Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 पद्य खण्ड Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

Bihar Board Class 9 Hindi गुरु गोविंद सिंह के पद Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
ईश्वर ने मनुष्य को सर्वोत्तम कृति के रूप में रचा है। कवि के अनुसार मनुष्य वस्तुतः एक ही ईश्वर की संतान है, उसे खेमों में बाँटना उचित नहीं है। इस क्रम में उन्होंने किन उदाहरणों का प्रयोग किया है?
उत्तर-
गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपने विचारों को कविता के माध्यम से मूर्त रूप देते हुए ईश्वर और मनुष्य के बीच के अटूट संबंधों को गंभीर रूप से चित्रित किया है।

  1. “एक ही सेव सब ही को गुरुदेव एक, एक ही सरुप सबे, एकै जोत जानबो।
  2. तैसे विश्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होई,
    ताही ते उपह सबै ताही मैं समाहिंगे।।

गुरु गोविन्द सिंह जी ने उपरोक्त दोनों काव्य पंक्तियों में ईश्वर के व्यापक स्वरूप की व्याख्या की है।

सभी सृष्टि एक ही परमात्मा के अंश से निर्मित है। एक ही ईश्वर सेवा के योग्य है। एक ही गरु रूप है एक ही उसका स्वरूप है। एक ही ज्योति की सभी प्रभा-किरणें हैं। इस प्रकार प्रथम काव्य पंक्तियों में ईश्वर के स्वरूप और महत्ता की व्याख्या की है।

दूसरी काव्य पंक्तियों में कवि ने ईश्वर के विश्वरूप की व्याख्या की है। सारा संसार तो उसी विश्वरूप का अंश है। सबकी उत्पत्ति उसी विश्वरूप परमात्मा से हुई है और सब उसी में तिरोहित हो जाते हैं। सृष्टि का मूल आधार परमात्मा ही है। उससे – प्रकाशित होकर उसी में लीन होकर नश्वर जीव अपने को ब्रह्म में लीन कर लेता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

प्रश्न 2.
कवि ने मानवीय संवेदना को मनुष्यता के किस डोर में बाँधे रखने की बात कही है?
उत्तर-
हिंदू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी,
मानस की जात सबै, एकै पहचान बो।
करता करीम सोई राजक रहीम ओई,
दूलरोन भेद कोई भूल भ्रम मानबो।

गुरु गोविन्द सिंह जी ने उपरोक्त पंक्तियों में अपने हृदय के निर्मल भाव को _प्रकट किया है और ईश्वर के न्यायी स्वरूप की सही व्याख्या भी प्रस्तुत की है।

गुरु गोविन्द सिंह जी कहते हैं कि कोई हिन्दू हो चाहे तुरक हो, कोई राफजी (वह व्यक्ति जो अपने स्वामी को पीड़ित देखकर भाग जाए) हो चाहे इमाम (इस्लाम धर्म का पुरोहित) हो, कोई साफी (शुद्ध करने वाला) हो सबमें कोई अंतर नहीं है। यह केवल शब्द जाल का भ्रम है। सत्य बात कुछ और ही है। मनुष्य की जात एक है, सबकी पहचान एक है। अत: मानव-मानव में भेद-विभेद करना या मानना मूर्खता है।

पुन: गुरु गोविन्द सिंह जी कहते हैं कि जो कृपा करने वाला यानि भगवान है वही सब कुछ करता है। उसी की प्रेरणा से राजा और रहीम भी कार्य संपादित करते हैं। दसरा कोई भी भेद नहीं है जिसके पीछे भूलवश भ्रम पाला जाय। इ कवि गुरु गोविन्द सिंह जी ने अपनी कविताओं में ईश्वर की सत्ता का गुणगान करते हुए उसके सर्वशक्तिमान स्वरूप की व्याख्या की है। सबकुछ की उत्पत्ति उसी ब्रह्म से है और सबका अंत भी उसी में निहित है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

प्रश्न 3.
गुरुगोविन्द सिंह के इन भक्ति पदों के माध्यम से सामाजिक कलह और भेदभाव को कम किया जा सकता है? पठित पद से उदाहरण देकर समझाएँ।
उत्तर-
“हिन्दू तुरक कोऊ राफजी इमाम साफी,
मानस की जात सबै एकै पहचान बो।

इन पंक्तियों में गुरु गोविन्द सिंह जी ने जाति-पाँति के भ्रम को दूर कर सबको संदेश दिया है कि हिन्दू हो या तुर्क, राफजी हो या इमाम, साफी हो या अन्य सब ईश्वर की संतान हैं। उनमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है। यह सारा ढकोसला है। सभी वर्ग या जाति या धर्म के लोग एक ईश्वर की संतान हैं।

“एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक,
एक ही सरुप सबै, एकै जोत जानबो।

इन पंक्तियों में भी गुरुजी ने एक मात्र सर्वशक्तिमान ईश्वर की महत्ता का गुणगान किया है। सभी एक ही स्वरूप के रूप हैं। सभी एक ही गुरु की संतान हैं। सभी एक ही ज्योति से प्रकाशित हैं। इस प्रकार सबका अटूट संबंध एक ही ब्रह्म से है भले ही हम उन्हें विभिन्न नाम से पुकारें।

तैसे विश्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही में समाहिंगे।

इन पंक्तियों में गुरुजी ने इस मायावी संसार के यथार्थ सत्ता का गुणगान किया है। जब सभी एक ही विश्वरूप यानि ईश्वर की संतान है। जब सबकी उत्पत्ति एक ही शक्ति से होती है और सबका अंत भी उसी के अंतर्गत होता है तो फिर भेदभाव कैसा और भ्रम कैसा?

जैसे एक आग ते कन का कोट आग उठे
न्यारे न्यारे है कै फेरि आग में मिताहिंगे।

इन पंक्तियों में भी ईश्वर और आत्मा के एकत्व भाव का उदाहरण और प्रतीक के माध्यम से गुरु गोविन्द सिंह जी ने दर्शाया है। जिस प्रकार आग के एक कण से आग के करोड़ों कण पैदा होकर पुन: आग में ही समाहित हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार यह आत्मा भी परमात्मा का अंश है। अंत में यह आत्मा पुनः परमात्मा के विराट स्वरूप में लीन हो जाती है।

करता करीम सोई राजक रहीम आई
दूलरोन भेद कोई भूल भ्रम मानबो।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

इन पंक्तियों में भी ईश्वर की महत्ता को सिद्ध करते हुए कवि ने मानव के मन के भ्रम और भूल को दूर करने का प्रयास किया है।

जैसे एक नदे तै तरंग कोट उपजत है,
पान के तरंग सब पान ही कहाहिंगे।

इन पंक्तियों में भी -दी के तरंग के समान यह आत्मा है। नदी-तरंग पैदा होकर जिस प्रकार पुनः नदी में ही मिल जाता है ठीक उसी प्रकार आत्मा भी परमात्मा का ही अंश है। अतः यह सांसारिक मोह, माया, भ्रम, भूल के पीछे न पड़कर ईश्वर के प्रति आस्था रखनी चाहिए।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट करें(क) “तैसे विस्वरूप ते अभूत भूत प्रगट होइ,
ताही ते उपज सबै ताही में समाहिंगे।’
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु गोविन्द सिंह जी की दो छंद काव्य पाठ से ली गई हैं। यह कविता द्वितीय छंद की अंतिम पंक्तियों में लिखित है। इन पंक्तियों के माध्यम से गुरु गोविन्द सिंह जी ने ईश्वर के सर्वशक्तिमान स्वरूप की व्याख्या करते हुए यह ___ संदेश दिया है कि विश्वरूप यानि ईश्वर का अंश ही यह जीव है। आत्मा परमात्मा का ही अंश है। उसी से सभी सृष्टि की उत्पत्ति हुई है और पुन: उसी में इस सृष्टि का विनाश रूप प्राप्त कर उस सर्वशक्तिमान में लीन हो जाता है। यहाँ कवि ने भौतिक जगत की नश्वरता पर प्रकाश डालते हुए ईश्वरीय सत्ता की महत्ता को सिद्ध किया है। लौकिक जगत और अलौकिक जगत के अटूट संबंधों को रेखांकित करते हुए गुरु गोविन्द सिंह जी ने सत्य के उद्घाटन में सफलता पायी है। उन्होंने इस सांसारिक झूठे आडंबरों पर प्रकाश डालते हुए उसकी निरर्थकता पर सम्यक प्रकाश डाला है। गोविन्द सिंह के कथनानुसार ईश्वर की सत्ता सर्वोपरि है। सभी उसी के – अंश हैं। सबको पुनः उसी में तिरोहित हो जाना है। अत: इन पंक्तियों में ईश्वरीय सत्ता की महत्ता को दर्शाया गया है।

भाव स्पष्ट करें:

प्रश्न 4.
(ख) “एक ही सेव सबही को गुरुदेव एक,
एक ही सरूप सबै, एकै जोत जानबो।
उत्तर-
प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा लिखित प्रथम छंद कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों में गुरुजी ने सेव, गुरुदेव, सरुप, जोत आदि शब्दों के प्रयोग द्वारा ईश्वरीय सत्ता की महानता और विराटता को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि द्वारा तमाम भेदों-विभेदों के पीछे मनुष्य की अंतवर्ती एकता की प्रतिष्ठा की गई है। समाज में ऊपरी विभेदों के भीतर आंतरिक एकता की अनुभूति तक इस पद की व्याप्ति है। कवि मानव मात्र की एकता का पक्षधर है। छंद के अंत में वह एकत्व पूर्ण आत्मबोध के कारण ईश्वर की एकता गुरु, स्वरूप और ज्योति की एकता की प्रतिष्ठा की है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions पद्य Chapter 3 गुरु गोविंद सिंह के पद

इन पंक्तियों में कवि कहता है कि सेव्य यानि जिसकी सेवा की जाय वह ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान है। वही सबका गुरु है। उसका स्वरूप भी एक ही है और सारे रूप उसी से पैदा हुए हैं। वही एकमात्र प्रकाश-पूंज है जिसकी ज्योति से सारी सष्टि जगमग है. प्रकाशित है। इस प्रकार उपरोक्त पंक्तियों में गरु गोदि सिंह जी ने ईश्वर की विराटता, महानता एवं सर्वोपरि स्वरूप की चर्चा करते हुए लोकजीवन को दिशा देने का काम किया है।

Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 4 पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions Geography Hamari Duniya Bhag 1 Chapter 4 पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 4 पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप

Bihar Board Class 6 Social Science पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप Text Book Questions and Answers

अभ्यास

सही विकल्पों पर सही का (✓) चिह्न लगाएँ।

प्रश्न 1.
बिहार में सोन नदी किस तरह के क्षेत्रों से होकर गुजरती है ?
(क) पहाड़ी क्षेत्र
(ख) पठारी क्षेत्र
(ग) मैदानी क्षेत्र
उत्तर-
(ग) मैदानी क्षेत्र

Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 4 पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप

प्रश्न 2.
बाल्मीकि नगर बिहार के किस क्षेत्र में अवस्थित हैं?
(क) पश्चिमी क्षेत्र
(ख) पूर्वी क्षेत्र
(ग) दक्षिणी क्षेत्र
उत्तर-
(ख) पूर्वी क्षेत्र

प्रश्न 3.
धान की फसल के लिए उपयुक्त मिट्टी हैं
(क) बलुआही मिट्टी
(ख) चिकनी मिट्टी
(ग) दोमट मिट्टी
उत्तर-
(ख) चिकनी मिट्टी

प्रश्न 4.
पठार के ऊपर की सतह होती है
(क) नुकीला
(ख) सपाट
(ग) संकीर्ण
उत्तर-
(ख) सपाट

प्रश्न 5.
पर्वतों के कितने प्रकार होते हैं ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
उत्तर-
(ग) तीन

प्रश्न 2.
खाली स्थानों को भरें

  1. बिहार का अधिकतर भाग ………… नदी के दोनों ओर मैदानी भाग के रूप में फैला है।
  2. …………… को संसार का छत कहा जाता है।
  3. पहाड़ों की लम्बी श्रृंखला को …………. श्रेणी कहते हैं।
  4. शिमला और कश्मीर देश के प्रमुख …………… पर्यटन स्थल के उदाहरण हैं।
  5. प्राकृतिक वातावरण के बदलते स्वरूप के मुख्य कारण बढ़ती

उत्तर-

  1. गंगा
  2. पामीर पठार
  3. पर्वत
  4. केन्द्र
  5. आबादी।

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प्रश्न 3.
बताइए-

प्रश्न (i)
मैदानी क्षेत्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं ?
उत्तर-
प्रायः नीची और समतल भूमि का प्रदेश मैदान कहलाता है। मैदानों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे समुद्र से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं परंतु अपने समीपवर्ती पठार तथा पर्वत से ऊँचे नहीं हो सकते हैं। प्रायः एक ही मिट्टी के बने होते हैं।

अपरदन मूलक मैदान वे मैदान जिनकी रचना में अपरदन की क्रिया का प्रमुख स्थान होता है। अपरदन मूलक मैदान कहलाते हैं। निक्षेपण मूलक मैदान निक्षेपण का क्रिया के द्वारा नदियों हिमानी वायु तथा सागरीय तरंगों से जो मैदान बनते हैं उन्हें निक्षेपण के मैदान कहते हैं।

रचनात्मक मैदान का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक हलचलों के द्वारा होता है।

मैदानी क्षेत्रों में जीवन-यापन के लिए भोजन, जल, आवास परिवहन की सुविधाएँ आसानी से हो सकती है। यहाँ सड़क मार्ग, रेलमार्ग एवं अन्य सुविधाएँ आसानी से प्रदन की जा सकती हैं।

बिहार का अधिकतर भाग गंगा नदी के दोनों तरफ मैदानी भाग के रूप में फैला हुआ है। इसमें कृषि कार्य होता है। ऐसे मैदानी क्षेत्र अन्न उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।

मैदानी क्षेत्र पश्चिम में पंजाब से लेकर पूरब में आसाम तक ये इलाके सतलज, गंगा और ब्रह्मपुत्र का मैदान कहलाते हैं। ये सभी क्षेत्र कृषि के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं।

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प्रश्न (ii)
सड़क-निर्माण का कार्य किस क्षेत्र में आसान होगा और क्यों ?
उत्तर-
सडक-निर्माण का कार्य मैदानी क्षेत्र में आसानी से होगा क्योंकि मैदानी क्षेत्र प्रायः समतल भूमि का प्रदेश होता है। मैदानों की वजह से प्रायः एक ही प्रकार की मिट्टी पायी जाती है। इन क्षेत्रों को आसानी से उपयोग करके सड़क का निर्माण किया जा सकता है जिससे यहाँ परिवहन की सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होंगी और सड़क का निर्माण करने में भी बहुत कम खर्च लगेगा और सड़क का कार्य जल्दी ही पूरा हो जाता है।

प्रश्न (iii)
पर्वत, पठार और मैदान के दोहन से इस पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
बढ़ती जनसंख्या के कारण ही पर्वत, पठार और मैदानी क्षेत्रों का दोहन हो रहा है। वनों को काटा जा रहा है इससे प्रदूषण की समस्या भी बढ़ी है। सड़क निर्माण के इन्हीं पठारों, पहाड़ों को काटा जा रहा है जिससे यह विलुप्त होते जा रहे हैं। मैदानी क्षेत्रों में परिवहन, जल, समतल भूमि होने के कारण कल-कारखाने बन रहे हैं जिससे आबादी काफी घनी हो गई है। कारखानों के लिए खनिजों की उपलब्धता पठारों से है। इसलिए पठारों का दोहन हो रहा है जिससे प्राकृतिक सुंदरता घटी हैं, प्रदूषण बढ़ा है।

वन क्षेत्र घटे हैं, इन क्षेत्रों में भी भूजल का स्तर गिर गया है जिससे जल-संकट की समस्या उत्पन्न हो गया है। इसी प्रकार अगर हम प्रकृति को दोहन होने से नहीं बचाएँगे तो हमें भविष्य में जल की समस्या प्रकृति भूमि की समस्या का, वायु प्रदूषण की समस्या का सामाना करना पड़ेगा।

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प्रश्न (iv)
मैदान में ही अधिक लोग क्यों बसते हैं?
उत्तर-
मैदान में ही भूमि समतल होती है। न कहीं अधिक ऊँची न कहीं अधिक नीची। जिससे लोग यहाँ कृषि-कार्य आसानी से करते हैं। इसमें लोग धान, गेहूँ, चना इत्यादि उपजाकर अपना जीवन-यापन कर सकते हैं। मैदानी क्षेत्रों में जीवन के लिए सभी सुख-सुविधा उपलब्ध हैं। भोजन, जल, आवास, परिवहन की सुवधिा आसानी से उपलब्ध होती है। ऐसे क्षेत्रों में संडक मार्ग आसानी से प्रदान हो जाती हैं। मैदानी क्षेत्र अन्न उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। इसलिए इन सभी सुविधाओं को देखते हुए लोग मैदान में ही अधिक बसते हैं।

प्रश्न (v)
पर्वत कितने प्रकार के होते हैं? सभी के नाम लिखें
उत्तर-
पर्वत तीन प्रकार के होते हैं।

  • इनकी सतह ऊबड़-खाबड़ एवं शिखर शंक्वाकार होती है। जैसे – भारत का हिमालय पर्वत एवं दक्षिण अमेरिका का एन्डीज पर्वत हैं।
  • धेशोत्थ पर्वत पृथ्वी के आंतरिक हलचलों के कारण पृथ्वी पर दरार पड़ जाती हैं दो दरारों के बीच का भाग ऊपर उठता है। भारत का सतपुडा पर्वत।
  • ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा एवं अन्य पदार्थों को ठंडा होकर जम जाने से जिन पर्वतों का निर्माण होता है उसे ज्वालामखी पर्वत कहते हैं जैसे-इटली का विसुवियस पर्वत । भारत के अण्डमान निकोबार के बैरन आइलैन्ड में सक्रिय ज्वालामुखी पर्वत पाये जाते हैं।

Bihar Board Class 6 Social Science पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप Notes

पाठ का सारांश

  • पर्वत तीन प्रकार के होते हैं :

1. वलित पर्वत – इनकी सतह उबड़-खाबड़ एवं शिखर शंक्वाकार होती है। जैसे-भारत का हिमालय पर्वत एवं अरावली पर्वत।।

2. भ्रंशोत्थ पर्वत – पृथ्वी के आंतरिक हलचलों के कारण पृथ्वी पर दरारें पड़ जाती हैं। दो दरारों के बीच का भाग ऊपर उठ जाता है। इस ऊँचे उठे भाग को भ्रंशोत्थ पर्वत कहा जाता है। सतपुड़ा पर्वत इसका उदाहरण है।

Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 4 पृथ्वी के प्रमुख स्थल रुप

3. ज्वालामुखी पर्वत – ज्वालामुखी से निकले लावा एवं अन्य पदार्थों के ठंडा होकर जम जाने से जिन पर्वतों का निर्माण होता है उसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। इटली का विसुवियस पर्वत इसका उदाहरण है। भारत में ज्वालामुखी पर्वत नहीं पाये जाते हैं। कम ऊँचाई के पर्वतों को पहाड कहा जाता है।

  • पठार आस-पास की भूमि से ऊँचा होता है तथा उसके ऊपर का भाग सपाट होता है।
  • तिब्बत का पठार संसार का सबसे ऊंचा पठार है, इसलिए इसे ‘संसार का छत’ भी कहा जाता है।
  • पर्वत से निकलने वाली नदियों के जल का उपयोग सिंचाई तथा पन बिजली उत्पादन किये जाते हैं।
  • पर्वतों पर कई प्रकार की वनस्पतियां तथा जीव-जंत पाये जाते हैं।
  • घने जंगल, अत्यधिक उंचाई एवं परिवहन का अभाव होने से यहां का जीवन मैदानों की अपेक्षा कठिन होता है।
  • बिहार का अधिकतर भाग गंगा नदी के दोनों तरफ-मैदानी भाग के रूप में फैला हुआ है। इसमें कृषि कार्य होता है।
  • पश्चिम में पंजाब से लेकर पूरब में आसाम तक के इलाके सतलज, गंगा और ब्रह्मपुत्र का मैदान कहलाते हैं।

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Bihar Board Class 11 Geography प्राकृतिक वनस्पति Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रोजेक्ट टाईगर का उद्देश्य क्या था ……………………..
(क) शेरों का शिकार करना
(ख) अवैध शिकार को रोककर शेरों की सुरक्षा
(ग) शेरों को चिड़ियाघरों में रखना
(घ) शेरों पर चित्र बनाना
उत्तर:
(ख) अवैध शिकार को रोककर शेरों की सुरक्षा

प्रश्न 2.
नन्दा देवी जीव आरक्षण क्षेत्र किस राज्य में है ………………………
(क) बिहार
(ख) उत्तरांचल
(ग) उत्तरप्रदेश
(घ) उड़ीसा
उत्तर:
(ख) उत्तरांचल

प्रश्न 3.
संदल किस प्रकार के वन की लकड़ी है?
(क) सदाबहार
(ख) डेल्टय वन
(ग) पतझड़ीय
(घ) कंटीले वन
उत्तर:
(ग) पतझड़ीय

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 4.
IUCN द्वारा कितने जीव आरक्षण स्थल मान्यता प्राप्त हैं ……………………..
(क) 1
(ख) 2
(ग) 3
(घ) 4
उत्तर:
(घ) 4

प्रश्न 5.
वन नीति के अधीन वन क्षेत्र का लक्ष्य कितना था ……………………….
(क) 33%
(ख) 55%
(ग) 44%
(घ) 22%
उत्तर:
(क) 33%

प्रश्न 6.
चंदन वन किस प्रकार का वन है …………………….
(क) सदाबहार
(ख) डेल्टाई
(ग) पर्णपाती
(घ) काँटेदार
उत्तर:
(ग) पर्णपाती

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति क्या है ? जलवायु की किन परिस्थितियों में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उस पौधा समुदाय से है, जो लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है और इसकी विभिन्न प्रजातियाँ वहाँ पाई जाने वाली मिट्टी और जलवायु में यथासंभव स्वयं को ढाल लेती हैं। उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन उष्ण और आई प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से अधिक रहता है।

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प्रश्न 2.
जलवायु की कौन-सी परिस्थितियाँ सदाबहार वन उगने के लिए अनुकूल हैं ?
उत्तर:
सदाबहार वन ऊष्ण और आई प्रदेशों में पाए जाते हैं, जहाँ वार्षिक वर्षा 200, सेंटीमीटर से अधिक होती है और औसत वार्षिक तापमान 22-20° सेल्सियस से अधिक रहता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी का अर्थ है पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबंध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनरोपण। राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976-79) ने सामाजिक वानिकी को तीन वर्गों में बाँटा है-शहरी वानिकी, ग्रामीण वानिकी और फार्म वानिकी।

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प्रश्न 4.
जीव मंडल निचय को पारिभाषित करें। वन क्षेत्र और वन आवरण में क्या अंतर है?
उत्तर:
जीव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) विशेष प्रकार के भौतिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) के मानव और जीव मंडल प्रोग्राम (MAB) के अंतर्गत मान्यता प्राप्त है। जीव मंडल निचय के तीन मुख्य उद्देश्य हैं –

  • जीव विविधता और पारिस्थितिक तंत्रों का संरक्षण
  • पर्यावरण और विकास का मेल-जोल
  • अनुसंधान और देख-रेख के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क।

वन क्षेत्र राजस्व विभाग के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र है, चाहे वहाँ वृक्ष हों या न हों, जबकि वन आवरण प्राकृतिक वनस्पति का झुरमुट है और वास्तविक रूप में वनों से ढंका है। वन क्षेत्र राज्यों के राजस्व विभाग से प्राप्त होता है जबकि वन आवरण की पहचान वायु चित्रों और
उपग्रहों से प्राप्त चित्रों से की जाती है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दें।

प्रश्न 1.
वन संरक्षण के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
वन संरक्षण नीति के अंतर्गत निम्न कदम उठाए गए हैं – सामाजिक वानिकी – सामाजिक वानिको का अर्थ पर्यावरणीय, सामाजिक व ग्रामीण विकास में मदद के उद्देश्य से वनों का प्रबंध और सुरक्षा तथा ऊसर भूमि पर वनरोपण । सामाजिक वानिकी को तीन वर्गों में बाँटा गया है-शहरी वानिकी, ग्रामीण वानिकी और फार्म वानिकी।

सार्वजनिक भूमि जैसे – पार्क, सड़कों, हरित पट्टी, औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष लगाना और उसका प्रबंध इत्यादि से शहरी वानिकी को बढ़ावा दिया जाता है। कृषि वानिकी का अर्थ कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फसलें एक साथ लगाना । फार्म वानिकी के अंतर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्त्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते है। वन विभाग इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध कराता है। इस प्रकार की योजना के अंतर्गत कई प्रकार की भूमि जैसे-खेतों की मेड़, चरागाह, घास स्थल, घर के पास पड़ी खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।

कृषि वानिकी का उद्देश्य वानिकी और खेती एक साथ करना है, जिससे खाद्यान्न, चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाय। समुदायिक वानिकी सार्वजनिक भूमि जैसे-गाँव-चरागाह, मंदिर-भूमि, सड़कों के दोनों ओर, नहर किनारे, रेल पट्टी के साथ पटरी और विद्यालयों में पेड़ लगाना है। इस योजना का एक उद्देश्य भूमिविहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना तथा इससे उन्हें लाभ पहुंचाना है जो केवल भूस्वामियों को ही प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 2.
वन और वन्य जीव संरक्षण में लोगों की भागीदारी कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
वन और वन्य प्राणी संरक्षण का दायरा काफी बढ़ा है और इसमें मानव कल्याण की . असीम संभावनाएँ निहित हैं। यद्यपि इस लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकता है, जब हर व्यक्ति इसका महत्त्व समझे और अपना योगदान दे।

वन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में हमें बहुत अधिक आर्थिक व सामाजिक लाभ पहुंचाते हैं। अतः वनों के संरक्षण की मानवीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वनों और जनजाति समुदायों में घनिष्ठ सम्बन्ध है और इनमें से एक का विकास दूसरे के बिना असंभव है। वनों के विषय में इनके प्राचीन व्यावहारिक ज्ञान को वन विकास में प्रयोग किया जा सकता है। जनजातियों को वनों से गौण उत्पाद संग्रह करने वाले न समझकर, उन्हें वन संरक्षण में भागीदार बनाया जाना चाहिए।

हमें पर्यावरण संतुलन बनाए रखना चाहिए तथा पारिस्थितिक असंतुलित क्षेत्रों में वन लगाना चाहिए। देश की प्राकृतिक धरोहर जैव-विविधता तथा आनुवांशिक पूल का संरक्षण करना चाहिए। मृदा अपरदन तथा मरुस्थलीयकरण को रोकने का प्रयास करना चाहिए तथा बाढ़ व सूखे पर नियंत्रण पाने की कोशिश करते रहनी चाहिए । वनों की उत्पादकता बढ़ाकर वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, ईंधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना चाहिए और लकड़ी के स्थान पर हमें अन्य वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए, पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन-आंदोलन चलाना चाहिए तथा हमें वन्य प्राणियों का शिकार नहीं करना चाहिए। दुर्लभ प्राणियों और पौधों को संरक्षित रखने के लिए उनकी संख्या में बढ़ोतरी के लिए प्रयास करना चाहिए।

(घ) परियोजना कार्य (Project Work)

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को पहचान कर चिह्नित करें।

  1. मैंग्रोव वन वाले क्षेत्र।
  2. नंदा देवी, सुंदर वन, मन्नार की खाड़ी और नीलगिरी, जीवमंडल निचय।
  3. भारतीय वन सर्वेक्षण मुख्यालय की स्थिति का पता लगाएं और रेखांकित करें।

उत्तर:
Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति

Bihar Board Class 11 Geography प्राकृतिक वनस्पति Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत के दो राज्य बतायें जहाँ देवदार के वृक्ष मिलते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 2.
काँटेदार वन के दो पड़ों के नाम बतायें।
उत्तर:
खैर तथा खजूरी।

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प्रश्न 3.
बबूल के वृक्ष से कौन-से उत्पाद प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
गोंद तथा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 4.
ज्वारीय वन में गुंझलदार जड़ों का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह कीचड़ में वृक्षों का संरक्षण करती हैं।

प्रश्न 5.
भारत का वन अनुसंधान केन्द्र कहाँ पर स्थित है?
उत्तर:
देहरादून में।

प्रश्न 6.
ज्वारीय वन में पाये जाने वाले दो पेड़ों के नाम लिखें।
उत्तर:
सुन्दरी, गुर्जन।

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प्रश्न 7.
वैज्ञानिक नियम पर वनों के अन्तर्गत कुल कितना क्षेत्र होना चाहिए।
उत्तर:
33%

प्रश्न 8.
कोणधारी वन के तीन वृक्षों के नाम लिखें।
उत्तर:
पाइन, देवदार, सिल्वर फर्र।

प्रश्न 9.
3500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर किस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है?
उत्तर:
एल्पाइन चरागाह।

प्रश्न 10.
उन दो राज्यों के नाम लिखें जहाँ देवदार पाये जाते हैं।
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 11.
मयरो बोलान वृक्ष का उपयोग बताएं।
उत्तर:
रंगने वाले पदार्थ प्रदान करना।

प्रश्न 12.
ज्वारीय वातावरण में कौन-से वन मिलते हैं?
उत्तर:
मैंग्रोव वन।

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प्रश्न 13.
भारत में आर्थिक पक्ष से कौन-सा वनस्पति क्षेत्र महत्वपूर्ण है?
उत्तर:
पतझड़ीय वन।

प्रश्न 14.
भारत का कुल कितना भौगोलिक क्षेत्र वनों के अंतर्गत है?
उत्तर:
22%

प्रश्न 15.
भारत का कुल कितना क्षेत्र (हेक्टेयर में) वनों के अन्तर्गत है?
उत्तर:
750 लाख हेक्टेयर।

प्रश्न 16.
लकड़ी के दो प्रयोग लिखें।
उत्तर:

  1. इमारत निर्माण के लिये।
  2. ईंधन के लिए लकड़ी।

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प्रश्न 17.
लकड़ी का एक औद्योगिक प्रयोग लिखें।
उत्तर:
खेलों का सामान बनाना, रेयॉन उद्योग।

प्रश्न 18.
बाँस तथा वन के घास के दो उपयोग लिखो।
उत्तर:

  1. कागज बनाने के लिए
  2. कृत्रिम रेशा।

प्रश्न 19.
वनों से प्राप्त तीन उत्पादों के नाम लिखें।
उत्तर:
रबड़, गोंद तथा चमड़ा रंगने वाले पदार्थ।

प्रश्न 20.
उन दो भौगोलिक तत्त्वों के नाम लिखो जो वनों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:

  1. वर्षा की मात्रा
  2. ऊँचाई।

प्रश्न 21.
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों के लिए आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:

  1. 200 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा
  2. 25°-27°C

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प्रश्न 22.
पतझड़ीय मानसून वनों के लिए आवश्यक वार्षिक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर:
150-200 सेंटीमीटर।

प्रश्न 23.
उस राज्य का नाम बताओ जहाँ उष्ण कटिबंधीय सदाबहार बन पाये जाते हैं।
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 24.
भारत के प्रदेश के नाम बताओ जहाँ काँटे तथा झाड़ियों के बन पाये जाते हैं?
उत्तर:
थार मरुस्थल।

प्रश्न 25.
हिन्द महासागर में द्वीपों के समूह बताएँ जहाँ उष्ण कटिबंधीय बन पाये जाते हैं।
उत्तर:
अण्डमान-निकोबार द्वीप।

प्रश्न 26.
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में पाये जाने वाले तीन महत्वपूर्ण पेड़ों के नाम लिखो।
उत्तर:
रोजवुड, अर्जुन, आबनूस।

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प्रश्न 27.
मानसून वनों को पतझड़ीय वन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये गर्मियों में अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 28.
उन तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ मानसून वन पाये जाते हैं।
उत्तर:
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड।

प्रश्न 29.
मध्य प्रदेश के एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक वृक्ष का नाम बताएँ।
उत्तर:
सागवान।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नम उष्ण कटिबंधीय सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार बनों की दो मुख्य विशेषताएँ बताइए। ये भी बताइए कि ये मुख्यतः किन प्रदेशों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
नम उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन-ये वन उष्ण कटिबंधीय वनों के समान सदाबहार घने वन होते हैं। ऊष्ण-आई जलवायु के कारण ये वन तेजी से बढ़ते हैं तथा अधिक ऊँचे होते हैं। भारत में पाए जाने वाले ये वन कुछ खुले तथा दूर-दूर पाए जाते हैं। इन वनों में कठोर लकड़ी के वृक्ष मिलते हैं जिनके शिखर पर छाता जैसा आकार बन जाता है। भारत में ये वन पश्चिमी घाट के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में (केरल तथा कर्नाटक) पाए जाते हैं। ये वन शिलांग पठार के पर्वतीय प्रदेश में पाए जाते हैं। महोगनी, खजूर, बांस मुख्य वृक्ष हैं। अर्द्ध-सदाबहार वन-ये वन पश्चिमी घाट तथा उत्तर:पूर्वी भारत में कम वर्षा के क्षेत्रों में मिलते हैं। ये मानसूनी पतझड़ीय वन हैं।

प्रश्न 2.
भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार बन कहाँ पाए जाते हैं ? ऐसे बनों की वनस्पति भूमध्यरेखीय वनों से किस प्रकार समान हैं तथा किस प्रकार से असमान हैं?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में शिलांग पठार, असम प्रदेश तथा पश्चिमी घाट पर पाए जाते हैं। ये वन भूमध्यरेखीय वनों से मिलते-जुलते हैं क्योंकि ये कठोर लकड़ी के वन हैं तथा ये अधिक आई क्षेत्रों में मिलते हैं जहाँ 200 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। ये वन भूमध्यरेखीय वनों की भान्ति घने नहीं हैं, परंतु ये वन अधिक खुले-खुले मिलते हैं तथा इनका उपयोग आसान हो जाता है।

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प्रश्न 3.
सामाजिक वानिकी पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी (Social Forestryi):
1. 1976 के राष्ट्रीय कृषि आयोग ने पहले – पहल ‘सामाजिक वानिकी’ शब्दावली का प्रयोग किया था। इसका अर्थ है-ग्रामीण जनसंख्या के लिए जलावन, छोटी इमारती लकड़ी और छोटे-छोटे वन उत्पादों की आपूर्ति करना ।

2. अनेक राज्य सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। अधिकतर राज्यों में वन विभागों के अन्तर्गत सामाजिक वानिकी के अलग से प्रकोष्ठ बनाए गए हैं। सामाजिक वानिकी के मुख्य रूप से तीन अंग हैंकृषि वानिकी-किसानों को अपनी भूमि पर वृक्षरोपण के लिए प्रोत्साहित करना; वन – भूखण्ड (वुडलाट्स) – वन विभागों द्वारा लोगों की जरूरतों को पूर करने के लिए सड़कों के किनारे, नहर के तटों, तथा ऐसी अन्य सार्वजनिक भूमि पर वृक्षारोपण सामुदायिक वन-भूखण्ड-लोगों द्वारा स्वयं बराबर की हिस्सेदारी के आधार पर भूमि पर वृक्षारोपण।

3. सामाजिक वानिकी योजनाएँ असफल हो गईं, क्योंकि इसमें उन निर्धन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया, जिन्हें इससे अधिकतर फायदा होना था। यह योजना पुरुषोन्मुख हो गई। यही नहीं, यह कार्यक्रम लोगों की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने वाले कार्यक्रम के स्थान पर किसानों का धनोपार्जन कार्यक्रम बन गया ।

4. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के द्वारा उत्पादित लकड़ी ग्रामीण भारत के गरीबों को न मिलकर, नगरों और कारखानों में पहुंचने लगी है। इससे गाँवों में रोजगार के अवसर घटे हैं और अन्य उत्पादन करने वाली भूमि पर पेड़ लग गए है। इससे अनिवासी भू-स्वामित्व को बढ़ावा मिला है।

प्रश्न 4.
कौन-सी वनस्पति जाति बंगाल का आतंक मानी जाती है और क्यों?
उत्तर:
कुछ विदेशज वनस्पति जाति के कारण कई प्रदेशों में समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं। भारत में वनस्पति का 40% भाग विदेशज है। ये पौधे चीनी-तिब्बती, अफ्रीका तथा इण्डो-मलेशियाई क्षेत्र से लाए गए हैं। जलहायसिंथ पौधा भारत में बाग के सजावट के पौधे के रूप में लाया गया था। इस पौधे के फैल जाने के कारण पश्चिमी बंगाल में जलमार्गों, नदियों, तलाबों तथा नालों कं मुंह बड़े पैमाने पर बंद हो गए हैं। इस पौधे के हानिकारक प्रभावों के कारण इसे “बंगाल का आतंक” (Terror of Bengal) भी कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
“हमारी अधिकांश प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है।” इस कथन की व्याख्या करो।
उत्तर:
यह कथन काफी हद तक सही है कि भारत में अधिकांश ‘प्रकृतिक’ वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इस देश में मानवीय निवास के कारण प्राकृतिक वनस्पति का अधिकतर भाग नष्ट हो गया है या परिवर्तित हो गया है। अधिकांश वनस्पति अपनी कोटि तथा गुणों के उच्च स्तर के अनुसार नहीं हैं। केवल हिमालय प्रदेश के कुछ अगम्य क्षेत्रों में एवं थार मरुस्थल के कुछ भागों को छोड़ कर अन्य प्रदेशों में प्राकृतिक वनस्पति वस्तुतः प्राकृतिक नहीं है। इन प्रदेशों की वनस्पति स्थानिक जलवायु तथा मिट्टी के अनुसार पनपती है तथा इसे प्राकृतिक कहा जा सकता है।

प्रश्न 6.
भारत में मुख्य वनस्पतियों के प्रकार को प्रभावित करने वाले भौगोलिक घटकों के नाम बताइए तथा उनके एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
भारत में विभिन्न प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। वनस्पति की प्रकार, सघनता आदि वातावरण में कई तत्वों पर निर्भर है। भारत में वनस्पति विभाजन के अनुसार उष्ण कटिबंधीय सदाबहार एवं मानसूनी वन, शीतोष्ण वन, घास के मैदान आदि वनस्पति को निम्नलिखित भौगोलिक घटक प्रभावित करते हैं –

  • वर्षा की मात्रा
  • धूप
  • ताप की मात्रा
  • मिट्टी की प्रकृति

ये जलवायुविक घटक अन्य स्थानिक तत्त्वों के साथ मिल कर एक-दूसरे पर विशेष प्रभाव डालते हैं। अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान के कारण असम तथा पश्चिमी घाट पर ऊष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनस्पति पाई जाती है। परंतु मरुस्थलीय क्षेत्रों में कम वर्षा के कारण कांटेदार झाड़ियाँ पाई जाती हैं। कई भागों में मौसमी वर्षा के कारण पतझड़ीय वनस्पति पाई जाती है। उष्ण जलवायु के कारण अधिकतर चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष पाए जाते हैं परंतु हिमालय के पर्वतीय क्षेत्र में कम तापमान के कारण कोणधारी वन तथा अल्पला घास पाई जाती है। स्थानीय मिट्टी के प्रभाव से नदी के डेल्टाई क्षेत्रों में ज्वारीय वन या मैंगरोव पाई जाती है। इसी प्रकार बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों में बबूल के वृक्ष मिलते हैं।

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प्रश्न 7.
“हिमालय क्षेत्रों में ऊँचाई के क्रम के अनुसार उष्ण कटिबंधीय से लेकर अल्पाईन वनस्पति प्रदेशों तक का अनुक्रम पाया जाता है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हिमालय पर्वत में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। ऊंचाई के क्रम के अनुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में अंतर पडता है। इस अंतर के प्रभाव से वनस्पति में एक क्रमिक अंतर पाया जाता है। धरातल के अनुसार तथा ऊँचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन – हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊँचाई तक उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। यहाँ वर्षा की मात्रा अधिक होती है। यहाँ सदाबहार घने वानों में साल के उपयोगी वृक्ष पाए जाते हैं।

2. शीत उष्ण कटिबंधीय वन – 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं।

3. शंकुधारी वन – दो हजार से अधिक ऊंचाई पर शंकुधार वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहाँ कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अंतर पाया जाता है। स्परूस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुंचने पर बर्च, जूनीपर आदि वृक्ष पाए जाते हैं।

4. अल्पाइन चरागाहें – 3000 मीटर से अधिक ऊँचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियाँ मौसमी पशुचरण हेतु इन चरागाहों का उपयाग करते हैं।

प्रश्न 8.
प्राकृतिक वनस्पति को परिभाषित कीजिए । जलवायु की उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए, जिसमें उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं।
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति उन वनस्पतियों को कहा जाता है जो मानव के प्रत्यक्ष या परोक्ष सहायता के बिना पृथ्वी पर उगते हैं और अपने आकार संरचना तथा अपनी जरूरतों को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेते हैं। निम्न परिस्थितियों में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं –

  • जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 20 cm से अधिक हो
  • जहाँ सापेक्ष आर्द्रता 70% से अधिक हो।

अर्थात् जहाँ अधिक वर्षा हो, उच्च आर्द्रता हो तथा उच्च तापमान हो वहीं उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन उंगते हैं।

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प्रश्न 9.
भारत में वनों के क्षेत्र के कम होने के क्या कारण है?
उत्तर:
किसी प्रदेश के कुल क्षेत्र के कम-से-कम 1/3 भाग में वनों का विस्तार होना चाहिए ताकि उस प्रदेश में पारिस्थितिक स्वास्थ्य कायम रखा जा सके। भारत में कई कारणों से बन सम्पत्ति का कम विस्तार है –

  • वनों के विशाल क्षेत्र की कटाई
  • स्थानान्तरित कृषि की प्रथा
  • अत्यधिक मृदा अपरदन
  • चारागाहों की अत्यधिक चराई
  • लकड़ी एवं ईंधन के लिए वृक्षों की कटाई
  • मानवीय हस्तक्षेप

प्रश्न 10.
वन सम्पदा के संरक्षण के लिए क्या तरीके अपनाए जा रहे हैं?
उत्तर:
जनसंख्या के अत्यधिक दबाव तथा पशुओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण वन सम्पदा का संरक्षण आवश्यक है। वन संरक्षण कृषि एवं चराई के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता के कारण आवश्यक है। इसके लिए वनवर्द्धन के उत्तम तरीकों को अपनाया जा रहा है। तेजी से उगने वाले पौधों की जातियों को लगाया जा रहा है। घास के मैदानों का पुनर्विकास किया जा रहा है। वन क्षेत्र का विस्तार किया जा रहा है।

प्रश्न 11.
भारत में विभिन्न प्रकार के घासों का वर्णन करो।
उत्तर:
घासें-बारहमासी घासों की 60 प्रजातियाँ हैं। इनसे मिलकर ही हमारा पारितंत्र बना है, जो हमारे पशुधन के जीवन का आधार है। वास्तविक चारागाह और घास भूमियाँ लगभग 12.04 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में विस्तीर्ण हैं। चराई के लिए अन्य भूमि, वृक्ष-फसलों और उद्यानों, बंजर भूमि तथा परती भूमि के रूप में हैं। जिनका क्षेत्रफल क्रमशः 37 लाख हेक्टेयर, 15 लाख हेक्टेयर और 23.3 लाख हेक्टेयर है।

वनों के अपकर्ष (डिग्रेडेशन) और विनाश के परिणामस्वरूप ही चरागाह और घासभूमियाँ विकसित हुई हैं। कालांतर में चारागाह सवाना में बदल जाते हैं। हिमालय की अधिक ऊँचाइयों वाले उप-अल्पाइन और अल्पाइन क्षेत्रों में वास्तविक चारागाह पाए जाते हैं। भारत में घास के तीन पृथक् आवरण हैं। ऊष्ण कटिबंधीय-यह मैदानों में पाया जाता है। उपोष्ण कटिबंधीय घास भूमियाँ मुख्य रूप से हिमालय की पर्वत में ही पाई जाती हैं।

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प्रश्न 12.
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
वनों का संरक्षण-मनुष्यों और पशुओं की बढ़ती हुई संख्या का प्राकृतिक वनस्पति पर दुष्प्रभाव पड़ा है। जो क्षेत्र कभी वनों से ढंके थे, आज अर्द्ध-मरुस्थल बन गए हैं। राजस्थान में भी कभी वन थे। पारिस्थितिक संतुलन के लिए वन अनिवार्य हैं। मानव का अस्तित्व और विकास पारिस्थितिक संतुलन पर निर्भर है। संतुलित पारितंत्र और स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत के कम-से-कम एक तिहाई भाग पर वन होना चाहिए । दुर्भाग्य से हमारे देश के एक चौथाई भाग पर भी बन नहीं है। इसलिए वन संसाधनों की संरक्षण और प्रबंधन के लिए एक नीति की आवश्यकता है।

प्रश्न 13.
भारत की वन नीति के क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
सन् 1988 में नई राष्ट्रीय वन नीति, वनों के क्षेत्रफल में हो रही कमी को रोकने के लिए बनाई गई थी।

  1. इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू-भाग को वनों के अन्तर्गत लाना था। संसार के कुल भू-भाग का 27 प्रतिशत तथा भारत का लगभग 19 प्रतिशत भू-भाग वनों से ढका है।
  2. वन नीति में आगे कहा गया है कि पर्यावरण की स्थिरता कायम रखने का प्रयत्न किया जायगा तथा जहाँ पारितंत्र का संतुलन बिगड़ गया है, वहाँ पुनः बनारोपण किया जायगा।
  3. आनुवांशिक संसाधनों की जैव विविधता को देश की प्राकृतिक विरासत कहा जाता है। इस विरासत का संरक्षण, वन नीति का अन्य उद्देय है।
  4. इस नीति में मृदा-अपरदन, मरुभूमि के विस्तार तथा सूखे पर नियंत्रण का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया है।
  5. इस नीति में जलाशयों में गाद के जमाव को रोकने के लिए बाढ़ नियंत्रण का भी प्रावधान है।
  6. इस नीति के और भी उद्देश्य हैं जैसे-अपरदित और अनुत्पादक भूमि पर सामाजिक वानिकी और वनरोपण द्वारा वनावरण में अभिवृद्धि, वनों की उत्पादकता बढ़ाना, ग्रामीण और जन-जातीय जनसंख्या के लिए इमारती लकड़ी, जलावन, चारा और भोजन जुटाना
  7. यही नहीं इस नीति में महिलाओं को शामिल करके, व्यापक जनान्दोलन द्वारा वर्तमान वनों पर दबाव कम करने के लिए भी बल दिया गया है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में वास्तविक वनावरण का वितरण बताएँ।
उत्तर:
वनक्षेत्र की भांति बनावरण में भी बहुत अंतर है। जम्मू और कश्मीर में वास्तविक वनावरण एक प्रतिशत है, जबकि अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह की 92 प्रतिशत भूमि पर वास्तविक बनावरण है। परिशिष्ट 1 में दी गई सारणी से स्पष्ट है कि 9 ऐसे राज्य हैं जहाँ कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग से अधिक पर वनावरण है। एक तिहाई वनारण पारितंत्र का संतुलन बनाए रखने के लिए मानक आवश्यकता है। चार ऐसे राज्य हैं जहाँ वन का प्रतिशत आदर्श स्थिति जैसा ही है। अन्य राज्यों में वनों की स्थिति असंतोषजनक या संकटपूर्ण है। ध्यान देने योग्य बातम यह है कि तीन नवीन राज्यों, उत्तरांचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ में प्रत्येक के कुल क्षेत्रफल के 40 प्रतिशत भाग पर वन हैं। इन राज्यों के पृथक् आँकड़े न मिलने के कारण इन्हें इनके पूर्व राज्यों में ही सम्मिलित किया गया है।

वास्तविक वनावरण के प्रतिशत के आधार पर भारत के राज्यों को चार प्रदेशों में विभाजित किया गया है –

  • अधिक वनावरण वाले प्रदेश
  • मध्यम वनावरण वाले प्रदेश
  • कम वनावरण वाले प्रदेश
  • बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश

1. अधिक बनावरण वाले प्रदेश – इस प्रदेश में 40 प्रतिशत से अधिक वनावरण वाले राज्य सम्मिलित हैं। असम के अलावा सभी पूर्वी राज्य इस वर्ग में सम्मिलित हैं। जलवायु की अनुकूल दशाएँ मुख्य रूप से वर्षा और तापमान अधिक वनावरण में होने का मुख्य कारण हैं। इस प्रदेश में भी वनावरण भिन्नताएँ पाई जाती हैं। अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह और मिजोरम, नागालैण्ड तथा अरुणाचल प्रदेश के राज्यों में कुल भौगोलिक क्षेत्र के 80 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा, सिक्किम और दादर और नागर हवेली में वनों का प्रतिशत 40 और 80 के बीच हैं।

2. मध्य बनावरण वाले प्रदेश – इसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, गोवा, केरल, असम और हिमाचल प्रदेश सम्मिलित हैं। गोवा में वास्तविक वन क्षेत्र 33.79 प्रतिशत है, जो कि इस प्रदेश में सबसे अधिक है। इसके बाद असम और उड़ीसा का स्थान है। अन्य राज्यों में कुल क्षेत्र के 30 प्रतिशत भाग पर वन हैं।

3. कम वनावरण वाले प्रदेश – यह प्रदेश लगातार नहीं है। इसमें दो उप-प्रदेश हैं: एक प्रायद्वीप भारत में स्थित है। इसमें महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं। दूसरा उप-प्रदेश उत्तरी भारत में है। इसमें उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य शामिल हैं।

4. बहुत कम वनावरण वाले प्रदेश – भारत के उत्तर:पश्चिमी भाग को इस वर्ग में रखा जात है। इस वर्ग में शामिल राज्य हैं-राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और गुजरात । इसमें चंडीगढ़ और दिल्ली दो केन्द्र शासित प्रदेश भी हैं। इनके अलावा पंश्चिम बंगाल का राज्य भी इसी वर्ग में हैं। भौतिक और मानवीय कारणों से इस प्रदेश में बहुत कम वन है।

प्रश्न 2.
भारत में प्राकृतिक वनस्पति किस प्रकार वर्षा के वार्षिक वितरण पर आश्रित हैं ? अपने उत्तर को उचित उदाहरणों से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में प्राकृतिक वनस्पति वर्षा के वार्षिक वितरण पर आश्रित है जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 200 cm से अधिक होती है वहाँ उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन उगते हैं। रबड़, महोगिनी, एबीनी, नारियल, बाँस, बेत एवं आदनवुड के वृक्ष मुख्य रूप से उगते हैं। ये वन अंडमान निकोबार, असम, मेघालय, नागालैंड, नागपुर, मेजोरम, त्रिपुरा एवं पश्चिम बंगाल में पाये जाते हैं।

वार्षिक वर्षा जहाँ 70 से 200 cm होती है वहाँ उष्णकटिबंधीय पर्णपाती बन उगते हैं। इन वनों का विस्तार तोता के मध्य एवं निचली घाटी, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु में है। प्रमुख वृक्ष साल, चंदन, सागवान, शीशम, आम आदि हैं। वार्षिक वर्षा 50 cm से कम जिन क्षेत्रों में है वहाँ उष्णकटिबंधीय काँटेदार वन पाये जाते हैं। बबूल, कीकर, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी, पलास आदि के वृक्ष मुख्य रूप से राजस्थान, द.पू. में पंजाब, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश में आते हैं। शुष्क जलवायु के कारण इनके पत्ते छोटे खाल मोटी तथा जड़ें खरी होती हैं। इस प्रकार जहाँ अधिक वर्षा होती है वहाँ लंबे-लंबे वृक्ष उगते हैं जो आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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प्रश्न 3.
भारत के विभिन्न प्रकार के वनों के भौगोलिक वितरण तथा आर्थिक महत्त्व वर्णन करों।
उत्तर:
भारत की वन सम्पदा (Forrest Wealth of India) – प्राचीन समय में भारत के एक बड़े भाग पर वनों का विस्तार था, परंतु अब बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण वन क्षेत्र घटता जा रहा है। इस समय देश में 747 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों पर वनों का विस्तार है जो कि देश के कुल क्षेत्रफल का 22.7% भाग है। भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र लगभग 0.1 हेक्टेयर है जो कि बहुत कम है। भौगोलिक दृष्टि से मध्य प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र हैं।

भारतीय वनों का वर्गीकरण-भारत में वनों का वितरण वर्षा, तापमान तथा ऊँचाई के अनुसार है। भारत में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं –
1. उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests) – ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 200 सेमी से अधिक तथा औसत तापमान 24°C है। इन वनों का विस्तार निम्नलिखित प्रदेशों में है

  • पश्चिमी घाट तथा पश्चिमी तटीय मैदान
  • अण्डमान द्वीप समूह
  • उत्तर-पूर्व में हिमालय पर्वत की ढलानों पर।

अधिक वर्षा तथा ऊँचे तापमान के कारण ये वन बहुत घने होते हैं। ये सदाबहार वन हैं। तथा भूमध्य रेखीय वनों की भांति कठोर लकड़ी के वन हैं। वृक्षों की ऊँचाई 30 से 60 मीटर तक है। इन वनों में रबड़, महोगनी, आबनुस लौह-काष्ठ, ताड़ तथा चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। इन वृक्षों की लकड़ी फर्नीचर, रेल के स्लीपर, जलपोत निर्माण, नावें बनाने में प्रयोग की जाती हैं।

2. पतझड़ीय मानसूनी बन (Monsoon Deciduous Forests) – ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 100 सेमी से 200 सेमी तक होती है। इसलिए इन्हें पतझड़ीय वन कहते हैं। ये वन निम्नलिखित प्रदेशों में मिलते हैं –

  • तराई प्रदेश
  • डेल्टाई प्रदेश
  • पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलान
  • प्रायद्वीप का पूर्वी भाग – मध्य प्रदेश, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु। ये वन अधिक घने नहीं होते। इनमें वृक्ष कम ऊँचे होते हैं। ये वृक्ष लगभग 30 मीटर तक ऊँचे होते हैं। इन वृक्षों को सुगमतापूर्वक काटा जा सकता है। कई भागों में कृषि के लिए इन वनों को साफ कर दिया गया है।

आर्थिक महत्त्व (Economical Importance) – इन वनों में साल, सागौन, चन्दन, रोजवुड, आम, महुआ आदि वृक्ष पाए जाते हैं। साल वृक्ष की लकड़ी रेल के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के काम में आती है। सागौन की लकड़ी बहुत मजबूत होती है। इसका प्रयोग इमारती लकड़ी तथा फर्नीचर में किया जाता है। इन वृक्षों पर लाख, बीड़ी, चमड़ा रंगने तथा कागज बनाने के उद्योग आधारित है।

3. शुष्क वन (Dry Forests) – ये वन उन प्रदेशों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 50 सेमी से 100 सेमी तक होती है। ये वन निम्नलिखित क्षेत्रों में मिलते हैं –

  • पूर्वी राजस्थान
  • दक्षिणी हरियाणा
  • दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश
  • कर्नाटक पठार

ये वृक्ष वर्षा की कमी के कारण अधिक ऊँचे नहीं होते। इन वृक्षों की जड़ें लम्बी तथा वाष्पीकरण को रोकते हैं।

आर्थिक महत्त्व (Economic Importance) – इन वनों में शीशम, बबूल, कीकर, हल्दू आदि वृक्ष पाए जाते हैं। ये कठोर तथा टिकाऊ लकड़ी के वृक्ष होते हैं। इनका उपयोग कृषि यंत्र, फर्नीचर, लकड़ी का कोयला, बैलगाड़ियाँ बनाने में किया जाता है।

4. डेल्टाई वन (Deltaic Forests) – ये वन डेल्टाई क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इन्हें ज्वारीय वन (Tidal Forests) भी कहते हैं। मैनग्रोव वृक्ष के कारण इन्हें मैनग्रोव वन (Mangrove Forests) भी कहते हैं। ये वन निम्नलिखित डेल्टाई क्षेत्रों में मिलते हैं

  • गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा (सुन्दर वन)
  • महानदी, कृष्णा, गोदावरी डेल्टा
  • दक्षिणी-पूर्वी तटीय क्षेत्र।

ये वन प्रायः दलदली होते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष मिलने के कारण इसे ‘सुन्दर वन’ कहते है।

आर्थिक महत्त्व (Economic Importance) – इन वनों में नारियल, मैनग्रोव, ताड़, सुन्दरी आदि वृक्ष मिलते हैं। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इनका प्रयोग ईंधन, इमारती लकड़ी, नावें बनाने तथा माचिस उद्योग में किया जाता है।

5. पर्वतीय वन (Mountain Forests) – ये वन हिमालय प्रदेश की दक्षिणी ढलानों पर कश्मीर से लेकर असम तक पाए जाते हैं। पूर्वी हिमालय में वर्षा की मात्रा अधिक है। वहाँ सदाबहार तथा चौड़ी पत्ती वाले वृक्षों की अधिकता के कारण कोणधारी वन पाए जाते हैं। इस प्रकार पूर्वी हिमालय तथा पश्चिमी हिमालय के वनों में काफी अंतर मिलता है। हिमालय प्रदेश में दक्षिणी ढलानों से लेकर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों तक विभिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है । ऊँचाई के क्रमानुसार वर्षा तथा ताप की मात्रा में भी अंतर पड़ता है। धरातल के अनुसार तथा ऊँचाई के साथ-साथ वनों के प्रकार में भिन्नता आ जाती है। इस क्रम के अनुसार उष्ण कटिबंधीय से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का विस्तार पाया जाता है।

(a) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन – हिमालय पर्वत की दक्षिणी ढलानों पर 1200 मीटर की ऊँचाई तक उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती प्रकार के वन पाए जाते हैं। वहाँ वर्षा की मात्रा अधिक होती है। वहाँ सदाबहार घने वनों में साल के उपयोगी वक्ष पाए जाते हैं।

(b) शीत उष्ण कटिबंधीय वन – 2000 मीटर की ऊंचाई पर नम शीत उष्ण प्रकार के घने वन पाए जाते हैं। इनमें ओक, चेस्टनट और चीड़ के वृक्ष पाए जाते हैं। चीड़ के वृक्ष से बिरोजा तथा तारपीन का तेल प्राप्त किया जाता है । इसकी हल्की लकड़ी होती है जिससे चाय की पेटियाँ बनाई जाती हैं।

(c) शंकुधारी वन – दो हजार से अधिक ऊँचाई पर शंकुधारी वृक्षों का विस्तार मिलता है। यहाँ कम वर्षा तथा अधिक शीत के कारण वनस्पति में अंतर पाया जाता है। यहाँ स्परुस, देवदार, चिनार और अखरोट के वृक्ष पाए जाते हैं। हिम रेखा के निकट पहुँचने पर बर्च, जूनीपद आदि वृक्ष पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी रेल के स्लीपर, पुला डिब्बे बनाने में प्रयोग की जाती है। सिवरफर का प्रयोग कागज की लुग्दी, पैकिंग का सामान तथा दियासलाई बनाने में किया जाता है।

(d) अल्पाइन चरागाहें – 3000 मीटर से अधिक ऊँचाई के कई भागों में छोटी-छोटी घास के कारण चरागाहें पाई जाती हैं। पश्चिमी हिमालय में गुजरों जैसी जन-जातियाँ मौसमी पशु चारण द्वारा इन चरागहों का उपयोग करते हैं।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

प्रश्न 1.
समानार चतुर्भुज ABCD और आयत ABEF एक ही आधार पर स्थित हैं और उनके क्षेत्रफल बराबर हैं। दर्शाइए कि समान्तर चतुर्भुज का परिमाप आयत के परिमाप से अधिक है।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 1
यहाँ चतुर्भुज ABCD तथा ABEF समान आधार AB पर ई तथा समानार रेखा AB और CF के मध्य में है।
ar (ABCD) = ar (ABEF)
⇒ AB = CD [∵ ABCD समान्तर चतुर्भुन है।]
AB = EF
∴ CD = EF ……… (1)
⇒ AB + CD = AB + EF ………. (2)
तपा AF < AD (लाय सबसे लम्बी भुना है।)
⇒ BE < BC
∴ AF + BE < AD + BC ……… (3)
समी. (1), (2) व (3) से,
AB + EF + AF + BE < AD + BC + AB + CD.
अतः समान्तर चतुर्भुज ABCD का परिमाप > आषत ABEF का परिमाप।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

प्रश्न 2.
पाठ्य पुस्तक में दी गई भाकृति में, भुजा BC पर दो बिन्दु D और E इस प्रकार स्थित है कि BD = DE = EC है। दर्शाइए कि-
ar (∆ABD) = ar (∆ADE) = ar (∆ABC) है।
क्या आप अब उस प्रश्न का उत्तर दें सकते हैं, जो आपने इस अध्याय को भूमिका में छोड़ दिया था कि “क्या बुधिया का खेत वास्तव में बराबर क्षेत्रफलों वाले तीन भागों में विभाजित हो जाता है?
उत्तर:
AM ⊥ BC खीचें।
ar (∆ADE) = \(\frac{1}{2}\) × DE × AM …….. (1)
ar (∆ABD) = \(\frac{1}{2}\) × BD × AM ……….. (2)
ar (∆AEC) = \(\frac{1}{2}\) × EC × AM ………. (3)
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 2
दिया है। DE = BD = EC
अत: समी. (1), (2) व (3) से,
ar (∆ABD) = ar (∆ADE) = ar (∆AEC)
है दिए गए हल से हम कह सकते हैं कि बुधिया का खेत वास्तव में तीन बराबर क्षेत्रफल में विभाजित हो गया है।

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प्रश्न 3.
आकृति में, ABCD, DCFE और ABFE समान्तर चतुर्भुज हैं। दर्शाइए कि ar (ADE) = ar (BCF) है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 3
उत्तर:
हमें ज्ञात है, समान्तर चर्भुज की सम्मुख भुजाएँ बराबर होती है।
∴ AD = BC
DE = CF और AE = BF
SSS सर्वांगसमता से, ∆ADE ≅ ∆BCF
अतः ar (∆ADE) = ar (∆BCF)

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प्रश्न 4.
पाठ्य पुस्तक में दी ई आकृति में, ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है और BC को एक बिन्दु Q तक इस प्रकार बनाया गया है कि AD = CQ है। यदि AQ भुजा DC को P पर प्रतिच्छेद करती है, तो दर्शाइए कि-
ar (BPC) = ar (DPQ) है।
उत्तर:
AC को मिलाया।
∆APC और ∆BPC एक आधार PC तथा समान समान्तर रेखाओं PC और AB के मध्य स्थित हैं।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 4
∴ ar (∆ABC) = ar (∆BPC) ……… (1)
⇒ AD = CQ
तथा AD || CQ (दिया है।)
चतुर्भुज ADQC में, सम्मुख भुजाओं का एक युग्म बराबर और समानर है।
∴ ADQC एक समान्तर चतुर्भुज है।
⇒ AP = PQ
और CP = DP
∆APC और ∆DPQ मैं,
PC = PD
AP = PQ
∠APC = ∠DPQ [कार्याधर सम्मुख कोण]
∴ SAS सर्वांगसमता गुणधर्म से.
∆APC ≅ ∆DPQ
⇒ ar (∆APC) = ar (∆DPQ) ………. (2)
समीकरण (1) व (2) से,
∴ ar (∆BPC) = ar (∆DPQ).

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प्रश्न 5.
पाठ्य पुस्तक में दी गई आकृति में, ABC और BDE दो समबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि D भुजा BC का मध्य बिन्दु है। यदि AE भुजा BC को F पर प्रतिच्छेद करती है, तो वाइए कि-
(i) ar (BDE) = \(\frac{1}{4}\) ar (ABC)
(ii) ar (BDE) = \(\frac{1}{2}\) ar (BAE)
(iii) ar (ABC) = 2 ar (BEC)
(iv) ar (BFE) = ar (AFD)
(v) ar (BFE) = 2 ar (FED)
(vi) ar (FED) = \(\frac{1}{8}\) ar (AFC).
उत्तर:
EC और AD को मिलाइए।
(i) माना ∆ABC को भुना = x
तथा BC = x
BD = \(\frac{1}{2}\) BC = x√2.
ar (ABC) = \(\frac{√3}{4}\) x² ……….. (1)
ar (BDE) = \(\frac{√3}{4}\) (\(\frac{x}{2}\))² ……… (2)
अत: समी. (1) व (2) से,
⇒ (∆BDE) = \(\frac{ar(∆ABC)}{4}\)
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 5

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

(ii) ED माध्यिका है।
⇒ (∆BDE) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆BEC) …….. (1)
यहाँ ∠DAE = 60° (∆BED समबाहु है।)
तथा ∠ACB = 60° (∆ABC समबाह है।)
अतः BE || AC
∆BEC तथा ∆BEA समान्तर रेखा BE तथा AC के मध्य में बने हैं।
ar (∆BEA) = ar (∆BEC) ……… (2)
समी. (1) से,
ar (∆BDE) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆BEA).

(iii) ar (∆ABC) = \(\frac{√3}{4}\) x²
तथा ar (∆BEC) = 2 × ar (∆BED)
= 2 × \(\frac{√3}{16}\) x² = \(\frac{√3}{8}\) x²
= \(\frac{√3}{16}\) ar (∆ABC)
⇒ (∆ABC) = 2 ar (∆BEC)

(iv) ∠ABD = 60° (∆ABC समबाह है।)
∠BDE = 60° (∆BDE समबाह है।)
⇒ AB || DE
अतः ar (∆BDE) = ar (∆AED) (∵ सांगसम त्रिभुजों समान आधार व समान्तर रेखाओं के बीच में हैं)
⇒ ar (∆BDE) = ar (∆FED)
= ar (∆AED) – ar (∆FED)
⇒ ar(BEF) = ar (AFD)

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(v) माना ∆BDE की ऊंचाई ES है।
समकोण ∆ABD में,
AD = \(\sqrt{AB^2 – BD^2}\)
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 6
समी. (1) व (2) से,
ar (BFE) = ar (AFD) = 2 ar (EFD).

(vi) ar (∆BDE) = \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC)
ar (∆BEF) + ar (∆FED) = \(\frac{1}{4}\) × ar (∆ABC)
3 ar (FED) = \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC)
[∵ar (BFE) = 2 ar (EFD)] [भाग (v) से]
3 ar (∆FED) = \(\frac{1}{4}\) × 2 ar (∆ADC)
3 ar (∆FED) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆ADC)
3 ar (∆FED) = \(\frac{1}{2}\) [ar (∆AFC) – ar (∆AFD)]
3 ar (∆FED) = \(\frac{1}{2}\) [ar (∆AFC) – 2ar (∆FED)
4 ar (∆FED) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆AFC)
ar (∆FED) = \(\frac{1}{8}\) ar (∆AFC)

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प्रश्न 6.
चतुर्भुज ABCD के विकर्ण AC और AD परस्पर बिन्दु पर प्रतिच्छेद हैं। वशाइए कि
ar (∆APB) × ar (∆CPD)
= ar (∆APD) × ar (∆BPC) है।
उत्तर:
खींचिए AM ⊥ BD तथा CN ⊥ BD
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 7
अन्य ar (∆APB) × ar (∆CPD)
= (\(\frac{1}{2}\) × BP × AM) × (\(\frac{1}{2}\) × DP × CN)
= \(\frac{1}{4}\) × BP × AM × DP × CN
तथा ar (∆APD) × ar (∆BPC)
= \(\frac{1}{2}\) × DP × AM) × (\(\frac{1}{2}\) × BP × CN)
= \(\frac{1}{4}\) × BP × DP × AM × CN.
समी. (1), (2) से,
ar (∆APB) × ar (∆CPD) = ar (∆APD) × ar (∆BPC)

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प्रश्न 7.
P और Q क्रमशः त्रिभुज ABC की भुजाओं AB और BC के मध्य बिन्दु हैं तथा R रेखाखण्ड AP का मध्य बिन्दु है। दहिए कि-
(i) ar (PRQ) = \(\frac{1}{2}\) ar (ARC)
(ii) ar (RQC) = \(\frac{3}{8}\) ar (ABC)
(ii) ar (PBQ) = ar (ARC)
उत्तर:
∴ मध्य बिन्दु प्रमेय से, PQ || AC
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 8
(i) ar (∆PQR) = \(\frac{1}{2}\) ar(∆APQ) (QR माध्यिकाई)
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × (ar ∆ABQ) (PQ माध्यिका है)
⇒ ar (∆PQR) = \(\frac{1}{2}\) × ar (∆ABQ)
\(\frac{1}{4}\) × \(\frac{1}{2}\) × ar (∆ABC) (AQ माध्यिका है)
CAQ माध्यिका है।
= \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC) ………… (1)
पुनः ar (∆ARC) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆APC)
(CR माध्यिका)
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × ar (ABC)
= \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC) ………… (2)
समी- (1) व (2) से.
ar (∆PRQ) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆ARC)

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4

(ii) ar (∆RQC) = ar (∆RQA) + ar (∆AQC) – ar (∆ARC)
∴ ar (∆RQA) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆PQA)
[∵ PQ माध्यिका है]
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × ar (∆AQB)
[∵ PQ माध्यिका है]
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) ar (∆ABC)
(∵ AQ माध्यिका है)
= \(\frac{1}{8}\) ar (∆ABC) ………… (1)
∴ ar (∆AQC) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆ABC) ……… (2)
(∵ AQ माध्यिका है)
∴ ar (∆ARC) = \(\frac{1}{2}\) ar (∆APC)
(∵ RC माध्यिका है)
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × ar (∆ABC)
(∵ PC माध्यिका है)
= \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC) …….. (3)
समी. (1),(2) व (3) से,
ar (∆RQC) = \(\frac{1}{8}\) ar(∆ABC) + \(\frac{1}{2}\) ar (∆ABC) – \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC)
= ar (∆RQC) = ar (∆ABC) [\(\frac{1}{8}\) + \(\frac{1}{2}\) – \(\frac{1}{4}\)]
= ar (∆ABC) [latex]\frac{1+4-2}{8}[/latex]
⇒ ar (∆RQC) = \(\frac{3}{8}\) ar (∆ABC).

(iii) ar (∆PBQ) = \(\frac{1}{2}\) (∆PBC) ……….. (1)
(∵ PQ माध्यिका है)
= \(\frac{1}{2}\) × \(\frac{1}{2}\) × (ar ∆ABC)
(∵ PC माध्यिका है।)
= \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC)
ar (∆ARC) = \(\frac{1}{4}\) ar (∆ABC) ………. (2)
[भाग (ii) से
समी. (1) व (2) से,
ar (∆PBQ) = ar (∆ARC).

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प्रश्न 8.
आकृति में, ABC एक समकोण त्रिभुज है जिसका कोण A समकोण है। BCED, ACFG और ABMN क्रमशः भुजाओं BC, CA और AB पर बने वर्ग हैं। रेखाखण्ड AX ⊥ DE भुजा BC को बिन्दु Y पर मिलता है। दर्शाइए कि-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.4 Q 9
(i) ∆MBC ≅ ∆ABD
(ii) ar (BYXD) = 2 ar (MBC)
(iii) ar (BYXD) = ar (ABMN)
(iv) ∆FCB ≅ ∆ACE
(v) ar (CYXE) = 2 ar (FCB)
(vi) ar (CYXE) = ar (ACFG)
(vii) ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG)
उत्तर:
(i) ∆MBC और ∆ABD में,
MB = AB (∵ ABMD वर्ग है।)
BC = BD (∵ BCED वर्ग है।)
∠MBC = ∠ABD (90° + ∠ABC)
∴ SAS सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆MBC = ∆ABD ……….. (1)

(ii) यहाँ ∆ABD तथा चतुर्भुज BYXD दोनों आधार BD तथा समान समान्तर रेखा BD तथा AX के मध्य ई।
अतः ar (∆ABD) = \(\frac{1}{2}\) ar (BYXD)
समी. (1) से,
ar (∆MBC) = \(\frac{1}{2}\) ar (BYXD)
ar (BYXD) = 2 ar (AM∆C) ………. (2)

(iii) ∆MBC तथा चतुर्भुज ABMN दोनों आधार MB तथा तमान समान्तर रेखा MB तथा NAC के मध्य बने हैं।
⇒ ar (∆MBC) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABMN)
2 ar (∆MBC) = ar (ABMN)
समी (2) से.
ar (ABMN)= ar (BYXD).

(iv) ∆FCB और ∆ACE में,
FC = AC (वर्ग की भुजा )
BC = CE (वर्ग की भुजा है।
∠FCB = ∠ACE (90° + ∠ACB)
∴ SAS सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆FCB ≅ ∆ACE
⇒ ar (∆FCB) = ar (∆ACE)

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(v) ∆ACE सपा चतुर्भुज CYXE दोनों आधार CE तथा समान समान्तर भुजा CE तथा AYX के मध्य में हैं।
⇒ ar (∆ACE) = \(\frac{1}{2}\) ar (CYXE)
ar (CYXE) = 2 ar (∆ACE)
⇒ ar (CYXE) = 2 ar (FCB) …….. (3) [भाग (iv) से]

(vi) ∆FCB तथा चतुर्भुज ACFG दोनों आधार CF तथा समान समान्तर भुजा CF था GAB के मध्य है।
⇒ ar (∆FCB) = \(\frac{1}{2}\) ar (ACFG)
2 ar (∆FCB) = ar (EACFG)
समी-(3) से,
ar (CYXE) = ar (ACFG).

(vii) वर्ग का क्षेत्रफल उसकी भुजा की घात 2 के बराबर होता है।
यहाँ ar (BCED) = BC²
ar (ABMN) = AB²
तथा ar (ACFG)= AC²
यहाँ दिया है, ∆ABC में ∠A समकोण है।
अतः BC² = AB² + AC²
∴ ar (BCED) = ar (ABMN) + ar (ACFG).

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Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

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Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

प्रश्न 1.
आकृति में, ABCD एक समान्तर चतुर्भुज है: AE ⊥ DC और CF ⊥ AD है। यदि AB = 16 cm, AE = 8cm और CF = 10 cm है, तो AD जात कीजिए।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 1
उत्तर:
समान्तर चतुभुज का क्षेत्रफल = आधार × ऊँचाई
∴ क्षेत्रफल AB × AE = AD × CF
16 × 8 = AD × 10
AD = \(\frac{128}{10}\) = 12.8 cm.

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

प्रश्न 2.
यदि E, F, G और H क्रमशः समान्तर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं के मध्य-बिन्दु है, तो दर्शाइए कि ar (EFGH) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD) है।
उत्तर:
यहाँ समान आधार HF तथा समानर रेखा HF और DC के मध्य एक त्रिभुज ∆HGF तथा एक चतुर्भुज HDCF है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 2
इसी प्रकार, ar (∆HEF) = \(\frac{1}{2}\) ar (HABF) ……… (2)
समो. (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (∆HGF) + ar (∆HEF) = \(\frac{1}{2}\) ar (HDCF) + \(\frac{1}{2}\) ar (HABF)
ar (EFGH) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD)

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प्रश्न 3.
P और Q क्रमशः समानर चतुर्भुज ABCD की भुजाओं DC और AD पर स्थित बिन्दु हैं। दर्शाइए कि ar (APB) = ar (BQC) है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 3
उत्तर:
यहाँ ∆APB तथा चतुर्भुज ABCD सपान आधार AB व समान्तर रेखा AD तथा DC के बीच में हैं।
⇒ ar (∆APB) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD) ………. (1)
यहाँ ∆BQC तथा चतुर्भुज ABCD समान आधार BC व एक समान्तर रेखा BC तथा AD के बीच में हैं।
⇒ ar (∆BQC) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD) ………..(2)
समी. (1) व (2) से,
ar (∆APB) = ar (∆BQC).

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प्रश्न 4.
पाठ्य पुस्तक में दी गई आकृति में, P समाजर चतुर्भुज ABCD के अभ्यंतर में स्थित कोई बिन्दु है। दर्शाइए कि-
(i) ar (APB) + ar (PCD) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD)
(ii) ar (APD)+ar (PBC) = ar (APB) + ar (PCD)
उत्तर:
(i) यहाँ हमने एक रेखा MN इस प्रकार खींची जो बिन्दु P से होकर जाती है तथा AB के समान्तर है।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 4
यहाँ ∆APB तथा चतुर्भुज AMNB समान आधार ABI समानर रेखा AB तथा MN के बीच में है।
⇒ ar (∆APB) = \(\frac{1}{2}\) ar (AMNB) ………. (1)
यहाँ ∆PCD तथा चतुर्भुज CDMN समान आधार CD समान्तर रेखा CD तथा NM के बीच में हैं।
⇒ ar (∆PCD) = \(\frac{1}{2}\) ar (CDMN) ……… (2)
समी. (1) व (2) को जोड़ने पर,
ar (∆APB) + ar(∆PCD) = \(\frac{1}{2}\) ar (AMNB) + \(\frac{1}{2}\) ar (CDMN)
⇒ ar (∆APB) + ar (∆PCD)
= \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD) ………. (3)

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

(ii) अब हमने एक रेखा SR इस प्रकार खींची जो बिन्दु P से होकर जाती है तथा BC के समान्तर है (देखिए आकृति)।
वहाँ ∆APD तथा चतुर्भुज ASRD समान आधार AD व समान्तर रेखा AD तथा SR के बीच में हैं।
⇒ ar (∆APD) = \(\frac{1}{2}\) ar (ASRD) ……… (4)
इसी प्रकार, ar (∆BPC) = \(\frac{1}{2}\) ar (BSRC) ……….. (5)
समी. (4) व (5) को जोड़ने पर,
ar (∆APD) + ar (∆BPC) = \(\frac{1}{2}\) ar (ASRD) + \(\frac{1}{2}\) ar (BSRC)
⇒ ar (∆APD) + ar (∆BPC) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABCD) ……… (6)
समी. (5) व (6) से,
ar (APD) + ar (PBC) = ar (APB) + ar (PCD).

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प्रश्न 5.
आकृति में, PQRS और ABRS समान्तर चतुर्भुज हैं तथा x भुजा BR पर निश्चत कोई बिन्दु है। दांडए कि-
(i) ar (PQRS) = ar (ABRS)
(ii) ar (AXS) = \(\frac{1}{2}\) ar (PQRS).
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 5
उत्तर:
(i) वहाँ चतुर्भुज ABRS तथा PQRS समान आधार SR तथा समानर रेखा SR था PAQD के बीच में है।
∴ ar (PQRS) = ar (ABRS) ………. (i)
(ii) यहाँ ∆AXS तथा चतुर्भुज ABRS समान आधार AS तथा समान्तर रेखा AS तथा BR के बीच में हैं।
∴ ar (∆AXS) = \(\frac{1}{2}\) ar (ABRS)
समी. (1) से,
ar (∆AXS) = \(\frac{1}{2}\) ar (PQRS).

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

प्रश्न 6.
एक किसान के पास समाजर चतुर्भुज PQRS के रूप का एक खेत था। उसने RS पर स्थित कोई बिन्दु A लिया और उसे P और Q से मिला दिया। खेत कितने भागों में विभाजित हो गया है? इन भागों के आकार क्या हैं? वह किसान खेत में गेहूँ और दालें बराबर-बराबर भागों में अलग-अलग बोना चाहता है। वह ऐसा कैसे करे?
उत्तर:
आकृति में खेत तीन भागों में विभाजित है तथा तीनों भाग त्रिभुजाकार हैं।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex Q 9.2 6
यहाँ ∆PAQ तथा चतुर्भुज PQRS समान आधार PQ व समान्तर रेखा PQ और SR के बीच में हैं।
अत: ar (∆APQ) = \(\frac{1}{2}\) ar (PQRS) ……… (i)
⇒ ar (∆APS) + ar (∆APQ) + ar (∆AQR) = ar (PQRS)
⇒ ar (∆APS) + ar (∆AQR) = ar (PQRS) – ar (∆APQ)
⇒ ar (∆APS) + ar (∆AQR) = ar (PQRS) – \(\frac{1}{2}\) ar (PQRS)
[समी. (1) से)
⇒ ar (APS) + ar (∆AQR) = \(\frac{1}{2}\) ar (PQRS)
अत: खेत के दो बराबर भाग है। ar (∆PAQ) तथा ar (∆PSA) + ar (∆QRA) इन दोनों भागों में बराबर-बावर गेहूं व दालें ठगा सकती है।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.2

Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी के परिमंडल

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions Geography Hamari Duniya Bhag 1 Chapter 3 पृथ्वी के परिमंडल Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी के परिमंडल

Bihar Board Class 6 Social Science पृथ्वी के परिमंडल Text Book Questions and Answers

अभ्यास

उचित विकल्प पर (✓) का निशान लगाएँ।।

प्रश्न 1.
जीवन पनपता है
(क) स्थलमंडल पर
(ख) जलमंडल पर
(ग) वायुमंडल पर
(घ) जैवमंडल पर
उत्तर-
(क) स्थलमंडल पर

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प्रश्न 2.
अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय थे
(क) अशोक शर्मा
(ख) राकेश शर्मा
(ग) रमेश वर्मा
(घ) रवीश मलहोत्रा
उत्तर-
(ख) राकेश शर्मा

प्रश्न 3.
जलडमरूमध्य जोड़ता है
(क) दो बड़े भू-स्थलों को
(ख) दो बड़े जल-भागों को
(ग) दो झीलों को
(घ) दो नदियों को
उत्तर-
(ख) दो बड़े जल-भागों को

प्रश्न 4.
समतापमंडल होता है
(क) जलमंडल में
(ख) स्थलमंडल में
(ग) वायुमंडल में
(घ) जैवमंडल में
(ङ) ओजोन मंडल में
उत्तर-
(ङ) ओजोन मंडल में

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प्रश्न 2.
खाली स्थानों को भरिये

  1. स्थल का एक संकरा भाग जो बड़े स्थलीय भागों को जोडता है …………. कहलाता है।
  2. पानी का संकरा भाग जो बड़ी जलराशियों को एक-दूसरे से जोड़ता है ………… कहलाता है।
  3. चन्द्रमा पर हवा और पानी नहीं होने से वहाँ …………. संभव नहीं

उत्तर-

  1. क्षोभमंडल
  2. जलडमरूमध्य
  3. जीवन ।।

प्रश्न 3.
बताइए-

प्रश्न (i)
पृथ्वी पर जीवन का क्या कारण है ?
उत्तर-
हमारी पृथ्वी के चारों ओर से घिरे हुए आवरण को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी पर मौजूद हवा जिससे सारे जीव साँस लेते हैं। वायुमंडल पृथ्वी पर जीवों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और पेड़-पौधे अपना भोजन बनाते

पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है। सभी जीवों को जीवित रहने के लिए भोजन, पानी और हवा की आवश्यकता होती है। इन्हें ये तीनों चीजें स्थल मंडल, जलमंडल और वायुमंडल से मिलती हैं। ” हमारी पृथ्वी पर ये तीनों मंडल उपस्थित होने के कारण वहीं ही जीवन पनपता है। इसलिए पृथ्वी पर जीवन पाया जाता है।

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प्रश्न (ii)
पृथ्वी पर प्रमुख परिमण्डल कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
पृथ्वी पर प्रमुख परिमण्डल स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल

प्रश्न (iii)
पृथ्वी को नीला ग्रह क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
हमारी पृथ्वी जिस पर हम रहते हैं पृथ्वी पर ही जीवन मिलता है क्योंकि वहाँ जल एवं जीवन के लिए आवश्यक गैसें मौजूद है। अंतरिक्ष से देखने पर यह नीली नजर आती है। क्योंकि वायुमंडल में प्रकाश की किरणें परावर्तित होती हैं तथा समुद्र की सतह से नीले रंग का परावर्तन सर्वाधिक है। हमारी पृथ्वी पर लगभग 71% भू-भाग जल से घिरा है तथा मात्र 29% स्थल मंडल है, अतएव जलीय भाग के अधिक रहने के कारण परावर्तन अधिक होता है फलतः यह नीला दिखाई देता है। इसलिए इसे नीला ग्रह भी कहते हैं।

प्रश्न (iv)
पृथ्वी के प्रमुख महाद्वीपों के नाम लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी के प्रमुख महाद्वीपों के नाम निम्न हैं

  1. एशिया महादेश
  2. यूरोप महादेश
  3. आस्ट्रेलिया महादेश
  4. अफ्रिका महादेश
  5. उत्तरी अमेरिका
  6. दक्षिणी अमेरिका
  7. अंटार्कटिका महादेश।

Bihar Board Class 6 Social Science Geography Solutions Chapter 3 पृथ्वी के परिमंडल

प्रश्न (v)
पृथ्वी के प्रमुख महासागरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
पृथ्वी के प्रमुख महासागरों के नाम निम्न हैं

  1. हिन्द महासागर
  2. प्रशांत महासागर
  3. अटलांटिक महासागर
  4. आर्कटिक महासागर ।

प्रश्न (vi)
जैवमंडल किसे कहते हैं ? इसका विस्तार कहाँ है?
उत्तर-
हमारी पृथ्वी पर जहाँ ये तीनों मण्डल उपस्थित हैं। स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल वहीं जीवन भी पनपता है। यह जगह सीमित है। इसे जैवमंडल कहते हैं । पृथ्वी पर किसी भी मंडल का अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है। तीनों मंडल एक-दूसरे में समाए हुए हैं। स्थल पर नदियाँ, तालाब आदि । मिट्टी में भी पानी और हवा घुली हुई होती है । वायुमंडल में जलवाष्प और धूलकण होते हैं और जलमंडल में घुली हुई हवा और मिट्टी होती है। इसी तरह से तीनों मण्डल एक-दूसरे में समाए हुए हैं।

प्रश्न (vii)
जीवन के लिए वायुमंडल आवश्यक है, कैसे?
उत्तर-
जलमंडल और तमडल के चारों ओर हवा है जो कई सौ किलोमीटर की ऊँचाई तक फैली हुई है। इसे वायुमंडल कहते हैं । हवा के बिना तो हम एक पल भी जीवित नहीं रह सकते हैं। वायुमंडल पृथ्वी पर जीवों के लिए अति आवश्यक है। इसमें हम सांस लेते हैं और पेड़-पौधे अपना भोजन इसकी मदद से बनाते हैं।

हम जो सर्दी-गर्मी महसूस करते हैं वह हवाओं के माध्यम से ही करते हैं। ये वायु ही बादलों को गतिशील बनाती हैं जिससे वर्षा होती है। सभी जीवों को जीवित रहने के लिए वाय की जरूरत होती है जो हमें वायु वायुमंडल से प्राप्त होती है। जलचर पानी में घुलनशील हवा के द्वारा ही जीवित रहते हैं। इस प्रकार जीवन के लिए वायुमंडल आवश्यक है।

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प्रश्न (viii)
स्थलमंडल किसे कहते हैं ? यह क्यों उपयोगी है ?
उत्तर-
पृथ्वी का वह ऊपरी ठोस भाग जिसमें मिट्टी कंकड़, पत्थर, पहाड़, मैदान, पठार आदि सम्मिलित हे वह स्थल मंडल कहलाता है। इस स्थल मंडल पर ही सारे जीव-जन्तु, मनुष्य, अपना घर बनाकर अपना जीवन-यापन करत हैं । स्थलमंडल पर ही मनुष्य खेती-बाड़ी करके अपनी जीविका उपार्जन करके अपना जीवन बिताते हैं और विभिन्न प्रकार के क्रियाकलाप करते हैं। स्थलमंडल के बिना हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। स्थलमंडल हमारे जीवन का अस्तित्व है। स्थल मंडल पर ही पेड़-पौधे का भी जीवन पाया जाता है। इसलिए स्थलमंडल हमारे लिए अति उपयोगी है।

प्रश्न (ix)
जलीय क्षेत्रों के जीव-जंतु एवं पौधे कौन-कौन से हैं ? सूची बनाइए।
उत्तर-
जलीय क्षेत्रों के जीव-जन्तु-कछुआ, साँप, मगरमच्छ, मछली, साँप, मेढ़क, हंस इत्यादि हैं। जलीय क्षेत्रों के पौधे-कमल, केला का पौधा ।

प्रश्न 4.
विश्व के मानचित्र पर स्थलमंडल एवं जलमंडल को उपयुक्त रंगों से रंग कर दिखाइए।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

पाठ के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मछली को हवा कहाँ से मिलती है ?
उत्तर-
पानी में हवा घुलनशील अवस्था में रहती है जिसका उपयोग मछलियाँ साँस लेने में करती हैं। इस प्रकार मछली जीवित रहती है। उसे पानी में वायु घुलनशील अवस्था में मिलती है।

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प्रश्न 2.
सभी जीवों की क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर-
सभी जीवों की आवश्यकताएँ भोजन, पानी और वायु हैं।

प्रश्न 3.
जीवों को भोजन किस मंडल से मिलता है ?
उत्तर-
जीवों को भोजन पेड़-पौधों से मिलता है और पेड़-पौधे जमीन पर उगते हैं। इस प्रकार सभी जीवों को भोजन स्थलमंडल से मिलता है।

Bihar Board Class 6 Social Science पृथ्वी के परिमंडल Notes

पाठ का सारांश

  • हमारी पृथ्वी पर सात महाद्वीप हैं- एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, आस्ट्रेलिया और अण्टार्कटिका।
  • स्थल संधि-स्थल का एक संकरा भाग जो दो बड़े स्थल खण्डों को एक दूसरे से जोड़ता है।
  • जल संधि – पानी का संकरा भाग जो दो बड़ी जलराशि जैसे समुद्रों तथा महासागरों को एक दूसरे से जोड़ता है।
  • वायुमण्डल में भी विभिन्न परतें होती हैं जो अलग-अलग उंचाई पर पाई जाती है इनके नाम हैं- क्षोभमण्डल, समताप मण्डल, आयनमण्डल और बहिर्मण्डल।
  • पृथ्वी पर चार बड़े जल भाग हैं-प्रशान्त महासागर, अटलांटिक महासागर, हिन्द महासागर, आर्कटिक महासागर।
  • अंतरिक्ष से देखने पर हमारी पृथ्वी का रंग नीला दिखता है।
  • पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहते हैं।
  • महाद्वीप स्थल मण्डल के मुख्य भाग हैं।
  • इन पर ही पर्वत, पठार, मैदान आदि पाए जाते. हैं।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

Bihar Board Class 6 Science विभिन्न प्रकार के पदार्थ Text Book Questions and Answers

अभ्यास एवं प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) जल में चीनी ……………. है।
(ii) …………..पदार्थ से होकर प्रकाश अंशतः पार करता है ।
(ii) कुछ गैसें जल में …………….. विलेय है।
(iv) कुछ पादार्थ ठंडे पानी में ……….. और गरम पानी में …………….. जल्दी घुलते हैं।
उत्तर:
(i) विलेय
(ii) पारभासी
(iii) विलेय
(iv) देर से, जल्दी ।

प्रश्न 2.
स्तंभ ‘अ’ को स्तंभ ‘ब’ से सही मिलान कीजिए –
Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ 1
उत्तर:
(i) – (क)
(ii) – (घ)
(iii) – (ङ)
(iv) – (ख)
(v) – (ग)

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

प्रश्न 3.
निम्न वाक्यों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

  1. वे पदार्थ जो आसानी से दबाये या खरोचे जा सकते हैं ………… पदार्थ हैं। (कोमल/कठोर)
  2. हमारे हाथ में तैलीय पेन्ट या अलकतरा लग जाता है, जो इसे हम ……………. से साफ करते हैं। (जल/किरोसीन/तेल)
  3. वे पदार्थ जिनसे होकर वस्तुओं को देखा जा सकता है, ……………. कहलाते (पारदर्शी/अपारदर्शी)
  4. वे पदार्थ जिनसे होकर वस्तुओं को नहीं देखा जा सकता है, ……………. कहलाते हैं। (अपारदर्शी/पारदर्शी)
  5. पानी में तैरनेवाली वस्तुएँ ………… तथा पानी में डूब जानेवाली वस्तुएँ …….. होती हैं (भारी/हल्की)

उत्तर:

  1. कामल
  2. किरोसीन
  3. पारदर्शी
  4. अपारदर्शी
  5. हल्की, भारी ।

प्रश्न 4.
सही विकल्प चुनिए –

(i) निम्न में से कोमल पदार्थ है –
(क) साबुन
(ख) रबर
(ग) लकड़ी
(घ) लोहा
उत्तर:
(ख) रबर

(ii) निम्न पदार्थ में चमक होती है –
(क) लोहा
(ख) ताँबा
(ग) साना
(घ) लकड़ी
उत्तर:
(ख) ताँबा

(iii) निम्न में कौन-कौन से पदार्थ जल के अलावा भी घोलक हो ‘सकता है –
(क) तेल
(ख) तारपीन का तेल
(ग) केरोसीन. तेल
(घ) सरसों का तेल
उत्तर:
(ग) केरोसीन. तेल

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

(iv) वह घोल जिसमें घुल्य पदार्थ की और मात्रा घुलने की क्षमता नहीं होती, कहलाता है –
(क) संतृप्त घोल
(ख) असंतृप्त घोल
(ग) हल्का घोल
(घ) गाढ़ा घोल
उत्तर:
(क) संतृप्त घोल

(v) कैसे पदार्थ जिनसे होकर वस्तुएँ या चीजें अस्पष्ट रूप से धुंधली दिखाई देती हैं, कहलाती है –
(क) पारदर्शी
(ख) अपारदर्शी
(ग) पारभासी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) पारभासी

प्रश्न 5.
प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं के नाम निम्नलिखित हैं- प्लास्टिक की थैली, बाल्टी, मग, खिलौना, डब्बा इत्यादि।

प्रश्न 6.
जल में तैरनेवाली तथा डूबने वाली वस्तुओं का समूह बनायें।
उत्तर:
जल में तैरनेवाली वस्तु – सूखी पत्ती, लकड़ी, प्लास्टिक की थैली, प्लास्टिक गेंद, नाव, नारियल इत्यादि।
डूबने वाली वस्तु – कंकड़, चाभी, लोहे की वस्तु, पत्थर, सिक्सा, काँच इत्यादि।

प्रश्न 7.
पारभासी, पारदर्शी एवं अपारदर्शी वस्त में अंतर बतायें।
उत्तर:
पारभासी-वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से तो नहीं किन्त थोडी मात्रा में देखा जा सके और कुछ भाग को नहीं देखा जा सके, उसे पारभासी कहते हैं।
जैसे – तेल लगा हुआ कागज इत्यादि।

पारदर्शी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार देखा जा सके, उसे पारदर्शी कहते हैं।
जैसे – काँच इत्यादि।

अपारदर्शी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार नहीं देखा जा सके, उसे अपारदर्शी कहते हैं।
जैसे – कोयला, पत्थर, लोहा इत्यादि।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

प्रश्न 8.
विलेय एवं अविलेय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
विलेय – वह जो जल में पूर्ण रूप से घुल जाए वह पदार्थ जल में विलय कहलाता है। पदार्थ का मात्र अवशेष भी न रह जाए वह पदार्थ जल में पूर्णत: विलेय कहलाता है।

अविलेय – बहुत से पदार्थ ऐसे हैं जो जल में पूर्ण रूप से घोलने पर भी वह उसमें घुलनशील नहीं होता है तो वैसे पदार्थ को अविलेय पदार्थ कहते है।

प्रश्न 9.
संतप्त घोल किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
वह पदार्थ जो पानी की निश्चित मात्रा में घुलती है, उसे घुलनशीलता कहते हैं, और इन घोलों को संतृप्त घोल कहते हैं।
जैसे – एक गिलास पानी में नमक या चीनी का घोल।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

Bihar Board Class 6 Science विभिन्न प्रकार के पदार्थ Notes

अध्ययन समाग्री:

हमारे चारों तरफ विभिन्न प्रकार के पदार्थ फैले हुए हैं। इन पदार्थों में प्रत्येक के आकार-प्रकार एवं संरचना अलग-अलग होते हैं और इसकी अवस्थाएँ भी अलग-अलग होती हैं। परन्तु कुछ समान अवस्था में भी पाए जाते हैं। अत: अवस्थाओं के आधार पर पदार्थ को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

  1. ठोस लकड़ी, कोयला, पुस्तक, ईंट, दीवार, कलम।
  2. द्रव-पानी, तेल, दूध आदि।
  3. गैस हवा, ऑक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड आदि।

इसके अलावे प्रकाश के गमन के आधार पर भी पदार्थ को तीन भागों में विभाजित किया गया है –

(क) पारदर्शी
(ख) अपारदर्शी
(ग) पारभासी

जिन पदार्थो से प्रकाश गमन कर सकता है उन्हें पारदर्शी पदार्थ कहते हैं। जैसे—काँच, हवा, पानी इत्यादि।

जिन पदार्थों से होकर प्रकाश गमन नहीं कर सकता, उन्हें अपारदर्शी पदार्थ कहते हैं। जैसे- पत्थर, लकड़ी, लोहा आदि।

जिन पदार्थों से प्रकाश का कुछ अंश ही पार कर पाता है, उन्हें पारभासी पदार्थ कहते हैं जैसे—घिसी हुयी काँच, तेल लगा कागज आदि।

विशेष अध्ययन के आधार पर कुछ पदार्थों को धातु एवं अधातु में बाँटे गए हैं।

धातु – लोहा, तांबा, सोना आदि।
अधातु – कार्बन, क्लोरीन, ऑक्सीजन आदि।

पदार्थों को पानी में घुलनशीलता के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है-घुलनशील पदार्थ एवं अघुलनशील पदार्थ।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

वे पदार्थ जो पानी में पूर्णत: घुल जाते हैं, उन्हें घुलनशील पदार्थ कहते हैं। जैसे-चीनी, नमक आदि। वे पदार्थ जो पानी में नहीं घुलते हों उसे अघुलनशील पदार्थ कहते हैं। जैसे-लकड़ी, काँच, पत्थर आदि। घुलनशील पदार्थ को विलेय कहते हैं। अघुलनशील पदार्थ को अविलेय कहते हैं। जिस पदार्थ को अपने में किसी पदार्थ को घुलाने की क्षमता होती है उसे विलायक कहते हैं और विलेय एवं विलायक के मिलने से विलयन का निर्माण होता हैं।

जैसे – चीनी-पानी के घोल में चीनी-विलेय, पानी-विलायक तथा चीनी-पानी का घोल-विलयन कहलाता है।

सभी पदार्थ में घुलने की क्षमता एक समान नहीं होती है। अत: किसी पदार्थ में घुलने की क्षमता को पदार्थ की घुलनशीलता कहते हैं।

विलयन को दो भागों में बाँटा गया है- संतृप्त विलयन एवं असंतृप्त विलयन।

‘विलेय (घुलनशील) – वैसे पदार्थ जो जल में बिल्कुल घुल जाए, उसे विलेय कहते हैं। जैसे-जल में चीनी

अविलेय (अघुलनशील) – वैसे पदार्थ जो जल में नहीं घुल सकें या घुल जाएँ, उसे अविलेय कहते हैं। जैसे-जल में लोहा।

पारभासी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से नहीं परन्तु थोड़ी मात्रा में देखा जा सके और कुछ भाग को नहीं देखा जा सके, उसे पारभासी कहते हैं। जैसे – तेल लगा हुआ कागज।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 4 विभिन्न प्रकार के पदार्थ

पारदर्शी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार दिखाई दे सके, उसे पारदर्शी कहते हैं। जैसे- काँच इत्यादि।

अपारदर्शी-वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार दिखाई न दे सके, उसे अपारदर्शी कहते हैं। जैसे – कोयला, पत्थर, लोहा इत्यादि।

संतृप्त घोल – वैसे पदार्थ जो पानी की निश्चित मात्रा में घुलते हैं उसे घुलनशीलता कहते हैं और इन घोलों को संतृप्त घोल कहते हैं। जैसे – एक गिलास में एक चम्मच का घोल।

पारदर्शी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार दिखाई दे सके, उसे पारदर्शी कहते हैं। जैसे – काँच इत्यादि।

अपारदर्शी – वह पदार्थ जिससे स्पष्ट रूप से आर-पार दिखाई न दे सके, उसे अपारदर्शी कहते हैं। जैसे – कोयला, पत्थर, लोहा इत्यादि।

संतृप्त घोल – वैसे पदार्थ जो पानी की निश्चित मात्रा में घुलते हैं उसे घुलनशीलता कहते हैं और इन घोलों को संतृप्त घोल कहते हैं। जैसे – एक गिलास में एक चम्मच का घोल।

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Bihar Board Class 11 Geography जलवायु Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
शीतकाल में तमिलनाडु के तटीय मैदान में किस कारण वर्षा होती है ………………
(क) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(ख) उत्तर-पूर्व मानूसन
(ग) शीतोषण चक्रवात
(घ) स्थानिक पवनें।
उत्तर:
(ख) उत्तर-पूर्व मानूसन

प्रश्न 2.
कितने प्रतिशत भाग में भारत में 75 सेमी से कम वार्षिक वर्षा होती है?
(क) आधे
(ख) दो-तिहाई
(ग) एक तिहाई
(घ) तीन चौथाई
उत्तर:
(घ) तीन चौथाई

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

प्रश्न 3.
दक्षिणी भारत के संबंध में कौन-सा कथन सही नहीं है …………………
(क) दैनिक तापान्तर कम है
(ख) वार्षिक तापान्तर कम है
(ग) वर्षभर तापमान अधिक है
(घ) यहाँ कठोर जलवायु है
उत्तर:
(घ) यहाँ कठोर जलवायु है

प्रश्न 4.
जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लम्बवत् चमकता है तो क्या होता है ……………..
(क) उत्तर पश्चिमी भारत में उच्च वायुदाब
(ख) उत्तर पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब
(ग) उत्तर पश्चिमी भाग में तापमान-वायुदाब में
(घ) उत्तर पश्चिमी भाग में लू चलती है।
उत्तर:
(क) उत्तर पश्चिमी भारत में उच्च वायुदाब

प्रश्न 5.
भारत के किस देश प्रदेश में कोपेन के ‘AS’ वर्ग की जलवायु है …………………
(क) केरल तथा कर्नाटक
(ख) अण्डमान निकोबार द्वीप
(ग) कोरोमण्डल तट
(घ) असम-अरुणाचल
उत्तर:
(ग) कोरोमण्डल तट

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प्रश्न 6.
भारत में किस प्रकार की जलवायु पायी जाती है?
(क) उष्ण मौनसूनी
(ख) भूमध्य सागरीय
(ग) उष्ण मरुस्थलीय
(घ) सागरीय
उत्तर:
(क) उष्ण मौनसूनी

प्रश्न 7.
उत्तर:पूर्वी मौनसून से सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाले राज्य है?
(क) आसाम
(ख) पं० बंगाल
(ग) तमिलनाडु
(घ) उड़ीसा
उत्तर:
(ग) तमिलनाडु

प्रश्न 8.
उत्तर भारत में गृष्मकाल में तीव्रगति से चलने वाली गर्म हवायें कहलाती है ……………..
(क) हरमट्टन
(ख) लू
(ग) टाइफून
(घ) इरिकेन
उत्तर:
(ख) लू

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय मौसम तंत्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम तंत्र को प्रभावित करने वाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक इस प्रकार हैं

  1. वायुदाब एवं पवनों का धरातल पर वितरण
  2. भूमण्डलीय मौसम को नियत्रित करनेवाले कारकों एवं विभिन्न वायु संहतियों एवं जेट प्रवाह के अंतर्वाह द्वारा उत्पन्न ऊपरी वायुसंचरण
  3. शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभों तथा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून काल में उष्ण कटिबंधीय अवदाबों के भारत में अंतवर्हन के कारण उत्पन्न वर्षा की अनुकूल दशाएँ।

प्रश्न 2.
अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र क्या है?
उत्तर:
विषुवत् पर स्थित अंतः कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र एक निम्न वायुदाब वाला क्षेत्र है। इस क्षेत्र में व्यापारिक पवनें मिलती हैं। अतः इस क्षेत्र में वायु ऊपर उठने लगती है। जुलाई के महीने में आई० टी० सी० जेड 20° से 25° उत्तरी अक्षांशों के आस-पास गंगा के मैदान में स्थित हो जाता है। इसे कभी-कभी मानूसनी गर्त भी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
मानसून प्रस्फोट से आपका क्या अभिप्राय है? भारत में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले स्थान का नाम लिखिए।
उत्तर:
अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति में परिवर्तन का सम्बन्ध हिमालय के दक्षिण में उत्तरी मैदान के ऊपर से पश्चिमी जेट-प्रवाह द्वारा अपनी स्थिति के प्रत्यावर्तन से भी है, क्योंकि पश्चिमी जेट-प्रवाह के इससे खिसकते ही दक्षिणी भारत में 15° उत्तर अक्षांश पर पूर्वी जेट-प्रवाह विकसित हो जाता है। इसे पूर्वी जेट-प्रवाह को भारत में मानसून के प्रस्फोट (Brust) के लिए जिम्मदार माना जाता है।

  • मेघालय की पहाड़ियों जैसे चेरापूँजी आदि जगहों पर भारत में सबसे अधिक 200 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है। मेघालय की
  • पहाड़ियों जैसे चेरापूँजी आदि जगहों पर भारत में सबसे अधिक 200 सेमी से भी अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 4.
जलवायु प्रदेश क्या होता है? कोपेन की पद्धति के प्रमुख आधार कौन-से हैं?
उत्तर:
भारत की जलवायु मानसुन प्रकार की है। इसमें मौसम के तत्त्वों के मेल से अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ प्रदर्शित होती हैं। यही विभिन्नताएँ जलवायु के उप-प्रकारों में देखी जा सकती हैं। इसी आकार पर जलवायु प्रदेश पहचाने जा सकते हैं। तापमान और वर्षा जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं, जिन्हें जलवायु वर्गीकरण की सभी पद्धतियों में निर्णयक माना जाता हैं। कोपेन ने अपने जलवायु वर्गीकरण का आधार तापमान तथा वर्षण के मासिक मानों को रखा है। उन्होंने जलवायु के पाँच प्रकार माने हैं –

  • उष्ण जलवायु
  • शुष्क जलवायु
  • गर्म जलवायु
  • हिम जलवायु
  • बर्फी- जलवायु

प्रश्न 5.
उत्तर:पश्चिमी भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को किस प्रकार के चक्रवातों से वर्षा प्राप्त होती है? वे चक्रवात कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी भारत में रबी की फसलें बोने वाले किसानों को क्षीण शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों द्वारा होने वाली शीतकालीन वर्षा रबी की फसलों के लिए अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होती हैं। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। भारत में इनका प्रवाह पश्चिमी जेट प्रवाह द्वारा होता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
जलवायु में एक प्रकार का ऐक्य होते हुए भी, भारत की जलवायु में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। उपयुक्त उदाहरण देते हुए इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानूसन पवनों की व्यवस्था भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच एकता को बल प्रदान करती है। मानसून जलवायु की व्यापक एकता के इस दृष्टिकोण से किसी को भी जलवायु की प्रादेशिक भिन्नताओं की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए । यही भिन्नता भारत के विभिन्न प्रदेशों के मौसम और जलवायु को एक-दूसरे से अलग करती है। उदाहरण के लिए दक्षिण में केरल तथा तमिलनाडु की जलवायु उत्तर में उत्तर:प्रदेश तथा बिहार की जलवायु से अलग है। फिर भी इन सभी राज्यों की जलवायु मानसून प्रकार की है। भारत की जलवायु में अनेक प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं, जिन्हें पवनों के प्रतिरूप, तापक्रम और वर्षा, ऋतुओं की लय तथा आर्द्रता एवं शुष्कता की मात्रा में भिन्नता के रूप में देखा जाता है।

गर्मियों में पश्चिमी मरुस्थल में तापक्रम कई बार 55° सेल्सियस को स्पर्श कर लेता है, जबकि सर्दियों में लेह के आस-पास ज्ञापमान -45° सेल्सिय तक गिर जाता हैं। राजस्थान के चुरू जिले में जून के महीने में किसी एक दिन का तापमान 50° सेल्सियस अथवा इससे अधिक हो जाता है, जबकि उसी दिन अरूणाचल प्रदेश के तवांग जिले में तापमान मुश्किल से 19° सेल्यिस तक पहुँचता है। दिसम्बर की किसी रात में जम्मू और कश्मीर के द्रास में रात तक का तापमान – 45° सेल्सियस का या 22° सेल्सियस रहता है। उपर्युक्त उदाहरण पुष्टि करते हैं कि भारत में एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के तापमान में ऋतुवत् अंतर पाया जाता है।

इतना ही नहीं, यदि हम किसी एक स्थान के 24 घण्टों का तापमान दर्ज करें तो उसमें विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। उदाहरण: केरल और अण्डमान द्वीप समूह में दिन और रात के तापमान में मुश्किल से 7 या 8° सेल्सियस का अन्तर पाया जाता है, जबकि थार मरुस्थल में यदि दिन का तापमान 50° सेल्सियस हो जाता है, तो वहाँ रात का तापमान 15° से 20° सेल्सियस के बीच आ पहुँचता है। हिमालय में वर्षण मुख्यतः हिमपात के रूप में होता है, जबकि देश के अन्य भागों में वर्षण जल की बूंदों के रूप में होता है। मेघालय जहाँ वर्षा 180° सेमी से ज्यादा होती है। इसके विपरीत जैसलमेर(राजस्थान) में औसत वार्षिक वर्षा शायद 9 सेमी के लगभग होती है। इन सभी भिन्नताओं और विविधताओं के बावजूद भारत की जलवायु अपनी लय और विशिष्टता में मानसूनी है।

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प्रश्न 2.
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार भारत में कितने स्पष्ट मौसम पाए जाते हैं? किसी एक मौसम की दशाओं का सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत की जलवायवी दशाओं को उसके वार्षिक ऋतु चक्र के माध्यम से सर्वश्रेष्ठ ढंग से व्यक्त किया जा सकता है। मौसम वैज्ञानिक वर्ष को निम्नलिखित चार ऋतुओं में बाँटते हैं –

  • शीत ऋतु
  • ग्रीष्म ऋत
  • दक्षिणी – पश्चिमी मानसून की ऋतु और
  • मानसून के निवर्तन की ऋतु ।

शीत ऋतु : तापमान-सामान्यतया उत्तरी भारत में शीत ऋतु नवम्बर के मध्य से आरम्भ होती है। उत्तरी मैदान में जनवरी और फरवरी सर्वाधिक ठण्डे महीने होते हैं। इस समय उत्तरी भारत के अधिक भागों में औसत दैनिक तापमान 21° सेल्सियस से कम रहता है। रात्रि का तापमान काफी कम हो जाता है, जो पंजाब व राजस्थान में हिमांक (0° सेल्सियस) से भी नीचे चला जाता है। इस मौसम में, उत्तरी भारत में अधिक ठंडा पड़ने के मुख्य रूप से तीन कारक हैं

पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य समुद्र के समकारी प्रभाव से दूर स्थित होने के कारण महाद्वीपीय जलवायु का अनुभव करते हैं; निकटवर्ती हिमालय की श्रेणियों में हिमपात के कारण शीत लहर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और फरवरी के आस-पास कैस्पियन सागर और तुर्कमेनिस्तान की ठण्डी पवने उत्तरी भारत में शीत लहर ला देती हैं। ऐसे अवसरों पर देश के उत्तर:पश्चिम भागों में पाला कोहरा भी पड़ता है।

वायुदाब तथा पवनें-दिसम्बर के अंत तक (22 दिसम्बर) सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर सीधा चमकता है। इस ऋतु में मौसम की विशेषता उत्तरी मैदान में एक क्षीण उच्च वायुदाब का विकसित होना है। 1,019 मिलीबार तथा 1,013 मिलीबार की समभार रेखाएँ उत्तर:पश्चिमी भारत तथा सुदूर दक्षिण से होकर गुजरती हैं। परिणामस्वरूप उत्तर:पश्चिमी उच्च वायुदाब क्षेत्र में दक्षिण में हिन्द महासागर पर स्थित निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर पवनें चलना आरम्भ कर देती हैं।

सर्दियों में भारत का मौसम सुहावन होता है। फिर भी यह सुहावना मौसम कभी-कभार हल्के चक्रवातीय वायुदाबों से बाधित होता रहता है। पश्चिमी विक्षोभ कहे जाने वाले ये चक्रवात पूर्वी भूमध्य सागर पर उत्पन्न होते हैं और पूर्व की ओर चलते हुए पश्चिमी एशिया, ईरान-अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान को पार करके भारत के उत्तर:पश्चिमी भागों में पहुँचते हैं। शीत ऋतु में अधिकांशतः भारत में वर्षा नहीं होती है। कुछ क्षेत्रों में शीत ऋतु में वर्षा होती है। उत्तर:पश्चिमी भारत में भूमध्यसागर से आने वाले कुछ क्षीण शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तथा पश्चिमी उत्तर:प्रदेश में कुछ वर्षा करते हैं। यह वर्षा भारत में रबी की फसल के लिए उपयोगी होती है। उत्तर:पूर्वी पवने अक्टूबर से नवम्बर के बीच तमिलनाडु, दक्षिण आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक तथा दक्षिण केरल में झंझावाती वर्षा करती है।

(ख) परियोजना कार्य (Project Work)

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए –

  1. शीतकालीन वर्षा के क्षेत्र।
  2. ग्रीष्म ऋतु में पवनों की दिशा।
  3. 50% से अधिक वर्षा की परिवर्तिता वाले क्षेत्र।
  4. जनवरी माह में 15° सेल्सियस से कम तापमान वाले क्षेत्र।
  5. भारत पर 100 सेंटीमीटर की समवर्षा रेखा।

उत्तर:
1. शीतकालीन वर्ष के क्षेत्र है पंजाब, हरियाणा, दिल्ली तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश तथा असम, तमिलनाडु, दक्षिण आंध्र प्रदेश, दक्षिण-पूर्वी कर्नाटक तथा दक्षिण-पूर्वी करेल।
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2. ग्रीष्म ऋतु में पवनों की दिशा।
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चित्र 4.15 ग्रीष्म ऋतु में भारत पर 13 किमी से ज्यादा ऊँचाई पर पवनों की दिशा

3. 50 प्रतिशत से अधिक वर्षा की परिवर्तिता वाले क्षेत्र (देखें चित्र 4.12)

4. जनवरी माह में 15° सेल्सियस से कम तापवाले क्षेत्र (देखें चित्र 4.16)

5. भारत पर 100 सेंटीमीटर की समवर्षा रेखा (देखें चित्र 4.10)

Bihar Board Class 11 Geography जलवायु Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में सबसे अधिक ठण्डे स्थान का नाम लिखें।
उत्तर:
द्रास (कारगिल)-(45°C)।

प्रश्न 2.
भारत में सबसे अधिक वर्षा वाले स्थान का नाम लिखें।
उत्तर:
चिरापूंजी के निकट भावसिनराम-1140 सेंटीमीटर वर्षा।

प्रश्न 3.
उस राज्य का नाम लिखें जहाँ सबसे कम तापमान में अन्तर होता है।
उत्तर:
केरल।

प्रश्न 4.
भारत में सम जलवायु वाले तटीय राज्य का नाम लिखें।
उत्तर:
तमिलनाडु।

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प्रश्न 5.
पूर्वी-मानसून पवनों की वर्षा का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
Mango Showers.

प्रश्न 6.
किन प्रदेशों में शीतकाल में रात को पाला पड़ता है?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 7.
लू से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गर्मियों में गर्म धूलभरी चलने वाली पवनें।

प्रश्न 8.
उस क्षेत्र का नाम बताएँ जो दोनों ऋतुओं में वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
तमिलनाडु।

प्रश्न 9.
जलवायु से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी स्थान पर लम्बे समय का औसत मौसम।

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प्रश्न 10.
भारत में सबसे गर्म स्थान का नाम बताइए।
उत्तर:
राजस्थान में बाड़मेर (50°C)।

प्रश्न 11.
ककरेखा द्वारा निर्मित दो जलवायु क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय तथा शीतोष्ण कटिबन्धीय।

प्रश्न 12.
भारत के मध्य से कौन-सी आक्षांश रेखा गुजरती है?
उत्तर:
कर्क रेखा।

प्रश्न 13.
भारत में किस प्रकार का जलवायु मिलती है?
उत्तर:
उष्णकटिबन्धीय मानसून जलवायु।

प्रश्न 14.
उन पवनों के नाम बताएँ जो तमिलनाडु में वर्षा करती हैं।
उत्तर:

  1. बंगाल की खाड़ी एवं
  2. अरब सागर शाखा।

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प्रश्न 15.
उन पवनों के नाम बताओं जो तमिलनाडु में वर्षा करती हैं?
उत्तर:
उत्तर-पूर्वी मानसून।

प्रश्न 16.
वृष्टि छाया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पर्वतीय भागों का विमुख ढलान।

प्रश्न 17.
वृष्टि छाया क्षेत्र का एक नाम बतायें।
उत्तर:
दक्कन पठार।

प्रश्न 18.
किस पर्वत के कारण दक्कन पठार वृष्टि छाया में है?
उत्तर:
पश्चिमी तट।

प्रश्न 19.
पठार तथा पहाड़ियाँ गर्मियों में ठण्डे क्यों होते हैं?
उत्तर:
अधिक उँचाई होने के कारण।

प्रश्न 20.
असम में कौन-सी फसल गर्मियों की वर्षा से लाभ प्राप्त करती है?
उत्तर:
चाय।

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प्रश्न 21.
Mango Showers किन फसलों के लिये लाभदायक है?
उत्तर:
चाय तथा कहवा।

प्रश्न 22.
पूर्व मानसून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसून का समय से पहले आने के कारण कुछ स्थानीय पवनें पूर्व मानसूनी वर्षा करती हैं।

प्रश्न 23.
कौन-सा तटीय मैदान दक्षिण पश्चिम मानसून से अधिकतम वर्षा प्राप्त करता है?
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान।

प्रश्न 24.
भारत में जुलाई मास में किस भाग में न्यून वायुदाब होता है?
उत्तर:
सितम्बर मास में।

प्रश्न 25.
भारत के किस भाग में पश्चिमी विक्षोभ वर्षा करते हैं?
उत्तर:
उत्तर-पश्चिमी भाग।

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प्रश्न 26.
देश में किस भाग में ‘लू’ चलती है?
उत्तर:
उत्तरी मैदान।

प्रश्न 27.
भारतीय जलवायु में विशाल विविधता क्यों है?
उत्तर:
विशाल आकार के कारण।

प्रश्न 28.
उन पवनों का नाम बताओं जो ग्रीष्म ऋतु में चलती हैं।
उत्तर:
समुद्र से स्थल की ओर चलने वाली दक्षिण पश्चिम मानसून।

प्रश्न 29.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों द्वारा किन तटीय प्रदेशों में प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा।

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प्रश्न 30.
अक्टूबर की गर्मी से क्या भाव है?
उत्तर:
अधिक आर्द्रता तथा गर्मी के कारण अक्टूबर का घुटन भरा मौसम।

प्रश्न 31.
मानसून प्रस्फोट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून का अचानक पहुँचना।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करने वाला स्थान कौन-सा है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करनेवाला स्थान भावसिनराम (Bawsynaram) है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 1080 सेमी है। यह स्थान मेघालय में खासी पहाड़ियों की दक्षिणी ढाल कर 1500 मीटर की ऊचाई पर स्थित है। भावसिनराम में वर्षा की मात्रा 1187 सेमी है।

प्रश्न 2.
भारतीय मानसून की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
भारतीय मानसून व्यवस्था की तीन प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. वायु दिशा में परिवर्तन (मौसम के अनुसार)।
  2. मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  3. मानसून पवनों का प्रादेशिक स्वरूप भिन्न-भिन्न होते हुए भी जलवायु की व्यापक एकता।

प्रश्न 3.
पश्चिमी विक्षोभ क्या है? भारत के किस भाग में वे जाड़े की ऋतु में वर्षा लाते हैं?
उत्तर:
वायु मण्डलों की स्थायी दाब पेटियों में कई प्रकार के विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी विक्षोभ भी एक प्रकार के निम्न दाब केन्द्र (चक्रवात) हैं जो पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट के प्रदेशों में उत्पन्न होते हैं ये चक्रवात जेट प्रवाह (Jet Stream) के कारण पूर्व की ओर ईरान, पाकिस्तान तथा भारत की ओर आते है।

भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में जाड़े की ऋतु में ये चक्रवात क्रियाशील होते हैं। इन चक्रवातों के कारण जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में वर्षा होती हैं। यह वर्षा रबी की फसल (Winter Crop) विशेषकर गेहूँ के लिए बहुत लाभदायक होती है। औसत वर्षा 20 सेमी से 50 सेमी तक होती है।

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प्रश्न 4.
भारतीय मौसम की रचना तन्त्र को प्रभावित करनेवाले तीन महत्त्वपूर्ण कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
भारतीय मौसम की रचना तन्त्र को निम्नलिखित तीन कारक प्रभावित करते हैं –

  1. दाब तथा हवा का धरातलीय वितरण जिसमें मानूसन पवनें कम वायु दाब क्षेत्रों की स्थिति महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
  2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulation) में विभिन्न वायु राशियां तथा जेट प्रवाह महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।
  3. विभिन्न वायु विक्षोभ (Atmospheric disturbances) में उष्ण कटिबन्धीय तथा पश्चिमी चक्रवात द्वारा वर्षा महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

प्रश्न 5.
‘मानसून’ शब्द से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मानसून शब्द वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। मानसून शब्द का अर्थ-मौसम के अनुसार पवनों के ढांचे में परिवर्तन होना । मानसून व्यवस्था के अनुसार पवनें या मौसमी पवनें (Seasonal winds) चलती है जिनकी दिशा मौसम के अनुसार विपरीत हो जाती हैं। ये पवनें ग्रीष्मकाल के 6 मास समुद्र से स्थल कीओर तथा शीतकाल के 6 मास स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

प्रश्न 6.
पश्चिमी जेट प्रवाह जाड़े के दिनों में किस प्रकार पश्चिमी विक्षोम को भारतीय उपमहाद्वीपय में लाने में मदद करे हैं?
उत्तर:
जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा भारत में हिमालय पर्वत के दक्षिणी तथा पूर्वी भागें में बहती हैं। जेट प्रवाह की दक्षिणी शाखा की स्थिति 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होते है। जेट प्रवाह की यह शाखा भारत में शीत काल में पश्चिमी विक्षोभ लाने में सहायता करती है। पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर के निकट निम्न दाब तन्त्र में ये विक्षोभ उत्पन्न होते हैं। इस जेट प्रवाह के साथ-साथ ईरान तथा पाकिस्तान को पार करते हुए भारत में शीतकाल में औसत रूप से चार-पाँच चक्रवात पहुंचाते हैं जो इस भाग में वर्षा करते हैं।

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प्रश्न 7.
जेट प्रवाह क्यों हैं? समझदरां।
उत्तर:
मानसून पवनों की उत्पत्ति का एक कारण तीन ‘जेट प्रवाह’ भी माना है। ऊपरी वायुमण्डल में लगभग तीन किलोमीटर की ऊँचाई तक तीव्रगामी धाराएँ चलती हैं जिन्हें जेट प्रवाह (Jet Stream) का जाता है। ये जेट प्रवाह 20°S, 40°N अक्षांशों के मध्य नियमित रूप से चलती है। हिमालय पर्वत के अवरोध के कारण ये प्रवाह दो भागों में बँट जाते हैं-उत्तरी प्रवाह तथा दक्षिणी जेट प्रवाह । दक्षिणी प्रवाह भारत की जलवायु को प्रभावित करता है।

प्रश्न 8.
भारत में कितनी ऋतुएँ होती हैं? क्या उनकी अवधि में दक्षिण से उत्तर कोई अन्तर मिलता है? अगर हाँ तो क्यों?
उत्तर:
भारत के मौसम को ऋतुवत्, ढांचे के अनुसार चार ऋतुओं में बाँटा जाता है –

  • शीत ऋतु – दिसम्बर से फरवरी तक
  • ग्रीष्म ऋतु – मार्च से मध्य जून तक
  • वर्षा ऋतु – मध्य जून से मध्य सितम्बर तक
  • शरद् ऋतु-मध्य सितम्बर से दिसम्बर तक।

इन ऋतुओं की अवधि में प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए विभिन्न प्रदेशों की ऋतुओं की अवधि में अन्तर पाया जाता है। दक्षिण भारत में स्पष्ट शीत ऋतु ही नहीं होती । तटीय भागों में कोई ऋतु परिवर्तन नहीं होता । दक्षिण भारत में सदैव ग्रीष्म ऋतु रहती है। इसका मुख्य कारण यह है कि दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है यहाँ सारा साल ग्रीष्म ऋतु रहती है, परन्तु उत्तरी भारत शीत-उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। यहाँ स्पष्ट रूप में दो ऋतुएँ हैं-ग्रीष्म तथा शीत ऋतु।

प्रश्न 9.
मानसूनी वर्षा की तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
मानूसनी वर्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. मौसमी वर्षा
  2. अनशिचित वर्षा
  3. वर्षा का असमान वितरण
  4. वर्षा का लगातार न होना
  5. तट से दूर क्षेत्रों में कम वर्षा होना

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प्रश्न 10.
‘मानसून प्रस्फोट’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर की मानसूनी पवनें दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में चलती है। यहाँ ये पवनें जून के प्रथम सप्ताह में अचानक आरम्भ हो जाती हैं। मानसून के इस अकस्मात आरम्भ को ‘मानसून प्रस्फोट’ (Mansoon Burst) कहा जाता है। क्योंकि मानसून आरम्भ होने पर बड़े जोर की वर्षा होती है। जैसे किसी ने पानी से भरा गुब्बारा फोड़ दिया हो।

प्रश्न 11.
लू (Loo) से आप क्या समझते है?
उत्तर:
लू एक स्थानीय हवा है। यह ग्रीष्म काल से उत्तरी भारत के कई भागों में दिन के समय चलती है। यह एक प्रबल, गर्म, धूल भरी हवा है जिसके कारण प्रायः तापमान 40°C से अधिक रहता है। लू की गर्मी असहनीय होती है जिससे प्रायः लोग इससे बीमार पड़ जाते हैं।

प्रश्न 12.
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति किन दो तत्त्वों पर आधारित है?
उत्तर:
कोपेन ने भारत के जलवायु प्रदेशों का वर्गीकरण किया है। इस वर्गीकरण का आधार दो तत्त्वों पर आधारित है। इसमें तापमान तथा वर्षा के औसत मासिक मान का विश्लेषण किया गया है। प्राकृतिक वनस्पति द्वारा किसी स्थान के तापमान और वर्षा के प्रभाव को आंका जाता है।

प्रश्न 13.
उन चार महीनों के नाम बताइए जिन में भारत में अधिकतम वर्षा होती है।
उत्तर:
भारत में मौसमी वर्षा के कारण अधिकतर वर्षा ग्रीष्म काल के चार महीनों में होती है। इसे वर्षा ऋतु कहा जाता है। अधिकतम वर्षा जून-जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर के महीनों में ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होती है।

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प्रश्न 14.
भारत के अत्यधिक गर्म भाग कौन-कौन से हैं और उसके कारण क्या हैं?
उत्तर:
भारत में सबसे अधिक तापमान राजस्थान के पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। यहाँ ग्रीष्म ऋतु में बाड़मेर क्षेत्र में दिन का तापमान 48°C से 50°C तक पहुँच जाता है । इस प्रदेश में उच्च तापमान मिलने का मुख्य कारण समुद्र तल से दूरी है। यह प्रदेश के भीतरी भागों में स्थित है। यहाँ सागर का समकारी प्रभाव नहीं पड़ता। ग्रीष्म काल में लू के कारण भी तापमान बढ़ जाता है। रेतीली मिट्टी तथा वायु में नमी के कारण भी तापमान ऊँचे रहते हैं।

प्रश्न 15.
भारत के अत्यधिक ठण्डे भाग कौन-कौन से हैं और क्यों?
उत्तर:
भारत के उत्तर:पश्चिम पर्वतीय प्रदेश में जम्म-कश्मीर, हिमाचल पर्वतीय प्रदेश में अधिक ठण्डे तापक्रम पाए जाते हैं। कश्मीर में कारगिल नामक स्थान पर तापक्रम न्यूनतम – 40°C तक पहुँच जाता है। इन प्रदेशों में अत्यधिक ठण्डे तापक्रम होने का मुख्य कारण यह है कि ये प्रदेश सागर तल से अधिक ऊँचाई पर स्थित है। इन पर्वतीय प्रदेशों में शीतकाल में हिमपात होता है तथा तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।

प्रश्न 16.
कौन-कौन से कारक भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण को नियंत्रित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप में तापमान वितरण में काफी अन्तर पाए जाते हैं। भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड में स्थित होने के कारण गर्म देश है, परन्तु कई कारकों के प्रभाव से विभिन्न प्रदेशों में तापमान वितरण में विविधता पाई जाती है। ये कारक निम्नलिखित हैं –

  • अक्षांश या भूमध्यरेखा से दूरी
  • धरातल का प्रभाव
  • पर्वतों की स्थिति
  • सागर से दूरी
  • प्रचलित पवनें
  • चक्रवातों का प्रभाव

प्रश्न 17.
अन्तर-उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध (I.T.C.Z) क्या है?
उत्तर:
अन्तर-उष्ण कटिबंधीय अभिसरण कटिबंध (I.T.C.Z) – भूमध्यरेखीय निम्न वायदाब कटिबन्ध है जो धरातल के निकट पाया जाता है। इसकी स्थिति उष्ण-कटिबंध के नीच सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्मकाल में इसकी स्थिति उत्तर की ओर दोनों दिशाओं में हवाओं के प्रवाह को प्रोत्साहित करती है।

प्रश्न 18.
भारत में गरमी की लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
भारत के कुछ भागों में मार्च से लेकर जुलाई के महीनों की अवधि में असाधारण रूप से गरम मौसम के दौर आते हैं। ये दौर एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश की ओर खिसकते रहते हैं। इन्हें गरमी की लहर कहते हैं। गरमी की लहर से प्रभावित इस प्रदेशों के तापमान सामान्य ताप. से 6° सेंटीग्रेट अधिक रहते हैं। सामान्य से 8° सेंटीग्रेट या इससे अधिक तापमान के बढ़ जाने पर चलने वाली गरमी की लहर प्रचंड (serve) माना जाता है। इसे उत्तर भारत में ‘लू’ कहते हैं।

प्रखंड गरमी की लहर की अवधि जब बढ़ जाती है तब किसानों के लिए गंभीर समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। बड़ी संख्या में मनुष्य और पशु मौत के मुंह में चले जाते हैं। दक्षिण के केरल और तमिलनाडु राज्यों तथा पांडिचेरी, लक्षद्वीप तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को छोड़कर – देश के लगभग सभी भागों में गरमी की लहर आती है। उत्तर पश्चिमी भारत और उत्तर:प्रदेश में सबसे अधिक गरमी की लहरें आती है। साल में कम से कम गरमी की एक लहर तो आती ही है।

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प्रश्न 19.
कोपेन द्वारा जलवायु के प्रकारों के लिए अक्षरों का संकेत किस प्रकार प्रयोग किया गया है?
उत्तर:
कोपेन ने जलवायु के प्रकारों को निर्धारित करने के लिए अक्षरों का संकेत के रूप में प्रयोग किया जैसे कि ऊपर दिया गया है। प्रत्येक प्रकार को उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है। इस विभाजन में तापमान और वर्षा के वितरण में मौसमी विभिन्नताओं को आधार बनाया गया है। उसने अंग्रेजी के बड़े अक्षर S को अर्द्ध मरूस्थल के लिए और W को मरूस्थल के लिए प्रयोग किया।

इसी तरह उप-विभागों को परिभाषित करने के लिए अंग्रेजी के निम्नलिखित छोटे अक्षरों का उपयोग किया है जैसे- f(पर्याप्त वर्षण), m (शुष्क मानसून होते हुए भी वर्षा) w, (शुष्क शीत ऋतु), (शुष्क और गरम), c (चार महीनों से कम अवधि में औसत तापमान 10° से अधिक) और g (गंगा का मैदान)।

प्रश्न 20.
भारतीय मानसून पर एल-नीनों का प्रभाव बताएँ।
उत्तर:
एल-नीनों और भारतीय मानसून-एल नीनों एक जटिल मौसम तन्त्र है। यह हर पाँच या दस साल बाद प्रकट होता रहता है। इसके कारण संसार के विभिन्न भागों में सूखा, बाढ और मौसम की चरम अवस्थाएँ आती हैं। महासागरीय और वायुमण्डलीय तन्त्र इसमें शामिल होते हैं। पूर्वी प्रशांत में यह पेरू के तट के निकट कोष्ण समुद्री धारा के रूप में प्रकट होता है।

इससे भारत सहित अनेक स्थनों का मौसम प्रभावित होता है। भारत में मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए एल-नीनों का उपयोग होता है। सन् 1990-91 में एल-नीनों का प्रचंड रूप देखने को मिला था। इसके कारण देश के अधिकतर भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों तक की देरी हो गई थी।

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प्रश्न 21.
भारत में अधिकतम एवं निम्नतम वर्षा प्राप्त वाले भाग कौन-कौन से हैं? कारण बताइए।
उत्तर:
अधिकतम वर्षा वाले भाग-भारत में अनलिखित प्रदेशों में 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है –

  • उत्तर-पूर्वी हिमालयी प्रदेश (गारो-खासी पहाड़िया)
  • पश्चिमी तटीय मैदान तथा पश्चिमी घाट

कारण – ये प्रदेश पर्वतीय प्रदेश हैं तथा मानसून पवनों के सम्मुख स्थित हैं। उत्तर-पूर्वी हिमालय प्रदेश में खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट की सम्मुख ढाल पर अरब सागर की मानसून शाखा अत्यधिक वर्षा करती है।

निम्नतम वर्षा वाले भाग – भारत के निम्नलिखित भागों में 20 सेमी से कम वर्षा होती है –

  • पश्चिमी राजस्थान में थार मरुस्थल (बाड़मेर क्षेत्र)
  • कश्मीर में लद्दाख क्षेत्र
  • प्रायद्वीप में दक्षिण पठार

कारण – राजस्थान में अरावली पर्वत अरब सागर की मानसून पवनों के समानान्तर स्थित है। यह पर्वत मानसूनी पवनों को रोक नहीं पाता। इसलिए पश्चिमी राजस्थान शुष्क क्षेत्र रह जाता है। प्रायद्वीपीय पठार पश्चिमी घाट की दृष्टि छाया में स्थित होने के कारण वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 22.
राजस्थान का पश्चिमी भाग क्यों शुष्क है?
अथवा
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की ऋतु में राजस्थान का पश्चिमी भाग लगभग शुष्क रहता है’ इस कथन के पक्ष में तीन महत्त्वपूर्ण कारण दीजिए।
उत्तर:
राजस्थान का पश्चिमी भाग एक मरूस्थल है। यहाँ वार्षिक वर्षा 20 सेंटीमीटर से भी कम है। राजस्थान में अरावली पर्वत दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन पवनों को रोक नहीं पाता । इसलिए यहाँ वर्षा नहीं होती । खाड़ी बंगाल की मानसून पवनें इस प्रदेश तक पहुँचते-पहुँचते शुष्क हो जाती हैं। ये पवनें नमी समाप्त होने के कारण वर्षा नहीं करतीं। यह प्रदेश हिमालय पर्वत से अधिक दूर है इसलिए यहाँ वर्षा का अभाव है।

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प्रश्न 23.
भारत में शीत लहर का वर्णन करो।
उत्तर:
उत्तर पश्चिमी भारत में नवम्बर से लेकर अप्रैल तक ठंडी और शुष्क हवाएं चलती हैं। जब न्यूनतम तापमान सामान्य से 6° सेंटीग्रेट नीचे चला जाता है. तब इसे शीत लहर कहते हैं। जम्म और कश्मीर, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में ठिठुराने वाली शीत लहर चलती है। जम्मू और कश्मीर में औसतन साल में कम से कम चार शीत लहर तो आती ही है। इसके विपरीत गुजरात और पश्चिमी मध्य प्रदेश में साल में एक शीत लहर आती है ठिठुराने वाली शीत लहरों की आवृत्ति पूर्व और दक्षिण की ओर घट जाती है। दक्षिणी राज्यों में सामान्यतः शीत लहर नहीं चलती।

प्रश्न 24.
भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेशों में वार्षिक वर्षा के विचरण गुणांक न्यूनतम तथा कच्छ और गुजरात में अधिक वर्षा क्यों है?
उत्तर:
भारतीय वर्षा की मुख्य विशेषता इसमें वर्ष-दर-वर्ष होने वाली परिवर्तिता है एक ही स्थान पर किसी वर्ष वर्षा अधिक होती है तो किसी वर्ष बहत कम । इस प्रकार वास्तविक वर्षा की मात्रा औसतन वार्षिक से कम या अधिक हो जाती है। वार्षिक वर्षा की इस परिवर्तनशीलता को वर्षा की परिवर्तिता (variability of Rainfall) कहते हैं। यह परिवर्तिता निम्नलिखित फार्मूले से निकाली जाती है
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माध्य इस मूल्य को विचरण गुणांक (Co-efficient of Variation) कहा जाता है। भारत के पश्चिमी तटीय प्रदेश में यह विचरण गुणांक 15% से कम है। यहाँ सागर समीपता के कारण मानसून पवनों का प्रभाव प्रत्येक वर्ष एक समान रहता है तथा वर्षा की मात्रा में विशेष परिवर्तन नहीं होता । कच्छ तथा गजरात में विचरण गुणांक 50% से 80% तक पाया जाता है। इन पवनों को रोकने के लिए ऊँचे पर्वतों का अभाव है। इसलिए वर्षा की मात्रा में अधिक उतार-चढ़ाव होता रहता है।

प्रश्न 25.
तमिलानाडु के तटीय प्रदेशों में अधिकांश वर्षा जाड़े में क्यों होती है?
उत्तर:
तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर स्थित है। यहाँ शीतकाल की उत्तर:पूर्वी मानसून पवनें ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पूर्वी मानसून पवनों की अपेक्षा अधिक वर्षा करती हैं। ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया (Rain Shadow) में स्थित होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करती हैं। शीतकाल में लौटती हुई मानसून पवनें खाड़ी बंगाल को पार करती हैं। इस प्रकार शीतकाल में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है, परन्तु ग्रीष्मकाल में वृष्टि छाया में होने के कारण कम वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 26.
भारत में उत्तर:पश्चिम मैदान में शीत ऋतु में वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
भारत में उत्तर:पश्चिमी भाग में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश मैं शीतकाल में चक्रवातीय वर्षा होती है। ये चक्रवात पश्चिमी एशिया तथा भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं तथा पश्चिमी जेट प्रवाह के साथ-साथ भारत में पहुँचते हैं। औसतन शीत ऋतु में 4 से 5 चक्रवात दिसम्बर से फरवरी के मध्य इस प्रदेश में वर्षा करते हैं। पर्वतीय भागों में हिमपात होता है। पूर्व की ओर वर्षा की मात्रा कम होती है। इन प्रदेशों में वर्षा 5 सेंटीमीटर से 25 सेंटीमीटर तक होती है।

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प्रश्न 27.
भावसिनराम संसार में सर्वाधिक वर्षा क्यों प्राप्त करता है?
उत्तर:
भावसिनराम खासी पहाड़ियों (Meghalaya) की दक्षिणी ढलान पर 1500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 1187 सेंटीमीटर है तथा यह स्थान संसार में सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान तीन ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहाँ धरातल की आकृति कीपनुमा (Funnel Shape) बन जाती है।

खाड़ी बंगाल से आने वाली मानसून पवनें इन पहाडियों में फंस कर भारी वर्षा करती हैं। ये पवनें इन पहाड़ियों से बाहर निकलने का प्रयत्न करती हैं परन्तु बाहर नहीं निकल पातीं। इस प्रकार ये पवनें फिर ऊपर उठती हैं तथा फिर वर्षा करती हैं.। सन् 1861 में यहाँ 2262 सेंटीमीटर वार्षिक वर्षा रिकार्ड की गईं।

प्रश्न 28.
“मानसून भारत की मौसमी स्थितियों पर सभी प्रकार का समरूपक प्रभाव डाल रहा है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत मुख्य रूप से एक मानसूनी देश है। मानसून व्यवस्था देश की मौसमी स्थितियों पर एक समान समरूपक प्रभाव डालती है। प्रादेशिक अन्त होते हुए भी देश की जलवायु में एक व्यापक समरूपता पाई जाती है। राजस्थान के थार मरुस्थल से लेकर पश्चिमी बंगाल तथा आसाम के आर्द्र प्रदेशों तथा केरल के दक्षिणी प्रदेशों तक मानसून समस्त कृषि को एक सूत्र में बांधता है। सारे देश में निश्चित रूप से एक-जैसे मौसम पाए जाते हैं। ऋतुओं का बदलना, वायु राशियों तथा वायु-दबाव केन्द्रों की स्थिति मानसून व्यवस्था से ही सम्बन्धित है। देश के प्रत्येक भाग में कृषि व्यवस्था मानसून वर्षा पर निर्भर है। इस जलवायु में कई स्थानीय अन्तर पाए जाते हैं।

जैसे-तमिलनाडु तट पर शीतकाल में वर्षा होती है। उत्तर:पश्चिमी भारत में शीतकाल में विक्षोभ हल्की वर्षा करते हैं जबकि सारे देश में शुष्क शीत ऋतु होती है। ये स्थितियां भी मानसून पवनों के मौसमी दिशा परिवर्तन के कारण ही उत्पन्न होती हैं। हिमालय पर्वत की चाप ने भारतीय मानसून को परिबद्ध करके इसे एक विशिष्टता प्रदान की है। इस पर्वत माला की स्थिति भारतीय मानसून को दूसरे प्रदेशों से अलग करती हैं। इस परिबद्ध चरित्र के कारण भारतीय जलवायु में समरूपता (Unity of Climate) पाई जाती है।

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प्रश्न 29.
भारत के पश्चिमी एवं पूर्वी तटीय मैदान में अंतर बतायें।
उत्तर:
भारत के पश्चिम एवं पूर्व तटीय मैदान में अंतर उनकी निम्न परिभाषा में निहित हैं –

पश्चिमी तटीय मैदान (Western Coastal Plain) –

  • यह पश्चिमी तटीय मैदान पश्चिमी घाट तथा अरबसागर तट के मध्य गुजरात से कन्याकुमारी तक विसतुत है।
  • गजरात के कछ हिस्सों को छोड़कर यह सारा मैदान एक संकरा मैदान के स्वरूप में स्थित है जिसकी औसत चौड़ाई 64 किलोमीटर है।
  • मुंबई से गोआ तक इस. प्रदेश, को कोंकण तट मध्य भाग को कन्नड़ अथवा, कनारा तथा दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता है।
  • इस तट पर अनेक बबूल के टीले तथा लैगून पाये जाते हैं।

पूर्वी तटीय मैदान (Eastern Coastal Plain) –

  • यह मैदान पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के मध्य गंगा मुहाने से दक्षिण में कन्याकुमारी तक विस्तृत है।
  • तमिलनाडु का पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है जिसकी 100-120 km की औसत चौड़ाई में विस्तार है।
  • भारत के पूर्वी तटीय मैदान महानदी, गोदावरी, कृष्णा आदि नदियों के डेल्टाओं द्वारा निर्मित होने के कारण बड़ा उपजाऊ है। इसे
  • महानदी एवं कृष्णा नदियों के बीच उत्तरी सरकार तथा कृष्णा एवं कावेरी नदियों के मध्य कोरोमंडल तट कहा जाता है।

प्रश्न 30.
भारतीय मौनसून की चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
भारतीय मौनसून की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  • वायु की दिशा में ऋतु के अनुसार परिवर्तन।
  • मानसून पवनों का अनिश्चित तथा संदिग्ध होना।
  • मानसून पवनों के प्रादेशिक स्वरूप में भिन्नता होते हुए भी भारतीय जलवायु व्यापक एकरूपता प्रदान करना।
  • यद्यपि भारत का आधा भाग कर्क रेखा के उत्तर में पड़ता है किन्तु पूरे भारतवर्ष की जलवायु उष्ण कटिबंधीय मौनसून जलवायु है।

प्रश्न 31.
“जैसलमेर की वार्षिक शायद ही कभी 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है।” कारण बताओ।
उत्तर:
जैसलमेर राजस्थान में अरावली पर्वत के पश्चिमी भाग में स्थित है। यह प्रदेश अरब सागर की मानसून पवनों के प्रभाव में है। यह पवनें अरावली पर्वत के समानान्तर चलती हई पश्चिम से होकर आगे बढ़ जाती हैं जिससे यहाँ वर्षा नहीं होती। बंगाल की खाड़ी मानसून तक पहुँचते-पहुँचते ये शुष्क हो जाती है। यह प्रदेश पनर्वतीय भाग से भी बहुत दूर हैं । इसलिए यह प्रदेश वर्षा ऋतु में शुष्क रहता है जबकि सारे भारत में वर्षा होती है। औसत वार्षिक वर्षा 12 सेंटीमीटर से भी कम है । इसके विपरीत गारो, खासी पहाड़ियों में भारी वर्षा होती है । इसलिए यह कहा जाता है कि गारो पहाड़ियों में एक दिन की वर्षा जैसलमेर की दस साल की वर्षा से अधिक होती है।

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प्रश्न 32.
दक्षिण-पश्चिम मानसून की एक परिघटना इसकी क्रम भंग (वर्षा की अवधि के मध्य शुष्क मौसम के क्षण) की प्रवृत्ति क्यों है?
उत्तर:
भारत में अधिकतर वर्षा ग्रीष्मकाल की दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों द्वारा होती है। इन पवनों द्वारा वर्षा निरन्तर न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। स काल में एक लम्बा शुष्क मौसम (Dry Spell) आ जाता है। इससे पवनों द्वारा वर्षा का क्रम भंग हो जाता है। इसका मुख्य कारण उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Depressions) हैं जो खाड़ी बंगाल अरब सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात मानसूनी वर्षा की मात्रा को अधिक करते हैं परन्तु इन चक्रवातों के अनियमित प्रवाह के कारण कई बार एक लम्बा शुष्क समय आ जाता है जिससे फसलों को क्षति पहुँचती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“व्यापक जलवायविक एकता के होते हुए भी भारत की जलवायु में प्रादेशिक स्वरूप पाए जाते हैं।” इस कथन की पुष्टि उपयुक्त उदारहण देते हुए कीजिए।
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है परन्तु मुख्य रूप से भारत मानसून पवनों के प्रभावाधीन है। यह मानसून व्यवस्था दक्षिण-पूर्वी एशिया के मानसूनी देशों से भारत को जोड़ती है। इस प्रकार मानसून पवनों के प्रभाव के कारण देश में जलवायविक एकता पाई जाती है। फिर भी देश के विभिन्न भागों में तापमान वर्षा आदि जलवायु तत्त्वों में काफी अन्तर पाए जाते हैं । विभिन्न प्रदेशों की जलवायु के अलग-अलग प्रादेशिक स्वरूप मिलते हैं। ये प्रादेशिक अन्तर कई कारकों के कारण उत्पन्न होते हैं।

जैसे -स्थिति, समुद्र से दूरी, भूमध्य रेखा से दूरी, उच्चावच आदि। ये प्रादेशिक अन्तर एक प्रकार से मानसून जलवायु के उपभेद हैं। आधारभूत रूप से सारे देश में जलवायु की व्यापक एकता पाई जाती है। प्रादेशिक अन्तर मुख्य रूप से तापमान, वायु तथा वर्षा के ढांचे में पाए जाते हैं।

  • राजस्थान के मरुस्थल में, बाड़मेर में ग्रीष्मकाल में 50°C तक तापमान मापे जाते हैं। इसके पर्वतीय प्रदेशों में तापमान 20°C सेंटीग्रेड के निकट रहता है।
  • दक्षिणी भारत में सारा साल ऊँचे तापमान मिलते है तथा कोई शीत ऋतु नहीं होती। उत्तर:पश्चिमी भाग में शीतकाल में तापमान हिमांक से नीचे चले जाते हैं। तटीय भागों में सारा साल समान रूप से तापमान पाए जाते हैं।
  • दिसम्बर मास में द्रास एवं कारगिल में तापमान -40°C तक पहुँच जाता है जबकि तिरुवनन्तपुरम् तथा चेन्नई में तापमान +28°C रहता है।
  • इसी प्रकार औसत वार्षिक में भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते हैं। एक ओर चेरापूंजी में (1080 सेंटीमीटर) संसार में सबसे अधिक वर्षा होती है तो दूसरी ओर राजस्थान शुष्क रहता है।
  • जैसलमेर में वार्षिक वर्षा शायद ही 12 सेंटीमीटर से अधिक होती है। गारो पहाडियों में स्थित तुरा नामक स्थान में एक ही दिन में उतनी वर्षा हो सकती है जितनी जैसलमेर में दस वर्षों में होती है।
  • एक ओर असम, बंगाल तथा पूर्वी तट पर चक्रवातों के कारण भारी वर्षा होती है तो दूसरी ओर दक्षिण तथा पश्चिम तट शष्क रहता है।
  • कई भागों में मानसूनी वर्षा जून से पहले सप्ताह में आरम्भ हो जाती है तो कई भागां में जुलाई में वर्षा की प्रतीक्षा हो रही होती है।
  • अधिकांश भागों में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है तो पश्चिमी भागों में शीतकाल में वर्षा होती है।
  • ग्रीष्मकाल में उत्तरी भारत में लू चल रही होती है परन्तु दक्षिणी भारत के तटीय भागों में सहावनी जलवाय होती है।
  • तटीय भागों में मौसम की विषमता महसूस नहीं होती परन्तु अन्तः स्थल स्थानों में मौसम विषम रहता है। शीतकाल में उत्तर:पश्चिमी भारत में काफी ऊँचे तापमान पाए जाते हैं।

इस प्रकार विभिन्न प्रदेशों में ऋतु की लहर लोगों की जीवन पद्धति में एक परिवर्तन तथा विभिन्नता उत्पन्न कर देती है। इस प्रकार इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारतीय जलवायु में एक व्यापक एकता होते हुए भी प्रादेशिक अन्तर पाए जाते है।

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प्रश्न 2.
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए और देश की कृषि अर्थव्यवस्था में इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
भारतीय वर्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Rainfall) –
1. मानसूनी वर्षा (Dependence on Monsoons) – भारत की वर्षा का लगभग 85% भाग ग्रीष्मकाल की मानसून पवनों द्वारा होता है। यह वर्षा 15 जून से 15 सितम्बर तक प्राप्त होती है जिसे वर्षा-काल कहते हैं।

2. अनश्चितता (Uncertainty) – भारत में मानसून वर्षा के समय के अनुसार एकदम अनिश्चिता है। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी देर से आरम्भ होती है जिससे नदियों में बाढ़ आ जाती हैं या फसल सूखे से नष्ट हो जाती है। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व की समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को बड़ी हानि होती है।

3. असमान वितरण (Unequal Distribution)-भारत में वर्षा का प्रादेशिक वितरण असमान है। कई भागों में अत्याधिक वर्षा होती है जबकि कर प्रदेशों में कम वर्षा के कारण अकाल पड़ जाते हैं। देश के 10% भाग में 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है जबकि 25% भाग में 75 सेमी से भी कम।

4. मूसलाधार वर्षा (Heavy Rainfall) – मानसून वर्षा प्रायः मूसलाधार होती है। इसलिए कहा जाता है, It pours, it never rains in India.” मूसलाधार वर्षा से भूमि कटाव तथा नदियों में बाढ़ की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

5. पर्वतीय वर्षा (Relief Rainfall) – भारत में मानसून पवनें ऊँचे पर्वतों से टकरा कर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु पर्वतों के विमुख ढाल वृष्टि छाय’ (Rain Shadow) में रहने के कारण शुष्क रह जाते हैं।

6. अन्तरालता (No Continuity) – कभी-कभी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिनों या सप्ताहों के अन्तर पर होती है। इस शुष्क समय (Dry Spells) के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं।

7. मौसमी वर्षा (Seasonal Rainfall) – भारत की 85% वर्षा केवल चार महीनों के वर्षा काल में होती है। वर्ष का शेष भाग शुष्क रहता है। जिससे कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साल में वर्षा के दिन बहुत कम होते हैं।

8. संदिग्ध वर्षा (Variable Rainfall) – भारत के कई क्षेत्रों की वर्षा संदिग्ध है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा हो या न हो। ऐसे प्रदेशों में अकाल पड़ जाते हैं। देश के भीतरी भागों में वर्षा विश्वासजनक नहीं होती।

9. भारतीय कृषि-व्यवस्था में मानसूनी वर्षा का महत्त्व (Significance of Monsoons in Agricultural System) – भारत एक कृषि प्रधान देश है। देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर करती है। कृषि की सफलता मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है। मानसूनी पवनें जब समय पर उचित मात्रा में वर्षा करती हैं तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है। मानसून की असफलता के कारण फसलें नष्ट हो जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज की कमी अनुभव होती है।

मानसूनी पवनों के समय से पूर्व आरम्भ होने से या देर से आरम्भ होने से भी कृषि को हानि पहुँचती है कई बार नदियों में बाढ़े आ जाती है जिससे फसलों की बुआई ठीक समय पर नहीं हो पाती। वर्षा के ठीक वितरण के कारण भी वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती है। इस प्रकार कृषि तथा मानसून पवनों में गहरा सम्बन्ध है। जल सिंचाई के पर्याप्त साधन न होने के कारण भारतीय कृषि को मानसूनी वर्षा पर ही निर्भर करना पड़ता है। कृषि पर ही भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है।

कृषि से प्राप्त कच्चे माल पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कृषि ही किसानों की आय का एकमात्र साधन है। मानसून के असफल होने की दशा में सारे देश की आर्थिक व्यवस्था नष्ट-भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर तथा कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर है । इसलिए कहा जाता है कि भारतीय बजट मानसूनी जुआ है। (Indian budget is a gamble on monsoon.)।

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प्रश्न 3.
भारत की जलवायु किन-किन तत्त्वों पर निर्भर हैं?
उत्तर:
भारत एक विशाल देश है। यहाँ पर अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है” (There is great diversity of climate in India.”)। एक कथन के अनुसार, “विश्व की लगभग समस्त जलवायु भारत से मिलती है।” कहीं समुद्र के निकट सम जलवायु है तो कहीं भीतरी भागों में कठोर जलवायु है। कहीं अधिक वर्षा है तो कहीं बहुत कम। परन्तु भारत मुख्य रूप से मानसून खण्ड (Moonsoon Region) में स्थित होने के कारण एक गर्म देश है। निम्नलिखित तत्त्व भारत की जलवायु पर प्रभाव डालते हैं –

1. मानसून पवनें (Monsoons) – भारत की जलवायु मूलतः मानसून जलवायु है। यह जलवायु विभिन्न मौसमों में प्रचलित पवनों द्वारा निर्धारित होती है। शीत काल की मानसून पवनें स्थल की ओर से आती हैं तथा शुष्क और ठण्डी होती हैं, परन्तु ग्रीष्मकाल की मानसून पवनें समुद्र की ओर से आने के कारण भारी वर्षा करती है। इन्हीं पवनों के आधार पर भारत में विभिन्न मौसम बनते हैं।

2. देश का विस्तार (Extent) – देश के विस्तार का विशेष प्रभाव तापक्रम पर पड़ता है। कर्क रेखा भारत के मध्य से होकर जाती है। देश का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबन्ध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबन्ध में स्थित है। इसलिए उत्तरी भाग में शीतकाल तथा ग्रीष्म काल दोनों ऋतुएँ होती हैं, परन्तु दक्षिणी भाग सारा वर्ष गर्म रहता है । दक्षिणी भाग में कोई शीत ऋतु नहीं होती।

3. भूमध्य रेखा में समीपता (Nearness to Equator) – भारत का दक्षिण भाग भूमध्य रेखा के बहुत निकट है, इसलिए सारा वर्ष ऊँचे तापक्रम मिलते हैं। कर्क रेखा (Tropic of Cancer) भारत के मध्य से गुजरती है। इसलिए इसे एक गर्म देश माना जाता है।

4. हिमालय पर्वत की स्थिति (Location and Direction of the Himalayas) – हिमालय पर्वत की स्थिति का भारत की जलवायु पर भारी प्रभाव पड़ता है। (“The Himalayas act as aclimatic barrier”)। यह पर्वत मध्य एशिया से आने वाली बर्फीली पवनों को रोकता है और बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें इसे पार नहीं कर पाती जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत बहत ऊँचा है तथा खाडी बंगाल से उठने वाली मानसन पवनें इसे पार नहीं कर पाती जिससे उत्तरी भारत में घनघोर वर्षा करती हैं। यदि हिमालय पर्वत न होता तो उत्तरी भारत एक मरुस्थल होता।

5. हिन्द महासागर से सम्बन्ध (Situation of India with respect to India ocean) – भारत की स्थिति हिन्द महासागर के उत्तर में है। ग्रीष्म काल में हिन्द महासागर पर अधिक वायु दबाव के होने के कारण ही मानसून पवनें चलती हैं। खाड़ी बंगाल से उठने वाली मानसून पवनें स्थलों पर चलती हैं। खाड़ी बंगाल, तमिलनाडु राज्य में शीतकाल की वर्षा का कारण बनता है। इस खाड़ी से ग्रीष्म काल में चक्रवात (Depressions) चलते हैं जो भारी वर्षा करते हैं।

6. चक्रवात (Cyclones) – भारत की जलवायु पर चक्रवात का विशेष प्रभाव पड़ता है। शीतकाल में पंजाब तथा उत्तर प्रदेश में रूम सागर से आने वाले चक्रवातों द्वारा वर्षा होती है। अप्रैल तथा अक्टूबर महीने में खाड़ी बंगाल से चलने वाले चक्रवात भी काफी वर्षा करते हैं।

7. धरातल का प्रभाव (Effects of Relief) – भारत की जलवायु पर धरातल का गहरा प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी घाट तथा असम में अधिक वर्षा होती है क्योंकि ये भाग पर्वतों के सम्मुख ढाल पर है, परन्तु दक्षिणी पठार विमुख ढाल पर होने के कारण दृष्टि छाया (Rain Shadow) में रह जाता है जिससे शुष्क रह जाता है। अरावली पर्वत मानसून पवनों के समानान्तर स्थित होने के कारण इन्हें नहीं रोक पाता जिससे राजस्थान में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भारत के धरातल का यहाँ के तापक्रम, वायु तथा वर्षा पर स्पष्ट नियन्त्रण है। पर्वतीय प्रदेशों में तापमान कम है जबकि मैदानी भाग में अधिक प्रदेशों में तापक्रम पाए जाते हैं। आगरा तथा दार्जलिंग एक की अक्षांश पर स्थित हैं, परन्तु आगरा का जनवरी का तापमान 16°C है जबकि दार्जलिंग का केवल 4°C है।

8. समुद्र से दूरी (Distance from sea) – भारत के तटीय भागों में सम जलवायु मिलता है। जैसे-मुम्बई में जनवरी का तापमान 24°C है तथा जुलाई का तापमान 27°C है। इलाबाहाद समुद्र से बहुत दूर है। वहाँ जनवरी का तापमान 16°C तथा जुलाई का तापमान 30°C है। इसलिए दक्षिणी भारत में तीन ओर समुद्र से घिरा होने के कारण ग्रीष्म ऋतु में कम गर्मी तथा शीत ऋतु में कम सर्दी पड़ती है।

प्रश्न 4.
मौसम के अनुसार भारत में कितनी ऋतुएँ पायी जाती है ? किसी एक ऋतु का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय मौसम विभाग के अनुसार भारत में सामान्यतः चार ऋतुएँ पायी जाती हैं –

  • शीत ऋतु
  • गृष्म ऋतु
  • वर्षा ऋतु
  • शरद ऋतु

शीत ऋतु – भारत में शीत ऋतु नवम्बर के मध्य से मार्च तक रहती है। भारत में जनवरी एवं फरवरी सार्वधिक ठंढक का माह होता है। उत्तरी भारत में तापमान विशेष रूप से निम्न रहता है।
(1) भारत का औसत तापमान 18° है लेकिन कई क्षेत्रों में तापमान हिमांक से भी नीचे हो जाता है। शीत ऋतु में अत्यधिक ठंढक हो जाती है और शीत लहरें भी चलती हैं। इसके विपरीत ज्यों-ज्यों उत्तर भारत से दक्षिण की ओर बढ़ते हैं सागरीय समीपता एवं उष्णकटिबंधीय स्थिति के कारण तापमान बढ़ता चला जाता है। दक्षिण भारत में दोपहर का तापमान 20°C तक चला जाता है।

(2) इस ऋतु में भारत के उत्तर:पश्चिम भाग में तापमान कम होने के कारण उच्च वायुदाब पाया जाता है। जबकि बंगाल की खाड़ी अरब सागर और दक्षिण भारत में अपेक्षाकृत कम वायु दाब पाया जाता है।

(3) शीतऋतु में पवनों की दिशा, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में पश्चिमी तथा उत्तर:पश्चिमी बंगाल में उत्तरी तथा बंगाल की खाडी एवं अरब सागर में उत्तरी पर्वी होती है।

(4) मौनसून पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलने के कारण वर्षा नहीं करती । ये पवने बंगाल की खाड़ी से नमी प्राप्त कर पश्चिमी घाट में टकराकर तमिलनाडु आंध्र प्रदेश, कर्नाटक तथा द० पू० करेल के क्षेत्रों वर्षा करती है।

(5) उ. प. भारत में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा हल्की वर्षा होती है। वर्षा हिमालय के श्रेणियों में 60 से०मी०, पंजाब में 12 से०मी० दिल्ली में 5-3 से० मी० तथा यू० पी० और बिहार में 2.5 से०मी० तक वर्षा होती है जो रबी की फसल हेतु उपयोगी हैं।

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प्रश्न 5.
भातरीय मौसम रचना तन्त्र का वर्णन जेट प्रवाह के सन्दर्भ में कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मौसम रचना तन्त्र-मानसून क्रियाविधि निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है –

  • वायु दाब (Pressure) का वितरण
  • पवनों (Winds) का धरातलीय वितरण
  • ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper air circulaltion)
  • विभिन्न वायु राशियों का प्रवाह
  • पश्चिमी विभोक्ष चक्रवात (Cyclones)
  • जेट प्रवाह (Jet Stream)

1. वायु दाब तथा पवनों का वितरण (Distribution of AtmopsphericPressure and winds) – शीत ऋतु में भारतीय मौसम मध्य एशिया तथा पश्चिमी एशिया में स्थित उच्च वायु दाब द्वारा प्रभावित होता है। इस उच्च दाब केन्द्र से प्रायद्वीप की और शुष्क पवनें चलती हैं। भारतीय मैदान के उत्तर:पश्चिमी भाग में से शुष्क हवाएं महसूस की जाती हैं। मध्य गंगा घाटी तक सम्पूर्ण उत्तर:पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है।

ग्रीष्म काल के आरम्भ में सूर्य के उत्तरायण के समय में वायुदाब तथा पवनों के परिसंचरण में परिवर्तन आरम्भ हो जाता है। उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायु दाब केन्द्र स्थापित हो जाता है। भूमध्य रेखीय निम्न दाब भी उत्तर सीमा की ओर बढ़ने लगता है। इसके प्रभावाधीन दक्षिणी गोलार्द्ध से व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा को पार करके निम्न वायु दाब की ओर बढ़ती हैं। इन्हें दक्षिण-पश्चिमी मानसून कहते हैं। ये पवनों भारत में ग्रीष्म काल में वर्षा करती हैं।

2. ऊपरी वायु परिसंचरण (Upper Air Circulation) – वायुदाब तथा पवनें धरातलीय स्तर पर परिवर्तन लाते हैं। परन्तु भारतीय मौसम में ऊपरी वायु परिसंचरण का प्रभाव भी महत्त्वपूर्ण है। ऊपरी वायु में जेट प्रवाह भारत में पश्चिमी विक्षोभ भूमध्यसागर में उत्पन्न होते हैं। ये ईरान, पाकिस्तान से होते हुए भारत में जनवरी-फरवरी में वर्षा करते हैं।

3. जेट प्रवाह (Western Disturbances) – जेट प्रवाह धरातल के लगभग 3 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहने वाली एक ऊपरी वायु-धारा है। यह वायु धारा क्षोभमण्डल के ऊपरी भाग में बहती है। यह वायु धारा पश्चिमी एशिया तथा मध्य एशिया के ऊपर बहने वाली पश्चिमी पवनों की एक शाखा है। यह शाखा हिमालय पर्वत के दक्षिण की ओर पूर्व दिशा में बहती है । इस वायु-धारा की स्थिति फरवरी में 25° उत्तरी अक्षांश के ऊपर होती है। यह जेट प्रवाह भारतीय मौसम रचना तन्त्र पर कई प्रकार से प्रभाव डालती है।

  • इस जेट प्रवाह के कारण उत्तरी भारत में शीतकाल में उत्तर-पश्चिमी पवनें चलती हैं।
  • इस वायु-धारा के साथ-साथ पश्चिम की ओर भारतीय उपमहाद्वीप में शीतकालीन चक्रवात आते हैं। ये चक्रवात भूमध्य सागर में उत्पन्न होते हैं। ये चक्रवात शीतकालीन में हल्की-हल्की वर्षा करते हैं।
  • जुलाई में जेट प्रवाह भारतीय प्रदेशों से लौट चुका होता है। इसका स्थान भूमध्य सागर रेखीय निम्न दाब कटिबन्ध ले लेता है, जो भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर सरक जाता है। इसे अन्तर-उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण (I.T.C.Z.) कहा जाता है।
  • इस निम्न दाब के कारण भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें, वास्तव में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों का उत्तर की ओर विस्तार ही है।
  • हिमालय तथा तिब्बत के उच्च स्थलों के ग्रीष्म काल में गर्म होने तथा विकिरण के कारण भारत में पूर्वी जेट प्रवाह के रूप में एक वायु धारा बहती है।
  • यह पूर्वी जेट प्रवाह उष्ण-कटिबन्धीय गों को भारत की ओर लाने में सहायक है। यह गर्त दक्षिण-पश्चिम मानसून द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

प्रश्न 6.
थार्नवेट (Thornthwaite) द्वारा भारत के विभाजित जलवायु प्रदेशों का वर्णन करें।
उत्तर:
थार्नवेट द्वास जलवायु वर्गीकरण-थार्नवेट की जलवायु वर्गीकरण पद्धति किसी प्रदेश में जल सन्तुलन (WaterBalance) की अवधारणा पर आधारित है। उसने किसी प्रदेश में औसत मासिक वर्षा, तापमान तथा वाष्पीकरण के आधार पर एक फौमूले के विकास किया जिससे यह ज्ञात हो जाता है कि किसी क्षेत्र में जल के अधिशेष (Surplus) या जल अभाव (deficot) की स्थिति रहती है। जिन क्षेत्रों में जल कम रहती है वहाँ शुष्क जलवायु पाई जाती है।

शुष्क तथा आई स्थितियों के मध्य की अवस्था वाले प्रदेशों को छः वर्गों में बांट कर अंग्रेजी वर्णमाला के बड़े अक्षरों द्वारा प्रस्तुत किया गया है। थार्नवेट ने जलवायु के कुल 32 विभाग बनाकर विश्व के मानचित्र में दिखाए गए हैं। इस पद्धति के आधार पर भारत में निम्नलिखित जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं

  • अति आर्द्र प्रदेश (A) – यह जलवायु मालाबार तट तथा उत्तरी-पूर्वी भाग के कुछ भागों में पाई जाती है। यहाँ तापमान तथा वर्षा सालभर अधिक रहती है।
  • आर्द्र प्रदेश (B) – यह जलवायु पश्चिमी घाट, उत्तर:पश्चिमी बंगाल तथा उत्तर:पूर्वी भारत में पाई जाती है।
  • नम उप-आर्द्र प्रदेश (C2) – यह जलवायु पश्चिमी घाट के साथ-साथ उड़ीसा तक पश्चिमी बंगाल में पाई जाती है।
  • शुष्क उप-आर्द्र प्रदेश (C1) – यह जलवायु गंगा घाटी तथा मध्य प्रदेश के उत्तर:पूर्वी भागों में पाई जाती है। यहां शीत ऋतु रहती है।
  • अर्द्ध-शुष्क प्रदेश (D) – यह जलवायु प्रायद्वीप के अन्दरूनी भागों में पश्चिमी मध्य प्रदेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा तथा पंजाब में पाई जाती है। यहाँ वर्षा कम होती है।
  • शुष्क प्रदेश (E) – यह जलवायु सौराष्ट्र-कच्छ तथा राजस्थान के मरुस्थल में पाई जाती है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

Bihar Board Class 9 Hindi शिक्षा में हेर-फेर Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
बच्चों के मन की वृद्धि के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है कि जो कम-से-कम जरूरी है वहीं तक शिक्षा को सीमित किया गया तो बच्चों के मन की वृद्धि नहीं हो सकेगी। आवश्यक शिक्षा के साथ स्वाधीनता के पाठ को पिलाना होगा, अन्यथा बच्चे की चेतना का विकास नहीं होगा।

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प्रश्न 2.
आयु बढ़ने पर भी बुद्धि की दृष्टि में वह सदा बालक ही रहेगा। कैसे?
उत्तर-
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने यहाँ बड़े ही सूक्ष्म दृष्टि से समझाने का प्रयास किया है कि आवश्यक शिक्षा के साथ-साथ स्वाधीनता का पाठ भी सिखाया जाना चाहिए वरना आयु बढ़ने पर भी बुद्धि की दृष्टि से वह सदा बालक ही रहेंगा!

प्रश्न 3.
बच्चों के हाथ में यदि कोई मनोरंजन की पुस्तक दिखाई पड़ी तो वह फौरन क्यों छीन ली जाती है? इसका क्या परिणाम होता है?
उत्तर-
उपयुक्त प्रश्न के आलोक में विद्वान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बताया है कि हमारे बच्चों को व्याकरण, शब्दकोष, भूगोल के अतिरिक्त और कुछ नहीं मिलता-उनके भाग्य में अन्य पुस्तकें नहीं हैं। दूसरे देश के बालक जिस आयु में अपने नये दाँतों से बड़े आनन्द के साथ गन्ने चबाते हैं, उसी आयु में हमारे बच्चे स्कूल की बेंच पर अपनी पतली टाँगों को हिलाते हुए मास्टर के बेंत हजम करते हैं
और उसके साथ उन्हें कड़वी गालियों के अलावा दूसरा कोई मसाला भी नहीं मिलता।

साहित्यकार ने मनोवैज्ञानिक कारण’ बताते हुए कहा है कि इससे उनकी मानसिक पाचन शक्ति का ह्यस होता है। जिस तरह भारत की संतानों का शरीर उपर्युक्त आहार और खेल-कुद के अभाव से कमजोर रह जाता है उसी तरह उनके मन का पाकाशय भी अपरिणत रह जाता है।

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प्रश्न 4.
“हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से ही आनन्द का स्थान नहीं होता।” आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?
उत्तर-
मेरी समझ से साहित्यकार ने बड़ा ही विलक्षण उदाहरण देते हुए बताया है कि-हवा से पेट नहीं भरता-पेट तो भोजन से ही भरता है। लेकिन भोजन का ठीक से हजम करने के लिए हवा आवश्यक है। वैसे ही एक ‘शिक्षा पुस्तक’ को अच्दी तरह पचाने के लिए बहुत-सी पाठ्य सामग्री की सहायता जरूरी है। आनन्द के साथ पढ़ते रहने से पठन-शक्ति भी अलक्षित रूप से बढ़ती है, सहज स्वाभाविक नियम से ग्रहण-शक्ति, धारणा-शक्ति और चिन्ता-शक्ति भी सबल होती है।

प्रश्न 5.
हमारे बच्चे जब विदेशी भाषा पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत क्यों नहीं होती?
उत्तर-
कवि मनीषी रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उपर्युक्त प्रश्न के आलोक में कहा है क – अंग्रेजी विदेशी भाषा है। शब्द विन्यास और पद-विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई सामंजस्य नहीं। भावपक्ष और विषय-प्रसंग भी विदेशी बात हैं। शरू से आखिर तक सभी चीजें अपरिचित होती है, इसलिए धारणा उत्पन्न होने से पहले ही हम रटना आरंभ कर देते हैं। फल वही होता है जो बिना चबाया हुआ अन्न निगलने से होता है। शायद बच्चों को किसी ‘रीडर’ में Hay-making का वर्णन है। अंग्रेज बालकों के लिए यह एक सुपरिचित चीज है और उन्हें इस वर्णन में आनन्द मिलता है। Snowball से खेलते हुए Charlie का Katie से कैसे झगड़ा आ यह भी अंग्रेज बच्चे के लिए कतहलजनक घटना है। लेकिन हमारे बच्चे जब विदेशी भाषा में यह सब पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत नहीं होती, उनके सामने कोई चित्र प्रस्तुत नहीं होता अंधभाव से उनका मन अर्थ को टटोलता रह जाता है।

प्रश्न 6.
अंग्रेजी भाषा और हमारी हिन्दी में सामंजस्य नहीं होने के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
साहित्यकार ने उपर्युक्त प्रश्न के आलोक में गहरी अनुभूति का अध्ययन कर हमें बताया है कि अंग्रेजी और हिन्दी में सामंजस्य क्यों नहीं है। उन्होंने कहा है कि ऐसे शिक्षक हमें शिक्षा देते हैं जो अंग्रेजी भाषा, भाव, आचार, व्यवहार, साहित्य-किसी से भी परिचित होते हैं और उन्हें के हाथों हमारा अंग्रेजी के साथ प्रथम परिचय होता है वे न तो स्वदेशी भाषा अच्दी तरह जानते हैं, न अंग्रेजी। वे बच्चों को पढ़ाने की तुलना में मन बहलाते हैं, वे इस कार्य में पूरी तरह सफल होते हैं।

साहित्यकार का कथन है कि यदि बालक केवल एक ही संस्कृत में रहते तो उनकी वाल्य प्रकृति को तृप्ति मिलती। लेकिन वे अंग्रेजी पढ़ने के प्रयास में न सीखते हैं, न खेलते हैं, प्रकृति के सत्यराज में प्रवेश के लिए उन्हें अवकाश ही नहीं मिलता,
साहित्य के कल्पना-राज्य का द्वार उनके लिए अवरूद्ध रह जाता है।

लेखक के विदेशी भाषा के व्याकरण और शब्दकोश में; जिसमें जीवन नहीं, आनन्द नहीं, अवकाश या नवीनता नहीं, जहाँ हिलने-डुलने का स्थान नहीं, ऐसी शिक्षा की शुष्क, कठोर, संकीर्णता में बालक कमी मानसिक शक्ति; चित्र का प्रसार या चरित्र की बलिष्ठता प्राप्त कर सकता है ? लेखक ने अंग्रेजी भाषा और हिन्दी में सामंजस्य नहीं होने के अनेक कारणों को गिनाया है जो सटीक है।

प्रश्न 7.
लेखक के अनुसार प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए क्या आवश्यक हैं?
उत्तर-
लेखक ने प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए जो उपाय सुझाया है वह सारगर्भित है। उन्होंने कहा है कि यदि बच्चों को मनुष्य बनाना है तो यह क्रिया बाल्यकाल से ही आरंभ हो जानी चाहिए। शैशव से ही केवल स्मरण-शक्ति पर बल न देकर उसके साथ-ही-साथ चिंतन-शक्ति और कल्पना-शक्ति को स्वाधीन रूप से परिचालित करने का उन्हें अवसर भी दिया जाना चाहिए।

हगारी नीरस शिक्षा में जीवन का बहुमूल्य समय व्यर्थ हो जाता है। हम बाल्यावस्था से कैशोर्य में और कैशोर्य से यौवन में प्रवेश करते हैं शुष्क ज्ञापन का बोझ लेकर। सरस्वती के साम्राज्य में हम मजदूरी ही करते रहते हैं, मनुष्यत्व का विकास नहीं होता। प्रकृति के स्वराज्य में पहुँचने के लिए लेखकाने रहन-सहन, संस्कृति, आवार-विचार, घर-गृहस्थी इत्यादि बातों का समुचित ज्ञान होना आवश्यक बताया है तभी हम प्रकृति के स्वराज्य में पहुँच कर आनन्द ले सकते हैं अन्यथा ऐसे ही भटकते रहेंगे और सरस्वती के साम्राज्य में भी मजदूरी ही करते रहेंगे।

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प्रश्न 8.
जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
साहित्यकार ने बड़ा ही सुन्दर और सटीक उदाहरण देते हुए बताया है कि-बाल्यकाल से ही यदि भाषा-शिक्षा के साथ भाव-शिक्षा की भी व्यवस्था हो और भाव के साथ समस्त जीवन-यात्रा नियमित हो, तभी हमारे जीवन में यथार्थ सामंजस्य स्थापित हो सकता है। हमारा व्यवहार तभी सहज मानवीय व्यवहार हो सकता है और प्रत्येक विषय में उचित परिमाण की रक्षा हो सकती है। जिस भाव से हम शिक्षा ग्रहण करते हैं उसके अनुकूल हमारी शिक्षा नहीं है। हमारे समाज की सारी सभ्यता, संस्कृति उस शिक्षा में नहीं है। चिंता-शक्ति और कल्पना-शक्ति दोनों जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए अत्यावश्यक हैं।

इसलिए जब तक हमारी शिक्षा में उच्च आदर्श, जीवन के कार्यकलाप, आकाश और पृथ्वी, निर्मल प्रभात और सुंदर संध्या, परिपूर्ण खेत और देशलक्ष्मी स्त्रोतस्विनी का संगीत उस साहित्य में ध्वनित नहीं होगा तब तक जीवन-यात्रा सफल संपन्न नहीं होगी।

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प्रश्न 9.
रीतिमय शिक्षा का क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साहित्यकार ने बड़े ही रोचक ढंग से रीतिमय शिक्षा के संबंध में बताया है कि-संग्रहणीय वस्तु हाथ आते ही उसका उपयोग जानना, उसका प्रकृत परिचय प्राप्त करना और जीवन के साथ-ही-साथ आश्रय स्थल बनाते जाना-यही है रीतिमय शिक्षा।

इसलिए यदि बच्चों को मनुष्य बनाना है तो केवल स्मरण-शक्ति पर बल न देकर उसके साथ-ही-साथ चिंतन-शक्ति और कलपना-शक्ति को स्वाधीन रूप से परिचालित करने का भी अवसर उन्हें दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
शिक्षा और जीवन एक-दूसरे का परिहास किन परिस्थितियों में करते हैं?
उत्तर-
लेखक ने उपर्युक्त प्रश्न के संदर्भ में हमें बहुत ही बहुमूल्य तथ्यों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराया है। जैसे-हमारी नीरस शिक्षा में बहुमूल्य समय नष्ट हो जाता है। बीस-बाईस वर्ष की आयु तक हमें जो शिक्षा मिलती है उसका हमारे जीवन से रासायानिक मिश्रण नहीं होता। इससे हमारे मन को एक अजीब आकार मिलता है। शिक्षा से हमें जो विचार और भाव मिलते हैं उनमें से कुछ को तो लेई से जोड़कर हम सुरक्षित रखते हैं, और बचे हुए कालक्रम से झड़ जाते हैं।

बर्बर जातियों के लोग शरीर पर रंग लगाकर या शरीर के विभिन्न अंगों को गोंदकर, गर्व का अनुभव करते हैं; जिससे उनके स्वाभाविक स्वास्थ्य की उज्जवलता और लावण्य छिप जाते हैं। उसी तरह हम भी अपनी विलायती विद्या का लेप लगाकर दंभ करते हैं किंत यथार्थ आंतरिक जीवन के साथ उसका योग बहत कम ही होता है। हम सस्ते, चमकते हुए, विलायती ज्ञान को लेकर शान दिखाते हैं विलायती विचारों का असंगत रूप से प्रयोग करते हैं। हम स्वयं यह नहीं समझते कि अनजाने ही हम कैसे अपूर्व प्रहसन का अभिनय कर रहे हैं। यदि कोई हमारे ऊपर हँसता है तो हम फौरन योरोपीय इतिहास से बड़े-बड़े उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

लेखक ने यहाँ शिक्षा और जीवन के बीच परिहास का विलक्षण उदाहरण प्रस्तुत किया है जो विचारणीय तथ्य है। लेखक ने निचोड़ के रूप में जो विचार व्यक्त किया है वह है-जब हम शिक्षा के प्रति अशद्धा व्यक्त करते हैं तब शिक्षा भी हमारे जीवन से विमुख हो जाती हैं। हमारे चरित्र के ऊपर शिक्षा का प्रभाव विस्तृत परिमाण में नहीं पड़ता। शिक्षा और जीवन का आपसी संघर्ष बढ़ता जाता है। वे एक-दूसरे का परिहास करते हैं।

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प्रश्न 11.
मातृभाषा के प्रति अवज्ञा की भावना लोगों के मन में किस तरह उत्पन्न होती है?
उत्तर-
लेखक ने मनोवैज्ञानिक तथ्य को उजागर करते हुए उपर्युक्त प्रश्न को समझाने का प्रयास किया है।
लेखक का कथन है कि-हमारे बाल्यकाल की शिक्षा में भाषा के साथ भाव नहीं होता, और जब हम बड़े होते हैं तो परिस्थिति इसके ठीक विपरीत हो जाती है। अब भाव होते हैं, लेकिन उपर्युक्त भाषा नहीं होती। भाषा शिक्षा के साथ-साथ, भाव-शिक्षा की वृद्धि न होने से योरोपीय विचारों से हमारा यथार्थ संसर्ग नहीं होता, और इसीलिए आजकल बहुत से शिक्षित लोग योरोपीय विचारों के प्रति अनादर व्यक्त करने लगे हैं। दूसरी ओर, जिन लोगों के विचारों से मातृभाषा का दृढ़ संबंध नहीं होता वे अपनी भाषा से दूर हो जाते हैं और उसके प्रति उनके मन में अवज्ञा की भावना उत्पन्न होती है।

हम चाहे जिस दिशा से देखें, हमारी भाषा, जीवन और विचारों का सामंजस्य दूर हो गया है। हमारा व्यक्तित्व विच्छिन्न होकर निष्फल हो रहा है, इसलिए मातृभाषा के प्रति अवज्ञा उत्पन्न हो रही है।

व्याख्याएँ

प्रश्न 12.
(क) “हम विधाता से यही वर मांगते हैं-हमें क्षुधा के साथ अन्य, शीत के साथ वस्त्र, भाव के साथ भाषा और शिक्षा के साथ शिक्षा प्राप्त करने दो।”
(ख) “चिंता-शक्ति और कल्पना-शक्ति दोनों जीवन यात्रा संपन्न करने के लिए अत्यावश्यक है।”
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रवीन्द्रनाथ टैगोर लिखित ‘शिक्षा में हेर-फर’ शीर्षक निबंध से उद्धृत हैं। इसमें लेखक ने बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से भाव को प्रस्तुत किया है।

लेखक का कहना है कि हेर-फेर दर होने से ही हमारा जीवन सार्थक होगा हम सर्दी में गरम कपड़े और गर्मी में ठंड कपड़े जमा नहीं कर पाते तभी हमारे जीवन में इतना दैन्य है-वरना हमारे पास है सब कुछ।
इसलिए लेखक ईश्वर से उपर्युक्त वर मांगता है। वह कहता है कि हमारी दशा तो वैसी ही है कि

पानी बिच मीन पियासी ।
मोहि सुनि-सुनि आवे हॉसी।

हमारे पास पानी भी है और प्यास भी है। पानी के बीच छटपटाती, तड़पतीमछली की तरह हमारी स्थिति है। इस स्थिति पर हँसी भी आती है। आँखों से आँसू टपकते हैं, लेकिन हम प्यास नहीं बझा पाते।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ रवीन्द्रनाथ टैगोर रचित ‘शिक्षा में हेर-फेर’ निबंध से उद्धृत हैं। इसमें लेखक ने सफल दार्शनिक के रूप में उपर्युक्त पंक्तियों का विवेचन किया है।

लेखक का कथन है कि चिंतन-शक्ति और कल्पना-शक्ति दोनों जीवन-यात्रा संपन्न करने के लिए अत्यावश्यक हैं, इसमें संदेह नहीं। यदि हमें वास्तव में मनुष्य होना है तो इन दोनों को जीवन में स्थान देना होगा। इसलिए यदि बाल्यकाल से ही चिंतन और कल्पना पर ध्यान न दिया गया तो काम पड़ने पर उनका अभाव दुखदायी सिद्ध होगा। हमारी शिक्षा में पढ़ने की क्रिया के साथ-साथ सोचने की क्रिया नहीं होती। हम ढेर-का-ढेर जमा करते हैं पर कुछ निर्माण नहीं करते।

लेखक का कथन सत्य है कि जबतक चिंतन-शक्ति और कल्पना-शक्ति साथ-साथ संचालित नहीं होंगी मनुष्य हमेशा असफल ही रहेगा। इसलिए मनुष्यत्व के विकास के लिए उपयुक्त दोनों शक्तियों को साथ-साथ ग्रहण करना होगा।

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प्रश्न 13.
वर्तमान शिक्षा प्रणाली का स्वाभाविक परिणाम क्या है?
उत्तर-
उपर्युक्त तथ्यों के आलोक में लेखक ने वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के स्वाभाविक परिणाम का बड़ा ही चिंतनीय पक्ष उपस्थित किया है।
लेखक का कथन है कि जब हमारे बच्चे इस भाषा को पढ़ते हैं तो उनके मन में कोई स्मृति जागृत नहीं होती, उनके सामने कोई चित्र प्रस्तुत नहीं होती। अंधभाव से उनका मन अर्थ को टटोलता रहता है। नीचे के दर्जे जो मास्टर पढ़ाते हैं में अंग्रेजी भाषा, भाव, आचार, व्यवहार, साहित्य-किसी से वे परिचित नहीं होते हैं और उन्हीं के हाथों हमारा अंग्रेजी के साथ प्रथम परिचय होता है। वे न तो स्वदेशी भाषा अच्छी तरह जानते हैं, न अंग्रेजी। उन्हें बस यही सुविधा है कि बच्चों को पढ़ाने की तुलना में उनका मन बहलाना बहुत आसान है। लेखक ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली के स्वाभाविक दोषों को बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 14.
अंग्रेजी हमारे लिए काम-काज की भाषा है, भाव की भाषा नहीं। कैसे?
उत्तर-
लेखक का कथन है कि अंग्रेजी विदेशी भाषा है, इसे काम-काज की भाषा की संज्ञा दी जा सकती है। शब्द-विन्यास और पद-विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई सामंजस्य नहीं। भाव-पक्ष और विषय-प्रसंग भी विदेशी होते हैं। शुरू से आखिर तक सभी अपरिचित चीजें होती हैं, इसलिए धारणा उत्पन्न होने से पहले ही हम रटना आरंभ कर देते हैं। फल वही होता है जो बिना चबाया अन्न निगलने से होता है।
लेखक ने बड़े ही मनोवैज्ञानिक ढंग से समझाया है कि अंग्रेजी भाषा से हम बेरोजगारी की समस्या को थोड़ा सुलझा सकते हैं मगर हमारी संस्कृति, सभ्यता, आचार-विचार आदि सभी नियमों का पालन आदि के साथ अपनी भावना को विकसित करने में अपनी मातृभाषा सहायक होती है। यही सत्य है।

प्रश्न 15.
आज की शिक्षा मानसिक शक्ति का हस कर रही है। कैसे? इससे छुटकारे के लिए आप किस तरह की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहेंगे?
उत्तर-
लेखक का कथन उपर्युक्त प्रश्न के संदर्भ में यह कहना है कि हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से ही आनन्द का स्थान नहीं होता। जो नितांत आवश्यक है उसी को हम कंठस्थ करते हैं। इससे काम तो किसी-न-किसी तरह चल जाता है लेकिन हमारा विकास नहीं होता। हवा से पेट नहीं भरता-पेट तो भोजन से ही भरता है। लेकिन भोजन को ठीक से हजम करने के लिए हवा आवश्यक है।
लेखक का कहना है कि आनंद के साथ पढ़ते-रहने से पठन-शक्ति भी अलक्षित रूप से बढ़ती है; सहज-स्वाभाविक नियम से ग्रहण-शक्ति,. धारणा-शक्ति और चिंता-शक्ति भी सबल होती है।

लेखक का कथन है कि मानसिक शक्ति का ह्यस करने वाली इस निरापद शिक्षा से मुक्ति के लिए हमें मातृभाषा के माध्यम से मानसिक शक्ति का विकास करना होगा तभी हमें इससे छुटकारा मिल सकेगा।

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नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. अंग्रेजी विदेशी भाषा है। शब्द-विन्यास और पद-विन्यास की दृष्टि से हमारी भाषा के साथ उसका कोई सामंजस्य नहीं है। भावपक्ष और विषय-प्रसंग भी विदेशी होते हैं। शुरू से आखिर तक सभी अपरिचित चीजें हैं, इसलिए धारणा उत्पन्न होने से पहले ही हम रटना आरंभ कर देते हैं। फल वही होता है जो बिना चबाया अन्य निगलने से होता है। शायद बच्चों की किसी ‘रीडर’ में Hay-Making का वर्णन है। अंग्रेज बालकों के लिए यह एक सुपरिचित चीज है और उन्हें इस वर्णन से आनंद मिलता है। Snowball से खेलते हुए Charlie का Katie से कैसे झगड़ा हुआ, यह भी अंग्रेज बच्चे के लिए कुतूहलजनक घटना हैं लेकिन हमारे बच्चे जब विदेशी भाषा में यह सब पढ़ते हैं तब उनके मन में कोई स्मृति जागृत नहीं होती, उनके सामने कोई चित्र प्रस्तुत नहीं होता। अंधभाव से उनका मन अर्थ को टटोलता रह जाता है। (क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) किस दृष्टि से अंग्रेजी का हमारी भाषा के साथ सामंजस्य नहीं है, और क्यों?
(ग) अंग्रेज बालकों के लिए क्या एक चीज सुपरिचित है और इससे बच्चों को क्या मिलता है?
(घ) बच्चों का मन अंधभाव से क्या टटोलता रह जाता है?
(ङ) बच्चे किसी चीज को कब रटने लगते हैं और इसका उनपर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हेर-फेर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है। इस भाषा से जुड़े विषय और भाव-पक्ष भी विदेशी हैं। इस भाषा से जुड़ी तमाम बातें-शब्द-विन्यास, पद-विन्यास आदि सभी कुछ हमारे लिए अपरिचित हैं। इस कारण किसी भी दृष्टि से हमारी भाषा के साथ अंग्रेजी का कोई सामंजस्य नहीं बैठता है।

(ग) अंग्रेज बालकों की रीडर में ‘Hay-Making’ का वर्णन आया है। यह शब्द और उससे जुड़ा अर्थ उन बच्चों के लिए जाना-पहचाना शब्द है। उन्हें HayMaking के वर्णन को पढ़कर काफी आनंद मिलता है। यह आनंद उन्हें इसलिए मिलता है कि वे इससे काफी परिचित हैं और इससे जुड़ी बातों को अच्छी तरह जानते हैं। यह शब्द उनके देश और परिवेश से जुड़ा हुआ है।

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(घ) हिंदी भाषा-भाषी या किसी भी भारतीय भाषा-भाषी बच्चे जब अंग्रेजी भाषा सीखना या पढ़ना शुरू करते हैं तो वे उस विदेशी भाषा से मिलने और जुड़नेवाली बातों को चाहकर भी अच्छी तरह समझ नहीं पाते और वे बातें उनकी स्मृति में नहीं आ पातीं। ऐसी स्थिति में बच्चों के सामने कोई चित्र भी नहीं उभर पाता है। परिणामतः, बच्चों का मन उससे जुड़े अर्थ को अंधभाव से ही टटोलता रह जाता है।

(ङ) अंग्रेजी भाषा का हमारी भाषा से किसी भी रूप में कोई सामंजस्य नहीं बैठता है। वह हमारे लिए हर दृष्टि से एक अपरिचित भाषा है। हमारे बच्चे जब उस भाषा को पढ़ना और सीखना शुरू करते हैं, तब उस भाषा के संबंध में उनकी कोई निश्चित धारणा नहीं बनती। परिणामतः, बच्चे धारणा बनने के पहले उस भाषा से जुड़ी बातों को रटना आरंभ कर देते हैं। इसका परिणाम वही होता है जो बिना चबाया अन्न निगलने से होता है।

2. हमारी शिक्षा में बाल्यकाल से ही आनंद के लिए स्थान नहीं होता। जो नितांत आवश्यक है उसी को हम कंठस्थ करते हैं। इससे काम तो किसी-न-किसी तरह चल जाता है, लेकिन हमारा विकास नहीं होता। हवा से पेट नहीं भरता-पेट तो भोजन से ही भरता है। लेकिन भोजन को ठीक से हजम करने के लिए हवा आवश्यक है। वैसे ही, एक “शिक्षा पुस्तक’ को अच्छी तरह पचाने के लिए बहुत-सी पाठ्यसामग्री की सहायता जरूरी है। आनंद के साथ पढ़ते रहने से पठन-शक्ति भी अलक्षित रूप से बढ़ती है; सहज-स्वाभाविक नियम से ग्रहण-शक्ति, धारणा-शक्ति और चिंता-शक्ति भी सबल होती है। लेकिन, मानसिक शक्ति का ह्रास करनेवाली इस निरानंद शिक्षा से हमें कैसे छुटकारा मिलेगा कुछ समझ में नहीं आता।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों का विकास किस कारण से नहीं हो पाता
(ग) शिक्षा-पुस्तक को पूचाने के लिए किस रूप में किसी सहायता जरूरी है?
(घ) आनंद के साथ पढ़ने से क्या लाभ मिलता है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हेर-फेर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) हमारी शिक्षा-पद्धति में यह बड़ा दोष है कि उनमें बचपन के समय से आनंद के लिए कोई प्रावधान या जगह नहीं होती है। यह आनंद बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। परिणामतः, बच्चे इस आनंद से विरत रहने की स्थिति में बाल्यशिक्षा की प्राप्ति के क्रम में किसी तथ्य को कंठस्थ करने की प्रक्रिया से जड जात हैं। इस स्थिति में धरातल पर तो उनका काम चल जाता है, लेकिन उनका सही विकास बाधित हो जाता है और बच्चे विकास से वंचित रह जाते हैं।

(ग) लेखक यह मानता है कि शिक्षा की पुस्तक को अच्छी तरह पचाने के लिए कुछ पाठ्य-सामग्रियों की सहायता जरूरी है, जैसे–भोजन को हजम करने के लिए हवा की जरूरत होती है। उन पाठ्य-सामग्रियों में शिक्षा के साथ जुड़ी आनंद की सामग्री भी शामिल है। लेकिन, यह दु:ख की बात है कि हमारी शिक्षा में बचपन से ही आनंद का कोई स्थान नहीं दिया जाता है, अर्थात हम शिक्षा की सामग्री को आनंद की स्थिति में ग्रहण न कर उसे रटने की पद्धति से ग्रहण करते हैं।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

(घ) आनंद के साथ जब हम पढ़ाई करते हैं तब हमारी पठन-शक्ति बड़े सूक्ष्म ढंग से बढ़ती है। उसके सहज स्वाभाविक नियम से शिक्षार्थी की ग्रहण-शक्ति, धारणा-शक्ति और चिंता-शक्ति भी सक्षम और मजबूत बनती है। तब उस स्थिति में शिक्षा को पचाने में हमारी क्षमता अपनी सबलता का परिचय देती है। यह दु:ख की बात है कि हमारी शिक्षा में पाठ्य-सामग्री के तत्त्व के रूप में इसका अभाव

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने हमारी शिक्षा के दोषों को जगजाहिर किया है। लेखक के अनुसार हमारी शिक्षा का यह एक बहुत बड़ा दोष है कि उसमें बचपन से ही आनंद के साथ शिक्षा प्राप्त करने का कोई तरीका या प्रावधान नहीं है। बच्चे जो भी शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे दबाव, भय और तनाव की मन:स्थिति में ही उसे प्राप्त करते हैं। इस कारण उनकी पठन-शक्ति, ग्रहण-शक्ति, धारणा-शक्ति और चिंता-शक्ति दुर्बल बनी रहती है और वे शिक्षा को पचा नहीं पाते।

3. लेकिन अंग्रेजी पढ़ने के प्रयास में ना वे सीखते हैं, ना खेलते हैं। प्रकृति के सत्यराज में प्रवेश करने के लिए उन्हें अवकाश ही नहीं मिलता। साहित्य के कल्पना-राज्य का द्वार उनके लिए अवरूद्ध रह जाता है।

मनुष्य के अंदर और बाहर दो उन्मुक्त विहार-क्षेत्र हैं, जहाँ से वह जीवन, बल और स्वास्थ्य का संचय करता है। जहाँ नाना वर्ण-रूप-गंध, विचित्र गति और संगीत, प्रीति और उल्लास उसे सर्वांग चेतन और विकसित करते हैं। इन दोनों मातृभूमियों से निर्वासित करके अभागे बालकों को एक विदेशी कारागृह में बंद कर दिया जाता है। जिनके लिए ईश्वर ने माता-पिता के हृदय में स्नेह का संचार किया है जिनके लिए माता की गोद को कोमलता प्रदान की गई है,जो आकार में छोटे होते हुए भी घर-घर की सारी जगह को अपने खेला के लिए यथेष्ट नहीं समझते, ऐसे बालकों को अपना बचपन कहाँ काटना पड़ता है? विदेशी भाषा में व्याकरण और शब्दकोश में; जिसमें जीवन नहीं, आनंद नहीं, अवकाश या नवीनता नहीं, जहाँ-हिलने-डुलने का स्थान नहीं, ऐसी शिक्षा की शुष्क, कठोर, संकीर्णता में।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।

(ख) अंग्रेजी पढ़ने के प्रयास में बच्चे किन-किन चीजों से वंचित हो । जाते हैं?

(ग) मनुष्य के अंदर और बाहर जो उन्मुक्त विहार क्षेत्र हैं उनसे उन्हें क्या लाभ मिलते हैं और इनसे विरत रहने पर उन्हें क्या कष्ट झेलना पड़ता है?

(घ) बच्चों को विदेशी भाषा के व्याकरण और शब्दकोश में क्या मिलता है?

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बच्चों की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हेर-फेर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) लेखक का कथन है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है जिसके पढ़ने के प्रयास में बच्चों को लाभ के रूप में कुछ मिलता नहीं। इसके विपरीत सुख के ढेर सारे साधनों से उन्हें वंचित रह जाना पड़ता है। अंग्रेजी भाषा जब वे पढ़ने और सीखने लगते हैं तब वे उस क्रम में उस भाषा से कुछ सीख नहीं पाते, उस भाषा को सीखने की प्रक्रिया में उनके समय की बर्बादी होती है, क्योंकि खेलने का और प्रकृति के सुखद राज्य में विचरण करने का उन्हें समय ही नहीं मिलता। उनके लिए कल्पना का द्वार भी बंद ही रह जाता है।

(ग) लेखक का यह कथन है कि मनुष्य के लिए दो विहार क्षेत्र हमेशा तैयार मिलते हैं। ये दोनों विहार क्षेत्र उन्मुक्त हैं। इनमें एक बाहर का है और दूसरा उसके अंदर का। इन दोनों उन्मुक्त विहार क्षेत्रों में मनुष्य भ्रमण कर विविधवर्णी रूप, गंध, समय की विचित्र गति और संगीत, प्रेम और उल्लास की प्राप्ति करता है। इससे उसकी सर्वांग चेतन-शक्ति विकसित होती है। उनसे विरत रहकर वह एक विदेशी कारागृह में बंद रहने का दुःख भोगता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

(घ) बच्चों को विदेशी भाषा के व्याकरण और शब्दकोश में न तो जीवन की विशेषता, आनंद, अवकाश और नवीनता के दर्शन होते हैं और न जीवन के अन्य कोई सुखद पक्ष के। वहाँ शिक्षा की शुष्क, कठोर, संकीर्णता में बँधे रहने के सिवा वे और कुछ पाते नहीं। इस स्थिति में उनकी मानसिक स्थिति अविकसित रह जाती है और उनका व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने बच्चों की कुछ इन विशेपताओं का वर्णन किया है-बच्चे अपने माता-पिता के स्नेह और प्रेम के सत्पात्र होते हैं। ईश्वर ने माता-पिता के हृदय में उनके लिए ही स्नेह का संचार किया है और उनके लिए ही माता की गोद को ईश्वर ने कोमलता प्रदान की है। ये बच्चे ही हैं जो आकार में छोटे होते हुए भी अपने घर के आँगन को खेलने-कूदने के लिए पर्याप्त साधन नहीं मानते और स्वतंत्र रूप से वहाँ विचरण करते रहते हैं।

4. इस तरह बीस-बाईस वर्ष की आयु तक हमें जो शिक्षा मिलती है उसका हमारे जीवन से रासायनिक मिश्रण नहीं होता। इससे हमारे मन को एक अजीब आकार मिलता है। शिक्षा से हमें जो विचार और भाव मिलते हैं उनमें से कुछ को तो लेई से जोड़कर सुरक्षित रखते हैं और बचे हुए कालक्रम से झड़ जाते हैं। बर्बर जातियों के लोग शरीर पर रंग लगाकर या शरीर के विभिन्न अंगों को गोदकर, गर्व का अनुभव करते हैं; जिससे उनके स्वाभाविक स्वास्थ्य की उज्ज्वलता और लावण्य छिप जाते हैं। उसी तरह हम भी अपनी विलायती विद्या का लेप लगाकर दंभ करते हैं, किंतु यथार्थ आंतरिक जीवन के साथ उसका भोग बहुत कम ही होता है। हम सस्ते, चमकते हुए, विलायती ज्ञान को लेकर शान दिखाते हैं, विलायती विचारों का असंगत रूप से प्रयोग करते हैं। हम स्वयं यह नहीं समझते कि अनजाने ही हम कैसे अपूर्व प्रहसन का अभिनय कर रहे हैं। यदि कोई हमारे ऊपर हँसता है तो हम फौरन यूरोपीय इतिहास से बड़े-बड़े उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) बीस-बाईस वर्ष की आयु तक प्राप्त शिक्षा से हमें क्या मिलता
(ग) विलायती विद्या का लेप लगाकर हम क्या करते रहने को मजबूर होते रहते हैं?
(घ) हम हँसी के पात्र कब बनते हैं और उससे बचने के लिए हम क्या करते हैं?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हेर-फेर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) बीस-बाईस वर्ष की आयु तक प्राप्त शिक्षा से हमें ठोस रूप में कुछ लाभप्रद वस्तु या गुण-लाभ नहीं मिल पाता है। ऐसे प्राप्त साधन हमारे जीवन में घुल-मिल नहीं पाते हैं। इसकी प्राप्ति से हमारे मन को स्वाभाविक रूप से सुख-शांति नहीं मिल पाती, बल्कि इसके विपरीत हमारे मन को एक विचित्र स्वरूप मिलता है जो हमारे लिए सुखद नहीं होता। इससे हमें जो विचार और भाव की प्राप्ति होती है उनका कोई शाश्वत मूल्य नहीं होता।

(ग) विलायती शिक्षा का लेप लगाकर हम झूठ का दंभ करते हैं जिनका यथार्थ आंतरिक जीवन के साथ कुछ भी या कोई भी योग नहीं के बराबर होता है। हम झूठा प्रदर्शन करते हैं, गलत रूप से चमकते रहते हैं। विदेशी भाषा से प्राप्त ज्ञान को लेकर शान का प्रदर्शन करते हैं और विलायती विचारों को असंगत रूप से प्रयोग में लाकर उनका प्रचार करते रहते हैं।

(घ) हम विदेशी भाषा से प्राप्त ज्ञान, शान और गुमान में इस प्रकार इतराये फिरते हैं कि हम अपने लोगों के बीच हँसी का पात्र बन जाते हैं। लोगों का हमारे इस नकली रूप पर हँसना स्वाभाविक हो जाता है। लोगों की इस हँसी से बचन के लिए हम शीघ्रातिशीघ्र विदेशों खासकर यूरोपीय इतिहास के पन्नों से उदाहरण ढूँढ-ढूँढकर लोगों के सामने अपनी विशेषता का परिचय देने का प्रयास करते हैं।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय यह है कि अंग्रेजी या अन्य विदेशी भाषा का अध्ययन, मनन और चिंतन हमारे लिए किसी भी रूप में उपयोगी और महत्त्वपूर्ण नहीं है। जिस प्रकार बर्बर जाति के लोग शरीर पर रंग का लेप चढ़ाकर या शरीर के अंगों को गोद-गोदकर लोगों के सामने गर्व का अनुभव करते हैं, उसी तरह विदेशी भाषा का लेप लगाकर लोग व्यर्थ के ज्ञान, गुमान और शान का अनुभव कर उसका प्रचार-प्रसार करते हैं। लेखक की दृष्टि में यह हास्यास्पद है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

5. बाल्यकाल से ही यदि भाषा-शिक्षा के साथ भाव-शिक्षा की भी व्यवस्था हो और भाव के साथ समस्त जीवन-यात्रा नियमित हो, तभी हमारे जीवन में यथार्थ सामंजस्य स्थापित हो सकता है। हमारा व्यवहार तभी सहज मानवीय व्यवहार हो सकता है और प्रत्येक विषय में उचित परिणाम की रक्षा हो सकती है। हमें यह अच्छी तरह समझना चाहिए कि जिस भाव से हम जीवन-निर्वाह करते हैं उसके अनुकूल हमारी शिक्षा नहीं है। जिस घर में हमें सदा अपना जीवन बिताना है उसका उन्नत चित्र हमारी पाठयपुस्तकों में नहीं है। जिस समाज के बीच हमें अपना जीवन बिताना है उस समाज का कोई उच्च आदर्श हमें शिक्षा-प्रणाली में नहीं मिलता। उसमें अब हम अपने माता-पिता, सुहद-मित्र, भाई-बहन किसी का प्रत्यक्ष चित्रण नहीं देखते। हमारे दैनिक जीवन के कार्यकलाप को उस साहित्य में स्थान नहीं मिलता।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) हमारा व्यवहार किस परिस्थिति में सहज मानवीय व्यवहार हो सकता है?
(ग) हमें कौन-सी बात अच्छी तरह समझना चाहिए?
(घ) अनुकूल शिक्षा कौन-सी शिक्षा होती है और उससे हमें क्या मिलता है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हरे-फर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) यदि बचपन से ही हमारी भाषा-शिक्षा के साथ भाव- शिक्षा की भी व्यवस्था रहती है तो उस परिस्थिति में हमारी सम्पूर्ण जीवन-यात्रा भाव के साथ नियमित रूप से चलती है। तभी हम यथार्थ जीवन की स्थिति से जुड़ते हैं। उसी स्थिति में तभी हमारा व्यवहार सहज मानवीय व्यवहार हो सकता है।

(ग) हमें यह बात अच्छी तरह समझना चाहिए कि हमारी शिक्षा हमारे जीवन-निर्वाह के भाव के अनुकूल नहीं है। हम जिस घर में सदा-सर्वदा के लिए रहने के लिए बाध्य हैं उसका सही साफ-सुथरा चित्र हमारी पाठय-पुस्तकों में है ही नहीं। हमारे दैनिक-जीवन के कार्यकलाप को उस शिक्षा में कहीं कोई स्थान नहीं मिलता है और वहाँ हमें गतिशील जीवन के संगीत के स्वर को सुनने के लिए कोई अवसर नहीं मिलता।

(घ) अनुकूल शिक्षा वही शिक्षा होती है जो हमारे जीवन-निर्वाह के भाव से जुड़ी होती है। उस शिक्षा की पाठय-पुस्तकों में हमारे-स्थायी निवास के उन्नत चित्र विद्यमान रहते हैं और उस शिक्षा की प्रणाली में हमारे सामाजिक जीवन का कोई उच्च आदर्श विद्यमान रहता है। वहाँ हमारे वैयक्तिक और दैनिक जीवन के कार्यकलाप की चर्चा, कथन और अंकन के लिए उचित स्थान उपलब्ध होता है और उस शिक्षा से हमारे जीवन के क्षण जुड़े रहते हैं।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने हमारी भाषा-शिक्षा के साथ जुड़ी भाव-शिक्षा की व्यवस्था के महत्त्व पर प्रकाश डाला है। भाषा-शिक्षा भाव-शिक्षा की व्यवस्था से जुड़कर सही रूप में लाभदायी होती है। तभी हम सहज मानवीय व्यवहार के रूप में अपने दैनिक व्यवहार को परिणत कर सकते हैं। आज हमारा दुर्भाग्य है कि हमारी भाषा-शिक्षा हमारी भाव-शिक्षा के साथ जुड़ी नहीं है। इस स्थिति में हमारी शिक्षा की पाठय-पुस्तकों में हमारे इष्ट, घर तथा समाज का कोई स्थान नहीं है और हमारे जीवन का मिलान और सामंजस्य वहाँ नहीं हो पाता है।

6. कहानी है कि एक निर्धन आदमी जाड़े के दिनों में रोज भीख माँगकर गरम कपड़ा बनाने के लिए धन-संचय करता, लेकिन यथेष्ट धन जमा होने तक जाड़ा बीत जाता। उसी तरह जब तक वह गर्मी के लिए उचित कपड़े की व्यवस्था कर पाता तब तक गर्मी भी बीत जाती। एक दिन देवता ने उसपर तरस खाकर उसे वर माँगने को कहा तो वह बोला, ‘मेरे जीवन का यह हेर-फेर दूर करो, मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मैं जीवन भर गर्मी में गरम कपड़े और सर्दी में ठंडे कपड़े प्राप्त करता रहा हूँ। इस परिस्थिति में संशोधन कर दो-बस, मेरा जीवन सार्थक हो जाएगा। हमारी प्रार्थना भी यही है। हेर-फेर दूर होने से ही हमारा जीवन सार्थक होगा। हम सर्दी में गरम कपड़े और गर्मी में ठंडे कपड़े जमा नहीं कर पाते, तभी तो हमारे जीवन में इतना दैन्य है-वरना हमारे पास है सबकुछ।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) इस कहानी में कैसे व्यक्ति की कहानी है? उस व्यक्ति के कार्य का परिचय दीजिए।
(ग) एक दिन किस परिस्थिति में उस व्यक्ति ने देवता से क्या वरदान माँगा?
(घ) उसके अनुसार उसके जीवन में दैन्य का क्या रूप है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) पाठ-शिक्षा में हेर-फेर, लेखक-रवीन्द्रनाथ टैगोर

(ख) इस कहानी में एक गरीब व्यक्ति की कहानी है। वह व्यक्ति जाड़े के दिनों में रोज भीख माँग-माँगकर गरम कपड़ा बनाने के लिए धन जमा करता था, लेकिन दुर्भाग्य उस बेचारे का कि जब तक वह यथेष्ट धन जमा करता, तब तक जाड़ा ही बीत जाता।

(ग) वह व्यक्ति जब जाड़ा और गरमी के लिए कपड़े की व्यवस्था न कर पाया, तो उसने अपने ऊपर तरस खाए एक देतवा से यह वरदान माँगा कि मेरे जीवन में यह हेर-फेर है कि मैं जाड़े तथा गरमी दोनों ऋतुओं में जब तक कपड़े खरीदने के लिए भीख मांगकर धन जमा करता हूँ तब तक ऋतुओं के अनुकूल वस्त्र की व्यवस्था नहीं कर पाता।

(घ) उसके अनुसार उसके जीवन में दैन्य का रूप यह है कि वह जीवनभर गरमी में गर्म कपड़े और सर्दी में ठंड कपड़े ही प्राप्त करता रहा है। वह इसमें हेर-फेर चाहता है, अर्थात वह गर्मी में ठंडे कपड़े और ठंड में गर्म कपड़ें प्राप्त करना चाहता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 12 शिक्षा में हेर-फेर

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक के कथन का आशय यह है कि हम अपनी वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था से जीवन के अनुकूल जीने का साधन नहीं प्राप्त कर रहे हैं। हमारे जीवन में एक विचित्र प्रकार की दीनता आ गई है। वह दीनता हमारे जीवन के घोर प्रतिकूल है। हमारी स्थिति उस भिखारी की तरह है जो जाड़े के अनुकूल वस्त्र पाने के लिए पूरा शीतकाल भीख माँगने में ही बिता देता है। जब तक वह उसके लिए साधन जुटाता है तब तक जाड़े की ऋतु गुजर जाती है। ग्रीष्म ऋतु में भी यही स्थिति उसके साथ जुड़ी रहती है। इस विचित्र स्थिति में हमारा जीवन सार्थक नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जीवन की अनुकूलता के अनुरूप भाषा-शिक्षा प्राप्त करें।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1

प्रश्न 1.
पाठ्य पुस्तक में दी गई आकृतियों में कौन-सी आकृतियाँ एक ही आधार और एक ही समान्तर रेखाओं के बीच स्थित हैं? ऐसी स्थिति में,जभवनिष्ठ आधार और दोनों समान्तर रेखाएं लिखिए।
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1
उत्तर:
आकृति (i), (iii) तथा (v)
(i) में आकृति आधार DC. समाजर रेखाएँ DC और AB.
(iii) में आकृति आधार QR. समान्तर रेखाएँ QR और PS.
(v) में आकृति आधार AD, समान्तर रेखाएँ AD और BQ.

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 9 समान्तर चतुर्भुज और त्रिभुजों के क्षेत्रफल Ex 9.1

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक

Bihar Board Class 6 Science तन्तु से वस्त्र तक Text Book Questions and Answers

अभ्यास एवं प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तन्तुओं का प्राकृतिक तथा संश्लिष्ट में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक तन्तु – ऊन, रूई, रेशम तथा पटसन।
संगलिष्ट तन्तु – नायलॉन और पॉलिएस्टर।

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए कथन ‘सत्य’ हैं अथवा ‘असत्य’ उल्लेख कीजिए –
उत्तर:
(क) तन्तुओं से तागा बनता है। सत्य
(ख) कताई वस्त्र निर्माण की एक प्रक्रिया है। सत्य
(ग) जूट नारियल का बाहरी आवरण होता है। सत्य
(घ) रूई से बिनौले (बीज) हटाने की प्रक्रिया को ओटना कहते हैं। सत्य
(ड) तागों की बुनाई से वस्त्र का एक टुकड़ा बनता है। सत्य
(च) रेशम-तंतु किसी पादप के तने से प्राप्त होता है। असत्य
(छ) पॉलिएस्टर एक प्राकृतिक तन्तु है। असत्य

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(क) …………… और ……….. से पादप तन्तु प्राप्त किए जाते हैं।
(ख) …………….. और ……………… जातंव तन्तु हैं।
उत्तर:
(क) रूई, जूट
(ख) रेशम, ऊन।

प्रश्न 4.
सही विकल्प को चुनिए –

(क) वैसे वस्त्र के तन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं से प्राप्त होते हैं, कहलाते हैं –
(i) प्राकृतिक तंतु
(ii) मानव निर्मित तंतु
(iii) प्राकृतिक एवं मानव निर्मित तंतु
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(i) प्राकृतिक तंतु

(ख) मानव निर्मित तंतु हैं –
(i) पॉलिएस्टर
(ii) नायलॉन
(iii) एलक्रिलिक
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

(ग) बिहार के निम्न जिले में जूट अधिक उगाया जाता है –
(i) कटिहार
(ii) मधेपुरा
(iii) सहरसा
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

(घ) रेशों से धागा बनाने की प्रक्रिया कहलाती है –
(i) कताई
(ii) बुनाई
(iii) धुलाई
उत्तर:
(i) कताई

(ङ) धागे से वस्त्र बनाने की विधियाँ है –
(i) बुनाई
(ii) बंधाई
(iii) बुनाई एवं बंधाई
(iv) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(iii) बुनाई एवं बंधाई

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक

प्रश्न 5.
रूई तथा जूट (पटसन) पादप के किन भागों से प्राप्त होते हैं?
उत्तर:
रूई तथा जूट (पटसन) पादप के तने भाग से प्राप्त होता है।

प्रश्न 6.
नारियल तन्तु से बनने वाली दो वस्तुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
नारियल तन्तु से बनने वाली दो वस्तुओं के नाम – चटाई और रस्सी ।

प्रश्न 7.
तन्तुओं से धागा निर्मित करने की प्रक्रिया स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तन्तुओं से तागा निर्मित करने की प्रक्रिया इस प्रकार है। कपास के फूल पूरी तरह से तैयार हो जाने पर उजला रेशे गोलक के रूप में दिखने लगता है। कपास को हाथ से चुना जाता है। फिर बड़े-बड़े मशीनों की सहायता से कपास को बिनोले से अलग कर कपास को हाथों से ओटी जाती है। कपास को पटक-पटक कर धुलाई कर देते हैं। फिर वस्त्र बनाने से पहले सभी तन्तुओं को तागों में परिवर्तित कर लिया जाता है।

Bihar Board Class 6 Science Solutions Chapter 3 तन्तु से वस्त्र तक

Bihar Board Class 6 Science तन्तु से वस्त्र तक Notes

अध्ययन समाग्री :

रोटी, कपड़ा और मकान ये तीन मानव के न्यूनतम आवश्यकताओं में से एक है। जिस तरह रोटी हमारे जीवन का आधार है ठीक उसी तरह जाड़ा, गर्मी, वर्षा आदि से कपड़ा मेरी रक्षा कर जीवन को आगे बढ़ाने का काम करता है। अलग-अलग मौसम में अलग-अलग तरह के वस्त्र धारण कर हम अपने शरीर की रक्षा करते हैं।

वस्त्र को बनाने के लिए जिन पदार्थों का प्रयोग किया जाता है उसे हम तन्तु कहते हैं। वैसे तन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं से प्राप्त होते हैं उसे प्राकृतिक तन्तु कहते हैं। जैसे कपास, रेशम, ऊन आदि इसके अलावे केले के पत्ते एवं तने बांस से भी तन्तु प्राप्त किया जाता है। वे सभी तन्तु जो पौधे व जन्तु से न प्राप्त कर रासायनिक पदार्थों से बनाए जाते हैं उसे मानव निर्मित तन्तु कहते हैं। जैसे-पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक आदि।

वस्त्र के निर्माण में तन्तु से लेकर वस्त्र तक अनेक प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है। जैसे- कताई, बुनाई, बंधाई आदि। रेशों से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। इस प्रक्रिया में, रूई के एक पुंज से रेशों को खींचकर ऐंठते हैं। ऐसा करने से रेशे आस-पास आ जाते हैं और तागा बन जाता है। कताई के लिए तकली तथा चरखा आदि जैसी युक्तियों का प्रयोग किया जाता है। कताई के बाद बुनाई तथा उसके बाद बंधाई प्रक्रिया के बाद वस्त्र का निर्माण होता है। वर्तमान में ये सभी प्रक्रिया अब मशीन से होती है।

तन्तुओं के प्रकार – तन्त दो प्रकार के होते हैं –
(1) प्राकृतिक तन्तु और
(2) संलिष्ट या मानव निर्मित तन्तु।

(1) प्राकृतिक तन्तु-वैसे तन्तु जो पौधे एवं जन्तु से प्राप्त होते हैं. उसे – प्राकृतिक तन्तु कहते हैं। जैसे- रेशम, ऊन, जट, सत आदि।

(2) संलिष्ट तन्तु या मानव निर्मित तन्तु-वैसे तन्तु जो पौधों एवं जन्तुओं से न प्राप्त कर रासायनिक पदार्थों से बनाए जाते हैं, उसे – मानव निर्मित तन्तु या संशलष्ट तन्तु कहते हैं। जैसे – पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक आदि।

कताई – तन्तुओं से तागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं। कताई में तकली, चरखा, कताई मशीन आदि उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। तागे से वस्त्र बनाने की कई विधियाँ प्रचलित हैं। इनमें से दो प्रमुख विधियाँ बुनाई तथा बंधाई हैं।