Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 7 हिरोशिमा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 7 हिरोशिमा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 7 हिरोशिमा

Bihar Board Class 10 Hindi हिरोशिमा Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

हिरोशिमा कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज क्या है ? वह कैसे निकलता है?
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलने वाला सूरज आण्विक बम का प्रचण्ड गोला है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह क्षितिज से न निकलकर धरती फाड़कर निकलता है। अर्थात् हिरोशिमा की धरती पर बम गिरने से आग का गोला चारों ओर फैल जाता है, चारों ओर आग की लपटें फैल जाती हैं। धरती पर भयावह दृश्य उपस्थित हो जाता है। आण्विक बम नरसंहार करते हुए उपस्थित होता है।

हिरोशिमा कविता का सारांश Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
छायाएं दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
सूर्य के उगने से जो भी बिम्ब-प्रतिबिम्ब या छाया का निर्माण होता है वे सभी निश्चित दिशा में लेकिन बम-विस्फोट से निकले हुए प्रकाश से जो छायाएँ बनती हैं वे दिशाहीन होती
हैं। क्योंकि आण्विक शक्ति से निकले हुए प्रकाश सम्पूर्ण दिशाओं में पड़ता है। उसका कोई निश्चित दिशा नहीं है। बम के प्रहार से मरने वालों की क्षत-विक्षत लाशें विभिन्न दिशाओं में जहाँ-तहाँ पड़ी हुई हैं। ये लाशें छाया-स्वरूप हैं परन्तु चतुर्दिक फैली होने के कारण दिशाहीन छाया कही गयी है। बम के रूप में सूरज की छायाएँ दिशाहीन सब ओर पड़ती हैं।

Hiroshima Kavita Ka Saransh In Hindi Bihar Board प्रश्न 3.
प्रज्ज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-
हिरोशिमा में जब बम का प्रहार हुआ तो प्रचण्ड गोलों से तेज प्रकाश निकला और वह चतुर्दिक फैल गया। इस अप्रत्याशित प्रहार से हिरोशिमा के लोग हतप्रभ रहे गये। उन्हें सोचने  का अवसर नहीं मिला। उन्हें ऐसा लगा कि धीरे-धीरे आनेवाला दोपहर आज एक क्षण में ही उपस्थित हो गया। बम से प्रज्वलित अग्नि एक क्षण के लिए दोपहर का दृश्य प्रस्तुत कर दिया। कवि उस क्षण में उपस्थित भयावह दृश्य का आभास करते हैं जो तात्कालिक था। वह दोपहर उसी क्षण वातावरण से गायब भी हो गया।

Hiroshima Kavita Ki Vyakhya Bihar Board प्रश्न 4.
मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं?
उत्तर-
मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा की धरती पर सब ओर दिशाहीन होकर पड़ी हुई हैं।
जहाँ-तहाँ घर की दीवारों पर मनुष्य छायाएँ मिलती हैं। टूटी-फूटी सड़कों से लेकर पत्थरों पर छायाएँ प्राप्त होती हैं। आण्विक आयुध का विस्फोट इतनी तीव्र गति में हुई कि कुछ देर के लिए समय का चक्र भी ठहर गया और उन विस्फोट में जो जहाँ थे वहीं उनकी लाश गिरकर सट गयी। वही सटी हुई लाश अमिट छाया के रूप में प्रदर्शित हुई।

Hiroshima Poem By Agyeya In Hindi Bihar Board प्रश्न 5.
हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है ?
उत्तर-
आज भी हिरोशिमा में साखी के रूप में अर्थात् प्रमाण के रूप में जहाँ-तहाँ जले हुए पत्थर दीवारें पड़ी हुई हैं यहाँ तक कि पत्थरों पर, टूटी-फूटी सड़कों पर, घर के दीवारों पर लाश के निशान छाया के रूप में साक्षी है। यही साक्षी से पता चलता है कि अतीत में यहाँ अमानवीय दुर्दान्तता का नंगा नाच हुआ था।

हिरोशिमा कविता Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
व्याख्या करें:
(क) “एक दिन सहसा / सूरज निकता’
(ख) ‘काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर / बिखर गये हों / दसों दिशा में’
(ग) ‘मानव का रचा हुआ सूरज / मानव को भाप बनाकर सोख गया।
उत्तर-
(क)प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी प्रयोगवादी विचारधारा के महान प्रवर्तक कवि अज्ञेय द्वारा लिखित ‘हिरोशिमा’ नामक शीर्षक से अवतरित है। प्रस्तुत अंश में हिरोशिमा में हुए बम विस्फोट के बाद दुष्परिणाम का जो अंश उपस्थित हुआ है उसी का मार्मिक चित्रण है। – कवि कहना चाहते हैं कि जब हिरोशिमा में आण्विक आयुध का प्रयोग हुआ उस समय प्रकृति के शाश्वत तत्त्व भी कुंठित हो गये। सूरज जैसा ब्रह्माण्ड का शक्ति सनव को ही वाष्प बनाकर सांख गया। उस समय सड़कों, गलियों में चल-फिर रहे लोग, वाष्प की भाँति विलीन हो गए। आस-पास के पत्थरों पर, सड़कों पर, दीवारों पर उस त्रासदी के फलस्वरूप बनी मानव छायाएँ दुर्दान्त मानव के कुकृत्य की साक्षी हैं।

यहीं द्वितीय विश्व युद्ध अणु-बम का विस्फोट हुआ और एक अनहोनी होती है।

भाषा की बात

हिरोशिमा’ कविता की व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कविता में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों का कारक स्पष्ट कीजिए-
क्षितिज, अंतरिक्ष, चौक, मिट्टी, बीचो-बीच; नगर, रथ, गय, छाया।
उत्तर-
क्षितिज – अधिकरण कारक
अंतरिक्ष – अपादान कारक
चौक – संबंधकारक
मिट्टी – अपादान कारक
बीचो-बीच – संबंध कारक
नगर – संबंध कारक
रथ – संबंध कारक
गच – अधिकरण
छाया – कृर्ता कारक

Hiroshima Poem In Hindi Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
कविता में प्रयुक्त क्रियारूपी का चयन करते हुए उनकी काल रचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
निकला – वर्तमान काल
पड़ी – भूतकाल
उगा था – भूतकाल
गये हां – भूतकाल
लिखी हैं – भूतकाल
लिखी हुई – भूतकाल
है – वर्तमान काल

हिरोशिमा’ कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
कविता से तद्भव शब्द चुनिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
सूरज – सूरज निकल आया।
धूप – धूप निकल गया।
मिट्टी – मिट्टी गीली है।
पहिया – पहिया टूट गया।
पत्थर – पत्थर बड़ा है।
सड़क – सड़क चौड़ी है।

हिरोशिमा की पीड़ा कविता का अर्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
कविता से संज्ञा पद चुनें और उनकी प्रकार भी बताएँ।
उत्तर-
सूरज – व्यक्तिवाचक
नगर – जातिवाचक
चौक – जातिवाचक
मानव – जातिवाचक
रथ – जातिवाचक
पहिया – जातिवाचक
अरे – जातिवाचक
पत्थर – जातिवाचक
सड़क – जातिवाचक

Sakhi Class 10 Question Answers Bihar Board Hindi प्रश्न 5.
निम्नांकित के वचन परिवर्तित कीजिए-
छायाएँ, पड़ी, उगा, हैं, पहियों, अरे, पत्थरों, साखी।
उत्तर-
छायाएँ – छाया
पड़ीं – पड़ी
उगा – उगे
हैं – है
पहियों – पहिया
अरे – अरें
पत्थरों – पत्थर
साखी – साखियाँ

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।

हिरोशिमा नागासाकी Bihar Board Class 10 Hindi  प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता–हिरोशिमा।
कवि-सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग- प्रस्तुत पद्यांश में प्रयोगवादी विचारधारा के प्रमुख कवि अज्ञेय ने आधुनिक सभ्यता का दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण किया है। जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर मानव जाति ने आण्विक तत्त्वों का क्रूरता के साथ दुरुपयोग करने से जो भीषणतम परिणाम सामने आया उसी का एक साक्ष्य है। इस साक्ष्य के माध्यम से कवि एक अनिवार्य चेतावनी दे रहे हैं।

(ग) सरलार्थ-प्रस्तुत पद्यांश में जापान के प्रमुख शहर हिरोशिमा पर अमरीका द्वारा क्रूरता से जब आण्विक आयुध का प्रयोग किया गया तो हिरोशिमा तो क्या संपूर्ण विश्व की सभ्यता कराह उठी। उस भीषणतम आण्विक शक्ति के प्रयोग के बाद जो हिरोशिमा की स्थिति हुई उसी स्थिति का वर्णन कवि साक्ष्य के धरातल पर करते हैं। कवि कहते हैं कि अचानक एक प्रचण्ड ज्वाला से प्रज्वलित धरातल को फोड़ता हुआ आण्विक बम रूपी सूरज निकला। हिरोशिमा नामक शहर के खबूसरत चौक चौराहे पर प्रचण्ड ताप लिये हुए धूप निकली।

यह धूप अंतरिक्ष के स्थल से नहीं निकलकर धरती की छाती को फोड़कर निकली और अपनी प्रचण्डता को बिखरती हुई पूरे हिरोशिमा को जलाने लगी। बम विस्फोट से चारों ओर इतनी ज्वाला फैली कि समस्त जन-जीवन क्रूरता के गाल में समाहृत हो गया। प्रकृति प्रदत्त सूरज जब पूरब से उगता है तब एक निश्चित दिशा में निश्चित छाया बनती है लेकिन इस आण्विक बम रूपी सूर्य के उगने से समस्त जीवों की छायाएँ जहाँ-तहाँ पड़ी हुई मिलीं। जैसे लगा कि पूर्व दिशा का एक सूरज नहीं उगा है चारों ओर सूर्य ही सूर्य उगा हुआ है। कवि साक्ष्य के आधार पर कहते हैं कि जैसे लगता है महाकाल-रूपी सूर्य के रथ के पहिये टूटकर दसों दिशाओं के साथ शहर के केन्द्र में बिखर गये हैं। अर्थात् चारों ओर हाहाकार और कोहराम की ध्वनि गुजित हो रही है। आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका चित्र दिखाई पड़ रहे थे। विनाश का भीषणतम लीला का रूप मुंह बाये खड़ा था।

(घ) भाव-सौंदर्य – प्रस्तुत पद्यांश का भाव पूर्ण रूप से चित्रात्मक शैली में उद्धत है। प्रयोगवादी वातावरण स्पष्ट रूप से मिल रहे हैं। हिरोशिमा पर बम विस्फोट के बाद उभरे हुए नतीजे वर्षों तक मानव के, संवेदनाओं को झकझोर रहे हैं और जैसे उनसे प्रश्न पूछ रहे हैं कि क्या तुम्हारी सभ्यता की यही पहचान है?

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता की भाषा पूर्णतः खड़ी बोली है।
(ii) यहाँ तद्भव के साथ तत्सम शब्दों का प्रयोग अर्थ की गंभीरता में सहायक है।
(iii) सम्पूर्ण कविता मुक्तक छंद में लिखी गयी है।
(iv) अलंकार योजना की दृष्टि से उपमा, अनुप्रास, दृष्टांत की छटा प्रशंसनीय है।
(v) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।
(vi) कविता में प्रयोगवाद की झलक मिल रही है।
(vii) ओजगुण में लिखी कविता भाव को सार्थक बना रही है।

2. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त !
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-हो कर;
मानव ही सब भाप हो गये।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बना कर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया
मानव की साखी है।

Hiroshima Poem Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ). काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हिरोशिमा।
कवि- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।

(ख) प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश में कवि अज्ञेय हिरोशिमा पर हुए बम विस्फोट के कठोरतम परिणाम का साक्ष्य प्रकट करते हैं। साक्ष्य इतना अमानवीय है कि आज भी इसके समस्त मानस पटल पर किसी-न-किसी रूप में उभरते रहते हैं।

(ग) सरलार्थ- इतिहास प्रसिद्ध हिरोशिमा की घटना आज भी राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है। कवि कहते हैं कि यह घटना कुछ क्षण के उदयास्त में इस तरह का दोपहरी वातावरण निर्माण हुआ जिसमें केवल धूप की प्रचण्डता ही थी। वह प्रचण्डता उदय-अस्त के वातावरण को मिटाकर केवल ज्वलनशीलता रूपी दोपहर सामने उभरकर आया।

अनेक लोग जलकर राख हो गये। जो जहाँ था इस आण्विक बम प्रयोग से वहीं मरकर सट गया। जिसके दाग और निशान वर्षों तक अंकित रहे। मानवीय छायाएँ इतनी लम्बी और गहरी हुई कि अभी भी यह अंकित है। जैसे लगा कि सभी मानव भाप बनकर ब्रह्माण्ड में व्याप्त हो गये हैं। ज्वाला इतनी भीषण थी कि पत्थर भी झुलस गए। सड़कें क्षत-विक्षत हो गईं। मानव के द्वारा निर्मित बम रूपी सूरज खुद मानव को ही भाप बनाकर सोख गया। अर्थात् मानव के द्वारा रचित यह आण्विक बम मानव को ही विनाश कर बैठा। आज भी जहाँ-तहाँ मरे हुए मानव की छाया जो अंकित है वह आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका की कहानी का गवाह है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत अंश में अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का साक्ष्य प्रकट किया गया है। साथ ही आण्विक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते
संकट की आशंकाओं से जुड़ी हुई है।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) कविता खड़ी बोली में है।
(ii) सम्पूर्ण कविता में प्रयोगवाद की झलक मिलती है। स्वतंत्र छंद में लिखी कविता मुक्तक की पहचान करा रही है।
(ii) साहित्यिक गुण की दृष्टि से ओज गुण के अंश देखने को मिल रहे हैं।
(iv) इसमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है। अलंकार की योजनाओं से उपमा पुनरुक्ति प्रकाश एवं अनुप्रास की छटा प्रशंसनीय है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्व

I. सही विकल्प चुनें

Hiroshima Poem By Agyeya Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
‘हिरोशिमा’ के कवि कौन हैं ?
(क) रामधारी सिंह दिनकर
(ख) कुँवर नारायण
(ग) ‘अज्ञेय’
(घ) जीवानंद दास
उत्तर-
(ग) ‘अज्ञेय’

प्रश्न 2.
‘अज्ञेय’ किसका उपनाम है ?
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन
(ख) रामधानी सिंह
(ग) बदरी नारायण चौधरी
(घ) वीरेन डंगवाल
उत्तर-
(क) सच्चिदानंद वात्स्यायन

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कहाँ है ?
(क) जापान में
(ख) म्यानमार में
(ग) कोरिया में
‘(घ) चीन में
उत्तर-
(क) जापान में

प्रश्न 4.
‘हिरोशिमा’ कविता में सूरज की संज्ञा किसे दी गई है ?
(क) जापान बम को
(ख) अणुबम को
(ग) हाइड्रोजन बम को
(घ) रडार को
उत्तर-
(ख) अणुबम को

प्रश्न 5.
“अज्ञेय’ किस काव्य-धारा के कवि हैं?
(क) रहस्यवाद
(ख) छायावाद
(ग) नकेनवाद
(घ) प्रयोगवाद
उत्तर-
(घ) प्रयोगवाद

प्रश्न 6.
किस काव्य-संकलन के प्रकाशन से हिन्दी में नयी हवा के झोंके आए
(क) तार-सप्तक
(ख) हरी घास पर क्षण भर
(ग) चक्रवाल
(घ) इन दिनों
उत्तर-
(क) तार-सप्तक

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें-

प्रश्न 1.
‘अज्ञेय’ का असली नाम …………. है।
उत्तर-
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन

प्रश्न 2.
अज्ञेय कवि कथाकार, नाटककार के अतिरिक्त सुधी ………… भी थे।
उत्तर-
सम्पादक

प्रश्न 3.
‘हिरोशिमा’ कविता अणु बम विस्फोट की ………….. में लिखी गई।
उत्तर-
पृष्ठभूमि

प्रश्न 4.
अणु बम फटने पर मानव ही सब ………….. हो गए।
उत्तर-
भाप

प्रश्न 5.
धूप बरसी पर ………. से नहीं।
उत्तर-
अन्तरिक्ष

प्रश्न 6.
‘अज्ञेय’ हिन्दी में ……… प्रवृत्तियाँ लेकर आए।
उत्तर-
नयी।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिन्दी काव्य में ‘अज्ञेय’ ने क्या किया?
उत्तर-
हिन्दी-काव्य में ‘अज्ञेय’ ने छायावाद की धारा को प्रगतिवाद में समाहित किया और प्रयोगवाद की शुरुआत की।

प्रश्न 2.
‘तार सप्तक’ क्या है ?
उत्तर-
तार सप्तक’ सात प्रयोगधर्मी कवियों के काव्य का संकलन है।

प्रश्न 3.
‘काल-सूर्य’ का अर्थ क्या है ?
उत्तर-
काल-सूर्य का अर्थ है मृत्यु का सूरज।

प्रश्न 4.
‘अज्ञेय’ किस-किस साहित्य-पुरस्कार से सम्मानित हुए ?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ को साहित्य अकादमी के अतिरिक्त ज्ञानपीठ सुगा (युगोस्लाविया) का अंतर्राष्ट्रीय स्वर्णमाल और अनेकों पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रश्न 5.
‘अज्ञेय’ ने किस साप्ताहिक पत्र का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया?
उत्तर-
‘अज्ञेय’ ने साप्ताहिक ‘दिनमान’ का संपादन कर हिन्दी पत्रकारिता का हिमालय खड़ा किया।

प्रश्न 6.
“हिरोशिमा’ कविता किस छंद में लिखी गई है ?
उत्तर-
‘हिरोशिमा’ कविता मुक्त छंद में लिखी गई है।

व्याख्या खण्ड

1. एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक
धूप बरसी
पर अन्तरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गये बम से हैं।
कवि कहता है कि अचानक एक दिन चौक पर सूरज का विस्फोट हुआ। उस सूरज ने क्षितिज पर नहीं, पूरब में नहीं बल्कि चौक पर अपनी तीखी धूप से जन-जीवन को तहस-नहस कर दिया।

अंतरिक्ष से सूरज नहीं निकला था। बम विस्फोट से धरती दहल गयी थी और उसकी आंतरिक संरचना में उथल-पुथल मच गयी थी। यहाँ कवि ने नये प्रयोगों द्वारा शब्दों के माध्यम से मानवीय क्रूरतम् पक्षों को उद्घाटित किया है। हिरोशिमा पर बम विस्फोट भयंकर मानवीय दुर्घटना थी। आज के आणविक आयुध की होड़ में हम कितने क्रूर हो गए हैं। इस सृष्टि के विनाश में सदैव तत्पर रहते हैं। वैश्विक राजनीति के कारण अनेक संकट की आशंकाएँ बनी रहती हैं। सृष्टि का पालनकर्ता सूर्य नहीं बल्कि सृष्टि का विनाशक सूर्य धरती पर उगा था। कहने का मूल भाव है कि मनुष्य ही आज सबसे खतरनाक जीव हो गया है। वह दिन-रात विध्वंसक कार्यों में संलग्न रहता है।

उसी के काले कारनामों में हिरोशिमा पर बरसाया गया बम भी था जो सृष्टिकाल का भयंकर विस्फोट था। अपार धन-जन और संस्कृति की हानि हुई थी। इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक रूप में कवि ने प्रयोग किया है। कवि ने मानव के विध्वंसकारी रूप का वर्णन किया है। कैसे हम वैसे विनाशकारी सूर्य की कल्पना और सृजन कर रहे हैं जो सारी सृष्टि का विनाशक सिद्ध हो रहा है।

प्रश्न 2.
छायाएँ मानव-जन की
दशाहीन
सब ओर पड़ीं-वह सूरज
नहीं उगा था पूरब में, वह
बरसा सहसा
बीचों-बीच नगर के
काल-सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गये हों
दसों दिशा में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक हिरोशिमा काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर बरसाए गए बम और उससे हुए अपार धन-जन के महाविनाश से है। कवि ने अपनी काव्य-पक्तियों में अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा है कि जब बम विस्फोट हुआ था उस समय चारों तरफ अफरा-तफरी मच गयी थी—कुहराम मच गया था। लोग जान बचाने के लिए दिशाहीन होकर जिधर-जिधर भाग रहे थे। अपनी प्राण रक्षा के लिए आकुल-व्याकुल दिख रहे थे। वह सूरज पूरब में उगकर नहीं आया था-धरती पर। वह अचानक शहर के बीचोंबीच में गिरा। लगता था कि कालरूपी सूर्य के रथ के पहिये धूरी के साथ टूटकर बिखर गये हों।

इन पंक्तियों में सूर्य को प्रतीक मानते हुए बम की विध्वंसकारी लीलाओं, उससे हुई अपार धन-जन की हानि, मानवीय पीड़ाओं का यथार्थ और पीडादायी वर्णन हुआ है। यह कवि के जीवन : की सबसे बड़ी दर्दनाक घटना है आज आदमी अपनी क्रूरता की सीमाओं को लाँघ गया है और स्वयं के महाविनाश में लगा हुआ है।

3. कुछ क्षण का वह उदय-अस्त।
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेनेवाली दोपहरी।
फिर?
छायाएँ मानव जन की
नहीं मिटीं लम्बी हो-होकर;
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की गच पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हिरोशिमा’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग हिरोशिमा पर गिराये गए बम से है जिससे अपार धन-जन की हानि हुई थी।

कवि कहता है कि बम विस्फोट काल में कुछ क्षण तक स्तब्धता छा गयी थी। चारों तरफ धुआँ ही धुआँ और विस्फोटक पदार्थों से धरती पट गयी थी। प्रतीत होता था कि यह दोपहरी प्रज्ज्वलित क्षण के दृश्यों को सोख लेगी। कहने का मूल भाव यह है कि दोपहर का सूर्य ज्यादा गरमी वाला होता है। उसने यानी सूर्यरूपी बम ने जन-जन के अस्तित्व को मिटा दिया था क्षणभर

प्रश्न 4.
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया
मानव की साखी है।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक के “हिरोशिमा” शीर्षक काव्य-पाठ से उद्धृत हैं। इन पंक्तियों का संबंध मानव तथा उसके द्वारा रचे गए सूरज अर्थात् अणु-बम से है जिसके विस्फोट के समय चारों ओर प्रकाश फैलता है, जिस प्रकार सूर्य प्रकाश-पुंज है ऊर्जावान है, उसी प्रकार अणु बम में भी अपार ऊर्जा है तथा मानव-निर्मित सूरज है। किन्तु प्राकृतिक सूरज जहाँ सृष्टि का निर्माण एवं रक्षा करता है वहीं मानव-निर्मित यह सूरज अणु-बम ध्वंस एवं संहार का प्रतीक है।

मानव निर्मित सूरज-‘अणु-बम’ ने मानव को ही वाष्प बनाकर सोख लिया, चट कर गया, दीवारों, पत्थरों और सड़कों के धरातल पर अंकित वाली छायाएँ मानव के इस अमानवीय एवं क्रूर कृत्य की साक्षी हैं।

उपरोक्त पंक्तियों में व्यक्त भाव का तात्पर्य यह है कि मानव ने अपनी रचनात्मक शक्ति का जो दुरुपयोग किया है उसका दुष्परिणाम आज उसके सामने है। वस्तुतः विश्व-राजनीति में आयुद्धों की होड़ से जो संकट गहरा गया है वह नितान्त दुःखद है।

हिरोशिमा कवि परिचय

अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 ई० में कसेया, कुशीनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ, किंतु उनका मूल निवास कर्तारपुर (पंजाब) था। अज्ञेय की माता व्यंती देवी थीं और पिता डॉ० हीरानंद शास्त्री एक प्रख्यात पुरातत्त्वेत्ता थे । अज्ञेय की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में घर पर हुई। उन्होंने मैट्रिक 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से, इंटर 1927 ई० में मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से, बी० एससी० 1929 ई० में फोरमन कॉलेज, लाहौर से और एम० ए० (अंग्रेजी) लाहौर से किया ।

अज्ञेय बहुभाषाविद् थे। उन्हें संस्कृत, अंग्रेजी, हिन्दी, फारसी, तमिल आदि अनेक भाषाओं का ज्ञान था । वे आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रमुख कवि, कथाकार, विचारक एवं पत्रकार थे । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – काव्य : भग्नदूत’, ‘चिंता’, ‘इत्यलम’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘आँगन के पार द्वार’, ‘कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सदानीरा’ आदि; कहानी संग्रह : ‘विपथगा’, ‘जयदोल’, ‘ये तेरे प्रतिरूप’, ‘छोड़ा हुआ रास्ता’, ‘लौटती पगडडियाँ’ आदि; उपन्यास : ‘शेखर : एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, ‘अपने-अपने अजनबी’, यात्रा-साहित्यः अरे यायावर रहेगा याद’, ‘एक बूँद सहसा उछली’; निबंध : ‘त्रिशंकु’, ‘आत्मनेपद’, ‘अद्यतन’, ‘भवंती’, ‘अंतरा’, ‘शाश्वती’ आदि; नाटक : ‘उत्तर प्रियदर्शी’; संपादित ग्रंथ : ‘तार सप्तक’, ‘दूसरा सप्तक’, ‘तीसरा सप्तक’, ‘चौथा सप्तक’, ‘पुष्करिणी’, ‘रूपांबरा’ आदि । अज्ञेय ने अंग्रेजी में भी मौलिक रचनाएँ की और अनेक ग्रंथों के अनुवाद भी किए । वे देश-विदेश के अनेक विश्वविद्यालयों में विजिटिंग प्रोफेसर रहे । उन्हें साहित्य अकादमी, ज्ञानपीठ, नुगा (युगोस्लाविया) का अंतरराष्ट्रीय स्वर्णमाल आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए । 4 अप्रैल 1987 ई० में उनका देहांत हो गया ।

अज्ञेय हिंदी के आधुनिक साहित्य में एक प्रमुख प्रतिभा थे। उन्होंने हिंदी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया । सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ को पेश किया और बताया कि कैसे प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त हुआ जा सकता है । उनमें वस्तु, भाव, भाषा, शिल्प आदि के धरातल पर प्रयोगों और नवाचरों की बहुलता है।

आधुनिक सभ्यता की दुर्दात मानवीय विभीषिका का चित्रण करनेवाली यह कविता एक अनिवार्य प्रासंगिक चेतावनी भी है । कविता अतीत की भीषणतम मानवीय दुर्घटना का ही साक्ष्य नहीं है, बल्कि आणविक आयुधों की होड़ में फंसी आज की वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं से भी जुड़ी हुई है । आधुनिक कवि अज्ञेय की प्रस्तुत कविता उनकी समग्र कविताओं के संग्रह ‘सदानीरा’ से यहाँ संकलित है ।

हिरोशिमा Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न सच्चिदानंद हीरानंद वात्सयायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित ‘हिरोशिमा’ शीर्षक कविता मानवीय विभीषिका का सजीवात्मक चित्रण करती है। ‘अज्ञेय’ आधुनिक हिन्दी साहित्य के एक प्रखर कवि, कथाकार, विचारक और पत्रकार हैं। उन्होंने हिन्दी कविता में प्रयोगवाद का सूत्रपात किया है। सात कवियों का चयन कर उन्होंने ‘तार सप्तक’ प्रस्तुत की यह सिद्ध कर दिया कि प्रयोगधर्मिता के द्वारा बासीपन से मुक्त कैसे हुआ जा सकता है।

प्रस्तुत कविता में कवि आज की वैश्विक राजनीति से उपजाते संकर और आशंकाओं को प्रदर्शित किया है। आज दुनिया आण्विक आयुधों को जमा करने में लगी है। विश्व में छायं काले त्रासदी के बादल ये संकेत कर रहे हैं कि कभी वीभत्सकारी रूप ले सकते हैं। ‘हिरोशिमा’ इसी शक्ति का शिकार हुआ है। आज भी वहाँ की त्रासदी कण-कण में प्रदीप्त दिख रही है। अमेरिका द्वारा गिराया गया ‘बम’ साधारण शक्तिवाला नहीं था। वह आग के गोली की तरह आकाश से उनर और पूरे हिरोशिमा को निःशेष कर गया। आज भी उस त्रासदी का दंश वहाँ के वासी झेल रहे हैं। मानव द्वारा निर्मित वह सूरज मानव को ही जलाकर राख कर दिया।

शब्दार्थ

अरं : पहिये की धुरी और परिधि या नमि को जोड़ने वाले दंड
गच : पत्थर या सीमेंट से बना पक्का धरातल
साखी (साक्षी) : गवाही, सबूत

Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 2 Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Political Science Solutions Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी

Bihar Board Class 10 Political Science लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती’। कैसे?
उत्तर-
प्रत्येक समाज में सामाजिक विभिन्नता पायी जाती है। समाज में विभिन्न धर्म, जाति, भाषा, समुदाय, लिंग इत्यादि के लोग रहते हैं जो सामाजिक विभिन्नता का सूचक है। यह आवश्यक नहीं है कि ये राजनीतिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का आधार हो, क्योंकि भिन्न समुदाय के विचार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन हित समान होगा। उदाहरण के लिए मुम्बई में मराठियों की हिंसा का शिकार व्यक्तियसों की जातियाँ भिन्न थीं, धर्म भिन्न थे और लिंग भी भिन्न हो सकता है, परन्तु उनका क्षेत्र एक ही था। वे सभी एक ही क्षेत्र विशेष के उत्तर भारतीय थे। उनका हित समान था। वे सभी अपने व्यवसाय और पेशा में संलग्न थे। उपर्युक्त कथनों के अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जायेगा कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं ले पाती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक अन्तर कब और कैसे सामाजिक विभाजनों का रूप ले लेते हैं?
उत्तर-
सामाजिक अन्तर एवं सामाजिक विभाजन में बहुत बड़ा अन्तर पाया जाता है। सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अन्तर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों और दलितों का अन्तर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित सम्पूर्ण देश में आमतौर पर गरीब, वंचित एवं बेघर हैं और भेदभाव के शिकार हैं जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं। अर्थात् दलितों को महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं। अतः हम कह सकते हैं कि जब एक तरह का सामाजिक अन्तर अन्य अन्तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। जैसे- अमेरिका में श्वेत और अश्वेत का अन्तर सामाजिक विभाजन है। वास्तव में उपर्युक्त कथनों के अध्ययन के बाद यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक अन्तर उस समय सामाजिक विभाजन बन जाता है जब अन्य अन्तरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है।

प्रश्न 3.
‘सामाजिक विभाजनों की राजनीति के परिणामस्वरूप ही लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है। भारतीय लोकतंत्र के संदर्भ में इसे स्पष्ट करें।
उत्तर-
सामाजिक विभाजन दुनिया के अधिकतर देशों में किसी-न-किसी रूप में मौजूद है और यह विभाजन राजनीतिक रूप अख्तियार करती ही है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के लिए सामाजिक विभाजनों की बात करना और विभिन्न समूहों से अलग-अलग वायदे करना स्वाभाविक बात है। हमारे देश भारत में लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था पायी जाती है। जनता अपने प्रतिनिधियों को मतदान के माध्यम से चुनकर देश की संसद या राज्य की विधानसभाओं में भेजती है।

भारतीय लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन का असर देश की राजनीति पर बहुत हद तक पड़ता है। साथ ही सरकार की नीतियाँ भी प्रभावित होती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की मांग को सरकार शुरू से खारिज करती रहती है तो आज भारत विखंडन के कगार पर होता। लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति एक सामान्य बात है और यह एक स्वस्थ राजनीतिक का लक्षण भी है। राजनीति में विभिन्न तरह के सामाजिक विभाजन की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों की बीच संतुलन पैदा करने का भी काम रहती है। परिणामतः कोई भी सामाजिक विभाजन एक हद से ज्यादा उग्र नहीं हो पाता और यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को मजबूत करने में सहायक भी होता है। लोग शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीक से अपनी मांगों को उठाते हैं और चुनावों के माध्यम से उनके लिए दबाव बनाते हैं। उनका समाधान पाने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक विभाजन की राजनीति के फलस्वरूप भारतीय लोकतंत्र के व्यवहार में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 4.
सत्तर के दशक से आधुनिक दशक के बीच भारतीय लोकतंत्र का सफर (सामाजिक न्याय के संदर्भ में) का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
सत्तर के दशक के पहले भारत की राजनीति सवर्ण सुविधापरस्त हित समूहों के हाथों में थी। अर्थात् 1967 तक भारतीय राजनीति में सवर्ण जातियों का वर्चस्व रहना। सत्तर से नब्बे तक के दशक के बीच सवर्ण और मध्यम पिछड़े के उपरान्त पिछड़ी जातियों का वर्चस्व तथा तथा दलितों की जागृति की अवधारणाएँ राजनीतिक गलियारों में उपस्थित दर्ज कराती रहीं और नीतियों को प्रभावित करती रहीं। भारतीय राजनीति के इस महामंथन में पिछड़े और दलितों का संघर्ष प्रभावी रहा। आधुनिक दशक के वर्षों में राजनीति का पलड़ा दलितों और महादलितों (बिहार के संदर्भ में) के पक्ष में झकता दिखाई दे रहा है। सरकार की नीतियों के सभी परिदृश्यों में दलित न्याय की पहचान सबके केन्द्र-बिन्दु का विषय बन गया है।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभाजनों की राजनीति का परिणाम किन-किन चीजों पर निर्भर करता है?
उत्तर-
सामाजिक विभाजन की राजनीति तीन तत्वों पर निर्भर करती है जो निम्नलिखित हैं

1. लोग अपनी पहचान स्व. अस्तित्व तक ही सीमित रखना चाहते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में राष्ट्रीय चेतना के अलावा उप-राष्ट्रीय या स्थानीय चेतना भी होती है। कोई एक घटना बाकी चेतनाओं की कीमत पर उग्र होने लगती है तो समाज में असंतुलन पैदा हो जाता है। भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि जबतक बंगाल बंगालियों का, तमिलनाडु तमिलों का, महाराष्ट्र मराठियों का, आसाम असमियों का, गुजरात गुजरातियों की भावना का दमन नहीं होगा तबतक भारत की अखण्डता, एकता तथा सामंजस्य खतरा में रहेगा। अतएव उचित यही है कि पहचान के लिए सभी चेतनाएँ अपनी-अपनी मर्यादा में रहें और एक दूसरे की सीमा में दखल न दें. सरे शब्दों में यह कह सकते हैं कि अगर लोग अपने बहु-स्तरीय पहचान को राष्ट्रीय पहचान का हिस्सा मानते हैं तो कोई समस्या नहीं हो सकती। उदाहरण स्वरूप-बेल्जियम के अधिकतर लोग खुद को बेल्जियाई (Belgian) ही मानते हैं, भले ही वे डच और जर्मन बोलते हैं। हमारे देश में भी ज्यादातर लोग अपनी पहचान को लेकर ऐसा ही नजरिया रखते हैं। भारत विभिन्नताओं का देश है, फिर भी सभी नागरिक सर्वप्रथम अपने को भारतीय मानते हैं। तभी तो हमारा देश अखण्डता और एकता का प्रतीक है।

2. किसी समुदाय या क्षेत्र विशेष की मांगों को राजनीतिक दल कैसे उठा रहे हैं। संविधान ” के दायरे में आने वाली और दूसरे समुदायों को नुकसान न पहुँचाने वाली माँगों को मान लेना आसान ‘ है। सत्तर के दशक के पूर्व के राजनीतिक स्वरूप तथा अस्सी एवं नब्बे के दशक में राजनीति परिदृश्य में बदलाव हुआ और भारतीय समाज में सामंजस्य अभी तक बरकरार है। इसके विपरीत युगोस्लाविया में विभिन्न समुदाय के नेताओं ने अपने जातीय समूहों की तरफ से ऐसी माँगें रखीं कि जिन्हें एक देश की सीमा के अन्दर पूरा करना संभव न था। इसी के परिणामस्वरूप युगोस्लाविया कई टुकड़ों में बँट गया।

3. सामाजिक विभाजन के राजनीति का परिणाम सरकार के खर्च पर भी निर्भर करता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इन मांगों पर क्या प्रतिक्रियाएं व्यक्त करती हैं। अगर भारत में पिछड़ों एवं दलितों के प्रति न्याय की माँग को सरकार शुरू से ही खारिज रहती तो आज भारत बिखराव के कगार पर होता। लेकिन सरकार ने इनके सामाजिक न्याय को चिह्न मानते हुए सत्ता में साझेदार बनाया और उनको देश की मुख्य धारा में जोड़ने का ईमानदारी से प्रयास किया। फलतः छोटे संघर्ष के बावजूद भी भारतीय समाज में समरसत्ता और सामंजस्य स्थापित है। पुनः बेल्जियम में भी सभी समुदायों के हितों को सामुदायिक सरकार में उचित प्रतिनिधित्व दिया गया। परन्तु . श्रीलंका में राष्ट्रीय एकता के नाम पर तमिलों के न्यायपूर्ण माँगों को दबाया जा रहा है। ताकत के दम पर एकता बनाये रखने की कोशिश अकसर विभाजन की ओर ले जाती है।

प्रश्न 6.
सामाजिक विभाजनों को संभालने के संदर्भ में इनमें से कौन-सा बयान लोकतांत्रिक व्यवस्था पर लागू नहीं होता?
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र में विभिन्न समुदायों के लिए शांतिपूर्ण ढंग से अपनी शिकायतें जाहिर करना संभव है।
(ग) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों को हल (accomodate) करने का सबसे अच्छा तरीका है।
(घ) लोकतंत्र सामाजिक विभाजनों के आधार पर (on the basis of social division) समाज विखण्डन (disintegration) की ओर ले जाता है।
उत्तर-
(क) लोकतंत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते सामाजिक विभाजनों की छाया (reflection) राजनीति पर भी पड़ता है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित तीन बयानों पर विचार करें
(क) जहाँ सामाजिक अन्तर एक दूसरे से टकराते हैं (Social differences overlaps), वहाँ सामाजिक विभाजन होता है।
(ख) यह संभव है एक व्यक्ति की कई पहचान (multiple indentities) हो।
(ग) सिर्फ भारत जैसे बड़े देशों में ही सामाजिक विभाजन होते हैं।

इन बयानों में स कौन-कौन से बयान सही हैं?
(अ) क, ख और ग
(ब) के और ख
(स) ख और ग
(द) सिर्फ ग
उत्तर-
(ब) के और ख

प्रश्न 8.
निम्नलिखित व्यक्तियों में कौन लोकतंत्र में रंगभेद के विरोधी नहीं थे?
(क) किग मार्टिन लूथर
(ख) महात्मा गांधी
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस
(घ) जेड गुडी
उत्तर-
(ग) ओलंपिक धावक टोमी स्मिथ एवं जॉन कॉलेंस

प्रश्न 9.
निम्नलिखित का मिलान करें
(क) पाकिस्तान
(अ) धर्मनिरपेक्ष
(ख) हिन्दुस्तान
(ब) इस्लाम
(ग) इंग्लैंड
(स) प्रोस्टेंट
उत्तर-
(क) (ब), (ख) (अ), (ग) (स)।

प्रश्न 10.
भावी समाज में लोकतंत्र की जिम्मेवारी और उद्देश्य पर एक अक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वर्तमान में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था संसार के अधिकतर देश अपना रहे हैं, क्योंकि लोकतंत्र में लोगों के कल्याण की बातों को प्रमुखता दी जाती है आज लोकतंत्र अपनी जड़ें जमा .. चुका है और यह धीरे-धीरे परिपक्वता की ओर अग्रसर है।

लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था एक ऐसी शासन-व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर संसद या विधानसभा में भेजते हैं। यह लोगों के कल्याण, सामाजिक समानता, आर्थिक समानता तथा धार्मिक समानता इत्यादि का पक्षधर है। इसी शासनतंत्र के अन्तर्गत लोक-कल्याणकारी राज्य बनाया जा सकता है। इस शासन-व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और वे प्रतिनिधि जनता की भलाई के लिए कार्य करते हैं।

वर्तमान समय में लोकतंत्र का क्रमिक विकास इस बात का सूचक है कि यह शासन-व्यवस्था औरों से अच्छी है लोकतंत्र एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण के साथ-साथ समाज का विकास भी संभव है। यह भावी समय के लिए एक ऐसा आधार प्रस्तुत करती है जिसमें लोगों के कल्याण की भावना छुपी है। लोकतंत्र का दीर्घकालीन उद्देश्य है-एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना जिसमें आम लोग का विकास, आर्थिक समानता, धार्मिक. समानता एवं सामाजिक समानता निहित होती है। इस प्रकार लोकतंत्र भावी समाज के लिए जिम्मेवारीपूर्ण कार्य करता है।

प्रश्न 11.
भारत में किस तरह जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?
उत्तर-
भारत में भिन्न जाति के लोग रहते हैं, चाहे वे किसी धर्म से संबंध रखते हों। यहाँ जातिगत विशेषताएँ पायी जाती हैं, क्योंकि भारत विविधताओं का देश है।
दुनिया भर के सभी समाज में सामाजिक असमानताएँ और श्रम विभाजन पर आधारित समुदाय विद्यमान है। भारत इससे अछूता नहीं है। भारत की तरह दूसरे देशों में भी पेशा का आधार वंशानुत है। पेशा एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में स्वयं ही चला आता है। पेशे पर आधारित सामुदायिक व्यवस्था ही जाति कहलाती है। यह व्यवस्था जब स्थायी हो जाती है तो श्रम विभाजन का अतिवादी रूप कहलाता है जिसे हम जाति के नाम से पुकारने लगते हैं। यह एक खास अर्थ में समाज में दूसरे समुदाय से भिन्न हो जाता है। इस प्रकार के वंशानुगत पेशा पर आधारित समुदाय जिसे हम जाति कहते हैं, की स्वीकृति ति-रिवाज से भी हो जाती है। इनकी पहचान एक अलग समुदाय के रूप में होती है और इस समुदा. के सभी व्यक्तियों की एक या मिलती-जुलती पेशा होती है। इनके बेटे-बेटियों को शादा-आपस के समुदाय में ही होती है और खान-पान भी समान समुदाय में ही होता है। अन्य समुदाय में इनके संतानों की शादी न तो हो सकती है, और न ही करने की कोशिश करते हैं। महत्वपूर्ण परिवारिक आयोजन और सामुदायिक आयोजन में अपने समुदाय के साथ एक पांत में बैठकर भोजन करते हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा देखा गया है कि अगर एक समुदाय के बेटा या बेटी दूसरे समुदाय के बेटा या बेटी से शादी कर लेते हैं तो उसे. पांत से काट दिया जाता है। अपने समुदाय से हटकर दूसरे समुदाय में वैवाहिक संबंध बनाने वाले परिवार को समुदाय से निष्कासित भी कर दिया जाता है।

प्रश्न 12.
क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते? इसके _ : दो कारण बतावें। .
उत्तर-
(i) किसी भी निर्वाचन क्षेत्र का गठन इस प्रकार नहीं किया गया है कि उसमें मात्र एक जाति के मतदाता रहें। ऐसा हो सकता है कि एक जाति के मतदाता की संख्या अधिक हो सकती है, परन्तु दूसरे जाति के मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अतएव हर पार्टी एक या एक से अधिक जाति के लोगों का भरोसा करना चाहता है।
(ii) अगर जातीय भावना स्थायी और अटूट होती तो जातीय गोलबंदी पर सत्ता में आनेवाली पार्टी की कभी हार नहीं होती है। यह माना जा सकता है कि क्षेत्रीय पार्टियाँ जातीय गुटों से संबंध बनाकर.सत्ता में आ जाये, परन्तु अखिल भारतीय चेहरा पाने के लिए जाति विहीन, साम्प्रदायिकता के परे विचार रखना आवश्यक होगा।

प्रश्न 13.
विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्योरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण दें।
उत्तर-
जब हम यह कहना आरंभ करते हैं कि धर्म ही समुदाय का निर्माण करता है तो साम्प्रदायिक राजनीति का जन्म होता है और इस अवधारणा पर आधारित सोच ही साम्प्रदायिकता कहलाती है। हम प्रत्येक दिन साम्प्रदायिकता की अभिव्यक्ति देखते हैं, महसूस करते हैं, यथा धार्मिक पूर्वाग्रह, परम्परागत धार्मिक अवधारणायें एवं एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ।

साम्प्रदायिकता की सोच प्रायः अपने धार्मिक समुदाय की प्रमुख राजनीति में बरकरार रखना चाहती है। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है, उदाहरणार्थ श्रीलंका में सिंहलियों का बहुसंख्यकवाद। यहाँ लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने भी सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपने बहुसंख्यकपरस्ती के तहत . कई कदम उठाये। यथा–1956 में सिंहली को एकमात्र राज्यभाषा के रूप में घोषित करना, विश्वविद्यालय और सरकारी नौकरियों में सिंहलियों को प्राथमिकता देना, बौद्ध धर्म के संरक्षण हेतु कई कदम उठाना आदि। साम्प्रदायिकता के आधार पर राजनीति गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इस हेतु पवित्र प्रतीकों; धर्मगुरुओं और भावनात्मक अपील आदि का सहारा लिया जाता है। निर्वाचन के वक्त हम अक्सर ऐसा देखते हैं। किसी खास धर्म के अनुयायियों से किसी पार्टी विशेष के पक्ष में मतदान करने की अपील करायी जाती है और अन्त में साम्प्रदायिकता का भयावह रूप तब हम देखते हैं, जब सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार होता है। : विभाजन के समय हमने इस त्रासदी को झेला है। आजादी के बाद भी कई जगहों पर बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई है। उदाहरण-नोआखली में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए।

प्रश्न 14.
जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र कर जिसमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव है या वे कमजोर स्थिति में हैं ?
उत्तर-
भारत एक विकासशील देश है। यहाँ स्त्रियों की स्थिति उतनी बेहतर नहीं है जितना एक विकसित देश में होती है। भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति से पहले स्त्रियों की स्थिति बहुत ही विकट थी और आजादी के बाद स्त्रियों की स्थिति में बहुत थोड़ा बदलाव आया लेकिन वह काफी नहीं था। अगर वर्तमान परिदृश्य में देखा जाय तो भारत में स्त्रियों की स्थिति में सुधार हुआ है, परन्तु उनके सुधार के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है।

भारत में समय-समय पर महिलाओं ने अपनी स्थिति को सुधारने के लिए या जागृति लाने के लिए समय-समय पर मान्दोलन किया। पुरुषों के बराबर दर्जा पाने के लिए गोलबंद होना आरंभ किया। सार्वजनिक बोवन के विभिन्न क्षेत्र पुरुष के कब्जे में है। यद्यपि मनुष्य जाति की आबादी में महिलाओं का हिस्सा आया है। आज महिलाएं वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालय शिक्षक इत्यादि पेशे में दिखाई पड़ती हैं, परन्तु हमारे देश में महिलाओं की तस्वीर अभी भी उतनी संतोषजनक नहीं है, अभी भी महिलाओं के साथ कई तरह के भेदभाव होते हैं। इस बात का संकेत निम्नलिखित तथ्यों से हमें प्राप्त होता है

  • महिलाओं में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54% है जबकि पुरुष 76%। यद्यपि स्कूली शिक्षा में कई जगह लड़कियाँ अव्वल रही हैं, फिर भी उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाली लड़कियों का प्रतिशत बहुत ही कम है। इस संदर्भ के लिए माता-पिता के नजरिये में भी फर्क है। माता-पिता की मानसिकता बेटों पर अधिक खर्च करने की होती है। यही कारण है कि उच्च शिक्षा में लड़कियों की संख्या सीमित है।
  • शिक्षा में लड़कियों के इसी पिछड़ेपन के कारण अब भी ऊँची तनख्वाह वाली और ऊँचे पदों पर पहुँचनेवाली महिलाओं की संख्या बहुत ही कम है।
  • यद्यपि एक सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत औसतन रोजना साढ़े सात घंटे से ज्यादा काम करती है, जबकि एक पुरुष औसतन रोज छ: घंटे ही काम करता है। फिर भी पुरुषों द्वारा किया गया काम ही ज्यादा दिखाई पड़ता है क्योंकि उससे आमदनी होती है। हालांकि औरतें भी ढेर सारे ऐसे काम करती हैं जिनसे प्रत्यक्ष रूप से आमदनी होती है। लेकिन इनका ज्यादातर काम घर की चहारदीवारी के अन्दर होती है। इसके लिए उन्हें पैसे नहीं मिलते। इसलिए औरतों का काम दिखलाई नहीं देता।
  • लैंगिक पूर्वाग्रह का काला पक्ष बड़ा दुखदायी है, जब भारत के अनेक हिस्से में माँ-बाप को सिर्प लड़के की चाह होती है। लड़की जन्म लेने से पहले हत्या कर देने की प्रवृति इसी मानसिकता का परिणाम है।

उपर्युक्त तथ्यों के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भारत में स्त्रियों की स्थिति कमजोर है, उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

प्रश्न 15.
भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
उत्तर-
भारत में महिला आन्दोलन की मुख्य मांगों में सत्ता में भागीदारी की मांग सर्वोपरि रही। औरतों ने यह सोचना प्रारंभ कर दिया कि जबतक औरतों का सत्ता पर नियंत्रण नहीं होगा, तबतक . इस समस्या का निपटारा नहीं होगा। परिणामस्वरूप राजनीतिक गलियचारों के इस बात की बहस … शुरू हो गयी कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे बेहतर तरीका यह होगा कि चुने हुए प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी बढ़ायी जाये। यद्यपि भारत के लोकसभा में महिला प्रतिनिधियों की संख्या 59 हो गयी है, फिर भी यह 11 प्रतिशत के नीचे है। पिछले लोकसभा चुनाव में 40% महिलाओं की पारिवारिक पृष्ठभूमि आपराधिक थी, परन्तु इस बार 15वीं लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने अपराधियों को नकार दिया। 90% महिला सांसद स्नातक हैं। महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ना लोकतंत्र के लिए शुभ है। अतः भारत की विधायिकाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरुषों की तुलना में बहुत कम है।

प्रश्न 16.
किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं
उत्तर-
हमारे संविधान में धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना के लिए अनेक प्रावधान किये गये हैं जिनमें दो इस प्रकार हैं

  • हमारे देश में किसी भी धर्म को राजकीय धर्म के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है। . श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम और इंगलैण्ड में ईसाई धर्म को जो दर्जा दिया गया ‘ है, उसके विपरीत भारत का संविधान किसी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता।
  • हमारे संविधान के अनुसार धर्म के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव असंवैधानिक घोषित है।

प्रश्न 17.
जब हम लगिक विभाजन की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय होता है
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।
(ख) समाज द्वारा स्त्रियों और पुरुषों को दी गयी असमान भूमिकाएँ।
(ग) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात।
(घ) लोकतांत्रिक व्यवस्था में महिलाओं को मतदान अधिकार न मिलना।
उत्तर-
(क) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर।

प्रश्न 18.
भारत में यहाँ औरतों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है-
(क) लोकसभा
(ख) विधानसभा
(ग) मंत्रीमण्डल
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ
उत्तर-
(घ) पंचायती राज्य संस्थाएँ

प्रश्न 19.
साम्प्रदायिक राजनीतिक के अर्थ संबंधी निम्न कथनों पर गौर करें। साम्प्रदायिक राजनीति किस पर आधारित है?
(क) एक धर्म दूसरे धर्म से श्रेष्ठ है।
(ख) विभिन्न धर्मों के लोग समान नागरिक के रूप में खुशी-खुशी साथ रहते हैं।
(ग) एक धर्म के अनुयायी एक समुदाय बनाते हैं।
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
उत्तर-
(घ) एक धार्मिक समूह का प्रभुत्व बाकी सभी धर्मों पर कायम रहने में शासन की शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 20.
भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन सही है ?
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।
(ख) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बनाता है।
(ग) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है।
(घ) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
उत्तर-
(क) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है।

प्रश्न 21.
……….पर आधारित विभाजन सिर्फ भारत में है।
उत्तर-
जाति, धर्म और लिंगा

प्रश्न 22.
सूची I और सूची II का मेल कराएं
Bihar Board Class 10 Political Science Solutions Chapter 1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी - 1
उत्तर-
1. (ख), 2. (क), 3. (ग), 4. (ग)

Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
संविधान के किस अनुच्छद में नागरिकों को स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है ?
(क) अनुच्छेद 15
(ख) अनुच्छेद 19
(ग) अनुच्छेद 18
(घ) अनुच्छेद 14
उत्तर-
(ख) अनुच्छेद 19

प्रश्न 2.
मैक्सिको ओलंपिक की घटना एक
(क) रंगभेद का
(ख) सांप्रदायिकता
(ग) जातिवाद का
(घ) आतंकवाद
उत्तर-
(क) रंगभेद का

प्रश्न 3.
देश को सामाजिक विभेद के कारण विखंडन का सामना करना पड़ा?
(क) श्रीलंका
(ख) बाल्जयम
(ग) यूगोस्लाविया
(घ) भारत
उत्तर-
(ग) यूगोस्लाविया

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में एक गलत बयान कौन-सा है ?
(क) लोकतंत्र में सामाजिक विभेद का राजनीति पर अवश्य प्रभाव पड़ता है।
(ख) लोकतंत्र सामाजिक विभेद के आधार पर देश को विखंडित करने में सहायक होता है।
(ग) लोकतंत्र को सामाजिक विभेद से उत्पन्न समस्याओं को हल ढूँढने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है।
(घ) लोकतंत्र में विभिन्न समुदाय अपनी मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से शासन के सामने उपस्थित कर सकते हैं।
उत्तर-
(ख) लोकतंत्र सामाजिक विभेद के आधार पर देश को विखंडित करने में सहायक होता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में एक सही बयान, कौन-सा है?
(क) बड़े लोकतांत्रिक देशों में ही सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं।
(ख) सामाजिक विभेद का राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
(ग) एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक व्यक्ति की कई पहचान होती है।
(घ) सामाजिक विभेद हमेशा लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध होते हैं।
उत्तर-
(ख) सामाजिक विभेद का राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का एक कारण बताएं ?
उतर-
सामाजिक विभेद की उत्पत्ति को एक प्रमुख कारण जन्म है।।

प्रश्न 2.
विविधता राष्ट्र के लिए कब घातक बन जाती है ?
उत्तर-
जब धर्म, क्षत्र, भाषा, जाति, संप्रदाय के नाम पर लोग आपस में उलझ पड़ते हैं, तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना देता है। विविधताएँ जब सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यंभावी हो जाता है तथा राष्ट्र के लिए घातक बन जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वधर्म समन्वय का एक उदाहरण प्रस्तत करें।
उत्तर-
भारत म मादरी के शहर वाराणसी में नाजनीन नामक एक मुस्लिम लड़की ने हनुमान-भक्तों की पवित्र पुस्तक हनुमान चालीसा को उर्दू में लिपिबद्ध कर सर्वधर्म समन्वय का एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया।

प्रश्न 4.
उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म के दो समूहों के प्रतिनिधित्व करनेवाली दो राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएँ। .
उत्तर-
उत्तरी आयरलैंड में एक ही धर्म को दो समूहों प्रोटेस्टैंटो और कैथोलिकों को प्रतिनिधित्व करनेवाली दो राजनीतिक पार्टियाँ थी-नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा यूनियनिस्ट पार्टियाँ।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभेद्रों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम बताएं।
उत्तर-
सामाजिक विभेदों की राजनीति का एक अच्छा परिणाम यह है कि अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीति में अटूट संबंध देखने को मिलता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में कैसे बदल जाता है?
उत्तर-
लोकतंत्र में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के बीच प्रतिद्वन्द्विता का माहोल होता है। इस प्रतिद्वन्द्विता के कारण कोई भी समाज फूट का शिकार बन सकता है। अगर राजनीतिक दल समाज में मौजूद विभाजनों को हिसाब से राजनीतिक होड़ करने लगे तो इससे सामाजिक विभाजन राजनीतिक विभाजन में बदल सकता है और ऐसे में देश विखंडन की तरफ जा सकता है। ऐसा कई देशों में हो चुका है।

प्रश्न 2.
‘विविधता में एकता’ का अर्थ बताएँ।
उत्तर-
विविधता में एकता भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की अपनी विशेषता रही है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। भारत में विविधता धार्मिक तथा सांस्कृतिक आधार पर है। हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख तथा ईसाई विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग भारत में हैं तथा उनकी सांस्कृतिक पहचान भी अलग-अलग है। लेकिन एक-दूसरे के पर्व-त्योहारों में वे शरीक होते हैं तथा वे अलग-अलग होते हुए पहले वे भारतवासी हैं। इसलिए कहा जाता है कि भारत में विविधता ये भी एकता विद्यमान है।

प्रश्न 3.
सामाजिक विभेद किस प्रकार सामाजिक विभाजन के लिए उत्तरदायी है ? …
उत्तर-
समाज में व्यक्ति के बीच कई प्रकार के सामाजिक विभेद देखने को मिलते हैं जैसे जाति के आधार पर विभेद, आर्थिक स्तर पर विभेद धर्म के आधार पर तथा भाषाई आधार पर विभेद। ये सामाजिक विभेद तब सामाजिक विभाजन का रूप ले लेती हैं. जब इनमें से कोई एक सामाजिक विभेद दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं। जब किसी एक समूह को यह महसूस होने लगता है कि वे समाज में बिल्कुल अलग हैं तो उसी समय सामाजिक विभाजन प्रारंभ हो जाता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक विभेद एवं सामाजिक विभाजन का अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
जब हम क्षेत्र में रहनेवाले विभिन्न जाति, धर्म, भाषा, संप्रदाय के द्वारा लोगों के बीच विभिन्नताएं पाई जाती हैं तो वे सामाजिक विभेद का रूप धारण कर लेते हैं। वहीं दूसरी तरफ – धन, रंग, क्षेत्र के आधार पर विभेद सामाजिक विभाजन का रूप ले लेता है। श्वेतों का अश्वेतों
के प्रति, अमीरों का गरीबों के प्रति व्यवहार सामाजिक विभाजन का कारण बन जाता है। भारत में सवर्णों और दलितों का अंतर सामाजिक विभाजन का रूप ले रखा है।

प्रश्न 5.
सामाजिक विभेदों में तालमेल किस प्रकार स्थापित किया जाता है ?
उत्तर-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक होता है परंतु ‘विविधता में एकता’ भी लोकतंत्र का ही एक गुण है। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को गले लगाया जाता है। एक धर्मनिरपेक्ष ये विभिन्न धर्म, भाषा तथा संस्कृति के लोग एक साथ मिलजुलकर रहते हैं। उनमें यही धारणा विकसित हो जाती है कि उनके धर्म, भाषा रीति-रिवाज अलग-अलग तो अवश्य है परंतु उनका राष्ट्र एक है। बेल्जियम की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विभिन्न भाषा-भाषी एवं क्षेत्र के लोगों के बीच अच्छा तालमेल है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं लेती। कैसे?
उत्तर-
यह आवश्यक नहीं है कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप ले ले। सामाजिक विभिन्नता के कारण लोगों में विभेद की विचारधारा अवश्य बनती है, परन्तु यही विभिन्नता कहीं-कहीं पर समान उद्देश्य के कारण मूल का काम भी करती है। सामाजिक विभाजन एवं विभिन्नता में बहुत बड़ा अंतर है।

सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। सवर्णों एवं दलितों के बीच अंतर एक सामाजिक विभाजन है, क्योंकि दलित संपूर्ण देश में आमतौर पर गरीब वंचित, सुविधाविहिन एवं भेदभाव के शिकार हैं, जबकि सवर्ण आमतौर पर सम्पन्न एवं सुविधायुक्त हैं। दलितों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं।

परंतु इन सबके बावजूद जब क्षेत्र अथवा राष्ट्र की बात होती है तो सभी एक हो जाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हर सामाजिक विभिन्नता सामाजिक विभाजन का रूप नहीं हो तो।

प्रश्न 2.
सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों पर प्रकाश डालें। ..
उत्तर-
किसी भी समाज में सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के अनेक कारण होते हैं। प्रत्येक . समाज में विभिन्न भाषा, धर्म, जाति संप्रदाय एवं क्षेत्र के लोग रहते हैं। इन सबों के आधार पर उनमें विभेद बना रहता है। सामाजिक विभेद का सबसे मुख्य कारण जन्म को माना जाता है। किसी व्यक्ति का जन्म किसी परिवार विशेष में होता है। उस परिवार का संबंध किसी न किसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा क्षेत्र से होता है। इस तरह उस व्यक्ति विशेष का संबंध भी उसी जाति, समुदाय, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र से हो जाता है। इस प्रकार जाति, समुदाय, धर्म, भाषा, क्षेत्र के नाम पर सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।

कुछ अन्य प्रकार से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं जिनका जन्म से कोई संबंध नहीं। होता है। जैसे लिंग, रंग, नस्ल; धन आदि भी विभेद लोगों में पाया जाता है जो कालांतर में सामाजिक विभेद का रूप ले लेते हैं। स्त्री-पुरुष; काला-गोरा लंबा-नाटा, गरीब-अमीर, शक्तिशाली और कमजोर का विभेद भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति का कारण होते हैं। व्यक्तिगत पसंद से भी सामाजिक विभेद की उत्पत्ति होती है। कई व्यक्ति धर्म परिवर्तन करके एक अलग समुदाय बना लेते हैं। कुछ लोग अंतरजातीय विवाह संबंध स्थापित कर अपनी अलग पहचान बना लेते हैं। कुछ लोग अपने परिवार की परंपराओं से हटकर अलग विषय का अध्ययन करने, पेशे, खेल, उद्योग-धंधे तथा सांस्कृतिक गतिविधियों का चयन कर अलग सामाजिक समूह के सदस्य बन जाते हैं और इस तरीके से भी सामाजिक विभेद उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 3.
सामाजिक विभेदों में तालमेल और संघर्ष पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
लोकतंत्र में विविधता स्वाभाविक है। परंतु विविधता में बनता भी लोकतंत्र का ही 24 गुण है। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत को अपनाया जाता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में विभिन्न धर्मों के माननेवाले लोग मिल-जुलकर साथ रहते हैं। उनमें यह धारणा .. विकसित हो जाती है कि उनके धर्म अलग-अलग अवश्य हैं, परंतु उनका राष्ट्र एक है। एक से सामाजिक असमानताएँ कई समूहों में मौजूद हों तो फिर एक समूह के लोगों के लिए दूसरे समूहों से अलग पहचान बनाना मुश्किल हो जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी एक मुद्दे पर कई समूहों के हित एक जैसे हो जाते हैं। विभिन्नताओं के बावजूद लोगों में सामंजस्य का भाव पैदा होता है। उत्तरी आयरलैंड और नीदरलैंड दोनों ही ईसाई बहुल देश हैं। उत्तरी आयरलैंड में वर्ज और धर्म के बीच गहरी समानता है।

सामाजिक विभाजन तब होता है जब कुछ सामाजिक अंतर दूसरी अनेक विभिन्नताओं से ऊपर और बड़े हो जाते हैं। अमरीका में श्वेत और अश्वेत का अंतर एक सामाजिक विभाज्य भी बन जाता है क्योंकि अश्वेत लोग आमतौर पर गरीब हैं, बेघर हैं तथा भेदभाव का शिकार हैं। हमारे देश में भी दलित आमतौर पर गरीब और भूमिहीन हैं। उन्हें भी अक्सर भेदभाव और अन्याय का शिकार होना पड़ता है। जब एक तरह का सामाजिक अंतर अन्य अंतरों से ज्यादा महत्वपूर्ण बन जाता है और लोगों को यह महसूस होने लगता है कि वे दूसरे समुदाय के हैं तो इससे एक सामाजिक विभाजन की स्थिति पैदा होती है। विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए लाभदायक नहीं हो सकती।

Bihar Board Class 10 History लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी Notes

  • लोकतांत्रिक राज्य में केवल भाषा और क्षेत्र की विविधता ही नहीं होती है, वरन ग धर्म जाति संप्रदाय लिंग जैसे विभेद भी अवश्य देखने को मिलते हैं।
  • लोकतांत्रिक राज्यों में जनता के बीच विभिन्नताओं असमानताओं तथा विभेदों के रहते हुए भी उनके बीच तालमेल स्थापित किया जाता है।
  • लोकतंत्र सैद्धांतिक रूप से समानता पर आधृत शासन-पद्धति है।
  • विभिन्न लोकतांत्रिक पद्धतियों में विरोधाभास के उदाहरण भी मिलते हैं जिसे विद्वानों ने लोकतंत्र में इंद्व की भी संज्ञा दी है।
  • लोकतंत्र में विविधता तथा विभिन्नताओं के कारण सामाजिक विभाजन की संभावना बनी रहती है।
  • सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति के कारणों में जन्म सबसे बड़ा कारण होता है। जन्म के अतिरिक्त व्यक्तिगत विभेद तथा व्यक्तिगत पसंद के कारण भी सामाजिक विभेदों की उत्पत्ति होती है।
  • सामाजिक विभेद ही सामाजिक विभाजन और सामाजिक संघर्ष के लिए मूलरूप से उत्तरदायी है।
  • विविधता कभी-कभी सामाजिक एकता को बनाए रखने में भी सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेद हमेशा सामाजिक विभाजन का कारण बने, यह आवश्यक नहीं है।
  • भिन्न-भिन्न जाति के लोग भी समान धर्म में आस्था रखते हुए सामाजिक विभेद को मिटाने में सहायक होते हैं।
  • लोकतंत्र में विविधता स्वामित्व है, परंतु विविधता में एकता भी लोकतंत्र का ही एक गुण है।
  • सामाजिक विभेद लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक भी है। धर्म धन क्षेत्र भाषा जाति संप्रदाय के नाम पर आपस में उलझना लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर बना डालता है। इससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।
  • जब तक विविधताएँ एक सीमा में रहती है तब तक कोई परेशानी नहीं होती है, परंतु जब विविधताएँ सीमा का उल्लंघन करने लगती है तब सामाजिक विभाजन अवश्यभावी हो जाता है और आपसी संघर्ष में वृद्धि हो जाती है।
  • जब सामाजिक विभेद अन्य विभेदों से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है तब स्वाभाविक रूप से सामाजिक विभाजन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • विभिन्नताओं में टकराव की स्थिति लोकतानिक व्यवस्था के लिए घातक है।
  • सामाजिक विभेदों का लोकतांत्रिक राजनीति पर प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता है। विभिन्न राजनीतिक दलों का गठन भी सामाजिक विभेदों के आधार पर होता है। उत्तरी आयरलैंड में नेशनलिस्ट पार्टियाँ तथा युनियननिष्ट पार्टियों का गठन प्रोटेस्टेंटो और कैथोलिको का प्रतिनिधित्व करने के लिए हुआ है। विभिन्न राजनीतिक दल अपनी प्रतिदिता का आधार भासामाजिक विभेद को बना लेते हैं।
  • जब सामाजिक विभेद सजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब देश का विखंडन अवश्यभावी हो जाता है। यूगोस्लाविया इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति के अच्छे परिणाम भी देखने को मिलते हैं। अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सामाजिक विभेद और राजनीतिक में अटूट संबंध देखने को मिलता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति के परिणाम तीन बातों पर निर्भर करते हैं- स्वयं की पहचान की चेतना, समाज के विभिन्न समुदायों की मांग को राजनीतिक दलों द्वारा उपस्थित करने का तरीका तथा सरकार की मांगों के प्रति सोच।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति का हमेशा गलत परिणाम होगा, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। सच तो यह है कि सामाजिक विभेदों की राजनीति लोकतंत्र को सशक्त करने में सहायक होता है।
  • सामाजिक विभेदों की राजनीति से लोकतांत्रिक व्यवस्था में संघर्ष और हिंसा की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है, परंतु इसपर काबू करने का प्रयास भी होता रहता है।
  • सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम अच्छा ही हो, इसके लिए शासन को कुछ सावधानियां बरतने की आवश्यकता है।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 9 हमारी नींद

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 9 हमारी नींद Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 9 हमारी नींद

Bihar Board Class 10 Hindi हमारी नींद Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि एक बिप्य की रचना करता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि वीरेन डंगवाल ने मानव जीवन एक बिंब उपस्थित किया है। सुविधाभोगी आरामपसंद जीवन नींद रूपी अकर्मण्यता के चादर से अपने आपको ढंककर जब सो जाता है तब भी प्रकृति के वातावरण के एक छोटा बीज अपनी कर्मठता रूपी सींगों से धरती के सतह रूपी संकटों को तोड़ते हुए आगे बढ़ जाता है। यहाँ नींद, अंकुर, कोमल सींग, फूली हुई बीज, छत ये सभी बिम्ब रूप में उपस्थित है।

हमारी नींद Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का क्या आशय है ?
उत्तर-
मक्खी के जीवन-क्रम का कवि द्वारा उल्लेख किये जाने का आशय है निम्न स्तरीय जीवन की संकीर्णता को दर्शाना। सष्टि में अनेक जीवन-क्रम चलता रहता है। उसका जीवन-क्रम की व्यापकता को लेकर कर्मठता और अकर्मठता का बोध कराता है लेकिन मक्खी के जीवन-क्रम केवल सुविधापयोगी एवं परजीवी-जीवन का बोध कराता है।

Class 10th Hindi Godhuli Question Answer प्रश्न 3.
कवि गरीब बस्तियों का क्यों उल्लेख करता है ?
उत्तर-
कवि गरीब बस्तियों के उल्लेख के माध्यम से कहना चाहता है कि जहाँ के लोग दो जून रोटी के लिए काफी मसक्कत करने के बाद भी तरसते हैं वहाँ पूजा-पाठ, देवी जागरण जैसे महोत्सव कितना सार्थक हो सकता है ? यहाँ कुछ स्वार्थी लोग अपनी उल्लू सीधा करने के लिए गरीब लोगों का उपयोग करते हैं। लेकिन गरीबी से ग्रसित लोग अपने वास्तविक विकास हेतु सचेत नहीं होते हैं।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10 Bihar Board प्रश्न 4.
कवि किन अत्याचारियों का और क्यों जिक्र करता है?
उत्तर-
कवि यहाँ उन अत्याचारियों का जिक्र करता है जो हमारी सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन से लाभ उठाते हैं। समाज का एक वर्ग जो ऐशो-आराम की जिंदगी में अपने आपको ढाल लेता है उसी का लाभ अत्याचारी उठाते हैं। हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जाने वाले जीवन नहीं रह पाते हैं और इस अवस्था में अत्याचारी अत्याचार करने के बाह्य और आंतरिक सभी साधन जुटा लेते हैं।

Bihar Board 10th Class Hindi Book Pdf प्रश्न 5.
इनकार करना न भूलने वाले कौन हैं ? कवि का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे हठधर्मी हैं जो संवैधानिक और वैधानिक स्तर पर ‘कई गलतियाँ कर जाते हैं लेकिन अपनी भूलें या गलतियों को स्वीकार नहीं करते हैं। वे साफ तौर पर अपनी भूल को इनकार कर देते हैं। जैसे लगता है कि उनका दलील काफी साफ और मजबूत है।

Class 10 Hindi Kavita Bihar Board प्रश्न 6.
कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर-
किसी भी कविता का शीर्षक कवितारूपी शरीर का मुख होता है। शीर्षक कविता की सारगर्भिता लिए रहता है। शीर्षक रखने के समय कुछ बातें इस प्रकार होती हैं-शीर्षक, सार्थक लघु और समीचीन होना चाहिए। साथ ही शीर्षक घटना प्रधान, जीवन प्रधान या विषय-वस्तु प्रधान होता है। यहाँ शीर्षक विषय-वस्तु प्रधान हैं। शीर्षक छोटा है और आकर्षक भी है। इसका शीर्षक पूर्ण रूप से केन्द्र में चक्कर लगाता है जहाँ शीर्षक सुनकर ही जानने की इच्छा प्रकट हो जाता है। अत: सब मिलाकर शीर्षक सार्थक है।

Hindi Kavita For Class 10 Bihar Board प्रश्न 7.
व्याख्या करें-
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
उत्तर –
प्रस्तुत पद्यांश हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल के द्वारा लिखित ‘हमारी नींद’ से ली गई है। इस अंश में कवि उन लोगों का चित्र खींचा है जो गरीब बस्तियों में जाकर अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए देवी जागरण जैसे महोत्सव का आयोजन करते हैं।

कवि कहते हैं कि आज भी हमारे समाज में कुछ ऐसे स्वार्थपरक लोग हैं जिनके हृदय में गरीबों के प्रति हमदर्दी नहीं है। केवल उनसे समय-समय पर झूठे -वादे करते हैं। नेता, पूँजीपति एवं अत्याचारी ये सभी गरीबों की आंतरिक व्यथा से खिलवाड़ कर उनकी विवशता से लाभ उठाते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution In Hindi प्रश्न 8.
‘याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिन्दी साहित्य के हमारी नींद नामक शीर्षक से उद्धृत है। कवि वीरेन डंगवाल सामाजिक अत्याचारियों के करतूतों का पर्दाफाश किये हैं।
आज हमारे समाज में अनेक लोग हैं जो अपनी जिंदगी को आरामतलबी बना लिये हैं। ऐसी जिंदगी समाज और राष्ट्र के लिए खतरनाक परिधि में रहती है और इन्हीं में से कुछ लोग ऐसे हैं जो इनकी विवशता का लाभ उठाने के लिए गलत अंजाम देने में पीछे नहीं हटते हैं। अत्याचारी आंतरिक और बाह्य रूप से अपने स्वार्थपूर्ति के लिए सभी प्रकार के साधन अपनाते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions प्रश्न 9.
“हमारी नींद के बावजूद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्य-पुस्तक के “हमारी- नींद” नामक शीर्षक से उद्धृत है। इस अंश में हिन्दी काव्यधारा के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने वैसे लोगों का चित्रण किया है जो आरामतलबी जीवन पंसद करते हैं।
प्रस्तुत अंश में कवि कहते हैं कि जीवन-क्रम कभी रुकता नहीं है। समय-चक्र के समान बिना किसी की प्रतीक्षा किये हुए अनवरत आगे ही बढ़ता जाता है। यदि हमारे समाज के कोई भी व्यक्ति सुविधोपयोगी आराम पसंद जीवन पसंद करते हैं तो भी कहीं एक पक्ष जरूर ऐसा होता है जिसका सिलसिला हमेशा आगे बढ़ते जाता है जो कर्मवाद का संदेश देता है।

Bihar Board Hindi Solution प्रश्न 10.
‘हमारी नींद’ कविता का सारांश अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर-
समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने हमारी नींद’ कविता में विभिन्न चित्रों के माध्यम से सुविधाभोगी जीवन और हमारी बेपरवाही के बावजूद बेहतर जिन्दगी के लिए चलने वाले संघर्ष का चित्रण बड़ी स्पष्टता से किया है।

कवि कहता है कि छोटी धरती के नीचे बीज अंकुरा और उस छोटे अंकुर ने अपने ऊपर की धरती को दरकाया और खुली हवा में उसने साँस ली। उसने अपने ऊपर के अवरोध को तोड़ा। पेड़ ने भी अपना कद ऊँचा किया।

प्रकृति के इस क्रम के बाद कवि समाज की ओर निहारता है। मक्खियों की तरह लोग जी रहे हैं और उनकी तरह ही बच्चे उत्पन्न कर रहे हैं। नतीजा है कि जीवन की इस अफरा-तफरी में ही रंगे हो रहे कुछ लोग आगजनी कर रहे हैं, बम फोड़ रहे हैं ताकि अपने लिए सुविधा का सामान जुटा सकें। कुछ की जिन्दगी जाती है तो जाए। हमें क्या ?

दूसरी ओर कुछ गरीब लोग हैं जो अपनी गरीबी को अपना नसीब मान चुके हैं, वे गरीबी से छुटकारा पाने के लिए लड़ने की अपेक्षा अपनी गाढ़ी कमाई में लाउडस्पीकर लगाकर, रात-रात भर देवी के भजन गा रहे हैं वे इस भ्रम में हैं कि देवी-पूजा से उनका जीवन बदल जाएगा। वस्तुतः वे नींद में हैं। दरअसल भाग्य, पूजा-पाठ समाज के दुश्मनों के बिछाए हुए जाल हैं ताकि ये अत्याचारी आनन्द-सुख भोग सकें। किन्तु जीवन ऐसा है कि उनके लाख चाहने के बाद रुकता नहीं है। उपेक्षाकृत से उस पर कोई असर नहीं पड़ता।

कवि कहता है कि लाख कोशिशों के बावजूद कुछ लोग हैं जो अनाचार के आगे सिर नहीं झुकाते। वे दृढतापूर्वक अनुचित कार्य करने से मना कर देते हैं। उनकी ओर से आँख बन्द कर लेने पर भी वे रुकते नहीं, बढ़ते जाते हैं। यह संघर्ष ही उनकी ताकत है, मानव के विकास की यही कहानी है।

प्रश्न 11.
कविता में एक शब्द भी ऐसा नहीं है जिसका अर्थ जानने की कोशिश करनी पड़े। यह कविता की भाषा की शक्ति है या सीमा ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यह भाषा की शक्ति है जो अपने साधारण अर्थ से सबकुछ समझाने में सफल हो जाती है। सीमा का रूपान्तर नहीं होता है किन्तु भाषा का रूपान्तर कविता की सौष्ठवता को प्रदर्शित करने में समर्थ हो जाती है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित के दो-दो समानार्थी शब्द लिखें-
पेड़, शिशु, दंगा, गरीब, अत्याचारी, हठीला, साफ, इनकारा
उत्तर-
पेड़ – तरू, वृक्ष
शिशु- बालक, बाल
दंगा – सांप्रदायिकता, सांप्रदायिक युद्ध
गरीब – दीन, निर्धन
अत्याचारी – दुराचारी
हठीला – स्थैर्य, अडिग रहने वाला
साफ – एकदम, बेहिचक
इनकार – मनाही, मना करना।

प्रश्न 2.
निम्नांकित वाक्यों में कर्ता कारक बताएँ
(क) मेरी नींद के दौरान / कुछ इंच बढ़ गए / कुछ सूत पौधे।
(ख) अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से धकेलना शुरू की। बीज की फूली हुई। छत भीतर से।
(ग) गरीब बस्तियों में भी / धमाके से हा देवी जागरण लाउडस्पीकर पर।
(घ) मगर जीवन हठीला फिर भी : बढ़ता ही जाता आगे / हमारी नींद के बावजूद।
उत्तर-
(क) पौधे
(ख) अंकुर
(ग) देवी जागरण
(घ) जीवन

प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों में कर्मकारक की पहचान कीजिए
(क)अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से / धकेलना शुरू की / बीज की फूली हुई / छत भीतर से।
(ख) कई लोग हैं / अभी भी / जो भूले नहीं करना , साफ और मजबूत / इनकार।
उत्तर-
(क) छत
(ख) इनकार

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए, और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता-हमारी नींद।
कवि-वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग हिन्दी साहित्य के समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल ने प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से सुविधाभोगी, आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जीवन का चित्रण किया है।

(ग) सरलार्थ प्रस्तुत पद्यांश में कवि एक बिम्ब की रचना करते हैं जो मानव जीवन और मानवेत्तर प्राणियों के आंतरिक और बाह्य जीवन चक्र, संघर्षशीलता के साथ चल रहे हैं। कवि स्वयं कविता के केन्द्र में बिम्ब के रूप में उपस्थित होकर कहता है कि जब मैं सुविधाभोगी बनकर आराम की नींद में सो रहा था तो इधर प्रकृति अन्य प्राणियों के जीवनक्रम को आगे बढ़ा रही थी। प्रकृति के आगोश में पलने वाले पेड़-पौधे के बीज भी धरातल के अन्दर प्रवेश कर अपने अंकुररूपी कोमल सींगों से बीज की छत को धकेल कर कुछ इंच पौधे के रूप में आगे बढ़ आये हैं। उसी प्रकार मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ तो इस जीवन क्रम में कई शिशु उत्पन्न हुए, उनमें से कई मारे गये। कई जगह दंगे-फसाद, आगजनी और बमबारी से मानव और मानवेत्तर प्राणियों का जीवनक्रम चलता रहा।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत पद्यांश में कवि आराम तलबी, विलासिता में लिप्त जो मानव जीवन-यापन करते हैं और उनके ही इर्द-गिर्द घूमने वाले अन्य प्राणियों का जीवन-चक्र किस तरह से चलता है इसी का यहाँ दार्शनिक आकलन किया गया है। कवि मानवीय जीवन की लधुता और विधाता के समय की व्यापकता के माध्यम से कहता है कि मानव जीवन अति लघु है। इस लघु जीवन दुःख-सुख, जुल्म-अत्याचार, सहते हुए जीवन को विकास क्रम में ले जाना है। अतः विलासितापूर्ण जीवन को छोड़कर जीवन की यथार्थता को समझना चाहिए।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में रचित है।
(ii) छंद मुक्त होते हुए भी कहीं-कहीं कविता में संगीतमयता आ गयी है।
(iii) कवि की भाषा सरल और सुबोध है।
(iv) बिम्ब-प्रतिबिम्ब की झलक कविता की लाक्षणिकता पूर्णरूप से प्रकट होती है।
(v) भाव के अनुसार भाषा का वर्णन कविता की परिपक्वता दिखाई पड़ रही है।

2. गरीब बस्तियों में भी ।
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउडस्पीकर पर।
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूले नहीं करना
साफ और मजबूत
इनकार।

प्रश्न
(क) कवि तथा कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) दिये गये पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कविता- हमारी नींद।
कवि- वीरेन डंगवाल।

(ख) प्रसंग-पस्तुत पद्यांश में कवि काल-क्रम की व्यापक एवं संघर्षशील गतिविधियों के दार्शनिक रूप का वर्णन करता है। जीवन-क्रम में जीव-जंतु से लेकर मानवीय जीवन जो प्रभावित होता है उनमें विपरीत परिस्थितियाँ जीवन को कुछ कहने-सुनने के लिए बाध्य करती है। यहाँ कवि यह बताना चाहता है कि सर्वदा सामंतशाहियों के चक्र में कमजोर और ईमानदार पिसता रहा है।

(ग) सरलार्थ-कवि मानव जीवन-क्रम का चित्रण करते हुए कहता है कि जहाँ झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोग हैं जो केवल किसी तरह से अपने पेट की ज्वाला शांत करने की अपेक्षा कुछ नहीं जानते हैं। वहाँ भी विलासी लोग भगवती जागरण तथा अन्य ढोंगी कार्यक्रम के आड़ में लाउडस्पीकर बजवाकर ठगने का कार्य करते हैं। साथ ही समाज के कुछ लोग सुशिक्षित होकर भी मानवता की परिभाषा को झुठलाते हुए अत्याचारियों के द्वारा जुटाये गये साधनों को मूक होकर देखते रहते हैं। हम आराम तलबी जिंदगी में कर्महीनता का परिचय देकर मानवता को कलंकित करने में पीछे नहीं हट रहे हैं। इनमें आज भी ऐसे लोग हैं जो अपने सामने कमजोर, बेबस, मजबूर लोगों पर अत्याचारियों के द्वारा होते अत्याचार को देखकर केवल यह सोचकर चुप रह जाते हैं कि यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

(घ) भाव-सौंदर्य प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि आज के परिवेश में मनुष्य केवल स्वार्थपरता पर केन्द्रित है। साथ ही साथ कहा जा रहा है कि जमाना बाह्य जगत से काफी खतरनाक पैमाने पर टूट रहा है। लोग सच्चाई से मुख मोड़ रहे हैं।

(ङ) काव्य-सौंदर्य-
(i) सम्पूर्ण कविता खड़ी बोली में है।
(ii) तद्भव तत्सम के साथ-साथ कहीं-कहीं उर्दू शब्दों का भी समागम हुआ है।
(iii) पूरी कविता लक्षण शक्ति पर आधारित है।
(iv) भाव के अनुसार कविता में ओज गुण के लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं।
(v) अलंकार और छंद के विशेष परिस्थितियों से दूर रहने पर भी कविता के उद्देश्य में अंतर नहीं आया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
‘हमारी नींद’ के रचयिता कौन हैं ?
(क) सुमित्रानंदन पंत
(ख) वीरेन डंगवाल
(ग) रामधारी सिंह दिनकर
(घ) कुँवर नारायण
उनर-
(ख) वीरेन डंगवाल

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल किस विचारधारा के कवि हैं ?
(क) जनवाद
(ख) रहस्यवादी
(ग) रीतिवादी
(घ) सूफी
उत्तर-
(क) जनवाद

प्रश्न 3.
‘हमारी नींद’ में ‘नींद’ किसका प्रतीक है?
(क) गफलत
(ख) बेहोशी
(ग) पागलनपन
(घ) मदहोशी
उत्तर-
(क) गफलत

प्रश्न 4.
‘दुश्चक्र में सृष्टा’ पुस्तक पर वीरेन डंगवाल को कौन-सा पुरस्कार प्राप्त हुआ?
(क) ज्ञानपीठ
(ख) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
(ग) साहित्य अकादमी
(घ) नोबेल पुरस्कार
उत्तर-
(ग) साहित्य अकादमी

प्रश्न 5.
हमारी नींद’ कैसी कविता है ?
(क) समकालीन
(ख) नकेनवादी
(ग) हालावादी
(घ) छायावादी
उत्तर-
(क) समकालीन

प्रश्न 6.
कवि वीरेन डंगवाल के अनुसार जीवन में महत्त्वपूर्ण क्या है ?
(क) सुख
(ख) नकेनवादी
(ग) भ्रमण
(घ) संघर्ष
उत्तर-
(घ) संघर्ष

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल ………….. परिवर्तन के पक्षधर हैं।
उत्तर-
जनवादी

प्रश्न 2.
‘हमारी नींद’ कविता काव्य-संकलन …….से संकलित है।
उत्तर-
दुष्चक्र में स्रष्टा

प्रश्न 3.
मेरी नींद के दौरान कुछ इंच बढ़ गए ………… ।
उत्तर-
पंड

प्रश्न 4.
कई लोग मारे गए दंगे, आगजनी और …….. में।
उत्तर-
बमबारी

प्रश्न 5.
गरीब बस्तियों में भी धमाके से हुआ ………. जागरण।
उत्तर-
देवी

प्रश्न 6.
डंगवाल की कविताओं के दृश्य “………” करनेवाले हैं।
उत्तर-
बेचैन

प्रश्न 7.
नाजिम हिकमत ………. भाषा के महाकवि हैं।
उत्तर-
तुकी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वीरेन डंगवाल का जन्म कहाँ हुआ है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल का जन्म उत्तरांचल के कीर्तिनगर में हुआ।

प्रश्न 2.
वीरेन डंगवाल ने काव्य रचना के अलावा क्या कर हिन्दी को समृद्ध किया है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल ने काव्य-रचना के अलावा विश्व के श्रेष्ठ कवियों की कविताओं का अनुवाद कर हिन्दी को समृद्ध किया है।

प्रश्न 3.
यथार्थ को डंगवाल किस प्रकार प्रस्तुत करते हैं?
उत्तर-
यथार्थ को डंगवाल बिल्कुल नये अंदाज में प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 4.
वीरेन डंगवाल कैसे कवि हैं ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल जनवादी परिवर्तन के पक्षधर प्रमुख सामयिक कवि हैं।

प्रश्न 5.
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश क्या है ?
उत्तर-
‘हमारी नींद’ कविता का संदेश है संघर्ष ही जीवन है।

प्रश्न 6.
वीरेन डंगवाल की काव्य भाषा कैसी है ?
उत्तर-
वीरेन डंगवाल की काव्य-भाषा में देशी ठाठ दिखाई देता है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
मेरी नींद के दौरान
कुछ इंच बढ़ गए पेड़
कुछ सूत पौधे
अंकुर ने अपने नाममात्र कोमल सींगों से
धकेलना शुरू की
बीज की फूली हुई
छत, भीतर से।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी प नुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग कवि की नींद से जुड़ा हुआ है जिसमें नींद के माध्यम से एक पेड़ के सृजन एवं विकास-क्रम की चर्चा है। कवि सपने देखता है। सपने में पेड़ कुछ इंच बढ़ गए हैं—कुछ छोटे-छोटे पौधे पेड़ पुत्र के रूप में विकसित हो रहे हैं। अंकुर अपने स्वरूप में कैसे बदलाव क्रमानुसार लाता है, उसकी व्याख्या कवि ने अपनी कविता में किया है। बीज जब अंकुरित होते हैं, धीरे-धीरे फूल के रूप में छतनुमा आकार ग्रहण करते हैं। भीतर से बीज का अंकुरित रूप विकसित होकर पौधे-पेड़ के रूप में अपने विराट अस्तित्व को प्राप्त कर लेता है।

कवि की नींद कितनी सुखद है इसकी व्याख्या स्वयं कवि ने किया है। जैसे मनुष्य का जीवन-क्रम है—ठीक वैसा ही बीज-पौधे-पेड़ का है। कवि ने नींद में देखे गए सपने के माध्यम से पेड़ के जन्म से लेकर विकसित रूप तक का सूक्ष्म चित्रण करते हुए मानवीय जीवन से उसके संबंधों को व्याख्यायित किया है। जैसे मानव के भीतर कई विचार मंथन के द्वारा एक आकार रूप ग्रहण करता है। ठीक उसी प्रकार बीजरूप भी अंकुरण के द्वारा विराटता को प्राप्त करता है। इस कविता में प्रकृति की सृजन-प्रक्रिया का चित्रण हुआ है।

प्रश्न 2.
एक मक्खी का जीवन-क्रम पूरा हुआ
कई शिशु पैदा हुए और उनमें से
कई तो मारे भी गए
दंगे, आगजनी और बमबारी में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘हमारी नींद’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पक्तियों का संबंध मक्खी के जीवन-क्रम, शिशु-प्रजनन, आगजनी, बमबारी से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि एक मक्खी का जीवन-क्रम धीरे-धीरे पूर्णता को प्राप्त करता है। कई शिशु पैदा होते हैं और उनमें से कई मार दिये भी जाते हैं-दंगों द्वारा, आगजनी द्वारा और बमबारी द्वारा। यहाँ मक्खी के जीवन क्रम को मानव के जीवन क्रम को तुलनात्मक रूप में दिखाया गया है। मनुष्य आज अपने जीवन-क्रम ने विकास की सीढ़ियों पर दूर-दूर तक पहुँचाया है। हमारे बच्चे भी सृजन-प्रक्रिया से गुजरते हुए विकास की सीढ़ियों पर चढ़ते हैं। आज चारों तरफ कितनी भयावह स्थिति है। कहीं दंगे हो रहे हैं, कहीं आगजनी हो रही है, कहीं बमबारी हो रही है। पूरी मानवता आज कराह रही है। आज चारों तरफ अराजक स्थिति है। सभी असुरक्षित हैं। जीवन को खतरे से बचाकर विकास-पथ की ओर ले चलने में आज काफी कठिनाइयाँ हो रही हैं।

प्रश्न 3.
गरीब बस्तियों में भी
धमाके से हुआ देवी जागरण
लाउा पीकर पर।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों का प्रसंग दीन-हीन जन के अंध-विश्वासों, देवी-जागरण और धूम-धमाका से है। कवि कहता है कि गरीब बस्तियों में भी देवी-जागरण के बहाने धूम-धमाका, लाउडस्पीकर को बजाना आदि कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। ये दीन-जन अपनी यथार्थ स्थिति से रू-ब-रू न होकर भटके हुए हैं। भावुकता एवं अंधविश्वास में समय और शक्ति का अपव्यय करते हैं। इनमें अपनी गरीबी, बेबसी-लाचारी के प्रति चेतना नहीं जगी है। ये कोरे अंधविश्वास और नकलची जीव ! अभी भी जी रहे हैं। इनमें सारी शक्तियाँ तो हैं किन्तु चेतना के अभाव में अपने लक्ष्य से भटके हुए हैं। कवि गरीबों, उनकी बस्तियों, उनके कार्यक्रमों के प्रति ध्यान आकृष्ट करता है। उनके जीवन की विसंगतियों का सही चित्रण प्रस्तुत कर कवि ने सच्चाई से हमें अवगत कराया है।

प्रश्न 4.
याने साधन तो सभी जुटा लिए हैं अत्याचारियों ने
मगर जीवन हठीला फिर भी
बढ़ता ही जाता आगे
हमारी नींद के बावजूद।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन कविताओं का प्रसंग हमारे मानवीय जीवन के अनेक पक्षों से जुड़ा है। समाज में रह रहे अनेक किस्म के लोगों, उनके रहन-सहन और क्रियाकलापों से संबंधित है। कवि कहता है कि अनेक तरह के साधन-संसाधन को लोगों ने जुटा लिया है। अत्याचारियों ने अपने अत्याचार से, ‘ शोषण दमन से सबको त्रस्त कर रखा है। किन्तु जीवन की गति भी कहाँ अवरुद्ध हो रही है। वह तो अपनी गति में अग्रसर है। जीवन तो संघर्ष का ही नाम है। उसे जीवटता के साथ जीने में ही मजा है। जीवन सदैव प्रगति-पथ पर आगे की ओर ही बढ़ता गया है, भले ही उसके मार्ग में क्यों न अनेक बाधाएँ खड़ी हों। जीवन हठधर्मी होता है। उसमें दृढ़-संकल्प शक्ति निहित होती है। लाख नींद बाधा बनकर खड़ी हो किन्तु यात्रा-क्रम कभी रुका है क्या ? सीमित लोगों के पास संसाधन सिमटे हुए हैं। विषमता के बीच जीवन को जीते हुए लक्ष्य के शिखर तक पहुँचाना है। कवि सामाजिक विसंगतियों के बीच जीते हुए लड़ते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है।

प्रश्न 5.
और लोग भी हैं, कई लोग हैं
अभी भी
जो भूलें नहीं करता
साफ और मजबूत
इनकार।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “हमारी नींद” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग समाज के आमलोगों से जुड़ा है, जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी को सृजन कर्म में लगाया है।

इस धरा पर उन अत्याचारियों के अलावा दूसरे लोग भी हैं जो अभी भी अपने साफ और मजबूत इरादों के साथ भूलों को स्वीकार करते हैं इनकार नहीं करते हैं। उनके भीतर नैतिकता, ईमानदारी, कर्मठता और साहस विद्यमान है। समाज के ये तपे-तपाये लोग हैं जिन्होंने समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, लोकहित के लिए मजबूत इरादों के साथ संघर्ष किया है, संघर्ष कर रहे हैं। समाज के ये अगली पंक्ति के लोग हैं जिनमें त्याग, करुणा, दया और सहनशक्ति भरी हुई है। इस प्रकार समाज के शोषक वर्ग के अलावा एक सृजन वर्ग भी है जो अपनी कर्तव्यनिष्ठता के साथ, संकल्पशक्ति के साथ समाज-निर्माण, राष्ट्र निर्माण में लगा हुआ है।

हमारी नींद कवि परिचय

प्रमुख समकालीन कवि वीरेन डंगवाल का जन्म 5 अगस्त 1947, ई० में कीर्तिनगर, टिहरी-गढ़वाल, उत्तरांचल में हुआ । मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद डंगवाल जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम० ए० किया और यहीं से आधुनिक हिंदी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी० लिट् की उपाधि पायी । वे 1971 ई० से बरेली कॉलेज में अध्यापन करते रहे । डंगवाल जी हिंदी और अंग्रेजी में पत्रकारिता भी करते हैं। उन्होंने इलाहाबाद से प्रकाशित अमृत प्रभात’ में कुछ वर्षों तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक . से स्तंभ लेखन भी किया । वे दैनिक ‘अमर उजाला’ के संपादकीय सलाहकार भी हैं। ]

कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीका बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का है । सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कविता संग्रह ‘इसी दुनिया में आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है । उन्होंने कविता में समाज के साध परण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्यौरे और दृश्य रचे हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी बेचैन करने वाले हैं । उन्होंने कविता के मार्फत ऐसी बहुत-सी वस्तुओं और उपस्थितियों के विमर्श का संसार निर्मित किया है जो प्रायः ओझल और अनदेखी थीं। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बुनावट में ठेठ देसी किस्म के, खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

वीरेन डंगवाल को ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ काव्य संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। उन्हें ‘इसी दुनिया में’ पर रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार मिला । उन्हें श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार और कविता के लिए शमशेर सम्मान भी प्राप्त हो चुका है । डंगवाल जी ने विपुल परिमाण में अनुवाद कार्य भी किए हैं। तुर्की के महाकवि नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद उन्होंने ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में किया । उन्होंने विश्वकविता से पाब्लो नेरुदा, वर्ताल्त ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूजेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक कविताओं के भी अनुवाद किए ।

समसामयिक कवि वीरेन डंगवाल की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से उनकी कविता ‘हमारी नींद’ यहाँ प्रस्तुत है । सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी बेपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितियों से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण करती है यह कविता।

हमारी नींद Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

नई कविता के यशस्वी कवि हिन्दी साहित्य में अपना अलग पहचान बनानेवाले वीरेन डंगवाल एक चर्चित कवि हैं। इनकी रचनाओं में यथार्थ का बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी किस्म का . वर्णन मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं ने समाज के साधरण जनों और हाशिये पर स्थित जीवन को विशेष रूप से स्थान दिया है। उनकी कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा है और उसकी बनावट में ठेठ देशी किस्म के खास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता है।

प्रस्तुत कविता कवि की कविताओं के संकलन ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ से संकलित है। इस कविता में कवि सुविधाभोगी आराम पसंद जीवन अथवा हमारी लपरवाहियों के बाहर विपरीत परिस्थितओं से लगातार लड़ते हुए बढ़ते जानेवाले जीवन का चित्रण है। ‘हमारी नींद’ अनमना-सा है। नींद में भी सूत के पौधे कुछ बढ़ते हुए नजर आते हैं। मक्खियों की भाँति अत्याचारी अपना जीवन यापन करते हैं। अत्याचारी बढ़ते हैं और मारे जाते हैं। आर्थिक स्थिति से कमजोर वाले भी धना के के साथ जीवन जीना चाहते हैं। हम उन अत्याचारियों से डरते हैं फिर भी हमारी नींद में कोई परिवर्तन नहीं होता है। हम बेपरवाह जीवन जीते हैं। बहुत से ऐसे लोग हैं ज्यों अपने जीवन जीने की कला से इंकार नहीं कर सकते हैं। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि हम देखकर भी न देखने का भाव दिखाते हैं। न सो कर भी गहरी नींद का ढोंग करते हैं।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2 Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास

Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही विकल्प चुनें।

Arthvyavastha Avn Iske Vikas Ka Itihaas प्रश्न 1.
निम्न को प्राथमिक क्षेत्र भी कहा जाता है
(क) सेवा क्षेत्र
(ख) कृषि क्षेत्र
(ग) औद्योगिक क्षेत्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) कृषि क्षेत्र

Bihar Board Class 10 Economics Solution प्रश्न 2.
इनमें कौन-से देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था है
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) भारत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) भारत

Bihar Board Class 10 Social Science Notes प्रश्न 3.
भारत में योजना आयोग का गठन कब किया गया था?
(क) 15 मार्च, 1950
(ख) 15 सितम्बर, 1950
(ग) 15 अक्टूबर, 1951
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) 15 मार्च, 1950

Bihar Board Class 10 History Book Solution प्रश्न 4.
जिस देश का राष्ट्रीय आय अधिक होता है वह देश कहलाता है
(क) अविकसित
(ख) विकसित
(ग) अर्द्ध-विकसित
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) विकसित

Bihar Board Class 10 Social Science Solution प्रश्न 5.
इनमें से किसे पिछड़ा राज्य कहा जाता है ?
(क) पंजाब
(ख) केरल
(ग) बिहार
(घ) दिल्ली
उत्तर-
(ग) बिहार

II. निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें:

Bihar Board Class 10th Social Science Solution प्रश्न 1.
भारत अंग्रेजी शासन का एक………..था।
उत्तर-
उपनिवेश

Bihar Board Class 10 Social Science प्रश्न 2.
अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का किया।
उत्तर-
शोषण

Bihar Board Social Science Book Class 10 प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की है।
उत्तर-
प्रणाली

Bihar Board Class 10th Social Science Notes प्रश्न 4.
द्वितीयक क्षेत्र को………….. क्षेत्र कहा जाता है।
उत्तर-
औद्योगिक

Bihar Board Class 10 Geography Solutions प्रश्न 5.
आर्थिक विकास आवश्यक रूप से…………… की प्रक्रिया है।
उत्तर-
परिवर्तन

Class 10 Social Science Bihar Board प्रश्न 6.
भारत के आर्थिक विकास का श्रेय………..को दिया जा सकता है।
उत्तर-
नियोजन

Bihar Board Class 10 Economics प्रश्न 7.
आर्थिक विकास की माप करने के लिए”को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है।
उत्तर-
प्रतिव्यक्ति आय

Bihar Board Solution.Com Class 10 प्रश्न 8.
साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार की स्थिति…………है।
उत्तर-
दयनीय

Bihar Board Solution Class 10 Social Science प्रश्न 9.
बिहार में…………ही जीवन का आधार है।
उत्तर
कृषि

Bihar Board 10th Social Science Solution प्रश्न 10.
बिहार के विकास में ……………… एक बहुत बड़ा बाधक है।
उत्तर-
बाढ़

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढांचा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती हैं, जैसे-कृषि, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि दूसरी ओर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है ताकि वे अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि
हेतु देश में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सकें।

प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था क्या है?
उत्तर-
मिश्रित अर्थव्यवस्था ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण होता है। मिश्रित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास होता है। यह अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवाद के बीच का रास्ता है।

प्रश्न 3.
सतत् विकास क्या है ?
उत्तर-
सतत् विकास का शाब्दिक अर्थ है-ऐसा विकास जो कि जारी रह सके, टिकाऊ बना रह सके। सतत् विकास में न केवल वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास को भी ध्या में रखा जाता है। बुण्डलैण्ड आयोग ने सतत् विकास के बारे में बताया है कि “विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएं, बिना भावी पीढ़ी की क्षमता, योग्यता से समझौता किये पूरी की जाती है।”

प्रश्न 4.
आर्थिक नियोजन क्या है ?
उत्तर-
आर्थिक नियोजन का अर्थ एक समयबद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों का नियोजित समन्वर एवं उपयोग करना है। आर्थिक नियोजन को योजना आयोग ने इस प्रकार परिभाषित किया हैआर्थिक नियोज
का अर्थ राष्ट्र की प्राथमिकताओं के अनुसार देश के संसाधनों का विभिन्न विकासात्मक क्रिया: में प्रयोग करना है।

प्रश्न 5.
मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) क्या है?
उत्तर-
मानव विकास रिपोर्ट (HDR) में विभिन्न देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनक स्वास्थ्य स्थिति एवं प्रतिव्यक्ति आय सम्मलित होती है।

प्रश्न 6.
आधातरिक संरचनाओं (Infrastructure) पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
आधारिक संरचना का मतलब उन सुविधाओं तथा सेवाओं से है जो देश के आर्थिक विकास के लिए सहायक होते हैं। सभी तत्व, जैसे -बिजली, परिवहन, संचार, बैंकिंग स्कूल कॉलेज, अस्पताल आदि देश के आर्थिक विकास के आधार हैं, उन्हें देश का आधारिक संरचन (आधारभूत ढाँचा) कहा जाता है। किसी देश के आर्थिक विकास में आधार संरचना का महत्वपूर स्थान होता है। जिस देश का आधारभूत ढाँचा जितना अधिक विकसित होगा, वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की संरचना (Structure of Economy) से क्या समझते हैं ? इन्हें कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था की संरचना का मतलब विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इसके विभाजन से है। अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं जैसे कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार आदि। इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है-

  • प्राथमिक क्षेत्र प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र कहा जाता है। इसके अंतर्गत कृषि पशुपालन, मछली पालन, जंगलों से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसी व्यवस्था आती है।
  • द्वितीयक क्षेत्र-द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र कहा जाता है। इसके अन्तर्गत खनिज व्यवस्था, निर्माण कार्य; जनोपयोगी सेवाएँ, जैसे गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र-तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र कहा जाता है। इसके अन्तर्गत बैंक एवं बीमा, परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं। ये क्रियाएँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं। इसलिए इसे सेवा क्षेत्र कहा जाता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक विकास क्या है ? आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में अंतर बतावें।
उत्तर-
आर्थिक विकास के अर्थ को समझने के लिए विद्वानों द्वारा की गई परिभाषा को समझना आवश्यक है। आर्थिक विकास की परिभाषा को लेकर अर्थशास्त्रियों में काफी मतभेद है। इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकती है। परन्तु कुछ विद्वानों ने इसकी परिभाषा निम्न रूप में दी है-

प्रो. रोस्टोव (Rostoe) के अनुसार “आर्थिक विकास एक ओर श्रम-शान्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच का सम्बन्ध हैं।”

प्रो. मेयर एवं बाल्डविन (Meier and Baldwin) में परिभाषा देते हुए कहा है कि “आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकालीन में किसी अर्थव्यवस्था का वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।”

अतः उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास आवश्यक रूप से परिवर्तन की प्रक्रिया है। इससे अर्थव्यवस्था के ढाँचे में परिवर्तन होते हैं। इसके चलते प्रति व्यक्ति वास्तविक आय बदलती है तथा आर्थिक विकास के निर्धारक निरन्तर बदलते , रहते हैं।

अन्तर आर्थिक विकास तथा आर्थिक वृद्धि में कोई अंतर नहीं माना जाता है। दोनों शब्दों को एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। लेकिन इधर अर्थशास्त्रियों द्वारा इन दोनों के बीच अन्तर किया जाने लगा है।

श्रीमती उर्शला हिक्स (Mr. Urshala Hicks) के अनुसार “वृद्धि शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध में किया जाता है जबकि विकास शब्द का प्रयोग अविकसित अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है।” डॉ. ब्राईट सिंह (Dr. Bright Singh) ने भी लिखा है कि Growth शब्द का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जा सकता है।

इसी तरह मैंड्डीसन (Maddison) नामक एक अर्थशास्त्री ने बताया है कि धनी देशों में आय का बहता हुआ स्तर ‘आर्थिक वृद्धि’ (Economic Growth) का सूचक होता है जबकि निर्धन देशों में आय का बढ़ता हआ स्तर “आर्थिक विकास” (Economic Development) का सूचक होता है।

वस्तव में उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि दोनों ही आर्थिक प्रगति के सूचक हैं और दोनों में स्पष्ट अन्तर दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक विकास की माप कुछ सूचकांकों के द्वारा करें।
उत्तर-
आर्थिक विकास की माप निम्नलिखित सूचकांकों द्वारा कर सकते हैं-
राष्ट्रीय आय (National income) राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है। किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। सामान्य तौर पर जिस देश की राष्ट्रीय आय अधिक होती है वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश की राष्ट्रीय आय कम होती है वह देश अविकसित कहलाता है।

प्रति व्यक्ति आय (Per capital income)- आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है। प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की औसत आय होती है। राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल
राष्ट्रीय आय आता है, वह प्रति व्यक्ति आय कहलाता है। फार्मूले के रूप में प्रतिव्यक्ति आय
Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 1 अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास - 1

प्रश्न 4.
बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए कुछ उपाय बतावें।
उत्तर-
बिहार के आर्थिक पिछड़ेपन के निम्नलिखित कारण हैं–
(i) कृषि पर निर्भरता बिहार की अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर आधारित है। यहाँ की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर है। लेकिन हमारी कृषि की भी हालत ठीक नहीं है। हमारी कृषि काफी पिछड़ी हुई है। इसके चलते उपज कम होती है। (i) औद्योगिक पिछड़ापन-किसी भी देश या राज्य के लिए उद्योगों का विकास जरूरी होता है। लेकिन बिहार में औद्योगिक विकास कुछ दिखता ही नहीं है। यहाँ के सभी खानेज क्षेत्र एवं बड़े उद्योग तथा प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी संस्थाएं सभी झारखण्ड में चले गए। इस कारण बिहार में कार्यशील औद्योगिक इकाइयों की संख्या नगण्य ही रह गई है।

(ii) बाढ़ तथा सूखे से क्षति बिहार में खास कर नेपाल में जल से बाढ़ आती है। हर साल कम या अधिक बाढ़ का आना बिहार में तय है। पिछले साल 2008 में कोशी बाढ़ का प्रलय हमारे सामने है। इससे कितने जानमाल की क्षति हुई। इस साल 2009 में भी नेपाल से आए जल से बागमती नदी में बाढ़ देखने को मिला। इसके आस-पास के इलाके सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी आदि जगहों में फसल की काफी बर्बादी हुई। . इसी तरह सूखे की मार दक्षिणी बिहार को झेलनी पड़ती है। इससे हमारे किसानों को अकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस तरह अपना बिहार बाढ़ तथा सूखा के चपेट में एक साथ रहता है।

(iv) आधारिक संरचना का अभाव किसी भी देश या राज्य के विकास के लिए आधारिक संरचना का होना जरूरी है। लेकिन बिहार इस मामले में पीछे है। राज्य में सड़क, बिजली एवं सिंचाई का अभाव है। साथ ही शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ भी कम हैं। इस वजह से भी बिहार में पिछड़ेपन की स्थिति कायम है।

(v) गरीबी-बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ गरीबी का भार काफी अधिक है। राज्य में प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है। इसके चलते भी बिहार पिछड़ा है।

(vi) खराब विधि व्यवस्था किसी भी देश या राज्य के लिए शांति तथा सुव्यवस्था जरूरी होती है। लेकिन बिहार में वर्षों तक कानून व्यवस्था कमजोर स्थिति में थी जिसके चलते नागरिक शांतिपूर्वक उद्योग नहीं चला पा रहे थे। इस तरह खराब विधि व्यवस्था भी बिहार के पिछड़ेपन का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया है।

(vii) तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या-बिहार में जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। इसके चलते विकास के लिए साधन कम हो जाते हैं। अधिकांश साधन जनसंख्या के कारण-पोषण में चला जाता है।

(viii) कुशल प्रशासन का अभाव- बिहार की प्रशासनिक स्थिति ऐसी हो गई है जिसमें पारदर्शिता का अभाव है। इसके कारण आए दिन भ्रष्टाचार के अनेक उदाहरण सामने आते हैं।

बिहार के पिछड़ेपन को दूर करने के उपाय- बिहार में पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं.

  • कृषि का तेजी से विकास-बिहार में कृषि ही जीवन का आधार है। अत: कृषि में नए यंत्रों का प्रयोग किया जाए। उत्तम खाद, उत्तम बीज का प्रयोग किया जाए ताकि उपज में वृद्धि लायी जा सके। इस तरह कृषि का तेजी से विकास कर बिहार का आर्थिक विकास किया जा सकता है।
  • आधारिक संरचना का विकास-बिहार में बिजली की काफी कमी है। अतः बिजली का उत्पादन बड़ाया जाए। सड़क-व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया आगे बढ़े।
  • उद्योगों का विकास-बिहार से झारखण्ड के अलग होने से यह राज्य लगभग उद्योग विहिन हो गया था। मुख्यतः चीनी मिलें बिहार के हिस्से में रह गई थीं जो अधिकतर बन्द पड़ी थी। लेकिन विगत कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों में तथा विदेशों से पूँजी निवेश लाने के अनवरत प्रयास किये जा रहे हैं ताकि वर्तमान में जर्जर अवस्था के उद्योगों का पुनर्विकास किया जा सके।
  • जनसंख्या पर नियंत्रण- राज्य में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए। परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया जाए। इसके लिए राज्य की जनता एवं खास करके महिलाओं में शिक्षा का प्रचार किया जाए।
  • बाढ़ पर नियंत्रण-बिहार के विकास में बाढ़ एक बहुत बड़ी बाधा है। फसल का बहुत बड़ा भाग बाढ़ के चलते बर्बाद हो जाता है। जानमाल की भी काफी क्षति होती है। बाढ़ नियंत्रण के लिए नेपाल सरकार से बात कर उचित कदम उठाने की जरूरत है।
    बिहार का एक हिस्सा सूखे की चपेट में रहता है। इसके लिए सिंचाई के लिए पर्याप्त व्यवस्था की जाए। .
  • स्वच्छ तथा ईमानदार प्रशासन-बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ, कुशल एवं ईमानदार प्रशासन जरूरी है।
  • केंद्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण-बिहार के विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों के हस्तांतरण की जरूरत है। कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देकर उन्हें अधिक मात्रा में केन्द्रीय सहायता दी जाती है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के कारण जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, उत्तर-पूर्व के राज्यों को विशेष सहायता मिलती रही है।
  • गरीबी दूर करना-बिहार में गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव है। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन-बसर कर रहे हैं। इनके लिए रोजगार की व्यवस्था की जाए। स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हें प्रशिक्षण दिया जाए।
  • शांति व्यवस्था की स्थापना–बिहार में शांति का माहौल कायम कर व्यापारियों में विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
अपने गाँव या शहर के आर्थिक विकास के संदर्भ में एक परियोजना प्रस्तुत करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत की प्रतिव्यक्ति आय (2004 के आंकड़ों के अनुसार) कितनी है
(क) 22,000 रु. प्रतिवर्ष
(ख) 16,000 रु. प्रतिवर्ष
(ग) 28,000 रु. प्रतिवर्ष
(घ) 25,000 रु. प्रतिवर्ष
उत्तर-
(ग) 28,000 रु. प्रतिवर्ष

प्रश्न 2.
आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य होता है।
(क) जीविकोपार्जन
(ख) मनोरंजन
(ग) ‘क’ और ‘ख’ दोनों
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(क) जीविकोपार्जन

प्रश्न 3.
सामान्यतः किसी देश के विकास का स्तर किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता
(क) प्रतिव्यक्ति आय
(ख) साक्षरता-दर
(ग) स्वास्थ्य की स्थिति
(घ) इनमें सभी.
उत्तर-
(घ) इनमें सभी.

प्रश्न 4.
भारत के पड़ोसी देशों में किस देश की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है?
(क) पाकिस्तान
(ख) बांग्लादेश
(ग) श्रीलंका
(घ) नेपाल
उत्तर-
(ग) श्रीलंका

प्रश्न 5.
मानव विकास की दृष्टि से भारत के पड़ोसी देशों में किस देश की स्थिति इससे बेहतर है?
(क) बांग्लादेश
(ख) नेपाल
(ग) म्यांमार
(घ) श्रीलंका
उत्तर-
(घ) श्रीलंका

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसने कहा था कि अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।
उत्तर-
ब्राइन ने।

प्रश्न 2.
समावेशी विकास क्या है ?
उत्तर-
समाज के सभी वर्गों का सामूहिक विकास।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था क्या है ?
उत्तर-
जीवनयापन के लिए अपनाई गई आर्थिक व्यवस्था।

प्रश्न 4.
आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
उत्पादन एवं आय में होनेवाले वृद्धि से।

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय क्या है ?
उत्तर-
एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य जिसमें विदेशों से प्राप्त होनेवाले आय भी सम्मिलित होते हैं। ….

प्रश्न 6.
प्रतिव्यक्ति आय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
देश की कुल राष्ट्रीय आय में कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय कहते हैं।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से क्या संबंध है ?
उत्तर-राष्ट्रीय आय का जनसंख्या से आर्थिक विकास में उल्टा संबंध है। राष्ट्रीय आय की अपेक्षा जनसंख्या में वृद्धि होने से प्रतिव्यक्ति आय घट जाएगी और आर्थिक विकास की दर कम के हो जाएगी।

प्रश्न 8.
दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण मापदंड क्या है?
उत्तर-
प्रति व्यक्ति आय।

प्रश्न 9.
आय के अतिरिक्त कुछ अन्य कारकों के उदाहरण दें जो हमारे जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं।
उत्तर-
उत्पादन, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि।

प्रश्न 10.
जीवन की भौतिक गुणवत्ता के तीन प्रमुख सूचक क्या हैं ?
उत्तर-
जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था के कार्यों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्य मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन करना है। कृषि एवं उद्योग इन सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इन कार्यों के संचालन के लिए सहायक संरचनाएँ जैसे—पूँजी, ढाँचा, सामाजिक और आर्थिक सहायक या आधार संरचना होती है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय क्या है? क्या यह दो देशों के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए पर्याप्त है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय किसी देश के अंदर एक निश्चित अवधि में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है। राष्ट्रीय आयों से देशों के आर्थिक विकास के स्तर की तुलना करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि जनसंख्या असामान्य हो सकती है। इसलिए दो देशों के विकास के स्तर की तजुलना करने के लिए प्रतिव्यक्ति आय का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है।

प्रश्न 3.
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है ? इस मापदंड की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर-
विश्व बैंक विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने के लिए प्रति व्यक्ति आय का प्रयोग प्रमुख मापदंड के रूप में 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report2006) में किया है। 2004 में जिन देशों की प्रति व्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध देश तथा जिन देशों की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले देशों की श्रेणी में रखा। परंतु प्रति व्यक्ति आप आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है।

प्रश्न 4.
औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय क्या है ? विश्व बैंक ने इस आधार पर विभिन्न देशों का किस प्रकार वर्गीकरण किया है ? ।
उत्तर-
देश की कुल जनसंख्या से राष्ट्रीय आय में भाग देने से जो भागफल आता है उसे प्रतिव्यक्ति आय अथवा औसत आय कहते हैं। विश्व बैंक इस आधार पर उच्च आय वाले देश (विकसित देश) और निम्न आय वाले देश (विकासशील देश) के रूप में देशों का वर्गीकरण करते हैं।

प्रश्न 5.
विकास को मापने का संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) का मापदंड किस प्रकार विश्व बैंक के मापदंड से अलग है ?
उत्तर-
विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में विभिन्न देशों का वर्गीकरण करने में प्रतिव्यक्ति आय को मापदंड के रूप में प्रयोग किया है। परंतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू. एन. डी. पी.) विभिन्न देशों की तुलना या वर्गीकरण करने में मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) जो 1990 से प्रति वर्ष एकाशित कर रही है मापदंड के रूप में प्रयोग करती है। इसमें देशों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य-स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार के रूप में लिया जाता है।

प्रश्न 6.
हम औसत शब्द का प्रयोग क्यों करते हैं ? इसके प्रयोग की क्या सीमाएँ हैं ? विकास से जुड़े उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर- औसतच्या प्रतिव्यक्ति आय किसी देश के विकास की जानकारी प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। इसके द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। पर यह धारणा आय के वितरण की असमानताओं को छिपा देता है। उदाहरण के लिए औसत आय से किसी देश के नागरिकों का आय का वितरण तथा जीवन-स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं मिलती है। जो आर्थिक विकास के मापदंड है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक विकास एवं मौद्रिक विकास में क्या अंतर है ? वर्णन करें।
उत्तर-
आर्थिक विकास का अर्थ है देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशलतम प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। इस तरह आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है। – मौद्रिक विकास के अन्तर्गत मुद्रा के प्रादुर्भाव से आधुनिक मुद्रा के प्रचलन तक के काल को सम्मिलित करते हैं। मुद्रा के आगमन से पूर्व वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। इसके बाद सिक्कों तथा कागजी मुद्रा (पहली बार चीन में) में प्रचलन में आया। वर्तमान में प्लास्टिक मुद्रा जैसे ए.टी.एम. एवं क्रेडिट कार्ड का प्रचलन है।

प्रश्न 2.
विकास की अवधारणा को स्पष्ट करें। किस आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास की कई अवधारणाएँ है तथा इनका क्रमिक विकास हुआ है। प्रारम्भ में आर्थिक विकास का अर्थ उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से लगाया जाता है। अर्थशास्त्रियों के अनुसार “आर्थिक विकास का अर्थ देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों के कुशल प्रयोग द्वारा राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति वास्तविक आय में वृद्धि करना है। परंतु कुछ अर्थशास्त्रियों के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास का सूचक नहीं है। किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास राष्ट्रीय आय का वितरण, नागरिकों के सामान्य जीवन में सुधार एवं आर्थिक कल्याण पर निर्भर करता है।

विश्व बैंक ने 2006 के अपने विश्व विकास प्रतिवेदन (World Development Report-2006) में राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाले वृद्धि के आधार पर कुछ देशों को विकसित और कुछ को अविकसित कहा है। विश्व बैंक के अनुसार 2004 में जिन देशों की प्रतिव्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष वार्षिक आय या उससे अधिक थी उन्हें समृद्ध या विकसित देश तथा वे देश जिनकी प्रतिवर्ष वार्षिक आय 37,000 रुपए या उससे कम थी उन्हें निम्न आयवाले या विकासशीवल देश की संज्ञा दी। दो अर्थव्यवस्थाओं के विकास के स्तर की तुलना करने के लिए तथा विकसित तथा अर्द्धविकसित देशों का वर्गीकरण करने के लिए भी राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय को संकेतक के रूप में प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 3.
विकास के लिए प्रयोग किए जानेवाले विभिन्न मापदंडों अथवा संकेतों का उल्लेख करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक विकास को मापने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। परंतु, इनमें कुछ कमियाँ हैं। प्रतिव्यक्ति आय या औसत आय द्वारा दो या दो से अधिक देशों के विकास के स्तर की तुलना करते हैं। प्रतिव्यक्ति आप आय के वितरण की असमानता छिपा देता है।

इस प्रकार प्रतिव्यक्ति आय की सीमितताओं के कारण आर्थिक एवं सामाजिक विकास के । कुछ वैकल्पिक संकेतकों का विकास किया गया।
. जीवन की भौतिक गुणवत्ता के सूचक (Physical Quality of life Index) मोरिस डी. मोरिस के अनुसार किसी देश के आर्थिक विकास को जीवन प्रत्याशा, शिशु मृत्युदर तथा मौलिक साक्षरता के सूची के अनुसार मापा जा सकता है।

मानव विकास सूचकांक (Human DevelopmentIndex) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यू.एन०डी०पी०) के मानव विकास प्रतिवेदन (Human Development Report) के अनुसार विभिन्न देशों की विकास की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती है। इस मानव विकास प्रतिवेदन में कई नए घटक जैसे नागरिकों का जीवन स्तर उनका स्वास्थ्य एवं कलयाण जैसे विषय जोड़े गए है।

प्रश्न 4.
विकास की धारणीयता क्यों आवश्यक है ? विकास का वर्तमान स्तर किन कारणों से धारणीय नहीं है ?
उत्तर-
आर्थिक विकास को मापने के लिए किसी देश की आर्थिक विकास की धारणीयता को भी समझना आवश्यक है। विकसित देश विकास की प्रक्रिया में विकास का स्तर ऊंचा करने का या विकास के स्तर को भावी पीढ़ी के लिए बनाये रखने का प्रयास करेंगे। ठीक उसी प्रकार विकासशील देशों की स्थिति रहेगी। जो स्पष्ट रूप से वांछनीय है।

लेकिन पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार विकास का वर्तमान प्रकार एवं स्तर धारणीय नहीं है। इसके कारण निम्नलिखित है।

  • आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक विदोहन तथा दुरुपयोग।
  • पर्यावरण संबंधी समस्याएं।
  • जंगलों का नष्ट होना तथा
  • भूमिगत जल का अति उपयोग।

विकास की प्रक्रिया को निरंतर बनाये रखने के लिए ही धारणीयता विकास की अवधारणा का जन्म हुआ। निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि विकास की प्रक्रिया एक दीर्घकालीन एवं निरंतर चलनेवाली प्रक्रिया है। अतएव हमें समय-समय पर अपने लक्ष्यों में परिवर्तन एवं : संशोधन करने की आवश्यकता है।

Bihar Board Class 10 Economics अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास Notes

  • मानव सभ्यता का इतिहास विकास का इतिहास है।
  • अर्थव्यवस्था- एक देश या क्षेत्र-विशेष की व्यवस्था जिसके अंतर्गत समस्त आर्थिक क्रियाओं का संपादन होता है।
  • आर्थिक क्रियाएँ-वे सभी कार्य, जिनमें हमें आय की प्राप्ति होती है जैसे किसान मजदूर, कारीगर का कार्य आदि।
  • अनार्थिक क्रियाएँ-वे क्रियाएँ जिनसे हमें आय की प्राप्ति नहीं होती है, जैसे-भावपूर्ण किया गया कार्य टीचर या मजदूर का।
  • स्वामित्व के आधार पर अर्थव्यवस्था– पूँजीवादी व्यवस्था, समाजवादी व्यवस्था, मिश्रित अर्थव्यवस्था।
  • पूँजीवादी अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी या निजी संस्था के हाथों में रहता है।
  • समाजवादी अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व, प्रबंध और संचालन सरकार के हाथों में होता है।
  • मिश्रित अर्थव्यवस्था- इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार एवं निजी दोनों के हाथों में होता है। विकास के आधार पर अर्थव्यवस्था
  • विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था।
  • भूमि, श्रम, पूँजी और संगठन उत्पादन के साधन कहलाते हैं।
  • किसी देश के प्राकृतिक तथा भौतिक साधन और उसके मानवीय प्रयत्न अर्थव्यवस्था की सृष्टि करते हैं।
  • मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित समस्त आर्थिक क्रियाओं एवं कार्यों का संपादन अर्थव्यवस्था में होता है।
  • अर्थव्यवस्था जीवनयापन के लिए अपनाई गई आर्थिक व्यवस्था है।
  • आर्थिक विकास का तात्पर्य उत्पादन एवं आय में होनेवाली वृद्धि से है।
  • आर्थिक क्रियाओं के आधार पर अर्थव्यवस्था के तीन क्षेत्र हैं- (i) प्राथमिक क्षेत्र (ii) द्वितीयक क्षेत्र और (iii) तृतीयक क्षेत्र।
  • प्राथमिक क्षेत्र के उदाहरण- कृषि, पशुपालन, वानिकी, मत्स्यग्रहण खनन आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्र के उदाहरण- विनिर्माण, निर्माण, विद्युत, गैस तथा जलापूर्ति इत्यादि।
  • तृतीयक क्षेत्र – परिवहन, संचार, भंडारण, व्यापार, बैकिंग बीमा, सार्वजनिक प्रशासन इत्यादि।
  • प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
  • द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहते हैं।
  • तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
  • वर्तमान में आर्थिक प्रगति में सेवा क्षेत्र सबसे अधिक योगदान दे रहा है।
  • प्रचलित विचारधारा के अनुसार राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में होनेवाली वृद्धि आर्थिक
    विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
  • आर्थिक विकास एवं मौद्रिक विकास दोनों ही पारस्परिक सहयोगी क्रियाएँ हैं।
  • समावेशी विकास में समाज के सभी वर्गों के जीवन स्तर को ऊपर लाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • सतत विकास में वर्तमान पीढ़ी एवं भाती पीढ़ी दोनों के विकास का समान ख्याल रखा जाता है।
  • आधुनिक अर्थशास्त्रियों में आर्थिक विकास को जीवन की भौतिक गुणवत्ता तथा मानव विकास से जोड़ने का प्रयास किया है।
  • प्राकृतिक संसाधन, पूँजी निर्माण तकनीकी विकास, मानवीय संसाधन आदि विकास के आर्थिक कारक है।
  • आर्थिक विकास के गैर-आर्थिक कारकों में राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक संस्था महत्वपूर्ण है।
  •  बिहार आर्थिक विकास के प्रायः सभी मापदंडों पर देश के अन्य सभी राज्यों से नीचे है।
  • बिहार में उर्वर भूमि एवं जल संसाधन के रूप में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है तथा इसमें विकास की अपार संभावनाएँ वर्तमान हैं।

Bihar Board 10th Hindi Grammar Objective Answers पदबंध

Bihar Board 10th Hindi Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 10th Hindi Grammar Objective Answers पदबंध

प्रश्न 1.
‘नदी कलकल निनाद करती हुई बहती चली जा रही थी।’ इस वाक्य में ‘बहती चली जा रही थी’ में कैसा पदबंध है?
(A) क्रिया पदबंध
(B) क्रियाविशेषण पदबंध
(C) सर्वनाम पदबंध
(D) इनमें कोई नहीं
उत्तर :
(A) क्रिया पदबंध

प्रश्न 2.
‘राकेश बहुत जोरों से हँसता हुआ जा रहा था।’ इस वाक्य में ‘राकेश बहुत जोरों से हँसता हुआ’ कैसा पदबंध है?
(A) क्रियाविशेषण पदबंध
(B) सर्वनाम पदबंध
(C) विशेषण पदबंध
(D) संज्ञा पदबंध
उत्तर :
(A) क्रियाविशेषण पदबंध

प्रश्न 3.
‘अँधेरा होने के पहले ही पिताजी बाजार से लौट आएँगे।’ इस वाक्य में ‘अँधेरा होने से पहले ही’ कैसा पदबंध है?
(A) क्रिया पदबंध
(B) क्रियाविशेषण पदबंध
(C) सर्वनाम पदबंध
(D) संज्ञा पदबंध
उत्तर :
(D) संज्ञा पदबंध

प्रश्न 4.
‘क्रूर-से दिखनेवालों में कुछ सज्जन भी हो सकते हैं।’ इस वाक्य में ‘क्रूर-से दिखनेवालों में कुछ’ कैसा पदबंध है?
(A) संज्ञा पदबंध
(B) सर्वनाम पदबंध
(C) क्रिया पदबंध

प्रश्न 5.
‘योगेश की सफलता का समाचार सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई।’ इस वाक्य में ‘योगेश की सफलता का समाचार कैसा पदबंध है?
(A) क्रिया पदबंध
(B) संज्ञा पदबंध
(C) क्रियाविशेषण पदबंध
(D) सर्वनाम पदबंध
उत्तर :
(B) संज्ञा पदबंध

प्रश्न 6.
‘रात को पहरा देनेवाला आज घर चला गया।’ इस वाक्य में रात को पहरा देनेवाला’ कैसा पदबंध है?
(A) संज्ञा पदबंध
(B) क्रियाविशेषण पदबंध
(C) क्रिया पदबंध
(D) सर्वनाम पदबंध
उत्तर :
(A) संज्ञा पदबंध

प्रश्न 7.
‘विभिन्न रंगों के फूलों की सुगंध से सुवासित फुलवारी में घूमने से चित्त प्रसन्न हो जाता है।’ इस वाक्य में विभिन्न रंगों के फूलों की सुगंध से सुवासित’ कैसा पदबंध है?
(A) संज्ञा पदबंध
(B) सर्वनाम पदबंध
(C) क्रिया पबंध
(D) विशेषण पदबंध
उत्तर :
(D) विशेषण पदबंध

प्रश्न 8.
‘कूर-से दिखनेवालों में कुछ सज्जन भी हो सकते हैं।’ इस वाक्य में ‘क्रूर-से दिखनेवालों में कुछ’ कैसा पदबंध है?
(A) संज्ञा पदबंध
(B) सर्वनाम पदबंध
(C) क्रिया पदबंध
(D) विशेषण पदबंध
उसर :
(B) सर्वनाम पदबंध

प्रश्न 9.
‘अँधेरा होने के पहले ही पिताजी बाजार से लौट आएँगे।’ इस वाक्य में ‘अँधेरा होने से पहले ही’ कैसा पदबंध है?
(A) संज्ञा पदबंध
(B).सर्वनाम पदबंध
(C) क्रिया पदबंध
(D) क्रियाविशेषण पदबंध
उत्तर :
(D) क्रियाविशेषण पदबंध

प्रश्न 10.
‘रंग-बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सुवासित फुलवारी में घुमने का आनन ही कुछ और है।’ इस वाक्य में ‘रंग-बिरंगे फूलों की सुगन्ध से सुवासित’ कैसा पदबंध है ?
(A) विशेषण पदबंध
(B) क्रियाविशेषण पदबंध
(C) क्रिया पदबंध
(D) संज्ञा पदबंध
उत्तर :
(C) क्रिया पदबंध

प्रश्न 11.
‘खून करनेवाले डाकुओं में कुछ दयालु भी होते हैं।’ इस वाक्य में खून करनेवाले डाकुओं में कुछ’ कैसा पदबंध है ?
(A) क्रिया पदबंध
(B) संज्ञा पदबंध
(C) सर्वनाम पदबंध
(D) क्रियाविशेषण पदबंध
उत्तर :
(A) क्रिया पदबंध

प्रश्न 12.
“उगते हुए सूर्य को नमस्कार” में ‘उगते हुए’ क्या है ?
(A) पदबन्ध
(B) सामासिक पद
(C) अव्यय
(D) उपवाक्य
उत्तर :
(A) पदबन्ध

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 2 Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद

Bihar Board Class 10 History भारत में राष्ट्रवाद Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें प्रश्न 1.
गदर पार्टी की स्थापना किसने और कब की?
(क) गुरदयाल सिंह, 1916
(ख) चन्द्रशेखर आजाद, 1920
(ग) लाला हरदयाल, 1913
(घ) सोहन सिंह भाखना, 1918
उत्तर-
(ग) लाला हरदयाल, 1913

भारत में राष्ट्रवाद Question Answer Bihar Board प्रश्न 2.
जालियाँवाला बाग हत्याकांड किस तिथि को हुआ?
(क) 13 अप्रैल, 1919 ई०
(ख) 14 अप्रैल, 1919 ई.
(ग). 15 अप्रैल, 1919 ई.
(घ) 16 अप्रैल, 1919 ई.
उत्तर-
(क) 13 अप्रैल, 1919 ई०

भारत में राष्ट्रवाद के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 3.
लखनऊ समझौता किस वर्ष हुआ?
(क) 1916
(ख) 1918.
(ग) 1920
(घ) 1922
उत्तर-
(क) 1916

भारत में राष्ट्रवाद प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 4.
असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव काँग्रेस के किस अधिवेशन में पारित हुआ?
(क) सितम्बर 1920, कलकत्ता
(ख) अक्टूबर 1920, अहमदाबाद
(ग) नवम्बर 1920, फैजपुर
(घ) दिसम्बर 1920, नागपुर
उत्तर-
(क) सितम्बर 1920, कलकत्ता

भारत में राष्ट्रवाद का उदय प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 5.
भारत में खिलाफत आंदोलन कब और किस देश के शासक के समर्थन में शुरू हुआ ?
(क) 1920, तुर्की
(ख) 1920, अरब
(ग) 1920, फ्रांस
(घ) 1920, जर्मनी
उत्तर-
(क) 1920, तुर्की

Bihar Board Class 10 Social Science Solution प्रश्न 6.
सविनय अवज्ञा आंदोलन कब और किस यात्रा से शुरू हुआ?
(क) 1920, भुज
(ख) 1930, अहमदाबाद
(ग) 1930, दांडी
(घ) 1930, एल्बा
उत्तर-
(ग) 1930, दांडी

भारत में राष्ट्रवाद पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board प्रश्न 7.
पूर्ण स्वराज्य की माँग का प्रस्ताव काँग्रेस के किस वार्षिक अधिवेशन में पारित हुआ?
(क) 1929, लाहौर
(ख) 1931, कराँची
(ग) 1933, कलकत्ता
(घ). 1937, बेलगाँव
उत्तर-
(क) 1929, लाहौर

भारत में राष्ट्रवाद Pdf Class 10 Bihar Board प्रश्न 8.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना कब और किसने की?
(क) 1923, गुरु गोलवलकर
(ख) 1925, के. बी. हेडगेवार
(ग) 1926, चित्तरंजन दास
(घ) 1928, लालचंद
उत्तर-
(ख) 1925, के. बी. हेडगेवार

Bihar Board Solution Class 10 Social Science प्रश्न 9.
रपा विद्रोह कब हुआ?
(क) 1916
(ख) 1917
(ग) 1918
(घ) 1919.
उत्तर-
(क) 1916

भारत में राष्ट्रवाद का उदय Class 10 Bihar Board प्रश्न 10.
बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि किस किसान आंदोलन के दौरान दी गई ?
(क) बारदोली
(ख) अहमदाबाद
(ग) खेड़ा
(घ) चंपारण
उत्तर-
(क) बारदोली

निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें:

Social Science In Hindi Class 10 Bihar Board Pdf  प्रश्न 1.
बाल गंगाधर तिलक और ……….. ने होमरूल लीग आन्दोलन को शुरू किया।
उत्तर-
एनी बेसेन्ट

Bharat Mein Rashtravad Question Answer प्रश्न 2.
………….. खिलाफत आन्दोलन के नेता थे भारत में।
उत्तर-
महात्मा गांधी

भारत में राष्ट्रवाद Class 10th Bihar Board प्रश्न 3.
………..फरवरी ……… को ……………. आन्दोलन स्थगित हो गया।
उत्तर-
25, 1922, असहयोग

Bihar Board Solution Class 10 प्रश्न 4.
साइमन कमीशन के अध्यक्ष……………थे।
उत्तर-
सर जॉन

Bihar Board Class 10th Social Science Solution प्रश्न 5.
साइमन …………. में……………”कर के विरोध में आंदोलन आरंभ हुआ।
उत्तर-
1857 भू-राजस्व

Bihar Board Class 10 History Solution प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के पहले अध्यक्ष…………..थे।
उत्तर-
डब्ल्यू सी. बनजी

Bihar Board Class 10 History Book Solution प्रश्न 7.
…………”अप्रैल………..”को अखिल भारतीय किसान सभा का गठन…………”हुआ।
उत्तर-
11, 1936, लखनऊ म

Bihar Board History Solution प्रश्न 8.
उड़ीसा में… में …………. विद्रोह हुआ।
उत्तर-
1914 में, खोंड विद्रोह

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

Bharat Me Rashtravad Class 10 In Hindi Question Answer प्रश्न 1.
खिलाफत आन्दोलन क्यों हुआ?
उत्तर-
1920 के प्रारंभ में भारतीय मुसलमानों ने तुर्की के प्रति ब्रिटेन के अपनी नीति बदलने के लिए जोरदार आन्दोलन प्रारंभ किया जिसे खिलाफत आन्दोलन कहा गया।

Class 10 Social Science Bihar Board प्रश्न 2.
रॉलेट एक्ट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
अंग्रेजों द्वारा 1919 में पारित किया गया एक ऐसा कानून जिसमें किसी भी भारतीय अदालत में मुकदमा चलाए जेल में बन्द किया जा सकता था।

प्रश्न 3.
दांडी यात्रा का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
समुद्र के पानी से नमक बनाकर अंग्रेजी कानून का उल्लंघन करना।

प्रश्न 4.
गाँधी-इरविन पैक्ट अथवा दिल्ली समझौता क्या था?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन की व्यापकता ने अंग्रेजी सरकार को समझौता करने के लिए बाध्य किया। 5 मार्च, 1931 को गाँधीजी एवं लार्ड इरविन के बीच जो समझौता हुआ उसे गाँधी इरविन पैक्ट कहा जाता है।

प्रश्न 5.
चम्पारण सत्याग्रह के बारे में बताओ।
उत्तर-
बिहार के चम्पारण में नील की खेती करनेवाले किसानों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ गाँधी जी ने सत्य और अहिंसापूर्ण तरीके से जो आंदोलन चलाया उसे चम्पारण सत्याग्रह कहा जाता है।

प्रश्न 6.
मेरठ षड्यंत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मार्च 1929 में सरकार ने 31 श्रमिक नेताओं को बंदी बना लिया तथा मेरठ लाकर उनपर मुकदमा चलाया गया, जिसे मेरठ षड्यंत्र कहा जाता है।

प्रश्न 7.
जतरा भगत के बारे में आप क्या जानते हैं, संक्षेप में बताओ।
उत्तर-
1914 से 1920 तक खोंड विद्रोह के बाद छोटानागपुर क्षेत्र के उराँवों के द्वारा चलाए जानेवाले अहिंसक आंदोलन का नेता जतरा भगत था, जिसने आन्दोलन में सामाजिक और शैक्षणिक सुधार पर विशेष बल दिया।

प्रश्न 8.
ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन की स्थापना क्यों हुई?
उत्तर-
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस नामक एक संगठन जिसकी स्थापना 31 अक्टूबर 1920 को किया गया तथा सी० आर० दास ने सुझाव दिया कि कांग्रेस द्वारा किसानों एवं श्रमिकों को राष्ट्रीय आन्दोलन के सक्रिय रूप में शामिल किया जाए।

सुमेलित करें-

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद - 3
Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद - 4
उत्तर-
1. (ख)
2. (क)
3. (ग)
4. (ङ)
5. (च)
6. (घ)।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
असहयोग आन्दोलन प्रथम जन आंदोलन था कैसे ?
उत्तर-
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में प्रारंभ किया गया असहयोग आन्दोलन प्रथम जनान्दोलन था, जिसके मुख्य कारण निम्न हैं

  • खिलाफत का मुद्दा
  • पंजाब में सरकार की बर्बर कारवाइयों के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना
  • स्वराज्य की प्राप्ति।

इस आन्दोलन में दो तरह के कार्यक्रम थे। प्रथमतः अंग्रेजी सरकार को कमजोर करने एवं नैतिक रूप से पराजित करने के लिए विध्वंसात्मक कार्य जैसे- उपाधियों एवं अवैतनिक पदों का त्याग करना, सरकारी तथा गैर-सरकारी समारोहों का बहिष्कार करना, विदेशी वस्तुओं का… बहिष्कार करना इत्यादि शामिल थे। . द्वितीयतः रचनात्मक कार्यों के अन्तर्गत, न्यायालय के स्थान पर पंचों का फैसला मानना, राष्ट्रीय विद्यालयों एवं कॉलेजों की स्थापना ताकि सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार करके वाले विद्यार्थी पढ़ाई जारी रख सकें। स्वदेशी को अपनाना, चरखा खादी को लोकप्रिय बनाना, तिलक स्वराजकोष हेतु एक करोड़ रुपये इकट्ठा करना तथा 20 लाख चरखों का सम्पूर्ण भारत में वितरण करना शामिल था।

प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आंदोलन के क्या परिणाम हुए ?
उत्तर-

  • सामाजिक आधार का विस्तार।
  • समाज के विभिन्न वर्गों का राजनीतिकरण।
  • महिलाओं का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा 1935 ई. का भारत शासन अधिनियम पारित किया जाना।
  • ब्रिटिश सरकार का काँग्रेस से समानता के आधार पर बातचीत।

प्रश्न 3.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की शुरूआत 19वीं सदी के अन्तिम चरण में हुई थी। इस समय इंडियन एसोसिएशन द्वारा रेंट बिल का विरोध किया जा रहा था, साथ ही लार्ड लिटन द्वारा बनाए गए प्रेस अधिनियम और शस्त्र अधिनियम का भारतीय द्वारा जबरदस्त विरोध किया जा रहा था। लार्ड रिपन के काल में पास हुए इलबर्ट बिल का यूरोपियनों द्वारा संगठित विरोध से प्राप्त विजय ने भारतीय राष्ट्रवादियों को संगठित होने का पर्याप्त कारण दे दिया।

प्रश्न 4.
बिहार के किसान आन्दोलन पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
महात्मा गाँधी के भारतीय राजनीति में पदार्पण के साथ ही किसान आन्दोलन को नई दिशा मिली। इन्हीं में एक प्रमुख है चम्पारण आन्दोलन।
बिहार के चम्पारण जिले में नील उत्पादक किसानों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। यहाँ नीलहे गोरों द्वारा तीनकठिया व्यवस्था प्रचलित थी जिसमें किसानों को अपनी उस भूमि के 3/20 हिस्से पर नील की खेती करनी होती थी जो सामान्यतः सबसे उपजाऊ भूमि होती थी। जबकि किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे क्योंकि इससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती था।

बगान मालिक किसानों को अपनी उपज एक निश्चित धनराशि पर केवल उन्हें ही बेचने के लिए बाध्य करते थे और यह राशि बहुत ही कम होती थी। इसके अलावा उन्होंने अपने लगान में । अत्यधिक वृद्धि कर दी। इन सब अत्याचारों से त्रस्त एक किसान राजकुमार शुक्ल ने 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में सबका ध्यान इस ओर आकृष्ट किया और महात्मा गाँधी को चम्पारण आने पर विवश किया। इसके बाद गाँधी जी ने किसानों को संगठित कर आंदोलन चलाया इसे चम्पारण सत्याग्रह भी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
स्वराज्य पार्टी की स्थापना एवं उद्देश्य की विवेचना करें।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन की एकाएक वापसी से उत्पन्न निराशा और क्षोभ का प्रदर्शन 1922 में हुए कांग्रेस के गया अधिवेशन में हुआ जिसके अध्यक्ष चितरंजन दास थे। चितरंजन दास एवं मोतीलाल नेहरू आदि नेताओं का विचार था कि रचनात्मक कार्यक्रम के साथ ही कांग्रेसी देश के विभिन्न निर्वाचनों में भाग लेकर व्यावसायिक सभाओं, सार्वजनिक संस्थाओं में प्रवेश कर सरकार के कामकाज में अवरोध पैदा करें। इसी प्रश्न पर एक प्रस्ताव लाया गया, परन्तु पारित नहीं हो पाया। तब चितरंजनदास एवं मोतीलाल नेहरू ने अपने काँग्रेस पद त्याग दिए और स्वराज पार्टी की स्थापना कर डाली और इसका प्रथम अधिवेशन 1923 में इलाहाबाद में हुआ।
इनका मुख्य उद्देश्य था भारत में अंग्रेजों द्वारा चलाई गयी सरकारी परम्पराओं का अंत करना।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
प्रथम विश्व युद्ध का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के साथ अंतर्संबंधों की विवेचना करें?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था, भारत सहित अन्य एशियाई एवं अफ्रीकी देशों में उसकी स्थापना और उसे सुरक्षित रखने के प्रयासों के क्रम में लड़ा गया। ब्रिटेन के सभी उपनिवेशों में भारत सबसे महत्वपूर्ण था और इसे प्रथम महायुद्ध के अस्थिर माहौल में भी हर हाल में सुरक्षित रखना उसकी पहली प्राथमिकता थी। युद्ध आरंभ होते ही ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश शासन का लक्ष्य यहाँ क्रमशः एक जिम्मेवार सरकार की स्थापना करना है। 1916 में सरकार ने भारत में आयात शुल्क लगाया ताकि भारत में कपड़ा उद्योग का विकास हो सके।

विश्वयुद्ध के समय भारत में होनेवाली तमाम घटनाएँ युद्ध से उत्पन्न परिस्थितियों की ही. देन थीं। इसने भारत में एक नई आर्थिक और राजनैतिक स्थिति पैदा की जिससे भारतीय ज्यादा परिपक्व हुए। युद्ध प्रारम्भ होने के साथ ही तिलक और गाँधी जैसे राष्ट्रीवादी नेताओं ने ब्रिटिश सरकार के युद्ध गगा में हर संभव सहयोग दिया क्योंकि उन्हें सरकार के स्वराज सम्बन्धी आश्वासन में भरोसा था। तत्कालीन राष्ट्रवादी नेताओं जिसमें तिलक भी शामिल थे ने सरकार पर स्वराज प्राप्ति के लिए दबाव बने के तहत 1915-17 के बीच एनी बेसेन्ट और तिलक ने आयरलैण्ड से प्रेरित होकर भारत में भी होमरूल लीग आन्दोलन प्रारंभ किया। युद्ध के इसी काल में क्रांतिकारी आन्दोलन का भी भारत और विदेशी धरती दोनों जगह पर यह विकास हुआ।

प्रश्न 2.
असहयोग आंदोलन के कारण एवं परिणाम का वर्णन करें।
उत्तर-
महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1921 ई. में पंजाब और तुर्की के साथ हुए अन्यायों का प्रतिकार और स्वराज्य की प्राप्ति के उद्देश्य से असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ हुआ जिसके कारण निम्नलिखित हैं

  • खिलाफत का मुद्दा।
  • पंजाब में सरकार की बर्बर कार्रवाइयों के विरुद्ध न्याय प्राप्त करना और अंततः
  • स्वराज की प्राप्ति करना।

इस आन्दोलन के परिणाम निम्न हैं-

  • जनता का अपार सहयोग मिला।
  • देश की शिक्षण संस्थाएं लगभग बंद सी हो गई, क्योंकि छात्रों ने उनका त्याग कर दिया था।
  • राष्ट्रीय शिक्षा के एक नये कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इस सिलसिले में काशी विद्यापीठ और जामिया मिलिया जैसे संस्थाओं की स्थापना हुई।
  • कितने लोगों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दी। विदेशी वस्त्रों की होली जलायी जाने लगी। (v) इस आन्दोलन में हिन्दू और मुसलमान दोनों ने एक होकर भाग लिया।

प्रश्न 3.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारणों की विवेचना करें।
उत्तर-
ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आंदोलन दूसरा जन-आंदोलन था, जिसके कारण निम्नलिखित हैं

  • साइमन कमीशन का विरोध-इस कमीशन का उद्देश्य संविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था परन्तु भारत में इसके विरुद्ध त्वरित एवं तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
  • सांप्रदायिकता की भावना को उभरने से बचाने के लिए।
  • विश्वव्यापी आर्थिक मंदी का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा पड़ा। पूरे देश में सरकार के खिलाफ वातावरण बन गया।
  • वामपंथी दबाव को संतुलित करने हेतु एक आन्दोलन के एक नए कार्यक्रम की आवश्यकता थी।
  • पूर्ण स्वराज्य की माँग के लिए 31 दिसम्बर, 1929 की मध्य रात्रि को रावी नदी के तट पर नेहरू ने तिरंगा झंडा फहराया तथा स्वतंत्रता की घोषणा का प्रस्ताव पढ़ा। 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस मनाने की घोषणा की गई। इस प्रकार पूरे देश में उत्साह की एक नई लहर जग गई जो आंदोलन के लिए तैयार बैठी थी।
  • इरविन द्वारा गाँधी से मिलने से इनकार करने के बाद बाध्य होकर गांधी जी ने ‘दांडी-मार्च’ द्वारा अपना आंदोलन शुरू किया ?

प्रश्न 4.
भारत में मजदूर आन्दोलन के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
19वीं शताब्दी के आरम्भ होते ही मजदूर वर्ग के विकास के साथ राष्ट्रवादी . बुद्धिजीवियों में एक नई प्रवृत्ति का आविर्भाव हुआ। अब इन्होंने मजदूर वर्ग के हितों की शक्तिशाली पूंजीपतियों से रक्षा के लिए कानून बनाने की बात करनी शुरू कर दी। 1903 ई. में सुब्रह्मण्य अय्यर ने मजदूर यूनियन के गठन की वकालत की। स्वदेशी आन्दोलन का प्रभाव भी मजदूर आन्दोलन पर पड़ा। यद्यपि इसका मुख्य प्रभाव क्षेत्र बंगाल.था. परंतु इसके संदेश पूरे भारत में फैल रहे थे।

अहमदाबाद गुजरात के एक महत्वपूर्ण औद्योगिक नगर के रूप में विकसित हो रहा था। 1917 में अहमदाबाद में प्लेग फैला, अधिकांश मजदूर भागने लगे। मिल मालिकों ने उन्हें रोकने के लिए साधारण मजदूरी का 50% बोनस देने की बात कही परंतु बाद में उन्होंने बोनस देने से मना कर दिया। इसका श्रमिकों ने विरोध किया। गांधी जी को जब अहमदाबाद के श्रमिकों की हड़ताल का पता चला तो उन्होंने अम्बाला साराभाई नामक एक परिचित.मिल-मालिक से बातचीत की और इस समस्या में हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। परन्तु बाद में मिल-मालिकों ने बात करने से मना कर दिया और मिल में तालाबन्दी की घोषणा कर दी। बाद में गांधी जी ने 50% की जगह 35% मजदूरी बढ़ोतरी की बात कहकर समझौता होने तक भूख हड़ताल पर रहने की बात कही। अंततः मिल-मालिकों ने गांधी जी के प्रस्ताव को मानकर मजदूरों के पक्ष में 35% वृद्धि का निर्णय दिया और मजदूर आन्दोलन सफल हुआ।

कुछ अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं जैसे सोवियत संघ की स्थापना, कुमिन्टन की स्थापना तथा अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना जैसी घटनाओं से भारतीय श्रमिक वर्ग में एक नयी चेतना’ का प्रसार हुआ फलस्वरूप 31 अक्तूबर, 1920 को एटक की स्थापना की गई।

1920 के पश्चात साम्यवादी आन्दोलन के उत्थान के फलस्वरूप मजदूर संघ आन्दोलनों में कुछ क्रान्तिकारी और सैनिक भावना आ गयी। 1928 में गिरनी कामगार यूनियन के नेतृत्व में बम्बई टेक्सटाइल मिल में 6 माह लम्बी हड़ताल का आयोजन किया गया। उग्रवादी प्रभावों के परिप्रेक्ष्य में मजदूर संघ आंदोलनों की बढ़ती क्रियाशीलता के कारण सरकार चिन्तित हो गयी तथा इन आन्दोलनों पर रोक लगाने के लिए वैधानिक कानूनों का सहारा लेने का प्रयास किया। इस संबंध में सरकार ने श्रमिक विवाद अधिनियम 1929 तथा नागरिक सुरक्षा अध्यादेश 1929 बनाए।

प्रश्न 5.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में गाँधी जी के योगदान की विवेचना करें। ..
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलनों में गांधी जी के योगदान की विवेचना कर सूर्य को दीपक दिखाने जैसा कार्य होगा। गाँधी जी के बिना राष्ट्रीय आन्दोलनों की चर्चा ही बेमानी है।

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद उत्पन्न परिस्थितियों ने राष्ट्रीय आन्दोलनों में गाँधीवादी चरण (1919-47) के लिए पृष्ठभूमि के निर्माण का कार्य किया। जनवरी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गाँधीजी ने रचनात्मक कार्यों के लिए अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। चम्पारण एवं खेड़ा में कृषक आन्दोलन और अहमदाबाद में श्रमिक आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान कर गाँधीजी ने प्रभावशाली राजनेता के रूप में अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई। प्रथम विश्वयुद्ध के अन्तिम दौर में इन्होंने कांग्रेस, होमरूल एवं मुस्लिम लीग के नेताओं के साथ भी घनिष्ठ संबंध स्थापित किया। ब्रिटिश सरकार की उत्पीड़नकारी नीतियों एवं रौलेट एक्ट के विरोध में इन्होंने ” सत्याग्रह की शुरूआत की।

नवम्बर 1919 में ही महात्मा गाँधी अखिल भारतीय खिलाफत आन्दोलन के अध्यक्ष बने। इसे गांधीजी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के महान अवसर के रूप में देखा।

सितम्बर 1920 के भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकता अधिवेशन में गाँधी जी की प्रेरणा से अन्यायपूर्ण कार्यों के विरोध में दो प्रस्ताव पारित कर असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया, जो प्रथम जनान्दोलन बन गया।

ब्रिटिश औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ गाँधीजी के नेतृत्व में 1930 ई. में छेड़ा गया सविनय अवज्ञा आन्दोलन दूसरा ऐसा जन-आन्दोलन था जिसका सामाजिक आधार काफी विस्तृत था। इस आंदोलन की शुरूआत गाँधी जी ने 12 मार्च 1930 ई. को दांडी यात्रा से की। उन्होंने 24 दिनों में 250 कि. मी. की पदयात्रा के पश्चात् 5 अप्रैल को दांडी पहुँचे एवं 6 अप्रैल को समुद्र के ..पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया।

प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में वामपंथियों की भूमिका को रेखांकित करें।
उत्तर-
वामपंथी शब्द का प्रथम प्रयोग फ्रांसीसी क्रांति में हुआ था परन्तु कालांतर में समाजवाद .. या साम्यवाद के उत्थान के बाद यह शब्द उन्हीं का पयार्यवाची बन गया।

20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में ही भारत में साम्यवादी विचारधाराएँ फैलनी शुरू हो – गई थीं और बम्बई, कलकता, कानपुर, लाहौर, मद्रास आदि जगहों पर साम्यवादी सभाएँ बननी शुरू हो गईं। उस समय इन विचारों से जुड़े लोगों में मुजफ्फर अहमद, एस. ए. डांगे, मोलवी – बरकतुल्ला गुलाम, हुसैन आदि के नाम प्रमुख थे। इन लोगों ने अपने पत्रों के माध्यम से साम्यवादी – विचारों का पोषण शुरू कर दिया था। परन्तु रूसी क्रांति की सफलता के बाद साम्यवादी विचारों

का तेजी से भारत में फैलाव शुरू हुआ। उसी समय 1920 में मानवेन्द्र नाथ राय ने ताशकंद में .. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना की। लेकिन अभी भारत में लोग छिपकर काम कर रहे थे। फिर असहयोग आन्दोलन के दौरान पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से उन्हें अपने विचारों को फैलाने का अच्छा मौका मिला। साथ ही ये लोग आतंकवादी राष्ट्रीय आंदोलनों से भी जुड़ने लगे थे। इसलिए असहयोग आन्दोलन समाप्ति के बाद सरकार ने इन लोगों का दमन शुरू किया और पेशावर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924), मेरठ षड्यंत्र केस (1929-33) के तहत 8 लोगों पर मुकदमे चलाए।

तब साम्यवादियों ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया और राष्ट्रवादी “साम्यवादी शहीद” कहे जाने लगे। इसी समय इन्हें काँग्रेसियों का समर्थन मिला क्योंकि सरकार द्वारा लाए गए “पब्लिक सेफ्टी बिल” को कांग्रेसियों पारित नहीं होने दिए थे। यह कानून कम्युनिष्टों के विरोध में था। इस तरह अब साम्यवादी आन्दोलन प्रतिष्ठित होता जा रहा था कि दिसम्बर 1925 में सत्यभक्त नामक व्यक्ति ने भारतीय कम्युनिष्ठ पार्टी की स्थापना कर डाली।

अब इंगलैंड के साम्यवादी दल ने भी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी में दिलचस्पी लेना शुरू किया। धीरे-धीरे वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान साम्यवादियों ने अपनी चाल-चलनी शुरू की। उन्होंने काँग्रेस का विरोध शुरू किया, क्योंकि काँग्रेस उद्योगपतियों और जमींदारों का समर्थन कर रही थी, जो मजदूरों का शोषण करते थे। धीरे-धीरे काँग्रेस और. कम्युनिष्ट पार्टी का संबंध टूट गया। इसी के परिणामस्वरूप सुभाषचन्द्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की गयी।

Bihar Board Class 10 History भारत में राष्ट्रवाद Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सीमांत गाँधी किन्हें कहा जाता है।
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खाँ को।

प्रश्न 2.
मणिपुर एवं नागालैंड में नमक सत्याग्रह का प्रसार किसने किया?
उत्तर-
रानी गैडिनल्यू ने।

प्रश्न 3.
गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन को समर्थन क्यों दिया?
उत्तर-
हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए क्योंकि गांधी को भारत में एक बड़ा जन आंदोलन असहयोग आंदोलन चलाना था।

प्रश्न 4.
असहयोग आंदोलन में चौरी-चौरा की घटना का क्या महत्व है ?
उत्तर-
5 फरवरी, 1922 को चौरी-चौरा में हुई घटना के कारण ही महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।

प्रश्न 5.
स्वराज पार्टी का गठन किस उद्देश्य से किया गया?
उत्तर-
स्वराज पार्टी का गठन का उद्देश्य प्रांतीय विधायिकाओं में प्रवेश कर सरकार पर दबाव डालकर स्वराज की स्थापना के लिए प्रयास करना था।

प्रश्न 6.
कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वाधीनता की मांग की गई ? इस अधिवेशन के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर-
कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन, 1929 में पूर्ण स्वाधीनता की मांग की गई। इस अधिवेशन के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे।

प्रश्न 7.
गांधी जी ने दांडी की यात्रा क्यों की?
उत्तर-
गांधी जी के दांडी यात्रा का मुख्य उद्देश्य समुद्र के पानी से नमक बनाकर सरकार के नमक कानून का उल्लंघन करना था।

प्रश्न 8.
1932 के पूना समझौता का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
1932 में गांधीजी और डॉ. अंबेडकर के बीच पूना समझौता हुआ जिसके परिणामस्वरूप । दलित वर्गों के लिए प्रांतीय और केन्द्रीय विधायिकाओं में कुछ स्थान आरक्षित हुए।

प्रश्न 9.
अल्लूटी सीताराम राजू कौन थे ?
उत्तर-
आंध्र प्रदेश के गुडेम पहाड़ियों में वन कानूनों के विरोध में आदिवासियों के विद्रोह का नेतृत्व अल्लूरी सीताराम राजू ने किया।

प्रश्न 10.
गाँधीजी के स्वराज्य झंडा में कौन-कौन-से रंग और प्रतीक थे ?
उत्तर-
गाँधीजी के स्वराज्य झंडा में सफेद, हरा और लाल रंग थे। झंडे के बीच में जो चरखा का चित्र बना हुआ था। वह स्वावलंबन का प्रतीक था। इस झंडे को हाथ में लेकर लोग गौरवपूर्ण ढंग से जुलूसों और प्रदर्शनों में भाग लेकर ब्रिटिश शासन के प्रति अवज्ञा का भाव प्रदर्शित करते थे।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में राष्ट्रवाद उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से कैसे विकसित हुआ? .
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रवाद का उदय और विकास हिन्द-चीन के समान औपनिवेशिक शासन की प्रतिक्रियास्वरूप हुआ। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से औपनिवेशिक राज की प्रशासनिक, आर्थिक और अन्य नीतियों के विरुद्ध असंतोष की भावना बलवती होने लगा। यद्यपि 1857 के विद्रोह के पूर्व भी अंगरेजी आधिपत्य के विरुद्ध क्षेत्रीयता के आधार पर औपनिवेशिक शासन का विरोध किया गया था परन्तु राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रीय चेतना का विकास 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन से ही हुआ।

प्रश्न 2.
प्रथम विश्वयुद्ध ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को किस प्रकार बढ़ावा दिया ?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध 20वीं शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह युद्ध औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप उत्पन्न औपनिवेशिक व्यवस्था बनाए रखने के कारण हुआ। युद्ध आरंभ होने पर अंगरेजी सरकार ने यह घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार का उद्देश्य भारत में एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना है। सरकार ने यह भी कहा कि ब्रिटिश सरकार जिन आदर्शों के लिए लड़ रही थी उन्हें युद्ध की समाप्ति के बाद भारत में भी लागू किया जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों के कारण भारत में राष्ट्रीयता की भावना बलवती हुई और स्वतंत्रता आंदोलन तीव्र हो उठा। प्रथम विश्वयुद्ध के आर्थिक और राजनीतिक परिणामों ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित किया।

प्रश्न 3.
भारतीयों ने रॉलेट कानून का विरोध क्यों किया?
उत्तर-
भारतीय क्रांतिकारियों में उभरती हुई राष्ट्रीयता की भावना को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने न्यायाधीश सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में रॉलेट आयोग का गठन किया। भारतीय नेताओं के विरोध के बावजूद भी यह विधेयक 8 मार्च, 1919 को लागू कर दिया गया। इस कानून का विरोध भारतीयों ने जबर्दस्त रूप से किया। इस कानून के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया जिसके निर्णय के विरूद्ध कोई अपील नहीं किया जा सकता था। इस कानून के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने उसपर मुकदमा चला सकती थी। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा व्यक्ति के मूल अधिकारों की हत्या करनेवाला बताया।

प्रश्न 4.
साइमन कमीशन भारत क्यों आया? भारतीयों में इसकी क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा स्थापित उत्तरदायी शासन की स्थापना में किए गए प्रयासों की समीक्षा करने एवं आवश्यक सुझाव देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार ने 1927 में सरजॉन साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन का गठन किया। इसके सभी 7 सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन का उद्देश्य सांविधानिक सुधार के प्रश्न पर विचार करना था। इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारतीयों में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ। भारतीयों में इसकी प्रतिक्रिया का एक और कारण यह था कि भारत के स्वशासन के संबंध में निर्णय विदेशियों द्वारा किया जाना था। 3 फरवरी, 1928 को कमीशन के बम्बई पहुंचने पर इसका स्वागत हड़ताल, पदर्शन और कालेझंडों से हुआ तथा ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों से हुआ।

प्रश्न 5.
नमक यात्रा पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रारंभ नमक सत्याग्रह से माना जाता है। नमक कानून भंग करने के लिए गांधीजी ने दांडी को चुना जो साबरमती आश्रम से 240 किलोमीटर दूर थी। गांधी अपने 78 विश्वस्त सहयोगियों के साथ 12 मार्च, 1930 को साबरमती से दांडी यात्रा आरंभ की। नमक यात्रा में गांधी के साथ सैंकड़ों युवक, किसान, मजदूर, महिलाएं शामिल हो गए। गांधीजी को देखने और उनका भाषण सुनने के लिए हजारों लोग एकत्र होते थे। 24 दिनों के लम्बी यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को गांधी दांडी पहुँचे। वहाँ पहुँचकर उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर अहिंसक ढंग से सरकार के नमक कानून को भंग किया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के कारणों पर प्रकाश डालें ?
उत्तर-
भारत में राष्ट्रवाद का उदय और विकास 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध की प्रमुख घटना है। भारतीय राष्ट्रवाद के उदय के प्रमुख कारण हैं

(i) अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध असंतोष- अंग्रेजी नीतियों के प्रति बढ़ता असंतोष . भारतीय राष्ट्रवाद के विकास का प्रमुख कारण था। अंगरेजी सरकार की नीतियों के शोषण का शिकार देशी रजवाड़े ताल्लुकेदार, महाजन, कृषक मजदूर, मध्यमवर्ग सभी बने/पूँजीपति वर्ग भी सरकार की भेदभाव आर्थिक नीति से असंतुष्ट था। ये सभी अंगरेजी शासन को अभिशाप मानकर इसका खात्मा करने का मन बनाने लगे।

(ii) आर्थिक कारण– भारतीय राष्ट्रवाद के उदय का एक महत्वपूर्ण कारण आर्थिक कारण था। सरकारी आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और कुटीर उद्योग-धंधे नष्ट हो गए। किसानों पर लगान एवं कर्ज का बोझ बढ़ गया। किसानों को नगरी फसल उपजाने को बाध्य कर उसका भी मुनाफा सरकार ने उठाया। देशी उद्योगों की स्थिति भी दयनीय हो गयी। अंगरेजी आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय धन का निष्कासन हुआ, जिससे भारत की गरीबी बढ़ी। इससे भारतीयों में प्रतिक्रिया हुई एवं राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

(iii) अंगरेजी शिक्षा का प्रसार- भारत में अंगरेजी शिक्षा के प्रचार के कारण भारतीय लोग भी अमेरिका, फ्रांस तथा यूरोप की अन्य महान क्रांतियों से परिचित हुए। रूसो, वाल्टेयर, मेजिनी, गैरीबाल्डी जैसे दार्शनिकों एवं क्रांतिकारियों के विचारों का प्रभाव उनपर पड़ा। वे भी अब स्वतंत्रता, समानता एवं नागरिक अधिकारों के प्रति सचेत होने लगे।

(iv) साहित्य एवं समाचारपत्रों का योगदान- राष्ट्रीय चेतना जागृत करने में प्रेस और . साहित्य का भी महत्वपूर्ण योगदान था। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से अंगरेजी और भारतीय भाषाओं में अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित होनी आरंभ हुई जैसे हिंदू पैट्रियाट, हिन्दू, आजाद, संवाद कौमुदी इत्यादि। इनमें भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक मुद्दों को उठाकर सरकारी नीतियों की आलोचना की गई।

(v) सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन का प्रभाव- 19वीं शताब्दी के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन ने भी राष्ट्रीयता की भावना विकसित की। इस समय तक भारतीय समाज एवं धर्म कुरीतियों और रूढ़ियों से ग्रस्त हो चुका था। राजा राममोहन राय, दयानंद सरस्वती, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द के प्रयासों से नई चेतना जगी। ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन ने एकता, समानता एवं स्वतंत्रता की भावना जागृत की तथा भारतीयों में आत्म-सम्मान, गौरव एवं राष्ट्रीयता की भावना का विकास करने में योगदान दिया।

प्रश्न 2.
जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया?
उत्तर-
भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने 1919 में रॉलेट कानून (क्रांतिकारी एवं अराजकता अधिनियम) बनाया। इस कानून के अनुसार सरकार किसी को भी संदेह ने आधार पर गिरफ्तार कर बिना मुकदमा चलाए उसको दंडित कर सकती थी तथा इसके खिलाफ कोई अपील भी नहीं की जा सकती थी। भारतीयों ने इस कानून का कड़ा विरोध किया। इसे ‘काला कानून’ की संज्ञा दी गई। गांधीजी ने इस कानून को अनुचित, अन्यायपूर्ण, स्वतंत्रता का हनन करनेवाला तथा नागरिकों के मूल अधिकारों की हत्या करने वाला बताया। उन्होंने जनता से शांतिपूर्वक इस कानून का विरोध करने को कहा।

अमृतसर में एक बहुत ही बड़ा प्रदर्शन हुआ जिसकी अध्यक्षता डॉ. सत्यपाल और डॉ. किचलू कर रहे थे। सरकार ने दोनों को अमृतसर से निष्कासित कर दिया। जनरल डायर ने पंजाब में फौजी शासन लागू कर आतंक का राज्य स्थापित कर दिया। पंजाब के लोग अपने प्रिय नेता की गिरफ्तारी तथा सरकार की दमनकारी नीति के खिलाफ 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी मेले के अवसर पर जालियाँवाला बाग में एक विराट सम्मेलन का आयोजन कर विरोध प्रकट कर रहे थे जिसके कारण ही डायर ने निहत्थी जनता पर गोलियाँ चलवा दी। यह घटना जालियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से जाना गया।

जालियांवाला बाग की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल हुए। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने घटना के विरोध में अपना ‘सर’ का खिताब वापस लौटाने की घोषणा की। वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। गांधीजी ने कैंसर-ए-हिन्द की उपाधि त्याग दी। जालियांवाला बाग हत्याकांड ने राष्ट्रीय आंदोलन में एक नई जान फूंक दी।

प्रश्न 3.
खिलाफत आंदोलन क्यों हुआ? गांधीजी ने इसका समर्थन क्यों किया?
उत्तर-
तुर्की का खलीफा जो आंदोलन साम्राज्य का सुल्तान भी था, संपूर्ण इस्लामी जगह का धर्मगुरू था। पैगंबर के बाद सबसे अधिक प्रतिष्ठा उसी की थी। प्रथम विश्वयुद्ध में जर्मनी के साथ तुर्की भी पराजित हुआ। पराजित तुर्की पर विजयी मित्रराष्ट्रों ने कठोर संधि थोप दी (सेब्र की संधि) ऑटोमन साम्राज्य को विखंडित कर दिया गया। खलीफा और ऑटोमन साम्राज्य के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में आक्रोश व्याप्त हो गया। वे तुर्की के सुल्तान और खलीफा की शक्ति और प्रतिष्ठा की पुनः स्थापना के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गए। इसके लिए ही खिलाफत आंदोलन आरंभ किया गया। खिलाफत आंदोलन एक प्रति क्रियावादी आंदोलन के रूप में आरंभ हुआ, लेकिन शीघ्र ही मध्य साम्राज्य विरोधी और राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में परिणत हो गया।

महात्मा गांधी खिलाफत आंदोलन को सत्य और न्याय पर आधारित मानते थे। इसलिए उन्होंने इसे अपना समर्थन दिया। 1919 में वह दिल्ली में आयोजित ऑल इंडिया खिलाफत सम्मेलन के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने सरकार को धमकी दी कि यदि खलीफा के साथ न्याय नहीं किया जाएगा तो वह सरकार के साथ असहयोग करेंगे। गांधीजी ने इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर हिन्दू-मुसलमान एकता स्थापित करने और एक बड़ा सशक्त राजविरोधी आंदोलन असहयोग
आंदोलन आरंभ करने का निर्णय लिया। .

प्रश्न 4.
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में क्या अंतर था ? महिलाओं की सविनय अवज्ञा आंदोलन में क्या भूमिका थी? . उत्तर-
असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के स्वरूप में काफी विभिन्नता थी। असहयोग आंदोलन में जहाँ सरकार के साथ असहयोग करने की बात थी वहीं सविनय अवज्ञा आंदोलन में न केवल अंग्रेजों का सहयोग न करने के लिए बल्कि औपनिवेशिक कानूनों का भी उल्लंघन करने के लिए आह्वान किया जाने लगा। असहयोग आंदोलन की तुलना में सविनय अवज्ञा आंदोलन व्यापक जनाधार वाला आंदोलन साबित हुआ।

सविनय अवज्ञा आंदोलन में पहली बार स्त्रियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। वे घंटों की चहारदीवारी से बाहर निकलकर गांधीजी की सभाओं में भाग लिया। अनेक स्थानों पर स्त्रियों ने नमक बनाकर नमक-कानून भंग किया। स्त्रियों में विदेशी वस्त्र एवं शराब के दुकानों की पिकेटिंग की। स्त्रियों ने चरखा चलाकरे सूत काते और स्वदेशी को प्रोत्साहन दिया। शहरी क्षेत्रों में ऊँची जाति की महिलाएं आंदोलन में सक्रिय थी तो ग्रामीण इलाकों में संपन्न परिवार की किसान स्त्रियाँ।

प्रश्न 5.
भारतीय राजनीति में साम्यवादियों की भूमिका की विवेचना कीजिए ?
उत्तर-
1917 की महान रूसी क्रांति के बाद पूरे विश्व में साम्यवादी विचारधारा का प्रसार हुआ। 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत भी साम्यवादी विचारधारा के प्रभाव में आया। देश के अनेक भागों में बुद्धिजीवी साम्यवादी दर्शन से प्रभावित लोगों का समूह बनाकर इस विचारधारा को प्रोत्साहन दे रहे थे। विख्यात क्रांतिकारी एम. एन. राय ने 1920 में ताशकंद में हिन्दुस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की। भारत में इसका प्रचार करने के लिए कलकत्ता, बंबई, मद्रास लाहौर में साम्यवादी सभाएँ बननी शुरू हो गई। साम्यवादियों ने श्रमिकों और किसानों की ओर अपना ध्यान दिया। क्रांतिकारी आंदोलनों पर भी इनका प्रभाव पड़ा। अक्टूबर 1920 में बंबई में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई।

इसमें फूट पड़ने के बाद एन. एम. जोशी ने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन फेडरेशन (AITUF) का गठन किया। इस तरह वामपंथ का प्रसार मजदूर संघों पर बढ़ रहा था। वामपंथ को प्रभाव में इन श्रमिक संगठनों ने मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास किया। आगे चलकर 1934 में समाजवादियों के प्रयास से सभी श्रमिक संघों को मिलाकर ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की स्थापना की गई। साम्यवादियों ने किसानों की समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया। लेबर स्वराज पार्टी भारत में पहली किसान मजदूर पार्टी थी लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर दिसम्बर, 1928 में अखिल भारतीय मजदूर किसान पार्टी बनी।

साम्यवादियों ने किसान मजदूरों की स्थिति में सुधार लाने के अतिरिक्त साम्राज्यवाद एवं पूंजीवाद का विरोध भी किया। क्रांतिकारी आंदोलनों को भी इनका समर्थन मिला। फलतः असहयोग आंदोलन के बाद सरकार ने साम्यवादियों पर कड़ी कारवाई की। पेशवर षड्यंत्र केस (1922-23), कानपुर षड्यंत्र केस (1924) तथा मेरठ षड्यंत्र केस (1929-33) में मुकदमा चलाकर कुछ साम्यवादियों को दंडित किया गया। साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव कांग्रेस के युवा वर्ग पर भी पड़ा। इन लोगों ने कांग्रेस पर अधिक सशक्त नीति अपनाने की मांग की। साथ ही किसानों मजदूरों की समस्याओं को भी उठाने का प्रयास किया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान साम्यवादियों ने कांग्रेस का विरोध करना शुरू किया जिसकी अंतिम परिणति सुभाष चन्द्र बोस द्वारा फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना के रूप में हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध और ‘भारत छोड़ो आंदोलन में भी साम्यवादियों ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया।

Bihar Board Class 10 History भारत में राष्ट्रवाद Notes

  •  राष्ट्रवाद का शाब्दिक अर्थ होता है-“राष्ट्रीय चेतना का उदय”
  • राष्ट्रवाद के उदय के कारण –
    (i) धार्मिक कारण
    (ii) सामाजिक कारण
    (iii) आर्थिक कारण
    (iv) राजनीतिक कारण।
  • राष्ट्रीय आन्दोलन से संबंधित प्रभुत्व व्यक्ति पार्टी अथवा आन्दोलन – आन्दोलन
    Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद - 1
    Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 4 भारत में राष्ट्रवाद - 2
  • राष्ट्र की अवधारणा और राष्ट्रीय चेतना का विकास 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में हुआ।  1885 ई. में भारतीय राष्टोय काँग्रेस की स्थापना ने राष्ट्रवाद की अवधारणा को उत्तेजना प्रदान की।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 गद्य खण्ड Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions गद्य Chapter 3 भारत से हम क्या सीखें

Bihar Board Class 10 Hindi भारत से हम क्या सीखें Text Book Questions and Answers

बोध और अभ्यास

पाठ के साथ

भारत से हम क्या सीखें Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
समस्त भूमंडल में सर्वविद सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण देश भारत है। लेखक ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर-
मरत ऐसा देश है, जहाँ मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार हुआ है। यहाँ जीवन की बड़ी-से-बड़ी समस्याओं के ऐसे समाधान ढूँढ निकाले गये हैं जो विश्व के दार्शनिकों के लिए चिन्तन का विषय है। भारत में भूतल पर ही स्वर्ग की छटा बिखरती है। यहाँ की धरती प्राकृतिक सौंदर्य, मानवीय गुण, मूल्यवान रत्न, प्राकृतिक सम्पदा एवं मनीषियों के आध्यात्मिक चिंतन से परिपूर्ण है। यहाँ जीवन को सुखद बनाने के लिए उपयुक्त ज्ञान एवं वातावरण का सान्निध्य मिलता है जो भूमंडल में अन्यत्र नहीं है।

भारत से हम क्या सीखें का सारांश Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन कहाँ हो सकते हैं और क्यों ?
उत्तर-
लेखक की दृष्टि में सच्चे भारत के दर्शन गाँवों में हो सकते हैं। भारत की सारी परंपरा का आधार ऋषि और कृषि पद्धति है। गाँव में ग्राम पंचायत व्यवस्था देखने को मिलेंगे। कृषि व्यवस्था मंदिर व्यवस्था आदि। जो केवल में मौलिक रूप से देखने को नहीं मिलेंगे।

भारत से हम क्या सीखें प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 3.
भारत को पहचान सकने वाली दृष्टि की आवश्यकता किनके लिए वांछनीय है और क्यों?
उत्तर-
भारत को पहचान करने वाली दृष्टि भारतीय सविल सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के लिए है। भारत में पहुंचने के बाद वहाँ से ज्ञान, सामाजिक व्यवस्थाएँ, विज्ञान आदि का संग्रह और उन्नयन करने की दृष्टि हो। सर विलियम जोन्स की तरह नए युवा अधिकारी भी स्वप्नदर्शी हों और गंगा, सिन्धु के मैदानों में संग्रहणीय वस्तु एवं विद्या इंगलैण्ड लावें।

Bharat Se Ham Kya Sikhe Question Answer प्रश्न 4.
लेखक ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरूचि रखने वाले के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है ?
उत्तर-
लेखक ने कहा है कि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्रों में है तो भारत में आपको पर्याप्त अवसर मिलेंगे। लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी। जैसे-विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकती।

Bharat Se Ham Kya Sikhe Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 5.
लेखक ने वारेन हेस्टिंग्स से संबंधित किस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का हवाला दिया है और क्यों ?
उत्तर-
वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला था। उन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल की सेवा में सोने के सिक्के यह समझकर भिजवा दिया कि यह एक ऐसा उपहार होगा जिसकी गणना उसके द्वारा प्रेषित सर्वोत्तम दुर्लभ वस्तुओं में की जाएगी। कंपनी के निदेशक उसका ऐतिहासिक महत्त्व नहीं समझ पाये और उन मुद्राओं को गला डाला। वारेन हेस्टिंग्स के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण घटना था। फिर वह सोचा कि आगे से सावधानी रहे कि ऐतिहासिक वस्तुओं को बचाया जाय।

Bharat Se Ham Kya Sikhen Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
लेखक ने नीतिकथाओं के क्षेत्र में किस तरह भारतीय अवदान को रेखांकित किया है?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि नीति कथाओं के अध्ययन-क्षेत्र में नवजीवन का संचार हुआ है। समय-समय पर विविध साधनों और मार्गों द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित रही हैं। भारत में प्रचलित कहावतों और दन्तकथाओं का प्रमुख स्रोत बौद्ध धर्म को माना जाने लगा है, किन्तु इसमें निहित समस्याएँ समाधान की प्रतीक्षा में हैं। लेखक ने एक उदाहरण देकर बताया है कि ‘शेर की खाल में गदहा’ वाली कहावत सबसे पहले यूनानी दार्शनिक प्लेटो के क्रटिलस में मिलती है। इसी तरह संस्कृत की एक कथा यूनान के एक नीति कथा से मिलती है। अर्थात् भारतीय नीति कथाएँ यूनान से कैसे जुड़ी यह एक शोध का विषय है।

भारत से हम क्या सीखें क्वेश्चन आंसर Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 7.
भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक संबंध के प्राचीन प्रमाण लेखक ने क्या दिखाए हैं?
उत्तर-
लेखक के अनुसार यह असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो चुका है कि सोलोमन के समय में ही भारत, सीरिया और फिलीस्तीन के मध्य आवागमन के साधन सुलभ हो चुके थे। साथ ही . इन देशों के व्यापारिक अध्ययन करने पर कुछ संस्कृत शब्दों का प्रयोग मिलता है। इन संस्कृत शब्दों के आधार पर प्रमाणित होता है कि हाथी-दाँत, बन्दर, मोर और चन्दन आदि जिन वस्तुओं के ऑफिसर से निर्यात की बात बाइबिल में कही गयी है, वे वस्तुएँ भारत के सिवा किसी अन्य देश से नहीं लाई जा सकती। ऐतिहासिक अध्ययन से यह भी ज्ञात है कि दसवीं-ग्यारहवीं सदी में भी भारत के साथ यूरोप के व्यापारिक सम्बन्ध बंद नहीं हुए थे।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 8.
भारत के ग्राम पंचायतों को किस अर्थ में और किनके लिए लेखक ने महत्त्वपूर्ण बतलाया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
लेखक युवा अंग्रेज अधिकारी जो भारतीय सिविल सेवा हेतु चयनित हुए थे उनके लिए भारत के ग्राम पंचायतों का महत्त्वपूर्ण अर्थ बतलाया है। – अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से सम्बद्ध प्राचीन युग के कानून की पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। ..

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 9.
धर्मों की दृष्टि से भारत का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत प्राचीन काल से ही धार्मिक विकास का केन्द्र रहा है। यहाँ धर्म के वास्तविक उद्भव उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष परिचय मिलता है। भारत वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्ध धर्म की यह जन्मभूमि है, पारसियों के जरथुस्ट्र धर्म की यह शरण-स्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट एवं विकसित होते रहते हैं। इस तरह से भारत धार्मिक क्षेत्र में विश्व को आलोकित करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण देश है।

Class 10 Hindi Bihar Board प्रश्न 10.
भारत किस तरह अतीत और सुदूर भविष्य को जोड़ता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में आप अपने-आपको सर्वत्र अत्यन्त प्राचीन और सुदूर भविष्य के बीच खड़ा पायेंगे। वहाँ आपको ऐसे सुअवसर भी मिलेंगे जो किसी पुरातन विश्व में ही सुलभ हो सकते हैं। आप आज की किसी भी ज्वलंत समस्या को ले लीजिए। वह समस्या चाहे लोकप्रिय शिक्षा से सम्बद्ध हो, या उच्च शिक्षा, चाहे संसद में प्रतिनिधित्व की बात हो अथवा कानून बनाने की बात हो, चाहे प्रवास संबंधी कानून हो अथवा अन्य कोई कानूनी मसला, सीखने या सिखाने योग्य कोई बात क्यों न हो, भारत के रूप में आपको ऐसी प्रयोगशाला मिलेगी जैसे विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता।

Class 10 Hindi Book Bihar Board प्रश्न 11.
मैक्समूलर ने संस्कृत की कौन-सी विशेषताएँ और महत्त्व बतलाये हैं ?
उत्तर-
संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। ज्यों ही इन भाषाओं के बीच में संस्कृत आ बैठी कि तत्काल लोगों को एक सही प्रकाश और गर्मी का अहसास होने लगा, और इसी से भाषाओं का पारस्परिक संबंध भी स्पष्ट हो गया। निश्चित ही संस्कृत इन सब भाषाओं की अग्रजा है।

प्रश्न 12.
लेखक वास्तविक इतिहास किसे मानता है और क्यों?
उत्तर-
किसी देश अथवा राज्य की प्राचीनकालीन इतिहास को जानने के लिए आवश्यक है कि पहले हम वहाँ की भाषा की प्राचीनता को जानें। यदि हम यह जानना चाहें कि आर्य लोग अनेक शाखाओं में विभक्त होने से पूर्व चूहे के बारे में जानते थे या नहीं, तो हमें आर्य भाषाओं के शब्दकोष देखने होंगे। भाषा के सहारे आर्यों के विभाजन से पूर्व की सभ्यता एवं सांस्कृतिक अवस्था को जाना जा सकता है। संस्कृत, ग्रीक और लैटिन इन तीनों भाषाओं के एक सामान्य मूल उद्गम-स्रोत तक पहुँचने के लिए हमें बहुत पीछे हटना होगा और पीछे हटकर हम उस . सम्मिलन स्थल पर पहुँच जाएंगे जहाँ से हिन्दू, ग्रीक, यूनानी आदि शक्तिशाली जातियाँ एक-दूसरी से पृथक् हुई थीं। अतीत के अध्ययन से हम पाते है कि आदि आर्य भाषा चिंतन-परम्परा के प्रवाहों के उतार-चढ़ाव से घिसनेवाली चट्टान रही है।

लेखक इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता है, क्योंकि यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों, दुराचारों और उनके जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय

प्रश्न 13.
संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन से पश्चात्य जगत् को प्रमुख लाभ क्या-क्या हुए?
उत्तर-
संस्कृत और दूसरी भारतीय भाषाओं के अध्ययन के पश्चात् मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा वर्बर समझे जानेवाले लोगों का भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही नहीं सीखे हैं, अपितु इसने मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप से प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था।

प्रश्न 14.
लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को किसकी तरह सपने देखने । के लिए प्रेरित किया है और क्यों ?
उत्तर-
लेखक ने भारत के लिए नवागंतुक अधिकारियों को सर विलियम जेम्स की तरह सपने देखने के लिए प्रेरित किया है, क्योंकि उन्होंने इंग्लैंड से आरम्भ की हुई अपनी लम्बी समुद्र यात्रा की समाप्ति पर क्षितिज में प्रकट होते हुए भारत के तट का दर्शन करते हुए जो अनुभव किया था वह सुखद था। उन्होंने अनुभव किया था कि एशिया की यह भूमि नानाविध विज्ञान की धात्री, आनन्ददायक ललित कथा उपयोगी कलाओं की जननी, एक से एक बढ़कर शानदार कार्यकलापों ” की दृश्यभूमि, मानव प्रतिभा की जननी एवं धार्मिक विकास की केन्द्रभूमि तथा रीति-रिवाज, परम्पराओं, भाषा की दृष्टि विविधा के कारण सर्वत्र सम्मान की दृष्टि से देखी जाने वाली पवित्र भूमि है।

प्रश्न 15.
लेखक ने नया सिकंदर किसे कहा है ? ऐसा कहना क्या उचित है ? लेखक का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक ने नया सिकंदर भारत को समझने, जानने एवं सम्पूर्ण लाभ प्राप्त करने हेतु भारत आनेवाले नवागंतुक, अन्वेषकों, पर्यटकों एवं अधिकारियों को कहा है। भारत विजय का सिकंदर ने स्वप्न देखा था। उसी प्रकार आज भी भारतीयता को निकट से जानने के नवीन स्वप्नदर्शी को आज का सिकंदर कहना अतिशयोक्ति नहीं है, यह उचित है। लेखक ने कहा है कि नए सिकंदर को यह सोचकर निराश नहीं हो जाना चाहिए कि गंगा और सिंध के पुराने मैदानों में अब उसके विजय करने के लिए कुछ भी शेष नहीं रहा। आज भी अध्ययन, शोध, विश्व की विविध प्राचीनतम ज्ञान, विकास सूत्र, प्राच्य देशों के इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में एक से बढ़कर एक शानदार बड़ी-बड़ी अनेक विजय प्राप्त की जा सकती हैं। विश्व के सर्वांगीण विकास हेतु आज भी भारतीयता के सम्यक् ज्ञान की आवश्यकता को लेखक ने अनिवार्य बताया है। साथ-ही भारत में असीम संभावनाओं पर बल दिया है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित वाक्यों से विशेष्य और विशेषण पद चुनें –

(क) उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार।
उत्तर-
उपलब्धियों, साक्षात्कार
विशेषण: – उत्कृष्टतम सर्वप्रथमा

(ख) प्लेटो और काण्ट जैसे दार्शनिकों का अध्ययन करनेवाले हम यूरोपियन लोग।
उत्तर-
विशेष्य – लोग
विशेषण – यूरोपियन, हम।

(ग) अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन
उत्तर-
विशेष्य – जन्म, जीवन
विशेषण – अगला, शाश्वत।

(घ) दो-तीन हजार वर्ष पुराना ही क्यों, आज का भारत भी।
उत्तर-
विशेष्य- भारत
विशेषण- पुराना, आज, दो-तीन हजार वर्ष।

(ङ)भूले-बिसरे बचपन की मधुर स्मृतियाँ।
उत्तर-
विशेष्य- स्मृतियाँ, बचपन
विशेषण- मधुर, भूले-बिसरे।

(च) लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा बर्बर समझे जानेवाले लोगों को भी।
उत्तर-
विशेष्य – लोगों
विशेषण – वर्बर, लाखों-करोड़ो।]

प्रश्न 2.
‘अग्रजा’ की तरह ‘जा’ प्रत्यय जोड़कर तीन-तीन शब्द बनाएँ
उत्तर-
अनुजा, भानुजा, भ्रातृजा।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित उपसर्गों से तीन-तीन शब्द बनाएँ
उत्तर-
प्र = प्रणाम, प्रसंग, प्रवाह निः .
नि = नि:धन, निःश्वास, नि:शेष
अनु = अनुभव, अनुगमन, अनुमान]
अभि = अभिज्ञान, अभिमान, अभिनंदन
विज = विज्ञान, विश्वास, विनाश

प्रश्न 4.
वास्तविक में ‘इक’ प्रत्यय है।
‘इक’ प्रत्यय से पाँच शब्द बनाएँ।
उत्तर-
नैतिक, मौलिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक, साहसिक।

गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सर्वविध सम्पदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बलाऊँगा कि वह देश है-भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि आप यह जानना चाहें कि मानव मस्तिष्क की उत्कृटतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार किस देश ने किया है और किसने जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर विचार कर उनमें से कइयों के ऐसे समाधान ढूंढ निकाले हैं कि प्लेटो और काण्ट जैसे दार्शनिकों का अध्ययन करनेवाले हम यूरोपियन लोगों के लिए भी वे मनन के योग्य हैं, तो मैं यहाँ भी भारत ही का नाम लूंगा। और, यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन का अंतरतम परिपूर्ण, अधिक-सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि सम्पूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत. जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) किस देश में भूतल परं स्वर्ग की छटा दिखती है ?
(ग) यूरोपियन के लिए चिंतन करने योग्य भूमि लेखक ने किसे माना है?
(घ) भारत किस विषय में परिपूर्ण कहा गया है ?
(ङ) भारत ने किसका साक्षात्कार सर्वप्रथम किया है ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-भारत से हम क्या सीखें।
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) भारत की भूतल पर स्वर्ग की छटा दिखती है।
(ग) भारत-भूमि को।
(घ) सर्वविध सम्पदा और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण भारत को माना गया है।
(ङ) भारत ने मानव मस्तिष्क की उत्कृष्टतम उपलब्धियों का सर्वप्रथम साक्षात्कार किया

2. यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, श्रेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर परिणाम में उपलब्ध होंगे। जब वारेन हेस्टिंग्स भारत का गवर्नर जनरल था तो वाराणसी के पास उसे 172 दारिस नामक सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा मिला था। वारेन हेस्टिंग्स ने अपने मालिक ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल की सेवा में सोने के सिक्के यह समझकर भिजवा दिये कि यह एक ऐसा उपहार होगा जिसकी गणना उसके द्वारा प्रेषित सर्वोत्तम दुर्लभ वस्तुओं में की जाएगी और इस प्रकार वह स्वयं को अपने मालिकों की दृष्टि में एक महान उदार व्यक्ति प्रमाणित कर देगा। किन्तु उन दुर्लभ प्राचीन स्वर्ण मुद्राओं की यही नियति थी कि कम्पनी के निदेशक उनका ऐतिहासिक महत्त्व समझ ही न पाए और उन्होंने उन मुद्राओं को गला डाला। जब वारेन हेस्टिंग्स इंग्लैंड लौटा तो वे स्वर्ण मुद्राएँ नष्ट हो चुकी थीं। अब यह आप लोगों पर निर्भर करता है कि आप ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ भविष्य में कभी न होने दें।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
(ख) भारत भूमि में प्रचुर परिमाण में कौन-से सिक्के उपलब्ध होंगे?
(ग) वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास क्या मिला?
(घ) उसने वाराणसी में प्राप्त वस्तु को किसे भेंट में दे दिया? (ङ) निदेशक ने मुद्राओं को क्या किया?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम भारत से हम क्या सीखें।
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) भारत में ईरानी, केरियन, यूनानी, शकों, रोमन एवं मुस्लिम शासकों के सिक्के उपलब्ध . मिलेंगे।
(ग) स्वर्ण मुद्राओं से भरा एक घड़ा।
(घ) ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशक मंडल को।
(ङ) निदेशक ने मुद्राओं को गला डाला।

3. संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता, क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। जिस रूप में आज यह हम तक पहुंची है, उसमें भी अत्यन्त प्राचीन तत्त्व भली-भाँति सुरक्षित है। ग्रीक और लैटिन भाषाएँ लोगों को सदियों से ज्ञात हैं और निस्संदेह यह भी अनुभव किया जाता रहा था कि इन दोनों भाषाओं में कुछ-न-कुछ साम्य अवश्य है। किन्तु, समस्या यह थी कि इन दोनों भाषाओं में विद्यमान समानता को व्यक्त कैसे किया जाए? कभी ऐसा होता था कि किसी ग्रीक शब्द की निर्माण-प्रक्रिया में लैटिन को कुंजी मान लिया जाता था और कभी किसी लैटिन शब्द के रहस्यों को खोलने के लिए ग्रीक का सहारा लेना पड़ता था। उसके बाद जब गॉथिक और एंग्लो-सैक्सन जैसी ट्यूटानिक भाषाओं, पुरानी केल्टिक तथा स्लाव भाषाओं का भी अध्ययन किया जाने लगा तो इन भाषाओं में किसी-न-किसी प्रकार का पारिवारिक सम्बन्ध स्वीकार करना ही पड़ा। किन्तु, इन भाषाओं में इतनी अधिक समानता कैसे आ गई, और समानताओं के साथ-ही-साथ इतना अधिक अन्तर भी इनमें कैसे पड़ गया, यह रहस्य बना ही रहा और इसी कारण ऐसे अनेक अहैतुकवाद उठ खड़े हुए जो भाषाविज्ञान के मूल सिद्धान्तों के सर्वथा विपरीत है।

प्रश्न
(क) पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए। .
(ख) संस्कृत की पहली विशेषता क्या है?
(ग) ग्रीक और लैटिन भाषाओं के बीच क्या समस्या थी?
(घ) सब भाषाओं की अग्रजा किसे कहा गया है ?
उत्तर-
(क) पाठ का नाम भारत से हम क्या सीखें। .
लेखक का नाम मैक्समूलर।
(ख) संस्कृत की पहली विशेषता इसकी प्राचीनता है।
(ग) दोनों भाषाओं में विद्यमान समानता को कैसे व्यक्त की जाय, यह समस्या थी।
(घ) संस्कृत को सब भाषाओं की अग्रजा कहा गया है।

4. यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संबद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्वं और वैशिष्ट्य को परखने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन-प्रणाली.या पंचायत-प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) सरलतम और राजनैतिक इकाइयों की जानकारी का माध्यम क्या है?
(ग) गद्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठभारत से हम क्या सीखें। लेखक मैक्समूलर।
(ख)सरलतम और राजनैतिक इकाइयों की जानकारी भारत की ग्राम-पंचायत व्यवस्था के अध्ययन से प्राप्त की जा सकती है।
(ग)भारत की ग्राम-पंचायत व्यवस्था संसार की सबसे प्राचीन सरलतम् और राजनैतिक प्रशासनिक इकाई है। इससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

5. अपने सच्चे आत्मरूप की पहचान में भारत का स्थान किसी भी देश के बाद दूसरे नम्बर ‘ पर नहीं रखा जा सकता। मानव-मस्तिष्क के चाहे किसी भी क्षेत्र को आप अपने विशिष्ट अध्ययन का विषय क्यों न बना लें, चाहे वह भाषा का क्षेत्र हो या-धर्म का, दैवत विज्ञान का हो या दर्शन का, चाहे विधिशास्त्र या कानून का हो अथवा रीति-रिवाजों व परम्पराओं का, प्राचीन काल या शिल्प का हो अथवा पुरातन का, इनमें से किसी में विचरण करने के लिए भले ही आप चाहें, न चाहें आपको भारत की शरण लेनी ही होगी, क्योंकि मानव इतिहास से सम्बद्ध अत्यन्त बहुमूल्य और अत्यन्त उपादेय प्रामाणिक सामग्री का एक बहुत बड़ा भाग भारत और केवल भारत में ही – संचित है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) आत्म रूप की पहचान की दृष्टि से भारत का संसार में क्या स्थान है?
(ग) किन-किन क्षेत्रों की विशिष्ट जानकारी के लिए भारत की शरण लेना जरूरी है?
(घ) गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-भारत से हम क्या सीखें। लेखक- मैक्समूलर।
(ख) आत्मरूप की पहचान की दृष्टि से भारत का स्थान सर्वोपरि है।
(ग) भाषा, धर्म, दैवत विज्ञान, दर्शनशास्त्र, विधि या कानून, रीति-रिवाजों, परम्पराओं और प्राचीन कला या शिल्प एवं पुरातन विज्ञान की विशिष्ट जानकारी के लिए भारत सबसे उपयुक्त स्थान है।
(घ) आत्मरूप को पहचानने की दृष्टि से ही भारतीय साहित्य से बढ़कर कोई साहित्य ही नहीं है। साहित्य ही नहीं, दर्शनशास्त्र, कानून, प्राचीन शिल्प एवं कला, धर्म, दर्शन या भाषा की विस्तृत जानकारी की प्रचुर सामग्री भारत में उपलब्ध है।

6. एक भाषा बोलना एक माँ के दूध पीने से भी बढ़कर एकात्मकता का परिचायक है और भारत की पुरातन भाषा संस्कृत सार रूप से वही है जो ग्रीक, लैटिनं या एंग्लो सेक्सन भाषाएं हैं। यह एक ऐसा पाठ है, जिसे हम भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना कभी न पढ़ पाते, और भारत यदि हमें इस एक पाठ के सिवा और कुछ भी न पढ़ा पाता तो भी हम इससे ही इतना कुछ सीख जाते जितना दूसरी कोई भाषा कभी नहीं सिखा पाती।
(क) पाठ और लेखक के नामों का उल्लेख करें।
(ख) एकात्मकता का सबसे बड़ा परिचायक क्या है?
(ग) भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना हम क्या नहीं जान पाते हैं ?
(घ) इस गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-भारत से हम क्या सीखें। लेखक- मैक्समूलर।
(ख) एकात्मकता का सबसे बड़ा परिचायक है एक भाषा बोलना। यह एक माँ का दूध पीने की भाँति है।
(ग) भारतीय भाषा और साहित्य के अध्ययन के बिना हम कभी न जान पाते कि संस्कृत भाषा भी साररूप से वही है जो ग्रीक, लैटिन या ऐंग्लो सेक्सन की भाषाएँ।
(घ) भारत की पुरातन भाषा संस्कृत सार- रूप से ग्रीक, लैटिन और ऐंग्लो सेक्सन की ही . भाषा है। इस बात का पता भारतीय साहित्य और इतिहास के अध्ययन के सिवा नहीं लगता।

7. संस्कृत तथा दूसरी आर्य भाषाओं के अध्ययन ने हमारे लिए बस इतना ही किया हो, सो बात भी नहीं है। इससे मानव जाति के बारे में हमारे विचार व्यापक और उदार ही नहीं बने हैं तथा लाखों-करोड़ों अजनबियों तथा बर्बर समझे जानेवाले लोगों को भी अपने ही परिवार के सदस्य की भाँति गले लगाना ही हम नहीं सीखें हैं, अपितु इसने मानव-जाति के सम्पूर्ण इतिहास को एक वास्तविक रूप. में प्रकट कर दिखाया है, जो पहले नहीं हो पाया था समूलर।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) संस्कृत भाषा के अध्ययन से क्या लाभ हुए हैं ?
(ग) गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ- भारत से हम क्या सीखें।लेखक-मैक्समूलरा
(ख) संस्कृत भाषा के अध्ययन से मानव जाति के बारे में लोगों के विचार व्यापक हैं और सबने जाना है कि जिन्हें बर्बर समझते हैं, वे भी हमारे ही परिवार के सदस्य हैं।
(ग) संस्कृत ने बताया है कि सम्पूर्ण मानव-जाति एक है, संबकी भावनाएं एक-सी है और जिन्हें हम बर्बर कहते हैं वे भी हमारे परिवार के ही अंग हैं। उनसे घृणा करना उचित नहीं।

8. हम सब पूर्व से आए हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है वह हम पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा का कुछ लाभ उठाया है, भले ही प्राच्य-विद्या-विशारद न हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर लौट रहा है।

प्रश्न
(क) पाठ और लेखक का नाम लिखें।
(ख) अपने प्राचीन बास-स्थान के बारे में लेखक का क्या ख्याल है ?
(ग) पर्व को पहचानने से किस विचार की पुष्टि होती है ?
(घ) गद्यांश का निष्कर्ष क्या है?
उत्तर-
(क) पाठ-हम भारत से क्या सीखें। लेखक-मैक्समूलर।
(ख) लेखक का विचार है कि वे तथा अन्य लोग पूर्व से आए हैं।
(ग) पूर्व को पहचान लेने से इतिहास का ज्ञान न होने पर भी, यह स्पष्ट हो जाता है कि हम सभी पूर्व से आए हैं।
(घ) सभी सभ्यताओं के उत्सर्ग पूर्व में है पश्चिम के लोग भी पूर्व से हो गए हैं। जीवन में जो कुछ भी मूल्यवान है, वह पूर्व की ही देन है, यह इतिहास का सामान्य ज्ञान न रखने वाला भी आसानी से समझ सकता है।

9. भारत में धर्म के वास्तविक उद्भव, उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष परिचय मिल सकता है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्ध धर्म की यह जन्मभूमि है, पारसियों के जरथुस्ट धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्व नये मत-मतान्सर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।

प्रश्न-
(क) भारत में किसका प्रत्यक्ष परिचय मिलता है?
(ख) लेखक ने भारत को ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि क्यों कहा है?
(ग) मत-मतानर के प्रकट और विकसित होने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
(क) भारत में धर्म के वास्तविक उद्भव, उसके प्राकृतिक विकास तथा उसके । अपरिहार्य क्षीयमाण रूप का प्रत्यक्ष.परिचय मिलता है।
(ख) भारत में सबसे पहले आर्य संस्कृति आयी थी। जैसे-जैसे वह संस्कृति बढ़ती गई भारत का स्वरूप बदलता चला गया ऋग्वेद वैदिक धर्म की ही देन है। आर्य ब्राह्मणों ने ही वैदिक संस्कृत को विकसित किया है। इसी आधार पर लेखक ने भारत को ब्राहमण या वैदिक धर्म की भूमि कहा है।
(ग) भारत विविध सम्प्रदायों का देश है। बाहर से आनेवाले धर्म भी इसके अभिन्न अंग
बनते चले गये। वर्षों बाद भी वे संस्कृतियों अक्षुण्ण हैं। सभ्यता-संस्कृति के विकास क्रम के साथ ही मत-मतान्तर विकसित होते आ रहे हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
फ्रेड्रिक मैक्समूलर किस पाठ के रचयिता हैं?
(क) श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा
(ख) नागरी लिपि
(ग) भारत से हम क्या सीखें
(घ) परम्परा का मूल्यांकन
उत्तर-
(ग) भारत से हम क्या सीखें

प्रश्न 2.
मैक्समूलर कहाँ के रहनेवाले थे?
(क) इंगलैंड
(ख) जर्मनी
(ग) अमेरिका
(घ) श्रीलंका
उत्तर-
(ख) जर्मनी

प्रश्न 3.
भारत कहाँ बसता है ?
(क) दिल्ली के पास ।
(ख) गाँधी में
(ग) शहरों में
(घ) लोगों के मन में
उत्तर-
(घ) लोगों के मन में

प्रश्न 4.
पारसियों के धर्म का क्या नाम है ?
(क) बौद्ध धर्म
(ख) जैन धर्म
(ग) वैदिक धर्म
(घ) जरथुस्ट
उत्तर-
(घ) जरथुस्ट

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

प्रश्न 1.
मैक्समूलर ने कालिदास के…………………..का जर्मन में अनुवाद किया।
उत्तर-
मेघदूत

प्रश्न 2.
मैक्समूलर को ………………………’ने ‘वेदांतियों का वेदांती’ कहा।
उत्तर-
स्वामी

प्रश्न 3.
वस्तुओं के समान …………………………भी मर-मिट जाते हैं।
उत्तर-
शब्द

प्रश्न 4.
ग्रीक भाषा का ‘मूल’ संस्कृत के………………….शब्द का ही रूप है। .
उत्तर-
मूल

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनरल कर्मिघम ने कौन-सी रिपोर्ट तैयार की? … या, जनरल कमिंघम का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
जनरल कमित्रम ने भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट तैयार की।

प्रश्न 2.
वारेन हेस्टिंग्स को कहाँ दारिस.नामक सोने के सिक्के मिले ?
उत्तर-
वारेन हेस्टिंग्स को वाराणसी के पास दारिस नामक सोने के 172 सिक्के मिले।

प्रश्न 3.
भारत में प्राचीन काल में स्थानीय शासन की कौन-सी प्रणाली प्रचलित थी?
उसर-
ग्राम-पंचायत द्वारा स्थानीय शासन चलता था।

प्रश्न 4.
मैक्समूलर ने किन विशेष क्षेत्रों में अभिरुचि रखनेवालों के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है ?
उत्तर-
मैक्समूलर ने भू-विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, जन्तु-विज्ञान/ नृवंश विद्या, पुरातात्विक, इतिहास, भाषा आदि विभिन्न क्षेत्रों में अभिरुचि रखनेवालों के लिए भारत का प्रत्यक्ष ज्ञान आवश्यक बताया है।

भारत से हम क्या सीखें लेखक परिचय

विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर का जन्म आधुनिक जर्मनी के डेसाउ नामक नगर में 6 दिसंबर 1823 ई० में हुआ था । जब मैक्समूलर चार वर्ष के हुए, उनके पिता विल्हेल्म मूलर नहीं रहे । पिता के निधन के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई, फिर भी मैक्समूलर की शिक्षा-दीक्षा बाधित नहीं हुई। बचपन में ही वे संगीत के अतिरिक्त ग्रीक और लैटिन भाषा में निपुण हो गये थे तथा लैटिन में कविताएँ भी लिखने लगे थे । 18 वर्ष की उम्र में लिपजिंग विश्वविद्यालय में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन आरंभ कर दिया । सन् 1994 में उन्होंने ‘हितोपदेश’ का जर्मन भाषा में अनुवाद प्रकाशित करवाया। इसी समय उन्होंने ‘कठ’ और ‘केन’ आदि उपनिषदों का जर्मन भाषा में अनुवाद किया तथा ‘मेघदूत’ का जर्मन पद्यानुवाद भी किया।

मैक्समूलर उन थोड़े-से पाश्चात्य विद्वानों में अग्रणी माने जाते हैं जिन्होंने वैदिक तत्त्वज्ञान को मानव सभ्यता का मूल स्रोत माना । स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा। उनका भारत के प्रति अनुराग जगजाहिर है । उन्होंने भारतवासियों के पूर्वजों की चिंतनराशि को यथार्थ रूप में लोगों के सामने प्रकट किया। उनके प्रकाण्ड पांडित्य से प्रभावित होकर साम्राज्ञी विक्टोरिया ने 1868 ई० में उन्हें अपने ऑस्बोर्न प्रासाद में ऋग्वेद तथा संस्कृत के साथ यूरोपियन भाषाओं की तुलना आदि विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया था । उस भाषण को सुनकर विक्टोरिया इतनी प्रभावित हुईं कि उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि प्रदान कर दी, किन्तु उन्हें यह पदवी अत्यंत तुच्छ लगी और उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया । भारतभक्त, संस्कृतानुरागी एवं वेदों के प्रति अगाध आस्था रखने वाले फ्रेड्रिक मैक्समूलर का 28 अक्टूबर सन् 1900 ई० में निधन . हो गया ।

प्रस्तुत आलेख वस्तुत: भारतीय सिविल सेवा हेतु चयनित युवा अंग्रेज अधिकारियों के आगमन के अवसर पर संबोधित भाषणों की श्रृंखला की एक कड़ी है। प्रथम भाषण का यह अविकल रूप से संक्षिप्त एवं संपादित अंश है जिसका भाषांतरण डॉ. भवानीशंकर त्रिवेदी ने किया है । भाषण में मैक्समूलर ने भारत की प्राचीनता और विलक्षणता का प्रतिपादन करते हुए नवागंतुक अधिकारियों को यह बताया कि विश्व की सभ्यता भारत से बहुत कुछ सीखती और ग्रहण करती आयी है । उनके लिए भी यह एक सौभाग्यपूर्ण अवसर है कि वे इस विलक्षण देश और उसकी सभ्यता-संस्कृति से बहुत कुछ सीख-जान सकते हैं । यह भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है, बल्कि स्वदेशाभिमान के विलोपन के इस दौर में इस भाषण की विशेष सार्थकता है। नई पीढ़ी अपने देश तथा इसकी प्राचीन सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-साधना, प्राकृतिक वैभव आदि की महत्ता का प्रामाणिक ज्ञान प्रस्तुत भाषण से प्राप्त कर सकेगी ।

भारत से हम क्या सीखें Summary in Hindi

पाठ का सारांश

प्रस्तुत शीर्षक “भारत से हम क्या सीखें।” वस्तुतः भारतीय सविल सेवा के चयनित युवा अंग्रेज अधिकारी लोगों को प्रशिक्षण के लिए मैक्समूलर साहब द्वारा दिया गया भाषण का अंश है।

पश्चिम जगत् में भारत के संबंध में सही-सही ज्ञान एवं दृष्टि के प्रणेता विश्वविख्यात विद्वान फ्रेड्रिक मैक्समूलर पहला व्यक्ति थे। उन्होंने भारतीय सभ्यता-संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान, संस्कृत भाषा कला-कौशल आदि का गहराई से अध्ययन किया और दुनियाँ के सामने स्पष्ट किया। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें ‘वेदांतियों का भी वेदांती’ कहा।

सर्वविध संपदा और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण कौन-सा देश है, यदि आप मुझे इस भूमण्डल का अवलोकन करने के लिए कहें तो बताऊँगा कि वह देश है—भारत। भारत, जहाँ भूतल पर ही स्वर्ग की छटा निखर रही है। यदि यूनानी, रोमन और सेमेटिक जाति के यहूदियों की विचारधारा में ही सदा अवगाहन करते रहनेवाले हम यूरोपियनों को ऐसा कौन-सा साहित्य पढ़ना चाहिए जिससे हमारे जीवन अंतरतम परिपूर्ण अधिक सर्वांगीण, अधिक विश्वव्यापी, यूँ कहें कि संपूर्णतया मानवीय बन जाये, और यह जीवन ही क्यों, अगला जन्म तथा शाश्वत जीवन भी सुधर जाये, तो मैं एक बार फिर भारत ही का नाम लूँगा।

यदि आपकी अभिरूचि की पैठ किसी विशेष क्षेत्र में है, तो उसके विकास और पोषण के लिए आपको भारत में पर्याप्त अवसर मिलेगा।

यदि आप भू-विज्ञान में रूचि रखते हैं तो हिमालय से श्रीलंका तक का विशाल भू-प्रदेश आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। यदि आप वनस्पति जगत में विचरना चाहते हैं तो भारत एक ऐसी. फुलवारी है जो हकर्स जैसे अनेक वनस्पति वैज्ञानिकों को अनायास ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। यदि आपकी रूचि जीव-जन्तुओं के अध्ययन में है तो आपका ध्यान श्री हेकल की ओर अवश्य होगा, जो इन दिनों भारत के कान्तारों की छानबीन के साथ ही भारतीय समुद्रतट से मोती भी बने रहे हैं। यदि आप नृवंश विद्या में अभिरूचि रखते हैं तो भारत आपको एक जीता-जागता संग्रहालय ही लगेगा। यदि आप पुरातत्व प्रेमी हैं, और यदि आपने यहाँ रहते हुए पुरातत्व के द्वारा एक प्राचीन चाकू या चकमक या किसी प्राणी का कोई भाग ढूंढ़ निकालने के आनन्द का अनुभव किया हो तो आपको जनरल कनिाम की भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ लेनी चाहिए और तब भारत के बौद्ध सम्राटों के द्वारा निर्मित (नालन्दा जैसे) विश्वविद्यालयों अथवा विहारों के ध्वंसावशेषों को खोद निकालने के लिए आपका फावड़ा आतुर हो उठेगा।

यदि आपके मन में पुराने सिक्कों के लिए लगाव है, तो भारतभूमि में ईरानी, केरियन, थेसियन, पार्थियन, यूनानी, मेकेडिनियन, शकों, रोमन और मुस्लिम शासकों के सिक्के प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होंगे। दैवत विज्ञान पर भारत के प्राचीन वैदिक दैवत विज्ञान के कारण जो नया प्रकाश पड़ा है, उसके फलस्वरूप संपूर्ण दैवत विज्ञान को नया स्वरूप प्राप्त हो गया है। ”

नीति कथाओं के अध्ययन क्षेत्र में भी भारत के कारण नवजीवन का संचार हो चुका है, क्योंकि भारत के कारण ही समय-समय पर नानाविध साधनों और मार्गों के द्वारा अनेक नीति कथाएँ पूर्व से पश्चिम की ओर आती रही हैं।

आपमें से कइयो ने भाषाओं को हीन नहीं, भाषा विज्ञान का भी अध्ययन किया होगा। तो आपको क्या भारत से बढ़कर दूसरा कोई देश दिखाई देता है जहाँ केवल शब्दों का ही नहीं, बल्कि व्याकरणात्मक तत्त्वों के विकास और लय से संबद्ध भाषावैज्ञानिक समस्याओं के अध्ययन का । महत्त्वपूर्ण अवसर प्राप्त हो सके यदि आप विधिशास्त्र या कानून के विद्यार्थी हैं तो आपको विधि-संहिताओं के एक ऐसे इतिहास की जाँच-पड़ताल का अवसर मिलेगा जो यूनान, रोम या जर्मनी के ज्ञात विधिशास्त्रों के इतिहास से सर्वथा भिन्न होते हुए भी इनके साथ समानताओं और विभिन्नताओं के कारण विधिशास्त्र के किसी भी विद्यार्थी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

यदि आप लोगों को अत्यंत सरल राजनैतिक इकाइयों के निर्माण और विकास से संम्बद्ध प्राचीन युग के कानून के पुरातन रूपों के बारे में इधर जो अनुसंधान हुए हैं, उनके महत्त्व और वैशिष्ट्य को परख सकने की क्षमता प्राप्त करनी है, तो आपको इसके लिए आज भारत की ग्राम पंचायतों के रूप में इसके प्रत्यक्ष दर्शन का सुयोग अनायास ही मिल जाएगा। भारत में प्राचीन स्थानीय शासन प्रणाली या पंचायत प्रथा को समझने-समझाने का बहुत बड़ा क्षेत्र विद्यमान है। भारत ब्राह्मण या वैदिक धर्म की भूमि है, बौद्धधर्म जन्मस्थली है। पारसियों के जखुस्त धर्म की यह शरणस्थली है। आज भी यहाँ नित्य नये मत-मतान्तर प्रकट व विकसित होते रहते हैं।

संस्कृत की सबसे पहली विशेषता है इसकी प्राचीनता क्योंकि हम जानते हैं कि ग्रीक भाषा से भी संस्कृत का काल पुराना है। संस्कृत में चूहा को मूषः कहते हैं। ग्रीक में मूस, लैटिन में मुस, पुरानी स्लावोनिक में माइस और पुरानी उच्च जर्मन में मुस कहते हैं।

‘मैं हूँ’ जैसे भाव को व्यक्त करने के लिए भला किन्हीं दूसरी भाषाओं में ‘अस्मि’ जैसा । शुद्ध और उपयुक्त शब्द कहाँ मिल पाएगा।
. मैं इसे ही वास्तविक अर्थों में इतिहास मानता हूँ और यह एक ऐसा इतिहास है जो राज्यों के दुराचारों और अनेक जातियों की क्रूरताओं की अपेक्षा कहीं अधिक ज्ञातव्य और पठनीय है। हम सब पूर्व से आये हैं। हमारे जीवन में जो भी कुछ अत्यधिक मूल्यवान है, वह हमें पूर्व से मिला है और पूर्व को पहचान लेने से ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को जिसने इतिहास की वास्तविक शिक्षा कुछ लाभ उठाया है, भले ही वह प्राच्य-विद्या-विशारद न भी हो तो भी यह अनुभव अवश्य होगा कि वह नानाविध स्मृतियों से भरे अपने पुराने घर की ओर जा रहा है। यदि आप लोग चाहें तो भारत के बारे में वैसे ही सुनहरे सपने देख सकते हैं और भारत पहुँचने के बाद एक से बढ़कर एक शानदार काम भी कर सकते हैं।

शब्दार्थी

अवलोकन : देखना, प्रतीति करना, महसूस करना
अवगाहन : स्नान, गहरे डूबकर समझने की कोशिश करना
वांछनीय : चाहने योग्य, कामना करने योग्य
नृवंश विद्या नृतत्त्व शास्त्र, मानव शास्त्र
परिमाण : मात्रा
दारिस : मुद्रा का एक प्राचीन प्रकार
प्रेषित : भेजा हुआ
दैवत विज्ञान : देव विज्ञान
प्रत्लयुग : प्रागैतिहासिक युग, प्राचीन युग
अनुरूपता : समानता, सादृश्य
क्षय : छीजन, विनाश
अपरिहार्य : जिसे छोड़ा. न जा सके, अनिवार्य
क्षीयमाण : नष्ट होता हुआ
मसला : मुद्दा, विषय
सदाशयता : उदारता, भलमनसाहत
सर्वातिशायी : जिसमें सारी चीजें समाहित हो जायें
विद्यमान : वर्तमान, उपस्थित
अहेतुकवाद : ऐसा सिद्धांत जिसमें हेतु या कारण की पहचान न हो सके
सर्वथा : पूरी तरह से
ज्ञातव्य : जानने योग्य
सारभूत : सार या निष्कर्ष कहा जाने योग्य, आधारभूत
अजनबी : अपरिचित, अज्ञात
बर्बर : जंगली, असभ्य
सुविस्तीर्ण : अतिविस्तृत, खुशफैल, पूरी तरह से फैला हुआ
अनिर्वचनीय : जिसकी व्याख्या न की जा सके, वाणी के परे
धात्री : पालन-पोषण करनेवाली, धारण करनेवाली
प्राच्य : पूर्वी (पाश्चात्य का विलोम), यहाँ भारतीयं के अर्थ में

Bihar Board Class 10 History Solutions Chapter 3 हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 2 Chapter 3 हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science History Solutions Chapter 3 हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन

Bihar Board Class 10 History हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें सही का चिह्न लगायें।

हिंद चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Bihar Board Class 10 प्रश्न 1.
हिन्द-चीन क्षेत्र में कौन-से देश आते हैं ?
(क) चीन, वियतनाम, लाओस
(ख) हिन्द, चीन, वियतनाम, लाओस
(ग) कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस
(घ) कम्बोडिया, वियतनाम, चीन, थाईलैण्ड
उत्तर-
(ग) कम्बोडिया, वियतनाम, लाओस

हिंद चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन का ऑब्जेक्टिव Bihar Board Class 10 प्रश्न 2.
अंकोरवाट का मन्दिर कहाँ स्थित है ?
(क) वियतनाम
(ख) थाईलैण्ड
(ग) लाओस
(घ) कम्बोडिया
उत्तर-
(घ) कम्बोडिया

Hind Chin Me Rashtravad Bihar Board Class 10 प्रश्न 3.
हिन्द-चीन पहुँचने वाले प्रथम व्यापारी कौन थे
(क) इंग्लैण्ड
(ख) फ्रांसीसी
(ग) पुर्तगाली
(घ) डच
उत्तर-
(ग) पुर्तगाली

हिंद चीन में राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें Bihar Board Class 10 प्रश्न 4.
हिन्द चीन में बसने वाले फ्रांसीसी कहे जाते थे ?
(क) फ्रांसीसी
(ख) शासक वर्ग
(ग) कोलोन
(घ) जेनरल
उत्तर-
(ग) कोलोन

हिंद चीन क्षेत्र में कौन से देश आते हैं Bihar Board Class 10 प्रश्न 5.
नरोत्तम सिंहानुक कहाँ के शासक थे ?
(क) वियतनाम
(ख) लाओस
(ग) थाईलैण्ड
(घ) कम्बोडिया
उत्तर-
(घ) कम्बोडिया

Hind Chin Mein Francisi Prasar Ka Varnan Karen प्रश्न 6.
“द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम” किसने लिखा?
(क) हो-ची-मिन्ह
(ख) फान-वोई-चाऊ
(ग) कुआंग
(घ) त्रियु
उत्तर-
(ख) फान-वोई-चाऊ

Hind Chin Mein Rashtrawadi Aandolan Bihar Board प्रश्न 7.
मार्च 1946 में फ्रांस एवं वियतनाम के बीच होने वाला समझौता किस नाम से जाना जाता है ?
(क) जेनेवा समझौता
(ख) हनोई समझौता
(ग) पेरिस समझौता
(घ) धर्मनिरपेक्ष समझौता
उत्तर-
(ख) हनोई समझौता

हिन्द चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Bihar Board Class 10 प्रश्न 8.
किस प्रसिद्ध दार्शनिक ने एक अदालत लगाकर अमेरिका को वियतनाम युद्ध के लिए दोषी करार दिया?
(क) रसेल
(ख) होची मिन्ह
(ग) नरोत्तम सिंहानुक
(घ) रूसो
उत्तर-
(क) रसेल

इंडो चाइना में राष्ट्रवादी आंदोलन प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 10 प्रश्न 9.
हिन्दु-चीनी क्षेत्र में अंतिम युद्ध समाप्ति के समय में अमेरिकी राष्ट्रपति थे-
(क) वाशिंगटन
(ख) निक्सन
(ग) जार्ज बुश
(घ) रुजवेल्ट
उत्तर-
(ख) निक्सन

Hind Chin Mein Basne Wale Francisi Kahe Jaate The Bihar Board प्रश्न 10.
होआ-होआ आन्दोलन किस प्रकृति का था?
(क) क्रांतिकारी
(ख) धार्मिक
(ग) साम्राज्यवादी समर्थक
(घ) क्रांतिकारी धार्मिक
उत्तर-
(घ) क्रांतिकारी धार्मिक

निम्नलिखित में रिक्त स्थानों को भरें:

Hind Chin Me Rashtrawadi Andolan Bihar Board प्रश्न 1.
12वीं शताब्दी में राजा सूर्य वर्मा/द्वितीय ने………..का निर्माण करवाया था।
उत्तर-
अंकोरवाट मंदिर

प्रश्न 2.
……………समझौते ने पूरे वियतनाम को दो हिस्से में बाँट दिया और …………..रेखा को विभाजक रेखा माना गया।
उत्तर-
जेनेवा समझौता, 17वीं अक्षांश।

प्रश्न 3.
हो-ची-मिन्ह का दूसरा नाम…………..था।
उत्तर-
न्यूगन आई क्वोक

प्रश्न 4.
दिएन-विएन-पुके युद्ध में…………..बुरी तरह हार गए।
उत्तर-
फ्रांस

प्रश्न 5.
अनामी दल का संस्थापक……………. था।
उत्तर-
जोन्गुएन आइ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (20 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
एकतरफा अनुबन्ध व्यवस्था क्या थी?
उत्तर-
एक तरह की बंधुआ मजदूरी थी। वहाँ मजदूरों को कोई अधिकार नहीं था, जबकि मालिक को असीमित अधिकार प्राप्त था।

प्रश्न 2.
बाओदायी कौन था ?
उत्तर-बाओदायी अन्नाम का शासक था।

प्रश्न 3.
हिन्द चीन का अर्थ क्या है ?
उत्तर-
दक्षिण-पूर्व एशिया में लगभग 3 लाख वर्ग कि. मी. फैला क्षेत्र जिसमें आज के वियतनाम लाओस और कम्बोडिया के क्षेत्र आते हैं।

प्रश्न 4.
जेनेवा समझौता कब और किनके बीच हुआ?
उत्तर-
1954 में लाओस एवं कम्बोडिया के बीच।

प्रश्न 5.
होआ-होआ आनदोलन की चर्चा करें।
उत्तर-
होआ-होआ एक बौद्धिक धार्मिक क्रान्तिकारी आन्दोलन था जो 1939 में शुरू हुआ था। जिसके नेता-हुइन्ह फू-सो था। इसके क्रान्तिकारी उग्रवादी घटनाओं को भी अंजाम देते थे जिसमें आत्मदाह तक भी शामिल होता था।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर (60 शब्दों में उत्तर दें।)

प्रश्न 1.
हिन्द चीन में फ्रांसीसी प्रसार का वर्णन करें।
उत्तर-
1498 ई. में वास्कोडिगामा भारत से जुड़ने की चाह में जब समुद्री मार्ग ढूँढने निकाला तो धीरे-धीरे स्पेन, डच, इंगलैंड एवं फ्रांसीसियों का आगमन इस क्षेत्र में व्यापारिक उद्देश्य से होने लगा। 17वीं शताब्दी में बहुत से फ्रांसीसी व्यापारी पादरी हिन्द चीन पहुँच गए। 1747 ई. के बाद ही फ्रांस अन्नाम में रुचि सेने लगा। 1787 ई. में कोचीन-चीन के शासक के साथ संधि का मौका मिला। 19वीं शताब्दी में अन्नाम, कोचीन-चीन में फ्रांसीसी पादरियों की बढ़ती गतिविधियों के विरुद्ध उग्र आन्दोलन हो रहे थे। फिर भी 1862 ई. में अन्नाम को सैन्यबल पर संधि के लिए बाध्य किया गया। उसके अगले वर्ष कम्बोडिया भी संरक्षण में ले लिया गया और 1783 में तोकिन में फ्रांसीसी सेना घुस गयी। इसी तरह 20वीं शताब्दी के आरंभ तक सम्पूर्ण हिन्द चीन फ्रांसीसियों की अधीनता में आ गया।

प्रश्न 2.
रासायनिक हथियारों एवं एजेन्ट ऑरेज का वर्णन करें।
उत्तर-
नापाम एक तरह का आर्गेनिक कम्पाउंड है जो अग्नि बमों में गैसोलिन के साथ मिलकर एक ऐसा मिश्रण तैयार करता था जो त्वचा से पिचक जाता और जलता रहता था। इसका व्यापक पैमाने पर वियतनाम में प्रयोग किया गया था। एजेन्ट आरेंज एक जहर था जिससे पेड़ों की पत्तियाँ तुरंत झुलस जाती थीं एवं पेड़ मर जाते थे। जंगलों को खत्म करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता। इसका नाम आरेंज पट्टियों वाले ड्रमो में रखे जाने के कारण पड़ा। अमेरिका ने इसका इस्तेमाल जंगलों के साथ खेतों और आबादी दोनों पर जमकर किया।

प्रश्न 3.
हो-ची-मिन्ह के संबंध में संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
हो-ची-मिन्ह (न्यूगन आई क्वोक) एक वियतनामी छात्र था जिसने 1917 में पेरिस में ही साम्यवादियों का एक गुट बनाया, बाद में हो-ची-मिन्ह शिक्षा प्राप्त करने मास्को गया और साम्यवाद से प्रेरित होकर 1925 में वियतनामी क्रांतिकारी दल का गठन किया, साथ ही कार्यकर्ताओं के सैनिक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था कर ली। अंततः 1930 में वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादी गुटों को एकजुट कर वितनाम कांग सान देंग अर्थात् वियतनाम कम्युनिष्ट पार्टी की स्थापना की जो पूर्णतः उग्र विचारों पर चलने वाली पार्टी थी।

प्रश्न 4.
हो-ची-मिन्ह मार्ग क्या है बतावें?
उत्तर-
हो-ची मिन्ह 2 सितम्बर 1945 ई. को वियतनाम लोकतंत्रीय गणराज्य के सरकार के प्रधान बने और बाद में फ्रांसीसी सेना का प्रत्यक्ष मुकाबला न कर पाने की स्थिति में गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। इस युद्ध के लिए मुरिल्ला सेनिक लाओस और कंबोडिया के रास्ते दक्षिणी वियतनाम पर धावा बोलते और पुन: उन्हीं जंगलों में छिप जाते थे। इसी रास्ते को हो-ची मिन्ह मार्ग कहा जाता है।

प्रश्न 5.
अमेरिका हिन्द चीन में कैसे घुसा, चर्चा करें।
उत्तर-
1945 ई. तक वियतमिन्ह के गुरिल्लों के हाथों में तोंकिन के प्रायः सारे क्षेत्र नियंत्रण में आ गए थे। अब जबकि द्वितीय विश्वयुद्ध की स्थितियाँ बदलने लगीं पर्ल हार्बर पर जापान के आक्रमण के साथ ही अमेरिका युद्ध में शामिल हो गया था। अमेरिका जो फ्रांस का समर्थन कर रहा था सीधे हिन्द चीन में उतरना चाह रहा था। साम्यवादियों के विरोध में उसने ऐसी घोषणा भी कर दी। हिन्द चीन में साम्यवादी प्रभाव को रोकने के लिए अमेरिका कृतसंकल्प था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (लगभग 150 शब्दों में उत्तर दें)

प्रश्न 1.
हिन्द चीन उपनिवेश स्थापना का उद्देश्य क्या था?
उत्तर-
फ्रांस द्वारा हिन्द चीन को अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य तो डच एवं ब्रिटिश कंपनियों की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना था। भारत में फ्रांसीसी पिछड़ रहे थे। चीन में उनका व्यापारिक प्रतिद्वन्द्वी, मुख्य रूप से इंगलैड था। अतः सुरक्षात्मक आधार के रूप में उन्हें हिन्द चीनी क्षेत्र उचित लगा जहाँ खड़े होकर वे दोनों तरफ भारत एवं चीन की परिस्थितियों में संभल सकते थे। दूसरे, औद्योगिकीकरण के लिए कच्चे माल की आपूर्ति उपनिवेशों से होती थी एवं उत्पादित वस्तुओं के लिए बाजार भी उपलब्ध होता था। तीसरे, पिछड़े समाजों को समय बनाने का विकसित यूरोपीय राज्यों का स्वघोषित दायित्व था।

अमेरिका जो पूर्व में फ्रांस का समर्थन कर रहा था वह भी हिन्द चीन में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाह रहा था। साम्यवादियों के प्रभाव को इस क्षेत्र में रोकने के लिए अमेरिका कृत संकल्प था।

प्रश्न 2.
माई ली गाँव की घटना क्या थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
दक्षिणी वियतनाम एक गाँव था जहाँ के लोगों को वियतकांग समर्थक मान अमेरिकी सेना ने पूरे गाँव को घेर कर पुरुषों को मार डाला, औरतों बच्चियों को बंधक बनाकर कई दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया फिर उन्हें भी मार कर पूरे गाँव में आग लगा दी। लाशों के बीच दबा एक बूढ़ा जिन्दा बच गया था जिसने इस घटना को उजागर किया था।

इस घटना के कारण अमेरिका की पूरे विश्व में किरकिरी होने लगी। अतः राष्ट्रपति निक्सन ने शांति के लिए पाँच सूत्री योजना की घोषणा की

  • हिन्द-चीन की सभी सेनाएँ युद्ध बंद कर यथास्थान पर रहें।
  • युद्ध विराम की देख-रेख अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे।
  • इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।
  • युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाइयाँ बंद रहेंगी सभी बमबारी से आतंक फैलने वाली घटनाओं तक।
  • युद्ध विराम का अन्तिम लक्ष्य समूचे हिन्द चीन में संघर्ष का अंत होना चाहिए।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति निक्सन के हिन्द चीन में शांति के संबंध में पाँचसूत्री योजना क्या थी? इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
माई ली गाँव की घटना के बाद विश्व में किरकिरी होने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने निम्नलिखित पाँचसूत्री योजना की घोषणा की

  • हिन्द-चीन की सभी सेनाएँ युद्ध बंद कर यथा स्थान पर रहें।
  • युद्ध विराम की देख-रेख अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक करेंगे।
  • इस दौरान कोई देश अपनी शक्ति बढ़ाने का प्रयत्न नहीं करेगा।
  • युद्ध विराम के दौरान सभी तरह की लड़ाइयाँ बंद रहेंगी सभी बमबारी से आतंक फैलाने वाली घटनाओं तक।
  • युद्ध विराम का अन्तिम लक्ष्य समूचे हिन्द-चीन में संघर्ष का अन्त होना चाहिए।

परन्तु इस शांति प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया गया। अमेरिकी सेना पुनः बमबारी शुरू कर दी। लेकिन अमेरिका अब जान चुका था कि उसे अपनी सेनाएँ वापस बुलानी ही पड़ेंगी। निक्सन ने पुनः आठसूत्री योजना रखी। वियतनामियों ने इसे खारिज कर दिया। अब अमेरिका चीन को अपने पक्ष में करने में लग गया। वियतनामियों को चीनी धोखों का अंदेशा होने लगा। 24 अक्टूबर, 1972 को वियतकांग, उत्तरी वियतनाम, अमेरिका दक्षिणी वियतनाम में समझौता तय हो गया परन्तु दक्षिणी वियतनाम ने आपत्ति जताई और पुनः वार्ता के लिए कहा।

वियतकांग ने इसे अस्वीकार कर दिया। इस बार इतने बम गिराए गए जिनकी कुल विध्वंसक शक्ति हिरोशिमा में प्रयुक्त परमाणु बम से ज्यादा ऑकी गई। हनोई भी इस बमबारी से ध्वस्त हो गया परन्तु वियतनामी डटे रहे। अंतत: 27 फरवरी, 1973 को पेरिस में वियतनाम युद्ध की समाप्ति के समझौते पर हस्ताक्षर हो गया। समझौते की मुख्य बातें थीं-युद्ध समाप्त के 60 दिनों के अंदर अमेरिकी सेना वापस हो जाएगी। उत्तर और दक्षिण वियतनाम परस्पर सलाह करने एकीकरण का मार्ग खोजेंगे। अमेरिका वियतनाम को असीमित आर्थिक सहायता देगा।

इस तरह से अमेरिका के साथ चला आ रहा युद्ध समाप्त हो गया एवं जनवरी 1975 में दोनों वियतनाम मिल गए।

इस प्रकार सात दशकों से ज्यादा चलने वाला यह अमेरिका-वियतनाम युद्ध समाप्त हो गया। इस युद्ध में 9855 करोड़ सैनिक मारे गए, लगभग 3 लाख सैनिक घायल हुए, दक्षिणी वियतनाम के 18000 सैनिक मारे गए। अमेरिका के 4800 हेलिकाप्टर एवं जेट नष्ट हो गए। ट्रको की गिनती नहीं।

इस सारे घटना के परिपेक्ष्य में धन जन की बर्बादी के अलावे अमेरिकी शाख को गहरा आघात लगा पूरे हिन्द चीन में वह बुरी तरह असफल रहा। अंततः उसे अपनी सेना हिन्द चीन से हटानी पड़ी और सभी देशों की संप्रभुता अखण्डता को स्वीकार करना पड़ा।

प्रश्न 4.
फ्रांसीसी शोषण के साथ-साथ उसके द्वारा किये गये सकारात्मक कार्यों की समीक्षा करों
उत्तर-
फ्रांसीसियों ने प्रारंभिक शोषण तो व्यापारिक नगरों एवं बंदरगाहों से शुरू किया। उसके बाद भीतरी ग्रामीण इलाको में किसानों का शोषण करना शुरू किया था। तो किन के जीवन का आधार लाल घाटी थी तो कम्बोडिया का मेकांग नदी का मैदानी क्षेत्र एवं कोचीन-चीन का मेकांग का डेल्टा क्षेत्र जबकि चीन से सटे राज्यों में खनिज संसाधन कोयला, टीन, जस्ता टंगस्टन, क्रोमियम आदि मिलते थे, पहाड़ी इलाकों में रबर की खेती होती थी तथा मैदानी क्षेत्र में धान की।

सर्वप्रथम फ्रांसीसियों ने शोषण के साथ-साथ कृषि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए नहरों का एवं जलनिकासी का समुचित प्रबंध किया और दलदली भूमि, जंगलों आदि में कृषि क्षेत्र को बढ़ाया जाने लगा। इन प्रयास का ही फल था कि 1931 ई. तक वियतनाम विश्व का तीसरा बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया। रबर बगानों, खानों, फार्मों में मजदूरों से एकतरफा अनुबंध व्यवस्था पर काम लिया जाता था। जमींदारी अपने विकृत रूप में आ चुकी थी। हालाँकि इसी दौरान पूरे उत्तर से दक्षिण हिन्द चीन तक संरचनात्मक विकास जोरों पर रहा एवं एक विशाल रेल नेटवर्क, सड़क जाल बिछ गया था। परन्तु किसानों, मजदूरों का जीवन स्तर गिरता जा रहा था, क्योंकि सारी व्यवस्था ही शोषण मूलक थी।

जहाँ तक शिक्षा का प्रश्न था अब तक परंपरागत स्थानीय भाषा अथवा चीनी भाषा में शिक्षा पा रहे लोगों को अब फ्रांसीसी भाषा में शिक्षा दी जाने लगी, परंतु इस क्षेत्र में बसने वाले , फ्रांसीसियों को शिक्षा के प्रसार के सकारात्मक प्रभावों का डर था। अत: आमलोगों को शिक्षा से दूर रखने का प्रयास किया जाने लगा और सकूल के अंतिम साल की परीक्षा में अधिकतर स्थानीय बच्चों को फेल कर दिया जाता था। स्थानीय जनता एवं कोलोनी की सामाजिक स्थिति में आसमान जमीन का अन्तर था और 1920 के दशक तक आते-आते छात्र-छात्राएँ राजनीतिक पार्टियाँ बनाने लगे थे। दनोई विश्वविद्यालय का बंद किया जाना फ्रांसीसी शोषण की पराकष्ठा थी।

प्रश्न 5.
हिन्द चीन के राष्ट्रवाद के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
हिन्द चीन में फ्रांसीसी उपनिवेशवाद के छिट-फुट विद्रोह का सामना तो प्रारंभिक दिनों से ही झेलना पड़ रहा था। परन्तु 20वीं शताब्दी के शुरू में यह और मुखर होने लगा। वहाँ राष्ट्रवाद का विकास निम्न प्रकार से हुआ

  • 1930 ई. में फान-बोई-चाऊ ने ‘दुईतान होई’ नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की जिसके नेता कुआंग थे। फान-बोई-चाऊ ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम’ लिखकर हलचल पैदा कर दी।
  • 1905 में जापान द्वारा रूस को हटाया जाना हिन्द चीनियों के लिए प्रेरणास्रोत बन गया।
  • रूसो एवं माण्टेस्क्यू जैसे फ्रांसीसी विचारों के विचार उन्हें उद्वेलित कर रहे थे।
  • राष्ट्रवादी नेता फान-चू-त्रिन्ह ने राष्ट्रवादी आन्दोलन के स्वतंत्रीय स्वरूप को गणतंत्रवादी बनाने का प्रयास किया।
  • जापान में शिक्षा प्राप्त करने गए छात्रों ने फान-चू-त्रिन्ह के विचारों से प्रभावित होकर वियतनाम कुवान फुक होई नामक संगठन की स्थापना की।
  • प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई ज्यादतियों के कारण 1914 में ही देशभक्तों ने एक “वियतनामी राष्ट्रवादी दल” नामक संगठन बनाया जिसका पहला अधिवेशन कैण्टन में हुआ।
  • 1917 में हो-ची-मिन्ह नामक एक वियतनामी छात्र ने पेरिस में ही साम्यवादियों का एक गुट बनाया।
  • 1925 में हो-ची मिन्ह ने साम्यवाद से प्रेरित होकर ‘वियतनामी क्रान्तिकारी दल’ बनाया।
  • 1930 में वियतनाम के बिखरे राष्ट्रवादी गुटों को एकजुट कर ‘वियतनामकांग सान इंग’ की स्थापना की।
  • 1930 के दशक की विश्वव्यापी मंदी ने भी राष्ट्रवाद के विकास में योगदान दिया। क्योंकि हिन्द-चीन में बेरोजगारी बढ़ती जा रही थी। इस स्थिति से परेशान किसान भी साम्यवाद को अपना . रहे थे और राष्ट्रवादी आन्दोलन जोर पकड़ता जा रहा था।

Bihar Board Class 10 History हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जेनेवा समझौता कब और किसके बीच हुआ था?
उत्तर-
जेनेवा समझौता फ्रांस और वियतनाम के बीच 1954 में हुआ था।

प्रश्न 2.
वियतनाम में स्कॉलर्स रिवोल्ट क्यों हुआ?
उत्तर-
वियतनाम में ईसाई मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करने के लिए 1868 में ईसाईयत के विरुद्ध स्कॉलर्स रिवोल्ट हुआ।

प्रश्न 3.
पाथेट लाओ की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर-
पाथेट लाओ जो एक सैन्य संगठन था। इसकी स्थापना का कारण लाओस में साम्यवादी शासन व्यवस्था की स्थापना करना था।

प्रश्न 4.
1970 में जकार्ता सम्मेलन क्यों बुलाया गया ?
उत्तर-
अमेरिका ने कंबोडिया से अपनी सेना की वापसी की घोषणा की लेकिन दक्षिण वियतनाम कंबोडिया से अपनी सेना हटने को तैयार नहीं हुआ। इस गंभीर स्थिति के समाधान के लिए मई 1970 में जकार्ता सम्मेलन (ग्यारह एशियाई देशों का सम्मेलन) बुलाया गया।

प्रश्न 5.
वियतनाम में रहनेवाले फ्रांसीसियों को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के आरंभ तक संपूर्ण हिंद-चीन फ्रांस की अधीनता में आ गए थे। फ्रांसीसी आकर वियतनाम में बसने लगे। वियतनाम में रहनेवाले फ्रांसीसियों को कोलोन’ कहा जाता था।

प्रश्न 6.
वियतनाम में टोंकिन फ्री स्कूल क्यों स्थापित किए गए?
उत्तर-
पश्चिमी ढंग की शिक्षा देने के उद्देश्य से 1907 में वियतनाम में टोंकिन फ्री स्कूल खोला गया था। इस शिक्षा में विज्ञान, स्वच्छता तथा फ्रांसीसी भाषा की कक्षाएं भी शामिल थीं जो शाम को लगती थीं तथा इनके लिए अलग से फीस ली जाती थी। स्कूल में वियतनामियों को आधुनिक बनाने पर बल दिया गया।

प्रश्न 7.
“पूरब की ओर चलो’ आंदोलन का क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
इस आंदोलन का उद्देश्य वियतनाम में फ्रांसीसी सत्ता को समाप्त कर फ्रांसीसियों को वियतनाम से बाहर निकालना था। साथ ही साथ वियतनामी उसके स्थान पर गयेन राजवंश की पुनर्स्थापना करना चाहते थे।

प्रश्न 8.
हुईन्ह फू सो कौन थे?
उत्तर-
होआ हाओ आंदोलन के संस्थापक हुईन्ह फू सो थे। वह गरीबों की मदद करता था। व्यर्थ खर्च के खिलाफ उनके उपदेशों का लोगों के ऊपर काफी प्रभाव पड़ा था।

प्रश्न 9.
इंडो-चाइना यूनियन की स्थापना कब और किसके साथ मिलकर हुई थी?
उत्तर-
इंडो-चाइना यूनियन की स्थापना 1887 में की गई थी। इंडो-चाइना यूनियन की स्थापना कोचिन-चाइना, अन्नाम, तोंकिन, कंबोडिया और बाद में लाओस को मिलाकर बनाया गया था।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वियतनाम में राष्ट्रवाद के उदय के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-
वियतनाम में राष्ट्रवाद के विकास में विभिन्न तत्वों का योगदान था जिनमें औपनिवेशिक शोषणकारी नीति तथा स्थानीय आंदोलनों ने काफी बढ़ावा दिया। 20वीं शताब्दी के शुरूआत में यह विरोध और मुखर होने लगा। वियतनामी राष्ट्रवाद के विकास में फा-बोई-चाऊ ने “द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम” लिखकर राष्ट्रवादियों के बीच हलचल पैदा कर दी। वियतनामी राष्ट्रवाद के विकास के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • 1929-30 की विश्वव्यापी आर्थिक मंदी।
  • औपनिवेशिक सरकार की शोषणकारी नीति।।
  • किसानों पर बढ़ता बोझा
  • गरीबी तथा बेरोजगारी की समस्या तथा
  • उग्र (रैडिकल) आंदोलनों का प्रभाव।

प्रश्न 2.
होआ-होआ आंदोलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
होआ-होआ आंदोलन वियतनाम में चलाया गया जो उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन था। 1939 में होआ-हाओ आंदोलन आरंभ हुआ। इसका केन्द्र मेकांग डेल्टा था। इस आंदोलन की उत्पत्ति फ्रांसीसी उपनिवेशवादी विरोधी विचारों से हुई थी। इस आंदोलन का प्रणेता हुइन्ह फू सो था। वह जनकल्याण संबंधी कार्य करता था और समाजसुधारक भी था। उसने फिजूलखर्ची, शराबखोरी और बाल कन्याओं की बिक्री की प्रथा का विरोध किया। समाज में उसका व्यापक प्रभाव था। हुइन्ह फूसो के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सरकार ने कठोर दमनात्मक कारवाई कर होआ-हाओ आंदोलन को दबा दिया। लेकिन यह आंदोलन राष्ट्रवाद की मुख्य धारा से जुड़ गया।

प्रश्न 3.
फ्रांसीसियों ने मेकांग डेल्टा में नहरे क्यों बनवाई ? इनका क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
फ्रांसीसियों ने कृषि के विस्तार के लिए मेकांग डेल्टा क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा के लिए नहरें बनवाई। सिंचाई की समुचित व्यवस्था उपलब्ध होने से धान की खेती और उत्पादन में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई। एक अनुमान के अनुसार 1873 में जहाँ 2,74,000 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती होती थी। वह 1930 में बढ़कर 22 लाख हेक्टेयर हो गया। क्षेत्र विस्तार के अतिरिक्त उत्पादन भी बढ़ा। 1931 तक वियतनाम विश्व का तीसरा चावल निर्यातक देश बन गया।

प्रश्न 4.
वियतनाम मुक्ति एसोशिएशन की स्थापना क्यों की गई?
उत्तर-
1911 की चीनी क्रांति से वियतनामियों को काफी प्रेरणा मिली थी। चीनी क्रांति के परिणामस्वरूप चीन में मंजू राजवंश का शासन समाप्त हुआ तथा चीनी गणतंत्र की स्थापना की गयी। चीन की घटनाओं से प्रेरित होकर वियतनामी विद्यार्थियों ने वियतनाम मुक्ति एसोशिएसन नामक संस्था की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य राजशाही की पुनर्स्थापना न होकर लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के लिए प्रयास करना था।

प्रश्न 5.
एकतरफा अनुबंध व्यवस्था पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वियतनाम में एकतरफा अनुबंध व्यवस्था के अंतर्गत बागानों में मजदूरों से काम करवाया जाता था। इस व्यवस्था में मजदूरों को एक एकरारनामा के अंतर्गत को बागान मालिक और मजदूरों के बीच होता था, काम करना पड़ता था। एकरारनामा में मजदूरों को कोई अधिकार नहीं दिया गया। सारे अधिकार मालिकों के पास थे। काम पूरा नहीं होने पर मजदूरों को मालिक दंडित कर सकते थे, उन्हें जेल भिजवा सकते थे। वस्तुतः बागान मजदूरों की स्थिति गुलामों के समान थी। ग्रामीण क्षेत्रों में सामंती व्यवस्था के प्रचलन के कारण किसानों और मजदूरों की स्थिति दयनीय थी।

प्रश्न 6.
बाओदायी के विषय में क्या जानते हैं ?
उत्तर-
बाओदायी वियतनाम के प्राचीन राजवंश का सम्राट था। जापानियों ने हिन्द-चीन से वापस लौटते समय अन्नाम का शासन ओदायी को सौंप दिया। लेकिन बाओगई साम्यवादियों का सामना करने में असमर्थ था इसलिए उसने अन्नाम के सम्राट का पद त्याग दिया। वियतनाम के आजादी के बाद फ्रांसीसी बाओरायी को अपने प्रभाव में लेकर वियतनाम पर अप्रत्यक्ष शासन करते रहे।

प्रश्न 7.
वियतनाम का विभाजन क्यों और कैसे हुआ?
उत्तर-
वियतनाम और फ्रांस के युद्ध में फ्रांसीसियों की बुरी तरह पराजय हुई। अमेरिका ने हिन्द-चीन में हस्तक्षेप करने का निश्चय किया जिससे स्थिति विस्फोटक हो गई तथा तृतीय विश्वयुद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया। ब्रिटेन, फ्रांस युद्ध नहीं चाहते थे तथा समझौता की नीति अपनाई। इसके लिए जेनेवा में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। 1954 के जेनेवा समझौता के द्वारा इंडो-चीन के लाओस और कम्बोडिया स्वतंत्र कर दिए गए। दोनों राज्यों में वैध राजतंत्र एवं संसदीय व्यवस्था लागू की गई।

वियतनाम का विभाजन अस्थाई रूप से दो भागों में कर दिया गया-(i) उत्तरी वियतनाम (ii) दक्षिणी वियतनाम। दोनों राज्यों की विभाजक, रेखा सत्रहवीं समानांतर बनाई गई। उत्तरी वियतनाम में हो ची मिन्ह की कम्युनिस्ट सरकार को मान्यता दी गई। दक्षिणी वियतनाम में बाओदाई की सरकार बनी रही। यह व्यवस्था भी की गई कि 1956 में पूरे वियतनाम के लिए चुनाव करवाए जाएंगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फान बोई चाऊ और फान चू मिन्ह का परिचय दें। उनके विचारों में आप क्या समानता और अंतर देखते हैं ?
उत्तर-
फान बोर्ड चाऊ- (1867-1940) फान बोई चाऊ वियतनाम के महान राष्ट्रवादी थे। उनपर कन्फ्यूशियसवाद का गहरा प्रभाव था। वे वियतनामी परंपराओं के नष्ट होने से दुखी थे। फ्रांसीसी सत्ता के वे विरोधी थे और इसे समाप्त करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने आंदोलन चलाया। आंदोलन चलाने के उद्देश्य से 1903 में उन्होंने एक दल का गठन किया जिसका नाम रेवोल्यूशनरी सोसाइटी अथवा दुईतान होई था। इस दल का अध्यक्ष न्यूगेन राजवंश के कुआंग दे को बनाया गया। फान बोर्ड चाऊ की गणना देश के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता के रूप में की जाने लगी। फान बोर्ड चाऊ के ऊपर चीन के सुधारक लियोग किचाओ का भी गहरा प्रभाव था। 1905 में उन्होंने लियांग किचाओ से भेंट की और उनके सलाह पर उन्होंने ‘द हिस्ट्री ऑफ द लॉस ऑफ वियतनाम” नामक पुस्तक लिखी।

फान चूत्रिन्ह (1871-1926)- फान चू त्रिन्ह वियतनाम के दूसरे विख्यात राष्ट्रवादी थे। इनके और फान बोई चाऊ के विचारों में भिन्न थी। वे राजतंत्रात्मक व्यवस्था के विरोधी थे। वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए वे राजा की सहायता नहीं लेना चाहते थे बल्कि इसे उखाड़ फेंकना चाहते थे। उनकी आस्था गणतंत्रात्मक व्यवस्था में थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वह देश में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा चाहते थे। वे पश्चिमी जगत की लोकतंत्रात्मक व्यवस्था विशेषतः फ्रांसीसी क्रांति के आदर्शों से प्रभावित थे।

फान बोई चाऊ और फान चू मिन्ह के विचारों में सबसे बड़ी समानता यह थी कि दोनों ही वियतनाम की स्वतंत्रता चाहते थे। लेकिन दोनों में विरोधाभास या भिन्नता यह थी कि फान बोई चाऊ जहाँ वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए राजशाही का समर्थन और सहयोग लेने के पक्षधर थे, वहीं फान च मिन्ह राजतंत्रात्मक व्यवस्था के विरोधी थे तथा वियतनाम की स्वतंत्रता के लिए राजा की सहायता नहीं लेना चाहते थे बल्कि इसे उखाड़ फेंकना चाहते थे।

प्रश्न 2.
वियतनाम के स्वतंत्रता संग्राम में हो ची मिन्ह के योगदान का मूल्यांकन करें?
उत्तर-
वियतनामी स्वतंत्रता के मसीहा हो ची मिन्ह थे। उनका मूल नाम न्यूगेन आई क्लोक था। वे पेरिस और मास्को में शिक्षा ग्रहण की थी। शिक्षा पूरी करने के पश्चात उन्होंने अपना कुछ समय शिक्षक के रूप में व्यतीत किया। वे मार्क्सवादी विचारधारा से गहरे रूप से प्रभावित थे। उनका मानना था कि बिना संघर्ष के वियतनाम को आजादी नहीं प्राप्त हो सकती है। फ्रांस में रहते हुए 1917 में उन्होंने वियतनामी साम्यवादियों का एक गुट बनाया। लेनिन द्वारा कॉमिन्टन की स्थापना के बाद वे इसके सदस्य बन गए। इन्होंने लेनिन और अन्य कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात की। यूरोप थाइलैंड और चीन में उन्होंने लंबा समय व्यतीत किया।

साम्यवाद से प्रेरित होकर 1975 में उन्होंने बोरादिन (रूस) में वियतनामी क्रांतिकारी दल का गठन किया। फरवरी 1930 में हो ची मिन्ह ने वियतनाम के विभिन्न समूहों के राष्ट्रवादियों को एकजुट किया। स्वतंत्रता संघर्ष प्रभावशाली ढंग से चलाने के लिए उन्होंने 1930 में वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी (वियतनाम कांग सान देंग) की स्थापना की। इस दल का नाम बाद में बदलकर इंडो चायनीज कम्यूनिष्ट पार्टी कर दिया गया। इसी दल के अधीन और हो ची मिन्ह के नेतृत्व में वियतनाम ने स्वतंत्रता प्राप्त की। 1943 में न्यूगेन आई क्लोक ने अपना नाम हो ची मिन्ह रख लिया।

हो चीन मिन्ह के नेतृत्व में एक नए संगठन लीग फार दी इंडिपेंडेंस आफ वियतनाम अथवा वियेतमिन्ह की स्थापना की गई। वियेतमिन्ह ने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेकर फ्रांसीसियों और जापानियों दोनों को परेशान कर दिया। 1945 तक वियेत चिन्ह ने लेनिन पर अधिकार कर लिया। 1944 में विश्वयुद्ध की परिस्थितियाँ बदलने लगी थी। फ्रांस पर से जर्मनी का प्रभुत्व समाप्त हो गया। जापान द्वारा पर्ल हार्बर पर आक्रमण के बाद अमेरिका विश्वयुद्ध में सम्मिलित हो गया।

उसने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। इससे जापान की शक्ति कमजोर हो गई। अतः पोट्सड्म की घोषणा के बाद जापान ने आत्म समर्पण कर दिया और हिंद-चीन से अपनी सेना हटाने लगा। वापस लौटते हुए जापानियों ने अन्नाम का शासक प्राचीन राजवंश के सम्राट बाओदाई को सौंप दिया। बाओदाई साम्यवादियों का सामना करने में पूरी तरह असमर्थ था इसलिए उसने अन्नाम के समट का पदत्याग दिया। इससे वियतनामी गणराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो गया। सित्मबर 1945 में वियतनाम लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना हुई तथा हो ची मिन्ह इस गणतंत्र के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

प्रश्न 3.
वियतनाम में साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में महिलाओं की भूमिका की विवेचना करें।
उतर-
वियतनाम के राष्ट्रवादी आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। युद्ध और शांति काल दोनों में उन लोगों ने पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर सहयोग किया। स्वतंत्रता संग्राम में वे विभिन्न रूपों में भाग लेने लगी छापामार योद्धा के रूप में कुली के रूप में अथवा नर्स के रूप में समाज ने उनकी नई भूमिका को सराहा और इसका स्वागत किया। वियतनामी राष्ट्रवाद के विकास के साथ स्त्रियाँ बड़ी संख्या में आंदोलनों में भाग लेने लगी। स्त्रियों को राष्ट्रवादी धारा में आकृष्ट करने के लिए बीते वक्त की वैसी महिलाओं का गुण्मान किया जाने लगा जिन लोगों ने साम्राज्यवाद का विरोध करते हुए राष्ट्रवादी आंदोलनों में भाग लिया था।

राष्ट्रवादी नेता फान बाई चाऊ ने 1913 में ट्रंग बहनो के जीवन पर एक नाटक लिखा। इस नाटक ने वियतनामी समाज पर गहरा प्रभाव डाला। ट्रंग बहनें वीरता और देशभक्ति की प्रतीक बन गई। उन्हें देश के लिए अपना प्राण उत्सर्ग करनेवाला बताया गया। चित्रों, उपन्यासों और नाटकों के द्वारा उनका गौरवगान किया गया। ट्रंग बदनों के समान त्रिय् अम् का भी महिमागान किया गया।

ट्रंग बहनों के समान त्रिय् अयू का गुणगान भी देश के लिए शहीद होनेवाली देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया। उसके चित्र बनाए गए. जिसमें उसे हथियारों से लैस एक जानवर की पीठ पर बैठे हुए दिखाया गया। इन स्त्रियों के महिमामंडल का वियतनामी औरतों पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनसे प्रेरणा लेकर बड़ी संस्था में स्त्रियाँ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगी। युद्ध में बड़ी संख्या में सैनिकों के हताहत होने के बाद महिलाओं को भी सेना में शामिल होने को उत्प्रेरित किया गया।

वियतनामी संघर्ष में स्त्रियों ने न सिर्फ युद्ध में ही अपने देश की सेवा नहीं की बल्कि अन्य रूपों में भी अपने राष्ट्र के लिए काम किया। वे सेना में भरती हुई। सुरक्षात्मक व्यवस्था के निर्माण जैसे भूमिगत बंकर और सुरंगों के निर्माण में उन लोगों ने भाग लिया। हवाई पट्टियों का निर्माण किया। हो ची मिन्ह मार्ग द्वारा रसद की आपूर्ति एवं उस मार्ग की मरम्मत का काम किया। अस्पतालों में नसे के रूप में घायलों की सेवा सुश्रुसा की। युद्ध में भी अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। हजारों बमों को निष्क्रिय किया एवं अनेक हवाई जहाजों को मार गिराया। हो ची मिन्ह मार्ग की सुरक्षा एवं इसकी मरम्मत में अधिकांशतः युवतियों का ही योगदान था। उनके सहयोग से ही अंततः वियतनाम का एकीकरण संभव हो सका।

Bihar Board Class 10 History हिन्द-चीन में राष्ट्रवादी आंदोलन Notes

  • हिन्द चीन-दक्षिण पूर्व एशिया में तत्कालीन समय में लगभग3 लाख (2.80 लाख) वर्ग कि. मी. में फैले उस प्रायद्विपीय क्षेत्र में है जिसमें वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया के क्षेत्र आते हैं। इनकी उत्तर सीमा म्यानमार एवं चीन को छूती है तो दक्षिण में चीन सागर है और पश्चिम में म्यानमार के क्षेत्र पड़ते हैं।
  • हिन्द चीन में बसने वाले फ्रांसीसी कोलोन कहे जाते थे।
  • 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने भारत से जुड़ने की चाह में जब समुद्री मार्ग ढूँढ निकाला तो पुर्तगाली ही पहले व्यापारी थे जो भारत के साथ-साथ दक्षिणी पूर्वी एशियायी देशों से जुड़े थे और 1510 ई. मेंमल्लका को व्यापारिक केन्द्र बना कर हिन्द चीन देशों के साथ व्यापार
    शुरू किया, उसके बाद स्पेन, डच, इंगलैण्ड, फ्रांसीसियों का आगमन हुआ।
  • फ्रांस द्वारा हिन्द चीन को अपना उपनिवेश बनाने का प्रारंभिक उद्देश्य तोडच एवं ब्रिटिश कम्पनियों की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा का सामना करना था।
  • हिन्द चीन में फ्रांसीसी प्रभुत्व की स्थापना के साथ ही शासन व्यवस्था पर ध्यान दिया गया।
  • हालाँकि कोचीन-चीन ही सीधे फ्रांसीसी प्रशासन में था बाकी के चार प्रांत तोकिन, अन्नाम, कम्बोडिया और लाओस में पुरातन राजवंश कायम रहे और वहाँरेजिडेन्टों की नियुक्ति होती थी।
  • 1945 ई. तक वियसतमिन्ह के गुरिल्लों के हाथों में तोंकिन के प्रायः सारे क्षेत्र नियंत्रण में आ गए थे। जबकि अब द्वितीय विश्वयुद्ध की स्थितियाँ बदलने लगीं।पर्ल हाबर पर जापान के आक्रमण के साथ ही अमेरिका युद्ध में शामिल हो गया।
  • 25 दिसम्बर, 1955 कोलाओस में चुनाव के बाद राष्ट्रीय सरकार का गठन हुआ और सुवन्न
    फूमा के नेतृत्व में सरकार बनी।
  • सन् 1954 ई० में स्वतंत्र राज्य बनने के बादकम्बोडिया में सांवैधानिक राजतंत्र को स्वीकार
    कर राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक को शासक माना गया।
  • 18 मार्च, 1970 को कम्बोडियायी राष्ट्रीय संसद ने नरोत्तम सिंहानुक को सत्ता से हटा दिया और जनरल लोननोल के नेतृत्व में सरकार बनी।
  • कम्बोडिया का नया नाम कम्पुचिया है।
  • प्रसिद्ध दार्शनिकरसेल ने एक अदालत लगाकर अमेरिका को वियतनाम युद्ध के लिए दोषी करार दिया।
  • हो-ची-मिन्ह वियतनामी राष्ट्रीयता केजनक थे।
  • हो-ची-मिन्ह मार्ग हनोई से चलकरलाओस, कम्बोडिया सीमा क्षेत्र से होता हुआदक्षिणी वियतनाम तक जाता था।
  • अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन नेवियतनाम में शांति के लिए पाँच सूत्री योजना की घोषणा की।
  • माई-ली-गाँव दक्षिणी वियतनाम में है जहाँ अमेरिकी सेना ने काफी क्रूरतापूर्वक नरसंहार किया था।
  • वियतनाम में स्कॉलर्स रिवोल्ट (1868) तथा होआ होआ आंदोलन (1939) में हुआ।
  • 6 मार्च, 1946 कोहनोई समझौता वियतनाम एवं फ्रांस के बीच हुई।

Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 6 जनतंत्र का जन्म

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 6 जनतंत्र का जन्म Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 6 जनतंत्र का जन्म

Bihar Board Class 10 Hindi जनतंत्र का जन्म Text Book Questions and Answers

कविता के साथ

जनतंत्र का जन्म कविता का व्याख्या Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 1.
कवि की दृष्टि में समय के रथ को धर्म नाद क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि स्वाधीन भारत की पराकाष्ठता को मजबूत बनाना चाहता है। बदलते समय में भारत का स्वरूप भी बदल रहा है। आज राजा नहीं प्रजा सिंहासन पर आरूढ़ हो रही है। असीम वेदना सहनेवाली जनता आज जयघोष कर रही है। देश का बागडोर राजा के हाथ में नहीं जनता
के हाथ में हो रही है। आज उसका हुंकार सर्वत्र सुनाई पड़ती है। राजनेताओं के सिर पर राजमुकुट नहीं है।

जनतंत्र का जन्म Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 2.
कविता के आरंभ में कवि भारतीय जनता का वर्णन किस रूप में करता है ?
उत्तर-
वर्षों की पराधीनता की बेड़ी को तोड़कर आज जनता जयघोष करती है। वह हुँकार भरती हुई सिंहासन खाली करने को कहती है। मूर्तिमान रहने वाली जनता आज मुँह खोल चुकी है। पैरों के तले रौंदी जाने वाली, जाड़े-पाले की कसक सहनेवाली आज अपनी वेदना को सुना रही है। पराधीन भारत में जनता त्रस्त थीं। मुंह बंद रखने के लिए विवश थीं। किन्तु आज हुँकार कर रही है।

Jantantra Ka Janm Ka Question Answer Bihar Board प्रश्न 3.
कवि के अनुसार किन लोगों की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है और क्यों ? कवि क्या कहकर उनका प्रतिवाद करता है?
उत्तर-
सिंहासन पर आरूढ रहनेवाले राजनेताओं की दृष्टि में जनता फूल या दुधमुंही बच्ची की तरह है। रोती हुई दुधमुंही बच्ची को शान्त रखने के लिए उसके सामने खिलौने कर दी जाती है। उसी प्रकार रोती हुई जनता को खुश करने के लिए कुछ प्रलोभन दिये जाते हैं। कवि यहाँ
कहना चाहता है कि जनता जब क्रोध से आकुल हो जाती है तब सिंहासन की बात कौन कहें धरती भी काँप उठती है। सिंहासन खाली कराकर एक नये प्रतिनिधि को बिठा देती है। देश का बागडोर प्रतिनिधि में नहीं जनता के हाथ में है।

जनतंत्र का जन्म’ कविता का भावार्थ Pdf Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 4.
कवि जनता के स्वज की किस तरह चित्र खींचता है ?
उत्तर-
स्वाधीन भारत की नींव जनता है। गणतंत्र जनतंत्र पर निर्भर है। जनता का स्वप्न अजेय है। सालों सदियों अंधकार युग में रहनेवाली जनता आज प्रकाश युग में जी रही है। वर्षों से स्वप्न को संजोये रखने वाली जनता निर्भय होकर एक नये युग का शुरू उक्त कर रही है। आज अंधकार ‘युग का अंत हो चुका है। विश्व का विशाल जनतंत्र उदय हुआ है। अभिषेक राजा का कहीं प्रजा का होने वाला है।

Jantantra Ka Janm Kavita Ka Saransh Bihar Board प्रश्न 5.
विराट जनतंत्र का स्वरूप क्या है ? कवि किनके सिर पर मुकुट धरने की बात करता है और क्यों?
उत्तर-
भारत विश्व का विशाल गणतंत्रात्मक देश है। यहाँ देश का बागडोर राजनेताओं को न देकर जनता को दिया गया है। जनता ही सर्वोपरि है। अपने मनपसंद प्रतिनिधि को ही सिंहासन पर आरूढ़ करती है। कवि जनता के सिर पर मुकुट धरने की बात करता है। कवि का मत है कि गणतंत्र भारत का स्वरूप जनता के अनुरूप हो। जनता को पक्ष में लेकर ही देश की रूपरेखा तैयार की जाये। मनमानी करने वाले राजनेताओं को सिंहासन से उतारकर नये राजनेता को जनता ही आरूढ करती है।

Jantantra Ka Janm Kavita Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 6.
कवि की दृष्टि में आज के देवता कौन हैं और वे कहाँ मिलेंगे?
उत्तर-
कवि की दृष्टि में आप के देवता कठोर परिश्रम करने वाले मजदूर और कृषक हैं। वे पत्थर तोड़ते हुए या खेत-खलिहानों में काम करते हुए मिलेंगे। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है। किसान ही भारत के मेरूदंड हैं। जेठं की दुपहरी हो गया ठंडा के सर्दी या फिर मुसलाधार वर्षा सभी में वे बिना थके हुए खेत-खलिहानों में डटे हुए मिलते हैं।

जनतंत्र का जन्म कविता का भावार्थ Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 7.
कविता का मूल भाव क्या है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में स्वाधीनता भारत का सजीवात्मक चित्रण किया है। सदियों बाद जनतंत्र का उदय हुआ है। पराधीन भारत की स्थितिः अत्यन्त दयनीय थीं। चारों तरफ शोषण, कुसरैकार, अत्याचार आदि का साम्राज्य क्या भारतवासी मुंह बंद कर सबकुछ सहने के लिए विवश थे। पराधीनता की बेड़ी से मुक्त होते ही भारतीय जनता सुख से अभिप्रेत हो गई। जनता सिंहासन पर आरूढ़ होने के लिए आतुर हो गई। मिट्टी की मूर्तिमान रहनेवाली जनता मुँह खोलने लगी है। कभी असीम वेदना को सहनेवाली जनता आज हुंकार भर रही है। गणतंत्र का बागडोर जनता के हाथ में है। मिट्टी तोड़ने वाले, खेत-खलिहानों में काम करने वाले जयघोष कर रहे हैं। आज फावड़ा और हल राजदंड बना हुआ है। आज परिस्थिति बंदल चुकी है। राजनेंता नहीं जनता सिंहासन पर आरूढ़ होनेवाली है।

जनतंत्र का जन्म कविता की व्याख्या Pdf Bihar Board Class 10 Hindi प्रश्न 8.
व्याख्या करें
(क)सदियों की ठंडी-बुझी राख सुगबुगा उठीं,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है
(ख)हुँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
साँसों के बल से ताप हवा में उड़ता है, जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ
वह जिधर चाहती काल उधर ही मुड़ता है।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पंक्तियाँ रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित जनतंत्र का जन्म शीर्षक  कविता से संकलित है। इसमें कवि स्वाधीन भारत की रूपरेखा को सजीवात्मक रूप से प्रदर्शित किया है। कवि की अभिव्यक्ति है कि स्वाधीनता मिलते ही भारत में जनतंत्र का उदय हो गया है। बुझी हुई राख धीरे-धीरे सुलगने लगी है। सोने का ताज पहनकर भारत आज इठला रहा है। वर्षों से त्रस्त जनता हुँकार भर रही है।

(ख) प्रस्तुत पंक्तियाँ उत्तर छायावाद के प्रखर कवि रामधारी सिंह दिनकर ‘द्वारा रचित जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता से संकलित है। पराधीन भारत की दयनीय स्थिति को देखकर कवि हृदय विचलित हो उठा था। स्वाधीनता मिलते ही उसका मुखमंडल दीप्त हो उठा है। जनता की हुँकार प्रबल बेग से उठती है। सिंहासन की बात कौंन कहें धरती भी काँप उठती है। उसके साँसों से ताप हवा में उठने लगते हैं। जनता की रूख जिधर उठती है उधर ही समय भी अपना मुख कर देता है। वस्तुतः यहाँ कवि कहना चाहता है कि जनता ही सर्वोपरि है। वह जिसे चाहती है उसे राजसिंहासन पर आरूढ़ करती है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नांकित शब्दों के पर्यायवाची लिखें
सर्दी, राख, ताज, सिंहासन, कसक, दर्द, करूण, जनमत, फूल, भूडोल, भृकुटी, काल, तिमिर, नाद, राजप्रसाद, मंदिर।
उत्तर-
सर्दी – साल संवंत
भूडोल – भूकम्प
राख – बुझा हुआ आग
भृकुटी – भकटी – मोह
ताज – मुकुट
काल – समय
सिंहासन – गद्दी
तिमिर – अंधकार
कसक – क्षोभ
नाद – ध्वनि
दर्द – पीड़ा
राजप्रसाद – राजमहल
करूण – सौगन्ध
मंदिर – घर
जनमत – लोगों का मत
फूल – पुष्य

प्रश्न 2.
निम्नांकित के लिंग-निर्णय करें-
ताव, दर्द, वेदना, करूण, हुँकार, बवंडर, गवाक्ष, जगत, अभिषेक, शृंगार, प्रजा।
उत्तर-
ताव – पु०
वेदना – स्त्री०
हुंकार – पु०
गवाक्ष – पु०
अभिषेक – पु०
प्रजा – स्त्री०
दर्द – पु०
कसम – स्त्री०
बवंडर – पु०
जगत – पु०
शृंगार – स्त्री

प्रश्न 3.
कविता से सामासिक पद चुनें एवं उनके समास निर्दिष्ट करें।
उत्तर-
सिंहासन’ – सिंह चिह्नित आसन – मध्यमपदलोपी समास
अबोध – न बोध – नञ् समास
जनमत – जनों का मत – तत्पुरूष समास
भूडोल – भूमि का डोलना – तत्पुरुष समास
को पाकुल – कोप से आकुल – तत्पुरूष समास
शताब्दियों – शत आष्दियों का समूह – द्विगु समास
अजय – न जय – नञ् समास
राजप्रासादों – राजा का प्रसादों – तत्पुरूष समास

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली।

जनता ? हाँ, लम्बी-बड़ी जीभ की वही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है?”
“है प्रश्न गूढ़; जनता इस पर क्या कहती है ?”

मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।

लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रश्न
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क)कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि-रामधारी सिंह दिनकर।

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में ‘जनतंत्र’ की स्थापना के लिए जंगी प्रेरणा को उजागर किया गया है। सदियों से देशी-विदेशी, सत्तालोलुप लोग भारत की राज सत्ता पर अपना वर्चस्व कायम रखकर भारत की जनता को गुमराह रखें। अब क्रांति की घड़ी आ गई है। जनता में जागृति आ गयी है।। यहाँ की सहनशील जनता अपने सामर्थ्य का आभास कर चुकी है। इन्हीं बातों को उजागर करते हुए कवि ने इस पद्यांश में जनतंत्र-स्थापना की बात कही है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि भारत में सदियों से राजतंत्र रहा है। राज सत्ताधारी भोली-भाली जनता पर राज किये हैं और सुख भोग किये हैं। जनता चुपचाप शासक का अनुगामी बनकर जीवन व्यतीत करती रही है। हमेशा जनता शांत रही है। सत्ताधारी मनमानी करते रहे हैं। लेकिन अब कालचक्र क्रांति का संदेश लेकर आ चुका है। समय बदल चुका है। सोयी हुई जनता जाग उठी है। वह अपनी शक्ति का आभास कर चुकी है। अब राजतंत्र चलनेवाला नहीं है। जनता स्वयं राजेगद्दी पर बैठेगी। अब ऐसी व्यवस्था कायम होने का समय आ गया है जिसमें भारत कीतैंतीस करोड़ जनता राज करेगी कोई एक व्यक्ति राजा नहीं होगा। जनतंत्र स्थापित हेतु समय रूपी रथ आ रहा है जिस पर जनता आरूढ़ होकर आ रही है। नवीन क्रांति का बिगुल बज चुका है।

जनता को सिंहासन पर आसीन करने के लिए सिंहासन को खाली करना होगा। यही समय की पुकार है। जनता अबोध मूरत होती है, सहनशील होती है, जब अंग-अंग को साँप चूसते रहते हैं तब भी मुँह नहीं खोलती है, जनता के मेहनत पर राज करता है। जनता को बहला-फुसलाकर कुछ छोटे-मोटे प्रलोभन देकर स्वयं सत्ता-सुख भोग में लिप्त रहता है। देश की संपत्ति का उपयोग जनता की भलाई में न करके अपनी इच्छाओं, कामनाओं की पूर्ति में लिप्त रहता है। फिर भी जनता चुपचाप सब कुछ सहती रहती है। लेकिन जनता में वह शक्ति है जब वह कोपाकुल होती है, जब जाग जाती है, तब आँधी-तूफान की तरह चल पड़ती है जिसे रोकना मुश्किल है। जनता की जागृति बवंडर लानेवाली होती है जिसका सामना सत्ताधारियों के लिए करना मुश्किल होता है। इसलिए कवि कहते हैं कि अब भारत में समय की पुकार जनतंत्र स्थापना के पक्ष में है। राजतंत्र व्यवस्था समाप्त हो रही है। इसलिए जनता का स्वागत करते हुए राजगद्दी उसे सौंपने की तैयारी किया जाय।

(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनतंत्र की स्थापना की बात कही गयी है। साथ ही जनता की शक्ति का बोध कराया गया है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने ओजस्वी भाव में जनता की महत्ता का बोध कराते हुए उसकी सहनशीलता, धैर्य की बात बड़े ही सहज रूप में कहा है। साथ ही भारत की जनता को अपना अधिकार प्राप्त करने जनतंत्र स्थापित करने, राज सिंहासन पर आरूढ़ होने की प्रेरणा का भाव कवि ने जागृत कर सफल प्रयास किया है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति का व्यापक चित्रण किया गया है जो ओज का भाव जगाता है।

(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है साथ ही रूपक की विधा का प्रयोग है।
(ii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।

2. हुंकारों से महलों की नींव उखड़ जाती
माँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है; – जनता की रोक राह, समय में ताव कहाँ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।  अब्दों, शताब्दियों, सहस्रब्द का अन्धकार बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं; यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय  चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा, तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो। आरती लिए तू किसे ढूँढता है मूरख, मन्दिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ? देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी तोड़ रहे, देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में। फावड़े और हल राजदंड बनने का हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है; दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।

प्रश्न
(क) कवि एवं कविता का नाम लिखें।
(ख) पद्यांश का प्रसंग लिखें।
(ग) पद्यांश का सरलार्थ लिखें।
(घ) पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) पद्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क)कविता-जनतंत्र का जन्म।
कवि- रामधारी सिंह दिनकर

(ख) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने जनता की शक्ति का आभास कराने का पूर्ण प्रयास किया है। कवि ने कहा है कि राजतंत्र की समाप्ति की बेला आ गई है। अब जनतंत्र का उदय होनेवाला है। समय बदल चुका है। अब राजा का नहीं बल्कि प्रजा का अभिषेक होगा। भारत की मेहनती, खेतों में काम करनेवाली जनता, मजदूरी करनेवाली प्रजा ही राजा बनेगी। यही समय की पुकार है। यह अटल सत्य है।

(ग) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रामधारी सिंह दिनकर ने जनता में निहित व्यापक शक्ति को उजागर किया है। इसमें कहा गया है कि जनता जब जाग जाती है, अपने शक्ति बल का अभ्यास करकं जब चल पड़ती है तब समय भी उसकी राह नहीं रोक सकती बल्कि जनता ही जिधर चाहंगी कालचक्र को मोड़ सकती है। युगों-युगों से अंधकारमय वातावरण में जीवन व्यतीत कर रही जनता अब जागृत हो चुकी है।

युगों-युगों का स्वप्न साकार हेतु कदम बढ़ चुके हैं जिसे अब रोका नहीं जा सकता। भारत में सबसे विराट जनतंत्र स्थापित होना तय हो गया है। कवि कहते हैं कि अब इस नवोदित व्यवस्था में राजा नहीं बल्कि प्रजा स्वयं राजगद्दी पर आसीन होगी। भारत की तत्कालीन तैंतीस करोड़ जनता राजा होगी। कवि संकेत करते हैं कि राज्याभिषेक हेतु एक सिंहासन और एक मुकुट नहीं होगा बल्कि तैंतीस करोड़ राजसिंहासन और उतने ही राजमुकुट की तैयारी करनी होगी।

भारत की प्रजा की महत्ता को उजागर करते हुए कवि कहते हैं कि आरती लेकर मन्दिरों और राजमहलों में जाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि भारत में मजदूरी करते लोग, खेतों में काम कर रही प्रजा, मजदूर, किसान ही यहाँ के देवता हैं उन्हीं को आरती करने की जरूरत है। अब फावड़े और हल राजदंड होंगे, धूसरता स्वर्ण-शृंगार का रूप लेगा। अर्थात् अब मेहनती, परिश्रमी प्रजा को उसका वास्तविक हक मिलेगा। जनतंत्र की जयघोष होगी। समय की इस पुकार को समझते हुए जनता को आरूढ़ होने के लिए सिंहासन खाली करना होगा।

(घ) प्रस्तुत पद्यांश में जनमत की शक्ति के स्वरूप का प्रदर्शन है। इसमें ओज गुण की प्रधानता है। इसके माध्यम से जनमत की शक्ति का बोध कराया गया है। देश के राज सिंहासन का वास्तविक अधिकारी मेहनती, परिश्रमी, खून पसीना बहानेवाली जनता है। इस पद्यांश में जनता की शक्ति, उसकी महत्ता का यथार्थ चित्रण है। आज वास्तविक देवता, किसान एवं मजदूर है, सिंहासन अधिकारी भी वही हैं। ऐसा भाव इस कवितांश में निहित है।

(ङ) (i) कविता में खड़ी बोली में सहज, सरल एवं सुबोध है।
(ii) इसमें ओज गुण की प्रधानता है।
(iii) कविता में संगीतमयता विद्यमान है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चनें

प्रश्न 1.
“ननांग का जन्म’ के कति कौन हैं ?
(क) कुँवर नारायण
(ख) रामधारी सिंह दिनकर
(ग) प्रेमधन
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर-
(ख) रामधारी सिंह दिनकर

प्रश्न 2.
दिनकर के काव्य का मूल-स्वर क्या है?
(क) ओज एवं राष्ट्रीय चेतना ।
(ख) शृंगार
(ग) प्रकृति और सौंदर्य
(घ) रहस्यवाद
उत्तर-
(क) ओज एवं राष्ट्रीय चेतना ।

प्रश्न 3.
जनतंत्र में, कवि के अनुसार राजदण्ड क्या होंगे?
(क) ढाल और तलवार
(ख) फूल और भौरे ।
(ग) फाँवड़े और हल
(घ) बाघ और भालू
उत्तर-
(ग) फाँवड़े और हल

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार जनतंत्र के देवता कौन हैं ?
(क) नेता
(ख) शिक्षक
(ग) किसान-मजदूर
(घ) मंत्री
उत्तर-
(ग) किसान-मजदूर

प्रश्न 5.
भारत सरकार ने दिनकर को कौन सा अलंकरण प्रदान किया ?
(क) पद्म श्री
(ख) भारतरत्न
(ग) अशोक चक्र
(घ) पद्म विभूषण।
उत्तर-
(घ) पद्म विभूषण।

प्रश्न 6.
भारत में जनतंत्र की स्थापना कब हुई?
(क) 1947 ई.
(ख) 1977 ई.
(ग) 1950 ई.
(घ) 1967 ई.
उत्तर-
(ग) 1950 ई.

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
दिनकर का जन्म ………… गाँव में हुआ था।
उत्तर-
सिमरिया

प्रश्न 2.
दिनकर उत्तर ………… के प्रमुख कवि हैं।
उत्तर-
छायावाद

प्रश्न 3.
दिनकर को ………….. पर ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।
उत्तर-
उर्वशी

प्रश्न 4.
‘संस्कृत के चार अध्याय’ पर दिनकर को ………. पुरस्कार प्राप्त हुआ।
उत्तर-
साहित्य अकादमी

प्रश्न 5.
हुँकारों से महलों की ………..उखड़ जाती है।
उत्तर-
नींव

प्रश्न 6.
जनता की ………रोकना कठिन है। ………….
उत्तर-
राह

प्रश्न 7.
जनता बड़ी …………सहती है।
उत्तर-
वेदना

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दिनकर किस भावधारा के कवि हैं ?
उत्तर-
दिनकर प्रवाहमान राष्ट्रीय भावधारा के प्रमुख कवि हैं।

प्रश्न 2.
दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त और क्या लिखा है ?
उत्तर-
दिनकर ने काव्य के अतिरिक्त गद्य रचनाएँ भी की हैं जिनमें निबंध, डायरी आदि शामिल हैं।

प्रश्न 3.
“जनतंत्र का जन्म’ कविता में किसका जयघोष है ?
उत्तर-
‘जनतंत्र का जन्म’ शीर्षक कविता में भारत में जनतंत्र की स्थापना का जयघोष है।

प्रश्न 4.
जनता की भृकुटि टेढ़ी होने पर क्या होता है ?
उत्तर-
जनता की भकुटि टेढ़ी होने पर क्रांति होती है, राजसत्ता बदल जाती है।

प्रश्न 5.
जनतंत्र में किसका राज्याभिषेक होता है ?
उत्तर-
जनतंत्र में जनता का राज्याभिषेक होता है। वही स्वामी होता है।

प्रश्न 6.
जनतंत्र के देवता कौन हैं ?
उत्तर-
जनतंत्र के देवता हैं, आम लोग, किसान और मजदूर।

प्रश्न 7.
दिनकर की काव्य-भाषा कैसी है ?
उत्तर-
दिनकर की काव्यभाषा ओजस्वी है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
सदियों की ठंठी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के जनतंत्र का जन्म काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने कहा है कि सदियों की ठंढी और बुझी हुई राख में सुगबुगाहट दिखायी पड़ रही है कहने का भाव यह है कि क्रांतिकारी की चिनगारी अब भी अपनी गरमी के साथ प्रज्ज्वलित रूप ले रही है। मिट्टी यानी जनता सोने का ताज पहनने के लिए आकुल-व्याकुल है। राह छोड़ो, समय साक्षी है -जनता के रथ के पहियों की घर्घर आवाज साफ सुनायी पड़ रही है। अरे शोषकों! अब भी चंतो और सिंहासन खाली करो—देखो, जनता आ रही है।

उन पंक्तियों के द्वारा आधुनिक भारतीय लोकतंत्र की व्याख्या करते हुए जनता के महत्व को कवि ने रेखांकित किया है। कवि जनता को ही लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि मानता है। वह जन प्रतिनिधियों से चलनेवाले लोकतंत्र की विशेषताओं का वर्णन करता है। सदियों से पीड़ित, शोषित, दमित जनता के सुलगते-उभरते क्रांतिकारी विचारों तथा भावनाओं से सबको अवगत कराते हुए सचेत किया है। उसने उसे नमन करने और समय-चक्र को समझने के लिए विवश किया है।

प्रश्न 2.
जनता? हाँ, मिट्टी की अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसम सदा सहनेवाली,
जब अंग-अंग में लगे साँप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुँह खोल दर्द कहनेवाली।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक जनतंत्र का जन्म काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन काव्य पंक्तियों के द्वारा कवि दिनकर ने जनता की प्रशंसा में काव्य-रचना किया है। कवि कहता है कि जनता सचमुच में मिट्टी की अबोध मूरतें ही हैं। जनता की पीड़ा व्यक्त नहीं की जा सकती। वह जाड़े की रात में जाड़ा-पाला को सामान्य ढंग से जीते हुए जीती है उसकी कसक को वह हिम्मत के साथ सह लेती है।

तनिक भी आह नहीं करती। ठंढ से कंपकपाता शरीर, लगता है कि हजारों साँप डंस रहे हैं, कितनी पीड़ा व्यथा को सहकर वह जीती है, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इतनी पीड़ा, दुःख को सहकर भी वह अपनी व्यथा कभी व्यक्त नहीं करती। कवि ने जनता की हिम्मत और कष्ट सहने की आदत को कितनी मार्मिकता के साथ व्यक्त किया है।

इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने भारतीय जनजीवन की आर्थिक विपन्नता और मानसिक पीड़ा को अभिव्यक्ति दी है। उसने भारत की गरीबी, बेकारी, अभावग्रस्तता का सटीक वर्णन किया है। उसकी यानी जनता की बेबसी, बेकारी, लाचारी और शारीरिक पीड़ा, भोजन-वस्त्र, आवास की कमी की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया है। कवि का कोमल हृदय भारतीय जन की दयनीय अवस्था से पीड़ित है। वह उसके लिए ममत्व रखता है और भविष्य में उसकी महत्ता की ओर इंगित भी करता है।

प्रश्न 3.
जनता? हाँ, लंबी-बड़ी जीभ की बही कसम,
“जनता, सचमुच ही, बड़ी वेदना सहती है।”
“सो ठीक, मगर, आखिर, इस पर जनमत क्या है ?”
“है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?”
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि जनता असह्य वेदना को सहकर जीती है। जीवन में वह उफ तक नहीं करती। कवि शपथ लेकर कहता है कि लंबी-चौड़ी जीभ की बातों पर विश्वास किया जाय। कसम के साथ यह कहना है कि कवि की पीड़ा को शब्दों द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है। जनमत का सही-सही अर्थ क्या है ? कवि राजनीतिज्ञों से पूछता है और जानना चाहता है। यह प्रश्न बड़ा गंभीर और प्रासंगिक है। ऐसी अपनी विषम स्थिति पर जनता की क्या सोच है ? राजनेताओं की डींग भरी बातों में कहीं उनकी पीड़ा या वेदना का जिक्र है क्या ?

इन पंक्तियों के द्वारा कवि जनता को पीड़ा, उसकी विपन्नता, कसक और उत्पीड़न भरी जिन्दगी की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करते हुए चेतावनी देता है और लोकतंत्र का मजाक उड़ाने से मना करता है।

प्रश्न 4.
“मानो, जनता हो फूल जिसे एहसास नहीं,
जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में;
अथवा कोई दुधमुंही जिसे बहलाने के
जन्तर-मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में।’
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने जनता को फूल के समान नहीं समझने और देखने को कहा है। कवि का भाव जनता के प्रति बड़ा ही पवित्र है। वह कहता है कि जनता फूल नहीं है कि जब चाहो दोनों में सजा लो और जहाँ चाहो वहाँ रख दो। जनता दुधमुंही बच्ची भी नहीं है कि उसे बरगला कर काम बना लोगे। वह झूठी-मूठी बातों से भरमाई नहीं जा सकती। तंत्र-मंत्र रूपी खिलौनों से भी वश में नहीं की जा सकती। जनता का हृदय सेवा और प्रेम से ही जीता जा सकता है। अतः, जनता को समादर के साथ उचित तरजीह और अधिकार मिलना चाहिए। उसके हक की रक्षा होनी चाहिए। सम्मान और सहभागिता भी सही होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इस कविता में जनता की अजेय शक्ति का वर्णन किया गया है। जनता के पास अपार शक्ति है। जनता जब हुँकार भरती है तब भूकंप हो जाता है। बवंडर उठ खड़ा होता है। जनता के हुँकार : के समक्ष सभी नतशिरे हो जाते हैं।
जनता की राह को आज तक कौन रोक सका है ? सुनो, जनता रथ पर सवार होकर आ रही है, उसकी राह छोड़ दो और सिंहासन खाली करो कि जनता आ रही है।

इन पंक्तियों में जनता की शक्ति और उसके उचित सम्मान की रक्षा हो, इस पर कवि जोर देता है। कवि जनता का अधिक शक्ति के साथ उसके सम्मान और उसके लिए पथ-प्रशस्त करने की भी सलाह देता है। इस प्रकार जनता के प्रति कवि उदार भाव रखता है वह समय का साक्षी है। इसीलिए भविष्य के प्रति आगाह करते हुए जनता के उचित सम्मान की सिफारिश करता है।

प्रश्न 6.
हँकारों से महलों की नींव उखड़ जाती,
साँसों के बल से ताज हवा में उड़ता है;
जनता की रोके राह, समय में ताव कहाँ ?
वह जिधर चाहती, काल उधर ही मुड़ता है।
व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का आशय है कि जनता की हुँकार से, जनता की ललकार से, राजमहलों की नींवें उखड़ जाती हैं। मूल भाव है कि जनता और जनतंत्र के आगे राजतंत्र का अर्थ कोई मोल नहीं?

जनता की साँसों के बल से राजमुकुट हवा में उड़ जाते हैं-गूढार्थ हुआ कि जनता ही राजा को मान्यता प्रदान करती है और वही राजा का बहिष्कार या समाप्त भी करती है।

जन-पथ को कौन अबतक रोक सका है ? समय में वह ताव या शक्ति कहाँ जो जनता की राह को रोक सके। महा कारवाँ के भय से समय भी दुबक जाता है। जनता जैसा चाहती है, समय भी वैसी ही करवट बदल लेता है। जनता के मनोनुकूल समय बन जाता है। यहाँ मूल भाव यह है कि किसी भी तंत्र की नियामक शक्ति जनता है। उसका महत्त्व सर्वोपरि है।

प्रश्न 7.
अब्दों, शताब्दियों, सहस्त्राब्द का अंधकार
बीता; गवाक्ष अम्बर के दहके जाते हैं;
यह और नहीं कोई, जनता के स्वप्न अजय
चीरते तिमिर का वक्ष उमड़ते आते हैं।
व्यख्यिा-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का मूलभाव यह है कि वर्षों, सैकड़ों वर्षों, हजारों वर्षों बीता हुआ अंधकाररूपी समय बीत गया। अंबर चाँद-तारे प्रज्ज्वलित होकर धरती पर उतर रहे हैं। यह कोई दूसरा नहीं है। ये तो जनता के स्वप्न हैं जो अंधकार के वक्ष को चीरते हुए ध रा पर अवतरित हो रहे हैं। यहाँ प्रकृति के रूपों में भी कवि जनता के विजयारोहण का गान कर रहा है। जनता में अजेय शक्ति है। वह महाप्रलय और महाविकास की जननी है। उसके सामने सभी चीजें शक्तिहीन हैं, शून्य हैं। जनता का स्वतंत्रता में सर्वाधिक महत्त्व है।

प्रश्न 8.
सबसे विराट जनतंत्र जगत का आ पहुंचा,
तैंतीस कोटि-हित सिंहासन तैयार करो;
अभिषेक आज राजा का नहीं, प्रजा का है,
तैंतीस कोटि जनता के सिर पर मुकुट धरो।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों में कवि के कहने का मुल भाव यह है कि भारत में लोकतंत्र का उदय हो रहा है। भारत स्वाधीन हो चुका है। यहाँ लोकतंत्र की स्थापना हो रही है। यहाँ की तैंतीस करोड़ जनता के हित की बात है। शीघ्र सिंहासन तैयार करो और जनता का अभिषेक कर सिंहासन पर बिठाओ ! आज राजा की अगवानी या अभ्यर्थना करने की जरूरत नहीं। आज प्रजा को पूजने और सिंहासनारूढ़ करने की जरूरत है।

आज का शुभ दिन तैंतीस करोड़ जनता के सिर पर राजमुकुट रखने का है। आशय कहने का है कि जनता का, जनता के लिए और जनता द्वारा शासन ही लोकतंत्र है। अतः, लोकतंत्र की अगवानी, पूजा, अभ्यर्थना तथा उसे मान्यता मिलनी चाहिए।

प्रश्न 9.
आरती लिए तू किसे ढूंढता है मूरख,
मंदिरों, राजप्रासादों में, तहखानों में ?
देवता कहीं सड़कों पर मिट्टी-तोड़ रहे,
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जनतंत्र का जन्म” काव्य-पाठ से ली गयी हैं। कवि के कहने का मूल भाव यह है कि आज हम आरती उतारने के लिए इतना व्यग्र हैं, मूर्ख बनकर किसे हम ढूँढ रहे हैं ?

मंदिरों, राजमहलों, तहखानों में अब देवता या राजा नहीं बसते हैं। आज के देवता हैं जनता। जनता को पाने के लिए सड़कों पर, खेतों में, खलिहानों में जाना होगा क्योंकि वहीं वे श्रम करते हुए मिलेंगे।

कहने का अर्थ यह है कि लोकतंत्र में जनता ही सब कुछ होती है। सारी शक्तियाँ उसी में निहित हैं। वही देवता है, वही राजा है वही लोकतंत्र है। अतः, उसे पाने के लिए गाँवों में, खेतों में, खलिहानों में, सड़कों पर जाना होगा। उसका तो वही मंदिर है, राजमहल है, तहखाना है। जनता . लोकतंत्र की शक्ति-पुंज है।

प्रश्न 10.
फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,
धूसरता सोने से श्रृंगार सजाती है।
दो राह, समय के रथ का घर्धर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के ‘जनतंत्र का जन्म’ नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग जनता के साथ जुड़ा हुआ है लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है। वही सत्ता को चलाती है। वही सत्ता की रक्षा करती है। वही सत्ता के लिए संघर्ष करती है।

लोकतंत्र का राजदंड कोई राजपत्र-कोई हथियार या भिन्न प्रकार का औजार नहीं है। लोकतंत्र का मूल राजदंड है-जनता का हल और कुदाला क्योंकि इसी के द्वारा वह धरती से सोना पैदाकर लोकतंत्र को सबल और सुसंपन्न बनाती है अब कुदाल और हल ही राजदंड के प्रतीक बनेंगे। ध रती की धूसरता का श्रृंगार आज सोना कर रहा है यानी धूल में ही स्वर्ण-कण छिपे हुए हैं
उनका रूप भले ही भिन्न-भिन्न हो। रास्ता शीघ्र दो, देखो, समय के रथ का पहिया घर्धर आवाज करते हुए आगे को बढ़ता जा रहा है। सिंहासन शीघ्रता से खाली करो, देखो जनता स्वयं आ रही है। इन पंक्तियों का गूढार्थ है कि जनता ही जनतंत्र की रक्षा, निर्माता और पोषक है।

जनतंत्र का जन्म कवि परिचय

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई० में सिमरिया, बेगूसराय (बिहार) में हुआ और निधन 24 अप्रैल 1974 ई० में । उनकी मां का नाम मनरूप देवी और पिता का नाम रवि सिंह था । दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव और उसके आस-पास हुई । 1928 ई० में उन्होंने मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक और 1932 ई० में पटना कॉलेज से इतिहास में बी० ए० ऑनर्स किया । वे एच० ई० स्कूल, बरबीघा में प्रधानाध्यापक, जनसंपर्क विभाग में सब-रजिस्ट्रार और सब-डायरेक्टर, बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर एवं
भागलपुर विश्वविद्यालय में उपकुलपति के पद पर रहे।

दिनकर जी जितने बड़े कवि थे, उतने ही समर्थ गद्यकार भी । उनकी भाषा कुछ भी छिपाती – नहीं, सबकुछ उजागर कर देती है । उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं – ‘प्रणभंग’ ‘रेणका’ ‘हंकार’ ‘रसवंती’, ‘कुरुक्षेत्र’, रश्मिरथी’, ‘नीलकुसुम’, ‘उर्वशी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हारे को हरिनाम’ आदि । (काव्य-कृतियाँ) एवं ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्धनारीश्वर’, ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘काव्य की भूमिका’, ‘वट पीपल’, ‘शुद्ध कविता की खोज’, ‘दिनकर की डायरी’ आदि (गद्य कृतियाँ) । दिनकर जी को ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादमी एवं ‘उर्वशी’ पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए। उन्हें भारत सरकार की ओर से ‘पद्मविभूषण’ से भी सम्मानित किया गया था। वे राज्यसभा के सांसद भी रहे।

दिनकर जी उत्तर छायावाद के प्रमुख कवि हैं । वें भारतेन्दु युग से प्रवहमान राष्ट्रीय भावध रा के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं। कविता लिखने की शुरुआत उन्होंने तीस के दशक में ही कर दी थी, किंतु अपनी संवेदना और भावबोध से वे चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में ही पहचाने गये। उन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत-प्रगीत, काव्यनाटक आदि अनेक काव्यशैलियों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनायें प्रस्तुत की हैं। प्रबंधकाव्य के क्षेत्र में छायावाद के बाद के कवियों में उनकी उपलब्धियाँ सबसे अधिक और उत्कृष्ट हैं। भारतीय और पाश्चात्य साहित्य का उनका अध्ययन-अनुशीलन विस्तृत एवं गंभीर है । उनमें इतिहास और सांस्कृतिक परंपरा की गहरी चेतना है और समाज, राजनीति, दर्शन का वैश्विक परिप्रेक्ष्य-बोध है जो उनके साहित्य में अनेक स्तरों पर व्यक्त होता है।

राष्ट्रकवि दिनकर-की प्रस्तुत कविता आधुनिक भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों की देशी-विदेशी पराधीनताओं के बाद.स्वतंत्रता प्राप्ति हुई और भारत में जनतंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा हुई । जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को कविता में उजागर करते हुए कवि यहाँ एक नवीन भारत का शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने को है । इस कविता का ऐतिहासिक महत्त्व है।

 जनतंत्र का जन्म Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

उत्तर छायावाद के प्रखर कवि रामधारी सिंह दिनकर एक कवि ही नहीं समर्थ गद्यकार हैं। वे भारतेन्दु युग से प्रवहमान राष्ट्रीय भावधारा के एक महत्त्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं। उन्होंने प्रबंध, मुक्तक, गीत-प्रगीत, काव्यनाटक आदि अनेक काव्य शैलियों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनाएँ
प्रस्तुत की हैं। भारतीय और पाश्चात्य साहित्य का उनका अध्ययन-अनुशीलन विस्तृत एवं गंभीर है।

प्रस्तुत कविता में स्वाधीन भारत में जनतंत्र के उदय का जयघोष है। सदियों बाद भारत विदेशी पराधीनता से मुक्त होकर जनतंत्र का प्राण-प्रतिष्ठा किया है। आज भारत सोने का ताज पहनकर इठलाता है। मिट्टी की मूर्ति की तरह मूर्तिमान रहने वाला आज अपना मुँह खोल दिया है। वेदना को सहनेवाली जनता हुँकार भर रही है। जनता की रूख जिधर जाती है उधर बवंडर उठने लगते हैं। आज राजा का नहीं पुजा का अभिषेक होनेवाला है। आज का देवता मंदिरों प्रासादों में नहीं खेत-खलिहानों में हैं। वस्तुतः कवि जनतंत्र के ऐतिहासिक और राजनीतिक अभिप्रायों को उजागर करते हुए एक नवीन भारत का शिलान्यास सा करता है जिसमें जनता ही स्वयं सिंहासन पर आरूढ़ होने में है।

शब्दार्थ

नाद: स्वर, ध्वनि
गूढ़ : रहस्यपूर्ण
भूडोल : धरती का हिलना-डोलना, भूकंप
कोपाकुल : क्रोध से बेचैन ।
ताज : मुकुट
अब्द : वर्ष, साल
गवाक्ष : बड़ी खिड़की, दरीचा
तिमिर : अंधकार
राजदंड : राज्याधिकार, शासन करने का अधिकार
धूसरता : मटमैलापन

Bihar Board Class 10 English Book Solutions Chapter 2 Me and The Ecology Bit

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B.1.1. Write ‘T’ or ‘F’. “T” for True and “F” for False 

1. People easily get convinced by Jim.
2. He uses a paper route to convince people.
3. He gives suggestions on ecology free of cost.
4. Mr. William was at his house.
5. People listened to Jim gladly, for he was an eco-friendly boy.
Answers:
1. F
2. T
3. T
4. T
5. T

B.2. Answer the following questions Very briefly 

Me And The Ecology Bit Question Answer Bihar Board Question 1.
What happens when the narrator calls Mr. Greene, “Mrs. Greene”?
Answer:
When the narrator calls her Mrs. Greene then she pretends that she . had no change to pay him.

Me And The Ecology Bit In Hindi Bihar Board Question 2.
What does the narrator do on Saturdays and Sundays?
Answer:
The narrator collects garbage and other dirty materials causing pollution from several houses on Saturdays and Sundays to save ecology.

Panorama Class 10 Solutions Bihar Board Question 3.
Which animal messes up with Ms. Greene’s yard?
Answer:
The dog digs up Ms. Greene’s garden and messes up her yard.

Me And The Ecology Bit Meaning In Hindi Bihar Board Question 4.
Why does the narrator ask Ms. Greene to save paper and aluminum cans?
Answer:
The narrator asks Ms. Greene to save paper and aluminum, can, So that they may be remade for their use in the future.

Me And The Ecology Bit Summary In Hindi Bihar Board Question 5.
Did the narrator succeed in getting Ms. Greene to do something about ecology?
Answer:
The narrator tried hard in getting Ms. Greene to do something about ecology and got tired. But he could not succeed in his efforts.

Panorama English Book Class 10 Solutions In Hindi Bihar Board Question 6.
What is a compost pit?
Answer:
The compost pit is the storage of leaves, garbage, and stuff together collected in a pit to prepare manure.

Panorama Part 2 Class 10 Solutions Bihar Board Question 7.
What does Mr. William mean by noise pollution?
Answer:
By nose pollution, Mr. William means to say that bad smelling of the compost or garbage creates it (nose pollution).

Class 10 English Book Bihar Board Question 8.
Why is burning of leaves bad to air?
Answer:
Burning of leaves is bad to air because it pollutes the air generating smoke.

B.3.1. Complete the following sentences on the basis of the unit you have just studied :

1. It very………………… works this ecology bit.
2. Women use too many…………………….things.
3. No body’s willing to do anything about …………………….
4. The narrator drives his………………………… round and round his
backyard all summer………………………………. and all winter.
Answer:
1. boring, 2. electric, 3. ecology, 4. motorbike, his snowmobile.

B. 3.2. Answer the following questions very briefly :

Bihar Board Class 10th English Solution Question 1.
How many blocks away was the post-office from Mr. Johnson’s house?
Ans. The post office was only two blocks away from Mr. Johnson’s house.

Bihar Board Class 10 English Book Solution Question 2.
What form of electricity did the narrator use?
Answer:
The narrator used T. V. in the form of electricity.

Ecology Bit Meaning In Hindi Bihar Board Question 3.
Why did Mr. Johnson think that the narrator did not follow the principles of walking?
Answer:
Mr. Johnson thought that the narrator did not follow the principle of walking because he (narrator) had jumped over grass and a little tree, resulting in its destruction.

Bihar Board 10th English Book Question 4.
Did the narrator enjoy talking about ecology?
Answer:
The narrator enjoyed talking about ecology, but nobody was ready to follow it.

C. 1. Long Answer Questions :

Class 10 English Chapter 2 Bihar Board Question 1.
“Nobody’s willing to do anything about ecology”. Do you agree with the statement
Answer:
Preaching about ecology is easy, but difficult to practice. Everybody is in favor of it but nobody is prepared to do anything about it This is a fact that people do not co-operate and show unwillingness in this direction. Many persons, like Jim, undertake the work of ecology but nobody comes forward to join hands in such a mission. One can start this job from his own house. He must keep his surroundings clean and free from pollution. But nobody does it. In my locality, there is a heap of garbage and filth scattered throughout the road. Street dogs are found loitering and playing with the wastes spreading it in the street. Polythene bags and packets are found everywhere. Nobody cares about that. There is a proverb, “Example is better than precept”. People talk a lot against it but do nothing to remove this evil. Thus, I agree that nobody is willing to do anything about ecology.

Class 10 English Chapter 2 Question Answers Bihar Board Question 2.
“But anyhow, on Saturday when I collect, I put in good work on ecology.” This is the narrator’s way of preserving ecology. How are you contributing to ecological preservation in your surroundings?
Answer:
In my locality, people are not conscious of preserving ecology. There is a bulk of garbage and waste scattered throughout the surrounding. Polythene bags and plastic packets are found floating on the road. I do not like such things because they generate pollution. I want to work for the preservation of ecology because I know its importance.
1 used to work hard for making the environment free from pollution. As such I have taken up the following steps

  • I go to the people of my locality to make them conscious to save ecology.
  • I also tell them not to pollute water and the environment by their dirty habits.
  • every Sunday 1 undertake the work of cleaning my surroundings.
  • To achieve my objective I make the drains clean and clear the water logging throughout my locality.
  • I ani working towards growing plants on both sides of the road.

Several other measures are also taken for the welfare of the people and the preservation of ecology.

Panorama English Book Answers Pdf Bihar Board Question 3.
“I get tired of trying to get Ms. Greene to do something about ecology”. Explain in detail the meeting between Jim and Ms. Greene and throw light on the outcome of the meeting.
Answer:
Jim, a young boy has undertaken the work of going around and telling people to save ecology. He visits the house of Ms. Greene in connection with the fulfillment of his mission. Seeing him she immediately questions, “Why does he throw- gum wrappers on her Lawn”. She further directs him to pick up those wrappers and put it in one of the plastic bags kept on the lawn for the very purpose. She accuses him also to get his dog untied, causing damage to her garden. Meanwhile, he sees that she is piling newspapers beside her garbage bags. He advises her to save those papers and also aluminum cans, so that new paper and aluminum. could be made. She does not seem to be satisfied with his suggestion. Jim gets tired of trying to get Ms. Greene to do something about ecology. So he immediately left her house. It shows the reluctancy of Ms. Greene in abiding by the rules of ecology preservation. Their conversations come to an end with no result. The outcome of the meeting is the example of how people do not attach importance to ecology preservation, as Ms. Greene does.

Panorama English Book Class 10 Pdf Bihar Board Question 4.
“Sure it is hard to get people to work for ecology”. Do you agree with this statement? What is ecology? What measures have you and your school taken to preserve it?
Answer:
Really, to get people ready to work for ecology is hard. Preaching about ecology is easy but difficult to abide by the rules of ecology preservation. Ecology means keeping the environment pollution-free. It is possible only. When the surrounding is free from darkness and pollution of land, water, and air. Ecology is a branch of biology that deals with the habits of living-being and relationship between the environment and the living things, I have taken up the work to save ecology in my neighborhood on Sundays or whenever I get time. I go to the people o make them conscious of preserving geology. The Headmaster of my school takes a keen interest in the preservation of ecology. There is an arrangement of environmental studies in school. The surroundings of the school are kept clean. The classrooms, the toilets, the garden and other places of the school building are kept free from dirt. The school peons and the gardener take much care towards cleanliness and do not allow garbages and -wastes in the school premises and its surroundings.

Bihar Board Solution Class 10 English  Question 5.
“Women use too many electric things”. What prompts the narrator to say so? How does the use of modern appliances affect ecology?
Answer:
Women have to discharge their responsibilities for their household affairs. Their role is just like the captain and the players of a team. They have varieties of work to perform. In course of discharging their duties, they have to take the help of several electrical tools and appliances, such as the electric mixer, the grinder, the washing machine, electric iron, the toaster, tailoring (sewing) machine, fruit juicer, electric heater, electric oven, refrigerator, etc. As the narrator observes his mother using the electric mixer, It prompts him to say so. Modem appliances affect ecology in many ways. Their function generates air, water, and soil pollution. The polluted water and the wastes come out from the washeries of factories and mills roll down to the river, forming water and soil pollution. The smoke and dust coming from the chimneys and other sources of the heavy plant, small factories and even from the residential houses pollute the environment.

Bihar Board Class 10 English Book Solution Pdf Download Question 6.
Do you think that Jim is a real ecology friendly boy ? Give your opinion.
Answer:
Jim is a real ecology friendly boy, but often he deviates from personally acting upon it. As an example, he advises Johnson not to go to the post office in his car, but as per Johnson’s remark, he drives his motorbike around and rounds his backyard in summer and snowmobile in winter. Again when he advises his mother to save electricity, his mother remarks, “so who watches T.V. twenty-seven hours a day?” These ironic remarks show his deviation. His young age is also a reason for his deviation. Still, it is a fact that he has undertaken the work of going around and telling people to preserve the environment and to save ecology. In spite of the fact that he can spare little time out of his homework even then, he has fixed Saturday and sometime Sunday even for visiting people to fulfill his mission. In my opinion, he is an ecology friendly boy in real sense. His ecology friendly behavior is admirable. Though he does not get co-operation and assistance from the people in his work he continues to go ahead to achieve his objective.

Question 7.
Does Jim understand why his advice is being questioned? Explain.
Answer:
Jim is well aware of the fact that his advice is being questioned, never he goes to meet people and narrates them the importance of serving ecology they do not respond properly. The reason behind their such an attitude is their negligence towards saving ecology. They do not like to work in this direction, because they do not attach any importance for preserving the environment. When he suggests something relating to it, they themselves immediately put some questions to him. It is but the human nature-that when they do not agree with other’s advice, they will find out some mistakes in it. So, they make prevention and create confusion. Therefore Jim very well understands why his advice is being questioned.

Question 8.
What happened to the tree referred to by Mr. Johnson?
Answer:
Mr. Johnson referred to the destruction of a tree by Jim. He accuses Jim of this. According to him jumping over the tree every day, making a short cut path through Ms. Greene’s house had resulted in its ruin. The tree does not exist now owing to its premature death.

Question 9.
Is Jim aware of all of the aspects, and does he always practice ecology measures ? Give arguments in favor of your answer.
Answer:
Jim is a real ecology friendly boy. He is quite aware of all the aspects of saving ecology. He has undertaken the work of preserving the environment. His ecology friendly attitude is admirable. He always practices all possible ecology measures. He talks about the importance of preserving the environment with the people, He does not get proper co-operation and assistance from the people in his work. But he is not disheartened and continues to go ahead on his mission. He also collects the dirty garbage and other wastes from certain places and carries them to the places specially made for the purpose. Though he finds it difficult to get people to work for ecology, it does not stop his work and fulfill his objective. Thus, really he is aware of all aspects and always practice ecology measures.

Question 10.
A hero or heroine does not always arrive on a galloping horse to save the day. Sometimes the hero or heroine merely demonstrates the potential for action, rather than a completed task. What potential does Jim have as the hero in this story?
Answer:
Jim as a hero of this story is mare a messenger. I think he is just like a hero of tragedy in conflict. His message is agreed by all but there is a conflict of feelings models of thoughts, desires, will, and purposes. There is a conflict of persons with one another or with circumstances or with themselves. Again, it may be taken for granted that a tragedy is a story of unhappiness or sufferings and excites such feelings as pity and fear. Thus the hero Jim does the work in these circumstances.

C.2. Group Discussion

Discuss the following in groups or pairs.
1. Environmental degradation leads to ecological imbalance.
Answer:
The problem of environmental pollution is related to an increase in industrial activity which is regarded as an inevitable and sure sign of economic progress. Along with such industrial advancement comes the pollution of water and air. There is a realisation on his part that what he considers progress is serious’ disturbing the ecological balance and leading to the breakdown of the ‘ supporting system on the earth.

2. Modern appliances adversely affect the environment.
Answer:
Modem appliances are used in abundance in every house of a town. People use house appliances such as electric mixer, washing machine, refrigerator, air cooler, heater, T. V. and computer. All these devices emit or charge water and air. They pollute air and Waterloo. Thus they have an adverse effect on the environment. So it is clear that pollution and environmental degradation are dangerous for human health.

C. 3. Composition

1. Prepare a speech in about 100 words to be delivered in the morning assembly of the school on ‘how students can become ecology friendly’.
Answer:

16th April 2011 9 a.m.
Morning assembly
Our revered principal and teachers and my colleagues.

I have the pleasure to inform you in this morning assembly that I have thought, we can become ecology friendly in our schoolhouse or a house away from our own house. The school must have a pleasant atmosphere. Gardens, trees, and flowers help the students to relax. In fact, some lessons on ecology’ Should be given in the open air. So that students must become ecology friends. I request our principal and teachers to turn us to become ecology friend

Sujit
Class-X

2. Write a letter to your friend, telling him the measures your school has taken to preserve ecology in the locality.

Station Road, Patna
10th April 2011

Dear Amresh

Hope this letter of mine finds you in the best of mood and spirit. Through this letter, I am going to inform you that our school has taken a task to go to the nearby locality to preach the people about ecology. By turn, students of; different classes take part and go door to door to work for ecology. We are doing something going around telling people what they should do. We tell them that support for ecology has also come from several religious leaders. We tell them that the economy and ecology stem from the same meaning house. The economy is the management of the house, ecology is the study of the house. The house is the earth. Many civilized men and women learn to understand their house. We are trying our best. Success must come at last.

Your loving friend
Shashi

D. Word Study 

D.1. Dictionary use
Ex. 1. Correct the spelling of the following words.
ekology, composte, garbedge, stufe, polusion, Imings.
Answer:
Ecology, compost, garbage, stuff, pollution, innings.

Ex. 2. Match the words in Column A with their meanings in Column B.
A                                            B
compost                           the science that deals with the relation between the living things and environment,
garbage                           an act of polluting
pollution                          to feign
pretend                            filth
ecology                            manure
Answer:
Compost………..manure.
garbage…………filth ‘
pollution………..an act of polluting
pretend………….to feign
ecology…………..the science that deals with the relation between living things and the environment.

Comprehensive Based Questions with Answers

Read the following extracts carefully and answer the questions that follow each

1. Sure it is hard to get people to work for ecology. Everybody is in favor of it but nobody wants to do anything about it. At least I’m doing something, going around telling people what they should do. But all I get is a lot of backtalk.
2. I have this paper route. My father had one when he was a kid, so he made me get one last year. Between it and my homework, I hardly have time for playing ball and stuff, some days I get. in Only a few innings.
3. But anyhow, on Saturdays when I collect, I put in good work for ecology. Like last Saturday morning. It was a good collecting day. It had just turned spring and a lot of people were outside.
4. I went to Mr. Williams’s house. As usual, he tried to pretend he’s not home. But I see him burning leaves in the backyard, so he’s stuck. He pays me, and I tell him. “You shouldn’t bum those leaves. It’s bad for air, bad ecology. You should make a compost pile as we do. Put in the leaves, garbage, and stuff. Good for the garden.”
5. He doesn’t agree or hang his head in shame. He say’s” That compost pile is your job at home, Jim, isn’t it”
6. “Yes,” I say proudly, which would shock the idea I hate working with compost. Which I do.
Questions:
(i) What is hard for the author?
(ii) Why has the author not time for playing when he was a kid?
(iii) What was Mr. William doing when the author went there?
(iv) What did the author advise Mr. William to do?
(v) Who is the writer of this extract?
(vi) What, according to the narrator, is hard?
(vii) What does he do on Saturdays?
(Viii) What does he do on Saturdays?
(ix) Which word in the passage means ‘the science that deals with the relationship between living things and the ‘environment’?
Answers:
(i) It is hard work to get people to work for ecology.
(ii) He had to do heavy homework. So he hardly had time for play¬ing ball.
(iii) The author saw him burning leaves in the backyard.
(iv) The author advised him to pile the leaves to get compost.
(v) Joan Lexau is the writer of this extract.
(vi) According to the narrator, it is hard to get people to work for ecology.
(vii) The narrator works for ecology by telling people what they should do.
(viii) On Saturdays, he collects garbage from the nearby houses.
(ix) The word ‘ecology’ means ‘the science that deals with the relationship between living things and the environment.

7. Mr. Williams says “Well don’t you take a little more trouble with it, but enough dirt on top of each layer? Then we wouldn’t have this noise pollution.”
8. “Huh?” I say “You mean noise pollution.” No,” he says. “I mean you. compost smells up the whole street.”
9. My feelings are hurt, but that doesn’t stop me from trying again. I go to collect it from Ms. Greene. I have to call her Ms. Greene because if I call her ‘Mrs’, she says she doesn’t have a chance to pay me.
10. She is putting her garbage out for the weekly pick up on Monday. She goes away on weekends; so on Saturdays and Sundays, we have to look at the big plastic garbage bags on her lawn. But I don’t say anything about it. I just look at the garbage.
11. She says to me, “Go pick up that gum wrapper you threw on my lawn. Put it in one of the plastic bags. Didn’t anybody teach you not to litter?
12.1 hold my temper and pick up my gum wrapper and put it in a bag. Then she says, And there’s a law in this town about keeping dogs on a leash. So why is yours always all over the place? That dog digs up my garden and messes up my yard, and last weekend Mr. Williams saw it tear open one of my garbage bags.
13. “Well,” I say, but I can’t think of anything to go with it. Then I see she is piling newspapers next to her garbage bags.
Questions:
(i) What is putting her?
(ii) What does she say to the author?
(Hi) What did the author do?
(iv) What does the dog do?
(v) Name the lesson from which this extract has been taken.
(vi) Who is the lady referred to here?
(vii) What is she doing?
(viii) What does she ask the narrator to do?
(ix) Which word in the passage means ‘fifth’?
Answers:
(i) She is putting the garbage out for the weekly pick up on Monday.
(ii) She told the author to go pick up that gum wrapper he had thrown in her lawn and put it one of the plastic bags. She further asked if anybody did not teach him not to litter them.
(iii) The author picked up his gum wrapper and put it in a bag.
(iv) The dog digs up and messes up her garden.
(v) This extract has been taken from the lesson and the Ecology Bit’.
(vi) The lady referred to here is Ms. Greene.
(vii) She is putting her garbage out for the weekly pick-up on Monday
(viii) She asks the narrator to pick up the gum wrapper he had thrown on her lawn and put it in one of the plastic bags.
(ix) The word ‘garbage’ means, Tilth

14. “Listen, Ms. Greene,” I say, “save those papers for the school pickup, and they can be made into new paper. Save aluminum cans, too.”
15. “Like the last school pick up?” she asks “When you said you’d come and pick them up, but you never showed up? It’s easier to throw them away a few at a time than have a big mess like that.”
16.1 get tired of trying to get Ms. Greene to do something about ecol¬ogy. I go to Mr Johnson’s house. He makes a run for his car, but I can run faster than he can.
17. “Just trying to get to the post office before it closes,” he says, huffing and puffing.
18. “You got time,” I say. “You even got time to walk. It’s only two blocks. You shouldn’t take your car when you don’t need to. The walk would be good exercise and save on gas. And not pollute. That’s ecology.”
19. “They sure are,” I say. “We had a lot about trees and ecology in school. They make the air better and stuff like that.”
20. “See that tree over there?” he says, pointing to where there isn’t any tree.
21. “1 don’t see any tree,” I tell him.
Questions:
(i) What did the author say to Mrs. Greene?
(ii) Why did the author get tired?
(iii) Was any tree there?
(iv) Pick out the word from the passage which means: ‘the material’.
(v) Dis the narrator succeeds in gel ting Ms. Greene do something about ecology? ‘
(vi) Where did he go after his visit to Ms. Greene’s house?
(vii) Who was going to the post office?
(viii) What did the narrator tell Mr. Johnson about ecology?
(ix) When does the phrase ‘huffing and puffing * mean?
Answers:
(i) The author told Mrs. Greene to save those papers for the school picks up so that they could be made into newspapers.
(ii) The author got tired of trying to get Mrs. Greene to do something about ecology.
(iii) No, there was not any tree.
(iv) The word is “stuff.”
(v) No, the narrator did not succeed in getting Ms. Greene do something about ecology.
(vi) He went to Mr. Johnson’s house after his visit to Ms. Greene’s house.
(vii) Mr. Johnson was going to the post office.
(viii) The narrator told Mr. Johnson that the post office was nearby and he should not use his car. he reminded him that the walk to the post office would be good exercise and help ecology.
(ix) The phrase ‘huffing and puffing’ means ‘breathing heavily because one is exhausted’.

22. “Of course not,” he says, “And no grass either. Because you made a path there taking a shortcut from Mrs. Greene’s. There was a little tree just starting to get bigger there until you killed it by trying to jump over it every day. Remember?”
23. “Oh,” I say.
24. “And talking about not driving when you can walk. You drive your motorbike round and round your backyard all summer. And your snowmobile all winter. Isn’t that wasting power and making noise pollution too?”
25. But it’s fun,” I say.
26. “Well, I enjoy taking the car to the post office,” he says, “But now you’ve made me too late.” He goes in the house looking very mad.
27. Then I remember he hasn’t paid me. But I decided to wait until next Saturday. At least I made him not pollute with his car for once.
28. 1 don’t talk to the rest of my route about ecology. It’s a very boring work, this ecology bit.
29. But when I get home, I see my mother using the electric mixer.
30. “You should do that with your old egg beater,” I point out to her. “Save on electricity. Women use too many electric things.”
31. She says in a very’ cold voice, “So who watches TV twenty-seven hours a day around here? Or is that some other kind of electricity?”
32. See what I mean? Nobody’s willing to do anything about ecology. Except me. And nobody listens to me.
Questions:
(i) Who says,” of course not?’
(ii) Who enjoys taking the car to the post office?
(Hi) What did the author find when he reached home?
(iv) What remarks did the author’s mother have?
(v) Who is the author of this extract?
(vi) Who is‘him’ in the first line here?
(vii) How did the narrator try to feed him?
(viii) What happened on the third day?
(ix) Which word in the passage means ‘very bright’?
Answers:
(i) Mr. Johnson said, “of course.”
(ii) Mr. Johnson enjoys taking the car to the post office.
(iii) When the author reached home he found his mother using the electric mixer.
(iv) The author’s mother told him ironically that he watched. T.V. twenty-seven hours a day.
(v) Mahadevi Verma is the author of this extract.
(vi) ‘Him’ in the first line here refers to a tiny baby squirrel.
(vii) The narrator tried to feed him by putting a thin cotton wool wick, dipped in milk to his mouth:
(viii) On the third day, he became so much better and assured that he would hold the narrator’s finger with his two tiny claws and gaze all around.
(ix) The word ‘refulgent’ means ‘very bright’.

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Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 2 पद्य खण्ड Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi Solutions पद्य Chapter 1 राम बिनु बिरथे जगि जनमा

Bihar Board Class 10 Hindi राम बिनु बिरथे जगि जनमा Text Book Questions and Answers

कविता के माथ

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Bihar Board प्रश्न 1.
कवि किसके बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है ?
उत्तर-
कवि राम-नाम के बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है। राम-नाम के बिना व्यतीत होने वाला जीवन केवल विष का भोग करता है।

Ram Nam Binu Birthe Jagi Janma Bihar Board प्रश्न 2.
वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर-
जब वाणी वाह्य आडंबर से सम्पन्न होकर राम-नाम को त्याग देती है तब वह विष हो जाती है। राम-नाम के अतिरिक्त उच्चरित ध्वनि काम-क्रोध, मद सेवन आदि से परिपूर्ण होती है।

Ram Naam Binu Birthe Jagi Janma Bihar Board प्रश्न 3.
नाम-कीर्तन के आगे कवि किन कर्मों की व्यर्थता सिद्ध करता है?
उत्तर-
पुस्तक पाठ, व्याकरण के ज्ञान की बखान, दंड कमण्डल धारण करना, सिखा बढ़ाना, . तीर्थ- भ्रमण, जटा बढ़ाना, तन में भस्म लगाना, वस्त्रहीन होकर नग्न रूप में घूमना इत्यादि कर्म ईश्वर प्राप्ति के साधन माने जाते हैं। लेकिन कवि कहते हैं कि भगवत् नाम-कीर्तन के आगे ये सब कर्म व्यर्थ हैं।

राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा का अर्थ प्रश्न 4.
प्रथम पद के आधार पर बताएं कि कवि ने अपने युग में धर्म-साधना के कैसे-कैसे रूप देखे थे?
उत्तर-
प्रथम पद में कवि ने धर्म साधना के अनेक लोक प्रचलित रूप की चर्चा करते हैं। सिखा बढ़ाना, ग्रंथों का पाठ करना, व्याकरण वाचना इत्यादि धर्म साधना माने जाते हैं। इसी तरह तन में भस्म रमाकर साधु वेश धारण करना, तीर्थ करना, डंड कमण्डल धारी होना, वस्त्र त्याग करके नग्न रूप में घूमना भी कवि के युग में धर्म-साधना के रूप रहे हैं। पद में इन्हीं रूपों का बखान कवि ने दिये हैं।

Bihar Board Class 10th Hindi Solutions प्रश्न 5.
हरिरस से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर-
कवि राम नाम की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं कि भगवान के नाम से बढ़कर ___ अन्य कोई धर्म साधना नहीं है। भगवत् कीर्तन से प्राप्त परमानंद को हरि रस कहा गया है। भगवान्
के नाम कीर्तन, नाम स्मरण में डूब जाना, हरि कीर्तन में रम जाना और कीर्तन में उत्साह, परमानंद की अनुभूति करना ही हरि रस है। इसी रस पान से जीव धन्य हो सकता है।

Bihar Board Solution Class 10 Hindi प्रश्न 6.
कवि की दृष्टि में ब्रह्म का निवास कहाँ है ?
उत्तर-
जो प्राणी सांसारिक विषयों की आसक्ति से रहित है, जो मान-अपमान से परे है, हर्ष-शोक दोनों से जो दूर है, उन प्राणियों में ही ब्रह्म का निवास बताया गया है। काम, क्रोध, लोभ, मोह जिसे नहीं छूते वैसे प्राणियों में निश्चित ही ब्रह्म का निवास है।

बिहार बोर्ड हिंदी बुक 10 प्रश्न 7.
गुरु की कृष्ण से किस युक्ति की पहचान हो पाती है ?
उत्तर-
कवि कहते हैं कि ब्रह्म से साक्षात्कार करने हेतु लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, निंदा आदि से दूर होना आवश्यक है। ब्रह्म के सानिध्य प्राप्ति के लिए सांसारिक विषयों से रहित होना अत्यन्त जरूरी है। जो प्राणी माया, मोह, काम, क्रोध लोभ, हर्ष-शोक से रहित है उसमें ब्रह्म का अंश विद्यमान हो जाता है। वह ब्रह्म को प्राप्त कर लेता है। ब्रह्म प्राप्ति की यही युक्ति की पहचान गुरु कृपा से ही हो पाती है। गुरु बिना ब्रह्म को पाने की युक्ति का ज्ञान नहीं मिल सकता। अर्थात् ब्रह्म को पाने के लिए गुरु का कृपा पात्र होना परमावश्यक है।

गोधूलि भाग 1 Class 10 Pdf प्रश्न 8.
व्याख्या करें :
(क) राम नाम बिनु अरुझि मरै ।
(ख) कंचन माटी जाने ।
(ग) हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
(घ) नानक लीन भयो गोविंद सो, ज्यों पानी संग पानी।
उत्तर-
(क) प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक . के द्वारा लिखित “राम नाम बिनु निर्गुण जग जनमा” शीर्षक से उद्धृत है। गुरुनानक निर्गुण, निराकार ईश्वर के उपासक तथा हिंदी की निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख कवि हैं। यहाँ राम नाम की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।

प्रस्तुत व्याख्य पंक्ति में निर्गुणवादी विचारधारा के कवि गुरुनानक राम-नाम की गरिमा मानवीय जीवन में कितनी है इसका उजागर सच्चे हृदय से किये हैं। कवि कहते हैं कि राम-नाम का अध्ययन, संध्या वंदन तीर्थाटन रंगीन वस्त्र धारण यहाँ तक की जरा जूट बढ़ाकर इधर-उधर घूमना ये सभी भक्ति-भाव के बाह्याडम्बर है। इससे जीवन सार्थक कभी भी नहीं हो सकता है। राम-नाम की सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं तब तक मानवीय मूल चेतना का उजागर नहीं हो सकता है। राम-नाम के बिना बहुत-से सांसारिक कार्यों में उलझकर व्यक्ति जीवन लीला समाप्त कर लेता है।

(ख) प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के “जो नर दुःख में दुख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पद्यांश में निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए लोभ और मोह से दूर रहने की सलाह देते हैं।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कवि ब्रह्म को पाने के लिए सुख-दुःख से परे होना परमावश्यक बताते हैं। वे कहते हैं कि ब्रह्म को वही प्राप्त कर सकता है जो लोक मोह ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध से परे हो। जो व्यक्ति सोना को अर्थात् धन को मिट्टी के समान समझकर परब्रह्म की सच्चे हृदय से उपासना करता है वह ब्रह्ममय हो जाता है। जो प्राणि सांसारिक विषयों में आसक्ति नहीं रखता है। उस प्राणि में ब्रह्म निवास करता है।

(म) प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक हिंदी साहित्य के संत कवि गुरुनानक द्वारा रचित “जो नर दःख में दःख नहीं माने” शीर्षक से उद्धृत है। प्रस्तुत पंक्ति में संत गुरुनानक उपदेश देते हैं कि ब्रह्म के उपासक प्राणि को हर्ष-शोक, सुख-दुख, निंदा-प्रशंसा, मान-अपमान से परे होना चाहिए। इन संबके पृथक रहने वाले प्राणियों में ब्रह्म का निवास स्थान होता है।

प्रस्तुत पंक्ति में कवि कहते हैं ब्रह्म निर्गुण एवं निराकार है। वैराग्य भाव रखकर ही हम उसे पा सकते हैं। झूठी मान, बड़ाई या निंदा शिकायत की उलझन मनुष्य को ब्रह्म से दूर ले जाता है। ब्रह्म को पाने के लिए, सच्ची मुक्ति के लिए हर्ष-शोक, मान-अपमान से दूर रहकर, उदासीन रहते हुए ब्रह्म की उपासना करना चाहिए।

(घ) प्रस्तुत प हमार्य पाठ्य पुस्तक हिंदी साहित्य के महान संत कवि गुरुनानक के द्वारा रचित “जो नर दु:खं में द:ख नहीं माने” पाठ से उद्धृत है। इसमें कवि ब्रह्म की सत्ता की महत्ता को बताते हैं। मनुष्य जन्म का अंतिम लक्ष्य ब्रह्म को पाना बताते हुए कहते हैं कि सांसारिक व्यक्ति से दूर रहकर मनुष्य को ब्रह्ममय होने की साधना करनी चाहिए। गुरु कृपा से ईश्वर की प्राप्ति । संभव है।

प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं। इस मानवीय जीवन में ब्रह्म को . पानी की सच्ची युक्ति, यथार्थ उपाय करना आवश्यक है। पर ब्रह्म को पाना प्राणि का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। जिस प्रकार पानी के साथ पानी मिलकर एकसमान हो जाता है उसी प्रकार जीव जब ब्रह्म के सानिध्य में जाता है तब ब्रह्ममय हो जाता है। जीवात्मा एवं परमात्मा में जब मिलन होता है तब जीवात्मा भी परमात्मा बन जाता है। दोनों का भेद मिट जाता है। कवि कहते हैं कि यह जीव ब्रह्म का ही अंश है। जब हम विषयों की आसक्ति से दूर रहकर गुरु की प्रेरणा से ब्रह्म को पाने की साधना करते हैं तब ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और ऐसा होने से जीव ब्रह्ममय हो जाता है।

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solution प्रश्न 9.
आधुनिक जीवन में उपासना के प्रचलित रूपों को देखते हुए नानक के इन पदों . की क्या प्रासंगिकता है ? अपने शब्दों में विचार करें।
उत्तर-
आधुनिक जीवन में उपासना के विभिन्न स्वरूप दिखाई पड़ते हैं। ईश्वरीय उपासना में लोग तीर्थाटन करते हैं, जटा-बढ़ाकर, भस्म रमाकर साधु वेश धारण करते हैं। गंगा स्नान दान पुण्य करते हैं। मंदिर मस्जिद जाकर परमात्मा की पुकार करते हैं। साथ ही आज धर्म के नाम पर विभेद भी किया जाता है। धर्म को प्रतिष्ठा प्राप्ति के साधन मानकर धार्मिक बाह्याडम्बर अपनाया जा रहा है। बड़े-बड़े धार्मिक आयोजन किये जाते हैं जिसमें अत्यधिक धन का व्यय भी किया जाता है। फिर भी लोगों को सुख-शांति नहीं मिलती है। आज लोग भटकाव के पथ पर अग्रसर है। समयाभाव में ईश्वर के सानिध्य में जाने हेतु कठिनतम उपासना के मार्ग को अपनाने में लगे अभिरुचि नहीं रख रहे हैं। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में भटकाव आ गया है। हम कह सकते हैं कि नानक के पद में वर्णित राम-नाम की महिमा आधुनिक जीवन में सप्रासंगिक है। हरि-कीर्तन सरल मार्ग है जिसमें न अत्यधिक धन की आवश्यकता है नहीं कोई बाह्माडम्बर की। आज भगवत् नाम रूपी रस का पान किया जाये तो जीवन में उल्लास, शांति, परमानन्द, सुख, ईश्वरीय अनुभूति को प्राप्त किया जा सकता है। हरि रस पान से जीवन को धन्य बनाया जा सकता है। नानक के उपदेश को अपनाकर यथार्थ से युक्त होकर हम जीवन में ब्रह्म का साक्षात्कार आज भी कर सकते हैं।

भाषा की बात

Class 10 Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
पद में प्रयुक्त निम्नांकित शब्दों के मानक आधुनिक रूप लिखें –
बिरथे, बिखु, निहफलु, मटि, संधिआ, करम, गुरसबद, तीरथभगवनु, महीअल,
सरब, माटी, अस्तुति, नियारो, जुगति, पिछानी
उत्तर-
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा Bihar Board

Bihar Board 10th Hindi Book प्रश्न 2.
दोनों पदों में प्रयुक्त सर्वनामों को चिहित करें और उनके भेद बताएं।
उत्तर-
कहाँ – प्रश्नवाचक सर्वनाम
कोई – अनिश्चयवाचक सर्वनाम
तें – पुरूषवाचक सर्वनाम
यह – निश्चयवाचक सर्वनाम
सो – संबंधवाचक सर्वनाम

Bihar Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के वाक्य-प्रयोग करते हुए लिंग-निर्णय करें –
जम, मुक्ति, धोती, जल, भस्म, कंचन, जुमति, स्तुति
उत्तर-
जग – जग बड़ा है।
मुक्ति – उसे मुक्ति मिल गई।
धोती – धोती नई है। जल गंदा है।
भस्म – लग गया।
जुगति – उसकी जुगटी अनूठी है।
स्तुति – ईश्वर की स्तुति करनी चाहिए।

Class 10th Hindi Chapter 1 Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
निम्नलिखित विशेषणों का स्वतंत्रत वाक्य प्रयोग करें
व्यर्थ, निष्फल, नग्न, सर्व, न्यारा, सकल
उत्तर-
व्यर्थ – राम नाम के बिना जीवन व्यर्थ है।
निष्फल – प्रयोग निष्फल हो गया।
नग्न – वह नग्न बैठा है।
सर्व – सर्व नष्ट हो गया।
न्यारा – संसार न्यारा है।
सकल – आतंकवाद पर सकल विश्व एक हों।

काव्यांशों पर आधारित अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. राम नाम बिनु बिरथे जबह जनमा।
– बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलु मटि भ्रमना॥
पुस्तक पाठ व्याकरण बखारौं संधिआ करम निकाल करै।
बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरुझि मरै॥
ठंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवनु अति भ्रमनु करे।
समनाम बिनु सांति न आवै जपि हरिहरि नाम सुपारि घरै।
जटा मुकुट तन भसम लगायी वसन छोड़ि तन नगन भया।
जेते जी अजंत जल थल महोअल जत्र तत्र तू सरब जीआ॥
गुरु परसादि राखिले जन कोउ हरिरस नामक झोलि पीआ।

प्रश्न
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौन्दर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कवि- गुरुनानक
कविता- राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
(ख) प्रस्तुत कविता में संत कवि गुरुनानक बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ, तीर्थ स्नान और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम नाम की भक्ति करने पर बल दिया है।
(ग) नानक कहते हैं कि राम नाम के बिना इस संसार में जन्म लेना व्यर्थ है। बिना राम की भक्ति के भोजन, बोली, भ्रमण बुद्धि ये सभी विष बन जाते हैं, कार्य भी निष्फल हो जाते हैं। पुस्तक पढ़ना, शब्द-ज्ञान के लिये व्याकरण का अध्ययन करना यहाँ तक कि संध्या उपासना करना ये सभी राम की भक्ति के बिना निरर्थक होते हैं।

कवि गुरु की महिमा का बखान करते हुये कहते हैं कि बिना गुरु की कृपा के मुक्ति नहीं मिल सकती है। साथ ही राम नाम की भक्ति के बिना इंस सांसारिक मोह-माया से मानव उलझकर मर जाता है। दण्ड, कमंडल, सिखा बजाकर, जनेऊ धारण कर, रंगीन धोती पहनकर तथा इधर-उधर तीर्थों में भटककर मनुष्य अपना समय व्यर्थ बर्बाद करता है। ये सभी तो बाह्याडम्बर हैं। इन आडम्बरों से ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती है, राम नाम के बिना शांति नहीं मिल सकती है। अतः राम-नाम जपने से ही मनुष्य इस संसार-रूपी भव सागर से पार उतरकर मोक्ष प्राप्ति कर सकता है। पुनः नानक कहते हैं कि हे मानव जटारूपी मुकुट पहन कर शरीर में भस्म लगाकर वस्त्रहीन होकर तथा नंगे बदन होकर भ्रमण करने से ईश्वरीय भक्ति प्राप्त नहीं किया जा सकता है। नानक कहते हैं कि जिस प्राणी पर गुरु की कृपा होती है चाहे वह जल में रहता हो, धरती पर रहता हो या सभी जगह रहता हो, उसी प्राणी को ईश्वर की भक्ति रूपी रस. पीने के लिये मिलता है अर्थात् ईश्वर भक्ति की अलौकिक आनंद की अनुभूति उसी प्राणी को प्राप्त होती है।

(घ) इस कविता में निर्गुणवादी विचारधारा प्रकट हुयी है। इसमें कवि बाहरी वेश-भूषा, तीर्थाटन कर्मकाण्ड के विरोध करते हुये सच्चे हृदय से भक्ति-भावना पर प्रकाश डालते हैं। कवि का मानना है कि परमात्मा की भक्ति बाह्य दिखाने से नहीं हो सकती है। परमात्मा की भक्ति रूपी सरस का अलौकिक पान करने के लिये सच्चे हृदय और ज्ञान की आवश्यकता है।
(A) (i) यहाँ निर्गुण निराकार ईश्वर की सत्ता को स्वीकार किया गया है।
(ii) भाषा की दृष्टि से पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग लाक्षणिक और व्यञ्जना रूप में किया गया है।
(iii) भाव के अनुसार भाषा का प्रयोग अनायास ही भक्ति भावना की ओर अग्रसर होना पड़ता है।
(iv) कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का भी प्रयोग प्रशंसनीय है। भाषा में सरलता और सुबोधता के कारण प्रसाद गुण की अपेक्षा है।
(v) अलंकार की दृष्टि से अनुप्रास उपमा और दृष्टांत मनोभावन है।

2. जो नर दुख में दुख नहिं माने।
सुख सनेह अरु भय नहिं जाके, कंचन माटी जाने।
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
आसा मनसा सकल तयागि कै जय तें रहै निरासा।
काम क्रोध जेहि परसे नाहिन तेहिं घट ब्रह्म निकासा
गुरु किरपा जेहि नर पै कीन्हीं तिन्ह यह जुगति पिलानी
नानक लीन भयो गोबिंद सो ज्यों पानी सँग पानी

प्रश्न
(क) कविता और कवि का नाम लिखें।
(ख) पद का प्रसंग लिखें।
(ग) पद का सरलार्थ लिखें।
(घ) भाव सौंदर्य स्पष्ट करें।
(ङ) काव्य सौंदर्य स्पष्ट करें।
उत्तर-
(क) कबि-गुरुनानका .
– कविता-जो नर दुख में दुख नहीं माने।
(ख) निर्गण निराकार ईश्वर के उपासक गरुनानक ने प्रस्तुत कविता में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया है। संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है।
(ग) प्रस्तुत कविता में ईश्वर की निर्गुणवादी सत्ता को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि जो मनुष्य दुःख को दुःख नहीं समझता है अर्थात् दुःखमय जीवन में भी समान रूप.में रहता है उसी का जीवन सार्थक होता है। जिसके जीवन में सुख, प्यार, भय नहीं आता है अर्थात् इस परिस्थिति में भी तटस्थ रहकर मानसिक दुर्गुणों को दूर करता है, लोभ से रहित सोने को भी माटी के समान समझता है वही प्रभु की कृपा प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य न किसी की निंदा करता है, न किसी की स्तुति करता है लोभ, मोह, अभिमान से दूर रहता है, न सुख में प्रसन्नता जाहिर करता है और . न संकट में शोक उपस्थित करता है तथा मान अपमान से रहित होता है वही ईश्वर भक्ति के सुख को प्राप्त कर सकता है। जो मनुष्य आशा निराशा, बढ़ी-चढ़ी कामनाओं से दूर रहता है, जिस काम और क्रोध विचलित नहीं करता है उसी के हृदय में ब्रह्म का निवास होता है। गुरुनानक कहते हैं कि जिस व्यक्ति पर गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर को पहचान सकता है। यहाँ तक कि ईश्वर के उपासक गुरुनानक भी अपने गुरु के कृपा से ही गोविंद की भक्ति में उसी तरह मिल गये हैं जिस तरह पानी के संग पानी मिल जाता है।

(घ) भाव सौंदर्य-प्रस्तुत कविता का भाव यह है कि जो मनुष्य सुख-दुख में एक समान रहता है, आशा-निराशा से दूर रहता है। निंदा प्रशंसा में भी समान स्थिति में रहता है वही व्यक्ति गुरु की कृपा होती है वही व्यक्ति ईश्वर का आनंद लेता है क्योंकि गुरु कृपा के बिना ईश्वर की पहचान नहीं हो सकता है।

(ङ) काव्य सौंदर्य-
(i) यहाँ भाव के अनुसार ही भाषा का प्रयोग है।
(ii) ईश्वर भक्ति और गुरु भक्ति का सामंजस्य स्थापित हुआ है।
(ii) पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग सफल कवि का प्रतीक है।
(iv) भाषा में संगीतमयता, सरलता और मोहकता आ गई है।

विस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. सही विकल्प चुनें

प्रश्न 1.
राय नाम बिनु बिरथे जगि जनश्या’ किस कवि की रचना है ?
(क) गुरु नानक
(ख) गुरु अर्जुनदेव
(ग) रसखान
(घ) प्रेमधन
उत्तर-
(क) गुरु नानक

प्रश्न 2.
गुरु नानक की रचना है
(क) अति सूधो सलेट को मारता है
(ख) मो अंसुवा निहि लै बरसौ
(ग) जो नर दुख में दुख नहिं मानें
(घ) स्वदेश
उत्तर-
(ग) जो नर दुख में दुख नहिं मानें

प्रश्न 3.
गुरु नानक के अनुसार किसके बिना जन्म व्यर्थ है ?
(क) सम्पत्ति
(ख) इष्ट मित्र
(ग) पत्नी
(घ) राम नाम
उत्तर-
(घ) राम नाम

प्रश्न 4.
ब्रह्म का निवास कहाँ होता है ?
(क) समुद्र में
(ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में
(ग) स्वर्ग में
(घ) आकाश में
उत्तर-
(ख) काम-क्रोधहीन व्यक्ति में

प्रश्न 5.
गुरु कृपा की महत्ता का वर्णन किस कवि ने किया है ?
(क) घनानंद
(ख) रसखान
(ग) गुरु नानक
(घ) सुमित्रानंदन पंत
उत्तर-
(ग) गुरु नानक

प्रश्न 6.
गुरु नानक किस भक्ति धारा के कवि हैं ?
(क) सगुण भक्ति धारा ।
(ख) निर्गुण भक्ति धारा
(ग) सिख भक्ति धारा
(घ) किसी भी धारा के नहीं
उत्तर-
(ख) निर्गुण भक्ति धारा

II. रिक्त स्थानों की मूर्ति करें

प्रश्न 1.
गुरु नानक का जन्म सन् …………. में हुआ था।
उत्तर-
1469

प्रश्न 2.
…….. गुरु नानक के पिता थे।
उत्तर-
कालूचंद खत्री

प्रश्न 3.
गुरु नानक ने ………….की स्थापना की।
उत्तर-
सिख पंथ

प्रश्न 4.
गुरु नानक ने पंजाबी के साथ …. में कविताएं की।
उत्तर-
हिन्दी

प्रश्न 5.
सामाजिक विद्रोह गुरु नानक की कविताओं का …….नहीं है।
उत्तर-
विषय

प्रश्न 6.
गुरु नानक की कविताओं में …………. की महत्ता निर्विवाद है।
उत्तर-
सहज प्रेम

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु नानक का जन्म कहाँ हुआ था? .
उत्तर-
गुरु नानक का जन्म तलवंडी नामक गाँव जिला-लाहौर में हुआ था जो फिलहाल पाकिस्तान में है। उस स्थान को अब नानकाना साहब कहते हैं।

प्रश्न 2.
गुरु नानक किस युग के कवि थे?
उत्तर-
गुरु नानक मध्य युग के संत कवि थे।

प्रश्न 3.
‘गुरु ग्रंथ साहिब’ किनका पवित्र ग्रंथ है ?
उत्तर-
गुरु ग्रंथ साहिब’ सिखों का पवित्र ग्रंथ है। इसमें गुरु नानक एवं कुछ अन्य संतों की । रचनाएँ संकलित हैं।

प्रश्न 4.
कवि किससे बिना जगत में यह जन्म व्यर्थ मानता है?
उत्तर-
कवि राम नाम के बिना जगत् में यह जन्म व्यर्थ मानता है।

प्रश्न 5.
वाणी कब विष के समान हो जाती है ?
उत्तर-
जिस वाणी से राम नाम का उच्चारण नहीं होता है अर्थात् भगवत् नाम के बिना वाणी विष के समान हो जाती है।

व्याख्या खण्ड

प्रश्न 1.
राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा।
बिखु खावै बिखु बोलै बिनु नावै निहफलुमटि भ्रमना।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित काव्य-पाठ ‘राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों द्वारा कवि मनुष्य जाति को संदेश देते हुये कहता है कि इस संसार में राम के नाम के बिना जन्म व्यर्थ है, इस जन्म का सार्थक मोल नहीं। मनुष्य का लक्षण बन गया है—विष पान करना, विष भाषण करना और बिना नाम के बेकार बनकर मतिभ्रम की तरह जिधर-तिधर भटकना इन पंक्तियों में राम नाम की महिमा का गुणगान है।

प्रश्न 2.
पुस्तक पाठ व्याकरण बरवाण संधिआकरम निकाल कर,
बिनु गुरसबद मुकति कहा प्राणी राम नाम बिनु अरूझि.भ.
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा” काव्य पाठ से ली गयी हैं, इन काव्य-पंक्तियों का प्रसंग मानव जीवन से जुड़ा हुआ है। कवि कहता है कि व्याकरण की किताब संधि-कर्म की जिस प्रकार व्याख्या करती है ठीक वैसा ही गुरु का काम है, राम नाम की महिमा का ज्ञान बिना गुरु के असंभव है। गुरु द्वारा ही शब्द-ज्ञान मिलता है। बिना ज्ञान के मुक्ति असंभव है, बिना ज्ञान के राम नाम की महिमा से हम दूर रह जाते हैं, अनभिज्ञ रह जाते हैं, इस प्रकार व्याकरण और गुरु दोनों का कार्य-व्यापार समान है, जिस प्रकार व्याकरण संधि-कर्म की व्याख्या कर हमें पाठ ज्ञान कराता है, ठीक उसी प्रकार सिद्ध गुरु द्वारा ही राम – नाम के महत्व का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। इस मायावी संसार से बिना गुरु शब्द के मुक्ति असंभव है।

प्रश्न 3.
डंड कमंडल सिखा सूत धोती तीरथ गवन अति भ्रमनु करें।
राम नाम बिनु सांति न आवै जपि हरि हरि नाम सु पारित परै।।
व्याख्या-
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के राम नाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ नामक काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग मानव जीवन में व्याप्त पाखंड है।

कवि कहता है कि मनुष्य बाहरी आडम्बरों के फेरे में पड़कर भटक रहा है। उसे सत्य का ज्ञान ही नहीं। वह डंड, कमंडल, शिखा, सूत, धोती, तीरथ आदि के साथ सारा जीवन भरमता रहता है। यानी भटकता रहता है। वह सत्य मार्ग से दूर चला जाता है।

राम नाम के बिना शांति कैसे मिले ? बिना हरिनाम के स्मरण के इस भवसागर से मुक्ति । मिल सकती है क्या? यहाँ सांसारिक आडंबरों के बीच जी रहे मानव की मूर्खता के विषय में कवि ध्यान दिलाता है। वह बताता है कि इस मायावी संसार से मुक्ति तभी मिलेगी जब हम सही रूप में, सच्चे मन से हरि स्मरण करेंगे। यहाँ गूढ भाव यह है कि मानव जीवन सत्य पर आधारित होना चाहिए। मनुष्य को पाखंड से दूर रहकर निर्मल मन और भाव से प्रभु-पूजा करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
जटा मुकुट तन भसम लगाई, वसन छोड़ि तन नगन भया।
जेते जीअ जंत जल-थल महीअल जत्र तत्र तू सरब जीआ
गुरु परस्पदी राखिले जन कोउ हरिरस नानक झोलि पीआ।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के रामनाम बिनु बिरथे जगि जनमा’ काव्य पाठ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों का संबंध मनुष्य के जीवन में व्याप्त अनेक तरह की विसंगतियों से है।

कवि कहता है कि मनुष्य जटा बढ़ा लेता है तन में राख पोत लेता है और मुकुट धारण कर लेता है। सारे वस्त्रों का परित्याग कर आधुनिक युग में नग्न रहने लगा है। जिस प्रकार इस जल-थल पर जंतु जीते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य भी सर्वत्र जीता है, विचरण करता है। लेकिन अंत में गुरु नानक जी कहते हैं कि ऐ मनुष्यों-गुरु का प्रसाद-ग्रहण कर लो। गुरु नानक ने तो हरि रस की झोलि यानी रस, शर्बत पी ही लिया है।

इन पंक्तियों में कवि के कहने का भाव यह है कि बिना ईश्वर के साथ लगातार संबंध बनाये, आस्था रखे, इस जीवन का कल्याण नहीं, मोक्ष की प्राप्ति असंभव है। आडंबर में जीने पर मुक्ति पाना असंभव है। आडंबर से दूर रहकर निर्मल भाव से ईश्वर की साधना कर ही हम मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
जो नर दुख में दुख नहिं माने।
सुख सनेह अरू भय नहिं जाके, कंचन माटी जान।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मान” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मानव-जीवन में आए दुख से है।
कवि कहता है कि वही मनुष्य सही मनुष्य है जो अपने जीवन में आए दुःख में नहीं घबराए, उसे दुःख नहीं माने बल्कि धैर्य के साथ उसका सामना करे। वही मनुष्य सच्चा मानव है जो निर्लिप्त भाव से जीवन जीये। सुख, स्नेह और भय तीनों स्थितियों में जो विकाररहित और निर्भय होकर रहे, जो सोना को भी माटी समझे, वही सच्चा इन्सान है। वहीं ईश्वर के निकट है। वह मायावी जगत से दूर है। ऐसे मनुष्य से ही इस धरा का कल्याण संभव है। इन पंक्तियों में गुरु नानक ने भौतिक दुनिया की मोह-माया से मुक्त होकर जीनेवाले नर की प्रशंसा की है।

प्रश्न 6.
नहिं निंदा नहिं अस्तुति जाके, लोभ मोह अभिमाना। :
हरष सोक तें रहै नियारो, नाहि मान अपमाना।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के. “जो नर दुख में दुख नहिं मानै” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के सद्विचारों से जुड़ा हुआ है।
कवि कहता है कि जो मनुष्य निंदा और स्तुति के बीच समभाव से जीता है, जो लोभ, मोह, अभिमान से मुक्त है। हर्ष और शोक के निकट रहकर भी जो अशोक के रूप में जीए। जिसे मान-अपमान की चिंता नहीं हो, वह सच्चा मानव है, महामानव है। इन काव्य पंक्तियों में गुरु नानक ने महामानव के लक्षणों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है। उन्होंने इस मायावी लोक में निर्लिप्त भाव से जीनेवाले कर्मवीरों की प्रशंसा की है। उनके गुणों को बताया है।

प्रश्न 7.
आसा मनसा सकल त्यागिकै जग तें रहै निरास
काम क्रोध जेहि परसे चाहिन हि घट ब्रा निवासा।
व्याख्या-
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मानै” काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग मनुष्य के सात्विक जीवन से जुड़ा हुआ है।

कवि कहता है कि वही मनुष्य महामानव है, जो मानसिक विकारों से दूर रहे, जिसने आकांक्षाओं पर विजय प्राप्त कर लिया हो, जिसने सन्मार्ग ग्रहण कर लिया है, इस जग से जिसे कोई मोह-माया नहीं, जो आशा और निराशा के बीच महाप्रज्ञ के रूप में जीये वही लोकोत्तर महामानव है। काम-क्रोध जिसे स्पर्श नहीं कर सका हो उसी के घर में, कंठ में ब्रह्म निवास करता है। कहने का गूढ़ भाव यह है कि सांसारिकता से जो मुक्त होकर जीवन जीता है वही ब्रह्म के निकट है, ईश्वर के निकट है, उसी का जीवन सार्थक है।

प्रश्न 8.
युरु किरपा जेति नर मै कोही मिन्ह यह ति पिलानी
नानक लीन भयो गोविन्द सो न्यों पानि सवानी।।
व्याखया-
प्रस्तुत काव्य पक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक के “जो नर दुख में दुख नहिं मान” नामक काव्य-पाठ से ली गयी हैं।
इन पंक्तियों का प्रसंग गुरु-कृपा के महत्त्व से जुड़ा हुआ है।
कवि कहता है कि जिस मनुष्य पर गुरु-कृपा हो जाती है, उन्हें जुगाति की क्या जरूरत है। उसे किसी प्रकार के उपाय करने, यत्न करने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

गुरु नानक परं गुरु की कृपा का ही प्रभाव है कि वे गोविन्द यानी ईश्वर का साक्षात्कार प्राप्त कर सके। जिस प्रकार पानी में पानी को मिलाने पर कोई विकार नहीं दिखता बल्कि दोनों एकात्म रूप में दिखते हैं। दोनों पानी एक समान ही दिखते हैं ठीक उसी प्रकार आत्मा-परमात्मा का भी मिलन होता है। दोनों में रूप या रंग का अंतर नहीं होता है। दोनों मिलकर एकाकार, एक रंग, एक रूप को प्राप्त कर लेते हैं।
इन काव्य पंक्तियों में गुरु महिमा, ईश्वर भक्ति और आत्मा-परमात्मा के रूपाकार पर सूक्ष्म प्रकाश डाला गया है।

राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै कवि परिचय

गुरु नानक का जन्म 1469 ई० में तलबंडी ग्राम, जिला लाहौर में हुआ था । इनका जन्म स्थान ‘नानकाना साहब’ कहलाता है जो अब पाकिस्तान में है । इनके पिता का नाम कालूचंद खत्री, माँ का नाम तृप्ता और पत्नी का नाम सुलक्षणी था। इनके पिता ने इन्हें व्यवसाय में लगाने का बहुत उद्यम किया, किन्तु इनका मन भक्ति की ओर अधिकाधिक झुकता गया । इन्होंने हिन्दू-मुसलमान दोनों की समान धार्मिक उपासना पर बल दिया । वर्णाश्रम व्यवस्था और कर्मकांड का विरोध करके निर्गुण ब्रह्म की भक्ति का प्रचार किया । गुरुनानक ने व्यापक देशाटन किया और मक्का-मदीना तक की यात्रा की । मुगल सम्राट बाबर से भी इनकी भेंट हुई थी । गुरु नानक ने ‘सिख धर्म का प्रवर्तन किया । गुरुनानक ने पंजाबी के साथ हिंदी में भी कविताएँ की । इनकी – हिंदी में ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों का मेल है। इनके भक्ति और विनय के पद बहुत मार्मिक हैं । इनके दोहों में जीवन के अनुभव उसी प्रकार गुंथे हैं जैसे कबीर की रचनाओं में, लेकिन इन्होंने उलटबाँसी शैली नहीं अपनाई । इनके उपदेशों के अंतर्गत गुरु की महत्ता, संसार की क्षणभंगुरता, ब्रह्म की सर्वशक्तिमत्ता, नाम जप की महिमा, ईश्वर की सर्वव्यापकता आदि बातें मिलती हैं । इनकी रचनाओं का संग्रह सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने सन् 1604 ई० में किया जो ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । गुरु नानक की रचनाएँ हैं – “जपुजी’, ‘आसादीवार’, ‘रहिरास’ और सोहिला । कहते हैं कि सन् 1539. में इन्होंने ‘वाह गुरु’ कहते हुए अपने प्राण त्याग दिए ।

निर्गुण निराकार ईश्वर के उपासक गुरुनानक हिंदी की निर्गुण भक्तिधारा के एक प्रमुख कवि हैं। पंजाबी मिश्रित ब्रजभाषा में रचित इनके पद सरल सच्चे हृदय की भक्तिभावना में डूबे उद्गार हैं । इन पदों में कबीर की तरह प्रखर सामाजिक विद्रोह-भावना भले ही न दिखाई पड़ती हो, किन्तु धर्म-उपासना के कर्मकांडमूलक सांप्रदायिक स्वरूप की आलोचना तथा सामाजिक भेदभाव के स्थान पर प्रेम के आधार पर सहज सद्भाव की प्रतिष्ठा दिखलाई पड़ती है । नानक के पद वास्तव में प्रेम एवं भक्ति के प्रभावशाली मधुर गीत हैं । यहाँ नानक के ऐसे दो महत्त्वपूर्ण पद प्रस्तुत हैं । प्रथम पद बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकांड के स्थान पर सरल सच्चे हृदय से राम-नाम के कीर्तन पर बल देता है, क्योंकि नाम-कीर्तन ही सच्ची स्थायी शांति देकर व्यक्ति को इस दुखमय जीवन के पार पहुंचा पाता है। द्वितीय पद में सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते
हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अंत:करण की निर्मलता हासिल करने पर जोर दिया गया . है । संत कवि गुरु की कृपा प्राप्त कर इस पद में गोविंद से एकाकार होने की प्रेरणा देता है ।

राम बिनु बिरथे जगि जनमा, जो नर दुख में दुख नहिं मानै Summary in Hindi

पाठ का अर्थ

निर्गुण निराकार ब्रह्म के उपासक गुरूनानक निर्गुणभक्ति धारा के प्रखर कवि हैं। पंजाबी समिश्रित ब्रजभाषा इनकी रचना का मूलाधार है। कबीर की तरह इनकी रचनाएँ भले ही न हो फिर भी धर्म-उपासना, कर्मकाण्ड आदि के स्थान पर प्रेम की पीर की अनुभूति स्पष्ट झलकती है।

पहले पद में कवि ने बाहरी वेश-भूषा, पूजा-पाठ और कर्मकाण्ड के स्थान पर सरल हृदय से राम नाम के कीर्तन पर बल दिया है। वस्तुतः कवि दशरथ पुत्र राम की स्तुति न कर परम ब्रह्म उस सत्य की उपासना करने पर बल दिया है जो अगोचर और निराकम है। नाम कीर्तन ही. इस भवसागर से मुक्ति दिलाता है। जिसने जन्म लेकर राम की कीर्तन नहीं किया उसका जीवन निरर्थक है। उस खान-पान, रहन-सहन आदि सभी विष से परिपूर्ण होता है। संध्या, जप-पाठ आदि करने से मुक्ति नहीं मिलती है। जटा बढ़ाकर भस्म लगाने, तीर्थाटन करने से आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति नहीं होती है। गुरू कृपा और राम-नाम ही जीवन की सार्थकता है।

दूसरे पद में कवि ने सुख-दुख में एक समान उदासीन रहते हुए मानसिक दुर्गुणों से ऊपर उठकर अतः करण की निर्भरता हासिल करने पर जोर दिया है। ईर्ष्या, लोभ, मोह आदि से परिपूर्ण मानव के पास ईश्वर फटकता तक नहीं है। जिस प्रकार पानी-पानी के साथ मिलकर अपना स्वरूप उसी में अर्पण कर देता है उसी प्रकार गुरूं की कृपाकर मनुष्य ईश्वर रूपी स्वरूप से प्राप्त कर लेता है।

शब्दार्थ

बिर : व्यर्थ ही
जगि : संसार में
बिखु : विष
नावै : नाम
निहफतु : निष्फल
मटि : मति, बुद्धि
संधिआ : संध्या, संध्याकालीन उपासना
गुरसबद : गुरु का उपदेश
अरुझि : उलझकर
डंड : दंड (साधु लोग जिसे वैराग्य के चिह्न के रूप में धारण करते हैं)
सिखा : चोटी
सुत : जनेऊ
जीअ : जीव
जंत : जंतु, प्राणी ।
महीअल : महीतल, धरती पर
कंचन : सोना
अस्तुति : स्तुति, प्रार्थना
नियारो : न्यारा, अलग, पृथक
परसे : स्पर्श
घट : घड़ा (प्रतीकार्थ – देह, शरीर)
जुगति : युक्ति, उपाय
पिछानी : पहचानी