Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12 Geography द्वितीयक क्रियाएँ Textbook Questions and Answers

(क) नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा कथन असत्य है?
(क) हुगली के सहारे जूट के कारखाने सस्ती जल यातायात की सुविधा के कारण स्थापित हुए
(ख) चीनी, सूती वस्त्र एवं वनस्पति तेल उद्योग स्वच्छंद उद्योग हैं
(ग) खनिज तेल एवं जलविद्युत शक्ति के विकास ने उद्योगों की अवस्थिति कारक के रूप में कोयला शक्ति के महत्व को कम किया है
(घ) पत्तन नगरों ने भारत में उद्योगों को आकर्षित किया है।
उत्तर:
(घ) पत्तन नगरों ने भारत में उद्योगों को आकर्षित किया है।

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प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सी एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्वामित्व व्यक्तिगत होता है?
(क) पूँजीवाद
(ख) मिश्रित
(ग) समाजवाद
(घ) कोई भी नहीं
उत्तर:
(क) पूँजीवाद

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा एक प्रकार का उद्योग अन्य उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करता है?
(क) कुटीर उद्योग
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग
(ग) आधारभूत उद्योग
(घ) स्वच्छंद उद्योग
उत्तर:
(ग) आधारभूत उद्योग

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प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा एक जोड़ा सही मेल खाता है?
(क) स्वचालित वाहन उद्योग-लॉस एंजिल्स
(ख) पोत निर्माण उद्योग-लूसाका
(ग) वायुयान निर्माण उद्योग-फलोरेंस
(घ) लौह-इस्पात उद्योग-पिर्ट्सबर्ग
उत्तर:
(घ) लौह-इस्पात उद्योग-पिर्ट्सबर्ग

(ख) निम्नलिखित पर लगभग 30 शब्दों में टिप्पणी लिखिए:

प्रश्न 1.
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग
2. विनिर्माण उद्योग
3. स्वच्छंद उद्योग
उत्तर:
1. उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग:
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग में यंत्रमानव, कंप्यूटर आधारित डिजाइन (कैड) तथा निर्माण, धातु पिघलाने एवं शोधन के इलेक्ट्रोनिक नियंत्रण एवं नए रासायनिक व औषधीय उत्पाद प्रमुख स्थान रखते हैं। इन उद्योगों के साफ-सुथरे, बिखरे कार्यालय एवं प्रयोगशालाएँ देखने को मिलती हैं। वे उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग जो प्रादेशिक संकेंद्रीत हैं, आत्मनिर्भर एवं उच्च विशिष्टता लिए होते हैं उन्हें प्रौद्योगिक ध्रुव कहा जाता है।

2. विनिर्माण उद्योग:
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है हाथ से बनाना फिर भी इसमें यंत्रों द्वारा बनाया गया सामान भी सम्मिलित किया जाता है। यह एक परमावश्यक प्रक्रिया है। जिसमें कच्चे माल को स्थानीय या दूरस्थ बाजार में बेचने के लिए ऊँचे मूल्य के तैयार माल में परिवर्तित कर दिया जाता है। वैचारिक दृष्टिकोण से उद्योग एक निर्माण इकाई होती है जिसकी भौगोलिक स्थिति अलग होती है एवं प्रबंध तंत्र के अंतर्गत लेखा-बही एवं रिकार्ड का रखरखाव रखा जाता है। हस्तशिल्प कार्य से लेकर लोहे व इस्पात को गढ़ना, प्लास्टिक के खिलौने बनाना, कंप्यूटर के अति सूक्ष्म घटकों को जोड़ना एवं अंतरिक्ष यान निर्माण इत्यादि सभी प्रकार के उत्पादन को निर्माण के अंतर्गत माना जाता है।

3.स्वच्छंद उद्योग:
स्वच्छंद उद्योग व्यापक विविधता वाले स्थानों में स्थित होते हैं। ये किसी विशिष्ट कच्चे माल जिनके भार में कमी हो रही है अथवा नहीं, पर निर्भर नहीं रहते हैं। यह उद्योग संघटक पुों पर निर्भर रहते हैं, जो कहीं से भी प्राप्त किए जा सकते हैं। इसमें उत्पादन कम मात्रा में होता है, एवं श्रमिकों की भी कम आवश्यकता होती है। सामान्यतः ये उद्योग प्रदूषण नहीं फैलाते। इनकी स्थापना में महत्वपूर्ण कारक सड़कों के जाल द्वारा अभिगम्यता होती है।

II. निम्न प्रश्नों का 150 शब्दों में उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
प्राथमिक एवं द्वितीयक गतिविधियों में क्या अंतर है?
उत्तर:
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प्रश्न 2.
विश्व के विकसित देशों के उद्योगों के संदर्भ में आधुनिक औद्योगिक क्रियाओं, मुख्य प्रवृतियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक निर्माण की विशेषताएँ हैं –

  1. एक एक जटिल प्रौद्योगिकी यंत्र
  2. अत्यधिक विशिष्टीकरण एवं श्रम विभाजन के द्वारा कम प्रयास एवं अल्प लागत से अधिक माल का उत्पादन करना
  3. अधिक पूँजी
  4. बड़े संगठन एवं
  5. प्रशासकीय अधिकारी-वर्ग।

आधुनिक निर्माण के मुख्य संकेन्द्रण कुछ ही स्थानों में सीमित हैं। विश्व के कुल स्थलीय भाग के 10 प्रतिशत से कम भू-भाग पर इनका विस्तार है। यह देश आर्थिक एवं राजनीतिक शक्ति के केन्द्र बन गए हैं। कुल क्षेत्र को आच्छादित करने की दृष्टि से विनिर्माण स्थल, प्रक्रियाओं की अत्यधिक गहनता के कारण बहुत कम स्पष्ट है तथा कृषि की अपेक्षा बहुत छोटे क्षेत्रों में संकेन्द्रित हैं।

विकसित देशों के उद्योगों में आधुनिक स्वचालित यंत्रीकरण की विकसित अवस्था है। जिससे उद्योग अपनी लागत घटाकर लाभ को बढ़ाते हैं। इनके पास व्यापक बाजार है। पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भागों में अत्यधिक परिवहन तंत्र विकसित होने के कारण सदैव इन क्षेत्रों में उद्योगों का संकेंद्रण हुआ है। आधुनिक उद्योग अपृथक्करणीय ढंग से परिवहन तंत्र से जुड़े हैं। इन उद्योग को कच्चा माल अपेक्षाकृत सस्ता एवं सरलता से मिल जाता है।

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प्रश्न 3.
अधिकतर देशों में उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग प्रमुख महानगरों के परिधि क्षेत्रों में ही क्यों विकसित हो रहे हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विगत कुछ दशकों से औद्योगीकरण में नवीन प्रवृत्तियों का विकास हुआ है, अतः उच्च प्रौद्योगिक उद्योगों का तीव्रता से विकास और विस्तार हो रहा है। उच्च तकनीकी उद्योग स्वच्छंद उद्योगों की श्रेणी में आते हैं और स्वच्छंद उद्योग की प्रवृत्ति उद्देश्य आधारित औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित होने की होती है। अत: ये उद्योग मुख्य महानगरों के परिधि क्षेत्र में विकसित हो रहे हैं। परिधि क्षेत्र, नगर के आंतरिक भाग की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करते हैं।

  1. जहाँ तक मंजिलें कारखाने तथा भविष्य में विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध होता है।
  2. नगर-परिधि पर भूमि का मूल्य कम होता है अतः भूमि सस्ते दामों पर मिल जाती है।
  3. यह मुख्य सड़कों तथा वाहन मार्गों द्वारा नगर से जुड़ा होता है।
  4. यहाँ का पर्यावरण शांत और सुखद होता है, क्योंकि यह हरित पट्टी क्षेत्र होता है।
  5. यहाँ निकटवर्ती आवासीय क्षेत्र एवं पड़ोसी ग्रामों से प्रतिदिन आने-जाने वाले लोगों से श्रम की आपूर्ति होती है।

प्रश्न 4.
अफ्रीका में अपरिमित प्राकृतिक संसाधन हैं फिर भी औद्योगिक दृष्टि से यह बहुत पिछड़ा महाद्वीप है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
कच्चे माल को कारखाने तक लाने के लिए और परिष्कृत सामग्री को बाजार तक पहुँचाने के लिए तीव्र और सक्षम परिवहन सुविधाएँ औद्योगिक विकास के लिए अत्यावश्यक है। परिवहन लागत किसी औद्योगिक इकाई की अवस्थिति को निश्चित करने में महत्वपूर्ण कारक हैं। किसी उद्योग का आकार उसमें निवेदित पूँजी, कार्यरत, श्रमिकों की संख्या एवं उत्पादन की मात्रा पर निर्भर करता है। उद्योगों की अवस्थिति में श्रम एक प्रमुख कारक है। उद्योगों के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।

जबकि अफ्रीकी देशों के पास इन सभी संसाधनों के साथ कुशल श्रमिकों की कमी भी है। उद्योगों की स्थापना में सबसे प्रमुख कारक उसके द्वारा उत्पादित माल के लिए उपलब्ध बाजार का होना आवश्यक है। उस क्षेत्र में तैयार वस्तुओं की मांग एवं वहाँ के निवासियों में खरीदने की क्षमता होनी चाहिए। लेकिन अफ्रीकी देश गरीब होने के कारण महंगे उत्पाद नहीं खरीद सकते। इनके अतिरिक्त विद्युत, जल आपूर्ति की कमियों, भौगोलिक परिस्थितियों, आधुनिक तकनीक, शिक्षा आदि की कमी होने के कारण अपरिमित प्राकृतिक संसाधन होते हुए भी अफ्रीका औद्योगिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा महाद्वीप है।

Bihar Board Class 12 Geography द्वितीयक क्रियाएँ Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आधारभूत उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे उद्योग जिनके उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
आधारभूत उद्योग का एक उदाहरण दो।
उत्तर:
लौह-इस्पात उद्योग।

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प्रश्न 3.
भारत के पाँच लोहा तथा इस्पात केन्द्रों वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर:
जमशेदपुर (झारखण्ड), बोकारो (झारखंड), भिलाई (छत्तीसगढ़), राऊरकेला (उड़ीसा), भद्रावती (कर्नाटक)।

प्रश्न 4.
उद्योगों की अवस्थिति का निर्माण करते समय महत्त्वपूर्ण कारक क्या हैं?
उत्तर:
मात्रा तथा गुणवता के रूप में जल आपूर्ति महत्वपूर्ण कारक हैं।

प्रश्न 5.
उद्योगों की स्थापना करते समय किन सुविधाओं को वरीयता दी जानी चाहिए?
उत्तर:
उद्योगों की स्थापना करते समय रहन-सहन की सभी सुविधाओं को वरीयता दी जानी चाहिए।

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प्रश्न 6.
विनिर्माण की परिभाषा क्या है?
उत्तर:
विनिर्माण की परिभाषा है – जैविक अथवा अजैविक पदार्थों का एक नए उत्पाद के रूप में यांत्रिक तथा रसायनिक परिवर्तन।

प्रश्न 7.
उद्योगों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है?
उत्तर:
आकार, उत्पाद तथा कच्चे माल की प्रकृति एवं स्वामित्व।

प्रश्न 8.
विनिर्माण की सबसे छोटी इकाई क्या है?
उत्तर:
कुटीर या गृह उद्योग विनिर्माण की सबसे छोटी इकाई है।

प्रश्न 9.
यंत्रीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
यंत्रीकरण से तात्पर्य है किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए मशीनों का प्रयोग करना।

प्रश्न 10.
कृषि कारखाने किसे कहते हैं?
उत्तर:
कृषि व्यापार एक प्रकार की व्यापारिक कृषि है जो औद्योगिक पैमाने पर की जाती है इसका वित्त-पोषण प्रायः वह व्यापार करता है जिसकी मुख्य रुचि कृषि के बाहर हो। कृषि व्यापार फार्म से आकार में बड़े, यंत्रीकृत, रसायनों पर निर्भर एवं अच्छी संरचना वाले होते हैं। इनको ‘कृषि कारखाने’ भी कहते हैं।

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प्रश्न 11.
प्रौद्योगिक ध्रुव किसे कहा जाता है? प्रौद्योगिक ध्रुव के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
इस समय जो भी प्रादेशिक व स्थानीय विकास की योजनाएँ बन रही हैं उनमें नियोजित व्यवसाय पार्क का निर्माण किया जा रहा है। वे उच्च प्रौद्योगिक उद्योग जो प्रादेशिक संकेंद्रित है, आत्मनिर्भर एवं उच्च विशिष्टता लिए होते हैं उन्हें प्रौद्योगिक ध्रुव कहा जाता है। सेन फ्रांसिस्को के समीप सिलीकन घाटी एवं सियटल के समीप सिलीकन वन प्रौद्योगिक ध्रुव के अच्छे उदाहरण हैं।

प्रश्न 12.
पृथ्वी पर सबसे अधिक पाई जाने वाली किसी एक धातु का नाम बताओ।
उत्तर:
लोहा विशिष्ट – चुम्बकीय गुण सहित।

प्रश्न 13.
खनिज तेल पर आधारित परिष्करणशालाओं के कुछ सामान्य उपयोगी नाम बताओ।
उत्तर:
उर्वरक, प्लास्टिक और कृत्रिम रेशे जैसे रेयान आदि मुख्य उद्योग हैं।

प्रश्न 14.
सिलिकन घाटी किसका प्रतिफल है?
उत्तर:
सिलिकन घाटी का विकास फ्रेडरिक टरमान के कार्यों का प्रतिफल है।

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प्रश्न 15.
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर:
‘हाथ से बनाना’ फिर भी इसमें यंत्रों द्वारा बनाया गया सामान सम्मिलित किया जाता है। यह एक परमावश्यक प्रक्रिया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारी उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
भारी उद्योग (Heavy Industry) खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारी उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। ये उद्योग किसी देश के औद्योगिकरण की आधारशिला लोहा-इस्पात उद्योग, मशीनरी, औजार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।

प्रश्न 2.
विनिर्माण उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कच्चे माल (Raw material) को मशीनों की सहायता से रूप बदलकर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक या गौण या द्वितीयक (Secondary) व्यवसाय है। इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य वृद्धि हो जाती है। जैसे लड़की की लुग्दी तथा कागज बनाया जाता है। कपास से धागा और कपड़ा बनाया जाता है। खनिज लोहे से इस्पात तथा कलपुर्जे बनाए जाते हैं।

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प्रश्न 3.
‘संसाधनों के उपयोग में निर्माण उद्योगों की एक प्रधान भूमिका है।’ व्याख्या करो।
उत्तर:
कच्चा माल एक संसाधन का रूप धारण करते हैं, जब उन्हें उद्योगों में उपयोग करके निर्मित वस्तुएँ तैयार की जाती हैं। निर्माण उद्योगों में प्रयोग से वस्तुएँ अधिक मूल्यवान तथा उपयोगी हो जाती है। जो देश निर्माण उद्योगों द्वारा वस्तुएँ तैयार करके निर्यात करते हैं, उनकी राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है। जो देश वस्तुओं का निर्माण करने में असमर्थ है, वे कच्चा माल कम मूल्य पर निर्यात कर देते हैं तथा अधिक मूल्य पर तैयार माल आयात करते हैं। इस प्रकार निर्माण उद्योगों द्वारा ही संसाधनों का उपयोग करके देश में धन की वृद्धि की जा सकती है।

प्रश्न 4.
उद्योगों का वर्गीकरण किन विभिन्न प्रकारों से किया जा सकता है?
उत्तर:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
1. उद्योगों के आकार तथा कार्य क्षमता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) बड़े पैमाने के उद्योग।
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग।

2. औद्योगिक विकास के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कुटीर उद्योग।
(ख) आधुनिक शिल्प उद्योग।

3. स्वामित्व के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं –
(क) सार्वजनिक उद्योग (जिनकी व्यवस्था सरकार स्वयं करती है)
(ख) निजी उद्योग।
(ग) सरकारी उद्योग।

4.  कच्चे माल के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कृषि पर आधारित उद्योग।
(ख) खनिजों पर आधारित उद्योग।

5. वस्तुओं के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) हल्के उद्योग।
(ख) भारी उद्योग।

6. इसी प्रकार उद्योगों को अनेक विभिन्न वर्गों में रखा गया है। जैसे- हस्तकला, ग्रामीण उद्योग, घरेलू उद्योग आदि।

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प्रश्न 5.
औद्योगिक निवेश और उत्पादन में क्या अंतर है?
उत्तर:
औद्योगिक निवेश (Inputs) आधुनिक निर्माण उद्योग को स्थापित करने के लिए कच्चा माल, शक्ति, पूँजी, श्रमिक तथा मशीनरी की आवश्यकता पड़ती है। इन सभी कारकों को उत्पादन अपने उद्योग में लगाकर इच्छित वस्तुओं का निर्माण करता है। इन सभी कारकों को औद्योगिक निवेश पर ही किसी उद्योग के उत्पादन तथा लाभ का पता चलता है। प्रत्येक उद्योग के लिए कच्चा माल विभिन्न प्रकार का हो सकता है। परंतु श्रमिक तथा पूँजी सभी प्रकार के उद्योगों के लिए आवश्यक निवेश हैं।

उत्पादन (Outputs):
किसी निर्माण उद्योग से बनकर तैयार वस्तुओं (Finished products) को उस उद्योग का उत्पादन कहते हैं। यह बड़े पैमाने पर मशीनों द्वारा तथा कम लागत पर किया जाता है ताकि अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो। उत्पादन गुणवत्ता तथा लागत एक अच्छे लाभकारी स्थानीयकरण पर निर्भर करता है जहाँ उस उद्योग के लिए कच्चे माल, शक्ति के साधन, कुशल श्रमिक, बाजार और यातायात की सुविधाएँ प्राप्त हो।

प्रश्न 6.
उद्योगों का स्थायीकरण किन तत्त्वों पर निर्भर करता है? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर:
किसी स्थान पर उद्योगों की स्थापना के लिए कुछ भौगोलिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक तत्वों का होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए कच्चा माल, शक्ति के साधन, श्रम, पूँजी और बाजार उद्योगों के महत्वपूर्ण निर्धारक है। इन्हें उद्योगों के आधारभूत कारक भी कहते हैं। ये सभी कारक मिलजुलकर प्रभाव डालते हैं। प्रत्येक कारक का महत्व समय, स्थान और उद्योगों के अनुसार बदलता रहता है। इन अनुकूल तत्वों के कारण किसी स्थान पर अनेक उद्योग स्थापित हो जाते हैं। यह क्षेत्र एक औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Region) बन जाता है। उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों को दो वर्गों में बांटा जाता है –

  1. भौगोलिक कारक
  2. गैर-भौगोलिक कारक।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
अपने ही देश की सरकार द्वारा सथापित किए गए उद्योग को राष्ट्रीय उद्योग कहते हैं। परंतु जब कोई उद्योग अन्य देश के सहयोग से स्थापित किया जाए तो उसे बहुराष्ट्रीय (Multi national) उद्योग कहते हैं। इस उद्योग में कच्चा माल, श्रमिक तथा बाजार की सुविधा स्थानीय देश द्वारा की जाती है जहाँ पर यह उद्योग स्थापित किया जाता है, परंतु उद्योग के लिए विदेशी पूँजी तथा तकनीकी ज्ञान की सहायता विदेश से प्राप्त होती है। संसार के विकसित देशों में भारत तथा कई विकासशील देशों में ऐसे उद्योग स्थापित किए गए हैं। उदाहरण के लिए कोका कोला एक बहुराष्ट्रीय उद्यम है।

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प्रश्न 8.
औद्योगिक क्रांति के भारत के औद्योगिक क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
18 वीं शताब्दी में यूरोप में औद्योगिक क्रांति के प्रभाव भारत में भी पड़े। देश में परम्परागत हस्तशिल्प तथा घरेलू उद्योग लगभग समाप्त हो गए क्योंकि उद्योग फैक्टरी उद्योग का मुकाबला न कर सके। औद्योगिक कामगारों की संख्या में वृद्धि होने लगी। नगरीय क्षेत्रों में कामगार प्रवास करने लगे, जैसे मुम्बई तथा कोलकाता में। उद्योगों के लिए बाजार अर्थव्यवस्था का महत्व बढ़ गया। देश के कच्चे माल यूरोपीय देशों को भेजे जाने लगे तथा भारत यूरोपीय माल की एक मंडी बन कर रह गया।

प्रश्न 9.
सूती वस्त्र उद्योग की क्या समस्याएँ हैं?
उत्तर:
सूती वस्त्र उद्योग भारत का सबसे बड़ा संगठित उद्योग है परंतु इस उद्योग की कई समस्याएँ हैं –

  1. देश में लंबे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है। यह कपास विदेशों से आयात करनी पड़ती है।
  2. सूती कपड़ा मिलों की मशीनरी पुरानी है जिससे उत्पादकता कम है तथा लागत अधिक है।
  3. मशीनरी के आधुनिकीकरण के लिए स्वचालित मशीनें लगाना आवश्यक है। इसके लिए पर्याप्त पूँजी की आवश्यकता है।
  4. देश में हथकरघा उद्योग से स्पर्धा है तथा विदेशी बाजार में चीन तथा जापान के तैयार वस्त्र से स्पर्धा तीव्र है।

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प्रश्न 10.
वे कौन-से वृहत् कारक हैं जो उद्योग-धंधों की अवस्थिति पर अपना प्रभाव डाल रहे हैं?
उत्तर:
किसी उद्योग की स्थापना भौगोलिक तथा अभौगोलिक दोनों प्रकार के कारकों पर निर्भर करती है। कच्चे माल से निकटता, शक्ति के साधन, जलवायु, श्रमिक, परिवहन साधन, जल साधन आदि भौगोलिक तत्व हैं। परंतु निम्नलिखित अभौगोलिक कारक (Non-geographic factors) भी उद्योगों की स्थापना में सहायक होते हैं –

  1. पर्याप्त पूँजी का उपलब्ध होना।
  2. कुशल प्रबंध व्यवस्था।
  3. बाजार से निकटता।
  4. माँग का अधिक होना।
  5. सरकारी नीति।
  6. ऐतिहासिक कारणों से उद्योगों का आरंभ होना।

प्रश्न 11.
(क) लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?
(ख) निरौद्योगीकरण किसे कहते हैं?
(ग) पुनरौद्योगीकरण की अत्यधिक विकसित देशों में क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
(क) लोहा-इस्पात उद्योग अन्य सभी उद्योगो को आधार प्रदान करता है, इसलिए उसे आधारभूत उद्योग भी कहा जाता है। इसे भारी उद्योग भी कहा जा सकता है। क्योंकि इसमें भारी कच्चे पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रयोग करते हैं तथा इसके उत्पाद भी भारी होते हैं। यह उद्योग भारी तथा अधिक स्थान घेरने वाले कच्चे पदार्थों जैसे- कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज और चूना पत्थर पर आधारित है।

(ख) निर्माण उद्योग हास को निरौद्योगीकरण कहा जाता है। विकसित देशों में निरौद्योगीकरण के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं।

  • अधिकांश निर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग।
  • विदेशों में अत्यंत सस्ती दर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा।
  • निम्न श्रमिक उत्पादकता (प्रति व्यक्ति उत्पादन) तथा नयी मशीनों के लिए निवेश में कमी के फलस्वरूप इन उत्पादनों का मूल्य अधिक ऊँचा होगा।
  • उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों का वरीयता देने में अधिक पसंद करना।
  • उच्च ब्याज दर के कारण विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का महंगी होना।

(ग) पुनरौद्योगीकरण से तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ क्षेत्रों में विकास करना है। जहाँ परम्परागत उद्योगों में हास हो गया है। पुनरौद्योगीकरण की विशेषताएँ निम्न हैं –

  • उच्च प्रौद्योगिकी फर्मों की वृद्धि-ये ऐसी फर्म है जहाँ पर उच्च वैज्ञानिक शोध एवं विकास पर आधारित अति उन्नत उत्पादों का उत्पादन होता है, जैसे दवाइयों तथा सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान।
  • ऐसी नई फर्म जो बहुधा, उच्च कुशलता वाले कम श्रम शक्ति के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करते हैं।
  • वे नई फमैं जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों में सीमांतों पर अवस्थित है।

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये –

  1. छोटे पैमाने के उद्योग।
  2. सिलिकन घाटी।

उत्तर:
1. छोटे पैमाने के उद्योग-देखें

2. भाग 1 ( अभ्यास प्रश्न) का उत्तर। सिलिकन घाटी का विकास फ्रेंडरिक टरमान के कार्यों का प्रतिफल है। 1930 में टरमान ने अपने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के छात्रों को उसी क्षेत्र में रहकर अपने कारखाने स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया। ऐसी एक कम्पनी हालिट और डेविड पैकर्ड द्वारा विश्वविद्यालय परिसर के निकट एक गैराज में स्थापित किया गया था।

आज यह विश्व का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक फर्म है। 1950 के दशक के अंत में टरमान ने स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय को तकनीकी फर्म के रूप में विकसित करने के लिए आग्रह किया। इसने दूसरे तकनीकी उद्योगों को भी आकर्षित किया है। विश्वविद्यालयों में शोधकार्य तथा उच्च तकनीक क्रियाओं के बीच संबंध ही इन उद्योगों की सफलता की कुंजी है।

प्रश्न 13.
उद्योगों की परम्परागत अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों की अवस्थिति को विभिन्न कारक नियंत्रित करते हैं। इन्हें भौगोलिक तथा अभौगोलिक कारकों में बाँटा जाता है। भौगोलिक कारकों में उच्चावच, जलवायु, कच्चा माल, ऊर्जा-स्रोत, श्रम, बाजार तथा परिवहन के साधन सम्मिलित किए जाते हैं। जबकि अभौगोलिक कारकों में सरकारी नीतियों, पूँजी, बाजार तथा प्रबंध-व्यवस्था आते हैं।

उदाहरण के लिए लंकाशायर (यू.के.) में सूती वस्त्रोद्योग की अवस्थिति, यहाँ पर आई जलवायु, स्वच्छ पानी, कोयले की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के संदर्भ में नहीं समझाया जा सकता है। लंकाशायर को इसलिए निरपेक्ष कारकों की अपेक्षा समय तथा स्थान का अधिक लाभ प्राप्त था। इन कमियों से छुटकारा पाने के लिए आज औद्योगिक अवस्थिति की विवेचना अब कच्चे माल का संस्करण तथा वितरण, सरकार, पर्यावरण, औद्योगिक प्रोत्साहन जड़त्व तथा मानवीय कारकों के संदर्भ में की जाती है। ये सभी कारक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इन कारकों का सापेक्ष महत्व समय, स्थान, उद्योगों तथा अर्थव्यवस्था के प्रकार के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।

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प्रश्न 14.
लोहा-इस्पात उद्योग तथा पेट्रोरसायन उद्योग के विश्व वितरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लोहा-इस्पात उद्योग:
लोहा विशिष्ट-चुम्बकीय गुण सहित एक अपेक्षाकृत सघन धातु है। यह पृथ्वी पर सबसे अधिक मात्रा में पायी जाने वाली धातु है, किंतु यह प्रकृति में शुद्ध रूप से नहीं पायी जाती बल्कि अयस्क या यौगिक रूप में मिलती है। खनिज तेलों का परिवहन बड़े-बड़े टैंकरों तथा पाइप लाइनों द्वारा आंतरिक अवस्थित स्थानों तक होता है। शिकागो, टोलडो फिलाडोफ्रिया डेलावेयर एवं लॉस एंजिल्स में वृहत् आकार के पेट्रोरसायनिक संकुल स्थापित किए गए हैं।

यूरोप के पेट्रोरसायन संकुलों की अवस्थिति मुख्य रूप से बाजारों के निकट है। मुख्य संकुलां की अवस्थिति दक्षिणी-उत्तर सागर तथा इंग्लिश चैनल के तटीय क्षेत्र में जर्मनी के रुर क्षेत्र, फ्रांस में हात्रे की रोबिन तथा मार्सेल्स क्षेत्र है। भारत में ट्राम्बे, बड़ोदरा तथा बोंगाई गाँव में स्थापित है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
(क) लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?
(ख) निरौद्योगीकरण किसे कहते हैं?
(ग) पुनरौद्योगीकरण की अत्यधिक विकसित देशों में क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
(क) लोहा-इस्पात उद्योग अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है, इसलिए उसे आधारभूत उद्योग भी कहा जाता है। इसे भारी उद्योग भी कहा जा सकता है। क्योंकि इसमें भारी कच्चे पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रयोग करते हैं तथा इसके उत्पाद भी भारी होते हैं। यह उद्योग भारी तथा अधिक स्थान घेरने वाले कच्चे पदार्थों जैसे- कोयला, लौह अयस्क, मैगनीज और चूना पत्थर पर आधारित है।

(ख) निर्माण उद्योग ह्रास को निरौद्योगीकरण कहा जाता है। विकसित देशों में निरौद्योगीकरण के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं।

  • अधिकांश निर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग।
  • विदेशों में अत्यंत सस्ती दर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा।
  • निम्न श्रमिक उत्पादकता (प्रति व्यक्ति उत्पादन) तथा नयी मशीनों के लिए निवेश में कमी के फलस्वरूप इन उत्पादनों का मूल्य अधिक ऊँचा होगा।
  • उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों को वरीयता देने में अधिक पसंद करना।
  • उच्च ब्याज दर के कारण विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का महंगी होना।

(ग) पुनरौद्योगीकरण से तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ क्षेत्रों में विकास करना है। जहाँ परम्परागत उद्योगों में हास हो गया है। पुनरौद्योगीकरण की विशेषताएँ निम्न हैं –

  • उच्च प्रौद्योगिकी फर्मों की वृद्धि-ये ऐसी फर्म है जहाँ पर उच्च वैज्ञानिक शोध एवं विकास पर आधारित अति उन्नत उत्पादों का उत्पादन होता है, जैसे दवाइयों तथा सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान।
  • ऐसी नई फर्म जो बहुधा, उच्च कुशलता वाले कम श्रम शक्ति के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करते हैं।
  • वे नई फमें जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों में सीमांतों पर अवस्थित है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित से आप क्या समझते हैं –
(क) प्राकृतिक रेशा उद्योग
(ख) कृत्रिम रेशा उद्योग
(ग) व्यक्तिगत क्षेत्र
(घ) सार्वजनिक क्षेत्र
(ङ) भारी उद्योग
(च) कृषि उद्योग
उत्तर:
(क) प्राकृतिक रेशा उद्योग-वस्त्र निर्माण मानव का एक प्राथमिक उद्योग है। आरंभ में यह उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में उन्नत हुआ। उस समय प्राकृतिक साधनों से प्राप्त रेशों द्वारा वस्त्र बनाए जाते थे। प्राकृतिक रेशे कृषि साधनों, वन साधनों और पशु साधनों से प्राप्त होते हैं। जैसे –

  • कृषि साधनों से प्राप्त रेशे, कपास, फ्लैक्स तथा पटसन।
  • पशुओं से प्राप्त रेशे, ऊन।
  • वन साधनों से प्राप्त रेशे, रेशम।

इन सभी रेशों को प्राकृतिक रेशा कहा जाता है जिनका प्रयोग सूती, ऊनी तथा रेशमी वस्त्र उद्योग में किया जाता है। संसार में तीन-चौथाई उद्योग प्राकृतिक रेशों का होता है।

(ख) कृत्रिम रेशा उद्योग-आजकल कृत्रिम रेशों का उपयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। ये रेशे कोणधारी वनों से लकड़ी की लुग्दी, खराब रुई और रसायनिक पदार्थों के मेल से बनाए जाते हैं। ये रेशे अनेक अनुसंधानों द्वारा नवीनतम खोज है। इनमें रेयन, नाइलोन, डेक्रोन, टेरीलीन आदि रेशे कृत्रिम रेशे कहलाते हैं।

(ग) व्यक्तिगत क्षेत्र-जब किसी उद्योग की सारी पूँजी, लाभ, हानि, सम्पत्ति एक ही व्यक्ति की होती है तो उसे व्यक्तिगत क्षेत्र कहा जाता है। भारत में कई पूँजीपतियों द्वारा चलाए गए संगठन या उद्योग व्यक्तिगत क्षेत्र में गिने जाते हैं।

(घ) सार्वजनिक क्षेत्र-जब किसी उद्योग या उद्यम की पूँजी और सम्पत्ति के अधिकार जनता तथा समुदाय के हाथ में होते हैं तो उसे सार्वजनिक क्षेत्र कहा जाता है। उस सम्पत्ति का स्वामित्व सारे समुदाय का होता है। जैसे- सरकारी भवन, स्कूल, राष्ट्रीय उद्योग इसी क्षेत्र में आते हैं। भारत में भिलाई आदि लोहा-इस्पात उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित किए गए हैं।

(ङ) भारी उद्योग-भारी उद्योग वे उद्योग हैं जिनमें शक्तिचालित मशीनों का अधिक प्रयोग होता है। लोहा-इस्पात भारी रसायन, वायुयान, इंजीनियरिंग, जलयान उद्योगों को भारी उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों में बड़े पैमाने पर विषय यंत्र तथा मशीनें बनाई जाती हैं। इन उद्योगों में अधिक स्थान पर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ लगाई जाती हैं। इनमें नियमित प्रबंध तथा संगठन की आवश्यकता होती है।

(च) कृषि उद्योग-कृषि उद्योग मुख्यतः प्राथमिक उद्योग (Primary Industries) होते हैं। इन उद्योगों द्वारा कृषि पदार्थों का रूप बदलकर उन्हें उपयोगी तथा मूल्यवान बनाया जाता है। जैसे- सूती कपड़ा ये उद्योग कृषि पदार्थों पर निर्भर करते हैं। जैसे – पटसन उद्योग, चीनी उद्योग आदि । एशिया के अधिकतर देशों में कृषि उद्योग का विकास हुआ है। लेकिन भारी उद्योगों की कमी है।

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प्रश्न 3.
उच्च प्रौद्योगिकी उद्योग कई देशों में मुख्य महानगरों के परिधि क्षेत्रों की ओर क्यों आकर्षित हो रहे हैं, इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
विगत कुछ दशकों से औद्योगीकरण में नवीन प्रवृत्तियों का विकास हुआ है, अत: उच्च प्रौद्योगिक उद्योगों का तीव्रता से विकास और विस्तार हो रहा है। उच्च तकनीकी उद्योग स्वच्छंद उद्योगों की श्रेणी में आते हैं और स्वच्छेद उद्योग की प्रवृत्ति उद्देश्य आधारित औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विकसित होने की होती है। अतः ये उद्योग मुख्य महानगरों के परिधि क्षेत्रों में विकसित हो रहे हैं। परिधि क्षेत्र, नगर के आंतरिक भाग की तुलना में अधिक लाभ प्रदान करते हैं।

  1. जहाँ एक मंजिले कारखाने तथ भविष्य में विस्तार के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध होता है।
  2. नगर-परिधि पर भूमि का मूल्य कम होता है अत: भूमि सस्ते दामों पर मिल जाती है।
  3. यह मुख्य सड़कों तथा वाहन मार्गों द्वारा नगर से जुड़ा होता है।
  4. यहाँ का पर्यावरण शांत और सुखद होता है, क्योंकि यह हरित पट्टी क्षेत्र (green belt area) होता है।
  5. यहाँ निकटवर्ती आवासीय क्षेत्रों एवं पड़ोसी ग्रामों से प्रतिदिन आने-जाने वाले लोगों से श्रम की आपूर्ति होती है।

प्रश्न 4.
आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलापों की प्रमुख प्रवृत्तियों की व्याख्या विशेष रूप से विकसित औद्योगिकी देशों के संदर्भ में कीजिए।
उत्तर:
आधुनिक औद्योगिक क्रियाकलाप एवं इसके स्थानिक वितरण में कई प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। एक विकास की अवधि में बहुत से लक्षण एक ही दिशा में बढ़ते हुए पहले शीर्ष और बाद में गर्त बनाते हैं। ये लक्षण इस प्रकार हैं –

(अ) आर्थिक विकास दर
(ब) सामाजिक असमानता का स्तर
(स) क्षेत्रीय असमानता का स्तर
(द) स्थानीय या भौगोलिक सेकेंडरा का स्तर
(च) जनांकिकाय संक्रमण में जनसंख्या की वृद्धि – ये सभी पाँचों लक्षण आपस में अंतर्संबंधित हैं, इनमें एक ही साथ उठाव या गिरावट नहीं आती है।

इस प्रकार विकसित देशों के पास उन्नत पुर्जी वाले उद्योगों को ही रखा जा रहा है जबकि निम्न प्रौद्योगिकी युक्त श्रमिक इकाइयों को निर्धन देशों को निर्यात किया जा रहा है। नए केन्द्रों में नए उद्योगों की स्थापना हुई तथा अल्प मांग वाले परिधि उद्योगों को सीमांत क्षेत्रों में स्थापित किया गया। यदि भूतकाल में जर्मनी से इस्पात बनाने के लिए ब्राजील द्वारा लौह अयस्क का उत्पादन किया गया था, तो आज ब्राजील इस्पात बनायेगा और जर्मनी इसके आधार पर अभियांत्रिकी उत्पाद, जैसे कार बनायेगा। लोहा-इस्पात उद्योग अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है, इसलिए इसे आधारभूत उद्योग भी कहा जाता है। इसे भारी उद्योग भी कहा जाता है क्योंकि इसमें भारी कच्चे पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रयोग करते हैं तथा इसके उत्पाद भी भारी होते हैं।

लोहा-इस्पात उद्योग विस्तृत रूप से वितरित है। मुख्य उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि हैं। इनके अतिरिक्त चेक रिपब्लिक, स्लोवाकिया, पोलैण्ड, कनाडा, चीन, स्वीडन, भारत, आस्ट्रेलिया, हंगरी, ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका आदि में भी लोहा-इस्पात उद्योग स्थापित किया गया है। संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का लगभग 15 प्रतिशत लोहा-इस्पात पैदा करता है। यहाँ पर ग्रेट-लेक क्षेत्र सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। यूरोप में ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम, लक्समबर्ग तथा यूक्रेन लोहा-इस्पात उत्पादन के प्रमुख देश हैं। फ्रांस यूरोप का एक महत्वपूर्ण लोहा-इस्पात उत्पादक देश है। फ्रांस के तीन क्षेत्रों में लोहा-इस्पात के केन्द्र स्थापित हैं –

  1. लोरेन क्षेत्र।
  2. साम्ब्रेम्यूज क्षेत्र।
  3. सार बेसिन।

जर्मनी में लोह अयस्क फ्रांस, स्पेन तथा स्वीडन आदि से आयात किया जाता है। यूक्रेन का लोहा-इस्पात उद्योग किवाय रॉग तथा क्रीमिया के कर्च प्रायद्वीप के लौह-अयस्क पर आधारित है। भूतपूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद यूराल क्षेत्र रूस का सबसे बड़ा लोहा-इस्पात उत्पादक क्षेत्र बन गया है।

जापान में लोहा:
इस्पात उद्योग आयातित कच्चे माल पर निर्भर है। इसलिए अधिकांश लोहा-इस्पात केन्द्र समुद्र तट के आसपास ही विकसित हुए हैं। भारत में इस समय दस लोहा-इस्पात केन्द्र हैं, जिनमें से दो निजी क्षेत्र में तथा आठ सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं। पेट्रोरसायन उद्योग-रसायनों का उपयोग कृषि, धात्विक, चमड़ा, वस्त्र, कागज आदि बनाने में किया जाता है। खनिज तेलों के परिष्करण के साथ ही, उनको उपलब्ध अवस्थापनात्मक सुविधाओं का प्रयोग करते हुए पेट्रोलियम केन्द्रों के पास ही अनगिनत उद्योगों का विकास हुआ, ऐसे सभी संकुल वृहत् है तथा बाजार अथवा पत्तनों के समीप अवस्थित हैं।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों का संक्षेप में उत्तर दीजिए –

  1. द्वितीयक क्रियाकलाप किसे कहते हैं और उन्हें द्वितीयक क्यों कहा जाता है?
  2. विनिर्माण उद्योग किसे कहते हैं?
  3. उद्योगों के वर्गीकरण के आधार क्या हैं?
  4. आधारभूत और उपभोक्ता उद्योगों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
  5. लोहा-इस्पात उद्योग को आधारभूत उद्योग क्यों कहा जाता है?
  6. संयुक्त राज्य अमेरिका में पेट्रोरसायन संकुल अधिकतर तटों पर स्थित क्यों हैं?
  7. प्रौद्योगिक (तकनीकी) ध्रुव किसे कहते हैं?

उत्तर:
1. द्वितीयक क्रियाकलाप:
औद्योगिक क्रांति के साथ जल-कोयला तथा पेट्रोलियम जैसे – अजैव ऊर्जा के उपयोग से प्राथमिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण प्रणाली के विकास में, प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादों का उपयोग द्वितीयक क्रियाकलाप कहलाता है। प्राथमिक क्रियाकलापों से अलग करने के लिए, उद्योग को द्वितीयक क्रियाकलाप भी कहा जाता है।

2. विनिर्माण उद्योग:
कच्चे माल (Raw material) को मशीनों की सहायता से रूप बदलकर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक या गौण या द्वितीयक (Secondary) व्यवसाय है। इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य वृद्धि हो जाती है। जैसे लकड़ी की लुग्दी तथा कागज बनाया जाता है। कपास से धागा और कपड़ा बनाया जाता है। खनिज लोहे से इस्पात तथा कलपुर्जे बनाए जाते हैं।

3. उद्योगों के वर्गीकरण:
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –

(I) उद्योगों के आकार तथा कार्य क्षमता के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) बड़े पैमाने के उद्योग।
(ख) छोटे पैमाने के उद्योग।

(II)  औद्योगिक विकास के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कुटीर उद्योग।
(ख) आधुनिक शिल्प उद्योग।

(III) स्वामित्व के आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं –
(क) सार्वजनिक उद्योग (जिनकी व्यवस्था सरकार स्वयं करती है)
(ख) निजी उद्योग।
(ग) सरकारी उद्योग।

(IV) कच्चे माल के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) कृषि पर आधारित उद्योग।
(ख) खनिजों पर आधारित उद्योग।

(V) वस्तुओं के आधार पर उद्योग दो प्रकार के होते हैं –
(क) हल्के उद्योग।
(ख) भारी उद्योग।

(VI) इसी प्रकार उद्योगों को अनेक विभिन्न वर्गों में रखा गया है। जैसे- हस्तकला, ग्रामीण उद्योग, घरेलू उद्योग आदि।

4. कुछ उद्योग ऐसे होते हैं जिनके उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है। लोहा-इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है। कुछ उद्योग उन उत्पादों का निर्माण करते हैं, जिन्हें सीधे उपभोग के लिए प्रयोग किया जाता है, जैसे चाय, डबल रोटी, साबुन तथा टेलीविजन, इन्हें उपभोक्ता उद्योग कहते हैं।

5. लोहा-इस्पात उद्योग का आधारभूत उद्योग कहता है, क्योंकि इसके उत्पादित इस्पात का उपयोग अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।

6. संयुक्त राज्य अमेरिका में खनिज तेलों के परिष्करण तथा उनको उपलब्ध अवस्थापनात्यक सुविधाओं का प्रयोग करते हुए पेट्रोरसायन संकुल समुद्र तट पर स्थापित किए गए हैं। खनिज तेलों का परिवहन बड़े-बड़े टैंकरों तथा पाइप लाइनों द्वारा आंतरिक अवस्थित स्थानों तक होता है।

7. (तकनीकी) ध्रुव-तकनीकी ध्रुव अथवा प्रौद्योगिक ध्रुव संकेन्द्रित क्षेत्र के भीतर अभिनव प्रौद्योगिकी व उद्योगों से संबंधित उत्पादन के लिए नियोजित विकास है। प्रौद्योगिकी ध्रुव में विज्ञान अथवा प्रौद्योगिकी पार्क, विज्ञान नगर तथा दूसरे उच्च तकनीक औद्योगिक संकुल सम्मिलित किये जाते हैं।

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प्रश्न 6.
मानचित्रावली की सहायता से संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित स्थानों की स्थिति दिखाइए-

  1. ग्रेट-लेक क्षेत्र में लौह एवं इस्पात केन्द्र।
  2. एण्टवर्थ, रॉटरडम तथा साउथैम्पटन के पेट्रोरसायन संकुला।
  3. सिलिकन घाटी।

उत्तर:
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ img 2

चित्र: विश्व में लोहा-इस्पात उद्योग के क्षेत्र
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 6 द्वितीयक क्रियाएँ img 3

चित्र: पेट्रोरसायन एवं रसायन उद्योग केन्द्र

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प्रश्न 7.
अंतर स्पष्ट कीजिए –

  1. कुटीर उद्योग और बड़े पैमाने के उद्योग।
  2. धात्विक और अधात्विक खनिज।
  3. निरौद्योगिकरण और पुनरौद्योगिकरण।
  4. लचीला उत्पादन और लचीला विशिष्टीकरण।

उत्तर:
1. कुटीर उद्योग और बड़े पैमाने के उद्योग:
कुटीर या गृह उद्योग सबसे छोटी विनिर्माण की इकाइयाँ है। इसके हस्तकार या शिल्पकार अपने परिवार के सदस्यों की सहायता, स्थानीय कच्चे माल तथा साधारण उपकरणों की सहायता से अपने घर में ही वस्तुएँ बनाता है। उत्पादन की दक्षता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित रहती है। औजार तथा उपकरण साधारण होते हैं। उत्पादित वस्तुओं को सामान्यतः स्थानीय बाजार में बेच दिया जाता है। एशिया एवं अफ्रीका में अभी भी कुटीर उद्योगों के उत्पाद बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

बड़े पैमाने के उद्योगों में भारी मशीनों का प्रयोग करते हैं, बड़ी संख्या में श्रमिकों को लगाते हैं तथा काफी बड़े बाजार के लिए समान का उत्पादन करते हैं। इन उद्योगों में उत्पाद की गुणवत्ता तथा विशिष्टीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इन उद्योगों में बहुत बड़े संसाधन-आधार की आवश्यकता पड़ती है। कच्चा माल दूर-दूर स्थित विभिन्न स्थानों से मंगाया जाता है तथा उत्पाद दूर-दूर बाजारों में भेजा जाता है। इन उद्योगों को अनेक सुविधाओं जैसे सड़क, रेल तथा ऊर्जा आपूर्ति की आवश्यकता पड़ती है। लोहा-इस्पात, पेट्रोरसायन उद्योग इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

2. धात्विक और अधात्विक खनिज:
जिन उद्योगों में खनिज धातुओं का उपयोग होता है उन्हें धात्विक उद्योग कहते हैं। इन्हें लौह धात्विक उद्योगों एवं अलौह धातु उद्योगों में बाँटते हैं। लौह धात्विक उद्योग जैसे लौह-इस्पात उद्योग। ऐसी धातुओं पर आधारित उद्योग जिनमें लौहांश नहीं होता है, उन्हें अलौह-धातु उद्योग कहते हैं। जैसे ताँबा, एल्यूमिनियम आधारित उद्योग।

3. निरौद्योगिकरण और पुनरौद्योगिकरण:
निर्माण उद्योग ह्रास को निरौद्योगीकरण कहा जाता है। विकसित देशों में निरौद्योगीकरण के लिए उत्तरदायी कारक निम्नलिखित हैं –

  • अधिकांश निर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग।
  • विदेशों में अत्यंत सस्ती दर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों से प्रतिस्पर्धा।
  • निम्न श्रमिक उत्पादकता (प्रति व्यक्ति उत्पादन) तथा नयी मशीनों के लिए निवेश में कमी के फलस्वरूप इन उत्पादनों का मूल्य अधिक ऊँचा होगा।
  • उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों को वरीयता देने में अधिक पसंद करना।
  • उच्च ब्याज दर के कारण विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का महंगी होना।

पुनरौद्योगीकरण:
पुनरौद्योगीकरण से तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ क्षेत्रों में विकास करना है। जहाँ परम्परागत उद्योगों में ह्रास हो गया है। पुनरौद्योगीकरण की विशेषताएँ निम्न हैं –

(I) उच्च प्रौद्योगिकी फर्मा की वृद्धि:
ये ऐसी फर्म है जहाँ पर उच्च वैज्ञानिक शोध एवं विकास पर आधारित अति उन्नत उत्पादों का उत्पादन होता है, जैसे दवाइयाँ तथा सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान।

(II) ऐसी नई फर्म जो बहुधा, उच्च कुशलता वाले कम श्रम शक्ति के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करते हैं।

(III) वे नई फर्मे जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों में सीमांतों पर अवस्थित है।

4. लचीला उत्पादन और लचीला विशिष्टीकरण:
लचीला उत्पादन में स्वचालित मशीनों का उपयोग होता है। जिसकी सहायता से डिजाइनों में तीव्र परिवर्तन करना सम्भव होता है। इस प्रणाली में उत्पादन के अवयवों को कारखानों में इकट्ठा नहीं किया जाता अपितु उन्हें मांग के आधार पर निकटवर्ती कारखानों में लाया जाता है, ताकि अगले कुछ घंटों में ही उत्पादन की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। उत्पादों का नियंत्रण सरल होता है।

लचीला विशिष्टीकरण:
ऐसा लोचदार उत्पादन तंत्र है जिसमें उर्ध्वलग्नता क्षैतिजलग्नता दोनों सम्मिलित है। उर्ध्वलग्नता के अंतर्गत पहले स्तर पर अवयवों के उत्पादन हैं, तथा दूसरे स्तर पर संकलन कर्ता है। ऐसी प्रणाली में लोचता कार्य को विभिन्न विशेषीकृत फर्मों में बाँटने की सुविधा के कारण आती है। यदि व्यापार करने वाली इकाई को बहुत बड़ी मात्रा में सामान की पूर्ति का ऑर्डर मिला है और वह सारा सामान एक साथ देने में असमर्थ है तो वह उसी तरह की अन्य सहयोगी फर्मों से सामान लेकर ऑर्डर की पूर्ति कर सकती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है –
(A) हाथ से बनाना
(B) मशीनों से बनाना
(C) दोनों A और B
(D) दोनों में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) दोनों A और B

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प्रश्न 2.
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित के आधार पर किया जाता है –
(A) आकार
(B) उत्पाद
(C) कच्चे माल की प्रकृति
(D) सभी A, B और C
उत्तर:
(D) सभी A, B और C

प्रश्न 3.
संसार के कुल औद्योगिक उत्पादों में से कितने प्रतिशत भाग संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा जर्मनी का है?
(A) 60 प्रतिशत
(B) 40 प्रतिशत
(C) 50 प्रतिशत
(D) 100 प्रतिशत
उत्तर:
(C) 50 प्रतिशत

प्रश्न 4.
आधुनिक निर्माण की विशेषता क्या है?
(A) एक जटिल प्रौद्योगिकी यंत्र
(B) अधिक पूँजी
(C) बड़े संगठन
(D) प्रशासनिक अधिकारी वर्ग
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

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प्रश्न 5.
उद्योगों की स्थिति को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं?
(A) बाजार तक अभिगम्यता
(B) कच्चे माल की प्राप्ति एक अभिगम्यता
(C) श्रम आपूर्ति तक अभिगम्यता
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 6.
विनिर्माण उद्योग का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है?
(A) आकार
(B) कच्चा माल
(C) उत्पाद
(D) स्वामित्व
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

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प्रश्न 7.
कुटीर उद्योग में कौन-सी वस्तुएँ आती हैं?
(A) खाद्य पदार्थ
(B) कपड़ा
(C) फर्नीचर
(D) लघु मूर्तियाँ
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

प्रश्न 8.
बड़े पैमाने के उद्योग के लिए क्या आवश्यक है?
(A) विशाल बाजार
(B) कच्चा माल
(C) कुशल श्रमिक
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 9.
कच्चे माल पर आधारित उद्योग कौन-से हैं?
(A) कृषि आधारित
(B) खनिज आधारित
(C) रसायन आधारित
(D) वन आधारित
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

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प्रश्न 10.
प्रमुख कृषि आधारित उद्योग कौन-सा है?
(A) शक्कर
(B) अचार
(C) फलों के रस
(D) पेय पदार्थ
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

प्रश्न 11.
खनिज आधारित उद्योग कौन-सा है?
(A) एल्युमिनियम
(B) ताँबा
(C) जवाहरात
(D) सीमेंट
(E) सभी
उत्तर:
(E) सभी

प्रश्न 12.
जर्मनी के इस्पात उत्पादन का कितने प्रतिशत रूहर से प्राप्त किया जाता है?
(A) 80 प्रतिशत
(B) 70 प्रतिशत
(C) 60 प्रतिशत
(D) 100 प्रतिशत
उत्तर:
(A) 80 प्रतिशत

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प्रश्न 13.
विश्व में लौह इस्पात उद्योग का केंद्रीकरण कहाँ पर है?
(A) उत्तरी अमेरिका
(B) यूरोप
(C) एशिया के विकसित देश
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 14.
सूती कपड़े का निर्माण कहाँ किया जाता है?
(A) हथकरघा
(B) बिजली करघा
(C) कारखानों में
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

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प्रश्न 15.
जिन उद्योगों का वनों से प्राप्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया है –
(A) वन आधारित उद्योग
(B) आकार आधारित उद्योग
(C) कृषि आधारित उद्योग
(D) लघु उद्योग
उत्तर:
(A) वन आधारित उद्योग

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
आपके विद्यालय परिसर का सर्वेक्षण कीजिए एवं सभी व्यक्तियों उपयोग में लाए गए कारखाना निर्मित सामान की जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 2.
जैव अपघटनीय एवं अजैव अपघटनीय शब्दों के क्या अर्थ हैं। इनमें से कौन-से प्रकार का पदार्थ उपयोग के लिए अच्छा है और क्यों?
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ाइए एवं सार्वभौम ट्रेडमार्क उनके भाव चिह्न एवं उत्पाद की सूची तैयार कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

Bihar Board Class 12 Geography प्राथमिक क्रियाएँ Textbook Questions and Answers

(क) नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?
(क) कॉफी
(ख) गन्ना
(ग) गेहूँ
(घ) रबड़
उत्तर:
(ग) गेहूँ

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प्रश्न 2.
निम्न देशों में से किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?
(क) रूस
(ख) डेनमार्क
(ग) भारत
(घ) नीदरलैंड
उत्तर:
(ख) डेनमार्क

प्रश्न 3.
फूलों की कृषि कहलाती है
(क) ट्रक फार्मिग
(ख) कारखाना कृषि
(ग) मिश्रित कृषि
(घ) पुष्पोत्पादन
उत्तर:
(घ) पुष्पोत्पादन

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प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सी कृषि के प्रकार का विकास यूरोपीय औपनिवेशिक समूहों द्वारा किया गया?
(क) कोलखोज
(ख) अंगूरोत्पादन
(ग) मिश्रित कृषि
(घ) रोपण कृषि
उत्तर:
(घ) रोपण कृषि

प्रश्न 5.
निम्न प्रदेशों में से किसमें विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि नहीं की जाती है?
(क) अमेरिका एवं कनाडा के प्रेयरी क्षेत्र
(ख) अर्जेंटाइना के पंपास क्षेत्र
(ग) यूरोपीय स्टैपीज क्षेत्र
(घ) अमेजन बेसिन
उत्तर:
(घ) अमेजन बेसिन

प्रश्न 6.
निम्न में से किस प्रकार की कृषि में खड़े रसदार फलों की कृषि की जाती है?
(क) बाजारीय सब्जी कृषि
(ख) भूमध्यसागरीय कृषि
(ग) रोपण कृषि
(घ) सहकारी कृषि
उत्तर:
(ख) भूमध्यसागरीय कृषि

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प्रश्न 7.
निम्न कृषि के प्रकारों में से कौन-सा प्रकार कर्तन-दहन कृषि का प्रकार है?
(क) विस्तृत जीवन निर्वाह कृषि
(ख) आदिकालीन निर्वाहक कृषि
(ग) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि
(घ) मिश्रित कृषि
उत्तर:
(ख) आदिकालीन निर्वाहक कृषि

प्रश्न 8.
निम्न में से कौन-सी एकल कृषि नहीं है?
(क) डेरी कृषि
(ख) मिश्रित कृषि
(ग) रोपण कृषि
(घ) वाणिज्य अनाज कृषि
उत्तर:
(क) डेरी कृषि

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
स्थानांतरी कृषि का भविष्य अच्छा नहीं है। विवेचना कीजिए।
उत्तर:
इस प्रकार की कृषि में बोए गए खेत बहुत छोटे होते हैं एवं खेती भी पुराने औजार जैसे लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है। कुछ समय पश्चात् मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है। तब कृषक नए क्षेत्र में वन जलाकर कृषि के लिए भूमि तैयार करता है। इस प्रकार की कृषि की सबसे बड़ी समस्या भूमि की उर्वरता कम होती जाती है।

प्रश्न 2.
बाजारीय सब्जी कृषि नगरीय क्षेत्रों के समीप ही क्यों की जाती है?
उत्तर:
क्योंकि इस प्रकार की कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे सब्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं, जिनकी माँग नगरीय क्षेत्रों में होती है।

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प्रश्न 3.
विस्तृत पैमाने पर डेरी कृषि का विकास यातायात के साधनों एवं प्रशीतकों के विकास के बाद ही क्यों संभव हो सका है?
उत्तर:
क्योंकि विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।

(ग) निम्न प्रश्नों का 150 शब्दों में उत्तर दीजिए।

प्रश्न 1.
चलवासी पशुचारण और वाणिज्य पशुधन पालन में अंतर कीजिए।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है। जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर ही निर्भर रहता था। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाह की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक ही स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानातरित होते रहते थे। चलवासी पशुचारण क्षेत्रों में कई प्रकार के पशु पाले जाते हैं। उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में गाय-बैल प्रमुख पशु हैं, जबकि सहारा एवं एशिया के मरुस्थलों में भेड़ बकरी एवं ऊँट पाला जाता है। तिब्बत एवं एंडीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में रेडियर पाला जाता है।

चलवासी पशुचारण की अपेक्षाकृत वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है। वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिम से प्रभावित है एवं फार्म भी स्थायी होते हैं। यह फार्म विशाल क्षेत्र पर फैले होते हैं एवं संपूर्ण क्षेत्र को छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है। चराई को नियंत्रित करने के लिए इन्हें बाड़ लगाकर एक दूसरे से अलग कर दिया जाता है।

जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है। वाणिज्य पशुधन पालन में पशुओं की संख्या भी चरागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है। यह एक विशिष्ट गतिविधि है, जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं। इनसे माँस, खालें तथा ऊन वैज्ञानिक ढंग से प्राप्त कर विश्व के बाजारों में निर्यात किया जाता है।

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प्रश्न 2.
रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बतलाइए एवं भिन्न-भिन्न देशों में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम बतलाइए।
उत्तर:
इस कृषि की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है। इसमें अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबंध एवं तकनीकी आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है। यह एक फसली कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही सकेंद्रण किया जाता है। श्रमिक सस्ते मिल जाते हैं एवं यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान एवं बाजार सुचारू रूप से जुड़ रहते हैं।

पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ, भारत एवं श्रीलंका में चाय, मलेशिया में रबड़ एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ना और केले की रोपण फसल उगाई जाती है। फिलीपाइंस में नारियल व गन्ने, इंडोनेशिया में गन्ना तथा ब्राजील में कॉफी आदि की रोपण फसल उगाई जाती है।

Bihar Board Class 12 Geography प्राथमिक क्रियाएँ Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्थानान्तरी कृषि किसे कहते हैं?
उत्तर:
कृषि के सबसे आदिम स्वरूप को स्थानान्तरी कृषि कहते हैं।

प्रश्न 2.
रोपण कृषि का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
रोपण कृषि का मुख्य उद्देश्य निर्यात अथवा व्यापार द्वारा धन अर्जित करना था।

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प्रश्न 3.
कृषि उत्पादन में किस कारण वृद्धि हुई?
उत्तर:
कृषि उत्पादन में वृद्धि पौधों के विसरण तथा कृषि के औद्योगिकरण से हुई है।

प्रश्न 4. कौन से कारक फसल विशेष के लिए सामान्य सीमायें निर्धारित करते हैं?
उत्तर:
जलवायु, मिट्टी तथा उच्चावच ऐसे कारक हैं जो मिलकर फसल विशेष के लिए सामान्य सीमायें निर्धारित करते हैं।

प्रश्न 5.
विकासशील देशों में कितने प्रतिशत लोगों का व्यवसाय कृषि है?
उत्तर:
लगभग 65 प्रतिशत से अधिक लोगों का व्यवसाय कृषि है।

प्रश्न 6.
सर्वप्रथम मनुष्य ने कब खेती करना प्रारंभ किया था?
उत्तर:
लगभग 12 हजार वर्ष पहले।

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प्रश्न 7.
दक्षिण-पश्चिम एशिया तथा पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेश किस कारण महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
गेंहू, जौ, तिल, मटर, अंजीर, जैतून, खजूर, लहसुन, बादाम, गाय, बैल, भेड़ और बकरियों आदि के लिए।

प्रश्न 8.
वाणिज्य डेरी कृषि के तीन प्रमुख क्षेत्र कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. उत्तरी पश्चिमी यूरोप
  2. कनाडा एवं
  3. न्यूजीलैंड, दक्षिणी पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया।

प्रश्न 9.
डेरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केन्द्रों के पास क्यों किया जाता है?
उत्तर:
क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं वर्तमान समय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।

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प्रश्न 10.
मिश्रित कृषि क्या है?
उत्तर:
इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है। इसमें बोई जाने वाली फसलें गेहूँ, नौ, राई, जई, मक्का , चारे की फसल एवं कंद-मूल प्रमुख हैं।

प्रश्न 11.
रोपण कृषि में बोई जाने वाली फसलें कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अन्नानास आदि।

प्रश्न 12.
तापमान की आवश्यकता के आधार पर फसलों को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर:

  1. उष्ण कटिबंध के उच्च तापमान में उगने वाली फसलें।
  2. उप-उष्ण एवं शीतोष्ण क्षेत्रों के निम्न तापमान वाली दशाओं में उगने वाली फसलें।

प्रश्न 13.
1 किग्रा, चावल उत्पन्न करने के लिए कितनी मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।
उत्तर:
10,000 किग्रा. पानी आवश्यक होता है।

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प्रश्न 14.
संसार की खाद्य आपूर्ति में कौन-कौन सी फसलों का प्रभुत्व है?
उत्तर:
गेहूँ, चावल, मक्का, आलू तथा कसावा हैं।

प्रश्न 15.
भोजन संग्रह विश्व के किन भागों में किया जाता है?
उत्तर:

  1. उच्च अक्षांश के क्षेत्र जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं।
  2. निम्न अक्षांश के क्षेत्र जिसमें अमेजन बेसिन, उष्ण कटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश आता है।

प्रश्न 16.
निर्वाह कृषि क्या है?
उत्तर:
इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का संपूर्ण अथवा लगभग का उपयोग करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
फसल के उत्पादन पर तापमान का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
तापमान फसलों के वितरण को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण नियंत्रक है, क्योंकि उपयुक्त तापमान की दशायें बीजों के अंकुरण तथा पौधों की सफलतापूर्वक वृद्धि हेतु आवश्यक होता है। तापमान की आवश्यकता के आधार पर फसलों के दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. उष्ण कटिबंध के उच्च तापमान वाली फसलें।
  2. उप-उष्ण एवं शीतोष्ण क्षेत्रों के निम्न तापमान वाली फसलें।

उष्ण कटिबंधीय फसलें-जो उच्च तापमान की दशाओं में विसरित होने वाली फसलें (31°C से 37°C तक)। ये फसलें, शून्य तापमान से नीचे तथा पाला पड़ने पर नष्ट हो सकती हैं। उनमें से कुछ शीत से इतनी अधिक प्रभावित होती हैं कि वे 10°C से कम तापमान पर ही नष्ट हो जायेगी।

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प्रश्न 2.
वर्षा फसलों की वृद्धि को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
वर्षा से मिट्टी को नमी प्राप्त होती है जो फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक होती है। प्रत्येक पौधे की एक जड़-प्रणाली होती है जो एक बड़े सतह क्षेत्र पर फैलती है तथा नीचे की मिट्टी से जल सोखती रहती है। फसलों के लिए जल की आवश्यकता में अंतर पाया जाता है। एक किलो गेहूँ को उत्पन्न करने के लिए लगभग 1500 किग्रा. जल की आवश्यकता होती है जबकि इतनी ही मात्रा में चावल के उत्पादन में 10,000 किग्रा पानी की आवश्यकता होती है।

समुचित जल की मात्रा के अभाव में पौधों को पैदा नहीं किया जा सकता है। जल आपूर्ति की मात्रा में वृद्धि के अनुपात में फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि होगी। इसके विपरीत, यदि पौधों को आवश्यकता से अधिक जल की आपूर्ति होती है, तो फसल के उत्पादन में कमी होगी। प्रत्येक फसल के लिए जल की एक निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए खर तथा चाय हेतु 150 सेमी. वार्षिक वर्षा चाहिए। दूसरी ओर 25 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले प्रदेशों में गेहूँ उत्पन्न किया जा सकता है। पृथ्वी तल सतह का 50 प्रतिशत से अधिक भू-भाग, 25 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा प्राप्त करते हैं। इसलिए गेहूँ सबसे अधिक क्षेत्र पर पैदा की जाने वाली फसल है।

प्रश्न 3.
कुछ विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण स्थानों का वर्णन करो।
उत्तर:
पृथ्वी पर पौधों एवं पशुओं को पालतू बनाने की प्रक्रिया कई स्थानों पर सम्पन्न हुई, फिर भी कुछ स्थान महत्त्वपूर्ण हैं –

  1. दक्षिण: पश्चिम एशिया तथा पूर्वी भूमध्यसागरीय प्रदेश-जौ, तिल, गेहूँ, मटर, अंजीर, जैतून, खजूर, लहसुन, बादाम, गाय, बैल, भेड़ और बकरियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. दक्षिण: पूर्वी एशिया-आम, वनस्पति, संस्कृति, अर्था खालू, साबूदाना और केला जैसे उगे हुए पौधों को काटना एवं उनका रोपण करना, सुअर, मुर्गी बत्तख आदि के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  3. चीन: चावल, ज्वार, बाजरा, सोयाबिन, चाय, प्याज, पालक तथा शहतूत, सुअर, मुर्गियाँ तथा बत्तख आदि के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  4. भारत: चावल, चना, बैंगन, मिर्च, नींबू, जूट और नील आदि गाय, बैल, भैंसे, मुर्गियों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  5. अफ्रीका: रतालू, तैलताड़, कहवा, सोरधम।
  6. उत्तर व दक्षिण अमेरिका: मक्का तथा सेम मध्य अमेरिका में, कसावा और कोको अमेजन बेसिन में तथा एंडीज में आलू और लाभ।

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प्रश्न 4.
स्थानान्तरी कृषि किसे कहते हैं? यह किस भाग में पाई जाती है?
उत्तर:
कृषि के प्रारंभ चलवासी पशुचारसा के स्थान पर से अपेक्षाकृत स्थायी जीवन की शुरूआत हुई कृषि के सबसे आदिम स्वरूप को स्थानान्तरी कृषि कहते हैं। इस प्रकार की कृषि अभी संसार के कुछ भागों में प्रचलित है। यह मुख्यत: उष्ण कटिबंधीय वनों में अपनाई जाती है। इस प्रकार की कृषि में वनों को साफ करने के लिए वृक्षों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है। इन खेतों में पहले से तैयार की गई फसलों को रोपते हैं। कुछ वर्षों तक फसलों का उत्पादन करने के पश्चात् इनकी मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है। तब इन खेतों को परती छोड़ दिया जाता है तथा नये स्थानों की सफाई की जाती है। स्थानान्तरी कृषि की प्रकृति प्रवासी होती है। इसने लोगों को एक स्थान पर अधिक समय तक स्थायी रूप से रहने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 5.
स्थायी कृषि प्रणाली का संसार में कैसे विस्तार हुआ?
उत्तर:
धीरे-धीरे अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में धीरे-धीरे स्थायी खेतों तथा गाँवों में स्थायी कृषि प्रणाली का उदय हुआ। उपजाऊ नदी घाटियों जैसे दगला-फरात, नील, सिंधु, हांगहो, तथा चेंग-जिआंग में लगभग 6 हजार वर्ष पूर्व स्थायी कृषि के आधार पर महान सभ्यताओं का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे इस स्थायी कृषि प्रणाली का संसार के अधिकांश भागों में विस्तार हुआ।

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प्रश्न 6.
पौधों के विसरण तथा कृषि के औद्योगिकरण का कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
पौधों के विसरण तथा कृषि के औद्योगिकरण से कृषि उत्पादन अत्यधिक बढ़ा। इसके फलस्वरूप कृषि में श्रमिकों की माँग कम होने से बड़ी संख्या में श्रमिकों ने दूसरी आर्थिक क्रियाओं को अपनाया, क्योंकि कम लोगों के साथ मशीनों द्वारा अधिक उत्पादन किया जाना संभव हुआ। इस प्रकार संसार के औद्योगिक देशों द्वारा आर्थिक विकास के संकेत के रूप में जनसंख्या के क्रम से प्राथमिक कार्यों से द्वितीयक तथा तृतीयक कार्यों की ओर स्पष्ट स्थानांतरण देखा गया। यद्यपि विकासशील देशों में जन रोजगार संरचना में प्राथमिक से सीधे तृतीयक क्षेत्र में बदला।

प्रश्न 7.
‘उत्पादन दक्षता’ किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर:
‘उत्पादन दक्षता’ दो प्रकार से प्राप्त की जाती है –
1. उन्नत निवेश जैसे बीज उर्वरक तथा फफूंदीनाशी का प्रयोग जिससे अधिक उपज प्रोत्साहित हो, एवं

2. विशिष्टीकृत मशीनरी (के प्रयोग से) उत्पादन में तीव्रता आती है तथा फसल बोने, सिंचाई करने तथा तैयार फसल कटाई एवम् उसके पश्चात् के कृषि कार्यों में लगने वाले श्रमिकों की संख्या में कमी होती है। संयुक्त राज्य में कृषि का उत्पादन दो गुणा हो गया है, जबकि यहाँ कृषि करने वालों की संख्या में तीन गुना से अधिक की कमी हुई है। श्रमिकों की संख्या में कमी यह दर्शाती है कि फार्म, खेत तथा पशु समूह बड़े होते चले जा रहे हैं। इससे, इस प्रकार श्रमिक तथा उत्पादन लागत में अधिक बचत होती है।

प्रश्न 8.
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. भौतिक कारक-खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को सम्मिलित करते हैं।
  2. आर्थिक कारक-जिसमें खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।

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प्रश्न 9.
पोषक तत्त्व कितने प्रकार के हैं? पोषक तत्त्वों का तीव्र पुनर्स्थापन किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
प्रमुख पोषक तत्त्व छः प्रकार के हैं। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम तथा सल्फर। इसके अतिरिक्त लोहा तथा अल्पमात्रा में बोरॉन व आयोडीन जैसे तत्त्वों की भी पौधों का अल्पमात्रा में आवश्यकता पड़ती है। विभिन्न प्रकार की मिट्टी में पोषण-क्षमता अत्यधिक भिन्न होती है।

उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में उच्च वर्षा के कारण पोषक तत्त्व सरलतापूर्वक घुलकर बह जाते हैं। शीतोष्ण प्रदेशों में मिट्टी में पोषक तत्त्वों की मात्रा अधिक होती हैं। पौधों तथा पशु-जैविकों के विघटन से मिट्टी में पोषक तत्त्वों का प्राकृतिक पुनर्स्थापन होता रहता है। लेकिन यह धीमी प्रक्रिया है। पोषक तत्त्वों की तीव्र पुनर्स्थापना के लिए मिट्टी में रसायनिक उर्वरकों मुख्यत: नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाशियम को मिलाया जाता है।

प्रश्न 10.
फसलों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है?
उत्तर:
फसलों को उनके विभिन्न उपयोगों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जैसे-खाद्यान्न, दलहन, तिलहन, रेशेदार और पेय। फसलों के विभाजन की दूसरी विधि इन्हें खाद्य फसलों तथा अखाद्य फसलों के वर्गों में रखना है।

खाद्य फसलें:
संसार की जनसंख्या के लिये भोजन की प्राप्ति मुख्यतः पौधों द्वारा ही होती है। इन फसलों की तीन विशेषताएँ हैं – प्रति इकाई भूमि पर अधिक उत्पादन, उच्च भोजन मूल्य और संग्रह की योग्यता। संसार की खाद्य आपूर्ति में पाँच फसलों का ही महत्त्व है-गेहूँ, चावल, मक्का, आलू तथा कसावा। इसके अतिरिक्त गन्ना, चुकन्दर, कहवा, जौं, राई, तिलहन, दलहन भी खाद्य फसलें हैं। अखाद्य फसलें-रेशेदार फसलें जैसे कपास तथा जूट, रबड़ एवं तम्बाकू महत्त्वपूर्ण अखाद्य फसलें हैं।

प्रश्न 11.
कृषि भूमि की अधिकतम सीमा का निर्धारण तथा भू-उपयोग का वर्णन करें।
उत्तर:
संसार में कृषि के अंतर्गत कुछ सीमित क्षेत्र ही पाया जाता है। जलवायु, दाल, मिट्टी तथा कीड़े मकोड़े अपेक्षाकृत कुल भू-उपयोग के कम प्रतिशत कृषि क्षेत्र को सीमित करते हैं। इसके अधिक बड़े क्षेत्र को चारागाह तथा वनों के रूप में उपयोग होता है।

सारणी: विश्वस्तर पर भू-उपयोग परिवर्तन-क्षेत्रफल दस लाख हेक्टेयर में।
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 1
वर्तमान में, विश्व कुल क्षेत्रफल का 32 प्रतिशत वनों के अंतर्गत 26 प्रतिशत चारागाह, एक प्रतिशत स्थायी फसलें, 10 खेती योग्य तथा 26 प्रतिशत अन्य उपयोगों के अंतर्गत पाया जाता है।

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प्रश्न 12.
सामूहिक कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सभी कृषक अपने संसाधन जैसे भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते हैं। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते हैं। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती है एवं उत्पादन को सरकारी ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती है। लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता है या बाजार में बेच दिया जाता है। उत्पादन एवं भाड़े पर ली गई मशीनों पर कृषकों को कर चुकाना पड़ता है। सभी सदस्यों को उनके द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति के आधार पर भुगतान किया जाता है। असाधारण कार्य करने वाले सदस्य को नकद या माल के रूप में पुरस्कृत किया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्थानान्तरी कृषि तथा स्थानबद्ध कृषि में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्थानान्तरी कृषि तथा स्थानबद्ध कृषि में अंतर-कृषि के प्रारंभ से चलवासी पशुचारण के स्थान पर अपेक्षाकृत स्थायी जीवन की शुरूआत हुई। कृषि के इस सबसे आदिम स्वरूप को स्थानान्तरी कृषि कहते हैं, जो अभी भी संसार के कुछ भागों में प्रचलित है। यह मुख्यतः उष्ण कटिबंधीय वनों में अपनायी जाती है। इस प्रकार की कृषि में वनों को साफ करने के लिए वृक्षों को काटकर उन्हें जला दिया जाता है। इन खेतों में पहले से तैयार की गयी फसलों को रोपते हैं। कुछ वर्षों तक फसलों का उत्पादन करने के पश्चात् इनकी मिट्टी अनुपजाऊ हो सकती है।

तब इन खेतों को परती छोड़ दिया जाता है तथा वन में नए स्थानों की सफाई की जाती है। ऐसी खेती को संसार के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे उत्तरी-पूर्वी भारत में झूमिंग, फिलिपीन्स में चैंजिन, ब्राजील में रोका तथा जायरे में मसोलें कहते हैं। यद्यपि स्थानांतरी कृषि की प्रकृति प्रवासी होती है, इसने लोगों को एक स्थान पर अधिक समय तक स्थायी रूप से रहने के लिए प्रेरित किया। तत्पश्चात् धीरे-धीरे अनुकूल जलवायु एवं उपजाऊ मिट्टी वाले क्षेत्रों में धीरे-धीरे स्थायी खेतों तथा गाँवों में स्थायी कृषि प्रणाली का उदय हुआ। उपजाऊ नदी घाटियों जैसे दगला-फरात, नील, सिंधु हांगहो तथा चेंग जिआंग में लगभग 6 हजार वर्ष पूर्व स्थायी कृषि के आधार पर महान सभ्यताओं का निर्माण हुआ। धीरे-धीरे इस स्थायी कृषि प्रणाली का संसार के अधिकांश भागों में विस्तार हुआ।

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प्रश्न 2.
जीविकोपार्जी अथवा जीविका कृषि का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
इस कृषि में कृषक अपनी तथा अपने परिवार के सदस्यों की उदरपूर्ति के लिए फसलें उगाता है। कृषक अपने उपयोग के लिए वे सभी फसलें पैदा करता है जिनकी उसे आवश्यकता होती है। अतः इस कृषि में फसलों का विशिष्टीकरण नहीं होता। इनमें धान्य, दलहन, तिलहन तथा सन सभी का समावेश होता है। विश्व में जीविकोपार्जी कृषि के दो रूप पाए जाते हैं:
(क) आदिम जीविकोपार्जी कृषि जो स्थानान्तरी कृषि के समरूप है।
(ख) गहन जीविकोपार्जी कृषि जो पूर्वी तथा मानसून एशिया में प्रचलित है। चावल सबसे महत्त्वपूर्ण फसल है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूँ, जौं, मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, दालें तथा तिलहन बोये जाते हैं। यह कृषि भारत, चीन, उत्तरी कोरिया तथा मयनमार में की जाती है। इस कृषि के महत्त्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित हैं –

  1. जोत बहुत छोटे आकार की होती है।
  2. कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दाब के कारण भूमि का गहनतम उपयोग होता है।
  3. कृषि की गहनता इतनी अधिक है कि वर्ष में दो, तीन तथा कहीं-कहीं चार फसलें भी ली जाती हैं।
  4. मशीनीकरण के अभाव तथा जनसंख्या के कारण मानवीय श्रम का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।
  5. कृषि के उपकरण बड़े साधारण तथा परम्परागत होते हैं परंतु पिछले कुछ वर्षों से जापान, चीन तथा उत्तरी कोरिया में मशीनों का प्रयोग भी होने लगा है।
  6. अधिक जनसंख्या के कारण मुख्यतः खाद्य फसलें ही उगाई जाती हैं और चारे की फसलों तथा पशुओं को विशेष स्थान नहीं मिलता।
  7. गहन कृषि के कारण मिट्टी की उर्वरता समाप्त हो जाती है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद, गोबर, कम्पोस्ट तथा रसायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। जापान में प्रति हेक्टेयर रसायनिक उर्वरक सबसे अधिक डाले जाते हैं।

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प्रश्न 3.
विस्तृत कृषि किसे कहते हैं? विस्तार से बताएँ।
उत्तर:
विस्तृत कृषि एक मशीनीकृत कृषि है जिसमें खेतों का आकार बड़ा, मानवीय श्रम कम, प्रति हेक्टेयर उपज कम और प्रति व्यक्ति तथा कुल उपज अधिक होती है। यह कृषि मुख्यतः शीतोष्ण कटिबंधीय कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में की जाती है। इन प्रदेशों में पहले चलवासी चरवाहे पशुचारण का कार्य करते थे और बाद में यहाँ स्थायी कृषि होने लगी। इन प्रदेशों में वार्षिक वर्षा 30 से 60 सेमी. होती है। जिस वर्ष वर्षा कम होती है उस वर्ष फसल को हानि पहुँचती है।

यह कृषि उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ में शुरू हुई। इस कृषि का विकास कृषि यंत्रों तथा महाद्वीपीय रेलमार्गों के विकसित हो जाने से हुआ है। विस्तृत कृषि मुख्यत: रूस तथा यूक्रेन के स्टेपीज (Steppes), कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेयरीज (Prairies), अर्जेण्टीना के पम्पास (Pampas of Argentina), तथा आस्ट्रेलिया के डाउन्स (Downs of Australia) में की जाती है।

विस्तृत कृषि के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं –

  1. खेत बहुत ही बड़े आकार के होते हैं। इनका क्षेत्रफल प्राय: 240 से 1600 हेक्टेयर तक होता है।
  2. बस्तियाँ बहुत छोटी तथा एक दूसरे से दूर स्थित होती है।
  3. खेत तैयार करने से फसल काटने तक का सारा काम मशीनों द्वारा किया जाता है। ट्रैक्टर, ड्रिल, कम्बाइन, हार्वेस्टर, थ्रेसर और विनोअर मुख्य कृषि यंत्र हैं।
  4. मुख्य फसल गेहूँ है। अन्य फसलें हैं-जौं, जई, राई, फ्लैक्स तथा तिलहन।
  5. खाद्यान्नों को सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े गोदाम बनाए जाते हैं जिन्हें साइलो या एलीवर्टस कहते हैं।
  6. यांत्रिक कृषि होने के कारण श्रमिकों की संख्या कम होती है।
  7. प्रति हेक्टेयर उपज कम तथा प्रति-व्यक्ति उपज अधिक होती है।

जनसंख्या में निरंतर वृद्धि के कारण विस्तृत कृषि का क्षेत्र घटता जा रहा है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्यूनस आयर्स, आस्ट्रेलिया के तटीय भागों तथा यूक्रेन जैसे घनी जनसंख्या वाले क्षेत्रों से लोग विस्तृत कृषि के क्षेत्रों में आकर बसने लगे हैं। जिससे कृषि का क्षेत्र कम होता जा रहा है। इस प्रकार 19 वीं शताब्दी में शुरू हुई यह कृषि अब बहुत ही सीमित क्षेत्रों में की जाती है।

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प्रश्न 4.
चाय तथा कहवा की खेती तथा उनके वितरण प्रतिरूप को प्रभावित करने वाली भौगोलिक दशाओं का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
1. चाय-चाय एक अत्यधिक प्रचलित पेय है जो एक सदाबहार झाड़ी की कोमल पत्तियों से तैयार की जाती है। इसके लिए गर्म तथा आर्द्र जलवायु की आवश्यकता पड़ती है लेकिन इसकी जड़ों में वर्षा का पानी एकत्रित नहीं होना चाहिए। इस प्रकार यह 27° दक्षिणी अक्षांश से 43° उत्तरी अक्षाशों के मध्य पहाड़ी ढलानों पर ही 125 सेमी. से 750 सेंटीमीटर वर्षा पाने वाले क्षेत्रों में उगायी जाती है। चाय के पौधों के लिए उपजाऊ मिट्टी जिसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक हो, आवश्यक है।

चाय एक बागानी फसल है। जिसे बड़े चाय-बागानों में उगाया जाता है। चाय की झाड़ी को 40 से 50 सेंटीमीटर से अधिक नहीं बढ़ने दिया जाता है। चाय की झाड़ी की आयु 40 से 50 वर्ष है। मृदा की उर्वरता बनाये रखने के लिए नाइट्रोजन युक्त उर्वरक डालने की उपलब्धता एक आवश्यक कारक होता है। विश्व में चाय के मुख्य उत्पादक देश-भारत, चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, जापान, इंडोनेशिया, अर्जेण्टाइना और कीनिया हैं।

2. कहवा-कहवा भी एक रोपण फसल है जो उष्णकटिबंध के उच्च भागों में समुद्र से 500 से 1500 मीटर की ऊँचाई तक पैदा होता है। कहवा की झाड़ी को पाला बहुत हानि पहुँचाता है। इसीलिए इसे छायादार पेड़ों के नीचे उगाया जाता है। इसके पौधे के लिए उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है। लगभग 160 सेमी. से 250 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में गहरी, संरघ्र तथा ह्यूमस मुक्त आर्द्रता धारण करने की क्षमता वाली मिट्टी में कहवा को भलीभाँति उगाया जाता है।
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 2

चित्र: भारत-चाय तथा कहवा
ब्राजील कोलम्बिया, बेनेजुएला, गुवाटेमाला, हैटरी, जमैका, इथोपिया तथा इंडोनेशिया इसके मुख्य उत्पादक देश हैं। भारत में कहवा केवल कर्नाटक प्रदेश में ही उगाया जाता है।

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 5.
चलवासी पशुपालन तथा व्यापारिक पशुपालन में अंतर बताइए। उत्तर-चलवासी पशुपालन तथा व्यापारिक पशुपालन में अंतर बताइए।
उत्तर:
चलवासी पशुपालन तथा व्यापारिक पशुपालन में अंतर –
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 3

चित्र: विश्व के मुख्य पशुचारण क्षेत्र।

संसार के ऊष्ण तथा उपोष्ण घास के मैदानों के पशुपालन तथा पशुचारण आज भी परम्परागत चलवासी पशुचारण अथवा व्यापारिक पशुचारण के रूप में प्रचलित हैं। चलवासी पशुपालन पशुओं पर आधारित जीवन निर्वाह करने की क्रिया है। चूंकि ये लोग स्थायी जीवन नहीं जीते अतः इन्हें चलवासी कहा जाता है। प्रत्येक चलवासी समुदाय एक सुस्पष्ट सीमा क्षेत्र में विचरण करता है। इनके द्वारा अधिग्रहीत क्षेत्र में चारागाह की उपलब्धता तथा जल की आपूर्ति में मौसम के अनुसार परिवर्तनों की पूर्ण जानकारी होती है। ये पशु पूर्णतः प्राकृतिक वनस्पति पर ही निर्भर होते हैं।

लम्बी तथा मुलायम घास वाले क्षेत्रों जहाँ अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाली घास भूमियों पर गाय-बैल आदि पाले जाते हैं। कम वर्षा तथा छोटी घास वाले क्षेत्रों में भेड़ें पाली जाती हैं। ऊबड़-खाबड़ धरातल जहाँ पर घास की मात्रा बहुत कम होती है, वहाँ बकरियाँ अधिक पाली जाती हैं। चलवासी, पशुचारण के अंतर्गत भेड़ें, बकरियाँ, ऊँट, गाय-बैल, घोड़े तथा गधे जैसी छः पशु प्रजातियों का पालन अधिक होता है। चलवासी पशुचारण के सात स्पष्ट क्षेत्र हैं –

  1. उच्च आक्षांशीय उप-अंटार्कटिक
  2. यूरेशिया का स्टेपी क्षेत्र
  3. पर्वतीय दक्षिणी एशिया
  4. मरुस्थल सहारा और अरब, का मरु प्रदेश
  5. उप-सहारा के सवाना प्रदेश
  6. एण्डीज तथा
  7. एशियाई उच्च पठारी-क्षेत्र।

व्यापारिक पशुपालन:
आधुनिक समय में पशुओं का वैज्ञानिक ढंग से पालन किया जाने लगा है। प्राकृतिक चरागाह के स्थान पर अब वे विस्तृत क्षेत्रों पर चारे की फसलों तथा घासों को उगाकर उन पर पशुओं को पाला जा रहा है तथा करने के लिए विशेष नस्ल के पशुओं का पालन हो रहा है। अब पशुओं की नस्ल-सुधार, रोगों की रोकथाम तथा बीमार पशुओं के इलाज आदि की समुचित व्यवस्था होती है। चरागाहों में चारे की खेती, दूध तथा माँस को संबोधित करने, पशु-उत्पादों के डिब्बा बंदी का कार्य मशीन से एवं वैज्ञानिक पद्धति से किया जा रहा है। व्यापारिक स्तर पर बड़े पैमाने पर पशुपालन (रेजिंग) विकसित देशों का विशेष कार्य हो गया है।

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प्रश्न 6.
विश्व में गेहूँ तथा चावल की खेती तथा उनके वितरण प्रतिरूप के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. चावल:
अनेक मूल प्रजातियों के वृहत् संकेन्द्रण के आधार पर यह समझा जाता है कि चावल का उद्भव पूर्वोत्तर भारत के पूर्वी हिमालय पर्वतीय भागों हिंद-चीन तथा दक्षिण-पश्चिमी चीन से हुआ है। पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर, चांग-जियांग डेल्टा में, चावल की कृषि का सबसे पहले प्रारंभ 7000 वर्ष पूर्व हुआ था। अगले 6000 वर्षों में इसकी खेती का विस्तार शेष दक्षिणी और पूर्वी एशियाई भागों में हुआ। आज विश्व में लगभग 65 हजार से अधिक स्थानीय किस्मों के चावल की खेती होती है।

चावलं मुख्य रूप से उष्ण आर्द्र जलवायु वाले मानसूनी एशिया की फसल है। परम्परागत रूप से सुप्रवाहित नदी घाटियों एवं डेल्टा क्षेत्रों में ही चावल पैदा किया जाता था। तथापि, सिंचाई की सहायता से अब चावल की खेती उच्च भूमियों तथा शुष्क क्षेत्रों में भी की जा रही है। चावल का पौधा अर्थात् धान के वर्धन काल में उच्च तापक्रम (27° से 30° सैल्सियस) तथा वर्षा की अधिक मात्रा (लगभग 100 सेंटीमीटर) होनी चाहिए वस्तुतः इसके पौधों की प्रारंभिक अवस्था में खेतों में पानी भरा होना चाहिए। इसलिए ढाल के खेतों में 10 से 25 सेंटीमीटर पानी खड़ा रहता है। पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेतों में चावल उगाया जाता है। चीकाचुक्त दोमट मिट्टी जिसमें पानी भरा रह सके, इस फसल के लिए सर्वोत्तम मिट्टी है।

चावल की खेती के लिए अधिक संख्या में सस्ते श्रम की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें अधिकांश कार्य हाथ से करना पड़ता है – जैसे पौधशाला से पौध को निकालना, पानी भरे हुए खेतों में उन्हें रोपना, खेतों से समय-समय पर खर-पतवार निकालना तथा फसल की कटाई आदि। चावल का पोषक मूल्य अधिक होता है। विशेषतः उस समय जब चावल की बाहरी पर्त पर पाये जाने वाले महत्त्वपूर्ण विटामिन तत्त्व को धान की कुटाई के समय हटा नहीं दिया जाता है। संसार की लगभग आधी जनसंख्या का मुख्य भोजन चावल है।

2. गेहूँ-गेहूँ मुख्यतः
शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेश में बोई जाने वाली फसल है। लेकिन अपनी अनुकूलनशीलता के कारण आज गेहूँ का उत्पादन सभी खाद्यान्न फसलों के क्षेत्र से अधिक विस्तृत क्षेत्र पर किया जाने लगा है। आज संसार का कोई विरला ही देश होगा जहाँ यह फसल कुछ न कुछ मात्रा में पैदा न की जाती हो। प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट की समुचित मात्रायुक्त गेहूँ एक सर्वाधिक पौष्टिक अन्नों में से एक है।

विश्व के अधिकांश भागों के लोगों के भोजन का यह एक खाद्यान्न है। यद्यपि गेहूँ एक कठोर फसल है लेकिन अधिक गर्मी तथा आर्द्रता वाली जलवायु दशाओं में इसका सफलतापूर्वक उत्पादन नहीं होता है। इसके बीज उगने के समय मौसम ठंडा तथा मिट्टी में आर्द्रता की उपयुक्त मात्रा आवश्यक है। औसत वार्षिक वर्षा 40 से 75 सेंटीमीटर के बीच होनी चाहिए। फसल पकने के समय तापक्रम लगभग 16° सेल्सियस तथा आकाश साफ होना चाहिए। गेहूँ के लिए दोमट तथा श!जम मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है।
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 4

चित्र: संसार में गेहूँ उत्पादन के मुख्य क्षेत्र।

जलवायु के आधार पर गेहूँ की दो फसलें होती हैं –

1. शीत ऋतु का गेहूँ तथा बसंत ऋतु का गेहूँ। शीत ऋतु का गेहूँ उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ शीत ऋतु बहुत कठोर नहीं होती है जबकि बसंत ऋतु का गेहूँ उन क्षेत्रों में बोया जाता है जहाँ शीत ऋतु में अत्यधिक सर्दी पड़ती है। गेहूँ को गुणों के आधार पर भी दो किस्मों में विभाजित किया जाता है-मुलायम तथा कठोर गेहूँ। इनका उत्पादन क्रमशः अधिक आई वाले क्षेत्रों में एवं शुष्क आर्द्रता वाले क्षेत्रों में किया जाता है।

2. यद्यपि गेहूँ की प्रति एकड़ अधिकतम उपज आर्द्र मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में होती है, इसकी उत्पादन की प्रमुख पेटियाँ सूखे अर्द्ध शुष्क जलवायु क्षेत्रों में ही स्थित हैं। सर्वाधिक गेहूँ उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र संयुक्त राज्य कनाडा के वृहत् मैदान, स्वतंत्र प्रदेशों का संघ पूर्ण सोवियत संघ के देश स्टेपी तुल्य प्रदेश तथा उत्तरी चीन का मैदान हैं। गेहूँ की खेती गहन तथा विस्तृत कृषि पद्धतियों के अंतर्गत की जाती है। व्यापारिक दृष्टिकोण से वृहत् स्तर पर उत्पादन आस्ट्रेलिया तथा दक्षिणी अमेरिका के पम्पास में भी किया जाता है। यूरोप के लगभग सभी देशों में गेहूँ उत्पन्न किया जाता है। इन सभी देशों में फ्रांस ही सबसे बड़ा उत्पादक तथा एकमात्र निर्यातक देश भी है।

तालिका: चावल, गेहूँ उत्पादन के मुख्य क्षेत्र
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 5

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 7.
संसार के प्रमुख कृषि प्रदेशों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कृषि प्रदेशों का सबसे प्राचीन लेकिन सबसे संतोषजनक विभाजन 1936 में डी. डिवटेलसी द्वारा प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने संसार के कृषि प्रदेशों के विभाजन में 5 आधारों को अपनाया था

  1. फसल तथा पशु सहचर्य
  2. भू-उपयोग की गहनता
  3. कृषि उत्पाद का संसाधन तथा विपणन
  4. मशीनीकरण/यंत्रीकरण का अंश और
  5. कृषि समृद्ध गृहों तथा अन्य संरचनाओं के प्रकार एवं संयोजन।

इस योजना में 13 मुख्य प्रकार के कृषि प्रदेश पहचाने गये थे, जो निम्न हैं –

  1. चलवासी
  2. पशुपालन-फार्म
  3. स्थानान्तरी कृषि
  4. प्रारम्भिक स्थानबद्ध कृषि
  5. गहन जीविकोपार्जी या जीविका कृषि चावल प्रधान
  6. गहन जीविकोणी या जीविका कृषि चावल विहीन
  7. वाणिज्यिक रोपण कृषि
  8. भूमध्य सागरीय कृषि
  9. वाणिज्यिक (अंनोत्पादन) अन्नकृषि
  10. व्यापारिक पशु एवं फसल कृषि
  11. जीविकोपार्जी फसल एवं पशु कृषि
  12. वाणिज्यिक डेयरी कृषि और
  13. विशिष्ट उद्यान कृषि

चित्र में विश्व के प्रमुख कृषि प्रदेशों को सरल रूप में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से कुछ कम महत्त्व के प्रदेशों को मिला दिया गया है।Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 6

चित्र: प्रमुख कृषि प्रदेश

उपरोक्त वर्गीकरण के मूल्यांकन के लिए चयन किए गये कारक मात्रात्मक के स्थान पर निष्ठ प्रतीत होते हैं। इसके होते हुए भी हिवटेलसी का यह वर्गीकरण बाद में किए गये प्रयासों के लिए आधार प्रस्तुत करता है। कृषि पद्धतियाँ एवं उत्पादन विशेषताओं की मुख्य विशेषताओं के आधार पर संसार की कृषि पद्धतियों को प्रमुखतः दो वर्गों में जीविका कृषि, कृषि एवं वाणिज्यिक में विभक्त किया जा सकता है, यद्यपि किसी समय विशेष पर इन दोनों के बीच अंतर काफी धूमिल ही होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में खेती को किस नाम से जाना जाता है?
(A) मसोलें
(B) झूमिंग
(C) चैंजिन
(D) स्थानान्तरी
उत्तर:
(B) झूमिंग

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 2.
सबसे अधिक भू-भाग पर पैदा की जाने वाली फसल है –
(A) रबर
(B) कहवा
(C) गेहूँ
(D) चाय
उत्तर:
(D) चाय

प्रश्न 3.
विश्व के कुल क्षेत्रफल का 40 प्रतिशत भू-भाग
(A) चरागाह
(B) खेती योग्य
(C) वनों के अन्तर्गत
(D) स्थाई फसलें
उत्तर:
(B) खेती योग्य

प्रश्न 4.
गेहूँ मुख्य रूप से –
(A) उष्ण कटिबंधीय फसल
(B) शीतोष्ण कटिबंधीय फसल
(C) भूमध्य रेखीय फसल
(D) कोई भी नहीं
उत्तर:
(B) शीतोष्ण कटिबंधीय फसल

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 5.
सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में क्या नाम दिया गया?
(A) कोलखहोज
(B) सामूहिक श्रम
(C) ह्यूमिंग
(D) रोपण कृषि
उत्तर:
(A) कोलखहोज

प्रश्न 6.
ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य की दूरी, जो एक ट्रक रात भर में तय करता है, उसी आधार पर इसको क्या नाम दिया गया?
(A) ट्रक कृषि
(B) मोटर कृषि
(C) कार कृषि
(D) आधुनिक कृषि
उत्तर:
(A) ट्रक कृषि

प्रश्न 7.
पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अतिरिक्त और दूसरे प्रकार की कौन-सी कृषि की जाती है?
(A) बाजार कृषि
(B) कारखाना कृषि
(C) वाणिज्य कृषि
(D) डेरी कृषि
उत्तर:
(B) कारखाना कृषि

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 8.
भूमध्यसागरीय क्षेत्र की विशेषता क्या हैं?
(A) अंगूर की कृषि
(B) अंजीर
(C) जैतून
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 9.
मिश्रित कृषि निम्न में से कहाँ की जाती है?
(A) उत्तरी पश्चिमी यूरोप
(B) उत्तरी अमेरिका का पूर्वी भाग
(C) यूरेशिया के कुछ भाग
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 10.
मिश्रित कृषि में किस प्रकार की फसल उगाई जाती है?
(A) गेहूँ
(B) जौ
(C) राई
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 11.
झमिंग कृषि को मलेशिया और इंडोनेशिया में किस नाम से जाना जाता है?
(A) लादांग
(B) मिल्पा
(C) झूमिंग
(D) सभी
उत्तर:
(A) लादांग

प्रश्न 12.
चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अन्नानास किस प्रकार की कृषि के उदाहरण हैं?
(A) वाणिज्य कृषि
(B) रोपण कृषि
(C) गहन निर्वाह कृषि
(D) डेरी कृषि
उत्तर:
(B) रोपण कृषि

Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ

प्रश्न 13.
किस कारण से मानसून एशिया के अनेक भागों में चावल की फसल उगाना संभव नहीं?
(A) उच्चावच
(B) जलवायु
(C) मृदा
(D) सभी
उत्तर:
(D) सभी

प्रश्न 14.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि निम्न में से कहाँ की जाती है?
(A) यूरेशिया के स्टेपीज
(B) उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज
(C) अर्जेंटाइना के पंपाज
(D) दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस
(E) आस्ट्रेलिया के डाउंस
(F) सभी
उत्तर:
(F) सभी

भौगोलिक कुशलताएँ

प्रश्न 1.
संसार के रेखा मानचित्र में निम्नलिखित दिखाइए:

  1. आर्कटिक इनुइट, आस्ट्रेलियाई पिनटुपी, दक्षिण भारत के पालियान एवं मध्य एशिया के सेमांग के निवास क्षेत्र।
  2. लौह अयस्क उत्पादन के दो क्षेत्र एक यूरोप में दूसरा एशिया में।
  3. चीन, यूक्रेन और सं. राज्य अमेरिका प्रत्येक में एक कोयला क्षेत्र।

उत्तर:
Bihar Board Class 12 Geography Solutions Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ img 7

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 9 Resource Assessment – Financial and Non-Financial

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 9 Resource Assessment – Financial and Non-Financial

Question 1.
Project appraisal is an/a :
(A) Export Analysis
(B) Expert Analysis
(C) Profitability Analysis
(D) None of the above
Answer:
(C) Profitability Analysis

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 9 Resource Assessment - Financial and Non-Financial

Question 2.
Gestation period is concerned with:
(A) Idea creation period
(B) Incubation period
(C) Implementation period
(D) Commercialisation period
Answer:
(C) Implementation period

Question 3.
NPV method relates with:
(A) Time value of money
(B) Inflated value of money
(C) Present value of money
(D) None of the above
Answer:
(C) Present value of money

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 9 Resource Assessment - Financial and Non-Financial

Question 4.
Which of the following is physical resources ?
(A) Marketing
(B) Finance
(C) Resources
(D) None of the above
Answer:
(C) Resources

Question 5.
What is required for fixed capital and working capital of any enterprise ?
(A) Finance
(B) Marketing
(C) Planning
(D) None of the above
Answer:
(A) Finance

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 9 Resource Assessment - Financial and Non-Financial

Question 6.
Which of the following is included in technical resrouces ?
(A) Production
(B) Marketing
(C) Process of production
(D) None of the above
Answer:
(C) Process of production

Question 7.
Resources is the …… medium for one’s doing the work.
(A) Essential
(B) Not essential
(C) Neither (a) nor (b) of the above
(D) both (a) and (b) above
Answer:
(A) Essential

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Question 1.
Techno-ecnotnic analysis deals with identification of the:
(A) Supply Potential
(B) Demand Potential
(C) Export Potential
(D) Import Potential
Answer:
(B) Demand Potential

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Question 2.
Input analysis deals with:
(A) Funding requirements
(B) Material requirements
(C) Labour requirements
(D) Resources requirements
Answer:
(D) Resources requirements

Question 3.
Labour requirements DPR is a:
(A) Working Plan
(B) Action Plan
(C) Implementation Plan
(D) None of the above
Answer:
(B) Action Plan

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Question 4.
Project is prepared:
(A) By Promoters
(B) By Managers
(C) By Enterpreneurs
(D) By all these
Answer:
(D) By all these

Question 5.
Money spent on the preparation of project is:
(A) Investment
(B) Expenditure
(C) Wastage
(D) None of these
Answer:
(A) Investment

Question 6.
Aspects of project evaluation is:
(A) Technical Evaluation
(B) Financial Evaluation
(C) Managerial Evaluation
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Question 7.
In project identification is needed :
(A) Experience
(B) Use of Mind
(C) Both experience and Use of Mind
(D) None of these
Answer:
(C) Both experience and Use of Mind

Question 8.
Project report is a summary of:
(A) Facts
(B) Informations
(C) Analysis
(D) All these
Answer:
(D) All these

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 8 Formulation of Project Report and Project Appraisal

Question 9.
Pay-back period deals with:
(A) Period required for profit earning process
(B) Period required for cost of investment recovery
(C) Period required for fixed cost recovery
(D) None of the above
Answer:
(B) Period required for cost of investment recovery

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Question 1.
Risk Capital Foundation was established in:
(A) 1970
(B) 1975
(C) 1986
(D) 1988
Answer:
(B) 1975

Question 2.
Venture Capital thought was firstly originated in:
(A) India
(B) England
(C) America
(D) Japan
Answer:
(C) America

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Question 3.
Risk Capital Foundation was established by:
(A) IFCI
(B) Un
(C) IDBI
(D) ICICI
Answer:
(A) IFCI

Question 4.
Venture Capital contains:
(A) High Risk
(B) Venture Risk
(C) No Risk
(D) None of the these
Answer:
(A) High Risk

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Question 5.
Technological Development and Infrastructure Corporation of India was established in the year:
(A) 1975
(B) 1986
(C) 1988
(D) 1990
Answer:
(C) 1988

Question 6.
India Investment Fund was established by:
(A)IFCI
(B) Grindlary Bank
(C) State Bank
(D) Can Bank
Answer:
(B) Grindlary Bank

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 14 Venture Capital: Sources and Means of Funds

Question 7.
Venture Capital is Provided for:
(A) High Risk Units
(B) Technical Units
(C) Institutional Units
(D) All of these
Answer:
(D) All of these

Question 8.
As per Indian Goverment’s instruction Debt Equity Ratio is:
(A) 1.5
(B) 2.0
(C) 0.5
(D) 2.5
Answer:
(A) 1.5

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis

Question 1.
B.E.P.=
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis - 1
Answer:
(A)

Question 2.
Contribution:
(A) Sales Less Total Cost
(B) Sales Less Variable Cost
(C) Sales Leu Fixed Cost
(D) None of these
Answer:
(B) Sales Less Variable Cost

Question 3.
Margin of Safety:
(A) Sales Less Contribution
(B) Actual Sales Less B .E.P. Sales
(C) BEP Sales Less Actual Sales
(D) None of these
Answer:
(B) Actual Sales Less B .E.P. Sales

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis

Question 4.
P/V Ratio:
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis - 2
Answer:
(A)

Question 5.
The difference between actual sales and break-even sale is known as ?
(A) Margin of safety
(B) Total Cost
(C) Break-even point
(D) None of the above
Answer:
(A) Margin of safety

Question 6.
What break-even point shows ?
(A) Profit
(B)Loss
(C) Neither profit nor loss
(D) None of the above
Answer:
(C) Neither profit nor loss

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 13 Break-Even Analysis

Question 7.
Profit volume ratio shows the relation between whom ?
(A) Contribution and profit
(B) Contribution and loss
(C) Contribution on and sales
(D) None of the above
Answer:
(C) Contribution on and sales

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

पत्रलेखन द्वारा व्यक्तियों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान दूर रह कर भी होता है। प्राचीनकाल से ही इसका महत्त्व रहा है। जिस व्यक्ति को पत्र लिखा जाता है उसकी स्थिति के अनुसार आरम्भ में सम्बोधन किया जाता है। पुनः शिष्टाचार के अनुसार प्रणाम, आशीर्वाद, विनम्रता-प्रदर्शन इत्यादि औपचारिक रूप से आवश्यक हैं। पत्र का मुख्य भाग वर्णनात्मक, सूचनात्मक अथवा निबन्धात्मक भी हो सकता है । पत्र के अन्त में पत्र लिखने वाला अपना नाम देने के पूर्व अपने सम्बन्ध के अनुसार शब्दों का प्रयोग करता है। पत्र के तीन मुख्य औपचारिक अंग होते हैं जो इसके मूल भाग के अतिरिक्त हैं

  1. सम्बोधन
  2. भिवादन तथा
  3. समापन ।

जहाँ तक सम्बोधन का प्रश्न है बड़े लोगों के लिए मान्यवराः, आदरणीयाः, पूज्याः, मान्याः इत्यादि लिखे जाते हैं । मित्रों के लिए प्रिय, प्रियमित्र, बन्धुवर अथवा प्रिय के बाद नाम का प्रयोग भी होता है । छोटों के लिए भी प्रिय, चिरंजीवी, आयुष्मान्, इत्यादि लिखे जाते हैं। औपचारिक पत्र या आवेदन में मान्यवर, महोदय, इत्यादि लिखना समीचीन है। अभिवादन के लिए प्रणामाः, चरणस्पर्शः इत्यादि लिखा जाता है । मित्रों को नमस्ते, नमामि, प्रणमामि इत्यादि लिखना उचित है। पत्र का समापन करते हुए भवदीयः, स्नेहभाजन, आज्ञाकारी, शुभचिन्तकः, कृपाकांक्षी इत्यादि शब्द आवश्यकता के अनुसार आते हैं। उदाहरण-पिता को पत्र ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

पाटलिपुत्रम्
दिनाङ्का………….

पूज्याः पितृचरणाः

सादरं प्रणामाः सन्तु
अहम् अत्र कुशलपूर्वकं पठामि । प्रतिदिनं विद्यालयं गच्छामि । छात्रावासे निवासस्य भोजनस्य च व्यवस्था उचिता वर्तते । अतः भवान् चिन्तां न करोतु । सर्वे सहवासिनः सहयोगं कुर्वन्ति । सायंकाले उद्याने क्रीडा भवति । तया शरीरस्य व्यायामः जायते । विद्यालये शिक्षकाः सर्वे योग्या सन्ति । छात्रान् पुत्रवत् ते मन्यन्ते । ग्रीष्मावकाशे आगमिष्यामि। .

भवदीय: स्नेहभाजनः
आत्मजः…………….

आवेदन पत्र (प्रधानाचार्य के पास)

सेवायाम्
श्रीमन्तः प्रधानाचार्यमहोदयाः,
मध्य विद्यालय, कृष्णपुरम्
विषयः – अवकाशार्थम् आवेदनम् ।

मान्यवरा.!
सविनयं निवेदयामि यत् मम अग्रजायाः विवाहसमारोह: 26-02-2012.. दिनांके आयोजितः भविष्यति । अतः अहं स्वकक्षायां पञ्चदिवसान् अनुपस्थितः भविष्यामि । मम प्रार्थना वर्तते यत् 23-2-2012 दिनांकात् 27-2-2012 दिनांक यावत् मह्यम् अवकाशप्रदानस्य कृपां कुर्वन्तु भवन्तः । तदर्थम् अहं सर्वदा कृतज्ञः भविष्यामि ।

भवदीयः आज्ञाकारी छात्रा

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

अनुच्छेदलेखनम्

अनुच्छेद किसी बड़े निबन्ध का एक खण्ड होता है जिसमें एक विषय से सम्बद्ध कई वाक्य रहते हैं । निबन्ध में लेखक विषयान्तर में भी जा सकता है किन्तु अनुच्छेद में यह सम्भव नहीं । विषयवस्तु का अनुशासन यहाँ बहुत प्रभावशाली होता है। इसलिए एक वाक्य भी तारतम्य से रहित नहीं हो सकता । आकार में लघु होने के कारण अनुच्छेद लिखने वाले के बौद्धिक संयम तथा अनुशासन का परिचायक होता है । व्यक्तियों की जीवनी, ऋतुओं का वर्णन, पर्वत-नदी का वर्णन, छात्रजीवन से सम्बद्ध विषय, मानवीय गुण, उत्सव आदि के विषय में प्रायः अनुच्छेद-लेखन की आवश्यकता है। यहाँ कुछ अनुच्छेद दिये जाते हैं।

1. गंगा नदी

गंगा अस्माकं देशस्य श्रेष्ठा पूजनीया च नदी वर्तते । हिमालयपर्वतात् इयं निःसरति । उत्तराखण्डे गंगोत्तरीनामके स्थाने अस्याः उद्गमः वर्तते । तत्र हिमशिलायाः इयं निर्गता । उत्तरप्रदेशे बिहारे बंगप्रदेशे च भूमिं सा सिञ्चति । इयं बहुलाभप्रदा वर्तते ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् पत्रलेखनम (आवश्यक निर्देश)

2. विद्यालयः

छात्राणां हिताय विद्यालयस्य महत्त्वपूर्ण स्थानम् अस्ति । विद्यालये अनेकाः कक्षाः भवन्ति । तासु शिक्षका: छात्रान् विविधान् विषयान् पाठयन्ति । प्रधानाध्यापक: विद्यालयस्य नियंत्रणं करोति । विद्यालये छात्राणां सदाचारस्य शिक्षणमपि भवति ।

3. छात्रजीवनम्

जीवनस्य प्रथमः चरणः छात्रजीवनम् एव । प्राचीनभारते ब्रह्मचर्याश्रमः भवति स्म । स एव सम्प्रति छात्रजीवने दृश्यते । अस्मिन् जीवने एव शारीरिकः, मानसिकः च परिश्रमः भवति । तस्य जीवनपर्यन्तं फलं जायते । अनुशासनं विद्याध्ययनं च छात्राणां परमं कर्तव्यं भवति ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् धातुरूपाणि

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

दृश् – देखना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पश्यति – पश्यतः – पश्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पश्यसि – पश्यथः – पश्यथ
  3. उत्तमपुरुष: – पश्यामि – पश्यावः – पश्यामः ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – द्रक्ष्यति – द्रक्ष्यतः – द्रक्ष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुष: – द्रक्ष्यसि – द्रक्ष्यथः – द्रक्ष्यथ
  3. उत्तमपुरुष: – द्रक्ष्यामि – द्रक्ष्यावः – द्रक्ष्यामः

ललकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अपश्यत् – अपश्यताम् – अपश्यन्
  2. मध्यमपुरुष: – अपश्यः – अपश्यतम् – अपश्यत
  3. उत्तमपुरुषः – अपश्यम् – अपश्याव – अपश्याम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पश्यतु – पश्यताम् – पश्यन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – पश्य – पश्यतम् – पश्यत
  3. उत्तमपुरुषः – पश्यानि – पश्याव – पश्याम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पश्येत् – पश्येताम् – पश्येयुः
  2. मध्यमपुरुषः – पश्ये: – पश्येतम् – पश्येत
  3. उत्तमपुरुषः पश्ययम् पश्येव पश्येम

याच् – माँगना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – याचति – याचतः – याचन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – याचथः – याचथ – उनमपुरुषः
  3. उत्तमपुरुषः – याचामि – याचावः – याचाम:

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – याचिष्यति – याचिष्यतः – याचिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – याचिष्यसि – याचिष्यथः – याचिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – याचिष्यासि – याचिष्याव: – याचिष्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. अयाचताम् – अयाचन् – अयाचतम् – अयाचन्
  2. मध्यमपुरुष: – अयाचः – अयाचतम् – अयाचत
  3. उत्तमपुरुष: – अयाचम् – अयाचाव – अयाचाम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – याचतु – याचताम् – याचन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – याच – याचतम् – याचत
  3. उत्तमपुरुषः – याचानि – याचाव – याचाम्

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – याचेत् – याचेताम् – याचेयुः
  2. मध्यमपुरुष: – याचेः – याचेतम् – याचेत
  3. उत्तमपुरुषः – याचेयम् – याचेव – याचम

या – गाना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – याति – यातः – यान्ति
  2. मध्यमपुरुषः – यासि – याथ: – याथ
  3. उत्तमपुरुषः – यामि – याव: – यामः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – यास्यति – यास्यतः – यास्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – यास्यसि – यास्यथः – यास्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – यास्यामि – यास्यावः – यास्यामः

ललकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम्। – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अयात् – अयाताम् – अयान्, – अयुः
  2. मध्यमपुरुषः – अया: – अयातम् – अयात
  3. उत्तमपुरुषः – अयाम् – अयाव – अयाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – यातु – याताम् – यान्तु
  2. मध्यमपुरुषः – याहि – यातम् – यात
  3. उत्तमपुरुषः – यानि – याव – याम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – यायात् – यायाताम् – यायुः
  2. मध्यमपुरुषः – यायाः – यायातम् – यायात
  3. उत्तमपुरुषः – यायाम् – यायाव – यायाम

दिव् – चमकना, जुआ खेलना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – दीव्यति – दीव्यतः – दीव्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – दीव्यसि – दीव्यथः – दीव्यथ
  3. उत्तमपुरुष: – दीव्यामि – दीव्यावः – दीव्यामः

लुट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – देविष्यति – देविष्यतः – देविष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुष: – देविष्यसि – देविष्यथः – देविष्यथ
  3. उत्तमपुरुष: – देविष्यामि – देविष्याव: – देविष्यामः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुष: – अदीव्यत् – अदीव्यताम् – अदीव्यन्
  2. मध्यमपुरुष: – अदीव्यः – अदीव्यतम् – अदीव्यत
  3. उत्तमपुरुष: – अदीव्यम् – अदीव्याव – अदीव्याम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – दीव्यतु – ‘दीव्यताम् – दीव्यन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – दीव्य – दीव्यतम् – दीव्यत
  3. उत्तमपुरुषः – दीव्यानि – दीव्याव – दीव्याम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – दीव्येत् – दीव्येताम् – दीव्येयुः
  2. मध्यमपुरुषः – दीव्ये – दीव्यतम् – दीव्येत
  3. उत्तमपुरुष: – दीव्येयम् दीव्येव – दीव्येम

आप – प्राप्त करना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुष: – आप्नोति – आप्नुतः – आप्नुवन्ति
  2. मध्यमपरुषः – आप्नोषि – आप्नुथः – आप्नुथ
  3. उत्तमपुरुषः – आप्नोमि – आप्नुवः – आप्नुमः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लुट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – आप्स्यति – आप्स्यतः – आप्स्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – आप्स्यसि – आप्स्यथः – आप्स्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – आप्स्यामि – आप्स्यावः – आप्स्यामः

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – आप्नोत् – आप्नुताम् – आप्नुवन्
  2. मध्यमपुरुषः – आप्नाः – आप्नुतम् – आप्नुत
  3. उत्तमपुरुषः – आप्नुवम् – आप्नुव – आप्नुम

लोट्लकार:

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – आप्नोतु – आप्नुताम् – आप्नुवन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – आप्नुहि – आप्नुतम् – आप्नुत.
  3. उत्तमपुरुषः – आप्नवानि – आप्नवाव – आप्नवाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – आप्नुयात् – आप्नुयाताम् – आप्नुयुः
  2. मध्यमपुरुषः – आप्नुयाः – आप्नुयातम् – आप्नुयात
  3. उत्तमपुरुषः – आप्नुयाम् – आप्नुयाव – आप्नुयाम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

इष् – इच्छा करना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – इच्छति इच्छतः – इच्छन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – इच्छसि – इच्छथः – इच्छथ
  3. उत्तमपुरुषः – इच्छामि – इच्छावः – इच्छामः

लट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – एषिष्यति – एषिष्यतः – एषिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – एषिष्यसि – एषिष्यथः – एषिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – एषिष्यामि – एषिष्याव: – एषिष्याम:

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – ऐच्छत् – ऐच्छताम् – ऐच्छन्
  2. मध्यमपुरुषः – ऐच्छः – ऐच्छतम् – ऐच्छत
  3. उत्तमपुरुषः – ऐच्छम् – ऐच्छाव – ऐच्छाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – इच्छतु – इच्छताम् – इच्छन्तु
  2. मध्यमपुरुष: – इच्छ – इच्छतम् – इच्छत –
  3. उत्तमपुरुषः – इच्छानि – इच्छाव – इच्छाम ।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – इच्छेत् – इच्छेताम् – इच्छेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – इच्छेः – इच्छेतम् – इच्छेत
  3. उत्तमपुरुषः – इच्छेयम् – इच्छेव – इच्छेम

प्रच्छ्-पूछना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पृच्छति – पृच्छतः – पृच्छन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पृच्छसि – पृच्छथः – पृच्छथ
  3. उत्तमपुरुषः – पृच्छामि – पृच्छावः – पृच्छामः

लुट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – प्रक्ष्यति – प्रक्ष्यथः – प्रक्ष्यति
  2. मध्यमपुरुषः – प्रक्ष्यसि – प्रक्ष्यथः – प्रक्ष्यथ –
  3. उत्तमपुरुषः – प्रक्ष्यामि – प्रक्ष्याव: प्रक्ष्यामः

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अपृच्छत् – अपृच्छताम् – अपृच्छन्
  2. मध्यमपुरुषः – अपृच्छः – अपृच्छतम् – अपृच्छत
  3. उत्तमपुरुषः – अपृच्छम् – अपृच्छाव – अपृच्छाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पृच्छतु – पृच्छताम् – पृच्छन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – पृच्छ – पृच्छतम् – पृच्छत
  3. उत्तमपुरुषः – पृच्छानि – पृच्छाव – पृच्छाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पृच्छेत् – पृच्छेताम् – पृच्छेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – पृच्छेः – पृच्छेतम् – पृच्छेत.
  3. उत्तमपुरुषः – पृच्छेयम् – पृच्छेव – पृच्छेम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

क्री-खरीदना (परस्मैपदी)
लट्लकार

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – क्रीणाति – क्रीणीतः – क्रीणन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – क्रीणासि – क्रीणीथः – क्रीणीथ.
  3. उत्तमपुरुषः – क्रीणामि – क्रीणीवः – क्रीणीमः

लट्लकारः (भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – ऋष्यति – क्रेष्यतः – क्रष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – ऋष्यसि – क्रेष्यथः – क्रष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – ऋष्यामि – ऋष्यावः – ऋष्यामः

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अक्रीणात् – अक्रीणीताम् – अक्रीणन्
  2. मध्यमपुरुष: – अक्रीणाः – अक्रीणीतम् – अक्रीणीत
  3. उत्तमपुरुषः – अक्रीणाम् – अक्रीणीव – अक्रीणीम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – क्रीणातु – क्रीणीताम् – क्रीणन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – क्रीणीहि – क्रीणीतम् – क्रीणीत
  3. उत्तमपुरुषः – क्रीणानि – क्रीणाव – क्रीणाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – क्रीणीयात् – क्रीणीयाताम् – क्रीणीयुः
  2. मध्यमपुरुषः – क्रीणीयाः – क्रीणीयातम् – क्रीणीयात
  3. उत्तमपुरुषः – क्रीणीयाम् – क्रीणीयाव – क्रीणीयाम

चुर् – चोरी करना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चोरयति – चोरयतः – चोरयन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – चोरयसि – चोरयथः – चोरयथ
  3. उत्तमपुरुषः – चोरयामि – चोरयावः – चोरयामः

लट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चोरयिष्यति – चोरयिष्यतः – चोरयिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – चोरयिष्यसि – चोरयिष्यथः – चोरयिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – चोरयिष्यामि – चोरयिष्याव: – चोरयिष्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अचोरयत् – अचोरयताम् – अचोरयन्
  2. मध्यमपुरुषः – अचोरयः – अचोरयतम्. – अचोरयत
  3. उत्तमपुरुषः – अचोरयम् – अचोख्याव – अचोरयाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चोरयतु – चोरयताम् – चोरयन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – चोरय – चोरयतम् – चोरयत
  3. उत्तमपुरुषः – चोरयाणि – चोरयाव – चोरयाम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चोरयेत् – चोरयेताम् – चोरयेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – चोरयः – चोरयेतम् – चोरयेत
  3. उत्तमपुरुषः – चोरयेयम् – चोरयेव – चोरयेम

चिन्त् – सोचना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चिन्तयति -चिन्तयतः -चिन्तयन्ति
  2. मध्यमपुरुषः -चिन्तयसि – चिन्तयथः – चिन्तयथ
  3. उत्तमपुरुषः – चिन्तयामि – चिन्तयावः – चिन्तयामः

लट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चिन्तयिष्यति – चिन्तयिष्यतः – चिन्तयिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – चिन्तयिष्यसि – चिन्तयिष्यथः – चिन्तयिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – चिन्तयिष्यामि – चिन्तयिष्याव: – चिन्तयिष्यामः

लङ्लकारः (भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अचिन्तयत् – अचिन्तयताम् – अचिन्तयन्
  2. मध्यमपुरुषः – अचिन्तयः – अचिन्तयतम् – अचिन्तयत
  3. उत्तमपुरुष: – अचिन्तयम् – अचिन्तयाव – अचिन्तयाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चिन्तयतु – चिन्तयताम् – चिन्तयन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – चिन्तय – चिन्तयतम् – चिन्तयत
  3. उत्तमपुरुषः – चिन्तयानि – चिन्तयाव – चिन्तयाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – चिन्तयेत् – चिन्तयेताम् – चिन्तयेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – चिन्तयः – चिन्तयेतम् – चिन्तयेत
  3. उत्तमपुरुषः – चिन्तयेयम् – चिन्तयेव – चिन्तयेम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

पूज् – पूजा करना
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पूजयति – पूजयतः – पूजयन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पूजयसि – पूजयथः – पूजयथ
  3. उत्तमपुरुषः – पूजयामि – पूजयावः – पूजयामः

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पूजयिष्यति – पूजयिष्यतः – पूजयिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पूजयिष्यसि – पूजयिष्यथः – पूजयिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – पूजयिष्यामि – पूजयिष्यावः – पूजयिष्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुष: – अपूजयत् – अपूजयताम् – अपूजयन्
  2. मध्यमपुरुषः – अपूजयः – अपूजयतम् – अपूजयत
  3. उत्तमपुरुष: -अपूजयम् अपूजयाव अपूजयाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम्। – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पूजयतु – पूजयताम् – पूजयन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – पूजय – पूजयतम् – पूजयत
  3. उत्तमपुरुषः – पूजयानि पूजयाव – पूजयाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पूजयेत् – पूजयेताम् – पूजयेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – पूजये: – पूजयेतम् – पूजयेत
  3. उत्तमपुरुषः – पूजयेयम् – पूजयेव – पूजयेम

नम् – नमस्कार करना, झुकना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नमति – नमतः – नमन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – नमसि – नमथः – नमथ
  3. उत्तमपुरुषः – नमामि – नमावः – नमामः

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुष: – नस्यति – नस्यतः – नंस्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – नस्यसि – नंस्यथः – नस्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – नस्यामि – नंस्यावः – नस्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम्। – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अनमत् – अनमताम् – अनमन्
  2. मध्यमपुरुष: – अनमः – अनमतम् – अनमत
  3. उत्तमपुरुषः – अनमम् – अनमाव – अनमाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुष: – नमतु – नमताम् – नमन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – नम – नमतम् – नमत
  3. उत्तापुरुष – नमानि – नमाव – नमाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नमेत् – नमेताम् – नमेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – नमः – नर्मतम् – नमेत
  3. उत्तमपुरुषः – नमेयम् – नमेव – नर्मम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

घ्रा (जिघ्र ) – सूंघना
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – जिघ्रति – जिघ्रतः – जिघ्रन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – जिघ्रसि – जिघ्रथः – जिघ्रथ
  3. उत्तमपुरुषः – जिघ्रामि – जिघ्राव: – जिघ्राम:

लट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – घ्रास्यति – घ्रास्यतः – घ्रास्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – घ्रास्यसि – घ्रास्यथः – घ्रास्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – घ्रास्यामि – घ्रास्यावः – घ्रास्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अजिघ्रत् – अजिघ्रताम् – अजिघ्रन्
  2. मध्यमपुरुष: – अजिघ्रः – अजिघ्रतम् – अजिघ्रत
  3. उत्तमपुरुष: – अजिघ्रम् – अजिघ्राव – अजिघ्राम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – जिघ्रतु – जिघ्रताम् – जिघ्रन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – जिघ्र – जिघ्रतम् – जिघ्रत
  3. उत्तमपुरुषः – जिघ्राणि – जिघ्राव – जिघ्राम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – जिभ्रेत् – जिघ्रताम् – जिभ्रेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – जिघ्रः – जिघ्रतम् – जिनेत
  3. उत्तमपुरुषः – जिघ्रयम् – जिव – जिभ्रेम

पा (पिब्) – पीना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पिबति – पिबतः – पिबन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पिबसि – पिबथः – पिबथ
  3. उत्तमपुरुषः – पिबामि – पिबावः – पिबामः

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पास्यति – पास्यतः – पास्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – पास्यसि – पास्यथः – पास्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – पास्यामि – पास्याव: – पास्यामः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अपिबत् – अपितबताम् – अपिबन्
  2. मध्यमपुरुषः – अपिबः – अपिबतम् – अपिबत
  3. उत्तमपुरुषः – अपिबम् – अपिबाव – अपिबाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पिबतु – पिबताम् – पिबन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – पिब – पिबतम् – पिबत
  3. उत्तमपुरुषः – पिबानि – पिबाव – पिबाम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – पिबेत् – पिबेताम् – पिबेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – पिबेः – पिबेतम् – पिबेत
  3. उत्तमपुरुषः – पिबेयम् – पिबेव – पिबेम

नृत् (नृत्य) – नाचना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नृत्यति – नृत्यतः – नृत्यनित
  2. मध्यमपुरुषः – नृत्यसि – नृत्यथ: – नृत्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – नृत्यामि – नृत्यावः – नुत्यामः

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नर्तिष्यति – नर्तिष्यतः – नर्तिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – नर्तिष्यसि – नर्तिष्यथ: – नर्तिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – नतिष्यामि – नर्तिष्याव: – नर्तिष्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अनृत्यत् – अनृत्यताम् – अनृत्यन्
  2. मध्यमपुरुष: – अनृत्यः – अनृत्यतम् – अनृत्यत
  3. उत्तमपुरुष: – अनृत्यम् – अनृत्याव – अनृत्याम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नृत्यतु – नृत्यताम् – नृत्यन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – नृत्य – नृत्यतम् – नृत्यत
  3. उत्तमपुरुषः – नृत्यानि – नृत्याव – नृत्याम

विधिलिङ्लकारः (चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – नृत्येत् – नृत्येताम् – नृत्येयुः
  2. मध्यमपुरुषः – नृत्येः – नृत्येतम् – नृत्येत
  3. उत्तमपुरुषः – नृत्येयम् – नृत्येव – नृत्येम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् धातुरूपाणि

हस् – हँसना (परस्मैपदी)
लट्लकारः (वर्तमानकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – हसति – हसतः – हसन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – हससि – असथः – हसथ
  3. उत्तमपुरुषः – हसामि – हसाव: हसामः

लुट्लकारः (सामान्य भविष्यत्काल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – हसिष्यति – हसिष्यतः – हसिष्यन्ति
  2. मध्यमपुरुषः – हसिष्यसि – हसिष्यथः – हसिष्यथ
  3. उत्तमपुरुषः – हसिष्यामि – हसिष्यावः – हसिष्यामः

लङ्लकारः (अनद्यतन भूतकाल)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – अहसत् – अहसताम् – अहसन्
  2. मध्यमपुरुषः – अहसः – अहसतम् – अहसत
  3. उत्तमपुरुषः – अहसम् – अहसाव – अहसाम

लोट्लकारः (आदेशवाचक)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – हसतु – हसताम् – हसन्तु
  2. मध्यमपुरुषः – हस – हसतम् – हसत
  3. उत्तमपुरुषः – हसानि – हसाव – हसाम

विधिलिङ्लकारः ( चाहिए अर्थ में)

पुरुषः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमपुरुषः – हसेत् – हसेताम् – हसेयुः
  2. मध्यमपुरुषः – हसेः – हसेतम् – हसेत
  3. उत्तभपुरुषः – हसेयम् – हसेव – हसेम

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

Bihar Board Class 8 Sanskrit Book Solutions Amrita Bhag 3 व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

BSEB Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

संस्कृत भाषा में दो या अधिक सार्थक शब्दों को एक साथ मिलाकर प्रयुक्त करने की व्यवस्था है। इसे “समास” कहते हैं। इसका अर्थ हैसमसनं समासः । अर्थात् पदों को एक साथ (सम्) रखना (असनम्) । एक साथ रखने पर उसके बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं। दोनों पदों के बीच कैसा सम्बन्ध है इसके आधार पर समास के भेद होते हैं । इस सम्बन्ध को समास के विग्रह द्वारा प्रकट करते हैं। जैसे

  1. समास का पद – पदों में सम्बन्ध (विग्रह)
  2. राजपुरुषः – राज्ञः पुरुषः।
  3. यथाशक्ति – शक्तिम् अनतिक्रम्य । (शक्ति की सीमा के अन्तर्गत)
  4. पीताम्बरः – पीतम् अम्बरं यस्य सः ।
  5. पाणिपादम् – पाणी च पादौ च तेषां समाहारः।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

समास मूलतः चार प्रकार के हैं-

अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि तथा द्वन्द्व । तत्पुरुष के अन्तर्गत कर्मधारय और द्विगु मुख्य रूप से होते हैं इसलिए कहीं-कहीं छह समासों की चर्चा दिखाई पड़ती है।

अव्ययीभाव समास – अव्यय के रूप में रहता है। इसमें प्रायः पूर्व पद के अर्थ की प्रधानता रहती है। जैसे

  1. शक्तिमनतिक्रम्य = यथाशक्ति ।
  2. दिनं दिनं प्रति = प्रतिदिनम् ।
  3. गृहस्य समीपम् = उपगृहम् ।

तत्पुरुष समास – में उत्तर पदार्थ की प्रधानता होती है । इसमें कहीं-कहीं दोनों पदों की विभक्तियाँ भिन्न होती हैं तो व्यधिकरण तत्पुरुष कहलाता है। जैसे

  1. ग्रामं गतः = ग्रामगतः । (द्वितीया तत्पुरुष)
  2. ज्ञानेन हीनः = ज्ञानहीनः । (तृतीया तत्पुरुष)
  3. व्याघ्रात् भयम् = व्याघ्रभयम् । (पञ्चमी तत्पुरुष)
  4. गंगायाः जलम् = गङ्गाजलम् । (षष्ठी तत्पुरुष)
  5. काव्ये प्रवीणः = काव्यप्रवीणः । (सप्तमी तत्पुरुष)
  6. पूर्वपद की विभक्ति के अनुसार इसके भेद किये गये हैं।

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

तत्पुरुष समास में कभी-कभी दोनों पदों की विभक्तियाँ समान होती हैं,

तब उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

  1. जैसे- नीलं कमलम् = नीलकमलम्
  2. वीरः पुरुषः = वीरपुरुषः
  3. घन इव श्यामः = घनश्यामः
  4. कुत्सितः पुरुषः = कुपुरुषः

ऐसे ही समास में पूर्वपद संख्या वाचक हो, तो उसे द्विगु कहते हैं। जैसे

  1. त्रयाणां लोकानां समाहारः = त्रिलोकी
  2. सप्तानां शतानां समाहारः = सप्तशती
  3. नवानां रात्रीणां समाहारः = नवरात्रम्

‘न’ का समास किसी पद के साथ होने से उसे “न” समास कहते हैं। न का व्यञ्जन के पूर्व ‘अ’ तथा स्वर के पूर्व ‘अन्’ हो जाता है। जैसे

  1. न मोघः = अमोघः
  2. न सिद्धः = असिद्धः
  3. न अर्थः = अनर्थः
  4. न आगतः = अनागतः

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

बहुव्रीहि समास में दोनों पदों के अर्थों से भिन्न अन्य पदार्थ की प्रधानता
होती है । जैसे

  1. दश आननानि यस्य सः = दशाननः (अर्थात् रावण)
  2. पीतम् अम्बरं यस्य सः = पीताम्बरः (अर्थात् विष्णु)
  3. वीणा पाणौ यस्याः सा = वीणापाणिः (अर्थात् सरस्वती)

द्वन्द्वसमास – ‘च’ के अर्थ में होता है, इसलिए इसमें दोनों पदों के अर्थों की प्रधानता होती है। जैसे

  1. रामश्च कृष्णश्च = रामकृष्णौ
  2. सुखं च दु:खं च = सुखदुःखें
  3. पिता च पुत्रश्च = पितापुत्री
  4. सीता च गीता च = सीतागीत

Bihar Board Class 8 Sanskrit व्याकरणम् समासस्य अवधारणा

यह स्मरणीय है कि सन्धि के समान समास भी संस्कृत भाषा की . विशिष्टता है जिससे भाषा में संक्षेपण, अभिनव अर्थ का प्रकाशन एवं बहुव्रीहि समास के प्रयोग से व्यञ्जना वाले अर्थ भी लाये जाते हैं।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Question 1.
Project identification deals with:
(A) Viable Product idea
(B) Logical opportunity
(C) Effective demand
(D) None of these
Answer:
(A) Viable Product idea

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Question 2.
Following is not considered with quantifiable projects :
(A) Power generation
(B) Mineral production
(C) Family welfare
(D) Water supply
Answer:
(C) Family welfare

Question 3.
Lack of standardisation of the equipment is due to:
(A) Internal constraints
(B) External constraints
(C) Government barriers
(D) Regulatory barriers
Answer:
(B) External constraints

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Question 4.
Factor intensity oriented projects are:
(A) Capital oriented projects
(B) Labour intensive projects
(C) Technology oriented projects
(D) Both (a) and (b)
Answer:
(D) Both (a) and (b)

Question 5.
A project is:
(A) Cluster of activities
(B) Single activity
(C) Group of innumerable activities
(D) None of these
Answer:
(A) Cluster of activities

Question 6.
Project life cycle is not concerned with the following:
(A) Pre-investment stage
(B) Constructive stage
(C) Normalisation stage
(D) Stabilisation stage
Answer:
(D) Stabilisation stage

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Question 7.
Project is not concerned with :
(A) Innovation
(B) Vision
(C) Risk
(D) Creativity
Answer:
(D) Creativity

Question 8.
Project management is not concerned with:
(A) Functional approach
(B) Centralised policy formulation
(C) Decentralised implementation
(D) Decentralised policy formulation
Answer:
(D) Decentralised policy formulation

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 7 Concept of Project and Planning

Question 9.
Expansion project helps in:
(A) Supplementing the existing resources
(B) Capturings supply of critical inputs
(C) Encashing additional opportunities
(D) None of these
Answer:
(C) Encashing additional opportunities

Question 10.
Modernisation improves:
(A) Products
(B) Production
(C) Processes
(D) Capacity
Answer:
(D) Capacity

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 1.
Net working capital means:
(A) C. A.-C.L.
(B) C.A. + C.L.
(C) C.L. – C.A.
(D) None of the above
Answer:
(A) C. A.-C.L.

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 2.
Ideal Current Ratio is:
(A) 2:1
(B) 1:2
(C) 3:2
(D) 4:l
Answer:
(A) 2:1

Question 3.
Which of the following is not an Operating Expense ?
(A) Advertising Expense
(B) Preliminary exp written off
(C) Wages
(D) Rent
Answer:
(B) Preliminary exp. written off

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 4.
Stock Turnover Ratio comes under:
(A) Liquidity Ratio
(B) Profitability Ratio
(C) Activity Ratio
(D) Financial Position Ratio
Answer:
(C) Activity Ratio

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 5.
Current Ratio is :
(A) Balance Sheet Ratio
(B) P/L Ratio
(C) Composit Ratio
(D) None of these
Answer:
(A) Balance Sheet Ratio

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 6.
Ratio provide a ……… measure of a company’s performance and condition:
(A) Qualitative
(B) Relative
(C) Definite
(D) Goods
Answer:
(B) Relative

Question 7.
The primary concern of creditors when assessing the strength of a firm is the firm’s:
(A) Liquidity
(B) Share price
(C) Solvency
(D) Profitability
Answer:
(D) Profitability

Question 8.
The two basic measures of liquidity are:
(A) Stock & Debtors Turnover Ratio
(B) Current ratio & operating ratio
(C) Current ratio and liquid ratio
(D) Gross & Net Profit Ratio
Answer:
(C) Current ratio and liquid ratio

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 9.
Analysis involves comparison of current to past performance and the evaluation of developing kind:
(A) Time Series
(B) Marginal
(C) Quantitative
(D) Cross-sectional
Answer:
(A) Time Series

Question 10.
Ratios are a measure of the speed with which various accounts are converted into sales or cash:
(A) Activity
(B) Debt
(C) Solvency
(D) Liquidity
Answer:
(A) Activity

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 11.
The ………. is useful in evaluating credit and collection policies:
(A) Liquid Ratio
(B) Current Ratio
(C) Average payment period
(D) Average collection period
Answer:
(D) Average collection period

Question 12.
The……. ratios are primarily measures of return:
(A) Debt
(B) Profitability
(C) Activity
(D) Liquidity
Answer:
(C) Activity

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Answers Chapter 12 Accounting Ratios

Question 13.
The foilwing groups of ratios primarily measure risk:
(A) Activity, liquidity and profitablity
(B) Activity, debt and profitability
(C) Liquidity, activity, and common share
(D) Liquidity, activity and debt
Answer:
(B) Activity, debt and profitability