}\) × 60 rpm
= 58.875 rpm
= 58.9 rpm
= 59 rpm
नहीं, यहाँ गतिज ऊर्जा संरक्षित नहीं होगी? चूँकि घूर्णनी गति में कोणीय संवेग संरक्षित रहता है। अत: यह आवश्यक नहीं है कि घूर्णनी गतिज ऊर्जा भी संरक्षित रहे जिसे निम्न रूप में समझाया जा सकता है –
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अर्थात् I के घटने पर घूर्णनी KE बढ़ती है। KE में यह परिवर्तन (i.e., वृद्धि) वस्तु के जड़त्वाचूर्ण को कम करने में व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य के व्यय होने के कारण होता है।

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प्रश्न 7.24
10g द्रव्यमान और 500 m/s चाल वाली बन्दूक की गोली एक दरवाजे के ठीक केन्द्र में टकराकर उसमें अंत:स्थापित हो जाती है। दरवाजा 1.0 m चौड़ा है और इसका द्रव्यमान 12 kg है। इसके एक सिरे पर कब्जे लगे हैं और यह इनसे गुजरती एक ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः लगभग बिना घर्षण के घूम सकता है। गोली के दरवाजे में अंत:स्थापन के ठीक बाद इसका कोणीय वेग ज्ञात कीजिए। (संकेत : एक सिरे से गुजरती ऊर्ध्वाधर अक्ष के परितः दरवाजे का जड़त्व-आघूर्ण ML2/3 है)
उत्तर:
दिया है:
गोली का द्रव्यमान
m = 10g = 0.01
किग्रा गोली का वेग v = 500 मीटर/से०
दरवाजे की चौ० b = 1.0 मीटर
दरवाजे का द्र० M = 12 किग्रा
कोणीय चाल = ?
ऊर्जा संरक्षण के नियम से,
\(\frac{1}{2}\) mv2 = \(\frac{1}{2}\) Iω2
माना कब्जे वाली भुजा के परितः जड़त्वाघूर्ण है।
∴ I = \(\frac{1}{3}\) (M + m) (\(\frac{b}{2}\))2
(∵ द्रव्यमान केन्द्र से दूरी = \(\frac{b}{2}\) तथा गोली दरवाजे में है।)
\(\frac{1}{2}\) mv2 = \(\frac{1}{3}\) (M + m) (\(\frac{b}{2}\))2
\(\frac{1}{2}\) mv2 = \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{3}\) (M + m) \(\frac{b^{2}}{4}\) ω2
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= 49.98 रेडियन/सेकण्ड

प्रश्न 7.25
दो चक्रिकाएँ जिनके अपने-अपने अक्षों (चक्रिका के अभिलंबवत् तथा चक्रिका के केंद्र से गुजरने वाले) के परितः जड़त्व आघूर्ण I1 तथा I2 हैं और जो तथा ω1 तथा ω2 कोणीय चालों से घूर्णन कर रही है, को उनके घूर्णन अक्ष संपाती करके आमने-सामने लाया जाता है?
(a) इस दो चक्रिका निकाय की कोणीय चाल क्या है?
(b) यह दर्शाइए कि इस संयोजित निकाय की गतिज ऊर्जा दोनों चक्रिकाओं की आरंभिक गतिज ऊर्जाओं के योग से कम है। ऊर्जा में हुई इस हानि की आप कैसे व्याख्या करेंगे? ω1 ≠ ω2 लीजिए।
उत्तर:
माना I1 व I2 जड़त्व आघूर्ण वाली चकतियों की कोणीय चाल क्रमशः ω1 व ω2 है। सम्पर्क में लाने पर दोनों चकतियों के निकाय का जड़त्व आघूर्ण I1 + I2 होगा।
माना ω = पूरे निकाय की कोणीय चाल है।

(a) ∵ दोनों चकतियों के कुल प्रा० कोणीय संवेग,
L1 = I1 ω1 + I2ω2
संयुक्त निकाय का कुल अन्तिम कोणीय संवेग,
L2 = L1
या (I1 + I2)ω = I1ω1 + I2ω1
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(b) दोनों चकतियों की प्रा० गतिज ऊर्जा
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संयुक्त निकाय की अन्तिम KE.
E2 = \(\frac{1}{2}\) (I1 + I22 ………….. (iii)
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समी० (i) व (ii) से,
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जोकि धनात्मक राशि है।
अतः E1 – E2 > 0 या E1 > E2
या E2 > E1 अर्थात् पूरे निकाय की घूर्णनी गतिज ऊर्जा दोनों चकतियों की प्रारम्भिक ऊर्जाओं के योग से कम है। अतः दो चकतियों को सम्पर्क में लाने पर, गतिज ऊर्जा में कमी आती है। यह कमी दोनों चक्रिकाओं की सम्पर्कित सतहों के बीच घर्षण के बल के कारण होती है।

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प्रश्न 7.26
(a) लम्बवत् अक्षों के प्रमेय की उपपत्ति करें। संकेत (x, y) तल के लम्बवत् मूल बिन्दु से गुजरती अक्ष से किसी बिन्दु x – y की दूरी का वर्ग (x2 + y2) है
(b) समांतर अक्षों के प्रमेय की उपपत्ति करें(संकेत : यदि द्रव्यमान केन्द्र को मूल बिन्दु ले लिया जाये तो Σmiri = 0)
उत्तर:
(a) समकोणिक (लम्ब) अक्षों की प्रमेयकिसी समतल पटल को उसके तल में ली गई दो परस्पर लम्बवत् अक्षों OX तथा OY के परित: जड़त्व आघूर्णों का योग इन अक्षों के कटान बिन्दु O में को जाने वाली तथा पटल के तल के लम्बवत् अक्ष OZ के परित: जड़त्व आघूर्ण के बराबर होता है। पटल का अक्ष OZ के परितः जड़त्व आघूर्ण Iz = Iz + Iy
जहाँ Iz तथा Iy पटल का क्रमश: अक्ष OX तथा OY के परितः जड़त्व आघूर्ण है।

सिद्ध करना:
माना एक पटल है जिसके तल में दो परस्पर लम्बवत् अक्षं OX तथा OY ली गई हैं अक्ष OZ पटल के तल के अभिलम्बवत् है तथा OX व OY के कटान बिन्दु०से गुजरती है। माना अक्ष OZ से r दूरी पर m द्रव्यमान का एक कण P है। इस कण का अक्ष OZ के परितः जड़त्व आघूर्ण mr2 होगा। अतः पूरे पटल का अक्ष OZ के परित: जड़त्व आघूर्ण
Iz = Σmr2
लेकिन r2 = x2 + y2
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जहाँ x व y कण भी क्रमश: अक्षों OY व OX से दूरियाँ हैं।
∴ I2 = Σm(x2 + y2)
= Σmx2 + Σmy2
लेकिन Ix = Σmx2 तथा Iy = Σmy2
अतः Ix = Iz + Iy

(b) समान्तर अक्षों की प्रमेय-किसी पिंड का किसी अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण (I) उस पिंड के द्रव्यमान केन्द्र में को जाने वाली समान्तर अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण (Icm) तथा पिंड के द्रव्यमान व दोनों अक्षों के बीच की लम्बवत् दूरी के वर्ग के गुणनफल के योग के बराबर होता है।
I = Icm + Ma2
जहाँ M पिंड का द्रव्यमान है तथा a दोनों अक्षों के बीच लम्बवत् दूरी है।

सिद्ध करना:
माना एक समतल पटल है जिसका द्रव्यमान केन्द्र C है। माना पटल का पटल के तल में स्थित अक्ष AB के परितः जड़त्व आघूर्ण I है तथा इसके द्रव्यमान केन्द्र C से गुजरने वाली समान्तर अक्ष EF के परितः जड़त्व आघूर्ण Icm है। माना AB तथा EF अक्षों के बीच लम्बवत् दूरी a है। माना EF अक्ष से दूरी पर m द्रव्यमान का एक कण P है। P की AB से दूरी (r + a) होगी। P का AB के परितः जड़त्व आघूर्ण m(r + a)2 होगा। अतः पूरे पटल का AB अक्ष के परितः जड़त्व आघूर्ण
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I = Σm(r + a)2
= Σm(r2 + a2 + 2ar)
I = Σmr2 + Σma2 + 2aΣmr
अथवा I = Σmr2 + a2Σ + 2aΣmr
लेकिन Icm = Σmr2
तथा a2Σm = a2M
तथा Σmr = 0 क्योंकि किसी पटल के समस्त कणों का पटल के द्रव्यमान केन्द्र में से गुजरने वाली अक्ष के परित: आघूर्णों का योग शून्य होता है। अतः
I = Icm + Ma2

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प्रश्न 7.27
सत्र v2 = \(\frac{2 g h}{\left(1+k^{2} / R^{2}\right)}\) को गतिकीय दृष्टि (अर्थात् बलों तथा बल आघूर्णों के विचार) से व्युत्पन्न कीजिए। जहाँ v लोटनिक गति करते पिंड (वलय, डिस्क, बेलन या गोला) का आनत तल की तली में वेग है। आनत तल पर h वह ऊँचाई है जहाँ से पिंड गति प्रारंभ करता है। सममित अक्ष के परितः पिंड की घूर्णन त्रिज्या है और R पिंड की त्रिज्या है।
उत्तर:
माना M व R क्रमश: गोलीय पिंड के द्रव्यमान व त्रिज्या है, यह एक ऐसे आनत तल पर A बिन्दु पर रखा गया है जिसका क्षैतिज से झुकाव θ है। इस पिंड में A बिन्दु पर पूर्णतः स्थितिज ऊर्जा होगी।
∴ E = mgh …….. (i)
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जब यह पिंड तल पर फिसलना प्रारम्भ करता है, पिंड द्रव्यमान केन्द्र से गुजरने वाली अक्ष (i.e., c) से गुजरता है जो कि तल के समान्तर है। इसके भार व भार के घटक के कारण घूर्णनी गति नहीं होती है कि इसकी क्रिया रेखा C से गुजरती है। इस प्रकार पिंड पर लगने वाला सम्पूर्ण बलाघूर्ण शून्य होगा। घर्षण बलाघूर्ण अर्थात् घूर्णन के कारण बल लगता है।
∴ τ = FR ………….. (ii)
घूर्णन करते पिंड की सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा (E) में रैखिक गतिज ऊर्जा (Kt व घूर्णनी गतिज ऊर्जा (Kr) होती है।
i.e., E = Kt + Kr
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तथा v = Rω = घूर्णन करते पिंड का रैखिक वेग
जहाँ जे कोणीय ω वेग है।
पिंड का जड़त्व आघूर्ण, I = \(\frac{1}{2}\) mK2 जहाँ K = घूर्णन त्रिज्या।
माना पृष्ठ सतह खुरदरी है तथा पिंड बिना फिसले ही घूर्णन करता है। बिन्दु B पर, पिंड में दोनों रैखिक व घूर्णनी गतिज ऊर्जाएँ होती हैं। बिन्दु B पर सम्पूर्ण ऊर्जा समी० (iii) के अनुसार होगी।
ऊर्जा संरक्षण के नियम से,
बिन्दु A पर स्थितिज ऊर्जा = बिन्दु B पर सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा
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प्रश्न 7.28
अपने अक्ष पर ω0 कोणीय चाल से घूर्णन करने वाली किसी चक्रिका को धीरे से (स्थानान्तरीय धक्का दिए बिना) किसी पूर्णतः घर्षणरहित मेज पर रखा जाता है। चक्रिका की त्रिज्या R है। चित्र में दर्शाई चक्रिका के बिन्दुओं A, B तथा C पर रैखिक वेग क्या हैं? क्या यह चक्रिका चित्र में दर्शाई दिशा में लोटनिक गति करेगी?
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उत्तर:
चक्रिका व मेज के मध्य घर्षण बल शून्य है। इस कारण चक्रिका लोटनिक गति नहीं कर पाएगी व मेज के एक ही बिन्दु B के सम्पर्क में रहते हुए अपनी अक्ष के परित: घूर्णनी गति करती रहेगी।
दिया है:
बिन्दु A की अक्ष से दूरी R है।
अतः बिन्दु A पर रैखिक वेग,
VA = Rω0 (तीर की दिशा में)
तथा बिन्दु B पर रैखिक वेग,
VA = Rω0 (तीर की विपरीत दिशा में)
चूँकि बिन्दु C की अक्ष से दूरी \(\frac{R}{2}\) है
अतः बिन्दु C पर रैखिक वेग vc = \(\frac{R}{2}\) (क्षैतिजत: बाईं ओर से दाईं ओर को)
अर्थात् चक्रिका लोटनिक गति नहीं करेगी।

Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 7 कणों के निकाय तथा घूर्णी गति

प्रश्न 7.29
स्पष्ट कीजिए कि चित्र (प्रश्न 7.28) में अंकित दिशा में चक्रिका की लोटनिक गति के लिए घर्षण होना आवश्यक क्यों है?
(a) B पर घर्षण बल की दिशा तथा परिशुद्ध लुढ़कन आरंभ होने से पूर्व घर्षणी बल आघूर्ण की दिशा क्या है?
(b) परिशुद्ध लोटनिक गति आरंभ होने के पश्चात् घर्षण बल क्या है?
उत्तर:
(a) बिन्दु B पर घर्षण बल B के वेग का विरोध करता है। अतः घर्षण बल तीर की दिशा में होगा। घर्षण बल आघूर्ण के कार्य करने की दिशा इस प्रकार है कि वह कोणीय गति का विरोध करता है। ω0 व τ दोनों ही कागज के पृष्ठ के अभिलम्बवत् कार्य करते हैं। इनमें ω0 कागज के पृष्ठ के अंतर्मुखी व र कागज के पृष्ठ के बहिर्मुखी है।
(b) घर्षण बल सम्पर्क – बिन्दु B के वेग को कम कर देता है। जब यह वेग शून्य होता है तो चक्रिका की लोटन गति आदर्श सुनिश्चित हो जाती है। एक बार ऐसा हो जाने पर घर्षण बल का मान शून्य हो जाता है।

प्रश्न 7.30
10 cm त्रिज्या की कोई ठोस चक्रिका तथा इतनी ही त्रिज्या का कोई छल्ला किसी क्षैतिज मेज पर एक ही क्षण 10π rads-1 की कोणीय चाल से रखे जाते हैं। इनमें से कौन पहले लोटनिक गति आरंभ कर देगा। गतिज घर्षण गुणांक µk = 0.2
उत्तर:
दिया है:
छल्ले तथा ठोस चक्रिका की त्रिज्या,
R = 10 सेमी – 0.1 मीटर
µk = 0.2
छल्ले का जड़त्व आघूर्ण = MR2 …………… (i)
ठोस चक्रिका का जड़त्व आघूर्ण = \(\frac{1}{2}\)mR2 …………….. (ii)
प्रा० कोणीय वेग = ω0 = 10π रेडियन/सेकण्ड
घर्षण बल के कारण गति होती है तथा घर्षण के कारण द्रव्यमान केन्द्र त्वरित होता है। छल्ला शून्य प्रारम्भिक वेग से चलता है। प्रारम्भिक कोणीय वेग ω0 में मन्दन घर्षण बलाघूर्ण के कारण होता है।
हम जानते हैं कि F = µkN = ma
या µkmg = ma
या a = µkg ……………. (iii)
तथा बलाघूर्ण τ = -Iα
= FR = µkmgR ……………. (iv)
जहाँ R = चकती या वलय की त्रिज्या
ऋणात्मक चिह्न प्रदर्शित करता है कि मन्दन बलाघूर्ण है।
यहाँ u = 0
∴ v = u + at से
v = at or a = \(\frac{v}{t}\)
समी० (iii) से a = µkg
या \(\frac{v}{t}\) = µkg
या v = µkgt (छल्ले के लिए)
तथा = µkgt’ (चकती के लिए) …………….. (v)
समी० (iv) से
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माना छल्ले की t समय व चकती की t’ समय बाद कोणीय वेग
∴ सम्बन्ध ω = ω0 + αt से,
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एकदम फिसलने की शर्त लगाने पर (i.e., V = Rω), छल्ले के लिए
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तथा चकती के लिए,
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अतः समी० (xii) व (xiii) से स्पष्ट है कि t’ < t अर्थात् चकती पहले फिसलना प्रारम्भ करेगी।

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प्रश्न 7.31
10 kg द्रव्यमान तथा 15 cm त्रिज्या का कोई सिलिंडर किसी 30° झुकाव के समतल पर परिशुद्धतः लोटनिक गति कर रहा है। स्थैतिक घर्षण गुणांक µs = 0.25
(a) सिलिंडर पर कितना घर्षण बल कार्यरत है?
(b) लोटन की अवधि में घर्षण के विरुद्ध कितना कार्य किया जाता है?
(c) यदि समतल के झुकाव में वृद्धि कर दी जाए तो के किस मान पर सिलिंडर परिशुद्धतः लोटनिक गति करने की बजाय फिसलना आरंभ कर देगा?
उत्तर:
दिया है:
m = 10 kg, R = 0.15 m, θ = 30°, µk = 0.25
(a) बेलन पर लगने वाला घर्षण बल –
F = \(\frac{1}{3}\) mg sin θ
= \(\frac{1}{3}\) × 10 × 9.8 × sin 30° = 16.3 न्यूटन

(b) चूँकि परिशुद्ध लोटनिक गति में, सम्पर्क बिन्दु पर कोई सरकन गति नहीं है। इसलिए घर्षण बल के विरुद्ध कृत कार्य, W = 0 है।

(c) लोटनिक गति के लिए,
\(\frac{F}{R}\) = \(\frac{1}{3}\) tan θ ≤ µs
∴ tan θ = 3µs
= 3 × 0.25 = 0.75
∴ θ = tan-1(0.75)
= 37°

प्रश्न 7.32
नीचे दिए गए प्रत्येक प्रकथन को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा कारण सहित उत्तर दीजिए कि इनमें से कौन-सा सत्य है और कौन-सा असत्य है –

  1. लोटनिक गति करते समय घर्षण बल उसी दिशा में कार्यरत होता है जिस दिशा में पिंड का द्रव्यमान केंद्र गति करता है।
  2. लोटनिक गति करते समय संपर्क बिंदु की तात्क्षणिक चाल शून्य होती है।
  3. लोटनिक गति करते समय संपर्क बिन्दु का तात्क्षणिक त्वरण शून्य होता है।
  4. परिशुद्ध लोटनिक गति के लिए घर्षण के विरुद्ध किया गया कार्य शून्य होता है।
  5. किसी पूर्णतः घर्षणरहित आनत समतल पर नीचे की ओर गति करते पहिए की गति फिसलन गति (लोटनिक गति नहीं) होगी।

उत्तर:

  1. सत्य, चूँकि स्थानान्तरीय गति घर्षण बल के कारण ही उत्पन्न होती है। इसी बल के कारण पिंड का द्रव्यमान आगे की ओर बढ़ता है।
  2. सत्य, चूँकि लोटनिक गति, सम्पर्क बिन्दु पर सी गति के समाप्त होने पर प्रारम्भ होती है। इस प्रकार परिशुद्ध लोटनिक गति में सम्पर्क बिन्दु की तात्क्षणिक चाल शून्य होती है।
  3. असत्य चूँकि घूर्णन गति के कारण, सम्पर्क बिन्दु की गति में अभिकेन्द्र त्वरण अवश्य ही विद्यमान होता है।
  4. सत्य चूँकि परिशुद्ध लोटनिक गति में सम्पर्क बिन्दु पर कोई सरकन नहीं होता है। इस कारण घर्षण बल के विरुद्ध किया गया कार्य शून्य होता है।
  5. सत्य, घर्षण के न होने पर आनत तल पर छोड़े गए पहिए का आनत तल के साथ सम्पर्क बिन्दु विरामावस्था में नहीं रहेगा बल्कि पहिए के भार के अधीन माना तल के अनुदिश फिसलता जाएगा। इस कारण यह गति लोटनिक न होकर विशुद्ध सरकन गति होगी।

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प्रश्न 7.33
कणों के किसी निकाय की गति को इसके द्रव्यमान केन्द्र की गति और द्रव्यमान केन्द्र के परितः गति में अलग-अलग करके विचार करना।
दर्शाइये कि –
(a) P = p’i + miV
जहाँ pi (mi द्रव्यमान वाले) i – वें कण का संवेग है, और P’i = miv’i। ध्यान दें कि द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष i – वें कण का वेग है। द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा का उपयोग करके यह भी सिद्ध कीजिए कि Σp’i = 0
(b) K = K’ + \(\frac{1}{2}\) MV2
K कणों के निकाय की कुल गति ऊर्जा, K’ = निकाय की कुल गतिज ऊर्जा जबकि कणों की गतिज ऊर्जा द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष ली जाये। MV2/2 संपूर्ण निकाय के (अर्थात् निकाय के द्रव्यमान केन्द्र के) स्थानान्तरण की गतिज ऊर्जा है। इस परिणाम का उपयोग भाग 7.14 में किया गया है।

(c) L = Σ + R × MV
जहाँ L’ = r’i × P’i द्रव्यमान के परितः निकाय का कोणीय संवेग है जिसकी गणना में वेग द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष मापे गये हैं। याद कीजिए r’i = ri – R; शेष सभी चिह्न अध्याय में प्रयुक्त विभिन्न राशियों के मानक चिह्न हैं। ध्यान दें कि L’ द्रव्यमान केन्द्र के परितः निकाय का कोणीय संवेग एवं MR × V इसके द्रव्यमान केन्द्र का कोणीय संवेग है।

(d) \(\frac{dL’}{dt}\) = Σr’i × \(\frac{dp’}{dt}\)
यह भी दर्शाइये कि
\(\frac{dL’}{dt}\) = τ’ext
(जहाँ τ’ext द्रव्यमान केन्द्र के परितः निकाय पर लगने वाले सभी बाह्य बल आघूर्ण हैं।)
[संकेत : द्रव्यमान केन्द्र की परिभाषा एवं न्यूटन के गति के तृतीय नियम का उपयोग कीजिए। यह मान लीजिए कि किन्हीं दो कणों के बीच के आन्तरिक बल उनको मिलाने वाली रेखा के अनुदिश कार्य करते हैं।]
उत्तर:
(a) माना कि m1m2 … mn, दृढ़ पिंड की रचना करने वाले कणों के द्रव्यमान हैं तथा मूल बिन्दु O (0, 0) के सापेक्ष इन कणों के स्थिति सदिश क्रमश:
\(\vec{r}_{1}\), \(\vec{r}_{2}\) …………. \(\vec{r}_{n}\) हैं।
माना कि मूल बिन्दु के सापेक्ष द्रव्यमान केन्द्र (G) की स्थिति सदिश \(\vec{R}\) व द्रव्यमान केन्द्र के सापेक्ष अलग-अलग कणों की
स्थिति क्रमश: \(\vec{r}_{1}\), \(\vec{r}_{2}\) ………………. \(\vec{r}_{n}\) हैं।
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t के सापेक्ष दोनों ओर का अवकलन करने पर,
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(d) माना कि कणों के निकाय पर बलाघूर्ण लगाया जाता है।
माना कि कण के लिए \(\vec{L}\) के घटक Lx, Ly व Lz क्रमशः x, y, z व : अक्षों के अनुदिश हैं। माना कि px, py व pz इसके रैखिक संवेग के घटक हैं।
Lz = xpy – yPx
Lx = ypz – zpy
Ly = zpx – xpz
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किसी कण के कोणीय संवेग की परिवर्तन दर,
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माना निकाय का सम्पूर्ण कोणीय संवेग \(\vec{L}\) है।
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हम जानते हैं कि निकाय पर लगने पर सम्पूर्ण बाह्य बलाघूर्ण τ’ext है। अतः
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[∵ बाह्य बल सदैव युग्म में होता है व निरस्त करते हैं।]
∴ समी० (i) व (ii) से,
\(\frac{d \vec{L}_{i}}{d t}\) = τ’ext

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 4 रासायनिक बलगतिकी

Bihar Board Class 12 Chemistry रासायनिक बलगतिकी Text Book Questions and Answers

पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 4.1
R → P, अभिक्रिया के लिए अभिकारक की सान्द्रता 0.03 M से 25 मिनट में परिवर्तित होकर 0.02 M हो जाती है। औसत वेग की गणना सेकण्ड तथा मिनट दोनों इकाइयों में कीजिए।
गणना:
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दिया है,
R2 = 0.02 M; R1 = 0.03 M
t2 – t1 = 25 min
अतः औसत वेग = \(\frac{0.02 M – 0.03 M}{25 min}\)
= \(\frac{-0.01 M}{25 min}\)
= 4 × 10-4 M min-1
= 6.66 × 10-6 Ms-1

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प्रश्न 4.2
2A → उत्पाद, अभिक्रिया में A की सान्द्रता 10 मिनट में 0.5 mol L-1 से घटकर 0.4 mol L-1 रह जाती है। इस समयान्तराल के लिए अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए।
गणना:
अभिक्रिया वेग = A के ह्रास होने का वेग
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= 0.005 mol L-1 min-1

प्रश्न 4.3
एक अभिक्रिया A + B → उत्पाद के लिए वेग नियमा = k[A]1/2 [B]2 से दिया गया है। अभिक्रिया की कोटि क्या है?
हल:
r = k [A]1/2B2
∵ अभिक्रिया की कोटि = \(\frac{1}{2}\) + 2 = 2 \(\frac{1}{2}\)

प्रश्न 4.4
अणु X का Y के रूपान्तरण द्वितीय कोटि की बलगतिका के अनुरूप होता है। यदि x की सान्द्रता तीन गुनी कर दी जाये तो Y का निर्माण होने के वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
∵ अणु X का Y में रूपान्तरण द्वितीय कोटि की बलगति के अनुरूप होता है।
∴ अभिक्रिया का वेग = k[x]2 ……………….. (i)
∵ X की सान्द्रता तीन गुनी कर दी जाती है,
∴ अभिक्रिया की कोटि = k[3X]2
= 9k[X]2
समी० (i) तथा (ii) से स्पष्ट है X की सान्द्रता तीन गुनी करने पर Y के निर्माण का वेग नौ गुना हो जायेगा।

प्रश्न 4.5
एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया का वेग स्थिरांक 1.15 × 10-3s-1 है। इस अभिक्रिया में अभिकारक की 5g मात्रा को घटकर 3g होने में कितना समय लगेगा?
हल:
प्रश्नानुसार, अभिकारक की प्रारम्भिक मात्रा [A]0 = 5g
अभिकारक की अन्तिम मात्रा [A] = 3g
तथा वेग स्थिरांक (k) = 1.15 × 10-3s-1
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए
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= 2.0 × 103 log \(\frac{10}{6}\)
= 2.0 × 103 [log 10 – log 2 – log 3]
= 2.0 × 103 [1 – 3010 – 4.771]
= 2.0 × 103 × 0.2219
= 443.8 ≅ 444s

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प्रश्न 4.6
SO2Cl2 को अपनी प्रारम्भिक मात्रा से आधी मात्रा में वियोजन होने में 60 मिनट का समय लगता है। यदि अभिक्रिया प्रथम कोटि की हो तो वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
गणना:
हम जानते हैं कि प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए,
k = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\)
= \(\frac{0.693}{(60×60 से०)}\)
(∵ t1/2 = 60 मिनट = 60 × 60 से०
= 1.925 × 10-4 प्रति से०

प्रश्न 4.7
ताप का वेग स्थिरांक पर क्या प्रभाव होगा?
उत्तर:
किसी रासायनिक अभिक्रिया में 10° ताप वृद्धि से वेग स्थिरांक में लगभग दुगनी वृद्धि होती है। वेग स्थिरांक की ताप की निर्भरता की व्याख्या आरेनियस समीकरण
k = Ae-Ea/RT
से भली-भाँति की जा सकती है।
जहाँ A = आरेनियस गुणांक अथवा आवृति गुणांक
R = गैस नियतांक,
Ea = सक्रिय ऊर्जा।

प्रश्न 4.8
परमताप, 298 K में 10 K की वृद्धि होने पर रासायनिक अभिक्रिया का वेग दुगुना हो जाता है। इस अभिक्रिया के लिए Ea की गणना कीजिए।
गणना:
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= 52898 J mol-1
= 52.9 KJ mol-1

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प्रश्न 4.9
581 K ताप पर अभिक्रिया 2 HI(g) → H2(g) + I2 (g) के लिए सक्रियण ऊर्जा का मान 209.5 kJ mol-1 है। अणुओं के उस अंश की गणना कीजिए जिसका ऊर्जा सक्रियण ऊर्जा के बराबर अथवा इससे अधिक है।
हल:
सक्रियण ऊर्जा से अधिक या बराबर ऊर्जा वाले अणुओं का अंश
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= – 18.8323
∴ x = – 2.303 RT
= Antilog \(\bar{19}\).1677
= 1.471 × 10-19

Bihar Board Class 12 Chemistry रासायनिक बलगतिकी Additional Important Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 4.1
निम्नलिखित अभिक्रियाओं के वेग व्यंजकों से इनकी अभिक्रिया कोटि तथा वेग स्थिरांकों की इकाइयाँ ज्ञात कीजिए –

  1. 3NO(g) → N2O(g) + NO2 (g) वेग = k [NO]2
  2. H2O2 (aq) + 3I (aq) + 2H+ → 2H2O(l) + I3 वेग = k [H2O2] [I]
  3. CH3CHO (g) → CH4 (g) + CO (g) वेग = k[CH3CHO]3/2
  4. C2H5Cl(g) → C2H4 (g) + HCl (g) वेग = k[C2H5Cl]

उत्तर:
1. 3NO(g) → N2O(g) + NO2 (g) वेग = k [NO]2
अभिकारक NO की कोटि = 2
अभिक्रिया कोटि = 2 वेग
स्थिरांक (k) की इकाई
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= L mol-1 s-1

2. H2O2 (aq) + 3I (aq) + 2H+ → 2H2O(l) + I3 वेग = k [[H2O2] [I]
अभिक्रिया की कोटि = अभिकारक (H2O2) की कोटि + अभिकारक (I) की कोटि।
= 1 + 1
= 2
वेग स्थिरांक (k) की इकाई
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= L mol-1s-1

3. CH3CHO (g) → CH4 (g) + CO(g)
वेग = k [CH3CHO]3/2
अभिक्रिया की कोटि = \(\frac{3}{2}\)
वेग स्थिरांक (k) की इकाई
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अभिक्रिया कोटि = 1
वेग स्थिरांक (k) की इकाई
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= s-1

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प्रश्न 4.2
अभिक्रिया 2A + B → A2B के लिए वेग = k [A][B]2 यहाँ k का मान 2.0 × 10-6 mol-2L2s-1 है। प्रारम्भिक वेग की गणना कीजिए; जब [A] = 0.1mol L-1 एवं [B] = 0.2 molL-1 हो तथा अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए; जब [A] घटकर 0.06 mol L-1 रह जाए।
गणना:
प्रश्नानुसार [A] = 0.1 mol L-1
तथा [B] = 0.2 mol
L-1 तथा k = 0.2 mol-1 L2 s-1
प्रारम्भिक वेग = k [A] [B]
= 2.0 × 10-6 mol-2 L2 s-1)
(0.1 mol L-1) (0.2 mol L-1)2
= 8.0 × 10-9 mol L-1s-1
जब [A] 0.10 mol L-1 से घटकर 0.06 mol L-1 रह जाता है अर्थात् 0.04 mol L-1 A
अभिकृत हो जाता है तब अभिकृत [B] = \(\frac{1}{2}\) × 0.04 mol L-1
= 0.02 mol L-1
∴ [B] = 0.2 – 0.02 = 0.18 mol L-1
अतः वेग = (2.0 × 10-6 mol-2 L-2 s-1)
(0.06 mol L-1) (0.18mol L-1)2
= 3.89 × 109 mol L-1L-1s-1

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प्रश्न 4.3
प्लैटिनम सतह पर NH3 का अपघटन शून्य कोटि की अभिक्रिया है। N2 एवं H2 के उत्पादन की दर क्या होगी जबk का मान 2.5 × 10-4 mol L-1 s-1 हो?
हल:
प्लैटिनम की सतह पर अमोनिया का अपघटन निम्न प्रकार से है –
NH3 → \(\frac{1}{2}\)N2 + \(\frac{3}{2}\) H2
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∵ शून्य कोटि अभिक्रिया के लिए, वेग = k
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= 2.5 × 10-4 mol L-1s-1

प्रश्न 4.4
डाइमेथिल ईथर के अपघटन से CH4, H2 तथा CO बनते हैं। इस अभिक्रिया का वेग निम्न समीकरण द्वारा दिया जाता है –
वेग = k [CH3OCH3]3/2
अभिक्रिया के वेग का अनुगमन बन्द पात्र में बढ़ते दाब द्वारा किया जाता है, अत: वेग समीकरण को डाइमेथिल ईथर के आंशिक दाब के पद में भी दिया जा सकता है।
अतः वेग = k (PCH3OCH3)3/2\
यदि दाब को bar में तथा समय को मिनट में मापा जाये तो अभिक्रिया के वेग एवं वेग स्थिरांक की इकाइयाँ क्या होंगी?
उत्तर:
वेग की दाब के पदों की इकाई = bar min-1
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प्रश्न 4.5
रासायनिक अभिक्रिया के वेग पर प्रभाव डालने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
अभिक्रिया के वेग को प्रभावित करने वाले कारक:

1. सान्द्रण का प्रभाव:
निश्चित ताप पर अभिकारकों की सान्द्रता बढ़ाने से अभिक्रिया का वेग बढ़ता है क्योंकि अभिकारक अणुओं का सान्द्रण बढ़ जाने से अणुओं के मध्य कारकों की संख्या बढ़ जाती है।

2. ताप का प्रभाव:
ताप की वृद्धि से सक्रिय अणुओं तथा प्रभावी टक्करों की संख्या बढ़ जाती है, जिससे अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

3. दाब का प्रभाव:
दाब बढ़ने से गैसीय अणु निकट आ जाते हैं, जिससे उनके परस्पर टकराने की सम्भावना बढ़ जाती है अर्थात् वेग बढ़ जाता है।

4. उत्प्रेरक का प्रभाव:
उत्प्रेरक अभिक्रिया की सक्रियण ऊर्जा (Ea) का मान कम कर देता है जिससे सक्रिय अणुओं की संख्या बढ़ जाती है, अत: उत्प्रेरक की उपस्थिति में अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

5. अभिकारकों के पृष्ठ क्षेत्रफल का प्रभाव:
अभिकारक अणुओं का पृष्ठ क्षेत्रफल अधिक होने पर अभिक्रिया का वेग अधिक होता है।

6. अभिकारकों की प्रकृति का प्रभाव:
यदि अभिकारक आयनिक है, तो अभिक्रिया का वेग अधिक होगा।

7. प्रकाश का प्रभाव:
प्रकाश की उपस्थिति में अभिक्रिया का वेग बढ़ जाता है।

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प्रश्न 4.6
किसी अभिकारक के लिए एक अभिक्रिया द्वितीय कोटि की है। अभिक्रिया का वेग कैसे प्रभावित होगा; यदि अभिकारक की सान्द्रता –

  1. दुगनी कर दी जाए
  2. आधी कर दी जाए?

उत्तर:
वेग = k [A]2 = ka2
1. ∵ [A] = 2a
∴ वेग = k(2a)2 = 4k2 = चार गुना

2. ∵A = \(\frac{1}{2}\) a
∴ वेग = k\(\frac{a}{2}\)2 = \(\frac{1}{4}\)2 = एक चौथाई

प्रश्न 7.
वेग स्थिरांक पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है? ताप के इस प्रभाव को मात्रात्मक रूप में कैसे प्रदर्शित कर सकते हैं?
उत्तर:
किसी रासायनिक अभिक्रिया में 10°C ताप – वृद्धि से वेग स्थिरांक में लगभग दुगुनी वृद्धि होती है। वेग स्थिरांक की ताप पर निर्भरता की मात्रात्मक रूप में व्याख्या आरेनिअस समीकरण से भली-भाँति की जा सकती है। इसके अनुसार,
k = AeEa/RT

प्रश्न 4.8
जल में एस्टर के छदम प्रथम कोटि के जल-अपघटन के निम्नलिखित आँकड़े प्राप्त हुए –
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  1. 30 से 60 सेकण्ड समय अन्तराल में औसत वेग की गणना कीजिए।
  2. एस्टर के जल-अपघटन के लिए छद्म प्रथम कोटि अभिक्रिया वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।

उत्तर:
1. t1 से t2 सेकण्ड समय अन्तराल में औसत वेग
= \(\frac{C_{2}-C_{1}}{t_{2}-t_{1}}\)
∴ 30 से 60 s समय-अन्तराल में औसत वेग
= \(\frac{0.31-0.17}{60-30}\) = \(\frac{0.14}{30}\)
= 4.67 × 10-3 molL-1s-1

2. ∵ छद्म प्रथम कोटि अभिक्रिया वेग स्थिरांक
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= 1.98 × 10-2 s-1

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प्रश्न 4.9
एक अभिक्रिया A के प्रति प्रथम तथा B के प्रति द्वितीय कोटि की है।

  1. अवकल वेग समीकरण लिखिए।
  2. B की सान्द्रता तीन गुनी करने से वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
  3. A तथा B दोनों की सान्द्रता दुगनी करने से वेग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

उत्तर:
1. अवकल वेग समीकरण निम्नलिखित है –
\(\frac{dx}{dt}\) = k [A] [B]2

2. माना A की सान्द्रता a तथा B की सान्द्रता b है, तब
वेग = k ab2
B की सान्द्रता तीन गुनी कर देने पर,
वेग = ka(3b)2
= 9k ab2
= 9 गुना

3. [A] तथा [B] दोनों की सान्द्रता दुगनी करने पर
वेग = k(2a) (2b)2
= 8k ab2
= 8 गुना

प्रश्न 4.10
A और B के मध्य अभिक्रिया में A और B की विभिन्न प्रारम्भिक सान्द्रताओं के लिए प्रारम्भिक वेग (r0) नीचे दिए गए हैं। A और B के प्रति अभिक्रिया की कोटि क्या है?
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हल:
माना A की कोटि m तथा B की कोटि n है। तब हम जानते हैं कि –
प्रारम्भिक वेग (r0) = [A]m [B]n
उपर्युक्त तालिका से
(r0)1 = 5.07 × 10-5 = (0.20)m (0.30)n ……………….. (i)
(r0)2 = 5.07 × 10-5 = (0.20)m (010)n …………………. (ii)
(r0)3 = 14.3 × 10-5 = (0.40)m (0.05)n …………………….. (iii)
समीकरण (i) को समीकरण (ii) से भाग देने पर –
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अतः A के प्रति अभिक्रिया की कोटि (m) = 0.5
B के प्रति अभिक्रिया की कोटि (n) = 0

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प्रश्न 4.11
2A + B → C + D अभिक्रिया की बलगतिकी अध्ययन करने पर निम्नलिखित परिणाम प्राप्त हुए। अभिक्रिया के लिए वेग नियम तथा वेग स्थिरांक ज्ञात कीजिए।
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हल:
माना A की कोटि m तथा B की कोटि n है। तब
वेग = k [A]m [B]n
उपर्युक्त तालिका से
6.0 × 10-3 = k (0.1)m (0.1)n ………………… (1)
7.2 × 10-2 = k (0.3)m (0. 2)n ………………… (2)
2.88 × 10-1 = k (0.3)m (0.4)n ……………………. (3)
2.40 × 10-2 = k (0.4)m (0.1)n
समीकरण (1) को समीकरण (4) से भाग देने पर,
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अब समीकरण (2) को समीकरण (3) से भाग देने पर,
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∴ वेग नियम = k [A] [B]2
वेग स्थिरांक की गणना
∵ वेग = k [A]m [B]n
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प्रश्न में दी गई तालिका से,
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∴ वेग स्थिरांक = 6.0 mol-2L2 min-1

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प्रश्न 4.12
A तथा B के मध्य अभिक्रिया A के प्रति प्रथम तथा B के प्रति शून्य कोटि की है। निम्न तालिका में रिक्त स्थान भरिए।
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हल:
वेग = k [A]1 [B]0 = k [A]
प्रयोग I के लिए: 2.0 × 10-2 mol L-1 min-1 = k(0.1 M)
k = 0.2 min-1

प्रयोग II के लिए:
4.0 × 10-2 mol L-1 min-1
= (0.2 min-1) [A]
या [A] = 0.2 min-1

प्रयोग III के लिए: वेग
= (0. 2 min-1) (0.4 mol L-1)
= 0.08 mol L-1 min-1

प्रयोग IV के लिए:
2.0 × 10-2 mol L-1 min-1
= 0.2 min-1 [A]
या [A] = 0.1mol L-1

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प्रश्न 4.13
नीचे दी गई प्रथम कोटि की अभिक्रियाओं के वेग स्थिरांक से अर्द्ध-आयु की गणना कीजिए –

  1. 200 s-1
  2. 2 min-1
  3. 4 year-1

गणना:
प्रथम कोटि अभिक्रिया की अर्द्ध-आयु (t1/2) तथा वेग स्थिरांक (K) में निम्न सम्बन्ध हैं –
t1/2 = \(\frac{0.693}{k}\)

1. t1/2 = \(\frac{0.693}{200 s^{-1}}\)
= 34.6 × 10-3 s

2. t1/2 = \(\frac{0.693}{2 min ^{-1}}\)
= 34.6 × 10-1 s

3. t1/2 = \(\frac{0 \cdot 693}{4 \text { year }^{-1}}\)
= 1.73 × 10-1 year

प्रश्न 4.14
14 C के रेडियोएक्टिव क्षय की अर्द्ध-आयु 5730 वर्ष है। एक पुरातत्व कलाकृति की लकड़ी में, जीवित वृक्ष की लकड़ी की तुलना में 80% 14 C की मात्रा है। नमूने की आयु का परिकलन कीजिए।
हल:
क्षय नियतांक (k) = \(\frac{0.693}{t_{1 / 2}}\)
= \(\frac{0.693}{5730}\) प्रतिवर्ष
अब t = \(\frac{2.303}{k}\) log \(\frac{[\mathrm{A}]_{0}}{[\mathrm{A}]}\)
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= 1845 वर्ष

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प्रश्न 4.15
गैस प्रावस्था में 318 K पर N2O5 के अपघटन की [2N2O5 → 4NO2 + O2] अभिक्रिया के आँकड़े नीचे दिए गए हैं –
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  1. [N2O5] एवं t के मध्य आलेख खींचिए।
  2. अभिक्रिया के लिए अर्द्ध-आयु की गणना कीजिए।
  3. log [N2O5] एवं t के मध्य ग्राफ खींचिए।
  4. अभिक्रिया के लिए वेग नियम क्या है?
  5. वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
  6. k की सहायता से अर्द्ध-आयु की गणना कीजिए तथा इसकी तुलना (ii) से कीजिए।

गणना:
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1. [N2O5] तथा समय (t) के मध्य आलेख
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2. [N2O5] का प्रारम्भिक सान्द्रण
= 1.63 × 10-2 M
इस सान्द्रण का आधा = 0.815 × 10-2 M
इस सान्द्र से सम्बन्धित समय = 1440 s
अतः t1/2 = 1440 s

3. log [N2O5] तथा t के मध्य ग्राफ –
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4. चूँकि log [N2O5] तथा समय (t) के मध्य ग्राफ एक सरल रेखा है; अत: यह एक प्रथम कोटि अभिक्रिया है;
अतः वेग नियम है –
वेग = k [N2O5]

5. रेखा की ढाल = – \(\frac{k}{2.303}\)
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6.
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जबकि (ii) में अर्द्ध-आयु 1440 s है।

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प्रश्न 4.16
प्रथम कोटि की अभिक्रिया के लिए वेग स्थिरांक 60s-1 है। अभिक्रिया को अपनी प्रारम्भिक सान्द्रता \(\frac{1}{16}\) वाँ भाग रह जाने में कितना समय लगेगा?
हल:
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए,
t = \(\frac{2.303}{k}\) log \(\frac{[\mathrm{A}]_{0}}{[\mathrm{A}]}\)
यदि प्रारम्भिक सान्द्रता R0 हो तो
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प्रश्न 4.17
नाभिकीय विस्फोट का 28.1 वर्ष अर्द्ध-आयु वाला एक उत्पाद 90Sr होता है। यदि कैल्सियम के स्थान पर lµg, 90Sr नवजात शिशु की अस्थियों में अवशोषित हो जाए और उपापचयन से ह्रास न हो तो इसकी 10 वर्ष एवं 60 वर्ष पश्चात् कितनी मात्रा रह जाएगी?
हल:
रेडियोऐक्टिव क्षय प्रथम कोटि बलगतिकी का अनुसरण करता है।
90 sr का क्षय नियतांक (k) = \(\frac{0 \cdot 693}{t_{1 / 2}}\)
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= 2.446 × 10-2 प्रतिवर्ष
प्रश्नानुसार,
a = 1µg, = 10 वर्ष, k = 2.466 × 10-2 प्रतिवर्ष-1
∴k = \(\frac{2.303}{t}\) log \(\frac{a}{a-k}\) ……………. (i)
या 2.466 × 10-2 = \(\frac{2.303}{10}\) log \(\frac{1}{(a-x)}\)
या 2.466 × 10-2 = 2.2303 [log1 – log (a – x)]
या 2.466 × 10-2 = -0.2303 log (a – x)
या log (a – x) = \(\frac{2.466 \times 10^{-2}}{0.2303}\)
= – 01071
या 10 वर्ष पश्चात शेष मात्रा (a – x)
Antilog \(\bar{1}\).8929 = 0.7814 µg
अब 60 वर्ष पश्चात् शेष मात्रा के लिए
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या (a – x) = Antilog \(\bar{1}\).3575 = 0.2278 µg
अतः 60 वर्ष पश्चात् शेष मात्रा = 0.2278 µg.

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प्रश्न 4.18
दर्शाइए कि प्रथम कोटि की अभिक्रिया में 99% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय 90% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगने वाले समय से दुगना होता है।
हल:
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए,
t = \(\frac{2.303}{k}\) log \(\frac{a}{a-x}\)
∴ x = a का 99% = 0.99a
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अब x = a का 90% = 0.90a
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समीकरण (i) को (ii) से भाग देने पर,
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अतः 99% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगा समय 90% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगने वाला समय का दुगना है।

प्रश्न 4.19
एक प्रथम कोटि की अभिक्रिया में 30% वियोजन होने में 40 मिनट लगते हैं। t1/2 की गणना कीजिए।
गणना:
∵ वियोजन 30% होता है।
∴ x = a का 30%
= 0.30 a
प्रथम कोटि अभिक्रिया के लिए,
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= 77.7 min

प्रश्न 4.20
543 K ताप पर एजोआइसोप्रोपेन के हेक्सेन तथा नाइट्रोजन में विघटन के निम्न आँकड़े प्राप्त हुए। वेग स्थिरांक की गणना कीजिए।
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गणना:
अभिक्रिया का समीकरण निम्नवत् है –
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∵ एजोआइसोप्रोपेन का विघटन एक प्रथम कोटि अभिक्रिया है –
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प्रश्न 4.21
स्थिर आयतन पर, SO2Cl2 के प्रथम कोटि के ताप अपघटन पर निम्न आँकड़े हुए –
SO2Cl2(g) → S02 (g) + Cl2 (g)
अभिक्रिया वेग की गणना कीजिए जब कुल दाब 0.65 atm हो।
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गणना:
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∵ SO2Cl2 का विघटन एक प्रथम कोटि अभिक्रिया है।
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∵ Pt = 0.65 atm, तथा P0 + p = 0.65 atm
∴ p = 0.65 – P0
= 0.65 – 0.50
= 0.15 atm
∴ SO2Cl2 का समय है पर दाब, = P0 – p
= 0.50 – 0.15 atm
= 0.35 atm
अतः अभिक्रिया का वेग
= (2.2316 × 10-3 s-1) (0.35 atm)
= 7.8 × 10-5 atm s-1

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प्रश्न 4.22
विभिन्न तापों पर N2O5 के अपघटन के लिए वेग स्थिरांक नीचे दिए गए हैं –
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In k एवं 1/T के मध्य ग्राफ खींचिए तथा A एवं Ea की गणना कीजिए। 30°C तथा 50°C पर वेग स्थिरांक को प्रायुक्त कीजिए।
हल:
log k तथा 1/T के मध्य ग्राफ खींचने के लिए, हम दिए गए आँकड़ों को निम्नलिखित प्रकार लिख सकते हैं –
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उपर्युक्त मानों पर आधारित ग्राफ निम्नलिखित चित्र में प्रदर्शित है –
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हम जानते हैं कि
log k = log A – \(\frac{E_{a}^{*}}{2.303 R T}\)
या logk = (-\(\frac{E}{2.303 R}\)) \(\frac{1}{T}\) + log A
इस समीकरण की तुलना y = mx + c से करते हैं जो अन्त:खण्ड रूप में रेखा की समीकरण है।
log A = y – अक्ष पर अर्थात् k अक्ष पर अन्त:खण्ड का मान
= (-1 + 7.2) = 6.2 [y2 – y1 = – 1 – (-7.2)]
आवृत्ति गुणक A = antilog 6.2
= 1585000
= 1.585 × 106 collisions s-1
वेग स्थिरांक k के मान ग्राफ से निम्नलिखित प्रकार प्राप्त किए जा सकते हैं –
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प्रश्न 4.23
546 K ताप पर हाइड्रोकार्बन के अपघटन में वेग स्थिरांक 2.418 × 10-5 s-1 है। यदि सक्रियण ऊर्जा 179.9 kJ/mol हो तो पूर्व-घातांकी गुणन का मान क्या होगा?
हल:
दिया है:
k = 2.418 × 10-5 s-1, Ea = 179.9 kJ mol-1, T = 546 K
आरेनिअस समीकरण के अनुसार
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प्रश्न 4.24
किसी अभिक्रिया A → उत्पाद के लिए k = 2.0 × 10-2 s-1 है। यदि A की प्रारम्भिक सान्द्रता 1.0 mol L-1 हो तो 100 s के पश्चात् इसकी सान्द्रता क्या रह जाएगी?
हल:
प्रश्न में दी गई k की इकाई से प्रदर्शित होता है कि अभिक्रिया प्रथम कोटि की है। अतः
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log [A] = – 0.8684
∴ [A] = Antilog (-0.8684)
= Antilog (\(\bar{1}\).1316)
= 00.1354 mol L-1

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प्रश्न 4.25
अम्लीय माध्यम में सुक्रोस का ग्लूकोस एवं फ्रक्टोस में विघटन प्रथम कोटि की अभिक्रिया है। इस अभिक्रिया की अर्द्ध-आयु 3.0 घण्टे है। 8 घण्टे बाद नमूने में सुक्रोस का कितना अंश बचेगा?
हल:
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∵ सुक्रोस का ग्लूकोस एवं फ्रक्टोस में विघटन प्रथम कोटि की अभिक्रिया है।
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प्रश्न 4.26
हाइड्रोकार्बन का विघटन निम्नांकित समीकरण के अनुसार होता है। Ea की गणना कीजिए।
k = (4.5 × 1011 s-1)e-28000 K/T
गणना:
आरेनिअस समीकरण से,
k = Ae-Ea/RT
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दोनों ओर e की घातों की तुलना करने पर,
– \(\frac{28000 K}{T}\) = –\(\frac{E_{a}}{R T}\)
या Ea = 28000 K × R
= 28000 K × 8.314J K-1 mol-1
= 232.79kJ mol-1

प्रश्न 4.27
H2O2 के प्रथम कोटि के विघटन को निम्नांकित समीकरण द्वारा लिख सकते हैं –
logk = 14.34 – 1.25 × 104 K/T
इस अभिक्रिया के लिए Ea की गणना कीजिए। कितने ताप पर इस अभिक्रिया की अर्द्ध-आयु 256 मिनट होगी?
गणना:
आरेनिअस समीकरण से,
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इस समीकरण की तुलना प्रश्न में दी गई समीकरण से करने पर,
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प्रश्न 4.28
10°C ताप पर A के उत्पाद में विघटन के लिए k का मान 4.5 × 103 s-1 तथा मिश्रण ऊर्जा 60 kJ mol-1 है। किस ताप पर k का मान 1.5 × 104 s-1 होगा?
हल:
k1 = 4.5 × 10-3 s-1, T1 = 10 + 273 = 283 K
k2 = 1.5 × 104 s-1, T2 = ?
Ea = 60 kJ mol-1
आरेनिअस समीकरण से
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प्रश्न 4.29
298 K ताप पर प्रथम कोटि की अभिक्रिया के 10% पूर्ण होने का समय 308 K ताप पर 25% अभिक्रिया पूर्ण होने में लगे समय के बराबर है। यदि A का मान 4 × 1010 s-1 हो तो 318 K ताप तथा Ea की गणना कीजिए।
गणना:
298 K ताप पर अभिक्रिया की प्रारम्भिक सान्द्रता a (माना) को 10% वियोजित (अर्थात् ϕa) होने में लगने वाला समय = t1, तब
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इसी प्रकार 308 K पर,
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अब आरेनिअस समीकरण से,
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या k = Antilog (- 2.0022)
= Antilog (\(\bar{3}\).9978) = 9.949 × 10-3 s-1

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प्रश्न 4.30
ताप में 293 K से 313 K तक वृद्धि करने पर किसी अभिक्रिया का वेग चार गुना हो जाता है। इस अभिक्रिया के लिए सक्रियण ऊर्जा की गणना यह मानते हुए कीजिए कि इसका मान ताप के साथ परिवर्तित नहीं होता।
गणना:
माना 293 K पर अभिक्रिया का वेग k1 तथा 313 K पर k2 है, तब प्रश्नानुसार,
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Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 12 ऊष्मागतिकी

Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 12 ऊष्मागतिकी Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 12.1
कोई गीजर 3.0 लीटर प्रति मिनट की दर से बहते हुए जल को 27°C से 77°C तक गर्म करता है। यदि गीजर का परिचालन गैस बर्नर द्वारा किया जाए तो ईंधन के व्यय की क्या दर होगी? बर्नर के ईंधन की दहन-ऊष्मा 4.0 × 104 Jg-1 है?
उत्तर:
दिया है:
ताप में वृद्धि
∆T = (77 – 27)°C
= 50°C
\(S_{\mathrm{H}_{2} \mathrm{O}}\) = 4.2 × 103 Jkg-1°C-1
ईंधन की दहन ऊष्मा
HC = 4 × 104 Jg-1
प्रति मिनट प्रवाहित जल का द्रव्यमान, m = 3 ली
= 3 किग्रा (∴ 1 ली० = 1kg)
जल द्वारा गर्म होने के लिए ली गई ऊष्मा,
θ = ms ∆T
माना ईंधन के जलने की दर m’ प्रति मिनट है। ……………. (i)
अतः ईंधन द्वारा 1 मिनट में दी गई ऊष्मा
θ = m’HC
ईंधन द्वारा प्रति मिनट दी गई ऊष्मा = प्रति मिनट ली गई ऊष्मा।
∴ m’HC = ms ∆T
∴ m’ = \(\frac{m s \Delta T}{H_{\mathrm{C}}}\)
= \(\frac{3 \times 4.2 \times 10^{3} \times 50}{4 \times 10^{4}}\)
= 15.75 g
= 16 gm
अतः ईंधन 16 gm / मिनट की दर से जलता है।

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प्रश्न 12.2
स्थिर दाब पर 2.0 × 10-2 kg नाइट्रोजन (कमरे के ताप पर) के ताप में 45°C वृद्धि करने के लिए कितनी ऊष्मा की आपूर्ति की जानी चाहिए? (N2) का अणुभार 28; R = 8.3 Jmol-1 K-1)।
उत्तर:
दिया है:
N2 का अणु भार = 28
गैस का द्रव्यमान, m = 2 × 10-2 किग्रा
ताप वृद्धि T = 45°C
R = 8.3 जूल प्रति मोल प्रति K
आवश्यक ऊष्मा θ = ?
दी गई गैस द्रव्यमान में, ग्राम मोलों की संख्या,
µ = \(\frac{m}{2gm}\) = \(\frac{20}{8}\) = 0.714
R = 8.3 mol-1K-1
माना नियत दाब पर गैस की मोलर विशिष्ट ऊष्मा Cp है।
Cp = \(\frac{7}{2}\) R = \(\frac{20}{8}\) × 8.3 J mol-1 K
दी गई ऊष्मा Q = ?
सूत्र Q = nCp ∆θ से,
Q = nCp ∆θ
= 0.714 × \(\frac{7}{2}\) × 8.3 × 45 J
= 933.75 J
= 934 J

प्रश्न 12.3
व्याख्या कीजिए कि ऐसा क्यों होता है?
(a) भिन्न – भिन्न तापों T1 व T2 के दो पिण्डों को यदि ऊष्मीय संपर्क में लाया जाए तो यह आवश्यक नहीं कि उनका अंतिम ताप (T1 + T2)/2 ही हो।
(b) रासायनिक या नाभिकीय संयंत्रों में शीतलक (अर्थात् द्रव जो संयंत्र के भिन्न-भिन्न भागों को अधिक गर्म होने से रोकता है) की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होनी चाहिए।
(c) कार को चलाते-चलाते उसके टायरों में वायुदाब बढ़ जाता है।
(d) किसी बंदरगाह के समीप के शहर की जलवायु, समान अक्षांश के किसी रेगिस्तानी शहर की जलवायु से अधिक शीतोष्ण होती है।
उत्तर:
(a) इसका कारण यह है कि अन्तिम ताप वस्तुओं को अलग-अलग तापों के अतिरिक्त उनकी. ऊष्मा धारिताओं पर भी निर्भर करता है।
(b) चूँकि शीतलक संयन्त्र से अभिक्रिया जनित ऊष्मा को हटाता है अतः शीतलक की विशिष्ट ऊष्मा धारिता अधिक होनी चाहिए ताकि कम ताप-वृद्धि के लिए अधिक ऊष्मा शोषित कर सके।
(c) कार को चलाते-चलाते, सड़क के साथ घर्षण के कारण टायर का ताप बढ़ता है। इस कारण टायर में भरी हवा का दाब बढ़ जाता है।
(d) बन्दरगाह के समीप के शहरों की आपेक्षिक आर्द्रता समान अक्षांश के रेगिस्तानी शहर की तुलना में अधिक रहती है। इस कारण बन्दरगाह के समीप शहर की जलवायु रेगिस्तानी शहर की अपेक्षा शीतोष्ण बनी रहती है।

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प्रश्न 12.4
गतिशील पिस्टन लगे किसी सिलिंडर में मानक ताप व दाब पर 3 मोल हाइड्रोजन भरी है। सिलिंडर की दीवारें ऊष्मारोधी पदार्थ की बनी हैं तथा पिस्टन को उस पर बालू की परत लगाकर ऊष्मारोधी बनाया गया है। यदि गैस को उसके आरंभिक आयतन के आधे आयतन तक संपीडित किया जाए तो गैस का दाब कितना बढ़ेगा?
उत्तर:
माना V1 = x
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द्विपरमाणुक गैस का हाइड्रोजन के लिए
γ = \(\frac{7}{5}\) = 1.4
चूँकि ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है, अतः प्रक्रम ऊष्मारोधी है।
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प्रश्न 12.5
रुद्धोष्म विधि द्वारा किसी गैस की अवस्था परिवर्तन करते समय उसकी एक साम्यावस्था A से दूसरी साम्यावस्था B तक ले जाने में निकाय पर 22.3J कार्य किया जाता है। यदि गैस को दूसरी प्रक्रिया द्वारा अवस्थाA से अवस्था B में लाने में निकाय द्वारा अवशोषित नेट ऊष्मा 9.35 cal है तो बाद के प्रकरण में निकाय द्वारा किया गया नेट कार्य कितना है?
उत्तर:
दिया है:
dw = 22.3J …………….. (i)
ऊष्मागतिकी के.प्रथम नियम से
∴ dQ = dU + dw’ ……………… (ii)
ऊष्मारोधी प्रक्रम के लिए dU = 0
∴ dQ = 0 + dw’ or dw’ = dQ
= 9.35 × 4.19J
दिया है:
dp = 9.35 cal (1 cal = 4.19J) …………….. (iii)
∴ समी (ii) व (iii) से,
dw’ = 9.35 × 4.19 J
= 38.97 J
माना निकाय पर कृत कार्य W’ है।
W’ = dw’ – dW
= 38.97 – 22.3
= 16.67
= 16.7J

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प्रश्न 12.6
समान धारिता वाले दो सिलिंडर A तथा B एक-दूसरे से स्टॉपकॉक के द्वारा जुड़े हैं। A में मानक ताप व दाब पर गैस भरी है जबकि B पूर्णतः निर्वातित है। स्टॉपकॉक यकायक खोल दी जाती है। निम्नलिखित का उत्तर दीजिए:
(a) सिलिंडर A तथा B में अंतिम दाब क्या होगा?
(b) गैस की आंतरिक ऊर्जा में कितना परिवर्तन होगा?
(c) गैस के ताप में क्या परिवर्तन होगा?
(d) क्या निकाय की माध्यमिक अवस्थाएँ (अंतिम साम्यावस्था प्राप्त करने के पूर्व) इसके P – V – T पृष्ठ पर होंगी?
उत्तर:
(a) दिया है:
मानक दाब = P1 = 1 atm, V1 = V
P2 = ? तथा V2 = 2V
चूँकि सिलिंडर B निर्वातित है अतः स्टॉपकॉक खोलने पर गैस का निर्वात में मुक्त प्रसार होगा। अतः गैस न तो कोई कार्य करेगी और न ही ऊष्मा का आदान-प्रदान होगा। अर्थात् गैस की आन्तरिक ऊर्जा व ताप स्थिर रहेंगे। पुनः बॉयल के नियम से,
P1V1 = P2V2
∴ P2 = \(\frac{P_{1} V_{1}}{V_{2}}\) = \(\frac{1×V}{2v}\) = 0.5 atm

(b) चूँकि ω = 0 व θ = 0
∴ ∆V = 0
अर्थात् गैस की आन्तरिक ऊर्जा अपरिवर्तित रहेगी।

(c) चूँकि आन्तरिक ऊर्जा अपरिवर्तित रहती है। अतः गैस का ताप भी अपरिवर्तित रहेगा।

(d) चूँकि गैस का मुक्त प्रसार हुआ है। इस कारण माध्यमिक अवस्थाएँ साम्य अवस्थाएँ नहीं हैं। अतः ये अवस्थाएँ दाब-आयतन-ताप पृष्ठ पर नहीं होगी।

Bihar Board Class 11 Physics Solutions Chapter 12 ऊष्मागतिकी

प्रश्न 12.7
एक वाष्प इंजन अपने बॉयलर से प्रति मिनट 3.6 × 109 J ऊर्जा प्रदान करता है जो प्रति मिनट 5.4 × 108 J कार्य देता है। इंजन की दक्षता कितनी है? प्रति मिनट कितनी ऊष्मा अपशिष्ट होगी?
उत्तर:
दिया है:
प्रति मिनट बॉयलर द्वारा अवशोषित ऊष्मा
= Q1 = 3.6 × 109 J
भाप इंजन द्वारा प्रति मिनट कृत कार्य
= 5.4 × 108 J
प्रति मिनट व्यय/उत्सर्जित ऊष्मा = Q2 = ?
इंजन की प्रतिशत दक्षता n% = ?
हम जानते हैं कि n% = \(\frac{W}{Q_{1}} \times 100\)
∴n% = \(\frac{5.4 \times 10^{8} \mathrm{J}}{3.6 \times 10^{9} \mathrm{J}}\) × 100
= \(\frac{3}{20}\) × 100 = 15%
सूत्र, Q1 = W + Q2 से,
Q2 = Q1 – W
= 36 × 108 – 5.4 × 108
= 30.6 × 108 J/min
= 30.6 × 109 J/min
= 3.1 × 109 J/min

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प्रश्न 12.8
एक हीटर किसी निकाय को 100 W की दर से ऊष्मा प्रदान करता है। यदि निकाय 75 Js-1 की दर से कार्य करता है, तो आंतरिक ऊर्जा की वृद्धि किस दर से होगी?
उत्तर:
दिया है:
θ = 100 W = 100 Js-1
W = 75 Js-1
∴ ∆V = θ – W
= 100 – 75
= 25 Js-1
अत: निकाय की आन्तरिक ऊर्जा वृद्धि दर 25 Js-1 है।

प्रश्न 12.9
किसी ऊष्मागतिकीय निकाय को मूल अवस्था से मध्यवर्ती अवस्था तक (चित्र) में दर्शाये अनुसार एक रेखीय प्रक्रम द्वारा ले जाया गया है। एक समदाबी प्रक्रम द्वारा इसके आयतन को E से F तक ले जाकर मूल मान तक कम कर देते हैं। गैस द्वारा D से E तथा वहाँ से F तक कुल किए गये कार्य का आंकलन कीजिए।
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उत्तर:
माना गैस D से E व E से F तक कृत कार्य = W
अतः W = W1 + W2
मानां W1 = D से E तक प्रसार में कृत कार्य
= DEHGD का क्षेत्रफल = ADEF का क्षे० + आयत EHGF का क्षे० …………….. (ii)
दिया है:
EF = 5 – 2 = 3 litre = 3 × 10-3 m3
DF = 600 – 300 = 300 Nm-2
FG = 300 – 0 = 300 Nm2
GH = 5 – 2 = 3 × 10-3 m3
∴ समीकरण (ii) से,
∴W1 = [\(\frac{1}{2}\) × 3 × 10-3 × 300 + 3 × 10-3 × 300] J ……………. (iii)
माना E से F (संपीडन) तक कृत कार्य = W2 = EHGF का
= – FG × GH
= -(300 – 0) × (5 – 2) × 10-3
= – 300 × 3 × 10-3 J ……………….. (iv)
∴ समी० (i) (iii) व (iv) से,
W = \(\frac{1}{2}\) × 3 × 10-3 × 300 + 3 × 10-3
= 3 × 103 × 150 J = 450 × 10-3 J
= 0.450 J

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प्रश्न 12.10
खाद्य पदार्थ को एक प्रशीतक के अंदर रखने पर उसे 9°C पर बनाए रखता है। यदि कमरे का ताप 36°C है तो प्रशीतक के निष्पादन गुणांक का आंकलन कीजिए।
उत्तर:
दिया है:
T1 = 273 + 36 = 309 K
T2 = 9°C = 282 K
β = ?
सूत्र β = \(\frac{T_{2}}{T_{1}-T_{2}}\) से
β = \(\frac{283}{309-282}\) = \(\frac{282}{7}\) = 10.4

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युतरसायन

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युतरसायन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युतरसायन

Bihar Board Class 12 Chemistry वैद्युतरसायन Text Book Questions and Answers

पाठ्यनिहित प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 3.1
निकाय Mg2+ | Mg का मानक इलेक्ट्रोड विभव आप किस प्रकार ज्ञात करेंगे?
उत्तर:
निकाय M2+ | Mg का मानक इलेक्ट्रोड विभव ज्ञात करने के लिए एक सेल स्थापित करते हैं, जिसमें एक इलेक्ट्रोड Mg | MgSO4 (1M), एक मैग्नीशियम के तार को IM MgSO4 विलयन में डुबोकर व्यवस्थित करते हैं तथा मानक हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड Pt. H2 (1 atm) | H+ (1M) को दूसरे इलेक्ट्रोड की भाँति व्यवस्थित करते हैं (चित्र)।
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सेल का वि० वा० बल मापते हैं तथा वोल्टमीटर में विक्षेप की दिशा को भी नोट करते हैं। विक्षेप की दिशा प्रदर्शित करती है कि इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह मैग्नीशियम इलेक्ट्रोड से हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड की ओर है अर्थात् मैग्नीशियम इलेक्ट्रोड पर आक्सीकरण तथा हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड पर अपचयन होता है। अतः सेल को निम्नवत् व्यक्त किया जा सकता है –
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प्रश्न 3.2
क्या आप एक जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट का विलयन रख सकते हैं?
उत्तर:
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अब हम यह जाँच करेंगे कि निम्नलिखित अभिक्रिया होगी अथवा नहीं –
Zn(s) + CuSO4 (aq) → ZnSO4 (aq) + Cu(s)
सेल को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है –
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चूँकि \(\boldsymbol{E}_{\mathbf{1}}^{\Theta}\) धनात्मक है; अतः अभिक्रिया होगी तथा हम जिंक के पात्र में कॉपर सल्फेट नहीं रख सकते हैं।

प्रश्न 3.3
मानक इलेक्ट्रोड विभव की तालिका का निरीक्षण कर तीन ऐसे पदार्थ बताइए जो अनुकूल परिस्थितियों में फेरस आयनों को आक्सीकृत कर सकते हैं।
उत्तर:
फेरस आयनों के आक्सीकरण का अर्थ है –
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केवल वे पदार्थ Fe2+ को Fe3+ में आक्सीकृत कर सकते हैं जो प्रबल आक्सीकरण हों तथा जिनका धनात्मक अपचायक विभव 0.77 V से अधिक हो जिससे सेल अभिक्रिया का वि०वा० बल धनात्मक प्राप्त हो सके। यह स्थिति उन तत्वों पर लागू हो सकती है जो विद्युत-रासायनिक श्रेणी में Fe3+ | Fe2+ से नीचे स्थित हैं; उदाहरणार्थ – Br, Cl तथा I.

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प्रश्न 3.4
pH = 10 के विलयन के सम्पर्क वाले हाइड्रोजन इलैक्ट्रोड के विभव का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड के लिए,
H+ + e → \(\frac{1}{2}\) H2
अब नर्नस्ट समीकरण के अनुसार,
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प्रश्न 3.5
एक सेल के emf का परिकलन कीजिए, जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है।
दिया गया है:
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गणना:
सेल अभिक्रिया:
Ni(s) + 2Ag+ (0.02 M) →Ni2+ (0.160 M) + 2Ag(s) के लिए नस्ट समीकरण से –
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प्रश्न 3.6
एक सैल जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है,
2Fe+3 (aq) + 2I (aq) → 2Fe2+ (aq) + I2 (s) का 298 K ताप पर E0(cell) = 0.236 V है। सैल अभिक्रिया की मानक गिब्ज ऊर्जा एवं साम्य स्थिरांक का परिकलन कीजिए।
हल:
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हम जानते हैं कि
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प्रश्न 3.7
किसी विलयन की चालकता तनुता के साथ क्यों घटती है?
उत्तर:
विलयन के एकांक आयतन में उपस्थित आयनों की संख्या को चालकता कहते हैं। विलयन की तनुता के साथ प्रति एकांक आयतन आयनों की संख्या घटती है जिससे चालकता भी घटती है।

प्रश्न 3.8
जल की \(\Lambda^{\circ} m\) ज्ञात करने का एक तरीका बताइए।
उत्तर:
अनन्त तनुता पर NaOH, HCl तथा NaCl मोलर चालकताएँ ज्ञात होने पर अनन्त तनुता पर जल की A°m ज्ञात की जा सकती है।
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प्रश्न 3.9
0.025 mol L-1 मेथेनोइक अम्ल की चालकता 46.1 S cm2 mol-1 हैं। इसकी वियोजन मात्रा एवं वियोजन स्थिरांक का परिकलन कीजिए। दिया गया है कि –
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हल:
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= 349.6 + 54.6
= 404.2 S cm mol-1
दिया है:
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प्रश्न 3.10
यदि एक धात्विक तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा 2 घंटों के लिए प्रवाहित होती है तो तार में से कितने इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होंगे?
हल:
Q (कूलॉम) = i (ऐम्पियर) × t(s)
= (0.5 ऐम्पियर) × (2 × 60 × 60s)
= 3600 C
996500C का प्रवाह 1 मोल इलेक्ट्रॉन अर्थात् 6.02 × 1023 इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह के तुल्य होता है।
∴ 3600 C के तुल्य इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह
\(\frac{6.02 \times 10^{23}}{96500}\) × 3600
= 2.246 × 1022 इलेक्ट्रॉन

प्रश्न 3.11
उन धातुओं की एक सूची बनाइए जिनका वैद्युत अपघटनी निष्कर्षण होता है।
उत्तर:
Na, Ca, Mg तथा Al.

प्रश्न 3.12
निम्नलिखित अभिक्रिया में \(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) आयनों के एक मोल के अपचयन के लिए कूलॉम में विद्युत की कितनी मात्रा की आवश्यकता होगी?
\(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) + 14H+ + 6e → 2Cr3+ + 7H2O
उत्तर:
दी हुई अभिक्रिया से,
\(\mathrm{Cr}_{2} \mathrm{O}_{7}^{2-}\) आयनों के एक मोल को 6 इलेक्ट्रॉनों की आवश्यकता होती है।
∴ F = 6 × 96500 C
= 579000 C
अत: Cr3+ में अपचयन के लिए आवश्यक विद्युत
= 579000C

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प्रश्न 3.13
चार्जिंग के दौरान प्रयुक्त पदार्थों का विशेष उल्लेख करते हुए लेड-संचायक सैल की चार्जिंग क्रियाविधि का वर्णन रासायनिक अभिक्रियाओं की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
चार्जिंग के दौरान सैल वैद्युत अपघटनी सेल की भाँति कार्य करती है। रिचार्जिंग के दौरान निम्न अभिक्रियायें होती हैं –
कैथोड पर:
PbSO4(s) + 2e → Pb(s) + SO42- (aq)

ऐनोड पर:
PbSO4 (s) + 2H2O (l) → PbO2 (s) + SO42- (aq) + 4H+ (aq) + 2e

परिणामी अभिक्रिया:
2PbSO4(s) + 2H2O(l) → Pb(s) + PbO2 (s) + 4H+ (aq) + 2SO42- (aq)

प्रश्न 3.14
हाइड्रोजन को छोड़कर ईंधन सेलों में प्रयुक्त किए जा सकने वाले दो अन्य पदार्थ सुझाइए।
उत्तर:
मेथेन (CH4), मेथेनॉल (CH3OH)।

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प्रश्न 3.15
समझाइए कि कैसे लोहे पर जंग लगने का कारण एक विद्युत रासायनिक सेल बनना माना जाता है।
उत्तर:
लोहे की सतह पर उपस्थित जल की परत वायु के अम्लीय ऑक्साइडों, जैसे : CO2, SO2 आदि को घोलकर अम्ल बना लेती है जो वियोजित होकर H+ आयन देते हैं:
H2O + CO2 → H2CO3 ⇄ 2H+ + CO32- आयनों की उपस्थिति में, लोहा कुछ स्थलों पर से इलेक्ट्रॉन खोना प्रारम्भ कर देता है तथा फेरस आयन बना लेता है। अतः ये स्थल ऐनोड का कार्य करते हैं –
Fe(s) → Fe2+ (aq) 2e
इस प्रकार धातु से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन अन्य स्थलों पर पहुँच जाते हैं। जहाँ H+ आयन तथा घुली हुई ऑक्सीजन इन इलेक्ट्रॉनों को ग्रहण कर लेती है तथा अपचयन अभिक्रिया हो जाती है। अतः ये स्थल कैथोड की भाँति कार्य करते हैं –
O2(g) + 4H+ (aq) 4e → 2H2O (l)
सम्पूर्ण अभिक्रिया इस प्रकार दी जाती है –
2Fe(s) = O2(g) + 4H+ (aq) → 3Fe2+(aq) + 2H2O (l)
इस प्रकार लोहे की सतह पर विद्युत रासायनिक सेल बन जाता है। फेरस आयन पुनः वायुमण्डलीय ऑक्सीजन द्वारा ऑक्सीकृत होकर फेरिक आयनों में परिवर्तित हो जाते हैं जो जल अणुओं से संयुक्त होकर जलीय फेरिक ऑक्साइड Fe2O3. xH2O बनाते हैं। यह जंग कहलाता है।

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अभ्यास के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 3.1
निम्नलिखित धातुओं को उस क्रम में व्यवस्थित कीजिए जिसमें वे एक-दूसरे को उनके लवणों के विलयनों में से प्रतिस्थापित करती हैं।
Al, Cu, Fe, Mg एवं Zn
उत्तर:
Mg, Al, Zn, Fe, Cu

प्रश्न 3.2
नीचे दिए गए मानक इलेक्ट्रोड विभवों के आधार पर धातुओं को उनकी बढ़ती हुई अपचायक क्षमता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
K+|K = – 2.93V, Ag+ | Ag = 0.80V,
Hg2+ | Hg = 0.79V
Mg2+ | Mg = – 2.37V, Cr3+ | Cr = – 0.74V
उत्तर:
ऑक्सीकरण विभव उच्च होने से यह तात्पर्य है कि उस धातु का सरलता से ऑक्सीकरण हो जाएगा अर्थात उसकी अपचायक क्षमता अधिक होगी। अत: धातुओं की अपचायक क्षमता का बढ़ता क्रम निम्नलिखित है –
Ag < Hg < Cr < Mg < K

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प्रश्न 3.3
उस गैल्वेनी सेल को दर्शाइए जिसमें निम्नलिखित अभिक्रिया होती है –
Zn(s) + 2Ag+ (aq) → zn2+ (aq) + 2Ag(s) अब बताइए –

  1. कौन-सा इलेक्ट्रॉड ऋणात्मक अवेशित है।
  2. सेल में विद्युत-धारा के वाहक कौन से हैं।
  3. प्रत्येक इलेक्ट्रोड पर होने वाली अभिक्रिया क्या

उत्तर:
सेल को निम्नांकित चित्र के अनुसार व्यवस्थित करते हैं। सेल को निम्नलिखित प्रकार दर्शाया जाएगा –

  1. ऐनोड (जिंक इलेक्ट्रोड) ऋणावेशित होगा।
  2. सेल में विद्युत धारा के वाहक इलेक्ट्रॉन हैं।
  3. इलेक्ट्रोडों पर होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –
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प्रश्न 3.4
निम्नलिखित अभिक्रियाओं वाले गैल्वेनी सेल का मानक सेल-विभव परिकलित कीजिए।

  1. 2Cr(s) + 3Cd2+ (aq) → 2Cr+ (aq) + 3Cd
  2. Fe2+ (aq) + Ag+ (aq) → Fe3+ (aq) + Ag(s)

उपरोक्त अभिक्रियाओं के लिए \(\Delta_{r} G^{\Theta}\) एवं साम्य स्थिरांकों की भी गणना कीजिए।
गणना –
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= -0.40 V – (-0.74 V)
= + 0.34 V
ΔrGΘ = – nFEΘ(सेल)
= – 6mol × 96500 C mol-1
= -196860 J mol-1
= -196.86 KJ mol-1
ΔrGΘ = 2.303 RT log Kc
Kc = Antilog 34.5014
= 3.173 × 104

2.
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= -2985 CV mol-1mol-1
= -2895 J mol-1
= -2895 KJ mol-1
ΔrGΘ = – 2.303 RT log Kc
= -2895 = -2.303 × 8.314 × 298 × log Kc
log Kc = 0.50704
Kc = Antilog (0.5074)
= 3.22

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प्रश्न 3.5
निम्नलिखित सेलों की 298K पर नेर्नस्ट समीकरण एवं emf लिखिए।

  1. Mg(s) | Mg2+ (0.001 M) || Cu2+ (0.0001 M) | Cu(s)
  2. Fe(s) | Fe2+ (0.001 M) || H+ (1 M) | H2 (g)(1 bar) | Pt(s)
  3. Sn(s) | Sn2+ (0.050 M) || H+ (0.020 M) | H2(g) (1 bar) | Pt(s)
  4. Pt(s) | Br2(1) | Br (0.010 M) || H2 + (0.030 M) | H2(g) (1 bar) | Pt (s)

हल:
1. सेल अभिक्रिया:
Mg + Cu2+ → Mg2+ + Cu (n = 2)
नेन्स्ट समीकरण:
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2. सेल अभिक्रिया:
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3. सेल अभिक्रिया:
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4. सेल अभिक्रिया:
2Br + 2H+ → Br2 + H2

नेस्ट समीकरण:
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इस प्रकार ऑक्सीकरण हाइड्रोजन इलेक्ट्रोड पर आक्सीकरण पर तथा अपचयन Br2 इलेक्ट्रोड होगा।
E(सेल) = 1.2887

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प्रश्न 3.6
घड़ियों एवं अन्य युक्तियों में अत्यधिक उपयोग में आने वाली बटन सेलों में निम्नलिखित अभिक्रिया होती है –
Zn(s) + Ag2O (s) + H2O (l) → Zn2+ (aq) + 2Ag(s) + 2OH (aq)
अभिक्रिया के लिए ∆rGΘ एवं EΘ ज्ञात कीजिए।
हल:
Zn ऑक्सीकृत तथा Ag2O अपचयित होता है। (Ag+ आयन, Ag में परिवर्तित होते हैं)
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= 0.344 + 0.76
= 1.104
तथा ∆GΘ = -nFEΘ(सेल)
= – 2 × 96500 × 1.104 J
= -2,13 × 105 J

प्रश्न 3.7
किसी विद्युतअपघट्य के विलयन की चालकता एवं मोलर चालकता की परिभाषा दीजिए। सान्द्रता के साथ इनके परिवर्तन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विद्युतअपघट्य के विलयन की चालकता : यह प्रतिरोध R का व्युत्क्रम होता है तथा उस सरलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिससे धारा किसी चालक में प्रवाहित होती है।
c = \(\frac{1}{R}\) = \(\frac{A}{ρl}\) (∵R = ρ \(\frac{A}{l}\))
k = \(\frac{A}{l}\)
यह k विशिष्ट चालकत्व है।
चालकता का SI मात्रक सीमेन्ज है जिसे प्रतीक ‘S’ से निरूपित किया जाता है तथा यह ohm-1 या Ω-1 के तुल्य होता है।

मोलर चालकता (Molar conductivity):
वह चालकता जो 1 मोल विद्युतअपघट्य को विलयन में घोलने पर समस्त आयनों द्वारा दर्शाई जाती है, मोलर चालकता कहलाती है, इसे \(\Lambda_{m}\) (लैम्ब्डा) से व्यक्त किया जाता है। यदि विद्युत अपघट्य विलयन के V cm3 में विद्युतअपघट्य के 1 मोल हों, तब
Am = K × V
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इसकी इकाई ohm-1 cm2 mol-1 या δ cm2 mol-1 है।

सान्द्रता के साथ चालकता तथा मोलर चालकता में परिवर्तन –
विद्युतअपघट्य की सान्द्रता में परिवर्तन के साथ-साथ चालकता एवं मोलर चालकता दोनों में परिवर्तन होता है। दुर्बल एवं प्रबल दोनों प्रकार के विद्युतअपघट्यों की सान्द्रता घटाने पर चालकता सदैव घटती है। इसकी इस तथ्य से व्याख्या की जा सकती है कि तनुकरण करने पर प्रति इकाई आयतन में विद्युतधारा ले जाने वाले आयनों की संख्या घट जाती है।

किसी भी सान्द्रता पर विलयन की चालकता उस विलयन के इकाई आयतन का चालकत्व होता है, जिसे परस्पर इकाई दूरी पर स्थित एवं इकाई अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के मध्य रखा गया हो। यह निम्नलिखित समीकरण से स्पष्ट है –

G = \(\frac{k A}{l}\) = k (A एवं l दोनों ही उपयुक्त इकाइयों m या cm में हैं) किसी दी गई सान्द्रता पर एक विलयन की मोलर चालकता उस विलयन के V आयतन का चालकत्व है, जिसमें विद्युतअपघट्य का एक मोल घुला हो तथा जो एक-दूसरे से इकाई दूरी पर स्थित, A अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले दो इलेक्ट्रोडों के मध्य रखा गया हो। अतः
\(\Lambda_{m}\) = \(\frac{k A}{l}\)
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चित्र – जलीय विलयन में ऐसीटिक अम्ल (दुर्बल विद्युत अपघट्य) एवं पोटैशियम क्लोराइड (प्रबल विद्युतअपघट्य) के लिए मोलर चालकता के विपरीत c1/2 का आलेख
चूँकि l = 1 तथा A = V (आयतन, जिसमें विद्युतअपघट्य का. एक मोल घुला है।)
\(\Lambda_{m}\) = KV

सान्द्रता घटने के साथ मोलर चालकता बढ़ती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वह कुल आयतन (V) भी बढ़ जाता है जिसमें एक मोल विद्युतअपघट्य उपस्थित होता है। यह पाया गया है कि विलयन के तनुकरण पर आयतन में वृद्धि K में होने वाली कमी की तुलना में कहीं अधिक होती है।

प्रबल विद्युतअपघट्य – प्रबल विद्युतअपघट्यों के लिए, \(\Lambda_{m}\) का मान तनुता के साथ धीरे-धीरे बढ़ता है एवं इसे निम्नलिखित समीकरण द्वारा निरूपित किया जा सकता है –
\(\Lambda_{m}\) = \(\Lambda_{m}^{0}\) – A c1/2

यह देखा जा सकता है कि यदि \(\Lambda_{m}\) को c1/2 के विपरीत आरेखित किया जाए (चित्र) तो हमें, एक सीधी रेखा प्राप्त होती है जिसका अंत: खंड \(\Lambda_{m}^{0}\) एवं ढाल – ‘A’ के बराबर है।

दिए गए विलायक एवं ताप पर स्थिरांक ‘A’ का मान विद्युतअपघट्य के प्रकार, अर्थात् विलयन में विद्युतअपघट्य के वियोजन से उत्पन्न धनायन एवं ऋणायन के आवेशों पर निर्भर करता है। अतः, NaCl, CaCl2, MgSO4 क्रमश: 1-1, 2-1 एवं 2-2 विद्युतअपघट्य के रूप में जाने जाते हैं। एक प्रकार के सभी विद्युतअपघट्यों के लिए ‘A’ का मान समान होता है।

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प्रश्न 3.8
298K पर 0.20M KCI विलयन की चालकता 0.0248 S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता का परिकलन कीजिए।
हल:
प्रश्नानुसार, मोलरता 0.20 M, चालकता (K) = 0.0248 S cm-1
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प्रश्न 3.9
298 K पर एक चालकता सेल जिसमें 0.001 M KCI विलयन है, का प्रतिरोध 1500 Ω है। यदि 0.001 M KCI विलयन की चालकता 298K पर 0.146 × 10-3 s cm-1 हो तो सेल स्थिरांक क्या है?
हल:
हम जानते हैं कि सेल स्थिरांक = चालकता × प्रतिरोध
= (0.146 × 10-3 S cm-1) × (1500 Ω)
= 0.219 cm-1

प्रश्न 3.10
298 K पर सोडियम क्लोराइड की विभिन्न सान्द्रताओं पर चालकता का मापन किया गया जिसके आँकड़े निम्नलिखित हैंसान्द्रता –
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सभी सान्द्रताओं के लिए \(\Lambda_{m}\) का परिकलन कीजिए एवं \(\Lambda_{m}\) तथा c1/2 के मध्य एक आलेख खींचिए। \(\Lambda_{m}^{0}\) का मान ज्ञात कीजिए।
हल:
सभी सान्द्रताओं के लिए Am का परिकलन आगे तालिका में दिखाया गया है –
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BIhar Board Class 12 Chemistry Chapter 3 वैद्युतरसायन
= 124.0 Scm2mol-1

Bihar Board Class 12 Chemistry Solutions Chapter 3 वैद्युतरसायन

प्रश्न 3.11
0.00241 M ऐसीटिक अम्ल की चालकता 7.896 × 10-5 S cm-1 है। इसकी मोलर चालकता को परिकलित कीजिए। यदि ऐसीटिक अम्ल के लिए \(\Lambda_{m}^{0}\) का मान 390.5 S cm2 mol-1 हो तो इसका वियोजन स्थिरांक क्या है?
हल:
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वियोजन स्थिरांक
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प्रश्न 3.12
निम्नलिखित के अपचयन के लिए कितने आवेश की आवश्यकता होगी?

  1. 1 मोल Al3+ को Al में
  2. 1 मोल Cu2+ को Cu में
  3. 1 मोल MnO4 को Mn2+ में

हल:
1. इलेक्ट्रोड अभिक्रिया निम्न प्रकार से दी जा – सकती है
Al3+ + 3e → Al
अतः 1mol Al3+ को Al में अपचयन के लिए आवश्यक आवेश की मात्रा = 3 फैराड,
= 3 × 96500C
= 289500C

2. इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार से दी जा सकती है –
Cu2+ + 2e → Cu
अतः 1 mol Cu2+ को Cu में के अपचयन के लिए आवश्यक आवेश की मात्रा = 2 फैराडे
= 2 × 96500 C
= 193000C

3. इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार से दी जा सकती है –
MnO4 → Mn2+
Mn7+ + 5e → Mn2+
अतः 1 mol MnO4 के अपचयन के लिए आवश्यक आवेश की मात्रा = 5 F
= 5 × 96500 C
= 482500C

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प्रश्न 3.13
निम्नलिखित को प्राप्त करने के लिए कितने फैराडे विद्युत की आवश्यकता होगी?

  1. गलित CaCl2 से 20.0 g Ca
  2. गलित Al2O3 से 40.0 g Al

हल:
1. Ca2+ + 2 → Ca
चूँकि 1 mol Ca अर्थात् 40 g Ca को विद्युत की आवश्यकता है = 2F
∴ 20g Ca को विद्युत की आवश्यकता होगी = 1F

2. Al3+ + 3e → Al
चूँकि 1 mol Al अर्थात् 27 g Al की विद्युत की आवश्यकता है% 3F
∴ 40 g Al को विद्युत की आवश्यकता होगी = \(\frac{3}{27}\) × 40
= 4.44 F

प्रश्न 3.14
निम्नलिखित को ऑक्सीकृत करने के लिए कितने कूलॉम विद्युत आवश्यक है?

  1. 1 मोल H2O को O2 में।
  2. 1 मोल Fe0 को Fe2O3 में।

गणना:
1. 1 mol H2O2 के लिए इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार दी जाती है –
H2O → H2 + \(\frac{1}{2}\)O2
अर्थात् O2- → \(\frac{1}{2}\)O2 + 2e
∴ आवश्यक विद्युत की मात्रा = 2 फैराडे
= 2 × 96500C
= 193000C

2. 1 मोल Feo के लिए इलेक्ट्रोड अभिक्रिया इस प्रकार से दी जाती है –
FeO → \(\frac{1}{2}\)Fe2O3
अब Fe2+ → Fe3+ + e
अतः अभीष्ट विद्युत की मात्रा = 1 फैराडे
= 96500C

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प्रश्न 3.15
Ni(NO3)2 के एक विलयन का प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के बीच 5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करते हुए 20 मिनट तक विद्युत-अपघटन किया गया। Ni की कितनी मात्रा कैथोड पर निक्षेपित होगी?
हल:
प्रवाहित की गई विद्युत की मात्रा
= (5 A) × (20 × 60 s)
= 6000 C
Ni2+ + 2e → Ni
अब चूँकि 2F अर्थात् 2 × 96500C, Ni निक्षेपित करता है = 1 mol
= 58.7g
∴ 6000 C, Ni निक्षेपित करेगा
= \(\frac{58.7}{2 \times 96500}\) × 6000 = 1.825 g

प्रश्न 3.16
ZnSO4, AgNO3, एवं CuSO4 विलयन वाले तीन विद्युत-अपघटनी सेलों A, B, C को श्रेणीबद्ध किया गया एवं 1.5 ऐम्पियर की विद्युत धारा, सेल B के कैथोड पर 1.45 g सिल्वर निक्षेपित होने तक लगातार प्रवाहित की गई। विद्युत धारा कितने समय तक प्रवाहित हुई? निक्षेपित कॉपर एवं जिंक का द्रव्यमान क्या होगा?
हल:
Ag+ + e → Ag
108g Ag निक्षेपित होता है = 1F = 96500C
∴ 1.45 g Ag निक्षेपित होगा = \(\frac{96500}{108}\) × 1.45
= 1295.6 × C
या t = \(\frac{Q}{I}\) = \(\frac{1295.6}{1.5}\)
= 863.75
= 14 min 24s
Cu2+ + 2e → Cu
अर्थात् 2 × 96500C, Cu निक्षेपित करता है = 63.5 g
अतः 1295.6C. Cu निक्षेपित करेगा = \(\frac{63.5 \times 1295.6}{2 \times 96500}\)
= 0.4263g
इसी प्रकार, Zn2+ + 2e → Zn
निक्षेपित जिंक का द्रव्यमान = \(\frac{65.4 \times 1295.6}{2 \times 96,500}\)
= 0.44g

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प्रश्न 3.17
तालिका 3.1 (पाठ्य पुस्तक) में दिए गए मानक इलैक्ट्रोड विभवों की सहायता से अनुमान लगाइए कि क्या निम्नलिखित अभिकर्मकों के बीच अभिक्रिया संभव है?

  1. Fe3+ (aq) और I (aq)
  2. Ag+ (aq) और Cu(s)
  3. Fe3+ (aq) और Br (aq)
  4. Ag(s) और Fe3+ (aq)
  5. Br2 (aq) और Fe3+ (aq)

उत्तर:
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सेल अभिक्रिया का वि० वा० बल धनात्मक होगा।
1. Fe3+ (aq) + I (aq) → Fe2+(aq) + \(\frac{1}{2}\)I2
सेल को निम्न प्रकार से निरूपित कर सकते हैं –
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= 0.54 – 0.77V
= – 0.23V
∴ अभिक्रिया का वि० वा० बल ऋणात्मक है
∴ अभिक्रिया सम्भव नहीं है।

2. Ag+ (aq) + Cu → Ag(s) + Cu2+ (aq)
निम्न प्रकार से निरूपित कर सकते हैं –
अर्थात् Cu | Cu2+ (aq) || Ag+ (aq) | Ag
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= 0.80V – 0.34V
= 0.46V
∵ अभिक्रिया का वि० वा० बल धनात्मक है।
∵ अभिक्रिया सम्भव है।

3. Fe3+ (aq) + Br (aq) → Fe2+ (aq) + \(\frac{1}{2}\)Br2
निम्न प्रकार से निरूपित कर सकते हैं –
अर्थात् Br2 (aq) | Br (aq) || Fe2+ (aq) | Fe3+ (aq)
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= 0.77V – 1.09V
= 0.32V
∵ अभिक्रिया का वि० वा०बल ऋणात्मक है
∵ अभिक्रिया सम्भव नहीं है।

4. Ag(s) + Fe3+ + (aq) → Ag+ (aq) + Fe2+ (aq)
सेल को निम्न प्रकार से निरूपित कर कर सकते हैं –
अर्थात् Ag+ (aq) | Ag(s) || Fe2+ (aq) | Fe3+ (aq)
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= 0.77V – 0.80V
= – 0.03V
∵ अभिक्रिया का वि० वा० बल ऋणात्मक है
∵ अभिक्रिया सम्भव नहीं है।

5. \(\frac{1}{2}\)Br2 (aq) + Fe2+ (aq) || Br + Fe3+
निम्न प्रकार से निरूपित कर सकते हैं –
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= 1.09V – 0.77
= 0.32V
∵ अभिक्रिया का वि० वा० बल धनात्मक है
∵ अभिक्रिया सम्भव है।

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प्रश्न 3.18
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए विद्युतअपघटन से प्राप्त उत्पाद बताइए:

  1. सिल्वर इलैक्ट्रोडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
  2. प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों के साथ AgNO3 का जलीय विलयन
  3. प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों के साथ H2SO4 का तनु विलयन
  4. प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों के साथ CuCl2 का जलीय विलयन

उत्तर:
1. सिल्वर इलैक्ट्रोडों के साथ AgNO3 के जलीय विलयन का विद्युतअपघटन
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कैथोड पर:
चूँकि Ag+ आयनों का डिस्चार्ज विभव H+ आयनों से कम होता है, अत: H+ आयनों का निक्षेपणन होकर Ag+ आयन Ag की भांति निक्षेपित होंगे।

ऐनोड पर: Ag → Ag+ + e
ऐनोड का Ag घुलकर विलयन में Ag+ आयन देगा।

2. प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों के साथ AgNO3 के जलीय विलयन का विद्युतअपघटन
कैथोड पर:
उपर्युक्त खण्ड (i) की भांति Ag+ आयदन Ag की तरह निक्षेपित होंगे।

ऐनोड पर:
OH (aq) → OH + e
4OH → 2H2O(l) + O2 (g)
NO3 आयनों की तुलना में OH आयन डिस्चार्ज होंगे जो विघटित होकर O2 देते हैं।

3. प्लैटिनम इलैक्ट्रोडों के साथ H2SO4 के तनु विलयन का विद्युत अपघटन
H2SO4 (aq) → 2H+ (aq) + SO2-4 (aq)
H2O H+ + OH

कैथोड पर:
H+ + e → H
H + H → H2(g)

ऐनोड पर:
OH → OH + e
4OH → 2H2O(l) + O2(g)
अतः कैथोड पर H2 तथा ऐनोड पर O2 मुक्त होगी।

4. प्लैटिनम इलेक्ट्रोडों के साथ Cucl2 के जलीय विलयन का विद्युतअपघटन
CuCl2 (s) + (aq) → Cu2+ (aq) + 2Cl (aq)
H2O H+ + OH

कैथोड पर:
Cu2+ + 2e → Cu2+ (aq) + 2Cl (aq)
H2O H+ + OH

ऐनोड पर:
अत: कैथोड पर Cu निक्षेपित होगा तथा ऐनोड पर Cl2 मुक्त होगी।

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण

Bihar Board Class 11 Biology शरीर द्रव तथा परिसंचरण Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
रक्त के संगठित पदार्थों के अवयवों का वर्णन करें तथा प्रत्येक अवयव के एक प्रमुख कार्य के बारे में लिखें।
उत्तर:
इसके अन्तर्गत रुधिर (blood) तथा लसीका (lymph) आते हैं। इसका तरल मैट्रिक्स प्लाज्मा (plasma) कहलाता है। प्लाज्मा में तन्तुओं का अभाव होता है। प्लाज्मा में पाई जाने वाली कोशिकाओं को रुधिराणु (corpuscles) कहते हैं। तरल ऊतक सदैव एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर वाहिनियों (vessels) और केशिकाओं (capillaries) में बहता रहता है। कोशिकाएँ या रुधिराणु स्वयं प्लाज्मा का स्राव नहीं करती हैं।

रुधिर (Blood):
रुधिर जल से थोड़ा अधिक श्यान (viscous), हल्का क्षारीय (pH 7.3 से 7.4 के बीच) तथा स्वाद में थोड़ा नमकीन होता है। एक स्वस्थ मनुष्य में रक्त शरीर के कुल भार का 7% से 8% होता है। रुधिर की औसत मात्रा 5 लीटर होती है। रुधिर के दो मुख्य घटक (components) होते है –

  1. प्लाज्मा (Plasma)
  2. रुधिर कोशिकाएँ (Blood Corpuscles)

1. प्लाज्मा (Plasma):
यह हल्के पीले रंग का, हल्का क्षारीय एवं निर्जीव तरल है। यह रुधिर का लगभग 55% भाग बनाता है। प्लाज्मा में 90% जल होता है। 8 से 9% कार्बनिक पदार्थ होते हैं तथा लगभग 1% अकार्बनिक पदार्थ होते हैं।

(क) कार्बनिक पदार्थ (Organic Substances):
रक्त प्लाज्मा में लगभग 7% प्रोटीन होती है। प्रोटीन्स मुख्यत: Trafita (albumin), migfra (globulin), utentiam (prothrombin) तथा फाइब्रिनोजन (fibrinogen) होती है। इनके अतिरिक्त हॉर्मोन्स, विटामिन्स, श्वसन गैसें, हिपैरिन (heparin), यूरिया अमोनिया, ग्लूकोस, ऐमीनो अम्ल, वसा अम्ल, ग्लिसरॉल प्रतिरक्षी (antibodies) आदि होते हैं। प्लाज्मा प्रोटीन रुधिर का परासरणी दाब (osmotic pressure) बनाए रखने में सहायक है। कुछ प्रोटीन्स प्रतिरक्षी की भाँति कार्य करती है। प्रोथ्रोम्बिन तथा फाइब्रिनोजन रुधिर स्कन्दन (blood clotting) में सहायता करते हैं। हिपैरिन प्रतिस्कंदक (anticoagulant) है।

(ख) अकार्बनिक पदार्थ (Inorganic Substances):
अकार्बनिक पदार्थों में सोडियम, कैल्सियम, ,मैग्नीशियम तथा पोटैशियम के फॉस्फेट, बाइकार्बोनेट, सल्फेट तथा क्लोराइड्स आदि पाए जाते हैं।

2. रुधिर कणिकाएँ या रुधिराणु (Blood Cells or Blood Corpuscles):
ये रुधिर का 45% भाग बनाते हैं। रुधिराणु तीन प्रकार के होते हैं। इनमें लगभग 99% लाल रुधिराणु हैं। शेष श्वेत रुधिराणु तथा रुधिर प्लेटलेट्स होते हैं।

(क) लाल रुधिराणु (Red Blood Corpuscles or Erythrocytes):
मेंढक के रक्त में इनकी संख्या 4.5 लाख से 5.5 लाख प्रति घन मिनी होती है। मनुष्य में इनकी संख्या 54 लाख प्रति घन मिमी होती है। स्तनियों के रुधिराणु केन्द्रकरहित, गोल तथा उभयावतल (biconcave) होते हैं।

इनमें लौहयुक्त यौगिक हीमोग्लोबिन पाया जाता है। ये ऑक्सीजन परिवहन का कार्य करते हैं। अन्य कशेरुकियों में लाल रुधिराणु अण्डाकार तथा केन्द्रकयुक्त होते हैं। लाल रुधिराणु ऑक्सीजन वाहक (oxygen carrier) का कार्य करते हैं। इसका हीमोग्लोबिन (haemoglobin) ऑक्सीजन को ऑक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) के रूप में ऊतकों तक पहुँचाता है।

(ख) श्वेत रुधिराणु या ल्यूकोसाइट्स (leucocytes) इनकी संख्या 6000-8000 प्रतिघन मिमी होती है। ये केन्द्रकयुक्त, अमीबा के आकार की तथा रंगहीन होती है। श्वेत रुधिराणु मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं –

  • कणिकामय (Granulocytes)
  • कणिकारहित (Agranulocytes)

1. कणिकामय (Granulocytes):
केन्द्रक की संरचना के आधार पर ये तीन प्रकार की होती हैं –

(अ) बेसोफिल्स (Basophils):
इनका केन्द्रक बड़ा तथा 2.3 पालियों में बँटा दिखाई देता है।

(ब) इओसिनोफिल्स (Eosinophils):
इनका केन्द्रक दो स्पष्ट पिण्डों से बँटा होता है। दोनों भाग परस्पर तन्तु से जुड़े होते हैं। ये एलर्जी (allergy), प्रतिरक्षण (immunity) एवं अति संवेदनशीलता में महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।

(स) न्यूट्रोफिल्स (Neutrophils):
इनका केन्द्रक 2 से 5 भागों में बँटा होता है। ये सूत्र द्वारा परस्पर जुड़े रहते हैं। ये भक्षकाणु (phagocytosis) द्वारा रोगाणुओं का भक्षण करते हैं।

2. एग्रैन्यूलोसाइट्स (Agranulocytes):
इनका कोशिकाद्रव्य कणिकारहित होता है। इनका केन्द्रक अपेक्षाकृत बड़ा व घोड़े की नाल के आकार का (horse – shoe shaped) होता है। ये दो प्रकार की होती हैं –

(अ) लिम्फोसाइट्स (Lymphocytes):
ये छोटे आकार के श्वेत रुधिराणु हैं। इनका कार्य प्रतिरक्षी (antibodies) का निर्माण करके शरीर की सुरक्षा करना है।

(ब) मोनोसाइट्स (Monocytes):
ये बड़े आकार की कोशिकाएं हैं, जो भक्षकाणु क्रिया (phagocytosis) द्वारा शरीर की सुरक्षा करती हैं।
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चित्र – मनुष्य की रुधिर कोशिकाएँ

कार्य (Functions):
श्वेत रुधिराणु रोगाणुओं एवं हानिकारक पदार्थों से शरीर की सुरक्षा करते हैं।

(ग) रुधिर बिम्बाणु या रुधिर प्लेटलेट्स (Blood Platelets or Thrombocytes):
इनकी संख्या 2 लाख से 5 लाखं प्रति घन मिमी होती है। ये उभयोत्तल (biconvex), तश्तरीनुमा होते हैं। ये रुधिर स्कंदन में सहायक होते हैं। स्तनधारियों के अतिरिक्त अन्य कशेरुकियों में रुधिर प्लेटलेट्स के स्थान पर स्पिंडल कोशिकाएँ (spindle cells) पाई जाती हैं। इनमें केन्द्रक पाया जाता है।

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प्रश्न 2.
प्लाज्मा (प्लैज्मा) प्रोटीन का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रक्त प्लाज्मा में घुलनशील, सरल, गोलाकार प्रोटीन्स पाई जाती है। इनका महत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. ये रक्त के परासरणी दाब को बनाये रखती हैं।
  2. प्रतिरक्षी प्रोटीन्स (ग्लोबुलिन्स प्रतिरक्षी) शरीर को संक्रमण बचाती हैं।
  3. फाइब्रिनोजन प्रोटीन्स तथा प्रोथ्रोम्बिन प्रोटीन्स रक्त का थक्का बनाने में सहायक होती हैं।
  4. कुछ प्रोटीन्स एन्जाइम्स की तरह कार्य करती हैं।
  5. अनेक प्रोटीन्स रक्त के pH मान को बनाए रखती हैं।

प्रश्न 3.
स्तम्भ I का स्तम्भ II से मिलान कीजिए –
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उत्तर:
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प्रश्न 4.
रक्त को एक संयोजी ऊतक क्यों मानते हैं?
उत्तर:
रक्तः संयोजी ऊतक (Blood : Connective Tissue):
रक्त तथा लसीका तरल संयोजी ऊतक कहलाते हैं। इसका पूरे शरीर में परिसंचरण होता रहता है। इसे निम्नलिखित कारणों से तरल संयोजी ऊतक माना जाता है –

  1. इनमें आधारभूत पदार्थ मैट्रिक्स तरल प्लाज्मा होता है।
  2. प्लाज्मा में तन्तु नहीं पाए जाते।
  3. प्लाज्मा में रुधिराणु पाए जाते हैं।
  4. रुधिराणु प्लाज्मा का स्रावण नहीं करते।

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प्रश्न 5.
लसिका एवं रुधिर में अन्तर बताएँ।
उत्तर:
रक्त तथा लसिका में अन्तर:
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प्रश्न 6.
दोहरे परिसंचरण से क्या तात्पर्य है? इसकी क्या महत्ता है?
उत्तर:
पक्षी और स्तनियों में शुद्ध तथा अशुद्ध रक्त-पृथक् रहता है। हृदय का बांया भाग पल्मोनरी हृदय तथा दायां भाग सिस्टेमिक हृदय कहलाता है। इनमें क्रमशः शुद्ध तथा अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है। शरीर के किसी भाग से रक्त को पुनः उसी भाग में पहुँचने के लिए दो बार हृदय से होकर गुजरना होता है।

इस प्रकार का परिसंचरण दोहरा रक्त परिसंचरण कहलाता शुद्ध और अशुद्ध रक्त के पृथक् रहने से इसका परिसंचरण अधिक प्रभावशाली रहता है और O2 वितरण प्रभावी होता है। इस प्रकार दोहरे परिसंरण में कहीं भी शुद्ध व अशुद्ध रुधिर का मिश्रण न होने के कारण परिसंचरण अधिक प्रभावशाली (efficient) रहता है। इसके अतिरिक्त दो अलग-अलग बन्द कक्ष के कारण रुधिर प्रवाह के लिए अधिक दाब उत्पन्न होता है।

प्रश्न 7.
भेद स्पष्ट कीजिए –
(क) रक्त एवं लसीका
(ब) खुला तथा बन्द परिसंचरण तन्त्र
(ग) प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन
(घ) P तरंग तथा T तरंग।
उत्तर:
(क) प्रश्न संख्या 5 का उत्तर देखिए।
(ख) खुले रक्त परिसंचरण तथा बन्द रक्त परिसंचरण में अन्तर:
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(ग) प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन में भेद (Difference between Systole and Diastole):
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(घ) P तरंग तथा T तरंग में भेद (Difference between P-wave and T-wave):
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प्रश्न 8.
कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिवर्तनों का वर्णन करें।
उत्तर:
कशेरुकी प्राणियों में हृदय का निर्माण भ्रूण के मध्य स्तर (mesoderm) से होता है। भ्रूण अवस्था में आद्यान्त्र (archenteron) के नीचे आधारीय आन्त्र योजनी (mesentry) में दो अनुदैर्ध्य अन्तःस्तरी नलिकाएँ (endothelia canals) परस्पर मिलकर हृदय का निर्माण करती हैं। हृदय एक पेशीय थैलीनुमा रचना होती है। यह शरीर से रक्त एकत्र करके धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में पम्प करता है। कशेरुकी प्राणियों में हृदय निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

(क) एककोष्ठीय हृदय (Single chambered Heart):
सरलतम हृदय सिफैलोकॉर्डेटा (cephalochordates) जन्तुओं में पाया जाता है। ग्रसनी के नीचे स्थित अधरीय एऑर्टा पेशीय होकर रक्त को पम्प करने का कार्य करता है। इसे एककोष्ठीय हृदय मानते हैं।

(ख) द्विकोष्ठीय हृदय (Two chambered Heart):
मछलियों में द्विकोष्ठीय हृदय होता है। यह अनॉक्सीजनित रक्त को गिल्स (gills) में पम्प कर देता है। गिल्स ने यह रक्त ऑक्सीजनित होकर शरीर में वितरित हो जाता है। इसमें धमनीकाण्ड एवं शिराकोटर सहायक कोष्ठ तथा अलिन्द एवं निलय वास्तविक कोष्ठ होते हैं, इस प्रकार के हृदय को शिरीय हृदय (venous heart) कहते हैं।
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चित्र – कशेरुकियों में हृदय का विकास

(ग) तीन कोष्ठीय हृदय (Three chambered Heart):
उभयचर (amphibians) में तीन कोष्ठीय हृदय पाया जाता है। इसमें दो अलिन्द तथा एक निलय होता है। शिराकोटर (sinus venosus) दाहिने अलिन्द के पृष्ठ तल पर खुलता है। बाएँ अलिन्द में शुद्ध तथा दाहिने अलिन्द में अशुद्ध रक्त रहता है। निलय पेशीय होता है। वान्डरवॉल तथा फॉक्सन के अनुसार उभयचरों में मिश्रित रक्त वितरित होता है। इसमें रुधिर संचरण एक परिपथ (single circuit) वाला होता है।

(घ) चारकोष्ठीय हृदय (Four chambered Heart):
अधिकांश सरीसृपों में दो अलिन्द तथा दो अपूर्ण रूप से विभाजित निलय पाए जाते हैं। मगरमच्छ के हृदय में दो अलिन्द तथा दो निलय होते हैं। पक्षी तथा स्तनी जन्तुओं में दो अलिन्द तथा दो निलय होते हैं। बाएँ अलिन्द तथा बाएँ निलय में शुद्ध रक्त भरा होता है।

इसे दैहिक चाप द्वारा शरीर में पम्प कर दिया जाता है। दाएँ अलिन्द में शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रक्त एकत्र होता है। यह दाएँ निलय से शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में भेज दिया जाता है। इस प्रकार हृदय का बायाँ भाग पल्मोनरी हृदय (pulmonary heart) तथा दायाँ भाग सिस्टेमिक हृदय (systemic heart) कहलाता है। इन प्राणियों में दोहरा परिसंचरण होता है। इसमें रक्त के मिश्रित होने की सम्भावना नहीं होती।

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प्रश्न 9.
हम अपने हृदय को पेशीजनक (मायोजेनिक) क्यों कहते हैं?
उत्तर:
हृदय की भित्ति हद पेशियों (cardiac muscles) से बनी होती है। हृद पेशियाँ रचना में रेखित पेशियों के समान होती है, लेकिन कार्य में अरेखित पेशियों के समान अनैच्छिक होती है। हृदय पेशियाँ मनुष्य की इच्छा से स्वतन्त्र, स्वयं बिना थके, बिना रुके, एक निश्चित दर (मनुष्य में 72 बार प्रति मिनट) और एक निश्चित लय (rhythm) से जीवनभर संकुचित और शिथिल होती रहती है। प्रत्येक हृदय स्पन्दन में संकुचन की प्रेरणा, प्रेरणा-संवहनीय पेशी के तन्तुओं ‘S-A node’ से प्रारम्भ होती है।

S-A node से संकुचन प्रेरणा स्व:उत्प्रेरण द्वारा उत्पन्न होकर A-V node तथा हिस के समूह (bundle of His) से होकर पुरकिन्जे तन्तुओं द्वारा अलिन्दं और निलयों में फैलती है। हृदय पेशियों में संकुचन के लिए तन्त्रिकीय प्रेरणा की आवश्यकता नहीं होती। पेशियों में संकुचन पेशियों के कारण होते हैं अर्थात् संकुचन पेशीजनक (Myogenic) होते हैं। यदि हृदय में जाने वाली तन्त्रिकाओं को काट दें तो भी हृदय अपनी निश्चित दर से धड़कता रहता है। तन्त्रिकीय प्रेरणाएँ हृदय की गति की दर को प्रभावित करती हैं। हृदय पेशियों के तन्तुओं में उर्जा उत्पादन हेतु प्रचुर मात्रा में माइटोकॉन्ड्रिया पाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
शिरा अलिन्द पर्व (कोटरालिन्द गाँठ SAN) को हृदय का गति प्रेरक (पेस मेकर) क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
शिरा अलिन्द पर्व (कोटरालिन्द गाँठ SAN):
दाएँ अलिन्द की भित्ति के अग्र महाशिरा छिद्र के समीप शिरा अलिन्द घुण्डी (Sino Atrial Node, SAN) स्थित होती है। इसे गति प्रेरक (pace maker) भी कहते हैं। इससे स्पंदन संकुचन प्रेरणा स्वत: उत्पन्न होती है।

इसके तन्तुओं में 55 से 60 मिलीवोल्ट का विश्राम विभव (resting potential) होता है, जबकि हृदय पेशियों में यह 85 से 95 मिली वोल्ट और हृदय में फैले विशिष्ट चालक तन्तुओं में -90 से -100 मिलीवोल्ट होता है। शिरा अलिन्द पर्व (SAN) से सोडियम आयनों के लीक होने से हृदय स्पंदन प्रारम्भ होता है। शिरा अलिन्द पर्व की लयबद्ध उत्तेजना प्रित मिनट 72 स्पंदनों की एक सामान्य विराम दर पर जीवन पर्यन्त चलती रहती है।

प्रश्न 11.
अलिन्द निलय गाँठ (AVN) तथा अलिन्द निलय बण्डल (AVB) का हृदय के कार्य में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
अलिन्द निलय गाँठ (Auriculo ventricular Node):
शिरा अलिन्द पर्व के तन्तु अन्त में अपने चारों ओर के अलिन्द पेशी तन्तुओं के साथ मिलकर शिरा अलिन्द पर्व तथा अलिन्द निलय गाँठ (VAN) के बीच एक अन्तरापर्वीय पथ का निर्माण करते हैं।

अलिन्द निलय गाँठ अन्तराअलिन्द पट के दाहिने भाग में हृद कोटर (कोरोनरी साइनस) के छिद्र के निकट होती है। अलिन्द निलय गाँठ के पेशीय तन्तु अलिन्द निलय बण्डल (bundle of His or Atrio Ventricular Bundle, AVB) से मिलकर निलय में दाएँ-बाएँ बँट जाते हैं।

इनसे पुरकिन्जे तन्तुओं (Purkinje fibres) का निर्माण होता है। शिरा अलिन्द पर्व (SAN) में उत्पन्न संकुचन एवं शिथिलन के उद्दीपन अलिन्द निलय गाँठ (AVN) तथा अलिन्द निलय बण्डल (AVB) या हिस का बण्डल (Bundle of His) से होते हुए निलय में स्थित पुरकिन्जे तन्तुओं में पहुंचते हैं। इसके फलस्वरूप हृदय के अलिन्द तथा निलय में क्रमशः संकुचन एवं शिथिलन होता रहता है। हृदय शरीर के विभिन्न भागों से रक्त को एकत्र करके पुनः पम्प करता रहता है।

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प्रश्न 12.
हृद चक्र तथा हृद निकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हृद चक्र (Cardiac Cycle):
एक हृदय स्पन्दन के आरम्भ से दूसरे स्पन्दन के आरम्भ होने के बीच के घटनाक्रम को हृद चक्र (cardiac cycle) कहते हैं। इस क्रिया में दोनों अलिन्दों तथा दोनों निलयों का प्रकुंचन एवं अनुशिथिलन सम्मिलित होता है। हृदय स्पन्दन एक मिनट में 72 बार होता है। अतः एक हृदय चक्र का समय 0.8 सेकण्ड होता है।

हृद निकास (Cardiac Output):
हृदय प्रत्येक हृद चक्र में लगभग 70 मिली रक्त पम्प करता है, इसे प्रवाह आयतन (stroke volume) कहते हैं। प्रवाह आयतन को हृदय दर से गुणा करने पर जो मात्रा आती है, उसे हृद निकास (cardiac output) कहते हैं।

हृद निकास = हृदय दर × प्रवाह आयतन
अतः हृद निकास प्रत्येक निलय द्वारा रक्त की मात्रा को प्रति मिनट बाहर निकालने की क्षमता है जो स्वस्थ मनुष्य में लगभग 5 लीटर होती है। खिलाड़ियों का हृद निकास सामान्य मनुष्य से अधिक होता है।

प्रश्न 13.
हृदय ध्वनियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
हृदय की ध्वनियाँ (Heart Sounds):
दाएँ एवं बाएँ निलयों में आकुंचन एकसाथ होता है, इसके फलस्वरूप त्रिवलनी (tricuspid) तथा द्विवलनी (bicuspid) कपाट एक तीव्र ध्वनि ‘लब’ (lubb) के साथ बन्द होते हैं। निलयों में आकुंचन दबाव के कारण रक्त दोनों धमनी चापों में पम्प हो जाता है।

आकुंचन के समाप्त हो जाने पर ज्यों ही रक्त धमनी चापों से निलय की ओर गिरता है तो धमनी चापों के आधार पर स्थित अर्द्धचन्द्राकार कपाट अपेक्षाकृत हल्की ध्वनि ‘डप’ (dup) के साथ बन्द हो जाते हैं। हृदय की इन्हीं ध्वनि “लब’ एवं ‘डप’ को स्टेथोस्कोप (stethoscope) से सुनकर हृदय सम्बन्धी रोगों का निदान किया जाता है।

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प्रश्न 14.
एक मानक ईसीजी को दर्शाइए तथा उसके विभिन्न खण्डों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विद्युत हृद लेखन (Electrocardiography):
विद्युत हृद लेख (ECG) एक तरंगित आलेख होता है, इसमें एक सीधी रेखा से तीन स्थानों पर तरंगे उठी दिखाई देती है – P लहर, QRS सम्मिश्र (QRS Complex) तथा T तरंग (T – wave)। P तरंग ऊपर की ओर उठी एक छोटी-सी लहर होती है। 0.1 सेकण्ड के आलिन्दीय संकुचन (atrial systole) को दर्शाती है। इसके समाप्त होने के लगभग 0.1 सेकण्ड बाद QRS सम्मिश्र की लहर प्रारम्भ होती है।

ये तीन तरंगे होती हैं – नीचे की ओर Q तरंग, इससे उठी बड़ी R तरंग तथा इससे जुड़ी नीचे की ओर छोटी तरंग। QRS सम्मिश्र निलयी संकुचन के 0.3 सेकण्ड का सूचक होता है। फिर निलयी संकुचन की अन्तिम अवस्था प्रावस्था और इनके क्रमिक प्रसारण के प्रारम्भ की सूचक T तरंग होती है। ECG में प्रदर्शित तरंगों तथा उनके मध्यावकाशों के तरीके का अध्ययन करके हृदय की दशा का ज्ञान होता है।

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चित्र – कार्डियक चक्र – (A) सामान्य ह्रदय स्पन्दन (B) एवं (C) थ्रोम्बोसिस अवस्था का प्रदर्शन

इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ECG) प्राप्त करने के लिए, हृदय के समीपवर्ती क्षेत्र में विशिष्ट स्थानों पर इलेक्ट्रोड्स लगा दिए जाएँ तो हृदय संकुचन के समय जो विद्युत विभव शिरा अलिन्द गाँठ (S – A node) से उत्पन्न होकर विशिष्ट संवाही पेशी तन्तुओं (special conducting muscular fiber) से गुजर कर हृदय के मध्य सतर की पेशियों के संकुचन को प्रेरित करता है, इसे नापा जा सकता है। इसे नापने के लिए जिस यन्त्र का प्रयोग किया जाता है, उसे विद्युत हृद लेखी (electro cardiograph) कहते हैं।

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 17 श्वसन और गैसों का विनिमय

Bihar Board Class 11 Biology श्वसन और गैसों का विनिमय Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
जैव क्षमता की परिभाषा दीजिए और इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
जैव क्षमता (Vital Capacity, VC):
अन्तः श्वास आरक्षित वायु (Inspiratory Reserve Air Volume, IRV), प्रवाही वायु (Tidal Air Volume, TV) तथा उच्छ्वास आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) का योग (IRV + TV + ERV – 3000 + 500 + 1100 = 4600 मिली) फेफड़ों की जैव क्षमता होती है।

यह वायु की वह कुल मात्रा होती है जिसे हम पहले पूरी चेष्टा द्वारा फेफड़ों में भरकर पूरी चेष्टा द्वारा शरीर से बाहर निकाल सकते हैं। जिस व्यक्ति की जैव क्षमता जितनी अधिक होती है, उसे शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।

खिलाड़ियों, पर्वतारोही, तैराक आदि की जैव क्षमता अधिक होती है। युवक की जैव क्षमता प्रौढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। पुरुषों की जैव क्षमता स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है। उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करती है।

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प्रश्न 2.
सामान्य निःश्वसन के उपरान्त फेफड़ों में शेष वायु के आयतन को बताएँ।
उत्तर:
सामान्य श्वसन के उपरान्त फेफड़ों में शेष वायु को कार्यात्मक अवशेष सामर्थ्य (Functional Residual Capacity FRC) कहते हैं। यह निःश्वसन (Expiration) आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) तथा अवशेष वायु (Residual Air Volume, RV) के योग के बराबर होती है।
FRC = ERV + RV
= 1100 + 1200
मिली = 2300 मिली

प्रश्न 3.
गैसों का विसरण केवल कूपकीय क्षेत्र में होता है, श्वसन तन्त्र के किसी अन्य भाग में नहीं, क्यों?
उत्तर:
गैसीय विनिमय (Gaseous Exchange):
मनुष्य के फेफड़ों में लगभक 30 करोड़ वायु कोष्ठक या कृपिकाएँ (alveoli) होते हैं। इनकी पतली भित्ती में रक्त कोशिकाओं का घना जाल फैला होता है। श्वासनल (trachea), garhit (bronchus), parafa (bronchiole), opfu chat नलिकाओं (alveolar duct) आदि में रक्त कोशिकाओं का जाल फैला हुआ नहीं होता। इनकी भित्ति मोटी होती है।

अतः कूपिकाओं (alveoli) को छोड़कर अन्य श्वसन भागों में गैसीय विनिमय नहीं होता। सामान्यतया ग्रहण की गई 500 मिली प्रवाही वायु में से लगभग 350 मिली कूपिकाओं में पहुँचती है, शेष श्वास मार्ग में ही रह जाती है।

वायु कोष्ठकों की भित्ति तथा रक्त कोशिकाओं की भित्ति मिलकर श्वसन कला (respiratory membrane) बनाती है। इससे O2 तथा CO2 का विनिमय सुगमता से हो जाता है। गैसीय विनिमय सामान्य विसरण द्वारा होता है। इसमें गैसें उच्च आंशिक दबाव से कम आंशिक दबाव की ओर विसरित होती हैं।
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चित्र – वायुकोष्ठक (कूपिका) में गैसीय विनिमय

वायुकोष्ठकों में O2 का आँशिक दबाव 100 – 104 mm Hg और CO2 का आंशिक दबाव 40 mm Hg होता है। फेफड़ों में रक्त कोशिकाओं में आए अशुद्ध रुधिर में O2 का आंशिक दबाव 40 mm Hg और CO2 का आंशिक दबाव 45-46 mm Hg होता है।

ऑक्सीजन वायुकोष्ठकों की वायु से विसरित होकर रक्त में जाती है और रक्त से CO2 विसरित होकर वायुकोष्ठकों की वायु में जाती है। इस प्रकार वायुकोष्ठकों से रक्त ले जाने वाली रक्त कोशिकाओं में रक्त ऑक्सीजनयुक्त (oxygenated) होता है। फेफड़ों से निष्कासित वायु में O2 लगभग 15.7% और CO2 लगभग 3.6% होती है।

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प्रश्न 4.
CO2 के परिवहन (ट्रांसपोर्ट) की मुख्य क्रियाविधि क्या है? व्याख्या करें।
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड का रुधिर द्वारा परिवहन (Transportation of Carbon Dioxide by Blood):
ऊतकों में संचित खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड विसरण द्वारा रुधिर केशिकाओं में चली जाती है।
रुधिर केशिकाओं द्वारा इसका परिवहन श्वसनांगों तक निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है –

1. प्लाज्मा में घुलकर (Dissolved in Plasma):
लगभग 7% कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन प्लाज्मा में घुलकर कार्बोनिक अम्ल (H2C03) के रूप में होता है।

2. बाइकार्बोनेट्स के रूप में (In the form of Bicarbonates):
लगभग 70% कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन बाइकार्बोनेट्स के रूप में होता है। प्लाज्मा के अन्दर कार्बोनिक अम्ल का निर्माण धीमी गति से होता है। अत: कार्बन डाइऑक्साइड का अधिकांश भाग (93%) लाल रुधिराणुओं में विसरित हो जाता है।

इसमें से 70% कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बोनिक अम्ल व अन्त में बाइकार्बोनेट्स का निर्माण हो जाता है। लाल रुधिराणुओं में कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम की उपस्थिति में कार्बोनिक अम्ल का निर्माण होता है।
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प्लाज्मा में, कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम अनुपस्थित होता है; अतः प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट कम मात्रा में बनता है। बाइकार्बोनेट आयन (\(\mathrm{HCO}_{3}^{-}\)) लाल रुधिराणुओं के पोटैशियम आयन (K+) तथा प्लाज्मा के सोडियम आयन (Na+) से क्रिया करके क्रमशः पोटैशियम तथा सोडियम बाइकार्बोनेट बनाता है।
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क्लोराइड शिफ्ट या हैम्बर्गर परिघटना (Chloride Shift or Hambergur Phenomenon):
सामान्य pH तथा विद्युत तटस्थता (electric neutrality) बनाए रखने के लिए जितने बाइकार्बोनेट आयन रुधिर कणिकाओं से प्लाज्मा में आते हैं, उतने ही क्लोराइड आयन (Cl) रुधिर कणिकाओं में जाकर उसकी पूर्ति करते हैं।

इस क्रिया के फलस्वरूप प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट तथा लाल रुधिर कणिकाओं में क्लोराइड आयनों का जमाव हो जाता है। इस क्रिया को क्लोराइड शिफ्ट (chloride shift) कहते हैं। श्वसन तल पर प्रक्रियाएँ विपरीत दिशा में होती हैं जिससे CO2 मुक्त होकर वायुमण्डल में चली जाती है।

3. कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन के रूप में (In the form of Carboxyhaemoglobin):
कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 23% भाग लाल रुधिर कणिकाओं के हीमोग्लोबिन से मिलकर अस्थायी यौगिक बनाता है –
हीमोग्लोबिन + CO2 → कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन

सोडियम तथा पोटैशियम के बाइकार्बोनेट्स तथा कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन आदि पदार्थों से युक्त रुधिर अशुद्ध होता है। यह रुधिर ऊतकों और अंगों से शिराओं द्वारा हृदय में पहुँचता है। हृदय से यह रुधिर फुफ्फुस धमनियों द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है।

फेफड़ों में ऑक्सीजन को अधिक मात्रा होने के कारण रुधिर की हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन, हीमोग्लोबिन की अपेक्षा अधिक अम्लीय होता है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन के अम्लीय होने के कारण श्वसन सतह पर कार्बोनेट्स तथा कार्बोनिक अम्ल का विखण्डन (decomposition) होता है –
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कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन तथा प्लाज्मा प्रोटीन के रूप में बने अस्थायी यौगिक भी ऑक्सीजन से संयोजित होकर कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त कर देते हैं –

(घ) कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन → हीमोग्लोबिन + CO2
उपर्युक्त प्रकार से मुक्त हुई कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर कोशिकाओं तथा फेफड़ों की पतली दीवार से विसरित होकर फेफड़ों में पहुँचती है जहाँ से यह उच्छ्वास द्वारा बाहर निकाल दी जाती है।

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प्रश्न 5.
कूपिका वायु की तुलना में वायुमण्डलीय वायु में pO2 तथा pCO2 कितनी होगी? मिलान कीजिए।

  1. pO2 न्यून, pCO2 उच्च
  2. pO2 उच्च, pCO2 न्यू
  3. pO2 उच्च, pCO2 उच्च
  4. pO2 न्यून, pCO2 न्यून

उत्तर:
2. pO2 उच्च, pCO2 न्यून।

Proof:
(वायुमण्डलीय वायु में O2 का आंशिक दाब 159 तथा CO2 का आंशिक दाब 0.3 होता है, जबकि कूपिका वायु में O2 का आंशिक दाब 104 तथा CO2 का दाब 40 होता है।)

प्रश्न 6.
सामान्य स्थिति में अन्तः श्वसन प्रक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर:
सामान्य श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वासन अनैच्छिक होता है। इसमें पसलियों की गति की भूमिका 25% और डायफ्राम की भूमिका 75% होती है।
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चित्र – श्वासोच्छ्वास की क्रियाविधि –
(A) अन्तःश्वास
(B) उच्छ्वास

अन्तःश्वास या प्रश्वसन (Inspiration):
सामान्य स्थिति में अन्त:श्वास में गुम्बदनुमा डायफ्राम पेशियों में संकुचन के कारण चपटा सा हो जाता है। डायफ्राम की गति के साथ बाह्य अन्तराशुक पेशियों (external intercostal muscles)में संकुचन से पसलियाँ सीधी होकर ग्रीवा की तथा बाहर की तरफ खिंचती है। इससे उरोस्थि (sternum) ऊपर और आगे की ओर उठ जाती है। इन गतियों के कारण वक्षगुहा का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़े फूल जाते हैं।

वक्ष गुहा और फेफड़ों में वृद्धि के कारण वायुकोष्ठकों या कूपिकाओं (alveoli) में वायुदाब लगभग 1 से 3 mm Hg कम हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिए वायुमण्डलीय वायु श्वास मार्ग से कूपिकाओं में पहुँच जाती है। इस क्रिया की अन्तःश्वास कहते हैं, इसके द्वारा मनुष्य (अन्य स्तनी) वायु ग्रहण करते हैं।

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प्रश्न 7.
श्वसन का नियमन कैसे होता है?
उत्तर:
श्वसन का नियमन (Regulation of Respiration):
मस्तिष्क के मेड्युला (medulla) एवं पोन्स वैरोलाइ (Pons varolii) में स्थित श्वास केन्द्र (respiratory centre) पसलियों तथा डायफ्राम से सम्बन्धित पेशियों की क्रिया का नियमन करके श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वसन (respiration) का नियमन करता है। श्वास क्रिया तन्त्रिकीय नियन्त्रण में होती है। यही कारण है कि हम अधिक देर तक श्वास नहीं रोक पाते हैं।

फेफड़ों की भित्ति में ‘स्ट्रेच संवेदांग’ (stretch receptors) होते हैं। फेफड़ों के आवश्यकता से अधिक फूल जाने पर वे संवेदाग पुनर्निवेशन नियन्त्रण (feedback control) के अन्तर्गत निःश्वसन को तुरन्त रोकने के लिए हेरिंग ब्रुएर रिफ्लेक्स चाप (Hering-Bruer Reflex Arch) की स्थापना करके श्वास केन्द्र को उद्दीपित करते हैं, जिससे श्वास दर बढ़ जाती है। यह नियन्त्रण प्रतिवर्ती क्रिया के अन्तर्गत होता है।

शरीर के अन्त:वातावरण में CO2 की सान्द्रता के कम या अधिक हो जाने से श्वास केन्द्र स्थिर उद्दीपित होकर श्वास दर को बढ़ाता या घटाता है। O2 की अधिकता कैरोटिको सिस्टैमिक चाप (Carotico systemic arch) में उपस्थित सूक्ष्म रासायनिक संवेदांगों को प्रभावित करती है। ये संवेदाग श्वास केन्द्र को प्रेरित करके श्वास दर को घटा या बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 8.
pCO2 का ऑक्सीजन के परिवहन में क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
गैसों के मिश्रण में किसी विशेष गैस की दाब में भागीदारी को आंशिक दाब कहते हैं। इसे ‘p’ से प्रदर्शित करते हैं। O2 तथा CO2 के लिए इसे क्रमशः pO2, तथा pCO2 से दर्शाते हैं। निम्नांकित तालिका में प्रदर्शित आँकड़े स्पष्ट रूप से कूपिकाओं से रक्त और रक्त से ऊतक में O2 के लिए सान्द्रता प्रवणता का संकेत दर्शाते हैं। इसी प्रकार CO2 के लिए विपरीत दिशा में प्रवणता दर्शाई गई हैं, अर्थात् ऊतकों से रक्त और रक्त से कूपिकाओं की तरफ।

तालिका – वातावरण की तुलना में विसरण में सम्मिलित विभिन्न भागों पर O2 तथा CO2 का आंशिक दबाव
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वायु कूपिकाओं से जो ऑक्सीकृत रक्त ऊतकों में पहुँचता है उसमें आंशिक दबाव pO2 95 mm Hg तथा pCO2 40mm Hg होता है। ऊतकों में O2, तथा CO2, का आंशिक दबाव क्रमश: 40 mm Hg और 45-46 mm Hg होता है। ऊतक तथा रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाली O2 और CO2 की सान्द्रता प्रवणता या आंशिक दबाव में अन्तर होने के कारण रक्त कोशिकाओं से O2 ऊतकों में और CO2 ऊतकों से रक्त कोशिकाओं में विसरित हो जाती है।

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प्रश्न 9.
पहाड़ पर चढ़ने वाले व्यक्ति की श्वसन प्रक्रिया में क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पहाड़ पर ऊँचाई चढ़ने के साथ-साथ वायु में O2 का आंशिक दाब कम हो जाता है, अतः मैदान की अपेक्षा ऊँचाई पर श्वासोच्छ्वास क्रिया अधिक तीव्र गति से होगी। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं –

1. रुधिर में घुली हुई ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम हो जाता है। O2 रक्त में सुगमता से विसरित होती है। अतः शरीर में ऑक्सीजन परिसंचरण कम हो जाता है। इसके फलस्वरूप सिरदर्द तथा उल्टी (वमन) का आभास होता है।

2. अधिक ऊँचाई पर वायु में ऑक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है, अतः वायु से अधिक O2 प्राप्त करने के लिए श्वासोच्छ्वास क्रिया तीव्र हो जाती है।

3. कुछ दिनों तक ऊँचाई पर रहने से रुधिर में लाल रुधिराणुओं की संख्या बढ़ जाती है और श्वास क्रिया सामान्य हो जाती है।

प्रश्न 10.
कीटों में श्वासन क्रियाविधि कैसी होती है?
उत्तर:
कीटों में श्वास क्रियाविधि (Breathing in Insects):
कीटों में श्वसन हेतु ट्रैकिया (trachea) पाए जाते हैं। कीटों के शरीर में ट्रैकिया का जाल फैला होता है। ट्रैकिया पारदर्शी, शाखामय, चमकीली, नलिकाएँ होती है।

ये श्वास रन्धों (spiracles) द्वारा वायुमण्डल से सम्बन्धित रहती हैं। श्वास रन्ध्र छोटे वेश्म (atrium) में खुलते हैं। श्वास रन्ध्रों पर रोमाभ सदृश शूक तथा कपाट पाए जाते हैं। कुछ श्वास रन्ध्र सदैव खुले रहते हैं। शेष अन्तःश्वसन (inspiration) के समय खुलते हैं और उच्छ्व सन (expiration) के समय बन्द रहते हैं।

ट्रैकियल वेश्म (atrium) से शाखाएँ निकलकर एक पृष्ठ तथा अधर तल पर ट्रैकिया का जाल बना लेती हैं। ट्रैकिया से निकलने वाली ट्रैकिओल्स (tracheoles) ऊतक या कोशिकाओं तक पहुँचती है। कीटों में गैसों का विनिमय बहुत ही प्रभावशाली होता है और O2, सीधे कोशिकाओं तक पहुँचती है। इसी कारण – कीट सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं।
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चित्र – कीट में ट्रैकिया जाल

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प्रश्न 11.
ऑक्सीजन वियोजन वक्र की परिभाषा दीजिए। क्या आप इसकी सिग्माभ आकृति का कोई कारण बता सकते हैं?
उत्तर:
ऑक्सीजन वियोजन वक्र (Oxygen Dissociation Curve):
हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता ऑक्सीजन के आंशिक दबाव (partial pressure) अर्थात् pO2 पर निर्भर करती है। हीमोग्लोबिन की वह प्रतिशत मात्रा जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है, इसकी प्रतिशत संतृप्ति (percentage saturation of haemoglobin) कहलाती है।

जैसे –
फेफड़ों में रक्त के ऑक्सीजनीकृत होने पर O2, का आंशिक दबाव pO2, लगभग 97 mm Hg होता है। इस pO2, पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 98% होती है। ऊतकों से वापस आने वाले रक्त में O2 का आंशिक दबाव pO2 लगभग 40 mm Hg होता है। इस पर pO2 पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 75% होती है। pO2 तथा हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति के सम्बन्ध को ग्राफ पर अंकित करने पर एक सिग्माभ वक्र (sigmoid curve) प्राप्त होता है। इसे ऑक्सीजन वियोजन वक्र कहते हैं।

ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वियोजन वक्र पर शरीर ताप एवं रक्त के pH का प्रभाव पड़ता है। ताप के बढ़ने पर pH के कम होने पर यह वक्र दाहिनी ओर खिसकता है। इसके विपरीत ताप के कम होने पर या pH के अधिक होने से ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वक्र बाई ओर खिसकता है।
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चित्र – ऑक्सीजन-हीमोग्लोबिन वियोजन वक्र का ग्राफीय चित्रण

रक्त में CO2 की मात्रा बढ़ने या इसका pH घटने (H+ आयन की संख्या बढ़ने से) पर O2 के प्रति हीमोग्लोबिन की आकर्षण शक्ति कम हो जाती है। इसी को बोहर प्रभाव (Bohr effect) कहते हैं। यह क्रिया ऊतकों में होती है। इस प्रकार बोहर प्रभाव का योगदान हीमोग्लोबिन को फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन के परिवहन को प्रोत्साहित करता है।

फेफड़ों में हीमोग्लोबिन को O2 मिलते ही CO2 के प्रति इसका आकर्षण कम हो जाता है और कार्बोमिनोहीमोग्लोबिन CO2 त्यागकर सामान्य हीमोग्लोबिन बन जाता है। अम्लीय हीमोग्लोबिन H+ आयन मुक्त करता है जो बाइकार्बोनेट (\(\mathrm{HCO}_{3}^{-}\)) से मिलकर कार्बोनिक अम्ल बनाते हैं। यह शीघ्र ही CO2 तथा H2O में टूटकर CO2 को मुक्त कर देता है। इसे हैल्डेन प्रभाव (Haldane effect) कहते हैं। हैल्डेन प्रभाव फेफड़ों में CO2 के बहिष्कार को और ऊतकों में O2 के बहिष्कार को प्रेरित करता है।

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प्रश्न 12.
क्या आपने अव-ऑक्सीयता (हाइपोक्सिया) (न्यून ऑक्सीजन) के बारे में सुना है? इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करें व साथियों के बीच चर्चा करें।
उत्तर:
अव-ऑक्सीयता (Hypoxia):
इस स्थिति का सम्बन्ध शरीर की कोशिकाओं/ऊतकों में ऑक्सीजन के आंशिक दबाव में कमी से होता है। यह ऑक्सीजन की कम आपूर्ति के कारण होता है। वायुमण्डल में पहाड़ों पर 8000 फुट से अधिक ऊँचाई पर वायु में O2 का दबाव कम हो जाता है।

इससे सिरदर्द, वमन, चक्कर आना, मानसिक थकान, श्वांस लेने में कठिनाई आदि लक्षण प्रदर्शित होते हैं। इसे कृत्रिम हाइपोक्सिया (artificial hypoxia) कहते हैं। यह रोग प्राय: पर्वतारोहियों को हो जाता है। शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के कारण रक्त की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसे एनीमिया हाइपोक्सिया (anaemia hypoxia) कहते हैं।

प्रश्न 13.
निम्न के बीच अन्तर करें –
(क) IRV (आई० आर० वी०) और ERV (इ० आर० वी)
(ख) अन्तःश्वसन क्षमता (IC) और निःश्वसन क्षमता (EC)
(ग) जैव क्षमता तथा फेफड़ों की कुल धारिता।
उत्तर:
(क) IRV (आई० आर० वी०) तथा ERV (इ० आर० वी०) में अन्तर (Difference between IRV & ERV):
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(ख) अन्तःश्वसन क्षमता और निःश्वसन क्षमता में अन्तर (Difference between Inspiratory Capacity and Expiratory Capacity):
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(ग) जैव क्षमता तथा फेफड़ों की कुल धारिता में अन्तर (Difference between Vital Capacity and Total Lung Capacity):
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प्रश्न 14.
ज्वारीय (प्रवाही) आयतन क्या है? एक स्वस्थ मनुष्य के लिए एक घण्टे के ज्वारीय आयतन (लगभग मात्रा) को आंकलिक कीजिए।
उत्तर:
ज्वारीय (प्रवाही) आयतन (Tidal Volume):
सामान्य परिस्थितियों में मनुष्य जो वायु का आयतन ग्रहण करता है और निष्कासित करता है, ज्वारीय (प्रवाही) आयतन कहते हैं। सामान्यतया इसकी मात्रा 500 मिली होती है।

एक घण्टे में ग्रहण की गई वायु का आयतन –
सामान्यतया मनुष्य एक मिनट में 12-16 बार श्वास लेता और निष्कासित करता है तो एक घण्टे में ग्रहण की गई ज्वारीय (प्रवाही) वायु का आयतन
= श्वास दर × प्रवाही वायु का आयतन × 60
= 12 × 500 × 60 = 360000 मिली प्रति घण्टा या
16 × 500 × 60 = 480000 मिली प्रति घण्टा

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 16 पाचन एवं अवशोषण

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 16 पाचन एवं अवशोषणन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Biology पाचन एवं अवशोषण Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से सही उत्तर छाँटे –
(क) आमाशय रस में होता है
(अ) पेप्सिन, लाइपेज और रेनिन
(ब) ट्रिप्सिन, लाइपेज और रेनिन
(स) ट्रिप्सिन, पेप्सिन और लाइपेज
(द) ट्रिप्सिन, पेप्सिन, लाइपेज और रेनिन।
उत्तर:
(अ) पेप्सिन, लाइपेज और रेनिन।

(ख) सक्कस एण्टेरिकस (succus entericus) नाम दिया गया है –
(अ) क्षुदान्त्र (ileum) और बड़ी आँत के सन्धि स्थल के लिए
(ब) आंत्रिक रस के लिए
(स) आहारनाल में सूजन के लिए
(द) परिशेषिका (appendix) के लिए।
उत्तर:
(ब) आंत्रिक रस के लिए।

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प्रश्न 2.
स्तम्भ I का स्तम्भ II से मिलान करिए –
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उत्तर:
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प्रश्न 3.
संक्षेप में उत्तर दें –
(क) अंकुर (villi) छोटी आंत में होते हैं, आमाशय में क्यों नहीं?
(ख) पेप्सिनोजेन अपने सक्रिय रूप में कैसे परिवर्तित होता है?
(ग) आहारनाल की दीवार के मूल स्तर क्या हैं?
(घ) वसा के पाचन में पित्त कैसे मदद करता है?
उत्तर:
(क) आँत की भीतरी सतह म्यूकोसा (mucosa) में अनेक वलय (folds) तथा रसांकुर (villi) पाए जाते हैं। ये अंगुली सदृश रचनाएँ होती हैं। म्यूकोसा की कोशिकाओं की सतह पर ब्रुश बार्डर की तरह अनेक सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) होते हैं।

इससे आँत की अवशोषण सतह में 600 गुना वृद्धि हो जाती है। ये पचे हुए भोजन का अवशोषण करते हैं। आमाशय में भोजन का पाचन पूरा नहीं होता। इस कारण इसमें रसांकुर (villi) तथा सूक्ष्म रसांकुर (microvilli) नहीं पाए जाते।

(ख) पेप्सिनोजेन (pepsinogen) जठर रस के HCl की उपस्थिति में सक्रिय पेप्सिन में बदल जाता है।

(ग) आहारनाल की भित्ति (दीवार) निम्नलिखित चार – स्तरों से बनी होती है –

(i) सिरोसा (Serosa):
यह सबसे बाहरी तन्तुमय आवरण होता है।
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चित्र – आँत की अनुप्रस्थ काट का रेखीय निरूपण

(ii) मस्कुलेरिस (पेशीस्तर-muscularis):
यह दो प्रकार की पेशियों से बना होता है – बाहरी अनुदैर्ध्य पेशी स्तर तथा भीतरी वर्तुल पेशी स्तर। आमाशय में तिरछी पेशियों का एक अतिरिक्त स्तर और पाया जाता है।

(iii) सबम्यूकोसा (Submucosa):
इसका निर्माण ढीले संयोजी ऊतक (loose connective tissue) से होता है। इसमें रक्त वाहिनियाँ, लसीका वाहिनियाँ, तन्त्रिकाएँ तथा आँत में बूनर्स ग्रन्थियाँ (Brunner’s glands) पाई जाती हैं।

(iv) म्यूकोसा (Mucosa):
इसमें शाखामय रसांकुर (villi) पाए जाते हैं। इसकी कोशिकाएँ ग्रन्थिल स्रावी तथा अवशोषी होती हैं आँत की म्यूकोसा की कोशिकाएँ पचे हुए भोज्य पदार्थों का अवशोषण करती हैं।

(घ) पित्त (Bile) के कार्बनिक लवण:
ये वसा का इमल्सीकरण (Emulsification) करते हैं। इमल्सीकृत वसा का पाचन लाइपेज एन्जाइम द्वारा सुगमता से हो जाता है। लाइपेज इल्सीकृत वसा को वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल में बदलता है।

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प्रश्न 4.
प्रोटीन के पाचन में अग्न्याशयी रस की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर:
अग्न्याशयी रस की प्रोटीन पाचन में भूमिका (Role of Pancreatic Juice in Protein Digestion):

अग्न्याशयी रस (Pancreatic Juice):
यह क्षारीय होता है। इसमें लगभग 98% पानी, शेष लवण तथा अनेक प्रकार के एन्जाइम्स पाए जाते हैं। इसका pH मान 7.5-8.3 होता है। इसे पूर्ण पाचक रस कहते हैं; क्योंकि इसमें कार्बोहाइट्रेट, वसा तथा प्रोटीन को पचाने वाले एन्जाइम्स पाए जाते हैं। प्रोटीन पाचक एन्जाइम्स निम्नलिखित होते हैं –

ट्रिप्सिन तथा क्राइमोट्रिप्सिन (Trypsin and Chymotrypsin):
ये निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन तथा क्राइमोट्रिप्सिनोजन के रूप में स्रावित होते हैं। ये आन्त्रीय रसं एवं एण्टेरोकाइनेज एन्जाइम के कारण सक्रिया अवस्था में बदल जाते हैं। ये प्रोटीन का पाचन करके मध्यक्रम की प्रोटीन्स तथा ऐमीनो अम्ल बनाते हैं।
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प्रश्न 5.
आमाशय में प्रोटीन के पाचन की क्रिया का वर्णन करें।
उत्तर:
आमाशय में प्रोटीन का पाचन (Digestion of Protein in Stomach):
आमाशय की जठर ग्रन्थियों से जठर रस स्रावित होता है। यह अम्लीय (pH 0.9 – 3.5) होता है। इसमें 99% जल, 0.5% HCl तथा शेष एन्जाइम्स होते हैं। इसमें प्रोपेप्सिन, प्रोरेनिन तथा गैस्ट्रिक लाइपेज एन्जाइम होते हैं। प्रोपेप्सिन तथा प्रोरेनिन एन्जाइम HCl की उपस्थिति में सक्रिय पेप्सिन (pepsin) तथा रेनिन (rennin) में बदल जाते हैं। ये प्रोटीन तथा केसीन (दूध प्रोटीन) का पाचन करते हैं।
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प्रश्न 6.
मनुष्य का दन्त-सूत्र बताइए।
उत्तर:
मनुष्य का दन्त सूत्र (Dental Formula of Man):
वयस्क व्यक्ति \(\frac{2123}{2123}\) × 2 = 32
बच्चों में दुग्ध दन्त \(\frac{2102}{2102}\) × 2 = 20
वयस्क व्यक्ति में 8 कृन्तक, 4 रदनक, 8 अग्रचर्वणक तथा 12 चर्वणक अर्थात् कुल 32 दाँत होते हैं। बच्चों में दुग्ध दाँतों की संख्या 20 होती है। इनमें 8 कृन्तक, 4 रदनक तथा 8 चवर्णक होते हैं।

प्रश्न 7.
पित्त रस में कोई पाचक एन्जाइम नहीं होते, फिर भी यह पाचन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं; क्यों?
उत्तर:
पित्त (Bile) पित्त का स्रावण यकृत से होता है। इसमें कोई एन्जाइम नहीं होता। इसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक लवण, पित्त वर्णक, कोलेस्टेरॉल, लेसीथिन आदि होते हैं।

  1. यह आमाशय से आई अम्लीय लुगदी (chyme) को पतली क्षारीय काइल (chyle) में बदलता है जिससे अग्न्याशयी एन्जाइम भोजन का पाचन कर सकें।
  2. यह वसा का इमल्सीकरण (emulsification) करता है। इमल्सीकृत वसा का लाइपेज एन्जाइम द्वारा सुगमता से पाचन हो जाता है।
  3. कार्बनिक लवण वसा के पाचन में सहायता करते हैं।
  4. हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है।

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प्रश्न 8.
पाचन में काइमोट्रिप्सिन की भूमिका वर्णित करें। जिस ग्रन्थि से यह स्रावित होता है, इसी श्रेणी के दो अन्य एन्जाइम कौन-से हैं?
उत्तर:
काइमोट्रिप्सिन (Chymotrypsin):
अग्न्याशय से स्त्रावित प्रोटीन पाचक एन्जाइम है। यह निष्क्रिय अवस्था काइमोट्रिप्सिनोजन (chymotrypsinogen) के रूप में स्रावित होता है। यह आन्त्रीय रस में उपस्थित एण्टेरोकाइनेज (enterokinase) एन्जाइम की उपस्थिति में सक्रिय काइमोट्रिप्सिन में बदलता है। यह प्रोटीन को पॉलीपेप्टाइड तथा पेप्टोन (polypeptides and peptones) में बदलता है।
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अग्न्याशय से स्रावित अन्य प्रोटीन पाचक एन्जाइम निम्नलिखित है –

  1. ट्रिप्सिनोजन (Trypsinogen)
  2. कार्बोक्सिपेप्टिडेज (Carboxypeptidase)

प्रश्न 9.
पॉलीसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड का पाचन कैसे होता है?
उत्तर:
पॉली तथा डाइसैकेराइड्स का पाचन (Digestion of Poly and Disaccherides) कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन मुखगुहा से ही प्रारम्भ हो जाता है। भोजन में लार मिलती है। लार का pH मान 6.8 होता है। यह भोजनका चिकना तथा निगलने योग्य बनाती है। लार में टायलिन (ptyalin) एन्जाइम होता है। यह स्टार्च (पॉलीसैकेराइड) को डाइसैकेराइड (माल्टोस) में बदलता है।
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आमाशय में कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता। अग्न्याशय रस में ऐमाइलेज (amylase) एन्जाइम होता है। यह स्टार्च या पॉलीसैकेराइड्स को डाइसैकेराइड्स में बदलता है। स्टार्च (पॉलीसैकेराइड्स) + जल
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क्षुदान्त्र (छोटी आँत) में आंत्रीय रस में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम्स के निम्नलिखित प्रकार इसके पाचन में सहायक होते हैं –
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प्रश्न 10.
यदि आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का स्त्राव नहीं होगा तो क्या होगा?
उत्तर:
आमाशय की जठर ग्रन्थियों की ऑक्सिन्टिक (oxyntic) कोशिकाओं से HCI स्रावित होता है। यह आमाशय में भोजन को सड़ने से बचाता है और जठर ग्रन्थि से स्रावित निष्क्रिय एन्जाइम्स को सक्रिय करता है। HCI के अभाव में निम्नलिखित क्रियाएँ होंगी –

  1. भोजन का माध्यम अम्लीय न होने से जठर रस के एन्जाइम निष्प्रभावी रहेंगे। पेप्सिनोजन (pepsinogen) तथा प्रोरेनिन (prorennin) निष्क्रिय बने रहेंगे। प्रोटीन्स का पाचन नहीं होगा।
  2. भोजन के साथ आए जीवाणु आदि नष्ट नहीं होंगे, इससे भोजन सड़ जाएगा।
  3. भोजन में उपस्थित कैल्सियमयुक्त कठोर भागों (जैसे-अस्थियों) का पाचन नहीं होगा।
  4. टायलिन द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन होता रहेगा।
  5. भोजन में उपस्थित न्यूक्लीक अम्लों का विघटन नहीं होगा।

प्रश्न 11.
आपके द्वारा खाए गए मक्खन का पाचन और उसका शरीर में अवशोषण कैसे होता है? विस्तार से वर्णन करें
उत्तर:
मक्खन इमल्सीकृत वसा है। इसका पाचन आमाशय में प्रारम्भ हो जाता है। कुछ मात्रा में वसा का पाचन गैस्ट्रिक लाइपेज (gastric lipase) द्वारा वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में हो जाता है। अग्न्याशय तथा आँत में लाइपेज एन्जाइम द्वारा वसा का पाचन होताहै। इसके फलस्वरूप अन्ततः वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में हो जाता है।
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इनका अवशोषण क्षुदान्त्र में लसीका कोशिकाओं द्वारा होता है। अवशोषित वसीय अम्ल ग्लिसरॉल तथा फॉस्फेट परस्पर मिलकर वसा के बिन्दुक मिसेल (micelles) या काइलोमाइक्रोन्स (chylomicrons) बनाते हैं। लसीका वाहिनियाँ अन्ततः रक्तवाहिनियों से मिल जाती हैं। इसके फलस्वरूप मिसेल या काइलोमाइक्रोन्स रक्त में पहुँच जाती है।

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प्रश्न 12.
आहारनाल के विभिन्न भागों में प्रोटीन के पाचन के मुख्य चरणों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
प्रोटीन का पाचन (Digestion of Protein):
1. आमाशय में (In Stomach):
आमाशय के जठर रस में प्रोटीन पाचक विकर निष्क्रिय पेप्सिनोजन तथा प्रोरेनिन होते हैं। ये HCl की उपस्थिति में सक्रिय पेप्सिन तथा रेनिन में बदल जाते हैं।
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2. ग्रहणी में (In Duodenum):
अग्न्याशय रस में ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन निष्क्रिय अवस्था में होते हैं। इन्हें क्रमश: ट्रिप्सिनोजन तथा काइमोट्रिप्सिनोजन कहते हैं। यह आंत्रीय रस में उपस्थित एण्टेरोकाइनेज की उपस्थिति में सक्रिय अथवा में बदल जाते हैं।
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3. आँत (क्षुद्रान्त्र) में (In ileum):
आन्त्रीय रस में इरेप्सिन (erepsin) एन्जाइम्स का समूह होता है। इसमें ऐमीनोपेप्टिडेज (aminopeptidase) ट्राइपेप्टिडेज (tripeptidase) तथा डाइपेप्टिडेज (dipeptidase) होते हैं। ये क्रमशः पॉली, ट्राइ और डाइपेप्टाइड्स को ऐमीनो अम्लों में तोड़ देते हैं। प्रोटीन के पूर्ण पाचन के फलस्वरूप सरल घुलनशील ऐमीनो अम्ल प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 13.
गर्तदन्ती (thecodont) और द्विबारदन्ती (diphyodont) शब्दों की व्याख्या करें।
उत्तर:
1. गर्तदन्ती (Thecodont):
प्रत्येक दाँत जबड़े की हड्डी के गड्ढे (socket) में स्थित होता है। गड्ढे में दाँत घने तन्तुओं से बने स्नायु और मसूड़े (gum) द्वारा सधा रहता है। ऐसे दाँतों को गर्तदन्ती कहते हैं।

2. द्विबारदन्ती (Diphyodont):
मनुष्य सहित अधिकांश स्तनियों में दाँत जीवन में दो बार निकलते हैं। पहले अस्थायी दुग्ध दाँत (milk teeth) निकलते हैं। इनके गिरने पर स्थायी (permanent) दाँत निकलते हैं। इस प्रकार के दाँतों को द्विबारदन्ती कहते हैं।

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प्रश्न 14.
विभिन्न प्रकार के दाँतों का नाम और एक वयस्क मनुष्य में दाँतों की संख्या बताएँ।
उत्तर:
मनुष्य (स्तनियों) में चार प्रकार के दाँत पाए जाते हैं –

  1. कृन्तक (Incisors): ये भोजन को काटने और कुरतने का कार्य करते हैं।
  2. रदनक (Canines): ये भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते हैं।
  3. अग्रचर्वणक (Premolars): ये भोजन को चबाने-पीसने का कार्य करते हैं।
  4. चर्वणक (Molars): ये भोजन को चबाने-पीसने का कार्य करते हैं। वयस्क में 8 कृन्तक, 4 रदनक, 8 अग्रचर्वणक तथा 12 चर्वणक पाए जाते हैं। वयस्क मनुष्य का दन्त सूत्र निम्नांकित प्रकार है –
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प्रश्न 15.
यकृत के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
यकृत के कार्य (Functions of Liver):
यकृत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • यकृत में पित्त रस स्रावित होता है। इसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक लवण; जैसे – सोडियम क्लोराइड, सोडियम बाइकार्बोनेट, सोडियम ग्लाइकोकोलेट, सोडियम टॉरोकोलेट आदि। ये कोलेस्टेरॉल (choloesterol) को घुलनशील बनाए रखते हैं।
  • पित्तरस में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) के विखण्डन से बने पित्त वर्णक (bile pigments) पाए जाते हैं; जैसे – बिलिरुबिन (bilirubin) तथा बिलिवर्डिन (biliverdin) यकृत कोशिकाएँ रुधिर से जब बिलिरुबिन को ग्रहण नहीं कर पाते तो यह शरीर में एकत्र होने लगता है इससे पीलिया (jaundice) रोग हो जाता है।
  • पित्त रस आन्त्रीय क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है ताकि पाचक रस काइम में भली प्रकार मिल जाएँ।
  • पित्त रस काइम के अम्लीय प्रभाव को समाप्त करके काइल (Chyle) को क्षारीय बनाता है जिससे अग्न्याशयी तथा आन्त्रीय रसों की भोजन पर प्रतिक्रिया हो सकें।
  • पित्त लवण काइम के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके काइम को सड़ने से बचाते हैं।
  • पित्त रस के कार्बनिक लवण वसाओं के धरातल तनाव (surface tension) को कम करके इन्हें सूक्ष्म बिन्दुकों में तोड़ देते हैं। ये जल के साथ मिलकर इमल्सन या पायस बना लेते हैं। इस क्रिया को इमल्सीकरण (emulsification) कहते हैं।
  • पित्त लवणों के कारण वसा पाचक एन्जाइम सक्रिय होते हैं।
  • वसा में घुलनशील विटामिनों (A, D, E एवं K) के अवशोषण के लिए पित्त लवण आवश्यक होते हैं।
  • पित्त के द्वारा विषाक्त पदार्थ, अनावश्यक कोलेस्टेरॉल आदि का परित्याग किया जाता है।
  • यकृत में विषैले पदार्थों का विषहरण (detoxification) होता है।
  • यकृत में मृत लाल रुधिराणुओं का विघटन होता है।
  • यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है।
  • यकृत कोशिकाएँ हिपैरिन (heparin) का स्रावण करती हैं। यह रक्त वाहिनियों में रक्त का थक्का बनने से रोकता है।
  • यकृत में प्लाज्मा प्रोटीन्स; जैसे-ऐल्बुमिन, ग्लोबुलिन, प्रोट्रॉम्बिन, फाइब्रिनोजन आदि का संश्लेषण होता है। फाइब्रिनोजन (fibrinogen) रक्त का थक्का बनने में सहायक होता है।
  • यकृत आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदल कर संचित करता है।
  • आवश्यकता पड़ने पर यकृत प्रोटीन्स व वसा से ग्लूकोस का निर्माण करता है।
  • यकृत कोशिकाएँ विटामिन A, D, लौह, ताँबा आदि का संचय करती हैं।
  • यकृत की कुफ्फर कोशिकाएँ जीवाणु तथा हानिकारक पदार्थों का भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करती हैं।

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 14 पादप में श्वसन

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 14 पादप में श्वसन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Biology पादप में श्वसन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें अन्तर करिए –
(अ) साँस (श्वसन) और दहन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र
(स) ऑक्सी श्वसन तथा किण्वन।
उत्तर:
(अ) श्वसन और दहन में अन्तर | (Difference between Respiration & Combustion):
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(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र में अन्तर (Difference between Glycolysis and Kreb’s Cycle):
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(स) श्वसन तथा किण्वन में अन्तर (Difference between Respiration and Fermentation):
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प्रश्न 2.
श्वसनीय क्रियाधार क्या है? सर्वाधिक साधारण क्रियाधार का नाम बताइए।
उत्तर:
श्वसनीय क्रियाधार (Respiratory Substrates):
श्वसन क्रिया के अन्तर्गत जिन कार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त होती है, उन्हें श्वसनी क्रियाधार (respiratory substrates) कहते हैं। प्रायः कार्बोहाइड्रेट्स के ऑक्सीकरण से ऊर्जा मुक्त होती है।

कुछ पौधों में विशेष परिस्थितियों में प्रोटीन, वसा, कार्बनिक अम्लों के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त होती है। कार्बनिक पदार्थों से ऊर्जा, विभिन्न चरणों में मुक्त होती है। ये क्रियाएँ एन्जाइम्स द्वारा नियन्त्रित होती है। सर्वाधिक साधारण श्वसनी क्रियाधार ग्लूकोस (C6H12O6) होता है।

प्रश्न 3.
ग्लाइकोलिसिस को रेखा द्वारा बनाइये।
उत्तर:
ग्लाइकोलिसिस (Glycolysis):
इंसे EMP पथ भी कहते हैं। यह कोशिका द्रव्य में सम्पन्न होता है। इसमें ऑक्सीजन का उपयोग नहीं होता अत: ऑक्सीश्वसन और अनॉक्सीश्वसन दोनों में यह क्रिया होती है। इस क्रिया के अन्त में एक ग्लूकोस अणु से 2 पाइरुविक अम्ल अणु प्राप्त होते हैं।

4 ATP अणु प्राप्त होते हैं, 2 खर्च हो जाते हैं। हाइड्रोजनग्राही NAD हाइड्रोजन आयन्स (2H+) को ग्रहण करके NAD.2H बनाते हैं। हाइड्रोजन ग्राही से हाइड्रोजन आयन्स स्थानान्तरण के फलस्वरूप 8 ATP अणु प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कुल 8 ATP अणुओं की प्राप्ति होती है।
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चित्र – ग्लाइकोलिसिस

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प्रश्न 4.
ऑक्सीश्वसन के मुख्य चरण कौन-कौन से हैं? यह कहाँ सम्पन्न होती है?
उत्तर:
ऑक्सीश्वसन के मुख्य चरण:
जीवित कोशिका में ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोस (कार्बनिक पदार्थ) के जैव-रासायनिक ऑक्सीकरण को ऑक्सीश्वसन कहते हैं। इस क्रिया के अन्तर्गत रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में ATP में संचित हो जाती है। C6H12O6 + 6O2 → 6CO2↑+ 6H2O + 673 k cal.

ऑक्सीश्वसन निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है –

(क) ग्लाइकोलिसिस अथवा ई० एम० पी० मार्ग (Glycolysis or E.M.P. Pathway):
यह क्रिया कोशिकाद्रव्य में सम्पन्न होती है। इसमें ग्लूकोस के आंशिक ऑक्सीकरण के फलस्वरूप पाइरुविक अम्ल के दो अणु प्राप्त होते हैं। ग्लाइकोलिसिस प्रक्रिया में कुल 8 ATP अणु प्राप्त होते हैं।

(ख) ऐसीटिल कोएन्जाइम-A का निर्माण (Formation of Acetyle CoA):
यह माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है। कोशिकाद्रव्य (सायटोसोल) में उत्पन्न पाइरुविक अम्ल माइटोकॉण्ड्रिया में प्रवेश करके NAD+ और कोएन्जाइम – A से संयुक्त होकर पाइरुविक अम्ल का ऑक्सीकीय CO2 वियोजन (oxidative decarboxylation) होता है। इस क्रिया में CO 2 का एक अणु मुक्त होता है और NAD.2H बनता है और अन्त में ऐसीटिल कोएन्जाइम – A बनता है।
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ऐसीटिल कोएन्जाइम – A + CO2 + NaD.2H

(ग) क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Krebs Cycle or Tricarboxylic Acid Cycle):
यह पूर्ण क्रिया माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में सम्पन्न होती है। क्रेब्स चक्र के एन्जाइम्स मैट्रिक्स में पाए जाते हैं। ऐसीटिल कोएन्जाइम-A माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में उपस्थित ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल से क्रिया करके 6-कार्बन यौगिक सिट्रिक अम्ल बनाता है।

सिट्रिक अम्ल का क्रमिक निम्नीकरण होता है और अन्त: में पुनः ऑक्सेलोऐसीटिक अम्ल प्राप्त हो जाता है। केब्स चक्र में 2 अणु CO2 के मुक्त होते हैं। चार स्थानों पर 2H+ मुक्त होते हैं जिन्हें हाइड्रोजनग्राही NAD या FAD ग्रहण करते हैं। क्रेब्स चक्र में 24 ATP अणु ETS द्वारा प्राप्त होते हैं।

ऐसीटिल कोएन्जाइम –
A + H2O + 3NAD + FAD + ADP + iP → 2CO2 + 3NAD.2H + FAD.2H + ATP + कोएन्जाइम – A

(घ) इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System):
यह माइटोकॉण्ड्रिया की भीतरी सतह पर स्थित F1 कण या ऑक्सीसोम्स पर सम्पन्न होता है। क्रेब्स चक्र की ऑक्सीकरण क्रिया में डिहाइड्रोजिनेस (dehydrogenase) एन्जाइम विभिन्न पदार्थों से हाइड्रोजन तथा इलेक्ट्रॉन के जोड़े – मुक्त कराते हैं। हाइड्रोजन तथा इलेक्ट्रॉन कुछ मध्यस्थ संवाहकों के द्वारा होते हुए ऑक्सीजन से मिलकर जल का निर्माण करते हैं। हाइड्रोजन परमाणुओं के एक इलेक्ट्रॉनग्राही से दूसरे इलेक्ट्रॉनग्राही पर स्थानान्तरित होते समय ऊर्जा मुक्त होती है। यह ऊर्जा ATP में संचित हो जाती है।

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प्रश्न 5.
क्रेब्स चक्र का समग्र रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर:
केब्स चक्र या दाइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र (Krebs Cycle or Tricarboxylic Acid Cycle):
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चित्र – क्रेब्स चक्र माइटोकॉन्ड्रिया में घटित होने वाली प्रक्रिया है। इनमें अनेक एन्जाइम तथा इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र (ETS) की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6.
इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (Electron Transport System):
ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र के विभिन्न पदों में अपघटन के फलस्वरूप उत्पन्न हुई ऊर्जा के अधिकांश भाग का परिवहन हाइड्रोजनग्राही करते हैं; जैसे-NAD, NADP, FAD आदि। ये 2H’ (हाइड्रोजन आयन) के साथ मिलकर अपचयित (reduce) हो जाते हैं। इन्हें वापस ऑक्सीकृत (oxidise) करने के लिए विशेष तन्त्र इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण तन्त्र (ETS = Electron Transport System) की आवश्यकता होती है।

यह तन्त्र, इलेक्ट्रॉन्स (e) को एक के बाद एक ग्रहण करते हैं तथा उन पर उपस्थित ऊर्जा स्तर (energy level) को कम करते हैं। इस कार्य का मुख्य उद्देश्य कुछ ऊर्जा को निर्मुक्त करना है। यही निर्मुक्त ऊर्जा ATP (adenosine triphosphate) में संगृहीत हो जाती है।

इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र एक श्रृंखलाबद्ध क्रम के रूप में होता है जिसमें कई सायटोक्रोम एन्जाइम्स (cytochrome enzymes) होते हैं। इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र के एन्जाइम माइटोकॉन्ड्रिया की अन्तःकला (inner membrane) में श्रृंखलाबद्ध क्रम से लगे रहते हैं। सायटोक्रोम्स लौह तत्व के परमाणु वाले वर्णक हैं, जो इलेक्ट्रॉन मुक्त कर ऑक्सीकृत (oxidised) हो जाते हैं –
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साइटोक्रोम्स की इस श्रृंखला में प्रारम्भिक साइटोक्रोम ‘बी’ (cytochrome ‘b’ = cyt ‘b’ Fe3+ उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन (e) को ग्रहण करता है तथा अपचयित हो जाता है। इलेक्ट्रॉन का स्थानान्तरण हाइड्रोजन आयन्स से होता है, जो पदार्थ से NAD या NADP के द्वारा लाए गए थे। बाद में ये FAD को दे दिए गए थे और यहाँ से स्वतन्त्र कर दिए गए।

इलेक्ट्रॉन्स के Cyt ‘b’ Fe+++ पर स्थानान्तरण में सम्भवत: सह-एन्जाइम ‘क्यू’ (Co-enzyme ‘Q’ = Co Q’ = ubiquinone) सहयोग करता है। इस प्रारम्भिक सायटोक्रोम के बाद श्रृंखला में कई और सायटोक्रोम रहते हैं। ये क्रमशः इलेक्ट्रॉन को अपने से पहले वाले सायटोक्रोम से ग्रहण करते हैं तथा अपने से अगले सायटोक्रोम को स्थानान्तरित कर देते हैं।

श्रृंखला के अन्तिम सायटोक्रोम से दो इलेक्ट्रॉन्स, ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर उसे सक्रिय कर देते हैं। अब यह .ऑक्सीजन परमाणु उपलब्ध दो हाइड्रोजन आयन्स के साथ जुड़कर जल का एक अणु (H2O) बना लेता है। श्वसनन से सम्बन्धित सह सायटोक्रोम तन्त्र माइटोक्रॉन्ड्रिया की अन्तःकला (inner membrane) में स्थित होता है।

ए० टी० पी० का संश्लेषण (Synthesis of ATP):
श्वसन क्रिया दो क्रियाओं ग्लाइकोलिसिस (glycolysis) तथा क्रेब्स चक्र (Krebs Cycle) में पूर्ण होती है। इन क्रियाओं के अन्त में कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल बनते हैं। – ग्लाइकोलिसिस में 4 अणु ATP बनते हैं, दो अणु काम में आ जाते हैं। अतः केवल दो ATP अणुओं का लाभ होता है।

ग्लाइकोलिसिस तथा क्रेब्स चक्र में मुक्त 2H+ (हाइड्रोजन आयन) को NAD, NADP या FAD ग्रहण करते हैं। इनसे मुक्त परमाणु हाइड्रोजन अणु हाइड्रोजन में बदलकर ऑक्सीजन के साथ मिलकर जल बनाते हैं।

इस क्रिया में मुक्त 2e (इलेक्ट्रॉन) इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण तन्त्र (ETS) में पहुंचकर धीरे-धीरे अपना ऊर्जा स्तर (energy level) कम करते हैं। इस प्रकार निष्कासित ऊर्जा ADP को ATP में बदलने के काम आती है। इस प्रकार प्रत्येक जोड़े 2H+ से तीन ATP अणु बनते हैं। FAD पर स्थित 2H<sup+ से केवल दो ATP अणु ही बनते हैं। इस प्रकार –
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चित्र – वे अभिक्रियाएँ जिनमें H+ निकलते हैं तथा इनके इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण तन्त्र (ETS) में जाने के कारण ATP अणु बनते हैं। क्रेब्स चक्र तथा उससे पूर्व की क्रियाओं में कुल 38 ATP अणु बनते हैं।

ग्लाइकोलिसिस से लेकर पूर्ण ऑक्सीकरण होने तक कुल ATP अणुओं की संख्या निम्नलिखित हो जाती है –

(a) ग्लाइकोलिसिस की अभिक्रियाओं में (कुल चार अणु बनते हैं तथा दो प्रयुक्त हो जाते हैं)। = 2 ATP

(b) ग्लाइकोलिसिस में ही बने दो NAD. H, (ETS में जाने के बाद) = 6 ATP

(c) क्रेब्स चक्र के पूर्व पाइरुविक अम्ल से ऐसीटिल को-एन्जाइम ‘ए’ बनते समय NAD.H2 बनने तथा ETS में जाने के बाद (दो अणु पाइरुविक अम्ल से दो NAD.H2) बनते = 6 ATP

(d) क्रेब्स चक्रं में बने 3NADH2 के ETS में जाने पर [दो बार यही चक्र पूरा होने पर ध्यान रहे, दो ऐसीटिल को-एन्जाइम ‘ए’ (acetyl Co ‘A’) अर्थात् एक ग्लूकोस के अणु से दो क्रेब्स चक्र में 6NADH2, की प्राप्ति होती है। ATP के 9 अणु बनाते है।
9 × 2 = 18 ATP

(e) क्रेब्स चक्र में ही FAD.H2 से (ETS में जाने पर) दो अणु ATP बनते हैं (इस प्रकार, एक पूरे ग्लूकोस अणु से चार अणु ATP बनते हैं।)
= 2 × 2 = 4ATP

(f) क्रेब्स चक्र में ही सक्सीनिक अम्ल (succinic acid) बनते समय जी० टी० पी० (GTP = (guanosine triphosphate) का निर्माण होता है जो बाद में एक ADP को ATP में बदल देता है।
= 1 × 2 = 2ATP
इस प्रकार कुल योग = 38 ATP

ग्लिसरॉल फॉस्फेट शटर (Glycerol Phosphate Shuttle) की कार्य क्षमता कम होती है। इसमें दो अणु NADH2 जो ग्लाइकोलिसिस में बनते हैं, उनसे कभी-कभी 6 ATP के स्थान पर 4 ATP की ही प्राप्ति होती है। ये NADH2 माइटोकॉन्ड्रिया के बाहर जीवद्रव्य में बनते हैं।

NADH2 का अणु माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर प्रवेश नहीं कर पाता, यह अपने H+ माइटोकॉन्ड्रिया के भीतर भेजता है मस्तिष्क तथा पेशियों की कोशिकाओं में प्रत्येक NADH2 के H+ के भीतर प्रवेश में 1 ATP अणु खर्च हो जाता है; अतः अन्त में कुल 36 ATP अणुओं की प्राप्ति होती है।

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प्रश्न 7.
निम्न के मध्य अन्तर कीजिए –
(अ) ऑक्सीश्वसन तथा अनॉक्सीश्वसन
(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन
(स) ग्लाइकोलिसिस तथा सिट्रिक अम्ल चक्र।
उत्तर:
(अ) ऑक्सीश्वसन तथा अनॉक्सीश्वसन में अन्तर (Differences between Aerobic and Anaerobic Respiration):
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(ब) ग्लाइकोलिसिस तथा किण्वन में अन्तर (Difference between Glycolysis and Fermentation):
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(स) ग्लाइकोलिसिस तथा सिट्रिक अम्ल चक्र में अन्तर (Difference between Glycolysis and Citric Acid Cycle):
क्रेब्स चक्र या ट्राइकार्बोक्सिलिक अम्ल चक्र को सिट्रिक अम्ल चक्र (Citric Acid Cycle) कहते हैं। |
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प्रश्न 8.
शुद्ध ए० टी० पी० के अणुओं की प्राप्ति की गणना के दौरान आप क्या कल्पनाएँ करते हैं?
उत्तर:
ए० टी० पी० अणुओं की प्राप्ति की कल्पनाएँ (Assumptions of Formation of ATP Molecules):

  1. यह एक क्रमिक, सुव्यवस्थित क्रियात्मक मार्ग है जिसमें एक क्रियाधार से दूसरे क्रियाधार का निर्माण होता है जिसमें ग्लाइकोलिसिस से शुरू होकर क्रेब्स चक्र तथा इलेक्ट्रॉन परिवहन तन्त्र (ETS) एक के बाद एक आती है।
  2. ग्लाइकोलिसिस में संश्लेषित NAD माइटोकॉन्ड्रिया में आता है, जहाँ उसका फॉस्फोरिलीकरण होता है।
  3. श्वसन मार्ग के कोई भी मध्यवर्ती दूसरे यौगिक के निर्माण के उपयोग में नहीं आते हैं।
  4. श्वसन में केवल ग्लूकोस का उपयोग होता है। कोई दूसरा वैकल्पिक क्रियाधार श्वसन मार्ग के किसी भी मध्यवर्ती चरण में प्रवेश नहीं करता है।

वास्तव में सभी मार्ग (पथ) एक साथ कार्य करते हैं। पथ में क्रियाधार आवश्कतानुसार अन्दर-बाहर आते-जाते रहते हैं। आवश्यकतानुसार ATP का उपयोग हो सकता है। एन्जाइम की क्रिया की दर विभिन्न कारकों द्वारा नियन्त्रित होती है। श्वसन जीवन के लिए एक उपयोगी क्रिया है। सजीव तन्त्र में ऊर्जा का संग्रहण तथा निष्कर्षण होता रहता है।

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प्रश्न 9.
“श्वसन पथ एक ऐम्फीबोलिक पथ होता है।” इसकी चर्चा कीजिए।
उत्तर:
श्वसन पथ एक ऐम्फीबोलिक पथ (Respiratory Pathway is an Amphibolic Pathway):
श्वसन क्रिया के लिए ग्लूकोस एक सामान्य क्रियाधार (substrate) है। इसे कोशिकीय ईंधन (cellular fuel) भी कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट श्वसन क्रिया में प्रयोग किए जाने से पूर्व ग्लूकोस में बदल दिए जाते हैं। अन्य क्रियाधार श्वसन पथ में प्रयुक्त होने से पूर्व विघटित होकर ऐसे पदार्थों में बदले जाते हैं, जिनका उपयोग किया जा सके; जैसे-वसा पहले ग्लिसरॉल तथा वसीय अम्ल में विघटित होती है।

वसीय अम्ल ऐसीटाइल कोएन्जाइम बनकर श्वसन मार्ग में प्रवेश करता है। ग्लिसरॉल फॉस्फोग्लिसरेल्डिहाइड (PGAL) में बदलकर श्वसन मार्ग में प्रवेश करता है। प्रोटीन्स विघटित होकर ऐमीनो अम्ल बनाती है। ऐमीनो अम्ल विऐमीनीकरण (deamination) के पश्चात् क्रेब्स चक्र के विभिन्न चरणों में प्रवेश करता है।
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चित्र : श्वसन मध्यस्थता के दौरान विभिन्न कार्बनिक अणुओं के विखण्डन को दर्शाने वाला उपापचय मार्ग क्रम एवं परस्पर सम्बन्धों का प्रदर्शन।

इसी प्रकार जब वसा अम्ल का संश्लेषण होता है तो श्वसन मार्ग से ऐसीटाइल कोएन्जाइम अलग हो जाता है। अतः वसा अम्ल के संश्लेषण और विखण्डन के दौरान श्वसनीय मार्ग का उपयोग होता है। इसी प्रकार के संश्लेषण व विखण्डन के दौरान भी श्वसनीय मार्ग का उपयोग होता है। इस प्रकार श्वसनी पथ में अपचय (catabolic) तथा उपचय (anabolic) दोनों क्रियाएँ होती हैं। इसी कारण श्वसनी (पथ) को ऐम्फीबोलिक पथ (amphibolic pathway) कहना अधिक उपयुक्त है न कि अपचय।

प्रश्न 10.
साँस (श्वसन) गुणांक को परिभाषित कीजिए, वसा के लिए इसका क्या मान है?
उत्तर:
साँस (श्वसन) गुणांक (Respiratory Quotient, R.Q.):
एक दिए गए समय, ताप व दाब पर श्वसन क्रिया में निष्कासित CO2 व अवशोषित O2 के अनुपात को श्वसन (साँस) गुणांक या भागफल (R.Q.) कहते हैं। श्वसन पदार्थों के अनुसार श्वसन गुणांक भिन्न-भिन्न होता है।
श्वसन गुणांक (R.Q.)
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वसा (fats) का श्वसन गुणांक एक से कम होता है। वसीय पदार्थों के उपयोग से निष्कासित CO2 की मात्रा अवशोषित O2 की मात्रा से कम होती है। वसा का R.Q. लगभग 0.7 होता है।
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प्रश्न 11.
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण क्या है?
उत्तर:
ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण (Oxidative Phosphorylation):
ऑक्सीश्वसन क्रिया के विभिन्न चरणों में मुक्त हाइड्रोजन आयन्स (2H+) को हाइड्रोजनग्राही NAD या FAD ग्रहण करके अपचयित होकर NAD.2H या FAD.2H बनाता है।
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चित्र – माइटोकॉन्ड्रिया में ATP संश्लेषण का चित्रात्मक प्रदर्शन।
प्रत्येक NAD.2H अणु से दो इलेक्ट्रॉन (2e) तथा दो हाइड्रोजन परमाणुओं (2H+) के निकलकर ऑक्सीजन तक पहुँचने के क्रम में तीन और FAD.2H से दो ATP अणुओं का संश्लेषण होता है।

ETS के अन्तर्गत इलेक्ट्रॉन परिवहन के फलस्वरूप मुक्त ऊर्जा ADP + Pi ATP क्रिया द्वारा ATP में संचित हो जाती है। प्रत्येक ATP अणु बनने में प्राणियों में 7.3 kcal और पौधों में 10-12 kcal ऊर्जा संचय होती है। यह क्रिया फॉस्फोरिलीकरण (phosphorylation) कहलाती है, क्योंकि श्वसन क्रिया में यह क्रिया O2, की उपस्थिति में होती है; अतः इसे ऑक्सीकारी फॉस्फोरिलीकरण (oxidative phosphorylation) कहते हैं।

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प्रश्न 12.
साँस के प्रत्येक चरण में मुक्त होने वाली ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:

  • कोशिका में जैव रासायनिक ऑक्सीकरण के दौरान श्वसनी क्रियाधार में संचित सम्पूर्ण रासायनिक ऊर्जा एकसाथ मुक्त नहीं होता, जैसा की दहन प्रक्रिया में होता है। यह एन्जाइम्स द्वारा नियन्त्रित चरणबद्ध धीमी अभिक्रियाओं के रूप में मुक्त होती है। मुक्त रासायनिक ऊर्जा गतिज ऊर्जा के रूप में ATP में संचित हो जाती है।
  • श्वसन प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जा सीधे उपयोग में नहीं आती। श्वसन प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जाका उपयोग ATP संश्लेषण में होता है।
  • ATP ऊर्जा मुद्रा का कार्य करता है। कोशिका की समस्त जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा ATP के टूटने से प्राप्त होती है।
  • विभिन्न जटिल कार्बनिक पदार्थों के संश्लेषण में भी ATP से मुक्त ऊर्जा उपयोग में आती है।
  • कोशिकाओं में खनिज लवणों के आवागमन में प्रयुक्त ऊर्जा ATP से ही प्राप्त होती है।

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Bihar Board Class 11 Biology गमन एवं संचलन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
कंकाल पेशी के एक सार्कोमियर का चित्र बनाइए और विभिन्न भागों को चिन्हित कीजिए।
उत्तर:
कंकाल पेशी के सार्कोमियर की संरचना (Structure of a Sarcomere of Skeletal Muscle):
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चित्र – (A) विश्रामावस्था में एक सार्कोमियर (पेशी तन्तुक)
(B) इसका एक पेशीखण्ड (विश्राम अवस्था में)
(C) संकुचित पेशीखण्ड।

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प्रश्न 2.
पेशी संकुचन के सी तन्तु सिद्धान्त को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
हक्सले (Huxley, 1954)ने रेखित पेशी तन्तुओं का इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा अध्ययन करके इनमें उपस्थित एक्टिन तथा मायोसिन छड़ों (actin and myosin filaments) का विशिष्ट विन्यास देखा। इस विन्यास को देखते हुए इन्होंने पेशी तन्तु संकुचन का सी तन्तु या छड़ विसर्पण सिद्धान्त (sliding filament theory) दिया।

रेखित पेशियों के संकुचन की कार्य-विधि | (Mechanism of Contraction of Striated Muscles):
रेखित पेशियों में संकुचन तन्त्रिका उद्दीपन के फलस्वरूप होता है। एक्टिन छड़े मायोसिन छड़ों के ऊपर फिसलकर इनके भीतर (सार्कोमियर के केन्द्र की ओर) प्रवेश कर जाती हैं, जिससे पेशी तन्तु में संकुचन हो जाता है।

पेशी संकुचन की सी तन्तु या छड़ विसर्पण सिद्धान्त (Sliding Filament Theory of Muscle Contraction):
सामान्य अवस्था में सार्कोमियर (sarcomere) में ATP तथा मैग्नीशियम आयन होते हैं; कैल्सियम आयन भी सूक्ष्म मात्रा में होते हैं। एक्टिन छड़े ट्रोपोमायोसिन (tropomyosin) के साथ इस प्रकार जुड़ी रहती हैं कि ये मायोसिन छड़ों के साथ नहीं जुड़ सकतीं।

जब पेशी तन्तु को तन्त्रिका आवेग द्वारा ऐशहोल्ड उद्दीपन (threshold stimulus) प्राप्त होता है, तब पेशी तन्तु के अन्तर्द्रव्यीय जाल (ER) से Ca++ (कैल्सियम आयन) सार्कोमियर में मुक्त हो जाते हैं। ये कैल्सियम आयन ट्रोपोमायोसिन के साथ संयुक्त (bind) हो जाते हैं और एक्टिन छड़ें (actin filaments) स्वतन्त्र हो जाती हैं।

इसी समय ATP के जल विघटन (hydrolysis) के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। इस ऊर्जा की उपस्थिति में एक्टिन तथा मायोसिन सक्रियहो जाते हैं और नए सेतु बन्धों (across bridges) की रचना होती है। इसके फलस्वरूप एक्टिन छड़ें मायोसिन छड़ों के ऊपर फिसलकर सार्कोमियर के केन्द्र की ओर चली जाती है। एक्टिन तथा मायोसिन मिलकर एक्टोमायोसिन (actomyosin) की रचना करते हैं। इस प्रक्रिया में पेशी तन्तु की लम्बाई कम हो जाती है अर्थात् संकुचन हो जाता है।

जब उद्दीपन समाप्त हो जाता है, तब सक्रिय पम्पिग द्वारा कैल्सियम आयनों को अन्तर्द्रव्यीय जाल में पम्प कर दिया जाता है। ट्रोपोमायोसिन स्वतन्त्र हो जाता है, इससे एक्टिन व मायोसिन के बीच के सेतु बन्ध टूट जाते हैं। एक्टिन फिर ट्रोपोमायोसिन के साथ संयुक्त (bind) हो जाता है। पेशी तन्तु वापस अपनी पुरानी लम्बाई में लौट आता है, मृत्यु के पश्चात् ATP के न बनने के कारण Ca++ वापस सार्कोप्लाज्मिक जाल में नहीं जा सकते। अतः पेशियाँ सिकुड़ी रह जाती हैं और शरीर अकड़ा रह जाता हैं।

ऊर्जा आपूर्ति (Energy supply):
पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा की आपूर्ति ATP द्वारा होती है। पेशियों में ATP का निर्माण ग्लाइकोजन के अपचय (catabolism) के फलस्वरूप होता है। पेशी सन्तुलन के समय ATP के जल विघटन (hydrolysis) से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
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पेशियों में एक और उच्च ऊर्जा यौगिक उपस्थित होता है, जिसे क्रिएटिन फॉस्फेट (creatine phosphate – PCr) कहते हैं। इसका प्रयोग भी ATP निर्माण में होता है।
ADP + PCr → ATP + Cr
विश्रामावस्था में ATP द्वारा फिर से क्रिएटिन फॉस्फेट का निर्माण हो जाता है।
ATP + Cr → PCr + ADP
इस प्रकार पेशी में क्रिएटिन फॉस्फेट का भण्डार बना रहता है, जो आवश्यकता पड़ने पर ATP प्रदान कर सकता है।

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प्रश्न 3.
पेशी संकुचन के प्रमुख चरणों का वर्णन करें।
उत्तर:
पेशी संकुचन के प्रमुख चरण (Main Steps of Muscle Contractions):
पेशीसंकुचन को सी तन्तु या छड़ विर्सपण सिद्धान्त (sliding filament theory) द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। इसके अनुसार पेशीय रेशों का संकुचन पतले तन्तुओं के मोटे तन्तुओं के ऊपर सरकने से होता है। पेशी को उद्दीपन पहुँचाने वाली तन्त्रिका को तन्त्रिका न्यास (innervation) कहते हैं।

तन्त्रिका और पेशी तन्तु के मध्य सन्धि को तन्त्रिका-पेशी संधि स्थान (neuromuscular junction) कहते हैं। जब केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से तन्त्रिका आवेग तन्त्रिका पेशी संधि स्थान तक पहुँचता है, तब रासायनिक पदार्थ ऐसीटिलकोलीन (acetylcholine) मुक्त होकर पेशी संकुचन के लिए पेशी तन्तु में आवेग पहुँचाता है।

पेशी की झिल्ली धुवित (polarised) अवस्था में होती है। इसकी बाह्य सतह पर +ve तथा भीतरी सतह पर -ve आवेश होता है। ऐसीटिलकोलीन द्वारा पेशी झिल्ली का निधुवण (depolarization) होता है। क्रियात्मक विभव (action potential) स्थापित करने के लिए पेशी झिल्ली Na+ के लिए अत्यधिक पारगम्य हो जाती है। लगभग तीन सेकण्डबाद पेशी तन्तु में संकुचन होता है। पेशी संकुचन एक्टिन छड़ की सी गति के कारण होता है।

एक्टिन छड़े मायोसिन छड़ें की H – पंक्ति या Z – जोन की ओर खिसकती है। मायोसिन छड़ के स्पर (spur) के सेतु बन्धन (cross bridges) के बनने या टूटने से यह क्रिया होती है। सार्कोमियर का पेशीखण्ड छोटा हो जाता है, लेकिन मोटी और पतली छड़ों की लम्बाई नहीं बदलती। सी गतियाँ सेतु बन्धन द्वारा होती है। ‘A’ बैण्ड की लम्बाई ज्यों-की-त्यों रहती है, ‘I’ बैण्ड की लम्बाई कम हो जाती है।

ADP और फॉस्फेट मुक्त करके मायोसिन विश्राम अवस्था में आ जाता है। एक नए ATP के बँधने से सेतु बन्धन टूटते हैं। मायोसिन शीर्ष ATP को अपघटित करके पेशी के संकुचन की क्रिया को दोहराते हैं। तन्त्रिका आवेग के समाप्त हो जाने पर सार्कोरप्लाज्म द्वारा Ca++ के अवशोषण से एक्टिन पुन: ढक जाते हैं। इसके फलस्वरूप ‘Z’ रेखाएँ अपने मूल स्थान पर वापस आ जाती हैं। अतः पेशी में शिथिलन हो जाता है।
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चित्र – सेतु बन्धन के बनने और टूटने की अवस्थाएँ।

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प्रश्न 4.
‘सही’ या ‘गलत’ लिखें –
(क) एक्टिन पतले तन्तु में स्थित होता है।
(ख) रेखित पेशी रेशे का H – क्षेत्र मोटे और पतले, दोनों तन्तुओं को प्रदर्शित करता है।
(ग) मानव कंकाल में 206 अस्थियाँ होती हैं।
(घ) मनुष्य में 11 जोड़ी पसलियाँ होती हैं।
(ङ) उरोस्थि शरीर के अधर भाग में स्थित होती है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) सही
(ग) सही
(घ) गलत
(ङ) सही।

प्रश्न 5.
इनके बीच अन्तर बताइए –
(क) एक्टिन और मायोसिन
(ख) लाल और श्वेत पेशियाँ
(ग) अंस और श्रोणिमेखला।
उत्तर:
(क) एक्टिन और मायोसिन में अन्तर (Difference between Actin and Myosin):
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(ख) लाल तथा श्वेत पेशियों में अन्तर (Difference between Red and White muscle fibres):
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(ग) अंस तथा श्रोणिमेखला में अन्तर (Difference between Pectoral and Peivic girdle):
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प्रश्न 6.
स्तम्भ I का स्तम्भ II से मिलान करें –
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उत्तर:
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प्रश्न 7.
मानव शरीर की कोशिकाओं द्वारा प्रदर्शित विभिन्न गतियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
मानव शरीर की कोशिकाओं में मुख्यत: निम्नलिखित तीन प्रकार की गतियाँ होती हैं –

1. अमीबीय या कूटपादी गति (Amoeboid or Pseudopodial Movement):
मानव शरीर में पाई जाने वाली श्वेत रुधिराणु (Leucocytes) एवं महाभक्षकाणु (macrophages) कोशिकाएँ कूटपाद द्वारा अमीबा की भाँति गति करती हैं।

2. पक्ष्माभी गति (Ciliary movement):
स्तनियों (मानव) में शुक्रवाहिनियों, अण्डवाहिनियों, श्वास नाल में पक्ष्माभ (cilia) पाए जाते हैं। इनकी गति से शुकवाहिनियों में शुक्राणु और अण्डवाहिनियों में अण्डाणु का परिवहन होता है। श्वासनाल के पक्ष्माभ श्लेष्मा को बाहर की ओर धकेलते हैं।

3. पेशीय गति (Muscular Movement):
हमारे उपांगों (अग्रपाद, पश्चपाद), जबड़ों, जिह्वा, नेत्रपेशियों, आहारनाल हृदय आदि में पेशीय गति होती है। पेशीय गति में कंकाल, पेशियाँ तथा तन्त्रिकाएँ सम्मिलित होती हैं।

  1. नेत्र गोलक: नेत्र कोटर में अरेखित पेशियों द्वारा गति करता है। आइरिस तथा सिलियरी काय (iris and ciliary body) पेशियाँ नेत्र में जाने वाले प्रकाश की मात्रा का नियमन करती हैं।
  2. हृदय की हृदपेशियाँ तथा रक्त वाहिनियों की अरेखित पेशियाँ रक्त परिसंचरण में सहायक होती हैं।
  3. डायफ्राम तथा पसलियों के मध्य स्थित अरेखित पेशियों के संकुचन एवं शिथिलन के फलस्वरूप श्वास क्रिया (breathing) सम्पन्न होती है।
  4. आहारनाल की पेशियों में क्रमाकुंचन गतियों के कारण भोजन आगे खिसकता है। भोजन की लुगदी (chyme) बनती है।
  5. कंकालीय पेशियाँ (skeletal muscles) कंकाल से जुड़ी होती हैं। प्रचलन एवं अंगों की गति से ये सीधे सम्बन्धित होती है। कंकाल या रेखित पेशियों के संकुचन एवं शिथिलन के कारण प्रचलन गति होती है।

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प्रश्न 8.
आप किस प्रकार से एक कंकाल पेशी और हृद पेशी में विभेद करेंगे?
उत्तर:
कंकाल (रेखित) पेशी और हृद पेशी में अन्तर (Difference between Skeletal or Striped and Cardiac Muscles):
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प्रश्न 9.
निम्नलिखित जोड़ों के प्रकार बताएँ:
(क) एटलस/अक्ष (एक्सिस)
(ख) अँगूठे के कार्पल/मेटाकार्पल
(ग) फैलेंजेज के बीच
(घ) फीमर/ऐसीटाबुलम
(ङ) कपालीय अस्थियों के बीच
(च) श्रेणिमेखला की प्यूबिक अस्थियों के बीच।
उत्तर:
(क) उपास्थीय जोड़ (cartilagenous joint)।
(ख) सैडल जोड़ (saddle joint)।
(ग) कब्जा जोड़ (Hinge joint)।
(घ) कन्दुक खल्लिका संधि (ball and socket joint)।
(ङ) अचल (fixed) या रेशीय जोड़ (fibrous joint)।
(च) अपूर्ण संधि (imperfect joint)।

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प्रश्न 10.
रिक्त स्थानों में उचित शब्दों को भरिए –
(क) सभी स्तनधारियों में (कुछ को छोड़कर) ………… ग्रीवा कशेरुक होते हैं।
(ख) प्रत्येक मानव पाद में फैलेंजेज की संख्या ………. हैं।
(ग) मायोफाइब्रिल के पतले तन्तुओं में 2 ‘F’ एक्टिन और दो अन्य दूसरे प्रोटीन, जैसे …………. और …………. होते हैं।
(घ) पेशी रेशे में कैल्सियम ……….. में भण्डारित रहता हैं।
(ङ) …………. और …………. पसलियों की जोड़ियों को प्लावी पसलियाँ कहते हैं।
(च) मनुष्य का कपाल ………… अस्थियों से बना होता है।
उत्तर:
(क) सात।
(ख) 14 फैलेंजेज।
(ग) ट्रोपोनिन (troponin), ट्रोपोमायोसिन (tropomyosin)।
(घ) सार्कोप्लाज्मिक जालक (sarcoplasmic reticulum)।
(ङ) 11 वीं, 12 वीं।
(च) 8

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Biology उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
गुच्छीय निस्पंद दर (GFR) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
गुच्छीय निस्यंद दर (Glomerular Filtration Rate):
वृक्कों द्वारा प्रति मिनट निस्पंदित (filtrate) की गई मात्रा गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 125 मिली प्रति मिनट अर्थात् 180 लीटर प्रतिदिन होती है। निस्वंद बोमैन सम्पुट (Bowman’s capsule) में स्थित ग्लोमेरुलस (glomerulus) में होता है।

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प्रश्न 2.
गुच्छीय निस्पंद दर (GFR) की स्वनियमन क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
गुच्छीय निस्यंद दर की स्वनियमन क्रियाविधि (Autoregulatory Mechanism of GFR):
गुच्छीय निस्यंद दर का नियमन गुच्छीय आसन्न उपकरण की सहायता से एक अति सूक्ष्म क्रियाविधि द्वारा सम्पन्न होता है। यह विशेष संवेदी उपकरण अभिवाही तथा अपवाही धमनिकाओं के सम्पर्क स्थल पर दूरस्थ संवलित नलिका की कोशिकाओं के रूपान्तरण से बनता है।

गुच्छीय निस्यंदन दर में गिरावट इन आसन्न गुच्छ केशिकाओं (जक्स्टाग्लोमेरुलर उपकरण) को ‘रेनिन (renin) हॉर्मोन के स्रावण से सक्रिय करती है जो वृक्कीय रुधिर का प्रवाह बढ़ाकर गुच्छ निस्यंद दर को पुन: सामान्य कर देती है। जक्स्टाग्लोमेरुलर उपकरण से स्रावित हॉर्मोन ग्लोमेरुलस में रक्त की सप्लाई और परानिस्यंदन की दर को शरीर की आवश्यकतानुसार घटाती-बढ़ाती अर्थात् इनका पुननिर्वेशन नियन्त्रण (feedback control) करती है। यह स्वनियमन क्रिया होती है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों को सही अथवा गलत में इंगित कीजिए –
(अ) मूत्रण (micturition) प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है।
(ब) ए० डी० एच० मूत्र को अल्पपरासरणी बनाते हुए जल के निष्कासन में सहायक होता है।
(स) बोमैन सम्पुट में रक्त प्लाज्मा से प्रोटीनरहित तरल निस्पंदित होता है।
(द) हेनले लूप मूत्र के सान्द्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(य) समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में ग्लूकोस सक्रिय रूप से पुनः अवशोषित होता है।
उत्तर:
(अ) सही
(ब) गलत
(स) सही
(द) सही
(य) सही।

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प्रश्न 4.
प्रतिधारा क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रतिधारा क्रियाविधि (Counter Current System):
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चित्र – प्रतिधारा प्रक्रिया द्वारा मूत्र का सान्द्रण (रेखाचित्र)

शरीर में जल की कमी हो जाने पर वृक्क ‘सान्द्र मूत्र उत्सर्जित करने लगते हैं। इसमें जल की मात्रा बहुत कम और उत्सर्जी पदार्थों की मात्रा बहुत अधिक हो जाती है। ऐसा मूत्र रक्त की तुलना में 4.5 गुना अधिक गाढ़ा हो सकता है। इसकी परासरणीयता 1200 से 1400 मिली ऑस्मोल/लीटर हो सकती है। मूत्र के सान्द्रण की प्रक्रिया में जक्स्टा मेड्यूलरी (juxta medullary) वृक्क नलिकाओं की विशेष भूमिका हो जाती है; क्योंकि हेनले के लूप तथा परिजालिका केशिकाओं (वासा रेक्टा-vasa recta) के लूप पेल्विस तक फैले होते हैं।

यह प्रक्रिया ADH के नियन्त्रण में तथा पिरैमिड्स के ऊतक द्रव्य में वल्कुट भाग से पेल्विस तक क्रमिक उच्च परासरणीयता बनाए रखने पर निर्भर करती है। वृक्कों के वल्कुट भाग में ऊतक तरल की परासरणीयता 300 मिली ऑस्मोल/लीटर जल होती है। मध्यांश (medulla) भाग के पिरैमिड्स में यह परासरणीयता क्रमश: बढ़कर पेल्विस तक 1200 से 1400 मिली ऑस्मोल/लीटर जल हो जाती है। ऊतक तरल की परासरणीयता मुख्यत: Na+ व Cl आयन तथा यूरिया पर निर्भर करती है।

Na+, Cl आयन्स का परिवहन हेनले लूप की आरोही भुजा द्वारा होता है जिसका हेनले लूप की अवरोही भुजा के साथ विनिमय किया जाता है। सोडियम क्लोराइड ऊतक द्रव्य को वासा रेक्टा की आरोही भुजा द्वारा लौटा दिया जाता है। इसी प्रकार यूरिया की कुछ मात्रा हेनले लूप के सँकरे आरोही भाग में विसरण द्वारा पहुंचती है जो संग्रह नलिका द्वारा ऊतक द्रव्य को पुन: लौटा दी जाती है।

हेनले लूप तथा वासा रेक्टा द्वारा इन पदार्थों के परिवहन को प्रतिधारा क्रियाविधि द्वारा सुगम बनाया जाता है। इसके फलस्वरूप मध्यांश के ऊतक द्रव्य की प्रवणता बनी रहती है। यह प्रवणता संग्रहनलिका द्वारा जल के अवशोषण में सहायता करती है और निस्यंद का सान्द्रण करती है। प्रतिधारा क्रियाविधि जल के ह्रास को रोकने की प्रमुख विधि है।

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प्रश्न 5.
उत्सर्जन में यकृत, फुफ्फुस तथा त्वचा का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
मनुष्य तथा अन्य कशेरुकियों में वृक्क के अतिरिक्त यकृत, फुफ्फुस तथा त्वचा का उत्सर्जन में महत्त्व है। ये सहायक उत्सर्जी अंगों की तरह कार्य करते हैं।

1. यकृत (Liver):
यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है। यूरिया अमोनिया की तुलना में कम हानिकारक होता है। यकृत कोशिकाएँ हीमोग्लोबिन के विखण्डन से पित्त वर्णक बिलिरुबिन (bilirubin) बिलिवर्डिन (biliverdin) बनाती हैं। इसके अतिरिक्त पित्त में उत्सर्जी पदार्थ कोलेस्टेरॉल (cholesterol) कुछ निम्नीकृत स्टीरॉयड हॉर्मोन्स, औषधियाँ आदि होती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थ यकृत के पित्त द्वारा ग्रहणी में पहुँच जाते हैं और मल के साथ शरीर से त्याग दिए जाते हैं।

2. फुफ्फुस (Lungs):
श्वसन क्रिया के फलस्वरूप मुक्त CO2 (18 L/day) एवं जलवाष्प फेफड़ों (फुफ्फुस) द्वारा शरीर से निष्कासित होती है।

3. त्वचा (Skin):
जलीय प्राणियों में अमोनिया का उत्सर्जन त्वचा द्वारा होता है। स्थलीय जन्तुओं में त्वचा की स्वेद ग्रन्थियों (sweat glands) द्वारा जल, खनिज तथा सूक्ष्म मात्रा में यूरिया लैक्टिक अम्ल आदि पसीन के रूप में उत्सर्जित होता है। त्वचा की तेल ग्रन्थियाँ (oil glands) सीबम (sebum) के साथ कुछ हाइड्रोकार्बन्स, मोम (wax), स्टेरॉल (sterol), वसीय अम्ल (fatty acids) आदि उत्सर्जित होते हैं।

प्रश्न 6.
मूत्रण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मूत्रण (Micturition):
मूत्र वृक्क में बनकर मूत्राशय में एकत्र होता रहता है। सामान्यत: अन्त:मूत्रीय तथा बाह्यमूत्रीय संकोचक पेशियों के संकुचन के कारण मूत्रमार्ग बन्द रहता है। मूत्राशय से मूत्र त्याग तभी होता है जब मूत्रमार्ग की दोनों प्रकार की संकोचक पेशियाँ शिथिल हो जाएँ।

अन्त:मूत्रीय संकोचक में अरेखित पेशी तथा बाह्य मूत्रीय संकोचक में रेखित पेशी तन्तु होते हैं, इसलिए अन्त:मूत्रीय संकोचक का शिथिलन स्वायत्त तन्त्रिका तन्त्र के नियन्त्रण में होने वाली अनैच्छिक और बाह्य मूत्रीय पेशियों का शिथिलन एक ऐच्छिक प्रतिक्रिया होती है। मूत्रण वास्तव में अनैच्छिक तथा ऐच्छिक प्रतिक्रियाओं के सहप्रभाव से होता है। ऐच्छिक नियन्त्रण के कारण हम इच्छानुसार मूत्र त्याग करते हैं।

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प्रश्न 7.
स्तम्भ I के बिन्दुओं का खण्ड स्तम्भ II से मिलान कीजिए –
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उत्तर:
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प्रश्न 8.
परासरण नियमन का अर्थ बताइए।
उत्तर:
परासरण नियमन (Osmoregulation):
वृक्क शरीर से हानिकारक पदार्थों को मूत्र के रूप में शरीर से निरन्तर बाहर निकालते रहते हैं। इसके अतिरिक्त ऊतक तरल में लवणों और जल की मात्रा का नियन्त्रण भी करते हैं। शरीर में जल की मात्रा के बढ़ जाने अर्थात् शरीर के तरल की परासरणीयता (osmotality) के कम हो जाने पर मूत्र पतला (तनु) हो जाता है और उसकी मात्रा बढ़ जाती है।

शरीर में जल की कमी होने पर अर्थात् शरीर के ऊतक तरल की परासरणीयता के बढ़ जाने पर मत्र गाढ़ा हो जाता है और इसकी मात्रा कम हो जाती है। मूत्र की मात्रा का नियन्त्रण मुख्यत: ऐल्डोस्टेरॉन (aldosterone) तथा एण्टीडाइयूरेटिक (antidiuretic hormone, ADH) द्वारा होता है। ऐल्डोस्टेरॉन Na+ के पुनरावशोषण को बढ़ाता है, जिससे अन्त: वातावरण में Na+ की उपयुक्त मात्रा बनी रहे। एण्टीडाइयूरेटिक (ADH) या वैसोप्रेसिन (vasopressin) मूत्र के तनुकरण या सान्द्रण का प्रमुख नियन्त्रण होता है। परासरण नियमन प्रक्रिया द्वारा जीवधारी के शरीर में परासरणीयता (osmotality) को नियन्त्रित रखा जाता है।

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प्रश्न 9.
स्थलीय प्राणी सामान्यतया यूरिया उत्सर्जी या यूरिक अम्ल उत्सर्जी होते हैं, अमोनिया उत्सर्जी नहीं होते, क्यों?
उत्तर:
प्रोटीन्स के पाचन के फलस्वरूप बने अमीनो अम्ल के डीएमीनेशन (deamination) के फलस्वरूप अमोनिया तथा कीटो अम्ल (keto acids) बनते हैं। अमोनिया को शरीर से उत्सर्जित कर दिया जाता है जबकि कीटों अम्लों का उपयोग अपचय क्रियाओं में होता है। अमोनिया जल में घुलनशील एवं विषाक्त होती है। इसे शरीर से उत्सर्जित करने के लिए बहुत अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता होती है। जलीय जन्तुओं में यह कार्य सुगमता से हो जाता है।

स्थलीय प्राणियों में जल की कमी होने के कारण अमोनिया को यूरिया या यूरिक अम्ल में बदल दिया जाता है। उभयचर तथा स्तनियों में अमोनिया को यूरिया में बदलकर उत्सर्जित किया जाता है। शुष्क वातावरण में रहने वाले या जल का कम उपयोग करने वाले सरीसृप ओर पक्षी वर्ग के सदस्यों में अमोनिया को अविषाक्त यूरिक अम्ल में बदल दिया जाता है। यूरिक अम्ल जल में अघुलनशील होता है। इसे ठोस रूप में शरीर के मल के साथ उत्सर्जित कर दिया जाता है।

प्रश्न 10.
वृक्क के कार्य में जक्स्टा गुच्छ उपकरण (JGA) का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
जक्स्टा गुच्छ उपकरण (Juxta glomerular apparatus, JGA) की उत्सर्जन में जटिल नियमनकारी भूमिका है। JGA की विशिष्ट कोशिकाएँ केशिकागुच्छ निस्यंदन का स्वनियमन स्वयं वृक्क द्वारा उत्पन्न दाबक क्रियाविधि (renal pressure mechanism) की उपस्थिति के कारण होता है। इसकी खोज टाइगरस्टीट और बर्गमन (Tigersteat and Bergman, 1898) ने की। JGA की विशिष्ट कोशिकाओं से रेनिन हॉर्मोन स्रावित होता है।

Na+ की कम सान्द्रता या निम्न केशिकागुच्छ निस्यंदन दर या निम्न केशिकागुच्छ दाब (glomerular pressure) के कारण रेनिन रक्त में उपस्थित एन्जियोटेंसिनोजन (angiotensinogen) को एन्जियोटेन्सिन – I (angiotensin – I) और बाद में एन्जियोटेन्सिन – II (angiotensin – II) में बदलता है। एन्जियोटेन्सिन – II एक प्रभावकारी वाहिका संकीर्णक (vasoconstrictor) का कार्य करता है, जो गुच्छीय रुधिरदाब तथा जी० एफ० आर० (glomeruler filtration rate, GFR) को बढ़ा देती है।

एन्जियोटेन्सिन – II अधिवृक्क वल्कुट को ऐल्डोस्टेरॉन (aldosterone) हॉर्मोन के स्रावण को प्रेरित करता है। ऐल्डोस्टेरॉन स्रावी नलिका के दूरस्थ भाग में Na+ तथा जल के पुनरावशोषण को बढ़ाता है। इससे रक्त दाब तथा जी० एफ० आर० में वृद्धि होती है। यह जटिल क्रियाविधि रेनिन एन्जियोटेन्सिन (renin angiotensin mechanism) कहलाती है।

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प्रश्न 11.
नाम का उल्लेख कीजिए –
(अ) एक कशेरुकी जिसमें ज्वाला कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जन होता है।
(ब) मनुष्य के वृक्क के वल्कुट भाग जो मध्यांश के पिरामिड के बीच धंसे रहते हैं।
(स) हेनले लूप के समानान्तर उपस्थित केशिका का लूप।
उत्तर:
(अ) ऐम्फिऑक्सस (Amphioxus) में ज्वाला कोशिकाएँ पाई जाती हैं।
(ब) वृक्क के वल्कुट में बर्टिनी के वृक्क स्तम्भ (renal columns of Bertini) धंसे रहते हैं।
(स) वासा रेक्टा (vasa recta) हेनले लूप के समानान्तर होती है।

प्रश्न 12.
रिक्त स्थानी की पर्ति करें –
(अ) हेनले लूप की आरोही भुजा जल के लिए …………. जबकि अवरोही भुजा इसके लिए …………. है।
(ब) वृक्क नलिका के दूरस्थ भाग द्वारा जल का पुनरावशोषण …………. हॉमोंन द्वारा होता है।
(स) अपोहन द्रव में …………. पदार्थ के अलावा रक्त प्लाज्मा के अन्य सभी पदार्थ उपस्थित होते हैं।
(द) एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य द्वारा औसतन …………. ग्राम यूरिया का प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।
उत्तर:
(अ) अपारगम्य, पारगम्य
(ब) ए० डी० एच० या वैसोप्रेसिन
(स) नाइट्रोजन अपशिष्ट
(द) 25 से 30

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई

Bihar Board Class 11 Biology Solutions Chapter 8 कोशिका : जीवन की इकाई Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Biology कोशिका : जीवन की इकाई Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें कौन-सा सही नहीं है –
(अ) कोशिका की खोज रॉबर्ट ब्राउन ने की थी।
(ब) श्लीडेन व श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रतिपादित किया था।
(स) वर्चव (Virchow) के अनुसार कोशिका पूर्व-स्थित कोशिका से बनती है।
(द) एककोशिकीय जीव अपने जीवन के कार्य एक कोशिका के भीतर करते हैं।
उत्तर:
(अ) कथन गलत है। कोशिका की खोज रॉबर्ट हुक ने की थी।

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प्रश्न 2.
नई कोशिका का निर्माण होता है –
(अ) जीवाणु किण्वन से
(ब) पुरानी कोशिकाओं के पुनरुत्पादन से
(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से
(द) अजैविक पदार्थों से।
उत्तर:
(स) पूर्व स्थित कोशिकाओं से।

प्रश्न 3.
निम्न के जोड़े बनाइए –
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उत्तर:
(अ) (ii) – (ब) (iii) – (स) – (i)।

प्रश्न 4.
इनमें से कौन-सा कथन सही है –
(अ) सभी जीव कोशिकाओं में केन्द्रक मिलता है।
(ब) दोनों जन्तु व पादप कोशिकाओं में स्पष्ट कोशिका भित्ति होती है।
(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।
(द) कोशिका का निर्माण अजैविक पदार्थों से नए सिरे से होता है।
उत्तर:
(स) प्रोकैरियोटिक की झिल्ली में आवरित अंगक नहीं मिलते हैं।

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प्रश्न 5.
प्रोकैरियोटिक कोशिका में क्या मीसोसोम होता है? इसके कार्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका (prokaryotic cells) में कोशिका कला के अन्तर्वलन के कारण थैलीनुमा मीसोसोम्स (mesosomes) का निर्माण होता है। यह कोशिका भित्ति के निर्माण डी० एन० ए० द्विगुणन तथा कोशिका विभाजन में सहायक होता है। ये स्रावण, श्वसन आदि में सहायक होते हैं। मीसोसोम्स माइटोकॉन्ड्रिया का कार्य भी सम्पन्न करते हैं।

प्रश्न 6.
कैसे उदासीन विलेय जीवद्रव्य झिल्ली से होकर गति करते हैं? क्या ध्रुवीय अणु उसी प्रकार से इससे होकर गति करते हैं। यदि नहीं तो इनका जीवद्रव्य झिल्ली से होकर परिवहन कैसे होता है?
उत्तर:
जीवद्रव्य झिल्ली का महत्त्वपूर्ण कार्य “इससे होकर अणुओं का परिवहन है।” यह झिल्ली वरणात्मक पारगम्य (selectively permeable) होती है। उदासीन विलेय अणु सामान्य या निष्क्रिय परिवहन द्वारा उच्च सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर साधारण विसरण द्वारा झिल्ली से आते-जाते रहते हैं। इसमें ऊर्जा व्यय नहीं होती।

ध्रुवीय अणु सामान्य विसरण द्वारा इससे होकर आ-जा नहीं सकते, इन्हें परिवहन हेतु वाहक प्रोटीन्स की आवश्यकता होती है। इन्हें आयन कैरियर (ion carriers) भी कहते हैं। इनका परिवहन सामान्यतया सक्रिय विसरण द्वारा होता है। इसमें ऊर्जा व्यय होती है। ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। ऊर्जा व्यय करके आयन या अणुओं का परिवहन निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की ओर भी हो जाता है।

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प्रश्न 7.
दो कोशिकीय अंगकों का नाम बताइए जो द्विकला से घिरे होते हैं। इन दो अंगकों की क्या विशेषताएँ हैं? इनका कार्य व रेखांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
माइटोकॉन्ड्रिया (mitochondria) तथा लवक (plastid) द्विकला (double membrane) से घिरे कोशिकांग (cell organelles) हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना (Structure of Mitochondria):
माइटोकॉन्ड्रिया को सर्वप्रथम कालीकर (Kallikar, 1880) ने देखा। आल्टमैन (1894) ने इन्हें बायोप्लास्ट कहा। बेण्डा (1897) ने इन्हें माइटोकॉन्ड्रिया कहा। माइटोकॉन्ड्रिया को कॉन्ड्रियोसोम भी कहते हैं। यह शलाका, गोल अथवा कणिकारूपी होते हैं। इनकी लम्बाई 40u तक तथा व्यास 3-5u तक होता है। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में इनका अभाव होता है।

परासंरचना (Ultrastructure):
यह दोहरी पर्त वाली संरचना है। बाह्य पर्त चिकनी तथा अन्दर की पर्त में अंगुलियों के समान अन्तर्वलन मिलते हैं, जिन्हें क्रिस्टी (cristae) कहते हैं। दोनों पों के मध्य के स्थान को पेरीमाइटोकॉन्ड्रियल स्थान कहते हैं। माइट्रोकॉन्ड्रिया की गुहा में प्रोटीनयुक्त मैट्रिक्स मिलता है। क्रिस्टी की सतह पर छोटे-छोटे कण मिलते हैं जिन्हें F कण अथवा ऑक्सीसोम (oxysomes) कहते हैं।

ऑक्सीसोम ऑक्सीकरणीय फॉस्फेटीकरण (श्वसन) की क्रिया में ATP निर्माण में भाग लेते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया के क्रिस्टी पर इलेक्ट्रॉन अभिगमन होता है जिसके फलस्वरूप ATP बनते हैं। इसके मैट्रिक्स में D.N.A. राइबोसोम, जल, लवण, केब्स चक्र सम्बन्धी विकर आदि मिलते हैं।
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चित्र – (A) माइटोकॉन्ड्रिया की इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शीय संरचना, (B) अर्द्धाशों में आन्तरिक संरचना तथा (C) एक क्रिस्टी की अति सूक्ष्म संरचना।

रासायनिक संघटन (Chemical Composition):
इनमें 65 – 70% प्रोटीन, 25% लिपिड, D.N.A., R.N.A. आदि मिलते हैं। अन्दर की कला में श्वसन तन्त्र श्रृंखला सम्बन्धी सभी साइटोक्रोम; जैसे – Cyt b, c, a, a3, क्वीनोन, NAD, FAD, FMN आदि मिलते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया का कार्य (Functions of Mitochondria):
माइटोकॉन्ड्रिया के मैट्रिक्स में क्रेब्स चक्र तथा ऑक्सीसोम (E, कण) पर श्वसन श्रृंखला का इलेक्ट्रॉन अभिगमन तन्त्र सम्पन्न होता है, इससे मुक्त ऊर्जा ATP में संचित होती है। ATP समस्त जैविक क्रियाओं के लिए गतिज ऊर्जा प्रदान करता है। माइटोकॉन्ड्रिया को ‘कोशिका का ऊर्जा गृह’ (Power house of the cell) कहते हैं।

माइटोकॉन्ड्रिया में स्वद्विगुणन की क्षमता होती है। लवक की संरचना (Structure of Plastids) लवक दोहरी झिल्ली से घिरे होते हैं। ये यूकैरियोटिक पादप कोशिकाओं में ही मिलते हैं। ये कवक में नहीं मिलते हैं। हीकेल (1865) ने इसकी खोज की तथा शिम्पर ने इसे प्लास्टिड (Plastid) नाम दिया। लवक तीन प्रकार के होते हैंल्यूकोप्लास्ट; क्रोमोप्लास्ट तथा क्लोरोप्लास्ट।

ल्यूकोप्लास्ट (Leucoplast):
ये संचयी लवक है। वर्णक न होने के कारण ये रंगहीन होते हैं। ये तीन प्रकार के एमाइलोप्लास्ट (मण्ड संचयी); इलियोप्लास्ट (वसा संचयी) तथा प्रोटीनोप्लास्ट (प्रोटीन संचयी) होते हैं।

क्रोमोप्लास्ट (Chromoplast):
ये रंगीन लवक हैं। सामान्यतः फूलों की पंखुड़ियों, फल, रंगीन पत्तियों आदि में होते हैं। भूरे शैवालों में फियोप्लास्ट, लाल शैवालों में रोडोप्लास्ट तथा प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में क्रोमैटोफोर आदि मिलते हैं। क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) हरितलवक अथवा क्लोरोप्लास्ट की खोज शिम्पर (Schimper, 1864) ने की। इनमें क्लोरोफिल (पर्णहरित) मिलता है।

ये लवक पौधे के हरे भागों में सामान्यत: पत्तियों में (मीसोफिल, खम्भ ऊतक, क्लोरेनकाइमा) मिलते हैं। ये विभिन्न आकार के होते हैं। हरे शैवाल सामान्यतः हरितलवक के आकार से पहचाने जाते हैं। उच्च पादप में ये गोल, अण्डाकार, चपटे दीर्घवृत्ताकार (elliptical) होते हैं। सामान्यतया इनकी लम्बाई 2-5 तथा चौड़ा 3 – 4u होती है। कोशिका में इनकी संख्या 20-40 तक हो सकती है।

हरितलवक की परासंरचना (Ultrastructure of Chloroplast):
इनकी संरचना जटिल होती है। यह दो एकक कलाओं की झिल्ली से बना होता है। दोनों कलाओं के मध्य का स्थान पेरीप्लास्टीडियल स्थान कहलाता है। झिल्ली से घिरा रंगहीन मैट्रिक्स स्ट्रोमा (stroma) होता है।

मैट्रिक्स में कलातन्त्र से बना ग्रैना (grana) होता है। ग्रैना में प्लेट जैसी रचना का समूह होता है, जो पटलिकाओं से जुड़ी रहती है, इन्हें लैमिली कहते हैं। प्रैना की इकाई को थाइलेकॉइड कहते हैं। ये एक-दूसरे के ऊपर स्थित होते हैं। दो ग्रैना को जोड़ने वाली पटलिका को स्ट्रोमा लैमिली अथवा फ्रेट चैनल कहते हैं। थाईलेकॉइड पर क्वान्टासोम (quantasomes) पाए जाते हैं। प्रत्येक क्वान्टासोम पर लगभग 230 पर्णहरित अणु पाए जाते हैं।
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चित्र – क्लोरोप्लास्ट की संरचना

क्लोरोप्लास्ट का रासायनिक संघटन (Chemical Composition of Chloroplast):
प्रत्येक क्लोरोप्लास्ट में 40 – 50% प्रोटीन, 23 – 25% फॉस्फोलिपिड 3 – 10% पर्णहरित, 5% R.N.A., 0.02 – 0.01% D.N.A., 1.2% कैरोटिन, विभिन्न विकर, विटामिन तथा धातु; जैसे – Mg, Fe, Cu, Mn, Zn आदि मिलते हैं।
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चित्र – प्रैना तथा स्ट्रोमा लैमिली की संरचना

क्लोरोप्लास्ट के कार्य (Functions of Chloroplast):
क्लोरोप्लास्ट का मुख्य कार्य प्रकाश संश्लेषण है। ग्रैना में प्रकाश संश्लेषण की प्रकाशीय क्रिया तथा स्ट्रोमा में अप्रकाशीय क्रिया होती है। प्रकाशीय क्रिया में जल के अपघटन से ऊर्जा निकलती है तथा अप्रकाशीय अभिक्रिया में CO2, का स्वांगीकरण होता है। भोजन बनाने का दायित्व होने के कारण इसे कोशिका की किचिन अथवा रसोई कहते हैं।

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प्रश्न 8.
प्रोकैरियोटिक कोशिका की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
प्रोकैरियोटिक कोशिका या असीमकेन्द्रकीय कोशिकाएँ (Prokaryotic cells : Gr. Pro-Primitive आद्य, karyon – Nucleus केन्द्रक):
ऐसी कोशिकाएँ, जिनमें सत्य केन्द्रक (केन्द्रक-कला सहित) नहीं पाया जाता तथा केन्द्रक में पाए जाने वाले प्रोटीन एवं न्यूक्लीक अम्ल (D.N.A. तथा R.N.A.) केन्द्रक-कला के अभाव में कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) के सम्पर्क में रहते हैं, प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ कहलाती हैं। इनमें एक ही घेरेदार क्रोमोसोम होता है, जिसमें हिस्टोन प्रोटीन नहीं होती।

इनमें राइबोसोम्स 70S प्रकार के होते हैं। इन कोशिकाओं में अनेक कोशिकांग; जैसे-केन्द्रिक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉन्ड्रिया, अन्तःप्रद्रव्यी जालिका आदि नहीं होते हैं। प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में सूत्री विभाजन के लिए घटकों का अभाव होता है। रचना की दृष्टि से इस प्रकार की कोशिकाएँ आदिम मानी गई हैं। जीवाणु कोशिका तथा नीली-हरी शैवालों की कोशिकाएँ प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं के उदाहरण हैं।
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चित्र – प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ – (A) नीली-हरी शैवाल, (B) जीवाणु कोशिका।

प्रश्न 9.
बहुकोशिकीय जीवों में श्रम विभाजन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एककोशिकीय जीवों में समस्त जैविक क्रियाएँ; जैसे-श्वसन, गति (प्रचलन), पोषण, उत्सर्जन, जनन आदि जीव कोशिका द्वारा ही सम्पन्न होती है। इनमें इन कार्यों को सम्पन्न करने हेतु सामान्यतया विशिष्ट अंगक नहीं होते। इनमें सामान्य कोशिकाविभाजन द्वारा ही जनन प्रक्रिया हो जाती है। कुछ एककोशिकीय जीवों में लैंगिक जनन भी पाया जाता है। सरल बहुकोशिकीय जीवों में; जैसे-स्पंज में विभिन्न जैविक कार्य अलग-अलग प्रकार की कोशिकाओं द्वारा सम्पन्न होते हैं, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर कोशिका अन्य कार्य भी सम्पन्न कर सकती है। इनमें कार्य विभाजन या श्रम विभाजन स्थायी नहीं होता।

संघ सीलेन्ट्रेटा (Coelenterata) के सदस्यों में कोशिकाएँ विभिन्न जैविक कार्यों के लिए विशिष्टीकृत हो जाती हैं, वे अन्य कार्य सम्पन्न नहीं करतीं। इसे श्रम विभाजन कहते हैं। श्रम विभाजन की परिकल्पना सर्वप्रथम हेनरी मिलने एडवर्ड (H. M. Edward) ने प्रस्तुत की। विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने के लिए कोशिकाएँ ऊतक तथा ऊतक तन्त्र का निर्माण करती हैं। समान कार्य करने वाली कोशिकाओं में संरचनात्मक समानता पाई जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि कोशिकाओं में कार्यिकी भिन्नन (physiological differentiation) के अनुरूप संरचनात्मक और औतिकीय भिन्नन (structural and histological differentiation) पाया जाता है।

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प्रश्न 10.
कोशिका जीवन की मूल इकाई है, इसे संक्षिप्त में वर्णन करें।
उत्तर:
कोशिका : जीवन की मूल इकाई। (Cell: the Basic Unit of Life):
सभी जीवधारियों (जन्तु एवं पादप) के शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है। कोशिकाएँ शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाइयाँ होती हैं। शरीर का निर्माण कोशिकाओं से होता है। कोशिकाएँ ही समस्त उपापचय क्रियाओं के लिए उत्तरदायी होती हैं; जैसे-पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, जनन आदि।

उपापचय क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं –

1. अपचयी क्रियाएँ (Catabolic Processes):
ये ऋणात्मक क्रियाएँ होती हैं। इनके अन्तर्गत जटिल कार्बनिक पदार्थों से सरल पदार्थ बनते हैं और ऊर्जा मुक्त होती है। इन क्रियाओं में शरीर के भार में कमी आती है। मुक्त ऊर्जा जैविक क्रियाओं में प्रयुक्त होती है; जैसे-श्वसन।

2. उपापचयी क्रियाएँ (Anabolic Processes):
ये धनात्मक क्रियाएँ होती हैं। इनके अन्तर्गत सरल पदार्थों से जटिल पदार्थों का संश्लेषण होता है और ऊर्जा संचित होती है। इन क्रियाओं के कारण शरीर के शुष्क भार में वृद्धि होती है; जैसेपोषण। उपापचय क्रियाओं के अन्तिम परिणाम के कारण ही वृद्धि और जनन होता है। अमीबा तथा अन्य एककोशिकीय प्राणी य पादपों में समस्त जैविक क्रियाएँ एक ही कोशिका द्वारा सम्पन्न होती है।

बहुकोशिकीय जीवधारियों में कोशिकाएँ परस्पर मिलकर ऊतक (tissue) बनाती हैं। विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर ऊतक तन्त्र (tissue system) बनाते हैं। ऊतक तन्त्रों से अंग (organ) तथा अंगों से मिलकर अंग तन्त्र (organ system) बनता है। विभिन्न प्रकार के अंगतन्त्र मिलकर शरीर बनाते हैं। पौधों की तुलना में जन्तुओं के शरीर की संरचना अत्यधिक जटिल होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि कोशिका जीवन की मूल इकाई है।

प्रश्न 11.
केन्द्रक छिद्र क्या है? इनके कार्य बताइए।
उत्तर:
केन्द्रक छिद्र (Nuclear Pores):
केन्द्रक के चारों ओर 10 nm से 50 nm मोटी दोहरी केन्द्रक-कला (nuclear membrane) होती है। दोनों झिल्लियों (कलाओं) के मध्य स्थान को परिकेन्द्रकीय स्थान (Perinuclear space) कहते हैं। यह लगभग 100 – 300Å चौड़ी होती है। केन्द्रक कला पर अनेक सूक्ष्म छिद्र होते हैं। इन्हें केन्द्रक छिद्र (nuclear pores) कहते हैं। प्रत्येक का व्यास लगभग 400-1000Å होता है। केन्द्रक-कला का सम्बन्ध कोशिकाद्रव्य में स्थित अन्तःप्रद्रव्यी जालिका (ER) से होता है।

कार्य:
केन्द्रक में निर्मित विभिन्न प्रकार के R.N.A. अणु विशेषकर m-R.N.A. केन्द्रक कला छिद्रों से होकर कोशिकाद्रव्य में पहुँचते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

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प्रश्न 12.
लयनकाय व रसधानी दोनों अन्तः झिल्लीमय संरचना है, फिर भी कार्य की दृष्टि से ये अलग होते हैं। इस पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
लयनकाय (लाइसोसोम्स-lysosomes) तथा रसधानी (रिक्तिकाएँ-vacuoles) अन्तःझिल्लीमय (endomembranous) संरचनाएँ होती हैं। कोशिका में पाए जाने वाली सभी कोशिकांग (cell organelles) इकाई झिल्ली से बने होते हैं। इसी कारण कोशिका को इकाई झिल्लियों में बना एक तन्त्र मानते हैं। लयनकाय में जल-अपघटकीय एन्जाइम (hydrolytic enzymes); जैसे-लाइपेज (lipase), प्रोटीएजेज (proteases), कार्बोहाइड्रेजेज (carbohydrases) आदि पाए जाते हैं। ये क्रमश: वसा, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि का पाचन करते हैं।

ये एन्जाइम्स अम्लीय माध्यम में सर्वाधिक सक्रिय होते रसधानी (रिक्तिकाएँ) इकाई झिल्ली से घिरी होती है। ये मुख्यतया पादप कोशिकाओं में पाई जाती है। अमीबा में संकुचनशील रिक्तिका (contractile vacuole) या भोजन रिक्तिका (food vacuole) के रूप में पाई जाती है। ये क्रमशः जल-सन्तुलन तथा भोजन के पाचन का कार्य करती है। पादप कोशिकाओं की रसधानी में जल, कोशिकारस, उत्सर्जी तथा अन्य पदार्थ पाए जाते हैं। ये कोशिकाओं को आशून अवस्था में बनाए रखती हैं। अनेक पदार्थों के आयन सान्द्रता प्रवणता के विपरीत टोनोप्लास्ट से होकर रसधानी में पहुँचते हैं। अत: रसधानी के कोशिकारस की सान्द्रता कोशिकाद्रव्य की अपेक्षा अधिक होती है।

प्रश्न 13.
रेखांकित चित्र की सहायता से निम्न की संरचना का वर्णन कीजिए –

  1. केन्द्रक
  2. तारककाया

उत्तर:
1. केन्द्रक (Nucleus):
सामान्यतः कोशिका का सबसे बड़ा, स्पष्ट तथा महत्त्वपूर्ण कोशिकांग केन्द्रक है। सर्वप्रथम इसकी खोज रॉबर्ट ब्राउन (1831) ने की। यह एक सघन, गोल अथवा अण्डाकार संरचना है। एक कोशिका में इनकी संख्या सामान्यतः एक (एककेन्द्रकीय; uninucleate) होती है। कभी-कभी इनकी संख्या दो (द्विकेन्द्रकी, binucleate) अथवा अनेक (बहुकेन्द्रकी multinucleate) होती है। पादप कोशिका के परिपक्वन के साथ-साथ रिक्तिका के केन्द्र में स्थित होने से यह कोशिका दृति (primordial utricle) में एक ओर आ जाता है।

संरचना (Structure) केन्द्रक के चारों ओर दोहरी केन्द्रक कला (nuclear membrane) मिलती है। यह कला एकक कला (unit membrane) के समान ही लिपोप्रोटीन की बनी होती है। दोनों कलाओं के मध्य परिकेन्द्रीय स्थान (perinuclear space) मिलता है। केन्द्रक कला सतत (continuous) नहीं होती है। इसमें बीच-बीच में छिद्र मिलते हैं। इन्हें केन्द्रकीय छिद्र (nuclear pore) कहते हैं। इनका व्यास लगभग 400Å होता है। ये केन्द्रकद्रव्य तथा कोशिकाद्रव्य में सम्बन्ध बनाए रखते हैं। बाह्य केन्द्रक कला का सम्बन्ध अन्तर्द्रव्यी जालिका से होता है। बाहरी केन्द्रक कला पर राइबोसोम चिपके रहते हैं।
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चित्र – (A) केन्द्रक की संरचना तथा (B) केन्द्रक कला।

केन्द्रक कला के अन्दर प्रोटीनयुक्त सघन तरल होता है, जिसे केन्द्रकद्रव्य (nucleoplasm) कहते हैं। केन्द्रकद्रव्य में प्रोटीन तथा फॉस्फोरस की मात्रा अधिक होती है। इसमें न्यूक्लियोप्रोटीन (nucleoprotein) मिलते हैं। केन्द्रकद्रव्य में केन्द्रिक (nucleolus) तथा क्रोमैटिन (chromatin) सूत्र मिलते केन्द्रिक सामान्यतः एक परन्तु कभी-कभी अधिक भी हो सकते हैं। केन्द्रिक में r – R.N.A. संश्लेषण होता है, जो राइबोसोम के लिए आवश्यक है। केन्द्रिक कोशिका विभाजन के समय लुप्त हो जाते हैं।

क्रोमैटिन सूत्र (Chromatin threads):
सामान्य अवस्था में जाल के रूप में रहते हैं। इसका कुछ भाग अभिरंजन में गहरा रंग लेता है जिसे हेटरोक्रोमैटिन कहते हैं तथा जो भाग हल्का रंग लेता है, उसे यूक्रोमैटिन (euchromatin) कहते हैं। कोशिका विभाजन के समय ये संघनित होकर गुणसूत्र बताते हैं। केन्द्रक के कार्य (Functions of Nucleus) केन्द्रक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • सम्पूर्ण कोशिका की संरचना, संगठन व कार्यों का नियन्त्रण तथा नियमन करना।
  • D.N.A. पर उपस्थित संदेश m-R.N.A. के रूप में कोशिकाद्रव्य में जाते हैं और वहाँ प्रोटीन के रूप में अनुवादित होते हैं।
  • प्रोटीन से विभिन्न विकर बनते हैं जो विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं।
  • कोशिका विभाजन का उत्तरदायित्व केन्द्रक पर होता है।
  • आनुवंशिक पदार्थ D.N.A. केन्द्रक में मिलता है। संतति में लक्षण इसी के द्वारा पहुँचते हैं।
  • नई संतति में जीन ही लक्षणों को पहुँचाते हैं तथा संगठित स्वरूप प्रदान करते हैं।

2. तारककाय (Centrosome):
तारककाय प्राय: जन्तु कोशिकाओं से केन्द्रक के समीप पाया जाता है। कुछ शैवाल तथा कवक आदि की पादप कोशिकाओं में भी तारककाय पाया जाता है। तारककाय में दो सेन्ट्रिओल (centriole) पाए जाते हैं। प्रत्येक सेन्ट्रिओल नौ जोड़े (nine sets) त्रिक तन्तुओं (triplets fibres) से बना होता है। प्रत्येक त्रिक तन्तु में तीन सूक्ष्म नलिकाएँ (microtubules) एक रेखा में स्थित होती है। ये त्रिक तन्तु एमॉरफस पदार्थ में धंसे रहते हैं। सेन्ट्रिओल के चारों ओर स्वच्छ कोशिकाद्रव्य का आवरण होता है, इसे सेन्ट्रोस्फीयर (centrosphere) कहते हैं। सेन्ट्रिओल तथा सेन्ट्रोस्फीयर मिलकर तारककाय (centrosome) कहलाते हैं।
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चित्र – सेन्ट्रोसोम (इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी में)।

तारककाय के कार्य (Functions of Centrosome):

  1. यह कोशिका विभाजन के समय तर्कु (spindle) का निर्माण करता है। तारककाय विभाजित होकर विपरीत ध्रुवों का निर्माण करता है।
  2. शुक्राणुओं के निर्माण के समय दोनों सेन्ट्रियोल में से एक शुक्राणु के अक्षीय तन्तु (axial filament) का निर्माण करता है।

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प्रश्न 14.
गुणसूत्र बिन्दु क्या है? कैसे गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र का वर्गीकरण किस रूप में होता है? अपने उत्तर को देने हेतु विभिन्न प्रकार के गुणसूत्रों पर गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति को दर्शाने हेतु चित्र बनाइए।
उत्तर:
गुणसूत्र बिन्दु (Centromere)
प्रत्येक गुणसूत्र दो अर्द्धगुणसूत्र या क्रोमेटिड्स (chromatids) से बना होता है। क्रोमेटिड्स पर क्रोमोमीयर्स (chromomeres) स्थित होते हैं। गुणसूत्र के दोनों क्रोमेटिड्स गुणसूत्र बिन्दु या सेन्ट्रोमीयर (centromere) द्वारा परस्पर जुड़े होते हैं। गुणसूत्र बिन्दु की स्थिति के आधार पर गुणसूत्र निम्नलिखित प्रकार के होते हैं –

1. अन्तकेन्द्री (Telocentric):
इमसें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के एक ओर स्थित होता है।

2. अग्र बिन्दु (Acrocentric):
इसमें गुणसूत्र का एक भाग बहुत छोटा तथा दूसरा भाग बहुत बड़ा होता हैं। इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक सिरे के पास स्थित होता है।

3. उपमध्य केन्द्री (Submetacentric):
इसमें गुणसूत्र बिन्दु एक किनारे के पास होता है। इससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएँ असमान होती हैं।

4. मध्य केन्द्री (Metacentric):
इसमें गुणसूत्र बिन्दु गुणसूत्र के बीचों-बीच स्थित होता है। इससे गुणसूत्र की दोनों भुजाएं बराबर लम्बाई की होती हैं। जब गुणसूत्र में गुणसूत्र बिन्दु (centromere) नहीं पाया जाता तो गुणसूत्र को ऐसेन्ट्रिक (acentric) कहते हैं और जब गुणसूत्र बिन्दु की संख्या दो या अधिक होती है तो इसे डाइसेन्ट्रिक (dicentric) या पॉलीसेन्ट्रिक (polycentric) कहते हैं।
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चित्र – सेन्ट्रोमीटर के आधार पर गुणसूत्रों के प्रकार
कुछ गुणसूत्रों में द्वितीयक संकीर्णन (secondary constriction! पाया जाता है। इस प्रकार के गुणसूत्र को सैट गुणसूत्र (sat-chromosome) कहते हैं।