Bihar Board Class 10 Disaster Management Solutions Chapter 3 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : भूकंप एवं सुनामी

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Disaster Management आपदा प्रबन्धन Chapter 3 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : भूकंप एवं सुनामी Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Disaster Management Solutions Chapter 3 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : भूकंप एवं सुनामी

Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : भूकंप एवं सुनामी Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
महासागर के तली पर होनेवाले कंपन को किस नाम से जाना जाता है?
(क) भूकंप
(ख) चक्रवात
(ग) सुनामी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) सुनामी

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प्रश्न 2.
2 दिसम्बर, 2004 को विश्व के किस हिस्से में भयंकर सनामी आया था?
(क) पश्चिम एशिया
(ख) प्रशांत महासागर
(ग) अटलांटिक महासागर
(घ) बंगाल की खाड़ी
उत्तर-
(घ) बंगाल की खाड़ी

प्रश्न 3.
भूकंप से पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली सबसे पहली तरंग को किस नाम से जाना जाता है?
(क) पी-तरंग
(ख) एस-तरंग
(ग) एल-तरंग
(ग) टी-तरंग
उत्तर-
(क) पी-तरंग

प्रश्न 4.
भूकंप केन्द्र के उर्ध्वाधर पृथ्वी पर स्थित केन्द्र को क्या कहा जाता है?
(क) भूकंप केन्द्र
(ख)- अधिकेन्द्र
(ग) अनुकेन्द्र
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) अनुकेन्द्र

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प्रश्न 5.
भूकंप अथवा सुनामी से बचाव का इनमें से कौन-सा तरीका सही नहीं है?
(क) भूकंप के पूर्वानुमान को गंभीरता से लेना ।
(ख) भूकंप विरोधी भवनों का निर्माण करना .
(ग) गैर-सरकारी संगठनों द्वारा राहत कार्य हेतु तैयार रहना
(घ) भगवान भरोसे बैठे रहना।
उत्तर-
(घ) भगवान भरोसे बैठे रहना।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भूकम्प के केन्द्र एवं अधिकेन्द्र के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
भूपटल के नीचे का वह स्थल भूकंपीय कंपन प्रारंभ होता है, भूकंप केन्द्र कहलाता ‘ है। भूपटल पर वे केन्द्र जहाँ भूकम्प के तरंग का सर्वप्रथम अनुभव होता है अधिकेन्द्र कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
भूकंपीय तरंगों से आप क्या समझते है? प्रमुख भूकंपीय तरंगों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भूकंप के समय उठनेवाले कंपन को मुख्यतः प्राथमिक (P), द्वितीयक (S) तथा दीर्घ (L) तरंगों में बाँटा जाता है।
P-तरंग सबसे पहले पृथ्वी पर पहुंचा है।
S-तरंग अनुप्रस्थ तरंग है और इसकी गति प्राथमिक तरंग से कम होती है।
तरंग भूपटलीय सतह पर उत्पन्न होती है, इसकी गहनता सबसे कम होती है। धीमी गति के साथ क्षैतिज रूप से चलने के कारण यह किसी स्थान पर सबसे बाद में पहुंचती है लेकिन यह सर्वाधिक विनाशकारी तरंग होती है।

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प्रश्न 3.
भूकंप और सुनामी के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भूकंप-

  • भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है।
  • भूकंप की गहनता और बारंबारता में भारी अंतर होता है। इसे पाँच भागों में विभक्त किया गया है-जोन-1, जोन-2, जोन-3, जोन-4, जोन-5

सुनामी –

  • सुनामी भी प्राकृतिक आपदा है।
  • महासागर की तली पर जब कंपन होता है तो इसे सुनामी कहा जाता है।
  • समुद्र जल में कंपन उत्पन्न होता है और इस कंपन से क्षैतिज गति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
सुनामी से बचाव के लिए कोई तीन.उपाय बताइए।’
उत्तर-

  • सुनामी से बचने के लिए समुद्र के बीच में स्टेशन/प्लेटफार्म बनाने की जरूरत है, जो समुद्री जल के सतह के नीचे की क्षैतिज हलचलों का अध्ययन कर तट पर संकेत दे सकता है जिससे वहाँ से लोगों को हटाया जा सके। सही पूर्वानुमान से लोगों को सुनामी से बचाया। जा सकता है।
  • सुनामी से बचने के लिए कंक्रीट तटबंध की जरूरत है।
  • सुनामी से बचने के लिए सरकार तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा तटीय प्रदेश में रहनेवाले लोगों को प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भूकंप क्या है ? भारत को प्रमुख भूकंप क्षेत्रों में वभाजित करते हुए सभी क्षेत्रों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
भूपटल के नीचे का वह केन्द्र जहाँ भूकंपीय कंपन प्रारंभ होता है भूकंप कहलाता है। भारत को 5 भूकंपीय पेटी (Zone) में बांटा गया है जो निम्नलिखित हैं .

  • जोन-1: इस जोन में दक्षिणी पठारी क्षेत्र आते हैं, जहाँ भूकंप का खतरा नहीं के बराबर है।
  • जोन-2 : इसके अन्तर्गत प्रायद्वीपीय भारत के तटीय मैदानी क्षेत्र आते हैं जहाँ भूकंप की संभावना होती लेकिन तीव्रता कम होने के कारण अतिसीमित खतरे होते हैं।
  • जोन-3 :इसके अंतर्गत गंगा-सिन्धु का मैदान, राजस्थान तथा उत्तरी गुजरात के क्षेत्र आते हैं। यहाँ भूकंप का प्रभाव तो देखने को मिलता है लेकिन वह कभी-कभी विनाशकारी होते हैं।
  • जोन-4 : इसमें अधिक खतरे होते हैं। इसके अंतर्गत शिवालिक हिमालय का क्षेत्र, पश्चिम बंगाल का उत्तरी क्षेत्र, असम घाटी तथा पूर्वोत्तर भारत का क्षेत्र तथा अंडमान निकोबार क्षेत्र भी आते हैं।
  • जोन-5:यह सर्वाधिक खतरे का क्षेत्र होता है। इसके अंतर्गत गुजरात का कच्छ प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरखंड का कुमाऊँ पर्वतीय क्षेत्र, सिक्किम तथा दार्जिलिंग का पहाड़ी क्षेत्र आता है।

प्रश्न 2.
सुनामी से आप क्या समझते हैं ? सुनामी से बचाव के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सुनामी ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो महासागर की तली पर कंपन से होता है इस कंपन से जल में क्षैतिज गति उत्पन्न होती है।

सुनामी से बचाव के लिए पूर्वानुमान आवश्यक है। समुद्र के बीच में इसके लिए स्टेशन/ प्लेटफार्म बनाने की जरूरत है, जो समुद्री जल के सतह के नीचे की क्षैतिज हलचलों का अध्ययन कर तट पर संकेत दे सकता है, जिससे कि लोगों को वहाँ से हटाया जा सके।

सुनामी से बचाव के लिए कंक्रीट तटबंध बनाने की जरूरत है। इस तट से टकराने वाले सुनामी तरंगों का तटीय मैदान पर सीमित प्रभाव होगा। तटबंध के किनारे में गाँव जैसी वनस्पति को सघन रूप से लगाना चाहिए।

तटीय प्रदेश में रहनेवालों को सुनामी से बचाने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इसके अंतर्गत सूचना मिलते ही समुद्र की तरफ या स्थल खंड की तरफ तुरंत भागने के लिए तैयार करना, सुनामी जल के स्थिर होने के बाद सामूहिक रूप से बचाव कार्य में लग जाना, घायलों की चिकित्सा सुविधाओं के अंतर्गत प्रभावित लोगों को स्वच्छ पेयजल और भोजन की व्यवस्था करना, असामाजिक तत्वों द्वारा लूट-मार न हो इसके लिए आम लोगों का सहयोग लेने जैसे कार्यों को करना आवश्यक है जिसमें सुनामी जल न्यूनतम प्रभाव डाल सके।

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प्रश्न 3.
भूकंप एवं सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भूकंप एक प्राकृतिक आपदा है जिससे बचाव के लिए. बहुआयामी प्रयास आवश्यक हैं इन प्रयासों को निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत रखा जा सकता है
(i) भूकंप का पूर्वानुमान, (ii) भवन निर्माण, (iii) जानमाल की सुरक्षा, (iv) प्रशासनिक कार्य, (v) गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग।

पूर्व, तरंग और अनुकंपन तरंगों को यदि भूकंपलेखी यंत्र पर ठीक से मापन किया जाय तो तरंगों की प्रवृत्ति के आधार पर संभावित बड़े भूकंप का पूर्वानुमान किया जा सकता है।

भूकंपनिरोधी मकान बनाने चाहिए। जनमाल की सुरक्षा हेतु विशेष सुरक्षा बलों की आवश्यकता है।
भूकंप से बर्बादी को रोकने में प्रशासनिक सतर्कता अतिआवश्यक है। इसके लिए मीडिया, पुलिस और जिला प्रशासन को अधिक सक्रिय होने की जरूरत है।

भूकंप की तबाही को रोकने में गैर-सरकारी संगठनों की अहम भूमिका होती है। ये संस्थाएँ न सिर्फ तत्काल राहत पहुँचाने में मदद कर सकते हैं वरन् भूकंपनिरीधी भवन निर्माण तथा भूकंप से तत्काल बचाव के लिए प्रशिक्षित भी कर सकते हैं। दबे हुए मलवे से आमलोगों को निकालने हेतु सामान्य तरीकों के अलावा सरकारी तंत्र की मदद से नवीन तकनीक का उपयोग करते हुए
साँस लेते हुए मानव को बचाने का कार्य कर सकते हैं।

विद्यालय में बच्चों को भूकंप से बचाव की जानकारी दी जानी चाहिए। भूकंप की तरह ही सुनामी भी प्राकृतिक आपदा है जिसमें समुद्र के बीच स्टेशन/प्लेटफार्म बनाने चाहिए जिससे पूर्व सूचना मिलने पर वहाँ से लोगों को हटाया जा सके।
सुनामी से बचाव के लिए कंक्रीट तटबंध बनाने की जरूरत है। इस कारण तट से टकराने-वाले सुनामी तरंगों का तटीय मैदान पर सीमित प्रभाव होगा। तटबंध के किनारे मैंग्रोव जैसी वनस्पति को लगाना चाहिए।

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राज्य सरकार तथा गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा तटीय प्रदेश में रहनेवाले, लोगों को सुनामी से बचाव का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। सुनामी से प्रभावित लोगों को तत्काल चिकित्सा सुविधा, शुद्ध पेयजल और भोजन की व्यवस्था, असामाजिक तत्वों द्वारा लूट-पाट न हो इसके लिए आमलोगों का सहयोग लेना अतिआवश्यक है।

प्रश्न 4.
भूकम्प और सुनामी के विनाशकारी प्रभावों का वर्णन करें और इनसे बचाव के उपाय बताएँ।
उत्तर-
भूकम्प और सुनामी एक प्राकृतिक आपदा है। इससे मानवीय जगत पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे धन-जन की अपार क्षति होती है। बड़ी-बड़ी इमारतें एक मल्बे का रूप ले लेती हैं। जिससे आर्थिक हानि होती है। सुनामी आने से समुद्र के किनारे के गरीब मछुआरों का जीवन संकट में.पड़ जाता है। अभी हाल में जापान में भूकम्प के झटकों ने जापानवासियों को दहशत में ला दिया है। वहाँ के लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। भूकम्प और सुनामी आने से न केवल धन-जन हानि होती है, बल्कि इसका देश की अर्थव्यवस्था पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इन दोनों विनाशकारी आपदाओं से देश की स्थिति डॉवाडील हो जाती है। लोग अपने-आपको सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं और दहशत में रहते हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण जापान है, जहाँ भूकम्प के झटकों ने जापान में अपना विनाशकारी लीला दिखाया है। अत: इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भूकम्प और सुनामी के बहुत अधिक विनाशकारी प्रभाव होते हैं।

भूकंप से बचाव के उपाय

  • भूकंप का पूर्वानुमान- भूकंपलेखी यंत्र के द्वारा भूकंपीय तरंगों का पूर्वानुमान किया जा सकता है।
  • भवन-निर्माण- भवनों का निर्माण भूकंपरोधी तरीकों के आधार पर किया जाना चाहिए। खासकर उन क्षेत्रों में जो भूकंप प्रभावित हैं।
  • प्रशासनिक कार्य- भूकंप के बाद राहत-कार्य के लिए प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा विरोध दस्ते का गठन किया जाना चाहिए।
  • गैर-सरकारी संगठनों का सहयोग- भूकंपीय आपदा से निपटने के लिए गैर-सरकारी संगठनों का भी योगदान हो सकता है। ये संस्थाएं न सिर्फ राहत-कार्य में मदद कर सकते हैं, बल्कि भूकम्प के पूर्व लोगों को भूकम्प विरोधी भवन-निर्माण तथा भूकम्प के समय तत्काल बचाव हेतु लोगों को प्रशिक्षित भी कर सकते हैं।

सुनामी से बचाव के उपाय-

  • तटबंधों तथा मैंग्रोव झाड़ी का विकास- सुनामी के विनाशकारी प्रभाव से बचने के लिए कंक्रीट के तटबंधों का निर्माण तथा तटबंधों पर मैंग्रोव की झाड़ियों का विकास कर सुनामी के झटके को कम किया जा सकता है।
  • तटीय प्रदेश के लोगों को प्रशिक्षण तटीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों को प्रशिक्षण देकर सुनामी के बाद राहत-कार्यों में सामूहिक रूप से इनसे मदद लिया जा सकता है।

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Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़ Notes

  • पृथ्वी के अन्दर प्लेटों की हलचल या अन्य भूगर्भीय क्रियाओं के कारण पृथ्वी की सतह पर जब कंपन होता है, तो उसे भूकंप कहते हैं।
  •  हिमालय की तराई को पूरा भाग और पश्चिमी भाग भूकंप के सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • भूकंप की तीव्रता मापने की इकाई ‘रिक्टर पैमाना’ है।
  • 7 या इससे अधिक रियक्टर के भूकंप अत्यधिक विनाशकारी होते हैं।
  • पृथ्वी के अन्दर के तरंगों को ‘रैले तरंगें’ और सतह के पास की तरंगों को ‘लव तरंगें’ कहते हैं। ये नाम वैज्ञानिकों के नाम के आधार पर रखे गए हैं।
  • सुनामी जापानी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘भयंकर समुद्री दैत्य’।
  • समुद्र की पेंदी के पास भूकंप होने से सुनामी लहरें उत्पन्न होती हैं। किनारे आने पर ये विकराल रूप धारण कर लेती है।
  • भारत का दक्षिण-पूर्वी तट और द्वीप समूह सुनामी से अधिक प्रभावित होते हैं।
  • भूकंप संवेदनशीलता के आधार पर क्षेत्रों का वर्गीकरण-
  • जापान में भूकंप आना प्रायः सामान्य बात है।

भारत की राष्ट्रीय भूभौतिकी प्रयोगशाला, भूगर्भीय सर्वेक्षण, भारतीय मौसम विभाग और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के विगत लगभग 1,200 भूकंपों का गहन विश्लेषण कर इसे निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया है-

  • अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र कच्छ, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल के तराई क्षेत्र, संपूर्ण पूर्वोत्तर राज्या
  • अतिसंवेदनशील पूर्वोत्तर गुजरात, जम्मू-कश्मीर का तराई का भाग, हिमालय प्रदेश, . पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी महाराष्ट्र और उड़ीसा का पूर्वोत्तर कोना।
  • मध्यम संवेदनशील क्षेत्र देश का पश्चिमी क्षेत्र, सतपुरा, विंध्याचल के साथ लगी मध्य पेटी, मैदानी भाग का मध्य भाग एवं कुछ पूर्वी तटीय क्षेत्र।
  • निम्न संवेदनशील क्षेत्र मध्यम संवेदनशील क्षेत्रों से सटी हुई भीतरी पट्टी।
  • न्यनतम संवेदनशील क्षेत्र कर्नाटक, पूर्वी महाराष्ट्र, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के . पश्चिमी भाग, राजस्थान का पूर्वी भाग। राजस्थान का पूर्वी भाग।

भूकंप के विभिन्न प्रभाव
(क) भूतल पर दरारें पड़ना, भूस्खलन; जमीन के भीतर से पानी निकल जाना; भू-दबाव एवं अन्य संभावित श्रृंखला प्रतिक्रियाएँ।
(ख) मानव निर्मित कृतियों पर दरारें पड़ना, उलट जाना, आकुंचन, निपात, धन, जन , और निर्माणों की हानि एवं अन्य संभावित शृंखला प्रतिक्रियाएँ।
(ग) जल पर लहरें उत्पन्न होना, समुद्रों में सुनामी जैसी आपदा उत्पन्न होना एवं अन्य। संभावित श्रृंखला प्रतिक्रियाएँ।

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भूकम्प की वैज्ञानिक व्याख्या-पृथ्वी के भीतर विभिन्न क्रियाओं के कारण भूकंप हो सकता है, जैसे-

  • ज्वालामुखी सक्रियता-भयानक ज्वालामुखी विस्फोटों से निकटवर्ती क्षेत्रों में भूकंप का अनुभव हो सकता है।
  • पृथ्वी का संकुचन-पृथ्वी के संकुचन से भीतरी भागों में दबाव बढ़ जाता है। जिससे चट्टानों में टूट-फूट की क्रिया होती है और इसका फल तल के ऊपर भूकंप के रूप में मिलता है।
  • पहाड़ों या ऊंचे स्थानों से जब कुछ भाग कटकर नीचे की ओर जमा होने लगता है तो इसके फलस्वरूप कहीं चट्टानें नीचे खिसकती हैं कहीं ऊपर। इस हलचल से भी भूकंप हो सकता है।
  • भ्रंशनकिसी कारण से चट्टानें जब टूटती है तो इधर-उधर खिसकने लगती हैं। इन भ्रंशित क्षेत्रों में इन चट्टानों का क्रम कभी भी बदल सकता है और ये क्षेत्र भूकंप के लिए संवेदनशील हो जाते हैं, जैसे भारत में कृष्णा नदी के तट के साथ लातूर की भ्रंशित रेखा।
  • प्रत्यास्थ्य प्रतिक्षेप-चट्टानों में लचीलापन होता है। दबाव बढ़ने पर ये कुछ सिकुड़ जाता हैं और कम होने पर पुनः फैल जाती हैं। परंतु इसकी भी एक सीमा होती है। इस प्रत्यास्थता सीमा से अधिक दबाव पड़ने पर ये टूट जाती हैं। इस क्रिया से भी भूकंप हो सकता है।
  • जल-रिसाव-गहरे समुद्र में यदि निचले तल में दरार हो तो उससे पानी रिसकर नीचे जाता है, जहाँ तापमान की अधिकता के कारण यह वाष्प बन जाता है, इससे 1200 गुने से भी . अधिक दबाव उत्पन्न होता है और इससे पृथ्वी की सतह में कंपन उत्पन्न होता है। …..
  • पृथ्वी की प्लेटों के बीच पारस्परिक क्रिया-पृथ्वी के प्लेटें खिसकते समय दूसरी अन्य प्लेटों को धक्का देती है या उनके बीच घर्षण होता है अथवा वे एक-दूसरे से दूर हटती हैं। इन परिस्थितियों में में भी कंपन से भूकंप होता है।
  • अन्य कारण-भूस्खलन, समुद्री तटों पर मिट्टी टूटकर नीचे गिरना, चूना प्रदेशों की कंदराओं की छतों का बह जाना, बर्फीला अवधान या हिमपिंडों के खिसकने से स्थानीय भूकंप हो सकते हैं।

 

Bihar Board Class 10 Disaster Management Solutions Chapter 2 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Disaster Management आपदा प्रबन्धन Chapter 2 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़ Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़ Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नदियों में बाढ़ आने के प्रमुख कारण कौन हैं?
(क) जल की अधिकता
(ख) नदी के तल में अवसाद का जमाव
(ग) वर्षा की अधिकता होना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) जल की अधिकता

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प्रश्न 2.
बिहार का कौन-सा क्षेत्र बाढ़ग्रस्त क्षेत्र हैं ?
(क) पूर्वी बिहार
(ख) दक्षिणी बिहार
(ग) पश्चिमी बिहार
(घ) उत्तरी-दक्षिणी बिहार
उत्तर-
(घ) उत्तरी-दक्षिणी बिहार

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में किस नदी को ‘बिहार का शोक’ कहा गया है?
(क) गंगा
(ख) गंडक
(ग) कोशी
(घ) पुनपुन
उत्तर-
(ग) कोशी

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प्रश्न 4.
बाढ़ क्या है ?
(क) प्राकृतिक आपदा
(ख) मानव-जनित आपदा
(ग) सामान्य आपदा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) प्राकृतिक आपदा

प्रश्न 5.
सूखा किस प्रकार की आपदा है ?
(क) प्राकृतिक आपदा
(ख) मानवीय आपदा
(ग) सामान्य आपदा
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) प्राकृतिक आपदा

प्रश्न 6.
सूखे की स्थिति किस प्रकार आती है ?
(क) अचानक
(ख) पूर्व सूचना के अनुसार
(ग) धीरे-धीरे ।
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) अचानक

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प्रश्न 7.
सूखे के लिए जिम्मवार कारक हैं :
(क) वर्षा की कमी
(ख) भूकंप
(ग) बाढ़
(ग) ज्वालामुखी क्रिया
उत्तर-
(क) वर्षा की कमी

प्रश्न 8.
सूखे से बचाव का मु
(क) नदियों को आपस में जोड़ देना
(ख) वर्षा-जल का संग्रह करना
(ग) बाढ़ की स्थिति उत्पन्न करना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) वर्षा-जल का संग्रह करना

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लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाढ़ कैसे आती है ? स्पष्ट करें।.
उत्तर-
मॉनसन की अनिश्चितता के कारण बाढ़ आती है। भारतीय धर्म ग्रंथों के अनुसार जल के देवता इन्द्र को माना जाता हैं जिनकः क्रोधित होने से अनावृष्टि होती है और बाढ़ आती है किन्तु वर्तमान में मानवीय कारण माना जाने लगा है। जैसे—बाढ़ को रोकने के लिए बाँध और तटबंध बनाये गये हैं। जब जल का स्तर बढ़ जाता है तो बाँध और तटबंध टूट जाते हैं जिससे बाढ़ आती है।

प्रश्न 2.
बाढ़ से होनेवाली हानियों की चर्चा करें।
उत्तर-
बाढ़ आने से अनेक हानियां होती हैं जिससे इसमें अधिक जनसंख्या प्रभावित होती है। महामारी फैलना, मकानों का गिरना, फसलों की बर्बादी होती है।

प्रश्न 3.
बाढ़ से सुरक्षा हेतु अपनाई जानेवाली सावधानियों को लिखें।
उत्तर-
बाढ़ की विनाशलीला को रोकने के लिए बांध और तटबंध का निर्माण किया जा रहा है। लेकिन इसमें कुछ खामियों के चलते इस प्रबंध पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। इसके लिए वर्तमान समय में विश्व के कई देशों ने नदियों पर बाँध न बनाकर कृत्रिम जलाशय का निर्माण किया है तथा जल की निकासी इस प्रक्रिया से होने की प्रबंधन होता है जिससे बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न न हो। बाढ़ से सुरक्षा हेतु सावधानियाँ निम्न प्रकार हैं

  • ऐसे इमारतों/भवनों का निर्माण रसायन मिश्रित कच्चे मालों का प्रयोग हो जिससे बाढ़ के बावजूद मकान बर्बाद नहीं हो सके।
  • आमलोगों को सलाह देना कि मकानों का निर्माण पूर्णतः नदी के किनारे तथा नदी के संकरी ढालों पर नहीं करना चाहिए। नदी से मकान से दूरी कम-से-कम 250 मी. होनी चाहिए।
  • इसके लिए तात्कालिक व्यवस्था होनी चाहिए। इस कार्य में पंचायत द्वारा बाढ़ के पूर्व पर्याप्त पंपसेट की व्यवस्था चाहिए।
  • स्तंभ (Pillar) आधारित मकान होनी चाहिए और स्तंभ की गहराई काफी होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
बाढ़ नियंत्रण के लिए उपाय बताएँ।
उत्तर-
बाढ़ नियंत्रण के लिए मुख्य रूप से दो तरह के उपाय बताये गये हैं जिनमें एक है। वैकल्पिक प्रबंधन और दूसरा पूर्व सूचना प्रबंधन।

1. वैकल्पिक प्रबंधन-वैकल्पिक प्रबंधन में पारिस्थितिकी के अनुरूप टिकाऊ प्रबंधन को प्राथमिकता दी गई है। इसमें भवनों का निर्माण, मकान का निर्माण नदी से दूर, मकान की दीवार, सीमेंट, कंक्रीट से और स्तंभ का निर्माण काफी गहराई का बताया गया है।

2. पूर्व सूचना प्रबंधन इसमें सुदूर संवेदन सूचनाएँ निश्चित रूप से एकत्रित की जानी चाहिए। पूर्व सूचना पर विद्यालय बंद कर देना चाहिए और स्थानीय अस्पताल में डॉक्टर और दवाई की व्यवस्था होनी चाहिए। बाढ़ग्रस्त क्षेत्र के लोगों को तैराकी का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, गाँव विद्यालय और पंचायतों में स्वीमिंग जैकेट की व्यवस्था होनी चाहिए। डी. टी. टी. का छिड़काव, ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव और मृत जानवरों को शीघ्र हटने की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे बीमारी से बचा जा सकता है।

बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में स्वयंसेवी संस्था आपसी भेदभाव-भुलाकर गांव के ऊंचे भवनों में एकत्रित होना चाहिए और महामारी फैलने पर जल, नमक, चीनी का घोल तथा भोजन और कपड़े की व्यवस्था होनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
सूखे की स्थिति को परिभाषित करें। .
उत्तर-
वर्षा की अत्यधिक कमी के कारण जो समस्या उत्पन्न होती है उसे सुखाड़ की संज्ञा दी जाती है। इससे आम लोगों के सामने तीन बड़ी समस्या होती है-

  • फसल न लगने से खाद्यान्न की कमी
  • पेयजल की कमी
  • मवेशियों के लिए चारे की कमी।

प्रश्न 6.
सुखाड़ के लिए जिम्मेवार कारकों का वर्णन करें।
उत्तर-
वर्षा का न होना मुख्य रूप से सुखाड़ का कारण माना जाता है।

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प्रश्न 7.
सुखाड़ से बचाव के तरीकों का वर्णन करें।
उत्तर-
सुखाड़ जैसी आपदा के प्रबंधन हेतु दो प्रकार की योजनाएं आवश्यक हैं। ये हैं-दीर्घकालीन और लघुकालीन। दीर्घकालीन योजना के अंतर्गत नहर, तालाब, कुआँ; पइन, आहर के विकास की जरूरत है। नहर के माध्यम से जलाशयों में जल लाया जा सकता है। कोसी कमांड क्षेत्र, गंडक कमांड क्षेत्र तथा चंदन-किउल-बरूआ कमांड क्षेत्र, सुखाड़ के समय नहर प्रबंधन के द्वारा प्राकृतिक आपदा को कम करने का प्रयास है। तालाब बनाने का मूल उद्देश्य जलसंग्रहण है। कुएँ से भूमिगत जल का उपयोग होता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिहार में बाढ़ की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
संपूर्ण भारत या विश्व में बिहार की बाढ़ का भयानक रूप अपना अलग स्थान रखता है। बिहार में कोशी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है। इसकी विभीषिका तो इतनी भयावह होती है कि 2008 ई. में आई बाढ़ ने विश्व स्तर पर मदद देनी पड़ी। इसमें बर्वादी का आंकड़ा भी लगाना मुश्किल है। 2008 ई. में भारत-नेपाल सीमा पर कुसहा के पास तटबंध टूटने से आई बाढ़ ने भी कोशी की धारा ही बदल दी। कारण स्पष्ट है कि बिहार के उत्तर में नेपाल है जो नदियों का मास स्थल है। नेपाल द्वारा छोड़े गए जल सबसे पहले बिहार में ही प्रवेश करता है जो कोशी, कमला बलान, गंडक इत्यादि नदियों द्वारा अपना भयावह रूप लेती है और संकट उत्पन्न हो जाता है।

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प्रश्न 2.
बाढ़ के कारणों एवं इसकी सरक्षा-संबंधी उपायों का विस्तृत वर्णन करें। .
उत्तर-
बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है जिसके कारण अधिक संख्या में जान-माल का नुकसान होता है।
बाढ़ के निम्न कारण हैं।

  • नदियों में अधिक मात्रा में वर्षा जल के पहुंचने से बाढ़ आती है।
  • वर्षा जल के साथ नदी की घाटी में मिट्टी के जमा होने से भी बाढ़ आती है।
  • वनस्पतियों की कटाई के कारण बाढ़ होती है।
  • कमजोर तटबंध के टूटने से बाढ़ आती है।

बाढ़ से सुरक्षा संबंधी निम्न उपायों को किया जा सकता है

  • बाढ़ की सूचना प्राप्त होते ही उस क्षेत्र के लोगों को हटा देना चाहिए।
  • बाढ़ पूर्व की दवा, खाद्य एवं पेयजल की सुविधा उपलब्ध कर लेनी चाहिए।
  • नदियों के तटबंधों का नियमित मरम्मत कार्य होते रहना चाहिए।
  • सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा राहत कार्य किया जाना चाहिए।
  • मानव समाज को इस दिशा में जागरूक करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
सुखाड़ के कारणों एवं इनके बचाव के तरीकों का वर्णन करें।
उत्तर-
Yख्य रूप से वर्षा की अत्यधिक कमी को सुखाड़ कहा जाता है। इससे बचाव के लिए निम्नलिखित कारण बताए गए हैं- . .
सुखाड़ के बचाव के लिए दो प्रकार की योजनाएं आवश्यक हैं-दीर्घकालीन एवं लघुकालीन। दीर्घकालीन योजना के अंतर्गत नहर, तालाब, कुंआ, पइन, आहिर के विकास की जरूरत है। लघुकालीन योजना में भूमिगत जल का संग्रहण, वर्षा जल का संग्रहण आवश्यक है। ऊपर वर्णित दीर्घकालीन योजना द्वारा जल का संग्रह कर सुखाड़ से बचा जा सकता है। लघुकालीन योजना में बोरिंग के माध्यम से जल निकाला जाता है। ड्रिप सिंचाई एवं छिड़काव सिंचाई (Sprinklen Irrigation) के द्वारा भी भूमिगत जल का उपयोग पारिस्थितिकी के अनुरूप किया जाता है। वर्षा का संग्रहण पाइन द्वारा एक बड़े टंकी में किया जाता है। भारत के कई राज्यों में इसका संग्रह कुंड या तालाब बनाकर किया जाता है। वर्षा जल संग्रहण तकनीक सुखाड़ के दिनों में वरदान साबित हो सकता है।

Bihar Board Class 10 Disaster Management Solutions Chapter 2 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
किसी क्षेत्र में बाढ़ से होनेवाली हानि का आंकड़ा इकट्ठा करें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की सहायता लें।

प्रश्न 2.
अपने राज्य में सूखाग्रस्त जिलों की पहचान करें।
उत्तर-
छात्र अपने शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

Bihar Board Class 10 Disaster Management Solutions Chapter 2 प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़

Bihar Board Class 10 Disaster Management प्राकृतिक आपदा एवं प्रबंधन : बाढ़ सुखाड़ Notes

  • केन्द्र और राज्य सरकारों के आपदा राहत और पुनर्वास विभाग तथा आपदा-प्रबंधन निर्माण तो है ही, साथ में, प्रखंड और पंचायत स्तर पर भी समितियाँ हैं। स्वयंसेवी संस्थाएँ बहुत उपयोगी होती हैं।
  • भारत की सभी बड़ी नदियों में बरसात में बाढ़ आ जाती है, परंतु दक्षिण भारत में प्रायः नदियों के अंतिम छोर पर ही इसका प्रभाव दिखाई पड़ता है जबकि हिमालय की नदियाँ अधिक बाढ़ग्रस्त रहती हैं।
  • हिमालय के बर्फ से पिघलने से भी कुछ नदियों में बाढ़ आ जाती है भले ही वर्षा न हुई हो।
  • कोसी की बाढ़ में बालू की परत जम जाती है, वहीं बगल में कमला नदी उपजाऊ पंक की परत बिछा देती है।
  • अधिक वर्षा से पूर्वोत्तर भाग में शिलांग सूखाग्रस्त और अल्पवर्षा का क्षेत्र है, क्योंकि यह वृष्टिछाया में स्थित है।
  • देश का पश्चिमी भाग और दक्षिण का मध्य प्रायः सूखाग्रस्त रहता है।
  • बाढ़ और सूखे से जानमाल की हानि का कारण आपदा प्रबंधन की कमी है।

बाढ के दुष्परिणाम-

  1. जन-धन की हानि होती है।
  2. पालतू पशु भी मर जाते हैं।
  3. फसलें बरबाद हो जाते हैं।
  4. मकान और ढाँचों के गिरने या क्षतिग्रस्त होने से आर्थिक हानि के साथ आवास की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।
  5. परिवहन के साधन; जैसे- सड़कें, रेलमार्ग, पुल आदि टूट जाते हैं।
  6. बाढ़ के तुरंत बाद प्रभावित क्षेत्रों में कई प्रकार की बीमारियां फैलती हैं; जैसे-हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाइटिस और अन्य जल-जनित बीमारियाँ।

बाढ़ से लाभ

  1. नदियों के किनारे मजबूत तटबंध
  2. बाँध का निर्माण
  3. वनीकरण (वृक्षारोपण) जलग्रहण क्षेत्रों में जनसंख्या-जमाव पर नियंत्रण
  4. नदियों के मार्ग में स्थान-स्थान पर जल एकत्र करने की सुविधा जिससे अचानक बाढ़ आने से रोका जा सके तथा संचित जल का सिंचाई में या अन्य उपयोग हो सके।
  5. सूचना-तंत्र को सुदृढ़ करना।

सूखे का जन-जीवन पर निम्नांकित कई प्रकार से दुष्परिणाम पड़ता है-

  • फसलों के सूखने से उत्पादन कम होता है और खाद्य समस्या उत्पन्न हो जाती है। अधिकांश ग्रामीण की जीविका फसलों पर हो निर्भर करती है। फसलों के सूखने से उन्हें सबसे अधिक कष्ट होता है और भूखे मरने की स्थिति आ जाती है। फसलों के सूखने से राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक हानि होती है। इसे अकाल कहते हैं।
  • फसलों के सूखने पर मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध नहीं हो पाता है। इसे तृण-अकाल कहते हैं।
  • वर्षा कम होने या अनावृष्टि होने, अर्थात सूखा पड़ने से जल की उपलब्धता एक समस्या बन जाए, यहाँ तक कि पेयजल की भी आपूर्ति नहीं हो, जो इसे जल-अकाल कहते हैं।
  • यदि उपर्युक्त तीनों परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाएं तो त्रि-अकाल या महाअकाल उत्पन्न होता है, जो विध्वंसक होता है।
  • सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में मानव-प्रसास, पशुपालयन और मवेशियों की मौत एक सामान्य – घटना है।
  • जल कमी से उपलब्ध जल भी प्रायः दूषित होता है। सफाई की.कमी से और दूषित जल से पीने से प्रायः आंत्रशोथ, हैजा, पीलिया रोग (जौण्डिस), हेपेटाइटिस और इसी तरह की कई बीमारियां फैल जाती हैं और महामारी का रूप ले लेती है।

सूखे से बचाव के उपाय-
कुछ आवश्यक कदम उठाने से सूखे के प्रभाव को कम किया जा सकता है। जैसे-

1. तात्कालिक या अल्पकालिक योजनाएँ राष्ट्रीय या राज्य स्तर की योजनाएं बनाते समय सूखाग्रस्त क्षेत्रों की समस्याओं को ध्यान में रखना चाहिए। आवश्यक होने पर निम्न उपाय करना चाहिए-

(क) पेयजल का सरक्षित भंडारण एवं वितरण की समुचित व्यवस्था रहनी चाहिए।
(ख) जल-संबंधी बीमारियों के लिए आवश्यक दवाओं और अन्य चिकित्सीय सहायता का ‘प्रबंध होना चाहिए।
(ग) पशुओं के चारे का भंडार होना चाहिए जिससे आवश्यकता पड़ने पर आसानी से वितरित किया जा सके।
(घ) अधिक कठिन परिस्थिति में मवेशियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का प्रबंध होना चाहिए, जहाँ सचित जल उपलब्ध हो सके।
(ङ) आपदा प्रबंधन के अधीन अनाज का एक विशेष कोष रहना चाहिए, जिससे खाद्य-समस्या से लोगों को मुक्ति मिल सके।

दीर्घकालीन योजनाएँ-राष्ट्रीय स्तर पर कुछ योजना र दीर्घकालीन समस्या की दृष्टि में रखकर बनानी चाहिए; जैसे-

(क) भूमिगत जल के भंडार का पता लगाया जाना चाहिए। इस जल को नलकूपों द्वारा खींचकर सिंचाई या पीने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
(ख) जल-प्रचुर क्षेत्रों से जल अभाव वाले क्षेत्रों में पहुंचाने के लिए नहर या पाईप लाइन का प्रबंध रहना चाहिए।
(ग) उपग्रहों की सहायता से भूमिगत जल की संभावना का पता लगाना चाहिए।
(घ) सड़कों के किनारों पर और खाली जमीन पर पर्याप्त वनरोपण को प्रोत्साहित करना जिससे हरियाली में वृद्धि हो और वर्षा की संभावना बढ़ सके।
(ङ) नदियों को परस्पर जोड़ना जिससे अधिक जल को ऐसे क्षेत्र में भेजा जा सके जहाँ इसकी आवश्यकता है। इससे बाढ़ और सुखाड़ दोनों को कम किया जा सकता है। भारत में चूंकि उतर भारत में बाढ़ आती है तो दक्षिण में जल का अभाव रहता है और दक्षिण में जब जाड़े में वर्षा होती है तो उत्तरी भाग में वर्षा नहीं होती। अतः नदियों को जोड़ने से पूरे देश की समस्या दूर की जा सकती है। हिमालय की सदानीरा नदियों का जल मध्य, पश्चिमी और दक्षिण क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालोंभर उपलब्ध हो सकता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

Bihar Board Class 11 Sociology भारतीय समाजशास्त्री Additional Important Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 1.
गोत्र बहिर्विवाह से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
गोत्र का ब्राह्मणों तथा बाद में गैर-ब्राह्मणों द्वारा पूर्णतया बहिर्विवाह इकाई समझा गया। मूल धारणा यह है कि गोत्र के सभी सदस्य एक-दूसरे से संबंधित होते हैं। उनमें रक्त संबंध होता है अर्थात कोई ऋषि या संत उनका सामान्य पूर्वज होता है। इसी कारण, एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह को अनुचित समझा जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में ब्रिटिश शासन से कौन-से तीन प्रकार के परिवर्तन हुए?
उत्तर:
भारत में ब्रिटिश शासन से निम्नलिखित तीन प्रकार के परिवर्तन हुए –

  • कानूनी तथा संस्थागत परिवर्तन, जिनसे सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता के अधिकार प्रदान किए गए।
  • प्रौद्योगिकीय परिवर्तन
  • व्यावसायिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
कुछ मानवशास्त्रियों तथा ब्रिटिश प्रशासकों ने जनजातियों को अलग कर देने की नीति की वकालत क्यों की?
उत्तर:
कुछ मानवशास्त्रियों तथा ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा जनजातियों को अलग कर देने की नीति की वकालत निम्नलिखित कारणों से की गई –

  • जनजातियों के लोग गैर-जनजातियों व हिंदुओं से भिन्न हैं।
  • जनजातियों के लोग हिंदुओं के विपरित जीवनवादी हैं।
  • जनजाति के लोग हिंदुओं के विपरीत जीवनवाद हैं।
  • जनजातीय लोगों के हिन्दुओं से संपर्क होने के कारण उनकी संस्कृति तथा अर्थव्यवस्था को हानि हुई। गैर-जनजातियों के लोगों ने चालाकी तथा शोषण से उनकी (जनजाति के लोगों की) भूमि तथा अन्य स्रोतों पर कब्जा कर लिया।

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प्रश्न 4.
घुर्ये का भारतीय जनजातियों के हिंदूकरण की प्रक्रिया का विवरण दीजिए।
उत्तर:
घुर्ये ने भारत के जनजातियों के हिंदूकरण में निम्नलिखित तथ्यों का विवरण दिया है –

  • कुछ जनजातियों का हिंदू समाज में एकीकरण हो चुका है।
  • कुछ जनजातियाँ एकीकरण की दिशा में अग्रसर हो रही हैं।

प्रश्न 5.
घुर्ये ने जनजातियों के किस भाग को ‘हिंदू समाज का अपूर्ण एकीकृत वर्ग’ कहा है?
उत्तर:
भारत की कुछ जनजातियाँ जो पहाड़ों अथवा घने जंगलों में रह रही है, अभी तक हिंदू समाज के संपर्क में नहीं आयी हैं। जी.एस.घुर्ये ने इन जनजातियों हिन्दू समाज को ‘अपूर्ण एकीकृत वर्ग’ कहा है।

प्रश्न 6.
जनजातियों के द्वारा हिंदू सामजिक व्यवस्था को क्यों अपनाया गया?
उत्तर:
जनजातियों ने हिंदू सामाजिक व्यवस्था को आर्थिक उद्देश्यों के कारण अपनाया हिंदू धर्म को अपनाने के पश्चात् जनजाति के लोग अल्पविकसित हस्तशिल्प की संकीर्ण सीमाओं से बाहर आ सके। इसके पश्चात् उन्होंने विशेषीकृत व्यवसायों को अपनाया। इन व्यवसायों की समाज में अत्यधिक मांग थी। जनजातियों ने हिंदू सामाजिक व्यवस्था अपनाने का दूसरा कारण जनजातीय निवासों तथा रीतियों के हेतु जाति व्यवस्था की उदारता था।

प्रश्न 7.
इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की नींव किसने और कब डाली?
उत्तर:
गोविंद सदाशिव घुयें ने 1952 में इंडियन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी की नींव डाली।

प्रश्न 8.
घुर्ये ने जाति तथा नातेदारी के तुलनात्मक अध्ययन में किन दो बिंदुओं को महत्त्वपूर्ण बताया है?
उत्तर:
भारत में पायी जाने वाली नातेदारी व जातीय संजाल की व्यवस्था अन्य समाजों में भी पायी जाती है। जाति तथा नातेदारी ने भूतकाल में एकीकरण का कार्य किया है। भारतीय समाज का उद्विकास विभिन्न प्रजातीय तथा नृजातीय समूहों के एकीकरण पर आधारित था।

प्रश्न 9.
घुर्ये ने जाति व्यवस्था में पाए जाने वाले किन छः संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
जी.एन.घुर्ये ने जाति व्यवस्था में पाए जाने वाले निम्नलिखित छः संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है –

  • खंडात्मक विभाजन
  • अनुक्रम या संस्तरण अथवा पदानुक्रम
  • शुद्धता तथा अशुद्धता के सिद्धांत
  • नागरिक तथा धार्मिक निर्योग्यताएँ तथा विभिन्न विभागों के विशेषाधिकार
  • व्यवसाय चुनने संबंधी प्रतिबंध
  • वैवाहिक प्रतिबंध

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प्रश्न 10.
अंनतकृष्ण अययर एवं शरतचंद्र रॉय ने सामजिक मानवविज्ञान के अध्ययन का अभ्यास कैसे किया?
उत्तर:
अंनतकृष्ण अययर प्रारंभ में केवल एक लिपिक थे। बाद में आप अध्यापक हो गए। सन् 1902 में कोचीन राज्य में एक नृजातीय सर्वे कर कार्य अपकों सौंपा गया और आप मानवशास्त्री हो गए। इसी प्रकार ही शरत्चंद्र रॉय कानूनविद् थे। अपने ‘उरावं’ जनजाति पर कुछ शोध किया और आप मानवशास्त्री हो गए।

प्रश्न 11.
जाति-व्यवस्था में विवाह बंधन पर चार पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:

  • जाति व्यवस्था में अंतजार्तीय विवाहों पर प्रतिबंध था।
  • जातियों में अंतः विवाह का प्रचलन था।
  • प्रत्येक जाति छोटे-छोटे उपसमूहों अथवा उपजातियों में विभाजित थी।
  • घूर्ये अंतः विवाह को जाति प्रथा में प्रमुख कारक मानते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों के बारे में घुर्ये के विचार लिखिए?
उत्तर:
ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों के बारे में घुर्य के विचार का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) घुर्ये ने नगरों तथा महानगरों के विकास के बारे में निराशवादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया है। नगरों से पुरुषों तथा स्त्रियों की चारित्रिक विशेषताओं को समाप्त नहीं किया है।

(ii) घूर्य के अनुसार विशाल नगर उच्च शिक्षा, शोध, न्यायपालिका, स्वास्थ सेवाएँ तथा प्रिंट मीडिया व मनोरंजन आदि अंततोगत्वा सांस्कृतक वृद्धि करते हैं। नगर का प्रमुख कार्य सांस्कृतिक एकरात्मकता की भूमिका का निर्वाह करना है।

(iii) घूर्ये नगरीकरण के पक्के समर्थक थे। घुर्य के अनुसार नगर नियोजन को निम्नलिखित समस्याओं के समाधान की ओर ध्यान देना चाहिए –

  • पीने की पानी की समस्या
  • मानवीय भीड़-भाड़
  • वाहनों की भीड़-भाड़
  • सार्वजनिक वाहनों के नियम
  • मुम्बई जैसे महानगरों में रेल परिवहन की कमी
  • मृदा का अपरदन
  • ध्वनि प्रदूषण
  • अंधाधुंध पेड़ों की कटाई तथा
  • पैदल यात्रियों की दुर्दशा

(iv) घूर्ये जीवनपर्यत ग्रामीण – नगरीयता के विचारों का समथन करते रहे। उनका मत था कि नगरीय जीवन के लाभों के साथ-साथ प्राकृति की हरीतिमा का भी लाभ उठाना चाहिए। भारत में नगरीकरण केवल औद्योगीकरण के कारण नहीं है। नगर तथा महानगर अपने नजदीकी स्थानों के लिए सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में भी कार्य करते हैं।

(v) घूर्य के अनुसार ब्रिटीश शासन के दौरान ग्रामों तथा नगरीय केन्द्रों के बीच पाए जाने वाले संबंधों की उपेक्षा की गई।

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प्रश्न 2.
जाति तथा नातेदारी के विषय में गोविंद सदाशिव धूर्ये के विचार लिखिए?
उत्तर:
जाति तथा नातेदारी के बारे में जी.एस.घूर्य के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) घुर्ये ने अपनी पुस्तक Caste and Race in India 1932 में ऐतिहासिक मानवशास्त्रीय तथा समाजशास्त्रीय उपागमों को कुशलतापूर्वक संयुक्त किया है घूर्य जाति की ऐतिहासिक उत्पति तथा उसके भौगोलिक प्रसार से संबंधित थे। उन्होंने जाति के तत्कालीन लक्षणों पर ब्रिटिश शासन के प्रभावों को प्रभावों को भी समझने का प्रयास किया है।

(ii) घूर्ये ने अपनी पुस्तक में बाद के संस्करण में भारत की आजादी के बाद जाति व्यवस्था में आने वाले परिवर्तनों का उल्लेख किया है। .

(iii) एक तार्किक विचारक के रूप में वे जाति व्यवस्था का घोर विरोध करते थे। उनका ‘अनुमान था कि नगरीय पर्यावरण तथा आधुनिक शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों से जाति बंधन कमजोर हो जाएँगे। लेकिन उन्होंने पाया कि जातिनिष्ठा तथा जातिय चेतना का रूपांतरण नृजातिय समूहों मं हो रहा है।

(iv) घूर्ये का मत है कि जाति अंत: विवाह तथा बहिर्विवाह के माध्यम से नातेदारी से संबंधित है।

प्रश्न 3.
घूर्य के अनुसार धर्म के महत्व को समझाइए?
उत्तर:
जी.एस.घूर्ये न धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों के अध्ययन में मौलिक योगदान प्रदान किया है। समाज में धर्म की भूमिका का विशद् वर्णन उन्होंने निम्नलिखित पुस्तकों में किया है –

  • Indian Sadhus (1953)
  • Gods and Men (1962)
  • Religious Consciousnes (1965)
  • Indian Accultrtion (1977)
  • Vedic India (1979)
  • The legacy of Ramayana (1979)

घुर्ये ने संस्कृति के पाँच आधार बताए हैं –

  • धार्मिक चेतना
  • अंत: करण
  • न्याय
  • ज्ञान प्राप्ति हेतु निर्बाध अनुसरण
  • सहनशीलता।

घूर्ये ने अपनी पुस्तक Indian sadhus में महान वेंदातिंक दार्शनिक शंकराचार्य तथा दूसरे धार्मिक आचार्य द्वारा चलाए गए अनेक धार्मिक पंथों तथा केंद्रों का समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया है। घूर्ये ने भारत में त्याग की विरोधाभासी प्रकृति को प्रस्तुत किया है। शंकराचार्य के समय से ही हिंदू समाज का कम या अधिक रूप में साधुओं द्वारा मार्गदर्शन किया गया है। ये साधु-एकांतवासी नहीं हैं। उनमें से ज्यादातर साधुमठासी होते हैं। भारत में। मठों का संगठन हिन्दूवाद तथा बोद्धवाद के कारण है।

भारत में साधुओं द्वारा धार्मिक विवादों में मध्यस्थता भी की जाती है। उनके द्वारा धार्मिक ग्रंथों तथा पवित्र ज्ञान को संरक्षण दिय गया है। इसके अतिरिक्त, साधुओं द्वारा विदेशी आक्रमणों के समय धर्म की रक्षा की गई है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
जाति व राजनीति पर घूर्य के विचार लिखिए?
उत्तर:
जाति तथा राजनीति के संबंध में जी.एस.घूर्य के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) प्रसिद्ध समाजशास्त्री जी.एस.घूर्ये ने जातिनिष्ठा अथवा जातीय लगाव के प्रति सावधानी बरतने की बात कही है। जातिनिष्ठा तथा जातीय लगाव दोनों ही भारत की एकता के लिए संभावित खतरे हैं।

(ii) यद्यपि ब्रिटिश शासन के दौरान किए गए परिवर्तनों से जाति-व्यस्था के कार्य कुछ सीमा तक प्रभावित तो हुए तथापि उनका पूर्णरूपेण उन्मूलन नहीं हो सक। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान निम्नलिखित तीन प्रकार के परिवर्तन आए –

  • कानूनी तथा संस्थागत परिवर्तन
  • प्रौद्योगिकी परिवर्तन तथा
  • व्यावसायिक परिवर्तन

(iii) घूर्ये का यह स्पष्ट मत है कि भारत में ब्रिटिश शासक जाति व्यवस्था के समाजिक तथा आर्थिक आधारों को समाप्त करने में कभी भी गम्भीर नहीं रहे। उनके द्वारा छुआछूत को समाप्त करने का भी प्रयत्न नहीं किया गया।

(iv) परतंत्र भारत में निम्नलिखित समीकरण पाए गए हैं –

  • जातिय समितियों को अधिकता
  • जातिय पत्रिकाओं की संख्या में वृद्धि
  • जाति पर आधारित न्यासों में वृद्धि
  • नातेदारी ने जातिय चेतना के विचारों को प्रोत्साहित किया।

उपरोक्त वर्णित चारों कारक वास्तविक सामुदायिक तथा राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधा उतपन्न करते हैं।

(vi) जी.एस.घूर्ये को इस बात की चिंता थी कि राजनैतिक नेता प्राप्त करने तथा उस काम रखने के लिए जातीय संवेदना का शोषण करेंगे। इस संदर्भ में धूर्य की चिंता निरर्थक नहीं थी। घूर्य ने राजनीति क्षेत्र तथा नौकरियो में वंचित वर्ग के आरक्षण के आंदोलन की भावना की प्रशंसा की। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि अछूत जातियों को विशेष शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान की जाएँ। उनका मत था कि शिक्षा ही उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकती है।

प्रश्न 2.
जनजातियों पर घूर्ये के विचार दीजिए।
उत्तर:
जनजातियों के विषय में घूर्य के विचार का निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत अध्ययन, किया जा सकता है। भारत की जनसंख्या में जनजातियाँ एक महत्त्वपूर्ण भाग है। घूर्ये ने इस बात पर चिंता प्रकट की थी कि कुछ मानवशास्त्री तथा ब्रिटिश प्रशासक जनजातियों को पृथक् कर देने की नीति के हिमायती थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि हर कीमत पर जनजातियों की विशष्टि पहचान बनायी रखी जानी चाहिए। उन्होंने इस संबंध मे निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए

  • जनजातिय गैर-जनजाति या हिंदुओं से पृथक् है।
  • जनजातिय लोग देश के मूल निवासी हैं।
  • जनजातिय लोग हिंदुओं के विपरीत जीववादी हैं।
  • जनजातियं लोग भाषा के आधार पर भी हिंदुओं से अलग हैं।
  • गैर-जनजातिय लोगों के संपर्क में आने से जनजातीय लोगों की संस्कृति तथा अर्थव्यवस्था का नुकसान हुआ है।
  • गैर-जनजातियों लोगों की चालाकी तथा शोषण के कारण जनजातिय लोगो की जमीन तथा अन्य संसाधन समाप्त हो गए।

जी.एस.घूर्य ने उपरोक्त बिंदुओं का ऐतिहासिक आंकड़ों तथा उदाहरणों द्वारा तत्कालीन स्थिति के संदर्भ में विरोधी किया है। जी.एस.घूर्य ने भरतीय जनजातियों के हिंदूकरण की प्रक्रिया का उल्लेख किया है। उनका मत है कि कुछ जनजातियों का हिंदू समाज में एकीकरण हो चुका है तथा कुछ जनजातियाँ एकीकरण की दशा में अग्रसर हो रही है। घूर्ये का मत है कि कुछ जनजातियाँ पहाड़ों तथा जंगलों में रह रही हैं। ये जनजातियाँ हिंदू समाज से अभी तक अप्रभावित हैं। ऐसी जनजातियों को हिंदू समजा का अपूर्ण एकीकृत वर्ग कहा जाता है।

जी.एस.पूर्वे के अनुसार जनजातियों द्वारा हिंदू सामाजिक व्यवस्था को निम्नलिखित दो करणों से अपनाया गया है प्रथम आर्थिक उद्देश्य था। जनजातियों द्वारा हिंदू धर्म की अपनया गया था अंत: उन्हें अपने अल्पविकसित जनजातिय हस्तशिल्प की सीमाओं से बाहर आने का मार्ग मिल गया। इसके पश्चात् जनजातिय लोगों ने बिशिष्ट प्रकार के उन व्यवसायों को अपनाया जिनकी समाज में मांग थी। द्वितीय कारण जनजातिय विश्वासों तथा रीतियों के संदर्भ में जाति व्यवस्था की उदारता थी।

जी.एस.घूर्ये ने इस बात को स्वीकार किया कि भोले जनजातिय लोग गैर-जनजातियों, हिंदू महाजानों तथा भू-माफियाओं द्वारा शोषित किए गए। घूर्ये का मत है कि इसका मूल कारण ब्रिटीश शाशन को दोषपूर्ण राज्स्व तथा न्याय व नीतियाँ थी। ब्रिटिश सरकार की वन संबंधी नीतियों से जनजातिय लोगों के जीवन को और अधिक कठोर बना दिया। इन दोषपूर्ण नीतियों के कारण न केवल जनजातिय लोगों को कष्ट हुआ वरन् गैर-जनजातिय लोगों को भी अनेक कठिनाइयों का समाना कारना पड़ा। वस्तुतः समाज में प्रखलत व्यवस्था ने जनजातिय लोगों तथा गैर-जनजातिय लोगों को समान रूप से कष्ट पहुँचाया।

प्रश्न 3.
घूर्ये के अनुसार जाति के संरचनात्मक लक्षणों का वर्णन कीजिए?
उत्तर:
घूर्य ने जाति के निम्नलिखित छः संरचनात्मक लक्षणों का उल्लेख किया है –
(i) खंडात्मक विभाजन-जी.एस.घूर्य ने जाति को सामजिक समूहों अथवा खंडो के रूप में समझा है। इनकी सदस्यता का निर्धारण जन्म से होता है। सामाज के खंड विभाजन का अभिप्राय जाति के अनेक खंड में विभाजन है। प्रत्येक खंड का अपना जीवन होता है। प्रत्येक जाति के नियम, विनियम, नैतिकता तथा न्याय के मानदंड होते हैं।

(ii) अनुक्रम अथवा संस्मरण अथवा पदानुक्रम-जाति अथवा इसके खंडों में संस्तरण पाया जाता है। संस्तरण की व्यवस्था में जातियाँ एक-दूसरे के संदर्भ में उच्च अथवा निम्न स्थिति में होती है। सभी जगह संस्तरण की व्यवस्था में ब्राह्मणों की स्थिति उच्च तथा अछूतों की निम्न होती है।

(iii) शुद्धता एवं अशुद्धता के सिद्धांत-जातियों तथा खंडों के बीच पृथकता, शुद्धि तथा अशुद्धि के सिद्धांत पर आधारित है। शुद्ध तथा अशुद्ध के सिद्धांत के अंतर्गत दूसरी जीतियों के . संदर्भ में खान-पान संबंधी नियमों का पालन किया जाता है। आमतौर पर ज्यादातर जातियों को ब्राह्मणों द्वारा पकाए गए कच्चे भोजन को ग्रहण करने पर कोई आपत्ति नहीं होती है। दूसरी और, ऊँची जातियों द्वारा निम्न जातियों द्वारा पकाया गया पक्का खाना, जैसे कचौड़ी आदि ग्रहण किया जाता है।

(iv) नागरिक तथा धार्मिक निर्योग्यताएँ तथा विभिन्न भागों में विशेषाधिकार-समाज में संस्तरण के विभाजन के कारण विभिन्न समूहों को प्रदान किए गए विशेषाधिकारों तथा दायित्वों में असमानता पायी जाती है। व्यवसायों का निर्धारण जाति की प्रकृति के अनुसार होता है। ब्राह्मणों की उच्च स्थिति इन्हीं आधारों पर होती है। निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के रीति-रिवाजों तथा वस्त्र धारण करने आदि की नकल नहीं कर सकते थे। उनके द्वारा ऐसा किया जाना समाज के नियमों के विरुद्ध कार्य समझा जाता था।

(v) व्यवसायों के संबंध में प्रतिबंध-प्रत्येक जाति अथवा जाति समूहों किसी न किसी वंशानुगत व्यवसाय से संबंध होते थे। व्यवसायों का वर्गकरण भी शुद्धता तथा अशुद्धता के सिद्धांत के आधार पर किया जाता था। वर्तमान समय में इस स्थिति में परिवर्तन आया है। लेकिन पुरोहित के कार्य पर अभी भी ब्राह्मणों का अधिकार कायम है।

(vi) वैवाहिक प्रतिबंध-जाति व्यवस्था में अंतर्जातीय विवाहों पर प्रतिबंध था। जातियों में अंतः विवाह का प्रचलन था। घूर्ये अंतः विवाह को जाति प्रथा का प्रमुख कारक मानते हैं।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 4.
‘जनजातिय समुदायों को कैसे जोड़ा जाय’ इस विवाद के दोनों पक्षों के क्या तर्क थे?
उत्तर:
जानजातिय समुदायों से कैसे संबंध स्थापित हो? यह एक गंभीर प्रश्न है। जी.एस. घूर्य ने अपनी पुस्तक ‘द शिड्यूल्ड टाइब्स’ में लिखा है। “अनुसूचित जनजातियों को न तो अदिम कहा जाता है और न आदिवासी न ही उन्हें अपने आप में एक कोटि माना जाता है” यानि पहचान की समस्या गंभीर हैं। जनजातिय समुदायों के साथ संबंध स्थापित करने में निम्न तथ्व भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं

  • भूमि हस्तांतरण तथा शोषण के बिंदुओं को रोका जाए।
  • आर्थिक विकास के अवरोधों को दूर किया जाए।
  • उनके सांस्कृतिक स्वरूप और मूल संस्कृत में कोई परिवर्तन न किया जाए।
  • अशिक्षा की समस्या से दूर किया जाए।
  • ऋणग्रस्तता को समाप्त करने का प्रयास किया जाए।
  • जनजातियों के समग्र विकास के लिए कदम उठाए जाएँ।

इन सभी कार्यों को पूर्ण करने पर निश्चित हो जनजातियों समुदायों से समर्क की समस्या समाम्त हो जाएगी।

प्रश्न 5.
घूर्ये ने भारतीय सामाज की व्याख्या कैसे की?
उत्तर:
घूर्ये ने भारतीय समाज की व्याख्या निम्नलिखित रूप में किये जाते हैं –

  • जन्म पर आधारित जाति व्यवस्था भारतीय समाज की एक विशिष्टता है। उन्होंने भारतीय समाज में जातियों के उपजातियों के रूप में विभाजन को स्वीकार किया है।
  • घूर्ये ने भारतीय जनसंख्या को उनकी शारीरिक विशेषताओं के आधार पर प्रायः छः प्रकार के वर्गों में विभाजित किया है- इंडी आर्यन, पूर्वी द्रविड़, पश्चिमी मुण्डा और मंगोलियन।
  • इनके अनुसार हिंदू, जैन, बौद्ध धर्म के कालात्मक स्मारकों में कई समान तत्वों का समावेश है।
  • उनका मत था कि मुस्लिम भवनों में हिंदू कला का केवल अलंकरण के रूप में प्रयोग हुआ है।
  • घूर्य का विचार था कि बहुलवादी प्रकृतियों ने राष्ट्रीय एकीकरण की प्रक्रिया में बाधा डाली है और यह भारतीय समाज को टुकड़ों में बाँटे जाने को प्रोत्साहन देती है।

प्रश्न 6.
भारत में प्रजाति तथा जाति के संबंधों पर हर्बर्ट रिजले तथा जी.एस.घूर्ये की स्थिति की रूपरेखा दें?
उत्तर:
वास्तव में जाति व्यवस्था भारतीय समाज की अपने एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। जो व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता है, उसे उसी बना रहना पड़ता है। जाति की सदस्यता जन्म से होती है। जाति-‘कास्ट’ एक अंग्रेजी शब्द है जिसकी उत्पति पुर्तगाली भाषा के –

  • जाति की सदस्यता उन व्यक्तियों तक ही सीमित होती है जो उस जाति के सदस्यों से उत्पन्न हुए हों और इस प्रकार उत्पन्न होने वाले
  • सभी व्यक्ति जाति में आते हैं।
    जिसके सदस्य एक अविच्छिन्न सामाजिक नियम के द्वारा समूह के बाहर विवाह करने से रोक दिए जाते हैं।

प्रो.एच.रिजले के अनुसार, “जाति परिवारों के समूह का एक संकलन है जिसका एक सामान्य नाम है, जो काल्पनिक पुरुष अथवा देवताओं से उत्पन्न होने का दावा करती है। एक वंशानुकूल व्यवसाय करने का दावा करती है और उन लोगों की दृष्टि से सजातीय समुदाय बनाती है जो अपना मत देने योग्य हैं।” प्रो.जी.एस.घूर्ये-प्रो.घूर्य ने जाति की परिभाषा देते हुए कहा है, ‘जाति एक जटिल अवधारणा है।’ इस प्रकार रिजले और घूर्ये दोनों जाति के संबंध में अलग-अलग विचार रखते हैं। प्रजाति से आशय यहाँ नस्ल से है : भारत में आर्य ही इस तथ्य पर एक मत हैं कि प्रजातिय विभिन्नता होते हुए भी भारत में जातिय एकता बनी हुई है।

ध्रुजटी प्रसाद मुखर्जी

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
डी.पी. की ‘पुरुष’ की अवधारणा बताइए?
उत्तर:
डी.पी. मुखर्जी ने अपनी ‘परुष’ की अवधारणा में उसे (पुरुष को) समाज तथा व्यक्ति से पृथक् नहीं किया है और न ही वह पुरुष समूह मस्तिष्क के नियंत्रण में है। मुखर्जी के अनुसार ‘पुरुष’ सक्रिय कर्ता के रूप दूसरे व्यक्त्यिों के साथ संबंध स्थापित करता है तथा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना है। मुखर्जी का मत है कि पुरुष का विकास दूसरे व्यक्तियों के साथ संपर्क से होता है। इस प्रकार, उसका मानव समूहों में अपेक्षाकृत अच्छा स्थान होता है।

प्रश्न 2.
कर्ता की स्थिति स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
डी.पी.मुखर्जी के अनुसार कर्ता की स्थिति के अंतर्गत व्यक्ति एक कर्ता के रूप में कार्य करता है। एक स्वतंत्र अस्तित्व के रूप में जो कि व्यक्ति के अपने लक्ष्यों तथा हितों को प्राप्त करने की मौलिक विशेषताएँ रखता है।

प्रश्न 3.
डी.पी.मुखर्जी के अनुसार परंपरा के अर्थ को स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
डी.पी.मुखर्जी के अनुसार परंपरा का मूल ‘वाहक’ है जिसका तात्पर्य संप्रेषण करना है। संस्कृत भाषा में इसका समानार्थक परंपरा है, जिसका तात्पर्य है उत्तराधिकारी अथवा ऐतिहासिक जिसका आधार अथवा जुड़े इतिहास में हैं। मुखर्जी के अनुसार परंपराओं का कोई न कोई स्रोत अवश्य होता है। धार्मिक ग्रंथ अथवा महर्षियों के कथन अथवा ज्ञात या अज्ञात पौराणिक नायक परंपराओं के स्रोत हो सकते हैं।

पंरपराओं के स्रोत कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन इनकी एतिहासिकता को समाज के सभी सदस्यों द्वारा मान्यता प्रदान की जाति है। परंपराओं को उद्धत किया जाता है। उन्हें पुन: याद किया जाता है तथा उनका सम्मान किया जाता है। वस्तुतः परंपराओं की दीर्घकालीन संप्रेषणता से सामजिक संबद्धता तथा सामाजिक एकता कायम रखती है।

प्रश्न 4.
भारत में अंग्रजों द्वारा प्रारंभ की गई नगरीय, आद्योगिक व्यवस्था का प्रभाव बताइए।
उत्तर:
भारत में अंग्रजों द्वारा प्रारंभ की गई नगरीय औद्यौगिक व्यवस्था ने प्राचीन संस्थाओं के ताने-बाने को समाप्त कर दिया। इसके द्वारा अनेक परंपरागत जाजियों एवं वर्गों का विघटन हो गया। इन परिवर्तनों के काण एक नयी प्रकार का सामजिक अनुकूलन तथा समायोजन हुआ। इन नए परिवर्तनों के द्वारा भारत नगरीय केंद्रों में शिक्षित मध्यवर्ग समाज का मुख्य बिंदु बनकर सामने आया।

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प्रश्न 5.
डी.पी.मुकर्जी के अनुसार भारत आधुनिकता के मार्ग पर किस प्रकार अग्रसर हो सकता है?
उत्तर:
डी.पी.मुकर्जी के अनुसार भारत अपनी परंपराओं से अनुकूलन तभी कर सकता है जब मध्यवर्गीय व्यक्ति अपना संपर्क आम जनता के पुनः स्थापित करें । मुखर्जी कहते हैं कि इस प्रक्रिया में उन्हें न तो अनावश्यक रूप से क्षमायाचना करनी चाहिए और न ही अपनी परंपराओं के विषय में बढ़-चढ़कर अथवा आत्मश्लाघा करनी चाहिए। उन्हें परंपराओं की जीवंतता को कायम रखना चहिए जिसमें आधुनिकता द्वारा आवश्यक परिवर्तनों के साथ समायोजन हो सके। इस प्रकार व्यक्तिवाद एवं समाजिकता के बीच संतुलन कायम रह सकेगा। इस नए अनुभव से भारत तथा विश्व दोनों ही लाभ प्राप्त कर सकेंगे।

प्रश्न 6.
सामजशास्त्र के क्षेत्र में डी.पी.मुकर्जी का महानतम योगदान बताइए?
उत्तर:
प्रसिद्ध भारतीय सामजशास्त्री डी.पी.मुकर्जी के विचार वर्तमान सामाजिक पररिस्थितियों में पूर्णत: उचित है। मुकर्जी का समाजशास्त्र के क्षेत्र में महानतम योगदान परंपराओं की भूमिकाओं का सैद्धांतिक निरूपण है। डी.पी.मुकर्जी का स्पष्ट मत था कि भारतीय सामाजिक यर्थाथता की समुचित समीक्षा इसकी संस्कृति तथा सामाजिक क्रियाओं, विशिष्ट परंपराओं, विशिष्ट प्रतीकों, विशिष्ट मानकों के संदर्भ में की जा सकती है।

प्रश्न 7.
जाति की सामाजिक मानवशास्त्रीय परिभाषा को सारांश में बताइए?
उत्तर:
जाति जन्म पर आधारित ऐसा समूह है जो अपने सदस्यों को खान-पान, विवाह, व्यवसाय और सामजिक संपर्क के संबंध में कुछ प्रतिबंध मानने को निर्देशित करता है।

प्रश्न 8.
‘जीवंत परंपरा’ से डी.पी.मुकर्जी का क्या तात्पर्य है? भारतीय समाज शास्त्रीयों ने अपनी परंपरा से जुड़े रहने पर बल क्यों दिया?
उत्तर:
प्रो.ए.आर. देसाई ने समाजशास्त्र में भारतीय समाज को लेकर अनेक अध्ययन किये। उन्होंने पाया कि स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक परिदृश्य में तेजी से रूपांतर की स्थिति उत्पन्न हुई है। भारत की जनता क रहन-सहन के परंपरागत स्तर में कोई परिवर्तन दिखाई नहीं दिया।

आधुनिकता के नाम पर कुछ लोगों ने परंपराओं को त्यागने का साहस तो किया पर वे भी कहीं न कहीं उसमें लिप्त रहे। भारतीय समाजशात्रियों के विषय में भी श्री देसाई के विचार यही हैं कि वे अपने अध्ययनों में भारतीय परंपराओं के प्रति जकड़े हुए हैं इससे ऊपर उठकर विचार श्रृंखला मीमांसा नही बन पाती है।

प्रश्न 9.
डी.पी.मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशास्त्रियों के मूलभूत उद्देश्य क्या होने चाहिए?
उत्तर:
डी.पी.मुखजी के अनुसार सामाजिक सामजशास्त्रियों को केवल सामजशास्त्री की सीमा तक ही सीमित नहीं होना चाहिए। भारतीय सामजशास्त्रियों को लोकाचारों, जनरीतियों, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं में भागदारी करने के साथ-साथ समाजिक व्यवस्था के अर्थ का समझन का भी प्रयास करना चाहिए।

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प्रश्न 10.
डी.पी. मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशास्त्रियों को किन दो उपागमों के संश्लेषण का प्रयास करना होगा?
उत्तर:
डी.पी. मुखर्जी के अनुसार भारतीय समाजशास्त्रियों को निम्नलिखित दो उपागमों के संश्लेषण का प्रयास करना होगा
(i) समाजशास्त्री के द्वारा तुलनात्मक उपागम को अपनाना होगा। एक यही तुलनात्मक उपागम उन विशेषताओं को प्रकाश में लाएगा जिनकी भरतीय समाज अन्य समाजों के साथ भागीदारी करता है। इस उद्देश्य को प्राप्ति हेतु समाजशास्त्री परंपरा का अर्थ समझने का लक्ष्य रखेगे। वे इसके मूल्यों तथ्य प्रतीकों का सावधानीपूवर्क परीक्षण भी करेंगे।

(ii) भारतीय समाजशास्त्री संघर्ष तथा परस्पर विरोधी शक्तियों के संश्लेषण को समझने के लिए द्वंद्वात्मक उपागम का अवलंबन करेंगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय समाजशास्त्रियों का समजशास्त्री होना ही पूर्ण नहीं है, उन्हें पहले भारतीय होना चाहिए।” डी.पी. के इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डी.पी.मुकर्जी ने भारतीय समाज के अपने सामजशास्त्रीय विश्लेषण में यह तथ्य पूर्णरूपेण स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय समाजशास्त्र के व्यापक अध्ययन हेतु विभिन्न उपागमों की आवश्यकता है। डी.पी. का स्पष्ट मत है कि भारतीय सामजिक व्यवस्था के अध्ययन हेतु एक पृथक उपागम की आवश्यकता है। यही कारण है कि डी.पी. मुकर्जी का मत है कि भारतीय समाजशास्त्रियों को केवल सामाजशास्त्री होना ही काफी नहीं है, उन्हें भारतीय भी होना चाहिए।

डी.पी. का मत है कि भारतीय समाजशास्त्रियों को भारतीय समाजशास्त्रियों को केवल सामाजशास्त्री होना ही काफी नहीं है, उन्हें भारतीय भी होना चाहिए। भारतीय समाजशास्त्रियों को निम्नलिखित दो उपगामों के संश्लेषण का प्रयास करना चहिए। प्रथम भारतीय समाजशास्त्री तुलनात्मक उमगम को अपनाएँगे। वास्तविक तुलनात्मक उपागम उन सभी विशेषताओं को स्पष्ट करेगी जो भारतीय समाज अन्य समाजों के साथ बाँटेगा। इसके साथ-साथ इसकी परंपराओं की विशेषताओं को भी बाँटेगी।

इसी दृष्टिकोण से, समाजशास्त्री परंपरा का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे। उनके द्वारा प्रतीकों तथा मूल्यों का सावधानी पूवर्क परीक्षण किया जाएगा। द्वितीय भारतीय समाजशास्त्रीय विरोधी शक्तियों के संघर्ष तथा संश्लेषण के संरक्षण तथा परिवर्तन का समझने के लिए द्वंद्वात्मक उपागम का अवलंबन करेंगे।

प्रश्न 2.
पश्चिमी सामाजिक विज्ञान के संबंध में डी.पी.मुकर्जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
पश्चिमी सामाजिक विज्ञान क विषय में डी.पी.मुकर्जी के विचारों का अध्ययन निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) डी.पी.मुकर्ज पश्चिमी सामाजिक विज्ञानों के प्रत्यक्षवाद के पक्ष में नहीं थे। मुखर्जी का मत है कि पश्चिमी सामजिक विज्ञान ने व्यक्तियों का जैविकीय या मनोवैज्ञानिक इकाइयों तक सीमित कर दिया है. पश्चिमी देशों की औद्योगिकी संस्कृति ने व्यक्ति को आत्मकेंद्रित कर्ता बना दिया है।

(ii) डी.पी.का मत है कि व्यक्तिवाद अथवा व्यक्तियों की भूमिकाओं तथा अधिकारों को मान्यता प्रदान करके प्रत्यक्षवाद के मनुष्य को उसके सामाजिक आधार से पृथक् कर दिया है।

(iii) डी.पी. का मत है कि ‘हमारी मनुष्य की अवधारणा ‘पुरुष’ की है व्यक्ति की नहीं।’ मुखर्जी के अनुसार व्यक्ति शब्द हमारे धार्मिक ग्रंथो अथवा महर्षियों के कथनों में बहुत कम पाया जाता है। ‘पुरुष’ का विकास उसके अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग से तथा अपने समूह के सदस्यों के मूल्यों तथा भागीदरी से होता है।

(iv) डी.पी. क अनुसार भारत की समाजिक व्यवस्था मूलरूप स समूह, संप्रदा अथवा जाति कार्य का मानक अनुस्थापना है। यही कारण है कि आम भारतीय द्वारा नैराश्य का अनुभव नहीं किया जाता है। इस संदर्भ में डी.पी. हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों तथा बौद्धों में कोई विभेद नहीं है।

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प्रश्न 3.
परंपराओं की गतिशीलता किसे कहते हैं?
उत्तर:
डी.पी.मुकर्जी के अनुसार परंपरा का तात्पर्य संप्रेषण से है प्रत्येक सामजिक परंपरा का कोई न कोई उद्गम अवश्य होता है। समाज के सभी सदस्यों द्वारा परंपराओं की ऐतिहासिकता को मान्यता प्रदान की जाती है। परंपरा के द्वारा प्रायः यथास्थिति को कायम रखा जाता है। परंपरा का रूढ़िवादी होना आवश्यक नहीं है। डी.पी. का मत है कि परंपरओं में परिवर्तन होता रहता है।

भारतीय परंपराओं में तीन सिद्धांतो को मान्यता प्रदान की गई है –

  • श्रुती
  • समृति तथा
  • अनुभव

विभिन्न संप्रदायों या पंथो संत-संस्थापकों के व्यक्तिगत अनुभवों से सामूहिक अनुभव की उत्पत्ति होती है, जिससे प्रचलित सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था में परिवर्तन होता है। प्रेम या प्यार तथा सहजता का अनुभव या स्वतः स्फूर्त जो इन संतों तथा अनेक अनुयायिकों में पायी जाती है वह सूफी संतों में भी देखने को मिलती है। परंपरागत व्यवस्था द्वारा विरोधी आवाजों को भी सामायोजित किया जाता है। इसके परिणामस्वरूप, सुविधाहीन विभिन्न समूहों की वर्ग चेतना ने जातिय व्यवस्था को जबर्दस्त चुनौती दी है।

प्रश्न 4.
डी.पी.मुखर्जी के अनुसार सामाजिक वास्तविकता का अर्थ है?
उत्तर:
सामाजिक वास्तविकता के संबंध में डी.पी.मुकर्जी के विचारों का अध्ययन निम्नखित बिंदुओं के अंतर्गत किया जा सकता है –
(i) सामाजिक वास्तविकता के अनेक तथा विभिन्न पहलू हैं तथा इसकी अपनी परंपरा तथा भविष्य है।

(ii) सामाजिक वास्तविकता को समझने के लिए विभिन्न पहलू की अंत:क्रियाओंक की प्रकृति को व्यापक तथा संक्षिप्त रूप में देखना होगा। इसके साथ-साथ परंपराओं तथा शक्तियों के अंत: संबंधों को भी भली भाँति समझना होगा। किसी विषय विशेष में संकुचित विशेषीकरण इस तथ्य का समझने में सहायक नहीं है।

(iii) डी.पी.मुखर्जी के अनुसार इस दिशा में सामजशास्त्र अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। उनका स्पष्ट मत है कि किसी अन्य सामाजिक विज्ञान की भाँति समाजशास्त्र का अपना फर्श तथा छत है। मुखर्जी का मत है कि समाजशास्त्र का फर्श अन्य सामाजिक विज्ञानों की भाँति धरातल में संबद्ध है तथा इसकी छत ऊपर से खुली हुई है।

(iv) डी.पी. मुखर्जी का. मत है कि समाजशास्त्र हमारी जीवन तथा सामाजिक वास्तविकता : का एकीकृतं दृष्टिकोण रखने में सहायता करता है। यही कारण है कि डी.पी.मुखर्जी ने सामाजिक जीवन के विस्तृत चित्र का संक्षिप्त दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि डी.पी. ने सामाजिक विज्ञनों के संश्लेषण पर निरंतर जोर दिया है। समाजशास्त्र एक समाजिक विज्ञान के रूप में विभिन्न विषयों के संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण प्रयास कर सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संस्कृति तथा समाज की क्या विशिष्टताएँ हैं तथा ये बदलाव के ढाँचे की कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में विषमताओं के होते हुए भी मौलिक एकता की भावना इसे संसार की अन्य संस्कृतियों से अलग रखती है। अर्थात् समुद्र के उत्तर में हिमालय के दक्षिण में जो देश है वह भारत नाम का खंड है। वहाँ के लोग भारत की संतान कहलाते हैं। भारत एक विशाल देश है। उत्तर में हिमालय पर्वत दक्षिण में तीन ओर समुंद्र हैं। इसकी भौगालिक विशेषता इसे संसार के अन्य देशों से अलग रखती है।

भारत की भौगोलिक एकता को खण्डित करने का सहास आज तक कोई शक्ति नहीं कर सकी। सांस्कृतिक एकता-भारत के विभिन्न वर्गों ने मिलकर एक ऐसी विशिष्ट और अनोखी संस्कृति को जन्म दिया है जो शेष संसार में सर्वथा भिन्न है। भारतीय संस्कृति संसार में उच्च। स्थान रखती है। भारतीय संस्कृति में एकता का आधार राजनीतिक या भौगोलिक न होकर सांस्कृतिक रहा है।

भाषागत एकता-भारत में प्रचीन काल से ही द्रविड़, आर्य, कोल, ईरानी, यूनानी हुण, शक, अरब, पठान, मंगोल, डच, फेंच, अंग्रेज आदि जातियाँ आती रही है। इन लोगों ने यहाँ की भाषा और संस्कृति को एक सीमा तक अपनाया। अधिकांश भरतीय भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। भारत में मुसलमानों के आगमन के पश्चात् उर्दू भाषा का जन्म हुआ। बंगला, तमिल, तेलगु भाषा पर भी संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता पड़ता है। भारत में प्राचीन काल से ही अनेक भाषाओं का जन्म हआ किंत उनमें किसी प्रकार का भी टकराव देखने का नही मिला।

धार्मिक एकता-भारत में विभिन्न धर्मों के मानने वाले निवास करते हैं। प्रत्येक धर्म के अपने विश्वास, रीति-रिवाज, उपासाना और पूजन विधियाँ हैं। हिंदू धर्म में ही आर्य समाजी, सनातन धर्मी, शैव, वैष्णव, नानक पंथी, कबीर पंथी आदि विभिन्न सम्प्रदान हैं, पंरतु विभिन्न मत-मतान्तरों के होते हुए भी भारत में धार्मिक एकता बनी हुई है। संविधान में भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। सभी धर्मों क पवित्र ग्रंथो का आदर किया जाता हैं।

राजनीतिक एकता-भारत में समय-समय पर अनेक शासन प्रणालियों का प्रचलन रहा है। कि स्वतंत्रता के पश्चात् प्रजातंत्रिक शासन प्रणाली अस्तित्व में आई। अनेक राजनीतिक दल और विचारधाराओं का उदय हुआ किंतु सभी दल भारत की राजनीतिक एकता को सर्वोपरि समझते हैं। सामाजिक-आर्थिक एकता-भारत में विभिन्न धर्मों और विश्वासों को मानने वाले लोग रहते हैं। उनकी परम्पराओं और रीति-रिवाजों में अंतर है परंतु उनके परस्पर संबंधों में उदारता और भाईचारे की भावना वद्यमान है। मानव कल्याण और लोकहित की भावाना से प्ररेणा लेकर संस्कृति की एकता को सुरक्षित बनाए रखा गया है। आर्थिक विषमता के होते हुए भी आत्मसंतोष की भावना विद्यमान है।

उपयुक्त सभी विशेषताएँ भारतीय संस्कृति तथा समाज की है जबकि किसी भी समाज में परिवर्तन होता है तो उसके कुछ निर्धारित प्रारूप होते हैं यथा-समाज में हिंदी में हिंदी भाषा के स्थान पर अंग्रेजी का वर्चस्व यह प्रतिरूप समाज की भाषायी एकता को प्रभावित करता है। इसी प्रकार अन्य तत्व भी परिवर्तन के प्रारूप को प्रभावित करते हैं।

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प्रश्न 2.
परंपरा तथा आधुनिकता के विषय में डी.पी.मुखर्जी के क्या विचार थे?
उत्तर:
परंपरा तथा आधुनिकता के विषय में डी.पी.मुखर्जी के विचार –
(i) परंपरा का अर्थ-प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्रीय डी.पी.मुखर्जी के अनुसार परंपरा का तात्पर्य संप्रेषण से है। प्रत्येक परंपरा का कोई न कोई उदगम स्रोत धार्मिक ग्रंथ तथा महर्षियों के कथन हो सकते हैं। परंपराओं के स्रोत कुछ भी हो सकते हैं, लेकिन इनकी ऐतिहासिकता को प्राय: सभी व्यक्तियों द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है। परंपराओं को उद्धत, पुनःस्मरण किय जाता है तथा उनका सम्मान किया जाता है।

(ii) भारतीय परंपराओं की शक्ति-डी.पी.मुखर्जी के अनुसार भारतीय परंपराओं की वास्तविक शक्ति उसके मूल्यों का पारदर्शिता में पाई जाती है। इसकी उत्पति स्त्रियों तथा पुरुषों की अतीत की घटनाओं से संबद्ध जीवन पद्धतियों तथा भावनाओं से होती है, इनमें से कुछ मूल्य अच्छे तथा कुछ बुरे हैं। सोचने वाली बात यह है कि. तकनीक, प्रजातंत्र, नगरीकरण तथा नौकरशाही के नियम आदि विदेशी तत्वों मे उपयोगिता को भारतीय परंपरा में स्वीकार किया गया।

(iii) आधुनिक भारतीय संस्कृति एक आश्चर्यजनक सम्मिश्रण-डी.पी. का यह स्पष्ट मत है कि पश्चिमी संस्कृति तथा भारतीय परंपराओं में समायोजन निश्चित रूप से होगा। डी. पी.आगे कहते हैं कि भारतीय संस्कृति किसी भी दशा में समाप्त नहीं होगी। भारतीय संस्कृति की ननीयता, समायोजन तथा अनूकूलन इसके अस्तित्व को अक्षुण्ण बनाए रखेंगे। भारतीय संस्कृति ने जनजातिय संस्कृति को आत्मसात किया है, इसके साथ-साथ इसने अनेक आंतरिक विरोधों को भी अपने साथ मिलाया है। यही कारण है कि आधुनिक भारतीय संस्कृति एक आश्चर्य मिश्रण कहलाती है।

(iv) परंपरा व आधुनिकता मे द्वंद्व की स्थिति-डी.पी.का पूर्ण व्यक्ति या संतुलित व्यक्तित्व का अर्थ है –

  • नैतिक उत्साह, सौंदर्यात्मक तथा बौद्धिक समझदारी का मिश्रण है।
  • इतिहास एवं तार्किकता का ज्ञान। उपरोक्त कारणों से ही पंरपरा तथा आधुनिक में द्वंद्व की स्थिति बन जाती है।

(v) भारतीय परंपरा का पश्चात्य संस्कृति से सामना-डी.पी.का मत है कि भारतीय संस्कृति का पाश्चात्य संस्कृति से सामाना होने पर सांस्कृतिक अंत:विरोधों की शक्तियों को मुक्त किया जा सकता है। इस नए मध्य वर्ग को जन्म दिया है। डी.पी. के अनुसार संघर्ष तथा संशलेषण की प्रक्रिया को भारतीय समाज की वर्ग-संरचना को सुरक्षित रखने वाली शक्त्यिों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
डी.पी.मुखर्जी ने नए मध्यम वर्ग की अवधारणा की व्याख्या किस प्रकार की है?
उत्तर:
डी.पी.मुखर्जी ने नए मध्यम वर्ग को व्याख्या के संबंध में निम्नलिखित बिंदुओं पर बल दिया है –
(i) नगरीय-औद्योगिक व्यवस्था-डी.पी. मुखर्जी के अनुसार अंग्रेजों द्वारा भारत में प्रारंभ की गई नगरीय-औद्योगिक व्यवस्था न पुराने ताने-बाने को लगभग समाप्त कर दिया । नगरीय-सामज में नया सामाजिक अनुकूलन तथा समायोजन प्रारंभ हुआ। इस नए सामाजिक ताने-बाने में नगरों में शिक्षित मध्यम वर्ग समाज का मख्य बिंद बन गया।

(ii) शिक्षित मध्यम वर्ग आधुनिक सामाजिक शक्ति के ज्ञान को नियंत्रित करता है-शिक्षित मध्यम वर्ग द्वारा सामाजिक शक्ति के ज्ञान को नियंत्रित किया जाता है। इसका तात्पर्य है कि पश्चिमी देशों द्वारा प्रदत विज्ञान, तकनीक, प्रजातंत्र तथा ऐतिहासिक विकास की भावना भारत में नगरीय समाज में विज्ञान तथा तकनीकी से संबंधित समस्त विशेषताओं तथा मध्ययम वर्ग की सेवाओं के उपयोग की बात कही गई है। डी.पी. का मत है कि मुख्य समास्या इस मध्यम वर्ग के पश्चिमी विचारों तथा जीवनशैली का पूर्णरूपेण अनुकरण करना है।

यही कारण है कि इस तथ्य को प्रसन्नता अथवा तिरस्कार कहा जाए कि हमारे समाज का माध्यम वर्ग भारतीय . वास्तविकताओं तथा संस्कृति से पूर्णतया अनभिज्ञ बना रहता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते है कि भारतीय मध्य वर्ग पश्चिमी सभयता से अधिक निकट है जबकि भारती संस्कृति तथा विचारों से उसका अलगाव जारी है।

यद्यपि मध्यम वर्ग भारतीय परंपराओं से संबंद्ध नहीं है तथापि परंपराओं मे प्रतिरोध तथा . सीखने की अत्यधिक शक्ति पायी जाती है। यह परंपराएँ मानव के भौगोलिक तथा जनकीय प्रतिमानों के आधार पर भौतिक समायोजन तथा जैविकीय आवेगा के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है। इस संबंध में भारत के संदर्भ में कहा जा सकता है कि यहाँ नगर-नियोजन तथा परिवार नियोजन के कार्यक्रमों परंपराओं से इतना अधिक संबंधित हैं कि नगर-नियोजन तथा समाज सुधारक इनकी अनदेखी नहीं कर सकते है।

यदि वे ऐसा करते हैं तो समस्त नियोजन तथा सुधार कार्य खतरे में पड़ जाएंगे। इस विश्लेषण के संदर्भ में कहा जा सकता है कि नगर-नियोजन भारत का मध्यम वर्ग आधुनिक भारत के निर्माण में आम जनता के नेतृत्व की स्थिति में नहीं है। मध्य वर्ग का विचार क्षेत्र परिश्मी सभयता से संबंधित रहने के कारण यह स्वदेशी परंपराओं से पृथक् हो गया है। यही कारण है कि मध्यम वर्ग का जनता से संपर्क टूट गया है।

(iii) भारत पंरपराओं से अनुकूलन करके आधुनिकता के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है-डी.पी.मुखर्जी का मत है कि यदि मध्यम वर्ग आम-जनता से अपना संमक पुनः स्थापित करता है तो भारत परंपराओं से अनुकूलन करके आधुनिकता के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। भारतीयों को अपनी परंपराओं के संदर्भ में न तो क्षमा याचना करने की आवश्यकता है और न ही आत्मश्यलाघा की आवश्यकता है।

उन्हें परंपराओं की जीवतंता को नियंत्रित करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए जिसे आधुनिकता द्वारा आवश्यक परिवर्तनों के साथ समायोजन कर सके। इस प्रकार व्यक्तिवाद तथा सामाजिकता में संतुलन कायम होगा। इस नूतन अनुभवों से भारत तथा विश्व लाभान्वित हो सकेंगे।

अक्षय रमनलाल देसाई – (1915-1994)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रो. देसाई के अनुसार ‘भूमि सुधारों’ में असफलता के कारण थे?
उत्तर:
प्रो. देसाई के अनुसार भूमि सुधार में असफलता के निम्न कारण थे –

  • राजनीतिक संकल्प शक्ति का अभाव।
  • प्रशासनिक संगठन : नीति निर्वाह के अपर्याप्त कारण।
  • कानूनी बाधाएँ।
  • सही एवं अद्यतन अभिलेखों का अभाव।
  • भूमि सुधार को अब तक आर्थिक विकास की मुख्य धारा से अलग करके देखना।

प्रश्न 2.
प्रो. देसाई की दो प्रमुख कृतियों का उल्लेख किजिए?
उत्तर:
श्री देसाई की दो प्रमुख कृतियाँ हैं –

  • Social Background of Indian Nationalism
  • State and Society in Indian

प्रश्न 3.
कल्याणकारी राज्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रो.ए.आर. देसाई के अनुसार स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गई। कल्याणकारी राज्य में लोकतांत्रिक समाजवाद के चिंतन को प्रस्तुत किया गया। प्रो. देसाई के असार भारत में कल्याणकारी राज्य पूँजीवादी संरचना का मुखौटा है। कल्याणकारी राज्य में बुर्जआ वर्ग के हितों की रक्षा की जा रही है। इस प्रकार प्रो. देसाई ने कल्याणकारी राज्य को जन सामान्य के संघर्ष के क्षेत्र में एक सुनियाजित अवरोध के रूप में सामने रखा है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
ए. आर. देसाई ने भारतीय समाजशास्त्रियों की आलोचना किस प्रकार की?
उत्तर:
प्रोफेसर ए. आर. देसाई ने संयुक्त राज्य अमेरिका तथा इंगलैंड से उधार ली गई अवधारणाओं तथा पद्धतियों के आधार पर भारतीय समाजशास्त्रियों के द्वारा सामाजिक-आर्थिक प्रघटनाओं के विशलेषण करने की प्रवृति की कड़ी आलोचना की थी। श्री देसाई के अनुसार भारत में सामाजशास्त्र मुख्यतया उधार ली हुई अवधारणाओं और पद्धतियों का अनुशासन है।

और यह उधार पश्चिमी देशों विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका और इंग्लैंड के परम प्रतिष्ठत केंद्रों से लिया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि परम प्रतिष्ठित मॉडलों का पीछा करते हुए छद्म बुद्धि व्यापार के दलदल में आत्मलाप है। प्रो.ए.आर. देसाई ने बौद्धिक चेतना एवं विश्लेषण के एक नवीन क्षितिज का सृजन किया। समाजशास्त्रीय विचारों की श्रृंखला को एक नई उष्मा प्रदान की। स्पष्ट है कि जनसाधारण के संघर्ष से समाजशास्त्र के विकास में प्रो. देसाई का योगदान अतुलनीय है।

प्रश्न 2.
देसाई की सार्वजनिक क्षेत्र की अवधारणा क्या है?
उत्तर:
प्रो.ए.आर. देसाई ने सार्वजनिक क्षेत्र की अवधारणा को स्पष्ट किया है। वास्तव में अनेक देशों में पूँजीवादी संरचना क विकल्प के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता दी जा रही है। जब सरकारी तथा अर्द्धसरकारी स्तर पर उत्पादन के विभिन्न साधनों एवं संगठनों पर नियंत्रण किया जाता है, उसका राष्ट्रीयकरण किया जाता है तो उसमें सार्वजनिक क्षेत्रों का एक स्वरूप निर्मित हा जाता है। जैसे भारत में 1970 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

प्रिवीपर्स को समाप्त कर दिया गया। इस प्रकार देश में सार्वजनिक क्षेत्र को महत्त्व देने का प्रयास किया गया। प्रो.ए.आर. देसाई ने अपनी पुस्तक Indian’s path of Development Amarxist Apporach में सार्वजनिक क्षेत्रों का मूल्यांकन किया है। श्री देसाई के अनुसार भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का संतुलित विकास नहीं हुआ है। इस कारण पूंजीपतियों को निरंतर प्रश्रय प्राप्त होता रहता है।

प्रश्न 3.
ए. आर देसाई के समाजशास्त्रीय योगदानों को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
डॉ. योगेन्द्र सिंह ने तुलनात्मक विश्लेषणों के आधार पर प्रो.ए.आर देसाई के समाजशास्त्रीय योगदान का मूल्यांकन किया है। योगेन्द्र सिंह ने निम्न बिंदुओं के आधार पर प्रो. देसाई के महत्त्व को स्पष्ट किया है।

(i) प्रो. योगेन्द्र सिंह के अनुसार सामाजिक अध्ययनों के मार्क्सवादी प्रतिमानों का विकास विशेषकर युवा समाजशास्त्रियों में देखा जाता है। 1950 के दशक में यह दृष्टिकोण अस्तित्व में था लेकिन वह इतना नहीं था उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि डी.पी.मुखर्जी ने सामाजिक विश्लेषणों में मार्क्सवादी दृष्टिकोण के स्थान पर शास्त्रीय दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी थी इस दृष्टिकोण में भारतीय आदर्शों और परंपराओं के साथ द्वंद्वात्मक को तर्क संलग्न किया गया था।

(ii) अपने आरंभिक अध्ययनों में समाजशास्त्रीय रामकृष्ण मुखर्जी ने मार्क्सवादी परंपराओं की बहुत-सी श्रेणीयों और संचालनों का उपयोग किया। लेकिन कालान्तर में, समाजशास्त्र में मार्क्सवादी पद्धतियों को 1950 के दशक की पीढ़ी के समाजशास्त्रियों के मध्य अकेले ए.आर. देसाई ने ही सामजशास्त्र में समान रूप से प्रचारित और प्रयुक्त किया था।

(iii) भारतीय समाजशास्त्र के जिज्ञासात्मक विषय की जड़े व्यापक दृष्टिकोण से मुख्यतः संरचनात्मक, प्रकार्यात्मक अथवा कुछ अर्थों में संरचनात्मकता और ऐतिहासिक संरचनात्मक प्रतिमानों में पाई जाती थीं। यह भारतीय समाजशास्त्र पर ब्रिटिश और अमेरिकी समाजशास्त्री परंपराओं के प्रभाव को स्पष्ट करता है। 1970 और 1980 के दशक के मध्य ये परंपराएँ पाई जाती थीं। इस प्रकार प्रो, योगेन्द्र सिंह न ए.आर. देसाई की सामजशास्त्रीय दृष्टि का तुलनात्मक विश्लेषण किया है।

प्रश्न 4.
ए.आर. देसाई का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
भारतीय सामाजशास्त्रीय अक्षय रमनलाल देसाई का जन्म सन् 1915 में हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा, बड़ौदा, सूरत तत्पश्चात् मुम्बई में संपन्न हुई। आप ऐसे पहले भारतीय समाजशास्त्री थे जो सीधे तौर पर किसी राजनीतिक दल के औपचारिक सदस्य थे। आप जीवन । भर मार्क्सवादी रहे। आप मार्क्सवादी राजनीति में भी सक्रिय रूप से भाग लेते रहे।

श्री देसाई के पिता मध्यवर्गी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाल व्यक्ति थे और बड़ौदा राज्य के लोक सेवक थे। वे एक अच्छे उपन्यासकार भी थे। वे समाजवाद, भारतीय राष्ट्रवाद और गाँधी जी की विभिन्न गतिविधियों में रुचि रखते थे। श्री देसाई की माता का देहांत जल्दी हो गया था। श्री देसाई ने अपने पिता के साथ प्रवसन का जीवन अधिक व्यतीत किया, क्योंकि उनके पिता का स्थानांतरण निरंतर होता रहता था।

श्री देसाई का 1948 में पी. एच. डी. की उपाधि मिली। आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

  • Social Background of Indian Nationalism
  • Peasant Struggles in India
  • Agraian Struggles in India
  • State and Society In India

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रो. ए. आर देसाई के समाजशास्त्रीय विचारों को संक्षेप मे लिखिए?
उत्तर:
प्रो. ए. आर देसाई अपने आप में एक विशिष्ट भारतीय समाजशास्त्री हैं जो सीधे तौर पर एक राजनैतिक पार्टी से जुड़े थे और उसके लिए कार्य करते थे। भारतीय समाजशास्त्र में प्रो. देसाई का अवदान अविस्मरणीय है। प्रो. देसाई ने जन-संघर्ष तथा विक्षोभ के वैचारिक आयाम को भारतीय समाजशास्त्र की चिंतन परिधि में एक व्यवस्थित स्वरूप प्रदान किया एक चेतना संपन्न विचारक के रूप में उन्होंने विश्व की प्रमुख घटनाओं तथा मुद्दों का गंभीर अध्ययन किया।

उन्होंने भारतीय सामजिक संरचना मं पाए जाने वाले शोषण तथा सामाजिक मतांतरों का सूक्ष्म विश्लेषण किया। सामाजिक-आर्थिक ऐसी राजनीतिक प्रघटनाओं के विश्लेषण में प्रोफेसर ए.आर. देसाई ने उपलब्ध ऐतिहासिक तथ्यों एवं स्रोतों को प्रयुक्त किया। पूँजीवाद आर्थिक संरचना तथा श्वेत वसन राजनीतिक व्यवस्था के नकाब को उतारकर रख दिया। भारतीय समाजशास्त्र के विस्तृत आयाम पर प्रोफेसर देसाई ने अध्ययन एवं अनुसंधान को एक सर्वथा नवीन दिशा एवं दृष्टि प्रदान की। परिवार, नातेदारी, जाति, विवाह, धर्म तथा संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्सवादी दृष्टिकोण के आधार पर एक नवीन ऊर्जा तथा एक नवीन उष्मा प्रदान की। प्रोफेसर ए. आर. देसाई ने लिखा है।

“सामाजिक विज्ञान के अभ्यासियों को गंभीर बौद्धिक तथा नैतिक धर्म संकट का सामना करना पड़ेगा या तो वे देश के शासक के तरीकों को सही सिद्ध करते हए अपने लिए सुरक्षा और सम्मान का इंतजाम करें, या हिम्मत बाँधकर और नतीजों का सामना करने के लिए तैयार होकर ऐसा नजरिया अपनाएँ जो विकास के पूंजीवाद रास्ते को अपनानी वाली सरकार के नेतृत्व में काम करती शक्तियों के खिलाफ संघर्ष करते हुए दुख भोगते लोगों के लिए उपयोगी ज्ञान को प्रजनित करें तथा उसका प्रचार-प्रसार करें। उनका संघर्ष पूंजीवादी रास्ते के परिणामों के असर को दूर करने के लिए और उनके विपरित विकास के गैर-पूँजीवादी रास्ते के लिए स्थितियाँ तैयार करने के लिए होगा।

इससे भारत में काम काजी लोगों की विशाल संख्या की उत्पादत क्षमता मुक्त हो जाएगी और सम्मान वितरण संभव होगा।” प्रोफेसर ए.आर. देसाई ने पूँजीवादी आर्थिक संरचना, साम्राज्यवाद एवं दमनकारी शक्तियों के विरुद्ध सामजशास्त्रीय चिंतन परिधि के आधार पर विचार प्रकट किए। उन्होनें साभजशास्त्रीय अध्ययन तथा अनुसंधान को जनसंघर्ष के साथ जोड़ा तथा जन-विक्षोभ के विविध आयामों को वैज्ञानिक दृष्टि दी। उन्होनें स्वतंत्र भारत में परिवर्तन तथा विकास की आलोचनात्मक व्याख्या प्रस्तुत की।

साथ ही पंचवर्षीय योजनाओं, कृषि समस्याओं, विकास कार्यक्रमों, ग्रामीण संरचनाओं एवं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का गहन एवं गंभीर विश्लेषण किया उनके अनुसार स्वतंत्र भारत में रज्य की प्रकृति तथा समाज के प्रकार के विश्लेषण में बौद्धिक जगत से जुड़े लोग असफल रहे हैं तथा विद्वानों द्वारा निरंतर जन-संघर्ष के केन्द्रीय बिंदु की उपेक्षा की गई। उन्होंने जन-अहसमति, कल्याणकारी राज्य, भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्व, भरतीय राष्ट्रवाद, संक्रमण स्थिति में भारतीय ग्रामीण समुदाय तथा महात्मा गाँधी के सत्य एवं अहिंसा के सिद्धांतों का आलोचनात्मक परीक्षण किया। उन्होंने अपने विचार तथा चिंतनों के आधार पर सत्ता एवं व्यवस्था का पोषण नहीं किया।

काल्याणकारी राजय के नाम पर पूंजीवादी आर्थिक संरचना के संपोषण की प्रवृति का उन्होंने खलासा किया। एक विद्रोही समाजशास्त्री के रूप में. एक प्रतिबद्ध मार्क्सवादी चिंतक के रूप में तथा जन-असहमति एवं जन संघर्ष के मुद्दों से जुड़े एक प्रखर समाजशास्त्री के रूप में प्रोफेसर ए.आर. देसाई का नाम विचारों की दुनिया में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। उन्होंने भारत में राजनीति तथा विकास के विविध आयामों के लिए सामजशास्त्रियों को उत्प्रेरित किया। उन्होंने कल्याणकारी राज्य, संसदीय लोकतंत्र, राजनीति तथा विकास के अध्ययन हेतु ऐतिहासिक भौतिकवाद के आधार पर भारत में राज्य तथा समाज का विश्लेषण किया। साथ ही, समाजशास्त्रीय नजरिये की एक नई उत्तेजना प्रदान की। सामजशास्त्रीय अध्ययन को बहस का विषय बनाया।

क्या मौजूदा समाजशास्त्रीय अध्ययन पिछड़ापन, गरीबी तथा असमानता के समाजिक सरोकारों से जुड़ा हुआ है, क्या भरतीय समाज में तेजी से हो रहे रूपांतरणों की केन्द्रीय प्रवृति को रेखांकित करने में मौजूदा समाजशास्त्रीय अन्वेषण सक्षम है? क्या गरीबों के हक में हस्तक्षेप करने की ताकत सामज शास्त्र में पैदा की जा सकी है? प्रोफेसर देसाई ने स्पष्ट किया कि भारतीय परिदृश्य में समाजशास्त्रीय विश्लेषणों तथा उपागमों पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 भारतीय समाजशास्त्री

प्रश्न 2.
कल्याणकारी राज्य क्या है? ए. आर देसाई इसके द्वारा किए गए दावों की आलोचना क्यों करते हैं?
उत्तर:
प्रो. देसाई अपनी कृति State and Society in India के कल्याणकारी राज्य की अवधारणा प्रस्तुत की है लोक-कल्याणकारी राज्य किसी अहस्तक्षेपी राज्य से भिन्न है। राज्य का अस्तक्षेपी रूप तो केवल एसे कार्य सम्पादित करता है जो पुलिस कार्य कहलाते हैं, जैस-सुरक्षा कानून व्यवस्था? सम्पत्ति का संरक्षण तथा अनुबंधों का प्रयर्तन । इसके अतिरिक्त अस्तक्षेपी राज्य व्यक्ति के अन्य कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करता जबकि लोक-कल्याणकारी राज्य उपरोक्त कार्यों के साथ-साथ जन स्वास्थ का भी ध्यान रखता है। वे ऐसी बुनियादी सुविधाएँ भी सुलभ कराता है, जिससे लोगों में राज्य के मामलों का प्रभावी भागीदारी निभाने के लिए आवश्यक न्युनतम शिक्षा का लाभ अवश्य पहुँचे।

इसके अतिरिक्त लोक-कल्याणकारी राज्य तो अनिवार्यात: नागरिकों को काम का अधिकार, निश्चित निर्वाह आय का अधिकार तथा आश्रय पाने का अधिकार सुलभ कराना होता है। बेरोजगारों के निर्वाह भत्ता देना भी ऐसा ही राज्य का दायित्व है। सभी को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए लोक कल्याणकारी राज्य मानव अधिकारों में आस्था रखता है। वह आवश्यक रूप से मानव जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता लेकिन आर्थिकता, निर्धनता, बीमारी तथा अन्य सामाजिक बुराईयों को दूर करने का प्रयत्न करता है। इस प्रकार अहस्तक्षेपी राज्य एक नकारात्मक राज्य हैं जो सुरक्षात्मक (पुलिस कार्य) करता है, जबकि लोक कल्याणकारी सकारात्मक राज्य हैं जो विकास कार्य करता है।

मैसूर नरसिहाचार श्रीनिवास – (1916 – 1999)

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
श्री.एम.एन. श्री निवास के समाजशास्त्रीय योगदान को दर्शाने वाले दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
समाजशास्त्री पी.सी. जोशी ने लिखा है कि एम.एन.श्री निवास ने मनुवाद का विरोध किय तथा बड़ौदा विश्वविद्यालय क प्रमुख शिक्षाविद् प्रो.के.टी.शाह के इस प्रास्तव को ठुकरा दिया कि समाजशास्त्र मनु के धर्मशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। एम.एन.श्री निवास ने 1996 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘इंडियन सोसाइटी’ श्रू पर्सनल राइटिंग्स में यह स्पष्ट किया कि समाजशास्त्र के अंतर्गत सामाजिक प्रघटनाओं के विश्लेषण हेतु वैज्ञानिक पद्धति आवश्यक है।

एम.एन. श्रीनिवास ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय विद्याशास्त्र तथा समाजशास्त्र को पर्यायवाची शब्द के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। भारतीय विद्याशास्त्र तथा समाजशास्त्र में बहुत अंतर है। उन्होंने इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की कि समाजशास्त्रीय परिदृश्य में भारतीय विद्याशास्त्र को समाजशास्त्र के रूप में गहण करने की दोषपूर्ण प्रवृति रही है। एम.एन. श्री निवास ने यह भी स्पष्ट किया है कि सामजशास्त्रीय अध्ययन एवं अनुसंधान हेतु समाजशास्त्रियों को आम जनता के बीच जाना ही होगा। इस प्रकार उन्होंने क्षेत्रीय शोध कार्य के महत्व को रखांकित किया। पुस्तकों, अभिलेखों, पुरात्वों तथा अन्य संबंधित सामग्रियों का उपयोग द्वितीयक स्रोत के रूप में किया जा सकता है।

सामाजिक वास्तविक्ता एवं सामाजिक प्रघटनाओं के अध्ययन के लिए सुदूर नगरों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अध्ययन के आधार पर ही प्रामाणीक तथ्यों का विश्लेषण वैज्ञानिक औचित्य एवं वस्तुनिष्ठ पद्धतियों के आधार पर संभव है । इस प्रकार उन्होंने पुस्तकीय परिपेक्ष्य को विशेष महत्त्व प्रदान नहीं किया।

प्रश्न 2.
एम. एन. श्रीनिवास की प्रमुख कृतियाँ कौन सी हैं?
उत्तर:

  • ‘रिलीजन एंड सोसाइटी अमंग दि कुर्गस ऑफ साउथ इंडिया’ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, लंदन, 1952 ।
  • ‘मेथड इन सोशल एंथ्रोपॉलोजी’ यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो प्रेस, शिकागो, संपादित, 19581 ।
  • सोशल चेंज इन मॉडर्न इंडिया’ लॉस एंजिलल्स कैलीफोर्निया, 1996 ।
  • ‘कास्ट इन मॉडर्न इंडिया एंड अदर एशज’ मुम्बई एलाइड पब्लिशर्स, 1962 ।
  • ‘द रिमेम्बर्ड विलेज’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1976 ।
  • ‘द डोमिनेण्ट कास्ट एंड अदर एशेज’ आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1987 ।
  • द कोहेसिव रोड ऑफ.संस्कृताइजेशन’ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1989 ।
  • ऑन लिविंग इन ए रिवोल्यूशन एंड अदर एशेज’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1992 1
  • इंडयन सोसाइटी श्रू पर्सलन राइटिंग्स’, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 19961 ।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पाश्चात्यीकरण की अवधारणा की व्याख्या कीजिए?
उत्तर:
सामजशास्त्री डॉ. श्री निवास के पश्चिमीकरण की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया है। पश्चिमीकरण के संदर्भ में उनका विचार है कि “पश्चिमीकरण शब्द अग्रेजों के शासन काल के 150 वर्षों से अधिक के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में होने वाले परिवर्तनों को व्यक्त करता है और इस शब्द में प्रौद्योगिकी संस्थाओं, विचारधारा, मूल्यों आदि के विभिन्न स्तरों में घटित होने वाले परिवर्तनों का समावेश रहता है।”

पश्चिमीकरण का तात्पर्य देश में उस भौतिक सामाजिक जीवन का विकास होता है जिसके अंकुर पश्चिमी धरती पर प्रकट हुए और पश्चिमी व यूरोपीय शक्तियों के विस्तार के साथ-साथ विश्व के विभिन्न कोनों में अविराम गति से बढ़ता गया। पश्चिमीकरण को आधुनिकीकरण भी कहते हैं लेकिन अनेक समस्याएँ होते हुए भी पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण के निए पश्चात्य सभ्यता और संस्कृति से संपर्क होना आवश्यक है। पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया है।

इसमें किसी संस्कृति के अच्छे या बुरे होने का अभास नहीं होता। भारत में पश्चिमीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा में पाये जाने वाले ऊँच-निच के भेद समाप्त हो रहे हैं। नगरीकरण ने जाति प्रथा पर सिधा प्रहार किया हैं। यातायात के साधनों के विकसित होने से, अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार से सभी जातियों का रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि एक जैसे हो गये है। महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार आ रहा है। भारतीय महिलाओ पर पाश्चात्य शिक्षा और संस्कृति का व्यापक प्रभाव पड़ा है। विवाह की संस्था में अब लचीलापन देखने को मिलता है । विवाह पद्धति में परिवर्तन आ रहे हैं बाल विवाह का बहिष्कार बढ़ रहा है। अन्तर्जातीय विवाह नगरों में बढ़ रहे है। संयुक्त परिवार प्रथा का पालन भी देखने को मिल रहा है। रीति-रिवाजों और खान-पान भी पश्चिमीकरण से प्रभावित हुआ है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्रीय शोध के लिए गांव को एक विषय के रूप में लेने पर एम.एन. श्री निवास तथा लुई ड्यूमों ने इसके पक्ष में क्या तर्क दिए हैं?
उत्तर:
लई ड्यूमों और एम.एन. श्री निवास दोनों ही भारतीय समाजशास्त्री हैं। दोनों ने ही अनेक विषयों पर समाजशास्त्रीय अन्वेषण किया है। दोनों ने ही ‘ग्राम’ पर भी अपने विचार प्रकट किए है। ‘ग्राम’ को समाजशास्त्रीय अन्वेषण का विषय बनाने के संदर्भ में दोनों ने निम्न तर्क प्रस्तुत किए है: ग्रामीण जीवन कृषि पर आधारति है कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें सारा ग्राम कृषि समुदाय एक-दूसरे पर निर्भर करता है। सभी लोग फसलों की बुआई, कटाई आदि में एक-दूसरे।

का सहयोग करते हैं। ग्रामीण जीवन में सरलता और मितव्ययता एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। ग्रामों में अपराध और पथभ्रष्ट व्यवहार जैसे चोरी, हत्या, दुराचार आदि बहुत कम होते हैं क्योंकि ग्रामीण में बहुत सहयोग होता है। वे भगवान से भय खाते हैं और परम्परावादी होते हैं ग्रामीण लोग नगरों की चकाचौंध और माह से कम प्रभावित होते हैं और साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। उनके व्यवहार और कार्यकलाप गाँव की प्रथा, रूढ़ि, जनरीतियों आदि से संचालित होते हैं। उनकी इसी सहजता के कारण वे समाजशास्त्री अन्वेषण में बहुत सहयोग देते हैं।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
समाजशास्त्री एम.एन. श्री निवास के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई निम्न हिन्दू जाति या कोई जनजाति अथवा अन्य समूह किसी उच्च और प्रायः द्विज जाति की दिशा में अपने रीति-रिवाज, धर्मकांड, विचारधारा और जीवन पद्धति को बदलता संस्कृतिकरण में नए विचारों और मूल्यों को ग्रहण किया जाता है। निम्न जातियाँ अपनी स्थिति को ऊपर उठाने के लिए ब्राह्माणों के तौर तरीकों को अपनाती हैं और अपवित्र समझे जाने वाले मांस मंदिरा के सेवन को त्याग देती हैं। इन कार्यों से ये निम्न जातियाँ स्थानीय अनुक्रम में ऊँचे स्थान की अधिकारी हो गई है। इस प्रकार संस्कृतिकरण नये और उत्तम विचार, आदर्श मूलय, आदत तथा कर्मकांडों को अपनी जीवन स्थित को ऊँचा और परिमार्जित बनाने की क्रिया. है।

संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति में अपरिवर्तित होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता है। इसमें संरचनात्मक परिवर्तन नही होता। जाति व्यवस्था अपने आप नहीं बदलती। सस्कृतिकरण की प्रक्रिया जातियों में ही नहीं बल्कि जनजातियों और अन्य समूहों में भी पाई जाती है। भरतीय ग्रामीण समुदायों में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में प्रभुजाति की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। वे संस्कृतिकरण करने वाली जातियों के लिए संदर्भ भूमिका का कार्य करती है।

यदि किसी क्षेत्र में ब्रह्मणों प्रभु जाति है तो वह ब्राह्मणवादी विशेषताओं को फैला देगा। जब निचली जातियाँ ऊँची जातियों के विशिष्ट चरित्र को अपनाने लगती हैं तो उनका कड़ा विरोध होता है। कभी-कभी ग्रामों में इसके लिए झगड़े भी हो जाते हैं। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया बहुत पहले से चली आ रही है। इसके लिए ब्राह्मणों का वैधीकरण आवश्यक था।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाज के स्तरीकरण में जाति का आधार स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
जाति एक ऐसे पदसोपानीकृत संबंध को बताती है जिसमें व्यक्ति जन्म लेते है तथा जिसमें व्यक्ति का स्थान, अधिकार का स्थान, अधिकार तथा कर्तव्य का निर्धारण होता है। व्यक्तिगत उपलब्धियाँ तथा गुण व्यक्ति की जाति में परिवर्तन नहीं कर सकते हैं। जाति व्यवस्था वस्तुतः हिंदू सामजिक संगठन का आधार हैं।

प्रसिद्ध फ्रांसीसी समाजशास्त्री लुई ड्यूमों ने अपनी पुस्तक होमा हाइरारकीकस में जाति व्यवस्था का प्रमुख आधार शुद्धता तथा अशुद्धता की अवधारणा होता है । ड्यूमों ने पदसोपानक्रम को जाति व्यवस्था की विशेषता माना है।

प्रारंभ मे हिंदू समाज चार वर्गों में विभाजित था :

  • ब्राह्मण
  • क्षत्रिय
  • वैश्य तथा
  • शूद्र

शुद्धता तथा अशुद्धता के मापदंड पर ब्राह्मण का स्थान सर्वोच्च तथ शुद्र का निम्न होता है। वर्ण व्यवस्था मे पदानुक्रम क्षत्रियों का द्वितीय तथा वैश्य का तृतीय स्थान होता है। एम.एन.श्री निवास के अनुसार जिस प्रकार जाति व्यवस्था की इकाई कार्य करती है, उस संदर्भ में वह जाति है, वर्ण नहीं है हालांकि, जाति-व्यवस्था के लक्षणों को वर्ण व्यवस्था से ही लिया गया है लेकिन वर्तमान संदर्भ में जाति प्रारूप अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। एम.एन. श्रीनिवास ने जाति की परिभाषा करते हुए कहा है कि:

  • जाति वंशानुगत होती है।
  • जाति अंतः विवाही होती है।
  • जाति आमतौर पर स्थानीय समूह होती है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science विद्युत InText Questions and Answers

अनुच्छेद 12.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी विद्युत धारा के सतत तथा बंद पथ को विद्युत परिपथ कहते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत धारा के मात्रक की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
विद्युत धारा का S.I. मात्रक ऐम्पियर है। 1 ऐम्पियर को निम्नवत् परिभाषित किया जा सकता है-“यदि किसी चालक में1 सेकण्ड में1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उत्पन्न विद्युत धारा का मान1 ऐम्पियर होगा।”

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प्रश्न 3.
एक कूलॉम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या परिकलित कीजिए।
हल:
हम जानते हैं कि एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश होता है = 1.6 x 10-19C
माना 1 कूलॉम आवेश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या = n
∴ ne = 1C ⇒  n x 1.6 x 10-19 C = 1C
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उत्तर:
n = 6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन

अनुच्छेद 12.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
उस युक्ति का नाम लिखिए जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।
उत्तर:
उस युक्ति का नाम विद्युत सेल है जो किसी चालक के सिरों पर विभवांतर बनाए रखने में सहायता करती है।

प्रश्न 2.
यह कहने का क्या तात्पर्य है कि दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 1 v है?
उत्तर:
दो बिंदुओं के बीच विभवांतर 17 है कथन का तात्पर्य है कि “प्रति कूलॉम आवेश के प्रवाहित होने पर कार्य करने की दर 1 जूल है।”

प्रश्न 3.
6 Vबैटरी से गुजरने वाले हर एक कूलॉम आवेश को कितनी ऊर्जा दी जाती है?
हल:
हम जानते हैं –
W = V x Q
W = 6 x 1
W = 6 जूल

अनुच्छेद 12.3से 12.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी चालक का प्रतिरोध किन कारकों पर निर्भर करता है?
उत्तर:
किसी चालक का प्रतिरोध अग्रलिखित कारकों पर निर्भर करता है –

  1. पदार्थ की प्रकृति पर
  2. तार की लंबाई पर (R ∝ l)
  3. तार के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल पर
    R = \(\frac {l}{ A}\) (A = πr2 or l x b)

प्रश्न 2.
समान पदार्थ के दो तारों में यदि एक पतला तथा दूसरा मोटा हो तो इनमें से किसमें विद्युत धारा आसानी से प्रवाहित होगी जबकि उन्हें समान विद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है? क्यों?
उत्तर:
विद्युत धारा मोटे तार में से आसानी से प्रवाहित होगी, क्योंकि इसका प्रतिरोध पतले तार से कम होगा।

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प्रश्न 3.
मान लीजिए किसी वैद्युत अवयव के दो सिरों के बीच विभवांतर को उसके पर्व के विभवांतर की तुलना में घटाकर आधा कर देने पर भी उसका प्रतिरोध नियत रहता है। तब उस अवयव से प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
नियत ताप तथा प्रतिरोध पर
V ∝ I
अर्थात् विभवान्तर आधा हो जाने पर धारा भी आधी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के क्यों बनाए जाते हैं?
उत्तर:
विद्युत टोस्टरों तथा विद्युत इस्तरियों के तापन अवयव शुद्ध धातु के न बनाकर किसी मिश्रातु के बनाये जाते हैं; क्योंकि मिश्रातु का प्रतिरोध शुद्ध धातु से अधिक होता है इसलिए वे सरलता से गर्म होकर ताप प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तालिका 12.2 में दिए गए आँकड़ों के आधार पर दीजिए –
(a) आयरन (Fe) तथा मरकरी (Hg) में कौन अच्छा विद्युत चालक है?
(b) कौन-सा पदार्थ सर्वश्रेष्ठ चालक है?
उत्तर:
(a) लोहा (आयरन); क्योंकि आयरन की प्रतिरोधकता मरकरी से कम है
(b) चाँदी: क्योंकि सारणी के आधार पर सिल्वर की प्रतिरोधकता सबसे कम है।

अनुच्छेद 12.6 और 12.6.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख खींचिए जिसमें 2v के तीन सेलों की बैटरी, एक 50 प्रतिरोधक, एक 80 प्रतिरोधक, एक 120 प्रतिरोधक तथा एक प्लग कुंजी सभी श्रेणीक्रम में संयोजित हों।
उत्तर:
विद्युत परिपथ का व्यवस्था आरेख चित्र में प्रदर्शित है –
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प्रश्न 2.
प्रश्न 1 का परिपथ दुबारा खींचिए तथा इसमें प्रतिरोधकों से प्रवाहित विद्युत धारा को मापने के लिए ऐमीटर तथा 12Ω के प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर लगाइए। ऐमीटर तथा वोल्टमीटर के क्या पाठ्यांक होंगे?
हल:
माना, R1 = 50Ω, R2 = 8Ω तथा R3 = 12Ω
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∴ ये तीनों प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं
∴  तुल्य प्रतिरोध = 5 + 8 + 12 = 25Ω
विभवान्तर V = 2 + 2 + 2 = 6V
हम जानते हैं,
I = \(\frac {v}{R}\)
I = \(\frac {6}{25}\)
I = 0.24 A
122 प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर = IR
= 0.24 x 12 = 2.88 v
अतः ऐमीटर का पाठ्यांक 0.24A तथा वोल्टमीटर का पाठ्यांक 2.88V होगा।

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अनुच्छेद 12.6.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
जब (a) 1Ω तथा 106 Ω (b) 1Ω, 103 Ω तथा 106 Ω के प्रतिरोध पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं तो इनके तुल्य प्रतिरोध के संबंध में आप क्या निर्णय करेंगे?
हल:
(a) दिया है,
R1 = 1Ω
R2 = 106 Ω
∴ समान्तर संयोजन के सूत्र से,
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}\)
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(b) दिया है, R1 = 1Ω, R2 = 103 Ω , R3 = 106 Ω
समान्तर संयोजन के सूत्र से,
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उपर्युक्त परिणामों से स्पष्ट होता है कि समान्तर संयोजन का तुल्य प्रतिरोध, संयोजन में जुड़े अल्पतम प्रतिरोध से भी कम होता है।

प्रश्न 2.
100Ω  का एक विद्युत लैम्प, 50Ω का एक विद्युत टोस्टर तथा 500Ω का एक जल फिल्टर 220v के विद्युत स्रोत से पार्यक्रम में संयोजित हैं। उस विद्युत इस्तरी का प्रतिरोध क्या है जिसे यदि समान स्रोत के साथ संयोजित कर दें तो वह उतनी ही विद्युत धारा लेती है जितनी तीनों युक्तियाँ लेती हैं। यह भी ज्ञात कीजिए कि इस विद्युत इस्तरी से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होती है?
हल:
विद्युत इस्तरी 100Ω, 50Ω तथा 500Ω को श्रेणीक्रम में जोड़े जाने पर प्राप्त तुल्य प्रतिरोध लेगी।
माना यह तुल्य प्रतिरोध R Ω है।
समान्तर संयोजन के सूत्र से,
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प्रश्न 3.
श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
श्रेणीक्रम में संयोजित करने के स्थान पर वैद्युत युक्तियों को पार्यक्रम में संयोजित किया जाता है, क्योंकि यदि श्रेणीक्रम में संयोजित कोई वैद्युत युक्ति खराब हो जाती है तो पूरा परिपथ टूट जाता है अर्थात् सभी वैद्युत युक्तियाँ कार्य करना बंद कर देती हैं जबकि पार्श्वक्रम में ऐसा नहीं होता। पार्श्वक्रम में यदि एक वैद्युत युक्ति खराब भी हो जाती है तो शेष वैद्युत युक्तियाँ सुचारु रूप से कार्य करती रहती हैं।

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इसके साथ-साथ वैद्युत युक्तियों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध का मान बढ़ जाएगा जिससे बहुत अधिक ऊष्मा उत्पन्न होगी और आग लग जाएगी, इसके विपरीत पार्यक्रम में तुल्य प्रतिरोध का मान बहुत कम होता है, जिसके कारण आग लगने का कोई खतरा नहीं रहता है।

प्रश्न 4.
2 Ω, 3 Ω तथा 6Ω के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि संयोजन का कुल प्रतिरोध –
(a) 4Ω
(b) 1Ω हो? (2011)
हल:
(a) 4Ω प्रतिरोध के लिए
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 7
3Ω तथा 6Ω वाले प्रतिरोध पार्श्वक्रम में संयोजित किए गए हैं, जबकि 2Ω वाला प्रतिरोध श्रेणीक्रम में संयोजित किया गया है।
3Ω व 6Ω के पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध माना R’ है तो
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{3}\)+ \(\frac {1}{6}\) = \(\frac {2+1}{6}\) =\(\frac {3}{6}\)
R = \(\frac {6}{3}\) = 2Ω
R’ =2Ωका प्रतिरोध R1 =2Ω के साथ श्रेणीक्रम में जुड़ा है।
∴ तुल्य प्रतिरोध R =R1 + R’ = 2Ω + 2Ω = 4Ω

(b) 10 प्रतिरोध के लिए
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 8
सभी तीनों प्रतिरोधों को 12 का तुल्य प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए पार्श्वक्रम में संयोजित किया गया है।
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}\) = \(\frac {1}{2}\) + \(\frac {1}{3}\) + \(\frac {1}{6}\) = \(\frac {3+2+1}{6}\) = \(\frac {6}{6}\) = 1

प्रश्न 5.
4Ω, 8Ω, 1Ω तथा 24Ω प्रतिरोध की चार कुंडलियों को किस प्रकारसंयोजित करें कि संयोजन से –
(a) अधिकतम
(b) निम्नतम प्रतिरोध प्राप्त हो सके? (2016)
हल:
(a) अधिकतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में संयोजित करना होगा
R = R1 + R2+ R3 + R4
R = 4+8+ 12 +24
R = 48Ω

(b ) निम्नतम प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए प्रतिरोधों को पार्यक्रम में संयोजित करना होगा –
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}+\frac{1}{R_{4}}\)
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{4}\) + \(\frac {1}{8}\) + \(\frac {1}{12}\) + \(\frac {1}{24}\) ; \(\frac {6 +3+2+1}{24}\) = \(\frac {12}{24}\)
R = \(\frac {12}{24}\) = R = 2Ω

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विद्युत 247 अनुच्छेद 12.7 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी विद्युत हीटर की डोरी क्यों उत्तप्त नहीं होती जबकि उसका तापन अवयव उत्तप्त हो जाता है? उत्तर-हम जानते हैं,
H = I2 Rt
H ∝ R
चूँकि विद्युत हीटर के तापन अवयव का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है इसलिए अधिकतम विद्युत धारा ऊष्मा में परिवर्तित हो जाती है और तापन अवयव उत्तप्त होने लगता है। इसके विपरीत विद्युत हीटर की डोरी का प्रतिरोध बहुत कम होता है इसलिए यह उत्तप्त नहीं होता है।

प्रश्न 2.
एक घंटे में 50v विभवांतर से 96000 कूलॉम आवेश को स्थानांतरित करने में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
हल:
हम जानते हैं,
W = QV
H = QV
H = 96000 x 50J
H = 4800000 J
H = 4.8 x 106 J
उत्तर:
H = 4.8 x 103 kJ

प्रश्न 3.
20 Ω प्रतिरोध की कोई विद्युत इस्तरी 5 A विद्युत धारा लेती है। 30 s में उत्पन्न ऊष्मा परिकलित कीजिए।
हल:
दिया है,
R = 20Ω, I = 5A, t = 30s
हम जानते हैं,
H = I2 Rt
मान रखने पर, H = 52x 20 x 30
H = 25 x 20 x 30
H = 15000 J
उत्तर:
H= 15 kJ

अनुच्छेद 12.7.1 और 12.8 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण कैसे किया जाता है?
उत्तर:
विद्युत धारा द्वारा प्रदत्त ऊर्जा की दर का निर्धारण विद्युत शक्ति द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 2.
कोई विद्युत मोटर 220v के विद्युत स्रोत से 5.0 A विद्युत धारा लेता है। मोटर की शक्ति निर्धारित कीजिए तथा 2 घंटे में मोटर द्वारा उपभुक्त ऊर्जा परिकलित कीजिए।
हल-दिया है,
V = 220V, I = 5A तथा t = 2h
विद्युत शक्ति P = VI
P = 220 x 5 = 1100 वाट
ऊर्जा = विद्युत शक्ति x समय
= 1100 x 2 घण्टे
=\(\frac {11100}{100}\) KW x 2h
उत्तर:
= 2.2 kWh

Bihar Board Class 10 Science विद्युत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रतिरोध R के किसी तार के टुकड़े को पाँच बराबर भागों में काटा जाता है। इन
टुकड़ों को फिर पार्यक्रम में संयोजित कर देते हैं। यदि संयोजन का तुल्य प्रतिरोध R’ है तो R/ R’ अनुपात का मान क्या है?
(a) 1/25
(b) 1/5
(c) 5
(d) 25
हल –
(d) 25
प्रत्येक कटे भाग का प्रतिरोध R/5 होगा।
अतः R1= R2 = R3 = R4 =R5 = R/5
\(\frac{1}{R^{\prime}}=\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}+\frac{1}{R_{4}}+\frac{1}{R_{5}}\)
= \(\frac {5}{R}\) + \(\frac {5}{R}\) + \(\frac {5}{R}\) + \(\frac {5}{R}\) + \(\frac {5}{R}\) = \(\frac {25}{R}\)
\(\frac{R}{R^{\prime}}\) = 25

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा पद विद्युत परिपथ में विद्युत शक्ति को निरूपित नहीं करता?
(a) I2R
(b) IR2
(c) VI
(d) V2/R
उत्तर:
(b) IR2

प्रश्न 3.
किसी विद्युत बल्ब का अनुमतांक 220 V; 100 w है। जब इसे 110 V पर प्रचालित करते हैं तब इसके द्वारा उपभुक्त शक्ति कितनी होती है?
(a) 100 W
(b) 75 W
(c) 50 W
(d) 25 W
उत्तर:
(d) 25 W
सूत्र P =\(\frac{V^{2}}{R}\) से,
बल्ब का प्रतिरोध R = \(\frac{V^{2}}{P}\) = \(\frac {220 × 220}{100}\) =484 Ω
∴ दसरी दशा में शक्ति खर्च p1 = \(\frac{V_{1}^{2}}{R}\) = \(\frac {110 × 110 }{484}\) =25W

प्रश्न 4.
दो चालक तार जिनके पदार्थ, लंबाई तथा व्यास समान हैं, किसी विद्युत परिपथ में पहले श्रेणीक्रम में और फिर पार्श्वक्रम में संयोजित किए जाते हैं। श्रेणीक्रम तथा पार्श्वक्रम संयोजन में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात क्या होगा?
(a) 1 : 2
(b) 2 : 1
(c) 1 : 4
(d) 4 : 1
उत्तर:
(c) 1 : 4
यदि एक तार का प्रतिरोध R है तो श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध R1 = 2R व पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध R2=\(\frac {R}{2}\) होगा।
यदि विभवान्तर V है तो ऊष्माओं का अनुपात =\(\frac{H_{1}}{H_{2}}\) = \(\frac{V^{2} / R_{1}}{V^{2} / R_{2}}\)
\(\frac{R_{2}}{R_{1}}=\frac{R / 2}{2 R}\) = \(\frac {1}{4}\) = 1 : 4

प्रश्न 5.
किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को किस प्रकार संयोजित किया जाता है?
उत्तर:
किसी विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापने के लिए वोल्टमीटर को पार्यक्रम में संयोजित किया जाता है।

प्रश्न 6.
किसी ताँबे के तार का व्यास 0.5 mm तथा प्रतिरोधकता 1.6 x 10-8 Ω – mहै।10Ω प्रतिरोध का प्रतिरोधक बनाने के लिए कितने लंबे तार की आवश्यकता होगी? यदि इससे दोगुने व्यास का तार लें तो प्रतिरोध में क्या अंतर आएगा?
हल:
दिया है,
प्रतिरोधकता p = 1.6 x 10-8-m, प्रतिरोध R = 10 Ω,
व्यास 2 r = 0.5 m m = 5 x 10-4m
∴ त्रिज्या r =25 x 10-4m
∴ तार का अनुप्रस्थ क्षेत्रफल A = πr2 = 3.14 x (25 x 10-4 )2m2 = 19.625 x 10-8m2
सूत्र R =P\(\frac {l}{A}\) से,
तार की लम्बाई, l = \(\frac {R × A}{P}\) = \(\frac{10 \Omega \times 19.625 \times 10^{-8} \mathrm{m}^{2}}{1.6 \times 10^{-8} \Omega \mathrm{m}}\)
= 12.26 x 103 m =122.6 m
व्यास दोगुना करने पर त्रिज्या r दोगुनी तथा अनुप्रस्थ क्षेत्रफल (A = πr2) चार गुना हो जाएगा।
∴  R ∝ \(\frac {1}{A}\)
∴ क्षेत्रफल चार गुना होने पर प्रतिरोध एक-चौथाई रह जाएगा।
अर्थात् नया प्रतिरोध R1= \(\frac {1}{4}\) R = \(\frac {1}{4}\) x 10 = 2.5 Ω

प्रश्न 7.
किसी प्रतिरोधक के सिरों के बीच विभवांतर v के विभिन्न मानों के लिए उससे प्रवाहित विद्युत धाराओं I के संगत मान नीचे दिए गए हैं –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 9
v तथा I के बीच ग्राफ खींचकर इस प्रतिरोधक का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
हल:
हम ग्राफ खींचने के लिए V को y – अक्ष पर तथा I को x – अक्ष पर लेते हैं।
ग्राफ से प्राप्त प्रतिरोध –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 10
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 12
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 11

प्रश्न 8.
किसी अज्ञात प्रतिरोध के प्रतिरोधक के सिरों से 12 v की बैटरी को संयोजित करने पर परिपथ में 2.5 mA विद्युत धारा प्रवाहित होती है। प्रतिरोधक का प्रतिरोध परिकलित कीजिए।
हल:
हम जानते हैं, R = \(\frac {V}{I}\) (ओम के नियमानुसार)
दिया है,
V = 12 वोल्ट, I = 2.5 mA = 2.5 x 10-3 A
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 13

प्रश्न 9.
9 v की किसी बैटरी को 0.2 Ω, 0.3 Ω, 0.4 Ω, 0.5 Ω तथा 12Ω के प्रतिरोधकों के साथ श्रेणीक्रम में संयोजित किया गया है। 12Ω के प्रतिरोधक से कितनी विद्युत धारा प्रवाहित होगी?
हल:
श्रेणीक्रम संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध में से समान विद्युत धारा प्रवाहित होती है अर्थात्
Req = R1 + R2 + R3 + R4 + R5
= 0.2Ω + 0.3 Ω + 0.4 Ω + 0.5 Ω+ 12 Ω = 13.4Ω
∴ कुल धारा I = \(\frac {V}{R}\) = \(\frac {9}{13.4}\) = 0.67 A
∴ 12 Ω प्रतिरोध से बहने वाली विद्युत धारा का मान 0.67 A होगा।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 10.
176 Ω प्रतिरोध के कितने प्रतिरोधकों को पार्यक्रम में संयोजित करें कि 220V के विद्युत स्रोत से संयोजन से 5 A विद्युत धारा प्रवाहित हो?
हल:
दिया है, V = 220V, I = 5A
तुल्य प्रतिरोध
R = \(\frac {V}{I}\) = \(\frac {220V}{5A}\) = 44Ω
माना कि प्रतिरोधों की संख्या = n
तब R1 = R2 =………. = Rn = 176Ω
पार्श्व (समान्तर) क्रम में,
\(\frac {I}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}\) + \(\frac{1}{R_{2}}\) + ……..+ n
\(\frac {I}{R}\) = \(\frac{1}{176}\) + \(\frac{1}{176}\) + ………+ n
\(\frac{1}{44}\) = \(\frac{n}{176}\)
n = \(\frac{176}{44}\) = 4
अतः प्रतिरोधों की संख्या = 4

प्रश्न 11.
यह दर्शाइए कि आप 60 प्रतिरोध के तीन प्रतिरोधकों को किस प्रकार संयोजित करेंगे कि प्राप्त संयोजन का प्रतिरोध –
1.  9Ω, 2. 4Ω हो।
हल:
1. 90 के लिए प्रतिरोधों का संयोजन निम्नवत् है –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 14
अर्थात् 9 Ω का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए दो प्रतिरोधों को पार्यक्रम में तथा एक प्रतिरोध को इन दोनों प्रतिरोधों के श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं। पार्श्व संयोजन का प्रतिरोध
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{6}\) + \(\frac {1}{6}\) = \(\frac {2}{6}\)
R’ = \(\frac {6}{2}\) = 32
यह 3Ω का प्रतिरोध, 6Ω के तीसरे प्रतिरोध के साथ श्रेणीक्रम में जुड़कर 3 + 6 = 9Ω का प्रतिरोध होगा।

2. 4Ω के लिए प्रतिरोधों का संयोजन निम्नवत् है –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 15
अर्थात् 4Ω का प्रतिरोध प्राप्त करने के लिए दो प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में संयोजित करते हैं तथा इस संयोजन को पुनः तीसरे प्रतिरोध के साथ पार्श्वक्रम में संयोजित करते हैं। 6Ω – 6Ω के दो प्रतिरोधों के श्रेणी संयोजन का प्रतिरोध 6 + 6 = 12Ω होगा। यह 12Ω का प्रतिरोध 6Ω के साथ पार्श्वक्रम में 4Ω का प्रतिरोध देगा।
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{6}\) + \(\frac {2+1}{12}\) = \(\frac {3}{12}\)
R = \(\frac {12}{3}\) = 4Ω

प्रश्न 12.
220 V की विद्युत लाइन पर उपयोग किए जाने वाले बहुत-से बल्बों का अनुमतांक 10 w है। यदि 220V लाइन से अनुमत अधिकतम विद्युत धारा 5 A है तो इस लाइन के दो तारों के बीच कितने बल्ब पार्श्वक्रम में संयोजित किए जा सकते हैं?
हल:
प्रत्येक बल्ब का प्रतिरोध = R
R = \(\frac{V^{2}}{P}\) = \(\frac{220 \times 220}{10}\)
R = 4840
माना अधिकतम 5 A धारा प्राप्त करने के लिए 220V पर पार्श्वक्रम में संयोजित होने वाले बल्बों की संख्या n है।
∴ \(\frac{1}{R_{e q}}\) = \(\frac{1}{4840}+\frac{1}{4840}+\ldots r\)
\(\frac{1}{R_{e q}}\) = \(\frac{4840}{n}\)
अब, R = \(\frac{V}{I}\) (ओम के नियमानुसार)
∴ I = \(\frac{V}{R}\)
5A≤\(\frac{V}{R}\)
= 5≤ \(\frac{\frac{220}{4840}}{n}\) = n≤\(\frac{4840 \times 5}{220}\) = n≤110
∴ विद्युत बल्बों की संख्या = 110

प्रश्न 13.
किसी विद्युत भट्ठी की तप्त प्लेट दो प्रतिरोधक कुंडलियों A तथा B की बनी हैं जिनमें प्रत्येक का प्रतिरोध 24 62 है तथा इन्हें पृथक्-पृथक्, श्रेणीक्रम में अथवा पार्श्वक्रम में संयोजित करके उपयोग किया जा सकता है। यदि यह भट्ठी 220V विद्युत स्रोत से संयोजित की जाती है तो तीनों प्रकरणों में प्रवाहित विद्युत धाराएँ क्या हैं?
हल:
दिया है, V = 220V, प्रतिरोध R1 = R2 = 24Ω
प्रथम स्थिति जब प्लेटें श्रेणीक्रम में संयोजित की जाती हैं।
R = 24 + 24 = 48 Ω
I = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{220}{48}\)A
= 4.6 A (लगभग)

द्वितीय स्थिति जब प्लेटें पार्श्वक्रम में संयोजित की जाती हैं।
\(\frac{1}{R}\) = \(\frac{1}{24}\) + \(\frac{1}{24}\)
\(\frac{1}{R}\) = \(\frac{1 + 1}{24}\)
\(\frac{1}{R}\) = \(\frac{2}{24}\)
R = \(\frac{24}{2}\)
R = 12 Ω
I = \(\frac{I}{R}\) = \(\frac{220}{12}\)A = 18.3A(लगभग)
तृतीय स्थिति जब केवल एक ही प्लेट जुड़ी है।
I = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{220}{24}\) A = 9.2 A (लगभग)

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभावBihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 14.
निम्नलिखित परिपथों में प्रत्येक में 2Ω प्रतिरोधक द्वारा उपभुक्त शक्तियों की तुलना कीजिए:
1. 6 vकी बैटरी से संयोजित 1Ω तथा 2Ω श्रेणीक्रम संयोजन
2. 4 V बैटरी से संयोजित 12Ω तथा 2Ω का पावक्रम संयोजन।
हल:
1. दिया है, V = 6V, R = 1 + 2 = 3Ω
धारा, I = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{6}{3}\) A = 2A
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 16
∴ 2Ω के प्रतिरोधक द्वारा उपयोग शक्ति
P1 = I2R = (2)2 x 2 =4 x 2 = 8 w

2. दिया है, V = 4V
(पार्श्वक्रम में दोनों प्रतिरोधों के लिए V का मान समान होगा)।
R =22
धारा, I = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{4}{2}\) A = 2A
धारा, P2 = VI = 4 x 2 = 8w
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 17

प्रश्न 15.
दो विद्युत लैम्प जिनमें से एक का अनुमतांक 100 w; 220 V तथा दूसरे का 60 W; 220 है, विद्युत मेंस के साथ पार्यक्रम में संयोजित हैं। यदि विद्युत आपूर्ति की वोल्टता 220 V है तो विद्युत में से कितनी धारा ली जाती है?
हल:
प्रथम विद्युत लैम्प का प्रतिरोध = R1
द्वितीय विद्युत लैम्प का प्रतिरोध = R2
हम जानते हैं,
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 18
जब R1 व R2 पार्श्वक्रम में संयोजित हैं –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 19
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 20

प्रश्न 16.
किसमें अधिक विद्यत ऊर्जा उपभक्त होती है : 250wका टी०वी० सेट जो एक घंटे तक चलाया जाता है अथवा 120 W का विद्युत हीटर जो 10 मिनट के लिए चलाया जाता है?
हल:
हम जानते हैं, ऊर्जा = शक्ति x समय
टी०वी० सेट के लिए
E1 = 250 Js-1 x 1 x 3600 s (250 W = 250 Js-1)
= 900000 J
= 9 x 105J

विद्युत हीटर के लिए
E2 = 1200 Js-1 x 10 x 60s (120 W = 1200 Js-1)
=720000J
=7.2 x 105J
∴  E1 > E2
इसलिए टी०वी० सेट में अधिक विद्युत ऊर्जा उपभुक्त होगी।

प्रश्न 17.
8Ω प्रतिरोध का कोई विद्युत हीटर विद्युत मेंस से 2 घंटे तक 15 A विद्युत धारा लेता है। हीटर में उत्पन्न ऊष्मा की दर परिकलित कीजिए।
हल:
ऊष्मा की दर = शक्ति
∴ P = \(\frac{E}{t}\) = \(\frac{I^{2} R t}{t}\)_12 Rt
∴  P = I5R
∴  P = 152 x 8 = 225 x 8
∴  P = 1800 वाट
अतः हीटर में 1800 J/s की दर से ऊष्मा उत्पन्न होगी।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 18.
निम्नलिखित को स्पष्ट कीजिए
(a) विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग क्यों किया जाता है?
(b) विद्यत तापन युक्तियों जैसे ब्रेड-टोस्टर तथा विद्युत इस्तरी के चालक शुद्ध धातुओं के स्थान पर मिश्रातुओं के क्यों बनाए जाते हैं?
(c) घरेलू विद्युत परिपथों में श्रेणीक्रम संयोजन का उपयोग क्यों नहीं किया जाता है?
(d) किसी तार का प्रतिरोध उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल में परिवर्तन के साथ किस प्रकार परिवर्तित होता है?
(e) विद्युत संचारण के लिए प्रायः कॉपर तथा ऐलुमिनियम के तारों का उपयोग क्यों किया जाता है?
उत्तर:
(a) विद्युत लैम्पों के तंतुओं के निर्माण में प्रायः एकमात्र टंगस्टन का ही उपयोग किया जाता है; क्योंकि इसका गलनांक तथा प्रतिरोध बहुत उच्च होता है। उच्च प्रतिरोध होने के कारण यह बहुत अधिक ऊष्मा उत्पन्न करता है जिसके कारण यह चमकता है और प्रकाश देता है तथा उच्च गलनांक होने के कारण यह उच्च ताप पर भी पिघलता नहीं है।
(b) पृष्ठ 243 पर प्रश्न संख्या 4 का उत्तर देखें।
(c) पृष्ठ 245 पर प्रश्न संख्या 3 का उत्तर देखें।
(d) हम जानते हैं, R ∝ p \(\frac{l}{A}\)
जहाँ R = तार का प्रतिरोध; p = तार की प्रतिरोधकता; 1 = तार की लम्बाई तथा A = अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल
R ∝ \(\frac{l}{A}\) = R ∝ \(\frac{l}{\pi r^{2}}\) a
R ∝  \(\frac{l}{r^{2}}\)
इसलिए यदि किसी तार के अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल घटता है तो उसका प्रतिरोध बढ़ता है जबकि यदि अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल बढ़ता है तो उसका प्रतिरोध घटता है।
(e) हम जानते हैं कि चाँदी, ताँबा तथा ऐलुमिनियम विद्युत के सबसे अच्छे सुचालक हैं। चूँकि चाँदी धातु बहुत महँगी है इसलिए विद्युत संचारण करने के लिए ताँबा तथा ऐलुमिनियम धातु के तारों का प्रयोग किया जाता है।

Bihar Board Class 10 Science विद्युत Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत आवेश का मात्रक है – (2014)
(a) जूल
(b) कूलॉम
(c) वोल्ट
(d) ऐम्पियर
उत्तर:
(b) कूलॉम

प्रश्न 2.
ऐम्पियर-सेकण्ड मात्रक है – (2013, 14)
(a) विद्युत ऊर्जा का
(b) वि० वा० बल का
(c) आवेश का
(d) धारा का
उत्तर:
(c) आवेश का

प्रश्न 3.
एक प्रोटॉन पर विद्युत आवेश की मात्रा होती है – (2013, 18)
(a) 1.0 x 10-19 कूलॉम
(b) 6.25 x 1019 कूलॉम
(c) 1.6 x 1019 कूलॉम
(d) 1.6 x 10-19 कूलॉम
उत्तर:
(d) 1.6 x 10-19 कूलॉम

प्रश्न 4.
विद्युत धारा का SI मात्रक है – (2015)
(a) कूलॉम
(b) ऐम्पियर
(c) जूल
(d) ओम
उत्तर:
(b) ऐम्पियर

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत

प्रश्न 5.
किसी चालक तार में विद्युत धारा का प्रवाह होता है – (2015)
(a) मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा
(b) प्रोटॉनों द्वारा
(c) आयनों द्वारा
(d) न्यूट्रॉनों द्वारा
उत्तर:
(a) मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा

प्रश्न 6.
निम्न परिपथ में A एवं B के बीच विभवान्तर होगा – (2017)
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 12 विद्युत - 21
(a) 3 वोल्ट
(b) 2 वोल्ट
(c) 1 वोल्ट
(d) -1 वोल्ट
उत्तर:
(c) 1 वोल्ट

प्रश्न 7.
प्रतिरोध का मात्रक होता है – (2013, 17)
(a) ओम
(b) ओम/मीटर
(c) ओम-मीटर
(d) मीटर/ओम
उत्तर:
(a) ओम

प्रश्न 8.
एक माइक्रो ओम का मान होता है – (2016)
(a) 10-9 ओम
(b) 10-6 ओम
(c) 10-3 ओम
(d) 1 ओम
उत्तर:
(b) 10-6 ओम

प्रश्न 9.
ओम के नियम का सूत्र है – (2015, 16)
(a) I = V x R
(b) R = V x I
(c) V = I x R
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर;
(c) V = I x R

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प्रश्न 10.
किसी तार की लम्बाई उसकी प्रारम्भिक लम्बाई की तीन गुना करने पर उसका प्रतिरोध हो जायेगा – (2017)
(a) 9 गुना
(b) 3 गुना
(c)  1/9 गुना
(d) 1/3 गुना
उत्तर:
(b) 3 गुना

प्रश्न 11.
ताप बढ़ाने पर किसी चालक का वैद्युत प्रतिरोध – (2018)
(a) अपरिवर्तित रहता है
(b) बढ़ता है
(c) घटता है
(d) कभी बढ़ता है और कभी घटता है
उत्तर:
(b) बढ़ता है

प्रश्न 12.
4 ओम प्रतिरोध वाले n चालक तार समान्तर-क्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध होगा – (2012, 13, 14)
(a) 4n
(b) 4/n
(c) n/4
(d) 4n2
उत्तर:
(b) 4/n

प्रश्न 13.
R1 व R2 प्रतिरोधों के दो तार समान्तर-क्रम में जोड़े गये हैं, इसका तुल्य प्रतिरोध होगा – (2014)
(a) R1 + R2
(b) R1 x R2
(c) \(\frac{R_{1} R_{2}}{R_{1}+R_{2}}\)
(d) \(\frac{R_{1}+R_{2}}{R_{1} R_{2}}\)
उत्तर:
(c) \(\frac{R_{1} R_{2}}{R_{1}+R_{2}}\)

प्रश्न 14.
यदि R प्रतिरोध के दो प्रतिरोधों को समान्तर क्रम में जोड़ा जाये तथा एक R प्रतिरोध को इनके श्रेणीक्रम में जोड़ा जाये तो परिणामी प्रतिरोध होगा। (2016)
(a) 3R
(b) 2R
(c) \(\frac {3R}{2}\)
(d) \(\frac {R}{2}\)
उत्तर:
(c) \(\frac {3R}{2}\)

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प्रश्न 15.
संलग्न परिपथ में धारा का मान है – (2014)
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(a) 1 ऐम्पियर
(b) 0.5 ऐम्पियर
(c) 4 ऐम्पियर
(d) 2 ऐम्पियर
उत्तर:
(d) 2 ऐम्पियर

प्रश्न 16.
किलोवाट – घण्टा मात्रक है – (2018)
(a) विद्युत शक्ति का
(b) विद्युत धारा का
(c) विद्युत ऊर्जा का
(d) विद्युत आवेश का
उत्तर:
(c) विद्युत ऊर्जा का

प्रश्न 17.
एक पावर स्टेशन की सामर्थ्य 200 मेगावाट है। इसके द्वारा प्रतिदिन उत्पन्न विद्यत ऊर्जा होगी – (2009, 14)
(a) 200 मेगावाट-घण्टा
(b) 4800 मेगावाट-घण्टा
(c) 4800 मेगावाट
(d) 4800 जूल
उत्तर:
(b) 4800 मेगावाट-घण्टा

प्रश्न 18.
यदि एक विद्युत बल्ब पर 12 वोल्ट एवं 30 वाट लिखा है, तो इसमें प्रवाहित होने वाली धारा होगी – (2017)
(a) 0.4 ऐम्पियर
(b) 2.5 ऐम्पियर
(c) 12 ऐम्पियर
(d) 360 ऐम्पियर
उत्तर:
(b) 2.5 ऐम्पियर

प्रश्न 19.
एक बल्ब पर 220V-100 W अंकित है। उसके तन्तु का प्रतिरोध होगा – (2013, 15, 16)
(a) 2200 ओम
(b) 968 ओम
(c) 484 ओम
(d) 15 ओम
उत्तर:
(c) 484 ओम

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प्रश्न 20.
विद्युत ऊर्जा की इकाई (मात्रक) होती है – (2013, 15)
या बिजली के घरेलू उपयोग के लिए मूल्य ₹ 2.30 प्रति यूनिट है। यह यूनिट है : (2016)
(a) वाट
(b) किलोवाट
(c) किलोवाट/घण्टा
(d) किलोवाट-घण्टा
उत्तर:
(d) किलोवाट-घण्टा

प्रश्न 21.
एक किलोवाट-घण्टा में जूल की संख्या होगी – (2014)
(a) 3.6 x 103
(b) 3.6 x 104
(c) 3.6 x 105
(d) 3.6 x 106
उत्तर:
(d) 3.6 x 106

प्रश्न 22.
एक अश्व शक्ति बराबर है – (2015, 16, 18)
(a) 726 वाट
(b) 736 वाट
(c) 746 वाट
(d) 756 वाट
उत्तर:
(c) 746 वाट

प्रश्न 23.
एक चालक में 2 ऐम्पियर की धारा 10 वोल्ट पर 1 मिनट तक प्रवाहित की गयी। तार में व्यय हुई विद्युत ऊर्जा का मान होगा (2012, 13)
(a) 5 जूल
(b) 10 जूल
(c) 20 जूल
(d) 1200 जूल
उत्तर:
(d) 1200 जूल।

प्रश्न 24.
एक विद्युत हीटर की सामर्थ्य 0.5 किलोवाट है। इसे 20 मिनट तक उपयोग में लाया गया। उत्पन्न ऊष्मा का मान होगा – (2011, 13, 15)
(a) 6 x 105 जूल
(b) 10 जूल
(c) 4 जूल
(d) 2.5 x 10-2 जूल
उत्तर:
(a) 6 x 10 जूल

प्रश्न 25.
बिजली के बल्ब में फिलामेन्ट होता है – (2016, 17)
(a) टंगस्टन का
(b) लोहे का
(c) ताँबे का
(d) पीतल का
उत्तर:
(a) टंगस्टन का

प्रश्न 26.
हीटर का तार बना होता है – (2016)
(a) ताँबे का
(b) पीतल का
(c) नाइक्रोम का
(d) लोहे का
उत्तर:
(c) नाइक्रोम का

प्रश्न 27.
विद्युत सामर्थ्य (P) का सूत्र है – (2015)
(a) P = y
(b) P =
(c)P = VI
(d) P = Y
उत्तर:
(c) P = VI

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत चालक एवं अचालक पदार्थों के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
विद्युत चालक लोहा, चाँदी। विद्युत अचालक रबड़, प्लास्टिक।

प्रश्न 2.
एक ऐम्पियर की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
यदि किसी परिपथ में 1 सेकण्ड में 1 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है, तो परिपथ में प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है।

प्रश्न 3.
कूलॉम की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
यह S.I. पद्धति में विद्युत आवेश की इकाई है। एक कूलॉम आवेश, आवेश की वह मात्रा है जो किसी चालक में एक ऐम्पियर की धारा बहने पर एक सेकण्ड में प्रवाहित होती है।

प्रश्न 4.
आवेश (q), धारा (i) तथा समय (t) में सम्बन्ध लिखिए। (2013)
उत्तर:
आवेश (q) = धारा (i) x समय (t)

उत्तर 5.
एक इलेक्ट्रॉन पर कितना तथा कैसा आवेश होता है ? (2011, 14)
उत्तर:
1.6 x 10-19 कूलॉम ऋणावेश।

प्रश्न 6.
1 कूलॉम आवेश में इलेक्ट्रॉनों की संख्या कितनी होती है ? (2011)
उत्तर:
6.25 x 1018 इलेक्ट्रॉन।

प्रश्न 7.
विद्युत धारा की दिशा तथा आवेश की गति की दिशा में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
विद्युत धारा की दिशा धनावेश की गति की दिशा में होती है।

प्रश्न 8.
आवेश, विभवान्तर Vतथा कार्य w में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
V = \(\frac {W}{q}\)

प्रश्न 9.
किसी चालक का कुल आवेश 8.0 x 10-19 कूलॉम है जो कि ऋणात्मक है। इस पर कितने इलेक्ट्रॉनों की अधिकता है? (2014)
हल:
माना n इलेक्ट्रॉन अधिक हैं। तब
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5 इलेक्ट्रॉन अधिक हैं।

प्रश्न 10.
एक चालक से होकर एक मिनट में 150 कूलॉम आवेश गुजरता है। चालक में बहने वाली विद्युत धारा कितनी होगी? आवेश 150 कूलॉम
हल:
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प्रश्न 11.
यदि किसी चालक में प्रवाहित धारा 4.0 ऐम्पियर हो तो 1.5 मिनट में प्रवाहित आवेश की मात्रा ज्ञात कीजिए। (2011, 12, 13, 16, 17)
हल:
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∴ आवेश = धारा x समय
ज्ञात है : धारा = 4.0 ऐम्पियर, समय =1.5 मिनट = 90 सेकण्ड
∴ आवेश = 4.0 x 90 कूलॉम = 360 कूलॉम

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प्रश्न 12.
एक चालक में 1.6 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। प्रति सेकण्ड चालक से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या क्या होगी? (2009, 11, 12, 17)
हल:
माना इलेक्ट्रॉनों की संख्या n है।
∴ विद्युत धारा = प्रति सेकण्ड प्रवाहित होने वाले आवेश की मात्रा
∴ 1.6 = n x 1.6 x 10-19
(इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.6 x 10-19 कूलॉम)
n = \(\frac{1.6}{1.6 \times 10^{-19}}\)
= 1019 इलेक्ट्रॉन

प्रश्न 13.
ताँबे के एक तार से होकर 50 x 1018 मुक्त इलेक्ट्रॉन प्रति सेकण्ड प्रवाहित हो रहे हैं। चालक में धारा का मान ज्ञात कीजिए। (e = 1.6 x 10-19 कूलॉम) (2009, 17, 18)
हल:
विद्युत धारा = प्रति सेकण्ड प्रवाहित होने वाले आवेश की मात्रा
= 50 x 1018 x 1.6 x 10-19 ऐम्पियर = 80 x 10-1 ऐम्पियर
= 8.0 ऐम्पियर

प्रश्न 14.
बिन्दु A से B की ओर 108 इलेक्ट्रॉन 10-4 सेकण्ड में प्रवाहित होते हैं। कितनी विद्युत धारा किस दिशा में प्रवाहित होगी? इलेक्ट्रॉन पर आवेश = 1.6 x 1019कूलॉम है। (2015, 16)
हल:
प्रवाहित धारा = प्रति सेकण्ड प्रवाहित आवेश –
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= 1.6 x 10-7ऐम्पियर (दिशा B से A की ओर)

प्रश्न 15.
1 ओम प्रतिरोध से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
यदि चालक के सिरों के बीच 1 वोल्ट का विभवान्तर होने पर उसमें 1 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो, तो चालक का प्रतिरोध 1 ओम होगा।

प्रश्न 16.
किसी चालक के विशिष्ट प्रतिरोध से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
किसी पदार्थ के एक मीटर लम्बे तार, जिसकी अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल 1 वर्गमीटर है, के प्रतिरोध को उस पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं।

प्रश्न 17.
किसी धात्विक चालक के प्रतिरोध पर ताप-परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ता है? (2011)
उत्तर:
धात्विक चालक का ताप बढ़ने पर उसका प्रतिरोध बढ़ जाता है।

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प्रश्न 18.
ओम, ऐम्पियर तथा वोल्ट में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
वोल्ट = ऐम्पियर x ओम।

प्रश्न 19.
किसी चालक में 0.5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित होती है जब उसके सिरों के बीच विभवान्तर 2 वोल्ट है। चालक का प्रतिरोध बताइए।
हल:
ओम के नियम से R = \(\frac {V}{ i}\)
ज्ञात है V = 2 वोल्ट, i = 0.5 ऐम्पियर
R = \(\frac {2}{0.5}\) ओम = 4 ओम

प्रश्न 20.
24 ओम प्रतिरोध के एक चालक में 0.2 ऐम्पियर की धारा बह रही है। इस चालक के सिरों के बीच क्या विभवान्तर है ?
हल:
ओम के नियम से
R = \(\frac {V}{ i}\)
V = i x R
ज्ञात है i = 0.2 ऐम्पियर,
R = 24 ओम
V = 0.2 x 24 = 4.8 वोल्ट

प्रश्न 21.
दो तार जिनके प्रतिरोध 4 ओम और 2 ओम हैं, श्रेणीक्रम में एक बैट्री से जुड़े हैं। पहले तार में 2 ऐम्पियर की धारा बह रही है। दूसरे तार में धारा का मान कितना होगा? (2014)
हल:
चूँकि प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। अत: दोनों तारों में समान धारा 2 ऐम्पियर ही प्रवाहित होगी।

प्रश्न 22.
तीन चालक तार जिनके प्रतिरोध क्रमशः 5, 7 तथा 13 ओम हैं, श्रेणीक्रम में जोड़े गये हैं। इनके संयोजन का तुल्य प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
हल:
तुल्य प्रतिरोध R = R1 + R2 + R3 = 5 + 7 + 13 = 25 ओम

प्रश्न 23.
5 ओम तथा 10 ओम के प्रतिरोधों को समान्तर-क्रम में जोड़ा गया है। इस संयोजन का तुल्य प्रतिरोध ज्ञात कीजिए।
हल:
माना संयोजन का तुल्य प्रतिरोध R है, तब
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}\)
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{5}\) + \(\frac {1}{10}\) = \(\frac {3}{10}\)
या R = \(\frac {10}{3}\) = 3.33 ओम

प्रश्न 24.
दिये गये विद्युत परिपथ में धारा का मान बताइए।
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हल:
22 व 80 के प्रतिरोध समान्तर में संयोजित माना है। माना उभयनिष्ठ विभव V है, तब
V = 2 x i = 8 x 1
i = 8 = 4 ऐम्पियर

प्रश्न 25.
A एवं B के मध्य दिए गए परिपथ का तुल्य प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2015)
हल:
परिपथ में 2 Ω व 2 Ωके प्रतिरोध समान्तर क्रम में लगे हैं। यदि इनका तुल्य प्रतिरोध R1 है
तब \(\frac{1}{R_{1}}\) = \(\frac {1}{2}\)+ \(\frac {1}{2}\) = 1
या R1 = 1 ओम
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पुन: R, व 2Ω के प्रतिरोध श्रेणीक्रम में हैं। अत: इनका तुल्य प्रतिरोध
R = R1 + 2 = 1 + 2 = 3Ω
अत: A व B के मध्य तुल्य प्रतिरोध 3Ω है।

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प्रश्न 26.
विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह गर्म हो जाता है अर्थात् विद्युत धारा के प्रभाव से तार के पदार्थ में ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह प्रभाव विद्युत धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहलाता है।

प्रश्न 27.
विद्युत ऊर्जा से आप क्या समझते हैं? (2013)
उत्तर:
किसी चालक में विद्युत आवेश प्रवाहित करने में जो ऊर्जा व्यय होती है उसे विद्युत ऊर्जा कहते हैं।

प्रश्न 28.
यदि R प्रतिरोध वाले चालक में t सेकण्ड के लिए। ऐम्पियर धारा प्रवाहित की जाये तो उसमें उत्पन्न हुई ऊष्मा का मानi,R तथाt के पदों में लिखिए।
उत्तर:
H = \(\frac{i^{2} R t}{4.18}\) कैलोरी।

प्रश्न 29.
जूल, वोल्ट तथा कूलॉम में क्या सम्बन्ध है? (2009, 14)
उत्तर:
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प्रश्न 30.
विद्युत हीटर बनाने के लिए किस पदार्थ के तार को प्रयुक्त करना चाहिए तथा क्यों? या नाइक्रोम के तार के तन्तु का उपयोग विद्युत ऊष्मक में क्यों किया जाता है? (2015)
उत्तर:
नाइक्रोम के तार को; क्योंकि इसका गलनांक काफी अधिक होता है तथा उच्च ताप तक गर्म होने पर यह ऑक्सीकृत नहीं होता है।

प्रश्न 31.
धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित चार विद्युत संयन्त्रों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. विद्युत बल्ब
  2. विद्युत ऊष्मक
  3. विद्युत इस्तरी
  4. गीजर।

प्रश्न 32.
विद्यत परिपथ के सामान्य तार तथा फ्यूज के तार में क्या अन्तर होता है? (2017, 18)
उत्तर:
फ्यूज के तार का गलनांक विद्युत परिपथ के सामान्य तार से कम होता है।

प्रश्न 33.
विद्युत फ्यूज किस धातु का बनाया जाता है तथा क्यों? (2011)
उत्तर:
विद्युत फ्यूज सीसा, टिन व ताँबे की मिश्रधातु का बना होता है; क्योंकि इसका गलनांक कम होता है।

प्रश्न 34.
400 W एवं 100 W के बल्बों में प्रयुक्त फिलामेन्ट के तारों में कौन पतला होगा और क्यों? (2012)
उत्तर:
100 W वाले बल्बों का फिलामेंट पतला होगा, क्योंकि पतले तार की अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल कम होगा जिससे उसका प्रतिरोध अधिक होगा
∴ R ∝  \(\frac {1}{A}\)

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प्रश्न 35.
विद्युत सामर्थ्य की परिभाषा लिखिए। या विद्युत शक्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर:
किसी विद्युत परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय होने की समय दर को विद्युत सामर्थ्य कहते हैं।
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प्रश्न 36.
एक हीटर पर 1 kW – 220V अंकित है। इसका क्या अर्थ है?
उत्तर:
इसका अर्थ है कि हीटर को 220V पर जलाने पर 1 घण्टे में 1 किलोवाट ऊर्जा व्यय होगी।

प्रश्न 37.
एक विद्युत हीटर में 120 वोल्ट विभवान्तर पर 12 कूलॉम का आवेश प्रवाहित होता है। हीटर में कितनी ऊर्जा व्यय होगी?
हल:
विभवान्तर V = 120 वोल्ट
प्रवाहित आवेश Q = i x t = 12 कूलॉम
∴ हीटर में व्यय ऊर्जा W = Vit = 120 x 12 = 1440 जूल

प्रश्न 38.
10 वोल्ट तथा 0.5 ऐम्पियर के बल्ब से प्रति सेकण्ड कितने जूल ऊष्मा उत्पन्न होती है?
हल:
प्रश्नानुसार, विभवान्तर V = 10 वोल्ट,
धारा i = 0.5 ऐम्पियर, समय t = 1 सेकण्ड
व्यय ऊर्जा W = Vit = 10 x 0.5 x 1 = 5 जूल

प्रश्न 39.
किसी चालक तार के सिरों का विभवान्तर 30 वोल्ट है तथा धारा का मान 3 ऐम्पियर है। तार में ऊष्मा प्रवाह की दर की गणना कीजिए। (2017)
हल:
प्रश्नानुसार, विभवान्तर V = 30 वोल्ट, धारा i = 3 ऐम्पियर, t = 1 सेकण्ड
∴ ऊष्मा प्रवाह की दर H = \(\frac {Vi}{4.2}\) कैलोरी
= \(\frac {30 × 3}{4.2}\) = 21.43 कैलोरी/सेकण्ड

प्रश्न 40.
250 वोल्ट, 5 ऐम्पियर फ्यूज वाले परिपथ में 25 वाट के कितने बल्ब जल सकते (2009, 11, 13, 14, 15, 17)
हल:
माना n बल्ब जल सकते हैं।
प्रश्नानुसार, V = 250 वोल्ट, i = 5 ऐम्पियर, P =n x 25 वाट
∴ P = Vi
n x 25 = 250 x 5
∴ n = \(\frac {250 × 5}{25}\) = 50
50 बल्ब जल सकते हैं।

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प्रश्न 41.
एक विद्युत हीटर में 250 वोल्ट विभवान्तर पर 4.5 ऐम्पियर धारा प्रवाहित होती है। हीटर की सामर्थ्य की गणना कीजिए। (2013)
हल:
विभवान्तर V = 250 वोल्ट, i = 4.5 ऐम्पियर
सामर्थ्य P = V x i = 250 x 4.5 = 1125 वाट

प्रश्न 42.
किसी परिपथ में 10 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित की जाती है। परिपथ में लगे 2 ओम प्रतिरोध वाले चालक में प्रति सेकण्ड उत्पन्न ऊष्मा की गणना कीजिए। (2012)
हल:
प्रश्नानुसार, 1 = 10 ऐम्पियर, R = 2 ओम, t = 1 सेकण्ड, H = ?
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सामर्थ्य P = V x i = 250 x 4.5 = 1125 वाट

प्रश्न 43.
किसी चालक के दो बिन्दुओं के बीच विभवान्तर 10 वोल्ट है। चालक में धारा का= मान ज्ञात कीजिए। यदि उसमें उत्पन्न ऊष्मा 15 जूल प्रति सेकण्ड हो। (2014, 16)
हल:
चालक में प्रति सेकण्ड उत्पन्न ऊष्मा (जूल में)
= विभवान्तर x धारा
15 =10 x i
चालक में धारा i = \(\frac {15}{10}\) = 1.5 ऐम्पियर

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विद्युत धारा से क्या तात्पर्य है ? इसका मात्रक बताइए। (2014)
उत्तर:
विद्युत धारा किसी चालक में विद्युत आवेश के प्रवाह की समय-दर को विद्युत धारा अथवा विद्युत धारा की तीव्रता कहते हैं।
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इसका मात्रक ऐम्पियर अथवा कूलॉम/सेकण्ड है। यह अदिश राशि है।

प्रश्न 2.
विद्युत विभव की परिभाषा दीजिए तथा चालक के विभवान्तर एवं धारा में सम्बन्ध लिखिए। (2012)
उत्तर:
विद्युत विभव अनन्त से एकांक आवेश को विद्युत क्षेत्र के किसी निश्चित बिन्दु तक लाने में किया गया कार्य उस बिन्दु पर विद्युत विभव कहलाता है। इसका मात्रक वोल्ट है। चालक के विभवान्तर एवं उसमें बहने वाली धारा का अनुपात सदैव नियत रहता है। अर्थात् यदि चालक का विभवान्तर V तथा इसमें धारा i है तो \(\frac {V}{i}\) = नियतांक।

प्रश्न 3.
किसी विद्युत परिपथ में अमीटर और वोल्टमीटर क्यों लगाये जाते हैं ? इन्हें परिपथ में किन क्रमों में जोड़ा जाता है? (2015)
या अमीटर का क्या कार्य है? इसे परिपथ में किस प्रकार जोड़ते हैं? (2016)
उत्तर:
अमीटर परिपथ में धारा मापने तथा वोल्टमीटर परिपथ के सिरों के बीच विभवान्तर मापने के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। विद्युत परिपथ में अमीटर को श्रेणीक्रम में तथा वोल्टमीटर को समान्तर क्रम में लगाया जाता है।

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प्रश्न 4.
विद्युत प्रतिरोध का क्या अर्थ है ? एक धातु के तार का प्रतिरोध किन-किन बातों पर निर्भर करता है?
या प्रतिरोध से क्या तात्पर्य है ? यह किन-किन बातों पर निर्भर करता है? (2011)
या विद्युत प्रतिरोध क्या है ? इसका मात्रक लिखिए। (2012, 15)
उत्तर:
विद्युत प्रतिरोध किसी चालक का वह गुण जिसके कारण वह विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध करता है, चालक का प्रतिरोध अथवा विद्युत प्रतिरोध कहलाता है। चालक के प्रतिरोध को R से व्यक्त करते हैं। इसका मान चालक के सिरों के बीच आरोपित विभवान्तर (V) व चालक में बहने वाली धारा (I) के अनुपात के बराबर होता है,
अर्थात्
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चालक के प्रतिरोध की निर्भरता किसी चालक का प्रतिरोध निम्नलिखित दो बातों पर निर्भर करता है –
1. एक ही पदार्थ तथा समान अनुप्रस्थ काट के विभिन्न लम्बाइयों के तारों का प्रतिरोध (R), लम्बाई (l) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
R ∝ l
2. एक ही पदार्थ के समान लम्बाई परन्तु विभिन्न अनुप्रस्थ काट के तारों का प्रतिरोध (R), अनुप्रस्थ काट (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है, अर्थात्
R ∝  \(\frac {1}{A}\)

प्रश्न 5.
एक चालक का प्रतिरोध 3.0 ओम है। इसमें 0.5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करने से कितना विभवान्तर उत्पन्न होगा? यदि इस तार के सिरों पर उत्पन्न विभवान्तर 2.4 वोल्ट हो, तो इसमें कितनी धारा प्रवाहित होगी?
हल:
प्रश्नानुसार, प्रतिरोध R = 3.0 ओम, धारा i =0.5 ऐम्पियर
उत्पन्न विभवान्तर V = iR = 0.5 x 3.0 = 1.5 वोल्ट
पुन: यदि उत्पन्न विभवान्तर V = 2.4 वोल्ट, R = 3.0 ओम
प्रवाहित धारा i = \(\frac {V}{R}\) = \(\frac {2.4}{3.0}\) = 0.8 ऐम्पियर

प्रश्न 6.
दिए गए परिपथ में 1.5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। निम्न को ज्ञात कीजिए (2013, 17)
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(i) प्रतिरोध R का मान
(ii) A व B के बीच विभवान्तर
हल:
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(ii) A व B के बीच तुल्य प्रतिरोध R’ = 32 + 22 + 42 = 92 (प्रतिरोध श्रेणीक्रम में हैं।)
∴ A व B के बीच विभवान्तर = प्रतिरोध x धारा = 9 x 1.5 = 13.5 वोल्ट

प्रश्न 7.
दो प्रतिरोधों के मान क्रमशः 6 ओम एवं 3 ओम हैं। इनके संयोजन से बनने वाले अधिकतम व न्यूनतम प्रतिरोध की गणना कीजिए। (2014)
उत्तर:
अधिकतम प्रतिरोध R1तब होगा यदि संयोजन श्रेणीक्रम में हो।
∴ इस स्थिति में अधिकतम तुल्य प्रतिरोध
R1 = 6 +3 = 9 ओम
न्यूनतम प्रतिरोध R2 तब होगा यदि संयोजन समान्तर क्रम में हो।
इस स्थिति में,
\(\frac{1}{R_{2}}\) = \(\frac {1}{6}\) + \(\frac {1}{3}\)
\(\frac{1}{R_{2}}\) = \(\frac {1 + 2}{6}\) = \(\frac {1}{2}\)
अतः R2 = 2 ओम

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प्रश्न 8.
दो प्रतिरोध 4 ओम तथा 12 ओम के हैं। इन्हें 10 वोल्ट के सेल से जोड़ने पर परिपथ में कल कितनी धारा बहेगी, यदि प्रतिरोधों को –
(i) श्रेणीक्रम में
(ii) समान्तर क्रम में जोड़ा जाये? (2016)
हल:
श्रेणीक्रम में श्रेणीक्रम में जोड़ने पर,
परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R1 = 4 + 12 = 16 ओम
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समान्तर क्रम में समान्तर क्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध
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प्रश्न 9.
निम्न विद्युत परिपथ में सेल का आन्तरिक प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2011, 16, 17)
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हल:
परिपथ में 6 Ω व 6 Ω के दो प्रतिरोध समान्तर क्रम में जुड़े हैं।
इनका तल्य प्रतिरोध \(\frac{1}{R_{1}}\) = \(\frac{1}{6}\) + \(\frac{1}{6}\) या \(\frac{1}{R_{1}}\) = \(\frac{2}{6}\) या R1 = 3Ω
अब R1 व r प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं।
∴ इनका तुल्य प्रतिरोध
R2 =(3 + r) ओम
अब परिपथ में E = V = 2 वोल्ट, i = 0.5 ऐम्पियर, R2 =(3 + r) ओम
V = iR से 2 = 0.5 (3 + r) या 3 + r = 4 या r = 4 – 3 = 1Ω

प्रश्न 10.
निम्न परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा का मान ज्ञात कीजिए। (2015, 17)
हल:
परिपथ में 4 Ω के दो प्रतिरोध समान्तर क्रम में लगे हैं।

इनका तुल्य प्रतिरोध –
\(\frac{1}{R_{1}}\) = \(\frac{1}{4}\) + \(\frac{1}{4}\)
R1 = \(\frac{4}{2}\) = 2Ω
पुनः परिपथ में R1 व 2 2 के प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं।
∴ इनका तुल्य प्रतिरोध R = (R1 + 2)Ω = (2 + 2) Ω = 4Ω
परिपथ में धारा i = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{10}{4}\) = 2.5 ऐम्पियर

प्रश्न 11.
नीचे दिये गये चित्र में दिये गये विद्युत परिपथ में A तथा B बिन्दुओं के बीच परिणामी प्रतिरोध का मान ज्ञात कीजिए। (2014, 15, 17, 18)
हल:
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2Ω, 3Ω, 4Ω श्रेणीक्रम में हैं। अतः तुल्य प्रतिरोध
R1 = 2Ω + 3Ω + 4Ω = 9Ω
अब 9Ω के दो प्रतिरोध समान्तर क्रम में हैं। अत: A व B बिन्दुओं के बीच परिणामी प्रतिरोध,
\(\frac{1}{R}\) = \(\frac{1}{9}\) + \(\frac{1}{9}\) = \(\frac{1}{R}\) = \(\frac{2}{9}\) R = \(\frac{9}{2}\) = 4.5Ω

प्रश्न 12.
संलग्न विद्युत परिपथ में बहने वाली विद्युत धारा की गणना कीजिए। 12 वोल्ट
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हल:
परिपथ में 1Ω,4Ω व 1Ω के प्रतिरोध श्रेणी क्रम में हैं।
∴ इनका तुल्य प्रतिरोध R = 1 + 4 + 1 = 60
प्रतिरोध R1,62 के प्रतिरोध के समान्तर क्रम में है
यदि इनका तुल्य प्रतिरोध R2 है, तब
\(\frac{1}{R_{2}}\) = \(\frac{1}{R_{1}}\) + \(\frac{1}{6}\)
= \(\frac{1}{6}\) + \(\frac{1}{6}\) = \(\frac{2}{6}\) = \(\frac{1}{3}\)
∴ R2 = 3Ω
अब 1Ω,2Ω व R2 प्रतिरोध श्रेणी क्रम में हैं।
∴ इनका तुल्य प्रतिरोध अर्थात् परिपथ का कुल प्रतिरोध
R = 1Ω + 2Ω + 3Ω = 6Ω
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प्रश्न 13.
ऊष्मा उत्पादन सम्बन्धी जूल का नियम लिखिए। या किसी चालक तार में धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन्न ऊष्मा किन-किन कारकों पर निर्भर करती है? स्पष्ट कीजिए। (2016)
उत्तर:
यदि विद्युत चालक में प्रवाहित होने वाली धारा i हो, तो t सेकण्ड में चालक में उत्पन्न ऊष्मा
Q = i2 – Rt जूल = \(\frac{i^{2} R t}{4.2}\) कैलोरी
इस सूत्र को जूल का ऊष्मीय प्रभाव का नियम कहते हैं।
स्पष्टत: चालक में प्रवाहित धारा के कारण उत्पन्न ऊष्मा
1. चालक के प्रतिरोध के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात् Q ∝ R
2. चालक में प्रवाहित धारा के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात् p ∝ l2
3. चालक में धारा प्रवाह के समय के अनुक्रमानुपाती होती है, अर्थात् Q ∝ t

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प्रश्न 14.
तार में कुछ देर तक धारा प्रवाहित करने से तार का ताप 3°C बढ़ जाता है। यदि धारा को दोगुना कर दें तो उतनी ही देर में तार का ताप कितना बढ़ जायेगा? (2012)
हल:
∴ उत्पन्न ऊष्मा H = i2 Rt
उत्पन्न ऊष्मा ∝  प्रवाहित धारा का वर्ग (i2)
धारा दोगुनी होने पर उत्पन्न ऊष्मा चार गुनी होगी।
पुनः चूँकि ताप वृद्धि ∝ ऊष्मा ताप वृद्धि चार गुनी अर्थात् 3 x 4 = 12°C होगी।

प्रश्न 15.
R1 तथा R2 प्रतिरोधों के दो चालक एक सेल से समान्तर-क्रम में संयोजित हैं। किसी निश्चित समय में चालकों में व्यय हुई विद्युत ऊर्जाओं का अनुपात कितना होगा?
उत्तर:
दोनों चालक R1 ओम तथा R2 ओम सेल से समान्तर-क्रम में जुड़े हैं। अतः चालकों के सिरों पर समान विभवान्तर V वोल्ट होगा। उनमें से प्रत्येक में t सेकण्ड में व्यय विद्युत ऊर्जा निम्न प्रकार होगी
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भाग देने पर,
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अतः समान्तर-क्रम में जुड़े प्रतिरोधों में व्यय विद्युत ऊर्जा का अनुपात उनके प्रतिरोधों के अनुपात का प्रतिलोम होगा। स्पष्ट है जिस चालक का प्रतिरोध कम होगा, उसमें अधिक ऊर्जा व्यय होगी।

प्रश्न 16.
स्विच किसे कहते हैं? इसे परिपथ में किस क्रम में लगाते हैं?
उत्तर:
स्विच वह युक्ति है जिसके द्वारा किसी विद्युत उपकरण में विद्युत धारा के प्रवाह को नियन्त्रित किया जाता है। स्विच यदि ऑन रहता है तो उपकरण में धारा प्रवाह होता है और यदि स्विच ऑफ होता है तो उपकरण में धारा प्रवाह रुक जाता है। इसे परिपथ में उपकरण के साथ सदैव श्रेणीक्रम में लगाते हैं।

प्रश्न 17.
घरों की वायरिंग के परिपथ में फ्यूज का क्या महत्त्व है ? आवश्यक परिपथ बनाकर स्पष्ट कीजिए (2011, 12, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर:
विद्युत परिपथ में फ्यूज एक सुरक्षा युक्ति के रूप में कार्य करता है। जब कभी घरों में बिजली की डोरी के दोनों तार विद्युतरोधी आवरण हट जाने के कारण एक-दूसरे से छू जाते हैं अथवा बिजली के बहुत सारे उपकरण एक साथ प्रयोग में लाये जाते हैं; तब परिपथ का विद्युत प्रतिरोध एकदम गिर जाता है तथा परिपथ में बहुत 1 N अधिक धारा बहती है।

इससे इतनी अधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है कि परिपथ के तारों में आग लग सकती है। कभी-कभी किसी उपकरण की खराबी के कारण भी उसमें बहुत अधिक धारा आ जाती है जिससे उपकरण जल सकता है। इस फ्यूज के खतरों से बचने के लिए विभिन्न परिपथों की वायरिंग में वितरण बॉक्स फ्यूज-तार लगाये जाते हैं।
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प्रत्येक फ्यूज-तार में अधिकतम धारा वहन करने की एक क्षमता होती है। जब धारा इस निश्चित परिमाण से अधिक होती है तो फ्यूज -तार गल जाता है और विद्युत परिपथ टूट जाता है। जिससे क्षति होने से बच जाती है।

प्रश्न 18.
विद्युत बल्ब में कौन-सी गैस भरी जाती है और क्यों?
उत्तर:
उच्च सामर्थ्य के बल्बों में कोई निष्क्रिय गैस नाइट्रोजन अथवा ऑर्गन भरी जाती है। इससे बल्ब के तन्तु का वाष्पीकरण नहीं होता तथा बल्ब की दक्षता बढ़ जाती है।

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प्रश्न 19.
वाट की परिभाषा दीजिए। किलोवाट-घण्टा तथा जूल में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2011, 12, 14)
या किलोवाट-घण्टा (यूनिट) क्या है? इसकी परिभाषा दीजिए। या किलोवाट-घण्टा से क्या अर्थ है ?
या किलोवाट-घण्टा तथा जूल में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (2013) किलोवाट को परिभाषित कीजिए। (2011, 12, 17)
या किलोवाट-घण्टा को जूल में बदलिए। (2018)
उत्तर:
वाट की परिभाषा यह सामर्थ्य का मात्रक है। “यदि किसी कर्ता के कार्य करने की दर 1 जूल प्रति सेकण्ड है, तो उसकी सामर्थ्य 1 वाट कहलाती है। इसी प्रकार यदि किसी विद्युत परिपथ में विद्युत ऊर्जा व्यय की दर 1 जूल / सेकण्ड हो, तो उस परिपथ में लगे विद्युत स्रोत की सामर्थ्य 1 वाट होती है।”
वाट = ऐम्पियर-वोल्ट भी होता है। क्योंकि
वाट = जूल/सेकण्ड = कूलॉम x वोल्ट / सेकण्ड
= ऐम्पियर x सेकण्ड – वोल्ट / सेकण्ड = ऐम्पियर x वोल्ट

किलोवाट-घण्टा यह विद्युत ऊर्जा का मात्रक है। इसको साधारण भाषा में यूनिट भी कहते हैं। 1 किलोवाट-घण्टा किसी विद्युत परिपथ में 1 घण्टे में व्यय होने वाली विद्युत ऊर्जा की मात्रा है; जबकि उस परिपथ में 1 किलोवाट विद्युत शक्ति का स्रोत लगा हो।
किलोवाट-घण्टा तथा जूल में सम्बन्ध –
1 किलोवाट-घण्टा =1 किलोवाट x 1 घण्टा
=103 वाट x 60 x 60 सेकण्ड
= 103 जूल/सेकण्ड x 60 x 60 सेकण्ड
= 3.6 x 106 जूल

प्रश्न 20.
दो विद्युत बल्बों में समान धातु एवं समान लम्बाई के तन्तु लगे हैं, परन्तु एक बल्ब का तन्तु दूसरे की अपेक्षा अधिक मोटा है। किस बल्ब की सामर्थ्य अधिक होगी तथा क्यों? (बल्बों की वोल्टता समान है) (2014,18)
उत्तर:
किसी बल्ब की सामर्थ्य (Power) P, उस पर लगे विभवान्तर V तथा प्रवाहित धारा । पर निर्भर करती है।
P= Vi
ओम के नियम से,
V = iR
या i = V / R
अतः P = \(\frac{V^{2} }{R}\) …(i)
चूँकि समान धातु एवं समान लम्बाई वाले तन्तु का प्रतिरोध उसकी त्रिज्या के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
अत: जिस बल्ब का तन्तु मोटा है; उसका प्रतिरोध कम तथा जिस बल्ब का तन्तु पतला है; उसका प्रतिरोध अधिक होगा।
अत: समीकरण (i) से मोटे तार के लिए प्रतिरोध कम होने से उसकी सामर्थ्य अधिक होगी तथा पतले तार का प्रतिरोध अधिक होने से उसकी सामर्थ्य कम होगी।

प्रश्न 21.
एक नामांकित विद्युत परिपथ बनाइए जिसमें रेगुलेटर, स्विच, पंखा तथा वैद्युत बल्ब घर में मेन्स से जुड़े दिखाये गये हैं। (2011, 17)
उत्तर:
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प्रश्न 22.
5 ओम प्रतिरोध तथा 10 ओम प्रतिरोध के तारों में समान विद्युत धारा समान समय तक प्रवाहित करने पर तारों में उत्पन्न हुई ऊष्माओं में क्या अनुपात होगा?
हल:
तार में उत्पन्न ऊष्मा H =\(\frac{i^{2} R t}{4.2}\) कैलोरी
समान i व t के लिए H R
अत: 5 ओम व 10 ओम के तारों में उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात
\(\frac{R_{1}}{R_{2}}\) = \(\frac{5}{2}\) = 1:2

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प्रश्न 23.
किसी परिपथ में 10 ऐम्पियर की धारा 4 सेकण्ड तक प्रवाहित की जाती है। यदि परिपथ का प्रतिरोध 10 ओम है, तो ज्ञात कीजिए –
(i) परिपथ में प्रवाहित कुल इलेक्ट्रॉन की संख्या
(ii) उत्पन्न ऊष्मा (2015)
हल:
(i) परिपथ में प्रवाहित कुल आवेश (q) = धारा (i) x समय (t)
=10 x 4 = 40 कूलॉम
परिपथ में प्रवाहित इलेक्ट्रॉन की संख्या
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(ii) ऊष्मा, Q = i2. R x t = 10 x 10 x 10 x 4
= 4000 जूल = \(\frac{4000}{4.2}\) कैलोरी = 9.52.38 कैलोरी

प्रश्न 24.
किसी विद्यत मोटर की सामर्थ्य 7.5 किलोवाट है। इसने 8 घण्टा प्रतिदिन की दर से 15 दिन कार्य किया। कितने यूनिट (किलोवाट-घण्टा) विद्युत ऊर्जा व्यय हुई? इसका मान जूल में भी ज्ञात कीजिए। (2011, 13, 14, 18)
हल:
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= 900 x 3.6 x 106 जूल
= 3.24 x 109 जूल

प्रश्न 25.
1.5 किलोवाट सामर्थ्य के हीटर का उपयोग 30 मिनट तक करने में कितनी ऊष्मा प्राप्त होगी? (2009, 11)
हल:
सामर्थ्य P = 1.5 किलोवाट = 1500 वाट, समय 1 = 30 मिनट = 30 x 60 सेकण्ड
प्राप्त ऊष्मीय ऊर्जा = सामर्थ्य x समय = 1500 x 30 x 60 = 2700000 जूल = 2.7 x 109 जूल
= \(\frac{2.7 \times 10^{6}}{4.2}\) कैलोरी = 6.43 x 105कैलोरी

प्रश्न 26.
दो बल्बों जिनमें एक पर 100 वाट-220 वोल्ट तथा दूसरे पर 60 वाट-220 वोल्ट लिखा है को 220 वोल्ट की सप्लाई लाइन से समान्तर क्रम में जोड़ा गया है। सप्लाई लाइन से निर्गत धारा की गणना कीजिए। (2009, 14)
हल:
प्रश्नानुसार, V = 220 वोल्ट, P = 100 + 60 = 160 वाट, i = ?
P = Vi
i = \(\frac{P}{V}\) = \(\frac{160}{220}\) = 0.73 ऐम्पियर

प्रश्न 27.
एक विद्युत बल्ब पर 250 V-200w लिखा है। इसे 250 वोल्ट के मेन्स से जोड़ने पर बल्ब में कितनी अधिकतम धारा प्रवाहित होगी? बल्ब के प्रतिरोध की भी गणना कीजिए। (2012, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, V = 250 वोल्ट, P= 200 वाट
∴ बल्ब का प्रतिरोध R = \(\frac{V^{2}}{P}\) = \(\frac{250 x 250}{200}\) = 312.5 ओम
250 वोल्ट के मेन्स से जोड़ने पर,
बल्ब में अधिकतम धारा i = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{250}{312.5}\) = 0.8 ऐम्पियर

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प्रश्न 28.
25 वाट तथा 100 वाट के दो बल्बों के प्रतिरोधों की तुलना कीजिए, यदि इनकी वोल्टता समान हो। (2014)
हल:
माना दोनों बल्बों की वोल्टता V वोल्ट है तथा 25 वाट और 100 वाट के बल्बों का प्रतिरोध क्रमश: R1 तथा R2 ओम हैं।
हम जानते हैं कि बल्ब की सामर्थ्य P = \(\frac{V^{2}}{R}\)
25 वाट के बल्ब के लिए 25 = \(\frac{V^{2}}{R_{1}}\)
100 वाट. के बल्ब के लिए 100 = \(\frac{V^{2}}{R_{2}}\)
भाग देने पर,
\(\frac{100}{25}=\frac{R_{1}}{R_{2}}\)
या \(\frac{R_{1}}{R_{2}}=\frac{4}{1}\) या R1 : R2 = 4:1
अर्थात् 25 तथा 100 वाट के बल्बों के पतिशों क अनुगात 4 : 1 है।

प्रश्न 29.
एक बल्ब पर 60 W-220 V लिखा है। इसको 220 वोल्ट के विद्युत मेन्स में लगाने पर कितनी धारा प्रवाहित होगी? बल्ब द्वारा 5 मिनट में उत्पन्न ऊष्मा की गणना कीजिए। (2011, 18)
हल:
विभवान्तर V = 220 वोल्ट, सामर्थ्य P = 60 वाट,
समय t = 5 मिनट = 5 x 60 सेकण्ड
धारा i = \(\frac{P}{V}\) = \(\frac{60}{220}\) = \(\frac{3}{11}\) ऐपियर
5 मिनट अर्थात् 5 x 60 सेकण्ड में व्यय ऊर्जा W = Vit
= 220 x \(\frac{3}{11}\) x 5 x 60 = 18000 जूल
अतः उत्पन्न ऊष्मा = \(\frac{18000}{4.2}\) = 4285.7 कैलोरी

प्रश्न 30.
एक घर में 220 V-100 w के 5 बल्ब प्रतिदिन 8 घण्टे जलते हैं तो 2 रुपये प्रति यूनिट की दर से एक माह (30 दिन) का खर्च ज्ञात कीजिए। (2014)
हल:
व्यय ऊर्जा (यूनिट)
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खर्च = व्यय यूनिट x 1 यूनिट का मूल्य
=120 x 2 = ₹ 240

प्रश्न 31.
एक विद्युत बल्ब का प्रतिरोध 1000 ओम है। इसको 200 वोल्ट के मेन्स से जोड़कर 10 घण्टे तक जलाने में कितने यूनिट विद्युत ऊर्जा व्यय होगी?
हल:
बल्ब में प्रवाहित धारा i = \(\frac{V}{R}\) = \(\frac{200}{1000}\) = 0.2 ऐम्पियर
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प्रश्न 32.
200 ओम प्रतिरोध के तार में 1.5 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित करने से ऊर्जा व्यय की दर ज्ञात कीजिए। यदि उपर्युक्त तार में ऊर्जा व्यय की दर 1250 वाट लें, तो तार के सिरों का विभवान्तर कितना होगा? (2014, 18)
हल:
प्रतिरोध R = 200 ओम, धारा i = 1.5 ऐम्पियर
ऊर्जा व्यय की दर P = i2 R
= (1.5)2 x 200
= 2.25 x 200 = 450 वाट
प्रतिरोध R= 200 ओम, P = 1250 वाट, V= ?
सूत्र P = \(\frac{V^{2}}{R}\) से, V2 = P x R
= 1250 x 200 = 250000
∴ तार के सिरों के बीच विभवान्तर V = \(\sqrt{250000}\) = 500 वोल्ट

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प्रश्न 33.
आपके घर में विद्युत कटौती के दौरान आवश्यक विद्यत आपूर्ति के लिए 12 वोल्ट/150 ऐम्पियर-घण्टा की एक बैटरी लगायी गयी है। यदि विद्युत कटौती के दौरान आप इस पूर्णतया आवेशित बैटरी से एक 60 वाट का पंखा एवं एक 40 वाट का बल्ब प्रयोग में लाते हैं, तो यह कब तक कार्य करेंगे? किसी भी अन्य ऊर्जा को हानि को नगण्य मानें। (2017)
हल:
उपकरणों की कुल सामर्थ्य P = 60 + 40 = 100 वाट
माना उपकरण t घण्टे कार्य करेंगे, तब
उपकरणों द्वारा t घण्टे में प्रयुक्त ऊर्जा = बैटरी की कुल ऊर्जा
100 वाट x t घण्टा = 12 x 150 वाट-घण्टा
t = \(\frac{12 × 150}{100}\) = 18
∴ उपकरण 18 घण्टे तक कार्य करेंगे।

प्रश्न 34.
दो प्रतिरोध 3 ओम तथा 5 ओम के हैं। इन्हें किसी सेल से जोड़ने पर कौन-सा प्रतिरोध अधिक गर्म होगा, यदि इन्हें परस्पर
(i) श्रेणीक्रम में
(ii) समान्तर क्रम में जोड़ा जाये? (2017)
हल:
(i) श्रेणीक्रम में दोनों प्रतिरोधों में समान धारा बहेगी।
∴ उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात \(\frac{H_{1}}{H_{2}}=\frac{i^{2} R_{1} t}{i^{2} R_{2} t}=\frac{R_{1}}{R_{2}}=\frac{3}{5}\)
= 3:5
∴ 5 ओम का प्रतिरोध अधिक गर्म होगा।
(ii) समान्तर क्रम में दोनों प्रतिरोधों के सिरों पर विभवान्तर समान होगा। .
∴ उत्पन्न ऊष्माओं का अनुपात
\(\frac{H_{1}}{H_{2}}=\frac{V^{2} t / R_{1}}{V^{2} t / R_{2}}=\frac{R_{2}}{R_{1}}=\frac{5}{3}\) = 5 : 3
अत: 3 ओम का प्रतिरोध अधिक गर्म होगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ओम का नियम क्या है ? इसके सत्यापन के लिए आवश्यक प्रयोग का वर्णन परिपथ आरेख खींचकर कीजिए। (2011, 12, 13, 14, 15)
या ओम के नियम की व्याख्या कीजिए। प्रतिरोध का मात्रक भी बताइए।
उत्तर:
ओम का नियम ओम के नियम के अनुसार जब भौतिक अवस्थाएँ (जैसे ताप आदि) समान रहें तो किसी चालक में प्रवाहित होने वाली धारा, उसके सिरों के बीच विभवान्तर के समानुपाती होती है। यदि किसी चालक के सिरों पर लगा विभवान्तर V तथा उसमें बहने वाली धारा I हो, तो
विभवान्तर ∝ धारा  या  V ∝ I
V = स्थिरांक x I
इस स्थिरांक को चालक का प्रतिरोध कहते हैं। यदि प्रतिरोध हो, तो
V = R x I था R = \(\frac {V}{I}\)
अतः यह नियम यह भी बताता है कि किसी परिपथ में प्रतिरोध, उसके सिरों के बीच विभवान्तर (वोल्टता) तथा प्रवाहित धारा का अनुपात होता है।
यदि हम विभवान्तर तथा धारा में ग्राफ खींचें तो वह एक सरल रेखा आती है। इससे भी यह प्रदर्शित होता है कि विभवान्तर, धारा के समानुपाती है।

प्रतिरोध का मात्रक प्रतिरोध का मात्रक
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इसे Ω (ओम) से प्रदर्शित करते हैं।
ओम के नियम का सत्यापन इस प्रयोग के लिए एक बैटरी, अमीटर, कुंजी, धारा नियन्त्रक, प्रतिरोध तथा वोल्टमीटर चित्र (a) के अनुसार लगाते हैं। प्रतिरोध में प्रवाहित धारा (I) अमीटर से तथा प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर (V) वोल्टमीटर द्वारा मापते हैं।
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प्रयोग करने के लिए कुंजी K को लगाकर धारा नियन्त्रक की एक स्थिति के लिए प्रतिरोध में प्रवाहित धारा तथा उसके सिरों के बीच विभवान्तर वोल्टमीटर द्वारा मापते हैं। इसी प्रकार धारा नियन्त्रक द्वारा परिपथ में बहने वाली धारा बदलकर अमीटर तथा वोल्टमीटर के पाठ पढ़ लेते हैं। अब विभवान्तर को X – अक्ष पर तथा धारा को Y – अक्ष पर लेकर एक ग्राफ खींचते हैं यदि यह सरल रेखा आता है देखें चित्र (b)], तो चालक के सिरों के बीच विभवान्तर तथा उनमें प्रवाहित धारा का सरल रेखीय ग्राफ ओम के नियम का पालन करता है, अर्थात् चालक ओम के नियम का पालन करता है।

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प्रश्न 2.
यदि तीन प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़ दिया जाये तो इस संयोग के लिए उनके तुल्य प्रतिरोध का सूत्र स्थापित कीजिए। (2012)
श्रेणीक्रम में प्रतिरोधों को किस प्रकार जोड़ा जाता है? प्रतिरोधों के इस समायोजन के लिए सूत्र प्राप्त कीजिए। (2015, 17)
उत्तर:
श्रेणीक्रम में संयोजन (Series combination) प्रतिरोधों का श्रेणीक्रम में संयोजन इस प्रकार होता है कि प्रतिरोधों को क्रमश: जोड़ा जाए अर्थात् किसी एक प्रतिरोध का सिरा, दूसरे प्रतिरोध के एक सिरे से तथा इस प्रतिरोध का दूसरा सिरा अगले प्रतिरोध के पहले सिरे से जुड़ा रहे। यह संयोजन चित्र में दिखाया गया है। इसमें R1, R2, R3प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़कर एक सेल, जिसका कुल विभवान्तर V वोल्ट है, से जोड़ा गया है। श्रेणीक्रम में जुड़े इन प्रतिरोधों के तुल्य प्रतिरोध का मान निम्नलिखित प्रकार से ज्ञात किया जाता है –
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माना प्रतिरोधों के सिरों पर विभवान्तर क्रमश: V1,V2,V3, हैं, तब ओम के नियम से
V1 =iR1; V2 =iR2; Vs =iR3
तब V1 + V2 + V3 = iR1 + iR2 + iR3
= i(R1 + R2 + R3) ……(i)
चूँकि कुल विभवान्तर V है, तब V =V1 + V2 +V3 …….(ii)
अब माना कोई एक ऐसा प्रतिरोध है, जो विभवान्तर V होने पर परिपथ में। धारा प्रवाहित करने में सहायक होता है। यह प्रतिरोध समतुल्य प्रतिरोध R कहलाता है।
अतः V = iR ……(iii)
समीकरण (i), (ii) व (iii) से,
iR = i(R1 + R2 + R3)
या R = R1 + R3 + R3 ……(iv)
अत: श्रेणीक्रम में समतुल्य प्रतिरोध, प्रतिरोधों के कुल योग के बराबर होता है।

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प्रश्न 3.
समान्तर क्रम में जुड़े तीन प्रतिरोधों के तुल्य प्रतिरोध के लिए सूत्र का निगमन। कीजिए। (2011, 16, 17)
उत्तर:
समान्तर क्रम में संयोजन समान्तर क्रम में जुड़े प्रतिरोधों का संयोजन चित्र में दिखाया गया है। इस प्रकार के संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध (R1 , R2, R3) दो निश्चित बिन्दुओं (A, B) के बीच जुड़ा हुआ होता है तथा उन दोनों निश्चित बिन्दुओं के बीच में सेल जोड़ दिया जाता है। अतः प्रत्येक प्रतिरोध के सिरों के विभवान्तर का मान V (माना) होगा।
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माना प्रतिरोधों R1, R2, व R3, में क्रमश: i1, i2 व i3 धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तब ओम के नियम से,
i1 = \(\frac{V}{R_{1}}\) i2 = \(\frac{V}{R_{2}}\) i3 = \(\frac{V}{R_{3}}\)
कुल धारा i = i1 + i2 + i3
i = \(\frac{V}{R_{1}}+\frac{V}{R_{2}}+\frac{V}{R_{3}}\)
i = V(\(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}\)) ……..(i)

माना इन प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध R है जिसके सिरों पर विभवान्तर V होने पर इसमें धारा i प्रवाहित होती है।
अतः R = \(\frac {V}{i}\) अथवा i = \(\frac {V}{R}\) …(ii)
समी० (i) व (ii) से,
\(\frac {V}{R}\) = V(\(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}\))
अथवा
\(\frac {1}{R}\) = \(\frac{1}{R_{1}}+\frac{1}{R_{2}}+\frac{1}{R_{3}}\) ……..(iii)
यह समीकरण समान्तर क्रम में जुड़े तीन प्रतिरोधों के समतुल्य प्रतिरोध का मान दर्शाती है।
अत: “समान्तर क्रम में जोड़ने पर समतुल्य प्रतिरोध का मान कम हो जाता है।”

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प्रश्न 4.
एक परिपथ में 10 ओम, 6 ओम तथा 4 ओम के तीन प्रतिरोध श्रेणीक्रम में संयोजित हैं। पूरे संयोजन के सिरों का विभवान्तर 10.0 वोल्ट है। प्रत्येक प्रतिरोध में धारा एवं विभवान्तर ज्ञात कीजिए। (2011)
हल:
प्रश्न के अनुसार परिपथ संलग्न है: परिपथ का कुल प्रतिरोध R = R1 + R2 + R3
या R = 10 + 6 + 4 = 20
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ओम के नियम से, i = \(\frac {V}{R}\) = \(\frac {10}{20}\) = 0.5 ऐम्पियर
प्रत्येक प्रतिरोध में धारा 0.5 ऐम्पियर बहेगी।
सूत्र V = iR से,
100 के प्रतिरोध का विभवान्तर = 0.5 x 10 = 5 वोल्ट
62 के प्रतिरोध का विभवान्तर = 0.5 x 6 = 3 वोल्ट
40 के प्रतिरोध का विभवान्तर = 0.5 x 4 = 2 वोल्ट

प्रश्न 5.
दो विद्यत प्रतिरोधों को श्रेणीक्रम में जोड़ने पर उनका तुल्य प्रतिरोध 25 ओम आता है। इनको समान्तर क्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध 4 ओम आता है। प्रत्येक विद्युत प्रतिरोध का प्रतिरोध ज्ञात कीजिए। (2011, 12, 18)
हल:
माना विद्युत प्रतिरोध क्रमश: P व Q हैं, तब प्रश्नानुसार श्रेणीक्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध
P + Q = 25 Ω …….(i)
तथा समान्तर क्रम में जोड़ने पर तुल्य प्रतिरोध
\(\frac {1}{P}\) + \(\frac {1}{Q}\) = \(\frac {1}{4}\) Ω  ……..(ii)
या \(\frac {P + Q}{PQ}\) = \(\frac {1}{4}\) या 4(P + Q) = PQ
समी० (i) से, 4 x 25 = PQ या PQ = 100 ……….(iii)
∴ (P-Q)2 = (P +Q)2 .. 4PQ = (25)2 – 4 x 100 = 625 – 400 = 225
∴ P – Q = 15 ……..(iv)
समी० (iii) व (iv) को हल करने पर,
P = 20 ओम तथा Q = 5 ओम

प्रश्न 6.
नीचे दिये गये चित्र में ज्ञात कीजिए (2012, 13, 14, 16)
1. तुल्य प्रतिरोध
2. परिपथ की धारा
3. 3Ω प्रतिरोध वाले चालक के सिरों का विभवान्तर 108
हल:
1. 2 Ω व 2 Ω के प्रतिरोध समान्तर क्रम में लगे हैं –
इनका तुल्य प्रतिरोध \(\frac {1}{R}\) = \(\frac {1}{2}\) + \(\frac {1}{2}\)= R1 = 1Ω
अब परिपथ में 1 Ω,1 Ω व 3 Ω के प्रतिरोध श्रेणी क्रम में लगे हैं।
∴ परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R = 1Ω +1Ω + 3Ω = 5Ω
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2. परिपथ में विभवान्तर V = 1Ω वोल्ट, प्रतिरोध R = 5Ω
∴ परिपथ की धारा i = \(\frac {V}{R}\) = \(\frac {10}{5}\) = 2 ऐम्पियर

3. 3Ω के प्रतिरोध में धारा i = 2 ऐम्पियर
3 Ω के प्रतिरोध के सिरों के बीच विभवान्तर = धारा x प्रतिरोध – 2 x 3 = 6 वोल्ट

प्रश्न 7.
दिये गये परिपथ में ज्ञात कीजिए (2018)
1. A तथा B के मध्य प्रतिरोध
2. परिपथ में प्रवाहित धारा i (2015)
3. A तथा B के मध्य विभवान्तर
4. 3Ω के प्रतिरोध के सिरों का विभवान्तर (2013, 14, 15, 17)
हल:
1. AB के बीच (4 + 2) = 6 Ω व (2 + 1) = 3Ω के प्रतिरोध समान्तर क्रम में लगे हैं।
यदि A व B के बीच तुल्य प्रतिरोध R1 है तब,
\(\frac{1}{R_{1}}\) = \(\frac {1}{6}\) + \(\frac {1}{3}\) = \(\frac {3}{6}\) + \(\frac {1}{2}\)
⇒ R1 = 2Ω
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2. परिपथ में R, व 3Ω के प्रतिरोध श्रेणीक्रम में लगे है अत: परिपथ का तुल्य प्रतिरोध R = R1 + 3Ω = 2Ω + 3Ω = 5Ω
तथा विभवान्तर V = 10 वोल्ट
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3. A व B के मध्य विभवान्तर = A व B के बीच प्रतिरोध x धारा
= 2 x 2 = 4 वोल्ट

4. 3Ω के प्रतिरोध के सिरों का विभवान्तर = प्रतिरोध x धारा
= 3 x 2 = 6 वोल्ट

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प्रश्न 8.
विद्युत बल्ब का सिद्धान्त, रचना एवं कार्य-विधि समझाइए। इसका नामांकित चित्र बनाइए। विद्युत बल्ब में वायु के स्थान पर नाइट्रोजन अथवा ऑर्गन क्यो भरी जाती है ? (2011, 13) विद्युत बल्ब से प्रकाश प्राप्त होने के सिद्धान्त को समझाइए। (2012)
उत्तर:
विद्युत बल्ब
सिद्धान्त विद्युत बल्ब विद्युत धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित है। किसी तार मे विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे तार का ताप बढ़ जाता है तथा अधिक ताप बढ़ने पर वह श्वेत-तप्त काँच की छड़ रचना इसमें एक काँच का बल्ब होता है; जिसमें टंगस्टन धातु का तन्तु (फिलामेण्ट) होता है। बल्ब में निर्वात रखते हैं या कोई तार अक्रिय गैस जैसे ऑर्गन या नाइट्रोजन भर देते हैं। इसके ऊपर एक धातु (पीतल) की टोपी होती है, जिसके दोनों ओर दो पिन होते हैं; जो बल्ब को होल्डर में लगाने में सहायक होते हैं। इसके फिलामेण्ट तन्तु अन्दर काँच की छड़ होती है; जिसके अन्दर ताँबे के दो मोटे तार होते हैं।
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इन तारों के ऊपरी सिरे राँग से झले होते हैं तथा नीचे के सिरों के बीच टंगस्टन का बारीक फिलामेण्ट होता है (चित्र)। बल्ब को ऊपर से लाख या चपड़े से बन्द कर दिया जाता है; जिससे बाहर की वायु इसमें प्रवेश न कर सके। कार्य-विधि जब विद्युत धारा बल्ब में से प्रवाहित की जाती है, तो टंगस्टन का फिलामेण्ट गर्म होकर चमकने लगता है एवं प्रकाश देने लगता है। इससे विद्युत ऊर्जा का रूपान्तरण प्रकाश और ऊष्मा में होता है। घरों में प्रयोग किए जाने वाले बल्ब विभिन्न सामर्थ्य के होते हैं। उन पर उनकी सामर्थ्य तथा विभवान्तर लिखे होते है। ये सामान्यत: 220 वोल्ट विभवान्तर पर कार्य करते हैं।

ये 15 वाट से 500 वाट सामर्थ्य तक के होते हैं। यदि किसी बल्ब पर 40 वाट 220 वोल्ट लिखा हो, तो इसका ५ अर्थ यह होगा कि 220 वोल्ट मेन्स में लगाने पर इसमें प्रति घण्टा 40 वाट-घण्टा ऊर्जा व्यय होगी। बल्ब में निष्क्रिय गैसों का भरना. साधारण कोटि के तथा कम सामर्थ्य के बल्बों के भीतर निर्वात होता है, परन्तु ऊँची सामर्थ्य के बल्बों में निष्क्रिय गैसें (जैसे नाइट्रोजन एवं ऑर्गन) भर देने से तन्तु का ऑक्सीकरण नहीं हो पाता। इससे तन्तु का वाष्पीकरण नहीं होता तथा बल्ब की दक्षता व आयु बढ़ जाती है।

प्रश्न 9.
विद्यत परिपथ में व्यय सामर्थ्य से क्या अभिप्राय है? इसका मात्रक लिखिए। यदि परिपथ में v वोल्ट विभवान्तर पर। ऐम्पियर धारा प्रवाहित हो रही हो तो सामर्थ्य के लिए व्यंजक प्राप्त कीजिए।
या सिद्ध कीजिए कि किसी विद्युत बल्ब की सामर्थ्य उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है। (2011, 12, 13, 16)
उत्तर:
विद्युत सामर्थ्य किसी विद्युत परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय होने की दर को विद्युत सामर्थ्य कहते हैं। (2016)
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यदि किसी परिपथ में t सेकण्ड में W जूल ऊर्जा व्यय हो तो परिपथ की विद्युत सामर्थ्य
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सामर्थ्य के मात्रक जूल/सेकण्ड को वाट भी कहते हैं।
∴ P = \(\frac {W}{t}\) वाट

यदि परिपथ में V वोल्ट के विभवान्तर पर । ऐम्पियर धारा, t सेकण्ड तक प्रवाहित हो, तब व्यय ऊर्जा W = Vit जूल
∴ परिपथ की सामर्थ्य P = \(\frac {W}{t}\) = \(\frac {Vit}{t}\) = Vi वाट
यदि परिपथ का विद्युत प्रतिरोध R ओम है, तब V = iR से
सामर्थ्य P = i2 R वाट
पुन: चूंकि i = \(\frac {V}{R}\)
∴ सामर्थ्य P = \(\frac{V^{2}}{R}\) वाट
∴ P = \(\frac{V^{2}}{R}\)
P ∝ \(\frac {1}{R}\) (यदि v स्थिर रहे)
अतः स्पष्ट है कि निश्चित विभवान्तर लगाने पर बल्ब की विद्युत सामर्थ्य बल्ब के प्रतिरोध की व्युत्क्रमानुपाती होती है।

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प्रश्न 10.
एक बर्तन में 100 ग्राम जल 10°C पर रखा है, इसमें 42 ओम प्रतिरोध का एक तार जल में डालकर 2.0 ऐम्पियर की धारा 5 मिनट तक प्रवाहित की जाती है। यदि बर्तन की ऊष्माधारिता 50 कैलोरी /°C हो, तो जल में ताप-वृद्धि का मान बनाइए। (2014)
हल:
उत्पन्न ऊष्मा H = i2Rt जूल = \(\frac{i^{2} R t}{4.2}\) कैलोरी
यहाँ i = 2.0 ऐम्पियर, R = 42 ओम,
t = 5 मिनट = 5 x 60 सेकण्ड = 300 सेकण्ड
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माना इस ऊष्मा द्वारा बर्तन तथा जल के ताप में Δr°C की वृद्धि होती है।
बर्तन द्वारा ली गयी ऊष्मा = ऊष्माधारिता x ताप-वृद्धि
= 50 x Ar = 50 Δt कैलोरी
जल द्वारा ली गयी ऊष्मा = ms Ar
= 100 x 1 x Δt = 100 Δt कैलोरी
कुल ली गयी ऊष्मा = 50 At + 100 Δt = 150 Δt
150 Δt = 12,000
Δt = \(\frac{12,000}{150}\) = 80°C

प्रश्न 11.
एक घर में 50 W की 2 ट्यूबलाइट, 50 W के 2 पंखे, 200 w का एक फ्रिज तथा 1 kw का एक हीटर समय-समय पर प्रयुक्त होता है। यदि घर को विद्युत आपूर्ति 250 V पर की जा रही हो तो मीटर से ली जाने वाली अधिकतम धारा की गणना कीजिए जिससे उपयुक्त रेटिंग का फ्यूज परिपथ में लगाया जा सके। आवश्यक परिपथ बनाकर इनके संयोजन को भी दिखाइए। ‘2012, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, P =(2 x 50 + 2 x 50 + 1 x 200 + 1000) W =1400 वाट
V = 250 वोल्ट, i = ?
परिपथ में अधिकतम धारा बहेगी यदि सभी उपकरण एक साथ चलेंगे।
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P = Vi से
i = \(\frac{P}{V}\) = \(\frac{1400}{250}\) = 5.6 ऐम्पियर

प्रश्न 12.
एक घर में 220 वोल्ट, 40 वाट के 5 बल्ब लगे हैं। बल्ब 30 दिन तक 5 घण्टे प्रतिदिन की दर से जलते हैं। यदि वैद्युत ऊर्जा का मूल्य ₹ 4 प्रति यूनिट हो तो ज्ञात कीजिए –
(i) बल्बों के संयोग का तुल्य प्रतिरोध
(ii) व्यय वैद्युत यूनिटों की संख्या
(iii) व्यय वैद्युत ऊर्जा का मूल्य (2017)
हल:
(i) दिया है V = 220 वोल्ट, एक बल्ब की सामर्थ्य P = 40 वाट
बल्ब का प्रतिरोध R = \(\frac{V^{2}}{P}\) = \(\frac{220 \times 220}{40}\) = 1210 ओम
∴ बल्ब समान्तर क्रम में लगे हैं, अत: 1210 ओम प्रतिरोध में 5 बल्ब समान्तर क्रम में लगे हैं। यदि इनका तुल्य प्रतिरोध R’ है, तो होता
\(\frac{1}{P}\) = \(\frac{1}{R}\) + \(\frac{1}{R}\) + \(\frac{1}{R}\) + \(\frac{1}{R}\) + \(\frac{1}{R}\) = \(\frac{5}{R}\)
∴ R’ = \(\frac{R}{5}\) = \(\frac{1210}{5}\) = 242 ओम
(ii) व्यय वैद्युत यूनिटो की संख्या =
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(iii) वैद्युत ऊर्जा का मूल्य = 30 x 4 = ₹ 120

प्रश्न 13.
आपके घर में 10 वाट के पाँच एलईडी बल्ब, 100 वाट का एक तन्तु बल्ब, 50 वाट के चार पंखे एवं 1.5 किलोवाट का एक एयर-कण्डीशनर लगा है। यदि बल्ब प्रतिदिन 5 घण्टे तथा पंखे एवं एयर-कण्डीशनर 20 घण्टे प्रयोग किये जा रहे हैं तो एक महीने (30 दिन) में ₹ 5 प्रति यूनिट की दर से विद्युत ऊर्जा का व्यय ज्ञात कीजिए। (2013, 15, 17)
हल:
व्यय विद्युत ऊर्जा (किलोवाट-घण्टा में)
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1000 कुल व्यय = 5 x 1042.5 = ₹ 5212.50

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प्रश्न 14.
1000 वाट सामर्थ्य वाले एक विद्युत हीटर को 250 वोल्ट के विद्युत मेन्स से जोड़ा जाता है। गणना कीजिए –
(i) हीटर से प्रवाहित धारा
(ii) हीटर के तार का प्रतिरोध
(iii) हीटर से प्रति मिनट उत्पन्न ऊष्मीय ऊर्जा
(iv) हीटर को 2 घण्टे उपयोग में लाने से किलो-वाट घण्टा में ऊर्जा व्यय (2016)
हल:
प्रश्नानुसार हीटर की सामर्थ्य P = 1000 वाट
विभवान्तर V = 250 वोल्ट
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(iii) हीटर से प्रति मिनट उत्पन्न ऊष्मा = i2Rt जूल
= (4)2 x 62.5 x 1 x 60
= 6.0 x 104 जूल
\(\frac{6.0 \times 10^{4}}{4.2}\) कैलोरी
= 1.43 x 104

(iv) व्यय विद्युत ऊर्जा (किलोवाट-घण्टे में)
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= 2 किलोवाट-घण्टे

प्रश्न 15.
220 वोल्ट व 10 ऐम्पियर धारा वाले विद्युत मोटर द्वारा आधे घण्टे में 40 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक पानी की टंकी में कितना पानी चढ़ाया जा सकता है? मोटर की कार्य दक्षता 80% है। पृथ्वी का गुरुत्वीय त्वरण g = 10 मी/से है। (2014, 15, 17)
हल:
प्रश्नानुसार, V = 220 वोल्ट i= 10 ऐम्पियर,
t = 30 मिनट = 30 x 60 = 1800 सेकण्ड
∴ मोटर द्वारा 30 मिनट में ली गयी ऊष्मा = Vit
= 220 x 10 x 1800
= 3.96 x 106 जूल
∴ मोटर द्वारा दी गयी ऊर्जा = 3.96 x 106 x \(\frac{80}{100}\).
= 3. 17 x 106 = m x 10 x 40
∴ m = \(\frac{3.17 \times 10^{6}}{10 \times 40}\) (∴ g = 10 मी / से)
=7.925 x 103 किग्रा
अत: 7.925 x 103 किग्रा पानी ऊपर चढ़ाया जा सकता है।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : संसाधन एवं उपयोग Chapter 6 मानचित्र अध्ययन Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन के लिए हैश्यूर विधि का विकास किसने किया था ?
(क) गुटेनबर्ग
(ख) लेहमान
(ग) गिगर
(घ) रिटर
उत्तर-
(ख) लेहमान ।

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प्रश्न 2.
पर्वतीय छायाकरण विधि में भू-आकृतियों पर किस दिशा से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है?
(क) उत्तर-पूर्व
(ख) पूर्व-दक्षिण
(ग) उत्तर-पश्चिम
(घ) दक्षिण-पश्चिम
उत्तर-
(ग) उत्तर-पश्चिम

प्रश्न 3.
छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं को ढाल की दिशा में खींचकर उच्चावच प्रदर्शन की विधि को क्या कहा जाता है ?
(क) स्तर रंजन
(ख) पर्वतीय छायाकरण
(ग) हैश्यूर
(घ) तल चिह्न
उत्तर-
(ग) हैश्यूर

प्रश्न 4.
तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को क्या कहा जाता
(क) स्थानिक ऊँचाई.
(ख) विशेष ऊँचाई
(ग) समोच्च रेखा
(घ) त्रिकोणमितीय स्टेशन
उत्तर-
(क) स्थानिक ऊँचाई.

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प्रश्न 5.
स्तर रंजन विधि के अंतर्गत मानचित्रों में नीले रंग से किस भाग को दिखाया जाता है ?
(क) पर्वत
(ख) पठार
(ग) मैदान
(घ) जल
उत्तर-
(घ) जल

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हैश्यूर विधि तथा पर्वतीय छायाकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हैश्यूर विधि इस विधि के अन्तर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं की सहायता से उच्चावच को निरूपित करते हैं। ये रेखाएँ ढाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं।

पर्वतीय छायाकरण विधि- इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

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प्रश्न 2.
तल चिह्न और स्थानिक ऊँचाई क्या है ?
उत्तर-
तलचिह्न-वास्तविक सर्वेक्षणों के द्वारा भवनों, पुष्पों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थायी वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गयी ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न कहते हैं। मानचित्र पर ऐसे ऊँचाई को प्रदर्शित करने के लिए ऊँचाई को फीट अथवा मीटर किसी एक इकाई में लिखा जाता है।

स्थानिक ऊँचाई तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊंचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊंचाई संख्या में लिख दी जाती है।

प्रश्न 3.
समोच्च रेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वे कल्पित रेखाएं जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं।
मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. क्रुकुइस ने 1730 में किया था।

प्रश्न 4.
स्तर रंजन क्या है?
उत्तर-
भू-आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर विभिन्न रंगों की अलग-अलग आभाओं द्वारा करना स्तर रंजन कहलाता है। जैसे -समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग द्वारा, मैदान को हरे रंग द्वारा, पर्वतों को बादामी रंग द्वारा, ऊँची जमीन को भूरे रंग द्वारा इत्यादि।

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प्रश्न 5.
समोच्च रेखाओं द्वारा शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
जिस प्रदेश की ऊँचाई 1000 मी. से कम हो वह शंक्वाकार पहाड़ी कहलाता है और इससे अधिक ऊँचाई वाले भाग को पर्वत कहते हैं। इसके प्रदर्शन के लिए समोच्च रेखाएँ गोलाकार होती हैं जिनका मान भीतर की ओर बढ़ता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(i) हैश्यूर विधि-इस विधि के अन्तर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं की सहायता से उच्चावच को निरूपित करते हैं। ये रेखाएँ ढाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं।

पर्वतीय छायाकरण विधि-इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों कर पर उत्तर-पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

(ii) तल चिह्न वास्तविक सर्वेक्षणों के द्वारा भवनों, पुष्पों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थायी वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गयी ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न कहते हैं। मानचित्र पर ऐसे ऊँचाई को प्रदर्शित करने के लिए ऊंचाई को फीट अथवा मीटर किसी एक इकाई में लिखा जाता है।

स्थानिक ऊँचाई तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊंचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दी जाती है।

(iii) वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं। .. मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. क्रुकुइस ने 1730 में किया था।

(iv) भू-आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर विभिन्न रंगों की अलग-अलग आभाओं द्वारा करना स्तर रंजन कहलाता है। जैसे-समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग द्वारा, मैदान को हरे रंग द्वारा, पर्वतों को बादामी रंग द्वारा, ऊँची जमीन को भूरे रंग द्वारा इत्यादि।

(v) त्रिकोणमितीय स्टेशन–इसका संबंध उन बिन्दुओं से है जिनका उपयोग त्रिभुजन विधि (एक प्रकार का सर्वेक्षण) द्वारा करते समय स्टेशन के रूप में उभरा हुआ था। मानचित्र पर त्रिभुज बनाकर उसके बगल में धरातल की समुद्रतल से ऊंचाई लिख दी जाती है।

(vi) आकृतिक विधि-स्थलाकृतिक लक्षणों से मिलते-जुलते प्रतीकों के द्वारा मानचित्र में दृश्य भूमि के प्रदर्शन को आकृतिक विधि कहते हैं।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
समोच्च रेखा क्या है ? इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के ढालों का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
समोच्च रेखा-वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं।

विभिन्न पठार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं के खींचने या बनाने का प्रारूप अलग-अलग होता है। समोच्च रेखाओं द्वारा ढाल का प्रदर्शन सरलतापूर्वक किया जाता है जिसका विवरण निम्न है

  • एक समान ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को समान दूरी पर खींचा जाता है।
  • खड़ी ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएँ पास-पास बनाई जाती हैं, जबकि मंद ढाल के लिए इन रेखाओं को दूर-दूर बनाया जाता है।
  • जब किसी मानचित्र में अधिक ऊँचाई की समोच्च रेखाएँ पास पास तथा कम ऊँचाई की समोच्च रेखाएं दूर-दूर बनी होती हैं तो समझना चाहिए कि इन समोच्च रेखाओं का समूह अवतल ढाल का प्रदर्शन कर रहा है। इसके विपरीत स्थिति उतल ढाल का प्रतिनिधित्व करती है।
  • सीढ़ीनुमा ढाल के लिए समोच्च रेखाएं अंतराल पर परंतु दो या तीन रेखाएँ एक साथ जोड़ में बनाई जाती हैं।

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यदि समोच्च रेखाएं एक-दूसरे से बहुत अधिक दूरी पर खींची गयी हों, तो इनसे किस प्रकार की भूआकृति का प्रदर्शन होता है ?
(क) धीमी ढाल
(ख) खड़ी ढाल
(ग) सागर तल
(घ) सीढ़ीनुमा ढाल
उत्तर-
(क) धीमी ढाल

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
यदि भूमि की ढाल को छोटी-छोटी और सटी हुयी रेखाओं से प्रदर्शित किया गया हो, तो इसे क्या कहा जाता है ?
(क) छायालेखन
(ख) हैश्यूर
(ग) समोच्च रेखाएँ
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) हैश्यूर

प्रश्न 3.
यदि समोच्च रेखाओं द्वारा किसी नदी को प्रदर्शित करने में दो से अधिक रेखाएँ.एक ही बिंदु पर मिलती दिखायी गयी हों तो उस स्थान पर किस प्रकार की भूआकृति का अनुमान लगाया जाता है ?
(क) झील
(ख) पहाड़
(ग) जलप्रपात
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) जलप्रपात

प्रश्न 4.
जब समोच्च रेखाएँ संकेंद्रीय वृत्ताकार हों जिनके बीच की वृत्तीय रेखा अधिक ऊँचाई प्रदर्शित करती हो तो इससे किस प्रकार की भूआकृति का अनुमान लगाया जाता है ?
(क) पहाड़
(ख) पठार
(ग) नदीघाटी
(घ) जलप्रपात
उत्तर-
(क) पहाड़

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प्रश्न 5.
उच्चावच प्रदर्शन की हैश्यूर विधि का विकास किसने किया था ?
(क) गुटेनबर्ग
(ख) लेहमान
(ग) शिगर
(घ) रिटर
उत्तर-
(ख) लेहमान

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
समोच्च रखाएँ क्या हैं ?
उत्तर-
वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं। मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. कुकुइस ने 1730 ई. में किया था।

प्रश्न 2.
किसी देश के मानचित्र में हरे रंग का प्रयोग किस प्रकार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिये किया जाता है?
उत्तर-
किसी देश के मानचित्र में हरे रंग का प्रयोग मैदानों के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हैश्यर से आप क्या समझते हैं ? इसका प्रयोग किस काम के लिए किया जाता है?
उत्तर-
मानचित्र बनाने में भूमि की ढाल दिखाने के लिए छोटी-छोटी और सटी रेखाओं से काम लिया जाता है, जिन्हें हैश्यूर कहते हैं। खड़ी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अधिक छोटी और सटी रेखाएँ तथा धीमी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अपेक्षाकृत बड़े और दूर-दूर रेखा चिन्ह खींचे जाते हैं। समतल भाग के लिए रेखा चिह्न नहीं खींचे जाते, ये भाग खाली छोड़ दिए जाते हैं।
इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचाई का सही ज्ञान नहीं हो पाता है। इस विधि में रेखाचिह्नों को खींचने में अधिक समय लगता है। समोच्च रेखा वाले मानचित्र में छोटी आकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए यह विधि अपनायी जाती है। इस विधि का विकास आस्ट्रेलिया के एक सैन्य अधिकारी लेहमान ने किया था।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
समोच्च रेखाएँ (Contoursor Contour line) क्या हैं ?
उत्तर-
समुद्र की सतह के समानांतर समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा समोच्च रेखा कहलाती है। विभिन्न ऊंचाई के लिए विभिन्न समोच्च रेखाएँ खींची जाती हैं जो एक दूसरे से कभी नहीं कटती हैं। जिस भू-भाग में खड़ी ढाल रहती है, वहाँ यह रेखाएँ सटी और घनी नजर आती हैं। इसके विपरीत कम ढाल आने पर ये दूर हो जाती हैं। प्रत्येक समोच्च रेखा पर ऊँचाई के अंक अंकित किए जाते हैं।

ऊँचाई-गहराई दिखाने की यह सर्वोत्तम विधि है। इस विधि से पहाड़, पठार, नदी घाटी, जल प्रपात या विभिन्न प्रकार की ढाल को भली-भाँति दिखाया जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन में पर्वतीय छाया विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वतीय छायाकरण विधि- इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर-पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान तो प्राप्त किया जा सकता है, पर सही-सही ऊँचाई या निचाई का पता नहीं लगाया जा सकता है और न ढाल की यथेष्ट जानकारी ही मिल सकती है। लघु मापक मानचित्रों में यह विधि काम में लायी जा सकती है।

प्रश्न 2.
रंग विधि से उच्चावच प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ? समझाकर लिखें।
उत्तर-
रंग विधि या स्तर-रंजन में स्थल के विभिन्न भागों को विभिन्न रंगों से भी दिखाया जाता है। साधारणत: मैदान को हरे रंग से और पहाड़ को या पठार को भूरे रंग से दिखाया जाता है। भूरे रंग के साथ हल्के गुलाबी रंग का भी प्रयोग किया जा सकता है। बर्फीला भाग सफेद रंग से एवं जलीय भाग या समुद्र नीले रंग से प्रदर्शित किया जाता है। मरुभूमि पीले रंग से दिखायी जाती है। रंगों के अभाव में काली स्याही के विभिन्न स्तरों से ही काम लिया जाता है। – यह विधि भी दोष से युक्त नहीं है। इसमें भी ऊँचाई-निचाई का ठीक-ठीक पता नहीं चलता । है। उदाहरण के लिए, 0 m से 100 m तक ऊँची भूमि के लिए जब एक ही रंग का प्रयोग किया । जाता है तो भूमि की वास्तविक ढाल नहीं जानी जा सकती है।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Notes

  • पूरे भू-पटल या इसके एक भाग की समतल सतह पर समानुपाती प्रदर्शन मानचित्र कहलाता
  • जब धरातल की विभिन्न आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर किया जाता है तो उसे उच्चावच मानचित्र कहा जाता है।
  • मानचित्र पर जमीन या मैदान को हरे तथा पीले रंग से, ऊँची जमीन को भूरे रंग से तथा अधिक ऊँची जमीन को अधिक भूरे रंग से दिखाया जाता है।
    Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन - 1

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : संसाधन एवं उपयोग Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Geography बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
2001 में बिहार की कल जनसंख्या थी-
(क) 8 करोड़ से कम
(ख)-9 करोड़ से अधिक
(ग) 8 करोड़ से अधिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) 8 करोड़ से अधिक

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 2.
1991-2001 के दौरान बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर है
(क) 30 प्रतिशत
(ख) 28 प्रतिशत
(ग) 28.63 प्रतिशत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) 28.63 प्रतिशत

प्रश्न 3.
बिहार में ग्रामीण आबादी है
(क) 89.5 प्रतिशत
(ख) 79.5 प्रतिशत
(ग) 99.5 प्रतिशत
(घ) शून्य प्रतिशत
उत्तर-
(क) 89.5 प्रतिशत

प्रश्न 4.
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रतिवर्ग किलोमीटर कितने व्यक्ति रहते हैं ?
(क) 772 व्यक्ति
(ख) 881 व्यक्ति
(ग) 981 व्यक्ति
(घ) 781 व्यक्ति
उत्तर-
(ख) 881 व्यक्ति

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 5.
सबसे अधिक आबादी वाला कौन जिला है ?
(क) भागलपुर
(ख) पटना
(ग) नालन्दा
(घ) मुंगेर
उत्तर-
(ख) पटना

प्रश्न 6.
सासाराम नगर का विकास हुआ था
(क) मध्ययुग में
(ख) प्राचीन युग में
(ग) वर्तमान युग में
(घ) आधुनिक समय में
उत्तर-
(क) मध्ययुग में

प्रश्न 7.
अविभाजित बिहार में एक मात्र नियोजित नगर था
(क) पटना
(ख) मुंगेर
(ग) टाटानगर
(घ) गया
उत्तर-
(ग) टाटानगर

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 8.
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार की नगरीय आबादी है-
(क) 20.5 प्रतिशत
(ख) 15.5 प्रतिशत
(ग) 10.5 प्रतिशत
(घ) 25.5 प्रतिशत
उत्तर-
(ग) 10.5 प्रतिशत

प्रश्न 9.
बिहार का सबसे बड़ा नगर कौन है ?
(क) पटना
(ख) गया
(ग) भागलपुर
(घ) दरभंगा
उत्तर-
(क) पटना

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिहार के अत्यधिक घनत्व वाले जिलों का नाम लिखें।
उत्तर-
पटना, दरभंगा, वैशाली, बेगूसराय, सीतामढ़ी, सारण एवं सीवान।

प्रश्न 2.
बिहार में अत्यन्त कम घनत्व वाले जिले कौन-कौन हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी चम्पारण, बांका, जमुई और कैमूर।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 3.
बिहार की जनसंख्या आकार को बताइए।
उत्तर-
2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की कुल जनसंख्या 829,98,509 है। इनमें 432,43,795 पुरुष एवं 3,97,54,714 महिलाएं हैं। यहाँ भारत की कुल जनसंख्या का 8.07% है। बिहार में लिंग अनुपात 919 महिलाएँ प्रति हजार पुरुष हैं।

प्रश्न 4.
बिहार की जनसंख्या सभी जगह एक समान नहीं है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यहाँ जनसंख्या के असमान वितरण का मुख्य कारण है आर्थिक-सामाजिक परिवेश और भौतिक विविधता।
जहाँ भी धरातल समतल जलोढ़ एवं मैदानी है वहाँ घनी आबादी है। जहाँ कृषि कार्य, प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है वहाँ जनसंख्या अधिक है।

प्रश्न 5.
मध्ययुग में बिहार में नगरों का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
मध्यकाल में नगरों का विकास सड़कों के विकास एवं प्रशासनिक कारणों से हुआ था। ऐसे नगरों में सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि हैं।

प्रश्न 6.
दो प्राचीन एवं दो आधुनिक नगरों का नाम लिखिए।
उत्तर-
प्राचीन नगर पाटलीपुत्र, नालन्दा आधुनिक नगर डालमियानगर, मुंगेर।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिहार की जनसंख्या घनत्व पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रतिवर्ग किमी. घनत्व 881 व्यक्ति है। सबसे अधिक घनत्व पटना जिला में है जहाँ प्रति वर्ग किमी. 1,471 व्यक्ति निवास करते हैं। इसके बाद दरभंगा और वैशाली का स्थान आता है। जहाँ क्रमशः 1,342 और 1,332 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. रहते हैं। चौथे स्थान पर बेगुसराय जिला है, यहाँ घनत्व 1,222 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है।

यहाँ के विभिन्न जिलों की जनसंख्या घनत्व बहुत ही असमान है। इसके आधार पर बिहार को पाँच वर्गों में बाँटा गया है।

(i)अत्यधिक घनत्व वाले जिले जिन जिलों का घनत्व 1200 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। इसे इस वर्ग में रखा गया है। पटना, दरभंगा, वैशाली, बेगुसराय, सीतामढ़ी, सारण, सीवान इसके अन्तर्गत हैं। इन जिलों में राज्य की 17.50% भूमिपर 28.17% आबादी रहती है।

(ii) उच्च घनत्व के जिलेइसके अन्तर्गत वे जिले हैं, जहाँ औसत घनत्व 1000-1200 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. के बीच है। मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, गोपालगंज, मधुबनी तथा नालन्दा इस वर्ग में आते हैं। इस समूह में नालन्दा जिला को छोड़कर सभी जिले उत्तरी बिहार में स्थित है।

(iii) मध्यम घनत्व के जिले-इसके अन्तर्गत 1000-800 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. में रहते हैं। पूर्वी चम्पारण, भागलपुर, जहानाबाद, अरवल, भोजपुर, सहरसा, खगड़िया, मधेपुरा, बक्सर और मुंगेर जिले इस वर्ग में सम्मिलित हैं। इन जिलों में राज्य की 24% से अधिक भूमि और राज्य की कुल जनसंख्या की 18% अबादी वास करती है।

(iv) कम घनत्व जिले—इस वर्ग के अन्तर्गत पूर्णिया, कटिहार, अररिया, नवादा, शेखपुरा, सुपौल, गया, किशनगंज, लक्खीसराय, रोहतास और औरंगाबाद जिले आते हैं। इसमें औसत 600-800 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. निवास करते हैं। इन जिलों की लगभग 30% भूमि पर 26% अबादी वास करती है।

(v) अत्यंत कम घनत्व वाले जिले- इस वर्ग में वो आते हैं जिनकी अबादी 600 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. से कम है। इस वर्ग के अन्तर्गत पश्चिमी चम्पारण, बाँका, जमुई और कैमूर जिला आते हैं। जिनका घनत्व 38.2 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। इन जिलों में राज्य की भूमि का 14.58 एवं कुल जनसंख्या का 9% आबादी निवास करती है।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 2.
बिहार में नगर विकास पर एक विश्लेषण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
बिहार में नगरों के विकास का इतिहास बहुत पुराना है। यहाँ के अधिकतर प्रमुख नगर किसी न किसी नदी के तट पर विकसित है। यहाँ के प्राचीन नगरों का इनमें पाटलिपुत्र, नालन्दा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया उदवेतपुरी, सीतामढ़ी आदि प्राचीन नगरों के उदाहरण हैं। मध्यकाल में भी यहाँ नगरों का विकास सड़कों के विकास एवं प्रशासनिक कारणो से हुआ था। ऐसे नगरों में, सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि आते हैं। अंग्रेजों के समय में बिहार में कुछ बदलाव आया रेल और सड़क मार्गों का विकास हुआ जिसके किनारे नगर विकसित होने लगे। आजादी के बाद यहाँ नगरों के विकास में तेजी आयी, राज्यों में औद्योगिक विकास स्वास्थ्य शिक्षा एवं जीवन की मौलिक सुविधाओं के कारण कई नए नगर भी विकसित हुए। इनमें बरौनी, हाजीपुर, दानापुर, डालमिया नगर, मुंगेर, जमालपुर कटिहार आदि हैं। किन्तु आज के बिहार में नगरों का विकास भारत के बड़े राज्यों की तुलना में बहुत ही कम हुआ है। यह सबसे कम शहरीकृत सध्य है। – वर्तमान में बिहार में 1 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों की संख्या मात्र एक है। 10 लाख से ऊपर आबादी वाले महानगर में केवल पटना नगर है। 2001 की जनगणना के अनुसार कुल नगरीय बस्तिया की संख्या 131 है।

बिहार के नगरों का कार्यात्मक स्वरूप इनकी उत्पत्ति से सम्बंधित है। यहाँ के पुराने नगर प्रशासन तथा व्यापार से जुड़े हो परन्तु आधुनिक नगर उद्योग, यातायात, व्यापार एवं शिक्षा से सम्बन्धित है। यहाँ के लगभग सभी जिला मुख्यालय शुरू से ही प्रशासनिक कार्य के साथ-साथ थोक व्यवसाय, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे नगरियो कार्यों से विकसित है। बिहार में कुछ चुने हुए नगरों में ही औद्यौगिक इकाइयाँ स्थापित हैं। इनमें मुंगेर, बरौनी, जमालपुर, कटिहार प्रमुख हैं।

बिहार विभाजन से पूर्व टाटानगर इस राज्य का मात्र नियोजित नगर था, जमशेदजी टाटा ने केवल बिहार को बल्कि भारत को आधुनिक नगर नियोजन से सर्वप्रथम परिचय कराया। किन्तु विभाजन के उपरांत बिहार में एक भी नियोजित नगर विकसित नहीं है। बिहार की राजधानी पटना भी आंशिक रूप से विकसित है। बिहार के अधिकतर नगर अव्यवस्थित हैं।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Geography बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Notes

  • यहाँ 3000 वर्ष पूर्व से ही मानव बसाव के प्रमाण मिलते हैं।
  • मगध साम्राज्य में 80 हजार से भी अधिक गाँव आबाद थे।
  • वर्तमान समय में उ. प्र. और महाराष्ट्र के बाद जनसंख्या की दृष्टि से बिहार तीसरा बड़ा राज्य है।
  • 2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या-8,2998,509 है। इनमें 4,32,43,795
  • पुरुष एवं 397,54,714 महिलाएँ हैं।
    • बिहार में लिंग अनुपात 919 महिलाएँ प्रति हजार पुरुष हैं।
    • बिहार में प्रतिवर्ग किमी. घनत्व 881 व्यक्ति है।
    • सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला जिला पटना एवं सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाला जिला कैमूर है।
    • यहाँ के प्राचीन नगर-पटलीपुत्र, नालन्दा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया, उदंतपुरी, सीतामढ़ी आदि हैं। ।
    • मध्यकालीन नगर-सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि हैं।
    • डालमियानगर, मुंगेर, बरौनी, जमालपुर, कटिहार इत्यादि आधुनिक नगर हैं।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2 Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही विकल्प चुनें।

प्रश्न 1.
भारत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की घोषणा कब हुई ?
(क) 1986
(ख) 1980
(ग) 1987
(घ) 1988
उत्तर-
(क) 1986

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 17 मार्च
(ख) 15 मार्च
(ग) 19 अप्रैल
(घ) 22 अप्रैल
उत्तर-
(ख) 15 मार्च

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नं क्या है ?
(क) 100
(ख) 1000-100
(ग) 1800-11-4000
(घ) 2000-114000
उत्तर-
(ग) 1800-11-4000

प्रश्न 4.
स्वर्णाभूषणों की परिशुद्धता को सुनिश्चित करने के लिए किस मान्यता प्राप्त चिह्न का होना आवश्यक है ?
(क) ISI मार्क
(ख) हॉल मार्क
(ग) एगमार्क
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) हॉल मार्क

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 5.
यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य 20 लाख से अधिक तथा 1 करोड़ से कम है जो उपभोक्ता शिकायत करेगा
(क) जिला फोरम
(ख) राज्य आयोग
(ग) राष्ट्रीय आयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) राज्य आयोग

प्रश्न 6.
उपभोक्ता द्वारा शिकायत करने के लिए आवेदन शुल्क कितना लगता है.?
(क) 50 रु.
(ख) 70 रु.
(ग) 10 रु. .
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(घ) इनमें से कोई नहीं

II. सही कथन में सही का (V) तथा गलत में (x) का निशान लगाएँ।

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 को संक्षिप्त रूप में कोपरा (COPRA) कहते हैं।
उत्तर-
सही

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन टेलीफोन नं. 15,000 है।
उत्तर-
गलत

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 3.
भारत में ‘सूचना पाने का अधिकार 2005’ कानून बनाया गया।
उत्तर-
सही

प्रश्न 4.
उपभोक्ता को खराब वस्तु या सेवा मिलने पर उत्पादक से मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
उत्तर-
सही

प्रश्न 5.
‘हॉलमार्क’ आभूषणों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने वाला चिह्न है।
उत्तर-
सही

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आप किसी खाद्य पदार्थ संबंधी वस्तुओं को खरीदते समय कौन-कौन सी मुख्य बातों का ध्यान रखेंगे, बिन्दुवार उल्लेख करें।
उत्तर-
खाद्य पदार्थ संबंधी वस्तुओं को खरीदते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है

  • अवयवों की सूची
  • वजन का परिमाण
  • निर्माता का नाम व पता
  • निर्माण की तिथि।
  • इस्तेमाल की समाप्ति, निर्दिष्ट से पहले इस्तेमाल की तिथि
  • निरामिष सामिष चिह्न
  • डाले गये रंग और खुशबू की घोषणा।
  • पोषाहार का दावा-सम्मिलित पौष्टिक तत्वों की मात्राएँ।
  • स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक चेतावनी।
  • वैधानिक चेतावनी तम्बाकू। शिशु के लिए हल्का विकल्प।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता जागरण हेतु विभिन्न नारों को लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता जागरण हेतु विभिन्न नारे इस प्रकार हैं

  • सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
  • ग्राहक सावधान।
  • अपने अधिकार को पहचानो।
  • जागो ग्राहक जागो।
  • उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों की रक्षा करें

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिससे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर-
उपभोक्ता के शोषण होने के निम्नलिखित प्रमुख कारक इस प्रकार हैं

  • मिलावट की समस्या-महँगी वस्तुओं में मिलावट करके उपभोक्ता का शोषण होता है
  • कम तौलने द्वारा वस्तुओं की माप में हेरा-फेरी करके भी उपभोक्ता का शोषण होता है
  • कम गुणवत्तावाली वस्तु-उपभोक्ता को धोखे से अच्छी वस्तु के स्थान पर का गुणवत्ता वाली वस्तु देकर शोषण करना।
  • ऊँची कीमत द्वारा-ऊंची कीमतें वसूल करके भी उपभोक्ता का शोषण किया जाता है
  • डुप्लीकेट वस्तुएँ सही कम्पनी की डुप्लीकेट वस्तुएँ प्रदान करके उपभोक्ता का शोषा होता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता के रूप में बाजार में उनके कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
उपभोक्ता जब कोई वस्तु खरीदता है, तो यह आवश्यक है कि वह उस वस्तु की रसी अवश्य ले ले एवं वस्तु की गुणवत्ता, ब्रांड, मात्रा, शुद्धता, मानक, माप-तौल, उत्पाद/निर्माण के तिथि, उपभोग की अंतिम तिथि, गारंटी/वारंटी पेपर, गुणवत्ता का निशान जैसे आई. एस. आई. एगमार्क, हॉलमार्क (आभूषण) और मूल्य की दृष्टि से किसी प्रकार के दोष, अपूर्णता पाते है तो सेवाएँ लेते समय अतिरिक्त सतर्कता एवं जागरुकता रखें। इस प्रकार उपभोक्ता अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 5.
उपभोक्ता कौन हैं ? संक्षेप में बतायें।
उत्तर-
उपभोक्ता बाजार व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति जब वस्तुएँ एवं सेवाएँ अप प्रयोग के लिए खरीदता है तब वह उपभोक्ता कहलाता है। खरीददारी की अनुमति से ऐसी वस्तुऊ और सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। महात्मा गाँधी के शब्दों में, “उपभोक्ता हमारी दुकान” में आने वाला सबसे महत्वपूर्ण व्यकि है। वह हम पर निर्भर नहीं, हम उनपर निर्भर हैं।”

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता के कौन-कौन अधिकार हैं ? प्रत्येक अधिकार को सोदाहरण लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता के निम्नलिखित प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं (i) सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता का प्रथम अधिकार, सुरक्षा का अधिकार है। इर अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा हुआ है उपभोक्ता को ऐसी वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरी या सम्पत्ति को हानि हो सकती है। जैसे—बिजली का आयरन विद्युत आपूर्ति की खराबी के कारण करंट मार देता है या एक डॉक्टर ऑपरेशन करते समय लापरवाही बरतता है जिसके कारण मरील को खतरा या हानि होती है।

(ii) सूचना पाने का अधिकार– उपभोक्ता को वे सभी आवश्यक सूचनाएं भी प्राप्त कर का अधिकार है जिसके आधार पर वह वस्तु या सेवाएँ खरीदने का निर्णय कर सकते हैं। जैसे पैकेट बंद सामान खरीदने पर उसका मूल्य, इस्तेमाल करने की अवधि, गुणवत्ता इत्यादि की सूचना प्राप्त करें।

(iii) चुनाव या पसंद करने का अधिकार-उपभोक्ता अपने अधिकार के अन्तर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्राण्ड, किस्म, गुणा, रूप, रंग, आकार तथा मूल्य की वस्तुओं में किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र है।

(iv) सुनवाई का अधिकार-उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करनेवाली सभी बातों को उपयुक्त मंचों के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है। उपभोक्ता को अपने मंचों के साथ जुड़कर अपने बातों को रखनी चाहिए।

(v) शिकायत निवारण या क्षतिपूर्ति का अधिकार-यह अधिकार लोगों को आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गयी वस्तु या सेवा उचित ढंग की नहीं निकले तो उन्हें मुआवजा दिया जायेगा।

(vi) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार-उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार के अन्तर्गत किसी .. वस्तु के मूल्य, उसकी उपयोगिता, कोटि तथा सेवा की जानकारी तथा अधिकारों से ज्ञान प्राप्ति की सुविधा जैसी बातें आती हैं जिसके माध्यम से शिक्षित उपभोक्ता धोखाधड़ी या दगाबाजी से बचने के लिए स्वयं सबल संरक्षित एवं शिक्षित हो सकते हैं एवं उचित न्याय के लिए खड़े हो सकते हैं। इसलिए एक सजग उपभोक्ता बने रहने के लिए निरंतर शिक्षा पाने का अधिकार दिया गया है।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की मुख्य विशेषताओं को लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • यह सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है जब तक कि केन्द्रीय सरकार ने विशेष छूट नहीं दी हो।
  • यह सभी क्षेत्रों पर लागू होता है चाहे वह निजी क्षेत्र हो, सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा .सहकारिता का क्षेत्र हो।
  • इस अधिनियम के प्रावधान प्रकृति से क्षतिपूरक हैं। दूसरे शब्दों में, यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अन्य कानूनों में उपलब्ध निवारण के अतिरिक्त निवारण प्रदान करता है तथा उनमें से चुनाव उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है। .
  • सुरक्षा, सूचना, चयन, प्रतिनिधित्व, शिकायत निवारण एवं उपभोक्ता शिक्षा से संबंधित अधिकारों को उच्च स्थान प्रदान करता है।
  • उपभोक्ता को कुछ अनुचित एवं पतिबंधात्मक व्यापार, कार्यवाहियों, सेवाओं में कमियों. अथवा बुराइयों एवं सेवाओं को रोक लेने पर रोक लगाने तथा बाजार से खतरनाक वस्तुओं को हटाने की मांग का अधिकार है।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता संरक्षण हेतु सरकार द्वारा गठित न्यायिक प्रणाली (त्रिस्तरीय प्रणाली)को विस्तार से समझायें।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था की गयी है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है

  • राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग
  • राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय आयोग।
  • जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम)।

उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में त्रिस्तरीय अर्द्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें जिला * मंचों, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी है।

यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यावहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित (जल्दी) एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है। जिस तरह आदालतों में मुकदमे दायर होते हैं उसी तरह उनकी सुनवाई की होती है। पहले शिकायत जिला फोरम में की जाती है। शिकायतकर्ता अगर संतुष्ट नहीं है, तो मामला को राज्य फोरम फिर राष्ट्रीय फोरम में ले जा सकता है। पुनः अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से संतुष्ट नहीं होता तो वह आदेश के 30 दिनों के अंदर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में अपील कर सकता है।
अतः सरकार त्रिस्तरीय प्रणाली द्वारा उपभोक्ता शिकायतों का निवारण करती है और उसे हर संभव न्याय देती है।

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प्रश्न 4.
दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरुकता की जरूरतों का वर्णन करें।
उत्तर-
(i) व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना है किन्तु कुछ व्यापारी अधिक लाभ कमाने की इच्छा से उपभोक्ताओं का शोषण करने लगे जिसके कारण एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता महसूस हुई जिससे उपभोक्ता के हितों की रक्षा की जा सके। । (ii) कभी-कभी उपभोक्ता व्यापारियों के द्वारा अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है। – उसे चुकाये गये मूल्य के बराबर वस्तु अथवा सेवा प्राप्त नहीं होती। यहाँ तक कि कभी-कभी उसे मिलावट की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं जिससे उसे अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उसे उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 5.
मानवाधिकार अधिकार आयोग के महत्व को लिखें।।
उत्तर-
हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर एक उच्चतम संस्था है जो मानवीय अधिकारों की रक्षा और उनके अधिकार से संबंधित हितों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है। इस संस्था को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था कहते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का महत्व इस बात से बढ़ जाता है कि इसके अध्यक्ष भारत के उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त प्रधान न्यायाधीश होते हैं। इसी तरह देश के प्रत्येक राज्य में एक राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है जो देश के नागरिकों के अधिकारऔर सुरक्षा संबंधी बातों को देखती है। विगत दिनों इस आयोग के कार्यों को देखने से पता लगता है कि यह अति संवेदनशील है। अतः कहा जा सकता है कि मानवाधिकार आयोग का बहुत अधिक महत्व है। इसके अन्तर्गत मानवीय अधिकारों का संरक्षण होता है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
आपका विद्यालय उपभोक्ता जागरूकता हेतु आपके वर्ग में एक पोस्टर प्रतियोगिता आयोजन करता है जिसमें सभी उपभोक्ता अधिकार बिन्दुवार शामिल करते हुए एक पोस्टर तैयार करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आकर्षक नारा संबंधी विज्ञापन तैयार करें।
उत्तर-

  1. जागो ग्राहक जागो।
  2. अपने अधिकारों को पहचानो।

प्रश्न 3.
सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
अपने आस-पास के चार-पाँच लोगों का प्रश्नावली के आधार पर साक्षात्कार लें जिसमें यह पता चले कि वे शोषण के शिकार कहाँ और कैसे हुए हैं ? उनके शोषण के अनुभवों को कहानीबद्ध करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता अधिकार से संबंधित प्रश्नावली को वितरित कर अपने क्षेत्र का सर्वेक्षण करें और जानें कि वे उपभोक्ता के रूप में कितने जागरुक है ?
Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण - 1
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टिप्पणी-
(क) यदि प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘ग’ और शेष के लिए ‘क’ है, तो आप उपभोक्ता के रूप में पूरी तरह जागरुक हैं।
(ख) अगर प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘क’ और शेष के लिए ‘ग’ है. तो आपको उपभोक्ता के रूप में जागरुक होने की जरूरत है।
(ग) यदि सभी प्रश्नों के लिए आपका उत्तर ‘ख’ है, तो आप आशिक रूप से जागरुक हैं।

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Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपभोक्ताओं के शोषण के मुख्य प्रकार है
(क) माप-तौल में कमी
(ख) मिलावट
(ग) भ्रामक प्रचार
(घ) इनमें तीनों ही
उत्तर-
(घ) इनमें तीनों ही

प्रश्न 2.
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ पारित हुआ
(क) 1982 में
(ख) 1984 में
(ग) 1986 में
(घ) 1991 में
उत्तर-
(ग) 1986 में

प्रश्न 3.
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की अपील सुनने का अधिकार है
(क) राज्य आयोग को
(ख) राष्ट्रीय आयोग को
(ग) दोनों को
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) दोनों को

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प्रश्न 4.
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है।
(क) 15 जनवरी को
(ख) 15 मार्च को
(ग) 15 अप्रैल को
(घ) 15 दिसंबर को
उत्तर-
(ख) 15 मार्च को

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन भोज्य पदार्थों की शद्धता की गारंटी देता है ?
(क) हॉलमार्क
(ख) एगमार्क
(ग) आई.एस.आई.
(घ) बुलमार्क
उत्तर-
(ख) एगमार्क

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा जब किसी वस्तु को उपभोक्ताओं के बीच बेचा जाता है तथा उपभोक्ताओं द्वारा उसकी गुणवत्ता की जाँच करने पर गलत पाया जाता है तो इसे ही हम उपभोक्ता शोषण कहते हैं।

प्रश्न 2.
बाजार में अनुचित व्यापार कब अधिक होता है ?
उत्तर-
खाद्यान्न की कमी अत्यधिक होने के कारण या किसी भी वस्तु की बाजार में अत्यधिक माँग होने पर उस वस्तु की कमी होना, बाजार में अनुचित व्यापार को बढ़ावा देता है। कालाबाजारी जमाखोरी इत्यादि अनुचित व्यापार-आरंभ हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
बाजार में नियमों और विनिमयों की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर-
बाजार में उपभोक्ताओं के शोषण को रोकने तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नियमों और विनियमों की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 4.
‘उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन’ का प्रारंभ सर्वप्रथम किस देश में हुआ?
उत्तर-
उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ सर्वप्रथम इंगलैंड में हुआ।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर-
उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।

प्रश्न 6.
“विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस’ कब मनाया जाता है?
उत्तर-
15 मार्च को प्रत्येक वर्ष विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रश्न 7.
‘कोपरा’ क्या है?
उत्तर-
सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को ही संक्षेप में ‘कोपरा’ कहते हैं।

प्रश्न 8.
क्या “कोपरा’ केवल वस्तुओं के विक्रय पर लागू होता है ?
उत्तर-
कोपरा’ वस्तुओं के विक्रय के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तथा दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करती है।

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प्रश्न 9.
जब आप कोई सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर किस प्रकार की जानकारी रहती है ?
उत्तर-
सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते समय उसके पैकेट पर उस वस्तु के उत्पादक कम्पनी का नाम मूल्य, निर्माण की तिथि, अंतिम तिथि आदि की जानकारी दी हुई रहती है।

प्रश्न 10.
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किस प्रकार के कानून बनाए गए हैं.
उत्तर-
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाए गए हैं। जो एक कानूनी उपाय है।

प्रश्न 11.
उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें किस प्रकार का अधिकार प्रदान किया गया है?
उत्तर-
उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें क्षतिपूर्ति अधिकार की व्यवस्था की गयी है। इसके लिए सरकार में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की व्यवस्था की जिसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था. है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाजार में उपभोक्ताओं का किस प्रकार से शोषण किया जाता है ?
उत्तर-
बाजार में उपभोक्ताओं को निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  • विक्रेता प्रायः वस्तुओं का उचित ढंग से माप-तौल नहीं करता तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
  • कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
  • बाजारों में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
  • कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत था अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में किन कारणों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ हुआ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में एक सामाजिक शक्ति के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गयी थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक और विक्रेता खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगे थे। इसके विरोध में देश में उपभोक्ता आंदोलन संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। 1970 के इराक में कई उपभोक्ता संगठन जन-प्रदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित करने लगे थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी विक्रेता उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे तथा कई प्रकार से मनमानी करते थे। विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया हैं उपभोक्ता आंदोलनों ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है। सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया।

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प्रश्न 3.
दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करें।
उत्तर-
उपभोक्ता जागरण की आवश्यकता अनेक अवसरों पर महसूस की जाती है जैसे शिक्षण संस्थाएँ अपने लुभावने प्रचारों के माध्यम से छात्रों को आकर्षित करते हैं, लेकिन वास्तव में वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती। डॉक्टरों के द्वारा मरीज देखते समय फीस के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है जिससे मरीजों का खूब शोषण होता हैं कई बार डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की जान भी चली जाती है।
अतः इन सभी मामले ने उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करने की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर-
भारत में काफी समय पूर्व से ही उपभोक्ताओं को कई प्रकार से शोषण किया जाता रहा है। कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी, या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं को अनदेखी की जा रही थी। सरकार ने उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर कदम उठाते हुए अनेक उपभोक्ता कानून बनाए हैं और वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से उपभोक्ता को जागरूक बनाने का सतत् प्रयास किया जा रहा है। ताकि लोग अपने अधिकारों को समझ सकें और अपनी शिकायत का निवारण कर सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार के सामने उपभोक्ता संरक्षण
अधिनियम (1986) पारित करने की आवश्यकता महसूस हुई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ताओं का किस प्रकार शोषण किया जाता है ? उपभोक्ताओं के क्या अधिकार है तथा उनके संरक्षण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ?
उत्तर-
भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं की स्थिति सोचनीय है। वे सदैव व्यवसायियों द्वारा अनुचित लाभ कमाने के उद्देश्य से ठगे जाते हैं, साथ ही उनमें शिक्षा की कमी गरीबी का प्रभाव और जागरूकता अभाव के कारण भी उपभोक्ता शोषण के शिकार होते हैं। वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहाँ उपभोक्ताओं का शोषण नहीं हो रहा हो वह चाहे शिक्षा का क्षेत्र दो या बैकिंग, दूरसंचार, डाक, खाद्य सामग्री या फिर भवन निर्माण। सभी क्षेत्र में त्रुटि लापरवाही और कालाबाजारी उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध हो रही है। उपभोक्ता का कई प्रकार से शोषण किया जाता है यानि कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी कम माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपयोगताओं को कछ अधिकार प्रदान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • जान-माल के लिए खतरनाक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार।
  • वस्तुओं की सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार।
  • विभिन्न वस्तुओं को देख परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार।
  • उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार।
  • अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार।
  • उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार।

उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा एवं हितों का संरक्षण करने के लिए सरकारी स्तर पर ‘केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद्’ एवं राज्य स्तर पर ‘राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद’ की स्थापना की गयी है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986′ के तहत उपभोक्ताओं को उनकी
शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है
(i) राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय स्तरीय आयोगा
(ii) राज्य तर पर ‘राज्य स्तरीय आयोगा
(iii) जिला स्तर पर जिला मंच’ (फोरम)।
न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Notes

  • समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक उपभोक्ता है तथा इसमें बच्चे, बूढ़े आदि सभी शामिल है।
  • उपभोक्ता जागरूकता आंदोलनसर्वप्रथम इंग्लैंड में प्रारंभ हुआ।
  • उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।
  • 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस’ के रूप में मनाते हैं।
  • शेल्फ नादर उपभोक्ता आंदोलन के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • भारत में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ।
  • उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया है।
  • सरकार ने जागो ग्राहक, जागो’ के नारे से उपभोक्ता जागरण के लिए एक व्यापक प्रचार प्रसार अभियान आरंभ किया है।.
  • सूचना का अभाव उपभोक्ता शोषण का एक प्रमुख कारण है।
  • सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार तथा चयन का अधिकार उपभोक्ताओं के कुछ प्रमुख अधिकार है।
  • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने तीन प्रकार के उपाय कानूनी प्रशासनिक एवं तकनीकी अपनाए हैं।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने का एक कानूनी
  • उपाय है तथा इसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है।
  • अधिनियम में राष्ट्र, राज्य एवं जिला स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित करने का प्रावधान है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना उपभोक्ता संरक्षण के लिए अपनाया गया एक प्रशासनिक उपाय है।
  • उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए उत्पादों का मानकीकरण एक तकनीकी उपाय है।
  • भारतीय मानक ब्यूरों हमारे देश की प्रमुख मानकीकरण संस्था है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में हुई।
  • 24 दिसंबर भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • भी भारत में करीब 700 गैर-सरकारी उपभोक्ता संगठन है।
  • ग्राहकों के पास रसीद नहीं होने से उपभोक्ता के लिए प्रमाण एकत्र करना कठिन हो जाता है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत InText Questions and Answers

अनुच्छेद 14.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा का उत्तम स्रोत, वह स्रोत है जो।

  1. प्रति इकाई द्रव्यमान या आयतन में अधिक कार्य करता हो।
  2. आसानी से प्राप्त हो सके।
  3. आसानी से भंडारित एवं परिवहित हो सके।
  4. सस्ता और सुरक्षित हो।

प्रश्न 2.
उत्तम ईंधन किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्तम ईंधन वह ईंधन है –

  1. जिसका कैलोरी मान अधिक हो।
  2. जिसका मध्यम ज्वलन ताप हो।
  3. जिसके दहन के पश्चात् हानिकारक गैसें उत्पन्न न होती हों।
  4. जो दहन के पश्चात् ठोस अवशेष न छोड़ता हो।
  5. जो सस्ता हो एवं जिसका रख-रखाव आसान हो।

प्रश्न 3.
यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?
उत्तर:
हम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत का उपयोग करेंगे जो प्रदूषण उत्पन्न न करता हो; क्योंकि उपर्युक्त विशेषता का ईंधन प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न नहीं करेगा और पुनः स्थापित हो जाएगा जिससे बार-बार उपयोग हो सके।

अनुच्छेद 14.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधन उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –

  1. जीवाश्मी ईंधन बनने में लाखों वर्ष लगते हैं और इनके भंडार सीमित हैं।
  2. जीवाश्मी ईधन अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं।
  3. जीवाश्मी ईंधन जलने से वायु-प्रदूषण होता है।

कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का जलीय विलयन अम्लीय होता है। अत: जीवाश्मी ईंधनों के धुएँ अम्लीय वर्षा
के कारक हैं जो मनुष्य में श्वसन सम्बन्धी तथा शरीर के खुले अंगों में जलन पैदा करते हैं।

प्रश्न 2.
हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं?
उत्तर:
तकनीकी विकास के साथ-साथ ऊर्जा की खपत भी बढ़ रही है। हमारी बदलती जीवन शैली, अपने आराम के लिए अधिक-से-अधिक मशीनों के उपयोग के कारण भी ऊर्जा की माँग अधिक हो रही है। यह ऊर्जा की माँग की आपूर्ति परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से पूरी नहीं हो पा रही है। अतः हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 3.
हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार के सुधार किए गए हैं?
उत्तर:
जल और पवनें ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं। शुरू में इनकी ऊर्जा का उपयोग बहुत सीमित था, परन्तु तकनीकी विकास के कारण ये एक मुख्य ऊर्जा स्रोत की तरह विकसित हो रहे हैं। इस क्रम में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं –
1. पवन ऊर्जा एक प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा स्रोत है। पवन-चक्की द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग यांत्रिक कार्य जैसे कुएँ से जल निकालना और विद्युत जनित्र चलाकर इसे विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है।

2. बहते जल का उपयोग सामान्यत: यातायात के लिए किया जाता था परन्तु अब बाँध बनाकर इस ऊर्जा को जल विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है। उपर्युक्त सम्बन्ध में नई तकनीक के प्रयोग द्वारा उच्च दक्षता की मशीनें बनाकर अधिक मात्रा में ऊर्जा का दोहन सुलभ हो गया है।

अनुच्छेद 14.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
सौर कुकर के लिए कौन-सा दर्पण-अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है? क्यों?
उत्तर:
सौर कुकर के लिए अवतल दर्पण सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले विकिरण को ठीक से एक बिन्दु पर फोकस कर सकता है जिससे उच्च ऊष्मा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर:
यद्यपि महासागर ऊर्जा के बडे स्रोत हैं, परन्तु औद्योगिक स्तर पर इनका दोहन कठिन है।

प्रश्न 3.
भूतापीय ऊर्जा क्या होती है?
उत्तर:
भूमि के नीचे स्थित गर्न स्थानों से प्राप्त ऊष्मा अथवा ऊष्मीय ऊर्जा भूतापीय ऊर्जा कहलाती

प्रश्न 4.
नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नाभिकीय ऊर्जा एक गैर परंपरागत ऊर्जा है। आजकल विखंडन से प्राप्त ऊर्जा का सफलतापूर्वक उपयोग हो रहा है। संलयन अभिक्रिया से प्राप्त ऊर्जा के दोहन की संभावना व्यक्त की जा रही है।

अनुच्छेद 14.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
किसी भी प्रकार के ऊर्जा स्रोत के समाप्त होने से वातावरण असंतुलित होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोई भी ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता है। उदाहरणार्थ, यदि हम लकड़ी को ऊर्जा स्रोत की तरह उपयोग करते हैं तब पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है। वायु में CO2 और O2 का भी संतुलन प्रभावित होता है। लकड़ी जलने से उत्पन्न CO2 SO2 और NO2 वायु-प्रदूषण करते हैं। यहाँ तक कि सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग से भूमंडलीय ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न होगा।

प्रश्न 2.
रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से हाइड्रोजन CNG की अपेक्षा एक स्वच्छ ईंधन माना जाता है –

  1. हाइड्रोजन का कैलोरी मान CNG की अपेक्षा अधिक है।
  2. CNG एक परंपरागत ऊर्जा स्रोत है जबकि H2 नहीं है।
  3. CNG एक ग्रीन हाउस गैस है जबकि H2 नहीं है। H2 प्रदूषण नहीं फैलाती है।
  4. CNG के दहन से CO तथा CO2 मुक्त होती हैं जबकि H2 के दहन से ऐसी हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होती हैं।

अनुच्छेद 14.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
दो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत निम्नवत् हैं –
(a) जल ऊर्जा बहते जल में उपस्थित ऊर्जा को जल ऊर्जा कहते हैं। यहाँ ऊँचाई से नीचे बहते जल की ऊर्जा का उपयोग कर लिया जाता है तथा उपयोग के बाद बहता हुआ जल समुद्र में चला जाता है। जल चक्र के कारण जल पुन: ऊँचाई पर पहुँच जाता है। इसलिए जल ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

(b) पवन ऊर्जा हम पवन ऊर्जा का विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग करते हैं। प्रकृति में पवनें चक्रीय प्रक्रमों के कारण उत्पन्न होती हैं। इसलिए यह भी ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।

प्रश्न 2.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
कोयला और पेट्रोलियम ऊर्जा के समापन योग्य स्रोत हैं क्योंकि यदि वे पुनर्स्थापित भी हों तो इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लग जाएँगे।

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते?
(a) धूप वाले दिन
(b) बादलों वाले दिन
(c) गरम दिन
(d) पवनों (वायु) वाले दिन
उत्तर:
(b) बादलों वाले दिन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन जैवमात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) कोयला
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 3.
जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अंततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?
(a) भूतापीय ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) जैवमात्रा
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 4.
ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 5.
जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल विद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जैव मात्रा तथा जल विद्युत की तुलना –
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 6.
निम्नलिखित से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए
(a) पवनें
(b) तरंगें
(c) ज्वार-भाटा
उत्तर:
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

प्रश्न 7.
ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे?
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय
(b) समाप्य तथा अक्षय
क्या
(a) तथा
(b) के विकल्प समान हैं?
उत्तर:
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि ऊर्जा के वे स्रोत जो बार-बार उपयोग किए जा सकते हैं, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। परन्तु वे ऊर्जा स्रोत जिनके भंडार सीमित हैं और जिनके पुनर्स्थापन में लाखों वर्ष लगते हैं उन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं; जैसे-कोयला और पेट्रोलियम।

(b) समाप्य तथा अक्षय ऊर्जा स्रोत अनवीकरणीय स्रोत की पुनर्स्थापना में लाखों वर्ष लगते हैं। अतः इसे समाप्य ऊर्जा स्रोत कहा जा सकता है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत; जैसे-पवन, जल और सौर ऊर्जा का उपयोग बार-बार और लम्बे समय तक किया जा सकता है। अत: ये अक्षय ऊर्जा स्रोत हैं।

उपर्युक्त तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि –
(a) और
(b) के विकल्प समान हैं।

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प्रश्न 8.
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में क्या गुण होते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में निम्नलिखित गुण होते हैं।

  1. इकाई द्रव्यमान ऊर्जा स्रोत से अधिक मात्रा में कार्य होना चाहिए।
  2. यह आसानी से प्राप्त होने वाला होना चाहिए।
  3. इसका भंडारण और परिवहन भी आसान होना चाहिए।
  4. यह सस्ता होना चाहिए।

प्रश्न 9.
सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?
उत्तर:
लाभ सौर कुकर उपयोग करने के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. यह बिना प्रदूषण किए भोजन पकाने में सहायक है।
  2. सौर कुकर का उपयोग सस्ता है; क्योंकि सौर ऊर्जा के उपयोग का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता है।
  3. सौर कुकर का रख-रखाव आसान होता है। इसमें किसी प्रकार के खतरे की संभावना नहीं होती है।

हानियाँ सौर कुकर उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –

  1. रात में और बादल वाले दिनों में सौर कुकर का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  2. यह भोजन पकाने में अधिक समय लेता है।
  3. सौर कुकर के परावर्तक की दिशा लगातार बदलते रहना पड़ता है जिससे सूर्य की रोशनी सौर कुकर में प्रवेश कर सके।
  4. सभी स्थानों पर हर समय सूर्य की रोशनी उपलब्ध नहीं होती है।

सौर कुकर के सीमित उपयोगिता वाले क्षेत्र हाँ, कछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर ककर की सीमित उपयोगिता है। ध्रुवों पर जहाँ सूर्य आधे वर्ष तक नहीं दिखाई देता है वहाँ सौर कुकर का उपयोग सीमित है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ सूर्य की किरणें कुछ समय के लिए और काफी तिरछी पड़ती हैं वहाँ सौर कुकर का उपयोग बहुत कठिन है।।

प्रश्न 10.
ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
आधुनिकीकरण तथा बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने में जुटे उद्योगों में ऊर्जा की अधिक आवश्यकता है। ऊर्जा की बढ़ती माँग के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं –
1. ऊर्जा की बढ़ती माँग ऊर्जा स्रोत को समाप्त कर सकती है जो पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न कर सकती है।
2. ऊर्जा की बढ़ती माँग से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का अधिक दोहन होगा। इनके प्राकृतिक भंडार सीमित हैं। अतः भविष्य में ऊर्जा ह्रास की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

ऊर्जा के उपयोग को सीमित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं –
1. ऊर्जा के दुरुपयोग को रोककर एवं न्यायसंगत उपयोग से ऊर्जा का उपयोग घटाया जा
सकता है।
2. ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोतों पर भार को कम करने के लिए गैर-परंपरागत और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों; जैसे—पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव गैस एक उत्तम ईंधन है, इसमें कितने प्रतिशत ईंधन गैस होती है?
(a) 65%
(b) 75%
(c) 85%
(d) 70%
उत्तर:
(b) 75%

प्रश्न 2.
भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन करने वाले देशों में कौन-सा स्थान है?
(a) पहला
(b) दूसरा
(c) चौथा
(d) पाँचवाँ
उत्तर:
(d) पाँचवाँ

प्रश्न 3.
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के समीप भारत का विशालतम पवन ऊर्जा फॉर्म कितनी विद्युत उत्पन्न करता है?
(a) 380 MW
(b) 480 MW
(c) 280 MW
(d) 400 MW
उत्तर:
(a) 380 MW

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प्रश्न 4.
हमारा देश प्रतिवर्ष लगभग कितनी सौर ऊर्जा प्राप्त करता है?
(a) 450,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(b) 400,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(d) 550,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
उत्तर:
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण क्या है?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है, जिसमें हरे पेड़-पौधे अपना भोजन प्राप्त करने के लिए सौर-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में बदलते हैं।

प्रश्न 2.
नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन के दो लाभ तथा दो हानियाँ लिखिए।
उत्तर:
लाभ नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन करने से सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता है तथा बाढ़-नियन्त्रण में सहायता मिलती है। हानियाँ बाँध बनाने से बहुत-सी भूमि जलमग्न हो जाती है तथा बाँध के इब क्षेत्र में आने वाले गाँवों से लोगों को पलायन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नदी के जल-प्रवाह क्षेत्र का पर्यावरण भी प्रभावित होता है।

प्रश्न 3.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता कितनी है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता लगभग 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है।

प्रश्न 4.
जल विद्युत-गृह, तापीय विद्यत-गृह की अपेक्षा क्यों उपयोगी है?
उत्तर:
तापीय विद्युत-गृह के समीपवर्ती क्षेत्रों में कोयले के धुएँ के कारण वायु प्रदूषित हो जाती है, जबकि जल विद्युत-गृह से प्रदूषण उत्पन्न नहीं होता।

प्रश्न 5.
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग कितना होना चाहिए?
उत्तर:
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग 15 किमी/ घण्टा होना चाहिए।

प्रश्न 6.
सौर-ऊर्जा को अप्रत्यक्ष रूप में उपयोग करने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं?
उत्तर:
1. पवन-ऊर्जा का उपयोग
2. समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग
3. सागर की विभिन्न गहराइयों पर जल के तापान्तर का उपयोग आदि।

प्रश्न 7.
सौर कुकर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
सौर-कुकर दो प्रकार के होते हैं –
(1) बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा
(2) गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर।

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प्रश्न 8.
उन चार क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ सौर-सेलों को ऊर्जा-स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
उत्तर:
कृत्रिम उपग्रहों में, सुदूर स्थानों पर स्थित अनुसन्धान केन्द्रों में, दूरदर्शन रिले स्टेशनों में तथा ट्रैफिक लाइटों में सौर-सेलों का उपयोग ऊर्जा-स्रोत के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 9.
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता कितनी होती है?
उत्तर:
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों की दक्षता 25% तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता 10% से 18% तक होती है।

प्रश्न 10.
अर्द्धचालक क्या हैं?
उत्तर:
अर्द्धचालक वे पदार्थ, जिनकी विद्युत चालकता बहुत कम होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। ये न तो विद्युत के सुचालक होते हैं और न ही पूर्णतया विद्युतरोधी होते हैं।

प्रश्न 11.
ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए, जो महासागर में उपलब्ध हैं।
उत्तर:
महासागर से दोहन (harness) किए जा सकने वाले ऊर्जा के तीन रूप –
1. सागरीय तापीय ऊर्जा
2. सागरीय लहरों की ऊर्जा तथा
3. ज्वारीय-ऊर्जा हैं।

प्रश्न 12.
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु कौन-कौन-से स्थान चुने गए हैं?
उत्तर:
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु तीन स्थान-गुजरात में कच्छ की खाड़ी, कैम्बे और पश्चिम बंगाल के पूर्वी समुद्री तट पर सुन्दरवन-चुने गए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवाश्म ईंधन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवाश्म ईंधन आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर उपस्थित विशालकाय पेड़ पृथ्वी की भूपर्पटी के नीचे दब गए थे। ये वनस्पति अवशेष, समय बीतने के साथ, उच्च ताप तथा उच्च दाब की अवस्था में, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ईंधन के रूप में बदलते चले गए। वनस्पति अवशेषों से बने इस प्रकार के ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
पेट्रोलियम गैस कैसे प्राप्त की जाती है? उस गैस का नाम लिखिए जो पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक है।
उत्तर:
पेट्रोलियम गैस, तेल शोधक संयन्त्रों में पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन के दौरान उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल के भंजन से भी प्राप्त की जाती है। पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक ब्यूटेन नामक गैस है।

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प्रश्न 3.
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त इसके लिए नदियों के बहते हुए जल को एक ऊँचा बाँध बनाकर एकत्र कर लिया जाता है। बाँध की तली के समीप जल टरबाइन लगा देते हैं। बाँध के ऊपरी भाग से इस जल को लगातार नीचे की ओर गिराते हैं। जब तेजी से गिरता हुआ जल, ‘जल टरबाइन’ के ब्लेडों पर गिरता है, तो उसकी ऊर्जा से जल टरबाइन तेजी से घूमने लगता है। जल टरबाइन की शाफ्ट विद्युत जनित्र के आमेचर से जुड़ी होने के कारण, इसका आमेचर भी जल टरबाइन के घूमने के कारण तेजी से घूमने लगता है। इस प्रकार, विद्युत का उत्पादन होने लगता है; अत: गतिज ऊर्जा विद्युत-ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।

प्रश्न 4.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता कितनी है? इस क्षमता का कितना भाग प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है। आज तक इस क्षमता का 11% से कुछ अधिक भाग ही उपयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग 2.5 x 1010 किलोवाट-घण्टा विद्युत-ऊर्जा लघु तथा सूक्ष्म जल-विद्युत परियोजनाओं द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है। आजकल हमारे देश में उत्पादित कुल विद्युत-शक्ति का 23% से कुछ अधिक भाग जल-विद्युत से आता है।

प्रश्न 5.
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण क्या है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण ‘पवन ऊर्जा मानचित्र’ बनाना है। इस मानचित्र को बनाने के लिए यह आवश्यक है कि किसी दिए गए स्थान पर पूरे वर्ष पवन की चाल मापी जाए।
1. पवन ऊर्जा के मानचित्र विभिन्न स्थानों पर पवन की वार्षिक औसत चाल दर्शाते हैं। ये जनवरी तथा जुलाई माह में पवन की औसत चाल भी दर्शाते हैं (क्योंकि पवन की चाल जनवरी में अत्यधिक मन्द तथा जुलाई में अत्यधिक तीव्र होती है)।

2. पवन ऊर्जा के मानचित्र भूमि तल से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में उपलब्ध पवन-ऊर्जा के बारे में प्रमुख सूचनाएँ किलोवाट-घण्टे में देते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत में पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ क्या हैं? या भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन किस प्रदेश में होता है? इनकी उत्पादन क्षमता क्या है?
उत्तर:
पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ भारत में उपलब्ध पवन ऊर्जा की क्षमता का लाभ उठाने हेतु विस्तृत योजनाएँ बनाई गई हैं। इनमें से कुछ योजनाओं को तो विद्युत उत्पादन हेतु लागू भी किया जा चुका है। भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन संयन्त्र गुजरात प्रदेश के ‘ओखा’ नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 1 मेगावाट (1 MW) है। दूसरा पवन ऊर्जा संयन्त्र गुजरात के पोरबन्दर में स्थित ‘लांबा’ नामक स्थान पर है। यह 200 एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैला हुआ है। इसमें 50 पवन ऊर्जाचालित टरबाइन लगी हैं, जिनकी क्षमता 200 करोड़ यूनिट विद्युत उत्पन्न करने की है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत क्या है? ऊर्जा के इस स्रोत को व्यापारिक स्तर पर उपयोग करने की क्यों आवश्यकता हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे विशाल स्रोत सूर्य है। सूर्य द्वारा दी गई ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी पर प्रतिदिन पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश द्वारा दी गई ऊर्जा संसार के सभी देशों द्वारा एक वर्ष में उपयोग की गई कुल ऊर्जा का 50,000 गुना है। व्यापारिक स्तर पर ऊर्जा के इस स्रोत को उपयोग करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के ज्ञात भण्डार बहुत कम रह गए हैं जो कुछ ही दशकों में समाप्त हो जाएंगे। इस ऊर्जा के संकट को दूर करने के लिए मानव ने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की खोज की। इनमें से एक नवीकरणीय स्रोत सौर-ऊर्जा भी है।

प्रश्न 8.
बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर बताइए। या बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर में अन्तर बताइए।
उत्तर:
बॉक्सनुमा सौर कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर –
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प्रश्न 9.
OTEC शक्ति संयन्त्र क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं?
उत्तर:
OTEC शक्ति संयन्त्र महासागरों की तापीय ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले संयन्त्रों को OTEC शक्ति संयन्त्र कहा जाता है। कार्य-सिद्धान्त ये संयन्त्र समुद्र की ऊपरी परत की ऊष्मा का प्रयोग कुछ तीव्र वाष्पशील पदार्थों को वाष्पित करने के लिए करते हैं। तत्पश्चात् इन वाष्पों की ऊष्मीय ऊर्जा का प्रयोग टरबाइन को चलाने के लिए किया जाता है। सबसे अन्त में टरबाइन की गतिज ऊर्जा द्वारा विद्युत जनित्र को चलाकर विद्युत-ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।

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प्रश्न 10.
नाभिकीय रिऐक्टरों के प्रमुख उद्देश्यों की सूची बनाइए। इनमें से कौन-से उद्देश्य लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टरों के उद्देश्य नाभिकीय रिऐक्टर विभिन्न उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए बनाए जाते हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
1. विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन नाभिकीय रिऐक्टरों का यह सर्वप्रमुख उद्देश्य है।

2. नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन कुछ नाभिकीय रिऐक्टरों का उद्देश्य विद्युत-ऊर्जा उत्पादन के अतिरिक्त नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन करना भी होता है। ऐसे रिऐक्टरों को ब्रीडर रिऐक्टर कहते हैं।

3. तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का उत्सर्जन रिऐक्टर में U235 के विखण्डन से तीव्रगामी न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं, जिनके द्वारा अन्य तत्वों के कृत्रिम नाभिकीय विघटनों का अध्ययन किया जाता है।

4. कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन रिऐक्टर में अनेक तत्वों के कृत्रिम रेडियोऐक्टिव आइसोटोप बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा, जीवविज्ञान, उद्योगों तथा कृषि आदि में होता है। उपर्युक्त सभी उद्देश्यों में से विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन तथा कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन ऐसे। उद्देश्य हैं जो लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 11.
यूरेनियम के विखण्डन को समीकरण से समझाइए।
उत्तर:
यूरेनियम का विखण्डन यूरेनियम के दो आइसोटोप 92U238 तथा 92U235 हैं। 92U238 का विखण्डन केवल तीव्रगामी न्यूट्रॉनों द्वारा ही सम्भव है जबकि 92U235 का विखण्डन मन्दगामी न्यूट्रॉनों द्वारा होता है। जब मन्दगामी न्यूट्रॉन92U235 से टकराता है तो वह उसमें अवशोषित कर लिया जाता है तथा92U236 बन जाता है। चूंकि 92U236 अत्यन्त अस्थायी है; अतः यह दो खण्डों बेरियम तथा क्रिप्टन में टूट जाता है तथा न्यूट्रॉनों व ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
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प्रश्न 12.
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद जब यूरेनियम आइसोटोप (U235) के नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यह दो अपेक्षाकृत हल्के नाभिकों में टूट जाता है और इसके साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। U235 के विखण्डन से अनेक प्रकार के भिन्न-भिन्न नाभिक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार किसी विशिष्ट U235 नाभिक के विखण्डन से कौन-कौन से दो नाभिक उत्पन्न होंगे पहले से यह बता पाना सम्भव नहीं है। U235 नाभिक के विखण्डन से मुख्यत: नाभिकों के दो सह उत्पन्न होते हैं –
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  1. नाभिकों का भारी समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 130 से 149 के बीच पाई जाती है।
  2. नाभिकों का हल्का समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 84 से 104 के बीच पाई जाती है।

नाभिकों के भारी समूह के दो प्रमुख उदाहरण बेरियम-139 तथा लैन्थेनम-139 हैं, जबकि नाभिकों के हल्के समूह के दो उदाहरण – क्रिप्टन-94 तथा मॉलिब्डेनम-95 हैं। इस प्रकार U 235 के विखण्डन उत्पाद 56Ba139तथा 36Kr94 अथवा 57La139 तथा 42Mo95 हो सकते हैं।
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प्रश्न 13.
तापीय न्यूट्रॉन किसे कहते हैं? तापीय न्यूट्रॉन द्वारा प्रारम्भिक U235 नाभिक के विखण्डन को एक चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
तापीय न्यूट्रॉन कम ऊर्जा (1ev ऊर्जा से कम) वाले वे न्यूट्रॉन जिनका उपयोग U235 नाभिक का विखण्डन करने के लिए किया जाता है, तापीय न्यूट्रॉन कहलाते हैं।
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प्रश्न 14.
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में अन्तर –
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए। स्पष्ट कीजिए कि अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन से क्या तात्पर्य है? या जैव अपशिष्ट से जैव-गैस प्राप्त करने की विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैव-गैस का निर्माण जैव-गैस; कई ईंधन गैसों का मिश्रण है। इसे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव पदार्थों के अपघटन से प्राप्त किया जाता है। जैव-गैस का मुख्य घटक मेथेन (CH4) गैस है जो कि एक आदर्श ईंधन है। जैव-गैस उत्पन्न करने के लिए गोबर, वाहित मल, फल-सब्जियों तथा कृषि आधारित उद्योगों के अपशिष्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। जैव-गैस बनाने के लिए दो प्रकार के संयन्त्रों का प्रयोग किया जाता है –
1. स्थायी गुम्बद प्रकार तथा
2. प्लावी (तैरती) टंकी प्रकार।

गोबर से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए प्रायः ‘प्लावी टंकी प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग करते हैं जबकि मानव मल तथा अन्य अपशिष्टों से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए ‘स्थिर गुम्बद प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरण –
प्रथम चरण: स्लरी का निर्माण सर्वप्रथम गाय-भैंस आदि घरेलू पशुओं के गोबर को पानी के साथ मिलाकर मिश्रण-टंकी में एक गाढ़ा घोल (स्लरी) तैयार कर लेते हैं। तत्पश्चात् स्लरी को डाइजेस्टर में डालकर छोड़ देते हैं। डाइजेस्टर, ईंटों का बना हुआ एक भूमिगत टैंक होता है जो चारों ओर से बन्द रहता है।
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द्वितीय चरण: स्लरी का अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी या अनॉक्सी सूक्ष्मजीव, पानी की उपस्थिति में, स्लरी में उपस्थित जैव-मात्रा का अपघटन कर उसे सरल यौगिकों में बदलने लगते हैं। इस क्रिया को पूरा होने में कुछ दिन लग जाते हैं तथा। निर्गम टंकी क्रिया पूर्ण होने पर डाइजेस्टर में मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का मिश्रण प्राप्त होता है। यह मिश्रण ही जैव-गैस है।

यह गैसीय मिश्रण डाइजेस्टर में ऊपर उठकर प्लावी डाइजेस्टर टंकी या स्थिर गुम्बद में एकत्र हो जाता है। प्लाती टंकी या स्थिर गुम्बद के ऊपरी भाग में लगी नलिका द्वारा इस गैस को उपभोक्ता की रसोई तक ले जाया जाता है और गैस चूल्हों में जलाया जाता है।
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जैव-गैस के लाभ जैव-गैस एक उत्तम ईंधन है जो बिना धुआँ दिए जलती है। इसको जलाने से राख जैसा कोई ठोस अपशिष्ट भी नहीं बचता है। इस प्रकार, जैव-गैस एक पर्यावरण-हितैषी ईंधन है। डाइजेस्टर में, जैव गैस प्राप्त करने के पश्चात् शेष स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस के यौगिक प्रचुर मात्रा में होते हैं; अतः यह एक उत्तम खाद का कार्य करती है।

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इस प्रकार, जैव-गैस प्राप्त करने की क्रिया में न केवल हमें एक उत्तम ईंधन प्राप्त होता है, साथ-ही खेतों के लिए खाद भी प्राप्त होता है तथा पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बच जाता है। अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है; अतः ये ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही स्लरी का अपघटन करते हैं। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाला इस प्रकार का अपघटन अवायुजीवी अथवा अनॉक्सी अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 2.
पवन चक्की का कार्य-सिद्धान्त क्या है? पवन चक्की का विवरण चित्र सहित समझाइए।
उत्तर:
पवन चक्की पवन चक्की एक ऐसी युक्ति है, जिसमें वायु की गतिज ऊर्जा ब्लेडों को घुमाने में प्रयुक्त की जाती है। यह बच्चों के खिलौने ‘फिरकी’ जैसी होती है। पवन चक्की के ब्लेडों की बनावट विद्युत पंखे के ब्लेडों के समान होती है। इनमें केवल इतना अन्तर है कि विद्युत पंखे में जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन अर्थात् वायु चलती है। इसके विपरीत, पवन चक्की में जब पवन चलती है, तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं।

घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति के कारण पवन चक्की से गेहूँ पीसने की चक्की को चलाना, जल-पम्प चलाना, मिट्टी के बर्तन के चाक को घुमाना आदि कार्य किए जा सकते हैं। पवन चक्की ऐसे स्थानों पर लगाई जाती है, जहाँ वायु लगभग पूरे वर्ष तीव्र वेग से चलती रहती है। यह पवन ऊर्जा को उपयोगी यान्त्रिक-ऊर्जा के रूप में बदलने का कार्य करती है। रचना पवन चक्की की रचना को चित्र में प्रदर्शित किया गया है। इसमें ऐलुमिनियम के पतले-चपटे आयताकार खण्डों के रूप में, बहुत-सी पंखुड़ियाँ लोहे के पहिये पर लगी रहती हैं।

यह पहिया एक ऊर्ध्वाधर स्तम्भ के ऊपरी सिरे पर लगा रहता है तथा अपने केन्द्र से गुजरने वाली लौह शाफ्ट (अक्ष) के परितः घूम सकता है। पहिये का तल स्वत: वायु की गति की दिशा के लम्बवत् समायोजित हो जाता है, जिससे वायु सदैव पंखुड़ियों पर सामने से टकराती है। पहिये की अक्ष एक लोहे की फ्रैंक से जुड़ी रहती है। फ्रैंक का दूसरा सिरा उस मशीन अथवा डायनमो से जुड़ा रहता है, जिसे पवन-ऊर्जा द्वारा गति प्रदान करनी होती है।

कार्य-विधि:
चित्र में पवन चक्की द्वारा पानी खींचने की क्रिया का प्रदर्शन किया गया है। पवन चक्की की बैक एक जल-पम्प की पिस्टन छड़ से जुड़ी है। जब वायु, पवन चक्की की पंखुड़ियों से टकराती है तो चक्की का पहिया घूमने लगता है और पहिये से जुड़ी अक्ष घूमने लगती है। अक्ष की घूर्णन गति के कारण बॅक ऊपर-नीचे होने लगती है और जल-पम्प की पिस्टन छड़ भी ऊपर-नीचे गति करने लगती है तथा जल-पम्प से जल बाहर निकलने लगता है।
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कार्य-सिद्धान्त तेजी से बहती हई पवन जब पवन चक्की के ब्लेडों से टकराती है तो वह उन पर एक बल लगाती है जो एक प्रकार का घूर्णी प्रभाव उत्पन्न करता है और इसके कारण पवन चक्की के ब्लेड घूमने लगते हैं। पवन चक्की का घूर्णन उसके ब्लेडों की विशिष्ट बनावट के कारण होता है जो विद्युत के पंखे के ब्लेडों के समान होती है। पवन चक्की को विद्युत के पंखे के समान माना जा सकता है जो कि विपरीत दिशा में कार्य कर रहा हो, क्योंकि जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन चलती है।

इसके विपरीत, जब पवन चलती है तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं। पवन चक्की के लगातार घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति से जल-पम्प तथा गेहूँ पीसने की चक्की चलाई जा सकती है। पवन चक्की की भाँति ‘फिरकी’ भी पवन ऊर्जा से ही घूमती है।

प्रश्न 3.
चित्र की सहायता से बॉक्सनुमा सौर-कुकर की संरचना व कार्य-विधि का वर्णन कीजिए।
या सौर-ऊर्जा क्या है? सोलर-कुकर का सिद्धान्त एवं कार्य-विधि समझाइए। सोलर कुकर के लाभ भी लिखिए।
या सोलर कुकर के उपयोग, लाभ एवं सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। बॉक्सनुमा सोलर-कुकर यह एक ऐसी युक्ति है, जिसमें सौर-ऊर्जा का उपयोग करके भोजन को पकाया जाता है, इसलिए इसे सौर-चूल्हा भी कहते हैं। चित्र में बॉक्सनुमा सौर-कुकर को प्रदर्शित किया गया है। संरचना सामान्यतः यह एक लकड़ी का बक्सा A होता है जिसे बाहरी बक्सा भी कहते हैं। इस लकड़ी के बक्से के अन्दर लोहे अथवा ऐलुमिनियम की चादर का बना एक और बक्सा होता है, इसे भीतरी बक्सा कहते हैं। भीतरी बक्से के अन्दर की दीवारें तथा नीचे की सतह काली कर दी जाती है।

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भीतरी बक्से के अन्दर काला रंग इसलिए किया जाता है, जिससे कि सौर-ऊर्जा का अधिक-से-अधिक अवशोषण हो तथा परावर्तन द्वारा ऊष्मा की कम-से-कम हानि हो। भीतरी बक्से तथा बाहरी बक्से के बीच के खाली स्थान में थर्मोकोल अथवा काँच की रुई अथवा कोई भी ऊष्मारोधी पदार्थ भर देते हैं, इससे सौर-कुकर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती। सौर कुकर के बक्से के ऊपर एक लकड़ी के फ्रेम में मोटे काँच का एक ढक्कन G लगा होता है, जिसे आवश्यकतानुसार खोला तथा बन्द किया जा सकता है। सौर-कुकर के बक्से में एक समतल दर्पण M भी लगा होता है जो कि परावर्तक तल का कार्य करता है।
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कार्य-विधि:
सर्वप्रथम पकाए जाने वाले भोजन को स्टील अथवा ऐलमिनियम के एक बर्तन C में डालकर जिसकी बाहरी सतह काली पुती हो, सौर-कुकर के अन्दर रख देते हैं तथा ऊपर से शीशे के ढक्कन को बन्द कर देते हैं। परावर्तक तल M अर्थात् समतल दर्पण को चित्रानुसार खड़ा करके सौर-कुकर को भोजन पकाने के लिए धूप में रख देते हैं। जब सूर्य के प्रकाश की किरणें परावर्तक तल M पर गिरती हैं तो परावर्तक तल उन्हें तीव्र प्रकाश-किरण पुंज के रूप में सौर-कुकर के ऊपर डालता है। सूर्य की ये किरणें काँच के ढक्कन में से गुजरकर सौर-कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तथा कुकर के अन्दर की काली सतह द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। चूँकि सूर्य की किरणों का

लगभग एक-तिहाई भाग ऊष्मीय प्रभाव वाली अवरक्त किरणों का होता है, इसलिए जब ये किरणें कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तो काँच का ढक्कन G इन्हें वापस बाहर नहीं आने देता। इस प्रकार सूर्य की और अधिक अवरक्त किरणें धीरे-धीरे कुकर के बक्से में प्रवेश करती जाती हैं, जिनके कारण सौर-कुकर के अन्दर का ताप बढ़ता जाता है। लगभग दो अथवा तीन घण्टे में सौर-कुकर के अन्दर का ताप 100°C तथा 140°C के बीच हो जाता है।

यही ऊष्मा सौर-कुकर के अन्दर बर्तन में रखे भोजन को पका देती है। उपयोग बॉक्सनुमा सौर-कुकर को उन खाद्य पदार्थों को पकाने के लिए प्रयुक्त करते हैं, जिन्हें पकाने के लिए धीमी आँच की आवश्यकता होती है। इस कुकर को रोटियाँ सेंकने में प्रयुक्त नहीं करते।

सोलर-कुकर के लाभ इसके निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. सोलर-कुकर से किसी प्रकार का धुआँ अथवा गन्ध नहीं निकलती है; अत: इसके प्रयोग से प्रदूषण नहीं होता।
  2. सोलर-कुकर में मिट्टी का तेल, कोयला, विद्युत आदि जैसे किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार इसके प्रयोग से ईंधन तथा विद्युत दोनों की बचत होती है।
  3. सोलर-कुकर से बहुत धीमी गति से खाना पकता है; अत: इसके द्वारा पके भोजन से पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते।
  4. सोलर-कुकर से खाना पकाते समय निरन्तर देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।

सोलर-कुकर की परिसीमाएँ इसकी निम्नलिखित परिसीमाएँ हैं –

  1. सोलर-कुकर रात्रि में, बरसात में तथा बादल वाले दिनों में काम नहीं करते।
  2. सोलर-कुकर को रोटी बनाने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।
  3. सोलर-कुकर को खाने वाली वस्तुओं को तलने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।

प्रश्न 4.
सौर-सेल क्या है? सौर-सेलों के विकास तथा उपयोगों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सौर-सेल यह एक ऐसी युक्ति है, जो सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदल देती है। सौर-सेल का विकास आज से लगभग 100 वर्ष पहले यह खोज हो चुकी थी कि सेलीनियम की किसी पतली पर्त को सौर प्रकाश में रखने पर विद्युत उत्पन्न होती है। यह भी ज्ञात था कि सेलेनियम के किसी टुकड़े पर आपतित सौर-ऊर्जा का केवल 0.6% भाग ही विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित हो पाता है।

चूँकि इस प्रकार के सौर-सेल की दक्षता बहुत कम थी, इसलिए विद्युत उत्पादन के लिए इस परिघटना का उपयोग करने के कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। प्रथम व्यावहारिक सौर-सेल सन् 1954 में बनाया गया था। यह सौर-सेल लगभग 1.0% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था। इस सौर-सेल की दक्षता भी बहुत कम थी। अन्तरिक्ष कार्यक्रमों द्वारा उत्पन्न बढ़ती हुई माँग के कारण अधिक-से-अधिक दक्षता वाले सौर-सेलों को विकसित करने की दर तेजी से बढ़ी है। सौर सेलों के निर्माण के लिए अर्द्धचालकों के उपयोग से सौर-सेलों की दक्षता बहुत अधिक बढ़ गई है।

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सिलिकन, गैलियम तथा जर्मेनियम जैसे अर्द्धचालकों से बने हुए सौर-सेलों की दक्षता 10 से 18% तक होती है अर्थात् ये 10 से 18% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं। सेलेनियम से बने आधुनिक सौर-सेलों की दक्षता 25% तक होती है। सौर-सेलों के उपयोग सौर-सेलों का उपयोग दुर्गम तथा दूरस्थ स्थानों में विद्युत-ऊर्जा उपलब्ध कराने में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। सौर-सेलों के महत्त्वपूर्ण उपयोग अनलिखित हैं –

1. सौर-सेलों का उपयोग कृत्रिम उपग्रहों तथा अन्तरिक्ष यानों में विद्युत उपलब्ध करने के लिए किया जाता है। वास्तव में, सभी कृत्रिम उपग्रह तथा अन्तरिक्ष यान मुख्यत: सौर-पैनलों के द्वाराउत्पादित विद्युत-ऊर्जा पर ही निर्भर करते हैं।

2. भारत में सौर-सेलों का उपयोग सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था करने में, सिंचाई के लिए जलपम्पों को चलाने तथा रेडियो व टेलीविजन सैटों को चलाने में किया जाता है।

3. सौर सेलों का उपयोग समुद्र में स्थित द्वीप स्तम्भों में तथा तट से दूर निर्मित खनिज तेल के कुएँ खोदने वाले संयन्त्रों को विद्युत-शक्ति प्रदान करने में किया जाता है।

4. आजकल सौर-सेलों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों तथा कैलकुलेटरों को चलाने में भी किया जाता है।

प्रश्न 5.
महासागर में ऊर्जा का दोहन कितने रूपों में और किस प्रकार किया जा सकता है? या महासागर में किन-किन रूपों में ऊर्जा भण्डारित है? ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए जिनका महासागर से दोहन किया जा सकता है।
उत्तर:
महासागरों में ऊर्जा का भण्डारण अथवा दोहन महासागरों में ऊर्जा भण्डारण अथवा दोहन के निम्नलिखित स्वरूप हैं –
1. सागरीय तापीय-ऊर्जा महासागर की सतह के जल तथा गहराई के जल के ताप में सदैव कुछ अन्तर होता है। इस तापान्तर के कारण उपलब्ध ऊर्जा को सागरीय तापीय-ऊर्जा कहते हैं। कहीं-कहीं पर यह तापान्तर 20°C तक भी होता है। इस सागरीय तापीय-ऊर्जा को विद्युत के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके लिए सागरीय तापीय ऊर्जा रूपान्तरण विद्युत संयंत्र का प्रयोग किया जाता है।

2. सागरीय लहरों की ऊर्जा वायु का प्रवाह अधिक होने के कारण समुद्र की सतह पर जल की लहरें बहुत तेजी से चलती हैं, जिसके कारण उनमें गतिज ऊर्जा होती है। इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा को सागरीय लहरों की ऊर्जा कहते हैं। इन गतिशील समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है।

3. ज्वारीय-ऊर्जा चन्द्रमा के आकर्षण के कारण समुद्र के जल के ऊपर उठने को ज्वार तथा जल के नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा की लहरें दिन में दो बार चढ़ती हैं तथा दो बार उतरती हैं। समुद्रतटीय क्षेत्रों में ज्वार तथा भाटा के बीच जल की विशाल मात्रा की गतिशीलता, ऊर्जा का एक बहुत बड़ा स्रोत उत्पन्न करती है।

ज्वारीय लहरों की ऊर्जा ज्वारीय बाँध बनाकर काम में लाई जाती है। ज्वार के समय उठे जल को बाँध द्वारा रोककर, जल को ऊँचाई से धीरे-धीरे जल टरबाइन के ब्लेडों पर गिराकर जल टरबाइन को घुमाते हैं और विद्युत उत्पादित करते हैं। भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा का दोहन करने के लिए तीन स्थान चुने गए हैं-कच्छ की खाड़ी, कैम्बे (गुजरात) तथा सुन्दरवन (पश्चिम बंगाल)।

4. समुद्रों में लवणीय प्रवणता से ऊर्जा चूँकि भिन्न-भिन्न समुद्रों के जल में लवणों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है; अतः दो समुद्रों के जल के लवणों की सान्द्रता के अन्तर को ‘लवणीय प्रवणता’ कहते हैं। दो भिन्न-भिन्न समुद्रों का जल जिस स्थान पर आपस में मिलता है, उस स्थान पर लवणों की सान्द्रता के अन्तर का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

5. समुद्री वनस्पतियों अथवा जैव-द्रव्यमान से ऊर्जा समुद्री वनस्पतियाँ अर्थात् पेड़-पौधे अथवा जैव-द्रव्यमान सागरीय ऊर्जा प्राप्त करने का एक स्रोत हैं। भविष्य में सागर में उपस्थित समुद्री शैवाल की विशाल मात्रा मेथेन नामक ईंधन प्रदान कर सकती है।

6. सागरीय ड्यूटीरियम के नाभिकीय संलयन से ऊर्जा सागर का जल, हाइड्रोजन के भारी परमाणु अर्थात् ड्यूटीरियम का एक असीमित स्रोत है। यह सागर में भारी जल के रूप में उपस्थित रहता है। डयूटीरियम, हाइड्रोजन का समस्थानिक है, जिसके नाभिक में एक प्रोटॉन तथा एक न्यूट्रॉन होता है। ड्यूटीरियम का नाभिकीय संलयन करके ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास चल रहे हैं। इन प्रयासों में सफलता मिल जाने पर सागर, ऊर्जा का एक विशाल स्रोत बन जाएगा, जो करोड़ों वर्षों तक हमें ऊर्जा प्रदान करता रहेगा।

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प्रश्न 6.
किसी नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए तथा उनके प्रकार्यों का वर्णन कीजिए।
या नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख भागों का उल्लेख करते हुए इसकी प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
या समझाइए कि नाभिकीय रिऐक्टर में विमन्दकों तथा नियन्त्रकों की सहायता से श्रृंखला अभिक्रिया को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटक: नाभिकीय रिऐक्टर एक ऐसा उपकरण है, जिसके भीतर नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इसके निम्नलिखित मुख्य भाग हैं –
1. ईंधन: (Fuel) विखण्डित किए जाने वाले पदार्थ (U235 अथवा Pu 239 ) को रिऐक्टर का ईंधन कहते हैं।

2. मन्दक: (Moderator) विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉनों की गति (ऊर्जा) को कम करने के लिए मन्दक प्रयोग किए जाते हैं। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड (BeO) प्रयोग किए जाते हैं। भारी जल सबसे अच्छा मन्दक है।

3. परिरक्षक (Shield) नाभिकीय विखण्डन के समय कई प्रकार की तीव्र किरणें (जैसे–किरणे) निकलती हैं, जिनसे रिऐक्टर के पास काम करने वाले व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं। इन किरणों से उनकी रक्षा करने के लिए रिऐक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी-मोटी (सात फुट मोटी) दीवारें बना दी जाती हैं।

4. नियन्त्रक: (Controller) रिऐक्टर में विखण्डन की गति पर नियन्त्रण करने के लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिऐक्टर की दीवार में इन छड़ों को आवश्यकतानुसार
अन्दर-बाहर करके विखण्डन की गति को नियन्त्रित किया जा सकता है।

5. शीतलक: (Coolant) विखण्डन के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा को शीतलक पदार्थ द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाइऑक्साइड को रिऐक्टर में प्रवाहित करते हैं। ऊष्मा प्राप्त कर जल अतितप्त हो जाता है और जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है, जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पादित की जाती है।

रचना नाभिकीय रिऐक्टर का सरल रूप चित्र में दिखाया गया है। इसमें ग्रेफाइट की ईंटों से बना एक ब्लॉक है, जिसमें निश्चित स्थानों पर साधारण यूरेनियम की छड़ें लगी रहती हैं। इन छड़ों पर ऐलुमिनियम के खोल चढ़ा दिए जाते हैं जिससे इनका ऑक्सीकरण न हो। ब्लॉक के बीच-बीच में कैडमियम की छड़ें लगी होती हैं, जिन्हें ‘नियन्त्रक-छड़ें’ कहते हैं। इन्हें इच्छानुसार अन्दर अथवा बाहर खिसका सकते हैं।

ग्रेफाइट मन्दक का कार्य करता है तथा कैडमियम न्यूट्रॉनों का अच्छा अवशोषक होने के कारण नाभिकीय विखण्डन को रोक सकता है। कैडमियम छड़ों के अतिरिक्त इसमें कुछ सुरक्षा छड़ें भी लगी रहती हैं जो दुर्घटना होने पर स्वत: रिऐक्टर में प्रवेश कर जाती हैं और अभिक्रिया को रोक देती हैं। रिऐक्टर के चारों ओर सात फुट मोटी कंक्रीट की दीवार बना दी जाती है, जिससे कर्मचारियों को हानिकारक विकिरणों से बचाया जा सके।
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कार्य-विधि:
रिऐक्टर को चलाने के लिए किसी बाह्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसमें सदैव कुछ न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं; अत: जब रिऐक्टर को चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को बाहर खींच लेते हैं, तब रिऐक्टर में मौजूद न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों का विखण्डन प्रारम्भ कर देते हैं। जब रिऐक्टर में उपस्थित न्यूट्रॉनों द्वारा U235 का विखण्डन होता है तो इससे उत्पन्न तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का ग्रेफाइट के साथ बार-बार टकराने से मन्दन हो जाता है, जिससे ये अगले U235के नाभिक का विखण्डन करने लगते हैं।

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इस प्रकार, विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया शुरू हो जाती है। जब कभी अभिक्रिया अनियन्त्रित होने लगती है, तब कैडमियम की छड़ों को अन्दर खिसका देते हैं। कैडमियम की छड़ें कुछ न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे विखण्डन दर कम हो जाती है और इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा पर नियन्त्रण हो जाता है और विस्फोट नहीं हो पाता। रिऐक्टर में श्रृंखला-अभिक्रिया चलाने के लिए यूरेनियम की छड़ों का आकार, क्रान्तिक आकार से बड़ा रखते हैं।

प्रश्न 7.
श्रृंखला अभिक्रिया किसे कहते हैं तथा यह कैसे सम्पन्न की जाती है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में श्रृंखला अभिक्रिया:
Ban जब यूरेनियम (92U235) पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यूरेनियम नाभिक दो लगभग बराबर खण्डों में टूट जाता है। विखण्डन की इस अभिक्रिया में 2 या 3 नए न्यूट्रॉन निकलते हैं तथा अपार ऊर्जा उत्सर्जित मन्द गति होती है। अनुकूल परिस्थितियों में ये नए न्यूट्रॉन अन्य न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों को विखण्डित कर देते हैं और प्रत्येक नाभिक के विखण्डन से 2 या 3 नए न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं, जो अन्य नाभिकों का विखण्डन करते हैं। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की श्रृंखला बन जाती है जो एक बार प्रारम्भ होने के पश्चात् स्वत: नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया। चालू रहती है और तब तक चलती रहती है, जब तक कि समस्त यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता।

इस प्रकार की अभिक्रिया को नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। चूँकि यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डित होने से लगभग 200 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है; अतः शृंखला अभिक्रिया में विखण्डित होने वाले नाभिकों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण उत्पन्न ऊर्जा बहुत शीघ्र ही अपार रूप धारण कर लेती है।
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शृंखला अभिक्रिया निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –

1. अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Uncontrolled chain reaction) इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनों में से औसतन एक से अधिक न्यूट्रॉन आगे विखण्डन करते हैं, जिसके कारण विखण्डनों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है; अत: यह अभिक्रिया अति तीव्र गति से होती है और कुछ क्षणों में सम्पूर्ण पदार्थ का विखण्डन हो जाता है। इससे ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा मुक्त होती है, जो भयानक विस्फोट का रूप ले लेती है। परमाणु बम में यही क्रिया होती है।

2. नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Controlled chain reaction) इस अभिक्रिया में कृत्रिम उपायों द्वारा (मन्दक एवं नियन्त्रक पदार्थों से) इस प्रकार का नियन्त्रण किया जाता है कि प्रत्येक विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन आगे विखण्डन कर सके। इस प्रकार, इसमें विखण्डनों की दर नियत रहती है; अत: यह अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है तथा उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है। नाभिकीय रिऐक्टर अथवा परमाणु-भट्टी में यही क्रिया होती है।

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श्रृंखला अभिक्रिया में कठिनाइयाँ तथा उनका निवारण शृंखला अभिक्रिया के प्रचलन में निम्नलिखित दो कठिनाइयाँ आती हैं –

1. प्रथम कठिनाई यह है कि साधारण यूरेनियम में U238 तथा U235 दो आइसोटोप होते हैं। इनमें U235 केवल 0.7% होता है, जबकि U23899.3% होता है। जहाँ U238 केवल तीव्रगामी (ऊर्जा 1 MeV से अधिक) न्यूट्रॉनों द्वारा ही विखण्डित होता है, वहीं U238 मन्द न्यूट्रॉनों (ऊर्जा 0.025 ev) द्वारा ही विखण्डित हो जाता है, जबकि U238 आइसोटोप मन्द गति न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है।

प्राकृतिक यूरेनियम में U238 की मात्रा अधिक होने के कारण, विखण्डन क्रिया में उत्पन्न हुए न्यूट्रॉनों के U238 नाभिकों द्वारा अवशोषित कर लिए जाने की सम्भावना अधिक होती है। इससे विखण्डन की क्रिया शीघ्र ही रुक जाती है। इसलिए श्रृंखला अभिक्रिया को सम्पन्न करने के लिए प्राकृतिक यूरेनियम में विसरण विधि द्वारा U235 का अनुपात बढ़ाया जाता है। इस क्रिया को यूरेनियम संवर्द्धन कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त यूरेनियम को संवर्द्धित यूरेनियम कहते हैं।

2. श्रृंखला अभिक्रिया को चलाने में द्वितीय कठिनाई यह है कि U235 नाभिक के विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉन की गति इतनी तीव्र होती है कि वे सीधे ही अन्य U235 नाभिकों का विखण्डन नहीं कर पाते। इसलिए विखण्डन में भाग लेने से पूर्व इन न्यूट्रॉनों को मन्दित करना होता है। इसके लिए विखण्डनीय पदार्थ को कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों से घेरकर रखा जाता है।

इन पदार्थों को मन्दक पदार्थ कहते हैं। जब विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉन बार-बार मन्दक पदार्थ के अणुओं से टकराते हैं तो उनकी ऊर्जा कम होती जाती है। जब न्यूट्रॉनों की ऊर्जा 0.025 ev तक कम हो जाती है तो वे U235 नाभिकों का विखण्डन करने लगते हैं। इस प्रकार श्रृंखला अभिक्रिया जारी रहती है।

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Bihar Board Class 11 Political Science नागरिकता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतान्त्रिक राज्य में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व है?
उत्तर:
एक समय था जब सुविधाएँ, अधिकार और महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व समाज के सीमित वर्ग के उन लोगों को दिए गए थे, जो इसके योग्य समझे जाते थे। इसका आधार जाति, आनुवंशिकता और सामाजिक, आर्थिक स्तर था। समाज के अन्य लोग अधिकार और आभार के अयोग्य समझे जाते थे। समाज पूर्ण रूप से पूरक होता था। अब सम्पूर्ण पर्यावरण में बदलाव आ गया है और कोई भी बढ़ती हुई गतिशीलता और आवागमन के साधनों के कारण समाज स्थिर नहीं है।

ऐसी स्थिति में नागरिकता के विचार का अर्थ बदल जाता है। अब नागरिकता अपने अर्थ, क्षेत्र और विस्तार की दृष्टि से विस्तृत अर्थ में स्वीकार किया जाता है। यह अनेक लोगों को नागरिकता प्रदान करती है, जिसमें जाति, रंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता। इसमें अधिकारों और आभार के साथ राजनीतिक समुदाय को पूर्ण एवं समान सदस्यता दी जाती है। आधुनिक उदार प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं में टी. एच. मार्शल (T. H. Marshal) के फार्मूला के अनुसार नागरिकों को अधिकार एवं कर्त्तव्य प्रदान किए गए हैं।

मार्शल ने तीन प्रकार के अधिकारों का उल्लेख किया है –

  1. नागरिक अधिकार
  2. राजनीतिक अधिकार
  3. सामाजिक अधिकार

1. नागरिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित हैं।

2. राजनीतिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति को राजनीतिक प्रक्रिया और सरकार के कार्यों में शामिल होने की प्रेरणा देता है।

3. सामाजिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति के शैक्षिक उपलब्धि और रोजगार से सम्बन्धित हैं।

राज्य और सभी राजनीतिक समुदाय नागरिकों से कुछ कर्तव्यों एवं आभार की आशा करते हैं, जो सरकार के प्रजातान्त्रिक ढाँचे में शामिल हैं। यह कानून और व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्रीय सेवा और संस्कृति, ऐतिहासिक स्मारक और सामुदायिक समरसता का सुदृढ़ीकरण का संरक्षण आदि है।

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प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश समाज अधिक्रमिक व्यवस्था में संगठित हैं, जो लोगों की योग्यताओं और क्षमताओं पर आधारित होता है। यह उनके सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण और मौलिक आवश्यकताओं और सुविधाओं की दृष्टि से भिन्न हो सकते हैं। नागरिकता के परिवर्तित और विस्तृत अवधारणा के अर्थ में और राजनीति के प्रजातान्त्रिक ढाँचे के दृष्टि से अधिक से अधिक लोगों को नागरिक के रूप में राज्य के गतिविधियों में शामिल किया जाता है।

नागरिक रूप में वे अनेक अधिकार कर्त्तव्य और सम्बन्धित नैतिक बन्धन के लिए अधिकृत हैं। सार्वजनिक नागरिकता में लोगों की सहभागिता और संलग्नता महत्त्वपूर्ण है। सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर दिए जा सकते हैं परन्तु यह सामान्य प्रक्रिया नहीं है।

लोगों की विभिन्न समुदायों की विभिन्न आवश्यकताओं, समस्याएँ, योग्यताएँ और समताएँ हो सकती हैं, क्योंकि उनके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दशाएँ अलग होती हैं। विभिन्न समुदाय के नागरिकों के अधिकार दूसरे समुदाय के नागरिकों के अधिकारों के विरोधाभासी हो सकते हैं। समान अधिकार का तात्पर्य निश्चित नीति विभिन्न समुदायों के लिए नहीं होता।

लोगों को अधिक से अधिक समान बनाने के लिए लोगों के विभिन्न आवश्यकताओं और माँगों को भी ध्यान में रखना चाहिए। एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए जा सकते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सभी नागरिक इनका उपभोग समान रूप से कर सकते हैं। भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं परन्तु समाज के कुछ ही वर्ग अपनी क्षमताओं और योग्यताओं से इसका उपभोग करते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिए। इन संघर्षों में किन अधिकारों की माँग की गई थी?
उत्तर:
हाल के वर्षों में अनेक ऐसे संघर्ष नागरिकों के अधिकारों के उपभोग के लिए हुए हैं, जिनका उद्देश्य लोगों की आवश्यकताओं में परिवर्तन करना है। ये संघर्ष निम्नलिखित हैं –

  1. महिलाओं के आन्दोलन
  2. दलितों के आन्दोलन

1. महिलाओं के आन्दोलन:
यद्यपि भारत 15 अगस्त, 1947 ई. को आजाद हो गया था तथापि अधिकांश महिलाएँ अन्याय और भेदभाव की शिकार और आश्रित हैं। उन्हें पुरुष की अपेक्षा निम्न माना जाता है और किसी भी कार्य के योग्य नहीं समझा जाता है। ग्रामीण महिलाओं में चेतना आ गयी है और अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को पहचानने लगी हैं।

फलस्वरूप महिला आन्दोलन का जन्म हुआ। इस आन्दोलन ने जनता और सरकार का ध्यान आकृष्ट किया, जिससे सरकार की नीतियाँ महिलाओं के पक्ष में बनायी गईं। अब महिलाओं के आन्दोलन के फलस्वरूप महिलाओं ने राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर लिया है। महिलाओं को शक्तिशाली बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए घोषणा हुई है। भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग का निर्माण महिलाओं की उन्नति और उनकी सुरक्षा के लिए किया गया है।

दलित आन्दोलन:
दलित आन्दोलन शोषित वर्ग का एक अन्य आन्दोलन है। भारतीय समाज में इस वर्ग को दबाया गया था। यह आन्दोलन स्वतन्त्रता से पूर्व और बाद में भी हुआ। इस वर्ग का लम्बे समय तक शोषण किया गया और वे अन्याय के शिकार रहे। अनेक सामाजिक सुधारकों ने आन्दोलन शुरू किए, जिसने पूरे दृश्य को बदल दिया। सरकार ने दलितों की दशा सुधारने के लिए कई कदम उठाए।

उनके लिए सरकारी नौकरियों में, शिक्षा और चुनावों में उनके लिए सीट आरक्षित किया। इसके अलावा विधान सभा और सांसद के सीटों में भी इन्हें शामिल किया गया और आज समाज के अंग बन गयी हैं। समाज, राजनीति और प्रशासन में उनकी स्थिति
महत्त्वपूर्ण हो गयी है।

Bihar Board Class 11th Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्याएँ क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
उत्तर:
शरणार्थी वे लोग होते हैं, जो राज्यविहीन होते हैं और दूसरे राज्य में निवास करने के लिए प्रयास करते हैं और अपनी बस्ती की खोज में रहते हैं। ये शरणार्थी (Refugees) या तो युद्ध के कारण अथवा राष्ट्रीय संकट जैसे-अकाल, बाढ़ आदि से राज्यरहित हो जाते हैं। समान्यतः लोग पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन जाते हैं।

शरणार्थियों को अनेक प्रकार के सामाजिक, आर्थिक और मानवतावादी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि कोई राज्य उन्हें अपने यहाँ रखने के तैयार नहीं होता, वे अपने घर भी वापस नहीं जा सकते, क्योंकि वे प्रारम्भ से निवास रहित होते हैं। वे निवासरहित, राज्यरहित और अनिश्चितता में होते हैं। इसलिए कैम्प में गैर-कानूनी प्रवजन कर्ता के रूप में रहने के लिए विवश होते हैं।

बहुधा कानूनी तौर पर कार्य नहीं कर सकते हैं और बच्चों को शिक्षा नहीं दे सकते। उनके बच्चों का भविष्य अनिश्चित होता है। वे किसी सम्पत्ति को भी अपना नहीं सकते। उनकी समस्या इतनी गम्भीर है कि संयुक्त राष्ट्र (UNE) ने इनकी सहायता के लिए एक उच्च आयोग (High Commission) नियुक्त किया है। 1947 ई. में भारत विभाजन के समय हजारों लोग शरणार्थी बन गए। सभी शरणार्थियों को कोई भी राज्य अपने अन्दर समन्जित नहीं कर सकता। वस्तुतः इस समस्या का सामना केवल शरणार्थी ही नहीं कर रहे हैं अपितु सम्पूर्ण विश्व समुदाय इससे जूझ रही है।

वैश्विक नागरिकता का विचार निश्चित रूप से इस समस्या को हल कर सकता है चाहे यह पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से हो। संचार के नये साधन जैसे इंटरनेट, दूरदर्शन और सेलफोन ने वैश्विक नागरिकता को पर्याप्त ग्रहणीय और अनुकूल बनाया है। वैश्विक नागरिकता के समर्थक तर्क देते हैं कि यद्यपि एक विश्व, समुदाय और वैश्विक समाज आज भी विद्यमान नहीं है, परन्तु लोग राष्ट्रीय सीमा के बाहर के लोगों से जुड़े हुए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लोग विश्व के किसी भी भाग के प्राकृतिक आपदा के समय एक साथ हो जाते हैं। यह वैश्विक विचार को मजबूत करते हैं, जो आगे चलकर शरणार्थियों की समस्या को हल कर सकते हैं।

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प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के अप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
प्रवास की प्रक्रिया और फलस्वरूप शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से अनेक समस्या उत्पन्न होती है, जिसकी प्रतिक्रिया स्थानीय लोगों में दिखाई देती है। स्थानीय लोग इन्हें अपना प्रतिद्वन्दी मानते हैं और इस प्रकार दोनों का विभाजन भीतरी और बाहरी (insiders & outsiders) के रूप में हो जाता है। बाहरी लोगों को अपने जीवन में खतरा दिखाई देता है।

इसी प्रकार की प्रवृतियाँ शहरी क्षेत्रों और यहाँ तक कि विभिन्न देशों में दिखाई देती हैं। फिलीस्तीनी लोग अब तक भी व्यवस्थित नहीं हैं। इसी प्रकार का विवाद श्रीलंका में है। स्थानीय लोग हरेक प्रकार का प्रयास बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने के लिए करते हैं। इस समस्या से जुड़े अनेक प्रकार के नारे भी प्रचलित हो गए हैं जैसे-मुम्बई, मुंबई वालों की है, हरियाणा, हरियाणवी के लिए है। उत्तर-दक्षिण का भी विवाद है। इस सन्दर्भ में भूमि-पुत्र का सिद्धान्त भी विकसित हुआ है।

भीतरी लोगों और बाहरी लोगों, स्थानीय और शरणार्थियों के मध्य विवाद के कारण सभी लोगों को पूर्ण और समान सदस्यता देने की आवश्यकता महसूस हुई है। इससे सम्बन्धित अनेक संघर्ष उत्तर-पूर्व राज्यों, मुम्बई और पंजाब में हुए हैं। देश की विभिन्न भागों में बिहार के लोग रोजगार की खोज में प्रवास किए हैं। ऐसे स्थानों पर उनके स्थानीय लोगों के मध्य संघर्ष हुए हैं। लोगों का राज्य के एक भाग से दूसरे भाग में रोजगार की खोज में प्रवास करना नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों पक्ष है।

प्रवास करने वाली के उस स्थान पर बाहरी एवं भीतरी लोगों में विभाजित हैं। उन्हें रोजगार एवं नागरिक सुविधाएँ जैसे–शिक्षा, स्वास्थ्य, जल और विद्युत्त के लिए धमकाया जाता है परन्तु सकारात्मक पहलू भी है। ऐसे प्रवासी लोग सामान्यतः कठोर परिश्रम करते हैं और उस राज्य की अर्थव्यवस्था में उपयोगी योगदान देते हैं, जहाँ वे बाहरी कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। वे वहाँ मजदूर, श्रमिक और विशेषज्ञ कारीगर के रूप में कार्य करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के अकुशल श्रमिक हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और पंजाब में काम करके अपनी जीविका चला रहे हैं, उनको अपने राज्य में रोजगार उपलब्ध नहीं हैं।

यहाँ तक कुछ लोग जीविका के लिए विदेश जाते हैं। कुशल श्रमिकों के लिए देश के विभिन्न भागों में बाजार विकसित हुए हैं। आई. टी. (प्रोफेशनल) अर्थात् कम्प्यूटर इंजीनियर बंगलोर में अच्छा कार्य कर रहे हैं, केरल की नसें देश के विभिन्न भागों में कार्य कर रही हैं। वे उपयोगी और कीमती सेवा मानव जाति की अपने राज्य की चिन्ता किए बिना कर रहीं हैं। मुम्बई में भवन और रोड के विकास में शिक्षित और अशिक्षित लोग कार्य कर रहे हैं। वे अपने लिए और अपने देश के लिए कार्य कर रहे हैं। हमारे देश के आवागमन का अधिकार संविधान से मिला हुआ है, जो अत्यन्त उपयोगी, सिद्ध हुआ है।

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प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतान्त्रिक नागरिकता का एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दे की चर्चा कीजिए, जो आजकल भारत में उठाए जा रहे हैं?
उत्तर:
नागरिकता की आदर्श परिभाषा राजनैतिक समुदाय की पूर्ण एवं समान सदस्यता है। यह परिभाषा एक लोकतान्त्रिक राजनीतिक समुदाय में अधिकाधिक ऐच्छिक है। यह सन्तोष की बात है कि लोकतान्त्रिक नागरिकता अथवा पूर्ण और समान सदस्यता अधिक जागरुकता के साथ विश्व के अधिकांश देशों में हैं। हालाँकि इसकी अधिकांश पृष्ठभूमि अभी व्यवहार में नहीं है।

पूर्ण एवं समान नागरिकता के उद्देश्य को प्राप्त करना अभी दूर ही है। इसलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि लोकतान्त्रिक नागरिकता का विचार अभी पूर्ण तथ्य की अपेक्षा एक परियोजना है। यहाँ तक कि लोकतान्त्रिक राजनीतिक समुदाय यथा भारत में भी अभी एक प्रयोग के रूप में है। भारत ने 59 वर्ष से अधिक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को निभाया है, जो वयस्क मताधिकार और लोगों की सहभागिता पर आधारित है।

भारतीय संविधान में आवश्यक लोकतान्त्रिक और समाविष्ट नागरिकता को अपनाया गया है। भारत में नागरिकता जन्म से, निवास से, पंजीकरण से और प्राकृतिकरण से प्राप्त की जा सकती है। नागरिकों के अधिकार एवं आभार को संविधान में उल्लेखित किया गया है। यह भी वर्णन है कि राज्य को नागरिकों के विरुद्ध भेदभाव नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार के समाविष्ट अधिकार ऐच्छिक अधिकार को जन्म नहीं देते। महिला आन्दोलन और दलित आन्दोलन धनी और गरीब में गलतफहमी पैदा कर रहे हैं। ये सामाजिक समूह के पूरक या प्रभावी स्थिति को प्रकट करते हैं। सामाजिक परिवर्तन के रूप में नये मुद्दे निरन्तर उठाए जा रहे हैं और समूहों के द्वारा नई माँगें की जा रही है। वे अपने को तटस्थ मानने लगते हैं और समाज के मुख्य धारा से हटा दिए जाते हैं। प्रजातान्त्रिक राज्य में इन मांगों को सामाजिक एकता के लिए ध्यान में रखना चाहिए।

Bihar Board Class 11 Political Science नागरिकता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
श्री अनिल अभी-अभी एक व्यस्त कारोबारी दौरे से लौटकर आए थे। अगले दिन उसका कार्यालय चुनाव के कारण बन्द था। उन्होंने पूरा दिन फिल्म देखने और सोने में बिताया। श्री अनिल रवैये में क्या गड़बड़ हैं? (Mr. Anil had just come from a busy business tour The next day the office was closed because of elections. He spent the whole day watching a film and sleeping. What is wrong with Mr. Anil’s attitude?)
उत्तर:
उदासीनता अर्थात् गलत रवैये (Wrong attitude) का पनपना या नागरिकता के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण।

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प्रश्न 2.
पचास शब्दों के बीच भेद कीजिए। (Answer in about 50 words)
1. निम्नलिखित के बीच भेद कीजिए (Distinguish between)
(क) नागरिक और बाहरी व्यक्ति।
(ख) जन्मजात और देशीयकृत नागरिकता।
उत्तर:
(क) नागरिक और बाहरी व्यक्ति के भेद-नागरिक वह व्यक्ति है, जो किसी देश या राज्य का सदस्य होता है, वह उसके प्रति निष्ठावान होता है। वह नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों का उपयोग करता है। वह देश के शासन संचालन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। बाहरी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य राज्य (देश) में अस्थाई रूप में निवास किया जाता है। वह नागरिकों की भाँति राजनीतिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता और न ही देश के शासन (Administration) में भाग ले सकता है।

(ख) जन्मजात और देशीयकृत नागरिकता में भेद-जन्मजात नागरिक वह कहलाता है, जो किसी देश में पैदा या उसके माता-पिता उस देश के नागरिक होते हैं। देशीयकृत नागरिक वह होता है, जो किसी अन्य देश की नागरिकता कुछ आवश्यक शर्तों को पूर्ण करके प्राप्त करता है।

2. गोआ के लोग भारत के नागरिक कैसे बने? (How did the people of Goa become Indian citizens?)
उत्तर:
गोआ सन् 1961 ई. में पुर्तगाल से स्वतन्त्र होकर भारत का हिस्सा बन गया। अतः गोआवासी, भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अन्तर्गत भारतीय बन गए।

3. यदि कोई व्यक्ति अपने देश से कई वर्षों तक बाहर रहे, तो क्या होगा? (What would happen if a person stayed away from his/her country for many years?)
उत्तर:
उस व्यक्ति को दीर्घकालीन अनुपस्थिति के कारण उसे अपने देश की नागरिकता खोनी पड़ेगी।

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प्रश्न 3.
नागरिकता से क्या अभिप्राय है? (What is ineant by citizenship?)
उत्तर:
नागरिकता (Citizenship):
नागरिकता नागरिक की वह विशेषता अथवा गुण है, जिसके कारण उसे राज्य से राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं वह राज्य का नागरिक कहलाता है।

प्रश्न 4.
नागरिक व विदेशी में क्या अन्तर है? (What is the difference between a citizen and a foreigner?)
उत्तर:
नागरिक तथा विदेशी में निम्नलिखित अन्तर हैं –

  1. नागरिक उस राज्य का स्थायी निवासी होता है और विदेशी दूसरे राज्य का होता है।
  2. दोनों के अधिकारों में भी भिन्नता होती है। नागरिकों को राजनीतिक व सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, विदेशियों को नहीं।
  3. अपने राज्य के प्रति वफादारी रखना नागरिक का कर्तव्य है परन्तु विदेशी अपने राज्य (जिसका वह नागरिक है) के प्रति वफादार होता है।
  4. युद्ध के समय विदेशियों को राज्य की सीमा से बाहर जाने के लिए कहा जा सकता है परन्तु नागरिकों को नहीं।
  5. नागरिक अपने राज्य की दीवानी तथा फौजदारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अधीन होता है, जबकि विदेशी अस्थायी से निवास वाले राज्य के दीवानी, फौजदारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अधीन होता है।

प्रश्न 5.
नागरिकता अधिनियम, 1955 का निम्नलिखित में से किससे सम्बन्ध है? (Which of the following does the Citizenship Act of 1955 deal with?)
(क) नागरिक की परिभाषा
(ख) बाहरी व्यक्ति की परिभाषा
(ग) बाहरी व्यक्तियों के अधिकार
(घ) नागरिकता की प्राप्ति तथा समाप्ति
उत्तर:
(घ) नागरिकता की प्राप्ति तथा समाप्ति

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन भारत में बाहरी व्यक्ति हैं?
(From the option give below, choose which of the following are aliens in India?)

  1. रीता जो भारत में जन्मे अपने पिता और फ्रांसीसी माँ के साथ रहती है।
  2. जानकी जो भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए मारीशस से आई है।
  3. श्री विलियम बेकर जो आस्ट्रेलिया के उच्चायोग में विदेश सेवा के अधिकारी हैं।
  4. लखनऊ का रहने वाला एक लड़का खालिद आमीर, अमरिका में पढ़ाई कर रहा है।

उत्तर:
(2) – (3)

प्रश्न 7.
भारत की नागरिकता ग्रहण करने के गलत विकल्प को चुनिए। (Select the incorrect option of acquiring Indian citizenship)
(क) कोई एक भारतीय भाषा बोल सकता/सकती है।
(ख) कम से कम पाँच वर्ष तक भारत में रह चुका/चुकी है।
(ग) जिस देश का/की वह है, वहाँ की नागरिकता छोड़ चुका/चुकी है।
(घ) अच्छा वेतन अर्जित करने में सक्षम है।
उत्तर:
(घ) अच्छा वेतन अर्जित करने में सक्षम है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (Answer the following questions)
1. फिलिप टेलर का जन्म नई दिल्ली में हुआ था, उसके पिता एक अमेरिकी हैं, जो नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में काम करते हैं। फिलिप किस देश का नागरिक होगा?
(Phillip Taylor was born in New Delhi. His fater is an American working at the American Embassy in New Delhi Which country’s citizenship would Philip have?)
उत्तर:
फिलिप के पास भारतीय या अमरिकी नागरिकता में से कोई एक चुनने का विकल्प है।

1. भारत के श्रीरामदीन को मलेशिया की न्यायपालिका में मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया है। क्या वे देशीकृत नागरिक बन सकते हैं। (Mr. Ram Deen of Indian has been appointed as a Magistrate in the Malay sian Judiciary. Can he become a naturalized citizen of the country?)
उत्तर:
हाँ, यदि किसी विदेशी को किसी सरकारी पद पर नियुक्त किया जाता है, तो वह उस देश की नागरिकता ग्रहण कर सकता है, जहाँ का वह लोकसेवक बना है।

2. पाकिस्तान का एक भाग, पूर्वी पाकिस्तान, 1971 ई. में मुक्त होकर स्वतन्त्र देश, बंगलादेश बन गया। भूतपूर्व पूर्वी पाकिस्तानियों की नागरिकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? (In 1971, East Pakistan, a part of Pakistan, was liberated and became an independent country Bangladesh. How did this affect the citizenship of the former East Pakistanis?)
उत्तर:
उन्होंने बंगलादेश की नागरिकता ग्रहण कर ली।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से किसे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ेगी? (Which of the following would have to surrender their Indian citizen ship?)
(क) ज्योत्सना सिंह, जिसे आस्ट्रेलिया में अध्ययन के लिए शोधवृत्ति मिली है।
(ख) जग्ग, जिसे डकैती डालते हुए पकड़ा गया।
(ग) राधिका, जो छुट्टियाँ मनाने स्वीडेन गई है।
(घ) सिद्धार्थ मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।
उत्तर:
(घ) सिद्धार्थ मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।

प्रश्न 10.
सही विकल्प चुनिए। (Choose the correct option) अर्थहीन प्रथाओं और अन्धविश्वासों को दूर किया जा सकता है। Meaningless social customs and superstitions can be removed by –
(क) अधिक शहरीकरण से
(ख) अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने से
(ग) गरीबी दूर करके
(घ) शिक्षा के प्रसार से
उत्तर:
(घ) शिक्षा के प्रसार से

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक आदर्श नागरिक के गुणों का वर्णन कीजिए। (Describe the merits of a good citizen)
उत्तर:
1. सुशिक्षित (Educated):
सुशिक्षित होना आदर्श नागरिक के लिए परमावश्यक है। शिक्षा के अभाव में वह अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को नहीं समझ सकता। अतः प्रजातन्त्र की सफलता के लिए अच्छे नागरिकों का सुशिक्षित होना आवश्यक है।

2. स्वस्थ (Healthy):
एक आदर्श नागरिक का स्वस्थ होना आवश्यक है। स्वस्थ नागरिक ही देश व समाज की भली-भाँति सेवा कर सकता है।

3. मताधिकार का उचित प्रयोग (Proper use of vote):
आदर्श नागरिक अपने मताधिकार का सही प्रयोग कर सकता है और अपना मूल्यवान वोट योग्य, शिक्षित, नि:स्वार्थ एवं देशभक्त को दे सकता है।

4. अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान (Awaknes about theirrights and duties):
एक आदर्श नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का प्रयोग ठीक से करता है।

5. देशभक्त (Patriot):
एक आदर्श नागरिक को देशभक्त होना चाहिए। देश के प्रति स्वाभाविक अनुराग होना चाहिए।

6. परिश्रमी (Hardworkers):
एक अच्छे नागरिक को परिश्रमी एवं फुर्तीला होना चाहिए, जिससे वह सफलतापूर्वक सामाजिक कार्य कर सके।

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प्रश्न 2.
आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को कौन-कौन से राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं? (Which type of political rights are given to the citizens by the Modern States?)
उत्तर:
आधुनिक युग में अधिकतर देश प्रजातन्त्रीय हैं। ये देश अपने नागरिकों को बहुत से राजनीतिक अधिकार प्रदान करते हैं। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –

1. मतदान का अधिकार (Right to Vote):
जिन देशों में प्रजातन्त्रात्मक शासन की स्थापना की जाती है, उनमें वहाँ के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है। इस अधिकार के अनुसार लोग समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। जनता के प्रतिनिधि ही सरकार का निर्माण करते हैं और शासन चलाते हैं।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to Contest Election):
प्रजातन्त्रीय शासन में, प्रत्येक व्यक्ति जो यह समझता है कि उसके सहयोगी उसे अपना प्रतिनिधि चुनना चाहते हैं, उसे निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार है। निर्वाचित होने के बाद व्यक्ति नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्माण करते हैं।

3. सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार (Right to hold public office):
आधुनिक युग में नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरियाँ पाने का अधिकार है।

4. कानून के समक्ष समानता का अधिकार (Right to equality before Law):
आधुनिक राज्यों में नागरिकों को कानून के सम्मुख समानता का अधिकार प्रदान किया जाता है।

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प्रश्न 3.
किसी राज्य की नागरिकता के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं? (What are the essential conditions for the citizenship of a state?)
उत्तर:
नागरिकता के लिए चार चीजों की आवश्यकता होती है –
1. राज्य की सदस्यता-वर्तमान में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी राज्य का सदस्य अवश्य होता है। राज्य की सदस्यता ही व्यक्ति को उस राज्य की नागरिकता दिलाती है और वह उक्त समाज का अंग बन जाता है।

2. राज्य के प्रति भक्ति-राज्य के प्रति भक्ति होना अत्यन्त आवश्यक है। 1999 ई. में जब पाकिस्तान के कारगिल में सैनिकों ने घुसपैठ की तो सारे भारत में विरोध के बदले की भावना उत्पन्न हुई तथा जनवरी 2001 ई. में गुजरात में जब भूकम्प से जान व माल को नुकसान हुआ, तो भारतीयों में सहयोग की भावना उत्पन्न हुई। यह समाज के प्रति भक्ति का अच्छा उदाहरण है।

3. नागरिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति-किसी राज्य का नागरिक किसी व्यक्ति को उसी दशा में कहा जा सकता है, जबकि उसे राज्य की ओर से नागरिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हों। प्रारम्भ से आज तक किसी न किसी रूप में राज्य ने अपने नागरिकों को ये अधिकार प्रदान किए हैं।

4. कर्तव्य-पालन-राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति के बदले में नागरिक में कर्तव्य पालन की भावना होना आवश्यक है। नागरिक को चाहिए कि वह राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों को अवश्य पूरा करे तथा राज्य की सुरक्षा, उन्नति एवं विकास में सभी प्रकार का सहयोग प्रदान करें।

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प्रश्न 4.
नागरिकता ग्रहण करने के कौन-कौन से तरीके हैं? (What are the different ways of acquiring citizenship?)
उत्तर:
नागरिकता ग्रहण करने के तरीके निम्नलिखित हैं –

  1. विवाह-कोई विदेशी स्त्री भारतीय पुरुष से विवाह करने के बाद भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकती है। जापान में नागरिकता कानून भिन्न हैं। यदि कोई जापानी स्त्री भारतीय या किसी अन्य राष्ट्र के पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यक्ति जापान की नागरिकता ग्रहण कर सकता है।
  2. सरकारी पद पर कर्मचारी या अधिकारी के रूप में नियुक्ति-यदि किसी विदेशी को किसी सरकारी पद पर नियुक्त किया जाता है, तो वह उस देश की नागरिकता ग्रहण कर सकता/सकती है, जहाँ का वह लोक सेवक बना/बनी है।
  3. अचल संपत्ति की खरीद या क्रय करके-कुछ देशों में यदि किसी व्यक्ति को अचल संपत्ति जैसे घर या जमीन खरीदने का अनुमति है, तो वह नागरिकता भी ग्रहण कर सकता/सकती है।
  4. भूमि का अधिग्रहण-यदि किसी देश की भूमि अन्य देशों के द्वारा अधिग्रहीत कर ली जाती है, तो उस क्षेत्र के सभी निवासी उस देश के नागरिक बन जाते हैं।

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प्रश्न 5.
किसी नागरिक की नागरिकता कैसे समाप्त हो सकती है? (How can a citizen lose her/his citizenship?)
उत्तर:

  1. देशद्रोह या निरन्तर विद्रोही गतिविधियाँ-यदि कोई नागरिक देश के साथ गद्दारी करते हुए संविधान का अनादर करे तथा देश की शान्ति और व्यवस्था को लगातार भंग करे तो उसे देश की नागरिकता से वंचित किया जा सकता है।
  2. किसी भू-भाग के पृथक होने पर-यदि देश का कोई हिस्सा किसी समझौते या संधि द्वारा अलग हो जाए, तो वहाँ के सभी नागरिक दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करेंगे, व उन्हें पहले देश की नागरिकता छोड़नी होगी।
  3. विदेशी में सरकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त-जब कोई व्यक्ति किसी विदेशी सरकार की सेवा में पद ग्रहण करता है, तो उसकी मूल नागरिकता समाप्त हो सकती है।
  4. विदेश सेना, नौसेना या वायुसेना में सेवा-रक्षा सेवाएँ किसी देश के संवेदनशील अंग होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की रक्षा सेवाओं में पद ग्रहण करता है, तो उसकी मूल नागरिकता समाप्त हो सकती है।
  5. विदेशी से विवाह-यह नागरिकता समाप्त होने के सबसे प्रचलित कारणों में से एक है। यदि कोई भारतीय स्त्री किसी विदेशी से विवाह करती है, तो वह भारतीय नागरिकता छोड़कर अपने पति के देश की नागरिकता ग्रहण कर सकती है।
  6. विदेश में स्थायी निवास-यदि कोई भारतीय किसी अन्य देश में जाकर रहने लगे, तब वह अपने देश की नागरिकता खो देता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक नागरिक के तीन प्रमुख कर्त्तव्यों की व्याख्या करें। (Explain three primary duties of a citizen)
उत्तर:
कर्त्तव्य का अर्थ (Meaning of Duty):
साधारण शब्दों में किसी काम को करने या न करने के दायित्वों को कर्तव्य कहते हैं। कर्त्तव्य सकारात्मक या नकारात्मक कार्य है, जो व्यक्ति को दूसरों के लिए करना पड़ता है, चाहे उसकी इच्छा उस कार्य को करने की हो या न हो। संक्षेप में, कर्त्तव्य कुछ ऐसी निश्चित और अवश्य किए जाने वाले कार्यों को कहते हैं, जो कि सभ्य समाज और राज्य में रहते हुए व्यक्ति को प्राप्त किए गए अधिकारों के बदले में करने पड़ते हैं।

नागरिकों के कानूनी कर्तव्य (Legal Duties of the Citizens):
ऐसे कर्तव्य जिनको करने के लिए प्रत्येक नागरिक बाध्य होता है, कानूनी कर्त्तव्य कहलाते हैं, जो व्यक्ति कानूनी कर्तव्यों का पालन नहीं करता, राज्य उन्हें दण्ड दे सकता है। देश के प्रति वफादार रहना, सैनिक सेवा कर देना इत्यादि नागरिकों के कानूनी कर्त्तव्यों की श्रेणी में आते हैं।

1. राज्य के प्रति वफादारी (Loyalty towards the State):
राज्य प्रत्येक नागरिक को अनेक प्रकार के अधिकार प्रदान करता है व कई प्रकार की सुख-सुविधाएँ भी प्रदान करता है। राज्य अपने नागरिकों की बाहरी आक्रमणों से तथा प्राकृतिक विपत्तियों से भी रक्षा करता है और उनके विकास के लिए प्रयत्नशील रहता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति से राज्य के प्रति निष्ठा व भक्ति की आशा की जाती है। प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह देशद्रोह न करे और देश पर आए संकट के समय अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने को तैयार रहे।

2. कानूनों का पालन करना (Obedience of Laws):
कानून-पालन की भावना से राज्यों में शान्ति व व्यवस्था व्यवस्थित हो सकती है। आजकल के प्रजातान्त्रिक देशों में कानूनों का निर्माण जनता के प्रतिनिधि करते हैं। जिस देश में नागरिकों की प्रकृति कानूनों का उल्लंघन करने की होती है, उस देश में शान्ति व व्यवस्था विद्यमान नहीं रहती। अतः कानूनों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है।

3. टैक्स देना (Payment of taxes):
सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार धन की प्राप्ति कर लगाकर करती है। अत: नागरिकों का यह कानूनी कर्त्तव्य है कि वे अपने हिस्से के करों को ईमानदारी से चुकाएँ। करों को ईमानदारी से न चुकाने पर राज्य द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है।

4. राजनीतिक अधिकारों का उचित प्रयोग करना (Proper use of the Political Rights):
प्रजातन्त्रीय शासन में नागरिकों को बहुत से राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। उनमें से प्रमुख हैं-मत देने का अधिकार, निर्वाचित होने का अधिकार व सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार। प्रत्येक अधिकार का यह कानूनी कर्त्तव्य है कि वह अपने मत का सदुपयोग करे और किसी अच्छे उम्मीदवार को ही देश का शासन चलाने के लिए अपना प्रतिनिधि चुने। इसके साथ-साथ अपने निर्वाचित होने के अधिकार का भी ईमानदारी से प्रयोग करे।

5. सैनिक सेवा में भाग लेना (To take in defence service):
नागरिकों का यह भी कर्तव्य है कि आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा हेतु सेना में भर्ती हो।

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प्रश्न 2.
लोकतन्त्र में नागरिक की भूमिका की व्याख्या कीजिए। (Explain the role of a citizen in a democracy)
उत्तर:
लोकतन्त्र में नागरिक की भूमिका –
1. लोकतन्त्र लोगों की, लागों द्वारा तथा लोगों के लिए कार्य करने वाली सरकार है। आजकल राज्यों का आकार (जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से) बहुत बड़ा है। नागरिक समय-समय पर मतदान में भाग लेकर, चुनाव लड़कर या अपने दल गठन करने एवं चुनाव के बाद उसके कार्यों में रुचि लेकर एवं सहयोग देकर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।

2. अपने कर्तव्यों का पालन करके तथा दायित्वों का निर्वाह करके-लोकतन्त्र में हर नागरिक अपने कार्यों तथा दायित्वों की जिम्मेदारी निष्ठा से निभा कर लोकतन्त्रीय सरकार में योगदान देते हैं या अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।

3. अनुशासनबद्धता का पालन एवं सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करके-नागरिक लोकतन्त्र की सफलता के लिए शान्ति तथा अनुशासन को जरूरी मानते हैं। वे कानून को अपने हाथ में नहीं लेते तथा अपने विचारों को समाचार-पत्रों, टेलीविजन, रेडियो, सभाओं, प्रदर्शनों द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। वे सार्वजनिक सम्पत्ति तथा राष्ट्रीय विरासत की रक्षा में भाग लेते हैं।

4. शिक्षा प्राप्त करना तथा संकीर्ण भावनाओं में न बहना-लोकतन्त्र में नागरिक शिक्षा प्राप्त करके तथा ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया को जीवन भर जारी रखते हैं तथा सदैव ही स्वयं को तंग दृष्टिकोण जैसे-जातिवाद, साम्प्रदायिकता, संकीर्ण भाषायी नजरिया, क्षेत्रवाद से बचा कर रखते हैं, क्योंकि वे मानते और जानते हैं कि संकीर्ण भावनाएँ लोकतन्त्र की सफलता की राह में बहुत ही शक्तिशाली अवरोधक (Hindrances) हैं।

5. कर भुगतान तथा उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखना-लोकतन्त्र में नागरिक प्रायः ईमानदारी के साथ नियमित रूप से कर चुकाते हैं। अपने कर्तव्यों को वे निष्ठापूर्वक रहकर निभाते हैं। वे उच्च नैतिक चरित्र का पालन करते हैं। हर सार्वजनिक गतिविधि की जानकारी रखते हैं। बुरे कानूनों का शान्तिपूर्ण उपायों से विरोध करते हैं। वे देशभक्त होते हैं तथा अपने देश को अपने निजी स्वार्थों से.ऊपर रखते हैं।

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प्रश्न 3.
‘नागरिक’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। भारतीय संविधान नागरिकों के बारे में क्या कहता है? भारत की नागरिकता ग्रहण करने की पाँच पद्धतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(क) नागरिक शब्द का अर्थ-नागरिक वह व्यक्ति है, जो किसी राज्य का सदस्य होता है, वह देश के प्रति निष्ठावान होता है, उसे नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं और वह देश के शासन में भागीदारी करता है।

(ख) भारत का संविधान एवं नागरिक-भारत का संविधान कहता है कि निम्नलिखित व्यक्ति संविधान लागू होने के साथ ही भारत का नागरिक बन जाता है –

  • भारत के क्षेत्र में जन्मा कोई भी व्यक्ति।
  • भारत में निवास कर रहा व्यक्ति या जिसके माता-पिता का जन्म भारत में हुआ हो।
  • कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता भारत में नहीं जन्मे किन्तु वे संविधान लागू होने के कम से कम पाँच वर्ष पहले से भारत में रह रहे हों।

(ग) भारत की नागरिकता ग्रहण करने की पाँच पद्धतियाँ निम्न हैं –

  • जन्म के आधार पर नागरिकता-भारत में जन्मा हर व्यक्ति जन्म से भारत का नागरिक होगा।
  • वंशानुगत आधार पर नागरिकता-किसी व्यक्ति का जन्म भारत के बाहर हुआ है पर यदि उसके पिता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हैं, तो वह वंशानुगत आधार पर भारत का नागरिक होगा या होगी।
  • पंजीकरण द्वारा नागरिकता-व्यक्तियों के कुछ वर्ग जिन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं है, निर्धारित अधिकारियों के समक्ष पंजीकरण करवा कर इसे ग्रहण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत के किसी नागरिक से विवाहित कोई स्त्री अपना पंजीकरण करवा कर भारतीय नागरिकता ग्रहण कर सकती है।
  • देशीयकरणं के आधार पर नागरिकता-कोई विदेशी व्यक्ति भारत सरकार को देशीयकरण के लिए आवेदन करके भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकता है। देशीयकरण का अर्थ है कुछ शर्तों का पालन करके किसी देश की नागरिकता लेना।
  • क्षेत्र के समावेशन के आधार पर नागरिकता-यदि कोई क्षेत्र भारत का भाग बन जाता है, तो भारत सरकार उस क्षेत्र के लोगों को नागरिकता दे देगी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नागरिकता निर्धारण का एक कौन-सा तरीका सही नहीं है?
(क) रक्त सम्बन्ध
(ख) जन्मस्थान
(ग) द्वैद्य सिद्धान्त
(घ) पारिवारिक सम्बन्ध
उत्तर:
(घ) पारिवारिक सम्बन्ध

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव InText Questions and Answers

अनुच्छेद 13.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर:
वास्तव में दिक्सूचक की सुई एक छोटा-छड़ चुंबक ही होती है। किसी दिक्सूचक की सुई के दोनों सिरे लगभग उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं। दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं। हम जानते हैं कि चुंबकों में सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण तथा विजातीव ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है। अतः चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है।

अनुच्छेद 13.1 से 13.2.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के कुछ प्रमुख गुण निम्नवत् हैं –

  1. ये काल्पनिक रेखाएँ चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं एवं दक्षिणी ध्रुव पर जाकर समाप्त हो जाती हैं।
  2. ये क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।
  3. इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर स्पर्श रेखा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाती है।

प्रश्न 3.
दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं?
उत्तर:
यदि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद करें तो प्रतिच्छेद करने वाले बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जो संभव नहीं है। अतः ये क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।

अनुच्छेद 13.2.3 और 13.2.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
चित्र से स्पष्ट है कि पाश के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश के तल (मेज के तल) के लम्बवत् नीचे की ओर होगी, जबकि पाश के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश (मेज) के तल के लम्बवत् ऊपर की ओर होगी।
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प्रश्न 2.
किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनिए किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर:
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।

अनच्छेद 13.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? ( यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।)
(a) द्रव्यमान
(b) चाल
(c) वेग
(d) संवेग
उत्तर:
(c) वेग तथा (d) संवेग

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प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि –
1. छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए
2. अधिक प्रा. नाल चुंबक प्रयोग किया जाए; और
3. छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर:
हम जानते हैं कि F = BiL इसलिए,

  1. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ i बल का मान चालक में प्रवाहित धारा के मान के समानुपाती होता है।
  2. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ B बल का मान चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के समानुपाती होता है।
  3. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ L बल का मान चालक की लंबाई के समानुपाती होता है।

प्रश्न 3.
पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी
उत्तर:
(d) उपरिमुखी।

अनुच्छेद 13.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए। (2011, 13, 14, 15, 16)
उत्तर:
यदि हम वामहस्त (बायें हाथ) की तीन चालक पर बल / अंगुलियों – अंगूठा, तर्जनी एवं मध्यमा को एक-दूसरे के लम्बवत् इस प्रकार फैलाएँ कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एवं मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्यत धारा की दिशा को दर्शाए तो चालक पर लगने वाले बल की विद्युत धारा की दिशा में होती है।
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प्रश्न 2.
विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?
उत्तर:
विद्युत मोटर का सिद्धान्त जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है। यही विद्युत मोटर का सिद्धान्त है।

प्रश्न 3.
विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विद्युत मोटर में विभक्त वलय कॉम्यूटेटर का कार्य करता है। धारा की दिशा परिवर्तन के कारण आर्मेचर में लगने वाले बल की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार कुण्डली पर लगने वाला घूर्णी बल कुण्डली में घूर्णन उत्पन्न करता है।

अनुच्छेद 13.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित ढंग से किसी कुण्डली में विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है –

  1. कुण्डली एवं चुंबक को आपेक्षिक गति में लाकर।
  2. एक धारावाही कुण्डली एवं एक सामान्य कुण्डली में सापेक्षिक गति उत्पन्न करके।
  3. दो कुण्डलियों में से किसी एक में धारा के मान को परिवर्तित करके।

अनुच्छेद 13.6 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
विद्युत जनित्र का सिद्धान्त जब किसी बन्द कुण्डली को किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है तो उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय-फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। कुण्डली को घुमाने में किया गया कार्य ही कुण्डली में विद्युत-ऊर्जा के रूप में परिणत हो जाता है।

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प्रश्न 2.
दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दिष्ट धारा के कुछ मुख्य स्रोत निम्नवत् हैं –
1. विद्युत रासायनिक सेल
2. स्टोरेज सेल
3. dc जनित्र।

प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा के स्रोतों के नाम निम्नवत् हैं –

  1. ac जनित्र
  2. ताप शक्ति विद्युत
  3. जल विद्युत
  4. न्यूक्लिअर रियेक्टर।

प्रश्न 4.
सही विकल्प का चयन कीजिए ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात परिवर्तन होता है?
(a) दो (b) एक (c) आधे (d) चौथाई
उत्तर:
(c) आधे

अनुच्छेद 13.7 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए। उत्तर–सामान्यतः उपयोग में आने वाले दो उपायों के नाम निम्नवत् हैं
1. विद्युत फ्यूज।
2. भू-संपर्क तार का उपयोग

प्रश्न 2.
2 kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5 A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
हल:
दिया है, शक्ति P = 2kW
= 2 x 1000W = 2000 W
वोल्टेज, V = 220 V
हम जानते हैं कि, शक्ति, P = V x I या I = \(\frac {P}{V}\)
= \(\frac {2000}{220}\) = 9.09A
अर्थात् विद्युत तंदूर लाइन से 9.09A की धारा लेगा जोकि फ्यूज की क्षमता से अधिक है, अत : फ्यूज का तार गल जायेगा।

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प्रश्न 3.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:
एक ही सॉकिट से बहुत ज्यादा विद्युत उपकरणों को संयोजित नहीं करना चाहिए; क्योंकि इससे अतिभारण हो सकता है।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लम्बवत् होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
उत्तर:
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।

प्रश्न 2.
वैद्युत-चुंबकीय प्रेरण की परिघटना –
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर:
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।

प्रश्न 3.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं –
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) ऐमीटर
(d) मोटर
उत्तर:
(a) जनित्र

प्रश्न 4.
किसी ac जनित्र तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि –
(a) ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc जनित्र में स्थायी चुंबक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर:
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।

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प्रश्न 5.
लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान –
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर:
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए।
(a) विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।
(b) विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
(c) किसी लंबी वृत्ताकार विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है।
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर:
(a) असत्य
(b) सत्य
(c) सत्य
(d) सत्य

प्रश्न 7.
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के तीन तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर:
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने वाले तीन तरीके निम्नवत् हैं –
1. स्थायी चुम्बक
2. विद्युत धारा
3. गतिमान आवेश

प्रश्न 8.
परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर:
पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। धारावाही परिनालिका का एक सिरा दक्षिणी ध्रुव एवं दूसरा सिरा उत्तरी ध्रुव की तरह कार्य करता है। परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर समानांतर होती हैं।
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इसका अर्थ है कि परिनालिका के केन्द्र पर विद्युत क्षेत्र – सबसे अधिक होता है तथा सभी जगह एकसमान होता है। हाँ, परिनालिका के उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव की पहचान हम छड़ चुम्बक से कर सकते हैं। यदि छड़ चुम्बक का उत्तरी ध्रुव परिनालिका की ओर आकर्षित होता है तो यह सिरा दक्षिणी ध्रुव होता है। इसी प्रकार उत्तरी ध्रुव की भी पहचान की जा सकती है।

प्रश्न 9.
किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर:
जब किसी धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उस पर कार्यरत बल के लिए व्यंजक
F = BIL sinθ
जहाँ B = चुंबकीय क्षेत्र
I = धारा की शक्ति
L = चालक की लंबाई
θ = धारावाही चालक एवं चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच का कोण।
अत: F का मान जब θ = 90° होगा तो अधिकतम होगा अर्थात् चालक एवं चुंबकीय क्षेत्र दोनों एक-दूसरे के लंबवत् हैं।

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प्रश्न 10.
मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर:
फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियमानुसार, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर होगी।

प्रश्न 11.
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है? (2011, 13, 15, 16, 18)
उत्तर:
विद्युत मोटर विद्युत मोटर एक ऐसा साधन है, जो विद्युत-ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है। सिद्धान्त जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है।
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कार्य-विधि जब बैटरी से कुण्डली में विद्युत-धारा प्रवाहित करते हैं तो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम से, कुण्डली की भुजाओं AB तथा CD पर बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में दो बल कार्य करने लगते हैं। ये बल एक बल-युग्म बनाते हैं, जिसके कारण कुण्डली दक्षिणावर्त दिशा में घूमने लगती है। कुण्डली के साथ उसके सिरों पर लगे विभक्त वलय भी घूमने लगते हैं। इन विभक्त वलयों की सहायता से धारा की दिशा इस प्रकार रखी जाती है कि कुण्डली पर बल लगातार एक ही दिशा में कार्य करे अर्थात् कुण्डली एक दिशा में घूमती रहे।

विभक्त वलय का महत्त्व विभक्त वलय का कार्य कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा को बदलना है। जब कुण्डली आधा चक्कर पूर्ण कर लेती है तो विभक्त वलयों का ब्रुशों से सम्पर्क समाप्त हो जाता है और विपरीत ब्रुशों से सम्पर्क जुड़ जाता है। इसके फलस्वरूप कुण्डली में धारा की दिशा सदैव इस प्रकार बनी रहती है कि कुण्डली एक ही दिशा में घूमती रहे।

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प्रश्न 12.
ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर:

  1. कूलर
  2. पंखा;
  3. एअर कंडीशनर;
  4. पंप आदि में विद्युत मोटर का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 13.
कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबक –

  1. कुंडली में धकेला जाता है।
  2. कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है।
  3. कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है।

उत्तर:

  1. कुण्डली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित करेगा।
  2. कुण्डली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित करेगा, परन्तु विक्षेप की दिशा पहले की विपरीत होगी।
  3. कुण्डली में कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी इसलिए गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित नहीं करेगा।

प्रश्न 14.
दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।
उत्तर:
हाँ, प्रेरित धारा उत्पन्न होगी। कुंडली A में धारा परिवर्तन के कारण A से होकर गुजरने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होने के कारण B में धारा प्रेरित होती है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए –
1. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र
2. किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल तथा
3. किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर:
1. किसी धारावाही चालक के चारों ओर दक्षिण हस्त चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त नियम से ज्ञात किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि धारावाही चालक चुम्बकीय को दाहिने हाथ में इस प्रकार पकड़ें कि अंगूठा क्षेत्र चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को निर्देशित करे तो चालक को पकड़ने वाली अंगुलियों की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होती है।
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2. चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात की चालक पर बल जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र इस नियम के अनुसार यदि बाएँ हाथ की प्रथम तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लंबवत् इस प्रकार रखा जाए कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में एवं मध्यमा धारा की दिशा में हो तो अँगूठे की दिशा चालक पर आरोपित बल की दिशा को दर्शाता है।
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3. चुंबकीय क्षेत्र में गतिशील चालक में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दाहिने चुम्बकीय क्षेत्र चालक की गति हस्त के नियम को उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि दाएँ हस्त की प्रथम तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लम्बवत् इस प्रकार रखें कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एवं अँगूठा चालक में गति की दिशा को दर्शाता है तो चालक में प्रेरित 0 धारा की दिशा मध्यमा द्वारा सूचित होती है।
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प्रश्न 16.
नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रशों का क्या कार्य है? । (2009, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
उत्तर:
विद्युत जनित्र (अथवा डायनमो) वह यन्त्र है जो यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। विद्युत जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है। ये दो प्रकार के होते हैं –
1. प्रत्यावर्ती धारा जनित्र
2. दिष्ट धारा जनित्र।

दोनों का सिद्धान्त एक ही है।
सिद्धान्त जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से गुजरने वाली चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहने लगती है। अत: कुण्डली को घुमाने में व्यय यान्त्रिक ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

रचना (Construction) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (प्रत्यावर्ती धारा डायनमो) में चित्र में दिखाए अनुसार तीन मुख्य भाग होते हैं –
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1. क्षेत्र चुम्बक (Field magnet) इसमें N, S ध्रुव खण्डों वाला एक शक्तिशाली चुम्बक होता है; जिससे N, S के बीच में शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सके। इस चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली (coil) को घुमाया जाता है।

2. कुण्डली (Coil) यह ताँबे के पृथक्कित तारों की एक कुण्डली ABCD होती है; जिसे आर्मेचर (armature) कहते हैं। कुण्डली को मुलायम लोहे के क्रोड पर लपेटा जाता है। इसे ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष के परितः जल के टरबाइन या डीजल या पेट्रोल इंजन द्वारा घुमाया जाता है।

3. सी वलय तथा बुश (Slip rings and bushes) ये ताँबे के बने दो छल्ले या सी वलय (slip rings) होते हैं, जिनका सम्बन्ध एक ओर तो कुण्डली ABCD से आए ताँबे के तारों से होता है तथा दूसरी ओर कार्बन के दो बुशों X, Y से होता है। इन बुशों का सम्बन्ध बाह्य परिपथ जिसमें धारा भेजनी है, से कर देते हैं। चित्र में बाह्य परिपथ एक बल्ब के द्वारा दिखाया गया है।

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क्रिया-विधि –
1. चित्र में दिखाए अनुसार कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है, अर्थात् इस समय उत्पन्न प्रेरित वि०वा० बल तथा धारा शून्य होगी।

2. जैसे-जैसे कुण्डली दक्षिणावर्त दिशा में घूमती है, उनमें से होकर गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं या फ्लक्स का मान बढ़ता जाता है तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ वाले नियम से ज्ञात की जा सकती है। बाह्य परिपथ में इसकी दिशा X से Y की ओर होगी। जब कुण्डली उसी दिशा में घूमते हुए ऊर्ध्वाधर (भुजा AB ऊपर तथा CD नीचे) हो जाती है, तो प्रेरित वि० वा० बल तथा धारा अधिकतम होती है। कुण्डली इस बीच 0° से 90° घूमी है।

3. कुण्डली के और अधिक घूमने पर कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान कम होता जाता है तथा कुण्डली के क्षैतिज होने पर (भुजा CD के स्थान पर AB तथा AB के स्थान पर CD) प्रेरित वि०वा० बल तथा विद्युत धारा धीरे-धीरे कम होकर शून्य हो जाती है। कुण्डली इस बीच 90° से 180° के बीच घूमी है।

4. कुण्डली को और घुमाने पर उसमें से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान फिर से बढ़ना शुरू होता है, परन्तु इस समय यदि धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ से ज्ञात की जाए, तो वह दिशा (ii) की तुलना में विपरीत दिशा में होगी तथा बाह्य परिपथ में Y से X की ओर प्रवाहित होगी। कुण्डली के ऊर्ध्वाधर (भुजा CD ऊपर तथा AB नीचे) होने पर प्रेरित वि०वा० बल तथा विद्युतधारा अधिकतम होगी। इस बीच कुण्डली 180° से 270° के बीच घूमी है।

5. यदि कुण्डली को और घुमाया जाए, जिससे कि वह दशा (i) की स्थिति में हो तो प्रेरित वि०वा० बल तथा प्रेरित विद्युत धारा का मान कुण्डली के क्षैतिज होने पर शून्य होगा। यदि कुण्डली में प्रेरित वि०वा० बल और कुण्डली के घूर्णीय कोण में एक ग्राफ खींचा जाए, तो वह निम्न चित्र के अनुसार होगा।
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कुण्डली का एक पूरा चक्कर लगाने पर विद्युत वाहक बल दो बार अधिकतम तथा दो बार शून्य होता है। कुण्डली के प्रत्येक घूर्णन में यह क्रिया दोहराई जाती है। इस प्रकार उत्पन्न धारा को प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current or A.C.) कहते हैं।

प्रश्न 17.
किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर:
जब घरेलू विद्युत परिपथ में विद्युतमन्य तार एवं उदासीन तार एक-दूसरे के संपर्क में आ जाते हैं तो परिपथ में धारा का मान बहुत अधिक हो जाता है। इस घटना को ही लघुपथन कहते हैं।

प्रश्न 18.
भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
किसी विद्युत उपकरण के धात्विक भाग को तार की मदद से पृथ्वी के संपर्क करने वाले तार को भू-संपर्क तार कहते हैं। यह तार सुरक्षा यंत्र के रूप में विद्युत परिपथ में उपयोग में लाया जाता है। यदि किसी भी प्रकार से उपकरण में विद्युत धारा आ जाती है तो यह पृथ्वी को स्थानांतरित हो जाती है जिसके फलस्वरूप कोई दुर्घटना होने से बच जाती है।

Bihar Board Class 10 Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक गतिमान आवेशित कण उत्पन्न करता है – (2013, 14, 16)
(a) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(b) केवल विद्युत क्षेत्र
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक है – (2012, 13)
(a) न्यूटन/ऐम्पियर-मी2
(b) न्यूटन/ऐम्पियर-मी (टेस्ला)
(c) न्यूटन-ऐम्पियर-मी
(d) न्यूटन/ऐम्पियर-मी
उत्तर:
(b) न्यूटन/ऐम्पियर-मी (टेस्ला)

प्रश्न 3.
कौन-सा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक नहीं है? (2012, 17, 18)
(a) वेबर/मीटर2
(b) टेस्ला
(c) गौस
(d) न्यूटन/ऐम्पियर
उत्तर:
(d) न्यूटन/ऐम्पियर2

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प्रश्न 4.
‘वेबर’ किस राशि का मात्रक है? (2018)
(a) चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
(b) चुम्बकीय फ्लक्स
(c) चुम्बकीय फ्लस्क घनत्व
(d) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता
उत्तर:
(b) चुम्बकीय फ्लक्स

प्रश्न 5.
1 टेस्ला बराबर होता है – (2015)
(a) 1 वेबर/मी2
(b) 1 गॉस
(c) 10-4 वेबर/मीटर
(d) 10-4 गॉस
उत्तर:
(a) 1 वेबर/मी2

प्रश्न 6.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात की जाती है – (2012, 13)
(a) दाहिने हाथ के अंगठे के नियम से
(b) फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से
(d) ऐम्पियर के नियम से
उत्तर:
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से

प्रश्न 7.
एक इलेक्ट्रॉन वेग से एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत् गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल होगा – (2011, 13)
(a) ev / B
(b) evB
(c) eB / υ
(d) vB / e
उत्तर:
(b) evB

प्रश्न 8.
किसी धारावाही चालक में बहने वाली धारा। और लम्बाई। को लम्बवत् B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। उस पर लगने वाला बल है (2014, 17)
(a) i /Bl
(b) B/ il
(c) iBl
(d) l/Bi
उत्तर:
(c) iBl

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प्रश्न 9.
B,A और Φ क्रमशः चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, क्षेत्रफल व फ्लक्स के संकेत हैं। इनके बीच सम्बन्ध है – (2016)
(a) Φ = B .A
(b) B = Φ ·A
(c) A = B Φ
(d) ABΦ = 1
उत्तर:
(a) Φ = B.A

प्रश्न 10.
विद्युत मोटर परिवर्तित करता है।
(a) विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
(b) विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में।
(c) यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(d) रासायनिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में
उत्तर:
(b) विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में

प्रश्न 11.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में एक कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल अनुक्रमानुपाती होता है –
(a) चुम्बकीय फ्लक्स के
(b) परिपथ के प्रतिरोध के
(c) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन के
(d) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के
उत्तर:
(d) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के

प्रश्न 12.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति है – (2016)
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) अमीटर
(d) मोटर
उत्तर:
(a) जनित्र

प्रश्न 13.
डायनमो उत्पन्न करता है – (2016)
(a) आवेश
(b) विद्युत वाहक बल
(c) विद्युत क्षेत्र
(d) चुम्बकीय क्षेत्र
उत्तर:
(b) विद्युत वाहक बल

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प्रश्न 14.
डायनमो परिवर्तित करता है – (2018)
(a) रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(b) ध्वनि ऊर्जा को चुम्बकीय ऊर्जा में
(c) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(d) यांत्रिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में
उत्तर:
(c) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ध्रुवता भी बदल जाती है।

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक S.I. पद्धति में बताइए। (2011, 16)
उत्तर:
वेबर/मीटर।

प्रश्न 3.
अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र लिखिए। (2012, 14)
उत्तर:
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जहाँ एक नियतांक है μ0 जिसे वायु या निर्वात की चुम्बकशीलता कहते हैं।

प्रश्न 4.
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2013, 17)
उत्तर:
Bil sin θ; जबकि θ चालक की चुम्बकीय क्षेत्र से दिशा है।

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प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण पर कार्यकारी बल का सूत्र लिखिए। (2014)
उत्तर:
यदि कोई गतिमान आवेशित कण जिसका आवेश q है चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से कोण θ पर। वेग से गतिमान है तो इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sin θ

प्रश्न 6.
दायें हाथ के अंगूठे का नियम क्या है? (2012, 13)
उत्तर:
यदि हम दायें हाथ में वैद्युत धारा ले जाने वाला तार इस प्रकार पकड़ें कि अँगुलियाँ तार पर लिपटी हों व अँगूठा वैद्युत धारा की दिशा में हो तो लिपटी हुई, अँगुलियों की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा होगी।
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प्रश्न 7.
चुम्बकीय फ्लक्स का क्या मात्रक है? (2015, 16, 17)
उत्तर:
वेबर या –
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प्रश्न 8.
यदि 100 चक्करों की एक तार की कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में 2 सेकण्ड में 15 वेबर की वृद्धि होती है, तो कुण्डली में उत्पन्न विद्युत वाहक बल क्या होगा? (2013, 14, 15, 16)
हल:
दिया है, N = 100, Δt = 2 सेकण्ड, ΔΦ = 15 वेबर, e = ?
∴ कुण्डली में उत्पन्न वि० वा० बल e = N \(\frac{\Delta \phi}{\Delta t}\)
= \(\frac{100 \times 15}{2}\)
उत्तर:
= 750 वोल्ट

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प्रश्न 9.
प्रेरित विद्युत वाहक बल को परिभाषित कीजिए। (2014)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं।

प्रश्न 10.
लेन्ज का नियम क्या है ? (2009)
उत्तर:
लेन्ज के नियम के अनुसार, प्रेरित विद्युत वाहक बल सदैव उस कारण का विरोध करता है, जिसके द्वारा बल स्वयं उत्पन्न होता है।

प्रश्न 11.
डायनमो का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

प्रश्न 12.
घरों में भेजी जाने वाली ए० सी० (प्रत्यावर्ती धारा) किस वोल्टता तथा किस आवृति की होती है?
या घरों में प्रयुक्त विद्युत धारा की आवृत्ति कितनी होती है ?
उत्तर:
220 वोल्ट तथा 50 हर्ट्स की।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय बल रेखाओं से क्या तात्पर्य है? चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण लिखिए। (2011, 17, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का अविरत प्रदर्शन करती हैं। चुम्बकीय बल-रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श-रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है। एक समान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर तथा समदूरस्थ (equidistant) होती हैं। असमान चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कहीं अधिक व कहीं कम होती है। जिस क्षेत्र में बल-रेखाएँ सघन होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है तथा जिस क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कम होती है, वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है।

चुम्बकीय बल-रेखाओं के गुण –

  1. चुम्बकीय बल-रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के अन्दर से आती हुई पुन: उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं। इस प्रकार चुम्बकीय बल-रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में होती हैं।
  2. दो बल-रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटतीं। यदि काटतीं, तो कटान-बिन्दु पर दो स्पर्श-रेखाएँ खींची जा सकती थी अर्थात् उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होती जो कि असम्भव हैं।
  3. चुम्बक के ध्रुव के समीप जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ बल-रेखाएँ पास-पास होती हैं। ध्रुव से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती जाती है तथा बल-रेखाएँ भी परस्पर दूर-दूर होती जाती हैं।
  4. एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर एवं बराबर-बराबर दूरियों पर होती हैं।

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा लिखिए। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक बल तथा धारा के पदों में लिखिए। (2011, 16, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता किसी चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता उस बल से व्यक्त की जाती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् स्थित एकांक लम्बाई के तार में एकांक प्रबलता की धारा प्रवाहित करने पर तार पर कार्य करता है। हम जानते हैं कि किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 90° का कोण बनाते हुए धारावाही चालक पर लगने वाला बल
F = Bil या B = \(\frac {F}{i × l}\)
जहाँ F बल, B बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, i चालक में प्रवाहित धारा तथा। चालक की लम्बाई है।
अत: B का मात्रक =
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प्रश्न 3.
बायो सेवर्ट नियम क्या है? (2012, 14, 15, 16)
उत्तर:
बायो सेवर्ट ने प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र प्राप्त किया। इन प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक के एक छोटे खण्ड A द्वारा किसी बिन्दु P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र B की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है –

  1. चालक खण्ड की लम्बाई Δl के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ Δl
  2. चालक खण्ड में प्रवाहित धारा i के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ i
  3. चालक खण्ड से बिन्दु की दूरी r के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ \(\frac{1}{r^{2}}\)
  4. धारा की दिशा तथा बिन्दु के बीच के कोण के ज्या के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ sin θ
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प्रश्न 4.
मैक्सवेल के दक्षिणावर्त पेंच का नियम क्या है? किरणे आरेख है। धारा सहित व्याख्या कीजिए। (2011)
उत्तर:
यदि हम पेंच कसते समय पेंचकस को दायें हाथ में पकड़कर इस प्रकार। घुमायें कि पेंच की नोंक धारा बहने की दिशा में चले तो जिस दिशा में पेंच को घुमाने के लिए अंगूठा घूमता है, वही चुम्बकीय बल-रेखाओं की दिशा होगी। चित्र में एक। तार में विद्युत-धारा नीचे से ऊपर की ओर बह रही है। पेंच की नोंक को ऊपर की ओर चलाने के लिए दाहिने हाथ के अंगूठे को वामावर्त दिशा में (ऊपर से देखने पर) चलाना पड़ेगा। यही चुम्बकीय-बल रेखाओं की दिशा होगी।
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प्रश्न 5.
समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल किन बातों पर निर्भर करता है? बल की दिशा किस नियम से ज्ञात की जाती है? (2013, 17)
उत्तर:
माना एक एकसमान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में। लम्बाई का एक चालक स्थित है जिसमें। धारा प्रवाहित हो रही है (देखें चित्र)। यदि चालक व चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा के बीच ९ कोण बनता है तो चालक पर लगने वाले बल F का मान –
1. छड़ में प्रवाहित धारा (i) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F∝ i
2. बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता (B) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ B
3. चालक छड़ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ l
4. चालक की लम्बाई एवं चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच बनने वाले कोण (θ) की ज्या (अर्थात् sin θ) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ sin θ
बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हस्त (बायें हाथ) के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
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प्रश्न 6.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल किन-किन कारकों पर निर्भर करता है? इस बल के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए। (2017)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल कण के आवेश के परिमाण, चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण, कण के वेग व इसकी गति की दिशा व चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण पर निर्भर करता है। यदि किसी गतिशील आवेशित कण का आवेश q, वेग। υ है तथा यह B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाते हुए गति करता है तब इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sinθ

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प्रश्न 7.
इलेक्ट्रॉन का आवेश 1.6 x 10-19 कूलॉम है। यह 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र से 30° के कोण पर 5 x 106 मी/से के वेग से गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2011, 13, 14, 16)
हल:
प्रश्नानुसार, q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
B = 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
θ = 30°, υ = 5 x 106 मी/से, F = ?
सूत्र F = Bq υ sin θ से,
आरोपित चुम्बकीय बल (F) = 1000 x 1.6 x 10-19 x 5 x 106 x sin 30°
= 8.0 x 10-10 x \(\frac {1}{2}\)
उत्तर:
= 4.0 x 10-10 न्यूटन

प्रश्न 8.
1 मीटर लम्बे विद्युत चालक में 2.0 ऐम्पियर की धारा बह रही है। चालक को 2.5 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में 30° के कोण पर रखा जाता है। चालक पर लगने वाले चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2009, 11 12, 14, 15, 16, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 2.0 ऐम्पियर, l = 1 मीटर,
B = 2.5 न्यूटन/ ऐम्पियर-मीटर, 0 = 30°, F = ?
सूत्र F = Bil sine से,
बल (F) = 2.5 x 2.0 x 1 x sin 30° = 5 x \(\frac {1}{2}\)
उत्तर:
2.5 न्यूटन

प्रश्न 9.
1 मीटर लम्बे तार में कितनी धारा प्रवाहित की जाये कि उसे 1.2 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् रखने से उस पर 0.128 न्यूटन का बल उत्पन्न हो सके? (2012)
हल:
प्रश्नानुसार, F = 0.128 न्यूटन, l = 1 मीटर,
B = 1.2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
सूत्र F = Bil sin θ से,
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उत्तर:
0.11 ऐम्पियर

प्रश्न 10.
1.5 मीटर लम्बे तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा बह रही है। यह तार 3.0 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर की तीव्रता वाले समरूप चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखा जाता है। उस चालक पर लगने वाले बल की गणना कीजिए। (2014, 15, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, 1 = 1.5 मीटर, i = 0.5 ऐम्पियर,
B = 3.0 न्यूटन / ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
F = Bil sin θ से, बल F = 3.0 x 0.5 x 1.5 sin 90°
= 2.25 x 1
उत्तर:
= 2.25 न्यूटन

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प्रश्न 11.
चुम्बकीय फ्लक्स से क्या तात्पर्य है? इसका मात्रक बताइए। (2009)
उत्तर:
किसी क्षेत्र के लम्बवत् गुजरने वाली समस्त चुम्बकीय बल – रेखाओं की संख्या को उस क्षेत्र से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं, जिसे से निरूपित किया जाता है। चित्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् एक – तल PQRS रखा हुआ है, जिसका क्षेत्रफल A है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र की है तीव्रता B हो, तो PORS में से गुजरने वाला सम्पूर्ण चुम्बकीय फ्लक्स Φ = BA यदि PQRS तल चुम्बकीय क्षेत्र से θ कोण बनाए, तो चुम्बकीय फ्लक्स
Φ = BA cos θ
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चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक –
M.K.S. पद्धति में का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
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∴ चुम्बकीय क्षेत्र B का मात्रक न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर भी होता है। अतः Φ का एक अन्य मात्रक भी होता है।
Φ  का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
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= न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर
अतः फ्लक्स + का मात्रक वेबर या न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर है।

प्रश्न 12.
एक 0.2 मीटर लम्बे तार में 2 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। तार के 0.5 मीटर दूर बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (u = 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = img
प्रश्नानुसार, \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi}=10^{-7}\) न्यूटन/ऐम्पियर
i = 2 ऐम्पियर, l = 0.2 मीटर, r = 0.5 मीटर, sin 0 = sin 90° = 1
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उत्तर:
= 1.6 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

प्रश्न 13.
एक लम्बे सीधे तार में 3.0 ऐम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार से 50 सेमी दूर स्थित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व) ज्ञात कीजिए। (2009, 11, 12, 15, 16, 17)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 3.0 ऐम्पियर, r = 50 सेमी = 0.5 मीटर
∴ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता = \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{2 i}{r}\) (∴ चालक की लम्बाई अनन्त है)
= \(\frac {2i}{r}\) x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर (∴ μ0 = 4 x x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर)
= \(\frac{2 \times 3.0}{0.5} \times 10^{-7}\)
उत्तर:
= 12 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

प्रश्न 14.
50 फेरों वाली एवं 0.5 मीटर क्षेत्रफल वाली तार की एक कुण्डली को 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के समचुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर कुण्डली से सम्बद्ध फ्लक्स कितना होगा? यदि कुण्डली का तल क्षेत्र के –
1. लम्बवत् हो
2. अनुदिश हो तथा
3. 30° का कोण बनाता है।
हल:
प्रश्नानुसार,
A = 0.5 मी2, B = 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, N = 50
1. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के लम्बवत् है, तो θ = 90°
सूत्र Φ = NBA cos θ, से
Φ = NBA cos 90° = 0 (∴ cos 90° = 0)

2. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के अनुदिश है तो θ =0°
∴ Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x 1 (∴ cos 0° = 1)
उत्तर:
= 0.5 वेबर

3. कुण्डली का तल क्षेत्र से 30° का कोण बनाता है।
Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x cos 30°
= \(0.5 \times \frac{\sqrt{3}}{2}\)
= \(\frac{0.5 \times 1.73}{2}\)
उत्तर:
= 0.43 वेबर

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 15.
1000 फेरों वाली एक वृत्ताकार कुण्डली 0.32 वेबर प्रति मीटर वाले चुम्बकीय क्षेत्र में स्थापित है। इसे 0.2 सेकण्ड के अन्तराल में क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की गणना कीजिए तथा इससे उत्पन्न विद्युत वाहक बल की भी गणना कीजिए। कुण्डली का क्षेत्रफल 0.09 वर्ग मीटर है। (2015, 16)
हल:
कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स क Φ = NBA
जहाँ B = 0.32 वेबर/मी2 तथा A = 0.09 मी2
= 1000 x 0.32 x 0.09 = 28.8 वेबर
∴ चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन = Φ1 – Φ2 = 28.8 – 0 = 28.8 वेबर
(चूँकि कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर हो जाती है ∴  Φ2 = 0)
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\(\frac {28.8}{0.2}\)
उत्तर:
= 144 वोल्ट

प्रश्न 16.
वैद्युत मोटर व वैद्युत जनित्र के बीच क्या अन्तर है? (2014, 17)
उत्तर:
विद्युत मोटर इस सिद्धान्त पर कार्य करता है कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कुण्डली पर एक बल-युग्म कार्य करता है; जो कुण्डली को उसकी अक्ष के परित: घुमाने का प्रयास करता है। कुण्डली घूमने के लिए स्वतन्त्र होने के कारण वह घूमने लगती है। मोटर, फ्लेमिंग के वाम-हस्त नियम (Fleming’s left hand rule) पर कार्य करता है। यह विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है।

विद्युत जनित्र (डायनमो) का सिद्धान्त यह है कि जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक प्रेरित वि० वा० बल और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहती है। जनित्र, फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम (Fleming’s right hand rule) पर कार्य करता है। यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

प्रश्न 17.
दिष्टधारा एवं प्रत्यावर्ती धारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
दिष्ट धारा (Direct current) दिष्ट धारा वह वैद्युत धारा है जिसका परिमाण नियत रहता है तथा परिपथ के किसी बिन्दु में को एक ही दिशा में प्रवाहित होती रहती है। प्राथमिक तथा संचायक सेलों द्वारा प्राप्त धारा, दिष्ट धारा ही होती है। प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसका परिमाण आवर्त रूप से बदलता रहता है तथा दिशा बार-बार उत्क्रमित होती है रहती है।
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वैद्युत जनित्र अथवा डायनमो द्वारा प्राप्त धारा प्रत्यावर्ती धारा ही होती है। यदि प्रत्यावर्ती धारा के परिमाण व समय के बीच ग्राफ खींचे तो वह एक ज्या-वक्र (sine curve) के रूप में आता है (देखें चित्र)। इस वक्र का भाग विद्युत जनित्र की कुण्डली के एक चक्कर को निरूपित करता है। इससे स्पष्ट है कि कुण्डली के प्रत्येक चक्कर में धारा की दिशा दो बार उत्क्रमित होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2016) या
यदि कोई धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र के –
1. समान्तर
2. लम्बवत्
3. 60°
का कोण बनाते हुए रखा जाये तो चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2011, 13, 14, 15)
उत्तर:
यदि। लम्बाई का धारावाही चालक, जिसमें प्रवाहित धारा। है B चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र से e कोण पर रखा हो तो उस पर लगने वाला बल
F = Bil sin θ

1. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो इस स्थिति में θ का मान शून्य होने के कारण sin θ का मान शून्य होगा। अतः चालक पर लगने वाला बल शून्य (न्यूनतम) होगा।

2. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् हो इस स्थिति में θ का मान 90° होने के कारण sin θ का मान 1 (अधिकतम) होगा। अत: चालक पर लगने वाला बल,
F = Bil sin θ या F = Bil sin 90° या F = Bil x 1 या F = Bil
अतः इस दशा में लगने वाला बल अधिकतम होगा।

3. चालक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 60° का कोण बनाता हो इस स्थिति में θ का मान 60° होने के कारण sin θ का मान \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) होगा। अत: चालक पर लगने वाला बल, F = Bil sin θ या F = Bil sin 60° या F = Bil x \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) या F = \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) Bil

प्रश्न 2.
एक इलेक्ट्रॉन 1200 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में 2 x 104 मीटर प्रति सेकण्ड के वेग से प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाले बल के परिमाण की गणना कीजिए, यदि वह –
1. क्षेत्र के लम्बवत्
2. क्षेत्र के समान्तर
3. क्षेत्र से 30° का कोण बनाते हुए प्रवेश करे (2016, 18)
(इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.6 x 10-19 कूलॉम)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र B में υ वेग से गतिमान आवेशित कण पर लगने वाला बल = q uB sin θ
जहाँ q कण का आवेश तथा θ चुम्बकीय क्षेत्र B व आवेशित कण के वेग के बीच कोण है।
यहाँ q =1.6 x 10-19 कूलाम, y =2 x 104 मी/सेकण्ड, B = 1200 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

1. यदि θ = 90° (क्षेत्र के लम्बवत्)
तो अभीष्ट बल F =1.9 x 10-19 x 2 x 104x 1200 x sin 90°
= 4560 x 10-15 x 1 (∴ sin 90° = 1)
= 4.56 x 10-12 न्यूटन

2. यदि θ = 0° (क्षेत्र के समान्तर)
तो अभीष्ट बल F = q vB sinθ = 0 (∴ sin θ = 0)

3. यदि θ = 30°
तो अभीष्ट बल F = 1.9 x 10-19 x 2 x 104 x 1200 . sin 30°
= 4.56 x 10-12 x \(\frac {1}{2}\) न्यूटन
उत्तर:
= 2.28 x 10-12 न्यूटन

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प्रश्न 3.
एक इलेक्ट्रॉन जिसका द्रव्यमान 9x 10-31 किग्रा व आवेश – 1.6 x 10-19 कूलॉम है, x-अक्ष के समान्तर 3 x 106 मी/से के वेग से गति करता हुआ z – अक्ष के समान्तर कार्यरत 0.3 वेबर/मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। उस पर कार्य करने वाले बल, त्वरण एवं त्वरण की दिशा ज्ञात कीजिए
(2013, 17)
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हल:
दिया है,
q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
υ = 3x 106 मी/से,
B = 0.3 वेबर/मी2
F = ?
तथा θ = 90°
लारेंज बल के सूत्र F = B qυ sin θ से,
इलेक्ट्रॉन पर बल F = 0.3 x 1.6 x 10-19 x 3 x 106 x sin 90°
1.44 x 10-13 न्यूटन। (∴ sin 90° = 1)
तथा बल की दिशा इलेक्ट्रॉन की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों की दिशा के लम्बवत् Y – अक्ष की दिशा में होगी। पुन: F = 1.44 x 10-13 न्यूटन, m = 9 x 10-31 किग्रा
∴ सूत्र F =ma से,
उत्पन्न त्वरण = \(\frac {F}{m}\)
= \(\frac{1.44 \times 10^{-13}}{9 \times 10^{-31}}\)
उत्तर:
= 1.6 x 1017 मी/से2

प्रश्न 4.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से क्या तात्पर्य है? प्रयोग द्वारा इसे कैसे प्रदर्शित करेंगे? (2014, 16, 17)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक बहती है; जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस क्रिया को वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण, उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा उत्पन्न धारा को प्रेरित विद्युत धारा कहते हैं।

चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी फैराडे का प्रयोग विद्युत चुम्बकीय प्रेरण को निम्नलिखित प्रयोग द्वारा दिखाया जा सकता है प्रयोग पृथक्कित ताँबे के तार की गत्ते के खोखले बेलन पर एक कुण्डली बनाकर धागमापी से जोड़ देते हैं। यदि किसी चुम्बक का उत्तरी ध्रुव कुण्डली की ओर को तेजी से ले जाया जाता है, तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है |चित्र (a)]। जब इस चुम्बक को वापस कुण्डली से दूर हटाते हैं; तब भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, परन्तु वह पिछले विक्षेप से विपरीत दिशा में होता है [चित्र (b)]।

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यदि इसी कुण्डली की ओर चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव लाया जाए या दूर हटाया जाए, तो भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है; परन्तु यह विक्षेप चित्र (a) व (b) वाली दिशा की अपेक्षा विपरीत दिशा में होता है [चित्र (c) तथा (d)] धारामापी में विक्षेप तभी तक होता है; जब तक चुम्बक व कुण्डली में आपेक्षिक गति होती है। दोनों के स्थिर रहने या दोनों के समान वेग से एक दिशा में चलने पर धारामापी में विक्षेप नहीं होता है। चुम्बक को जितनी तेजी से चलाया जाता है धारामापी में विक्षेप उतना ही अधिक होता है तथा यदि कुण्डली में फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए, तो धारामापी में विक्षेप बढ़ जाता है।
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नोट:
उपर्युक्त चित्रों में चुम्बक के दोनों ध्रुव दिखाने के स्थान पर एक ही ध्रुव दिखाया गया है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि धारामापी वाले परिपथ में सेल न होने पर भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रदर्शन होता है।

प्रश्न 5.
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम लिखिए। प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के सम्बन्ध में फ्लेमिंग का नियम लिखिए। (2012, 14, 15, 16, 18)
या फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियमों की व्याख्या कीजिए। प्रेरित धारा की दिशा कैसे ज्ञात की जाती है? (2012, 16, 18)
या फैराड़े के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम बताइए तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल का सत्र लिखिए। (2009, 11)
या फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम लिखिए। (2015, 16)
उत्तर:
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी दो नियम निम्नवत हैं –
प्रथम नियम “जब किसी बन्द कुण्डली (coil) में से होकर जाने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं (चुम्बकीय फ्लक्स) में परिवर्तन होता है, तो उस कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है; जो केवल उसी समय तक रहता है, जब तक चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है।” द्वितीय नियम “किसी कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण कुण्डली में होकर जाने वाली बल रेखाओं की संख्या (चुम्बकीय फ्लक्स) के परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है।” यदि किसी कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 व बहुत कम समयान्तर Δt के बाद उसमें से गुजरने वाले
चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 हो, तो

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कुण्डली में फ्लक्स के परिवर्तन की दर = \(\frac{\phi_{2}-\phi_{1}}{\Delta t}\)
अतः प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) =\(\frac{\phi_{2}-\phi_{1}}{\Delta t}\)
अथवा e = K \(\frac{\left(\phi_{2}-\phi_{1}\right)}{\Delta t}\)
जहाँ K एक नियतांक है। यदि K = 1 तो, e = \(\frac{\left(\phi_{2}-\phi_{1}\right)}{\Delta t}\) वोल्ट
प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।

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फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम यदि किसी चालक को चुम्बकीय क्षेत्र चुम्बकीय क्षेत्र में गति करायें, तो उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल की दिशा 90° उत्पन्न हो जाता है और यदि परिपथ बन्द हो, तो परिपथ में – प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है; जिसकी दिशा को 90° फ्लेमिंग के दाएँ हाथ वाले नियम से ज्ञात किया जा सकता है। प्रेरित धारा ! की दिशा RAM इस नियम के अनुसार, “यदि हम अपने दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अँगूठे को एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर रखें और यदि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, अंगूठा चालक की गति की दिशा में संकेत करे, तो मध्यमा अँगुली प्रेरित विद्युत धारा की दिशा प्रदर्शित करेगी (देखें चित्र)।

प्रश्न 6.
दिष्ट धारा जनित्र की क्रिया-विधि का सचित्र वर्णन करें। इसकी रचना एवं सिद्धान्त का भी उल्लेख करें। (2013, 17)
या दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए तथा इसकी संरचना व कार्य-प्रणाली दिष्ट धारा जा का सचित्र वर्णन कीजिए। (2009, 12, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर:
दिष्ट धारा जनित्र की संरचना इसमें निम्नलिखित तीन भाग होते हैं –
1. क्षेत्र चुम्बक (Field magnets) N-S एक शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुव खण्ड (Pole pieces) हैं। इस चुम्बक का कार्य एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिसमें कुण्डली घूमती है।

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2. आर्मेचर कुण्डली (Armature Coil) यह एक कच्चे लोहे के बेलन पर ताँबे के पृथक्कित तार के बहुत से चक्करों को लपेटकर बनायी जाती है। N-S

3. विभक्त वलय तथा बुश (Split rings and bushes) विभक्त वलय ताँबे के खोखले बेलन को लम्बाई के अनुदिश काटकर बनाए जाते हैं। कुण्डली के ऊपर लिपटे तार का एक सिरा एक विभक्त वलय S1 तथा दूसरा सिरा दूसरे विभक्त वलय S2 से जोड़ दिया जाता है।

S1 व S2 को कार्बन के दो बुश B1 तथा B2 लगातार छूते रहते हैं तथा इसका सम्बन्ध बाह्य परिपथ से रहता है। सिद्धान्त सिद्धान्त के लिए ‘अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर’ के प्रश्न 16 का उत्तर (सिद्धान्त) देखें।

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कार्य-विधि (Working):
चित्र में ABCD एक कुण्डली है, जो दक्षिणावर्त दिशा में घुमायी जा रही है। कुण्डली के घूर्णन के कारण उससे गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिससे कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। कुण्डली में धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है। कुण्डली चित्र में दिखायी स्थिति (कुण्डली की क्षैतिज स्थिति) से आधा चक्कर पूरा करने तक बाह्य परिपथ में धारा की दिशा B2 से B1की ओर रहती है।

आधा चक्कर पूरा होने पर धारा की दिशा उलट जाती है। उसके बाद कुण्डली के घूर्णन के कारण S1 धनात्मक तथा S2 ऋणात्मक हो जाता है, परन्तु उसी समय S1 का सम्बन्ध B2 से तथा S2 का सम्बन्ध B1 से हो जाता है। अत: B2 धनात्मक तथा B1 ऋणात्मक ही रहते हैं तथा बाहरी परिपथ में धारा B2 से B1 की ओर ही प्रवाहित होती है। इस प्रकार बाह्य परिपथ में कुण्डली के पूरे चक्कर में धारा सदैव एक ही दिशा में बहती रहती है। इस प्रकार डायनमो से प्राप्त धारा के लिए यदि विद्युत वाहक बल तथा कुण्डली के घूर्णन कोण के बीच ग्राफ खींचा जाए, तो वह चित्र की आकृति का होता है।
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इस प्रकार के डायनमो से प्राप्त विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा समान दिशा की अवश्य होती है, परन्तु उसका मान विभिन्न घूर्णन कोणों पर एक समान नहीं होता है या हम यह भी कह सकते हैं कि धारा या विद्युत वाहक बल का मान समय के साथ बदलता रहता है, स्थिर नहीं रहता। इस दोष को दूर करने के लिए विभिन्न तलों में विभिन्न कुण्डलियाँ बनाते हैं। उनसे प्राप्त विद्युत वाहक बल या धारा का मान समय के साथ बदलता नहीं है, अर्थात् स्थिर विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

Bihar Board Class 11 Sociology समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ Additional Important Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक विज्ञान में विशेषकर समाजशास्त्र जैसे विषय में ‘वस्तुनिष्ठता’ के अधिक जटिल होने का क्या कारण है?
उत्तर:
प्रतिदिन की बोलचाल की भाषा में ‘वस्तुनिष्ठता’ का आशय पूर्वाग्रह रहित, तटस्थ या केवल तथ्यों पर आधारित होता है। किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए, हमें वस्तु के बारे में अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता की अधिक जटिलता का कारण ‘व्यक्तिपरकता’ है। इसमें व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहता है और परिणाम स्पष्ट नहीं आते हैं।

प्रश्न 2.
सर्वेक्षण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि का अर्थ : सर्वेक्षण विधि का प्रयोग सामाजिक विज्ञानों में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्ययनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं । मोर्स के अनुसार, “संक्षेप में, सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से विश्लेषण की एक पद्धति है।”

सर्वेक्षण पद्धति की निम्नलिखित चार प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण।

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प्रश्न 3.
वैज्ञानिक पद्धति का प्रश्न विशेषताः समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
अन्य सभी वैज्ञानिक विषयों की तरह समाजशास्र में भी पद्धतियाँ प्रक्रियाएँ महत्पूर्ण हैं जिसके द्वारा ज्ञान एकत्रित होता है। अंतिम विश्लेषण में सभी समाजशास्त्री एक आम आदमी से अलग होने का दावा कर सकते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि वे कितना जानते हैं या वे क्या जानते हैं, परन्तु इसका कारण है कि वे किस ज्ञान को प्राप्त करते हैं? यही एक कारण है कि समाजशास्र में वैज्ञानिक पद्धति का विशेष महत्व है।

प्रश्न 4.
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञानी क्या करते हैं?
उत्तर:
सहभागी प्रेक्षण विधि के अंतर्गत समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञान अनुसंधानकर्ता स्वयं भूमिका का संपादन करता है अथवा वह अध्ययन की स्थिति में स्वयं हिस्सा लेता है। प्रतिभागी प्रेक्षण आँकड़े एकत्र करने की एक प्रविधि है। इसमें समाजशास्त्री और नृवंश विधानशास्री अध्ययन किए जाने वाले व्यक्तियों के व्यवहारों को बिना प्रभावित किए उनकी गतिविधियों में भाग लेता है । चूँकि इसमें अनुसंधाकर्ता स्वयं भाग लेता है अत: इसके निष्कर्ष में इसके (अनुसंधानकर्ता संवेगात्मक रूप से संबंद्ध होने का भय बना रहता है।

प्रश्न 5.
“प्रतिबिंबता’ का क्या तात्पर्य है तथा समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
‘प्रतिबिंबता का तात्पर्य है-एक अनुसंधानकर्ता की वह क्षमता जिसमें वह स्वयं को अवलोकन और विश्लेषण करता है। समाजशास्त्र में अनुसंधानकर्ता प्रतिबिंबित होने के पश्चात् पूर्वाग्रहों से ग्रस्त नहीं रहता जिस कारण परिणाम सदैव सटीक आते हैं।

प्रश्न 6.
असहभागी अवलोकन का अर्थ बताइए।
उत्तर:
असहभागी अवलोकन का अर्थ-असहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता जिस समूह का अध्ययन करता है, वह उससे पृथक् अथवा असम्बद्ध रहता है। समूह के लोगों को साधारणतया इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनका अवलोकन किया जा रहा है हमेरस्ले तथा अकिंसन के अनुसार, “इस अपरिचित स्थिति को अनुसंधानकर्ता केवल देखकर तथा सुनकर ही समझ पाता है तथा इसी से (देखकर, सुनकर) वह उस समूह की संरचना तथा संस्कृति को भी समझता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता अवलोकित व्यक्तियों की गतिविधियों में भागीदारी अथवा हस्तक्षेप नहीं करता है।

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प्रश्न 7.
प्रविधियों की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रविधियों की परिभाषा-समाज विज्ञानों में वास्तविक तथ्यों तथा संरचनाओं के एकत्रीकरण हेतु कुछ विशेष तरीकों का प्रयोग करना पड़ता है, इन्हें प्रविधि कहा जाता है। मोजर के अनुसार, “प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिए वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन में संबंधित विश्वसनीय तथ्यों को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।”

प्रविधियों की विशेषताएँ –

  • प्रविधियों के द्वारा संबंधित वस्तुपरक तथा विश्वसनीय तथ्यों को वैज्ञानिक तरीके से एकत्रित किया जाता है।
  • प्रविधियों का चुनाव अनुसंधान की प्रकृति के अनुसार किया जाता है।
  • प्रविधियों का प्रयोग तर्कसंगत तरीके से किया जाता है।

प्रश्न 8.
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का अर्थ-निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले समस्त व्यक्तियों से प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं। इसके अंतर्गत जिन इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, उनका चयन समग्र से सावधानीपवूक किया जाता है। चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि निदर्शन सर्वेक्षण में सम्मिलित समस्त व्यक्ति जनसमुदाय की विशेषताओं के प्रतिनिधि हों।

उदाहरण के लिए जब हम दाल पकाते हैं तो एक अथवा दो दानों की जाँच करके यह बता देते हैं कि दाल पक गई अथवा नहीं। इस प्रकार एक या दो पके दाल के दोन संपूर्ण पकी दाल के प्रतिनिधि बन जाते हैं। निदर्शन सर्वेक्षण का प्रयोग वर्तमान समय से सभी सामाजिक विज्ञानों में हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल सेम्पल सर्वे विकास योजनाओं का अध्ययन निदर्शन सर्वेक्षण द्वारा करता है।

प्रश्न 9.
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं –

  • किसी घटना विशेष के बारे में पूर्वानुमान काफी कठिन कार्य है।
  • किसी घटना विशेष की अवधि के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं होती है।।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से एकत्रित सामग्री को परिमाणीकत नहीं किया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि अपेक्षाकृत एक व्ययपूर्ण प्रविधि है।
  • अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ आती है।

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प्रश्न 10.
प्रश्नावली प्रविधि के मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली प्रविधि के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है।

  • प्रश्नावली प्रविधि अपेक्षाकृत कम खर्चीली है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा प्रशासकीय समय की भी बचत होती है।
  • प्रश्नावलियाँ एक ही समय में डाक द्वारा सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली प्रविधि की सहायता से एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती हैं।

लुंडबर्ग के अनुसार, “मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अंतर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।”

प्रश्न 11.
प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ तथा प्रकार बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ – प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमब तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए गए प्रश्नों के सूचीक्रम को प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है। साधारणतया, प्रशनावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।

(ii) प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख निम्नलिखित है।

  • स्तरीय प्रश्नावली
  • खुली अथवा अप्रतिबंधित प्रश्नावली
  • बंद अथवा प्रतिबंधित प्रश्नावली
  • चित्रित प्रश्नावली तथा
  • मिश्रित प्रश्नावली

प्रश्न 12.
वैज्ञानिक पद्धति क्या है?
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति उस पद्धति को कहते हैं जिसमें अध्ययनकर्ता निष्पक्ष ढंग से किसी विषय समस्या या घटना का वर्णन करता है। वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों का व्यवस्थित अवलोकन, वर्गीकरण तथा व्याख्या करता है। इतना ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति एक सामूहिक शब्द है जो अनेक प्रक्रियाओं को व्यक्त करता है तथा जिनकी सहायता से विज्ञान का निर्माण होता है। वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अतः वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ ज्ञान के विशिष्ट संचय से है।

प्रश्न 13.
सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण समाजिक अनुसंधान की एक विधि है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। कोई भी शोधकर्ता किसी क्षेत्र में जाकर किसी समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन करता है, उसे सामाजिक सर्वेक्षण कहते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –

  1. समस्या का निर्धारण – वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत सर्वप्रथम समस्या का निर्धारण किया जाता है। समस्या से संबंधित सामान्य अवधारणाओं में परिभाषा देनी पड़ती है।
  2. अनुसंधान की रूपरेखा का नियोजन करना – वैज्ञानिक पद्धति के दूसरे चरण के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से आँकड़ों का संकलन, विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया जाता है।
  3. क्षेत्र कार्य – आँकड़ों का एकत्रीकरण पूर्व निर्धारित योजना के अंतर्गत किया जाता है।
  4. आँकड़ों का विश्लेषण करना – समाज वैज्ञानिकों द्वारा सावधानीपूर्वक आँकड़ों को संहिताबद्ध किया जाता है। इसके पश्चात् इसका वर्गीकरण तथा सारणीबद्ध करते हैं।
  5. निष्कर्ष निकालना – अनसंधानकर्ता द्वारा आँकड़ों का क्रमबद्ध अंकलन करने के पश्चात् परिणामों का सामान्यीकरण किया जाता है। इस प्रकार, निष्कर्ष निकाल जाते हैं।
  6. निष्कर्षों का पुनः सत्यापन भी किया जाता है।

प्रश्न 2.
वैज्ञानिक अवलोकन की दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • वैज्ञानिक अवलोकन में भी अन्य विज्ञानों की भाँति आँकड़े इंद्रिजन्य अवलोकन के माध्यम से एकत्रित किए जाते हैं।
  • अवलोकन जैसा कि हम जाते हैं कि एक प्रविधि है, जो सामाजिक प्रघटना की प्रत्यक्ष जानकारी को संभव बनाती है।
  • अवलोकन प्रविधिं तुलनात्मक रूप से अच्छी जानकारी तथा विश्वसनीयता निश्चित करती है।
  • अवलोकन शब्द का प्रयोग यहाँ तथा दूसरे स्थानों पर उन समस्त स्वरूपों के लिए किया जाता है, जिनके विषय में हमें जानकारी होती है तथा जो हमारी इंद्रियों पर प्रभाव डालते हैं।
  • हमें यह प्रत्युत्तर तथा एक आँकड़े में अंतर करना चाहिए। एक प्रत्युत्तर किया का प्रकटीकरण है। एक आँकड़ा प्रत्युत्तर के अभिलेखन का उत्पाद है।
    (a) विश्वसनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठता।
    (b) विश्सनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठा को अवलोकन प्रक्रिया के दो तत्वों के साथ कार्य करना पड़ता है जिन्हें बोध तथा अभिलेखन कहते हैं।

गालतुंग ने दो सिद्धान्त दिए हैं –

  • अंतर – व्यक्तिनिष्ठा तथा विश्वसनीयता का सिद्धान्त-एक ही अवलोकनकर्ता द्वारा एक ही प्रत्युत्तर का जब बार-बार अवलोकन किया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।
  • अंतर – वस्तुनिष्ठता का सिद्धान्त-जब एक ही प्रत्युत्तर को विभिन्न अवलोकनकर्ताओं द्वारा बार-बार दोहराया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर वैधता के सिद्धान्त का उल्लेख किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार एक अवलोकन वैध है, जब अवलोकनकर्ता वही अवलोकित रहता है जो वह चाहता है। इस प्रकार वैधता प्रकट तथा प्रच्छन्न संबंधों को स्पष्ट रूप से देखते हैं वैधता के सिद्धान्त के अंतर्गत आँकड़ों को इस प्रकार एकत्रित किया जाता है कि उसके आधार पर उपयुक्त अनुमान प्राप्त किए जा सकें। इन निष्कर्ष द्वारा प्रकट स्तर तथा प्रच्छन्न स्तर के अंतर को स्पष्ट किया जाता है।

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प्रश्न 3.
अवलोकन की परिभाषा दीजिए। इसके लक्षण बताइए।
उत्तर:
(i) अवलोकन की परिभाषा – अवलोकन वस्तुत: वैज्ञानिक पद्धति की मूल प्रविधि है। वैज्ञानिक अवलोकन के माध्यम से ऐसे तथ्यात्मक प्रमाणों को एकत्रित किया जाता है, जिन्हें सत्यापित किया जा सके । वैज्ञानिक अवलोकन के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण आवश्यक है –

  • यथार्थता
  • सुस्पष्टता अथवा शुद्धता
  • क्रमबद्धता
  • प्रतिवेदन

मोजर के अनुसार, “अवलोकन को स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण की शास्त्रीय पद्धति कहा जा सकता है।………….वास्तविक रूप में अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा आँखों का अधिक प्रयोग होता है। पी० वी० यंग के अनुसार, “अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जिस सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली में उपयोग किया जाता है।”

(ii) अवलोकन के प्रमुख लक्षण : ब्लैक तथा चैपियन ने अवलोकन के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण बताए हैं –

  • मानव व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।
  • अवलोकन के जरिए उन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है जिनसे सहभागियों का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता है।
  • जिस व्यक्ति का अवलोकन किया जाता है उसके विषय में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  • सामाजिक जीवन की आधार सामग्री जो नियमित थी बार-बार अवलोकित की जाती है, कि परिभाषित की जा सकती है तथा दूसरे अध्ययनों की तुलना में इसे काम में लाया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से अवलोकनकर्ता पर कुद नियंत्रण रखा जाता है। हालाँकि, जिन व्यक्तियों तथा वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है, उन पर अवलोकन प्रविधि कोई नियंत्रण नहीं रखती है।
  • अवलोकन पद्धति उपकल्पनाओं से मुक्त अन्वेषण पर केन्द्रित होती है।
  • अवलोकन प्रविधि स्वतंत्र चर के साथ किसी भी प्रकार के फेर-बदल से बचती है।
  • भिलेखन चयनित नहीं होता है।

प्रश्न 4.
सहभागी अवलोकन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सहभागी अवलोकन का अर्थ – सहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता के अध्ययन की स्थिति में स्वयं भाग लिया जाता है। सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता के द्वारा भूमिका का संपादन स्वयं किया जाता है।

सहभागी अवलोकन तीन प्रकार का होता है –

  • सहभागी अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन का यह स्वरूप छिपा हुआ नहीं होता है। अवलोकनर्ता की भूमिका संपादन न होकर केवल अवलोकर्ता ही होता है।
  • अवलोकनकर्ता सहभागी के रूप में – अवलोकनकर्ता संबंधित व्यक्ति से मिलकर कुछ प्रश्न पूछता है । इसके साथ-साथ वह परिस्थिति का अवलोकन भी करता है। इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता अवलोकन करता है तथा वह उत्तरदाता का सहभागी बन जाता है।
  • अवलोकनकर्ता एक अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन की इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता परिस्थिति का अवलोकन करता है, लेकिन जिन व्यक्तियों का वह अवलोकन करता है उन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं होती है।

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प्रश्न 5.
प्रश्नावली की संचार और वैधता की समस्या का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली के संचार की समस्या –

  • यद्यपि प्रश्नावली की विषयवस्तु अध्ययन के उद्देश्या से नियंत्रित होती है तथापि सर्वेक्षण में संचार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • प्रश्नों की भाषा स्पष्ट, संक्षिप्त तथा सरल होना चाहिए जिससे उत्तरदाताओं को उन्हें समझने में आसानी हो।

(ii) प्रश्नावली की वैधता की समस्या –

  • प्रश्नों की संरचना इस प्रकार की जानी चाहिए जिससे अनुसंधानकर्ता को इच्छित सूचना मिल जाए।
  • प्रश्नों के उत्तर के विषय में वास्तविक समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब उत्तरदाता सही तथ्यों की जानकारी देता है लेकिन अनुसंधानकर्ता उन उत्तरों की विश्वसनीयता तथा तथ्यात्मकता के विषय में आश्वस्त नहीं हो पाता है।
  • वैधता की समस्या उस समय उतपन्न हो जाती है तब उत्तरदाता का कथन तकनीकी रूप से सत्य होता है, लेकिन वास्तव में यह कथन असत्य होता है।
  • उत्तरदाताओं के उत्तरों की वैधता के सत्यापन हेतु वैकल्पिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

प्रश्न 6.
पद्धति तथा प्रविधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पद्धति तथा प्रविधि में निम्नलिखित अन्तर हैपद्धति प्रविधि –
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प्रश्न 7.
एक पद्धति के रूप में सहभागी प्रेक्षण की क्या-क्या खूबियाँ और कमियाँ हैं?
उत्तर:
खूबियाँ –

  • यह छिपा हुआ प्रेक्षण नहीं होता है।
  • अनुसंधानकर्ता समुदाय में अवलोकनकर्ता के रूप में प्रवेश करता है।
  • सीधे व्यक्ति से संपर्क होता है।
  • उत्तरदाता भी सहभागी बन जाता है।

कमियाँ –

  • इससे प्राप्त निष्कर्षों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता।
  • यह अधिक समय लेने वाली खर्चीली पद्धति है।
  • निष्कर्षों में वास्तुनिष्ठता की कमी आ जाती है।

प्रश्न 8.
सर्वेक्षण और वैयक्तिक अध्ययन में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
सर्वेक्षण तथा वैयक्तिक अध्ययन में निम्नलिखित अंतर हैं –
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प्रश्न 9.
सामाजिक अनुसंधान क्या है?
उत्तर:
अनुसंधान का अर्थ है अन्वेषण या शोध या खोज से हैं। जब कोई भी अनुसंधान सामाजिक जीवन सामाजिक घटनाओं अथवा सामाजिक जटिलताओं से संबद्ध होता है तब उसे सामाजिक अनुसंधान कहा जाता है । सामाजिक अनुसंधान में सर्वप्रथम किसी व्यवहार समस्या या घटना से संबंधित मूल-भूत तथ्यों का अवलोकन किया जाता है ताकि उसकी सामान्य प्रकृति को भली-भाँति समझा जा सके।

सामाजिक अनुसंधान में यर्थाथताओं की वैज्ञानिक विधि द्वारा खोज पर विशेष बल दिया जाता है। सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य तार्किक एवं क्रमांक पद्धतियों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज अथवा पुराने तथ्यों की परीक्षा और सत्यापन, उनके क्रमों, पारस्परिक संबंधों, कार्य-कारण की व्याख्या एवं उन्हें संचालित करनेवाले स्वभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।

प्रश्न 10.
अवलोकन की सीमाएँ या कमियाँ बताइए।
उत्तर:
अवलोकन की कमियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. मानव व्यवहार का अवलोकन करते समय अवलोकनकर्ता की प्राथमिकताओं तथा पक्षपातों के कारण अवलोकन में वस्तुनिष्ठता की कमी आ सकती है। इस प्रकार के निष्कर्ष वैज्ञानिक अवलोकन की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
  2. कोई सामाजिक प्रघटना कितनी अवधि तक घटेगी, इसका पूर्वानुमान करने में व्यवहारिक कठिनाइयाँ आती हैं।
  3. अवलोकनकर्ता के मूल्यों, आदर्शों, अभिरुचियों तथा पूर्व निर्धारित दृष्टिकोणों तथा विश्वासों का प्रभाव अवलोकन की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।
  4. अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं।
  5. अवलोकनकर्ता का प्रशिक्षित होना आवश्यक हैं, लेकिन प्रायः प्रशिक्षित अवलोकनकर्ता भी निरपेक्षा रूप से अवलोकन प्रविधि का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।’
  6. कभी-कभी अवलोकनकर्ता द्वारा दिए गए निष्कर्षों का पुनः सत्यापन करने पर निष्कर्षों में विभिन्नता आ जाती है।
  7. अवलोकन प्रविधि द्वारा प्राप्त निष्कर्षों में वस्तुनिष्ठता तथा निश्चितता का अभाव हो सकता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रश्नावली और साक्षात्कार अनुसूची को परिभाषित करते हुए उनमें अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली की परिभाषा – प्रश्नावली का प्रयोग किसी विशेष स्थिति अथवा समस्या के बारे में महत्वपूर्ण आधार सामग्री प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है लेकिन इसे व्यक्तियों में बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकार भेजी जाती है।

(ii) साक्षात्कार अनुसूची की परिभाषा – संरचित प्रश्नों या समूह जिनके उत्तर स्वयं साक्षात्कारकर्ता द्वारा अभिलेखित किए जाते हैं, साक्षात्कार अनूसूची कहलाती है।
प्रश्नावली तथा साक्षात्कार सूची में अंतर –
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प्रश्न 2.
सर्वेक्षण पद्धति की कुछ कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अन्य अनुसंधान पद्धतियों की तरह से सर्वेक्षणों की भी अपनी कमजोरियाँ होती हैं। यद्यपि इसमें व्यापक विस्तार की संभावना होती है तथा यह विस्तार की गहनता के आधार पर प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया एक बड़े सर्वेक्षण के भाग के रूप में उत्तरदाताओं से गहन सूचना प्राप्त करना संभव नहीं होता। उत्तरदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति पर व्यय किया जाने वाला समय सीमित होता है। साथ ही अन्वेषकों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या द्वारा सर्वेक्षण प्रश्नावलियाँ उत्तरदाता को उपलब्ध कराई जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि जटिल प्रश्नों या जिन प्रश्नों के लिए विस्तृत सूचना चाहिए, उन्हें उत्तरदाताओं से ठीक एक ही तरीके से पूछा जाएगा।

प्रश्न पूछने या उत्तर रिकार्ड करने के तरीके में अन्तरहोने पर सर्वेक्षण में त्रुटियाँ आ सकती हैं। यही कारण है कि किसी भी सर्वेक्षण के लिए प्रश्नावली (कभी-कभी इन्हें सर्वेक्षण का उपकरण भी कहा जाता है) की रूपरेखा सावधानीपूर्वक तैयार करनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग अनुसंधानकर्ता के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा किया जायेगा, अतः इसके प्रयोग के दौरान इसमें त्रुटि को दूर करने या संशोधित करने की थोड़ी-बहुत संभावना रहती है। अन्वेषक तथा उत्तरदाता के बीच किसी प्रकार के दीर्घकालिक संबंध नहीं होते अतः कोई आपसी पहचान या विश्वास नहीं होता। किसी भी सर्वेक्षण में पूछे गए प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो कि अजनवियों के मध्य पूछे जा सकते हों तथा उनका उत्तर दिया जा सकता हो।

कोई भी निजी या संवेदनशील प्रश्न पूछा जा सकता या अगर पूछा भी जाता है तो इसका उत्तर सच्चाईपूर्वक देने के स्थान पर ‘सावधानीपूर्वक’ दिया जाता है। इस प्रकार की समस्याओं को कभी-कभी ‘गैर-प्रतिदर्शा त्रुटियाँ’ कहा जाता है अर्थात् ऐसी त्रुटियाँ जो प्रतिदर्श की प्रक्रिया के कारण न हों अपितु अनुसंधान रूपरेखा में कभी या त्रुटि के कारण हों। दुर्भाग्यवश इनमें से कुछ त्रुटियों का पता लगाना तथा इनसे बचना कठिन होता है । इस कारण से सर्वेक्षण में गलती होना तथा जनसंख्या की विशेषताओं के बारे में भ्रामक या गलत अनुमान लगाना संभव होता है।

अंत में, किसी भी सर्वेक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीमा यह है कि इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए इन्हें कठोर संरचित प्रश्नावली पर आधारित होना पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्रश्नावली की. रूपरेखा चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हो, इसकी सफलता अंत में अन्वेषकों तथा उत्तरदाताओं की अंतःक्रिया की प्रकृति पर और विशेष रूप से उत्तरदाता की सद्भावना तथा सहयोग पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 3.
वस्तुनिष्ठता परिणाम को प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को किस प्रकार की कठिनाइयों और प्रयत्नों से गुजरना पड़ता है।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए अथवा वास्तविक परिणाम को प्राप्त करने के लिए हमें वस्तु के अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। दूसरी तरफ ‘व्यक्तिपरकता’ से छुटकारा पाना होगा। व्यक्तिपरकता से आशय है कुछ ऐसा जो व्यक्तिगत मूल्यों तथा मान्यताओं पर आधारित हो । सभी विज्ञानों से वस्तुनिष्ठ होने व केवल तथ्यों पर आधारित पूर्वाग्रह रहित ज्ञान उपलब्ध कराने की आशा की जाती है, परन्तु प्राकृतिक विद्वानों की तुलना में समाज विज्ञान में ऐसा करना बहुत कठिन है।

जब कोई भू-वैज्ञानिक चट्टानों का अध्ययन करता है या वनस्पतिशास्त्री पौधों का अध्ययन करता है तो वे सावधान रहते हैं कि उनके व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या मान्यताएँ उनके काम को प्रभावित न कर पाएँ । उन्हें सही तथ्यों को ही प्रस्तुत करना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने अनुसंधान कार्य के परिणामों पर किसी विशेष वैज्ञानिक सिद्धान्त या सिद्धांतवादी के प्रति अपनी पसंद का प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए। हालांकि भू-वैज्ञानिक तथा वनस्पतिशास्त्री स्वयं उस संसार का हिस्सा नहीं होते जिनका वे अध्ययन करते हैं, चट्टानों या पौधों की प्राकृतिक दुनिया इसे विपरीत समाज वैज्ञानिक जिस संसार में रहते हैं, उसका ही अध्ययन करते हैं जो मानव संबंधों की सामाजिक दुनिया है। इससे समाजशास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता की विशेष समस्या उत्पन्न होती है।

सर्वप्रथम पर्वाग्रह की स्पष्ट समस्या है कि क्योंकि समाजशास्त्री भी समाज के सदस्य हैं. उनकी भी लोगों की तरह से सामान्य पसंद तथा नापसंद होती है। पारिवारिक संबंधों का अध्ययन करने वाला समाजशास्त्री भी स्वयं किसी परिवार का सदस्य होगा और उसके अनुभव का इस पर प्रभाव हो सकता है। यहाँ तक कि समाजशास्त्री को अपने अध्ययनशील समूह के साथ कोई प्रत्यक्ष या व्यक्तिगत अनुभव न होने पर भी उसके अपने सामाजिक संदर्भो के मूल्यों तथा पूर्वाग्रहों का प्रभाव होने का संभावना रहती है। उदाहरणार्थ अपने से अलग किसी जाति या धार्मिक समुदाय का अध्ययन करते समय समाजशास्त्री उस समुदाय की कुछ प्रवृतियों से प्रभावित हो सकता है जो कि उसे अतीत या वर्तमान के सामाजिक वातावरण में प्रचलित हैं।

समाजशास्त्री इनसे किस प्रकार बचते हैं ? –
इसकी प्रथम पद्धति अनुसंधान के विषय के बारे में अपनी भावनाओं तथा विचारों की कठोरता से लगातार जाँचना है। अधिकांशतः समाजशास्त्री अपने कार्य के लिए किसी बाहरी व्यक्ति के दृष्टिकोण को ग्रहण करने का प्रयास करते हैं। वे अपने आपको तथा अपने अनुसंधान कार्य को दूसरे की आँखों से देखने का प्रयास करते हैं। इस तकनीक को ‘स्ववाचक’ या कभी-कभी ‘आत्मवाचक’ कहते हैं। समाजशास्त्री निरंतर अपनी प्रवृत्तियों तथा मतों की स्वयं जाँच करते रहते हैं। वह अन्य व्यक्तियों के मतों को सावधानीपूर्वक अपनाते रहते हैं, विशेष रूप से उनके बारे में जो उनके अनुसंधान का विषय होते हैं।

आत्मवाचक का एक व्यावहारिक पक्ष है किसी व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कार्य का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करना। अनुसंधान पद्धतियों में श्रेष्ठता के दावे का एक हिस्सा सभी विधियों के दस्तावेजीकरण तथा साक्ष्य के सभी स्रोतों के औपचारिक संदर्भ में निहित है जो यह सुनिश्चित करता है कि हमारे द्वारा किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने हेतु किए गए उपायों को अन्य अपना सकते हैं तथा वे स्वयं देख सकते हैं, हम सही हैं या नहीं। इससे हमें अपनी सोच या तर्क की दिशा को परखने या पुनः परखने में भी सहायता मिलती है। तथापि समाजशास्त्री आत्मवाचक होने का कितना भी प्रयास करें, अवचेतन पूर्वाग्रह की संभावना सदा रहती है। इस संभावना से निपटने के लिए समाजशास्त्री अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के उन लक्षणों को स्पष्ट रूप से उल्लिखित करते हैं जो कि अनुसंधान के विषय पर संभावित पूर्वाग्रह के स्रोत के रूप में प्रासांगिक हो सकते हैं। यह पाठकों के पूर्वाग्रह की संभावना से सचेत करता है तथा अनसंधान अध्ययन को पढते समय यह उन्हें मानसिक रूप से इसकी ‘क्षतिपूर्ति करने के लिए तैयार करता है।

समाजशास्र में वस्तुनिष्ठता के साथ एक अन्य स्थिति यह है कि सामाजिक विश्व में ‘सत्य’ के अनेक रूप होते हैं। वस्तुएँ विभिन्न लाभ के बिन्दुओं से अलग-अलग दिखाई देती हैं तथा इसी कारण से सामाजिक विश्व में सच्चाई के अनेक प्रतिस्पर्धी रूप या व्याख्याएँ शामिल हैं। उदाहणार्थ, ‘सही’ कीमत के बारे में एक दुकानदार तथा एक ग्राहक के अलग-अलग विचार हो सकते हैं, एक युवा व्यक्ति के लिए ‘अच्छे भोजन’ या इसी तरह से अन्य विषयों के बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं।

कोई भी ऐसा सरल तरीका नहीं है जिससे किसी विशेष व्याख्या के अन्य या सही हो के बारे में निर्णय लिया जा सके एवं प्राय: इन शर्तों के तहत सोचना भी लाभप्रद नहीं होता । वास्तव में समाजशास्र इस तरीके से जाँचने का प्रयास भी नहीं करता क्योंकि इसकी वास्तविक रुचि इसमें होती है कि लोग क्या सोचते हैं तथा वे जो सोचते हैं वैसा क्यों सोचते हैं।

एक अन्य कठिनाई स्वयं समाज विज्ञान में उपस्थित बहुविध मतों से उत्पन्न होती है। समाज विज्ञान की तरह समाजशास्त्र भी एक ‘बहु-निर्देशात्मक’ विज्ञान है इसका अर्थ है कि इस विषय में प्रतिस्पर्धी तथा परस्पर विरोधी विचारों वाले विद्यमान हैं। इन सबसे समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठ एक बहुत कठिन तथा जटिल वस्तु बन जाती है। वास्तव में, वस्तुनिष्ठता की प्राचीन धारणा को व्यापक तौर पर एक प्राचीन दृष्टिकोण माना जाता है। समाज वैज्ञानिक अब विश्वास नहीं करते कि ‘वस्तुनिष्ठता एवं अरुचि’ की पारंपरिक धारणा, समाज विज्ञान में प्राप्त की जा सकती है।

वास्तव में ऐसे आदर्श भ्रामक हो सकते हैं। इसका यह आशय नहीं है कि समाजशास्त्र के माध्यम से कोई लाभप्रद ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता या वास्तविक एक व्यर्थ धारणा है। इसका तात्पर्य है कि वस्तुनिष्ठता को पहले से प्राप्त अंतिम परिणाम के स्थान पर लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतर चलती रहने वाले प्रक्रिया के रूप में लिया न जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सर्वेक्षण पद्धति के आधारभूत तत्त्व क्या हैं ? इस पद्धति का प्रमुख लाभ क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण पद्धति का प्रयोग सामाजिक विज्ञान में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्यनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं। सर्वेक्षण पद्धति के निम्नलिखित चार आधारभूत तत्व हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण

सर्वेक्षण पद्धति के लाभ –

  • सामान्यतः सर्वेक्षण का अध्ययन क्षेत्र विशाल होता है।
  • सर्वेक्षण की अवधि कम होती है।
  • सर्वेक्षण प्रविधियाँ विशाल होती हैं।
  • सर्वेक्षण में सामाजिक प्रघटना को विस्तृत आकार में देखा जाता है।
  • सर्वेक्षण में अन्वेषक अपनी समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित तथा क्रमबद्ध प्रश्न पूछता है तथा उनका अभिलेख करता है।
  • सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों तथा निष्कर्षों का सामान्यीकरण हो सकता है।
  • सर्वेक्षण प्रणाली में निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श संभव है।

प्रश्न 5.
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन के कुछ आधार बताएँ।
उत्तर:
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन की प्रक्रिया दो मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित है –
पहला सिद्धान्त यह है कि जनसंख्या में सभी महत्वपूर्ण उपसमूहों को पहचाना जाए और प्रतिदर्श में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाए। अधिकतर बड़ी जनसंख्याएँ एक समान नहीं होती, उनमें भी स्पष्ट उप-श्रेणियाँ होती हैं। इसे समाजीकरण कहा जाता है। उदाहरणार्थ जब भारत की जनसंख्या के बारे में बात करते हैं तो हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बँटी हुई है जो कि एक-दूसरे से काफी हद तक अलग है। कभी भी एक राज्य की ग्रामीण जनसंख्या पर विचार करते समय हमें ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या विभिन्न आकार वाले गाँवों में रहती है।

इसी तरह से किसी एक गाँव की जनसंख्या भी वर्ग, जाति लिंग, आयु, धर्म या अन्य मापदंडों के आधार पर स्तरीकृत हो सकती है। सारांश में स्तरीकरण की संकल्पना हमें बताती है कि प्रतिदर्श का प्रतिनिधित्व दी गई जनसंख्या के सभी संबद्ध स्तरों की विशेषताओं को दर्शाने की सक्षमता पर निर्भर है। किस प्रकार के प्रतिदर्शों को प्रासंगिक माना जाए यह अनुसंधान के अध्ययन के विशिष्ट उद्देश्यों पर निर्भर है। उदाहरणार्थ धर्म के प्रति प्रवृत्तियों के बारे में अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण हो सकता है कि सभी धर्मों के सदस्यों . को शामिल किया जाए। मजदूर संसाधनों के प्रति प्रवृत्तियों पर अनुसंधान करते समय कामगारों, प्रबंधकों तथा उद्योगपतियों एवं अन्य को शामिल करना चाहिए।

प्रतिदर्श चयन का दूसरा सिद्धांत है वास्तविक इकाई अर्थात् व्यक्ति या गाँव या घर का चयन पूर्णतया अवसर आधारित होना चाहिए। इसे यादृच्छीकरण कहा जाता है जोकि स्वयं संभावित की संकल्पना पर आधारित है। आपने अपने पाठ्यक्रम में संभावित के बारे में पढ़ा होगा। संभावित का आशय घटना के घटित होने के अवसरों तथा विषमताओं से है। उदाहरण के लिए, जब हम सिक्का उछालते हैं तो यह चित की ओर पड़ता है या फिर पट की ओर । सामान्य सिक्कों में चित या पट आने का अवसर या संभावित लगभग एक समान अर्थात् प्रत्येक की 50 प्रतिशत दिखाई देती है। वास्तव में जब आप सिक्का उछालते हैं दोनों में से कौन-सी घटना होनी है अर्थात् चित्त आता है या पट, यह पूरी तरह से अवसर पर निर्भर करता है। इस प्रकार की घटनाओं को यादृच्छिक घटनाएँ कहा जाता है।

हम एक प्रतिदर्श को चुनने में समान आँकड़े का उपयोग करते हैं। हम सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि प्रतिदर्श में चयन किए गए व्यक्ति या घर या गाँव पूर्णतः अवसर द्वारा चयनित हों, किसी अन्य तरह से नहीं। अतः प्रतिदर्श में चयन होना किस्मत की बात है, जैसे कि लॉटरी जीतना। यह तभी हो सकता है जब यह सच हो कि प्रतिदर्श एक प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श होगा। यदि कोई सर्वेक्षण दल अपने में केवल उन्हीं गाँवों का चयन करता है जो मुख्य सड़क के निकट हों तो यह प्रतिदर्श यादृच्छिक या संयोगवश न होकर पूर्वाग्रहित होंगे। इसी तरह से यदि हम अधिकतर के मध्यवर्ग के परिवारों को या अपने जानकर परिवरों का चयन करते हैं तो प्रतिदर्श पुनः पूर्वाग्रहित होंगे।

यह बात है कि जनसंख्या से संबंधित स्तरों का पता लगाने के बाद प्रतिदर्श घरों या उत्तरदाताओं का वास्तविक चयन पूर्णतया संयोग के आधार पर होना चाहिए । इसे विभिन्न तरीकों से सुनिश्चित किया जा सकता है। इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इनमें सामान्य रूप से (लॉटरी) निकालना, पांसे फेंकना, इस उद्देश्यों हेतु विशेष रूप से बनाई गई प्रतिदर्श नंबर प्लेटों का प्रयोग आदि।

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प्रश्न 6.
प्रश्नावली से आप क्या समझते हैं ? एक प्रश्नावली की विशेषताएँ, प्रकार, गुण तथा दोष बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली का अर्थ तथा परिभाषा-प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए जा सकते हैं।” इसे साधारणतया, प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे० डी० पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” साधारणतया, प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है।

प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है। लुंडबर्ग के अनुसार, “मूलरूप में, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा वे इन उत्तेतनाओं के अंतर्गत अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि की विशेषताएँ –

  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा विशाल क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • किसी स्थिति विशेष अथवा समस्या के विषय में प्रश्नावली विधि के माध्यम से महत्वपूर्ण आधारभूत सामग्री प्राप्त की जा सकती है।
  • सूचनादाता अनुसंधानकर्ता के समक्ष आए बिना प्रश्नों का उत्तर देता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में वैज्ञानिक अन्वेषण की अन्य पद्धति की अपेक्षा कम खर्च होती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से जटिल प्रश्नों तथा समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है –

  • स्तरीयय प्रश्नावली,
  • खुली प्रश्नावली तथा
  • बंद प्रश्नावली

1. स्तरीय प्रश्नावली –

  • स्तरीय प्रश्नावली के अंतर्गत निश्चित, ठोस तथा पूर्व-विचारित प्रश्न होते हैं।
  • पेक्षाकृत जटिल प्रश्नों के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी होते हैं।
  • सभी उत्तरदाताओं को समान क्रम में संगठित प्रश्न दिए जाते हैं।
  • स्तरीय प्रश्नावली के उत्तरों की तुलना सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
  • स्तरीय प्रश्नावली का प्रयोग आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आदि विषयों तथा घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

2. खुली प्रश्नावली –

  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत वैकल्पिक उत्तर नहीं होते हैं।
  • खुली प्रश्नावली में प्रश्नों को इस प्रकार संचित किया जाता है, जिससे उत्तरदाता प्रश्नों का उत्तर खुले रूप से दे सकें।
  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत विषयों को उठाया जाता है, लेकिन सूचनादाता के लिए वैकल्पिक उत्तरों का प्रावधान नहीं होता है।
  • खुली प्रश्नावली की प्रकृति नमनीय होती है, जिसके कारण अनुसंधानकर्ता को पर्याप्त सूचना मिल जाती है।
  • खुली प्रश्नावली के उत्तर अनुसंधान के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।

3. बंद प्रश्नावली –

  • बंद प्रश्नावली में उत्तर सीमाबद्ध होते हैं।
  • बंद प्रश्नावली में एक प्रश्न के कई वैकल्पिक उत्तर भी दिए जाते हैं।
  • अनेक बार प्रश्न के बार ही संभावित उत्तरों का उल्लेख कर दिया जाता है।
  • आमतौर पर तीन वैकल्पिक उत्तर दिए जाते हैं।
  • बंद प्रश्नावली के निष्कर्ष भ्रमरहित, स्पष्ट तथा तुलनात्मक होते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के गुण –

  • प्रश्नावली प्रविधि द्वारा कम समय में एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में खर्चा कम आता है।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक द्वारा सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती है।
  • प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों का उत्तर सूचनदाता बिना किसी दबाव के देते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के दोष –

  • प्रश्नावली प्रविधि में व्यक्ति के दृष्टिकोण का कोई अधिक महत्व नहीं होता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में भौतिक अभिव्यक्ति को कोई महत्व प्रदान नहीं किया जाता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से प्राप्त निष्कर्षों में विश्वासनीयता तथा सत्यता का अभाव पाया जाता है।
  • सूचनादाता प्रश्नों का उत्तर देते समय तथ्यों को दिखा सकता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि अशिक्षित लोगों के लिए उपयागी नहीं होती है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

प्रश्न 7.
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण को प्रायः एक ही मान लिया जाता है। क्योंकि सामाजिक सर्वेक्षण, सामाजिक अनुसंधान की ही एक विधि है फिर भी दोनों में प्रर्याप्त अंतर है। यद्यपि दोनों ही विज्ञान सामाजिक घटनाओं का ही अध्ययन करता है। दोनों में नवीन तथ्यों की खोज करने का प्रयत्न किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि सामाजिक व्यवहार और उसाकी यर्थाथता को जानने का प्रयत्न किया जाता है ताकि सामाजिक जीवन पर अधिक नियंत्रण पाया जा सके तथापि सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर पाया जाता है, जो निम्न है –

  • सामाजिक सर्वेक्षण में सामाजिक तथ्यों और घटनाओं का अध्ययन करने में उपकल्पना की आवश्यकता नहीं पड़ती। जबकि सामाजिक अनुसंधान का प्रारंभ ही किसी उपकल्पना का परीक्षण करने हेतु किया जाता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध किसी एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र अथवा एक समुदाय में निवास करने वाले लोगें से होता है जबकि सामाजिक अनुसंधान का संबंध अमूर्त समस्याओं से होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार एवं समाज कल्याण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • सामाजिक अनुसंधान का संबंध प्रत्येक प्रकार की सामाजिक घटना संबंधों एवं व्यवहारों से है जबकि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध तात्कालिक समस्याओं, आवश्यकताओं के नियंत्रण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान सामाजिक समस्याओं के शीघ्र निवारण से संबंध नहीं रखता है।

प्रश्न 8.
अनुसंधान पद्धति के रूप में साक्षात्कार के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार-एक साक्षात्कार मूलत: अनुसंधानकर्ता तथा उत्तरदाता के बीच निर्देशित बातचीत होती है, हालांकि इसके साथ कुछ तकनीकी पक्ष जुड़े होते हैं। प्रारूप की सरलता भ्रामक हो सकती है क्योंकि एक अच्छा साक्षात्कारकर्ता बनने के लिए व्यापक अनुभव तथा कौशल होना जरूरी है। साक्षात्कार. सर्वेक्षण में प्रयोग की गई संरचित प्रश्नावली तथा सहभागी अवलोकन पद्धति की तरह पूर्णरूप से खुली अंत:क्रियाओं के बीच स्थान रखते हैं।

इसका सबसे बड़ा लाभ प्रारूप का अत्यधिक लचीलापन है । प्रश्नों को पुनः निर्मित किया जा सकता है या अलग ढंग से बताया जा सकता है; बातचीत में हुई प्रगति (या प्रगति कम होने पर) के अनुसार विषयों या प्रश्नों का क्रम बदला जा सकता है; जिन विषयों पर अच्छी सामग्री मिल रही हो, उन्हें विस्तारित किया जा सकता है या किसी अन्य अवसर पर बाद में जानने हेतु स्थगित किया जा सकता है और यह . सब स्वयं साक्षात्कार के दौरान किया जा सकता है। । दूसरी तरफ साक्षात्कार विधि के रूप में साक्षात्कार से संबंधित लाभों के साथ अनेक हानियाँ भी हैं।

इसका यह लचीलापन उत्तरदाता की मनोदशा बदल जाने के कारण या फिर साक्षात्कार करने वाले की एकाग्रता में त्रुटि होने के कारण साक्षात्कार को कमजोर बना देता है । इस प्रकार यह एक अविश्वसनीय तथा अस्थिर प्रारूप है जो जब कार्य करता है तो बहुत अच्छा करता है तथा जब असफल होता है तो बहुत बुरी तरह से होता है। साक्षात्कार लेने की अनेक शैलियाँ हैं तथा इससे संबंधित विचार तथा अनुभव लाभों के अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ व्यक्ति अत्यंत असंगठित प्रारूप को प्राथमिकता देते हैं जिसमें वास्तविक प्रश्नों के स्थान पर विषय की जाँच सूची ही होती है। अन्य व्यक्ति इसके संगठित रूप से वरीयता देते हैं जिसमें सभी उत्तरदाताओं से विशेष प्रश्न पूछे जाते हैं। परिस्थितियों तथा वरीयताओं के अनुसार साक्षात्कार को रिकार्ड करने के तरीके भी अलग-अलग हैं जिनमें वास्तविक विडियो या ऑडियो रिकार्ड करना, साक्षात्कार के दौरान विस्तृत नोट तैयार करना या स्मरण शक्ति पर निर्भर करना और साक्षात्कार समाप्त होने पर इसे लिखना शामिल है।

रिकार्ड करने वाले या इसी प्रकार के अन्य उपकरणों का बार-बार प्रयोग करने से उत्तरदाता असमान्य महसूस करता है तथा इससे बातचीत में काफी हद तक औपचारिकता आ जाती है। दूसरी तरफ जब रिकार्ड करने की अन्य कम व्यापक विधियों का प्रयोग किया जाता है तो कभी-कभी महत्त्वपूर्ण सूचना छूट जाती है या रिकार्ड नहीं हो पाती है। कभी-कभी साक्षात्कार के समय भौतिक या सामाजिक परिस्थितियाँ भी रिकार्ड के माध्यम को निर्धारित करती हैं। बाद में प्रकाशन के लिए साक्षात्कार को लिखने या अनुसंधान रिपोर्ट के हिस्से के रूप में लिखने का तरीका भी भिन्न हो सकता है। कुछ अनुसंधानकर्ता प्रतिलिपि को संपादित करना तथा इसे ‘स्पष्ट’ नियमित वर्णनात्मक रूप से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं; जबकि दूसरे मूल वार्तालाप को यथासंभव वैसा ही बनाए रखना चाहते हैं तथा इसके लिए वे हरसंभव प्रयास करते हैं।

साक्षात्कार को प्रायः अन्य पद्धतियों के साथ अनुरूप के रूप में विशेषता सहभागी अवलोकन तथा सर्वेक्षणों के साथ प्रयुक्त किया जाता है। ‘महत्वपूर्ण सूचनादाता’ (सहभागिता अवलोकन अध्ययन का मुख्य सूचनादाता) के साथ लंबी बातचीत से प्रायः संकेन्द्रित जानकारी प्राप्त हाती है जो साथ में लगाई गई सामग्री प्रदान करती है, स्पष्ट करती है तथा इसी तरह से गहन साक्षात्कारो द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्षों को गहनता तथा व्यापकता प्राप्त होती है। हालांकि एक पद्धति के रूप में साक्षात्कार व्यक्तिगत पहुँच पर और उत्तरदाता तथा अनुसंधानकर्ता के आपसी संबंधों या आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अन्तर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।” यह कथन है …………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(ब) लुंडबर्ग

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प्रश्न 2.
“अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जैसे सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक् इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली के रूप में उपयोग किया जाता है।” यह कथन है ……………………
(अ) मेजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(द) पी० वी० यंग

प्रश्न 3.
“एक प्रश्नावली के प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सूचनादाता को बिना अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है।साधारणतया प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।” यह कथन है ………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स

प्रश्न 4.
“प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिये वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन से संबंधित विश्वसनीय तथ्यों (Reliable facts) को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।” यह कथन है …………………….
(अ) मोज
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(अ) मोजर

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प्रश्न 5.
“सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से अवश्लेषण की एक पद्धति है।” यह कथन …………………….
(अ) मोज़र
(स) मोर्स
(ब) लुंडबर्ग
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स