Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

Bihar Board Class 11 Geography खनिज एवं शैल Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 5 खनिज एवं शैल

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन ग्रेनाइट के दो प्रमुख घटक हैं?
(क) लोहा एवं निकिल
(ख) सिलिका एवं एल्यूमिनिमय
(ग) लोहा एवं चाँदी
(घ) लौह ऑक्साइड एवं पोटैशियम
उत्तर:
(ख) सिलिका एवं एल्यूमिनिमय

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन सा कायांतरित शैलों का प्रमुख लक्षण है?
(क) परिवर्तनीय
(ख) क्रिस्टलीय
(ग) शांत
(घ) पल्ल्व न
उत्तर:
(क) परिवर्तनीय

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प्रश्न 3.
निम्न में से कौन सा एकमात्र तत्त्व वाला खनिज नहीं है?
(क) स्वर्ण
(ख) माइका
(ग) चाँदी
(घ) ग्रेफाइट
उत्तर:
(ख) माइका

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन सा कठोरतम खनिज है?
(क) टोपाज
(ख) क्वार्ट्ज
(ग) हीरा
(घ) फेल्डस्पर
उत्तर:
(ग) हीरा

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन सी शैल अवसादी नहीं है?
(क) टायलाइट
(ख) ब्रेशिया
(ग) बोरैक्स
(घ) संगमरमर
उत्तर:
(क) टायलाइट

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में कौन सा अवसादी शैल है?
(क) बलुआ पत्थर
(ख) अभ्रक
(ग) ग्रेनाइट
(घ) नीस
उत्तर:
(क) बलुआ पत्थर

प्रश्न 7.
चट्टानों का टूटकर अपने स्थानों पर ही पड़े रहना कहलाता है?
(क) अपक्षय
(ख) अपरदन
(ग) अनाच्छादन
(घ) अनावृतिकरण
उत्तर:
(क) अपक्षय

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
शैल से आप क्या समझते हैं? शैल के तीन प्रमुख वर्गों के नाम बताएँ।
उत्तर:पृथ्वी की पर्पटी चट्टानों से बनी है। चट्टान का निर्माण एक या एक से अधिक खनिजों से मिलकर होता है। चट्टान कठोर या नरम तथा विभिन्न रंगों की हो सकती है। जैसे ग्रेनाइट कठोर तथा सोपस्टोन नरम है। चट्टानों में सामान्यतः पाए जाने वाले खनिज पदार्थ फेल्डस्पर तथा क्वार्ट्ज़ हैं। चट्टानों को उनकी निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया गया है –

  1. आग्नेय चट्टान-मैग्मा तथा लावा से घनीभूत
  2. वसादी चट्टान-बहिर्जनित प्रक्रियाओं के द्वारा चट्टानों के अंशों के निक्षेपन का परिणामः तथा
  3. कायांतरित चट्टान-उपस्थित चट्टानों में पुनः क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया से निर्मित।

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प्रश्न 2.
आग्नेय शैल क्या है? आग्नेय शैल के निर्माण पद्धति एवं उनके लक्षण बताएँ।
उत्तर:
चूँकि आग्नेय चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा एवं लावा से होता है। अतः जब अपनी ऊपरीगामी गति में मैग्मा ठंडा होकर ठोस बन जाता है, तो यह आग्नेय चट्टान कहलाता है। इसकी बनवाट कणों के आकार एवं व्यवस्था अथवा पदार्थ की भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। यदि पिघले हुए पदार्थ धीरे-धीरे गहराई तक ठंडे होते हैं तो खनिज के कण पर्याप्त बडे हो सकते हैं। सतह पर हई आकस्मिक शीतलता के कारण छोटे एवं चिकने कण बनते हैं। शीतलता की माध्यम परिस्थितियाँ होने पर आग्नेय चट्टान को बनाने वाले कण मध्यम आकार के हो सकते हैं। ग्रेनाइट, बैसाल्ट, वोल्कैनिक ब्रेशिया आग्नेय चट्टानों के कुछ उदाहरण हैं।

प्रश्न 3.
वसादी शैल का क्या अर्थ है? अवसादी शैल के निर्माण की पद्धति बताइए।
उत्तर:
अवसादी अर्थात् (Sedimentary) का अर्थ है, व्यवस्थित होना । पृथ्वी की सतह की चट्टानों अपच्छादनकारी कारकों के प्रति अनावृत होती हैं, जो विभिन्न आकार के विखण्डों में विभाजित होती हैं। ऐसे उपखण्डों का विभिन्न बहिर्जनित कारकों के द्वारा संवहन एवं संचय होता है। संघनता के द्वारा ये सचित पदार्थ चट्टानों में परिवर्तित हो जाते हैं। यह प्रक्रिया प्रस्तारीकरण (Lithification) कहलाती है। इसी कारणवश बालुकाश्म, शैल जैसे अवसादी चट्टानों में विविध सान्द्रता वाली अनेक सतह होती है।

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प्रश्न 4.
शैली चक्र के अनुसार प्रमुख प्रकार की शैलों के मध्य क्या संबंध होता है ?
उत्तर:
चट्टानी चक्र एक सतत् प्रक्रिया होती है, जिसमें पुरानी चट्टानें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं। आग्नेय चट्टानें प्राथमिक चट्टानें हैं, तथा अन्य (अवसादी एवं कायॉरित) चट्टानें इन प्राथमिक चट्टानों से निर्मित होती है। आग्नेय चट्टानों को कायांतरित चट्टानों में परिवर्तित किया जा सकता है। अवसादी चट्टानें अपखण्डों में परिवर्तित हो सकती हैं तथा ये अपखण्ड अवसादी चट्टानों के निर्माण का एक स्रोत हो सकते हैं।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
‘खनिज’ शब्द को परिभाषित करें, एवं प्रमुख प्रकार के खनिजों के नाम लिखें।
उत्तर:
खनिज एक ऐसा प्राकृतिक, अकार्बनिक तत्त्व जिसमें एक क्रमबद्ध परमाण्विक संरचना, निश्चित रसायनिक संघटन तथा भौतिक गुणधर्म होता है। खनिज का निर्माण दो या दो से अधिक तत्त्वों से मिलकर होता है। लेकिन कभी-कभी सल्फर ताँबा चाँदी, स्वर्ण ग्रेफाइट जैसे एक तत्त्वीय खनिज भी पाए जाते हैं। भूपर्पटी पर कम से कम 2,000 प्रकार के खनिजों को पहचाना गया है, और उनको नाम दिया गया है। लेकिन इनमें से सामान्यत: उपलब्ध लगभग सभी खनिज तत्त्व, छह प्रमुख खनिज समूहों से संबंधित होते हैं, जिनको चट्टानों का निर्माण करने वाले प्रमुख खनिज माना गया है।

कुछ प्रमुख खनिजों के नाम –

  1. फेल्डस्पर – सिलिका, ऑक्सीजन, सोडियम, पोटैशियम, कैल्शियम, अल्युमिनियम आदि तत्त्व इसमें शामिल हैं।
  2. क्वार्ट्ज – ये रेत एवं ग्रेनाइट के प्रमुख घटक हैं। इसमें सिलिका होता है। यह एक कठोर खनिज है तथा पानी में सर्वथा अघुलनशील होता है।
  3. पाइरॉक्सीन – कैल्शियम, एल्यूमिनियम, मैग्नेशियम, आयरन तथा सिलिका इसमें शामिल हैं।
  4. एम्फीबोल – एम्फीबोल के प्रमुख तत्त्व एल्यूमीनियम, कैल्शियम, सिलिका, लौह, मैग्नीशियम है।
  5. माइका – इसमें पोटैशियम, एल्यूमिनियम, मैग्नेशियम, लौह, सिलिका आदि निहित होते हैं।
  6. धात्विक खनिज – इनको तीन प्रकार में विभाजित किया जा सकता है –
    (i) बहुमूल्य धातु-स्वर्ण, चाँदी, प्लैटिनम आदि।
    (ii) लौह धातु-लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलाई जाने वाली अन्य धातुएँ।
    (iii) अलौहिक धातु-इनमें कम मात्रा में लौह तत्त्व तथा ताम्र, सीमा, जिंक, टिन, एल्यूमिनियम आदि शामिल होते हैं।

अधात्विक खनिज – गंधक, फॉस्फेट तथा नाइट्रेट अधात्विक खनिज हैं। सीमेन्ट अधात्विक खनिज का मिश्रण है।

प्रश्न 2.
भूपृष्ठीय शैलों में प्रमुख प्रकार की शैलों की प्रकृति एवं उनकी उत्पत्ति की पद्धति का वर्णन करें। आप उनमें अन्तर स्थापित केसे करेंगे?
उत्तर:
चट्टानों को उनकी निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया गया है:
1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks) – चूँकि आग्नेय चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा एवं लावा से होता है, अत: इनको प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं। मैग्मा के ठंडे होकर घनीभूत हो जाने पर आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। ठण्डा तथा ठोस बनने की यह प्रक्रिया पृथ्वी की पर्पटी या पृथ्वी की सतह पर हो सकती है। आग्नेय चट्टानों का वर्गीकरण इनकी बनावट के आधार पर किया गया है। इसकी बनावट इसके कणों के आकार एवं व्यवस्था अथवा पदार्थ के भौतिक अवस्था पर निर्भर करती है। ग्रेनाइट, ग्रेबो, पेग्मैटाइट, बैसाल्ट, वोल्कैनिक ब्रेशिया तथा टफ आग्नेय चट्टानों के कुछ उदाहरण हैं।

2. अवसादी चट्टान (Sedimentary Rocks) – पृथ्वी की सतह की चट्टानों (आग्नेय अवसादी एवं कायॉरित) अपच्छादनकारी कारकों के प्रति अनावत होती हैं, जो विभिन्न आकार के विखण्डों में विभाजित होती हैं। ऐसे उपखण्डों का विभिन्न बहिर्जनित कारकों के द्वारा संवहन एवं संचय होता है। संघनता के द्वारा से संचित पदार्थ चट्टानों में परिवर्तित हो जाते हैं। यह प्रक्रिया प्रस्तरीकरण (Lithification) कहलाती है। इसी कारणवश बालुकाश्म, शैल जैसे अवसादी चट्टानों का वर्गीकरण तीन प्रमुख समूहों में किया गया है –

  • यांत्रिकी रूप से निर्मित – उदाहरणार्थ – बालुकाश्म, पिण्डाशला, चूना-प्रस्तर, शैल, विमृदा आदि।
  • काबनिक रूप से निर्मित – उदाहरणार्थ -गीजराइट; खड़िया, चूना-पत्थर, कोयला आदि; तथा
  • रसायनिक रूप से निर्मित – उदाहरणार्थ – शृंग प्रस्तर, चूना पत्थर, हेलाइट, पोटैश आदि।

3. कायांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks) – कायांतरित का अर्थ है, ‘स्वरूप में परिवर्तन’ । दाब आयतन एवं तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप इन चट्टानों का निर्माण होता है। जब विवर्तनिक प्रक्रिया के कारण चट्टानों निचले स्तर की ओर बलपूर्वक खिसक जाती हैं, या जब भूपृष्ठ से उठता, पिघला हुआ मैग्मा भू-पृष्ठीय चट्टानों के संपर्क में आता है, या जब ऊपरी चट्टानों के कारण निचली चट्टानों पर अत्यधिक दाब पड़ता है, तब कायंतरण होता है। कायांतरण वह प्रक्रिया है, जिसमें समेकित चट्टानों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक चट्टानों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं।
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आग्नेय चट्टानों प्राथमिक चट्टानें हैं, तथा अन्य चट्टानें इन प्राथमिक चट्टानों से निर्मित होती हैं। आग्नेय चट्टानों को कायांतरित चट्टानों में परिवर्तित किया जा सकता है। आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों से प्राप्त अंशों से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। अवसादी चट्टानों अपखण्डों में परिवर्तित हो सकती हैं तथा ये अपखण्ड अवसादी चट्टानों के निर्माण का एक स्रोत हो सकते हैं। निर्मित भूपृष्ठीय चट्टानें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथवी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं।

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प्रश्न 3.
कायांतरित चट्टान क्या है ? इनके प्रकार एवं निर्माण की पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर:
दाब आयतन एवं तापमान में परिवर्तन की प्रक्रिया के फलस्वरूप कायांतरित चट्टानों का निर्माण होता है। जब विवर्तनिक प्रक्रिया के कारण चट्टानें निचले स्तर की ओर बलपूर्वक खिसक जाती हैं, या जब भूपष्ठ से उठता, पिघला हुआ मैग्मा भू-पृष्ठीय चट्टानों के संपर्क में आता है, या जब ऊपरी चट्टानों के कारण निचली चट्टानों पर अत्यधिक दाब पड़ता है, तब कायांतरण होता है । कायांतरण वह प्रक्रिया है जिससे समेकित चट्टानों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक चट्टानों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं।

बिना किसी विशेष रसायनिक परिवर्तनों के ट्टने एवं घिसने के कारण वास्तविक चट्टानों में यांत्रिकी व्यवधान एवं उनका पुनः संगठित होना गतिशील कायांतरित कहलाता है। ऊष्मीय कायंतरण के कारण चट्टानों के पदार्थों में रसायनिक परिवर्तन एवं पुनः क्रिस्टलीकरण होता है। ऊष्मीय कायांतरण के दो प्रकार होते हैं-संपर्क कायांतरण एवं स्थानीय कायंतरण। संपर्क रूपांतरण में चट्टानें गर्म, ऊपर आते हुए मैग्मा एवं लावा के संपर्क में आती हैं, तथा उच्च तापमान में चट्टान के पदार्थों का पुनः क्रिस्टलीकरण होता है। अक्सर चट्टानों में मैग्मा अथवा लावा के योग से नए पदार्थ उत्पन्न होते हैं।

स्थानीय कायंतरण में उच्च तापमान अथवा दबाव अथवा इन दोनों के कारण चट्टानों में विवर्तनिक दबाव के कारण विकृत्तियाँ होती हैं, जिससे चट्टानों में पुनः क्रिस्टलीकरण होता है। कायांतरण की प्रक्रिया में चट्टानों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं। कायांतरित चट्टानों में खनिज अथवा कणों की इस व्यवस्था को पल्लवन या रेखांकन कहते हैं। कभी-कभी खनिज या विभिन्न समूहों के कण पतली से मोटी सतह में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं, कि वो हल्के एवं गहरे रंगों में दिखाई देते हैं।

कायांतरित चट्टानों में ऐसी संरचनाओं को बैंडिंग (Banding) कहते हैं, तथा बैंडिग प्रदर्शित करने वाले चट्टानों को बैंडेड (Banded) चट्टानों कहते हैं। कायांतरित होने वाली वास्तविकचट्टानों पर ही कायांतरित चट्टानों के प्रकार निर्भर करते हैं। कायांतरित चट्टानें दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत की जा सकती हैं-पल्लवित चट्टान अपल्लवित चट्टान । पट्टिताश्मीय, ग्रेनाइट, सायनाइट, स्लेट, शिल्ट, संगमरमर, क्वार्ट्ज आदि रूपांतरित चट्टानों के कुछ उदाहरण हैं।

Bihar Board Class 11 Geography खनिज एवं शैल Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आग्नेय चट्टानों का रूप कैसा होता है
उत्तर:
शीशे तथा रवेदार जैसा।

प्रश्न 2.
लावा पृथ्वी के धरातल पर तेजी से क्यों ठण्डा हो जाता है?
उत्तर:
वायुमण्डल के सम्पर्क में होने के कारण।

प्रश्न 3.
बाह्य आग्नेय चट्टान का एक उदाहरण दें?
उत्तर:
बैसाल्ट।

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प्रश्न 4.
स्थिति के आधार पर आग्नेय चट्टानों के दो प्रकार लिखो।
उत्तर:
बाह्य तथा भीतरी चट्टानें।

प्रश्न 5.
उत्पत्ति के आधार पर आग्नेय चट्टानें कौन-कौनसी होती हैं?
उत्तर:
ज्वालामुखी चट्टानों तथा पातालीय चट्टानें।

प्रश्न 6.
पातालीय शब्द कहाँ से बना?
उत्तर:
यह शब्द (Pluto) से बना जिसका अर्थ पाताल देवता है।

प्रश्न 7.
बेसॉल्ट में रवे क्यों नहीं होते?
उत्तर:
लावा के तेजी से ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 8.
आग्नेय चट्टानों के निर्माण के लिये मुख्य साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
क्रियाशील ज्वालामुखी।

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प्रश्न 9.
IGNEOUS शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
यह लैटिन शब्द Ignis से बना है (अर्थ अग्नि है)।

प्रश्न 10.
चट्टानों की तीन मुख्य किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर:

  1. आग्नेय चट्टानें
  2. अवसादी या तलछटी चट्टानें
  3. रूपांतरित चट्टानें

प्रश्न 11.
चट्टानों से प्रभावित एक वस्तु का नाम लिखो।
उत्तर:
भू-आकार।

प्रश्न 12.
चट्टान के रंग तथा कठोरता किन तत्त्वों पर निर्भर करते हैं?
उत्तर:
खनिजों की रचना।

प्रश्न 13.
स्थलमण्डल में पाये जाने वाले दो तत्त्वों का नाम लिखें।
उत्तर:
सिलिकॉन तथा एल्यूमीनियम।

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प्रश्न 14.
चट्टान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्थलमण्डल के ठोस पदार्थ।

प्रश्न 15.
बनावट के आधार पर अवसादी चट्टानों की तीन किस्में कौन-कौन-सी हैं?
उत्तर:

  1. यांत्रिक क्रिया द्वारा
  2. रसायनिक क्रिया द्वारा
  3. जैविक क्रिया द्वारा।

प्रश्न 16.
यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी अवसादी चट्टानों का उदाहरण दें।
उत्तर:
रेत का पत्थर, चीनी मिट्टी, ग्रिट।

प्रश्न 17.
निट किसे कहते हैं?
उत्तर:
खुरदरे रेत के पत्थर को।

प्रश्न 18.
कांग्लोमरेट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
गोल पत्थरों के आपस में जुड़ने से बनने वाला भू-आकार।

प्रश्न 19.
काबर्न प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कोयला।

प्रश्न 20.
कोयले की विभिन्न किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर:
पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस तथा एंथ्रासाइट।

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प्रश्न 21.
चूना प्रधान चट्टानों का दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
चाक तथा चूने का पत्थर।

प्रश्न 22.
अवसादी चट्टानों में पाये जानेवाले दो फॉसिल ईंधन बताएँ।
उत्तर:
कोयला तथा पेट्रालियम।

प्रश्न 23.
रसायनिक क्रिया द्वारा निर्मित दो चट्टानों के नाम लिखें।
उत्तर:
जिप्सम तथा चट्टानी नमक।

प्रश्न 24.
तलछट को कठोर बनाने में किस तत्त्व का योगदान है।
उत्तर:
सिलिका, कैल्साइट आदि संयोजक पदार्थ।

प्रश्न 25.
अवसादी चट्टानों के लिए निक्षेप करने वाले कार्यकर्ता बताएँ।
उत्तर:
नदी, वायु, ग्लेशियर।

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प्रश्न 26.
‘Sadimentary’ शब्द किस शब्द से बना है?
उत्तर:
‘Sadimentum’ शब्द से जिसका अर्थ है नीचे बैठना।

प्रश्न 27.
पश्चिमी भारत में बैसाल्ट में घिरे हुए विशाल क्षेत्र का नाम लिखें।
उत्तर:
दक्कन ट्रैप।

प्रश्न 28.
लैकोलिथ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नीचे से मैग्मा के उभार से बने टीले।

प्रश्न 29.
बैथोलिथ शब्द का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
बैथोलिथ भीतरी आग्नेय चट्टान का गुम्बद आकार ग्रेनाइट का भू-खण्ड होता है।

प्रश्न 30.
ग्रेनाइट में बड़े रवे क्यों होते हैं?
उत्तर:
मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने के कारण।

प्रश्न 31.
पातालीय चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर:
ग्रेनाइट।

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प्रश्न 32.
अधिक गहराई में मैग्मा अन्दर क्यों ठण्डा हो जाता है?
उत्तर:
ऊपरी चट्टानों में दबाव होने के कारण।

प्रश्न 33.
PVT क्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह कायांतरित क्रिया का संक्षेप रूप है, यह क्रिया P= Pressure, V= Volume, T= Temperature द्वारा होती है।

प्रश्न 34.
निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण करो।
उत्तर:
निर्माण पद्धति के आधार पर अवसादी शैलों का वर्गीकरण तीन प्रमुख समूहों में किया गया है –

  1. यांत्रिकी रूप में निर्मित उदाहरणार्थ, बालुकाश्म, पिंडशिल, चूना प्रस्तर, शैल, विमृदा आदि
  2. कार्बनिक रूप में निर्मित उदाहरणार्थ, गीजराइट, खड़िया चूना, पत्थर कोयला आदि तथा
  3. रसायनिक रूप से निर्मित-उदाहरणार्थ, शृंग, प्रस्तर चूना पत्थर, पोटैश आदि।

प्रश्न 35.
प्रस्तीकरण (Lithification) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अपरदन के कार्यकर्ता शैलों को छोटे-छोटे खण्डों में विभाजित करते हैं। सघनता के कारण ये पदार्थ शैलों में बदल जाते हैं। इसे प्रस्तीकरण कहते हैं।

प्रश्न 36.
पेट्रोलॉजी का शुद्ध अर्थ क्या है ?
उत्तर:
पेट्रोलॉजी शैलों का विज्ञान है। एक पेट्रो-शास्त्री शैलों के विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन करता है। जैसे-खनिज की संरचना, बनावट, स्रोत, प्राप्ति स्थान, परिवर्तन एवं दूसरी शैलों के साथ सम्बन्ध ।

प्रश्न 37.
निर्माण पद्धति के अनुसार शैलों के प्रकार बताएँ।
उत्तर:
शैलों के विभिन्न प्रकार हैं। जिनको उनकी निर्माण पद्धति के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया जाता है –

  1. आग्नेय शैल – मैग्मा तथा लावा से घनीभूत
  2. अवसादी शैल-बहिर्जनित प्रक्रियाओं के द्वारा शैलों के अंशों के निक्षेपन का परिणाम तथा
  3. कायंतरित शैल उपस्थित शैलों में पुनक्रिस्टलीकरण प्रक्रिया से निर्मित।

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प्रश्न 38.
शैलों का ज्ञान क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
शैलों एवं स्थालाकृतियों तथा शैलों एवं मृदा में निकट सम्बन्ध होने के कारण भूगोलशास्त्री को शैलों का मौलिक ज्ञान होना आवश्यक होता है।

प्रश्न 39.
किन खनिजों का निर्माण एक तत्त्वों से बना है?
उत्तर:
सल्फर, ताँबा, चाँदी, स्वर्ण, ग्रेफाइट।

प्रश्न 40.
शैल तथा कोयला किन चट्टानों में बदल जाते है?
उत्तर:
शैल स्लेट में तथा कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता है।

प्रश्न 41.
ग्रेनाइट तथा बैसाल्ट किन चट्टानों में बदल जाती है?
उत्तर:
ग्रेनाइट नीस में तथा बैसाल्ट शिल्ट में बदल जाता है।

प्रश्न 42.
रेत का पत्थर तथा चूने का पत्थर किन चट्टानों में परिवर्तित हो जाता है?
उत्तर:
रेत का पत्थर क्वार्ट्साइट तथा चूने का पत्थर संगमरमर में बदल जाता है।

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प्रश्न 43.
चटटानें अपना रंग तथा रचना क्यों बदल लेती हैं?
उत्तर:
ताप तथा दबाव के कारण।

प्रश्न 44.
रूपांतरित शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर:
रूप में परिवर्तन।

प्रश्न 45.
रसायनिक क्रिया से बनने वाली चट्टानों में मुख्य क्रिया कौन-सी है?
उत्तर:
वाष्पीकरण।

प्रश्न 46.
शैली चक्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
शैली चक्र एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती है।

प्रश्न 47.
पल्लवन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कायांतरण की प्रक्रिया में शैलों के कुछ कण या खनिज सतहों या रेखाओं के रूप में व्यवस्थित हो जाते हैं। इस व्यवस्था को पल्लवन या रेखांकन कहते हैं।

प्रश्न 48.
कायंतरित क्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कायांतरित वह प्रक्रिया है जिसमें समेकित शैलों में पनः क्रिस्टलीकरण होता है तथा वास्तविक शैलों में पदार्थ पुनः संगठित हो जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
खनिज की परिभाषा दें।
उत्तर:
शैलों की रचना पदार्थों के इकट्ठा होने से होती है। खनिज प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला एक अजैव तत्त्व (Inorganicelement) था यौगिक (Compound) है । इसकी एक निश्चित रसायनिक रचना होती है । इसके संघटन में आण्विक संरचना पाई जाती है। इसके भौतिक गुण भी निश्चित होते हैं। अतः खनिज प्रकृति में पाये जाने वाले रसायनिक पदार्थ हैं। ये पदार्थ तत्त्व भी हो सकते हैं और यौगिक भी।

प्रश्न 2.
शैल निर्माणकारी खनिज किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी पर लगभग 2000 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। परन्तु इनमें से केवल 12 खनिज ही मुख्य रूप से भू-पृष्ठ की शैलों का निर्माण करते हैं। इन खनिजों को शैल निर्माणकारी खनिज (Rock forming Minerals) कहते हैं इन खिनिजों में सिलिकेट सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रधान होता है। इन शैलों में सबसे सामान्य खनिज क्वार्ट्ज (Quartz) पाया जाता है।

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प्रश्न 3.
खनिज कितने तत्त्वों से बनते हैं ? मुख्य तत्त्व कौन-से हैं ? सिलिका तथा चूने के कार्बोनेट में कौन-से तत्त्व हैं?
उत्तर:
सामान्य खनिज 8 मुख्य तत्त्वों (Elements) से बनते हैं। इनमें से सिलिकेट कर्बोनेट, ऑक्साइड तत्त्वों की मात्रा अधिक है । भू-पटल के खनिजों में 87% खनिज सिलिकेट हैं। सिलिका में 2 तत्त्व है-सिलिकॉन तथा ऑक्सीजन । चूने के कार्बोनेट में 3 तत्त्व हैं-कैल्श्यिम, कार्बन ऑक्सीजन।

प्रश्न 4.
शैल (Rock) की परिभाषा दो।
उत्तर:
भू-पृष्ठ (Crust) का निर्माण करने वाले सम्पूर्ण ठोस जैव एवं अजैव पदार्थों को शैल (चट्टान) कहते हैं (“Any natural, solid organic or inorganic material out of which the crust is formed is called a Rock”)। शैल ग्रेनाइट की भांति कठोर या पंक की भाँति नरम भी हो सकती है। भू-पृष्ठ शैलों का बना हुआ है। शैल की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। कुछ शैल ऐसे भी हैं जिनमें एक ही प्रकार के खनिज पाए जाते हैं । खनिज पदार्थों की विभिन्न मात्रा के कारण ही हर शैल की कोमलता या कठोरता रंग-रूप गुण शक्ति अलग-अलग होती है।

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प्रश्न 5.
स्थलमण्डल किसे कहते हैं? स्थलमण्डल की कितनी गहराई तक चट्टानें पाई जाती हैं?
उत्तर:
स्थल मण्डल (Lithosphere) का अर्थ है चट्टानों का परिमण्डल । पृथ्वी की बाहरी ठोस पर्त को भूपर्पटी (Crust) कहते हैं। यह क्षेत्र चट्टानों का बना हुआ है। धतराल से लगभग 16 कि० मी० की गहराई तक स्थलमण्डल में चट्टानें पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
धात्विक तथा अधात्वि खनिजों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
धात्विक खनिज – इनमें धातु तत्त्व होते हैं तथा इनको तीन प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है।

  • बहुमूल्य धातु – स्वर्ण, चाँदी, प्लैटिनम आदि।
  • लौह धातु – लौह एवं स्टील के निर्माण के लिए लोहे में मिलाई जाने वाली अन्य धातुएँ।
  • अलौहिक धातु – इनमें ताम्र, सीशा, जिंक, टिन, एलूमिनियम आदि धातु शामिल होते हैं।

अधात्विक गनिज – इनमें धातु के अंश उपस्थित नहीं होते हैं। गंधक फॉस्फेट तथा नाइट्रेट अधात्वि खनिज हैं। सीमेंट अधात्विक खनिजों का मिश्रण है।

प्रश्न 7.
‘चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं।’ व्याख्या करें।
उत्तर:
चट्टानों पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक इतिहास के बारे में जानकारी प्रदान करती हैं। इसमें पाये जाने वाले खनिज तथा इससे बनी मिट्टी प्राकृतिक वातावरण का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पतियों के अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये जीवावशेष इन चट्टानों की उत्पत्ति व समय के बारे में जानकारी देते हैं। इसलिए कहा जाता है, “चट्टानें पृथ्वी के इतिहास के पृष्ठ हैं तथा जीवावशेष उसके क्षर हैं ” (“Rocks are the pages of Earth History and Fossils are the writing on it”.)।

प्रश्न 8.
पृथ्वी की पर्पटी में कौन से प्रमुख तत्त्व हैं ?
उत्तर:
पृथ्वी विभिन्न तत्त्वों से बनी हुई है। इनकी बाहरी परत पर ये तत्त्व ठोस रूप में और और आंतरिक परत में ये गर्म एवं पिघली हुई अवस्था में पाये जाते हैं। पृथ्वी के सम्पूर्ण पर्पटी क, लगभग 98 प्रशित भाग आठ तत्त्वों, जैसे-ऑक्सीजन, सिलिकन, एलुमिनियम लोहा, कैल्शियम, सोडियम पोटाशियम तथा मैग्नीशियम से बना है तथा शेष भाग टायटेनियम, हाइड्रोजन, फॉस्फोरस मैंगनीज सल्फर, कार्बन निकिल एवं अन्य पदार्थों से बना है।
सारणी : पृथ्वी के पर्पटी के प्रमुख तत्त्व
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प्रश्न 9.
भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय में निम्नलिखित अंतर हैं –

  1. भौतिक अपक्षय चट्टानों : का विघटन भौतिक बलों द्वारा होता है, जिससे चटटानों में कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता। जबकि रासायनिक अपक्षय में चट्टानों का अपघटन रासायनिक क्रिया द्वारा होता है, जिससे चट्टानों में रासायनिक परिवर्तन आ जाता है।
  2. भौतिक अपक्षय के मुख्य कारक ताप, पाला तथा दाब है, जबकि रासायनिक अपक्षय के मुख्य कारक ऑक्सीकरण, कार्बोनिकरण जलयोजन तथा बिलयन है।
  3. भौतिक अपक्षय के उदाहरण शुष्क तथा शीत प्रदेश में पाये जाते हैं जबकि रासायनिक अपक्षय के उदाहरण उष्ण तथा आर्द्र प्रदेशों में मिलते हैं।

प्रश्न 10.
स्लेट चट्टानों के किस वर्ग से सम्बन्धित है? इसका क्या उपयोग है? भारत के किन भागों में स्लेट चट्टानों मिलती हैं?
उत्तर:
स्लेट एक रूपांतरित चट्टान है। यह शैल चट्टान पर अधिक दबाव से बनती है। यह भवन निर्माण में छत डालने (Roofing) के काम आती हैं। इसे बच्चों के लिखने में प्रयोग किया जाता है। इसे बिलियर्डस की मेज बनाने में प्रयोग करते हैं। भारत में यह रेवाड़ी (हरियाणा), कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) तथा बिहार में पाई जाती है।

प्रश्न 11.
कोयले के विभिन्न प्रकारों के नाम तथा उनमें कार्बन की मात्रा लिखो।
उत्तर:
कोयले में कार्बन की मात्रा के अनुसार निम्नलिखित प्रकार पाये जाते हैं –

  1. पीट (Peat) – इसमें कार्बन की मात्रा 40% से कम होती है।
  2. लिग्नाइट (Lignite) – इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 70% तक होती है।
  3. बिटुमिनस (Bituminus) – इसमें कार्बन की मात्रा 50% से 70% तक होती है।
  4. एन्थासाइट (Anthracite) – इसमें कार्बन की मात्रा 70% से अधिक होती है।

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प्रश्न 12.
संगमरमर मूल रूप से कौन-सी चट्टान है? इसकी रचना कैसी होती? इसका उपयोग बताओ।
उत्तर:
संगमरमर एक परिवर्तित चट्टान है। चूने का पत्थर संगमरमर की मूल चट्टान है। गर्म मैग के संस्पर्श से चूने का पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है। संगमरमर इमारती पत्थर के मूल्य में बहुमूल्य है। आगरे का ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है। भारत में यह अलवर, अजमेर जयपुर तथा जोधपुर के समीप पाया जाता है।

प्रश्न 13.
ग्रेनाइट, चट्टानों के किस वर्ग से सम्बन्धित है? इसका क्या उपयोग है? भारत के किन भागों में ग्रनाइट चट्टानों मिलती हैं?
उत्तर:
ग्रेनाइट पातालीय आग्नेय चट्टान है। यह एक कठोर चट्टान है जो विभिन्न रंगों जैसे-भूरे, लाल तथा सफेद में पाई जाती है। इसका उपयोग इमारतें, किलें, मन्दिर, मर्तियाँ तथा सड़क बनाने में किया जाता है। दक्षिण भारत के दक्कन पठार मध्य प्रदेश, छोटा नागपुर पठार तथा राजस्थान में ग्रेनाइट पत्थर मिलता है।

प्रश्न 14.
दक्कन ट्रैप (Deccan Trap) से क्या अभिप्राय है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
भारतीय प्रायद्धीप के उत्तर:पश्चिमी भाग में बैसाल्ट चट्टानों से ढंके हए विशाल क्षेत्र को ढक्कन ट्रैप कहते हैं । इस क्षेत्र का विस्तार लगभग 5,00,000 वर्ग किमी है । इन चट्टानों के अपक्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण हुआ है जिसे रेगूर (Regur) मिट्टी कहते हैं। यह मिट्टी कपास की कृषि के लिए उत्तम है।

प्रश्न 15.
रवों (Crystals) का निर्माण किस तत्त्व पर निर्भर करता है?
उत्तर:
पिघले हुए लावा के ठण्डा होने से रवों का निर्माण होता है। रवों का आकार छोटा या बडा हो सकता है। रवों का आकार मैग्मा के शीतलन (rate of cooling of magma) की क्रिया पर निर्भर करता है। धरातल पर शीघ्र ही ठण्डा होने के कारण धरातल पर बनने वाले रवों का आकार छोटा होता है। इनका गठन कांच जैसा होता है, जैसे-बैसाल्ट । मैग्मा के शीतलन की क्रमिक क्रिया से बड़े-बड़े रवों का निर्माण होता है। मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने से पातालीय चट्टानों में बड़े आकार के रवों या मोटे दोनों वाले गठन का निर्माण होता है. जैसे-ग्रेनाइट।

प्रश्न 16.
चूना पत्थर तथा कोयला के बनने की प्रक्रियाओं में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
चूना पत्थर तथा कोयला के बनने की प्रक्रियाओं में अन्तर –
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प्रश्न 17.
शैल तथा खनिज में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शैल तथा खनिज में अन्तर –
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प्रश्न 18.
अम्लीय तथा क्षारीय चट्टानों में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अम्लीय तथा क्षारीय चट्टानों में अन्तर –
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प्रश्न 19.
निम्नलिखित शैलों को आग्नेय, अवसादी व कायांतरित शैलों में वर्गीकृत कीजिए

  1. ग्रेनाइट
  2. स्टेल
  3. चूना पत्थर
  4. संगमरमर
  5. मृतिका
  6. बेसाल्ट
  7. बलुआ पत्थर
  8. कोयला
  9. खड़िया
  10. जिप्सम
  11. नीस तथा
  12. शिल्ट

उत्तर:
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प्रश्न 20.
मैग्मा एवं लावा में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
मैग्मा तथा लावा में अन्तर –
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अवसादी चट्टानें क्या होती हैं? ये किस प्रकार बनती है? इनकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
अवसादी चट्टानों का निर्माण अपरदन द्वारा प्राप्त अवसाद के जमाव से होता है। तलछट में छोटे व बड़े आकार के कण होते हैं इन कणों के एकत्र होकर नीचे बैठ जाने से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है। पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थ को जल, वायु, हिमनदी जमा करते रहते है। ये तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं या मरुस्थलों के धरातल आदि क्षेत्रों में जमा होते है। – इन चट्टानों की रचना कई पदो (Stages) में पूरी होती है। तलछट की परतों के संवहन तथा संयोजन से अवसादी शैलों का निर्माण होता है।

  • तलछट का निक्षेप – यह पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण तथा उसके बाद छोटे कण ।
  • परतों का निर्माण – लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर, दूसरी परत के रूप में जमा होते हैं।
  • ठोस होना – ऊपरी परतों के भार के कारण परते संगठित होने लगती हैं। सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं। इस प्रकार इन दोनों क्रियाओं के सम्मिलत रूप को शिलाभवन कहते हैं।

तलछटी चट्टान तीन प्रकार से बनती हैं –

  1. यांत्रिक क्रिया द्वारा
  2. जैविक पदार्थों द्वारा तथा
  3. रसायनिक तत्त्वों द्वारा।।

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा – इन चट्टानों का निर्माण अपरदन व परिवहन करने वाली शक्तियों द्वारा होता है, जैसे-नदी, पवन, हिम आदि । बालुकामय तथा मृणमय चट्टानें इस प्रकार के उदाहरण हैं।
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2. जैविक पदार्थों द्वारा – इन चट्टानों का निर्माण जीव – जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेषों के दब जाने से होता है। ये चट्टानों मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है

  • काबर्न प्रधान चट्टानें – कोयला इस प्रकार की चट्टान हैं।
  • चूना प्रधान चट्टानें – उदाहरण-चूने का पत्थर, खड़िया, डोलोमाईट आदि।

3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा – उदाहरण – नमक, जिप्सम।

4. अवसादी चट्टानों की विशेषताएँ –

  • इन चट्टानों में विभिन्न परतें पाई जाती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें कहते हैं। दो परतों को अलग करने वाले तल को संस्तरण तल कहते हैं।
  • इनका निर्माण छोटे – छोटे कणों से होता है।
  • इनमें जीव – जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेष पाए जाते हैं।
  • जल में निर्माण के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  • ये चट्टानें मुलायम तथा प्रवेशीय होती हैं। इनका अपरदन शीघ्र होता है। अधिकतर क्षैतिज स्थिति में पाई जाती हैं।
  • ये पृथ्वी के धरातल पर 75 प्रतिशत भाग में फैली हुई हैं। परन्तु पृथ्वी की गहराई में 5 प्रतिशत है।

प्रश्न 2.
तीन प्रकार की चट्टानों में सम्बन्ध की व्याख्या चट्टानी चक्र की सहायता से कीजिए।
उत्तर:
एक वर्ग की चट्टानों को दूसरे वर्ग की चट्टानों में बदलने की क्रिया को चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। इस चक्र में दो प्रकार की शक्तियाँ कार्य करती हैं –

  1. पृथ्वी के भू – गर्भ की गर्मी
  2. बाह्य शक्तियों से अपरदन

पृथ्वी पर सबसे पहले आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ। विभिन्न कारकों जैसे पवन, जल, हिम द्वारा अपरदन से तलछट प्राप्त कर तथा जमाव से तलछटी चट्टानें बनती हैं। ये चट्टानें ताप, दाब तथा रसायनिक क्रिया से रूपान्तरित चट्टानें बनाती हैं। रूपान्तरित फिर पिघलकर आग्नेय चट्टानें बन जाती हैं। अपक्षय तथा अपरदन से ये मलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इस प्रकार एक वर्ग की चट्टानों में परिवर्तित हो जाती हैं । इस क्रिया को चट्टान चक्र (Rock Cycle) कहते हैं।

उदाहरण के लिए, चूने का पत्थर संगमरमर की मूल चट्टान है। गर्म मैग्मा के सस्पर्श से चूने का पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है। स्लेट एक रूपान्तरित चट्टान है। यह शैल चट्टान पर अधिक दबाव से बनती है। चूने का पत्थर क्षेत्रीय रूपान्तरण के कारण क्वार्ट्साइट में बदल जाता है।

रूपान्तरित चट्टानें तथा आग्नेय लगभग समान परिस्थितियों में बनती हैं। इस प्रकार, पवन, जल, हिम, ताप तथा दाब के प्रभावों से चट्टानें; एक वर्ग से दूसरे वर्ग की चट्टान में परिवर्तित होती रहती हैं।
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें

  1. अवसादी शैल
  2. कायान्तरण के प्रकार
  3. खनिजों का आर्थिक महत्त्व।

उत्तर:
1. अवसादी शैल:
इन शैलों का निर्माण शैलों के अपक्षय तथा अपरदन से प्राप्त अवसादों से होता है। पवन, जल तथा हिम शैलों को अपरदित करते हैं, और अवसाद को निम्न क्षेत्रों में परिवहित करते हैं। जब इनका निक्षेप समुद्र में होता है, वे सन्पीड़ित और कठोर होकर शैल परतों की रचना करते हैं। अवसाद खंडित खनिज तथा जैविक पदार्थ हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, पूर्व स्थित शैलों तथा जीवन-प्रक्रियाओं से प्राप्त होते हैं और वायु, जल अथवा हिम द्वारा परिवहित और निक्षेपित किए जाते हैं बलुआ पत्थर बालू के कणों से बनता है।

खड़िया करोड़ों सूक्ष्म जीवों के छोटे-छोटे कैल्शियम कार्बोनेटी (चूना) अवशेषों से बनती है। कठोर परतों के निर्माण की प्रक्रिया को शिलीभवन कहते हैं कभी-कभी अवसादों में निक्षेप के बाद रासायनिक परिवर्तन भी होते हैं। भौतिक तथा रसायनिक परिवर्तनों की सभी प्रक्रियाएँ जो अवसादों को उनके ठोस शैल में परिवर्तित होने के दौरान प्रभावित करती हैं, प्रसंघनन कहलाती हैं।

अवसादी शैलों को खंडज तथा अखंडज-दो वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। शैलों का नामकरण, शैलों में उपस्थित खनिज कणों के आकार पर निर्भर करता है। खनिज कणों के आकार के अनुसार कोटि-निर्धारण करने के लिए ‘वेंटवर्थ मापक’ मापन का प्रयोग किया जाता है । अखंडज अवसादी शैल दो प्रकार से बनती है-रासायनिक अवक्षेप तथा जैव पदार्थों से प्राप्त अवसाद। जैव पदार्थों से प्राप्त अवसादों में कोयला, चूना पत्थर इसके उदाहरण हैं। रासायनिक अवसादों के उदाहरण हैं-कैल्शियम सल्फेट, एनहाइड्राइट, जिप्सम (कैल्सियम सल्फेट हाइड्स)।

2. कायान्तरण के प्रकार:
ताप तथा दाब के कारण नई खनिज शैलों का निर्माण होता है। मृतिका ताप तथा दाब से प्रभावित होकर स्टेल में कायान्तरित हो जाती है। इसी प्रकार चूना पत्थर संगमरमर में कायान्तरित हो जाता है। कायान्तरित शैलों को दो बड़ी भागों में बाँटा जा सकता है – अपदलनी तथा पुनक्रिस्टलीकृत शैल। अपदलनी का निर्माण पूर्व-स्थित खनिजों का पर्याप्त रासायनिक परिवर्तन के बिना यौगिक विघटन से हुआ है।

इस प्रक्रिया को गतिक कायान्तरण कहते हैं। पुनक्रिस्टलिकृत शैल मूल खनिजों के पुनः क्रिस्टलीकरण होने से बनती है। पुनर्किस्टलीकृत शैल को दो उपभागों में बाँटा गया है-संस्पर्श कायान्तरित तथा प्रादेशिक कायान्तरित कार्यातरण की प्रक्रिया जारी रहने पर खनिजों का एक बड़ा प्रतिशत प्लेट जैसा शक्ति ग्रहण कर लेता है। ये खनिज शैल एक सामान्तर रेखा में एकत्र हो जाते हैं। इस संरचना को शल्कन कहते हैं।

सुविकसित शल्कन को शिल्ट कहते हैं। शिल्ट की आकृति में वृद्धि हो जाती है जिन्हें पॅफिरोब्लास्ट कहते हैं। कायान्तरित चट्टान का एक अन्य रूप है। सरेखण, इसमें खनिजों के कण एक लम्बी, पतली पेन्सिल जैसी वस्तु के रूप में एकत्र हो जाते हैं।

3. खनिजों का आर्थिक महत्त्व : उपयोगिता की दृष्टि से खनिजों को चार प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है –

(क) आवश्यक संसाधन, ऊर्जा सन्साधन, धातु सन्साधन तथा औद्योगिक सन्साधन । इनमें से सर्वाधिक आधारभूत वर्ग आवश्यक सन्साधन है, जिनमें मृदा तथा जल शमिल हैं।

(ख) ऊर्जा सन्साधन को जीवाश्मी ईंधन तथा परमाणु ईंधन में विभक्त किया जा सकता है। धात्विक सन्साधनों में संरचनात्मक धातुओं, जैसे-लोहा, एल्यूमिनियम एवं रिटेनियम से लेकर अलंकारी एवं औद्योगिक धातुएँ जैसे-सोना, प्लेटिनम तथा गैलियम शामिल हैं।

(ग) औद्योगिक खनिजों में 30 से अधिक वस्तुएँ शामिल हैं। जैसे-नमक, एस्बेस्टस तथा बालु।

(घ) खनिज निक्षेपों को उनके उपभोग की दर के बराबर पैदा करने की हमारी योग्यता तथा क्षमता होने की कोई सम्भावना नहीं है। द्वितीय खनिज निक्षेपों की महत्ता स्थानबद्ध है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करें –

  1. रासायनिक अवक्षेप तथा जैव पदार्थों से प्राप्त अवसाद
  2. अपदलनी शैल और पुनक्रिस्टलीकृत शैल
  3. शल्कण संरेखण।

उत्तर:
1. रासायनिक अवक्षेप तथा जैव पदार्थों से प्राप्त अवसाद –
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2. अपदलनी शैल और पुनक्रिस्टलीकृत शैल –
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3. शल्कन और संरेखण –
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प्रश्न 5.
आग्नेय शैलों के निर्माण का वर्णन, उनके विभिन्न प्रकारों को उपयुक्त उदाहरण देते हुए वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आग्नेय शैलों का निर्माण ज्वालामुखी से निकले हुए लावा से अथवा उष्ण मैग्मा के भूपर्पटी के नीचे ठण्डा होने से हुआ है। ग्रेनाइट मोटे दाने वाली आग्नेय शैल है। यह मैग्मा के धीरे-धीरे ठण्डा होने से बनी है। . बैसाल्ट महीन दानों वाली काली आग्नेय शैल है, जो लावा के शीघ्र ठण्डा होने से बनी है। मैग्मा के रासायनिक विभेदन के आधार पर आग्नेय शैलें दो प्रकार की होती है-मैफिक और फेल्सिक।

आग्नेय शैल में खनिज क्रिस्टलों का आकार मैग्मा के ठण्डा होने की दर पर निर्भर है। सामान्य तौर पर मैग्मा के शीघ्र ठण्डा होने पर छोटे क्रिस्टल तथा धीरे-धीरे ठण्डा होने पर बड़े क्रिस्टल बनते हैं। अतिशीघ्र ठण्डा होने से प्राकृतिक काँच या ग्लास की उत्पत्ति होती है, जो क्रिस्टलविहीन होती है। मैग्मा को चारों ओर से घेरने वाली शैले ऊष्मा के निष्कासन में बाधा डालती है।

बड़े क्रिस्टल, जो आँखों से देखे जा सकते हैं, दृश्यक्रिस्टल कहलाते हैं, जो क्रिस्टल केवल माइक्रोस्कोप की सहायता से देखे जाते हैं, ऐफान क्रिस्टल कहलाते हैं। जब शैल में सभी क्रिस्टल एक ही आकार के हों, उस शैल गठन को समणिक कहते हैं। जब बड़े क्रिस्टल छोटे क्रिस्टलों के आव्यूह में अन्तः स्थापित होते हैं, उन्हें दीर्घ क्रिस्टल अन्तर्वेशी या पॅर्फिराइटिक कहते हैं।

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

Bihar Board Class 11 Geography महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

(क) बहुवैकल्पिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(क) अल्फ्रेड वेगनर
(ख) अब्राहम आरटेलियस
(ग) एनटोनियो पेलग्रिनी
(घ) एमंड हैस
उत्तर:
(ख) अब्राहम आरटेलियस

प्रश्न 2.
निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(क) अल्फ्रेड वेगनर
(ख) अब्राहम आरटेलियस
(ग) एनटोनियो पेलग्रिनी
(घ) एमंड हैस
उत्तर:
(ख) अब्राहम आरटेलियस

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 3.
पोलर फ्लिंग बल (Polar fleeing force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है?
(क) पृथ्वी का परिक्रमण
(ख) पृथ्वा का घूर्णन
(ग) गुरुत्वाकर्षण
(घ) ज्वारीय बल
उत्तर:
(ख) पृथ्वा का घूर्णन (ग) गुरुत्वाकर्षण

प्रश्न 3.
इनमें से कौन सी लघु (Minor) प्लेट नहीं है?
(क) नाजका
(ख) फिलिप्पिन
(ग) अरब
(घ) अंटार्कटिक
उत्तर:
(घ) अंटार्कटिक

प्रश्न 4.
सागरीय तल विस्तार सिद्धांत की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न से किस अवधारणा को नहीं विचारा?
(क) मध्य-महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(ख) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना।
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(घ) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु।
उत्तर:
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 5.
हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस तरह की प्लेट सीमा है?
(क) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण
(ख) अपसारी सीमा
(ग) रूपांतर सीमा
(घ) महाद्वीपीय अभिसरण
उत्तर:
(क) महासागरीय-महाद्वीपीय अभिसरण

प्रश्न 6.
महाद्वीपीय विस्थापन के सिद्धांत का प्रतिपादन किसने किया?
(क) वेगनर
(ख) बेकन
(ग) टेलर
(घ) हेनरी हेस
उत्तर:
(ग) टेलर

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा सबसे छोटा महासागर है?
(क) हिन्द महासागर
(ख) आर्कटिक महासागर
(ग) अटलांटिक महासागर
(घ) प्रशांत महासागर
उत्तर:
(ख) आर्कटिक महासागर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा पटल विरूपण से संबंधित नहीं है?
(क) पर्वत बल
(ख) प्लेट विवर्तनिक
(ग) महादेश जनक बल।
(घ) संतुलन
उत्तर:
(ग) महादेश जनक बल।

Bihar Board Class 11 Geography Solutions Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण

प्रश्न 9.
समुद्रतल पर सामान्य वायुमंडलीय दाब कितना होता है?
(क) 1031.25 मिलीबार
(ख) 1013.25 मिलीबार
(ग) 1013.52 मिलीबार
(घ) 1031.52 मिलीबार
उत्तर:
(ख) 1013.25 मिलीबार

प्रश्न 10.
लवणता को प्रति, समुद्र तल में घुले हुए नमक (ग्राम) को मात्रा से व्यक्त किया जाता है
(क) 10 ग्राम
(ख) 100 ग्राम
(ग) 1000 ग्राम
(घ) 10,000 ग्राम
उत्तर:
(ग) 1000 ग्राम

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने निम्नलिखित में से किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर:
वेनगर के अनुसार, महाद्वीपीय विस्थापन के दो कारण थे –

  1. पोलर या ध्रुवीय फ्लिंग बल (Polar fleeing force) और
  2. ज्वारीय बल (Tidal force)| ध्रुवीय फ्लिंग बल पृथ्वी के घूर्णन से संबंधित है। यह ज्वारीय बल सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से संबंद्ध है जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं।

प्रश्न 2.
मैटल में संवहन धाराओं के आरम्भ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
ये धाराएँ रेडियाऐक्टिव तत्त्वों से उत्पन्न ताप भिन्नता से मैटल भाग में उत्पन्न होती हैं। आर्थर हाम्स ने तर्क दिया कि पूरे मैंटल भाग में इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान है।

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प्रश्न 3.
प्लेट की रूपांतर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमान्त में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:

  1. जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही पर्पटी का विनाश होता है उन्हें रूपान्तरण सीमा (Transform boundries) कहते हैं।
  2. जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे फंसती है और जहाँ क्रस्ट नष्ट होती है,वह अभिसरण सीमा (Convergent boundries) है।
  3. जब दो प्लेटें एक-दूसरे से विपरीत दिशा में अलग हटती हैं और नई पर्पटी का निर्माण होता है उन्हें अपसारी सीमा (Divergent boundries) कहते हैं।

प्रश्न 4.
दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखण्ड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पहले यह उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी आक्षांश पर स्थित था। इन दो प्रमुख प्लेटों को टिथीस सागर अलग करता था और तिब्बतीय खंड एशियाई स्थलखंड के करीब था। इंडियन प्लेट के एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह के दौरान एक प्रमुख घटना घटी-वह थी लावा प्रवाह से दक्कन ट्रेप का निर्माण होना । ऐसा लगभग 6 करोड़ वर्ष पहले आरम्भ हुआ और एक लम्बे समय तक जारी रहा।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए

प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के पक्ष में दिये गये प्रमाणों का वर्णन करें?
उत्तर:
जर्मन मौसमविद् अलफ्रेड वेनगर (Affred Wegner) ने महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत सन् 1912 में प्रस्तावित किया, यह सिद्धांत महाद्वीपीय एवं महासागरों के वितरण से संबंधित था। इस सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाण इस प्रकार थे –
(a) महाद्वीपों में साम्य – दक्षिणी अमेरिका व अक्रीका के आमने-सामने की तटरेखाएँ अद्भुत व त्रुटिरहित साम्य दिखाती हैं। 1964 ई० में बुलर्ड (Bullard) ने एक कम्प्यूटर प्रोग्राम की सहायता से अटलांटिक तटों को जोड़ते हुए एक मानचित्र तैयार किया था तटों का यह साम्य बिल्कुल सही सिद्ध हुआ।

(b) महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता – आधुनिक समय में विकसित की गई रेडियोमिट्रिक काल निर्धारण (Radiometric dating) विधि से महासागरों के पार महाद्वीपों के चट्टानों के निर्माण के समय को सरलता से मापा जा सकता है। 200 करोड़ वर्ष प्राचीन शैल समूहों की एक श्रृंखला यही ब्राजील तट और पश्चिमी अफ्रीका के तट पर मिलती है जो आपस में मेल खाती है।

(c) टिलाइट (Tillite) – टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं जो हिमानी निक्षेपण से निर्मित होती है। भारत में पाए जाने वाले गोंडवाना श्रेणी के तलछटों के प्रतिरूप दक्षिण गोलाद्धों के छः विभिन्न स्थलखण्डों में मिलते हैं। गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में घने टिलाइट हैं जो विस्तृत व लम्बे समय तक हिम आवरण या हिमाच्छादन की तरफ इशारा करते हैं।

(d) प्लेसर निक्षेप (Placer Deposits) – घाना तट पर सोने के बड़े निक्षेपों कोउपस्थिति व चट्टानों की अनुपस्थिति एक आश्चर्यजनक तथ्य है। अतः यह स्पष्ट है कि घाना में मिलने वाले सोने के निक्षेप ब्राजील पठार से उस समय निकले होंगे, जब ये दोनों महाद्वीप एक-दूसरे से जुड़े थे।

(e) जीवाश्मों का वितरण (Distribution of Fossils) – कुछ वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखण्डों को जोड़कर एक सतत् स्थलखण्ड ‘लेमूरिया’ (Lemuria) की उपस्थिति को स्वीकारा । ये ‘लैग्मूर’ भारत, मेडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं । मेसोसारस (Mrsosaurus) नाम के छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में ही रह सकते थे। इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिण अफ्रीका के दक्षिणी प्रान्त और ब्राजील में इरावर शैल समूहों में ही मिलती हैं। ये दोनों स्थान आज एक-दूसरे से 4,800 किमी. की दूरी पर हैं और इनके बीच में एक महासागर विद्यमान है।

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प्रश्न 2.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत व प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त में मूलभूत अंतर बताइए।
उत्तर:
इस सिद्धांत की आधारभूत संकल्पना यह थी कि सभी महाद्वीप एक अकेले भूखण्ड में जुड़े हुए थे। वेगनर के अनुसार, आज के सभी महाद्वीप इस भूखण्ड के भाग थे तथा एक बड़े महासागर से घिरा हुआ था। उन्होंने इस बड़े महाद्वीप को पैजिया (Pangea) का नाम दिया । पंजिया का अर्थ-सम्पूर्ण पृथ्वी। विशाल महासागर को पैंथालासा (Panthalasa) कहा जिसका अर्थ है-जल ही जल। वेगनर के तर्क के अनुसार लगभग 20 करोड़ वर्ष पहले इस बड़े महाद्वीप पैजिया का विभाजन आरम्भ हुआ।

पैजिया पहले दो बड़े महाद्वीपीय पिण्डो लारेशिया (Laurasia) और गोंडवाना लैण्ड (Gondwanaland) क्रमश: उत्तरी व दक्षिणी भूखण्डों का रूप में विभक्त हुआ। इसके बाद लॉरशिया व गोंडवानालैण्ड धीरे-धीरे अनेक छोटे हिस्सों में बंट गए जो आज के महाद्वीप के रूप में हैं। प्लेट विवर्तनिकी के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थलमण्डल सात मुख्य प्लेटों व कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त किया जाता है। नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं।

ग्लोब पर ये प्लेटें पृथ्वी के पूरे इतिहास काल में लगातार विचरण कर रही हैं। वेगनर की संकल्पना के अनुसार केवल महाद्वीप गतिमान है, सही नहीं है। महाद्वीप एक प्लेट का हिस्सा है और प्लेट चलायमान है। भू-वैज्ञानिक इतिहास में सभी प्लेटें गतिमान रही हैं और भविष्य में भी गतिमान रहेंगी।

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धांत के उपरान्त की प्रमुख खोज क्या है, जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:
महाद्वीपीय प्रवाह उपरान्त अध्ययनों ने महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की जो वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत के समय उपलब्ध नहीं थी। चट्टानों के पूरे चुम्बकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण ने विशेष रूप से निम्न तथ्यों को उजागर किया।

  1. यह देखा गया है कि मध्य महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार सामान्य क्रिया और ये उद्गार इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा बाहर निकालते हैं।
  2. महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पायी जाने वाली चट्टानों के निर्माण का समय संरचना संघटन और
  3. चुम्बकीय गुणों में समानता पाई जाती है। महासागरीय कटकों के समीप की चट्टानों में सामान्य चुम्बकत्व ध्रुवण (Normal polarity)
  4. पाई जाती है तथा ये चट्टानें नवीनतम हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
  5. महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की अपेक्षा अधिक नई हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कही भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
  6. गहरी खाइयों के भूकम्प के उद्गम अधिक गहराई पर हैं। जबकि मध्य-महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकम्प उद्गम केन्द्र (Focil) कम गहराई पर विद्यमान हैं।

इन तथ्यों और मध्य महासागरीय कटकों के दोनों तरफ की चट्टानों के चुम्बकीय गुणों के विश्लेषण के आधार पर हैस (Hess) ने सन् 1961 में एक परिकल्पना प्रस्तुत की, जिसे सागरीय तल विस्तार (Sea floor spreading) के नाम से जाना जाता है। सागरीय तल विस्तार अवधारणा के पश्चात् विद्वानों की महाद्वीपों व महासागरों के वितरण के अध्ययन में फिर से रुचि पैदा हुई। सन् 1967 में मैक्कैन्जी (Mackenzie) पार्कर (Parker) और मार्गन (Morgan) ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर अवधारणा प्रस्तुत की, जिसे प्लेट विवर्तनिकी (Plate Tectonics) कहा गया।

(घ) परियोजना कार्य (Project Work)

प्रश्न 1.
भूकंप के कारण हुई क्षति से संबंधित एक कोलाज बनाइए।
उत्तर:
इस परियोजना को समाचार पत्रों की कटिंग, दूरदर्शन, रेडियों आदि पर वार्ताओं एवं पाठ्य पुस्तक (अध्याय तीन, चार एवं अन्य) से जानकारी इकट्ठा करके स्वयं कोलाज बनाइए ।

Bihar Board Class 11 Geography महासागरों और महाद्वीपों का वितरण Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पेंजिया से पृथक् होने वाले दक्षिणी महाद्वीप का नाम लिखो।
उत्तर:
गौंडवानालैंड।

प्रश्न 2.
गौंडवानालैंड में शामिल भू-खण्डों के नाम लिखो।
उत्तर:
दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया तथा अंटार्कटिका।

प्रश्न 3.
उस पौधे का नाम लिखो जिसका जीवाश्म सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।
उत्तर:
ग्लोसोप्टैरिस

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प्रश्न 4.
मूल महाद्वीप का क्या नाम था? यह कब बना?
उत्तर:
पेंजिया – काल्पनिक कल्प में 280 मिलियन वर्ष पूर्व।

प्रश्न 5.
किसने और कब महाद्वीपीय संचलन सिद्धान्त प्रस्तुत किया?
उत्तर:
अल्फ्रेड वैगनर ने 1912 ई० में।

प्रश्न 6.
लैमूरिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
लैमूर प्रजाति के जीवाश्म भारत के मैडागास्कर व अफ्रीका में मिलते हैं। कुछ वैज्ञानिक ने इन तीनों खण्डों को जोड़ कर एक सतत् स्थलखंड की उपस्थिति को स्वीकारा है जिसे ‘लैमूरिया’ कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्लेसर निक्षेप कहाँ-कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
घाना तट व ब्राजील तट पर सोने के बड़े निक्षेप मिलते हैं। यहाँ सोनायुक्त शिराएँ पाई जाती हैं। इस से स्पष्ट है कि ये दोनों महाद्वीप एक दूसरे से जुड़े थे।

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प्रश्न 8.
टिलाइट से क्या अभिप्राय है? ये कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
टिलाइट वे अवसादी चट्टानें हैं जो हिमानी निक्षेपण से निर्मित होती हैं। गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में घने टिलाइट हैं जो लम्बे समय तक हिमावरण की ओर संकेत करते हैं। इसी क्रम के प्रतिरूप भारत के अतिरिक्त दक्षिणी गोलार्द्ध में अफ्रीका, फॉकलैंड द्वीप, मैडागास्कर, अंटार्कटिक और आस्ट्रेलिया में मिलते हैं। ये पुरातन जलवायु और महाद्वीपों में विस्थापन का स्पष्ट प्रमाण हैं।

प्रश्न 9.
किस मानचित्रकार ने तीनों महाद्वीपों को इकट्ठा मानचित्र पर दिखाया?
उत्तर:
एन्टोनियो पैलरिगरनी ने।।

प्रश्न 10.
अन्य महासागरीय तटरेखा की समानता का संभावना सर्वप्रथम किसने व्यक्त किया?
उत्तर:
एक उच्च मानचित्र वेता अब्राहम ऑरटेलियस ने।

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प्रश्न 11.
दक्षिणी अमेरिका तथा अफ्रीका को एक दूसरे से पृथक् होने में कितना समय लगा?
उत्तर:
20 करोड़ वर्ष

प्रश्न 12.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति का क्या कारण था?
उत्तर:
भारतीय प्लेट तथा युरेशियन प्लेट का आपसी टकराव।

प्रश्न 13.
हिन्द महासागर में ज्वालामुखी के दो तप्त स्थलों के नाम बताएँ।
उत्तर:
90° पूर्व कटक तथा लक्षद्वीप कटक।

प्रश्न 14.
सबसे बड़ी भू-प्लेट कौन-सी है?
उत्तर:
प्रशान्त महासागरीय प्लेट।

प्रश्न 15.
स्थलमंडल पर कुल कितनी प्लेटें हैं?
उत्तर:
7

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प्रश्न 16.
संवहन क्रिया सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर:
सन् 1928 ई० में आर्थर होम्स ने।

प्रश्न 17.
प्लेटों के संचलन का क्या कारण है?
उत्तर:
तापीय संवहन क्रिया।

प्रश्न 18.
समुद्र के अधस्तल के विस्तारण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महासागरीय द्रोणी का फैलना तथा चौड़ा होना।

प्रश्न 19.
प्रवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
विभिन्न युगों में ध्रुवों की स्थिति का बदलना।

प्रश्न 20.
अफ्रीका तथा दक्षिणी अमेरिका में स्वर्ण निक्षेप कहाँ पाये जाते हैं?
उत्तर:
घाना तथा ब्राजील में।

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प्रश्न 21.
अभिसरण से क्या अभिप्राय है? इसके कारण बताइये।
उत्तर:
जब एक प्लेट नीचे धंसती है और जहाँ भूपर्पटी नष्ट होती है, वह अभिसरण सीमा है। वह स्थान जहाँ प्लेट सती हैं, इसे प्रविष्ठन क्षेत्र (Subduction Zone) भी कहते हैं। अभिसरण तीन प्रकार से हो सकता है –

  1. महासागरीय व महाद्वीपीय प्लेट के बीच
  2. दो महासागरीय प्लेटों के बीच
  3. दो महाद्वीपीय प्लेटों के बीच।

प्रश्न 22.
प्राचीन भूकाल में भारत की स्थिति कहाँ थी?
उत्तर:
पुराचुंबकीय (Palaeomagnetic) आँकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने विभिन्न भूकालों में प्रत्येक महाद्वीपीय खंड की अवस्थिति निर्धारित की है। भारतीय उपमहाद्वीप (अधिकांशतः प्रायद्वीपीय भारत) की अवस्थिति नागपुर क्षेत्र में पाई जाने वाली चट्टानों के विश्लेषण के आधार पर आंकी गई है।

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प्रश्न 23.
प्लेटों के दो प्रमुख प्रकार बताओ।
उत्तर:
एक प्लेट को महाद्वीपीय या महासागरीय प्लेट भी कहा जा सकता है। जो इस बात पर निर्भर है कि उस प्लेट का अधिकतर भाग महासागर अथवा महाद्वीप से संबद्ध है। उदाहरणार्थ प्रशांत प्लेट मुख्यतः महासागरीय प्लेट है जबकि युरेशियन प्लेट को महद्वीपीय प्लेट कहा जाता है। प्लेट विविर्तनिकी के सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी का स्थलमण्डल सात मुख्य प्लेटों कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। नवीन वलित पर्वत श्रेणियाँ खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों को सीमांकित करते हैं।

प्रश्न 24.
महासागरीय तल को किन भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:
गहराई व उच्चावच के आधार पर महासागरीय तल को तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है –

  1. महाद्वीपीय सीमा
  2. गहरे समुद्री बेसिन
  3. मध्य महासागरीय कटक

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
धुवों के घूमने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
घुवों का घूमना (Polar Wandering) – पहले महद्वीप पेंजिया के रूप में परस्पर एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, इसका सबसे शक्तिशाली प्रमाण पुराचुबकत्व से प्राप्त हुआ है। मैग्मा, लावा तथा असंगठित अवसाद में उपस्थित चुंबकीय प्रवृत्ति वाले खनिज जैसे मैग्नेटाइट, हेमाटाइट, इल्मेनाइट और पाइरोटाइट इसी प्रवृत्ति के कारण उस समय के चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर एकत्र हो गए। यह गुण शैलों में स्थाई चुंबकत्व के रूप में रह जाता है। चुंबकीय ध्रुव की स्थिति में कालिक परिवर्तन होता रहा है, जो शौलों में स्थाई चुंबकत्व के रूप में अभिलेखित किया जाता है।

वैज्ञानिक विधियों द्वारा पुराने शैलों में हुए ऐसे परिवर्तनों को जाना जा सकता है। जिनसे भूवैज्ञानिक काल में ध्रुवों की बदलती हुई स्थिति की जानकारी होती है। इसे ही घुवों का घूमना कहते हैं। ध्रुवों का घूमना यह स्पष्ट करता है कि महाद्वीपों का समय-समय पर संचलन होता रहा है और वे अपनी गति की दिशा भी बदलते है।

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प्रश्न 2.
प्रवालों की स्थिति किस प्रकार स्पष्ट करती है कि भू-खण्ड उत्तर की ओर विस्थापित हुए?
उत्तर:
प्रवाल 30° उत्तर 30दक्षिण अक्षांशों के मध्य कोष्ण जल में पनपता है। इस क्षेत्र से बाहर के महाद्वीपों पर प्रवालों का पाया जाना, इस बात का प्रबल प्रमाण है कि प्राचीन भूवैज्ञानिक काल में ये महाद्वीप विषुवत रेखा के निकट थे। महाद्वीपों का संचलन उत्तर की ओर हुआ और इसलिए ये आज शीत एवं उष्ण जलवायु का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 3.
पैजिया किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति कब हुई? इसमे मिलने वाले भू-खण्ड बताएँ। पैंजिया के टूटने की क्रिया बताएं।
उत्तर:
विश्व के सभी भू-खण्ड पेंजिया नाम एक महा-महाद्वीपीय से विलग होकर बने हैं, यह बात अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में कही। जिया नामक यह महाद्वीप 28 करोड़ वर्ष पूर्व, कार्बनी कल्प के अन्त में अस्तित्व में आया। मध्य जुरैसिक कल्प तक यानि 15 करोड़ वर्ष पूर्व पंजिया उत्तरी महाद्वीप लॉरशिया तथा दक्षिणी महाद्वीप गौंडवानालैंड में विभक्त हो गया था। लगभग 6.5 करोड़ वर्ष अर्थात् क्रिटेशस कल्प के अन्त में गौंडवानालैंड फर से खंडित हुआ और इससे कई अन्य महाद्वीपों जैसे दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका की रचना हुई।

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प्रश्न 4.
महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटों का वर्णन करें।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण छोटी प्लेटें निम्नलिखित हैं –

  1. कोकोस प्लेट (Cocoas Plate) – यह प्लेट मध्यवर्ती अमेरिका और प्रशांत मासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  2. नाजका प्लेट (Nazca plate) – यह दक्षिण अमेरिका व प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।
  3. अरेबियन प्लेट (Arabian plate) – इसमें अघितर सऊदी अरब का भू-भाग सम्मिलित है।
  4. फिलिपाइन प्लेट (Philoppine plate) – यह एशिया महाद्वीपी और प्रशांत महासागरीय प्लेट के बीच स्थित है।

प्रश्न 5.
महासागरीय तल के मानचित्र से क्या निष्कर्ष निकलता है?
उत्तर:
महासागरीय तल का मानचित्रण (Mapping of the ocean floor) – महासगरी की तली एक विस्तृत मैदान नहीं है, वरन् उनमें भी उच्चावच पाया जाता है। इसकी तली में जलमग्न पर्वतीय कटके व गहरी खाइयाँ हैं, जो प्रायः महाद्वीपों के किनारों पर स्थित हैं। मध्य महासागरीय कटके ज्वालामुखी उद्गार के रूप में सबसे अधिक सक्रिय पायी गयीं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानों के काल निर्धारण (Dating) ने यह तथ्य स्पष्ट कर दिया कि महासागरों की नितल की चट्टानें महाद्वीपीय भागों में पाई जाने वाली चट्टानें, जो कटक से बराबर दूरी पर स्थित हैं, उन की आयु व रचना में भी आश्चर्यजनक समानता पाई जाती है।

प्रश्न 6.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वैगनर ने किन-किन बलों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
प्रवाह सम्बन्धी बल (Force for drifting) – वैगनर के अनुसार महाद्वीपीय विस्थान के दो कारण थे:

  1. पोलर या ध्रुवीय फ्लिंग बल (Polar fleeing force) और
  2. ज्वारीय बल (Tidal force)

घुवीय फ्लिंग बल पृथ्वी की आकृति एक सम्पूर्ण गोले जैसी नहीं है: वरन् यह भूमध्यरेखा पर उभरी हुई है। यह उभार के घूर्णन के कारण है। दूसरा बल, जो वैगनर महोदय ने सुझाया-वह ज्वारीय बल है, जो सूर्य व चन्द्रमा के आकर्षण से सम्बद्ध है, जिससे महासागरों में ज्वार पैदा होते हैं। वैगनर का मानना था कि करोड़ों वर्षों के दौरान ये बल प्रभावशाली होकर विस्थापन के लिए सक्षम हो गये । यद्यपि कि बहुत से वैज्ञानिक इन दोनों ही बलों को महाद्वीपीय विस्थापन के लिए सर्वथा अपर्याप्त समझते हैं।

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प्रश्न 7.
अपसरण क्षेत्र तथा अभिसरण क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अपसरण क्षेत्र – ये वे सीमाएँ हैं जहाँ प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं। भूगर्भ से मैग्मा बाहर आता है। ये महासागरीय कटकों के साथ-साथ देखा जाता है। इन सीमाओं के साथ ज्वालामुखी तथा भूकम्प मिलते हैं। इसका उदाहरण मध्य अटलांटिक कटक है जहाँ से अमेरिकी प्लेटें तथा यूरेशियम व अफ्रीकी प्लेटे अलग होती है।

अभिसरण क्षेत्र – ये वे सीमाएँ हैं जहाँ एक प्लेट का किनारा दूसरे के ऊपर चढ़ जाता है। इनसे गहरी खाइयों तथा वलित श्रेणियों की रचना होती है । ज्वालामुखी तथा गहरे भूकम्प उत्पन्न होते हैं।

रूपांतर सीमा – जहाँ न तो नई पर्पटी का निर्माण होता है और न ही विनाश होता है, उसे रूपांतरण सीमा कहते हैं। इसका कारण है कि इस सीमा पर प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं।

प्रश्न 8.
भारतीय प्लेट के विषय में बताएँ। हिमालय पर्वत की उत्पत्ति किस प्रकार हुई?
उत्तर:
भारत में हिन्द महासागर की सतह पर ऊँचे कटक तथा पठार शामिल हैं। इनमें से दो महासागरीय कटक, जिनके नाम नाइंटी ईस्ट कटक एवं मैस्केरेन पठार तथा चैगोस-मालद्वीव-लक्षद्वीप द्वीपीय कटक हैं, तप्त स्थलों के ज्वालामुखी मार्ग समझे जाते हैं। नाइंटी-ईस्ट कटक का उत्तरी विस्तार एक महासागरीय खाई में समाप्त हो जाता है, जिसने भारतीय महाद्वीपीय खंड के उत्तर में स्थित समुद्र अधस्तल को अपने में विलीन कर लिया।

चैगोस-लक्षद्वीप कटक आदि नूतन कल्प में पुरातन कार्ल्सबर्ग कटक को दक्षिण-पूर्व इंडियन कटक से जोड़ती थी। मध्य-महासागर कटक का विस्तार हो रहा है। इसकी गति लगभग 14 से 20 सेमी प्रति वर्ष है। कार्ल्सबर्ग दक्षिण-पूर्व हिन्दमहासागर कटक के पश्चात् भारतीय प्लेट एवं यूरेशियन प्लेट का टकराव भारतीय प्लेट के उत्तर में हुआ, जिससे हिमालय की उत्पत्ति हुई। हिमालय प्रदेश में भारतीय प्लेट एवं यूरेशियन प्लेट के मध्य का जोड़ सिंधु तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के साथ हैं।

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प्रश्न 9.
सर्वाधिक नवीन प्लेट कौन-सी है?
उत्तर:
मुख्य सात प्लेटों में सर्वाधिक नवीन प्लेट प्रशांत प्लेट है, जो लगभग पूरी तरह महासागरीय पटल से बनी है और भूपृष्ठ के 20 प्रतिशत भाग पर विस्तृत है। अन्य प्लेटों का निर्माण महासागरीय तथा महाद्वीपीय दोनों प्रकार के पटलों से हुआ है। कोई भी अन्य प्लेट केवल महाद्वीपीय पटल से निर्मित नहीं है। प्लेटों की मोटाई में अंतर महासागरों के नीचे 70 किमी से लेकर महाद्वीप के नीचे 150 किमी तक है।

प्रश्न 10.
प्रवाह दर पर नोट लिखें।
उत्तर:
प्लेट प्रवाह दरें (Rates of plate movement) – सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकीय । क्षेत्र की पट्टियाँ जो मध्य-महासागरीय कटक के समानंतर हैं। प्लेट प्रवाह की दर समझने में वैज्ञानिकों के लिए सहायक सिद्ध हुई हैं। प्रवाह की ये दरें बहुत भिन्न हैं। आर्कटिक कटक की प्रवाह, दर सबसे कम है (2.5 सेंटीमीटर प्रति वर्ष से भी कम) । ईस्टर द्वीप के निकट पूर्वी प्रशांत महासागरीय उभार, जो चिली से 3,400 किमी पश्चिम की ओर दक्षिण प्रशांत महासागर में है, इसकी प्रवाह दर सर्वाधिक है (जो 5 सेमी प्रति वर्ष से भी अधिक है)।

प्रश्न 11.
प्लेट विवर्तनिकी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्लेट विवर्तनिकी (Plate tectonics) – सागरीय तल विस्तार अवधारणा के पश्चात् विद्वानों की महाद्वीपों व महासागरों के वितरण के अध्ययन में फिर से रुचि पैदा हुई। सन् 1967 में मैक्कैन्जी (Mackenzie) पारकर (Parker) और मोरगन (Morgan) ने स्वतंत्र रूप से उपलब्ध विचारों को समन्वित कर अवधारणा प्रस्तुत की ‘जिसे प्लेट विवर्तनिको’ (Plate tectronics) कहा गया।

एक विवर्तनिक प्लेट (जिसे लिथास्फेरिक प्लेट भी कहा जाता है) ठोस, चट्टान का विशाल व अनियमित आकार खंड है जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलमण्डलों से मिलकर बना है। ये प्लेटें दुर्बलता मण्डल (Asthenosphere) पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान हैं। स्थलमण्डल में पर्पटी एवं ऊपरी मैंटल को सम्मिलित किया जाता है, जिसकी मोटाई महासागरों में 5 से 100 किमी और महाद्वीपीय भागों में लगभग 200 किमी है।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

Bihar Board Class 7 Science जलवायु और अनुकूलन Text Book Questions and Answers

अभ्यास

प्रश्न 1.
इस कथन को पढ़े और सही उत्तर दें –

(i) इनमें से कौन मौसम के घटक नहीं है –
(A) पवन
(B) तापमान
(C) आर्द्रता
(D) पहाड़
उत्तर:
(D) पहाड़

(ii) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु हैं –
(A) ध्रुवीय भालू
(B) पैग्विन
(C) रेनडियर
(D) कस्तूरी मृग
उत्तर:
(B) पैग्विन

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

(iii) ध्रुवीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु हैं –
(A) टूकन पक्षी
(B) हाथी
(C) लायन टेल्ड लंगर
(D) ध्रुवीय भालू
उत्तर:
(D) ध्रुवीय भालू

(iv) वैसे जन्तु जिनके शरीर पर बालों (फर) की दो मोटी परतें होती हैं वे पाये जाते हैं –
(A) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(B) रेगिस्तान
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) ध्रुवीय क्षेत्र

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) दीर्घ अवधि के मौसम का औसत …………. कहलाता है।
(ii) वर्ष भर सूर्योदय और सूर्यास्त के …………. में परिवर्तन होता है।
(iii) तापमान आर्द्रता आदि …………. के घटक हैं।
उत्तर:
(i) ऋतुएँ
(ii) जलवायु
(iii) मौसम ।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में रहने वाले हाथी किस प्रकार अनुकूलित है ?
उत्तर:
हाथी घास और पेड़ों के पत्ते खाते हैं। पर्याप्त घास की मात्रा सभी मौसम में प्राप्त नहीं होते । हाथी के सूंड लम्बे होते हैं। टहनियों के पत्ते ताड़कर मुंह में डालने के लिए अनुकूलित है। हाथी का आकार बड़ा होने के कारण शरीर की सतह पर वाष्पन नहीं होता। हाथी के कान बड़ा होता है। त्वचा पतली होती है। हाथी हमेशा कान हिलाता रहता है ताकि शरीर का तापमान नियत्रित करता है। अफ्रिकन हाथी का कान और बड़े होते हैं क्योंकि वहाँ अधिक गर्मी पड़ती है। इस प्रकार हाथी अपने को अनुकूलित करते हैं।

प्रश्न 4.
मौसम और जलवायु में से किसमें तेजी से परिवर्तन होता है ?
उत्तर:
प्रतिदिन हम प्रकृति में परिवर्तन देखते हैं। सूर्य को उदय और अस्त होते देखते हैं। तेज हवा का चलना, बिजली चमकना, वर्षा होना, फूलों का खिलना । इस प्रकार हम देखते हैं कि मौसम का परिवर्तन तेजी से होता है। किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन वेग आदि के संदर्भ में वायुमण्डल की दिन-प्रतिदिन की स्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है।

जलवायु लम्बी अवधि में लिये गये मौसम के आँकड़ों पर आधारित प्रतिरूप उस स्थान का जलवायु है। जलवाय मानसून पर निर्भर करता है। जलवायु पर दो तरह के मौसमी हवाओं का प्रभाव पड़ता है। उत्तर पूर्वी मानसून और दक्षिण पश्चिम मानसून । मानसून तेजी से परिवर्तन नहीं होता है।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

Bihar Board Class 7 Science जलवायु और अनुकूलन Notes

प्रतिदिन प्रकृति में परिवर्तन होता है। सूर्य का निकलना, डूबना, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, दिन रात होना, वर्षा होना, तुफान आना, फूलों का खिलना इत्यादि। ये सभी परिवर्तन हमारे दैनिक जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। अत: किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन वेग में प्रतिदिन का परिवर्तन उस स्थान का मौसम कहलाता है। किसी भी स्थान का मीसम प्रतिदिन बदलता रहता है। कभी गर्म तो कभी ठंडा । प्रतिदिन आर्द्रता और तापमान में परिवर्तन होता है । भिन्न-भिन्न स्थानों का आर्द्रता और तापमान भिन्न-भिन्न होता है। तापमान, आर्द्रता ओर अन्य कारक मोसम के घटक हैं। हमारे देश में जलवायु उष्णकटिबंधीय है जो मानसन पर निर्भर करती है।

हमारे यहाँ चार ऋतुएँ होती हैं –
(i) शीत ऋतु
(ii) ग्रीष्म ऋतु
(iii) वर्षा ऋतु
(iv) वसंत ऋतु ।

हमारे यहाँ उत्तर पूर्वी और दक्षिण पश्चिम मानसून हवाओं का प्रभाव पड़ता है। उत्तर पूर्वी मानसून को शीत मानसून कहा जाता है । जिस स्थान का तापमान ज्यादा समय उच्च रहता है उस स्थान की जलवायु गर्म होती है और प्राय: दिनों में वर्षा होती है। जीव-जन्तु विभिन्न क्षेत्रों एवं अलग-अलग जलवायु के अनुसार पाये जाते हैं। ऊँट की शारीरिक रचना, मरुस्थलीय प्रदेशों की जलवायु के अनुसार रचनात्मक अनुकूलन है। पृथ्वी के दो ध्रुव, उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव, ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवाय सर्द होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्यास्त और सुर्योदय छ: माह के अन्तराल में होता है। तापमान-37°C तक हो जाता है। हमारा देश उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। ध्रुवीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु पैग्विन है। मछलियाँ, कस्तुरी-मृग, रेनडियर, लोमड़ी, सील और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पक्षियाँ प्रवासी होते हैं। साइबेरियाई, केन भारत के राजस्थान और हरियाणा में प्रवास के लिए आते हैं। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की जलवायु गर्म और नम रहती है।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

हमारा इसी क्षेत्र में पड़ता है। यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव-जंतु पाये जाते हैं। वनों की संख्या अधिक है। भौगोलिक कारणों के कारण हमारे देश में बहुत विविधता पायी जाती है। जैसे वर्षा वन पतक्षरवन, शुष्क शोतोष्ण वन, शंकुधारी वन और मरुभूमि बन। भिन्न-भिन्न वनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जन्त और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। भारतीय उप महाद्वीप में बंदरों की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं। हनुमान, लंगूर भारतीय बंदरों में सबसे अधिक पाये हैं। इस प्रकार का बन्दर कन्याकुमारी से हिमालय की तराई क्षेत्र तक आर्द्र राजस्थान के रेगिस्तान. से उत्तर-पश्चिम की घनी वर्षा वनों तक सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके लम्बे हाथ, लम्बी पंछ, छोटा अंगूठा और लम्बे पैर होते हैं। वर्षा वनों में जीवित रहने के लिए यह पूर्णतः अनुकूलित हैं। ये तरह-तरह की चीजें खाते हैं। इनका भोजन फल फूल और नयी पनियाँ हैं। ये उछल-कूद करते रहते हैं। चारों पेरों पर चलते हैं। ये हमेशा टालियों में रहना पसंद करते हैं। ये सभी जगह रह सकते हैं। भारतीय जंगलों में एशियाई हाथी पाये जाते हैं, ये मौसम, जलवायु और पर्यावरण के प्रभाव के कारण इनमें अनुकूलन देखने को मिलता है। ये घास तथा पेड़ों के पत्ते खाते हैं। हाथी कान हिलाकर अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 2 बहुपद Ex 2.1

प्रश्न 1.
निम्नलिखित व्यंजकों में कौन-कौन एक चर में बहुपद हैं और कौन-कौन नहीं है? कारण के साथ अपने उत्तर दीजिए

  1. 4x² – 3x + 7
  2. y² + √2
  3. 3√t + t√2
  4. y + \(\frac{2}{y}\)
  5. x10 + y³ + t50

उत्तर:

  1. 4x² – 3x + 7; यहाँ प्रत्येक पद में घर की पात ऋपेतर पूपांक है, अत: दिया गया व्यंजक.एक बहुपद है।
  2. y² + √2, यहाँ चर y को पात मणेतर पूर्णक है, अत: दिया गया व्यंजक एक बहुपद है।
  3.  3√t + t√2 वहाँ एक पद में चर t की बात शुद्ध भिन है, अतः दिया गया व्यंबक बहुपद नहीं है।
  4. y + \(\frac{2}{y}\) यहाँ एक पद में चा y ऋणात्मक घात रखता है, अत: वह व्यंजक बहुपद नहीं है।
  5. x10 + y³ + t50 यह व्यंजक तीन चर रखता है, अत: यह तीन चों में एक बहुपद है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से प्रत्येक में का गुणांक लिखिए

  1. 2 + x² + x
  2. 2 – x² + x³
  3. \(\frac{π}{2}\) x² + x
  4. √2x – 1.

उत्तर:

  1. 2 + x² + x में x² का गुणांक = 1
  2. 2 – x² + x³ में x³ का गुणांक = -1
  3. \(\frac{π}{2}\) x² + x मैं x² का गुणांक = \(\frac{π}{2}\)
  4. √2x – 1 मैं x² का गुणक = 0.

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प्रश्न 3.
35 घात के द्विपद का और 100 घात के एकपदी का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:

  1. x35 + 4, पात 35 का एक द्विपद है।
  2. x100 घात 100 व्या एक एकपदी है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित बहुपदों में से प्रत्येक बहुपद की यात लिखिए

  1. 5x³ + 4x² + 7x
  2. 4 – y²
  3. 5t – √7
  4. 3.

उत्तर:

  1. बहुपद 5x³ + 4x² + 7x की अभीष्ट धान = चर x की अधिकतम घात = 3.
  2. बहुपद 4 – y² की अभीष्ट घात = चर y की अधिकतम थात = 2.
  3. बहुपद 5t – √7 को अभीष्ट यात = चर t को अधिकतम घात = 1
  4. बहुपद 3 में कोई भी चर उपस्थित नहीं है, अत: बहुपद की पान = 0.

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प्रश्न 5.
बताइए कि निम्नलिखित बहुपदों में कौन-कौन बहुपद रैखिक है, कौन-कौन द्विपाती है और कौन-कौन प्रिघाती है?

  1. x² + x
  2. x – x³
  3. y + y² + 4
  4. 1 + x
  5. 3t
  6. 7x³

उत्तर:

  1. बहुद x² + x मैं घर की अधिकतम घात 2 है, अत: यह एक द्विघाती बहुपद है।
  2. बहुपद x – x³ में चर x को अधिकतम पात 3 है, अत: यह एक प्रिघाती बहुपद है।
  3. बहुपद y + y² + 4 में चर। को अधिकतम पात 2है, अत: यह एक द्विघाती बहुपद है।
  4. बहुपद 1 + x में चर को अधिकतम घाव 1 है, अत: बह एक रैखिक बहुपद है।
  5. बहुपद 3t में चर t को अधिकतम घाट 1 है, अत: यह एक रैखिक बहुपद है।
  6. बहुपद r² में चर r की अधिकतम घात 2 है, अत: यह एक द्विघाती बहुपद है।
  7. बहुकद 7x³ में x चर की अधिकतम घात 3 है, अत: यह एक त्रिघाती बहुपद है।

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Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण संज्ञा

Bihar Board Class 10 Hindi Book Solutions Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण संज्ञा Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण संज्ञा

Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण संज्ञा Questions and Answers

प्रश्न 1.
संज्ञा की परिभाषा उदाहरण सहित दीजिये।
उत्तर-
किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान तथा भाव आदि के नाम को संज्ञा कहा जाता है। वास्तव में, संज्ञा का कोषगत अर्थ है नाम। अर्थात् संक्षेप में कहें तो किसी नाम को संज्ञा कहते हैं। यह नाम व्यक्ति, जाति, द्रव्य, स्थान, गुण, धर्म किसी का भी हो सकता है।

संज्ञा के कुछ उदाहरण ये हैं मोहन, करीम, झील, गीता, कलम, पेंसिल, पटना, दिल्ली, मनुष्य, पत्थर, सेना, लड़कपन तथा बुढ़ापा इत्यादि।

Bihar Board Class 10 Hindi व्याकरण संज्ञा

प्रश्न 2.
संज्ञा के कितने भेद हैं ? सोदाहरण लिखें।
उत्तर-
संज्ञा के पाँच भेद हैं जो निम्नलिखित हैं
(i) जातिवचाक संज्ञा—इससे जाति भर का बोध होता है जैसे-लड़का, लड़की, औरत, मर्द, आदमी, गाय, बैल, कलम, फूल आदि।
(ii) व्यक्तिवाचक संज्ञा-इससे किसी खास व्यक्ति, वस्तु, जगह आदि का बोध होता है, जैसे-राम, रहीम, रजिया, डॉली, चाँद, सूरज, पृथ्वी, पटना, कोलकाता, दिल्ली, बनारस आदि।
(iii) भाववाचक संज्ञा-इससे किसी व्यक्ति या वस्तु के गुण, दोष, स्वभाव, अवस्था आदि का बोध होता है जैसे लड़कपन, बुढ़ापा, ईमानदारी, बेईमानी, लंबाई, चौड़ाई, अच्छाई, बुराई, भलाई, चतुराई, रंगाई, सिलाई, पिटाई, पढ़ाई, एकता, वीरता, मूर्खता, राष्ट्रीयता, सुन्दरता, सरलता, दीनता आदि।
(iv) समूहवाचक संज्ञा-इससे एक ही तरह के व्यक्तियों या वस्तुओं के समूह का बोध होता है, जैसे-वर्ग, गुच्छा, सभा, झुण्ड, परिवार, खानदान आदि।
(v) द्रव्यवाचक संज्ञा-कोई द्रव या वस्तु जिसे नापा या तौला जाये, उसे द्रव्यवाचक संज्ञा. कहते हैं, जैसे सोना, चाँदी, पानी, घी, तेल, कपड़ा, लकड़ी, कोयला आदि।

प्रश्न 3.
व्यक्तिवाचक संज्ञा की परिभाषा देते हुए कुछ उदाहरण दें।
उत्तर-
व्यक्तिवाचक संज्ञा व्यक्तिवाचक संज्ञा किसी विशेष व्यक्ति या स्थान का बोध कराती है; जैसे-गंगा, तुलसीदास, पटना, राम, हिमालय आदि। हिन्दी में व्यक्तिवाचक संज्ञा की । संख्या सर्वाधिक है। व्यक्तिवाचक संज्ञाओं में निम्नलिखित नाम समाविष्ट होते हैं-
(क) व्यक्तियों के अपने नाम तुलसीदास, महेश, राम आदि।
(ख) नदियों के नाम-गंगा, गंडक, यमुना आदि।
(ग) झीलों के नाम डल, बैकाल आदि।
(घ) समुद्रों के नाम-प्रशान्त महासागर, हिन्द महासागर आदि।
(ङ) पहाड़ों के नाम-आल्प्स, विन्ध्य, हिमालय आदि।
(च) गांवों के नाम-पैनाल, मनिअप्पा, बिस्पी आदि।
(छ) नगरों के नाम-जमशेदपुर, पटना, राँची आदि।
(ज) सड़कों, दुकानों, प्रकाशनों आदि के नाम अशोक राजपथ, परिधान, किरण पब्लिकेशन आदि।
(झ) महादेशों के नाम एशिया, यूरोप आदि।
(ञ) देशों के नाम चीन, भारतवर्ष, रूस आदि।
(ट) राज्यों के नाम उड़ीसा, बिहार, महाराष्ट्र आदि।
(ठ) पुस्तकों के नाम रामचरितमानस, सूरसागर आदि।
(ड) पत्र-पत्रिकाओं के नाम-दिनमान, अवकाश-जगत आदि.
(ढ) त्योहारों, ऐतिहासिक घटनाओं के नाम- गणतंत्र-दिवस, बालदिवस।
(ण) ग्रह-नक्षत्रों के नाम- चंद्र, रोहिणी, सूर्य आदि।
(त) महीनों के नाम… आश्विन, कार्तिक, जनवरी आदि।
(थ) दिनों के नाम- सोमवार, मंगलवार, बुधवार आदि।

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प्रश्न 4.
जातिवाचक संज्ञा की परिभाषा देते हुए कुछ उदाहरण दें।
उत्तर-
जातिवाचक संज्ञा – जातिवाचक संज्ञा किसी वस्तु या प्राणी की संपूर्ण जाति का बोध कराती है। जैसे—गाय, नदी, पहाड़, मनुष्य आदि।
‘गाय’ किसी एक गाय को नहीं कहते, अपितु यह शब्द सम्पूर्ण गोजाति के लिए प्रयुक्त होता है। ‘मनुष्य’ शब्द किसी एक व्यक्ति के नाम को सूचित न कर ‘मानव’ जाति का बोध कराता है।

जातिवाचक संज्ञाओं में निम्नलिखित समाविष्ट होते हैं –
(क) पशुओं, पक्षियों एवं कीट-पतंगों के नाम- खटमल, गाय, घोड़ा, चील, मैना आदि।
(ख) फलों, सब्जियों तथा फूलों के नाम…- आम, केला, परवल, पालक, जूही आदि।
(ग) पहनने, ओढ़ने, बिछाने आदि के सामान– कुर्ता, जूता, तकिया, तोशक, धोती, साड़ी आदि।
(घ) अन्न, मसाले, मिठाई आदि पदार्थों के नाम- गेहूँ, चावल, जलेबी, तेजपात, रसगुल्ला आदि।

प्रश्न 5.
भाववाचक संज्ञा किसे कहते हैं ? कछ उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
भाववाचक संज्ञा – भाववाचक संज्ञा व्यक्ति या पदार्थों के धर्म या गुण का बोध कराती है; जैसे-अच्छाई, चौड़ाई, मिठास, लंबाई, वीरता आदि।
भाववाचक संज्ञा में निम्नलिखित समाविष्ट होते हैं –
(क) गुण– कुशाग्रता, चतुराई, सौन्दर्य आदि।
(ख) भाव– कृपणता, मित्रता, शत्रुता आदि।
(ग) अवस्था— जवानी, बचपन, बुढ़ापा आदि।
(घ) माप- ऊंचाई, चौड़ाई, लम्बाई आदि।
(ङ) क्रिया- दौड़धूप, पढ़ाई, लिखाई आदि।
(च) गति- फुर्ती, शीघ्रता, सुस्ती आदि।
(छ) स्वाद- कड़वापन, कसैलापन, तितास, मिठास आदि।
(ज) अमूर्त भावनाएँ- करुणा, क्षोभ, दया आदि।

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प्रश्न 6.
समूहवाचक संज्ञा किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर-
समूहवाचक संज्ञा- समूहवाचक संज्ञा पदार्थों के समूह का बोध कराती है; जैसे गिरोह, झब्बा, झुंड, दल, सभा, सेना आदि।
ये शब्द किसी एक व्यक्ति या वस्तु का बोध न कराकर अनेक का उनके समूह का बोध कराते हैं।

प्रश्न 7.
द्रव्यवाचक संज्ञा किसे कहते हैं ? कुछ उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
द्रव्यवाचक संज्ञा– द्रव्यवाचक संज्ञा किसी धातु या द्रव्य का बोध कराती है; जैसे घी, चाँदी, पानी, पीतल, सोना आदि। द्रव्यवाचक संज्ञा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसके पूर्ण रूप और अंश के नाम में पर्याप्त अन्तर हो जाता है। एक टुकड़ा सोना भी सोना है और एक बड़ा खंड भी सोना है, एक बूंद घी भी घी है और एक किलो घी भी घी है; किन्तु एक पूरे वृक्ष के टुकड़े को हम वृक्ष कदापि नहीं कहेंगे, उसे लकड़ी, सिल्ली, टहनी, डाली आदि जो कह लें। द्रव्यवाचक संज्ञा से निर्मित पदार्थ जातिवाचक संज्ञा होते हैं।

टिप्पणी – कुछ विद्वानों का कहना है कि संज्ञा के समूहवाचक तथा द्रव्यवाचक जैसे दो अलग भेद मानने की भी आवश्यकता नहीं है। वस्तुतः, इन दोनों का समाहार जातिवाचक संज्ञा में ही हो गया है।

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प्रश्न 8.
भाववाचक संज्ञाओं की रचना किस प्रकार होती है?
उत्तर-
भाववाचक संज्ञाएँ प्रायः पाँच प्रकार के शब्दों से बनाई जाती है
(i) संज्ञाओं से
(ii) विशेषणों से
(iii) सर्वनामों से
(iv) क्रियाओं से
(v) अव्ययं शब्दों से
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Bihar Board Class 10 Hindi रचना निबंध लेखन

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Bihar Board Class 10 Hindi रचना निबंध लेखन Questions and Answers

होली

मस्ती का त्योहार – भारत उत्सवों का देश है। होली सबसे अधिक रंगीन और मस्त उत्सव है। इस दिन भारतवर्ष में सभी फक्कड़ता और मस्ती की मांग में मस्त रहते हैं। होली वाले दिन लोग छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, गरीब-अमीर, ग्रामीण-शहरी का भेद भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं तथा परस्पर गुलाल मलते हैं।

हाला का महत्त्व- होली के मूल में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और होलिका प्रसंग आता है। हिरण्यकश्यप ने प्रहाद को मार डालने के लिए होलिका को नियुक्त किया था। होलिका के पास एक ऐसी चादर थी, जिसे ओढ़ने पर व्यक्ति आग के प्रभाव से बच सकता था। होलिका ने उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में ले लिया और अग्नि में कूद पड़ी। वहाँ दैवीय चमत्कार हुआ। होलिका आग में जलकर भस्म हो गई, परंतु प्रह्लाद का बाल भी बाँका न हुआ। तब से लेकर आज तक होलिका दहन की स्मृति में होली का पर्व मनाया जाता है।

मनाने की विधि- होली का उत्सव दो प्रकार से मनाया जाता है। कछ लोग रात्रि में लकड़ियाँ, झाड़-झंखाड़ एकत्र कर उसमें आग लगा देते हैं और समूह में इकट्ठे होकर गीत गाते हैं। आग जलाने की यह प्रथा होलिका दहन की याद दिलाती है। ये लोग रात को अतिशबाजी
आदि चलाकर भी अपनी खुशी प्रकट करते हैं।

Bihar Board Class 10 Hindi रचना निबंध लेखन

होली मनाने की दूसरी प्रथा आज सारे समाज में प्रचलित है। होली वाले दिन लोग प्रात:काल से दोपहर 12 बजे तक अपने हाथों में लाल, हरे, पीले रंगों का गुलाल लिए हुए परस्पर प्रेमभाव से गले मिलते हैं।

गली-मुहल्लों में ढोल-मजीरे बजते सुनाई देते हैं। कोई नीले-पीले वस्त्र लिए घूमता है, तो ___ कोई जोकर की मुद्रा में मस्त है। बच्चे पानी के रंगों में एक-दूसरे को नहलाने का आनंद लेते हैं। बच्चे पिचकारियों से भी रंग की वर्षा करते दिखाई देते हैं। परिवारों में इस दिन लड़के-लड़कियां, बच्चे-बूढ़े, तरुण-तरुणियाँ सभी मस्त होते हैं। प्रौढ़ महिलाओं की रंगबाजी बड़ी… रोचक बन पड़ती है। इस प्रकार यह उत्सव मस्ती और आनंद से भरपूर है।

दीपावली

भूमिका- दीपावली हिंदुओं का महत्त्वपूर्ण उत्सव है। यह कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि में मनाया जाता है। इस रात को घर-घर में दीपक जलाए जाते हैं। इसलिए इसे ‘दीपावली’ कहा गया। रात्रि के घनघोर अंधेरे में दीपावली का जगमगाता हुआ प्रकाश अति सुंदर दृश्य की रचना करता है।

ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक प्रसंग- ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री रामचंद्र जी रावण का संहार करने के पश्चात् वापस अयोध्या लौटे थे। उनकी खुशी में लोगों ने घी के दीपक जलाए थे। भगवान महावीर ने तथा स्वामी दयानंद ने इसी तिथि को निर्वाण प्राप्त किया था। इसलिए जैन संप्रदाय तथा आर्य समाज में भी इस दिन का विशेष महत्त्व है। सिक्खों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। इसलिए गुरुद्वारों की शोभा इस दिन दर्शनीय होती है। इसी दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र के क्रोध से ब्रज की जनता को बचाया था।

व्यापारियों का प्रिय उत्सव- व्यापारियों के लिए दीपावली उत्सव-शिरोमणि है। व्यापारी-वर्ग विशेष उत्साह से इस उत्सव को मनाता है। इस दिन व्यापारी लोग अपनी-अपनी दुकानों का काया-कल्प तो करते ही हैं, साथ ही ‘शुभ-लाभ’ की आकांक्षा भी करते हैं। बड़े-बड़े व्यापारी प्रसन्नता में अपने ग्राहकों में मिठाई आदि का वितरण करते हैं। घर-घर में लक्ष्मी का पूजन होता है। ऐसी मान्यता है कि उस रात लक्ष्मी घर में प्रवेश करती है। इस कारण लोग रात को अपने घर कदरवाजे खुले रखते हैं। हलवाई और आतिशबाजी की दुकानों पर इस दिन विशेष उत्साह . होता है। बाजार मिठाई से लद जाते हैं। यह एक ऐसा दिन होता है, जब गरीब से अमीर तक, कंगाल से राजा तक सभी मिठाई का स्वाद प्राप्त करते हैं। लोग आतिशबाजी चलाकर भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। गृहणियाँ इस दिन कोई-न-कोई बर्तन खरीदना शगुन समझती हैं।

ईद

ईद को ईद-उल-फितर भी कहा जाता है। यह मुसलमानों का एक महान पर्व है। रमजान का महीना खत्म होने के बाद अगले महीने की पहली तिथि को चाँद दिखाई देने पर ‘ईद’ मनाई जाती है। इस अवसर पर सर्वत्र चहल-पहल और धूमधाम रहती है।

मुहम्मद साहब इस्लाम धर्म के पैगम्बर थे। उन्होंने ही इस्लाम धर्म की स्थापना की थी। इन्होंने सच्चे मुसलमानों के लिए कुछ कायदे-कानून निर्धारित किए जिनमें नमाज पढ़ना, रोजा रखना (दिन भर भूखा रहना), हज करना आदि प्रमुख हैं। अत: इनके अनुयायी प्रतिवर्ष रमजान में महीने भर रोजा रखते हैं और सूर्यास्त के बाद खाते-पीते हैं। पूरे महीने विभिन्न मस्जिदों में काफी चहल-पहल रहती है। इस महीने के बाद नए महीने में ‘ईद’ मनाई जाती है।

‘रमजान’ को इस्लाम धर्म के लोग सबसे ज्यादा पवित्र महीना मानते हैं। अतः वे इस पूरे महीने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक उपवास रखते हैं जिसे ‘रोजा रखना’ कहा जाता है। सूर्यास्त के बाद हर रोज सभी इष्ट-मित्रों, संगे-संबंधियों और अतिथियों के साथ रोजा खोलते हैं जिसे ‘इफ्तार’ कहा जाता है। इसमें वे विभिन्न प्रकार के पकवान खाते और खिलाते हैं। इस कार्यक्रम. में अन्य धर्मों के लोग भी सहर्ष शामिल होते हैं। इस महीने में लोग शुद्ध मन से केवल अच्छा आचरण करते हैं और गरीबों को दान देते हैं।

‘रमजान’ महीना के अंतिम दिन ‘रोजा’ समाप्त हो जाता है और चाँद देखने के बाद अगले दिन ‘ईद’ त्योहार के रूप में मनायी जाती है। बच्चे-बूढ़े, युवा एवं औरतें, सभी नए-नए कपड़े पहनते हैं। लोग ‘ईदगाह’ पर जमा होकर नमाज अदा करते हैं और एक-दूसरे को गले लगाकर ‘ईद’ की मुबारकबाद देते हैं। हर तरफ प्रेम और सद्भाव का वातावरण व्याप्त रहता है। ‘सेवई’ खिलाने के साथ-साथ ‘इत्र’ लगाया जाता है और बच्चों को ‘ईदी’ भी दी जाती है।

Bihar Board Class 10 Hindi रचना निबंध लेखन

इस अवसर पर दोस्तों और संबंधियों के यहाँ आने-जाने का सिलसिला देर रात तक चलता रहता है। एक साथ मिल-जुलकर ईद की खुशियाँ मनाने का मजा ही कुछ और है। ईद की खुशियाँ महीने भर की कठोर साधना के बाद मिलती हैं।

यह त्योहार इस्लाम के बन्दों के लिए हर्ष का प्रतीक है। इस दिन सभी लोग छुट्टी और खुशी मनाते हैं। यह आपसी एकता, मेल-मिलाप, भाईचारा और सौहार्द्र बढ़ानेवाला त्योहार है। बच्चों के लिए तो यह मेले-जैसी खुशी और उत्साह लाता है। ऐसे त्योहार बन्धुत्व और सद्भाव में वृद्धि करते हैं और भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। वस्तुतः ईद मुसलमानों का एक महान पर्व है।

गणतंत्र-दिवस (26 जनवरी)

मत गणतंत्र-दिवस अर्थात् 26 जनवरी (1950) भारत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था।
मनाने का ढंग यह दिन समूचे भारतवर्ष में बड़े उत्साह तथा हर्षोल्लास के साथ मनाया ‘ जाता है। समूचे देश में अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। प्रदेशों की सरकारें सरकारी स्तर पर अपनी-अपनी राजधानियों में तथा जिला स्तर पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का तथा अन्य अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं।

दिल्ली का उत्सव… बिहार की राजधानी पटना में इस राष्ट्रीय पर्व के लिए विशेष समारोह का आयोजन किया जाता है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। समूचे राज्य के विभिन्न भागों में असंख्य व्यक्ति इस समारोह में सम्मिलित होने तथा इसकी शोभा देखने के लिए आते हैं।

विविध झांकिया गाँधी मैदान में राज्यपाल राष्ट्रीय धुन के साथ ध्वजारोहण करते हैं उन्हें 31 तोपों की सलामी दी जाती है। राज्यपाल जल, नंभ तथा थल-तीनों सेनाओं की टुकड़ियों का अभिवादन स्वीकार करते हैं। सैनिकों का सीना तानकर अपनी साफ-सुथरी वेशभूषा में कदम-से-कदम मिलाकर चलने का दृश्य बड़ा मनोहारी होता है। इस भव्य दृश्य को देखकर मन में राष्ट्र के प्रति असीम भक्ति तथा हृदय में असीम उत्साह का संचार होने लगता है। इन सैनिक टुकड़ियों के पीछे आधुनिक शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित वाहन निकलते हैं। इनके पीछे स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राएँ एन.सी.सी. की वेशभूषा में सज्जित कदम-से-कदम मिलाकर चलते हैं।

उल्लास और उमंग का वातावरण मिलिट्री तथा स्कूलों के अनेक बैंड सारे वातावरण को देश-भक्ति तथा राष्ट्र-प्रेम की भावना से गुंजायमान कर देते हैं। विभिन्न प्रदेशों की झाँकियाँ वहाँ के सांस्कृतिक जीवन, वेश-भूषा, रीति-रिवाजों, औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्र में आए परिवर्तनों का चित्र प्रस्तुत करने में पूरी तरह.समर्थ होती हैं। उन्हें देखकर भारत का बहुरंगी रूप सामने आ . . जाता है। यह पर्व अतीव प्रेरणादायी होता है।

मेरा जीवन-स्वप्न

मैं क्या बनना चाहता है. क्यों- प्रत्येक मानव का कोई-न-कोई लक्ष्य होना चाहिए। लक्ष्य बनाने से जीवन में रस आ जाता है। मैंने यह तय किया है कि मैं पत्रकार बनूंगा। आजकल सबसे प्रभावशाली स्थान है—प्रचार-माध्यमों का। समाचार-पत्र, रेडियो, दूरदर्शन आदि चाहें तो देश में आमूलचूल बदलाव ला सकते हैं। मैं भी ऐसे महत्त्वपूर्ण स्थान पर पहुंचना चाहता हूँ जहाँ से मैं देशहित के लिए बहुत कुछ कर सकूँ। पत्रकार बनकर मैं देश को तोड़ने वाली ताकतों के विरुद्ध संघर्ष करूंगा और भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करूंगा।

जीवन-स्वप्न की प्रेरणा- मेरे पड़ोस में एक पत्रकार रहते हैं-मि. नटराजन। वे दैनिक जागरण के संवाददाता तथा भ्रष्टाचार-विरोधी विभाग के प्रमुख पत्रकार हैं। उन्होंने पिछले वर्ष गैस एजेंसी की धांधली को अपने लेखों द्वारा बंद कराया था। उन्हीं के लेखों के कारण हमारे शहर में कई दीन-दुखी लोगों को न्याय मिला है। इन कारणों से मैं उनका बहुत आदर करता हूँ। मेरा भी दिल करता है कि मैं उनकी तरह श्रेष्ठ पत्रकार बनें और नित्य बढ़ती समस्याओं का मुकाबला करूं।

विशेषताएं, सीमा, चनौतिचा- मुझे पता है कि पत्रकार बनने में खतरे हैं तथा पैसा भी . बहुत नहीं है। परंतु मैं पैसे के लिए या धंधे के लिए पत्रकार नहीं बनूँगा। मेरे जीवन का लक्ष्य होगा-समाज की कुरीतियों और भ्रष्टाचार को समाप्त करना। यदि मैं थोड़ी-सी बुराइयों को भी हटा सका तो मुझे बहुत संतोष मिलेगा। मैं स्वस्थ समाज को देखना चाहता हूँ। इसके लिए पत्रकार बनकर हर दुख-दर्द को मिटा देना मैं अपना धर्म समझता हूँ।

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देश और समाज के लिए उपयोगिता- पत्रकारिता को जनतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। आज के युग में यदि भ्रष्टाचार और अत्याचार पर रोक लगाई जा सकती है तो पत्रकारिता के बल पर। यह प्रजातंत्र का शोधक कारखाना है। मैं सच्चाई दिखाने भर से बुराइयों पर लगाम लगा सकता हूँ। दीन-दुखियों को न्याय दिला सकता हूँ। बेसहारा बेजुबानों की आवाज बन सकता हूँ।

कैसे प्राप्त करू. मेरी योजना- केवल सोचने भर से लक्ष्य नहीं मिलता। मैंने इसे पाने के लिए कुछ तैयारियाँ भी शुरू कर दी हैं। मैं दैनिक समाचार-पत्र पढ़ता हूँ, रेडियो-दूरदर्शन के समाचार तथा अन्य सामयिक विषयों को ध्यान से सुनता हूँ। मैंने हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा का गहरा अध्ययन करने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं ताकि लेख लिख सकूँ। वह दिन दूर नहीं, जब मैं पत्रकार बनकर समाज की सेवा करने का सौभाग्य पा सकूँगा।

आदर्श विद्यार्थी

विद्यार्थी का अर्थविद्यार्थी का अर्थ है–विद्या पाने वाला। आदर्श विद्यार्थी वही है जो सीखने की इच्छा से ओतप्रोत हो, जिसमें ज्ञान पाने की गहरी ललक हो। विद्यार्थी अपने जीवन में सर्वाधिक महत्त्व विद्या को देता है।

जिज्ञासा और अदा विद्यार्थी का सबसे पहला गुण है—जिज्ञासा। वह नए-नए विषयों के बारे में नित नई जानकारी चाहता है। वह केवल पुस्तकों और अध्यापकों के भरोसे ही नहीं रहता, अपितु स्वयं मेहनत करके ज्ञान प्राप्त करता है। सच्चा छात्र श्रद्धावान होता है। कहावत भी है… ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्’। श्रद्धावान ही ज्ञान पा सकता है।

तपस्वी सच्चा छात्र सांसारिक सुख और आराम का कायल नहीं होता। वह कठोर जीवन जीकर तपस्या का आनंद प्राप्त करता है। संस्कृत में एक सूक्ति भी है

‘सखार्थिनः कतो विद्या, विद्यार्थिनः कतो सखम्’

आदर्श विद्यार्थी परिश्रम, लगन तपस्या की आँच में पिघलकर स्वयं को सोना बनाता है। जो छात्र सुख-सुविधा और आराम के चक्कर में पड़े रहते हैं, वे अपने जीवन की नींव को ही कमजोर बना लेते हैं।

अनशासित और नियमित जीवन- आदर्श छात्र अपनी निश्चित दिनचर्या बनाता है और उसका कठोरता से पालन करता है। वह अपनी पढ़ाई, खेल-कूद, व्यायाम, मनोरंजन तथा अन्य गतिविधियों में तालमेल बैठाता है। उसके अध्ययन के घंटे निश्चित होते हैं जिनके साथ वह कभी समझौता नहीं करता। वह खेल-कूद और व्यायाम के लिए भी निश्चित समय रखता है।

सादा जीवन आदर्श छात्र फैशन और ग्लैमर की दुनिया से दूर रहता है। वह सादा जीवन जीता है और उच्च विचार मन में धारण करता है। जो छात्र बनाव-शृंगार, व्यसन, सैर-सपाटा, चस्केबाजी आदि में आनंद लेते हैं, वे विद्या के लक्ष्य से भटक जाते हैं।

पाठयेतर गतिविधियों में रुचि-सच्चा छात्र केवल पाठ्यक्रम तक ही सीमित नहीं रहता। वह विद्यालय में होने वाली अन्य गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। गाना, अभिनय, एन.सी.सी., स्काउट, खेलकूद, भाषण आदि में से किसी-न-किसी में वह अवश्य भाग लेता है।

छात्र-अनुशासन

अनुशासन का अर्थ और महत्त्व-‘अनुशासन’ शब्द का अर्थ हैं-‘शासन अर्थात् व्यवस्था के अनुसार जीवन-यापन करना।’ यदि कोई व्यवस्था निश्चित है तो उसके अनुसार जीना। यदि व्यवस्था निश्चित नहीं है तो जीवन में कोई नियम-व्यवस्था या क्रम बनाना। अनुशासन जीवन को चुस्त-दुरुस्त बना देता है। इससे कार्यकुशलता बढ़ती है। समय का पूरा-पूरा सदुपयोग होता है।

अनुशासन की प्रथम पाठशाला परिवार अनुशासन का पाठ पहले-पहल परिवार से सीखा जाता है। यदि परिवार में सब कार्य व्यवस्था से किए जाते हैं तो बच्चा भी अनुशासन सीख जाता है। इसलिए मनुष्य को सबसे पहले अपना घर अनुशासित करना चाहिए।

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व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए अनशासन आवश्यक अनुशासन न केवल व्यक्तिगत जीवन के लिए आवश्यक है, अपितु सामाजिक जीवन के लिए भी परम आवश्यक है। व्यक्तिगत जीवन में अनुशासन का अर्थ है. छात्र को हर कार्य समय और व्यवस्था से करने की
आदत होनी चाहिए। उसके काम करने के घंटे निश्चित होने चाहिए। दिनचर्या निश्चित होनी चाहिए।

सामाजिक जीवन में अनुशासन होना अनिवार्य है। जैसे – गाड़ियाँ, बसें, विद्यालय कार्यालय सभी समय से खुलें, समय से बंद हों। कर्मचारी ठीक समय पर अपने-अपने स्थान पर कार्य के लिए तैयार हों। वहाँ टालमटोल न हो। इसी के साथ छात्र भी सामाजिक कार्यों में यथासमय पहुंचे।  वे वहाँ की सारी नियम-व्यवस्था का पालन करें।

अनशासन एक महत्त्वपूर्ण जीवन-मूल्य- पास
जीवन वास्तव में अनुशासन एक स्वभाव है। एक विद्या है। अनुशासन का लक्ष्य हैं-जीवन को समधुर और सुविधापूर्ण बनाना। अनुशासित व्यक्ति को सुशिक्षित और सभ्य कहा जाता है। वह न केवल स्वच्छता पर ध्यान देता है, बल्कि अपने बोलचाल और व्यवहार पर भी ध्यान देता है। वह समाज के बीच खलल नहीं डालता, बल्कि व्यवहार की गरिमा बढ़ाता है। इस प्रकार अनुशासन जीवन-मूल्य है, मनुष्य का आदर्श है।

यदि मैं अपने विद्यालयका प्रधानाचार्य होता

मेग लागशील मन अनेक बार स्वयं को भिन्न-भिन्न रूप में देखता है। कभी-कभी मैं कल्पना करता हूँ कि यदि मैं अपने विद्यालय का प्रधानाचार्य होता तो क्या होता? प्रधानाचार्य होने की कल्पना से ही मुझे लगता है कि मानो मेरे ऊपर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है।
विद्यालय की यानिमितता प्रधानाचार्य बनते ही सर्वप्रथम मैं विद्यालय की सारी व्यवस्थाओं को नियमित करूंगा। विद्यालय नियमपूर्वक ठीक समय पर खुले, ठीक समय पर उपस्थिति, प्रार्थना आदि हो तथा निश्चित समयानुसार सभी. कालांश (पीरियड) लगें, इस काम
को मैं प्राथमिकता दूंगा।

परीक्षाओं की योजना – मेरी दृष्टि में परीक्षाओं की योजना पढ़ाई के लिए अत्यंत हितकर है। अत: मैं प्रयास करूंगा कि छात्रों की समय-समय पर छोटी-छोटी परीक्षाएं हों। वर्ष में दो बार बड़ी परीक्षाएँ हों ताकि छात्र छोटी परीक्षाओं के माध्यम से विषय को सारपूर्वक समझ लें और बड़ी परीक्षाओं के द्वारा पूरा पाठ्यक्रम तैयार कर लें। मैं नकल और धोखाधड़ी को पूर्णतया समाप्त कर दूंगा, चाहे इसके लिए किसी का दबाव क्यों न सहना पड़े।

गरीब तथा योग्य छानों की व्यवस्था में विद्यालय में उन गुदड़ी के तालों को पहचानने और विकसित करने का पूरा प्रयास करूंगा जो गरीबी के कारण अपनी प्रतिभा का विकास नहीं कर पाते। ऐसे छात्रों को प्रोत्साहन और सहायता दिलवाने का प्रयास करूंगा।

खेल-कट को प्रोत्साहन खेल-कूद को बढ़ावा देने के लिए मैं ऐसी व्यवस्था करूंगा कि प्रत्येक रूचिवाने छात्र को अपना प्रिय खेल खेलने का अवसर मिल सके। इसके लिए मैं कभी-कभी विद्यालय के छात्रों की विभिन्न खेल-प्रतियोगिताएं आयोजित करूँगा।

सांस्कृतिक कार्यकर मुझे भाषण, वाद-विवाद, कविता-पाठ, नाटक, अभिनय आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों में गहरी रुचि है। मैं चाहूँगा कि मेरे विद्यालय के छात्र इन कार्यक्रमों में अधिकाधिक भाग लें। इसके लिए मैं कलासंपन्न अध्यापकों का एक उत्साही मंडल तैयार करूँगा जो बच्चों में ये कलाएं विकसित करें तथा उनका चहुंमुखी विकास करें।

अध्यापक-छात्र संबंध – मेरा प्रयास होगा कि मेरे विद्यालय के छात्र केवल ग्राहक न हों और अध्यापक ज्ञान-विक्रेता न हों। उनमें ज्ञान, श्रद्धा और प्रेम का गहरा संबंध होना चाहिए। इसके लिए मैं अनेक युक्तियों से प्रयास करूंगा। मैं अपने अध्यापकों और छात्रों के मध्य निर्भयता का वातावरण बनाऊँगा ताकि सब अपनी भावनाएँ एक-दूसरे को कह-सुन सकें। मैं समझता हूँ कि इन उपायों से मेरा विद्यालय एक श्रेष्ठ विद्यालय बन पाएगा।

छात्र और शिक्षक

घर-प्रारंभिक पाठशाला, माता-पिता प्रथम शिक्षक – यदि हर सीखने वाले को छात्र मानें . तो बच्चा पैदा होते ही छात्रं हो जाता है। वह अपने माता-पिता और घर के वातावरण से संस्कार ग्रहण करता है। अतः उसके माता-पिता प्रथम शिक्षक हुए और घर प्रारंभिक पाठशाला हुई।

विद्यालय में शिक्षक ही माता-पिता- कोई बच्चा जब घर की दहलीज पार करके सीखने जाता है तो वह विद्यालय में प्रवेश लेता है। वहाँ उसके शिक्षक उसे शिक्षा प्रदान करते हैं। प्राथमिक कक्षाओं के शिक्षक माता-पिता के समान बहुत स्नेही और सावधान होते हैं। वे बच्चे को स्नेह देते हुए शिक्षा देते हैं। वे शिक्षक और माता-पिता दोनों की भूमिका निभाते हैं। यही कारण है कि बच्चे शिक्षक को माता-पिता से भी अधिक मान देते हैं।

शिक्षक का दायित्व : पढ़ाना, दिशा-निर्देशन, सत्कार्यों की प्रेरणा- शिक्षक का काम केवल पुस्तकें पढ़ाना नहीं होता। वह बच्चों को अक्षर-ज्ञान देता है। अक्षरों में छिपे अर्थ समझाता है। उनसे भी बढ़कर उन्हें जीवन जीने की सही दिशा समझाता है तथा शुभ कर्मों की ओर आगे बढ़ाता है। वह मार्गदर्शक और प्रेरक का काम भी करता है।

छात्र का दायित्व— छात्र का दायित्व बनता है कि वह शिक्षक के प्रति सम्मान प्रकट करे। उन्हें श्रद्धा दे। कहा भी गया है-श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्। श्रद्धावान को ही ज्ञान प्राप्त होता है। अतः छात्रों को चाहिए कि वे अध्यापकों के प्रति श्रद्धा प्रकट करें तथा उनकी एक-एक बात को जीवन में उतारें।

परस्पर संबंध- छात्र और शिक्षक का संबंध ग्राहक और दुकानदार जैसा नहीं है। उनमें श्रद्धा और दान का संबंध है। छात्र को चाहिए कि वह अध्यापकों को सम्मान दे। अध्यापकों को चाहिए कि वे छात्रों को पुत्र की तरह स्नेह दें।

दोनों परस्पर अपने-अपने दायित्वों को समझें- कबीर ने छात्र-अध्यापक संबंध के बारे में कहा है

गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि का? खोट।
अंतर हाथ पसारिए, बाहर-बाहर चोट॥

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यदि गुरु को कभी शिष्य को डाँटना भी पड़े तो अवश्य डाँटे, किंतु उसके संस्कार के लिए सुधार के लिए। ऐसा सद्गुरु सौभाग्य से प्राप्त होता है।

दूरदर्शन का विद्यार्थियों पर प्रभाव

दूरदर्शन के प्रति विद्यार्थियों में बढ़ता आकर्षण- एक समय था, जब विद्यार्थी विद्यालय से घर पहुंचते ही माता-पिता से नमस्कार करके भोजन माँगते थे। अब स्थिति यह है कि वे आते ही टी.वी. खोल लेते हैं। वे रास्ते में ही आने वाले कार्यक्रम का रस लेने लगते हैं। दूरदर्शन विद्यार्थियों की जान बनता जा रहा है।

शैक्षिक और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम – दरदर्शन पर अनेक प्रकार के शैक्षिक तथा ज्ञानवर्धक कार्यक्रम भी पमारित किए जा रहे हैं। डिस्कवरी और नेशनल ज्योग्राफिक चैनल शुद्ध रूप से .. ज्ञानवर्धक हैं। इसके अतिरिक्त अनेक समाचार-चल भी जान में वृद्धि करते हैं। अनेक चैनलों द्वारा प्रश्नोत्तरी, चर्चा, वाद-विवाद, बहस आदि दिखाई जाती हैं। इन्हें दखकर जात्रा का बहुत ज्ञानतंर्शन होता है।

समय और स्वास्थ्य की हानि – दुर्भाग्य से छात्र दूरदर्शन में केवल मनारंजन की सामग्री ढूँढ़ते हैं। वे चलचित्र, टी.वी. सीरियल, संगीत, खेलकूद या अन्य मनोरंजक प्रतियोगिताओं में रुचि लेते हैं। इससे उनको दोहरी हानि होती है। वे खेल-कूद का समय काटकर टी.वी. पर खेलकूद देखते हैं। इससे उनका मन तो तरंगित होता है किंतु शरीर निष्क्रिय रहता है। परिणामस्वरूप बच्चे अस्वस्थ रह जाते हैं। आज के बच्चे पहले की तुलना में कमजोर, अस्वस्थ और आलसी हैं। उनका बहुत-सा समय टी.वी. देखने में ही व्यय हो जाता है।

अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा- टी.वी. छात्रों के अध्ययन में सबसे बड़ी बाधा है। इस पर ऐसे-ऐसे आकर्षक, सनसनीखेज और मनोरंजक कार्यक्रम दिखाए जाते हैं कि छात्र चाहकर भी उन्हें छोड़ नहीं पाते। परिणामस्वरूप उनका ध्यान पढ़ाई में नहीं लगता। विद्यालय में भी वे टी. वी. सीरियलों की चर्चा में रुचि लेते हैं। यदि वे एक बार टी.वी खोल लें तो फिर बंद करने का नाम ही नहीं लेते।

संतुलन की आवश्यकता छात्र मानव है। उसके पास मन है। मन को रंजन चाहिए, मनोरंजन चाहिए। परंतु उसकी भी सीमा होनी चाहिए। टी.वी. अपने लुभावने कार्यक्रमों से उस सीमा को तोड़ता है। छात्रों को चाहिए कि वे उसके लालच से बचें। पढ़ाई की कीमत पर टी. वी. न देखें। तब टी.वी. उनके लिए सौभाग्य का दूत कहलाएगा।

भारतीय संस्कृति : अनेकता में एकता

भारतीयता का विकास-भारतवर्ष एक विशाल सागर है, जिसमें अनेक नदियाँ गिरती हैं। जिस प्रकार नदियाँ अपना पृथक् अस्तित्व खोकर समुद्र में लीन हो जाती हैं, उसी प्रकार भारत के विभिन्न समुदाय अपनी-अपनी विशेषताओं को लिए हुए भी ‘भारतीय’ कहलाते हैं। कोई हिंदू भारतीय है, कोई मुसलिम भारतीय है, कोई बौद्ध, सिख या ईसाई भारतीय है। ये सभी भिन्न-भिन्न धर्मों को मानते हुए भी भारतीय जीवन के साथ एकाकार हो गए हैं। भारत की यही विशेषता इस देश को औरों से अलग करती है।

समरसता–भारत की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है—यहाँ के जीवन की समरसता। यहाँ हर प्रदेश में मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे या गिरजाघर मिल जाएंगे। यहाँ के लोग सब धर्मों के प्रति श्रद्धा रखते हैं। सभी धर्मों के त्योहार भी पूरे उत्साह से मनाए जाते हैं। ईद, क्रिसमिस, होली-दीपावली पर पूरा देश खुशियाँ मनाता है। 15 अगस्त तथा 26 जनवरी यहाँ के राष्ट्रीय त्योहार हैं। हर वर्ग का भारतीय इनमें उत्साहपूर्वक सम्मिलित होता है।

समान भाषा-भारतीय संस्कृति की एकता उसकी भाषा में भी व्यक्त होती है। यहाँ के हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों, सिक्खों, बौद्धों, जैनों की अलग-अलग भाषाएँ नहीं हैं। एक प्रांत के सभी निवासी एक-सी भाषा का व्यवहार करते हैं। पंजाब का मुसलमान यदि पंजाबी बोलता है तो तमिल का मुसलमान तमिल बोलता है। इससे पता चलता है कि चाहे यहाँ लोगों के धर्म भिन्न .. हों, परंतु उनकी संस्कृति समान है। भारत में 19 मान्य राष्ट्रीय भाषाएँ हैं, सैकड़ों बोलियाँ हैं। फिर भी सारा देश हिंदी को राष्ट्रभाषा मानकर आपस में संपर्क स्थापित करता है।

वेश-भूषा-भारत के सभी प्रांतों की अलग-अलग वेशभूषा है। यह वेशभूषा स्थानीय मौसम तथा आवश्यकतानुसार विकसित हुई है। उदाहरणतया, पूरे उत्तर प्रदेश में किसान. धोती-कुर्ता पहनते हैं और सिर पर पगड़ी धारण करते हैं। नगर के शिक्षित युवक पैंट-कमीज पहनते हैं। महिलाएं साड़ी या सूट पहनती हैं।

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नृत्य-संगीत. भारत में नृत्य की एक नहीं, अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्य, ओडिसी, कुचिपुडि, कथकली, मणिपुरी, कत्थक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा, गिद्दा, नगा, बिहू आदि लोकप्रचलित नृत्य हैं। आज इन विविध नृत्य-शैलियों पर पूरे देश के लोग थिरकते हैं।

भोजन-भारत में पकवानों की विधिता भी बहुत अधिक है। राजस्थान में दाल-बाटी, कोलकाता में चावल-मछली, पंजाब में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत के लोग दाल-रोटी उसी शौक से खाते हैं, जितने शौक से उत्तर भारतीय लोग इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।

मेरा प्यारा भारत देश

प्राकृतिक सुंदरता – मेरा देश भारत संसार के देशों का सिरमौर है। यह प्रकृति की पुण्य – लीलास्थली है। माँ भारती के सिर पर हिमालय मुकुट के समान शोभायमान है। गंगा तथा यमुना . . इसके गले के हार हैं। दक्षिण में हिंदमहासागर भारत माता के चरणों को निरंतर धोता रहता है। संसार में केवल यही एक देश है जहाँ षड्ऋतुओं का आगमन होता है। गंगा, यमुना, सतलुज, व्यास, गोमती, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी अनेक नदियाँ हैं जो अपने अमृत-जल से इस देश की धरती की प्यास शांत करती हैं।

धन-संपन्नता–भारत पर प्रकृति की विशेष कृपा है। यहाँ पर खनिज पदार्थों की भरमार है। अपनी अपार संपदा के कारण ही इसे ‘सोने की चिड़िया’ की संज्ञा दी गई है। धन-संपदा के कारण ही हमारा देश विदेशी आक्रमणकारियों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहा है।

श्रेष्ठ सभ्यता-संस्कृति–भारत की सभ्यता और संस्कृति संसार की प्राचीनतम सभ्यताओं में गिनी जाती है। मानव-संस्कृति के आदिम ग्रंथ ऋग्वेद की रचना का श्रेय इसी देश को प्राप्त है। संसार की प्रायः सभी प्राचीन संस्कृतियाँ नष्ट हो चुकी हैं परंतु भारतीय संस्कृति समय की
आँधियों और तूफानों का सामना करती हुई अब भी अपनी उच्चता और महानता का शंखनाद – कर रही है। संगीतकला, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला आदि के क्षेत्र में भी हमारी उन्नति आश्चर्य में डाल देने वाली है। जिस समय संसार का एक बड़ा भाग घुमंतू जीवन बिता रहा था, हमारा देश भारत उच्चकोटि की नागरिक सभ्यता का विकास कर चुका था। सुप्रसिद्ध इतिहासज्ञ सर जॉन मार्शल लिखता है.–‘सिंधु घाटी का साधारण नागरिक सुविधाओं और विलास का जिस मात्रा में उपयोग करता था, उसकी तुलना उस समय के सभ्य संसार के दूसरे भागों से नहीं की जा सकती।’

ज्ञान में अग्रणी – हमारा प्यारा देश ‘विश्व गुरु’ रहा है। यहाँ की कला, ज्ञान-विज्ञान, ज्योतिष, आयुर्वेद संसार के प्रकाशदाता रहे हैं। यह देश ऋषि-मुनियों, धर्म-प्रवर्तकों तथा महान कवियों का देश है। त्याग हमारे देश का सदा से मूल मंत्र रहा है। जिसने त्याग किया, वही महान कहलाया। बुद्ध, महावीर, दधीचि, रंतिदेव, राजा शिवि, रामकृष्ण परमहंस, गाँधी इत्यादि महान विभूतियाँ इसका जीता-जागता प्रमाण हैं।

विविधता में एकता–भारत विविध रंगबिरंगे फूलों का गुलदस्ता है। यहाँ जाति, रंग, धर्म, मन, परंपरा, खान-पान, ऋतु, पहनावे-सबकी विविधता दिखाई देती है। उन विविधताओं में भी अद्भुत मेल है। हिंदू, मुसलमान, ईसाई बड़े प्रेम से साथ-साथ रहते हैं।

संसार का सबसे बड़ा गणतंत्र-भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहाँ सभी कानून जनता को इच्छा से जनता के प्रतिनिधि बनाते हैं। सैकड़ों कमियों के बावजूद भारत का लोकतंत्र वास्तविक है। यहाँ की जनता में इकट्ठे चलने की, कदम से कदम मिलाकर काम करने की अद्भुत शक्ति है।

देश के लिए हमारा कर्तव्य – हमारे देश का इतिहास गौरवमय है। हमें इसके गौरव की रक्षा के लिए गौरवशाली कर्म करने चाहिए। तभी तो जयशंकर प्रसाद लिखते हैं-

जिएं तो सदा इसी के लिए,
यही अभिमान रहे, यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व,
हमारा प्यारा भारतवर्ष।

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स्वेदश प्रेम

देश से स्वाभाविक लगाव-जिस देश में हम जन्मे हैं, जिस धरती का हमने अन्न-जल लिया है, जिसकी रज में हम खेल-कूदकर बड़े हुए हैं, उसके प्रति हमारा स्वाभाविक लगाव हो जाता है। यही स्वाभाविक लगाव ‘देश-प्रेम’ कहलाता है। देश-प्रेम का अर्थ है देश के कण-कण से प्रेम होना, उसके पेड़-पौधे, पत्थर, जीव-जंतु और सभी मानवों से प्रेम होना। कुछ लोग देश के लिए मरने वालों को ही देश-प्रेमी मानते हैं। यह धारणा गलत है। असली देश-प्रेमी वही है जो स्वदेश-हित के लिए जीता है और आवश्यकता पड़ने पर जान भी दे देता है।

मातृभूमि ‘माँ’ के समान संस्कृत की उक्ति है ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है। बिना स्वदेश के जीवन धारण करना ही कठिन है। इसीलिए देश को माँ की संज्ञा दी जाती है। जिस प्रकार हमारे अपनी माँ के प्रति कुछ कर्तव्य और स्नेह-संबंध होते हैं, वैसे ही अपने देश के प्रति भी कुछ दायित्व होते हैं। देश-भावना से शून्य व्यक्ति समाज पर बोझ होता है। मैथिलीशरण गुप्त के अनुसार-

है भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं, वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥

बलिदान की उच्च भावना–देश-प्रेम की भावना बड़ी उच्च भावना है। उसी भावना से प्रेरित होकर देशभक्त देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देते हैं। क्या नहीं था महाराणा प्रताप के पास? धन, धरती, वैभव, सिंहासन -और यदि वे मानसिंह की भाँति अकबर से समझौता . कर लेते तो और भी क्या नहीं मिलता?….लेकिन फिर वह कौन-सी तड़प थी कि हल्दीघाटी के युद्ध-तीर्थ पर उन्होंने सब बलिवेदी पर चढ़ा दिया; वन-वन भटके, गुफाओं में रहे, घास की रोटियाँ खाई ? वह थी देश-प्रेम की तीव्र अभिलाषा। स्वतंत्रता-संग्राम के समय कितने ही देश-भक्तों ने जेल की यातनाएँ भोगी, हँसते-हँसते लाठियाँ खाईं, दिन का चैन और रात की नींद गवाई और सहर्ष फाँसी के तख्तों को चूम लिया। यह देश-प्रेम ही तो था कि लाला लाजपतराय ने छाती चौड़ी कर क्रूर अंग्रेजों की लाठियाँ खाईं, सुभाष बाबू ने विदेश में जाकर आजाद हिंद फौज का गठन किया तथा नेहरू ने ऐश्वर्य और वैभव के जीवन को ठुकरा दिया। संसार के अन्य देशों के इतिहास भी देश-प्रेम की गाथाओं से रँगे पड़े हैं।

राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक – देश-प्रेम की भावना राष्ट्रीय एकता के लिए परम आवश्यक है। आज देश जाति, भाषा, वर्ण, वर्ग, प्रांत, दल आदि के नाम पर बँटा हुआ है। सारा देश टूटता हुआ नजर आ रहा है। ऐसे समय में देशभक्ति की भावना इस टूटन और बिखराव को दूर करके सारे देश को एकजुट कर सकती है।

राष्ट्रीय एकता

अर्थ और महत्त्व – राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य है—राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न विचारों और भिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। अर्थात् देश में भिन्नताएं हों, फिर भी सभी नागरिक राष्ट्र-प्रेम से ओतप्रोत हों। देश के नागरिक पहले ‘भारतीय’ हों, फिर हिंदू या मुसलमान। राष्ट्रीय एकता का भाव देश रूपी भवन में सीमेंट का काम करता है।

भारत में विभिन्नता- भारत अनेकताओं का देश है। यहाँ अनेक धर्मों, जातियों, वर्गों, संप्रदायों और भाषाओं के लोग निवास करते हैं। यहाँ के लोगों का रहन-सहन, खान-पान और पहनावा भी भिन्न है। भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ भी कम नहीं हैं।

अनेकता में एकता – भारत में विभिन्नता होते हुए भी एकता या अविरोध विद्यमान है। यहाँ . सभी जातियां घुल-मिल गहाँ पाय लोग एक दसरे के धर्म का आदर करते हैं। आदर न भी करें तो दूसरे के प्रति सहनशील है.

राष्ट्रीय एकता के बाधक तत्त्व- भारत की राष्ट्रीय एकता क लिए अनेक खतरे हैं। सबसे बड़ा खतरा है-कुटिल राजनीति। यहा के राजनेता ‘वोट-बैंक’ बनाने के लिए कभी अल्पसंख्यकों में अलगाव के बीज बोते हैं, कभी आरक्षण के नाम पर पिछड़े वर्गों को देश की मुख्य धारा से अलग करते हैं। इस देश के हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से हना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर रखना चाहते हैं। राष्ट्रीय एकता में अन्य बाधक तत्त्व हैं—विभिन्न . धार्मिक नेता, जातिगत असमानता, आर्थिक असमानता आदि।

परस्पर संघर्ष के परिणाम जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक संघर्ष करते हैं तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है। मामला आरक्षण का हो या अयोध्या के । राम-मंदिर का, उसकी गूंज पूरे देश के जनजीवन को कुप्रभावित करती है।

समाधान – प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय एकता को बल कैसे मिले? संघर्ष का शमन कैसे हो? इसका एकमात्र उत्तर यही है कि देश में सभी असमानता लाने वाले कानूनों को समाप्त किया जाए। मुसलिम पर्सनल लॉ, हिंदू कानून आदि अलगाववादी कानूनों को तिलांजलि दी जाए। उसकी जगह एक राष्ट्रीय कानून लागू किया जाए। सब नागरिकों को एक समान अधिकार पाप्त हों। किसी नाम पर भी विशेष सुविधा या विशेष दर्जा न जाए। भारत में पति नीति बंद हो।

राष्ट्रीय एकता को बनाने का दूसरा उपाय यह है कि लोगों के हृदयों में परस्पर आदर का भाव जगाया जाए। यह काम साहित्यकार, कलाकार, विचारक और पत्रकार कर सकते हैं।

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आधनिकता और भारतीयता

आशनिकता आधुनिकता का अर्थ है-नए जमाने के अनुसार जीना। पाषाण-युग से लेकर आज तक मनुष्य-जीवन गतिशील है। आगे भी यह प्रगति निरंतर चलती रहेगी। जिस प्रकार एक हजार साल पुरानी चीजें हमारे लिए खंडहर हो चुकी हैं। सौ साल पुरानी चीजें भी बेकार हो चुकी हैं। दस साल पुराने साधन भी धीरे-धीरे अनुपयोगी होते जा रहे हैं। कारण यह है कि आज उनसे भी अधिक उपयोगी साधन हमारे सामने आ चुके हैं। मनुष्य का स्वभाव है कि वह नई उपयोगी चीजों की ओर आकर्षित होता है और पुरानी चीजों को बेकार समझकर छोड़ देता है।

पनी संस्कति त्याज्य नहीं पुराने साधन तो पुराने पड़ सकते हैं, किंतु पुराने लोग, पुराने रिश्ते, पुराने भाव और विचार आवश्यक नहीं कि त्याज्य हों। मनुष्य प्राचीन काल से जिन आदतों, भावनाओं और आदर्शों को निभाता आया है, उनमें आज भी उपयोगी आदतें बची हुई हैं। उदाहरणतया, भरे-पूरे परिवार में रहना, माता-पिता का सम्मान करना, ईश्वर की भक्ति करना, बड़ों को आदर और छोटों को स्नेह देना हमारे पुराने संस्कार हैं। बोकी परंपरा बहुत पुरानी है। ये परंपराएँ आज भी शुभ हैं। इन्हें छोड़ना नहीं चाहिए। जिन लोगों ने अपनी प्रगति के लिए बूढ़े माता-पिता को त्यागा है, उन्होंने अपना तथा माता-पिता का अहित ही किया है।

पाश्चात्य संस्कृति आधुनिक नहीं – आवश्यक नहीं कि पाश्चात्य संस्कृति आधुनिक हो। पायजामे की जगह कटी-छटी एंप्री पहनना, ब्लाउज की बजाय स्लीवलैस टॉप पहनना, साड़ी की जगह जींस पहनना, दादी की बजाय फ्रैंच-कट रखना-पाश्चात्य संस्कृति की निशानियाँ तो हो सकती हैं किंतु आधुनिक होने की नहीं। दूध-छाछ की जगह कोक पीने से और रोटी-मक्खन की जगह पीजा-बर्गर खाने से कोई आधुनिक नहीं हो सकता। आधुनिक तो वह है जो अपने देश और परिस्थिति के अनुकूल धोती-कुर्ता, लस्सी, सत्तू आदि को भी अपनाने में शर्म न करे। भला, गर्म देश में कोट-पेंट, टाई कैसे आधुनिक हो सकती है?

भारतीय संस्कृति-भापनिकता की मांग भारतीय संस्कृति कभी पुरानी नहीं पड़ती। कारण यह है कि वह सबको उदारतों का पाठ पढ़ाती है। वह धर्म, देश, प्रांत के भेद भुलाकर सबको आगे बढ़ने का अवसर देती है। वह कभी किसी विदेश पर आक्रमण नहीं करती। वह विदेशी आक्रमणकारी पर भी बम न चलाकर उसे अहिंसापूर्वक बाहर निकालती है। यह शांति का मार्ग है। इसी से यह नया विश्व जीवित रह सकता है। सर्वे भवन्तु सुखिनः, वसुधैव कुटुम्बकम्, अहिंसा आदि ऐसी बातें भारतीय संस्कृति में आज भी जीवित हैं जो पुरानी होते हुए भी नई हैं और आज की माँग हैं। यही कारण है कि आज अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में गीता को पढ़ाना अनिवार्य कर दिया गया है। गीता पुराना ग्रंथ होते हुए भी अत्याधुनिक है। इसी से विश्व-शांति बची रह सकती है। अत: भारतीयों को अगर आधुनिक होना है तो वे पाश्चात्य संस्कृति नहीं, भारतीय संस्कृति को अपनाएँ।

भारत के गाँव

भारत की आत्मा: गाँव– भारत की 85% जनता गाँवों में रहती है। भारत की सच्ची तस्वीर गाँवों में ही देखी जा सकती है। हमारे कवियों ने गाँवों के अत्यंत लुभावने चित्र खींचे हैं। किसी ने उन्हें भारत की आत्मा कहा तो किसी ने देश का हृदय-स्पंदन।

गांव का मनोरम वातावरण भारत के गाँव प्रकृति के झूले हैं। हरे-भरे खेत, झमती सरसों, बरसता सावन, खुली हवा, सुगंधित हवा के झोंके, निर्दोष वातावरण, प्रदूषण से मुक्त रहन-सहन, . शांत-मनोरम ऋतु-चक्र, कूकती कोयल, नाचते मार, धन्य-धान्य से भरे खेत-खलिहान—यह है । गाँव का मनोरम सत्य। इन बातों को देखकर प्रत्येक व्यक्ति का मन गाँवों में बसने को करता है।

सामाजिक जीवन- गाँवों का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन भी अत्यंत मनोहारी है। यहाँ के निवासी स्वभाव से सरल-हृदय, भोले और मधुर होते हैं। यही कारण है कि वे प्रकृति की हर लय पर नाचते-गाते और गुनगुनाते हैं। होली, दीपावली, तीज आदि त्योहारों पर ग्रामवासियों की मस्ती देखने योग्य होती है।

ग्रामवासी भाईचारे के अटूट बंधन में बंधे होते हैं। इसलिए वे एक-दूसरे के दुख-सुख में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। यहाँ की सामाजिक परंपराएँ भी बहुत रंगीली हैं। विवाह की रस्में, गीत, विदा के क्षण ग्रामवासियों की भावुकता को प्रकट करते हैं।

परिश्रमी जीवन – ग्रामीण जीवन परिश्रम का प्रतीक है। यहाँ निकम्मे, निठल्ले व्यक्ति का क्या काम ? यहाँ के परिश्रमी किसान सारे देश के लिए अन्न उपजाते हैं और मजदूर लोग बड़े-बड़े भवन, बाँध, सड़क, वस्त्र-उद्योग आदि को चलाने में अपनी सारी ताकत लगा देते हैं। सच ही कहा है कवि गोपालसिंह नेपाली ने –

मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रस्म, ऋतु रंग-रंगीली।
नीले नभ में बादल काले, हरियाली में सरसों पीली।
शहरों को गोदी में लेकर, चली गाँव की डगर नुकीली।

प्रगति में पीछे – भारत के गाँव बहुत सुंदर होते हुए भी प्रगति की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। यहाँ सड़कें, स्वच्छ जल, वैज्ञानिक सुख-साधन, संचार-व्यवस्था, विकसित बाजार, प्रगत शिक्षालय और चिकित्सालय नहीं हैं। यही कारण है कि सारी सुंदरता के होते हुए भी वे उपेक्षित हैं। गाँवों को शहरों जैसा सुंदर बनाने की चिंता किसी को नहीं है।

आशा की किरण- सौभाग्य से आज ग्रामीण जनता जाग उठी है। ग्रामीण प्रजा ने यह आवाज उठा दी है कि देश की प्रगति का केंद्र अब गाँव होना चाहिए। केंद्रीय सरकार ने गाँवों को समृद्धि पर पर्याप्त राशि लगाने का निर्णय लिया है। यह शुभ चिह्न है। आशा है, शीघ्र ही गाँवों की धरती वैज्ञानिक सुख-साधन और उन्नत सुविधाओं से संपन्न होकर स्वर्गिक बन जाएगी।

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भारतीय नारी की महत्ता

समर्पण की मूर्ति नारी-भारत की नारी का नाम सुनते ही हमारे सामने प्रेम, करुणा, दया, त्याग और सेवा-समर्पण की मूर्ति अंकित हो जाती है। जयशंकर प्रसाद ने नारी के महत्त्व को यों प्रकट किया है –

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
विश्वास रजत नग पदतल में।
पीयूष स्रोत-सी बहा करो,
जीवन के सुंदर समतल में।

नारी के व्यक्तित्व में कोमलता और सुंदरता का संगम होता है। वह तर्क की जगह भावना से जीती है। इसलिए उसमें प्रेम, करुणा, त्याग आदि गुण अधिक होते हैं। इन्हीं की सहायता से वह अपने तथा अपने परिवार का जीवन सुखी बनाती है।

पश्चिमी नारी-उन्नत देशों को नारियाँ प्रगति की अंधी दौड़ में पुरुषों से मुकाबला करने लगी हैं। वे पुरुषों के समान व्यवसाय और धन-लिप्सा में संलग्न हैं। उनहें अपने माधुर्य, ममत्व और वात्सल्य की कोई परवाह नहीं है। अनेक नारियाँ माता बनने का विचार ही मन में नहीं लाती। वे केवल अपने सुख, सौंदर्य और विलास में मग्न रहना चाहती हैं। भोग-विलास की यह जिंदगी भारतीय आदर्शों के विपरीत है।

भारतीय नारी-भारतवर्ष ने प्रारंभ से नारी के ममत्व को समझा है। इसलिए यहाँ नारियों की सदा पूजा होती रही है। प्रसिद्ध कथन है-

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता।

भारत की नारी प्राचीन काल में पुरुषों के समान ही स्वतंत्र थी। मध्यकाल में देश की स्थितियाँ बदलीं। आक्रमणकारियों के भय के कारण उसे घर की चारदीवारी में सीमित रहना पड़ा। सैकड़ों वर्षों तक घर-गृहस्थी रचाते-रचाते उसे अनुभव होने लगा कि उसका काम बर्तन-चौके तक ही है। परंतु वर्तमान युग में यह धारणा बदली। बदलते वातावरण में भारतीय नारी को समाज में खुलने का अवसर मिला। स्वतंत्रता-आंदोलन में सरोजिनी नायडू, कमला नेहरू, सत्यवती जैसी महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। परिणामस्वरूप स्त्रियों में पढ़ने-लिखने और कुछ कर गुजरने की
आकांक्षा जाग्रत हुई।

वर्तमान नारी-भारत की वर्तमान नारी विकास के ऊंचे शिखर छू चुकी है। उसने शिक्षा… – के क्षेत्र में पुरुषों से बाजी मार ली है। कंप्यूटर के क्षेत्र में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। नारी-सुलभ
क्षेत्रों में उसका कोई मुकाबला नहीं है। चिकित्सा, शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में उसका योगदान अभूतपूर्व है। आज अनेक नारियाँ इंजीनियरिंग, वाणिज्य और तकनीकी जैसे क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त कर रही हैं। पुलिस, विमान-चालन जैसे पुरुषोचित क्षेत्र भी अब उससे अछूते नहीं रहे हैं।

दोहरी भूमिका- वास्तव में आज नारी की भूमिका दोहरी हो गई है। उसे घर और बाहर दो-दो मोचों पर काम संभालना पड़ रहा है। घर की सारी जिम्मेदारियाँ और ऑफिस का कार्य-इन दोनों में वह जबरदस्त संतुलन बनाए हुए है। उसे पग-पग पर पुरुष-समाज की ईर्ष्या, घृणा, हिंसा और वासना से भी लड़ना पड़ता है। सचमुच उसकी अदम्य शक्ति ने उसे इतना महान बना दिया है।

वर्तमान भारतीय नारी की चुनौतियों

पुरुष-प्रधान समाज में नारी का संघर्ष-जिस समाज में हम जी रहे हैं, वह पुरुष-प्रधान है। यहाँ नारी कहने को देवी अवश्य है किंतु व्यवहार में उसका स्थान पुरुषों से कम है। इसलिए उसकी उन्नति में पग-पग पर बाधाएँ हैं। पुरुष-समाज नारी को आगे नहीं बढ़ने देना चाहता। वह नारी पर अपना दबदबा कायम रखना चाहता है। इसलिए पुरुष या तो नारी के जन्म को रोकता है। अगर वह पैदा हो जाए तो उसे शिक्षा से वंचित रखना चाहता है। वह शिक्षा पा लें तो उसे नौकरी में नहीं आने देना चाहता। वह नौकरी में आ जाए तो उससे घर के सारे काम करवाना चाहता है, ताकि वह दोहरे बोझ के नीचे पिसते-पिसते स्वयं ही हाथ खड़े कर दे। सचमुच पुरुष-प्रधान समाज में नारी का संघर्ष बहुत भीषण है।

घर-परिवार की सीमाओं से बाहर नई चुनौतियों-नारी जब से घर-परिवार की सीमाओं को लाँघकर बाहर निकली है, उसके सामने चुनौतियाँ भी बढो हैं। उसे पुरुषों के समाज में पग-पग पर पुरुषों से ही खतरे झेलने पड़ते हैं। पुरुष हमेशा नारी को अकेल देखकर उस पर अपना नियंत्रण
करना चाहता है। बॉस के रूप में, सहकर्मी के रूप में, मातहत के रूप में, राह चलते यात्री के .रूप में, आवारगर्द बदमाश के रूप में हर रूप में वह सरी को परेशान करता है। नारी को नुकीले दाँतों के बीच रहने वाली कोमल जीभ की तरह रहना पड़ता है। फिर भी पुरुषों से मुकाबला करना पड़ता है और विजय भी प्राप्त करनी होती है।

विविध क्षेत्रों में नारी का योगदान भारत की वर्तमान नारी विकास के ऊँचे शिखर छू चुकी है। उसने शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से बाजी मार ली है। कंप्यूटर के क्षेत्र में उसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण है। नारी-सुलभ क्षेत्रों में उसका कोई मुकाबला नहीं है। चिकित्सा, शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में उसका योगदान अभूतपूर्व है। आज अनेक नारियाँ इंजीनियरिंग, वाणिज्य और तकनीकी जैसे क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त कर रही हैं। पुलिस, विमान-चालन जेसे पुरुषोचित क्षेत्र भी अब उससे अछूते नहीं रहे हैं।

नारी और नौकरी : दोहरी भूमिका कितनी संभव है, कितनी जरूरी- वास्तव में आज नारी की भूमिका दोहरी हो गई है। उसे घर और बाहर दो-दो मोर्चों पर काम सँभालना पड़ रहा है। घर की सारी जिम्मेदारियाँ और ऑफिस का कार्य-इन दोनों में वह जबरदस्त संतुलन बनाए हुए है। उसे पग-पग पर पुरुष-समाज की ईर्ष्या, घृणा, हिंसा और वासना से भी लड़ना पड़ता है। सचमुच उसकी अदम्य शक्ति ने उसे इतना महान बना दिया है।

भारतीय कृषक

गाँधी जी का कथन- गाँधी जी ने कहा था “भारत का हृदय गाँवों में बसता है। गांवों में ही सेवा और परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। ये किसान ही नगरवासियों के अन्नदाता हैं, सृष्टि-पालक हैं।”

सरल जीवन- भारत के किसान का जीवन बड़ा सहज तथा सरल होता है। उसमें किसी प्रकार की कृत्रिमता नहीं होती। वह अपने जीवन की आवश्यकताओं को सीमित रखता है। रूखा-सूखा भोजन करके भी वह स्वर्गीय सुख का अनुभव करता है। माँ प्रकृति की गोद में उसे . बड़ा संतोष मिलता है। प्रकृति से निकट का संबंध होने के कारण भारतीय किसान हृष्ट-पुष्ट तथा स्वस्थ रहता है। वह स्नेहशील, दयालु तथा दूसरों के सुख-दुख में हाथ बँटाता है। वह सात्त्विक जीवन जीता है।

परिश्रमी- भारत का किसान बड़ा परिश्रमी है। वह गर्मी-सर्दी तथा वर्षा की परवाह किए बिना अपने कार्य में जुटा रहता है। जेठ की दोपहरी, वर्षा ऋतु की उमड़ती-घुमड़ती काली मेघ-मालाएं तथा शीत ऋतु की हाड़ कंपा देने वाली वायु भी उसे अपने कर्तव्य से रोक नहीं पाती। भारतीय किसान का जीवन कड़ा तथा कष्टपूर्ण है।

अभाव- भारतीय कृषक का जीवन अभावमय है। दिन-रात कठोर परिश्रम करने पर भी वह जीवन की आवश्यकताएँ नहीं जुटा पाता। न उसे पेट-भर भोजन मिलता है और न शरीर ढंकने : के लिए पर्याप्त वस्त्र। अभाव और विवशता के बीच ही वह जन्मता है तथा इसी दशा में मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

दुरवस्था के कारण – निरक्षरता भारतीय कृषक की पतनावस्था का मूल कारण है। शिक्षा । के अभाव के कारण वह अनेक कुरीतियों से घिरा है। अंधविश्वास और रूढ़ियाँ उसके जीवन के अभिन्न अंग बन गए हैं। आज भी वह शोषण का शिकार है। वह धरती की छाती को फाड़कर, हल चलाकर अन्न उपजाता है किंतु उसके परिश्रम का फल व्यापारी लूट ले जाता है। उसकी मेहनत दूसरों को सुख-समृद्धि प्रदान करती है।

निष्कर्ष- देश की उन्नति किसान के जीवन में सुधार से जुड़ी है। किसान ही इस देश की आत्मा है। अत: उसके उत्थान के लिए हमें हर संभव प्रयत्न करना चाहिए। किसान के महत्त्व को जानते हुए ही लालबहादुर शास्त्री ने नारा दिया था ‘जय जवान जय किसान।’ जवान देश की सीमाओं को सुरक्षित करता है, तो किसान उस सीमा के भीतर बस रहे जन-जन को समृद्धि प्रदान करता है।

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जीवन में खेल-कदका का महत्त्व

स्वामी विवेकानंद ने अपने देश के नवयुवकों को संबोधित करते हुए कहा था ‘सर्वप्रथम हमारे नवयुवकों को बलवान बनाना चाहिए। धर्म पीछे आ जाएगा।’ स्वामी विवेकानंद के इस कथन से स्पष्ट है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास संभव है और शरीर को स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए खेल अनिवार्य हैं।

खेलों से लाभ – हाला पाश्चात्य विद्वान पी. साइरन ने कहा है-‘अच्छा स्वास्थ्य एवं अच्छी समझ ,जीवन के दो सर्वोत्तम वरदान हैं।’ इन दोनों की प्राप्ति के लिए जीवन में खिलाड़ी की भावना से खेल खेलना आवश्यक है। खेलने से शरीर पुष्ट होता है, मांसपेशियाँ उभरती हैं, भूख बढ़ती है, शरीर शुद्ध होता है तथा आलस्य दूर होता है। न खेलने की स्थिति में शरीर दुर्बल, रोगील.तथा आलसी हो जाता है। इन सबका कुप्रभाव मन पर पड़ता है जिससे मनुष्य की सूझ-बूझ समाप्त हो जाती है। मनुष्य निस्तेज, उत्साहहीन एवं लक्ष्यहीन हो जाता है। शरीर तथा मन से दुर्बल एवं रोगी व्यक्ति जीवन के सच्चे सुख और आनंद को प्राप्त नहीं कर सकता। बीमार होने की स्थिति में मनुष्य अपना तो अहित करता ही है, समाज का भी अहित करता है। गाँधी जी तो बीमार होना पाप का चिह्न मानते थे।

खेल विजयी बनाते हैं – खेल खेलने से मनुष्य को संघर्ष करने की आदत लगती है। उसकी जुझारू शक्ति उसे नव-जीवन प्रदान करती है। उसे हार-जीत को सहर्ष झेलने की आदत लगती है। खेलों से मनुष्य का मन एकाग्रचित होता है। खेलते समय खिलाड़ी स्वयं को भूल जाता है। खेल हमें अनुशासन, संगठन, पारस्परिक सहयोग, आज्ञाकारिता, साहस, विश्वास और औचित्य की शिक्षा प्रदान करते हैं।

मनोरंजन – खेल हमारा भरपूर मनोरंजन करते हैं। खिलाड़ी हो अथवा खेल-प्रेमी, दोनों को खेल के मैदान में एक अपूर्व आनंद मिलता है। मनोरंजन जीवन को सुमधुर बनाने के लिए आवश्यक है। इस दृष्टि से भी जीवन में खेलों का अपना महत्त्व है।

किसी मैच काआँखों देखा वर्णन

टीमों का मैदान में आना – पिछले दिनों मुझे डी.सी.एम. और मोहन बागान के मध्य हो रहे फुटबाल मैच को देखने का मौका मिला। निश्चित समय से पाँच मिनट पहले दोनों टीमें पूरी सज-धज के साथ पंक्तिबद्ध होकर मैदान में उतरीं। डी.सी.एम. की टीम ने हरी शर्ट और सफेद नेकर पहनी थी और मोहन बागान लाल कमीज तथा पीली नेकरों में थी। दर्शकों ने गर्मजोशी से
तालियाँ बजाकर उनका स्वागत किया। औ

मैच का संघर्षपूण अरंभ :
ठीक पाँच बजे निर्णायक ने लंबी सीटी बजाई। निर्णायक ने गेंद को मध्यरेखा के पास ऊपर उछाला और मैच प्रारंभ हो गया। खेल के शुरू में ही गति आ गई। डी.सी.एम. के खिलाड़ियों ने गेंद संभाली। लंबे पास देते हुए वे चार ही पासों में मोहन बागान दल की डी में पहुंच गए। अगले ही क्षण उन्होंने डी.सी.एम. के गोल पर धावा बोल दिया। वहाँ के क्षेत्ररक्षकों ने खूब हाथ-पाँव मारे किंतु बागान के भट्टाचार्य और वासुदेवन ऐसे कुशल खिलाड़ी थे कि उन्होंने फुटबाल को अपने नियंत्रण से छिनने नहीं दिया। वासुदेवन ने गोल के अंदर किक मारी। किक सटीक थी। गोल होने ही वाला था कि गोलची के हाथ के धक्के से गेंद उछलकर गोल के ऊपर से निकल गई। इस प्रकार बागान दल का वह सुंदर आक्रमण गोलची के कुशल रक्षण से निष्फल हो गया।

दसरे दल का आक्रमणगाल : गोलची ने फुटबाल को किक लगाई, जो आकाश को छूती हुई-सी. सीधे आक्रामक खिलाड़ी कुटप्पन के पास जा पहुंची। बागान के गोल में कुटप्पन को तीन खिलाड़ी घेरे हुए थे। जल्दी में कुटप्पन ने निशाना दागा, जो कि बागान के खिलाड़ी द्वारा बाधित होकर व्यर्थ कर दिया गया। अत: बिना किसी गोल के मध्यांतर हो गया।

डी.सी.एम. के दो गोल- मध्यांतर के उपरांत दोनों दलों के गोल परस्पर बदल गए। खेल प्रारंभ होते ही डी.सी.एम. के कुटप्पन, महेंद्र और अशोक की तिकड़ी ने वह धावा बोला कि बागान का गोलची घबरा उठा। महेंद्र की सधी हुई किक से गोल. होने. ही वाला था कि चटर्जी ने उसे गलत ढंग से रोका। परिणामस्वरूप उन्हें पैनल्टी किक मिली, जिसे कुटप्पन ने अपने सधे हुए निशाने से गोल में बदल दिया। तालियों की गड़गड़ाहट से स्टेडियम गूंज उठा। फुटबाल फिर मध्य में उछाली गई। अब की बार फिर डी.सी.एम. के खिलाड़ी आक्रमण पर थे। क्षेत्र-रक्षकों ने उन्हें रोका किंतु उनकी बिजली-सी गति को वे रोक नहीं पाए और अशोक ने एक और गोल कर दिया। यह फील्ड गोल था।

रोमांचक अंत-दो गोल खाने के बाद बागान के खिलाड़ियों का मानो पौरुष जाग उठा। वे फुटबाल पर बुरी तरह पिल पड़े। उधर डी.सी.एम. ने रक्षक नीति अपनाई। मैच समाप्त होने से पाँच मिनट पहले बागान ने एक गोल उतार दिया। मैच में पुनः रंग आ गया। दर्शकों की धड़कनें .. अति तीव्र हो गईं। बागान के खिलाड़ियों ने जान लगा दी परंतु उन्हें 2-1 से हारकर संतोष करना पड़ा।

भारतीय खेलों का भविष्य

भमिका- भारत आध्यात्मिक देश हैं यह संतो-ऋषियों की भूमि है। यहाँ महत्त्व ज्ञान को दिया गया। आज भी भारत के माता-पिता अपने बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर, प्रोफेसर, वकील, पत्रकार आदि बनाना चाहते हैं। खिलाड़ी कोई नहीं बनाना चाहता। यदि कोई बच्चा खेलों में अधिक रूचि लेता पाया जाए तो उसे माता-पिता से डाँट सुनने को मिलती है। भारत के लोग अब भी खेलों में भविष्य नहीं मानते। यही कारण है कि यहाँ खेलों का विकास नहीं हो पाता।

खेलों में भारत की वर्तमान स्थिति – खेल-जगत में भारत का स्थान निराशाजनक है। 110 करोड़ आबादी वाला देश किसी भी खेल में चैंपियन नहीं है। आज क्रिकेट में भारत ने दबदबा तो दिखाया है किंतु यह स्थायी नहीं है। हॉकी में कभी हमारा देश विश्व-चैंपियन होता था। इस बार हम ओलंपिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पाए। टेनिस, लॉन टेनिस, कुश्ती, तैराकी, मुक्केबाजी, फुटबाल, बैंडमिंटन, वालीबॉल-किसी भी खेल में हमारा नाम तक नहीं है।

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2008 के बीजिंग ओलंपिक में जहाँ लगभग 1000 पदक दाँव पर थे, भारत ने केवल तीन पदक प्राप्त किए। हमने 302 खेलों में से केवल 12 खेलों में ही भाग लिया। इसके लिए न तो हमारी सरकार चिंतित है, न समाज और न स्वतंत्र अकादमियाँ।

खेल-प्रोत्साहन के उपाय- प्रश्न है कि खेलों को प्रोत्साहन कैसे मिले? इसके अनेक उपाय हैं। खेलों को भी ‘भविष्य’ के रूप में स्थापित किया जाए। जिस प्रकार नए-नए इंजीनियरिंग . कॉलेज, मैडिकल कॉलेज, मैनेजमेंट कॉलेज खुल रहे हैं, वैसे ही खेल-अकादमियाँ और प्रशिक्षण-संस्थान खोले जाएँ। वहाँ खेल-आधारित पाठ्यक्रम हों। वहाँ नियुक्त स्टाफ को सम्मानपूर्ण धन दिया जाए।

दूसरा उपाय यह है कि शिक्षा में खेलों को अनिवार्य अंग बनाया जाए। बच्चे के प्रमाण-पत्र और चरित्र में शिक्षा-ज्ञान, खेल और कला-तीनों के अंक निर्धारित होने चाहिए। ऐसा होने पर बच्चे के मां-बाप.बच्चे को खेलों के लिए भी प्रोत्साहित करेंगे।

तीसरा उपाय यह है कि जिए प्रकार गीत-संगीत, नाटक, नृत्य, फैशन आदि को प्रोत्साहन देने के लिए समाज में अनेक संस्थाएं बनी हैं। वे संस्थाएँ प्रतियोगिता कराकर, पुरस्कार, सम्मान या प्रदर्शन के अवसर देकर प्रोत्साहन देती हैं, उसी प्रकार खेलों के लिए भी संस्थाएं आगे आएं।

भविष्य – खेलों को लेकर अभी तक भारतवासियों का रवैया बहुत उत्साहप्रद नहीं है। इसलिए सरकारें भी लगभग मौन हैं। अभी भारत को खेलों के विकास के लिए और कुछ वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। अभी दो-तीन किरणें फूटी हैं पूरा सूरज खिलने में अभी देर है।

ओलंपिक खेलों में भारत

भमिका – जब विश्व-खेलों की परंपरा शुरू हुई, तब भारत गुलाम था। स्वतंत्रता के बाद भारत गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या-विस्फोट जैसी समस्याओं से घिरा रहा। इसलिए खेलों की तरफ बहुत ध्यान नहीं दिया जा सका। न तो भारत ने आलपिक खेलों में अधिक भागीदारी की, न अधिक सफलता प्राप्त की।

ओलंपिक खेलों में भारत का इतिहास- भारत ने 1920 के ओलंपिक खेलों में पहली बार पाँव रखे थे। 1928 में हॉकी में पहला स्वर्णपदक जीता। तब से लेकर 1980 के ओलंपिक तक भारत ने आठ बार हॉकी में स्वर्णपदक पर कब्जा जमाया। हॉकी और भारत पर्याय हो गए। भारत. के कप्तान ध्यानसिंह को ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाने लगा। उसके बाद हॉकी प काले बादल छाने शुरू हुए। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में हमारी यह स्वर्णिम टीम क्वालीफाई ही नहीं कर सकी।

व्यक्तिगत खेलों में पदक- व्यक्तिगत पदकों में भी भारत के पास कोई स्वर्णिम परंपरा नहीं है। सन् 1952 के हेलसिकी ओलंपिक में पहली बार के.डी. जाधव ने कुश्ती में कांस्य-पदक प्राप्त किया था। उसके 56 साल बाद इस बार दिल्ली के सुशील कुमार ने फिर से कांस्य-पदक प्राप्त किया है। टेनिस, भारोत्तोलन और मुक्केबाजी में भारत के नाम एक-एक पदक है। 1996 में भारत ने टेनिस में कांस्य पदक प्राप्त किया। 2000 के ओलंपिक में हरियाणा की मल्लेश्वरी देवी ने भारोत्तोलन में कांस्य-पदक जीता। 2008 के बीजिंग ओलंपिक में हरियाणा के मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह ने पहली बार कांस्य-पदक प्राप्त किया है।

निशानेबाजी का खेल पिछले दो ओलंपिकों में भारत के लिए फलदायी रहा है। 2004 के . ओलंपिक में राजस्थान के राज्यवर्द्धन राठौर ने डबल ट्रैप निशानेबाजी में रजत पदक प्राप्त किया था। इस बार के ओलंपिक में चंडीगढ़ के अभिनव बिंद्रा ने 10 मीटर एयर रायफल स्पर्धा में स्वर्णपदक जीतकर भारत को नया विश्वास प्रदान किया है।

उपसंहार- इतने विशाल भारत की ये छोटी-सी उपलब्धियाँ संतोषजनक नहीं कही जा सकतीं। परंतु पहली बार भारत में व्यक्तिगत स्वर्णपदक आया है। पहली बार, एक नहीं तीन-तीन खेलों में पदक आए हैं। यह एक अच्छी शुरूआत कही जा सकती है। अब भारत की आशाएँ बढ़ गई हैं। अवश्य ही हमारे खिलाड़ी परिश्रम भी करेंगे।

स्वास्थ्य और व्यायाम

स्वस्थ तन-मन के बिना जीवन बोझ- जीवन एक उत्सव है। यह आनंदमय है। इसका आनंद उठाने के लिए शरीर भी स्वस्थ चाहिए और मन भी। मन तभी स्वस्थ रहता है, जबकि शरीर स्वस्थ हो। तन में कोई रोग न हो। ऐसे शरीर वाला मनुष्य मन से भी खुश रहता है। जिसके पास न स्वस्थ तन है, न स्वस्थ मन, उसका जीवन बोझ होता है।

अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपेक्षित कार्यक्रम- व्यायाम सोद्देश्य क्रिया है। अपने शरीर को सुगठित करने के लिए, अपने नाड़ी-तंत्र को मजबूत बनाने के लिए तथा भीतरी शक्तियों को तेज करने के लिए जो भी क्रियाएं की जाती हैं, वे निश्चित रूप से शरीर को लाभ पहुंचाती हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सभी प्रकार के खेल व्यायाम के अंतर्गत आ जाते हैं। दूसरी ओर, कुछ विद्वान खेलों, पहलवानी आदि थका देने वाली क्रियाओं को छोड़कर शेष क्रियाओं को व्यायाम . कहते हैं।

शारीरिक स्वास्थ्य और व्यायाम- व्यायाम करने से मनुष्य का शरीर सुगठित, स्वस्थ, सुंदर तथा सुडौल बनता है। हजारों की भीड़ में से कसरती बगदन वाला व्यक्ति सहज ही पहचान लिया । जाता है। कसरती व्यक्ति का शरीर-तंत्र स्वस्थ बना रहता है। उसकी पाचन-शक्ति तेज बनी रहती है। रक्त का प्रवाह तीव्र होता है। शरीर के मल उचित निकास पाते हैं। परिणामस्वरूप देह में शुद्धता आती है। भूख बढ़ती है। खाया-पिया शीघ्रता से पचता है। रक्त-मांस उचित मात्रा में बनते हैं। शरीर स्वस्थ और चुस्त बनता है। आलस्य दूर भागता है। दिन भर स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है। मांसपेशियों लचीली हो जाती हैं, जिससे उनकी क्रिया-शक्ति बढ़ जाती है। छाती व पुट्ठों के विकास से शरीर में अनोखा आकर्षण आ जाता है। व्यायाम से शरीर में वीर्य का कोष भर जाता है जिससे तन दमक उठता है। मस्तक पर तेज छा जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य और व्यायाम व्यायाम का प्रभाव मन पर भी पड़ता है। जैसा तन, वैसा मन। शरीर जर्जर और बीमार हो तो मन भी शिथिल हो जाता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और आत्मा का निवास होता है। व्यायाम के पश्चात मन में तेज आ जाता है। उत्साह और उमंग से व्यक्ति जिस भी काम को हाथ लगाता है, वह पूरा हो जाता है। मन में संघर्ष करने की इच्छा बलवती होती है। निराशा दूर भागती है। आशा का संचार होता है।

व्यायाम से अनुशासन का सीधा संबंध है। कसरती व्यक्ति के मन में संयम का स्वयमेव संचार होने लगता है। स्वयं के शरीर पर संतुलन, मन पर नियंत्रण आदि गुण व्यायाम करने से स्वयं आते चले जाते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को व्यायाम करना चाहिए।

स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज का निर्माण स्वस्थ समाज स्वस्थ व्यक्तियों से बनता है। यदि व्यक्ति स्वस्थ और प्रसन्न होंगे तो वह समाज भी स्वस्थ होगा, सुखी होगा, सशक्त होगा। वह हर बीमारी से लड़ सकेगा। हर उत्सव का आनंद ले सकेगा।

जीवन में कंप्यूटर की उपयोगिता

वर्तमान यग-कंप्यटर यग – वर्तमान युगे-कंप्यूटर युग है। यदि भारतवर्ष पर नजर दौड़ाकर देखें तो हम पाएंगे कि औज जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों में कंप्यूटर का प्रवेश हो गया है। बैंक, रेलवे स्टेशन, हवाई-अड़े, डाकखाने, बड़े-बड़े उद्योग, कारखाने, व्यवसाय, हिसाब-किताब, रुपये गिनने की मशीनें तक कंप्यूटरीकृत हो गई हैं। अब भी यह कंप्यूटर का प्रारंभिक प्रयोग है। आने वाला समय इसके विस्तृत फैलाव का संकेत दे रहा है।

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कंप्यटर की उपयोगिता- आज मनुष्य-जीवन जटिल हो गया है। सांसारिक गतिविधियों. परिवहन और संचार-उपकरणों आदि का अत्यधिक विस्तार हो गया है। आज व्यक्ति के संपर्क बढ़ रहे हैं, व्यापार बढ़ रहे हैं; गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, आकांक्षाएँ बढ़ रही हैं, साधन बढ़ रहे हैं। परिणामस्वरूप सब जगह भागदौड़ और आपाधापी चल रही है।

स्वचालित गणना-प्रणाली – इस पागल गति’ को सुव्यवस्था देने की समस्या है। कंप्यूटर एक ऐसी स्वचालित प्रणाली है, जो कैसी भी अव्यवस्था को व्यवस्था में बदल सकती है। हड़बड़ी में होने वाली मानवीय भूलों के लिए कंप्यूटर रामबाण-औषधि है। क्रिकेट के मैदान में अंपायर की निर्णायक-भूमिका हो, या लाखों-करोड़ों-अरबों की लंबी-लंबी गणनाएँ, कंप्यूटर पलक झपकते ही आपकी समस्या हल कर सकता है। पहले इन कामों को करने वाले कर्मचारी हड़बड़ाकर काम करते थे। परिणामस्वरूप काम कम, तनाव अधिक होता था। अब कंप्यूटर की सहायता से काफी सुविधा हो गई है। .
कार्यालयाने

कार्यालय तुथा इंटरनेट में सहायक
कंप्यूटर ने फाइलों की आवश्यकता कम कर दी है। कार्यालय की सारी गतिविधियाँ फेलोपो में बंद हो जाती हैं। इसलिए फाइलों के स्टोरों की जरूरत अब नहीं रही। अब समाचार-पत्र भी इंटरनेट के माध्यम से पढ़ने की व्यवस्था हो गई है। विश्व के किसी कोने में छपी पुस्तक, फिल्म, घटना की जानकारी इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। एक समय था जब कहते थे कि विज्ञान ने संसार को कुटुंब बना दिया है। कंप्यूटर ने तो मानो उस कुटुंब को आपके कमरे में उपलब्ध करा दिया है

नवीनतम उपकरणों में उपयोगिता- आज टेलीफोन, रेल, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि उपकरणों के बिना नागरिक जीवन जीना कठिन हो गया है। इन सबके निर्माण या संचालन में कंप्यूटर का योगदान महत्त्वपूर्ण है। रक्षा-उपकरणों, हजारों मील की दूरी पर सटीक निशाना बाँधने, .. सूक्ष्म-से-सूक्ष्म वस्तुओं को खोजने में कंप्यूटर का अपना महत्त्व है। आज कंप्यूटर ने मानव-जीवन को सुविधा, सरलता, सुव्यवस्था और सटीकता प्रदान की है। अतः इसका महत्त्व बहुत अधिक है।

विज्ञान और मानव

विज्ञान और मानव का अटूट संबंध- विज्ञान और मानव का अटूट संबंध है। मानव ने सारा विकास ज्ञान और विज्ञान के सहारे किया है। विज्ञान का अर्थ है-प्रामाणिक ज्ञान। तकनीकी ज्ञान भी विज्ञान के अंतर्गत आता है।।

विज्ञान द्वारा सुख-सुविधा में वृद्धि- विज्ञान ने मानव को हर दृष्टि से सुखी और समृद्ध बनाया है। जीवन का कोई भी क्षेत्र ले लें। वहीं आज विज्ञान के चमत्कारों को बोलबाला है। विज्ञान ने अग्नि को माचिस और लाइटर में, पवन को पंखे में, गर्मी को हीटर में, ठंडक को कूलर में . कैद कर लिया है। चरखे की जगह स्वचालित कलें, चूल्हे की जगह गैस के आधुनिक उपकरण, बैलगाड़ी की जगह मोटर-कारें, इनके अतिरिक्त फ्रिज, वाशिंग मशीन, कैमरा, जहाज, क्रेन, रेल, बसें, खेलघर, सिनेमा, चित्रपट, विडियो अनगिनत साधनों की सहायता से आज का जीवन सरल हो गया है।

कंप्यूटर, ऑफसेट प्रिटिंग, रोबोट, मिजाइल, पनडुब्बी, सैन्य उपकरणों आदि ने तो मनुष्य को आश्चर्य में डाल दिया है। इनकी सहायता से मनुष्य का परिश्रम बचा है, समय बढ़ा है और जीवन सुंदरता हुआ है।

चिकित्सा-क्षेत्र में वरदान- विज्ञान की सहायता से आज मौत के मुंह में गए प्राणी को भी बचा लिया जाता है। कृत्रिम हृदय लगाना, प्लास्टिक सर्जेरी, अंग-प्रत्यारोपण, टैस्ट ट्यूब बेबी आदि विज्ञान के ही चमत्कार हैं। विभिन्न असाध्य रोगों के उपचार ढूँढकर विज्ञान ने मनुष्य के जीवन
को विश्वसनीय बना दिया है।

दासता से मुक्ति – प्राचीन युग में अमीरों को अपनी सेवा-टहल के लिए श्रमिकों की स्थायी .. आवश्यकता थी। इसीलिए दास-प्रथा का प्रारंभ हुआ। दुर्भाग्य से कुछ लोगों को आजीवन दास बनकर नारकीय जीवन बिताना पड़ता था। आज सौभाग्य से विज्ञान ने हर श्रम को स्वचालित मशीनों के जरिए कराकर दास-प्रथा को मुक्ति दे दी है।

वसुधैवकुटुंबकम की भावना- विज्ञान की सहायता से ही यह वसुधा कुटुंब की भांति बन पाई है। आज तार, बेतार, टेलीफोन, उपग्रह-संचार आदि के इतने तीव्र माध्यम खोजे जा चुके हैं कि मिनटों में विश्वभर के समाचार एक जगह से दूसरी जगह पर पहुंच जाते हैं। परिवहन की सुविधा के सहारे सारा विश्व दो दिन में घूमा जा सकता है। आज विश्व के किसी कोने में आपत्ति आए, तो अन्य देश पलक झपकते ही उसकी सहायता के लिए आ पहुंचते हैं।
इस प्रकार विज्ञान की उपलब्धियों से मानव-जीवन सरल ही नहीं, बल्कि विस्तृत, सुखी और विश्वसनीय भी बना है।

मोबाइल फोन : वरदान या अभिशाप

मोबाइल फोन-आज की आवश्यकता- विज्ञान के कारण मानव को अनेक सुविधाएं प्राप्त . हुई हैं। उनमें मोबाइल फोन का सबसे ऊंचा और विशिष्ट स्थान है। शेष अधिकांश साधन अपनी-अपनी जगह स्थिर रहते हैं। मनुष्य को उनका लाभ उठाने के लिए उनके पास जाना पड़ता : है। परंतु मोबाइल ऐसा सेवक है जो आपकी जेब में रहता है। यह न केवल आपके समूचे घर-संसार को आपसे जोड़ता है, बल्कि आपके लिए समय, कलैंडर, संगणक, घड़ी, टार्च, अलार्म, सचेतक, स्मारक, कैमरा और न जाने कितने-कितने काम एक-साथ निपटाता है। सच तो यह है कि आजकल यह हमारे लिए एक जरूरत बन गया है।

सभी वर्गों की जरूरत-मोबाइल फोन समाज के सभी वर्गों के लिए जरूरत बन चुका है। जब आप खेतिहर किसान को ट्रैक्टर चलाते समय मोबाइल पर बातें करते देखते हैं, बिजली-मिस्त्री को अपने नए ग्राहक से वादा करते देखते हैं, तो यही अनुभव होता है कि आज मोबाइल सबके लिए आवश्यक हो चुका है। इसकी सहायता से व्यापारियों का व्यापार देश-विदेश में फैल गया है। परिवार के सभी सदस्य चौबीसों घंटे एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। बूड़े दादा-दादी, जो अपने पोतों से बात करने को तरस जाते थे, अब मोबाइल से बातें करके दिल हल्का कर लेते हैं। सचमुच वरदान है यह।

फैशन भी और जरूरत भी-कुछ लोगों के लिए मोबाइल एक फैशन है, जरूरत नहीं। वे उसे अपने सामाजिक स्तर का प्रतीक मानते हैं। खासकर बच्चे, युवक और महिलाएं इसे फैशन – के तौर पर अपनाते हैं। उन्हें समाज को यह दिखाना होता है कि उनके पास जैसे विदेशी घड़ी, सूट, चूड़ियाँ, चश्मा या जूते हैं, वैसे ही नए डिजाइन का एक मोबाइल भी है। उन्हें न तो जरूरत की कोई बात करनी होती है, न कहीं संदेश देना होता है, उन्हें अपने समाज में अपने धन-वैभव का दबदबा बढ़ाना होता है।

मोबाइल-परेशानी का कारण मोबाइल की परेशानियां भी अनगिनत हैं। इसके कारण आप पर अनेक अनचाही मुसीबतें आ पड़ती हैं। कई बार आप गहरी नींद में सोए हैं और कोई गलत नंबर आकर आधी रात में आपकी धड़कनें बढ़ा देता है। कितने ही अनचाहे गलत नंबर, कंपनियों के विज्ञापन, एम.एम.एस. आपके जीवन में खलल डालते हैं। इन अनचाहे संदेशों ने हमारे व्यस्त जोवन का जंजाल और अधिक बढ़ा दिया है।

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विद्यालय-परिसर में इसका उपयोग-काम के समय मोबाइल का उपयोग बहुत परेशानी पैदा करता है। डॉक्टर ऑप्रेशन कर रहा है और मोबाइल आ गया। नेताजी मंच पर भाषण दे रहे हैं और मोबाइल बजने लगता है। अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे हैं और उनका या किसी छात्र का मोबाइल बजने लगता है। ये सब अरुचि पैदा करते हैं। इनसे काम में बाधा पड़ती है।

विद्यालय परिसर में मोबाइल के उपयोग पर रोक लगनी चाहिए। इससे अध्यापक और छात्र दोनों ध्यानपूर्वक पढ़ाई कर सकेंगे। यदि छात्रों को परिसर में मोबाइल लाने की छूट दे दी जाए, तो वे एक-दूसरे को एम.एम.एस. करते रहते हैं, फोटो खींचते रहते हैं या खेल खेलते रहते हैं। .. उनका ध्यान पढ़ाई से उचटता है। निष्कर्ष यह है कि मोबाइल हमारे लिए एक आवश्यक साधन है। इसका मर्यादित उपयोग होना चाहिए।

टी.वी. : वरदान या अभिशाप

दूरदर्शन के लाभ-भारत जैसे विशाल देश में दरदर्शन अत्यंत महत्त्वपर्ण साधन है। आज हमारे देश के सामने अनेकानेक समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं। दूरदर्शन के माध्यम से उन समस्याओं की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट कर उनके समाधान की दिशा में प्रयत्न किया जा सकता है। ज्ञान-विज्ञान, समाज-शिक्षा तथा खेती-बाड़ी संबंधी विषयों के संबंध में जानकारी द्वारा लोगों का ज्ञानवर्द्धन किया जा सकता है। देश में मद्यपान के कुप्रभावों, परिवार नियोजन की आवश्यकता, भारतीय जीवन में विविधता होते हुए भी एकता इत्यादि विषयों पर विभिन्न कार्यक्रम दिखाकर लोगों को अधिक जागरूक बनाया जा सकता है। इस दिशा में हमारा दूरदर्शन अब रूचि लेने. लगा है, यह प्रसन्नता का विषय है।

उपयोगी कार्यक्रम-आजकल दूरदर्शन के अनेक चैनलों पर बहुत ही समाजोपयोगी कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं। डिस्कवरी, ज्याग्राफिक जैसे चैनल पूरी तरह ज्ञानवर्द्धक हैं। कुछ समाचार-चैनल दिन-रात विविध प्रकार के समाचार विचार-विमर्श, वाद-विवाद या साक्षात्कार प्रसारित करते हैं। इनसे हमारा ज्ञानवर्द्धन होता है। इसी तरह कुछ मनोरंजन चैनल विविध समस्याओं पर आधारित हैं। आजकल ‘बालिका वधू’ और ‘उतरन’ जैसे सीरियल नारी के शोषण और अशिक्षा के दंश को दिखाकर समाज को जागरूक बना रहे हैं। इसी प्रकार कुछ चैनल देश की नन्हीं प्रतिभाओं को ऊपर उठाने में लगे हुए हैं।

हानिकारक कार्यक्रम जब से दूरदर्शन के निजी चैनलों को हरी झंडी मिली है, तब से कुछ खतरे भी सामने आने लगे हैं। खुले मनोरंजन के नाम पर नंगेपन को बढ़ावा मिल रहा है। नृत्य के नाम पर कैबरे डांस का प्रचलन बढ़ गया है। इधर कुछ धार्मिक चैनल धर्म के नाम पर अंधविश्वासों को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं। इन चैनलों पर दिन-रात भूत-प्रेत, नाग-पूजा, पुनर्जन्म, शनि-देवता के कारनामे दिखाए जाते हैं। इनके कारण समाज का लाभ होने की बजाय हानि होती है। कुछ भोले-भाले नए दर्शन इनकी झूठी-सच्ची बातों में आकर अपनी हानि कर लेते हैं।

निष्कर्ष_ प्रश्न है कि क्या अंधविश्वास वाले कार्यक्रमों पर रोक लगाई जा सकती है? इसका उत्तर आसान नहीं है। भारत धार्मिक देश है। यहाँ धर्म और विश्वास को अपनाने की आजादी है। जो लोग ज्योतिष, धर्म, हस्तरेखा, शनि, जादू, भूत-प्रेत पर विश्वास करते हैं, उन्हें अपने मत के प्रचार से कैसे रोका जाए। कुछ लोग योग, भक्ति और प्रवचनों को ढोंग मानते हैं। दूसरी ओर करोड़ों लोग इन पर जान छिड़कते हैं। अतः यह प्रश्न आसान नहीं है। इसका निर्णय देश की जनता पर छोड़ देना चाहिए।

कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव

कंप्यूटर और टेलीविजन का महत्त्व-कंप्यूटर और टेलीविजन आज की जीवनधारा के अनिवार्य अंग बन चुके हैं। इनके बिना सामान्य जीवन की गति नहीं हो सकती। आज अधिकतर काम कंप्यूटर या कंप्यूटर द्वारा चालित मशीनों से होने लगे हैं। रेल, जहाज, मैट्रो आदि की टिकटें, बड़े-बड़े शो-रूमों के बिल, बिजली बिल, बीमा-बैंक, स्कूल-कॉलेज सभी में कंप्यूटरों का उपयोग होने लगा है। पल भर के लिए भी कंप्यूटर रूक जाएँ तो सारी गतिविधियां ठहर जाती हैं। इसी प्रकार टेलीविजन हमारे लिए सूचना और मनोरंजन का अनिवार्य साधन बन गया है। यह हमारे मित्र की भूमिका निभाता है।

दोनों के लाभ- कंप्यूटर और टेलीविजन के लाभ अनगिनत हैं। इनकी सहायता से हमारा जीवन अत्यंत सुगम, सरल और सुविधाजनक बन गया है। अब न तो बिल भरने की लंबी-लंबी लाइनों में लगने की आवश्यकता है, न कोई फार्म खरीदने के लिए देश-विदेश जाने की। आप घर बैठे-बैठे बिल भर सकते हैं, फार्म भर सकते हैं, परीक्षा-फल देख सकते हैं, टिकटें खरीद सकते हैं। यानि सभी झंझटों से मुक्त हो सकते हैं। यदि इंटरनेट का प्रयोग करें तो विश्व-भर की सारी जानकारियाँ अपने घर में प्राप्त कर सकते हैं।

टेलीविजन के द्वारा आप विश्व-भर के सभी पर्यटन स्थलों का आनंद ले सकते हैं। आप संसार की सभी जातियों, परंपराओं, धर्मों, उत्सवों के बारे में जान सकते हैं। आपको घर बैठ-बैठे पल-पल की जानकारी मिल जाती है। न केवल आप क्रिकेट या हॉकी के मैच का आनंद उठा सकते हैं बल्कि आगामी मौसमों की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। मनोरंजन के क्षेत्र में तो इसका कोई सानी नहीं।

हानियां-हर लाभ के पिछले पन्ने पर हानियों का लंबा सिलसिला लिखा होता है। इन दोनों उपकरणों के आने से मनुष्य की गतिविधियाँ ठहर-सी गई हैं। मनुष्य प्रकृति के खुले आँगन में विचरण करने की बजाय अपने टी.वी., कंप्यूटर-रूम में कैद रहने लगा है। उसके संबंध-सरोकार सीमित हो गए हैं। इसका सीधा प्रभाव उसके स्वास्थ्य तथा सामाजिक जीवन पर पड़ा है। आज का मानव अधिक बीमार रहने लगा है। आँखों पर चश्मे, मोटे पेट, शुगर और हार्ट अटैक की बीमारियाँ अधिक फैलने लगी हैं। सामाजिक संबंध कम होने से वह सुख-दुख को बाँट नहीं पाता। . . इस कारण तनाव, अकेलापन और.अजनबीपन की समस्याएँ बढ़ने लगी हैं। व्यक्ति आत्मकेंद्रित होने लगा है। ऐसे लोगों के लिए ही जयशंकर प्रसाद ने कहा था-

अपने में सीमित कर कैसे व्यक्ति विकास करेगा?
यह एकांत स्वार्थ भीषण है, अपना नाश करेगा। ।

हानियों.से बचने के उपाय_हानियों से बचने के उपाय हानियों के भीतर ही छिपे हुए होते हैं। मनुष्य हमेशा यह ध्यान रखे कि ये उपकरण हमारे साधन हैं, साध्य नहीं। ये हमारे लिए हैं, हम इनके लिए नहीं। हमें इनकी सहायता से अपनी खुशी बढ़ानी है। अपने सामाजिक संबंध, उत्सव, उल्लास बढ़ाने हैं। इसके लिए कभी-कभी. इन पर रोक भी लगानी पड़े तो लगाएँ। संयम से ही हम इनके वरदानों को अपने जीवन में खिला सकते हैं।

महात्मा गाँधी

जन्म तथा परा नाम – 2 अक्तूबर, सन् 1869 को भारत की धरती ने एक ऐसा महामानव पैदा किया जिसने न केवल भारतीय राजनीति का नक्शा बदला, बल्कि संपूर्ण विश्व को सत्य, अहिंसा, शांति और प्रेम की अजेय शक्ति के दर्शन कराए। उनका जन्म पोरबंदर काठियावाड़ में हुआ। माता-पिता ने उसका नाम मोहनदास रखा.

शिक्षा- मोहनदास स्कूल-जीवन में साधारण कोटि के छात्र थे। परंतु व्यावहारिक जीवन में .. उनकी विशेषता प्रकट होने लगी थी। उन्होंने अध्यापक द्वारा नकल कराए जाने पर नकल करने से इनकार कर दिया। वे 1887 में कानून पढ़ने के लिए विलायत चले गए।

दक्षिणी अफ्रीका में वकालत के सिलसिले में उन्हें एक बार दक्षिणी अफ्रिका जाना पड़ा। वहाँ भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। स्वयं मोहनदास के साथ भी ऐसा।

दुर्व्यवहार हुआ। उसे देखकर उनकी आत्मा चीत्कार कर उठी। उन्होंने 1894 में ‘नटाल इंडियन कांग्रेस’ की स्थापना करके गोरी सरकार के विरुद्ध बिगुल बजा दिया। सत्याग्रह का पहला प्रयोग ‘ उन्होंने यहीं किया था।

भारतीय राजनीति में – भारत आकर गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने सत्य और अहिंसा को आधार बनाकर राजनीतिक स्वतंत्रता का आंदोलन छेड़ा। 1920-22 में उनहोंने अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन छेड़ दिया। सन् 1929 में गाँधी जी ने पुनः आंदोलन प्रारंभ किया। यह आंदोलन ‘नमक-सत्याग्रह’ के नाम से प्रसिद्ध है। गाँधी जी ने स्वयं साबरमती आश्रम से डांडी तक पदयात्रा की तथा वहाँ नमक बनाकर नमक कानून का उल्लंघन किया। सन् 1931 में आप ‘राउंड टेबल कांफ्रेस’ में सम्मिलित होने के लिए लंदन गए। सन् 1942 में आपने : – ‘भारत आंदोलन छेड़ दिया। देश-भर में क्रांति की ज्वाला सुलगने लगी। देश का बच्चा-बच्चा अंग्रेजी सरका को उखाड़ फेंकने पर उतारू हो गया। 15 अगस्त, 1947 को देश स्वतंत्र हो गया।

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बलिदान – भारत-पाक विभाजन हुआ। देश के विभिन्न स्थानों पर सांप्रदायिक दंगे होने लगे। । उन्हें रोकने के लिए गाँधी जी ने आमरण अनशन रखा। इससे सांप्रदायिकता की आग तो बुझ गई परंतु वे स्वयं उसके शिकार हो गए। 30 जनवरी, 1948 को संसार का यह एक महान मानव एक हत्यारे की गोली का शिकार बन परलोक सिधार गया।

देन गाँधी जी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। वे सभी धर्मों का समान आदर करते थे। उनकी प्रसिद्ध उक्ति है—’ईश्वर अल्ला तेरे नाम। सबको सन्मतिं दे भगवाना’ वे कुशल राजनीतिज्ञ
और महान संत थे।

अंतरिक्ष-परीकल्पना चावला

पंरिचय- भारत की जिन नारियों ने अपने बलबूते पर देश का मस्तक ऊँचा किया, उनमें एक और नाम जुड़ गया है कल्पना चावला। प्यार से उसे पूरा देश ‘अंतरिक्ष-परी’ कहता है। हरियाणा के करनाल नगर में जन्मी कल्पना के पिता का नाम बनारसी लाल चावला है।

शिक्षा कल्पना ने मॉडल टाउन करनाल के टैगोर विद्यालय से आरंभिक शिक्षा प्राप्त की। वह आरंभ से ही कुशाग्र-बुद्धि, दृढ़ निश्चयी, प्रतिभाशालिनी तथा मौन थी। उसने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़ से एरो स्पेस में बी.ई. की डिग्री प्राप्त की।

आकांक्षा और रुचि-कल्पना की बचपन से एक ही आकांक्षा थी—चाँद-सितारों को छूना। इसलिए उसने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एरोनाटिक्स में प्रवेश लेने की इच्छा व्यक्त की तो वहाँ के एक प्रोफेसर ने भी कहा कि यह क्षेत्र लड़कियों के लिए नहीं है। परंतु अपनी दृढ़ इच्छा-शक्ति का परिचय देते हुए उसने यही क्षेत्र चुना। बाद में उसने अमेरिका के टेक्सास विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1988 में उसकी नियुक्ति अमेरिका के सर्वोच्च अंतरिक्ष-अनुसंधान केंद्र नासा में हुई। सन् 1994 में उसे अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया। 19 नवंबर, 1997 को वह सौभाग्यशाली दिन आया, जब वह विश्व की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री के रूप में आकाश में उड़ी। कल्पना के आकाश में तो सभी उड़ते हैं किंतु कल्पना वास्तविक आकाश में उड़ी।

स्वभाव-कल्पना अत्यंत सौम्य स्वभाव की महिला थी। अखबार की सुर्खियों में आने के बाद भी उसमें अहंकार नहीं आया। उसकी सखियाँ, उसके अध्यापक, उसके पड़ोसी, माता-पिता, मित्र, प्रशंसक और अनुज सभी उसे अपना बहुत निकट मानते थे। कल्पना ने एक विदेशी युवक से विवाह किया। उसके पति भी उसकी सादगी और कर्मठता पर मुग्ध थे। उसके मधुर स्वभाव ने उसके पति को भी भारत का प्रेमी बना दिया।

विशेषज्ञ कल्पना कोलंबिया अंतरिक्ष अभियान के 28वें सफर में मिशन-विशेषज्ञ थी। उसे दूसरी बार अंतरिक्ष अभियान के लिए चुना गया। विशेषज्ञ दल ने कुशलतापूर्वक सभी कार्य संपन्न किए।

अंतिम यात्रा–1 फरवरी, 2003 को भारतीय समय के अनुसार 7.46 पर अंतरिक्ष यान को अमेरिका की धरती पर उतरना था। परंतु दुर्भाग्य सिर पर मँडरा रहा था। यान धरती के वायुमंडल में प्रवेश करना चाह रहा था कि अंतरिक्ष यान में विस्फोट हो गया। उसमें सवार सभी यात्री काल के गाल में समा गए। कल्पना भी उन्हीं के साथ इतिहास बन गई। जो लोग ढोल-नगाड़ों के साथ अपनी अंतरिक्ष-परी के अनुभव सुनने के लिए व्यग्र थे, वे ठगे-से रह गए। बस हमारे पास आँसू के सिवाय कुछ न था। परंतु ये आँसू गौरव के आँसू थे, श्रद्धा के आँसू थे। कल्पना चावला मर कर भी अमर हो गई। उसका नाम सबके लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

मेरी प्रिय पुस्तक

पुस्तक का नाम और लेखक मुझे श्रेष्ठ पुस्तकों से अत्यधिक प्रेम है। यों मुझे अनेक पुस्तकें पसंद हैं, लेकिन जिसने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया, वह है तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’।

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विषय – रामचरितमानस’ में दशरथ-पुत्र राम की जीवन-कथा का वर्णन है। श्रीराम के जीवन की प्रत्येक लीला मन को भाने वाली है। उन्होंने किशोर अवस्था में ही राक्षसों का वध और यज्ञ-रक्षा का कार्य जिस कुशलता से किया है, वह मेरे लिए अत्यंत प्रेरणादायक है। उनकी वीरता और कोमलता के सामने मेरा हृदय श्रद्धा से झुक जाता है।

प्रिय होने का आधार–रामचरितमानस में मार्मिक स्थलों का वर्णन तल्लीनता से हुआ है। राम-वनवास, दशरथ-मरण, सीता-हरण, लक्ष्मण-मूर्छा, भरत-मिलन आदि के प्रसंग दिल को छूने वाले हैं। इन अवसरों पर मेरे नयनों में आँसुओं की धारा उमड़ आती है। विशेष रूप से राम और भरत का मिलन हृदय को छूने वाला है। .

इस पुस्तक में तुलसीदास ने मानव के आदर्श व्यवहार को अपने पात्रों के जीवन में साकार होते दिखाया है। राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे आदर्श राजा, आदर्श पुत्र, आदर्श पति और आदर्श भाई हैं। भरत और लक्ष्मण आदर्श भाई हैं। उनमें एक-दूसरे के लिए सर्वस्व त्याग की भावना प्रबल है। सीता आदर्श पत्नी है। हनुमान आदर्श सेवक है। पारिवारिक जीवन की मधुरता का जैसा सरस वर्णन इस पुस्तक में है, वैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।

रामचरितमानस की भाषा अवधी है। इसे दोहा-चौपाई शैली में लिखा गया है। इसका एक-एक छंद रस और संगीत से परिपूर्ण है। इसकी रचना को लगभग 500 वर्ष हो चुके हैं। फिर भी आज इसके अंश मधुर कंठ में गाए जाते हैं।

पुस्तक का संदेश- यह पुस्तक केवल धार्मिक महत्त्व की नहीं है। इसमें मानव को प्रेरणा देने की असीम शक्ति है। इसमें राजा, प्रजा, स्वामी, दास, मित्र, पति, नारी, स्त्री, पुरुष सभी को अपना जीवन उज्ज्वल बनाने की शिक्षा दी गई है। राजा के बारे में उनका वचन है–
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सो नृप अवस नरक अधिकारी। – तुलसीदास ने प्रायः जीवन के सभी पक्षों पर सूक्तियाँ लिखी हैं। उनके इन अनमोल वचनों के कारण यह पुस्तक अमरता को प्राप्त हो गई है।

पुस्तक के संबंध में कुछ सम्मतियाँ- समस्त विदेशी विद्वानों ने स्वीकार किया है “रामचरितमानस उत्तरी भारत का सबसे लोकप्रिय ग्रंथ है और इसने जीवन के समस्त क्षेत्रों में उच्चाशयता लाने में सफलता पाई है।” माता प्रसाद गुप्त कहते हैं- “रामचरितमानस ने समस्त उत्तरी भारत पर सदियों से अपना अद्भुत प्रभाव डाल रखा है और यहाँ के आध्यात्मिक जीवन का निर्माण किया है।”

प्रदूषण : कारण और निवारण

प्रदूषण का अर्थ-प.दूषण का अर्थ है–प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। न शुद्ध वायु मिलना, न शुद्ध जल मिलना, न शुद्ध खाद्य मिलना, न शांत वातावरण मिलना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है। प्रमुख प्रदूषण हैं-वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण और ध्वनि-प्रदूषण।

वायु-प्रदूषण— महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला हुआ है। वहाँ चौबीसों घंटे कल-कारखानों . तथा मोटर-वाहनों का काला धुआँ इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में साँस लेना दूभर हो गया है। यह समस्या वहाँ अधिक होती है जहाँ सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है।

जल-प्रदूषण– कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नदी-नालों में घुल-मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियाँ पैदा होती हैं।

ध्वनि-प्रदूषण- मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परंतु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउडस्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।

प्रदूषणों के दुष्परिणाम– उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा . हो गया है। खुली हवा में लंबी साँस लेने तक को तरसं गया है आदमी। गंदे जल के कारण के बीमारियाँ फसलों में चली जाती हैं जो मनुष्य के शरीर में पहुँचकर घातक बीमारियाँ पैदा करती हैं। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सूखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।

प्रदूषण के कारण- प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिकाधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। वृक्षों को अंधाधुंध काटने से मौसम का चक्र. बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।

प्रदूषण का निवारण – विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से बचने के लिए चाहिए कि अधिकाधिक वृक्ष लगाए जाएँ, हरियाली की मात्रा अधिक हो। सड़कों के किनारे घने वृक्ष हों। आबादी वाले क्षेत्र खुले हों, हवादार हों, हरियाली से ओतप्रोत हों। कल-कारखानों को आबादी से दूर रखना चाहिए और उनसे निकले प्रदूषित मल को नष्ट करने के उपाय सोचने चाहिए।

बाढ़ की विभीषिका

बाढ़ के सम्बन्ध में पौराणिक आस्थाएँ थीं कि यह परमात्मा द्वारा भेजा हुआ अभिशाप है। जब धरती पर पापाचार बढ़ जाता है तो भगवान दैविक विपत्तियों को भेजते हैं. एक ओर तो विध्वंस के लिए और दूसरी ओर विलास और पापपूर्ण तन्द्रा में अलसाए हुए व्यक्तियों को सचेत करने के लिए।

वर्षा का पानी बड़े-बड़े पहाड़ों एवं समतल भूमियों पर गिरता है। नदी की सतह सबसे नीचे है, इसलिए वर्षा का सम्पूर्ण जल नदियों में तथा अन्य निम्न सतह वाली भूमि में चला जाता है। अतिवृष्टि होती है तो नदी-नाला एवं अन्य स्रोत वर्षा के सभी पानी को अपने तल में नहीं रख सकते। तब पानी उनके किनारों पर वह चलता है और मैदान, फसल और वास के स्थानों को डुबो देता है। यह बाढ़ कहलाता है। पहाड़ों पर बर्फ के पिघलने से बाढ़ आती है। बर्फ के पिघलने से नदी के पानी का आयतन बढ़ जाता है। बाँध के टूटने से भी बाढ़ आती है। अप्रत्याशित आकस्मिक ढंग से गरजता हुआ जल-प्रवाह कितना खतरनाक हो सकता है. इसकी कल्पना की जा सकती है।

बाढ़ आने से हमारे सामान बह जाते हैं। घर गिर पड़ते हैं। हमलोग गृह-विहीन हो जाते हैं। बहुत-से लोग और पशु नंदी की धारा में प्रवाहित हो जाते हैं। बाढ़ रेलवे लाइन को भी नष्ट कर देती है। व्यापक रोग फैल जाते हैं। अकाल पड़ जाता है। लोगों के साधन और औजार नष्ट हो जाते हैं। लोगों की जीविका नष्ट हो जाती है। बाढ़ रेलवे लाइन को भी नष्ट कर देती हैं। गाड़ियों का आना-जाना बन्द हो जाता है। कुछ दिनों तक पानी के जमे रह जाने से वहाँ सडाँध फैल जाती है और तरह-तरह की बीमारियाँ लोगों में घर दबाती हैं। खाने के लिए अन्न नहीं रहता, रहने के लिए मकान नहीं रहते, सारी आवश्यक सुविधाएँ बाढ़ के जल में बह जाती हैं। ऐसा भी देखा गया है कि लोग पेड़ों पर रहने लगते हैं और कभी-कभी वह पेड़ भी जल से कमजोर पड़कर सारे सामानों के साथ गिर पड़ता है। आँख के आगे चिल्लाते हुए बच्चे पानी के प्रवाह में बह जाते हैं और माँ-बाप विवश भाव से देखते रहते हैं। मानव-सभ्यता की हरी-भरी खेती को आक्रोश की एक ही हुँकार से त्रस्त कर देने वाला यह प्रकोप वास्तव में अनिष्टकारी है।

बिहार की कोसी, उड़ीसा की महानदी और बंगाल की दामोदर नदी में हमेश्च बाढ़ आती है। हजारों एकड़ जमीन की फसलों को नष्ट कर देती है। कोसी के अंचल में प्रायः प्रत्येक वर्ष बाढ़ आती है। इधर हाल में उत्तरी बिहार में जो भयानक बाढ़ आई थी वह भूली नहीं जा सकती। पानी का प्रबल वेग अप्रत्याशित रूप से रातों-रात घर में प्रविष्ट कर गया। लोग नीट की खुमारी में डूबे हुए थे। सहसा चारों ओर गाँव में हल्ला मच उठा और लोग बेतहाशा भाने लगे। जब तक पूरी तरह से चेते, तब तक बहुत कुछ समाप्त हो गया था। तुरंत यातायात के साधन भी नहीं। जुट सके और लोग चुपचाप प्रकृति के उन्मुक्त ताण्डव का नंगा रूप देखते रहे-उसके क्रूर हाथों द्वारा लूटते रहे, पिटते रहे। कोई किसी का न मित्र रहा, न कोई किसी का साथ देना वाला।

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इस प्रकार हम देखते हैं कि बाढ़ भारतवर्ष के लिए एक गम्भीरतम समस्या है जिसका निराकरण देखने में असमभव जान पड़ता है। भारत की पंचवर्षीय योजनाओं में नदी घाटी योजनाओं की जो रूप-रेखा बनी है उसकी सर्वतोभावेन पूर्ति के बाद ही इस आकस्मिक विपत्ति
का सामना हो सकेगा।

पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण का अर्थ- ‘पर्यावरण’ का शाब्दिक अर्थ है—चारों ओर का वातावरण, जिसमें हम सब साँस लेते हैं। इसके अंतर्गत वायु, जल, धरती, ध्वनि आदि से युक्त पूरा प्राकृतिक वातावरण आ जाता है।

प्रदूषण के कारण – आज हमारी सबसे बड़ी समस्या यही है कि जिस पर्यावरण में हमारा जीवन पलता है, वही प्रदूषित होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है–अंधाधुंध वैज्ञानिक प्रगति। अधिक उत्पादन की होड़ में हमने अत्यधिक कल-कारखाने लगा लिए हैं। उनके द्वारा उत्पादित रासायनिक कचरा, गंदा जल, और मशीनों से उत्पन्न शोर हमारे पर्यावरण के लिए खतरा बन गए हैं। परमाणु-ऊर्जा के प्रयोग ने आकाश में व्याप्त ओजोन गैस की पस्त में छेद कर दिया है।

प्रदूषण बढ़ने का दूसरा बड़ा कारण है – जनसंख्या-विस्फोट। अत्यधिक जनसंख्या को अन्न-जल-स्थल देने के लिए वनों को काटना आवश्यक हो गया। इससे भी पर्यावरण का संतुलन बिगड़ा।

प्रदूषण के प्रकार-प्रदूषण के अनेक प्रकार हैं। उनमें कुछ मुख्य प्रदूषण इस प्रकार हैं

वायु-प्रदूषण–आज महानगरों की वायु पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। तेल से चलने वाले वाहनों और बड़े-बड़े उद्योगों के कारण वायु में विषैले तत्त्व घुल गए हैं। इनके कारण अनेक असाध्य रोग उत्पन्न होने लगे हैं।

जल-प्रदूषण…-फैक्टरियों के निकले दूषित कचरे के कारण न केवल नदी-नाले प्रदूषित हुए हैं, बल्कि भूमि-जल भी दूषित होने लगा है। जिन क्षेत्रों में फैक्टरियाँ अधिक हैं, वहां प्रायः घरती से लाल-काला जल बाहर निकलता है।

ध्वनि-प्रदूषण आज फैक्टरियों, मशीनों, ध्वनि-विस्तारकों, वाहनों और आनंद-उत्सवों में इतना अधिक शोर होने लगा है कि लोग बहरे होने लगे हैं। शोर तनाव को भी बढ़ाता है।

प्रदूषण का निवारण प्रदूषण की रोकथाम का उपाय लोगों के हाथों में है। इसे जनचेतना से रोका जा सकता है। यद्यपि सरकों भी जनहित में अनेक उपाय कर रही हैं। हरियाली को बढ़ावा देना, वृक्ष उगाना, प्रदूषित जल और मल का उचित संसाधन करना, शोर पर नियंत्रण करना ये उपाय सरकार और जनता दोनों को अपनाने चाहिए। हर व्यक्ति इन प्रदूषणों को रोकने की ठान ले, तभी इसका निवारण संभव है।

शहरी जीवन में बढ़ता प्रदूषण

शहरों का निरंतर विस्तार-आजकल धीरे-धीरे गांवों के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। जिसे भी अवसर मिलता है, शहरों में बस जाता है। इस कारण पिछले वर्षों में कई कस्बे नगर बन गए हैं और नगर महानगर। महानगर भी समुद्र की भाँति फैलते चले जा रहे हैं। इस बढ़ते घनत्व के कारण महानगरों में हर प्रकार का प्रदूषण बढ़ रहा है।

बढ़ती जनसंख्या–भारत की बढ़ती जनसंख्या भी प्रदूषण के लिए खाज का काम कर रही है। आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी। 50 वर्षों में यह तिगुनी हो गई। वही धरती, वही आकाश, वही नदियाँ, वही पहाड़ लेकिन जनसंख्या तिगुनी। साधन. वही, उपभोक्ता तीन गुने। इसका सीधा प्रभाव बढ़ते प्रदूषण पर पड़ा।

शहरों में बढ़ते विविध प्रकार के प्रदूषण-शहरों में अनेक प्रकार से प्रदूषण जा रहा है। सबसे प्रत्यक्ष है…-वायु-प्रदूषण। महानगरों के लोग स्वस्थ वायु में साँस नहीं ले पाते। सड़कों पर चलते हुए वाहनों का काला धुआँ पीना पड़ता है। अत्यधिक जनसंख्या के कारण जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। फैक्टरियों का धुआँ वातावरण को विषैला बना देता है। परिणामस्वरूप आदमी निर्मल वायु के लिए भी तरस जाता है। .

जल-प्रदूषण महानगरों की बड़ी समस्या बन चुकी है। दिल्ली में बहने वाली यमुना में इतने नाले मिलते हैं कि यमुना के जल का रंग काला हो गया है। फैक्टरियों के दूषित जल के कारण
भूमि का जल भी लाल-काला हो गया है।

ध्वनि-प्रदूषण की स्थिति यह है कि महानगरों के लोगों में बहरापन और तनाव आम बीमारियाँ हो गई हैं। शांति का स्थान शोर ने ले लिया है। इसके लिए वैज्ञानिक साधनों के साथ-साथ आम लोग भी बराबर के दोषी हैं।

प्रदषण की रोकथाम के उपाय प्रदूषण की रोकथाम का पहला उपाय है सचेत होना। दूसरा उपाय है—प्रदूषण के कारणों और उससे बचने के तरीकों को जानना। जो उपाय आम जनता के हाथों में हैं, उनका व्यापक प्रचार-प्रसार करना ताकि लोग सजग हो सकें। जो उपाय सरकार के हाथों में हैं, उन पर सख्त कानून बनाए जाने चाहिए तथा उनका कठोरता से पालन करना चाहिए। सरकार तथा जनता के सम्मिलित सहयोग से ही प्रदूषण-मुक्त वातावरण तैयार हो सकता है।

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भारत की बढ़ती जनसंख्या

चिंताजनक जनसंख्या-वद्धि-11 मई, 2000 को पटना के पी० एम० सी० एच० में अपर्णा नामक शिशु ने जन्म लिया। अनुमान के अनुसार यह भारत का एक अरबवाँ शिशु था। उसके जन्म के साथ भारत के माथे पर चिंता की रेखा और अधिक गहरी हो गई। यद्यपि जनसंख्या वृद्धि पूरे विश्व में हो रही है, किंतु भारत के लिए तो यह वृद्धि परमाणु-विस्फोट से भी अधिक बढ़कर है। 11 मई, 2006 आते-आते 9 करोड़ आबादी और बढ़ चुकी है।

भारत की आबादी विश्व की कुल आबादी का 16 प्रतिशत है। परंतु उसके पास विश्व की कुल भूमि का केवल 2 प्रतिशत ही है। इस कारण भारत की भूमि पर जनसंख्या का घनत्व बढ़ गया है। यहाँ साधन और सुविधाएँ तो सीमित हैं, लेकिन खाने वाले निरंतर बढ़ रहे हैं। रोज-रोज बढ़ने वाली यह भीड़ भारत के लिए चिंताजनक बनती जा रही है।

कारण भारत में जनसंख्या बढ़ने का प्रमुख कारण है-मृत्यु-दर में कमी। जन्म-दर पर नियंत्रण न रख पाना दूसरा बड़ा कारण है। यद्यपि भारत ने सबसे पहले परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाए, फिर भी जन्म-दर की गति को प्रभावी ढंग से रोका नहीं जा सका। यहाँ की जनता अंधविश्वासी है, गरीब और अनपढ़ है। इस कारण वह जनसंख्या घटाने का महत्त्व नहीं समझती।

हानियाँ जनसंख्या-दबाव के कारण बेरोजगारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इस कारण अपराध बढ़ रहे हैं। यद्यपि देश में प्रगति हो रही है। नए स्कूल, अस्पताल, कार्यालय खुल रहे हैं, परंतु जनसंख्या की बाढ़ में सब व्यवस्थाएँ धरी-की-धरी रह जाती हैं। परिणामस्वरूप आज भारत एक भीड़ में बदल गया है। आज सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं। कहीं लोग मेलों में दबकर मर रहे हैं तो कहीं भागदौड़ में।

उपाय जनसंख्या पर नियंत्रण पाना आज भारत की प्रमुखतम चुनौती बन चुकी है। इसके लिए आवश्यक है शिक्षा का प्रसार, सीमित परिवार के महत्त्व का ज्ञान तथा गर्भ-निरोधक उपायों का और अधिक प्रचलन। सरकार इस दिशा में अग्रसर है, किंतु समाज के सहयोग के बिना ये काम संभव नहीं हैं।

आतंकवाद

भारत में आतंकवाद भारत मूलतः शांतिप्रिय देश है। इसलिए यहाँ की धरती ने बद्ध, महावीर, गाँधी जैसे अहिंसक नेता पैदा किए हैं। आतंकवाद की प्रवृत्ति यहाँ की जमीन से मेल नहीं खाती। परंतु दुर्भाग्य से पिछले दो दशकों से भारतवर्ष आतंकवाद की लपेट में आता जा रहा है। सन् 1967 में बंगाल में नक्सलवाद का उदय हुआ।

सन् 1981 से 1991 तक भारत का पंजाब प्रांत आतंकवाद की काली छाया से घिरा रहा। तत्कालीन भ्रष्ट राजनीति और पाकिस्तान की साजिश के कारण फैला सिख-आतंकवाद हजारों निरपराधों की जान लेकर रहा।

काश्मीर में आतंकवाद पाकिस्तान जब पंजाब में हिंदू-सिख को लड़ाने में सफल न हो पाया तो उसने काश्मीर में अपनी गतिविधियाँ तेज कर दी। पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकवादियों की योजनाबद्ध घुसपैठ हुई। नौजवान युवकों को जबरदस्ती आतंक के रास्ते पर डालने के लिए घृणित हथकंडे अपनाए गए। जान-बूझकर काश्मीर में भारत-विरोधी वातावरण का निर्माण किया गया। वहाँ के अल्पसंख्यक हिंदुओं के साथ दिल दहलाने वाले भयंकर अत्याचार किए गए, ताकि वे काश्मीर छोड़कर अन्यत्र जा बसें और काश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा हो सके।

काश्मीर का आतंकवाद आज कैंसर का रूप धारण कर चुका है। पाकिस्तानी आतंकवादी कभी मुंबई में तो कभी कोलकाता में बम विस्फोट करते हैं, कभी गुजरात के अक्षरधाम में तो कभी काश्मीर की मसजिद में खून-खराबा करते हैं। 11 जुलाई, 2006 को एक साथ काश्मीर और मुंबई में हुए 13 धमाकों ने सिद्ध कर दिया कि भारत में आतंकवादी तत्त्व जड़ जमा चुके

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद – आज आतंकवाद राष्ट्र की सीमाओं को पार करके पूरे विश्व में
अपना जाल फैला चुका है। ओसामा बिन लादेन ने अफगानिस्तान की भूमि पर रहकर अमेरिका के ट्विन टावरों को पल भर में भूमिसात कर दिया।

आतंकवाद फैलने के कारण आज विश्व में जो आतंकवाद फैल रहा है, उसका प्रमुख कारण है-धार्मिक कट्टरता। ओसामा बिन लादेन, तालिबान, लश्करे-तोएबा, सीरिया, पाकिस्तान, फिलीस्तीन सबके पीछे सांप्रदायिक शक्तियाँ काम कर रही हैं। आज आतंकवादी आधुनिक तकनीक का भरपूर प्रयोग करते हैं। उनके पास विध्वंस की ढेरों सामग्री है।

भारत में आतंकवाद फैलने का एक अन्य कारण है – क्षेत्रवाद और राजनीतिक स्वार्थी वोट के भूखे राजनेता जानबूझकर आतंकवाद को प्रश्रय देते हैं।

समाधान- आतंकवाद की समस्या मनुष्यों की बनाई हुई है, इसलिए आसानी से सुलझाई जा सकती है। जिस दिन अमेरिका की तरह. पूरा विश्व दृढ़ संकल्प कर लेगा और आतंकवाद को जीने-मरने का प्रश्न बना लेगा, उस दिन यह धरती आतंक से रहित हो जाएगी।

दहेज : एक कुप्रथा

सामाजिक कप्रथाओं में दहेज सबसे अधिक निंदनीय- भारत में अनेक सामाजिक समस्याएँ हैं। उनमें से दहेज समस्या सबसे बड़ी है। इस प्रथा के कारण लड़कियों को माँ-बाप . पर बोझ समझा जाता है। इसलिए माता-पिता लड़की को जन्म ही नहीं देना चाहते। देते हैं तो उसे खर्चा मानते हैं। इसलिए यह समस्या सबसे अधिक घिनौनी और निंदनीय है।

दहेज-प्रथा कप्रथा कैसे बनी- दहेज देना माँ-बाप की स्वाभाविक इच्छा होती है। अपनी बेटी को विदा करते समय सुख-सुविधा का सामान देना एक अच्छी परंपरा थी। परंतु धीरे-धीरे लड़के वाले दहेज को अपना अधिकार मानने लगे। वे लड़की के माँ-बाप से जबरदस्ती धन-संपत्ति और उपहार चाहने लगे। तब से यह प्रथा कुप्रथा बन गई। दुर्भाग्य से आजकल दहेज की जबरदस्ती माँग की जाती है। दूल्हों के भाव लगते हैं। बुराई की हद यहाँ तक बढ़ गई है कि जो जितना शिक्षित है, समझदार है, उसका भाव उतना ही तेज है। आज डॉक्टर, इंजीनियर का भाव 15-20 लाख, आई.ए.एम. का 70-80 लाख, प्रोफेसर का आठ-दस लाख, ऐसे अनपढ़ व्यापारी, जो खुद कौड़ी के तीन बिकते हैं, उनका भी भाव कई बार कई लाखों तक जा पहुँचता है। ऐसे में कन्या का पिता कहाँ मरे ? वह दहेज की मंडी में से योग्यतम वर खरीदने के लिए धन कहाँ से लाए ? बस यहीं से बुराई शुरू हो जाती है।

दहेज के दुष्परिणाम- दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम विभिन्न हैं। या तो कन्या के पिता को .. लाखों का दहेज देने के लिए घूस, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार, काला-बाजार आदि का सहारा लेना पड़ता है, या उसकी कन्याएँ अयोग्य वरों के मत्थे मढ़ दी जाती हैं। हम रोज समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं कि अमुक शहर में कोई युवती रेल के नीचे कट मरी, किसी बहू को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला, किसी ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली। ये सब घिनौने परिणाम दहेज रूपी दैत्य के ही हैं।

दहेज लेना और देना अपराध- अब सरकार ने दहेज निषेध अधिनियम बनाकर दहेज लेने और देने को अपराध घोषित कर दिया है। दुल्हन की शिकायत पर ही वर पक्ष के लोगों को जेल में बंद कर दिया जाता है। परंतु अभी तक समस्या का समाधान नहीं हो सका है।

दहेज-प्रथा को रोकने के उपाय- दहेज-प्रथा को रोकने का सबसे सशक्त उपाय है जन-जागृति। जब तक युवक दहेज का बहिष्कार नहीं करेंगे और युवतियाँ दहेज-लोभी युवकों का तिरस्कार नहीं करेंगी, तब तक यह कोढ़ चलता रहेगा।

दहेज अपनी शक्ति के अनुसार दिया जाना चाहिए, धाक जमाने के लिए नहीं। दहेज दिया जाना ठीक है. माँगा जाना ठीक नहीं। दहेज को बुराई वहाँ कहा जाता है, जहाँ माँग होती है। दहेज प्रेम का उपहार है, जबरदस्ती खींच ली जाने वाली संपत्ति नहीं।

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बेरोजगारी : समस्या और समाधान

भूमिका-आज भारत के सामने अनेक समस्याएँ चट्टान बनकर प्रगति का रास्ता रोके खड़ी हैं। उनमें से एक प्रमुख समस्या है–बेरोजगारी। महात्मा गाँधी ने इसे ‘समस्याओं की समस्या’
कहा था।

अर्थ-बेरोजगारी का अर्थ है-योग्यता के अनुसार काम का न होना। भारत में मुख्यतया तीन प्रकार के बेरोजगार हैं। एक वे, जिनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे पूरी तरह खाली हैं। दूसरे, जिनके पास कुछ समय काम होता है, परंतु मौसम या काम का समय समाप्त होते ही वे बेकार हो जाते हैं। ये आंशिक बेरोजगार कहलाते हैं। तीसरे वे, जिन्हें योग्यता के अनुसार
काम नहीं मिला।

कारण – बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है-जनसंख्या-विस्फोट। इस देश में रोजगार देने की जितनी योजनाएँ बनती हैं, वे सब अत्यधिक जनसंख्या बढ़ने के कारण बेकार हो जाती हैं। एक अनार सौ बीमार वाली कहावत यहाँ पूरी तरह चरितार्थ होती है। बेरोजगारी का दूसरा कारण है—युवकों में बाबूगिरी की होड़। नवयुवक हाथ का काम करने में अपना अपमान समझते हैं। विशेषकर पढ़े-लिखे युवक दफ्तरी जिंदगी पसंद करते हैं। इस कारण वे रोजगार-कार्यालय की
धूल फांकते रहते हैं।

बेकारी का तीसरा बड़ा कारण है—दूषित शिक्षा-प्रणाली। हमारी शिक्षा-प्रणाली नित नए बेरोजगार पैदा करती जा रही है। व्यावसायिक प्रशिक्षण का हमारी शिक्षा में अभाव है। चौथा कारण है—गलत योजनाएँ। सरकार को चाहिए कि वह लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे। मशीनीकरण को उस सीमा तक बढ़ाया जाना चाहिए जिससे कि रोजगार के अवसर कम न हों। इसीलिए गाँधी जी ने मशीनों का विरोध किया था, क्योंकि एक मशीन कई कारीगरों के हाथों को बेकार बना डालती है।

दुष्परिणाम बेरोजगारी के दुष्परिणाम अतीव भयंकर हैं। खाली दिमाग शैतान का घर। बेरोजगार युवक कुछ भी गलत-शलत करने पर उतारू हो जाते हैं। वही शांति को भंग करने में सबसे आगे होते हैं। शिक्षा का माहौल भी वही बिगाड़ते हैं जिन्हें अपना भविष्य अंकारमय लगता है।

समाधान-बेकारी का समाधान तभी हो सकता है, जब जनसंख्या पर रोक लगाई जाए। युवक हाथ का काम करें। सरकार लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे। शिक्षा व्यवसाय से तथा रोजगार के अधिकाधिक अवसर जुटाए जाएँ।

पर्यटन का महत्त्व

पर्यटन का अर्थ- पर्यटन का अर्थ है-चारों ओर घूमना। निरुद्देश्य घूमना। आनंद के लिए घूमना। इसलिए पर्यटन स्वयं में पूर्ण आनंद है। घूमने वाला प्राणी संसार की अनेक चिंताओं से दूर रहता है। वह संग्रह करने के अवगुण से दूर रहता है। पर्यटन और संग्रह शत्रु हैं। जब तक मनुष्य घुमंतू था, तब तक वह संग्रह से दूर रहता था। इसलिए उसके जीवन में आनंद था, मस्ती थी, निश्चितता थी। उसे खोने का भय नहीं था।

विकास का सूत्रधार- परम घुमक्कड़ राहुल सांकृत्यायन कहते हैं – आज तक संसार का जितना भी विकास हुआ है, वह घुमक्कड़ों की कृपा से हुआ है। जितने भी धर्म विकसित हुए हैं, घुमक्कड़ों की कृपा से विकसित हुए हैं। कोलंबस और वास्को-डि-गामा ने पर्यटन से ही भारत
और अमेरिका की खोज की। आज भी सबसे अधिक धनी व्यक्तियों का कारोबार पूरे विश्व में फैला हुआ है।

पर्यटन-एक उद्योग- आज पर्यटन एक उद्योग बन चुका है। भारत में अनेक पर्यटन-स्थल हैं। काश्मीर, कुल्लू-मनाली, मसूरी, नैनीताल, ऊटी जैसी मनोरम पहाड़ियाँ हर वर्ष लाखों पर्यटकों को अपनी ओर खींचती हैं। हरिद्वार, मथुरा, द्वारिका, वैष्णो देवी, अजमेर शरीफ, कन्याकुमारी, कांचीपुरम, इलाहाबाद जैसे धार्मिक स्थलों पर भी लाखों-करोड़ों पर्यटक हर वर्ष घूमने जाते हैं। काश्मीर, हिमाचल और आसाम में पर्यटन उद्योग ही वहाँ की आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ है। ।

पर्यटन के लाभ- पर्यटन से मनुष्य को अनेक लाभ होते हैं। पर्यटक विश्व की अनेक संस्कृतियों के संपर्क में आता है। इससे वह सबकी खूबियों से परिचित होता है। उसकी दृष्टि विशाल बनती है। पर्यटन से विश्व में आपसी भाईचारा बनता है। ‘वसुधैवकुटुंबकम्’ का नारा तभी सार्थक होता है, जब विश्व-भर के लोग एक-दूसरे को अपने परिवार का सदस्य मानते हैं। यह केवल पर्यटन से ही संभव है।

पर्यटन-एक शौक- आज पर्यटन मनोरंजन का साधन बनता जा रहा है। आम लोग भी पर्यटन पर अपनी आय का कुछ भाग व्यय करने लगे हैं। पर्यटन सच में मानव को दैनंदिन की चिंताओं से दूर करके मुक्त करता हैं यह मानव-मुक्ति का अच्छा साधन है।

एक अविस्मरणीय यात्रा /
किसी प्राकृतिक स्थल की यात्रा

प्रकृति और मनुष्य का संबंध मनुष्य प्रकृति का पुत्र है। उसका जन्म न केवल प्रकृति की गोद में हुआ है, बल्कि जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि और आकाश से मिलकर हुआ है। इसलिए प्रकृति मनुष्य को माँ की गोद जैसी सुहानी लगती है।

प्राकृतिक स्थल, दृश्य, पदार्थ आदि मनुष्य के आनंद के कारण- प्रकृति के विभिन्न रूप, दृश्य, पदार्थ मनुष्य को बरबस अपनी ओर खींचते हैं। उसे गर्मी, वर्षा, सावन, फल-फूल-फुलवाड़ी सब आनंदित करते हैं। वह पहाड़ों, नदियों, मैदानों, रेगिस्तानों-सबका दीवाना है।

कहाँ की यात्रा की? वहाँ जाने का अवसर कब, कैसे मिला?— मुझे पिछली गर्मियों . की छुट्टियों में यमुनोत्री की यात्रा करने का सौभाग्य मिला। मेरे लिए यह पहली पहाड़ी-यात्रा थी। इसलिए इस यात्रा का क्षण-क्षण मेरे लिए रोमांचक था। हम स्कूल के बीस बच्चे अपने दो अध्यापकों के साथ घूमने जा रहे थे। रात को 10.00 बजे हमारी बस दिल्ली से चली। सभी सो गए। नींद खुली तो मैंने स्वयं को देहरादून में पाया। सुबह के 5.00 बज चुके थे।

एक होटल के दालान में 45 मिनट बस रूकी। छात्रों ने हाथ-मुँह धोया, तैयार हुए। कुछ नं चाय-नाश्ता किया। तरो-ताजा होकर सब अपनी-अपनी सीटों पर आ विराजे। बस ऊंचे-नीचे रास्तों पर चढ़ने-उतने लगी। रास्ते टेढ़े-मेढ़े थे। कभी सांप की तरह सड़क मुड़ जाती थी, कभी अंग्रेजी के वी या यू की तरह एकदम मोड़ आता था। जब बस ऊपर चढ़ती थी तो लगता था इंजन को काफी जोर लगाना पड़ रहा है और ढलान पर ऐसे लगता था मानो बस हवा में बही जा रही है। खिड़की से नीचे के गहरे खडु-खाई दीखते थे तो डर लगता था।

प्राकतिक सौंदर्य-वर्णन तीन घंटे चढ़ाई करने के बाद यमुना नदी का निर्मल जल दिखाई देने लगा। यह यमुना दिल्ली की गंदे जल वाली यमुना से बिल्कुल अलग थी। जल हरे रंग का था। पत्थरों से टकराती हुई उसकी जलधारा सफेद गुच्छों का रूप धारण कर लेती थी। वातावरण में ठंडक बढ़नी शुरू हो गई। हनुमानचट्टी नामक स्थान पर पहुँचते-पहुँचते सभी ने स्वेटर, जर्सी या शाल-दुशाले ओढ़ लिए। यह स्थान समुद्र से 11000 फुट ऊँचाई पर था। यहाँ जून में भी दिसंबर-जनवरी जैसी ठंड थी। हम रात को लकड़ी से बने जिस होटल में ठहरे, वह यमुना के किनारे और पहाड़ों की गोद में था। यमुना का शाय-शॉय करता जल रात की नीरवता को भंग
कर रहा था। मुझे अतीव आनंद आ रहा था।

अविस्मरणीय यात्रा कैसे?_हनुमानचट्टी से यमुनोत्री तक 13 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई थी। पैदल-यात्रा के लिए गांच-छ: फुट चौड़ा रास्ता पहाड़ों को काटकर बनाया गया था। यह यात्रा अत्यंत रोमांचक थी, इसलिए अविस्मरणीय थी। हम सभी उछलते-फलाँगते पैदल चले। बीच में फूलचट्टी और जानकीचट्टी नामक स्थान आए। इन स्थानों पर हमने चायपान किया और आध-आध घंटा विश्राम किया। अंतिम पाँच किलोमीटर की चढ़ाई बहुत कठिन थी। यमुना नदी साथ-साथ बह रही थी। बीच-बीच में भयानक पहाड़ आ जाते थे। कहीं से रास्ता फिसलनदार भी था। बिल्कुल खड़ी चढ़ाई थी। बीच-बीच में पहाड़ों से बहते झरने मन मोह लेते थे।

यमनोत्री के दर्शन और वापसी यमुनोत्री में बर्फ से ढंके पहाड़ थे जिनसे पिघलकर यमुना का जल बह रहा था। वहाँ गंधक का गर्म चश्मा था जिसके जल में नहाकर हम तरोताजा हो गए। वहाँ यमुनादेवी का मंदिर बना हुआ था। उसके दर्शन करके हम वापसी को चले।

Bihar Board Class 10 Hindi रचना निबंध लेखन

मेरी अविस्मरणीय रेल-यात्रा

यात्रा का उत्साह यह बात सन् 2005 की है। मुझे दिल्ली से चंडीगढ़ जाना था। मैं पिताजी के साथ था। मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था। पिताजी ने बतलाया था कि दोपहर 12.30 पर नई दिल्ली से चलने वाली फ्लाईंग मेल से हमें चंडीगढ़ के लिए चलना है। यह मेरी प्रथम रेल-यात्रा थी। अतः मैं प्रात: से बहुत उत्साहित था।

स्टेशन का दृश्य हम 12.00 बजे ही नई दिल्ली स्टेशन पर पहुंच गए। साफ-सुथरा चहल-पहल से भरा रेलवे स्टेशन था। कोई कुली को आगे किए अटैचियाँ लिए आ रहा था, कोई अपना बैग सँभाले गाड़ियों की ओर लपका जा रहा था। 12.05 पर हमने अपनी जगह ढूंढ निकाली। मुझे खिड़की के पास बैठने का मौका मिला।

गाडी का दश्य ठीक 12.30 पर गाड़ी चली। लगभग सभी सीटें यात्रियों से भर गई थीं। लोग अपने-अपने सगे-संबंधियों के साथ किसी-न-किसी क्रिया में व्यस्त थे। अधिकांश लोग पत्र-पत्रिका, समाचार-पत्र या पुस्तक आदि पढ़ रहे थे। एकाध जगह ताश का खेल चल रहा था। बुजुर्ग लगने वाले यात्री देश-विदेश की चर्चा में व्यस्त थे।

गाडी से बाहर का दश्य गाड़ी के चलते ही मेरा ध्यान बाहर के दृश्यों की तरफ खिंच गया। मेरे लिए तो यह सर्जीव चलचित्र था। मैं दिल्ली से चंडीगढ़ के सारे दृश्यों को पी लेना चाहता था। मेरा ध्यान पटरी के काँटे बदलती गाड़ी की ओर गया। मैं समझ नहीं पाया कि गाड़ी कैसे उन आड़ी-तिरछी पटरियों में से अपना रास्ता ढूंढ़ पा रही है। यह मैं समझ पाऊं कि गाड़ी रूक गई। यह सब्जी मंडी स्टेशन था।

चहल-पहल- सब्जी मंडी से गाड़ी चली कि एक भक्ति-स्वर सुनाई दिया। यह कोई सूरदास जी थे, जो यात्रियों को गीत सुनाकर अपना पेट भरते थे। यात्रियों ने उसका मीठा गीत सुना और बदले में उसे पैसे दिए। अब खिड़की के बाहर हरे-भरे खेतों, पुलों, नदियों, मकानों, रेलवे-फाटकों, छोटे-छोटे रेलवे स्टेशनों की श्रृंखला शुरू हो गई, जिन्हें. मैं रूचिपूर्वक देखता रहा। मुझे सब कुछ भा रहा था। यह सब मेरे लिए नया था।

गाड़ी में खाने-पीने का सामान बेचने वाले, जूते-पालिश करने वाले, भीख मांगने वाले, खिलौने बेचने वाले आ-जा रहे थे। जहाँ जिस स्टेशन पर गाड़ी रूकती थी, वहीं चहल-पहल शुरू हो जाती थी। चाय, बोतल, पुस्तकें, पकौड़े आदि बेचने वाले अधीर हो उठते थे। इस सारी चहल-पहल में कब पानीपत, करनाल, कुरुक्षेत्र, अंबाला आकर चला गया, मुझे पता ही न चला। मेरा ध्यान तो तब टूटा, जब पिताजी ने कहा बेटा पुरु! चलो जूते पहनो, स्टेशन आ गया है। मेरी वह प्रथम रेल-यात्रा आज भी मुझे स्मरण है।

किसी मेले का आँखों देखा वर्णन

गब्बारे पर अंकित व्यापार मेला- मुझे सन् 2006 में प्रगति मैदान, दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला देखने का अवसर मिला। मेले का विज्ञापन करने के लिए आकाश में एक विशाल गैसीय गुब्बारा ताना गया था। जिस पर बड़े-बड़े शब्दों में ‘व्यापार मेला’ लिखा था।

मख्य द्वार- व्यापार मेले में प्रवेश करने के कई द्वार थे। मैं जिस द्वार से गया, उसके बाहर टिकट लेने वालों की सर्पाकार लंबी पंक्ति थी। वह पंक्ति बहुत अनुशासित थी। इसलिए शीघ्र ही प्रवेश का मौका मिल गया। मुख्य द्वार और मार्ग को विविध कलात्मक सज्जाओं से सजाया गया था। हमें दूर से ही बीसियों मोटे-मोटे नाम दिखाई दिए—आसाम, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, केस्ल, जापान, अमेरिका, पाकिस्तान आदि।

जर्मनी का मंडप- मैं इन रंगीनियों में खोया हुआ ही,था कि अचानक स्वयं को एक मंडप में खड़ा पाया। यह जर्मनी का मंडप था। इसमें विविध आधुनिकतम सज्जाओं के साथ उस देश की प्रगति को दर्शाया गया था।

घडियों वाला मंडप – आगे हाल ऑफ नेशंस के साथ एक छोटा भवन था जिसमें विश्वभर की घड़ियों की प्रदर्शनी लगी थी। अंदर जाकर विविध घड़ियों के मंडपों को देखा तो हैरान रह गया। एक-से-एक श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले टाइमपीस, क्लॉक तथा कलाई घड़ियों ने मन मोह लिया। मैंने भी एक अलार्म घड़ी खरीदी।

हरियाणा का मंडप- हरियाणा का मंडप देखने के लिए मुझे काफी दूर जाना पड़ा। लेकिन उस दूरी का अनुभव भी मनमोहक था। ऐसा लगता था जैसे सारी दिल्ली सज-धजकर उधर आ… उमड़ी हो। कई मीलों में फैले प्रगति मैदान की सड़कें शाम ढल आने पर रंगीन हो उठी थीं। आश्चर्य यह कि कहीं कोई भगदड़ नहीं, शोर-शराबा नहीं, बल्कि ऐसी मंथर गति, जैसे संध्या के समय समुद्र मस्ती में लहरें ले रहा हो। मुझे बहुत अच्छा लगा।

वापसी- रात घिर आई थी। मैं वापसी के लिए द्वार पर चला। आगे देखा—हजारों लोग एक ऊँचे स्थान पर मजमा लगाए खड़े हैं पता चला कि कोई नाटक-कंपनी नाटक खेल रही है। वहीं बहुत लंबी पंक्ति देखी जिसमें फैशन-शो देखने के इच्छुक लोग टिकट लेने के लिए खड़े
थे। मन हटता ही न था। जैसे-तैसे बाहर पहुँचा तो मुड़कर फिर से व्यापार मेले की ओर देखा। रोशनी में जगमगाता हुआ मेला दुलहन की तरह सजकर खड़ा था।

समय का महत्त्व

समय और अवसर कभी नहीं ठहस्ते- समय रुकता नहीं है। जिसे उसका उपयोग उठाना है, उसे तैयार होकर उसके आने की अग्रिम प्रतीक्षा करनी चाहिए। जो समय के निकल जाने पर । उसके पीछे दौड़ते हैं, वे जिंदगी में सदा घिसटते-पिटते रहते हैं। समय सम्मान माँगता है। इसलिए कबीर ने कहा है-

काल करै सो आज कर, आज करै सो अब।
पल में परलय होयगा, बहुरि करेगा कब॥

समय का सदपयोग कैसे – समय के सदुपयोग का अर्थ है-उचित अवसर पर उचित कार्य पूरा कर लेना। जो लोग आज का काम कल पर और कल का काम परसों पर टालते रहते हैं, वे एक प्रकार से अपने लिए जंजाल खड़ा करते चले जाते हैं। मरण को टालते-टालते एक दिन सचमुच मरण आ ही जाता है। जो व्यक्ति उपयुक्त समय पर कार्य नहीं करता, वह समय को नष्ट करता है। एक दिन ऐसा आता है, जबकि समय उसको नष्ट कर देता है। जो छात्र पढ़ने के समय नहीं पढ़ते, वे परिणाम आने पर रोते हैं।

दुरुपयोग के परिणाम- समय का कोई विकल्प नहीं है। जो मनुष्य समय को नष्ट करता है, समय उसे नष्ट कर देता है। जो छात्र समय रहते परिश्रम नहीं करता, उसका एक वर्ष ही नष्ट नहीं होता, बल्कि जीवन में निराशा और उदासी भी घर कर जाती है। ठीक समय पर घायल का उपचार न किया जाए तो उसकी मृत्यु हो सकती है।

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समय का सदपयोग करने वालों के कछ उदाहरण सभी महान पुरुषों ने समय का सही उपयोग किया है। लता ने अपनी गायन-प्रतिभों को पहचाना और पूरा जीवन ही इस कला के नाम कर दिया। परिणामस्वरूप आज वह सर्वोच्च स्थान पर सुशोभित है। अब्दुल कलाम हों या सचिन, सानिया हो या सोनिया-सभी ने उचित समय का सदुपयोग करके ही सफलता पाई है।

सफलता समय की नामी है. वास्तव में सफलता समय की दासी है। जो जाति समय का सम्मान करना जानती है, वह अपनी शक्ति को कई गुना बढ़ा लेती है। यदि सभी गाड़ियाँ अपने निश्चित समय से चलने लगें तो देश में कितनी कार्यकुशलता बढ़ जाएगी। यदि कार्यालय के कार्य ठीक समय पर संपन्न हो जाएँ, कर्मचारी समय के पाबंद हों तो सब कार्य सुविधा से हो सकेंगे।
अतः हमें समय की गंभीरता को समझना चाहिए।

फैक लिन का कथन है- ‘तुम्हें अपने जीवन से प्रेम है, तो समय को व्यर्थ मत गँवाओ क्योंकि जीवन इसी से बना है।’ समय को नष्ट करना जीवन को नष्ट करना है। समय ही तो जीवन है। ईश्वर एक बार एक ही क्षण देता है और दूसरा क्षण देने से पहले उसको छीन लेता है।

यदि मैं प्रधानमंत्री होता

पिका यदि मैं भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाऊँ-यह कल्पना करते ही मेरे कंधों पर दायित्वों का भार आ जाता है। मेरी आँखों के सामने विशाल योजनाएँ आने लगती हैं। जिन प्रश्नों और समस्याओं के बारे में मैं कभी सोचता भी नहीं, वे भी मेरे सम्मुख प्रकट हो जाती हैं।

सुरक्ष- व्यवस्था-
प्रधानमंत्री बनते ही सबसे पहले मैं भारत की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के कड़े प्रबंध करूँगा। पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान की ओर से होने वाली घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों को पूरी ईमानदारी और शक्ति से कुचल दूंगा। मैं जानता हूँ कि विदेशी आतंकवादियों का जाल पूरे भारत में फैल चुका है। भारत की संसद तक सुरक्षित नहीं है। मैं अपने निर्देशन में एक ऐसा खुफिया तंत्र विकसित करूंगा जिससे गुपचुप होने वाले षड्यंत्रों का ज्ञान होता रहे और समय रहते उन्हें कुचला जा सके। भाव प्रधानमंत्री बनते ही मैं जाति, धर्म, भाषा या प्रांत के नाम पर चल रहे भेदभाव को कम करने का भरसक प्रयत्न करूंगा। मंदिर-मसजिद या गिरजाघर को लड़ने नहीं दूंगा।

शिक्षा में परिवर्तन प्रधानमंत्री बनकर मैं शिक्षा-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन करूंगा। मैं पूरे देश को साक्षर बनाने का प्रयत्न करूँगा। जो बच्चे मजबूरी के कारण विद्यालय नहीं जा पाते, उन्हें ऐसी सुविधाएँ दूंगा कि वे पढ़ सकें। मैं शिक्षा को रोजगार के साथ जोदूँगा। ऐसी व्यवस्था करूँगा कि छात्र पढ़ने के बाद आजीविका कमा सकें।

बेरोजगारी का समाधान मैं बेरोजगारी दूर करने के लिए उचित कदम उठाऊँगा। बेरोजगार नवयुवकों को निजी व्यवसाय खोलने के लिए प्रशिक्षण, ऋण, बाजार, मार्गदर्शन-सब उपलब्ध कराऊंगा।

आर्थिक विकास भारत आर्थिक दृष्टि से विकास के पथ पर अग्रसर है। मैं प्रयास करूंगा कि भारतीय उद्योगों को फलने-फूलने का भपूर अवसर मिले। भारतीय उद्यमी न केवल भारत में, अपितु विश्व-बाजार में अपने उत्पाद तथा सेवाएँ बेचें।।

वैज्ञानिक विकास भारत में विज्ञान के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में भारत ने अपनी शक्ति सिद्ध कर दी है। हमारे देश में योग्य इंजीनियरों, डॉक्टरों तथा तकनीशियनों का भंडार है। अभी तक भारतीय मेधा संसार-भर में सेवा कार्य करने में व्यस्त रही है। मैं चाहूँगा कि भारत वैज्ञानिक विकास के क्षेत्र में भी अग्रणी देश बने।

भष्टाचार का विनाश – भारत के आर्थिक विकास को भ्रष्टाचार की दीमकें खाए जा रही हैं। प्रधानमंत्री बनते ही मैं सख्ती से भ्रष्टाचार का उन्मूलन करूँगा। इसके लिए मैं पहले स्वयं ईमानदार बनूंगा। भ्रष्ट मंत्रियों को सरकार से निकाल दूंगा। परिणामस्वरूप सरकारी अफसरों को भी भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी पड़ेगी।

विज्ञापन और हमारा जीवन /
रंग बिरंगी अद्भुत न्यारी, विज्ञापन की दुनिया प्यारी

विज्ञापन का उद्देश्य किसी भी वस्तु, व्यक्ति या विचार के प्रचार-प्रसार को विज्ञापन कहते हैं। विज्ञापन का उद्देश्य प्रचार-प्रसार करना होता है। जो विज्ञापन श्रोता, पाठक या उपभोक्ता के मन पर जितनी गहरी छाप छोड़ पाता है, वह उतना ही प्रभावी विज्ञापन कहलाता है।

विज्ञापनों के विविध प्रकार विज्ञापनों का संसार बहुत विस्तृत है। सर्वाधिक विज्ञापन वस्तुओं के होते हैं। साबुन, तेल, कपड़े, कंप्यूटर, टी.वी. आदि के विज्ञापन व्यापारिक विज्ञापन कहलाते हैं। सामाजिक-धार्मिक विज्ञापनों में सामाजिक कार्यक्रमों, महापुरुषों, यज्ञों, समारोहों, कवि-सम्मेलनों आदि के विज्ञापन आते हैं। शैक्षिक विज्ञापनों में पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं, कोचिंग कक्षाओं, विद्यालयों आदि के विज्ञापन आते हैं। इनके अतिरिक्त सरकारी सूचनाओं, निर्देशों, नियुक्तियों, विवाह आदि के अनेक विज्ञापन होते हैं।

निर्णय को प्रभावित करने में विज्ञापनों की भमिका ये विज्ञापन पनघट की उस रस्सी के समान होते हैं जो कठोर-से-कठोर पत्थर पर भी निशान डाल देते हैं। हमारी सारी दिनचर्या विज्ञापनों से प्रभावित होती है। हम दुकान पर नमक माँगते हैं-~-टाटा का, पेस्ट माँगते हैं कोलगेट का, साबुन मांगते हैं लक्स का, शेविंग क्रीम मांगते हैं-पामोलिव की, सिरदर्द की गोली माँगते हैं-एनासिन या सैरोडिन। जरा पूछे क्यों ? क्योंकि हमारे रेडियो टी.वी., समाचार-पत्र दिन में बार-बार इन्हीं की रट लगाए रहते हैं। ये हमारे दिल-दिमाग पर इस तरह हावी हो जाते हैं कि हम दुकानदार से चाहे-अनचाहे इन्हीं की माँग कर बैठते हैं।

भ्रामक विज्ञापन और उन पर रोक विज्ञापनों का संसार बड़ा मायावी है। यहाँ कुरूप ओर भौंडे लोगों के भी अति सुंदर चित्र पेश किए जाते हैं। इनके द्वारा बेकार सामग्री को बहुत प्रभावशाली बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। टी.वी. तो चित्रों, शब्दों और संवादों के माध्यम से बहुत बड़ा भ्रमजाल फैला देता है, मानो एक हफ्ते में कोई भी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना सीख लेगा। एक महीने में गंजे के बाल उग आएँगे। दो महीने में कोई ठिग्गा ताड़ का पेड़ हो जाएगा आदि-आदि। ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। सरकार को विज्ञापनों की सत्यता की जाँच अवश्य करानी चाहिए, वरन विज्ञापनदाताओं पर कठोर जुर्माना ठोकना चाहिए।

विज्ञापनों का सामाजिक दायित्व देखने में आता है कि अधिकतर विज्ञापन मसालेदार होते हैं। उनमें नंगेपन का, लड़कियों की शोख अदाओं का तथा आपत्तिजनक साधनों का दुरुपयोग किया जाता है। यहाँ तक कि बीड़ी के विज्ञापन पर भी लड़कियाँ छापी जाती हैं। विज्ञापनदाताओं को चाहिए कि वे अपने लोभ में समान को गड़े में न गिराएँ। वे सामाजिक मर्यादाओं का पूरा ख्याल रखें।

निष्कर्ष विज्ञापन द्रुत प्रचार-प्रसार के लिए सेना का काम करते हैं। इनका उपयोग है। इन्हें भलाई और लाभ के लिए खूब काम में लाना चाहिए, किंतु इनके अमर्यादित उपयोग पर रोक भी लगनी चाहिए।

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दैनिक जीवन में समाचार-पत्र का महत्त्व

समाचार-पत्र-एक सामाजिक कड़ी समाचार-पत्र वह कडी है जो हमें शेष दनिया से जोड़ती है। जब हम समाचार-पत्र में देश-विदेश की खबरें पढ़ते हैं तो हम पूरे विश्व के अंग बन जाते हैं।

लोकतंत्र का प्रहरी समाचार-पत्र लोकतंत्र का सच्चा पहरेदार है। उसी के माध्यम से लोग अपनी इच्छा, विरोध और आलोचना प्रकट करते हैं। नेपोलियन ने कहा था “में लाखों संगीनों की अपेक्षा तीन विरोधी समाचार-पत्रों से अधिक भयभीत रहता हूँ।” समाचार-पत्र जनमत तैयार करते हैं।

प्रचार का सशक्त माध्यम आज प्रचार का युग है। यदि आप अपने माल को, अपने विचार को, अपने कार्यक्रम को या अपनी रचना को देशव्यापी बनाना चाहते हैं तो समाचार-पत्र का सहारा लें। समाचार-पत्र के माध्यम से रातों-रात लोग नेता बन जाते हैं या चर्चित व्यक्ति बन जाते हैं। यदि किसी घटना को अखबार की मोटी सुर्खियों में स्थान मिल जाए तो वह घटना सारे देश का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है।

व्यापार को फैलाव समाचार-पत्र व्यापार को बढ़ाने में परम सहायक सिद्ध हुए हैं। विज्ञापन की सहायता से व्यापारियों का माल देश में ही नहीं विदेशों में भी बिकने लगता है। रोजगार पाने के लिए भी अखबार उत्तम साधन है। हर बेरोजगार का सहारा अखबार में निकले नौकरी के विज्ञापन होते हैं। व्यापारी नित्य के भाव देखने के लिए तथा शेयरों का मूल्य जानने के लिए अखबार का मुँह जोहते हैं।

ज्ञान-वृद्धि का साधन – जे. पार्टन का कहना है-‘समाचार-पत्र जनता के लिए विश्वविद्यालय हैं।’ उनसे हमें केवल देश-विदेश की गतिविधियों की जानकारी ही नहीं मिलती, अपितु महान विचारकों के विचार भी पढ़ने को मिलते हैं। उनसे विभिन्न त्योहारों और महापुरुषों का महत्त्व पता चलता है। महिलाओं को घर-गृहस्थी संभालने के नए-नए नुस्खे पता चलते हैं। प्रायः अखबार में ऐसे कई स्थायी स्तंभ होते हैं जो हमें विभिन्न जानकारियाँ देते हैं।

मनोरजन का साधन – आजकल अखबार मनोरंजन के क्षेत्र में भी आगे बढ़ चले हैं। उसमें नई-नई कहानियाँ, किस्से, कविताएँ तथा अन्य बालोपयोगी साहित्य छपता है। दरअसल, आजकल समाचार-पत्र बहुमुखी हो गया है। उसमें चलचित्र, खेलकूद, दूरदर्शन, भविष्य-कथन, मौसम आदि. की अनेक जानकारियाँ मिलती हैं।

जन-सुविधा- समाचार-पत्र के माध्यम से आप मनचाहे वर-वधू ढूँढ सकते हैं। अपना मकान, गाड़ी, वाहन खरीद-बेच सकते हैं। खोए हुए बंधु को बुला सकते हैं। अपना परीक्षा परिणाम जान सकते हैं। इस प्रकार समाचार-पत्रों का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है।

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परिश्रम का महत्त्व

संसार में आज जो भी ज्ञान-विज्ञान की उन्नति और विकास है, उसका कारण है परिश्रम- सृष्टि के आरंभ से लेकर आज तक मनुष्य ने जो भी विकास किया है, वह सब परिश्रम की ही देन है। जब मानव जंगली अवस्था में था, तब वह घोर परिश्रमी था। उसे खाने-पीने, सोने, पहनने आदि के लिए जी-तोड़ मेहनत कस्नी पड़ती थी। आज, जबकि युग बहुत विकसित हो चुका है, परिश्रम की महिमा कम नहीं हुई है। बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण देखिए, अनेक मंजिले भवन देखिए, खदानों की खुदाई, पहाड़ों की कटाई, समुद्र की गोताखोरी या आकाश-मंडल की यात्रा . का अध्ययन कीजिए। सब जगह मानव के परिश्रम की गाथा सुनाई पड़ेगी।

परिश्रम करने में बुद्धि और विवेक आवश्यक केवल शारीरिक परिश्रम ही परिश्रम नहीं है। जिस क्रिया में कुछ काम करना पड़े, जोर लगाना पड़े, तनाव मोल लेना पड़े, वह मेहनत कहलाती है। महात्मा गाँधी दिन-भर सलाह-मशविरे में लगे रहते थे, परंतु वे घोर परिश्रमी थे। तात्पर्य यह है कि बुद्धि और विवेक द्वारा किया गया परिश्रम भी परिश्रम कहलाता है। ऐसा परिश्रम अधिक मूल्यवान होता है। शारीरिक आलस्य थोड़ी-सी हानि करता है किंतु बौद्धिक या मानसिक । आलस्य नई-नई योजनाओं पर ही पानी फेर देता है।

परिश्रम से मिलने वाले लाभ-पुरुषार्थ का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे सफलता मिलती है। परिश्रम ही सफलता की ओर जाने वाली सड़क है। परिश्रम से आत्मविश्वास पैदा होता . है। मेहनती आदमी को व्यर्थ में किसी की जी-हजूरी नहीं करनी पड़ती, बल्कि लोग उसकी जी-हजूरी करते हैं। तीसरे, मेहनती व्यक्ति का स्वास्थ्य सदा ठीक रहता है। चौथे, मेहनत करने से गहरा आनंद मिलता है। उससे मन में यह शांति होती है कि मैं निठल्ला नहीं बैठा। किसी विद्वान का कथन है जब तुम्हारे जीवन में घोर आपत्ति और दुख आ जाएँ तो व्याकुल और निराश मत बनो; अपितु तुरंत काम में जुट जाओ। स्वयं को कार्य में तल्लीन कर दो तो तुम्हें वास्तविक शांति और नवीन प्रकाश की प्राप्ति होगी।

उपसंहार- राबर्ट कोलियार कहते हैं ‘मनुष्य की सर्वोत्तम मित्र उसकी दस अँगुलियाँ हैं।’ अतः हमें जीवन का एक-एक क्षण परिश्रम करने में बिताना चाहिए। श्रम मानव-जीवन का सच्चा सौंदर्य है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

BSEB Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 9 Science जीवों में विविधता  InText Questions and Answers

प्रश्न श्रृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 91)

प्रश्न 1.
हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं ?
उत्तर:
अध्ययन को सरल बनाने तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए जीवधारियों का वर्गीकरण करते हैं।

प्रश्न 2.
अपने चारों ओर फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दें ?
उत्तर:
चिड़िया, छिपकली एवं चूहा।

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प्रश्न श्रृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 92)

प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण के लिए सर्वाधिक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है ?
(a) उनका निवास स्थान
(b) उनकी कोशिका संरचना।
उत्तर:
(b) उनकी कोशिका संरचना।

प्रश्न 2.
जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधार बनाया गया है ?
उत्तर:
जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए कोशिका की प्रकृति (कोशिकीय संरचना एवं कार्य) को आधार माना गया है। ऐसी कोशिकाएँ जिनमें झिल्ली युक्त केन्द्रक एवं कोशिकांग पाये जाते हैं, उसे यूकैरियोटिक कोशिका तथा जिसमें इनका अभाव होता है, प्रोकैरियोटिक कोशिका कहते हैं।

प्रश्न 3.
किस आधार पर जन्तुओं एवं वनस्पतियों को एक-दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है ?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता रखने वाले जीवों को वनस्पति वर्ग में तथा अन्य जीवों से अपना भोजन ग्रहण करने वाले जीवों को जन्तु वर्ग में रखा गया है। इसके अतिरिक्त गमन की सामर्थ्य पौधों एवं जन्तुओं को एक-दूसरे से विभेदित करती है।

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प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 93)

प्रश्न 1.
आदिम जीव किन्हें कहते हैं ? ये तथाकथित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
ऐसे जीव जिनकी शारीरिक संरचना साधारण होती है तथा उसमें प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है, आदिम जीव कहलाते हैं। जबकि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है तथा इनमें अपने वातावरण के अनुसार अनेक परिवर्तन हो चुके होते हैं। उदाहरण के लिए अमीबा की संरचना केंचुए की तुलना में आदिम होती है।

प्रश्न 2.
क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं ?
उत्तर:
हाँ, यह सत्य है कि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है। चूँकि विकास के दौरान जीवों में जटिलता की सम्भावना बनी रहती है अतः समय के साथ उन्नत जीवों को जटिल जीव कहा जा सकता है।

प्रश्न श्रृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 96)

प्रश्न 1.
मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण के मापदण्ड क्या हैं ?
उत्तर:
मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण का मापदण्ड उनमें संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति है। मोनेरा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों का अभाव होता है। ये प्रोकैरियोट्स कहलाते हैं; जैसे-जीवाण, नील-हरित शैवाल आदि। जबकि प्रोटिस्टा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांग पाये जाते हैं। ये यूकैरियोटिक संरचना प्रदर्शित करते हैं; जैसे-डाइएटम, प्रोटोजोआ आदि।

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प्रश्न 2.
प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव को आप किस जगत् में रखेंगे ?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को जगत् प्रोटिस्टा में रखा गया है।

प्रश्न 3.
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जायेगा?
उत्तर:
वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में जाति के अन्तर्गत सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम संख्या में जीवों को रखा गया है जबकि जगत् के अन्तर्गत सबसे अधिक संख्या में।

प्रश्न श्रृंखला # 05 (पृष्ठ संख्या 99)

प्रश्न 1.
सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है ?
उत्तर:
पौधों के वर्ग थैलोफाइटा में सरलतम पौधों को रखा गया है। ये पौधे जड़, तना तथा पत्तियों में विभेदित नहीं होते हैं।

प्रश्न 2.
टेरिडोफाइट और फैनरोगैम में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
टेरिडोफाइट्स में नग्न भ्रूण पाये जाते हैं जो स्पोर्स कहलाते हैं। इन पौधों में जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती जबकि फैनरोगैम्स में जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के पश्चात् बीज उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 3.
जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
जिम्नोस्पर्स नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे हैं। इनमें पुष्प उत्पन्न नहीं होते हैं जबकि एन्जियोस्पर्स में बीज फल के अन्दर बन्द रहते हैं। बीजों का विकास अण्डाशय के अन्दर होता है जो बाद में फल बन जाता है। इन पौधों में पुष्प भी उत्पन्न होते हैं।

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प्रश्न श्रृंखला # 06 (पृष्ठ संख्या 105)

प्रश्न 1.
पोरीफेरा और सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
पोरीफेरा वर्ग के जन्तु छिद्रयुक्त, अचल जीव हैं जो किसी आधार से चिपके रहते हैं। इनमें कोशिकीय स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है जबकि सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तु एकाकी तथा समूह दोनों में ही पाये जाते हैं। इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है।

प्रश्न 2.
एनीलिडा के जन्तु आर्थोपोडा के जन्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
(1) एनीलिडा के जन्तुओं का शरीर अनेक समान खण्डों में बँटा होता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं का शरीर कुछ निश्चित खण्डों में विभेदित होता है, जिस पर जुड़े हुए पैर पाये जाते हैं। शरीर पर प्रायः काइटिन का बना कठोर कंकाल पाया जाता है।

(2) एनीलिडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र बन्द प्रकार का होता है। अर्थात् रक्त बन्द नलियों में बहता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र खुला प्रकार का होता है अर्थात् रक्त देहगुहा में भरा रहता है।

प्रश्न 3.
जल-स्थलचर और सरीसृपों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
1. जल-स्थलचर जल तथा स्थल दोनों पर रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। परन्तु अण्डे देने के लिए जल की आवश्यकता होती है जबकि सरीसृप सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह सकते हैं, लेकिन इन्हें अपने अण्डे स्थल पर आकर ही देने होते हैं।
2. जल-स्थलचरों की त्वचा पर शल्क नहीं पाये जाते। इस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जबकि सरीसृपों का शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है।
3. जल स्थलचरों में श्वसन क्लोम या त्वचा या फेफड़ों द्वारा होता है जबकि सरीसृपों में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है।

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प्रश्न 4.
पक्षी वर्ग और स्तनी वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है?
उत्तर:

  1. पक्षी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं जो उड़ने में सहायक हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद हाथों या पैरों के रूप में होते हैं तथा वस्तुओं को पकड़ने या दौड़ने में सहायक हैं।
    पक्षी वर्ग के जन्तुओं का शरीर परों से ढका होता है जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं के शरीर पर बाल पाये जाते हैं।
    पक्षी वर्ग के जन्तु अण्डे देते हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तु शिशुओं को जन्म देते हैं। हालांकि कुछ स्तनी; जैसे-इकिड्ना एवं प्लेटिपस अण्डे भी देते हैं।
    स्तनी वर्ग के जन्तुओं में बाह्य कर्ण तथा दुग्ध ग्रन्थियाँ भी पायी जाती हैं जबकि इन संरचनाओं का पक्षी वर्ग के जन्तुओं में अभाव होता है।

क्रियाकलाप 7.1 (पृष्ठ संख्या 90)

प्रश्न 1.
क्या एक देसी गाय जर्सी गाय जैसी दिखती है ?
उत्तर:
नहीं। प्रश्न-क्या सभी देसी गायें एक जैसी दिखती हैं ? उत्तर- नहीं।

प्रश्न 2.
क्या हम देसी गायें के झुण्ड से जर्सी गाय को पहचान सकते हैं ?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 3.
पहचानने का हमारा आधार क्या होगा ?
उत्तर:
देशी गाय का शरीर हल्का व छरहरा होता है। इसका टाँट ऊँचा एवं अयन कसा हुआ होता है। जबकि जर्सी गाय का शरीर भारी व ढीला होता है। इसका टाँट सपाट तथा अयन बड़ा एवं लटका हुआ होता है।

क्रियाकलाप 7.2 (पृष्ठ संख्या 99)

प्रश्न 4.
क्या ये जड़ें मूसला हैं या फिर रेशेदार ?
उत्तर:
चने, मटर एवं इमली में मूसला जड़ें हैं तथा गेहूँ एवं मक्का में रेशेदार।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 5.
क्या पत्तियों में समानान्तर अथवा जालिकावत् शिरा विन्यास है ?
उत्तर:
गेहूँ एवं मक्का की पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास है जबकि चना, मटर एवं इमली की पत्तियों में जालिकावत् | शिरा विन्यास।

प्रश्न 6.
इन पौधों के फूलों में कितनी पंखुड़ियाँ हैं ?
उत्तर:
चना, मटर एवं इमली के प्रत्येक फूल में 5-5 पंखुड़ियाँ हैं जबकि गेहूँ एवं मक्का के फूल में लोडीक्यूल्स के रूप में दो-दो पंखुड़ियाँ हैं।

प्रश्न 7.
क्या आप एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों के और अधिक लक्षण अपने अवलोकन के आधार पर लिख सकते हैं ?
उत्तर:
(1) एकबीजपत्री पौधों की पत्तियाँ समद्विपाश्विक प्रकार की होती हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की पृष्ठधारी प्रकार की।
(2) सामान्यतः एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों की ऊपरी एवं निचली दोनों सतहों पर स्टोमेटा उपस्थित होते हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की केवल निचली सतह पर स्टोमेटा पाये जाते हैं।

क्रियाकलाप 7.4 (पृष्ठ संख्या 106)

प्रश्न 8.
किन्हीं पाँच जन्तुओं और पौधों के वैज्ञानिक नाम का पता लगाइए। क्या इनके वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता है ?
उत्तर:
जन्तु

  1. मेढ़क-राना टिग्रिना
  2. बाघ-पैन्थेरा टाइग्रिस
  3. मोर-पैवो क्रिस्टेटस
  4. शुतुरमुर्ग-स्ट्रथियो कैमेलस
  5. हाथी-एलिफस मैक्सीमस

पौधे

  1. गेहूँ-ट्रिटिकम एस्टाइवम
  2. मक्का-जीआ मेज
  3. सरसों-बॅसिका कैम्पेस्ट्रिस
  4. मटर-पाइसम सैटाइवम
  5. मूली-रेफेनस सैटाइवस

वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता नहीं है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

Bihar Board Class 9 Science जीवों में विविधता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है ?
उत्तर:

  1. जीवों के वर्गीकरण से उनका अध्ययन सरल बनता है तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध सरलता से स्पष्ट हो जाते हैं।
  2. वर्गीकरण जीवों की विविधता को स्पष्ट करने में सहायक है।
  3. वर्गीकरण द्वारा किसी समूह विशेष का अध्ययन करने पर उस समूह के सभी जीवों के सामान्य लक्षणों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  4. इसके द्वारा ही जैव विकास को समझने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे?
उत्तर:
वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से हम आधारभूत लक्षण का चयन करेंगे। उदाहरण के लिए पौधे जन्तुओं से गमन, क्लोरोप्लास्ट तथा कोशिका भित्ति की अनुपस्थिति के कारण भिन्न हैं। लेकिन इनमें से केवल गमन ही आधारभूत लक्षण माना जायेगा जो पौधों तथा जन्तुओं को आसानी से विभेदित कर सकता है।

ऐसा इस कारण है कि पौधों में गमन के अभाव में अनेक संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं, जैसे सुरक्षा हेतु कोशिका भित्ति की उपस्थिति तथा भोजन निर्माण हेतु क्लोरोप्लास्ट की उपस्थिति। अतः ये सभी लक्षण गमन की पूर्ति के लिए ही बने हैं। इसलिए गमन ही आधारभूत लक्षण है। अतः इसका चयन पदानुक्रम निर्धारण के लिए उचित है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 7 जीवों में विविधता

प्रश्न 3.
जीवों के पाँच जगत् में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ह्वीटेकर ने पाँच जगत् वर्गीकरण प्रतिपादित किया। उनके द्वारा प्रतिपादित पाँच जगत् हैं-मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लांटी तथा एनीमेलिया। उनके ये समूह कोशिकीय संरचना, पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन के आधार पर बनाये गये

(1) सबसे पहले उन्होंने संगठित केन्द्रक तथा झिल्लीयुक्त कोशिकांगों के आधार पर जीवों को दो भागों में बाँटा-प्रोकैरियोट्स तथा यूकैरियोट्स। यह विभाजन जगत् मोनेरा का आधार बना जिसके अन्तर्गत सभी प्रोकैरियोटस को रखा गया है।

(2) इसके बाद यूकैरियोट्स को एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय के आधार पर बाँटा गया। एककोशिकीय यूकैरियोट्स को प्रोटिस्टा के अन्तर्गत रखा गया तथा बहुकोशिकीय यूकैरियोट्स के अन्तर्गत फंजाई, प्लांटी तथा एनीमेलिया को सम्मिलित किया।

(3) अब इनमें से एनीमेलिया को कोशिका भित्ति की अनुपस्थति के कारण पृथक् कर लिया गया।

(4) शेष बचे फँजाई एवं प्लांटी को पोषण विधि के आधार पर अलग कर दिया गया। फंजाई में विषमपोषी पोषण पाया जाता है जबकि प्लांटी में स्वपोषी पोषण इस प्रकार पाँच जगत् वर्गीकरण की आधारशिला रखी गई।

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प्रश्न 4.
पादप जगत् के प्रमुख वर्ग कौन-से हैं ? इस वर्गीकरण का क्या आधार है ?
उत्तर:
पादप जगत् के प्रमुख वर्ग हैं-थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा, टेरिडोफाइटा, जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म। इस वर्गीकरण में प्रथम स्तर का वर्गीकरण इस तथ्य पर आधारित है कि पादप शरीर के मुख्य घटक पूर्णरूपेण विकसित तथा विभेदित हैं अथवा नहीं। वर्गीकरण के अगले स्तर में पादप शरीर में जल और अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशेष ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति है। तत्पश्चात् यह देखा गया कि पौधों में बीज धारण की क्षमता है या नहीं। यदि बीज धारण की क्षमता है तो क्या बीज फल के अन्दर विकसित हुए हैं या नहीं।

प्रश्न 5.
जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है ?
उत्तर:
पौधों के वर्गीकरण का आधार है –

  1. विभेदित/अविभेदित पादप शरीर।
  2. संवहनी ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति।
  3. बीजों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति।
  4. नग्न बीज अथवा फल के अन्दर बन्द बीज।

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जन्तुओं के वर्गीकरण के निम्न आधार हैं सर्वप्रथम जगत् एनीमेलिया को नोटोकॉर्ड की उपस्थिति और अनुपस्थिति के आधार पर दो भागों-कॉर्डेटा तथा नॉन-कॉर्डेटा में बाँटा गया है।
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नॉन-कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है। इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुनः उपवर्गों में बाँटा गया है

  1. कोशिकीय/ऊतक स्तर का शरीर गठन
  2. देहगुहा की उपस्थिति/अनुपस्थिति
  3. शरीर की सममिति का प्रकार
  4. देहगुहा के विकास के प्रकार
  5. वास्तविक देहगुहा के प्रकार

उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन-कॉर्डेटा को संघों- पोरीफेरा, सीलेण्ट्रेटा, प्लेटीहेल्मिन्थीज, निमेटोडा, एनीलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है।
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कॉर्डेटा के सभी सदस्यों में नोटोकॉर्ड पायी जाती है। कुछ जन्तुओं जैसे बैलेनोग्लोसस, एम्फिऑक्सस एवं हर्डमानिया में नोटोकार्ड या तो अनुपस्थित होती है या पूरी लम्बाई में नहीं होती, इस कारण इन जन्तुओं को एक पृथक् उपसंघ-प्रोटोकॉर्डेटा में रखा गया है तथा शेष सभी जन्तु जिनमें पूर्ण विकसित नोटोकार्ड होती है, उप-संघ-कशेरुकी के अन्तर्गत रखे गये हैं। उपवर्ग कशेरुकी को पाँच वर्गों-मत्स्य, जल-स्थलचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में विभाजित किया गया है।
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प्रश्न 6.
वर्टीब्रेटा (कशेरुक प्राणी) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वर्टीब्रेटा को पाँच वर्गों-मत्स्य, जल-स्थल चर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में बाँटा गया है।
(1) वर्ग-मत्स्य-इस वर्ग में जीवों का शरीर धारारेखीय होता है। श्वसन क्लोम द्वारा होता है। ये असमतापी जीव हैं जिनका हृदय द्विकक्षीय होता है। जैसे-विभिन्न प्रकार की मछलियाँ।

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(2) वर्ग-जल-स्थलचर-ये जीव जल एवं स्थल दोनों में रहने के लिए अनुकूलित होते हैं। त्वचा चिकनी होती है जिस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। इनका हृदय कक्षीय होता है। अण्डे देने के लिए जल आवश्यक होता है।

(3) वर्ग-सरीसृप-इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है। इनका हृदय,सामान्यतः त्रिकक्षीय (मगरमच्छ का चार कक्षीय) होता है। सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह । सकते हैं। किन्तु अण्डे स्थल पर ही देते हैं। उदा.-छिपकली, सर्प, कछुए आदि।

(4) वर्ग-पक्षी-इनका शरीर परों से ढका होता है। अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं। हृदय चार कक्षीय होता है। उदा.-विभिन्न पक्षी; जैसे-कबूतर, मैना आदि।

(5) वर्ग-स्तनी-शरीर पर बाल पाये जाते हैं। शिशुओं को जन्म देते हैं। इकिड्ना तथा प्लेटिपस अण्डे देते हैं। बाह्य कर्ण होते हैं। नवजात के पोषण हेतु स्तन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। हृदय चार कक्षीय होता है। उदा.- गाय, बकरी, मनुष्य आदि।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

BSEB Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 9 Science ऊतक  InText Questions and Answers

प्रश्न शृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 77)

प्रश्न 1.
ऊतक क्या है ?
उत्तर:
कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य समान हों, ऊतक कहलाता है।

प्रश्न 2.
बहुकोशिकीय जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है?
उत्तर:
ऊतकों द्वारा अंग एवं अंगतन्त्रों का निर्माण होता है।

प्रश्न शृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 81)
प्रश्न 1.
प्रकाश-संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है ?
उत्तर:
प्रकाश-संश्लेषण के लिए कार्बन डाइ-ऑक्साइड गैस की आवश्यकता होती है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 2.
पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पौधों में वाष्पोत्सर्जन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं –

  1. इसके द्वारा पौधों का तापमान नियन्त्रित रहता है। .
  2. यह पौधों के जल अवशोषण की क्रिया को प्रभावित करता है।
  3. इसके द्वारा पौधों को खनिज लवणों के अवशोषण एवं रसारोहण में सहायता मिलती है।
  4. वाष्पोत्सर्जन से फलों में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 83)

प्रश्न 1.
सरल ऊतकों के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर:
सरल ऊतकों के तीन प्रकार हैं –

  1. पैरेन्काइमा
  2. कॉलेन्काइमा, तथा
  3. स्क्लेरेन्काइमा।

प्रश्न 2.
प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाया | जाता है ?
उत्तर:
प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक जड़ों एवं तनों के वृद्धि वाले भाग में विद्यमान रहता है।

प्रश्न 3.
नारियल का रेशा किस ऊतक का बना होता है ?
उत्तर:
नारियल का रेशा स्क्लेरेन्काइमा ऊतक का बना होता है।

प्रश्न 4.
फ्लोएम के संघटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
फ्लोएम के चार संघटक हैं –

  1. चालनी नलिका
  2. सखी कोशिकाएँ
  3. फ्लोएम पैरेन्काइमा, तथा
  4. फ्लोएम रेशे।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न शृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 87)

प्रश्न 1.
उस ऊतक का नाम बताएँ जो हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है।
उत्तर:
पेशीय ऊतक हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी

प्रश्न 2.
न्यूरॉन देखने में कैसा लगता है ?
उत्तर:
न्यूरॉन तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। इसमें प्रमुख रूप से दो भाग होते हैं-कोशिकाकाय तथा कोशिका प्रवर्ध। कोशिकाकाय, न्यूरॉन का प्रमुख भाग होता है जिसमें कोशिकाद्रव्य से घिरा हुआ एक गोल केन्द्रक पाया जाता है। कोशिकाकाय से एक या एक से अधिक छोटे-बड़े कोशिकीय प्रवर्ध निकलते हैं। ये भी दो प्रकार के होते हैं-डेन्ट्राइट्स (बहुत सारे छोटी शाखा वाले प्रवर्ध) तथा एक्सॉन (प्रायः एक लम्बा प्रवर्ध)।

प्रश्न 3.
हृदय पेशी के तीन लक्षणों को बताएँ।
उत्तर:
हृदय पेशी के लक्षण –

  1. इन पेशियों में रेखित एवं अरेखित दोनों प्रकार की पेशियों के गुण पाये जाते हैं।
  2. दो हृदय पेशियों के जुड़ने के स्थान पर अन्तर्विष्ट पट्टियाँ पायी जाती हैं।
  3. इन पेशियों की कोशिकाएँ शाखान्वित होती हैं।

प्रश्न 4.
एरिओलर ऊतक के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
एरिओलर ऊतक अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है, आन्तरिक अंगों को सहारा देता है तथा ऊतकों की मरम्मत में सहायक है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

क्रियाकलाप 6.1 (पृष्ठ संख्या 77)

प्रश्न 1.
किस जार में रखी हुई प्याज की मूल लम्बी है ?
उत्तर:
जार-1 में रखी हुई प्याज की।

प्रश्न 2.
हमारे द्वारा मूल के ऊपरी हिस्से को काट लेने के बाद भी क्या वह वृद्धि करती रहती है ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 3.
जब हम जार-2 में रखी प्याज की मूल के ऊपरी हिस्से को काटते हैं तो वे वृद्धि करना बन्द कर देंगी, क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि मूल के ऊपरी हिस्से में शीर्षस्थ विभज्योतक पाया जाता है। इस ऊतक में विभाजन की क्षमता होती है जिसमें विभाजन से मूल की लम्बाई में वृद्धि होती है। इसको काट देने से विभाजित की क्षमता समाप्त हो जाती है तथा मूल वृद्धि करना बन्द कर देती है।

क्रियाकलाप 6.2 (पृष्ठ संख्या 78)

प्रश्न 4.
क्या सभी कोशिकाओं की संरचनाएँ समान हैं ?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 5.
कितने प्रकार की कोशिकाओं को देखा जा सकता है ?
उत्तर:
सामान्यतः तीन प्रकार की कोशिकाएँ दिखाई देती हैं –

  1. पैरेन्काइमा
  2. कॉलेन्काइमा, तथा
  3. स्क्लेरेन्काइमा।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 6.
क्या हम उन कारणों पर विचार कर सकते हैं कि कोशिकाओं के इतने प्रकार क्यों हैं ?
उत्तर:
पेरेन्काइमा कोशिकाएँ- ये अण्डाकार या गोलाकार, पतली भित्ति वाली जीवित कोशिकाएँ हैं जो पौधों के मुलायम हिस्सों में पायी जाती हैं। दो कोशिकाओं के मध्य अन्तर कोशिकीय अवकाश होता है। इनका मुख्य कार्य भोजन संचय है। कॉलेन्काइमा कोशिकाएँ-ये भी जीवित कोशिकाएँ हैं जो। अनियमित रूप से कोनों पर मोटी होती हैं।

कोनों पर मोटी होने के कारण इनके अन्तरकोशिकीय अवकाश बहुत कम हो जाते। हैं। ये पौधे को लचीला बनाती हैं। स्क्लेरेन्काइमा कोशिकाएँ-ये कोशिकाएँ मृत होती हैं। ये लम्बी एवं पतली होती हैं लेकिन कोशिकाओं की भित्ति लिग्निन के जमा होने के कारण मोटी होती है। ये तने के संवहन बण्डल के पास के ऊतकों में पायी जाती हैं। ये पौधे के अंगों को दृढ़ता एवं कठोरता प्रदान करती हैं तथा उसे यांत्रिक सहारा देती है।

Bihar Board Class 9 Science ऊतक Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ऊतक को परिभाषित करें।
उत्तर:
कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य समान हों, ऊतक कहलाता है।

प्रश्न 2.
कितने प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं ? इनके नाम बताइए।
उत्तर:
निम्नलिखित चार प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं –

  1. जाइलम ट्रेकीड्स (वाहिनिकाएँ)
  2. जाइलम वाहिका
  3. जाइलम पैरेन्काइंमा, तथा
  4. जाइलम फाइबर।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 3.
पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
पौधों में सरल ऊतकों में एक ही प्रकार की कोशिकाएँ मिलकर किसी कार्य को सम्पन्न करती हैं जबकि जटिल ऊतक में दो से अधिक प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं तथा सभी मिलकर। सामूहिक रूप से एक कार्य करती हैं।

प्रश्न 4.
कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा, कॉलेन्काइमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट करें।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 5.
रन्ध्र के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
(1) वायुमण्डल से गैसों का आदान-प्रदान रन्ध्रों द्वारा होता है।
(2) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी रन्ध्रों द्वारा होती है।

प्रश्न 6.
तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 7.
कार्डियक (हृदयक) पेशी का विशेष कार्य क्या है ?
उत्तर:
ये पेशियाँ प्राणी के सम्पूर्ण जीवनकाल तक सक्रिय बनी रहती हैं। इनमें क्रमिक संकुचन लगातार होता रहता है परन्तु थकान नहीं होती जिसके कारण हृदय जीवनपर्यन्त धड़कता रहता है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 8.
रेखित, अरेखित तथा कार्डियक (हृदयक) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 9.
न्यूरॉन का एक चिह्नित चित्र बनाएँ।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 10.
निम्नलिखित के नाम लिखिए –
(a) ऊतक जो मुँह के भीतरी अस्तर का निर्माण करता है।
(b) ऊतक जो मनुष्य में पेशियों को अस्थि से जोड़ता है।
(c) ऊतक जो पौधों में भोजन का संवहन करता है।
(d) ऊतक जो हमारे शरीर में वसा का संचय करता है।
(e) तरल अधात्री सहित संयोजी ऊतक।
(f) मस्तिष्क में स्थित ऊतक।
उत्तर:
(a) शल्की एपिथीलियम
(b) पेशीय (ऐच्छिक पेशी) ऊतक
(c) फ्लोएम
(d) वसामय ऊतक
(e) रक्त
(f) तन्त्रिका ऊतक।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में ऊतक के प्रकार की पहचान करें त्वचा, पौधे का वल्क, अस्थि, वृक्कीय नलिका अस्तर, संवहन बण्डल।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 12.
पैरेन्काइमा ऊतक किसे क्षेत्र में स्थित होते हैं ?
उत्तर:
जड़ एवं तने के भोजन संग्रह करने वाले भागों में पैरेन्काइमा ऊतक पाया जाता है। इसके अतिरिक्त पौधों के ऐसे अंग जो प्रकाश-संश्लेषण में सहायक हैं तथा जल में तैरने वाले पौधों के विभिन्न भागों में भी पैरेन्काइमा ऊतक पाया जाता है।

प्रश्न 13.
पौधों में एपिडर्मिस की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
एपिडर्मिस पौधों का रक्षात्मक स्तर है। यह जल हानि के विरुद्ध, यान्त्रिक आघात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है।

प्रश्न 14.
छाल (कॉक) किस प्रकार सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करता है ?
उत्तर:
छाल एक बहु परतों वाला मृत कोशिकाओं का आवरण होता है जिसमें अन्त:कोशिकीय स्थानों का अभाव होता है तथा इसकी भित्ति पर सुबेरिन नामक रसायन का आवरण होता है। यह छाल को हवा एवं पानी के लिए तो अभेद्य बनाता ही है, साथ-ही-साथ विभिन्न परजीवी एवं कवकों के प्रवेश को भी निषेध करता है। इस प्रकार यह एक सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करता है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

प्रश्न 15.
निम्न दी गई तालिका को पूर्ण करें –
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 6 ऊतक

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

BSEB Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 9 Science क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं InText Questions and Answers

प्रश्न श्रृंखला # 01 (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 1.
पदार्थ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
एक या एक से अधिक शुद्ध तत्वों या यौगिकों से मिलकर बना मिश्रण पदार्थ कहलाता है। किसी पदार्थ को अन्य प्रकार के तत्वों में भौतिक प्रक्रम द्वारा पृथक् नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अन्तर बताएँ।
उत्तर:
समांगी मिश्रण वह मिश्रण होता है जिसके अवयवों को पृथक रूप से नहीं देखा जा सकता अथवा जिसकी बनावट समान होती है। उदाहरण-जल में नमक व जल में चीनी का विलयन। विषमांगी मिश्रण के अंश भौतिक दृष्टि से पृथक् होते हैं। उदाहरण-सोडियम क्लोराइड व लोहे की छीलन, नमक व सल्फर, जल एवं तेल का मिश्रण।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

प्रश्न श्रृंखला # 02 (पृष्ठ संख्या 20) 

प्रश्न 1.
उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

प्रश्न 2.
विलयन, निलम्बन और कोलाइड एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ?
उत्तर:
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं

प्रश्न 3.
एक संतृप्त विलयन बनाने के लिए 36g सोडियम क्लोराइड को 100 g जल में 293 K पर घोला जाता है। इस तापमान पर इसकी सान्द्रता प्राप्त करें।
हल :
विलेय पदार्थ (सोडियम क्लोराइड) का
द्रव्यमान = 36 g
विलायक (जल) का द्रव्यमान = 100 g
हम जानते हैं, विलयन का द्रव्यमान = विलेय पदार्थ का द्रव्यमान + विलायक का द्रव्यमान
= 36 + 100
= 136g
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं
उत्तर:
= 26-47%

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

प्रश्न श्रृंखला # 03 (पृष्ठ संख्या 26)

प्रश्न 1.
पेट्रोल और मिट्टी का तेल (Kerosene oil) जो कि आपस में घुलनशील हैं, के मिश्रण को आप कैसे पृथक् करेंगे। पेट्रोल तथा मिट्टी के तेल के क्वथनांकों में 25°C से अधिक का अन्तराल है।
उत्तर:
पेट्रोल व मिट्टी के तेल को साधारण आसवन विधि द्वारा पृथक् किया जा सकता है क्योंकि मिट्टी का तेल व पेट्रोल गर्म करने पर विघटित नहीं होते व उनके क्वथनांकों के बीच काफी अधिक अन्तराल है।

प्रश्न 2.
पृथक् करने की सामान्य विधियों के नाम दें –

  1. दही से मक्खन
  2. समुद्री जल से नमक
  3. नमक से कपूर।

उत्तर:

  1. दही से मक्खन-अपकेन्द्रन।
  2. समुद्री जल में नमक-आसवन विधि।
  3. नमक से कपूर-ऊर्ध्वपातन विधि।

प्रश्न 3.
क्रिस्टलीकरण विधि से किस प्रकार के मिश्रणों को पृथक् किया जा सकता है ?
उत्तर:
क्रिस्टलीकरण विधि का प्रयोग ठोस पदार्थों को शुद्ध करने में किया जाता है। क्रिस्टलीकरण वह विधि है जिसके द्वारा क्रिस्टल के रूप में शुद्ध ठोस को विलयन से पृथक् किया जाता है। उदाहरण के लिए समुद्री जल से प्राप्त नमक की अशुद्धियों को दूर करने के लिए क्रिस्टलीकरण विधि का प्रयोग किया जाता है।

Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 1 हमारे आस-पास के पदार्थ

प्रश्न शृंखला # 04 (पृष्ठ संख्या 27)

प्रश्न 1.
निम्न को रासायनिक और भौतिक परिवर्तनों में वर्गीकृत करें

  1. पेड़ों को काटना
  2. मक्खन का एक बर्तन में पिघलना
  3. अलमारी में जंग लगना
  4. जल का उबलकर वाष्प बनना
  5. विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा उसका
  6. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना
  7. जल में साधारण नमक का घुलना
  8. फलों से सलाद बनाना तथा
  9. लकड़ी और कागज का जलना।

उत्तर:
भौतिक परिवर्तन –

  1. मक्खन का एक बर्तन में पिघलना।
  2. जल का उबलकर वाष्प बनना।
  3. जल में साधारण नमक का घुलना।
  4. फलों से सलाद बनना।
  5. पेड़ों का काटना।

रासायनिक परिवर्तन –

  1. अलमारी में जंग लगना। .
  2. विद्युत तरंग का जल में प्रवाहित होना तथा हाइड्रोजन और ऑक्सीजन गैसों में विघटित होना।
  3. लकड़ी और कागज का जलना।

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प्रश्न 2.
अपने आस-पास की चीजों को शुद्ध पदार्थों या मिश्रण से अलग करने का प्रयत्न करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

क्रियाकलाप 2.2 (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 1.
छात्रों को काँच की छड़ की सहायता से नमूनों को जल में मिलाने को कहें। क्या कण जल में दिखाई देते हैं ?
उत्तर:
समूह ‘अ’, ‘ब’ व ‘द’ के मिश्रण के कण जल में दिखाई नहीं देते किन्तु समूह ‘स’ के मिश्रण के कण जल में दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
अब टॉर्च से प्रकाश की किरण को बीकर पर डालें और इसको सामने से देखें। क्या प्रकाश की किरण का मार्ग दिखाई देता है ?
उत्तर:
समूह ‘स’ व ‘द’ के मिश्रण में प्रकाश का मार्ग दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 2.
अब मिश्रण को कुछ समय तक शांत छोड़ दें। इस बीच मिश्रण छानने वाले उपकरण को तैयार कर लें। क्या मिश्रण स्थिर है या कुछ समय के बाद कण नीचे बैठना शुरू करते हैं ?
उत्तर:
समूह ‘स’ के मिश्रण के कण कुछ समय बाद नीचे बैठना शुरू करते हैं व समूह ‘अ’, ‘ब’ व ‘द’ का मिश्रण स्थिर है।

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प्रश्न 3.
मिश्रण को छान लें। क्या छानक पत्र पर कुछ शेष बचा है ?
उत्तर:
समूह ‘स’ के मिश्रण को छानने पर छानक पत्र पर चॉक का चूर्ण या गेहूँ का आटा एकत्रित होता है व अन्य मिश्रणों को छानने पर छानक पत्र पर कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

क्रियाकलाप 2.4 (पृष्ठ संख्या 20)

प्रश्न 1.
आपके विचार में वॉच ग्लास पर से किसका वाष्पीकरण हुआ?
Fe + H2SO4 → FeSO4+ H2(g)
Fe + 2HCl → FeCl2 + H2(g)
समूह II द्वारा प्राप्त गैस हाइड्रोजन सल्फाइड है। यह रंगहीन गैस है और इसकी गंध सड़े हुए अंडे जैसी है।
FeS + H2SO4 → FeSO4 + H2S↑
Fes + 2HCl → FeCl2 + H2S↑

Bihar Board Class 9 Science हमारे आस-पास के पदार्थ Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित को पृथक् करने में आप किन विधियों को अपनायेंगे?

  1. सोडियम क्लोराइड को जल के विलयन से पृथक् करने में,
  2. अमोनियम क्लोराइड को सोडियम क्लोराइड तथा अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से पृथक् करने में,
  3. धातु के छोटे टुकड़ों को कार के इंजन ऑयल से पृथक् करने में,
  4. दही से मक्खन निकालने के लिए
  5. जल से तेल निकालने के लिए
  6. चाय से चाय की पत्तियों को पृथक करने में,
  7. बालू से लोहे की पिनों को पृथक् करने में
  8. भूसे से गेहूँ के दानों को पृथक करने में,
  9. पानी में तैरते हुए महीन मिट्टी के कण को पानी से अलग करने के लिए,
  10. पुष्प की पंखुड़ियों के निचोड़ से विभिन्न रंजकों को पृथक् करने में।

उत्तर:

उपर्युक्त को पृथक् करने के लिए हम निम्न विधियों को अपनायेंगे

  1. सोडियम क्लोराइड को जल के विलयन से पृथक् करने में-वाष्पीकरण।
  2. अमोनियम क्लोराइड को सोडियम क्लोराइड तथा अमोनियम क्लोराइड के मिश्रण से पृथक् करने में-ऊर्ध्वपातन।
  3. धातु के छोटे टुकड़े को कार के इंजन ऑयल से पृथक करने में-छानन/अपकेन्द्रन/संघनन।
  4. दही से मक्खन निकालने के लिए-अपकेन्द्रन।
  5. जल से तेल निकालने के लिए-पृथक्करण कीप द्वारा।
  6. चाय से चाय की पत्तियों को पृथक् करने में-छानन विधि।
  7. बालू से लोहे की पिनों को पृथक् करने में-चुम्बकीय विधि।
  8. भूसे से गेहूँ के दानों को पृथक् करने में-निष्पावन (Winnowing)
  9. पानी में तैरते हुए महीन मिट्टी के कण को पानी से अलग करने के लिए-अपकेन्द्रन।
  10. पुष्प की पंखुड़ियों के निचोड़ से विभिन्न रंजकों को पृथक करने में-क्रोमैटोग्राफी।

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प्रश्न 2.
चाय तैयार करने के लिए आप किन-किन चरणों का प्रयोग करेंगे। विलयन, विलायक, विलेय,घुलना, घुलनशील, अघुलनशील, घुलेय (फिल्ट्रेट) तथा अवशेष शब्दों का प्रयोग करें।
उत्तर:
सर्वप्रथम पानी को विलायक के रूप में लेंगे। फिर पानी को उबालेंगे। उसके पश्चात् दूध व चाय की पत्तियों को विलेय के रूप में डालकर उसे घुलना की सहायता से मिलायेंगे। इससे एक विलयन तैयार हो जायेगा। अब इस विलयन को छानेंगे। अघुलनशील पदार्थ (चाय की पत्तियाँ) छननी में अवशेष के रूप में रह जायेंगी। चीनी को अब प्राप्त घुलेय (फिल्ट्रेट) में डालेंगें जो कि उसमें घुलनशील है। प्राप्त विलयन चाय है।

प्रश्न 3.
प्रज्ञा ने तीन अलग-अलग पदार्थों की घुलनशीलताओं को विभिन्न तापमान पर जाँचा तथा नीचे दिए गए आंकड़ों को प्राप्त किया। प्राप्त हुए परिणामों को 100 g जल में विलेय पदार्थ की मात्रा, जो संतृप्त विलयन बनाने हेतु पर्याप्त है, निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 9 Science Solutions Chapter 2 क्या हमारे आस-पास के पदार्थ शुद्ध हैं
(a)50g जल में 313 K पर पोटैशियम नाइट्रेट के संतृप्त विलयन को प्राप्त करने हेतु कितने ग्राम पोटैशियम नाइट्रेट की आवश्यकता होगी?

(b) प्रज्ञा 353K पर पोटैशियम क्लोराइड का एक संतृप्त विलयन तैयार करती है और विलयन को कमरे के तापमान पर ठंडा होने के लिए छोड़ देती है। जब विलयन ठंडा होगा तो वह क्या अवलोकित करेगी ? स्पष्ट करें।

(c) 293 K पर प्रत्येक लवण की घुलनशीलता का परिकलन करें। इस तापमान पर कौन-सा लवण सबसे अधिक घुलनशील होगा ?

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(d) तापमान में परिवर्तन से लवण की घुलनशीलता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
(a) चूँकि 62 g पोटैशियम नाइट्रेट 100 g जल में संतृप्त विलयन प्राप्त करने के लिए घुल रहा है 313 K पर, अतः 31g पोटैशियम नाइट्रेट 50 g जल में 313 K पर संतृप्त विलयन प्राप्त करने के लिए घुलना चाहिए।

(b) ताप बढ़ने के साथ संतृप्त विलयन प्राप्त करने के लिए जो पोटैशियम क्लोराइड की मात्रा है, वह बढ़ती है। अतः जब विलयन को ठण्डा करेंगे तो पोटैशियम नाइट्रेट की कुछ मात्रा प्राप्त (Precipitate) होगी।

(c) 293 K पर लवणों की घुलनशीलता निम्न हैं –
पोटैशियम नाइट्रेट – 32 g
सोडियम क्लोराइड – 36 g
पोटैशियम क्लोराइड – 35 g
अमोनियम क्लोराइड – 37 g
अतः अमोनियम क्लोराइड 293 K पर सबसे अधिक घुलनशील है।

(d) तापमान बढ़ने के साथ घुलनशीलता बढ़ती है।

प्रश्न 4.
निम्न की उदाहरण सहित व्याख्या करें –
(a) संतृप्त विलयन
(b) शुद्ध पदार्थ
(c) कोलाइड
(d) निलम्बन।
उत्तर:
(a) संतृप्त विलयन – दिए गए निश्चित तापमान पर यदि विलयन में विलेय पदार्थ नहीं घुलता है तो उसे संतृप्त विलयन कहते हैं। किसी निश्चित ताप पर उतना ही विलेय पदार्थ घुल सकता है जितनी कि विलयन की क्षमता होती है। चीनी व जल का विलयन °C पर एक संतृप्त विलयन होता है क्योंकि इस ताप पर चीनी और अधिक जल में नहीं घुलती।

(b) शुद्ध पदार्थ – एक शुद्ध पदार्थ वह पदार्थ होता है जिसमें मौजूद सभी कण समान रासायनिक प्रकृति के होते हैं। एक शुद्ध पदार्थ एक ही प्रकार के कणों से मिलकर बना होता है। उदाहरण धातुएँ-सोना, चाँदी, आदि। अधातुएँ-हाइड्रोजन, क्लोरीन, ऑक्सीजन, चीनी, आदि।

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(c) कोलाइड – कोलाइड वह मिश्रण होता है जिसके कण विलयन में समान रूप से फैले रहते हैं। यह एक विषमांगी मिश्रण होता है। इसके कणों का आकार इतना छोटा होता है कि ये पृथक् रूप से आँखों से नहीं देखे जा सकते। जब इनको शान्त छोड़ दिया जाता है तब ये तल पर बैठते हैं अर्थात् स्थायी होते हैं। ये छानन विधि द्वारा मिश्रण से पृथक् नहीं किये जा सकते किन्तु एक विशेष विधि अपकेन्द्रीकरण तकनीक द्वारा पृथक किये जा सकते हैं। उदाहरण-दूध, कोहरा, धुआँ आदि।

(d) निलम्बन – निलम्बन एक विषमांगी मिश्रण है जिसमें विलेय पदार्थ कण घुलते नहीं हैं बल्कि माध्यम की समष्टि में निलम्बित रहते हैं। ये निलम्बित कण आँखों से देखे जा सकते हैं। जब इसे शान्त छोड़ देते हैं तब ये कण नीचे की ओर बैठ जाते हैं अर्थात् निलम्बन अस्थायी होता है। छानन विधि द्वारा इन कणों को मिश्रण से पृथक् किया जा सकता है। उदाहरण-गंदला जल तथा बालू, मिट्टी एवं जल का मिश्रण।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक को समांगी और विषमांगी मिश्रणों में वर्गीकृत करें सोडा जल, लकड़ी, बर्फ, वायु, मिट्टी, सिरका, छनी हुई चाय।
उत्तर:
समांगी मिश्रण-बर्फ, सिरका, छनी हुई चाय, सोडा जल, वायु (शुद्ध वायु समांगी है व अशुद्ध वायु विषमांगी) है। विषमांगी मिश्रण-मिट्टी, लकड़ी।

प्रश्न 6.
आप किस प्रकार पुष्टि करेंगे कि दिया हुआ रंगहीन द्रव शुद्ध जल है ?
उत्तर:
रंगहीन द्रव को एक परखनली में लेकर गर्म करें। यदि यह 100°C पर उबलने लगे तो यह शुद्ध जल है। कोई भी दूसरा रंगहीन पदार्थ; जैसे-सिरका, 100°C पर नहीं उबलता। यह भी नोट कीजिए कि कुछ समय पश्चात् द्रव वाष्पीकृत हो जाएगा व कुछ भी शेष (residue) नहीं बचेगा।

प्रश्न 7.
निम्न में से कौन-सी वस्तुएँ शद्ध पदार्थ हैं –
(a) बर्फ
(b) दूध
(c) लोहा
(d) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
(e) कैल्शियम ऑक्साइड
(f) पारा
(g) ईंट
(h) लकड़ी
(i) वायु।
उत्तर:
निम्न वस्तुएँ शुद्ध मानी जाती हैं –
(a) बर्फ
(c) लोहा
(d) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल
(e) कैल्शियम ऑक्साइड
(f) पारा।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित मिश्रणों में से विलयन की पहचान करें –
(a) मिट्टी
(b) समुद्री जल
(c) वायु
(d) कोयला
(e) सोडा जल।
उत्तर:
निम्न मिश्रण विलयन हैं –
(b) समुद्री जल
(c) वायु
(e) सोडा जल।

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन टिण्डल प्रभाव को प्रदर्शित करेगा?
(a) नमक का घोल
(b) दूध
(c) कॉपर सल्फेट विलयन
(d) स्टार्च विलयन।
उत्तर:
कोलॉइड विलयन टिण्डल प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। यहाँ दूध व स्टार्च विलयन कोलॉइड हैं। अतः ये टिण्डल प्रभाव प्रदर्शित करेंगे।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित को तत्व, यौगिक तथा मिश्रण में वर्गीकृत कीजिए
(a) सोडियम
(b) मिट्टी
(c) चीनी का घोल
(d) चाँदी
(e) कैल्सियम कार्बोनेट
(f) टिन
(g) सिलिकन
(h) कोयला
(i) वायु
(j) साबुन
(k) मीथेन
(l) कार्बन डाइऑक्साइड
(m) रक्त।
उत्तर:
तत्व – सोडियम, चाँदी, टिन व सिलिकन।
यौगिक – कैल्सियम कार्बोनेट, मीथेन व कार्बन डाइऑक्साइड।
मिश्रण – मिट्टी, चीनी, कोयला, वायु, साबुन व रक्त।

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन से परिवर्तन रासायनिक
(a) पौधों की वृद्धि
(b) लोहे में जंग लगना
(c) लोहे के चूर्ण तथा बालू को मिलाना
(d) खाना पकाना
(e) भोजन का पाचन
(f) जल से बर्फ बनना
(g) मोमबत्ती का जलना।
उत्तर:
निम्न परिवर्तन रासायनिक हैं –
(a) पौधों में वृद्धि
(b) लोहे में जंग लगना
(d) खाना पकाना
(e) भोजन का पाचन
(g) मोमबत्ती का जलना।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म द्वारा प्रयोग किए गए साधनों एवं उत्पादित की गई मात्रा के संबंध को उत्पादन फलन कहते हैं। प्रयोग किए गए साधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पन्न होती है। संसाधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा का निर्धारण तकनीकी के आधार पर होता है। उत्पादन तकनीकी में सुधार होने पर उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
एक आगत का कुल उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
अन्य साधन आगतों के स्थिर रहने पर परिवर्तनशील साधन और उत्पाद के संबंध को कुल उत्पाद के रूप में परिभाषित किया जाता है। गणितीय रूप में कुल उत्पादन का निरूपण निम्न प्रकार किया जाता है –
y = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) जहाँ y कुल उत्पादक परिवर्ती साधन है तथा \(\overline{x_{2}}\), स्थिर साधन। अथवा एक निश्चित समय अवधि में अन्य साधनों को समान रखकर परिवर्तनशील साधन की इकाइयों से फर्म को जितना उत्पादन प्राप्त होता है उसे कुल उत्पादन कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक आगत का औसत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्तनशील साधन से प्राप्त उत्पादन को औसत उत्पाद कहते हैं।
AP1 = \(\frac { TP_{ 1 } }{ x_{ 1 } } \) = \(\frac{f\left(x_{1}, \bar{x}_{2}\right)}{x_{1}}\)
जहाँ AP1 = एक साधन का औसत उत्पाद
TP1 = कुल उत्पाद
x1 = परिवर्तनशील आगत
\(\overline{x_{2}}\) = स्थिर आगत

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 4.
एक आयत का सीमान्त उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने पर कुल उत्पाद में जितनी बढ़ोतरी होती है, उसे सीमान्त कहते हैं।
गणितीय रूप में सीमान्त उत्पाद को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है –
MP1 = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) – ∫(x1 – 1, \(\bar{x}_{2}\))
MP2 = TP at (x1 units) – TP at (x1 – units)

प्रश्न 5.
एक आगत के सीमान्त उत्पाद तथा कुल उत्पाद के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व बढ़ने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व घटने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पाद घटता है।

प्रश्न 6.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाकर उत्पादन करती हैं। दूसरे वाक्यों में अल्पकाल में फर्म केवल परिवर्ती साधन को बढ़ाकर उत्पादन स्तर में परिवर्तन करती है। दीर्घकाल में दो या दो से अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करके फर्म उत्पादन का पैमाना बदलती है।

इस अवधि में कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता है सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। किसी भी उत्पादन प्रक्रिया के लिए दीर्घकाल, अल्पकाल के अपेक्षाकृत एक लम्बी समय अवधि होती है। अलग-अलग उत्पादन प्रक्रियाओं के लिए दीर्घकाल में अलग-अलग अवधि होती है। अल्प एवं दीर्घकाल दोनों को ही घण्टा, दिन, सप्ताह, मास, एवं वर्ष के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है। ये समय अवधियाँ इस बात से निर्धारित होती हैं कि सभी साधनों में परिवर्तन हो सकता है या नहीं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 7.
हासमान सीमान्त का नियम क्या है?
उत्तर:
हासमान सीमान्त उत्पाद नियम यह दर्शाता है कि रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद एक साधन का सीमान्त उत्पाद घटता है। जब परिर्वनशील साधन की इकाइयाँ अत्यधिक हो जाती है तो सीमान्त उत्पाद शून्य एवं ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह स्पष्ट करता है कि जब परिवर्ती साधन की इकाइयों का रोजगार स्तर कम होता है तो सीमान्त उत्पाद है लेकिन रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद साधन का सीमान्त उत्पाद घटने लगता है।

प्रश्न 9.
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का स्थिर प्रतिफल का नियम-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में ये अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों से अनुपातिक वृद्धि के समान बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 10.
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का वधमान प्रतिफल:
दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 11.
एक उत्पादन फलन हासमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का हासमान प्रतिफल-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से कम बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का हासमान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 12.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म के लिए उत्पादन व लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं। साधनों की दी गई कीमतों पर एक फर्म साधनों के ऐसे संयोजन का चयन करती है जिसकी लगात न्यनतम होती है। दूसरे शब्दों में एक उत्पादन इकाई प्रत्येक उत्पादन स्तर के लिए न्यूनतम लागत वाले साधन संयोजनों का चुनाव करती है।

प्रश्न 13.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत था कुल लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत (TFC):
उत्पादन के स्थिर साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल स्थिर लागत कहते हैं। अल्प काल में उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर कुल स्थिर लागत सामान रहती है। दूसरे शब्दों में अल्पकाल में एक फर्म की कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है।

कुल परिवर्तनशील लागत (TVC):
उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल परिवर्तनशील लागत भिन्न-भिन्न होती है। दूसरे शब्दों में, एक उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लागत दूसरे उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लगात से भिन्न होती है।

कुल लागत:
कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनशील लागत के योग को कुल लागत कहते हैं।
TC = TFC + TVC

उत्पादन स्तर बढ़ाने के लिए फर्म को परिवर्ती साधन की इकाइयां को अधिक मात्रा में नियोजित करने की जरूरत पड़ती है। अतः कुल परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप कुल लागत में भी वृद्धि होती है परन्तु कुल स्थिर लागत रहती है।

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प्रश्न 14.
एक फर्म की औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC):
एक फर्म के लिए प्रति इकाई उत्पादन पर कुल स्थिर लागत को औसत स्थिर लागत कहते हैं।
AFC = \(\frac{TFC}{y}\)
जहाँ AFC = औसत स्थिर लागत, TFC = कुल स्थिर लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत परिवर्तनशील लागत (AVC):
एक फर्म को प्रति इकाई उत्पादन के लिए जितनी कुल परिवर्तनशील लागत वहन कमी पड़ती है उसे औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।
जहाँ AFC = औसत परिवर्तनशील लागत, TFC = कुल परिवर्तनशील लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत लागत (AC):
एक प्रति इकाई उत्पादन के लिए कुल जितनी लागत वहन करती है उसे औसत लागत कहते हैं।
जहाँ AC = औसत लागत, TC = कुल लागत, y = कुल उत्पादन
अथवा AC = \(\frac{TFC+TVC}{y}\) (∵TC = TFC + TVC)
अथवा AC = \(\frac{TFC}{y}\) + \(\frac{TVC}{y}\)
अथवा AC = AFC + AVC
अत: औसत स्थिर लागत एवं औसत परिवर्तशील लागत के योग को औसत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 15.
क्या दीर्घकाल में कुछ स्थिर लागत हो सकती है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, दीर्घकाल में कोई स्थिर लागत नहीं होती है क्योंकि इस अवधि में एक फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 16.
औसत लागत वक्र कैसा दिखता है? यह ऐसा क्यों दिखता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत व कुल उत्पादन के अनुपात को औसत स्थिर लागत कहते हैं। कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है। कुल उत्पादन (y) की मात्रा बढ़ाने पर औसत स्थिर लागत AFC घटती है। जब उत्पादन शून्य के निकटतम होता है तो औसत स्थिर लागत का मान अत्याधिक होता है। जैसे-जैसे कुल उत्पादन में वृद्धि होती है औसत स्थिर लागत शून्य की ओर जाती है परन्तु शून्य कभी-भी नहीं होती है। इस कारण AFC वक्र एक आयताकार हापरबोला (Rectangular Hyperbola) होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 1

प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमान्त लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र, औसत परिवर्तशील लागत वक्र तथा औसत लागत वक्र का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसे होता है। इन वक्रों के आकार साधन के वर्धमान प्रतिफल, समता प्रतिफल और हासमान प्रतिफल का उत्पादन प्रक्रिया में क्रमशः लागू होना है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 2

उत्पादन (इकाइयाँ) अल्पकालीन सीमान्त लागत व औसत परिवर्तनशील लागत में संबंध –

  1. जब तब AVC घटती है जब तक SMC का मान AVC से कम होता है।
  2. जब SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को काटता है तो उसे बिन्दु पर AVC का मान न्यूनतम होता है और SMC तथा AVC दोनों समान होती हैं।
  3. जैसे ही AVC ऊपर बढ़ने लगती है तो SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है।

अल्पकालीन सीमान्त लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत में संबंध –

  1. जब तक अल्पकालीन औसत लागत घटती है तब तक SMC, AC से कम रहती है।
  2. SMC व AC समान हो जाती है जब SMC वक्र AC वक्र को AC के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से ऊपर काटता है।
  3. जैसे ही SAC में वृद्धि होती है, SMC का स्तर, AC के स्तर से अधिक हो जाता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 18.
क्यों अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर?
उत्तर:
SMC एवं AVC के प्रतिच्छेदन बिन्दु से पूर्व AVC घटती है तथा SMC का मान AVC से कम होता है। प्रतिच्छेदन बिन्दु के दायीं ओर AVC बढ़ने लगती है तथा SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है। SMC वक्र AVC को नीचे से AVC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 3

प्रश्न 19.
किस बिन्दु पर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत को काटता है? अपने स्तर के समर्थन में कारण बताइए।
उत्तर:
SMC वक्र SAC वक्र को SAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है क्योंकि जब तक SAC घटती है, SMC, SAC से कम होती है। जब SAC में वृद्धि होती है तो SMC, SAC की तुलना में ज्यादा दर से बढ़ती है। SMC वक्र, SAC वक्र को नीचे से SAC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 4

प्रश्न 20.
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र ‘U’ के आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
आरम्भ में जब फर्म उत्पादन प्रक्रिया शुरू करती है तो सीमान्त लागत घटती है क्योंकि आरम्भ में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ नियोजित करने पर साधन का वर्धमान प्रतिफल फर्म को प्राप्त होता है। साधन की निश्चित इकाइयों के नियोजन तक ही सीमान्त लागत घटती है। इसके बाद फर्म को साधन का समता प्रतिफल प्राप्त होता है। अत: सीमान्त लागत स्थिर होने लगती है। अन्त में साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है इस अवस्था में सीमान्त लागत वक्र ऊपर उठाने लगता है। इस उत्पादन प्रक्रिया के आरंभिक चरण में सीतान्त लागत घटती है इसके बाद यह लगभग स्थिर होन लगती है और अन्तिम चरण में यह बढ़ने लगती है इसीलिए सीमान्त लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 5

प्रश्न 21.
दीर्घकालीन सीमान्त लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म उत्पादन प्रक्रिया में सभी साधनों को समायोजित कर सकती है। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर शुरू में पैमाने का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। इस स्थिति में उत्पादन की समान मात्रा का उत्पादन करने पर अपेक्षाकृत कम लागत आती है। फर्म जब तक उत्पादन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त करती है तब तक सीमान्त औसत लागत दोनों घटती हैं। इसके बाद समता प्रतिफल प्राप्त होता है अतः समान उत्पादन के लिए समान लागत आती है जिससे औसत व सीमानत लागत दोनों स्थिर हो जाती हैं। अंततः पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर सीमान्त व औसत लागत दोनों बढ़ती हैं। इसलिए सीमान्त व औसत लागत वक्रों का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
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प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका, श्रम का कुल उत्पादन अनुसूची देती है। तदनुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 8

प्रश्न 23.
नीचे दी गई तालिका, श्रम का औसत उत्पाद अनुसूची बताती है। कुल उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए, जबकि श्रम प्रयोगता के शून्य स्तर पर यह दिखाया गया है कि कुल उत्पाद शून्य है।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 10

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प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका श्रम का सीमान्त उत्पाद अनुसूची देती है। यह भी दिखाया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 11
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 12

प्रश्न 25.
नीचे दी गई तालिका एक फर्म की कुल लागत अनुसूची दर्शाती है। इस इस फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है? फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, अल्पकालीन औसत लागत तथा अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 13
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 14a
नोट:
TFC का मान उत्पादन के शनय स्तर की TC के समान होता है।

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका एक फर्म के लिए कुल लागत अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि औसत स्थिर लागत निर्गत की 4इकाइयों पर 5 रुपये हैं। कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत औसत परिवर्ती लागत, औसत स्थिर लागत, अल्पकालीन औसत लागत, अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची फर्म के निर्गत के तदनुरूप मूल्यों के लिए निकालिए।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 15
उत्तर:
चौथी उत्पादन इकाई की कुल स्थिर लागत = AFC × 4 इकाइयाँ
= Rs.5 × 4
= Rs. 20
उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल स्थिर लागत समान रहती है। अतः सभी स्तरों पर कुल स्थिर लागत 20 रुपया होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 16

प्रश्न 27.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची को निम्नलिखित तालिका में दिया गया है। फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 17
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 18

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प्रश्न 28.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 5L1/2K1/2
निकालएि, अधिकतम संभावित निर्गत जिसका उत्पादन फर्म कर सकती है 100 इकाइयाँ L तथा 100 इकाइयाँ K द्वारा।
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 5L1/2K1/2 जहाँ L = 100 इकाइयाँ और K = 100 इकाइयाँ L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 5 × 1001/2 1001/2 = 5 × 10 × 10 = 500 इकाइयाँ

प्रश्न 29.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 2L2K2
अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा। अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, शून्य इकाई L तथा 10 इकाई Kद्वारा?
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 22 K2
L = 5 एवं
K = 2
L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 2 × 52.22 = 2 × 25 × 4 = 2000 इकाइयाँ
यदि L = 0 और K = 10 तब Y = 2 × 02 × 102
Y = 2× 0 × 100 = 0
L की 5 इकाइयों व K की 2 इकाइयों का प्रयोग करके फर्म उत्पादन कर सकती है = 200 इकाइयाँ तथा L की शून्य व K की 10 इकाई का प्रयोग फर्म उत्पादन कर सकती है = 0.

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प्रश्न 30.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयों K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए जब इसका उत्पादन फलन हैः
Q = 5L + 2K
उत्तर:
उत्पादन फलन
Y = 5L + 2K
L = 0 तथा
K = 10
L तथा K का मान रखने पर Y = 5 × 0 + 2 × 10 = 0 + 20 = 20 इकाइयाँ
फर्म 20 इकाइयों का उत्पादन कर सकती है।

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उत्पादन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उत्पादन से अभिप्राय उन मानवीय क्रियाओं से जिनसे पदार्थों की उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरण चमड़े से जूते बनाया, लकड़ी से फर्नीचर का विनिर्माण आदि।

प्रश्न 2.
उत्पादन तकनीक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक दो प्रकार की होती है –

  1. श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक एवं
  2. पूँजी प्रधान उत्पादन तकनीक

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प्रश्न 3.
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतों के नाम लिखो।
उत्तर:
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतें –

  1. भूमि
  2. श्रम एवं
  3. पूँजी

प्रश्न 4.
कुल भौतिक उत्पाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साधन आगतों के प्रयोग में एक निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तु की इकाइयों को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 5.
औसत भौतिक उत्पाद की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्ती साधन के प्रयोग से उत्पादित भौतिक वस्तुओं की मात्रा को औसत भौतिक उत्पाद कहते हैं। कुल भौतिक उत्पाद औसत भौतिक
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 19

प्रश्न 6.
सीमान्त भौतिक उत्पाद का अर्थ बताओ।
उत्तर:
साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग बढ़ाने पर कुल भौतिक उत्पाद में होने वाली शुद्ध बढ़ोतरी को सीमान्त भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 7.
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा हो तो सीमान्त भौतिक उत्पाद का क्या होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा होता है तब सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक हो। जाता है।

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प्रश्न 8.
सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का सामान्यतः आकार कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 9.
औसत भौतिक उत्पाद वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत भौतिक उत्पाद का आकार सामान्यतः उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 10.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ लिखो।
उत्तर:
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल बताता है कि कुल भौतिक उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा होती है।

प्रश्न 11.
औसत स्थिर लागत का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 12.
सीमान्त लागत का सामान्य आकार बताओ?
उत्तर:
सीमान्त लागत वक्र सामान्यतः अंग्रेजी अक्षर U जैसा होता है।

प्रश्न 13.
परिणम मित्तव्यिता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिणाम मित्तव्यिता का अर्थ है कि जब कोई फर्म अधिक मात्रा में क्रय करती है तो उसे अपेक्षाकृत कीमत कम देनी पड़ती है।

प्रश्न 14.
दीर्घकाल में पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के दो कारण लिखो।
उत्तर:

  1. श्रम विभाजन
  2. परिणाम मित्तिव्यिता

प्रश्न 15.
अस्पष्ट लागत का अर्थ उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म के निजी साधनों को प्रयोग करने की लागत को अस्पष्ट लागत कहते हैं।

प्रश्न 16.
स्पष्ट लागत का अर्थ लिखो। उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
उन साधनों की लागत जिनका भुगतान फर्म से बाहर उनके स्वामियों को किया जाता है स्पष्ट लागत कहते हैं।

उदाहरण:
श्रमिकों को पारिश्रमिक का भुगतान, क्रय किए गए कच्चे माल का मूल्य आदि।

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प्रश्न 17.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
साधन आगतों के स्वामी उनकी आपूर्ति करने में जो त्याग करते हैं कष्ट उठाते है, अर्थ दर्द सहन करते है उन्हें वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 18.
स्थिर लागत क्या होता है?
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर नहीं बदलती है, स्थिर लागत कहलाती है। ये लागत केवल अल्पकाल में ही स्थिर रहती है लेकिन दीर्घकाल में यह लागत बदल जाती है।

प्रश्न 19.
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ रहा है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ता है तो सीमान्त उत्पाद धनात्मक होता है परन्तु उसमें घटने की प्रवृत्ति होती है।

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प्रश्न 20.
जब कुल भौतिक उत्पाद बढ़ रहा होता है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है।
उत्तर:
सीमान्त भौतिक उत्पाद धनात्मक होता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त भौतिक उत्पाद से कुल भौतिक उत्पाद की गणना किस प्रकार से की जाती है।
उत्तर:
किसी भी रोजगार स्तर पर सीमान्त भौतिक उत्पादों के योग को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 22.
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र का आकार कैसा होता है।
उत्तर:
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र मूल बिन्दु से आरम्भ होता है और दायीं ओर ऊपर की ओर उठता है। दूसरे शब्दों में कुल परिवर्तनशील लागत वक्र धनात्मक ढाल का वक्र होता है।

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प्रश्न 23.
कुल स्थिर लागत वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत वक्र x – अक्ष के समान्तर क्षैतिज रेखा होती है?

प्रश्न 24.
निजी लागत की परिभाषा दो।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म द्वारा वहन की गई लागतों को निजी लागत कहते हैं।

प्रश्न 25.
बाह्य बचतों की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाह्य बचतों से अभिप्राय उन लाभों से जो एक उद्योग की सभी फर्मों को प्रात होता हैं।

प्रश्न 26.
आन्तरिक बचतों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
फर्म द्वारा उत्पादन का आकार बढ़ाने पर जो व्यय प्राप्त होते हैं उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं।

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प्रश्न 27.
पैमाने के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में उत्पादन के दो या अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के व्यवहार को पैमाने के प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 28.
साधन के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पादन के अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक साधन की इकाइयों में परिवर्तन करने पर उत्पाद में परिवर्तन के व्यवहार को साधन का प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 29.
उत्पादन के परिवर्तन साधन का मतलब बताओ।
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन जो अल्पकाल में बदले जा सकते हैं अथवा उत्पादन के वे साधन जिनकी मात्रा, उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाती है उत्पादन के परिवर्तनशील साधन कहलाते है। जैसे कच्चा माल, अस्थयी श्रमिक आदि।

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प्रश्न 30.
उत्पादन के स्थिर साधनों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है उन्हें उत्पादन के स्थिर के साधन कहते हैं। जैसे मशीन, फैक्टरी की इमारत आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पैमाने के प्रतिफल का गणितीय निरूपण लिखो।
उत्तर:
माना एक फर्म का उत्पादन फलन है –
y = f(x1, x2)
इस उत्पादन फलन का अभिप्राय यह है कि साधन – 1 की  × इकाइयाँ एवं साधन – 2 की x1, इकाइयों का प्रयोग करने से उत्पाद की y मात्रा का उतपादन होता है। माना फर्म दोनो साधनों को t गुना बढ़ाती है। जहाँ t > 1 गतिणतीय रूप में पैमाने तीनों प्रतिफलों को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है।
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल f(tx1, tx2) > t(x1, X2)
पैमाने का समता प्रतिफल f(tx1, tx2) = t(x1, X2)
पैमाने का हासमान प्रतिफल f(tx1, tx2) < t(x1, x2)

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प्रश्न 2.
कॉब डगलस उत्पादन फलनों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
माना उत्पादन फल
\(y=x_{1}^{\alpha}, x_{2}^{\beta}\)
इस प्रकार के उत्पादन फलन को कॉब डगलस उत्पादन फलन कहते हैं।
मान xc = \(\bar{x}_{1}\), x2 = \(\bar{x}_{1}\), y उत्पादन की मात्रा
\(y_{0}=x \beta_{2}^{-\alpha-\beta}\)
दोनों साधनों t गुना बढ़ोतरी करने पर नया उत्पाद फलन होगा = \(t^{\alpha+\beta} \bar{x}_{1}^{\alpha} \cdot \bar{x}_{2}^{\beta}\)
α + β = 1 के लिए
y1 = ty0 यह पैमाने के समता प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β > 1 के लिए उत्पादन फलन, वर्धमान प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β < 1 के लिए उत्पादन फलन, हासमान प्रतिफल को दर्शाता है।

प्रश्न 3.
आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक क्यों होता है?
उत्तर:
जब सीमान्त उत्पादन धनात्मक होता है तो यदि उत्पादन का समान स्तर उत्पन्न करने के लिए एक साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो दूसरे साधन में परिवर्तन के विपरीत दिशा में दूसरे साधन में विपरीत दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है इसीलिए आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 20

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प्रश्न 4.
आइसोक्वेंट की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक को वैकल्पिक विधि से दर्शाने की विधि को आइसोक्वेंट कहते हैं। दो साधन आगतों के वे सभी संभव समुच्चय जिनसे समान मात्रा में उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पादित की जाती है, आइसोक्वेंट कहलाता है। प्रत्येक आइसोक्वेंट उत्पादन के विशिष्ट स्तर को दर्शाता है और उसे उस उत्पादन स्तर से नामांकित किया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 21

साधन आगतों के समतल में रेखाचित्र उत्पादन स्तर y = y1, y = y2 तथा y = y3 को दर्शाता है। साधन आगतों के दो संयोजन (x’1, x’2) और (x”1,x’2) उत्पादन के समान स्तर y1, को उत्पन्न करते हैं। यदि साधन 2 को समान रखा जाए और साधन 1 को x”1 तक बढ़ाया जाए तो उत्पादन में बढ़ोतरी होती है इससे हम ऊँचे उत्पादन स्तर y2, पर पहुंचते हैं।

प्रश्न 5.
साधन के घटते प्रतिफल के कारण लिखो।
उत्तर:
साधन के घटते प्रतिफल के कारण:
1. उत्पादन साधनों का अधिक उपयोग:
परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर एक सीमा के बाद उत्पादन के स्थिर साधनों का अधिक उपयोग होने लगता है जिससे साधन का घटता प्रतिफल लागू होता है।

2. अपूर्ण प्रतिस्थापन:
उत्पादन के साधन एक-दूसरे के पूर्ण प्रतिस्थापक नहीं होता हैं। एक फर्म एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन लाभपूर्वक एक सीमा तक ही कर सकती है। उस सीमा के बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर प्रतिस्थापन घटते प्रतिफल को जन्म देता है।

3. सहयोग का अभाव:
उत्पादन साधनों में आदर्श संयोग के बाद परिवर्ती साधन की इकाइयों को बढ़ाने पर परिवर्ती साधन व स्थिर साधनों में बेहतर तालमेल होने लगता है जो घटते प्रतिफल का कारण होती है।

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प्रश्न 6.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के क्या कारण है? उनमें से किसी एक को समझाओ।
उत्तर:
उत्पादन पैमाने को बढ़ाने पर एक फर्म को पैमाने बचतें एवं अबचतें प्राप्त होती हैं। जब उत्पादन पैमाने की बचतों का योग अबचतों के योग से ज्यादा है तो पैमाने का वर्धमान प्रतिफल होता है। उत्पादन पैमाने की बचतों को दो वर्गों में बांटा जाता है –

  1. उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें तथा
  2. उत्पादन पैमाने की बाहा बचतें

उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें:
वे बचतें जो फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने के कारण प्राप्त होती हैं आन्तरिक बचतें कहलाती हैं। कुछ आन्तरिक बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. तकनीकी बचतें
  2. श्रम बचतें
  3. प्रबन्धकीय बचतें
  4. वित्तीय बचतें
  5. क्रय-विक्रय की बचतें

प्रश्न 7.
कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
कुल उत्पाद, ओसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध –

  1. रोजगार के एक निश्चित स्तर तक कुल उत्पाद, औसत उत्पाद, तथा सीमान्त उत्पाद तीनों में वृद्धि होती है। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  2. जब औसत उत्पाद व सीमान्त उत्पाद दोनों समान होते हैं तो औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. इसके बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद कम दर से बढ़ता है तथा सीमान्त व औसत उत्पाद दोनों घटते हैं।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल उत्पाद अधिकतम होता है, परन्तु औसत उत्पाद कभी भी शून्य नहीं होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है तो कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 8.
पैमाने के घटते प्रतिफल तथा साधन के घटते प्रतिफल में अन्तर लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में जब दो या अधिक साधन आगतों में अनुपातिक बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक रूप से कम बढ़ोतरी होती है तो उसे पैमाने का घटता प्रतिफल कहते हैं। अल्पकाल में जब अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है तो इसे साधन का घटता प्रतिफल कहते हैं। पैमाने के घटते प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि साधन के घटते प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 9.
साधन के वृद्धि प्रतिफल के पीछे क्या कारण है?
उत्तर:
साधन के वृद्धि प्रतिफल के कारण –

  1. जब परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो स्थिर साधनों का बेहतर उपयोग शुरू हो जाता है।
  2. परिवर्तनशील साधन बढ़ी हुई इकाइयों पर श्रम विभाजन सभव हो जाता है।
  3. परिवर्ती साधन की इकाइयों बढ़ने पर फर्म स्थिर व परिवर्तनशील साधन उत्तम एवं आदर्श संयोग बनाती है।

प्रश्न 10.
उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतों को समझाओ।
उत्तर:
वे बचतें जो किसी फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने पर प्राप्त होती हैं, उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं। कुछ आन्तरिक बचतें इस प्रकार से हैं –
1. श्रम बचतें:
उत्पादन का पैमाने बढ़ाने पर एक फर्म जटिल श्रम विभाजन का प्रयोग कर सकती हैं। जटिल श्रम विभाजन से श्रम की दक्षता एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।

2. प्रबन्धकीय बचतें:
उत्पादन पैमाने का बड़ा आकार फर्म को कुशल एवं दक्ष प्रबन्धक नियोजित करने की अनुमति प्रदान करता है। कुशल एवं दक्ष प्रबन्धकों के कारण उत्पादन में वृद्धि अधिक दर से होती है।

3. तकनीकी बचतें:
उत्पादन का बड़ा आकार होने से उत्पादन की उन्नत एवं विकसित उत्पादन तकनीक का उपयोग करने की संभावना बढ़ जाती है। उन्नत उत्पादन तकनीकी से वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

4. वित्तीय बचते:
बड़े आकार वाली फर्म की साख प्रतिष्ठा उच्च स्तर की होती है। बड़े आकार वाली फर्म कम ब्याज दर पर आसानी से बड़े आकार में ले सकती है।

5. क्रय-विक्रय की बचतें:
एक फर्म जो उत्पादन का आकार बढ़ाती है वह मध्यवर्ती वस्तुओं को विशाल मात्रा में क्रय करती है तथा बड़ी मात्रा में उत्पादन करती है। बड़े आकार में क्रय-विक्रय से फर्म को फायदा होता है।

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प्रश्न 11.
रेक्टेगुलर हाइपरबोला (आयताकार अति परवलय) की अवधारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर:
समीकरण xy = C से प्राप्त वक्र को अति परवलय कहते हैं। जहाँ x तथा y चर मूल्य है एवं c स्थिरांक है।
अतिपरवलंय x – y तल में एक ऋणात्मक ढाल वाला वक्र है। x अथवा y को अनन्त मान के लिजए अतिपरवलय वक्र x – अक्ष (y – अक्ष) के सममित हो जाता है। वक्र के किन्हीं दो बिन्दुओं p तथा q पर ay1.px1, और ay2.qx2, का क्षेत्रफल समान होता है जिसका मान स्थिरांक c के सामन होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 22

प्रश्न 12.
स्थिर अनुपात एवं परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

  1. स्थिर अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की विभिन्न मात्राओं पर विभिन्न साधनों का अनुपात एक समान रहता है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है।
  2. उत्पादन के स्थिर अनुपात फलन में सभी उत्पादन साधनों में परिवर्तन के कारण उत्पादन की मात्रा बदलती है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की मात्रा उत्पादन के साधन में परिवर्तन के कारण बदलती है।
  3. स्थिर अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन पैमाने में परिवर्तन के कारण होता है जबकि परिवर्ती अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन स्तर में परिवर्तन के कारण होता है।
  4. स्थिर अनुपात फलन का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि परिवर्ती अनुपात फलन का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 13.
बाह्य बचतें क्या हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
किसी उद्योग का समग्र रूप से विस्तार होने पर नए बाजारें, नई उत्पादन तकनीक, विकसित व कुशल प्रबन्धन, जटिल श्रम विभाजन, नई खोजों के विदोहन की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। दूसरे शब्दों में, उद्योग का समग्र विस्तार सभी फर्मों के लिए लाभकारी होता है चाहे फर्म अपना उत्पादन का पैमाना बढ़ाए या ना बढ़ाए। इन्हें बाह्य बचते कहते हैं। कुछ बाह्म बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. सघनता की बचतें
  2. सूचनाओं की बचतें
  3. विकेन्द्रीयकरण की बचतें

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प्रश्न 14.
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर –

  1. अल्पकाल से अभिप्राय उस समय अवधि से है जो स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से कम होती है। जबकि दीर्घकाल यह समय अवधि होती है जिसमें स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से ज्यादा होती है।
  2. अल्पकाल में फर्म उत्पादन के परिर्वनशील साधन में परिवर्तन करके उत्पादन स्तर को बदल सकती है जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन करके उत्पादन का पैमाना बदल सकती है।
  3. अल्पकाल में एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा अन्य साधन स्थिर रहते हैं जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 15.
स्थिर अनुपात उत्पादन फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जब कोई फर्म सभी साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करती है तो यह माना जाता है कि फर्म का उत्पादन पैमाने परिवर्तित होता है। वह उत्पादन फलन जो उत्पादन के पैमाने का अध्ययन करता है उसे स्थिर अनुपात उत्पादन फलन कहते हैं। स्थिर अनुपात उत्पादन फलन उस उत्पादन व्यवहार से संबंधित होता है जिसमें सभी साधनों को अनुपातिक रूप में बदल जाता है। बड़ा उत्पादन पैमाना उत्पादन की अधिकतम क्षमता को व्यक्त करता है तथा छोटा उत्पादन पैमाना उत्पादन की कम क्षमता को व्यक्त करता है। विभिन्न पैमानों पर साधनों का अनुपात स्थिर होता है।

प्रश्न 16.
औसत उत्पाद वक्र उल्टे U आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है जिससे प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन ज्यादा दर से प्राप्त होता है। अतः औसत उत्पाद वक्र ऊपर की ओर उठता है। इसके बाद समता प्रतिफल लागू होता है तो प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन समान दर से प्राप्त होता है। औसत उत्पाद स्थिर हो जाता है। अन्त में जब साधन का ह्यसमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की औसत उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 23

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प्रश्न 17.
आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर सीमान्त उत्पाद क्यों बढ़ता है, इसे कब कम होना चाहिए?
उत्तर:
यह आवश्यक नहीं है कि आरम्भ में सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है। यह उत्पाद के स्थिर साधनों का, परिवर्ती साधन की इकाइयों से अपूर्ण विदोहन ही होता है तो परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर स्थिर साधनों का विदोहन अधिक होने लगता है और साधन का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। जब स्थिर साधनों का परिवर्ती साधन से पूर्ण विदोहन हो जाता है तो इसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है अतः सीमान्त उत्पाद घटने लगता है। आरम्भिक अवस्था में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ की कम मात्रा के कारण स्थिर साधनों का पूर्ण विदोहन नहीं हो पाता है। इसलिए परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर स्थिर के विदोहन में बढ़ोतरी होने लगती है और सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 24

प्रश्न 18.
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध –

  1. जब तक सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है, कुल उत्पाद में अधिक दर से वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद लगभग स्थिर होने लगता है तो कुल उत्पाद एक समान दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त घटता है परन्तु धनात्मक होता है तब कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तब कुल उत्पाद अधिकतम होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तब कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 19.
औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है, औसत उत्पाद में वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद के समान होता है, औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से कम होता है, औसत उत्पाद में कमी होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 25

प्रश्न 20.
सीमान्त उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U जैसा क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में एक फर्म को परिवर्ती साधन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है। अतः परिवर्ती साधन की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि ज्यादा दर से होती है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र ऊपर कुल ओर उठता है। इसके बाद जब साधन का समता प्रतिफल लागू होता है तो कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि स्थिर हो जाती है या परिवर्ती साधन की अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि समान दर से होता है। अन्त में जब साधन का हासमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की एक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि कम दर से होता है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 26

प्रश्न 21.
अवसर लागत की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
दूसरे स्तर के सर्वोत्तम प्रयोग में साधन के मूल्य को उसकी अवसर लागत कहते हैं। प्रत्येक ऐसे साधन की अवसर लागत होती है जिसके वैकल्पिक उपयोग संभव होते हैं। उत्पाद में काम आने वाले फर्म के निजी साधनों की भी अवसर लागत होती है। उदाहरण के लिए एक स्वः नियोजित श्रमिक की अवसर लागत, श्रम बाजार में उस श्रमिक की मजदूरी के बराबर होती हैं यदि वह अपनी सेवाएं दूसरों को प्रदान करें।

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प्रश्न 22.
क्या सीमान्त में स्थिर लागत शामिल होती है? समझाइए।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में बढ़ोतरी को सीमान्त लागत कहते हैं। इस प्रकार सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती है। एक अतिरिक्त लागत परिवर्तन लागत होती है। अतः सीमान्त लागत स्थिर लागत का भाग नहीं हो सकती है क्योंकि स्थिर लागत उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर एक समान रहती है। स्थिर लागत में उत्पादन स्तर में उतार-चढ़ाव होने पर बदलाव नहीं होता है। अतः यह प्रश्न ही नहीं उठता है कि सीमान्त लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।

प्रश्न 23.
आयताकार अति परवलय की विशिष्टता के बारे में लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय के समान होता है। यदि हम औसत स्थिर लागत पर कोई भी बिन्दु लेते हैं तो उस बिन्दु पर AFC तथा उत्पादन मात्रा का गुणनफल एक समान प्राप्त है। यह इसीलिए होता है क्योंकि AFC तथा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर समान रहती है। इस विशिष्टता वाले वक्र को आयताकार अतिपरवलय कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 27

प्रश्न 24.
हासमान प्रतिफल का नियम एवं परिवर्ती अनुपात का नियम में अंतर लिखो।
उत्तर:
हासमान प्रतिफल, परिवर्ती के नियम का परपरागत रूप है। ह्रासमान प्रतिफल के नियम का प्रतिपादन डेविट रिकार्डो ने किया था। यह नियम कृषि क्षेत्र में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में कमी को स्पष्ट करने के लिए प्रतिपादित किया गया था। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम के उपयोग के क्षेत्र का विकास हेतु परिवर्ती अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने यह माना कि हासमान प्रतिफल कृषि क्षेत्र के अलावा उद्योग क्षेत्र में भी लागू होता है। स्थिर साधनों एवं परिवर्ती साधन की इकाइयों के प्रयोग से एक सीमा तक कुल उत्पाद दर से वृद्धि होती है उसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर साधन का ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

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प्रश्न 25.
स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अंतर लिखो।
उत्तर:
1. लागत का वह भाग जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर भी नहीं बदलता है उसे स्थिर लागत कहते हैं जबकि जो लागत उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर बदल जाती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है।

2. स्थिर लागत का संबंध उत्पादन स्तर से नहीं होता है यह लागत शून्य उत्पादन स्तर एवं अधिकतम उत्पादन स्तर पर एक समान होती है। जबकि परिवर्तशील लागत शून्य उत्पादन स्तर पर शून्य होती है और जैसे-जैसे स्तर बढ़ता है परिवर्तनशील लागत बढ़ती है।

3. उदाहरण:
स्थिर लागत – भूमि का किराया स्थायी श्रमिकों की मजदूरी आदि –

परिवर्तनशील लागत –

  1. कच्चे माल का मूल्य
  2. अस्थायी श्रम की मजदूरी आदि

प्रश्न 26.
नीचे श्रम उत्पादन अनुसूची दी गई है। श्रम की औसत एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 28
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 29

प्रश्न 27.
सीमान्त लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागत के संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त लागत, औसत परिवर्तनशील लागत से कम होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत औसत परिवर्तनशील लागत के समान होती है तो औसत परिवर्तनीशल लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 30

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प्रश्न 28.
सीमान्त लागत तथा औसत लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. सीमान्त लागत, औसत लागत से कम होती है तो औसत लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के बराबर होती है तो औसत लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के ज्यादा होती है तो औसत लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 31

प्रश्न 29.
नीचे श्रम की औसत उत्पादकता अनुसूची दी गई है। कुल उत्पादकता एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए। श्रम के शून्य रोजगार स्तर पर कुल उत्पादकता शून्य मानिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 33

प्रश्न 30.
कुल लागत सीमान्त लागतों का योग होती है। संक्षेम में समझाइए।
उत्तर:
नहीं, उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल लागत सीमान्त लागत का योग नहीं होती है। सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती हैं अतिरिक्त लागत परिवर्तनशील लागत होती है। इस प्रकार सीमान्त लागत का योग कुल परिवर्तनशील लागत होती है। सीमान्त लागत का योग कुल लागत नहीं होती है। कुल लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।
इस प्रकार ΣMC # TC
EMC = TVC

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प्रश्न 31.
सीमान्त लागत और कुल लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. दो सतत उत्पादन स्तरों की कुल लागत के अन्तर को सीमान्त लागत कहते हैं।
    MC = TCN – TCNN-1
  2. जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत कम दर से बढ़ती है।
  3. जब सीमान्त लागत न्यूनतम होती है तो कुल लागत समान दर से बढ़ती है।
  4. जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो कुल लागत ज्यादा दर से बढ़ती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साधन के प्रतिफल एवं पैमाने के प्रतिफल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
1. साधन के प्रतिफल में साधन आगतों:
उत्पाद के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिसमें अन्य साधनों की स्थिर इकाइयों के साथ फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है जबकि उत्पादन के पैमाने में साधन आगतों-उत्पाद के उस संबंध का अध्ययन किया जाता है जिसमें फर्म उत्पादन के दो या अधिक साधनों का अनुपातिक नियोजन बढ़ाती है।

2. साधन के प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से होता है जबकि पैमाने के प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से है।

3. साधन के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है जबकि पैमाने के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात स्थिर (समान) होता है।

4. साधन के प्रतिफल में उत्पादन का पैमाना नहीं बदलता जबकि पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन पैमाना बदल जाता है।

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प्रश्न 2.
पैमाने के बढ़ते एवं घटते प्रतिफल क्रमशः दीर्घकालीन औसत लागत के घटते व बढ़ते भाग होते हैं। पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत घटती है। पैमाने के घटते प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत में वृद्धि होती है। आरम्भ में अल्पकाल में स्थिर लागतें अपरिवर्तित रहती हैं इसलिए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर प्रति इकाई कुल लागत में इस कारण से कमी आती है कि साधन के वर्धमान प्रतिफल लागू होने पर कुल परिवर्तनशील लागत कम दर से बढ़ती है।

लेकिन दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। अतः इस अवधि में सभी लागतें परिवर्तनशील होती हैं। उत्पादन पैमाने का वर्धमान प्रतिफल लागू होने से प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत अथवा दीर्घकालन औसत लागत घटती है। इसी प्रकार पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर प्रति इकाई दीर्घकालिन कुल लागत अथवा औसत लागत में वृद्धि होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 34

प्रश्न 3.
साधन के प्रतिफल के परिवर्ती अनुपात का नियम बताइए एवं समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम:
यह नियम साधन आगतों एवं उत्पाद के उस संबंध को बताता है जब फर्म अन्य साधन आगतों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है। यह नियम बताता है कि स्थिर साधनों की निश्चित इकाइयों के साथ परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो आरम्भ में कुल भौतिक उत्पाद में अधिक दर से बढ़ोतरी होती है इसके बाद कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है और अन्त में यह कम होने लगता है।

प्रथम चरण:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है तो एक सीमा तक कुल भौतिक उत्पाद में ज्यादा दर से वृद्धि होती है। इस चरण में सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद बढ़ते है। सीमान्त भौतिक उत्पाद घटने लगता है और इस चरण के अन्त में सीमान्त भौतिक उत्पाद, औसत भौतिक उत्पाद के बराबर हो जाता है।

द्वितीय चरण:
सीमान्त भौतिक उत्पाद व औसत भौतिक उत्पाद के समान होने के बाद जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है। सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद दोनों घटते हैं। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से ज्यादा दर से घटता है। इस चरण के अन्त में सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल भौतिक उत्पाद अधिकतम होता है। लेकिन औसत उत्पाद कभी शून्य नहीं होता है।

तृतीय चरण:
सीमान्त भौतिक कुल उत्पाद उत्पाद शून्य होने के बाद यदि फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल उत्पाद घटने लगता है तो सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है। एक विवेकशील उत्पादक तीसरे चरण में उत्पादन नहीं करता है। वह दूसरे चरण में ही उत्पादन करेगा।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 35

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 4.
पैमाने के प्रतिफल के नियम समझाए।
उत्तर:
पैमाने का प्रतिफल नियम:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि और उत्पाद मात्रा के संबंध को पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।

पैमाने के प्रतिफल के तीन नियम हैं:

1. पैमाने का वर्धमान प्रतिफल-दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में अधिक अनुपातिक वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 36

2. पैमाने का समता प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में समान अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समता प्रतिफल कहते हैं।

3. पैमाने का हासमान प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में कम अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं। रेखाचित्र में बिन्दु A से B तक वर्धमान प्रतिफल, बिन्दु B से C तक समता प्रतिफल तथा C से D तक हासमान प्रतिफल दर्शाया गया है।

संख्यात्मक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूचि नीचे दी गई है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 37

(a) फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है?
(b) औसत स्थिर लागत AFC, औसत परिवर्तनशील लागत AVC,कुल औसत लागत ATC तथा सीमान्त लागत MC की गणना करो।
उत्तर:
(a) शून्य उत्पाद स्तर पर कुल लागत = 60 रुपये, अतः फर्म की कुल स्थिर लागत = 60 रुपये

(b)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 38

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प्रश्न 2.
यदि उत्पादन स्तर 1 पर औसत स्थिर लागत 40 रुपये है तो निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 39
उत्तर:
उत्पादन इकाई – 1 पर AFC 40 रुपये है। अतः कुल स्थिर लागत भी 40 रुपये है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 40

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प्रश्न 3.
एक फर्म की स्थिर लागत 1200 रुपये है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC, AVC, TC और ATC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 41a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 42a

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC एवं AVC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 43a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत = 50 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत 50 रुपये है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांतpart - 2 img 44a

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC व MC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 45a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत 40 रुपये है अंत: कुल स्थिर लागत भी 40 है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 46a

प्रश्न 6.
एक फर्म की स्थिर लागत 2000 रु0 है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करे TVC, AVC, TC तथा AC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 47
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 48

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 49
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 50

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका से AVC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 51a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 52a

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 53a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत = 12 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत TFC = 12 रुपये
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 54a

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प्रश्न 10.
TFC, TVC,AFC,ATC तथा MC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 55a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 56a

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC तथा MC ज्ञात करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 57a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत 90 रु० है। अतः कुल स्थिर लागत 90 रु० होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 58a

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वास्तविक लागत है –
(A) उत्पादन लागत
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत
(C) उत्पाद की कीमत
(D) औसत लागत
उत्तर:
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत

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प्रश्न 2.
मौद्रिक लागत से अभिप्राय है –
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय
(B) उत्पाद का विक्रय मूल्य
(C) कुल परिवर्तनशील लागत
(D) कुल स्थिर लागत
उत्तर:
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय

प्रश्न 3.
सामाजिक लागत निजी लागत में कम होगी यदि –
(A) औसत लागत कम हो रही है
(B) सीमान्त लागत कम हो रही है
(C) औसत लागत बढ़ रही है
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है
उत्तर:
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है

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प्रश्न 4.
किसी वस्तु की मौद्रिक लागत में निम्नलिखित मदें सम्मिलित की जाती है –
(A) स्पष्ट लागते
(B) केवल अस्पष्ट लागते
(C) सामान्य लाभ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
स्पष्ट लागतों में शामिल है –
(A) कच्चे माल की कीमत
(B) श्रमिकों की मजदूरी
(C) उधार पूँजी पर ब्याज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 6.
उत्पादनकर्ता के स्वयं के साधनों का मूल्य –
(A) स्पष्ट लागतें कहलाती हैं
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है
(C) उत्पादनकर्ता का सामान्य लाभ होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) मौद्रिक लागत = स्पष्ट
(B) असामान्य लाभ = मौद्रिक लागत – स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागत
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
(D) स्पष्ट लागत = मौद्रिक लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
उत्तर:
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ

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प्रश्न 8.
अवसर लागत को निम्नलिखित नाम से भी सम्बोधित किया जाता है –
(A) वैकल्पिक लागत
(B) हसतान्तरण आय
(C) त्याग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
वह लागत अथवा आय, जो किसी साधन को उसके परिवर्तन कार्य में बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, उसे –
(A) स्पष्ट लागत कहते हैं
(B) अस्पष्ट लागत कहते हैं
(C) अवसर लागत कहते हैं
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अवसर लागत कहते हैं

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प्रश्न 10.
किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म को जितनी लागत सहन करनी पड़ती है, उसे फर्म की –
(A) औसत लागत कहते हैं
(B) कुल लागत कहते हैं
(C) सीमान्त लागत कहते हैं
(D) अवसर लागत कहते हैं
उत्तर:
(B) कुल लागत कहते हैं

प्रश्न 11.
कुल लागत –
(A) सीमान्त लागत का योग होती है
(B) औसत लागत को वस्तु की मात्रा से गुणा करने पर ज्ञात की जा सकती है
(C) से तात्पर्य किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म द्वारा किया गया वयय है
(D) उपर्युक्त कोई भी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त कोई भी

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प्रश्न 12.
जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है
(D) समान रहती है
उत्तर:
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है

प्रश्न 13.
जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो –
(A) औसत लागत भी बढ़ती है
(B) कुल लागत बढ़ती है
(C) औसत लागत सीमान्त लागत से कम रहती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 14.
उत्पादन शून्य होने पर अल्पकाल में स्थिर लागत
(A) शून्य हो जाती है
(B) धनात्मक रहती है
(C) ऋणात्मक हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) धनात्मक रहती है

प्रश्न 15.
स्थिर लागतों का उत्पादन की मात्रा से –
(A) सम्बन्ध नहीं होता
(B) कोई सम्बन्ध नहीं होता
(C) सम्बन्ध केवल दीर्घकाल में होता है
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है
उत्तर:
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है

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प्रश्न 16.
वस्तु के उत्पादन की मात्रा में किसी अथवा वृद्धि होने पर कुल स्थिर लागत –
(A) समान रहती है
(B) क्रमशः कम या अधिक हो जाती है
(C) क्रमशः अधिक या कम हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहती है

प्रश्न 17.
परिवर्तनशील लागतें उत्पादन की मात्रा के साथ –
(A) कम या अधिक हो सकती हैं
(B) परिवर्तित नहीं होती
(C) प्रारंभ में समान रहती हैं तथा फिर कम होती जाती हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कम या अधिक हो सकती हैं

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से किस लागत वक्र का आकार यू की भाँति होता है?
(A) औसत लागत
(B) औसत परिवर्तनशील लागत
(C) सीमान्त लागत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
उत्पादन लागतें हैं –
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक
(B) वस्तु की बिक्री कीमत
(C) उत्पादनकर्ता का व्यय
(D) मशीनों का लागत
उत्तर:
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 20.
स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागते अंग हैं –
(A) मौद्रिक लागत का
(B) वास्तविक लागत का
(C) अवसर लागत का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(A) मौद्रिक लागत का

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ –

1. क्या उत्पादित किया जाए एवं कितनी मात्रा में:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था को खाद्य सामग्री, आवास अथवा विलासिता पूर्ण वस्तुओं के उत्पादन के लिए चयन करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक अर्थव्यवस्था को कृषि व उद्योग उत्पादों के बीच चयन करना पड़ता है। कि किनका उत्पादन अधिक व किनका उत्पादन कम मात्रा में किया जाए। अन्य शब्दों में उपभोक्ता वस्तुओं व पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के बारे में चयन करना पड़ता है।

2. इन वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए:
वस्तुओं के उत्पादन की दो प्रकार की तकनीक (श्रम प्रधान एवं पूंजी प्रधान) होती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था श्रम प्रधान अथवा पूंजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन कर सकती है। अर्थव्यवस्था को यह चयन करना पड़ता है कि उत्पादन के लिए इन तकनीकों का किस अनुपात में प्रयोग किया जाए।

3. किसके लिए वस्तुओं का उत्पादन क्या जाए:
इस समस्या का संबंध उत्पादन को अर्थव्यवस्था में विभिन्न व्यक्तियों में किस प्रकार आबंटित किया जाए, किसको उत्पादन का अधिक व किसको उत्पादन का कम भाग बांटा जाए। प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ, रोटी, कपड़ा व मकान सभी को आसानी व मुक्त रूप से उपलब्ध हो या नहीं यह समस्या अर्थव्यवस्था को हल करनी पड़ती है।

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प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निश्चित संसाधनों एवं तकनीकी स्टाक के ज्ञान से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की विभिन्न संभावनाओं के संयोजन को उत्पादन संभावना कहते हैं।

प्रश्न 3.
सीमांत उत्पादन संभावना क्या है?
उत्तर:
सीमांत उत्पादन संभावना वक्र निश्चित संसाधनों व तकनीकी ज्ञान के पूर्ण उपयोग से दो वस्तुओं के उत्पादन की विभिन्न मात्राओं को रेखाचित्र की सहायता से दर्शाता है। यह वक्र एक वस्तु की किसी निश्चित मात्रा के बदले दूसरी वस्तु की अधिकतम संभावित मात्रा तथा दूसरी वस्तु की मात्रा को दर्शाता है। उत्पादन संभावना वक्र पर स्थित प्रत्येक बिन्दु संसाधनों के पूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं। उत्पादन संभावना के अन्दर स्थित बिन्दु संसाधनों के अपूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं इस स्थिति में कुछ संसाधन या तो बेकार पड़े रहते हैं या उनका पूर्ण उपयोग नहीं किया जाता है।
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प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु का दो मुख्य शाखाओं (व्यष्टि व समष्टि) के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बाजार में व्यक्गित आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। इस शाखा में व्यक्तियों के संव्यवहारों के आधार पर वस्तु की कीमत व मात्रा का निर्धारण के निर्धारण सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक इकाइयों के संव्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। जैसे- सामूहिक माँग, सामूहिक पूर्ति, रोजगार आदि। अर्थशास्त्र की इस शाखा में इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है। अर्थव्यवस्था में आय। उत्पाद का स्तर क्या है? कुल उत्पाद का आंकलन किस प्रकार किया जाता है? यह शाखा पूरी अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करती है।
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प्रश्न 5.
केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाजार अर्थव्यवस्था के भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है। उपभोग, उत्पादन व निवेश के महत्त्वपूर्ण निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों के उचित बंटवारे का प्रयास किया जाता है। केन्द्रीय सत्ता अन्तिम वस्तुओं के न्यायोचित आबंटन के लिए हस्तक्षेप करती है। एक बाजार अर्थव्यवस्था में सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक निर्णय बाजार शक्तियों के आधार पर तय होते हैं। इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक एजेन्ट मुक्त रूप से उत्पादों का विनियम करते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 6.
सकारात्मक आर्थक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से है जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न तंत्र किस प्रकार से कार्य करते हैं। यह विश्लेषण विभिन्न आर्थिक तंत्र के क्रियाकलापों का मूल्यांकन करता है।

प्रश्न 7.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि कोई तंत्र वांछनीय है अथवा नहीं। इसका संबंध इन प्रश्नों से होता है – क्या वांछनीय है? क्या वांछनीय नहीं है? क्या होना चाहिए? क्या नहीं होना चाहिए?

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र:

  1. यह शाखा व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करती है।
  2. कीमत सिद्धांत एवं संसाधन के आबंटन की समस्या का अध्ययन इस शाखा में किया जाता है।
  3. माँग व आपूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन आदि का विश्लेषण किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र:

  1. समष्टि में सामूहिक आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जता है।
  2. इस शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है।
  3. सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें आय एवं रोजगार के साम्य निर्धारण का अध्ययन किया जाता है।

Bihar Board Class 12 Economics व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वस्तु से अभिप्राय भौतिक चीजों से होता है जिनका उपयोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
सेवा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
सेवा से अभिप्राय अभौतिक चीजों से है जिनका प्रयोग आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 3.
‘एक व्यक्ति’ का अर्थ लिखो।
उत्तर:
‘एक व्यक्ति’ से अभिप्राय निर्णय लेने वाली इकाई से होता है।

प्रश्न 4.
क्या संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में असीमित होते हैं?
उत्तर:
नहीं, संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में सीमित होते हैं।

प्रश्न 5.
उन चीजों की सूची बनाइए जिनकी ग्रामीण लोगों को प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
भोजन, वस्त्र, आवास, परिवहन एवं अन्य सेवाएँ।

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प्रश्न 6.
एक व्यक्ति को प्रतिदिन गाँव में कुछ लोगों के पास अपने श्रम का विदोहन करते के लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।
उत्तर:
गाँव में एक व्यक्ति को प्रतिदिन जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उनकी सूची लम्बी होती है।

प्रश्न 7.
क्या यह कथन सत्य है कि गांव में कुछ लोगों के पास अपने श्रम का विदोहन करने के लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।
उत्तर:
हाँ, भूमिहीन श्रमिकों के पास अपने श्रम का विदोहन करने लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।

प्रश्न 8.
अतिरिक्त उत्पादन का इस्तेमाल क्या होता है?
उत्तर:
अतिरिक्त उत्पादन का इस्तेमाल अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का विनियम करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 9.
एक व्यक्ति अपने संसाधनों का क्या करता है?
उत्तर:
संसाधनों का प्रयोग अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 10.
दुर्लभता की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति के पास संसाधन, उनकी आवश्यकताओं की तुलना में कम होते हैं, इसे दुर्लभता कहते हैं।

प्रश्न 11.
‘एक प्रतिदर्श’ क्या समाहित करने का प्रयास करता है?
उत्तर:
‘एक प्रतिदर्श’ वास्तविकता की आवश्यक विशेषताओं का समाहित करने का प्रयास करता है।

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प्रश्न 12.
विनियम की उपयोगिता लिखिए।
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति के लिए उत्पादन में विशिष्ट एवं उपभोग में विविधता की खाई को पाटने में विनियम प्रक्रिया उपयोगी होती है।

प्रश्न 13.
आधुनिक समाज में प्राथमिक आर्थिक एजेन्ट या निर्णायक इकाई कौन होती है?
उत्तर:
उपभोक्ता एवं उत्पादक आधुनिक समाज में प्राथमिक आर्थिक एजेन्ट होते हैं।

प्रश्न 14.
उत्पादक का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह इकाई जो वस्तु या सेवा का उत्पादन करती है, उसे उत्पादक कहते हैं।

प्रश्न 15.
चयन करने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
दुर्लभता चयन का मुख्य कारण है।

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प्रश्न 16.
संसाधनों की दुर्लभता का सामना कौन करता है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को दुर्लभता की समस्या का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 17.
सर्वोत्कृष्ट उपयोग में संसाधनों का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
उत्तर:
संसाधन दुर्लभ होते हैं इसलिए इनका इस्तेमाल सर्वोत्कृष्ट रूप में किया जाता है।

प्रश्न 18.
सामग्री का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं एवं सेवाओं को सामग्री (द्रव्य) कहते हैं।

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प्रश्न 19.
उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनका उपयोग उपभोग के लिए किया जाता है, उपभोक्ता वस्तु कहलाती है।

प्रश्न 20.
साधन आगत या उत्पादन साधन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पन्न करने के लिए किया जाता है उत्पादन साधन कहलाते हैं।

प्रश्न 21.
उपभोक्ता का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह व्यक्ति जो सन्तुष्टि पाने के लिए वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग करता है, उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 22.
समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन कौन करता है?
उत्तर:
केन्द्रीय सत्ता समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन करती है।

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प्रश्न 23.
एक बाजार अर्थव्यवस्था संसाधनों का वितरण किस प्रकार करती है?
उत्तर:
एक बाजार अर्थव्यवस्था संसाधनों का वितरण मुक्त संव्यवहारों के माध्यम से करती है।

प्रश्न 24.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या का अर्थ लिखो।
उत्तर:
विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए दुलर्भ संसाधनों का आबंटन अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या कहलाती है।

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था कब सन्तुलन में कही जाती है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था उस समय सन्तुलन में मानी जाती है जब अर्थव्यवस्था के प्राथमिक एजेन्टों की सभी योजनाएँ पूरी हो जाती है।

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प्रश्न 26.
किस अर्थ में एक उपभोक्ता विवेकशील होता है?
उत्तर:
एक उपभोक्ता इस अर्थ में विवेकशील होता है कि व उपभोग के लिए वस्तुओं का चयन अपनी रूचि व अभिरूचियों के अनुसार करता है।

प्रश्न 27.
एक उत्पादक कब विवेकशील होता है?
उत्तर:
जब एब उत्पादक को इस बात का स्पष्ट आंकलन होता है कि उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर संभावित बिक्री से उसे कितना लाभ प्राप्त होगा तब उसे विवेकशील कहा जाता है।

प्रश्न 28.
एक बाजार कब सन्तुलन में होता है?
उत्तर:
जब किसी कीमत स्तर पर बाजार में वस्तु की माँगी गई मात्रा, उसकी बाजार में की गई पूर्ति के बराबर होती है तब बाजार सन्तुलन में होता है।

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प्रश्न 29.
साम्य कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह कीमत स्तर जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा समान होती है, साम्य कीमत कहलाती है।

प्रश्न 30.
साम्य मात्रा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
बाजार में साम्य कीमत पर खरीदी गई व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वास्तविक रूप से एक अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक जटिल एवं व्यापक होती है। लेकिन एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरल रूप में अर्थव्यवस्था की सरलीकृत तस्वीर समाहित होती है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के मुद्दे एवं समस्याएँ एक जैसी होती हैं केवल उनके क्षेत्र का अन्तर होता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक समस्याओं का समाधान करने हेतु किन विधियों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
आर्थिक समस्याओं का समाधान निम्नलिखित ढंग से किया जाता है –

  1. अपने लक्ष्यों को केन्द्रित करके विभिन्न व्यक्ति / इकाई मुक्त संव्यवहार द्वारा बाजार तंत्र की भाँति आर्थिक समस्याओं को हल कर सकती हैं।
  2. नियोजन के माध्यम से भी आर्थिक समस्याओं को हल किया जा सकता है। नियोजन का कार्य केन्द्रीय सत्ता जैसे ग्राम-पंचायत या सरकारी अधिकारी कर सकते हैं।

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प्रश्न 3.
एक छोटी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मूल रूप में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
एक छोटी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मूल रूप से निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है –

  1. गाँव के सीमित संसाधनों का आबंटन
  2. उत्पादित अन्तिम वस्तुओं का आबंटन

प्रश्न 4.
वस्तु एवं सेवाओं में भेद लिखिए।
उत्तर:
वस्तुएँ:

  1. वस्तुएँ भौतिक होती हैं जिनका उपयोग आवश्यकताओं को सन्टुष्ट करने के लिए होता है।
  2. वस्तुओं का भण्डारण किया जा सकता है।
  3. वस्तुओं के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में अन्तर पाया जाता है। उनका पहले उत्पादन किया जाता है इसके बाद उपभोग किया जाता है।
  4. जैसे-भोजन सामग्री, फर्नीचर, पंखा आदि।

सेवाएँ:

  1. सेवाएँ अभौतिक होती हैं जिनका उपयोग आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए होता है।
  2. सेवाओं का भण्डारण नहीं किया जा सकता है।
  3. सेवाओं के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में कोई अंतर नहीं होता है। सेवाएँ जैसे ही उत्पन्न होती हैं उसी समय उनका उपभोग किया जाता है।
  4. जैसे-अध्यापक की सेवाएँ, डॉक्टर की सेवाएँ, वकील की सेवाएँ आदि।

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प्रश्न 5.
एक सरल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संसाधनों एवं आवश्यकताओं की तुलना कीजिए एवं अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति के पास संसाधन उसकी आवश्यकताओं की तुलना में असीमित नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए एक ग्रामीण परिवार अपने सीमित संसाधनों के माध्यम से सीमित मात्रा में ही खाद्य सामग्री का उत्पादन कर सकता है। अत: वह परिवार खाद्य सामग्री के जरिए विनियम प्रक्रिया के द्वारा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं को सीमित मात्रा मे ही प्राप्त कर सकता है। अतः प्रत्येक परिवार को उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा में उपभोग के लिए चयन करना पड़ता है।

प्रश्न 6.
क्या होगा जब एक गाँव में गेहूं का उत्पादन करने वाली इकाइयाँ गेहूँ का जरूरत से ज्यादा उत्पादन करती हैं?
उत्तर:
यदि गाँव में लोगों को उतनी गेहूँ की मात्रा की आवश्यकता नहीं होती है जिनका गाँव की उत्पादन इकाइयाँ गेहूँ का उत्पादन करती हैं तो या तो गाँव के लोग अतिक्ति उत्पादन से अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का विनियम करेंगे। अथवा गेहूँ के उत्पादन से कुछ संसाधनों को हटाकर उन वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में लगा सकती है जिनकी गाँव में माँग अधिक होगी।

प्रश्न 7.
यदि एक गाँव में गेहूँ के उत्पादन की मात्रा उसकी मांग की तुलना में कम है तो क्या होगा?
उत्तर:
यदि एक गाँव में गेहूँ की उत्पादन मात्रा उसकी माँग की तुलना में कम है तो गाँव के लोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं में लगे संसाधनों का पुनर्वितरण कर सकते हैं। वे उन वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से कुछ साधन हटा सकते हैं जिनकी माँग तुलनात्मक रूप से कम होगी और उनका उपयोग गेहूँ के उत्पादन में कर सकते हैं अथवा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिशेष उत्पादन का विनियम करके उसके बदले में गेहूँ प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 8.
एक गाँव के संसाधनों के बारे में टिप्पणी कीजिए और उनका वितरण किस प्रकार से किया जाता है?
उत्तर:
एक गाँव के लोगों को सामूहिक आधार पर जितने संसाधनों की आवश्यकता होती है उनकी तुलना में उनकी उपलब्धता सीमित होती है। पसन्द एवं नापसन्द का ध्यान रखकर गाँव के लोग विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए सीमित संसाधनों का उचित प्रकार से वितरण करते हैं ताकि उनकी आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

प्रश्न 9.
प्रतिदर्श को परिभाषित करें।
उत्तर:
वास्तविक बाजार की सरलीकृत तस्वीर को प्रतिदर्श कहते हैं। बाजार का प्रतिदर्श वास्तविक बाजार की विशेषताओं को केन्द्रीकृत रूप में दर्शाता है। दूसरे शब्दों में प्रतिदर्श, वास्तविक तस्वीर की आवश्यक विशेषताओं को प्रतिबिम्बित करता है। एक प्रतिदर्श, वास्तविक जटिल प्रारूप को सरल रूप में पेश करता है।

प्रश्न 10.
उत्पादन साधनों का अर्थ लिखिए। उत्पादन साधनों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए किया जाता है उन्हें उत्पादन के साधन कहते हैं।
उत्पादन के साधनों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. साधन आगत/मुख्य साधन/प्राथमिक साधन-भूमि एवं श्रम।
  2. मध्यवर्ती वस्तुएँ/गैर साधन आगत/गौण साधन-उत्पादित वस्तु जो अन्य वस्तुओं के उत्पादन में काम आती हैं। जैसे- मिठाई बनाने में चीनी, टायर के विनिर्माण में रबर आदि।

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प्रश्न 11.
उपभोग एवं उत्पादन वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। प्रत्येक के दो-दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तु:
वे वस्तुएँ जिनका उपयोग उपभोग के लिए किया जाता है, उपभोक्ता वस्तु कहलाती हैं। जैसे – भोजन सामग्री, वस्त्र आदि।

उत्पादक वस्तु:
वे वस्तु जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए होता है। जैसे – मशीन, कच्चा माल आदि।

प्रश्न 12.
एक व्यक्ति के स्वामित्व में कुछ मात्रा में ही वस्तुएँ होती हैं। समझाइए।
उत्तर:
एक व्यक्ति को जितनी वस्तुओं की आवश्यकता होती है न तो उनकी मात्रा में उसके पास उपलब्ध होती हैं और न ही वह उन सबका उत्पादन कर सकता है। वह केवल उपलब्ध साधनों में से कुछ को ही अपने स्वामित्व में रख सकता है अथवा उत्पादन कर सकता है। इस प्रकार वस्तुओं के स्वामित्व एवं उत्पादन के मामले में प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट होता है जबकि उपलब्ध एवं उत्पादित सभी वस्तुओं की अर्थव्यवस्था में एक लम्बी श्रृंखला होती है।

प्रश्न 13.
विशिष्ट उतपादन एवं व्यापक उपभोग के बीच की खाई को किस तरह भरा जाता है?
उत्तर:
संसाधनों की दुर्लभता एवं आवश्यकताओं की असीमितता के कारण उत्पादन विशिष्टता एवं उपभोग की विविधता में काफी अन्तर होता है। इस अन्तर को पूरा करने के लिए विनियम प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में उपभोग, उत्पादन एवं विनियम क्रियाएँ बाजार में सतत् रूप से चलती है।

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प्रश्न 14.
एक अर्थव्यवस्था के संसाधनों के बारे में टिप्पणी करें।
उत्तर:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था अथवा व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में सीमित एवं दुर्लभ होते हैं। अतः कोई भी अर्थव्यवस्था अथवा व्यक्ति उपलब्ध सीमित व दुर्लभ संसाधनों से सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती/सकता है। वह रूचियों के आधार पर कुछ आवश्यकताओं का चयन करके अपनी अधिक से अधिक आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है। संसाधन मानवकृत एवं प्राकृतिक दो प्रकार के होते हैं। प्राकृतिक संसाधन सीमितता के अलावा गैरपुरूत्पादनीय भी होते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था के संसाधन सीमित होते हैं। अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उपलब्ध संसाधनों को वैकल्पिक आधार पर प्रयोग कर सकती है। संसाधनों का विभिन्न वस्तुओं के लिए उत्पादन में अनेक प्रकार से आबंटन करके अर्थव्यवस्था उत्पादन के विभिन्न समुच्चय प्राप्त कर सकती है। संसाधनों की दी गई मात्रा से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की संभावनाओं को उत्पादन संभावनाएँ कहते हैं।

प्रश्न 16.
एक उदाहरण की सहायता से विवेकशीलता को समझाइए।
उत्तर:
संसाधनों की दुर्लभता के कारण व्यक्ति संसाधनों का बेहतर उपयोग करने का प्रयास करता है। यह माना जाता है कि प्रत्येक उपभोक्ता को वस्तुओं के उपलब्ध समुच्चयों के बारे में, अभिरूचियों के बारे में स्पष्ट जानकारी होती है। इस अर्थ में उपभोक्ता विवेकशील माना जाता है क्योंकि आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए वह अपनी रूचियों के अनुसार चयन करता है अतः संसाधनों का उपयोग करने में वह विवेकशील होता है और अपनी अधिकतम आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करता है।

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प्रश्न 17.
बाजार का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जिससे लोगों को आर्थिक क्रियाओं को मुक्त रूप से संचालित करने की आजादी होती है, उसे बाजार कहते हैं। एक बाजार में एक व्यक्ति अपने अधिशेष उत्पादन को उन लोगों को बेच सकता है जिन्हें उसकी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। विक्रय से प्राप्त मुद्रा का उपयोग वह व्यक्ति उन वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय करने के लिए कर सकता है, जिनकी उसे आवश्यकता होती है।

प्रश्न 18.
उन स्थितियों के उदाहरण दीजिए जिनमें क्रेता एवं विक्रेता आपस में एम-दूसरे से व्यवहार करते हैं।
उत्तर:
बाजार में क्रेता एवं विक्रेता विभिन्न स्थितियों में एक-दूसरे से व्यवहार कर सकते हैं। उनमें से कुछ स्थितियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. एक ग्रामीण चौक में
  2. शहर के सुपर बाजार में
  3. दूरभाष के माध्यम से
  4. इंटरनेट के जरिए एवं
  5. ई-मेलिंग के जरिए

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प्रश्न 19.
यह कहना कहाँ तक न्यायोचित है कि कोई भी अकेला क्रेता बाजार में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण नहीं कर सकता है।
उत्तर:
एक वस्तु बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होती है। बाजार में क्रय-विक्रय की गई वस्तु की कुल मात्रा का एक क्रेता नगण्य मात्रा में ही क्रय करता है अतः अकेला क्रेता बाजार में नगण्य रूप में महत्त्व रखता है। अतः अकेला क्रेता बाजार में वस्तु की कीमत का निर्धारण नहीं कर सकता है। उसे बाजार द्वारा तय की गई कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। एक विक्रेता बाजार में प्रचालित कीमत पर वस्तु की क्रय की गई मात्रा को ही निर्धारित कर सकता है।

प्रश्न 20.
एक अकेला क्रेता अथवा विक्रेता अपने दम पर वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। आप सहमत हैं? समझाइए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र में बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जहाँ एक वस्तु के अधिक क्रेता एवं विक्रेता एक-दूसरे से संव्यवहार करते हैं। बहुत-सी वस्तुओं के बाजार इस प्रकार के नहीं होते हैं। अधिकांश वस्तु बाजारों में जहाँ एक वस्तु का विक्रय करने वाले विक्रेताओं की संख्या कम होती है वहाँ अकेला विक्रेता वस्तु की कीमत एवं विक्रय की जाने वाली मात्रा दोनों को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए एकाधिकारी बाजार में एक वस्तु का अकेला विक्रेता होता है। एकाधिकारी इस बाजार में वस्तु की विक्रय की जाने वाली मात्रा एवं कीमत दोनों को प्रभावित कर सकता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जहाँ क्रेता एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होती है, अकेला विक्रेता वस्तु की मात्रा एवं कीमत किसी को भी प्रभावित नहीं कर सकता है।

प्रश्न 21.
उन प्रश्नों के उदाहरण दीजिए जिनका समष्टि अर्थशास्त्र में अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में अध्ययन किए जाने वाले प्रमुख प्रश्न हैं –

  1. संसाधनों के बेरोजगार होने के क्या कारण हैं?
  2. सामान्य कीमत स्तर क्यों बढ़ता है?
  3. क्या अर्थव्यवस्था के सभी संसाधनों का पूर्ण विदोहन हो रहा है?
  4. आय का सन्तुलन स्तर कैसे निर्धारित किया जाए?
  5. सामूहिक पूर्ति का निर्धारण कैसे क्यिा जाए?
  6. अर्थव्यवस्था में सामूहिक पूर्ति का स्तर कया है?

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प्रश्न 22.
सकारात्मक एवं आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय किसी तंत्र के कार्य का मूल्यांकन करना है जबकि आदर्शात्मक विश्लेषण से अभिप्राय किसी तंत्र की वांछनीयता या अवांछनीयता के बारे में मूल्याकन करने से होता है। सकारात्मक एवं आदर्शात्मक मुद्दे केन्द्रीय आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। एक के प्रभाव में दूसरे को समझना संभव नहीं होता है। अतः दोनों प्रकार के विश्लेषण एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

प्रश्न 23.
व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय निम्नवत हैं –

  1. एक वस्तु की माँग
  2. एक वस्तु की आपूर्ति
  3. एक वस्तु की कीमत का निर्धारण
  4. एक फर्म का सम्य
  5. एक वस्तु की उत्पादन लागत
  6. एक फर्म को प्राप्त लागत

प्रश्न 24.
एक बाजार अर्थव्यवस्था के द्वारा केन्द्रीय समस्याओं को हल करने के तरीके के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
एक बाजार अर्थव्यवस्था में विभिन्न आर्थिक इकाइयाँ मुक्त रूप से आपस में संव्यवहार करती हैं। अतः विवेकशील आर्थिक इकाइयों के संव्यवहार से बाजार की समस्याएँ स्वतः हल हो जाती हैं। मूल आर्थिक समस्याओं का निराकरण विकेन्द्रीयकृत हल होता है अर्थात् समस्याओं का हल केन्द्रीय सत्ता नहीं करती है बल्कि सब मिलकर करते हैं। समाजवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्याओं का हल नियोजन के माध्यम से केन्द्रीय सत्ता करती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था सन्तुलन के कब कही जाती है?
उत्तर:
कोई अकेली आर्थिक इकाई सन्तुलन प्राप्त नहीं कर सकती है। बाजार अर्थव्यवस्था में विवेकशील व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ अपने हित के अनुरूप आर्थिक क्रियाओं का संचालन करके स्वतः ही आर्थिक समस्याओं को हल करती हैं और सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त करती हैं। अदृश्य शक्तियाँ क्रियाशील होकर सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त करती है। प्रत्येक, आर्थिक इकाई इस प्रकार से कार्य करती है जो दूसरी आर्थिक इकाइयों के साथ मिलान करने लायक हो। संसाधनों के आबंटन एवं उनकी उपलब्धता के आधार पर ही अन्तिम वस्तुओं का आबंटन आधारित होता है। जब अर्थव्यवस्था कोई भी परिवर्तन नहीं चाहती है तब उसे सन्तुलन में माना जाता है।

प्रश्न 26.
अर्थशास्त्र की दो मुख्य शाखाओं के नाम लिखिए, उनके अर्थ भी लिखिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु का मुख्य रूप से दो शाखाओं के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है, जो निम्नवत हैं –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र, व
  2. समष्टि अर्थशास्त्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र-अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, उसे व्यष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। यह शाखा यह प्रदर्शित करती है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयाँ आपसी व्यवहार के द्वारा किस प्रकार से वस्तु की मात्रा एवं कीमत का निर्धारण करती हैं। समष्टि अर्थशास्त्र-अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें सामूहिक आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, उसे समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। इस शाखा में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को एक आर्थिक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक बाजार होता है –
(A) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।
(B) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने के अनुमति प्रदान नहीं करता है।
(C) व्यवस्थाओं का कोई भी ऐसे समुच्चय जो लोगों को आपस में बंधन मुक्त व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।

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प्रश्न 2.
एक व्यक्ति के पास संसाधन होते हैं –
(A) असीमित
(B) सीमित
(C) न तो असीमित, न सीमित
(D) या तो सीमित या असीमित
उत्तर:
(B) सीमित

प्रश्न 3.
लोग प्रयास करते हैं –
(A) अपने संसाधनों का सबसे बेकार उपयोग करने का
(B) अपने संसाधनों का अच्छा उपयोग करने का
(C) अपने संसाधनों का सर्वोच्य रूप से उपयोग करने का
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(C) अपने संसाधनों का सर्वोच्य रूप से उपयोग करने का

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प्रश्न 4.
उपभोग के वक्त विभिन्न वस्तुओं का चयन करते वक्त एक उपभोक्ता विवेकशील होता है –
(A) जब वह रूचि व अभिरुचियों के अनुरूप चयन करता है
(B) जब वह रूचि व अभिरुचियों के विरूद्ध चयन करता है
(C) जब वह अपने रिश्तेदारों की रूचि-अभिरुचियों के अनुरूप चयन करता है
(D) जब वह अपनी भावनाओं के अनुरूप चयन करता है
उत्तर:
(D) जब वह अपनी भावनाओं के अनुरूप चयन करता है

प्रश्न 5.
वह तालिका जिसमें उपभोक्ता द्वारा विभिन्न कीमतों पर माँगी गई मात्राओं को दर्शाया जाता है, उसे कहते हैं –
(A) बाजार माँग अनुसूचि
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) उत्पादक पूर्ति अनुसूचित
उत्तर:
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि

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प्रश्न 6.
वह तालिका जिसमें उत्पादक द्वारा विभिन्न कीमतों पर बेची गई मात्राओं को दर्शाया जाता है, उसे कहते हैं –
(A) बाजार माँग अनुसूचि
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) उत्पादक पूर्ति अनुसूचित
उत्तर:
(D) बाजार पूर्ति अनुसूचि

प्रश्न 7.
विभिन्न कीमतों पर बाजार में मौजूद सभी उत्पादकों द्वारा बेची जाने वाली मात्राओं को दर्शाने वाली तालिका को कहते हैं।
(A) व्यक्तिगत माँग अनुसूचि
(B) व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) बाजार माँग अनुसूचि
उत्तर:
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि

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प्रश्न 8.
विभिन्न कीमतों पर बाजार में मौजूद सभी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली मात्राओं को दर्शाने वाली तालिका को कहते हैं –
(A) व्यक्तिगत माँग अनुसूचि
(B) व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) बाजार माँग अनुसूचि
उत्तर:
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि

प्रश्न 9.
जिस कीमत पर वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा दोनों समान होती हैं, उस कीमत को कहते हैं –
(A) साम्य मांगी गई मात्रा
(B) साम्य पूर्ति की गई मात्रा
(C) साम्य कीमत
(D) लागत
उत्तर:
(C) साम्य कीमत

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प्रश्न 10.
अवसर लागत का वैकल्पिक नाम है –
(A) आर्थिक लागत
(B) साम्य कीमत
(C) सीमांत लागत
(D) औसत लागत
उत्तर:
(A) आर्थिक लागत