Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 6 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 6 in Hindi

प्रश्न 1.
किस बाजार में AR = MR होता है ?
(a) एकाधिकार
(b) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) पूर्ण प्रतियोगिता
उत्तर:
(d) पूर्ण प्रतियोगिता

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की निम्न में से कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) क्रेता और विक्रेता की अधिक संख्या
(b) वस्तु की समरूप इकाइयाँ
(c) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
फर्म के संतुलन की दशा में
(a) MR वक्र MR को ऊपर से काटता है
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है
(c) MR वक्र MR का समानान्तर होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है

प्रश्न 4.
एकाधिकार के लिए निम्न में से कौन-सा कथन सही है ?
अथवा, एकाधिकार की निम्न में कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) फर्म कीमत निर्धारक होती है
(b) माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है
(c) कीमत विभेद की संभावना हो सकती है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
एकाधिकार की स्थिति में प्रतियोगिता
(a) पूर्ण होती है
(b) सीमित होती है
(c) शून्य होती है
(d) नगण्य होती है
उत्तर:
(c) शून्य होती है

प्रश्न 6.
बाजार का वह स्वरूप जिसमें एक ही विक्रेता होता है, उसे क्या कहते हैं ?
(a) एकाधिकार
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) अल्पाधिकार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एकाधिकार

प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में क्या स्थिर रहता है ?
(a) AR
(b) MR
(c) AR और MR दोनों
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(c) AR और MR दोनों

प्रश्न 8.
एकाधिकारी प्रतियोगिता की निम्न में कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) विभेदीकृत उत्पादन
(b) बाजार का अपूर्ण ज्ञान
(c) विक्रय लागत
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मे कीमत को
(a) निर्धारित करती हैं या
(b) ग्रहण करती हैं
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ग्रहण करती हैं

प्रश्न 10.
निम्न में कौन-सा कथन सही है ?
(a) y = c +I
(b) C+ S = C + I
(c) y = O = N (जहाँ y = आय, O = उत्पादन और N = रोजगार का संतुलन स्तर है)
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 11.
उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कुल लागत तथा कुल स्थिर लागत का अंतर
(a) स्थिर रहता है
(b) बढ़ता जाता है
(c) घटता जाता है
(d) घटता-बढ़ता रहता है
उत्तर:
(b) बढ़ता जाता है

प्रश्न 12.
प्रवाह के अंतर्गत निम्न में कौन शामिल है ?
(a) उपभोग
(b) निवेश
(c) आय
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 13.
कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित होता है, जहाँ
(a) वस्तु की माँग अधिक हो
(b) वस्तु की पूर्ति अधिक हो
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति अधिक हो
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) वस्तु की माँग और वस्तु की पूर्ति अधिक हो

प्रश्न 14.
माँग के निर्धारक तत्त्व हैं
(a) वस्तु की कीमत
(b) वस्तु के स्थानापन्न वस्तु की कीमत
(c) उपभोक्ता की आय
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 15.
पूर्ण तथा बेलोचदार माँग वक्र होता है
(a) क्षैतिज
(b) ऊर्ध्वाधर
(c) ऊपर से नीचे दायीं ओर गिरता हुआ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ऊर्ध्वाधर

प्रश्न 16.
निम्न में से कौन माँग की लोच को प्रभावित करता है ?
(a) वस्तु की प्रकृति
(b) वस्तु का विविध उपयोग
(c) समय तत्व
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 17.
निम्न में से कौन आर्थिक मंदी की स्थिति का लक्षण है ?
(a) रोजगार के स्तर में कमी
(b) औसत मूल्य स्तर में कमी
(c) उत्पादन में गिरावट
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 18.
किस वर्ष विश्व में महामंदी हुई थी ?
(a) 1919 में
(b) 1909 में
(c) 1929 में
(d) 1939 में
उत्तर:
(c) 1929 में

प्रश्न 19.
अवसर लागत का दूसरा नाम है
(a) आर्थिक लागत
(b) संतुलन शून्य
(c) सीमांत लागत
(d) औसत लागत
उत्तर:
(a) आर्थिक लागत

प्रश्न 20.
इनमें से कौन स्थिर लागत नहीं है ?
(a) इन्श्योरेन्स
(b) ब्याज
(c) कच्चा माल की लागत
(d) भूमि का लगान
उत्तर:
(c) कच्चा माल की लागत

प्रश्न 21.
पेट्रोल के मूल्य में वृद्धि से कार की माँग में
(a) वृद्धि
(b) कमी
(c) स्थिर
(d) अप्रभावित
उत्तर:
(b) कमी

प्रश्न 22.
गिफिन वस्तुएँ किस प्रकार की होती है ?
(a) विशिष्ट
(b) श्रेष्ठ
(c) सामान्य
(d) निकृष्ट
उत्तर:
(d) निकृष्ट

प्रश्न 23.
उदासीनता-वक्र विश्लेषण के प्रतिपादक हैं
(a) डेविड रिकार्डो
(b) एफ० वाई० एजवर्थ
(c) मार्शल
(d) हिक्स तथा ऐलन
उत्तर:
(d) हिक्स तथा ऐलन

प्रश्न 24.
बैंकिंग लोकपाल बिल योजना की घोषणा किस वर्ष की गई ?
(a) 1990
(b) 1995
(c) 1997
(d) 2000
उत्तर:
(b) 1995

प्रश्न 25.
कौन-सा कथन सत्य है ?
(a) MPC + MPS = 0
(b) MPC + MPS <1
(c) MPC + MPS = 1
(d) MPC + MPS >1
उत्तर:
(c) MPC + MPS = 1

प्रश्न 26.
Traited Economic Politique नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ?
(a) पीगू
(b) जे० बी० रो
(c) जे० एम० कीन्स
(d) रिकार्डो
उत्तर:
(b) जे० बी० रो

प्रश्न 27.
जनता का बैंक कौन-सा है ?
(a) व्यापारिक बैंक
(b) केन्द्रीय बैंक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) व्यापारिक बैंक

प्रश्न 28.
प्राथमिक क्षेत्र में सम्मिलित होता है
(a) कृषि
(b) खुदरा व्यापार
(c) लघु उद्योग
(d) सभी
उत्तर:
(a) कृषि

प्रश्न 29.
किस वर्ष भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुयी ?
(a) 1947
(b) 1935
(c) 1937
(d) 1945
उत्तर:
(b) 1935

प्रश्न 30.
उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन किया जाता है
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में
(b) आय विश्लेषण में
(c) समष्टि अर्थशास्त्र में
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में

प्रश्न 31.
व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत निम्न में से किसका अध्ययन किया जाता है ?
(a) व्यक्तिगत इकाई
(b) आर्थिक समग्र
(c) राष्ट्रीय आय
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत इकाई

प्रश्न 32.
आय बढ़ने पर उपभोक्ता किन वस्तुओं की माँग घटा देता है ?
(a) निम्न कोटि की वस्तुएँ
(b) सामान्य वस्तुएँ
(c) गिफिन वस्तुएँ
(d) ‘a’ और ‘b’ दोनों
उत्तर:
(b) सामान्य वस्तुएँ

प्रश्न 33.
माँग वक्र की सामान्यतः ढाल होती है
(a) बाएँ से दाएँ ऊपर की ओर
(b) बाएँ से दाएँ नीचे की ओर
(c) X-अक्ष से समानान्तर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) बाएँ से दाएँ नीचे की ओर

प्रश्न 34.
पूँजी बटज शामिल करता है
(a) राजस्व प्राप्तियाँ तथा राजस्व व्यय
(b) पूँजीगत प्राप्तियाँ तथा पूँजीगत व्यय
(c) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) पूँजीगत प्राप्तियाँ तथा पूँजीगत व्यय

प्रश्न 35.
प्राथमिक घाटा होता है
(a) वित्तीय घाटा – ब्याज भुगतान
(b) वित्तीय घाटा + ब्याज भुगतान
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 36.
विनिमय दर के कौन-सा प्रकार हैं ?
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) लोचपूर्ण विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 37.
ब्रेटन वुड्स प्रणाली के समय अधिकांश देशों में था
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) अधिकीलित विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 38.
स्थिर विनिमय दर के कौन-सा गुण हैं ?
(a) पूँजी की गतिशीलता को बढ़ावा
(b) पूँजी को बाहर जाने से रोकना
(c) सट्टेबाजी को रोकना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 39.
1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के द्वारा स्थापना हुई
(a) अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष
(b) विश्व बैंक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 40.
लोचपूर्ण विनिमय दर के दोष हैं
(a) अस्थिरता तथा अनिश्चितता
(b) सट्टेबाजी का प्रोत्साहन
(c) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा निवेश को निरुत्साहन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 41.
व्यापार शेष = ?
(a) दृश्य मदों का निर्यात – दृश्य मदों का आयात
(b) दृश्य तथा अदृश्य मदों का निर्यात – दृश्य तथा अदृश्य मदों का आयात
(c) दृश्य मदों का आयात – दृश्य मदों का निर्यात
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) दृश्य मदों का निर्यात – दृश्य मदों का आयात

प्रश्न 42.
भुगतान शेष के घटक है
(a) चालू खाता
(b) पूँजी खाता
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 4

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Bihar Board 12th Philosophy Objective Important Questions Part 4

प्रश्न 1.
जैन दर्शन में ‘विद्रोह मुक्ति’ को कहा जाता है
(a) बोधिसत्व
(b) कैवल्य
(c) निर्वाण
(d) परिनिर्वाण
उत्तर:
(b) कैवल्य

प्रश्न 2.
प्रकृति के गुण हैं
(a) सत्व, रज, तम
(b) सत्व, रज, अर्थ
(c) सत्व, रज, धर्म
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) सत्व, रज, तम

प्रश्न 3.
सांख्य दर्शन में आत्मा को कहा जाता है
(a) ब्रह्म
(b) पुरुष
(c) ईश्वर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) पुरुष

प्रश्न 4.
दर्शन का अर्थ है
(a) प्रत्यय की खोज
(b) ज्ञान के प्रति प्रेम
(c) अमरत्व की आकांक्षा
(d) नियमों का आविष्कार
उत्तर:
(a) प्रत्यय की खोज

प्रश्न 5.
कौन आस्तिक दर्शन है?
(a) जैन दर्शन
(b) बौद्ध दर्शन
(c) चार्वाक
(d) न्याय
उत्तर:
(d) न्याय

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन अनुभववादी नहीं है?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) ह्यूम
(d) काण्ट
उत्तर:
(c) ह्यूम

प्रश्न 7.
अद्वैत दर्शन के प्रर्वतक हैं
(a) रामानुज
(b) बल्लभ
(c) शंकर
(d) कपिल
उत्तर:
(c) शंकर

प्रश्न 8.
योग है
(a) त्याग
(b) समाधि
(c) ईश्वर के साथ साक्षात्कार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) ईश्वर के साथ साक्षात्कार

प्रश्न 9.
जीव का रूप क्या है?
(a) नित्य
(b) शरीर में निवासित
(c) प्रकाशवान
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 10.
गौतम के पुस्तक का नाम है
(a) रामायण
(b) योगासन
(c) न्याय सूत्र
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) योगासन

प्रश्न 11.
जो ज्ञान प्राप्त करता है, कहलाता है
(a) प्रमाण
(b) प्रमाता
(c) प्रमा
(d) अप्रमा
उत्तर:
(a) प्रमाण

प्रश्न 12.
विश्वसनीय व्यक्ति को कहते हैं
(a) आप्त पुरुष
(b) परम पुरुष
(c) सामान्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) आप्त पुरुष

प्रश्न 13.
कारण होता है
(a) पूर्ववर्ती
(b) अनौपाधिक
(c) नियत
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 14.
बर्कले समर्थक हैं
(a) आत्मनिष्ठ प्रत्ययवाद का
(b) वस्तुनिष्ठ प्रत्ययवाद का
(c) निरपेक्ष प्रत्ययवाद का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) आत्मनिष्ठ प्रत्ययवाद का

प्रश्न 15.
ग्रीक दर्शन के जनक हैं
(a) सुकरात
(b) थेल्स
(c) अरस्तु
(d) प्लेटो
उत्तर:
(a) सुकरात

प्रश्न 16.
‘व्यक्ति बनो’ यह वक्तव्य है
(a) ब्रेडले का
(b) सोरोकीन का
(c) हिगेल का
(d) कांट का
उत्तर:
(a) ब्रेडले का

प्रश्न 17.
अयथार्थ ज्ञान कहलाता है
(a) अप्रमा
(b) प्रमा
(c) प्रमाण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) प्रमा

प्रश्न 18.
भगवद्गीता को कर्मशास्त्र किसने कहा?
(a) भगवानदास
(b) बालगंगाधर तिलक
(c) गाँधीजी
(d) नेहरू
उत्तर:
(b) बालगंगाधर तिलक

प्रश्न 19.
गीता का उपदेश है
(a) निष्काम कर्म
(b) सकाम कर्म
(c) कर्म संन्यास
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) निष्काम कर्म

प्रश्न 20.
अनुमान का दूसरा नाम क्या है?
(a) अनुवीक्षा
(b) परवीक्षा
(c) अनुमिति
(d) अनुपालक
उत्तर:
(d) अनुपालक

प्रश्न 21.
“ दुःख है” इसकी चर्चा बुद्ध अपने किस आर्य सत्य में करते हैं?
(a) प्रथम आर्य सत्य
(b) द्वितीय आर्य सत्य
(c) तृतीय आर्य सत्य
(d) चतुर्थ आर्य सत्य
उत्तर:
(c) तृतीय आर्य सत्य

प्रश्न 22.
बुद्ध के किस आर्य सत्य में निर्वाण मार्ग वर्णित है?
(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) तृतीय
(d) चतुर्थ
उत्तर:
(b) द्वितीय

प्रश्न 23.
मोक्ष के दो प्रकार हैं
(a) भाव एवं द्रव्य
(b) द्रव्य एवं निर्जरा
(c) भाव एवं जीव
(d) जीव एवं अजीव
उत्तर:
(d) जीव एवं अजीव

प्रश्न 24.
उपनिषद् को कहा जाता है
(a) योग विद्या
(b) ब्रह्म विद्या
(c) ज्ञान विद्या
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) योग विद्या

प्रश्न 25.
निरपेक्ष प्रत्ययवाद के प्रवर्तक हैं
(a) प्लेटो
(b) बर्कले
(c) हिगेल
(d) अरस्तु
उत्तर:
(c) हिगेल

प्रश्न 26.
अद्वैत का अर्थ होता है
(a) दो नहीं
(b) एक नहीं
(c) चार नहीं
(d) तीन नहीं
उत्तर:
(a) दो नहीं

प्रश्न 27.
प्रागनुभविक ज्ञान सम्बंधित है
(a) अनुभव से
(b) बुद्धि से
(c) (a) और (b) दोनों से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों से

प्रश्न 28.
शंकर के अनुसार सत्-चित् आनन्द कौन है?
(a) ईश्वर
(b) माया
(c) ब्रह्म
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) माया

प्रश्न 29.
दण्ड की अवधारणा है
(a) सामाजिक
(b) दार्शनिक
(c) नैतिक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) नैतिक

प्रश्न 30.
कारण योग है
(a) भावात्मक
(b) असमान
(c) निषेधात्मक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 31.
व्यापार ……… व्यवसाय है।
(a) अनैतिक
(b) क्रूर
(c) लाभोन्मुखी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) लाभोन्मुखी

प्रश्न 32.
नैतिक दर्शन किस पद से जाना जाता है?
(a) इथोस
(b) इथिकोस
(c) इथिक्स
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) इथिक्स

प्रश्न 33.
‘पर्यावरण’ शब्द किससे बना है?
(a) इन्विरानर
(b) इन्वनार
(c) इन्वरानरर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) इन्वरानरर

प्रश्न 34.
मीमांस दर्शन है
(a) कर्मप्रधान
(b) आत्म प्रधान
(c) धर्म प्रधान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कर्मप्रधान

प्रश्न 35.
परम तत्व के अनुसार परम् सत्ता है
(a) प्रत्यय
(b) जड़
(c) तटस्थ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) तटस्थ

प्रश्न 36.
भारतीय दर्शन के सम्प्रदाय है
(a) आस्तिक
(b) भौतिकवादी
(c) नास्तिक
(d) प्राकृतिक
उत्तर:
(a) आस्तिक

प्रश्न 37.
यथार्थ ज्ञान कहलाता है
(a) प्रमा
(b) अप्रमा
(c) प्रमाण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रमा

प्रश्न 38.
अद्वैत के अनुसार आत्मा है
(a) निरपेक्ष
(b) ज्ञान
(c) आनन्द
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) ज्ञान

प्रश्न 39.
किसके अन्तिम भाग को उपनिषद कहते हैं?
(a) पुराण
(b) ज्ञान
(c) वेद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) वेद

प्रश्न 40.
त्रिगुण होते हैं
(a) तम
(b) रज
(c) गुण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) गुण

प्रश्न 41.
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं
(a) गौतम
(b) कपिल
(c) महावीर
(d) मागसेन प्रत्यक्ष है
उत्तर:
(b) कपिल

प्रश्न 42.
प्रत्यक्ष है
(a) अन्वीक्षा
(b) अनुमिति
(c) सविकल्पलक एवं निर्विकल्पक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सविकल्पलक एवं निर्विकल्पक

प्रश्न 43.
शंकर अद्वैत को कहते हैं।
(a) शरीर
(b) ईश्वर
(c) ब्रह्म
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) ब्रह्म

प्रश्न 44.
‘व्यक्ति बनो’ वह वक्तव्य है
(a) ब्रेडले
(b) सोरोकिन
(c) हिगेल
(d) काण्ट
उत्तर:
(a) ब्रेडले

प्रश्न 45.
निम्न में से कौन समीक्षावादी है?
(a) लॉक
(b) बर्कले
(c) ह्यूम
(d) काण्ट
उत्तर:
(d) काण्ट

प्रश्न 46.
“दुःख है’ इसकी चर्चा बुद्ध अपने किस आर्य सत्य में करते हैं?
(a) प्रथम
(b) द्वितीय
(c) तृतीय
(d) चतुर्थ
उत्तर:
(a) प्रथम

प्रश्न 47.
गौतम के पुस्तक का नाम है
(a) रामायण
(b) योगासन
(c) न्याय सूत्र
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) रामायण

प्रश्न 48.
विश्वसनीय व्यक्ति कहलाते हैं
(a) आप्त पुरुष
(b) परम पुरुष
(c) सामान्य
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) परम पुरुष

प्रश्न 49.
कार्य-कारण नियम है
(a) वैज्ञानिक
(b) सामाजिक
(c) दार्शनिक
(d) सामान्य
उत्तर:
(a) वैज्ञानिक

Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 5 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
उदासीन वक्र विश्लेषण का प्रतिमादन किसके द्वारा किया गया है ?
(a) गोसेन
(b) हिक्स एवं एलेन
(c) हिक्स
(d) सेम्यूअलसन
उत्तर:
(b) हिक्स एवं एलेन

प्रश्न 2.
उदासीन वक्र की ढाल होती है
(a) दायें से बायें
(b) बायें से दायें
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बायें से दायें

प्रश्न 3.
ह्रासमान प्रतिफल नियम का संचालन के मुख्य कारण हैं
(a) सीमित साधन
(b) साधनों का अपूर्ण प्रतिस्थापन्न
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 4.
उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ कुल लागत एवं कुल स्थिर लागत का अंतर
(a) बढ़ता है
(b) स्थिर रहता है
(c) घटता है
(d) घटता-बढ़ता रहता है
उत्तर:
(a) बढ़ता है

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से राजकोषीय नीति में किसे शामिल किया जाता है ?
(a) सार्वजनिक ऋण
(b) करारोपण
(c) सार्वजनिक व्यय
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 6.
सरकार के राजस्व के अंतर्गत कौन-सा कर शामिल है ?
(a) आय कर
(b) निगम कर
(c) सीमा शुल्क
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 7.
उपयोगिता का गणनावाचक सिद्धान्त निम्न में से किसने प्रस्तुत किया ?
(a) मार्शल
(b) पीगू
(c) हिक्स
(d) सैम्युलसन
उत्तर:
(a) मार्शल

प्रश्न 8.
प्राचीन विचारधारा निम्न में से किन तथ्यों पर आधारित है ?
(a) कीन्स का रोजगार सिद्धान्त
(b) पीगू का मजदूरी सिद्धान्त
(c) से का बाजार नियम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 9.
कीमत या बजट रेखा की ढाल होती है
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 5, 1
उत्तर:
(a) \(-\frac{P_{x}}{P_{y}}\)

प्रश्न 10.
उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने का मुख्य कारण कौन-सा है ?
(a) साधनों की सीमितता
(b) साधनों का अपूर्ण स्थानापन्न होना
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) एवं (b) दोनों

प्रश्न 11.
एकाधिकार एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में होता है
(a) AR > MR
(b) AR = MR
(c) AR < MR
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) AR > MR

प्रश्न 12.
पूर्ति लोच की माप निम्न में किस सूत्र से ज्ञात की जाती है ?
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 5, 2
उत्तर:
Bihar Board 12th Business Economics Objective Important Questions Part 5, 3

प्रश्न 13.
आय की चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के चक्रीय प्रवाह में संतुलन के लिए निम्न में से कौन-सी शर्त है ?
(a) C + I + G + (X – M)
(b) C + I + G
(c) C + I
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a)

प्रश्न 14.
NNPMP बराबर होता है
(a) GNPMP – घिसावट
(b) GNPMP + अप्रत्यक्ष कर
(c) GNPMP + घिसावट
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) GNPMP – घिसावट

प्रश्न 15.
लाभ का निम्न में कौन-सा घटक है ?
(a) लाभांश
(b) अवितरित लाभ
(c) निगम लाभ कर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 16.
किसने कहा, “मुद्रा वह है जो मुद्रा का कार्य करती है” ?
(a) हाटे
(b) किन्स
(c) हार्टले विदर्स
(d) राबर्टसन
उत्तर:
(c) हार्टले विदर्स

प्रश्न 17.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य के अंतर्गत निम्न में से किसे शामिल किया जाता है ?
(a) विनिमय का माध्यम
(b) मूल्य का मापक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) मूल्य का संचय
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 18.
मुद्रा का प्राथमिक कार्य है
(a) मूल्य का संचय
(b) विलंबित भुगतान का मान
(c) मूल्य का हस्तांतरण
(d) विनिमय का माध्यम
उत्तर:
(d) विनिमय का माध्यम

प्रश्न 19.
निम्नांकित में विधि ग्राह्य मुद्रा कौन है ?
(a) करेंसी नोट और सिक्के
(b) चेक
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) करेंसी नोट और सिक्के

प्रश्न 20.
सामान्य आदमी का बैंक कौन-सा है ?
(a) व्यापारिक बैंक
(b) केन्द्रीय बैंक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) व्यापारिक बैंक

प्रश्न 21.
साख गुणक होता है
(a) \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}\)
(b) नगद × \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}\)
(c) नगद × CRR
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) नगद × CRR

प्रश्न 22.
केन्द्रीय बैंक के निम्न में कौन-से कार्य हैं ?
(a) नोट निगमन का अधिकार
(b) सरकार का बैंकर
(c) विदेशी विनिमय कोषों का संरक्षक
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 23.
देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा कौन-सी मुद्रा जारी की जाती है ?
(a) चलन मुद्रा
(b) साख मुद्रा
(c) सिक्के
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) चलन मुद्रा

प्रश्न 24.
एक खुली अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग के संघटक कौन हैं ?
(a) उपभोग
(b) निवेश
(c) उपभोग + सरकारी व्यय
(d) उपभोग + निवेश + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात
उत्तर:
(d) उपभोग + निवेश + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात

प्रश्न 25.
अत्यधिक माँग होने के निम्न में कौन-से कारण हैं ?
(a) सार्वजनिक व्यय में वृद्धि
(b) मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि
(c) करों में कमी
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 26.
प्रत्यक्ष कर के अन्तर्गत निम्न में से किसे शामिल किया जाता है ?
(a) आय कर
(b) उपहार कर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 27.
भारत में एक रुपया का नोट कौन जारी करता है ?
(a) भारतीय रिजर्व बैंक
(b) भारत सरकार का वित्त मंत्रालय
(c) भारतीय स्टेट बैंक
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) भारत सरकार का वित्त मंत्रालय

प्रश्न 28.
एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में मुद्रा के अंतर्गत शामिल किया जाता है
(a) करेंसी नोट
(b) सिक्के
(c) माँग जमा
(d) इनमें सभी
उत्तर:
(d) इनमें सभी

प्रश्न 29.
मुद्रा स्फीति का प्रमुख कारण है
(a) मौद्रिक आय में कमी
(b) मौद्रिक आय में वृद्धि
(c) उत्पादन में वृद्धि
(d) निर्यात में वृद्धि
उत्तर:
(b) मौद्रिक आय में वृद्धि

प्रश्न 30.
साख मुद्रा का विस्तार होता है जब CRR
(a) घटता है
(b) बढ़ता है
(c) (a) और (b) दोनों संभव
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(a) घटता है

प्रश्न 31.
स्फीतिक अंतराल को ठीक करने के लिए प्रमुख मौद्रिक उपाय कौन-से हैं ?
(a) बैंक दर में वृद्धि
(b) खुले बाजार में प्रतिभूतियाँ बेचना
(c) नकद कोष अनुपात में वृद्धि
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 32.
अवस्फीतिक अंतराल (Deffationary gap) किसकी माप बताता है ?
(a) न्यून माँग की
(b) आधिक्य माँग की
(c) पूर्ण संतुलन की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) न्यून माँग की

प्रश्न 33.
उत्पादन के निम्न में कौन-से साधन हैं ?
(a) भूमि
(b) श्रम एवं पूँजी
(c) व्यवस्था
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 34.
आर्थिक प्रणालियों के निम्न में कौन-से रूप हैं ?
(a) पूँजीवाद
(b) समाजवाद
(c) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 35.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्म में अस्तित्व होता है
(a) निजी स्वामित्व का
(b) मुनाफा कमाने का
(c) दोनों का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों का

प्रश्न 36.
एक समाजवादी अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होता है
(a) अधिकाधिक उत्पादन
(b) आर्थिक स्वतंत्रता
(c) मुनाफा कमाना
(d) अधिकतम लोक कल्याण का
उत्तर:
(d) अधिकतम लोक कल्याण का

प्रश्न 37.
APC = APS = ?
(a) 0
(b) 1
(c) a या अनंत
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1

प्रश्न 38.
यदि MPC = 0.5 तो (k) गुणक क्या होगा ?
(a) \(\frac{1}{2}\)
(b) 1
(c) 2
(d) 0
उत्तर:
(c) 2

प्रश्न 39.
विनिमय दर के निम्न में कौन-से रूप हैं ?
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) लोचपूर्ण विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 40.
उत्पादन संभावना वक्र व्यक्त करता है
(a) वस्तुओं एवं सेवाओं के विभिन्न संयोगों को
(b) रोजगार के स्तर को
(c) मूल्य स्तर को
(d) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(a) वस्तुओं एवं सेवाओं के विभिन्न संयोगों को

प्रश्न 41.
ऐसी वस्तुएँ जिनका एक-दूसरे के बदले प्रयोग किया जाता है, कहलाती है
(a) पूरक वस्तुएँ
(b) स्थानापन्न वस्तुएँ
(c) आरामदायक वस्तुएँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) स्थानापन्न वस्तुएँ

प्रश्न 42.
यदि किसी वस्तु की कीमत में 40% की वृद्धि हो, परन्तु पूर्ति में केवल 15% की वृद्धि हो ऐसी वस्तु की पूर्ति होगी
(a) अत्यधिक लोचदार
(b) लोचदार
(c) बेलोचदार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बेलोचदार

प्रश्न 43.
पूर्ति के नियम को निम्न में कौन-सा फलन प्रदर्शित करता है ?
(a) S = f (P)
(b) S = f \(\left(\frac{1}{p}\right)\)
(c) S = f (Q)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) S = f (P)

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
समूह के मुख्य प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
समूह का वर्गीकरण विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से किया है। सभी मनोवैज्ञानिकों के विभाजन के आधार अलग-अलग है। समूह के कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित है-
1. प्राथमिक और द्वितीयक समूह (Primary and Secondary group)-कूले (Cooley) ने सदस्यों के पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर समूह को दो भागों में विभाजित किया है।

A. प्राथमिक समूह (Primary group)-प्राथमिक समूह में सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। जैसे-परिवार कार्य समूह आदि प्राथमिक समूह के उदाहरण हैं। इसमें व्यक्ति के साथ आमनेसामने का सम्बन्ध होता है। लिण्डग्रेन ने कहा है, “प्राथमिक समूह का तात्पर्य ऐसे समूह से है, जिसमें पारस्परिक सम्बन्ध और बारम्बारता एक साथ घटित होते हैं।”

प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच ‘हम’ की भावना अधिक रहती है। इसमें मतैक्य की दृढ़ता होती है। इस प्रकार के समूह के सदस्यों के मनोवैज्ञानिक पहलुओं, जैसे-मनोवृतियों, आदतों, कार्य-व्यवहारों आदि में दृढ़ता पाई जाती है। इसका आकार छोटा होता है। ये एक-दूसरे के सुख-दुःख से प्रभावित होते हैं। ऐसा समूह स्थायी होती है।

B. द्वितीयक समूह (Secondary group)-द्वितीयक समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक सम्बन्ध अधिक होगा। इसमें आपसी सम्बन्ध के आधार, धार्मिक-निष्ठा, राजनैतिक दल की सदस्यता, वर्गनिष्ठा आदि होते हैं। इनके सदस्य एक जगह एकत्रित नहीं होते, बल्कि किसी माध्यम से आपस में जुड़े होते हैं। जैसे-सामाजिक संगठन, राजनैतिक दल, शैक्षिक संस्थान आदि इसके उदाहरण हैं। इस संबंध में लिण्डर्ग्रन ने लिखा है, “द्वितीयक समूह अधिक अवैयक्तिक होते हैं तथा सदस्यों के बीच औपचारिक तथा संवेदात्मक सम्बन्ध होते हैं।”

2. स्थायी और अस्थायी समूह (Permanent and temporary group)-कुछ मनोवैज्ञानिकों ने स्थायित्व के आधार पर स्थायी तथा अस्थायी दो प्रकार के समूहों की चर्चा की है। स्थायी समूह ऐसे समूह को कहते हैं, जिसका अस्तित्व हमेशा बना रहता है। उसके सदस्य एक लक्ष्य की पूर्ति के बाद दूसरे लक्ष्य की पूर्ति के लिए पुनः प्रयत्नशील हो जाते हैं। जैसे-कर्मचारी संघ, शिक्षक संघ आदि। परन्तु, दूसरी ओर कुछ ऐसे समूह होते है जो क्षणिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बनते हैं और आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ ही समाप्त हो जाती है। जैसे-दंगा पीड़ितों की सहायता के लिए जो समूह बनाया जाता है वह उद्देश्य की पूर्ति के साथ ही समाप्त हो जाता है। ऐसे समूह को अस्थायी समूह कहा जाता है।

3. स्व-समूह तथा पर समूह (In group and out group)-समान अभिरुचि तथा समान उद्देश्य के लोग जो समूह बनाते हैं, उसे स्व-समूह ‘हम’ समूह कहा जाता है। इसके सदस्यगण आपस में मिलकर शांतिपूर्वक रहते हैं तथा समूह के आदर्शों का पालन करते हैं। ऐसे समूह में सहयोग की भावना अधिक पायी जाती है। लेकिन पर-समूह इसके ठीक विपरीत होता है। इसमें सदस्यों के बीच अभियोजन का अभाव होता है। इसमें जाति, भाषा तथा अभिरूचि का बन्धन नहीं होता है। जैसे-उत्तर भारत के लोगों के व्यवहार को देखकर दक्षिण भारत के लोग आश्चर्य करते हैं। इनकी भाषा, लिपि, खान-पान सभी विचित्र मालूम पड़ते हैं।

4. खुला तथा बन्द समूह (Open and closed group)-एडवर्ड्स ने खुला एवं बन्द, दो प्रकार के समूह की चर्चा की है। उनके अनुसार खुला समूह उस समूह को कहते हैं, जिनमें आसानी से कोई भी यक्ति सदस्यता ग्रहण कर सकता है। जैसे-कोई राजनैतिक दल। इस प्रकार के समूह में सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है। परन्तु, बाद समूह ऐसा समूह है जिसका सदस्य सभी व्यक्ति नहीं हो सकते हैं। उनमें तरह-तरह की छानबीन कर लेने के बाद ही किसी व्यक्ति को उसका सदस्य बनाया जाता है। जैसे-किसी प्रतिष्ठित क्लब का सदस्य बनना बहुत कठिन होता है। ऐसे समूह को बन्द समूह को संज्ञा देते हैं।

5. संगठित एवं असंगठित समूह (Organised and Unorganised group)-संगठन के आधार पर भी समूह को दो भागों में बांटा जा सकता है। इस प्रकार के समूह को संगठित तथा असंगठित समूह में विभाजित कर सकते हैं। किसी नियम, आदर्श, सहयोग तथा परस्पर एकता के आधार पर जो समूह निर्भर होता है उसे संगठित समूह कहते हैं। इसके सदस्य समूह के आदर्शों से बंधे होते हैं। इस प्रकार के सदस्यों का मनोबल बहुत ऊंचा होता है। वे लोग आपस में एक-दूसरे को बहुत अधिक सहयोग देते हैं। इसके सदस्यों में ‘हम’ की भावना पायी जाती है। इसके ठीक विपरीत असंगठित समूह के सदस्यों में आपस में सहयोग की भावना कम होती है। वे एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते हैं। सदस्यों का मनोबल बहुत अधिक गिरा हुआ होता है।

6. लम्बीय तथा समतल समूह (Vertical and horizontal group)-इस प्रकार का विभाजन हरबर्ट मीलर (Herbert Millar) ने प्रस्तुत किया है। लम्बीय समूह के सदस्यों के बीच सामाजिक दूरी अधिक होती है जबकि समतल समूह में सदस्य आपस में मिल-जुलकर बराबर रूप से रहते हैं। इसके अन्तर्गत कवि, संगीतकार आदि का समूह आता है। एक ही व्यक्ति कवि और संगीतकार दोनों हो सकता है। इस प्रकार एक ही व्यक्ति कई समूहों का सदस्य हो सकता है। लेकिन कुछ समूह ऐसे होते हैं जिसमें एक ही व्यक्ति कई समूह के सदस्य नहीं हो सकते हैं। जैसे एक ही व्यक्ति स्त्रियों और पुरुषों के समूह का सदस्य नहीं हो सकता, धनी और निर्धन समूह सदस्य एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता है। इसमें सामाजिक दूरी अधिक होती है।

7. आकस्मिक तथा प्रयोजनात्मक समूह (Accidental and purposive group)-प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक मैकडुगल (McDougal) ने समूह की उत्पत्ति के आधार पर आकस्मिक तथा प्रयोजनात्मक दो प्रकार के समूहों की चर्चा की है। आकस्मिक समूह एकाएक किसी स्थान पर बन जाता है। जैसे-रेल यात्रियों का समूह एकाएक बनता है, इसे आकस्मिक समूह कहेंगे। परन्तु दूसरी ओर, कुछ ऐसे समूह होते हैं जो सोच-समझकर खास उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनाये जाते हैं। जैसे-राजनैतिक पार्टी आदि।

8. उदार तथा कठोर समूह (Liberal and hostile group)-कुछ समूह समाज कल्याण एवं जनता की भलाई के लिए बनाये जाते हैं जैसे-राजनीतिक पार्टी, धार्मिक संस्था आदि। परन्तु इसके ठीक विपरीत कुछ ऐसे समूह होते हैं जो समाज को हानि पहुँचाते हैं। जैसे आतंकवादियों का समूह। इसका काम है देश या जनता को तबाह करना।

9. राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय समूह (National and International group)-राष्ट्रीय समूह उसे कहेंगे जो सिर्फ एक राष्ट्र तक सीमित रहते हैं, जैसे-कांग्रेस पार्टी। लेकिन कुछ ऐसे भी समूह हैं जो कई देश मिलकर बनाते हैं। जैसे सार्क, U.N.OI

10. भ्रमणकारी एवं स्थिर समूह (Mobile and immobile group)-कुछ समूह ऐसे होते हैं जो एक जगह पर स्थिर नहीं रहते, बल्कि भ्रमण करते हैं, जैसे-खानाबदोश का समूह। इसके विपरीत अधिकांश समूह ऐसे होते हैं जो स्थिर होते हैं। वे एक जगह रहकर अपने उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। जैसे-पुस्तक व्यावसायियों का समूह।

11. समूह का आधुनिक वर्गीकरण (Recent classification of group)-समूह का विभाजन आधुनिक मनोवैज्ञानिक द्वारा भी किया गया है। जो इस प्रकार A घनिष्ठ समूह B, प्राथमिक समूह C. मध्य समूह D, सहकारी समूह।. घनिष्ठ समूह में ऐसे लोग आते हैं जो आपस में घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। जैसे-परिवार। प्राथमिक समूह के अन्तर्गत छोटे समूह को रखा जा सकता है जैसे-खिलाड़ियों का समूह। इसी प्रकार मध्य समूह तथा सहकारी समूह के अन्तर्गत राजनैतिक पार्टियाँ आदि बनते हैं।

प्रश्न 2.
चिंता विकृति के लक्षण कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
चिन्ता मनः स्नायुविकृति एक ऐसा मानसिक रोग है, जिसमें रोगी हमेशा अज्ञात कारणों से चिन्तित रहा करता है। सामान्य चिन्ता एक सामान्य, स्वाभाविक और सर्वसाधारण मानसिक अवस्था है। जीवन में जटिल परिस्थितियों में यह अनिवार्य रूप से होता है। वर्तमान भयावह परिस्थिति से डरना या चिन्तित होना सामान्य अनुभव है। इसके लिए व्यक्ति डर की प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। जैसे-बाघ को सामने आता देखकर व्यक्ति सामान्य चिंता के फलस्वरूप भयभीत होने या भागने की क्रिया करता है। व्यक्ति में ऐसी भयावह परिस्थिति की अवगति रहती है। उसी के संतुलन के लिए वह किसी प्रकार की प्रतिक्रिया करता है। सामान्य चिन्ता का संबंध वर्तमान भयावह परिस्थितियों से रहता है। लेकिन सामान्य चिन्ता से असामान्य चिन्ता पूर्णतः भिन्न है।

इसमें व्यक्ति चिन्तित या भयभीत रहता है, लेकिन सामान्य चिन्ता के समाने उसकी चिन्ता का विषय नहीं रहता। उसकी अपनी चिन्ता का कारण ज्ञात नहीं रहता। उसकी चिन्ता पदार्थहीन होती है। अत: अपने विभिन्न शारीरिक उपद्रवों को व्यक्त करता है। वस्तुतः उसे अपने मानसिक उपद्रव का ज्ञान नहीं रहता। इसके अतिरिक्त उसकी चिन्ता का संबंध हमेशा भविष्य से रहता है, वर्तमान से नहीं। इसलिए उसमें निराकरणात्मक सामान्य चिन्ता की तरह प्रतिक्रिया देखने में नहीं आती है, अतः हम कह सकते हैं कि सामान्य चिन्ता भयावह परिस्थितियों की प्रतिक्रिया है। सामान्य चिन्ता के संबंध में असामान्य चिन्ता आन्तरिक भयावह परिस्थितियों की प्रतिक्रिया है।

सामान्य चिन्ता के संबंध में फिशर (Fisher) ने कहा-“सामान्य चिन्ता उन उलझी हुई कठिनाइयों की प्रतिक्रिया है जिसका परित्याग करने में व्यक्ति अयोग्य रहता है।”(Normal anxiety is a reaction to an unapprochable difficults which the individual is unable to avoid.) जबकि असामान्य चिन्ता के संबंध में उनका विचार है कि ‘असामान्य चिन्ता उन आन्तरिक या व्यक्तिगत उलझी हुई कठिनाइयों की प्रतिक्रिया है, जिसका ज्ञान व्यक्ति को नहीं रहता।” (Neurotic anxiety is a reaction to an unapproachable inner or subjective difficult of which the individual has no idea.)

चिन्ता मनःस्नायु विकृति (Symptoms of anxiety neurosis)-चिन्ता मन:स्नायु विकृति में शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के लक्षण देखे जाते हैं। मानसिक लक्षण में भय और आशंका की प्रधानता रहती है, जबकि शारीरिक लक्षण में हृदय गति, रक्तचाप, श्वास गति, पाचन-क्रिया आदि में परिवर्तन देखे जाते हैं। उनका वर्णन निम्नलिखित हैं-

1. मानसिक लक्षण (Mental symptoms)-मानसिक लक्षणों में अतिरंजित भय और शंका की प्रधानता रहती है। यह अनिश्चित और विस्तृत होता है। इसका रोगी तर्कयुक्त प्रमाण नहीं कर सकता, किन्तु पूरे विश्वास के साथ जानता है कि उसका सोचना सही है। उसकी शंका किसी दुर्घटना से संबंध होती है। घर में आग लगने, महामारी फैलने, गाड़ी उलटने, दंगा होने या इसी प्रकार की अन्य घटनाओं के प्रति वह चिंतित रहता है। वह हमेशा अनभव करता है कि बहत जल्द ही कछ होनेवाला है। इस संबंध में अनेक काल्पनिक विचार उसके मन में आते रहते हैं। वह दिन-रात इसी विचार से परेशान रहता है उसमें उत्साह की कमी हो जाती है और मानसिक अंतर्द्वन्द्व बहुत अधिक हो जाता है। चिन्ता से या तो वह अनिद्रा का शिकार हो जाता है या नींद लगने पर तुरन्त जाग जाता है। ऐसे रोगियों में मृत्यु, अपमान आदि भयावह स्वप्नों की प्रधानता रहती है, उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। इसका रोगी कभी-कभी आत्महत्या का भी प्रयास करता है।

2. शारारिक लक्षण (Physical symptoms)-चिन्ता मनःस्नायु विकृति के रोगियों में शारीरिक लक्षण भी बड़ी उग्र होते हैं। रोगी के हृदय की गति, रक्तचाप, पाचन-क्रिया आदि में परिवर्तन हो जाते हैं। पूरे शरीर में दर्द का अनुभव करता है। कभी-कभी चक्कर भी आता है। रोगी के शरीर से बहुत अधिक पसीना निकलता है। वह बोलने में हलकाता है तथा बार-बार पेशाब करता है, उसे शारीरिक वजन घटना हुआ मालूम पड़ता है। यौन भाव की कमी हो जाती है। इसके रोगी तरह-तरह की आवाजें सुनते हैं। कुछ लोगों को शिश्न छोआ होने का भय बना रहता है।

इस प्रकार के रोगियों में दो प्रकार की चिन्ता देखी जाती है-तात्कालिक चिन्ता तथा दीर्घकालिक चिन्ता। तात्कालिक चिन्ता रोगी में बहुत तीव्र तथा उग्र होती है। यह चिन्ता तुरन्त को होती है। इसमें रोगी चिल्लाता है तथा पछाड़ खाकर गिरता है। दीर्घकालिक चिन्ता पुरानी होती है। रोगी अज्ञात भावी दुर्घटनाओं के प्रति चिन्तित रहता है। वह निरंतर इस चिन्ता से बेचैन रहता है और त्रस्त रहता है। इस रोग का लक्षण के आधार पर ही विद्वानों ने दा भागों में विभाजित किया है-मुक्तिचारी चिन्ता तथा निश्चित चिन्ता। चिन्ता के कारण का अभाव नहीं रहने पर भी जब रोगी बराबर बेचैन रहता है तो उसे free floating anxiety कहते हैं, लेकिन जब रोगी किसी परिस्थिति विशेष से अपनी चिन्ता का संबंध . स्थापित कर लेता है तो उसे bound anxiety कहा गया है प्रारंभ में रोगी में मुक्तिचारी चिन्ता ही रहता है, लेकिन क्रमशः स्थायी रूप धारण कर लेने पर उसे निश्चित चिन्ता बन जाती है।

चिन्ता मनःस्नायु विकृति के कारण (Etiology)-अन्य मानसिक रोगों की तरह चिन्ता मन:स्नायु विकृति के कारणों को लेकर भी मनोवैज्ञानिकों में एकमत का अभाव है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा जो कारण बताये गये हैं, उनमें कुछ मुख्य निम्न हैं-
1.लगिक वासना का दमन (Repressionafsexualdesire)-सप्रसिद्ध मनोविश्लेषक फ्रायड ने लैंगिक इच्छाओं के दमन को इस मानसिक रोग का क ग माना है। व्यक्ति में लैंगिक आवेग उत्पन्न दोता है और यदि वह आवेग की पूर्ति में असफल हो जाता ७, उसमें चिन्ता उत्पन्न होती है। यही इस रोग के लक्षणों को विकसित करती है। अत:सावित लैंगिक शक्ति को इस रोग का करण माना जा सकता है। किसी पति की यौन सामर्थता या स्त्री में यौन उत्तेजना होने पर चलनात्मक स्राव नहीं होने से वह इस रोग से पीड़ित हो जाता है। इसी प्रकार पुरुष अपनी असमर्थता या स्त्री दोषी होने के कारण इस रोग से पीड़ित हो सकता है।

फ्रायड के उपर्युक्त मत से मनोवैज्ञानिक सहमत नहीं है। इस संबंध में गार्डेन का विचार है कि कामेच्छा का दमन और उसका प्रतिबंध ही इस [ग का कारण नहीं, बल्कि दो संवेगों के संघर्ष के फलस्वरूपू इस रोग के लक्षण विकसित होते हैं। इस बात का मैकडूवल ने भी समर्थन किया है।

2. हान भावना (Inferioritvcomplex)-इस संबंध के फ्रायड के शिष्य एडलर ने भी अपना विचार व्यक्त किया है। उनका कहना है कि मनुष्य में आत्म प्रतिष्ठा का भावना प्रबल होती है, किन्तु बचपन में आश्वासन की शिथिलता के कारण जब व्यक्ति के Ego का समुचित रूप से विकास नहीं हो पाता है, तो वह हीनता की भावना से पीड़ित रहने लगता है। उसमें आत्म प्रतिष्ठा की भावना का दमन हा जाता है और व्यक्ति चिन्ता मनःस्नाय विकृति से पीड़ित हो जाता है।

3. मानसिक संघर्ष एव निराशा (Mental conflict and frustration) का का ऐसा मानना है कि इस रोग का कारण मानसिक संघर्ष एवं कुंठा है। इस संबंध में और भी मनोवैज्ञानिकों ने अपना अध्ययन किया है और ओकेली के मत का समर्थन किया है।
इस तरह हम देखते हैं कि चिन्ता मन:स्नायु विकृति के कारणों को लेकर सभी मनोवैज्ञानिक एक मत नहीं है। इस रोग के कारण के रूप में मुख्य रूप से लैंगिक वासना का दमन, हीनभावना तथा – मानसिक संघर्ष एवं निराशा को माना जा सकता है।

प्रश्न 3.
असामान्य मनोविज्ञान की परिभाषा दें तथा उसकी विषय-वस्तु का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोविज्ञान की कई शाखाएँ हैं, उनमें असामान्य मनोविज्ञान भी एक है। असामान्य मनोविज्ञान में व्यक्ति के असामान्य व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है, अथात् व्यक्ति का वेसा व्यवहार जो सामान्य से अलग होता ह, उन व्यवहारों का अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। असामान्य मनोविज्ञान अंग्रेजी शब्द Abnormal Psychology का हिन्दी रूपान्तर है। Abnormal शब्द की उत्पत्ति Anomelols से हुई है, जो दो शब्दों Ano ओर Moles का मल से बना है। Ano का अर्थ है ‘नहीं’ और Moies का अर्थ नियमित हाना है। इस अर्थ में अनियमित व्यवहारों (irregular benaviour) का अध्ययन करने वाला मनोविज्ञान असामान्य मनोविज्ञान है।

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने Abnormal की व्याख्या कुछ दूसरे ढंग से की है। उन लोगों की राय में Abnormal Ab और Normal दा शब्दां के मेल से बना है। Ab का अर्थ है away, इस अर्थ में Abnormal का अर्थ, Away from normal, अर्थात् सामान्य से दूर मानते हैं। . वास्तव में देखा जाये तो दोनों विचारों से असामान्य भनोविज्ञान की विषय वस्तु स्पष्ट नहीं होतो है। मिला-जुलाकर ऊपरी दोनों परिभाषाएँ लगभग समान हैं। कोई आधुनिक मनोवैज्ञानिक ने असामान्य मनोविज्ञान का परिभाषित करने का प्रयास किया है। किस्कर (Kisker) ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा है “मानव के वे व्यवहार और अनुभूतियाँ जो साधारण: अनोखी, असाधारण या पृथक हैं, असामान्य : समझी जाती हैं।”

जेम्स ड्रेवर के अनुसार “असामान्य मनोविज्ञान की वह शाखा है, जिससे व्यवहार या मानसिक घटना की विषमता का अध्ययन किया जाता है।”

कोलमैन (Coleman) की परिभाषा से असामान्य मनोविज्ञान का स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा है, “असामान्य मनोविज्ञान, मनोविज्ञान का वह क्षेत्र है, जिसमें विशेष रूप से मनोविज्ञान के नियमों के समन्वय और विकास का अध्ययन असामान्य व्यवहार को समझने के लिए किया जाता है। · उपर्युक्त परिभाषा पर गौर किया जाए तो निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं-

  1. असामान्य मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक शाखा है।
  2. असामान्य मनोविज्ञान से व्यक्ति के असामान्य व्यवहारों को समझने का प्रयास किया जाता है।
  3. व्यक्ति के असामान्य व्यवहार को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक नियमों या सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।
  4. व्यक्ति के असामान्य व्यवहार के लक्षणों को दूर करने के लिए मनोवैज्ञानिक चिकित्सा-विधियों का सहारा लिया जाता है।

असामान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र-असामान्य मनोविज्ञान की परिभाषा में कहा गया है कि इसमें व्यक्ति की असामान्य अनुभूतियों और व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है, लेकिन इतना कह देने से इसका क्षेत्र स्पष्ट नहीं होता। असामान्य मनोविज्ञान में असामान्य से संबंधित जिन विषयों का अध्ययन किया जाता है, उनका संक्षिप्त विवरण निम्नांकित प्रकार है-

1. असामान्य अनुभूति और व्यवहारों का अध्ययन-व्यक्ति के असामान्य व्यवहारों को समझने के लिए असामान्य मनोविज्ञान का सहारा लिया जाता है। जो व्यक्ति असामान्य होगा उसका व्यवहार भी आवश्यक रूप से असामान्य होगा, अतः ऐसे व्यक्ति के लक्षण, कारण तथा उपचार का अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत किया जाता है।

2. अचेतन का अध्ययन-आधुनिक मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से यह बात साबित हो चुकी है कि व्यक्ति के समस्त असामान्य व्यवहारों को उसका अचेतन गम्भीर रूप से प्रभावित करता है। बहुत-से असामान्य व्यवहारों के कारणों को ज्ञात करने तथा उनका उपचार करने के लिए अचेतन का विश्लेषण करना आवश्यक होता है, इसलिए असामान्य मनोविज्ञान में अचेतन का अध्ययन अति आवश्यक है। फ्रायड ने असामान्य व्यवहारों को समझने के लिए अचेतन के अध्ययन पर बहुत अधिक बल दिया है।

3. मानसिक विकृतियों का अध्ययन- असामान्य मनोविज्ञान में मानसिक विकृतियों का अध्ययन किया जाता है, क्योंकि असामान्य व्यवहारों का मूल कारण मानसिक विकृतियाँ ही हैं। मानसिक विकृतियों को उसकी जटिलता के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है, मनःस्नायु विकृति तथा मनोविकृति। इन विकृतियों के कारण लक्षण एवं इन्हें दूर करने के उपयों का अध्ययन करना असामान्य मनोविज्ञान का क्षेत्र है।

4. स्वप्न का अध्ययन- स्वप्न सभी व्यक्ति देखते हैं, लेकिन उसका अर्थ नहीं समझते। वास्तव में स्वप्न अचेतन इच्छाओं की अभिव्यक्ति है। इसके माध्यम से अचेतन को जाना जा.सकता है जो सभी असामान्य व्यवहारों का मूल है। इसके अन्तर्गत सभी प्रकार के स्वप्नों की व्याख्या एवं स्वप्न सिद्धान्तों का अध्ययन किया जाता है।

5. प्रेरणा एवं अभियोजन का अध्ययन- किसी भी व्यक्ति के जीवन में प्रेरणा का विशेष महत्व है। समुचित प्रेरणा में भी व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है, जिससे वातावरण में अभियोजन की क्षमता समाप्त हो जाती है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए असामान्य मनोविज्ञान में प्रेरणा के स्वरूप, भूमिका एवं प्रभाव आदि के साथ-साथ अभियोजन की प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

6. मनोरचनाओं का अध्ययन- मनोरचना एक ऐसी मानसिक प्रक्रिया है, जिससे व्यक्ति को संवेगात्मक तनावों से छुटकारा मिलता है। मनोरचनाओं के कारण व्यक्ति में असामान्य व्यवहार के लक्षण विकसित होते हैं। अतः असामान्य मनोविज्ञान के अन्तर्गत मनोरचनाओं का भी अध्ययन किया जाता है। इन मनोरचनाओं में प्रतिगमन युक्ताभास, प्रक्षेपण, आत्मीकरण प्रतिक्रिया निर्माण, रूपान्तरण आदि प्रमुख हैं।

7. असामान्य व्यवहार के कारणों का अध्ययन- असामान्य मनोविज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति के . असामान्य व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। अत: यह ज्ञात करना आवश्यक है कि व्यक्ति के
असामान्य व्यवहारों के क्या कारण हैं। बिना कारण जाने असामान्य व्यवहारों को दूर नहीं किया जा सकता है, इसीलिए असामान्य का क्षेत्र असामान्य के कारणों का अध्ययन करना भी है।

8. मनोलैंगिक विकास का अध्ययन- मनोलैंगिक विकास के तथ्य को सर्वप्रथम फ्रायड ने बतलाया है। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व के निर्माण में मनोलैंगिक विकास की प्रमुख भूमिका होती है। इस तथ्य को अधिकांश मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। अतः, स्पष्ट है कि व्यक्ति के असामान्य व्यवहारों के पीछे मनोवैज्ञानिक विकास की अहम भूमिका होती है। इसे ध्यान में रखते हुए असामान्य मनोविज्ञान के अन्तर्गत विकास की विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है।

9. मनःस्नायु विकृति एवं मनोविकृति का अध्ययन- मनःस्नायु विकृति एवं मनोविकृति मानसिक रोग है। इस मानसिक रोगों के कारण व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है, अत: उन असामान्य व्यवहारों को समझने के लिए मनःस्नायु विकृति एवं मनोविकृति जैसी मानसिक बीमारियों का अध्ययन किया जाता है। उसके बाद उन मानसिक बीमारियों के लक्षणों एवं कारणों को जानकर उसकी चिकित्सा करते हैं। मनःस्नायु विकृति के अन्तर्गत हिस्टीरिया, झक-बाध्यता, मन:स्नायु, विकृति, चिन्ता, मन:स्नायु विकृति आदि सामान्य मानसिक रोग आते हैं, जबकि मनोविकृति के अन्तर्गत मनोविदलता, उत्साह-विषाद मनोविकृति, परानोइया आदि आते हैं। इन रोगों के लक्षण, कारण एवं उपचार इसके क्षेत्र में आते हैं।

10. यौन विकृतियों का अध्ययन- कुछ व्यक्तियों में यौन विकृतियाँ देखी जाती हैं, अर्थात् वे गलत ढंग से यौन इच्छाओं की पूर्ति करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के व्यवहारों को भी असामान्य कहा जाता है। जैसे-हस्तमैथुन, गुदामैथुन आदि। व्यक्ति के इन असामान्य व्यवहारों का अध्ययन करना भी असामान्य मनोविज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत आते हैं।

11. मानसिक दुर्बलता-जो व्यक्ति मानसिक रूप से दुर्बल होते हैं, उनका व्यवहार भी असामान्य हो जाता है। अत: मानसिक दुर्बलता के कारण एवं लक्षण तथा निदान का अध्ययन भी असामान्य मनोविज्ञान के अन्तर्गत ही होता है।

12. मनोचिकित्सा का अध्ययन- असामान्य मनोविज्ञान एक व्यावहारिक विज्ञान है, अतः इसमें विभिन्न बीमारियों के कारणों का अध्ययन करने के पश्चात् उसकी चिकित्सा का उपाय करना भी है, अतः इसके अन्तर्गत कई मनोचिकित्सा प्रविधियों का अध्ययन किया जाता है। जैसे-समूह चिकित्सा, व्यवहार चिकित्सा, सम्मोहन आदि।

13. अपराध एवं बाल अपराध का अध्ययन-इस मनोविज्ञान के अन्तर्गत व्यक्ति के अपराध एवं बाल अपराध का अध्ययन भी किया जाता है। व्यक्ति के वैसे व्यवहार जो समाजविरोधी होते हैं, उन व्यवहारों, का अध्ययन एवं उसे दूर करने के उपाय का अध्ययन भी असामान्य ही करता है।

प्रश्न 4.
What is Psychoanalysis Therapy? Discuss the main stages of Psychoanalysis therapy and its disadvantages.
(मनोविश्लेषण चिकित्सा विधि क्या है? इसकी विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करते हुए मनोविश्लेषण विधि के दोषों का वर्णन करें।)
उत्तर:
मनोचिकित्सा के क्षेत्र में मनोविश्लेषण विधि का अपना अलग महत्त्व है। इस विधि के माध्यम से मानसिक रोगियों खासकर मन:स्नायु विकृति से पीड़ित रोगियों की चिकित्सा में बहुत सहयोग मिलता है । इस प्रविधि का प्रारंभ सुप्रसिद्ध मनोविश्लेषक फ्रायड ने किया था। उन्होंने एक महिला रोगी की चिकित्सा के सिलसिले में इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस विधि के माध्यम से रोगी के अचेतन में दबी हुई भावनाओं को जानने और उसे चेतन में लाने का प्रयास किया जाता है।

मानसिक विकृतियों के सम्बन्ध में फ्रायड (Freud) का विचार है कि परिस्थिति की संगीनियों से जब व्यक्ति का अभियोजन नहीं हो पाता है, तो उसमें मानसिक संघर्ष होता है। अन्तर्द्वन्द्व के क्रम में वे सारी अनैतिक एवं असामाजिक इच्छाएँ अचेतन में दब जाती हैं। धीरे-धीरे वह वास्तविकता से दूर होता जाता है। उसके चेतन पर अचेतन हाबी हो जाता है। इस प्रकार व्यक्ति असामान्यता का शिकार हो जाता है। इस अवस्था में यदि उसे सहयोग दिया जाय, तो अचेतन के विचारों को वह समझ सकता है। उसे वास्तविकता का अभास हो सकता है और तब उसकी असामान्यता में भी कमी आ सकती है।

मनोविश्लेषण में रोगी से पूछकर उसके अचेतन तत्वों को पता लगाते हैं। शान्त, स् सज्जित कमरे में चिकित्सक और रोगी बैठते हैं और रोगी अपने अभिव्यक्ति का अवसर देते हैं। उन अपनी बात कहने के लिए उत्तेजित करते हैं। रोगी अपने ढंग से बेतरतीब बोल सकता है। वह अन्यमनस्क और निष्क्रिय हो सकता है। चिकित्सक हर प्रकार से अपनी तकनीकी विधाओं के सहारे उसके अचेतन को उभारने का प्रयास करता है। अचेतन को उभारने पर रोगी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने लगता है। चिकित्सक उसकी भावनाओं को नोट करता जाता है। इससे रोगी का पूरा इतिहास तैयार हो जाता है।

मनोविश्लेषण की अवस्थाएँ (Stages of Psychoanalysis)
(i) आरंभिक अवस्था- आरंभिक अवस्था में सबसे पहले चिकित्सक रोगी का चयन करता है और यह देखता है कि इस विधि का लाभ उसे मिल सकता है या नहीं। इसके लिए उसका Interview लिया जाता है। साक्षात्कार में इस बात की भी जानकारी प्राप्त करते हैं कि रोगी अपनी चिकित्सक को सहयोग कर सकता है या नहीं।

इस विधि से चिकित्सा करने के लिए रोगी को सुसज्जित कमरे में कुर्सी पर बैठाया जात है तथा सिरहाने में मनोचिकित्सक स्वयं बैठ जाता है तथा उसे बिना संकोच के कुछ कहने का निर्देश दिया जाता है। रोगी से इन बातों को रगलवाने के लिए उसके साथ आत्मीयता स्थापित करना आवश्यक है। इस प्रकार चिकित्सक उसकी गतिविधियों का निरीक्षण करता रहता है।

(ii) अवरोध की अवस्था-इस अवस्था में चिकित्सव को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। क्योंकि एक ऐसी अवस्था आती है जब रोगी चुप हो जाता है या अनाप-शनाप बकने लगता है। यहाँ चिकित्सक धैर्यपूर्वक तरह-तरह का पलोभन देकर उसके साथ आत्मीय सम्बन्ध स्थापित कर पुनः इस अवस्था में लाता है कि वह रन बातों को भी नि:संकोर बताए जो वर नहीं बोल ॥रा है।

(iii) स्थानान्तरण-यह मनोविश्लेषण का एक महन्तपूर्ण एवं नाजुक अवस्था है। स्थानान्तरण में दो बातें देखी जाती हैं। पहली बात तो यह कि रोगी चिकित्सक से कुछ बातों को छिपाना चाहता है और चिकित्सक उन बातों को उससे उगलवाना चाहता है। इस स्थिति में रोगी चिकित्सक पर शक करने लगता है, यहाँ चिकित्सक को काफी धैर्य की आवश्यकता होती है। हो सकता है कि रोगी चिकित्सक के पास आना छोड़ द या फिर झगड़े की नौबत आ जाय। यहाँ चिकित्सक घबड़ाता नहीं है, बल्कि उसके साथ स्नेहपूर्वक व्यवहार करके उसका विश्वासपात्र बनने का प्रयास करता है।

यही प्रतिरोध की अवस्था है। इस प्रतिरोध का नकारात्मक पक्ष कहा जाता है। रोगी का विश्वास जब चिकित्सक पर जम जाता है तो वहाँ से प्रतिरोध का भावात्मक पक्ष प्रारम्भ हो जाता है। ऐसी अवस्था में रोगी जो कुछ भी चिकित्सक को बतलाता है उसका सीधा सम्बन्ध रोग से होता है। इन बातों को वह नोट करता जाता है तथा विश्लेषण करके उसके गंग के कारणों को समझने का प्रयास करता है। इस प्रकार चिकित्सक रोगी को वास्तविकता का ज्ञान कराता है और धीरे-धीरे रोग के लक्षणों को समाप्त करने में सहयोग प्रदान करता है। इस प्रकार रोगी के लक्षण धीरे-धीरे लुप्त हो जाते हैं।

(iv) सम्बन्ध विच्छेद-यह अवस्था भी बहुत नाजुक है, क्योंकि चिकित्सक के साथ रोगी ‘ का जिस प्रकार का सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, उसे एकाएक तोड़ने पर पुनः दूसरे लक्षण प्रकट होने की संभावना रहती है। इसलिए रोगी को अपने से अलग करने में कभी-कभी काफी समय लग जाता है। इस अवस्था में रोगी के व्यक्तित्व का पुनर्निमाण होता है और रोगी पूरी तरह से सामान्य हो जाता है।

मनोचिकित्सा विधि के दोष-मनोविश्लेषण चिकित्सा विधि मानसिक रोगियों को रोगों से छुटकारा दिलाने की एक अच्छी विधि है, परन्तु अन्य विधियों की तरह इस विधि में भी कई दोष हैं, जिससे रोगियों और चिकित्सकों को परेशानी उठानी पड़ती है और रोगी चंगा भी नहीं हो पाता है, मनोचिकित्सा विधि के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
1. सीमित कार्यक्षेत्र-मनोविश्लेषण-चिकित्सा प्रविधि का क्षेत्र बहुत ही सीमित है। इसके माध्यम से मनोविकृति, जैसे-मनोविदलता आदि रोगों की चिकित्सा संभव नहीं है। हाँ, इस विधि से मनःस्नायु विकृति जैसे-हिस्टीरिया आदि रोगों की चिकित्सा संभव है।

2. महँगी विधि-मनोविश्लेषण से मानसिक रोगियों को कुछ लाभ तो होता है, परन्तु इसके माध्यम से चिकित्सा करवाने में बहुत अधिक खर्च एवं समय लगता है। इसके माध्यम से चिकित्सा करने के लिए पूर्ण प्रशिक्षित चिकित्सक की आवश्यकता होती है तथा एक वर्ष में दो-चार रोगियों को ही अच्छा किया जा सकता है, अत: बहुत अधिक खर्च पड़ता है, जो केवल बहुत धनी लोगों के लिए संभव रहता है।

3. अधिक समय लगना-इस प्रविधि के माध्यम से बहुत अधिक समय लगता है। प्रत्येक माको एक घंटा रोज समय देना होता है तथा यह समय अठारह माह से ऊपर लगता है। इस फार लम्बी अवधि के कारण बहुत कम रोगियों की चिकित्सा हो पाती है।

4. मन्दबुद्धि के रोगी की चिकित्सा संभव नहीं-इस विधि से केवल मानसिक रोगियों की चिकित्सा संभव है, क्योंकि इसके रोगी में नैतिकता को बढ़ाया नहीं जा सकता है।

5. हानिकारक विधि-कुछ ऐसे भी मानसिक रोग हैं, जिसकी इस विधि से चिकित्सा करने पर लाभ की जगह हानि उठानी पड़ सकती है। खासकर स्थानान्तरण की अवधि में रोगी में कुछ अन्य विकृतियों के बढ़ने की संभावना रहती है। इसीलिए शेफर एवं लेजारस ने कहा है कि . ऐसी मानसिक चिकित्सा में मनोविश्लेषक को चाहिए कि स्थानान्तरण की अवधि बहुत कम रखे।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह प्रविधि बहुत अधिक दोषपूर्ण है, परन्तु अन्य विधियों को यदि पूरक के रूप में रखकर चिकित्सा को जाय तो, इससे रोगी को विशेष लाभ मिल , सकता है।

प्रश्न 5.
What is hypnosis therapy? Discuss the advantages and disadvantages of hypnosis therapy.
(सम्मोहन चिकित्सा से आप क्या समझते हैं ? सम्मोहन चिकित्सा के गुण एवं दोषों का वर्णन करें।)
उत्तर:
मनोचिकित्सा के क्षेत्र में सम्मोहन का एक आकर्षक इतिहास है। सर्वप्रथम सम्मोहन (hypnosis) का प्रयोग 1833 ई. में Braid ने किया था। Braid ने Suggestion द्वारा उत्पन्न एक Senseless अवस्था के लिए किया था। Braid ने इसे Neurohypnotims कहना पसंद किया था। बाद में अन्य विचारकों ने इसके लिए Hypnosis शब्द का प्रयोग किया। 1877 ई. मेंशाकों (Charcot) ने बतलाया कि सम्मोहन हिस्टीरिया के समान ही एक पैथोलॉजिकल अवस्था (Pathological Stage) है। फिर 1884 ई. में बर्नहिम (Bernhim) ने सम्मोहन की व्याख्या सुझाव (Suggestion) के सिलसिले में की। सच पूछा जाय, तो सम्मोहन का अर्थ कृत्रिम निद्रा है। यह निद्रा एक व्यक्ति में कृत्रिम ढंग से उत्पन्न करके दूसरे व्यक्ति को अचेतन अवस्था में ला देता है। अचेतन अवस्था में आने पर व्यक्ति सम्मोहित करने वाले व्यक्ति के सुझाव के अनुसार सभी क्रियाओं को करता है।

सम्मोहन की क्रिया सम्मोहन के Rapport पर निर्भर करती है। इस विधि के द्वारा मानसिक रोगियों को सम्मोहित करके अपने अचेतन मन में दमित इच्छाओं, अनुभवों आदि को अभिव्यक्त करने का Suggestion दिया जाता है। फलस्वरूप मानसिक रोगियों का उपचार आसान हो जाता है।

सम्मोहन उत्पन्न करने की अनेक विधियाँ हैं। सभी विधियों में Relaxation पर विशेष बल दिया जाता है। कुछ परिस्थितियों में चिकित्सक Relaxation में मदद पहुँचाने के लिए औषधि का सहारा लेता है। सम्मोहन में चिकित्सक Relaxation में मदद पहुँचाने के लिए औषधि का सहारा लेता है। सम्मोहन में रोगी को एक कुर्सी पर आराम से लिटाकर पास की किसी वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने का निर्देश दिया जाता है। रोगी को नींद लाने के लिए कई बार दवा भी दी जाती है।

जब रोगी आराम से सो जाता है तो उसे कई प्रकार के सुझाव दिये जाते हैं। जैसे-“Relax, let yourself go listen only my voice-Relax and go to sleep-your eyes are feeling heavyRelax and go to sleep-Close your cyes and go to sleep-you are drawsy and tried-go to sleep-go to sleep-निद्रा की अवस्था में आने पर परीक्षणों द्वारा यह जांच की जाती है कि रोगी सम्मोहित हुआ या नहीं। सम्मोहक उसे यह सुझाव देता है कि वह आँखें खोले, पर साथ-ही-साथ यह भी कहा जाता है कि वह अपनी आँखों को खोल नहीं सकेगा। इसी प्रकार रोगी को यह कहा जा सकता है कि वह किसी तकलीफ का अनुभव होता है या नहीं, इस प्रकार रोगी का निर्देश दिये जाते हैं और यदि रोगी उसके अनुसार काम करता है तो यह समझ जाते हैं कि व्यक्ति पूरी तरह से सम्मोहित हो चुका है। सम्मोहित की अवस्था में रोगी को सामान्य अवस्था में लाने के लिए सिर्फ संकेत मात्र देता है और व्यक्ति तरोताजा होकर अलग जाग उठता है।

सम्मोहित अवस्था की एक विशेषता यह भी है कि यदि व्यक्ति को इस अवस्था में निर्देश दिया जाता है, तो वह सामान्य अवस्था में आने पर उसके निर्देश के अनुसार कार्य सम्पन्न करता है। मनोविश्लेषण के क्षेत्र में इस क्रिया को Posthypnosis कहा जाता है।

मूल्यांकन (Values of hypnosis)-मनोचिकित्सा के रूप में Hysteria के रोगी को, विशेषकर Amnesia से पीड़ित रोगियों को सम्मोहन से काफी लाभ पहुंचाता है। सम्मोहन की अवस्था में रोगी अपने अचेतन मन में दमित इच्छाओं, अनुभवों और भावों को याद कर लेता है जिसे वह चेतन अवस्था में आने पर भी नहीं भूलता। साक्षात सुझाव के आधार पर Hypnosis के लक्षणों को दूर किया जा सकता है। Insomania के इलाज में नींद नहीं आती है। Insomania की चिकित्सा में Tension को कम करने में Neurotic habit से और भय से मुक्ति पाने में Hypnosis की उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है।

सम्मोहन की सीमाएँ (Limitations of hypnosis)-यद्यपि चिकित्सा विधि के रूप में सम्मोहन से काफी लाभ पहुँचता है, फिर भी यह विधि सीमाओं से रहित नहीं है। निम्नलिखित आधार पर इस विधि की आलोचनाएँ की जा सकती हैं-

  • सम्मोहन के द्वारा कुछ ही प्रकार के रोगियों की चिकित्सा की जाती है। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मोहित करना संभव नहीं है। प्रयोगों के आधार पर यह भी देखा गया है कि किसी को इच्छा के विरुद्ध सम्मोहित नहीं किया जा सकता है। सम्मोहन के लिए रोगी का सहयोग लेना । आवश्यक है।
  • सम्मोहन के विरुद्ध यह आलोचना की जाती है कि यह Superficial form of therapy है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस विधि के द्वारा रोग के सिर्फ बाहरी लक्षणों को दूर किया जा सकता है। स्थायी चिकित्सा सम्मोहन द्वारा संभव नहीं है।
  • सम्मोहन का प्रभाव अस्थायी होता है। इसके द्वारा रोगी को जो Suggestion दिया जाता है वह काफी दिनों तक लाभदायक सिद्ध नहीं होता। रोग के लक्षण थोड़े दिनों के लिए ही दूर हो पाता है। पुनः कुछ दिनों के बाद रोग के लक्षण विकसित हो जाते हैं। अत: इसका प्रभाव अस्थायी होता है।
  • सम्मोहन का प्रयोग काफी कठिन है। सभी मनोचिकित्सक इसका उपयोग नहीं कर सकते। इसके लिए विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, अतः यह विधि कुछ खास मनोचिकित्सकों तक ही सीमित है।

प्रश्न 6.
मानव व्यवहार पर पड़ने वाले से संचार साधनों का वर्णन करें।
उत्तर:
इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज विश्व जगत में नयी हलचल हुई है। इस नयी हलचल का वैश्विक परिदृश्य स्वतः ही उभरकर आया है जिसे हमारे और आपके सामने मीडिया अर्थात अखबार, पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टी.वी. चैनल आदि ने परोसा है। आज जिस प्रकार पूरे विश्व में अनेक सामाजिक मुद्दों को उठाया जा रहा है वे न केवल मानव मूल्यों पर कुठाराघात कर रहे हैं वरन मानव की क्षमता, कुशलता एवं विवेक का समूल नाश कर रहे हैं। उन सब का दोष मिडिया को दिया जाए तो उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बच्चों को टी. वी. के माध्यम से हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, चोरी आदि जैसी तथ्यों की जानकारी स्वतः ही मिल जाती है जिससे उसके मनोवृति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

टी. वी. के अश्लील चित्रों को देखकर उनके मन में सेक्स के प्रति रूझान बढ़ता है जो उनके मनोदशा को प्रभावित करता है। आज टी.वी. के माध्यम से पाश्चात्य संस्कृति को परोसा जा रहा है जिससे मानव मूल्यों में ह्रास की प्रवृति दृष्टिगोचर हुई है। बच्चे टी. वी. देखने में अधिक समय व्यतीत करते हैं। उसके कारण पढ़ने-लिखने की आदत तथा घर के बाहर की गतिविधियों जैसे खेलने, घूमने-फिरने में कमी आती है।

टेलीविजन देखने से बच्चों का ध्यान अपने लक्ष्य से हट सकता है। उनके समझने की शक्ति तथा उनकी सामाजिक अन्तक्रियाएँ भी प्रभावित हो सकती है। किंतु इसके विपरीत कुछ श्रेष्ठ कार्यक्रमों के द्वारा सकारात्मक अभिवृत्तियों तथा उपयोगी तथ्यात्मक सूचनाएँ मीडिया से प्राप्त होती है। जो बच्चों को अभिकल्पित तथा निर्मित करने में सहायता करती हैं। वयस्कों और बच्चों के संबंध में यह कहा जाता है कि उनमें एक उपभोक्तावादी प्रवृत्ति विकसित हो रही है। क्योंकि मीडिया के माध्यम से बहुत से उत्पादों के विज्ञापन प्रचारित किए जाते हैं तथा किसी व्यक्ति के लिए उनके प्रभाव में आ जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इन परिणामों से यही निष्कर्ष निकलता है कि संचार के साधनों के माध्यम से मानव व्यवहार पर एक ओर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो दूसरी ओर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।

प्रश्न 7.
व्यक्तित्व की परिभाषा दें। व्यक्तित्व के प्रमुख गुणों की विवेचना करें।
उत्तर:
व्यक्तित्व एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग अक्सर लोग शारीरिक बनावट एवं बाह्य वेशभूषा के संबंध में करते हैं। परन्तु, वास्तव में यह व्यक्तित्व नहीं है। व्यक्तित्व अंग्रेजी शब्द Personality का हिन्दी रूपांतर है। Personality का संबंध लैटिन भाषा के Personality शब्द से है जिसका अर्थ होता, नकली चेहरा। कुछ मनोवैज्ञानिकों ने इसकी परिभाषाएँ दी हैं, परंतु अधिकांश लोगों द्वारा दी गई परिभाषाएँ अधूरी तथा एकांगी हैं।

वाटसन (Watson) ने इसकी परिभाषा देते हुए कहा है, “व्यक्तित्व उन क्रियाओं का योगफल है जिसे लम्बे समय तक निरीक्षण में विश्वसनीय सूचनाएँ प्राप्त की जाती है।” (Personality is the sum total of activities that can be observed a long period of time to give reliable information) शरमैन ने इस संबंध में कहा है, “व्यक्ति का विशिष्ट व्यवहार की व्यक्तित्व है।” (Personality is the characteristic behaviour of an individual.)

उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बाह्य रूप या स्थायी गुणों के आधार पर व्यक्तित्व को समझने का प्रयास किया है। वास्तव में इन मनोवैज्ञानिकों ने व्यक्तित्व को समझने में भूल की है। सभी मनोवैज्ञानिकों ने इसे अपने ढंग से परिभाषित किया है।

आल्पोर्ट (G.W.Allport) ने इस प्रकार की पच्चीस परिभाषाओं की एक सूची बनायी और इसके पर्याप्त अध्ययन के पश्चात् एक उपयुक्त परिभाषा दिया है। उनके अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के अन्तर्गत उन मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है जिन पर उसके वातावरण के प्रति होनेवाले विशिष्ट अभियोजन को निर्धारित करता है।” (Personality is the dynamic organization within the individual of those psychophysical system that determine his unique adjustment to his environment.)

इस प्रकार आल्र्पोट ने व्यक्तित्व को मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक गुणों का ऐसा संगठन माना है जो व्यक्ति को अपने वातावरण के साथ-साथ सामंजस्य को निर्धारित करता है। अपने परिभाषा में उन्होंने व्यक्तित्व को समय के अनुसार परिवर्तनशील माना है। अर्थात्, व्यक्तित्व रूका हुआ नहीं रहता, बल्कि परिवर्तित होता रहता है।

किम्बल यंग ने व्यक्तित्व की परिभाषा अलग ढंग से दी है। उनके अनुसार “हम व्यक्तित्व को एक व्यक्ति के अधिक या कम आदतों, गुणों, मनोवृत्तियों और विचारों के प्रमाणित संग्रह के रूप में परिभाषित कर सकते हैं, जो एक प्रकार से बाह्य रूप से कार्य एवं स्थितियों में संगठित रहते हैं तथा आंतरिक रूप से प्रेरणाओं, उद्देश्यों, और आत्मगत के तथ्यों से संबंधित रहते हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व के दो कार्य एवं स्थितियाँ हैं जिनका तात्पर्य दूसरों को प्रभावित करने के लिए आचरण करने और जीवन संगठन या आत्मा, आन्तरिक प्रेरणाओं, उद्देश्यों से संबंधित स्वयं तथा अन्य के व्यवहार पर दृष्टिपात करने से है। संक्षेप में, यह प्रकट क्रियाओं एवं अर्थो से संबंधित है।” किम्बल युंग की परिभाषा से स्पष्ट होता है कि उन्होंने व्यक्तित्व को बाह्य एवं आंतरिक दो प्रकार के तत्वों का संगठन माना है।

एन० एल० मन ने इस संबंध में कहा है, “व्यक्तित्व की परिभाषा एवं व्यक्ति का संरचना, व्यवहार के प्रतिमान, रुचियों, मनोवृत्तियों, क्षमताओं, योग्यताओं और अभिरुचियों के अत्यधिक विशिष्ट संगठन के रूप में की जाती है।”

व्यक्तित्व के निम्नलिखित प्रमुख शीलगुण हैं-
(i) सामाजिक Sociability)-जिन व्यक्तियों में सामाजिक के शीलगुण होते हैं उनमें सामाजिक कार्यों में सक्रियता देखी जाती है। ऐसा व्यक्ति हमेशा दूसरों की भलाई के लिए कार्य करता है। वह अधिक-से-अधिक व्यक्तियों से मिलना पसन्द करता है। वे स्वभाव से हँसमुख एवं मिलनसार होते हैं। ऐसे शीलगुण वाले व्यक्ति समाज में सफल नेता होते हैं। इस संबंध में गिलफोर्ड एवं जिमरमैन ने अध्ययन किया है और इस शीलगुण को काफी महत्वपूर्ण बताया है तथा इसे अपने परीक्षण गिरफोर्ड- जिसरमैन टेम्परामेंट सर्वे में शामिल किया है। जिन व्यक्तियों में ये गुण नहीं होते वे अनुयायी होते हैं।

(ii) प्रभत्व (Ascendence)-कुछ व्यक्तियों में प्रभुत्व का गुण पाया जाता है। ऐसा व्यक्ति हमेशा दूसरों पर अपना आधिपत्य तथा प्रभाव जमाने की कोशिश करता है। वह किसी कार्य में दूसरों को निर्देश देता है। इस प्रकार के शीलगुण वाले व्यक्ति अधिक क्रियाशील एवं झगड़ालू होते हैं। ऐसा व्यक्ति खेल का कप्तान, कॉलेज का प्रिंसिपल या सत्तावादी नेता होता है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों में इस गुण का अभाव होता है, वे निष्क्रिय एवं दूसरे के निर्देशों पर चलना अधिक पसंद करते हैं। वं हमेशा चाहते हैं कि कोई उनका मार्गदर्शन करा सके। ऐसे व्यक्तियों में अधीनता का गुण पाया जाता है।

(iii) आक्रमणशीलता-जिस व्यक्ति में आक्रमणशीलता का गुण पाया जाता है, वह आक्रमणकारी व्यवहार करता है। ऐसे व्यक्ति समाज में आतंक फैलाते हैं। इनमें सहनशीलता की कमी होती है। ये बात-बात में उग्र धारण कर लेते हैं। दंगा आदि फैलाने में इनका बहुत बड़ा हाथ होता है। ऐसे व्यक्तियों , में आधिपत्य भाव देखा जाता है।

(iv) ईमानदारी(Honesty)-जिन व्यक्तियों में ईमानदारी का गुण होता है वे सदैव ईमानदार होते हैं। ऐसे व्यक्ति न्याय करने में दूध का दूध पानी का पानी कर देते हैं।

(v) विनम्रता(Kindness)-ऐसे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति विनम्र होते हैं। यह शीलगुण आधिपत्य के ठीक विपरीत होता है। इस प्रकार के व्यक्ति आज्ञाकारी होते हैं। ये किसी व्यक्ति को दुःख-तकलीफ · नहीं दे सकते हैं तथा समाज में सौहाद्र बनाए रखते हैं।

(vi) लज्जा(Shyness)-कुछ व्यक्ति बहुत ज्यादा लजालू होते हैं, वे लोगों के सामने आने पर लजाते हैं। ऐसे व्यक्ति सामाजिक नहीं होते, ये एकांत में रहना पसंद करते हैं तथा अपने विचारों में खोए रहते हैं। ये जितना अधिक लज्जा को छिपाने का प्रयास करते हैं उतना ही अधिक लजाते हैं।
हठ(Persistence)-ऐसे व्यक्ति जिनमें हठ का गुण होता है वे कठिन परिस्थितियों में भी अपने हठ पर अडिग रहते हैं, लक्ष्य की प्राप्ति के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं।

(viii) प्रतियोगिता(Competition)-प्रतियोगिता का शीलगुण अधिकांश व्यक्तियों में पाया जाता है, परन्तु किसी व्यक्ति में यह गुण ज्यादा होता है। इस प्रकार का गुणवाला व्यक्ति हमेशा दूसरों से आगे बढ़ने का प्रयास करता रहता है। आगे बढ़ने के लिए दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि कठिन परिश्रम करता है।

(xi) संवेगात्मक अस्थिरता(Emotional instability)-जिन व्यक्ति में संवेगात्मक अस्थिरता का गुण होता है, उसकी मनोदशा में प्राय: उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति बिना कारण ही खुशी की मनोदशा से दुःख की मनोदशा में आ जाते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने संवेग की अभिव्यक्ति बिना हिचकिचाहट के करते हैं तथा.काफी जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं। ये दिवास्वप्न अधिक देखते है तथा भविष्य में संभावित बुरे विचारों के बारे में सोच-सोच कर घबराते हैं। इसके विपरीत कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनमें संवेगात्मक स्थिरता का गुण होता है।

(x) डाह-इस प्रकार के गुणवाला व्यक्ति दूसरों को नुकसान पहुँचाकर अपना लाभ चाहता है। ऐसे व्यक्ति लगभग सभी समाज में कुछ-न-कुछ होते हैं। ऐसा व्यक्ति दूसरे को नीचा दिखाने की ताक में रहता है। ये स्वभाव से बहुत खतरनाक होते हैं।

(xi) तंत्रिका ताप (Neuroticism)-आइजेंक ने तंत्रिका ताप को व्यक्तित्व का एक प्रमुख शीलगुण माना है। तंत्रिका ताप एक प्रकार की साधारण मानसिक विकृति है।

प्रश्न 8.
बुद्धि के बहु-बुद्धि सिद्धान्त का वर्णन करें।
उत्तर:
बहुबुद्धि सिद्धान्त प्रतिपादन होवार्ड गार्डनर (Howard Gardner, 1993, 1999) द्वारा किया गया। सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि कोई एकाकी क्षमता नहीं होती है बल्कि इसमें विभिन्न प्रकार की सामान्य क्षमताएँ सम्मिलित होती हैं। इन क्षमताओं को गार्डनर ने अलग-अलग बुद्धि प्रकार कहा है। ऐसे प्रकार के बुद्धि की चर्चा उन्होंने अपने सिद्धान्त में किया है और कहा है कि ये सभी प्रकार एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। परंतु ये बुद्धि के सभी प्रकार आपस में अंतर्किया (interaction) करते हैं और किस समस्या के समाधान में एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। उन सभी नौ प्रकार के बुद्धि का वर्णन इस प्रकार है:

(i) भाषाई बुद्धि(Linguistic intelligence)-इससे तात्पर्य भाषा के उत्तम उपयोग एवं उत्पादन की क्षमता से होता है। इस क्षमता के पर्याप्त होने पर व्यक्ति भाषा का उपयोग प्रवाही (fluently) एवं लचील (flexible) ढंग से कर पाता है। जिन व्यक्तियों में यह बुद्धि अधिक होती है, वे शब्दों में विभिन्न एवं उसका उपयोग के पति काफी संवेदनशील होते हैं और अपने मन में एक उत्तम भाषाई प्रति (linguistic image) उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं।

(ii) तार्किक-गणितीय बुद्धि (Logical-Mathematical intelligence)-इससे तात्पर्य समस्या समाधान (Problem solving) एवं वैज्ञानिक चिंतन करने की क्षमता से होता है। जिन व्यक्तियों में ऐसी बुद्धि अधिकता होती है, वे किसी समस्या पर तार्किक रूप से तथा आलोचनात्मक ढंग से चिंतन करने में सक्षम होते हैं। ऐसे लोगों में अमूर्त चिन्तन करने की क्षमता अधिक होती है तथा गणितीय समस्याओं समाधान में उत्तम ढंग से विभिन्न तरह के गणितीय संकेतों एवं चिन्हों (Signs) का उपयोग करते है।

(iii) संगीतिय बुद्धि (Mosical intelligence)-इससे तात्पर्य संगीतिय-लय (Rhythms) तथा पैटर्न (Patterns) के बोध एवं उसके प्रति संवेदनशीलता से होती है। इस तरह की बुद्धि पर व्यक्ति उत्तम ढंग से संगीतिय पैटर्न को निर्मित कर पाता है। वैसे लोग जिनमें इस तरह की बुद्धि की अधिकता होती है ते आवाजों के पैटर्न, कंपन उतार-चढ़ात आदि के प्रति काफी संवेदनशील होते हैं और नए-नए उत्पन्न करने में भी सक्षम होते हैं।

(iv) स्थानिक बुद्धि (Spatial intelligence)-इससे तात्पर्य विशेष दृष्टि प्रतिमा तथा पैटर्न को सार्थक ढंग से निर्माण करने की क्षमता से होता है। इसमें व्यक्ति को अपनी मानसिक प्रतिमाओं को उत्तम से उपयोग करने तथा परिस्थितियों की मांग के अनुरूप उपयोग करने की पर्याप्त क्षमता होती है। जिन व्यक्तियों में इस तरह की बुद्धि अधिक होती है, वे आसानी से अपने मन में स्थानिक वातावरण उपस्थित कर सकने में सक्षम हो पाते हैं। सर्जन, पेंटर, हवाईजहाज चालक, आंतरिक सजावट कर्ता (interior decorator) आदि में इस तरह की बुद्धि अधिक होती है।

(v)शारीरिक गतिबोधक बुद्धि (Bodily dinesthetic intelligence)-इस तरह की बुद्धि में व्यक्ति अपने पूरे शरीर या किसी अंग विशेष में आवश्यकतानुसार सर्जनात्मक (Greative) एवं लचीले (Flexible) ढंग से उपयोग कर पाता है। नर्तकी, अभिनेता, खिलाड़ी, सर्जन तथा व्यायामी (gymnast) आदि में इस तरह की बुद्धि अधिक होती है।

(vi) अंतर्वैयक्तिक बुद्धि (Interpersonal intelligence)-इस तरह की बुद्धि होने पर दूसरों के व्यवहार एवं अभिप्रेरक के सूक्ष्म पहलुओं को समझने की क्षमता व्यक्ति में अधिक होती है। ऐसे व्यक्ति दूसरों के व्यवहारों, अभिप्रेरणाओं एवं भावों को उत्तम ढंग से समझकर उनके साथ एक घनिष्ट संबंध बनाने में सक्षम हो पाते हैं। ऐसे बुद्धि मनोवैज्ञानिकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं धार्मिक नेताओं में अधिक होती है।

(vii) अंतवैयक्तिक बुद्धि (Intrapersonal intelligence)-इस तरह की बुद्धि में व्यक्ति अपने भावों, अभिप्रेरकों तथा इच्छाओं को समझता है। इसमें व्यक्ति अपनी आंतरिक शक्तियों एवं सीमाओं का उचित मूल्यांकन की क्षमता विकसित कर लेता है और इसका उपयोग वह अन्य लोगों के साथ उत्तम संबंध बनाने में सफलतापूर्वक उपयोग करता है। दार्शनिकों (Philosophers) तथा धार्मिक साधु-संतों में इस तरह की बुद्धि अधिक होती है।’

(viii) स्वाभाविक बुद्धि (Naturalistic intelligence)-इससे तात्पर्य स्वाभाविक या प्राकृतिक वातावरण की विशेषताओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाने की क्षमता से होती है। इस तरह की बुद्धि की अधिकता होने पर व्यक्ति प्रकृति के विभिन्न प्राणियों, वनस्पतियों एवं अन्य संबद्ध चीजों के बीच सूक्ष्म विभेदन कर पाता है तथा उनकी विशेषताओं की प्रशंसा कर पाता है। इस तरह की बुद्धि किसानों, भिखारियों, पर्यटकों (tourist) तथा वनस्पतियों (botanists) में अधिक पायी जाती है।

(ix) अस्तित्ववादी बुद्धि (Naturalist intelligence)-इससे तात्पर्य मानव अस्तित्व, जिंदगी, मौत आदि से संबंधित वास्तविक तथ्यों की खोज की क्षमता से होता है। इस तरह की बुद्धि दार्शनिक चिंतकों (Philosopher thinkers) में काफी होता है। स्पष्ट हुआ है कि गार्डनर के बहुबुद्धि सिद्धान्त में कुल नौ तरह के बुद्धि की व्याख्या की गयी है, जिसपर मनोवैज्ञानिक का शोध अभी जारी है।

प्रश्न 9.
बुद्धि परीक्षण के प्रकार का वर्णन करें।
उत्तर:
बुद्धि की मात्रा सभी व्यक्तियों में एक समान नहीं होती है। किसी व्यक्ति की बुद्धि अधिक होती है तो किसी व्यक्ति की कम। बुद्धि मापन के लिए बनाये गये परीक्षणों के माध्यम से किसी व्यक्ति के वास्तविक बुद्धि का पता लगाया जा सकता है।

बुद्धिः मापन की दिशा में सर्वप्रथम सफल प्रयास बिने ने किया है। उन्होंने फ्रांस में साइमन की सहायता से तीन से पन्द्रह वर्ष के बच्चों की बुद्धि मापने के लिए एक परीक्षण का निर्माण किया, जिसे बिने-साइमन टेस्ट के नाम से जानते हैं। उनके टेस्ट में तीस समस्याएं थीं जो क्रमिक रूप से कठिनाई स्तर के अनुसार रखी गयी थीं। बिने-साइमन के टेस्ट में कुछ कमी महसूस की गयी थी, अत: बाद में चलकर कई बार संशोधन किया गया है। उसके बाद अन्य कई मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि-परीक्षण के लिए तरह-तरह के टेस्ट का निर्माण किया। अब तक जितने बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया जा चुका है उसे निम्नलिखित चार भागों में रखा गया है-

1. वाचिक या शाब्दिक बुद्धि परीक्षण : वाचिक बुद्धि परीक्षण वैसे परीक्षण को कहा जाता है जिसमें भाषा की आवश्यकता होती है। इसके लिए प्रयोज्य को भाषा का ज्ञान आवश्यक है। इसमें कुछ प्रश्न लिखे होते हैं जिनका उत्तर प्रयोज्य को देना होता है। इन्हीं उत्तरों के आधार पर प्रयोज्य की बुद्धि का मापन होता है। इसके अंतर्गत बिने-साइमन टेस्ट, स्टर्नफोर्ड-बिने स्केल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। वाचिक परीक्षण के अधिकांश परीक्षण सामूहिक होते हैं अर्थात् इनके माध्यम से अनेक व्यक्तियों के बुद्धि का मापन एक साथ किया जा सकता है। जैसे-नौसेना, सामान्य वर्गीकरण परीक्षण, थलसेना सामान्य वर्गीकरण आदि। बिहार में भी इस प्रकार का परीक्षण डॉ. मोहसिन ने किया है।

शाब्दिक बुद्धि परीक्षण में कुछ ऐसे गुण हैं जिससे बुद्धि के मापन में इसका सर्वाधिक प्रयोग होता है। इसका सबसे पहला गुण है कि इससे वैयक्तिक परीक्षण द्वारा किसी व्यक्ति की बुद्धि का सही तौर पर मापन संभव होता है। इसका प्रमुख गुण है कि इस प्रकार के परीक्षण से कम-से-कम समय में अधिक व्यक्तियों की बुद्धि मापी जाती है। शाब्दिक परीक्षण की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि इसके माध्यम से अमूर्त बुद्धि का मापन भी होता है। वाचिक बुद्धि परीक्षण में जहाँ एक ओर गुण हैं वहीं दूसरी ओर दोष भी हैं। इस परीक्षण के माध्यम से अनपढ़ व्यक्तियों की बुद्धि का मापन संभव नहीं है तथा इसके माध्यम से व्यक्ति की मूर्तबुद्धि का भी मापन नहीं हो सकता है।

2. क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण : क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण वैसे परीक्षण को कहते हैं जिसमें भाषा की आवश्यकता नहीं होती है, सिर्फ कुछ वस्तुओं को इधर-उधर घुमाकर समस्याओं का समाधान करना होता है। इसके माध्यम से अनपढ़ व्यक्तियों की भी बुद्धि मापी जा सकती है। वाचिक परीक्षण की तरह इसमें भी कठिनाई स्तर क्रमशः बढ़ता जाता है। पहली समस्या सरल होती है। दूसरी उससे कठिन, तीसरी दूसरी से कठिन, इसी प्रकार समस्या की कठिनाई बढ़ती जाती है। प्रयोज्य जितनी समस्याओं को हल करता है उसी के आधार पर बुद्धिलब्धि निकाला जाता है। क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण को अशाब्दिक परीक्षण भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत ब्लॉक डिजाइन टेस्ट, पास-एलांग टेस्ट, क्यूब कंस्ट्रक्शन टेस्ट आदि प्रमुख हैं।

ब्लॉक डिजाइन का निर्माण कोह ने किया था इसमें दस डिजाइन होते हैं जिसे लकड़ी के ब्लॉक के माध्यम से बनाया जाता है। जो व्यक्ति जितने कम समय में समस्याओं का समाधान करता है उसे उतना ही अधिक अंक प्रदान किया जाता है। उसी प्राप्तांक के आधार पर बुद्धिलब्धि निकालते हैं।

धन रचना परीक्षण का निर्माण गांव से किया था। इसमें तीन उप-परीक्षण होते हैं। तीन काष्ठ के मॉडल होते हैं, जिन्हें देखकर गोटियों की सहायता से मॉडल बनाना होता है। मॉडल को बनाने में लगने वाले समय एवं अशुद्धियों के आधार पर प्राप्तांक दिये जाते हैं तथा बुद्धिलब्धि निकालते हैं।

पास-एलांग टेस्ट का निर्माण अलेक्जेंडर ने किया था। इसमें नौ पत्रक होते हैं, जिस पर अलग-अलग डिजाइन बने होते हैं। इस टेस्ट में चार ट्रे होता है, जिसका एक किनारा लाल तथा दूसरा नीला होता है। इसमें गोटियों को बिना ट्रेसे उठाये लाल किनारे की तरफ से नीले किनारे की तरफ करना होता है। उसी में लगे समय के आधार पर अंक देते हैं तथा बुद्धिलब्धि निकालते हैं।

क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण में कुछ दोष भी हैं। इसके माध्यम से अमूर्त बुद्धि का समुचित मापन संभव नहीं है। इस प्रकार के परीक्षण से एक समय में एक ही व्यक्ति की बुद्धि का मापन होता है, अतः इसमें समय एवं श्रम अधिक लगता है।

3. वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षण : वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षण उसे कहते हैं जिसका प्रयोग एक समय में केवल एक ही व्यक्ति पर किया जा सकता है। इस प्रकार के परीक्षण का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसके माध्यम से बुद्धि की सही-सही जांच हो पाती है। परन्तु, इसमें समय एवं श्रम अधिक लगता
है। इसके अंतर्गत वाचिक एवं क्रियात्मक बुद्धि-परीक्षण आते हैं। जैसे बिने-साइमन टेस्ट, वेश्लर-वैलव्य _स्केल, पास-एलांग टेस्ट, क्यूब कंस्ट्रक्शन टेस्ट, ब्लॉक-डिजाइन टेस्ट आदि वैयक्तिक बुद्धि-परीक्षण के अंतर्गत आते हैं।

4. सामूहिक बुद्धि-परीक्षण : सामूहिक बुद्धि-परीक्षण के माध्यम से एक समय में अनेक व्यक्तियों की बुद्धि मापी जा सकती है। इसके अंतर्गत आर्मी अल्फा, टेस्ट, आर्मी बीटा टेस्ट, मोहसिन सामान्य बुद्धि-परीक्षण, जलोटा सामूहिक बुद्धि-परीक्षण आदि आते हैं। सामूहिक बुद्धि-परीक्षण का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसके माध्यम से एक साथ कई प्रयोज्य की बुद्धि मापी जा सकती है। अतः इससे समय एवं श्रम की बचत होती है। इसका उपयोग व्यावसायिक चयन, शैक्षिक निर्देशन आदि में सफलतापूर्वक किया जाता है।

सामूहिक बुद्धि-परीक्षण में गुण के साथ-साथ दोष भी हैं। जब कई व्यक्तियों की बुद्धि को एक साथ मापा जाता है तो परीक्षक एक साथ सभी पर ध्यान नहीं दे पाता है, जिससे बुद्धि की सही जानकारी प्राप्त नहीं होती। छोटे बच्चों की बुद्धि का मापन इसके माध्यम से संभव नहीं है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि अभी तक जितनी भी परीक्षणों का निर्माण हुआ है उनमें एक ओर गुण है तो दूसरी ओर दोष भी है। अत: किसी एक परीक्षण के माध्यम से बुद्धि की सही जानकारी प्राप्त नहीं होती है। इसलिए एक साथ कई परीक्षणों का प्रयोग कर बुद्धि की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 10.
फ्रायड द्वारा प्रतिपादित व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यक्तित्व के संरचना की दिशा में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपना सिद्धांत प्रस्तुत किया है। परन्तु फ्रायड की अवधारणा उन मनोवैज्ञानिकों से अलग हटकर है। सुप्रसिद्ध मनोविश्लेषणवादी मनोवैज्ञानिक सिंगमण्ड फ्रायड ने व्यक्तित्व संरचना के संबंध में एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने व्यक्तित्व की संरचना का वर्णन दो मॉडलों के आधार पर किया है। जिसे आकारात्मक मॉडल तथा गत्यात्मक मॉडल कहते हैं। दोनों मॉडलों का वर्णन निम्नलिखित है।

आकारात्मक मॉडल-आकारात्मक मॉडल में फ्रॉयड ने मन के तीन स्तरों की चर्चा की है। चेतन, अर्द्धचेतन तथा अचेतन। चेतन स्तर के अन्तर्गत वे चिंतन भावनाएँ और क्रियाएँ आती हैं जिसके प्रति लोग जागरूक रहते हैं! अर्द्धचेतन क अन्तर्गत वैसी मानसिक क्रियाएं आती हैं जिसके प्रति लोक उस समय जागरूक होते हैं जब व उस पर सावधानीपूर्वक ध्यान केन्द्रित करते हैं। तोसरा स्तर जिसे अचेतन कहते हैं उसमें ऐसी मानसिक क्रियाएँ आती हैं जिसके प्रति लोग जागरूक नहीं होते हैं।

अचेतन के संबंध में फ्रायड कहते हैं कि यह मूल प्रवत्ति या पाश्विक अंतर्नोद का भंडार होता है। इसके अंतर्गत ऐसी घटनाएँ या विचार संग्रहित रहते हैं जो चेतन रूप स जागरूक स्थिति से छिपे होने हैं और मनोवैज्ञानिक द्वन्द्वों को उत्पन्न करते हैं। अचेतन में दलित इच्छाएँ कामुक स्वरूप ही होता है जिसे प्रकट रूप में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता ह इसीलिए उसका दमन हो जाता है। व्यक्ति अपने अचेतन में दमित इच्छाओं को सामाजिक रूप से स्वीकार्य तरीकों से अभिव्यक्त करने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहता है। यदि द्वन्द्वों के निर्माण में असफल हो जाता है।

तो उसमं असामान्यता के लक्षण विकसित हो जाते हैं और उसका व्यवहार कुसमायोजित हो जाता है। व्यक्ति के अचेतन को स्वप्न विश्लेषण, दैनिक जीवन की भूलें, विस्मरण आदि के आधार पर जाना जा सकता है। फ्रायड ने एक चिकित्सा पद्धति को विकसित किया जिसे मनोविश्लेषण के नाम से जाना जाता है। मनोविश्लेषण चिकित्सा पद्धति के माध्यम से अचेतन में दमित विचारों को चेतन स्तर पर लाया जाता है और रोगी को आत्मा जागरुक बनाकर समाज में अभियोजन के लायक बनाया जाता है।

व्यक्ति की संरचना के संबंध में फ्रायड ने मन के गत्यात्मक पहलू की चर्चा की है उन्होंने बताया है कि यह अचेतन की ऊर्जा के रूप में होते हैं। इसके तीन तत्व-इड, इगो तथा सुपर इगो के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। ये तीन तत्व सम्प्रत्यय है न कि वास्तविक भौतिक संरचना। तीनों नत्वों का विवरण निम्नलिखित है-
इड-व्यक्ति के मूल प्रवृत्ति कर्जा का सोत ड्ड होता है जो इसकी आदिम इच्छाआ, कामेच्छाओं और आकामक आवेगों की तात्कालिक संतुष्टि चाहता है। यह सुख के सिद्धान्त से संचालित होता है। फ्रायड ने बताया है कि व्यक्ति की अधिकांश मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का मूल स्वाभाविक होती है और कुछ ऊर्जा आक्रामक होती है।
इड को नैतिक-अनैतिक को परवाह नहीं होता है।

इगा-यह मन के गत्यात्मक पहलू का दूसरा भाग है। इसका विकास इड से होता है और यह मूल पवृत्तिक आवश्यकताओं को संतुष्टि वास्तविकता के घटात्मक पर करता है। यह वास्तविक सिद्धांत से मंचालित होता है। यह व्यवहार के रपयक्त तरीकों की तलाश करता है और इच्छाओं की संतुष्टि में सहयोग करता है। इस प्रकार यह व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है।

सुपर इगो-यह मन के गत्यात्मक पहलू का सबसे अन्तिम भाग है जिसका संबंध नैतिकता से होता है। सुपर इगो को समझने का और इसकी विशेषता बताने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसको मानसिक प्रकार्यों की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाए। सुपर इगो इड और इगा को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं: – इस प्रकार स्पष्ट है कि फ़ायड ने व्यक्तित्व विकास के क्षेत्र में एक नया आयाम दिया है जो गरी तरह से सन पर आधारित है। इसके क्रिया-प्रतिक्रिया के फलस्वरूप व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

प्रश्न 11.
What is intelligence test? Explain its utility. (बुद्धि परीक्षण क्या है ? इसकी उपयोगिता का वर्णन करें।)
उत्तर:
पत्येक बालक में कुछ जन्म ज्ञात योग्यताएँ होती हैं। यह सभी बालकों में एक समान नहीं वरन् भिन्न-भिन्न होती है। बालक को इन जन्मजात योग्यताओं को पता लगाने की विधि को बुद्धि परीक्षण कहते हैं। इसके द्वारा व्यक्ति के मानसिक विकास के स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है अथवा मापा जा सकता है।

आधुनिक काल में बुद्धि-परीक्षा परम उपयोगी सिद्ध हुई है। यह देखा गया है कि जीवन में सफलता और असफलता तथा नई परिस्थितियों के समायोजन एवं नई समस्याओं के हल करने में बुद्धि का बहुत बड़ा हाथ रहता है। यही नहीं मानव-जीवन के प्रत्येक कार्य-क्षेत्र में बुद्धि की बहुत अधिक महत्ता और उपयोगिता है। चूंकि बुद्धि परीक्षा द्वारा ही बुद्धि मापी जाती है, इसलिए उसकी भी बहुत उपयोगिता है। हम इसके कुछ उपयोगों का वर्णन नीचे करेंगे-

1.मंद बद्धि के बालकों का पता लगाना (Diagnosing Feeble-minded Children)-बुद्धि परीक्षा के द्वारा अध्यापक सरलतापूर्वक एक ही कक्षा में पढ़ने वालो में से मन्द बुद्धि और प्रखर बुद्धि के बालकों को छाँट सकता है। उनकी बुद्धि लब्धि के आधार पर वर्गीकरण कर उनके समान बुद्धि-लब्धि वाले बालकों के साथ उन्हें शिक्षा देकर उनका समुचित विकास कर सकता है। बुद्धि परीक्षा से मन्द बुद्धि, सामान्य और प्रतिभाशाली सभी प्रकार के बालकों की जानकारी आसानी से की जा सकती है। उनमें आपस में अन्तर किया जा सकता है। एक बालक जिसकी बुद्धिलब्धि 70 है वह मन्द-बुद्धि माना जाता है, जिसे विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। उसे प्रखर मेधावी छात्रों के साथ जिनकी बुद्धि-लब्धि 129 से ऊपर होती है, नहीं पढ़ाया जा सकता है।

2..बाल अपराधियों से व्यवहार (Dealing with Delinquency)–प्राय: यह देखा गया है कि अधिकतर बाल-अपराधी निम्न बौद्धिक धरातल के होते हैं। उच्च मानसिक स्तर के बालअपराधी बहुत कम मिलते हैं। बुद्धि परीक्षण हमें इन बाल-अपराधियों के उपयुक्त व्यवहार करने में सहायता पहुँचाती है क्योंकि बुद्धि परीक्षण द्वारा बाल-अपराधी की बुद्धि-लब्धि निकाली जाती है, फिर उन बहुत से कारणों को समझा जाता है जिनसे बालक अपराधी बन जाता है या विद्रोही। अतः इस प्रकार बुद्धि-परीक्षण बाल-अपराधियों के कारणों को खोजने में, उनके समुचित व्यवहार करने में सहायता पहुँचाती है।

3. शिक्षा में उपयोगी (Use in Educational System)-बुद्धि परीक्षण का सबसे अधिक उपयोग विद्यालयों में होता है। बुद्धि-परीक्षण के आधार पर बालकों का वर्गीकरण सामान्य मन्द और प्रतिभाशाली अथवा मेधावी के रूप में किया जाता है। शैक्षिक कार्यक्रमों की सफलता के लिए आवश्यक है कि मन्द बुद्धि और मेधावी बालकों में अन्तर किया जाय। उन्हें भिन्न प्रकार की शिक्षा दो जाये, अत: निम्नलिखित कारणों से बुद्धि परीक्षण परमोपयोगी सिद्ध हुई है।

  • बुद्धि-परीक्षण हम यह बताती है कि पाठशाला में बालक की उन्नति में कमी का कारण उसकी मानसिक योग्यता का कमी है अथवा अन्य कोई कारण।
  • बुद्धि-परीक्षण कम बुद्धि वाले बालकों को तुरन्त बता देती है।
  • बुद्धि-परीक्षण उत्कृष्ट बालक को छाँटकर बता देती है। उसकी उपयुक्त शिक्षा दीक्षा के लिए तथा उसके सम्यक विकास के लिए उचित अवसर प्रदान करने पर बल देती है।
  • अध्यापक के आगे आने वाली समस्याओं के हल में सहायता पहुँचाती है तथा विद्यालय में बाल-अपराधियों को पहचानने में मदद देती है।
  • बुद्धि-परीक्षण बालकों को मानसिक योग्यता का सम्यक आकलन कर उन्हें उचित मार्ग प्रदर्शन करती है।
  • वह बुद्धि लब्धि के आधार पर किसी बालक के लिए स्पष्ट संकेत करती है कि वह कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के उच्च अध्ययन के योग्य है अथवा नहीं।
  • बुद्धि-परीक्षा अध्यापकों और विशेषज्ञों को बालक के लिए व्यावहारिक चुनाव में बहुत मदद देती है और उचित मार्ग प्रदर्शन करती है।

4. विशिष्ट वर्गों के अध्ययन के लिए उपयोगी (Usc of Special Group)-बुद्धि-परीक्षण व्यक्तियों के विशिष्ट वर्गों के लिए परमोपयोगी है। यह विशिष्ट वगा, जैसे-गूंगे, बहरे और जातीय समुदायों का सर्वेक्षण करती है।

5. उद्योगों में उपयोगिता (Use in the industires)-उद्योगों में अधिकारियों, कर्मचारियों और विशेषज्ञों के चुनाव में बुद्धि-परीक्षा बहुत सहायता देती है। चुनाव को अन्य विधियो जैसे साक्षात एवं उम्मीदवार के आवेदन पत्र जिसमें उसके पूर्व अनुभवों, शैक्षिक और सामाजिक, एवं विशिष्ट योग्यताओं का लेखा-जोखा होता है के साथ बुद्धि परीक्षा भी परम उपयोगी सिद्ध होती है।

प्रश्न 12.
Write short note on mental age and I. Q: (मानसिक उम्र तथा बुद्धिलब्धि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।)
उत्तर:
मानसिक उम्र (Mental age)-विभिन्न बुद्धि परीक्षणों के माध्यम से बुद्धिलब्धि (I.Q.) निकालने के लिए मानसिक उम्र की जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। अब प्रश्न उठता है कि मानसिक उम्र क्या है ? इस संबंध में मानसिक उम्र की एक समुचित परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है-“मानसिक उम्र किसी व्यक्ति के द्वारा विकास की वह अभिव्यक्ति है जो उसके कार्यों द्वारा जानी जाती है तथा किसी आयुविशेष में उसकी अपेक्षा की जाती है।” (The mental age is an expression of the extent of development achieved by the individual stated in terms of the performance expected at any given age.)

परिभाषा से स्पष्ट होता है कि विभिन्न उम्र स्तर में व्यक्ति विभिन्न प्रकार की अभिव्यक्तियाँ करता है। इससे तात्पर्य यह है कि जिस बालक की मानसिक आयु दस वर्ष बतायी जाती है, वह परीक्षा के अनुसार अपनी दस वर्ष की उम्र में ही सामान्य बालकों के समान व्यवहार करने में सफल हो जाता है।

बुद्धि-परीक्षक किसी बालक की बुद्धि-परीक्षण के लिए वस्तुओं का संकलन करता है जिसे वह परीक्षण में शामिल करना चाहता है तथा उनको एक विशिष्ट क्रम में सजाता है। फिर, विभिन्न उम्र स्तर के बच्चों को समस्या हल करने के लिए देता है। यह सब प्रकार से आयोजित किया जाता है जिससे बच्चों के विभिन्न उम्र की सामान्य उपलब्धियों का ठीक-ठीक पता लग सके। परीक्षण में विभिन्न उम्र के प्रतिनिधि बच्चों ने कार्यों में किस सीमा पर सफलता प्राप्त की तथा एक की उम्र के अधिकांश बच्चों ने जिस कार्य को सफलतापूर्वक किया वही उस विशिष्ट उम्र की मानसिक उम्र निश्चित कर ली जाती है।

उदाहरण के लिए, आठ वर्ष की उम्र के सामान्य बच्चों की औसत उपलब्धि ही उसकी आठ वर्ष की मानसिक उम्र का प्रतीक होगा। कोई भी आठ वर्ष ? का बच्चा ऐसे कार्यों को कर लेता है जो नौ वर्ष का सामान्य बच्चा कर सकेगा तो उसकी मानसिक आयु नौ वर्ष कहलायेगी। परन्तु, आठ वर्ष का बच्चा ऐसे कार्यों को करने में सक्षम होता है जो सात वर्ष का सामान्य बच्चा कर सकता है तो उस बच्चे की मानसिक आयु सात वर्ष ही मानी जायगी जबकि उसकी वास्तविक आयु आठ वर्ष की होगी।

इस प्रकार अपने से अधिक उम्र वाले कार्यों को करने वाले बच्चों को श्रेष्ठ तथा अपने से कम उम्र के कार्यों तक ही करनेवाले बच्चों को हीन मानते हैं।

मानसिक आयु किसी-किसी विशिष्ट उम्र में बालक की मानसिक परिपक्वता को बताती है कि बालक उस वास्तविक आयु पर मानसिक दृष्टि से कितना प्रौढ़ हुआ है। यही प्रौढ़ता एवं परिपक्वता की मात्रा मानसिक आयु है। बच्चे की उम्र में वृद्धि के साथ-साथ उसकी मानसिक परिपक्वता बढ़ती जाती है। बिने टेस्ट बच्चे की सामान्य योग्यता को मापती है, जिसका विकास थोड़े बहुत अंतर से प्रौढ़ता तक एक रूप से होता है।

बुद्धिलब्धि (Intelligence Quotient)-बुद्धिलब्धि (I.Q.) से तात्पर्य व्यक्ति के बुद्धि की मात्रा से है। किसी भी व्यक्ति को जो प्रतिभा प्राप्त होती है उसकी मात्रा को बताने वाली संख्या को I.Q. कहते हैं। दूसरे शब्दों में, व्यक्ति के पास बुद्धि की कितनी मात्रा है इसकी माप अथवा उसके द्वारा उपलब्ध बुद्धि ही बुद्धिलब्धि है।

बुद्धिलब्धि के विचार को सर्वप्रथम टरमैन (Terman) ने प्रस्तुत किया। इससे संबंधित विचार पहले स्टर्न (Sterm) ने भी बताया था। स्टर्न ने मानसिक लब्धि (M.Q.) प्रस्तुत किया। इसके लिए मानसिक उम्र को वास्तविक उम्र से विभाजित किया। पहले बुद्धि की मात्रा का सही .ही ज्ञान प्राप्त करना कठिन था। केवल इस बात की जानकारी होती थी कि कौन अधिक बुद्धि का है तथा कौन कम बुद्धि का। परन्तु I.Q. से बुद्धि का मात्रात्मक मापन होने लगा। इसके आध. पर इस बात की जानकारी की जाती है कि किस बच्चे को कितनी बुद्धि है तथा एक बच्चा कितना अधिक या कम बुद्धि वाला है। I.Q. निकालने के लिए एक सूत्र का प्रतिपादन किया जो इस प्रकार है-
Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 4 1

टरमैन द्वारा दिया गया सूत्र आज भी बहुत उपयोगी है। इस सूत्र के अनुसार यदि मानसिक उम्र और वास्तविक उम्र दोनों बराबर होगा तो I.Q. एक सौ (100) होगा जो सामान्य कहलायगा। यदि मानसिक उम्र अधिक और वास्तविक उम्र अधिक होगा तो वह तीव्र बुद्धि का माना जायगा। इसी प्रकार यदि मानसिक उम्र कम और वास्तविक उम्र अधिक होगा तो वह मंद बुद्धि का माना जायेगा। नब्बे (90) से एक सौ दस (110) तक I.Q. वाले व्यक्ति को सामान्य बुद्धि माना जाता है। मानसिक उम्र को वास्तविक उम्र से विभाजित करने के बाद 100 से गुणा करने का तात्पर्य है स्कोर को फैलना एवं दशमलव को समाप्त करना। इसे एक उदाहरण द्वारा इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-मान लिया कि किसी बच्चे की वास्तविक उम्र दस वर्ष और ब्लॉक डिजाइन टेस्ट (Block design test) के आधार पर उसकी मानसिक उम्र बारह वर्ष प्राप्त होती है तो उसकी बुद्धिलब्धि इस प्रकार प्राप्त होगी-
I.Q = \(\begin{array}{l}
\text { M.A. } \\
\text { C.A. }
\end{array}\) × 100 = \(\frac{12}{10}\) × 100 = 120 (औसत बुद्धि)
एटकिंसन एण्ड एटकिंसन तथा हिलगार्ड (Atkinson and Atkinson and Hilgard) ने अपने अध्ययनों के आधार पर एक तालिका प्रस्तुत की है, जिसमें बुद्धिलब्धि और प्रतिभा की मात्रा का संबंध दर्शाया गया है-

I.Q.वर्गीकरणप्रतिशत
140 एवं अधिकअति प्रखर1
120 से 139प्रखर11
110 से 119उच्च औसत18
90 से 109औसत46
80 से 89निम्न औसत15
70 से 79सीमा रेखा6
70 से नीचेमानसिक दुर्बल3

प्रश्न 13.
What do you understand by aptitude test? Discuss the different type of aptitude test. .. (अभिक्षमता परीक्षण से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।)
उत्तर:
अभिक्षमता परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति के कौशल या प्रवीणता ग्रहण करने की क्षमता का मापन किया जाता है। यह मनोविज्ञान का एक प्रमुख परीक्षण है। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ ऐसी क्षमताएँ होती है, जो विशिष्ट होती है। उस क्षेत्र में यदि उसे आगे बढ़ने का अवसर दिया जाय तो वह बहुत अधिक ऊँचाई को हासिल कर सकता है। इसी विशिष्ट क्षमता को मापने के लिए विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने परीक्षण का निर्माण किया है। इस दिशा में काफी पहले से ही मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयास जारी है। इन्हीं परीक्षणों को अभिक्षमता परीक्षण के नाम से जाना जाता है। इसके अंतर्गत कई प्रकार की विशिष्ट क्षमताएँ जैसे यात्रिक क्षमता, गणितीय क्षमता, लिपिक क्षमता, संगीत क्षमता आदि का मापन किया जाता है। विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने अभिक्षमता के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। फ्रीमैन के अनुसार, “अभिक्षमता परीक्षण से तात्पर्य उस परीक्षण से है, जिसके माध्यम से किसी विशिष्ट क्षेत्र में विशिष्ट कार्य को पूरा करने में व्यक्ति में अन्तर्निहित क्षमता का मापन किया जाता है।”

अभिक्षमता परीक्षण के प्रकार (Type of aptitude test) :
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों द्वारा अभिक्षमता परीक्षण के क्षेत्र में बहुत अधिक शोध किये गए हैं और परीक्षणों का निर्माण किया गया है। इन परीक्षणों के मोटे तौर पर दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-एक कारक अभिक्षमता परीक्षण तथा बहुकारक अभिक्षमता परीक्षण।

1. एक कारक अभिक्षमता परीक्षण (Unifactor aptitude test)-एक कारक अभिक्षमता परीक्षण वैसे परीक्षण को कहते हैं, जिससे व्यक्ति के किसी एक प्रकार की अभिक्षमता का मापन होता है। इस प्रकार के परीक्षण की खास विशेषता यह होती है कि इसके माध्यम से व्यक्ति में निहित एक ही क्षमता का सही ढंग से और सूक्ष्म मापन से होता है। अतः इस प्रकार के परीक्षण को विश्वसनीयता एवं वैधता की मात्रा बहुत अधिक होती है। इस प्रकार के परीक्षणों में मेनिसोटा यांत्रिक अभिक्षमता परीक्षण, संगीत अभिक्षमता परीक्षण, सामान्य लिपिक अभिक्षमता परीक्षण आदि आते हैं। इस दिशा में बिहार में भी कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य किए गए हैं, जिसमें ए० के. पी. सिन्हा तथा एल. एल. के. सिन्हा द्वारा निर्मित वैज्ञानिक अभिक्षमता प्रमुख है। यह परीक्षण कॉलेज के छात्रों में निहित वैज्ञानिक क्षमता का मापन के क्षेत्र में बहुत अधिक लोकप्रिय हुआ है।

2. बहकारक अभिक्षमता परीक्षण (Multifactor aptitude test)-इसके अंतर्गत ऐसे परीक्षण आते हैं, जिसके माध्यम से व्यक्ति में निहित अनेक प्रकार की क्षमताओं का मापन एक ही जाँच के माध्यम से करते हैं। ज्यादातर अभिक्षमता परीक्षण बहुकारक के अंतर्गत आते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों में Different aptitude test, General aptitude battery, teaching aptitude test battery, scientific aptitude battery आदि आते हैं।

उपरोक्त परीक्षणों में Differential aptitude test (DAT) सर्वाधिक लोकप्रिय परीक्षण है, जिसका निर्माण सबसे पहले 1947 में अमेरिकन मनोवैज्ञानिक कारपोरेशन द्वारा किया गया है।

DAT का उपयोग आठवें वर्ग से लेकर बारहवें वर्ग के छात्रों के लिए किया जाता है। दूसरा संशोधन 1952 तथा 1963 ई. में किया गया। इस परीक्षण से निम्नलिखित आठ प्रकार की क्षमताओं का मापन किया जाता है।

1. शाब्दिक चिंतन परीक्षण(Verbal Reasoning test)-इसके माध्यम से शब्दों में निहित संप्रत्ययों को समझने की क्षमता का मापन किया जाता है। इससे रचनात्मक क्षमता का भी मापन किया जाता है।

2. संख्यात्मक अभिक्षमता परीक्षण (Numerical ability test)-इस जाँच के माध्यम से विद्यार्थियों में निहित संख्या या संख्याओं के आपसी संबंधों को समझने, संख्याओं की गणना एवं उसके बारे में चिंतन की क्षमता का मापन होता है। . .3. अमूर्त चिंतन परीक्षण (Abstract Reasoning test)-कुछ व्यक्तियों में अमूर्त चिंतन की योग्यता अधिक होती है। इन क्षमताओं का मापन अमूर्त चिंतन परीक्षण से किया जाता है।

4. दैशिक संबंध परीक्षण (Space Relation test)- दैशिक संबंध परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति में निहित उस क्षमता का मापन होता है जिसके द्वारा वह यह बता सकता है कि किसी दिए हुए डायग्राम से किस प्रकार का चित्र बनेगा या कोई एक ही वस्तु को विभिन्न दिशाओं में घुमाया जाय तो किस प्रकार का दिखायी देगा। इस क्षमता की आवश्यकता ड्रेस डिजायनर तथा डेकोरेटर आदि में विशेष रूप से होती है।

5. यांत्रिक चिंतन परीक्षण (Mechanical Reasoning test)-यांत्रिक चिंतन परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति में निहित यांत्रिक क्षमताओं का पता चलता है, जिसकी आवश्यकता उद्योगों में सर्वाधिक है। इस प्रकार की क्षमता वाले लोग सफल इंजीनियर या कुशल उद्योगपति हो सकते हैं।

6. लिपिक गति और परिशुद्धता परीक्षण (Clerical speed and accuracy test)-यह . एक ऐसी जाँच है जिसके माध्यम से व्यक्ति किसी शब्द था चित्र का प्रत्यक्षीकरण करने के पश्चात् होनेवाली सही अनुक्रिया का मापन करता है। इस प्रकार के क्षमता की आवश्यकता लिपिक कार्य या स्टेनोग्राफी आदि में सर्वाधिक होती है।

7. हिज्जे परीक्षण (Spelling test)–भाषा उपयोग परीक्षण के दो उप-परीक्षण है जिसमें हिज्जे परीक्षण पहला उप-भाग है, जिसके माध्यम से व्यक्ति में निहित शब्दों का सही-सही हिज्जे की क्षमता की माप की जाती है।

8. भाषा-वाक्य परीक्षण (Language-sentence test)–इस परीक्षण के माध्यम से भाषा का सही-सही उपयोग तथा वाक्यों का सही वैयाकरणिक अनुप्रयोग आदि की क्षमता का मापन किया जाता है। उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि DAT के माध्यम से आठ विभिन्न प्रकार की अभिक्षमता का मापन किया जाता है, जिसके क्रियान्वयन से कुल मिलाकर तीन घण्टे छः मिनट का समय लगता है। इसका उपयोग सामूहिक एवं वैयक्तिक परीक्षण के रूप में किया जा सकता है।

प्रश्न 14.
पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा अनुकूल व्यवहार को बढ़ाने की प्रविधियों का वर्णन करें।
उत्तर:
पर्यावरण के प्रति जागरूकता तथा अनुकूल व्यवहार को बढ़ाने के लिए केवल भविष्यवाणी पर्याप्त नहीं है। बल्कि इसके विद्वेशक परिणामों के सम्बन्ध में जानकारी देकर विपरीत प्रभाव को नियंत्रण करने का प्रयास किया जा सकता है जो निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा की जा सकती है।-

(a) चेतावनी- समयानुरूप आने वाले विषम परिस्थितियों की जानकारी देकर लोगों को चेतना वृद्धि किया जा सकता है जिससे लोग अवगत होकर उसके समाधान के प्रति तत्पर हो सके। यह कार्य विज्ञापन के द्वारा लोगों तक पहुँचाया जाता है। प्राकृतिक विपदाओं से सम्बन्धित घटनाओं को तूफान एवं भविष्य में आने वाले समुद्री ज्वार तथा भूकम्प से बचने तथा निर्धारित क्षेत्र में न जाने की सुझाव दी जाती है।

(b) सुरक्षा उपाय-प्राकृतिक विपदाओं में कुछ ऐसे भी हैं जिनका संकेत दिये जाने पर इतना शीघ्रतापूर्वक आगमन होता है कि उनका नियंत्रण कर पाना संभव नहीं होता इसलिए इसके लिए चेतावनी देकर उन्हें मानसिक रूप से तैयार करने का कार्य किया जाता है इससे संबंधित सुझाव द्वारा समयानुरूप समायोजन में सहायता प्राप्त हो जाता है।

(c) मनोवैज्ञानिक विकारों का उपचार-मनावैज्ञानिक विकारों के उपचार में स्वावलंबन उपचार तथा व्यावसायिक उपचार दोनों उपस्थित होते हैं। लोगों में मुख्यतः भौतिक सहयोग जैसे-शरण आश्रय, भोजन, एवं वस्त्र वितीय सहायता प्राप्त करना अनिवार्य होता है जिसके लिए अनुभव एवं प्रोत्साहन होना आवश्यक होता है। प्रभाव स्वरूप इससे उसके सांवेगिक अवस्था का निवारण हो पाता है।

(d) आत्म सक्षमता- इसमें प्राणी को आत्मा विश्वास दृढ़ होता है वे स्वयं को बाहरी परिवेश में समर्थ मानते हैं परन्तु इन दशाओं की पूर्ति न हो सकने से तीव्र दबाव परिलक्षित हो जाता है और उन्हें मनोरोग उपचार की आवश्यकता पड़ती है प्रभाव स्वरूप लाभ अर्जन से सामुदायिक जीवन में समायोजन के गण विकसित होता है।

प्रश्न 15.
एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक के लिए सामान्य कौशलों का वर्णन करें।
उत्तर:
भनोविज्ञान का अध्ययन करने वाले कुछ छात्रों का उद्देश्य होता है एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनकर समाज एवं देश को सेवा प्रदान करना। कुशल मनोवैज्ञानिक बनने के लिए जो क्षेत्र आते हैं जिसकी शिक्षा और प्रशिक्षण करने के बाद व्यवसाय में आने के पहले जानना आवश्यक है। वे शिक्षकों, अभ्यास करने वाले या शोध करने वाले सभी के लिए जरूरी है जो छात्रों से, व्यापार से, उद्योगों से और बृहत्तर समुदायों के साथ परामर्श की भूमिकाओं में होते हैं। यह माना जाता है कि मनोविज्ञान में
सक्षमताओं को विकसित करना, उनको अमल में लाना और उनका मापन करना कठिन है, क्योंकि विशिष्ट पहचान और मूल्यांकन की कसौटियों पर आम सहमति नहीं बन पाई है।

मनोवैज्ञानिकों द्वारा पहचानी गयी आधारभूत कौशल या सक्षमता जो एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए आवश्यक है उसे तीन श्रेणियों में बाँटा गया है-

  1. सामान्य कौशल
  2. प्रेक्षण कौशल तथा
  3. विशिष्ट कौशल।

सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के होते हैं। जिसकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है चाहे वे किसी भी क्षेत्र के विशेष क्यों नहीं। खासकर सभी प्रकार के व्यवसायी मनोवैज्ञानिक जैसे-नैदानिक, स्वास्थ्य मनोविज्ञान, औद्योगिक, सामाजिक, पर्यावरणीय सलाहकार की भूमिका में रहने वालों के लिए यह कौशल आवश्यक है।

प्रेक्षण कौशल से तात्पर्य सूचनाओं को देखकर समझने से है। कोई मनोवैज्ञानिक चाहे वह शोध कर रहा हो या क्षेत्र में व्यवसाय कर रहा हो वह ज्यादातर समय सावधानीपूर्वक सुनने, ध्यान देने और प्रेक्षण करने का कार्य करता है। वह अपनी समस्त संवेदनाओं का उपयोग देखने, सुनने स्वाद लेने, स्पर्श करने या सूंघने में करता है।

विशिष्ट कौशल मनोविज्ञान के किसी क्षेत्र में विशेषता से है जैसे-नैदानिक स्थितियों में कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए यह आवश्यक है कि वह चिकित्सापरक तकनीकों, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में प्रशिक्षण प्राप्त करें। इस प्रकार स्पष्ट है कि एक प्रभावी मनोवैज्ञानिक बनने के लिए उपरोक्त तीनों कौशल में प्रवीण होना आवश्यक है। तभी वे सेवार्थी को अधिक-से-अधिक लाभ दे सकता हैं।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं ? माँग की कीमत लोच की विभिन्न श्रेणियाँ क्या हैं ?
अथवा, माँग की कीमत लोच के प्रकारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
माँग की लोच की धारणा यह बताती है कि कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप किसी वस्तु की माँग में किस गति या दर से परिवर्तन होता है। यह वस्तु की कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिकिया या संवेदनशीलता को दर्शाती है।

माँग की कीमत लोच कीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।
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माँग की कीमत लोच को निम्न श्रेणियों में बांटा जा सकता है-
1. पूर्णतया बेलोचदार माँग (Pesteetly inelastic Demand)- जब कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। ऐसा माँग वक्र X-अक्ष पर लम्बवत् होता है। अर्थात् ed = 0
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2. इकाई से कम लोचदार माँग (Less than unitary Elastic Demand)- माँग की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कीमत में होने वाले एक निश्चित प्रतिशत परिवर्तन के कारण माँग में अपेक्षाकृत कम प्रतिशत परिवर्तन होता है। अर्थात् ed < 1
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3. इकाई से अधिक लोचदार माँग (Greater than unitary Elastic Demand)- माँग की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कीमत में होने वाले एक निश्चित प्रतिशत परिवर्तन के परिणामस्वरूप माँग में अपेक्षाकृत अधिक प्रतिशत परिवर्तन होता है। अर्थात् ed > 1
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4. इकाई लोचदार माँग (Unitary Elastic Demand)- माँग की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के बराबर माँग में प्रतिशत परिवर्तन होता है। जब माँग वक्र Rectangular Hyperbola होता है तब माँग वक्र के सभी बिन्दुओं पर माँग की लोच इकाई के बराबर होती है। अर्थात् ed = 1
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5. पूर्णतया लोचदार माँग (Perfectly Elastic Demand)- पूर्णतया लोचदार माँग उसे कहते हैं जिसमें कीमत में थोड़ा-सा परिवर्तन होने पर माँग में अनन्त परिवर्तन हो जाता है। ऐसा माँग वक्र X-अक्ष के समानान्तर होता है। अर्थात् ed = a
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प्रश्न 2.
माँग के नियम का कथन उद्धृत कीजिए। माँग वक्र का ढलान क्यों नीचे की ओर होता है ?
अथवा, माँग का नियम क्या है ? माँग वक्र का ढलान क्यों नीचे की ओर होता है ?
उत्तर:
माँग का नियम यह बताता है कि अन्य बातें समान रहने पर वस्तु की कीमत एवं वस्तु की मात्रा में विपरीत संबंध पाया जाता है। दूसरे शब्दों में, अन्य बातें समान रहने की दशा में किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि के कारण उसकी माँग में कमी हो जाती है तथा इसके विपरीत कीमत में कमी होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है।

जब माँग-तालिका को एक रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया जाता है तो इसे माँग वक्र कहते हैं। माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है, अर्थात् यह वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है। इसका अर्थ है कि कीमत कम होने पर अधिक वस्तुएँ खरीदी जाती है और कीमत अधिक होने पर कम वस्तुएँ खरीदी जाती है। माँग वक्र की ढलान ऋणात्मक होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम- उपभोक्ता वस्तु की सीमान्त उपयोगिता को दिये गये मूल्य के बराबर करने के लिए कम कीमत होने पर अधिक क्रय करता है। P = Mu
  2. प्रतिस्थापन्न प्रभाव- मूल्य कम होने पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत महँगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु का प्रतिस्थापन्न करता है।
  3. आय प्रभाव- मूल्य में कमी के फलस्वरूप उपभोक्ता आय वृद्धि की स्थिति को महसूस करता है और क्रय बढ़ा देता है।
  4. नये उपभोक्ताओं का उदय।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय बैंक और व्यावसायिक बैंक में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक तथा व्यावसायिक बैंक में निम्नलिखित अंतर है-
केन्द्रीय बैंक:

  1. देश में इसकी संख्या एक होती है।
  2. इसका उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता है।
  3. यह नोट निर्गमन करता है।
  4. इस पर सरकार का स्वामित्व होता है।
  5. व्यापारिक बैंकों से इसकी कोई प्रतियोगिता नहीं होती है।
  6. यह अंतिम ऋणदाता है।
  7. यह सरकार के बैंकर के रूप में सरकार की ओर से लेन-देन करता है।
  8. यह जनता के साथ व्यवसाय नहीं करता है।
  9. यह देश का सर्वोच्च बैंक है।

व्यावसायिक बैंक:

  1. देश में इसकी संख्या कई होती है।
  2. इसका उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
  3. इसे यह अधिकार नहीं है।
  4. इसका स्वामित्व सरकारी और गैर-सरकारी हो सकता है।
  5. इनमें आपस में प्रतियोगिता होती है।
  6. यह केन्द्रीय बैंक के ग्राहक होता है।
  7. यह जनता का बैंकर है।
  8. यह जनता से व्यवसाय करता है।
  9. यह केन्द्रीय बैंक के नियंत्रण में कार्य करता है।

प्रश्न 4.
स्फीतिक अंतराल क्या है ? अतिरेक माँग के कारणों को बताइए।
उत्तर:
वह स्थिति जिसमें अर्थव्यवस्था में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती, केवल कीमतों में वृद्धि होती है तो उसे स्फीति अंतराल कहा जाता है स्फीतिक अंतराल अतिरेक माँग की माप है। स्फीतिक दबाव तथा अत्यधिक माँग में आनुपातिक संबंध पाया जाता है। अत्यधिक माँग जितनी अधिक होती है, स्फीतिक दबाव भी उतना ही अधिक होता है।

निम्नलिखित कारणों के कारण किसी देश में अतिरेक माँग की स्थिति उत्पन्न होती है-

  • सार्वजनिक व्यय में बढ़ोतरी के वजह से सरकार द्वारा की जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग में वृद्धि।
  • कर में कमी के कारण व्यय योग्य आय एवं उपभोग माँग में वृद्धि।
  • विनियोग माँग में वृद्धि।
  • निर्यात हेतु वस्तुओं की माँग में वृद्धि।
  • घाटा प्रबंधन के कारण मुद्रा पूर्ति में वृद्धि।
  • साख विस्तार से माँग में वृद्धि।

प्रश्न 5.
विदेशी विनिमय दर को परिभाषित करें। स्थिर और लोचपूर्ण विनिमय दर में अंतर करें।
उत्तर:
वह दर जिस पर एक देश की एक मुद्रा इकाई का दूसरे देश की मुद्रा में विनिमय किया जाता है, विदेशी विनिमय दर कहलाता है। इस प्रकार विनिमय दर घरेलू मुद्रा के रूप में दी जाने वाली वह कीमत है जो विदेशी मुद्रा की एक इकाई के बदले दी जाती है।

स्थिर एवं लोचपूर्ण विनिमय दरों में निम्नलिखित अंतर पाया जाता है-
स्थिर विनिमय दर:

  1. यह सरकार द्वारा घोषित की जाती है और इसे स्थिर रखा जाता है।
  2. इसके अंतर्गत विदेशी केन्द्रीय बैंक अपनी मुद्राओं को एक निश्चित कीमत पर खरीदने और बेचने के लिए तत्पर रहता है।
  3. इसमें परिवर्तन नहीं आते हैं।

लोचपूर्ण विनिमय दर:

  1. माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्धारित होती है।
  2. इसमें केन्द्रीय बैंक का हस्तक्षेप नहीं होता है।
  3. इसमें हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं।

प्रश्न 6.
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की व्याख्या करें। इस नियम के लागू होने की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य की विवेचना करता है कि जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई का उपभोग करता है अन्य बातें समान रहने पर उससे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। एक बिन्दु पर पहुँचने पर यह शून्य हो जाती है। यदि उपभोक्ता इसके पश्चात् भी वस्तु का सेवन जारी रखता है तो यह ऋणात्मक हो जाती है। निम्न उदाहरण से भी यह इस बात का स्पष्टीकरण हो जाता है-

वस्तु की मात्राप्राप्त सीमान्त उपयोगिता
110
28
36
44
50
6-4

इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा एक से बढ़कर 6 तक पहुँच जाती है वैसे-वैसे उससे प्राप्त सीमान्त उपयोगिता भी 10 से घटते-घटते शून्य और ऋणात्मक यानी-4 तक हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि वस्तु की मात्रा में वृद्धि होते रहने से उससे मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घटती जाती है।

सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की निम्नलिखित शर्ते या मान्यताएँ हैं-

  1. उपभोग की वस्तुएँ समरूप होने चाहिए।
  2. उपभोग की क्रिया लगातार होनी चाहिए।
  3. उपभोक्ता की मानसिक स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  4. उपभोग निश्चित इकाई में किया जाना चाहिए।
  5. आय, आदत, रुचि, फैशन आदि में कोई परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 7.
सामूहिक माँग की अवधारणा को उचित चित्र द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामूहिक माँग (Aggregate Demand)- एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं की सम्पूर्ण माँग को ही सामूहिक माँग कहा जाता है और यह अर्थव्यवस्था के कुल व्यय के रूप में व्यक्त की जाती है। इस प्रकार, एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं पर किये गये कुल व्यय के संदर्भ में सामूहिक माँग की माप की जाती है।

दूसरे शब्दों में, सामूहिक माँग, उस कुल व्यय को बताती है जिसे एक देश के निवासी, आय के दिए हुए स्तर पर, वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने के लिए खर्च करने को तैयार हैं।
सामूहिक मॉग = उपभोग व्यय + निवेश व्यय
AD = C + I
उपभोग अनुसूची एवं निवेश अनुसूची का योग करके सामूहिक माँग अनुसूची का निर्माण किया जाता है।
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उपर्युक्त तालिका बताती है कि

‘शून्य आय स्तर पर भी उपभोग माँग शून्य न होकर एक न्यूनतम स्तर पर बनी रहती है’ क्योंकि व्यक्ति को जीवित रहने के लिए अनिवार्य वस्तुओं (भोजन आदि) के लिए उपभोग करना आवश्यक होता है-यह व्यय व्यक्ति या तो अपनी पूर्व बचतों से करता है या फिर दूसरों से उधार लेता है।

उपर्युक्त तालिका के आधार पर प्राप्त होने वाला सामूहिक माँग वक्र चित्र में प्रदर्शित किया गया है।

प्रश्न 8.
परिवर्तनशील अनुपात के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर:
घटते-बढ़ते अनुपात के नियम के अनुसार जब एक या एक से अधिक साधनों को स्थिर रखा जाता है तो उत्पादक के परिवर्तनशील साधनों के अनुपात में वृद्धि करने से उत्पादन पहले बढ़ते हुए अनुपात में बढ़ता है, फिर समान अनुपात में तथा इसके बाद घटते हुए अनुपात में बढ़ता है। श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “उत्पत्ति ह्रास नियम यह बताता है कि यदि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाय तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाय तो एक निश्चित बिन्दु के बाद उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होती है।”

इस नियम के अनुसार उत्पादन की तीन अवस्थाएँ हैं-
पहली अवस्था- सीमान्त उत्पादन अधिकतम होने के बाद घटना आरम्भ हो जाता है। औसत उणदन अधिकतम हो जाता है तथा कुल उत्पादन बढ़ता है।

दूसरी अवस्था- औसत उत्पादन घटने लगता है और कुल उत्पादन घटती दर से बढ़ता है तथा अधिकतम बिन्दु पर पहुँचता है तब सीमान्त उत्पादन शून्य हो जाता है।

तीसरी अवस्था- औसत उत्पादन घटना जारी रहता है तथा कुल उत्पादन कम होने लगता है तब सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 9.
कृषि के संदर्भ में उत्पत्ति ह्रास नियम की व्याख्या करें।
उत्तर:
उत्पत्ति ह्रास नियम हमारे साधारण जीवन के अनुभवों पर आधारित है। सर्वप्रथम इस प्रवृत्ति का अनुभव स्कॉटलैण्ड के एक किसान ने किया था, किन्तु वैज्ञानिक रूप में इसके प्रतिपादन का श्रेय टरगोट को है। यह नियम मुख्यतः कृषि में ही क्रियाशील होता है। कृषि के क्षेत्र में इस नियम की व्याख्या इस प्रकार से की जा सकती है-

जब उपज बढ़ाने के लिए भूमि के एक निश्चित टुकड़े पर कोई किसान पूँजी एवं श्रम की मात्रा को बढ़ाता है तो प्रायः यह देखा जाता है कि उपज में उससे कम ही अनुपात में वृद्धि होती है। अर्थशास्त्र में इसी प्रवृत्ति को क्रमागत उत्पत्ति ह्रास नियम कहते हैं। प्रत्येक किसान अनुभव के आधार पर इस बात को जानता है कि एक सीमा के बाद भूमि की एक निश्चित मात्रा पर अधिक श्रम एवं पूँजी लगाने से उपज घटते हुए अनुपात में बढ़ती है। यदि ऐसा नहीं होता तो आज विश्व में खाद्यान्न के अभाव की समस्या ही उपस्थित नहीं होती तथा एक हेक्टर भूमि में खेती करके ही सम्पूर्ण विश्व को सुगमतापूर्वक खिलाया जा सकता था। किन्तु बात ऐसी नहीं है। इस प्रकार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री उत्पत्ति ह्रास नियम को कृषि से संबंधित करते थे। इन लोगों के अनुसार भूमि की पूर्ति सीमित है। अतः जनसंख्या में वृद्धि के कारण एक सीमित भूमि पर अधिक लोगों के काम करने से उपज में घटती हुई दर से वृद्धि होगी।

मार्शल ने कृषि के संबंध में इस नियम की व्याख्या इस प्रकार से की है, “यदि कृषि कला में साथ-ही-साथ कोई उत्पत्ति नहीं हो, तो भूमि पर उपयोग की जाने वाली पूँजी एवं श्रम की मात्रा में वृद्धि से कुल उपज में साधारणतया अनुपात से कम ही वृद्धि होती है।” इस प्रकार मार्शल के अनुसार एक निश्चित भूमि के टुकड़े पर ज्यों-ज्यों श्रम एवं पूँजी की इकाइयों में वृद्धि की जाती है, त्यों-त्यों उपज घटते हुए अनुपात में बढ़ती है, यानी सीमान्त उपज में क्रमशः ह्रास होते जाता है। इसे निम्न तालिका द्वारा भी दर्शाया जा सकता है-
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इस तालिका से स्पष्ट होता है कि श्रम एवं पूँजी की पहली इकाई लगाने से उस भूमि पर 20 क्विंटल उपज होती है, दूसरी इकाई के प्रयोग से कुल उपज 35 क्विंटल होती है लेकिन सीमान्त उपज 15 क्विंटल होती है। तीसरी इकाई के प्रयोग से कुल उपज 45 क्विंटल होती है तथा सीमान्त उपज 10 क्विंटल होती है। चौथी इकाई के प्रयोग से कुल उपज 50 क्विंटल तथा सीमान्त उपज 5 क्विंटल होती है। अतः स्पष्ट है कि किसान ज्यों-ज्यों एक निश्चित भूमि के टुकड़े पर श्रम एवं पूँजी की इकाइयों को बढ़ाता है, त्यों-त्यों कुल उपज में वृद्धि अवश्य होती है, किन्तु उस अनुपात में नहीं जिस अनुपात में श्रम एवं पूँजी में वृद्धि की जाती है। दूसरे शब्दों में, श्रम एवं पूँजी की अतिरिक्त इकाइयों के प्रयोग के परिणामस्वरूप उपज में घटते हुए अनुपात में वृद्धि होती है।

प्रश्न 10.
केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
रिजर्व बैंक के कार्य (Functions of R.B.I.)- रिजर्व बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
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(i) नोट निर्गमन का एकाधिकार- भारत में एक रुपये के नोट और सिक्कों के अलावा सभी करेन्सी नोटों को छापने का एकाधिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को है। नोटों की डिजाइन केन्द्रीय सरकार द्वारा तय तथा स्वीकृत की जाती है। 115 करोड़ रुपये का सोना और 85 करोड़ रुपये की विदेशी प्रतिभूतियाँ रखकर रिजर्व बैंक आवश्यकतानुसार नोटों का निर्गमन कर सकता है।

(ii) सरकार का बैंकर- रिजर्व बैंक जम्मू तथा कश्मीर को छोड़कर शेष सभी राज्यों और केन्द्रीय सरकार के बैंकर के रूप में कार्य करता है। यह सार्वजनिक ऋणों का प्रबंध करता है तथा नये ऋणों को जारी करता है। सरकार के ट्रेजरी बिलों की बिक्री करता है। सरकार को आर्थिक मामलों में सलाह देने का कार्य करता है।

(iii) बैंकों का बैंक- रिजर्व बैंक को व्यापार, उद्योग, वाणिज्य और कृषि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयुक्त बैंकिंग प्रणाली का विकास करना पड़ता है। रिजर्व बैंक को वाणिज्य बैंकों और सरकारी बैंकों के निरीक्षण की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं। संकट के समय रिजर्व बैंक व्यापारिक बैंकों को सहायता करता है।

(iv) विदेशी विनिमय कोषों का रक्षक- रिजर्व बैंक का एक महत्त्वपूर्ण कार्य रुपये के बाहरी मूल्य को कायम रखना है। देश में आर्थिक स्थिरता को बनाये रखने के लिए उचित मौद्रिक नीति को अपनाता है।

(v) साख का नियंत्रण-रिजर्व बैंक साख- नियंत्रण के परिमाणात्मक और चयनात्मक उपाय अपनाकर देश में साख की पूर्ति को नियंत्रित करता है, जिससे वाणिज्य, कृषि, उद्योग और व्यापार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके।

(vi) विकासात्मक कार्य- रिजर्व बैंक ने भारत में बैंकिंग व्यवस्था का विकास करने, बचत और निवेश को प्रोत्साहित करने और औद्योगिक विकास के लिए विभिन्न संस्थाओं की स्थापना करने का कार्य किया है। पूँजी बाजार को विकसित करने तथा सरकारी आन्दोलन को मजबूत बनाने का कार्य रिजर्व बैंक द्वारा ही किया गया है।

प्रश्न 11.
व्यावसायिक बैंक की परिभाषा दीजिए और इसके प्रमुख कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक वे बैंक है, जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग का कार्य करते हैं। कलर्वस्टन के अनुसार व्यापारिक बैंक वे संस्थाएँ हैं जो व्यापार को अल्पकाल के लिए ऋण देती हैं तथा इस प्रक्रिया में मुद्रा का निर्माण करती हैं।

व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्य निम्नांकित हैं जिन्हें तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

  • मुख्य कार्य
  • गौण कार्य
  • विकासात्मक कार्य।

मुख्य कार्य- बैंक के तीन प्रमुख कार्य हैं-

  • जमा स्वीकार करना- एक व्यापारिक बैंक जनता के धन को जमा करता है।
  • ऋण देना- बैंक के अपने पास जो रुपया जमा के रूप में आता है उसमें से एक निश्चित राशि नगद कोष में रखकर बाकी रुपया बैंक द्वारा उधार दे दिया जाता है।
  • विनिमय पत्रों की कटौती करना- इसके अंतर्गत बैंक अपने ग्राहकों को उनके विनिमय पत्रों के आधार पर रुपया उधार देता है। भुगतान के बांकी समय की ब्याज की कटौती करके बैंक तत्काल भुगतान कर देता है।

गौण कार्य- बैंक अपने ग्राहकों के लिए विभिन्न तरीकों के एजेंट का कार्य करता है।

  • चेक, ड्राफ्ट आदि का एकत्रीकरण और भुगतान।
  • प्रतिभूतियों की खरीद तथा बिक्री।
  • बैंक अपने ग्राहकों के आदेश पर उनकी सम्पत्ति के ट्रस्टी तथा प्रबंधक का कार्य भी करते हैं। साथ ही बैंक लॉकर की सुविधा यात्री चेक तथा साख प्रमाण पत्र, मर्चेन्ट बैंकिंग और वस्तुओं के वहन में सहायक प्रदान करता है।

विकासात्मक कार्य- आर्थिक विकास तथा सामाजिक कल्याण के लिए निम्नांकित कार्य करते हैं-
लोगों की निष्क्रीय बचतों को इकट्ठा करके उन्हें उत्पादकीय कार्यों में निवेश करके पूँजी निर्माण को बढ़ाने में सहायक होते हैं। बैंक उद्यमियों को साख प्रदान करके जब प्रवर्तक को प्रोत्साहित करता है, साथ ही केन्द्रीय बैंक की मौद्रिक नीति को प्रभावपूर्ण ढंग से लागू करने में सहायक करते हैं।

प्रश्न 12.
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न होने के कारण निम्नलिखित हैं-

  • प्राकृतिक प्रकोप- प्राकृतिक प्रकोप (अंकाल, बाढ़, भूकम्प आदि) के कारण भुगतान शेष में असंतुलन उत्पन्न होता है, क्योंकि इन दश’ में अर्थव्यवस्था आयतों पर आश्रित हो जाती है।
  • विकास व्यय- विकास व्यय अधिक होने से भुगतान संतुलन में घाटा उत्पन्न हो जाता है।
  • व्यापार चक्र- व्यावसायिक क्रियाओं में होने वाले उतार-चढ़ाव का प्रतिकूल प्रभाव निर्यात पर पड़ता है। फलतः भुगतान संतुलन असंतुलित हो जाता है।
  • बढ़ती कीमतें- कीमतों में वृद्धि के कारण भी भुगतान संतुलन में घाटा उत्पन्न होता है।
  • आयात प्रतिस्थापन्न- इसके चलते आयातों में कमी होती है। अतः भुगतान संतुलन में घाटा कम हो जाता है।
  • अधिक सुरक्षा व्यय- देश की सुरक्षा का व्यय अधिक होने पर भुगतान संतुलन असंतुलित हो जाता है।
  • राजनीतिक अस्थिरता- देश में जब राजनीतिक अस्थिरता रहती है तो इसका भुगतान संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध- देश का अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध कैसा है इस पर भुगतान संतुलन निर्भर करता है। यदि अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध तनावपूर्ण होता है या युद्धमय होता है तो भुगतान संतुलन असंतुलित रहता है।
  • दूतावासों का विस्तार- दूतावासों के विस्तार और उसके रख-रखाव पर जब अधिक खर्च होता है तो भुगतान संतुलन असंतुलित हो जाता है।
  • रुचि, फैशन तथा स्वभाव में परिवर्तन- जब व्यक्तियों की रुचि फैशन तथा स्वभाव परिवर्तित होता है तो यह भुगतान संतुलन को असंतुलित करता है।

प्रश्न 13.
व्यावसायिक बैंक से आप क्या समझते हैं ? इसके साख निर्माण की सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करता है, व्यापारिक जमाएँ स्वीकार करता है तथा जनता को उधार देकर साख का सृजन करता है।

सीमाएँ- व्यावसायिक बैंक द्वारा किये जाने वाले साख निर्माण की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

  • देश में मुद्रा की मात्रा- देश में नकद मुद्रा की मात्रा जितनी अधिक होगी, बैंकों के पास नकद जमाएँ उतनी ही अधिक होगी और बैंक उतनी ही अधिक मात्रा में साख निर्माण कर सकेगा।
  • मुद्रा की तरलता पसंदगी- व्यक्ति जब अपने पास अधिक नकदी रखता है तो बैंक में जमाएँ घटती हैं और साख निर्माण का आकार घट जाता है।
  • बैंकिंग आदतें- व्यक्ति में बैंकिंग आदत जितनी अधिक होती है, बैंकों की साख निर्माण शक्ति उतनी ही अधिक होती है। इसके विपरीत स्थिति में साख का निर्माण कम होगा।
  • जमाओं पर नकद कोष अनुपात- यदि नकद कोष अनुपात अधिक है तो कम साख का निर्माण होगा और यदि नकद कोष अनुपात कम है तो अधिक साख का निर्माण होगा।
  • ब्याज दर- ब्याज दर ऊँची रहने पर साख की मात्रा कम हो जाती है और कम ब्याज दर साख की माँग को प्रोत्साहित करती है।
  • रक्षित कोष- यदि रक्षित कोष अधिक होता है तो बैंक के नकद साधन कम हो जाते हैं और वह कम साख निर्माण करता है। इसके विपरीत रक्षित कोष कम होने पर उसकी साख निर्माण की शक्ति बढ़ जाती है।
  • केन्द्रीय बैंक की साख सम्बन्धी नीति- केन्द्रीय बैंक की साख नीति पर भी साख निर्माण की मात्रा निर्भर करती है। कारण यह है कि केन्द्रीय बैंक के पास देश में मुद्रा की मात्रा को प्रभावित करने की शक्ति होती है और वह बैंकों की साख के संकुचन और विस्तार की शक्ति को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है।

प्रश्न 14.
केन्द्रीय बैंक के मौद्रिक उपाय से आप क्या समझते हैं ? न्यून माँग को ठीक करने के लिए मौद्रिक उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केन्द्रीय बैंक है। देश की आर्थिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए तथा उस पर नियंत्रण करने के लिए इसे निम्नलिखित अधिकार प्राप्त है-

1. मुद्रा निर्गमन का अधिकार- केवल रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को ही भारत में मुद्रा जारी करने का अधिकार है। एक रुपये का नोट सिर्फ भारत सरकार जारी करती है। शेष सभी प्रकार के नोटों को जारी करने तथा सिक्कों की ढलाई का काम रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया का है।

2. सरकार का बैंकर- यह केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों का बैंकर है। सभी सरकारी चालू खाते का नकद कोष इसी के पास जमा होता है।

3. बैंकों का बैंक तथा पर्यवेक्षक- यह बैंकों का बैंक है। सभी बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास सुरक्षित रखता है। साथ ही यह सभी बैंकों का पर्यवेक्षक भी है।

4. मुद्रा की आपूर्ति तथा साख का नियंत्रण- यह देश में मुद्रा की आपूर्ति और साख की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इसके लिए यह मौद्रिक नीति की रचना करता है।

न्यून माँग को ठीक करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया निम्नलिखित मौद्रिक उपायों का सहारा लेता है-

  • बैंक दर नीति- बैंक को उधार देने के लिए ब्याज पर नियंत्रण करना। इसके द्वारा न्यून माँग को संतुलित करने का प्रयास करता है। इसके लिए समुचित मौद्रिक उपायों को लागू करता है।
  • खुले बाजार की क्रियाएँ – सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंक के साथ क्रय-विक्रय करने का कार्य संपादित करता है। इस प्रकार यह व्यापार असंतुलन को नियंत्रित करता है।
  • सुरक्षित कोष अनुपात में परिवर्तन- सुरक्षित कोष अनुपात दो प्रकार के होते हैं-नकद जमा अनुपात तथा संवैधानिक तरलता अनुपात। रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया न्यून माँग को ठीक करने के लिए नकद जमा अनुपात तथा संवैधानिक तरलता अनुपात पर निरंतर निगरानी रखता है और तदनुसार नियमित रूप से समुचित परिवर्तन करता रहता है।

प्रश्न 15.
पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु का मूल्य निर्धारण माँग द्वारा होता है या पूर्ति द्वारा, इस प्रश्न को लेकर प्राचीन अर्थशास्त्रियों में विवाद था। इस विवाद का समाधान प्रो० मार्शल ने किया। प्रो. मार्शल के अनुसार, “वस्तु का मूल्य माँग एवं पूर्ति दोनों के द्वारा निर्धारित होता है।” अपने विचार के समर्थन में मार्शल ने कैंची का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, जिस प्रकार कैंची के दोनों फलक कागज को काटने के लिए आवश्यक हैं उसी प्रकार वस्तु की कीमत निर्धारित करने के लिए माँग पक्ष एवं पूर्ति पक्ष दोनों आवश्यक है। इस प्रकार संतुलित की मत वहाँ निर्धारित होती है जहाँ माँग = पूर्ति।

निम्न उदाहरण से भी यह ज्ञात हो जाता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 2, 11

उपर्युक्त उदाहरण से यह स्पष्ट है कि जब मूल्य 15 रु० प्रति इकाई है तो माँग एवं पूर्ति दोनों 30 के बराबर है। अतः यहीं पर मूल्य का निर्धारण होगा और मूल्य 15 रु० प्रति इकाई होगा। बगल के रेखाचित्र से भी यह ज्ञात हो जाता है।

इस रेखाचित्र में P बिन्दु पर माँग एवं पूर्ति की रेखा एक-दूसरे को काटती है। अत: यही बिन्दु साम्य बिन्दु तथा OM कीमत साम्य कीमत कहा जायेगा। साथ ही, इस OM कीमत पर OR मात्रा वस्तुओं का उत्पादन। इस तरह पूर्ण प्रतियोगिता माँग एवं पूर्ति की मात्रा में माँग एवं पूर्ति द्वारा मूल्य निर्धारण होता है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 2, 12

प्रश्न 16.
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम की आलोचनात्मक व्याख्या करें।
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम इस तथ्य की विवेचना करता है कि जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अगली इकाई का उपभोग करता है अन्य बातें समान रहने पर उसे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता क्रमशः घटती जाती है। एक बिन्दु पर पहुँचने पर यह शून्य हो जाती है। यदि उपभोक्ता इसके पश्चात भी वस्तु का सेवन जारी रखता है तो यह ऋणात्मक हो जाती है। निम्न उदाहरण से भी इस बात का स्पष्टीकरण हो जाता है-

वस्तु की मात्राप्राप्त सीमान्त उपयोगिता
110
28
36
44
50
6-4

इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे वस्तु की मात्रा एक से बढ़कर 6 तक पहुँच जाती है। वैसे-वैसे उससे प्राप्त सीमान्त उपयोगिता भी 10 से घटते-घटते शून्य और ऋणात्मक यानी-4 तक हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि वस्तु की मात्रा में वृद्धि होते रहने से उससे मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।

आलोचकों के इस नियम के अपवादों का भी उल्लेख किया है जो निम्नलिखित हैं-

  • मादक एवं नशीली वस्तुओं के सेवन में यह नियम लागू नहीं होता है, क्योंकि इसका लोग अधिकाधिक मात्रा में सेवन करने लगते हैं।
  • अर्थलिप्या एवं प्रदर्शन प्रियता की इच्छा भी बढ़ती जाती है जहाँ यह नियम लागू नहीं होता है।
  • अच्छी कविता या संगीत के साथ यह नियम लागू नहीं होता है, क्योंकि इनके सुनने की इच्छा बढ़ती जाती है।
  • पूरक वस्तुएँ भी इसके अपवाद हैं, क्योंकि एक वस्तु की उपयोगिता पूरक वस्तुओं के चलते बढ़ जाती है।
  • विचित्र एवं दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह के साथ भी यह लागू नहीं होता है, क्योंकि लोग अधिकाधिक मात्रा में इनका संग्रह करने लग जाते हैं।

प्रश्न 17.
सरकारी बजट क्या है ? इसके उद्देश्यों की चर्चा करें।
उत्तर:
आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

बजट के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • सरकार को अपने सामाजिक और आर्थिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए वित्तीय व्यवस्था करनी पड़ती है।
  • सरकार सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सहायता, सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय करके अर्थव्यवस्था में धन और आय के पुनर्वितरण की व्यवस्था करती है।
  • बजट के माध्यम से सरकार कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने का प्रयास करती है। रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने और कीमत स्थिरता के लिए प्रयत्न करने में बजट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • सरकार महत्त्वपूर्णउद्यमों का संचालन सार्वजनिक क्षेत्र में करती है। विद्युत उत्पादन, रेलवे आदि ऐसे ही उद्यम है। यदि इन्हें अनियंत्रित रखा जाय तो ये एकाधिकारी उद्यम में परिवर्तित हो सकते हैं। अधिकतम लाभ की आशा में उत्पादन में कमी कर सकते हैं, इससे सामाजिक कल्याण में कमी आ सकती है।
  • बजट अर्थव्यवस्था में राजकोषीय अनुशासन उत्पन्न करता है। व्यय के ऊपर पर्याप्त नियंत्रण करता है। संसाधनों को सामाजिक प्राथमिकताओं के अनुसार उपयोग में लाने में सहायता मिलती है। साथ ही सेवाओं की उपलब्धता प्रभावपूर्ण और कुशल तरीके से उपलब्ध कराने में बजट महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 18.
सरकारी बजट किसे कहते हैं ? इसकी क्या-क्या विशेषताएँ हैं ?
उत्तर:
आगामी आर्थिक वर्ष के लिए सरकार के सभी प्रत्याशित राजस्व और व्यय का अनुमानित वार्षिक विवरण बजट कहलाता है। सरकार कई प्रकार की नीतियाँ बनाती है। इन नीतियों को लागू करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। सरकार आय और व्यय के बारे में पहले से ही अनुमान लगाती है। अतः बजट आय और व्यय का अनुमान है। सरकारी नीतियों को क्रियान्वित करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।

बजट की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • एक नियोजित अर्थव्यवस्था में बजट राष्ट्रीय नियोजन के वृहत उद्देश्यों पर आधारित होता है।
  • नियोजन के आरंभिक काल में देश के आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर प्रायः घाटे का बजट बनाया जाता है तथा बाद में बजट को धीरे-धीरे संतुलित करने का प्रयास किया जाता है।
  • नियोजित अर्थव्यवस्था में बजट का निर्माण इस तरह किया जाता है कि बजट का प्रभाव अधिकाधिक न्यायपूर्ण हो। इसके लिए प्रगतिशील की नीति अपनायी जाती है।
  • देश के आर्थिक क्रियाओं के निष्पादन में बजट की भूमिका सकारात्मक होती है।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
बाजार मूल्यं क्या है ?
उत्तर:
किसी समय विशेष पर वस्तु का बाजार में प्रचलित मूल्य की बाजार मूल्य कहलाता है। इसका निर्धारण माँग एवं पूर्ति की शक्तियों के बीच अस्थायी साम्य द्वारा होता है। बाजार मूल्य को अति अल्पकालीन मूल्य भी कहा जाता है। यह मूल्य न केवल दिन-प्रतिदिन मूल्य बदलता है बल्कि एक ही दिन में कई बार भी बदल सकता है।

प्रश्न 2.
उत्पादन फलन क्या है ?
उत्तर:
उत्पादन की आगतों तथा अंतिम उत्पाद के बीच तकनीकी फलनात्मक संबंध को उत्पादन फलन कहते हैं। उत्पादन फलन यह बताता है कि एक निश्चित समय में आगतों में परिवर्तन से उत्पादन में कितना परिवर्तन होता है। यह आगतों तथा उत्पादन के भौतिक मात्रात्मक संबंध को बताता है। इसमें मल्य शामिल नहीं होता है।

उत्पादन फलन Q = f (LK)
L= उत्पत्ति के साधन (श्रम)
K = उत्पत्ति के साधन (पूँजी)
Q= उत्पादन की भौतिक मात्रा

प्रश्न 3.
माँग की कीमत लोच की परिभाषा दें।
उत्तर:
माँग की लोच की धारणा यह बताती है कि कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप किसी वस्तु की माँग में किस गति या दर से परिवर्तन होता है। यह वस्तु की कीमत में परिवर्तन के प्रति माँग की प्रतिक्रिया या संवेदनशीलता को दर्शाती है।

माँग की कीमत लोच कीमत होने वाले आनुपातिक परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Short Answer Type Part 1, 1

प्रश्न 4.
पूरक वस्तु और स्थानापन्न वस्तु में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूरक वस्तु तथा स्थानापन्न वस्तु में निम्नलिखित अंतर हैं-
पूरक वस्तु:

  1. पूरक वस्तुएँ वे वस्तु हैं जिनका प्रयोग किसी आवश्यकता विशेष को संतुष्ट करने के लिए एक साथ किया जाता है। कार और पेट्रोल पूरक वस्तुएँ हैं।
  2. पूरक वस्तुओं की स्थिति में एक वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से दूसरी वस्तु (पूरक वस्तु) की माँग कम हो जाती है और एक वस्तु की कीमत में कमी होने से पूरक वस्तु की माँग बढ़ जाती है।

स्थानापन्न वस्तु:

  1. स्थानापन्न वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। चाय और कॉफी स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।
  2. स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति एवं वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर दूसरी वस्तु (स्थानापन्न वस्तु) की माँग बढ़ जाती है। इसके विपरीत एक वस्तु कीमत में कमी से प्रतिस्थानापन्न .. वस्तु की माँग कम हो जाती है।

प्रश्न 5.
सरकारी बजट के किन्हीं दो उद्देश्यों को समझाइए।
उत्तर:

  1. बजट के माध्यम से सरकार कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने का प्रयास करती है। रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न करने और कीमत स्थिरता के लिए प्रयत्न करने में बजट महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  2. सरकार सामाजिक सुरक्षा, आर्थिक सहायता, सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय करके अर्थव्यवस्था में धन और आय के पुनर्वितरण की व्यवस्था करती है।

प्रश्न 6.
सीमान्त उपयोगिता और कुल उपयोगिता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सीमान्त उपयोगिता- किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग करने से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि किसी वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त होने वाली उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता कहलाती है।

कुल उपयोगिता- किसी निश्चित समय में कुल इकाइयों के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता कुल उपयोगिता होती है। कुल उपयोगिता की गणना करने के लिए सीमान्त उपयोगिताओं को जोड़ा जाता है।

प्रश्न 7.
घाटे का बजट क्या है ?
उत्तर:
घाटे का बजट उस बजट को कहा जाता है जिसमें देश का अनुमानित आय अनुमानित व्यय से कम होता है।

प्रश्न 8.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा के मुख्य कार्य निम्नलिखित है-

  1. यह विनिमय का माध्यम है। सभी वस्तुएँ और सेवाएँ मुद्रा के माध्यम से खरीदी और बेची जाती है।
  2. यह सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्यांकन करता है।
  3. इसके प्रयोग द्वारा मूल्य संचय का कार्य सरल और सुविधा पूर्ण हो गया है।
  4. यह क्रयशक्ति के हस्तांतरण का सर्वोत्तम साधन है।

प्रश्न 9.
ऐच्छिक एवं अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बेरोजगारी की वह दशा, जब प्रचलित वेतन दर पर कार्य करने को व्यक्ति तैयार नहीं होते, ऐच्छिक बेरोजगारी कहलाती है।

बेरोजगारी की वह दशा, जब प्रचलित दर पर कार्य करने के लिए तैयार व्यक्तियों को कार्य नहीं मिलता, अनैच्छिक बेरोजगारी कहलाती है।

प्रश्न 10.
माँग वक्र नीचे क्यों गिरता है ?
उत्तर:
माँग वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है, अर्थात् यह वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है। इसका अर्थ है कि कीमत कम होने पर अधिक वस्तुएँ खरीदी जाती है और कीमत अधिक होने पर कम वस्तुएँ खरीदी जाती है। माँग वक्र की ढलान ऋणात्मक होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. घटती सीमांत उपयोगिता का नियम- उपभोक्ता वस्तु की सीमांत उपयोगिता को दिये गये मूल्य के बराबर करने के लिए कम कीमत होने पर अधिक क्रय करता है। P= mu
  2. प्रतिस्थापन्न प्रभाव- मूल्य कम होने पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत महँगी वस्तु के स्थान पर सस्ती वस्तु का प्रतिस्थापन्न करता है।
  3. आय प्रभाव- मूल्य में कमी के फलस्वरूप उपभोक आय वृद्धि की स्थिति को महसूस करता है और क्रय बढ़ा देता है।
  4. नये उपभोक्ताओं का उदय।

प्रश्न 11.
भुगतान शेष के संघटकों को बताइए।
उत्तर:
भुगतान शेष के चार संघटक हैं-

  • व्यापार शेष = निर्यात – आयात
  • चालू खाते का शेष = व्यापार शेष + निवल अदृश्य मदें
  • पूँजी खाते का शेष या पूँजी खाते का योग = विदेशी निवेश (निवल + विदेशी ऋण (निवल) + बैंकिंग (निवल) + रुपये ऋण सेवा + अन्य पूँजी (निवल) + भूल-चूक
  • समग्र शेष = चालू खाता – शेष + पूँजी खाता – शेष

प्रश्न 12.
स्फीतिक अंतराल और अवस्फीतिक अंतराल में क्या अंतर है ?
उत्तर:
वह स्थिति जिसमें अर्थव्यवस्था में उत्पादन में वृद्धि नहीं होती केवल कीमतों में वृद्धि होती है तो उसे स्फीतिक अंतराल कहा जाता है। इसके विपरीत अवस्फीतिक अंतराल वह स्थिति है जब कुल पूर्ति कुल मान से अधिक होती है। इसमें उत्पादन और रोजगार घटने लगता है तथा जनता की क्रय शक्ति घट जाती है।

प्रश्न 13.
अल्पकालीन औसत लागत ‘U’ आकार का क्यों होता है ?
उत्तर:
अल्पकाल में परिवर्तनशील अनुपात का नियम लागू होता है। आरंभ में बढ़ते प्रतिफल के कारण लागत घटती है, फिर स्थिर प्रतिफल की दशा में लागत स्थिर रहती है तथा क्रम में घटते प्रतिफल मिलने पर लागत बढ़ती है। इसी कारण उत्पादन का आकार बढ़ने पर पहले लागत घटती है फिर न्यूनतम होकर स्थिर होती है और अंत में बढ़ती है। इसी क्रम के कारण औसत लागत वक्र U आकार का हो जाता है।

प्रश्न 14.
पूर्ण प्रतियोगिता में किसी फर्म के माँग वक्र की प्रकृति क्या होगी ?
अथवा, पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा की क्या प्रकृति होती है ?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा क्षैतिज अर्थात् X-अक्ष के समांतर होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग कीमत का निर्धारण करता है। फर्म उस कीमत को स्वीकार करती है। दी हुई कीमत पर एक फर्म एक वस्तु की जितनी भी मात्रा बेचना चाहती है, बेच सकती है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत रेखा न केवल OX-अक्ष के समांतर होती है। अपितु औसत आगम तथा सीमांत आगम वक्र को भी ढकती है। कीमत रेखा को पूर्ण प्रतियोगिता फर्म का माँग वक्र भी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) और साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) में क्या अंतर है ?
उत्तर:
बाजार कीमतों पर शद्ध राष्ट्रीय उत्पाद- एक वित्तीय वर्ष में एक देश की घरेल सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूँजी का उपभोग घटाने पर प्राप्त बाजार कीमतों को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

साधन लागत पर शद्ध राष्टीय उत्पाद- एक वित्तीय वर्ष में एक देश की घरेलु सीमा में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर प्राप्त साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16.
फर्म के अधिकतम लाभ की शर्ते क्या हैं ?
उत्तर:
फर्म के अधिकतम लाभ की शर्ते निम्नलिखित हैं-

  • सीमांत आगम तथा सीमांत लागत का संतुलन बिंदु पर आपस में बराबर होना चाहिए यानि MR = MC
  • सीमांत लागत बक्र सीमांत’ आगम रेखा को संतुलन बिंदु पर नीचे काटे।

प्रश्न 17.
व्यक्तिक आय क्या है ?
उत्तर:
व्यक्तिक आय उन समस्त आयों का योग होती है, जो किसी दिये हुए वर्ष के भीतर व्यक्तियों और परिवारों को वास्तविक रूप में प्राप्त होती है।

व्यक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – सामाजिक सुरक्षा अंशदान – निगम आय कर – अवितरित निगम लाभ + हस्तांतरण भुगतान।
इससे हमें किसी देश में व्यक्तियों और परिवारों को सम्भाव्य क्रय शक्ति का आभास हो जाता है।

प्रश्न 18.
सकल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है ?
उत्तर:
किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसे इस रूप में व्यक्त किया जाता है-

कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) = कुल घरेलू उत्पाद (GDP) + देशवासियों द्वारा विदेशों में अर्जित आय – विदेशियों द्वारा देश में अर्जित आय।

लेकिन कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है उसे शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इस प्रकार कुल राष्ट्रीय उत्पाद की धारणा एक विस्तृत धारणा है, जिसके अंतर्गत शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद आ जाता है।

प्रश्न 19.
‘पूर्ति अनुसूची’ एवं ‘पूर्ति वक्र’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
एक निश्चित अवधि में बाजार में विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की विभिन्न मात्राएँ बेची जाती हैं। इसे यदि तालिका द्वारा दर्शाया जाता है तो उसे पूर्ति अनुसूची कहा जाता है।

परंतु जब विभिन्न कीमतों तथा उनपर बेची जाने वाली वस्तु की मात्रा को जब रेखाचित्र द्वारा दर्शाया जाता है तो उसे पूर्ति वक्र कहा जाता है।

प्रश्न 20.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में किन्हीं दो अंतरों को लिखिए।
उत्तर:

  • पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों का प्रवेश तथा बहिर्गमन आसान होता है लेकिन एकाधिकार में फर्मों के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है लेकिन एकाधिकार में क्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है।

प्रश्न 21.
आय का चक्रीय प्रवाह क्या है ?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के अनेक आर्थिक क्रियाकलाप होते हैं जिनमें उत्पादन, विनिमय और उपभोग मुख्य हैं। इन आर्थिक क्रियाकलापों के दौरान अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच आदान-प्रदान होते रहता है जिसके कारण आय और व्यय चक्रीय रूप से एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र के बीच प्रवाहित होते हैं। अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के बीच आय के चक्रीय रूप से प्रवाहित होने को ही आय का चक्रीय प्रवाह कहा जाता है।

प्रश्न 22.
व्यावसायिक बैंक की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • व्यावसायिक बैंक लेन-देन मुद्रा के रूप में करता है।
  • यह जनता से जमा स्वीकार करता है।
  • लाभ अर्जन इसका उद्देश्य है।
  • साख निर्माण करने की योग्यता इसमें होती है।
  • इसकी प्रकृति पूर्ण रूप से व्यावसायिक होती है।
  • यह माँग जमा पैदा करती है और ये जमाएँ विनिमय माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है।

प्रश्न 23.
माँग की लोच से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
माँग की लोच की धारणा हमें मूल्य तथा माँग के परिवर्तन के निश्चित सम्बन्ध को बताती है। मेयर्स के अनुसार, “मूल्य में होने वाले किसी सापेक्षिक परिवर्तन से खरीदी जाने वाली मात्रा में जो सापेक्षिक परिवर्तन होता है, उसका माप ही माँग की लोच है।” अतः माँग की लोच वह दर है जिस पर मूल्य में परिवर्तन होने से माँग की मात्रा में परिवर्तन होता है।

प्रश्न 24.
एकाधिकार की परिभाषा दें।
उत्तर:
एकाधिकार बाजार की वह स्थिति है जिसमें किसी वस्तु का केवल एक ही विक्रेता होता है तथा उस वस्तु की कोई निकटतम प्रतिस्थापन्न वस्तु नहीं होती। इसलिए एकाधिकारी फर्म का वस्तु के उत्पादन और बिक्री पर पूरा नियंत्रण होता है तथा उसको किसी विक्रेता से प्रतियोगिता का सामना करना नहीं पड़ता।

प्रश्न 25.
बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर:
अर्थशास्त्री बाजार का अर्थ किसी स्थान विशेष नहीं लगाते जहाँ वस्तुएँ खरीदी तथा बेची जाती हैं, बल्कि बाजार शब्द से उन सारे क्षेत्रों का बोध होता है, जिसमें क्रेता और विक्रेता का इस प्रकार का प्रतियोगितापूर्ण तथा स्वतंत्र सम्बन्ध होता है कि इस क्षेत्र में किसी वस्तु के मूल्य का ‘आसानी तथा शीघ्रता से समान होने की प्रवृत्ति पायी जाती है।

प्रश्न 26.
एकाधिकारिक प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर:
एकाधिकारिक प्रतियोगिता वह बाजार स्थिति है जिसमें वस्तु विशेष के अनेक विक्रेता होते हैं लेकिन प्रत्येक विक्रेता की वस्तु किसी भी अन्य विक्रेता की वस्तु से उपभोक्ता की दृष्टि में किसी-न-किसी प्रकार से भिन्न होती है।

प्रश्न 27.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आर्थिक क्रिया वह क्रिया है जिसका सम्बन्ध आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए सीमित साधनों के उपयोग से है। सभी आर्थिक क्रियाएँ अनिवार्य रूप से आय का सृजन नहीं करती हैं।

प्रश्न 28.
क्या उपयोगिता मापनीय है ?
उत्तर:
हाँ, उपयोगिता मापनीय है। इसका मापन उपभोग की संतुष्टि है। उदाहरणार्थ, एक प्यासे व्यक्ति को पहले ग्लास पानी की उपयोगिता अन्तिम ग्लास पानी की तुलना में अधिक होती है।

प्रश्न 29.
घटिया वस्तु के उदाहरण के साथ परिभाषित करें।
उत्तर:
घटिया वस्तुएँ वे हैं जिनकी माँग आय बढ़ने के साथ घट जाती है और आय घटने के साथ माँग बढ़ जाती है। घटिया वस्तुओं का आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। मोटा अनाज, मोटा कपड़ा आदि घटिया वस्तुओं के उदाहरण हैं।

प्रश्न 30.
आय प्रभाव क्या है ?
उत्तर:
मौद्रिक आय समान रहने पर वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से वास्तविक आय विपरीत दिशा में घटती या बढ़ती है। उदाहरण के लिए, कीमत में कमी से दी गई आय से अधिक मात्रा में वस्तु प्राप्त होती है। इसके विपरीत कीमत में वृद्धि से दी गई आय से कम मात्रा में वस्तु प्राप्त होती है। वास्तविक आय में इस परिवर्तन को आय प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 31.
प्रतिस्थापन प्रभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वस्तु की कीमत में परिवर्तन से इसके प्रतिस्थापन्न वस्तुओं के मुकाबले सस्ते या महँगे होने के कारण जो इसकी माँग में परिवर्तन आते हैं उसे प्रतिस्थापन प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 32.
समउत्पाद वक्र को समझावें।
उत्तर:
परिवर्तन साधन की एक अतिरिक्त इकाई उत्पादन के एक स्थिर साधन पर लगाने से कुल उत्पादन में जो वृद्धि होती है उसे सम उत्पाद कहा जाता है। सम उत्पाद वक्र धनात्मक होता है जो उत्पादन में वृद्धि को दर्शाता है।

प्रश्न 33.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति क्या है ?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग की अवधारणा से यह ज्ञात होता है कि लोग अपनी बढ़ी हुई आय का कितना भाग उपभोग पर व्यय करते हैं। यह कुल उपभोग में परिवर्तन तथा कुल आय में परिवर्तन का अनुपात है। इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-
\(\frac{\Delta \mathrm{C}}{\Delta y}\) यहाँ ΔC = उपभोग में परिवर्तन, Δy = आय में परिवर्तन

प्रश्न 34.
सरकारी बजट के महत्व की विवेचना करें।
उत्तर:
सरकारी बजट का महत्त्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट होता है-

  • आर्थिक विकास की गति को करना सरकार का महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए अतिरिक्त साधनों की आवश्यकता होती है। अतिरिक्त संसाधनों की व्यवस्था बजट के माध्यम से की जाती है।
  • सरकार को प्रशासन चलाने हेत अनेक प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा सामान्य सेवाओं की व्यवस्था करनी पड़ती है। इस पर भारी मात्रा में व्यय होता है, जिसकी व्यवस्था बजट द्वारा की जाती है।
  • आर्थिक पुनरुत्थान हेतु सरकार को अनेक राजकोषीय उपाय करने पड़ते हैं। जैसे-नये कर लगाना, सार्वजनिक एवं निजी निवेश बढ़ाना आदि। यह कार्य बजट में व्यवस्था कर की जाती है।
  • स्फीतिक एवं अवस्फीतिक दबाव से निपटने के लिए बजटीय उपायों का सहारा लेना पड़ता है।
  • यह धन और आय के वितरण में विषमता को कम करता है ताकि सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिल सके।

प्रश्न 35.
उपभोक्ता की बचत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उपभोक्ता की बचत की धारणा का श्रेय प्रो. ड्यूपिट को दिया गया है। परन्तु इसका वैज्ञानिक वर्णन प्रो० मार्शल ने किया है। इनके अनुसार, “देने को तैयार मूल्य में से वास्तव में दिये गये मूल्य को घटा देने पर जो शेष बचता है, वही उपभोक्ता की बचत कही जाती है।”

प्रश्न 36.
उपभोक्ता की बचत की मान्यताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
उपभोक्ता की बचत निम्न मान्यताओं पर आधारित है-

  • उपयोगिता मापनीय है।
  • वस्तु विशेष का स्वतंत्र महत्व होता है।
  • मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती है।
  • पूर्ण प्रतियोगिता एवं उपयोगिता ह्रास नियम का लागू होना।
  • स्थानापन्न वस्तुओं का अभाव पाया जाना।

प्रश्न 37.
व्यष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध विशिष्ट या व्यक्तिगत आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा से विशिष्ट आर्थिक इकाइयों या व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

अर्थशास्त्र की व्यष्टि शाखा में उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन, साम्य कीमत निर्धारण, एक वस्तु की माँग, एक वस्तु की पूर्ति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।

आर्थिक महामंदी से पूर्व अर्थशास्त्र के रूप में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही अध्ययन किया जाता था। व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत-सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 38.
व्यष्टि अर्थव्यवस्था की तीन विशेषताएँ बतलाइए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्या का अध्ययन किया जाता है।
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं के निदान में कीमत संयंत्र अर्थात् माँग एवं पूर्ति बलों की क्रिया निर्णायक होती हैं।
  • व्यष्टि अर्थशास्त्र में व्यक्ति एवं व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन होता है।

प्रश्न 39.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता स्पष्ट करें।
उत्तर:
व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की दो अलग-अलग शाखाएँ हैं। ये दोनों शाखाएँ परस्पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत निर्धारण व्यष्टि विश्लेषण के आधार पर किया जाता है और सामान्य कीमत का निर्धारण समष्टि विश्लेषण के द्वारा होता है। उद्योग में मजदूरी दर निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुद्रा है। सामान्य मजदूरी दर का निर्धारण समष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर शाखाएँ हैं।

प्रश्न 40.
व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें। अथवा, सूक्ष्म एवं वृहत अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नलिखित अंतर हैं-
व्यष्टि अर्थशास्त्र:

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।
  2. इसका विश्लेषण अपेक्षाकृत सरल होता है।
  3. इसका संबंध मूलत: कीमत विश्लेषण से है।
  4. इसके नियम मूलतः सीमान्त विश्लेषण पर आधारित होते हैं।

समष्टि अर्थशास्त्र:

  1. समष्टि अर्थशास्त्र के अंतर्गत सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का समग्र रूप से अध्ययन किया जाता है।
  2. इसका विश्लेषण बहुत ही कठिन होता है।
  3. इसका संबंध आय विश्लेषण से होता है।
  4. इसके नियम किसी एक पर आधारित न होकर अनेकों पर आधारित हैं।

प्रश्न 41.
समष्टि अर्थशास्त्र से आप क्या समझते हैं ? समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र का वर्णन करें। अथवा, समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध सामूहिक या समराष्ट्रीय आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में सामूहिक या समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है।

अर्थशास्त्र की समष्टि शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण, पूँजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, सरकारी व्यय, सरकारी बजट, विदेशी व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की इस शाखा का उदय आर्थिक महामंदी के बाद हुआ है। इस शाखा को आय एवं रोजगार सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 42.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्यायें क्या हैं ?
अथवा, एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं के नाम लिखें। ये समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ (Central problems of an economy)-

  • क्या उत्पन्न किया जाए ?
  • कैसे उत्पन्न किया जाए और
  • किसके लिये उत्पन्न किया जाए।

केन्द्रीय समस्याओं के उत्पन्न होने के कारण (Causes of arising of economic problems)-

  • मनुष्य की आवश्यकताओं का असीमित होना।
  • असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सीमित साधनों का होना।
  • सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोग होना।

Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय की गणना करने के लिए आय एवं व्यय प्रणाली की व्याख्या करें।
अथवा, राष्ट्रीय आय की गणना की कौन-सी विधियाँ हैं ? वर्णन करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय को मापने या गणना करने की निम्नांकित तीन विधियाँ हैं-

1. उत्पाद अथवा मूल्य वर्धित विधि- उत्पाद विधि में हम उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के वार्षिक मूल्य को गणना कर राष्ट्रीय आय की जानकारी प्राप्त करते हैं। लेकिन वस्तुओं और सेवाओं के रूप में राष्ट्रीय आय को माप करने में प्राय: दोहरी गणना की संभावना रहती है। उदाहरण के लिए, चीनी के मूल्य में गन्ने का मूल्य भी शामिल हैं। यदि हम इन दोनों के मूल्य को राष्ट्रीय आय में जोड़ देते हैं तो एक ही वस्तु को दुबारा गणना हो जाएगी। अतएव, यदि हम उत्पादन की दृष्टि से राष्ट्रीय आय की माप करते हैं, तो हमें देश में सरकार सहित सभी उद्यमियों द्वारा शुद्ध मूल्य वृद्धि के योग की जानकारी प्राप्त करनी होगी। राष्ट्रीय आय के मापने की इस विधि को मूल्य वर्धित विधि (Value added method) कहते हैं। यह विधि उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर उत्पादकों द्वारा उत्पादन में उनके योगदान अर्थात् किसी वस्तु के मूल्य वृद्धि की माप करता है तथा इनके योग को राष्ट्रीय आय की संज्ञा दी जाती है।

2. आय विधि- इस विधि के अनुसार देश के सभी नागरिकों और व्यावसायिक संस्थाओं के आय की गणना की जाती है तथा उनके शुद्ध आय के योगफल को राष्ट्रीय आय कहा जाता है।

3. व्यय विधि- यह विधि एक वर्ष के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए अंतिम व्यय की माप द्वारा राष्ट्रीय आय की जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय की विभिन्न धारणाओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की निम्नलिखित धारणाएँ हैं-

  1. कुल राष्ट्रीय उत्पाद- किसी देश के अंतर्गत एक वर्ष में जितनी वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन होता है, उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
  2. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद- कुल राष्ट्रीय उत्पाद में घिसावट का व्यय घटा देने पर जो शेष बचता है वही शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहलाता है।
  3. साधन लागत पर राष्ट्रीय आय- साधन लागत पर राष्ट्रीय आय का तात्पर्य उन सभी आयों के योग से है जो साधनों प्रदायक भूमि, पूँजी, श्रम और उद्यमी योग्यता के रूप में किए गए अपने अंशदान के लिए प्राप्त करते हैं।
  4. वैयक्तिक आय- वैयक्तिक आय कुल प्राप्त आय होती है। यह उन सभी आयों का योग होती है, जो किसी दिए हुए वर्ष के अंदर व्यक्तियों और परिवारों को वास्तविक रूप में प्राप्त होती है।
  5. व्यय योग्य आय- वैयक्तिक आय में से वैयक्तिक प्रत्यक्ष करों की राशि घटाने पर जो शेष बचता है वही व्यय योग्य आय कहलाता है।

प्रश्न 3.
उदासीनता वक्र की विशेषताएँ क्या है ? अथवा, तटस्थता वक्र की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
तटस्थता वक्र या उदासीनता वक्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. इसका ढाल ऋणात्मक होता है।
  2. यह मूल बिंदु के प्रति उन्नतोदर होता है।
  3. यह एक-दूसरे को कभी नहीं काटता है।
  4. इसका एक-दूसरे के समानांतर होना आवश्यक नहीं है।
  5. यह अपने पूर्ववर्ती तटस्थता वक्र संतुष्टि के ऊँचे स्तर का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रश्न 4.
निवेश गुणक क्या है ? उदाहरण के साथ वर्णन करें।
अथवा, निवेश गुणक क्या है ? निवेश गुणक की गणना का सूत्र दें।
उत्तर:
केन्स के अनुसार, “निवेश गुणक से ज्ञात होता है कि जब कुल निवेश में वृद्धि की जाएगी तो आय में जो वृद्धि होगी, बह निवेश में होने वाली वृद्धि से K गुणा अधिक होगी।”

डिल्लर्ड के अनुसार, “निवेश में की गई वृद्धि के परिणामस्वरूप आय में होने वाली वृद्धि अनुपात को निवेश गुणक कहा जाता है।”

निवेश गुणक का सूत्र- गुणक को निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
यहाँ K = गुणक
ΔI = निवेश में परिवर्तन
ΔY = आय में परिवर्तन

प्रश्न 5.
सम सीमांत उपयोगिता नियम क्या है ?
अथवा, सम सीमांत उपयोगिता नियम की सचित्र व्याख्या करें।
उत्तर:
सम सीमांत उपयोगिता नियम यह बतलाता है कि उपभोग के क्रम में उपभोक्ता को अधिकतम संतोष की प्राप्ति तभी संभव होती है जबकि वह अपनी सीमित आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार खर्च करे ताकि विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बराबर हो जाय। इस प्रकार जिस बिंदु पर विभिन्न वस्तुओं से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता बराबर हो जाती है वही बिंदु उपभोक्ता के संतुलन का बिंदु या अधिकतम संतोष का बिंदु कहा जाता है। मार्शल का कहना है “यदि किसी व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु हो जो विभिन्न प्रयोगों में लायी जा सके तो वह उस वस्तु को विभिन्न प्रयोगों में इस प्रकार बाँटेगा जिसमें उसकी सीमांत उपयोगिता सभी प्रयोगों में समान रहे।” यह नीचे के रेखाचित्र से ज्ञात हो जाता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 1
इस रेखाचित्र में XX’ रेखा X वस्तु को एवं YY’ रेखा Y वस्तु को बतलाती है। ये दोनों रेखाएँ एक-दूसरे को M बिंदु पर काटती है। यही बिंदु उपभोक्ता के संतुलन का बिंदु कहा जायेगा, क्योंकि यहीं पर दोनों वस्तुओं से प्राप्त सीमांत उपयोगिता एक-दूसरे के बराबर हो जाती है।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति क्या है ? इसके उद्देश्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
पॉल एंजिग ने मौद्रिक नीति को परिभाषित करते हुए कहा है कि “मौद्रिक नीति के अंतर्गत वे सभी मौद्रिक नियम एवं उपाय आते हैं, जिनका उद्देश्य मौद्रिक व्यवस्था को प्रभावित करना है।”

मौद्रिक नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • इस नीति के अनुसार मौद्रिक अधिकारियों को मुद्रा की मात्रा को तटस्थ यानि स्थिर रखना चाहिए।
  • इसका दूसरा उद्देश्य मूल्य तल को स्थायी बनाना है।
  • तीसरा उद्देश्य विनिमय दर को स्थिरता प्रदान करना है।
  • देश के साधनों का अधिकतम उपयोग करना है।
  • इसका प्रयोग इस प्रकार होना चाहिए जिससे देश के आर्थिक साधनों को पूर्ण रोजगार प्रदान किया जा सके।

प्रश्न 7.
चित्र की सहायता से कुल लागत, कुल स्थिर लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत में सम्बन्ध बतायें।
उत्तर:
किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने के लिए उत्पादक को जितने कुल व्यय करने पड़ते हैं, उनके जोड़ को कुल लागत कहते हैं।

कुल स्थिर लागत उत्पादन के आकार से अप्रभावित रहती है। उत्पादन स्तर शून्य होने पर भी उत्पादक को स्थिर लागतों का भुगतान वहन करना पड़ता है यही कारण है कि अल्पकाल में कुल स्थिर लागत रेखा (total fixed cost line)X-अक्ष के समानान्तर एक पड़ी रेखा के रूप में होती है।

परिवर्तनशील लागत का आकार उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे उत्पादन के आकार में वृद्धि होती जाती है वैसे-वैसे परिवर्तनशील लागतों में भी वृद्धि होती जाती है। शून्य उत्पादन पर परिवर्तनशील लागत शून्य होती है यही कारण है कि TVC रेखा का आरम्भिक बिन्दु मूल बिन्दु होता है।

अल्पकाल में,
कुल लागत (TC) = कुल स्थिर लागत (TFC) + कुल परिवर्तनशील लागत (TVC)
Tq = Total cost. Rq = Total variable cost
Kq = TR = total fixed cost
Tq = Rq+ TR
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 2
इस चित्र में TFC एवं TVC रेखाओं को जोड़कर कुल लागत रेखा प्राप्त की गई है। कुल लागत की रेखा का आरम्भिक बिन्दु Y-अक्ष का वह बिन्दु है (चित्र में S) जहाँ से TFC रेखा आरंभ होती है क्योंकि शून्य उत्पादन स्तर पर TVC शून्य होने के कारण TC सदैव TFC के बराबर ही होगी। TC और TVC रेखायें परस्पर समानान्तर रूप से आगे बढ़ती हैं क्योंकि TC और TVC का अन्तर TFC को बताता है और TFC सदैव स्थिर होती है।

प्रश्न 8.
मौद्रिक नीति के उपकरणों का उल्लेख करें।
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के निम्नलिखित उपकरण हैं-
1. खुले बाजार की क्रियाएँ- रिजर्व बैंक आधार मुद्रा के स्टॉक को बढ़ाने तथा घटाने के लिए सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है जिसे खुले बाजार की क्रियाएँ कहते हैं।

2. बैंक दर- वह वह जिस पर केंद्रीय बैंक व्यावसायिक बैंक को अग्रिम प्रदान करता है या ऋण प्रदान करता है, उसे बैंक दर कहा जाता है।

3. परिवर्तित आरक्षित आवश्यकताएँ- न्यूनतम आरक्षित जमा अनुपात (CCR) अथवा संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) की ऊँची या नीची दर से केंद्रीय बैंक की आधार मुद्रा प्रभावित है। इनकी दर घटाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है। सामान्यतः भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा सृजन के उपकरणों का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा भंडार को स्थिर करने के लिए करता है। इनके माध्यम से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था विदेशी प्रतिकूल प्रभावों से बचाकर स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 9.
स्थिर लागत क्या है ? स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
स्थिर लागत वह लागत है जो उत्पादन के स्थिर साधनों पर व्यय की जाती है। इसमें कभी भी परिवर्तन नहीं आता। स्थिर लागत को अनपरक लागत भी कहा जाता है।

स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है-

स्थिर लागत:

  1. यह परिवर्तनशील साधनों पर व्यय की जाती है।
  2. इसकी राशि स्थिर रहती है। यह उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन से प्रभावित नहीं होती है।
  3. यह केवल अल्पकाल तक सीमित होती है।
  4. शून्य स्तर पर कुल लागत कुल स्थिर लागत होती है।
  5. भवन का किराया, मशीनों में लगी पूँजी का ब्याज स्थिर लागत का उदाहरण है।
  6. कुल स्थिर लागत वक्र x अक्ष के समानान्तर होता है।

परिवर्तनशील लागत:

  1. यह स्थिर साधनों पर व्यय की जाती है।
  2. इसका उत्पादन की मात्रा से प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।
  3. दीर्घकाल में सभी लागतें परिवर्तनशील होती है।
  4. शून्य उत्पादन स्तर पर यह शून्य होता है।
  5. कच्चे माल पर व्यय, ईंधन लागत आदि परिवर्तनशील लागत के उदाहरण है।
  6. कुल परिवर्तनशील लागत वक्र नीचे से ऊपर की ओर दाईं ओर बढ़ता है।

प्रश्न 10.
माँग के नियम की व्याख्या करें। उसकी मान्यताओं को लिखें।
उत्तर:
माँग का नियम यह बतलाता है कि मूल्य में वृद्धि से माँग में कमी तथा मूल्य में कमी से माँग में वृद्धि होती है। इस प्रकार माँग का नियम मूल्य तथा माँग के बीच विपरीतार्थक सम्बन्ध को बतलाता है। निम्न उदाहरण से यह ज्ञात हो जाता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 3

इस उदाहरण से यह स्पष्ट है कि मूल्य में वृद्धि होती गई, जिसके कारण माँग घटते-घटते 10 हो गई। लेकिन यदि हम नीचे से ऊपर की ओर देखें तो पाते हैं कि मूल्य में कमी होती गई, जिसके कारण माँग बढ़ते-बढ़ते 50 हो गई। इस उदाहरण से माँग का नियम स्पष्ट हो जाता है।

माँग के नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है-

  • उपभोक्ता की आय में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  • उसकी आदत, रुचि तथा फैशन नहीं बदलना चाहिए।
  • किसी नई स्थानापन्न वस्तु का निर्माण नहीं होना चाहिए।
  • धन के वितरण में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  • मौसम में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।
  • स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत नहीं बदलना चाहिए।
  • जनसंख्या में परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 11.
विदेशी विनिमय दर से आप क्या समझते हैं ? यह कैसे निर्धारित होता है ?
उत्तर:
विदेशी विनिमय दर वह दर है जिस पर एक देश की एक मुद्रा इकाई का दूसरे देश की मुद्रा में विनिमय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विदेशी विनिमय दर यह बताती है कि किसी देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले में दूसरे देश की मुद्रा की कितनी इकाइयाँ मिल सकती हैं। इस प्रकार विनिमय दर घरेलू मुद्रा के रूप में दी जाने वाली वह कीमत है जो विदेशी मुद्रा की एक इकाई के बदले दी जाती है।

विदेशी विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति के साम्य बिन्दु पर होता है। विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति का साम्य बिन्दु वह होता है जहाँ मुद्रा माँग वक्र और पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। साम्य बिन्दु पर विनिमय दर को साम्य विनिमय दर और पूर्ति की मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। इसे निम्न चित्र में दिखाया गया है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 4

प्रश्न 12.
माँग की लोच क्या है ? माँग की लोच को प्रभावित करने वाले पाँच तत्वों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जिस धारणा के द्वारा मूल्य एवं माँग के बीच आनुपातिक सम्बन्ध या गणितीय सम्बन्ध का वर्णन किया जाता है, उसे ही माँग की लोच कहते हैं। प्रो० बेन्हम का कहना है कि “माँग की लोच की धारणा माँग की मात्रा पर पड़ने वाले मूल्य के मामूली परिवर्तन के प्रभाव से सम्बन्धित होती है।

माँग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. वस्तु की प्रकृति- अनिवार्य वस्तु की माँग की लोच बेलोचदार, आराम सम्बन्धी वस्तुओं की माँग की लोच लोचदार और विलासिता सम्बन्धी वस्तुओं की माँग की लोच अधिक लोचदार होती है।
  2. वस्तुओं के विविध प्रयोग- जिन वस्तुओं का विविध प्रयोग होता है उसकी माँग की लोच लोचदार होती है।
  3. पूरक वस्तुओं- पूरक वस्तुओं की माँग की लोच प्रायः बेलोचदार होती है।
  4. स्थानापन्न वस्तुएँ- स्थानापन्न वस्तुओं की माँग की लोच लोचदार होती है।
  5. वस्तुओं का मूल्य स्तर- वैसी वस्तुएँ जिसका मूल्य अधिक होता है, की माँग बेलोचदार और कम मूल्य की वस्तुओं की माँग लोचदार होती है।

प्रश्न 13.
(i) यदि गुणक (K) का मूल्य 4 है तब MPC तथा MPS का मूल्य क्या होगा?
(ii) जब सीमांत बचत प्रवृत्ति MPS = 0.2 है तब सीमांत उपभोग प्रवृत्ति MPC क्या होगा?
(iii) यदि MPS = 0.5 है तब 200 रु० की आय बढ़ाने के लिए निवेश में कितनी वृद्धि की आवश्यकता होगी।
उत्तर:
(i) K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
मूल्यों का प्रतिस्थापन करने से,
4 = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\); MPS = \(\frac{1}{4}\) = 0.25
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.25 = 0.75
(ii) MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2
MPC = 0.8
(iii) K × Δq = Δy

मूल्यों का प्रतिस्थापन करने से K = \(\frac{1}{0.5}\) = 2
इसलिए, 2 × ΔI = 2,000 करोड़ रु०
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 5

प्रश्न 14.
माँग की लोच को मापने की कुल व्यय विधि को समझाइए।
उत्तर:
इस विधि के अंतर्गत एक उपभोक्ता द्वारा वस्तु पर किए गए कुल व्यय की सहायता से माँग की लोच को मापा जाता है। इस विधि में केवल तीन प्रकार की माँग की लोच का अनुमान लगाया जा सकता है-

(i) इकाई से कम लोचदार (Inelastic Demand) कीमत में कमी से परिवार द्वारा वस्तु पर कुल खर्च कम हो जाता है या कीमत में वृद्धि कुल व्यय को बढ़ा देती है तो माँग इकाई से कम लोचदार होगी।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 6

(ii) इकाई के बराबर लोचदार (Unitary Elastic)- जब कीमत में कमी या वृद्धि के कारण कुल व्यय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता तो माँग इकाई के बराबर लोचदार होगी।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 7

(iii) इकाई से अधिक लोचदार (Elastic Demand)- जब कीमत में कमी से कुल व्यय बढ़ता है या कीमत में वृद्धि से कुल व्यय घटता है तो माँग इकाई से अधिक लोचदार होगी।
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 8

नीचे तालिका में माँग की कीमत लोच की तीनों स्थितियाँ दिखाई गई हैं-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 9

माँग की कीमत लोच की उपर्युक्त तीन प्रमुख श्रेणियों को निम्न चित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 10

प्रश्न 15.
माँग की लोच को मापने की प्रतिशत विधि क्या है ?
उत्तर:
माँग की लोच मापने की प्रतिशत या आनुपातिक विधि का प्रतिपादन फ्लक्स ने किया। इस विधि के अनुसार माँग की लोच का अनुमान लगाने के लिए माँग में होने वाले आनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में होने वाले आनुपातिक या प्रतिशत परिवर्तन से भाग दिया जाता है। माँग की लोच को निम्न सूत्र द्वारा निकाला जाता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 11

प्रश्न 16.
केन्द्रीय बैंक के किन्हीं तीन गुणात्मक साख-नियंत्रण तकनीक का वर्णन करें।
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक वह बैंक है जिसके पास नोट जारी करने का एकाधिकार प्राप्त है तथा जो मौद्रिक एवं बैंकिंग गतिविधियों तथा मुद्रा की पूर्ति तथा साख की मात्रा को नियंत्रित और निर्देशित करता है।

वर्तमान में केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य साख की मात्रा पर नियंत्रण रखकर देश के सामान्य मूल्य स्तर में स्थायित्व कायम करना है। केन्द्रीय बैंक के पास साख नियंत्रण के कई उपाय हैं, जिन्हें परिमाणात्मक तथा गुणात्मक उपाय कहा जाता है। गुणात्मक उपाय का प्रयोग अधिकाधिक विकासशील देशों में किया जा रहा है। इसे ही चयनात्मक साख नियंत्रण भी कहते हैं। गुणात्मक साख नियंत्रण तक कार्य निम्नलिखित तकनीक द्वारा किया जाता है-

1. प्रतिभूति ऋणों पर उधार प्रतिभूति अंतर लागू करना- उधार प्रतिभूति अंतर ऋण की राशि और ऋणकर्ता द्वारा प्रस्तुत प्रतिभूतियों के बाजार मूल्य का अंतर होता है। इस तकनीक से सट्टेबाजी पर अंकुश लगता है, जिससे बाजार में प्रतिभूतियों की कीमतों के अनावश्यक उतार-चढ़ाव . कम हो जाते हैं।

2. नैतिक प्रबोधन- नैतिक प्रबोधन विचार- विमर्श, पत्रों, अभिभाषणों तथा बैंकों के संकेतात्मक संदेशों के माध्यम से दिया जाता है। इसके द्वारा केन्द्रीय बैंक अन्य बैंकों को अपनी नीतियों का अनुसरण करने का उपदेश देता है तथा दबाव भी डालता है।

3. चयनात्मक साख नियंत्रण- इसके माध्यम से वरीयता वाले क्षेत्रों को अधिक साख सुविधा उपलब्ध करायी जाती है तथा दूसरे और जरूरी कार्यों के लिए साख देने पर रोक भी लगायी जाती है।

प्रश्न 17.
अर्थव्यवस्था के प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र से आप क्या समझते हैं ?
अथवा, उत्पादन इकाइयों के प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में वर्गीकरण के आधार की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)- यह वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक साधनों, जैसे-भूमि जल, वन, खनन आदि साधनों का शोषण करके उत्पादन पैदा करता है, इसमें सभी कृषि तथा सम्बन्धित क्रियाएँ, जैसे-मछली पालन, वन तथा खनन का उत्पादन शामिल होता है।

गौण अथवा द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)- इस क्षेत्र को निर्माण क्षेत्र भी कहते हैं। यह एक प्रकार की वस्तु को मनुष्य, मशीन तथा पदार्थों द्वारा वस्तु में बदलता है। उदाहरण के तौर कपास से कपड़ा तथा गन्ने से चीनी आदि।

तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector)- इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहते हैं जो प्राथमिक तथा गौण क्षेत्र को सेवाएँ प्रदान करता है। इसमें बैंक, बीमा, यातायात, संचार, व्यापार तथा वाणिज्य आदि शामिल होते हैं।

प्रश्न 18.
उत्पादन संभावना वक्र क्या है ? यह मूल बिन्दु की ओर नतोदर क्यों होता है ?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधनों के अंतर्गत दो भिन्न वस्तुओं के उत्पादन की संभावनाओं को प्रदर्शित करने वाले वक्र को उत्पादन संभावना वक्र के नाम से जाना जाता है।

उत्पादन संभावना वक्र मूल बिन्दु की ओर नतोदर होता है, जिसका कारण बढ़ती हुई सीमांत अवसर लागत है। बढ़ती Y हुई सीमान्त अवसर लागत PP वक्र का आकार निर्धारित करती है। सीमांत अवसर लागत के बढ़ने का कारण उत्पादन में ह्रासमान प्रतिफल नियम का लागू होना और संसाधनों का अधिक उपजाऊ उपयोगों से हटकर कम उपजाऊ उपयोगों में स्थानांतरण किया जाता है। इसके कारणों को इस प्रकार देखा जा सकता है-
Bihar Board 12th Economics Important Questions Long Answer Type Part 1, 12
(i) ह्रास प्रतिमान नियम पर PP वक्र आधारित है। इसके । अनुसार जब किसी वस्तु का उत्पादन बढ़ाया जाता है तो इसे उत्पादित करने वाले साधनों की सीमान्त उत्पादकता कम होती जाती है। इस कारण वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए साधन की अधिक इकाइयाँ जुटानी पड़ती है। अत: यह कहा जा सकता है कि एक वस्तु का उत्पादन बढ़ाने के लिए दूसरे वस्तु की अधिक इकाइयों का त्याग करना पड़ता है।

(ii) जब एक विशेष वस्तु के उत्पादन में लगे निपुण साधनों को हटाकर दूसरी वस्तु के उत्पादन में स्थानांतरित किया जाता है जहाँ के लिए वे इतने योग्य नहीं होते तब भी सीमान्त अवसर लागत बढ़ जाती है।

इन दोनों कारणों के चलते PP वक्र का आकार सीमान्त अवसर लागत की स्थिति में उन्नतोदर होता है, जबकि स्थिर सीमान्त अवसर लागत की दशा में PP वक्र का आकार दाहिनी ओर ढालू होता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि साधनों की उपलब्ध सीमा में एक वस्तु के उत्पादन में वृद्धि होने से दूसरी वस्तु के उत्पादन में कमी होती है।

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करें। इसके प्रमुख तत्वों का वर्णन करें। अथवा, संवेगात्मक बुद्धि से आप क्या समझते हैं ? इसके विभिन्न तत्त्वों का उल्लेख करें। .
उत्तर:
बुद्धि के क्षेत्र में अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपना महत्त्वपूर्ण अध्ययन किया और सिद्धान्तों की स्थापना की है। इस कड़ी में गोलमैन द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त संवेगात्मक बुद्धि भी है। यह एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है जिसकी रचना गोलमैन ने 1995 में की है। संवेगात्मक बुद्धि (Emotional Quotient) बुद्धि-लब्धि (Intelligence Quotient) दोनों में काफी भिन्नता है। संवेगात्पक बुद्धि को संवेगात्मक क्षेत्र में समायोजन कहा जा सकता है, जो जीवन में सफलता पाने में बहुत अधिक सहायक होता है। संवेगात्मक बुद्धि का संबंध वास्तव में व्यक्ति के कुछ ऐसे शीलगुणों से होता है जो संवेग की अवस्था में अभियोजन में सहायक होते हैं। इसके माध्यम से उसे अपने संवेगों की पहचान होती है तथा दूसरों के संवेगों को सही ढंग से समझते हुए सही ढंग से अभियोजन का प्रयास करता है। इसके माध्यम से वह लोगों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करता है।

संवेगात्मक बुद्धि (E. Q.) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सैलोवी तथा मायर (Salovey and Mayer) ने 1990 में किया था। उन्होंने इसके पाँच प्रमुख तत्त्वों की चर्चा की है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-

  1. अपने संवेगों को पहचानना
  2. अपने संवेगों को प्रबंधन करना
  3. अपने आप को अभिप्रेरित करना
  4. दूसरों के संवेगों की पहचान करना
  5. अन्तर्वैयक्तिक संबंधों को संतुलित करना।

व्यक्ति को सामाजिक अभियोजन हेतु अपने संवेगों पर नियंत्रण की आवश्यकता होती है। संवेगों का प्रबंध जितना अधिक संतुलित होगा सामाजिक अभियोजन भी उतना ही सफल होगा। वास्तव में जीवन में सफलता पाने हेतु संवेगों का प्रबंधन आवश्यक होता है। व्यक्ति के अंतर्गत कई प्रकार के शीलगुण निहित होते हैं। इन्हीं शीलगुणों का उपयोग करके संवेगात्मक परिस्थितियों में अभियोजन करता है। सैलोवी तथा मायर ने संवेगात्मक बुद्धि के जिन पाँच तत्त्वों की चर्चा की है उसी के आधार पर किसी की संवेगात्मक बुद्धि की पहचान होती है। हालांकि बाद में आशावादिता को भी संवेगात्मक बुद्धि का एक तत्त्व माना गया है।

संवेगात्मक बुद्धि के मापन की दिशा में भी महत्त्वपूर्ण शोध हुए हैं और उसके आधार पर कई प्रकार के जाँच को प्रकाश में लाया है। इस दिशा में बार-आन के कनाडा के ट्रेन्ट विश्वविद्यालय में एक आविष्कारिका का निर्माण किया जिसे बार-आन संवेगात्मक लब्धि आविष्कारिका (Bar-on emotional quotient inventory) के नाम से जाना जाता है। यह आविष्कारिका बहुत अधिक लोकप्रिय हो चुकी है। संवेगात्मक बुद्धि मापन की दिशा में भारत में भी शोध कार्य जारी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. ए. के. चड्ढा ने भी एक टेस्ट का निर्माण किया है, जिसे सांवेगिक बुद्धि परीक्षण के नाम से जानते हैं। भारतीय संदर्भ में उनका यह जाँच काफी लोकप्रिय है।

चूँकि यह एक नया सिद्धान्त है, इस दिशा में शोध कार्य जारी है फिर भी इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि व्यक्ति को सिर्फ बुद्धि-लब्धि (I.Q.) के आधार पर ही सफलता नहीं मिलती बल्कि इसके लिए संवेगात्मक बुद्धि भी आवश्यक है।

प्रश्न 2.
बुद्धि में आनुवंशिकता बनाम पर्यावरण विवाद का वर्णन करें।
उत्तर:
आनुवंशिक एवं पर्यावरणीय दोनों ही प्रकार के प्रभाव होते हैं। अतः इस अध्ययन के अंतर्गत बुद्धि एवं संस्कृति के संदर्भ में चर्चा करेंगे। बुद्धि का अर्थ एवं अवधारणा समझ लेने के पश्चात् यह समझना उचित होगा कि बुद्धि का संस्कृति से क्या तारतम्य है एवं बुद्धि व सांस्कृतिक पर्यावरण में दोनों की क्या भूमिकाएँ हैं ?

विकास की ओर अग्रसर होता है एवं आस-पास के पर्यावरण से संयोजन करता है। बुद्धि की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि वह पर्यावरण के अनुकूलन में सहायक होती है अर्थात् व्यक्ति जिस पर्यावरण में निवास करता है अथवा उससे भिन्न जिस पर्यावरण की ओर उन्मुख होता है तब बुद्धि ही उसको भिन्न पर्यावरण के अनुकूल बनाती है या यूँ कह सकते है कि व्यक्ति का सांस्कृतिक पर्यावरण बुद्धि के विकसित होने में एक संदर्भ प्रदान करता है।

उदाहरण के लिए वे समाज जिनमें तकनीकी विकास को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है, उनमें तर्कना एवं निर्णयन के आधार पर निजी उपलब्धियों का परिमार्जन होता है अर्थात् उसे बुद्धि समझा जाता है जबकि वे समाज जिनमें सामाजिक अन्तर्वैयक्तिक संबंधों का निर्माण करने वाले तत्वों का संयोजन होता है उनमें सामाजिक एवं सांवेगिक (Social and emotional) कौशलों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि संस्कृति के अनुरूप ही बुद्धि का अनुकूलन हो जाता है।

प्रश्न 3.
सिगमंड फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना किस तरह से की है? अथवा, फ्रायड ने व्यक्तित्व की संरचना की व्याख्या कैसे की है?
उत्तर:
फ्रायड के सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्त्व तीन हैं-इदम् या इड, अहं और पराहम्। ये तत्त्व अचेतन में ऊर्जा के रूप में होते हैं और इनके बारे में लोगों द्वारा किए गए व्यवहार के तरीकों से अनुमान लगाया जा सकता है। इड, अहं और परामहम् संप्रत्यय है न कि वास्तविक भौतिक संरचनाएँ।
Bihar Board 12th Psychology Important Questions Long Answer Type Part 3 1

इड- यह व्यक्ति की मूल प्रवृत्तिक ऊर्जा का स्रोत होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। यह सुखेप्सासिद्धांत पर कार्य करता है जिसका यह अभिग्रह होता है कि लोग सुख की तलाश करते हैं और कष्ट का परिहार करते हैं। फ्रायड के अनुसार मनुष्य की अधिकांश मूलप्रवृतिक ऊर्जा कामुक होती है और शेष ऊर्जा आक्रामक होती है। इड को नैतिक मूल्यों, समाज और दूसरे लोगों की कोई परवाह नहीं होती है।

अहं-इसका विकास इड से होता है और यह व्यक्ति की मूलप्रवृत्तिक आवश्यकताओं को संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। व्यक्तित्व की यह संरचना वास्तविकता सिद्धांत संचारित होती है और प्राय: इड को व्यवहार करने के उपयुक्त तरीकों की तरफ निर्दिष्ट करता है। उदाहरण के लिए एक बालक का इड जो आइसक्रीम खाना चाहता है उससे कहता है कि आइसक्रीम झटक कर खा ले। उसका अहं उससे कहता कि दुकानदार से पूछे बिना यदि आइसक्रीम लेकर वह खा लेता है तो वह दंड का भागी हो सकता है वास्तविकता सिद्धांत पर कार्य करते हुए बालक जानता है कि अनुमति लेने के बाद ही आइसक्रीम खाने की इच्छा को संतुष्ट करना सर्वाधिक उपयुक्त होगा। इस प्रकार इड की माँग आवस्तविक और सुखेप्सा-सिद्धांत से संचालित होती है, अहं धैर्यवान, तर्कसंगत तथा वास्तविकता सिद्धांत से संचालित होता है।

पराहम्-पराहम् को समझने का और इसकी विशेषता बताने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि इसको मानसिक प्रकार्यों की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाए। पराहम्, इड और अहं बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं। समाजीकरण की प्रक्रिया में पैतृक प्राधिकार के आंतरिकीकरण द्वारा पराहम् इड को नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई बालक आइसक्रीम देखकर उसे खाना चाहता है, तो वह इसके लिए अपनी माँ से पूछता है। उसका पराहम् संकेत देता है कि उसका यह व्यवहार नैतिक दृष्टि से सही है। इस तरह के व्यवहार के माध्यम से आइसक्रीम को प्राप्त करने पर बालक में कोई अपराध-बोध, भय अथवा दुश्चिता नहीं होगी।

इस प्रकार व्यक्ति के प्रकार्यों के रूप में फ्रायड का विचार था कि मनुष्य का अचेतन तीन प्रतिस्पर्धा शक्तियों अथवा ऊर्जाओं से निर्मित हुआ है। कुछ लोगों में इड पराहम् से अधिक प्रबल होता है तो कुछ अन्य लोगों में पराहम् इड से अधिक प्रबल होता है। इड, अहं और पराहम् की सापेक्ष शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को स्थिरता का निर्धारण करती है। फ्रायड के अनुसार इड की दो प्रकार की मूलप्रवृत्तिक शक्तियों से ऊर्जा प्राप्त होती है जिन्हें जीवन-प्रवृत्ति एवं मुमूर्षा या मृत्यु-प्रवृत्ति के नाम से जाना जाता है। उन्होंने मृत्यु-प्रवृत्ति (अथवा काम) को केंद्र में रखते हुए अधिक महत्त्व दिया है। मूलप्रवृत्तिक जीवन-शक्ति जो इड को ऊर्जा प्रदान करती है कामशक्ति लिबिडो कहलाती है। लिबिडो सुखेप्सा-सिद्धांत के आधार पर कार्य करता है और तात्कालिक संतुष्टि चाहता है।

प्रश्न 4:
स्वास्थ्य को परिभाषित करें। व्यक्ति की शारीरिक तंदुरुस्ती को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
“स्वास्थ्य एक ऐसी तंदुरूस्ती या कुशल क्षेत्र की अवस्था होती है जिसमें दैहिक, सांस्कृतिक, मनोसामाजिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक गुण होते हैं न कि सिर्फ रोग की अनुपस्थिति सांस्कृतिक, मनोसामाजिक, आर्थिक तथा आध्यात्मिक गुण होते हैं न कि सिर्फ रोग की अनुपस्थिति पाई जाती है।” स्वास्थ्य में कई तरह के कारकों का एक समन्वय पाया जाता है तथा इसमें रोग की अनुपस्थिति होती है। जब व्यक्ति इस सभी कारकों से प्रभावित होते हुए अपने आपको एक संतुलित अवस्था में बनाए रखने में सक्षम होता है, तो उसका स्वास्थ्य उत्तम कहलाता है।

व्यक्ति की शारीरिक तंदरूस्ती को प्रभावित करने वाला प्रमख कारक निम्नलिखित हैं-
(i) संज्ञान संबंधित कारक (Factors related to cognition)-व्यक्ति किस तरह से अपने विभिन्न शारीरिक लक्षणों जैसे सर्दी लगना, डायरिया होना, उल्टी होना, चेचक आदि के प्रति सोचता है या किस तरह का विश्वास रखता है, से उसकी शारीरिक तंदुरुस्ती काफी प्रभावित होता है। यदि व्यक्ति यह सोचता है कि वह ज्यादा दही खा लिया है, इसलिए उसे इन्फ्लुएंजा हो गया है, तो वह डॉक्टर के पास नहीं जायेगा। परंतु यदि वह यह सोचता है कि उस इन्फ्लुएंजा का कारण उसका फेफड़ा में संक्रमण का होना है, तो वह डॉक्टर की मदद लेने के लिये तैयार हो जायेगा। इस तरह से रोग के बारे में उसे क्या जानकारी है तथा यह विश्वास कि यह किस तरह से उत्पन्न होता है, से बहुत हद तक व्यक्ति की शारीरिक तंदुरूस्ती प्रभावित होती है।

(ii) व्यवहार से संबंधित कारक (Factors related to behaviour)-मनोवैज्ञानिकों द्वारा यह स्थापित किया जा चुका है कि व्यक्ति जिस तरह का व्यवहार करता है तथा जिस तरह की जीवनशैली को वह अपनाता है, उससे उसका स्वास्थ्य काफी हद तक प्रभावित होता है। जैसे-कुछ लोग दिन भर में 10 कप चाय पीना आवश्यक समझते हैं, कुछ लोग 8-10 सिगरेट पीना अति आवश्यक समझते हैं, कुछ लोग स्वच्छंद होकर लैंगिक सहवास करते हैं, कुछ लोग विशेष तरह का भोजन एवं प्रतिदिन दैनिक व्यायाम करते हैं, कुछ लोग प्रतिदिन मांसाहारी भोजन करना अधिक पसंद करते हैं, आदि-आदि। ऐसे व्यवहारों का कुछ खास-खास शारीरिक रोगों जैसे चक्रीय हृदय रोग, कैंसर, एच० आई० वी० (HIV) / एड्स (AIDS) आदि से सीधा संबंध होता है। जैसे-नियमित व्यायाम करने वाले व्यक्ति को चक्रीय हृदय रोग होने की संभावना कम होती है। मनोविज्ञान की एक नई शाखा जिसमें व्यवहारों में परिवर्तन लाकर रोगों से होने वाले दबावों को कम करने का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है, का विकास हुआ है। इस शाखा को व्यवहारपरक औषधि की संज्ञा दी गई है।

(iii) सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Sovial and cultural factors)-कुछ सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक भी होते हैं जिनसे व्यक्ति की दैहिक अनुक्रियाएँ प्रभावित होती हैं और फिर उनसे शारीरिक तंदुरुस्ती प्रभावित होती है। जैसे-भारतीय सांस्कृतिक में चेचक को किसी विशेष देवी माता का प्रकोप समझकर उस देवी माता की पूजा-अर्चना करके इस रोग का उपचार करने की कोशिश की जाती है। ऐसा सामाजिक एवं सांस्कृतिक विश्वास पश्चिमी देशों में नहीं पाया जाता है। फलतः इस रोग के प्रति इस ढंग की प्रतिक्रिया नहीं की जाती है। इन दोनों तरह की अनुक्रियाओं या प्रतिक्रियाओं से व्यक्ति की शारीरिक तंदुरूस्ती प्रभावित होती है। देवी माता का प्रकोप मानकर उपचार करने में व्यक्ति के स्वास्थ्य को कुप्रभावित होने की संभावना अधिक होती है। उसी तरह से भारतीय समाज में महिलाओं को दिया गया मेडिकल राय या अन्य महिलाओं द्वारा दिया गया मेडिकल सुझाव पर कार्य देर से प्रारम्भ किया जाता है जिसके पीछे यह विश्वास होता है कि वे लोग या तो इतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं या फिर उनकी प्रकृति दु:ख दर्द सहने की ही होती है। स्पष्ट हुआ कि कई ऐसे कारक है जिनके व्यक्ति की शारीरिक तंदुरूस्ती प्रभावित होती है।

प्रश्न 5.
पूर्वाग्रह को नियंत्रित करने के लिए एक योजना का निर्माण करें।
उत्तर:
पूर्वाग्रह नियंत्रण की युक्तियाँ तब अधिक प्रभावी होगी जब उनका प्रयास होगा-
(a) पूर्वाग्रहों के अधिगम के अवसरों को कम करना।
(b) ऐसी अभिवृत्तियों को परिवर्तित करना।
(c) अंत:समूह पर आधारित संकुचित सामाजिक अनन्यता के महत्त्व को कम करना।
(d) पूर्वाग्रह के शिकार लोगों में स्वतः अधिक भविष्योक्ति की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करना।

इन लक्ष्यों को निम्न प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है-
(i) शिक्षा एवं सूचना के प्रसार के द्वारा विशिष्ट लक्ष्य समूह से संबद्ध रूढ़ धारणाओं को संशोधित करना एवं प्रबल अंत:समूह अभिनति की समस्या से निपटना।

(ii) अंत:समूह संपर्क को बढ़ाना प्रत्यक्ष संप्रेषण, समूहों के मध्य अविश्वास को दूर करने तथा बाह्य समूह के सकारात्मक गुणों को खोज करने का अवसर प्रदान करना है। हालांकि ये युक्तियाँ तभी सफल होती हैं, जब दो समूह प्रतियोगी संदर्भ के स्थान पर एक सहयोग संदर्भ में मिलते हैं।
समूहों के मध्य घनिष्ठ अंतःक्रिया एक-दूसरे को समझने या जानने में सहायता करती है। दोनों समूह शक्ति या प्रतिष्ठा में भिन्न नहीं होते हैं।

(iii) समूह अनन्यता की जगह व्यक्तिगत अनन्यता को विशिष्ट प्रदान करना अर्थात् दूसरे व्यक्ति के मूल्यांकन के आधार के रूप में समूह (अंतः एवं बाह्य दोनों ही समूह) के महत्त्व को बलहीन करना।

प्रश्न 6.
कार्ल रोजर्स की विचारधारा का वर्णन करें।
उत्तर:
काल रोजर्स की विचारधारा-
(i) मानव व्यवहार लक्ष्य निर्देशित (Goal directed) एवं लाभप्रद (Worthwhile) होता है।

(ii) मानव जो जन्मजात ही नेक प्रकृति के होते हैं, हमेशा ही आत्म-सिद्ध (Seif actualized) तथा अनुकूली (Adaptive) व्यवहार करते हैं।कार्ल रोजर्स के अनुसार, व्यक्तित्व का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू आत्म (Self) का विकास होता है जिसमें व्यक्ति को अपनी अनुभूतियों एवं अन्य मानसिक प्रक्रियाओं का ज्ञान होता है। आत्म-सम्मान का विकास शैशवावस्था में होता है जब शिशु की अनुभूतियों का एक अंश अधिक मूर्त (abstract) रूप प्राप्त करने लगता है और ‘मैं’ या ‘मुझको’ के रूप में धीरे-धीरे विशिष्ट होने लगता है। इसका परिणाम यह होता है कि शिशु धीरे-धीरे अपनी अस्मिता या पहचान से अवगत होने लगता है। फलतः उसमें अच्छे-बुरे का ज्ञान होने लगता है।

आत्म-संप्रत्यय से तात्पर्य व्यक्ति के उन सभी पहलुओं एवं अनुभूतियों से होता है कि जिनसे व्यक्ति अवगत होता है। आत्म-संप्रत्यय का निर्माण एक बार हो जाने से उसमें परिवर्तन नहीं होता है। आत्म-संप्रत्यय से संगत अनुभूतियों को व्यक्ति स्वीकार करता है और असंगत अनुभूतियों को वह अस्वीकार करता है।

रोजर्स का यह भी मत है कि प्रत्येक व्यक्ति का एक आदर्श आत्म भी होता है। आदर्श आत्म से तात्पर्य अपने बारे में विकसित की गई एक ऐसी छवि से होता है जिसे वह आदर्श मानता है। एक सामान्य व्यक्ति में वास्तविक आत्म तथा आदर्श आत्म में संगति होता है। इससे व्यक्ति में खुशी उत्पन्न होती है। परंतु जब व्यक्ति का वास्तविक आत्म तथा आदर्श आत्म में अंतर हो जाता है तो इससे असंतुष्टि तथा दुःख व्यक्ति में उत्पन्न होता है।

रोजर्स का यह मत है कि व्यक्ति आत्म-सिद्धि के माध्यम से अपने आत्म को अधिक-से-अधिक विकसित करने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति का आत्म विकसित होने के साथ-ही-साथ सामाजिक भी हो जाता है।

रोजर्स के अनुसार व्यक्तित्व विकास एक सतत् प्रक्रिया होता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति द्वारा अपना किया गया आत्म-मूल्यांकन तथा आत्म-सिद्धि की प्रक्रिया में प्रवीणता विकसित करना सम्मिलित होता है। इन्होंने आत्म-संप्रत्यय के विकास में सामाजिक प्रभावों की भूमिका को भी स्वीकार किया है। उनका मत है कि जब सामाजिक हालात धनात्मक या अनुकूल होते हैं, तो व्यक्ति का आत्म-संप्रत्यय तथा आत्म-सम्मान उच्च होता है। दूसरे तरफ, जब सामाजिक हालात प्रतिकूल होते हैं, व्यक्ति का आत्म-संप्रत्यय तथा आत्म-सम्मान दोनों ही कम हो जाते हैं। जिन व्यक्तियों का आत्म-संप्रत्यय तथा आत्म-सम्मान उच्च होता है, वे प्रायः खुले विचार के होते हैं जिनसे वे आत्म-सिद्धि की ओर तेजी से बढ़ते हैं।

रोजर्स के अनुसार व्यक्तित्व दो तरह की आवश्यकताओं द्वारा मूलतः प्रभावित होता है-स्वीकारात्मक श्रद्धा तथा आत्म-श्रद्धा। स्वीकारात्मक श्रद्धा से तात्पर्य दूसरों द्वारा स्वीकार किये जाने, दूसरों का स्नेह पाने एवं उनके द्वारा पसंद किये जाने की इच्छा से होती है। स्वीकारात्मक श्रद्धा की आवश्यकता दो तरह की होती है-शर्तपूर्ण स्वीकारात्मक श्रद्धा तथा शर्तरहित स्वीकारात्मक श्रद्धा। शर्तपूर्ण स्वीकारात्मक श्रद्धा में दूसरों का स्नेह, प्यार एवं अनुराग प्राप्त करने के लिए उनके द्वारा निश्चित किये गए मानदंडों के अनुरूप व्यक्ति को व्यवहार करना पड़ता है। रोजर्स ने इस तरह की श्रद्धा को व्यक्तित्व विकास के लिये उपयुक्त नहीं माना है। शर्तहीन स्वीकारात्मक श्रद्धा में दूसरों का स्नेह, प्यार एवं मान-सम्मान पाने के लिये कोई शर्त नहीं रखा जाता है। माता-पिता द्वारा बच्चों को दिया गया स्नेह एवं मान-सम्मान इसी श्रेणी का श्रद्धा होता है। ऐसे व्यक्ति अपनी क्षमताओं एवं प्रतिभाओं को सर्वोत्कृष्ट तरीके से अभिव्यक्त करने का पूरा-पूरा प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
आक्रामकता क्या है? आक्रामकता के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
आक्रामकता आधुनिक समाज की प्रमुख समस्या है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आक्रामकता एक ऐसा व्यवहार होता है जो दूसरों को शारीरिक रूप से या शाब्दिक रूप से हानि पहुँचाने के आशय से किया जाता है। ऐसी अभिव्यक्ति व्यक्ति अपने वास्तविक व्यवहार के माध्यम से अथवा फिर कटु वचनों या आलोचनाओं के माध्यम से करता है। इसकी अभिव्यक्ति दूसरों के प्रति शत्रुतापूर्ण भावनाओं द्वारा भी की जाती है।

आक्रामकता के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) सहज प्रवृत्ति-आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है) सहज (अंतर्जात) होती है। जैविक रूप से यह सहज प्रवृत्ति आत्मरक्षा हेतु हो सकती है।

(ii) शरीर क्रियात्मक तंत्र-शरीर-क्रियात्मक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामकता जनिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती हैं, शरीर-क्रियात्मक भाव प्रबोधन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्रायः आक्रमण के रूप में अभिव्यक्त हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आर्द्र मौसम में।

(iii) बाल-पोषण-किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्रायः उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वे बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा जिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते हैं। ऐसा संभवतः इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अप्रसन्न बना दे और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

(iv) कंठा-आक्रामण कुंठा की अभिव्यक्ति तथा परिणाम हो सकते हैं, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु जिसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यक्ति किसी लक्ष्य के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से वंचित रह सकता है। यह पाया गया है कि कुंठित स्थितियों में जो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों की अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो कुंठित नहीं होते। कुंठा के प्रभाव की जाँच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बच्चों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पर्दे (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप ये बच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन्हें खिलौने उपलब्ध थे, खेल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।

प्रश्न 8.
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रतिभाशाली बालकों की विशेषताएँ (Characteristics of Gifted Children)-प्रतिभाशाली बालकों की कुछ ऐसी विशेषताएँ होते हैं, जिससे कि उसे सामान्य बच्चों से अलग किया जा सकता है–

  • मानसिक गुण- मानसिक गुण प्रतिभाशाली बालकों की सबसे प्रमुख विशेषता है। इनमें सामान्य बालकों की उपेक्षा अधिक मानसिक योग्यता होती है। अनेक अध्ययनों के आधार पर देखा गया है कि प्रतिभाशाली बालकों का 1.Q. 140 या इससे अधिक होता है।
  • चिन्तन- प्रतिभाशाली बालक सामान्य बच्चों की अपेक्षा अधिक अमूर्त चिन्तन करते हैं। ये बच्चे सूक्ष्ममातिसूक्ष्म विषयों पर विचार कर सकते हैं तथा कठिन समस्याओं को समझने तथा उनका हल करने में अधिक कुशाग्र होते हैं।
  • शारीरिक गण-सामान्य बालकों की तुलना में प्रतिभाशाली बच्चे अधिक लम्बे तथा भारी बदन के होते हैं। ये जन्म के समय सामान्य बच्चों की अपेक्षा एक पौण्ड भारी तथा डेढ़ इंच लम्बे होते हैं।
  • सीखने की योग्यता- प्रतिभाशाली बालकों में सीखने की योग्यता सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होती है। अन्य बच्चों की अपेक्षा इनका भाषा विकास तीन माह पहले हो जाता है। फलतः इनका शब्दभण्डार बड़ा होता है। स्कूल जाने के पहले ही ये कुछ शब्दों को पढ़ना-लिखना सीख लेते हैं। ये कम समय में ही पाठ्य-पुस्तक विषयों को याद कर लेते हैं।
  • रूचि- प्रतिभाशाली बालकों की रूचि किसी एक ओर अधिक समय तक नहीं रहती है। वातावरण की सभी वस्तुओं का ज्ञान ये प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए उनका ध्यान बराबर विचलित होते रहते हैं।
  • सामाजिक गण- जो बालक प्रतिभाशाली होते हैं वे सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक सामाजिक होते हैं। ऐसे बालक खेलों में भी ज्यादा अभिरूचि लेते हैं। ऐसे बच्चों में नेतृत्व का गुण अधिक होता है।
  • उच्च वंश-परम्परा-प्रायः प्रतिभाशाली बालक उच्च वंश के होते हैं। इनके माता-पिता अधिक बुद्धिमान एवं शिक्षित होते हैं। या तो वे अच्छे पद पर होते हैं या बड़े व्यवसाय से सम्बन्धित होते हैं। परन्तु यह बात पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो गरीब परिवार के होते हुए भी प्रतिभाशाली हुए हैं।
  • समझने की क्षमता-प्रतिभाशाली बालक निर्देशन कम होने पर भी अधिक समझ लेते हैं और अपनी समझ-बूझ एवं पूर्व अनुभवों का लाभ उठाते हैं। अध्यापक को विषय समझाने में विशेष कठिनाई नहीं होती है।
  • ध्यान-प्रतिभाशाली बालकों का ध्यान विस्तार सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक होता है। ऐसे बच्चे किसी विषय में अपने ध्यान को अधिक समय तक केन्द्रित करने में समर्थ होते हैं। इनका ध्यान कम भंग होता है।
  • अन्य शीलगुण-प्रतिभाशाली बालक प्रायः ईमानदार, दयालु एवं परोपकारी होते हैं। परन्तु, इसके लिए उन्हें उचित निर्देशन मिलना आवश्यक है।

प्रश्न 9.
आक्रमण एवं हिंसा के कारण या निर्धारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
असामान्य मनोविज्ञान के अंतर्गत मनष्य के असामान्य व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इसमें आक्रमण एवं हिंसा की अवधारणा पर भी विचार किया जाता है। जब किसी लक्ष्य या वस्तु को प्राप्त करने के लिए हिंसा को अपनाया जाता है तो उसे आक्रमण कहा जताा है। आक्रमण के निम्नलिखित कारण हैं-

(i) सहज प्रवृत्ति-आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है) सहज (अंतर्जात) होती है। जैविक रूप से यह सहज प्रवृत्ति आत्मरक्षा हेतु हो सकती है।

(ii) शरीर क्रियात्मक तंत्र-शरीर-क्रियात्मक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामकता जनिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती हैं, शरीर-क्रियात्मक भाव प्रबोधन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्रायः आक्रमण के रूप में अभिव्यक्त हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आर्द्र मौसम में। ..

(iii) बाल-पोषण-किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्रायः उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वे बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा जिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते हैं। ऐसा संभवतः इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अप्रसन्न बना दे और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

(iv) कुंठा-आक्रामण कुंठा की अभिव्यक्ति तथा परिणाम हो सकते हैं, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु जिसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यक्ति किसी लक्ष्य के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से वंचित रह सकता है। यह पाया गया है कि कुठित स्थितियों में जो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों की अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो कुठित नहीं होते। कुंठा के प्रभाव की जाँच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बच्चों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पर्दे (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप ये बच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन्हें खिलौने उपलब्ध थे, खेल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।

प्रश्न 10.
मन के गत्यात्मक पक्षों की विवेचना करें। अथवा, फ्रायड के अनुसार मन के गत्यात्मक पहलू का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोविश्लेषण के जन्मदाता फ्रायड ने मन के गत्यात्मक पक्षों का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया है और बताया है कि उस पहलू के द्वारा ही मूल प्रवृत्तियों में उत्पन्न मानसिक संघर्ष दूर होते हैं। इस संबंध में ब्राउन ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा है कि “व्यक्तित्व के गत्यात्मक पहलू का अर्थ यह है जिसके द्वारा मूल प्रवृत्तियों में उत्पन्न संघर्षों का समाधान होता है।”

फ्रायड ने मन के गत्यात्मक के तीन पक्षों की चर्चा की है-
(i) इड (Id)-यह हमारे मन के गत्यात्मक पहलू का प्रथम भाग है। प्रारंभ में प्रत्येक बच्चा इड से ही प्रभावित होता है। जैसे-जैसे उम्र में वृद्धि होती है, वैसे-वैसे इगो तथा सुपर इगो का विकास क्रमशः होने लगता है। इड को न तो समय का ज्ञान रहता है और न वास्तविकता का। यही कारण है कि बच्चे अपनी उन इच्छाओं को भी पूरा करना चाहते हैं, जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता है। फ्रायड और उनके समर्थकों ने इड को मूल प्रवृत्तियों का भंडार माना है।

(ii) इगो (Ego)-इगो मन के गत्यात्मक पहलू का वह भाग है, जिसका संबंध वास्तविकता से होता है। फ्रायड ने इसे Self conscious intelligence कहा है। चूँकि इसे वास्तविकता का पूरा-पूरा ज्ञान रहता है, अत: इड और सुपर इगो के बीच संतुलन स्थापित करने का काम करता है। इगो तार्किक दोषों से वंचित रहता है। यह चेतन और अचेतन दोनों होता है। जीवन और वास्तविकता के बीच अभियोजन करने का काम इगो ही करता है। इसी के संतुलन पर हमारा व्यक्तित्व निर्भर करता है। इगो प्रत्येक काम के परिणाम को गंभीरतापूर्वक सोचता है और अनुकूल अवसर आने पर इड की इच्छाओं को संतुष्ट होने देता है। जो विचार इगो को मान्य नहीं होता वह अचेतन मन में दमित हो जाता है।

(iii) सुपर इगो (Super Ego)-सुपर इगो मन के गत्यात्मक का तीसरा और अंतिम भाग है। इसे आदर्शों की जननी कहा गया है। नाइस (Nice) के शब्दों में, “सुपर इगो व्यक्तित्व का वह भाग है, जिसे विवेक कहा जाता है। यह हमें सभ्य मानव की तरह व्यवहार करना सिखाता है। इस तरह यह इड की असंगत इच्छाओं की पूर्ति में बाधा डालता है।” सुपर इगो के कारण ही व्यक्ति में नैतिकता का जन्म होता है। हर हालत में इसका विकास सामाजिक परिवेश में होता है। यह मुख्यतः चेतन होता है। फलस्वरूप इसे वास्तविकता का पूरा-पूरा ज्ञान रहता है। अपने सभी नैतिक कार्यों को करने से व्यक्ति घबराता है और यदि किसी कारणवश इन कार्यों को कर डालता है तो उसे बाद में पश्चाताप करना पड़ता है।

प्रश्न 11.
युंग के व्यक्तित्व प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
युंग ने मानसिक और सामाजिक गुणों के आधार पर व्यक्तित्व का वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया है-
(i) अन्तःमुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality)-युंग ने अन्त:मुखी के अंतर्गत ऐसे व्यक्तित्व वाले लोगों को रखा है जो कल्पना और चिंतन में ज्यादा समय बर्बाद करते हैं। ये लोग एकांत जीवन जीना पसंद करते हैं। अन्त:मुखी व्यक्ति बहुत अधिक भावुक होते हैं तथा उनमें आलोचनाओं को सहने की शक्ति कम होती है। इनका जीवन बहुत ही नियमित होता है। किसी काम को काफी सोच समझ कर करते हैं। अन्तःमुखी व्यक्तित्व वाले जोखिम नहीं उठा सकते। संवेगों पर इनका नियंत्रण होता है। इन लोगों को नैतिकता का विशेष ख्याल होता है। अतः ऐसे व्यक्तित्व विश्वसनीय होते हैं। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले व्यक्ति दार्शनिक, चिंतक, कलाकार या कवि हो सकते हैं।

(ii) बर्हिमुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality)-इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले लोग व्यवहार कुशल होते हैं। ये अधिक लोगों के बीच घिरे रहना पसंद करते हैं। इनमें साहस और कुशलता अधिक देखी जाती है। बहिर्मुखी व्यक्ति कम भावुक होते हैं। ये हास्यप्रिय, हाजिर जवाब तथा अनिश्चित प्रकृति के होते हैं। एकांत में रहना ऐसे व्यक्तियों के लिए दुभर होता है। इनके दोस्ती की संख्या अधिक होती है। ये अधिक जोखिम भरे कार्य कर सकते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के लोगों में संवेगात्मक अस्थिरता भी देखी जाती है। बात-बात पर इन्हें क्रोधित होते देखा जाता है। इस प्रकार के व्यक्तित्व वाले अधिकांश नेता या समाज सुधारक होते हैं। युग के व्यक्तित्व विभाजन के अनुसार कुछ ही ऐसे व्यक्ति होते हैं जो पूर्णतः अन्तर्मुखी या बहिर्मुखी होते हैं। अधिकांश व्यक्तियों में अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी दोनों प्रकार के गुण पाए जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को उभयमुखी कहा जाता है।

प्रश्न 12.
असामान्य व्यवहार के मनोवैज्ञानिक कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
यदि व्यक्ति का मनोवैज्ञानिक विकास दोषपूर्ण होगा, तो उसके व्यवहार में असामान्यता की संभावना बहुत अधिक रहती है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति का व्यवहार

कुसमायोजित हो जाता है उसके व्यवहार दोषपूर्ण हो जाते हैं। असामान्य व्यवहार के मनोवैज्ञानिक कारण निम्नलिखित हैं-
(i) मातृवंचन (Maternal deprivation)-मातृवंचन असामान्य व्यवहार का एक बहुत बड़ा कारण है। ऐसा देखा जाता है कि जहाँ माताएँ शिशुओं को छोड़कर नौकरी या व्यवसाय करने के लिए चली जाती है, उन्हें उचित मात्रा में माता-पिता का स्नेह नहीं मिल पाता है। ऐसी अवस्था में शिशुओं का मनोवैज्ञानिक विकास अवरुद्ध हो जाता है, जो असामान्य व्यवहार को विकसित होने में सहायक होते हैं।

(ii) पारिवारिक प्रतिमान की विकृति (Pathogenic family pattern)-विकृत पारिवारिक दशाओं के कारण भी व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित दशाएँ आती हैं
(a) तिरस्कार,
(b) अति संरक्षण
(c) इच्छाओं की पूर्ति की अधिक छूट,
(d) दोषपूर्ण अनुशासन,
(e) अयथार्थ चाह। .

(iii) दोषपूर्ण पारिवारिक संरचना (Faulty family structure)-यदि पारिवारिक संरचना दोषपूर्ण होगी तो बच्चों में अनेक प्रकार के असामान्य व्यवहार के विकसित होने की संभावना बनी रहेगी। ऐसे परिवार में बच्चों की आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति उचित ढंग से नहीं हो पाती है और उनमें विकृतियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। अस्त-व्यस्त पारिवारिक वातावरण में बच्चों में तनाव उत्पन्न होता है।

(iv) प्रारंभिक जीवन के मानसिक आघात (Early psychic trauma)-यह भी असामान्य व्यवहारों को उत्पन्न करने में सहायक होता है। यदि बच्चों के प्रारंभिक जीवन में कोई तीव्र मानसिक आघात लगता है, तो उसका प्रभाव व्यक्ति के पूरे जीवन पर पड़ता है और व्यक्ति असामान्य हो जाता है। . (v) विकृत अन्तःवैयक्तिक संबंध (Faulty interpersonal relation)-असामान्य व्यवहारों के विकसित होने में एक मनोवैज्ञानिक कारक विकृत अन्त:वैयक्तिक संबंध भी है। यदि किसी कारणवश परस्पर संबंधित व्यक्तियों से आपसी संबंध विकृत हो जाते हैं या तीव्र मतभेद हो जाते हैं तो उन व्यक्तियों में अत्यधिक तनाव, असंतोष, चिंता आदि विकसित हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति का व्यवहार कुसमायोजित हो जाता है।

प्रश्न 13.
मनोगत्यात्मक चिकित्सा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोगत्यात्मक चिकित्सा का प्रतिपादन सिगमंड फ्रायड द्वारा किया गया। मनोगत्यात्मक चिकित्सा की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन निम्नलिखित है-
1. मनोगत्यात्मक चिकित्सा ने मानस की संरचना, मानस के विभिन्न घटकों के मध्य गतिकी और मनोवैज्ञानिक कष्ट के स्रोतों का संप्रत्ययीकरण किया है।

2. यह उपागम अत: मनोद्वंद्व का मनोवैज्ञानिक विकारों का मुख्य कारण समझता है। अतः, उपचार में पहला चरण उसी अन्तःद्वन्द्व को बाहर निकालना है।

3. मनोविश्लेषण ने अंत:द्वंद्व को बाहर निकालने के लिए दो महत्त्वपूर्ण विधियों मुक्त साहचर्य विधि तथा स्वप्न व्याख्या विधि का आविष्कार किया। मुक्त साहचर्य विधि सेवार्थी की समस्याओं को समझने की प्रमुख विधि है। सेवार्थी को एक विचार को दूसरे विचार से मुख्य रूप से संबद्ध करने के प्रोत्साहित किया जाता है और उस विधि को मुक्त साहचर्य विधि कहते हैं। जब सेवार्थी एक आरामदायक और विश्वसनीय वातावरण में मन में जो कुछ भी आए बोलता है तब नियंत्रक पराहम तथा सतर्क अहं को प्रसप्तावस्था में रखा जाता है। चूँकि चिकित्सक बीच में हस्तक्षेप नहीं करता इसलिए विचारों का मुक्त प्रवाह, अचेतन मन की इच्छाएँ और द्वंद्व जो अहं द्वारा दमित किए जाते रहे हों वे सचेतन मन में प्रकट होने लगते हैं।

प्रश्न 14.
व्यवहार चिकित्सा क्या है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यवहार चिकित्सा मनश्चिकित्सा का एक प्रकार है। व्यवहार चिकित्साओं का यह मापन है कि मनावैज्ञानिक कष्ट दोषपूर्ण व्यवहार प्रतिरूपों या विचार प्रतिरूपों के कारण उत्पन्न होते हैं। अतः इनका केन्द्रबिन्दु सेवार्थी में विद्यमान व्यवहार और विचार होते हैं। उसका अतीत केवल उसके दोषपूर्ण व्यवहार तथा विचार प्रतिरूपों की उत्पत्ति को समझने के संदर्भ में महत्वपूर्ण होता है। अतीत को फिर से सक्रिय नहीं किया जाता। वर्तमान में केवल दोषपूर्ण प्रतिरूपों में सुधार किया जाता है।

अधिगम के सिद्धांतों का नैदानिक अनुप्रयोग ही व्यवहार चिकित्सा को गठित करता है व्यवहार चिकित्सा में विशिष्ट तरीकों एवं सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों का एक विशाल समुच्चय होता है। यह कोई एकीकृत सिद्धांत नहीं है जिसे क्लिनिकल निदान या विद्यमान लक्षणों को ध्यान में रखे बिना अनुप्रयुक्त किया जा सके। अनुप्रयुक्त किए जाने वाली विशिष्ट तकनीकों या सुधारोन्मुख हस्तक्षेपों के चयन में सेवार्थी के लक्षण तथा क्लिनिकल निदान मार्गदर्शक कारक होते हैं। दुर्भीति या अत्यधिक और अपंगकारी भय के उपचार के लिए तकनीकों के एक समुच्चय को प्रयुक्त करने की आवश्यकता होगी जबकि क्रोध-प्रस्फोटन के उपचार के लिए दूसरी। अवसादग्रस्त सेवार्थी की चिकित्सा दुश्चितित सेवार्थी से भिन्न होगी। व्यवहार चिकित्सा का आधार दोषपूर्ण या अप्रक्रियात्मक व्यवहार को निरूपित करना, इन व्यवहारों के प्रबलित तथा संपोषित करने वाले कारकों तथा उन विधियों को खोजना है जिनसे उन्हें परिवर्तित किया जा सके।

प्रश्न 15.
व्यवहार चिकित्सा का मूल्यांकन करें। इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यवहार चिकित्सा का इतिहास बहुत अधिक पुराना नहीं है। इसका प्रारंभ लगभग पच्चीस-तीस वर्ष पहले किया गया था। यह पद्धति मानसिक रोगियों की चिकित्सा के लिए बहुत अधिक कारगर साबित हुई है। यह विधि पैवल के संबंध प्रत्यावर्तन सिद्धान्त पर आधारित है। इस चिकित्सा के माध्यम से मानसिक रोगियों से छुटकारा दिलाया जा सकता है, जिससे वे समाज में अपना अभियोजन ठीक ढंग से कर सके। व्यवहार चिकित्सा के संबंध में आइजेक (Eysenck) का कहना है कि “मानव व्यवहार एवं संवेगों को सीखने के नियमों के आधार पर लाभदायक तरीकों से परिवर्तन करने का प्रयास व्यवहार चिकित्सा है।” क्लीनमुंज (Keleinmuntz) ने भी लगभग इससे मिलती-जुलती परिभाषा दी है।उन्होंने कहा है कि,”व्यवहार चिकित्सा उपचार का एक प्रकार है, जिसमें लक्षणों को दूर करने के लिए शिक्षण के सिद्धान्तों का उपयोग किया जाता है।

व्यवहार चिकित्सा का स्वरूप कोलमैन (Coleman) की परिभाषा से और भी स्पष्ट हो जाता है। उन्होंने कहा है कि, “व्यवहार चिकित्सा संबंध प्रत्यावर्तन प्रतिक्रियाओं और व्यवहारवाद की अन्य धारणाओं पर आधारित एवं मनोचिकित्सा विधि है जो मूल रूप से स्वभाव परिवर्तन की ओर निर्देशित होती है। (Behaviour therapy is a phychotherapy based upon conditioned responses and other concepts of behaviour, primarily directed towards, habit change.) उपर्युक्त पारिभाषाओं से व्यवहार चिकित्सा का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। इसमें रोगी के गलत व्यवहारों को संबंध प्रत्यावर्तन के माध्यम से दूर किया जाता है। व्यवहार चिकित्सा के निम्नलिखित प्रकारों की मुख्य रूप से चर्चा की जा सकती है।

1. क्रमबद्ध विहर्षण- इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग Wolpe ने किया था। शिक्षण के क्षेत्र में Watson and Rayner ने इस विधि को प्रयोग में लाया। Wolpeने अनेक मानसिक रोगियों की चिकित्सा इस विधि के माध्यम से की, जिसका परिणाम अच्छा निकला। कोलमैन ने इस विधि के संबंध में कहा है कि विहर्षण एक चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसके द्वारा आघातजन्य अनुभवों की तीव्रता को उनके वास्तविक रूप या हवाई कल्पना को मृदुल ढंग से व्यक्ति को बार-बार दिखलाकर कम किया जाता है।
कोलमैन के विचार से स्पष्ट होता है कि विहर्षण एक मनोचिकित्सा पद्धति है, जो शिक्षण-सिद्धान्तों पर आधारित है। इसमें रोगी को मांसपेशियों को तनावहीन बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है, उसके बाद चिन्ता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों को कल्पना श्रृंखलाबद्ध की जाती है। यह कल्पना रोगी को उस समय तक करने के लिए कहा जाता है, जबतक चिन्ता उत्पन्न करने वाली परिस्थितियों से भयभीत न हो।

किसी रोग पर इस चिकित्सा पद्धति के प्रयोग में लाने से पहले उसके गत जीवन की जानकारी प्राप्त कर ली जाती है, जिससे कि उसे रोग से संबंधित परिस्थितियों को आवश्यकतानुसार रोगी के समक्ष प्रस्तुत किया जा सके। उसके बाद चिकित्सक सबसे कम भयावह परिस्थितियों से लेकर अधिक भयावह परिस्थितियों को सूचिबद्ध करता है। इन सूचियों को अलग-अलग कागज पर लिखकर रोगी को क्रमबद्ध रूप से लिखने को कहा जाता है। इसी समय चिकित्सक रोगी का साक्षात्कार भी करता है। अधिकांश रोग तनावों के कारण उत्पन्न होते हैं। इसलिए रोगी को तनाव की स्थिति में लाकर तनावहीन स्थिति में लाने के लिए तैकॉविशन द्वारा बतलायी गयी विधि का सहारा लिया जाता है। इसमें रोगी को एक गद्दे पर लिटा कर उसके शरीर के विभिन्न स्नायुयों को व्यवस्थित रूप में फैलाने तथा सिकोड़ने के लिए कहा जाता है। उसे यह प्रक्रिया अकसर करने को कहा जाता है जिससे रोगी तनावहीन हो जाता है।

उसके बाद विहर्षण की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है। रोगी को यह निर्देश दिया जाता है कि पहले सिखायी गयी प्रक्रिया में तनाव या कष्ट का अनुभव हो, तो अंगुली उठाकर इसकी सूचना दे। उसके बाद तटस्थ रूप से दृश्यों की कल्पना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इसी बीच उसे कम कष्टदायक तथा भयावह परिस्थितियों की कल्पना करने की सलाह देता है। चिकित्सक उसे बड़ी सावधानी से नोट करता है और अंत में रोगी के सामने सबसे अधिक चिन्ता करने वाली परिस्थितियों को.तब तक उपस्थित किया जाता है जब तक कि रोगी की चिन्ता या भय के लक्षण दूर नहीं हो जाते हैं।

विहर्षण विधि का उपयोग नपुंसकता तथा उत्साहशून्यता के उपचार में सफलतापूर्वक किया जाता है। नपुंसकता को दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग, कूपर, लेजारस तथा वोल्पे ने सफलतापूर्वक किया। कुछ रोगी कम ही समय में इस चिकित्सा से चंगा हो जाते हैं, परन्तु कुछ अधिक समय ले लेते हैं।

2. दृढ़ग्राही प्रशिक्षण-व्यवहार चिकित्सा की इस पद्धति के द्वारा ऐसे मानसिक रोगियों की चिकित्सा की जाती है जिनमें पारस्परिक संबंधों या अन्य व्यवहारों में चिन्ता के कारण अवरोध पैदा हो जाता है। इसमें चिकित्सक यह प्रयास करता है कि रोगी का अवरोध कैसे दूर हो तथा उसकी चिन्ता में कैसे कमी हो। चिकित्सक यह भी बतलाता है कि रोगी का व्यवहार कैसे maladjusted हो गया है। वोल्पे तथा लेजारस ने बतलाया कि इस तरह के रोगी की चिकित्सा में तर्क-वितर्क तथा दृढ़ग्राही प्रतिक्रियाओं का वास्तविक जीवन में व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। वोल्पे ने कहा है कि चिन्ता का असंबद्धता प्रायः व्यववहार पूर्वाभ्यास में ही हो जाती है। फ्रीडमैन का कहना है कि इस विधि की कला चिन्ता अवरोध की वास्तविक जीवन की परिस्थितियों में सामान्यीकरण स्थापित करती है। इस संबंध में कोटेला ने अपना अध्ययन एक युवती पर किया जो माता-पिता के सामने डटकर बातचीत करने में हिम्मत नहीं रखती थी। कोटेला ने इस पद्धति के माध्यम से उसमें डटकर बात करने की योग्यता को विकसित किया।

3. विरुचि संबंध प्रत्यावर्तन- इस प्रकार की चिकित्सा के माध्यम से रोगी की गलत आदतों को संबंध प्रत्यावर्तन के माध्यम से दूर करने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार की चिकित्सा के संबंध में कहा जा सकता है कि, “सबल उत्तेजक का प्रयोग अवांछित व्यवहार के उपस्थित होने पर उसे दूर करने के उद्देश्य से किया जाता है, तो इसे विरुचित संबंध प्रत्यावर्तन कहा जाता है।” इसका सफल Feldman तथा Meuch ने समजाति लैंगिकता और वस्तु लैंगिकता के उपचार में किया। इससे जैसे ही रोगी अपने यौन के व्यक्ति या वस्तु की ओर देखना प्रारंभ करता था वैसे ही उसके विद्युत आघात पहुँचाया जाता है।

इसके माध्यम से नशे की आदत से आसानी से छुटकारा दिलाया जा सकता है। इस विधि द्वारा अवांछित व्यवहारों को दूर करने के लिए सबल उत्तेजक, जैसे-विद्युत आघात, वमन करने वाली दवाएँ आदि का सहारा लिया जाता है। जैसे-एक शराब पीने वाले का उपचार करने के लिए पहले उसे तैयार किया जाता है। उसके बाद रोगी को एक ग्लास गरम खारे घोल में ह्विस्की के साथ कुछ वमन करने वाली दवाइयाँ दी जाती है। के होने के कुछ देर बाद उसे ह्विस्की पीने को दिया जाता है। यदि पहले पैग में वमन नहीं होता है, तो दूसरे पैग में दिया जाता है, जिससे कि रोगी को वमन होने लगे। धीरे-धीरे रोगी शराब की गंध से वमन करना प्रारंभ कर देता है। यहाँ असम्बद्ध उत्तेजक दवा है जो कै करवाती है और उसे संबद्ध उत्तेजक शराब की गन्ध एवं स्वाद है।

जेम्स ने एक चालीस वर्षीय समजाति लैंगिक का उपचार इस विधि द्वारा किया। परिणामस्वरूप वह व्यक्ति समजाति लैंगिक से विषम जाति लैंगिक बन गया। उसका ध्यान मर्दो से हटकर औरतों की ओर हो गया। इस पद्धति के आधार पर गरीब रोगियों की चिकित्सा कम-से-कम समय तथा कम-से-कम खर्च में की जाती है।

Bihar Board 12th Economics Objective Important Questions Part 7

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Bihar Board 12th Economics Objective Important Questions Part 7

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से राजकोषीय नीति में किसे शामिल किया जाता है ?
(a) सार्वजनिक ऋण
(b) करारोपण
(c) सार्वजनिक व्यय
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 2.
प्राचीन विचारधारा निम्न में से किन तथ्यों पर आधारित है ?
(a) कीन्स का रोजगार सिद्धान्त
(b) पीगू का मजदूरी सिद्धान्त
(c) से का बाजार नियम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 3.
कीमत या बजट रेखा की ढाल होती है
Bihar Board 12th Economics Objective Important Questions Part 7, 1
उत्तर:
(a) \(-\frac{P_{x}}{P_{y}}\)

प्रश्न 4.
एकाधिकार एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में होता है
(a) AR > MR
(b) AR = MR
(c) AR < MR
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) AR > MR

प्रश्न 5.
पूर्ति लोच की माप निम्न में किस सूत्र से ज्ञात की जाती है ?
Bihar Board 12th Economics Objective Important Questions Part 7, 2
उत्तर:
(a) \(\frac{\Delta Q}{Q_{S}} \times \frac{P}{\Delta P}\)

प्रश्न 6.
आय की चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के चक्रीय प्रवाह में संतुलन के लिए निम्न में से कौन-सी शर्त है ?
(a) C + I + G + (X – M)
(b) C + I + G
(c) C + I
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) C + I + G + (X – M)

प्रश्न 7.
NNPMP बराबर होता है
(a) GNPMP – घिसावट
(b) GNPMP + अप्रत्यक्ष कर
(c) GNPMP + घिसावट
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) GNPMP – घिसावट

प्रश्न 8.
लाभ का निम्न में कौन-सा घटक है ?
(a) लाभांश
(b) अवितरित लाभ
(c) निगम लाभ कर
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन मुद्रा का द्वितीयक कार्य है ?
(a) मूल्य का हस्तांतरण
(b) मूल्य का संचय
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 10.
भारत में किसे बैंकों का बैंक कहा जाता है ?
(a) भारतीय रिजर्व बैंक
(b) स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया
(c) बैंक ऑफ इण्डिया
(d) सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया
उत्तर:
(a) भारतीय रिजर्व बैंक

प्रश्न 11.
केन्द्रीय बैंक ऋण देता है
(a) सार्वजनिक लोग
(b) निजी कम्पनियाँ
(c) व्यावसायिक बैंक
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) व्यावसायिक बैंक

प्रश्न 12.
इनमें से किसे आर्थिक क्रियाओं का आदि तथा अंत कहते हैं ?
(a) उत्पाद
(b) उपभोग
(c) विनिमय
(d) वितरण
उत्तर:
(b) उपभोग

प्रश्न 13.
अनिवार्य वस्तुओं की माँग होती हैं
(a) लोचदार
(b) बेलोचदार
(c) सापेक्षिक लोचदार
(d) इकाई लोचदार
उत्तर:
(b) बेलोचदार

प्रश्न 14.
सेब के मूल्य में वृद्धि के कारण सेव की माँग में
(a) कमी
(b) विस्तार
(c) वृद्धि
(d) अप्रभावित
उत्तर:
(a) कमी

प्रश्न 15.
अल्प काल में ……… साधनों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
(a) स्थिर
(b) परिवर्तनशील
(c) मानवीय
(d) भौतिक
उत्तर:
(a) स्थिर

प्रश्न 16.
निम्नांकित में कौन सेवा के उदाहरण हैं ?
(a) चिकित्सकों के कार्य
(b) अध्यापकों के कार्य
(c) वकीलों के कार्य
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 17.
निम्नांकित में कौन आर्थिक वस्तु है ?
(a) टेलीविजन
(b)
(c) सूर्य की रोशनी
(d) नदी का पानी
उत्तर:
(a) टेलीविजन

प्रश्न 18.
सभी आर्थिक समस्याओं के कारण हैं
(a) असीमित इच्छाएँ
(b) सीमित साधन
(c) विभिन्न प्रधानता
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 19.
उत्पादन संभावना वक्र का ढाल गिरता है
(a) नीचे से ऊपर
(b) दायें से बायें
(c) बायें से दायें
(d) ऊपर से नीचे
उत्तर:
(b) दायें से बायें

प्रश्न 20.
माँग के लिए जरूरी है
(a) वस्तु की इच्छा
(b) साधन
(c) खर्च करने की तत्परता
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 21.
माँग और मूल्य में संबंध होता है
(a) विपरीत
(b) प्रत्यक्ष
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विपरीत

प्रश्न 22.
उपभोक्ता व्यवहार पढ़ा जाता है
(a) व्यष्टि अर्थशास्त्र में
(b) समष्टि अर्थशास्त्र में
(c) (a) और (b) दोनों में
(d) इनमें से किसी में नहीं
उत्तर:
(a) व्यष्टि अर्थशास्त्र में

प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था जिसका आर्थिक संबंध दूसरे देशों से होता है वह माना जाता है।
(a) बंद अर्थव्यवस्था
(b) खुली अर्थव्यवस्था
(c) स्वयं अर्थव्यवस्था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) खुली अर्थव्यवस्था

प्रश्न 24.
अचल सम्पत्ति के उपभोग को हम कहते हैं
(a) पूँजी निर्माण
(b) ह्रास
(c) विनियोग
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) ह्रास

प्रश्न 25.
मूल्यवर्द्धन जाना जाता है
(a) क्रय मूल्य + ह्रास
(b) बिक्री मूल्य – हानि
(c) क्रय मूल्य + मध्यवर्ती
(d) बिक्री मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत
उत्तर:
(d) बिक्री मूल्य – मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत

प्रश्न 26.
औद्योगिक विकास के कारण मजदूरी की माँग में वृद्धि उदाहरण है
(a) आय माँग
(b) क्रॉस माँग
(c) व्युत्पन्न माँग
(d) प्रतियोगी माँग
उत्तर:
(c) व्युत्पन्न माँग

प्रश्न 27.
नमक की माँग होती है
(a) लोचदार
(b) बेलोचदार
(c) पूर्ण लोचदार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बेलोचदार

प्रश्न 28.
उत्पादन के निम्न में कौन-से साधन हैं ?
(a) भूमि
(b) श्रम एवं पूँजी
(c) व्यवस्था
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 29.
आर्थिक प्रणालियों के निम्न में कौन-से रूप हैं ?
(a) पूँजीवाद
(b) समाजवाद
(c) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 30.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में अस्तित्व होता है
(a) निजी स्वामित्व का
(b) मुनाफा कमाने का
(c) दोनों का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों का

प्रश्न 31.
एक समाजवादी अर्थव्यवस्था का मुख्य उद्देश्य होता है
(a) अधिकाधिक उत्पादन
(b) आर्थिक स्वतंत्रता
(c) मुनाफा कमाना
(d) अधिकतम लोक कल्याण का
उत्तर:
(d) अधिकतम लोक कल्याण का

प्रश्न 32.
APC = APS = ?
(a) 0
(b) 1
(c) a या अनंत
(d) उपर्युक्त कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1

प्रश्न 33.
यदि MPC = 0.5 तो (k) गुणक क्या होगा ?
(a) \(\frac{1}{2}\)
(b) 1
(c) 2
(d) 0
उत्तर:
(c) 2

प्रश्न 34.
विनिमय दर के निम्न में कौन-से रूप हैं ?
(a) स्थिर विनिमय दर
(b) लोचपूर्ण विनिमय दर
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 35.
उत्पादन संभावना वक्र व्यक्त करता है
(a) वस्तुओं एवं सेवाओं के विभिन्न संयोगों को
(b) रोजगार के स्तर को
(c) मूल्य स्तर को
(d) उपर्युक्त सभी को
उत्तर:
(a) वस्तुओं एवं सेवाओं के विभिन्न संयोगों को

प्रश्न 36.
यदि किसी वस्तु की कीमत में 40% की वृद्धि हो, परन्तु पूर्ति में केवल 15% की वृद्धि हो ऐसी वस्तु की पूर्ति होगी
(a) अत्यधिक लोचदार
(b) लोचदार
(c) बेलोचदार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) बेलोचदार

प्रश्न 37.
पूर्ति के नियम को निम्न में कौन-सा फलन प्रदर्शित करता है ?
(a) S = f (P)
(b) S = f\(\left(\frac{1}{P}\right)\)
(c) S = f(Q)
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) S = f (P)

प्रश्न 38.
किस बाजार में AR = MR होता है ?
(a) एकाधिकार
(b) एकाधिकारी प्रतियोगिता
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) पूर्ण प्रतियोगिता
उत्तर:
(d) पूर्ण प्रतियोगिता

प्रश्न 39.
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की निम्न में से कौन-सी विशेषताएँ हैं ?
(a) क्रेता और विक्रेता की अधिक संख्या
(b) वस्तु की समरूप इकाइयाँ
(c) बाजार दशाओं का पूर्ण ज्ञान
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 40.
फर्म के संतुलन की दशा में
(a) MR वक्र MR को ऊपर से काटता है
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है
(c) MR वक्र MR का समानान्तर होता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) MR वक्र MR को नीचे से काटता है

प्रश्न 41.
एकाधिकार की स्थिति में प्रतियोगिता
(a) पूर्ण होती है
(b) सीमित होती है
(c) शून्य होती है
(d) नगण्य होती है
उत्तर:
(c) शून्य होती है

प्रश्न 42.
बाजार का वह स्वरूप जिसमें एक ही विक्रेता होता है, उसे क्या कहते हैं ?
(a) एकाधिकार
(b) पूर्ण प्रतियोगिता
(c) अल्पाधिकार
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एकाधिकार

प्रश्न 43.
पूर्ण प्रतियोगिता में क्या स्थिर रहता है ?
(a) AR
(b) MR
(c) AR और MR दोनों
(d) कोई भी नहीं
उत्तर:
(c) AR और MR दोनों

प्रश्न 44.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्मे कीमत को
(a) निर्धारित करती हैं
(b) ग्रहण करती हैं
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) ग्रहण करती हैं

प्रश्न 45.
निम्न में कौन-सा कथन सही है ?
(a) y = c + I
(b) C + S = C + I
(c) y = 0 = N (जहाँ y = आय, O = उत्पादन और N = रोजगार का संतुलन स्तर है)
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
प्रतिबल की समायोजी प्रविधि के रूप में संवेग उन्मुखी उपाय का वर्णन करें।
उत्तर:
यह अनुमान लगाया जाता है कि यह शारीरिक रोग और अवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अल्सर, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी कड़े दबाव से संबंधित होती है। जीवन शैली में परिवर्तनों के कारण दबाव में निरंतर वृद्धि हो रही है। अतएव विद्यालय, दूसरी संस्थाएँ, दफ्तर एवं समुदाय उन तकनीकों को जानने हेतु उत्सुक हैं जिनके द्वारा दबाव का प्रबंधन किया जा सके। इनमें से कुछ तकनीकें निम्नलिखित हैं

  1. विश्राम की तकनीकें।
  2. जैव प्रतिप्राप्ति या बायोफीडबैक तकनीक।
  3. सृजनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण।
  4. ध्यान प्रक्रियाएँ।
  5. संज्ञानात्मक-व्यवहारात्मक तकनीकें।
  6. व्यायाम तथा योग।

प्रश्न 2.
असामान्यता का मनोगतिकी मॉडल क्या है?
उत्तर:
मनोगतिक प्रतिरूप(Psychodynamicmodel)-व्यवहार सामान्य हो अथवा असामान्य व्यक्ति अपने आंतरिक मनोविचारों एवं शक्तियों से प्रेरित होता है जिसके प्रति वह स्वयं चेतन रूप से अनभिज्ञ रहता है। मनोगतिक मॉडल में सर्वप्रथम फ्रॉयड ने कहा कि तीन केंद्रीय शक्तियों के द्वारा व्यक्तित्व की संरचना निर्धारित होती है। मूल प्रवृत्तिक आवश्यकताएँ, अंतर्नाद तथा आवेग (इदम् या इद), तार्किक चिंतन (अहम्) तथा नैतिक मानक (पराहम्)। इस प्रकार फ्रॉयड ने माना है कि असामान्य व्यवहार अचेतन स्तर पर होने वाले मानसिक द्वन्द्वों की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है जिसका संबंध सामान्यतः प्रारंभिक बाल्यावस्था या शैशवावस्था से प्रारंभ होता है।

प्रश्न 3.
व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक कार्यों एवं स्वास्थ्य पर अल्कोहॉल के बुरे प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
शराब मस्तिष्क के संचार रास्ते के साथ हस्तक्षेप करता है और जिस तरह से मस्तिष्क लग रहा है और काम करता है को प्रभावित कर सकते हैं। इन अवरोधों मूड और व्यवहार में बदला और यह कठिन स्पष्ट रूप से सोचने और समन्वय के साथ स्थानांतरित करने के लिए कर सकते हैं। शराब का मनोवैज्ञानिक प्रभाव शामिल हैं-(क) नींद पैटर्न में परिवर्तन, (ख) मन और व्यक्तित्व में परिवर्तन,(ग) अवसाद, चिंता और अन्य मानसिक रोगों की स्थिति, (घ) ऐसे छोटा ध्यान अवधि और समन्वय के साथ समस्याओं के रूप में संज्ञानात्मक प्रभाव। शराब के अन्य ज्ञात मनोवैज्ञानिक प्रभाव चिंता, आतंक विकार, मतिभ्रम, भ्रम और मानसिक विकारों में शामिल हैं। बहुत ज्यादा पीने अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकते हैं, आपके शरीर की बीमारी के लिए एक बहुत आसान लक्ष्य बना रही है। शोध से पता चलता है कि लंबे समय तक शराब के अत्यधिक सेवन के प्रमुख अवसादग्रस्तता विकार का कारण बनता है।

प्रश्न 4.
गरीबी तथा वंचना में अंतर करें।
उत्तर:
वंचन तथा गरीबी के बीच एक अंतर है कि वंचन उस दशा को संदर्भित करता है जिसमें व्यक्ति अनुभव करता है कि उसकी कोई मूल्यवान वस्तु खो गई है तथा उसे वह प्राप्त नहीं हो रही है जिसके वह योग्य था। दूसरी ओर निर्धनता का अर्थ ऐसे संसाधनों की वास्तविक कमी है जो जीविका के लिए आवश्यक है। वंचन में अधिक महत्वपूर्ण यह होता है कि व्यक्ति ऐसा प्रत्यक्षण करता है या सोचता है कि जो भी कुछ उसके पास है वह उससे बहुत कम है जो उसको उपलब्ध होना चाहिए। निर्धन व्यक्तियों की दशा और भी बुरी हो जाती है यदि वे निर्धनता के साथ वंचन का भी अनुभव करते हैं।

निर्धनता तथा वंचन दोनों का ही संबंध सामाजिक असुविधा से है अर्थात् वह स्थिति जिसके कारण समाज के कुछ वर्गों को उन सुविधाओं का उपयोग नहीं करने दिया जाता है जो समाज के शेष वर्गों के व्यक्ति करते हैं।

प्रश्न 5.
सामान्य कौशल तथा विशिष्ट कौशल में क्या अंतर है?
उत्तर:
सामान्य कौशल मूलतः सामान्य स्वरूप के होते हैं। जिसकी आवश्यकता सभी प्रकार के मनोवैज्ञानिकों को होती है चाहे वे किसी भी क्षेत्र के विशेष क्यों नहीं। खासकर सभी प्रकार के व्यवसायी मनोवैज्ञानिक जैसे-नैदानिक, स्वास्थ्य मनोविज्ञान, औद्योगिक, सामाजिक, पर्यावरणीय सलाहकार की भूमिका में रहने वालों के लिए यह कौशल आवश्यक है।
विशिष्ट कौशल मनोविज्ञान के किसी क्षेत्र में विशेषता से है जैसे-नैदानिक स्थितियों में कार्य करने वाले मनोवैज्ञानिकों के लिए यह आवश्यक है कि वह चिकित्सापरक तकनीकों, मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन एवं परामर्श में प्रशिक्षण प्राप्त करें।

प्रश्न 6.
बुद्धि और अभिक्षमता में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बुद्धि और अभिक्षमता में निम्नलिखित भेद है
(i) बुद्धि-बुद्धि का आशय पर्यावरण को समझने, सविवेक चिंतन करने तथा किसी चुनौती के सामने होने पर उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की व्यापक क्षमता से है। बुद्धि परीक्षणों से व्यक्ति की व्यापक सामान्य संज्ञानात्मक सक्षमता तथा विद्यालयीय शिक्षा से लाभ उठाने की योग्यता का ज्ञान होता है। सामान्यतया कम बुद्धि रखने वाले विद्यार्थी विद्यालय की परीक्षाओं में उतना अच्छा निष्पादन करने की संभावना नहीं रखते परन्तु जीवन के अन्य क्षेत्रों में उनकी सफलता की प्राप्ति का संबंध मात्र बुद्धि परीक्षणों पर उनके प्राप्तांकों से नहीं होता।

(ii) अभिक्षमता-अभिक्षमता का अर्थ किसी व्यक्ति की कौशलों के अर्जन के लिए अंतर्निहित संभाव्यता से है। अभिक्षमता परीक्षणों का उपयोग यह पूर्वकथन करने में किया जाता है कि व्यक्ति उपयुक्त पर्यावरण और प्रशिक्षण प्रदान करने पर कैसा निष्पादन कर सकेगा। एक उच्च यांत्रिक अभिक्षमता वाला व्यक्ति उपयुक्त प्रशिक्षण का अधिक लाभ उठाकर एक अभियंता के रूप में अच्छा कार्य कर सकता है। इसी प्रकार भाषा की उच्च अभिक्षमता वाले एक व्यक्ति को प्रशिक्षण देकर एक अच्छा लेखक बनाया जा सकता है।

प्रश्न 7.
आत्मसिद्धि से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आत्मसिद्धि का अर्थ अपने संदर्भ में व्यक्ति के अनुभवों, विचारों, चिंतन एवं भावनाओं की समर । से है। व्यक्ति के यही अनुभव एवं विचार व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों ही स्तरों पर व्यक्ति के अस्तित्व को परिभाषित करते हैं।

प्रश्न 8.
सांवेगिक बुद्धि को परिभाषित करें। इसके प्रमुख तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
संवेगात्मक बुद्धि को संवेगात्मक क्षेत्र में समायोजन कहा जा सकता है, जो जीवन में सफलता पाने में बहुत अधिक सहायक होता है। संवेगात्मक बुद्धि का संबंध वास्तव में व्यक्ति के कुछ ऐसे शीलगुणों से होता है जो संवेग की अवस्था में अभियोजन में सहायक होते हैं। इसके माध्यम से उसे अपने संवेगों की पहचान होती है तथा दूसरों के संवेगों को सही ढंग से समझते हुए सही ढंग से अभियोजन का प्रयास करता है। इसके माध्यम से वह लोगों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करता है।

संवेगात्मक बुद्धि (E.Q.) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सैलोवी तथा मायर (Salovey and Mayer) ने 1990 में किया था। उन्होंने इसके पाँच प्रमुख तत्त्वों की चर्चा की है, जिसका विवरण निम्नलिखित है-

  1. अपने संवेगों को पहचानना
  2. अपने संवेगों को प्रबंधन करना
  3. अपने आप को अभिप्रेरित करना
  4. दूसरों के संवेगों की पहचान करना
  5. अन्तर्वैयक्तिक संबंधों को संतुलित करना।

प्रश्न 9.
व्यक्तित्व को परिभाषित करें।
उत्तर:
व्यक्तित्व का तात्पर्य सामान्यतया व्यक्ति के शारीरिक एवं बाह्य रूप से होता है। मनोवैज्ञानिक शब्दों में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन विशिष्ट तरीकों से है जिनके द्वारा व्यक्तियों और स्थितियों के प्रति अनुक्रिया की जाती है। लोग सरलता से इस बात का वर्णन कर सकते हैं कि वे किस तरीके के विभिन्न स्थितियों के प्रति अनुक्रिया करते हैं। कुछ सूचक शब्दों (जैसे-शर्मीला, संवेदनशील, शांत, . गंभीर, स्फूर्त आदि) का उपयोग प्रायः व्यक्तित्व का वर्णन करने के लिए किया जाता है। ये शब्द व्यक्तित्व के विभिन्न घटकों को इंगित करते हैं। इस अर्थ में व्यक्तित्व से तात्पर्य उन अनन्य एवं सापेक्ष रूप से स्थिर गुणों से है जो एक समयावधि में विभिन्न स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार की विशिष्टता प्रदान करते हैं। व्यक्तित्व व्यक्तियों की उन विशेषताओं को भी कहते हैं जो अधिकांश परिस्थितियों में प्रकट होती हैं।

प्रश्न 10.
सामूहिक अचेतन का अर्थ बताइए। अथवा, सामूहिक अचेतन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामूहिक अचेतन कार्ल गुंग (carl Jung) द्वारा प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण संप्रत्यय है। सामूहिक अचेतन में पूरे मानव जाति की अनुभूतियाँ जो हमलोगों में से प्रत्येक को अपने पूर्वजों से प्राप्त होता है, संचित होती है। ऐसी अनुभूतियाँ आदिरूप (arche types) के रूप में संचित होती है। सूर्य को देवता मानकर पूजा करने का विचार हमें अपने पूर्वजों से ही प्राप्त हुआ है जो सामूहिक अचेतन का एक उदाहरण है।

प्रश्न 11.
तनाव स्वास्थ्य को किस ढंग से प्रभावित करता है?
उत्तर:
वे व्यक्ति जो तनावग्रस्त होते हैं प्रायः आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं, जिसके कारण वे परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं। तनाव का प्रभाव हमारे व्यवहार पर कम पौष्टिक भोजन करने, उत्तेजित करने वाले पदार्थों, जैसे केफीन को अधिक सेवन एवं सिगरेट, मद्य तथा अन्य औषधियों; जैसे-उपशामकों इत्यादि के अत्यधिक सेवन करने में परिलक्षित होता है। उपशामक औषधियाँ व्यसन बन सकती हैं तथा उनके अन्य प्रभाव भी हो सकते हैं; जैसे-एकाग्रता में कठिनाई, समन्वय में कमी तथा घूर्णी या चक्कर आ जाना। तनाव के कुछ ठेठ या प्रारूपी व्यवहारात्मक प्रभाव, निद्रा-प्रतिरूपों में व्याघात, अनुपस्थिता में व्याघात, अनुपस्थिता में वृद्धि तथा कार्य निष्पादन में ह्रास हैं।

प्रश्न 12.
द्वन्द्व एवं कुंठा का प्रतिबल के स्रोत के रूप में वर्णन करें।
उत्तर:
द्वन्द्व-द्वन्द्व एक ऐसा प्रक्रम है जिसमें एक व्यक्ति या समूह यह प्रत्यक्षण करते हैं कि दूसरे उनके विरोधी हितों को रखते हैं और दोनों पक्ष एक-दूसरे का खंडन करने का प्रयास करते रहते हैं। द्वन्द्व सभी समाज में घटित होते हैं।
कंठा-जब व्यक्ति अपने लक्ष्य पर नहीं पहुँचता है तो इससे उसमें कुंठा उत्पन्न होता है और इस कुंठा से वह बाधक स्रोत के प्रति आक्रामकता दिखलाता है परंतु जब बाधक स्रोत व्यक्ति से अधिक सबल एवं मजबूत होता है तो वह अपनी आक्रामकता तथा वैर-भाव एक कमजोर स्रोत की ओर विस्थापित कर देता है तथा तरह-तरह के पूर्वाग्रहित व्यवहार करने लगता है।

प्रश्न 13.
लोगो चिकित्सा की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
लोगो चिकित्सा जिंदगी पर आधारित चिकित्सा है। व्यक्ति द्वारा दबाव ग्रस्त परिस्थितियों में भी अर्थ ढूँढने को सार्थकता पर बल डाला जाता है। इस प्रक्रिया का अर्थ निर्माण कहा जाता है। इस अर्थ निर्माण प्रक्रिया का आधार जीवन में आध्यात्मिक सच्चाई की खोज होती है। जिस तरह से व्यक्ति का अचेतन मूल प्रवृत्तियों का भंडार होता है, ठीक उसी तरह से व्यक्ति में एक आध्यात्मिक अचेतन होता है जिसमें जिंदगी का मूल्य, स्नेह तथा सौंदर्यात्मक अभिज्ञता आदि संचित होते हैं। जब व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक शारीरिक या आध्यात्मिक पक्षों से उसके जीवन की समस्याएँ जुड़ती है, तो उससे तंत्रिकातापी दुश्चिता की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 14.
आदिरूप तथा रूढिकृति में अंतर करें।
उत्तर:
आदि रूप-आदि रूप एक ऐसा अमूर्तिकरण होता है जिसके द्वारा समूह या वर्ग विशेष उदाहरण का प्रतिनिधित्व होता है। आदि रूप की अभिव्यक्ति गुणों के रूप में होती है। जैसे एक प्रोफेसर का आदि रूप एक ऐसा व्यक्ति के रूप में होता है जो छात्रों को पढ़ाता है।
रूढिकति-रूढिकृति से तात्पर्य किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में पूर्व स्थापित सामान्य प्रत्याशाओं तथा सामान्यीकरण से होता है। जैसे-हिन्दू समाज में एक महत्वपूर्ण रूढियुक्त है कि गाय उनकी माता है, परंतु मुस्लिम समुदाय में इस तरह की रूढ़ियुक्ति नहीं पायी जाती है।

प्रश्न 15.
अनुरूपता तथा अनुपालन में अंतर करें।
उत्तर:
अनुरूपता (Conformity)-अनुरूपता व्यक्ति अपने व्यक्तिगत विचार एवं मतों का त्याग करके समूह दबाव के सामने झुक जाता है। समूह दबाव में समूह के मानक (Norms), मूल्यों (values) रीति-रिवाजों द्वारा व्यक्ति पर दबाव दिया जाता है। जैसे-एक 20 वर्षीय युवती विधवा हो जाने के बाद यदि सामाजिक मानकों एवं परंपराओं के दबाव के अनुरूप फिर दोबारा शादी नहीं करने का निश्चय करती है, तो वह अनुरूपता का उदाहरण होगा।
अनपालन(Compliance)-जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के अनुरोध या निवेदन के अनुरूप व्यवहार करता है तो इसे अनुपालन (Compliance) कहा जाता है। अनुपालन के अनेक उदाहरण हमारे समाज में मिलते हैं। जैसे-शिक्षक छात्र को कक्षा में भाषण समाप्त होने पर मिलने का अनुरोध करते हैं, नेता जनता से उन्हें वोट देने का अनुरोध करते हैं, पिता पुत्र को पढ़ने का अनुरोध करते हैं, आदि-आदि।

प्रश्न 16.
अंतरावैयक्तिक संचार तथा अंतरवैयक्तिक संचार में अंतर करें।
उत्तर:
अंतरावैयक्तिक संचार अंतरावैयक्तिक संचार, संचार का वैसा स्तर होता है जिसमें व्यक्ति अपने-आप से बातचीत करता है। दूसरे शब्दों में संप्रेषक तथा प्रमापक दोनों ही स्वयं व्यक्ति होता है। इसके अंतर्गत चिंतन प्रक्रियाएँ, वैयक्तिक निर्णय प्रक्रिया तथा स्व के बारे में सोचना आदि सम्मिलित होता है।
अंतरवैयक्तिक संचार अंतरवैयक्तिक संचार संप्रेषण का वैसा स्तर होता है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच संप्रेषण होता है या उनके बीच एक संप्रेषणीय संबंध स्थापित किया जाता है। आमने-सामने का संप्रेषण, साक्षात्कार सामूहिक चर्चा अंतरवैयक्तिक संचार के उदाहरण हैं।

प्रश्न 17.
बुद्धि परीक्षण की उपयोगिताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि की माप की जाती है। इसका प्रमुख उपयोग निम्न क्षेत्रों में कियाजाता है-

  • शिक्षा के क्षेत्र में- बुद्धि परीक्षण का उपयोग शिक्षण संस्थाओं में अधिक होता है। इस परीक्षण से शिक्षक पता लगा लेते हैं कि वर्ग में कितने तेज बुद्धि के, कितने औसत बुद्धि के और कितने छात्र मंद बुद्धि के छात्र हैं, जिससे पाठ्य सामग्री तैयार करने में आसानी होती है।
  • बाल निर्देशन में– बुद्धि परीक्षण द्वारा बच्चों की बुद्धि मापकर उसी के अनुरूप उन्हें मार्ग निर्देशित किया जाता है। अधिक बुद्धि के बच्चों के साथ कम बुद्धि वाले बच्चे सही ढंग से समायोजन नहीं कर पाते हैं और वे मानसिक तनाव के शिकार हो जाते हैं।
  • मानसिक दुर्बलता की पहचान में- मानसिक रूप से दुर्बल बच्चे समाज या राष्ट्र पर बोझ होते हैं! बुद्धि परीक्षण द्वारा ऐसे व्यक्तियों की पहचान कर ली जाती है।
  • व्यावसायिक निर्देशन में- बुद्धि परीक्षण द्वारा बुद्धि ,मापकर बच्चों एवं किशोरों की बुद्धि के अनुकूल व्यवसाय में जाने का निर्देश दिया जाता है। तब उसमें मानसिक संतोष अधिक होता है। कार्य में सफलता मिलती है।

प्रश्न 18.
प्राकृतिक पर्यावरण तथा निर्मित पर्यावरण में अंतर करें।
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण- प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत नदियाँ, पहाड, वन आदि क्षेत्र आते हैं। जिसे प्रकृति ने हमें उपहारस्वरूप मुफ्त में प्रदान किया है।
निर्मित पर्यावरण- मनुष्य अपनी सुख-सुविधा के लिए नगर, आवास, बाजार, सड़क, कारखाना, बाँध, पार्क आदि का निर्माण किया है जिसे निर्मित पर्यावरण कहते हैं।

प्रश्न 19.
तादात्म्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
किसी अन्य व्यक्ति को अधिक पसंद करने या सम्मान देने के फलस्वरूप अपने आप को उस व्यक्ति के समान समझना तादात्म्य कहलाता है। तादात्मीकरण में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति या समूह के व्यवहारों को किसी बाहर दबाव या डर से नहीं बल्कि उसे अपने व्यक्तित्व का ही एक अंश मानकर स्वेच्छा से स्वीकार कर लेता है। एक रोगी डॉक्टर के साथ तादात्मीकरण कर वैसा ही व्यवहार करता है जैसा डॉक्टर उसे करने के लिए कहता है।

प्रश्न 20.
अंतरसमूह प्रतिस्पर्धा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अंतर समूह प्रतिस्पर्धा एक महान समाज मनोवैज्ञानिक शेरिफ के प्रयोग का तीसरी अवस्था है जिसमें प्रतियोगिता के दोनों समूह को कुछ ऐसी परिस्थितियों में रखा गया जहाँ वे एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके। जैसे-खेल-कूद में दोनों समूह को एक-दूसरे के विरोध में रखा गया। इस प्रतिस्पर्धा में से दोनों समूहों में एक-दूसरे के प्रति काफी तनाव (tension) तथा विद्वेष (hostility) आदि उत्पन्न हो गई। यहाँ तक कि एक समूह के सदस्य दूसरे सदस्य को गाली भी देने लगे थे।

प्रश्न 21.
उत्तरदायित्व के बिखराव से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
उत्तरदायित्व का बिखराव- जब व्यक्ति अकेले रहता है तो उसमें परोपकारिता का भाव अधिक देखा जाता है और उसमें जरूरतमंद व्यक्ति की सहायता करने की प्रवृत्ति एवं संभावना अधि क रहती है। परंतु इसके विपरीत जब एक से ज्यादा व्यक्ति रहते हैं तो उपरोक्त व्यवहार व्यक्ति में बहुत कम देखा जाता है। हर व्यक्ति यह सोचता है कि यह काम करना सिर्फ मेरी नहीं वरन् साझे की जिम्मेवारी है। लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह है कि सभी का दायित्व समान मात्रा में होता है किसी अकेले का नहीं होता है। इस परिस्थिति में उत्तरदायित्व का बिखराव देखने को मिलता है।

प्रश्न 22.
साक्षात्कार की अवस्थाएँ क्या हैं?
उत्तर:
साक्षात्कार में साक्षात्कारकत्ता को विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका विवरण निम्नलिखित है
(i) प्रारंभिक अवस्था- यह साक्षात्कार की सबसे पहली अवस्था है। वास्तव में साक्षात्कार की सफलता उसकी प्रारंभिक तैयारी पर ही निर्भर होती है। यदि इस अवस्था में गलतियाँ होगी तो साक्षात्कार का सफल होना संभव नहीं है।

(ii) प्रश्नोत्तर की अवस्था साक्षात्कार की यह सबसे लंबी अवस्था है। इस अवस्था में साक्षात्कारकर्ता साक्षात्कारदाता से प्रश्न पूछता है और साक्षात्कारदाता उसके प्रश्नों को सावधानीपूर्वक सुनता है और कुछ रूककर उसे समझता है, उसके बाद उत्तर देता है। उसके उत्तर देते समय साक्षात्कारकर्ता उसके हाव-भाव, मुखाकृति का भी अध्ययन करता है।

(iii) समापन की अवस्था-साक्षात्कार का यह सबसे अंतिम चरण है। जब साक्षात्कारकर्ता को सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाय और ऐसा अनुभव हो कि उसे महत्त्वपूर्ण बातों की जानकारी प्राप्त हो चुकी है तो साक्षात्कार का समापन किया जाता है। इस अवस्था में साक्षात्कारदाता के मन में बननेवाली प्रतिकूल अवधारणा का निराकरण करना चाहिए। साक्षात्कारदाता भी जब यह कहता है कि और कुछ पूछना है तो उसे प्रसन्नतापूर्वक समापन की सूचना देनी चाहिए तथा सफल साक्षात्कार के लिए उसे धन्यवाद भी देना चाहिए।

प्रश्न 23.
हरितगृह के प्रभावों का वर्णन संक्षेप में करें।
उत्तर:
जलवायु में होने वाले ऐसे परिवर्तन को ही ‘हरित गृह प्रभाव’ (Green house effect) कहते हैं। हरित गृह में एक शीशे की छत होती है। जो सूर्य के प्रकाश को अंदर आने देती है। जबकि गर्म हवा को अंदर आने से रोकती है। इसी तरह वायुमंडल से निकलने वाली तीन गैसें-कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन तथा नाइट्रस ऑक्साइड सूर्य की गर्मी को अपनो ओर खींचती हैं तथा संपूर्ण पृथ्वी को एक विस्तृत हरित गृह में तब्दील कर देती हैं। इन गैसों के स्तर में वृद्धि का सिलसिला 18वीं सदी से प्रारंभ होकर अभी तक अनवरत जारी है। वृद्धि की यह रफ्तार यदि इसी ढंग से जारी रही, तो अनुमान है कि वर्ष 2100 तक (यानी आने वाले 92 वर्षों तक) पृथ्वी तल पर वायु का तापमान 3.5 डिग्री फारेनहाइट से काफी बढ़ जाएगा। केवल एक या दो डिग्री की बढोत्तरी पर वायमंडल में परिवर्तन हो सकता है तथा पूरे विश्व की कृषि बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। इसके कारण ध्रुवीय बर्फ के पहाड़ पिघल सकते हैं और समुद्र तल के जलस्तर में वृद्धि हो सकती है। फलस्वरूप तटवर्ती इलाके में बाढ़ आ सकती है।

प्रश्न 24.
समूह के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
समूह के निम्नलिखित कार्य है

  • समूह सदस्यों के आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। कुछ समूह प्राथमिक आवश्यकताओं (जैसे-भूख, प्यास, आवास, वस्त्र) की पूर्ति करते हैं तो कुछ गौण आवश्यकताओं की।
  • समूह अपने नेता के आधिपत्य की भावना की पूर्ति करता है। सदस्य नेता को पितातुल्य मानते हैं और उसे प्रतिष्ठा से सम्मानित करते हैं।
  • समूह अपने लिए आवश्यकताओं का सृजन करता है। इन नई आवश्यकताओं के सृजन से सदस्यों का संबंध समूह के साथ कायम रहता है।
  • समूह सदस्यों में भाईचारे और अपनापन का कार्य करता है। सदस्य अपने को समूह का अंग मानता है और समूह के साथ तादात्म्य स्थापित करता है।
  • समूह का कार्य सदस्यों के लिए जीवन-मूल्य निर्धारित करना है।
  • समूह लक्ष्य निर्धारित करता है। सामाजीकरण में योगदान देता है। सांस्कृतिक निरंतरता को कायम रखता है। आदर्श का कार्य करता है तथा सदस्यों के बीच सुरक्षा एवं विश्वास की भावना पैदा करता है।

प्रश्न 25.
पूर्वधारणा को परिभाषित करें।
उत्तर:
पूर्वधारणा या पूर्वाग्रह अंग्रेजी शब्द Prejudice का हिन्दी रूपान्तर है। Prejudice लैटिन भाषा के Prejudicium से निकला है, जिसका अर्थ होता है। मुकदमा से पहले न्यायालय में परीक्षा हो जाना है। इसका तात्पर्य हुआ कि बिना परीक्षा किए ही किसी समस्या का निर्णय दे दिया जाना। आधुनिक युग में द्वन्द्वों, संघर्षों इत्यादि का मुख्य कारण पूर्वधारणा ही है।

पूर्वधारणा की परिभाषा अनेक विद्वानों द्वारा दी गई। युंग (Young) ने इसे परिभाषित करते हुए कहा है, “पूर्वधारणा एक व्यक्ति की अन्य व्यक्तियों के प्रति पूर्वनिर्धारित अभिवृत्तियाँ या विचार है जो कि सांस्कृतिक मूल्यों और अभिवृत्तियों पर आधारित होते हैं।”

किम्बल युंग ने पूर्वधारणा को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया है, “पूर्वधारणा में रूढ़ि प्रक्रियाओं, किवदन्तियों एवं पौराणिक कथाओं इत्यादि का प्रयोग जिसमें एक समूह लेबल या चिह्न का प्रयोग किया जाता है ताकि एक व्यक्ति या समूह जो कि पूर्ण रूप से समझा जाता है उसका वर्गीकरण, विशेषीकरण किया जा सके एवं उसे परिभाषित किया जा सके।”

जेम्स ड्रेवर (James Drever) के शब्दों में, “पूर्वधारणा एक अभिव्यक्ति है बहुधा जो संवेगात्मक रंग की होती है। जो प्रतिकूल या अनुकूल होती है जो विशेष प्रकार के कार्य या वस्तुओं के प्रति कुछ विशेष व्यक्तियों के प्रति विशेष सिद्धान्तों के प्रति होती है।”
इस प्रकार, उपयुक्त परिभाषाओं को देखते हुए पूर्वधारणा की एक समुचित परिभाषा निम्न प्रकार से दी जा सकती है-”पूर्वधारणा एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के प्रति पहले निर्धारित मनोवृत्ति या विचार है जो सांस्कृतिक मूल्यों और मनोवृत्तियों पर आधारित है।”

प्रश्न 26.
योग के आठ अंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
योग के आठ यंग निम्नलिखित हैं-

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि।

प्रश्न 27.
असामान्य व्यवहार क्या है?
उत्तर:
असामान्य व्यवहार व्यक्ति के वैसे व्यवहार को कहा जाता है। जिसमें अचेतन का प्रभाव रहता है। यानि इस व्यवहार की चेतना व्यक्ति को नहीं रहती है। असामान्य व्यवहार का अध्ययन असामान्य मनोविज्ञान में किया जाता है। सभी अच्छे लोग जो व्यवहार करते हैं। उनसे अलग नए ढंग को ही असामान्य व्यवहार कहा जाता है। अर्थात् व्यक्ति का वैसा व्यवहार जो सामान्य से अलग होता है, असामान्य व्यवहार कहलाता है।
असामान्य व्यवहार की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • असन्नता से ग्रसित-असामान्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति हर समय निराश, परेशान, चिंता से घिरे हुए रहते हैं।
  • मनोरंजन के प्रति कम रूचि-असामान्य व्यक्तित्व वाले व्यक्ति ज्यादातर दुखी ही रहता है।
  • दक्षता की अपेक्षाकृत कम कार्यक्षमता-असामान्य व्यवहार वाले व्यक्तियों में क्षमता की बहुत कमी होती है।

प्रश्न 28.
मनोवृत्ति के कौन-कौन से घटक हैं? चर्चा करें।
उत्तर:
समाज मनोविज्ञान में मनोवृत्ति की अनेक परिभाषाएँ दी गई हैं। सचमुच में मनोवृत्ति भावात्मक तत्त्व का एक तंत्र या संगठन होता है। इस तरह से मनोवृत्ति ए० बी० सी० तत्त्वों का एक संगठन होता है। इन घटकों को निम्न रूप से देख सकते हैं

  • संज्ञानात्मक तत्त्व-संज्ञानात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति वस्तु के प्रति विश्वास से होता है।
  • भावात्मक तत्त्व-भावात्मक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में वस्तु के प्रति सुखद या दुखद भाव से होता है।
  • व्यवहारपरक तत्त्व-व्यवहारपरक तत्त्व से तात्पर्य व्यक्ति में मनोवृत्ति के पक्ष में तथा विपक्ष में क्रिया या व्यवहार करने से होता है।

मनोवृत्ति की इन तत्त्वों की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) कर्षणशक्ति-मनोवृत्ति तीनों तत्त्वों में कर्षणशक्ति होता है। कर्षणशक्ति से तालिका मनोवृत्ति की अनुकूलता तथा प्रतिकूलता की मात्रा से होता है।

(ii) बहुविधता-बहुविधता की विशेषता यह बताती है कि मनोवृत्ति के किसी तत्त्व में कितने कारक होते हैं। किसी तत्त्व में जितने कारक होंगे उसमें जटिलता भी इतनी ही अधिक होगी। जैसे सह-शिक्षा के प्रति व्यक्ति की मनोवृत्ति को संज्ञा कारक, सम्मिलित हो सकते हैं-सह-शिक्षा किस स्तर से आरंभ होना चाहिए। सह-शिक्षा के क्या लाभ हैं, सह-शिक्षा नगर में अधिक लाभप्रद होता है या शहर में आदि। बहुविधता को जटिलता भी कहा जाता है।

(iii) आत्यन्तिकता-आत्यन्तिकता से तात्पर्य इस बात से होता है कि व्यक्ति को मनोवृत्ति के तत्त्व कितने अधिक मात्रा में अनुकूल या प्रतिकूल है।

(iv) केन्द्रिता-इसमें तात्पर्य मनोवृत्ति की किसी खास तत्त्व के विशेष भूमिका से होता है। मनोवृत्ति के तीन तत्त्वों में कोई एक या दो तत्त्व अधिक प्रबल हो सकता है और तब वह अन्य दो तत्त्वों को भी अपनी ओर मोड़कर एक विशेष स्थिति उत्पन्न कर सकता है जैसे यदि किसी व्यक्ति को सह-शिक्षा की गुणवत्ता में बहुत अधिक विश्वास है अर्थात् उसका संरचनात्मक तत्त्व प्रबल है तो अन्य दो तत्त्व भी इस प्रबलता के प्रभाव में आकर एक अनुकूल मनोवृत्ति के विकास में मदद करने लगेगा।
स्पष्ट है कि मनोवृत्ति के घटकों की कुछ विशेषताएँ होती हैं। इन घटकों की विशेषताओं मनोवृत्ति की अनुकूल या प्रतिकूल होना प्रत्यक्ष रूप से आधारित है।

प्रश्न 29.
मनोदशा विकृति क्या है? इसके मुख्य प्रकार क्या हैं?
उत्तर:
मनोदशा विकृति में व्यक्ति की संवेगात्मक अवस्था में रूकावट उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति में सबसे ज्यादा अवसाद भावदशा विकार होता है। इसमें व्यक्ति के अंदर नकारात्मक भावनाएँ उत्पन्न हो जाती है।
मुख्य भावदशा विकार में तीन प्रकार के विकार होते हैं-

  • अवसादी विकार इस प्रकार के रोगियों में उदास होने, चिंता में डूबे रहने, शारीरिक तथा ‘मानसिक क्रियाओं में कमी, अकर्मण्यता, अपराधी प्रवृति आदि के लक्षण पाये जाते हैं।
  • उन्मादी विकार-उन्मादी विकार में रोगी हर समय खुश दिखाई देता है।
  • द्विध्रुवीय भावात्मक विचार-इसमें उत्साह और अवसाद दोनों के आक्षेप होते हैं।

प्रश्न 30.
प्रतिबल के संप्रत्यय का अर्थ स्पष्ट करें।।
उत्तर:
शब्द की उत्पति लैटिन के शब्द (Strictus) से हुई है। इसका अर्थ है जकड़ना या कसा हुआ। प्रतिबल प्रतिस्थति व्यक्ति में घातक या हानिकारक आशंका के भाव उत्पन्न करती है।।
अर्थात् प्रतिबल शब्द से उन परिस्थितियों का बोध होता है जिसमें व्यक्ति यह अनुभव करता है कि वह द्वंद्व के दौर से गुजर रहा है। उस द्वंद्व की तीव्रता इतनी अधिक होती है कि संवेगात्मक तथा आंगिक प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ अपनी क्षमताओं की निष्क्रियता का भी उसे अनुभव होने लगता है।

प्रश्न 31.
व्यक्ति के विकास में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
अंत:स्रावी ग्रंथियों का मनुष्य के व्यक्तित्व विकास पर विशेष उसकी शारीरिक क्रियाओं और शारीरिक रोग पर पड़ता है। वे व्यक्ति के संवेग एवं चिंतन को भी प्रभावित करते हैं। इन ग्रंथियों का प्रभाव व्यक्ति के जन्म के पहले और बाद के शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ता है। इन ग्रंथियों का एक साथ विकास नहीं होता है। यदि किसी व्यक्ति के अन्त:स्रावी ग्रंथि में उनके बाल्यकाल में कोई विकास या असंतुलन होता है तो उसका कुप्रभाव उसके आगे के जीवन पर भी पड़ेगा।

अन्तःस्रावी ग्रंथियों के अन्तर्गत थायराइड ग्रंथि, परा थायराइड ग्रंथि, मूत्र ग्रंथि जनन ग्रंथि, पीयूष ग्रंथि आदि आते हैं। इनमें कुछ स्राव होता है। इस स्राव से व्यक्ति की पाचन क्रिया, क्रियाशीलता स्तर, उत्तेजना प्रकृति प्रभावित होती है।

Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Psychology Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अभिवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
(i) परिवार एवं विद्यालय का परिवेश- विशेष रूप से जीवन के प्रारंभिक वर्षों में अभिवृत्ति • निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में विद्यालय का परिवेश अभिवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है।

(ii) संदर्भ समूह-संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। अतः ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दर्शाते हैं।

(iii) व्यक्तिगत अनुभव- अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण पारिवारिक परिवेश में या संदर्भ समूह के माध्यम से नहीं होता बल्कि इनका निर्माण प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है, जो लोगों के साथ स्वयं के जीवन के प्रति हमारी अभिवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है।

(iv) संचार माध्यम संबद्ध प्रभाव- वर्तमान समय में प्रौद्योगिकीय विकास ने दृश्य-श्रव्य माध्यम एवं इंटरनेट को एक शक्तिशाली सूचना का स्रोत बना दिया है जो अभिवृत्तियों का निर्माण एवं परिवर्तन करते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय स्तरीय पाठ्य पुस्तकें भी अभिवृत्ति निर्माण को प्रभावित करती हैं। ये स्रोत सबसे पहले संज्ञानात्मक एवं भावात्मक घटक को प्रबल बनाते हैं और बाद में व्यवहारपरक घटक को भी प्रभावित कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
प्रतिबल को दूर करने के तीन उपायों का वर्णन करें।
उत्तर:
दबावपूर्ण स्थितियों का सामना करने की उपायों के उपयोग में व्यक्ति भिन्नताएँ देखी जाती हैं। एडलर तथा पार्कर द्वारा वर्णित प्रतिबल को दूर करने के तीन उपाय निम्नलिखित हैं-

  1. कल्य अभिविन्यस्त युक्ति- दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएँ एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं ? यह सब इसके अंतर्गत आते हैं।
  2. संवेग अभिविन्यस्त युक्ति- इसके अंतर्गत मत में आभा बनाये रखने के प्रभाव तथा अपने संवेगों पर नियंत्रण सम्मिलित हो सकते हैं।
  3. परिहार अभिविन्यस्त युक्ति– इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना सम्मिलित होते हैं।

प्रश्न 3.
अभिघातज उत्तर दबाव विकार क्या है? व्याख्या करें।
उत्तर:
अभिघातज उत्तर दबाव वास्तव में विघटन की स्थिति होती है। शोर, भोड़, खराब संबंध आदि घटनाओं से यह सम्बद्ध होता है। दबाव की एक विशेषता यह भी है कि यह कारण तथा प्रभाव दोनों रूप में देखा जाता है। कभी यह आश्रित चर और कभी स्वतंत्र चर के रूप में भी देखा जाता है।

प्रश्न 4.
सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
सहयोग एवं प्रतिस्पर्धा के कारक हैं जो एक निर्धारित करते हैं कि लोग सहयोग करेंगे या प्रतिस्पर्धा ? इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं-

1. पारितोषिक संरचना- मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि व्यक्ति उद्योग करेंगे अथवा प्रतिस्पर्धा करेंगे यह पारितोषिक संरचना पर निर्भर करता है। यह संरचना वह है कि जिसमें प्रोत्साहक में परस्पर निर्भरता पाई जाती है। पुरस्कार पाना तभी संभव हो पाता है जब सभी सदस्य मिलकर प्रयत्न करते हैं। इस संरचना के अन्तर्गत कोई व्यक्ति तभी पुरस्कार प्राप्त कर सकता है जब दूसरे व्यक्ति पुरस्कार नहीं पाते हैं।

2. अंतर्वैयक्तिक संप्रेषण- संप्रेषण क्रिया और विचार-विमर्श को सुयोग्य बनाता है। इसके फलस्वरूप समूह के सदस्य एक-दूसरे को अपनी बात के द्वारा मनवा सकते हैं और एक-दूसरे के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3. परस्परता- परस्परता का अभिप्राय यह है कि लोग जिस वस्तु को प्राप्त करते हैं उसे वापस करने में कृतज्ञता महसूस करते हैं। प्रारम्भिक सहयोग आगे चलकर अधिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है प्रतिस्पर्धा की अत्यधिक प्रतिस्पर्धा को पैदा कर सकती है। अगर कोई व्यक्ति आपको सहायता करता है तो आप भी उस व्यक्ति की सहायता करना चाहते हैं।

प्रश्न 5.
बुद्धि के मुख्य प्रकारों की व्याख्या करें।
उत्तर:
बुद्धि के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है.

  1. अमूर्त बुद्धि- अमूर्त बुद्धि का अर्थ वह बुद्धि है जो अमूर्त समस्याओं का समाधान में सहायक होती है। जैसे-आत्मा क्या है ? परमात्मा क्या है ? आदि समस्याओं को समझने में जो बुद्धि सहायक होती है, उसे ही अमूर्त बुद्धि कहते हैं।
  2. मूर्त बुद्धि- वह बुद्धि तो मूर्त समस्याओं के समाधान में मदद करता है, उसे मूर्त बुद्धि कहते हैं। जैसे-मकान बनाने, हवाई जहाज बनाने, कम्प्यूटर बनाने आदि में जो बुद्धि सहायक होती है।
  3. सामाजिक बुद्धि- जो बुद्धि सामाजिक समस्याओं के समाधान में मदद करती है, उसे • सामाजिक बुद्धि कहते हैं। पारिवारिक समस्या के समाधान में सहायक होने वाली बुद्धि को भी सामाजिक बुद्धि कहते हैं।

प्रश्न 6.
पूर्वाग्रह एवं रूढी धारण में अन्तर करें।
उत्तर:
पूर्वाग्रह किसी विशेष समूह के प्रति अभिवृत्ति का उदाहरण है। अधिकांशतः यह नकारात्मक होते हैं एवं विभिन्न स्थितियों में विशिष्ट समूह के सम्बन्ध में रूढ़धारणा पर आधारित होते हैं। रूढ़धारणा किसी विशिष्ट समूह की विशेषताओं से संबद्ध विचारों का एक पुंज होती है। इस समूह के सभी सदस्य इन विशेषताओं से परिपूर्ण होते हैं। यह विशिष्ट समूह के सदस्यों के बारे में एक नकारात्मक अभिवृत्ति में पूर्वाग्रह को जन्म देती है। वहीं दूसरी ओर पूर्वाग्रह भेद-भाव के रूप में व्यवहार परक घटक में रूपान्तरित हो सकता है, जब लोक एक विशेष लक्ष्य समूह के लिए उस समूह की तुलना में जिसे वे पसंद करते हैं कम सकारात्मक तरीके से व्यवहार करने लगते हैं। प्रजाति एवं सामाजिक वर्ग या जाति पर आधारित भेदभाव की अनगिनत उदाहरण हैं जो यह दर्शाते हैं कि कैसे पूर्वाग्रह घृणा, भेदभाव निर्दोष लोगों को सामूहिक संहार की ओर से आता है।

प्रश्न 7.
संस्कृति और बुद्धि के संबंधों को लिखें।
उत्तर:
बौद्धिक योग्यता पर सांस्कृतिक कारकों के प्रभाव के संबंध में किए गए अध्ययनों से स्पष्ट है कि देहाती बच्चों की अपेक्षा शहरी बच्चे अधिक अंक प्राप्त करते हैं। क्लाइनबर्ग (1966) के अनुसार शहर का वातावरण देहाती वातावरण की अपेक्षा अधिक उत्तेजक होता है, जिसके कारण बुद्धि के विकास में तेजी आती है। इस संबंध में प्रजाति-भिन्नता का भी अध्ययन किया गया, परन्तु कोई सामान्य निष्कर्ष प्राप्त नहीं किया जा सका। कैसरजहाँ (1982) ने सामाजिक-आर्थिक स्थिति के अध्ययन में यह पाया कि निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले छात्रों की अपेक्षा उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति के छात्रों का बौद्धिक स्तर उच्च था। तामस (1983) तथा मिलग्राम (1988) ने भी समान निष्कर्ष प्राप्त किए।

प्रश्न 8.
तनाव के किन्हीं दो प्रमुख स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर:
उन घटनाओं तथा दशाओं का प्रसार अत्यधिक विस्तृत है जो दबाव को पैदा करती है। इनमें से अत्यधिक महत्वपूर्ण जीवन में घटित होने वाली ये प्रमुख दबावपूर्ण घटनाएँ हैं, जैसे- किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु या व्यक्तिगत चोट, खीझ पैदा करने वाली दैनिक जीवन की परेशानियाँ, जो बेहद आवृत्ति के साथ घटित होती हैं तथा हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली कुछ अभिघातज घटनाएँ।

1. जीवन घटनाएँ (Life incidents)-जब शिशु पैदा होता है, तभी से बड़े और छोटे, एकाएक पैदा होने वाले और धीरे-धीरे घटने वाले परिवर्तन शिशु के जीवन को प्रभावित करते रहते हैं। प्रायः इस छोटे तथा रोज होने वाले परिवर्तनों का सामना करना तो सीख लेते हैं लेकिन जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएँ दबावपूर्ण हो सकती हैं क्योंकि वे हमारी दिनचर्या को अवरुद्ध करती है और हमारे जीवन में उथल-पुथल मचा देती है। चाहे योजनाबद्ध घटनाएँ ही क्यों न हों (जैसे–घर बदलकर नए घर में जाना), जो पूर्वानुमानित न हो (जैसे-किसी दीर्घकालिक सम्बन्ध का टूट जाना) कम समयावधि में घटी हों, तो हमें उनका सामना करने में अत्यधिक परेशानी होती है।

2. परेशान करने वाली घटनाएँ (Difficult incidents)-ऐसे दबावों की प्रकृति व्यक्तिगत होती है, जो अपने दैनिक जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के कारण बनी रहती है। रोज का आना-जाना, कोलाहलपूर्ण परिवेश, बिजली-पानी की कमी, यातायात की भीड़-भाड़, झगड़ालू पड़ोसी आदि कष्ट देने वाली घटनाएँ हैं। एक गृहणी को भी विभिन्न ऐसी आकस्मिक कष्टप्रद घटनाओं का अनुभव करना पड़ता है। कुछ व्यवसायों में कुछ ऐसी परेशान करने वाली घटनाओं का सामना निरंतर करना पड़ता है। कभी-कभी कुछ ऐसी ही परेशानियों का अधिक तबाहीपूर्ण परिणाम उस व्यक्ति को भुगतना पड़ता है जो घटनाओं का सामना अकेले करता है क्योंकि बाहरी अन्य व्यक्तियों को इन परेशानियों की जानकारी भी नहीं होती। जो व्यक्ति इन परेशानियों के कारण जितना ही अधिक दबाव महसूस करता है उतना ही अधिक उसका मनोवैज्ञानिक कुशल-क्षेम निम्न स्तर का होता है।

प्रश्न 9.
असामान्य व्यवहार किन्हीं दो मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
असामान्य व्यवहार के दो मनोवैज्ञानिक कारक निम्नलिखित हैं-
(क) व्यक्तिगत अपरिपक्वता-असामान्य व्यक्ति का व्यवहार उसकी शिक्षा, आयु एवं सामाजिक स्थिति के अनुसार न होकर कुछ निम्न स्तर का रहता है। उसकी संवेगात्मक अनुभूति तथा अभिव्यक्ति उद्दीपक स्थिति के अनुसार नहीं रहा करती है। उसकी क्रियाएँ क्षणिक आवेगों से ही प्रभावित हो जाती हैं।
(ख) असुरक्षा की भावना-असामान्य व्यक्ति अपने आपको असुरक्षित अनुभव करता है। वह जीवन की सामान्य स्थितियों, कठिनाइयों एवं दायित्वों के पालन में अपने आपको उपयुक्त नहीं समझता है। उसमें आत्म विश्वास की कमी रहा करती है।

प्रश्न 10.
मानवतावादी अनुभवात्मक चिकित्सा क्या है? अथवा, मानवतावादी चिकित्सा क्या है?
उत्तर:
मानवतावादी अनुभवात्मक चिकित्सा की धारणा है कि मनुष्य की समस्याएँ अस्तित्व से जुडी होती हैं। प्रत्येक मनुष्य व्यक्तिगत संवृद्धि एवं आत्मसिद्धि पाना चाहता है। आत्मसिद्धि व्यक्ति को अधिक जटिल, संतुलित और समाकलित होने के लिए प्रेरित करती है। आत्मसिद्धि के लिए संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति आवश्यक है। पर समाज और परिवार संवेगों की उस मुक्त अभिव्यक्ति को नियंत्रित करते हैं। क्योंकि उन्हें डर होता है कि संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति से परिवार और समाज को हानि पहुँच सकती है। यह नियंत्रण सांवेगिक समाकलन की प्रक्रिया को निष्फल करके मनोविकृत व्यवहारात्मक एवं नकारात्मक संवेगों को जन्म देती है। इसलिए इसकी चिकित्सा में चिकित्सक का मुख्य काम रोगी की जागरूकता को बढ़ाना है। चिकित्सक एक अतिनिर्णयात्मक, स्वीकृतिपूर्ण वातावरण तैयार करता है ताकि रोगी अपने संवेगों की मुक्त अभिव्यक्ति कर सके तथा जटिलता, संतुलन एवं समाकलन प्राप्त कर सके। चिकित्सा की सफलता के लिए रोगी स्वयं उत्तरदायी होता है। चिकित्सक का काम केवल मार्गदर्शन करते हुए रोगियों के प्रयास को सरल बनाना है।

प्रश्न 11.
मनोवृत्ति निर्माण के मनोवैज्ञानिक कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोवृत्ति निर्माण के मनोवैज्ञानिक कारक निम्नलिखित हैं-

  • परिवार एवं विद्यालय का परिवेश-विशेष रूप से जीवन के आरंभिक वर्षों में अभिवृत्ति निर्माण करने में माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बाद में विद्यालय का परिवेश मनोवृत्ति निर्माण के लिए एक महत्त्वपूर्ण पृष्ठभूमि बन जाता है।
  • संदर्भ समूह-संदर्भ समूह एक व्यक्ति को सोचने एवं व्यवहार करने के स्वीकृत नियमों या मानकों को बताते हैं। अतः ये समूह या संस्कृति के मानकों के माध्यम से अभिवृत्तियों के अधिगम को दर्शाते हैं।
  • व्यक्तिगत अनुभव अनेक अभिवृत्तियों का निर्माण प्रत्यय व्यक्तिगत अनुभव के द्वारा होता है जो लोगों के तथा स्वयं के जीवन के प्रति हमारी मनोवृत्ति में प्रबल परिवर्तन उत्पन्न करता है।

प्रश्न 12.
द्वितीयक समूह के मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
द्वितीयक समूह के सदस्यों की संख्या बहुत अधिक होती है। अतः इसका आकार बहुत बड़ा होता है। लिण्डग्रेन ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है, “द्वितीयक समूह अधिक अवैयक्तिक होता है तथा सदस्यों के बीच औपचारिक संबंध होता है।”
द्वितीयक समूह के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • द्वितीयक समूह में व्यक्तियों की संख्या अधिक होती है।
  • इसके सदस्यों में आपस में घनिष्ठ संबंध नहीं होता है।
  • प्राथमिक समूह की तुलना में यह कम टिकाऊ होता है।
  • समूह के सदस्यों के बीच एकता का अभाव होता है।
  • इसके सदस्यों में ‘मैं’ का भाव अधिक होता है।
  • इसके सदस्य कभी-कभी आमने-सामने होते हैं।

प्रश्न 13.
एक प्रभावशाली परामर्शदाता का किन्हीं दो विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एक परामर्शदाता की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • प्रामाणिकता प्रामाणिकता का अर्थ है कि आपके व्यवहार की अभिव्यक्ति आपके मूल्यों, भावनाओं एवं आंतरिक आत्मबिंब के साथ संगत होती है।
  • दूसरे के प्रति सकारात्मक आदर-एक उपबोध्य परामर्शदाता संबंध में एक अच्छा संबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 14.
अनुरूपता क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब व्यक्ति समूह दबाव के कारण अपने व्यवहार तथा मनोवृत्ति में परिवर्तन उस दबाव द्वारा वांछित दिशा में करता है तो उसे अनुरूपता कहा जाता है। क्रेच, क्रचफील्ड तथा बैलेची के अनुसार, “अनुरूपता का सार है समूह दबावों के सामने झुक जाना” इस प्रकार अनुरूपता में

  • व्यक्ति समूह दबाव के सामने झुक जाता है,
  • समूह दबाव में समूह के मानक, मूल्यों द्वारा व्यक्ति पर दबाव डाला जाता है,
  • इस व्यवहार की उत्पत्ति मानसिक संघर्ष से होती है।

प्रश्न 15.
सकारात्मक स्वास्थ्य किसे कहते हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा अध्यात्मिक कुशल की अवस्था ही स्वास्थ्य है न कि केवल रोग अथवा अशक्तता का अभाव। सकारात्मक स्वास्थ्य के अंतर्गत निम्नलिखित निर्मितियाँ आती है “स्वस्थ शरीर, उच्च गुणवत्ता वाले व्यक्तिगत संबंध, जीवन में उद्देश्य का बोध, आत्मसम्मान, जीवन के कृत्यों में प्रवीणता, दबाव, अभिघात एवं परिवर्तन के प्रति स्थिति स्थापन।” विशेष रूप से जो कारक दबाव के प्रतिरोधक का कार्य करते हैं तथा सकारात्मक स्वास्थ्य को सुकर बनाते हैं वे हैं आहार, व्यायाम, सकारात्मक अभिवृत्ति, सकारात्मक चिंतन तथा सामाजिक अवलंब।

प्रश्न 16.
आक्रामकता के कारण क्या है?
उत्तर:
आक्रामकता के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) सहज प्रवृत्ति-आक्रामकता मानव में (जैसा कि यह पशुओं में होता है) सहज (अंतर्जात) होती है। जैविक रूप से यह सहज प्रवृत्ति आत्मरक्षा हेतु हो सकती है।

(ii) शरीर क्रियात्मक तंत्र-शरीर-क्रियात्मक तंत्र अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामकता जनिक कर सकते हैं, विशेष रूप से मस्तिष्क के कुछ ऐसे भागों को सक्रिय करके जिनकी संवेगात्मक अनुभव में भूमिका होती हैं, शरीर-क्रियात्मक भाव प्रबोधन की एक सामान्य स्थिति या सक्रियण की भावना प्रायः आक्रमण के रूप में अभिव्यक्त हो सकती है। भाव प्रबोधन के कई कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, भीड़ के कारण भी आक्रमण हो सकता है, विशेष रूप से गर्म तथा आर्द्र मौसम में।

(iii) बाल-पोषण-किसी बच्चे का पालन किस तरह से किया जाता है वह प्रायः उसी आक्रामकता को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, वे बच्चे जिनके माता-पिता शारीरिक दंड का उपयोग करते हैं, उन बच्चों की अपेक्षा जिनके माता-पिता अन्य अनुशासनिक, तकनीकों का उपयोग करते हैं, अधिक आक्रामक बन जाते हैं। ऐसा संभवतः इसलिए होता है कि माता-पिता ने आक्रामक व्यवहार का एक आदर्श उपस्थित किया है, जिसका बच्चा अनुकरण करता है। यह इसलिए भी हो सकता है कि शारीरिक दंड बच्चे को क्रोधित तथा अप्रसन्न बना दे और फिर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता है वह इस क्रोध को आक्रामक व्यवहार के द्वारा अभिव्यक्त करता है।

(iv) कुंठा-आक्रामण कुंठा की अभिव्यक्ति तथा परिणाम हो सकते हैं, अर्थात् वह संवेगात्मक स्थिति जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को किसी लक्ष्य तक पहुँचने में बाधित किया जाता है अथवा किसी ऐसी वस्तु जिसे वह पाना चाहता है, उसको प्राप्त करने से उसे रोका जाता है। व्यक्ति किसी लक्ष्य के बहुत निकट होते हुए भी उसे प्राप्त करने से वंचित रह सकता है। यह पाया गया है कि कुंठित स्थितियों में जो व्यक्ति होते हैं, वे आक्रामक व्यवहार उन लोगों की अपेक्षा अधिक प्रदर्शित करते हैं जो कुंठित नहीं होते। कुंठा के प्रभाव की जाँच करने के लिए किए गए एक प्रयोग में बच्चों को कुछ आकर्षक खिलौनों, जिन्हें वे पारदर्शी पर्दे (स्क्रीन) के पीछे से देख सकते थे, को लेने से रोका गया। इसके परिणामस्वरूप ये बच्चे, उन बच्चों की अपेक्षा, जिन्हें खिलौने उपलब्ध थे, खेल में अधिक विध्वंसक या विनाशकारी पाए गए।

प्रश्न 17.
निर्धनता के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
(i) निर्धन स्वयं अपनी निर्धनता के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस मत के अनुसार, निर्धन व्यक्तियों में योग्यता तथा अभिप्रेरणा दोनों की कमी होती है जिसके कारण वे प्रयास करके उपलब्ध अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते। सामान्यतः निर्धन व्यक्तियों के विषय में यह मत निषेधात्मक है तथा उनकी स्थिति को उत्तम बनाने में तनिक भी सहायता नहीं करता है।

(ii) निर्धनता का कारण कोई व्यक्ति नहीं अपितु एक विश्वास व्यवस्था, जीवन-शैली तथा वे मूल्य हैं जिनके साथ वह पलकर बड़ा हुआ है। यह विश्वास व्यवस्था, जिसे ‘निर्धनता की संस्कृति’ (culture of poverty) कहा जाता है, व्यक्ति को यह मनवा या स्वीकार करवा देती है कि वह तो निर्धन ही रहेगा/रहेगी तथा यह विश्वास एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता रहता है।

(iii) आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक कारक मिलकर निर्धनता का कारण बनते हैं। भेदभाव के कारण समाज के कुछ वर्गों को जीविका की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति करने के अवसर भी दिए जाते। आर्थिक व्यवस्था को सामाजिक तथा राजनीतिक शोषण के द्वारा वैषम्यपूर्ण (असंगत) तरह से विकसित किया जाता है जिससे कि निर्धन इस दौड़ से बाहर हो जाते हैं। ये सारे कारक सामाजिक असुविधा के संप्रत्यय में समाहित किए जा सकते हैं जिसके कारण निर्धन सामाजिक अन्याय, वचन, भेदभाव तथा अपवर्जन का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 18.
भीड़ अनुभव के लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
भीड़ का संदर्भ उस असुस्थता की भावना से है जिसका कारण यह है कि हमारे आस-पास बहुत अधिक व्यक्ति या वस्तुएँ होती हैं जिससे हमें भौतिक बंधन की अनुभूति होती है तथा कभी-कभी वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता का अनुभव होता है। एक विशिष्ट क्षेत्र या दिक् में बड़ी संख्या में व्यक्तियों की उपस्थिति के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही भीड़ कहलाती है। जब यह संख्या एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है तब इसके कारण वह व्यक्ति जो इस स्थिति में फंस गया है, दबाव का अनुभव करता है। इस अर्थ में भीड़ भी एक पर्यायवाची दबावकारक का उदाहरण है।
भीड़ के अनुभव के निम्नलिखित लक्षण होते हैं-

  • असुरक्षा की भावना,
  • वैयक्तिक स्वतंत्रता में न्यूनता या कमी,
  • व्यक्ति का अपने आस-पास के परिवेश के संबंध में निषेधात्मक दृष्टिकोण तथा
  • सामाजिक अंत:क्रिया पर नियंत्रण के अभाव की भावना।।

प्रश्न 19.
मानव वातावरण के विभिन्न उपागमों का वर्णन करें।
उत्तर:
मनुष्य भी अपनी शारीरिरक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए और अन्य उद्देश्यों से भी प्राकृतिक पर्यावरण के ऊपर अपना प्रभाव डालते हैं। निर्मित पर्यावरण के सारे उदाहरण पर्यावरण के ऊपर मानव प्रभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये, मानव ने जिसे हम ‘घर’ कहते हैं, उसका निर्माण प्राकृतिक पर्यावरण को परिवर्तित करके ही किया जिससे कि उन्हें एक आश्रय मिल सके। मनुष्यों के इस प्रकार के कुछ कार्य पर्यावरण को क्षति भी पहुँचा सकते हैं और अंततः स्वयं उन्हें भी अनेकानेक प्रकार से क्षति पहुँचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य उपकरणों का उपयोग करते हैं, जैसे-रेफ्रीरजेटर तथा वातानुकूलन यंत्र जो रासायनिक द्रव्य (जैसे-सी.एफ.सी. या क्लोरो-फ्लोरो कार्बन) उत्पादित करते हैं, जो वायु को प्रदूषित करने हैं तथा अंततः ऐसे शारीरिक रोगों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं, जैसे कैंसर के कुछ प्रकार।

धूम्रपान के द्वारा हमारे आस-पास की वायु प्रदूषित होती है तथा प्लास्टिक एवं धातु से बनी वस्तुओं को जलाने से पर्यावरण पर घोर विपदाकारी प्रदूषण फैलाने वाला प्रभाव होता है। वृक्षों के कटान या निर्वनीकरण के द्वारा कार्बन चक्र एवं जल चक्र में व्यवध न उत्पन्न हो सकता है। इससे अंततः उस क्षेत्र विशेष में वर्षा के स्वरूप पर प्रभाव पड़ सकता है और भू-क्षरण तथा मरुस्थलीकरण में वृद्धि हो सकती है। वे उद्योग जो निस्सारी का बहिर्वाह करते हैं तथा इस असंसाधित गंदे पानी को नदियों में प्रवाहित करते हैं, इस प्रदूषण के भयावह भौतिक (शारीरिक) तथा मनोवैज्ञानिक परिणामों से तनिक चिंतित प्रतीत नहीं होते हैं।

प्रश्न 20.
विच्छेदी स्मृतिलोप का वर्णन करें।
उत्तर:
विच्छेदी स्मृतिलोप (Dissociative amnesia) में अत्यधिक किन्तु चयनात्मक स्मृतिभ्रंश होता है जिसका कोई ज्ञात आंगिक कारण (जैसे-सिर में चोट लगना) नहीं होता है। कुछ लोग अपने अतीत के बारे में कुछ भी याद नहीं रहता है। दूसरे लोग कुछ विशिष्ट घटनाएँ, स्थान या वस्तुएँ याद नहीं कर पाते, जबकि दूसरी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति बिल्कुल ठीक होती है। यह विकार अक्सर अत्यधिक दबाव से संबंधित होता है।

प्रश्न 21.
समाजोपयोगी व्यवहार को प्रभावित करने वाले दो कारकों का वर्णन करें।
उत्तर:
समाजोपयोगी व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-

  • समाजोपकारी व्यवहार, मनुष्यों की अपनी प्रजाति के दूसरे सदस्यों की सहायता करने की एक सहज, नैसर्गिक प्रवृत्ति पर आधारित है। यह सहज प्रवृत्ति प्रजाति की उत्तरजीविता या अस्तित्व बनाए रखने में सहायक होती है।
  • समाजोपयोगी व्यवहार अधिगम से प्रभावित होता है। लोग जो ऐसे पारिवारिक परिवेश में पले-बढ़े होते हैं जो लोगों की सहायता करने का आदर्श स्थापित करते हैं, वे सहायता करने की प्रशंसा करते हैं और उन व्यक्तियों की तुलना में अधिक समाजोपकारी व्यवहार का प्रदर्शन करते है जो एक ऐसे पारिवारिक परिवेश में पले-बढ़े होते हैं जहाँ इन गुणों का अभाव होता है।

प्रश्न 22.
अभिवृत्ति और विश्वास में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक प्रभाव के कारण लोग व्यक्ति के बारे में तथा जीवन से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में एक दृष्टिकोण विकसित करते हैं तो उनके अंदर जो एक व्यवहारात्मक प्रवृत्ति के रूप में विद्यमान रहती है, अभिवृत्ति कहलाती है।
विश्वास, अभिवृत्ति के संज्ञानात्मक घटक को इंगित करते हैं तथा ऐसे आधार का निर्माण करते हैं जिन पर अभिवृत्ति टिकी है; जैसे-ईश्वर में विश्वास।

प्रश्न 23.
मनोचिकित्सा के नैतिक सिद्धांत का वर्णन करें।
उत्तर:
कुछ नैतिक सिद्धांत मानक जिनका व्यवसायी मनोचिकित्सकों द्वारा प्रयोग किया जाना चाहिए वे हैं-

  1. सेवार्थी से सुविज्ञ सहमति लेनी चाहिए।
  2. सेवार्थी की गोपनीयता बनाए रखना चाहिए।
  3. व्यक्तिगत कष्ट और व्यथा को कम करना मनोचिकित्सा के प्रत्येक प्रयासों का लक्ष्य होना चाहिए।
  4. चिकित्सक-सेवार्थी संबंध की अखंडता महत्वपूर्ण है।
  5. मानव अधिकार एवं गरिमा के लिए आदर।
  6. व्यावसायिक सक्षमता एवं कौशल आवश्यक है।

प्रश्न 24.
मनोचिकित्साओं के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
मनोचिकित्साओं के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. सेवार्थी के सुधार के संकल्प को प्रबलित करना।
  2. संवेगात्मक दबाव को कम करना।
  3. सकारात्मक विकास के लिए संभाव्यताओं को प्रकट करना।
  4. आदतों में संशोधन करना।
  5. चिंतन के प्रतिरूपों में परिवर्तन करना।
  6. आत्म-जागरुकता को बढ़ाना।
  7. अंतर्वैयक्तिक संबंधों एवं संप्रेषण में सुधार करना।
  8. निर्णयन को सुकर बनाना।
  9. जीवन में अपने विकल्पों के प्रति जागरूक होना।
  10. अपने सामाजिक पर्यावरण से एक सर्जनात्मक एवं आत्म-जागरूक तरीके से संबंधित होना।

प्रश्न 25.
व्यक्तिगत आत्म और सामाजिक आत्म में अंतर करें।
उत्तर:
व्यक्तिगत आत्म में एक ऐसा अभिविन्यास होता है जिसमें व्यक्ति अपने बारे में ही संबंध होने का अनुभव करता है।
सामाजिक आत्म में सहयोग, एकता, संबंधन, त्याग, समर्थन अथवा भागीदारी जैसे जीवन के पक्षों पर बल दिया जाता है।

प्रश्न 26.
शाब्दिक बुद्धि परीक्षण तथा अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Verbal intelligence test)-जो परीक्षण भाषा अथवा शब्दों द्वारा किये जाते हैं उन्हें शाब्दिक परीक्षण कहा जाता है। इन परीक्षणों में परीक्षक परीक्षार्थी से अनेक प्रश्न पूछता है जिनका उत्तर शब्दों के माध्यम से दिया जाता है। अत: इनको वाचिक परीक्षण भी कहा जाता है।
अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Non verbal intelligence test)-इन परीक्षणों में भाषा के प्रयोग के स्थान पर क्रियाओं का प्रयोग किया जाता है, अत: इसे क्रियात्मक परीक्षण भी कहते हैं। इनमें प्रयोज्य के सामने कुछ विशेष वस्तुएँ प्रस्तुत की जाती हैं। इन प्रयोज्यों से कुछ इधर-उधर घुमाकर दी गई समस्या के समाधान के आधार पर प्रश्न करके प्रयोज्यों की भिन्न-भिन्न प्रकार की क्रियाओं द्वारा इन परीक्षणों से बुद्धि स्तर का मापन किया जाता है। ऐसे परीक्षण उन व्यक्तियों के बुद्धि के स्तर को मापने के लिये किये जाते हैं जो भाषा का प्रयोग करने में असमर्थ हों।

प्रश्न 27.
सांवेगिक रूप से बुद्धिमान व्यक्ति की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
सांवेगिक बुद्धि के सम्प्रत्यय को सैलोबी (Salovey) एवं मेयर (Meyer) ने प्रस्तुत करते हुए कहा है कि, “अपने तथा दूसरे व्यक्तियों के संवेगों का परिवीक्षण करने, उनमें विभेदन करने की योग्यता तथा प्राप्त सूचना के अनुसार अपने चिन्तन तथा व्यवहारों को निर्देशित करने की योग्यता ही सांवेगिक बुद्धि है।” सांवेगिक बुद्धिलब्धि (emotional intelligence quotient) का उपयोग किसी व्यक्ति की सांवेगिक बुद्धि की मात्रा बताने में उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार बुद्धि लब्धि (I.Q.) का उपयोग बुद्धि की मात्रा बताने में किया जाता है।
अतः सांगिक बुद्धि के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि इसके उपयोग से विद्यार्थियों को अत्यधिक लाभ प्राप्त हुआ है। वर्तमान समय में सहयोगी व्यवहार के स्थायित्व एवं समाज विरोधी गतिविधियों का ह्रास करने में विद्यार्थियों द्वारा उपयोग अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुआ है क्योंकि इस प्रकार की गतिविधियाँ बाह्य जगत की चुनौतियों का सामना करने में अत्यधिक सिद्ध होती हैं।

प्रश्न 28.
लिबिडो क्या है? अथवा, कामवृत्ति क्या है?
उत्तर:
कामवृत्ति (Libido) के स्थित होने के स्थान और उसकी सफलता एवं असफलता के परिणामस्वरूप ही क्रमशः सामान्य और असामान्य व्यवहारों के विकसित होने की संभावना बनती है।
(a) मौखिक अवस्था (Oral stage)-इस अवस्था में कामवृत्ति (Libido) बच्चे के ओंठ तथा दाँत में रहता है। दूध पीने, खाने या दाँत से काटने पर लिबिडो के स्पर्श से बच्चे को कामानन्द प्राप्त होता है।
(b) गुदा अवस्था (Anal stage)-गुदा अवस्था में बच्चे की गुदा में लिबिडो स्थित रहता है। मल-मूत्र करते समय या रोककर रखने से लिबिडो स्पर्श होता है जिससे बच्चे को लैंगिक आनंद प्राप्त होता है।
(c) यौन प्रधान अवस्था (Phallic stage)-बच्चे की ज्ञानेन्द्रियों के ऊपरी भाग में लिबिडो यौन प्रधान अवस्था में होता है जिसके कारण ज्ञानेन्द्रियों को रगड़ने पर बच्चे को काम का सुख मिलता है।
(d) अव्यक्त अवस्था (Latency stages)-इस अवस्था तक आते-जाते लिबिडो अव्यक्त तथा निष्क्रिय बन जाता है। इसी कारण इस अवस्था में बच्चे नैतिकता की ओर अग्रसर होते हैं। .
(e) जननेन्द्रिय अवस्था (Genital stage)–जननेन्द्रिय अवस्था में लिबिडो गुप्तांग तथा शिशन के भीतरी हिस्से में चला जाता है और विषम जातीय लैंगिकता (Hetero-sexuality) के द्वारा काम का आनन्द प्राप्त होता है।

प्रश्न 29.
पहचान संकट क्या है?
उत्तर:
जब कभी भी आप अपने विषय में विचार करते हैं तो आप अपने आप से यह प्रश्न करते हैं कि ‘आप कौन हैं’ संभवतः इस प्रश्न के लिए आपका उत्तर यह होगा कि आप एक परिश्रमो तथा प्रसन्नचित्त लड़का/लड़की हैं। यह उत्तर आपको आपकी पहचान जो ‘व्यक्ति कौन है’ इसकी स्वयं की परिभाषा है, के विषय में जानकारी देता है। इस आत्म-परिभाषा में वैयक्तिक गुण; जैसे–परिश्रमी, प्रसन्नचित्त या वे गुण जो दूसरों के समान होते हैं; उदाहरण के लिए, लड़का या लड़की दोनों ही शामिल होते हैं। जबकि हम दूसरे पक्षों को समाज में अन्य व्यक्तियों से होने वाले अन्त:क्रिया के फलस्वरूप अर्जित कर सकते हैं। कभी हम स्वयं को एक अनोखे व्यक्ति के रूप में देखते हैं तो अन्य स्थिति में हम स्वयं को समूह के सदस्य के रूप में देखते हैं। पहचान स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए दोनों ही समान रूप से वैध है। पहचान हमारे आत्म-संप्रत्यय का वह पक्ष है जो हमारी समूह सदस्यता पर आधारित है। पहचान व्यक्ति को स्थापित करती है, अभिप्राय यह है कि एक बड़े सामाजिक संदर्भ में हमें यह
बताती है कि व्यक्ति क्या है और उसकी स्थिति क्या है और इस तरह समाज में हम कहाँ हैं, इसको जानने में मदद करती है।

प्रश्न 30.
व्यक्तित्व के प्रकार उपागम के सार तत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रकार उपागम (Type approach) के अनुसार व्यक्तित्व के कई प्रकार हैं। अन्तर्मुखी व्यक्तित्व (interovert personality) तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व (extrovert personality) का उल्लेख यंगने किया। इसी प्रकार केशमरने पिकनिक, आसथेनिक तथा ऐथलेटिक तीन प्रकारों का उल्लेख किया है। शेल्डनने व्यक्तित्व के तीन प्रकारों तथा इन्डोमौरफी, मेसोमौरफी तथा एकटोमौरफी का उल्लेख किया। क्रेश्मर तथा शेल्डन के उपागम में काफी समानता है, जबकि युंग के उपागम में अधिक अपवर्तता है।

प्रश्न 31.
यूस्ट्रेस तथा डिस्ट्रेस में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
यूस्ट्रेस (Eustress) और डिस्ट्रेस (Distress) कई मायनों में भिन्न होते हैं। सबसे पहले, यूस्ट्रेस अक्सर एक अल्पकालिक अनुभूति होती है और कुछ है कि हम व्यक्तियों के रूप में नियंत्रित कर सकते हैं। यूस्ट्रेस हमें और परिणाम हाथ में काम करने के लिए ऊर्जा के ध्यान में प्रेरित है। इसके विपरीत डिस्ट्रेस या तो कम या लंबी अवधि के और कुछ हमारे नियंत्रण के बाहर के रूप में माना जाता है। डिस्ट्रेस एक अप्रिय लग रहा है, जो हमें demotivates और ऊर्जा हम एक चुनौती पर काबू पाने के लिए या एक कार्य को पूरा करने की आवश्यकता है। यह भी अवसाद और चिंता संबंधी विकारों सहित अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकता है।