Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

Bihar Board Class 6 Maths पूर्ण संख्याएँ Ex 2.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के ठीक बाद वाली संख्या बताए।

  1. 99999
  2. 800
  3. 979
  4. 1000

उत्तर

  1. 10000
  2. 801
  3. 980
  4. 1001

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के ठीक पहले वाली संख्या बताइए।

  1. 100000
  2. 100
  3. 8757
  4. 99

उत्तर

  1. 99999
  2. 99
  3. 8756
  4. 98

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 3.
सबसे छोटी पूर्ण संख्या कौन-सी है।
उत्तर
सबसे छोटी संख्या 0 है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित की परवर्ती संख्या (उत्तरवर्ती संख्या) बताइए।
(i) 54896
उत्तर
54896 + 1 = 54897

(ii) 8765
उत्तर
8765 + 1 = 8766

(iii) 543
उत्तर
543 + 1 = 544

(iv) 99
उत्तर
99 + 1 = 100

प्रश्न 5.
निम्नलिखित की पूर्ववर्ती संख्या (अनुवर्ती संख्या) बताइए।
(i) 876542
उत्तर
876542 – 1 = 876541

(ii) 99
उत्तर
99 – 1 = 98

(iii) 101
उत्तर
101 – 1 = 100

(iv) 4567
उत्तर
4567 – 1 = 4566

(v) 100000
उत्तर
1000000 – 1 = 99999

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 6.
50 से 80 के बीच कितनी पूर्ण संख्याएँ है, लिखिए।
उत्तर
50 से 80 के बीच पूर्ण संख्याएँ (80 – 50) – 1 = 29

प्रश्न 7.
संख्या रेखा के आधार पर बताइए निम्नलिखित युग्म संख्या में कौन बड़ा है।
(a) 503, 510
उत्तर
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Ex 2.1 Q7
संख्या रेखा में 503 के दाई और 7 कदम बढ़ने पर 510 आता है। इस प्रकार 510 बड़ा है।

(b) 1020, 1023
उत्तर
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Ex 2.1 Q7.1
संख्या रेखा में 1020 के दाई और 3 कदम बढ़ने पर 1023 आता है। इस प्रकार 1023 बड़ा है।

(c) 4384, 5987
उत्तर
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Ex 2.1 Q7.2
संख्या रेखा में 4384 के दाई और 1603 कदम बढ़ने पर 5987 आता है। इस प्रकार 5987 बड़ा है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

(d) 40, 70
उत्तर
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Ex 2.1 Q7.3
संख्या रखा में 40 के दाई और 30 कदम बढ़ने पर 70 आता है। इस प्रकार 70 बड़ा है।

Bihar Board Class 6 Maths पूर्ण संख्याएँ Ex 2.2

प्रश्न 1.
उपयुक्त क्रम लगाकर योग ज्ञात कीजिए-
(a) 585 + 956 + 15
उत्तर
585 + 956 + 15
= 585 + 15 + 956
= 600 + 956
= 1556

(b) 1675 + 946 + 325
उत्तर
1675 + 946 + 325
= (1675 + 325) + 946
= 2000 + 946
= 2946

(c) 65 + 75 + 35
उत्तर
65 + 75 + 35
= (65 + 35) + 75
= 100 + 75
= 175

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 2.
उपयुक्त क्रम (नियम) लगाकर गुणनफल ज्ञात करें-
(a) 4 × 1225 × 25
हल :
4 × 1225 × 25
= (4 × 25) × 158
= 100 × 1225
= 122500

(b) 4 × 158 × 125
हल :
4 × 158 × 125
= 500 × 158
= 79000

(c) 4.35 × 25
हल :
4 × 85 × 25
= 4 × 25 × 85
= 100 × 85
= 8500

(d) 8 × 29 × 125
हल :
8 × 20 × 125
= (8 × 125) × 29
= 1000 × 29
= 29000

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित में प्रत्येक का मान वितरण नियम द्वारा ज्ञात करें।
(a) 185 × 5 + 185 × 25
हल :
185 × 5 + 185 × 25
= 185 (5 + 25)
= 185 × 30
= 5550

(b) 4 × 18 + 4 × 12
हल:
4 × 18 + 4 × 12
= 4 (18 + 12)
= 4 × 30
= 120

(c) 54279 × 92 + 8 × 54279
हल:
54279 × 92 + 8 × 54279
= 54279 × (92 + 8)
= 54279 × 100
= 5427900

(d) 12 × 8 + 12 × 2
हल :
12 × 8 + 12 × 2
= 12 (8 + 2)
= 12 × 10
= 120

प्रश्न 4.
उपयुक्त गुणों का प्रयोग करके गुणनफल ज्ञात करें।
(a) 585 × 806
हल :
585 × 806
= 585 × (800 + 6)
= 585 × 800 + 585 × 6
= 468000 + 3510
= 3471510

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

(b) 2008 × 185
हल :
2008 × 185
= (2000 + 8) × (200 – 15)
= 2000 × 200 – 2000 × 15 + 8 × 200 – 8 × 15
= 340000 – 30000 + 1600 – 120
= (400000 + 1600) – 30000 – 120
= 401600 – 30120
= 371480

(c) 854 × 102
हल :
854 × (100 + 2)
= 854 × 100 + 854 × 2
= 85400 + 1708
= 87108

(d) 258 × 1008
हल :
258 × 1008
= 258 × (1000 + 8)
= 258000 + 258 × 8
= 258000 + 2064
= 260064

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 5.
मिलान कीजिए-
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ Ex 2.2 Q5
उत्तर
(i) 2 + 8 = 8 + 2 → जोड़ की क्रमविनिमेयता
(ii) 8 × 90 = 90 × 8 → गुणन की क्रमविनिमेयता
(iii) 885 × 145 = 885 × (100 + 40 + 5) → योग पर गुणन का वितरण नियम
(iv) 5 × (4 × 28) = (5 × 4) × 28 → गुणा का साहचर्य नियम

प्रश्न 6.
कोई दूधवाला एक होटल को सुबह 45 लीटर दूध देता है और शाम को 55 लीटर दूध देता है । यदि दूध का मूल्य 15 रु० प्रति लीटर है, तो दूधवाले को प्रतिदिन कितनी धनराशि प्राप्त होगी?
हल :
एक होटल को सुबह दूध 45 लीटर देता है
तथा वही होटल उसी दिन शाम को दूध 55 लीटर देता है
तब, एक दिन में होटल को दिया गया दूध (45 + 55) लीटर होगा।
अब 1 लीटर दूध का मूल्य 15 रु० है।
तब (45 + 55) लीटर दूध का मूल्य 15 × (45 + 55) होगा
= 15 × (100)
= 1500 रु०
अतः दूधवाले को प्रतिदिन 1500 रु० की धनराशि प्राप्त होगा।

Bihar Board Class 6 Maths पूर्ण संख्याएँ Ex 2.3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में जोड़ का क्रम विनिमेय नियम किसमें है?
(i) 5 × 8 = 8 × 5
(ii) (2 × 3) × 5 = 2 × (3 × 5)
(iii) (2 + 8) + 10 = (2 + 8) + 10
(iv) 15 + 8 = 8 + 15
उत्तर
(iv) 15 + 8 = 8 + 15 में क्रम विनिमेय नियम है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के सामने उपयुक्त नियम लिखें।
(i) 8 + 32 = 32 + 8
उत्तर
जोड़ का क्रम विनिमेय नियम

(ii) (2 + 12) + 15 = 2 + (12 + 15)
उत्तर
योग का साहचर्य नियम

(iii) 8 × (5 + 4) = 8 × 5 + 8 × 4
उत्तर
योग का गुणन का वितरण नियम

(iv) 5 × 50 = 50 × 5
उत्तर
गुणा का क्रम विनिमय नियम

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसमें शून्य निरूपित नहीं होगा?
(i) 1 + 0
(ii) 0 × 0
(iii) \(\frac{0}{2}\)
(iv) \(\frac{10-10}{2}\)
उत्तर
(ii) 0 × 0

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 4.
यदि दो पूर्ण संख्याओं का गुणनफल शून्य है तो क्या हम कह सकते हैं कि इसमें से एक या दोनों ही शून्य होने चाहिए? उदहारण देकर अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर
इसमें एक अथवा दोनों का शून्य होना आवश्यक है।
1 × 0 = 0
0 × 0 = 0
3 × 0 = 0

प्रश्न 5.
यदि दो पूर्ण संख्याओं का गुणनफल 1 है तो क्या हम कह सकते हैं कि इसमें से एक या दोनों ही 1 के बराबर होनी चाहिए? उदाहरण देकर अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर
इसमें दोनों ही अंकों का 1 होना आवश्यक है।
उदाहरण- 1 × 1 = 1

प्रश्न 6.
वितरण विधि से ज्ञात कीजिए।
(i) 638 × 101
हल :
638 × (100 + 1)
= 63800 + 638
= 64438

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

(ii) 4375 × 1001
हल :
4375 × (1000 + 1)
= 4375000 + 4375
= 4379375

(iii) 734 × 25
हल :
734 × (20 + 5)
= 14680 + 3670
= 18350

(iv) 3175 × 125
हल :
3175 × (100 + 25)
= 317500 + 79375
= 396875

(v) 608 × 35
हल :
608 × (30 + 5)
= 18240 + 3040
= 21280

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रतिरूपों को समझें और आगे बढ़ाएँ-
1 × 8 + 1 = 9
12 × 8 + 2 = 98
123 × 8 + 3 = 987
123 × 8 + 3 = 987
1234 × 8 + 4 = 9876
_____ × 8 + _____ = 98765
_____ × 8 + _____ = 987654
_____ × 8 + _____ = 9876543
हल :
1 × 8 + 1 = 9
12 × 8 + 2 = 98
123 × 8 + 3 = 987
123 × 8 + 3 = 987
1234 × 8 + 4 = 9876
12345 × 8 + 5 = 98765
123456 × 8 + 6 = 987654
1234567 × 8 + 7 = 9876543

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

Bihar Board Class 6 Hindi डॉ. भीमराव अम्बेदकर Text Book Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
डॉ. अम्बेडकर के योगदानों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
डा. अम्बेडकर का जीवन देश और समाज के लिये समर्पित था। उन्होंने देश के लिए कुछ अमूल्य सेवायें दी जैसे –

  1. अछूतों को समानता का अधिकार दिलाया।
  2. राष्ट्र की एकता के लिये संविधान में आवश्यक व्यवस्था करना।
  3. स्वतन्त्र भारत के संविधान के निर्माण के लिये अपनी सेवायें देना।
  4. धर्म, आंति, वर्ग आदि के कारण उत्पन्न भेद-भाव को जड़ से मिटा देने का संकल्प तथा प्रयास करना।

प्रश्न 2.
डा. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म क्यों स्वीकार कर लिया?
उत्तर:
डा. अम्बेडकर धर्म को मनुष्य के लिये आवश्यक मानते थे। उनका संघर्ष उन बुराईयों से था जिसमें धर्म के कारण मनुष्यों के बीच भेद-भाव पैदा करते थे। उनके अनुसार बौद्धधर्म समानता के सिद्धान्त पर आध रित है। इसीलिये उस समानता का सम्मान करते हुये डा. अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

प्रश्न 3.
डा. अम्बेडकर ने बड़ौदा महाराज की नौकरी क्यों छोड़ दी?
उत्तर:
डा. अम्बेडकर ने बड़ौदा महाराज की सेवा काल में अनुभव किया कि यहाँ भी जातिगत भेद-भाव का साम्राज्य है। कट्टरपंथी समुदाय के लोग उनके प्रति सहिष्णुता और समानता का भाव नहीं रखते। इस व्यवहार से क्षुब्ध होकर भीमराव ने बड़ौदा महाराज की नौकरी छोड़ दी।

प्रश्न 4.
डा. अम्बेडकर के विचारों से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?
उत्तर:
डा. अम्बेडकर के विचार अत्यन्त प्रासंगिक थे। वे देश और समाज के हित में थे और अभी भी हैं। अतः उनके विचारों से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं उठता।

प्रश्न 5.
नीचे स्तम्भ ‘क’ में डा. भीमराव अम्बेडकर के जीवन से जुड़ी कुछ प्रमुख घटनाओं का विवरण है तथा स्तम्भ ‘ख’ में उन घटनाओं के वर्ष दिये गये हैं। इन्हें सही क्रम में मिलान कीजिये।
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर 1
उत्तर:
(क) – 3 (1891)
(ख) – 4(1907)
(ग) – 1 (1913)
(घ) – 2 (1905)
(ङ) – 6 (1920)
(च) – 5 (1956)

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
डॉ. अम्बेदकर को ‘भारतीय संविधान का जनक’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
स्वतन्त्र भारत के संविधान के निर्माण के लिये अपनी सेवायें देना तथा उन्हीं के नेतृत्व में भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार किया गया था इसीलिए इन्हें भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है।।

प्रश्न 2.
डॉ. अम्बेदकर को ‘बाबा साहब’ के उपनाम से जानते हैं। कुछ और भी महापुरुषों को उपनाम से जाना जाता है। उनके नाम और उपनाम को लिखिए।
उत्तर:
1. रवीन्द्रनाथ टैगोर – गुरुदेव
2. मोहनदास करमचन्द गाँधी – बापू
3. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद – देशरत्न
4. सुभाषचन्द्र बोस – नेताजी
5. बल्लभ भाई पटेल – सरदार

प्रश्न 3.
‘बाबा साहब’ किस प्रकार के भारत को देखना चाहते थे ?
उत्तर:
‘बाबा साहब’ भारत के उस स्वरूप को देखना चाहते थे जिसमें छूत-अछूत का कोई विचार नहीं हो। कोई भी समाज का व्यक्ति किसी से दलित न हो। भारत में जाति के आधार पर पेशा नहीं हो बल्कि ज्ञान एवं अभिरुचि के आधार पर पेशा को ग्रहण करें। समाज के सभी व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त हो। इत्यादि ।

व्याकरण

प्रश्न 1.
इन शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए।
महतवपूर्ण, परीस्थीती, निसचय, आत्मविसवास, रत्नागीरी, अधयापक ।
उत्तर:
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर 2

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

प्रश्न 2.
“स्वामीजी, मैं ईश्वर का दर्शन करना चाहता हूँ। क्या आप ऐसा कर सकेंगे?”
साधु ने तपाक से कहा, “अरे ! क्यों नहीं ! कल सवेरे यहाँ आ जाना । हम लोग साथ-साथ सामने के पहाड़ की चोटी पर चलेंगे। वहाँ जाकर मैं तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूंगा।”
उपर्युक्त अंश में उद्धरण चिह्न (” “), विस्मयादिसूचक चिह्न (!), प्रश्नसूचक चिह्न (?), योजक चिह्न (-), अल्प विराम चिह्न (,) तथा पूर्ण विराम चिह्न (।) हैं।
इस पाठ में भी इस तरह के विराम चिह्नों का प्रयोग किया गया है। उसका कुछ अंश लिखिए।
उत्तर:
अचानक वह उठ खड़ा हो जाता है। आँसू पोंछकर सोचता है, “मैं अछूत हूँ, यह पाप है। किसने बनाया है छुआछूत की व्यवस्था ? किसने बनाया है किसी को नीच? किसी को ऊँच? भगवान ने ? हर्गिज नहीं। वह ऐसा नहीं कर सकता। वह सबको समान रूप से जन्म देता है। यह बुराई मनुष्य ने पैदा की है। मैं इसे मिटाकर रहूँगा।”

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
इस वर्ग पहेली में पाँच महापुरुषों के नाम छिपे हैं। उनके नाम मोटे लिखे गए अक्षर से शुरू होता है । ढूँढ़कर लिखिए।
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर 3
उत्तर:

  1. महात्मा गाँधी
  2. जवाहरलाल नेहरू
  3. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  4. सुभाषचन्द्र बोस
  5. रवीन्द्रनाथ टैगोर ।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

प्रश्न 2.
आपकी कक्षा में विभिन्न परिवेश के बच्चे पढ़ते हैं। आप सहपाठियों के घर पर जाकर देखिए कि वहाँ क्या-क्या होता है ? उनके अभिभावकों से बातचीत कीजिए और अपने मित्रों से उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना साफ-साफ एवं सुंदर अक्षर में लिखिए और कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

डॉ. भीमराव अम्बेदकर Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

मध्यप्रदेश के महानगर में रामजी नाम के एक सूबेदार मेजर थे। 14 अप्रिल, 1891 ई० को सूबेदार के घर में एक बालक ने जन्म लिया। यह उनकी चौदहवीं संतान थी। जब यह बालक पाँच वर्ष का हुआ तब उसकी माँ का स्वर्गवास हो गया। बालक की माँ का नाम मीराबाई था। बालक के पालन-पोषण का भार उसकी चाची के कंधों पर आ गया जो प्यार से बच्चे को ‘मीना’ कहकर बुलाती थी। बड़ा होकर वही बालक भीमराव रामजी अम्बेडकर कहलाया। भीमराव की स्कूली शिक्षा रत्नागिरि नामक शहर में स्थित एक मराठी स्कूल से आरंभ हुयी। बाद में भीमराव के पिता सतारा आ गये और अपने बच्चे का दाखिला एक सरकारी स्कूल में करा दिया।

सन् 1905 में भीमराव का विवाह रामाबाई नाम की कन्या से कर दिया गया। उस समय कन्या की उम्र मात्र नौ वर्ष की थी। इस बीच भीमराव के पिता बम्बई आ गये और वहाँ के एलफिंस्टन स्कूल में अपने बेटे का नाम लिखा दिया जहाँ से सन् 1907 में भीमराव ने मैट्रिक की परीक्षा पास की। महार जाति के लिये भीमराव का मैट्रिक पास करना एक अत्यन्त गौरव की बात थी। भीमराव एलफिंस्टन कॉलेज में पढ़ने लगे जहाँ से सन् 1913 में इन्होंने बी.ए. की परीक्षा पास की । बड़ौदा के महाराज सयाजीराव गायकवाड़ ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने दरबार में नौकरी दे दी पर दुर्भाग्यवश इसी वर्ष भीमराव के पिता का निध न हो गया।

बड़ौदा के महाराज की अनुकम्पा और प्यार युवा भीमराव पर अत्यधि क था पर दरबार के कटरपंथी उनसे ईर्ष्या और घृणा करते थे। अतः निराश होकर भीमराव ने अपनी उच्च शिक्षा जारी रखने के लिये अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय में दखिला ले लिया। बडौदा के महाजन ने अपनी ओर से छात्रवृत्ति देकर भीमराव के आगे की पढ़ाई के लिये सहायता एवं सहयोग दिया। कोलम्बिया विश्वविद्यालय में भीमराव को प्यार और समानता का व्यवहार मिला और वहाँ से उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि ग्रहण की। विदेश प्रवास के दौरान डा0 भीमराव ने दो पुस्तकें लिखीं और उनकी विद्वता की ध क सर्वत्र जम गयीं। इसका प्रतिफल यह हुआ कि डा. अम्बेडकर को मुम्बई के एक कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर लिया गया। किन्तु यहाँ भी डा. भीमराव को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि एक विशेष जातिवर्ग का होने के कारण कट्टरपंथी उनसे घृणा करते थे। निराश होकर डा. भीमराव ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

छुआछूत की समस्या के निदान के लिये उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया। पत्रिका का नाम उन्होंने ‘मूकनायक’ रखा। पर साधनों के अभाव के कारण पत्रिका ज्यादा दिनों तक चल नहीं पायी और इसका प्रकाशन बन्द करना पड़ा। इसके बाद डा. भीमराव पढ़ने के लिए लन्दन चले गये और वहाँ से अर्थशास्त्र में डी. एस-सी की उपाधि प्राप्त कर मुंबई लौटे और यहाँ वकालत आरम्भ कर दी। सन् 1927 में इन्होंने ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। इसी वर्ष ये मुंबई विधान सभा के सदस्य बनाये गये।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 14 डॉ. भीमराव अम्बेदकर

सन् 1947 में आजाद भारत में गठित संविधान-सभा के डा. भीमराव सदस्य चुने गये। भारतीय संविधान का प्रारूप (आलेख) इन्हीं की अध्यक्षता में तैयार हुआ जिसमें राष्ट्रीय एकता और अछूतों के उद्धार की समस्या के समाधान पर विशेष बल दिया गया। आजाद भारत की पहली सरकार पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में बनी। डा. भीमराव अम्बेडकर भारत सरकार के पहले कानूनमंत्री बनायें गये। पर पं. जवाहर लाल नेहरू से उनका किसी समस्या को लेकर मतभेद हो गया और उन्होंने 1951 में अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

सरकार से अलग होकर डा. भीमराव ने अपना ध्यान अछूतों की सेवा की ओर केन्द्रित किया। फलस्वरूप अछुतों के बीच वे दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होते गये। रूढ़िवादियों से इन्होंने कभी समझौता नहीं किया। सन् 1955 में इनका झुकाव बौद्ध धर्म की ओर हुआ। एक वर्ष के बाद इन्होंने नागपुर में बौद्ध ध र्म ग्रहण कर लिया। इन्होंने अछूत भाइयों को भी सलाह दी कि वे बौद्ध धर्म अपना लें। पर दुर्भाग्यवश अछूतों और दलितों का यह मसीहा अधिक दिनों तक उनकी सेवा नहीं कर सका और 1956 में ही 6 दिसम्बर को डा. भीमराव अम्बेडकर का निधन हो गया। आज भी इस देश के लोग अछूतों के इस नेता को सम्मान के साथ ‘बाबा साहब’ कहकर सम्बोधित करते हैं। वे देश के पिछड़े और दलित समाज के प्राण थे।

डा. बाबा साहब एक अध्ययनशील प्राणी थे। उनमें गजब का आत्मबल – था और वे जो सोचते थे उसे कार्य में परिणत करते थे। वे एक ओजस्वी वक्ता थे और तर्क करने की उनमें अद्भुत क्षमता थी।

भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को छुआछूत के रूप से बाबा साहब ने मुक्ति दिलायी। आने वाली पीढ़ी डा. बाबा साहब अम्बेडकर को उनकी देश-सेवा के लिये सदा स्मरण करती रहेगी।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

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प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
सभी लोग घर की सफाई क्यों कर रहे थे?
उत्तर:
क्योंकि घर में कुछ खास मेहमान आने वाले थे। इन मेहमानों की खासियत यह थी कि वे थे तो अपने रिश्तेदार पर इनका आगमन इंगलैंड से होने वाला था और घर के लोगों को ऐसा लग रहा था कि इंगलैंड से आ रहे इन मेहमानों को कहीं हमारे घर की गंदगी अच्छी न लगे और उनके सामने हमारी हँसाई न हो जाय – अतः सभी मिलकर घर का कोना-कोना साफ कर रहे थे।

प्रश्न 2.
पद्मिनी और राहुल को पिंकी-विकी की कौन-सी बात खटकती थी?
उत्तर:
पद्मनी और राहुल को यह बात खटकती थी कि अपनी भाषा में न बोलकर, न जाने क्यों वे सदा अंगरेजी में ही बोलते हैं। यद्यपि वे यानी पिंकी-विकी इस बात को अच्छी तरह जानते थे कि राहुल और पद्मिनी अंगरेजी के साथ हिन्दी भी अच्छी तरह समझते और बोलते हैं। इन्होंने तो सोचा था कि भारत आकर इनकी हिन्दी का ज्ञान और निखर जायेगा।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

प्रश्न 3.
पद्मिनी की उत्सुकता का क्या कारण था?
उत्तर:
पद्मिनी दादी के पास रस्सी से बुनी चारपाई पर बैठी थी। दादी ने उसको अपने से बिल्कुल सटा लिया था और उसके रेशमी बालों को प्यार से सहला रही थी। बाहर काली रात के साये में मेढ़कों का टरांना सुनाई दे रहा था। आकाश में तारे छिटक रहे थे। पद्मिनी को लगा वह किसी बीते हुये अतीत में वापस आ गयी है। यह था डैड का देश और इस देश का जीवन और प्राचीन सभ्यता।

प्रश्न 4.
किसने कहा, किससे कहा और क्यों कहा?
प्रश्नोत्तर –

(क) अच्छा किया जो इन्हें हिन्दी सिखाई।।
उत्तर:
राहुल और पद्मिनी के आगमन पर सभी नाते, रिश्तेदार, संबंधी उनसे मिलने आ गये। दिनभर लोगों का घर में आना-जाना लगा रहा। रिश्ते के भाई-बहन, चाचा-चाची, दादा-दादी, बुआ-फूफा के आने से घर भरा रहा। बच्चों को देखकर ये सभी अपनी-अपनी टिप्पणी देने लगे।

किसी और ने कहा- “अच्छा किया, इन्हें हिन्दी सिखाई। नहीं तो हमारी बात नहीं समझ पाते।”

(ख) “ओ हो! आई एम सो सॉरी।”
उत्तर:
पदमिनी और राहुल के संग घर के लोगों का दिन बीत गया- शाम हो गयो और आज फिर बिजली गुल हो गयी। इस स्थिति से निबटने के लिये पिंकी ने सफाई देते हुये कहा- “ओ हो!,आई एम सो सॉरी! तुम सोचोगे कैसी कंट्री है इंडिया।”

(ग) “अपनी भाषा जानते हुये भी न जाने क्यों वे सदा अंगरेजी ही बोलते हैं।”
उत्तर:
ये विचार हैं पद्मिनी के। वह सोचने लगी कि अपनी भाषा जानते हुये भी वे न जाने क्यों सदा अंगरेजी में बोलते हैं। उन्हें मालूम था राहुल और पद्मिनी दोनों भाषा (हिन्दी और अंगरेजी) भली-भांति जानते हैं।

(घ) “अच्छा! यही है तुम्हारी बेटी?”
उत्तर:
ये शब्द बुआ-फुआ ने पद्मिनी से पहली मुलाकात पर कहे।

(ङ) “लगता है बेटी माँ जैसी है। वही नीली आँखें और काले बाल, बड़ी सुन्दर निकली है।”
उत्तर:
ये वाक्य भी घर में आये रिश्तेदारों में से ही किसी के हैं। डैड, ये शब्द सुनकर फूले न समाते थे। उन्हें अपने इन भतीजे और भतीजी पर गर्व हो रहा था।

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पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
इस कहानी में किसकी भूमिका आपको सबसे अच्छी लगी और क्यों ?
उत्तर:
दस पूरी कथा में सबसे अच्छी भूमिका दादी की लगी। दादी ने विदेश से आये बच्चों का अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति का एहसास कराया जो पद्मिनी और राहुल के भारत आने का उद्देश्य था। दादी का मधुर प्यार भरा सामीप्य पाकर दोनों बच्चे अत्यन्त आह्लादित थे।

प्रश्न 2.
क्या आपको लगता है कि यह कहानी अधूरी है? क्यों?
उत्तर:
इस कहानी का अन्त अचानक होता है, ऐसा लगता है, खंडहर देखने जाने की बात पर कहानी का अन्त हो जाता है। खंडहर की यात्रा का विवरण आने से कहानी को एक परिपक्वता मिलती- कहानी के विकास को .. एक अन्तिम पड़ाव तक पहुँचाया जा सकता है जो कहानीकार ने नहीं किया। शायद वे पाठकों को आगे की घटना को जानने के लिये उनकी कल्पनाशीलता को उभारना चाहते थे।

प्रश्न 3.
सोचिये, इस कहानी के अन्त में अगले दिन क्या हुआ होगा?
उत्तर:
उसी कल्पनाशीलता की कड़ी को जोड़ते हुये यह समझा जा सकता है कि दोनों बच्चे अगले दिन खंडहर की यात्रा पर गये होंगे। वहाँ इन्होंने खंडहर के चित्र उतारे होंगे जिसे यादगार के रूप में इंग्लैण्ड ले जायेंगे। कुछ नये पक्षी राहुल ने देखे होंगे और उनकी बोली, उनके कार्यकलापों को आत्मसात किया होगा जिसे वे अपनी डायरी में नोट करेंगे ताकि इस पर वे गहरायी से अध्ययन कर सकें।

प्रश्न 4.
अगर ऐसा हो कि आपके यहाँ कोई सम्बन्धी आये तो आप क्या-क्या करेंगे?
उत्तर:
इस प्रश्न का उत्तर अलग-अलग परिवार और व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला होगा और फिर इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आने वाले मेहमान की श्रेणी क्या है?

अगर मेहमान या संबंधी अत्यन्त करीबी हैं तो वह घर के परिवार के सदस्यों की तरह सम्मान और आदर का अधिकारी होगा। औपचारिक संबंधी का स्वागत औपचारिक ढंग से किया जायेगा यथा स्वागत, बातचीत, नाश्ता-चाय आदि और फिर दरवाजे तक जाकर उनकी गर्मजोशी के साथ विदाई।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

व्याकरण –

प्रश्न 1.
निम्न शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए।
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ 1
उत्तर:
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ 2

प्रश्न 2.
इन शब्दों के वचन बदले –
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ 3
उत्तर:
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ 4

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

प्रश्न 3.
इन वाक्यों में सर्वनाम शब्द को रेखांकित कीजिए।
(क) “अच्छा, यही है तुम्हारी बेटी?”
(ख) वह उसकी मदद करने लगा।
(ग) जो ढूँढ़े उसे मिले।
(घ) मैं अवश्य देखना चाहूँगी उन खण्डहरों को।
उत्तर:
(क) अच्छा, यही है तुम्हारी बेटी ?
(ख) वह उसकी मदद करने लगा।
(ग) जो ढूँढे उसे मिले।
(घ) मैं अवश्य देखना चाहूँगी उन खण्डहरों को।

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
आपके यहाँ कई मौकों (अवसर) पर कौन-कौन से सम्बन्धी/रिश्तेदार आते हैं ? उनकी सूची बनाइए।
उत्तर:
परिवार में आयोजित विवाह आदि के अवसरों पर सबसे अधि क मेहमान घर में आते हैं। इनमें सभी करीब के संबंधी, पारिवारिक मित्र, पास-पड़ोस के लोग, परिचित, बंधु-बांधव बुलाये जाते हैं।

संबंधियों में – नाना-नानी, मामा-मामी, बुआ-फुफा, दीदी-जीजाजी, भैया-भाभी, इनके बच्चे सभी आमंत्रित होते हैं।

प्रश्न 2.
पधिनी और राहुल को दादी पास बुलाकर कहानी सुनाई। क्या आपको भी दादी/नानी कोई कहानी सुनाती है? कहानी सुनते समय आप क्या महसूस करते हैं? अपनी कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
अलग-अलग छात्र अपने-अपने अनुभव के आधार पर इसका उत्तर तैयार करेंगे और अपने अनुभव कक्षा में सुनायेंगे।

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दादा-दादी के साथ Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

‘दादा-दादी के साथ’ शीर्षक यह फीचर एक छोटी-सी कहानी है जिसके सहारे लेखक हमारे देश में आ रहे बदलाव, खासकर सांस्कृतिक धरातल पर आ रहे परिवर्तन की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। आज के बच्चे किस प्रकार अपनी भाषा, संस्कृति और प्राचीन विरासतों को भुलाकर, ठुकराकर पाश्चात्य संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं इसकी झाँकी इस पाठ में प्रस्तुत की गयी है।

भारत के किसी हिन्दी प्रदेश का एक छोटा-सा कस्बा है हमीरपुर-यह न पूरा विकसित शहर है और न ठेठ देहात। यहाँ के लोग देहाती जीवन-शैली का त्याग कर शहरीपन अपनाने की चेष्टा कर रहे हैं। हमीरपुर के जिस परिवार की यह कथा है, उसमें कुल चार सदस्य हैं- एक गृहिणी, दूसरे उनके पति तथा उनके दो बच्चे। इन्होंने अपने दोनों बच्चों का नाम भारतीय परिवेश का नहीं रखकर, पाश्चात्य शैली का रखा है – लड़की का नाम पिंकी और लड़के का नाम विकी। अब ये दोनों बच्चे बातचीत में अंगरेजी वाक्यों का उपयोग करते हैं। इन्हें भारत से बाहर के बात-व्यवहार, रहन-सहन की शैली ज्यादा भाति है और अपनी श्रेष्ठता के भाव का प्रदर्शन करने के लिये ये अपनी अंगरेजी भाषा की जानकारी का खुलकर प्रयोग करते हैं।

एक दिन इन्हें पता चलता है कि इनके दो संबंधी (रिश्तेदार) जो विदेश – में रहते हैं, इनके घर इंगलैंड से आ रहे हैं। ये इनके अपने चाचा विपिन प्रताप . सिंह के बच्चे हैं। इनमें एक का नाम है राहुल और दूसरे का नाम है पद्मिनी। रिश्ते में ये पिंकी और विकी के भाई-बहन हुये। अब यहाँ ध्यान देने की बात है कि इंगलैंड से आने वाले बच्चों के नाम पूर्णरूपेण भारतीय हैं। इसके द्वारा हमारी हीन मानसिकता पर लेखक ने प्रकाश डाला है जो अत्यन्त स्पष्ट है।

हमीरपुर का पूरा परिवार अपने अतिथियों के स्वागत की तैयारी में लग जाता है। घर के नौकर-चाकर, माली, चौकीदार सभी घर की सफाई में लग जाते हैं- मेहमान विदेश से आ रहे हैं -पता नहीं हमारे रहन-सहन के स्तर में कहीं कोई कमी न दिखाई पड़ जाय? विदेश से आये ये बच्चे पास-पड़ोस, नाते रिश्तेदारों के आकर्षण का केन्द्र बन जाते हैं क्योंकि ये विदेश से स्वदेश आ रहे हैं। इनसे मिलकर लोग-बाग अपने-अपने ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। लोग यह कहना नहीं भूलते कि ये हिन्दी बोलते और समझते हैं – यह कितनी अच्छी बात है।

प्रारंभिक परिचय का सिलसिला शाम तक चलता रहता है। पिंकी को इस ..बात की चिन्ता हो जाती है कि आज भी यहाँ अन्य दिनों की तरह बिजली गायब है। पिंकी, राहुल और पद्मिनी के सामने इस असुविधा के लिये खेद प्रकट करते हुये कहती है – “ओ हो! आई एम सो सॉरी! तुम सोच रहे होगे कैसी कंट्री है इण्डिया।” पदमिनी ने अपनी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की केवल मुस्कुरा भर दिया। वह सोचने लगी-अपनी भाषा होते हुये भी वे न जाने सदा अंगरेजी में ही क्यों बोलते हैं? इन्होंने तो यह सोचा था कि भारत आकर उनके हिन्दी बोलने का अभ्यास और अच्छा हो जायेगा। लेकिन यहाँ तो बात उल्टी ही हो रही थी।

लालटेन जला दी गयी और सब आकर दादी के पास आँगन पर बैठ गये। रस्सी से बुनी चारपाई उन्हें अच्छी लगी। दादी का प्यार और दुलार पद्मिनी __ को बड़ा अच्छा लग रहा था। दादी उसके रेशमी बालों को प्यार से सहलाने लगी।

दादी ने पूछा बेटा! तुमने रामायण-महाभारत की कहानियाँ सुनी हैं?

राहुल ने कहा- “सुनाइये न दादी – डैड ने कुछ सुनाया है परन्तु।” पिंकी ने मुँह बनाकर कहा – ” ओह नो. नॉट अगेन। वही परानी कथायें।”

दादी बोली – “बेटा, पौराणिक कथाओं में कितना ज्ञान भरा है।”

पिंकी ने बहस की – “आजकल के साइंस के जमाने में तुम्हारी कहानियाँ बिल्कुल फिट नहीं बैठती। क्या मिलेगा हमें उनसे।” बहस सुन, दादाजी भी हाजिर हो गये और कहा “जो ढूँढे उसे मिले।” इन कहानियों से “मनोरंजन के साथ आदर्श व मूल्य समझने का कार्य भी हो जाता था।”

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फिर दादी ने कहानियाँ सुनायी क्योंकि राहुल और पद्मिनी इन्हें सुनना चाहते थे। रात का भोजन बाहर आँगन में ही किया गया। इन बच्चों के लिये विशेष रूप से स्वदेशी जायके वाले लिट्टी की व्यवस्था की गयी थी। उस बेक किये गये पकवान का इन्होंने भरपर आनन्द लिया। ये उपले पर सेंके गये थे और उनका सोंधापन गजब का आनन्द दे रहा था। पिंकी ने इसकी जगह सूप, ब्रेड और अंडे अपने लिये बनवाये थे।

भोजन के क्रम में अगले दिन के कार्यक्रम की चर्चा होने लगी। पिंकी बोली “हमीरपुर छोटी जगह है।” तुमलोगों को शायद मुम्बई, दिल्ली, कलकत्ता जैसे शहर अच्छे लगते हैं और पता चलता कि इंडिया कैसा है? पर राहुल की इच्छा तो भारत के गाँव देखने की थी। पिंकी ने समझाया- ” इसका मतलब रियल विलेज से है जहाँ केवल ‘हट’ हो – चलो कल दिखा देंगे।”

विकी सोचने लगा- “हाँ, वे जो खंडहर हैं, उनके पास बसा एक छोटा-सा स्थित विलेज है। वहीं चला जाया”

पदमिनी की आँखें नीली रोशनी में चमक उठी – खंडहर? कब के हैं? क्या वे बहुत प्राचीन हैं? पद्मिनी ने वहाँ जाने का अपना संकल्प पक्का कर लिया।

पिंकी हँसने लगी – “उन टूटी-फूटी दीवारों को देखने में मेरी तो कोई रुचि नहीं है।”

पद्मिनी ने कहा – ” मुझे है, मुझे इतिहास में विशेष रुचि है।”

राहुल ने भी हामी भरी – ” मैं भी। शायद उधर कुछ दुर्लभ पक्षियों के भी संकेत मिल जाय।

“उल्लू और चमगादड़ के सिवा और क्या मिलेगा?” विकी ने हँसते हुये कहा।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 13 दादा-दादी के साथ

“वे भी ठीक रहेंगे” – राहुल खुशी-खुशी बोला – “चमगादड़ भी एक ऐसा पक्षी है जो हर जगह नहीं मिलता और फिर भारतीय चमगादड़ कैसे होते हैं, इसका भी तो पता चलेगा।

पद्मिनी को लगा- पिंकी-विकी इस योजना पर बहुत खुश नहीं हुये पर राहुल और पद्मिनी ने अपना इरादा पक्का बना लिया कि वे कल खंडहर देखने अवश्य जायेंगे। उन्हें अगर बिना किसी मार्ग-दर्शक के भी जाना पड़े तो वे जायेंगे क्योंकि उन्हें हिन्दी आती है और वे अपना रास्ता स्वयं ढूँढ लेंगे। वे स्वयं वहाँ से घूम आयेंगे।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

Bihar Board Class 6 Maths संख्याओं की समझ Ex 1.1

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों को भरिए

  1. 1 लाख ________ दस हजार
  2. 1 मिलियन _________ सौ हजार
  3. 1 करोड़ ________ दस लाख
  4. 1 करोड़ _________ मिलियन
  5. 1 मिलियन _______ लाख

उत्तर

  1. दस
  2. दस
  3. दस
  4. दस
  5. दस

प्रश्न 2.
सही स्थानों पर अल्प विराम लगाते हुए संख्यकों को लिखिए-
(a) तिहत्तर लाख पचहत्तर हजार तीन सौ सात
उत्तर
73,75,307

(b) नौ करोड़ पाँच लाख इकतालीस
उत्तर
9,05,00,041

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(c) सात करोड़ बावन लाख इक्कीस हजार तीन सौ दो
उत्तर
7,52,21,302

(d) अट्ठावन मिलियन चार सौ तेइस हजार दो सौ दो
उत्तर
58,423,202

(e) तेइस लाख तीस हजार दस
उत्तर
23,30,010

प्रश्न 3.
निम्न संख्याओं को भारतीय संख्यांकन पद्धति एवं अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति, दोनों में उपयुक्त स्थानों पर अल्प विराम लगाते हुए लिखिए तथा उनके संख्या का नाम भी लिखिए-
(a) 87595762
उत्तर
भारतीय संख्यांकन पद्धति- आठ करोड़, पचहत्तर लाख, पंचानवे हजार सात सौ बासठ (8,75,95,762)
अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति- सतासी मिलियन, पाँच सौ पंचानवे हजार, सात सौ बासठ (87,595,762 )

(b) 85462283
उत्तर
भारतीय संख्यांकन पद्धति- आठ करोड, चौवन लाख, बासठ हजार, दो सौ तिरासी (8,54,62,283)
अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति- पचासी मिलियन चार सौ बासठ हजार, दो सौ तिरासी (85,462,283)

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(c) 99900046
उत्तर
भारतीय संख्यांकन पद्धति- नौ करोड, निन्यानवे लाख छियालीस (9,99,000,46)
अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति- निन्यानवे मिलियन, नौ सौ हजार, छियालीस (99,900,046)

(d) 98432701
उत्तर
भारतीय संख्यांकन पद्धति- नौ करोड़, चौरासी लाख, बत्तीस हजार, सात सौ एक (9,84,32,701)
अंतर्राष्ट्रीय संख्यांकन पद्धति- अन्ठानवे मिलियन, चार सौ बत्तीस हजार, सात सौ एक (98,432,701)

Bihar Board Class 6 Maths संख्याओं की समझ Ex 1.2

प्रश्न 1.
किसी स्कूल में चार दिन के लिए एक पस्तक प्रदर्शनी आयोजित की गई। पहले, दूसरे, तीसरे और अंतिम दिन खिड़की पर क्रमशः 1094, 1812, 2050 और 2751 टिकट बेचे गए। इन चार दिनों में बेचे गए टिकटों की कुल संख्या ज्ञात कीजिए।
हल :
पहले दिन बेचे गए टिकटों की संख्या 1094
दूसरे दिन बेचे गए टिकटों की संख्या 1812
तीसरे दिन बेचे गए टिकटों की संख्या 2050
और अंतिम दिन बचे गए टिकटों की संख्या 2751
इस प्रकार इन चार दिनों में बेचे गए टिकटों की कुल संख्या = 1094 + 1812 + 2050 + 2751 = 7707

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

प्रश्न 2.
शेखर एक प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी है। वह टेस्ट मैचों में अब तक 6980 रन बना चुका है। वह 10,000 रन पूरे करना चाहता है। उसे कितने और रनों की आवश्यकता है? हल :
शेखर द्वारा अब तक बनाए गए रनों की संख्या 6980 और वह 10,000 रन पूरा करना चाहता है।
अब,
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q2
अतः उसे 3.020 और रनों की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
एक चुनाव में, सफल प्रत्यासी 5,77,500 मत प्राप्त जबकि उसके निकटतम प्रतिद्वंदी ने 3,48,700 मत प्राप्त किर सफल प्रत्याशी ने चुनाव कितनें मतों से जीता?
हल :
सफल प्रत्याशी द्वारा प्राप्त किए गए मतों की संख्या = 5,77,500
जबकि उसके निकटतम प्रत्याशी द्वारा प्राप्त किए गए मतों की संख्या = 3,48,700
अब, सफल प्रत्याशी ने (5,77,500 – 348,700) मतों से चुनाव जीता।
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q3
सफल प्रत्याशी ने 2,28,800 मतों से चुनाव जीता।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

प्रश्न 4.
कीर्ति बुक स्टोर ने जून के प्रथम सप्ताह में 2,85,891 रु० मूल्य की पुस्तकें बेची। इसी माह के दूसरे सप्ताह में 4,00,768 रु० मूल्य की पुस्तकें बेची गई। दोनों सप्ताह में कुल मिलाकर कितनी बिक्री हुई और कितनी अधिक?
हल :
जून के प्रथम सप्ताह में पुस्तकों की बेची गई मूल्य 2,85,891 रु०
जून के दूसरे सप्ताह में बेची गई पुस्तकों की मूल्य 4,00,768 रु०
दोनों सप्ताहों में कुल मिलाकर (4,00,768 + 2,85,891) रु० की बिक्री होती है।
अब,
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q4
दोनों सप्ताहों में (4,00,768 – 2,85,891) रु० की अधिक बिक्री हुई।
अब,
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q4.1
दोनों सप्ताहों में कुल मिलाकर 6,86,659 रु० की बिक्री हुई तथा दूसरे सप्ताह में पहले सप्ताह की अपेक्षा 1,14,877 रु० की अधिक बिक्री हुई।

प्रश्न 5.
अंकों 6, 2, 7, 4 और 3 में से प्रत्येक का केवल एक बार प्रयोग करते हुए बनाई, जा सकने वाली सबसे बड़ी और सबसे छोटी संख्याओं का अंतर कीजिए।
हल :
6, 2, 7, 4 और 3 से बनाई जा सकने वाली सबसे बड़ी संख्या = 76432
और सबसे छोटी संख्या = 23467
दोनों का अंतर (76432 – 23467) होगा।
अब,
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q5
सबसे बड़ी और सबसे छोटी संख्याओं का अंतर 52965 है।

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प्रश्न 6.
एक मशीन औसत एक दिन में 2,825 बल्ब बनाती है। जनवरी 2006 में उस मशीन ने कितने बल्ब बनाए?
हल :
एक दिन में एक मशीन औसतन 2,825 बल्ब बनाती है।
जनवरी माह में 31 दिन होते हैं।
अत: जनवरी 2006 में एक मशीन 31 दिन बल्ब बनाएगी।
31 दिन में मशीन द्वारा बनाए गए बल्बों की संख्या = 31 × 2825 = 87575
अतः मशीन जनवरी 2006 में 87575 बल्ब बनाती है।

प्रश्न 7.
एक व्यापारी के पास 78,592 रु० थे। उसने 40 रेडियो खरीदने का ऑर्डर दिया तथा प्रत्येक रेडियो का मूल्य 1200 रु० था। इस खरीददारी के बाद उसके पास कितनी धनराशि शेष रह जाएगी?
हल :
1 रेडियो का मूल्य 1200 रु० है
40 रेडियो का मूल्य 1200 × 40 रु० = 48000 रु० होता है।
व्यापारी के पास कुल 78,592 रु० था।
अब 40 रेडियों खरीदने के बाद व्यापारी के पास (78,592 – 48000) रु० = 30,592 रु० बचेगा।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

प्रश्न 8.
एक विद्यार्थी ने 7236 को 56 के स्थान पर 65 से गुणा कर दिया। उसका उत्तर सही उत्तर से कितना अधिक था ? (संकेतः दोनों गुणा करना आवश्यक नहीं)।
हल :
प्रश्नानुसार दोनों को गुणा करना आवश्यक नहीं है।
अतः 65 – 56 = 9
अब 7236 × 9 = 65124 अधिक था।

प्रश्न 9.
एक कमीज सीने के लिए 2 मीटर 15 सेमी कपड़े की आवश्यकता है। 40 मीटर कपड़े में से कितनी कमीजें सिलाई की जा सकती हैं और कितना कपड़ा शेष बच जाएगा? हल :
एक कमीज सीने के लिए कपड़े की आवश्यकता 2 मीटर 15 सेमी अर्थात 215 सेमी है।
40 मीटर अर्थात् 4000 सेमी से 4,000 + 215 कमीजें बनेगी।
अब,
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q9
18 कमीजें तथा शेष कपड़ा 130 सेमी अर्थात् 1 मीटर 30 सेमी बचेगा।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

प्रश्न 10.
दवाइयों को बक्सों में भरा गया है और ऐसे प्रत्येक बक्से का भार 4 किग्ना 500 ग्राम है। एक वैन (van) में जो 800 किग्रा से अधिक का भार नहीं ले जा सकती, ऐसे कितने बक्से लादे जा सकते हैं?
हल :
एक बक्से का भार 4 किग्रा 500 ग्राम अर्थात् 4500 ग्राम है।
एक वैन (van) में अधिकतम भार होने की क्षमता 800 किग्रा अर्थात् 80000 ग्राम है
अब, एक वैन (van) अधिक से अधिक 800000 + 45000 बक्से ले जा सकता है।
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.2 Q10
अर्थात एक वैन (van) में अधिक से अधिक 177 बक्से लादे जा सकते हैं।

प्रश्न 11.
किसी विद्यार्थी के घर और स्कूल के बीच की दूरी 1 किमी 875 मीटर है। प्रत्येक दिन यह दूरी दो बार तय की जाती है। 6 दिन में उस विद्यार्थी द्वारा तय की गई कुल दूरी ज्ञात कीजिए।
हल :
स्कूल और विद्यार्थी के घर के बीच की दूरी 1 किमी 875 मीटर अर्थात् 1,875 मीटर है।
प्रत्येक दिन यह दूरी दो बार तय किए जाने के कारण दूरी 1875 मीटर × 2 = 3750 मीटर हो जाती है।
6 दिन में उस विद्यार्थी द्वारा तय की गई कुल दूरी 3750 × 6 = 22500 मीटर होती है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

प्रश्न 12.
एक बर्तन में 4 लीटर 500 मिली दही है। 250 मिली धारिता वाले कितने गिलासों में उसे भरा जा सकता है।
हल :
कुल दही = 4 ली 500 मिली = 4500 मिली
गिलास की धारिता = 250 मिली
गिलासों की संख्या = 4500 ÷ 250 = 18

Bihar Board Class 6 Maths संख्याओं की समझ Ex 1.3

प्रश्न 1.
व्यापक नियम का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित में से प्रत्येक का आकलन कीजिए :
(a) 730 + 998
हल :
730 सन्निकटित होता है 700
+998 सन्निकटित होता है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q1
अतः आकलित जोड़ 1700 है।

(b) 796 – 314
हल :
796 सन्निकटित होता है
-314 सन्निकटित होता है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q1.1
अतः आकलित जोड़ 500 है।

(c) 12,904 + 2,888
हल :
12,904 सन्निकटित होता है
+2,888 सन्निकटित होता है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q1.2
अतः आकलित जोड़ 16000 है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(d) 28,292 – 21,496
हल :
28,292 सन्निकटित होता है
-21,496 सन्निकटित होता है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q1.3
अतः आकलित जोड 6.900 है।

प्रश्न 2.
निम्न सवालों में से प्रत्येक के एक मोटेतौर पर (Rough) आकलन और एक निकटतम आकलन (दस तक सिन्नकटन) दीजिए।
(a) 439 + 334 + 4317
हल :
मोटेतौर पर आकलन (सौ तक सन्निकटमान)
493 सन्निकटित है
334 सन्निकटित है
4,317 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2
अतः मोटेतौर पर आकलित 5,100 है।
निकटतम आकलन (दस तक सन्निकट मान)
439 सन्निकटित है
334 सन्निकटित है
4,317 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.1
अत: निकटतम आकलित 5,090 है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(b) 1,08,734 – 47,599.
हल :
मोटेतौर पर आकलन (सौ तक सन्निकटमान)
1,08,734 सन्निकटित है
-47,599 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.2
अतः मोटेतौर पर आकलित 61200 है।
निकटतम आकलन (दस तक सन्निकट मान)
1,08,734 सन्निकटित है
-47,599 सन्निकंटित है 47.590
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.3
अतः निकटतम आकलित 61,140 है।

(c) 8325 – 491
हल :
मोटेतौर पर आकलन (सौ तक सन्निकटमान)
8325 – 491 सन्निकटित है
-491 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.4
अतः मोटेतौर पर आकलित 7.900 है।
निकटतम आकलन (दस तक सन्निकट मान)
8,325 सन्निकटित है
-491 सन्निकटित है।
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.5
अतः निकटतम आकलित 7,835 है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(d) 4,89,348 – 48,365
हल :
मोटेतौर पर आकलन (सौ तक सन्निकटमान)
4,89,348 सन्निकटित है
-48,365 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.6
अतः मोटेतौर पर आकलितें 4,41,000 है।
निकटतम आकलन (दस तक सन्निकट मान)
4,89,348 सन्निकटित है
-491 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.7
अतः मोटेतौर पर आकलित 4,41,000 है।
निकटतम आकलन (दस तक सन्निकट मान)
4,89,348 सन्निकटित है
-491 सन्निकटित है
Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ Ex 1.3 Q2.8
अत: निकटतम आकलित 4,88,860 है।

प्रश्न 3.
व्यापक नियम का प्रयोग करते हुए निम्नलिखित गुणनफलों का आकलन कीजिए :
(a) 578 × 161
उत्तर
578 सन्निकटित होता है 600 (सौ तक सन्निकटित)
161 सन्निकटित होता है 200 (सौ तक सन्निकटित)
अतः आकलित गुणनफल = 600 × 200 = 1,20,000 है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(b) 5281 × 3491
उत्तर
5281 सन्निकटित होता है 5300 (सौ तक सन्निकटित)
3491 सन्निकटित होता है 3500 (सौ तक सन्निकटित)
अतः आकलित गुणनफल = 5300 × 3500 = 1,85,50,000 है।

(c) 1291 × 592
उत्तर
1291 सन्निकटित होता है 1300 (सौ तक सन्निकटित)
592 सन्निकटित होता है 600 (सौ तक सन्निकटित)
अतः आकलित गुणनफल = 1300 × 600 = 7,80,000 है।

Bihar Board Class 6 Maths Solutions Chapter 1 संख्याओं की समझ

(d) 9250 × 29
उत्तर
9250 सन्निकटित होता है 9300 (सौ तक सन्निकटित)
29 सन्निकटित होता है 30 (सौ तक सन्निकटित)
अत: आकलित गुणनफल = 9300 × 30 = 2,79,000 है।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

Bihar Board Class 6 Hindi भीष्म की प्रतिज्ञा Text Book Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
शान्तनु कहाँ के महाराजा थे?
उत्तर:
शान्तनु हस्तिनापुर के महाराजा थे।

प्रश्न 2.
निषादराज ने राजा से अपनी कन्या का विवाह के लिए क्या शर्त रखी?
उत्तर:
निषादराज ने राजा से अपनी कन्या के विवाह के लिए शर्त रखी कि मेरे पुत्री से उत्पन्न बालक ही राजगद्दी पर बैठेगा। तब हम अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करेंगे।

प्रश्न 3.
राजा को निषादराज की शर्त मानने में क्या कठिनाई थी?
उत्तर:
राजा को देवव्रत नामक एक पुत्र थे जो महान योद्धा थे। उनमें राजा होने के सारे गुण वर्तमान थे। निषादराज की शर्त मानना देवव्रत के साथ अन्याय होता । राजा से देवव्रत के प्रति अन्याय करना असम्भव था। यही कठिनाई थी।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

प्रश्न 4.
देवव्रत ने हस्तिनापुर की गद्दी पर नहीं बैठने की क्यों प्रतिज्ञा की?
उत्तर:
देवव्रत महान पितृभक्त थे । वे अपने पिता को उदास नहीं देखना चाहते थे। अतः उन्होंने पिता के दुख दूर करने के लिए प्रतिज्ञा की।

प्रश्न 5.
देवव्रत का नाम भीष्म क्यों पड़ा?
उत्तर:
जब देवव्रत ने निषाद राज के सामने भीष्म (कठिन) प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं आजीवन विवाह नहीं करूँगा। उस समय देवताओं ने उनका नाम भीष्म रख दिया।

प्रश्न 6.
देवव्रत ने दाशराज की शर्त क्यों मान ली ? सही कथन के आगे सही (✓) का निशान लगाइए।
(क) वह राजा नहीं होना चाहते थे।
(ख) उन्हें निषादराज को प्रसन्न करना था।
(ग) वह ब्रह्मचारी बनकर यश कमाना चाहते थे।
(घ) वह अपने पिताजी को सुखी देखना चाहते थे?
उत्तर:
(घ) वह अपने पिताजी को सुखी देखना चाहते थे?

प्रश्न 7.
मिलान करे
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा 1
उत्तर:

शान्तनु – हस्तिनापुर के सम्राट ।
भीष्म – हस्तिनापुर के युवराज ।
दाशराज – निषादों के राजा ।
सत्यवती – दाशराज की पुत्री।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
अगर आप भीष्म की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर:
अगर भीष्म की जगह मैं होता तो वही काम करता जो भीष्म ने किया।

प्रश्न 2.
इस एकांकी का कौन-सा पात्र आपको अच्छा लगा। क्यों ?
उत्तर:
इस एकांकी के पात्रों में देवव्रत मुझे अच्छा लगा क्योंकि अपने पिता की खुशी के लिए उन्होंने सब कुछ त्यागने की प्रतिज्ञा कर ली।

प्रश्न 3.
हस्तिनापुर को वर्तमान में क्या कहा जाता है?
उतर:
पिरली।

प्रश्न 4.
दाशराज की शर्त उचित थी तो क्यों ?
अथवा
अनुचित थी तो क्यों?
उत्तर:
दाशराज की शर्त उचित ही था क्योंकि अगर बिना शर्त के यदि शान्तनु से सत्यवती का विवाह होता तो राजगद्दी के लिए कलह अवश्य होता। अतः हस्तिनापुर को कलह का केन्द्र होने से बचाने के लिए उसने शर्त रखी।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

व्याकरण –

प्रश्न 1.
वाक्य-प्रयोग द्वारा अंतर बताएँ।

(क) कुल – कुल कितने रुपये हैं।
कूल – गंगा के दोनों कूलों पर शहरें हैं।

(ख) सौभाग्य – मदन सौभाग्यशाली व्यक्ति है।
दुर्भाग्य – पिता के मरने पर मेरा दुर्भाग्य आरम्भ हो गया।

(ग) अस्त्र – गदा एक अस्त्र है।
शस्त्र – वाण फेंककर चलाने वाला शस्त्र है।

(घ) पुरी – द्वारिका शहर को द्वारिका पुरी कहते हैं।
पूरी – भोज की व्यवस्था पूरी कर ली गई है।

(ङ) सेवा – नौकर मालिक की सेवा करता है।
सुश्रूषा – पुत्र पिता का शुश्रूषा करता है।

प्रश्न 2.
निवास-स्थान में योजक चिह्न (-) लगे हुए हैं। इस तरह के अन्य उदाहरण पाठ से चनकर लिखिए।
उत्तर:
निवास-स्थान । नारी-रत्न । सूर्य-चन्द्र । भरत-कुल । भीष्म-देवव्रत । देवता-तुल्य। स्नेह-सूत्र । साफ-साफ।

प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार लिखें –
प्रश्नोत्तर –
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा 2

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
इस एकांकी का अभिनय बाल-सभा में कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
महाभारत के कुछ महारथियों का नाम पता कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

भीष्म की प्रतिज्ञा Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

शान्तनु – हस्तिनापुर के सम्राट ।
भीष्म – हस्तिनापुर के युवराज ।
दाशराज – निषादों का राजा।
सत्यवती – दाशराज की पुत्री ।
सैनिक, द्वारपाल, देवगण और सत्यवती की सखियाँ ।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

पहला दृश्य

स्थान यमुना के ‘निकटवर्ती प्रांत में दाशराज का निवास स्थान ।

दाशराज की पुत्री सत्यवती अत्यन्त सुन्दरी थी जिसको देखकर हस्तिनापुर के राजा शान्तनु मोहित हो गये तथा उसे पाने के लिए दाशराज के घर जाकर सत्यवती के लिए आग्रह किया। लेकिन दाशराज ने शान्तन के सामने एक शर्त रखी कि यदि मेरे पुत्री से उत्पन्न बालक ही हस्तिनापुर के राजा बने तो मैं अपनी पुत्री को आपके साथ भेज सकता हूँ। यह शर्त राजा शान्तनु को मंजूर नहीं था क्योंकि शान्तनु का प्रथम पुत्र देवव्रत (गंगा पुत्र) में राजा होने के सारे गुण वर्तमान थे। यह शर्त मानना देवव्रत के साथ अन्याय होगा यह कहकर राजा उदास मन वापस घर लौट गये। जब उनकी उदासी के कारण देवव्रत को मालूम हुआ तो अपने पिता के दुख को दूर करने की इच्छा से दाशराज के घर गये।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

दूसरा दृश्य

स्थान – दाशराज का घर।

दाशराज ने देवव्रत का स्वागत कर आने का कारण पूछा । देवव्रत ने कहा “मैं माता सत्यवती को लेने आया हूँ। दाशराज ने अपनी शर्त को पुनः देवव्रत के सामने दुहराया । देवव्रत ने कहा –

ठाह है “मैं वचन देता हूँ कि मैं हस्तिनापुर का राजा नहीं बनूंगा। सत्यवती से उत्पन्न मेरा भाई ही राजा बनेगा। मैं उसकी सेवा उसी प्रकार करूँगा जैसे पिताजी का कर रहा हूँ।”

दाशराज ने कहा, लेकिन बाद में आपके पत्र तो उस अधिकार को प्राप्त कर ही लेंगे। अत: यह सम्बन्ध मैं नहीं स्थापित करूँगा । देवव्रत ने उसी समय हाथ उठाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं विवाह भी नहीं करूंगा। सब ओर से “धन्य हैं देवव्रत” की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। देवताओं ने फूल बरसाकर देवव्रत के कठिन प्रतिज्ञा के लिए खुशी जाहिर की। देवताओं ने ही उसी समय देवव्रत को भीष्म (कठिन) प्रतिज्ञा करने के कारण देवव्रत का नाम भीष्म रख दिया।

दाशराज प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री की विदाई कर दी। भीष्म ने सत्यवती का पैर छूकर प्रणाम किया तथा रथ पर बैठाकर घर ले गये।

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions रचना पत्र-लेखन.

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

छोटे भाई को पत्र

चिरंजीवी विकास,

मोतिहारी
12.4.2012

आशीर्वाद ।

तुम्हारा पत्र मिला । पढ़कर प्रसन्नता हुई और सारी बातों की जानकारी भी । तुमने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, हम सब के लिए गर्व की बात है। अब तो तुम्हें और भी अधिक मेहनत करनी चाहिए, जिससे भविष्य में अधिक अंक प्राप्त कर सको । तुम्हारी भाभी तुम्हें बहुत याद करती हैं। वह तुम्हारे लिए एक सुन्दर स्वेटर बुन रही हैं । पूरा हो जाने पर पार्सल द्वारा भेजेंगी। शेष कुशल है । पूज्य पिताजी और माताजी को मेरा प्रणाम ।
पता ……………………
……………………

तुम्हारा हितैषी
सरोज कुमार

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मित्र को पत्र

प्रिय मित्र संजीव,

पटना
8.4.2012

नमस्ते ।

बहुत दिनों से तुम्हारा कोई समाचार प्राप्त नहीं हो सका । क्या, बात है ? हमसे नाराज हो क्या ? अगर मुझसे कोई भूल हो गई हो तो क्षमा करना और शीघ्र ही पत्र का उत्तर देना । माताजी तुम्हें बहुत याद करती हैं । मैं गर्मी की छुट्टी में बरौनी आ रहा हूँ । शेष कुशल है । अपने पिताजी और माताजी को मेरा प्रणाम कहना, राजू और सीमा को स्नेह ।

पता :

तुम्हारा मित्र
चुन्नू

बड़ी बहन को पत्र

आदणीय बहन जी,

सादर प्रणाम ।

छपरा
9.2.2012

मैं कुशल से हूँ और आपकी कुशलता के लिए सदैव ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ । बहुत दिनों से आपका कोई समाचार नहीं मिला । क्या आप यहाँ से जाकर, हमें भूल गईं । हमलोगों को तो हर समय आपकी हो याद आती है । माता जी तो आपको याद करके कभी-कभी रोने लगती हैं । सच दीदी, जब से आप गई हैं, सारा घर सूना-सूना लगता है । गोपाल तो हर समय आपको खोजता रहता है ।

अब राखी को त्योहार आ रहा है | क्या अच्छा होता कि आप यहाँ होती। हम सब मिलकर भैया को राखी बाँधती । दीदी, राखी के अवसर पर आने की कोशिश कीजिएगा । माँ आपको बुलाने भैया को भेजेंगी । शेष कुशल है । जीजा जी प्रणाम बोलिएगा ।

पता :

उत्तर की प्रतीक्षा में
आपकी छोटी बहन
सोनिया

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

बीमारी की छुट्टी के लिए प्रधानाध्यापक को प्रार्थना-पत्र

सेवा में.

श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय,
गाँधी संस्थान,
आरा

आदरणीय महोदय,

सेवा में सविनय नम्र निवेदन है कि मैं कल रात से बुखार से पीड़ित हूँ। इसलिए मैं आज विद्यालय में उपस्थित नहीं हो सकूँगा ।
अतः आपसे प्रार्थना है कि मुझे तीन दिनों की छुट्टी प्रदान करने की कृपा करें।

दिनांक : 4.3.2012

आपका आज्ञाकारी छात्र
सुभाष कुमार
कक्षा-8

विवाह के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र

सेवा में,
प्रधानाचार्य,
शिशु विद्यालाय, पूर्णिया

आदरणीय महोदय,

सविनय नम्र निवेदन है कि मेरी बहन का शुभ विवाह 20 दिसम्बर को होने जा रहा है । इसलिए मैं एक सप्ताह विद्यालाय नहीं आ सकूँगी ।
अतः आपसे सादर अनुरोध है कि मुझे 28 दिसम्बर तक की छुट्टी देने की कृपा करें।

दिनांक : 8.1.2012

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या
सुनयना

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

पिता का पत्र पुत्र के नाम

प्रिय महानन्द,

पटना
10 मार्च, 2012

आशीर्वाद ।

यहाँ सभी आनन्द और प्रसन्न हैं ! आशा है कि तुम भी विद्याध्ययन में संलग्न होगे । पिछले पत्र में तुमने बुखार हो जाने की बात लिखी थी । छात्रों के लिए यह एक बुरी बीमारी है, जो कि संयम के अभाव में होती है। समय पर अपने सभी कार्यों को करनेवाले छात्र सदा स्वस्थ रहते हैं । तुम्हारे स्वस्थ रहने पर ही अच्छी पढ़ाई हो सकेगी, क्योंकि स स्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है । अतः समय की पाबंदी रखो और सुबह उठकर व्यायाम करो । इससे तुम्हारा शरीर स्वस्थ होगा और मन भी प्रसन्न रहेगा । तुम्हारा स्वेटर व सामान डाक से भेज रहा हूँ। मिलने की सूचना देना । विशेष शुभ ।

पता :

तुम्हारा पिता
रामदेव मिश्र

महानन्द कुमार
शिशु ज्ञान मंदिर,
मधुबनी

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

पिता को पत्र

पूज्यवर पिताजी,

बेगूसराय
5.4.2012

सादर चरण-स्पर्श ।

मैं यहाँ कुशलपूर्वक हूँ और आशा करता हूँ कि आपलोग भी सकुशल होंगे । आज मेरी वार्षिक का परीक्षाफल प्राप्त हुआ है । यह जानकर आपको खुशी होगी कि मैंने कक्षा में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया है । पिताजी, यह आपके चरणों का प्रताप और माताजी के आशीर्वाद का फल है।

हमारे सभी अध्यापक बड़े स्नेह से पढ़ाते हैं। आगे परीक्षा में भी मुझे ऐसी ही आशा है । चाचा कचाची दोनों मेरा बड़ा ध्यान रखते हैं । माता जी की याद मुझे कभी-कभी बेचैन कर देती है । उनको मेरा प्रणाम, और लता को मेरा प्यार कहिएगा ।

पता :

आपका आज्ञाकारी पुत्र
रोहन कुमार

निर्धन-छात्रकोष से सहायता हेतु प्रधानाध्यापक
को आवेदन-पत्र

सेवा में,
श्रीमान् प्रधानाध्यापक महोदय,
राजकीय मध्य विद्यालय, पटना

मान्यवर,
सेवा मे नम्र निवेदन है कि मैं बहुत गरीब छात्र हूँ। मेरे पिताज़ी मजदूरी करके किसी तरह परिवार का पालन करते हैं । हमलोगों के पास पैतृक सम्पत्ति नहीं है । धनाभाव के कारण पिताजी मेरे लिए किताबें नहीं खरीद सकते हैं। मेरी पढ़ने की उत्कट इच्छा है । इसके लिए आप-जैसे कृपालु महानुभव की सहायता की अपेक्षा करता हूँ।

अतः श्रीमान् से प्रार्थना है कि मूझे निर्धन-छात्रकोष से किताबें खरीदने . के लिए उचित रकम प्रदान कर कृतार्थ करें। इस कार्य के लिए मैं सदा आपका आभारी बना रहूँगा ।

दिनांक :
24.1.2012

आपका आज्ञाकारी छात्र
विपिन ठाकुर

आर्थिक दण्ड माफ करने के लिए आवेदन-पत्र

श्रीमान् प्राचार्य महोदय,
उच्च विद्यालय, सीतामढ़ी

महाशय,

सेवा में निवेदन है कि कल दिनांक 8.4.2012 को भूल से वर्ग के शीशे का एक ग्लास मुझसे टूट गया । मैं पानी पीने ग्लास लेकर नल के पास गया । ___ हाथ से गिर जाने के कारण ग्लास टूट गया । वर्गशिक्षक महोदय ने इस गलती के लिए मुझ पर आठ रुपये का आर्थिक दण्ड लगाया है । मैं एक गरीब छात्र हूँ। मेरे पिताजी दण्ड की रकम देने में असमर्थ हैं।

अतः श्रीमान् से प्रार्थना है कि उपर्युक्त दण्ड माफ करने की कृपा की . जाय । मैं इस प्रकार की गलती फिर कभी नहीं करने का वचन देता हूँ।

दिनांक :9-4-2012

आपका आज्ञाकारी छात्र
आलोक कुमार
वर्ग : दशम

Bihar Board Class 6 Hindi रचना पत्र-लेखन

दहेज-प्रथा के विरुद्ध जनमत तैयार करने के लिए संपादक को पत्र

सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक जागरण,
पटना।

विषय-दहेज : एक कुप्रथा

मान्यवर,

आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र ‘दैनिक जागरण’ के माध्यम से मैं ‘दहेज-प्रथा’ का वर्णन कर रहा हूँ। आप इसे अपने समाचार-पत्र में प्रकाशित करने की कृपा करें।

दहेज की कुप्रथा ने आज भारतीय समाज को बुरी तरह कुचल कर रख . दिया है। विशेषकर जिन घरों में एक-से अधिक कन्याएँ होती हैं, वहाँ दहेज का भूत गीध की तरह सदा मँडराता रहता है । इस समस्या ने नारी-जीवन को तहस-नहस करके रख दिया है।

दुर्भाग्य से आजकल दहेज की जबरदस्ती माँग की जाती है । दूल्हों के भाव लगते हैं । इस बुराई की सीमा यहाँ तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित हैं, समझदार हैं, उसका भाव उतना ही तेज है । डॉक्टर, इंजीनियर का भाव पंद्रह-बीस लाख रुपये, आई० ए० एस० का पचास-साठ लाख, प्रोफेसर का पाँच-दस लाख, ऐसे अशिक्षित व्यापारी, जो खुद कौड़ी के तीन बिकते हैं, उनका भी भाव कई बार लाखों तक जा पहुँचता है। ऐसे में कन्या का पिता कहाँ मरे?

इस प्रथा के दुष्परिणाम विभिन्न रूपों में दिखाई देते हैं । इसे रोकने के उपाय स्वयं समाज के हाथ में हैं। हमें सबसे अधिक आशा है युवक-युवतियों से, जो दहेज के दैत्य से कड़ा मुकाबला कर सकते हैं ।

भवदीय,
अमरेन्द्र रावत मेन बाजार,
दरभंगा।
दिनांक : 21-3-2012

Bihar Board Class 6 Hindi रचना निबंध लेखन

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अनुशासन

नियमानुकूल आचरण अनुशासन है । ये नियम परिवार, समाज और राष्ट्र के अलावा, अपने आप को मर्यादित रखने के लिए होते हैं। अनुशासन की शुरुआत वस्तुतः अपने पर शासन से होती है। संयमपूर्वक जीवन-यापन ही __ अपने पर शासन है । हमारे ऋषि-मुनियों ने इसके लिए कुछ नियम बनाये हैं। इन्हें अपने जीवन में उतारकर हम अपने-आप को निखार सकते हैं. विकसित कर सकते हैं । प्रकृति के सारे कार्य अनुशासनबद्ध है ।

आदमी एक सामाजिक प्राणी है । समाज का सही संचालन तभी हो सकता है, जब हमारे बात-व्यवहार एक-दूसरे के सुख-दुःख को दिमाग में रखकर किए जाते हैं । इसके लिए अपने को बाँधना पड़ता है और अपने स्वार्थ का परित्याग करना होता है।

राष्ट्र का तो विकास ही अनुशासन पर आश्रित है । यदि सुरक्षा के लिए सैनिक सदा सतर्क न रहें, सरकारी सेवक समय पर कार्यों को निपटाये नहीं, शिक्षक ज्ञान को विद्यार्थियों में बाँटे नहीं, छात्र अपने मूल कर्त्तव्य विद्याध्ययन से जी चुराये, किसान अन्न-उत्पादन में निरन्तर वृद्धि के लिए प्रयत्न न करे तो देश कहाँ जाएगा ? यदि सभी अपने-अपने मन की करने लगे तो पूरे देश में अराजकता फैल जाएगी । नतीजा होगा कि कोई-न-कोई धर दबोचेगा और फिर हम गुलाम बनकर रह जाएंगे ।

आज के बच्चों के ऊपर ही कल देश को चलाने का भार होगा । इसलिए जरूरी है कि हम शुरू से ही अनुशासन को जीवन में अपनाकर चलें । इससे हम अनुशासित जीवन जीने के आदी हो जायेंगे और अपने साथ देश-समाज को दुनिया में प्रतिष्ठा दिला सकेंगे । हम याद रखे कि अनुशासित राष्ट्र ही सफलता की ऊँचाई छू सकता है।

Bihar Board Class 6 Hindi रचना निबंध लेखन

पुस्तकालय

‘पुस्तकालय’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है । ‘पुस्तक’ और ‘आलय’। पुस्तक का अर्थ किताब और आलय का अर्थ घर होता है । अतः ‘पुस्तकालय’ शब्द का अर्थ ‘पुस्तकों या किताबों का घर’ होता है । जहाँ पर सामूहिक और व्यवस्थित ढंग से पढ़ने के लिए पुस्तकें रखी रहती हैं, उस स्थान को ‘पुस्तकालय’ कहा जाता है । प्रत्येक विद्यालय में पुस्तकालय का रहना आवश्यक है। हमारे विद्यालय में भी पुस्तकालय है । पुस्तकालय में ज्ञानवर्द्धक और लाभदायक पुस्तकें होनी चाहिए ।

पुस्तकों, को पढ़कर ही कोई विद्वान हो सकता है । लेकिन एक आदमी अपनी जरूरत की सारी किताबें अपने पास नहीं रख सकता है । सभी किताबें सब दिन मिलती नहीं हैं । ऐसे में एक आदमी सारी किताबों को खरीद भी नहीं सकता है । पुस्तकालय से किताबें लेकर हम अपनी जरूरत पूरी करते हैं। यहाँ से कोई भी आदमी एक निश्चित समय के लिए पुस्तकें प्राप्त कर सकता है और बाद में पढ़कर उस पुस्तक को फिर पुस्तकालय में वापस कर देता है। इस तरह के अदल-बदल के द्वारा एक ही पुस्तक से बहुत लोगों को लाभ होता है। हम अपना समय बेकार की बातचीत में बर्बाद कर देते हैं । पुस्तकालय में जाकर पुस्तकों का अध्ययन करने से समय का सदुपयोग होता है । यह स्वस्थ मनोरंजन भी है । जो गरीब छात्र हैं वे पुस्तकालय से पुस्तक प्राप्त करके अपनी पढ़ाई पूरी कर सकते हैं । अतः आधुनिक जीवन में पुस्तकालय एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक संस्था है।

हमारी विद्यालय में पुस्तकालय का प्रभारी एक शिक्षक हैं । छात्र-संघ का एक प्रधानमंत्री होता है । वह प्रत्येक वर्ग के छात्रों को किताबें देता है । प्रत्येक वर्ग को सप्ताह में एक दिन किताबें दी जाती हैं । उसी दिन पहले की ली. गई किताबें छात्र वापस भी करते हैं । शिक्षक-छात्र बौद्धिक स्तर के अनुसार सुरुचिपूर्ण किताबें चुनकर देते हैं ।

पुस्तकालय विद्यालय का प्राण होता है । हमलोगों को पुस्तकालय का भरपूर उपयोग करना चाहिए । इसमें विभिन्न विषयों की पुस्तकें रहती है, इन पुस्तकों के पढ़ने से हमारे ज्ञान की वृद्धि होती है।

समाचार-पत्र

मनुष्य स्वभाव से जिज्ञासु होता है । वह नित्य नवीन जानकारियाँ प्राप्त करना चाहता है । पहले इस जिज्ञासा के समाधान के लिए ऐसा कोई साधन नहीं था, जो आज समाचार-पत्रों के रूप में हमें सुलभ है । समाचार-पत्रों की उत्पत्ति की कहानी, सोलहवीं सदी में इटली से आरंभ होती है । मुद्रण-यंत्रों के आविष्कार से इनका विकास होता गया । आज विश्व-भर में इनका प्रचलन है।

समाचार-पत्र कई तरह के होते हैं । जैसे-दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक तथा मासिक-पत्र । समाचार-पत्र के मुख्यतः दो भेद होते हैं ‘सामान्य’ और _ ‘विशिष्ट’ । ‘सामान्य’ समाचार-पत्र सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक . आदि विषयों से संबंधित होते हैं । ‘विशिष्ट’ समाचार-पत्रों में विशेष व्यवसाय या पेशे से संबंधित समाचार होते हैं । सामाचार-पत्र लोकतंत्र के प्रहरी हैं। आज विश्व भर में लोकतंत्र का बोलबाला है । समाचार-पत्र इस क्षेत्र में जनता के मार्गदर्शक होते हैं । समाचार-पत्रों के माध्यम से लोग अपनी इच्छा, विरोध

और आलोचना प्रकट करते हैं । इनसे राजनीतिज्ञ भी डरते हैं । नेपोलियन ने कहा था- “मैं लाखों विरोधियों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों से भयभीत रहता हूँ।” समाचार-पत्र राजनैतिक क्रिया-कलापों का पूर्ण व्योरा प्रस्तुत करते हैं । इसी के आधार पर जनता अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती है।

आज के समाचार-पत्र विविधतापूर्ण होते हैं । प्रचार-माध्यम के रूप में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। यदि कोई अपने विचार या रचना को देशव्यापी बनाना चाहता है, तो वह समाचार-पत्रों का सहारा लेता है । इससे उसकी बात देश-भर में फैल जाती है। व्यापार के फैलाव के लिए भी ये अत्यन्त उपयोग हैं। इनमें छपे विभिन्न विषयों के लेखों से हमारा ज्ञान-विस्तार होता है । इनसे हम नए विचारों पर चिन्तन करना, इन्हें अपनाना सीखते हैं।

समाचार-पत्र देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता जैसी बुराइयों को दूर करने में भी सहायक हो सकते हैं । ये अपनी आलोचनाओं से सामाजिक तथा राजनैतिक बुराईयों का पर्दाफाश कर सकते हैं । यह तभी सम्भव है, जब समाचार-पत्र स्वतंत्र तथा निष्पक्ष हों और अपने उत्तरदायित्वो को ईमानदारी से निभाते हों।

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विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन फूलों की सेज नहीं, काँटों का ताज है, किन्तु ये काँटे फूल बनाये जा सकते हैं । यह जीवन सरल नहीं है, किन्तु इसे सरल बनाया जा सकता है । इसके लिए दृढ़ निश्चय की, घोर परिश्रम की और पूर्ण शिक्षण की आवश्यकता है।

यह जीवन विद्यालय से प्रारम्भ होता है । विद्यालय वह स्थान है जहाँ जीवन की तैयारी की पहली शिक्षा मिलती है । यह मात्र पठन-पाठन का स्थान नहीं, प्रत्युत् जीवन-निर्माण, चरित्र-निर्माण की पवित्र भूमि है । जीवन का यह भाग विद्यार्थी जीवन कहलाता है ।

बच्चे का भविष्य उसके विद्यार्थी जीवन से जाना जा सकता है । यह भावी जीवन की तैयारी का काल है। मनुष्य इसी काल में विविध ज्ञान और अनेक गुणों की तैयारी करता है । इसी काल में उस जीवन-कक्ष का बीज-वपन होता है जो आगे चलकर फूलता-फलता है। हम इस काल में जैसा कर्त्तव्य करेंगे, भावी जीवन में वैसा ही फल मिलेगा। … विद्यार्थी जीवन निर्माण का काल है । इस निर्माण-काल में शिक्षा और उपदेश की, नियम और प्रतिबन्ध की एवं अनुशासन और संकल्प की आवश्यकता होती है । हमें इन गुणों को अपनाना पड़ता है । इनकी कमी से अनर्थ हो जाने की संभावना रहती है। हमें अपने शिक्षकों और अभिभावकों को नहीं भूलना है। इनके बताये मार्ग पर चलकर ही हम अपने में आत्मनिर्भरता, कर्तव्यपरायणता और अनुशासन आदि गुणों का विकास कर सकते हैं।

छात्र-जीवन का प्रधान कर्त्तव्य है पठन-पाठन । उसे चाहिए कि वह अध्ययन, अध्यवसाय और अनुशासन का मूल्य समझे । उसके लिए संयम नियम की नितान्त आवश्यकता है। इसी से जीवन प्रतिष्ठित हो सकता है। इसके अभाव में मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान का स्वप्न चूर हो जाता है । अंगेजी में एक कहावत है-“Student life is golden life” अर्थात् विद्यार्थी जीवन स्वर्णिम जीवन होता है । इस जीवन की चमक सदा अक्षुण्ण रहे इसका ध्यान प्रत्येक विद्यार्थी को रहना चाहिए ।

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हमारे प्रिय शिक्षक

लाल बिहारी बाबू हमारे वर्ग शिक्षक हैं । वे पाठ को मानो घोल कर पिलाते हैं । क्या मजाल कि उनके पढ़ाते समय कोई तनिक आवाज भूल से भी करे।

जुल्म और जबरदस्ती लाल बिहारी बाबू को बर्दाश्त नहीं । बाबू राम नारायण सिंह का पुत्र भी हमारे ही विद्यालय में पढ़ता है । वे गाँव के बड़े ही प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं । विद्यालय के संचालकमंडल में भी दखल रखते हैं। एक बार उनके पुत्र ने ताव में आकर अपने साथ पढ़ने वाले हरिजन लड़के को बेवजह पीट दिया । लाल बिहारी बाबू इस अनाचार को भला कब बर्दाश्त कर सकते थे ? उतने क्रोध में पहली बार लाल बिहारी बाबू को मैंने देखा था, बेंत की छड़ी तडातड़ उस लड़के की पीठ पर पड़ रही थी । लाल बिहारी बाबू के मुँह से एक ही बात बार-बार निकल रही थी, “अरे बुद्ध ! तूम अपने सहपाठी को नीचा मानता है । तू नीच है” । वह लड़का जब घर पहुंचा तो उसके पिताजी ने सारी बात जान ली। पन्द्रह-बीस मिनट में ही लड़के को साथ लिये बाबू रामनारायण सिंह ने आते ही अपने लड़के को आज्ञा दी, “गुरुजी के पैर पकड़, शपथ ले कि आगे फिर ऐसी हरकत नहीं करेगा ! अपने साथी से अपने किए के लिए माफी माँग” | लाल बिहारी बाबू की आँखों से आँसू की धारा बह रही थी और वे हकलाते हुए कहते जा रहे थे-“खोट मुझमें है रामनारायण बाबू ! मैं लड़के को सच्ची शिक्षा नहीं दे सका कि आज आशीष देनेवाले हाथ में छड़ी उठानी पड़ गई।”

भला, ऐसे वर्ग-शिक्षक को कौन भुला सकता है ? आज सारा गाँव वस्तुतः उनके चरणों में नतमस्तक है।

बाढ़

जब नदियों का जल बढ़कर आस-पास के इलाके में फैल जाता है, तब कहा जाता है कि नदियों में बाढ़ आ गई है । अत्यधिक वर्षा और बर्फ के अधिक पिघलने से नदियों में पानी बढ़ जाता है । यह बढ़ा हुआ जल नदी के दोनों किनारों के ऊपर आ जाता है । तब पानी में आस-पास की जमीनें डूब जाती है । बाढ़ प्रायः बरसात के समय आती है । कभी-कभी किसी-किसी नदी में जोरों की बाढ़ आती है । इससे नदी के किनारे के गाँव डूब जाते हैं।

जल-शक्ति के सामने कोई भी टिक नहीं सकता है । किसी भी स्थान के लिए बाढ़ एक प्राकृतिक प्रकोप है।

बाढ़ आने से अत्यधिक हानियाँ होती हैं । अचानक बाढ़ से गाँव-के गाँव बह जाते हैं । बहुत से आदमी और पशु डूबकर मर जाते हैं । खेतों में लगी हुई फसलें बर्बाद हो जाती हैं । गाँवों में कच्चे घर गिर जाते हैं । बाढ़-वाले क्षेत्रों के लोग बेघर होकर ऊँचे स्थानों, सडकों और स्टेशनों में शरण लेते हैं। बड़े-बड़े वृक्ष बाढ़ की धारा में उखड़ कर बह जाते हैं। बाढ़ के समय नदियाँ अपनी धारा भी बदलती हैं । उपजाऊ जमीन पर बाढ़ के समय बालू जमा हो जाते हैं और जमीन ऊसर हो जाती है। बाढ़ जब उतर जाती है तो पानी नदी में चला जाता है। चारो ओर गंदगी फैली रहती है। पानी में घास-फूस आदि के सड़ने से बहुत-सी बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । खासकर पशुओं में बीमारी तेजी से फैलती है।

बाढ़ के जल में मिट्टी के चिकने और उपजाऊ कण रहते हैं। बाढ के समय ये कण हमारे खेतों में जमा हो जाते हैं । इससे हमारे खेतों की उर्वश शक्ति बढ़ जाती है । अगले वर्ष बहुत अच्छी फसल होती है । बाढ़ से गाँवों की सफाई भी हो जाती है ।

‘बाढ़ से हानियाँ भी ज्यादा हैं। इससे बचाव के लिए सरकार प्रयत्न कर रही है । बाढ़वाली नदियों के किनारे पर तटबन्ध बनाये जा रहे हैं । बाढ़ के जल के उपयोग की भी योजनाएं बनायी जा रही हैं । बाढ़ से ज्यादा नुकसान सुखाड़ से होती है।

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वर्षा-ऋतु

भारतवर्ष के अन्दर छह ऋतुएँ होती है-1. वसन्त, 2. ग्रीष्म (गर्मी), 3. वर्षा, 4. शरद् (जाड़ा), 5. हेमन्त और 6. शिशिर । हम इन छहों ऋतुओं को तीन भागों में बाँट सकते हैं-गर्मी, वर्षा और जाड़ा । वर्षा ऋतु मुख्यतः आषाढ़ और सावन में आती है, लेकिन इसका प्रभाव आश्विन तक बना रहता है। वर्षा-ऋतु का आगमन ग्रीष्म (गर्मी) के बाद होता है ।

वर्षा ऋतु के आते ही आकाश में काले-काले बादल छा जाते हैं । बादल गरजने लगते हैं । भारी वर्षा प्रारम्भ हो जाती हैं । वर्षा के जल से धरती की जलती हुई छाती शीतल हो उठती है। जीव-जन्तुओं में खुशियाली छा जाती है । ग्रीष्म-ताप से झुलसे हुए पेड़-पौधे फिर से नये पत्तों से लदने लगते हैं। धीरे-धीरे धरती पर हरियाली छाने लगती है। वर्षा-ऋतु में दिन-रात वर्षा होती रहती है । बादलों की गरज और बिजली की कड़क गड़ा भयावनी होती है।

जल ही जीवन है । अत: वर्षा-ऋतु में धरती को नया जीवन मिलता है। चारों ओर हरियाली छा जाने से पृथ्वी का दृश्य देखने योग्य हो जाता है। नदी और ताल-तलैया जल से लबालब भर जाते हैं । किसानों के लिए यह बहुत खुशी का समय होता है । इसी समय धान और मकई की मुख्य फसलें बोई जाती है। रब्बी की फसल के लिए जमीन में तरी आती है। भारत की खेती वर्षा-ऋतु पर निर्भर है। – इस ऋतु से कुछ हानियाँ भी होती हैं । अधिक वर्षा के कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है, जिससे गाँव बह जाते हैं । लगी हुई फसलें नष्ट हो जाती हैं । यातायात ठप हो जाता है । पशु-पक्षी अधिक वर्षा के कारण भींग-भीग कर मर जाते हैं । गड्ढे में पानी जम जाता है, जिससे बीमारियाँ पैदा होती हैं।

इतना होने पर भी वर्षा-ऋतु से लाभ ही अधिक है। खेती के लिए यह आवश्यक ऋतु है । वर्षा नहीं हो तो धरती वीरान और रेगिस्तान बन जाएगा।

वसन्त-ऋतु

भारत सौन्दर्यमयी प्रकृति की गोद में बसा हुआ सुषमा सम्पन्न देश है। इसे ‘प्रकृति का पालना’ भी कहा जाता है । यहाँ प्रकृति अपने रंग-बिरंगे मोहक रूपों में देखने को मिलती है । वर्ष की छह ऋतुएँ एक के बाद दूसरी क्रमसे आकर विविध रूपों में भारत-भूमि का श्रृंगार करती है । वसन्त ऋतुओं की इस माला का सबसे सुन्दर और चमकता हुआ मोती है । ऋतुराज वसन्त के आते ही उसकी मादकता हर स्थान पर छा जाती है और प्रकृति राजरानी की तरह सजने लगती है ।

ऋतुराज वसन्त के आगमन से ही शीत का भयंकर प्रकोप भाग जाता है । वसन्त का आगमन फागुन में होता है और वह चैत तक रहता है। वसन्त के आते ही पश्चिम-पवन वृक्ष के जीर्ण-शीर्ण पत्तों को गिराकर उन्हें स्वच्छ और निर्मल बना देता है । वृक्षों और लताओं के लहकते हुए नवकिसलय-दल दिखने लगते हैं । रंग-बिरंगे विविध पुष्यों की सुगन्ध दशों-दिशाओं में अपनी मादकता का संचार करने लगती है । जलवायु सम हो जाती है-न शीत की कठोरता और न ग्रीष्म का ताप । कोयल की कूक चारों ओर सुनाई पड़ने लगती है । शीत के ठिठुरे अंगों की शिथिलता मिट जाती है और उन अंगों में जीवन की नई स्फूर्ति उमड़ने लगती है । वसन्त के आगमन के साथ ही जैसे जीर्णता और पुरातनता का प्रभाव तिरोहित हो जाता है।

वसन्त में प्रकृति के कण-कण में नवजीवन का संचार हो जाता है । ऐसे में ही हँसी-खुशी के.साथ होली आती है और सबको झुमा डालती है। इसलिए होली को वसंतोत्सव भी कहा जाता है । इस समय खेतों में पकी हई फसलें लहराती रहती हैं । हर्ष में डूबे किसान अपनी फसलों को देखकर नाचने लगते हैं। ढोल की थाप ओर मैंजीरों की सकती ध्वनि से वातावरण गूंजने लगता है और ऐसा प्रतीत होता है मानों संसार में सुख-ही-सुख, आनन्द-ही-आनन्द है। वसन्त की इस मस्त कर देनेवाली माधुरी की प्रशंसा कवियों और लेखकों ने मुक्तकंठ से की है।

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15 अगस्त (स्वाधीनता दिवस)

हमारे देश का सबसे महत्त्वपूर्ण और स्वर्णिम दिन है-15 अगस्त, 1947। इसी दिन हम सदियों की गुलामी की जंजीरें तोड़कर आजाद हुए । दुनिया के आजाद देशों के आकाश में एक नया सितारा जगमगा उठा-स्वाधीन भारत ।

15 अगस्त हमारा राष्ट्रीय त्योहार है । इसी दिन, देश के भाग्य ने पलटा खाया, आजादी मिली । इसके लिए हमारे देश के लाखों लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाई । अपनी सारी जिंदगी या जवानी जेल के सीखचों के अन्दर गुजार दी। कितनी माताओं के लाल छिने, कितनी सुहागिनों के माँग धुले तब जाकर यह दिन आया । अमानवीय आत्याचारों से ऊबकर स्वतंत्रता-प्रेमी भारतीयों के हृदय में तीव्र आक्रोश पैदा हुआ और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव हिली, सत्य और अहिंसा के अस्र के सामने अंग्रेजों की कठोरता प्रकम्पित हो उठी । 15 अगस्त, 1947 को शताब्दियों की खोई स्वतंत्रता भारत को पुनः प्राप्त हो गई । सारे देश में स्वतंत्रता की लहर दौड़ गई । लालकिले पर देश का अपना तिरगा झंडा लहराया । एक नये अध्याय की शुरुआत हुई।

लेकिन 15 अगस्त का दूसरा पहलू भी है । इसके एक दिन पूर्व मातृभूमि के दो टुकड़े हो गए । भारत का एक अंग कटकर पाकिस्तान बना । अखंड भारत का सपना बिखर गया । इस प्रकार एक ओर यह दिन हमारे लिए हर्ष’ का है तो दूसरी ओर विषाद का भी है। प्रतिवर्ष यह राष्ट्रीय पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है । विद्यालय के छात्र अपने इस ऐतिहासिक उत्सव को बड़े उल्लास और उत्साह के साथ मनाते हैं । उसी दिन राज्यों की राजधानियों में भी किसी सार्वजनिक स्थानों पर मुख्यमंत्री के कर-कमलों द्वारा झंडा फहराया जाता है । सभी सरकारी कार्यालयों में भी काफी सरगर्मी के साथ तिरंगा झंडा फहराया जाता है तथा लोग अपने-अपने घरों पर भी तिरंगा झंडा फहराते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में विशेष आयोजन होता है । प्रधानमंत्री लालकिले पर झंडा फहराने के बाद राष्ट्र को संबोधित करते हैं । राज्यों की आकर्षक झाँकियाँ निकाली जाती हैं।

यद्यपि हमें आजादी मिल गई है तथापि देश की स्थिति दयनीय है, अशिक्षा है, भ्रष्टाचार है, भूख है, गरीबी है । इन्हें मिटना होगा, तभी हम सही अर्थ में स्वतंत्र देश के आदर्श नागरिक बन सकेंगे।

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हमारा देश : भारत

भारत हमारा प्यारा देश है । हम सभी भारत माता की संतान हैं । मनुष्य का जहाँ जन्म होता है, वहाँ वह पलता-बढ़ता है, वह मनुष्य की जन्मभूमि होती है। भारत हमारी जन्मभूमि है । यहीं की मिट्टी, हवा और पानी में हम पले हैं। हमारे लिए यह स्वर्ग से भी बढ़कर है । यह एक महान देश है और संसार का शिरोमणि है।

जब दुनिया के अन्य देशों के लोग असभ्यावस्था में जंगलों में घूमते थे, उस समय भारत में वेद की ऋचाएं गूंजती थीं । भारत भूमि अवतारों, ऋषियों, मुनियों एवं महात्माओं की तपोभूमि है । यहीं पर दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, रवीन्द्रनाथ टैगोर और महात्मा गाँधी जैसे महान आत्माओं ने भारत का मान विश्व में ऊँचा किया है। – इसके उत्तर में नेपाल-चीन ओर तिब्बत हैं। इसके दक्षिण में हिन्द महासागर है । इसके पूरब में बंगाल की खाड़ी और म्यांमार (बर्मा) हैं । भारत के पश्चिम में अरब सागर, पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं । उत्तर में संसार का सबसे ऊँचा पर्वत हिमालय भारत माता के सिर का जगमगाता मुकुट है।

प्राकृतिक दृष्टि से यह एक सम्पन्न देश है । यहाँ की नदियों में सालों भर मीठे जल का प्रवाह होते रहता है। गंगा और ब्रह्मपत्र के उत्तरी मैदान काफी उपजाऊ हैं । अनेक प्रकार के अन्न यहाँ उपजते हैं । यहाँ नदियों का जाल बिछा है । यहाँ की जलवायु मानसूनी और उत्तम है । भारत के पठारी भाग के गर्भ में खनिज-रत्नों का भंडार छिपा है । चारों ओर फैली वन-सम्पदा इसके ऐश्वर्य में चार चाँद लगाती है । भारत सदा शान्ति और अहिंसा का पुजारी रहा है । आज भी भारत अपने इस पुनीत संदेश को सारी दुनिया में फैला रहा है ।

भारत के लोग महान राष्ट्रप्रेमी हैं । इसकी मान-प्रतिष्ठा के लिए यहाँ के लोग सदा अपना बलिदान देने के लिए तैयार रहते हैं । हमारे अन्दर देश-प्रेम की भावना सदा भरी रहनी चाहिए । तभी देश सुरक्षित रहेगा ।

होली

ऋतुओं में वसन्त का, फूलों में गुलाब का और रसो में शृंगार का जो महत्त्व है, वही स्थान त्योहारों में होली का है । मात्र यही एक त्योहार है जिसमें वसन्त की सुषमा, गुलाब की खुशबू और श्रृंगार की मादकता का अपूर्व संयोग है। यह हँसी-खुशी का पर्व है । दिन-रात अपनी कर्म-संकुलता में उलझे मनुष्य को यह पर्व आनन्द और प्रसन्नता से भर देता है।

इस पर्व के पीछे भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहाद भगवान विष्णु का भक्त था । हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को मरवाने “की हरचन्द कोशिश की, पर भगवान की कृपा से वह सदा बचता गया । प्रह्लाद की बुआ होलिका के पास वरदानयुक्त एक चादर थी, जिसे ओढ़कर कोई भी आदमी आग में नहीं जलता था । अन्त में हिरण्यकशिपु के कहने पर होलिका ” ने वही चादर ओढ़ ली और प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर गई। भगवत्कृपा से उसी समय जोरों की हवा चली और होलिका की चादर प्रह्लाद के शरीर से लिपट गई । प्रहाद भगवान का नाम लेता हुआ चिता से बाहर आ गया और होलिका जल मरी । इसी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है।

यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । रात्रि में होलिका दहन होता है और सुबह लोग एक-दूसरे पर रंग डालते हैं । दोपहर के बाद स्नान के पश्चात् अबीर-गुलाल का कार्यक्रम प्रारंभ होता है। उस दिन हर चेहरा एक रंग में रंग जाता है । न कोई बड़ा होता है न छोटा, न कोई ऊँच होता है न नीच, न कोई धनी होता है न निर्धन । बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष सभी एक ही रंग में रंगे हुए. एक ही मस्ती में मस्त । इस दिन हर गाँव का गली-कृचा ‘मोहन खेले होली हो’ की ध्वनि से गूंजने लगता है । हर स्थान पर मालपूआ और पकवान की सोधी गंध फैलने लगती है । ढोल और मँजीर की ध्वनि से आकाश गूंजने लगता है । सारा वैर-भाव भूलकर सभी एक-दूसरे को गले मिलते हैं। .. आज की भौतिकवादी दुनिया में होली की खुशियों की झोली बहुत कुछ खाली हो गयी है, फिर भी इसमें अन्य त्योहारों से अधिक खुशियाँ हैं । इस सामाजिक पर्व को भाइचारे और सहृदयता से ही मनाया जाना चाहिए ।

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दुर्गापूजा या विजयादशमी

दुर्गापुजा हिन्दुओं का सर्वप्रमुख पर्व है । इस पर्व को कहीं दशहरा, कहीं शारदीय नवरात्रपूजा और कहीं विजया दशमी भी कहा जाता है । इस पर्व को मुख्य रूप से बिहार, बंगाल और उत्तर प्रदेश के लोग बड़ी धूम-धाम से मनाते हैं। दुर्गापूजा शक्ति की उपासना है । यह अधर्म पर धर्म की, असत्य पर सत्य की विजय का पर्व है।

दुर्गापूजा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के विषय में कई तरह की धार्मिक कथाएँ प्रचलित हैं। कुछ लोग कहते हैं कि राम नं इसी दिन रावण का वध किया था । उसकी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है । कुछ लोगों के अनुसार महिपासुर नामक असुर महान शक्तिशाली एवं पराक्रमी था । उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था । स्वर्ग-च्युत भयातुर देवताओं ने भगवान विष्णु की स्तुति-आराधना की । ब्रह्मा, विष्णु, महेश-इन त्रिदेवों के शरीर से तथा सभी देवताओं के शरीर से थोड़ा-थोड़ा तेज निकला और सबके सम्मिलित तेज-पुंज से नारी रूप में आदिशक्ति माता दुर्गा प्रकट हुई । देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र माता को प्रदान किए । माता हुंकार करती – हुई युद्ध के मैदान में पहुंची और प्रचंड बली महिषासुर का वध किया । उसी विजय के उपलक्ष्य में दुर्गापुजा का पर्व मनाया जाता है । कथाएँ जो भी सत्य हो, पर यह पूर्णतः सत्य है कि यह पर्व असत्य पर सत्य की, अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गापूजा का पर्व दस दिन तक मनाया जाता है । आश्विन मास के शुक्लपक्ष के प्रारम्भ में ही कलश-स्थापन होता है और माता दुर्गा की पूजा प्रारम्भ हो जाती है । बड़ी निष्ठा, श्रद्धा-भक्ति, बड़े उल्लास और धूम-धाम से दुर्गापूजा की जाती है । दशमी को यज्ञ की समाप्ति के बाद विर्जन का काम होता है । इस अवसर पर कहीं-कहीं मेला लगता है तथा विभिन्न स्थानों पर संगीत-समारोह का भी आयोजन किया जाता है।

दुर्गापूजा के अवसर पर सभी शिक्षण-संस्थान और सरकारी कार्यालय बन्द कर दिये जाते हैं । सभी लोग मिल-जुलकर इस पर्व को मनाते हैं । इस पुनीत अवसर पर हम सबको अपनी संस्कृति से शील और शक्ति की सीख लेनी चाहिए । यह उत्सव मात्र प्रचण्ड शक्ति का ही प्रचार नहीं, बल्कि इसके सात्त्विक तेज का भी प्रेरक है । अतः सबको सात्विक भाव से ही माँ दुर्गा की पूजा करनी चाहिए । इस पूजा के चलते अगर धार्मिक द्वेष उत्पन्न होता है, तो निश्चित रूप से पूजा का मूल उद्देश्य नष्ट हो जाता है ।

मेरे प्रिय कवि : तुलसीदास

सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, नन्ददास आदि भक्त कवियों की काव्यकृतियों के रसास्वादन करने का सुअवसर हमें मिला । किन्तु महाकवि तुलसीदास की रचनाओं-रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली में भक्ति-भावना के उद्रेक की जितनी क्षमता विद्यमान है, उतनी किसी कवि की रचनाओं में नहीं । उनकी रचनाओं में काव्य-सौष्ठव के दोनों पक्षों-भावपक्ष और कलापक्ष का अद्भुत , समन्वय हुआ है।

तुलसीदास ने विशृंखलित भारतीय संस्कृति को ठोस रूप प्रदान किया । तुलसीदास का आविर्भाव जिस काल में हुआ था, भारत में वह काल परस्पर विरोधी संस्कृतियों, साधनाओं, जातियों का सन्धिकाल था। देश की सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्थिति विशृंखलित हो रही थी । तुलसीदास ने समाज का सम्यक दिशा प्रदान की। उन्होंने अपने आराध्यदेव मर्यादा-पुरुषोत्तम राम के पावन चरित्र में शौर्य, विनयशीलता, पुरुषार्थ, करुणा तथा वात्सल्य भाव आदि मानवीय विभूतियों को संजोकर रख दिया है । राम के विमल चरित्र में ईश्वरीय एवं मानवीय गुण दोनों समवेत रूप से मुखरित हुए हैं।

यद्यपि महाकवि तुलसीदास के जन्म-स्थान, जन्म-तिथि, माता-पिता, शिक्षा-दीक्षा आदि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है, फिर भी अधिकांश विद्वानों ने इनका जन्म संवत् 1589 के लगभग माना है तथा आत्माराम दूबे को इनका पिता और हुलसी को माता स्वीकारा है। गुरु नरहरिदास के चरणों में रहकर इनकी शिक्षा-दीक्षा हुई । इनका विवाह रत्नावली के साथ हुआ जिन्होंने इन्हें भगवद्-भक्ति की ओर प्रेरित किया !

तुलसीदास सचमुच आदर्शवादी भविष्यद्रष्टा थे । अपने आदर्श चरित्रों के आधार पर उन्होंने भारतवर्ष के भावी समाज की कल्पना की थी । प्रत्येक चरित्र-चित्रण में तुलसी ने मानव वृत्तियों को गंभीरता से देखा-परखा है। इसीलिए पाठक तुलसीदास द्वारा प्रतिपादित अनुभूतियों को उनके राग, वैराग्य, हास्य और रुदन को अपना ही राग-वैराग्य, हास्य और रुदन समझते हैं । यही कवि की सच्ची कला की महानता है।

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प्रदूषण

प्रकृति के विभिन्न घटका में असंतुलन ‘प्रदूषण’ कहलाता है । पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व बना रहे : इसके लिए उसका प्रकृति के साथ समन्वय होना ही चाहिए । प्रदूषण के कारण वयजीव को संख्या में कमी, पारिस्थितिक असंतुलन, प्राकृतिक विपदाएँ, जनसंख्या वृद्धि आदि हैं। पर्यावरण के असंतुलन से ही प्रदूषण बढ़ता है। कारखाने की चिमनियों से निकलनेवाले धुएँ वातावरण को विषाक्त बना रहे हैं, उनके कूड़े-कचड़े तथा गंदी नालियों का बहाव नदियों की ओर किया जा रहा है । जंगलों की धड़ाधड़ कटाई हो रही है और खेतों में मनमाने ढंग से कीटाणुनाशक दवाइयाँ छिड़की जा रही है । इससे प्रदूषण की जटिल समस्याएँ उठ खड़ी हो गई हैं । इस समस्या ने मानव जाति के अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है।

प्रदूषण के अन्तर्गत वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, और मिट्टी-प्रदूषण की चर्चा मुख्य रूप से होती है । भारत में भी प्रदूषण की मुख्य यही समस्याएँ हैं। जल, वायु, मिट्टी हमारे जीवन के लिए अत्यन्त उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन मानव सभ्यता के विकास के साथ इन प्राकृतिक उपादानों की शुद्धता और निर्मलता भी घटती गई है ।

हमें अपने स्वास्थ्य तथा वायु, जल एवं मिट्टी के प्रदूषण की समस्याओं को नियंत्रित रखने के लिए जल्द ही किसी कारगर उपाय का पता लगाना आवश्यक है। वायुमंडल के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए वृक्षारोपण कार्यक्रम में तीव्रता लानी होगी। नदियों के जल-प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दूषित नालियों के प्रदूषित जल के बहाव के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करनी होगी। मिट्टी के प्रदूषण को रोकने के लिए जहरीली खाद पर रोक लगानी होगी । यह कार्य सरकार तथा जनता दोनों के पारस्परिक सहयोग द्वारा ही संभव है। अतः प्रदूषण की समस्या के निराकरण के लिए जन-जागृति और जन-अभिरुचि पैदा करना आवश्यक है । इसीलिए प्रदूषण को पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है ।

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विज्ञान के चमत्कार
अथवा, विज्ञान और हमारा जीवन

विज्ञान का अर्थ है-प्राकृतिक शक्तियों का विशेष ज्ञान । ज्ञान जब शृंखला की कड़ियों में गुँथ जाता है, तो विज्ञान की सृष्टि होती है । ज्ञान चेतना का विज्ञान है और विज्ञान शक्ति का ज्ञान है । ज्ञान परिचय है और विज्ञान शक्ति । ज्ञान चेतना है और विज्ञान उस चेतना के फल का भोग । ज्ञान जिज्ञासा की – तृप्ति है और विज्ञान उस तृप्ति का प्रयोजन । विज्ञान का धरातल प्रयोजन का है, भौतिक क्षेत्र में सुख-सुविधा और समृद्धि की उपलब्धि है । तात्पर्य यह कि “मनुष्य के अनुभव एवं अवलोकन से प्राप्त क्रमबद्ध एवं सुसंगठित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं।”

विज्ञान के साथ नानव जीवन का घनिष्ठ सम्बन्ध है । विज्ञान के चामत्कारिक आविष्कारों के प्रभाव से सारा संसार घर-आँगन-सा प्रतीत होने लगा है । विज्ञान ने ‘समय’ और ‘दूरी’ पर अधिकार कर लिया है । आज विज्ञान द्वारा रेल, मोटर, ट्राम, जलयान, वायुयान, रॉकेट और अंतरिक्ष-यान बनाये जा चुके हैं जिनके द्वारा दो स्थानों के बीच की दूरी समाप्त हो गई है। इतना ही नहीं, विज्ञान ने हमें वायरलेस, टेलीफोन, रेडियो एवं टेलीविजन दिये हैं, जिनके द्वारा संसार भर का समाचार घर-बैठे प्राप्त कर सकते हैं। चलचित्र हमारे मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है । अणुवीक्षण यंत्र के द्वारा हम सूक्ष्मातिसूक्ष्म अदृश्य पदार्थों को भी देखने की सामर्थ्य प्राप्त कर चुके हैं।

तार, टेलीफोन, टैलीपिंटर, बेतार के तार, मुद्रण यंत्र, एक्स-रे आदि विज्ञान के अद्भुत चमत्कार हैं । विज्ञान के चलते ही आज दुनिया का कोई रोग असाध्य नहीं रह गया है । कम्प्यूटर का आविष्कार तो आधुनिक युग का सबसे अद्भुत आविष्कार है । यह मानव के लिए प्रायः सभी क्षेत्रों में सर्वाधिक उपयोगी है । विज्ञान ने बिजली के रूप में मनुष्य को एक महान शक्ति प्रदान की है । शक्ति के अन्य विभिन्न साधन भी विज्ञान की ही देन है । इस प्रकार शिक्षा का क्षेत्र हो या कृषि का या उद्योग का, मानव जीवन के लिए विज्ञान अत्यधिक उपयोगी है।

विज्ञान के उपर्युक्त सभी चमत्कारों को उनके व्यवहार ही निर्देशित करते हैं कि वे मानवता के लिए हितकर हैं या अहितकर । एक ओर विज्ञान ने अगर मनुष्यता के लिए सुख और सुविधाओं का अम्बार लगा दिया है, तो दूसरी ओर उसने मानवता को विनाश के रास्ते पर भी ला खड़ा किया है । विज्ञान ने अनेक भयंकर अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार कर मानवता को खतरे में डाल दिया है। अतः विज्ञान को ‘विज्ञान’ बनाने के लिए उसे जनहितकारी बनाया जाना चाहिए।

कम्प्यूटर और उसका महत्त्व

आधुनिकतम वैज्ञानिक आविष्कारों में कम्प्यूटर एक अद्भुत आविष्कार है । क्या रेडियो, क्या दूरदर्शन क्या चलचित्र–सर्वत्र कम्प्यूटर के सम्बन्ध में प्रचार का कार्य जारी है। कम्प्यूटर एक ऐसा उपयोगी यंत्र है जिससे मनोरंजन या मनबहलाव नहीं हो सकता है । इसलिए जनसाधारण उसकी ओर आकृष्ट नहीं होते और उसका प्रचार विभिन्न माध्यमों से किया जाता है । अतः यह स्पष्ट है कि कम्प्यूटर टंकण यन्त्र आदि की तरह एक कामयाब मशीन मात्र है और इसलिए इसका प्रचार केवल आवश्यकता के अनुरूप ही होता है । इस यंत्र से गणना सम्बन्धी बहुत बड़ा काम अत्यन्त आसानी से क्षणमात्र में हो सकता है ।

चूँकि मानव-मस्तिष्क द्वारा सम्पादित सभी काम कम्प्यूटर से सही-सही और अत्यन्त अल्प काल में हो जाते हैं, इसलिए आधुनिक काल में इसका प्रयोग सभी क्षेत्रों में हो रहा है। बड़े-बड़े व्यवसायों एवं तकनीकी संस्थाओं और प्रशासकीय कार्यालयों में इसके उपयोग से बहुत तरह के कार्य सम्पादित हो रहे हैं । बड़े-बड़े उत्पादनों का हिसाब-किताब लगाने तथा भावी उत्पादन संबंधी अनुमान की गणना करने में कम्प्यूटर से काम लिया जाता है । यही कारण है कि आजकल व्यवसाय, चिकित्सा, अंतरिक्ष कार्यक्रम, प्रतिरक्षा एवं अखबारी दुनिया में कम्प्यूटर सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कम्प्यूटर आधुनिक युग के लिए अत्यन्त आवश्यक है । व्यावसायिक, प्रशासनिक, चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर के प्रयोग से अप्रत्याशित लाभ उठाया जा सकता है । कम्प्यूटर की सहायता से सभी क्षेत्रों में विकास की गति में कई गुनी वृद्धि हुई है। मौसम संबंधी भविष्यवाणी में कम्प्यूटर की गणना बेजोड़ है । इस प्रकार सभी क्षेत्रों के विकास का सही आकलन करके मानव-मात्र का उपकार कर रहा है । आशा है, निकट भविष्य में यह मानव-कल्याण का अचूक साधन प्रमाणित होगा।

दहेज-प्रथा : एक अभिशाप

देहज-प्रथा भारतीय समाज की सबसे विषम कुरीति है । दहेज की रूढ़ि के चलते भारतीय समाज निराशा और कुण्ठा के अन्धकार में भटक रहा है। दहेज-प्रथा रूढ़िवादिता, शोपण एवं सामाजिक अन्धविश्वास का जीता-जागता उदाहरण है। यह विशाल सर्प की तरह पूरे समाज को अपनी कुण्डली में समेटे हुए है । इसने अच्छे-बुरे, ज्ञानी-अज्ञानी, शिक्षित-अशिक्षित सबों को एक सतह पर ला खड़ा किया है । पूरा समाज दहेज की दारुण ज्वाला से धधक रहा है।

आज इस कुप्रथा के चलते बहुत-से वर, योग्य वधू नहीं प्राप्त कर पाते । फलतः जीवन दु:खमय और नारकीय होता जा रहा है । यह कुप्रथा संक्रामक बीमारी की तरह घर-घर में फैलती चली जा रही है । हर कन्या का पिता इस कुप्रथा के चलते चिन्ता-ग्रस्त हैं । जैसे-जैसे कन्या की उम्र बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे परिवार निराशा के अन्धकार में डूबता चला जा रहा है । पिता अपना घर-द्वार, जमीन आदि बेचकर वर के अभिभावक की मांग पूरी करने में लगे हैं । वर-पक्ष की माँग सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती ही चली जा रही है। इस राक्षसी प्रथा के बहुत-से दुष्परिणाम हुए हैं । विवाह मे दहेज की कमी के कारण अनेक कन्याओं की हत्या एवं आत्म-हत्या के समाचारों से अखबार के पन्ने भरे पड़े हैं। बहुत-सारी कन्याओं को इस प्रथा के राक्षस ने लील लिया है, बहुत-से घर इस कुप्रथा को भेंट चढ़ चुके हैं । क्या विडम्बना है, जो आज कन्या की शादी के लिए गली-गली भटक रहे हैं, वही कल लड़के की शादी के लिए अकड़ते और दहेज माँगते हैं । तलवा सहलाने वाला ही सिर पर चढ़ने लगता है।

हम सबको भारतमाता के सिर पर लगे इस दाग को धोना है। इसके लिए समाज के अविवाहित युवक-युवतियों को आगे बढ़कर आदर्श का परिचय देना है । हमारी सरकार भी इस राक्षसी प्रथा को समाप्त करने के लिए कृतसंकल्प है। दहेज लेना और देना दण्डनीय अपराध है । फिर भी यह कुप्रथा फल-फूल रही है, क्योंकि हम सभी इसका सामूहिक विरोध नहीं कर रहे हैं। जिस दिन हम सभी इसके विरुद्ध खड़े हो जायेंगे. उसी दिन यह कुप्रथा समाप्त हो जायेगी ।

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महात्मा गाँधी

“चल पड़े जिधर दो डंग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गये कोटि दृग उसी ओर ।” – सोहनलाल द्विवेदी

धन्य है वह देश जिसने एक-से-एक महापुरुषों को जन्म देकर अपनी मिट्टी का मान और गौरव बढ़ाया है ! इन महापुरुषों ने विश्व को नया प्रकाश और नयी प्रेरणा दी है। प्रातः स्मरणीय महात्मा गाँधी भी महापुरुषों की उसी पंक्ति में आते हैं, जिन्होंने अपने देश ही नहीं, वरन् विश्व-कल्याण को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया ।

महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था । इनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. में गुजरात राज्य के पोरबन्दर नामक स्थान में हुआ था। इनके पिता करमचन्द गाँधी एक रियासत के दीवान थे और माता पुतली बाई एक महान् धार्मिक महिला थीं । इनकी शिक्षा का श्रीगणेश पोरबन्दर की पाठशाला से हुआ । बचपन में ही इनका विवाह कस्तूर वा नाम की बालिका से सम्पन्न करा दिया गया । मैट्रिक पास करने के बाद ये बैरिस्टरी पढ़ने लंदन गए ।

बैरिस्टर बनकर वे बम्बई हाईकोर्ट में वकालत करने लगे, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी । वे एक मुकदमे की पैरवी में दक्षिण अफ्रीका गये, जो इनके क्रान्तिकारी जीवन का श्रीगणेश था । वहाँ उन्होंने प्रवासी भारतीयों के पक्ष में अंग्रेजों का डटकर विरोध किया । दक्षिण अफ्रीका में सफलता एवं अनुभव प्राप्त करके भारत आये । भारत में क्रांति का श्रीगणेश बिहार राज्य के चम्पारण जिले में किया । धीरे-धीरे उनकी आवाज भारत-भर में गूंजने लगी । फिर तो आजादी की लड़ाई का बिगुल बज उठा असहयोग आन्दोलन, ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन एवं ‘करो या मरो’ के नारे ने अंग्रेजों के इस विशाल साम्राज्य की नींव हिला दी इस क्रम में गाँधीजी को कई बार जेल की यात्राएँ करनी पड़ी एवं असहनीय पीड़ाएँ भी झेलनी पड़ी, लेकिन सत्य और अहिसां का वह पुजारी सदा अपने पथ पर चट्टान की तरह अडिग रहा । 15 अगस्त, 1947 को भारत आजाद हो गया । एक हजार वर्षों के बाद भारतीय जनता ने आजादी की हवा में सौस ली । अब गाँधीजी भारत में राम-राज्य लाने के लिए प्रयत्न – करने लगे और भावी योजनाओं पर विचार-विमर्श करने लगे । 30 जनवरी, 1948 ई. संध्या की बेला थी । काल चुपके चुपके आ पहुँचा । प्रार्थना की पवित्र बेला में नाथूराम गोडसे की तीन गोलियाँ चली । गाँधीजी गिरे और ‘हे रामा’ कहते हुए स्वर्ग सिधार गये । इस खबर से भारत ही नहीं, समूचा विश्व शोकाकुल हो उठा । राम-राज्य का स्वप्न अधूरा रह गया !

ईद

हिन्दुओं के लिए जैसे होली, वैसे मुसलमानों के लिए ईद है । दोनों आनन्द के पर्व हैं । इस्लामी हिजरी सन् चन्द्रमास पर आधारित होता है । इसके बारह महीनों में एक महीना “रमजान” का होता है । यह बहुत पवित्र महीना माना जाता है । इस महीने में मुसलमान भाई रोजा रखते हैं, दिनभर रोजा रखने के बाद शाम को नमाज अदा करते हैं । फिर पूरा परिवार सामूहिक रूप से खाते-पीते हैं । इसे ही. रोजा रखना’ कहते हैं । रमज़ान के महीने में पांच बार नमाज अदा करना, रोजा रखना, खैरात देना और नेक कार्यों में लगना आवश्यक होता है।

तीस दिन विधिपूर्वक रोजा रखने के बाद, अगले महीने की पहली तारीख को यानी दूज का चाँद देखकर दूसरे दिन ‘ईद’ का त्योहार मनाया जाता है। चाँद के दर्शन करते ही लोग एक-दूसरे को मुबारकवाद देते हैं । ‘ईद’ को ‘ईद-उल-फितर’ भी कहा जाता है ।

ईद के दिन हर घर में सुबह से ही चहल-पहल रहती है । स्नानादि के बाद नए कपड़े पहनकर सभी बच्चे, बूढ़े, बड़े ईदगाह या किसी बड़े मैदान में जुटते हैं । एक के पीछे दूसरे लोग कतार में खड़े हो जाते हैं । पहले आनेवाला आगे की पंक्ति में होगा । यहाँ कोई मालिक या नौकर, कोई छोटा या बड़ा नहीं होता । खुदा के दरबार में सभी बराबर हैं । एक साथ झुकना – घुटने के बल बैठना, सिर नबाना बड़ी ही खूबसूरत अनुशासन का दृश्य उपस्थित करता है । गरीबों को उस दिन अपनी शक्ति के अनुसार दान देते हैं । उनमें सेवइयाँ और कपड़े बांटे जाते हैं।

ईद की नमाज खत्म होते ही बच्चे मिठाइयों और खिलौने की दुकानों पर टूट पट्ने हैं । बड़े-बूढ़े सभी एक-दूसरे के गले मिलते हैं । घर पर आनेवाले लोगों का स्वागत तरह-तरह के पकवानों से, जिसमें सेवई जरूर होती है, किया जाता है । जगह-जगह कव्वालियों और गजलों का जलसा रात देर तक चलता रहता है।

बड़े इंतजार के बाद हर साल ईद आती है और खुशियाँ लुटा जाती है। उसके पहले एक महीने तक का नियमित उपवास शरीर की भी शुद्धि करता है । ईद हमें बराबरी और खुशी का संदेशा देती है । वह हमें अनुशासित नियमित जीवन बिताने का पाठ पढ़ाती है।

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भारतीय नारी की महत्ता

समर्पण की मूर्ति नारी भारत की नारी का नाम सुनते ही हमारे सामने प्रेम, करुणा, दया, त्याग और सेवा-समर्पण की मूर्ति अंकित हो जाती है। जयशंकर प्रसाद ने नारी के महत्त्व को यों प्रकट किया है।

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पदतल में।
‘पीयूष स्रोत-सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में ॥

नारी के व्यक्तित्व में कोमलता और संदरता का संगम होता है । वह तर्क की जगह भावना से जीती है । इसलिए उसमें प्रेम, करुणा, त्याग आदि गुण अधिक होते हैं। इन्हीं की सहायता से वह अपने तथा अपने परिवार का जीवन सुखी बनाती है।

पश्चिमी नारी-उन्नत देशों की नारियों प्रगति की अंधी दौड़ में पुरुषों से मुकाबला करने लगी हैं। वे पुरुषों के समान व्यवसाय और धन-लिप्सा में संलग्न हैं। उन्हें अपने माधुर्य, ममत्व और वात्सल्य की कोई परवाह नहीं है। अनेक नारियाँ माता बनने का विचार ही मन में नहीं लाती। वे केवल अपने सुख, सौंदर्य और विलास में मग्न रहना चाहती हैं। भोग-विलास की यह जिंदगी भारतीय आदशों के विपरीत है।

भारतीय नारी-भारतवर्ष ने प्रारंभ से नारी के ममत्त्व को समझा है। इसलिए यहाँ नारियों की सदा पूजा होती रही है। प्रसिद्ध कथन है –

यह नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता।

भारत की नारी प्राचीन काल में पुरुषों के समान ही स्वतंत्र थी। मध्यकाल में देश की स्थितियाँ बदलीं । आक्रमणकारियों के भय के कारण उसे घर की चारदीवारी में सीमित रहना पड़ा । सैकड़ों वर्षों तक घर-गृहस्थी रचाते-रचाते उसे अनुभव होने लगा कि उसका काम बर्तन-चौके तक ही है। परंतु वर्तमान युग में यह धारणा बदली। बदलते वातावरण में भारतीय नारी को समाज में खुलने का अवसर मिला। स्वतंत्रता आंदोलन में सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, सत्यवती जैसी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । परिणामस्वरूप स्त्रियों में पढ़ने-लिखने और कुछ कर गजरने की आकांक्षा जाग्रत हुई।

वर्तमान नारी-भारत की वर्तमान नारी विकास के ऊँचे शिखर छू चुकी है। उसने शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से बाजी मार ली है। कंप्यूटर के क्षेत्र में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है । नारी-सुलभ क्षेत्रों में उसका कोई मुकाबला नहीं है। चिकित्सा, शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में उसका योगदान अभूतपूर्व है । आज अनेक नारियाँ इंजीनियरिंग, वाणिज्य और तकनीकी जैसे क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त कर रही हैं। पुलिस, विमान-चालन जैसे पुरुषोचित क्षेत्र भी अब उससे ‘अछूते नहीं रहे हैं।

दोहरी भूमिका वास्तव में आज नारी की भूमिका दोहरी हो गई है। उसे घर और बाहर दो-दो मोर्चों पर काम संभालना पड़ रहा है। घर की सारी जिम्मेदारियाँ और ऑफिस का कार्य-इन दोनों में वह जबरदस्त संतुलन बनाए हुए है। उसे पग-पग पर पुरुष-समाज की ईर्ष्या, घृणा, हिंसा और वासना से भी लड़ना पड़ता है। सचमुच उसकी अदम्य शक्ति ने उसे इतना महान बना दिया है।

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आतंकवाद

भारत में आतंकवाद-भारत मूलतः शांतिप्रिय देश है। इसलिए यहाँ की धरती ने बुद्ध, महावीर, गाँधी जैसे अहिंसक नेता पैदा किए हैं। आतंकवाद की प्रवृत्ति यहाँ का जमीन से मेल नहीं खाती । परंतु दुर्भाग्य से पिछले दो दशकों से भारतवर्ष आतंकवाद की लपेट में आता जा रहा है। सन 1967 में बंगाल में नक्सलवाद का उदय हुआ।

सन 1981 से 1991 तक भारत का पंजाब प्रांत आतंकवाद की काली छाया से घिरा रहा । तत्कालीन भ्रष्ट राजनीति और पाकिस्तान की साजिश के कारण फैला सिख-आतंकवाद हजारों निरपराधों की जान लेकर रहा।

काश्मीर में आतंकवाद-पाकिस्तान जब पंजाब में हिंदू-सिख को लड़ाने में सफल न हो पाया तो उसने काश्मीर में अपनी गतिविधियाँ तेज कर दी। पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों की योजनाबद्ध घुसपैठ हुई। नौजवान युवकों को जबरदस्ती आतंक के रास्ते पर डालने के लिए घृणित हथकंडे अपनाए गए । जान-बूझकर काश्मीर में भारत-विरोधी वातावरण का निर्माण किया गया। वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ दिल दहलाने वाले भयंकर अत्याचार किए गए, ताकि वे काश्मीर छोड़कर अन्यत्र जा बसें और काश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो सके।

काश्मीर का आतंकवाद आज कैंसर का रूप धारण कर चुका है। पाकिस्तानी आतंकवादी कभी मुंबई में तो कभी कोलकाता में बम विस्फोट करते हैं, कभी गुजरात के अक्षरधाम में तो कभी काश्मीर की मस्जिद में खून-खराबा करते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद—आज आतंकवाद राष्ट्र की सीमाओं को पार करके पूरे विश्व में अपना जाल ला चुका है। ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान की भूमि पर रहकर अमेरिका के ट्विन टावरों को पल भर में भूमिसात कर दिया।

आतंकवाद फैलने के कारण आज विश्व में जो आतंकवाद फैल रहा है, उसका प्रमुख कारण है-धार्मिक कट्टरता । ओसामा बिन लादेन, तालिबान, लश्करे-तोएबा, सीरिया, पाकिस्तान, फिलीस्तिीन-सबके पीछे सांप्रदायिक शक्तियाँ काम कर रही हैं। आज आतंकवादी आधनिक तकनीक का भरपुर प्रयोग करते हैं। उनके पास विध्वंस की ढेरों सामग्री है।

भारत में आतंकवाद फैलने का एक अन्य कारण है-क्षेत्रवाद और राजनीतिक स्वार्थ । वोट के भूखे राजनेता जानबूझकर आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं।

समाधान – आतंकवाद की समस्या मनुष्यों की बनाई हुई है, इसलिए आसानी से सुलझाई जा सकती है । जिस दिन अमेरिका की तरह पूरा विश्व दृढ़ संकल्प कर लेगा और आतंकवाद को जीने-मरने का प्रश्न बना लेगा, उस दिन यह धरती आतंक से रहित हो जाएगी।

बेरोजगारी : समस्या और समाधान

भूमिका आज भारत के सामने अनेक समस्याएँ चट्टान बनकर प्रगति का रास्ता रोके खड़ी हैं। उनमें से एक प्रमुख समस्या है-बेरोजगारी । महात्मा गाँधी ने इसे ‘समस्याओं की समस्या’ कहा था।

अर्थ बेरोजगारी का अर्थ है-योग्यता के अनुसार काम का न होना । भारत में मुख्यतया तीन प्रकार के बेरोजगार हैं । एक वे, जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे पूरी तरह खाली हैं। दूसरे, जिनके पार्स कुछ समय काम होता है, परंतु मौसम या काम का समय समाप्त होते ही वे बेकार हो जाते हैं। ये आशिक बेरोजगार कहलाते हैं। तीसरे वे, जिन्हें योग्यता के अनुसार काम नहीं मिला।

कारण बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है-जनसंख्या-विस्फोट । इस देश में रोजगार देने की जितनी योजनाएँ बनती हैं, वे सब अत्यधिक जनसंख्या बढ़ने के कारण बेकार हो जाती हैं। एक अनार सौ बीमार वाली कहावत यहाँ पूरी तरह चरितार्थ होती है। बेरोजगारी का दूसरा कारण है-युवकों में बाबूगिरी की होड़ । नवयुवक हाथ का काम करने में अपना अपमान समझते हैं। विशेषकर पढ़े-लिखे युवक दफ्तरी जिंदगी पसंद करते हैं। इस कारण वे रोजगार-कार्यालय को धूल फांकते रहते हैं।

‘बेकारी का तीसरा बड़ा कारण है-दूषित शिक्षा-प्रणाली । हमारी शिक्षा-प्रणाली नित नए बेरोजगार पैदा करती जा रही है। व्यावसायिक प्रशिक्षण का हमारी शिक्षा में अभाव है । चौथा कारण है-गलत योजनाएँ । सरकार को चाहिए कि वह लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे। मशीनीकरण को उस सीमा तक बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि रोजगार के अवसर कम न हों। इसीलिए गाँधी जी ने मशीनों का विरोध किया था, क्योंकि एक मशीन कई कारीगरों के हाथों को बेकार बना डालती है।

दुष्परिणाम बेरोजगारी के दुष्परिणाम अतीव भयंकर हैं । खाली दिमाग शैतान का घर । बेरोजगार युवक कुछ भी गलत-शलत करने पर उतारू हो जाते हैं । वही शांति को भंग करने में सबसे आगे होते हैं। शिक्षा का माहौल भी वही बिगाड़ते हैं जिन्हें अपना भविष्य अंधकारमय लगता है।

समाधान–बेकारी का समाधान तभी हो सकता है, जब जनसंख्या पर रोक लगाई जाए। युवक हाथ का काम करें। सरकार लघु उद्योगों को • प्रोत्साहन दे । शिक्षा व्यवसाय से जुड़े तथा रोजगार के अधिकाधिक अवसर जुटाए जाएँ।

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समय अमूल्य धन है

समय जीवन है-फ्रैंकलिन का कथन है-‘तुम्हें अपने जीवन से प्रेम है, तो समय को व्यर्थ मत गँवाओं क्योंकि जीवन इसी से बना है।’ समय को नष्ट करना जीवन को नष्ट करना है । समय ही तो जीवन है । ईश्वर एक बार एक ही क्षण देता है और दूसरा क्षण देने से पहले उसको छीन लेता है।

समय का सदुपयोग आवश्यक समय के सदुपयोग का अर्थ है-उचित अवसर पर उचित कार्य पूरा कर लेना । जो लोग आज का काम पर और कल का काम परसों पर टालते रहते हैं, वे एक प्रकार से अपने लिए जंजाल खड़ा करते चले जाते हैं। मरण को टालते-टालते एक दिन सचमुच मरण आ ही जाता है । जो व्यक्ति उपयुक्त समय पर कार्य नहीं करता, वह समय को नष्ट करता है । एक दिन ऐसा आता है, जबकि समय उसको नष्ट कर देता है। जो छात्र पढ़ने के समय नहीं पढ़ते, वे परिणाम आने पर रोते हैं।

समय की अगवानी आवश्यक समय रुकता नहीं है। जिसे उसका उपयोग उठाना है, उसे तैयार होकर उसके आने की अग्रिम प्रतीक्षा करनी चाहिए । जो समय के निकल जाने पर उसके पीछे दौड़ते हैं, वे जिंदगी में सदा घिसटते-पिटते रहते हैं। समय सम्मान माँगता है। इसलिए कबीर ने कहा है –

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब ।।

उचित समय पर उचित कार्य-जो जाति समय का सम्मान करना जानती है, वह अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेती है । यदि सभी गाड़ियाँ अपने निश्चित समय से चलने लगें तो देश में कितनी कार्यकुशलता बढ़ जाएगी। यदि कार्यालय के कार्य ठीक समय पर संपन्न हो जाएँ, कर्मचारी समय के पाबंद हों तो सब कार्य सुविधा से हो सकेंगे। यदि रोगी को ठीक समय पर दवाई न मिले तो उसकी मौत भी हो सकती है। अतः हमें समय – की गंभीरता को समझना चाहिए।

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भाषा

भाषा मनुष्य के भावों और विचारों को प्रकट करने का साधन है । भाषा के द्वारा ही मनुष्य, जीव-जन्तु और पशु-पक्षी अपने मन के विचार प्रकट करते हैं । भाषा के द्वारा हम अपनी आवाज और संकेतों के दूसरे लोगों तक पहुँचाते है।

इस प्रकार अपनी बात दूसरों के सामने कहना और दूसरों की बात समझाना भाषा कहलाती है।

भाषा के प्रकार-भाषा तीन प्रकार की होती है –
(1) मौखिक भाषा
(2) लिखित भाषा और
(3) सांकेतिक भाषा ।

(1) मौखिक भाषा – बातचीत करने, बोलने या सुनने में हम जिस भाषा का प्रयोग करते हैं उसे मौखिक भाषा कहते हैं । इस भाषा में अपनी बात मुँह से बोलकर दूसरों के सामने प्रकट किए जाते हैं।

(2) लिखित भाषा – अपने विचारों और भावों को जब हम लिखकर दूसरे व्यक्ति के सामने प्रकट करते हैं तो वह उसे पढ़कर समझ लेता है कि क्या कहना चाहते हैं ? उसे लिखित भाषा कहा जाता है।

(3) सांकेतिक भाषा – इसमें हम केवल संकेतों या इशारों से ही अपना संदेश दूसरों तक पहुँचाते हैं । इसमें अंगुलियों, आँखों या अन्य संकेतों-साध नों का प्रयोग किया जाता है ।

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वर्ण या अक्षर

वर्ण या अक्षर-भाषा की सबसे छोटी इकाई को वर्ण या अक्षर कहते हैं। इसे अलग-अलग नहीं कर सकते, जैसे- अ, च, न, इ, ऊ आदि छोटे अंश के अक्षर हैं। ये मनुष्य के मुख से निकलने वाली ध्वनियाँ हैं।

वर्णमाला-वर्णा या अक्षरों के समूह को वर्णमाला कहा जाता है। हिन्दी वर्णमाला में 44 वर्ण या अक्षर हैं।

ये वर्ण दो प्रकार के हैं –
(1) स्वर और (2) व्यंजन ।

(1) स्वर- जिन अक्षरों का उच्चारण किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना किया जाता है, उन्हें स्वर कहते हैं ।

ये स्वर निम्न प्रकार हैं –
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ तथा औ।
अनुस्वर (अ) तथा विसर्ग (अ:) को भी स्वरों के साथ ही पढ़ाया जाता है।

(2) व्यंजन-जिन वर्गों का उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला में कुल 33 व्यंजन होते हैं।

जैसे – क, ख, ग, घ आदि ।
संयुक्त अक्षर- दो या दो से अधिक अक्षरों के मिले रूप को संयुक्ताक्षर कहते हैं ।

जैसे –
क्ष – क + ष + अ
त्र – त् + र + अ
ज्ञ – ज् + त्र + अ

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मात्राएँ- किसी स्वर के व्यंजन से मिलने पर उसका रूप बदल जाता है, जिसे मात्रा कहा जाता है । जैसे –
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अनुस्वर (.)-किसी अक्षर के ऊपर जो बिन्दु लगाया जाता है उसे अनुस्वर कहते हैं । अनुस्वार व्यंजन की मात्रा के पीछे लिखा जाता है ।
जैसे- क + – कं, न + – नं।
विसर्ग (:)- किसी अक्षर के सामने दो बिन्दु लगाकर विसर्ग लिखते । हैं । इसका प्रयोग मात्रा के बाद किया जाता है।
जैसे – ग + : = गः, न + : = नः ।
वाक्य-शब्दों का वह समूह जिसका पूरा-पूरा अर्थ समझ में आ जाये, उसे वाक्य कहते हैं । जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ। गीता गाना गा रही है ।

वाक्य के दो भाग होते हैं –
(क) उद्देश्य
(ख) विधेय

(क) जिसके विषय में कुछ कहा जाता है. उसे उद्देश्य कहते हैं। जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ । इसमें ‘मैं’ के विषय में कहा गया है । गीता गाना गा रही है । इसें ‘गीता’ के विषय में कहा गया है । अतः ‘मैं’ और गीता उद्देश्य

(ख) विधेय- उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाता है, उसे विधेय कहते हैं । जैसे –
मैं बाजार जाता हूँ ‘मैं’ उद्देश्य के विषयमें कहा गया है बाजार जाता हैं। अत: ‘बाजार जाता हूँ’ विधेय है । इसी प्रकार ‘गाना गा रही है’ भी विधेध हैं।

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संधि

प्रश्न 1.
संधि किस कहते हैं ?
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक वर्ण मिलते हैं, तो इससे पैदा होने वाला विकार को संधि कहते हैं । जैसे – जगत् + नाथ = जगन्नाथ, शिव + आलय = शिवालय, गिरि + ईश = गिरीश आदि ।

प्रश्न 2.
संधि के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
संधि के तीन भेद हैं-
(i) स्वर संधि
(ii) व्यंजन संधि
(iii) विसर्ग संधि ।

प्रश्न 3.
स्वर संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
दो या दो से अधिक स्वर वर्णों के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। जैसे – अन्न + अभाव = अन्नाभाव, महा + आशय = महाश्य, भोजन + आलय = भोजनालय ।

प्रश्न 4.
स्वर संधि के कितने भेद हैं ? उनके विषय में लिखें ।
उत्तर:
स्वर संधि के पाँच भेद हैं :

(i) दीर्घ संधि-जब ह्रस्व या दीर्घ वर्ण, ह्रस्व या दीर्घ वर्णों से मिलकर दीर्घ स्वर हो जाते हैं, उसे दीर्घ संधि कहते हैं । जैसे –
भोजन + आलय = भोजनालाय (अ + आ = आ)
अन्न + अभाव = अन्नाभाव (अ + आ = आ)
गिरि + इन्द्र = गिरीन्द्र (इ + ई = ई)
विधु + उदय = विधूदय (उ + उ = ऊ) .

(ii) गुण संधि-यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद इ, ई, उ, ऊ, ऋ आवे तो वे मिलकर क्रमशः ए, ओ और अर् हो जाते हैं । जैसे – नर + इन्द्र = नरेन्द्र, देव + ईश = देवेश, महा + ऋषि = महर्षि आदि ।

(iii) वृद्धि संधि-यदि ह्रस्व या दीर्घ ‘अ आ’ के बाद ए, ऐ आवे तो – ‘ऐ’ और ‘ओ’ आवे तो ‘औ’ हो जाते हैं । जैसे-अनु + एकान्त = अनैकान्त, तथा + एव = तथैव, वन + औषधि = वनौषधि, सुन्दर + ओदन = सुन्दरौदन ।

(iv) यण संधि-इ, ई के बाद कोई भिन्न स्वर हो तो ‘य’, उ, ऊ, के बाद भिन्न स्वर आवे तो ‘व्’ और ऋ के बाद भिन्न स्वर आवे तो ‘र’ हो · जाता है.। जैसे-सखी + उवाच = सख्युवाच, दधि + आयन = दध्यानय, अनु + अय = अन्वय, अनु + एषण = अन्वेषण, पित + आदेश = पित्रादेश ।

(v) अयादि संधि-यदि ए, ऐ, ओ, औ के बाद कोई भिन्न स्वर हो, तो उसके स्थान पर क्रमशः ‘अय्’, ‘आय’, ‘आव्’ हो जाता है । जैसे-ने + अन = नयन । गै अक = गायक, भो + अन = भवन, भौ + उक = भावुक

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

प्रश्न 5.
व्यंजन संधि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन या स्वर वर्ण के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं । जैसे-दिक् + अन्त = दिगन्त, दिक् + गज = दिग्गज, जगत् + ईश = जगदीश, जगत् + नाथ = जगन्नाथ, सत् + आनन्द = सदानन्द, उत् + घाटन = उद्घाटन ।।

प्रश्न 6.
विसर्ग संधि किसे कहते हैं ? सोदाहरण परिभाषा दें।
उत्तर:
विसर्ग (:) के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो विकार पैदा होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं । जैसे-निः + चय – निश्चय, निः + पाप = निष्पाप ।

स्मरणीय

  • अ + नि + आय = अन्याय
  • अनु + अय = अन्वय
  • अन्य + अन्य = अन्यान्य
  • अतः + एव = अतएव
  • अभि + इष्ट = अभीष्ट
  • अति + आचार = अत्याचार
  • आत्म + उत्सर्ग = आत्मोत्सर्ग
  • अति + उत्तम = अत्युत्तम
  • आवि: + कार = आविष्कार
  • अति + अन्त = अत्यन्त
  • आशीः + वाद = आशीर्वाद
  • अधः + गति = अधोगति
  • अप् + ज = अब्ज
  • अभि + आगत = अभ्यागत
  • अहम् + कार = अहंकार
  • आदि + अन्त = आद्यन्त
  • अभि + उदय = अभ्युदय
  • उत् + नति = उन्नति
  • अहः + निश = अहर्निश
  • अनु + अय + इत = अन्वित
  • अनु + एषण = अन्वेषण
  • अन्तः + निहित = अन्तर्निहित
  • अम्बु + ऊर्मि = अम्बूमि
  • इति + आदि = इत्यादि
  • उत् + हत = उद्धत
  • उत् + विग्न = उद्विग्न
  • उप + ईक्षा = उपक्षा
  • उत् + छिन्न = उच्छिन्न
  • उत् + नायक = उन्नायक
  • उत् + मत्त = उन्मत
  • उत् + भव = उद्भव
  • उत् + लेख = उल्लेख
  • उत् + मूलित = उन्मूलित
  • उत् + हार = उद्धार
  • महा + ईश्वर = महेश्वर
  • उत् + डयन = उड्डयन
  • किम् + नर = किन्नर
  • तत् + लीन = तल्लीन
  • तत् + आकार = तदाकार
  • तेजः + राशि – तेजोराशि
  • तत् + रूप = तद्रुप
  • देव + ईश = देवेश
  • दिक् + भ्रम = दिग्भ्रम
  • दु: + धर्ष = दुर्धर्ष
  • देव + ऋषि = देवर्षि
  • देव + इन्द्र = देवेन्द्र
  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • देव + आगम = देवागम
  • नार + अयन = नारायण
  • नि: + छल = निश्छल
  • निः + आधार = निराधार
  • निः + प्राण = निष्प्राण
  • अप् + मय = अम्मय
  • ईश्वर + इच्छा = ईश्वरेच्छा
  • उत् + हृत = उद्धृत
  • उत् + लंघन = उल्लंघन
  • उत् + घाटन = उद्घाटन
  • उत् + श्वास = उच्छ्वास
  • ऊष् + म = ऊष्म
  • उत् + ज्वल = उज्ज्वल
  • उपरि + उक्त = उपर्युक्त
  • उत् + शृंखल = उच्छंखल
  • उत् + गम = उद्गम
  • उद् + दाम = उद्दाम
  • उत् + योग. = उद्योग
  • कृत + अन्त = कृदन्त
  • तथा + एव = तथैव
  • तेजः + पुंज = तेजोपुंज
  • तृष् + ना = तृष्णा
  • तत् + टीका = तट्टीका
  • दु: + शासन = दुश्शासन
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • दाव + अनल = दावानल
  • दु: + नीति = दुर्नीति
  • दु: + जन = दुर्जन
  • दु: + दिन = दुर्दिन
  • दु: + कर = दुष्कर
  • नमः + कार = नमस्कार
  • नदी + ईश = नदीश
  • निः + सन्देह = निस्संदेह
  • निः + अर्थक = निरर्थक
  • निः + मल = निर्मल
  • निः + रव = नीरव
  • नदी + अम्बु = नद्यम्बु
  • नौ + इक = नाविक
  • निः + उपाय = निरुपाय
  • परम + ईश्वर = परमेश्वर
  • पौ + अक = पावक
  • प्रति + एक = प्रत्येक
  • परम + ओजस्वी = परमौजस्वी
  • पुरुष + उत्तम = पुरुषोत्तम
  • प्राक् + मुख = प्राङ्मुख
  • प्रति + अक्ष = प्रत्यक्ष
  • प्र + उत्साहन = प्रोत्साहन
  • प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
  • प्रति + अय = प्रत्यय
  • प्र + अंगण = प्रांगण
  • पृष् + थ = पृष्ठ
  • पयः + द स = पयोद
  • पयः + पान = पयःपान
  • भाग्य + उदय = भाग्योदय
  • भो + उक = भावुक

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

शब्द

प्रश्न 1.
शब्द किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ध्वनियों के मेल से बने सार्थक वर्ण-समुदाय को ‘शब्द’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
‘अर्थ’ के अनुसार शब्दों के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
अर्थ के अनुसार शब्दों के दो भेद हैं
(i) सार्थक – जिन शब्दों का स्वयं कुछ अर्थ होता है, उसे सार्थक शब्द कहते हैं । जैसे-घर, लड़का, चित्र आदि ।
(ii) निरर्थक – जिन शब्दों का कोई अर्थ नहीं होता, उसे निरर्थक शब्द कहते हैं । जैसे-चप, लव, कट आदि

प्रश्न 3.
व्युत्पत्ति के अनुसार शब्दों के कौन-कौन से भेद हैं ?
उत्तर:
व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के चार भेद हैं ।
(i) तत्सम – संस्कृत के सीधे आए शब्दों को तत्सम कहते हैं । जैसे- रिक्त, जगत्, मध्य, छात्र ।
(ii) तद्भव – संस्कृत से रूपान्तरित होकर हिन्दी में आए शब्दों को तद्भव कहते हैं। जैसे-आग, हाथ, खेत आदि ।
(iii) देशज – देश के अन्दर बोल-चाल के कुछ शब्द हिन्दी में आ गए हैं । इन्हें देशज कहा जाता है जैसे- लोटा, पगडी, चिडिया, पेट आदि ।
(iv) विदेशज – कुछ विदेशी भाषा के शब्द हिन्दी में मिला लिये गए हैं, इन्हें विदेशज शब्द कहते हैं । जैसे-स्कूल, कुर्सी, तकिया, टेबुल, मशीन, बटन, किताब, बाग आदि ।

प्रश्न 4.
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
उत्पत्ति की दृष्टि से शब्दों के तीन भेद हैं।
(i) रूढ़ – जिन शब्दों के खंड़ों का अलग-अलग अर्थ नहीं होता, उन्हें रूढ़ शब्द कहते हैं । जैसे-जल = ज + ल ।
(ii) यौगिक – जिन शब्दों के अलग-अलग खंडों का कुछ अर्थ हो, उसे यौगिक शब्द कहते हैं । जैसे-हिमालय, पाठशाला, देवदूत, विद्यालय आदि ।
(iii) योगरूढ़ – जो शब्द सामान्य अर्थ को छोड़कर विशेष अर्थ बतावे, उसे योगरूढ़ कहते हैं । जैसे-लम्बोदर (गणेश), चक्रपाणि (विष्णु) चन्द्रशेखर (शिवजी) आदि ।

संज्ञा

प्रश्न 1.
संज्ञा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी प्राणी, वस्तु, स्थान और भाव को संज्ञा कहते हैं।

प्रश्न 2.
संज्ञा के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
संज्ञा के निम्नांकित पाँच भेद हैं।
(i) व्यक्तिवाचक संज्ञा-किसी विशेष प्राणी, स्थान या वस्तु के नाम -को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-राम, श्याम, हिमालय, पटना, पूर्णिया आदि ।
(ii) जातिवाचक संज्ञा-जिस संज्ञा से किसी जाति के सभी पदार्थों का बोध हो, उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे- गाय, घोड़ा, फूल, आदमी औरत आदि ।
(iii) भाववाचक संज्ञा-जिस से किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण-धर्म और स्वभाव का बोध हो, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-बुढ़ापा, चतुराई, मिठास आदि ।
(iv) समूहवाचक संज्ञा-जिस शब्द से समूह या झुण्ड का बोध हो, उसे समूहवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-सोना, वर्ग, भीड़, सभा आदि ।
(v) द्रव्यवाचक संज्ञा-जिन वस्तुओं को नापा-तौला जा सके, ऐसी वस्तु के नामों को द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं । जैसे-तेल, घी, पानी, सोना आदि ।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

भाववाचक संज्ञा बनाना

(i) जातिवाचक संज्ञा से
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 3

(ii) सर्वनाम से
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 4

(iii) विशेषण से
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 5

(iv) क्रिया से
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 6

लिंग

प्रश्न 1
लिंग किसे कहा जाता है ?
उत्तर:
संज्ञा, सर्वनाम या क्रिया के जिस रूप से व्यक्ति, वस्तु और भाव की जाति का बोध हो, उसे लिंग कहते हैं । हिन्दी शब्द में संज्ञा-शब्द मूल रूप से दो जातियों के हुआ करते हैं- पुरुष-जाति और स्त्री-जाति ।

प्रश्न 2.
लिंग के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
लिंग के दो भेद हैं
1. पँल्लिग – जिस संज्ञा शब्द से पुरुष-जाति का बोध होता है. उसे पुंल्लिग कहते हैं । जैसे-घोड़ा, बैल, लड़का, छात्र, आदि ।
2. स्त्रीलिंग – जिस संज्ञा शब्द से ‘स्त्री-जाति’ का बोध होता है, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं । जैसे-स्त्री, घोड़ी, गाय, लकड़ी, छात्रा, आदि।

जिन प्राणिवाचक शब्दों के जोड़े होते हैं, उनके लिंग आसानी से जाने जा सकते हैं । जैसे- लड़का-लड़की, पुरुष-स्त्री, घोड़ा-घोड़ी, कुत्ता-कुतिया ।
गरुड़, बाज, चीता और मच्छर आदि ऐसे शब्द हैं, जो सदा पुंल्लिग होते हैं। मक्खी, मैना, मछली आदि शब्द सदा स्त्रीलिंग होते हैं।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

पुंल्लिग से स्त्रीलिंग बनाना

पुंल्लिग से स्त्रीलिंग बनाने के लिए जो निह लगाये जाते हैं, उन्हें ‘स्त्री प्रत्यय’ कहा जाता है । ‘पुंल्लिग शब्दों में आई, इया, इनी, इन, त्री, आनी, आती, ‘स्त्री-प्रत्यय’ जोड़कर स्त्रीलिंग बनाये जाते हैं । जैसे –
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 7
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 8

वाक्य प्रयोग द्वारा लिंग निर्णय :

  • अनाज (पृ.)-आजकल अनाज महँगा है।
  • अफवाह (स्त्री.)-यह अफवाह जोरों से फैल रही है।
  • अरहर (स्त्री.)-खेतों में अहरहर लगी थी।
  • आँगन (पृ.)-मेरे घर का आँगन छोटा है।
  • आँचल (पुं.)-माँ ने आँचल पसारा ।
  • अमावस (स्त्री.)-पूनो के बाद फिर अमावस आई।
  • अश्रु (पुं.)-उनके नयनों से अश्रु झरते रहे।
  • आँख (स्त्री.)-उसकी आँखों में लगा काजल धुल गया।
  • अभिमान (पृ.)-किसी भी बात का अभिमान न करें।
  • आग (स्त्री.)-आग जलने लगी।
  • आत्मा (स्त्री.)-उसकी आत्मा प्रसन्न थी।
  • आदत (स्त्री.)-दूसरों को गाली बकने की आदत अच्छी नहीं।
  • आयु (स्त्री.)-मेरी आयु 20 साल की है।
  • आय (स्त्री.)-आपकी आय कितनी है ?
  • आकाश (पुं.)-आकाश नीला था।
  • आहट (स्त्री.)-पैरों की आहट सुनाई पड़ी।
  • ओस (स्त्री.)-रात भर ओस गिरती रही।
  • इज्जत (री.)-बड़ों की इज्जत करो।
  • ईंट (स्त्री.)-नींव की ईंट हिल गई।
  • उड़ान (स्त्री.)-मैं पक्षी की उड़ान देख रहा हूँ।
  • उपाय (पुं.)-आखिर इसका उपाय क्या है ?
  • उलझन (स्त्री.)-उलझन बढ़ती ही जा रही है।
  • ऋतु (स्त्री.)-सुहानी ऋतु आ गई।
  • कपूर (पृ.)-कपूर हवा में उड़ गया।
  • कब्र (स्त्री.)-यह पीर साहब की कब्र है।
  • कलम (स्त्री.)-मेरी कलम टूट गई है।
  • कली (स्त्री.)-कली ही खिलकरं फूल बनती है।
  • कसक (स्त्री.)-उसके दिल में एक कसक छुपी थी।
  • कसम (स्त्री.)-मैं अपनी कसम खाता हूँ।
  • कसर (स्त्री.)-अब इसमें किस बात की कसर है ?
  • कमीज (स्त्री.)-मेरी कमीज फट गई है।
  • किताब (स्त्री.)-उसकी किताब पुरानी है।
  • किरण (स्त्री.)-सुनहली किरण छा गई है।
  • कीमत (स्त्री.)-इस चीज की कीमत अधिक है।
  • कुशल (स्त्री.)-अपनी कुशल कहें।
  • केसर (पुं.)-केसर फुला गए थे।
  • कोयल (स्त्री.)-डाली पर कोयल कूक उठी।
  • कोशिश (स्त्री.)-हमारी कोशिश जारी है।
  • खाट (स्त्री.)-खाट टूट गई।
  • खटमल (पुं.)-उसकी बिछावन पर कई खटमल नजर आ रहे थे।
  • खत (पृ.)-आपका खत मिला।
  • खबर (स्त्री.)-आज की नई खबर क्या है ?
  • खीर (स्त्री.)-आज खीर अच्छी बनी है।
  • खेत (पृ.)-यह धान का खेत है।
  • खोज (स्त्री.)-मेरी खोज पूरी हुई।
  • गंध (स्त्री.)-गुलाब की गंध अच्छी है।
  • ग्रन्थ (पृ.)-यह कौन-सा ग्रंथ है ?
  • गरदन (स्त्री.)-उसकी गरदन लम्बी है।
  • गिलास (पुं.)-शीशे का नया गिलास टूट गया ।
  • गीत (पुं.)-उसका गीत पसन्द आया ।
  • गेन्द (स्त्री.)-गेन्द नीचे गिर पड़ी।
  • गोद (स्त्री.)-उसकी गोद भर गई।
  • घास (स्त्री.)-यहाँ की घास मुलायम है।
  • घी (पु.)-घी महँगा होता जा रहा है।
  • घूस (स्त्री.)-दारोगा ने घूस ली थी।
  • चना (पृ.)-इन दिनों चना महँगा है।
  • चमक (स्त्री.)-कपड़े की चमक फीकी पड़ गई है।
  • चर्चा (स्त्री.)-आपकी इन दिनों बड़ी चर्चा है।
  • चाँदी (स्त्री.)-चाँदी महँगी हो गई है।
  • चादर (स्त्री.)-चादर मैली हो गई।
  • चाल (स्त्री.)-घोड़े की चाल अच्छी है।
  • चित्र (पुं.)-यह बापू का चित्र है।
  • चिमटा (पुं.)-साधु का चिमटा खो गया।
  • चोज (स्त्री.)-मुझे हर तली चीज पसंद है।
  • चील (स्त्री.)-चील आसमान में उड़ी रही है।
  • चुनाव (पृ.)-चौदहवां आम चुनाव सम्पन्न हुआ।
  • चैत (पृ.)-फिर चैत आ गया।
  • चोंच (स्त्री.)-कौआ की चोंच टूट गई।
  • चौकी (स्त्री.)-वहाँ चौकी डाल दी गई।
  • छत (स्त्री.)-मकान की छत नीची है।
  • छल (पृ.)-उसका छल छिपा न रह सका।
  • जमघट (पुं.)-यहाँ अच्छा खासा जमघट लगा था।
  • जय (स्त्री.)-महात्मा गाँधी की जय सभी बोलते हैं।
  • जवानी (स्त्री.)-सबकी जिन्दगी में जवानी आती है।
  • जहाज (पुं.)-जहाज चला जा रहा था।
  • जाँच (स्त्री.)-उस मामले की जाँच हो रही है।
  • जीभ (स्त्री.)-उसकी जीभ ऐंठ रही है।
  • जीत (स्त्री.)-चुनाव में विरोधियों की जीत हुई।
  • जी (पुं)-उसका जी खराब है।
  • जान (स्त्री.)-हर व्यक्ति को अपनी जान प्यारी होती है।
  • जेब (स्त्री.)-किसी ने मेरी जेब काट ली।
  • जेल (पुं.)-बेउर जेल बहुत बड़ा है।
  • जोंक (स्त्री.)-जोक उसके अंगूठे से चिपकी थी।
  • जोश (पुं.)-अब उनका जोश ठंडा हो गया था।
  • झील (स्त्री.)-आगे दूर तक नीली झील फैली थी।
  • ढोल (पुं.)-दूर का ढोल सुहावना होता है।
  • तकदीर (स्त्री.)-उसकी तकदीर ही खोटी है।
  • तकिया (पृ.)-वह कोमल पंखों की तकिया है।
  • तरंग (स्त्री.)-सरिता की एक तरंग उठी।
  • तराजू (पु.)-बनिये का तराजू टूट गया।
  • तलवार (स्त्री.)-वीर की तलवार चमक उठी।
  • तलाक (पुं.)-उन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया।
  • तलाश (पृ.)-सुख की तलाश में सभी लगे हैं।
  • ताला (पुं.)-मकान के दरवाजे पर लगाया गया ताला खुला था।
  • ताज (पृ.)-उसके सर पर ताज रखा गया।
  • तिथि (स्त्री.)-परसों कौन-सी तिथि थी ?
  • तिल (पुं.)-अच्छा तिल बाजार में नहीं बिकता।
  • तीतर (पुं.)-आहट पाकर तीतर उड़ गया।
  • तौलिया (पुं)-मेरा नया तौलिया कहाँ है ?
  • थकान (स्त्री.)-चलने से काफी थकान हो गई थी।
  • दंपति (पृ.)-दम्पति अब सानन्द थे।
  • दफ्तर (पुं.)-दफ्तर नौ बजे के बाद खुलता है।
  • दरार (स्त्री.)-खेतों में दरार पड़ गई है।
  • दवा (स्त्री.)-हर मर्ज की दवा नहीं होती।
  • दही (पुं.)-अपने दही को कौन खट्टा कहता है।
  • दहेज (पुं.)-उसे भारी दहेज मिला था।
  • दाल (स्त्री.)-इस बार उसकी दाल नहीं गली।
  • दीवार (स्त्री.)-दीवारें ढह गई थीं।
  • दीमक (स्त्री.)-किताब में दीमक लग गई थी।
  • दूकान (स्त्री.)-यह दूकान पुरानी है।
  • दूब (स्त्री.)-हरी-भरी दूब प्यारी लगती है।
  • देर (स्त्री.)-आपने आने में थोड़ी देर कर दी।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

सर्वनाम

प्रश्न 1.
सर्वनाम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होनेवाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं । जैसे-मैं, हम, वह, वे आदि ।

प्रश्न 2.
सर्वनाम के भेदों के विषय में बतावें ।
उत्तर:
सर्वनाम के छः भेद हैं ।
1. पुरुषवाचक सर्वनाम-जो सर्वनाम पुरुषवाचक या स्त्रीवाचक संज्ञाओं के नाम के बदले आता है, उसे पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे- मैं, वह, तूं, तुम आदि ।

2. निश्चयवाचक सर्वनाम-जिससे निश्चित वस्तु, व्यक्ति, वस्तु या भाव का बोध हो, उसे निश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-यह, वह, ये, वे, आप आदि ।

3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम-जिससे निश्चित व्यक्ति, वस्तु या भाव का बोध न हो, उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे–कोई, कुछ ।

4. संबंधवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से वाक्य में आए संज्ञा के संबंध स्थापित किया जाए, उसे संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-जो, सो, आदि ।

5. प्रश्नवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम का प्रयोग ‘प्रश्न’ करने के लिए किया जाता है, उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-कौन, क्या ।

6. निजवाचक सर्वनाम-जिस सर्वनाम से ‘स्वयं या निज’ का बोध हो, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं । जैसे-मैं स्वयं जाऊँगा।

विशेषण

प्रश्न 1.
विशेषण से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताते हैं, उसे विशेषण कहा जाता है । जैसे-लाल घोड़ा, काली कमीज, उजला पैंट । यहाँ लाल, काली, उजला विशेषण हैं।

प्रश्न 2.
प्रविशेषण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो शब्द विशेषण की विशेषता बताते हैं, उसे प्रविशेषण कहते हैं । जैसे–’बहुत तेज घोड़ा’ वाक्य में ‘तेज’ विशेषता है और ‘बहुत’ शब्द विशेषण की विशेषता बता रहा है, अतः यह प्रविशेषण है ।

प्रश्न 3.
विशेषण के कितने भेद हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
विशेषण के चार भेद हैं । –
1. गुणवाचक विशेषण-जिस शब्द से संज्ञा के गुण, अवस्था और धर्म . का बोध हो, उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-काली घोड़ी, लाल लगाम, सपाट चेहरा आदि ।

2. परिणामवाचक विशेषण-जिस शब्द से किसी वस्तु की नाप-तौल का बोध हो, उसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-कुछ किलो दाल, कुछ अनाज, तीन लिटर दूध आदि ।

3. संख्यावाचक विशेषण-जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध हो, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं । जैसे-चार आदमी, आठ दिन, तीसरा लड़का आदि ।

4. सार्वनामिक विशेषण-जो सर्वनाम शब्द संज्ञा से पहले आकर ‘विशेषण’ का काम करते हैं, उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं । जैसे-यह लडका, वह स्कूल, वह फकीर आदि ।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

कारक

कारक : संज्ञा या सर्वनाम का वह रूप जो वाक्य के अन्य शब्दों, खासकर क्रिया से अपना संबंध प्रकट करता है, कारक कहलाता है। जैसे –

राम ने रावन को मारा ।

इस वाक्य में दो संज्ञा शब्द (राम, रावण) और एक क्रिया शब्द (मारा) हैं। दोनों संज्ञा शब्दों का आपस में तो संबंध है ही, मुख्य रूप से उनका संबंध (मारा) क्रिया से है; जैसे –

जैसेरावण को किसने मारा ? – राम ने।
राम ने । राम ने किसको मारा ? – रावण को ।

यहाँ, मारने की क्रिया राम करता है, अत: राम ने = कर्ता कारक और मारने (क्रिया) का फल रावण पर पड़ता है, अतः रावण को = कर्म कारक ।
स्पष्ट है कि करनेवाला कर्त्ताकारक हुआ । इसका चिह्न ‘ने’ है. और जिस पर फल पड़ा, वह कर्मकारक हुआ । इसका चिह्न ‘को’ है।

कारक के भेद

हिन्दी में कारक के आठ भेद हैं, जो निम्नलिखित हैं –
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 9

यहाँ इस बात पर ध्यान दें-कारकों के साथ क्रमश: गणनावाले शब्द-प्रथमा, द्वितीया, आदि शब्द ही विभक्ति हैं, लेकिन सामान्य भाषा में ‘कारक चिह्नों’ को ‘विभक्ति’ के रूप में प्रयुक्त किया जाता है ।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

कारकों का अर्थ एवं प्रयोग

1. कर्ताकारक : जो कर्ता काम (क्रिया) करता है, उसे कर्ताकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘ने’ है; जैसे –

राम खाता है । (0-विभक्ति)
राम ने खाया । (ने-विभक्ति) ।

दोनों वाक्यों से स्पष्ट है कि खाने का काम (क्रिया) राम ही करता है, लेकिन पहले वाक्य में ‘ने’ चिह्न लुप्त है या छिपा हुआ है, परन्तु दूसरे वाक्य में कर्ता का ‘ने’ चिह्न स्पष्ट है।

कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग

(क) जब क्रिया सकर्मक हो, तो सामान्यभूत, आसन्नभूत, पूर्णभूत, संदिग्धभूत और हेतुहेतुमद्भूत कालों में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है; जैसे –
सामान्यभूत – उसने रोटी खायी ।
आसन्नभूत – उसने रोटी खायी है।
पूर्णभूत – उसने रोटी खायी थी।
संदिग्धभूत – उसने रोटी खायी होगी ।
हेतुहेतुमद्भूत – उसने रोटी खायी होती, तो पेट भरा होता ।

(ख) प्रायः अकर्मक क्रिया में कर्ता के ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है, लेकिन-नहाना, खाँसना, छींकना, थूकना, भंकना आदि अकर्मक क्रियाओं में, इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त कालों में होता है; जैसे –

राम ने नहाया ।
उसने छींका था ।
उसने खाँसा है।
मैंने थूका होगा ।

(ग) जब अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है, तो इस चिह्न का प्रयोग उपर्युक्त कालों में होता है ।
उसने बच्चे का रुलाया ।
मैंने कुत्ते को जगाया था ।
माँ ने बच्चे को हँसाया है।
उसने बिल्ली को सुलाया होगा ।

‘ने’ चिह्न का प्रयोग कहाँ-कहाँ नहीं होता ‘ने’ चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्थाओं में न करें –

(क) वर्तमानकाल और भविष्यत्काल में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे –
वह खाता है।
वह खेलेगा ।
वह खा रहा है।
मैं लिखता रहूँगा।

(ख) पूर्वकालिक क्रिया में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है, जैसे –
वह पढ़कर खाया ।
वह नहाकर खाया ।

(ग) कुछ सकर्मक क्रियाओं-बोलना, बकना, भूलना, समझना आदि के भूतकालिक प्रयोग में इस चिह्न का प्रयोग नहीं होता है; जैसे –
वह मुझसे बोली ।
वह मुझे भूला ।
श्याम गाली बका है।
वह नहीं समझा ।

2. कर्मकारक : कर्ता द्वारा संपादित क्रिया का प्रभाव जिस व्यक्ति या वस्तु पर पड़े, उसे कर्मकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘को’ है ।

सोहन आम. खाता है । (0-विभक्ति)
सोहन मोहन को पीटता है । (को-विभक्ति)

यहाँ खाना (क्रिया) का फल आम पर और पीटना (क्रिया) का फल मोहन पर पड़ता है, अतः ‘आम’ और ‘मोहन’ कर्मकारक हैं।

‘आम’ के साथ ‘को’ चिह्न छिपा है और मोहन के साथ ‘को’ चिह्न स्पष्ट हैं ।

इस चिह का प्रयोग द्विकर्मक क्रिया रहने पर भी होता है; जैसे –

मोहन सोहन का हिन्दी पढ़ाता है। (सोहन, हिन्दी-दो कर्म)
वह सुरेश को तबला सिखाता है । (सुरेश, तबला-दो कर्म)

3. करणकारक-जो वस्तु क्रिया के संपादन में साधन का काम करे, उसे करणकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘से’ है; जैसे –
मैं कलम से लिखता हूँ। . (लिखने का साधन)
वह चाकू से काटता है। (काटने का साधन)

यहाँ, ‘कलम से’, ‘चाकू से’-करणकारक हैं, क्योंकि ये वस्तुएँ क्रिया संपादन में साधन के रूप में प्रयुक्त हैं।

4. संप्रदानकारक : जिसके लिए कोई क्रिया (काम) की जाए, उसे संप्रदान कारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘को’ और ‘के लिए’ है; जैसे –

मोहन ने सोहन को पुस्तक दी ।
‘मोहन ने सोहन के लिए पुस्तक खरीदी ।

यहाँ पर देने और खरीदने की क्रिया सोहन के लिए है । अतः ‘सोहन को’ एवं ‘सोहन के लिए’ संप्रदानकारक हैं।

5. अपादानकारक : अगर क्रिया के संपादन में कोई वस्तु अलग हो जाए, तो उसे अपादानकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘से’ है; जैसे
पेड़ से पत्ते गिरते हैं । (पेड़ से अलगाव)
छात्र कमरे से बाहर गया । (कमरे अलगाव)
यहाँ ‘पेड़ से’ और ‘कमरे से’ अपादानकारक हैं, क्योंकि गिरते समय पत्ते पेड़ से और जाते समय छात्र कमरे से अलग हो गये ।

6. संबंधकारक-जिस संज्ञा या सर्वनाम से किसी वस्तु का संबंध जान पड़े, उसे संबंधकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’ है; जैसे –
मोहन का घोड़ा दौड़ता है ।
मोहन के घोड़े दौड़ते हैं।
मोहन की घोड़ी दौड़ती है।
यहाँ मोहन (का, के, की) संबंधकारक हैं, क्योंकि ‘का घोड़ा’. ‘के घोड़े’ ‘की घोड़ी’ का संबंध मोहन से है । इसमें क्रिया से संबंध न होकर वस्तु या . व्यक्ति से रहता है।

7. अधिकरणकारक : जिससे क्रिया के आधार का ज्ञान प्राप्त हो, उसे अधिकरणकारक कहते हैं । इसका चिह्न ‘में’, ‘पर’ है; जैसे –
शिक्षक वर्ग में पढ़ा रहे हैं।
महेश छत पर बैठा है ।
यहाँ ‘वर्ग में’ और ‘छत पर’ अधिकरणकारक हैं, क्योंकि इनसे पढ़ाने और बैठने की क्रिया के आधार का ज्ञान होता है। .

8. संबोधनकारक : जिस शब्द से किसी के पुकारने या संबोधन का .. बोध हो, उसे संबोधनकारक कहते हैं । इसका चिह्न है-हे, अरे, ए आदि; जैसे –
हे ईश्वर, मेरी सहायता करो ।
अरे दोस्त, जरा इधर आओ ।
यहाँ ‘हे ईश्वर’ और ‘अरे दोस्त’ संबोधनकारक हैं । कभी-कभी संबोध नकारक नहीं भा होता है, फिर भी उससे संबोधन व्यक्त होता हैं; जैसे-
मोहन, जरा इधर आओ ।
भगवन्, मुझे बचाओ ।

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क्रिया

क्रिया-जिस शब्द से किसी काम के करने या होने का बोध हो, उसे – क्रिया कहते हैं; जैसे- .

खाना, पोना, हँसना, रोना, उठना, बैठना आदि ।

वाक्यों में इनका प्रयोग विभिन्न रूप में होता है; जैसे –

खाना-खाता, खाती, खाते, खाया, खायी, खाये, खाऊ आदि ।
उदाहरण:
उसने भात खाया । (खाया-क्रिया) ,
मैंने रोटी खायी । (खायी-क्रिया)

क्रिया के विभिन्न रूप कैसे बनते हैं; यह समझने के लिए धातु की जानकारी आवश्यक है।

धातु

धातु-क्रिया के मूल रूप का धातु कहते हैं: जैसे- आ. जा, खा, पी, पढ़, लिख, रो, हँस, उठ, बैठ, टहल, चहक आदि ।

इन्हीं मूल रूपों में-ना, नी, ने, ता, ती, ते. या, यी, ये, ॐ, गा, गी, गे आदि प्रत्यय लगने से क्रिया के विभि-रूप चनते हैं; जैसे –

ना (प्रत्यय)-आना, जाना, खाना, पोना, पढ़ना, लिखना आदि । ता (प्रत्यय)-आता, जाता, खाता, पीता, पढ़ता, लिखता, रोता आदि।

धातु के भेद

धातु के दो भेद है-
1. मूल धातु और
2. यौगिक धातु ।

मूल धातु-यह स्वतंत्र होता है, किसी दूसरे शब्द पर आश्रित नहीं होता; जैसे –
___ आ, जा, खा, ले, लिख, पढ़, दे, जग, उठ, बैट आदि ।

यौगिक धातु-सामान्य भाषा में इसे क्रिया कहते हैं । यह स्वतंत्र नहीं होता है । मूल धातुं में मूल धातु या मूल धातु में किसी अन्य प्रत्यय को जोड़ने से यौगिक धातु बनता है। जैसे –

बैठना, जाना, बैठ जाना, हँसना, देना, हँस देना, जगना, जगाना, जगवाना आदि ।

यौगिक धातु तीन प्रकार से बनता है –

1. मूल धातु एवं मूल धातु के संयोग से जो यौगिक धातु बनता है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं । जैसे –
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2. मूल धातु में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, वह अकर्मक या सकर्मक या प्रेरणार्थक क्रिया होती हैं । जैसे –

मूल धातु + प्रत्यय – यौगिक धातु
जग + ना = जगना (अकर्मक क्रिया) .
जग + आनाः = जगाना (सकर्मक क्रिया)
जग + वाना = जगवाना (प्रेरणार्थक क्रिया)

3. संज्ञा, विशेषण आदि शब्दों में प्रत्यय लगने से जो यौगिक धातु बनता है, उसे नाम-धातु कहते हैं । जैसे –
संज्ञा / विशेषण + प्रत्यय = यौगिक धातु
हाथ (संज्ञा) + इयाना – हथियाना नाम-धातु
गरम (विशेषण + आना – गरमाना

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क्रिया के भेद

क्रिया के मुख्यत: दो भेद हैं-
(1) सकर्मक क्रिया (Transitive Verb) और
(2) अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)। सकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म हो या कर्म के रहने की संभावना हो, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे –

खाना, पीना, पढ़ना, लिखना, गाना, बजाना, मारना, पीटना आदि ।
उदाहरण: वह आम खाता है।
प्रश्न : वह क्या खाता है ?
उनर : वह आम खाता है ।
यहाँ कर्म (आम) है, या किसी-न-किसी कर्म के रहने की संभावना है, अतः ‘खाना’ सकर्मक क्रिया है ।

अकर्मक क्रिया-जिस क्रिया के साथ कर्म न हो या कर्म के रहने की संभावना न हो, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे –

आना, जाना, हँसना, रोना, सोना, जगना, चलना, टहलना आदि ।

उदाहरण:
वह रोता है।
प्रश्न : वह क्या रोता है?
ऐसा न तो प्रश्न होगा और न इसका कुछ उत्तर ।

यहाँ कर्म कुछ नहीं है और न किसी का रहने की संभावना है, अत: ‘रोना’ अकर्मक क्रिया है।

अपवाद : लेकिन कुछ अकर्मक क्रियाओं-रोना, हँसना, जगना, सोना, टहलना आदि में प्रत्यय जोड़कर सकर्मक बनाया जाता है; जैसे-

रुलाना, हंसाना, जगाना, सुलाना, टहलाना आदि ।

अकर्मक क्रिया + प्रत्यय = सकर्मक क्रिया
रो (ना) + लाना = रुलाना (वह बच्चे को रुलाता है ।
जग (ना) + आना = जगाना (वह बच्चे को जगाता है ।

प्रश्न : वह किसे रुलाता ? जगाता है ?
उत्तर:
वह बच्चे को रुलाता / जगाता है।

स्पष्ट है कि रुलाना, जगाना सकर्मक क्रिया है, क्योंकि इसके साथ कर्म
(बच्चा है या किसी-न-किसी कर्म के रहने की संभावना है।

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वाच्य

वाच्य : कर्ता, कर्म या भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया के रूप परिवर्तन को वाच्य कहते हैं । दूसरे शब्दों में, वाक्य में किसकी प्रधानता है, अर्थात्-क्रिया का लिंग, वचन और पुरुष; कर्ता के अनुसार होगा, या कर्म के अनुसार होगा, या स्वयं भाव के अनुसार; इसका बोध वाच्य है; जैसे –

राम रोटी खाता है । (कर्ता के अनुसार क्रिया)-कर्ता की प्रधानता । यहाँ कर्ता के अनुसार क्रिया का अर्थ है-राम (कर्ता) = खाता है (क्रिया)

राम-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
खाता है-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
राम ने रोटी खायी । (कर्म के अनुसार क्रिया)-कर्म की प्रधानता
यहाँ कर्म के अनुसार क्रिया का अर्थ है-रोट (कर्म) = खायी (क्रिया)
रोटी-स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
खायी-स्त्रीलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।
सीता से चला नहीं जाता । (भाव के अनुसार क्रिया)-भाव की प्रध निता ।

यहाँ भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया का अर्थ है –
चला (भाव या क्रिया) = जाता (क्रिया)
चला-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष
जाता-पुलिंग, एकवचन, अन्यपुरुष ।

वाच्य के भेद

वाच्य के तीन भेद हैं-
1. कर्तृवाच्य
2. कर्मवाच्य और
3. भाववाच्य ।

कर्तृवाच्य – कर्ता के अनुसार यदि क्रिया में परिवर्तन हो, तो उसे कर्तृवाच्य कहते हैं । जैसे –
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यहाँ क्रियाएँ-खाता है, खाती है, खाते हैं; कर्ता के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ कर्ता की प्रधानता है, अत: यह कर्तृवाच्य हुआ ।
कर्मवाच्य : कर्म के अनुसार यदि क्रिया में परिवर्तन हो, तो उसे कर्मवाच्य कहते हैं । जैसे –
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यहाँ क्रियाएँ-खायी, खाया, खाये; कर्म के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ कर्म की प्रधानता है, अत: यह कर्मवाच्य हुआ ।

भाववाच्य : भाव (क्रिया) के अनुसार यदि क्रिया आए, तो उसे भाववाच्य कहते हैं । जैसे –
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यहाँ क्रियाएँ-जाता, जाता, जाता; भाव (क्रिया) के अनुसार आयीं हैं, क्योंकि यहाँ भाव (क्रिया) की प्रधानता है, अतः यह भाववाच्य हुआ ।
संक्षेप में याद रखें –
कर्ता के अनुसार क्रिया : कर्तृवाच्य
कर्म के अनुसार क्रिया : कर्मवाच्य
भाव (क्रिया) के अनुसार क्रिया : भाववाच्य

नोट : भातवाच्य में कर्म नहीं होता है । इसमें अकर्मक क्रिया का प्रयोग . होता है । यहाँ प्रयुक्त ‘चला’ शब्द अकर्मक क्रिया है ।

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काल

काल-क्रिया के जिस रूप से समय का बोध हो, उसे काल कहते हैं; जैसे-

मैंने खाया था । (खाया था-भूत समय)
मैं खा रहा हूँ। (खा रहा हूँ-वर्तमान समय)
मैं कल खाऊँगा । (खाऊँगा-भविष्यत् समय)

यहाँ पर क्रिया के इन रूपों-खाया था, खा रहा हूँ और खाऊँगा से भूत, वर्तमान और भविष्यत् समय (काल) का बोध होता है।

अतः काल के तीन भेद हैं-
(1) वर्तमानकाल (Present Tense)
(2) भूतकाल (Past Tense) और
(3) भविष्यत्काल (Future Tense) ।

वर्तमानकाल

वर्तमानकाल : वर्तमान समय में होनेवाली क्रिया से वर्तमानकाल का बोध होता है; जैसे –
मैं खाता हूँ। सूरज पूरब में उगता है।
वह पढ़ रहा है। गीता खेल रही होगी।

वर्तमानकाल के मुख्यतः तीन भेद हैं-1. सामान्य वर्तमान 2. तात्कालिक वर्तमान और 3. संदिग्ध वर्तमान ।

सामान्य वर्तमान : इससे वर्तमान समय में किसी काम के करने की सामान्य आदत, स्वभाव या प्रकृति, अवस्था आदि का बोध होता है। जैसे –

कुत्ता मांस खाता है। (प्रकृति)
मैं रात में रोटी खाता हूँ। (आदत)
पिताजी हमेशा डाँटते हैं। (स्वभाव)
वह बहुत दुबला है। (अवस्था )

तात्कालिक वर्तमान : इससे वर्तमान में किसी कार्य के लगातार जारी रहने का बोध होता है; जैसे –

कुत्ता मांस खा रहा है । (खाने की क्रिया जारी है।)
पिताजी डाँट रहे हैं। (इसी क्षण, कहने के समय)
संदिग्ध वर्तमान : इससे वर्तमान समय में होनेवाली क्रिया में संदेह या अनुमान का बोध होता है; जैसे –
अमिता पढ़ रही होगी । (अनुमान)
माली फूल तोड़ता होगा । (संदेह या अनुमान)

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भूतकाल

भूतकाल : बीते समय में घटित क्रिया से भूतकाल का बोध होता है; . जैसे –

मैंने देखा । वह लिखता था । राम पढ़ा होगा ।
मैंने देखा है। वह लिख रहा था । वह आता, तो मैं जाता ।
मैं देख चुका हूँ वह लिख चुका था ।

भूतकाल के छह भेद हैं-
1. सामान्य भूत
2. आसन्न भूत
3. पूर्ण भूत
4. अपूर्ण भूत
5. संदिग्ध भूत
6. हेतुहेतुमद् भूत ।

सामान्य भूत : इससे मात्र इस बात का बोध होता है कि बीते समय में कोई काम सामान्यतः समाप्त हुआ; जैसे –
मैंने पत्र लिखा । (बीते समय में)
वे पटना गये । (बीते समय में, कब गये पता नहीं)
आसन्न भूत : इससे बीते समय में क्रिया के तुरंत या कुछ देर पहले समाप्त होने का बोध होता है, जैसे –
मैं खा चुका हूँ। (कुछ देर पहले, पेट भरा हुआ है )
सीता रोयी है। (आँसू सूख चुके हैं, लेकिन चेहरा उदास है।)

पूर्ण भूत : इससे बीते समय में क्रिया की पूर्ण समाप्ति का बोध होता – है; जैसे –
वह गया था । (जाने का काम बहुत पहले पूरा हो चुका था ।)
राम खा चुका था । (पूर्णतः खा चुका था ।)

अपूर्ण भूत : इससे बीते समय में क्रिया की अपूर्णता का बोध होता है। जैसे –
मैं पढ़ता था ।
मैं पढ़ रहा था। पढ़ने का काम जारी था, पूरा नहीं , हुआ था !

संदिग्ध भूत : इससे बीते समय में किसी क्रिया के होने में संदेह का बोध होता है; जैसे –
पिताजी गये होंगे। (गये या नहीं, संदेह है ।)

हेतुहेतुमद् भूत : इससे इस बात का बोध होता है कि कोई क्रिया बीते समय में होनेवाली थी, लेकिन किसी कारणवश न हो सकी; जैसे –
राधा आती, तो मैं जाता । (न राधा आयी, न मैं गया ।)
श्याम मेहनत करता तो अवश्य सफल होता । (न मेहनत किया, न सफल हुआ ।)

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भविष्यत्काल

भविष्यत्काल : इससे भविष्य में किसी क्रिया के होने का बोध होता है; जैसे –
तुम पढ़ोग – वे जा चुकेंगे ।
आप खेलते रहेंगे। शायद, वह कल आए ।
वह आए, तो मैं जाऊँ। तुम पढ़ोगे, तो पास करोगे ।

भविष्यत्काल के पाँच भेद हैं-
1. सामान्य भविष्यत्
2. संभाव्य भविष्यत्
3. ‘अपूर्ण भविष्यत्
4. पूर्ण भविष्यत्
5. हेतुहेतुमद् भविष्यत् ।

1. सामान्य भविष्यत् : इससे यह पता चलता है कि कोई काम सामान्यतः भविष्य में होगा; जैसे-
वह आएगा। तुम खेलोगे । मैं सफल होऊँगा ।

2. संभाव्य भविष्यत् : इससे भविष्य में होनेवाली क्रिया के होने की संभावना का बोध होता है; जैसे –
संभव है, कल सुरेश आए । (संभावना)
मोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए । (संभावना)

3. अपूर्ण भविष्यत् : इससे यह बोध होता है कि भविष्य में कोई काम जारी रहेगा; जैसे –
मैं लिखता रहूँगा – तुम खेलती रहोगी ।

4. पूर्ण भविष्यत् : इससे यह बोध होता है कि कोई काम भविष्य में पूर्णतः समाप्त हो जाएगा; जैसे-
मैं लिख चुकूँगा। वह पढ़ चुकेगा । वे जा चुकेंगे ।

5. हेतुहेतुमद भविष्यत् : यदि भविष्य में एक क्रिया का होना दुसरी क्रिया के होने पर निर्भर करे, तो उसे हेतुहेतुमद भविष्यत् कहते हैं, जैसे –

वह पढ़ेगा, तो पास करेगा। (पढ़ने पर निर्भर है, पास करना ।)
सीता आए, तो मैं जाऊँ । (आने पर निर्भर है, जाना ।)

क्रिया का रूप परिवर्तन
यहाँ ‘पढ़ना’ क्रिया को कर्तवाच्य के रूप में तीनों कालों में दिया गया है ।

सहचर शब्द

देश-विदेश, जन्म-मरण, जमा-खचन-उतार, चाल-चलन, गलत-सही,आनन-फानन, सही-सलामत, तड़क-भड़क, घर-द्वार, वेद-पुराण, रुपया-पैसा, गाड़ी-घोड़ा, आना-जाना, आदान-प्रदान, अंग-प्रत्यंग, आज-कल, अंधड़-तूफान, अस्त्र-शस्त्र, आहार-विहार, अमीर-गरीब. अल्लाह-ईश्वर, अपना-पराया, आय-व्यय, उलटा-सीधा, ऊंच-नीच, उत्थान-पतन, कटु-मधु, कहना-सुनना, खेल-कूद, खाना-पीना, खर-पात (खरपतवार), खरा-खोटा, खट्टा-मीठा, गप-शप, गलत-सही, गाली-गलौज, चमक-दमक, चढ़ाव-उतार, चाल-चलन, चिंतन-मनन, कीट-पतंग, जन्म-मरण, जमा-खर्च, जीना-मरना, झूठ-सच, ताम-झाम, देश-विदेश, दवा-दारू, धूप-छाँव, धूम-धाम, नष्ट-भ्रष्ट, नमक-तेल, नदी-नाला, बंधु-बांधव, भला-बुरा, भूख-प्यास, भाई-बंधु, बल-विक्रम, बाल-बच्चा, मान-सम्मान (मर्यादा), मोल-जोल, यश-अपयश, राम-रहीम, रहन-सहन, रोजी-रोटी, रात-दिन, राजा-रंक, राग-विराग, लँगड़ा-लूला, लेन-देन, लाम-काफ, रीति-नीति, वर-वध, साग-पात, रूखा-सूखा, संपद-विपद, सिर-पैर, साज-बाज, साधु-संत, शकल-सूरत, हँसी-खुशी, हानि-लाभ, हिसाब-किताब, आकार-प्रकार, सोच-विचार, मोह-माया, (माया-मोह), धन-दौलत, श्रद्धा-भक्ति, ऋषि-मुनि, सोच-समझ, हँसी-खुशी।

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उपसर्ग

प्रश्न 1.
उपसर्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
उपसर्ग वह शब्दांश है जो किसी ‘शब्द’ के पहले लगकर उसके अर्थ को बदल देता है।

उपसर्ग और उनसे बने शब्द

संस्कृत के उपसर्ग
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हिन्दी के उपसर्ग
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उर्दू के उपसर्ग
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उपसर्ग की तरह प्रयुक्त संस्कृत अव्यय
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प्रत्यय

प्रश्न 1.
प्रत्यय किसे कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसे शब्दांशों को जो किसी शब्द के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन या विशेषता ला देते हैं, उन्हें प्रत्यय कहा जाता है ।

प्रश्न 2.
प्रत्यय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं।

1. कृत् प्रत्यय-जो ‘प्रत्यय’ क्रिया के मूलधातु में लगते हैं, उन्हें कृत् प्रत्यय कहा जाता है । कृत् प्रत्यय से बने शब्द को ‘कृदन्त’ कहा जाता है । जैसे- पढ़नेवाला, बढ़िया, घटिया, पका हुआ, सोया हुआ, चलनी, करनी, धीकनी, मारनहारा, गानेवाला इत्यादि ।

2. तद्धित प्रत्यय-जो प्रत्यय संज्ञा और विशेषण के अन्त में लगकर उनके अर्थ में परिवर्तन’ ला देते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहा जाता है । जैसे-सामाजिक, शारीरिक, मानसिक, लकडहारा, मनिहारा, पनिहारा, वैज्ञानिक, राजनैतिक आदि ।

विशेषण में तद्धित प्रत्यय

विशेषण में तद्धित प्रत्यय जोड़ने से भाववाचक संज्ञा बनती है । जैसे –
बुद्धिमत् + ता = बुद्धिमत्ता गुरु + अ = गौरव
लघु + त्व = लघुत्व लघु + अ = लाघव आदि ।

संज्ञा में तद्धित प्रत्यय

संज्ञाओं के अन्त में तद्धित प्रत्यय जोडने से विशेषण बनते हैं। जैसे –
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समास

प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं?
उत्तर:
दो या दो से अधिक पद अपने बीच की विभक्ति को छोड़कर आपस में मिल जाते हैं, उसे समास कहते हैं । जैसे-राजा का मंत्री = राजमंत्री। राज का पुत्र = राजपुत्र । .

प्रश्न 2.
समास के कितने भेद हैं ? सोदाहरण वर्णन करें।
उत्तर:
समास के छः भेद हैं।
1. तत्पुरुष समास-जिस सामासिक शब्द का अन्तिम खंड प्रधान हो, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-राजमंत्री, राजकुमार, राजमिस्त्री, राजरानी, देशनिकाला, जन्मान्ध, तुलसीकृत इत्यादि ।

2. कर्मधारय समास-जिस सामासिक शब्द में विशेष्य-विशेषण और उपमान-उपमेय का मेल हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं । जैसे-चन्द्र के समान मुख = चन्द्रमुख, पीत है जो अम्बर = पीताम्बर आदि ।

3. द्विगु समास-जिस सामासिक शब्द का प्रथम खंड संख्याबोधक हो, उसे द्विगु समास कहते हैं । जैसे-दूसरा पहर = दोपहर, पाँच वटों का समाहार । – पंचवटी, तीन लोकों का समूह = त्रिलोक, तीन कालों का समूह – त्रिकाल आदि ।

4. द्वन्द्व समास-जिस सामाजिक शब्द के सभी खंड प्रधान हों, उसे द्वन्द्व समास कहा जाता है । ‘द्वन्द्व’ सामासिक शब्द = गौरी-शंकर । भात और दाल = भात-दाल । सीता और राम = सीता-राम । माता और पिता = माता-पिता इत्यादि ।

5. बहुव्रीहि समास-जो समस्त पद अपने सामान्य अर्थ को छोडकर विशेष अर्थ बतलाव, उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे-जिनके सिर पर चन्द्रमा हो = चन्द्रशेखर । लम्बा है उदर जिनका = लम्बोदर (गणेशजी), . त्रिशल है जिनके पाणि में = त्रिशूलपाणि (शंकर) आदि ।

6. अव्ययीभाव समास-जिस सामासिक शब्द का रूप कभी नहीं बदलता हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं । जैसे-दिन-दिन = प्रतिदिन । शक्ति भर = यथाशक्ति । हर पल = प्रतिपल, जन्म भर = आजन्म । बिना अर्थ का = व्यर्थ आदि ।

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स्मरणीय

नीचे दिए गए समस्त पदों का विग्रह करके समास बताइए ।
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Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 21
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 22
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 23

वर्तनी संबंधी अशुद्धियाँ और उनके शुद्ध रूप
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Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 26
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 27
Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 28
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अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करना
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Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar 32

विपरीतार्थक शब्द

“विलोम’ शब्द का अर्थ उल्टा है । अतः किसी शब्द का उल्टा अर्थ व्यक्त करने वाला शब्द विलोम शब्द कहलाता है । उदाहरणार्थ दिन-रात । यहाँ रात शब्द, दिन शब्द का ठीक उल्टा अर्थ व्यक्त कर रहा है, अतः यह विलोम शब्द है।

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पर्यायवाची शब्द

पर्याय का अर्थ-समान । अंतः समान अर्थ व्यक्त करने वाले शब्दों को पर्यायवाची शब्द कहते हैं । पर्यायवाची शब्दों से भाषा सशक्त बनती है । विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए पर्यायवाची शब्दों की सूची प्रस्तुत है ।

अग्नि – आग, अनल, पावक, जातवेद, कृशानु, वैश्वानर, हुताशन, रोहिताश्व, वायुसुख, हव्यवाहन ।
अटल-अडिग, स्थिर, पक्का, दृढ़, अचल, निश्चल ।
अर्जुन-भारत, गुडाकेश, पार्थ, श्वेत, कनेर, सहशास्त्रार्जन, धनञ्जय ।
अश्व – घोडा, तुरंग, हय, बाजि, सैन्धव, घोटक, बछेड़ा ।
अपमान-अनादर, निरादर, बेइज्जती ।
अप्सरा-परी, देवकन्या, अरुणाप्रिया, सुखवनिया, देवांगना, स्वर्वेश्या ।
अभिमान-गौरव, गर्व, नाज, घमंड, स्वाभिमान ।
अभियोग-दोषारोपण, कसूर, अपराध, गलती ।
अंधकार-तम, तिमिर, ध्वान्त ।
अपकार-अनिष्ट, अमंगल, अहित ।
अधिकार-सामर्थ्य, अर्हता, क्षमता, योग्यता ।
आदि-पहला, प्रथम, आरम्भिक, आदिम ।
आकाश-नभ, अम्बर, अन्तरिक्ष, आसमान, व्योम, गगन, दिव, द्यौ, पुष्कर, शून्य ।
आँगन-प्रागण, बगर, बाखर, अजिर, अंगना, सहन ।
आशीर्वाद-आशीष, दुआ, शुभाशीष ।
इंदिरा–लक्ष्मी, रमा, श्री, कमला ।
इन्द्रा-महेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरेश. पुरन्दर, देवराज, मधवा, पाकरिपु, पाकशासन, पुरहत ।
इन्द्रधनुष-सुरचाप, इन्द्रधनु, शक्रचाप, मप्तवर्णधन् ।
ईमानदार-सच्चा, निष्कपट, सत्यनिष्ठ, सत्यपरायण ।
ईर्ष्या-मत्सर, डाह, जलन, कुढ़न ।
उद्यत-तैयार, प्रस्तुत, तत्पर ।
उन्मूलन-निरसन, अंत, उत्सादन ।
उत्कृष्ट-उनम, श्रेष्ठ, प्रकृष्ट, प्रवर ।
उपमा-तुलना, मिलान, सादृश्य, समानता ।
ऊर्जा-ओज, स्फूर्ति, शक्ति ।
एकता-एका, सहमति, एकत्व ।
अहसान–आभार, कृतज्ञता, अनुग्रह ।
ऐश-विलास, ऐय्याशी, सुख-चैन ।
ऐश्वर्य-वैभव, सम्पन्नता, समृद्धि ।
ओज-दम, जोर, पराक्रम, बल ।
ओझल-अंतर्धान, तिरोहित, अदृश्य ।
औषध-दवा, दवाई, भेषज, औषधि ।
कंगाल-निर्धन, गरीब, अकिंचन, दरिद्र ।
कल्याण-मंगल, योमक्षेम, शुभ, हित, भलाई ।
कठोर-कड़ा, कर्कश, पुरुष, निष्ठुर ।
कूल-किनारा, तट, तीर ।
कौशल-कला, हुनर, फन ।
किरण-रश्मि, केतु, अंशु, कर ।
कायरता- भीरूता, अपौरुष, पामरता, साहसहीनता ।
खग-पक्षी, चिड़िया, पखेरू, द्विज, पंछी, विहंग, शकुनि ।
खल-शठ, दुष्ट, धूर्त, दुर्जन, कुटिल, नालायक, अधम ।
खूबसूरत-सुन्दर, मनोज्ञ, रूपवान ।
खून-रुधिर, लह, रक्त, शोणित ।
गुरु-शिक्षक, आचार्य, अध्यापक ।
गम्भीर-गहरा, अथाह, अतल ।
घी-घृत, हवि, अमृत ।
घन-जलधर, वारिद, अंबुधर, बादल ।
चपलता-चंचलता, अधीरता, चुलबुलापन ।
चिंता-फिक्र, सोच, ऊहापोह ।
चोटी-श्रृंग, तुंग, शिखर, परकोटि ।
चक्र-पहिया, चाक, चक्का ।
छात्र-विद्यार्थी, शिक्षार्थी; शिष्य ।
छाया-साया, प्रतिबिम्ब, परछाई, छाँव ।
जवान-युवा, युवक, किशोर, तरुण ।
जिद्दी-हठी, दुराग्रही, हठीला, दुर्दान्त ।
जिज्ञासा-उत्सुकता, उत्कंठा, कौतूहल ।
जोश-आवेश, साहस, उत्साह, उमंग, होसला ।
झंडा-ध्वज, केतु, पताका, निसान ।
झगड़ा-कलह, टंटा, करार, वितंडा ।
झुकाव-रुझान, प्रवृत्ति, प्रवणता, उन्मुखता ।
टीका-भाष्य, वृत्ति, विवृति, व्याख्या ।
टोल-समूह, मण्डली, जत्था, झण्ड, चटसाल, पाठशाला ।
ठंड-शीत, ठिठुरन, सर्दी, जाड़ा, ठंडक ।
ठेस-आद्यात, चोट, टोकर, धक्का ।
ठौर-ठिकाना, स्थल, जगह ।
डाह-ईर्ष्या, कुढ़न, जलन ।
ढोंग-स्वाँग, पाखण्ड, कपट, छल ।
ढंग-पद्धति, विधि, तरीका, रीति, प्रणाली, करीना ।
ढेर-राशि, समूह, अम्बार, घौद, क्षुण्ड ।
तन-शरीर, काया, जिस्म, देह, वपु ।
तपस्या-साधना, तप, योग, अनुष्ठान ।
तरकस-तृण, तूणीर, माथा, त्रोण. निपंग ।
तोता-सुवा, शुक, दाडिमप्रिय ।
तन्मय-मग्न, तल्लीन, लीन, ध्यानमग्न ।
तादात्म्य-तद्रूपता, अभिन्नता, सारूप्य, एकात्म्य ।
थकान-क्लान्ति, श्राति, थकावट, थकन ।
थोड़ा-कम, जरा, अल्प, स्वल्प, न्यून ।
थाह-अंत, छोर, सिरा, सीना ।
देवता-सुर, आदित्य, अमर, देव, वसु ।
दासी-बाँदी, सेविका, किंकरी, परिचारिका ।
दमन-अवरोध, निग्रह, रोक, नियंत्रण, वश ।
दिव्य-अलौकिक, स्वर्गिक, लोकातीत, लोकोत्तर ।
धन्यवाद-कृतज्ञता, शुक्रिया, आभार, मेहरबानी ।
धुंध-कुहरा, नीहार, कुहासा ।
धूल-रज, खेह, मिट्टी, गर्द, धूलि ।
ध्यान-एकाग्रता, मनोयोग, तल्लीनता, तन्मयता ।
धंधा-रोजगार, व्यापार, कारोबार, व्यवसाय ।
नया-नवीन, नव्य, नूतन, आधुनिक, अभिनव, अर्वाचीन, नव, ताजा ।
नाश-समाप्ति, अवसान, विनाश, संहार, ध्वंस, नष्ट-भ्रष्ट ।
पत्थर-पाहन, प्रस्तर, संग, अश्म, पापाण ।
पति-स्वामी, कांत, भर्तार, वल्लभ, भर्ता, ईश ।
पत्नी-दुलहिन, अर्धांगिनी, गृहिणी, त्रिया, दारा, जोरू, गृहलक्ष्मी, सहध मिणी, सहचरी ।
पंडित-विद्वान, सुधी, ज्ञानी, धीर, कोविद, प्राज्ञ ।
पाला-हिम, तुपार, नीहार, प्रालेय ।
परिवार-कुल, घराना, कुटुम्ब, कुनबा
फूल-सुमन, कुसुम, गुल, प्रसून, पुष्प, पुहुप ।
बलराम-हलधर, बलवीर, रेवतीरमण, बलभद्र, हली, श्यामबन्धु ।
बंजर-ऊसर, परती, अनुपजाऊ, अनुर्वर ।
बड़प्पन-बड़ाई, महत्त्व, महता, गरिमा ।
बगावत-विप्लव, विद्रोह, गदर ।
भगवान-परमेश्वर, परमात्मा, सर्वेश्वर, प्रभु, ईश्वर ।
भगिनि-दीदी, जीजी, बहिन ।
भंग-नाश, ध्वंस, क्षय, विनाश ।
भाव-आशय, अभिप्राय, तात्पर्य, अर्थ ।
भाल-ललाट, मस्तक, माथा, कपाल ।
मनोहर-मनहर, मनोरम, लुभावना, चित्ताकर्षक ।
मृत्यु-देहावसान, देहान्त, पंचतत्त्व, निधान ।
मोती-सीपिज, मौक्तिक, मुक्ता, शशिप्रभा ।
मेंढक-दादुर, दर्दुर, चातक, मण्डूक, वर्षाप्रिय, भेक ।
यात्रा-भ्रमण, देशाटन, पर्यटन, सफर, घूमना ।
रक्त-खून, लह, रुधिर, शोणित, लोहित, रोहित ।
राधा-ब्रजरानी, हरिप्रिया, राधिका, वृषभानुजा ।
राय-मत, सलाह, सम्मति, मंत्रणा, एरामर्श ।
रोचक-मनोहर, लुभावना, दिलचस्प ।
रक्षा-बचाव, संरक्षण, हिफाजत, देखरेख ।
लज्जा-शर्म, हया, लाज, ब्रीडा ।
लड़ाई-झगड़ा, खटपर, अनबन, मनमुटाव, युद्ध, रण, संग्राम, जंग ।
वन-अरण्य, अटवी, कानन, विपिन ।
विलास-आनन्द, भोग, संतुष्टि, वासना ।
वृक्ष-द्रम, पादप, तरु, विटप ।
विद्या-ज्ञान, शिक्षा, गुण, इल्म, सरस्वती ।
शिष्ट-शालीन, भद्र, संभ्रान्त, सौम्य ।
शुभ-मंगल, कल्याणकारी, शुभकर ।
श्वेत-सफेद, सित, धवल ।
संन्यासी-बैरागी, दंडी, विरत, परिव्राजक ।
समीक्षा-विवेचना, मीमांसा, आलोचना. निरूपण ।
सखी-सहली, सहचरी, सैरंध्री, सजनी ।
सज्जन-भद्र, साधु, पुंगव, सभ्य, कुलीन ।
सुरभि-इष्टगन्ध, सुघान्दी, तर्पण ।
सुन्दरी-ललित, सुनेत्रा, सुनयना, विलासिनी, कामिनी ।
स्वर्ग-सुरलोक, धुलोक, बैकुंठ, परलोक, दिव।
क्षेत्र-प्रदेश, इलाका, भूभाग, भूखण्ड ।
क्षणभंगुर-अस्थिर, अनित्य, नश्वर, क्षणिक ।
क्षय-तपेदिक, यक्ष्मा, राजरोग ।
क्षुब्ध-व्याकुल, विकल, उद्धिग्न ।
क्षीण-दुर्बल, कमजोर, बलहीन, कृश ।

Bihar Board Class 6 Hindi व्याकरण Grammar

अनेकार्थवाची शब्द
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श्रुतिसम भिन्नार्थक शब्द

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मुहावरे

छुरी-कटारी चलाना (बड़ा बैर होना)-उनकी आपस में छुरी-कटारी चल रही है।
जी सन्न होना (अचानक घबरा जाना)-इस बात को सुनते ही मेरा जी सन्न हो गया।
आकाश-पाताल एक करना (बहुत प्रयत्न करना)-अपने खोये हुए लड़के की खोज में उसने आकाश-पाताल एक कर दिया ।
उलटे छुरे से मुड़ना (बेवकूफ बनाकर लूटना)-एक का तीन लेकर आज उसने उल्टे छुरे से मुड़ लिया ।
दाँत खट्टा करना (परास्त करना) -शिवाजी ने मुगलों के दाँत खट्टे कर दिये।
नाक काटना ( इज्जत लेना)-भरी सभा में उसने मेरी नाक काट ली।
नाकों चने चबाना (खूब तंग करना)-आज की बहस में आपने तो मुझे नाकों चने चबवा दिये।
अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारना (अपना नुकसान आप करना)-क्यों पढ़ाई करके अपने पाँव में कुल्हाड़ी मार रहे हो?
आस्तीन में साँप पालना (दुश्मन को पालना)-मुझे क्या मालूम था कि ” मैं आस्तीन में साँप पाल रहा हूँ।
आपे (पायजामा) से बाहर होना (होश खोना, घमंड करना)-क्यों . इतना आपे से बाहर हो रहे हैं, चुप रहिए ।
इधर की दुनिया उधर हो जाना (अनहोनी बात होना)-इधर की दुनिया उधर भले ही जाए, पर वह पथ से विपथ नहीं होगा।
उठ जाना (खत्म होना, मर जाना, हट जाना)-आज वह संसार से उठ गया ।
ओस का मोती (क्षण भंगुर)-शरीर तो ओस का मोती है ।
कलेजा मुँह को आना (दुःख से व्याकुल होना)-उसको दुःख की खबर सुनकर कलेजा मुँह को आ गया ।
काठ मार जाना (लज्जित होना)-भेद खुलते ही उसको काठ मार गया।
छाती पत्थर का करना (जी कड़ी करना)-अब मैंने उसके लिए अपनी छाती पत्थर की कर ली है।
छठी का दूध याद आना (घोर कठिनाई में पड़ना)-इस बार तो उसे छठी का दूध गाद आ जाएगा ।
आटे के साथ घुन पीसना (बड़े के साथ छोटे को हानि उठाना)-मैं इस मुकदमे में आटे के साथ घन की तरह पिस रहा हूँ।
आँखें चार होना (देखा-देखी होना, प्यार होना)-सर्वप्रथम पुष्पवाटिका में राम-सीता की आँखें चार हुई थीं।
आँखें भर आना (आँसू आना)-इंदिराजी की मृत्यु की खबर सुनते ही लोगों की आँखें भर आयीं।
आँखें चुराना (सामने न आना)-परीक्षा में असफल होने पर राम पिता से आँखें चुराता रहा।
अंक भर लेना (लिपटा लेना)-माँ ने बेटी को देखते ही अंक भर लिया।
अंगूठा चूमना (खुशामद करना)-जब तक उसका अंगूठा नहीं चूमोगे, नौकरी नहीं मिलेगी।
अंकश देना (दबाव डालना)-वह हर काम अंकश देकर करवाता है।
आड़े हाथों लेना (भला-बुरा कहना)-आज भरी सभा में उसने मुझे आड़े हाथों लिया।
आकाश चूमना (बहुत ऊँचा होना)-कोलकाता के प्रायः सभी सरकारी भवन आकाश को चूमते नजर आते हैं।
अंधेरा छाना (कोई उपाय न सूझना)-इकलौते पुत्र की अकाल मृत्यु का समाचार पाते ही उसके सामने अंधेरा छा गया ।
आसमान के तारे तोड़ना (असंभव को संभव कर दिखाना)-गुरु के आदेश पर में असमान के तारे भी तोड कर ला सकता हूँ ।
आँचल पसारना ( याचना करना)-माया ने अपने पति की रक्षा के लिए – भगवान के सामने आँचल पसार दिया ।
श्रीगणेश करना (आरंभ करना)-काम का श्रीगणेश कब होगा ?
अपने पाँव पर खड़ा होना (आत्म-निर्भर होगा)-जो व्यक्ति बीस वर्ष की अवधि में अपने पाँव पर खड़ा होने लायक नहीं हुआ, उससे बहुत आशा नहीं करनी चाहिए।
अंगार बनना (क्रोध में आना)-नौकर के हाथ से प्याला गिरा और मालकिन अंगार हो गयी।
आँख की किरकिरी (खटकने वाला)-राम मेरी आँखों की किरकिरी है, में उस निकाल कर ही दम लँगा ।
आँख की पुतली (अत्यंत प्यारी)-मैं अपनी माँ की आँखों की पुल्ली हूँ।
ईट-से-ईंट बजाना (ध्वंस करना.)-बड़े से लड़ोगे तो उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर वह तुम्हारी ईंट-से-ईंट बजा देगा ।
उज रखना (कसर न छोड़ना)- मैं तुम्हारी भलाई के लिए कुछ न उठा रमूंगा।
खेत आना (वीरगति प्राप्त होना)-पाकिस्तान के युद्ध में अनेक सैनिक खेत आये।
उल्टी गंगा बहाना (प्रतिकूल कार्य करना)-उसने इस अनुसंधान से उल्टी गंगा बहा दी । दुष्टों के सच्चरित्र बनाना उल्टी गंगा बहाना है।
उल्लू सीधा करना (काम बना लेना)-उसने रुपये के बल पर अपना उल्लू सीधा कर लिया। मतलबी लोग हमेशा अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं।
कागज काला करना (बेमतलब लिखे जाना)-आजकल कागज काला करने वाले ही अधिक हैं, मौलिक लेखक बहुत कम ।
आटे-दाल का भाव मालूम होना (सांसारिक कठिनाइयों का ज्ञान होना)- अभी मौज कर लो, जब परिवार का बोझ सिर पर पड़ेगा तब आटे दाल का भाव मालूम होगा। आठ-आठ आँस होना (विलाप करना)-अभिमन्यु की मृत्यु पर सभी पांडव आठ-आठ आँसू रोये ।
आँखें लड़ाना (नेह जोड़ना)-हर किसी से आँखें लड़ाना ठीक नहीं।
अक्ल पर पत्थर पड़ना (समय पर अक्ल चकराना)-मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गया था कि घर में बंदूक रहते भी उसका प्रयोग न कर सका ।
अंगारों पर पैर रखना (जान-बूझकर खतरा मोल लेना)-पाकिस्तान भारत से दुश्मनी मोल लेकर अंगारों पर पैर रख रहा है।
कागजी घोड़ा दौड़ाना (कार्यालयों की बेमतलब की लिखा-पढ़ी)-कागजी घोड़ा अधिक दौड़ाओ, काम करो, यही जमाना आ गया है।
कीचड़ उछालना (किसी की प्रतिष्ठा पर आघात करना)-बिना सोचे । किसी पर कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है।
कुआँ खोदना (किसी की बुराई करने का उपाय करना)-जो दूसरे के लिए कुआँ खोदता है, वह स्वयं गड्ढे में गिरता है।
आँखों से पानी गिर जाना (निर्लज्ज हो जाना)-तम अपने बड़े भाई से सवाल-जवाब करते हो, क्या तुम्हारी आँखों से पानी गिर गया है ?
जबान हिलाना (बोलना)-और अधिक जबान हिली तो ठीक न होगा।’ ठोकर खाना (हानि होना)-ठोकर खाकर ही कोई सीखता है। दंग रह जाना (चकित होना)-मैं तो उसका खेल देखकर दंग रह गया । धौंस में आना (प्रभाव में आना)-तुम्हारी धौंस में हम आने वाले नहीं है।
धज्जियाँ उड़ाना (टुकड़े-टुकड़े कर डालना, खूब मरम्मत करना, किसी का भेद खोलना)-भरी सभा में उसकी धज्जियाँ उड़ गयीं ।
पत्थर की लकीर (अमित)-मेरी बात पत्थर की लकीर समझा । पानी फेरना (नष्ट करना)-उसने सब किये-धरे पर पानी फेर दिया । पीछे पड़ना (लगातार तंग करना)-क्यों मेरे पीछे पड़े हो भाई । गम खाना (दबाना)-बेचारा डर के मारे गम खाकर रहता है। . खाक छानना (भटकना)-वह नौकरी की खोज में खाक छानता रहा। रंग जमाना (धाक जमाना)-आपने अपना रंग जमा लिया । करवट बदलना (बेचैन रहना)-मैं सारी रात करवटें बदलता रहा ।
काम तमाम करना (खत्म करना)-मैंने आज अपने दुश्मन का काम तमाम कर दिया। . कचूमर निकालना (खूब पीटना)-पुलिस वालों ने चोरों को मारते- मारते उनके कचूमर निकाल दिये ।
न घर का न घाट का (किसी लायक नहीं)-नौकरी छुटने के बाद वह न घर का रहा न घाट का ।
खार खाना (डाह करना)-न मालूम वे मुझसे क्यों खार खाये बैठे हैं? . गोटी लाल होना (लाभ होना)-अब क्या है, तुम्हारी गोटी लाल है।