Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 4 निर्धनता

Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 4 निर्धनता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Economics Solutions Chapter 4 निर्धनता

Bihar Board Class 11 Economics निर्धनता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निर्धनता की परिभाषा दें।
उत्तर:
निर्धनता को न्यूनतम उपभोग आवश्कताओं को पूरा करने में असर्मथता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, निर्धनता से अभिप्राय जीवन, स्वास्थ तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं की प्राप्ति की असमर्थता है।

प्रश्न 2.
काम के बदले अनाज कार्यक्रम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
काम के बदले अनाज कार्यक्रम का अर्थ उस कार्यक्रम से है जिसके अन्तर्गत श्रमिकों को काम के बदले नकदी न देने के स्थान पर एक निश्चित मात्रा में अनाज देना है।

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प्रश्न 3.
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वरोजगार का एक-एक उदाहरण दें?
उत्तर:
ग्रामीण स्वरोजगार का एक उदाहरण-मुर्गीपालन । शहरी स्वरोजगार का एक उदाहरण-फोटोस्टेट की दुकान।

प्रश्न 4.
आय अर्जित करने वाली परिसम्पत्तियों के सृजन से निर्धनता की समस्या का सामाधान किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर:
आय अर्जित करने वाली परिसम्पत्तियों के सृजन से रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। रोजगार मिलने से निर्धनता की समस्या का सामाधान किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा निर्धनता पर त्रि-आयामी प्रहार की संपेक्ष में व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत सरकार ने निर्धनता निवारण के लिए त्रि-आयामी नीति अपनाई। इस त्रि-आयामी निति का वर्णन आगे किया गया है –

1. संवृद्धि आधारित निति-यह नीति इस आशा पर आधारित है कि आर्थिक संवृद्धि के अर्थत् सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय की तीव्र वृद्धि के पूर्वार्द्ध प्रभाव समाज के सभी वर्गों तक पहुँच जायेंगे।

1950 से 1960 ई० के दशक के पूर्वार्द्ध में हमारी योजनाओं का मुख्य उद्देश्य यही था। यह माना जा रहा था कि तीव्र गति दर औद्योगिक विकास और चुने हुए क्षेत्रों में हरित क्रांति के माध्यम से कृषि का पूर्ण कायकल्प निश्चित ही समाज के अधिक पिछड़े वर्गों को लाभान्वित करेगा परन्तु यह रणनीति निर्धनता उन्मूलन में सफल नहीं रही।

2. जनसंख्या की वृद्धि क परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में बहुत ही कमी आई। कृषि तथा उद्योग क्षेत्रों में स्वांगीण वद्धि अधिक प्रभावशाली नहीं रही। धनी तथा निर्धन के बीच की खाई और भी बढ़ गई। आर्थिक संवृद्धि के लाभ निर्धनों तक नहीं पहुँच पाये।

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प्रश्न 6.
सरकार ने बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं के सहायतार्थं कौन से कार्यक्रम अपनाये हैं?
उत्तर:
सरकार बुजुर्गों, निर्धनों और असहाय महिलाओं को निर्वाह के लिए पेंशन देती है।

प्रश्न 7.
क्या निर्धनता और बेरोजगारी के बीच कोई सम्बन्ध है? समझाए?
उत्तर:
निर्धनता से अभिप्राय है जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्रप्ति की आयोग्ता। निर्धनता के कारणों में बेरोजगारी को भी सम्मिलित करते है। बेरोजगारी वह स्थिति है जब श्रमिक प्रचलित मजदूरी पर काम करना चाहते हैं लेकिन काम नहीं मिलता है। जब देश की श्रम शक्ति बेरोजगारी के कारण बेकार रहती है, ते आय एवं क्रय शक्ति का स्तर गिर जाता है। जिससे निर्धनता बढ़िती है। इस विवरण से स्पष्ट है कि निर्धनता और बेरोजगारी में संबंध है।

प्रश्न 8.
सापेक्ष और निरपेक्ष निर्धनता में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्गों, प्रदेशों तथा दूसरे देशों की तुलता में पाई जाने वाली निर्धनता है। जबकि निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता की माप से है।

प्रश्न 9.
मान लिजिए आप एक निर्धन परिवार से हैं और छोटी सी दुकान खोलने के लिए सरकारी सहायता प्राप्त करना चाहते हैं। आप किस योजना के अन्तर्गत आवेदन देंगे और क्यों?
उत्तर:
मैं निर्धन परिवार से हूँ और मैंने 10वीं कक्षा उत्तीर्ण कर रखी है। मैं छोटी से दुकान खोलने के लिए शिक्षित बेरोजगार ऋण के लिए आवेदन करँगा। क्योंकि शासन की ओर से इस पर 25% सब्सिडी (सहायिकी) प्राप्त होगी।

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प्रश्न 10.
ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी में अन्तर स्पष्ट करें। क्या यह कहना सही होगा कि निर्धनता अनुपात प्रवृति का प्रयोग करें।
उत्तर:
ग्रामीण और शहरी बेरोजगारी में अन्तर (Difference between Rural unemployment and Urban unemployment):
ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी एवं अल्प बेरोजगारी एक साथ विद्यमान होती हैं और उनके बीच स्पष्ट विभेद करना सम्भव नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि से भूमि पर जनसंख्या का भार बढ़ जाता है। भूमि पर जनसंख्या बढ़ने पर कृषकों की संख्या बढ़ जाती है। जिसके कारण प्रच्छन्न बेरोजगारी की मात्रा में वृद्धि होती है। यहाँ पर शहरी क्षेत्रों की तरह खुली बेरोजगारी नहीं पाई जाती। यहाँ पर मौसमी बेरोजगारी भी पाई जाती है।

इसके विपरीत शहरी क्षेत्र में खुली बेरोजगारी पाई जाती है। शहरों में अशिक्षितों की अपेक्षा शिक्षित बेरोजगारों की संख्या अधिक होती है। इसका कारण यह है कि जितनी संख्या में लोग शिक्षा प्राप्त करते है, उतनी मात्रा में सेवा क्षेत्र का विस्तार नहीं हो पाता। इसलिए मध्यम वर्ग में शिक्षित बेरोजगार की समस्या गम्भीर रूप धारण करती जा रही है। संपेक्ष में हम कह सकते हैं कि भारत में ग्रामीण क्षेत्र में प्रमुख रूप से अल्प रोजगार, मौसमी बेरोजगारी तथा प्रच्छन्न बेरोजगारी पायी जाती है जबकि शहरी क्षेत्र में खुली बेरोजगारी पाई जाती है।
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 4 निर्धनता img 1

निर्धनता का गाँवों से शहर में आना:
इसमें कोई दो राय नहीं कि ग्रामीण क्षेत्रों की निर्धनता अब शहरों की ओर भी आ गई है। जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण कृषकों की आर्थिक दशा प्रतिदिन बिगड़ती जाती हैं। जिसके कारण बड़ी जनसंख्या की यह गतिशीलता शहरी आकर्षण का परिणाम नहीं अपितु ग्राम में रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध न होने के कारण इन्हें गाँवों से शहर की ओर धकेल दिया। परिणाम स्वरूप निर्धनता गाँव शहर की ओर बढ़ी। इस बात की पृष्टि अग्रलिखित तालिका से की जा सकती है –

गरीबी अनुपात
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 4 निर्धनता img 2
स्रोत: आर्थिक सर्वेक्षण 2004-2005 ई०।

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प्रश्न 11.
भारत के कुछ राज्यों में निर्धनता रेखा के नीचे की जनसंख्या का प्रयोग करके सापेक्ष निर्धनता की आवश्यकता स्पष्ट करें।
उत्तर:
नीचे चार्ट में निर्धनता की राज्य स्तरीय प्रवुतियाँ दिखाई गई हैं।
भारत में निर्धनता की प्रवृत्तियाँ 1973 – 2000
निर्धनों की संख्या (मिलियन)
Bihar Board Class 11 Economics Chapter - 4 निर्धनता img 3
चित्र से स्पष्ट है कि भारत में 70% निर्धन केवल पाँच राज्यों में सीमित हैं। ये राज्य हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा। 1973-74 में तो इन राज्यों की आधी से अधिक जनसंख्या निर्धनता रेखा से निचे रह गये थे। यद्यपि इन राज्यों में भी निर्धनता का अनुपात कम हुआ है, परन्तु अन्य राज्यो के अपेक्षा उनकी सफलता न के बराबर है। यदि गुजरात को देखें तो वहाँ 1973-2000 के बीच निर्धनता रेखा से नीचे का अनुपात 48% से कम होकर 15% रह गया है। इस अवधि (1973-2000) में पश्चिमी बंगाल की सफलता भी महत्त्वपूर्ण रही सफलता मिली है।

प्रश्न 12.
मान लिजिए कि आप किसी गाँव के निवासी हैं। अपने गाँव से निर्धनता निवारण के कुछ प्रस्ताव दीजिए।
उत्तर:
गाँव से निर्धनता निवारण के प्रस्ताव-गाँव में निर्धनता के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं –

  1. भूमि का विकास किया जाय।
  2. खेती में श्रम-प्रधान विधियों का अधिक उपयोग किया जाए।
  3. पशु-धन का विस्तार किया जाए।
  4. कृषि का विविधीकरण किया जाए।
  5. शिक्षा, आवास, स्वास्थ सेवाएँ आदि का विकास किया जाए।
  6. कृषिजन्य उद्योगों का विकास किया जाए।

Bihar Board Class 11 Economics निर्धनता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निर्धनता से अभिप्राय है जीवन, स्वास्थ तथा कार्य कुशलता के लिए न्यूनतम उपयोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता।

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प्रश्न 2.
न्यूनतम मानवीय आवयश्कताओं में किन-किन को शामिल किया जाता है?
उत्तर:
न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकतायें शामिल होती है।

प्रश्न 3.
न्यूनतम मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति न होने से मनुष्य पर क्या दुष्प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
न्यूनतम मानवीय आवश्कताओं को पूरा न होने से मनुष्य को कष्ट होता है। उसके स्वास्थ तथा भविष्य में निर्धनता से छुटकारा पाना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 4.
निर्धनता शब्द का प्रयोग किन दो अर्थों में किया जाता है?
उत्तर:
निर्धनता शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है –

  1. सापेक्ष निर्धनता (Relative – povert) तथा
  2. निरपेक्ष निर्धनता (Absolute proverty)।

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प्रश्न 5.
सापेक्ष निर्धनता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्गों, प्रदेशों की तुलना में पाई जाने वाली निर्धनता है। सापेक्ष निर्धनता में हम आय के वितरण पर विचार करते हैं। जिस देश या वर्ग के लोगों का जीवन निर्वाह स्तर नीचा होता है उन्हें उच्च निर्वाह स्तर के लोगों की तुलना में सापेक्ष रूप से निर्धन माना जायेगी।

प्रश्न 6.
निरपेक्ष निर्धनता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता की माप से है। वह सामान्य जीवन की आवश्यकतायें जुटाने के लिये संसाधनों के अभाव को इंगित करता है।

प्रश्न 7.
अधिकांश देशों में किस आधार पर निर्धनता का अनुमान लगाने का प्रत्यन किया जाता है?
उत्तर:
अधिकांश देशों में प्रति व्यक्ति उपभोग की जाने वाली न्यूनतम कैलोरी की मात्रा या इनके उपभोग क लिये आवश्यक प्रति व्यय के आधार पर निर्धनता का अनुमान लगाने का प्रयत्न किया जाता है।

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प्रश्न 8.
भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अनुमान लगाने के लिए किस धारणा का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निरपेक्ष निर्धनता का अनुमान लगाने के लिए निर्धनता रेखा की धारणा का प्रयोग किया जाता है। निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोग निर्धन कहलाते हैं।

प्रश्न 9.
निर्धनता रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर:
निर्धनता रेखा से अभिप्राय उस रेखा से है जो प्रतिव्यक्ति औसत मासिक व्यय को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं की संतुष्टि कर सकें। इस रेखा के नीचे लोगों की निर्धन माना जाता है।

प्रश्न 10.
भारत में किस आधार पर निर्धनता रेखा को परिभाषित किया गया है?
उत्तर:
भारत में न्यूनतम दैनिक कैलोरी की मात्रा के आधार पर निर्धनता रेखा को परिभाषित किया गया है।

प्रश्न 11.
भारत के कितने लोग निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे हैं?
उत्तर:
भारत में वर्तमान में लगभग 22 प्रतिशत लोग निर्धनता रेख से नीचे रह रहे हैं।

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प्रश्न 12.
भारत के किस राज्य में निर्धनता रेखा से नीचे जनसंख्या का प्रतिशत सबसे कम है?
उत्तर:
पंजाब राज्य में।

प्रश्न 13.
उन राज्यों के नाम बनायें, जहाँ लगभग रेखा से नीचे जनसंख्या का प्रतिशत सबसे कम है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में लगभग 70% लोग निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं।

प्रश्न 14.
1999-2000 में किन दो राज्यों के लोग निर्धनता रेखा के पास पाये गये?
उत्तर:
बिहार और उड़ीसा राज्य में।

प्रश्न 15.
1973 में गुजरात में कितने प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा के नीचे रहते थे?
उत्तर:
1973 में गुजरात में 48% लोग निर्धनता रेखा के नीचे रहते थे।

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प्रश्न 16.
1973-2000 में निर्धनता रेखा के नीचे रहने वाले लोगों में कितना प्रतिशत की कमी आई?
उत्तर:
15%

प्रश्न 17.
शहरी क्षेत्र में निर्धारित कैलोरी की मात्रा बतायें जिसके आधार पर निर्धन जनसंख्या का प्रतिशत किया जाता है।
उत्तर:
2100 कैलोरी।

प्रश्न 18.
ग्रामीण क्षेत्र में निर्धारित कैलोरी की मात्रा बताइये जिसके आधार पर निर्धन जनसंख्या का प्रतिशत निर्धारित किया जाता है।
उत्तर:
2400 कैलोरी।

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प्रश्न 19.
भारत में दो निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रमों के नाम बताइये।
उत्तर:

  1. जवाहर रोजगार योजना, तथा
  2. एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम

प्रश्न 20.
भारत में फैली भंयकर गरीबी के संकेत लिखें।
उत्तर:
भारत में फैली भंयकर गरीबी के संकेत हैं-शहरों में बढ़ती झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों का उमड़ता जमघट, पटरियों और नालों को अपना शयन कक्ष समझने वाला बढ़ता वर्ग, धूल, कीचड़ और गन्दी नालियों में खेलता बचपन।

प्रश्न 21.
किस व्यक्ति का निर्धन व्यक्ति कहते है?
उत्तर:
उस व्यक्ति को निर्धन व्यक्ति कहते हैं, जो जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्य के लिये न्यूनतम उपयोग आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ होता है।

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प्रश्न 22.
अप्रैल 1989 में किन दो कार्यक्रम ‘जवाहर रोजगार योजना’ आरम्भ किया गया?
उत्तर:
अप्रैल 1989 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP) और ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारन्टी कार्यक्रम (RLEGP) को मिलकर एक नया कार्यक्रम, “जवाहर रोजगार योजना” आरंभ किया गया।

प्रश्न 23.
निर्धनता उन्मूलन के निम्नलिखित उपक्रम कब आरंभ किये गये?
उत्तर:

  1. 15 अगस्त 1983
  2. अगस्त 1983 तथा
  3. अप्रैल 1989

प्रश्न 24.
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र में 100 दिन का रोजगार कब कानूनी अधिकार बना?
उत्तर:
राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्र में 100 दिन का रोजगार 2 फरवरी 2006 ई. को कानूनी अधिकार बना।

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प्रश्न 25.
योजना आयोग ने किस आधार पर निर्धनता रेखा को परिभाषित किया है?
उत्तर:
भारत के योजना आयोग ने कैलारी-पान के अधार पर गरीबी रेखा को परिभाषित किया है।

प्रश्न 26.
शहरी क्षेत्र मे कौन निरन्तर (लगातार) निर्धनता बनाये हुए हैं?
उत्तर:
शहरी क्षेत्र में ठेला चलाने वाले, गली में एक तरफ बैठने वाले मोची, भिखारी, फूलों का हार बनाने वाली स्त्रियाँ, सिर पर टोकरी रखकर सामान बेचने वाले, कचरा आदि बुनने वाले शहरों क्षेत्रों में लगातार निर्धनता बनाये हुए हैं।

प्रश्न 27.
1999-2000 ई. में ग्रमीण क्षेत्र तथा शहरी क्षेत्र के लिये निर्धनता रेखा कैसे परिभाषित की गई थी?
उत्तर:
1999-2000 ई. में ग्रामीण क्षेत्र के लिये निर्धनता प्रति व्यक्ति 325 रुपये मासिक उपभोग तथा शहरी क्षेत्र के लिये प्रति व्यक्ति 454 रुपये मासिक उपभोग के रूप में परिभाषित की गई थी।

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प्रश्न 28.
शहरी क्षेत्र में पांच सदस्य वाले एक परिवार का मासिक उपभोग व्यय 2000 रुपये है। क्या यह परिवार निर्धनता रेखा के नीचे रह रहा है?
उत्तर:
हाँ; यह परिवार निर्धनता रेखा के नीचे रह रहा है क्योंकि यहाँ पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 400 रुपये है जो 454 रुपये से कम है।

प्रश्न 29.
निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम किस पंचवर्षीय योजना से आरम्भ किया गया था?
उत्तर:
निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम तृतीय पंचवर्षीय योजना से आरम्भ किया गया था।

प्रश्न 30.
प्रधानमंत्री रोजगार (PMRY) का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
प्रधानमंत्री रोजगार, योजना का उद्देश्य ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र के निम्न आय परिवार के शिक्षित बेरोजगारों को आर्थिक सहायता देना था ताकि वे अपना छोटा-मोटा व्यवसाय शुरू कर सके।

प्रश्न 31.
स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना (SJSRY) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना का मुख्य उद्देश्य है शहरी क्षेत्र में रहने वाले बेरोजगारों के लिये स्वरोजगार (Self employment) तथा मजदूरी के बदले रोजगार (Wage employment) देने की व्यवस्था करना।

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प्रश्न 32.
ग्रामीण रोजगार उत्पन्न कार्यक्रम (REGP) का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
आर० ई० पी० का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में स्वरोगार के लिये अवसर उत्पन्न करना है।

प्रश्न 33.
स्वरोजगार कार्यक्रम के तीन उदाहरण है?
उत्तर:

  1. स्वर्ण जयन्ती रोजगार (SISRY)
  2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना (PMRY) तथा
  3. ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (REGP)

प्रश्न 34.
स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत 1990 से पूर्व वित्तीय सहायता किनको प्रदान की जाती थी?
उत्तर:
स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत 1990 से पूर्व वित्तीय सहायता व्यक्तियों या व्यक्तिगत परिवारों को दी जाती थी।

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प्रश्न 35.
भारत में निर्धनता की कोई दो विशेषतायें लिखें।
उत्तर:

  1.  शहरी क्षेत्र में निर्धनता मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्र में निर्धनता का परिणाम है।
  2. भारत में निर्धनता की मात्रा भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न पाई जाती है।

प्रश्न 36.
कोई दो शहरी निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम लिखें।
उत्तर:

  1. प्रधानमंत्री रोजगार योजना
  2. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना

प्रश्न 37.
बेरोजगारी किस प्रकार निर्धनता से संबंधित है?
उत्तर:
निर्धनता के कारण काम करने वाले व्यक्ति पर आश्रितों की संख्या में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति उपभोग में कमी आ जाती है जो कि निर्धनता को इंगित करती है।

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प्रश्न 38.
वृद्धि लोगों तथा निर्धन महिलाओं की सहायता के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा कौन-सा कार्यक्रम आरंभ किया गया?
उत्तर:
वृद्ध लोगों तथा निर्धन महिलाओं की सहायता के लिये केन्द्रीय सरकार ने समाजिक सहायता कार्यक्रम (National Social Assistance Programme) आरम्भ किया।

प्रश्न 39.
देश में निर्धनता उन्मूलन के लिए सरकार ने अब तक कौन-कौन सी विधियाँ अपनाई?
उत्तर:
देश में निर्धनता उन्मूलन के लिये सरकार ने अब तक तीन विधियाँ अपनाई –

  1. आर्थिक विकास
  2. निर्धनता उन्मूलन कायक्रम तथा
  3. न्यूतम आवश्यकता कार्यक्रम

प्रश्न 40.
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं (जैसे स्वास्थ्य सेवायें, पेयजल, विधुत, शिक्षा आदि) को उपलब्ध करवाना था। वह कार्यक्रम पांचवीं योजना के अन्तर्गत आरम्भ किया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आजकल किसान आत्महत्यायें क्यों कर रहे हैं?
उत्तर:
किसान अपने परिवार की आवश्यकताओं तथा भूमि जोतने के लिये महाजनों, साहूकारों तथा बैंको आदि (प्रायः किसान महाजनों से उधार लेते हैं क्योंकि बैंको की अपेक्षा उनसे ऋण लेना आसान होता है) से ऋण लेते हैं परन्तु वे ऋण वापस करने में असमर्थ होते हैं। साहूकरों से लिये गये ऋणों पर ब्याज की दर बहुत अधिक होती है। ऋण की राशि प्रतिदिन बढ़ती जाती है। किसान इन ऋणों को वापस देने में असमर्थ होते हैं। उनकी फसल बहुत कम होती है। वे फसलों की उचित कीमत भी नहीं प्राप्त कर पाते। प्राकृति विपदाओं से उनकी हालत और भी खराब हो जाती है। फलस्वरूप व अपने मानसिक संतुलन खो बैठता हैं और आत्महत्या कर लेते हैं।

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प्रश्न 2.
निर्धनता को दूर करने के लिए छः सुझाव दीजिए।
उत्तर:
निर्धनता को दूर करने के लिए कोई छः सुझाव (Six suggestions for the removel of proverty):

  1. निर्धनता को दूर करने के लिए सम्पति तथा आय के असमान वितरण को कम किया जाता चाहिए।
  2. लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास के लिये उपयुक्त सुविधाओं की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  3. सरकार को सभी को न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये खाद्यान्न, मकान, शिक्षा स्वास्थ, यातायात आदि की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।
  4. जिन परिवारों में कोई रोजगार प्राप्त व्यक्ति नहीं है, उनके लिए समाजिक सहायता कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए।
  5. स्वरोजगार संबंधी कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
  6. निर्धनता को दूर करने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
हमारे निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम इच्छित परिणाम क्यों न प्राप्त कर सके? कारण लिखें।
उत्तर:
इच्छित परिणाम लाने में असफल के कारण (Causes of not achieving desirable results):

  1. दरस्थ क्षेत्रों की अवहेलना की गई।
  2. जिला अधिकारिक तथा बैंक प्रबंधकों में असहयोग की प्रवृति।
  3. अधिकांश सरकारी अधिकारियों का भ्रष्ट होना।
  4. निर्धनता के अ. की तुलना में इन कार्यक्रमों पर आवाटित संसाधनों की राशि अपर्याप्त थी।
  5. भूमि तथा अन्य सापतियों का असमान वितरण।
  6. कार्यक्रम से होने वाले लाभ निर्धनों को न मिलना।
  7. संसाधनों का अनुशलता से प्रयोग किया जाना।
  8. सरकारी अधिकारियों का पूर्णतः प्रशिक्षित न होना।
  9. स्थानीय लोगों का दवाव।

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प्रश्न 4.
मान लो शहरी क्षेत्र में निर्धनता रेखा प्रतिमास प्रति व्यक्ति 454 रूपये है। शहर में रहने वाले एक 10 सदस्यीय परिवार को सब साधनों से कुल मासिक आय 75,000 रुपये है। बतायें कि वह परिवार निर्धन रेखा के नीचे है या ऊपर?
उत्तर:
10 सदस्यों की मासिक आय – 75,000 रुपये
1 सदस्य की मासिक आय = 75,000/10 = 7,500
यह आय निर्धनता रेखा प्रतिमाह प्रति व्यक्ति आय से अधिक है। अत: यह दस सदस्यीय परिवार निर्धनता रेखा से ऊपर है।

प्रश्न 5.
निर्धनों के बच्चे दीर्घायु क्यों नहीं होते हैं?
उत्तर:
निर्धनों के बच्चों को पौष्टिक आहार नहीं मिलता। उन्हें सुरक्षित पेय जल उपलब्ध नहीं होता। प्रायः एक समय का खाना उपलब्ध होता है। गर्भवती स्त्रियों की ठीक प्रकार से देखभाल नहीं हो पाती। अत: नवजात शिशु अस्वस्थ तथा कमजोर होता है। इलाज करवाने तथा दवाइयाँ खरीदने के लिये उसके पास पैसे नहीं होते। उन्हें घातक रोग लग जाते हैं जो उनकी जल्दी मृत्यु का कारण बनते हैं। अतः निर्धनों के बच्चे दीर्घायु नहीं होते।

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प्रश्न 6.
अधिसूचित जिलों के परिवार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अर्न्तगत किन अधिकारों का उपभोग कर सकते हैं?
उत्तर:
अधिसूचित जिलों के परिवार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकारों का प्रयोग कर सकते हैं –

  1. रोजगार की मांग करने का अधिकार।
  2. अनुरोध करने के 15 दिन के भीतर रोजगारी भत्ता पाने का अधिकार।
  3. अगर 15 दिन के अन्दर रोजगार न मिले तो बेरोजगार भत्ता पाने का अधिकार।
  4. राज्य में लागू मजदूरी की वैधानिक दर से मजदूरी पाने का अधिकार।
  5. कार्यस्थल पर नीचे का पानी, बच्चों के लिये आश्रम, प्राथमिक चिकित्सा जैसी सुविधायें। प्राप्त करने का अधिकार।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की विशेषताएँ (Features of National Rural Employment Guarantee Act):

  1. यह अधिनियम केवल एक कार्यक्रम ही नहीं अपितु एक कानून है जिसके अन्तर्गत रोजगार हासिल करने की कानूनी गारंटी दी गई है।
  2. इसके नियोजन तथा क्रियान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूनिका होगी।
  3. इसमें संस्थागत व्यवस्था के माध्यम से पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, सामाजिक लेखा परिक्षा और लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी।
  4. शिकायत निवारण प्रणाली की भी व्यवस्था की जायेगी।
  5. इसका लाभ उठाने वालों में से एक-तिहाई महिलाएँ होगी।
  6. अधिसूचित क्षेत्रों में अकुशल मजदूरों का कार्य करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति रोजगार के लिए ग्रामसभा में पंजीकरण हेतु आवेदन कर सकता है। इसके बाद उसे जॉब कार्ड Jokatest card) दे दिया जायेगा।
  7. जॉब कार्ड एक कानूनी दस्तावेज है जिसमें पंजीकृत व्यक्ति इस अधिनियम के अन्तर्गत रोजगार के लिये आवेदन करने का हकदार हो जाता है।
  8. पंजीकरण वर्ष भर खुला रहेगा।
  9. रोजगार आवेदक के घर से पाँच किलोमीटर के दायरे में दिया जायेगा। ऐसा संभव न होने पर अतिरिक्त मजदूरी दी जायेगी।

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प्रश्न 2.
भारत में निर्धनता के मुख्य कारण समझाइये।
उत्तर:
योजना आयोग्य ने भारत में बेरोजगारी, अल्प रोजगार और कमजोर साधन के आधार को गरीबी का प्रमुख कारण माना है –

  1. आर्थिक कारक (Economic Factors)
  2. सामाजिक कारक (social Factors)
  3. राजनैतिक कारक (Political Factors)

1. आर्थिक कारक (Economic Factors):

बेरोजगारी (Unemployment):
भारत में गरीबी का प्रमुख कारण देश में भीषण बेरोजगारी की समस्या है। इस समय देश में करीब 6. कारोड़ लोग बेरोजगार हैं।

जनसंख्या में तेजी से वृद्धि (Rapid) Growth in Population):
भारत में जनसंख्या का आकार न केवल बड़ा है, अपितु इसमें होने वाली वृद्धि होने के बावजूद प्रति व्यक्ति आय एवं व्यक्ति आय एवं उपभोग स्तर में कोई खास वृद्धि नहीं हो रही है।

आय का असमान वितरण (Unequal Distribution of Income):
भारत में आय के असमान वितरण को गरीबी के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

उत्पादन में कम वृद्धि (Lass increase in Production):
देश में योजना काल के दौरान कृषि व उद्योग क्षेत्रों में उत्पादन में जितनी वृद्धि होनी चाहिए थी, उतानी नहीं हुई। इसका प्रमुख कारण है भारत में पुरानी और घटियाँ उत्पादने विधियों का प्रयोग किया जाना।

कीमत स्तर पर वृद्धि (Rise in Price Levle):
भारत में कीमत स्तर में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 1950-51 ई० से 1996-97 ई० तक की अवधि में सामान्य कीमत में 16 गुना वृद्धि हुई है। अतः क्रयशक्ति घट जाने से बहुत से लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गये हैं।

कृषि का पिछड़ापन (liackwardness of Agriculture):
भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि प्रधान रही है लेकिन भारतीय कृषि की दशा अत्यन्न शोचनीय है। भारत में कृषि के पिछड़ेपन के कारण प्रति हेक्टेयर एवं प्रतिव्यक्ति उत्पादकता विश्व के विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है। ऐसी स्थिति में किसानों का गरीब होना स्वाभाविक है।

2. सामाजिक कारक (Social Factors):
भारत में समाजिक ढांचा भी गरीब के लिए जिम्मेदार है। व्यापक निरक्षरता, अज्ञानता, भाग्यवाद, अन्धविश्वास आदि ने देश के आर्थिक विकास में बाधाएं उत्पन्न की है। लोग परिश्रम की बजाय भाग्य में अधिक विश्वास रखते हैं। समाजिक रीति-रिवाजों के कारण वे विवाह, मृत्युभोज आदि पर कई बार अपनी समार्थ्य से बाहर व्यय कर देते हैं।

3. राजनैतिक कारक (Political Factors):
भारत में लंबे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। अंग्रेजों ने अपने शासन काल के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था का खूब जमकर शोषण किया और इसके परम्परागत विश्व-विख्यात उद्योगों को पूर्णत: नष्ट कर दिया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भातीय अर्थव्यवस्था अत्यन्त निर्धन एवं पिछड़ी हुई दशा में थी जिससे अभी तक हम संभल नहीं पाए हैं।

Bihar Board Class 11th Economics Solutions Chapter 4 निर्धनता

प्रश्न 3.
जवाहर रोजगार योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
28 अप्रैल, 1989 ई० को जवाहर रोजगार योजना आरंभ की गई है। इस योजना का लक्ष्य प्रत्येक निर्धन. ग्रामीण परिवार के कम से कम एक सदस्य को उसके घर के नजदीक कार्यस्थल पर प्रति वर्ष 50 से लेकर 100 दिनों तक रोजगार देना है। योजना की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. यह योजना केन्द्र प्रायोजित है जिसे राज्य सरकार द्वारा कार्यन्वित किया जाता है।
  2. जवाहर रोजगार योजना का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी तथा अल्प रोजगार वाले पुरूषों तथा महिलाओं के लिए अतिरिक्त लाभकारी रोजगार सृजन करना है।
  3. योजना पर होने वाल व्यय को केन्द्र तथा राज्यों द्वारा 80 व 20 के अनुपात में वहन किया जाता है।
  4. जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वाले लोग लक्षित समूह माने गए हैं।
  5. योजना के अन्तर्गत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुक्त बन्धुआ मजदूरों को प्राथमिकता दी जाती है।
  6. रोजगार के 30 प्रतिशत अवसरों को महिलाओं के लिए आरक्षित रखा गया है।

प्रश्न 4.
गरीबी निवारण कार्यक्रमों को लागू करने की क्या आवश्यकता थी? इन्हे पहल क्यों नहीं आरम्भ किया?
उत्तर:
प्रारंभिक योजना काल में यह समझा गया था कि विकास के लाभ बेहतर मजदूरी, बेहतर रोजगार के अवसर, बेहतर उत्पादकता तथा अधिक उत्पादन के रूप में छनकर नीचे तक (percolate down) जाते हैं। ऐसा माना गया है कि 10% जनसंख्या (जो उत्पादक माध्यमों द्वारा अर्थव्यवस्था से सुसंबद्ध नहीं) के लिये विशेष प्रयासों की आवश्यकता पड़ेगी। इसके लिए खाद्यान्नों जैसी आवश्यक वस्तुओं को आर्थिक सहायता दी गई।

विलासिता उपभोग मदों की वस्तुओं पर ऊँची दरों पर कर लगाये गए। दूसरे शब्दों में पुनः वितरण की दशा में काफी प्रयास किये गये। साठ के दशक के मध्य तक यह स्पष्ट हो गया कि विकास तथा पुनः वितरण की दिशा में उठाने गये उपायों के परिणाम सीमित रहेंगे यदि कुछ व्यावसायिक स्तरों और सामाजिक वर्गों की सहायता करने के लिए कुछ विशेष संपूरक कार्यक्रम शुरू न किये गये। अतः गरीबी निवारण कार्यक्रमों को लागू किया गया।

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प्रश्न 5.
भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाए हैं? उनका संपेक्ष में वितरण दें।
उत्तर:
सरकार ने पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत निर्धनता को दूर करने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित उपाय अपनाए हैं –
1. लघु तथा कुटीर उद्योग (Small and cottage Industries):
सरकार ने निर्धनता तथा बेरोजगारी को कम करने के लिए लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास के लिये विशेष प्रयत्न किये हैं। स्वयं रोजगार योजना (Self Employment Scheme) को प्रोत्साहन देने के लिए काफी धन व्यय किया जा रहा है।

2. जवाहर ग्राम समृद्धि (Jawahar-Gram Samridhi Yojana):
अप्रैल, 1999 से जवाहर रोजगार योजना के स्थान पर एक अन्य व्यापक योजना जवाहर ग्राम समृद्धि योजना आरंभ की गई है। इसके अन्तर्गत गाँवों में गरीबों को निरंतर रोजगार प्रदान करने के लिए स्थायी परिसम्पत्तियों तथा बुनियादी ढाचे का निमार्ण किया जायेगा। यह योजना ग्राम पंचायतों द्वारा लागू की जाती है।

3. न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम (Minimum Needs Programme):
पांचवी योजना में निर्धन लोगों के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने के लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम लागू किया गया है। वे हैं-प्रारंभिक शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, ग्रामीण स्वास्थ, ग्रामीण सड़कें आदि।

4. नेहरू रोजगार योजना (Nheru Employment Scheme):
श्री जवाहर लाल नेहरू का जन्म शताब्दी के अवसर पर सरकार ने शहरी क्षेत्र के निर्धन लोगों को रोजगार दिलाने के लिए नेहरू रोजगार योजना आरंभ की थी। इसके अन्तर्गत शहरी क्षेत्र के बेरोजगार व्यक्तियों को
रोजगार दिलाने की व्यवस्था की जाती है।

5. बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम (Twenty Point Programme):
आम जनता को खुशहाल बनाने तथा गरीबी के बंधन से मुक्त कराने के लिए नया बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम 1982 ई० से शुरू किया गया। इसकी प्रस्तावना में कहा गया, “निर्धनता के विरूद्ध सेघर्ष हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। 20 सूत्रीय कार्यक्रम योजना की वह तेज धार है जो निर्धनता को काट देगी।” संशोधित कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य गरीबी को दूर करना, उत्पादकता को बढ़ना, आय की असमानताओं में कमी और समाजिक एवं आर्थिक असमानताओं का निवारण कर जीवन स्तर – में वृद्धि लाना है।

6. प्रधानमंत्री रोजगार योजना (Prime Minister Rozgar yojana):
यह योजना शिक्षत बेरोजगारों युवाओं को रोजगार देने के लिए बनाई गई है। इस योजना के अन्तर्गत 1999 तक 9.7 लाख लोगों को रोजगार दिया गया।

7. रोजगार बीमा योजना (Employment Assurance Scheme):
यह योजना 1994 में आरंभ की गई। यह योजना सभी ग्रामीण खण्डों में लागू की जा रही है, जहाँ संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रचलित है। इस योजना का लक्ष्य रोजगार को तलाश करने वाले ग्रामीण इलाकों में गरीब लोगों को विशेष रूप से कृषि संबंधी कार्य में मंदी वाले मौसम में रोजगार प्रदान करना है।

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प्रश्न 6.
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना-पूर्व में चल रही छ: योजनाओं का विलय करके:

  1. समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम (IRCP)
  2. स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण (ट्राइसेस)
  3. ग्रामीण महिला एवं बालोत्थान योजना
  4. दस लाख कूप निर्माण योजना (MWS)
  5. उन्नत टूल किट योजना (SITRA)
  6. गंगा कल्याण योजना 1 अप्रैल, 1999 से आरम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त गरीब परिवारों (स्वरोजगारी) को बैंक ऋण एवं सरकारी सब्सिडी के माध्यम से स्व-सहायता समूहों में संगठित करके गरीबी रेखा से ऊपर लाना है।

विशेषताएं (Features):
इस योजना की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं –

  1. इस योजना (SGSY) का मुख्य उद्देश्य गाँवों के गरीब लोगों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान कने के लिए लघु उद्योगों को बढ़ावा देना है।
  2. इस योजना के अंतर्गत गांवों में भारी संख्या में छोटे-छोटे लघु उद्योगों को बढ़ावा देना है।
  3. यह योजना छोटे उद्यमों का एक सम्पूर्ण कार्यक्रम है। इसके अन्तर्गत स्वरोजगार से संबंधित निम्नलिखित कार्यक्रम शामिल किये गये हैं –
    • ग्रामीण गरीबों को आत्मनिर्भर समूहों में संगठित करके उनकी क्षमता का निमार्ण करना।
    • इस कार्यक्रम के अन्तर्गत आने वाले लोगों को अपना उद्यम स्थापित करने के लिये बैंको से ऋण तथा सरकारी सहायता दी जायेगी।
    • इस योजना पर खर्च किया जाने वाला धन केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें 75 : 25 के अनुपात में बाँटेंगी।
    • यहाँ योजना जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों द्वारा पंचायत समितियों के माध्यम से लागू क जायेगी।

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प्रश्न 7.
निर्धन परिवारों की कुछ विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
निर्धन परिवारों की विशेषताएँ (Characteristics ofpoor familles):
निर्धन परिवारों से अभिप्राय उन परिवारों से है जो जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्य कुशलता के लिये न्यूनतम आवश्यकताओं को प्राप्त करने में असमर्थ हो। इन न्यूनतम आवश्यकताओं में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा तथा स्वास्थ्य संबंधी न्यूनतम मानवीय आवश्यकताएं शामिल होती हैं। इन मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ती न होने से मनुष्य को पीड़ा होती है। स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता में हानि होती है। निर्धन परिवारों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

1. मकान (House):
निर्धन परिवारों के मकान प्रायः कच्चे होते हैं। इन घरों की दीवारें पकी हुई मिट्टी की बनी होती हैं और छते घास-फूस की बनी होती हैं। कई निर्धन परिवरों को यह भी नसीब नहीं होता। वे सांझी जमीन पर रहते हैं। बहुत अधिक निर्धन परिवारों के पास जमीन भी नहीं होती है।

2. सम्पत्ति (Assets):
निर्धन परिवारों क पास बहुत ही कम सम्पत्ति होती है। कई बार निर्धन परिवारों के पास तो रहने के लिये भी जमीन नहीं होती। वे प्रायः भूमिहीन होते हैं। उनकी आय इतनी कम होती है कि वे उस आय से अपनी आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति भी नहीं कर सकते। सबसे अधिक निर्धन परिवार तो भूख से मरते हैं। निर्धन व्यक्तियों को स्थायी रूप से रोजगार नहीं मिलता। उन्हें गैर-कृषि क्षेत्र में भी काम नहीं मिलता।

3. स्वास्थ (Health):
निर्धन परिवार प्रायः रोगों से घिरे होते हैं। दवाइयां लेने के लिये उनके पास पैसे नही होते। पौष्टीक भोजन खरीद नहीं सकते। निर्धन परिवारों में गैर-पौष्टिकता बहुत ही अधिक होती है। बुरा स्वास्थ्य, अपंगता तथा भयंकर बीमारियां उन्हें शरीरिक रूप से कमजोर बनाती हैं। इससे उनमें कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है।

4. ऋणग्रस्त (Indebtness):
अल्प आय के कारण वे अपनी सारी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकते। वे इलाज कराने और खाद्य पदार्थ खरीदने के लिये साहूकारों (Moneylenders) से ऋण लेते हैं। वे सिर से पैर तक कर्ज में डूबे रहते हैं। एक बार ऋण लेने पर वे साहूकार के जाल में फंस जाते हैं।

5. शिक्षा (Education):
निर्धन परिवार के सदस्य अशिक्षित होते हैं। उन्होंने स्कूल का मुँह तक नहीं देखा। निर्धन परिवार के सदस्य बचपन से ही धन-अर्जन के लिये छोटा-मोटा काम करना आरंभ कर देते हैं। उनमें साक्षरता तथा निपुणता का अभाव होता है। वे अन्धविश्वासी, अज्ञानी तथा भाग्य में विश्वास रखने वाले होते हैं।

6. बड़ा परिवार (Big Families):
निर्धन परिवार में सदस्यों की संख्या अधिक होती है। वे छोटे परिवार के महत्त्व को नहीं समझते। निर्धन परिवारों में आश्रित सदस्यों की संख्या अधिक होती है। इन आश्रित सदस्यों में छोटे बच्चे, बूढ़े तथा बीमार लोग होते हैं।

7. सुविधाओं का अभाव (Lock of facilities):
निर्धन परिवरों में विधुत नहीं होती। वे खाना बनाने के लिये लकड़ी तथा गोबर का प्रयोग करते है। उन्हें पीने के लिए सुरक्षित पानी उपलब्ध नही होता।

8. अधिकतम लिंग भिन्नता (Extreme Gender Inequality):
निर्धनों परिवारों में लड़कों तथा लडकीयों में बहुत अन्तर समझा जाता है। स्कूल भेजने मे लड़कियों की अपेक्षा लड़को को अधिक महत्त्व दिया जाता है। परिवार में निर्णय लेने में पुरुषों का अधिक हाथ होता है। लड़कियों तथा औरतों के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।

9. अन्य विशेषताएँ (Other features):
अधिकांश निर्धन परिवारों को मत देने का अधिकार नहीं होता। वे शक्ति हीन तथा मूक होते है। वे सेवाओं तथा संसाधनों को उपलब्ध कराने में सरकार को प्रभावित करने में समर्थ नहीं होते। सरकार तक उनकी पहुँच नगण्य होती है। निर्धन व्यक्तियों का उनके मालिकों द्वारा शोषण किया जाता है।

निर्धनता के संदर्भ में Shaheen Rafi the Damian Killen लिखते हैं – “निर्धनता भूख है, निर्धनता रोग की अवस्था में डॉक्टर के पास जाने की असमर्थता है।”

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प्रश्न 8.
निर्धनता रेखा को कैसे निर्धारित किया जाता है?
उत्तर:
निर्धनता रेखा का निर्धारण (Determinationof Poverty Line):
निर्धनता दो आधार पर मापा जा सकता है –
1. पूर्ण रूप से तथा

2. सापेक्षिक रूप से। निर्धनता पूर्ण रूप से मापने के लिए पहले निश्चित किया जाता है कि एक व्यक्ति को कम से कम आवश्यकता कितने पदार्थों की है। दूसरा अनुमान यह लगाया जाता है कि उतने पैसे कितने व्यक्तियों के पास नहीं हैं। ऐसे सभी व्यक्ति निर्धनता रेखा के अन्तर्गत आते हैं, जिनके पास उपभोग की आवश्यक वस्तुओं को जुटाने के लिये साधन नहीं है।

3. भारत में निर्धारित न्यूनतम कैलोरी की मात्रा के आधार पर यह निर्धारित किया जाता है कि कोई व्यक्ति निर्धन है या नहीं। वह व्यक्ति जिसके पास इतनी राशि उपलब्ध नहीं है जिससे वह उतनी वस्तुएं खरीद सके जिसके उपभोग करने पर. उसकी निर्धारित न्यूनतम कैलोरी की मात्रा उपलब्ध हो निर्धन कहलाता है। अथवा निर्धनता रेखा के नीचे आता है।

4. योजना आयोग ने निर्धनता रेखा के लिए वर्तमान अधार के अनुसार प्रति व्यक्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी प्रतिदिन और शहरी क्षेत्र में 2100 कैलारी प्रतिदिन की मात्रा निर्धारित की है। 1999-2000 ई० में ग्रामीण क्षेत्र के लिए प्रतिमाह 328 रुपया के उपभोग तथा शहरी क्षेत्र के लिए प्रतिमाह 454 रुपये के उपभोग को निर्धारित रेखा के रूप में परिभाषित किया गया है।

5. मान लिजिए कि राम का परिवार शहर में रहता है। उसके 5 सदस्यों के परिवार का मासिक उपभोग व्यय 2000 रुपये हैं। ऐसी अवस्था में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय 400 रुपये हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि राम का परिवार निर्धनता रेखा के नीचे रहता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नीति/योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए गरीबी रेखा का निर्धारण होना चाहिए –
(a) बहुत ऊँचा
(b) बहुत नीचा
(c) न बहुत ऊँचा न बहुत नीचा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) न बहुत ऊँचा न बहुत नीचा

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प्रश्न 2.
भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण करने के लिए प्रयोग किया जाता है –
(a) आय को
(b) उपभोग को
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उपभोग को

प्रश्न 3.
भारत में ग्रामीण लोगों के लिए आवश्यक कैलोरी मान है –
(a) 2400
(b) 2100
(c) 2500
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 2400

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प्रश्न 4.
शहरी भारतीयों के लिए आवश्यक औसत कैलोरी मान है –
(a) 2400
(b) 2100
(c) 2500
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 2100

प्रश्न 5.
1999-00 में ग्रामीण गरीबी का प्रतिशत था –
(a) 27.1
(b) 27.6
(c) 26.1
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 27.1

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प्रश्न 6.
1999-00 में भारत में गरीबी का स्तर था –
(a) 27.1
(b) 27.6
(c) 26.1
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 26.1

प्रश्न 7.
भारत वर्ष में विकास प्रखण्डों की संख्या है –
(a) 4000
(b) 5000
(c) 6000
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 4000

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प्रश्न 8.
समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम शरू किया गया –
(a) 1983 में
(b) 1980 में
(c) 1989 में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1980 में

प्रश्न 9.
मजदूरी रोजगार कार्यक्रम एवं मजदूरी रोजगार योजना एकीकरण किया गया –
(a) 1983 में
(b) 1980 में
(c) 1989 में
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 1989 में

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प्रश्न 10.
मजदूरी रोजगार कार्यक्रम एवं मजदूरी रोजगार योजना एकीकरण करके नाम रखा गया –
(a) जवाहर रोजगार
(b) ग्रामीण समृद्धि योजना
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जवाहर रोजगार

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

Bihar Board Class 11 Geography पृथ्वी पर जीवन Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन जैवमंडल में सम्मिलित हैं …………….
(क) केवल पौधे
(ख) केवल प्राणी
(ग) सभी जैव व अजैव जीव
(घ) सभी जीवित जीव
उत्तर:
(ग) सभी जैव व अजैव जीव

प्रश्न 2.
उष्णकटिबंधीय घास के मैदान निम्न में से किस नाम से जाने जाते हैं …………….
(क) प्रेचरी
(ख) आयरन ऑक्साइड
(ग) सवाना
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) सवाना

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प्रश्न 3.
चट्टानों में पाए जाने वाले लोहांश के साथ ऑक्सीजन मिलकर निम्नलिखित में से क्या बनाती है ……………..
(क) आयरन कार्बोनेट
(ख) आयरन ऑक्सइड
(ग) आयरन नाइट्राइट
(घ) आयरन सल्फेट
उत्तर:
(घ) आयरन सल्फेट

प्रश्न 4.
प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के दौरान, प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन डाइऑक्साइड जल के साथ मिलकर क्या बनाती है ………………
(क) प्रोटीन
(ख) कार्बोहाइड्रेट्स
(ग) एमिनोएसिड
(घ) विटामिन्स
उत्तर:
(ख) कार्बोहाइड्रेट्स

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
पारिस्थितिकी से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जीवधारियों के आपस में व उनका भौतिक पर्यावरण के अंतर्सम्बन्धों का वैज्ञानिक अध्ययन ही पारिस्थितिकी है। पारिस्थितिकी ही प्रमुख रूप से जीवधारियों के जन्म, विकास, वितरण, प्रवृत्ति व उनके लिए प्रतिकूल अवस्थाओं में भी जीवित रहने से सम्बन्धित है, तथा भूमि, जल और वायु में क्रियाशील ऊर्जा प्रवाह और पोषण श्रृंखला का भी अध्ययन पारिस्थितिकी है।

प्रश्न 2.
पारितंत्र (Ecological System) क्या है? संसार के प्रमुख पारितंत्र प्रकारों को बताएँ।
उत्तर:
किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समूह के जीवधारियों का भूमि, जल अथवा वायु (अजैविक तत्त्वों) में ऐसा अंतर्सम्बन्ध जिसमें ऊर्जा प्रवाह व पोषण श्रृंखलाएँ स्पष्ट रूप से समायोजित हों, उसे पारितंत्र (Ecological System) कहा जाता है। प्रमुख पारितंत्र दो प्रकार के हैं-स्थलीय (Terrestrial) पारितंत्र व जलीय (aquatic) पारितंत्र। वन, घास, क्षेत्र, मरुस्थलीय और टुण्ड्रा (Tundra) संसार के कुछ प्रमुख पारितंत्र हैं।

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प्रश्न 3.
खाद्य श्रृंखला क्या है? चराई खाद्य श्रृंखला का एक उदाहरण देते हुए उसके अनेक स्तर बताएं?
उत्तर:
प्राथमिक उपभोक्ता, द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन बनते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता फिर तृतीयक उपभोक्ताओं के द्वारा खाए जाते हैं। यह खाद्य क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा प्रवाह ही खाद्य शृंखला (food chain) कहलाती है। चराई खाद्य श्रृंखला पौधों (उत्पादक) से शुरू होकर मांसाहारी (तृतीयक उपभोक्ता) तक जाती है, जिसमें शाकाहारी मध्यम स्तर पर हैं। हर स्तर पर ऊर्जा का हास होता है जिसमें श्वसन, उत्सर्जन व विघटन प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं। खाद्य श्रृंखला में तीन से पांच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती है।

उदाहरण –

  • घास → हिरण → शेर।
  • घास → कीट → मेढ़क → पक्षी।

प्रश्न 4.
खाद्य जाल (food wed) से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित बताएँ।
उत्तर:
खाद्य श्रृंखलाएँ पृथक अनुक्रम पर होकर एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने को खाद्य जाल (food web) कहा जाता है। उदाहरणार्थ-एक चूहा जो अन्न पर निर्भर है, वह अनेक द्वितीयक उपभोक्ताओं का भोजन है और तृतीयक मांसाहारी अनेक द्वितीयक जीवों से अपने भोजन की पूर्ति करते हैं। इस प्रकार प्रत्येक माँसाहारी जीव एक से अधिक प्रकार के शिकार पर निर्भर हैं।

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प्रश्न 5.
बायोम (Biome) क्या है?
उत्तर:
किसी भौगोलिक क्षेत्र में समस्त पारिस्थितिक तंत्र एक साथ मिलकर एक और भी बड़ी इकाई का निर्माण करते हैं जिसको बायोम (Biome) कहते हैं। उदाहरण के लिए मरुस्थली बायोम या वन बायोम में कोई तालाब,
झील, घास का मैदान या वन भी दृष्टिगोचर हो सकते हैं।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए।

प्रश्न 1.
संसार के विभिन्न वन बायोम (Forest biomes) की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ का वर्णन करें।
उत्तर:
स्थिति तथा विस्तार – सदाबहार वर्षा वन बायोम पादप तथा प्राणियों के विकास तथा वृद्धि के लिए अनुकूलतम दशायें प्रदान करता है क्योंकि इसमें वर्ष भर उच्च वर्षा तथा तापमान रहता है। इसी कारण से इसे अनुकूलतम बायोम (Opotimum biome) कहते हैं। इस बायोम का सामान्यतः विस्तार 10° . तथा 10° द. अक्षाशों के मध्य स्थित है।

प्रश्न 2.
जैव भू-रासायनिक चक्र (Biogeo-chemical cycle) क्या है? वायुमंडल में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (Fixation) कैसे होता है, वर्णन करें?
उत्तर:
सूर्य ऊर्जा का मूल स्रोत है जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैवमंडल में प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरम्भ करती है, जो हरे पौधे के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन व कार्बनिक यौगिक में परिवर्तित हो जाती है। धरती पर पहुंचने वाले सूर्यातप का बहुत छोटा भाग (केवल 0.1 प्रतिशत) प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया में काम आता है इसका आधे से अधिक भाग पौंधे की श्वसन-विसर्जन क्रिया में और शेष भाग अस्थाई रूप से पौधे के अन्य भागों में संचित हो जाता है।

विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि पिछले 100 करोड़ वर्षों में वायुमंडल व जलमंडल की संरचना में रासायनिक घटकों का संतुलन लगभग एक जैसा अर्थात् बदलाव रहित रहा है। रासायनिक तत्त्वों का यह संतुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाली चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्त्वों के अवशोषण से आरम्भ होता है और उनके वायु, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः आरम्भ होता है। ये चक्र मुख्यत: सौर ताप से संचालित होते हैं।

जैवमंडल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये कहे जाते हैं। जैव भू-रासायनिक चक्र के दो प्रकार हैं-एक गैसीय (gaseous cycle) और दूसरा तलछटी चक्र (Sedimentary cycle)। गैसीय चक्र में पदार्थ का मुख्य भंडार/स्रोत वायुमंडल व महासागर हैं। तलछटी चक्र के प्रमुख भंडार पृथ्वी की भूपर्पटी पर पाई जाने वाली मिट्टी तलछट व अन्य चट्टानें हैं।

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प्रश्न 3.
पारिस्थितिक संतुलन (Ecological balance) क्या है? इसके असंतुलन को रोकने के महत्त्वपूर्ण उपायों की चर्चा करें।
उत्तर:
किसी पारितंत्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक संतुलन है। यह तभी संभव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे  क्रमशः परिवर्तन भी हो, लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण (natural succession) के द्वारा । ही होता है। इसे पारितंत्र मे हर प्रजाति की संख्या के एक स्थाई संतुलन के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है।

यह संतुलन निश्चित प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा व आपसी सहयोग से होता है। कुछ प्रजातियों के जिंदा रहने के संघर्ष से भी पर्यावरण संतुलन प्राप्त किया जाता है। संतुलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि कुछ प्रजातियाँ अपने भोजन व जीवित रहने के लिए दूसरी प्रजातियों पर निर्भर रहती हैं इसके उदाहरण विशाल घास के मैदानों में मिलते हैं जहाँ शाकाहारी जंतु अधिक संख्या में होते हैं। दूसरी तरफ मांसाहारी कम संख्या में होते हैं तथा शाकाहारियों के शिकार पर निर्भर होते हैं, अत: इनकी संख्या नियंत्रित रहती है।

पारिस्थितिक असंतुलन के कारण हैं-नई प्रजातियों का आगमन, प्राकृतिक विपदाएँ और मानव जनित कारक भी हैं। मनुष्य के हस्तक्षेप से पादप समुदाय का संतुलन प्रभावित होता है जो अन्तोगत्वा पूरे पारितंत्र के संतुलन को प्रभावित करता है। इस असंतुलन से कई अन्य द्वितीयक अनुक्रमण आते हैं। प्राकृतिक संसाधनों पर जनसंख्या दबाव से भी पारिस्थितिक बहुत प्रभावित हुई है। इसने पर्यावरण के वास्तविक रूप को लगभग नष्ट कर दिया है और सामान्य पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव डाला है। पर्यावरण असंतुलन से ही प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़, भूकंप, बीमारियाँ और कई जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं।

विशेष आवास स्थानों में पौधों व प्राणी समुदायों में घने अंतर्सम्बन्ध पाए जाते हैं। निश्चित स्थानों पर जीवों में विविधता वहाँ के पर्यावरणीय कारकों का संकेतक है। इन कारकों का समुचित ज्ञान व समझ ही पारितंत्र व संरक्षण के बचाव के प्रमुख आधार हैं।

(घ) परियोजना कार्य (Project Work)

प्रश्न 1.
प्रत्येक बायोम की प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए विश्व के मानचित्र पर विभिन्न बायोम के वितरण दर्शाइए।
उत्तर:
सवाना बायोम –
जलवायु – सवाना बायोम की जलवायु की प्रमुख विशेषताएँ हैं-स्पष्ट शुष्क तथा आई ऋतुएँ, वर्ष भर ऊँचा तापमान तथा अधिक सूर्यातप। औसत वार्षिक वर्षा 500 से 2000 मिलीमीटर के बीच होती है तथा किसी भी महीने में तापमान 20° सेंटीग्रेड से नीचे नहीं जा पाता है। आईता तथा तापमान के आधार पर तीन ऋतुएँ होती हैं (मोटे तौर पर दो ही ऋतुएँ होती हैं परंतु तापमान के आधार पर शुष्क ऋतु को गर्म एवं शीत दो उपभागों में विभक्त कर लिया जाता है)। शीत शुष्क ऋतु-दिन का तापमान ऊँचा रहता है, 26°से 32° सेण्टीग्रेड। रात्रि में यह कम होकर 21°सेण्टीग्रेड हो जाता है।

उष्ण शुष्क ऋत-सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं. सूर्यातप अधिकाधिक प्राप्त होने के कारण तापमान 32° से 38° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है तथा उष्णतर ऋतु-सम्पूर्ण वार्षिक वर्षा का 80 से 90 प्रतिशत स्तर वर्षाकाल में ही प्राप्त होता है। ज्ञातव्य है कि भूमण्डल के विभिन्न सवाना प्रदेशों में वर्षा की मात्रा में पर्याप्त अंतर होता है, जो धरातलीय बनावट तथा भूमध्यरेखा से दूरी के कारण होता है। यथा-ब्राजील के सवाना प्रदेश (इसे स्थानीय भाषा में Cerrado कहते हैं, इस प्रदेश का उच्चावच सागरतल से 1300 मीटर के बीच है) में औसत वार्षिक तापमान 20 से 26° सेण्टीग्रेड तथा औसत वार्षिक वर्षा 750 से 2000 मिलीमीटर (एण्डीज के पास) तक होती है जिसका 90 प्रतिशत भाग 7(उत्तरी भाग में) से 11 (दक्षिणी भाग में) महीनों वाली आई तथा शुष्क ऋतु में प्राप्त होता है।

औसत वार्षिक तापमान 22° सेण्टीग्रेड तथा अधिकतम तापमान 32° सेण्टीग्रेड होता है परंत मासिक अंतर 2 सेण्टीग्रेड से। कम होता है। इसके विपरीत भारतीय सवाना में अधिकतम तापमान (मई तथा जून में) 45° से 48° सेण्टीग्रेड एवं न्यूनतम तापमान (जनवरी में) 5° सेण्टीग्रेड या उससे भी कम हो जाता है, औसत वार्षिक वर्षा 1500 मिलीमीटर से भी कम होती है तथा इसका 80 से 90 प्रतिशत भाग 15 जून से 15 सितम्बर के मध्य प्राप्त हो जाता है।

बनस्पति समुदाय-सवाना बायोम में घासों का बाहुल्य होता है। घासें तथा अन्य शाकीय पौधे (herbaceous plants) वनस्पति समुदाय के लम्बवत् स्तरीकरण के सबसे नीचले स्तर (धरातलीय स्तर) का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरा (मध्यवर्ती) स्तर झाड़ियों का तीसरा (सबसे ऊपरी स्तर) वृक्षों का होता है। सवाना बायोम में घासें सर्वप्रधान होती है जिनकी बनावट स्थूल (coarse) तथा कड़ी होती हैं। इनकी पत्तियाँ चपटी होती हैं तथा इनकी (घासों की) ऊँचाई 80 सेण्टीमीटर तक या उससे अधिक होती है।

घासों में सर्वप्रथम तथा सर्वोच्च हाथी घास (elephant grass) होती है जिसकी ऊंचाई 5 मीटर तक होती है। इनका आकार गुच्छेदार होता है। ज्ञातव्य है कि समस्त धरातल घासों के सतत आवरण से ढका नहीं होता है, अपितु बीच-बीच में नग्न धरातल भी होता है। इन घासों की पत्तियों की बनावट (चपटी तथा बड़े आकार की) ऐसी होती है कि इनसे वाष्पोत्सर्जन (transpiration) शुष्क तथा तर सभी ऋतुओं में तीव्र गति से होता है, अतः शल्क मौसम में ये अपनी पत्तियाँ गिरा देती हैं तथा घास आवरण खुला तथा विरल हो जाता है, परंतु आई मौसम के आते ही इनमें पुनः हरी पत्तियाँ तेजी से निकल आती हैं तथा वे पुनः हरी-भरी हो जाती हैं। इन घासों की जड़ें बारीक शाखाओं एवं प्रतिशाखाओं के घने जाल वाली होती हैं। जो लगभग 2.5 मीटर की गहराई तक मिट्टियों में प्रविष्ट हो जाती है।

वृक्षों का स्वभाव जल की सुलभता पर निर्भर करता है कुछ ऐसी विशिष्ट प्रजातियाँ होती हैं जिनकी संरचना इस प्रकार की होती हैं कि शुष्क मौसम में पत्तियों द्वारा होने वाला सदाबहार स्वभाव को बनाये रहती हैं। कुछ वृक्षों की प्रजातियों में स्टोमैट को बंद करके शुष्क मौसम में जल संचित करने के गुण नहीं होते हैं। ऐसे वृक्षों की पत्तियाँ शुष्क मौसम में गिर जाती हैं तथा ये वृक्ष पर्णपाती वृक्षों की श्रेणी में आते हैं। वृक्षों की जड़ें सवाना प्रदेश के शुष्क एवं तर मौसमों के मुताबिक होती हैं, अर्थात् ये इतनी लम्बी होती हैं कि शुष्क मौसम में भौम जल स्तर (ground water table) से जल प्राप्त कर सकें। सामान्य रूप में इनकी जड़ें 5 से 20 मीटर की गहराई तक धरातल में प्रविष्ट होती हैं। H. Watter (1971) ने कुछ झाड़ियों को (tamrix SPP) 50 मीटर लम्बी जड़ों का उल्लेख किया है।

शुष्क मौसम में तथा अग्निकांड के बाद ये वृक्ष अपनी इन लम्बी जड़ों से नीचे से जल ऊपर खींचते हैं तथा अपना अस्तित्व बनाये रहते हैं। कुछ वृक्षों की जड़ें कन्द (turbes) वाली होती हैं। वृक्षों की सामान्य ऊँचाई 15 मीटर तक होती है। तनों से छोटी-छोटी शाखाएँ निकलती हैं तथा छाल एक सेण्टीमीटर तक मोटी है। ज्ञातव्य है कि वृक्षों की प्रजातियाँ बहुत कम होती हैं। कभी-कभी तो किसी क्षेत्र में केवल एक ही प्रजाति का प्रभुत्व होता है यथा तंजानिया से सेनेगल तक baobah प्रजाति तथा सूडान एवं आयबरी कोस्ट के सवाना में ताड़ का ही प्रभुत्व पाया जाता है।

क्षेत्र विशेष में घासों तथा वृक्षों के अनुपात के आधार पर सवाना बायोम को निम्न प्रकारों में विभक्त करते हैं –

1. वन सवाना (Woodland Savanna) – यहाँ वृक्षों तथा झाड़ियों का प्रभुत्व होता है जिनके द्वारा ऊपरी वितान (upper canopy) अत्यन्त सघन हो जाता है परंतु वांछित सूर्य प्रकाश धरातल तक पहुँच जाता है जिस कारण धरातल पर शाकीय पादपों (herbaceous plants) का निचला स्तर पूर्णतया विकसित हो जाता है। उपरिनिवासी पादपों (epiphytes) का प्रायः अभाव होता है।

2. वृक्ष सवाना (Tree Savanna) – उस समय विकसित होता है जब धरातल पर घासों का प्राधान्य होता है तथा वृक्ष दूर-दूर बिखरे होते हैं।

3. झाड़ी सवाना (ShrubSavanna) – इसमें धरातल पर घासों का बाहुल्य होता है, वृक्षों का सर्वथा अभाव होता है तथा छोटी-छोटी झाड़ियाँ होती हैं।

4. घास सवाना (Grass Savanna) – इसका विकास वहाँ होता है जहाँ वृक्ष तथा झाड़ियाँ अनुपस्थित होती हैं तथा घासों का घना किन्तु लगातार आवरण विस्तृत क्षेत्रों पर विकसित होता है।

सभी सवाना बायोम की एक उभय विशेषता यह है कि इन्हें समय-समय पर जलाया जाता है। इसका दुष्परिणाम यह होता है कि जैविक पदार्थ नष्ट हो जाता हैं तथा जन्तुओं की जनसंख्या घटती जाती है। ज्ञातव्य है कि बार-बार आग लगाये जाने के कारण यहाँ के पादपों में कुछ ऐसी विशेषतायें विकसित हो गई है कि कछ अग्नि प्रतिरोधी (fire resistant) प्रजातियों का विकास हो गया है (यथा Imperata spp, एक प्रकार की घास)।
Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन
ज्ञातव्य है कि सवाना बायोम में विस्तृत घास क्षेत्र एवं वृक्षों की कम संख्या के कारण जन्तुओं में गतिशीलता अधिक होती है। इसी कारण से यहाँ पर वृहदाकार स्तनधारी जन्तु (हाथी, जिराफ, गैण्डा आदि) तथा पक्षी (Courses, bustards, game birds, ostriches, gazelles आदि) तथा बिना उड़ने वाले पक्षी (emu) आदि पाये जाते हैं।

सवाना बायोम में वनस्पति की संरचना तथा उसमें मौसमी परिवर्तन एवं बिना रीढ वाले प्राणियों में पूर्ण सह-सम्बन्ध पाया जाता है। रीढविहीन प्राणियों में कीटों (यथा-मक्खियाँ-flies (diptera), टिड्डी grasshoppers, दीमक – termitesisopteres, any Shymenoptera, springtails) तथा संधिपाद प्राणियों (जोड़ों से निर्मित पैर वाले arthropods यथा मकड़ा, बिच्छू आदि) की असंख्य जनसंख्या पायी जाती है।

उदाहरण के लिए ऊँची घास वाले पश्चिमी अफ्रीका के गायना सवाना प्रदेश में oligochaete worms, spiders तथा insects का घनत्व शुष्क मौसम में प्रति 300 वर्ग मीटर क्षेत्र में 50,000 से 60,000 तथा आई मौसम में 1,00,000 पाया जाता है। वर्षा काल में लघु प्राणियों (यथा springtails, ants earwigs, cockroaches, small crickets, carabid bettles आदि) तथा शुष्क मौसम में बड़े जीवों (रीढ़विहीन, यथा locusts, grasshoper, mantids तथा circkets) की प्रधानता रहती है।

उल्लेखनीय है कि सवाना बायोम में प्राणियों (रौढ़वाले तथा रीढविहीन, लघ्वाकार कीट से लेकर वृहदाकार हाथी तक) की अत्यधिक जनसंख्या के बावजूद उनमें आहार के लिए अधिक प्रतिस्पर्धा नहीं होती है क्योंकि इस बायोम की वनस्पतियों के मुताबिक शाकाहारी प्राणियों के आहार ग्रहण की आदतों में विशिष्टतायें पायी जाती है। उदाहरणार्थ-जिराफ वृक्षों की पत्तियों पर निर्भर करता है, जेबरा ऊँची घासों के ऊपरी भाग एवं झाड़ियों को खाता है, wildbeest मध्यम ऊँचाई की घासों को चरता है तथा gazells (हिरण परिवार) सबसे छोटी घासों का सेवन करता है।

स्पष्ट है कि सवाना बायोम में चराई अनुक्रम (grazing siccession) का पूर्ण विकास हुआ है। खुरवाले जन्तुओं (ungulates) की मौसमी गतिशीलता में भी पर्याप्त अंतर होता है। इस विभिन्न मौसमी गतिशीलता के कारण भी आहार के लिए तगड़ा संघर्ष नहीं हो पाता है। मौसमी गतिशीलता के स्वभाव के आधार पर G.Morel (1968) ने खुरवाले जानवरों को निम्न 5 श्रेणियों में विभक्त किया है

  • मौसमी भ्रमण रहित जन्तु – giraffe, grant’s gazelle, hartebeest
  • शुष्क मौसम में आंशिक भ्रमण करने वाले जन्तु – impala.
  • वर्षा काल में आंशिक भ्रमण करने वाले जन्तु – watrhog. dikdik, water buck, rhino.
  • शुष्क मौसम में प्रवास करने वाले जन्तु – buffalo, zebra, wildbesst, cland, elephant.
  • मार्गीय प्रवासी (passage migrants) जन्तु – भैंसा, जेबरा तथा हाथी।

सवाना प्रदेश में आये दिन वनस्पतियों को जलाने से वहाँ के प्राणियों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस क्रिया (burming) के कारण प्राणियों के प्रकार तथा उनकी संख्या में निरंतर हास हो रहा है।

प्राणी समुदाय – उल्लेखनीय है कि विश्व के विभिन्न महाद्वीपों के सवाना बायोम के विभिन्न क्षेत्रों में प्राणियों में विषमता पायी जाती है क्योंकि इन भौगोलिक क्षेत्रों का अलग-अलग रूपों में विकास हुआ है तथा इनमें मानव प्रभाव का चरण तथा उसकी तीव्रता विभिन्न रही है। सवाना प्रदेश में आई एवं शुष्क ऋतुओं की पर्यावरण सम्बन्धी दशाओं में परिवर्तन के कारण वनस्पति आवरण में अंतरण होता है जिस कारण आहार की बहुलता (आई ऋतु में) तथा अल्पता (शुष्क ऋतु में) होती है।

इसके बावजूद कुछ प्रकार के जन्तुओं की संख्या अन्य बायोम प्रकारों से बहुत अधिक मिलती है। अफ्रीकी सवाना में चरने वाले बड़े जन्तओं की सबसे अधिक किस्में पायी जाती हैं। जेब्रा antelope, wildbeast, जिराफ, हिप्पोपोटामस तथा हाथियों के बड़े-बड़े झण्ड पाये जाते हैं। इसके विपरीत अमेरिकी तथा आस्ट्रेलियाई सवाना में पक्षियों को छोड़कर उक्त प्राणी कम संख्या में पाये जाते हैं। आस्ट्रेलिया में Marsupials (पेट के बाह्य भाग में बनी थैली में बच्चों को रखने वाले जन्तुओं का वंश यथा-कंगारू) का प्रभुत्व है। इनकी 50 प्रजातियाँ पायी जाती हैं।

इनमें बड़े आकार वाले लाल कंगारू (Macropus rufus, 1.5 मीटर ऊँचे) से लेकर लघु आकार वाली wallaby (M. browni, 30 सेंटीमीटर ऊँचे) प्रजातियाँ होती हैं। दक्षिणी अमेरिकी सवाना में चरने वाले दीर्घ जन्तुओं में deer तथा guanaco प्रमुख हैं। इसके अलावा यहाँ पर tucans, parrots, nightjars, kingfishers, doves finches, parakets तथा wood peckers (कठफोड़वा) भारी संख्या में मिलते हैं।

रूम-सागरीय बायोम – रूम-सागरीय बायोम का विस्तार दोनों गोलाद्धों में महाद्वीप के पश्चिमी भाग में 30 से 40° अक्षांशों के बीच पाया जाता है। इस बायोम के अन्तर्गत रूम सागर के किनारे फैले यूरोपीय भाग, उत्तरी अमेरिका में कैलिफोर्निया, उ.प. अफ्रीका का रूमसागरीय तटवर्ती भाग, द. अमेरिका में मध्य में चिली, द. अफ्रीका का सुदूर द.प. भाग तथा द.प. आस्ट्रेलिया के तटवर्ती भाग आते हैं। इस प्रदेश की जलवायु की प्रमुख विशेषता है-गर्म शुष्क ग्रीष्मकाल तथा शीत आई शरद् काल।

शरद् तथा बसंत कालीन वर्षा के जल द्वारा मिट्टियों की नमी बढ़ जाती है तथा बसंतकाल में वनस्पतियों में अधिकतम वृद्धि होती है। ग्रीष्मकाल में तापमान बढ़ने तथा वर्षा के अभाव में जल की न्यूनता के कारण वनस्पतियों की वृद्धि का स्थगन हो जाता है। यद्यपि रूमसागरीय प्रदेश विभिन्न महाद्वीपों में काफी बिखरे हैं तथापि इनकी वनस्पति तथा बायोम संरचना में पर्याप्त समानता होती है। इस बायोम की वनस्पतियों की संरचना इस तरह की होती है कि वे ग्रीष्मकालीन शुष्कता को सहन कर सकें। पत्तियाँ मोटी तथा कठोर होती हैं (sclerophyllous) तथा तनों की छाल मोटी होती है।

पादप समुदाय में वृक्ष तथा झाड़ियाँ प्रमुख होती हैं। अधिकांश पादप सदाबहार होते हैं। झाड़ियों के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग स्थानीय नाम हैं यथा-यूरोपीय भाग में maquis of machia कैलिफोर्निया में chaparral द. अफ्रीका में fynbos या fynbosch कई वृक्षों की पत्तियों में शुष्कानुकूलित संरचना (Xeromorphic structure) होती है यथा मोटी बाह्य त्वचा, ग्रन्थिल रोयें, बंद रंध्र आदि। कुछ वृक्षों (यथा mastic tree) शुष्क काल में अपने रंधों (stomata) को बंद करके वाष्पोत्सर्जन (transpiration) (artemisia) न्यूनतम कर देते हैं। कुछ पत्तियों का आकार छोटा होता है (यथा chamise) ताकि कम से कम वाष्पोत्सर्जन हो सके। कुछ वृक्षों की पत्तियाँ काँटे जैसी होती हैं।

कुछ पौधों के विस्तृत जड़ तंत्र होते हैं (यथा almond), कुछ पौधों की गहरी मूसली जड़ (trap root) होती है जो शैलों की संधियों में भी प्रविष्ट हो जाती हैं कुछ पौधों की जड़ें भूमि के ऊपर भी विस्तृत होती हैं तथा नीचे गहराई तक भी प्रविष्ट होती हैं (यथा chamise) कुछ पौधों में कन्द (bulb तथा tubers) होते हैं। ये पौधे रंग-बिरंगे फूल वाले होते हैं। वसंत काल में ये खिलते हैं तथा रंग-बिरंगे दृश्य प्रस्तुत करते हैं। ग्रीष्मकाल में ये प्रसुप्तावस्था में होते हैं परंतु कन्दों (bulns) से आई शीतकाल के प्रारम्भ होते ही नये कल्ले निकल आते हैं (यथा hyaxinthus, crocus, lilium, orchis आदि)।

यूरोपियन रूमसागरीय बायोम में वनस्पति समुदाय में तीन लम्बवत् स्तर पाये जाते हैं। ऊपरी स्तर का प्रमुख वृक्ष ओक है जिसके दो वर्ग हैं-सदाबहार ओक तथा पर्णपाती ओक। ओक की कई प्रजातियां पायी जाती हैं। ऊँचाई के साथ वृक्षों का क्रम बदलता जाता है, सबसे नीचे सदाबहार ओक, बढ़ती ऊँचाई के साथ क्रमशः पर्णपाती ओक, बीच, पाइन तथा फर का क्रम पाया जाता है। दूसरा स्तर झाड़ियों का होता है जिसमें सर्वप्रमुख mquis या macchia है। इसका आवरण इतना घना होता है कि यह अप्रवेश्य हो जाता है। इसकी ऊँचाई 2 मीटर या उससे अधिक होती है। प्रमुख प्रजातियाँ हैं- arbutus, pistacia, phamnus, ceratonio आदि । इनसे गोंद, रेजिन, टैनिन, रंग आदि प्राप्त किये जाते हैं।

लगातार पशुचारण, जलाने तथा कटाई द्वारा maquis का रूपांतरण garrigue (स्थानीय नाम) में हो गया है। Garrigue का भी मानव द्वारा विदोहन होने पर उसका रूप बदल गया है जिसे batha कहते हैं। सबसे निचले स्तर में शाकीय पौधों का आवरण होता है।

उत्तरी अमेरिका (कैलिफोर्निया) बायोम – में वनस्पति समुदाय में सर्वप्रमुख वृक्ष ओक (विभिन्न प्रजातियाँ) तथा चैपरेल झाड़ियाँ हैं। ओक की ऊँचाई 6 से 23 मीटर तक होती है, तना छोटा होता है तथा फैला हुआ मुकुट (crowns) होता है। निचला स्तर घासों का होता है। कम उर्वर तथा हल्की मिट्टी वाले भागों में चैपरेल की घनी झाड़ियों का विकास होता है। यह यूरोपिय maquis का समकक्षी होता है। इसी तरह बौनी झाड़ियों बाथा (यूरोपिय) की तरह यहाँ पर सेज झाडियाँ होती हैं। दक्षिणी अमेरिका के चिली में कैलिफोर्निया के समान ही वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। चिली में कैलिफोर्निया के चैपरेल के समान झाड़ी को मैटोरेल कहते हैं।

उपर्युक्त रूमसागरीय क्षेत्रों के बायोम में शकाहारी स्तनधारी जन्तुओं में mule deer, browsers, (कैलिफोर्निया), guanacos (चिली) आदि प्रमुख हैं। रोडेण्ट्स के कई परिवार पाये जाते हैं। जिनमें खरगोश की कई प्रजातियाँ प्रमुख होती हैं। भक्षक जन्तुओं में coyote (खरगोश का प्रमुख भक्षक), liards, snakes प्रमुख हैं तथा raptorial birds में kites, falcons तथा hawks का प्रमुख स्थान है।

शीतोष्ण घास प्रदेश बायोम (TemperateGrassland Blome)-शीतोष्ण घास प्रदेश का विस्तार उत्तरी गोलार्द्ध में महाद्वीपों के आन्तरिक भागों (उत्तरी अमेरिका का प्रेयरी तथा यूरेशिया का स्टेपी प्रदेश) में पाया जाता है, जहाँ महाद्वीपीय जलवायु (ग्रीष्मकाल तथा शीतकालीन दशाओं में अत्यधिक अंतर होता है) का विकास हुआ है तथा शुष्कता का साम्राज्य रहता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इसका विस्तार दक्षिण अमेरिका में अर्जेन्टाइना तथा युरूग्वे (पम्पाज), दक्षिण अफ्रीका के उच्च पर्वतीय भाग (वेल्ड), आस्ट्रेलिया के दक्षिण उत्तरी गोलार्ड के शीतोष्ण घास मैदानों में महाद्वीपीय जलवायु की प्रधानता होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में महाद्वीपीय का प्रभाव कम होता है। अधिकांश भागों में सर्वाधिक वर्षा ग्रीष्म काल में होती है। इन सभी क्षेत्रों में घासें सर्वप्रमुख वनस्पति समुदाय होती हैं जो चरम समुदाय (climax community) की द्योतक हैं। इनमें सर्वप्रमुख सदाबहार घासें होती हैं। शाकीय पौधे (herbaceous plants) वृक्ष तथा झाड़ियाँ गौण होती हैं।

ज्ञातव्य है कि अधिकांश घास मैदान मानव क्रिया-कलापों का प्रतिफल हैं। प्रत्येक क्षेत्र में वनस्पति प्रकार, मृदा तथा जलवायु में तथा पादप समुदाय एवं प्राणी समुदाय में पूर्ण सहसम्बन्ध पाया जाता है। घासों का ऊपरी वितान (canopy) उनकी पत्तियों का होता है। पुष्पी कल्ले लघु समय तक ही रहते हैं। पुष्पों में पंखुड़ियों नहीं होती हैं। उनका परागण (pollination) हवा द्वारा होता है। बीजों का हवा द्वारा शीघ्र विसरण (dispersal) हो जाता है। ज्ञातव्य है कि घास मैदान के सभी प्रदेशों के अधिकांश भागों में मौलिक घास आवरण को साफ कर दिया गया है तथा उनमें खाद्यान्नों की खेती की जाती है। ये प्रदेश विश्व के प्रमुख अन्न भण्डार तथा दुग्ध व्यवसाय के क्रोडस्थल हैं।

1. यूरोपीय भाग – में इस घास प्रदेश को स्टेपी बायोम कहते हैं जिसका सर्वाधिक विकास रूस में हुआ है। इसी रूसी स्टेपी का विस्तार पूर्वी यूरोप से प. साइबेरिया तक विस्तृत क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तर में शीतोष्ण कोणधारी वनों तथा द.पू. में शुष्क प्रदेशीय बायोम के मध्य स्टेपी बायोम स्थित है। उत्तरी शीतोष्ण कोणधारी वनों तथा दक्षिण से शुद्ध घास बहुल स्टेपी बायोम के मध्य वन स्टेपी की संक्रमण मेखला (transitionalzone) पायी जाती है। इस तरह बन स्टेपीज तथा घास स्टेपीज रूस के समस्त क्षेत्रफल के 12 प्रतिशत भाग पर फैले हैं।

वन स्टेपीज के यूरोपीय भाग में ओक, लाइम, एल्म तथा मैपिल वृक्षों की बहुलता है जबकि प. साइबेरिया में बर्च, आस्पेन तथा विलो वृक्षों का मिश्रण प्रधान है, इन वन स्टेपीज के मध्य छिटपुट रूप में fescues तथा feather grasses (sita Koeleria) के वंशों वाले क्षेत्र पाये जाते हैं जिन्हें मीडोस्टेपीज (meadowsteppes) कहते हैं। वन स्टेपीज में 500 से 600 मिलीमीटर तक वार्षिक वर्षा होती है जबकि घास स्टेपीज का विकास 400 से 500 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा वाले भागों में हुआ है। उत्तर से दक्षिण दिशा में जलवायु, वनस्पति तथा मृदा में क्रमिक परिवर्तन होता जाता है। सबसे उत्तर में चरनोज्म मिट्टियों के साथ घास स्टेपीज की स्थिति है।

दक्षिण की ओर जाने पर शुष्कता बढ़ती है अतः अर्द्धशुष्क स्टेपीज तथा चेस्टनट मृदा पायी जाती है और दक्षिण जाने पर अर्द्ध-शुष्क तथा शुष्क रेगिस्तान प्रारम्भ हो जाता है। उत्तर से दक्षिण वनस्पतियों का निम्नांकित अनुक्रम पाया जाता है –

  • वन स्टेपीज (इसका वर्णन ऊपर किया गया है)
  • मीडो स्टेपीज में टर्फ वाली घासों की प्रजातियाँ (Stipa तथा Fescue) तथा कई प्रकार के पुष्पी शाकीय पौधे (यथा trifolum तथा कई प्रकार के daisy) पाये जाते हैं
  • घास स्टेपीज में घास की प्रमुख किस्में Stipa की गुच्छे वाली प्रजातियाँ हैं तथा शुष्कानुकूलित झाड़ियों की Artemisa प्रजातियाँ प्रमुख हैं तथा
  • गहरे रंग की चेस्टनट मिट्टियों के साथ शुष्कानुकूलित झाड़ियाँ (artemisia प्रजाति) पायी जाती हैं।

2. उत्तरी अमेरिकी प्रेयरी का विकास संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा के पश्चिम में रॉकीज पर्वत तथा पूर्व में शीतोष्ण पर्णपाती वनों के मध्य विस्तृत क्षेत्रों में हुआ है। वार्षिक वर्षा पूर्व (1050 मिलीमीटर) से पश्चिम (400 मीलोमीटर से कम) घटती जाती है। इस प्रेयरी प्रदेश में घासों की ऊँचाई में पूर्व से पश्चिम (क्रमशः उच्च घास, मध्यम घास तथा छोटी घास) श्रेणीकरण (ordering) पाया जाता है।

(i) उच्च घास प्रेयरी की मेखला सबसे पूर्व में पायी जाती है। प्रमुख घास प्रजाति bluestem होती है जिसकी ऊंचाई 1.5 से 2.4 मीटर होती है। इन घासों के मध्य में स्थान-स्थान पर ओक तथा हिकरी वृक्षों के झुरमुट पाये जाते हैं।

(ii) मिन प्रेयरी का सर्वाधिक विकास संयुक्त राज्य अमेरिका के वृहद मैदान में हुआ है। वास्तव में मिश्र प्रेयरी का विस्तार उच्च घास प्रेयरी की पश्चिम में उत्तर (कनाडा से प्रारम्भ होकर) दक्षिण (टक्साज तक) विस्तृत चौड़ी पट्टी में पाया जाता है जिसमें मध्यम तथा कम ऊँचाई की घासें पायी जाती हैं (ऊँचाई 0.6 से 1.2 मीटर तक)। प्रमुख प्रजातियाँ हैं Stippa commata (नुकीली घासें-डोरा जैसी), sand dropseed (sporobolus cryptandrus), westem wheat grass (agropyron smithii), jungegrass, blugrama तथा buffalo grass, तथा

(iii) लघु घास प्रेयरी का विस्तार Great Plains के पश्चिमी भाग पर पाया जाता है। घासों की ऊँचाई 60 सेण्टीमीटर से कम होती है।

3. दक्षिणी अमेरिकी पम्पाज – का सर्वाधिक विस्तार अर्जेन्चाइना (समस्त क्षेत्रफल के 12 प्रतिशत भाग पर) में हुआ है। अमेरिकी प्रेयरीज तथा यूरोपीय स्टेपीज की तुलना में पम्पाज अधिक आई हैं। पूर्व में वार्षिक वर्षा 900 मिलीमीटर तथा पश्चिमी एवं द.पू. में 450 मिलीमीटर तक होती है। आर्द्र पम्पाज का विस्तार पूर्वी भाग में पाया जाता है जहाँ लम्बी एवं ऊँची घासें पायी जाती हैं।

पश्चिम की ओर जाने पर शुष्कता बढ़ती जाती है अतः घासें छोटी पायी जाती हैं। इस पश्चिमी भाग को अर्द्ध आर्द्र पम्पाज कहते हैं। पम्पाज में कई वंश (genera) तथा प्रजातियों (species) की घासें पायी जाती हैं यथा-Birza, Bromus, Panicum, Paspaluim Lolium आदि । इनमें कई स्तर (layers) पाये जाते हैं। मनुष्य ने इस क्षेत्र में दलहनी जाति के lucene पौधों का रोपण किया जाता है। अधिकांश पम्पाज को साफ करके गेहूं के खेतों में बदल दिया गया है।

4. अफ्रीकी वेल्ड (veld) – का विस्तार दक्षिणी अफ्रीका में 1500 से 2000 मीटर ऊंचाई वाले पठार के पूर्वी भाग में दक्षिण ट्रान्सवाल, Orange Free State तथा लिसोथी के कुछ भागों पर पाया जाता है। ज्ञातव्य है कि इस पठार के 1500 से 2000 मीटर की ऊंचाई वाले भागों पर वर्षा की अनिश्चितता, शुष्कता की अधिकता, रात्रि में पाला की प्रचंडता तथा शरद काल में दैनिक तापान्तर की अधिकता के कारण वृक्षों का उगना तथा विकसित होना सम्भव नहीं हो पाता है, अत: चरम घास समुदाय का विकास हुआ है। उल्लेखनीय है कि धरातलीय बनावट, मृदा ऊंचाई तथा जलवायु में भिन्नता के कारण घासों की संरचना में पर्याप्त अंतर पाया जाता है, अतः वेल्ड घास बायोम को कई उपभागों में विभक्त किया गया है –

(i) थेमाडा वेल्ड – 1500 से 1750 मीटर की ऊँचाई पर विकसित हुआ है जहाँ औसत वर्षा 650 से 750 मिलीमीटर तक होती है। Black turf soils पर विकसित होने वाले प्रमुख घास Redgrass (Themeda triandra) है। अन्य घास प्रकारों में ristida Eragrostis तथा Hyparrhenia प्रमुख हैं

(ii) अल्पाइन वेल्ड का विकास 2000 से 2500 मीटर ऊंचाई वाले भागों (Darkensberg पर्वत पर) पर हुआ है जिसमें Themeda के साथ Festuca तथा Bromus घासें पायी जाती हैं। यहाँ के प्राणी जीवन को मनुष्य ने बड़े पैमाने पर प्रभावित तथा परिमार्जित किया है। प्रारम्भ में game, antelopes, zebras (शाकाहारी) तथा शेर, लकड़बाग्घा, हायना, सियार (सभी मांसाहारी) के बड़े झुण्ड पाये जाते थे परंतु मानव द्वारा अनवरत हनन के कारण अब ये ,अदृश्य हो गये हैं। बिलकारी शाकाहारी प्राणियों में springhare, gerbil आदि अब भी भारी संख्या में पाये जाते हैं। मांसाहारी बिलकारी प्राणियों में mangooses या meerkats प्रमुख हैं।

5. आस्ट्रेलियाई शीतोष्ण घास प्रदेश का विस्तार आस्ट्रेलिया के दक्षिण-पूर्वी भाग तथा उत्तरी तस्मानिया में पाया जाता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि शरद काल उत्तरी गोलार्द्ध के शीतोष्ण घास क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत गर्म होता है तथा घासों तथा साथ-साथ युकेलिप्टस वृक्ष भी पाये जाते हैं। दक्षिणी सागर तटीय भाग से (1524 मिलीमीटर) उत्तर जाने पर (635 मिलीमीटर) औसत वार्षिक वर्षा घटती जाती है अत: यहाँ पर घास क्षेत्रों के तीन उपप्रदेश विकसित हुए हैं।

(i) शीतोष्ण लम्बी घास वाला क्षेत्र-इसका विस्तार न्यूसाउथवेल्स के पूर्वी तटीय भाग से विक्टोरिया तथा पूर्वी तस्मानिया तक है। घासों में Poa tussock तथा Themeda australis (इसे कंगारू घास कहते हैं क्योंकि यह कंगारू को सर्वाधिक प्रिय होती है) तथा Danthonia pallida अधिक व्यापक है।

(ii) शीतोष्ण लम्बी घास वाले क्षेत्र का विकास प्रथम के समानान्तर किन्तु आन्तरिक भागों में हुआ है। यहाँ Danthonia तथा Stipa वंश की छोटी प्रजातियों का विकास हुआ है।

(iii) शुष्कानुकूलित (xerophytic) घास वाला क्षेत्र और अधिक आन्तरिक भाग में विकसित हुआ है। प्रारम्भ में आस्ट्रेलियाई शीतोष्ण घासों का विकास यहाँ के देशज जन्तुओं (यथा कंगारू) के चरने के स्वभाव के आधार पर हुआ था परंतु भेड़ों के आगमन (मानव द्वारा) बाहर से लाकर लगाये जाने वाले पौधों (यथा clover) तथा घासों (यथा-bromus, hardeum तथा ryegrass) के कारण घासों की कई मौलिक प्रजातियाँ या तो समाप्त हो गई हैं या कमजोर पड़ गई हैं।

स्नतधारी जन्तुओं में कंगारू यहाँ का सबसे बड़ा देशज जन्तु है। बड़े कंगारूओं की यहाँ पर तीन किस्में पायी जाती हैं –

  • लाल कंगारू
  • भूरे कंगारू तथा
  • wallaroos

जब से यूरोपीय खरगोशों को यहाँ पर लाया गया (लगभग एक सौ वर्ष पूर्व) तब से इनकी संख्या इतनी बढ़ी है कि अब ये सर्वप्रमुख जन्तु हो गये हैं। बाद में इनकी संख्या की बाढ़ को रोकने के लिए परभक्षी लोमड़ी को लाया गया परंतु इसका कोई खास प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है। उड़ानविहीन Emu पक्षी यहाँ के विशिष्ट प्राणी हैं।

6. न्यूजीलैण्ड शीतोष्ण घास क्षेत्र – का विकास मौलिक रूप में दक्षिणी द्वीप के पूर्वी भाग तथा उत्तरी द्वीप के मध्यवर्ती भाग में हुआ था। जिसमें गुच्छेदार घासों का सर्वाधिक विकास हुआ था परंतु विगत सौ वर्षों में मानव ने इन्हें पूर्णतया बदल दिया है। इस समय घासों की दो प्रमुख किस्में पायी जाती हैं –

(i) short tussock grasses (प्रमुख प्रजातियाँ-festuca तथा poa) 0.5 मीटर ऊँची होती हैं तथा पीले-भूरे रंग की होती हैं

(ii) tall tussock grasses-उच्च भागों पायी जाती हैं (प्रमुख प्रजाति-Chiomechloa)। इस बायोम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शाकाहारी स्तनधारी जन्तुओं का पूर्णतया अभाव है (क्योंकि यह द्वीप सदा से अन्य स्थलीय भागों से अलग रहा है)। प्रारम्भ में यहाँ पर दैत्याकार उड़ानरहित moss पक्षियों का निवास था परंतु नवागन्तुक मानव द्वारा इनका शिकार इतने बड़े पैमाने पर हुआ कि अब ये विलुप्त हो गये हैं।

शीतोष्ण कोणधारी वन बायोम-इसे टैगा वन बायोम भी कहते हैं। यह बायोम शीतोष्ण बायोमों का सबसे उत्तरी बायोम (दक्षिण गोलार्द्ध में नहीं पाया जाता है) जिसे टैगा बायोम भी कहते हैं। इसका विस्तार उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया में शीत महाद्वीपीय अथवा उपध्रुवीय जलवायु प्रदेशों में पाया जाता है। कोणधारी वृक्ष, वनस्पतियाँ में सबसे प्रभावशाली हैं। इनके चार प्रमुख वंश (genera) यथा-spruce (picea), pine (Pinus), fir (Abies) तथा larch (Larix) वनस्पति समुदाय की अधिकांश संरचना करते हैं। इन कोणधारी वृक्षों के साथ शीतोष्ण पर्णपाती कठोर लकड़ी वाले वृक्षों के वंश भी (alder-Almus, birch-Betula, popular-populus) आपस में समिश्र रूप में पाये जाते हैं।

ज्ञातव्य है कि इन शीतोष्ण पर्णपाती वृक्षों का विकास मौलिक कोंणधारी वृक्षों के अग्नि के कारण नष्ट होने तथा मानव द्वारा काटे जाने के कारण द्वितीयक अनुक्रम (secondary succession) के रूप में हुआ है। इस बायोम में सबसे अधिक मुलायम लकड़ी प्राप्त होती है जिसका सभी बायोमों के वृक्षों से सर्वाधिक आर्थिक महत्त्व होता है यहाँ की जलवायु की प्रमुख विशेषतायें हैं –

  • अति शीत लम्बी शीत ऋतु (कम से कम 6 महीनों का औसत तापमान शून्य अंश सेण्टीग्रेड से कम होता है)
  • शरद् काल में हिमपात
  • धरातलीय नमी के जम जाने के कारण परमाफ्रास्ट सतह का निर्माण
  • लघु अवधि वाला गर्म ग्रीष्मकाल
  • वनस्पति के वृद्धि काल का समय 50 (उत्तरी सीमा पर) से 100 दिन (दक्षिणी सीमा पर)
  • वार्षिक वर्षा में अत्यधिक क्षेत्रीय विषमता (500 से 2000 मिलीमीटर, तरल जल तथा ठोस हिम दोनों को मिलाकर) तथा
  • अत्याधिक वार्षिक तापीय विषमता (ग्रीष्मकाल में 25° सेण्टीग्रेड से शरदकाल में (-)40° सेण्टीग्रेड तक)

यहाँ की वनस्पतियों में आवृत्तिबीजी कोणधारी (gymnosperm conifers) वृक्ष सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होते हैं। पत्तियाँ सुई के समान नुकीली होती हैं ताकि शरद काल में मिट्टियों के हिमीकरण के समय वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कम हो सके। अधिकांश वृक्ष सदाबहार होते हैं। बीज शंकु के आकार की खोल में बंद रहते हैं। दनों के निचले भाग में न्यूनतम वानस्पतिक आवरण होता है। जलवायु, उच्चावच तथा मिट्टियों में विभिन्नता के साथ वृक्षों के आकार, बनावट तथा शाखाओं के प्रारूप एवं वृक्षों की प्रजातियों में पर्याप्त क्षेत्रीय विषमताएँ होती हैं। अधिकांश वृक्षों की ऊँचाई 12 से 21 मीटर के बीच होती है परंतु पर्वतीय भागों पर इनकी ऊँचाई 100 मीटर तक हो जाती है। जहाँ पर मानव द्वारा वनों की कटाई अधिक हुई है वहाँ पर शीतोष्ण पर्णपाती वनों का द्वितीय अनुक्रम विकसित हुआ है।

(i) उत्तरी अमेरिकी कोणधारी वन बायोम – का विस्तार कनाडा तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में पाया जाता है। निम्न स्थलीय कोणधारी वनों का क्षेत्र उत्तर में आर्कटिक वृक्ष रेखा (वह रेखा जिसके उत्तर क्षैतिज रूप में तथा ऊपर लम्बवत् रूप में, शरद् काल इतना लम्बा होता है कि वृक्ष का उगना तथा बढ़ना सम्भव नहीं हो पाता है) अर्थात् वृक्ष रहित टुण्ड बायोम की दक्षिणी सीमा से प्रारंभ होकर दक्षिण में शीतोष्ण पर्णपाती वनों की उत्तरी सीमा के मध्य विस्तृत क्षेत्रों में पाया जाता है। सबसे उत्तर में लार्च तथा स्यूस के झुरमुट पाये जाते हैं। इनके दक्षिण में खुले कोणधारी वनों का विकास हुआ है। इनमें black spurce तथा white spruce बिखरे रूपों में पाये जाते हैं।

वनावरण विरल होता है। धरातल पर झाड़ियों, माँस तथा लाइकेन (lichens) का घना आवरण विकसित हुआ है। इस मण्डल में विशुद्ध कोणधारी वनों का अति घना आवरण पाया जाता है जिसमें white spruce, black spruce तथा blasam fir का प्रभुत्व होता है। ज्ञातव्य है कि इस कोणधारी वन बायोम के उक्त तीनों मण्डलों में वृक्ष प्रकारों तथा मृदा प्रकारों में पूर्ण सह संबंध पाया जाता है यथा-उर्वर तथा उत्तम प्रवाह वाली मिट्टियों में white spruce तथा blsam fie, रेतीली मिट्टियों में Jack pines, निचले परंतु छिछले गतॊ में दलदलों का विकास हुआ है जिनके किनारों पर black spruce के समूह विकसित होते हैं।

(ii) यूरेशिया के शीतोष्ण कोणधारी वन बायोम – का विस्तार पश्चिमी में उत्तरी स्कॉटलैण्ड से प्रारम्भ होकर स्कैडिनेविया तथा यूरोपीय रूस से होता हुआ पूर्व में साइबेरिया के पूर्वी भाग तक पाया जाता है। इसका सर्वाधिक विकास साइबेरिया में उत्तर से दक्षिण 1600 किमी. चौड़ी मेखला में (जो पश्चिम से पूर्व में फैली है) हुआ है। उत्तरी अमेरिका की भांति ही इसमें भी उत्तर से दक्षिण तीन मण्डलों (ऊपर इसका उल्लेख किया जा चुका है) का विकास हुआ है। यूरोपीय शीतोष्ण कोणधारी वन बायोम में वनस्पतियों के प्रकार तथा वितरण हिमानी मिट्टियों (प्लीस्टोसीन हिमानीकरण के समय जनित) के असमान वितरण से पूर्णतया प्रभावित हुए हैं। रेतीली मिट्टियों में पाइन तथा चिकनी मिट्टी तथा दुमट मिट्टियों से स्यूस वृक्षों का विकास हुआ है।

इनके बीच में स्थित झीलों के किनारों पर एल्डर, बर्च तथा विलो का विस्तार पाया जाता है। स्कैण्डिनेविया के समस्त क्षेत्रफल के 50 प्रतिशत भाग पर शीतोष्ण कोंणधारी वन बायोम का विस्तार पाया जाता है। यहाँ पर प्रमुख प्रजातियाँ हैं-Scots pine, Norway spurce तथा birch एशियाई भाग (साइबेरिया) में प्रमुख प्रजातियाँ हैं-फर, स्यूस, पाइन, लार्च तथा मध्य साइबरिया में, जो सबसे सर्द भाग है, कोणधारी वृक्षों के स्थान पर शीतोष्ण पर्णपाती वनों (बर्च तथा लघु लार्च) का विकास हुआ है।

शीतोष्ण कोणधारी वनों में वनस्पतियों का आदर्श स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। घने तथा बंद वनों में धरातलीय आवरण न्यूनतम होता है परंतु खुले वनों में कुछ शाकीय पादपों, बौनी झाड़ियों तथा मॉसेस का विरल आवरण, धरातल पर पाया जाता है । इस वन बायोम की पॉडजॉल विशिष्ट मृदा होती है। इसका निर्माण भूमि तल पर पत्तियों, वृक्षों के गिरे तनों के टूटे भाग, वृक्षों, फलों के शंकु तथा वृक्षों के छालों के वियोजक जीवों द्वारा वियोजन, ह्यूमस के निर्माण, जल द्वारा अपक्षालन (leaching या eluviation) आदि द्वारा होता है।

इसका रंग काला या गहरा भूरा होता है। ऊपरी आवरण, जो मृदा के A सतह (A horizon) के ऊपर होता है, में जैविक पदार्थों का बाहुल्य होता है। A मंडल में जल के साथ जैविक पदार्थों का अपक्षालन द्वारा नीचे गमन होता है। अत: यह मण्डल अपक्षालन मण्डल (leaching horizon) कहा जाता है। B मंडल विनिक्षेपण मण्डल (illuviation horizon) होता है जिसमें लोहा तथा एल्यूमिनियम के यौगिक, क्ले तथा घमस तत्वों का जमाव होता है। इसका रंग नारंगी भूरा होता है।C मंडल में आधारभूत शैल आंशिक रूप से अपक्षयित होती है। सबसे निचला D मंडल में आधारभूत शैल का बना होता है।

टैगा या शीतोष्ण कोणधारी बायोम के प्राथमिक उपभोक्ता प्राणियों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –

  • वृक्षों के रस चूसने वाली प्रजातियाँ यथा (aphids) तथा
  • घास चरने तथा वृक्षों की कोपलों को खाने वाली प्रजातियाँ।

इन प्राणियों की आहार ग्रहण करने वाली प्रक्रियाओं से वनस्पतियों पर कुप्रभाव पड़ता है। वृक्षों से रस चूस लेने से वृक्षों में तरल पदार्थों के संचार में व्यवधान हो जाता है तथा विपत्रता (defoliation, पत्तियों का गिरना) द्वारा पत्तियों के कम हो जाने से प्रकाश संश्लेषण में कमी हो जाती है। नयी कोपलों के भक्षण के कारण भी नयी . शाखाओं तथा टहनियों एवं पत्तियों की वृद्धि कम हो जाती है। कुछ प्राणी पुष्पों तथा फलों को खा जाते हैं तथा भक्षण के समय अधिकांश को काटकर नीचे गिरा देते हैं जिस कारण पौधों की पुनर्जनन क्षमता घट जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ पौधे समाप्त हो जाते हैं तथा कुछ संख्या में कम हो जाते हैं, जिस कारण पादप समुदाय का संघटन ही बदल जाता है।

वन बायोम को प्रभावित करने की मात्रा के आधार पर इस बायोम के प्राणियों को तीन वर्गों में विभक्त किया जाता है –

  • सर्वप्रभावी (dominant)
  • प्रभावी (influents) तथा
  •  गौण प्रभावी (minor influents)।

सर्वप्रभावी पौधों को प्रत्यक्ष रूप से इतना प्रभावित करते हैं कि पादप समुदाय का संघटन ही बदल जाता है। इस श्रेणी के प्रमुख प्राणी बड़े आकार वाले शाकाहारी जन्तु होते हैं यथा-moose I प्रभावी प्राणियों में रीढ़वाले बड़े मांसाहारी प्राणी आते हैं (मनुष्य भी इस श्रेणी में आता है)। गौण प्रभावी प्राणी ज्यादातर बिना रीढ़ वाले मांसाहारी प्राणी तथा परजीवी प्राणी होते हैं। शाकाहारी बड़े जन्तुओं में caribou तथा moose प्रमुख होते हैं। कीटों की कई प्रजातियाँ भी सर्वप्रभावी प्राणियों की श्रेणी में आती हैं क्योंकि ये वृक्षों का विपत्रण द्वारा उनकी छालों तथा जड़ों का भक्षण करके, तनों तथा शाखाओं में छेद करके नुकसान पहुँचाते हैं। इस तरह के कीटों में larch sawfly, pine sawfly, spruce budworms आदि प्रमुख हैं।

Black fly परिवार के कीट कई स्तनधारी प्राणियों तथा पक्षियों के शरीर से खून चूसते हैं। प्रभावी प्राणियों में बड़े आकार वाले परभक्षी (predators) मांसाहारी जन्तु होते हैं यथा timber wolf, lynx गलितमांसभक्षी (scavengers) जन्तुओं में bears तथा wolverines (Gulo gulo) प्रमुख है। गौणप्रभावी प्राणियों में स्तनधारी जन्तु तथा पक्षी आते हैं-यथा-spruce grouse (उत्तर अमेरिका में), caparcaillic (यूरेशिया में) शंक्वाकारा पत्तियों को खाते हैं: red squirrels (बीजों का भक्षण करते हैं), crosbil आदि । इस तरह के प्राणियों का भक्षण करने वाले (predators) जन्तुओं में गिलहरियों को खाने वाले pine marten छोटे पक्षियों का शिकार करने वाले cwls तथा hawks प्रमुख हैं।

शरद तथा ग्रीष्म काल में कई प्राणियों का मौसमी प्रवास होता है। यहाँ की जलवायु तथा प्राणियों की संरचना में सह-सम्बन्ध पाया जाता है अर्थात् प्राणियों के शरीरों की संरचना इस तरह की होती है कि वे शीतकाल की कठोरता को सहन कर सकें। अधिकांश प्राणी मोटी खाल, घने तथा लम्बे बाल वाले होते हैं। इन्हें समूरदार जानवर (fur animals) कहते हैं (यथा mink, marten तथा beaver)। जैसे-जैसे दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ते जाते हैं जन्तुओं का आकार बढ़ेता जाता है ताकि वे अति शीत दशाओं को सहन कर सकें।

मौसमी परिवर्तन के साथ आहार की आपूर्ति की समस्या भी होती है। शीतकाल में जबकि धरातलीय मिट्टियाँ जम जाती हैं तथा धरातल पर हिमाच्छादन हो जाता है तो धरातलीय लघु पादपों का आवरण बर्फ के नीचे ढंक जाता है तथा प्राणियों के लिए आहार संकट हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में कुछ प्राणी शीतनिद्रा (hibermation) में चले जाते हैं अर्थात् भूमि के नीचे चुपचाप निष्क्रिय पड़े रहते हैं। कुछ छोटे rodents बर्फ की परत के नीचे हो जाते हैं परंतु बर्फ से ढंकी झाडियों तथा मॉसेस से अपना आहार ग्रहण करते रहते हैं। कुछ प्राणी (यथा beavers) जाड़े के लिए पहले से ही आहार का संग्रह कर लेते हैं।

टण्डा बायोम – टुण्ड्रा का शाब्दिक अर्थ होता है बंजर भूमि (barren ground)। इस बायोम में वर्ष भर सूर्यातप तथा सूर्य प्रकाश का अभाव रहता है जिस कारण वानस्पतिक विकास न्यूनतम होता है। वृक्षों का सर्वथा अभाव रहता है। कम से कम आठ महीनों तक
Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 15 पृथ्वी पर जीवन
(A = निम्न टुण्ड्रा, B = मध्य टुण्ड्रा, C = उच्च टुण्ड्रा तथा D = वृक्ष टुण्ड्रा)
धरातल पूर्णतया हिमाच्छादित रहता है। तापमान हिमांक से नीचे रहता है। तेज बर्फानी हवायें चलती हैं। वनस्पति विकास का समय 50 दिन से भी कम होता है। मृदा सदा हिमीकृत अवस्था में होती है। इस तरह के सदा हिमीकृत धरातल को परमाफ्रास्ट कहते हैं।

आर्कटिक टुण्ड्रा का विस्तार उत्तरी अमेरिका तथा यूरेशिया के उत्तर में स्थायी ध्रुवीय हिमावरण तथा दक्षिण में शीतोष्ण कोणधारी वन बायोम की उत्तरी सीमा के मध्य पाया जाता है जिसके अन्तर्गत अलास्का, कनाडा का सुदूर उत्तरी अंचल, यूरोपीय रूस तथा साइबेरिया के उत्तरी भाग आते हैं। इनके अलावा आर्कटिक द्वीपों पर भी इस बायोम का विस्तार हुआ है। आर्कटिक टुण्डा में वार्षिक वर्षा 400 मिलीमीटर से कम होती है। टुण्डा बायोम को दो प्रकारों में विभक्त किया जाता है-आर्कटिक टुण्डा बायोम तथा अल्पाइन टुण्ड्रा बायोम (यह उच्च पर्वतों पर पाया जाता है, इसकी स्थिति उष्ण कटिबंध से लेकर शीतोष्ण कटिबंधीय पर्वतों पर वृक्ष रेखा के ऊपर होती है)। यहाँ पर केवल आर्कटिक टुण्ड्रा बायोम का ही उल्लेख किया जा रहा है।

वृक्ष रेखा के उत्तर जाने पर जलवायु की बढ़ती कठोरता के साथ वनस्पतियों में भी तेजी से परिवर्तन होता जाता है। अतः आर्कटिक टुण्ड्रा को दक्षिणी सीमा से उत्तरी सीमा तक तीन मण्डलों में विभक्त करते हैं (दक्षिण से उत्तर की ओर) निम्न आर्कटिक टुण्डा, मध्य आर्कटिक टुण्ड्रा तथा उच्च आर्कटिक टुण्डा (ज्ञातव्य है कि निम्न, मध्य तथा उच्च, अक्षांशों के मान के प्रतीक हैं)। चित्र 15.5 में कनाडा के आर्कटिक टुण्ड्रा बायोम के विभिन्न मण्डलों को प्रदर्शित किया गया है।

निम्न टुण्डा आर्कटिक टुण्डा का सबसे दक्षिणी मण्डल होता है जिसके अन्तर्गत उत्तरी कनाडा का अधिक भाग, उत्तरी अलास्का, कनाडा के द्वीपों (बैंक्स द्वीप, विक्टोरिया द्वीप, बैफिन द्वीप) के दक्षिणी भाग, दक्षिण ग्रीनलैण्ड, साइबेरियन प्रायद्वीप आदि सम्मिलित किये जाते हैं। उच्च टुण्ड्रा के अन्तर्गत कनाडा के द्वीपमण्डल (archipelago) के उत्तर में स्थित द्वीपों (यथा क्वीन एलिजाबेथ समूह के द्वीप) को सम्मिलित किया जाता है। इसमें वनस्पति छिटपुट रूप में पायी जाती है जिसमें mosses, lichens तथा कठोर शाकीय झाड़ियाँ (यथा avens saxifirages आदि) पायी जाती हैं। वृक्षों का सर्वथा अभाव पाया जाता है। मध्य टुण्डा का विस्तार उक्त दो मण्डलों के मध्य पाया जाता है।

टुण्ड्रा बायोम में भी मृदा में नमी की स्थिति तथा वनस्पति के बीच पूर्ण सहसम्बन्ध पाया जाता है। लिथोसोल (पूर्ण प्रवाह युक्त मिट्टी जिसमें आधार शैल पतली होती है) में lichens तथा mosses का शुष्क समुदाय (xeric community) विकसित होता है; बॉग मृदा में sedges तथा mosses का विस्तार पाया जाता है।

आर्कटिक टुण्ड्रा में शीत की कठोरता तथा सूर्य प्रकाश के अभाव के कारण समस्त विश्व की कुल पादप प्रजातियों की मात्र 3 प्रतिशत पादप प्रजातियाँ ही विकसित हो पायी हैं। यहाँ की वनस्पतियाँ शीतानुकूलित (cryophytes) होती हैं अर्थात् इनमें अतिशीत दशाओं को सहन करने की सामर्थ्य होती है। N.Pollumin (1959) के अनुसार आर्कटिक टुण्ड्रा में शीतानुकूलित पदार्थों के 66 परिवार पाये जाते हैं। उत्तर की ओर जाने पर शौत की कठोरता बढ़ती जाती है तथा पादप प्रजातियों की संख्या भी कम होती जाती है। अधिकांश पादप अनुच्छेदार होते हैं तथा ऊँचाई 5 से 8 सेंटीमीटर तक होती है। ये जमीन से चिपके रहते हैं क्योंकि धरातल का तापमान ऊपर स्थित वायु के ताप से अपेक्षाकृत अधिक होता है।

झाड़ियाँ प्रायः उन भागों में विकसित होती हैं जहाँ पर हिम का ढेर उन्हें तेज चलने वाली बर्फानी हवाओं से बचा सके । इसमें आर्कटिक विलो प्रमुख हैं। इनके तने तथा पत्तियाँ मृदा स्तर के ऊपर कुछ सेण्टीमीटर तक होती हैं। इनकी वृद्धि दर अत्यंत मन्द होती है परंतु इनकी आयु बहुत अधिक होती है (150 से 300 वर्ष पुराने पादपों के उदाहरण मिले हैं)। सदाबहार पुष्पी पादपों का विकास धरातल के गद्दे के रूप में होता है। इनमें प्रमुख है-माँस कैम्पियन । टुण्ड्रा के छ पादप प्रजातियों में गूदेदार पत्तियाँ होती हैं। Saxifirage प्रजाति के कुछ पादपों का विकास गुच्छों के रूप में होता है जबकि कुछ चटाई की तरह भूमि पर क्षैतिज रूप में फैलते हैं (यथा-Dryas octopetala)

आर्कटिक टुण्ड्रा के पादपों का विकास काल लघु ग्रीष्मकाल (50 दिन तक) होता है। जिस समय इनके अवयवों का विकास, फूलों का खिलना, परागण, बीजों का बनना, उनका पकना तथा अन्ततः विसरण आदि सभी क्रियायें सम्पादित होती हैं।

आर्कटिक टुण्ड्रा बायोम के प्राणियों को दो प्रमुख वर्गों में रखा जा सकता है –

  • स्थायी निवासी (residents) तथा
  • प्रवासी (migrants)

शीतकाल में अधिकांश प्राणी टुण्डा छोड़कर दक्षिणी भागों में प्रवास कर जाते हैं। स्पष्ट है कि प्राणियों में मात्र वे ही शरद् काल में यहाँ टिक पाते हैं जिनकी विशिष्ट शारीरिक संरचना कठोर शीत से बचाव करने में समर्थ होती है। इस तरह स्थायी प्राणियों के शरीर के बाह्य भाग में फर या पंखों का घना आवरण होता है जो इनके लिए लिहाफ (रजाई) का कार्य करते हैं। Musk ox (ovibus muschatus) स्थूल शरीर वाला शाकाहारी जन्तु होता है जिसको शरीर पर कोमल ऊन का बना आवरण होता है तथा मोटे बाल बाहर निकले रहते हैं।

ये बाल इतने लम्बे होते हैं कि इस जन्तु के खड़ा होने पर भूमि को छू जाते हैं। ऊन तथा बालों का यह घना आवरण सर्दी तथा नमी के लिए अप्रवेश्य होता है, अतः यह जन्तु कठोर शीत से अपना बचाव कर लेता है। ग्रीष्मकाल के आते ही यह आवरण गिर जाता है तथा जन्तु फटेहाल दिखाई पड़ता है। आर्कटिक लोमड़ के शरीर पर फर का दुहरा आवरण होता है जिस कारण वह -50° सेण्टीग्रेड तक तापमान को सहन कर लेता है एवं कठोर शीतकाल में लेमिंग तथा खरगोशों का शिकार करने में व्यस्त रहता है। स्थायी पक्षियों में घने पंख होते हैं (यथा-Ptarmigan पक्षी) । छोटे पक्षी अपने रोयेदार पंखों को फुलाकर तथा फड़फड़ाकर शीत से अपनी रक्षा करते हैं।

कुछ स्थायी प्राणी वर्ष के विभिन्न मौसमों में अपना रंग बदल देते हैं। Ptarmigan पक्षी अपने पंखों का रंग साल में तीन बार बदलता है। आर्कटिक लोमड़ तथा Stoat (mustela erminea) का रंग ग्रीष्मकाल में भूरा होता है तथा शरद् काल में श्वेत हो जाता है। कुछ स्तनधारी जन्तुओं (यथा-रीक्ष तथा कैरिबू) के पैर का निचला भाग (जिस पर रोयें नहीं होते हैं) इस तरह का बना होता है कि उससे होकर शरीर की ऊष्मा बाहर न निकल सके (insulated feet) छोटे आकार वाले rodents, lemmings, shrews तथा volces बर्फ में बिल बनाकर रहते हैं ताकि भक्षकों से बच सकें।

आर्कटिक टुण्ड्रा के अधिकांश जन्तु प्रवासी (migrants) होते हैं। जब शरद् काल प्रारम्भ होता है तो ये दक्षिण की ओर वन वाले भागों में भ्रमण कर जाते हैं तथा ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ होते ही अपने मूल स्थान में वापस लौट आते हैं। सबसे पहले प्रवास करने तथा पुनः वापस आने वाले प्राणियों में पक्षी प्रमुख होते हैं। (water, fowl, ducks, swans तथा geese की कई प्रजातियाँ)। कुछ पक्षी वसंतकाल में आगमन के समय दक्षिणी भाग से अपने वास्य क्षेत्र में वापस आने से पहले ही जोड़े खा लेते हैं (लैंगिक सम्पर्क)। कुछ पक्षी अपने उसी घोंसले में वापस आ जाते हैं जिन्हें वे शीतकाल के समय छोड़ जाते हैं।

चूँकि ग्रीष्मकाल छोटा होता है और इसी लघु समय के अन्तर्गत घोंसला बनाना, सहवास (सम्भोग) करना, अण्डे देना, उनको जनना तथा नवजात शिशुओं को चारा चुगाना आदि सभी कार्य सम्पादित करना होता है अत: इनके जोड़ों (नर तथा मादा) का प्रेमालाप लघु समय तक ही सीमित रहता है। कुछ पक्षी प्रवास के समय अत्यधिक दूरी तक जाते हैं। इनमें सर्वप्रमुख हैं-आर्कटिक टर्न (Sterna paradisaea)।

ये ग्रीष्मकाल में अपने मूल आर्कटिक टुण्डा वास्य क्षेत्र में प्रवाप करती हैं तथा शीतकाल के प्रारम्भ होते ही अपना स्थान छोड़कर दक्षिणी गोलार्द्ध में अण्टार्कटिका तक पहुंच जाती हैं (इस समय दक्षिण गोलाई में ग्रीष्मकाल होता है)। स्पष्ट है कि आर्कटिक टर्न एक ही वर्ष में दो बार ग्रीष्मकाल तक लाभ उठोती है। कीटों में mosquitoes, midges, blackflies आदि प्रमुख हैं। ग्रीष्मकाल में छोटे-छोटे जलीय भण्डारों, दलदलों तथा नदियों में इनके लार्वा का अपार समूह विकसित हो जाता है जो पक्षियों का प्रमुख आहार है।

भ्रमणशील तथा प्रवासी बड़े जन्तुओं में रेण्डियर तथा कैरिबू सर्वप्रमुख हैं। ये शीतकाल में शीतोष्ण कोणधारी वनों में रहते हैं तथा इसी समय नर तथा मादा में सहवास होता है परंतु बच्चों का जनन ज्यादातर ग्रीष्मकाल में टुण्ड्रा प्रदेश में होता है । ग्रीष्मकाल के प्रारम्भ होते ही caribou भारी झुण्डों में उत्तर की ओर चल पड़ते हैं तथा सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके टुण्डा आवास में पहुंचते हैं तथा मादा caribou यहाँ बच्चे जनती हैं।

शरद् काल के आगमन होते ही इनके झुण्ड पुनः दक्षिण की ओर चल पड़ते हैं। स्पष्ट है कि यह प्रवास आहार की प्राप्यता तथा अप्राप्यता के फलस्वरूप होता है। इनके सामूहिक भ्रमण के समय रीछों का इन पर आक्रमण होता है तथा लंगड़े, कमजोर तथा कुछ गर्भवती मादा कैरिबू को रौछ पकड़ लेते हैं तथा खा जाते हैं। ग्रीष्मकाल में टुण्ड्रा बायोम में कॅरिबू पर मच्छरों तथा खून चूसने वाले कीटों का भी भयानक आक्रमण होता रहता है। इनसे बचने के लिए ये बार-बार जल में शरण लेते हैं।

अति लघु वृद्धि काल (growing period), न्यूनतम सूर्यातप तथा सूर्य प्रकाश, मिट्टियों में पोषक तत्त्वों (यथा नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस) का अभाव, अविकसित मृदा, मृदा में नमी का अभाव, हिमीकृत धरातल परमाक्रास्ट) आदि के कारण इस आर्कटिक टुण्ड्रा बायोम में न्यूनतम प्राथमिक उत्पादकता होती है। V.D. Alexandrova (1970) के आकलन के अनुसार उच्च आर्कटिक तथा निम्न आर्कटिक टुण्ड्रा में प्राथमिक उत्पादकता (Primary productivity केवल वनस्पतियों की) क्रमशः 142 ग्राम तथा 228 ग्राम (शुष्क भार) प्रति वर्ग मीटर प्रतिवर्ष है। स्पष्ट है कि इस कम उत्पादकता के कारण शाकाहारी जन्तुओं के भोजन की आपूर्ति नहीं हो पाती है, अतः ये मौसमी प्रवास करते हैं।

सागरीय बायोम – सागरीय बायोम की कुछ ऐसी विशिष्ट विशेषताएँ होती हैं (जो प्राय: स्थलीय बायोम में नहीं होती है) जो यहाँ के जीव समुदायों (पादप तथा प्राणी दोनों) को प्रभावित करती हैं। महासागरीय जल का तापमान 0° से 30° सेण्टीग्रेड के बीच रहता है। सागरीय जल ‘में घुले पोषक लवण तत्त्वों की अधिकता होती है। सागरीय बायोग में जीवन तथा आहार श्रृंखला एवं आहार जाल, सूर्य प्रकाश, जल, कार्बन डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन की सुलभता पर आधारित होता है। ये सभी कारक मुख्य रूप से सागर की ऊपरी सतह में ही आदर्श स्थिति में सुलभ होते हैं।

प्रकाश नीचे जाने पर कम होता जाता है तथा 200 मीटर से अधिक गहराई पर जाने पर पूर्णतया समाप्त हो जाता है। इसी ऊपरी सतह (प्रकाशित मण्डल-photiczone) में प्राथमिक उत्पादक पौधे (हरे पौधे, फाइटोप्लैंकटन प्रकाश संश्लेषण द्वारा आहार पैदा करते हैं) तथा प्राथमिक उपभोक्ता जूप्लैंक्टन भी इसी मण्डल में रहते हैं तथा फाइटोप्लैंकटन का सेवन करते हैं। अधिक गहराई में रहने वाले प्राणी अवसादों पर निर्भर करते हैं।

सागरीय बायोम प्रकार – सूर्व प्रकाश, पोषक तत्त्वों, कार्बन डाइऑक्साइड तथा ऑक्सीजन की सुलभता के आधार पर सागरीय भागों में विभिन्न प्रकार के आवासों (वास्य क्षेत्र) का निर्माण होता है जिनमें विभिन्न प्रकार के पादप तथा प्राणी समुदाय रहते हैं। मुख्य रूप से सागरीय बायोम को दो प्रमुख विभागों में अलग करते हैं –

  • पेलैजिक बायोम तथा
  • नितलीय बायोम (benthic biome)

गहराई तक पादप जीवन के आधार पर पलैजिक बायोम को दो उपभोगों में अलग किय जाता है –

  • तट तल बायोम (fertic biome), यह महाद्वीपीय मग्न तटों का भांग होता है जिसमें जल की गहराई 200 मीटर तक होती है) तथा
  • खुला सागर बायोम।

प्रकाश के दृष्टिकोण से सागरीय बायोम को दो प्रमुख भागों में विभक्त करते हैं –

  • प्रकाशित बायोम (euphotic या photic biome) तथा
  • अप्रकाशित बायोम (aphotic biome)।

महाद्वीपीय मग्न तट का समस्त लम्बवत् भाग प्रकाशित होता है। यदि सागरीय बायोम के दो विभागों (पेलैजिक तथा बेन्थिक) को ध्यान में रखा जाये तो सागरीय बायोम के निम्न उपविभाग हो सकते हैं।

A. पेलैजिक बायोम – सागर तल से सागर तली तक का समस्त जलीय भाग। इसके निम्न उपभोग होते हैं –

  • प्रकाशित बायोम या ऊपरी पेलैजिक बायोम-गहराई 200 मीटर तक। महाद्वीपीय मग्न तट भी इसी श्रेणी में आता है। इस समस्त मण्डल में सूर्य प्रकाश पहुँता है परंतु ऊपर से नीचे जाने पर उसकी मात्रा तथा तीव्रता घटती जाती है।
  • अप्रकाशित मण्डल या बायोम-इसकी गहराई 200 मीटर से नीचे की ओर सागरतली तक होती है जो विभिन्न महासागरों एवं सागरों में अलग-अलग होती है। इसमें निम्न गौण मण्डल होते हैं अधिक तथा पूर्ण अन्धेरा होता है। मात्र जीवप्रदीप्त प्रकाश (bioluminescence) ही होता है।
  • अति गहरे पेलैजिक मण्डल-गहराई 6000 मीटर तक होती है।

B. सागरतलीय बायोम (Benthic biome) – इसमें सागरतलीय भाग को सम्मिलित करते हैं। इसके तीन उप-विभाग होते हैं – बेलांचली मण्डल (Littoral zone) –

  • इसके अन्तर्गत सागर तट तथा किनारे का वह भाग आता है जो उच्च ज्वार तथा निम्न ज्वार तल के बीच होता है।
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    चित्र : सागरीय बायोम के प्रकार (जे. डब्लू. हेजपेथ, 1957 के अनुसार)
  • उपवेलांचली मण्डल (Sub-littoral zone) – इसके अन्तर्गत महाद्वीपीय मग्न तट में जल के नीचे स्थित स्थलीय (तलीय भाग) भाग आता है।
  • गहरे तलीय मण्डल (Deep sea benthic zone) – इसके तीन उपमण्डल होते हैं
    (i) Archinenthal zone – महाद्वीपीय मग्न तट से 1000 मीटर की गहराई पर स्थित तलीय भाग।
    (ii)Abyssal benthic zome – 100 मीटर से 6000 मीटर तक गहराई पर स्थित तलीय भाग।
    (iii) Hadal zone – 6000 से 7000 मीटर तक गहराई पर स्थित तलीय भाग। यह मुख्य रूप से महासागरीय गहरी खाइयों की तली को प्रदर्शित करता है।

C. सागरीय जीवों (पादपों तथा जन्तु दोनों) को उनके आवास के आधार पर तीनों कोटियों में विभक्त किया जाता है।

  • प्लैंकटन – ये प्रकाशित मण्डल में जल में उतारन वाले सूक्ष्मस्तरीय पादप तथा जन्तु होते हैं।
  • नेक्टन – इसके अन्तर्गत बड़े आकार वाले तथा शक्तिशाली तैरने वाले जन्तु आते हैं (मछलियाँ आदि) जो सागर के प्रत्येक मण्डल में घूमते रहते हैं।
  • बेन्चस – इसके अन्तर्गत उन पादपों तथा जन्तुओं को सम्मिलित करते हैं जो सागर तली पर रहते हैं।

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प्रश्न 2.
आपके स्कूल प्रांगण में पाए जाने वाले पेड़, झाड़ी व सदाबहार पौधों पर एक संक्षिप्त लेख लिखें और लगभग आधे दिन यह पर्यवेक्षण करें कि किस प्रकार के पक्षी इस वाटिका में आते हैं। क्या आप इन पक्षियों की विविधता का भी उल्लेख कर सकते हैं।
उत्तर:
इस परियोजना कार्य को अपने अध्यापकों की सहायता से स्वयं करें। मदद के लिए परियोजना कार्य (i) देखें।

Bihar Board Class 11 पृथ्वी पर जीवन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘कृषि पारिस्थितिकी’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कृषि फसलों तथा पर्यावरण के मध्य संबंध को कृषि पारिस्थितिकी कहते हैं। फसलों के प्रकार जलवायु, ऋतु तथा किसान के चुनाव पर निर्भर हैं।

प्रश्न 2.
अप्रकाशी क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
महासागरों में 2000 मीटर की गहराई तक स्थित जल क्षेत्र कम प्रकाश पाता है. जो प्रकाश संश्लेषण के लिए अपर्याप्त है। इस क्षेत्र को अप्रकाशी क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 3.
हरे पौधे को उत्पादक क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
सभी जीव भोजन निर्वाह के लिए भोजन ऊर्जा तथा पदार्थ दोनों की ही आपूर्ति करता है। हरे भरे पौधे प्रकाश संश्लेषण द्वारा कार्बोहाइड्रेट पैदा करते हैं तथा प्रोटीन और वसा का संश्लेषण करते हैं। इसलिए इन्हें उत्पादक कहा जाता है।

प्रश्न 4.
प्रथम उपभोक्ता किसे कहते हैं?
उत्तर:
शाकाहारी घटक मुख्य रूप से अपना भोजन पौधों से प्राप्त करते हैं, प्रथम उपभोक्ता कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
जैवमंडल के अजैविक घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अजैविक घटक मुख्य रूप से जलवायु तथा मृदीय कारक हैं। जलवायु कारकों में तापमान, आर्द्रता, वर्षा तथा हिमपात को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 6.
पारिस्थितिक की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
पर्यावरण तथा जीवों के बीच पारस्परिक क्रियाओं के अध्ययन को पारिस्थितिकी कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्रकाश संश्लेषण की परिभाषा दें।
उत्तर:
पौधों द्वारा प्रकाश ऊर्जा का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल को कार्बोहाइड्रेट में बदलने की क्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

प्रश्न 8.
पारिस्थितिक तंत्र के घटकों के दो वर्ग बताएँ।
उत्तर:
प्रारिस्थितिक तंत्र के दो मुख्य वर्ग हैं –

  1. जैव (Organic)
  2. अजैव (Inorganic)

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प्रश्न 9.
कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
मानव द्वारा कृत तंत्र को पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। मानव ने अन्य जीवों की तुलना में पर्यावरण को अत्यधिक बदला है। इस परिवर्तन के कारण ही इसे कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।

प्रश्न 10.
‘सुपोषी झील’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उथली झीलें, जो जैविक उत्पादों के संचय में समृद्ध हैं, सुपोषी झीलें कहलाती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
महासागरों का जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं –

  1. महासागर धरातल, तापमान तथा आर्द्रता पर प्रभाव डालते हैं।
  2. महासागर सौर ऊर्जा का संचय करते हैं।
  3. मालसागरों में ऊर्जा के अवशोषण और निष्कर्षण की विशाल क्षमता है।
  4. समुद्र तट पर तापांतर बहुत कम होता है।
  5. महासागरीय धाराएँ तटीय क्षेत्रों के तापमान को कम करने में मदद करती हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक पर्यावरण तथा मानवीय (कृत्रिम) पर्यावरण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
पर्यावरण के दो प्रकार हैं –

  • प्राकृतिक पर्यावरण
  • कृत्रिम पर्यावरण

प्राकृतिक पर्यावरण से अभिप्राय प्राकृतिक तत्त्वों से है। जैसे-भूमि, वायु, वनस्पति, जल, मिट्टी आदि। इन शक्तियों द्वारा पृथ्वी पर वातावरण के ऐसे तत्त्व उत्पन्न होते हैं जो मानवीय जीवन पर प्रभाव डालते हैं। पर्यावरण वास्तव में एक ही है, परंतु जब मानव इस दृश्य में प्रवेश करता है तो वह इस पर्यावरण को अपनी इच्छा से प्रभावित करता है। पर्यावरण को मानवीय पर्यावरण कहा जाता है। इसमें जनसंख्या, परिवहन, बस्तियाँ आदि सम्मिलित हैं।

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प्रश्न 3.
मरुस्थलीय बायोम पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
मरुस्थलों की विशेषता अत्यधिक कम वर्षा का होना तथा उच्च वाष्पन है। कम वर्षा के कारण वर्षा से प्राप्त जल भी पौधों तक पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचता। दिन अत्यधिक गर्म और रात ठंडी होती है। तापमान का मौसमी उतार-चढ़ाव काफी होता है। मरुस्थलों में पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु कम होते हैं। विभिन्न प्रकार के एकॉशया, कैक्टस, यूफोर्बियाज तथा अन्य गूदेदार वनस्पति मरुस्थल में मिलते हैं। इस बायोम में पाए जाने वाले मुख्य जीव हैं-चीटियाँ, टिड्डियाँ, ततैये, बिच्छ, मकड़ी, छिपकली, रटल साँप तथा अनेक कीटभक्षी पक्षी जैसे-बतासी और अबाबील, बटेर, बत्तख, मरु चूहे, खरगोश, लोमड़ी, गीदड़ तथा विभिन्न प्रकार की बिल्लियाँ ।

प्रश्न 4.
जलीय पारिस्थितिक तंत्र, स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
जलीय पारिस्थितिक तंत्र खुले महासागरों से लेकर छोटे-छोटे जलाशयों तक है तथा इनमें खारापन, गहराई तथा तापमान के उतार-चढ़ाव को दशाएँ पाई जाती हैं । समुद्री तथा अलवण जलीय पर्यावरण में भी अनेक पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिनकी सीमाएँ अतिव्यापी हैं। जलीय पर्यावरण के साथ जीवों के अनुकूलन में अंशों तथा विविधता की दृष्टि से काफी अंतर होता है। कुछ प्राणी पूरी तरह जल में रहते हैं; जैसे-मछलियाँ कुछ प्राणी जल तथा स्थल दोनों पर रहते हैं। अजैविक कारकों की दृष्टि से जलीय पारिस्थितिक तंत्र तथा स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र काफी भिन्न हैं। यहाँ रहने वाले समुदायों में भारी अंतर है।

प्रश्न 5.
महासागरीय द्रोणियों में किस प्रकार का पर्यावरण पाया जाता है?
उत्तर:
महासागरीय ट्रोणियों में प्रमुख तीन पर्यावरणों की पहचान की गई है –

  1. वेलांचली क्षेत्र – तट से महाद्वीपीय शेल्फ के किनारे तक की समुद्री सतह।
  2. नितलस्थ क्षेत्र – महाद्वीपीय ढाल तथा अप्रकाशी एवं वितलीय क्षेत्र तक विस्तृत समुद्री सतह।
  3. वेलापवर्ती क्षेत्र – इसमें महासागरीय द्रोणी का जल शामिल है।

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प्रश्न 6.
प्लवक क्या होते हैं?
उत्तर:
पल्वक वे तैरते हुए जीव हैं जिनके पास स्वयं गतिशील होने का कोई साधन नहीं होता। ये जलधाराओं के साथ गति करते हैं। ये सक्ष्म आकार के जीव होते हैं। ये दो प्रकार को होते हैं-पादप प्लवक तथा प्राणी प्लवक । ये नदी तथा सरिताओं में पाए जाते हैं। पादप प्लवक स्वपोषी जीव होते हैं। डायटम प्लवक वर्ग के पौधे हैं। ये सूक्ष्म होते हैं। ये उप-आर्कटिक तथा अंटार्कटिक क्षेत्र के ठंडे जल में तेजी से पनपते हैं।

प्रश्न 7.
प्राकतिक वातावरण तथा मानवीय वातावरण में क्या अंतर है?
उत्तर:
वातावरण के दो प्रकार हैं –

  • प्राकृतिक वातावरण
  • मानवीय वातावरण

प्राकृतिक वातावरण से तात्पर्य प्राकृतिक तत्त्वों से है। जैसे-भूमि, वायु, वनस्पति, जल, मिट्टी आदि । इन शक्तियों द्वारा पृथ्वी पर वातावरण के ऐसे तत्त्व उत्पन्न होते हैं जो मानवीय जीवन पर प्रभाव डालते हैं। वातावरण यथार्थ में एक ही है, परंतु जब मानव इस दृश्य में प्रविष्ट होता है तो वह इस वातावरण को अपनी इच्छा से प्रभावित करता है। इस वातावरण को मानवीय वातावरण कहा जाता है। इसमें जनसंख्या, परिवहन, बस्तियाँ, धर्म आदि सम्मिलित हैं।

प्रश्न 8.
पारिस्थितिक तंत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रकृति के विभिन्न संघटक जीवन तथा विकास के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। स्थलाकृतियाँ, वनस्पति तथा जीव-जन्तु एक-दूसरे से मिलकर एक वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं। यह वातावरण पृथ्वी पर विभिन्न रूपों में ऊर्जा उत्पन्न करने में सहायक होता है जो जीवों के विकास में सहायता करता है। इस प्रकार स्थलाकृतियों, वनस्पति एवं जीव-जन्तुओं में एक चक्र पाया जाता है जिससे हमें पृथ्वी के जैविक पहलू को समझने में सहायता मिलती है।

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प्रश्न 9.
पारिस्थितिकी संतुलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी पर विभिन्न भौगोलिक संघटकों में एक जीवन चक्र होता है। पहले वे उत्पन्न होते हैं, विकसित होकर प्रौढ़ावस्था में पहुँचते हैं तथा फिर समाप्त हो जाते हैं। यह चक्र एक लम्बे समय में समाप्त होता है। जीव-जन्तु, वनस्पति, पौधे आदि विकसित होकर एक अंतिम चरण में पहुंच जाते हैं। इस अवस्था में सभी जीवों की जल, भोजन, वायु आदि आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। जैव संख्या तथा वातावरण के बीच एक संतुलन स्थापित हो जाता है। इस अवस्था को पारिस्थितिकी संतुलन कहते हैं। इस अवस्था के पश्चात् इन संघटकों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 10.
पारिस्थितिक समर्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
खाद्य श्रृंखला में एक स्तर से दूसरे स्तर तक ऊर्जा के रूपान्तरण के प्रतिशत को पारिस्थितिक समर्था कहते हैं। खाद्य श्रृंखला में चार प्रकार के स्तर पाए जाते हैं। सर्वप्रथम स्तर में आधार स्तर पर प्राथमिक पौष्टिक होते हैं। द्वितीय स्तर पर शाकाहारी होते हैं। तृतीय स्तर पर मांसाहारी तथा चतुर्थ स्तर पर अन्य मांसाहारी होते हैं। इनमें 5% से 20% तक ऊर्जा का रूपांतरण होता है। इसका तात्पर्य यह है कि शाकाहारी निचले स्तर से केवल 10% ऊर्जा प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 11.
प्रकृति का संतुलन कैसे बना रहता है?
उत्तर:
प्रकृति का संतुलन-प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए भोजन की उपलब्धता मुख्य कारक है। यह संतुलन गतिशील है और इसमें उतार-चढ़ाव कुछ सीमाओं के भीतर होता रहता है। कोई भी जीव पृथक् न रहकर अपने ही जीवों की संगत में रहता है। इसका पारिस्थितिक क्षेत्र जैविक पर्यावरण की अनुकूलता पर निर्भर करता है। जैविक पर्यावरण विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के मध्य पारस्परिक क्रियाओं की उपज है।

पृथ्वी पर विभिन्न भौगोलिक संघटकों में एक जीवन चक्र होता है। पहले वे उत्पन्न होते हैं, विकसित होकर प्रौढ़ावस्था में पहुंचते हैं तथा फिर समाप्त हो जाते हैं। जीव-जन्तु, वनस्पति, पौधे आदि विकसित होकर एक अंतिम चरण में पहुंच जाते हैं। इस अवस्था में सभी जीवों की जल, भोजन, वायु आदि आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं। जीव तथा प्रकृति के बीच एक संतुलन हो जाता है। इस अवस्था को पारिस्थितिकी संतुलन या प्रकृति-संतुलन कहते हैं।

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प्रश्न 12.
जैव मंडल में ऊर्जा का प्रवाह कैसे होता है?
उत्तर:
जैवमंडल में ऊर्जा प्रवाह-प्रकृति में ऊर्जा प्रकाश संश्लेषित जीवों के माध्यम से प्रवेश करती है और एक जीव से दूसरे जीव को भोजन के रूप में दी जाती है। वे जीव जो सूर्य के प्रकाश का ट्रैप करते हैं, उत्पादक कहलाते हैं। ट्रेप की गई ऊर्जा का कुछ भाग प्राथमिक उपभोक्ताओं द्वारा लिया जाता है। पशु पेड़-पौधों से अधिक सक्रिय होने के कारण ऊर्जा के अधिकतर भाग को अन्य घटक द्वारा उपयोग किए जाने से पहले ही कर लेते हैं। ऊर्जा स्थानांतरण में खाद्य श्रृंखला से ऊर्जा का कुछ भाग लुप्त हो जाता है।

इस प्रकार ऊर्जा की मात्रा एक स्तर से अगले स्तर पर स्थानांतरित होने पर घटती जाती है। मृत जीवों का अपघटन रासायनिक ऊर्जा का विमोचन करता है। अन्त में समस्त और ऊर्जा, जो उत्पादकों के माध्यम से जैविक संसार में प्रवेश करती है अजैविक संसार को प्रकाश के रूप में नहीं बल्कि उष्मा के रूप में वापस कर दी जाती है।
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प्रश्न 13.
पारिस्थितिक तंत्रों की क्या-क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर:
पारिस्थितिक तंत्रों की सीमाएँ-पारिस्थितिक तंत्र में निवेश एवं उत्पादन का अध्ययन इसकी सीमाओं को आर-पार किया जा सकता है तथा सुविधा के लिए इसे पृथक् अस्तित्व में देखा जाता है। पारिस्थितिक तंत्र की सीमाएँ अस्पष्ट तथा अतिव्यापी हैं। ऊर्जा तथा पदार्थों का एक पारिस्थिक तंत्र से दूसरे पारिस्थितिक तंत्र में संचलन होता रहता है। यह संचलन नजदीक अथवा दूर के पारिस्थितिक तंत्र से हो सकता है। ऊर्जा एवं पदार्थों का संचलन, जैविक, जलावायविक अथवा भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

हिमालय क्षेत्र से भारी मात्रा में मृदा गंगा, यमुना तथा बह्मपुत्र जैसी नदियों द्वारा अपने डेल्टाओं में लाई जाती हैं। साइबेरिया से सारस भारत (भरतपुर) प्रवास करते हैं। गहरे महासागरीय अवसाद में उत्पन्न हुआ फास्फोरस शैवाल-क्रस्टेशियाई-जलकाक खाद्य श्रृंखला द्वारा स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र की ओर परिवहित किया जा सकता है। पृथ्वी पर उपस्थित हजारों पारिस्थितिक तंत्र आपस में जुड़े हुए हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पर टिप्पणियाँ लिखें –

  • तुंगता के अनुसार बायोम
  • मानवकृत पारिस्थितिक तंत्र
  • मितपोषणी झीलें
  • पारिस्थितिक तंत्रों की सीमाएँ

उत्तर:
1. तुंगता के अनुसार बायोम – टुण्ड्रा बायोम की शृंखला हिमालय (एशिया), एंडीज (अमेरिका) तथा रॉकीज (उत्तरी अमेरिका) जैसी पर्वत श्रेणियों के ढालों पर भी देखी जा सकती हैं। इस पर्वत श्रेणियों पर बायोम प्रकार में धीमा परिवर्तन अक्षांश के स्थान पर ऊँचाई का अनुसरण करता है। इन बायोमों के निर्धारण में तापमान तथा वर्षण की दर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण निर्धारक हैं। उष्णकटिबंधीय पर्वतों में पेड़-पौधों के समुदाय तथा इनकी दशाएँ पर्वत के आधार से हिमरेखा तक इस प्रकार हैं-उष्णकटिबंधीय वन (भारत में तराई क्षेत्र); पर्णपाती वन; शंकुधारी वन तथा टुण्डा बनस्पति।

2. मानवकृत पारिस्थितिक तंत्र – मानव ने पर्यावरण को इतना अधिक बदला है कि इसे मानवकृत पारिस्थितिक तंत्र कहा जाता है। पौधों एवं जीव-जन्तुओं सहित गाँव एवं शहर फलोद्यान एवं बागान, उद्यान एवं पार्क आदि मानवकृत स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र हैं। बड़े बाँध और जलाशय, झीलें, नहरें, छोटे मत्स्य तालाब और जल जीवशाला मानवकृत जलीय पारिस्थितिक तंत्र के उदाहरण हैं। जैविक समुदाय में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संशोधन आग का प्रयोग, पौधों के उगने तथा पशुओं के पालने से आया है। कृषि ही समस्त मानव सभ्यता की जड़ है और यही सभ्यता का पोषण भी करती है। मानव ने वनों तथा घास भूमियों के विशाल क्षेत्रों को चुने हुए पौधों, जैसे अनाज, दालें, तिलहन तथा चारा, पैदा करने के लिए शस्य भूमि में बदल दिया है।

मानवकृत सभी पारिस्थितिक तंत्र, जिसमें कृषि पारिस्थितिक तंत्र सम्मिलित हैं, काफी सरल एवं अत्यधिक सक्षम हैं। इनमें प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र की विविधता का अभाव है। एक ही प्रकार की फसल जलाभाव, बाढ़, बीमारियों, नाशक जीवों अथवा भूमि पर रहने वाले कीटों द्वारा पूरी तरह नष्ट हो सकती हैं।

3. मितपोषणी झीलें – झील एवं तालाब प्रत्येक बायोम में मिलते हैं। ये अलवणीय जलाशय हैं। अपेक्षाकृत उथली झीलें जैविक उत्पादों के संचय में समृद्ध हैं, इन्हें सपोषी झीलें कहते हैं। गहरी झीलें जिनके दोनों किनारों के ढाल तीव्र तथा पथरीले हों, परिसंचरित पोषण असे फॉस्फेट में निर्धन होते हैं। इन्हें मितपोषणी झीलें कहते हैं। इन झीलों के भौतिक कारक अवस्थिति, ऊँचाई और आस-पास के बायोम पर निर्भर करते हैं। कुछ झीलें खारे जल वाली होती हैं, जैसे राजस्थान की सांभर झील। अलवणीय तालाबों में स्वपोषी सूक्ष्म पादपप्लवक भी पाए जाते हैं।

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प्रश्न 2.
अंतर स्पष्ट कीजिए –

  1. प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता एवं द्वितीय श्रेणी का उपभोक्ता
  2. जैविक तथा अजैविक कारक
  3. खाद्य शृंखला तथा खाद्य जाल।

उत्तर:
1. प्रथम श्रेणी का उपभोक्ता एवं द्वितीय श्रेणी का उपभोक्ता में अंतर –
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2. जैविक तथा अजैविक कारक –
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3. खाद्य शृंखला तथा खाद्य जाल।
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प्रश्न 3.
अंतर स्पष्ट कीजिए –

  1. स्थलीय तथा जलीय पारिस्थितिक तंत्र
  2. समुद्री तथा अलवणीय जल पर्यावरण
  3. टैगा तथा टुंड्रा।

उत्तर:
1. स्थलीय तथा जलीय पारिस्थितिक तंत्र में अंतर –
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2. समुद्री तथा अलवणीय जल पर्यावरण –
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3. टैगा तथा टुंड्रा –
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प्रश्न 1.
बिहार में सबसे पहली फिल्म किसने बनाई थी और उस फिल्म का नाम क्या था?
उत्तर-
बिहार में सबसे पहली फिल्म ‘छउमेला’ और ‘पुनर्जन्म’ थी और इसके निर्माता महाराजा जगनाथ प्रसाद सिंह ‘किंकर’ थे।

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प्रश्न 2.
बिहार की सबसे पहली डाक्यूमेंट्री फिल्म कौन थी ?
उत्तर-
महाराज जगन्नाथ सिंह ने देव और छठ मेले पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई थी।

प्रश्न 3.
फिल्म-निर्देशक प्रकाश झा का संक्षिप्त परिचय दें।
उत्तर-
प्रकाश झा हिन्दी फिल्म जगत के दो-चार वैसे निर्देशकों में हैं जिन्होंने हिन्दी फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय सोद्देश्यता से जोड़ा है। प्रकाश झा के निर्देशन का प्रारंभ ‘हिप हिप हुरे’ से हुआ था जिसमें उनके व्यावसायिकता मुक्त रुझान का पता चला था। उसके बाद उन्होंने दामुल, मृत्युदंड, परिणति, बंदिश, राहुल, गंगाजल और अपहरण के द्वारा फिल्म-निर्देशन तथा अपनी परिष्कृत अभिरुचि के अनेक नूतन आयामों से हिन्दी सिनेमा संसार को परिचित कराया है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 7 बिहार का सिनेमा संसार

प्रश्न 4.
सिनेमा जगत में भोजपुरी फिल्मों के योगदान का संक्षिप्त परिचय कीजिए।
उत्तर-
जगन्नाथ सिंह के बाद भोजपुरी सिनेमा का दौर शुरू हुआ। भोजपुरी फिल्मों के दौर में ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढुइबो’ निर्माता विश्वनाथ शाहाबादी और ‘लागी नाहीं छूटे राम’ जैसी फिल्में बनती हैं। गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो और लागी नाहीं छूटे राम के गीत-संगीत वाली लोकप्रियता आज तक किसी अन्य । भोजपुरी फिल्म को प्राप्त न हो सका।

भोजपुरी फिल्म निर्माण के एक दूसरे दौर में अशोक चन्द्र जैन और मुक्ति नारायण पाठक ने अनेक भोजपुरी फिल्में दी थीं। उस दौर में ‘गंगा किनारे मोरा गाँव’, ‘दूल्हा गंगा पार के’, ‘दंगल’, ‘सुहाग, बिंदिया’, ‘गंगा आबाद रखिह सजनवा के’, ‘बिहारी बाबू’ आदि फिल्में बनी थीं।

प्रश्न 5.
अभिनय के क्षेत्र में सिनेमा को बिहार का योगदान पर एक संक्षिप्त टिप्पणी दें।
उत्तर-अभिनय के क्षेत्र में कुणाल सुपर स्टार बनकर उभरे थे। वर्तमान दौर में मनोज तिवारी और रवि किशन ने अभूतपूर्व अभिनय क्षमता प्रदर्शित की है और भरपूर प्रसिद्धि भी पाई है।

प्रश्न 6.
शत्रुघ्न सिन्हा और मनोज वाजपेयी में आप क्या अंतर पाते हैं?
उत्तर-
शत्रुघ्न सिंहा विलेन के रोल में प्रतिष्ठा पा चुके हैं। मनोज वाजपेयी के अभिनय में जीवंतता दिखाई देती है। यही दोनों कलाकारों में अन्तर है फिर भी ये बिहार के गौरव हैं।

प्रश्न 7.
हिन्दी सिने संसार में शत्रुघ्न सिन्हा के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बिहार के शत्रुघ्न सिन्हा ने रािने संसार के विविध क्षेत्रों में समृद्धि तथा स्तरीयता दी है। शत्रुघ्न सिन्हा पटना के कदमकुआँ क्षेत्र के निवासी हैं। इन्होंने सिने संसार को जो अभिनय से ख्याति दी है वह अवर्णनीय है।

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प्रश्न 8.
‘अध्ययन में सिनेमा का महत्व’ इस विषय पर एक निबंध लिखें।
उत्तर-
अध्ययन के क्षेत्र में सिनेमा का अत्यधिक महत्व है। इससे बेरोजगारी की समस्या हल हो सकती है। बालोपयोगी चीजें भी दिखाये जाते हैं जिससे बच्चों का भविष्य सँवर सकता है। साहित्य के क्षेत्र में, गीतकार, पटकथा और संवाद लेखन की अपार संभावनाएँ विकसित होती हैं। सिनेमा में साहित्य की खोज करके अध्ययन के क्षेत्र को विकसित किया जाता हैं। सिनेमा यों तो मनोरंजन के साधनों में से एक है लेकिन अगर इसका साहित्यिक अध्ययन किया जाय तो नये समाज का निर्माण हो सकता है और समाज की सभी दुर्भावनाएँ समाप्त हो सकती हैं।

अध्ययन की दृष्टि से सिनेमा में बहुत सारे तथ्य छिपे हुए रहते हैं जिससे सामाजिक परिवर्तन, रूढ़िवादिता का अन्त, समाजसुधार की आवश्यकता, छुआछूत का अन्त, धार्मिक कुप्रवृत्तियों का अन्त, आपसी भाईचारा, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना इत्यादि कार्य की जानकारी मिलती है और इसके निदान के उपाय भी मिलते हैं। अध्ययन की दृष्टि से सिनेमा का अध्ययन बहुत ही उपयोगी है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 6 बिहार में नाट्यकला

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 6 बिहार में नाट्यकला Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

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Bihar Board Class 9 Hindi बिहार में नाट्यकला Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
बिहार में नाट्य कला के विकास में प्राथमिक महत्वपूर्ण योगदान किसका रहा है?
उत्तर-
‘बिहार बंधु’ नामक पत्रिका के संपादक केशवराम भट्ट ने 1876 ई. में ‘पटना नाटक मंडली’ नामक संस्था की स्थापना की। इस संस्था से बिहार में साहित्यिक सामाजिक गंभीरता वाले सोद्देश्य रंगमंच के विकास में प्रमुख योगदान मिला है। पटना सिटी निवासी पं. जगन्नाथ शुक्ल ने बिहार में नाटक और रंगमंच के विकास में प्रारंभिक योगदान किया था।

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प्रश्न 2.
चतुर्भुज के नाटक के क्षेत्र में योगदान के महत्व बताइए।
उत्तर-
बख्तियारपुर से अपनी रंगयात्रा का प्रारंभ करने वाले चतुर्भुज जी अपने व्यक्तित्व द्वारा जितने गहरे तक हिन्दी रंगमंच को प्रभावित किया उतना उनके समकालीन अन्य किसी से संभव नहीं हो सका। बख्तियारपुर में ही चतुर्भुज जी की एक नाटकीय प्रस्तुति को देखकर स्व. पृथ्वीराज कपूर ने उनकी प्रस्तुती तथा अनेक अभिनेताओं की खुली प्रशंसा की थी। चतुर्भुज के लिखे अनेक नाटकों ने बिहार के गाँवों के शौकिया नाटककारों में भी अभूतपूर्व लोकप्रियता पायी थी। तब बिहार के गाँवों में ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ के बाद सबसे ज्यादा मंचन चतुर्भुज जी के ही नाटकों का हुआ करता है। इन नाटकों के राष्ट्रीयता, सामाजिक विषमता का विरोध, नारी जागरण आदि तत्कालीन विषय हुआ करते थे। रंगमंच पर प्रस्तुतीकरण की दृष्टि से अत्यन्त कठिन माने जाने वाले जयशंकर प्रसाद के ‘चंद्रगुप्त’ नाटक का भी चतुर्भुज जी ने सफल मंचन किया था। चतुर्भुज जी की नाट्य संस्था का नाम था ‘मगध कलाकार’।

प्रश्न 3.
पटना इप्टा की स्थापना किन लोगों ने की थी?
उत्तर-
डॉ० एस० एम० घोषाल, डॉ० ए० के० सेन और ब्रजकिशोर प्रसाद ने 1947 ई० में ‘पटना इप्टा’ की स्थापना की।

प्रश्न 4.
बिहार के नाटक के विकास में केशवराम भट्ट के योगदान का परिचय दीजिए।
उत्तर-
केशवराम भट्ट थियेटर कम्पनियों से प्रभावित भी हुए थे और उनकी व्यावसायिकता तथा स्तरहीनता की आलोचना भी किया करते थे। 1987 में उन्होंने ‘पटना नाटक मंडली’ नामक नाट्य संस्था की स्थापना की। भट्ट जी स्वयं नाटक लिखते थे।

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प्रश्न 5.
आरा के किस नाटककार ने ‘मनोरंजन नाटक मंडली’ की स्थापना की थी और किस ईस्वी सन् में किस नाटक का मंचन किया था?
उत्तर-
आरा के पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा ने 1914 ई. में ‘मनोरंजन नाटक मंडली, नामक नाट्य संस्था स्थापित की थी और भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के सत्य हरिश्चन्द्र’ का सफल मंचन किया था।

प्रश्न 6.
सतीश आनन्द और परवेज अख्तर की विशेषताओं का परिचय दीजिए।
उत्तर-
सतीश आनन्द ने बिहार की लोक शैलियों से हिन्दी नाटकों को जोड़ा जिनमें ‘विदेसिया’ के उनके प्रस्ततीकरण की सर्वाधिक चर्चा हई। सतीश आनन्द के द्वारा प्रारंभ किये गये प्रयोगों को निर्माण कला मंच के रांजय उपाध्याय ने भरपूर प्रतिष्ठा दिलाई। सतीश आनन्द की प्रतिभा अभिनय तथा निर्देशन के साथ ही अनुवाद के क्षेत्र में भी बिहार में अद्वितीय रही है। उन्होंने देश-विदेश की अनेक महा कृतियों के अलावा ‘गोदान’ तथा ‘मैला आंचल’ कभी राफल मंचा प्रस्तुत किया था।

परवेज अख्तर अभिनय तथा निर्देशन में लगातार ऊंचाइयाँ प्रापा करते गये। परवेज अख्तर इप्टा से जुड़े और निर्देशन में एक के बाद एक मील के पत्थर गाहते गये। उनके द्वारा निर्देशित महाभोज, हानूष, माधवी, कपिरा खड़ा बाजार में, दूर देश की कथा, मुक्ति पर्व तथा अरण्य कथा के मंचनों को बिहार के रंगमंच की अनुपम उपलब्धियों के रूप में देखा जाता है। बिहार के रंगमंच पर निर्देशन के क्षेत्र में सतीश आनन्द, परवेज अख्तर तथा संजय उपाध्याय की एक आकर्षकत्रयी बनती है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

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Bihar Board Class 9 Hindi मधुबनी की चित्रकला Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
मधुबनी चित्रकला क्या है? परिचय दीजिए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला जो कभी जमीन, भीत्ति और कपड़े तक सीमित था, धीरे-धीरे, कागज और कैनवास पर भी इसका अंकन होने लगा। पहले इन चित्रों में कलाकारों द्वारा निर्मित प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था किन्तु बाद में कृत्रिम रंगों का उपयोग होने लग गया। मिथिलांचन की इस लोकचित्रकला को मधुबनी पेंटिंग के नाम से जाना जाता है।

मधुबनी चित्रकला में रंग, विषय, शैली और चित्रकार वर्ग में विविधता भी रही _है। इनमें रेखा और रंगों के अनेक सूक्ष्म प्रयोग मिलते हैं चित्र का किनारों (बार्डर) घिरा होना अनिवार्य होता है और दुहरी रेखाओं वाली किनारी में मछली, फल, – फल, चिड़ियाँ आदि का अंकन होता है। सीमा रेखा यानि किनारी के अंदर चित्रित – दृश्य या प्रसंगों में जरूरी होता है कि रेखा और रंग से कोई स्थान खाली नहीं बचे। खाली स्थानों को भरने में प्रकृति और पशु-पक्षियों के चित्र सहायक होते हैं।

मिथिला को चित्रकारी यानि मधुबनी पेंटिंग का संबंध विभिन्न पजा-पाठ और मांगलिक अवसरों से तो रहा ही है साथ ही उसका एक प्रमुख भाग तोत्रिक उद्देश्यों से भी जुड़ा है। यहाँ के चित्रों में चार महादेवियों-महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली और चामुण्डां के चित्रांकन के साथ ही साथ काली, कमला, तारा, छिन्नमस्ता, मातंगी, पोडशी, भैरवी, भुवनेश्वरी, धूमावती और बगुलामुखी इन दसों के चित्रांकन की भी परंपरा रही है।

मिथिलांचल की यह मधुबनी चित्रकला रेखा प्रधान चित्र होने के कारण इसमें रेखा या रंग की अस्पष्टता दृष्टिगोचर नहीं होती। प्रसंग या व्यक्ति के भाव की व्यंजना करा देने की प्रमुखता के बावजूद चित्र में खाली जगहों को भरने या सजावट करने में कलाकार की रुचि तथा श्रम के भरपूर प्रमाण मिलते हैं। अनार की कलम, बाँस की कूँची, सींक या बाँस की तिली में लगी रुई और स्वनिर्मित रंगों के साथ रासायनिक रंगों के सहारे ही मधुबनी चित्रकला के हजारों वर्ष के प्राचीन विरासत सरक्षित रखा गया है। बिहार की समद्ध लोक चित्रकला की परंपरा में मधबनी की रंगीन चित्रकारी को अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला

प्रश्न 2.
मधुबनी चित्रकला के कितने रूप प्रचलित हैं।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के तीन प्रमुख रूप प्रचलित हैं।
(i) भूमि आकल्पन (ii) भित्ति चित्रण और (iii) पेंट चित्रण।
(i) भूमि आकल्पन-प्रायः हर संस्कृति में भूमि आकल्पना की परंपरा रही है। उत्तर प्रदेश में ब्रज क्षेत्र, साँझी, पहाड़ी क्षेत्र की ‘आँजी’, राजस्थान में ‘मांडना’, गुजरात में ‘साँथिया’, दक्षिण प्रदेशों का ‘ओलम’, असम की ‘अल्पन’ आदि भूमि आकल्पन के रूप हैं। बिहार में ‘चौका पुरना’ कहा गया है जो पूजा-पाठ के समय कलश स्थापन की जगह अनिवार्य होता है। इसे ही मिथिला में आश्विन या अरिपन’ कहा जाता है। मिथिलांचल में यह ‘अरिपन’ किसी भी पूजा, उत्सव, अनुष्ठान या विवाह जैसे मांगलिक अवसर पर भूमि पर निर्मित्त चित्र हुआ करता है। विवाह के अरिपन में कमल, मछली, पुरइन (कमल का पत्ता), बाँस आदि के चित्र बनाये जाते हैं, अर्थात् भूमि पर किये जाने वाले चित्रांकन को भूमि आकल्पन कहते हैं। .

(ii) भित्ति चित्र : भित्ति चित्र, अर्थात् दीवारों पर बनाये जाने वाला चित्र है। भूमि चित्रों की तुलना में दीवार पर बनाये जाने वाले चित्रों में अधिक कलात्मकता होती है। इसकी भावप्रवणता और कल्पनाशीलता अधिक प्रभाव निर्माण करते हैं। भित्ति चित्र में स्थायित्व अधिक होता है। मिथिलांचल के इन चित्रों में सर्वाधिक कलात्मकता विवाहोत्सव के कोहवर लेखन में दिखाई पड़ता है। यह चतुष्कोणीय .. अर्थात् आयताकार या वर्गाकार होता है, जो अनार की डंडी की कलम तथा रुई से बनी तुलिका (ब्रस) द्वारा बनाया जाता है। मिथिला के भीत्ति चित्रों में राधाकृष्ण की रासलीला, रामसीता विवाह, जट-जटिन आदि पौराणिक और लोककथाओं का भी चित्रण होता है।

(iii) पट-चित्रण : कवि विद्यापति के समकालीन राजा शिव सिंह के काल में पट- चित्रण कला का विशेष विकास हुआ था। विभिन्न प्रसंगों के दृश्य कपड़े पर अंकित करने की उस परंपरा का ही विकास आज कागज या कैनवासों पर दिखाई. पड़ता है। पट-चित्रण की परंपरा ने मिथिलांचल की रंगीन चित्रकला को उत्कर्ष तथा प्रसिद्धि की शिखरों तक पहुँचाया है।

प्रश्न 3.
कोहबर चित्रकारी क्या है? बताइए। .
उत्तर-
कोहबर चित्रकारी भीत्ति चित्र का एक सर्वाधिक कलात्मक चित्रकारी है। नव विवाहिता दंपति सर्वप्रथम ससुराल में जिस स्थान पर एक साथ बैठते हैं उसे कोहबर कहा जाता है। कोहबर की चित्रकारी वैवाहिक अवसर पर किसी जानकार महिला द्वारा अनार की डंडी और रुई से बनी तूलिका द्वारा विभिन्न रंगों का प्रयोग करते हुए चतुष्कोणीय (वर्गाकार या आयताकार) चित्रांकन किया जाता है। कोहबर चित्रों में तीन भाग होते हैं-(क) गोसाईं घर (कुलदेवता का स्थान) (ख) कोहबर : घर और (ग) कोहबर घर का कोनिया (कोहबर का बाहरी भाग)। इन तीनों जगहों पर चित्रांकन के अलग-अलग रूप होते हैं। कोहबर चित्रांकन चतुष्कोणीय होता है जिसमें तोता, कमल का पत्ता, बाँस, कछुआ, मछली के अतिरिक्त नैना जोगिन और सामा-चकेवा के चित्रांकन की भी परंपरा है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 5 मधुबनी की चित्रकला

प्रश्न 4.
मधुबनी चित्रकला में रंग प्रयोग की विशेषता बताइए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला में रंगों के प्रयोग की विशेष भूमिका है। इन चित्रकारिता में प्रयोग होने वाले रंग चित्रकार पहले स्वयं अपने परिजनों से घर ही. बनाते थे। ये रंग-विभिन्न फूल, फल, छाल आदि से बनने वाले रंगों में करजनी की फली, दीप की फुलिया, पेवरी, रामरस, सिंदूर, नील आदि के सहारे बनाये जाते थे जिनमें बबूल के गोंद का सामान्य प्रयोग होता था। मधुबनी चित्रकला में गोमूत्र, नील, . गेरु, बकरी का दूध, कौड़ी, मोती, ताँबा, तूतिया, लाजवर्त (रत्न) आदि से बने रंगों का भी प्रयोग होता था। ..

अर्थात् मधुबनी चित्रकला में पहले कलाकारों के परिवार में निर्मित प्राकृतिक रंगों के ही प्रयोग होते थे परंतु अब उसमें कृत्रिम रंग और रासायनिक रंगों का उपयोग आरम्भ हो गया है। मिथिलांचल की इस चित्रकला में विभिन्न रंगों का प्रयोग इसे अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि में मददगार सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 5.
मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में किस चित्रकार ने विशेष भूमिका निभाई?
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला को ख्याति दिलाने में प्रसिद्ध चित्रकार उपेन्द्र महारथी ने विशेष भूमिका निभाई है। ये मिथिला के चित्रकारी से इतने प्रभावित हए कि संपूर्ण बिहार की लोक चित्रकारी पर अध्ययन करने में वर्षों समय लगा दिया। मिथिलांचल चित्रकला की विशिष्टताओं को उन्होंने उसके पूरे महत्व के साथ चित्रकला के विशेषज्ञों के समक्ष उजागर करने में विशेष भूमिका निभायी थी।

प्रश्न 6.
भूमि आकल्पन से आप क्या समझते हैं? परिचय दीजिए।
उत्तर-
‘भूमि आकल्पन’ का अर्थ है भूमि पर बनाये जाने वाला चित्र। बिहार .
में पूजा पाठ के समय कलश स्थापन की जगह पर अनिवार्य रूप से बनाया जाता है, इसे यहाँ चौका पूरना भी कहा जाता है। इस भूमि आकल्पन की परंपरा देश के प्रायः प्रत्येक प्रदेश की संस्कृतियों में दिखाई पड़ती है। महाराष्ट्र में इसे रंगोली, गुजरात में साथिया, उत्तर प्रदेश के ब्रज क्षेत्र में सांझी और पहाडी क्षेत्र में आँगी नाम से जाना जाता है। दक्षिण प्रदेशों का ओलम, असम की अल्पन आदि भूमि आकल्पना के ही रूप हैं। इसे ही मिथिला में आश्विन या अरिपन कहा जाता है। मिथिला के किसी पुजा, उत्सव, अनुष्ठान या विवाह जैसे मांगलिक अवसर का भूमिचित्र हुआ करता है। वैवाहिक अरिपन में कमल, मछली, पुरइन (कमल का पत्ता) बाँस आदि के चित्र बनाने की परंपरा रही है।

प्रश्न 7.
मधुबनी चित्रकला में खाली स्थान क्यों नहीं छोड़े जाते हैं?
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के चित्रों में खाली स्थान नहीं छोड़े जाते हैं क्योंकि लोकमान्यता है कि इन खाली स्थानों में दुष्ट आत्मायें प्रवेश न कर जायें। इसलिये चित्रों के खाली जगहों को भरने या सजावट करने में कलाकार की रुचि तथा श्रम के भरपूर प्रमाण मिलते हैं। वैसे स्थानों को फूल, पत्ते, टहनी आदि के चित्रों से भर दिये जाते है।

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प्रश्न 8.
मधुबनी चित्रकला के दलित चित्रकार वाले रूप की कुछ सामान्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
मधुबनी चित्रकला के कुछ दलित चित्रकारों ने संभ्रांत परिवार को चित्रकारिता से हट कर इसके एक स्वतंत्र रूप का विकास कर लिया है। इन दलित परिवारों की भी अपनी परंपरा रही है। ब्राह्मण एवं कायस्थ परिवारों में विकसित शैलियों में रंग और चित्रण से सूक्ष्म भिन्नतायें मिलती हैं। इन दलित परिवारों में गोबर के रस तथा काले रंग के सहारे चित्रकारी होती रही है और उनके द्वारा गृहित विषय लोकजीवन के यथार्थ से अपेक्षाकृत अधिक भरे होते हैं।

Bihar Board Class 7 Social Science Civics Solutions Chapter 8 हमारे आस-पास के बाजार

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 2 Chapter 8 हमारे आस-पास के बाजार Text Book Questions and Answers, Notes.

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Bihar Board Class 7 Social Science हमारे आस-पास के बाजार Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
रामजी की दुकान से लोग किन-किन कारणों से सामान खरीदते हैं ?
उत्तर-
रामजी की दुकान नजदीक होने के कारण गाँव के ज्यादातर लोग : यहाँ से सामान खरीदते हैं। इनकी दुकान में नमक, गुड़, चाय, चीनी, माचिस आदि रोजमर्रा की सामान मिलते हैं। रामजी गाँव के अधिकतर लोगों को पहचानते हैं इसलिए कभी-कभी उधार सामान भी दे देते हैं। इनके दुकान में सामान के बदले सामान भी मिलता है।

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प्रश्न 2.
किराने के सामान के लिए जलहरा के कछ लोग ही रामजी की दुकान पर बार-बार आते हैं। ऐसा क्यों?
उत्तर-
जलहरा गाँव में रामजी की दुकान के अलावे किराने की और भी ‘2-3 दुकाने हैं। जिसके घर से जो दुकान ज्यादा नजदीक पड़ती है, तो उस दुकान पर चले आते हैं और रामजी अपने पहचान वालों को उधार भी दे देता है।

प्रश्न 3.
बहुत कम मात्रा में सामान खरीदने पर महँगा मिलता है। उदाहरण देते हुए अपना मत रखिए।
उत्तर-
बहुत कम मात्रा में सामान खरीदने पर सामान महँगा मिलता है। उदाहरण के लिए-जैसे हम कभी कोई सामान एक साथ 5 kg. खरीदते हैं तो उसकी कीमत हमें 45 रु. बताई जाती है यानि 9.रु. 91 kg. पर अगर हम वही समान ! kg. खरीदते हैं, तो हमें उसकी कीमत 10 रु. p/kg. बताई जाती है। इससे प्रति किलो रु. ज्यादा देना पड़ता है।

प्रश्न 4.
जलहरा की दुकान और तिथरा के बाजार में क्या अंतर है?
उत्तर-
जलहरा एक छोटा गाँव है, जिसके कारण यहाँ दुकानों की संख्या भी कम है। यहाँ किराने की 3-4 दुकाने ही हैं। लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए इन दुकानों पर आश्रित होते हैं। जबकि तियरा एक बड़ा गाँव है। यहाँ लगभग 500 घर है। यहाँ पर 15-20 दुकाने हैं, जिसमें 7-8-दुकानें किराना की है। इसके अलावा कपड़ा, मिठाई, सब्जी-फल, चाय, नाश्ता आदि मिलते हैं।

प्रश्न 5.
आस-पास के गाँवों के लोग किन कारणों से तिथरा के बाजार आते हैं ?
उत्तर-
तियरा एक बड़ा गाँव है। यहाँ 15-20 दुकाने हैं जिसमें 78 दुकानें किराना की होती है। यहाँ कपडे, चाय-नाश्ता, फल-सब्जी आदि भी मिल जाती है। यहाँ ठेले पर छोटे, भंजा आदि भी मिलते हैं। इसलिए आस-पास के छोटे गाँव के लोग यहाँ आकर खरीदारी करते हैं। उन्हें इस बाजार में सभी समान मिल जाते हैं। इन बाजारों में समान की अच्छी बिक्री होती है।

प्रश्न 6.
उधार लेना कभी तो मजबूरी है, तो कभी सुविधा । उदाहरण देकर ‘समझाएँ।
उत्तर-
जब कभी अगर हम बाजार गए और हमारे पास पैसे नहीं है और हमें कोई वस्तु सस्ते दामों पर मिल जाए तो, हम कोशिश करते हैं कि उस वक्त हमें वे समान उधार में मिल जाए और अगर हमें वह वस्तु उधार में मिल जाता है तो उस वक्त उधार हमारे लिए सुविधा बन जाता है। पर अगर हमें किसी वस्तु की सख्त जरूरत हो पर उस वक्त हमारे पास पैसे नहीं हो तो उधार लेना हमारी मजबूरी बन जाती है जबकि हमें पता होता है कि उधार लेने की वजह से हमें उस वस्तु की थोड़ी अधिक कीमत चुकानी पड़ती है।

प्रश्न 7.
लोग साप्ताहिक बाजार क्यों आना पसन्द करते हैं?
उत्तर-
साप्ताहिक बाजार सप्ताह में एक बार, एक दिन और एक जगह पर लगने वाला बाजार होता है। यहाँ रोजमर्रा के उपयोग की सभी चीजें मिल जाती हैं। यहाँ एक ही समान कई दुकानों में मिलता है। इसलिए अगर कोई विक्रेता अपनी वस्तु का अधिक दाम बताता है, तो लोगों के पास दूसरे दुकान से समान खरीद लेने का विकल्प होता है।

खरीददारों के पास मोल-भाव कर वस्तु की कीमत करवाने का मौका भी होता है। यहाँ पर ज्यादातर वस्तुएँ सस्ती एवं एक ही स्थान पर मिल जाता है। अलग-अलग सामान खरीदने के लिए अलंग-अलग स्थानों पर जाने की जरूरत नहीं होती है।

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प्रश्न 8.
साप्ताहिक बाजार में वस्तुएँ सस्ती क्यों होती है?
उत्तर-
साप्ताहिक बाजार में एक ही वस्तु कई दुकानों में मिलती हैं, इसके कारण दुकानदारों में आपस में कड़ी प्रतियोगिता होती है।

प्रश्न 9.
मोल-भाव कैसे और क्यों किया जाता है ? अपने अनुभव के आधार घर टोलियाँ बनाकर नाटक करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 10.
साप्ताहिक बाजार में जाने का अनुभव लिखें।
उत्तर-
मैं एक बार अपने माता-पिता के साथ साप्ताहिक बाजार गई थी। ये बाजार क्योंकि सप्ताह में एक ही दिन लगता है इसलिए बाजार में बहुत भीड़ थी। वहाँ रोजमर्रा के सभी सामान उपलब्ध थे। एक ही जैसे सामान कई दुकानों में मिल रहे थे। सभी लोग अपनी-अपनी जरूरतों के समान खरीदने में व्यस्त थे। कुछ दुकानदार अपनी वस्तु का दाम अधिक बता रहे. थे तो लोग दूसरे दूकान की ओर जा रहे थे, तो कुछ लोग उसी दूकानदार से वस्तु का मूल्य कम करने को कह रहे थे।

सभी लोग खरीदारी करने में व्यस्त थे। वहाँ आस-पास के गाँव के लोग भी खरीददारी करने आए थे। वे लोग जल्दी-जल्दी अपने जरूरत की समान खरीद रहे थे क्योंकि उन्हें शाम तक’

अपने गाँव वापस भी लौटना था और अगर किसी का कोई परिचित व्यक्ति मिल गया तो वो बातें भी कर रहे थे और खरीददारी भी। मेरे माता-पिता ने भी अपने जरूरतों के सामान की खरीददारी की और फिर हम अपने घर लौट आए।

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प्रश्न 11.
आपके घर के आस-पास या कोई शहर के मोहल्ले की दुकानों का विवरण लिखें।
उत्तर-
मेरे घर के पास एक दुकान है। वहाँ रोजमर्रा के उपयोग में आने वाले सभी सामान उपलब्ध होते हैं। वहाँ सौंदर्य प्रसाधन से लेकर खाद्य सामग्री सभी कुछ मिलता है। उस दुकान के बाहर में फोन बूथ भी है, जहाँ से लोग फोन भी करते हैं। वहाँ के दुकानदार बहुत ही अच्छे हैं। घर के पास दुकान होने के कारण मोहल्ले के सभी लोगों से उनकी जान-पहचान हो गई है।

सभी लोग अपने उपयोग के समान वहीं से लेते हैं। उनके दुकान का सामान भी बहुत अच्छे किस्म का होता है जरूरत पड़ने पर वे हमलोगों को उधार भी देते हैं और बाद में हम उन्हें पैसे दे देते हैं। उनके दुकान में बिक्री भी अच्छी होती है।

प्रश्न 12.
साप्ताहिक बाजार और गाँव की दकानों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
साप्ताहिक बाजार सप्ताह में एक ही दिन लगता है। यहाँ पर कोई. भी व्यक्ति अपनी वस्तुएँ बेच सकता है। यहाँ पर रोजमर्रा के उपयोग के समान के साथ ही अन्य भी बहुत सारी वस्तएँ मिलती हैं। यहाँ पर लोगों को मोल-भाव कर सामान के दाम कम कराने का मौका मिलता है। अगर उन्हें लगता है कि दुकानदार वस्तुओं की कीमत कम नहीं कर रहा है, तो लोग दूसरी दुकान से सामान खरीद लेते हैं। यहाँ पर दूसरे गाँवों से लोग खरीददारी करने आते हैं।

पर मोहल्ले के दुकानों में उस मोहल्ले के लोग या उसके आस-पास के लोग ही खरीददारी करने आते हैं। यहाँ के दुकानों में रोजमर्रा के उपयोग के समान भी मिलते हैं। यहाँ पर वस्तुओं का मोल-तोल कम किया जाता है। वह दुकानें स्थायी होती हैं और प्रतिदिन खुलली है। यहाँ पर जान-पहचान की वजह से आपको उधार सामान भी मिल सकता है पर साप्ताहिक बाजार में ऐसा नहीं होता है।

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प्रश्न 13.
पूरन और जूही उस रामजी की दुकान से ही सामान क्यों खरीदते हैं?
उत्तर-
पूरन और जूही हमेशा उस दुकान से ही सामान खरीदते हैं, क्योंकि वह दुकान उनके मोहल्ले में ही हैं और वहाँ के सामान भी अच्छे किस्म के होते हैं। उस दुकान से उनके घर में एक बार में एक महीने का राशन जाता है। पूरन और जूही सामानों की लिस्ट बनाकर दुकान में दे देते हैं और सामान मिलने पर वह दुकानदार से सामानों के दाम लिखकर एक कागज पर ले लेते हैं और जब उनके पापा को वेतन मिलता है तो वे दुकानदार को पैसे दे देते हैं। दुकानदार के रजिस्टर पर भी उनके द्वारा लिए गए सामानों की लिस्ट होती है।

अपनी वस्तुओं को ज्यादा से ज्यादा बेचने के लिए वे लोग दाम कम करते हैं। जैसे-अगर कोई दुकानदार अपनी किसी वस्तु का मूल्य 10 रु. बताता है और खरीददार उसे नहीं खरीदता है तो दूसरा दुकानदार अपनी उसी वस्तु का दाम 9 रु. बताकर उसे बेच देता है। फिर यहाँ पर अलग-अलग दुकान होने से खरीददारों को मोल-भाव करने का भी पूरा मौका मिलता है और वे वस्तुओं का दाम कम करवा लेते हैं। फिर दुकानदारों को सुबह दुकान लगाकर शाम तक हटाना भी होता है इसलिए वे लोग वस्तुओं का दाम कर ज्यादा से ज्यादा वस्तुएँ बेचने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 14.
शहरों में कॉम्प्लेक्स या मॉल में लोग मोल-भाव नहीं करते हैं, क्यों?
उत्तर-
कॉम्प्लेक्स या मॉल में लोग मोल-भाव नहीं करते, क्योंकि वहाँ पर सभी सामान ब्रांडेड कंपनियों की होती है और उन सब पर एक पर्ची रहती है जिस पर उनका निश्चित दाम लिखा रहता है।

प्रश्न 15.
मॉल के दुकानदार और मोहल्ले के दुकानदार में क्या अंतर है?
उत्तर-
मॉल के दुकानदार और मोहल्ले के दुकानदार में बहुत अंतर होता । है। मॉल के दुकानदार से आप वस्तुओं के कीमत को कम करवाने के लिए मोल-भाव नहीं कर सकते हैं। मॉल के दुकानदार आपको एक बार में महीने… भर का सामान देकर बाद में पैसे नहीं ले सकते, उन्हें तुरंत ही पैसा चाहिए। मॉल के दुकानदार से आप उधार सामान भी नहीं ले सकते हैं।

वहीं मोहल्ले के दुकानदार से आप वस्तुओं के मोल-भाव भी कर सकते हैं और उनसे वस्तुओं के दाम कम भी करवा सकते हैं। मोहल्ले के दुकानदार आपको एक बार में महीने भर का सामान देकर बाद में पैसे नहीं ले सकते,

उन्हें तुरंत ही पैसा चाहिए। मॉल के दुकानदार से आप उधार सामान भी नहीं

ले सकते हैं। वहीं मोहल्ले के दुकानदार से आप वस्तुओं के मोल-भाव भी कर सकते हैं और उनसे वस्तुओं के दाम कम भी करवा सकते हैं। मोहल्ले के दुकानदार से हम महीने भर का सामान एक बार में ले सकते हैं और फिर पैसे मिलने पर उन्हें पैसे दे सकते हैं। मोहल्ले के दुकानदार जान-पहचान वाले होने के कारण कभी-कभी जरूरत पड़ने पर हमें उधार भी देते हैं।

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प्रश्न 16.
ब्रांडेड सामान किन कारणों से महंगा होता है?
उत्तर-
ब्रांडेड सामान के महँगे होने का सबसे बड़ा कारण होता है उनके ब्रांड का नाम । ब्रांडेड कंपनियाँ अपने सामानों का बड़ा-बड़ा विज्ञापन करवाती है, वे अपने सामानों के अच्छे क्वालिटी के होने के दावे करती है।

जिसमें कंपनियों का बहुत पैसा खर्च होता है। फिर अपने ब्रांडेड सामानों को बेचने के लिए कंपनियाँ बड़े-बड़े शोरूम का उपयोग करते हैं। इसमें भी उनका बहुत पैसा खर्च होता है। इन्हीं सब कारणों से ब्रांडेड सामान बिना ब्रांड वाले सामान से महंगे होते हैं।

प्रश्न 17.
दुकान या बाजार एक सार्वजनिक जगह है। शिक्षक के साथ चर्चा करें।
उत्तर-
दुकान या बाजार एक सार्वजनिक जगह है क्योंकि यहाँ पर सभी तरह के लोग आ-जा सकते हैं। अपनी जरूरतों के सामान खरीद सकते हैं। यहाँ आने-जाने को लेकर किसी के ऊपर कोई बंदिश नहीं होती। सभी जाति-धर्म आदि के लोग यहाँ एक साथ आकर खरीददारी करते हैं। यहाँ शिक्षित-अशिक्षित, अमीर-गरीब किसी के ऊपर कोई बंदिश नहीं होती है। – यहाँ कोई भी आकर सामान बेच सकता और खरीद सकता है।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाजार क्या है? यह कितने प्रकार होता है?
उत्तर-
बाजार वह जगह होती है, जहाँ हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जाते हैं। हमारे चारों तरफ बाजार होते हैं। बाजार में हमारी जरूरतों के सभी सामान उपलब्ध होते हैं। बाजार में कई तरह दुकानों होते हैं, जिसमें हमें तरह-तरह के सामान मिलते हैं जैसे कपड़ा, चावल मसाला, अखबार, टी-बी-, मोबाईल, कॉपी-किताब, दवा आदि।

बाजार कई प्रकार के होते हैं-गाँव की दुकान, गाँव का बाजार, साप्ताहिक बाजार या हाट, मोहल्ले का दुकान, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और मॉल और थोक बाजार।

इन बाजारों में हम अपनी जरूरतों के हिसाब से खरीददारी करने जाते हैं। जब हमें कम सामान खरीदना होता है तो हम छोटी दुकानों से ही सामान खरीद लेते हैं और ज्यादा समान लेना होता है तो हम थोक बाजार से भी सामान खरीदते हैं।

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प्रश्न 2.
ग्राहक सभी बाजारों में समान रूप से खरीददारी क्यों नहीं पाते?
उत्तर-
ग्राहक सभी बाजार में समान रूप से खरीददारी नहीं पाते क्योंकि कछ बाजारों जैसे-साप्ताहिक बाजार में ग्राहकों को वस्तुओं के दाम के माल-भाव करने का मौका मिलता है और वे वस्तुओं के दाम कम करवा सकते हैं और दुकानदार वस्तुओं के दाम कम नहीं करता है तो वे दूसरी दुकान से सामान ले लेते हैं।

मोहल्ले के दुकानदारों से जान-पहचान की वजह से कभी-कभी उधार समान भी मिल जाता है। पर यही अगर ग्राहक चाहे की वे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स या मॉल में वस्तुओं का मोलभाव करें तो यह संभव नहीं होता क्योंकि मॉल में सामान बहुत महंगे और ब्रांडेड होते हैं। थोक बाजार में ग्राहक आसानी से मोल-भाव करते हैं, क्योंकि एक बार में ज्यादा सामान लेने पर सामानों की कीमत कुछ कम होती है।

प्रश्न 3.
बाजार में कई छोटे दुकानदार से बातचीत करके उनके काम और आर्थिक स्थिति के बारे में लिखें।
उत्तर-
बाजार में कई छोटे दुकानदार भी होते हैं, वो लोग मंडी से सामान लाकर बेचते हैं। पर उनके पास सामानों की मात्रा बहुत कम होती है। वे लोग छोटी मात्रा में खरीद-बिक्री करते हैं। उनके दुकानों में रोजमर्रा के उपयोग की सभी सामान उपलब्ध होती है। वे लोग जान-पहचान वालों को कभी-कभी उबार सामान भी द देते हैं और बाद में उनसे पैसे ले लेते हैं।

इनकी आर्थिक स्थिति कुछ खास अंच्छी नहीं होती है। क्योंकि उन्हें – ज्यादा जाम नहीं होता । वे बड़े दुकानों की तरह सामानों को आधुनिक तरीके से पैकिंग करवाकर नहीं बेचते हैं। उनके दुकानों की साज-सज्जा भी अच्छी नहीं होती है। इसलिए उनकी आर्थिक स्थिति भी साधारण ही रहती है।

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प्रश्न 4.
बाजार को समझने के लिए अपने माता-पिता के साथ आपके – आस-पास के बाजारों का परिभ्रमण करके संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर-
मैं अपने पिताजी के साथ एक बार अपने घर के पास वाले बाजार में गई थी। वहाँ सभी वस्तुएँ मिल रही थीं। कछ दुकानें छोटी थी और कछ दुकानें बड़ी थी। छोटी दुकानों में सामानों की मात्रा बहुत ज्यादा नहीं थी और वह दुकान भी बहुत ही साधारण-सी थी। वहाँ पर से आस-पास के लोग सामानों की खरीददारी कर रहे थे।

वहीं कुछ दूकानें बहुत बड़ी और आकर्षित ढंग से सजी हुई थी। वहीं कुछ दुकानों में ब्रांडेड कपडे, कुछ में ब्रांडेड जूते आदि मिल रहे थे। वहीं कुछ ठेले आदि पर भो जूते और कपड़े बेच रहे थे। वहीं पास में सब्जी और फल भी मिल रहे थे। ठेले पर चाट-पकौड़े, भुंजा ‘आदि मिल रहे थे। सभी लोग खरीददारी करने में व्यस्त थे।

प्रश्न 5.
किसी साप्ताहिक बाजार में दुकानें लगाने वालों से बातचीत करके अनुभव लिखें कि उन्होंने यह काम कब और कैसे शुरू किया? पैसों की व्यवस्था कैसे की? कहाँ-कहाँ दकानें लगाता/लगाती हैं? सामान कहाँ से खरीदता/खरीदती है ?
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

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पाठ का सार संक्षेप

हमारे आस-पास के बाजार – हमें अपने आस-पास दुकानें देखने को मिलती है। बाजार में भी दुकानें देखने को मिलती है और इन दुकानों में तरह-तरह के सामान मिलते हैं। अपने आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हमलोग बाजार जाते हैं। बाजार के कई रूप होते हैं जैसे नजदीक की दुकान, साप्ताहिक बाजार, बड़ी दुकान तथा शॉपिंग कॉम्पलेक्स आदि । इस अध्याय में हम बाजार के विभिन्न रूपों को जानेंगे।

गाँव की दूकान – गाँव में ज्यादातर छोटी-छोटी दूकानें होती है। इन दुकानों में किराने का समान जैसे – माचिस, नमक, गड, चीनी, चाय, तेल आदि मिलता है। इन दुकानों में थोड़ा बहुत उधार सामान मिलता है, पैसा न होने पर यहाँ से लोगों का काम चल जाता है बशर्ते की दुकानदार आपको पहचानता हो। इन दुकानों में सामान के बदले सामान भी मिलता है, जिसे हम ‘वस्तु “विनिपय प्रणाली’ कहते हैं। यहाँ के लोग छोटी-छोटी जरूरतों के लिए इन दुकानों पर निर्भर रहते हैं।

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शहर में मोहल्ले की दुकान – हमारे मोहल्ले में भी किराने करदकान होती है । मोहल्ले में होने के कारण ज्यादातर लोग यहीं से सामान खरीदते हैं। यहाँ भी अलग-अलग ब्रांड के साबुन, दंत मंजन, पाउडर, केश तेल आदि रखे थे। मोहल्ले की दुकान होने के लोग उससे एक महीने का सामान एक बार में ही ले लेते हैं और फिर वेतन मिलने पर एक बार में ही पूरा पैसा दे देते हैं। दुकानदार हिसाब की एक पर्ची खरीददार को दे देता है और दूसरी अपनी रजिस्टर में लिख .ना है। गेहल्ले में ऐसी भी कई दुकानें होती हैं जहाँ दूध, फल, सब्जी, खाइ पदार्थ, हा स्टेशनरी आदि वस्तुएँ मिलती है। ये स्थायी एवं प्रतिदिन खुलने – जानें होती हैं।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 4 बिहार में चित्रकला

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 4 बिहार में चित्रकला Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 4 बिहार में चित्रकला

Bihar Board Class 9 Hindi बिहार में चित्रकला Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
पटना कलम क्या है? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
बौद्ध धर्म के विकास के साथ भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक नवीन और विकसित अध्याय आरंभ होता है। इस युग में बिहार और उसकी राजधानी पाटलीपुत्र का स्थान चित्रकला में सबसे अग्रगण्य था। पटना अर्थात् पाटलीपुत्र क्षेत्र के चित्रकारों की चित्रकारी में दिल्ली वाली चित्रकारी की विशेषताएँ तो थी ही किन्तु : स्थानीय प्रभाव से इसमें कुछ विशेष व नवीन विशेषताओं का उभार आया। इसी नवीन चित्रकारी शैली को पटना शैली अर्थात् पटना कलम का नाम दिया गया। पटना कलम का तात्पर्य हुआ चित्रकारी की पटना शैली। बिहार में चित्रकला का व्यापक विकास पटना कलम के रूप में हुआ है।

पटना कलम के चित्रों में विषय के रूप में पशु-पक्षी, प्राकृतिक दृश्य, किसान, लघु व्यवसाय, नाई, धोबी, बढ़ई, लुहार, मोची, तेली, गरीब ब्राह्मण, मुनीम, जमींदार आदि के जीवन व कार्य हआ करते थे. जिसमें बिहार के वर्ग विभाजित लोक जी का यथार्थ अंकन हुआ करता था।
पटना चित्रशैली के जयराम दास, झमक लाल, फकीरचंद लाल, शिवदयाल, भैरोजी, मिर्जा निसार, मेंहदी, गुरु सहाय, सेवक राम, कन्हैया लाल, सोना कुमारी, महादेव लाल, ईश्वरी प्रसाद वर्मा और राधामोहन प्रसाद जी प्रमुख चित्रकार, शिल्पकार, मूर्तिकार आदि थे। थे। सन् 1760 से 1947 ई. तक के काल को पटना कलम के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 2.
राधामोहन बाबू के महत्व पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
बिहार में पटना चित्रशैली के अंतिम महत्वपूर्ण चित्रकार के रूप में राधामोहन जी का नाम स्वर्णाक्षरित है। यद्यपि विद्वानों ने ईश्वरी प्रसाद वर्मा को पटना कलम का अंतिम चित्रकार माना है। किन्तु वास्तविकता यह है कि महादेव लाल जी के शिष्य बाबू राधामोहन प्रसाद और ईश्वरी प्रसाद के शिष्य दामोदर प्रसाद अम्बष्ट ने पटना चित्रकारी शैली का अपनी पीढ़ी तक बखूबी निर्वाह किया है। फिर भी राधामोहन बाबू का नाम का पटना कलम में कलात्मक पुनर्जागरण की चेतना को व्यापक उभार प्रदान करने में अति महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि इन्होंने कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना पटना में करके चित्रकारी को नव-अभ्युदय प्रदान किये। राधागोहन जी का कहना है “बौद्ध धर्म के विकास के साथ-साथ भारतीय चित्रकला के इतिहास में एक नवीन और विकसित अध्याय प्रारंभ होता है और इसका विकास इतिहास मौर्यकाल तक पहुंचता है।” पाटलीपुत्र से बौद्ध प्रचारकों के साथ-साथ चित्रकार और मूर्तिकार भी बाहर भेजे जाते थे। जो बुद्ध के उपदेश और उनकी जीवनी के विविध प्रसंग मंदिरों की भित्तियों तथा स्तूपों पर चित्रमूर्ति के रूप में अंकित करते थे।

बिहार परिवर्तनों का प्रदेश रहा है। प्रवृत्ति को नया उन्मेष और धारा को नया मोड़ देने वाली विभूतियों का यहाँ कभी कमी नहीं हई ऐसे ही एक विभूति के रूप में चित्रकार राधामोहन बाबू का जन्म पटना में हुआ जो पटना चित्रशैली के ऐसी अंतिम कड़ी थे, जिन्होंने भविष्य के कलात्मक विकास के लिये एक पुख्ता स्थायी और उर्वर भूमि तैयार की थी। पटना में कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना करवा कर तो राधामोहन बाबू ने पटना चित्रकला शैली को स्थायी स्थायित्व रूप दिया।

प्रश्न 3.
चित्रकला के क्षेत्र में उपेन्द्र महारथी के महत्वपूर्ण योगदानों का परिचय दीजिए।
उत्तर-
पटना में कला और शिल्प महाविद्यालय के स्थापना के पश्चात् पूरे बिहार राज्य में कलात्मक पुनर्जागरण की चेतना का व्यापक उभार हुआ उसी दौरान उपेन्द्र महारथी जैसे बड़े कलाकार का बिहार में पर्दापण हुआ। इस प्रदेश में ये ऐसी अंतरंगता के साथ रमे कि आजन्म अपनी कला यात्रा का पल-पल बिहार की मिट्टी को समर्पित करते रहे। इस कला साधक ने अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर बिहार का नाम चित्रकारिता में सुशोभित किया।

उपेन्द्र महारथी ने चित्रकला की शिक्षा कलकत्ते में ग्रहण के दौरान ही महसूस कर लिया था कि कला को विदेशी प्रभावों से मुक्त कर राष्ट्रीय चेतना से जोड़ना आवश्यक है। इनकी चित्रकारी में भारतीय धर्म, दर्शन तथा राष्ट्रीयता का गहरा प्रभाव परिलक्षित होता है। उन्होंने अपने दरभंगा-निवास के दौरान ही मिथिला की चित्रमूर्ति आदि लोककलाओं का गहरा अध्ययन किया और उनके महत्व से लोगों को परिचित कराया। लोक कलाओं पर उन्होंने लंबे काल तक शोधपरक कार्य करते हुए बिहार तथा बंगाल के सुदूर देहाती क्षेत्रों की यात्रायें की थी। उन्होंने प्राप्त कलाकृतियों तथा शिल्पों की विशेषताओं से विशेषज्ञों को परिचित कराया था

स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ बिहार सरकार ने उपेन्द्र महारथी को उद्योग विभाग में डिजाइनर के पद पर नियुक्त कर किया और महारथी जी ने भी इस पद पर रहते हुए सिद्ध कर दिया कि चित्रकारी तथा शिल्प के अलावे वे वास्तु-कला के भी महारथी हैं। उनका डिज़ाइन किया हुआ राजगीर, शांति स्तूप, प्राकृत और जैनॉलॉजी संस्थान नालंदा और धौली (भुवनेश्वर) के शांति स्तूप उनकी राष्ट्रीयता मूलक कला-चेतना , तथा कल्पनाशीलता के कालजयी प्रमाण है।

वेणु शिल्प (बाँस कला) में विशेषज्ञता प्राप्ति के पश्चात् इन्हें राष्ट्रपति भवन के एक कक्ष को वेणुशिल्प से अलंकृत करने के लिये विशेष रूप से दिल्ली बुलाया गया था। चित्रकारी, शिल्पकर्म, अध्ययन और शोध-ये चार विशेषतायें उपेन्द्र महारथी के व्यक्तित्व के अंग थे। ये कला से संबंधित लेखन और कथा साहित्य की रचना किया करते थे। “वैशाली की लिच्छिवी”, बौद्ध धर्म का अधत्म,” और “इन्द्रगुप्त” ‘ जैसी पुस्तकों के साथ जापानी वेणु शिल्प पर भी उन्होंने एक स्वतंत्र पुस्तक लिखी थी। बिहार में कलाकर्म और शिल्पकर्म का वास्तविक उन्नयन उपेन्द्र महारथी जी द्वारा ही किया गया है ऐसा उनके कर्तृत्व द्वारा सिद्ध होता है। अतः चित्रकला के क्षेत्र में महारथी जी का योगदान उनकी महारत को भी प्रमाणित कर देता है।

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प्रश्न 4.
छापा चित्रकारी क्या है? इसके विशेषज्ञ चित्रकार कौन हैं? .
उत्तर-
छापा चित्रकारी का बिहार में शुभारंभ अत्यंत स्नेहिल तथा सरल-सहज व्यक्तित्व वाले श्याम शर्मा जी द्वारा हुआ है। सन् 1760 से सन् 1947 तक का समय पटना शैलि का समय है। समय के पटना शैली के चित्रकार राधामोहन बाबू थे। राधामोहन बाबू के साथ पटना चित्र शैली (पटना कलम) का अंत माना जा सकता है।

किन्तु उनके बाद जिन कलाकारों ने बिहार में कलाकर्म और शिल्प कर्म को बहुआयामी आधुनिकता तथा प्रयोगात्मक नवीनता से युक्त किया उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण नाम श्याम शर्मा जी का माना जा सकता है, जिनका जन्म सन् 1941 में
थरा (उत्तर प्रदेश) में हआ था। कलाशिल्प महाविद्यालय लखनऊ में इन्होंने छापा चित्रकारी में विशेषज्ञता प्राप्त कर कला और शिल्प महाविद्यालय पटना, बिहार में छापा कला के विशेषज्ञ शिक्षक के रूप में कार्य करने लग गये। छापा चित्रकारी के विशेषज्ञ चित्रकार श्याम शर्मा ही हैं।

प्रश्न 5.
पटना कला और शिल्प महाविद्यालय का परिचय दीजिए।
उत्तर-
बिहार में पटना कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना चित्रकार राधामोहन बाबू ने किया था, जो प्रवृत्ति को नवीन उन्मेष और प्रवाह को नया मोड़ देने वाले विभूतियों में से एक थे। इनका जन्म पटना में हुआ था।

पटना कला और शिल्प महाविद्यालय की स्थापना के साथ बिहार की कला और शिल्प के क्षेत्र को नवअभ्युदय के साथ एक सशक्त ज्ञान-विज्ञानशाला प्राप्त हो गया जहाँ से अनेक विश्व-विख्यात चित्रकार, मूर्तिकार, शिल्पकार, वेणु शिल्पकारों के निर्माण के साथ राष्ट्रीय व राज्य स्तर के चित्रकार शिल्पकार भी तैयार हुए। इन कलाकारों ने विश्व चित्रकारिता के क्षेत्र में गजब का प्रभाव कायम किया और मूर्तिकारों व शिल्पकारों के निए विश्वस्तरीय आकर्षण का निर्माण भी किया।

प्रश्न 6.
वेणु शिल्प क्या है? वेणु शिल्प में उपेन्द्र महारथी के महत्वपूर्ण योगदानों का परिचय. दीजिए।
उत्तर-
वेणु शिल्प अर्थात् बाँस कला, आज भी बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलायें मुंज, कुश तथा गेहूँ के डंठलों से दौरी, दौरा, डाली, मऊनी, मोढ़ा आदि विभिन्न रंगों की बना लेती हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् उद्योग विभाग में सरकारी डीजाइनर, श्री उपेन्द्र महारथी जो चित्र कला, शिल्प कला के साथ वास्तुकला के भी महारथी थे। वेणु शिल्प में जापान तक की कला यात्रा करके विशेषज्ञता प्राप्त करके वे जब वापस आये तो प्रथमतः राष्ट्रपति भवन में एक कक्ष को विशेष वेणुकला से अलंकृत करने के लिये दिल्ली बुलाये गये थे।

वेणु शिल्प कला के क्षेत्र में पेन्द्र महारथी जी का योगदान अविस्मरणीय ऐतिहासिक के साथ सांस्कृतिक भी है। कला से संबंधित लेखन तथा कथा-साहित्य की रचनायें उपेन्द्र महारथी जी के महान योगदान के साक्षी हैं। ‘वैशाली की लिच्छवी’, ‘बौद्ध धर्म का अध्यात्म’ के अलावा वेणु शिल्प जगत में एक नया अध्याय जोड़ते हुए जापानी वेणु शिल्प पर एक स्वतंत्र पुस्तक तैयार की थी। वास्तव में बिहार में कलाकर्म और शिल्पधर्म के साथ वेणु शिल्प (बॉस कला) का यथार्थ उन्नयन उपेन्द्र महारथी जी ने किया था।

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प्रश्न 7.
बिहार की चित्रकारी में डब्ल्यू. जी. आर्चर का क्या महत्त्व रहा है?
उत्तर-
बिहार की चित्रकारी में विशिष्ट स्थान रखने वाली मधुबनी चित्रकला से अंतर्राष्ट्रीय जगत को प्रथम बार परिचित कराने वाले तत्कालीन जिलाधिकारी डब्लू० जी० आर्चर थे। इन्होंने चित्रकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा के तीन सौ चित्र खरीद कर विश्वस्तर पर उन चित्रों के माध्यम से बिहार के मधुबनी चित्र कला को विश्व स्तर पर स्थापित किया। बिहार की चित्रकारी में डब्लू. जी. आर्चर अतिविशिष्ट महत्व की भूमिका निभायी है।

प्रश्न 8.
‘पटना कलम’ चित्रशैली का काल कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर-
‘पटना कलम’ चित्रशैली का काल लगभग सन् 1760 से सन् 1986 तक का माना जाता है।

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प्रश्न 9.
सामाजिक जीवन में चित्रकला के महत्व पर एक निबंध लिखें।
उत्तर-
सामाजिक जीवन में चित्रकला विभिन्न विशेष अवसरों या मांगलिक कार्यों में अथवा ज्ञानार्जन या मनोरंजन में अथवा सांस्कृतिक या ऐतिहासिक वैशिष्टय के विभिन्न प्रसंगों पर विभिन्न प्रकार को प्रभाव निर्माण करने वाली है। यह सामाजिक जीवन का दर्पण कहलाने वाली चित्रकला व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीयता या वैश्विक जीवन में नवीनता व प्रेरणा उत्पन्न करने वाली है।

चित्रकला के माध्यम से समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण और ऐतिहासिक विरासत को सुरक्षित रखता है। किसी भी क्षेत्र विशेष की संपूर्ण जानकारी एक चित्र के माध्यम से भी संभव है।

सोलह कलाओं में चित्रकला भी एक कला है। यह जीवन के रुचि-रुझान व आकर्षण का प्रतिबिंब उपस्थित करता है। जीवन में परंपरावश अथवा महत्तावश मनुष्य इस कला को अपने अंदर विकसित करता है। चित्रकला के क्षेत्र में कशलता एवं तल्लीनता से लगे लोगों की आजीविका भी पुष्ट होती है। अनेक लोगों के जीवन यापन का साधन भी यह चित्रकला है। चित्रकला हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है, जिसके माध्यम से हम वर्तमान, भविष्य और भूत काल के साक्ष्यों को छायांकित कर प्रकट करने में सक्षम हो पाते हैं। अपने परिवार और पूर्वजों के चित्र एवं प्रतिमाएँ, देवी-देवताओं या महापुरुषों के चित्र एवं प्रतिमाएँ उनके जीवन का हमें सदा स्मरण दिलाती रहती है। यह चित्रकला सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 3 बिहार में नृत्यकला

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 3 बिहार में नृत्यकला Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 3 बिहार में नृत्यकला

Bihar Board Class 9 Hindi बिहार का लोकगायन Text Book Questions and Answers

प्रश्न 1.
बिहार में प्रचलित किसी एक लोकनृत्य का परिचय दीजिए।
उत्तर-
बिहार में खासकर मिथिला में प्रचलित जट-जटिन स्त्रियों का संवादमूलक नृत्य है। वर्षा के लिए किये जाने वाले इस नृत्य में पुरुप नारी दोनों की भूमिकाएँ नारियाँ ही निभाती हैं और दर्शक भी नारियाँ ही होती हैं। इस नृत्य नाटिका के गायन की मधुर लयात्मकता तल्लीन कर देने वाली होती है।

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प्रश्न 2.
मगह में किस लोक नृत्य का प्रचलन था? एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
मगह क्षेत्र के गया जिले में नाचने-गानेवाली एक पेशेवर जाति हुआ करती थी। उस जाति की स्त्रियाँ विवाह आदि मांगलिक मौके पर बुलाई जाती थी और वे ‘खेलाडिन’ का नाच प्रस्तुत कर भरपूर पुरस्कार पाती थीं। दस-पन्द्रह के पंक्तिबद्ध समूह में वे नाचती हुई गालियाँ भी गाती थीं। वह नृत्य नवादा जिले के रजौली ग्राम में विकसित हुआ था। खलाडिने अपने नाच में विभिन्न बाजाओं का भी प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 3.
कथक नृत्य में बिहार का क्या योगदान रहा है?
उत्तर-
बीसवीं शताब्दी में हरि उप्पल नलिन गांगली. नगेन्द्र मोहिनी शिवजी मिश्र और मधुकर आनन्द जैसे बड़े साधक नर्तकों ने कथक में बिहार की अपनी विशिष्ट पहचान कायम कर दी। शांति निकेतन से मणिपुरी तथा केरल कलामंडल (केरल) से कथकली नृत्य की शिक्षा लेकर आये हरिउप्पल ने बिहार में शास्त्रीय नृत्य की प्रायः पहली ज्योति जगाई।

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प्रश्न 4.
बिहार के नृत्य जगत में हरि उप्पल का क्या महत्व रहा है?
उत्तर-
हरि उप्पल की विशेषता थी कि कथकली की कोमलता तथा मणिपुरी के वीरभाव दोनों में उन्होंने अपूर्व दक्षता प्राप्त की थी। वैसी दक्षता किसी अन्य नर्तकों में नहीं देखी गयी। बिहार में उन्होंने नृत्य का विस्तृत प्रांगण तैयार किया है।
“बिहार में उन्होंने नुत्य का जी विस्तृत प्रागण तैयार किया, उसमें नलिनी गागुला, नागन्द्र मारना आर मधुकर आनंद, जेसे उत्तक, बिहार को प्राप्त हो सके।’

प्रश्न 5.
भारतीय नृत्य कला मंदिर कहाँ है? इसकी स्थापना किसने की थी?
उत्तर-
भारतीय नृत्यकला मंदिर बिहार की राजधानी पटना में है। हरि उप्पल ने भारतीय नृत्यकला मंदिर की स्थापना की, जो नृत्य प्रशिक्षण के लिए आज एक देश का विश्वविख्यात संस्थान है।

प्रश्न 6.
कथक और भरतनाट्यम दोनों के विशेषज्ञ किसी एक बिहारी नर्तक का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
नगेन्द्र मोहिनी कथक तथा भरतनाट्यम में बिहार की एक अनुपम उपलब्धि हैं। लंबा छरहरा शरीर, आत्मीयता में पगी मधुर बोली तथा सहज स्नेहिल स्वभाव वाले मोहिनी जी दर्शक वर्ग को मोह लेने वाले नर्तक के साथ ही नृत्य शिक्षक और नत्य शास्त्र पर अनेक पुस्तकों के प्रणेता भी हैं। इन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति का आचार्य माना जाता है। नलिन गागुली, गोपीकृष्ण तथा रामजीवन प्रसाद से इन्होंने नृत्य के अनेक रूपों की शिक्षा पाई है।

प्रश्न 7.
गुड़िया नृत्य किसे कहते हैं?
उत्तर-
पटनासिटी में एक अत्यंत बूढ़े तथा पूर्णतः अपंग व्यक्ति मोथा सिंह रहते हैं, जिन्होंने गुड़िया नृत्य (मुखौटा नृत्य) का भरपूर विकास किया था। इस नृत्य में एक तरफ पुरुष और दूसरी तरफ नारी का परिधान धारण कर एक ही नर्तक नृत्य करता है। मुखौटा भी दुमुँहा होता है जिसमें एक तरफ नर का मुँह बना होता है और दूसरी तरफ नारी का। यह अत्यंत कठिन नृत्य माना जाता है फिर भी है लोकनृत्य हो। यह नृत्य जगत को बिहार की अनोखी देन है।

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प्रश्न 8.
बिहार के लोकनृत्य में भिखारी ठाकुर का क्या महत्व है?
उत्तर-
पारसी थिएटर कंपनियों के प्रभाव से पेशेवर नाच मंडलियाँ भोजपुर में विकसित हुईं जिनमें पुरुष नर्तकों के नृत्य की परंपरा बनी। भोजपुर में उसे लौंडा-नाच्च कहा जाता है। भिखारी ठाकर की मंडली वस्तुत: लौंडानाच की ही मंडली थी जिसमें उन्होंने विदेसिया आदि अनेक मौलिक नाटकों की शैलियों को विकसित किया। इसमें नाचने वाले युवक पूरी तरह नारी का वेश धारण कर नाचते हैं जिन्हें सिर्फ आवाज से पहचाना जाता है। लौंडा नाच बिहार के अन्य क्षेत्रों के अलावा उत्तर प्रदेश में भी प्रचलित रहा है।

प्रश्न 9.
नगेन्द्र मोहिनी का एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-नगेन्द्र मोहिनी कथक तथा भरत नाट्यम में बिहार की एक अनुपम उपलब्धि हैं। लंबा छरहरा शरीर, आत्मीयता में पगी मधुर बोली तथा सहज स्नेहिल स्वभाव वाले मोहिनी जी दर्शक वर्ग को मोह लेने वाले नर्तक के साथ ही नृत्य शिक्षक और नृत्य शास्त्र पर अनेक पुस्तकों के प्रणेता है। इन्हें अन्तरराष्ट्रीय ख्याति का आचार्य भी माना जाता है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 3 बिहार में नृत्यकला

प्रश्न 10.
मधुकर आनंद पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मधुकर आनंद जैसे बड़े साधक नर्तकों ने कथक में बिहार की अपनी विशिष्ट पहचान कायम कर दी। अन्तरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मधुकर आनन्द ने अपने नर्तकं पिता बलराम लाल जी से नृत्य का क ख ग सीखा और पटने में नगेन्द्र मोहिनी से कथक की विधिवत शिक्षा पाई थी। परन्तु उनकी कुछ प्रस्तुतियों को देख बिहार संगीत नाटक अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. शिवनारायण सिंह ने उन्हें विश्व-विख्यात नर्तक बिरजू महाराज के पास भेज दिया। विश्वविख्यात नर्तक गुरु की स्नेहिल देख रेख में अपनी प्रखर प्रतिभा तथा सतत साधना से मधुकरजी ने नृत्य में उस स्तर की प्रशंसाएँ पाई जिन पर बिरजू महाराज को भी गर्व है। पिछले 27 सितंबर, 2008 ई० को मधुकर जी का परलोक वास मात्र इकतालीस वर्ष की उम्र में हो गया।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 16 प्रकाश

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 16 प्रकाश Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 16 प्रकाश

Bihar Board Class 7 Science प्रकाश Text Book Questions and Answers

अभ्यास

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।

(क) जिस प्रतिबिम्ब को पर्दे पर प्राप्त किया जा सके, वह ……………. प्रतिबिम्ब कहलाता है।
(ख) उत्तल दर्पण ……………. प्रतिबिम्ब बनाता है।
(ग) यदि प्रतिबिम्ब सदैव वस्तु के आकार का बने तो दर्पण ……………. होगा।
(घ) जिस प्रतिबिम्ब को पर्दे पर न प्राप्त किया जा सके …………….. कहलता है।
उत्तर:
(क) वास्तविक
(ख) आभासी
(ग) समतल
(घ) आभासी ।

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प्रश्न 2.
अपना नाम अंग्रेजी भाषा में लिखकर उसका प्रतिबिम्ब समतल दर्पण में देखकर पता लगाएँ कि किन अक्षरों का प्रतिबिम्ब समान तथा किन का प्रतिबिम्ब भिन्न है?
उत्तर:
अपना नाम लिखें –
A B C D E F G H I J K L M N O P Q R S T U V W X Y Z .
A B C F G J L N P Q R S Y Z के प्रतिबिम्ब उल्टे बनते हैं।
ध्यान देकर अपना नाम लिखें।

प्रश्न 3.
उत्तल तथा अवतल दर्पण का उपयोग लिखिए।
उत्तर:
उत्तल दर्पण का उपयोग मोटरगाड़ियों के साइडमिरर के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। अवतल दर्पण टॉर्च, गाड़ियों के हेडलाइट, डॉक्टरी द्वारा आँख, कान, नाक, गला के निरीक्षण में इसका उपयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
उत्तल और अवतल लेंस में क्या अन्तर है?
उत्तर:
उत्तल लेंस के किनारा पतला और बीच में मोटा होता है। जब प्रकाश पड़ता है तो अन्दर की ओर मुड़ जाती है। अवतल लेंस का किनारा मोटा और बीच में पतला होता है जब प्रकाश – की किरण पड़ती है तो किरण बाहर की ओर चली जाती है।

प्रश्न 5.
वास्तविक प्रतिबिम्ब किस प्रकार का दर्पण बना सकता है ?
उत्तर:
वास्तविक प्रतिबिम्ब अवतल दर्पण बना सकता है।

प्रश्न 6.
आभासी प्रतिबिम्ब किसे कहते हैं ? उदाहरण द्वारा बताएँ।
उत्तर:
आभासी प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बनता है। समतल दर्पण और उत्तल दर्पण में प्रतिबिम्ब हमेशा आभासी बनता है। जब हम अपना चेहरा समतल दर्पण में देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि मेरे चेहरे के बराबर सीधा प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे बन रहा है।

प्रश्न 7.
समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब वस्तु के बराबर सीधा और दर्पण के पीछे जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने रखी है उतनी ही दूरी पर दर्पण के पीछे बनती है। यह प्रतिबिम्ब आभासी कहलाता है।

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प्रश्न 8.
कॉलम A में दिए गए शब्दों का मिलान कॉलम B में एक अथवा अधिक सही कथनों से कीजिए।
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उत्तर:
(क) समतल दर्पण – (iii) सीधा तथा वस्तु के आकार से छोटा प्रतिबिम्ब बनाता है।
(ख) उत्तल दर्पण – (i) सीधा तथा वस्तु के आकार के आकार का प्रतिबिम्ब बनाता है।
(ग) अवतल दर्पण – (iv) दाँतों का आवर्धित प्रतिबिम्ब बनाता है जिसके कारण दंत चिकित्सक उपयोग करते हैं।
(घ) अवतल दर्पण – (i) उल्टा तथा आवर्धित प्रतिबिम्ब बना सकता है।
(च) उत्तल दर्पण – (vi) अधिक क्षेत्र का प्रतिबिम्ब बना सकता है।

Bihar Board Class 7 Science प्रकाश Notes

किसी वस्तु को देखने के लिए प्रकाश जरूरी है। बिना प्रकाश के हम कोई भी वस्तु देख नहीं पाते हैं। प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है। प्रकाश जिस पथ पर चलती है उस पथ को किरण कहते हैं। किरणों के समूह को प्रकाश पुंज कहते हैं। टॉर्च, गाड़ियों के हेडलाइट से निकलने वाली प्रकाश किरणपुंज के रूप में होती है। जिस वस्तु से प्रकाश आर-पार हो जाए उस पदार्थ को पारदर्शक कहते हैं। जिस वस्तु से प्रकाश आर-पार न हो वैसी वस्तु को अपारदर्शक कहते हैं और जिस वस्तु से प्रकाश का कुछ अंश आर-पार और कुछ न हो तो उस वस्तु को पारभाषी पदार्थ कहते हैं।

जब कोई प्रकाश अपारदर्शक वस्तु पर पड़ती है तो प्रकाश अपना पथ बंदल देती है या लौट जाती है जिसे प्रकाश का परावर्तन कहते हैं।
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समतल दर्पण पारदर्शक पदार्थ के बने होते हैं जिसकी एक सतह पर कलई (पेन्ट) किया हुआ हो और दूसरा प्रकाश का परावर्तक, सतह समतल हो, समतल दर्पण कहलाता है।

समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब सीधा होता है। आभासी होता है और वस्तु के बराबर होता है। कोई भी पॉलिश किया हुआ अथवा चमकदार सतह दर्पण की तरह कार्य करता है। समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब दर्पण के पीछे होता है।

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गोलीय दर्पण – गोलीय दर्पण की सतह समतल नहीं होती है। गोलीय दर्पण पारदर्शक गोले का भाग है जिसकी एक सतह पर कलई (पेन्ट) कर बनाया जाता है। कटे गोला की बाहरी सतह पेन्ट किया हो तो अवतल दर्पण और भीतरी सतह पेन्ट किया हआ हो तो उत्तल दर्पण बनता है।
Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 16 प्रकाश 3
अतः जिस गोलीय दर्पण की बाहरी सतह कलई किया हुआ हो और भीतरी सतह प्रकाश का परावर्तक उसे अवतल दर्पण कहते हैं। जिस गोलीय दर्पण की भीतरी सतह कलई की हुई हो तथा बाहरी सतह प्रकाश का परावर्तक हो उसे उत्तल दर्पण कहते हैं। प्रतिबिम्ब दो प्रकार के होते हैं। वास्तविक प्रतिबिम्ब और आभासी प्रतिबम्ब । जब प्रतिबिम्ब पर्दे पर बनता है और देखा जाता है वैसे प्रतिबिम्ब को वास्तविक प्रतिबिम्ब कहते हैं। वास्तविक प्रतिबिम्ब दर्पण के सामने बनता है।। अवतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिम्ब प्रायः वास्तविक होता है। दर्पण के सामने भिन्न-भिन्न दूरियों पर वस्तु को रखने पर बना प्रतिबिम्ब की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है। वस्तु से बड़ा या छोटा बन सकता है। वस्तु के उल्टा और सीधा भी बन सकता है।

उत्तल दर्पण के सामने वस्तु रखने पर प्रतिबिम्ब हमेशा वस्तु से छोटा और सीधा तथा आभासी होता है। उत्तल दर्पण के विस्तृत दृष्टि क्षेत्र होते हैं ! अतः चालक दूरी से आती गाडियों को देख लेता है।

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चश्मा, दूरबीन, कैमरा में लेंस का प्रयोग होता है। लेंस पारदर्शी पदार्थों के बने होते हैं। इसके दो सतह होते हैं। वे लेंस जिनके किनारे पतले और -बीच में मोटा हो उत्तल लेंस कहते हैं। वैसे लेंस जिनके किनारा मोटा और बीच में पतला हो अवतल लेंस कहलाते हैं। जब उत्तल लेंस पर प्रकाश पड़ती है तो अन्दर की ओर मुड़ जाता है और अवतल लेंस पर प्रकाश पर किरणें पड़ती हैं तो बाहर की ओर फैल जाती हैं।

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उत्तल लेंस को अभिसारी और अवतल लेंस को अपसारी लेंस भी कहते हैं। उत्तल लेंस को आवर्धक लेंस भी कहते हैं। श्वेत प्रकाश जब प्रिज्म पर पड़ता है तो अपवर्तन के बाद सात रंगों में विभक्त होता है। श्वेत प्रकाश का सात रंगों में अलग होना वर्ण-विक्षेपण कहलाता है। श्वेत रंग सात रंगों का मिश्रण है।

वर्षा के बाद सूर्य के विपरीत दिशा में इन्द्रधनुष दिखाई पड़ता है, जिनमें सात रंग होते हैं। अतः सूर्य की किरणों में सात रंग हैं।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.3

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.3 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 7 त्रिभुज Ex 7.3

प्रश्न 1.
∆ABC और ∆DRC एकही आधार BC पर बने दो समद्विबाहु त्रिभुज इस प्रकार हैं कि और D भुजा BC के एक ही और स्थित है (देखिए आकृति)| बदि AD बताने पर BC को P पर प्रतिचोद को तो दाइए कि-
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(i) ∆ABD ≅ ∆ACD
(ii) ∆ABP ≅ ∆ACP
(iii) AP कोणA और कोण D दोनों को समद्विभाजित करता है।
(iv) AP रेखाखण्ड BC का लम्ब समद्विभाजक है।
उत्तर:
दिया है, ∆ABC और ∆DBC समद्विबाहु त्रिभुज हैं।
तो, AB = AC ………. (1)
तथा BD = CD …….. (2)
(i) ∆ABD तथा ∆ACD मैं,
AB = AC [समी (1) से]
BD = CD [समी. (2) से]
AD = AD (उभयनिष्ठ)
∴ SSS सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆ABD ≅ ∆ACD.

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(ii) ∆ABP तथा ∆ACP में.
∠BAP = ∠CAP
(∵ ∆ABD ≅ ∆ACD, भाग (1) से])
AB = AC [समी. (1) से]
तथा AP = AP (उभयनिष्ठ)
∴ SAS सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆ABP ≅ ∆ACP.

(iii) ∆ABD ≅ ∆ACD [भाग (1) से]
अतः ∆BAD ≅ ∆CAD
तथा ∆ABP = ∆ACP
अतः ∠BAP = ∠CAP
तो AP, ∠A को दो बराबर भागों में बाँटता है।
∆BDP और ∆CDP में.
BD = CD
BP = CP (∆ABP ≅ ∆ACP)
DP = DP (उभयनिष्ठ)
∴ SSS, सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆BDP ≅ ∆CDP
⇒ ∠RDP = ∠CDP
अत: AP, ∠D को दो बराबर भागों में बाँटता है।
अत: AP कोण ∠A तथा ∠D दोनों को समद्विभाजित करता है।

(iv) ∆BDP ≅ ∆ACP [भाग (iii) से)]
∠BPD = ∠CPD
तथा BP = PC
यह BPC एक रेखायुाम है
तो ∠BPD + ∠CPD = 180°
2∠BPD = 180°
∠BPD = 90°
अत: AP रेखाखण्ड BC का लम्ब समद्विभाजक है।

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प्रश्न 2.
AD एक समद्विबाहु त्रिभुज ABC का एक शीर्षलम्ब है, जिसमें AB = AC है। दर्शाइए कि-
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(i) AD, रेखाखण्ड BC को समद्विभाजित करता है।
(ii) AD, कोण A को समद्विभाजित करता है।
उत्तर:
(i) माना ∆ABC में AD एक शोर्षलब है,
∆ABD और ∆ACD में,
AB = AC
AD = AD (उभवनिष्ठ)
∠ADB = ∠ADC = 90° (∵ AD ⊥ BC)
∴ RHS, सर्वांगसमता गुणधर्म से,
∆ABD ≅ ∆ACD
⇒ BD = CD
तथा ∠BAD = ∠CAD (∵ सर्वांगसम त्रिभुजों के संगत भाग बराबर होते हैं)
आ: AD रेखाखण्ड RC को समद्विभाजित करता है।

(ii) ∆ABD ≅ ∆ACD
∴ ∠BAD = ∠CAD
अत: AD कोण A को समद्विभाजित करता है।

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प्रश्न 3.
एक त्रिभुज ABC को दो भुजाएँ AB और BC तथा माध्यिका AM क्रमश: एक दूसरे प्रिभुज की भुजाओं PQ और QR तथा माध्यिका PN के बराबर हैं (देखिए आकृति)। दर्शाइए कि-
(i) ∆ABM ≅ ∆PQN
(ii) ∆ABC ≅ ∆PQR.
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उत्तर:
दिया है, AM तथा PN माध्यिका है, अतः ये रेखाखण्ड BC और QR को दो बराबर भागों में बाँटती है।
⇒ BC = QR
\(\frac{1}{2}\)BC = \(\frac{1}{2}\)QR
⇒ BM = QN …… (1)
(i) ∆ABM और ∆PQN में,
AB = PQ (दिया है।)
AM = PN (दिया है।)
BM = QN समी. (1) से]
∴ SSS सर्वागसमता गुणधर्म से, ∆ABM ≅ ∆PQN.

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(ii) ∠ABM = ∠PQR ……… (2) [भाग (i) से]
∆ABC और ∆PQR में,
AB = PQ (दिया है।)
BC = QR (दिया है।)
∠ABC = ∠PQR समी. (2) से]
∴ SAS, सर्वागसमता गुणधर्म से,
∆ABC ≅ ∆PQR.

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प्रश्न 4.
BE और CF एक त्रिभुज ABC के दो बराबर शीर्षलम्ब हैं। RHS सर्वांगसमता नियम का प्रयोग करके सिद्ध कीजिए कि ∆ABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है।
उत्तर:
वहाँ BE ⊥ AC, CF ⊥ AB तथा BE = CF
∆AEB और ∆AFC में,
∠A = ∠A (उभयनिष्ठ)
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∠AEB = ∠AFC = 90°
BE = CF (दिया है।)
∆AEB ≅ ∆AFC
⇒ AB = AC (∵ सर्वांगसम त्रिभुज के संगत भाग बराबर होते हैं)
अत: ∆ABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है।

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प्रश्न 5.
ABC एक समद्विबाहु त्रिभुज है जिसमें AB = AC है। AP ⊥ BC खींचकर दर्शाइए कि ∠B = ∠C है।
उत्तर:
∆ABP और ∆ACP में,
AB = AC (दिया है)
∠APB = ∠ABC = 90° (∵ AP ⊥ BC)
AP = AP (जभवनिष्ठ)
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∴ RHS, सबोगसमता गुणधर्म से.
∆ABP ≅ ∆ACP
⇒ ∠B = ∠C. (∵ सर्वागसम त्रिभुजों के संगत भाग बराबर होते हैं।)

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Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

BSEB Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 9 Science ध्वनि InText Questions and Answers

प्रश्न शृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 182)

प्रश्न 1.
किसी माध्यम में ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ आपके कानों तक कैसे पहुँचता है ?
उत्तर:
जब कोई वस्तु कम्पन करती है तो यह अपने चारों ओर विद्यमान माध्यम के कणों को कंपमान कर देती है। कंपमान वस्तु के सम्पर्क में रहने वाले माध्यम के कण अपनी सन्तुलित अवस्था से विस्थापित होते हैं। ये अपने समीप के कणों पर एक बल लगाते हैं जिसके फलस्वरूप निकटवर्ती कण अपनी विरामावस्था से विस्थापित हो जाते हैं। निकटवर्ती कणों को विस्थापित करने के पश्चात् प्रारम्भिक कण अपनी मूल अवस्थाओं में वापस लौट आते हैं। माध्यम में यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि ध्वनि हमारे कानों तक नहीं पहुँच जाती है।

प्रश्न श्रृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 18)

प्रश्न 1.
आपके विद्यालय की घंटी ध्वनि कैसे उत्पन्न करती है ?
उत्तर:
घंटी आगे और पीछे तेज गति करती है जिस कारण वायु में संपीडन और विरलन की एक श्रेणी बन जाती है। यही संपीडन और विरलन ध्वनि तरंग बनाते हैं जो माध्यम से होकर संचरित होती है।

प्रश्न 2.
ध्वनि तरंगों को यान्त्रिक तरंगें क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों को संचरित होने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। अतः उन्हें यान्त्रिक तरंगें कहा जाता है। ध्वनि तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित की जाती हैं।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

प्रश्न 3.
मान लीजिए आप अपने मित्र के साथ चन्द्रमा पर गए हुए हैं। क्या आप अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि को सुन पायेंगे ?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि ध्वनि तरंगों को संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा पर वायुमण्डल न होने के कारण ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम नहीं है। अतः हम अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि नहीं सुन पायेंगे।

प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 186)

प्रश्न 1.
तरंग का कौन-सा गुण निम्नलिखित को निर्धारित करता है ?
(a) प्रबलता
(b) तारत्व।
उत्तर:
(a) आयाम
(b) आवृत्ति।

प्रश्न 2.
अनुमान लगाइए कि निम्न में से किस ध्वनि का तारत्व अधिक है
(a) गिटार
(b) कार का हॉर्न।
उत्तर:
गिटार का तारत्व कार के हॉर्न से अधिक है क्योंकि गिटार के तारों से उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति कार के हॉर्न से अधिक होती है। जितनी अधिक आवृत्ति होगी उतना अधिक तारत्व होगा।

प्रश्न श्रृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 186)

प्रश्न 1.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति, आवर्तकाल तथा आयाम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
तरंगदैर्घ्य-दो क्रमागत संपीडनों (c) अथवा दो क्रमागत विरलनों (R) के बीच की दूरी तरंगदैर्घ्य कहलाती है। इसका SI मात्रक मीटर (m) है।
आवृत्ति – एकांक समय में होने वाले कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति (υ) कहते हैं। इसका SI मांत्रक ह (Hertz) है।
आवर्तकाल – किसी माध्यम में घनत्व के एक सम्पूर्ण दोलन में लिया गया समय ध्वनि तरंग का आवर्तकाल कहलाता है। इसे T अक्षर से निरूपित करते हैं। इसका SI मात्रक सेकण्ड (s) है।
आयाम – किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं। इसे साधारण अक्षर A से निरूपित किया जाता है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

प्रश्न 2.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति उसके वेग से किस प्रकार सम्बन्धित है ?
उत्तर:
ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति व वेग के बीच सम्बन्ध को निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता है –
ध्वनि का वेग (v) = तरंगदैर्घ्य (λ) x आवृत्ति (υ) = v = 10

प्रश्न 3.
किसी दिए हुए माध्यम में एक ध्वनि तरंग की आवृत्ति 220 Hz तथा वेग 440 m/s है। इस तरंग की तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए।
हल:
ध्वनि तरंग की आवृत्ति (υ) = 220 Hz
ध्वनि तरंग का वेग (v) = 440 m/s
ध्वनि तरंग का वेग v = तरंगदैर्घ्य (λ) x आवृत्ति (υ)
λ = v/υ = \(\frac {440}{220}\) = 2 m
अतः इस तरंग की तरंगदैर्घ्य 2 m है।

प्रश्न 4.
किसी ध्वनि स्रोत से 450 m दूरी पर बैठा हुआ कोई मनुष्य 500 Hz की ध्वनि सुनता है। स्रोत से मनुष्य के पास तक पहुँचने वाले दो क्रमागत संपीडनों में कितना समय अन्तराल होगा?
हल:
दो क्रमागत संपीडनों के बीच का समय तरंग का समय अन्तराल होता है।
आवृत्ति (υ) = \(\frac {1}{T}\)
या T = \(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{500}\) = 0.002 s

प्रश्न श्रृंखला # 05 (पृष्ठ संख्या 187)

प्रश्न 1.
ध्वनि की प्रबलता तथा तीव्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर:
किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकण्ड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं। प्रबलता ध्वनि के लिए कानों की संवेदनशीलता की माप है। एक बल लगाते हैं जिसके फलस्वरूप निकटवर्ती कण अपनी विरामावस्था से विस्थापित हो जाते हैं। निकटवर्ती कणों को विस्थापित करने के पश्चात् प्रारम्भिक कण अपनी मूल अवस्थाओं में वापस लौट आते हैं। माध्यम में यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि ध्वनि हमारे कानों तक नहीं पहुँच जाती है।

प्रश्न शृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 182)

प्रश्न 1.
आपके विद्यालय की घंटी ध्वनि कैसे उत्पन्न करती है ?
उत्तर:
घंटी आगे और पीछे तेज गति करती है जिस कारण वायु में संपीडन और विरलन की एक श्रेणी बन जाती है। यही संपीडन और विरलन ध्वनि तरंग बनाते हैं जो माध्यम से होकर संचरित होती है।

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प्रश्न 2.
ध्वनि तरंगों को यान्त्रिक तरंगें क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों को संचरित होने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। अतः उन्हें यान्त्रिक तरंगें कहा जाता है। ध्वनि तरंगें माध्यम के कणों की गति द्वारा अभिलक्षित की जाती हैं।

प्रश्न 3.
मान लीजिए आप अपने मित्र के साथ चन्द्रमा पर गए हुए हैं। क्या आप अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि को सुन पायेंगे?
उत्तर:
नहीं, क्योंकि ध्वनि तरंगों को संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा पर वायुमण्डल न होने के कारण ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम नहीं है। अतः हम अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि नहीं सुन पायेंगे।

प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 186)

प्रश्न 1.
तरंग का कौन-सा गुण निम्नलिखित को निर्धारित करता है ?
(a) प्रबलता
(b) तारत्व।
उत्तर:
(a) आयाम
(b) आवृत्ति।

प्रश्न 2.
अनुमान लगाइए कि निम्न में से किस ध्वनि का तारत्व अधिक है
(a) गिटार
(b) कार का हॉर्न।
उत्तर:
गिटार का तारत्व कार के हॉर्न से अधिक है क्योंकि गिटार के तारों से उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति कार के हॉर्न से अधिक होती है। जितनी अधिक आवृत्ति होगी उतना अधिक तारत्व होगा।

प्रश्न श्रृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 186)

प्रश्न 1.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति, आवर्तकाल तथा आयाम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तरंगदैर्घ्य-दो क्रमागत संपीडनों (c) अथवा दो क्रमागत विरलनों (R) के बीच की दूरी तरंगदैर्घ्य कहलाती है। इसका SI मात्रक मीटर (m) है।
आवृत्ति – एकांक समय में होने वाले कुल दोलनों की संख्या को आवृत्ति (υ) कहते हैं। इसका SI मात्रक हर्ट्ज (Hertz) है।
आवर्तकाल – किसी माध्यम में घनत्व के एक सम्पूर्ण दोलन में लिया गया समय ध्वनि तरंग का आवर्तकाल कहलाता है। इसे T अक्षर से निरूपित करते हैं। इसका SI मात्रक सेकण्ड (s) है।
आयाम – किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं। इसे साधारण अक्षर A से निरूपित किया जाता है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

प्रश्न 2.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति उसके वेग से किस प्रकार सम्बन्धित है ?
उत्तर:
ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति व वेग के बीच सम्बन्ध को निम्न प्रकार व्यक्त किया जाता हैध्वनि का वेग (v) = तरंगदैर्घ्य (λ) x आवृत्ति (υ)
v = λ υ

प्रश्न 3.
किसी दिए हुए माध्यम में एक ध्वनि तरंग की आवृत्ति 220 Hz तथा वेग 440 m/s है। इस तरंग की तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए।
हल:
ध्वनि तरंग की आवृत्ति (υ) = 220 Hz
ध्वनि तरंग का वेग (v) = 440 m/s
ध्वनि तरंग का वेग v = तरंगदैर्घ्य (λ) x आवृत्ति (υ)
λ = v /υ = \(\frac{440}{220 }\) = 2 m
अतः इस तरंग की तरंगदैर्घ्य 2 m है।

प्रश्न 4.
किसी ध्वनि स्रोत से 450 m दूरी पर बैठा हुआ कोई मनुष्य 500 Hz की ध्वनि सुनता है। स्रोत से मनुष्य के पास तक पहुँचने वाले दो क्रमागत संपीडनों में कितना समय अन्तराल होगा?
हल:
दो क्रमागत संपीडनों के बीच का समय तरंग का समय अन्तराल होता है।
आवृत्ति (υ) = \(\frac {1}{T}\)
T= \(\frac {1}{υ}\) = \(\frac {1}{500}\) = 0.002 s

प्रश्न श्रृंखला # 05 (पृष्ठ संख्या 187)

प्रश्न 1.
ध्वनि की प्रबलता तथा तीव्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर:
किसी एकांक क्षेत्रफल से एक सेकण्ड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीव्रता कहते हैं। प्रबलता ध्वनि के लिए कानों की संवेदनशीलता की माप है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

प्रश्न शृंखला # 06 (पृष्ठ संख्या 188)

प्रश्न 1.
वायु, जल या लोहे में से किस माध्यम में ध्वनि सबसे तेज चलती है ?
उत्तर:
वायु में 25°C पर ध्वनि की चाल 346 m/s है, समुद्री जल में 25°C पर 1531 m/s व आसुत जल में 1498 m/s है व लोहे में 25°C पर ध्वनि की चाल 5950 m/s है। अतः लोहे में ध्वनि सबसे तेज चलती है।

प्रश्न श्रृंखला # 07 (पृष्ठ संख्या 189)

प्रश्न 1.
कोई प्रतिध्वनि 3 5 पश्चात् सुनाई देती है। यदि ध्वनि की चाल 342 ms-1 हो तो स्रोत तथा परावर्तक पृष्ठ के बीच कितनी दूरी होगी ?
हल:
ध्वनि की चाल, v = 346 ms-1
प्रतिध्वनि सुनने में लिया गया समय t = 3 s
ध्वनि द्वारा चली गई दूरी = v x 1 = 346 x 3 = 1038 m
3s में ध्वनि ने स्रोत तथा परावर्तक पृष्ठ के बीच की दो गुनी दूरी तय की। अतएव स्रोत तथा परावर्तक पृष्ठ के बीच की दूरी = 1038 = 519 m

प्रश्न शृंखला # 08 (पृष्ठ संख्या 190)

प्रश्न 1.
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार क्यों होती हैं ?
उत्तर:
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाए।

प्रश्न श्रृंखला # 09 (पृष्ठ संख्या 191)

प्रश्न 1.
सामान्य मनुष्य के कानों के लिए श्रव्यता परिसर क्या है ?
उत्तर:
सामान्य मनुष्य के कानों के लिए श्रव्यता परिसर लगभग 20 Hz से 20,000 Hz है।

प्रश्न 2.
निम्न से सम्बन्धित आवृत्तियों का परिसर क्या है ?
(a) अवश्रव्य ध्वनि
(b) पराध्वनि।
उत्तर:
(a) अवश्रव्य ध्वनि-अवश्रव्य ध्वनि का परिसर 20 Hz से कम है।
(b) पराध्वनि-पराध्वनि का परिसर 20 kHz से अधिक है।

प्रश्न श्रृंखला 10 (पृष्ठ संख्या 193)

प्रश्न 1.
एक पनडुब्बी सोनार स्पंद उत्सर्जित करती है, जो पानी के अन्दर एक खड़ी चट्टान से टकराकर 1.02 s के पश्चात् वापस लौटता है। यदि खारे पानी में ध्वनि की चाल 1531 m/s हो तो चट्टान की दूरी ज्ञात कीजिए।
हल:
उत्सर्जन तथा लौटने में लगा समय t = 102 s
खारे पानी में पराध्वनि की चाल v = 1531 m/s
पराध्वनि द्वारा चली गई दूरी = 2d
जहाँ d = चट्टान की दूरी
2d = ध्वनि की चाल x समय
= 1531 x 1.02
= 1561.62 m
d = 1564.62/2 = 780.81
अतः पनडुब्बी से चट्टान की दूरी 780.81 m है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

क्रियाकलाप 12.1 (पृष्ठ संख्या 179)

प्रश्न 1.
स्वरित्र द्विभुज को रबड़ के पैड पर मारकर कम्पित कराकर अपने कान के समीप लाने पर क्या आप कोई ध्वनि सुन पाते हैं ?
उत्तर:
हाँ, स्वरित्र द्विभुज को रबड़ के पैड पर मारने से उसमें कम्पन्न उत्पन्न होते हैं जिनके कारण ध्वनि उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
कंपमान स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा को अपनी अंगुली से स्पर्श कीजिए और अपने अनुभव को अपने मित्रों से बाँटिए। .
उत्तर:
कंपमान स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा को अपनी अंगुली से स्पर्श करने पर कम्पनों के कारण झनझनाहट महसूस होती है।

प्रश्न 3.
पहले कम्पन न करते हुए स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा से गेंद को स्पर्श कीजिए। फिर कम्पन करते हुए स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा से गेंद को स्पर्श कीजिए। देखिए क्या होता है? अपने मित्रों के साथ विचार-विमर्श कीजिए और दोनों अवस्थाओं में अन्तर की व्याख्या करने का प्रयत्न कीजिए।
उत्तर:
कम्पन न करते हुए स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा से गेंद को स्पर्श कराने पर कुछ नहीं होता। परन्तु कम्पन करते हुए स्वरित्र द्विभुज को गेंद से स्पर्श कराने पर गेंद दोलन करने लगती है। स्वरित्र द्विभुज से गेंद पर ऊर्जा का संचरण होता है।

क्रियाकलाप 12.2 (पृष्ठ संख्या 179)

प्रश्न 4.
कंपमान स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा को पानी के पृष्ठ से स्पर्श कराइए। अब कंपमान स्वरित्र द्विभुज की दोनों भुजाओं को पानी में डुबोइए। देखिए कि दोनों अवस्थाओं में क्या होता है ?
उत्तर:
स्वरित्र द्विभुज की एक भुजा को पानी के पृष्ठ से स्पर्श कराने पर पानी में हलचल होती है व दोनों भुजाओं को पानी में डुबोने पर पानी ऊपर की ओर तीव्रता से छलकता है।

क्रियाकलाप.12.3 (पृष्ठ संख्या 180)

प्रश्न 5.
विभिन्न वाद्य यंत्रों की सूची बनाइए और अपने मित्रों के साथ विचार-विमर्श कीजिए कि ध्वनि उत्पन्न करने के लिए इन वाद्य यंत्रों का कौन-सा भाग कंपन करता है ?
उत्तर:
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क्रियाकलाप 12.4 (पृष्ठ संख्या 182)

प्रश्न 6.
अपने मित्र की ओर स्लिकी को एक तीव्र झटका दीजिए। आप क्या देखते हैं ? यदि आप अपने हाथ से स्लिकी को लगातार आगे-पीछे बारी-बारी से धक्का देते और खींचते रहें तो आप क्या देखेंगे ?
उत्तर:
स्लिकी को एक तीव्र झटका देने पर उसमें कम्पन उत्पन्न होता है। अपने हाथ से स्लिंकी को लगातार आगे-पीछे धक्का देने और खींचने पर उसमें तरंग उत्पन्न होती है। ये तरंगें अनुदैर्घ्य हैं।

क्रियाकलाप 12.5 (पृष्ठ संख्या 188)

प्रश्न 7.
इन पाइपों तथा दर्शाए अभिलम्ब के बीच के कोणों को मापिए तथा इनके बीच के सम्बन्ध को देखिए।
उत्तर:
इन पाइपों तथा दर्शाए अभिलम्ब के बीच के कोण आपस में बराबर हैं और ये तीनों एक ही तल में स्थित हैं।

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प्रश्न 8.
दाईं ओर के पाइप को ऊर्ध्वाधर दिशा में थोड़ी-सी ऊँचाई तक उठाइए और देखिए क्या होता है ?
उत्तर:
दाईं ओर के पाइप को उठाने पर ध्वनि सुनाई देना बन्द हो जाती है।

Bihar Board Class 9 Science ध्वनि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ध्वनि क्या है और यह कैसे उत्पन्न होती है ?
उत्तर:
ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जो हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करती है। ध्वनि विभिन्न वस्तुओं के कम्पन के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
एक चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए कि ध्वनि के स्रोत के निकट वायु में संपीडन तथा विरलन कैसे उत्पन्न होते हैं।
उत्तर:
जब कोई कंपमान वस्तु आगे की ओर कम्पन करती है तो अपने सामने की वायु को धक्का देकर संपीडित करती है और इस प्रकार एक उच्च दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र को संपीडन (C) कहते हैं। (चित्र देखें) यह संपीडन कंपमान वस्तु से दूर आगे की ओर गति करता है। जब कंपमान वस्तु पीछे की ओर कम्पन करती है तो एक निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसे विरलन (R) कहते हैं (देखें चित्र)।
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प्रश्न 3.
किस प्रयोग से यह दर्शाया जा सकता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
एक विद्युत घंटी और एक काँच का वायुरुद्ध बेलजार लेते हैं। विद्युत घंटी को बेलजार में लटकाते हैं। बेलजार को एक निर्वात पम्प से जोड़ते हैं। घंटी के स्विच को दबाने पर हमें उसकी ध्वनि सुनाई देती है। अब निर्वात पम्प को चलाने पर बेलजार की वाय धीरे-धीरे बाहर निकलती है। घंटी की ध्वनि धीमी हो जाती है यद्यपि उसमें पहले जैसी ही विद्युतधारा प्रवाहित हो रही है। कुछ समय पश्चात् जब बेलजार में बहुत कम वायु रह जाती है तब बहुत धीमी ध्वनि सुनाई देती है व समस्त वायु निकाल देने पर जरा भी ध्वनि सुनाई नहीं देती। अतः यह प्रयोग दर्शाता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 4.
ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्ध्य क्यों है ?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों में माध्यम के कणों का विस्थापन विक्षोभ के संचरण की दिशा के समान्तर होता है। कण एक स्थान से दूसरे स्थान तक गति नहीं करते लेकिन अपनी विराम अवस्था से आगे-पीछे दोलन करते हैं। अतएव ध्वनि तरंगें अनुदैर्घ्य तरंगें हैं।

प्रश्न 5.
ध्वनि का कौन-सा अभिलक्षण किसी अन्य अंधेरे कमरे में बैठे आपके मित्र की आवाज पहचानने में आपकी सहायता करता है ?
उत्तर:
ध्वनि की गुणता (timbre) वह अभिलक्षण है जो किसी अन्य अंधेरे कमरे में बैठे हमारे मित्र की आवाज पहचानने में हमारी सहायता करता है।

प्रश्न 6.
तड़ित की चमक तथा गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होते हैं। लेकिन चमक दिखाई देने के कुछ सेकण्ड पश्चात् गर्जन सुनाई देती है। ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर:
ध्वनि की गति (344 m/s) प्रकाश की गति (3 x 10% m/s) की तुलना में कम है। अतः तड़ित की गर्जन पृथ्वी तक पहुँचने में उसकी चमक से ज्यादा समय लेती है। यही कारण है कि हमें तड़ित की चमक दिखाई देने के कुछ सेकण्ड पश्चात् गर्जन सुनाई देती है।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति का औसत श्रव्य परिसर 20 Hz से 20 Hz है। इन दो आवृत्तियों के लिए ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। वायु में ध्वनि का वेग 344 ms-1 लीजिए।
हल:
ध्वनि तरंग के लिए –
वेग = तरंगदैर्घ्य x आवृत्ति
या v = λ x υ
ध्वनि का वायु में वेग (v) = 344 m/s

1. v = 20 Hz के लिए
λ1 = \(\frac {υ}{v}\) = \(\frac {344}{20}\) = 17.2m

2. v = 20,000 Hz के लिए,
λ1 = \(\frac {υ}{v}\) = \(\frac {344}{20,000}\) = 17.2 m
अतः कोई व्यक्ति 0.172 m से 17.2 m तरंगदैर्घ्य तक की तरंग सुन सकता है।

प्रश्न 8.
दो बालक किसी ऐलुमिनियम पाइप के दो सिरों पर हैं। एक बालक पाइप के एक सिरे पर पत्थर से आघात करता है। दूसरे सिरे पर स्थित बालक तक वायु तथा ऐलुमिनियम से होकर जाने वाली ध्वनि तरंगों द्वारा लिए गए समय का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल:
वायु में ध्वनि का वेग = 346 m/s
ऐलुमिनियम में ध्वनि का वेग = 6420 m/s
माना, पाइप की लम्बाई = 1
ध्वनि तरंग द्वारा वायु में लिया गया समय।
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ध्वनि तरंग द्वारा ऐलुमिनियम में लिया गया समय
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= \(\frac {6420}{346}\) = \(\frac {18.55}{1}\)

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प्रश्न 9.
किसी ध्वनि स्रोत की आवृत्ति 100 Hz है। एक मिनट में यह कितनी बार कम्पन करेगा?
हल:
आवृत्ति = 100 Hz (दिया है)
इसका तात्पर्य है कि ध्वनि स्रोत 1 सेकण्ड में 100 बार कम्पन करेगा। अतः एक मिनट में की गई कम्पन = 100 x 60 = 6000 बार

प्रश्न 10.
क्या ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश की तरंगें करती हैं ? इन नियमों को बताइए।
उत्तर:
ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका कि प्रकाश तरंगें करती हैं। ध्वनि के आपतन होने की दिशा तथा परावर्तन होने की दिशा, परावर्तक सतह पर खींचे गए अभिलम्ब से समान कोण बनाते हैं और ये तीनों एक ही तल में होते हैं।

प्रश्न 11.
ध्वनि का एक स्रोत किसी परावर्तक पृष्ठ के सामने रखने पर उसके द्वारा प्रदत्त ध्वनि तरंग की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। यदि स्रोत तथा परावर्तक पृष्ठ की दूरी स्थिर रहे तो किस दिन प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देगी –
(i) जिस दिन ताप अधिक हो ?
(ii) जिस दिन ताप कम हो ?
उत्तर:
स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के बीच कम से कम 0.1 s का समय अन्तराल होना चाहिए।
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रह जाती है तब बहुत धीमी ध्वनि सुनाई देती है व समस्त वायु निकाल देने पर जरा भी ध्वनि सुनाई नहीं देती। अत: यह प्रयोग दर्शाता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है। जिस दिन ताप अधिक होगा, ध्वनि का वेग भी अधिक होगा अतः उस दिन प्रतिध्वनि शीघ्र सुनाई देगी। यदि पराध्वनि द्वारा लिया गया समय 0.1 s से कम है तो यह नहीं सुनाई देगी।

प्रश्न 12.
ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग
(1) ध्वनि तरंगों के परावर्तन का उपयोग सोनार में किया जाता है। सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है।
(2) स्टेथोस्कोप में भी ध्वनि तरंगों के परावर्तन का उपयोग होता है। स्टेथोस्कोप में रोगी के हृदय की धड़कन की ध्वनि, बार-बार परावर्तन के कारण डॉक्टर के कानों तक पहुँचती है।

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प्रश्न 13.
500 मीटर ऊँची किसी मीनार की चोटी से एक पत्थर मीनार के आधार पर स्थित एक पानी के तालाब में गिराया जाता है। पानी में इसके गिरने की ध्वनि चोटी पर कब सुनाई देगी ? (g = 10 ms-1 तथा ध्वनि की चाल = 340 ms-1)
हल:
मीनार की ऊँचाई = 500 m
ध्वनि की चाल = 340 ms-1
g = 10 ms-1
पत्थर का प्रारम्भिक वेग u = 0
पत्थर द्वारा मीनार के आधार पर गिरने में लगा समय = t1

गति के दूसरे समीकरण द्वारा –
s = ut1 + \(\frac {1}{2}\) gt21
500 = 0 x t1 + \(\frac {1}{2}\) x 10 x t21 = t21 = 100 = t1 = 10 s
ध्वनि द्वारा मीनार के आधार से चोटी तक पहुँचने में लगने वाला समय
t2 = \(\frac {500}{340}\) = 1.478
अत: चोटी पर पत्थर के गिरने की ध्वनि सुनाई देगी,
t = t1 + t2
= 10 + 1.47
= 11.47 s के पश्चात्।

प्रश्न 14.
एक ध्वनि तरंग 339 ms-1 की चाल से चलती है। यदि इसकी तरंगदैर्घ्य 1.5 cm हो, तो तरंग की आवृत्ति कितनी होगी ? क्या यह श्रव्य होगी?
हल:
ध्वनि की चाल = 339 m/s
तरंगदैर्घ्य = 1.5 cm = 0.015 cm
ध्वनि की चाल = तरंगदैर्घ्य x आवृत्ति
v = λ x υ
υ = \(\frac {v}{λ}\)
= \(\frac {339}{10.15}\) = 22600 Hz
मनुष्य के लिए श्रव्यता परिसर 20 Hz से 20,000 Hz है। इस ध्वनि की आवृत्ति 20,000 Hz से अधिक है, अतः यह श्रव्य नहीं होगी।

प्रश्न 15.
अनुरणन क्या है ? इसे कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर:
किसी सभागार में ध्वनि-निबंध बारम्बार परावर्तनों के कारण होता है। इसे अनुरणन कहते हैं। अनुरणन को कम करने के लिए सभा भवन की छतों तथा दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थों, जैसे संपीडित फाइबर बोर्ड, खुरदरे प्लास्टिक अथवा पर्दे लगे होते हैं। सीटों के पदार्थों का चुनाव इनके ध्वनि अवशोषक गुणों के आधार पर भी किया जाता है।

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प्रश्न 16.
ध्वनि की प्रबलता से क्या अभिप्राय है ? यह किन कारकों पर निर्भर करती है ?
उत्तर:
प्रबलता ध्वनि के लिए कानों की संवेदनशीलता की माप है। विभिन्न आवृत्तियों वाली ध्वनि द्वारा मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रबलता कहते हैं। प्रबलता ध्वनि के आयाम पर निर्भर करती है।

प्रश्न 17.
चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि का उपयोग किस प्रकार करता है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चमगादड़ उड़ते समय पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करता है तथा परावर्तन के पश्चात् इनका संसूचन करता है। चमगादड़ द्वारा उत्पन्न उच्च तारत्व के पराध्वनि स्पन्द अवरोधों या कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचते हैं। इन परावर्तित स्पंदों की प्रकृति से चमगादड़ को पता चलता है कि अवरोध या कीट कहाँ पर है और यह किस प्रकार का है।

प्रश्न 18.
वस्तुओं को साफ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं ?
उत्तर:
जिन वस्तुओं को साफ करना होता है उन्हें साफ करने वाले गर्जन विलयन में रखते हैं और इस विलयन में पराध्वनि तरंगें भेजी जाती हैं। उच्च आवृत्ति के कारण धूल, चिकनाई तथा गन्दगी के कण अलग होकर नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है।

प्रश्न 19.
सोनार की कार्यविधि तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोनार (SONAR) शब्द Sound Navigation and Ranging से बना है। सोनार एक ऐसी युक्ति है जिसमें जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा चाल मापने के लिए पराध्वनि तरंगों का उपयोग किया जाता है। सोनार में एक प्रेषित्र तथा एक संसूचक होता है और इसे किसी नाव या जहाज में चित्र की भाँति लगाया जाता है।
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प्रेषित्र पराध्वनि तरंगें उत्पन्न तथा प्रेषित करता है। ये तरंगें जल में चलती हैं तथा समुद्र तल में पिण्ड से टकराने के पश्चात् परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। संसूचक पराध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में बदल देता है जिनकी उचित रूप से व्याख्या कर ली जाती है। जल में ध्वनि की चाल तथा पराध्वनि के प्रेषण तथा अभिग्रहण के समय अन्तराल को ज्ञात करके उस पिण्ड की दूरी की गणना की जा सकती है जिससे ध्वनि तरंग परावर्तित हुई है।

मान लीजिए पराध्वनि संकेत के प्रेषण तथा अभिग्रहण का समय अन्तराल ‘t’ है तथा समुद्री जल में ध्वनि की चाल ‘v’ है। तब सतह से पिण्ड की दूरी 2d होगी 2d = v x t सोनार के उपयोग – सोनार की तकनीक का उपयोग समुद्र की गहराई ज्ञात करने तथा जल के अन्दर स्थित चट्टानों, घाटियों, पनडुब्बियों, हिम शैल (प्लावी बर्फ), डूबे हुए जहाज आदि की जानकारी प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 20.
एक पनडुब्बी पर लगी एक सोनार युक्ति संकेत भेजती है और उनकी प्रतिध्वनि 5s पश्चात् ग्रहण करती है। यदि पनडुब्बी से वस्तु की दूरी 3625 m हो तो ध्वनि की चाल की गणना कीजिए।
हल:
पराध्वनि सुनने में लगा समय, t = 5 s
पनडुब्बी से वस्तु की दूरी, d = 3625 m
सोनार तरंगों द्वारा तय की गई कुल दूरी = 2d
पानी में ध्वनि की चाल, v = 2d/t
= \(\frac {2 × 3625}{5}\)
= 1450 ms-1

प्रश्न 21.
किसी धातु के ब्लॉक में दोषों का पता लगाने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे किया जाता है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पराध्वनि का उपयोग धातु के ब्लॉकों (पिण्डों) में दरारों तथा अन्य दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है। पराध्वनि तरंगें धातु के ब्लॉक से गुजारी (प्रेषित की) जाती हैं और प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचकों का उपयोग किया जाता है। यदि थोड़ा-सा भी दोष होता है, तो पराध्वनि तरंगें परावर्तित हो जाती हैं जो दोष की उपस्थिति को दर्शाती हैं।
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प्रश्न 22.
मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य का कान श्रवणीय आवृत्तियों द्वारा वायु में होने वाले दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में बदलता है जो श्रवण तन्त्रिका से होते हुए मस्तिष्क तक पहुँचते हैं। मनुष्य के कान में सुनने की प्रक्रिया निम्न प्रकार होती है –
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बाहरी कान ‘कर्ण पल्लव’ कहलाता है। यह परिवेश से ध्वनि को एकत्रित करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरती है। श्रवण नलिका के सिरे पर एक पतली झिल्ली होती है जिसे कर्ण पटल या कर्ण पटह झिल्ली कहते हैं। जब माध्यम के संपीडन कर्ण पटह तक पहुँचते हैं तो झिल्ली के बाहर की ओर लगने वाला दाब बढ़ जाता है और यह यह कर्ण पटह को अन्दर की ओर दबाता है। इसी प्रकार विरलन के पहुंचने पर कर्ण पटह बाहर की ओर गति करते हैं। इस प्रकार कर्ण पटह कम्पन करता है।

मध्य कर्ण में विद्यमान तीन हड्डियाँ [(मुन्दरक, निहाई तथा वलयक (स्टिरप)] इन कम्पनों को कई गुना बढ़ा देती हैं। गहरा कर्ण ध्वनि तरंगों से मिलने वाले इन दाब परिवर्तनों को आन्तरिक कर्ण तक संचरित कर देता है। आन्तरिक कर्ण में कर्णावर्त (Cochlea) द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित कर दिया जाता है। इन विद्युत संकेतों को श्रवण तन्त्रिका द्वारा मस्तिष्क में भेज दिया जाता है और मस्तिष्क इनकी ध्वनि के रूप में व्याख्या करता है।