Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.4

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.4 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.4

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.4

प्रश्न 1.
एक टीम ने फुटबाल के 10 मैचों में निम्नलिखित गोल किाः
2, 3, 4, 5, 0, 1, 3, 3, 4, 3
इन गोलों के माध्य, माश्यक और बहानक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना गोलों का माध्य = \(\overline { x }\), मैचों की संख्या = 10
\(\overline { x }\) = \(\frac{x_1+x_2+x_3+….+x_{10}}{10}\)
\(\overline { x }\) = \(\frac{2+3+4+5+0+1+3+3+4+3}{10}\) = \(\frac{28}{10}\)
\(\overline { x }\) = 2.8
माध्यिका ज्ञात करने के लिए आंकड़ों को आरोही क्रम में रखने पर, 0, 1, 2, 3, 3, 3, 4, 4, 5 यहाँ 10 पद है। अत: यहाँ दो मध्य फ होंगे (\(\frac{10}{2}\)) और (\(\frac{10}{2}\) + 1) जाँ पद अर्थात् 5वाँ व 6वाँ पदः
अर्थात् माध्यिका = \(\frac{3+3}{2}\) = 3
आँकड़ों से स्पष्ट है कि सर्वाधिक आवृत्ति 3 की है। अत: = 3

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प्रश्न 2.
गणित की परीक्षा में 15 विद्यार्थियों ने (100 में मे) निम्नलिखित अंक प्राप्त किए :
41, 39, 48, 52, 46, 62, 54, 40, 96, 52, 98, 40, 42, 52, 60
इन आंकड़ों के माध्य, माध्यक और बहुलक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माना माष्य = \(\overline { x }\) = \(\frac{x_1+x_2+x_3+….+x_{15}}{15}\)
\(\overline { x }\) = \(\frac{41+39+48+52+46+62+54+40+96+52+98+40+42+52+60}{15}\)
= \(\frac{822}{15}\) = 54.8
माध्यिका ज्ञात करने के लिये दिए गए आंकड़ों को आरोही क्रम में रखने पर.
39, 40, 41, 42, 46, 48, 52, 52, 52, 54, 60, 62, 96, 98
यहाँ 15 पद हैं अत: माध्यिका होगी (\(\frac{15+1}{2}\)) वाँ पद अर्थात् 8 वा पद।
अत: माध्यिका = 52.
दिए गए आँकड़ों से स्पष्ट है कि 52 की सर्वाधिक आवृत्ति है। अतः बहुलक = 52.

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रेक्षणों को आरोही क्रम में व्यवस्थित किया गया है। यदि आंकड़ों का माध्यक 63 हो, तो x का मान ज्ञात कीजिए:
29, 32, 48, 50, x, x + 2, 72, 78, 84, 95
उत्तर:
दिया गया है कि प्रेक्षण आरोही क्रम में हैं,
29, 32, 48, 50, x , x + 2, 72, 78, 84, 95
पदों की संख्या = 10
अतः मध्यिका =
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∴ 63 = x + 1
⇒ x = 62

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प्रश्न 4.
आँकड़ों 14, 25,14, 28, 18, 17, 18, 14, 23, 22, 14, 18 का बहुलक ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
आंकड़ों को आरोही क्रम में रखने पर
14, 14, 14, 14, 17, 18, 18, 18, 22, 23, 23, 28
अत: आँकहाँ से स्पष्ट है कि 14 की आवृत्ति सर्वाधिक है। माता बालक = 14.

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प्रश्न 5.
निम्न सारणी से एक फैक्टरी में काम कर रहे 60 कर्मचारियों का माध्य बेतन ज्ञात कीजिए:
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उत्तर:
माध्य की गणना के लिए सारणी निम्न है:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.4 3
अन: 60 मजदूरों का माध्म वेतन Rs 5083.33 है।

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प्रश्न 6.
निम्न स्थिति पर आधारित एक उदाहरण
(i) माध्य की केन्द्रीय प्रवृत्ति का उपयुक्त माप है।
(ii) माध्य केन्द्रीय प्रवृत्ति का उपयुक्त माप नहीं है, जवकि माध्यक एक उपयुक्त माप है।
उत्तर:
(i) माध्य अपने अद्वितीय मान के कारण केन्द्रीय प्रकृति का एक उपयुक्त माप है तथा इसका उपयोग अलग-अलग आँकड़ों के समूह की तुलना करने के लिए किया जा सकता
(ii) माध्य का उपयोग गुण-दोषों जैसे-सुन्दरता, ईमानदारी, बुद्धिमानी आदि को मापने के लिए नहीं किया जा सकता है।

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Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.2

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.2 Text Book Questions and Answers.

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प्रश्न 1.
आठवीं कक्षा के 30 विद्यार्थियों के रक्त समूह हैं:
A, B,O, O, AB, O, A, O, B, A, O, B, A, O, O, A, AB, O, A, A, O, O, AB, B, A, O, B, A, B, O
इन आंकड़ों को एक बारंबारता बंटन सारणी के रूप में प्रस्तुत कीजिए। बताइए कि इन विद्यार्थियों में कौन-सा रक्त समूह अधिक सामान्य है और कौन-सा रक्त समूह विरलतम समूहहै।
उत्तर:
कक्षा के विद्यार्थियों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर वारंवारता सारणी अन्न प्रकार होगी:
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अत: सामान्य रक्त समूह = O, विरलतम रक्त समूह AB

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प्रश्न 2.
40 इंजीनियरों की उनके आवास से कार्य-सवाल की (किलोमीटर में) दूरियाँ ये हैं:
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0 – 5को (जिसमें 5 सम्मिलित नहीं है पहला अंतराल लेकर उपर दिए हए आंकड़ों से वर्ग-माप 5 वाली एक वीकृत आरंबारता बंटन सारणी बनाइए। इस सारणीबद्ध निरूपण में आपको कौन-से मुख्य लक्षण देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
सारणी निम्न होगी:
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अत: निष्कर्ष यह है कि 40 में से 27 इंजीनियर कार्यस्थल से 15km से अधिक दूरी पर नहीं रहते।

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प्रश्न 3.
30 दिन वाले महीने में एक नगर की सापेक्ष आर्द्रता (%) यह रही है।
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(i) वर्ग 84-86, 86-88 आदि लेकर एक वर्गीकृत वारंवारता बंटन बनाइए।
(ii) क्या आप बता सकते हैं कि ये आँकड़े किस महीने या ऋतु से संबंधित है?
(iii) इन आँकड़ों का परिसर क्या है?
उत्तर:
(i) बारवांस्ता बंटन निग्न होगी-
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(ii) कि आर्द्रता अधिक है, अत: वयां ऋतु के आंकड़े हो सकते हैं।
(iii) परिसर = 99.2 – 84.9 = 14.3

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प्रश्न 4.
निकटतम सेंटीमीटरों में मापी गई 50 विद्यार्थियों की लंबाइयाँ थे:
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(i) 161-165, 166-170 आदिका वर्ग-अन्तराल लेकर स्पर दिए गए आंकड़ों को एक वर्गीकृत बारबारता बंटन सारणी के रूप में निखापित कीजिए।
(ii) इस सारणी की सहायता से आप विद्यार्थियों की लंबाइयों के संबंध में क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं?
उत्तर:
(i) बारबारता वंटन सारणी निम्नवा होगी-
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(ii) हम देख सकते हैं कि 50% से अधिक छात्रों की संबाई 165 cm से कम है।

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प्रश्न 5.
एक नगर में वायु में साफन-डाइ-ऑक्साइड का मांद्रण भाग प्रति मिलियन [parts per million (ppm)] में ज्ञात करने के लिए एक आध्ययन किया गया।
30 दिनों में प्राप्त किए गए आँकड़े ये हैं :
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(i) 0.00-0.04, 0.04-0.08 आदि का वर्ग अंतराल लेकर इन आंकड़ों की एक वर्गीकृत बारबारता बंटन सारणी बनाइए।
(ii) सल्फर डाई-ऑक्साइड की सांद्रता कितने दिन 0.11 भाग प्रति मिलियन से अधिक रही?
उत्तर:
(i) बारबारता बंटन सारणी-
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(ii) हम सारणी में देख सकते हैं कि 8 दिन सल्फर डाइ-ऑक्साइड की सांद्रता 0.11 ppm से अधिक है।

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प्रन 6.
तीन सिक्कों को एक साथ 30 बार उछाला गया। प्रत्येक बार चिन (Head) आने की संख्या निम्न है।
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ऊपर दिए गए आंकड़ों के लिए एक वारंवारता बंटन सारणी बनाइए।
उत्तर:
बारबारता सारनी निन्न होगी:
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प्रश्न 7.
50 दशमलव स्थान तक शाका माननीचे दिया गया है:
3.1415926535897932384626433832795028 8419716939937510
(i) दशमलब बिन्दु के बाद आने वाले 0 से 9 तक के अंकों का एक बारंबारता बंटन बनाइए।
(ii) सबसे अधिक बार और सबसे कम बार आने वाले अंक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
(i) सारणी निम्न है-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.2 12
(ii) सबसे अधिक बार आने वाले अंक = 3 और 9 तथा सबसे कम बार आने वाला अंक = 0

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प्रश्न 8.
तोस बच्चों से यह पूछा गया कि पिछले सप्ताह उन्होंने कितने घंटों तक टी. वी. के प्रोग्राम देखें। प्राप्त परिणाम ये रहे हैं:
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.2 13
(i) वर्ग-चौड़ाई 5 लेकर और एक वर्ग अंतराल को 5-10 लेकर इन आँकड़ों की एक वर्गीकृत वारंबारता बंटन सारणी बनाइए।
(ii) कितने बच्चों ने सप्ताह में 15 या अधिक घंटों तक टेलीविजन देखा?
उत्तर:
(i) वर्ग वारंवारता सारणी निम्न होगी-
Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.2 14
(ii) सारणी से स्पष्ट है कि 2 बच्चों ने सप्ताह में 15 या अधिक घंटों तक टेलीविजन देखा।

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प्रश्न 9.
एक कंपनी एक विशेष प्रकार की कार-बैटी बनाती है। इस प्रकार की 40 वैदियों के जीवन-काल (वर्षों में) ये रहे हैं:
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0-5 पाप के वर्ग अंतराल लेकर तथा अंतराल 2-2.5 से प्रारम्भ करके इन आंकड़ों की एक वर्गीकृत बारवरिता बंटन सारणी बनाइए।
उत्तर:
बारबारता सारणी निम्नवत् है:
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Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 14 सांख्यिकी Ex 14.1

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प्रश्न 1.
उन आँकड़ों के पाँच उदाहरण दीजिए जिनेभाप अपने दैनिक जीवन से एकत्रित कर सकते हैं।
उत्तर:
दैनिक जीवन से प्राप्त आंकड़ों के उदाहरण:
(i) हमारे घर पर पंखों की संख्या।
(ii) हमारी कक्षा में छात्रों की संख्या
(iii) हमारे विद्यालय में शिक्षकों की संख्या।
(iv) सर्वे से प्राप्त रोजगार के आँकड़े।
(v) टी. बी. और अखबार से प्राप्त मतदान परिणाम।

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प्रश्न 2.
ऊपर दिए गए प्रश्न 1 के आँकड़ों को प्राथमिक आँकड़ों या गौण आंकड़ों में वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
प्राश्चमिक आँकई : (i), (ii) और (iii) गौड़ आंकड़े: (iv) और (v).

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Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 10 शहरी एवं ग्राम जीवन

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 1 Chapter 10 शहरी एवं ग्राम जीवन Text Book Questions and Answers, Notes.

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Bihar Board Class 6 Social Science शहरी एवं ग्राम जीवन Text Book Questions and Answers

अभ्यास

आइए याद करें :

वस्तुनिष्ठ प्रश्न :

प्रश्न 1.
छोटे एवं स्वतंत्र किसानों को क्या कहा जाता था?
(क) ग्राम भोजक
(ख) श्रेणी
(ग) गृहपति
(घ) वेल्लार
उत्तर –
(ग) गृहपति

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प्रश्न 2.
संगमकालीन (दक्षिण भारतीय) सम्पन्न किसानों को क्या कहा जाता था?
(क) ग्राम भोजक
(ख) कडैसियार
(ग) वेल्लार
(घ) उणवार
उत्तर-
(ग) वेल्लार

प्रश्न 3.
सुदर्शन झील का निर्माण सबसे पहले किसने करवाया ?
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख)रुद्रदामन
(ग) स्कन्द गुप्त
(घ) अशोक महान
उत्तर-
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य

प्रश्न 4.
संगमकालीन व्यापारिक नगर कौन नहीं है ?
(क) पुहार
(ख) उरैयूर
(ग) तोण्डी
(घ) कन्याकुमारी
उत्तर-
(क) पुहार

आइए चर्चा करें

प्रश्न 5.
लगभग 2500 साल पहले आन्तरिक व्यापार में कौन-कौन-सी कठिनाई आती होगी ?
उत्तर-
लगभग 2500 साल पहले लोग व्यापार वस्तुओं की अदला-बदली कर अर्थात् वस्तु को विनिमय प्रणाली से करते थे। गायों के लेन-देन से करते थे, जिससे लोगों को कठिनाईयाँ होती थीं। तब ६ रे-धीरे सिक्के का प्रचलन हुआ। सिक्के के प्रचलन से व्यापार आसान हो गया। सड़क और बन्दरगाह, आवागमन की सुविधा कम थी।

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प्रश्न 6.
आपके गाँव में आज खेती कैसे की जाती है ? प्रयुक्त होने वाले 5 औजारों के नाम लिखें।
उत्तर-
कुदाल, खुरपी, हसुंआ, फाल, ट्रैक्टर का प्रयोग होता है।

प्रश्न 7.
आज सिंचाई की कौन-कौन-सी पद्धति अपनायी जाती है। तुलना करें। प्राचीनकाल में आज की कौन-सी पद्धति नहीं अपनायी जाती थी?
उत्तर-
पहले कुआँ, रेहट, तालाब , नहरों से सिंचाई की व्यवस्था थी और आज भी है। लेकिन आज बिजली के आविष्कार ने ट्युबबेल का निर्माण किया। जमीन के अन्दर से ट्यूबबेल द्वारा पानी आसानी से पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करते हैं जो पहले नहीं था।

आओ करके देखें 

प्रश्न 8.
आप अगर शिल्पकार को काम करते हुए देखते हैं तो उनके बारे में लिखें कि वे कैसे काम हैं? उनके द्वारा बनाये गये पाँच औजारों के नाम लिखें।
उत्तर-
शिल्पकार मेहनती होते हैं। एकाग्रता से काम करते हैं। रथ, कुदाल, मिट्टी की सुराही, लकड़ी का फर्निचर।

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प्रश्न 9.
पाटलीपुत्र के लोग कौन-कौन से कार्य करते थे? गाँव के लोगों से उनका व्यवसाय किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर-
पाटलीपुत्र के लोग व्यापार करते थे। शिक्षा का केन्द्र था। लोहार, बढ़ई, रथकार, अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले रहते । पक्के मकानों में रहते। लेकिन गाँवों में लोग कच्चे मकानों में रहते, खेती का काम करते, पशुपालन करते और उत्पादन को शहर में लाकर बेचते थे।

प्रश्न 10.
आप भारत से रोम को निर्यात एवं आयात होने वाली तीन-तीन वस्तुओं की सूची बनायें।
उत्तर-
भारत से रोम जाने वाली वस्तु, मशाला, काली मिर्च और समुद्र और पहाड़ियों सर्लभ वस्तु के आयात शराब, दीपक और सोना।

वर्ग परिचर्चा

प्रश्न 1.
क्या राजा सिंचाई की व्यवस्था करके अधिक राजस्व प्राप्त करने का अधिकारी था ?
उत्तर-
हाँ,राजा सिंचाई की व्यवस्था करके अधिक राजस्व प्राप्त करने का अधिकारी था । ऐसा इसलिए कि यदि राजा को अधिक राजस्व मिलेगा तो प्राप्त धन को दूसरे क्षेत्रों में प्रजा की भलाई के लिए विकास करेगा।

Bihar Board Class 6 Social Science History Solutions Chapter 10 शहरी एवं ग्राम जीवन

प्रश्न 2.
गाँव के लोगों का जीवन कैसा था?
उत्तर-
गाँव के लोगों के जीवन में धन की कमी थी, किसान और मजदूर वर्ग के लोग ज्यादा थे। किसान को अपने उत्पादन का चौथा या . छठा हिस्सा ‘कर’ के रूप में देना पड़ता था।

प्रश्न 3.
पाटलीपुत्र में लोग कौन-कौन से व्यवसाय से जुड़े हुए थे । आप उनकी सूची, बनायें।
उत्तर-
पाटलीपुत्र में लोग अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले बढ़ई. लोहार. शिल्पकार, सोनार, बुनकर आदि निवास करते थे।

Bihar Board Class 6 Social Science शहरी एवं ग्राम जीवन Notes

पाठ का सारांश

  • दक्षिण भारत के बड़े किसानों को वेल्लाल कहा जाता था तथा छोटे किसान को उणवार कहा जाता था।
  • महाजनपदों की राजधानियां भी प्रायः परकोटे या बाहरी दीवारों से घिरे होते थे।
  • विदेशी शक्तियों के भारत आगमन के कारण व्यापार-वाणिज्य में वृद्धि से सिक्कों का प्रचलन बढ़ा।
  • शहर कई गतिविधियों के केन्द्र हुआ करते थे, शहर में व्यापार, वाणिज्य,
  • धर्म, शिक्षा आदि के केन्द्र के रूप में विकसित थे।
  • दक्षिण भारत में दूसरी शताब्दी ई०पू० से लेकर दूसरी शताब्दी तक का
  • काल संगम काल के नाम से जाना जाता है।
  • संगमकालीन भारत के तटीय शहरों तोण्डी; मुजरिश, पुहार, अरिकमेडु में यवन व्यापारी काफी संख्या में रहते थे।
  • लोहे के औजारों का कृषि के क्षेत्र में प्रयोग से खेती का विकास संभव हो सका।
  • सुदर्शन झील का निर्माण सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त मौर्य ने करवाया था, यह गुजरात में स्थित है।
  • सुदर्शन झील से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई।
  • सिंचाई एवं औजारों के प्रयोग से अनाज का उत्पादन बढ़ा।
  • हमें शहरों की अपेक्षा गांवों के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी प्राप्त है।
  • गांव में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति गांव का मुखिया होता था। जिसे ग्रामभोजक भी कहा जाता था।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Ex 13.5

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Ex 13.5 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Ex 13.5

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Ex 13.5

प्रश्न 1.
माचिस की डिब्बी के माप 4 cm × 2.5 cm × 1.5 cm हैं। ऐसी 12 डिब्बियों के एक पैकेट का आयतन क्या होगा?
उत्तर:
एक डिव्यो का आयतन = 4 x 2.5 × 1.5 = 15 cm³
12 डिब्बियों का आयतन = 12 × 15 = 180 cm³.

प्रश्न 2.
एक घनाभकार पानी की टंकी 6 m लंबी, 5 m चौड़ी और 4.5 m गहरी है। इसमें कितने लीटर पानी आ सकता है? (1 m³ 1000 l)
उत्तर:
टंकी का आयतन = lbh
= 6 × 5 × 4.5
= 135 m³
अतः टंकी की जलग्रहण क्षमता = 135 × 1000
= 135000 लीटर।

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प्रश्न 3.
एक घनाभाकार बर्तन 10 m लंबा और 8 m चौड़ा है। इसको कितना ऊँचा बनाया जाए कि इसमें 380 घन मीटर द्रव आ सके?
उत्तर:
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अत: धनाच 4.75 m ऊँचा बनाना चाहिए जिससे कि उसमें 380 m³ द्रव आ सके।

प्रश्न 4.
8 m लंबा, 6 m चौड़ा और 3 m गहरा एक घनाभाकार गठ्ठा खुदवाने में Rs 30 प्रति m³ की दर से होने वाला व्यव ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
गरहेका आयतन = lbh = 8 × 6 × 3
= 144 m³
∵ 1 m³ की खुदाई का व्यय = Rs 30
∴ 144 m³ की खुदाई का व्यय = 30 × 144 = Rs 4320.

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 13 पृष्ठीय क्षेत्रफल एवं आयतन Ex 13.5

प्रश्न 5.
एक घनाभकार टंकी की धारिता 50000 लीटर पानी की है। यदि इस टंकी की लंबाई और गहराई क्रमशः 2.5 m और 10 m है, तो इसकी चौड़ाई ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
दिया है l = 2.5 m, h = 10 m तथा V = 50000 l
⇒ V= (50000 × \(\frac{1}{1000}\)) m³ = 50 m³
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अत: घनाभकार टंकी की चौड़ाई 2 m है।

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प्रश्न 6.
एक गांव जिसकी जनसंख्या 4000 है, को प्रति दिन प्रति व्यक्ति 150 लीटर पानी की आवश्यकता है। इस गाँव में 20 m × 15 m × 6 m पापों वाली एक टंकी बनी हुई है। इस टंकी का पानी वहाँ कितने दिन के लिए पर्याप्त होगा?
उत्तर:
दिया है. l = 20 m.b = 15 m h = 6 m
टंकी की समता = lbh = 20 × 15 × 6 = 1800 m³
प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति पानी की आवश्यकता = 150 लीटर
4000 व्यक्तियों के लिए प्रतिदिन आवश्यक पानी
= 4000 × 150 = 600000 लीटर
= \(\frac{600000}{1000}\) m³ = 600 m³
∵ पर्याप्त पानी के लिए दिनों की संख्या
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अत: बडों 3 दिन के लिए पानी पर्याप्त होगा।

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प्रश्न 7.
किसी गोदाम की माप 40 m × 25 m × 10 m हैं। इस गोदाम में 1.5 m × 1.25 m × 0.5 m की माप वाले लकड़ी के कितने अधिकतम क्रेट (crate) रखे जा सकते हैं?
उत्तर:
दिया है, गोदाम की विमाएं l = 40 m, b = 25 m तथा h = 10 m
∴ गोदाम का आयतन = l × b × h = 40 × 25 × 10
= 10000 m³
लकड़ी की फेटों की विमाएँ. l = 1.5 m b = 1.25 m तथा h = 0.5 m
∴ क्रेट का आयतन = 1.5 × 1.25 × 0.5
= 0.9375
अधिकतम केटों की संसा =
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प्रश्न 8.
12 cm भुजा वाले एक ठोस धन को बराबर आयतन वाले 8 धनों में काटा जाता है। नए धन की क्या भुजा होगी? साश्च ही इन दोनों धनों के पृष्ठीय क्षेत्रफलों का अनुपात भी ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
12 cm भुजा वाले धन का आयतन
V1 = (12 × 12 × 12) cm
पहले धन से कटे धन का आयतन V2 = \(\frac{1}{8}\) V1
= \(\frac{1}{8}\) (12 × 12 × 12)
= (6 × 6 × 6) cm
अतः नये धन की भुजा = \(\sqrt{6×6×6}\) = 6 cm
अत: पृष्टीय क्षेत्रफलों में अनुपात =\(\frac{6×12×12}{6×6×6}\) = 4 : 1

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प्रश्न 9.
3 m गहरी और 40 m चौड़ी एक नदी 2 km प्रति घंटा की चाल से बहकर समुद्र में गिरती है। एक मिनट में समुद्र में कितना पानी गिरेगा?
उत्तर:
दिया है l = 12 km = 2000 m, b = 40 m तथा h = 3 m
∴ एक घंटे में समुद्र में गिरे पानी का आयतन = lbh
= 2000 × 40 × 3 m³
अतः एक मिनट में समुद्र में गिरे पानी का आयतन
= \(\frac{2000×40×3}{60}\) = 4000 m³

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन

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Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 16 प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन InText Questions and Answers

अनुच्छेद 16.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
पर्यावरण-मित्र बनने के लिए आप अपनी आदतों में कौन-से परिवर्तन ला सकते
उत्तर:
हम कई तरीकों से और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं; जैसे-हम तीन ‘R’ जैसी कहावतों पर काम कर सकते हैं, अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग। इन कहावतों को अपनी आदतों में शामिल करके हम और अधिक पर्यावरण-मित्र बन सकते हैं।

प्रश्न 2.
संसाधनों के दोहन के लिए कम अवधि के उद्देश्य के परियोजना के क्या लाभ हो सकते हैं?
उत्तर:
इससे यह लाभ हो सकता है कि बिना किसी उत्तरदायित्व के अधिक-से-अधिक मुनाफा प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
यह लाभ, लंबी अवधि को ध्यान में रखकर बनाई गई परियोजनाओं के लाभ से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
कम-उद्देश्य में परियोजनाओं का एकमात्र लाभ है कि संसाधनों के अधिक-से-अधिक दोहन द्वारा हम अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करते हैं। इन योजनाओं के तहत भावी पीढ़ियों के लिए हमारा . कोई उत्तरदायित्व ध्यान में नहीं होता। दूसरी तरफ, लंबी अवधि की योजनाओं का उद्देश्य संसाधनों का संपोषित विकास के लिए उपयोग करते हुए, आने वाली पीढ़ियों के उपयोग के लिए भी उन्हें सुरक्षित रखना होता है।

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प्रश्न 4.
क्या आपके विचार में संसाधनों का समान वितरण होना चाहिए? संसाधनों के समान वितरण के विरुद्ध कौन-कौन सी ताकतें कार्य कर सकती हैं?
उत्तर:
हमारी धरती सभी के लिए उपलब्ध है। सभी प्राणियों का इसके संसाधनों पर समान अधिकार है। यदि कोई व्यक्ति इन संसाधनों का अत्यधिक उपयोग कर रहा है तो इसका सीधा मतलब है कि किसी को इसकी कमी झेलनी पड़ रही होगी। फलतः एक संघर्ष शुरू होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचता है। किंतु मुट्ठी भर कुछ अमीर और शक्तिशाली लोग हैं जो संसाधनों का समान वितरण नहीं चाहते। वे इन संसाधनों को अपने लिए लाभ के एक विशाल स्रोत के रूप में देखते हैं।

अनुच्छेद 16.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
हमें वन एवं वन्य जीवन का संरक्षण क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
वन जैव विविधता के तप्त स्थल हैं। किसी क्षेत्र की जैव विविधता को जानने का एक तरीका वहाँ पाए जाने वाली प्रजातियों की संख्या है। हालाँकि अनेक प्रकार के जीवों (बैक्टीरिया, कवक, फर्न, फूल वाले पौधे, कीड़े, केंचुआ, पक्षी, सरीसृप आदि) का होना भी महत्त्वपूर्ण है। संरक्षण का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य विरासत से प्राप्त जैव विविधताओं की सुरक्षा है। प्रयोगों तथा वस्तुस्थिति के अध्ययन से हमें पता चलता है कि विविधता के नष्ट होने से पारिस्थितिक स्थायित्व भी नष्ट हो सकता है।

प्रश्न 2.
संरक्षण के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर:
वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो। दूसरे शब्दों में जब पर्यावरण अथवा वन संरक्षित किए जाएँ, तो उनके सुनियोजित उपयोग का लाभ स्थानीय लोगों को मिलना चाहिए। यह विकेन्द्रीकरण की एक ऐसी व्यवस्था है जिससे आर्थिक विकास एवं पारिस्थितिक संरक्षण दोनों साथ-साथ चल सकते हैं।

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अनुच्छेद 16.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
अपने निवास क्षेत्र के आस-पास जल संग्रहण की परंपरागत पद्धति का पता लगाइए।
उत्तर:
जल संग्रहण भारत में पुरानी पद्धति है। राजस्थान में खादिन, बड़े पात्र एवं नाड़ी, महाराष्ट्र में बंधारस एवं ताल, मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में बंधिस, बिहार में आहार तथा पाइन, हिमाचल प्रदेश में कुल्ह, जम्मू के काँदी क्षेत्र में तालाब तथा तमिलनाडु में एरिस, केरल में सुरंगम, कर्नाटक में कट्टा आदि प्राचीन जल संग्रहण तथा जल परिवहन संरचनाएँ आज भी उपयोग में हैं। हमारे क्षेत्र, राजस्थान में खादिन, अत्यधिक प्रचलित है।

15वीं सदी में सबसे पहले पश्चिमी राजस्थान में, जैसलमेर के पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा डिजाइन की गई यह प्रणाली राज्य के कई हिस्सों में आज भी प्रचलन में है। खादिन जिसे ‘ढोरा’ भी कहा जाता है, जमीन पर बहते हुए पानी को कृषि में उपयोग करने के लिए विकसित की गई थी। इसकी प्रमुख विशेषता निचली पहाड़ी की ढलानों के आर-पार पूर्वी छोर पर बनाए जाने वाला लंबा (100-300 मी) बाँध है। इसमें पानी की आधिक्य मात्रा को बाहर निकालने की भी व्यवस्था होती है। खादिन पद्धति खेतों में बहने वाले वर्षा जल के संग्रहण पर आधारित प्रणाली है। बाद में जल तृप्त जमीन का उपयोग विभिन्न फसलों के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
इस पद्धति की पेय जल व्यवस्था (पर्वतीय क्षेत्रों में, मैदानी क्षेत्र अथवा पठार क्षेत्र) से तुलना कीजिए।
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्रों में जल संभर प्रबंधन, मैदानी क्षेत्रों से पूर्ण रूप से भिन्न होता है। जैसे-हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में आज से करीब चार सौ वर्ष पहले, नहर सिंचाई की एक स्थानीय प्रणाली विकसित की गई जिसे कुल्ह कहा जाता था। नदियों में बहने वाले जल को मानव-निर्मित छोटी-छोटी नालियों द्वारा पहाड़ी के नीचे के गाँवों तक पहुँचाया जाता था। इन कुल्हों में बहने वाले पानी का प्रबंधन गाँवों के लोग आपसी सहमति से करते थे।

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यह जानना बड़ा रोचक होगा कि कृषि के मौसम में जल सबसे पहले दूरस्थ गाँव को दिया जाता था फिर उत्तरोत्तर ऊँचाई पर स्थित गाँव उस जल का उपयोग करते थे। कुल्ह की देख-रेख एवं प्रबंध के लिए दो-तीन लोग रखे जाते थे, जिन्हें गाँव वाले वेतन देते थे। सिंचाई के अतिरिक्त इस कुल्ह से जल का भूमि में अंत:स्रवण भी होता रहता था जो विभिन्न स्थानों पर झरने को भी जल प्रदान करता रहता था।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र में जल के स्रोत का पता लगाइए। क्या इस स्रोत से प्राप्त जल उस क्षेत्र के सभी निवासियों को उपलब्ध है?
उत्तर:
हमारे क्षेत्र में जल के मुख्य स्रोत भूमिगत जल तथा नगर-निगम द्वारा आपूर्ति. जल हैं। कभी-कभी खासकर गर्मी के दिनों में इन स्रोतों से प्राप्त होने वाले जल में कुछ कमी आ जाती है तथा इनकी समान उपलब्धता भी सम्भव नहीं होती।

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प्रश्न 1.
अपने घर को पर्यावरण-मित्र बनाने के लिए आप उसमें कौन-कौन से परिवर्तन सुझा सकते हैं?
उत्तर:
तीन ‘R’ अर्थात् उपयोग कम करना, पुनः चक्रण तथा पुनः उपयोग को लागू करके हम पर्यावरण को प्रभावी ढंग से सुरक्षित रख सकते हैं। उपयोग कम करने का अर्थ है कम-से-कम वस्तुओं का प्रयोग करना। हम बिजली के पंखे एवं बल्ब का स्विच बंद करके विद्युत का अपव्यय रोक सकते हैं। हम टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर जल की बचत कर सकते हैं।

हमें अपने भोजन को फेंकना नहीं चाहिए। पुनः चक्रण का अर्थ है प्लास्टिक, काँच, धातु की वस्तुएँ तथा ऐसे ही पदार्थों के पुनः चक्रण द्वारा दूसरी उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में प्रयोग। जब तक आवश्यक न हो हमें इनका नया उत्पाद/संश्लेषण नहीं करना चाहिए। पुन: उपयोग का अर्थ है किसी वस्तु का बार-बार उपयोग करना। उदाहरण के लिए, प्रयुक्त लिफाफों को फेंकने की जगह इनका हम फिर से उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
क्या आप अपने विद्यालय में कुछ परिवर्तन सुझा सकते हैं जिनसे इसे पर्यानुकूलित बनाया जा सके।
उत्तर:
हम अपने विद्यालय में तीन ‘R’ को लागू करके इसे पर्यानुकूलित बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
इस अध्याय में हमने देखा कि जब हम वन एवं वन्य जंतुओं की बात करते हैं तो चार मुख्य दावेदार सामने आते हैं। इनमें से किसे वन उत्पाद प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिए जा सकते हैं? आप ऐसा क्यों सोचते हैं?
उत्तर:
इन चार दावेदारों; जैसे-वन के अंदर एवं इसके निकट रहने वाले लोगों, सरकार का वन विभाग, उद्योगपति तथा वन्य जीवन एवं प्रकृति-प्रेमी में मेरे विचार से उत्पादों के प्रबंधन हेतु निर्णय लेने के अधिकार दिये जाने के लिए स्थानीय लोग सर्वाधिक उपयुक्त हैं। क्योंकि स्थानीय लोग वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं। सदियों से ये स्थानीय लोग इन वनों का उपयोग करते आ रहे हैं साथ ही इन्होंने ऐसी पद्धतियों का भी विकास किया है जिससे संपोषण होता आ रहा है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए उत्पाद बचे रहेंगे।

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इसके अतिरिक्त गड़रियों द्वारा वनों के पारंपरिक उपयोग ने वन के पर्यावरण संतुलन को भी सुनिश्चित किया है। दूसरी तरफ वनों के प्रबंधन से स्थानीय लोगों को दूर रखने का हानिकारक प्रभाव वन की क्षति के रूप में सामने आ सकता है। वास्तव में वन संसाधनों का उपयोग इस प्रकार करना होगा कि यह पर्यावरण एवं विकास दोनों के हित में हो तथा नियन्त्रित दोहन का फायदा स्थानीय लोगों को प्राप्त हो।

प्रश्न 4.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप निम्न के प्रबंधन में क्या योगदान दे सकते हैं?
(a) वन एवं वन्य जंतु
(b) जल संसाधन
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम
उत्तर:
(a) वन एवं वन्य जंतु स्थानीय लोगों की भागीदारी के बिना वनों का प्रबंधन संभव नहीं है। इसका एक सुंदर उदाहरण अराबारी वन क्षेत्र है जहाँ एक बड़े क्षेत्र में वनों का पुनर्भरण संभव हो सका। अतः मैं लोगों की सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहूँगा। मैं संपोषित तरीके से संसाधन के समान वितरण पर जोर देना चाहूँगा ताकि इसका फायदा सिर्फ मुट्ठी भर अमीर एवं शक्तिशाली लोगों को ही प्राप्त न हो।
(b) जल संसाधन अपने दैनिक जीवन में हम जाने-अनजाने पानी की एक बहुत मात्रा का अपव्यय करते हैं जिसे निश्चित रूप से रोका जाना चाहिए। मैं यह सुनिश्चित करना चाहूँगा कि मुझमें ऐसी आदतों का विकास हो जिसके द्वारा पानी बचाना सम्भव हो सके। इसके अतिरिक्त किसी जल संभर तकनीकी की सहायता से भी जल को संरक्षित किया जा सकता है।
(c) कोयला एवं पेट्रोलियम वर्तमान में ये ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। इन्हें हम कई तरीकों से बचा सकते हैं।

उदाहरण के लिए –

  1. ट्यूबलाइट का उपयोग करके।
  2. अनावश्यक बल्ब तथा पंखों का स्विच बंद करके।
  3. सौर उपकरणों का उपयोग करके।
  4. वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल द्वारा छोटी दूरियाँ तय करके।
  5. यदि हम वाहन का प्रयोग करते हैं, तो जब हम रेड लाइट पर रुकते हैं तो हमें अपने वाहन के इंजन को बंद कर देना चाहिए।
  6. लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करके।
  7. वाहनों के टायरों में हवा का उपयुक्त दबाव रखकर।

प्रश्न 5.
अकेले व्यक्ति के रूप में आप विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत कम करने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों की खपत निम्नलिखित तरीकों से कम की जा सकती है –

  1. अनावश्यक बल्ब तथा पंखे बन्द करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  2. बल्ब की जगह हम ट्यूबलाइट का उपयोग कर सकते हैं।
  3. लिफ्ट की जगह सीढ़ी का इस्तेमाल करके हम बिजली की बचत कर सकते हैं।
  4. छोटी दूरियाँ तय करने के लिए हम वाहनों की जगह पैदल अथवा साइकिल का उपयोग करके पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  5. जब गाड़ियाँ रेड लाइट पर खड़ी होती हैं तो उनका इंजन बंद करके हम पेट्रोल की बचत कर सकते हैं।
  6. टपकने वाले नलों की मरम्मत कराकर हम पानी की बचत कर सकते हैं।
  7. हम भोजन को व्यर्थ में न फेंककर, भोजन की बचत कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
निम्न से संबंधित ऐसे पाँच कार्य लिखिए जो आपने पिछले एक सप्ताह में किए हैं –
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण।
(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है।
उत्तर:
(a) अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण –

  1. अनावश्यक पंखे एवं बल्ब को बंद करके हमने बिजली बचाई।
  2. वाहन की जगह पैदल चलकर हमने पेट्रोल बचाया।
  3. हमने टपकने वाले नल की मरम्मत कराकर पानी बचाया।
  4. हमने लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल कर बिजली बचाई।
  5. हमने चटनियों की खाली बोतल का उपयोग मसाले रखने के लिए किया।

(b) अपने प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव को और बढ़ाया है –

  1. दाढ़ी बनाते समय हमने पानी का अपव्यय किया है।
  2. मैं सो गया किंतु टेलीविजन चलता रहा।
  3. कमरे को गर्म रखने के लिए बिजली उपकरणों का उपयोग किया।
  4. ट्यूबलाइट की जगह बल्ब का उपयोग किया।
  5. अपना भोजन फेंका।

प्रश्न 7.
इस अध्याय में उठाई गई समस्याओं के आधार पर आप अपनी जीवन-शैली में क्या परिवर्तन लाना चाहेंगे जिससे हमारे संसाधनों के संपोषण को प्रोत्साहन मिल सके?
उत्तर:
हम अपनी जीवन शैली में तीन ‘R’ की संकल्पना को लागू करना चाहेंगे। ये तीन ‘R’ हैं-कम करना, पुनः चक्रण, पुनः उपयोग। ये संसाधनों के संपोषित उपयोग में हमारी मदद करते हैं।

Bihar Board Class 10 Science प्राकृतिक संसाधनों का संपोषित प्रबंधन Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन प्राकृतिक संसाधन नहीं है?
(a) जल
(b) वायु
(c) पर्वत
(d) कूड़ा-करकट
उत्तर:
(d) कूड़ा-करकट

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन प्राकृतिक संसाधन है?
(a) सीमेंट
(b) ईंट
(c) बाँध
(d) समुद्र
उत्तर:
(d) समुद्र

प्रश्न 3.
गंगा सफाई योजना कब प्रारंभ हुई थी?
(a) 1985 ई०
(b) 1955 ई०
(c) 2005 ई०
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1985 ई०

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प्रश्न 4.
कोलिफॉर्म समूह है –
(a) विषाणु का
(b) जीवाणु का
(c) प्रोटोजोआ का
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) जीवाणु का

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरो-1 तथा यूरो – II मानक क्या हैं?
उत्तर:
यूरो – I में ईंधन से मुक्त CO2 का उत्सर्जन स्तर 2.75 ग्राम/किमी तथा यूरो – II में यह स्तर 2.20 ग्राम/किमी है। इसके फलस्वरूप प्रदूषण स्तर में काफी कमी आ गई है।

प्रश्न 2.
वन संरक्षण हेतु सबसे उपयोगी विधि क्या हो सकती है?
उत्तर:
स्थानीय नागरिकों को वन संरक्षण का प्रबन्धन दिया जाना चाहिए, क्योंकि ये वन का संपोषित तरीके से उपयोग करते हैं।

प्रश्न 3.
किन्हीं दो वन उत्पाद आधारित उद्योगों के नाम बताइए।
उत्तर:
1. प्लाईवुड उद्योग में लकड़ी का उपयोग किया जाता है।
2. बीड़ी उद्योग में तेंदूपत्ता का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 4.
विभिन्न प्राकृतिक संसाधन कौन-से हैं?
उत्तर:
मृदा, जल, वायु, वन्य-जीव, कोयला, पेट्रोलियम आदि विभिन्न प्राकृतिक संसाधन हैं।

प्रश्न 5.
कोयला और पेट्रोलियम के उपयोग को कम करने के लिए दो उपाय बताइए।
उत्तर:
1. कोयला के उपयोग को कम करने के लिए हमें विद्युत की खपत पर नियन्त्रण रखना होगा।
2. पेट्रोलियम के उपयोग को कम करने के लिए सामुदायिक वाहनों के प्रयोग के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
‘खादिन’ या ‘ढोरा’ पद्धति किससे सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
खादिन या ढोरा पद्धति खेतों में बहने वाले वर्षा जल के संग्रहण पर आधारित प्रणाली हैं। इस जल का उपयोग फसल उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 7.
क्योटो प्रोटोकॉल समझौता क्या है?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड तथा हरित गैस उत्सर्जन स्तर में 1990 की तुलना में 5.2% कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में यह समझौता लागू किया गया था।

उत्तर 8.
पर्यटक किस प्रकार वन पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हैं?
उत्तर:
पर्यटक कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक की बोतलें, पॉलिथीन, टिन पैक आदि को इधर-उधर फेंककर वन पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। पर्यटकों को वन क्षेत्रों में लाने ले जाने के लिए प्रयोग किए जाने वाहनों से मुक्त विषाक्त गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।

प्रश्न 9.
अमृता देवी विश्नोई राष्ट्रीय पुरस्कार क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
अमृता देवी विश्नोई ने 1731 में ‘खेजरी वृक्षों’ को बचाने के लिए 363 व्यक्तियों के साथ स्वयं को बलिदान कर दिया था। उनकी स्मृति में जीव संरक्षण हेतु यह पुरस्कार दिया जाता है।

प्रश्न 10.
वन उत्पादों की एक सूची बनाइए।
उत्तर:
लकड़ी, बाँस, जड़ी-बूटी, औषधि, विभिन्न प्रकार के कन्द-मूल फल, मछली एवं पशुओं का चारा आदि।

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प्रश्न 11.
राष्ट्रीय उद्यानों में पशुओं को चराना किस प्रकार हानिकारक है?
उत्तर:
राष्ट्रीय उद्यानों में पशुओं को चराने से मिट्टी उखड़ जाती है, घास आदि कुचल जाती है। इससे मृदा अपरदन होने लगता है। इससे राष्ट्रीय उद्यान को क्षति होती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन विनियमन के अन्तर्राष्ट्रीय मानकों को प्राप्त करने के लिए हम किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन विनियमन हेतु निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं –

  • स्वचालित वाहन का उपयोग कम करें; यथासम्भव सामुदायिक वाहनों का उपयोग किया जाना चाहिए। चौराहों पर लाल बत्ती होने पर इंजन को बन्द कर दें। इंजन को समय-समय पर ट्यून कराते रहें।
  • छोटी दूरी तय करने के लिए पैदल चलें या साइकिल का प्रयोग करें।
  • विद्युत का उपयोग करते समय ध्यान रखें कि कम-से-कम और आवश्यकता के अनुरूप ही उपकरणों का प्रयोग हो। विद्युत उत्पादन के समय प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से CO2 का उत्सर्जन होता है।
  • वृक्षारोपण के लिए जनसामान्य को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
सार्वसूचक (universal indicator) की सहायता से अपने घर में आपूर्त पानी का pH ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
सार्वसूचक (universal indicator) एक pH सूचक है, जो pH के विभिन्न मान वाले विलयनों में विभिन्न रंग प्रदर्शित करता है। अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं। ये नीले लिटमस को लाल कर देते हैं। क्षारकों का स्वाद कडुवा होता है। यह लाल लिटमस को नीला कर देते हैं। लिटमस एक प्राकृतिक सूचक होता है। पानी के नमूनों को अलग-अलग परखनली या बीकर में लेते हैं, इनमें लिटमस कागज डालने पर कागज के रंग में आने वाले परिवर्तनों से पानी के नमूने की प्रकृति ज्ञात की जा सकती है। यदि रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो वह जल का नमूना उदासीन होता है। उदासीन जल का pH मान 7 होता है। pH मान 7 से कम होना अम्लीयता को और अधिक होना क्षारीयता को प्रदर्शित करता है।

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रंग और निष्कर्ष –
लाल – अत्यधिक अम्लीय
नारंगी – अम्लीय
नीला – क्षारीय
बैंगनी – अत्यधिक क्षारीय

प्रश्न 3.
वनों के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय निवासियों की क्या आवश्यकताएँ हैं?
उत्तर:
वनों के समीपवर्ती क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय निवासियों को जलाने के लिए लकड़ी, छाजन एवं आवास के लिए लकड़ी की अधिक आवश्यकता होती है। भोजन के भण्डारण के लिए कृषि उपकरणों, शिकार करने और मछली आदि पकड़ने के लिए औजार लकड़ी से बने होते हैं। स्थानीय निवासी वनों से कन्द, मूल, फल तथा औषधि प्राप्त करते हैं। अपने पालतु पशुओं को वनों में चराते हैं और वनों से ही पशुओं के लिए चारा प्राप्त करते हैं। वन क्षेत्र से ये भोजन हेतु जन्तु और मछली प्राप्त करते हैं। ये अपने दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएँ वन से प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न 4.
कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के विनियमन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानक का पता लगाइए।
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल में CO2 के उत्सर्जन के विनियमन के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मानकों की चर्चा की गई थी। इस समझौते के अनुसार औद्योगिक राष्ट्रों को अपने CO2 तथा अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन स्तर में 5.2% की कमी लाने के लिए कहा गया था। ऑस्ट्रेलिया एवं आइसलैण्ड के लिए यह मानक क्रमशः 8% तथा 10% निर्धारित किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल समझौता जापान के क्योटो शहर में दिसम्बर 1997 में हुआ था और इसे 16 फरवरी 2005 को लागू किया गया। दिसम्बर 2006 तक 169 देशों ने इस समझौते का अनुमोदन कर दिया था।

प्रश्न 5.
पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य प्राप्ति के लिए आप क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण को बचाने के लिए 3R तकनीक का उपयोग करके इस समस्या का प्रभावी समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं। जल, कोयला, पेट्रोलियम, विद्युत, धातु तथा अन्य अनेक प्राकृतिक संसाधनों का कम उपयोग (Reduce), पुनः चक्रण (Recyling) तथा पुन: उपयोग (Reuse) करके पर्यावरण संरक्षण कर सकते हैं।

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प्रश्न 6.
ऐसे क्षेत्रों की पहचान कीजिए जहाँ पर जल की प्रचुरता है तथा ऐसे क्षेत्रों की जहाँ इसकी बहुत कमी है।
उत्तर:
अत्यधिक वर्षा या जल की प्रचुरता वाले क्षेत्र जहाँ प्रतिवर्ष 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है महाराष्ट्र के तटीय क्षेत्र, गोआ, कर्नाटक, केरल, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश एवं असम आदि हैं। हल्की वर्षा वाले क्षेत्र अर्थात् जहाँ प्रतिवर्ष 50 से 100 सेमी वर्षा होती है ऊपरी गंगा घाटी, पूर्वी राजस्थान, हरियाणा एवं पंजाब के कुछ हिस्से, पश्चिमी राजस्थान, थार, कच्छ, पश्चिमी घाट के वर्षा-छाया क्षेत्र आदि हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“गंगा सफाई योजना”का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, इसके लिए सामाजिक जागरूकता लाना अनिवार्य है। गंगा सफाई योजना इसी दिशा में किया गया एक प्रयत्न है। प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन 345 जीवन दायिनि गंगा को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए यह योजना 1985 में प्रारम्भ की गई। कई करोड़ों की यह योजना गंगा जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रारम्भ हुई। गंगा हिमालय में स्थित अपने उद्गम गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी में गंगासागर तक 2500 किमी तक यात्रा करती है। इसके किनारे स्थित उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा बंगाल के 100 से अधिक नगरों का औद्योगिक कचरा इसमें मिलता जाता है, इसके फलस्वरूप इसका स्वरूप नाले के समान हो गया है।

इसके अतिरिक्त इसमें प्रचुर मात्रा में अपमार्जक (detergents), वाहितमल (sewage), मृत शवों का प्रवाह, मृत व्यक्तियों की राख आदि प्रवाहित किए जाते रहते हैं। इसके कारण इसका जल विषाक्त होने लगा है। विषाक्त जल के कारण अत्यधिक संख्या में मछलियाँ तथा अन्य जलीय जीव मर रहे हैं। कोलिफॉर्म जीवाणु का एक वर्ग है जो मानव की आँत में पाया जाता है। गंगाजल में इसकी उपस्थिति से जल प्रदूषण का स्तर प्रदर्शित होता है। गंगा सफाई योजना गंगा नदी और इसके जल को संदषित होने से बचाने के लिए प्रारम्भ की गई है।

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प्रश्न 2.
एक एटलस की सहायता से भारत में वर्षा के पैटर्न का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वर्षा ऋतु का आगमन प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी सिरे पर जून के प्रथम सप्ताह में मानसून से होता है। इसके पश्चात् मानसून दो शाखाओं में बँट जाता है-अरब सागर शाखा तथा बंगाल की खाड़ी शाखा। अरब सागर शाखा 10 जून तक मुम्बई पहुँच जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा तेजी से बढ़ती हुई जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुँच जाती है। पर्वत श्रृंखलाएँ इन मानसूनी हवाओं को पश्चिम की ओर गंगा के मैदानों के ऊपर मोड़ देती हैं। अरब सागर शाखा और बंगाल की खाड़ी शाखा गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिम भाग में एक- दूसरे से मिल जाती हैं।

मानसून दिल्ली में जून के अन्त में पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पूर्वी राजस्थान में जूलाई के प्रथम सप्ताह में और मध्य जुलाई तक शेष भारत में मानसून पहुँच जाता है। मानसून के वापस लौटने की शुरुआत सितम्बर माह के प्रथम सप्ताह में उत्तर पूर्वी राज्यों से होती है। मध्य अक्टूबर तक यह प्रायद्वीपीय भारत के उत्तरीय आधे हिस्से से लौट जाता है। यह क्रिया धीमी गति से होती है। इसके विपरीत भारत के दक्षिणी आधे भाग से मानसून बहुत तेजी से लौटता है। दिसम्बर के आरम्भ तक पूरे देश से मानसून प्राय: लौट जाता है। इसी के साथ भारत शीत लहर के प्रभाव में आ चुका होता है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण

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Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 15 हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण InText Questions and Answers

अनुच्छेद 15.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कारण है कि कुछ पदार्थ जैव निम्नीकरणीय होते हैं और कुछ अजैव निम्नीकरणीय?
उत्तर:
कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं जिन पर सूक्ष्म जीव अपना प्रभाव डालते हैं और उन्हें सरल पदार्थों में बदल देते हैं। सूक्ष्म जीवों का असर केवल कुछ पदार्थों पर ही होता है। अत: कुछ पदार्थ ही जैव निम्नीकरणीय होते हैं। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिन पर सूक्ष्म जीवों का असर नहीं होता और वे सरल पदार्थों में नहीं टूटते हैं। ऐसे पदार्थों को अजैव निम्नीकरणीय कहते हैं।

प्रश्न 2.
ऐसे दो तरीके सुझाइए जिनमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
1. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपघटित होकर दुर्गन्ध फैलाते हैं।
2. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ अपघटित होकर बहुत-सी विषैली गैसें वातावरण में मिलाते हैं जिससे वायु प्रदूषण फैलता है।

प्रश्न 3.
ऐसे दो तरीके बताइए जिनमें अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
1. अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ पर्यावरण में लंबे समय तक रहते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। ये पदार्थों के चक्रण में बाधा पहुँचाते हैं।
2. ऐसे बहुत-से पदार्थ जल प्रदूषण व भूमि प्रदूषण का कारण बनते हैं।

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अनुच्छेद 15.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
पोषी स्तर क्या हैं? एक आहार श्रृंखला का उदाहरण दीजिए तथा इसमें विभिन्न पोषी स्तर बताइए।
उत्तर:
किसी आहार श्रृंखला के विभिन्न चरणों या स्तरों को पोषी स्तर कहते हैं। आहार श्रृंखला का उदाहरण घास → हिरन → शेर इस आहार श्रृंखला में विभिन्न पोषी स्तर निम्नलिखित हैं –

  • प्रथम पोषी स्तर घास है। यह उत्पादक है।
  • द्वितीय पोषी स्तर हिरन है। यह प्रथम उपभोक्ता है। इसे शाकाहारी भी कहते हैं।
  • तृतीय पोषी स्तर शेर है। यह उच्च मांसाहारी है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र में अपमार्जकों की क्या भूमिका है?
उत्तर:
अपमार्जकों को प्राकृतिक सफाई एजेन्ट कहते हैं। अपमार्जकों का कार्य जैव निम्नीकरणीय पदार्थों पर होता है। ये उन पदार्थों को सरल पदार्थों में तोड़ते हैं। इस प्रकार अपमार्जक वातावरण में संतुलन बनाने का कार्य करते हैं तथा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

अनुच्छेद 15.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
ओजोन क्या है तथा यह किसी पारितंत्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
ओजोन ऑक्सीजन का एक अपररूप है। इसका एक अणु ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से मिलकर बना होता है। इसका अणुसूत्र 0 है। यह ऑक्सीजन के तीन अणुओं की सूर्य के प्रकाश (UV rays) की उपस्थिति में अभिक्रिया द्वारा बनती है।
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ओजोन पृथ्वी की सतह पर एक आवरण बनाती है जो पराबैंगनी विकिरणों से बचाती है। यह पराबैंगनी विकिरण हमारे लिए बहुत हानिकारक है। इस प्रकार यह पारितन्त्र को नष्ट होने से बचाती है।

प्रश्न 2.
आप कचरा निपटान की समस्या कम करने में क्या योगदान कर सकते हैं? किन्हीं दो तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. पदार्थ दो प्रकार के होते हैं – जैव निम्नीकरणीय तथा अजैव निम्नीकरणीय। इनमें से हमें जैव निम्नीकरणीय पदार्थों का अधिक उपयोग करना चाहिए।
2. जैव निम्नीकरणीय पदार्थों को खाद में बदल देना चाहिए तथा अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों को चक्रण के लिए फैक्टरी में भेज देना चाहिए।

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Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-से समूहों में केवल जैव निम्नीकरणीय पदार्थ हैं?
(a) घास, पुष्प तथा चमड़ा
(b) घास, लकड़ी तथा प्लास्टिक
(c) फलों के छिलके, केक एवं नींबू का रस
(d) केक, लकड़ी एवं घास
उत्तर:
(a), (c) और (d)

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन आहार श्रृंखला का निर्माण करते हैं?
(a) घास, गेहूँ तथा आम
(b) घास, बकरी तथा मानव
(c) बकरी, गाय तथा हाथी
(d) घास, मछली तथा बकरी
उत्तर:
(b) घास, बकरी तथा मानव

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन पर्यावरण-मित्र व्यवहार कहलाते हैं?
(a) बाजार जाते समय सामान के लिए कपड़े का थैला ले जाना
(b) कार्य समाप्त हो जाने पर लाइट (बल्ब) तथा पंखे का स्विच बंद करना
(c) माँ द्वारा स्कूटर से विद्यालय छोड़ने के बजाय तुम्हारा विद्यालय तक पैदल जाना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

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प्रश्न 4.
क्या होगा यदि हम एक पोषी स्तर के सभी जीवों को समाप्त कर दें (मार डालें)?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला के सभी पोषी स्तरों के जीव भोजन के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। यदि किसी एक पोषी स्तर के सभी जीव मार दिए जाएँ तो पूरी खाद्य श्रृंखला नष्ट हो जाएगी। ऐसा इसलिए होता है; क्योंकि इससे खाद्य श्रृंखला में ऊर्जा का प्रवाह रुक जाता है।

प्रश्न 5.
क्या किसी पोषी स्तर के सभी सदस्यों को हटाने का प्रभाव भिन्न-भिन्न पोषी स्तरों के लिए अलग-अलग होगा? क्या किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना संभव है?
उत्तर:
नहीं, सभी पोषी स्तरों के लिए प्रभाव अलग-अलग नहीं होता। यह सभी पर समान प्रभाव डालता है। किसी पोषी स्तर के जीवों को पारितंत्र को प्रभावित किए बिना हटाना सम्भव नहीं है। इनका हटाना पारितंत्र में विभिन्न प्रकार के प्रभाव डालता है तथा असंतुलन पैदा करता है।।

प्रश्न 6.
जैविक आवर्धन (biological magnification) क्या है? क्या पारितंत्र के विभिन्न स्तरों पर जैविक आवर्धन का प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होगा?
उत्तर:
जब कोई हानिकारक रसायन जैसे डी०डी०टी० किसी खाद्यशंखला में प्रवेश करता है तो इसका सांद्रण धीरे-धीरे प्रत्येक पोषी स्तर में बढ़ता जाता है। इस परिघटना को जैविक आवर्धन कहते हैं। इस आवर्धन का स्तर अलग-अलग पोषी स्तरों पर भिन्न-भिन्न होगा। जैसे –
जल → शैवाल/प्रोटोजोआ → मछली → मनुष्य 0.02ppm 5ppm 240ppm 1600 ppm
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प्रश्न 7.
हमारे द्वारा उत्पादित अजैव निम्नीकरणीय कचरे से कौन-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर:
अजैव निम्नीकरणीय कचरे के ढेर पर्यावरण में बहुत लंबे समय तक रहते हैं और नष्ट नहीं होते। अत: वे बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न करते हैं; जैसे –

  • ये जल प्रदूषण करते हैं जिससे जल पीने योग्य नहीं रहता।
  • ये भूमि प्रदूषण करते हैं जिससे भूमि की सुन्दरता नष्ट होती है।
  • ये नालियों में जल के प्रवाह को रोकते हैं।
  • ये वायुमंडल को भी विषैला बनाते हैं।

प्रश्न 8.
यदि हमारे द्वारा उत्पादित सारा कचरा जैव निम्नीकरणीय हो तो क्या इनका हमारे पर्यावरण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा?
उत्तर:
जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट लंबे समय तक नहीं रहते हैं। अतः उनका हानिकारक प्रभाव वातावरण पर पड़ता तो है पर केवल कुछ समय के लिए ही रहता है। ये पदार्थ लाभदायक पदार्थों में बदले जा सकते हैं तथा सरल पदार्थों में तोड़े जा सकते हैं। अतः हमारे वातावरण पर इनका भी प्रभाव पड़ता है लेकिन केवल कुछ समय तक ही रहता है।

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प्रश्न 9.
ओज़ोन परत की क्षति हमारे लिए चिंता का विषय क्यों है? इस क्षति को सीमित करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?
उत्तर:
ओजोन परत की क्षति हमारे लिए अत्यंत चिंता का विषय है क्योंकि यदि इसकी क्षति अधिक होती है तो अधिक-से-अधिक पराबैंगनी विकिरणें पृथ्वी पर आएँगी जो हमारे लिए निम्न प्रकार से हानिकारक प्रभाव डालती हैं –

  • इनका प्रभाव त्वचा पर पड़ता है जिससे त्वचा के कैंसर की संभावना बढ़ जाती है।
  • पौधों में वृद्धि दर कम हो जाती है।
  • ये सूक्ष्म जीवों तथा अपघटकों को मारती हैं इससे पारितंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • ये पौधों में पिगमेंटों को नष्ट करती हैं।

ओजोन परत की क्षति कम करने के उपाय –

  • एरोसोल तथा क्लोरोफ्लोरो कार्बन यौगिक का कम-से-कम उपयोग करना।
  • सुपर सोनिक विमानों का कम-से-कम उपयोग करना।
  • संसार में नाभिकीय विस्फोटों पर नियंत्रण करना।

Bihar Board Class 10 Science हमारा पर्यावरण Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पर्यावरण के कितने घटक होते हैं?
(a) एक
(b) दो
(c) तीन
(d) चार
उत्तर:
(b) दो

प्रश्न 2.
निम्न में से पारितन्त्र के प्रमुख घटक हैं –
(a) जैविक घटक
(b) अजैविक घटक
(c) (i) व (ii) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (i) व (ii) दोनों

प्रश्न 3.
पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को कहते हैं –
(a) स्थलमण्डल
(b) जलमण्डल
(c) (i) व (ii) दोनों
(d) वायुमण्डल
उत्तर:
(d) वायुमण्डल

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प्रश्न 4.
अमोनियम आयन को नाइट्रेट में बदलने की क्रिया को कहते हैं –
(a) अमोनीकरण
(b) नाइट्रीकरण
(c) विनाइट्रीकरण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नाइट्रीकरण

प्रश्न 5.
मिट्टी में उपस्थित नाइट्रेट तथा अमोनिया को स्वतन्त्र नाइट्रोजन में बदलने की क्रिया को कहते हैं –
(a) विनाइट्रीकरण
(b) नाइट्रीकरण
(c) अमोनीकरण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a)विनाइट्रीकरण

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारितन्त्र में कौन-कौन से घटक हैं? पारितन्त्र में आप खरगोश को कहाँ रखेंगे?
उत्तर:
पारितन्त्र में मुख्यत: दो प्रकार के घटक होते हैं- जैवीय घटक तथा अजैवीय घटक। खरगोश एक जैवीय घटक है। शाकाहारी खरगोश प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता होता है।

प्रश्न 2.
जैव समुदाय तथा अजैव वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अजैव जगत से विभिन्न अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ जैव जगत में प्रवेश करते हैं। जीवधारियों के शरीर में पाए जाने वाले विभिन्न कार्बनिक पदार्थ मृत्यु उपरान्त मृदा में मिल जाते हैं। अपघटक जटिल कार्बनिक पदार्थों का विघटन कर देते हैं जिससे इनका पुनः उपयोग हो सके।

प्रश्न 3.
हरे पौधों को उत्पादक क्यों कहा जाता है? कुकुरमुत्ता ऊर्जा कैसे प्राप्त करता है?
उत्तर:
हरे पौधे अकार्बनिक पदार्थों से कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संश्लेषण करते हैं; अतः इन्हें उत्पादक कहते हैं। कुकुरमुत्ता मृत कार्बनिक पदार्थों का विघटन करके ऊर्जा प्राप्त करता है।

प्रश्न 4.
जन्तु स्वपोषी क्यों नहीं होते?
उत्तर:
जन्तुओं में पर्णहरिम नहीं पाया जाता (यूग्लीना को छोड़कर); अत: जन्तु अपना भोजन स्वयं नहीं बना पाते और भोजन के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से पौधों पर निर्भर रहते हैं।

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प्रश्न 5.
बैक्टीरिया तथा कवक का पारितन्त्र में क्या कार्य है?
या किन्हीं दो अपघटकों के नाम लिखिए और स्पष्ट कीजिए कि ये किस प्रकार हमारे लिए लाभदायक हैं?
उत्तर:
बैक्टीरिया तथा कवक पारितन्त्र में अपघटक (decomposer) का कार्य करते हैं अर्थात् ये कार्बनिक पदार्थों को उनके अवयवों में तोड़कर विभिन्न पदार्थों के चक्रीय प्रवाह को बनाए रखते हैं।

प्रश्न 6.
किन-किन प्रमुख स्त्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होकर वायुमण्डल में पहुँचती है?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड जीवधारियों के द्वारा श्वसन के अतिरिक्त पदार्थों के जलने से, विभिन्न चट्टानों (कार्बोनेट्स) के ऑक्सीकृत होने से, जीवाणु एवं कवक आदि के द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से तथा ज्वालामुखी के फटने आदि से वायुमण्डल में पहुँचती है।

प्रश्न 7.
पौधे नाइट्रोजन को किस रूप में ग्रहण करते हैं?
उत्तर:
पौधे नाइट्रोजन को सरल यौगिकों; जैसे-नाइट्रेट्स के रूप में ग्रहण करते हैं।

प्रश्न 8.
दो नाइट्रोजनकारी जीवाणुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
1. नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas) ये जीवाणु अमोनिया को नाइट्राइट में बदल देते हैं।
2. नाइट्रोबैक्टर (Nitrobactor) ये जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट्स में बदल देते हैं।

प्रश्न 9.
जैव आवर्धन क्या है? अजैव विकृतीय रसायन द्वारा जैव आवर्धन किस प्रकार होता
उत्तर:
कुछ अजैव विकृतीय रसायन; जैसे – डी०डी०टी० हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं तथा जीवों के अंगों में प्रत्येक स्तर पर प्रभाव डालते हैं तथा उनमें मात्रा में वृद्धि के साथ संचित हो जाते हैं। इसको जैव आवर्धन कहते हैं।

प्रश्न 10.
प्रदूषक किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह पदार्थ या कारक जिसके कारण वायु, भूमि तथा जल के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक लक्षणों में अवांछित परिवर्तन हो, प्रदूषक कहलाता है।

प्रश्न 11.
प्रदूषण की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
वायु, जल तथा भूमि में उन अवांछित और अत्यधिक पदार्थों का इकट्ठा हो जाना जिनसे प्राकृतिक पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन आ जाते हैं, प्रदूषण कहलाता है।

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प्रश्न 12.
पर्यावरणीय प्रदूषण क्या होता है? मानव के लिए हानिकर अजैव निम्नीकरणीय तीन प्रदूषकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वायु, जल तथा भूमि में उन अवांछित अत्यधिक पदार्थों का एकत्रित हो जाना, जिनसे प्राकृतिक पर्यावरण में प्रतिकूल परिवर्तन आ जाते हैं, पर्यावरणीय प्रदूषण कहलाता है।
अजैव निम्नीकरणीय –

  • कीटनाशी तथा पीड़कनाशी
  • प्लास्टिक तथा
  • रेडियोऐक्टिव अपशिष्ट पदार्थ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवमण्डल की परिभाषा दीजिए। जीवमण्डल के कौन-से तीन प्रमुख भाग हैं?
उत्तर:
जीवमण्डल स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल का वह क्षेत्र जिसमें जीवधारी पाए जाते हैं जीवमण्डल कहलाता है। जीवमण्डल में ऊर्जा तथा पदार्थों का निरन्तर आदान-प्रदान जैविक तथा अजैविक घटकों के मध्य होता रहता है। जीवमण्डल का विस्तार लगभग 14-15 किमी होता है। वायुमण्डल में 7-8 किमी ऊपर तक तथा समुद्र में 6-7 किमी गहराई तक जीवधारी पाए जाते हैं।

हमारा पर्यावरण 329 जीवमण्डल के तीन प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं –
1. स्थलमण्डल (Lithosphere):
यह पृथ्वी का ठोस भाग है। इसका निर्माण चट्टानों, मृदा, रेत आदि से होता है। पौधे अपने लिए आवश्यक खनिज लवण मृदा से घुलनशील अवस्था में ग्रहण करते हैं।

2. जलमण्डल (Hydrosphere):
स्थलमण्डल पर उपस्थित तालाब, कुएँ, झील, नदी, समुद्र आदि मिलकर ‘जलमण्डल’ बनाते हैं। जलीय जीवधारी अपने लिए आवश्यक खनिज जल से प्राप्त करते हैं। जल जीवन के लिए अति महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवद्रव्य का अधिकांश भाग बनाता है। पौधे जड़ों के द्वारा या शरीर सतह से जल ग्रहण करते हैं। जन्तु जल को भोजन के साथ ग्रहण करते हैं तथा आवश्यकतानुसार इसकी पूर्ति जल पीकर भी करते हैं।

3. वायुमण्डल (Atmosphere):
पृथ्वी के चारों ओर स्थित गैसीय आवरण को वायुमण्डल कहते हैं। वायुमण्डल में विभिन्न गैसें सन्तुलित मात्रा में पाई जाती हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में अन्तर लिखिए –

  1. उत्पादक तथा उपभोक्ता
  2. स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल
  3. पारिस्थितिक तन्त्र तथा जीवोम
  4. समष्टि तथा समुदाय।

उत्तर:

1. उत्पादक तथा उपभोक्ता में अन्तर –
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2. स्थलमण्डल तथा वायुमण्डल में अन्तर –
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3. पारिस्थितिक तन्त्र तथा जीवोम या बायोम में अन्तर –
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4. समष्टि तथा समुदाय में अन्तर –
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प्रश्न 3.
हरे पौधों द्वारा सूर्य-प्रकाश ऊर्जा को किस प्रकार की ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है? उस प्रक्रम का भी नाम लिखिए जिसके द्वारा हरी वनस्पतियाँ सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसको जैव उपयोगी ऊर्जा में रूपान्तरित करती हैं।
उत्तर:
हरे पौधों द्वारा सूर्य-प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है। हरी वनस्पतियाँ प्रकाश संश्लेषण द्वारा सौर ऊर्जा को ग्रहण कर उसको जैव उपयोगी रासायनिक ऊर्जा में रूपान्तरित करके कार्बनिक भोज्य पदार्थों में संचित करती हैं।
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पर्णहरिम इस क्रिया में प्रकाश की गतिज ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होकर भोजन (ग्लूकोज) के रूप में संचित हो जाती है।

प्रश्न 4.
कीटनाशक DDT के प्रयोग को हतोत्साहित किया जा रहा है क्योंकि यह मानव शरीर में पाया गया है। किस प्रकार यह रसायन शरीर के अन्दर प्रवेश करता है?
उत्तर:
DDT अजैव निम्नीकरणीय प्रदूषक है। यह लम्बे समय तक वातावरण और मृदा में विषाक्तता को बनाए रखता है। यह मृदा से वनस्पतियों द्वारा अवशोषित किया जाता है तथा पशुओं और मानव द्वारा वनस्पतियों के उपयोग करने पर उनके शरीर में प्रवेश करता है। पशुओं का उपभोग करने पर यह मनुष्यों के शरीर में पहुँच जाता है।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित को उदाहरण सहित समझाइए
1. अम्ल वर्षा
2. ओजोन की न्यूनता
उत्तर:
1. अम्ल वर्षा अम्ल वर्षा वायु में उपस्थित नाइट्रोजन तथा सल्फर के ऑक्साइड के कारण होती है। ये गैसीय ऑक्साइड वर्षा के जल के साथ मिलकर क्रमश: नाइट्रिक अम्ल तथा सल्फ्यूरिक अम्ल बनाते हैं। वर्षा के साथ ये अम्ल भी पृथ्वी पर नीचे आ जाते हैं। इसे ही अम्ल वर्षा या अम्लीय

पारितन्त्र के निम्नलिखित दो प्रमुख घटक होते है –
(I) सजीव या जैविक घटक समस्त जन्तु एवं पौधे जीवमण्डल में जैविक घटक के रूप में पाए जाते हैं। जैविक घटक को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
1. उत्पादक Producers हरे प्रकाश संश्लेषी पौधे उत्पादक कहलाते हैं। प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में पौधे कार्बन डाइऑक्साइड एवं पानी की सहायता से प्रकाश एवं पर्णहरिम की उपस्थिति में ग्लूकोज का निर्माण करते हैं। ग्लूकोज अन्य भोज्य पदार्थों (प्रोटीन, मण्ड व वसा) में परिवर्तित हो जाता है, जिसको जन्तु भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
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2. उपभोक्ता (Consumers) जन्तु पौधों द्वारा बनाए गए भोजन पर आश्रित रहते हैं, इसलिए जन्तुओं को उपभोक्ता कहते हैं। कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज तत्व हमारे भोजन के अवयव हैं जो अनाज, बीज, फल, सब्जी आदि से प्राप्त होते हैं। ये सभी पौधों की ही देन हैं। कुछ जन्तु मांसाहारी होते हैं जो अपना भोजन शाकाहारी जन्तुओं का शिकार करके प्राप्त
करते हैं।

उपभोक्ता निम्न प्रकार के होते हैं –
(i) प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता: (Primary consumers) ये शाकाहारी होते हैं। इसके अन्तर्गत वे जन्तु आते हैं जो अपना भोजन सीधे हरे पौधों से प्राप्त करते हैं; जैसे – खरगोश, बकरी, टिड्ढा, चूहा, हिरन, भैंस, गाय, हाथी आदि।

(ii) द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता या मांसाहारी:  (Secondary consumers or Carnivores) ये मांसाहारी होते हैं एवं प्राथमिक उपभोक्ताओं या शाकाहारी प्राणियों का शिकार करते हैं; जैसे – सर्प, मेढक, गिरगिट, छिपकली, मैना पक्षी, लोमड़ी, भेड़िया, बिल्ली आदि।

(iii) तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता या तृतीयक उपभोक्ता: (Tertiary consumers) इसमें द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ताओं को खाने वाले जन्तु आते हैं; जैसे – सर्प मेढक का शिकार करते हैं, बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों का शिकार करती हैं, चिड़ियाँ मांसाहारी मछलियों का शिकार करती हैं। कुछ जन्तु एक से अधिक श्रेणी के उपभोक्ता हो सकते हैं (जैसे – बिल्ली, मनुष्य आदि)। ये मांसाहारी एवं शाकाहारी दोनों होते हैं; अत: ये सर्वभक्षी (omnivore) कहलाते हैं।

3. अपघटनकर्ता या अपघटक (Decomposers) ये जीवमण्डल के सूक्ष्म जीव हैं;
जैसे-जीवाणु व कवक। ये उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के मृत शरीर को सरल यौगिकों में अपघटित कर देते हैं। ऐसे जीवों को अपघटक (decomposers) कहते हैं। ये विभिन्न कार्बनिक पदार्थों को उनके सरल अवयवों में तोड़ देते हैं। सरल पदार्थ पुनः भूमि में मिलकर पारितन्त्र के अजैव घटक का अंश बन जाते हैं।

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(II) निर्जीव या अजैविक घटक इसके अन्तर्गत निर्जीव वातावरण आता है, जो विभिन्न जैविक घटकों का नियन्त्रण करता है। अजैव घटक को निम्नलिखित तीन उप-घटकों में विभाजित किया गया है।
1. अकार्बनिक: (Inorganic) इसके अन्तर्गत पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, लोहा, सल्फर आदि के लवण, जल तथा वायु की गैसें; जैसे-ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, अमोनिया आदि; आती हैं।

2. कार्बनिक: (Organic) इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा आदि सम्मिलित हैं। ये मृतक जन्तुओं एवं पौधों के शरीर से प्राप्त होते हैं। अकार्बनिक एवं कार्बनिक भाग मिलकर निर्जीव वातावरण का निर्माण करते हैं।

3. भौतिक घटक: (Physical components) इसमें विभिन्न प्रकार के जलवायवीय कारक; जैसे-वायु, प्रकाश, ताप, विद्युत आदि; आते हैं। वर्षा (acid rain) कहते हैं। इसके कारण अनेक ऐतिहासिक भवनों, स्मारकों, मूर्तियों का संक्षारण हो जाता है जिससे उन्हें काफी नुकसान पहुँचता है। अम्लीय वर्षा के कारण, मृदा भी अम्लीय हो जाती है जिससे धीरे-धीरे उसकी उर्वरता कम हो जाती है। इस कारण वन तथा कृषि उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

2. ओजोन की न्यूनता रेफ्रीजरेटर, अग्निशमन यन्त्र तथा ऐरोसॉल स्प्रे में उपयोग किए जाने वाले क्लोरो-फ्लुओरो कार्बन (CFC) से वायुमण्डल में ओजोन परत का ह्रास होता है। हानियाँ ओजोन परत में ह्रास के कारण सूर्य से पराबैंगनी (UV) किरणें अधिक मात्रा में पृथ्वी पर पहुँचती हैं। पराबैंगनी विकिरण से आँखों तथा प्रतिरक्षी तन्त्र को नुकसान पहुंचता है। इससे त्वचा का कैंसर भी हो जाता है। ओजोन परत के ह्रास के कारण वैश्विक वर्षा, पारिस्थितिक असन्तुलन तथा वैश्विक खाद्यान्नों की उपलब्धता पर भी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 6.
ग्रीन हाउस प्रभाव पर टिप्पणी लिखिए। या पृथ्वी ऊष्मायन पर टिप्पणी लिखिए। या भूमण्डलीय ऊष्मायन के लिए उत्तरदायी चार कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
CO2 की बढ़ती सान्द्रता ग्रीन हाउस प्रभाव सूर्य की किरण डालती है। आमतौर पर जब CO2 की सान्द्रता सामान्य हो तब पृथ्वी का ताप तथा ऊर्जा का ग्रीन हाउस गैसें सन्तुलन बनाए रखने के लिए ऊष्मा पृथ्वी से परावर्तित हो जाती है, परन्तु CO2 की अधिक सान्द्रता पृथ्वी से लौटने वाली ऊष्मा को परावर्तित होने से रोकती है जिससे पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने लगती है, इसको ग्रीन हाउस प्रभाव (green house effect) कहते हैं। इसके अलावा कुछ ऊष्मा पर्यावरण में उपस्थित पानी की भाप से भी रुकती है।
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लगभग 100 वर्ष पहले CO2 की पर्यावरण में सान्द्रता लगभग 110 ppm थी, परन्तु अब बढ़कर लगभग 350 ppm तक पहुँच गई है। आज से करीब 40 वर्ष बाद यह सान्द्रता 450 ppm तक पहुँच जाने की सम्भावना है। इससे पृथ्वी के ऊष्मायन में वृद्धि हो सकती है। पृथ्वी के ऊष्मायन का प्रभाव ध्रुवों पर सबसे अधिक होगा, इनकी बर्फ पिघलने लगेगी। एक अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक पृथ्वी का ताप 5°C तक बढ़ सकता है जिससे समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्र शंघाई, सेन फ्रान्सिस्को आदि शहर प्रभावित होंगे।

उत्तरी अमेरिका सूखा तथा गर्म प्रदेश बन सकता है। विश्वभर का मौसम बदल जाएगा। भारत में मानसून के समाप्त होने की सम्भावना है। विश्वभर में अनाज के उत्पादन पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। फल, सब्जी आदि के उत्पादन भी प्रभावित होंगे। बढ़ते ताप से पादप तथा जीव-जन्तुओं की जीवन क्रियाएँ भी प्रभावित होंगी।

प्रश्न 7.
जल किस प्रकार प्रदूषित होता है?
उत्तर:

  1. जल स्रोत के निकट बिजली घर, भूमिगत कोयला खदानों तथा तेल के कुओं से प्रदूषक सीधे जल में पहुँचकर उसे प्रदूषित करते हैं।
  2. जल में कैल्सियम या मैग्नीशियम के यौगिकों का घुलकर प्रदूषित करना।
  3. जल में तेल, भारी धातुएँ, घरेलू कचरा, अपमार्जक, रेडियोधर्मी कचरा आदि उसको प्रदूषित करते हैं।
  4. खेतों, बगीचों, निर्माण स्थलों, गलियों आदि से बहने वाला जल भी प्रदूषित होता है।
  5. प्रोटोजोआ, जीवाणु तथा अन्य रोगाणु जल को प्रदूषित करते हैं।

प्रश्न 8.
सुपोषण (eutrophication) क्या होता है? इसके हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल में मल-मूत्र के अत्यधिक बहाव से जल प्लवकों की वृद्धि होती है। इनकी अत्यधिक संख्या से जल में विलेय ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। जल प्लवकों के मर जाने पर उनके सड़ने के कारण भी जल में घुली अधिकांश ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आ जाती है। अतः पोषकों का अत्यधिक संभरण तथा शैवालों की वृद्धि या फलने-फूलने के फलस्वरूप जल में ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आने की प्रक्रिया को सुपोषण (eutrophication) कहते हैं। जल में घुली ऑक्सीजन की कमी तथा विषैले औद्योगिक कचरे के प्रभाव से मछलियों की संख्या में कमी आ जाती है। मछली हमारे भोजन का एक स्रोत है। सुपोषण से अलवणीय जल में रहने वाले अन्य जन्तु भी प्रभावित होते है।

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प्रश्न 9.
मृदा अपरदन क्या है? इसके कारण तथा प्रभाव क्या हैं? इसे किस प्रकार रोका जा सकता है?
उत्तर:
मृदा अपरदन प्राकृतिक कारक; जैसे-जल तथा वायु मृदा की ऊपरी परत को हटाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रक्रम को मृदा अपरदन (soil erosion) कहते हैं। कारण

  1. तीव्र वर्षा मिट्टी की अनावृत ऊपरी परत को बहा ले जाती है।
  2. धूल भरी आँधी से भी मृदा अपरदन होता है।
  3. मनुष्य के क्रियाकलापों से मृदा अपरदन होता है।मनुष्य द्वारा बढ़ते आवासों तथा शहरी क्षेत्रों के विकास से बहुत बड़े क्षेत्र वनस्पतिविहीन हो गए हैं। वनस्पति का आवरण हट जाने से नग्न भूमि पर वायु तथा जल का सीधा प्रभाव पड़ता है। इससे मृदा का अपरदन होता है।
  4. भूमि की त्रुटिपूर्ण जुताई से भी मृदा अपरदन होता है।

प्रभाव इसके निम्नलिखित हानिकारक प्रभाव होते हैं –

  1. मृदा अपरदन से हरे जंगल मरुस्थलों में बदल जाते हैं, जिससे पर्यावरण सन्तुलन बिगड़ जाता
  2. इससे फसल ठीक प्रकार से नहीं होती है, जिससे भोजन की कमी हो सकती है।
  3. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन से भूस्खलन हो सकता है।
  4. इससे भूमि जल धारण नहीं कर सकती है। पानी के तीव्रता से नदियों में बह जाने से बाढ़ आ सकती है। इससे जान-माल का नुकसान हो सकता है। रोकने के उपाय इसके लिए हम

निम्नलिखित विधियों का प्रयोग करते हैं –

  1. वृक्षारोपण तथा घास उगाकर।।
  2. सघन खेती तथा बहाव के लिए ठीक नालियाँ बनाकर।
  3. ढलवाँ स्थानों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाने से जल बहाव की गति कम हो जाती है।

प्रश्न 10.
रेडियोधर्मी प्रदूषण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
रेडियोधर्मी प्रदूषण रेडियोधर्मी पदार्थों से पर्यावरण में विभिन्न प्रकार के कण और किरणें उत्पन्न होती हैं। परमाणु विस्फोटों, ऊर्जा उत्पादन केन्द्रों तथा आण्विक परीक्षणों से पर्यावरण में रेडियोधर्मिता बढ़ने का खतरा

प्रश्न 2.
खाद्य-श्रृंखला से आप क्या समझते हैं? खाद्य-श्रृंखला तथा खाद्य-जाल में क्या अन्तर है? उचित उदाहरणों की सहायता से समझाइए।
उत्तर:
खाद्य-श्रृंखला किसी भी पारिस्थितिक तन्त्र में अनेक ऐसे जीव होते हैं जो एक-दूसरे को खाकर (उपभोग करके) अपनी आहार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। किसी पारिस्थितिक तन्त्र में एक जीव द्वारा दूसरे जीव को खाने (उपभोग करने) की क्रमबद्ध प्रक्रिया को खाद्य श्रृंखला या आहार-श्रृंखला कहते हैं। किसी पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला विभिन्न प्रकार के जीवधारियों का वह क्रम है, जिसमें जीवधारी भोज्य एवं भक्षक के रूप में सम्बन्धित रहते हैं और इनमें होकर खाद्य-ऊर्जा का प्रवाह एक ही दिशा (unidirectional) में होता रहता है।

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प्राथमिक उत्पादक (हरे पौधे); प्रथम, द्वितीय व तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता एवं अपघटनकर्ता (कवक एवं जीवाणु) आपस में मिलकर खाद्य-श्रृंखला का निर्माण करते हैं, क्योंकि ये आपस में एक-दूसरे का भक्षण करते हैं और भक्षक या भोज्य के रूप में सम्बन्धित रहते हैं। आहार-श्रृंखला में ऊर्जा व रासायनिक पदार्थ उत्पादक, उपभोक्ता, अपघटनकर्ता व निर्जीव प्रकृति में क्रम से प्रवेश करते रहते हैं।
खाद्य-श्रृंखला को निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है –
1. घास स्थलीय पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम –
(i) घास → हिरन – शेर
(ii) घास कीड़े-मकोड़े → चिड़िया → बाज → गिद्ध
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2. तालाब के पारिस्थितिक तन्त्र में खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का क्रम उत्पादक → प्रथम श्रेणी के उपभोक्ता → द्वितीय श्रेणी के उपभोक्ता → तृतीय श्रेणी के उपभोक्ता → उच्च मांसाहारी
(i) हरे पौधे (पादप प्लवक) → कीड़े-मकोड़े (जन्तु प्लवक) → मेढक → साँप → बाज
(ii) शैवाल (पादप प्लवक) → जलीय पिस्सू (जन्तु प्लवक) → छोटी मछली → बड़ी मछली → बगुला, बतख, सारस
आहार-श्रृंखला के विभिन्न स्तरों पर भोजन (ऊर्जा) का स्थानान्तरण होता है। इन स्तरों को ‘पोषण रीति’ या ‘पोषण स्तर’ (trophic level) कहते हैं।
खाद्य-जाल:
प्रकृति में खाद्य-शृंखला एक सीधी कड़ी के रूप में नहीं होती है। एक पारिस्थितिक तन्त्र की सभी खाद्य-शृंखलाएँ कहीं-न-कहीं आपस में सम्बन्धित होती हैं अर्थात् एक खाद्य-श्रृंखला के जीवधारियों का सम्बन्ध दूसरी खाद्य-शृंखलाओं के जीवधारियों से होता है। इस प्रकार, अनेक खाद्य-शृंखलाओं (food-chains) के पारस्परिक सम्बन्ध को खाद्य-जाल (food-web) कहते हैं।
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हमारा पर्यावरण खाद्य-श्रृंखला एवं खाद्य-जाल में अन्तर –
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Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 3 समानता

Bihar Board Class 11 Political Science समानता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कुछ लोगों का तर्क है कि असमानता प्राकृतिक है जबकि कुछ अन्य का कहना है कि वास्तव में समानता प्राकृतिक है और जो असमानता हम चारों ओर देखते हैं उसे समाज ने पैदा किया है। आप किस मत का समर्थन करते हैं? कारण दीजिए।
उत्तर:
ये दोनों दृष्टिकोण सही प्रतीत होते हैं। यह कि अमानता प्राकृतिक है और समानता भी प्राकृतिक है। इस दृष्टिकोण के बिन्दु को इस प्रकार समझा जा सकता है। इन दोनों अवधारणाओं में भिन्नता है परंतु स्थान विशेष पर दोनों सत्य हो सकती हैं। प्राकृतिक असमानता कहीं सही हो सकती है तो कहीं गलत। यह वैसे ही है जैसे कहीं रात होती है, तो कहीं दिन।

इस प्रकार कहीं गर्म होता है तो कहीं ठंडा, कुछ स्थान पर भूमि समतल होती है तो कुछ स्थानों पर पहाड़ी होती है। कहीं सुबह होती है तो कहीं शाम होती है। इसी प्रकार एक आदमी काला हो सकता है तो दूसरा गोरा हो सकता है, एक व्यक्ति लम्बा हो सकता है तो दूसरा ठीगना हो सकता है। इसी प्रकार व्यक्ति में भी जैविक असमानता मिलती है यथा कुछ लोग पुरुष होते हैं तो दूसरे स्त्री हो सकती हैं। इन दोनों में जैविक असमानताएँ होती हैं।

प्रकृति ने भी व्यक्ति को योग्यताओं और क्षमताओं में समान बनाया है और प्रत्येक व्यक्ति समान होना चाहता है। समानता एक प्राकृतिक शर्त भी है परंतु समानता पूर्ण दृष्टिकोण है, सामूहिक दृष्टिकोण में सम्भव नहीं है। इसलिए समानता का अर्थ समाज के सामाजिक – आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर निकाला जा सकता है। समानता की आवश्यकता व्यक्ति के रहने पर पर्यावरणीय प्रभाव में सुनिश्ति किया जा सकता है। यहाँ तक कि असमान दशा को भी समझा जा सकता है। व्यक्ति द्वारा निर्मित अन्यायपूर्ण समानता को हटाया नहीं जा सकता एक डॉक्टर के काम और मजदूर के काम में अंतर स्वाभाविक है।

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प्रश्न 2.
एक मत है कि पूर्ण आर्थिक समानता न तो संभव है और न ही वांछनीय। एक समाज ज्यादा से ज्यादा बहुत अमीर और बहुत लोगों के बीच की खाई को कम करने का प्रयास कर सकता है। क्या आप इस तर्क से सहमत हैं? अपना तर्क दीजिए।
उत्तर:
हम इस कथन से कारणों सहित सहमत हैं कि पूर्ण समानता न तो सम्भव है और न ही ऐच्छिक है। इस सम्बन्ध में डाक्टर और मजदूर की उदाहरण ले सकते हैं। एक डाक्टर और एक मजदूर को समान पारिश्रमिक (Wages) न तो सम्भव है और न ऐच्छिक है, क्योंकि डाक्टर ने अधिक निवेश करके अपनी क्षमताओं और योग्यताओं को बढ़ाया है। यही नहीं, डाक्टर का उत्तरदायित्व और कार्य मजदूर के उत्तरदायित्व और कार्य से अधिक होता है।

एक डाक्टर को 10 हजार रुपये प्रतिमाह का भुगतान किया जाता है। यह आशा नहीं की जा सकती कि एक मजदूर को 10000 रुपये प्रतिमाह का भुगतान किया जाय। उसकी न्यायसंगत मजदूरी 3000 रुपये प्रतिमाह हो सकती है इसलिए यहाँ दोनों के पारिश्रमिक में 7000 रुपये प्रतिमाह का अंतर है।

इसकी आलोचना नहीं होनी चाहिए और इसे समानता के रूप में स्वीकार करना चाहिए। यदि दो मजदूरों में पुरुष मजदूर को 3000 रुपये प्रतिमाह और दूसरे स्त्री मजदूर को 1000 रुपये प्रतिमाह दिया जाता है, तो उस स्थिति को व्यक्ति निर्मित असमानता कहा जा सकता है। यह समानता का अलगाव भी है जो लिंग (Sex) के आधार पर किया जाता है।

सभी व्यक्ति अत्यधिक धनी या अत्यधिक गरीब नहीं हो सकते। यह कल्पना नहीं किया जा सकता कि सभी व्यक्ति महलों में रह सकते हैं या सभी व्यक्ति बिना किसी आवश्यकता के झोपड़ियों में रह सकते हैं। समानता सापेक्षिक शर्त के रूप में होनी चाहिए जिसमें सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। योग्यताओं एवं क्षमताओं के विकास और जीवन की आवश्यकताओं पर ही पूर्ति होनी चाहिए।

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प्रश्न 3.
नीचे दी गई अवधारणा और उसके उचित उदाहरणों में मेल बैठायें।
Bihar Board Class 11 Political Science Chapter 3 समानता Part - 1 Image 1
उत्तर:
(क) – (ii)
(ख) – (iii)
(ग) – (i)

प्रश्न 4.
किसानों की समस्या से संबंधित एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार छोटे और सीमांत किसानों को बाजार से अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। रिपोर्ट में सलाह दी गई कि सरकार को बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। लेकिन यह प्रयास केवल लघु और सीमांत किसानों तक ही सीमित रहना चाहिए।.क्या यह सलाह समानता के सिद्धांत से संभव है?
उत्तर:
यह तथ्य स्पष्ट रूप से समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है और समानता के सिद्धांत से मेल नहीं खाता। क्योंकि विभिन्न लोगों के लिए दो नीतियों नहीं अपनाई जा सकतीं। एक छोटे और सीमांकित किसानों के लिए और दूसरी बड़े और धनी किसानों के दो नीतियाँ हो जाती हैं। यदि लघु किसान अपनी उपज की अच्छी कीमत नहीं प्राप्त कर रहे हैं, तो इसका कारण भिन्न हो सकता है। लघु और सीमांकित किसानों की कुछ स्वीकृत कार्यों यथा-उच्च रियायत (Subsidiary) और निम्न ब्याज वाले ऋण देकर उनकी सहायता की जा सकती है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से किस में समानता के किस सिद्धांत का उल्लंघन होता है और क्यों?
(क) कक्षा का हर बच्चा नाटक का पाठ अपना क्रम आने पर पढ़ेगा।
(ख) कनाडा सरकार ने दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से 1960 तक यूरोप के श्वेत नागरिक को कनाडा में आने और बसने के लिए प्रोत्साहित किया।
(ग) वरिष्ठ नागरिकों के लिए अलग से रेलवे आरक्षण की एक खिड़की खोली गई।
(घ) कुछ वन क्षेत्रों को निश्चित आदिवासी समुदायों के लिए आरक्षित कर दिया गया है।
उत्तर:
प्रश्न के पैरा में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। कनाडा की सरकार ने रंग के आधार पर भिन्न कार्य अपनाया। उसने केवल गोरे यूरोपीय लोगों को द्वितीय विश्व युद्ध के अंत से 1960 तक कनाडा प्रवजन का आदेश दिया। यह स्पष्ट रूप से समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है। प्रश्न के पैरा ‘क’ और पैरा ‘ग’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं है। प्रश्न के पैरा ‘घ’ में समानता के सिद्धांत का उल्लंघन है, क्योंकि इसमें कुछ जंगल केवल जनजाति समुदाय को देने की बात कही गई है जबकि सभी के लिए इस प्रकार प्रावधान करना चाहिए।

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प्रश्न 6.
यहाँ महिलाओं को मताधिकार देने के पक्ष में तर्क दिए गए हैं। इसमें से कौन-से तर्क समानता के विचार से संगत हैं। कारण भी दीजिए।
(क) स्त्रियाँ हमारी माताएँ हैं। हम अपनी माताओं को मताधिकार से वंचित करके अपमानित नहीं करेंगे?
(ख) सरकार के निर्णय पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं को भी प्रभावित करते हैं इसलिए शासकों के चुनाव में उनका भी मत होना चाहिए।
(ग) महिलाओं को मताधिकार न देने से परिवारों में मतभेद पैदा हो जाएंगे।
(घ) महिलाओं से मिलकर आधी दुनिया बनती है। मताधिकार से वंचित करके लंबे समय तक उन्हें दबाकर नहीं रखा जा सकता है।
उत्तर:
प्रश्न के पैरा ‘ख’ और पैरा ‘घ’ समानता से अधिक मेल रखते हैं। पैरा ‘ख’ में कहा गया है कि सरकार के निर्णय पुरुष और महिला दोनों को प्रभावित करते हैं। इसलिए दोनों को शासकों के चुनाव में सहभागी होना चाहिए। पैरा ‘घ’ में कहा गया है महिलाओं के मतदान के अधिकार को इंकार किया जा सकता है जो सम्पूर्ण जनसंख्या का 50% है।

Bihar Board Class 11 Political Science समानता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत को स्पष्ट करें। (Explain the concept of equality before law) अथवा, कानून के समक्ष समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by equality before law)
उत्तर:
कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है कि कानून के सामने सब समान होंगे “कानून सबकी एक जैसे तरीके से रक्षा करेगा।” इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा या ऊपर नहीं है। कानून के लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं होता। कानून सबको एक समान मानता है। कानून धनी-निर्धन, छोटा-बड़ा, ऊँचा-नीचा, शिक्षित-अशिक्षित का भेदभाव नहीं मानता है।

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प्रश्न 2.
असमानता के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
1. प्राकृतिक असमानता:
सभी व्यक्ति जन्म से ही असमान होते हैं। कोई भी दो व्यक्ति एक समान नहीं हैं। किन्तु कुछ समाजशास्त्रियों का मत है कि जन्म से ही नैतिकता की भावना सबमें समान रूप से होती है। यह माना जा सकता है कि नैतिकता की भावना समान हो, परंतु दो व्यक्तियों की प्रकृति कभी एक समान नहीं होती। एक विकलांग व्यक्ति को कभी भी एक स्वस्थ शरीर की तुलना में नहीं रखा जा सकता है। इस प्रकार यह प्राकृतिक असमानता है।

2. नागरिक असमानता:
नागरिक असमानता के अन्तर्गत एक देश के सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। दूसरा, मौलिक अधिकारों व अन्य अधिकारों से भी जब कुछ नागरिकों को दूर रखा जाए तो उसे नागरिक असमानता कहते हैं। इसलिए सभी को समान रूप से नागरिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए व सभी नागरिक कानून के सम्मुख बराबर होने चाहिए।

प्रश्न 3.
समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by the term equality?)
उत्तर:
साधारण भाषा में समानता का अर्थ है:
सब व्यक्तियों का समान दर्जा हो, सबकी आय एक जैसी हो, सब एक ही प्रकार से जीवन-यापन करें। पर यह सम्भव नहीं है। लास्की ने कहा है, “समानता का अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए, यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए, तो समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग न. रहे। सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”

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प्रश्न 4.
समानता के कोई चार रूप बताइए। (Explain any four kinds of equality)
उत्तर:
समानता के चार रूपों की विवेचना निम्नलिखित हैं –

1. प्राकृतिक समानता (Natural of Equality):
प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, परंतु यह विचार ठीक नहीं है। सभी व्यक्तियों के रंग, रूप, बनावट, शक्ति, बुद्धि तथा स्वभाव में असमानता होती है। वास्तव में प्राकृतिक समानता का यह अर्थ है कि प्रत्येक में कुछ मौलिक समानताएँ हैं जिनके कारण सभी व्यक्तियों को समान माना जाना चाहिए।

2. नागरिक समानता (Civil Equality):
सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों और सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हों।

3. सामाजिक समानता (Social Equality):
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज के सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। ऊँच-नीच की भावना नहीं होनी चाहिए।

4. राजनीतिक समानता (Political Equality):
समाज में सभी व्यक्तियों को समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। चुनाव में खड़े होने या मतदान करने के अधिकार से किसी को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 5.
आर्थिक समानता के बारे में आप क्या जानते हैं? (What do you know about economic euqality?)
उत्तर:
वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका यह अर्थ नहीं है कि सब व्यक्तियों की आय अथवा वेतन समान कर दिया जाए। इसका अर्थ है-सबको उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाएँ। सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। प्रत्येक व्यक्ति को काम मिले।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“सभी व्यक्ति समान पैदा होते हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। (“All men are born equal.” Discuss)
उत्तर:
सभी व्यक्ति समान पैदा होते हैं (All men are born equal):
यह बात साधारण तौर पर भी कही जाती है और अमेरिका के स्वतंत्रता घोषणा-पत्र में भी कही गयी है। सब व्यक्ति समान पैदा हुए हैं। फ्रांस की राष्ट्रीय सभा में मानवीय अधिकारों की घोषणा में इस समानता को स्वीकार किया गया है कि “मनुष्य जन्म से समान पैदा होते हैं और अपने अधिकारों के सम्बन्ध में समान ही रहते हैं।” परंतु इसका आशय यह भी नहीं है कि सब व्यक्ति पूर्ण रूप से समान होंगे। सबको समान नहीं बनाया जा सकता। गोरा-काला, छोटा-बड़ा, बुद्धिमान-निर्बुद्धि सभी प्रकार के व्यक्ति होते हैं।

प्रश्न 2.
“समानता के अभाव में स्वतंत्रता निरर्थक है।” अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए। (“Liberty is meaningless without equality.” Do you agree with this view ? Give reason for your answer)
उत्तर:
लास्की के शब्दों में ‘जहाँ धनी और निर्धन, शिक्षित और अशिक्षित हैं वहाँ पर स्वामी और दास सदैव पाए जाते हैं।’ (Where there are rich and poor, educated and uneducated, we find always master and servant)। समानता ही स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है और उसे लाभदायक बनाती है। निर्बल व्यक्ति शक्तिशाली के सामने और निर्धन व्यक्ति धनवान के सामने अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक प्रयोग नहीं कर सकता। जिसके पास धन की शक्ति होती है उसके पास राजनीतिक शक्ति भी चली जाती है। अतः निर्धन व्यक्ति की स्वतंत्रता वास्तविक नहीं रहती। जहाँ सामाजिक समानता नहीं मिलती वहाँ निम्न श्रेणी के लोगों की स्वतंत्रता व्यर्थ और निरर्थक हो जाती है।

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प्रश्न 3.
समानता किसे कहते हैं? सामाजिक समानता का वर्णन करें। (What is equality? Discuss social equality)
उत्तर:
लास्की ने कहा है कि “समानता का अर्थ सर्वप्रथम तो विशेषाधिकारों का अभाव है और दूसरे उसका अर्थ है कि सभी लोगों को विकास के लिए उपयुक्त अवसर प्राप्त हों।” सामाजिक समानता का अर्थ समाज में जाति, धर्म, रंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव के बिना विकास के समान अवसरों की प्राप्ति है।

सामाजिक समानता (Social Equality):
सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में जाति, धर्म, वंश, रंग विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए। सबका सामाजिक स्तर समान होना चाहिए। छुआछूत अवैध होनी चाहिए। अमेरिका में गोरे-काले का भेद आज भी सामाजिक असमानता का प्रमाण है।

प्रश्न 4.
प्राकृतिक समानता किसे कहते हैं? (What is Natural Equality?)
उत्तर:
प्राकृतिक समानता (Natural Equality):
कुछ लोग इस बात पर जोर देते हैं कि “सभी व्यक्ति प्राकृतिक रूप से समान हैं” तथा कुछ धार्मिक परम्पराओं तथा विचारकों को समान नहीं बनाया है। यहाँ तक कि जुड़वाँ भाई-बहनों में भी कुछ अंतर मिलता है।

प्रश्न 5.
समानता के राजनीति पक्ष का विवेचन कीजिए। (Describe the poltical dimension of equality)
उत्तर:
राजनीतिक समानता का अर्थ है कि राज्य में सभी नागरिकों को समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त होने चाहिए। प्रत्येक नागरिक को चुनाव में खड़ा होने का अधिकार होना चाहिए। अपनी योग्यता के अनुसार सरकारी पद प्राप्त करने का अवसर मिलना चाहिए। सरकार यदि नागरिकों पर अत्याचार करती है तो प्रत्येक नागरिक को उसकी आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए। किसी भी नागरिक को उसकी जाति, रंग, लिंग, संपत्ति, शिक्षा तथा धर्म आदि के आधार पर मतदान करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। एशिया और अफ्रीका के अभी ऐसे बहुत से देश हैं जहाँ राजनीतिक समानता स्थापित नहीं हुई है।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताइए। (Define the relation between political freedom and economic freedom)
उत्तर:
स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के पूरक हैं। लास्की का कहना है कि आर्थिक समानता के बिना राजनैतिक स्वतंत्रता मात्र एक कल्पना है। इस कथन का आशय यह है कि जब तक आर्थिक समानता स्थापित नहीं होती तब तक राजनैतिक स्वतंत्रता व्यर्थ होती है। इस आशय को निम्न तर्कों द्वारा समझा जा सकता है –

  1. पूर्ण आर्थिक स्वतंत्रता से आर्थिक शोषण में वृद्धि होती है तथा उससे आर्थिक असमानता पनपती है।
  2. स्वतंत्रता का अर्थ मात्र बंधनों का अभाव नहीं होता। बंधन मुक्त स्वतंत्रता शक्तिशाली की स्वतंत्रता होती है। ऐसी स्वतंत्रता से आर्थिक समानता नष्ट हो जाती है।
  3. आर्थिक असमानता के वातावरण में व्यक्ति का विकास असम्भव होता है। हॉब्स का कहना है कि भूख से मरते व्यक्ति के लिए स्वंत्रता का कोई अर्थ नहीं होता।
  4. आर्थिक असमानता के अन्तर्गत लोकतंत्र की सफलता की आशा नहीं की जा सकती है।

प्रश्न 7.
समानता की परिभाषा कीजिए। इसके विभिन्न प्रकार समझाइए। (Define the equality. What are its type?)
उत्तर:
समानता प्रजातंत्र का एक मुख्य स्तम्भ है। व्यक्तित्व के विकास के लिए यह एक आवश्यक शर्त है। समानता का तात्पर्य ऐसे परिस्थितियों के अस्तित्व से होता है जिसके कारण सब व्यक्तियों के विकास हेतु समान अवसर प्राप्त हो सके और इस प्रकार उस असमानता का अंत हो सके, जिनका मूल कारण सामाजिक वैषम्य है। लास्की ने भी लिखा है कि समानता मूल रूप में समानीकरण की एक प्रक्रिया है। समानता का आशय विशेषाधिकारों के अभाव से है और इसका यह भी आशय है कि सभी व्यक्तियों को विकास हेतु समान अवसर प्राप्त होने चाहिए।

स्वतंत्रता के समान ही समानता के अनेक प्रकार हैं जो निम्नलिखित हैं –

  1. सामाजिक समानता (Social Equality): सामाजिक दृष्टि से सभी व्यक्ति समान होने चाहिए और उन्हें सामाजिक उत्थान के समान अवसर प्राप्त होने चाहिए।
  2. नागरिक समानता (Civics Equality): नागरिक समानता के दो भेद हैं। प्रथम राज्य के कानूनों की दृष्टि से सभी व्यक्ति समान होने चाहिए। द्वितीय सभी व्यक्तियों को नागरिकता के अवसर या नागरिक अधिकार एवं स्वतंत्रताएँ समान रूप से प्राप्त होनी चाहिए।
  3. राजनीतिक समानता (Political Equality): राजनीतिक समानता का अभिप्राय सभी व्यक्तियों को समान राजनीतिक अधिकार एवं अवसर प्राप्त होने से है।
  4. आर्थिक समानता (Economics Equality): आर्थिक समानता से तात्पर्य है कि मनुष्यों की आय में बहुत अधिक असमानता नहीं होनी चाहिए।

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प्रश्न 8.
राजनीतिक समानता क्या है? (What is political equality?)
उत्तर:
राजनीतिक समानता का तात्पर्य है कि सभी नागरिकों को राज्य की राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित तथा उसमें भागीदारी करने का अवसर समान रूप से प्राप्त हो। हालांकि यह धारणा सिर्फ लोकतांत्रिक राज्य से ही सम्बन्धित होती है, नहीं तो राजतंत्र, तानाशाही राज्यों में लोकतंत्र की इस राजनीतिक समानता के विचारधारा को उत्पन्न किया जाता है, वह वास्तव में राजनीतिक समानता के गुण को प्रदर्शित करती है, अर्थात् इसके अलावा राज्य और व्यक्ति को लेकर न्यायपूर्ण राजनीतिक समानता का अर्थ नहीं हो सकता है।

लोकतंत्रीय पद्धति में नागरिकों की राजनीतिक समानता का तात्पर्य निम्न तथ्यों से पाया जा सकता है। जैसे मतदान का अधिकार, चुनाव में उम्मीदवार बनने का अधिकार, प्रार्थना पत्र का अधिकार, सार्वजनिक नियुक्ति जो राज्य के माध्यम से हो उसे प्राप्त करने का सभी को समान अधिकार प्राप्त है। विचारों की स्वतंत्रतापूर्ण अभिव्यक्ति और राजनीतिक दलों का स्वतंत्रतापूर्वक निर्माण सम्बन्धी समानता सभी नागरिकों को समान रूप से प्रदान की जाती है, जबकि ऐसी पद्धति राजनीतिक समानता को लेकर निरंकुशवादी राज्यों के संदर्भ में नहीं पायी जाती हैं। अतः उपरोक्त तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट है कि राजनीतिक समानता का वास्तविक अर्थ सिर्फ लोकतंत्रीय पद्धति में दिए गए अर्थ के माध्यम से स्पष्ट होता है।

प्रश्न 9.
सामाजिक समानता के अर्थ को वर्णित करें। (Define the social equality)
उत्तर:
सामाजिक समानता का अर्थ-सामाजिक जीवन में सभी व्यक्तियों को समान समझा जाना चाहिए और धर्म, जाति, वंश, लिंग अथवा जन्म के आधार और स्थान पर किसी व्यक्ति का व्यक्ति से कोई भेद नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक समानता के अर्थ में समाज के सभी अधिकार व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के प्राप्त हो सकें, यही सामाजिक समानता का मूलभूत उद्देश्य है और इस तथ्य की वास्तविकता सिर्फ लोकतंत्रीय समाज में ही है। भारतीय संविधान में सामाजिक समानता को मूल अधिकार के तहत वर्णित किया गया है।

अर्थात् अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को एक दण्डनीय अपराध माना गया है। सामाजिक समानता के मुख्यतः इन तथ्यों को प्रबल रूप से स्थान दिया जाता है कि वंश, धर्म, जाति और वर्ण के आधार पर किसी को श्रेष्ठ या किसी को हेय न समझा जाए। स्त्रियों और पुरुषों में किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव न हो। अर्थात् सामाजिक समानता की माँग है कि स्त्रियों और पुरुषों को बराबर सम्मानजनक व्यवहार प्राप्त होना चाहिए।

सामाजिक समानता ही वास्तव में लोगों के बीच राजनीतिक समानता को उत्पन्न करने का कारण बनती है। सामाजिक समानता की अवधारणा निरंकुश राज्य पद्धति में सम्भव नहीं होती, क्योंकि वहाँ पर स्वतंत्रता, समानता और न्याय का कोई अर्थ नहीं रहता है, यहाँ पर यह सब सम्बन्धित अधिकार केवल निरंकुश शासक वर्ग के लिये होते हैं। इस कारण सामाजिक समानता की मूल अवधारणा केवल लोकतंत्रीय पद्धति में ही सम्भव है।

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प्रश्न 10.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं? (What do you know about the economic equality?)
उत्तर:
आर्थिक समानता का मूल अभिप्राय रूसो के इस कथन में समझा जा सकता है, अर्थात् रूसो ने कहा, “सरकार की नीति यह होनी चाहिए कि न तो अमीरों की संख्या बढ़ने पाये और न ही भिखमंगों की।” अर्थात् यह कथन आर्थिक समानता के इस रूप को प्रदर्शित करता है कि पूँजी की व्यवस्था और उसका वितरण इस रूप में हो कि पूँजी किसी के शोषण का माध्यम न बन जाए। मार्क्सवादी साम्यवाद ने इसी पूँजीवादी शोषण व्यवस्था को खत्म करने के लिए अपने तरीके से वर्गविहीन समाज को आर्थिक समानता के साथ सम्बद्ध किया।

आर्थिक समानता की मूल अवधारणा यही थी कि समाज का कोई वर्ग दूसरे वर्ग का आर्थिक शोषण न कर सके तथा इसके लिए आर्थिक समानता की यह मूल अवधारणा रही कि आर्थिक स्वतंत्रता सभी वर्गों को इस रूप में प्रदान की गई कि हर व्यक्ति अपनी दक्षता से किसी को अन्यायपूर्ण तरीके से आर्थिक स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इसलिए आर्थिक समानता की मूल अवधारणा ही आर्थिक समानता की न्यायगत अवधारणा बनी। इस आर्थिक समानता की अवधारणा को लोकतंत्रीय और समाजवादी देशों की शासन व्यवस्था में अपनाया जाता है, न कि निरंकुशवादी व्यवस्था में।

प्रश्न 11.
समानता किन तीन तत्वों पर आधारित है? (On Which three elements is equality based?)
उत्तर:
समानता निम्नलिखित तीन आवश्यक तत्वों पर आधारित है –

  1. विशेषाधिकारों की अनुपस्थिति-किसी व्यक्ति को वंश, लिंग, धर्म व स्थान के कारण ऐसे विशेष अधिकारों की प्राप्ति न हो, जिससे अन्य लोग वंचित हों।
  2. सभी के लिए उचित अवसरों की प्राप्ति हो।
  3. व्यक्तियों के बीच भेदभाव तर्कसंगत आधार पर हो।

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प्रश्न 12.
समानता का मार्क्सवादी दृष्टिकोण क्या है? (What is Marxist view of equality?)
उत्तर:
समानता का मार्क्सवादी दृष्टिकोण (marxist view of Equality):]
समानता के मार्क्सवादी दृष्टिकोण में आर्थिक रूप से समानता पर बल दिया जाता है। उनके अनुसार जब सम्पत्ति कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित हो जाती है तो समाज में विषमता पैदा होती है और राजनीतिक सत्ता भी कुछ ही व्यक्तियों के हाथ में आने लगती है। इसलिए सम्पत्ति का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए ताकि समाज के सभी लोग आर्थिक समानता का उपभोग कर सकें।

प्रश्न 13.
व्यवहार की समानता से आपका क्या अभिप्राय है? (What do you understand by equality of treatment?)
उत्तर:
व्यवहार की समानता (Equality of Treatment):
साधारण शब्दों में व्यवहार की समानता का यह अर्थ है कि राज्य अथवा सरकार द्वारा किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग के पक्ष या विपक्ष में किसी प्रकार का कोई पक्षपात न किया जाए। राज्य द्वारा अपने नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाए। जाति, धर्म, लिंग, जन्म-स्थान आदि के आधार पर उनमें किसी प्रकार का भेदभाव न किया जाए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
क्या समानता तथा स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं? चर्चा कीजिए। (Are equality and liberty opposed to each other? Explain) अथवा, “समानता के अभाव में स्वतंत्रता निरर्थक है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? (“Liberty is meaningless without equality.” Do you agree with this line?)
उत्तर:
हाँ। स्वतंत्रता और समानता लोकतंत्र के मूल आधार हैं। दोनों के परस्परिक सम्बन्धों का विवेचना निम्नलिखित है –

(क) स्वतंत्रता व समानता परस्पर विरोधी हैं (Liberty and equality are opposed to each other):
इस विचारधारा के प्रमुख समर्थक लॉर्ड एक्टन व डी. टॉकविल हैं। उनके विचार में स्वतंत्रता और समानता दोनों एक साथ नहीं रह सकते, क्योंकि समानता व्यक्तिगत स्वतंत्रता को नष्ट कर देती है। इन विचारकों ने निम्न आधारों पर स्वतंत्रता तथा समानता को एक-दूसरे का विरोधी माना है –

1. सभी मनुष्य समान नहीं हैं (All the individuals are not equal):
संसार में सभी व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। असमानता प्राकृतिक देन है। कुछ व्यक्ति शक्तिशाली होते हैं तो कुछ कमजोर। कुछ व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होते हैं तो कुछ मूर्ख। इन असमानताओं के होते हुए सभी व्यक्तियों को समान नहीं समझा जा सकता।

2. समान स्वतंत्रता का सिद्धांत अनैतिक हैं (The theory of equal liberty is immoral):
सभी व्यक्तियों की मूल योग्यताएँ समान नहीं होती। अतः सबको समान अधिकार देना या समान स्वतंत्रता प्रदान करना अन्यायपूर्ण होगा।

(ख) स्वतंत्रता और समानता परस्पर विरोधी नहीं है (Liberty and equality are not opposed to each other):
जो विचारक स्वतंत्रता और समानता को परस्पर विरोधी न मानकर एक-दूसरे का पूरक मानते हैं और इनका आपस में घनिष्ठ संबंध बतलाते हैं, उनमें रूसो, आर, एच. टोनी व पोलार्ड प्रमुख हैं। रूसो के अनुसार, “बिना स्वतंत्रता के समानता जीवित नहीं रह सकती। “आर. एच. टोनी के अनुसार, “समानता की प्रचुर मात्रा स्वतंत्रता की विरोधी नहीं वरन् अत्यन्त आवश्यक है।” प्रो. पोलार्ड के अनुसार “स्वतंत्रता की समस्या का केवल एक ही समाधान है और वह समानता।” ये विचारक अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क देते हैं –

1. स्वतंत्रता और समानता का विकास एक साथ हुआ है (Liberty and equality have grown simul-taneously):
स्वतंत्रता और समानता का सम्बन्ध जन्म से है। जब निरंकुशता और असमानता के विरुद्ध मानव ने आवाज उठाई और क्रांतियाँ हुईं तो स्वतंत्रता और असमानता के सिद्धांतों का जन्म हुआ।

2. दोनों के उद्देश्य समान हैं (Both have the same objectives):
दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है-व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। स्वतंत्रता के बिना समानता असम्भव है और समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है।

निष्कर्ष (Conclusion):
स्वतंत्रता और समानता के आपसी सम्बन्धों के उपरोक्त विवेचन का अध्ययन करने के बाद कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता व समानता एक-दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि दोनों का एक ही उद्देश्य है। दोनों ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए उचित वातावरण की व्यवस्था करती हैं।

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प्रश्न 2.
राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Describe the relationship between Political Equality and Economic Equality)
उत्तर:
समानता के अनेक रूप हैं, परंतु राजनीतिक समानता तथा आर्थिक समानता का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो, जबकि आर्थिक समानता का अर्थ है कि लोगों में कोई आर्थिक भेदभाव न हो। राज्य में एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण न करे। समाजवादी दलों का आधार आर्थिक समानता ही है। यदि आर्थिक समानता रूपी नीवें पक्की हैं तो राजनीतिक समानता रूपी भवन का निर्माण भी मजबूत हो सकता है। यदि आर्थिक समानता न हो तो राजनीतिक समानता की कल्पना करना ही व्यर्थ है। लास्की (Laski) के शब्दों में, “जहाँ धनी और निर्धन, शिक्षित और अशिक्षित हैं वहाँ स्वामी और दास सदैव पाये जाते हैं।” (Where there are rich and poor, educated and uneducated we find always masters and servants.-Laski)

वर्तमान काल में आर्थिक समानता ने एक महत्वपूर्ण स्थान ले लिया है। इसका अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को न्यूनतम आय की गारंटी होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। सभी लोगों को रोटी, कपड़ा और मकान सरलता से सुलभ हो जाए। शोषण का अन्त हो। इतिहास बताता है कि जब तक धनी व्यक्ति निर्धनों का शोषण करते रहते हैं अथवा उन्हें शोषण करने की छूट रहती है तब तक समाज शोषक व शोषित, स्वामी तथा सेवक, धनी और निर्धन दो वर्गों में बँटा रहता है। शासन पर उन्हीं शक्तियों का नियंत्रण रहता है जो आर्थिक साधनों पर नियंत्रण रखते हैं।

शासन उन्हीं के इच्छानुसार चलता है। स्टालिन के इस कथन में सच्चाई है कि “बेरोजगार व्यक्ति जिसे उसके परिश्रम का फल नहीं मिलता, जो भूखा रहता है उसके लिए राजनीतिक समानता का कोई अर्थ नहीं।” केवल सिद्धांत रूप में सबको वोट देने का अधिकार देने या चुनाव लड़ने या सरकारी पद पर चुने जाने का समान रूप से अधिकार देने मात्र से कोई व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता का उपभोग नहीं कर सकता जब तक कि उसे आर्थिक रूप से भी समानता प्राप्त नहीं हो जाती। निर्धन राजनीतिक में सक्रिय भाग नहीं लेते। उनको न्याय प्राप्त करने में भी कठिनाई होती है।

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प्रश्न 3.
स्वतंत्रता और समानता में सम्बन्ध स्थापित कीजिए। (Discuss the relationship between liberty and equality) अथवा, “समानता का तात्पर्य यह नहीं है कि सभी व्यक्तियों से समान व्यवहार किया जाए।” व्याख्या कीजिए। (“Equality does not mean equal treatment to all the people.” Discuss)
उत्तर:
समानता की भ्रामक धारण (Wrong view of Equality):
कुछ लोग समानता का यह अर्थ लगाते हैं कि जीवन के सभी क्षेत्रों में उन्हें समान होना चाहिए। सभी समान रूप से शिक्षित हों, सबको समान धन प्राप्त हो, समान नौकरी करें तथा सब समान वेतन प्राप्त करें। किन्तु यह धारणा भ्रामक है। सबको समान नहीं बनाया जा सकता। हाथ की पाँचों उंगलियाँ भी समान नहीं होती हैं। ईश्वर ने भी सबको समान नहीं बनाया है। कोई गोरा, कोई काला, कोई छोटा, कोई बड़ा, कोई दुर्बल है कोई सबल है, कोई बुद्धिमान है, कोई मूर्ख है।

समानता का वास्तविक अर्थ (Correct view of Equality):
अब प्रश्न यह उठता है कि समानता का वास्तविक अर्थ क्या है? वास्तव में समानता एक ओर उस अवस्था का नाम है जिसमें विशेषाधिकारों का अन्त तक दिया गया हो और दूसरी ओर सबको आत्मविकास के समान अवसर प्राप्त हों। समान अवसरों की प्राप्ति से तात्पर्य केवल यह है कि सभी को बिना अवरोध के विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

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प्रश्न 4.
“नागरिक समानता स्वतंत्रता की पूर्व शर्त के रूप में” पर टिप्पणी लिखों। (Write shortnote on “Civil equality as a precondition of freedom.”)
उत्तर:
नागरिक समानता अर्थात् कानून के समक्ष समानता और सभी के लिए एक सा कानून लागू होना स्वतंत्रता के उपभोग के लिए एक महत्वपूर्ण तथा आवश्यक शर्त है। इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का वास्तविक उपभोग नहीं कर सकता। नागरिक समानता अर्थात् किसी भी व्यक्ति के साथ उसके वंश, जाति, धर्म, रंग, जन्म स्थान तथा लिंग के आधार पर कानून कोई भेदभाव नहीं करेगा और कानून का उल्लंघन करने वाले सभी व्यक्तियों को, चाहे उनका सामाजिक स्तर कुछ भी हो, समान दण्ड मिलेगा।

कानूनी दृष्टि से समान समझे जाने पर ही प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति कानून की परवाह न करे और कानून उसका कुछ न बिगाड़ सके तो वह अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर कुठाराघात कर सकता है। जब कानून समान रूप से सब व्यक्तियों के जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा करता है तभी वह निर्भीक होकर अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग वास्तविक रूप में कर सकता है। इस प्रकार नागरिक समानता स्वतंत्रता की पूर्व शर्त है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समानता का अर्थ है?
(क) सभी के लिए समान अवसर
(ख) समान शिक्षा
(ग) समान कार्य के लिए समान वेतन
(घ) विशेषाधिकारों का अभाव
उत्तर:
(क) सभी के लिए समान अवसर

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प्रश्न 2.
बीसवीं शताब्दी में निम्नलिखित में से किस पर तुलनात्मक दृष्टि पर जोर दिया गया था?
(क) राजनीतिक समानता पर
(ख) नागरिक समानता पर
(ग) सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर
(घ) राजनीतिक एवं आर्थिक समानता पर
उत्तर:
(ग) सामाजिक एवं आर्थिक समानता पर

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प्रश्न 3.
राजनीति समानता की सर्वश्रेष्ठ गारंटी है।
(क) लोकतंत्र में
(ख) तानाशाही में
(ग) उच्चतम न्यायालय
(घ) अभिजात तंत्र
उत्तर:
(क) लोकतंत्र में

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Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 स्वतंत्रता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Political Science स्वतंत्रता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता से क्या आशय है? क्या व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता में कोई संबंध है?
उत्तर:
स्वतंत्रता का अर्थ (The meaning of Freedom):
सामान्य अर्थों में स्वतंत्रता का अर्थ ‘प्रतिरोध रहित’ अवस्था से लिया जाता है। प्रतिरोधों के लगने पर स्वतंत्रता छिन जाती है। स्वतंत्रता अंग्रेजी भाषा के लिबर्टी (Liberty) शब्द के लिए प्रयुक्त होता है जो लैटिन भाषा के (Liber) शब्द से निकला है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘बंधनों का अभाव’। इस प्रकार स्वतंत्रता का अर्थ हुआ ‘बंधन रहित अवस्था’ अर्थात् मनुष्य के व्यवहार पर किसी प्रकार का अंकुश न होना।

वह जैसा चाहे व्यवहार करे। किन्तु यहाँ यह विचारणीय है कि यदि इच्छानुसार आचरण करने की स्वतंत्रता दे दी जाएगी तब केवल शक्तिशाली मनुष्य ही इस स्वतंत्रता का उपभोग कर सकेंगे और स्वतंत्रता केवल कुछ व्यक्तियों को ही मिल सकेगी। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि अंकुशरहित अथवा ‘अनियंत्रित स्वतंत्रता’ वास्तव में स्वतंत्रता है।

प्रतिरोध रहित अवस्था’ और उच्छृखलता में कोई अंतर नहीं है। हमें स्वतंत्रता पर कुछ न कुछ बंधन अवश्य लगाने पड़ेंगे जिससे कि वह सम्पूर्ण समाज के लिए हितकर बन सके। वास्तव में स्वतंत्रता का अर्थ ऐसी अवस्थाओं से है जिससे मनुष्य अपना पूर्ण विकास कर सकता है। अतः कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की ऐसी स्वतंत्रता पर बंधन लगना चाहिए जिनसे किसी दूसरे व्यक्ति अर्थात् समाज को हानि पहुँचती हो। मैकेंजी ने कहा है कि ‘स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं है बल्कि अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की स्थापना है।”

(“Freedom is not the absence of all restraints, but rather the substitution of rational ones for the irrational”)

व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता में संबंध:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राष्ट्र व्यक्ति का समूह होता है जो एक व्यक्ति के समान होता है। इसलिए व्यक्ति की स्वतंत्रता और देश का समूह होता है जो एक व्यक्ति के समान होता है। इसलिए व्यक्तिगत की स्वतंत्रता और देश की स्वतंत्रता के योगदान में विशेष अंतर नहीं होता। राष्ट्र एक जीवित जीव की तरह कार्य करता है और व्यक्ति पर नियंत्रण रखता है। देश की हानि, उसके देशवासियों की हानि होती है। व्यक्ति राष्ट्र स्तर पर दूसरे राष्ट्र के विरुद्ध संघर्ष करता है। सामुदायिक हानि व्यक्ति स्वतंत्रता और राष्ट्रीय स्वतंत्रता के मध्य की हानि है।

विश्व के अन्य देशों के समान भारत ने शोषण के खिलाफ संघर्ष किया। उसने विदेशी शक्तियों के साथ उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष किया और बड़े शानदार तरीके से 15 अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की। नेल्सन मंडेला और उसके साथियों ने जातीयता की ब्रिटिश नीति के खिलाफ कालों के हित के लिए लम्बे समय तक संघर्ष किया। इन संघर्षों द्वारा दक्षिण अफ्रीका के लोगों के स्वतंत्रता में आने वाले बाधाओं को भी दूर किया। मंडेला ने अपनी पुस्तक ‘स्वतंत्रता के लम्बे कदम’ (Long Walk to Freedom) में स्वतंत्रता की विस्तृत व्याख्या की है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की माँग राष्ट्रीय स्वतंत्रता या राष्ट्र के लिए स्वतंत्रता की माँग का पथ प्रदर्शित करता है।

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प्रश्न 2.
स्वतंत्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्वतंत्रता की अवधारणा के नकारात्मक पक्ष और सकारात्मक पक्ष में अंतर –

1. स्वतंत्रता की अवधारणा का नकारात्मक पक्ष:
प्राचीन विचारक नकारात्मक स्वतंत्रता को महत्व देते हैं। उनके अनुसार “स्वतंत्रता से अभिप्राय, ‘बंधनों के अभाव’ से है अर्थात् मनुष्य पूर्ण रूप से स्वतंत्र है। उसकी इच्छा तथा उसके कार्यों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। मनुष्य को अपने अंत:करण के अनुसार कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।

उसे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, बौद्धिक तथा धार्मिक क्षेत्र में स्वतंत्र होना चाहिए। व्यक्ति अपने विवेक के अनुसार जो कुछ करना चाहता है, उसे करने देना चाहिए। राज्य उस पर किसी प्रकार की रुकावट नहीं लगाएगा। जॉन लॉक, एडम स्मिथ और मिल आदि विचारक स्वतंत्रता के इसी रूप के समर्थक थे। लॉक को नकारात्मक स्वतंत्रता का प्रतिपादक माना जाता है।

स्वतंत्रता का नकारात्मक दृष्टिकोण निम्नलिखित विचारों पर आधारित है –

  • स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है।
  • व्यक्ति पर राज्य द्वारा कोई नियंत्रण नहीं होना चाहिए।
  • वह सरकार सर्वोत्तम है जो कम से कम शासन करे।
  • सम्पत्ति और जीवन की स्वतंत्रता असीमित होती है।

2. स्वतंत्रता का सकारात्मक पक्ष (Positive Aspects of Liberty):
मैक्नी (Mekechine) के अनुसार, “स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं अपितु उचित नियंत्रण होता है।” ये विचार स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप को दर्शाते हैं। स्वतंत्रता के सकारात्मक रूप को 20 वीं शताब्दी के उदारवादी विचारकों में महत्व दिया। उनके अनुसार वास्तविक स्वतंत्रता विवेक के अनुसार कार्य करने में है।

लास्की और मेकाइवर स्वतंत्रता के सकारात्मक सिद्धांत के प्रमुख समर्थक हैं। उनका कहना है कि स्वतंत्रता केवल बंधनों का अभाव है। मनुष्य समाज में रहता है और समाज का हित ही उसका हित है। समाज हित के लिए सामाजिक नियमों तथा आचरणों द्वारा नियंत्रित रहकर व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए अवसर की प्राप्ति ही स्वतंत्रता है। लास्की के शब्दों में, स्वतंत्रता एक सकारात्मक चीज है। इसका तात्पर्य केवल बंधनों का अभाव नहीं है।

स्वतंत्रता के सकारात्मक पक्ष की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  • स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं है। सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक उचित ” प्रतिबंधों को स्वीकार करते हैं परंतु वे अनुचित प्रतिबंधों के विरुद्ध हैं। सामाजिक हित के लिए व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं।
  • स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं हैं। कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
  • स्वतंत्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान होना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।

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प्रश्न 3.
सामाजिक प्रतिबंधों से क्या आशय है? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबंध स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है?
उत्तर:
सामाजिक प्रतिरोध (Social constraints) शब्द का तात्पर्य सामाजिक बंधन और अभिव्यक्ति पर जातीय एवं व्यक्ति के व्यवहार पर नियंत्रण से है। ये बंधन (Restructions) प्रभुत्व और बाह्य नियंत्रण से आता है। ये बंधन विभिन्न विधियों से थोपे जा सकते हैं। ये बंधन कानून, रीतिरिवाज, जाति, असमानता, समाज की रचना आदि हो सकते हैं। स्वतंत्रता या मुक्ति (Liberty) के वास्तविक अनुभव के लिए सामाजिक और कानूनी बंधन (Constraints) आवश्यक है। प्रतिरोध और प्रतिबंध न्यायसंगत और उचित होना चाहिए। लोगों की स्वतंत्रता के लिए प्रतिरोध जरूरी है क्योंकि बिना उचित प्रतिरोध या बंधन के समाज में आवश्यक व्यवस्था नहीं होगी जिससे लोगों की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।

प्रश्न 4.
नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है?
उत्तर:
नागरिकों के स्वतंत्रता की सुरक्षा में राज्य की भूमिका-राज्य के सम्बन्ध में कई लोगों का कहना है कि राज्य लोगों की स्वतंत्रता का बाधक है। इसलिए उनकी राय में राज्य के समान कोई संस्था नहीं होनी चाहिए। व्यक्तिवादियों का मानना है कि राज्य एक आवश्यक बुराई है। इसलिए वे एक पुलिस राज्य चाहते हैं जो मानव की स्वतंत्रता की रक्षा बाहरी आक्रमणों और भीतरी खतरों से कर सके। इसलिए आधुनिक स्थिति में स्वतंत्रता की अवधारणा और स्वतंत्रता के आवश्यक अवयव बदल गए हैं।

इसलिए राज्य की भूमिका बदल गयी है। आज इस तथ्य को स्वीकार किया जाता है कि प्रतिरोध और उचित बंधन आवश्यक हैं। यह स्वतंत्रता की सुरक्षा और रक्षा के लिए जरूरी है। उचित प्रतिरोध (Reasonable Constraints) राज्य द्वारा उपलब्ध कराया जाता है क्योंकि राज्य इसके लिए अधिकृत है। राज्य लोगों द्वारा समर्पित एक संस्था है। इसलिए वे राज्य के निर्देशों को स्वीकार करते हैं और उसके अनुसार अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हैं। लोगों के जीवन को आरामदायक और व्यवस्थित रखने के लिए राज्य उपयोगी नीतियों और कल्याणकारी कानूनों का निर्माण करता है। ये सब स्वतंत्रता के लिए आवश्यक है। इस प्रकार राज्य स्वतंत्रता के उत्थान में सकारात्मक भूमिका निभाता है।

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प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या अर्थ है? आपकी राय में इस स्वतंत्रता पर समुचित प्रतिबंध क्या होगा? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ (The meaning of freedom expression):
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व्यक्ति की मौलिक आवश्यकता है जो प्रजातंत्र को सफल और उपयोगी बनाता है। इसका अर्थ है कि एक पुरुष या स्त्री को अभिव्यक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए। उसे लिखने, कार्य करने, चित्रकारी करने, बोलने या कलात्मक काम करने की पूर्ण आजादी होनी चाहिए। अभिव्यक्ति के भाव या अभिव्यक्ति की स्वतंत्र प्रजातंत्र की जरूरत है। हमें यह भी मानना पड़ेगा कि अभिव्यक्ति की असीमित स्वतंत्रता प्रजातंत्र के लिए हानिकारक है।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की स्वीकृति उचित बंधन के द्वारा उत्तरदायित्वपूर्ण एवं नियंत्रित होना चाहिए। जब हम यह कहते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बंधन होना चाहिए तब यह निश्चित करना होगा। अधिक बंधन तर्कसंगत होना चाहिए। वह मानवता पर आधारित न्यायपूर्ण हो जिससे बंधन लादते समय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कोई हानि न पहुँचे। न्यायसंगत बंधन के उदाहरण-अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बंधनों (Restrictions) को उदाहरण के द्वारा समझा जा सकता है।

भारतीय संविधान में नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, परंतु साथ ही कानून-व्यवस्था, नैतिकता, शांति और राष्ट्रीय सुरक्षा.को यदि नागरिक द्वारा हानि होने की आशंका की अवस्था में न्यायसंगत बंधन लगाने का प्रावधान है। इस प्रकार विद्यमान परिस्थितियों में न्यायसंगत प्रतिबंध लगाया जा सकता है। परंतु इस प्रतिबंध का विशेष उद्देश्य होता है और यह न्यायिक समीक्षा के योग्य हो सकता है।

Bihar Board Class 11 Political Science स्वतंत्रता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है? (What is meant by Political Liberty?)
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता से अभिप्राय ऐसी स्वतंत्रता से है जिसके अनुसार किसी राज्य के नागरिक अपने यहाँ की सरकार में भाग ले सकें। नागरिकों को मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, आवेदन देने का अधिकार तथा सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किए जाते हैं। रंग, जाति, नस्ल धर्म व लिंग आदि के आधार पर किसी नागरिक को उसके राजनीतिक अधिकारों से वाचत नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 2.
भाषण तथा विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है? (What do you understand by freedom of speech and expression?)
उत्तर:
लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था में जन सहभागिता तथा लोकमत का विशेष प्रभाव होता हैं। लोकमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को अपने विचारों को भाषण या विचार अभिव्यक्ति द्वारा प्रकट करने का अधिकार होना चाहिए। भाषण तथा विचार अभिव्यक्ति लोकतंत्र की आधारशिला है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में समाचार-पत्र, रेडियो, दूरदर्शन तथा चलचित्र का प्रयोग शामिल है। शब्दों, लेखों, चित्रों, मुद्रण अथवा किसी अन्य प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना इस प्रकार की स्वतंत्रता में आता है।

आज के वैज्ञानिक युग में नये आविष्कारों के कारण जो भी अभिव्यक्ति के साधन विकसित हो रहे हैं, वे भी अभिव्यक्ति की परिभाषा में शामिल हो रहे हैं। समाचार-पत्रों पर सेन्सरशिप लगाना प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात है, जो विचार अभिव्यक्ति को रोकता है। हाँ, यदि कोई भाषण, लेख या विचार अभिव्यक्ति समाज के अंदर हिंसा, घृणा, साम्प्रदायिकता आदि को बढ़ावा दे तो उस पर रोक लगायी जा सकती है। भारत के संविधान में विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मौलिक अधिकारों में सम्मिलित की गई है।

प्रश्न 3.
स्वतंत्रता के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन कीजिए। (Describe any two kinds of Liberty)
उत्तर:
स्वतंत्रता के बहुत प्रकार होते हैं जैसे –

  1. राजनीतिक स्वतंत्रता
  2. आर्थिक स्वतंत्रता
  3. धार्मिक स्वतंत्रता
  4. नागरिक स्वतंत्रताएँ
  5. प्राकृतिक स्वतंत्रता
  6. राष्ट्रीय स्वतंत्रताएँ
  7. निजी स्वतंत्रता

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प्रश्न 4.
क्या प्रतेक कानून स्वतंत्रता का समर्थक है? (Does each and every law support Liberty?)
उत्तर:
यद्यपि कानून और स्वतंत्रता का घनिष्ठ सम्बन्ध होता है, परंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का समर्थक है। ब्रिटिश काल में अनेक कानून भारतीयों की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए ही बनाए गए थे।

प्रश्न 5.
राजनीतिक स्वतंत्रता के दो लक्षण बताइए। (Mention two features of Political Liberty)
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता के दो लक्षण (Two feature of Political Liberty):

  1. प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार होता है।
  2. प्रत्येक नागरिक को सरकारी नौकरी पाने का अधिकार होता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो:
(क) नैतिक स्वतंत्रता
(ख) नकारात्मक स्वतंत्रता (Write short notes on (a) Moral Liberty, (b) Negative concept of Liberty)
उत्तर:
(क) नैतिक स्वतंत्रता (Moral Liberty):
काण्ट (Kant) के अनुसार नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्तिगत स्वायत्तता ताकि हम अपने आप में मालिक बन सकें। नैतिक स्वतंत्रता केवल राज्य में ही प्राप्त हो सकती है क्योंकि राज्य ही उन परिस्थितियों की स्थापना करता है जिनमें मनुष्य नैतिक रूप से उन्नति कर सकता है।

(ख) नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Aspect of Liberty):
स्वतंत्रता के नकारात्मक पहलू का अर्थ है कि व्यक्ति पर किसी प्रकार का बंधन न हो। हॉब्स के अनुसार-स्वतंत्रता का अर्थ बंधनों का अभाव है। मिल के अनुसार-व्यक्ति के जो कार्य स्वयं से सम्बन्धित हैं, उन पर किसी प्रकार का बंधन नहीं होना चाहिए परंतु स्वतंत्रता की यह नकारात्मक अवधारणा अव्यावहारिक है। समाज में इस प्रकार की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 7.
स्वतंत्रता की परिभाषा दीजिए। (Define Liberty)
उत्तर:
स्वतंत्रता जिसे अंग्रेजी में Liberty कहते हैं, लैटिन भाषा के लाइबर (Liber) शब्द ‘से बनी है, जिसका अर्थ होता है ‘बंधनों का अभाव’। इस प्रकार शब्द-उत्पत्ति के आधार पर स्वतंत्रता का अभिप्राय है ‘किसी भी बाहरी दबाव से प्रभावित हुए बिना सोचने-विचारे और सोचे हुए काम की करने की शक्ति’। परंतु इस प्रकार की चरम स्वतंत्रता सदा संभव नहीं है।

प्रश्न 8.
लास्की के द्वारा दी गयी स्वतंत्रता की परिभाषा बताइए। (How has Laski defined Liberty?)
उत्तर:
लास्की (Laski) के अनुसार “आधुनिक सभ्यता में मनुष्यों की व्यक्तिगत प्रसन्नता की गारंटी के लिए जो सामाजिक परिस्थितियाँ आवश्यक हैं उनके अस्तित्व में किसी प्रकार के प्रतिबंध का अभाव ही स्वतंत्रता है।” इसी बात को लास्की ने इस प्रकार भी प्रकट किया है – “स्वतंत्रता का अभिप्राय यह है कि उस वातावरण की उत्साहपूर्वक रक्षा की जाए जिसमें कि मनुष्यों को अपना सर्वोत्तम रूप प्रकट करने का अवसर मिलता है।”

प्रश्न 9.
स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by Liberty?) अथवा, स्वतंत्रता की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। (Explain the concept of Liberty)
उत्तर:
मनुष्य जो चाहे कर सके, इसे स्वतंत्रता नहीं कहते। स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को अपने विकास के लिए पूर्ण अवसर सुलभ हों। लास्की के अनुसार-“स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण की स्थापना से है जिसमें व्यक्ति को अपने पूर्ण विकास के लिये अवसर प्राप्त हों।” गैटेल के अनुसार-“स्वतंत्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनंद प्राप्त होता है जो करने योग्य हैं। कोल के अनुसार-“बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट: रने का नाम स्वतंत्रता है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“स्वतंत्रता का निहितार्थ है जंजीर से मुक्ति, बन्दीकरण से मुक्ति, दासता से मुक्ति।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। (“Liberty implies freedom from chains, from imprisonment and from ensalyement” Discuss)
उत्तर:
स्वतंत्रता क अर्थ है व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का राजनीतिक या सामाजिक दबाव नहीं होना। जे. एस. मिल इसी प्रकार की स्वतंत्रता के समर्थक थे परंतु ऐसी पूर्ण स्वतंत्रता समाज में संभव नहीं। शासको एवं अधिकारियों को भी कानून के अनुसार चलना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता तभी मिल सकती है जबकि उसके कार्यों पर सामाजिक हित में उचित प्रतिबंध भी हो। वास्तविक स्वतंत्रता में अनुचित प्रतिबंधों का अभाव है, सभी प्रकार के कानूनों तथा सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं।

लॉक का कहना है, “जहाँ कानून नहीं वहाँ स्वतंत्रता नहीं। (Where there is no law there is no freedom)। इस प्रकार स्वतंत्रता अनुचित प्रतिबंधों का अभाव है, उनसे मुक्ति है दासता, बन्दीकरण तथा बैड़ियाँ ऐसे अनुचित प्रतिबंध हैं जिनके कारण व्यक्ति स्वतंत्रता का प्रयोग नहीं कर सकता। इसीलिए कहा गया है कि स्वतंत्रता के अर्थों में यह बात निहित है कि व्यक्ति को बेड़ियों से मुक्ति प्राप्त हो, बंदी बनाए जाने के डर से मुक्ति हो, दासता की बेड़ियों से छुटकारा प्राप्त हो।

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प्रश्न 2.
क्या स्वतंत्रता असीम है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने का नाम स्वतंत्रता है परंतु यदि प्रत्येक को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी। एक-दूसरे की स्वतंत्रता में बाधा पहुँचेगी। असीमित स्वतंत्रता अपने आप में विरोधाभास है। सभ्य समाज में स्वतंत्रता बंधन व कानूनों की सीमा में ही होनी चाहिए। जब भी स्वतंत्रता असीम हो जाती है, तो वह वह नकारात्मक स्वतंत्रता बन जाती है और व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का बंधन नहीं होता।

इस प्रकार की स्वतंत्रता के अन्तर्गत व्यक्ति कुछ भी कर सकता हैं जिससे दूसरे व्यक्तियों की स्वतंत्रता नष्ट हो सकती है। अत: व्यक्ति को केवल ऐसे कार्य करने चाहिए, जिससे दूसरों की स्वतंत्रता पर चोट न पहुँचती हो। बार्कर ने लिखा है, “जिस प्रकार कुरूपता का न होना सुन्दरता नहीं है, उसी प्रकार बंधनों का न होना स्वतंत्रता नहीं है।” (“As beauty is not the absence of ugliness so liberty is not the absence of restraints”) अतः स्वतंत्रता असीम नहीं हो सकती।

प्रश्न 3.
क्या प्रत्येक कानून स्वतंत्रता का रक्षक है? (Does every law defend liberty?)
उत्तर:
प्रत्येक कानून से स्वतंत्रता की रक्षा होती है ऐसा आवश्यक नहीं है। ब्रिटिश काल के अनेक कानून भारतीय जनता की स्वतंत्रता को कुचलने वाले थे। रौलेट एक्ट, सेफ्टी एक्ट, वर्नाकुलर प्रेस एक्ट आदि इस प्रकार के कानून बनाए गए थे जिनके विरुद्ध भारतीयों ने घोर संघर्ष किया। गाँधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिए सत्याग्रह किया।

यदि कानून अच्छे हों तो जनता उनका खुशी से पालन करती है, परंतु यदि कानून जनता के हित में नहीं है तो ऐसे कानूनों का जनता सख्ती से विरोध करती है। स्वतंत्रता और प्रभुता के सामंजस्य से जो कानून बनते हैं वे अधिक अच्छे हैं। गेटेल ने लिखा है-“प्रभुत्ता की अधिकता से स्वतंत्रता का नाश होता है। वह अत्याचार में बदल जाती है। इसी प्रकार स्वतंत्रता की अति से अराजकता फैल जाता है और प्रभुता का नाश होता है।” कई बार मजदूरों की स्थिति में सुधार के लिए कानून बनाए जाते हैं। वे कानून स्वतंत्रता में बाधा नहीं पहुँचाते वरन् स्वतंत्रता के समर्थक होते हैं।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक स्वतंत्रता तथा नैतिक स्वतंत्रता क्या हैं? (What are political, economic and moral liberties?)
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty):
राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है ऐसी स्वतंत्रता जिसके द्वारा नागरिकों को राज्य के कार्यों में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। लास्की के अनुसार, “राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ राज्य के कार्यों में क्रियाशील होना है।” लीकॉक के अनुसार, “राजनीतिक स्वतंत्रता संवैधानिक स्वतंत्रता है और इसका अर्थ यह है कि लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार होना चाहिए।

“राजनीतिक स्वतंत्रता में नागरिकों को मतदान करने का अधिकार प्राप्त रहता है। इसके अतिरिक्त चुने जाने का अधिकार तथा सार्वजनिक पद पाने का अधिकार एवं सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करने का अधिकार भी राजनीतिक स्वतंत्रता से संबंधित हैं। प्रो. लास्की का मत है कि राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सबको शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो। साथ ही स्वतंत्र व निष्पक्ष प्रेस भी आवश्यक है।

आर्थिक स्वतंत्रता (Economic Liberty):
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है-बिना दूसरों पर निर्भर हुए जीवन-यापन की सभी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति। व्यक्ति की भूख तथा बेरोजगारी से मुक्ति, आर्थिक स्वतंत्रता कहलाती है। मनुष्य को अपनी आर्थिक उन्नति के लिए समान अवसर प्राप्त हों। काम करने का अधिकार, न्यूनतम वेतन, काम के निश्चित घंटे, अवकाश पाने का अधिकार, बेकारी, बीमारी तथा बुढ़ापे में सहायता प्राप्त होना आदि आर्थिक स्वतंत्रता की अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं।

एक निर्धन व्यक्ति को मतदान का अधिकार मिलने से ही उसकी स्वतंत्रता पूरी नहीं हो जाती, क्योंकि जब तक वह आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं होगा तब तक वह अपनी इस राजनीतिक स्वतंत्रता का उपभोग भी नहीं कर पायेगा, क्योंकि वह मतदान में या तो भाग ही नहीं ले पाता या अपने मत का प्रयोग स्वतंत्रतापूर्वक अपनी इच्छानुसार नहीं कर पाता; धनी व्यक्ति उसके मत को खरीद लेते हैं अथवा धनी एवं बाहुबली उसको डराकर उसे अपने पक्ष में कर लेते हैं। अत: आर्थिक समानता आर्थिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता का होना भी निरर्थक होता है।

नैतिक स्वतंत्रता (Moral Liberty):
काण्ट (Kant) के अनुसार नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्तिगत स्वायत्तता अर्थात् हम स्वयं अपने मालिक हैं। व्यक्ति में समाज के प्रति प्रेम, त्याग, सहानुभूति, सहयोग आदि भावनाओं का विकास होना चाहिए। नैतिक स्वतंत्रता केवल राज्य में ही प्राप्त हो सकती है, क्योंकि राज्य ही उन परिस्थितियों की स्थापना करता है जिसमें व्यक्ति नैतिक रूप से उन्नति कर सकता है। लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था के लिए तो नैतिक स्वतंत्रता और भी अधिक आवश्यक है, क्योंकि नैतिक स्वतंत्रता व्यक्ति की मानसिक स्थिति से संबद्ध है जिससे वह बिना लोभ-लालच के अपना सामाजिक जीवन-यापन करता है और अपनी विवेकपूर्ण शक्ति का प्रयोग समाज के हित में करता है।

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प्रश्न 5.
स्वतंत्रता और समानता के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करें। (What is the relationship between liberty and equality?)
उत्तर:
स्वतंत्रता और समानता के बीच वैचारिक स्तर पर कोई समानता न होकर स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे के सिद्धांतों को लागू करने का माध्यम बनते हैं। हालांकि स्वतंत्रता और समानता को कुछ विचारक एक समान मानते हैं लेकिन उनकी यह धारणा पूर्णतया इस आधार पर गलत है कि समानता अपने मूल अभिप्राय से किसी को स्वतंत्रता प्रदान नहीं करती है, वैसे ही स्वतंत्रता अपने उद्देश्यों के लिए किया जाता है जिससे कि स्वतंत्रता को समानता के सिद्धांत के अनुरूप सबको समान रूप से वितरित किया जाए।

अब इस समानता के आधार पर प्राप्त होने वाली स्वतंत्रता को लोग कैसे इस्तेमाल करते हैं, यह उनकी क्षमता पर निर्भर करता है। इसीलिए स्वतंत्रता और समानता एक दूसरे की विचारधारा की विरोधी नहीं अपितु स्वतंत्रता और समानता की विचारधारा एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी यह दोनों विचारधारा एक दूसरे के साथ सहयोग करके ही स्वतंत्रता को समानातापूर्वक लोगों के बीच क्रियान्वित किया जा सकता है। इस कारण स्वतंत्रता और समानता के बीच का सम्बन्ध स्वतंत्रता को समानतापूर्वक लोगों के बीच लागू करने का एकमात्र माध्यम बनता है अर्थात् बिना समानता के स्वतंत्रता लोगों पर समान रूप से लागू नहीं हो सकती है।

प्रश्न 6.
स्वतंत्रता का अर्थ और कार्य क्षेत्र को वर्णित करें। (Describe the meaning and scope of liberty)
उत्तर:
स्वतंत्रता के अर्थ को सामान्यत: इस रूप से जाना जाता है कि स्वतंत्रता वह सब कुछ करने की शक्ति है जिससे किसी दूसरे को आघात न पहुँचे। स्वतंत्र व्यक्ति को अपनी इच्छा स्वरूप कार्य करने की स्वतंत्रता होती है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में मूल सहायक तत्व स्वतंत्रता, जिसमें व्यक्ति अपनी इच्छा को पहचानता है और अपनी अच्छी अनुरूप अपने कार्य को पूर्ण करता है। अगर स्वतंत्रता सम्बन्धी अधिकार व्यक्ति को प्राप्त न हो तो निश्चित है कि व्यक्ति का विकास होना सम्भव नहीं है।

इस मूल तथ्य को स्वीकारते हुए कि स्वतंत्रता व्यक्ति का प्राकृतिक अधिकार है, स्वतंत्रता को मूल रूप से व्यक्ति द्वारा निर्मित किया गया है। इसीलिए स्वतंत्रता व्यक्ति का मूल अधिकार है। भारतीय संविधान में स्वतंत्रता के अधिकार को अनुच्छेद 19 से लेकर अनुच्छेद 22 तेक में वर्णित किया गया है। स्वतंत्रता के क्षेत्र में दो प्रकार की स्वतंत्रता व्यक्ति के संदर्भ में आती है। पहली व्यक्तिगत स्वतंत्रता और दूसरी सामाजिक स्वतंत्रता। व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक स्वतंत्रता दोनों ही मनुष्य के विकास के लिए अनिवार्य होती हैं। बिना इन दो तत्वों के संतुलन के व्यक्ति न तो स्वयं अपना स्वतंत्रतापूर्वक विकास कर सकता है और न ही व्यक्ति अपने को स्वतंत्र समझ सकता है। इस कारण स्वतंत्रता व्यक्ति की आवश्यकता का मूल आधार बन जाती है।

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प्रश्न 7.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता को स्पष्ट करें। (Define the Personal Liberty)
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मूल अभिप्राय है कि व्यक्ति के वह कार्य जो उसकी निजी आवश्यकताओं से संबंधित हों, तथा इन आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वह अपनी निजी इच्छा अनुरूप स्वतंत्र हो। व्यक्तिगत स्वतंत्रता में भोजन, वस्त्र, धर्म, पारिवारिक जीवन, निजी सम्पत्ति आदि सम्मिलित हैं। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बारे में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि “मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरीर, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति सम्प्रभु है।”

उपरोक्त कथन यह स्पष्ट करता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता व्यक्ति की स्वयं की इच्छा से संबंधित होती है तथा ऐसी इच्छा को हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता कह सकते हैं जो अपने निर्णय के अनुरूप कार्य कर सकने में अपने को स्वतंत्र महसूस कर सके। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का निर्धारण स्वयं व्यक्ति की अपनी निजी परिस्थितियों और निजी आवश्यकताओं के अनुरूप होता है। व्यक्तिवादी स्वतंत्रता सम्बन्धी अवधारणा को बहुलवादी और उदारवादी विचारकों द्वारा किया गया, तथा यह भी सत्य है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सैद्धान्तिक और उसका व्यावहारिक पक्ष केवल लोकतंत्रीय राजनीतिक विचारधारा से सम्बद्ध है।

प्रश्न 8.
नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक स्वतंत्रता के बीच अंतर को स्पष्ट करें। (Distinguish between Civil Liberty and Political liberty)
उत्तर:
नागरिक स्वतंत्रता का मूल तात्पर्य यह है कि ऐसी स्वतंत्रता को राज्य के माध्यम से दिया जाता है। यह स्वतंत्रता व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता होती है, जिसका संरक्षण और प्रभाव राज्य द्वारा संरक्षित अवश्य होना चाहिए, तभी इस मूलभूत स्वतंत्रता को व्यक्ति अपने विकास में प्रयोग करेगा, बिना किसी की स्वतंत्रता को बाधित किए हुए। नागरिक स्वतंत्रता को दो भागों में विभक्त किया गया है –

  1. शासन के विरुद्ध व्यक्ति की स्वतंत्रता और
  2. व्यक्ति की व्यक्ति से और व्यक्तियों के समुदाय से स्वतंत्रता।

लास्की ने राजनीतिक स्वतंत्रता के अर्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “राज्य के कार्यों में सक्रिय भाग लेने की शक्ति को राजनीतिक स्वतंत्रता कहा जाता है।” लेकिन यह राजनीतिक स्वतंत्रता लोकतांत्रिक पद्धति में ही सम्भव है, न कि अन्य किसी निरंकुश रूप में। लीकॉक द्वारा राजनीतिक स्वतंत्रता को संवैधानिक स्वतंत्रता के रूप में देखा गया जिसका विस्तृत अर्थ यह था कि जनता अपने शासक को अपनी इच्छा के अनुसार चुन सके और चुने जाने के उपरांत यह शासक वर्ग जनता के प्रति उत्तरदायी हो। इस कारण राजनीतिक स्वतंत्रता ने व्यक्ति को दो अधिकार दिए –

  1. मतदान का अधिकार और
  2. निर्वाचित होने का अधिकार। इस प्रकार राजनीतिक स्वतंत्रता लोगों को राज्य के संदर्भ में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार देती है।

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प्रश्न 9.
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ और क्षेत्र वर्णित कीजिए। (Describe the meaning and scope of Economic Liberty)
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता के अर्थ और सिद्धांत को उदारवाद के संदर्भ में जाना जाता है। आर्थिक स्वतंत्रता का तात्पर्य उदारवाद के संदर्भ में यह है कि व्यक्तियों के आर्थिक जीवन में राज्य के माध्यम से किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यह धारणा उदारवादियों में इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि मध्य युग में सामंती राज्यों ने भूमि, वस्तुओं तथा सम्पत्ति के क्रय-विक्रय, ‘श्रमिक, धन के लेन-देन आदि पर काफी प्रकार के कड़े प्रतिबंध लगा रखे थे, जिसके कारण आर्थिक सम्पन्नता का सारा केन्द्र राज्य और शासक वर्ग बना तथा राज्य का शासक वर्ग राज्य शक्ति और धन शक्ति को अपने नियंत्रण में रखकर इससे लोगों पर वह अपनी निरंकुशता स्थापित करता था।

इसलिए इस पद्धति को बदलने के लिए आर्थिक स्वतंत्रता में आर्थिक न्याय और आर्थिक समानता की धारणा आर्थिक तत्व का मूल आधार बन गयी। इसलिए राज्य की उदारवादी आर्थिक स्वतंत्रता की धारणा व्यक्ति को स्वतंत्रतापूर्वक आर्थिक विकास करने पर विशेष बल देने लगी और इस आर्थिक स्वतंत्रता में संतुलन की वास्तविक सीमा स्वयं उभरना स्वाभाविक हुई और इसी धारणा ने राज्य के आर्थिक स्वतंत्रता को संतुलित रूप में पेश करने में महत्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त किया। इस कारण आर्थिक स्वतंत्रता का उपरोक्त तथ्य आर्थिक स्वतंत्रता विकास का मूल मंत्र बन गया लेकिन आर्थिक स्वतंत्रता की अवधारणा केवल लोकतांत्रिक राज्यों से ही सम्बद्ध हुई न कि निरंकुश राज्य से सम्बद्ध हुई।

प्रश्न 10.
आर्थिक स्वतंत्रता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता के परस्पर सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। (Explain the mutual relationship between economics and political liberties)
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है जीवन-यापन की सभी सुविधाओं या अवसरों की प्राप्ति होना। आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर ही व्यक्ति अपनी राजनीतिक स्वतंत्रता का उचित रूप से प्रयोग कर सकता है। राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है, अपने प्रतिनिधि चुनने की स्वतंत्रता का अर्थात् मतदान का अधिकार प्राप्त हो।

सार्वजनिक पद पाने का अधिकार हो तथा सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुए बिना राज्य के कार्यों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले सकता। एक धनी व्यक्ति निर्धनों के मत खरीद कर सत्ता पर अपना अधिकार प्राप्त कर लेता है और तब वह गरीबों का शोषण करता है। वास्तव में राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक अर्थहीन है जब तक उसे आर्थिक स्वतंत्रता का ठोस आधार नहीं मिलता।

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प्रश्न 11.
राष्ट्रीय स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by national liberty?)
उत्तर:
राष्ट्रीय स्वतंत्रता (National Liberty):
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है स्वराज्य। व्यक्ति की भाँति राष्ट्र को भी स्वतंत्र रहने का अधिकार है। राष्ट्रीय स्वतंत्रता के अन्तर्गत प्रत्येक राष्ट्र का यह अधिकार है कि वह स्वतंत्रतापूर्वक अपनी नीतियों का निर्धारण कर सके तथा उन्हें लागू कर सके। दास देशों द्वारा अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता की माँग करना राष्ट्रीय स्वतंत्रता है। 20 वीं शताब्दी में अफ्रीकी व एशिया के बहुत देशों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया तथा अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता प्राप्त की।

प्रश्न 12.
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by Personal Liberty?)
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ है कि मनुष्यों को व्यक्तिगत मामलों में पूरी तरह स्वतंत्र होनी चाहिए। भोजन, वस्त्र, शादी तथा रहन-सहन आदि व्यक्ति के व्यक्तिगत मामले हैं। राज्य को चाहिए कि वह उन मामलों में हस्तक्षेप न करे। जॉन स्टुअर्ट मिल के अनुसार, “उस सीमा तक व्यक्ति को व्यक्तिगत स्वंतत्रता प्राप्त होनी चाहिए जहाँ तक कि उसके कार्यों से अन्य व्यक्तियों को हानि न पहुँचती हो।” मिल के अतिरिक्त बर्नार्ड रसेल तथा रूसो आदि राजनीतिक दार्शनिकों ने भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन किया है।

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प्रश्न 13.
किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग के लिए आवश्यक दो दशाएँ बताइए। (Describe any two conditions which are essential for the individual to enjoy liberty)
उत्तर:
स्वतंत्रता का अर्थ है ‘प्रतिबंधों का अभाव’, परंतु सकारात्मक रूप में स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति पर उन प्रतिबंधों को हटाना जो अनैतिक और अन्यायपूर्ण हों। किसी व्यक्ति द्वारा स्वतंत्रता के उपभोग की दो आवश्यक दशाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. स्वतंत्रता समाज के सभी व्यक्तियों को समान रूप से होनी चाहिए। समाज के एक वर्ग को स्वतंत्रता प्राप्त होने और दूसरे को प्राप्त न होने से स्वतंत्रता का उपभोग कठिन होता है।
  2. जिनके पास राजसत्ता है उनके द्वारा सत्ता का दुरुपयोग न हो। यदि किसी देश या समाज में ऐसा हो तो वहाँ के लोग स्वतंत्रता का उपभोग ठीक प्रकार से नहीं कर सकते।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क दीजिए। अथवा, “स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं अपितु उचित नियंत्रण का होना है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। (Give arguments in favour of Positive Liberty) Or, (“Liberty does not mean absence of restraints but imposition of rational restraints. “Explain)
उत्तर:
गैटेल (Gatel) का कथन है कि स्वतंत्रता का केवल नकारात्मक रूप ही नहीं है वरन् सकारात्मक रूप भी है। उसके शब्दों में, “स्वतंत्रता वह सकारात्मक शक्ति है जिसके द्वारा उन कार्यों को करके आनंद प्राप्त किया जाता है जो करने योग्य हैं।”

(Liberty is the positive power of doing and enjoying those thing which are worthy of enjoyment and work-Gettel)
इस कथन से स्पष्ट है कि केवल बंधनों को दूर करने मात्र से ही सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती। जिस प्रकार कुरूपता के अभाव को सौन्दर्य नहीं कह सकते, सौन्दर्य के लिए कुछ और अधिक भी चाहिए। उसी प्रकार स्वतंत्रता के लिए बंधनों के अभाव के अतिरिक्त भी किसी और वस्तु की आवश्यता है; जो वह है अवसर की उपस्थिति। इसीलिए मैकेन्जी (Machenjie) ने कहा है, “स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं अपितु उचित नियंत्रण का होना है।”

(Liberty does not mean absence of restraints but imposition of rational restraints)

सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन में तर्क (Arguments in favour of positive liberty):

सकारात्मक स्वतंत्रता की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव नहीं, स्वतंत्रता को वास्तविक बनाने के लिए उस पर उचित प्रतिबंध आवश्यक है।
  2. समाज और व्यक्ति के हितों में कोई विरोध नहीं है।
  3. स्वतंत्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं हैं। कानून स्वतंत्रता को नष्ट नहीं करते वरन् स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं।
  4. स्वतंत्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान होना है जो व्यक्ति के विकास में सहायक हों।
  5. स्वतंत्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है। जितनी अधिक स्वतंत्रता होगी उतने अधिक अधिकार होंगे। अधिकारों के बिना व्यक्ति को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती।
  6. राजनीतिक व नागरिक स्वतंत्रता का मूल्य आर्थिक स्वतत्रंता के अभाव में निरर्थक है।
  7. राज्य का कार्य ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।
  8. वांछनीय व उचित कार्यों को करने की सुविधा होती है। यदि अवांछनीय एवं अनुचित कार्य करने की स्वतंत्रता हो तो स्वतंत्रता स्वेच्छाचारिता बन जाएगी।

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प्रश्न 2.
“स्वतंत्रता का अर्थ प्रतिबंधों का अभाव है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं? (“Liberty means absence of restraints.” Do you agree with this view?)
उत्तर:
स्वतंत्रता का अर्थ दो प्रकार से लिया जाता है। एक अर्थ ‘प्रतिबंधों का अभाव’ और दूसरे अर्थ में व्यक्ति के कार्यों पर उचित प्रतिबंध लगाना।

1. स्वतंत्रता प्रतिबंधों का अभाव है (Liberty is the absence of restraints):
कुछ विचारकों का मत है कि व्यक्ति तभी स्वतंत्र रह सकता है जब उसके कार्यों से सभी प्रतिबंध हटा लिए जाएँ और उसे इच्छानुसार कार्य करने दिया जाए। जे. एस. मिल इस प्रकार की स्वतंत्रता के समर्थक थे। उनका कहना है कि “व्यक्ति अपना भला-बुरा स्वयं सोच सकता है और पूर्ण स्वतंत्रता मिलने पर वह अपना सर्वोत्तम विकास कर सकता है।

“यदि व्यक्ति के आचरण या कार्यों पर किसी प्रकार का भी प्रतिबंध है तो उसकी स्वतंत्रता वास्तविक नहीं हो सकती और ऐसी दशा में वह अपना सर्वोत्तम विकास नहीं कर सकता। इस प्रकार की विचारधारा को मानने वाले विद्वान नैतिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक सभी प्रकार के तर्कों के आधार पर इस बात पर जोर देते हैं कि व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। यही वास्तविक स्वतंत्रता है।

2. व्यक्ति के कार्यों पर उचित प्रतिबंध लगाना ही स्वतंत्रता है (Liberty is the imposition of rational restraints):
प्रतिबंधों के अभाव में समाज में जंगल जैसा वातावरण हो सकता है। शक्तिशाली निर्बलों को सताने लगते हैं, अव्यवस्था फैलने लगती है। अतः स्वतंत्रता सबको तभी मिल सकती हैं जबकि सभी व्यक्तियों के कार्यों और आचरण पर उचित प्रतिबंध हो। कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को हानि न पहुँचा सके। कानून द्वारा समाज में व्यवस्था स्थापित की जा सकती है। लॉक के अनुसार, “जहाँ कानून नहीं वहाँ स्वतंत्रता नहीं।” कानून द्वारा ही ऐसा वातावरण स्थापित किया जा सकता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपनी इच्छानुसार स्वतंत्रतापूर्वक कार्य कर सके; परंतु मनमानी नहीं करे।

स्वतंत्रता का अर्थ है व्यक्ति को करने योग्य कार्य करने की छूट और भोगने योग्य वस्तु को भोगने की स्वतंत्रता या शक्ति प्राप्त करना। परंतु मनमानी (निरंकुशता) करना नहीं। यह तभी हो सकता है जब प्रत्येक व्यक्ति पर उचित प्रतिबंध लगाए जाएँ, जिससे कि व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के कार्यों में हस्तक्षेप न करे। प्रतिबंधों के अभाव में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ होने लगती है। अतः यह सत्य है कि वास्तविक स्वतंत्रता प्रतिबंधों का अभाव नहीं वरन् अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों को लगाना है। तभी प्रत्येक व्यक्ति अपना सर्वोत्तम विकास कर सकता है।

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प्रश्न 3.
“राजनीतिक स्वतंत्रता आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक है।” इस कथन पर टिप्पणी कीजिए। (“Political liberty is meaningless without economic equality.” Comment)
उत्तर:
स्वतंत्रता और समानता प्रजातंत्र के दो स्तंभ माने जाते हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता के सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए लास्की और सामानला धजातंत्र कोके दो स्तंभम्बन्धबातो हैं या डोयों एक-दसुरे के प्रका (Laski) ने कहा है, “आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता एक धोखा मात्र है, मिथ्या है, पाखण्ड है और कहने की ही बात है।” लोस्की के इस कथन की सत्यता जानने के लिए यह आवश्यक है कि हम पहले राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता का अर्थ समझें।

राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty):
राजनीतिक स्वतंत्रता का अभिप्राय है कि व्यक्ति देश के शासन में भाग ले सकता है। नागरिकों को मतदान का अधिकार होता है। प्रतिनिधि चुने जाने का अधिकार है। सार्वजनिक पद पाने का अधिकार है। सरकार की नीतियों की आलोचना का अधिकार है।

आर्थिक समानता (Economics Equality):
आर्थिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को अपनी आजीविका कमाने हेतु समान अवसर उपलब्ध हों। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त होने चाहिए। आर्थिक असमानता कम से कम होनी चाहिए। आर्थिक शोषण नहीं होना चाहिए तथा उत्पादन और वितरण के साधनों की ऐसी व्यवस्था हो जो सबके हित में हों।

राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक समानता में संबंध (Relationship between Liberty and. Economic Equality)

1. निर्धन व्यक्ति के लिए मताधिकार अर्थहीन है (Right to vote is meaningless for a poor person):
राजनीतिक अधिकारों में वोट का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है परंतु एक निर्धन व्यक्ति के लिए, जिसे रोटी खाने को नहीं मिलती, रोटी का वोट के अधिकार से अधिक मूल्य है। राजनीतिक स्वतंत्रता के समर्थक यह भूल जाते हैं कि व्यक्ति के लिए वोट डालने और चुनाव लड़ने के अधिकार से अधिक आवश्यक रोटी, कपड़ा और मकान है।

2. निर्धन व्यक्ति द्वारा मत का सदुपयोग असंभव (Proper use of vote is impossible for a poor person):
मताधिकार न केवल अधिकार है वरन् परम कर्तव्य भी है। निर्धन व्यक्ति न तो शिक्षा प्राप्त कर सकता है, न ही देश की समस्याओं को समझ सकता है। अतः वह अपने मत का सदुपयोग भी नहीं कर सकता।

3. निर्धन व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना असंभव है (Contesting an Election is impossible for a poor man):
आजकल चुनाव लड़ने में लाखों रुपया खर्च होता है। निर्धन व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति ही नहीं कर सकता। चुनाव लड़ना तो दूर रहा, वह चुनाव लड़ने का स्वप्न भी नहीं देख सकता।

4. राजनीतिक दलों पर भी धनियों का ही नियंत्रण रहता है (Political parties are controlled by the rich):
राजनीतिक दल धनी व्यक्तियों के निर्देशन पर ही चलते हैं। निर्धन व्यक्ति का राजनीतिक दल पर भी कोई प्रभाव नहीं होता। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक स्वतंत्रता, आर्थिक समानता के अभाव में निरर्थक है।

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प्रश्न 4.
“कानून तथा स्वतंत्रता परस्पर विरोधी नहीं हैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। (“Law and liberty are not antagonistic.” Comment, अथवा, कानून तथा स्वतंत्रता के परस्पर संबंधों का वर्णन कीजिए। (Discuss the mutual relationship between law and liberty)
उत्तर:
राजनीतिक विज्ञान के कुछ विचारकों का मत है कि कानून और स्वतंत्रता परस्पर विरोधी हैं। वे कहते हैं कि कानूनों द्वारा स्वतंत्रता पर अंकुश लगता है और स्वतंत्रता कम हो जाती है। राजनीतिक विज्ञान के कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि कानून स्वतंत्रता विरोधी नहीं है बल्कि कानून के द्वारा ही व्यक्ति को सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त होती है।

कानून स्वतंत्रता का विरोधी है (Law is opposed to Liberty):
इस विचार को मानने वालों का मत है कि राज्य जितने अधिक कानून बनाता है व्यक्ति की स्वतंत्रता उतनी ही कम हो जाती है। व्यक्तिवादियों व अराजकतावादियों का यही मत है।

1. व्यक्तिवादियों का मत (Views of Individualists):
18 वीं शताब्दी में व्यक्तिवादियों ने व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया और यह कहा था कि राज्य के कानून व्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक प्रतिबंध हैं, इसलिए व्यक्ति की स्वतंत्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कम से कम करे अर्थात् उनके अनुसार वह सरकार सबसे अच्छी है जो कम से कम शासन करती है।

2. अराजकतावादियों का मत (Views of Anarchists):
अराजकतावादियों के अनुसार राज्य प्रभुसत्ता का प्रयोग करके नागरिकों की स्वतंत्रता को नष्ट करता है, अतः अराजकतावादियों ने राज्य को समाप्त करने पर जोर दिया ताकि राज्यविहीन समाज की स्थापना की जा सके।

कानून स्वतंत्रता का रक्षक है (Law protects the Liberty):
राजनीति विज्ञान के जो विचारक स्वतंत्रता का सकारात्मक अर्थ स्वीकार करते हैं और स्वतंत्रता पर उचित बंधनों को आवश्यक मानते हैं, वे कानून को स्वतंत्रता की पहली शर्त समझते हैं और सत्ता को आवश्यक मानते हैं। हॉब्स जो निरंकुशवादी माना जाता है, स्वीकार करता है कि कानून के अभाव में व्यक्ति हिंसक पशु बन जाता है।

अतः सत्ता व कानून का होना आवश्यक है, ताकि व्यक्ति स्वतंत्रतापूर्वक जीवन बिता सके । लॉक (Locke) ने कहा कि “जहाँ कानून नहीं है वहाँ स्वतंत्रता नहीं है” रिची (Rithce) के शब्दों में, “कानून आत्म विकास के सुअवसर के रूप में स्वतंत्रता को संभव बनाते हैं और सत्ता के अभाव में इस प्रकार की स्वतंत्रता संभव नहीं हो सकती।”

आदर्शवादी विचारकों ने कानून व स्वतंत्रता में गहरा संबंध स्वीकार किया है और उनके अनुसार स्वतंत्रता न केवल कानून द्वारा सुरक्षित है अपितु कानून की देन है। हीगल के अनुसार, “राज्य में रहते हुए कानून के पालन में ही स्वतंत्रता निहित है।” हीगल ने राज्य को सामाजिक नैतिकता की साक्षात् मूर्ति कहा है और कानून चूँकि राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति है, अत: नैतिक रूप से भी स्वतंत्रता कानून के पालन में ही निहित है। अन्त में निष्कर्ष कहा जा सकता है कि कानून स्वतंत्रता का विरोधी नहीं वरन् कानून के पालन से ही स्वतंत्रता संभव है। यदि कानून समाज के प्रबल व्यक्तियों पर अंकुश लगाए तो समाज के बहुत से व्यक्तियों को किसी प्रकार की कोई स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हो सकती।’

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प्रश्न 5.
स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं? व्याख्या कीजिए। (What are the different kinds of liberty? Explain)
उत्तर:
स्वतंत्रता के प्रकार (Kinds of Liberty):

1. प्राकृतिक स्वतंत्रता (Natural Liberty):
प्राकृतिक स्वतंत्रता वह स्वतंत्रता है जिसका मनुष्य राज्य की स्थापना से पहले प्रयोग करता था। रूसो (Rousseau) के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से स्वतंत्र पैदा होता है, परंतु समाज में आकर वह बंधन में बंध जाता है। प्रकृति की ओर से व्यक्ति पर किसी प्रकार के बंधन नहीं होते परंतु अधिकतर राजनीति शास्त्री इस मत से सहमत नहीं हैं। हरबर्ट स्पेन्सर कहता है, “स्वतंत्रता का अर्थ उस व्यवस्था से है जिसमें प्रत्येक मनुष्य को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतंत्रता रहे, यदि वह दूसरों की उतनी ही स्वतंत्रता का उल्लंघन न कर रहा हो।”

2. व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Individual Liberty):
व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ है कि मनुष्यों को व्यक्तिगत मामलों में पूरी तरह से स्वतंत्रता होना चाहिए। भोजन, वस्त्र, शादी-विवाह, रहन-सहन आदि मामलों में राज्य को दखल नहीं देना चाहिए।

3. राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Liberty):
राजनीतिक स्वतंत्रता ऐसी स्वतंत्रता को कहते हैं जिसके अनुसार किसी देश के नागरिक अपने देश की सरकार में भाग लेने का अधिकार रखते हैं। नागरिकों को मताधिकार, चुनाव में खड़े होने का अधिकार, आवेदन देने का अधिकार तथा सरकारी नौकरी पाने का अधिकार रंग, जाति व धर्म आदि के भेदभाव के बिना सबको प्रदान किए जाते हैं।

4. आर्थिक स्वतंत्रता (Economics Liberty):
आर्थिक स्वतंत्रता से अभिप्राय ऐसी स्वतंत्रता से है जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि व योग्यतानुसार व्यवसाय करने की स्वतंत्रता हो, देश में उद्योग-धंधों को सुचारू रूप से चलाने की स्वतंत्रता हो और उनको सुचारू रूप से चलाने की व्यवस्था बनायी जाए। धन का उत्पादन व वितरण ठीक ढंग से हो व बेरोजगारी न हो।

5. धार्मिक स्वतंत्रता (Religious Liberty):
धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है-प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने की स्वतंत्रता हो। राज्य का कोई विशेष धर्म नहीं होता। विभिन्न धर्म के मानने वालों में कोई भेद नहीं किया जाता। इसी भावना के अनुसार भारत को धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है।

6. राष्ट्रीय स्वतंत्रता (National Liberty):
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ है कि राष्ट्र को विदेशी नियंत्रण से स्वतंत्रता प्राप्त होती है। एक स्वतंत्र राष्ट्र ही अपने नागरिकों को अधिकार तथा स्वतंत्रता प्रदान कर सकता है जिससे नागरिक अपना सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक विकास कर सकें।

7. नैतिक स्वतंत्रता (Moral Liberty):
व्यक्ति पूर्ण रूप से तभी स्वतंत्र हो सकता है जबकि वह नैतिक रूप से भी स्वतंत्र हो। नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि तथा विवेक के अनुसार निर्णय ले सके। हीगल तथा ग्रीन ने नैतिक स्वतंत्रता पर बल दिया है। उनके अनुसार राज्य ऐसी परिस्थितियों की स्थापना करता है, जिससे मनुष्य नैतिक रूप से उन्नति कर सकता है।

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प्रश्न 6.
स्वतंत्रता की परिभाषा दें। इसके नकारात्मक एवं सकारात्मक पहलुओं के अंतर की व्याख्या कीजिए। (Define liberty Discuss the difference between negative and positive aspects of liberty)
उत्तर:
स्वतंत्रता शब्द जिसे अंग्रेजी में Liberty कहते हैं, लैटिन भाषा के शब्द लिबर (Liber) से लिया गया है। जिसका अर्थ है किसी प्रकार के बंधनों का न होना। इस प्रकार स्वतंत्रता का अर्थ है – व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का बंधन न होना जिससे कि वह अपनी इच्छानुसार कार्य कर सके, परंतु यह उचित नहीं है कि यदि एक जेबकतरे को जेब काटने की पूर्ण स्वतंत्रता दे दी जाए या एक डाकू को नागरिकों को लूटने के लिए स्वतंत्रता दे दी जाए तो समाज में कुव्यवस्था फैल जाएगी। वास्तव में स्वतंत्रता का वास्तविक एंव औचित्यपूर्ण अर्थ यह है कि व्यक्ति को उस सीमा तक कार्य करने की स्वतंत्रता हो जिससे अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता का अतिक्रमण न हो, इसके साथ ही सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

गैटेल (Géttel) का कथन है कि “स्वतंत्रता वह सकारात्मक शक्ति है जिसके द्वारा उन कार्यों को करके आनंद प्राप्त किया जाता है, जो करने योग्य है।” (“’Liberty is the positive power of doing and enjoining those things which are worthy of enjoyment and work.”)। स्वतंत्रता के नकारात्मक तथा सकारात्मक पहलुओं में अंतर (Difference between Negative and positive aspects of Liberty)
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प्रश्न 7.
आर्थिक स्वतंत्रता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता के सम्बन्धों की विवेचना कीजिए। (Discuss the relations between Economic Liberty and Political Liberty)
उत्तर:
राजनीतिक स्वतंत्रता तथा आर्थिक स्वतंत्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक अर्थहीन है जब तक कि उसे आर्थिक स्वतंत्रता का ठोस आधार नहीं मिलता। राजनीतिक स्वतंत्रता का अर्थ है नागरिकों को राज्य के कार्यों में भाग लेने का अवसर प्राप्त होना। राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग है कि नागरिक शासन कार्यों में सहयोग करें तथा सहभागी बनें तथा राजनीतिक गतिविधियों में अपना योगदान दें। परंतु राजनीतिक स्वतंत्रता उस समय तक अर्थहीन है जब तक कि नागरिक को आर्थिक स्वतंत्रता नहीं मिलती।

कोई भी नागरिक आर्थिक रूप से स्वतंत्र हुए बिना राज्य की राजनीति में सक्रिय भाग नहीं ले सकता। वह अपने मत का प्रयोग भी उचित प्रकार से नहीं कर सकता। लालच में पड़कर भूखा व्यक्ति अपना मत बेच सकता है और इस प्रकार स्वतंत्रता खतरे में पड़ सकती है। धनी व्यक्ति लालच देकर निर्धन व्यक्तियों के मत अपने पक्ष में प्राप्त करके सत्ता पर अधिकार कर लेते हैं और फिर प्रजा का शोषण करते रहते हैं। धीरे-धीरे क्रांति की सम्भावना बढ़ने लगती है।

1917 ई. में रूस की क्रांति इन्हीं कारणों से हुई थी। आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ है-व्यक्ति की बेरोजगारी तथा भूख से मुक्ति। प्रो. लास्की ने आर्थिक स्वतंत्रता की परिभाषा देते हुए कहा है “आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के लिए समुचित सुरक्षा तथा सुविधा प्राप्त हो।” आर्थिक स्वतंत्रता कसी भी स्वतंत्र समाज का मूल आधार है। आर्थिक स्वतंत्रता में यह बात भी निहित है कि जहाँ व्यक्ति अपनी रोजी-रोटी कमा सके, वहाँ वह अपने बच्चों को भी साक्षर बना सके जिससे कि वे राष्ट्र के प्रति अपने नागरिक कर्तव्यों की पूर्ति कर सकें।

आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने पर ही व्यक्ति राजनीतिक स्वतंत्रता का उपयोग कर सकता है। जो व्यक्ति अपनी मूल आवश्यकताओं के लिए दूसरों की दया पर निर्भर है वह कभी भी नागरिकता के कर्तव्यों को पूरा नहीं कर सकता। आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में व्यक्ति समाज में अपना श्रेष्ठ योगदान नहीं कर सकता।

राज्य में भले ही किसी भी प्रकार की व्यवस्था हो किसान व मजदूर को आर्थिक स्वतंत्रता मिलनी ही चाहिए। देश में बेरोजगारी नहीं होनी चाहिए। संसार में आर्थिक दृष्टि से विकसित राज्यों में जहाँ पूँजीवादी व्यवस्था अपनायी गयी है, नागरिकों को आर्थिक स्वतंत्रता देने का प्रयत्न किया गया है। ऐसी राज्यों में मजदूर संगठित हैं और वे राष्ट्र की राजनीति में सक्रिय भाग लेते हैं। स्पष्ट है कि राजनीतिक स्वतंत्रता तब तक अर्थहीन है जब तक उसे आर्थिक स्वतंत्रता का ठोस आधार नहीं मिलता।

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प्रश्न 8.
स्वतंत्रता का अर्थ समझाइए। क्या आप स्वतंत्रता और समानता को पूरक मानते हैं? (Explain the meaning of the term Liberty Do you think that Liberty and Equality are complementary?)
उत्तर:
स्वतंत्रता को अंग्रेजी में ‘बिलर्टी’ कहा जाता है। यह लैटिन भाषा के ‘लिबर’ शब्द से बना है। इसका अर्थ है बंधनों का न होना। परंतु स्वतंत्रता का यह अर्थ पूर्णतः उचित नहीं है। गाँधीजी के अनुसार, “स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं अपितु व्यक्तित्व के विकास की अवस्थाओं की प्राप्ति है।” लास्की का कथन है कि “अधिकारों के अभाव में स्वतंत्रता का होना असंभव है, क्योंकि अधिकारों से रहित जनता कानून का पालन करती हुई भी अपने व्यक्तित्व की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकती।”

स्वतंत्रता और समानता (Liberty and Equality):
स्वतंत्रता और समानता में गहरा संबंध है। जब तक राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती तब तक समानता भी स्थापित नहीं हो सकती। भारत जब पराधीन था तो शासक वर्ग के लोग अपने आपको भारतीयों से श्रेष्ठ समझते थे परंतु 15 अगस्त, 1947 ई. में भारत राजनीतिक रूप से स्वतंत्र हो गया। भारत का अपना संविधान बना और राजनीतिक तथा सामाजिक समानता की स्थापना की गई।

प्रत्येक वयस्क को जाति, नस्ल, रंग, धर्म, लिंग आदि के भेदभाव के बिना वोट का अधिकार दिया गया। छुआछूत समाप्त कर दी गई। आर. एच. टोनी ने सत्य ही कहा है कि “समानता स्वतंत्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” वास्तव में स्वतंत्रता और समानता इकट्ठी चलती हैं। एक के बिना दूसरी निरर्थक है। प्रो. पोलार्ड के अनुसार-“स्वतंत्रता की समस्या का केवल एक समाधान है और वह है समानता।”

स्वतंत्रता और समानता का सम्बन्ध जन्म से है। जब निरंकुशता और समानता के विरुद्ध मानव ने आवाज उठायी और क्रांतियाँ हुई तो स्वतंत्रता और समानता के सिद्धांतों का जन्म हुआ। स्वतंत्रता और समानता दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान करना। अतः एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। स्वतंत्रता के बिना समानता असंभव है और समानता के बिना स्वतंत्रता का कोई मूल्य नहीं है। निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता और समानता एक-दूसरे के पूरक हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक भूख से मरते हुए व्यक्ति के लिए स्वतंत्रता का क्या लाभ है ? वह स्वतंत्रता को न खा सकता है और न पी सकता है। यह कथन किसका है –
(क) हाब्स
(ख) लास्की
(ग) मिल
(घ) आर्शिवादम
उत्तर:
(क) हाब्स

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प्रश्न 2.
जहाँ कानून नहीं है वहाँ स्वतंत्रता नहीं है। यह किसने कहा था?
(क) ग्रीन
(ख) लॉक
(ग) हाब्स
(घ) मेकाइवर
उत्तर:
(ख) लॉक

प्रश्न 3.
लांग वाक टू फ्रीडम (स्वतंत्रता के लिए लंबी यात्रा)’ किसकी आत्म कथा है?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) दलाई लामा
(ग) नेल्सन मंडेला
(घ) मार्टिन लूथर किंग
उत्तर:
(ग) नेल्सन मंडेला

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन सकारात्मक स्वतंत्रता का पक्षधर था?
(क) मार्क्स
(ख) ग्रीन
(ग) बेंथम
(घ) जे. एस. मिल
उत्तर:
(ख) ग्रीन

प्रश्न 5.
‘स्वतंत्रता एवं समानता’ को किसने पूरक माना है?
(क) रूसो ने
(ख) लास्की ने
(ग) मेकाइवर ने
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) लास्की ने

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प्रश्न 6.
‘आर्थिक न्याय’ से क्या आशय है?
(क) वर्गीय आय का अंतराल कम करना
(ख) सभी की न्यूनतम आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति
(ग) उपरोक्त दोनों ही
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) उपरोक्त दोनों ही

प्रश्न 7.
टी. एच. ग्रीन किस प्रकार की स्वतंत्रता के पोषक हैं?
(क) नकारात्मक
(ख) सकारात्मक
(ग) आर्थिक
(घ) राजनीतिक
उत्तर:
(ख) सकारात्मक

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प्रश्न 8.
नकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ है?
(क) अराजकता
(ख) बंधनों का अभाव
(ग) लोगों के बीच भेदभाव
(घ) स्वच्छन्दता
उत्तर:
(ख) बंधनों का अभाव

प्रश्न 9.
सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक विचारक हैं:
(क) रूसो
(ख) ग्रीन
(ग) हीगल
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय

Bihar Board Class 11 Political Science राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
राजनीतिक सिद्धांत के बारे में नीचे लिखे कौन-से कथन सही हैं और कौन-से गलत?
(क) राजनीतिक सिद्धांत उन विचारों पर चर्चा करता है जिनके आधार पर राजनीतिक संस्थाएं बनती हैं।
(ख) राजनीतिक सिद्धांत विभिन्न धर्मों के अन्तर्सम्बन्धों की व्याख्या करता है।
(ग) यह समानता और स्वतंत्रता जैसी अवधारणाओं के अर्थ की व्याख्या करता है।
(घ) यह राजनीतिक दलों के प्रदर्शन की भविष्यवाणी करता है।
उत्तर:
(अ) सत्य
(ब) असत्य
(स) सत्य
(द) असत्य

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प्रश्न 2.
‘राजनीति उन सबसे बढ़कर है, जो राजनेता करते हैं।’ क्या आप इस कथन से सहमत हैं? उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
राजनीति में मानव स्वभाव की गहरी पैठ है। व्यक्ति मौलिक रूप से एक स्वार्थी जीव है जो हमेशा प्रतियोगिता में या छिपे रूप में होता है। राजनीति दूसरों के व्यवहार के प्रबंधन की कला है जो उस पर लादा जाता है या निर्देशित किया जाता है। राजनीति प्रभाव की एक कला है और यह अधिकृत स्थिति प्राप्त करने की विधि है। यह निश्चित रूप से राजनीतिज्ञ के उस कार्य से सम्बन्धित नहीं है जो वह करता है या वह विभिन्न कार्यों में निर्णय लेता है।

वस्तुतः राजनीति उससे कहीं अधिक है। राजनीति किसी भी समाज का अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है। राजनीति सरकार के अच्छे मार्गों का एक प्रयास है। महात्मा गाँधी ने एक बार अवलोकन किया कि राजनीति हमें सर्प की कुण्डली के समान ढंकता, है और बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं देता परंतु यह एक संघर्ष है। राजनीति का प्रयोग समूह, समाज और राजनीतिक संगठन के कुछ रूपों में सामूहिक निर्णय निर्माण के लिए होता है। राजनीतिक बातचीत में सामूहिक निर्णय पर इसका प्रयोग होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीति एक विस्तृत संकल्पना है जिसका क्षेत्र विस्तृत है।

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प्रश्न 3.
लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए नागरिकों का जागरूक होना जरूरी है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
लोकतंत्र को लोगों की सरकार कहा जाता है। यह कहा जाता है कि सरकार की लोकतंत्रीय प्रणाली में वास्तविक शक्ति जनता के पास होती है। यह एक अत्यधिक उत्तरदायी और उत्तरदायित्व पूर्ण सरकार होती है। यह विभिन्न मुद्दों पर विभिन्न स्तरों पर बातचीत और वाद-विवाद पर आधारित होती है। लोकतंत्र का उद्देश्य जनता हेतु महत्वपूर्ण मूल्यों जैसे-समानता, न्याय, स्वतंत्रता इत्यादि को प्राप्त करना होता है। लोकतंत्र में लोगों का महत्व दिया जाता है और समाज के विभिन्न वर्गों के मध्य भाईचारा भी स्थापित करना होता है।

लोकतंत्र की सफलता के लिए कुछ पूर्व आवश्यकताएँ जरूरी हैं जिनमें सतर्क नागरिक होना अति आवश्यक है। यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति और कर्तव्यों के प्रति चैतन्य नहीं हैं। यदि वे यह नहीं जानता है कि सरकार क्या करने जा रही है और सरकार की नीति क्या है? यदि वे प्रशासन और विधान पर प्रतिरोध या रुकावट नहीं डालते, वे घमंडी हो जाएंगे और अपनी स्थिति और अधिकारों का दुरुपयोग करेंगे। ऐसी स्थिति में स्वतंत्रता और अधिकार प्रभावित होंगे और प्रजातंत्र के सम्मान में भी गिरावट आयगी।

इसीलिए लोगों को विभिन्न स्तरों पर जातीय वाद-विवाद और भाषण के आधार पर स्वस्थ जनमत बनाना चाहिए। इसके लिए लोगों में निम्नलिखित गुण होना चाहिए –

  1. उनमें उच्च स्तर की साक्षरता होनी चाहिए।
  2. लोगों में आर्थिक और सामाजिक समानता होनी चाहिए।
  3. लोगों में पर्याप्त रोजगार होना चाहिए।
  4. लोगों को जाति, भाषा और धर्म के ऊपर उठना चाहिए जिससे लोगों में भाई-चारे का दृष्टिकोण विकसित हो। यदि समाज में योग्यता का अभाव होगा तो प्रजातंत्र केवल एक भीड़ के रूप में होगा और सरकार पर कोई प्रभावी नियंत्रण नहीं कायम हो पायगा।
  5. चैतन्य नागरिक का तात्पर्य उत्तरदायी और जागरूक नागरिक से है जो सरकार के कार्यों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग ले सकता है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक सिद्धांत का अध्ययन हमारे लिए किन रूपों में उपयोगी है? ऐसे चार तरीकों की पहचान करें जिनमें राजनीतिक सिद्धांत हमारे लिए उपयोगी हों।
उत्तर:
प्रत्येक विषय का अपना सिद्धांत होता है। वस्तुतः कोई विषय भी विषय सिद्धांतों के बगैर हो ही नहीं सकता। जब एक परिकल्पना तथ्यों से समर्थित होती है, तो यह सिद्धांत बन जाता है। सिद्धांत एक सामान्यीकरण है जो सम्पूर्ण स्थिति की व्याख्या करता है। यह एक तथ्यात्मक कथन है। यदि विज्ञान (शारीरिक विज्ञान) है या सामाजिक विज्ञान, सभी विषयों के सिद्धांत होते हैं। हमने डार्विन सिद्धांत, न्यूटन नियम और आर्किमिडीज के सिद्धांत के विषय में सुना है। ये सभी सिद्धांत नये नियमों, सिद्धांतों और कानूनों के प्रेरणा-स्रोत हैं।

उसी प्रकार सामाजिक विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान, नागरिक प्रशासन आदि के सभी शाखाओं में सिद्धांतों की उपयोग की बात है उसे निम्नलिखित उपयोगी बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है –

  1. राजनीतिक सिद्धांत समाज को राजनीतिक दिशा प्रदान करता है।
  2. राजनीतिक सिद्धांत सामान्यीकरण, साधन और अवधारणा प्रदान करता है जो समाज में प्रभावी प्रवृत्तियों को समझने में सहायता करता है।
  3. राजनीतिक सिद्धांत आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा का कार्य करता है।
  4. राजनीतिक सिद्धांत समाज को बदलता है।
  5. राजनीतिक सिद्धांत समाज को गतिशील और आंदोलनकारी बनाता है।
  6. ये सिद्धांत समाज में सुधार लाते हैं।
  7. राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक विचार और संस्थाओं के मौलिक ज्ञान को प्राप्त करने में सहायता करते हैं जो समाज को एक विशेष आकार देते हैं जिसमें हम रहते हैं।
  8. राजनीतिक सिद्धांत समाज को निरंतर बनाये रखते हैं।

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प्रश्न 5.
क्या एक अच्छा या प्रभावपूर्ण तर्क औरों को आपकी बात सुनने के लिए बाध्य कर सकता है?
उत्तर:
सिद्धांत तथ्यों और हेतुवाद (Rationalism) को बताता है। सिद्धांत तार्किक वाद-विवाद और भाषण पर आधारित होता है। सिद्धांत व्यक्ति के उचित सामर्थ्य और मानव व्यवहार में निहित होता है। यह बहुत हद तक सही है कि अतार्किक कथन दूसरों के लिए अनुसरण योग्य नहीं होते। यह केवल तार्किक और विवेकी तर्क ही हैं जो दूसरों के लिए अनुसरण योग्य होते हैं। राजनीतिक सिद्धांत उन प्रश्नों का परीक्षण करता है जो समाज से सम्बन्धित और व्यवस्थित होते हैं।

ये विचार मूल्यों के विषय में होते हैं जो राजनैतिक जीवन और मूल्यों को वैसे और महत्व और सम्बन्धित संकल्पना की व्याख्या करते हैं। ऊँचे स्तर पर यह उन वर्तमान संस्थाओं को देखता है जो पर्याप्त है और वे किस प्रकार अस्तित्व में हैं। वह नीति कार्यान्वयन को भी देखता है ताकि वे लोकतांत्रिक और सही रूप में परिवर्तित हो। राजनीतिक सिद्धांत का उद्देश्य नागरिकों को राजनीतिक प्रश्नों और राजनीतिक घटनाओं का मूल्यांकन करने में विवेकयुक्त विचार करने में पशिक्षित करता है।

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प्रश्न 6.
क्या राजनीतिक सिद्धांत पढ़ना, गणित पढ़ने के समान है? अपने उत्तर के पक्ष में कारण दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धांतों का अध्ययन निश्चित रूप से केवल कुछ पहलुओं में गणित अध्ययन के समान है। यह पूर्ण रूप से समान नहीं है। राजनीतिक सिद्धांत एक तथ्यात्मक कथन है जो कुछ तथ्यों पर आधारित होते हैं। उनमें सूत्रीय औचित्य होता है। तथ्य अंकों के समान गणितीय नहीं होते। राजनीतिक सिद्धांत परिकल्पना करता है। यह एक तार्किक और विवेकी है। यह गुण समस्याओं और गणितीय समीकरणों में दिखाई देता है। हम कह सकते हैं कि राजनीतिक सिद्धांत गुणात्मक तथ्यों के गणित के निकट है और मात्रात्मक की अपेक्षा विवेकयुक्त है। विधि की दृष्टि से भी राजनीतिक सिद्धांत और गणित में निकटता दिखाई देती है।

Bihar Board Class 11 Political Science राजनीतिक सिद्धान्त : एक परिचय Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीति शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (What is the meaning of the term Politics)
उत्तर:
प्राचीन काल में राज्य के क्रियात्मक रूप के लिए ‘राजनीति’ शब्द का प्रयोग किया जाता था। अरस्तू के ग्रन्थ का नाम भी ‘राजनीति’ (Politics) था। पालिटिक्स शब्द की उत्पति यूनानी शब्द के पोलिस (Polis) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ नगर-राज्य (City-State) होता है। राजनीति के अन्तर्गत राज्य सरकार, अन्य राजनीतिक संगठनों और उनकी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

आधुनिक विद्वान-जेलिनिक, होल्जन बर्क, सिजविक, ट्रीटरके आदि भी राजनीति के अन्तर्गत राज्य और सरकार से सम्बद्ध बातों का अध्ययन मानते हैं। फ्रेडरिक पोलक इसे सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक राजनीति में बाँटते हैं। सैद्धान्तिक राजनीति राज्य, सरकार तथा विधान से सम्बन्धित मूल सिद्धांत तथा व्यावहारिक राजनीति राज्य के कार्य, कानून का स्वरूप, व्यक्ति तथा राज्य के सम्बन्धों आदि का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 2.
राजनीतिक सिद्धांत का आशय स्पष्ट कीजिए। (Clarify the meanings of Political theory)
उत्तर:
कुछ विद्वानों ने ‘राजनीतिशास्त्र’ अथवा ‘राजनीतिक दर्शन’ के लिये राजनीतिक सिद्धांत का प्रयोग किया किन्तु आशीर्वाद जैसे विद्वानों ने दोनों की विषय वस्तु को एक नहीं माना है। आशीर्वाद के विचार में ‘राजनीतिक सिद्धांत’ शब्द का प्रयोग ‘राजनीतिक दर्शन’ की अपेक्षा अधिक उचित है। ‘राजनीतिक दर्शन’ अनिश्चितता, अस्पष्टता तथा काल्पनिक पक्ष का द्योतक है, जबकि राजनीतिक सिद्धांत शब्द अधिक स्पष्ट, अधिक निश्चित और अधिक नियोजित है।

किन्तु वर्तमान काल में राज्य-विषयक ज्ञान के लिये राजनीतिक सिद्धांत का प्रयोग उचित और तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता, क्योंकि, “राजनीतिक सिद्धांत’ सरकार और शासन कला से कोई सम्बन्ध नहीं रखता। ‘राजनीतिक सिद्धांत’ का सम्बन्ध राज्य के मौलिक सिद्धांतों तथा उसके भूत और वर्तमान तक सीमित है। इसका राज्य के भावी स्वरूप तथा कार्यक्रम से कोई सम्बन्ध नहीं है।

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान एक विज्ञान है। इस सम्बन्ध में तथ्य प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को अनेक विद्वानों ने निम्न तथ्यों के आधार पर एक विज्ञान माना है –

  1. प्रयोगात्मक विधि द्वारा राजनीतिशास्त्र का अध्ययन सम्भव है।
  2. विज्ञान की तरह राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी की जा सकती है।
  3. राज्य रूपी प्रयोगशाला में राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत परीक्षण एवं पर्यवेक्षण कर एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुँचा जा सकता है।
  4. राजनीति विज्ञान में भी कार्य कारण-प्रभाव सम्बन्ध देखा जा सकता है।

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प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान एक विज्ञान नहीं है। तर्क दीजिए। (Political Science is not a science. Give reason)
उत्तर:
निम्न तथ्यों के आधार पर राजनीति विज्ञान को विज्ञान नहीं माना जाता है।

  1. इसमें वैज्ञानिक विधियों का अभाव है।
  2. कार्य-कारण सम्बन्ध का अभाव है।
  3. इसके अन्तर्गत सही भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।
  4. इसमें शुद्ध एवं शाश्वत निष्कर्ष का अभाव है।
  5. इसमें सार्वभौम रूप से मान्य नियमों का अभाव है।
  6. प्रयोगशालाओं का अभाव।
  7. राजनीति विज्ञान का आधार अनिश्चित तथा विचारों में एकता का अभाव है।
  8. इसमें अचूक माप का अभाव है।
  9. इसमें वस्तुपरक अध्ययन की कमी है।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान किसे कहते हैं? (What is Political Science?) अथवा, राजनीति विज्ञान से आप क्या समझते हैं? (What do you know about Political Science?)
उत्तर:
विश्व के बहुत से. दार्शनिकों ने राजनीति विज्ञान को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। प्रो. गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का अध्ययन राज्य के साथ आरम्भ होता है और राज्य के साथ समाप्त होता है।” प्रो. सीले के अनुसार, “जिस तरह अर्थशास्त्र धन का, जीव-शास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का तथा रेखागणित स्थान और दूरी का अध्ययन करता है, उसी प्रकार राजनीति विज्ञान ‘शासन’ के बारे में छानबीन करता है।”

प्रो. गेटेल के अनुसार, “जिन विषयों में राजनीति विज्ञान की सर्वाधिक दिलचस्पी है वे हैं-राज्य, सरकार और कानून।” इन परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान, राज्य, सरकार, व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन है। इसमें राज्य के भूत, वर्तमान और भविष्य के हर पहलू का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 6.
राजनीति विज्ञान ‘पोलिस’ शब्द से किस प्रकार सम्बन्धित है? (How is Political Science related with the word ‘Polis’?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को अंग्रेजी भाषा में Political Science कहा जाता है। अरस्तू ने इसे Politics का नाम दिया है। पोलिटिक्स (Politics) शब्द यूनानी भाषा के ‘पोलिस’ (Polis) से बना है जिसका अर्थ है ‘नगर राज्य’ (City State)। प्राचीन काल में छोटे-छोटे नगर राज्य हुआ करते थे परंतु अब विशाल राज्यों का युग है। अत: राजनीति विज्ञान वह विषय है जो राज्यों के बारे में अध्ययन करता है।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के दो महत्व बताइए। (Write two significance of study of Political Science)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के दो महत्व निम्नलिखित हैं –

  1. राजनीति विज्ञान देश के नागरिकों को उनके अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान कराता है।
  2. राजनीति विज्ञान का अध्ययन लोकतंत्र की सफलता के लिए भी. आवश्यक माना जाता है। नागरिकों को राजनीति विज्ञान से राजनीतिक शिक्षा मिलती है। नागरिकों को यह पता चलता है कि इन्हें अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कैसे करना चाहिए तथा उनके प्रतिनिधि कैसे होने चाहिए।

प्रश्न 8.
राजनीति विज्ञान में मुख्यतः किन बातों का अध्ययन किया जाता है? (What is the main subject matter of Political Science?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान में मुख्यतः जिन बातों का अध्ययन किया जाता है उनमें से अधिकांश निम्नलिखित हैं –

  1. राज्य का अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन।
  2. सरकार और उसके विभिन्न रूपों का अध्ययन।
  3. मानव के राजनीतिक आचरण का अध्ययन।
  4. विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन।

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प्रश्न 9.
राजनीति विज्ञान को सर्वव्यापी विज्ञान किसने तथा क्यों कहा? (Why has called Political Science. “A Master Science” and why?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को कुछ विद्वान विज्ञान मानते हैं और कुछ अन्य विद्वान इस विषय को कला मानते हैं। अरस्तु यूनान का एक बड़ा दार्शनिक था। उसके अनुसार राजनीति विज्ञान न केवल विज्ञान है बल्कि यह अन्य विज्ञानों से ऊपर भी है। अरस्तू के विचार में इसे इसलिए सर्वव्यापी विज्ञान (Master Science) कहना आवश्यक है क्योंकि यह मानव की सभी क्रियाओं और पहलुओं का अध्ययन करता है। उसके अनुसार राजनीति विज्ञान के क्षेत्रों में केवल राजनीतिक संस्थाएँ ही नहीं आतीं बल्कि सामाजिक संस्थाएं भी आती हैं।

प्रश्न 10.
राजनीति क्या है? (What is Politics?)
उत्तर:
राजनीति (Politics) शब्द यूनानी भाषा के शब्द (Polis) से बना है जिसका अर्थ नगर राज्य (City State) है। प्राचीन काल में नगर राज्य हुआ करते थे। अतः राजनीति का अर्थ राज्य संबंधी समस्याओं से ही माना जाता था, परंतु आधुनिक धारणा यह है कि राजनीति एक व्यापक सामाजिक प्रक्रिया है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक दल, दबाव, गुट, राजनीतिक संस्कृति, जनमत, मतदान आचरण सभी आ जाते हैं। कुछ आधुनिक लेखकों ने राजनीतिक को ‘शक्ति के लिए सघर्ष’ कहा है। कुछ अन्य लेखक राजनीति को मूल्यों के अधिकारिक आबंटन से संबंधित करते हैं।

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प्रश्न 11.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के क्या लाभ हैं? (What are the advantage of studying Political science?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के प्रमुख लाभ –

  1. राजनीति विज्ञान के अध्ययन से हमें राज्य और सरकार के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
  2. नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान होता है।
  3. विभिन्न समुदायों के संगठनं कार्य तथा उद्देश्यों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. लोकतंत्र की सफलता विज्ञान के अध्ययन पर निर्भर है।
  5. राजनीतिक चेतना जागृत होती है।
  6. मानव के दृष्टिकोण को उदार बनाता है।
  7. जन कल्याण सम्बन्धी नीति बनाने में सहायक होता है।
  8. व्यक्ति में नैतिक गुणों का विकास करता है। उसे एक आदर्श नागरिक बनाता है।

प्रश्न 12.
राजनीति और राजनीति विज्ञान में क्या अंतर है? (What is the distinction between Politics and Political Science?)
उत्तर:
राजनीति और राजनीति विज्ञान में अंतर (Distinction between Politics and Political Science):
प्राचीन काल में राजनीति शास्त्र को राजनीति ही कहा जाता था। अरस्तू ने अपनी पुस्तक का नाम ‘Politics’ ही रखा था, परंतु आजकल इन दोनों में भेद किया जाता है। ‘Politics’ (राजनीति) शब्द ग्रीक भाषा के Polis से बना है जिसका अर्थ नगर राज्य है। प्राचीन यूनान में छोटे-छोटे नगर राज्य थे, परंतु अब बड़े-बड़े राज्य बन गए हैं। आजकल राजनीति शब्द का अर्थ उन राजनीतिक समस्याओं से लगाया जाता है जो कि किसी ग्राम, नगर, प्रान्त, देश अथवा विश्व की समस्याएँ हैं।

राजनीति दो प्रकार की होती हैं-सैद्धान्तिक तथा प्रयोगात्मक। राजनीतिक विज्ञान, राजनीति से प्राचीन है। राजनीति विज्ञान का उद्देश्य आदर्श राज्य, आदर्श नागरिक तथा आदर्श राष्ट्र का निर्माण करना है जबकि राजनीति का उद्देश्य किसी भी प्रकार सत्ता प्राप्त करने से है। राजनीति का अर्थ ही सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष है जबकि राजनीति शास्त्र सहयोग, सौहार्द्र, सहिष्णुता, प्रेम तथा त्याग की भावना सिखाता है। राजनीति विज्ञान निश्चित आदर्शों पर आधारित है जबकि राजनीति स्वार्थ व अवसरवादिता पर आधारित है।

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प्रश्न 13.
“राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है।” व्याख्या कीजिए। (“Politics is the struggle for power.” Explain)
उत्तर:
कई आधुनिक लेखकों ने राजनीति को ‘शक्ति के लिए संघर्ष’ के रूप में देखा है। वेल और केपलेन (Lasswel and Kaplan) के शब्दों में, “राजनीतिक विज्ञान शक्ति को सँवारने और उसका मिल-बाँटकर प्रयोग करने का अध्ययन है।” राबर्ट डैल (Robert Dahl) का कहना है “राजनीति में शक्ति और प्रभाव का अध्ययन शामिल है।” (Politics involves power and influence) लोग दूसरों पर शासन करना चाहते हैं। ये सत्ता के भूखे होते हैं और शक्ति के लिए संघर्ष करते हैं। राजनीतिक दलों, दबाव गुटों और अन्य संगठित समुदायों के बीच सत्ता या सुविधाओं के लिए संघर्ष चलता रहता है। अत: यह ठीक ही कहा गया है कि राजनीति शक्ति के लिए संघर्ष है।

प्रश्न 14.
राजनीति विज्ञान की इतिहास को क्या देन है? (What is the contribution of Political Science to History?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की इतिहास को देन (Contribution of Political Science to History):

  1. राजनीति विज्ञान इतिहास को सरस बनाता है।
  2. राजनीति विज्ञान इतिहास को नयी दिशा प्रदान करता है, 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना न होती तो भारत का इतिहास कुछ और ही होता।
  3. राजनीतिक विचारधाराएँ ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म देती है। रूसो और मांटेस्क्यू के विचारों ने फ्रांस को जन्म दिया।
  4. “राजनीति विज्ञान ही वह शास्त्र है जो स्वर्ण कणों के रूप में इतिहास रूपी नदी की रेत में संगृहीत किया जाता है।”

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प्रश्न 15.
राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को क्या देन है? (What is the contribution of Political Science to Economics?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Economics):
राजनीति विज्ञान का उद्देश्य नागरिकों को उन्नति व विकास द्वारा जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है। राजनीतिक विचारधाराओं का भी आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। “जैसे प्रजातंत्र की विचारधारा आर्थिक न्याय पर बल देती है। राजनीतिक संगठनों का भी देश की अर्थशास्त्र पर प्रभाव पड़ता है। यदि सत्ता दल में एकता और अनुशासन है तो वहाँ की आर्थिक नीतियाँ उचित और स्थायी होंगी। सरकारी नीतियाँ, आयात-निर्यात, बैंक नीति, विनिमय दर, सीमा शुल्क आदि नीतियों का भी अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 16.
“राजनीति विज्ञान और इतिहास परस्पर सहायक और पूरक हैं।” स्पष्ट करो। (“Political Science and History are matually contributory and complementary.” Explain)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और इतिहास का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। दोनों को एक दूसरे से अलग करना बहुत कठिन है। सीले का कथन है कि, “राजनीति विज्ञान के बिना इतिहास का कोई फल नहीं; इतिहास के बिना राजनीति विज्ञान का कोई मूल्य नहीं।” राजनीति विज्ञान इतिहास पर निर्भर है। सभी राजनीति संस्थाएँ विकास का परिणाम होती हैं।

उन्हें समझने के लिए इतिहास का ज्ञान आवश्यक है। इतिहास राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला है। ऐतिहासिक अनुभवों के आधार पर वर्तमान राजनीतिक जीवन में सुधार करने हेतु भविष्य के लिए मार्ग निश्चित किया जा सकता है। दूसरी ओर राजनीति विज्ञान भी इतिहास को अध्ययन सामग्री प्रदान करता है। ऐतिहासिक घटनाएँ राजनीतिक विचारधाराओं का परिणाम होती हैं। निष्कर्ष रूप से कहा जा सकता है कि राजनीति विज्ञान और इतिहास परस्पर सहायक और पूरक हैं।

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प्रश्न 17.
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति के किन्हीं दो विषयों का नाम बताओ। (Mention the name of any two subjects of Political Science according to Modern Approach)
उत्तर:
आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के मुख्य विषय निम्नलिखित हैं –

  1. सत्ता तथा शक्ति का अध्ययन
  2. मूल्यों की सत्तावादी व्यवस्था का अध्ययन

प्रश्न 18.
परम्परागत दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन के कोई दो विषय बताओ। ( Mention any two subject of Political Science according to traditional view)
उत्तर:
परम्परागत दृष्टिकोण के अध्ययन के अनुसार राजनीति विज्ञान के अध्ययन में निम्नलिखित विषयों को मुख्यरूप से शामिल किया जाता है:

  1. राजनीति शास्त्र का अध्ययन (Study of Political Science) है। इसमें राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन किया जाता है।
  2. सरकार का अध्ययन (Study of Government): राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत सरकार का अध्ययन किया जाता है। सरकार राज्य का आवश्यक अंग है। सरकार का संगठन सरकार के अंग तथा विभिन्न प्रकार की शासन प्रणालियों का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 19.
राजनीति की परिभाषा दीजिए। (Define politics)
उत्तर:
सामान्य राजनीति से आशय ‘निर्णय लेने की प्रक्रिया’ है। यह प्रक्रिया सार्वभौमिक है। जीन ब्लान्डल के अनुसार “राजनीति एक सार्वभौमिक क्रिया है।” हरबर्ट जे. स्पेंसर के अनुसार “राजनीति वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से मानव समाज अपनी समस्याओं का समाधान करता है।”

प्रश्न 20.
घरेलू मामले में राजनीतिक हस्तक्षेप को उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (Clarify with example the political interference in internal affairs)
उत्तर:
राजनीति का घरेलू मामलों में हस्तक्षेप 10वीं सदी के उत्तरार्द्ध में प्रारंभ हुआ। महिलाओं का शोषण रोकने के लिए भारत में भी अन्य देशों के समान घरेलू हिंसारोधक अधिनियम बनाकर उन्हें घरेलू हिंसा से निदान के क्षेत्र में पहल हुई।

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प्रश्न 21.
क्या राजनीतिक विवादों को तर्कों द्वारा सुलझाया जा सकता है? (Does the solution of Political conflicts is settled by arguments?)
उत्तर:
राजनीतिक तर्कों का एकमात्र उद्देश्य अपनी बात को मनवाना होता है और इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए मनुष्य अनेक तरीकों को अपना सकता है, जैसे-विज्ञापन अथवा प्रचार-प्रसार द्वारा। इराक पर आक्रमण के अपने तर्क को सही ठहराने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने विज्ञापन तथा प्रचार, दोनों तरीकों का सहारा लिया था।

ऐसे समय राजनीतिक विवाद उन तक ही सीमित रह जाते हैं जिनका प्रदर्शन अच्छे तरीके से किया जाता है चाहे वह तर्क गलत ही क्यों न हों। प्रचार के माध्यमों से राजनीतिक उद्देश्यों को जनता के सामने तोड़-मरोड़ कर तथ्यों के द्वारा रखा जाता है और अपने मनमाने निष्कर्षों को लोगों के ऊपर थोप दिया जाता है। यही कारण है कि कुछ राजनीतिक विचारक यह म ते हैं कि राजनीतिक विवादों को तर्कों के माध्यम से ठीक ढंग से नहीं सुलझाया जा सकता है।

प्रश्न 22.
सिद्धांत किसे कहते हैं? (What is theroy?)
उत्तर:
सिद्धांत अंग्रेजी शब्द (Theory) का हिन्दी रूपांतर है और Theory यूनानी शब्द ‘थ्योरिया’ (Thoria), थ्योरमा’ (Theorema) थ्योराइन’ (Theorein) नामक शब्द से लिया गया है। इसका अर्थ है “भावात्मक सोच-विचार” (Sentimental Thinking)। एक ऐसी मानसिक दृष्टि जो कि एक वस्तु के अस्तित्व और उसके कारणों को प्रकट करती है। ओनोल्ड बेश्ट के अनुसार सिद्धांत के अन्तर्गत “किसी भी विषय के संबंध में एक लेखक की पूरी की पूरी सोच या समझ शामिल रहती है। इसमें तथ्यों का वर्णन विश्लेषण व व्याख्या सहित उसका इतिहास के प्रति दृष्टिकोण, उसकी मान्यताएँ और वे लक्ष्य शामिल हैं जिनके लिए किसी भी सिद्धांत का प्रतिपादन किया जाता है। पॉपर के अनुसार: “सिद्धांत मानसिक आँखों में रेखांकित, अनुभाविक व्यवस्था का विकल्प है।”

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प्रश्न 23.
राजनीतिक सिद्धांत की परिभाषा दीजिए। (Give the difinition of political theory)
उत्तर:
जार्ज कैटलिन के अनुसार, राजनीतिक सिद्धांत में राजनीतिक दर्शन तथा राजनीति विज्ञान दोनों सम्मिलित हैं। डेविड हैल्ड के अनुसार “राजनीतिक सिद्धांत राजनीतिक जीवन से संबंधित अवधारणाओं और व्यापक अनुमानों का एक ऐसा ताना-बाना है जिसमें शासन, राज्य और समाज की प्रकृति व लक्ष्यों और मनुष्यों की राजनीतिक क्षमताओं का विवरण शामिल है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच सम्बन्ध स्पष्ट करें। (Explain relations between Political Science and Economics)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और तर्कशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्राचीन समय से ही इन दोनों शास्त्रों को एक ही शास्त्र के दो अंगों के रूप में माना जाता रहा है। राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के घनिष्ठ संबंधों के बारे में विभिन्न विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं –
प्रो. गार्नर के अनुसार, “वर्तमान काल में राजनीति के ज्वलन्त प्रश्न मूल रूप में अर्थशास्त्र के भी प्रश्न हैं। वास्तव में प्रशासन के सम्पूर्ण सैद्धान्तिक पक्ष का स्वरूप अधिकांशतः आर्थिक है। मार्क्स ने तो यहाँ तक कहा है कि, “किसी युग के सम्पूर्ण सामाजिक जीवन के स्वरूप का निश्चिय आर्थिक परिस्थितियाँ ही करती है।” बिस्मार्क का कथन था कि, “मुझे यूरोप के बाहर नए राज्यों की नहीं वरन् व्यापारिक केन्द्रों की आवश्यकता है।”

राजनीति विज्ञान की अर्थशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Economics):
राजनैतिक विचारधाराओं का आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक संगठन का भी देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शासन व्यवस्था यदि दृढ़ और शक्तिशाली है तो उस देश के लोगों की आर्थिक दशा अच्छी होगी। अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of Economics to Political Science) अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान कहते हैं। अर्थशास्त्र में धन के उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा उपभोग में लगे व्यक्ति के सामाजिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में यह मानव आवश्यकताओं और उनकी संतुष्टि का विज्ञान है। जब तक व्यक्ति की आर्थिक दशा अच्छी नहीं होगी, वह अच्छा नागरिक नहीं बन सकता। अतः अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में गहरा सम्बन्ध है।

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प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र क्या है? (What is the scope of Political Science?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का क्षेत्र (Scope of Political Science):
राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। राजनीति विज्ञान में मुख्यतः निम्नलिखित तथ्यों का अध्ययन होता है:

1. राज्य का अध्ययन (Study of State):
राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य के भूत वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन किया जाता है। गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का आरंभ और अन्त राज्य के साथ होता है।” गिलक्राइस्ट ने भी कहा है; “राज्य क्या है, क्या रहा है और क्या होना चाहिए का अध्ययन राजनीति विज्ञान का विषय है।”

2. सरकार का अध्ययन (Study of Govemment):
सरकार राज्य का एक अनिवार्य तत्व है। सरकार के विभिन्न रूप सरकार के अंग तथा सरकार का संगठन आदि का अध्ययन राजनीतिक विज्ञान में किया जाता है।

3. मानव व्यवहार का अध्ययन (Study of Human Behaviour):
राज्य का व्यक्ति के साथ अटूट संबंध है। व्यक्ति और राज्य का क्या सम्बन्ध है? व्यक्ति को कौन-कौन से अधिकार मिलने चाहिए और कौन-कौन से कर्त्तव्य करने चाहिए? व्यक्ति का राजनैतिक आचरण। क्या है ? इन सब बातों का अध्ययन राजनीतिक विज्ञान में किया जाता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन (Study of International relations):
राजनीति विज्ञान में अन्तर्राष्ट्रीय कानून, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध, संयुक्त राष्ट्र संघ आदि का भी अध्ययन किया जाता है। उपरोक्त के अतिरिक्त राजनीति विज्ञान शक्ति का भी अध्ययन है। इसमें नीति निर्माण प्रक्रिया भी अध्ययन की जाती है। इसमें शास्त्र संबंधी कार्य, मतदान, राजनैतिक दल एवं आम राजनीतिक संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान के परम्परागत तथा आधुनिक अर्थ बताएँ। (Give traditional and modern meaning of Political Science)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान के अंग्रेजी पर्याय (Political Science) की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है, जिसका अर्थ है (City State) अर्थात् नगर राज्य। प्राचीन काल में यूनान में छोटे-छोटे नगर राज्य होते थे। आज के युग में छोटे-छोटे नगर राज्यों का स्थान विशाल राज्यों ने ले लिया है। राज्य के इस विकसित और विस्तृत रूप से संबंधित विषय को राजनीति विज्ञान कहा जाने लगा। राजनीतिक विज्ञान की परिभाषाएँ विभिन्न विद्वानों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रस्तुत की गई हैं –

1. राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन है –
ब्लंटशली के अनुसार, “राजनीतिक विज्ञान वह विज्ञान है, जिसका संबंध राज्य से है और जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य के आधारभूत तत्व क्या हैं, उसका आवश्यक स्वरूप क्या है, उसकी किन विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है तथा उसका विकास कैसे हुआ?” प्रसिद्ध विद्वान डॉ. गार्नर के अनुसार, “राजनीति विज्ञान विषय के अध्ययन का आरंभ और अन्त राज्य के साथ होता है।”

2. राजनीति विज्ञान ‘राज्य और सरकार’ दोनों का अध्ययन है:
पॉल जैनट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान समाज का वह अंग है जिसमें राज्य के आधार और सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है।” डिमॉक (Dimock) के अनुसार, “राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य तथा उसके साधक सरकार से है।”

3. मानवीय तत्त्व-राजनीति विज्ञान समाज विज्ञान का वह अंग है, जिसके अंतर्गत मानवीय जीवन के राजनीतिक पक्ष और जीवन के पक्ष से संबंधित राज्य, सरकार तथा अन्य संबंधित संगठनों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान की परिभाषा-आधुनिक दृष्टिकोण (Definition of Political Science A moderm approach):
परम्परागत रूप से राजनीति विज्ञान को व्यक्तियों के राजनीतिक क्रिया-कलापों तक ही सीमित समझा जाता था और जिसमें राज्य सरकार और अन्य राजनीतिक संस्थाओं को ही महत्वपूर्ण समझा जाता था। परंतु आधुनिक दृष्टिकोण अधिक व्यापक और यथार्थवादी हैं। इसमें अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण (Inter-disciplinary approach) अपनाया गया है। इसमें राज्य को ही नहीं वरन् समाज को भी सम्मिलित किया गया है। आधुनिक लेखकों के द्वारा राजनीति विज्ञान को शक्ति, प्रभाव, सत्ता, नियंत्रण, निर्णय और मूल्यों का अध्ययन बताया गया है।

डेविट इस्टन के अनुसार, “राजनीति विज्ञान मूल्यों का सत्तात्मक आबंटन है।” (Political Science deals with the authoriative allocation of values) केटलिन ने राजनीति विज्ञान को शक्ति का विज्ञान (Science of Power) कहा है। पिनॉक और स्मिथ के अनुसार, “राजनीति विज्ञान किसी भी समाज में उन सभी शक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनात्मक ढाँचों से संबंधित होता है जिन्हें उस समाज में सुव्यवस्था की स्थापना, सदस्यों के सामूहिक कर्मों का सम्पादन तथा उनके मतभेदों का समाधान करने के लिए सर्वाधिक अन्तर्भावी (Inclusive) और अंतिम माना जाता है।” इस प्रकार राजनीति विज्ञान व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार को उसके समस्त सामाजिक जीवन के संदर्भ में ही ठीक प्रकार से समझने की कोशिश करता है।

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प्रश्न 4.
संक्षिप्त टिप्पणी लिखो (Write short notes on:)
(क) शक्ति की अवधारणा (Concept of Power)
(ख) सामाजिक विज्ञान का परिप्रेक्ष्य (Social Science Perspective)
उत्तर:
(क) शक्ति की अवधारणा (Concept of Power):
शक्ति एक ऐसी अवधारणा है जो राज्य के लिए आवश्यक है। राज्य में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिये नागरिकों द्वारा कानूनों का पालन किए जाने की अपेक्षा रखी जाती है परंतु जो व्यक्ति ऐसा नहीं करते उन्हें शक्ति द्वारा बाध्य किया जाता है कि कानूनों का पालन करें।

(ख) सामाजिक विज्ञान का परिप्रेक्ष्य (Social Science Perspective):
इतिहास अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, नीतिशास्त्र, राजनीति विज्ञान आदि अनेक विषय मानव सम्बन्धों का वर्णन करते हैं तथा वे परस्पर एक दूसरे से सम्बन्धित हैं। अतः विषयी दृष्टिकोण में ही मानव समस्याओं को उचित रूप से समझा जा सकता है। आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों में इस प्रकार के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मानव समाज में पायी जाने वाली गरीबी की समस्या की कई दिशाएँ होती हैं। आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक और यहाँ तक की राजनीतिक सभी दृष्टिकोणों से समस्या का अध्ययन किया जा सकता है और तभी उसका निराकरण संभव है।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान के क्षेत्र की व्याख्या कीजिए। (Explain the scope of Political Science)
उत्तर:
प्रत्येक विषय का अपना क्षेत्र होता है जिसकी व्यापकता उस शासन की विषय वस्तु पर निर्भर करती है। गार्नर ने राजनीति विज्ञान के क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित किया है:

  1. राज्य की प्रकृति तथा उत्पत्ति का अनुसंधान।
  2. राजनीतिक संस्थाओं के स्वरूप, उनके इतिहास तथा विभिन्न रूपों की गवेषणा।
  3. इन दोनों आधार पर राजनीतिक विकास के नियोजन का यथासम्भव आकलन।

राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र की व्याख्या करते हुए गेटल (Gettell) ने कहा है “राजनीति विज्ञान को राज्य का विज्ञान कहा जाता है। यह संगठित राजनीतिक इकाइयों के रूप में मानवजाति का अध्ययन करता है। राज्य के जन्म की ऐतिहासिक व्याख्या भी इसके अन्तर्गत की जाती है। यह राज्य के विकास की व्याख्या भी करता है और वर्तमान समय के विशिष्ट शासन वाले राज्यों के विषय में भी चर्चा करता है।

“राजनीति विज्ञान एक सीमा तक राज्य के आदर्श स्वरूप तथा उसके सर्वोच्च लक्ष्य और शासन के उचित प्रकारों का भी अध्ययन करता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अभिकरण UNESCO के संयोजन में हुए सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राजनीति के सिद्धांत, राजनीतिक संस्थाएं, राजनीतिक दल, दबाव समूह एवं लोकमत, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध आदि विषय सम्मिलित समझा जाना चाहिए।

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प्रश्न 6.
राजनीतिशास्त्र का कला के रूप में विवेचना कीजिए। (Explain the Political Science as an Art)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान न केवल विज्ञान है, अपितु इसे कला भी कहा जा सकता है। यह कला की समस्त विशेषताओं को अपने में समाहित करता है और किसी भी सिद्धांत या सूत्र को व्यवहार में क्रियान्वित करने का प्रयास करता है। अब प्रश्न यह है कि कला क्या है? कला वह विद्या है जो किसी भी कार्य को अच्छी तरह करना सिखाती है और व्यावहारिक जीवन में विभिन्न सिद्धांतों का प्रयोग बताकर जीवन का आदर्श प्रस्तुत करती है अर्थात् कला मानव जीवन का सर्वांगीण चित्र तथा किसी ज्ञान का व्यावहारिक पहलू है। इस दृष्टिकोण से राजनीति विज्ञान भी एक कला है।

प्रोफेसर गैटल के अनुसार, “राजनीतिशास्त्र की कला का उद्देश्य मनुष्य के क्रिया-कलापों से संबंधित उन सिद्धांतों तथा नियमों का निर्धारण करना है जिन पर चलना राजनीतिक संस्थाओं के कुशल संचालन के लिए आवश्यक है।” बकल (Buckle) राजनीति विज्ञान को कलाओं में पिछड़ी हुई कला मानते हुए यह स्वीकार करते हैं कि राजनीति विज्ञान एक कला है, “राजनीति विज्ञान से अधिक कला है। इसका राज्य के व्यावहारिक पक्ष से ज्यादा सम्बन्ध है।”

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान, विज्ञान और कला दोनों है, स्पष्ट कीजिए। (The Political Science is both the Science and Arts Discuss)
उत्तर:
यह एक सामान्य अभिमत है कि कोई भी अध्ययन या तो विज्ञान की श्रेणी में आता है या कला की, लेकिन वस्तुतः ऐसा सोचना त्रुटिपूर्ण है। विलियम एस. लिंगर के अनुसार “विज्ञान और कला का परस्पर विरोधी आवश्यक नहीं है। कला विज्ञान पर आधारित हो सकती है।” राजनीतिशास्त्र के बारे में यह कहा जा सकता है कि यह विज्ञान और कला दोनों है।

विज्ञान और कला दोनों ही रूपों में यह हमारे लिये उपयोगी है। गार्नर के अनुसार, “राजनीतिक विज्ञान व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करता है, भ्रममूलक राजनीति दर्शन के सिद्धांत का खण्डन करता है तथा विवेकपूर्ण राजनीतिक क्रियाकलाप के आधार के रूप में सुदृढ़ सिद्धांतों का प्रतिपादन करता है।” (It renders practical service by deducting sound principles as a basis for wise political action and by exposing the teaching of false political philosophy)

इस प्रकार राजनीतिशास्त्र एक विज्ञान भी है और एक उच्चस्तरीय कला भी। जब हम राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित विवेचन करते हैं तथा कुछ सामान्य व सार्वभौम निष्कर्षों की खोज करते हैं तो यह एक विज्ञान है लेकिन जब हम इन सिद्धांतों व व्यवहार के मध्य भिन्नता व सापेक्षता पाते हैं तो राजनीति विज्ञान कला के निकट होती है। सिद्धांतों व व्यवहार का यह अंतर कुशलता व कल्पना (कला) के विकास का अवसर प्रदान करता है।

वर्तमान समय में चुनाव एवं राज्यों के पारस्परिक जीवन में बहुत अधिक अंतर आ गया है और ऐसी परिस्थितियों में राजनीति विज्ञान का कला रूप ही विश्वशान्ति एवं ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धांत को प्रोत्साहन देकर विश्व को विनाश के गर्त से बचा सकता है। इसलिए, यह स्पष्ट विस्तार करते हुए उसे कला, दर्शन और विज्ञान तीनों मानता है। लासवेल ने भी राजनीति विज्ञान को कला, विज्ञान और दर्शन का संगम माना है।

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प्रश्न 8.
राजनीति विज्ञान के अर्थ और कार्यक्षेत्र को स्पष्ट करें। (Clarify the meaning and scope of Political Science)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का अर्थ “राज्य की नीति” से होता है। राज्य की नीति में यह अत्यन्त आवश्यक तत्त्व होता है कि राज्य की उत्पत्ति की जाए। राज्य की शक्ति का व्यवहार और सैद्धान्तिक स्वरूप का संचालन सम्प्रभुता के हाथों में निहित किया जाए और साथ ही साथ राज्य में राजनीतिक विचारधारा और राज्य में विधि के स्तर पर राजनीतिक विचारधारा का प्रभाव हो।

राजनीति के अर्थ की उपरोक्त प्रासंगिकता को उजागर करते हुए अरस्तू ने राजनीति के अर्थ और उसके कार्यक्षेत्र को उजागर करते हुए इससे इस महत्वपूर्ण कथन के माध्यम से किया कि “समाज द्वारा सुसंस्कृत मनुष्य सब प्राणियों में श्रेष्ठतम होता है, परंतु जब वह कानून तथा न्याय के बिना जीवन व्यतीत करता है तो वह निकृष्टतम हो जाता है। यदि कोई मनुष्य एसा है जो समाज में न रह सकता हो अथवा जिसे समाज की आवश्यकता ही न हो क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण है, तो उसे मानव समाज का सदस्य मत समझो, वह जंगली जानवर या देवता ही हो सकता है।”

प्रश्न 9.
राजनीति विज्ञान राज्य का ही अध्ययन है, स्पष्ट करें। (The Political Science is study of the state, Explain)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान को राज्य का अध्ययन इसलिए कहा जाता है कि राजनीति का अर्थ ही है “राज्य की नीति”। अगर राजनीति अपने इस महत्वपूर्ण अंग का अवलोकन नहीं, करेगी तो निश्चित है कि राजनीति विज्ञान का अस्तित्व कभी भी सम्भव नहीं हो पायेगा। इसलिये राजनीति विज्ञान में राज्य और राज्य की नीति चाहे वह राजनीतिक विचारधारा के रूप हो या किसी विधि के रूप में हो, इन सबको राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है।

राजनीति की कोई भी विचारधारा चाहे वह लोकतंत्रीय हो और या फिर समाजवादी, साम्यवादी और निरंकुशवादी विचारधारा हो। इन सबको उत्पन्न करने का मूल स्रोत राजनीति है और राजनीति ने निरंकुशवादी विचारधाराओं को राज्य की व्यवस्था चलाने के लिये इसकी उपयोगिता की प्रासंगिकता को स्थापित किया। इस कारण राजनीति विज्ञान का आधार स्तम्भ राज्य है और राज्य से जुड़े होने वाले आवश्यक तत्व जैसे सरकार, विधि, जनता की राज्य के प्रति उसकी राजनीतिक विचारधारा आदि की अवहेलना राजनीति विज्ञान के सन्दर्भ में कोई भी नहीं कर सकता।

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प्रश्न 10.
परम्परागत राजनीति विज्ञान से आप क्या समझते हैं, स्पष्ट कीजिए। (What do youknow about Iraditional Political Science?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान का परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान का जहाँ मूल आधार स्तम्भ है, वहीं राज्य और सरकार की संरचना का मूल आधार स्तम्भ भी है। इसके साथ ही परम्परागत राजनीति ने राज्य और सरकार को संचालित करने के लिये राजनीतिक मूल्यों यानि नैतिक दृष्टिकोण पर ही क्रियान्वित होती है। परम्परागत राजनीति बिना नैतिक मूल्यों के किसी भी राजनीतिक सिद्धांत की संरचना को निर्मित नहीं करती, नैतिक मूल्य राजनीति का मूलभूत आधार स्तम्भ है।

परम्परागत राजनीति का यह दृष्टिकोण था कि बिना नैतिक मूल्यों के राज्य की शक्ति निरंकुश होगी, वहीं राजनीति विचारधारा का मार्ग अस्पष्ट और अमर्यादित होगा। इसलिये परम्परावादी राजनीतिक विचारकों ने नैतिकता से ही राजनीति के आदर्श खोजे तथा नैतिकता से राजनीति को मर्यादित किया। अतः यह आदर्श और मर्यादा का स्वरूप होने से राज्य और सरकार की उपयोगिता स्वयं शासक के लिये भी उपयोगी बनी और जनता के लिये भी उपयोगी बनी।

प्रश्न 11.
राजनीतिक विचारधारा की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए। (Clarify the importance of Political Ideology)
उत्तर:
राजनीतिक विचारधाराओं ने ही संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की राज्य तथा इसके अंग, सरकार और विधि पर राजनीतिक विचारधाराओं का स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। जैसे लोकतंत्रीय पद्धति में राज्य के यह दो महत्वपूर्ण तत्व सरकार और विधि कभी भी निरंकुश नहीं हो सकते, क्योंकि उन्हें अपने मूल्यों में प्राकृतिक नियमों को अपनाना पड़ेगा, न्याय की व्यवस्था बनाये रखने के लिये और दूसरा राजनीति जनता के प्रति जवाबदेह हो।

यही लोकतंत्रीय राजनीतिक विचारधारा का मूल स्वरूप रहा है। इसके साथ ही ठीक इसके विपरीत जो राजनीति को बल और शक्ति की निरंकुशता से संचालित करने पर विशेष बल देते हैं और साथ ही साथ यह निरंकुश विचारधारा प्राकृतिक नियमों का अवहेलना अपने विधि निर्माण के सन्दर्भ में व्यापक स्तर पर करती है। इसलिये निरंकुशवादी राज्य व्यवस्था के लिये न्याय की अवधारणा, उसके अस्तित्व के लिये खतरे का मूल आधार बन जाती है।

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प्रश्न 12.
राजनीति विज्ञान में दर्शन की उपयोगिता से आप क्या समझते हैं? (What do you know about the importance of philosophy in political science)
उत्तर:
राजनीतिक दर्शन की मूल जड़ नैतिक नियमों से संबंधित होती है। नैतिक नियमों और उद्देश्यों से ही राजनीति के आदर्शात्मक स्वरूप और सीमा पर सही नियंत्रण स्थापित होता है, तथा राज्य इसी के बल पर निरंकुश नहीं हो सकता है अर्थात् राज्य को यदि निरंकुश नहीं होना है, तो उसे निश्चित रूप से आदर्शवादी सिद्धांतों के अनुरूप ढलना होगा।

इस संदर्भ में चाहे प्राचीन राजनीतिक विचारक हों या फिर आधुनिक राजनीतिक विचारक हों, सबने आदर्शवाद की उपयोगिता को राज्य के सन्दर्भ में उपयोगी इसलिए माना, क्योंकि आदर्शवादी ही निरंकुशता को खत्म करने का एकमात्र मौलिक साधन है। बिना आदर्शवाद के निरंकुशवाद को खत्म नहीं किया जा सकता है। हालांकि राजनीतिक दर्शन की आलोचना इस तथ्य पर की गई कि ऐसा दर्शन काल्पनिक और अव्यावहारिक स्तर पर होता है। इसलिये राजनीति दर्शन को उन्हीं लोगों द्वारा काल्पनिक माना गया जो राजनीति को निरंकुशवादी ज्यादा समझते थे।

प्रश्न 13.
आधुनिक राजनीति विज्ञान और परम्परावादी राजनीति विज्ञान में अंतर में स्पष्ट करें। (Distinguish between Modern Political Science and Traditional Political Science)
उत्तर:
आधुनिक राजनीति विज्ञान के विचारक विज्ञान को केवल राज्य का विषय न मानकर वरन् वह मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को भी राजनीति विज्ञान का विषय मानते हैं। उन्होंने आधुनिक सहभागिता के रूप में प्रदर्शित करके यह स्पष्ट किया, जैसे लासवेल और केपलन ने अपने कथन के द्वारा यह भाव प्रकट किया कि “राजनीति विज्ञान एक व्यवहारवादी विषय के रूप में शक्ति को संवारने और मिल-बांटकर प्रयोग करने का अध्ययन है।” इसलिये राजनीतिक सहभागिता में जनता की भावना और जनता द्वारा शासन में दिए जाने वाले योगदान का विशेष ध्यान रखा जाने लगा, जिससे कि वे राज्य कानून के प्रति जवाबदेह हो।

परम्परावादी राजनीति विज्ञान के विचारक राज्य और सरकार की संरचना को राजनीति विज्ञान का एक अहम् हिस्सा मानते थे। उनका मत था कि यदि सरकार और राज्य के संदर्भ में उनके निर्माण और क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान दिया जाए, तो निश्चित है कि राज्य व्यवस्था वास्तव में एक अनुशासित व्यवस्था को जन्म दे सकेगी तथा स्थायी रूप से शासन व्यवस्था का संचालन कर सकेगी इसलिये परम्परावादी राजनीति विज्ञान के विचारकों ने राज्य और सरकार के स्थायित्व के लिये ही कई राजनीतिक विचारों का प्रतिवादन किया और इन राजनीतिक विचारों का दार्शनिक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक पद्धति से सम्बन्ध था।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के महत्व की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Briefly describe the importance of studying Political Science)
उत्तर:
आधुनिक युग प्रजातंत्र का युग है और इस युग में राजनीति विज्ञान के अध्ययन का बहुत महत्व है। इस विषय की गणना संसार के महत्वपूर्ण विषयों में की जाती है। इसका कारण यह है कि आधुनिक जीवन राजनीतिक जीवन ही है। मनुष्य का कार्य राजनीतिक व्यवस्था से प्रभावित होता है। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी राज्य का नागरिक है और उसका राज्य के साथ अटूट संबंध है। अत: राजनीति शास्त्र के अध्ययन के महत्व का विस्तृत विवेचन निम्नलिखित है –

1. राज्य तथा सरकार का ज्ञान (Knowledge of State and Government):
राजनीति विज्ञान राज्य का विज्ञान है और इसके द्वारा ही हमें राज्य तथा सरकार के बारे में ज्ञान होता है। राज्य का होना सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक है क्योंकि समाज में शान्ति व व्यवस्था राजनीतिक संगठन के बिना स्थापित नहीं की जा सकती। राज्य के सभी काम सरकार द्वारा किए जाते हैं। इस कारण सरकार के बारे में भी जानना प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि सरकार का गठन कैसे होता है और किस प्रकार की सरकार अच्छी होती है। इस सब बातों का ज्ञान हुए बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का पूरी तरह विकास नहीं कर सकता। अतः इस विज्ञान के अध्ययन के बहुत लाभ हैं।

2. अधिकारों व कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties):
राजनीति विज्ञान व्यक्ति को उनके अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान कराता है। समाज और राज्य दोनों में ही रहते हुए व्यक्ति को कुछ अधिकार मिलते हैं और ये अधिकार व्यक्ति को जीवित रहने तथा अपने जीवन का विकास करने में सहायक होते हैं। अधिकारों के बदले व्यक्ति को कुछ कर्त्तव्यों का पालन भी करना पड़ता है ताकि शान्ति और व्यवस्था बनी रहे और दूसरों को भी अधिकार मिल सके।

3. विविध समुदायों का ज्ञान होता है (It gives knowledge about many kinds of associations):
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहते हुए उसे कई प्रकार के समुदायों में पारा लेना पटता है, जैसे कि धार्मिक, सामाजिक तथा मनोरंजन संबंधी समुदाय। किस समुदाय का संगठन कैसे होता है, उसके क्या उद्देश्य तथा कार्य हैं? व्यक्ति को उनसे क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? इन सब बातों का ज्ञान हमे राजनीति विज्ञान द्वारा मिलता है।

4. दूसरे देशों की शासन प्रणाली का ज्ञान होता है (Knowledge of the Government system of other countries):
आज कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता। देश-विदेश की घटनाओं में प्रत्येक व्यक्ति की दिलचस्पी रहती है और उनका प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक विज्ञान के पता चलता है कि किस-किस देश में कौन-कौन सी शासन प्रणाली प्रचलित है? वहाँ पर किस राजनीतिक विचारधारा को अपनाया गया है और उनके अनुसार ही हमें अपने सम्बन्ध उन देशों से स्थापित करने पड़ते हैं। कहीं राजतंत्र, कहीं लोकतंत्र, कहीं तानाशाही, कहीं संघात्मक सरकार, कहीं अध्यक्षात्मक सरकार और कहीं संसदीय प्रणाली।

5. लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक (Essential for the Success of democracy):
आज का युग लोकतंत्र का युग है। इस शासन प्रणाली में सम्पूर्ण शासन प्रणाली नागरिकों के हाथों में होती है। वे अपने प्रतिनिधि चुनते हैं जो कानून बनाते और शासन चलाते हैं। अतः लोकतंत्र उसी देश में सफल हो सकता है, जिस देश के लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिली हो और राजनीतिक शिक्षा के लिए राजनीतिक विज्ञान का अध्ययन आवश्यक है।

6. राजनीतिक चेतना जागृत होती है (Its study awakens the political consciousness):
आज लोकतंत्र का युग है और शासन की बागडोर जनता के हाथों में होती है। राजनीति शास्त्र का अध्ययन व्यक्ति को सरकार के विभिन्न अंगों, उनके संगठन तथा कार्यों से परिचित करा देता है। यदि किसी व्यक्ति को सरकारी कर्मचारी के रूप में काम करने का अवसर मिले तो राजनीति विज्ञान के अध्ययन की सहायता से वह व्यक्ति अपने कार्यों को आसानी से कर सकता है। इस प्रकार से राजनीतिक चेतना का भी विकास होता है और शासन में भी कुशलता आती है।

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प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र की प्रकृति व विषय क्षेत्र की समीक्षा कीजिए। (Explain the nature and scope of Political Science)
उत्तर:
राजनीति शास्त्र की प्रकृति (Nature of Political Science) क्या राजनीति शास्त्र विज्ञान है? यह प्रश्न राजनीति विज्ञान में अत्यधिक चर्चित रहता है। कुछ विचारक जो इसे विज्ञान मानते हैं उनमें प्रमुख हॉब्स, माण्टेस्क्यू, ब्राइस, जैविक गार्नर आदि। महान दार्शनिक एवं राजनीति विज्ञान के जनक (Father of Political Science) अरस्तू ने तो इसे सर्वोच्च विज्ञान (Master Science) कहा है। राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग होता है। यह क्रमबद्ध अध्ययन है। तार्किक विश्लेषण एवं पर्यवेक्षण आधारित है। कार्य और कारण में संबंध है।

विज्ञान के लक्ष्य अर्थात् सत्य की खोज का राजनीति विज्ञान में भी पुट मिलता है। किस प्रकार के राजनैतिक नियम एक आदर्श राज्य के अन्तर्गत नागरिकों का अधिकतम हित कर सकते हैं, उनका प्रयोग राजनीति विज्ञान में होता रहता है। इसके अतिरिक्त राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी भी की जा सकती है। परंतु दूसरे विचारक इसे विज्ञान नहीं मानते। इसमें मटलेण्ड एवं बकल प्रमुख हैं। इनके अनुसार राजनीति विज्ञान में न तो कोई प्रयोगशाला है और न ही उसमें प्रयोग किए जा सकते हैं।

व्यक्ति को मेढ़क आदि की तरह स्थिर करके प्रयोग नहीं किए जा सकते। राजनीति विज्ञान में निष्पक्षता का अभाव रहता है। कारण और कार्य में वास्तविकता का सम्बन्ध नहीं हो सकता। भविष्यवाणी सही रूप में नहीं की जा सकती। कुछ विचारक राजनीति विज्ञान को कला भी कहते हैं। कला का अर्थ है कि सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम्। कला का अर्थ है किसी कार्य को सफलतापूर्वक किया जाना। इन सभी बातों को राजनीति शास्त्र में पाया जाना उसे कला सिद्ध करता है।

विषय क्षेत्र (Scope of Political Science):
राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य का अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान का मानवीय तत्वों पर विशेष बल दिया जाता है। अत: यह मानव संबंधों का भी अध्ययन है। इसमें नागरिकों के कर्त्तव्य और नागरिकों के अधिकारों का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न प्रकार की राजनीतिक संस्थाओं, अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों, अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों, विश्व शांति के उपायों आदि सभी का अध्ययन इसमें सम्मिलित है। व्यवहारवादी दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति विज्ञान व्यक्ति के समाज में विभिन्न प्रकार के संबंधों में भी अध्ययन करता है। आधुनिक विचारकों के अनुसार राजनीति विज्ञान शक्ति का अध्ययन है तथा मानव मूल्यों का भी अध्ययन है।

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प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र और इतिहास में संबंध स्थापित कीजिए। (What is the relationship between Political Science and History?)
उत्तर:
राजनीति विज्ञान और इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। सीले (Seelay) का कथन है, “राजनीति विज्ञान के बिना इतिहास एक ऐसे वृक्ष के समान है जिसमें कोई फल नहीं लगता और इतिहास के बिना राजनीति शास्त्र बिना जड़ के वृक्ष के समान है।” (Without History Political Science has no root and without Political Science History has no fruit.”) राज्य ऐतिहासिक विकास का परिणाम है। इतिहास राजनीति शास्त्र की प्रयोगशाला भी है। अकबर ने राजपूतों के साथ सुलह की नीति अपनाकर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया जबकि औरंगजेब ने जजिया कर लगाकर सिक्ख, मराठे तथा अन्य हिन्दुओं को अपने विमुख कर लिया।

धीरे-धीरे उसका राज्य खण्डित होता गया। इसी प्रकार राजनीति शास्त्र भी इतिहास को सामग्री प्रदान करता है। यदि इतिहास में विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं का वर्णन न किया जाए तो इतिहास नीरस बन जाता है। बहुत सी राजनीतिक घटनाएँ इतिहास को एक नई दिशा में मोड़ देती हैं। यदि 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना न हुई होती तो भारत का इतिहास आज कुछ और ही होता। जून 1975 में इन्दिरा गाँधी ने आपात स्थिति न लगायी होती हो शायद भारत के राजनीतिक दलों का यह इतिहास न होता जो आज है। इस प्रकार इतिहास राजनीतिक विज्ञान का बहुत ऋणी है।

अंतर-इतिहास और राजनीति विज्ञान में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में विशेष अंतर है। इतिहास में घटनाओं का यथार्थ वर्णन किया जाता है जबकि राजनीति विज्ञान में घटनाओं का विश्लेषण करके आदर्श रूप को लाने का प्रयास होता है। आदर्श राज्य भविष्य में कैसा होना चाहिए इस पर राजनीति विज्ञान में विचार किया जाता है। इसके अतिरिक्त दोनों विषयों के विषय क्षेत्र भी अलग-अलग होते हैं। उनमें उद्देश्य की दृष्टि से भी अंतर होता है।

प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र का अर्थशास्त्र के साथ संबंध विस्तार से बताइए। (Describe in detail the relationship of Political Science with Economics)
उत्तर:
राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है। आर्थिक परिस्थितियाँ राजनीतिक दशा पर प्रभाव डालती हैं तथा राजनीतिक परिस्थितियाँ आर्थिक दशा को प्रभावित करती हैं। राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र दोनों मानव कल्याण के लिए प्रयासरत हैं। आर्थिक समस्याओं को राजनीति विज्ञान की सहायता से ही सुलझाया जाता है। राज्य द्वारा निर्धारित नीतियों के आधार पर आर्थिक कार्यक्रम चलाए जाते हैं। हिटलर और मुसोलिनी के नेतृत्व में जर्मनी तथा इटली में जो एक नए प्रकार का शासन (राष्ट्रीय समाजवाद पर आश्रित) स्थापित हुआ था, उसके कारण इन राज्यों का आर्थिक संगठन बहुत कुछ परिवर्तित हो गया था। समाजवाद के विकास का प्रधान कारण आर्थिक विषमता ही है।

ब्रिटेन और भारत में राजकीय समष्टिवाद के कारण इन देशों के आर्थिक जीवन पर राज्य का नियंत्रण बहुत बढ़ गया है। राज्य के कानून मजदूरी की निम्नतम दर, काम के घंटे व इसी प्रकार की अन्य बातों की व्यवस्था करते हैं। इसी प्रकार चुंगी, आयातकर, निर्यातकर, मूल्य का नियंत्रण, मुद्रा पद्धति आदि द्वारा सरकारें वस्तुओं के आदान-प्रदान व विनियम को नियंत्रित करती हैं। इन विविध प्रकार के राजकीय कानूनों द्वारा आर्थिक जीवन बहुत अशों तक मर्यादित हो जाता है। मानव सभ्यता के विकास में आर्थिक परिस्थितियाँ विशेष महत्व रखती हैं। अनेक विचारक इतिहास की घटनाओं का मूल कारण आर्थिक ही मानते हैं। कार्ल मार्क्स ऐसे ही विचारक थे।

अंतर:
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में विशेष अंतर भी है जिसका वर्णन निम्न प्रकार है –

1. राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध व्यक्तियों से व अर्थशास्त्र का सम्बन्ध वस्तुओं से है (Political Science deals with men and the Economics deals with materials):
राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय समाज में रहने वाले व्यक्ति हैं। राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है परंतु अर्थशास्त्र का सम्बन्ध वस्तुओं से है। यह शास्त्र वस्तुओं के उत्पादन, वितरण और विनियम का अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राजनीतिक विचारधाराओं से है। संक्षेप में, अर्थशास्त्र कीमतों (Prices) का अध्ययन करता है और राजनीति विज्ञान मूल्यों (Values) का।

2. राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अर्थशास्त्र से विस्तृत है (The Scope of Political Science is wider than Economics):
अर्थशास्त्र मानव की केवल आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है जिसमें कि धन का उत्पादन, वितरण और उपयोग सम्मिलित हैं जबकि राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान में व्यक्ति के राजनीतिक पक्ष के अतिरिक्त उसके सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व नैतिक पक्ष का ही अध्ययन किया जाता है। अत: राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अर्थशास्त्र से व्यापक है।

निष्कर्ष (Conclusion):
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के आपसी सम्बन्धों का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आज के युग में ये दोनों विषय एक-दूसरे के पूरक, हैं।

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प्रश्न 5.
वैधता से क्या अभिप्राय है? इसका महत्व भी बताइए। (What do you mean by Legitimacy? What is its importance?)
उत्तर:
राज्य को शक्ति प्रयोग करने का अधिकार है। वह नागरिकों के ऊपर बाध्यकारी शक्ति का भी प्रयोग कर सकता है ताकि नागरिक राज्य के कानूनों का पालन करते रहें। नागरिकों पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सदैव शक्ति का प्रयोग न तो सम्भव है और न ही इसका कोई औचित्य है। अतः राज्य शक्ति का प्रयोग अंतिम विकल्प के आधार पर ही करता है। शक्ति का प्रयोग केवल उन व्यक्तियों के लिये ही किया जाता है जो कानून का पालन नहीं करते।

व्यक्तियों के द्वारा राज्य की आज्ञा का पालन इस विश्वास पर ही किया जाता है कि राज्य व्यक्तियों के हित में शासन करता है। जब संसद में किसी एक दल का बहुमत नहीं होता है और कुछ दल मिलकर एक संगठन बना लेते हैं तो गठबंधन में सम्मिलित दलों का बहुमत हो जाता है और वे ही सरकार भी बनाते हैं परंतु उनमें से कोई भी एक दल बहुमत नहीं रखता। इस प्रकार अल्पमत की सरकारें बनती रहती हैं परंतु इस प्रकार की सरकारों को भी न्यायोचित माना जाता है क्योंकि कुछ निश्चित नियम व विधियों का इसमें प्रयोग होता है। राज्य में इस प्रकार बनी सरकार का भी औचित्य रहता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीति विज्ञान का जनक माना जाता है –
(क) सुकरात
(ख) प्लेटो
(ग) अरस्तु
(घ) गार्नर
उत्तर:
(ग) अरस्तु

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प्रश्न 2.
“सदा अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना प्रजातंत्र का मूल्य है।” यह किसका कथन है?
(क) जॉन स्टुअर्ट मिल
(ख) रूसो
(ग) लास्की
(घ) हीगल
उत्तर:
(ग) लास्की

प्रश्न 3.
किस लैटिन शब्द से Justice अर्थात् ‘न्याय’ शब्द की उत्पत्ति हुई?
(क) जस्टिसिया
(ख) जज
(ग) जस
(घ) ज्यूडिशिया
उत्तर:
(घ) ज्यूडिशिया

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प्रश्न 4.
लोकतंत्र की आधारशिला है:
(क) स्थानीय शासन
(ख) राष्ट्रपति शासन
(ग) बहुदलीय शासन
(घ) मिली-जुली सरकार
उत्तर:
(ग) बहुदलीय शासन

प्रश्न 5.
‘पॉलिटिक्स’ नामक पुस्तक के लेखक हैं –
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तू
(ग) सुकरात
(घ) कौटिल्य
उत्तर:
(ख) अरस्तू

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प्रश्न 6.
प्रजातंत्र (Democracy) किस भाषा के शब्द से बना है।
(क) ग्रीक
(ख) लैटिन
(ग) फ्रेंच
(घ) जर्मन
उत्तर:
(क) ग्रीक

प्रश्न 7.
अमेरिका में ‘वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ पर आतंकी हमला कब हुआ था।
(क) 9 सितम्बर, 2001
(ख) 11 सितंबर, 2001
(ग) 6 अगस्त, 2001
(घ) 9 मार्च, 2001
उत्तर:
(ख) 11 सितंबर, 2001

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मेजी पुर्नस्थापना से पहले की वे अहम घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को सम्भव किया?
उत्तर:
मेजी पुर्नस्थापना 1867-68 में हुई। इससे पहले की निम्नलिखित मुख्य घटनाओं ने जापान के तीव्र .आधुनिकीकरण को सम्भव बनाया-

(i) किसानों से शस्त्र ले लिए गए। अब केवल समुराई ही तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही जबकि पिछली शताब्दी में प्रायः लड़ाइयाँ होती रहती थीं। शान्ति एवं व्यवस्था को आधुनिकीकरण का मूल आधार माना जाता है।

(ii) दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानी में रहने के आदेश दिए गए। उन्हें काफी हद तक स्वायत्तता भी प्रदान की गई।

(iii) मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए भूमि का सर्वेक्षण किया गया और भूमि का वर्गीकरण उत्पादकता के आधार पर किया गया। इसका उद्देश्य राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

(iv) दैम्यों की राजधानियों का आकार लगातार बढ़ने लगा। अतः 17 वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो (आधुनिक तोक्यों) संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया। इसके अतिरिक्त ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे दुर्गों वाले कम-से-कम छः शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। इसकी तुलना में उस समय के अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक ही बड़ा शहर था। बड़े शहरों के परिणमस्वरूप जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त एवं ऋण की प्रणालियाँ स्थपित हुई।

(v) व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।

(vi) शहरों में जीवंत संस्कृति कर प्रसार होने लगा। बढ़ते हुए व्यापारी वर्ग ने नाटकों और कलाओं को संरक्षण प्रदान किया।

(vii) लोगों की पढ़ने में रुचि ने होनहार लेखकों को अपने लेखन द्वारा अपनी जीविका चलाने में सहायता पहुँचाई। कहते हैं कि एदो में लोग नूडल की कटोरी के मूल्य पर पुस्तक किराये पर ले सकते थे। इससे पता चलता है कि पुस्तकें पढ़ना अत्यधिक लोकप्रिय था और पुस्तकों की छपाई भी व्यापक स्तर पर होती थी।

(viii) मूल्यवान धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी गई।

(ix) रेशम के आयात पर रोक लगाने के लिए क्योतो में निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए पग उठाये गए। कुछ ही वर्षों में निशिजिन का रेशम विश्वभर में सबसे अच्छा रेशम माना जाने लगा।

(x) मुद्रा के बढ़ते हुए प्रयोग और चावल के शेयर बाजार के निर्माण से भी जापानी अर्थतंत्र का विकास नयी दिशाओं में हुआ।

प्रश्न 2.
जापान के एक आधुनिक समाज में रूपान्तरण की झलक दैनिक जीवन में कैसे दिखाई दी?
अथवा
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोजमर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जापान में पहले पैतृक परिवार व्यवस्था प्रचलित थी, जिसमें कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियन्त्रण में रहती थी। परन्तु जैसे-जैसे लोग समृद्ध हुए पृथक परिवार प्रणाली अथवा नयी घर व्यवस्था अस्तित्व में आई । इसमें पति-पत्नी साथ रहकर कमाते थे और घर बसाते थे। बिजली से चलने वाले नए घरेलू उत्पादों तथा नए परिवारिक मनोरंजनों की मांग भी बढ़ने लगी।

प्रश्न 3.
पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग (क्विंग) राजवंश ने किया?
उत्तर:
चीन का छींग राजवंश पश्चिमी शक्तियों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना करने। में असफल रहा। (1839-42) में ब्रिटेन के साथ हुए पहले अफीम युद्ध ने इसे कमजोर बना दिया। देश में सुधारों एवं परिवर्तन की मांग उठने लगी । राजवंश इसमें भी असफल रहा और देश गृहयुद्ध की लपेट में आ गया।

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प्रश्न 4.
सन-यात-सेन के तीन सिद्धान्त थे ?
उत्तर:
सनयात सेन के तीन सिद्धान्त (सन मिन चुई) निम्नलिखित थे-

  • राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू राजवंश को सत्ता से हटाना, क्योंकि उसे विदेशी राजवंश माना जाता था।
  • गणतन्त्र-देश में गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।
  • समाजवाद-पुंजी का नियमन करना तथा भूमि के स्वामित्व में बराबरी लाना।।

प्रश्न 5.
क्या पड़ोसियों के साथ जापान कि युद्ध और पर्यावरण का विनाश तीव्र औधोगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ?
उत्तर:
यह बात सत्य है कि जापान के तीव्र औद्योगीकरण के कारण ही जापान ने पर्यावरण के विनाश तथा युद्ध को जन्म दिया।

  • उद्योगों के अनियन्त्रित विकास से लकड़ी तथा अन्य संसाधनों की मांग बढ़ी। इसका पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • कच्चा माल प्राप्त करने तथा तैयार माल की खपत के लिए जापान को उपनिवेशों की आवश्यकता पड़ी। इसके कारण जापान को पड़ोसियों के साथ युद्ध करने पड़े।

प्रश्न 6.
क्या आप मानते हैं कि माओ-त्से-तुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की नींब डालने में सफलता प्राप्त की?
उत्तर:
इसमें कोई सन्देह नहीं कि माओ-त्से-तुंग अथवा माओजेदांग और उसके साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की नींव डालने में सफलता प्राप्त की। यह बात नीचे दिए गए घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाएगी.

सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिनतांग की गतिविधियाँ – 1925 में सनयाप्त सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिंतांग का नेतृत्व च्यांग-काई-शेक के हाथों में आ गया। इससे पूर्व 1927 में चीन में साम्यवादी दल की स्थापना हुई थी। यद्यपि उसने कोमिंतांग के शासन को सुदृढ़ बनाया, ”तो भी उसने, सनयात सेन के तीन क्रान्तिकारी उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम न. उठाया। इसके विपरीत उसने कोमिंतांग में अपने विरोधियों तथा साम्यवादियों को कुचलने की नीति अपनाई। उसे सोवियत संघ का समर्थन भी प्राप्त था। इसके अतिरिक्त उसने जमींदारों के एक नये वर्ग को उभारने का प्रयास किया जो किसानों का शोषण करते थे। इसी बीच माओ-जेदांग नामक साम्यवादी नेता ने किसान आन्दोलन को मजबूत बनाने के लिए लाल सेना का निर्माण किया।

माओ जेदांग का उत्कर्ष – 1930 में माओ जेदांग किसानों तथा मजदूरों की सभा का सभापति बन गया और भूमिगत होकर काम करने लगा। उसके सिर पर 25 लाख डालर का इनाम था। उसने नए सिरे से लाल सेना का संगठन किया और च्यांग-काई-शेक की विशाल सेना के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध आरम्भ कर दिया। उसने च्यांग की सेना को चार बार भारी पराजय दी। परन्तु पाँचवें आक्रमण में उस पर इतना दबाव पड़ा कि उसने ‘महाप्रस्थान’ (Long March) की योजना बनाई और उसे कार्यान्वित किया। लाल सेना के इस प्रस्थान की गणना विश्व की अद्भुत घटनाओं में की जाती है। इस यात्रा में लगभग एक लाख साम्यवादियों ने भाग लिया। उन्होंने 268 दिनों में 6000 मील की दूरी तय की और देश के उत्तरी प्रान्तों शेंसी तथा कांसू (Shensi and Kansu) पहुँचे। यहाँ तक पहुँचने वालों की संख्या केवल 20,000 ही थी।

1935 में मांओ ने जापानियों के विरुद्ध साम्यवादी मोर्चा खड़ा किया। उसने अनुभव किया कि जापान के विरुद्ध संघर्ष उसे लोकप्रिय बना देगा और उसके जन-आन्दोलन को भी अधिक प्रभावशील बनाएगा। उसने यह भी. सुझाव दिया कि कोमिंतांग लाल सेना के साथ मिल कर कार्य करे और संयुक्त मोर्चे की स्थापना की जाए, परन्तु च्यांग ने इसे स्वीकार नहीं किया। इस बात से च्यांग की प्रतिष्ठा को इतना अधिक आघात पहुँचा कि उसके अपने ही सैनिकों ने उसे बन्दी बना लिया। माओ ने तब तक जापान के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा, जब तक उसे सफलता नहीं मिली।

च्यांग के विरुद्ध संघर्ष-च्यांग माओ की बढ़ती हुई शक्ति से बहुत चिन्तित था। वह उसके साथ मिलकर काम नहीं करना चाहता था। बहुत कठिनाई के बाद वह जापान के विरुद्ध माओ का साथ देने के लिए तैयार हुआ। जब युद्ध समाप्त हुआ तो माओ ने च्यांग के सामने मिली-जुली सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा। परन्तु च्यांग ने इसे स्वीकार नहीं किया। माओ ने अपना संघर्ष जारी रखा। 1949 में च्यांग को चीन से भाग कर फारमोसा (वर्तमान ताइवान) में शरण लेनी पड़ी। माओ जेदांग को चीन की सरकार का अध्यक्ष (Chairman) चुना गया। अपनी मृत्यु तक वह इसी पद पर बना रहा।

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Bihar Board Class 11 History आधुनिकीकरण के रास्ते Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अफीम युद्धों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अफीम युद्ध चीन में अफीम के ‘अवैध व्यापार के कारण हुए। अंग्रेज व्यापारी भारी . मात्रा में चीन अफीम ले जाते थे। इस प्रकार चीनी लोग पूरी तरह अफीम खाने के आदी हो गए, जिससे उनका शारीरिक और नैतिक पतन हुआ। इस व्यापार के कारण ही चीन को अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ना पड़ा।’

प्रश्न 2.
चीन में बॉक्सर विद्रोह कब हुआ? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
चीन में बॉक्सर विद्रोह 1889-90 ई. में हुआ। इस विद्रोह को अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जापानी, जर्मन तथा अमेरिकी सेनाओं ने मिलकर दबाया। इस विद्रोह के कारण चीन विभाजित होने से बच गया।

प्रश्न 3.
चीन में गणराज्य की स्थापना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1911 में मंचू शासन के पतन के बाद गणराज्य की स्थापना हुई। इसकी घोषणा 1 जनवरी, 1912 ई. को की गई।
नानकिंग को इसकी राजधानी बनाया गया। डॉ. सनयात सेन इस गणराज्य के राष्ट्रपति बने।

प्रश्न 4.
चीन में आगे की ओर बड़ी छलांग (Great Leap Forward 1958-59) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आगे की ओर बड़ी छलांग से अभिप्राय चीन द्वारा आश्चर्यजनक उन्नति करने का प्रस्ताव था। परन्तु चीनी नेता इसमें विफल रहे। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  • चीन में कम्यूनों की स्थापना की गई और लोगों को इसमें शामिल होने के लिए बाध्य किया गया।
  • कृषि उत्पादन में गिरावट आई।
  • मूल्यवान् साधन बर्बाद किए गए। इन सबके परिणामस्वरूप 1960-62 के दौरान देश में गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया। आगे की ओर छलांग चीन को आगे ले जाने की बजाय पीछे ले गई।

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प्रश्न 5.
चीन की सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति क्या थी?
उत्तर:
सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति (Cultural Revolution) चीन में आरम्भ की गई। चीन आर्थिक क्षेत्र में बड़ी छलांग लगाने में विफल रहा था। चीन के नेता यह दिखाना चाहते थे कि विफलता के लिए माओ-जेडांग तथा अन्य नेता जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि अन्य लोग जिम्मेदार थे। अतः क्रान्ति के नाम पर मनमाने ढंग से निर्दोष व्यक्तियों पर झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें बन्दी बनाया गया। परणिामस्वरूप पूरे देश में अव्यवस्था फैल गई और सारी अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई।

प्रश्न 6.
चीन में प्रचलित कंफ्यूशियसवाद की विचारधारा क्या थी?
उत्तर:
कंफ्यूशियसवाद की विचारधारा कंफ्यूशियस (551-479 ई.पू.) और इनके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई थी। इसका सम्बन्ध अच्छे व्यवहार, व्यावहारिक समझदारी तथा उचित सामाजिक सम्बन्धों से था। इस विचारधारा ने सामाजिक मानक स्थापित किए और चीनी राजनीतिक सोंच तथा संगठनों को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 7.
1905 ई. में चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली को समाप्त क्यों कर दिया गया?
उत्तर:
चीन में प्रचलित परीक्षा प्रणाली में केवल साहित्यिक कौशल की ही माँग होती है। यह क्लासिक चीनी सीखने की कला पर ही आधारित थी, जिसकी आधुनिक विश्व में कोई प्रासंगिकता नजर नहीं आती थी। दूसरे, यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास में भी बाधक थी। इसलिए 1905 ई. में इस परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 8.
चियांग काइ शेक कौन थे? उन्होंने महिलाओं को कौन-से चार सद्गुण अपनाने के लिए प्रेरित किया?
उत्तर:
चियांग काइ शेक (1887-1975) कुओमीनतांग के नेता थे। वह सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओमीनतांग के नेता बने। उन्होंने महिलाओं को ये चार सद्गुण अपनाने के लिए प्रेरित किया-सतीत्व, रंगरूप, वाणी और काम।

प्रश्न 9.
चीनी गणराज्य में महिला मजदूरों (शहरी) की क्या समस्याएँ थीं?
उत्तर:

  • महिला मजदूरों को बहुत कम वेतन मिलता था।
  • काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे।
  • काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थीं।

प्रश्न 10.
देश (चीन) को एकीकृत करने के प्रयासों के बावजूद कुओमीनतांग असफल रहा। क्यों?
उत्तर:

  • कुओमीनतांग का सामाजिक आधार संकीर्ण था और राजनीतिक दृष्टिकोण सीमित था।
  • सनयात सेन के कार्यक्रम में शामिल पूंजी के नियमन और भूमि-अधिकारों में समानता को लागू न किया जा सका।
  • पार्टी ने किसानों की अनदेशी की और लोगों की समस्याओं की ओर कोई ध्यान न दिया।

प्रश्न 11.
1945-49 के दौरान ग्राणीम चीन में कौन-से दो मुख्य संकट थे?
उत्तर:

  • पर्यावरण सम्बन्धी संकट-इसमें बंजर भूमि, वनों का विनाश तथा बाढ़ शामिल थे।
  • सामाजिक आर्थिक संकट-यह संकट विनाशकारी भूमि-प्रथा, ऋण, प्राचीन प्रौद्योगिकी तथा निम्न स्तरीय संचार के कारण था।

प्रश्न 12.
1930 ई. में माओत्सेतुंग ने किस बात का सर्वेक्षण किया? इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
1930 ई. में माओत्सेतुंग ने जुनवू में एक सर्वेक्षण किया। इसमें नमक तथा सोयाबीन जैसी दैनिक उपयोग की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक मजबूतियों, धार्मिक संगठनों की मजबूतियों, दस्तकारों, लोहारों तथा वेश्याओं आदि का सर्वेक्षण किया। इसका उद्देश्य शोषण के स्तर की जानकारी प्राप्त करना था।

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प्रश्न 13.
लाँग मार्च (1934-35) क्या था? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
लाँग मार्च चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की शांग्सी तक 6000 मील की एक कठिन यात्रा थी। इस यात्रा के बाद येनान पार्टी का नया अड्डा बन गया। यहाँ माओत्सेतुंग ने वारलॉर्डिज्म को आगे बढ़ाया। इसमें उन्हें मजबूत सामाजिक आधार मिला।

प्रश्न 14.
चीन के लिए 4 मई का आन्दोलन क्यों महत्त्वपूर्ण था?
उत्तर:
4 मई का आन्दोलन 1919 में पीकिंग में हुआ। इस आन्दोलन में छात्रों की सक्रिय भूमिका थी। इसके परिणामस्वरूप चीन में साम्यवादी दल की स्थापना का मार्ग खुला और चीन के छात्रों और श्रमिकों में जागृति की भावनाएँ उत्पन्न हुईं।

प्रश्न 15.
कुओमितांग दल की स्थापना के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
डॉ. सनयात सेन ने 1919 में तुंग-हुई तथा कई अन्य दलों को मिलाकर चीन में एक राष्ट्रीय दल की स्थापना की। यह दल कुओमिनतांग दल के नाम से जाना गया। इसी दल ने 1920 में दक्षिणी चीन में कैन्टन सरकार की स्थापना थी।

प्रश्न 16.
1911 की चीनी क्रान्ति के दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • मन्चू सरकार अप्रिय हो रही थी और जनता का रोष उसके प्रति बढ़ रहा था।
  • मन्चू सरकार की रेल नीति 1911 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बनी। रेल नीति को केन्द्र के अधीन करने से अनेक समस्याएँ उत्पन्न हुईं और अन्ततः इसी ने 1911 की क्रान्ति को भड़काया।

प्रश्न 17.
1911 की चीनी क्रान्ति के दो परिणाम बताएँ।
उत्तर:

  • 1911 की चीनी क्रान्ति के परिणामस्वरूप चीन में मंचू राजवंश का शासन समाप्त हो गया।
  • चीन की जनता को नवीन संविधान प्राप्त हुआ और चीनी गणतन्त्र की स्थापना हुई।

प्रश्न 18.
1949 की चीनी क्रान्ति के क्या कारण थे?
उत्तर:

  • साम्यवादियों ने जेंसी में साम्यवादी शासन का गठन कर लिया था। यह समाजवादी राज्य पूरे चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना करना चाहता था।
  • चीन में गृह-युद्ध छिड़ गया। परन्तु साम्यवादी और राष्ट्रीय सरकार किसी साँझे संविधान पर राजी न हुए।

प्रश्न 19.
चीन में साम्यवादी राज्य का आरम्भ कब और कैसे हुआ?
उत्तर:
अक्टूबर, 1949 में साम्यवादियों ने राष्ट्रीय सरकार की राजधानी कैन्टन पर अधिकार कर लिया। च्यांग-काई-शेक भागकर फारमूसा चला गया। पहली अक्टूबर, 1949 को साम्यवादियों ने चीन की राष्ट्रीय सरकार की घोषणा की और पीकिंग को चीन की राजधानी बना दिया।

प्रश्न 20.
कमोडोर पैरी की जापान यात्रा के बारे में दो तथ्य लिखो।
उत्तर:

  • पैरी मिशन 1854 में अमेरिका के राष्ट्रपति फिलमोर ने जापान भेजा था। उसका काम अमेरिका की सरकार का सन्देश जापार की सरकार तक पहुँचाना था।
  • वह युद्ध करके भी जापान से अपना उद्देश्य पूरा कर सकता था।

प्रश्न 21.
कमोडोर पैरी के दो मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर:

  • यदि कोई अमेरिकन जहाज जापान के समुद्र तट पर टूट जाए, तो उसके नाविकों और यात्रियों को जापान मे आश्रय दिया जाए।
  • अमेरिकन जहाजों को यह अनुमति हो कि वे जापान के बन्दरगाहों से कोयला, जल खाद्य सामग्री आदि ले सकें।

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प्रश्न 22.
कंगावा की सन्धि किन दो देशों बीच हुई ? इसकी दो शर्ते कौन-सी थीं?
उत्तर:
कंगावा की सन्धि जापान और अमेरिका में होने वाली पहली सन्धि थी। दो शर्ते-

  • विदेशी जहाजों को जापान के कुछ बन्दरगाहों से कोयला भरने तथा खाद्यान एवं जल लेने का अधिकार होगा।
  • अमेरिका के किसी जहाज के टूटने पर उसके नाविकों और यात्रियों के साथ परम मित्रता का व्यवहार किया जाएगा।

प्रश्न 23.
पश्चिमी देशों से सन्धियाँ करने से जापान पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • पश्चिमी देशों के सम्पर्क में आकर जापान ने उनके ज्ञान को अपनाया और पचास वर्षों के भीतर ही उनके समान सबल हो गया।
  • विदेशी सम्पर्क के कारण गोकुगावा वंश के शोगुनों का प्रभाव समाप्त हुआ और देश में जापानी सम्राट ने फिर से शक्ति पकड़ ली।

प्रश्न 24.
जापान में मेजियों की पुर्नस्थापना के लिए उत्तरदायी कोई दो कारण बताएँ।
उत्तर:
1867-1868 में मेजी वंश के नेतृत्व में तोकुगावा वंश के शासन को समाप्त कर दिया गया। मेन्जियों की पुर्नस्थापना के पीछे कई कारण थे-

  • देश में विभिन्न क्षेत्रों में असन्तोष व्याप्त था।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा कूटनीतिक सम्बन्धों की मांग की जा रही थी।

प्रश्न 25.
मेजी युग में जापान ने कृषि क्षेत्र में क्या प्रगति की?
उत्तर:

  • कृषक कृषि करने वाली भूमि के स्वामी बन गए।
  • जापान ने पश्चिमी देशों से कृषि विशेषज्ञों की सेवाएँ प्राप्त की और कृषि क्रान्ति के बीज बोए।

प्रश्न 26.
मेजी युग के दो महत्त्वपूर्ण कार्य लिखें।
उत्तर:

  • जापान में संयुक्त राज्य अमेरिका की पद्धति पर एक राष्ट्रीय बैंक की स्थापना की गई। इस बैंक को नोट छापने का अधिकार दिया गया।
  • जापान में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। छः साल के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।

प्रश्न 27.
रूस-जापान युद्ध की दो विशेष बातें बताएँ।
उत्तर:

  • रूस-जापान युद्ध 1904-05 में हुआ था।
  • इसमें छोटे से देश जापान ने रूस को पराजित किया।

प्रश्न 28.
‘सर्वहारा की तानाशाही’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
‘सर्वहारा की तानाशाही’ की अवधारणा कार्ल मार्क्स की देन है। इसमें इस बात पर बल दिया गया था कि धनी वर्ग की दमनकारी सरकार का स्थान श्रमिक वर्ग की क्रान्तिकारी सरकार लेगी। यह लोकतन्त्र वर्तमान अर्थ में अधिनायकतन्त्र नहीं होगा।

प्रश्न 29.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना कब हुई? यह सरकार रूस की सात्यवादी सरकार से किस प्रकार भिन्न थी?
उत्तर:
‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ की स्थापना 1949 में हुई। यह नये लोकतन्त्र को सिद्धान्तों पर आधारित थी, जो सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। इसके विपरित सरकार साम्यवादी सरकार का आधार ‘सर्वहारा की तानाशाही’ था।

प्रश्न 30.
चीन के पीपुल्स कम्यूंस क्या थे?
उत्तर:
पीपुल्स कम्यूंस चीन के ग्रामीण क्षेत्रों में आरम्भ किए गए। इनमें लोग सामूहिक रूप से भूमि के स्वामी होते थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे। 1954 तक देश में 26,000 ऐसे समुदाय थे।

प्रश्न 31.
सांस्कृतिक क्रान्ति का चीन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:

  • सांस्कृतिक क्रान्ति से देश में अव्यवस्था फैल गई जिससे पार्टी कमजोर हुई।
  • अर्थव्यवस्था तथा शिक्षा के प्रसार में भी बाधा पड़ी।

प्रश्न 32.
1976 में चीन में आधुनिकीकरण के लिए किस चार सूत्री लक्ष्य की घोषणा की गई?
उत्तर:
इस चार सूत्री लक्ष्य में ये चार बातें शामिल थीं-विज्ञान, उद्योग, कृषि तथा रक्षा का। विकास।

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प्रश्न 33.
चीन में 4 मई के आन्दोलन की 70वीं वर्षगांठ (1989 में) पर घठित घटना की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:

  • इस अवसर पर अनेक बुद्धिजीवियों ने अधिक खुलेपन की माँग की और कड़े सिद्धान्तों को समाप्त करने के लिए आवाज उठाई।
  • बीजिंग के तियानमेन चौक पर लोकतन्त्र की मांग करने वाले छात्रों के प्रदर्शन का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया।

प्रश्न 34.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आज ताइवान की क्या स्थिति है?
उत्तर:
आज राजनयिक स्तर पर अधिकांश देशों के व्यापार मिशन केवल ताइवान में ही हैं। परन्तु वे ताइवान में अपने दूतावास स्थापित नहीं कर सकते और न ही. वहाँ की सरकार के साथ राजनयिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं। इसका कारण यह है कि ताइवान को आज भी चीन का अंग माना जाता है।

प्रश्न 35.
चीन के साम्यवादी दल और उसके समर्थकों ने परम्परा को समाप्त करने का प्रयास क्यों किया?
उत्तर:
चीन के साम्यवादी दल तथा उसके समर्थकों ने निम्नलिखित कारणों से परम्परा को समाप्त करने का प्रयास किया-

  • उनका विचार था कि परम्परा लोगों को गरीबी में जकड़े हुए है।
  • उनका मानना था कि परम्परा महिलाओं को उनकी स्वतन्त्रता से वंचित रखती है और देश के विकास में बाधा डालती है।

प्रश्न 36.
19वीं शताब्दी के आरम्भ में चीन और जापान की राजनीतिक स्थिति की तुलना कीजिए।
उत्तर:
19वीं शताब्दी के आरम्भ में चीन का पूर्वी एशिया पर प्रभुत्व था। वहाँ छींग राजवंश की सत्ता बहुत ही सुरक्षित जान पड़ती थी। दूसरी ओर जापान एक छोटा-सा देश था, जो अलग-अलग जान पड़ता था।

प्रश्न 37.
चीन और जापान के भौतिक भूगोल में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:

  • चीन एक विशाल महाद्वीपीय देश है। इसमें कई तरह के जलवायु क्षेत्र हैं। इसके विपरीत जापान एक द्वीप श्रृंखला है। इसमें चार मुख्य द्वीप हैं। होश, क्यूश, शिकोक तथा होकाइदो।
  • चीन भूकम्प क्षेत्र में नहीं आता, जबकि जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में आता है।

प्रश्न 38.
चीन के प्रमुख जातीय समूह तथा प्रमुख भाषा का नाम बताएँ। यहाँ की अन्य राष्ट्रीयताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
चीन का प्रमुख जातीय समूह ‘हान’ तथा प्रमुख भाषा चीनी (पुतोंगहुआ) है। यहाँ की अन्य राष्ट्रीयताएँ हैं-उइघुर, हुई, मांचू तथा तिब्बती।

प्रश्न 39.
जापान की जनसंख्या में कौन-कौन लोग शामिल हैं?
उत्तर:
जापान की अधिकतर जनसंख्या जापानी है। इसके अतिरिक्त यहाँ कुछ आयनू अल्पसंख्यक तथा कुछ कोरिया के लोग भी रहते हैं। कोरिया के लोगों को यहाँ उस समय मजदूर के रूप में लाया गया था जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।

प्रश्न 40.
जापान के लोगों के भोजन.की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
जापान के लोगों का मुख्य भोजन चावल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ कच्ची मछली साशिमी या सूशी बहुत ही लोकप्रिय है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।

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प्रश्न 41.
16वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में जापान में भविश्य के राजनीतिक विकास की भूमिका तैयार करने में किन परिवर्तनों का योगदान था?
उत्तर:

  • किसानों से शस्त्र ले लिए गए। अब केवल समुराई ही तलवार रख सकते थे। इससे शान्ति और व्यवस्था बनी रही।
  • दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानी में रहने के आदेश दिए गए। उन्हें काफी सीमा तक स्वायत्तता प्रदान की गई।
  • मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए भूमि का सर्वेक्षण किया गया और भूमि का वर्गीकरण उत्पादकता के आधार पर किया गया। इसका उद्देश्य राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाना था।

प्रश्न 42.
17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में होने वाले नगरों के विस्तार की विशेषताएं बताओ।
उत्तर:

  • 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान का एदो नगर संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया।
  • ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे।
  • दुर्गों वाले कम-से-कम 6 शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से अधिक थी। इसकी तुलना में अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक-एक ही बड़ा शहर था।

प्रश्न 43.
जापानी लोग (16वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में) छपाई कैसे करते थे?
उत्तर:
जापानी लोगों को यूरोपीय छपाई पसन्द नहीं थी। वे लकड़ी के ब्लाकों से छपाई करते थे। पुस्तकों की लोकप्रियता से पता. चलता है कि पुस्तकों की छपाई व्यापक स्तर पर की जाती थी।

प्रश्न 44.
16वीं तथा 17वीं शताब्दी में जापान को एक धनी देश क्यों समझा जाता था?
उत्तर:
जापान चीन से रेशम जैसी विलास की वस्तुएँ तथा भारत से कपड़े का आयात करता था। जापान इसका मूल्य सोने में चुकाता था। इसी कारण जापान को एक धनी देश समझा जाता था।

प्रश्न 45.
जापान द्वारा अपने आयातों का मूल्य सोने में चुकाने से देश की अर्थव्यवस्था पर पड़े बोझ को कम करने के लिए उठाए गए कोई दो पग बताइए।
उत्तर:

  • बहुमूल्य धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी गई।
  • निशिजिन (क्योतो) में रेशम उद्योग का विकास किया गया, ताकि रेशम का आयात न करना पड़े। शीघ्र ही यह उद्योग संसार का सबसे बड़ा उद्योग बन गया।

प्रश्न 46.
कॉमोडोर पेरी (अमेरिका) जापान कब आया? उसके प्रयत्नों से अमेरिका तथा जापान के बीच हुई सन्धि की कोई दो शर्ते बताएँ।
उत्तर:
कॉमोडोर पेरी 1853 ई. में जापान आया। उसके प्रयत्नों से अमेरिका तथा जापान के बीच हुई सन्धि के अनुसार-

  • जापान के दो बन्दरगाह अमेरिकी जहाजों के लिए खोल दिए गए।
  • अमेरिका को जापान में थोड़ा-बहुत व्यापार करने की छूट भी मिल गई। इस घटन को ‘जापान का खुलना’ भी कहते हैं।

प्रश्न 47.
निशिजिन (क्योतो) में रेशम उद्योग के विकास के कोई तीन पहलू बताइए :
उत्तर:

  • 1713 से यहाँ केवल देशी रेशमी धागा प्रयोग किया जाने लगा, जिससे इस उद्योग को और अधिक प्रोत्साहन मिला।
  • निशिजिन में केवल विशिष्ट प्रकार के महंगे उत्पाद बनार जाते थे।
  • 1859 ई. में देश का व्यापार आरम्भ होने पर रेशम जापान की अर्थव्यवस्था व लिए मुनाफे का प्रमुख स्रोत बन गया।

प्रश्न 48.
मेजी पुर्नस्थापना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
1867-68 ई. में जापान में शोगुन (तोकुगोवा वंश का) शासन समाप्त कर दिए गया और उसके स्थान पर नये अधिकारी तथा सलाहकार सामने आये। ये लोग जापानी सम्रा के नाम पर शासन चलाते थे। इस प्रकार देश में सम्राट फिर से सर्वेसर्वा बन गया। उसने मेज की उपाधि धारण की। जापान के इतिहास में इस घटना को मेजी पुर्नस्थापना कहा जाता है।

प्रश्न 49.
जापान में मेजी शासन के अधीन ‘फुकोकु क्योहे’ के नारे से क्या तात्पर्य था?
उत्तर:
फुकोकु क्योहे के नारे से तात्पर्य था-समृद्ध देश, मजबूत सेना। वास्तव में सरकार ने यह जान लिया था कि उसे अपनी अर्थव्यवस्था का विकास तथा मजबूत सेना का निर्माण करने की आवश्यकता है, वरना उन्हें भी भारत की तरह दास बना लिया जाएगा। इसीलिए फुकोकु क्योहे का नारा दिया गया।

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प्रश्न 50.
‘सम्राट व्यवस्था’ से जापानी विद्वानों का क्या अभिप्राय था?
उत्तर:
सम्राट व्यवस्था से जापानी विद्वानों का अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था, जिसमें सम्राट नौकरशाही और सेना मिलकर सत्ता चलाते थे। नौकरशाही तथा सेना सम्राट के प्रति उत्तरदायी होती थी।

प्रश्न 51.
जापान में नयी विद्यालय व्यवस्था क्या थी? इसका क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
1870 के दशक से जापान में नयी विद्यालय-व्यवस्था अपनाई गई। इसके अनुसार सभी लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य कर दिया गया। पढ़ाई की फीस बहुत कम थी। परिणाम यह हुआ कि 1910 तक ऐसी स्थिति आ गई कि कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वंचित नहीं रहा।

प्रश्न 52.
मेजी शासन के अधीन किए गए कोई दो सैनिक परिवर्तन बताएँ।
उत्तर:
मेजी शासन के अधीन निम्नलिखित सैनिक परिवर्तन हुए-

  • 20 साल से अधिक आयु वाले प्रत्येक नवयुवक के लिए एक निश्चित समय के लिए सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी गई।
  • एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया।

प्रश्न 53.
जापान में लोकतान्त्रिक संविधान और आधुनिक सेना के दो अलग आदर्शों को महत्त्व देने के क्या परिणाम निकलें ?
उत्तर:

  • जापान आर्थिक रूप से विकास करता रहा।
  • सेना ने साम्राज्य विस्तार के लिए दृढ़ विदेश नीति अपनाने के लिए दबाव डाला। इस कारण चीन और रूस के साथ युद्ध हुए, जिनमें जापान विजयी रहा। शीघ्र ही उसने अपना एक औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर लिया।

प्रश्न 54.
1902 की आंग्ल-जापान संधि पर ब्रिटेन ने हस्ताक्षर क्यों किए? जापान के लिए इस संधि का क्या महत्त्व था?
उत्तर:
1902 की आंग्ल-जापान संधि पर ब्रिटेन ने इसलिए हस्ताक्षर किए क्योंकि वह चीन में रूसी प्रभाव को रोकना चाहता था। जापान के लिए इस संधि.का यह महत्त्व था कि इसके अनुसार उसे विश्व के अन्य उपनिवेशवादियों के बराबर का दर्जा मिल गया।

प्रश्न 55.
मेजी युग में अर्थव्यवस्था के आधुनिकीकरण के लिए उठाए गए कोई तीन कदम बताइए।
उत्तर:

  • कृषि पर कर लगाकर धन एकत्रित किया गया।
  • 1870-1872 में तोक्यो (Tokyho) और योकोहामा बन्दरगाह के बीच जापान की पहली रेल लाइन बिछाई गई।
  • वस्तु उद्योग के विकास के लिए यूरोप में मशीनें आयात की गई।

प्रश्न 56.
जापान में 1920 के बाद जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
उत्तर:
जापान में जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को बढ़ावा दिया। पहले लोगों को उत्तरी द्वीप होकायदो की ओर भेजा गया। यह काफी हद तक एक स्वतन्त्र प्रदेश था और वहाँ आयनू कहे जाने वाले लोग रहते थे। इसके बाद उन्हें हवाई, ब्राजील और जापान का बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर भेजा गया।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
चीनी कोमितांग पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें।
उत्तर:
कोमितांग की स्थापना 1912 ई. में चीन के राष्ट्रवादी नेता सनयात सेन ने की थी। उनके तीन मुख्य उद्देश्य थे-

  • चीन को विदेशी प्रभुत्व से मुक्त करवाना
  • चीन में आधुनिक लोकतन्त्र की स्थापना करना तथा
  • भूमि सुधारों द्वारा कृषकों को सामन्ती नियन्त्रण से मूक्त। करवाना।

सनयात सेन के अधीन कोमिनतांग की लोकप्रियता दूर-दूर तक फैल गई। इस संस्था के उद्देश्य 1921 ई. में स्थापित साम्यवादी दल से मेल खाते थे। परन्तु शीघ्र ही दोनों दलों में मतभेद उत्पन्न हो गए। 1925 ई. में सनयात सेनं की मृत्यु हो गई और कोमिनतांग का नेतृत्व च्यांग-काई-शेक के हाथों में आ गया। उसने साम्यवादियों पर क्रूर अत्याचार करना आरम्भ कर दिए। विवश होकर साम्यवादी नेता माओ जेड़ांग ने महाप्रस्थान (600 मील की लम्बी यात्रा) का कार्यक्रम अपनाया और उत्तरी चीन में अपना प्रभाव बढ़ा लिया। अन्ततः 1949 ई. में उसने च्यांग-काई-शेक को फारमोसा (वर्तमान ताइवान) भाग जाने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार कोतिनतांग का पतन हो गया।

प्रश्न 2.
चीन की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति (1965) क्या थी? इसका क्या। परिणाम निकला?
उत्तर:
‘समाजवादी व्यक्ति’ की रचना के इच्छुक माओवादियों और माओ की साम्यवादी विचारधारा के आलोचकों के बीच संघर्ष छिड़ गया। 1965 की महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति इसी संघर्ष का परिणाम थी। माओ ने यह क्रान्ति आलोचकों का सामना करने के लिए आरम्भ की थी पुरानी संस्कृति, पुराने रिवाजों और पुरानी आदतों के विरुद्ध अभियान छेड़ने के लिए रेड गार्ड्स-मुख्यतः छात्रों और सेना का प्रयोग किया गया। छात्रों और पेशेवर लोगों को जनता से सीख लेने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में भेजा गया। साम्यवादी होने की विचारधारा पेशेवर ज्ञान से भी अधिक महत्त्वपुर्ण बन गई। तर्कसंगत वादविवाद का स्थान दोषरोपण और नारेबाजी ने ले लिया।

परिणाम – सांस्कृतिक क्रान्ति से देश में खलबली मच गई, जिससे पार्टी कमजोर हुई अर्थव्यवस्था और शिक्षा के प्रसार में भी भारी बाधा आई। परन्तु 1960 के उत्तरार्द्ध से स्थिति बदलने लगी। 1975 में पार्टी ने एक बार फिर कड़े सामाजिक अनुशासन और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के निर्माण पर बल दिया, ताकि देश बीसवीं शताब्दी के अन्त तक एक शक्तिशाली देश बन सके।

प्रश्न 3.
चीन में हुई सांस्कृतिक क्रान्ति की व्याख्या करें।
उत्तर:
चीन में सन् 1965 में माओ ने महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की शुरूआत की। माओ समाजवादी व्यक्ति की रचना के इच्छुक थे तथा दक्षता के बजाय विचारधारा पर बल देते थे। इसके विपरीत चीन में कुछ लोग समाजवादी विचारधारा के स्थान पर पूँजीवाद पर बल दे रहे थे। माओ ने इसी द्वन्द की समाप्ति हेतु सांस्कृतिक क्रान्ति की शुरुआत की जिसके तहत प्राचीन संस्कृति और पुराने रिवाजों और पुरानी आदतों के खिलाफ रेड गार्डस का इस्तेमाल किया गया। रेड गार्डस में मुख्यत: सेना एवं छात्रों का प्रयोग होता था। नागरिकों के दोषरोपण ने तर्कसंगत बहस का स्थान ले लिया और चीन सांस्कृतिक परिवर्तन की करवट लेने लग गया।

प्रश्न 4.
माओ-त्से-तुंग ने पार्टी (साम्यवादी) द्वारा निर्धारित लक्ष्या की प्राप्ति के लिए क्या किया? क्या उनके तौर-तरीके पार्टी के सभी लोगों को पसंद थे?
उत्तर:
माओ-त्से-तुंग पार्टी द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जनसमुदाय को प्रेरित करने में सफल रहे। उनकी चिन्ता ‘समाजवादी व्यक्ति’ बनाने की थी जिसे पांच चीजें प्रिय होनी थीं-पितृभूमि, जनतप, काम, विज्ञान और जन सम्पत्ति। किसानों, महिलाओं, छात्रों और अन्य गुटों के लिए जन संस्थाएँ बनाई गईं। उदाहरण के लिए ‘ऑल चाइना डेमोक्रेटिक वीमेंस फेडरेशन’ के 760 लाख सदस्य थे। इसी प्रकार ‘ऑल चाइना स्टूडेंट्स फेडरेशन’ के 32 लाख 90 हजार सदस्य थे। परन्तु ये लक्ष्य और तरीके पार्टी के सभी लोगों को पसन्द नहीं थे। 1953-54 में कुछ लोग. औद्योगिक (1896-1969) तथा तंग शीयाओफी (1904-97) ने कम्यून प्रथा को बदलने की चेष्ठा को क्योंकि यह कुशलतापूर्वक काम नहीं कर रही थी। घरों के पिछवाड़े में बनाया गया स्टील औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी नहीं था।

प्रश्न 5.
चीन में भयंकर अकाल क्यों पड़ा? अथवा, माओ का ‘आगे की ओर महान छलांग’ कार्यक्रम क्यों असफल रहा?
उत्तर:
चीन का भयंकर अकाल ‘आगे की ओर महान छलांग’ कार्यक्रम की असफलता का परिणाम था। यह कार्यक्रम मुख्यतः तकनीकी कारणों से असफल रहा। कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए त्रुटिपूर्ण कृषि तकनीकों का प्रयोग किया गया। उदाहरण के लिए-

  • भूमि में सामान्य मात्रा से दस गुणा अधिक बीज डाला गया। इससे पौधे बढ़ने से पहले ही मर गए।
  • गेहूँ और मक्का को एक साथ बोने का प्रयास किया गया। परन्तु यह प्रयास असफल रहा।
  • चिड़ियाँ खेत में बिखरे बीजों को खा जाती थी। इसलिए उन्हें बड़ी संख्या में मार दिया गया। दुर्भाग्य से इसके भी बुरे परिणाम निकले। जब फसलों पर कीड़े आए तो उन्हें खाने के लिए चिड़ियाँ न रहीं।

अतः फसलें नष्ट हो गई। इसके अतिरिक्त सिंचाई यन्त्रों को गलत स्थानों पर स्थापित किया गया, जिससे भूमि का बड़े पैमाने पर अपरदन हुआ। बोई जाने वाली फसलों के सम्बन्ध में कोई विशेष दिशा-निर्देश नहीं दिए गए थे। इसके परिणामस्वरूप सब्जियों तथा अन्य फसलों का उत्पादन शून्य हो गया। इस प्रकार देश में भयंकर अकाल की स्थिति उत्पन्न हो गई।

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प्रश्न 6.
चीन में भयंकर अकाल के दौरान सरकार द्वारा भ्रामक प्रचार तथा उसकी त्रुटिपूर्ण नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी नेता केवल आधिकारिक आंकड़ों में विश्वास रखने लगे थे। फसलों की रिकार्ड वृद्धि केवल मात्र दिखावा थी। वास्तव में उत्पादन आँकड़ों का मात्र एक तिहाई था। सरकार ने स्थिति को वश में रखने के लिए भ्रामक प्रचार की नीति अपनाई तथा नये-नये नारे गढ़ लिए। उदाहरण के लिए 1959 ई. में अकाल के समय लोगों को घास को उबालकर खाना पड़ रहा था उस समय पार्टी ने लोगों को सुझाव दिया कि “अधिक उत्पादन वाले वर्ष में भी कम खायें”। लोग इतने कमजोर हो गए कि वह काम भी नहीं कर सकते थे। वे सारा दिन घर पर रहने लगे। इस स्थिति में देश के रेडियो लोगों को आराम करने की सलाह देने लगे। देश के डॉक्टरों ने प्रचार किया कि चीन के लोगों को विटामिन तथा वसा की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनका शारीरिक गठन ही विशेष प्रकार का है। सरकार की इस त्रुटिपूर्ण नीति ने अकाल की स्थिति को और भी गम्भीर बना दिया।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए
(i) माओ की आगे की महान छलांग (Great Leap Forward) कार्यक्रम
(ii) पिंगपोंग (Ping Pong) कूटनीति
(iii) तियाननमेन स्क्वायर हत्याकांड।
उत्तर:
(i) माओ की आगे की ओर महान छलांग (Great Leap Forward) कार्यक्रम – ‘आगे की ओर महान् छलांग’ माओ का एक आर्थिक कार्यक्रम था। यह कार्यक्रम 1959 ई. में आरम्भ किया गया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण सहकारी समितियों और सामूहिक खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े कम्यून बना दिए गए। ये कम्यून राष्ट्र के स्वामित्व के प्रतीक थे। इसका उद्देश्य खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ औद्योगिकीरण को बढ़ावा देना था। परन्तु इसके विनाशकारी परिणाम निकले। इसका कारण यह था कि कम्युनिस्ट (साम्यवादी) पार्टी के अधिकारी इसे उस पैमाने पर लागू करने में सक्षम नहीं थे, जैसा माओ ने सोचा था। अत: एक बार फिर चीन को खाद्यान्न के अभाव तथा औद्योगिक मन्दी का सामना करना पड़ा।

(ii) पिंगपोंग (Ping Pong) कूटनीति – साम्यवादी चीन तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच सम्बन्ध तनावपूर्ण थे। इसके दो मुख्य कारण थे-एक तो दोनों देशों की अर्थव्यवस्था अलग-अलग थी। दूसरे अमेरिका ने अभी तक जनबादी चीन को मान्यता नहीं दी थी। वह ताइवान में स्थित च्यांग-काई-शेक को चीन की वास्तविक सरकार मानता था। संयुक्त राष्ट्र में भी ताइवान को ही सदस्यता प्राप्त थी। परन्तु 1972 ई. में अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्यन ने एकाएक चीन की यात्रा करने का कार्यक्रम बना लिया।

यह कार्यक्रम दोनों देशों के अधिकारियों के बीच लगभग दस वर्षों से चल रही कूटनीतिक वार्ताओं का परिणाम था। इन्हीं गुप्त वार्ताओं को ही पिंगपोंग कूटनीति का नाम दिया जाता था। दोनों देशों के बीच सम्बन्ध में पाकिस्तान ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अन्ततः मार्च, 1972 ई. में निक्सन ने चीन की यात्रा की। उसने जनवादी चीन को ही वास्तविक चीन स्वीकार कर लिया और उसे मान्यता दे दी। इसके परिणामस्वरूप ताइवान का स्थान जनवादी चीन को मिल गया। इस प्रकार अमेरिका और चीन के बीच स्थायी रूप से राजनीतिक सम्बन्ध स्थापित हो गए।

(iii) तियाननमेन स्क्वायर हत्याकांड – चीन में साम्यवादी पार्टी के कुछ नेता कठोर नीति में विश्वास रखते थे। उन्हें चीनी शासक डेंग के उदारवादी तरीके पसन्द नहीं थे। इसलिए वे डेंग पर कठोर नीति अपनाने के लिए दबाव डाल रहे थे। डेंग ने अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए विद्यार्थियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया कि वे पार्टी की कठोर नीतियों के समर्थकों की कमजोरियों का पता लगाएँ। परन्तु 1988-89 में उसके अपने आर्थिक सुधार ही असफल होते दिखाई देने लगे। वस्तुओं के दाम वेतनों की तुलना में कहीं अधिक बढ़ गए। मई, 1989 ई. में बीजिंग के विद्यार्थी नगर के प्रसिद्ध तियाननमेन चौक में शान्तिपूर्वक इकट्ठे होने लगे। वे और अधिक राजनीतिक सुधारों, प्रजातन्त्र तथा पार्टी में भ्रष्टाचार को समाप्त करने की मांग करने लगे।

अपनी मांग को पूरा करवाने के लिए उन्होंने संगीतमय रंगारंग प्रदर्शन भी किए। प्रजातन्त्र को अर्पित एक बुत भी बनाया गया, जिसके गाने में उत्साहपूर्वक मालाएं पहनाई गई। इन प्रदर्शनों की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखते हुए सरकार के कान खड़े हो गए। उसने इन्हें साम्यवादी पार्टी की सत्ता के लिए चुनौती माना। डेंग स्वयं कठोर नीतिः पर उतर आया। उसने अपने दो उदारवादी अधिकारियों को हय दिया। 3 जून, 1989 की रात को चौक में टैंकों सहित सेना भेज दी गई। चौक में एकत्रित 1500-3000 लोगों को गोलियों से उड़ा दिया गया। इस हत्याकांड की पूरे विश्व में भर्त्सना हुई। परन्तु चीन ने इसकी कोई परवाह न की।

प्रश्न 8.
1911 ई. की चीनी क्रान्ति के कारणों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
कारण-1911 ई. की क्रान्ति का एक महत्त्वपूर्ण कारण उसकी बढ़ती हुई जनसंख्या थी। इससे भोजन की समस्या गम्भीर होती जा रही थी। इसके अतिरिक्त 1910-1911 ई. की भयंकर बाढ़ों के कारण लाखों लोगों की जानें गई तथा देश में भुखमरी फैल गई। इससे लोगों में असन्तोष बढ़ गया, जिसके परिणामस्वरूप विद्रोह की आग भड़क उठी। क्रान्ति का दूसरा कारण ‘प्रवासी चीनियों का योगदान’ था। विदेशों में रहने वाले चीनी लोग काफी धनी हो गए थे। वे चीन में सत्ता परिवर्तन के पक्ष में थे।

अतः उन्होंने क्रान्तिकारी संस्थाओं की खूब सहायता की। मंचू सरकार के नए कर भी क्रान्ति लाने में सहायक सिद्ध हुए। इन करों के लगने से चीन के लोगों में क्रान्ति की भावनाएँ भड़क उठीं। जापान की उन्नति भी चीनी क्रान्ति एक कारण था। चीन के लोग मंचू सरकार को समाप्त करके जापान की भाँति उन्नति करना चाहते थे। चीन में यातायात के साधनों का सुधार होने के कारण चीनी क्रान्ति के विचारों के प्रसार को काफी बल मिला। अतः यह भी क्रान्ति का एक अन्य कारण था।

प्रश्न 9.
1911 की चीनी क्रान्ति के परिणामों तथा महत्त्व की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
1911 ई. की क्रान्ति के दो मुख्य परिणाम निकले-मंचू राजवंश का अन्त तथा गणतन्त्र की स्थापना। परन्तु इस क्रान्ति का महत्त्व इन्हीं दो बातों तक ही सीमित नहीं था। वास्तव में यह क्रान्ति गणतन्त्र की राजतन्त्र पर विजय थी। इसकी एक विशेष बात यह भी थी कि वह विजय बिना किसी रक्तपात के प्राप्त की गई थी। इसके अतिरिक्त चीन की जनता को एक संविधान प्राप्त हुआ और देश में जनता की सम्प्रभुत्ता की घोषणा की गई। इस क्रान्ति की एक और विशेष बात यह रही कि क्रान्तिकारियों ने सम्राट के प्रतिनिधि युआन शिकाई को ही चीनी गणतन्त्र के राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार कर लिया। इसके अतिरिक्त विदेशी शक्तियाँ भी इस क्रान्ति के प्रति पूर्णतया तटस्थ (Neutral) रहीं। देश में 1911 की क्रान्ति ने राष्ट्रीय भावना का संचार किया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि इसने चीनियों को शोषण से मुक्ति दिलाई और उनके सम्मान को बढ़ाया।

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प्रश्न 10.
आधुनिक चीन का संस्थापक किसे माना जाता है? उनका तथा उनके सिद्धान्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
सन-यात-सेन (1866-1925) को आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। वह एक गरीब परिवार से थे। उन्होंने मिशन स्कूलों में शिक्षा ग्रहण की जहाँ उनका परिचय लोकतन्त्र और ईसाई धर्म से हुआ। उन्होंने टास्टरी की पढ़ाई की। परन्तु वह चीन में भविष्य को लेकर चिन्तित थे। उनका कार्यक्रम तीन सिद्धान्त (सन-मिन-चुई) के नाम से विख्यात है। ये तीन सिद्धान्त हैं-

  • राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू वंश, जिसे विदेशी राजवंश माना जाता था को सत्ता से हटाना।
  • गणतन्त्र-गणतान्त्रिक सरकार की स्थापना करना।
  • समाजवाद-पूँजी का नियमन करना और भूस्वामित्व में बराबरी लाना। सन-यात-सेन के विचार फुओयीनतांग के राजनीतिक दर्शन का. आधार बने। उन्होंने कपड़ा, भोजन, घर और परिवहन-इन चार बड़ी आवश्यकताओं को रेखांकित किया।

प्रश्न 11.
चीन में 4 मई के आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
4 मई, 1919 को प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुए शान्ति सम्मेलन के निर्णयों के विरोध में बीजिंग में एक जोरदार प्रदर्शन हुआ। भले ही चीन ने ब्रिटेन के नेतृत्व में विजयी आन्दोलन का रूप ले लिया जिसने एक पूरी पीढ़ी को परम्परा से हटकर चीन को अधुनिक विज्ञान, लोकतन्त्र और राष्ट्रवाद द्वारा बचाने के लिए प्रेरित किया। क्रान्तिकारियों ने देश के संसाधनों को विदेशियों से मुक्त कराने, असमानताएँ समाप्त करने और गरीबी को कम करने का नारा लगाया। उन्होंने लेखन में सरल भाषा का प्रयोग करने, पैरों को बाँधने की प्रथा और औरतों की अधीनस्थता को समाप्त करने, विवाह में बराबरी लाने और गरीबी को समाप्त करने के लिए आर्थिक विकास की माँग की।

प्रश्न 12.
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने वाली परीक्षा प्रणाली का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश अधिकतर परीक्षा द्वारा ही होता था। इसमें 8 भाग वाला निबन्ध निर्धारित प्रपत्र में (पा-कू-वेन) शास्त्रीय चीनी में लिखना होता था। यह परीक्षा विभिन्न स्तरों पर प्रत्येक 3 वर्ष में 2 बार आयोजित की जाती थी। पहले स्तर की परीक्षा में केवल 1-2 प्रतिशत लोग ही 24 साल की आयु तक पास हो पाते थे और वे ‘सुन्दर प्रतिभा’ बन जाते थे। इस डिग्री से उन्हें निचले कुलीन वर्ग में प्रवेश मिल जाता था। 1850 से पहले देश में 526869 सिविल और 212330 सैन्य प्रान्तीय (शेंग हुआन) डिग्री वाले लोग मौजूद थे।

क्योंकि देश में केवल 27000 राजकीय पद थे। इसलिए निचले दर्जे के कई डिग्रीधारकों को नौकरी नहीं मिल पाती थी। यह परीक्षा विज्ञान और प्रोद्योगिकी के विकास में बाधक थी। इसका कारण यह था कि इसमें केवल साहित्यिक कौशल पर ही बल दिया जाता था। केवल क्लासिक चीनी सीखने की कला पर ही आधारित होने के कारण 1905 ई. में इस परीक्षा प्रणाली को समाप्त कर दिया गया।

प्रश्न 13.
1930 ई. जुनवू (चीन) में क्या सर्वेक्षण किया गया? इसका क्या उद्देश्य और महत्त्व था?
उत्तर:
1930 में जुनवू में किए गए एक सर्वेक्षण में माओ-त्से-तुंग ने नमक और सोयाबीन जैसे दैनिक प्रयोग की वस्तुओं, स्थानीय संगठनों की तुलनात्मक मजबूतियों, छोटे व्यापारियों, दस्तकारों और लोहारों, वेश्याओं तथा धार्मिक संगठनों की मजबूतियों का परीक्षण किया। इसका उद्देश्य शोषण के अलग-अलग स्तरों को समझना था। उन्होंने ऐसे आँकड़े इकट्ठे किए कि कितने किसानों ने अपने बच्चों को बेचा है और इसके लिए उन्हें कितने पैसे मिले। लड़के 100-200 यूआन पर बिकते थे। परन्तु लड़कियों की बिक्री के कोई प्रमाण नहीं मिले, क्योंकि जरूरत मजदूरों की थी लैंगिक शोषण की नहीं। इस अध्ययन के आधार पर उन्होंने सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के तरीके पेश किए।

प्रश्न 14.
चीन की ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ सरकार की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीन में 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की सरकार स्थापित हुई। यह ‘नए लोकतन्त्र’ के सिद्धान्तों पर आधारित थी। नया लोकतन्त्र सभी सामाजिक वर्गों का गठबन्धन था। अर्थव्यवस्था के मुख्य क्षेत्र सरकार के नियन्त्रण में रखे गए। निजी कारखानों और भूस्वामित्व को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया गया। यह कार्यक्रम 1953 तक चला, जब सरकार ने समाजवादी परिवर्तन का कार्यक्रम आरम्भ करने की घोषणा की। 1958 में ‘लम्बी छलांग वाले’ आन्दोलन द्वारा देश का तेजी से औद्योगीकरण करने का प्रयास किया गया। लोगों को अपने घर के पिछवाड़े में इस्पात की भट्टियाँ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। ग्रामीण इलाकों में पीपुल्स कम्यूंस आरम्भ किए गए। इसमें लोग सामूहिक रूप से भूमि के स्वामी थे और मिल-जुल कर फसल उगाते थे।

प्रश्न 15.
चीन के भौतिक भूगोल, प्रमुख जातीय समूहों तथा भाषाओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौतिक भूगोल – चीन एक विशालकाय महाद्वीपीय देश है। इसमें कई प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र शामिल हैं। इसके मुख्य क्षेत्र में 3 प्रमुख नदियाँ हैं-पीली नदी अथवा हुआंग हो, संसार की तीसरी सबसे लम्बी नदी यांग्त्सी और पर्ल नदी। देश का बहुत बड़ा भाग पहाड़ी है।

जातीय समूह तथा भाषाएँ – चीन का सबसे प्रमुख जातीय समूह हान है और यहाँ की प्रमुख भाषा है-चीनी । हाल के अतिरिक्त चीन में कई अन्य राष्ट्रीयताएं भी हैं; जैसे-उइघुर, हुई, मांचू और तिब्बती। इसी प्रकार कई अन्य भाषाएं भी बोली जाती हैं । जैस-कैंटनीज कैंटन (गुआंगजाओ) की बोली-उए और शंघाईनीज (शंघाई की बोली-वू)।

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प्रश्न 16.
चीनी भोजनों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चीनी भोजनों में क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है। इनमें मुख्य रूप से चार प्रकार के भोजन शामिल हैं।-

  • सबसे प्रसिद्ध पाक प्रणाली दक्षिणी या केंटोनी है। यह कैंटन तथा उसके आन्तरिक क्षेत्रों की पाक प्रणाली है। इसकी प्रसिद्धि इस बात के कारण है कि विदेशों में रहने वाले अधिकतर चीनी कैंटन प्रान्त से सम्बन्धित हैं। डिम सम (शाब्दिक अर्थ दिल को छूना) यहीं का जाना माना खाना है। यह गुंधे हुए आटे को सब्जी आदि भरकर उबाल कर बनाया गया व्यंजन है।
  • उत्तर में गेहूँ मुख्य आहार है।
  • शेचुओं में प्राचीन काल में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा लाए गए मसाले और रेशम मार्ग द्वारा पन्द्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा लाई गई मिर्च के कारण झालदार और तीखा खाना मिलता है।
  • पूर्वी चीन में चावल और गेहूँ दोनों खाए जाते हैं।

प्रश्न 17.
जापान की भौतिक विशेषताओं की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर:
जापान की मुख्य भौतिक विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • जापान एक द्वीप शृंखला है । इनमें से चार सबसे बड़े द्वीप हैं-होंशू, क्यूशू, शिकोकू और होकाइदो। सबसे दक्षिण में ओकिनावा द्वीपों की श्रृंखला है। मुख्य द्वीपों की 50 प्रतिशत से अधिक भूमि पहाड़ी है।
  • जापान बहुत ही सक्रिय भूकम्प क्षेत्र में आता है।
  • जापान की भौगोलिक परिस्थितियों ने वहाँ की वास्तुकला को प्रभावित किया है।
  • देश की अधिकतर जनसंख्या जापानी है। परन्तु यहाँ कुछ आयनू अल्पसंख्यक और कुछ कोरिया के लोग भी रहते हैं। कोरिया के लोगों को यहाँ श्रमिकों के रूप में उस समय लाया गया था जब कोरिया जापान का उपनिवेश था।
  • जापान में पशु नहीं पाले जाते हैं।
  • चावल यहाँ की मुख्य खाद्य फसल है और मछली प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। यहाँ की कच्ची मछली साशिमी अथवा सूशी अब संसार भर में लोकप्रिय है क्योंकि इसे बहुत ही स्वास्थ्यवर्द्धक माना जाता है।

प्रश्न 18.
जापान पर तोकुगावा वंश के शोगुनों ने कब से कब तक शासन किया? वे अपना शासन किस प्रकार चलाते थे?
उत्तर:
जापान.पर क्योतो में रहने वाले सम्राट का शासन हुआ करता था। परन्तु बारहवीं शताब्दी तक वास्तविक सत्ता शोगुनों के हाथ में आ गई। वे सैद्धान्तिक रूप से राजा के नाम पर शासन करते थे। 1603 से 1867 तक तोकुगावा परिवार के लोग शोगुन पद पर आसीन थे। देश 250 भागों में विभाजित था, जिनका शासन दैम्यों लार्ड चलाते थे। शोगुन दैम्यो पर नियन्त्रण रखते थे। उन्होंने दैम्यो को लम्बे समय तक राजधानी एदो (आधुनिक तोक्यो) में रहने का आदेश दिया, ताकि वे उनके लिए कोई खतरा न बन जाएँ। शोगुन प्रमुख शहरों और खदानों पर भी नियन्त्रण रखते थे। जापान का योद्धा वर्ग सामुराई (शासन करने वाला) अभिजात था। वे शोगुन तथा दैम्यो की सेवा में थे।

प्रश्न 19.
जापान में नगरों का आकार कैसे बढ़ा ? इसका क्या महत्त्व था?
उत्तर:
जापान में दैम्यो की राजधानियों का आकार लगातार बढ़ने लगा। 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो (आधुनिक तोक्यो) संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया। इसके अतिरिक्त ओसाका और क्योतो भी बड़े शहरों के रूप में उभरे। दुर्गों बाले कम-से-कम छ: शहर ऐसे थे जहाँ की जनसंख्या 50,000 से भी अधिक थी। इसकी तुलना में उस समय के अधिकतर यूरोपीय देशों में केवल एक-एक ही बड़ा शहर था।
महत्तव-

  • बड़े शहरों के परिणामस्वरूप जापान की वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ और वित्त एवं ऋण की प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
  • व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।
  • शहरों में जीवंत संस्कृति का प्रसार होने लगा।
  • बढ़ते हुए व्यापारी वर्ग ने नाटकों और कलाओं को संरक्षण प्रदान किया।
  • लोगों की पढ़ने में रुचि ने होनहार लेखकों को अपने लेखन द्वारा अपनी जीविका चलाने में सहायता पहुँचाई।

प्रश्न 20.
ताकुगावा शासन के अधीन जापान की अर्थव्यवस्था में आए परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
ताकुगावा शासन के अधीन जापान को बस धनी देश समझा जाता था। इसका कारण यह था कि वह चीन से रेशम जैसी विलासी वस्तुएँ, भारत से कपड़े का आयात करता था। इन आयतों का मूल्य चाँदी और सोने में चुकाया जाता था। इसका देश की अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक भार पड़ा। अतः तामुगावा ने मूल्यवान् धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी। उन्होंने क्योतो में निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए भी पग उठाये, ताकि रेशम का आयात कम किया जा सके। निशिजिन का रेशम विश्व भर में सबसे अच्छा. रेशम माना जाने लगा। मुद्रा के बढ़ते हुए प्रयोग और चावल के शेयर बाजार के निर्माण से पता चलता है कि अर्थतन्त्र नयी दिशाओं में विकसित हो रहा था।

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प्रश्न 21.
जापान में कामोडोर पेरी के आगमन और इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
1853 में अमेरिका ने कॉमोडोर मैथ्यू पेरी को जापान भेजा। उसने जापान सरकार से ए’ समझौते पर हस्ताक्षर करने की माँग। इसके अनुसार को अमेरिका के रराजनयिक और व्यापारिक सम्बन्ध बनाने थे। इस समझौते पर जापान ने अगले वर्ष हस्ताक्षर किए। वास्तव में जापान चीन के रास्ते में पड़ता था और अमेरिका के लिए चीन का विस्तृत बाजार बहुत ही महत्त्व रखता था। इसके अतिरिक्त अमेरिका को प्रशान्त महासागर में अपने बेड़ों के लिए ईंधन लेने के लिए स्थान चाहिए था। उस समय केवल एक ही पश्चिमी देश जापान के साथ व्यापार करता था और वह था-हालैंड।

महत्त्व – पेरी के आगमन ने जापान की राजनीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला। सम्राट का अचानक ही महत्त्व बढ़ गया। इससे पहले तक उसे बहुत ही कम राजनैतिक अधिकार प्राप्त थे। 1864 में एक आन्दोलन द्वारा शोगुन को जबरदस्ती सत्ता से हटा दिया गया और सम्राट मेजी को एदो में लाया गया। एदो को राजधनी बना दिया गया । इसका नया नाम तोक्यो रख गया जिसका अर्थ है पूर्वी राजधानी।

प्रश्न 22.
जापान को बाहरी संसार के लिए खोलने के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क दिया गए?
उत्तर:
जापान के अधिकारीगण और लोग यह जानते थे कि कुछ यूरोपीय देश भारत तथा कई अन्य स्थानों पर औपनिवेशिक साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। अंग्रेजों के हाथों चीन की पराजय के समाचार फैल रहे थे और इन्हें लोकप्रिय नाटकों में भी दर्शाया जा रहा था। इससे लोगों में यह भय उत्त्पन्न हो गया कि बाहरी दुनिया के साथ सम्पर्क से जापान को भी उपनिवेश बनाया जा सकता है। फिर भी देश के बहुत से विद्वान और नेता युरोप के नए विचारों तथा तकनीकों से सीख लेना चाहते थे. जबकि कछ अन्य विद्वान यरोपीय लोगों को अपने से दूर रखना चाहते थे। कुछ लोगों ने देश को बाहरी संसार के लिए धीरे-धीरे और सीमित रूप से खोलने के लिए तर्क दिया।

अतः जापानी सरकार ने फुकोकु क्योहे (समृद्ध देश, मजबूत सेना) के नारे के साथ नयी नीति की घोषणा की। उन्होंने यह समझ लिया कि उन्हें अपनी अर्थव्यवस्था का विकास और मजबुत सेना का निर्माण करने की आवश्यकता है, अन्यथा उन्हें भी भारत की तरह दास बना दिया जाएगा। इस कार्य के लिए जनता में राष्ट्रीय भावना का विकास करने और प्रजा को नागरिक की श्रेणी में लाने की आवश्यकता थी।

प्रश्न 23.
जापान में ‘सम्राट व्यवस्था’ का पुनर्निर्माण किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
जापान में मेजी सरकार ने ‘सम्राट-व्यवस्था’ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया। सम्राट व्यवस्था से जापानी विद्वानों का अभिप्राय ऐसी व्यवस्था से था जिसमें सम्राट नौकरशाही और सेना मिलकर सत्ता चलाते थे और नौकरशाही तथा सेना सम्राट से प्रति उत्तरदायी होती थी। राजतान्त्रिक व्यवस्था की पूरी जानकारी के लिए कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा गया। सम्राट को सीधे-सीधे सूर्य देवी का वंशज माना गया। वह पश्चिमी ढंग के सैनिक वस्त्र पहनने लगा। उसके नाम से आधुनिक संस्थाएँ स्थापित करने के लिए अधिनियम बनाए जाने लगे। 1890 की शिक्षा सम्बन्धी राजाज्ञा ने लोगों को पढ़ने तथा जनता के सार्वजनिक एवं साँझे हितों को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया।

प्रश्न 24.
जापान में 1870 के दशक में अपनाई गई नयी विद्यालय-व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
1870 के दशक से जापान में नयी विद्यालय-व्यवस्था अपनाई गई। इसके अनुसार सभी लड़के-लड़कियों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य कर दिया गया। 1910 तक ऐसी स्थिति आ गई कोई भी बच्चा स्कूल जाने से वो नहीं रहा। पढ़ाई की फीस बहुत न थी। आरम्भ में पाठ्यक्रम पश्चिमी नमूनों पर आधारित था। परन्तु बाद में आधुनिक विचारों पर बल देने के साथ-साथ राज्य के प्रति निष्ठा और जापानी इतिहास के अध्ययन पर बल दिया जाने लगा। पाठ्यक्रम किताबों के चयन तथा शिक्षकों के प्रशिक्षण पर शिक्षा मन्त्रालय नियन्त्रण रखता था। नैतिक संस्कृति का विषय पढ़ना प्रत्येक के लिए जरूरी था। पुस्तकों में माता-पिता के प्रति आदर, राष्ट्र के प्रति बफादारी और अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा विकसित की जाती थी।

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प्रश्न 25.
राष्ट्र के एकीकरण के लिए जापान की मेजी सरकार ने क्या पग उठाए?
उत्तर:
राष्ट्र के एकीकरण के लिए मेजी सरकार ने पुराने गाँव और क्षेत्रीय सीमाओं को बदल कर एक नया प्रशासनिक ढाँचा तैयार किया। प्रत्येक प्रशासनिक इकाई के पास पर्याप्त राजस्व होना जरूरी था, ताकि स्थानीय स्कूल तथा स्वस्थ्य सुविधाएँ जारी रखी जा सकें। साथ ही ये इकाइयाँ सेना के लिए भर्ती केन्द्रों के रूप में भी कार्य कर सके 20 साल से अधिक आयु वाले प्रत्येक नवयुवक के लिए निश्चित अवधि के लिए सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी गई।

एक आधुनिक सैन्य बल तैयार किया गया। राजनीतिक दलों के गठन को नियन्त्रित करने के लिए एक कानून-प्रणाली स्थापित की गई। सेंसर व्यवस्था को भी कठोर बनाया जाना था। ऐसे परिवर्तनों के कारण सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा। सेना और नौकरशाही को सीधा सम्राट के अधीन रखा गया। इसका उद्देश्य यह था कि संविधान बनने के बाद भी सेना और नौकरशाही सरकारी नियन्त्रण से बाहर रहे।

प्रश्न 26.
जापान की लिपियों की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
जापानियों ने अपनी लिपि छठी शताब्दी में चीनियों से ली थी। परन्तु जापानी भाषा चीनी भाषा से बहुत अलग है। इसलिए उन्होंने दो ध्वन्यात्मक वर्णमालाओं का विकास भी किया-हीरागाना और काकाना। हीरागाना नारी सुलभ समझी जाती है, क्योंकि हेआन काल में बहुत-सी लेखिकाएँ इसका प्रयोग करती थीं। यह चीनी चित्रात्मक चिन्हों और ध्वन्यात्मक अक्षरों को मिलाकर लिखी जाती है। शब्द का प्रमुख भाग चीनी लिपि कांजी के चिह्न से लिया जाता है और शेष भाग हीरागाना से-

ध्वन्यात्मक अक्षरमाला द्वारा ज्ञान को पूरे समाज में फैलाने में सहायता मिली। 1880 के दशक में यह सुझाव दिया गया कि जापानी या तो पुरी तरह से ध्वन्यात्मक लिपि का विकास करें या कोई यूरोपीय भाषा अपना लें। परन्तु दोनों में कुछ भी नहीं किया जा सका।

प्रश्न 27.
1889 में जापान को जो नया संविधान मिला, उसकी कोई चार विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
1889 में जापान को जो नया सम्विधान मिला, उसकी चार मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-
(i) सम्राट कार्यकारिणी का प्रधान था। उसकी स्थिति काफी महत्त्वपुर्ण थी। सभी मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट ही करता था और वे सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। लोगों का विश्वास। था कि सम्राट पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और वह दैवी-गुणों से सम्पन्न है। इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए।

(ii) संविधान में एक संसद का प्रावधान था, जिसे डाएट (राजा की सभा) कहते थे। डाएट की शक्तियाँ काफी सीमित थीं। सेना के अधिकार इतने अधिक थे कि धीरे-धीरे डाएट पर सेना का प्रभुत्त्व स्थापित हो गया।

(iii) माताधिकार बहुत अधिक सीमित था। यह अधिकार देश की तीन प्रतिशत से भी कम जनता को प्राप्त था।

(iv) राजसत्ता पर कुलीनतन्त्र का नियन्त्रण बढ़ाने के लिए पुलिस को व्यापक अधिकार दिए गए। प्रेस को नियन्त्रित करने, जनसभाओं पर रोक लगाने तथा प्रदर्शनों को रोकने के लिए पुलिस को विशेष शक्तियाँ प्राप्त थीं।

प्रश्न 28.
प्रथम विश्व-युद्ध से पूर्व कोई दो घटानाओं को बताइए, जिन्होंने जापान का एक साम्राज्यवादी शक्ति के रूप में अभ्युदय किया। कोई दो देश बताइए जिनके साथ जापान का इस काल में टकराव हुआ।
उत्तर:
1853 में अमेरिका का जल सेनानायक पैरी जापान के एक बन्दरगाह पर पहुँचा। उसने जापान में अनेक सुविधाएँ प्राप्त की, परन्तु जापान एशियाई देशों की तुलना में भाग्यशाली निकला। वहाँ मेजी शासन के बाद सैनिक तथा औद्योगिक उन्नति हुई। अतः जापान भी यूरोप के साम्राज्यवादी देशों की भाँति मंडियों की खोज में लग गया।
(i) जापान के निकट चीन था और चीन उसके लिए अच्छी मंडी सिद्ध हो सकता था। दोनों देश 1894 में कोरिया के प्रश्न पर एक-दूसरे से युद्ध कर चुके थे। इसके बाद जापान का चीन में प्रभाव काफी बढ़ गया था।

(ii) 1902 में इंग्लैंड तथा जापान का समझौता हुआ। इसके अनुसार जापान को अन्य यूरोपियन शक्तियों के समान दर्जा मिल गया।

(iii) 1904 में उसने रूस को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप उसे सखालिन का दक्षिणी भाग प्राप्त हुआ। जापान के लियोनतुंग प्रायद्वीप पर भी उसका अधिकार हो गया। उसने पोर्ट आर्थर पट्टे पर ले ली।

(iv) 1910 में कोरिया जापान का उपनिवेश बन गया। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय जापान एक महाशक्ति बन चुका था। अत: जापान की आकांक्षाएँ भी हर साम्राज्यवादी देश की भाँति आर्थिक तथा राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने की थी। टकराव-जापान का प्रथम विश्व-युद्ध से पूर्व चीन तथा रूस से टकराव हुआ।

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प्रश्न 29.
जापान की उपनिवेशवादी (साम्राज्यवादी) नीति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जापान 1890 के दशक में औपनिवेशिक होड़ में सक्रिय हुआ। उसका पहला निशाना चीन था। वह चीन में अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति करके पूर्वी एशिया पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था। बाद में उसने समस्त एशिया तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करना अपना लक्ष्य बना लिया। 1895 ई. में उसने चीन से युद्ध किया और उसे परास्त करके फारमोंसा को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। यह प्रदेश पहले चीन का भाग था। 1905 ई. में कोरिया को जापान का संरक्षित राज्य बना दिया गया और इसके पाँच वर्ष बाद कोरिया का जापान में विलय हो गया।

कोरिया भी पहले चीन के अन्तर्गत था। इससे पूर्व 1899 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों ने जापान को महाशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया था। 1902 ई. में आंग्ल-जापान सन्धि हुई। इसके अनुसार जापान को अन्य उपनिवेशवादियों के बराबर का स्थान दिया गया। 1904-1905 में रूस-जापान युद्ध में जापान विजयी रहा। परिणामस्वरूप पंचूरिया के दक्षिणी भाग को जापान का प्रभाव क्षेत्र मान लिया गया। इसके अतिरिक्त सखालिन द्वीप का आधा भाग तथा लियोनतुंग प्रायद्वीप भी उसके नियन्त्रण में आ गए। इस प्रकार जापान ने एक बहुत बड़े औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना कर ली।

प्रश्न 30.
फुफुजावा यूकिची कौन थे? उनकी सफलताओं तथा विचारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
फुफुजावा यूकिची (1835-1901) का जन्म एक निर्धन सामुराई परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा नागासाका और ओसाका में हुई। उन्होंने डच और पश्चिमी विज्ञान पढ़ा और बाद में अंग्रेजी भी सीखी। 1860 में वह अमरीका में पहले जापानी दूतावास में अनुवादक के रूप में गए। इससे इन्हें पश्चिम पर पुस्तक लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री मिली। उन्होंने अपने विचार क्लासिकी में नहीं बल्कि बोल-चाल की भाषा में लिखे। यह पुस्तक बहुत ही लोकप्रिय हुई।

उन्होंने एक शिक्षा संस्थान स्थापित किया, जो आज केओ विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। वह मेरोकुश संस्था के मुख्य सदस्यों में से थे। यह संस्था पश्चिमी शिक्षा का प्रचार करती थी। . अपनी एक पुस्तक ‘ज्ञान को प्रोत्साहन’ में उन्होंने जापानी ज्ञान की कड़ी आलोचना की। उन्होंने लिखा ‘जापान के पास प्राकृतिक दृश्यों के अतिरिक्त गर्व करने के लिए कुछ भी नहीं है।’ इनका सिद्धान्त था, “स्वर्ग ने इंसान को इंसान के ऊपर नहीं बनाया न ही इंसान को इंसान के नीचे।”

प्रश्न 31.
जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
1930-40 में जापान में सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला। इस अवधि में जापान ने साम्राज्य विस्तार के लिए चीन और एशिया के अन्य भागों में युद्ध किए। जापान द्वारा अमेरिका के पर्ल हार्बर पर आक्रमण, दूसरे विश्व युद्ध का भाग बन गया। इसी आक्रमण के परिणामस्वरूप अमेरीका द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया।

इस दौर में जापान में सामाजिक नियन्त्रण में वृद्धि हुई। असहमति प्रकट करने वालों पर अत्याचार किए गए और उन्हें जल भेजा गया। देशभक्तों की ऐसी संस्थाएँ बनीं, जो बुद्ध का समर्थन करती थीं। इनमें महिलाओं के भी कई संगठन शामिल थे। 1943 में एक संगोष्ठी हुई ‘आधुनिकता पर विजय’ का आयोजन हुआ। इसमें इस विषय पर विचार किया गया कि आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर कैसे विजय पाई जाए। दर्शनशास्त्री निशिवानी केजी ने ‘आधुनिक को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकता से परिभाषित किया-पुर्नजागरण, प्रोटस्टेन्ट सुधार और प्राकृतिक विज्ञानों का विकास। उन्होंने कहा कि जापान की ‘नैतिक ऊर्जा’ ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया। अब जापान को एक नई विश्व पद्धति अर्थात् एक विशाल पूर्वी एशिया का निर्माण करना चाहिए।

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प्रश्न 32.
चीन के आधुनिक इतिहास से सम्बन्धित विषयों के बारे में तीन अलग-अलग विचारधाराएँ कौन-सी थीं ?
उत्तर:
चीन के आधुनिक इतिहास का सम्बन्ध सम्प्रभुत्ता की पुनः प्राप्ति, विदेशी नियन्त्रण से हुए अपमान से मुक्ति तथा समानता एवं विकास को सम्भव बनाने से है। इस सम्बन्ध में तीन अलग-अलग विचारधाराएँ थीं-

  • कांग योवेल (1858-1927) तथा लियांग किचाउ (1873-1929) जैसे सुधारक पश्चिम की चुनौतियों का सामना करने के लिए पारम्परिक विचारों के नए ढंग से प्रयोग करने के पक्ष में थे।
  • चीनी गणतन्त्र के पहले राष्ट्राध्यक्ष सन-यात-सेन जैसे गणतान्त्रिक क्रान्तिकारी जापान और पश्चिम के विचारों से प्रभावित थे।
  • चीन की कम्युनिष्ट पार्टी युगों-युगों की असमानताओं को समाप्त करना और देश से विदेशियों को खदेड़ना चाहती थी।

प्रश्न 33.
चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ कौन-से प्रसिद्ध युद्धों से हुआ? इन युद्ध के दो कारण तथा दो परिणाम व गएँ।
उत्तर:
चीन में साम्राज्यवादी प्रभुत्व का आरम्भ ‘अफीम के युद्धों’ से हुआ।
कारण-

  • अंग्रेज व्यापारी चीन में बड़े पैमाने पर चोरी-चोरी अफीम ला रहे थे, जिससे चीनियों का शारीरिक एवं नैतिक पतन हो रहा था।
  • 1839 ई. में चीन के एक सरकारी अफसर ने जहाजों पर लदी अफीम को पकड़ लिया और उसे नष्ट कर दिया। अतः ब्रिटेन ने चीन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

परिणाम-

  • इन युद्धों में चीन की पराजय हुई। चीनियों को हर्जाने के रूप में अत्यधिक धनराशि देनी पड़ी। उन्हें अपने पाँच बन्दरगाहों में व्यापार का अधिकार भी अंग्रेजों को देना पड़ा।
  • चीनी सरकार को इस बात के लिए सहमत होना पड़ा कि इन बन्दरगाहों में यदि कोई अंग्रेज अपराध करेगा तो उस पर मुकदमा चीन की नहीं बल्कि इंग्लैंड की अदालतों में चलाया जाएगा।

प्रश्न 34.
उन्नीसवीं शताब्दी में साम्राज्यवादियों ने चीन में अपना प्रभुत्व किस प्रकार स्थापित किया?
अथवा
‘चीनी खरबूजे का काटा जाना’ उक्ति की व्याख्या कीजिए।
अथवा
चीन पर साम्राज्यवाद के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटेन के विरुद्ध अफीम युद्धों में चीन पराजित हुआ था। परिणामस्वरूप उसे हांग-कांग का प्रदेश अंग्रेजों को देना पड़ा और अपने पाँच बन्दरगाह अंग्रेज व्यापारियों के लिए खोलने पड़े। शीघ्र ही फ्राँस ने भी ऐसी असमान संधियाँ चीन पर लाद दी और उससे अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर लीं। तत्पश्चात् चीन तथा जापान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें जापान विजयी रहा। इसके परिणामस्वरूप चीन ने फारमोसा तथा कुछ अन्य द्वीप जापान को सौंप दिए। चीन पर 15 करोड़ डालर का हर्जाना भी डाला गया।

चीन को यह राशि फ्राँस, रूस, ब्रिटेन तथा जर्मनी ने ऋण के रूप में दी और बदले में चीन को अपने-अपने प्रभाव क्षेत्रों में बाँट लिया। संयुक्त राज्य अमेरिका भी पीछे न रहा। उसने ‘मुझे भी’ की नीति द्वारा चीन में पश्चिमी देशों के बराबर की सुविधाएँ प्राप्त कर लीं। इस प्रकार चीन पूरी तरह से भिन्न-भिन्न देशों के प्रभाव क्षेत्रों में बँट गया। इसी प्रक्रिया को ‘चीनी खरबूजे का काटा जाना’ कहते हैं।

प्रश्न 35.
‘खुले द्वार’ अथवा ‘मुझे भी’ नीति से क्या अभिप्राय था ? ब्रिटेन ने इस नीति का समर्थन क्यों किया?
उत्तर:
‘खुले द्वार’ अथवा ‘मुझे भी’ नीति का सुझाव संयुक्त राज्य अमेरिका ने दिया था। इस नीति का अर्थ यह था कि सभी देशों को चीन के प्रत्येक भाग में व्यापार करने के समान अवसर मिलने चाहिए। अमेरिका ने यह सुझाव इसलिए दिया था, क्योंकि उसे भय था कि अन्य देश चीन में पूर्ण रूप से अपने प्रभाव क्षेत्र स्थापित कर लेंगे और उसे वहाँ व्यापार करने का कोई अवसर नहीं मिलेगा। ब्रिटेन ने भी इस नीति का समर्थन किया, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि जापान और रूस चीन को हड़प जाएँ। दूसरे, संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह वह भी चीन में अपनी सेनाएँ आसानी से भेज सकता था।

प्रश्न 36.
संयुक्त राज्य अमरिका ने ‘खुले द्वार की नीति’ (Open Door Policy) क्यों और कैसे अपनाई?
उत्तर:
अमेरिका ने खुले द्वार की नीति चीन के सम्बन्ध में अपनाई। 1890 के दशक में यूरोपीय शक्तियाँ चीन को आपस में विभाजित कर लेने की योजना बना रही थीं। अमेरिका को इस बात का भय था कि कहीं उसे अलग-थलग न कर दिया जाए। वह चाहता था कि यूरोपीय शक्तियों की भाँति उसे भी चीन में सुविधाएँ प्राप्त हों। इसलिए उसने एक नई ति की घोषणा की जो इतिहास में ‘खुले द्वार की नीति’ के नाम से विख्यात है।

इसका अर्थ था कि चीन के मामले में किसी भी देश के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा, उन क्षेत्रों के सम्बन्ध में भी नहीं जिन्हें यूरोपीय देश अपना प्रभाव क्षेत्र बताते हैं। परिणामस्वरूप यूरोपीय देशों की भाँति अमेरिका ने भी सन्धि द्वारा चीन से सुविधाएँ प्राप्त की। कुछ समय पश्चात् चीन में विदेशी शक्तियों के बढ़ते हुए प्रभाव के विरुद्ध बॉक्सर विद्रोह हुआ । इस विद्रोह को दबाने में अमेरीकी सेनाओं ने भी यूरोपीय सेनाओं का पूरा साथ दिया।

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प्रश्न 37.
प्रथम आंग्ल-चीन युद्ध अथवा अफीम युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर:
प्रथम आंग्ल-चीन युद्ध, अथवा अफीम युद्ध के अनेक कारण थे-

  • अंग्रेज व्यापारी चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहते थे। परन्तु चीनी शासक विदेशियों को असभ्य समझते थे और उनके साथ कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहते थे।
  • चीनी सरकार ने देश में चोरी छिपे अफीम का व्यापार करने वाले व्यापारियों को कैंटन से बाहर निकल जाने का आदेश दिया। इससे चीन और इंग्लैंड के बीच तनाव पैदा हुआ।
  • ब्रिटेन और चीन के बीच इस बात का भी झगड़ा था कि कैंटन के अंग्रेज निवासी कानून की दृष्टि से चीन की बजाय इंग्लैंड के अधीन थे।
  • अंग्रेज व्यापारी इस बात से चिढ़े हुए थे कि चीनी व्यापारियों पर उनका जो ऋण बकाया था, उसे वे दे नहीं पा रहे थे। अत: इंग्लैंड की सरकार के लिए यह आवश्यक हो गया कि वह अंग्रेज व्यापारियों के हितों की रक्षा के लिए चीन में हस्तक्षेप करें।
  • अंग्रेज व्यापारियों ने अपनी सरकार पर दबाव डाला कि वह शक्ति प्रदर्शन अथवा युद्ध द्वारा चीनी सरकार को इस बात के लिए विवश करे कि वह अफीम व्यापार पर रोक न लगाए।

इसी बीच अंग्रेज तथा चीनी नाविकों की एक झड़प में एक चीनी नाविक मारा गया। परिणामस्वरूप चीनी सरकार अंग्रेज व्यापारियों के प्रति कठोर नीति अपनाने लगी। मामला गम्भीर होता गया। आखिर-इंग्लैंड के प्रधानमन्त्री पामर्स्टन ने चीन के विरुद्ध युद्ध के आदेश जारी कर दिए।

प्रश्न 38.
प्रथम अफीम युद्ध के क्या परिणाम निकले?
उत्तर:
प्रथम अफीम युद्ध के परिणाम चीन के लिए बड़े हानिकारक सिद्ध हुए। इस युद्ध के परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-
(i) इस युद्ध के परिणामस्वरूप चीन का आर्थिक शोषण होना आरम्भ हो गया। अब अंग्रेज चीन में बिना किसी रोक-टोक के अफीम का व्यापार करने लगे। इससे चीन पर आर्थिक दबाव काफी बढ़ गया

(ii) नानकिंग की सन्धि के कारण चीन के सम्मान को भारी ठेस पहुंची। इसके साथ ही चीन की सैनिक शक्ति का महत्त्व भी घट गया। अतः अब वे विदेशी शक्तियाँ चीन पर दबाव डालकर सुविधाएँ प्राप्त करने का प्रयत्न करने लगीं।

(iii) प्रथम अफीम युद्ध के पश्चात् चीन को विशेषाधिकार के सिद्धान्त को विवश होकर स्वीकार करना पड़ा। चीन ने इस बात को स्वीकार कर लिया कि वह अपराध करने वाले विदेशियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करेगा। इसके परिणामस्वरूप चीन की सर्वोच्चता का अन्त हो गया।

(iv) चीन ने काफी लम्बे समय से अपने व्यापार के लिए बन्द द्वार की नीति अपना रखी थी। विदेशी व्यापारियों को कैंटन के अतिरिक्त कहीं और व्यापारिक केन्द्र स्थापित करने की आज्ञा नहीं थी। परन्तु प्रथम अफीम युद्ध के परिणामस्वरूप चीन सरकार को खुले द्वार की नीति अपनाने के लिए विवश होना पड़ा।

(v) कुछ ही समय पश्चात् यूरोपीय देशों ने चीन में अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाना आरम्भ कर दिया। इसके परिणामकारूप साम्राज्यवादी युग आरम्भ हो गया और चीन अपनी स्वाधीनता खोने लगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आधुनिक चीन का आरम्भ कब से माना जाता है ? इसका उदय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
आधुनिक चीन का आरम्भ सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में, पश्चिम के साथ उसका पहला सामना होने के समय से, माना जाता है। इस काल में जेसुइट मिशनरियों ने खगोलविद्या और गणित जैसे पश्चिमी विज्ञानों को चीन पहुँचाया।
(i) अफीम युद्ध की भूमिका-आधुनिक चीन का उदय – 19वीं शताब्दी में ब्रिटेन ने अपने अफीम के व्यापार को बढ़ाने के जिए चीन के विरुद्ध सैन्य बल का प्रयोग किया। इस प्रकार पहला युद्ध (1839-42) हुआ। इसने सत्ताधारी क्विंग (छांग) राजवंश को कमजोर किया और सुधार तथा बदलाव की मांगों को मजबुती दी।

वास्तव में चीनी उत्पादों जैसे चाय, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तनों की माँग ने ब्रिटिश व्यापार में भारी असन्तुलन पैदा कर दिया था। परन्तु पश्चिमी उत्पादों को चीन में बाजार नहीं मिला। इसलिए चीन से आयातित माल का भुगतान चाँदी में करना पड़ता था। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने एक विकल्प ढुंढा-अफीम। यह भारत के कई भागों में उगाई जाती थी। चीन में अफीम की बिक्री द्वारा चाँदी कमाकर कैंटन में उधार पत्रों के बदले कम्पनी के प्रतिनिधियों को देने लगे।

कम्पनी इस चाँदी का प्रयोग ब्रिटेन के लिए चाय, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तन खरीदने के लिए करने लगी। ब्रिटेन, भारत और चीन के बीच यह उत्पादों का ‘त्रिकोणीय व्यापार’ था।

(ii) आधुनिक व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण-क्विंग सुधारकों कांग यूवेई और लियांग किचाउ ने व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया। इस उद्देश्य से उन्होंने एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नयी सेना और शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाइँ। संवैधानिक सरकार की स्थपना के लिए स्थानीय विधानपालिकाओं का गठन भी किया गया। उन्होंने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने पर विचार किया।

(iii) उपनिवेश बनाये गए देशों के नकारात्मक उदाहरण-उपनिवेश बनाए गए देशों के नकारात्मक उदाहरणों ने चीनी विचारकों पर गहरा प्रभाव डाला। 18वीं शताब्दी में पोलैंड का बँटवारा. इसका सर्वाधिक चर्चित उदाहरण था। यहाँ तक कि 1890 के दशक में पोलैंड का शब्द ‘बोलान ब’ नामक क्रिया (Verb) के रूप में प्रयोग किया जाने लगा। क्रिया इसका अर्थ था-‘हमें पोलैंड करने के लिए’। चीन के सामने भारत का उदाहरण भी था। लियांग किचाउ का मानना था कि चीनी लोगों में एक राष्ट्र की भावना जागृत करके ही पश्चिम का विरोध किया जा सकता है।

1930 में उन्होंने लिखा कि भारत ऐसा देश है, जो किसी अन्य देश द्वारा नहीं, बल्कि एक कम्पनी अर्थात् ईस्ट इंडिया कम्पनी के हार्थों बर्बाद हो गया। ब्रिटेन की सेवा करने और अपने ही लोगों के प्रति क्रूर होने के लिए भारतीयों की आलोचना करते थे। उनके तर्कों से अधिकांश चीनी प्रभावित थे, क्योंकि ब्रिटेन ने चीन के साथ युद्ध में भारतीय सैनिकों का ही प्रयोग किया था।

(iv) चीनियों की परम्परागत सोंच में बदलाव-चीनियों की परम्परागत सोंच को बदलना भी आवश्यक था। कन्फयूशिसवाद चीन की प्रमुख विचारधारा कन्फयूशियस (551-479 ई.पू) और उसके अनुयायियों की शिक्षा से विकसित की गई थी। इसका सम्बन्ध अच्छे व्यवहार, समझदारी और उति। सामाजिक सम्बन्धों से था। इस वि रधारा ने चीनियों के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया और नये समाजिक मानक स्थापित किए। इसने चीनी राजनीतिक सोच और संगठनों को भी ठोस आधार प्रदान किया।

(v) नए विषय-लोगों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को जापान, ब्रिटेन और फ्रांस में पढ़ने के लिए भेजा गया। 1890 के दशक में बहुत बड़ी संख्या में चीनी विद्यार्थी पढ़ने लिए जापान गए। वे नये विचार लेकर वापस आए उन्होंने चीन में गणतन्त्र की स्थापना में भी अग्रणी भुमिका निभाई। चीन ने जापान से ‘न्याय’ ‘अधिकार’ और ‘क्रान्ति’ के शब्द ग्रहण किए। 1905 में रूस-जापान युद्ध हुआ। यह एक ऐसा युद्ध था, जो चीन की धरती पर और चीनी प्रदेशों पर प्रभुत्व के लिए लड़ा गया था। इस युद्ध के बाद सदियों पुरानी चीनी परीक्षा-प्रणाली समाप्त कर दी गई। यह परीक्षा प्रणाली प्रत्याशियों को अभिजात सत्ताधारी वर्ग में प्रवेश दिलाने का काम करती थी।

(vi) गणतन्त्र की स्थापना-1911 ई. में चीन में क्रान्ति हुई, जिसने मंचू शासन का अन्त कर दिया। इसके साथ ही चीन ने सच्चे अर्थों में आधुनिक युग में प्रवेश किया।

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प्रश्न 2.
सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कुओतिनतांग के अधीन देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक विकास की समीक्षा किजिए।
उत्तर-सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग काइ शेक (1878-1975) कुओमिनतांग के नेता बनकर उभरे।
(i) उन्होंने सैन्य अभियान द्वारा वार-लार्डस (स्थानीय नेता जिन्होंने सत्ता छीन ली थी) को अपने नियन्त्रण में किया और साम्यवादियों की शक्ति नष्ट की। उन्होंने सेक्युलर और विवेकपुर्ण इहलौकिक, कन्फूशियसवाद का समर्थन किया। इसके साथ-साथ उन्होंने राष्ट्र का सैन्यीकरण करने की भी चेष्टा की।

(ii) उन्होंने कहा कि लोगों को एकताबद्ध व्यवहार की प्रवृत्ति और आदत का विकास करना चाहिए।

(iii) उन्होंने महिलाओं को चार सदगुण अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया-सतीत्व, रूप-रंग, वाणी और काम। महिलाओं की भूमिका को घरेलू स्तर पर ही रखने पर बल दिया गया। यहाँ तक कि उनके कपड़ों की लम्बाई निर्धारित करने का प्रस्ताव भी रखा गया।

(iv) कुओमितांग का सामाजिक आधार शहरी प्रदेश में थों। देश का औद्योगिक विकास धीमा था और गिने-चुने क्षेत्रों तक सीमित था। शंघाई जैसे शहरों में 1919 में औद्योगिक मजदूर वर्ग का विस्तार हो रहा था। इनकी संख्या लगभग 5 लाख थी। परन्तु इनमें से केवल कुछ प्रतिशत मजदूर ही जहाज निर्माण जैसे आधुनिक उद्योगों में लगे हुए थे। अधिकतर लोग ‘नगण्य शहरी’ (शियाओं शिमिन), व्यापारी और दुकानदार होते थे।

(v) शहरी मजदूरों, विशेषकर महिलाओं को बहुत कम वेतन मिलता था। काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे और काम करने की परिस्थितियाँ बहुत खराब थीं। जैसे-जैसे व्यक्तिवाद बढ़ा, महिलाओं के अधिकारों, परिवार बनाने के तरीकों और प्रेम-प्यार आदि विषयों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा।

(vi) समाजिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में स्कूलों और विश्वविद्यालयों के विस्तार से सहायता मिली। 1920 में पीकिंग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। पत्रकारिता फली-फूली जो कि सांच का प्रतिरूप थी। शाओ तोआफैन (1895-1944) द्वारा सम्पादित लोकप्रिय ‘लाइफ व: ली’ उसी नयी विचारधारा का प्रति त्व करती थी। इसने अपने पाठक को नए विचारों के साथ-साथ महात्मा गाँधी और तुर्की के आधुनिकतावादी नेता कमाल आतातुर्क से अवगत करवाया।

(vii) देश को एकीकृत करने के प्रयासों के बावजूद कुओमिनतांग अपने संकीर्ण सामाजिक आधार और सीमित राजनीतिक दृष्टिकोण के कारण असफल रहा। सन-यात सेन के कार्यक्रम का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग “पुंजी नियमन और भूमि-अधिकारों में समानता” को कभी भी लागू न किया जा सका। इसका कारण यह था कि पार्टी ने किसानों और बढ़ती सामाजिक असमानता की अनदेखी की। इसने लोगों की समस्याओं पर ध्यान देने की बजाय सैनिक व्यवस्था थोपने का प्रयास किया।

(viii) 1937 में जापान ने चीन पर आक्रमण किया तो कुओमीनतांग पीछे हट गया। इस लम्बे और थका देने वाले युद्ध ने चीन की कमजोर बना दिया। 1945 और 1949 के दौरान कीमतें 30 प्रतिशत प्रति महीने की दर से बढ़ीं। इससे आम आदमी को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। ग्रामीण चीन में भी दो संकट थे। एक पर्यावरण सम्बन्धी था, जिससे बंजर भूमि, वनों का नाश और बाढ़ शामिल थे। दूसरा सामाजिक-आर्थिक था। यह संकट भूमि-प्रथा, ऋण, प्राचीन प्रौद्योगिकी और निम्न स्तरीय सन्चार के कारण था।

प्रश्न 3.
चीन में साम्यवादी पार्टी की स्थापना कब और कैसे हुई ? 1949 माओत्सेतुंग के अधीन यह किस प्रकार शक्तिशाली बनी?
उत्तर:
चीन में साम्यवादी पार्टी की स्थापना 1921 में, रूस क्रान्ति के कुछ समय बाद हुई थी। रूसी क्रान्ति कि सफलता ने पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव डाला था। लेनिन और ट्राट्स्की जैसे नेताओं ने मार्च 1918 में कौमिंटर्न अथवा तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय (Third International) का गठन किया, ताकि विश्व स्तरीय सरकार बनाई जा सके जो शोषण को समाप्त करे। कौमिंटर्न और सोवियत संघ विश्व भर में साम्यवादी पार्टियों का समर्थन किया। मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित इन पार्टियों का मानना था कि शहरी क्षेत्रों में क्रान्ति मजदूर वर्गो द्वारा आयेगी। आरम्भ में विभिन्न देशों के लोग कौटिर्न के प्रति बहुत आकर्षित हुए। शीघ्र ही यह सोवियत संघ के स्वार्थों की पूर्ति का शस्त्र बन गया। 1943 में इसे समाप्त कर दिया गया।

माओत्सेतुंग (1893-1976) के अधीन साम्यवादी पार्टी सी.सी.पी. (साम्यवादी पार्टी)-माओ-त्से तुंग मार्क्सवादी पार्टी (सी.सी.पी.) के प्रमुख नेता के रूप में उभरे। उन्होंने क्रान्ति के कार्यक्रम को किसानों से जोड़ते हुए .एक अलग मार्ग अपनाया। उनकी सफलता से चीनी साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बन गई, जिसने अन्ततः कुओमिनतांग पर विजय प्राप्त की।

माओत्सेतुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर तरीके-माओत्सेतुंग के आमूल परिवर्तनवादी तौर-तरीके जियांग्सी नामक स्थान पर दिखाई दिए। 1928-1934 के बीच उन्होंने यहाँ के पर्वतों में कुओमितांग के आक्रमणों से सुरक्षित शिविर लगाए। एक सशक्त किसान परिषद् (सोवियत) का गठन किया गया। भूमि पर नियन्त्रण और इसके पुनर्वितरण के साथ इसका एकीकरण हुआ। अन्य नेताओं से हटकर, माओने स्वतन्त्र सरकार और सेना पर बल दिया। माओत्सेतुंग महिलाओं की समस्याओं से भी अवगत थे। इसलिए उन्होंने ग्रामीण महिला संघों को प्रोत्साहन दिया। उन्होंने विवाह के नए कानून बनाए। आयोजित विवाहों और विवाह के समझौतों के क्रय-विक्रय पर रोक लगा दी गई। तलाक को आसान बनाया गया।

लाँग मार्च तथा साम्यवादियों का सत्ता में आना-कुओमितांग द्वारा कम्यनिस्टों की सोवियत का नाकेबन्दी ने पार्टी को कोई अन्य आधार ढूंढ़ने पर विवश किया। इसके च। उन्हें लाँग मार्च (1934-1935) पर जाना पड़ा, जो कि शांग्सी तक 6000 मील की कठिन यात्रा थी। अपने नये अड्डे येनान में उन्होंने वारलॉर्डिज्म को समाप्त करने, भूमि सुधार लागू करने और विदेशी साम्राज्यवाद से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें मजबूत सामाजिक आधार मिला द्वितीय विश्व युद्ध के कठिन वर्षों में साम्यवादियों और कुओमीनतांग ने मिलकर काम किया। युद्ध समाप्त होने के बाद कुओमीनतांग की पराजय हुई और साम्यवादी सत्ता में आ गए।

प्रश्न 4.
प्रथम विश्व युद्ध के तत्काल बाद के सालों में चीन के राष्ट्रवादी आन्दोलन की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं? सनयात सेन की मौत के बाद वहाँ जो घटनाएँ घटी, उनका वर्णन कीजिए और यह भी बताइए कि उनके क्या परिणाम निकले।
उत्तर:
राष्ट्रीय आन्दोलन का आरम्भ तथा विशेषताएँ-प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के समय चीन में दो प्रमुख सरकारें थीं। इनमें से एक पर कोमिनतांग का अधिकार था। इस सरकार का मुख्यालय कैन्टन में था। दूसरे सरकार का शासनाध्यक्ष एक सैनिक जनरल था। उसका मुख्यालय बीजिंग में था। 1919 ई. में पेरिस शान्ति सम्मेलन ने शान्तुंग को जापान के हवाले करने का निर्णय दिया। इससे चीन में साम्राज्यवाद के विरुद्ध एक राष्ट्रीय आन्दोलन आरम्भ हो गया इसका श्रीगणेश 4 मई, 1919 को बीजिंग विविद्यालय के छात्रों द्वारा साम्राज्यवाद विरोधी प्रदर्शन से हुआ। ‘यह आन्दोलन ‘चार मई आन्दोलन’ के नाम से विख्यात है।

आन्दोलन शीघ्र ही वीन के अन्य भागों में भी फैल गया। 1921 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई जो शीघ्र ही देश की एक प्रमुख शक्ति बन गई। इस समय प्रसिद्ध चीनी नेता सनयात सेन भी चीन को एकीकृत करने के लिए प्रयत्नशील थे। वे पश्चिमी देशों की सहायता से अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहते थे। परन्तु जब उन्हें पश्चिम की ओर से कोई सहायता न मिली, तो उन्होंने सोवियत संघ से समर्थन माँगा। अन्ततः 1925 ई. में कोमिनतांग तथा कम्युनिस्ट पार्टी के सहयोग से एक राष्ट्रीय सरकार गठित करने का निर्णय लिया गया। इस सेना ने शीघ्र ही युद्ध सरदारों के विरुद्ध अपना अभियान आरम्भ कर दिया। परन्तु मार्च, 1925 ई. में डॉ. सनयात सेन का देहान्त हो गया, जिससे स्थिति बदल गई।।

डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् की घटनाएँ-
(i) डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् कोमिनतांग तथा कम्युनिस्ट का गठबन्धन हो गया और देश में गृह-युद्ध छिड़ गया। अब वहाँ किसान तथा मजदूर सक्रिय हो उठे। 1925 में शंघई में मजदूर की हत्या के विरोध में हड़तालें और. प्रदर्शन हुए। ये हत्याएँ जापानी उद्योगपतियों तथा ब्रिटिश पुलिस की कार्यवाही से हुई थीं। विद्रोही किसानों ने कई स्थानों पर अपने भू-स्वामियों से उनकी भूमि छीन ली।

(ii) 1927 ई. के मार्च मास में राष्ट्रीय क्रान्तिकारी सेना नानकिंग पहुँचा। वहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन के युद्ध पोतों ने गोलाबारी आरम्भ कर दी। इस गोलाबारी में सैकड़ों लोग मारे गए। परन्तु उसी समय कोविनतांग में फूट पड़ गई और राष्ट्रीय क्रान्तिकारी सेना के नेता च्यांग-काई शेक ने नानकिंग में अपनी सरकार स्थापित कर ली। कोतिनतांग में विद्यमान वामपन्थी तत्वों में कम्युनिस्ट दल (मजदूरों) की शक्ति का दमन करना चाहता था। उसकी सैनिक टुकड़ियों ने शंघाई में मजदूरों के घरों में छापे मार कर हजारों की संख्या में मजदूरों को मार डाला।

(iii) 1 दिसम्बर, 1927 को कैन्टन में कम्युनिस्टों में एक विद्रोह का नेतृत्व किया और सोवियत रूप की एक सरकार स्थापित की, परन्तु इस विद्रोह को कुचल दिया गया। इस घटना में लगभग 5000 मजदूर मारे गये। इससे चीन के राष्ट्रीय आन्दोलन में फूट पड़ गयी। सोवियत सलाहकारों को चीन से बाहर निकाल दिया गया तथा कगिनतांग के अनेक नेता देश छोड़कर चले गये। इनमें सनयात सेन की विधवा भी शामिल थी। परन्तु देश में कम्युनिस्टों की शक्ति का पूरी तरह पतन नहीं हुआ। कई कम्युनिस्ट देश के विभिन्न भागों में फैल गये और उन्होंने कुछ प्रदेशों को अपने नियन्त्रण में ले लिया। इस प्रकार चीन का गृह-युद्ध एक नये चरण में प्रवेश कर गया, जो कम्युनिस्टों तथा च्यांग-काई-शेक सरकार के बीच चला।

(iv) मंचूरिया पर जापानी अधिकार के कारण चीन में जापानी माल के बहिष्कार का भी एक आन्दोलन चला। परन्तु इस सम्बन्ध में कोमिनतांग के नेता च्यांग-काई-शेक तथा कम्युनिस्टों के बीच एकता स्थापित न हो सकी । कोमिनतांग ने जापान के विरुद्ध कार्यवाही करने की बजाय कम्युनिस्टों की शक्ति कुचलने की ओर ही अपना ध्यान लगाया। परन्तु ग्रामीण प्रदेशों में कम्युनिस्टों की शक्ति निरन्तर बढ़ती ही चली गई। इसी बीच माओ-त्से-तुंग एक प्रभावशाली कम्युनिस्ट नेता के रूप में उभर कर सामने आये। उन्होंने किसान शक्ति की सहायता से देश में समाजवादी क्रान्ति लाने की योजना बनाई। परन्तु 1934 ई. में च्यांग-काई-शेक ने एक विशाल सेना के साथ कम्युनिस्टों के प्रभाव क्षेत्रों पर आक्रमण कर दिया।

कम्युनिस्ट यह नहीं चाहते थे कि उनका पूरी तरह सफाया कर दिया जाये। अतः वे अपने प्रभाव क्षेत्रों को छोड़कर चले गये। उनमें से लगभग 1 लाख कम्युनिस्ट उत्तर-पश्चिम की ओर येनान क्षेत्र में पहुँचे। येनान पहुँचने में कम्युनिस्टों ने लगभग छः हजार मील की लम्बी यात्रा की। इसी कारण इतिहास में यह घटना ‘लम्बी यात्रा’ (Long March) के नाम से विख्यात है। इस घटना के कारण कम्युनिस्टों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई। उन्होंने अपनी यात्रा के दौरान अनेक जमींदारों से भूमि छीन कर किसानों में बाँट दी थी। अतः लोगों के मन में यह बात पूरी तरह बैठ गई कि कम्युनिस्ट दल ही जन-साधारण का भला कर सकता है। लोग च्यांग-काई-शेक की सरकार को जमींदारों, सूदखोरों तथा सौदागरों की सरकार समझने लगे।

(v) 1937 में चीन पर एक भीषण जापानी आक्रमण हुआ। च्यांग-काई-शेक की सेना, जो केवल कम्युनिस्ट विरोधी कार्यवाही में ही व्यस्त थी, जापानी सेना के सामने न टिक सकी। परिणामस्वरूप उसे पीछे हटना पड़ा। उनकी सरकार का मुख्यालय मानकिंग से हटकर चंगकिंग में पहुंच गया। परन्तु इसी बीच जापानी आक्रमण को रोकने के लिए एक संयुक्त मोर्चे का गठन भी किया जा चुका था। यह सब एक महत्त्वपूर्ण घटना के कारण सम्भव हुआ था, जिसमें च्यांग-काई-शेक को बन्दी बना लिया गया था और उसे तब तक नहीं छोड़ा गया था, जब तक कि कोमिनतांग कम्युनिस्टों के साथ मिलकर जापान का विरोध करने के लिए तैयार न हो गये। परन्तु इस एकता के बावजुद भी दोनों दलों के लोग एक-दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते रहे।

परिणाम – डॉ. सनयात सेन की मृत्यु के पश्चात् चीन में जो घटना. चक्र चला, उसका सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि कम्यूनिस्ट दल एक शक्शिाली दल के रूप में उभरकर सामने आया।

Bihar Board Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

प्रश्न 5.
मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात् जापान के आधुनिकीकरण हेतु कौन-कौन से कदम उठाये गये।
उत्तर:
मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात जापान ने शिक्षा, उद्योग, सैन्य, राजनीति, आधुनिकीकरण के पीछे यूरोपीय देशों द्वारा जापान को अपने अपने उपनिवेश बना लेने का डर उच्च करों को वसूलने में उठने वाले विद्रोहों को दबाने तथा विश्व के मान चित्र पर एक सशक्त देश के उभरने की महत्त्वकांक्षा थी। अतः इन्हीं बातों के आधार पर जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को सही हराया। अशिक्षा, सामन्ती व्यवस्था, ..र्थिक अव्यवस्था तथा विदेशी शक्ति द्वारा जापान की आन्तरिक व्यवस्था से लाभ उठाकर उपनिवेश बनाने की कोशिश ने 1867 में जापान के सम्राट मुत्सहितो को, जिसने ‘मेइजी’ की उपाधि धारण की, सत्ता सौंप दिया। इसे ही इतिहास में मेइजी पुर्नस्थापना कहते हैं।

उपर्युक्त समस्याओं के निराकरण हेतु आवश्यकता थी जापान के आधुनिकीकरण करने की, जिसे सम्राट ने धैर्य के साथ किया। इसी हेतु 1871 में सामन्तवादी व्यवस्था का वहाँ अन्त कर दिया गया। शासन में जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये दो सदन वाली डायर की स्थापना की गई। नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का दर्जा दिया गया। – मेइजी पुर्नस्थापना के पश्चात् शिक्षा की अतीव उन्नति जापान में हुई। जापान में शिक्षा का आधार राष्ट्रीयता के प्रसार को बनाया गया।

प्रश्न 6.
जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को किस प्रकार सही ठहराया?
उत्तर:
जापान में मेजी पुर्नस्थापना के पश्चात जापान ने शिक्षा, उद्योग, सैन्य, राजनीति आदि अनेक क्षेत्रों का आधुनिकीकरण किया। सैन्य आधुनिकीकरण के पीछे यूरोपीय देशें द्वारा जापान को अपने-अपने उपनिवेश बना लेने का डर, उच्च करों को वसूलने में उठने वाले विद्रोहों को दबाने तथा विश्व के मानचित्र पर एक सशक्त देश के उभरने की महत्वाकांक्षा थी। अतः इन्हीं बातों के आधार पर जापान ने अपने सैन्य आधुनिकीकरण के औचित्य को सही ठहराया।

प्रश्न 7.
चीन में साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना कैसे हुई? इस क्रान्ति के चीन पर पड़े प्रभावों का वर्णन कीजिए।
अथवा
चीन में 1949 की क्रान्ति कैसे हुई। चीन पर इसके क्या प्रभाव पड़े?
उत्तर:
चीन में साम्यवादी व्यवस्था की स्थापना निम्नलिखित चरणों में हुई
(i) डॉ. सनयात-सेन की मृत्यु के पश्चात् च्यांग-काई के नेतृत्व में कोमिंतांग और माओ जेदांग (माओ-त्ये-तुंग) के नेतृत्व में कम्युनिष्ट पार्टी के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया।

(ii) चीन पर जापानी आक्रमण के समय दोनों पार्टियों और उनकी सेनाओं ने जापानी आक्रमण का सामना करने के लिए कुछ समय तक आपस में सहयोग किया। परन्तु इनका आपसी टकराव फिर भी समाप्त न हुआ।

(iii) कोमिंतांग मुख्यतः पुंजीपतियों और जमींदारों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी थी। दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी मजदूरों और किसानों की पार्टी थी। कम्यूनिस्ट पार्टी के नियन्त्रण वाले क्षेत्रों में जमींदारों की जागीरें जब्त करके जमीन को किसानों के बीच बाँट दिया गया। अपनी इन नीतियों से कम्युनिस्ट पार्टी ने धीरे-धीरे करोड़ों चीनी लोगों को अपना समर्थक बना लिया था। कम्युनिस्ट पार्टी ने जनमुक्ति सेना नाम से एक बड़ी सेना भी बना ली थी।

(iv) जापान की हार तथा चीन से जापानी सैनिकों के भागने के बाद गृहयुद्ध फिर से भड़क उठा। अमेरिकी सरकार ने च्यांग-काई-शेक को भारी सहायता दी। परन्तु उसकी सेनाएँ 1949 तक पूरी तरह नष्ट हो चुकी थीं। अपनी बची-खुची सेना के साथ च्यांग-काई-शेक ताइवान (फारमोसा) चला गया। अक्टूबर, 1949 को चीनी लोक गणराज्य की स्थापना की घोषणा की गई औरी माओ जंदांग के नेतृत्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में आई।

चीन पर क्रान्ति के प्रभाव –

  • 1949 की चीनी क्रान्ति ने चीनी समाज के स्वरूप को बदल डाला। परम्परागत चीनी समाज कन्फयूशियस के सिद्धान्तों और विचारों पर आधारित था। परन्तु क्रान्ति के बाद देश में नई विचारधारा उन्न हुई। अब श्रमिक वर्ग और चीनी गरिकों को उचित सम्मान दिया जाने लगा।
  • इस क्रान्ति से चीनी लोगों का दैनिक जीवन काफी सुखी हो गया। क्रान्ति के बाद साम्यवादी सरकार ने देश में राशन प्रणाली आरम्भ की और जीवन की आवश्यकताओं को लोगों तक पहुँचाया। बीमारियों, आगजनी और लूटमार के अपराधों पर भी नियन्त्रण करने का प्रयास किया गया।
  • इस क्रान्ति से भूमिहीन किसानों को भूमि मिली। इसके अतिरिक्त सरकार ने किसानों की सहायता के लिए सहकारी समितियाँ बनाई।
  • इस क्रान्ति से स्त्रियों की दशा में भी परिवर्तन आया। क्रान्तिकारी सरकार ने स्त्रियों के उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाये। उनके क्रय-विक्रय को अवैध घोषित कर दिया गया।
  • चीनी क्रान्ति से विश्व में समाजवादी विचारधारा को बल मिला।

प्रश्न 8.
जापान में मेजी शासन के अधीन अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण किस प्रकार हुआ ? उद्योगों के विकास का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था का आधुनिकीकरण मेजी सुधारों की एक महत्त्वपर्ण विशेषता थी। इसके लिए निम्नलिखित पग उठाए गए-
(i) कृषि पर कर लगाकर धन एकत्रित किया गया।

(ii) 1870-1872 में तोक्यो (Tokyo) से योकोहामा बन्दरगाह के बीच जापान की पहली रेल लाइन बिछाई गई।

(iii) वस्त्र उद्योग के लिए यूरोप से मशीनें आयात की गईं। मजदूरों के प्रशिक्षण तथा देश के विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ाने के लिए विदेशी कारीगरों को बुलाया गया ।

(iv) कई जापानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए विदेश भी भेजा गया।

(v) 1872 में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं की स्थापना की गई।

(vi) मित्सुबिशी और सुमितोमो जैसी कम्पनियाँ सब्सिडी और करों में छूट के कारण प्रमुख जहाज निर्माता कम्पनियाँ बन गईं। अब जापान का व्यापार जापानी जहाजों द्वारा होने लगा। बड़ी-बड़ी व्यापारिक संस्थाओं ‘जायबात्सु’ का प्रभुत्व दूसरे विश्व युद्ध के बाद तक अर्थव्यवस्था पर बना रहा।

(vii) 1874 में जापान की जनसंख्या 3.5 करोड़ थी, जो 1920 में 5.5 करोड़ हो गई। जनसंख्या के दबाव को कम करने के लिए सरकार ने प्रवास को बढ़ावा दिया। पहले लोगों को उत्तरी द्वीप होकायदो की ओर भेजा गया। यह काफी सीमा तक एक स्वतन्त्र प्रदेश था और वहाँ आयनू कहे जाने वाले लोग रहते थे। इसके बाद उन्हें हवाई, ब्राजील और जापान के बढ़ते हुए औपनिवेशिक साम्राज्य की ओर भेजा गया। उद्योगों के विकास के साथ-साथ लोग शहरों की ओर आने लगे। 1925 तक 21 प्रतिशत जनता शहरों में रहती थी। 1935 तक यह बढ़ कर 32 प्रतिशत हो गई।

(viii) जापान में औद्योगिक मजदूरों की संख्या 1870 में 7 लाख से बढ़कर 1913 में 40 लाख पहुँच गई। अधिकतर मजदूर ऐसी इकाइयों में काम करते थे, जिनमें 5 से भी कम लोग थे और जिनमें मशीनों तथा विद्युत्त-ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता था। कारखानों में काम करने वाले मजदूरों में आधे से अधिक महिलाएँ थीं। 1900 के बाद कारखानों में पुरुषों की संख्या बढ़ने लगी। परन्तु 1930 के दशक में ही आकर पुरुषों की संख्या महिलाओं में अधिक हुई। कारखानों में मजदूरों की संख भी बढ़ने लगी। फिर भी 1940 में 5 लाख 50 हजार कारखानों में पाँच-पाँच से भी कम मजदूर काम करते थे।

पर्यावरण पर प्रभाव – उद्योगों के तीव्र और अनियन्त्रित विकास तथा लकड़ी की अधिक माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ। संसद के निम्न सदन में सदस्य तनाको शोजो ने 1897 में औद्योगिक प्रदूषण के विरुद्ध पहला आन्दोलन छेड़ा। 800 गाँववासी जन विरोध में एकत्रित हुए और उन्होंने सरकार को कार्यवाही करने के लिए विवश किया।

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प्रश्न 9.
जापान के आक्रामक राष्ट्रवाद, पश्चिमीकरण तथा परम्परा की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
आक्रामक राष्ट्रवाद-मेजी संविधान सीमित मताधिकार पर आधारित था। संविधान द्वारा बनाई गई डायट (संसद) के अधिकार सीमित थे। शाही पुनः स्थापना करने वाले नेता सत्ता में बने रहे और उन्होंने राजनीतिक पार्टियों का गठन किया। 1918-1931 के दौरान जनमत द्वारा चुने गए प्रधानमंत्रियों ने मंत्रिपरिषद् बनाई। इसके बाद उन्होंने पार्टियों का भेद भुला कर राष्ट्रीय मंत्रिपरिषद् बनाईं। सम्राट सैन्य बलों का कमांडर था और 1890 से यह माना जाने लगा कि थलसेना और नौसेना का नियन्त्रण स्वतन्त्र है। 1899 में प्रधानमंत्री ने आदेश दिया कि केवल सेवारत जनरल और एडमिरल ही मंत्री बन सकते हैं। सेना को मजबूत बनाने का अभियान और जापान के उपनिवेशों की वृद्धि इस भय से एक-दूसरे से सम्बन्धित थी कि जापान पश्चिमी शक्तियों की दया पर निर्भर है। यह भय दिखा कर सैन्य-विस्तार के और सैन्यबलों को अधिक धन जुटाने के उद्देश्य से ऊँचे कर वसूले गए। इन करों के विरुद्ध आवाजें उठीं परन्तु उन्हें दबा दिया गया।

पश्चिमीकरण तथा परम्परा – अन्य देशों के साथ जापान के सम्बन्धों के बारे में जापानी बुद्धिजीवियों की आने वाली पीढ़ियों के विचार भिन्न-भिन्न थे। कुछ का विचार था कि अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देश सभ्यता की ऊँचाइयों पर हैं। जापान को भी उसी ऊँचाई पर पहुँचने की आकांक्षा रखनी चाहिए। फुकुजावा यूकिची मेजी काल के प्रमुख बुद्धिजीवियों में से थे। उनका कहना था कि जापान को ‘अपने में से एशिया को निकाल फेंकना’ चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय यह था कि जापान को अपने एशियाई लक्षण छोड़ कर पश्चिम का भाग बन जाना चाहिए।

अगली पीढ़ी ने पश्चिमी विचारों को पूरी तरह से अपनाने पर आपत्ति की और कहा कि राष्ट्रीय गौरव का निर्माण देशी मूल्यों पर ही होना चाहिए। दर्शनशास्त्री मियाके सेत्सरे (18601945) ने तर्क पेश किया कि विश्व सभ्यता के हित में प्रत्येक राष्ट्र को अपने विशेष गुणों का विकास करना चाहिए। स्वयं को अपने देश के लिए समर्पित करना स्वयं को विश्व के प्रति समर्पित करने के समान है। दूसरी ओर बहुत से बुद्धिजीवी पश्चिमी उदारवाद की ओर आकर्षित थे। वे चाहते थे कि जापान अपना निर्माण सेना की बजाय लोकतन्त्र के आधार पर करे।

संवैधानिक सरकार की माँग करने वाले आन्दोलन के नेता उएको एमोरी (1857-1892) फ्रांसीसी क्रान्ति के मानव के प्राकृतिक अधिकारों और जन प्रभुसत्ता के सिद्धान्तों के प्रशंसक थे। वह उदारवादी शिक्षा के पक्ष में थे, जो प्रत्येक व्यक्ति को विकसित कर सके। कुछ दूसरे लोगों ने तो महिलाओं के मताधिकार की भी सिफारिश की। इस दबाव ने सरकार को संविधान की घोषणा करने पर बाध्य किया।

प्रश्न 10.
दो विश्वयुद्धों के बीच में जापान में सैनिकवाद के उत्थान की विवेचना कीजिए। यह विकास जापान द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने के लिए कहाँ तक उत्तरदायी था?
उत्तर:
1918 ई. तक जापान आर्थिक दृष्टि से काफी समृद्ध था। परन्तु देश में राजनीतिक अस्थि॥ का वातावरण था। देश में लोकतन्त्र की स्थापना के प्रयास किए जा रहे थे। परन्तु सेना सता पर अपना प्रभाव बढ़ाने में व्यस्त थी। फलस्वरूप जापान पुनः सैनिकवाद की ओर बढ़ने
लगा।
माणन में सैनिकवाद के बढ़ते कदम – द्वितीय विश्व युद्ध तक जापान में सैनिकवाद के विकास र्णन इस प्रकार है-
(i) 1929 की महान् आर्थिक मन्दी-1929 ई. में विश्व तथा. विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका। महान् आर्थिक मन्दी का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप संयुक्त राज्य में वस्तुओं का उपभोग बहुत ही कम हो गया। इसका जापान की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इसका कारण यह था कि अमेरिका जापान से निर्यात होने वाले कृषि उत्पादन का सबसे बड़ा बाजार था। देश का निर्यात कम होने से कृषकों को घोर निर्धनता का सामना करना पड़ा। तंग आकर वे सेना में भर्ती होने लगे। इस अवसर का लाभ उठा कर देश के सेनानायकों ने सैन्यवाद महिमा गान करना आरम्भ कर दिया । वे चाहते थे कि जापान चीन में चल रहे गृह युद्ध का लाभ उठा कर चीन को एक उपनिवेश के रूप में प्रयोग करे।

(ii) मंचूरिया संकट 1931-मंचूरिया चीन का एक प्रान्त था। यहाँ चीन की कम्पनियों का बहुत अधिक प्रभाव था। चीन की राष्ट्रवादी सरकार ने उसकी शक्ति को नियन्त्रित करने का प्रयास किया। अतः टोक्यो (जापान) के सैनिकवादियों ने देश के अनुसार राजनेताओं के सहयोग से मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया और वहाँ एक कठपुतली सरकार की स्थापना कर दी। इस सम्बन्ध में देश के प्रधानमंत्री इनुकई (Inukai) से पूछा तक नहीं गया। जब इनुकई ने इस घटना का विरोध किया, तो उसकी हत्या कर दी गई और देश का शासन सेना के अधीन कर दिया गया। फलस्वरूप जापान में सैनिकवाद की जड़ें और अधिक गहरी हो गईं।

(iii) सैनिक फासीवाद-उपरोक्त घटना के पश्चात् द्वितीय विश्व युद्ध तक जापान में सैनिक फासीवाद का बोलबाला रहा। वहाँ सेना सर्वेसर्वा बन गई और सम्राट नाममात्र का मुखिया बना रहा। सैनिक सत्ता का विरोध करने वाले लोगों के साथ सख्ती के साथ निपटा गया। ऐसे अधिकांश लोगों को साम्यवादी होने की आड़ में गोलियों से उड़ा दिया गया। विचारों की अभिव्यक्ति तथा शिक्षा पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। जापान की विदेश नीति ने आक्रामक रूप धारण कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य एशिया में तेजी से औपनिवेशिक विस्तार करना था।

इस दिशा में ब्रिटेन तथा अमेरिका के हितों को चोट पहुँचाने का हर सम्भव प्रयास किया गया। जापान द्वारा 1937 में चीन पर आक्रमण के समय अनेक निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। इस हत्याकांड का जापानी सम्राट भी विरोध करने का साहस न कर सका। इस प्रकार जापान में सैनिकवाद इतना अधिक हावी हो गया कि इसने जापान को द्वितीय विश्व युद्ध में धकेल दिया। उसने अन्य दो फासीवादी देशों इटली तथा जर्मनी का साथ दिया।

प्रश्न 11.
‘मेजी पुनःस्थापन’ का अर्थ क्या है? जापान के विकास पर इसके भावी परिणाम क्या थे?
उत्तर:
जापान में शताब्दियों तक ‘शोगुन’ शासक सत्ता के वास्तविक स्वामी बने रहे। परन्तु 1869 में ‘शोगुन’ गासन समाप्त कर दिया गया और उस स्थान पर नए शासक तथा सलाहकाः सामने आए। ये लोग जापानी सम्राट के नाम पर शासन चलाते थे। इस प्रकार देश में सम्राट फिर से सर्वेसर्वा बन गया। उसने ‘मेजी’ की उपाधि धारण की। इसलिए जापान के इतिहास में इस घटना को ‘मेजी पुनः स्थापना’ का नाम दिया गया।

महत्त्व – ‘मेजी पुनःस्थापना’ का जापान की भावी प्रगति पर गहरा प्रभाव पड़ा जिसका वर्णन इस प्रकार है-
(i) औद्योगिक प्रगति-मेजी युग में जापान ने औद्योगिक क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति की। देश की सरकार ने उद्योगों में व्यापक पूंजी निवेश किया। बाद में उद्योग पूंजीपतियों को बेच दिए गए। इस प्रकार ब नए उद्योग आरम्भ करने के लिए सरकारी सहायता की कोई आवश्यकता न रही। किसानों की दरिद्रता का भी उद्योगों को लाभ पहुँचा। अनेक निर्धन किसान गाँवों को छोड़कर नगरों में बसे। परिणमस्वरूप उद्योगों के लिए सस्ते मजदूर उपलब्ध होने लगे। 20वीं शताब्दी के आरम्भ तक जापान उद्योगों में इतना अधिक शक्तिशाली हो गया कि वह अन्तराष्ट्रीय बाजार में यूरोप के औद्योगिक देशों के साथ टक्कर लेने लगा।

(ii) नवीन संविधान-सन् 1889 में जापान को एक नया संविधान मिला। इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-
1. सम्राट को कार्यकारिणी के प्रधान के रूप में विशेष शक्तियाँ दी गईं थीं। सभी मन्त्रियों की नियुक्ति सम्राट द्वारा होती थी और वे अपने कार्यों के लिए सम्राट के प्रति उत्तरदायी होते थे। वास्तव में सम्राट को दैवी शक्तियाँ प्राप्त थीं उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता था। अतः उसे पवित्र एवं श्रेष्ठतम मानकर उसकी पूजा की जाती थी।
2. संविधान में एक संसद का प्रावधान था, जिसे डायट कहते थे। परन्तु डायट की शक्तियाँ काफी सीमित थीं। उस पर सेना का नियन्त्रण स्थापित किया गया था ।
3. पुलिस को व्यापक अधिकार दिए गए थे। वह राजतन्त्र विरोधी गतिविधियों पर आसानी से रोक लगा सकती थी।

(iii) औपनिवेशिक विस्तार-1890 के दशक में जापान यूरोपीय देशों के साथ औपनिवेशिक होड़ में शमिल हो गया। इसने 1895 ई. में चीन से युद्ध किया और उसे परास्त करके फारमोसा पर अपना अधिकार कर लिया। फिर 1905 ई. में कोरिया उसका संरक्षित राज्य बन गया और इसके पाँच वर्ष पश्चात् यह प्रदेश जापानी सम्राज्य का अंग बन गया।
इस प्रकार मेजी पुनः स्थापना के बाद जापान एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरने लगा। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा यूरोपीय देशों ने 1899 में ही उसे एक महाशक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया था। कुछ देरों ने उसके साथ समानता के आधार पर संधियाँ भी की थीं।

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प्रश्न 12.
19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों से लेकर प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति तक एक विश्व शक्ति के रूप में जापान के विकास क्रम का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जापान एशिया का एकमात्र साम्राज्यवादी शक्ति था। उसने अपना साम्राज्यवादी प्रसार 19वीं शताब्दी के अन्तिम दशक में किया। इससे पूर्व जापान स्वयं साम्राज्यवाद का शिकार होते-होते बचा था। 1853 ई. में कमोडोर पेरी के नेतृत्व में जंगी जहाज जापान के तट पर पहुँचे थे। पेरी ने बल प्रयोग द्वारा जापान को अमेरिकी जहाजरानी तथा व्यापार की छूट देने के लिए बाध्य किया। जापान के साथ ब्रिटेन, हालैंड तथा रूस ने भी समझौते किए। फिर भी जापान अन्य एशियाई देशों के कटु अनुभव से बचा रहा।

जापान का शक्तिशाली बनना – 1876 ई. में जापान में महत्त्वपूर्ण सत्ता-परिवर्तन हुआ, जिसे मेजी पुर्नस्थापना कहा जाता है मेजी काल में जापान ने बहुत उन्नति की। उसने अपनी अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाना आरम्भ कर दिया और कुछ ही दशकों में वह विश्व का एक प्रमुख औद्योगिक देश बन गया। इसके अतिरिक्त वे शक्तियाँ जिन्होंने पश्चिमी देशों को साम्राज्यवादी बनया था, जापान में भी सक्रिय थीं पश्चिमी देशों की भांति जापान के पास भी अपने उद्योगों के लिए कच्चा माल बहुत कम था। उसे अपने माल की खपत के लिए नए बाजार नी चाहिए थे। अतः उसकी नजर ऐसे देश पर पड़ी जो उसकी इन दोनों आवश्यक्ताओं की ते कर सकते थे। इस प्रकार वह भी साम्राज्यवाद की होड़ में सम्मिलित हो गया।

साम्राज्यवाद विस्तार – जापान के साम्राज्यवादी विस्तार प वर्णन इस प्रकार है-

  • जापान के निकट चीन था और चीन में उसके साम्राज्यवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पर्याप्त अवसर थे। दोनों देश 1894 में कोरिया के प्रश्न पर एक-दूसरे से युद्ध कर चुके थे। इसके बाद जापान का चीन में प्रभाव काफी बढ़ गया था।
  • 1902 में इंग्लैंड तथा जापान का समझौता हुआ। इसके अनुसार जापान को अन्य यूरोपीय शक्तियों के समान दर्जा मिल गया।
  • 1940-05 में उसने रूस को पराजित किया। इसके परिणामस्वरूप उसे सखालिन का दक्षिणी भाग प्राप्त हुआ । जापान का लियाओतुंग प्रायद्वीप के दक्षिणी भाग पर भी अधिकार हो गया। उसने पोर्ट आर्थर पट्टे (किराये)पर ले ली।
  • 1910 में कारिया जापान का उपनिवेश बन गया।

इस प्रकार प्रथम विश्व-युद्ध के समय तक जापान एक महाशक्ति बन चुका था। यदि पश्चिमी शक्तियाँ उसके मार्ग में बाधा न बनतीं, तो वह चीन में अपना और अधिक प्रसार कर सकता था। परन्तु यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य है कि पश्चिमी देशों की तुलना में जापान के साम्राज्यवादी कारनामे काफी बदतर थे।

प्रश्न 13.
द्वितीय विश्वयुद्ध में पराजय के पश्चात् जापान का विश्व की आर्थिक शक्ति। के रूप में उत्थान किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
युद्ध के बाद की स्थिति-द्वितीय विश्व युद्ध में पराजय के बाद जापान के औपनिवेशिक साम्राज्य के प्रयास थम गए। यह तर्क दिया गया था कि युद्ध को जल्दी समाप्त करने के लिए जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये गये थे। परन्तु बहुत से लोगों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर होने वाली विनाशलीला पूरी तरह से अनावश्यक थी। अमेरिका नियन्त्रण (1945-47) के दौरान जापान का विसैन्यीकरण कर दिया गया।

एक नया संविधान भी लागू हुआ। इसके अनुच्छेद 9 के ‘युद्ध न करने’ की तथाकथित धारा के अनुसार जापान युद्ध को राष्ट्रीय नीति नहीं बना सकता । कृषि सुधार, व्यापारिक संगठनों के पुनर्गठन और जापानी अर्थव्यवस्था में जायबात्सु अर्थात् बड़ी एकाधिकार कम्पनियों को पकड़ को समाप्त करने का प्रयास किया गया । राजनीतिक पार्टियों को पुनर्जीवित किया गया और युद्ध के पश्चात् 1946 में पहले चुनाव हुए । इन चुनावों में पहली बार महिलाओं ने भी मतदान किया।

आर्थिक शक्ति के रूप में उत्थान – युद्ध में भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का बड़ी तेजी से पुनर्निर्माण हुआ। संविधान को औपचारिक रूप से लोकतान्त्रिक बनाया गया। परन्तु जापान में जनवादी आन्दोलन और राजनीतिक भागीदार का आधार बढ़ाने की ऐतिहासिक परम्परा रही थी। अतः युद्ध से पहले के काल की सामाजिक सम्बद्धता को सुदृढ़ किया गया। इसके परिणामस्वरूप सरकार नौकरशाही और उद्योग के बीच एक निकट सम्बन्ध स्थापित हुआ।

अमेरीकी समर्थन और कोरिया तथा वयतनाम में युद्ध से उत्पन्न माँग ने जापानी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सहायता की। 1964 में हुए ओलम्पिक खेल जापानी अर्थव्यवस्था की परिपक्वता। के प्रतीक थे। तेज गति वाली शिकाँसेन अर्थात् बुलेट ट्रेन का जाल भी 1964 में आरम्भ हुआ। ये गाड़ियाँ 200 मील प्रति घंटे की गति से चलती थीं। अब वे 300 मील प्रति घंटे की गति से चलती हैं। यह बात भी जापानियों की सक्षमता को दर्शाती है कि उन्होंने नयी प्रौद्योगिकी द्वारा बेहतर और सस्ते उत्पाद बाजार में उतारे।

1960 के दशक में ‘नागरिक समाज आन्दोलन’ का उदय हुआ। इस आन्दोलन द्वारा बढ़ते औद्योगीकरण के कारण स्वास्थ और पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभाव की पुरी तरह से उपेक्षा कर देने का विरोध किया गया। कैडमियम का विष, जिसके कारण एक बहुत ही कष्टप्रद बीमारी होती थी, औद्योगिक दुष्प्रभाव का आरम्भिक सूचक था। इसके बाद 1960 के दशक में वायु प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुई। दबाव गुटों ने इन समस्याओं को पहचानने और भृतकों के लिए मुआवजा देने की माँग की।

सक्रियता से नए कानूनों से स्थिति में सुधार आने लगा। 1980 के दशक के मध्य से पर्यावरण सम्बन्धी विषयों में लोगों की रुचि में कमी आई है, क्योंकि जापान ने विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण नियन्त्रण कानून बनाए हैं। आज जापान एक विकसित देश है। वह अपनी राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का प्रयोग करके स्वयं को एक विश्व शक्ति बनाए रखने का प्रयास रहा है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
रेड गार्डस में कौन शामिल थे?
(क) किसान और मजदूर
(ख) सामन्त
(ग) छात्र और सेना
(घ) गाँवों के लोग
उत्तर:
(ग) छात्र और सेना

प्रश्न 2.
कोमिंतांग पार्टी का निम्नलिखित में कौन-सा कार्य नहीं होता?
(क) एक दमनकारी सरकार की स्थापना की।
(ख) सत्ता में स्थनीय आबादी को शामिल नहीं किया गया।
(ग) भूमि सुधार का कार्यक्रम चलाया।
(घ) बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगा दी।
उत्तर:
(घ) बढ़ती जनसंख्या पर रोक लगा दी।

प्रश्न 3.
ताइवान में मार्शल-लॉ कब हटाया गया?
(क) 1687
(ख) 1787
(ग) 1887
(घ) 1987
उत्तर:
(ग) 1887

प्रश्न 4.
जापान के आधुनिकीकरण का एक दुष्परिणाम था?
(क) सैनिकवाद
(ख) शैक्षणिक विकास
(ग) औद्योगिक विकास
(घ) सांस्कृतिक पतन
उत्तर:
(क) सैनिकवाद

प्रश्न 5.
जापानी सैन्यबलों का सर्वोच्च कमांडर निम्न में से कौन है?
(क) सम्राट
(ख) जनरल
(ग) एडमिरल
(घ) ब्रिगेडियर
उत्तर:
(क) सम्राट

प्रश्न 6.
जापान में आधुनिक बैंकिंग संस्थाओं का प्रारम्भ कब हुआ?
(क) 1772
(ख 1815
(ग) 1852
(घ) 1872
उत्तर:
(घ) 1872

प्रश्न 7.
कोमिंतांग (नेशनल पीपुल्स पार्टी) का संस्थापक कौन था?
(क) सनयात-सेन
(ख) चियांग काई शेक
(ग) माओ जेदोंग
(घ) देंग जियोपिंग
उत्तर:
(क) सनयात-सेन

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन-सी समस्या कारखानों के मजदूनरों की समसया नहीं थी?
(क) काम करने के घंटे बहुत लम्बे थे।
(ख) शहर में कार बहुत चलती थी।
(ग) मजदूरों को कम वेतन मिलता था।
(घ) काम करने की परिस्थितियाँ खराब होती थीं।
उत्तर:
(ख) शहर में कार बहुत चलती थी।

प्रश्न 9.
चीन में पीकिंग विश्वविद्यालय कब स्थापित हुआ?
(क) 1802
(ख) 1812
(ग) 1902
(घ) 2002
उत्तर:
(ग) 1902

प्रश्न 10.
कौंमिटर्न का अन्य नाम क्या है?
(क) प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय
(ख) द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय
(ग) तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय
(घ) चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय
उत्तर:
(ग) तृतीय अन्तर्राष्ट्रीय

प्रश्न 11.
लाँग मार्च (1934-35) के यात्रा की दूरी क्या थी?
(क) 3000 मील
(ख) 4000 मील
(ग) 5000 मील
(घ) 6000 मील
उत्तर:
(घ) 6000 मील

प्रश्न 12.
पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना कब हुई?
(क) 1948
(ख) 1949
(ग) 1950
(घ) 1951
उत्तर:
(ख) 1949

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प्रश्न 13.
पीपुल्स कम्यून्स क्या थे?
(क) जहाँ लोग एकत्र जमीन के मालिक थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे।
(ख) जहाँ एकत्र होकर लोग युद्ध करते थे।
(ग) जहाँ राजा के साथ मनोरंजन किया जाता था।
(घ) जहाँ सामन्तों की महत्त्वपुर्ण बैठकें होती थीं।
उत्तर:
(क) जहाँ लोग एकत्र जमीन के मालिक थे और मिल-जुलकर फसल उगाते थे।