Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.6

Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.6 Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 9 Maths Solutions Chapter 1 संख्या पद्धति Ex 1.6

प्रश्न 1.
ज्ञात कीजिए
(i) 64\(\frac{1}{2}\)
(ii) 32\(\frac{1}{5}\)
(iii) 125\(\frac{1}{3}\)
हाल:
(i) (64)\(\frac{1}{2}\) = (8 × 8)\(\frac{1}{2}\)
= (8²)\(\frac{1}{2}\) [∵ (xa)b = xab]
= 8

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(ii) 32\(\frac{1}{5}\) = (2 × 2 × 2 × 2 × 2)\(\frac{1}{5}\)
= (25)\(\frac{1}{5}\)
= 25×\(\frac{1}{5}\) [∵ (xa)b = xab]
= 2

(iii) 125\(\frac{1}{3}\) = (5 × 5 × 5)\(\frac{1}{3}\)
= (53)\(\frac{1}{3}\)
= 53×\(\frac{1}{3}\) [∵ (xa)b = xab]
= 5

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प्रश्न 2.
ज्ञात कीजिए
(i) 9\(\frac{3}{2}\)
(ii) 32\(\frac{2}{5}\)
(iii) 16\(\frac{3}{4}\)
(iv) 125\(\frac{-1}{3}\)
हल:
(i) 9\(\frac{3}{2}\) = (3 × 3)\(\frac{3}{2}\)
= (32)\(\frac{3}{2}\)
= 32×\(\frac{3}{2}\) [∵ (xa)b = xab]
= 3³
= 27

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(ii) 32\(\frac{2}{5}\) = (2 × 2 × 2 × 2 × 2)\(\frac{2}{5}\)
= (25)\(\frac{2}{5}\)
= 25×\(\frac{2}{5}\) [∵ (xa)b = xab]
= 2²
= 4

(iii) 16\(\frac{3}{4}\) = (2 × 2 × 2 × 2)\(\frac{3}{4}\)
= (24)\(\frac{3}{4}\)
= 24×\(\frac{3}{4}\) [∵ (xa)b = xab]
= 2³
= 8

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(iv) 125\(\frac{-1}{3}\) = (5 × 5 × 5)-\(\frac{1}{3}\)
= (53)-\(\frac{1}{3}\)
= 53×-\(\frac{1}{3}\) [∵ (xa)b = xab]
= 5-1
= \(\frac{1}{5}\) [∵ (x-a) = \(\frac{1}{x^a}\)]

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प्रश्न 3.
सरल कीजिए
(i) 2\(\frac{2}{3}\). 2\(\frac{1}{5}\)
(ii) (\(\frac{1}{3³}\))7
(iii) \(\frac{11^\frac{1}{2}}{11^\frac{1}{4}}\)
(iv) 71/2.81/2
हल:
(i) 2\(\frac{2}{3}\). 2\(\frac{1}{5}\) = 2(\(\frac{2}{3}\)+\(\frac{1}{5}\)) [∵ xaxb = xa+b]
= 2\(\frac{10+3}{5}\)
= 213/15

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(ii) (\(\frac{1}{3³}\))7 = \(\frac{1}{3^{3×7}}\) [∵ (xa)b = xab]
= \(\frac{1}{3^{21}}\)
= 3-21

(iii) \(\frac{11^\frac{1}{2}}{11^\frac{1}{4}}\) = 11\(\frac{1}{2}\) – \(\frac{1}{4}\) [∵ \(\frac{x^a}{x^b} = x^{a-b}\)]

= 11\(\frac{2-1}{4}\)
= 11\(\frac{1}{4}\)

(iv) 71/2.81/2 = (7.8)\(\frac{1}{2}\) [∵ xaya = (xy)a]
= (56)1/2

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Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 7 Social Science सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आप बता सकते हैं कि इस्लाम धर्म अपने साथ खाने-पीने और पहनने की कौन-कौन-सी चीजें साथ लेकर आया ?
उत्तर-
इस्लाम धर्म अपने साथ पहनने के लिये कुर्ता-पायजामा, सलवार-समीज, लँगी, कमीज अचकन आदि लाये, जिन्हें हिन्दुओं ने भी अपना लिया । इस्लाम खाने की चीजों में हलवा, समोसा, पोलाव, बिरयानी आदि लाये, जिसे हिन्दू भी खाते हैं।

प्रश्न 2.
विभिन्न धर्मों के समानताओं एवं असमानतों को चार्ट के माध्यम से बताएँ।
उत्तर-
Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास 1
इन छोटी-मोटी समानता या असमानता किसी तरह मेल-जोल में बाधक नहीं बनतीं । सभी मिल-जुलकर रहते हैं ।

प्रश्न 3.
आप अपने शिक्षक या माता-पिता की सहायता से पाँच-पाँच हिन्दू देवी-देवताओं, सूफी एवं भक्ति संतों से जुड़े स्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर-
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अभ्यास के प्रश्नोत्तर

आइए याद करें:

प्रश्न 1.
सिंध विजय किसने की?
(क) मुहम्मद-बिन-तुगलक
(ख) मुहम्मद बिन कासिम
(ग) जलालुद्दीन अकबर
(घ) फिरोशाह तुगलक
उत्तर-
(ख) मुहम्मद बिन कासिम

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प्रश्न 2.
महमूद गजनी के साथ कौन-सा विद्वान भारत आया ?
(क) अल-बहार
(ख) अल जवाहिरी
(ग) अल-बेरूनी
(घ) मिनहाज उस सिराज
उत्तर-
(ग) अल-बेरूनी

प्रश्न 3.
भारत में कुर्ता-पायजामा का प्रचलन किनके आगमन से शरू हुआ?
(क) ईसाई
(ख) मुसलमान
(ग) पारसी
(घ) यहूदी
उत्तर-
(ख) मुसलमान

प्रश्न 4.
अलवार और नयनार कहाँ के भक्त संत थे ?
(क) उत्तर भारत
(ख) पूर्वी भारत
(ग) महाराष्ट्र
(घ) दक्षिण भारत
उत्तर-
(घ) दक्षिण भारत

प्रश्न 5.
मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ?
(क) दिल्ली
(ख) ढाका
(ग) अजमेर
(घ) आगरा
उत्तर-
(ग) अजमेर

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प्रश्न 2.
इन्हें सुमेलित करें :

  1. निजामुद्दीन औलियां – (1) बिहार
  2. शंकर देव – (2) दिल्ली
  3. नानकदेव – (3) असम
  4. एकनाथ – (4) राजस्थान
  5. मीराबाई – (5) महाराष्ट्र
  6. संत दरिया साहब – (6) पंजाब

उत्तर-

  1. निजामुद्दीन औलियां – (2) दिल्ली
  2. शंकर देव – (3) असम
  3. नानकदेव – (6) पंजाब
  4. एकनाथ – (5) महाराष्ट्र
  5. मीराबाई – (4) राजस्थान
  6. संत दरिया साहब – (1) बिहार

आइए समझकर विचार करें 

प्रश्न 1.
भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास कैसे हुआ ? प्रकाश डालें।
उत्तर-
1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर हिन्दू और मुसलमानों का सम्पर्क बना । इसके पूर्व जहाँ भारत के लोग तुर्क-अफगानों को एक लुटेरा और मूर्ति भंजक समझते थे, अब शासक के रूप में स्वीकारने लगे । इस भावना को फैलाने में उन भारतीयों की याददाश्त भी थी, जिन्हें मालूम था कि कभी अफगानिस्तान पर भारत का शासन था ।

अतः यहाँ के लोग अफगानों को गैर नहीं मानते थे । खासकर बिहार में, क्योंकि अशोक बिहार का ही था । अलबरूनी, जो महमूद गजनी के साथ भारत आया था, यहाँ रहकर संस्कृत की शिक्षा ली और हिन्दू धर्मग्रंथों और विज्ञान का अध्ययन किया । उसने यहाँ के सामाजिक जीवन को भी निकट से देखा । खूब सोच-समझकर उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी ।

दूसरी ओर अनेक सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के विभिन्न नगरों में बसने लगे। इससे इन दोनों धर्मों को मानने वालों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान और समन्वय का वातावरण बना ।

मुस्लिम शासकों, खासकर मुगलों द्वारा स्थापित राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा प्रभाव हिन्दू भक्त संतों एवं सुफी संतों के मेल मिलाप बढ़ने पर दोनों ने इस भावना का प्रचार किया कि भगवान एक है । ईश्वर और अल्लाह में कोई फर्क नहीं । सभी धर्म के लोगों की चरम अभिलाषा खुदा तक पहुँचने की होती है। तुम खुद में खुदा को देखो ।

आगे चलकर एक के पहनावे और खानपान को दूसरे ने अपनाया । राज काज में हिस्सा लेने वाले हिन्दू भी फारसी पढ़ने लगे और पायजामा और अचकन का व्यवहार करने लगे । इसी प्रकार भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ।

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प्रश्न 2.
निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परम्परा रही है। कैसे?
उत्तर-
रामानन्द के अनुयायियों काएक अन्य वर्ग उदारवादी अथवा निर्गुण सम्प्रदाय कहलाता है । इन निर्गुण भक्त संतों ने ईश्वर को तो माना लेकिन उसके किसी रूप को मानने से इंकार कर दिया। ये निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे । निर्गुण भक्त संतों ने, जाति-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच, मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया ।

ये कर्मकांडों में भी विश्वास नहीं करते थे। निर्गुण भक्त संतों में कबीर को सर्वाधिक प्रमुख संत माना जाता है । ये एक मुखर कवि के रूप में भी प्रसिद्ध है । कबीर इस्लाम और हिन्दू-दोनों धर्म के माहिर जानकार थे । इन्होंने दोनों धर्मों के ढकोसलेबाजी की घोर भर्त्सना की । इनके विचार ‘साखी’ और ‘सबद’ नामक ग्रंथ में सकलित हैं । इन दोनों को मिलाकर जो ग्रंथ बना है उसे ‘बीजक’ कहते हैं ।

कबीर के उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दु धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के आडम्बरपूर्ण पूजा-पाठ और आचार-व्यवहार पर कठोर कुठारापात किया गया । यद्यपि इन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया किन्तु कहीं-कहीं रहस्यमयी भाषा का भी उपयोग किया है। ये राम को. तो मानते थे लेकिन इनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे । इन्होंने अपने राम के रूप का इन शब्दों में बताया है :

“दशरथ के गृह ब्रह्म न जनमें, ईछल माया किन्हा ।” इन्होंने दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का अवतार मानने से भी इंकार किया :

चारि भुजा के भजन में भूल पड़ा संसार । कबिरा सुमिरे ताहि को जाकि भुजा अपार गुरु नानक देव तथा दरिया साहेब निर्गुण भक्त संतों की परम्परा में ही थे।

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प्रश्न 3.
बिहार के संत दरिया साहेब के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें।
उत्तर-
दरिया साहब का कार्य क्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले-भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गये हैं।

विचार से दरिया साहेब एकेश्वरवादी थे । इनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा वेद और पुराण दोनों में ही उसी का प्रकाश है । ईश्वर को. दरिया साहब ने निर्गुण और निराकार माना। इन्होंने अवतार और पूजा-पाठ को मानने से इंकार कर दिया । इन्होंने मात्र प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना ।

इनके अनुसार प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान भी अधूरा है । इनका कहना था कि ईश्वर के प्रति प्रेम पाप से बचाता है और ईश्वर की अनुभूति में सहायक बनता है । ये मानते थे कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बल्कि चेतना में निहित है, जबकि विश्वास ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण मात्र है । दरिया साहब ने जाति-प्रथा, छुआछूत का विरोध किया । इनके विचारों पर इस्लाम का एवं व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव दिखाई देता है । इनको मानने वालों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी।

दरिया साहब के विचारों को मानने वालों की सख्या आज के भोजपर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थी । उन्होंने वहाँ मठ की भी स्थापना की । इनके मानने वालों की संख्या वाराणसी में भी कम नहीं थी।

दरिया साहब के क्या उपदेश थे, उसे निम्नांकित अंशों से मिल सकते हैं: “एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी -1”. “ब्रह्म, विसुन, महेश्वर देवा, सभी मिली रहिन ज्योति सेवा।” “तीन लोक से बाहरे सो सद्गुरु का देश ।” “तीर्थ, वरत, भक्ति बिनु फीका तथा पड़ही पाखण्ड पथल का पूजा ।” दरिया साहब को बहुत हद तक कबीर का अनुगामी कहा जा सकता है।

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प्रश्न 4.
मनेरी साहब बिहार के महान सुफी संत थे। कैसे?
उत्तर-
मनेरी, साहब का पूरा नाम था ‘हजरत मखदुम शरफुद्दीन याहिया मनेरी । बिहार में फिरदौसी परम्परा के संतों में मनेरी साहब का विशेष महत्व है। भारत में मिली-जुली संस्कृति की जो पवित्र धारा सूफी संतों ने बहायी, उस संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने ही किया। इन्होंने संकीर्ण विचारधारा का न केवल विरोध किया, बल्कि जाति-पाति एवं धार्मिक कट्टरता का भी विरोध किया । इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया ।

इनके प्रयास से फिरदौसी परम्परा को बिहार में काफी लोकप्रियता मिली । मनेरी साहब ने मनेर से मुनारगाँव, जो अभी बांग्लादेश में पड़ता है, तक की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया । इसके बाद ये राजगीर तथा बिहारशरीफ में तपस्या करते हुए धर्म प्रचार में भी लीन रहे। फारसी भाषा में उनके पत्रों के दो संकलन मकतुबाते सदी एवं मकतुबात दो ग्रंथ प्रमुख हैं। मनेरी साहब ने हिन्दी में भी बहुत लिखा है, जिनमें इन्होंने ईश्वर को अपने सूफियाना ढंग से व्यक्त किया है । इन्होंने इस लेख में अपने को प्रेयसी तथा ईश्वर या अल्ला को प्रेमी माना है ।

मनेरी साहब का मजार मनेर में न होकर बिहार शरीफ में इनकी मजार के बगल में ही उनकी माँ बीबी रजिया का भी मजार है । बीबी रजिया सूफी संत पीर जगजोत की बेटी थी।

प्रश्न 5.
महाराष्ट्र के भक्त संतों की क्या विशेषता थी?
उत्तर-
महाराष्ट्र के भक्त संतों की विशेषता को जानने के लिये हमें 13वीं सदी से 17वीं सदी तक ध्यान देना होगा । भक्त संतों की परम्परा के जन्मदाता रामानुज थे जो दक्षिण भारत के थे। उन्हीं के उपदेशों को भक्त संतों ने पक्षिण

भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैलाया । महाराष्ट्र में 13वीं सदी में नामदेव ने। भक्ति धारा को प्रवाहित किया, जिसे 17वीं सदी में तुकाराम ने आगे बढ़ाया।

इस बीच हम भक्त संतों की एक समृद्ध परम्परा को देखते हैं । इन भक्त संतों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति एवं प्रेम के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया । इन संतों ने धार्मिक आडम्बर, मूर्ति पूजा, तीर्थ व्रत, उपासना और कर्मकाण्डों का घोर विरोध किया और कहा कि यह सब कुछ नहीं, केवल दिखावा मात्र है।

इन्होंने आयों की वर्ण व्यवस्था को भी मानने से इंकार कर दिया और जाति-पाति, ऊंच-नीच के भेदभाव का घोर विरोध किया । इनके अनुयायियों ने सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया।

महाराष्ट्र के इन संतों ने भक्ति की यह परम्परा पंढरपुर में विट्ठल स्वामी को जन-जन के ईश्वर और आराध्य के रूप में स्थापित किया । ये विठ्ठल स्वामी विष्णु के ही एक रूप श्रीकृष्ण थे । महाराष्ट्रीय भक्त संतों की रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया गया । इन्होंने सभी वर्गों, जातियों, यहाँ तक कि अंत्यज कहे जाने वाले दलितों को भी समान दृष्टि से देखा । इन भक्त संतों ने अपने अभंग द्वारा सामाजिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया।

संत तुकाराम ने अपने अभंग में लिखा
जो दीन-दुखियों, पीड़ितों को
अपना समझता है वही संत है क्योंकि ईश्वर उसके साथ है।

विचारणीय मुद्दे

प्रश्न 1.
मध्यकालीन भक्त संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर एक समान विशेषताएँ थीं। कैसे?
उत्तर-
मध्यकालीन भारत में भक्त आंदोलन के उद्भव और विकास में कई परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं । वैदिक पंडा-पुरोहित कर्मकांडों को आधार बनाकर जनता का शोषण करते थे । जो कर्मकांडों के व्यय को वहन करने योग्य नहीं थे, उन्हें नीच करार दिया गया । इस कारण समाज में दलितों की संख्या बढ़ गई । इन्हीं बुराइयों को दूर करने में भक्त संत लगे रहे । यद्यपि आगे चलकर इनमें भी दो मतावलम्बी हो गये, लेकिन धर्म सुधार की जिस मकसद से ये संत बने थे उसमें कोई अन्तर नहीं आया । इसलिये कहा गया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भक्त संतों की एक समान विशेषताएँ थीं।

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प्रश्न 2.
शंकराचार्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बांधा। कैसे?
उत्तर-
शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों का निर्माण कर भारत को सांस्कृतिक रूप में एक सूत्र में बाँधने का काम किया । वे चारों मठ थे:

उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, परब में परी तथा पश्चिम में द्वारिका । इस प्रकार हर भारतीय जीवन में एक बार इन मठों में जाकर पूजा अर्चना करना अपना एक कृत्य मानने लगा । इससे सम्पूर्ण भारत धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंध गया । उस शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य कहते हैं। अभी हर मठ के अलग-अलग शंकराचार्य होते हैं, ताकि परम्परा कायम रहे । एक शंकराचार्य की मृत्यु के बाद दूसरे शंकराचार्य नियुक्त ‘ हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
क्या आपके गाँव के पुजारी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात, आडम्बर आदि का विरोध करते हैं? अगर नहीं तो क्यों ?
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी बहुत बदलाव नहीं आया । अभी भी यहाँ के पुजारी कर्मकांड, जातपात, आडम्बर आदि का विरोध नहीं करते । कारण कि यदि वे ऐसा करें तो उनकी रोजी ही समाप्त हो जाय । दूसरी बात है कि गाँव के ऊँची जातियाँ उनका समर्थन भी करती है । इसलिये कानून की परवाह किये बिना वे लगातार लकीर के फकीर बने हुए है । आर्य समाज का जबतक बोलबाला था तब तक इसमें कुछ कमी आई थी । लेकिन अब वे निरंकुश हो गये हैं। सरकार भी कुछ नहीं कर पाती ।

प्रश्न 4.
क्या आपने हिन्दू और मुसलमानों को साथ रहते हुए देखा है? उनमें क्या-क्या समानताएँ हैं ?
उत्तर-
मैं तो जन्म से ही हिन्दू और मुसलमानों को साथ-साथ रहते हुए देखा है। हमने देखा ही नहीं है, बल्कि साथ-साथ रहे भी हैं और आज भी साथ-साथ रह रहे हैं। अभी का आर्थिक जीवन इतना पेचिदा हो गया है कि बिना एक-दूसरे का सहयोग लिये हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हम सभी साथ-साथ है । कभी-कभी कुछ राजनीतिक कारणों से विभेद-सा लगता है, हे अन्दर से सभी साथ-साथ हैं । कुछ राजनीतिक दल तो ऐसे

हैं जो एक होने ही नहीं देना चाहते हैं ? सदैव लड़ाते रहना चाहते हैं । वे यही दिखाने में मशगूल रहते हैं कि कौन पार्टी कितना मुसलमानों की हितैषी है। लेकिन इस धूर्तता को मुसलमान भी समझ गये हैं । इसका उदाहरण अभी बिहार और गुजरात है। अब राजनीतिक आधार पर वोट पड़ने लगे हैं । ध म और जाति के आधार पर नहीं ।

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प्रश्न 5.
सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये आप क्या-क्या करना चाहेंगे, जिससे सौहार्दपूर्ण माहौल बने ?
उत्तर-
सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम सभी मिलजुलकर संस्कृत उत्सव मनाएँगे । उनके शादी-विवाह आदि खुशी के मौके पर उनको अपने यहाँ बुलाएँगे और उनके बुलावे पर उनके यहाँ जाएँगे । ऐसा करना क्या है, सदियों से ऐसा होता भी आया है और अभी भी हो रहा है । यदि राजनीतिक नेता चुप रहें तो कहीं कोई गड़बड़ी नहीं होगी।

Bihar Board Class 7 Social Science सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Notes

पाठ का सार संक्षेप

भारत में प्राचीन काल से ही मेल-जोल की परम्परा रही है। तर्क-अफगान आक्रमणकारियों के पहले जितने भी आक्रमणकारी आये, वे हारे या जीते यहीं के होकर रह गये । आज कौन यूनानी है और कौन शक या हूण किसी की कोई पहचान नहीं, सब परस्पर घुल-मिल गये । तुर्क-अफगानों के बाद मुगल आये । आरम्भ में थोड़ा-बहुत मनोमालिन्य के बाद सभी एक-दूसरे के साथ घुलमिल गये, लेकिन इन्होंने अपनी पहचान कायम रखी । वैसे तो व्यापारिक काम से अरब के लोग सातवीं सदी के आरम्भ से ही आना आरम्भ कर दिये थे, जिस समय इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था । इस्लाम के फैलने के बाद पहला आक्रमण आठवीं सदी में मुहम्मद-बिन-कासिम के नेतृत्व में सिंध और दक्षिण-पश्चिम पंजाब पर हुआ और वहाँ उनका शासन स्थापित हो गया। लेकिन ये अल्पकाल तक ही टीक पाये।

सिलसिलेवार आक्रमण महमूद गजनवी का था, किन्तु राज्य विस्तार के लिये नहीं, बल्कि लूट-पाट मचाने के लिये । इसके लूट-पाट की खबरों से भारतीय राजाओं की शक्ति की पोल खुल गई । मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर यहाँ दिल्ली को हड़प लिया । उसी ने यहाँ उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र को अपने नियंत्रण में कर दिल्ली सल्तनत की नींव डाल दी। स्वयं तो गोरी लौट गया किन्तु अपने एक विश्वासी सेनापति को यहाँ का शासन सौंप गया । सेनापति चूँकि उसका गुलाम था, अत: उसके वंश को गुलाम वंश कहा गया । 1206 में गुलाम वंश की स्थापना हो चुकी थी।

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तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ से तुर्क-अफगानों के साथ कुछ बौद्धिक स्तर, पर मेलजोल बढ़ने लगा था । अलबरूनी ने हिन्दुओं के धर्म, विज्ञान और सामाजिक जीवन से सम्बद्ध ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी । सूफी संत और इस्लाम धर्म प्रचारक गाँव-गाँव घूमकर लोगों को मन से तुर्कों के निकट लाने का सफल प्रयास किया । सूफी संतों के प्रति हिन्दुओं का उतना ही सम्मान . था जितना मुसलमानों का । खानकाहों और पीरों के दरगाहों पर हिन्दुओं का आना-जाना बढ़ गया । तुर्क-अफगान और मुगलों के शासन कार्य की भाषा फारसी थी । अतः हिन्दू राज्य कर्मचारियों को फारसी पढ़ना पड़ा । आगे चलकर फारसी, तुर्की, ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली हिन्दी को मिलाकर उर्दू भाषा का विकास हुआ । उर्दू ने हिन्दू-मुसलमानों को और भी निकट ला दिया ।

यद्यपि कागज का आविष्कार चीन में हुआ, लेकिन इसके तकनीक को भारत में लाने वाले फारस वाले ही थे । इससे लाभ हुआ कि अब भारत में पुस्तक लेखन का काम पत्तों के बजाय कागज पर होने लगा । जिन हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म को कबूला, उन्होंने शादी-विवाह की अपनी पुरानी परम्परा को । जारी रखा । कुछ बाहरी मुसलमान भारतीय परम्पराओं को अपनाने लगे । इससे एक मिल-जुली संस्कृति का विकास हुआ ।
भारत में भक्ति अर्थात ईश्वर के प्रति अनुराग की परम्परा प्राचीन काल से ही चलती आई है। दक्षिण भारत में भक्ति एक आन्दोलन के रूप में चल पड़ी । इन्होंने तीन मार्ग, बताए :

  1. ज्ञान मार्ग
  2. कर्म मार्ग तथा
  3. भक्ति मार्ग ।

श्रीमद्भागवत बताता है कि मनुष्य भक्ति भाव से ईश्वर की शरण में जाकर पुनर्जन्म के झंझट से मुक्ति प्राप्त कर सकता है । पुराणों में उल्लेख है कि भक्त भले ही किसी जाति-पाति का हो, वह सच्ची भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है । वेदों और उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा के बीच सीधा सम्बंध स्थापित करने का विचार व्यक्त किया गया है । उपनिषदों ने धार्मिक ब्राह्माडम्बर को त्यागने को कहा ।

वैदिक रीति-रिवाज, पूजा-पाठ, धार्मिक कर्मकांड काफी महंगा हो गया था । पुरोहित अपने लाभ के लिये कर्मकाण्ड को खर्चीला बनाते जा रहे थे । सर्वसाधारण इन पाखंडों से ऊबने लगा था । दलित वर्ग छुआ-छूत और ऊँच-नीच के भेद-भाव से अपने को अपमानित महसूस कर रहा था ।

इस्लाम धर्म एकेश्वरवादी एवं समतावादी सिद्धान्त का प्रचार करता था। इस्लाम में कोई ऊँच और न कोई नीच होता है । इससे भक्त संतों ने हिन्दू-ध म में आत्म सुधार के प्रयास शुरू किए और भक्ति आन्दोलन चल पड़ा । भक्ति आन्दोलन को आप लोगों तक पहुँचाने का काम तमिल क्षेत्र के अलवार और नयनार संतों ने किया । इन्होंने भी पुनर्जन्म से मुक्ति और ईश्वर के पूर्ण भक्ति पर बल दिया । इन्होंने समाज के सभी लोगों के बीच अपने

मत का प्रचार किया । भक्त संतों का आम जनों से सीधा संबंध था । फलतः लोगों ने इनके सम्मान में मंदिरों का निर्माण किया तथा इनकी जीवनियाँ लिखीं।

भक्ति काल में ही महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का प्रादुर्भाव हुआ। … अपनी 32 वर्ष की अल्पाआयु में इन्होंने भारत के चारों ओर मठों का निर्माण

कराया, जिससे देश की एकता हर तरह से बनी रहे । शंकराचार्य ने उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी मठ, पूरब में पुरी तथा पश्चिम में द्वारिका मठ का निर्माण कराया और वहाँ पुजारियों को नियुक्त किया । शंकराचार्य अद्वैतवादी सिद्धांत के प्रतिपादक थे। उनका मानना था कि केवल ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब मिथ्या हैं। इनके मत को रामानुज ने आगे बढ़ाया।

दक्षिण भारत में ‘वीरशैव’ आन्दोलन शुरू हुआ । इन्होंने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध निम्न जातियों और नारियों के प्रति समर.कदी विचार प्रस्तुत किये । मूर्तिपूजा और कर्मकाण्डों का विरोध किया गया । रामानुज के विचार सम्पूर्ण दक्षिण भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैल गया ।

महाराष्ट्र की वैष्णव भक्ति की धारा में 13वीं सदी के नामदेव से 17वीं सदी के तुकाराम तक भक्तों की एक समृद्ध परम्परा देखने को मिलती है। इन लोगों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति और प्रेम के सिद्धान्त का प्रचार किया। इन्होंने मूर्ति पूजा, तीर्थ, कर्मकाण्ड आदि का खण्डन किया, ऊँच-नीच के भेद-भाव का विरोध किया तथा अपने अनुयायियों में सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया ।

तेरहवीं सदी के बाद उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन सुधारवादी आन्दोलन में बदल गया। इस आधार पर ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म, इस्लाम, सूफी संतों एवं तत्कालिन धार्मिक सम्प्रदायों नाथ पंथियों, सिद्धों तथा योगियों आदि की विचारधाराओं को स्पष्ट झलक देखने को मिलती है । इसमें सूफी संतों का भी योग था ।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

रामानुज की भक्ति परम्परा को उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय रामानन्द को है । कबीर रामानन्द को ही अपना गुरु मानते थे । कबीर ने इनके मत के प्रचार के लिये बहुत कुछ किया । जाति-पाति और धर्म आदि सबसे ऊपर उठकर कबीर ने कहा : “जात-पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजै सी हरि को होई ।”

सगुण सम्प्रदाय वाले राम को विष्णु का अवतार मानते हैं, जबकि निर्गुण सम्प्रदाय वाले ईश्वर की कल्पना निराकार ब्रह्म के रूप में करते हैं । सगुण सम्प्रदाय के प्रमुख संत तुलसी दास थे। वैष्णव धर्म की परम्परा में कृष्ण भक्तों की भी अच्छी जमात है। इस परम्परा के प्रमुख कवि थे मीरा बाई, चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, रसखान आदि ।

कबोर ने ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म और इस्लाम-दोनों के ब्राह्मडबर तथा कार्यकलापों की निन्दा की । कबीर के समकालीन गुरुनानक थे । ये भी सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों के विरोधी थे। इनको मानने वाले ‘सिक्ख’ कहलाते हैं । एसे संतों में दरिया साहब भी एक प्रमुख संत थे । बिहार के शाहाबाद क्षेत्र में इन्होंने अपने मत का प्रचार किया । ये भी एकेश्वरवादी थे। इन्हें मानने वाले वाराणसी तक में थे ।

सूफीवाद के तहत रहस्यवाद की भावना का अर्थ था कि ईश्वर के रहस्य को जानने का प्रयास करना । भक्त संतों तथा सूफी संतों में काफी समानता थी। सूफी संतों ने मूर्ति पूजा को अस्वीकार किया और एकेश्वरवाद को माना ।

इस्लाम ने शरियत एवं नमाज को प्रधानता दी. जबकि सफी ईश्वर के साथ किसी की परवाह किये बगैर वैसे ही जुड़ा रहना चाहते थे जिस प्रकार बच्चा अपनी माँ से ।

भारत में सबसे पहले सूफी खानकाह की स्थापना का श्रेय सुहरावर्दी परम्परा के संत बहाउद्दीन जकरिया को है । इस परम्परा के संतों ने राजकीय सहयोग से सुखमय जीवन व्यतीत किया और धर्मान्तरण को बढ़ावा दिया ।

खानकाह शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र थे । यहाँ अरबी और फारसी की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ हिन्दू और मुसलमान दोनों शिक्षा पाते थे । फुलवारी शरीफ का खानकाह बहुत प्रसिद्ध था । यहाँ की लाइब्रेरी अत्यंत समृद्ध है और यहाँ पाण्डुलिपियों का अम्बार है। देश-विदेश के शोधकर्ता यहाँ आते थे और आते हैं।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

भारत में चिश्ती परम्परा भी काफी लोकप्रिय हुई । इसकी स्थापना अजमेर, शरीफ में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने की थी। इस परम्परा के महत्त्वपूर्ण चिश्ती थे राजस्थान के हमीदुद्दीन नागोरी, दिल्ली के ख्वाजा निजामद्दीन औलिया । निजामुद्दीन औलिया को इस सम्प्रदाय के फैलाने का श्रेय दिया जाता है।

भारत की मिली-जुली संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने किया। इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया। मनेरी साहब ने मनेर से सुनार गाँव की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया । इन्होंने राजगीर एवं बिहार शरीफ में तपस्या की और धर्म प्रचार किया । मनेरी साहब का मजार बिहार शरीफ में है ।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

Bihar Board Class 6 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 1 Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

Bihar Board Class 6 Hindi भीष्म की प्रतिज्ञा Text Book Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

पाठ से –

प्रश्न 1.
शान्तनु कहाँ के महाराजा थे?
उत्तर:
शान्तनु हस्तिनापुर के महाराजा थे।

प्रश्न 2.
निषादराज ने राजा से अपनी कन्या का विवाह के लिए क्या शर्त रखी?
उत्तर:
निषादराज ने राजा से अपनी कन्या के विवाह के लिए शर्त रखी कि मेरे पुत्री से उत्पन्न बालक ही राजगद्दी पर बैठेगा। तब हम अपनी कन्या का विवाह आपके साथ करेंगे।

प्रश्न 3.
राजा को निषादराज की शर्त मानने में क्या कठिनाई थी?
उत्तर:
राजा को देवव्रत नामक एक पुत्र थे जो महान योद्धा थे। उनमें राजा होने के सारे गुण वर्तमान थे। निषादराज की शर्त मानना देवव्रत के साथ अन्याय होता । राजा से देवव्रत के प्रति अन्याय करना असम्भव था। यही कठिनाई थी।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

प्रश्न 4.
देवव्रत ने हस्तिनापुर की गद्दी पर नहीं बैठने की क्यों प्रतिज्ञा की?
उत्तर:
देवव्रत महान पितृभक्त थे । वे अपने पिता को उदास नहीं देखना चाहते थे। अतः उन्होंने पिता के दुख दूर करने के लिए प्रतिज्ञा की।

प्रश्न 5.
देवव्रत का नाम भीष्म क्यों पड़ा?
उत्तर:
जब देवव्रत ने निषाद राज के सामने भीष्म (कठिन) प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं आजीवन विवाह नहीं करूँगा। उस समय देवताओं ने उनका नाम भीष्म रख दिया।

प्रश्न 6.
देवव्रत ने दाशराज की शर्त क्यों मान ली ? सही कथन के आगे सही (✓) का निशान लगाइए।
(क) वह राजा नहीं होना चाहते थे।
(ख) उन्हें निषादराज को प्रसन्न करना था।
(ग) वह ब्रह्मचारी बनकर यश कमाना चाहते थे।
(घ) वह अपने पिताजी को सुखी देखना चाहते थे?
उत्तर:
(घ) वह अपने पिताजी को सुखी देखना चाहते थे?

प्रश्न 7.
मिलान करे
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा 1
उत्तर:

शान्तनु – हस्तिनापुर के सम्राट ।
भीष्म – हस्तिनापुर के युवराज ।
दाशराज – निषादों के राजा ।
सत्यवती – दाशराज की पुत्री।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
अगर आप भीष्म की जगह होते तो क्या करते?
उत्तर:
अगर भीष्म की जगह मैं होता तो वही काम करता जो भीष्म ने किया।

प्रश्न 2.
इस एकांकी का कौन-सा पात्र आपको अच्छा लगा। क्यों ?
उत्तर:
इस एकांकी के पात्रों में देवव्रत मुझे अच्छा लगा क्योंकि अपने पिता की खुशी के लिए उन्होंने सब कुछ त्यागने की प्रतिज्ञा कर ली।

प्रश्न 3.
हस्तिनापुर को वर्तमान में क्या कहा जाता है?
उतर:
पिरली।

प्रश्न 4.
दाशराज की शर्त उचित थी तो क्यों ?
अथवा
अनुचित थी तो क्यों?
उत्तर:
दाशराज की शर्त उचित ही था क्योंकि अगर बिना शर्त के यदि शान्तनु से सत्यवती का विवाह होता तो राजगद्दी के लिए कलह अवश्य होता। अतः हस्तिनापुर को कलह का केन्द्र होने से बचाने के लिए उसने शर्त रखी।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

व्याकरण –

प्रश्न 1.
वाक्य-प्रयोग द्वारा अंतर बताएँ।

(क) कुल – कुल कितने रुपये हैं।
कूल – गंगा के दोनों कूलों पर शहरें हैं।

(ख) सौभाग्य – मदन सौभाग्यशाली व्यक्ति है।
दुर्भाग्य – पिता के मरने पर मेरा दुर्भाग्य आरम्भ हो गया।

(ग) अस्त्र – गदा एक अस्त्र है।
शस्त्र – वाण फेंककर चलाने वाला शस्त्र है।

(घ) पुरी – द्वारिका शहर को द्वारिका पुरी कहते हैं।
पूरी – भोज की व्यवस्था पूरी कर ली गई है।

(ङ) सेवा – नौकर मालिक की सेवा करता है।
सुश्रूषा – पुत्र पिता का शुश्रूषा करता है।

प्रश्न 2.
निवास-स्थान में योजक चिह्न (-) लगे हुए हैं। इस तरह के अन्य उदाहरण पाठ से चनकर लिखिए।
उत्तर:
निवास-स्थान । नारी-रत्न । सूर्य-चन्द्र । भरत-कुल । भीष्म-देवव्रत । देवता-तुल्य। स्नेह-सूत्र । साफ-साफ।

प्रश्न 3.
उदाहरण के अनुसार लिखें –
प्रश्नोत्तर –
Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा 2

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

कुछ करने को –

प्रश्न 1.
इस एकांकी का अभिनय बाल-सभा में कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
महाभारत के कुछ महारथियों का नाम पता कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

भीष्म की प्रतिज्ञा Summary in Hindi

पाठ का सार-संक्षेप

शान्तनु – हस्तिनापुर के सम्राट ।
भीष्म – हस्तिनापुर के युवराज ।
दाशराज – निषादों का राजा।
सत्यवती – दाशराज की पुत्री ।
सैनिक, द्वारपाल, देवगण और सत्यवती की सखियाँ ।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

पहला दृश्य

स्थान यमुना के ‘निकटवर्ती प्रांत में दाशराज का निवास स्थान ।

दाशराज की पुत्री सत्यवती अत्यन्त सुन्दरी थी जिसको देखकर हस्तिनापुर के राजा शान्तनु मोहित हो गये तथा उसे पाने के लिए दाशराज के घर जाकर सत्यवती के लिए आग्रह किया। लेकिन दाशराज ने शान्तन के सामने एक शर्त रखी कि यदि मेरे पुत्री से उत्पन्न बालक ही हस्तिनापुर के राजा बने तो मैं अपनी पुत्री को आपके साथ भेज सकता हूँ। यह शर्त राजा शान्तनु को मंजूर नहीं था क्योंकि शान्तनु का प्रथम पुत्र देवव्रत (गंगा पुत्र) में राजा होने के सारे गुण वर्तमान थे। यह शर्त मानना देवव्रत के साथ अन्याय होगा यह कहकर राजा उदास मन वापस घर लौट गये। जब उनकी उदासी के कारण देवव्रत को मालूम हुआ तो अपने पिता के दुख को दूर करने की इच्छा से दाशराज के घर गये।

Bihar Board Class 6 Hindi Solutions Chapter 10 भीष्म की प्रतिज्ञा

दूसरा दृश्य

स्थान – दाशराज का घर।

दाशराज ने देवव्रत का स्वागत कर आने का कारण पूछा । देवव्रत ने कहा “मैं माता सत्यवती को लेने आया हूँ। दाशराज ने अपनी शर्त को पुनः देवव्रत के सामने दुहराया । देवव्रत ने कहा –

ठाह है “मैं वचन देता हूँ कि मैं हस्तिनापुर का राजा नहीं बनूंगा। सत्यवती से उत्पन्न मेरा भाई ही राजा बनेगा। मैं उसकी सेवा उसी प्रकार करूँगा जैसे पिताजी का कर रहा हूँ।”

दाशराज ने कहा, लेकिन बाद में आपके पत्र तो उस अधिकार को प्राप्त कर ही लेंगे। अत: यह सम्बन्ध मैं नहीं स्थापित करूँगा । देवव्रत ने उसी समय हाथ उठाकर प्रतिज्ञा करते हैं कि मैं विवाह भी नहीं करूंगा। सब ओर से “धन्य हैं देवव्रत” की ध्वनि सुनाई पड़ने लगी। देवताओं ने फूल बरसाकर देवव्रत के कठिन प्रतिज्ञा के लिए खुशी जाहिर की। देवताओं ने ही उसी समय देवव्रत को भीष्म (कठिन) प्रतिज्ञा करने के कारण देवव्रत का नाम भीष्म रख दिया।

दाशराज प्रसन्नतापूर्वक अपनी पुत्री की विदाई कर दी। भीष्म ने सत्यवती का पैर छूकर प्रणाम किया तथा रथ पर बैठाकर घर ले गये।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Bihar Board Class 12 Economics खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष एवं चालू खाता शेष में अन्तर –

  1. व्यापार के निर्यात एवं आयात शेष को कहते हैं जबकि व्यापार शेष, सेवाओं के निर्यात व आयात शेष तथा हस्तातरण भुगतान शेष के योग को चालू खाता शेष कहते हैं।
  2. चालू खाता शेष की तुलना में व्यापार शेष एक संकुचित अवधारण है।
  3. व्यापार शेष में केवल भौतिक वस्तुओं के आयात-निर्यात को ही शामिल किया जाता है जबकि चालू खाता शेष में भौतिक वस्तुओं के निर्यात आयात के साथ-साथ सेवाओं व हस्तातरण भुगतान के लेन-देन को भी शामिल करते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 2.
आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी-संतुलन में इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौद्रिक अधिकारियों द्वारा वित्तीय घाटे का वित्तीयन करने के लिए परिसपत्तियों को बेचना अथवा ऋण लेना आधिकारिक लेन-देन कहलाता है। दूसरा भुगतान शेष धनात्मक होने पर मौद्रिक अधिकारियों द्वारा उधार देना या परिसंपत्तियों का क्रय करना भी आधिकारिक लेन-देन की श्रेणी में आता है।

आधिकारिक लेन-देन का महत्त्व:

  1. समग्र भुगतान शेष घाटे या अधिशेष का समायोजन आधिकारिक लेन-देन से किया जा सकता है।
  2. भुगतान शेष घाटे का भुगतान मौद्रिक सत्ता का दायित्व होता है तथा भुगतान शेष अधिशेष मौद्रिक सत्ता की लेनदारी होती है इस उद्देश्य की पूर्ति आधिकारिक लेन-देन से पूरी होती है।
  3. रेखा से ऊपर व रेखा से नीचे के समायोजन आधिकारिक लेन-देन पूरा करते हैं।

प्रश्न 3.
मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए। यदि अपको घेरलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो, तो कौन सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर:
दूसरी मुद्रा के रूप में एक मुद्रा की कीमत को विनिमय दर कहते हैं। दूसरे शब्दों में विदेशी मुद्रा की एक इकाई मुद्रा का क्रय करने के लिए घरेलू मुद्रा की जितनी इकाइयों की जरूरत पड़ती है उसे विनिमय दर कहते हैं। इसे मौद्रिक अथवा सांकेतिक विनिमय दर कहते हैं क्योंकि इसे मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। एक ही मुद्र में मापित विदेशी एवं घरेलू कीमतों के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।

वास्तविक विनिमय दर = e \(\frac { P_{ F } }{ P } \) जहाँ e विदेशी की एक इकाई की कीमत अथवा सांकेतिक विनिमय दर P r विदेशी कीमत स्तर तथा P देशी कीमत स्तर

घरेलू अथवा विदेशी वस्तुओं को खरीदने के लिए सांकेतिक विनिमय दर अधिक प्रभावशाली होती हैं क्योंकि एक देश का संबंध कई देशों से होता है अतः द्विवर्षीय दर के बजाय एकल दर अधिक पसंद की जाती है। करेन्सियों की विनिमय दर की सूची सांकेतिक विनियिम दर के आधार पर की जाती है जिससे विदेशी करेंसियों की प्रतिनिधि टोकरी की कीमत प्रकट होती है। वास्तविक विनिमय दर का प्रयोग किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की माप के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 4.
यदि 1 रुपये की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो, तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में) संकेत : रुपये में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।
हल:
PF = 3 एवं P = 1.2; 1.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत \(\frac{1}{1.25}\) रूपय \(\frac{1}{125}\) रुपया = \(\frac{1}{125}\) रुपया
वास्तविक विनिमय दर = \(\frac{1}{100}\), \(\frac{4}{5}\) × \(\frac{30}{100}\) = 2
उत्तर:
वास्तविक विनिमय दर = 2

प्रश्न 5.
स्वचलित युक्ति की व्याख्या कीजिए जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।
उत्तर:
वर्ष 1870 से प्रथव विश्व युद्ध तक स्थायी विनिमय दर के लिए मानक स्वर्ण-मान पद्धित ही आधार थी। इस पद्धति में सभी देश अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में परिभाषित करते थे। प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा को निःशुल्क स्वर्ण में परिवर्तित करने की गारंटी देनी पड़ती थी। स्थिर कीमतों पर मुद्रा की सोने में परिवर्तनीयता सभी देशों को स्वीक त थी।

विनिमय दर समष्टीय खुली अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा सोने की कीमत के आधार पर परिकलित किए जाते थे। विनिमय दर उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के मध्य उच्चवचन करते थे। उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण मुद्रा की ढलाई, दुलाई आदि के आधार पर तय की जाती थी। आधिकारिक विश्वसनीयता कायम रखने के लिए प्रत्येक देश को स्वर्ण का पर्याप्त भण्डार आरक्षित रखना पड़ता था। स्वर्ण के आधार पर सभी देश स्थायी विनिमय दर रखते थे।

प्रश्न 6.
नम्य विनिमय दर व्यवस्था मे विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
परिवर्तनशील विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। लोचशील विनिमय दर प्रणाली में केन्द्रीय साधारण नियमों को अपनाता है। ये नियम प्रत्यक्ष रूप से लोचशील दर को निर्धारित करने में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इस प्रणाली में आधिकारिक लेन-देन का स्तर शून्य होता है।

लोचशील विनिमय दर में परिवर्तन विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की समानता लाने के लिए होता है। दूसरे शब्दों में एक दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत के रूप में विनिमय दर तय होती हैं। एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत मुद्रा की मांग व पूर्ति पर निर्भर करती हैं। विदेशी मुद्रा की मांग-निम्नलिखित कारको के कारण विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है।

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करने के लिए।
  2. वित्तीय परिसंपत्तियों का आयात करने के लिए।
  3. उपहार या हस्तातरण भुगतान विदेशों को भेजने के लिए।
  4. विदेशी विनिमय दर पर सट्टा उद्देश्य के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग एवं विनिमय दर से विपरीत संबंध होता है इसलिए विदेशी मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढ़ाल का होता है।

विदेशी मुद्रा की आपूर्ति:
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के निम्नलिखित स्रोत हैं –

  1. घरेलू वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात
  2. वित्तीय परिसपत्तियों का निर्यात
  3. विदेशों से उपहार तथा हस्तातरण भुगतान की प्राप्ति
  4.  सट्टा उद्देश्य के लिए

विदेशी मुद्रा की आपूर्ति एवं विनिमय दर में सीधा संबंध होता है अतः विदेशी मुद्रा का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल का होता है। विनिमय दर का निर्धारण-जहाँ विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है, विनिमय दर वहाँ निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति का साम्य बिन्दु वह होता है मुद्रा का मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। साध्य बिन्दु पर विनिमय दर को साम्य विनिमय दर तथा मांग व पूर्ति की मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 1

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 7.
अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा अवमूल्न का अभिप्राय सामाजिक क्रिया के द्वारा विनिमय दर को बढ़ाने से है। विनिमय दर Pagged Exchange पद्धति से बढ़ायी जाती है। व्यापार शेष घाटे को पूरा करने के लिए अवमूल्न एक उपकरण माना जाता है। अवमूल्यन से घरेलू उत्पाद सापेक्ष रूप से सस्ते हो जाते हैं इसके विपरीत विदेशी उत्पादों की घरेलू बाजार में मांग बढ़ जाती है। बार-बार अवमूल्न से आधिकारिक आरक्षित कोष समाप्त हो जाते हैं। जब बाजार की मांग एंव पूर्ति शक्तियों के प्रभाव से एक देश की मुद्रा का मूल्य बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के विदेशी मुद्रा में कम हो जाता है तो इसे मूल्य ह्रास कहते हैं।

प्रश्न 8.
क्या केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धित तरणशीलता पद्धति दो विनिमय दर पद्धतियों का मिश्रण होती है। यह दो चरम विनिमय दरों-स्थिर विनिमय दर एवं लोचशील विनिमय दर के बीच की दर हैं। इस पद्धति में सरकार विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकती है जब कभी केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन उचित समझता है तो विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करके हस्तक्षेप कर सकता है। अर्थात् विनिमय दर की इस पद्धति में आधिकारिक लेन-देन शून्य नहीं होता है।

प्रश्न 9.
क्या देशी वस्तुओं की मांग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान है?
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान होती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि देश की घरेलू सीमा के बाहर न तो घरेलू वस्तुओं की मांग होती है और न ही घरेलू सीमा में विदेशी वस्तुओं की मांग होती है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान नहीं होती है।

घरेलू वस्तुओं की मांग में उपभोग मांग (परिवार क्षेत्र द्वारा), निवेश मांग, सरकारी उपभोग के लिए मांग व निर्यात के लिए मांग के योग में आयात की मांग को घटाते हैं। संक्षेप में घरेलू वस्तुओं की मांग = परिवार क्षेत्र की उपयोग मांग + निवेश मांग + सरकारी व्यय मांग + निर्यात (मांग) – आयात (मांग)
= C + I + G + X – M
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)

वस्तुओं के लिए घरेलू मांग में परिवार क्षेत्र का उपयोग व्यय, निवेश व्यय, सरकारी व्यय व आयात के योग से निर्यात मांग को घटाते हैं।
वस्तुओं की घरेलू मांग = C + I + G + M – X
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)

यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य शून्य होता होगा तो घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग दोनों समान होंगे। यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य धनात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं की घरेलू मांग से अधिक होगी। इसके विपरीत यदि शुद्ध निर्यात का मान ऋणात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं को घरेलू मांग से कम होगी।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 10.
जब M = 3D60 + 0.06Y हो, तो आयात की सीमांत प्रवृत्ति कया होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या संबंध है?
उत्तर:
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति अतिरिक्त मुद्रा आय का वह भाग है जो आयात पर व्यय किया जाता है। आयात की सीमान्त प्रवृत्ति की अवधारणा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जैसी ही है। इसलिए आयात की मांग आय के स्तर पर निर्भर करती है तथा कुछ भाग स्वायत्त होता है। M = m + my M स्वायत्त आयात, m आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 60 + 0.06Y उक्त दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत्त आयात M = 60, आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 0.06 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान 1 से कम तथा शून्य से अधिक होता है।

MPC का मान शून्य से अधिक उपभोग होने पर प्रेरित प्रभाव विदेशी वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। इससे घरेलू वस्तुओं की मांग घट जाती है। आयात एक प्रकार का स्राव होता है अतः साम्य आय का स्तर कम हो जायेगा। अत: आयात की स्वायत्त मांग में वृद्धि घरेलू वस्तुओं की मांग को घटाता है।

प्रश्न 11.
खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्व व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा कयों होता है?
उत्तर:
बंद अर्थव्यवस्था में साम्य आय कर स्तर
Y = C + cY + 1 + G या, Y – cY = C + 1 + G
या, Y(1 – c) = C + 1 + G या, Y = \(\frac{C+1+G}{1-c}\) = \(\frac{A}{1-c}\) (C + 1 + G = A)
\(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c}\), व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}\)

खुली अर्थव्यस्था में साम्य आय का स्तर Y = C+ cY + 1 + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C + 1 + G + X
Y(1 – c + m) = C + 1 + G + X
Y = \(\frac{C+1+G+X}{1-C+m}\) या Y = \(\frac{A}{1-c+m}\) (A = C + 1 + G + X)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c+m}\)
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक है अतः उपभोग का प्रेरित कुछ भाग आयात के लिए वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के व्यय गुणकों की तुलना करने पर बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक, बन्द अर्थव्यवस्था के व्यय गुणक से ज्यादा है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 12.
पाठ में एकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
अनुपतिक कर की स्थिति में साम्य आय स्तर
Y = 3DC + C (I – t)Y + I + G + X – M – mY
Y – C (1 – t)Y+ mY = C + I + G + X – M
Y [1 – C + ct + m] = C + I + G + X – M
Y = \(\frac{C + I + G + X – M}{1 – C(1 – t) + m}\) (A = DC + I + G + X – M)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c(1-t)+m}\)
एकमुश्त कर की स्थिति में साम्य आय
Y = C + C (Y – T) + I + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y [1 – c + m] = C – CT + I + G + X – M
Y = \(\frac{c – ct + I + G + X – M}{1 – c + m}\)
= \(\frac{A}{1 – c + m}\) (A = C – CT + I + G + X – M)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c+m}\)

प्रश्न 13.
मान लीजिए C = 40 + 08YD, T = 50,G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) संतुलन आया ज्ञात कीजिए
(b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात कीजिए
(c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या होता है, जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है।
उत्तर:
C = 40 + 0.8YD, T = 50, 1 = 60, G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) साम्य आय का स्तर:
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
या Y = \(\frac{A}{1-C+M}\), = \(\frac{C-CT+I+G+X-M}{1-C+M}\)
= \(\frac{40 – 0.8 × 50 + 60 + 40 + 90 – 50}{1 – 0.8 + 0.05}\) = \(\frac{40 – 40 + 60 + 40 + 90 – 50}{1 – 0.75}\)
= \(\frac{140}{0.25}\) = \(\frac{140×100}{25}\) = 560

(b) साम्य आय स्तर पर शुद्ध निर्यात –
NX = X – M – my = 90 – 50 – 0.05 × 560 = 40 – 28.0 = 12

(c) जब सरकारी व्यय 40 से 50 हो जायेगा साम्य आय
Y = C – CT + 1 + G + X – MI – C + m
= 40 – 8 × 50 + 60 + 50 + 90 – 50
= 1 – 0.08 – 0.05
= 150.25
= 600

साम्य आय सतर शुद्ध निर्यात शेष NX = X – M – mY
= 90 – 50 + 0.05 × 600 = 90 – 50 + 30
= 10
उत्तर:
(a) साम्य आय = 560
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 12
(c) नई साम्य आय = 600
शुद्ध निर्मात शेष = 10

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प्रश्न 14.
उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में x = 100 का परिवर्तन हो, तो सन्तुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
C = 40 + 0.08 YD, T = 50, I = 60, G = 40, X = 100, M = 50 + 0.05Y
साम्य आय Y = \(\frac{A}{1-C+M}\) = \(\frac{C-CT+G+I+X-M}{I-C+M}\)
[∵ A = C – CT + G + I + X – M]
= \(\frac{40-0.8×50+40+60+100-50}{1-0.8+0.05}\)
= \(\frac{40-40+40+60+100-50}{1-0.75}\) = \(\frac{150}{0.25}\) = \(\frac{150 × 100}{25}\) = 600
= 100 – 50 – 30 = 20
उत्तर:
साम्य आय स्तर = 600
शुद्ध निर्यात शेष = 20

प्रश्न 15.
व्याख्या कीजिए कि G – T = (SG – 1) – (X – M)
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में बचत एवं निवेश आय के साम्य स्तर पर समान होते है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय स्तर पर बचत एवं निवेश असमान हो सकते हैं।
Y = C + G + I + NX
S – I + NX
एक अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की बचतों का योग समग्र बचत के बराबर होता है –
NX = SP + SG – 1
NX = Y – T + T – G – 1
[∵SP = Y – C – T & SG = T – G]
NX = Y – C – G – 1
G = Y – C – 1 – NX
G – T = Y – C – T – 1 – NX
= [SP – 1] – N [∵ SP = Y – C – T]

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प्रश्न 16.
यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो, तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर:
देश ‘अ’ में स्फीति का स्तर देश ‘ब’ से ऊंचा है। स्थिर विनयम दर की स्थिति में देश ‘ब’ से देश ‘अ’ को वस्तुओं का आयात करना लाभ-प्रद होगा। परिणाम स्वरूप देश ‘अ’ अधिक वस्तुओं का अधिक मात्रा में आयात करेगा और देश ब को कम मात्रा में वस्तुओं का निर्यात करेगा। अतः ‘अ’ के सामने व्यापार शेष घाटे की समस्या उत्पन्न होगी। दूसरी ओर देश ‘ब’ देश ‘अ’ से कम मात्रा में वस्तुओं का आयात करेगा और निर्यात अधिक मात्रा में करेगा। अतः देश ‘ब’ का व्यापार शेष अधिशेष (धनात्मक) होगा।

प्रश्न 17.
क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि व्यापार शेष घाटा कम बचत और अधिक बजट घाटे को जन्म देता है यह चिन्ता का विषय हो भी सकता है और नहीं भी। यदि इस स्थिति में निजी क्षेत्र अथवा सरकारी क्षेत्र का उपभोग अधिक हो तो उस देश के पूंजी भण्डार अधिक दर से नहीं बढ़ेगा और पर्याप्त आर्थिक समृद्धि नहीं होगी। इसके अलावा इसे ऋण का भुगतान भी करना होगा पडेगा। इस दशा में चालू खाता घाटा चेतावनीपूर्ण एवं चिन्ता का विषय होता है। यदि व्यापार शेष व्यापार शेष घाटा अधिक निवेश के लिए काम आता है तो भण्डार स्टॉक अधिक दर बढ़कर पर्याप्त आर्थिक सवृद्धि को जन्म देता है। इस दशा में चालू खाता घाटा चिन्तनीय नहीं होता है।

प्रश्न 18.
मान लीजिए C + 100 + 0.75 YD, I = 500, G – 750, कर आय का 20 प्रतिशत है, x = 150, M = 100 + 0.2Y, तो संतुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
साम्य आय Y = C + C(Y – T) + 1 + G + X – M – mY
= 100 + 0.75 (Y – Y) का 20%) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 100 + 7.5 [y – 5) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 1400 + 2 + 4y – 0.2Y
= 1400 + \(\frac{3}{4}\) + \(\frac{4}{5}\) Y – 0.2Y = 1400 + \(\frac{2}{5}\)Y
Y – \(\frac{2}{5}\)Y = 1400 – \(\frac{3}{5}\)Y = 1400
Y = 1400 × \(\frac{5}{3}\) = \(\frac{7000}{3}\)

सरकारी व्यय = 750
सरकारी प्राप्तियाँ = 20% of Y
20% of Y \(\frac{7000}{3}\) = \(\frac{20×7000}{3×100}\) = \(\frac{140000}{3×100}\) = 466.67

सरकारी व्यय सरकारी प्राप्तियों से अधिक हैं इसलिए यह बजट घाटा है।
NX = X – M – mY
Y = 150 – 100 – 2 × \(\frac{7000}{3}\) = 150 – 100 – 466.67 = – 416.67

यह व्यापार घाटा दर्शा रहा है क्योंकि NX ऋणात्मक है।

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प्रश्न 19.
उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाहा खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है।
उत्तर:
विभिन्न देशों ने अपने विदेशी खातों में स्थायित्व लाने के उद्देश्य विभिन्न विनिमय दर पद्धतियों को अपनाया जैसे –
(I) स्थिर विनिमय दर:
इस विनिमय दर से अभिप्राय सरकार द्वारा निर्धारित स्थिर विनिमय दर से है। स्थिर विनिमय दर की उप-पद्धतियां इस प्रकार है –

1. विनिमय दर की स्वर्णमान पद्धति:
1920 तक पूरे विश्व में इस पद्धति को व्यापक स्तर पर प्रयोग किया गया। इस व्यवस्था में प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में घोषित करनी पड़ती थी। मुद्राओं का विनिमय स्वर्ण के रूप में तय की गई कीमत सोने की स्थिर कीमत पर होता है।

2. ब्रैटन वुड पद्धति:
विनिमय की इस प्रणाली में भी विनिमय दर स्थिर रहती है। इस प्रणाली में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारी तय की गई विनिमय दर में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन की अनुमति प्रदान कर सकते हैं। सभी मुद्राओं का मूल्य इस प्रणाली में अमेरिकन डालर में घोषित करना पड़ता था। अमेरिकन डालर की सोने में कीमत घोषित की जाती थी। लेकिन दो देश मुद्राओं का समता मूल्य अन्त में केवल स्वर्ण पर ही निर्भर होता था। प्रत्येक देश की मुद्रा के समता मूल्य में समायोजन विश्व मुद्रा कोष का विषय था।

(II) लोचशील विनिमय दर:
यह वह विनिमय दर होती है जिसका निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की शक्तियां के द्वारा होता है। जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है वही दर साम्य विनिमय दर कहलाती है। आजकल समूचे विश्व में विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक लेन-देन का निपटरा लोचशील विनिमय दर के आधार पर होता है।

Bihar Board Class 12 Economics खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार क्या होता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार है कि आय से अधिक खर्च की भरपाई स्वर्ण, स्टाँक, विदेशी ऋण आदि के द्वारा की जायेगी।

प्रश्न 2.
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत लिखो।
उत्तर:
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत शुद्ध पूंजी प्रवाह से किया जाता है।

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प्रश्न 3.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।
उत्तर:
लगभग 24 वर्ष भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।

प्रश्न 4.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटा कम हो गया और अधिशेष में बदल गया।
उत्तर:
2001 – 02 से 2003 – 04 की अवधि में भारत का चालू घाटे में अधिशेष था।

प्रश्न 5.
चालू खाते में अधिक घाटे को किससे पूरा नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
अदृश्य अधिशेष से चालू खाते के घाटे की भरपाई नहीं करनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
अर्थव्यवस्था के खुलेपन की माप क्या होती है?
उत्तर:
कुल विदेशी व्यापार (आयात व निर्यात) का सकल घरेलू उत्पाद के साथ अनुपात से अर्थव्यवस्था के खुलेपन को मापते हैं।

प्रश्न 7.
2004 – 05 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
2004 – 05 में भारत की विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 38.9 प्र.श. था। इसमें 17.1 प्र.श. आयात व 11.8 प्र.श निर्यात था।

प्रश्न 8.
5 वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्र.श. था।

प्रश्न 9.
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को कब स्वीकार करते हैं?
उत्तर:
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को तब स्वीकार करते है जब उन्हें विश्वास होता मुद्रा की क्रय शक्ति स्थिर रहेगी।

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प्रश्न 10.
मुद्रा का अधिक मात्रा में प्रयोग करने वाले लोगों का विश्वास जीतने के लिए सरकार क्या काम करती है?
उत्तर:
सरकार को यह घोषणा करनी पड़ती है कि मुद्रा को दूसरी परिसपत्तियों में स्थिर कीमतों पर परिवर्तित किया जायेगा।

प्रश्न 11.
भुगतान शेष के चालू खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात-आयात तथा हस्तातरण भुगतान चालू खाते में दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 12.
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में मुद्रा, स्टॉक, बॉण्ड आदि का विदेशों के साथ क्रय विक्रय दर्ज किया जाता है।

प्रश्न 13.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कैसी हैं?
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं खुली अर्थव्यवस्थाएं हैं।

प्रश्न 14.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसके दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ आर्थिक संबंध होते हैं खुली अर्थव्यवस्था कहलाती है।

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प्रश्न 15.
विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा का दसूरी मुद्रा में मूल्य विनिमय दर कहलाता है।

प्रश्न 16.
विदेशी विनिमय बाजार के मुख्य भागीदार के नाम लिखो।
उत्तर:
विदेशी बाजार के मुख्य भागीदार होते हैं –

  1. व्यापारिक बैंक
  2. विदेशी विनिमय एजेन्ट
  3. आधिकारिक डीलर्स तथा
  4. मौद्रिक सत्ता

प्रश्न 17.
विदेशी विनिमय बाजार की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह अन्तर्राष्ट्रीय बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का आदान-प्रदान होता है विदेशी विनिमय बाजार कहलाता है।

प्रश्न 18.
वास्तविक विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा में मापी गई विदेशी कीमत एसं घरेलू कीमत के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।
वास्तविक विनिमय दर = ePF eP
जहाँ e सांकेतिक/मौद्रिक विनिमय दर, PF विदेशी कीमत तथा P घरेलू कीमत

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प्रश्न 19.
लोचशील विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह विनिमय दर जिसका निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है लोचशील विनिमय दर कहलाती है।

प्रश्न 20.
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तनों को मुद्रा का अपमूल्यन या अवमूल्यन कहते हैं।

प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से जो एक निश्चित स्तर पर रहती है। इसमें मुद्रा की मांग व पूर्ति में परिवर्तन होने पर परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 22.
क्या स्थिर विनिमय दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित किया जा सकता है?
उत्तर:
स्थिर विनियिम दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 23.
भुगतान शेष के समग्र घाटे (अधिशेष) का अर्थ लिखो।
उत्तर:
आधिकारिक आरक्षित कोष में कमी (वृद्धि) को भुगतान शेष का समग्र घाटा (अधिशेष) कहते हैं।

प्रश्न 24.
भुगतान शेष का मूल वचन (वायदा) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष का मूल वचन यह है कि मौद्रिक सत्ता भुगतान शेष के किसी घाटे को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था साम्य की अवस्था में कब कही जाती है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था भुगतान शेष के संबंध में सन्तुलन में कही जाती हैं जब इसके चाले खाते तथा पूंजी के गैर आरक्षित कोषों का योग शून्य होता है।

प्रश्न 26.
भुगतान शेष के चालू खाते को सन्तुलित करने की विधि लिखो।
उत्तर:
बिना आरक्षित कोष में परिवर्तन किए अन्तर्राष्ट्रीय उधार से चालू खाते को संतुलित किया जाता है।

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प्रश्न 27.
किन मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
स्वायत्त मदों को रेखा से ऊपर कहते हैं।

प्रश्न 28.
स्वायत्त मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
ऐसे विनिमय (लेन-देन) जो भुगतान शेष की स्थिति से स्वतंत्र होते हैं स्वायत्त मदें कहलाती हैं।

प्रश्न 29.
किन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है?
उत्तर:
समायोजन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है।

प्रश्न 30.
आधिकारिका लेन-देन किस श्रेणी में रखे जाते हैं?
उत्तर:
आधिकारिक लेन-देन समायोजन या रेखा से नीचे वाले मंदों में रखे जाते हैं।

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प्रश्न 31.
खुली अर्थव्यस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –

  1. उपभोग
  2. सरकारी व्यय
  3. घरेलू निवेश
  4. शुद्ध निर्यात

प्रश्न 32.
एक बंद अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं के मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –

  1. उपभोग
  2. सरकारी उपभागे
  3. घरेलू निवेश

प्रश्न 33.
उन देशों के नाम लिखो जिन्होंने लोचशील विनिमय दर को अपनाया।
उत्तर:
1970 के दशक के आरंभ में स्विट्जलैंड एवं जापान ने लोचशील विनिमय दर को अपनाया था।

प्रश्न 34.
प्रबंधित तरणशील विनिमय दर का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रबंधित तरण शील विनिमय दर, स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर का मिश्रण होती है। इस प्रणाली में प्रत्येक अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन के द्वारा विदेशी मुद्रा को क्रय-विक्रय में हस्तक्षेप कर सकता है।

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प्रश्न 35.
खुली अर्थव्यवस्था के लिए गुणक का सूत्र लिखो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1  खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 2

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में आयात की मांग के लिए निर्धारक कारक बताइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में आयात की वस्तुओं की मांग के निर्धारक कारक –

  1. घरेलू आग एवं
  2. विनिमय

घरेलू आय का स्तर जितना ऊँचा होता है आयात की मांग की उतनी ज्यादा होती है। इस प्रकार घरेलू आय तथा आयात की मांग में सीधा संबंध होता है। विनियिम दर और आयात में विपरीत संबंध होता है। ऊंची विनिमय से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती है। इसलिए ऊँची विनिमय दर आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा कम हो जाती है।

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प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए राष्ट्रीय आय प्रतिमान को समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यस्था में आर्थिक लेन-देन देश की भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि आर्थिक क्रियाओं का विस्तार समूचे विश्व में रहता है। खुली अर्थव्यवस्था निर्यात के लिए घरेलू वस्तुओं की मांग, घरेलू वस्तुओं की मांग अतिरिक्त रूप में बढ़ाती है।

इसके विपरीत घरेलू अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति को बढ़ाती है। इस प्रकार घरेलू अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात से राष्ट्रीय आय प्रतिमान बनता है, संक्षेप में इसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y + M = DC + I + G + x
Y = C + I + G + X – M
Y = C + I + G + NX
जहाँ NX शुद्ध निर्यात है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में शुद्ध निर्यात का अर्थ लिखो।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश कके शेष विश्व को निर्यात एवं अर्थव्यवस्था द्वारा शेष विश्व से आयात के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते हैं। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है तो शुद्ध निर्यात धनात्मक होता है। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होता है तो शुद्ध निर्यात का मूल्य ऋणात्मक होता है, जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य के बराबर होता है तो शुद्ध निर्यात शून्य होता है, शुद्ध निर्यात के मूल्य पर व्यापार शेष निर्भर करता है। इसे निम्नलिखित ढंग से व्यस्त किया जा सकता है –

  1. निर्यात – आयात = धनात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष
  2. निर्यात – आयात = ऋणात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष घाटा
  3. निर्यात – आयात = शून्य निर्यात = सन्तुलित व्यापार शेष

प्रश्न 4.
निर्यात को स्थिर मानकर X = \(\bar { X } \), अपनी अर्थव्यवस्था के लिए आय का निर्धारण करो।
उत्तर:
आयात की मांग अर्थव्यवस्था में घरेलू आय पर निर्भर करती है और आयात की मांग का एक स्वायत्त भाग तथा दूसरा भाग सीमान्त आयात प्रवत्ति पर निर्भर करता है –
M = M + mY
जहाँ M → स्वायत्त आयात मांग एवं m – सीमान्त आयात प्रवृत्ति
अर्थव्यवस्था में आय के स्तर को उपभोग व्यय, निवेश, सरकारी व्यय के साथ आयात-निर्यात की मांग को समायोजित करके साम्य आय को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M – mY)
Y = C – CT + I + G + X – M = A
माना Y = A + CY – MY
Y – CY + mY = A
Y(I – C + m) = A
Y = \(\frac{A}{1-C+M}\)

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प्रश्न 5.
एक बन्द एवं खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय के स्तर गुणक की तुलना करो।
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रहते है अतः साम्य आय को गणितीय रूप में निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + G + 1
Y = C + CY – CT + G + 1
Y – Cy = C – CT + G + 1
Y(1 – C) = C – CT + G + 1
Y = \(\frac{C-CT+G+1}{1-C}\) = \(\frac{A}{1-C}\) = (जहाँ A = C – CT + G + I)

एक खुली अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि खुली अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन शेष विश्व के साथ भी करती है। खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय प्रतिमान को गणितीय रूप में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
Y = C + CY – CT + I + G + X – M – mY
या Y – CY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y (1 – C + M) = C – CT + 1 + G + X – M
Y = \(\frac{A}{1-C+M}\), [∵A = C – CT + I + G + X – M]

दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था में साम्य आय, स्वायत व्यय गुणक तथा स्वायत्त व्यय के गुणनफल के समपन है सीमान्त आयात प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक होता है अत: 1 – C + m का मान 1 – C के मान से अधिक होता है। अतः खुली अर्थव्यवस्था गुणक का मान बन्द अर्थव्यवस्था में गुणक के मान से छोटा होता है।

प्रश्न 6.
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग का स्वायत्त व्यय गुणक पर प्रभाव समझाए।
उत्तर:
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए वस्तुओं की सामूहिक मांग को बढ़ाती है। बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग वृद्धि उपभोग, सरकारी व्यय एवं निवेश में वृद्धि के कारण होती है। खुली अर्थव्यवस्था में निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अतिरिक्त अन्तः क्षेपण को जन्म देती है इसलिए स्वायत्त गुणक में वृद्धि होती है। इसकी गुणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है –
\(\frac{∆Y}{∆X}\) = \(\frac{1}{1-C+M}\)

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प्रश्न 7.
पत्राचार निवेश क्या है? परिसंपत्ति की खरीददारी को क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ क्यों अंकित किया जाता है?
उत्तर:
किसी देश द्वारा विदेशों के अंश पत्रों तथा ऋण पत्रों की खरीददारी को पत्राचार निवेश कहते हैं। इस प्रकार के निवेश से क्रेता का परिसंपत्ति पर नियंत्रण नहीं होता है। परंपरानुसार यदि कोई देश दूसरे देश से परिसंपत्ति की खरीददारी करता है तो इसे क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ दर्शाया जाता है क्योंकि इस लेन-देन में विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश से बाहर की ओर होता है। यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे देश की तरफ होता है तो इसे ऋणात्मक चिह्न दिया जाता है। इसके विपरीत यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे से उस देश की ओर होता है तो उसे धनात्मक चिन्ह से दर्शाया जाता है।

प्रश्न 8.
आयात में वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव को जन्म देती है। समझाइए।
उत्तर:
उपभोग पर प्रेरित उपभोग का कुछ भाग विदेशी वस्तुओं की मांग पर हस्तांतरित हो जाता है। MPC में वृद्धि का मान धनात्मक या शून्य से अधिक होता है। अतः घरेलू वस्तुओं की मांग व घरेलू आय प्ररेति प्रभाव कम हो जाएगा। इसीलिए आयात में अतिरिक्त वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव का कारण बनता है। गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में घरेलू आय का अधिक स्राव होता है। व्यय गुणक का मान कम हो जाता है –
\(\frac{∆Y}{∆M}\) = \(\frac{1}{1-C+M}\)

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प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग वक्र बन्द अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक चपटा होता है। समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के योग को सामूहिक मांग कहते हैं।
AD = C + I + G

एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के अलावा निर्यात व आयात भी सामूहिक मांग को प्रभावित करते हैं। आयात के लिए विदेशी वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग कम होती है तथा निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। खुली अर्थव्यवस्था के सामूहिक मांग को निम्नलिखित सूत्र से दर्शाया जाता है –
AA = C + I + G + X – M

AA वक्र तथा AD वक्र के बीच की दूरी आयात की मात्रा की समान होती है। दोनों रेखाओं के बीच दूरी, आयात की मांग बढ़ने से अधिक हो जाती है। आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की घरेलू मांग घटती है जबकि निर्यात के लए वस्तुओं की मांग आय बढ़ने पर नहीं बढ़ती है। इसलिए खुली अर्थव्यवस्था का सामूहिक मांग वक्र AA बन्द अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग AD से चपटा या कम ढालू होता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग वक्र नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 3

प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव बताइए।
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में जितना अधिक खुलापन होता है गुणक का मान उतना कम होता है।
  2. अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा खुली होती है व्यापार शेष उतना ज्यादा घाटे वाला होता है।

खुली अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को जन्म देती है। खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक का प्रभाव उत्पाद व आय पर कम होता है। इस प्रकार अर्थव्यव्था का अधिक खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए कम लाभ प्रद या कम आकर्षक होता है।

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प्रश्न 11.
शुद्ध निर्यात की आय के फलन के रूप में समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि के लाए एक अर्थव्यवस्था के निर्यात मूल्य एवं आयात मूल्य के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते है। शुद्ध निर्यात घरेलू आय का घटता फलन है। घरेलू आय बढ़ने पर निर्यात मूल्य पर प्रभाव नहीं पढ़ता है लेकिन आयात मूल्य में बढ़ोतरी होती है। दूसरे शब्दों में आय बढ़ने व्यापार शेष घाटे में बढोतरी होती है। इसे निम्नलिखित चित्र दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1  खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 4

प्रश्न 12.
उत्पाद में वृद्धि व्यापार शेष घाटे के द्वार है? अथवा व्यापार शेष घाटा उत्पाद में वृद्धि के गलियारे से होकर गुजरता है। समझाइए।
उत्तर:
घरेलू उत्पाद अथवा घरेलू आय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को बढ़ाती है। व्यापार शेष में घाटा अथवा छोटा (कम) गुणक दोनों के उदय का मूल कारण एक है। घरेलू आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग कम हो जाती है और घरेलू अर्थव्यवस्था में गुणक प्रभाव के कारण आयात-वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है आयात वस्तुओं की मांग में परिवर्तन स्वायत्त प्रभाव व प्रेरित प्रभाव के सामूहिक प्रभाव से आयात वस्तुओं की मांग आय से प्रभावित होती है, इस कारण आय बढ़ने पर व्यापार शेष घाटे में बढ़ोतरी होती है अथवा व्यापार शेष घाटे में वृद्धि होती है इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र  img 5

प्रश्न 13.
स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में होता मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई का काम नहीं करती है। टिप्पणी करो।
उत्तर:
जब वस्तुओं का प्रवाह अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं में होता है तो मुद्रा का प्रवाह, वस्तुओं के प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अकेली मुद्रा से विनिमय कार्य नहीं होता है। अतः विदेशी आर्थिक एजेन्ट ऐसी किसी मुद्रा को स्वीकार नहीं करते हैं जिसकी क्रय शक्ति में स्थिरता न हो। इसलिए सरकार समूचे विश्व को मुद्रा की क्रय शक्ति की स्थिरता का दायित्व लेने का विश्वास दिलाती है। अतः स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में कोई भी मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई नहीं बन सकती है।

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प्रश्न 14.
किस प्रकार से एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन चयन व्यापक बनाता है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन तीन प्रकार से चयन को व्यापक बनाता है –

  1. उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं में चयन का अधिक अवसर प्राप्त होता है। इससे वस्तु बाजार का आकार अधिक व्यापक हो जाता है।
  2. निवेशकों को घरेलू एवं विदेशी पूंजी बाजारों में निवेश करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। इससे अनेक पूंजी बाजार आपस में जुड़कर वृहत्त पूंजी बाजार को जन्म देते हैं।
  3. फर्म उत्पादन करने के लिए सर्वोत्तम स्थिति का चयन कर सकती है। उत्पादन साधनों विशेष रूप से श्रमिकों को कम करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प चुनने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 15.
विदेशी व्यापार से अर्थव्यवस्था की सामूहिक मांग किस प्रकार से प्रभावित होती है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार एक अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग को दो प्रकार से प्रभावित करता है –

  1. जब एक देश के निवासी विदेशों से वस्तुओं को खरीदते हैं तो घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में से स्राव होता है इससे उस अर्थव्यवस्था में आय का स्तर गिरता है और अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग का स्तर कम हो जाता है।
  2. जब एक देश निवासी उत्पादक वस्तुओं को विदेशों में बेचते हैं तो इससे आय के चक्रीय प्रवाह में अन्तःक्षेपण होता है अर्थात् आय में बढ़ोतरी होती है। सामूहिक मांग का स्तर निर्यात के कारण बढ़ जाता है।

प्रश्न 16.
आय एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
जब घरेलू आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं का व्यय बढ़ जाता है। घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ने के साथ-साथ आयातित वस्तुओं या विदेशी वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होती है। अर्थात् विदेशी वस्तुओं की खरीद पर व्यय बढ़ जाता है। विदेशी वस्तुओं की मांग में वृद्धि होने पर विदेशी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है और घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है।

इसके विपरीत यदि विदेशी अर्थव्यवस्थाओं की आय बढ़ती है तो घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की वस्तुओं का मांग वक्र अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मे दायीं ओर खिसक जायेगा इससे घरेलू मुद्रा का अपमूल्यन होगा। अन्य बाते समान रहने पर जिस देश में वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ती है उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होता है क्योंकि ऐसे देश में निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है। इस देश में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र पूर्ति की तुलना में ज्यादा दायीं ओर खिसक जाता है।

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प्रश्न 17.
ब्याज दर एवं विनिमय दर में संबंध लिखिए।
उत्तर:
अल्पकाल में विनिमय दर निर्धारण में ब्याज दर की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। विनिमय दर में चलन ब्याज दरों का अन्तर होता है। बैंकों के कोष, बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ, धनी व्यक्ति ऊंची ब्याज दर की तलाश में पूरे विश्व में घूमते हैं। जिन देशों में ब्याज दर कम होती है उनकी मुद्रा की मांग वक्र बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। उपरोक्त ढंग से मांग व पूर्ति में खिसकाव से मुद्रा का अवमूल्यन होता है। इसके विपरीत जिन देशों में ब्याज दर ऊंची पायी जाती है उनकी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है वहाँ मुद्रा अपमूल्यन होता है।

प्रश्न 18.
सट्टा उद्देश्य एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार विनियिम दर निर्यात व आयात के लिए वस्तुओं की मांग व पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करने के साथ-साथ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पर भी निर्भर करती है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग मुद्रा के अपमूल्यन से होने वाले संभावित लाभ पर निर्भर करती है। मुद्रा अपमूल्यन से जितने अधिक लाभ की संभावना होती है उतनी अधिक मात्रा में मुद्रा की मांग की जाती है विनिमय दर ऊँची होती है। इसके विपरीत मुद्रा के अवमूल्यन से होने वाली हानि की स्थिति में मुद्रा की मांग कम की जाती है और विनिमय दर नीची पायी जाती है।

प्रश्न 19.
एक मुद्रा की साथ को प्रभावित करने वाले कथनों को बताइए।
उत्तर:
एक मुद्रा की साख कथनों से निम्न प्रकार से प्रभावित होती है –

1. असीमित रूप से निः
शुल्क परिवर्तनीयता का गुण। मुद्रा के परिवर्तन की कीमत जिस मुद्रा में अरिवर्तनीयता का गुण जितना अधिक एवे कीमत स्थिरता का दावा पेश किया जायेगा उस मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा होती है। इसके विपरीत मुद्रा में परिर्वनीयता का गुण जितना कम होगा और कीमत स्थिरता का कमजोर दावा पेश किया जायेगा मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा कमजोर होगी।

2. अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सत्ता (पद्धति) जो अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन में स्थिरता का आश्वासन दे।

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प्रश्न 20.
लोचशील विनिमय दर को समझाए।
उत्तर:
वह विनिमय दर जो विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन के आधार पर तय की जाती है उसे लोचशील विनिमय दर कहते हैं। लोचशील विनिमय दर विदेशी बाजार में मुद्रा की मांग अथवा आपूर्ति अथवा दोनों में परिवर्तन होने पर बदल जाती है। लोचशील विनिमय दर दो प्रकार की होती है –

  1. स्वतन्त्र लोचशील
  2. प्रबंधित लोचशील

स्वतन्त्र लोचशील विनिमय दर पूरी तरह मुद्रा की मांग व आपूर्ति की शक्तियों के आधार पर तय होती है केन्द्रीय बैंक इसके निर्धारण में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है जबकि प्रबन्धित लोचशील विनिमय दर को प्रभावित करने के लिए केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करता है।

प्रश्न 21.
स्थिर और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश की सरकार अपनी विनिमय दर की घोषणा करती है। यह दर स्थिर रखी जाती है। इस दर में होने वाले मामूली परिवर्तन भी अर्थव्यवस्था में सहनीय नहीं होते हैं।

नम्य विनिमय दरः
यदि विनिमय की दर बाजार में आपूर्ति और मांग के सन्तुलन के द्वारा तय होती है तो इसे नम्य विनिमय दर कहते हैं। नम्य विनिमय दर का मान बदलता रहता है।

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प्रश्न 22.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनयिम दर सरकार द्वारा तय की जाती है। अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक इस विनिमय दर का निर्धारण करता है। सामान्यतः स्थिर विनिमय दर में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए निश्चित सीमाओं के बीच में परिवर्तन कर सकता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का कोष स्थापित करता है इसका प्रयोग विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है।

स्थिर विनयिम दर देश की स्टैण्डर्ड मुद्रा सोने (Gold) की मात्रा पर निर्भर करती है। देसरे शब्दो में, स्थिर विनिमय दर का निर्धारण मुद्रा के सरकार द्वारा घोषित सोने के मूल्य पर निर्भर करता है। माना भारत की सरकार ने एक रूपये की कीमत 1 ग्राम सोना तथा इंग्लैण्ड की सरकार ने एक पौंड कीमत 10 ग्राम सोना तय की तो पौण्ड की विनिमय दर 10 रूपया होती तथा रूपये विनिमय दर। 110 पौंड होगी। 1977 के बाद इस विनिमय दर का प्रचलन अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्यों ने समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 23.
विनिमय दर तथा दीर्घकाल में संबंध लिखो।
उत्तर:
समयावधि जितनी अधिक होती है उतने ही व्यापार प्रतिबन्ध जैसे प्रशुल्क, कोटा, विनयम दर आदि समायोजित हो जाते हैं। विभिन्न मुद्राओं में मापी जाने वाले उत्पाद की कीमत समान होनी चाहिए लेकिन लेन-देन का स्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है। इसलिए लम्बी समयावधि में दो देशों के बीच विनिमय दर दो देशों में कीमत स्तरों के आधार पर समायोजित होती है। इस प्रकार देशों में विनिमय की दर दो देशों में कीमतों में अन्तर के आधार पर निर्धारित होती है।

प्रश्न 24.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति को समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में ऐ देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती हैं उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं।
विदेशी विनिमय की पूर्ति को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं –

  1. निर्यात दृश्य व अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं।
  2. निर्यात दृश्य उस देश में निवेश।
  3. विदेशों से प्राप्त हस्तातरण भुगतान।

विदेशी विनिमय की दर तथा आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। ऊंची विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की अधिक आपूर्ति होती हैं।

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प्रश्न 25.
विदेशी मुद्रा की मांग को समझाएं। यह विनिमय दर को किस प्रकार प्रभावित करती है।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष के दौरान एक देश को समस्त विदेशी दायित्वों का निपटारा करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है उसे विदेशी मुद्रा की मांग कहते हैं। एक देश निम्नलिखित कार्यों के लिए विदेशी मुद्रा की मांग करता है –

  1. आयात का भुगतान करने के लिए दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती है।
  2. विदेशी अल्पकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
  3. विदेशी दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
  4. शेष विश्व में निवेश करने के लिए।
  5. विदेशों को उपहार या आर्थिक सहायता देने के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग व विनिमय दर में उल्टा संबंध है। विनिमय दर ऊँची हाने पर विदेशी मुद्रा की मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 26.
भारतीय नागरिकों द्वारा विदेशों में खर्च विदेशी मुद्रा बाजार भारतीय रूपयों की आपूर्ति के समान है। समझाइए।
उत्तर:
यदि भारत के लोग विदेशों से वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करते हैं तो भुगतान करने के लिए भारत के लोगों के पास रूपये होते हैं। परन्तु विदेशी विक्रेता अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अपने देश की मुद्रा में स्वीकार करते हैं। अतः भारत के लोग भारतीय मुद्रा रूपये से विदेशी मुद्रा प्राप्त करते हैं। विदेशी मुद्रा के समान भारत लोग रूपये की आपूर्ति विदेशी मुद्रा बाजार को करते हैं। इस प्रकार भारत के लोग का खर्च विदेशी मुद्रा बाजार को भारतीय रूपयों की आपूर्ति होती है। माना एक भारतीय पर्यटक अमेरिका में बीमार पड़ने पर चिकित्सक की सेवाएं प्राप्त करता है। चिकित्सक की फीस 20 डालर प्राप्त करने के विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये देगा। अतः विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये की आपूर्ति होती है।

प्रश्न 27.
क्रय शक्ति समता सिद्धांत की तीन आलोचनाएं लिखें।
उत्तर:

  1. यह सिद्धांत कीमत सूचकांक पर आधारित है। जबकि कीमत सूचकांक अनिश्चित एवं अविश्वसनीय होते हैं।
  2. अदृश्य मदों की उपेक्षाः यह सिद्धांत यह मानता है कि विनिमय दर केवल वस्तुओं के आयात निर्यात से प्रभावित होती है। सेवाएं प्रभावित नहीं करती हैं जबकि व्यवहार में यह बात सही नहीं है।
  3. ऊपरी लागतों की उपेक्षा: इस सिद्धांत में परिवहन व्यय की अनदेखी की गई है जबकि परिवहन व्यय एक देश में वस्तुओं की कीमत कम ज्यादा कर सकता है।

प्रश्न 28.
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था पर चर्चा करें।
उत्तर:
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। परन्तु इस व्यवस्था के स्थिर घोषित विनिमय दर के दोनों ओर 10 प्रतिशत उतार-चढाव मान होने चाहिए। ससे सदस्य देश अपने भुगतान शेष के समजन का काम आसानी से कर सकते हैं। उहाहरण के लिए यदि किसी देश का भुगतान शेष घाटे का है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस देश को अपनी मुद्धा की दर 10 प्रतिशत तक घटाने को छूट होनी चाहिए। मुद्रा की दर कम होने पर दूसरे देशों के लिए उस देश की वस्तुएं एव सेवाएं सस्ती हो जाती हैं जिससे विदेशों में उस देश की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती हैं और उस देश को विदेशी मुद्रा पहले से ज्यादा प्राप्त होती है।

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प्रश्न 29.
प्रबंधित तरणशीलता की अवधारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तरणशीलता स्थिर एवं नम्य विनिमय दर के बीच की व्यवस्था है। इस व्यवस्था में विनिमय दर को स्वतंत्र रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी यदा कदा हस्तक्षेप करते हैं। मौद्रिक अधिकारी अधिकारिक रूप से बनाए गए नियमों एवं सूत्रों के अन्तर्गत ही हस्तक्षेप कर सकते हैं। अधिकारी विनिमय दर तय नहीं करते हैं। विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई सीमा तय नहीं की जाती है। हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस होने पर मौद्रिक अधिकारी समन्वय के लिए उचित कदम उठा सकते हैं। नियमों एवं मार्गदर्शकों के अभाव में यह व्यवस्था गन्दी तरणशीलता बन जाती है।

प्रश्न 30.
चालू खाते व पूंजीगत खाते में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चालू खाता:

  1. भुगतान शेष के चालू खाते में वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात व आयात शामिल करते हैं।
  2. भुगतान शेष के चालू खाते के शेष का एक देश की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश का चालू खाते का शेष उस देश के पत्र में होता हैं तो उस देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।

पूंजी खाता:

  1. भुगतान शेष के पूंजी खातों में विदेशी ऋणों का लेन-देन ऋणों का भुगतान व प्राप्तियों, बैंकिग पूंजी प्रवाह आदि को दर्शाते हैं।
  2. भुगतान शेष का देश की राष्ट्रीय आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है ये केवल परसिम्पतियों की मात्रा को दर्शाते हैं।

प्रश्न 31.
लोग विदेशी मुद्रा की मांग किसलिए करते हैं?
उत्तर:
लोग विदेशी मुद्रा की मांग निम्नाकिंत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं –

  1. दूसरे देशों से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने के लिए।
  2. विदेशों में उपहार भेजने के लिए।
  3. दूसरे णों का लेन-देन ऋणों का भाव देश में भौतिक एवं वित्तीय परिसंपत्तियों को क्रय करने के लिए।
  4. विदेशी मुद्राओं के मूल्य के संदर्भ में व्यापारिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।
  5. विदेशों में पर्यटन के लिए।
  6. विदेशों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएं प्रापत करने के उद्देश्य के लिए आदि।

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प्रश्न 32.
भुगतान शेष की संरचना के पूंजी खाते को समझाएं।
उत्तर:
पूंजी खातों में दीर्घकालीन पूंजी के लेन-देन को दर्शाया जाता है। इस खाते में निजी व सरकारी पूंजी लेन-देन, बैंकिंग पूंजी प्रवाह व अन्य वित्तीय विनिमय दर्शाए जाते हैं। पूंजी खाते की मदें: इस खाते की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

1. सरकारी पूंजी का विनिमय:
इसमें सरकार द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण तथा विदेशों को दिए गए ऋणों के लेन-देन, ऋणों के भुगतान तथा ऋणों की प्राप्तियों के अलावा विदेशी मुद्रा भण्डार, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भण्डार, विश्व मुद्रा कोष के लेन-देन आदि को दर्शाया जाता है।

2. बैंकिग पूंजी:
बैंकिग पूंजी प्रवाह में वाणिज्य बैंकों तथा सहकारी बैंकों की विदेशी लेनदारियों एवं देनदारियों को दर्शाया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक के पूंजी प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं।

3. निजी ऋण:
इसमें दीर्घकालीन निजी पूंजी में विदेशी निवेश ऋण, विदेशी जमा आदि को शामिल करते हैं। प्रत्यक्ष पूंजीगत वस्तुओं का आयात व निर्यात प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 33.
इनकी परिभाषा करें:

  1. NEER
  2. REER
  3. Rer

उत्तर:
1. NEER(मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर):
मुद्रा की औसत सापेक्ष पर कीमत स्तर के परिवर्तन के प्रभावों को खत्म नहीं करने का प्रयास नहीं किया जाता है अर्थात् मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति कीमत स्तर के परिवर्तन प्रभावों से प्रभावित होती है इसिलए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर कहते हैं।

2. REER:
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर इससे वास्तविक विनिमय की गणना की जाती है।
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3. RER:
स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर को (RER) कहते है। इसमें कीमत परिवर्तन का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
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प्रश्न 34.
विदेशी मुद्रा के –

  1. हाजिर बाजार तथा
  2. वायदा बाजार क्या होते हैं?

उत्तर:
1. हाजिर बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन दैनिक आधार पर होते हैं तो ऐसे बाजार को हाजिर बाजार या चालू बाजार कहते हैं। इस बाजार में विदेशी मुद्रा की तात्कालिक दरों पर विनिमय होता है।

2. वायदा बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है तो इसे वायदा बाजार कहते हैं। इस बाजार में भविष्य में निश्चित तिथि पूरी होने पर लेन-देन का काम होता है।

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प्रश्न 35.
विदेशी विनिमय बाजार में चलित सीमाबन्ध व्यवस्था की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमा बन्ध व्यवस्था स्थिर एवं नम्य व्यवस्थाओं के बीच की व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था में एक देश की सरकार विनिमय दर की घोषणा करने के बाद उसे दोनों ओर 1 प्रतिशत परिवर्तन कर सकती है अथात् विनिमय दर को 1 प्रतिशत बढ़ा भी सकती है और घटा भी सकती है। परन्तु देश के विनिमय भण्डरों की समीक्षा के कारण निश्चित विनिमय दर में समय-समय पर संशोधन किए जाते हैं। संशोधन करते वक्त मुद्रा की आपूर्ति व कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी ध्यान रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के माध्यम से वित्तीय अनुशासन रख सकते हैं।

प्रश्न 36.
क्रोलिंग पेग और मैनेजड फ्लोटिंग समझाइए।
उत्तर:
क्रोलिग पेग:
(स्थिर विनिमय दर) वह योजना जिसके द्वारा एक देश अपनी मुद्रा के सम मूल्य (Parity Vaiue) की घोषणा करता है और सम मूल्य में बहुत कम उच्चावन 1 प्रतिशत का समायोजन करता है उसे क्रोलिग पेग कहते हैं। हालाकि सम मूल्य में समायोजन देश के विदेशी भण्डार के आधार पर बहुत कम मात्रा में निरन्तर समायोजित किये जाते हैं। सम मूल्य में परिवर्तन मुद्रा की आपूर्ति, कीमत व विनिमय दर के आधार पर भी किए जाते हैं।

प्रबंधित लोचशल (मैनेजड फ्लोटिंग):
स्थिर व परिवर्तनशील विनिमय दर के प्रबन्धन में यह अंतिम और विकसित विधि है। इस व्यवस्था में विनिमय दर की बाधाओं को मुद्रा अधिकारी बातचीत के जरिए ठीक कर देते हैं। दूसरे शब्दों में इस व्यवस्था में सम मूल्य पूर्व निर्धारित नहीं होता है, उच्चावन की घोषणा का समय भी नहीं होता, मुद्रा अधिकारी स्थिति को भांप कर हस्तक्षेप करते हैं। हस्तक्षेप दूसरे देशों के साथ ताल मेल के आधार पर भी हो सकता है। लेकिन इस व्यवस्था में विनिमय दर से संबंधित दिशा निर्देशों की औपचारिक घोषणा की जाती है। दिशा निर्देशों के अभाव में यह अभिशाप भी सिद्ध हो सकता है।

प्रश्न 37.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या करें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रकार से भुगतान प्राप्त करने एवं भुगतान प्राप्त करने की जरूरत होती है। एक उत्पादन एवं बिक्री तथा दो, वित्तीय ओर वास्तविक परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय। खुली अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर कुल व्यय में निजी उपभोग, सरकारी अन्तिम उपभोग, निवेश के अलावा विदेशियों द्वारा आयात पर व्यय को शामिल किया जाता है।

राष्ट्रीय आय = उपभोग + सरकारी उपभोग + निर्यात
सृजित आय का प्रयोग, बचत, कर भुगतान एवं आयात पर किया जाता है।
राष्ट्रीय आया = उपभोग + बचत + कर + आयात।

इस प्रकार भुगतान शेष की मदें निर्यात एवं आयात राष्ट्रीय आय अथवा राष्ट्रीय व्यय को प्रभावित करते हैं। अतः भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय लेखें परस्पर संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त खुली अर्थव्यवस्थाएं अदृश्य मदों का भी लेन-देन करती हैं। विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय राष्ट्रीय आय का अंग हैं अर्थात् भुगतान शेष की अदृश्य मदें भी राष्ट्रीय लेखा से संबंध रखती हैं। भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय दोनों के लेखांकन की पद्धति द्विअंकन प्रणाली है।

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प्रश्न 38.
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण बताएं।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के निम्नलिखित कारण है –
1. एक देश का वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात, आयात से कम ज्यादा होने पर। यदि निर्यात का मूल्य आयात से अधिक होगा तो भुगतान शेष पक्ष का होगा लेकिन यदि निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होगा तो भुगतान शेष प्रतिकूल होता है।

2. एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण भुगतान प्राप्ति एवं व्यय की असमानता। यदि देश को अन्तरण भुगतान प्राप्त होते हैं तो जमा में और यदि देश अन्तरण भुगतान देता है तो ये नामें में दर्शाए जाते हैं। यदि एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण ज्यादा होते हैं। अन्तरण भुगतान व्यय प्राप्ति की तुलना में ज्यादा होते हैं तो भुगतान शेष पक्ष का होता है। समष्टीय आधार पर भुगतान शेष संतुलन में होता है। भुगतान शेष में असंतुलन चालू खातें एवं अन्तरण खातों के असन्तुलन की वजह से होता है।

प्रश्न 39.
इन खातों के घटकों की व्याख्या करें –

  1. चालू खाता।
  2. पूंजी खाता।

उत्तर:
1. चालू खाता:
चालू खाते के घटक निम्नलिखित है –

  • वस्तुओं का आयात-निर्यात।
  • सेवाओं का आयात-निर्यात।
  • एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं वयय।

वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात एवं विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति को ‘जमा’ में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को ‘नामे’ में दर्शाया जाता है।

2. पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  • निजी लेन-देन
  • सरकारी लेन-देन
  • प्रत्यक्ष निवेश
  • पत्राचार निवेश

एक देश द्वारा विदेशों से परिसंपत्ति की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसपत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है।

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प्रश्न 40.
भुगतान सन्तुलन की संरचना में शामिल ‘चालू खाते’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते में अल्पकालीन वास्तविक सौदों को दर्शाया जाता है।

चालू खाते की मदें:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के के अनुसार चालू खाते में निम्नलिखित मदों को दर्शाया जाता है –

1. दृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सभी भौतिक वस्तुओं को शामिल किया जाता है।

2. अदृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सेवाओं को शामिल करते हैं। जैसे: व्यक्तियों द्वारा सेवाओं का विनिमय (सेवाओं का निर्यात व आयात
व्यापारिक उपक्रमों की सेवाएं –

  • बीमा व बैकिंग
  • परिवहन सेवाएं
  • सरकारी लेन-देन
  • निवेश/पूंजी की आय
  • हस्तातरण भुगतान
  • विशेषज्ञों की सेवाएं आदि

चालू खाते का भुगतान शेष = निर्यात (दृश्य + अदृश्य मदें) – आयात (दृश्य + अदृश्य)

प्रश्न 41.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष:

  1. व्यापार शेष विदेशी विनिमय की एक संकुचित अवधारण हैं।
  2. इसमें निर्यात व आयात की केवल दृश्य मदों को शामिल करते हैं।
  3. व्यापार शेष संतुलित एवं असंतुलित दोनों तरह का हो सकता हैं।
  4. व्यापार शेष विदेशी आर्थिक विश्लेषण के लिए पूरी जानकारी नहीं देता है।

भुगतान शेष:

  1. भुगतान शेष विदेशी विनिमय की विस्तृत अवधारणा है।
  2. भुगतान शेष में दृश्य एवं अदृश्य सभी प्रकार की मदों को शामिल करते हैं।
  3. भुगतान शेष सदैव संतुलन शेष में हो सकता है।
  4. भुगतान शेष विदेशी लेनदारियों व देनदारियों के आर्थिक विश्लेषण के लिए पर्याप्त जानकारी देता है।

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प्रश्न 42.
भुगतान शेष के खातों का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के खातों का निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. भुगतान शेष के खाते एक देश की विदेशों से सभी लेनदारियों तथा उस देश की विदेशों को देनदारियों का विवरण प्रदान करते हैं। जिससे किसी भी विनिमय के गलत दिशा में जाने पर उसे रोका जा सकता है।
  2. इन खातों से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लेन-देन की कमजोरियों की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. इन खातों के आधार पर एक देश भावी आर्थिक नीति का निर्माण कर सकता है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में होने वाले लाभ व हानि की भी जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा विदेशी सुरक्षित निधियों का परिवर्तन भुगतान शेष खाते को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक सुरक्षित निधियों में वृद्धि या किसी करता है तो इसे अधिकारिक विदेशी परिसंपत्तियों में परिवर्तन कहते हैं। यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा का सुरक्षित भण्डार बढ़ाता है तो दूसरे देश के भुगतान शेष खाते के धनात्मक पक्ष (जमा पक्ष) में प्रविष्टि होगी क्योंकि दूसरे देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ेगा या उस देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।

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प्रश्न 44.
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश अपनी मुद्रा के बदले एक तय सीमा के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से जरूरी विदेशी मुद्राएं प्राप्त कर सकता है। किसी देश के निधि कोष के परिवर्तन उस देश के भुगतान शेष खाते के बाकी सभी घटकों के परिणामस्वरूप होते हैं। इन कोषों की कमी से विदेशी में व्यय करने की जरूरत पूरी होती है। कमियां उत्पन्न करने से विदेशी मुद्रा का प्रवाह उस देश की ओर होता है अतः भुगतान शेष खाते के जमा पक्ष में प्रविष्टि पाते हैं। यदि नामे पक्ष की ओर दर्शाया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी अर्थव्यवस्था के लिए भुगतान संतुलन का महत्त्व समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक दृष्टि से किसी देश के लिए भुगतान संतुलन का बड़ा महत्त्व होता है। इस बात की पुष्टि निम्न तथ्यों से हो जाती है –
1. आर्थिक स्थिति का सूचक:
भूगतान संतुलन अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनेक पक्षों को उजागर करता है। जिन देशों में भुगतान संतुलन की स्थिति होती है वहाँ इसे ठीक माना जाता है जबकि प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में अर्थव्यवस्था को ठीक नहीं समझा जाता।

2. विदेशी निर्भरता का सूचक:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि कोई देश किस सीमा तक विदेशों पर निर्भर है। किसी देश के भुगतान शेष में प्रतिकूलता जितनी अधिक होती है उसकी अन्य देशों पर निर्भरता उतनी ही ज्यादा होती है।

3. शेष विश्व प्राप्तियों एवं भुगतानों का ज्ञान:
शेष विश्व को दिए गए कुल भुगतानों व प्राप्तियों का ज्ञान भुगतान संतुलन खाते लग जाता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति का सूचक:
भुगतान संतुलन के अध्ययन से देश के विदेशी व्यापार की स्थिति का ज्ञान होता है।

5. आर्थिक नीतियों का निर्धारण:
भुगतान संतुलन राष्ट्रीय आर्थिक नीति के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। अनेक बार भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही देश की आर्थिक नीतियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जाते हैं।

6. विदेशी निवेश का ज्ञान:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि विदेशियों द्वारा किसी देश में किए गए निवेश से उनको कितनी आय प्राप्त हुई है और इसी प्रकार किसी देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से क्या लाभ हो रहा है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के लिए सूचक:
भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं जैसे-विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि किसी देश के लिए सहायता राशि को तय करती है।

8. भुगतान शेष के खातों की सहायता से हम यह जान सकते हैं कि संसार के साथ लेन-देन का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है और वह उन्हें कैसे प्रभावित करती है।

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प्रश्न 2.
भुगतान शेष के असन्तुलन का क्या अर्थ है? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
समुचित भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है। भुगतान शेष से अभिप्राय एक देश की विदेशों से समस्त लेनदारियों व विदेशों के प्रति समस्त दायित्त्वों के अन्तर से है। तुलन पत्र (Balance Sheet) में समस्त लेनदारियां व देनदारियां बराबर दर्शायी जाती है। भुगतान शेष के असंतुलन को समझने के लिए भुगतान शेष में शामिल खातों को जानना पड़ेगा। भुगतान शेष में शामिल खाते निम्नलिखित हैं –

  1. चालू खाता-चालू खाते का सन्तुलन = निर्यात (दृश्य + अदृश्य) आयात (दृश्य + अदृश्य)।
  2. पूंजी खाता पूंजी खाते का सन्तुलन = स्वर्ण आदान – प्रदान + दीर्घकालीन ऋणों का आदान – प्रदान अल्पकालीन ऋणों का आदान – प्रदान

उपरोक्त दोनों खातों में समग्र रूप से सन्तुलन रहता है। परन्तु चालू खाते में सदैव सन्तुलन होना जरूरी नहीं है। जब किसी देश के चालू खाते में असंतुलन होता है तो उसे पूंजी खाते से पूरा किया जाता है। इसे पूरा करने के लिए कर्को देश आरक्षित स्वर्ण भण्डारों व विदेशी आरक्षित मुद्रा भण्डारों में परिवर्तन कर सकता है। जैसे भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए वह अपने उक्त भण्डारों में कमी कर सकता है।

भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए एक देश विदेशों से अल्पकालीन व दीर्घकालीन ऋण भी ले सकता है। परन्तु भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए उपरोक्त उपाय हमेशा उचित नहीं होते हैं। वास्तविक भुगतान शेष को जानने के लिए सन्तुलन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली मदों को अलग रखना चाहिए जैसे स्वर्ण भण्डारों व विदेशी मुद्रा के आरक्षित भण्डारों में कमी, विदेशी से अल्पकालीन या दीर्घकालीन ऋण। यदि इन मदों को निकाल कर किसी देश का भुगतान में है तो यह वास्तविक सन्तुलन माना जायेगा अन्यथा भुगतान शेष वास्तव में असन्तुलन में माना जायेगा । सन्तुलन संबंधी तीन स्थितियां हो सकती हैं –

  1. सन्तुलित भुगतान शेष – निर्यात = आयात
  2. बचत का भुगतान शेष – निर्यात > आयात
  3. घाटे का भुगतान शेष – निर्यात < आयात

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प्रश्न 3.
विदेशी मुद्रा बाजार मे संतुलन की प्रक्रिया समझाए।
उत्तर:
विनिमय बाजार में संतुलन की प्रक्रिया सामान्य बाजार की तरह मुद्रा की मांग और आपूर्ति के साम्य द्वारा तय होती है। विदेशी विनिमय बाजार में मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला और आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र जिस बिन्दु पर काटते हैं उस बिन्दु को साम्य बिन्दु कहते हैं। साम्य बिन्दु पर विनिमय की दर संतुलन विनिमय दर कहलाती है तथा मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। विनिमय बाजार में संतुलन को चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है। आपूर्ति वक्र S का ढाल धनात्मक है।

जिसका अभिप्राय यह है कि विनिमय दर ऊँची होने पर विदेशी मुद्रा अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती है। इससे विदेशियों को वस्तुएं सस्ती लगती हैं और परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है। मुद्रा का मांग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला है। पूर्ति वक्र और वक्र दोनों बिन्दु E पर काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है। बिन्दु Eसे X अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद (फुट) संतुलन मात्रा को दर्शाया है तथा साम्य बिन्दु से Y अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद संतुलन विनिमय दर को दर्शाया है।
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प्रश्न 4.
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से एकदम उल्टी है। विश्व स्थिर विनिमय दर का निर्धारण सरकार करती है और उसमें परिवर्तन की गुंजाइश बहुत कम होती है। जबकि नम्य विनिमय दर व्यवस्था में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व मुद्रा बाजार में विनिमय की दर विश्व बाजार में मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति के साम्य से तय होती है। मांग और आपूर्ति में परिवर्तन होने पर विनिमय दर बदलती रहती है।
पूर्णतः नम्य विनिमय दर व्यवस्था के निम्नलिखित गुण हैं –

  1. विश्व मुद्रा बाजार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था के कारकों की वजह से देशों के केन्द्रीय बैकों को विदेशी मुद्राओं के भण्डार रखने की जरूरत नहीं होती है।
  2. नम्य विनिमय दर व्यवस्था लागू होने से सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा पूंजी के आवागमन की रुकावटें समाप्त हो जाती हैं।
  3. नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अर्थव्यवस्था संसाधनों का अभीष्टतम वितरण करके अर्थव्यवस्था की कुशलता में बढ़ोतरी करती है।

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प्रश्न 5.
भारत के भुगतान शेष खातों की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते को द्विअंकन पद्धित (Double Entry System) में तैयार किया जाता है। अतः भुगतान शेष खाते में जमा व नामे की दो प्रविष्टियां होती है। इस प्रविष्टियों का आकार समान होता है इसलिए यह खाता हमेशा संतुलन में होगा है। भुगतान शेष के सभी लेन-देनों को 5 वर्गों में बाटकर निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है नामे (-)

(I) श्रेणी – 1:

  • वस्तु का आयात
  • सेवाओं का आयात

श्रेणी – 2:
प्रदान गए अन्तरण भुगतान

श्रेणी – 3

  • देश के निवासियों एवं सरकार द्वारा धारित दीर्घकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि
  • विदेशी नागरिको एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसपत्तियों में कमी।

श्रेणी – 4

  • देश के नागरिकों द्वारा अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि।
  • विदेशी नागरिकों द्वारा धारित विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।

जमा (+)

  • वस्तुओं का निर्यात
  • सेवाओं का आयात

(II) प्राप्त किए गए हस्तातरण भुगतान

(III)

  • देश के नागरिकों और सरकार द्वारा धारित दीर्घ कालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
  • विदेशी नागरिकों एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसंपत्तियों में वृद्धि।

(IV)

  • देश के नागरिकों द्वारा धारित अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
  • विदेशी नागरिकों द्वारा धारित इस देश की अल्पकालिक परिसपत्तियों में वृद्धि।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय बाजार की कार्यपद्धति के हाजिर बाजार एवं वायदा बाजार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाजार के विश्लेषण में लेन-देन की विधि समय अवधि से जुड़ी होती है। लेन-देन के समय अवधि के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जा सकता है –

1. हाजिर बाजार:
इस बाजार को चालू बाजार भी कहा जाता है। इस बाजार में लेन-देन दैनिक आधार पर किया जता है। किसी देश की मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति के नाम को प्रभावी विनिमय दर कहते हैं। प्रभावी विनिमय दर में कीमत परिवर्तन के प्रभावों को समाप्त नहीं किया जाता है। इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर भी कहते है। विश्व विनिमय दर सुधार या गिरावट का अनुमान वास्तविक विनिमय दर के आधार पर किया जाता है। इसमें केवल चालू खाते के लेन-देनों में संतुलन होता है। इसका आधार यह है कि एक ही मुद्रा में आकलन करने से सभी देशों में कीमतें एक समान हो जाती है। सापेक्ष क्रय शक्ति दर से सदस्य देशों की कीमत वृद्धि दर को विश्व विनिमय दर से जोड़ा जाता है।

2. वायदा बाजार:
इस बाजार में लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है। इस बाजार में भविष्य में किसी तिथि पर पूरे होने वाले लेन-देन का कामकाज होता है। विश्व व्यापार में ज्यादातर लेन-देन उसी दिन पूरे नहीं होते हैं जिस दिन लेन-देन के दस्तावेजों पर दो देश हस्ताक्षर करते हैं। लेन-देन उसके कई दिन बाद होता है इसलिए इस बाजार में भविष्य में होने वाली सम्भावित विनिमय दर पर भी ध्यान दिया जाता है। इससे सदस्य देशों को सम्भावित विनिमय दर से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का उपाय करने का मौका मिल जाता है। वायदा बाजार में ऐसे व्यापारी भागीदार होते हैं जिनको भविष्य में किसी दिन किसी मुद्रा की जरूरत होगी अथवा वे मुद्रा की आपूर्ति करेंगे। भविष्य के सौदे करने में दो उद्देश्य होते हैं –

  • विनिमय दर परिवर्तन के कारण सम्भवित जोखित को कम करना।
  • लाभ कमाना, पहले उद्देश्य को जोखिम का पूर्व उपाय कहते हैं और दूसरे को सट्टेबाजी।

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प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू एवं पूंजी खाते में सम्मिलित विभिन्न मदों के ब्यौरे दर्शाइए।
उत्तर:
चालू खाता-चालू खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तुओं का आयात निर्यात
  2. सेवाओं का आयात निर्यात
  3. एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं व्यय

वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति जमा में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को नामे में दर्शाया जाता है। चालू खाते की मदों को तालिका में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –

चालू खाते की मदें लेनदारी:

  1. वस्तओं का निर्यात (दृश्य)
  2. अदृश्य मदें

शेष विश्व को दी गई सेवाएं (शिक्षा, स्वास्थ, यात्रा, बीमा, यातायात, बैकिंग आदि।)
शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान –

  1. सरकारी
  2. निजी

शेष विश्व से प्राप्त/आर्जित निवेश –

  1. शेष विश्व से प्राप्त निवेश आय
  2. शेष विश्व से प्राप्त कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति। मुआवजा।

देनदारी:

  1. वस्तुओं का आयात (दृश्य)
  2. अदृश्य मदें
  3. शेष विश्व से प्राप्त सेवाए
  4. शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान (दान एवं उपहार)
  5. शेष विश्व को प्रदान की गई अर्जित आय
  6. शेष विश्व को दी गई निवेश आय
  7. शेष विश्व को दी गई कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति/मुआवजा

पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निजी लेन-देन
  2. सरकारी लेन-देन
  3. प्रत्यक्ष निवेश
  4. पत्राचार निवेश

एक देश द्वारा विदेशों से परिसम्पत्तियों की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसम्पत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है। पूंजी खाते की मदें कुल पूंजीगत प्राप्तियां –

  1. विदेशी निजी ऋणों की प्राप्ति।
  2. बैकिंग पूंजी का आन्तरिक प्रवाह।
  3. सरकारी क्षेत्र द्वारा प्राप्त ऋण।
  4. रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण प्राप्तियां।
  5. स्वर्ण अन्तर विक्रय।

कुल पूंजीगत भुगतान –

  1. स्वदेशियों द्वारा निजी ऋणों की वापसी।
  2. बैकिंग पूंजी का बाहा प्रवाह।
  3. सरकार क्षेत्र द्वारा ऋणों का भुगतान।
  4. रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण अन्तरण भुगतान।
  5. स्वर्ण क्रय।

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प्रश्न 8.
विनिमय दर के भुगतान संतुलन सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
विनिमय दर के भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त को विनिमय दर का आधुनिक सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण एक देश की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार ‘मैं मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से तय होती है। प्रो. कुरीहारा के अनुसार स्वतन्त्र विनिमय दर उस बिन्दु पर तय हाती है जिस पर विदेश विनिमय की मांग तथा आपूर्ति दोनों बराबर हो जाए। इस सिद्धांत के अनुसार निम्न स्थितियों में विनिमय दर में परिवर्तन होता है –

1. अनुकूल भुगतान शेष:
यदि किसी देश का भुगतान शेष अनुकूल होता है तो इसका अभिप्राय यह है कि उसे देश की विदेशों से समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से ज्यादा हैं। इससे विदेशी मुद्रा की आपूर्ति उस देश में बढ़ जाएगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी।

2. प्रतिकूल भुगतान शेष:
प्रतिकूल भुगतान शेष की अवस्था में एक देश की विदेशों में समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से कम होती हैं। इससे उसे देश में विदेशी पूंजी की आपूर्ति कम हो जायेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में कमी आ जायेगी।

3. सन्तुलित भुगतान शेष:
इस स्थिति में एक देश की विदेशों से स्मस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियां के समान होती हैं अर्थात् विदेशी पूंजी की आपूर्ति स्थिर रहेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर भी स्थिर रहेगी। इस सिद्धान्त को मुद्रा की मांग व आपूर्ति वक्रों के सन्तुलन से भी समझाया जा सकता है।

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चित्र में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र = DD
विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र = SS
सन्तुलन बिन्दु E पर विनिमय दर = OR
सन्तुलित मांग व आपूर्ति = OQ

सिद्धान्त की मान्यताएं –

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।
  2. सरकारी हस्तक्षप आर्थिक मामलों में नगण्य होता है।
  3. विनिमय दर आयात व निर्यात से प्रभावित होता है।
  4. विनिमय दर निर्धारण से देश के कीमत स्तर पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
  5. विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से निर्धारित होती है।

सिद्धान्त की आलोचनाएं –

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्णप्रतियोगिता की मान्यता कोरी कल्पना है।
  2. सरकारी अहस्तक्षेप की मान्यता भी अव्यावहारिक है।
  3. विनियिम दर आयात-निर्यात से प्रभावित होती है परन्तु विनिमय दर भी आयात-निर्यात से परिवर्तन करती है।
  4. देश का कीमत स्तर भी आयात व निर्यात को प्रभावित करता है अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप से देश में कीमत स्तर विदेशी विनिमय को प्रभावित करता है।
  5. विदेशी विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति से ही प्रभावित नहीं होती है बल्कि सट्टा बाजार, राजनैतिक परिवर्तन, वित्तीय संस्थाओं की कार्यपद्धति, विदेशी आर्थिक क्रियाकलाप भी विदेशी विनिमय दर पर प्रभाव डालते हैं।

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प्रश्न 9.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था तथा समजंनीय सीमा व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था:
इस व्यवस्था के अन्तर्गत देश की सरकार देश की अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। सरकार द्वारा घोषित दर स्थिर रखी जाती है। इसमें बहुत मामूली परिवर्तन ही मान्य होते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था 1880 से लेकर 1914 तक स्वर्ण मांग व्यवस्था के रूप में थी। प्रत्येक देश स्वर्ण मांग में स्वर्ण के निश्चित भार का देश की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। घोषित मूल्यों के अधार पर विभिन्न देशों की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। इसे टकसाल मांग समता दर कहते थे। उदाहरण के लिए यदि 1 रूपये के बदले 150 शुद्ध कण मिल रहे हैं ओर एक येन के बदले 25 तो 1 = 150/25 = 6 येन अर्थात् एक रूपया = 6 येन की विनिमय दर तय की जाती थी।

समजनीय सीमा व्यवस्था:
विनिमय दर की स्वर्ण व्यवस्था भुगतान शेष की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही। अतः इस व्यवस्था को 1920 में त्याग दिया गया और 1944 में ब्रेटन बुडस व्यवस्था लागू की गई। इस व्यवस्था में केवल बार घोषित दर को बनाए रखने का दायित्व सरकार का रहता था। अतः यह व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का संशोधित रूप है। स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं –

  1. स्थिर विनिमय दर की सहायता से आर्थिक नीतियों को कमजोर बनाने वाले संकटों पर नियंत्रण रहता है।
  2. स्थिर विनिमय दर सदस्य देशों की समष्टि स्तरीय आर्थिक नीतियों में समन्वय बनाने में मदद करती है।
  3. स्थिर विनिमय दर से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता और जोखिम समाप्त होते हैं और विश्व व्यापार में बढ़ोतरी होती है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आपको एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को दर्शाता है:Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र part - 1  img 10

उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 100 + 8(y – 40) + 38 + 75 + 25 – 0.05(y – 40)
= 238 + 8y – 8 × 40 – 0.05Y + 0.056 × 40 = 208 + 0.75y
y – 0.75y = 208
25y = 208

(b) सरकारी घाटा = G – T
= 75 – 40 = 35

(c) चालू खाता शेष = X – M = X – 0.05 yD [∵YD = Y – T]
= 25 – 0.05 (832 – 40) T = tax
325 – 0.05 × 792
= 25 – 39.60 = -14.6

(a) साम्य राष्ट्रीय आय = 432
(b) सरकारी घाटा = 35
(c) चालू खाता शेष = -14.6

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प्रश्न 2.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 2.45 येन देने पड़ते हैं। जापान में कीमत स्तर और भारत में कीमत स्तर 2.21 है भारत व जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5 व P = 2.2 अ
2.45 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = \(\frac{1}{2.46}\) रुपया
= \(\frac { 100 }{ 245 } \) = 0.408 रुपया

वास्तविक विनिमय दर –
= ePF/P
= \(\frac { 0.408\times 5 }{ 2.2 } \)
= 0.92
वास्तविक विनिमय दर = 0.92

प्रश्न 3.
जब M = – 40 + 0.25 y है तो आयात की सीमान्त प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में क्या संबंध होगा?
उत्तर:
M = – 40 + 0.25y (दी गई समीकरण)
M = m + my (मानक समीकरण) दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत आयात
M = -40 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति
m = 0.25 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति 0.25 है इसका अभिप्राय यह है कि सामूहिक व्यय प्रयोज्य आय बढ़ने पर इसका 25 प्र. श. आयात बढ़ेगा । अर्थात् आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में सीधा संबंध है।

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प्रश्न 4.
माना C = 85 + 5yD, T = 60, I = 85, G = 60, X = 90, M = 40 + 0.05 y
(a) साम्य आय क्या होगी?
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात ज्ञात करो।
उत्तर:
(a) साम्य आय
y = \(\frac{C-CT+I+G+X-M}{1-C+m}\)
= \(\frac{85 – 0.5 60 + 85 + 60 + 90 – 45}{1-0.5+0.5}\)
= \(\frac{250}{0.55}\) = 454.5

(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष
NX = X – M – mY
= 90 – 40 – 0.5 × 454.5
= 52 – 22.7 = 27.3
(a) साम्य आय = 454.3
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 27.3

प्रश्न 5.
माना MPC = 0.8 or C = 0.8, M = 60 + 0.06Y तो व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
MPC = 0.8
c = 0.8
M = M + mY (मानक समीकरण)
M = 60 + 0.06Y (दी गई समीकरण)
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
M = 0.06
\(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5+0.6}\)
= \(\frac{1}{2+0.06}\) = \(\frac{1}{0.26}\) = \(\frac{100}{26}\) = 3.84
व्यय गुणक = 3.84

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प्रश्न 6.
यदि C = 0.05 व M = 0.45 बन्द व खुली अर्थव्यवस्था के लिए व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
बन्द अर्थव्यवस्था के लिए – \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5}\) = \(\frac{1}{95}\) = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था के लिए – \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.05+0.45}\) = \(\frac{1}{1.4}\) = 0.71
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 0.71

प्रश्न 7.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 0.25 येन की आवश्यकता पड़ती है। जापान व पाकिस्तान में कीमत स्तर 5 व 0.2 है। जापान व पाकिस्तान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5, P = 0.2
0.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4 रुपया
वास्तविक विनिमय दर = e\(\frac { P_{ F } }{ P } \) = 4 × \(\frac{5}{0.2}\) = 20 × 5 = 100
वास्तविक विनिमय दर = 100

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प्रश्न 8.
यदि C = 0.5 एवं m = 0.2, बन्द व खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
1. बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.5}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = 2

2. खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5+0.2}\) = \(\frac{1}{0.7}\) = 1.42
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणम = 2
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.42

प्रश्न 9.
आपको नीचे एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र part - 1  img 11

उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 85 + 5(y – 50) + 60 + 85 + 90 – 0.05(y – 60)
= 85 + 5y – 25 + 60 + 85 + 90 – 0.5y + 30 = 325 + 0 = 325

(b) सरकारी घाटा = G – T = 85 – 50 = 35

(c) निर्यात शेष = X – M = 90 – 0.5 (325 – 60)
= 90 – 132.5 = -42.5
उत्तर:
(a) साम्य आय = 325
(b) सरकारी घाटा 335
(c) निर्यात शेष = – 42.5

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
केन्द्रीय दर से 25 प्र. श. ऊपर या नीचे विनिमय पट्टी पर चलन देश घाटे के प्रभाव को कम करते हैं यह तर्क संबंधित है –
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से
(B) कीनस के आय, रोजगार और मुद्रा सिद्धांत से
(C) रिकार्डो सिद्धांत से
(D) उपभोक्ता सिद्धांत से
उत्तर:
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से

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प्रश्न 2.
कुछ देश अपनी मुद्राओं को जोड़ते हैं –
(A) पौड़ से
(B) रुपये से
(C) येन से
(D) डालर से
उत्तर:
(D) डालर से

प्रश्न 3.
यूरोपियन मुद्रा संघ का गठन किया गया
(A) जनवरी 1999 में
(B) फरवरी 1999 में
(C) मार्च 1999 में
(D)अप्रैल 1999 में
उत्तर:
(A) जनवरी 1999 में

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प्रश्न 4.
यूरोप के देशों की सामान्य (common) मुद्रा है –
(A) डालर
(B) पौड़
(C) यूरो
(D) स्टर्लिंग
उत्तर:
(C) यूरो

प्रश्न 5.
25 में से 12 यूरोप के देशों के सदस्यों ने यूरो को स्वीकृत किया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1971 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में

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प्रश्न 6.
समग्र रूप से अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति की विशेषता है –
(A) वर्गीकृत पद्धति
(B) बहुविकल्पीय पद्धति
(C) पद्धतियों का योग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बहुविकल्पीय पद्धति

प्रश्न 7.
अर्जेन्टिना ने यूरो बोर्ड पद्धति को अपनाया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1996 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में

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प्रश्न 8.
एक बंद अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारूप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) Y = C + I + G

प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारुप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) Y = C + I + G + X – M

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प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक है –
(A) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\)
(B) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\)

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 3 Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया

Bihar Board Class 8 Social Science न्यायिक प्रक्रिया Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आपके अनुसार पुलिस के क्या-क्या काम होते हैं ? लिखकर या चित्र बनाकर बताइये।
उत्तर-
पुलिस का काम एफ आई आर दर्ज करना, मामले की छानबीन करना, गिरफ्तारी करना और गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत करना है । फिर अदालत में संबंधित मामले के लिए दोषी व्यक्ति के खिलाफ सबूत जुटाकर पेश करना होता है।

प्रश्न 2.
ग्राम कचहरी ने अपना फैसला अवधेश के पक्ष में क्यों सुनाया? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
ग्राम कचहरी ने अवधेश के जमीन के कागजात देखकर अवधेश की बात को सही माना । इसलिए ग्राम कचहरी ने अपना फैसला अवधेश के पक्ष में सुनाया।

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प्रश्न 3.
क्या विनोद को अवधेश की पिटाई करनी चाहिए थी ?
उत्तर-
नहीं। ऐसा कर विनोद ने अपराध किया और स्वयं को दंड का भागी बना लिया।

प्रश्न 4.
अगर विनोद ग्राम कचहरी के फैसले से संतुष्ट नहीं था तो उसे क्या करना चाहिए था ?
उत्तर-
तब विनोद को सत्र न्यायालय में अपना मामला लेकर जाना चाहिए था।

प्रश्न 5.
थाने में रिपोर्ट लिखवाना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
बिना थाने में रिपोर्ट लिखवाये पुलिस किसी प्रकार की मदद नहीं कर सकती । यह वैसा ही है जैसे ट्रेन में बैठने के लिए टिकट लेना होता है।

प्रश्न 6.
अगर आपके घर में चोरी हो जाये तो आप कैसे रिपोर्ट लिखवाएँगे? विवरण लिखिए।
उत्तर-
अगर हमारे घर में चोरी हो जाए तो हम थाने जाएँगे और थानेदार से एफ. आई. आर. लिखने को कहेंगे । फिर हम एफ. आई. आर. की नकल प्रति मांगेंगे । यदि थानेदार एफ. आई. आर. दर्ज न करे तो डाक या इंटरनेट के माध्यम से बड़े पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को एफ. आई. आर. दर्ज करवायेंगे।

प्रश्न 7.
एफ आई. आर. की कॉपी क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
अपने पास भी तो प्रमाण चाहिए कि हमने एफ. आई. आर. दर्ज करवाई है। क्या भरोसा, कॉपी (नकल) न लेने पर पुलिस एफ. आई. आर. को फाड़ दे या किसी के दबाव में उसमें फेर-बदल कर दें। इसलिए हमारे पास एफ. आई. आर. की कॉपी (नकल) होनी जरूरी है।

प्रश्न 8.
अगर कोई थानेदार आपकी एफ. आई. आर. दर्ज न करे तो आप क्या कर सकते हैं?
उत्तर-
अगर कोई थानेदार हमारी एफ. आई. आर. दर्ज न करे, तो हम डाक या इंटरनेट के माध्यम से पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को एफ. आई. आर. दर्ज करा सकते हैं।

प्रश्न 9.
एफ. आई. आर. की शिकायत के मामले में पुलिस छानबीन से क्या पता लगाने की कोशिश करती है ?
उत्तर-
पुलिस यह पता लगाती है कि एफ. आई. आर. में लिखाई गई बातें सत्य हैं या नहीं यानी जिस व्यक्ति को दोषी बताया गया है, वह वाकई में दोषी है भी या नहीं। कहीं एफ, आई. आर. में झूठी बात तो नहीं लिखाई गई। पुलिस यही सब छानबीन करती है।

प्रश्न 10.
मामले की छानबीन के लिए पुलिस को मार-पिटाई का प्रयोग क्यों – नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
ऐसा करना कानून के खिलाफ होता है। इसलिए मामले की छानबीन पुलिस को सभ्य तरीके से करना चाहिए न कि मार-पीट करके।

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प्रश्न 11.
किसी भी अपराधी द्वारा थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर उसे वहीं पर ही सजा क्यों नहीं सनाई जा सकती?
उत्तर-
मजिस्ट्रेट के सामने अपना जुर्म कबूल करने पर ही व्यक्ति को यानी दोषी को सजा हो सकती है। क्योंकि मजिस्ट्रेट के यहाँ मार-पीट नहीं होती और वह प्रथम न्यायाधीश होता है। जबकि पलिस तो मारपीट कर जबर्दस्ती भी किसी व्यक्ति से अपना जुर्म कबूल करवा सकती है । इसीलिए थाने में अपना जुर्म कबूल करने पर भी किसी अपराधी को वहीं सजा नहीं सुनाई जा सकती चूँकि सजा सुनाने का काम अदालत का है।

प्रश्न 12.
क्या छानबीन की प्रक्रिया को कोई व्यक्ति प्रभावित कर सकता है ? कैसे ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
पैसे के बल पर या उच्च राजनीतिक पहुँच के बल पर कोई समर्थ व्यक्ति पुलिसिया छानबीन की प्रक्रिया को आसानी से प्रभावित कर सकता है। पर, यदि पुलिस अधिकारी ईमानदार हो तो उसे प्रभावित करना इतना आसान नहीं होता।

प्रश्न 13.
जमानत का प्रावधान क्यों रखा गया है ?
उत्तर-
व्यक्ति अपने मामले का मुकदमा अदालत में खुद लड़ सके इसके लिए जमानत का प्रावधान रखा गया है।

प्रश्न 14.
इस कहानी में विनोद का जुर्म जमानती है या गैर-जमानती ?
उत्तर-
इस कहानी में विनोद का जुर्म जमानती है। क्योंकि उसका मुकदमा ‘फौजदारी मुकदमा’ था जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 326 के अंतर्गत आता है। यह मजिस्ट्रेट के ऊपर निर्भर है कि वह जमानत मंजूर करें या इनकार कर दें।

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प्रश्न 15.
चोरी, डकैती, कत्ल जैसे जुर्मों को गैर जमानती क्यों माना गया है ?
उत्तर-
ऐसे जर्मों से समाज की शांति और व्यवस्था भंग होती है इसलिए ऐसे जर्मों को गैर जमानती माना गया है।

प्रश्न 16.
आरोपी को आरोप पत्र की कॉपी मिलना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
आरोपी के पास भी इस बात की जानकारी होनी जरूरी है कि उसके खिलाफ पुलिस ने क्या अभियोग या इल्जाम लगाया है। साथ ही यह कि उसके विरुद्ध क्या जानकारी इकट्ठी की गई है जिससे कि वह अदालत में अपने पक्ष में बचाव कर सके । आरोपी को भी न्यायालय में अपना बचाव करने का कानूनी अधिकार है।

प्रश्न 17.
किसी भी मामले में दोनों पक्षों के वकील का होना क्यों आवश्यक
उत्तर-
ताकि दोनों पक्षों की दलील न्यायाधीश के सामने पेश हो पाये और उन्हें सुनकर न्यायाधीश को पूरे मामले की जानकारी हो पाए ।

प्रश्न 18.
किसी भी मुकदमे में गवाहों को पेश करना व उनसे पूछताछ करना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
मामले को पूरी तरह से अदालत में सच-सच सामने लाने के लिए किसी भी मुकदमे में गवाहों को पेश करना व उनसे पूछताछ करना जरूरी है।

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प्रश्न 19.
पुलिस और मजिस्ट्रेट के काम में क्या अंतर है ?
उत्तर-
पुलिस का काम मामले की छानबीन करना और गिरफ्तारी करना है जबकि मजिस्ट्रेट का काम फैसला सुनाना है।

प्रश्न 20.
अपील के प्रावधान का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
यदि किसी आरोपी को निचली अदालत के फैसले से असंतोष हो तो वह उच्च न्यायालय में फैसले के पुनर्निरीक्षण के लिए जा सके यही अपील के प्रावधान का उद्देश्य है।

प्रश्न 21.
ऊपर की अदालतों द्वारा अपील के मामले में दिये गये फैसले नीचे की अदालत को क्यों मानने पड़ते हैं ?
उत्तर-
यह संविधान का नियम है कि ऊपर की अदालतों द्वारा अपीलं के मामले में दिये गये फैसले नीचे की अदालत को मानने पड़ते हैं।

प्रश्न 22.
कई मुकदमे कई साल तक चलते हैं। ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर-
अदालतों में न्यायाधीश की कमी का होना और वकीलों द्वारा अपनी कमाई बढ़ाने के उद्देश्य से जान-बूझकर कागजी प्रक्रिया को लंबित किये रहना, कुछ कारण हैं जिससे कई मुकदमे कई साल तक चलते हैं।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
इस पाठ को पढ़ने के बाद क्या आपको न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष लगी? यदि हाँ तो उन बिन्दुओं की सूची बनाइये जिससे न्यायिक प्रकिया की निष्पक्षता का पता चलती है।
उत्तर-
हाँ, इस पाठ को पढ़ने के बाद मुझे न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष लगी। पाठ में विनोद और अवधेश के बीच विवाद का ब्यौरा दिया गया है। अवधेश ने जमीन के मामले में विनोद की पिटाई कर उसका हाथ तोड़ दिया । पुलिसिया कार्रवाई के बाद अवधेश को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया ।

प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट की कचहरी में उसकी पेशी हुई फिर कई पेशियों के बाद मजिस्ट्रेट ने अवधेश को विनोद की गंभीर पिटाई का दोषी मानकर उसे चार साल की कैद की सजा सुनाई।

विनोद ने अपने वकील की सलाह पर मजिस्ट्रेट के ऊपर के सत्र न्यायालय में अपील की जहाँ उसकी सजा चार साल से तीन साल कर दी गयी।

फिर इस फैसले से भी असंतुष्ट होकर विनोद ने उच्च न्यायालय में अपील की जहाँ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने सत्र न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा । अंत में विनोद को जेल जाना पड़ा। इस पूरे प्रकरण से न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता का पता चलता है।

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प्रश्न 2.
क्या च्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित किया जा सकता है? अपने उत्तर को कारण सहित लिखिए।
उत्तर-
हाँ, कई मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित किया जा सकता है। जैसे मान लिया कि किसी केन्द्रीय मंत्री का भाई किसी संगीन जुर्म में गिरफ्तार होकर अदालत के सामने लाया जाता है। मंत्री मामले से संबंधित न्यायाधीश को तरक्की का प्रलोभन देकर न्यायाधीश की निष्पक्षता को प्रभावित कर अपने भाई को बेगनाह साबित करवा लेता है। यह उदाहरण न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को प्रभावित करने का है।

प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर निम्नलिखित कामों के बारे में तालिका को पूरा कीजिये । आप यह भी बताइए कि न्याय दिलाने के मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका किसकी है और क्यों ?
दीवानी पुलिस
– प्रथम रिपोर्ट दर्ज करना
…………
…………
वकील
– अपने-अपने पक्ष में सबूत पेश करना व उनकी जांच-पड़ताल करना।
…………
…………
न्यायाधीश
– मुकदमे को सुनाना
…………
…………
उत्तर-
दीवानी पुलिस

  • प्रथम रिपोर्ट दर्ज (एफ. आई. आर०) करना
  • मामले की छानबीन करना
  • अभियुक्त को गिरफ्तार करना
  • आरोपी के खिलाफ सबूत जमा करना

वकील

  • अपने-अपने पक्ष में सबूत पेश करना व उनकी जांच-पड़ताल करना ।
  • अदालत में दलील पेश करना ।
  • अपने पक्ष का बचाव करना ।
  • अगली पेशी के लिए तारीख लेना।
  • अदालत में कागजी कार्रवाई को अंजाम देना।

न्यायाधीश

  • मुकदमे को सुनना।
  • गवाहों के बयान सुनना।
  • मुकदमे का अगली पेशी की तारीख देना।
  • पूरे गुकदमे को सुनकर अपना फैसला सुनाना ।

प्रश्न 4.
अध्याय में दी गयी जानकारी के आधार पर निम्न तालिका को भरिये।
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया 1
उत्तर-
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया 2

प्रश्न 5.
मान लें आप एक उच्च न्यायालय में न्यायाधीश हैं। न्याय देते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर-
एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होते हुए मैं इस बात का खास ध्यान रखूगा कि किसी बेगुनाह को सजा न मिले और कोई दोषी कानून की नजर से बचकर न निकल सके।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 6 न्यायिक प्रक्रिया

प्रश्न 6.
भारत में अपनायी जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया में क्या-क्या कमियाँ हैं ? इन कमियों को दूर करने के लिए क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर-
भारत में अपनायी जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया में कई कमियाँ हैं। उनमें से कुछ निम्नांकित हैं.

  1. अदालतों का जनसंख्या की बढ़ोतरी के हिसाब से बेहद कम होना।
  2. अदालत में न्यायाधीशों की कमी होना।
  3. कागजी प्रक्रिया बेहद जटिल होना।
  4. कानूनी प्रक्रिया बहुत खर्चीली होना।
  5. किसी मामले की सुनवाई होने और फैसला लेने की प्रक्रिया में बहुत ज्यादा समय लगना।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमान्त बचत प्रवृत्ति से सम्बन्धित है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय:
आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 1
MPC = \(\frac{∆c}{∆y}\)

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग सदैव एक (इकाई) के बराबर होता है।
MPC + MPS = 1
यदि किसी एक MPC (MPS) का मान दिया हो तो MPS (MPC) का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है। M यदि MPC या MPS में किसी एक का मूल्य घटता है तो दूसरे के मूल्य में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. नियोजित निवेश-यह वह निवेश होता है, जिसकी एक अर्थव्यवस्था एक लेखा वर्ष की अवधि के लिए योजना बनाती है। दूसरे शब्दों में अनुमानित निवेश को नियोजित निवेश कहते हैं। जबकि Ex post Investment (कार्योंत्तर निवेश) वह निवेश होता है, जिसे एक अर्थव्यवस्था एक वर्ष की अवधि में वास्तव में करती है।
  2. नियोजित पूर्णत:-अनुमानित या काल्पनिक विचार है, जबकि Expost Investment (कार्योत्तर निवेश) वास्तविक विचार है।
  3. नियोजित निवेश भावी संभावनाओं पर आधारित होता है, जबकि Expost Investment अर्थव्यवस्था में अनेक आर्थिक गतिविधियों का परिणाम होता है।

प्रश्न 3.
“किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट” से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है, जब इसकी –

  1. ढाल घटती है और
  2. इसके अंत: खंड में वृद्धि होती है

उत्तर:
b = ma + “प्रकार की समीकरण लीजिए जहाँ m > 0 जिसे रेखा/वक्र का ढाल कहते हैं” > 0 यह उर्द्धावाधर अक्ष का Intercept (भाग) होता है। जब a के मूल्य में 1 (इकाई) वृद्धि होती है तो b में m इकाई की बढ़ोतरी होती है। इन्हें रेखा के साथ चरों में संचरण कहते हैं। तथा m को रेखा के Parameter (स्थिरांक) कहते हैं।

जैसे m के मूल्य में वृद्धि होती है तो रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है। इसे रेखा Parametric Shift कहते हैं।

  1. यदि किसी धनात्मक रेखा का ढाल कम होता है तो रेखा नीचे की ओर खिसक जाती है।
  2. धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है यदि इसका Intercept (भाग) घटता है तो।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 4.
प्रभावी माँग क्या है? जब अन्तिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
यदि आपूर्ति लोच पूर्णतयाः लोचदार है तो दी गई कीमत पर उत्पाद का निर्धारण पूर्णतः सामूहिक माँग पर निर्भर करता है। इसे प्रभावी माँग कहते हैं। दी गई कीमत पर साम्य उत्पाद, सामूहिक माँग और ब्याज की दर का निर्धारण/गणना निम्नलिखित समीकरण से की जाती है –
y = AD
y = A + Cy
या y – Cy = A
या y (1 – C) = A
या y = \(\frac{A}{1-C}\)
y का मान A तथा C के मान पर निर्भर करता है।
या \(\frac{∆Y}{∆C}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 2

प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A)50 करोड़ रु. हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय (Y) का स्तर 4000.00 करोड़ रु. हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
A = 50 करोड़ रु.
MPS = 0.2
Y = 4000.00 करोड़ रु.
AD = A + CY
= 500 + (1-0.2) 4000.00
(c = 1 – MPS तथा Y का मान रखने पर)
= 500 + 0.8 × 4000.00
= 500 + 3200.00
= 3700.00 करोड़ रु.
अत: AD>Y (∵3700 < 4000)
अत: अर्थव्यवस्था सन्तुलन में नहीं है। यहाँ अभावी माँग या अधिशेष आपूर्ति की स्थिति है।

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प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बचत (मित्तव्ययता) का विरोधाभास यह बताता है कि यदि एक अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का अधिक भाग बचत करना आरम्भ कर देते हैं तो कुल बचत का स्तर या तो स्थिर रहेगा या कम हो जायेगा। दूसरे शब्दों में यदि अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का कम बचाना आरम्भ कर देते हैं तो अर्थव्यवस्था में कुल बचत का स्तर बढ़ जायेगा। इस बात को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यदि लोग ज्यादा मित्तव्ययी हो जाते हैं तो या तो वे अपने आय का पूर्व स्तर रखेंगे या उनकी आय का स्तर गिर जायेगा।

Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग माँग क्या होता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं द्वारा माँगी जाने वाली वह माँग जिन्हें परिवार खरीदने के लिए तैयार है और खरीदने की क्षमता रखते हैं। उपभोक्ता माँग कहलाती है। यह माँग कई कारकों से प्रभावित होती है जैसे वस्तु या सेवा की कीमत, आय, सम्पत्ति, प्रत्याशित आय, रुचि, पसंदगी आदि। कींस के अनुसार उपभोग माँग में वृद्धि हो जाती है यदि आय के स्तर में बढ़ोतरी होती है। कींस ने इसे उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम कहा है।

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ अर्थव्यवस्था की उस शाखा से हैं, जिसमें अर्थव्यवस्था का अध्ययन सम्पूर्ण रूप से किया जाता है। जैसे कुल माँग, कुल पूर्ति, रोजगार, आय, व्यय, बचत आदि।

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प्रश्न 3.
निवेश प्रेरणा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवेश प्रेरणा-निवेश में वृद्धि करने की प्रेरणा को निवेश प्रेरणा कहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करती है कि उद्यमियों को ब्याज दर की तुलना में निवेश पर किस दर से प्रतिफल मिलने की आशा है। निवेशकर्ता निवेश करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखता है कि उसे निवेश पर भविष्य में कितना लाभ प्राप्त होगा।

प्रश्न 4.
निवेश माँग फलन क्या है?
उत्तर:
निवेश माँग और ब्याज दर के सम्बन्ध में निवेश माँग को फलन कहते हैं। ब्याज दरें और निवेश माँग के बीच ऋणात्मक (-) सम्बन्ध होता है। अन्य शब्दों में, यदि ब्याज की दर उच्च हो तो निवेश माँग निम्न रह जाती है।

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प्रश्न 5.
समग्र माँग के घटक लिखिए।
उत्तर:
समग्र माँग के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. निजी निवेश।
  3. सार्वजनिक फलन तथा शुद्ध नियमित निर्यात-आयात।

प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-यह अवधारणा बचत में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को प्रकट करती है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है –
MPS = \(\frac{∆S}{∆Y}\)

प्रश्न 7.
निवेश को समझने के लिए किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:
निवेश को समझने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है –

  1. आगत
  2. लागत
  3. अपेक्षाएँ

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प्रश्न 8.
उपभोग के मनोवैज्ञानिक नियम को लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में भी बढ़ोतरी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई बढ़ोतरी से कम होती है। इसे कींस का मनोवैज्ञानिक नियम कहते हैं।

प्रश्न 9.
पूर्ण-रोजगार संतुलन का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
जब समग्र माँग (AD) तथा समग्र पूर्ति (AS) का सन्तुलन उस बिन्दु पर हो कि सभी साधनों को काम मिल जाये। पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक जितनी समग्र माँग की जरूरत है। समग्र माँग उतनी हो तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति-सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है कुल उपभोग में परिवर्तन तथा कुल आय में परिवर्तन का अनुपात। इस अवधारणा से यह ज्ञात किया जा सकता है कि लोग अपनी बढ़ी हुई आय का कितना भाग उपभोग पर व्यय करते हैं। MPC का मूल्य हमेशा शून्य तथा एक के बीच होता है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
∆C = उपभोग में परिवर्तन
∆Y = आय में परिवर्तन

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प्रश्न 11.
अतिरेक माँग क्या होती है?
उत्तर:
जब पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है तो उसे अतिरेक माँग कहते हैं।

प्रश्न 12.
बचत प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आय के विभिन्न स्तरों और बचत की विभिन्न मात्राओं के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध बताने वाली अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
[S = F (y)]

प्रश्न 13.
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो उसका आय और रोजगार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो आय और रोजगार में सन्तुलन की स्थिति होगी।

प्रश्न 14.
अवस्फीतिकारी अन्तराल का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
अवस्फीतिकारी अन्तराल वह स्थिति है, जब कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है। उत्पादन व रोजगार घटने लगता है, लोगों की क्रय शक्ति घट जाती है।

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प्रश्न 15.
किसी देश में पूर्ण-रोजगार आय का सन्तुलन स्तर कब प्राप्त होता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के लिए आवश्यक समग्र माँग और पूर्ण-रोजगार स्तर की पूर्ति के बराबर हो।
AS = AQ

प्रश्न 16.
बचत फलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बचत फलन-बचत फलन का अर्थ बचत तथा आय के सम्बन्ध से है । राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में भी बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 17.
समग्र पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
समग्र पूर्ति से आशय एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं के भौद्रिक मूल्य से है।
सामूहिक पूर्ति = उपभोग + बचत
AS = C + S

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प्रश्न 18.
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पूर्ण-रोजगार बिन्दु पर सामूहिक पूर्ति सामूहिक माँग से अधिक होती है।

प्रश्न 19.
अनैच्छिक बेरोजगारी का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अनैछिक बेरोजगारी का अर्थ एक ऐसी अवस्था जिसमें काम करने की इच्छा रखने वाले लोगों को प्रचलित मजदूरी की दर पर रोजगार प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 20.
माँग प्रबन्धन नीति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की बजाय सरकार द्वारा समग्र माँग में परिवर्तन के अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के प्रयास को माँग प्रबन्धन नीति कहते हैं।

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प्रश्न 21.
उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में वृद्धि भी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई वृद्धि से कम होती है।

प्रश्न 22.
उपभोग फलन को समझाइए।
उत्तर:
उपभोग और व्यय योग्य आय के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।
C = F (y)
C = उपभोग
F = फलन
y = आय

प्रश्न 23.
कुल माँग के मुख्य घटक बताइए। उत्तर-कुल माँग के मुख्य घटक निम्नलिखित है –

  1. उपभोग।
  2. निवेश।
  3. सरकारी व्यय।
  4. las farta [AD = C + I + G + (X – M)]

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प्रश्न 24.
अत्यधिक माँग (अतिरेक माँग) किस स्थिति में उत्पन्न होती है?
उत्तर:
जब वर्तमान माँग पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग, समग्र पूर्ति से अधिक हो जाती है तो अतिरेक माँग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 25.
सन्तुलन कितने प्रकार का हो सकता है?
उत्तर:
सन्तुलन निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन।
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन।

प्रश्न 26.
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र किसने बताया था तथा वह सूत्र क्या है?
उत्तर:
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र कीन्स ने बताया था। समग्र माँग में वृद्धि करके पूर्ण-रोजगार प्राप्त किया जा सकता है।

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प्रश्न 27.
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. जे. बी. से का बाजार नियम एवं
  2. मजदूरी कीमत नम्यता

प्रश्न 28.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग हमेशा एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया। क्योंकि आय का उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है।
∆C + ∆S = ∆Y
\(\frac{DC}{DY}\) + \(\frac{DS}{DY}\) = \(\frac{DX}{DY}\)
MPC + MPS = 1

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प्रश्न 29.
उपभोग फलन को समीकरण द्वारा व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
C = \(\bar { c } \) + by
\(\bar { c } \) > 0 = 0 < b < 1
C = उपभोग
\(\bar { c} \) = स्वायत्त उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
y = राष्ट्रीय आय

प्रश्न 30.
‘से’ के बाजार का नियम लिखिए।
उत्तर:
जे. ब. से के बाजार नियम के अनुसार “पूर्ति अपनी माँग का स्वयं निर्माण करती है।”

प्रश्न 31.
स्वायत्त उपभोग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग को स्वायत्त निवेश कहते हैं। स्वायत निवेश आय के शून्य स्तर पर भी होता है। स्वायत्त निवेश हमेशा धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 32.
अपबचत का अर्थ लिखें।
उत्तर:
यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। इसको अपबचत भी कहते हैं।

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प्रश्न 33.
सन्तुलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सन्तुलन अर्थव्यवस्था की वह अवस्था है, जिसमें किसी सामान्य कीमत पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति एक समान हो जाती है। सन्तुलन स्तर पर रोजगार के स्तर को सन्तुलन रोजगार कहते हैं।

प्रश्न 34.
समीकरण C =cY में निर्वहन उपभोग या न्यूनतम उपभोग स्तर जोड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ती है।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का स्तर शून्य होता है तो उपभोग का स्तर शून्य नहीं होता है लोग अपनी पुरानी बचतों या ऋण लेकर न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। इसलिए समीकरण C = cY निर्वहन उपभोग जोड़ने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 35.
अव्यवहारिक अथवा काल्पनिक विचार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0) = cY यह एक अव्यवहारिक उदाहरण है क्योंकि इसका अभिप्राय राष्ट्रीय आय शून्य तो उपभोग भी शून्य होगा। जबकि आय का स्तर शून्य होने पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है। निर्वहन उपभोग स्तर आय के शून्य स्तर पर भी पाया जाता है।

प्रश्न 36.
C = c (Y – 0) = cY, जहाँ c का अभिप्राय सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से है समीकरण का अभिप्राय स्पष्ट करो।
उत्तर:
इस समीकरण का अभिप्राय है यदि किसी विशिष्ट वर्ष में आय शून्य है तो अर्थव्यवस्था का उपभोग शून्य रहेगा अर्थात् अर्थव्यवस्था पूरे वर्ष भूखी रहेगी।

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प्रश्न 37.
निर्वहन उपभोग को शामिल किए बिना एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाला समीकरण लिखिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0)
= cY
जहाँ C कुल उपभोग, c सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा Y राष्ट्रीय आय

प्रश्न 38.
निर्वहन उपभोग को शामिल करके एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाले समीकरण को लिखिए।
उत्तर:
C = C’ + cY

प्रश्न 39.
C = C’ + cY एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग का समीकरण है। इस समीकरण में स्थिराँक मद को लिखिए।
उत्तर:
C’ स्थिराँक मद हैं इसे निर्वहन उपभोग (न्यूनतम उपभोग) भी कहते हैं। यह उपभोग स्तर अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर भी पाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मजदूरी-कीमत नभ्यता की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
मजदूरी-कीमत नभ्यता का आशय है कि मजदूरी व कीमत में लचीलापन। वस्तु-श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन होने पर मजदूरी दर व कीमत में स्वतन्त्र रूप से परिवर्तन को मजदूरी-कीमत नभ्यता कहा जाता है। श्रम बाजार में श्रम की मांग बढ़ने से मजदूरी दर बढ़ जाती है तथा श्रम की माँग कम होने से श्रम की मजदूरी दर कम हो जाती है। इसी प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत माँग कम होने से कीमत घट जाती है। मजदूरी-कीमत नम्यता के कारण श्रम एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलन बना रहता है।

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प्रश्न 2.
वास्तविक मजदूरी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रमिक अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाओं के प्रतिफल के रूप में कुल जितनी उपयोगिता प्राप्त कर सकते हैं उसे वास्तविक मजदूरी कहते हैं। दूसरे शब्दों में श्रमिक की अपनी आमदनी से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता को वास्तविक मजदूरी कहते हैं। वास्तविक मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की मौद्रिक मजदूरी एवं कीमत स्तर से होता है। वास्तविक मजदूरी एवं मौद्रिक मजदूरी में सीधा सम्बन्ध होता है अर्थात् ऊँची मौद्रिक मजदूरी दर पर वास्तविक मजदूरी अधिक होने की सम्भावना होती है। वास्तविक मजदूरी व कीमत स्तर में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत स्तर अधिक होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थात् वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही होता है। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
जे. बी. से के बाजार नियम एवं मजदूरी-कीमत नम्यता से मिलकर स्वचालित बाजार सन्तुलन की रचना होती है। दूसरे शब्दों में, लोचशील मजदूरी व कीमत के द्वारा श्रम बाजार एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलीन की अवस्था कायम रहती है। अस्थायी सन्तुलन मजदूरी व कीमत लोच के द्वारा ठीक हो जाता है। अर्थव्यवस्था हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही उत्पादन करती है। इसलिए प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति वक्र उत्पादन के पूर्ण-रोजगार स्तर पर ऊर्ध्व रेखा होती है। कीमत परिवर्तन का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। संक्षेप में, कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही रहता है।

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प्रश्न 4.
लोग काम करने को क्यों तैयार हो जाते हैं? जबकि काम करना कष्टप्रद होता है?
उत्तर:
प्रो. जे. बी. से का मानना था कि काम करने में लोगों को कष्ट होता है। अतः लोग काम के उद्देश्य से काम नहीं करते हैं। लोग काम करने के लिए इसलिए तैयार होते हैं क्योंकि काम के बदले उन्हें सन्तुष्टि प्राप्त होती है। काम करने के प्रतिफल के रूप में उन्हें नकद, किस्म या सामाजिक सुरक्षा के रूप से पारिश्रमिक प्राप्त होता है अर्थात् काम के बदले उन्हें उपभोग करने के लिए वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त होती है या उन्हें प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
मजदूरी दर की नम्यता श्रम बाजार को सन्तुलन में बनाए रखती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मजदूरी दर की नम्यता (लोचशीलता) के कारण श्रम की माँग व आपूर्ति सन्तुलन में रहती है। यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से अधिक होती है तो श्रम की मजदूरी दर में बढ़ोतरी हो जाती है। ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की माँग में कमी आ जाती है तो श्रम की आपूर्ति बढ़ जाती है। श्रम की मजदूरी दर में तब तक वृद्धि जारी रहती है जब तक पुनः श्रम की माँग एवं आपूर्ति दोनों समान नहीं होती है। इसके विपरीत यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से कम होती है तो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर कम हो जाती है। मजदूरी दर से कमी श्रम की माँग व पूर्ति में पुनः सन्तुलन स्थापित करती है।

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प्रश्न 6.
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना केन्जीयन संकल्पना से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना:
पुरानी विचारधारा के अनुसार समग्र आपूर्ति पर कीमत परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् समग्र पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है। समग्र आपूर्ति वक्र Y – अक्ष के समान्तर होती है। इस विचारधारा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार स्तर पाया जाता है।

समग्र आपूर्ति की केन्द्रीय संकल्पना:
कीन्स के अनुसार समग्र आपूर्ति पर सामान्य कीमत स्तर में परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। समग्र आपूर्ति पूर्णत: लोचशील होती है। कीमतों में बिना उतार-चढ़ाव के उत्पादन स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 3

प्रश्न 7.
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन एवं अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन में भेद कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग कर रही है तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन की अवस्था कहते हैं। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार सन्तुलन बना रहता है। इस अवस्था में समग्र माँग व आपूर्ति बराबर होती है। समग्र आपूर्ति हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर उत्पादन के बराबर होती है।

अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था समग्र माँग व आपूर्ति की सन्तुलन अवस्था में अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर रही है तो इसे अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं। कीन्स ने अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन के आधार पर ही आय एवं रोजगार सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।

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प्रश्न 8.
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी क्या दर्शाती है?
उत्तर:
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी उस स्थिति की ओर इशारा करती है, जिसमें कुछ लोग किसी कारणवश. एक काम को छोड़कर दूसरे काम की खोज करते हैं। नया रोजगार मिलने में कुछ समय लग सकता है। अत: किसी समय विशेष पर अर्थव्यवस्था में कुछ लोग बेरोजगार पाए जा सकते हैं। अतः प्रतिबन्धात्मक बेरोजगारी अस्थायी प्रकृति की होती है। इसे हल करने के लिए सरकार को अलग से प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है। स्थायी बेरोजगारी की तरह यह अर्थव्यवस्था के लिए गम्भीर समस्या नहीं होती है।

प्रश्न 9.
प्रतिष्ठित विचारधारा का काल एवं सन्तुलन के बारे में ‘से’ की विचारधारा समझाइए।
उत्तर:
18 वीं शताब्दी में एडम स्मिथ से लेकर 20 शताब्दी में पीगू तक के सभी अर्थशास्त्रियों के चिन्तन को प्रतिष्ठित विचारधारा कहते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रो. जे. एम. कीन्स से पूर्व की सभी अर्थशास्त्रियों की विचारधारा को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र कहते हैं। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ऐसा मानते थे कि अर्थव्यवस्था में सन्तुलन पूर्ण-रोजगार स्तर पर पाया जाता है। उनके इस मत का आधार जे. बी. से का बाजार नियम था। वे समग्र माँग के अभाव या अधिक्य को स्वीकार नहीं करते थे तथा अर्थव्यवस्था में वे बेरोजगारी की अवस्था को भी स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 10.
श्रम विभाजन व विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है?
उत्तर:
श्रम विभाजन एवं विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में लोग अभीष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं, जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

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प्रश्न 11.
कीमत नम्यता वस्तु बाजार में सन्तुलन कैसे बनाए रखती है?
उत्तर:
कीमत नम्यता (लोचशीलता) के कारण वस्तु व सेवा बाजार में सन्तुलन बना रहता है। यदि वस्तु की माँग, आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है अर्थात् अतिरेक माँग की स्थिति पैदा हो जाती तो वस्तु बाजार में कीमत का स्तर अधिक होने लगता है। कीमत के ऊँचे स्तर पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा उत्पादक वस्तु आपूर्ति अधिक मात्रा में करते हैं। वस्तु की कीमत में वृद्धि उस समय तक जारी रहती है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है। इसके विपरीत अभावी माँग की स्थिति में कीमत स्तर घटना शुरू हो जाता है। नीची कीमत पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत वस्तु की माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति कम करते हैं। माँग व पूर्ति में परिवर्तन उस समय तक कायम रहता है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है।

प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की परिभाषा करें।
उत्तर:
आय में एक इकाई बढ़ोतरी होने पर उपभोग में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 4
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 13.
व्यष्टि स्तर एवं समष्टि स्तर उपभोग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
व्यष्टि स्तर पर उपभोग उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है, जिन्हें विशिष्ट समय एवं विशिष्ट कीमत पर परिवार खरीदते हैं। व्यष्टि स्तर पर उपभोग वस्तु की कीमत आय एवं सम्पत्ति संभावित आय एवं परिवारों की रूचि अभिरूचियों पर निर्भर करता है। समष्टि स्तर पर केन्ज ने मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की रचना की है। केन्ज के अनुसार अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है लोग अपना उपभोग बढ़ाते हैं परन्तु उपभोग में वृद्धि की दर राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर से कम होती है। आय के शून्य स्तर पर स्वायत्त उपभोग किया जाता है। स्वायत्त उपभोग से ऊपर प्रेरित निवेश उपभोग प्रवृत्ति एवं राष्ट्रीय आय के स्तर से प्रभावित होता है।
C = C + by, जहाँ C उपभोग \(\bar { c } \) स्वायत्त निवेश
b सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, y राष्ट्रीय आय।

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प्रश्न 14.
मजदूरी अनम्यता (लोचहीनता) अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर तक मजदूरी पूर्णतया लोचशील रहती है। पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर पर पहुँचते ही मजदूरी दर बेलोच हो जाती है। पूर्ण-रोजगार स्तर पर सभी संसाधनों का चरम सीमा तक प्रयोग हो जाता है। अतः इससे आगे उत्पादन बढ़ाना सम्भव नहीं रहता है। इसके बाद पूर्ण-रोजगार प्राप्ति की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती है। यदि मजदूरी दर किसी ऐसे स्तर पर स्थिर हो जाती है, जहाँ श्रम की आपूर्ति, श्रम की माँग से ज्यादा होती है तो श्रम के आधिक्य के कारण अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है। श्रम की लोचहीनता श्रम की आपूर्ति की अधिकता को कम करने में बाधा पैदा करती है। अतः श्रम की अनम्यता पूर्ण-रोजगार स्तर की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

प्रश्न 15.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
यह सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. अर्थव्यवस्था पूंजीवादी है अर्थात् आर्थिक समस्याएँ कीमत तन्त्र के द्वारा हल की जाती है।
  2. सामान्य कीमत स्तर मजदूरी दर एवं ब्याज दर पूर्णत: लोचशील होती है।
  3. समग्र आपूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचविहीन होती है जबकि समग्र माँग कीमत के प्रति पूर्णलोचशील होती है।
  4. बचत एवं निवेश ब्याज सापेक्ष होते हैं।
  5. सरकारी हस्तक्षेप शून्य स्तर का होना चाहिए।

प्रश्न 16.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
उत्तर:
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त जिन मान्यताओं पर आधारित है, उसमें से ज्यादातर काल्पनिक है। इसकी प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित है –

  1. सभी अर्थव्यवस्थाएँ पूंजीवादी नहीं है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र के लिए निकाले गए निर्णयों को समष्टि अर्थशास्त्र पर लागू कर दिया जिससे वे महामंदी के चक्र को नहीं तोड़ पाए।
  3. समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचविहीन न होकर लोचशील होती है।
  4. बचत पूर्णतः ब्याज सापेक्ष नहीं होती है। बचत का स्तर आय के स्तर एवं उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है।
  5. निवेश का स्तर भी पूर्णतः ब्याज सापेक्ष न होकर पूंजी की सीमान्त कार्यक्षमता पर भी निर्भर रहता है।
  6. समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति के साम्य स्तर रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर न होकर सन्तुलन रोजगार स्तर कहलाता है। सन्तुलन रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार अथवा अपूर्ण-रोजगार स्तर भी हो सकता है।

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प्रश्न 17.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आय में परिवर्तन की वजह से बचत में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 5
MPS = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति, AC = बचत में परिवर्तन, AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से चित्र बनाकर सम बिन्दु, अपबचत एवं बचत को दर्शाइए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 6
उत्तर:
आय के 500 स्तर से पूर्व उपभोग, वक्र, 45° रेखा के ऊपर है अर्थात् व्यय, आय से अधिक है। अतः बिन्दु से नीचे अपबचत का क्षेत्र है। बिन्दु (E) पर आय व व्यय दोनों एक समान 500 है। अतः बिन्दु (E) सम बिन्दु है इस पर बचत व अपबचत दोनों शून्य है। बिन्दु (E) के बाद आय के 500 से ऊपर स्तर पर आय, व्यय से अधिक है। अत: इसके बाद बचत प्राप्त होती है।

प्रश्न 19.
अपबचत क्या है? यह उपभोग के लिए किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
अपबचत बचत की विपरीत प्रक्रिया है। अपबचत के द्वारा लोग व्यय की तुलना में आय की कमी को पूरा करके उपभोग स्तर को बनाए रखते हैं। अपबचत को ऋणात्मक बचत भी कहते हैं। यदि परिवारों का उपभोग व्यय आय से ज्यादा होता है तो व्यय को पूरा करने के लिए लोग पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं अथवा पुरानी परिसम्पत्तियों को बेचते हैं अथवा उधार लेते हैं। उपरोक्त एक या अधिक युक्ति का प्रयोग करके ही लोग उपभोग के लिए आवश्यक व्यवस्था कर पाते हैं। इस प्रकार अपबचत आय से अधिक उपभोग व्यय को पूरा करने के लिए वित्तीय साधन जुटाने में मदद करती है।

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प्रश्न 20.
उपभोग फलन के सम्बन्ध में किन दो बातों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर:
उपभोग फलन के बारे में निम्नलिखित दो बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. उपभोग का स्तर वैयक्तिक प्रयोज्य आय के स्तर पर निर्भर करता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष करों के भुगतान, दण्ड जुर्माना एवं सामाजिक सुरक्षा व्यय को घटाने पर प्राप्त होती है। उपभोग एवं वैयक्तिक प्रयोज्य आय का सीधा सम्बन्ध होता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग अधिक किया जाता है।

2. आय का स्तर शून्य होने पर लोग उपभोग के लिए पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं। जब तक आय, उपभोग से कम रहती है उपभोग के लिए पुरानी बचतों का ही प्रयोग किया जाता है। यह उपभोग जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग कहलाता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की सीमाओं का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की न्यूनतम एवं अधिकतम सीमाओं का निर्धारण उपभोग के मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की सहायता से होता है। इस नियम के आधार पर राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति भी शून्य नहीं होती है। दूसरे शब्दों में, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य से ज्यादा रहती है। आय के वृद्धि के साथ उपभोग में वृद्धि होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि दर आय में वृद्धि दर से कम होती है अर्थात् सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम रहती है। इन दोनों सीमाओं को मिलाकर हम कह सकते हैं कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान 0 व 1 के बीच में होता है।

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प्रश्न 22.
45° रेखा क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
अक्ष केन्द्र से 45° कोण पर खींची गई रेखा को 45° रेखा कहते हैं। दोनों अक्षों पर मापन का एक. समान पैमाना लिया जाता है। अत: 45° रेखा के प्रत्येक बिन्दु पर क्षैतिज एवं ऊर्ध्व अन्तर (राष्ट्रीय आय एवं उपभोग व्यय) बराबर रहते हैं। इस रेखा की सहायता से राष्ट्रीय आय एवं उपभोग की तुलना की जा सकती है। यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। जब उपभोग वक्र, 45° रेखा को काटता है तो आय व्यय दोनों एक समान होते हैं और यदि 45° रेखा उपभोग के ऊपर होती है तो उपभोग व्यय आय से कम होता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 7

प्रश्न 23.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से कम होती है तो इसे माँग का अभाव या अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। न्यून माँग की स्थिति में अवस्फीति अन्तराल उत्पन्न हो जाता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 8

चित्र में राष्ट्रीय आय के OY1 स्तर पर समग्र माँग = AY1
समग्र पूर्ति = BY1 समग्र माँग AY1 < समग्र पूर्ति BY1
माँग का अभाव = BY1 – AY1 = AB

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प्रश्न 24.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग सदैव एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया क्योंकि आय को उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है। गणितीय रूप में –
∆C + ∆S = ∆Y
\(\frac{∆C}{∆Y}\) + \(\frac{∆S}{∆Y}\) = \(\frac{∆Y}{∆Y}\) ∆Y से भाग देने पर
MPC + MPS = 1

प्रश्न 25.
औसत उपभोग प्रवृत्ति एवं औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए। इनका सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति-आय के किसी स्तर पर उपभोग एवं आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
औसत उपभोग प्रवृत्ति
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 9

औसत बचत प्रवृत्ति:
आय के किसी स्तर पर बचत एवं आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

औसत बचत प्रवृत्ति APS = बचत/आय = (S/Y)

APC तथा APS का योग सदैव एक के बराबर होता है क्योंकि आय का या तो उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है।
APC + APS = 1
C + S = Y
\(\frac{C}{Y}\) + \(\frac{S}{Y}\) = \(\frac{Y}{Y}\) Y से भाग करने पर
APC + APS = 1

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित आँकड़ों से APC एवं APS ज्ञात कीजिए।
आय (Y) 0 100 200 300 400 500 600 700 800 900
उपभोग (C) 100 190 270 360 450 540 630 720 810 900
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 10

प्रश्न 27.
स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
स्वायत्त निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के सभी स्तरों पर एक समान पाया जाता है स्वायत्त निवेश कहलाता है। स्वायत्त निवेश लाभ प्रेरित नहीं होता है। स्वायत्त निवेश को अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है। दीर्घकाल में जनसंख्या परिवर्तन एवं तकनीकी परिवर्तन के साथ ही इस निवेश में परिवर्तन सम्भव होता है। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी होता है। प्रेरित निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के भिन्न-भिन्न स्तरों पर अलग-अलग पाया जाता है प्रेरित निवेश कहलाता है। प्रेरित निवेश लाभ से प्रभावित होता है। लाभ अधिक होने पर यह निवेश ज्यादा किया जाता है। इस प्रकार का निवेश अल्पकाल में भी बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार के निवेश को माल तालिका निवेश भी कहते हैं। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर शून्य होता है।

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प्रश्न 28.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से अधिक होती है तो इसे माँग आधिक्य कहते हैं। माँग आधिक्य को अतिरेक माँग या अधिमाँग भी कहते हैं। माँग आधिक्य से स्फीति अन्तराल उत्पन्न होता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 11

चित्र में:
आय के OY1 स्तर पर
समग्र माँग = AY1
समग्र आपूर्ति = BY1
समग्र माँग AY1 समग्र आपूर्ति BY1
माँग आधिक्य = AY1 – BY1 = AB

प्रश्न 29.
सरकार क्षेत्र के समावेश से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सरकार क्षेत्र की अनुपस्थिति में समग्र माँग, उपभोग व निवेश के योग के समान होते हैं।
AD = C + 1
सरकार क्षेत्र के समावेश के बाद समग्र माँग की स्थिति बदल जाती है। सरकार जन कल्याण के लिए व्यय करती है। अतः सरकारी व्यय के कारण समग्र माँग का स्तर बढ़ जाता है। सरकारी व्यय को हम स्थिर मानते हैं। अत: नया समग्र माँग वक्र पूर्व समग्र के समान्तर होता है परन्तु उसकी स्थिति ऊपर की ओर होती है। सरकारी समावेश के बाद सरकार माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की स्थितियों से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे अभावी माँग की अवस्था सरकारी व्यय को बढ़ाकर प्रभावी माँग का स्तर ऊँचा किया जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में उत्पादक अधिक उत्पादन करने के लिए और अधिक संसाधनों को रोजगार प्रदान करते हैं। इस प्रकार सरकारी हस्तक्षेप से अर्थव्यवस्था अपूर्ण-रोजगार से उत्पन्न स्फीतिकारी प्रभावों को कम करने के लिए सरकारी व्यय कम करके प्रभावी माँग का स्तर घटाया जा सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 12

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प्रश्न 30.
समझाइए कि अधिक बचत कम बचत को कैसे जन्म देती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधनों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

प्रश्न 31.
समझाइए कि कम बचत से अधिक बचत कैसे हो जाती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डार स्तर वांछित स्तर में कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो जाती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

प्रश्न 32.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से अधिक हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत का स्तर प्रायोजित निवेश से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होगा कि परिवार उससे कहीं अधिक उपभोग से बचने का प्रयास कर रहे हैं, जितना कि निदेशक निवेश करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप बिना बिके हुए माल के स्टॉक में वृद्धि होगी अर्थात् उत्पादकों ने जो योजना बनाई थी वह पूरी नहीं होगी। बिना बिके माल को कम करने के लिए उत्पादक संसाधनों का कम प्रयोग करेंगे और सामान्य कीमत स्तर को भी कम करेंगे। इससे रोजगार उत्पादन, बचत और आय में कमी आएगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश के समान होगी।

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प्रश्न 33.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम होती है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार जितनी राशि बचा रहा है वह फर्मों के निवेश के लिए पर्याप्त नहीं होगी अर्थात् परिवार ज्यादा व्यय करना चाहते हैं। इससे उपलब्ध वस्तुओं के भण्डार में कमी आएगी। फर्मों का वास्तविक निवेश प्रायोजित निवेश से कम रह जायेगा। ये बाध्य होकर माल भण्डार के स्तर को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाएंगे। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार और आय के स्तर में वृद्धि होगी। आय के ऊँचे स्तर पर बचत करने की क्षमता बढ़ेगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक बचत और निवेश समान होंगे।

प्रश्न 34.
अधिमाँग का अर्थ बताओ। इसका उत्पादन, रोजगार व कीमत स्तर पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अधिमाँग-यदि पूर्ण-रोजगार स्तर पर नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। अधिमाँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर ऊँचा होता है परिणामस्वरूप उत्पादक को सम्भावित आय से अधिक आय प्राप्त होती है। इससे उत्पादन बढ़ना या न बढ़ना निम्न स्थितियों पर निर्भर करता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 13

1. यदि पर्ण-रोजगार स्तर. साम्य रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर नहीं बढ़ेगा। इसलिए उत्पादन का स्तर भी नहीं बढ़ेगा। इस स्थिति, में केवल कीमत स्तर में तीव्र वृद्धि होगी। कीमतों में तीव्र वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. यदि पूर्ण-रोजगार स्तर साम्य रोजगार स्तर से अधिक है, तो अधिक उत्पादन करने के लिए फर्म रोजगार की संख्या बढ़ा सकते हैं। इससे उत्पादन भी बढ़ेगा। इस स्थिति में उत्पादन, रोजगार व कीमत तीनों का स्तर ऊँचा होगा।

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प्रश्न 35.
अभावी माँग से क्या समझते हैं? इसके प्रभाव को चित्र द्वारा उत्पादन रोजगार और आय पर दर्शाइए।
उत्तर:
अभावी माँग-यदि अनुमानित सामूहिक उपभोग पूर्ण-रोजगार प्रदान करने वाला अनुमानित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इसे अभावी माँग कहते हैं। उत्पादन, रोजगार व आय पर प्रभाव-अभावी माँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर नीचे गिर जाता है। इससे उत्पादकों को अनुमानित आय से कम आय प्राप्त होती है। वे निरुत्साहित होते हैं और उत्पादन कम करने का निर्णय लेते हैं। उत्पादन स्तर घटाने के लिए उत्पादक कुछ उत्पादन साधनों को उत्पादन प्रक्रिया से हटा देते हैं। इस प्रकार सामान्य कीमत स्तर के साथ-साथ उत्पादन, रोजगार व आय सभी का स्तर गिर जाता है। गिरावट का यह चक्र अर्थव्यवस्था को आर्थिक मन्दी की
ओर धकेल सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 14

प्रश्न 36.
प्रोफेसर जे. एम. कीन्स के ‘मितव्ययिता के विरोधाभास’ की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक महामन्दी के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए जे. एम. कीन्स ने बचत का विरोध किया था। उससे अधिक उपभोग करने पर जोर दिया था क्योंकि अधिक बचत कम बचत को तथा कम बचत अधिक बचत को जन्म देती है। इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधानों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डारण स्तर वांछित स्तर से कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन, आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो सकती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

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प्रश्न 37.
स्थिर कीमत पर साम्य सामूहिक माँग के निर्धारक तत्त्व बताइए।
उत्तर:
स्थिर कीमत व व्याज दर पर साम्य सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
AS = AD
य Y = AD
य Y = A + CY
य (A = C + I)
य Y – CY = AY
य (1 – c) = A
य Y = \(\frac{A}{1-C}\)
Y का मान A तथा (के मान से निर्धारित होगा।
A = स्वायत्त उपभोग + स्वायत्त निवेश A का मान बढ़ने पर रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है।
C → रेखा का ढाल है इसमें वृद्धि से रेखा ऊपर की ओर झुक जाती है।

प्रश्न 38.
उदाहरण की सहायता से अधिमाँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान हो तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से ज्यादा हो तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं।
माना स्वायत्त उपभोग व्यय (C) = 50
स्वायत्त निवेश व्यय (I) = 20
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति = 0.8
नियोजित सामूहिक पूर्ति = 300
नियोजित सामूहिक माँग = C+ I + cY
= 350 + 20 + 0.8 × 300
= 70 + 240 = 310
सामूहिक माँग AD (310 रु.), सामूहिक पूर्ति AS (300 रु.) से अधिक है।

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प्रश्न 39.
एक उदाहरण की सहायता से अभावी माँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान है तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इस स्थिति को अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। माना स्वायत्त अन्तिम उपभोग 50 रु. है, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = 0.8 है तथा आय का स्तर 500 रु. है तब
सामूहिक माँग = C + I + cY
= 50 + 20 + 0.8 × 500
= 70 + 400 = 470 रु.
अर्थव्यवस्था अभावी माँग की स्थिति होगी क्योंकि साम्य अवस्था के लिए सामूहिक माँग का स्तर 500 रु. होना चाहिए।

प्रश्न 40.
Y = C+ I + cY समीकरण में समाशोधन कीजिए जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है।
उत्तर:
जब सरकार आर्थिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप नहीं करती है तो राष्ट्रीय आय एवं सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
Y = C + I + cY
Y = A+ cY
जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है तो वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय करके उपभोग माँग को बढ़ाती है दूसरी ओर सरकार जनता पर कर लगाकर प्रयोज्य आय को कम कर देती है। इस प्रकार से समाशोधित समीकरण निम्नलिखित होगा
Y = C + I + G + c (Y – T)

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प्रश्न 41.
b = ma + एक सीधी रेखा का समीकरण है। प्रयुक्त संकेताक्षरों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
b = ma एक सीधी रेखा का समीकरण है।
चर m का मान शून्य से अधिक है। इसे समीकरण का ढाल कहते हैं। (“) चार उर्ध्वाधर अक्ष का भाग है जिसे रेखा काटती है। जब a में एक (इकाई) वृद्धि होती है तो m का मान m इकाई बढ़ जाता है। इसे रेखा के साथ चरों का संचरण कहते हैं।

प्रश्न 42.
स्थिरॉक क्या करते हैं?
उत्तर:
समीकरण b = ma + “में m तथा” को रेखा के स्थिराँक कहते हैं। ये स्थिराँक चरों की भाँति अक्षों पर नहीं दर्शाए जाते हैं। लेकिन ये पर्दे के पीछे काम करते हैं और रेखा की स्थिति को नियंत्रित करते हैं। जैसे जब m का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर की ओर संचरित हो जाती है जिसे स्थिराँक खिसकाव कहते हैं। जब ” का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर (समान्तर) खिसक जाती है।

प्रश्न 43.
समीकरण Y = C + I + cY अथवा Y = A + CY क्या दर्शाता है?
उत्तर:
समीकरण Y = C + I + cY तथा Y = A + cY दर्शाता है –
बाँया पक्ष का चर Y अर्थव्यवस्था की पूर्व नियोजित आय या उत्पाद या सामूहिक पूर्ति को दर्शाता है। दाँया पक्ष C+ I + cY या A+ cY अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग को दर्शाता है सामूहिक माँग C + I या A भाग राष्ट्रीय आय से प्रभावित नहीं होता है जबकि cY भाग राष्ट्रीय आय में परिवर्तन या सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है। यदि अर्थव्यवस्था में नियोजित सामूहिक पूर्ति व नियोजित सामूहिक माँग दोनों समान होते हैं तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होगी।

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प्रश्न 44.
जब A तथा C के मान में वृद्धि होती है तो साम्य सामूहिक माँग तथा साम्य सामूहिक पूर्ति पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
जब अर्थव्यवस्था में स्वायत्त उपयोग A में बढ़ोतरी होती है तो साम्य सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति ऊपर की ओर खिसक जायेगी। स्वायत्त उपभोग में बढ़ोतरी होने से अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होगी। अधिमाँग की स्थिति अर्थव्यवस्था को पुनः सन्तुलन स्थापित करने की दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है। परिणामतः साम्य उत्पाद एवं सामूहिक माँग बढ़ जायेगी। इसे निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 15

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं –
1. राष्ट्रीय आय-जे. एम. कीन्स ने उपभोग प्रवृत्ति का सबसे प्रमुख निर्धारित तत्त्व आय को बताया है। आय के बढ़ने पर उपभोग बढ़ता है परन्तु आय के बढ़ने पर उपभोग प्रवृत्ति घटती है और आय के घटने पर वह घटता है।

2. आय का वितरण-धन के असमान रूप से वितरण होने पर समाज के धनी वर्ग की बचत क्षमता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घटती है। अतः उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि के लिए आय का समान वितरण आवश्यक है।

3. भावी परिवर्तन – भविष्य में होने वाली घटनाओं के प्रति अपेक्षाओं से भी उपभोग प्रवृत्ति प्रभावित होती है। यदि किसी युद्ध या अन्य प्रकार के संकट की सम्भावना हो तो लोग अधिक वस्तुओं का क्रय करेंगे और इससे उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।

4. साख की उपलब्धता-आजकल उपभोक्ताओं को किस्त व साख सुविधाएँ मिलने लगी है। उपभोक्ता नयी-नयी वस्तुओं जैसे मकान, कार आदि उधार क्रय करते हैं या साख सुविधा प्राप्त कर किस्तों में क्रय कर सकते हैं। जिससे उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती है।

5. ब्याज दर में परिवर्तन-यदि ब्याज में वृद्धि हो जाती है तो ऊँची ब्याज दर का लाभ उठाने के उद्देश्य से लोग उपभोग कम करके अधिक बचत करते हैं अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

6. कर नीति-यदि सरकार ज्यादा कर लगाती है तो प्रयोज्य आय कम हो जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा इसके विपरित यदि सरकार कम कर लगाती है तो प्रयोज्य आय बढ़ जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

7. लाभांश नीति-यदि निगम अथवा संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ अधिक धन सुरक्षित कोष में रखने का निर्णय लेती है अर्थात् अंशधारियों को कम राशि लाभांश के रूप में वितरित करती है तो लोगों को कम आय प्राप्त होगी और उपभोग कम होगा।

8. भविष्य में आय-परिवर्तन की सम्भावना-यदि भविष्य में लोगों को आय में बढ़ोतरी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत यदि भविष्य में लोगों को आय में कमी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 2.
आय एवं रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
आय एवं रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्तों में जे. बी. से का बाजार नियम सबसे प्रमुख है। से के नियम के अनुसार आपूर्ति अपनी माँग की स्वयं ही जननी होती है। दूसरे शब्दों में यदि उत्पादन हो तो उसके लिए बाजार भी पैदा हो जाता है। कीमत तन्त्र के सहारे चलने वाली अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन, बेरोजगारी एवं मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न नहीं होती है। यदि उपरोक्त कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तो लोचशील वस्तु की कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से स्वतः ही ठीक हो जाती है। अतः परम्परावादी सिद्धान्त में सरकारी हस्तक्षेप को नकारा गया है। मजदूरी-कीमत नम्यता मिलकर ऐसे स्वचालित बाजार प्रक्रिया की रचना करते हैं कि अर्थव्यवस्था में हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर उत्पादन होता है। वस्तु बाजार, श्रम बाजार एवं मुद्रा बाजार में सन्तुलन की प्रक्रिया निम्नलिखित ढंग से कायम रहती है।

1. वस्तु बाजार:
कीमत नम्यता के आधार पर वस्तु बाजार में सदैव संतुलन की स्थिति रहती है। आपूर्ति माँग की जननी होती है। उत्पादन से आय का सृजन होता है। सृजित आय उत्पादन साधनों को प्राप्त होती है। साधनों के स्वामी वस्तुओं की माँग करते हैं। यदि किसी समय समग्र आपूर्ति, समग्र माँग से अधिक हो जाती है तो कीमत नभ्यता के कारण वस्तुओं का साम्य कीमत स्तर गिर जाता है। अतः समग्र माँग बढ़ने लगती है। कीमत में परिवर्तन के कारण समग्र माँग में परिवर्तन उस स्थिति तक जारी रहता है जब तक समग्र माँग, समग्र आपूर्ति के बराबर होती है।

2. श्रम बाजार-से के अनुसार श्रम बाजार में सदैव पूर्ण-रोजगार की स्थिति पायी जाती है। यदि किसी समय अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न होती है तो मजदूरी सम्यता उसे स्वतः ठीक कर देती है। प्रचलित मजदूरी दर पर सबको काम मिल जाता है। बेरोजगारी की अवस्था में मजदूरी दर गिर जाती है। कम मजदूरी दर पर श्रम की माँग अधिक होती है। अत: उत्पादन उस बिन्दु पर होता है जहाँ विश्राम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।

3. मुद्रा बाजार-से के नियमानुसार मुद्रा की माँग एवं आपूर्ति दोनों ब्याज सापेक्ष होती है एवं दोनों सन्तुलन में होती है। मुद्रा की माँग निवेश के लिए की जाती है तथा मुद्रा की आपूत्ति बचत के द्वारी होती है। ब्याज दर बचत एवं निवेश को सन्तुलन में रखती है। संक्षेप में, अर्थव्यवस्था में सन्तुलन का निर्धारण लोचशील कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से होता है। कीमत-मजदूरी नम्यता के द्वारा स्वचालित सन्तुलन प्रक्रिया कायम रहती है।

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प्रश्न 3.
अधिमाँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय उपाय-नीति कहते हैं। माँग आधिक्य को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। अधिक माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से कम करके समग्र माँग के स्तर को कम कर सकती है। यदि सरकारी व्यय को जन कल्याण की भावना से कम करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को बढ़ने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। अधिमाँग की अवस्था में सरकार कठोर कर नीति बना सकती है। कठोर नीति में सरकार ऊँचे कर लगाती है। कर की ऊँची दर पर लोगों
की प्रयोज्य आय कम हो जाती है। प्रयोज्य आय घटने से लोगों का उपभोग कम हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए सरकार कठोर मजदूरी नीति बनाकर अनावश्यक रूप से मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ाने पर रोक लगा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात:
आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। अधिमाँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को बढ़ाने के लिए कठोर निर्यात नीति एवं उदार आयात नीति बना सकती है।

5. उत्पादन नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार फर्मों को पंजीकरण, लाइसेंस, आर्थिक अनुदान आदि प्रदान करती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की समग्र आपूर्ति को बढ़ाने के लिए सरकार उदार उत्पादन नीति बनाकर पंजीकरण, लाइसेंसिग आदि में छूट देकर उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

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प्रश्न 4.
अधिमाँग का अर्थ बताइए। इसे ठीक करने के मौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से ज्यादा होती है तो इसे अधिमांग या माँग आधिक्य कहते हैं। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीतियाँ कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित हैं –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस दर पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर ऊँची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना महंगा हो जाता है। अत: कम साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घट जाती है और उपभोग का स्तर कम हो जाता है। समग्र माँग का आधिक्य कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात CRR की दर को बढ़ा सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद राशि कम रह जाएगी और कम साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग कम होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का आधिक्य कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की मांग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग आधिक्य को कम करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को ऊँची कर सकता है। व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता घट जाएगी। कम साख की वजह से उपभोग का स्तर घटेगा और माँग आधिक्य का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंक को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह व्यापारिक बैंकों से केन्द्रीय बैंक की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता घट जाती है। परिवारों का उपभोग भी कम हो जाता है। इस प्रकार माँग आधिक्य पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख की राशनिंग-केन्द्रीय बैंक यदि व्यापारिक बैंकों की साख सृजन की उच्च सीमा तय कर देता है तो इसे साख की राशनिंग कहते हैं। साख राशनिंग होने से व्यापारिक बैंक निश्चित सीमा से अधिक साख का सृजन नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार परिवारों का उपभोग भी नियंत्रण में रहता है। माँग आधिक्य बेकाबू नहीं हो पाता है।

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प्रश्न 5.
न्यून माँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय नीति कहते हैं। माँग न्यूनता को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से अधिक करके समग्र माँग के स्तर को बढ़ा सकती है। यदि सरकारी व्यय को जनकल्याण की भावना से अधिक करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को घटने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। न्यून माँग की अवस्था में सरकार उदार कर नीति बना सकती है। उदार नीति में सरकार नीचे कर लगाती है। कर की नीचि दर पर लोगों की प्रयोज्य आय अधिक हो जाती है। प्रयोज्य आय बढ़ने से लोगों का उपभोग अधिक हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए सरकार उदार मजदूरी नीति बनाकर मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात-आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है। इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को घटाने के लिए उदार निर्यात नीति एवं कठोर आयात नीति बना सकती है।

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प्रश्न 6.
न्यून माँग का अर्थ बताएँ। इसे ठीक करने के पौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से कम होती है तो इसे न्यून माँग या माँग अभाव कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीति कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित है –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर को नीची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना सस्ता हो जाता है। अतः ज्यादा साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है और उपभोग का स्तर अधिक हो जाता है। समग्र माँग का अभाव कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात (CRR) की दर को कम कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद् राशि बढ़ जाएगी और वे अधिक साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग अधिक होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का अभाव कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की माँग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग अभाव को अधिक करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को नीची कर सकता है। इससे व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता बढ़ जाएगी। अधिक साख की वजह से उपभोग का स्तर बढ़ेगा। माँग अभाव का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंकों को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह केन्द्रीय बैंक से व्यापारिक बैंकों की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है। परिवारों का उपभोग की अधिक हो सकता है। इस प्रकार माँग न्यूनता पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख को प्रोत्साहन-माँग अभाव से मुक्ति पाने के लिए केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अधिक से अधिक साख सृजन करने के निदेश देने के अलावा अधिक साख सृजन करने वाले बैंकों को पुरस्कृत भी कर सकता है। अधिक साख से उपभोग में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 7.
आय एवं रोजगार का केन्जीयन सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
केन्जीयन सिद्धान्त में आपूर्ति को सामान्य कीमत स्तर के प्रति लोचशील माना गया है। जे. एम. कीन्स का लोचशील आपूर्ति विचार मजदूरी-कीमत लोचहीनता एवं श्रम की स्थिर सीमान्त उत्पादकता पर आश्रित है। बेलोच मजदूरी दर तथा स्थिर सीमान्त उत्पादकता के ही कारण कीमत में लोचहीनता उत्पन्न होती है। प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत एक समान रहती है। यह लागत अतिरिक्त श्रम की संख्या एवं मजदूरी दर के गुणनफले के समान होती है।

इसलिए कीमतों में कोई परिवर्तन किए बगैर उत्पादन पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है। पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त होने के बाद उत्पादन में बढ़ोतरी की तमाम उम्मीद खत्म हो जाती है। क्योंकि पूर्ण-रोजगार स्तर पर अर्थव्यवस्था सभी संसाधनों की चरम सीमा का प्रयोग करती है। मजदूरी अन्म्यता पूर्ण-रोजगार प्राप्ति में बाधक होती है। यदि मजदूरी ऐसी अवस्था में जड़ हो जाती है जहाँ श्रम की आपूर्ति माँग से अधिक होती है तो अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है।

अर्थव्यवस्था में सन्तुलन उस अवस्था में होता है जब किसी सामान्य कीमत स्तर पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति दोनों बराबर होती है। वह सामान्य कीमत स्तर, सन्तुलन कीमत स्तर एवं सन्तुलन बिन्दु पर रोजगार स्तर, सन्तुलन रोजगार कहलाता है। सन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन

1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
सन्तुलन की इस अवस्था में सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का विदोहन होता है। इसलिए इस स्तर की प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन की मात्रा को नहीं बढ़ाया जा सकता है। केवल सामान्य कीमत स्तर तेजी से बढ़ता है। सामान्य कीमत स्तर में तीव्र, वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
इस स्थिति में अर्थव्यवस्था सभी साधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर पाती है। कुछ साधन बिना प्रयोग या अधूरे प्रयोग के कारण बेकार पड़े रहते हैं। कीन्स साधनों की बेकारी का कारण समग्र माँग के अभाव को मानते हैं। प्रभावी माँग का स्तर बढ़ाने से सामान्य कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। कीन्स के प्रतिमान में समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचशील होती है। अतः कीमत स्तर बढ़ने पर उत्पादक अधिक आपूर्ति करने के लिए संसाधनों का नियोजन बढ़ाते हैं। अतः माँग प्रबन्धन नीति के माध्यम से सरकार प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर तक ले जा सकती है। चित्र में-सन्तुलन बिन्दु E पर
प्रभावी माँग = EY
सन्तुलन रोजगार = ON1
प्रभावी माँग का बढ़ा हुआ स्तर = E1Y1
सन्तुलन रोजगार = ON1
ON1 > ON
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 16

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प्रश्न 8.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त तथा केन्ज (कीन्स) के सिद्धान्त में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 17

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 9.
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति के द्वारा आय, उत्पादन एवं रोजगार का निर्धारण किस प्रकार होता है। समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर पर सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित माँग के योग को समग्र माँग (AD) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित आपूर्ति को समग्र आपूर्ति (AS) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय होगी जब (AD) व (AS) दोनों एक समान होंगे। दूसरे शब्दों में, जब उपभोक्ता एवं निवेश वस्तुओं एवं सेवाओं की उतनी मात्रा खरीदने के लिए तैयार है जितनी सभी उत्पादक पैदा करते हैं। इसके अलावा सन्तुलन की कोई स्थिति नहीं हो सकती है। आय व रोजगार के जिस स्तर पर (AD) व (AS) समान होते हैं उसे सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं सन्तुलन रोजगार कहते हैं। इस सन्तुलन को निम्न अनुसूची एवं चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 18

तालिका में सन्तुलन राष्ट्रीय आय = 80
क्योंकि इस स्तर पर (AD) = (AS) = 80
चित्र में बिन्दु E सन्तुलन बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर AD = AS
इस बिन्दु पर सन्तुलन आय = OY
सन्तुलन आय/रोजगार = ON
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 19

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 10.
माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है?
उत्तर:
माँग अभाव:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तरीय समग्र आपूर्ति सक कम होती है तो इसे माँग अभाव कहते हैं। इसमें सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है और उत्पादकों के पास बिना बिके माल का भण्डार अधिक होने लगता है। अत: कम उत्पादन करने के लिए वे संसाधनों को रोजगार से हटाने लगते हैं। अर्थव्यवस्था बेरोजगारी एवं आर्थिक मंदी से जूझने लगती है। इस समस्या का निराकरण प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर किया जा सकता है। सरकार आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करके समग्र माँग को बढ़ाती है। समग्र माँग को बढ़ाने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों में सरकार सार्वजनिक व्यय को बढ़ा सकती है अथवा कर कम करके लोगों की प्रयोज्य आय को बढ़ा सकती है।

प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग ज्यादा किया जा सकता है। सरकार मौद्रिक उपायों जैसे बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि के माध्यम से अधिक साख का सृजन करके उपभोग को बढ़ा सकती है। माँग आधिक्य-यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय समन आपूर्ति से अधिक होती है तो माँग आधिक्य कहते हैं। इसके स्फीतिकारी प्रभाव होते हैं। स्फीतिकारी प्रभावों पर लगाम कसने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों के माध्यम से सरकार सार्वजनिक व्यय को घटा सकती है अथवा करों की दर बढ़ा कर लोगों की प्रयोज्य आय कम कर सकती है अथवा दोनों उपायों का प्रयोग कर माँग आधिक्य में कमी ला सकती है। माँग आधिक्य को कम करने के लिए या अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में बनाये रखने के लिए केन्द्रीय बैंक, बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि उपायों के माध्यम से साख सृजन को घटा सकता है। कम साख पर उपभोग कम किया जाता है।

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प्रश्न 11.
साम्य राष्ट्रीय आय एवं रोजगार निर्धारण की वैकल्पिक विधि समझाइए अथवा, बचत एवं निवेश के द्वारा सन्तुलन आय एवं रोजगार का निर्धारण बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में बचत फलन का प्रत्येक बिन्दु राष्ट्रीय आय के विशेष स्तर पर वांछित बचत योजनाओं को प्रदर्शित करता है। उपभोग एवं बचत का योग राष्ट्रीय आय के समान होता है। दूसरे शब्दों में, उपभोग एवं बचत एक-दूसरे के पूरक हैं। निवेश माँग मुख्य रूप से ब्याज दर से तय होती है। परन्तु हम अपने प्रतिमान में ब्याज दर नहीं दिखा रहे हैं। यह मान रहे हैं कि उत्पादन एवं आय स्तर का निर्धारण निवेश के द्वारा होता है। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय उत्पन्न होगी जब परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजनाओं के समान होगी।

उत्पादन के जिस स्तर पर परिवारों की बचत योजनाओं एवं निवेश योजनाएँ समान होती है। वह सन्तुलन उत्पादन, सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का सन्तुलन स्तर होता है क्योंकि यदि परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजना से मेल खाती है तो उनकी योजनाएँ सफल होती है। दोनों पक्ष उसी तरह काम करेंगे जैसे काम कर रहे थे। बचत एवं निवेश की असमानता में सन्तुलन कायम नहीं हो सकता है। निवेश एवं बचत के द्वारा साम्य को निम्न तालिका एवं चित्र में भी दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 20

तालिका में राष्ट्रीय आय के 80 स्तर पर
बचत = निवेश = 20
अतः सन्तुलित राष्ट्रीय/आय = 80 चित्र में बिन्दु E पर
प्रायोजित बचत = प्रायोजित निवेश
S = I
अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 21

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 12.
निवेश गुणक का अर्थ बताएँ। गुणक सिद्धान्त की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में निवेश में परिवर्तन के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में परिवर्तन एवं निवेश में परिवर्तन के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 22
K = \(\frac{∆Y}{∆I}\)

निवेश में परिवर्तन के कारण राष्ट्रीय आय में परिवर्तन की दर को निवेश गुणक कहते हैं। निवेश गुणक सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. जे. एम. कीन्स ने किया था । गुणक सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति द्वारा किया गया व्यय अन्य लोगों की आमदनी बनता है। इस सिद्धान्त में आय एवं रोजगार का स्तर बढ़ाने के लिए मितव्ययिता का विरोध किया गया है। निवेश गुणक की क्रिया को काल्पनिक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है।

माना अर्थव्यवस्था 100 करोड़ अतिरिक्त निवेश करती है। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। 100 करोड़ निवेश का अर्थ होगा कि पूंजीगत वस्तु बेचने वालों को 100 करोड़ रुपये की आय प्राप्त होगी। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 होने के कारण वे 80 करोड़ रुपये व्यय करेंगे। इससे वस्तुएँ एवं सेवाएँ बेचने वालों को 80 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। उपभोग प्रवृत्ति के आधार पर वे 64 करोड़ खर्च करेंगे। यह क्रम चलता रहेगा और अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का सृजन होगा। इस प्रक्रिया को निम्न तालिका के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 23

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यदि आय 600 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये हो जाती है और बचत का स्तर 200 रुपये से बढ़कर 500 रुपये हो जाता है; तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर:
आय में परिवर्तन = 1000 – 600 रुपये = 400 रुपये
बचत में परिवर्तन = 500 – 200 रुपये = 300 रुपये
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 24

प्रश्न 2.
प्रश्न संख्या 1 के आँकड़ों का प्रयोग करके सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
आय = 600 रुपये, बचत = 200 रुपये
उपभोग = 600 – 200 रुपये = 400 रुपये
आय = 1000 रुपये, बचत = 500 रुपये
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 25

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 26
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 27

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से समग्र माँग अनुसूची एवं समग्र माँग वक्र बनाएँ। समग्र माँग अनुसूची (करोड़ रु. में)Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 28

उत्तर:
अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, उपभोग माँग और निवेश माँग के जोड़ के बराबर होती है। इसलिए उपभोग मांग अनुसूची और निवेश माँग अनुसूची को जोड़कर समग्र माँग अनुसूची प्राप्त हो जाती है। इसे निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 29

समग्र माँग अनुसूची से बनाया गया रेखाचित्र समग्र माँग वक्र कहलाता है या समग्र माँग वक्र को उपभोग माँग वक्र एवं निवेश माँग वक्र को जोड़कर भी बनाया जा सकता है। इसे रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 30

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 5.
यदि कोई अर्थव्यवस्था 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश करती है और अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 9 है, तो निम्नलिखित की गणना करें –

  1. निवेश गुणांक
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 31

= \(\frac{1}{1-MPC}\) = \(\frac{1}{1-9}\) = \(\frac{1}{1}\) = \(\frac{10}{1}\) = 10

2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि = निवेश गुणांक × निवेश वृद्धि
∆Y = K × AI = 10 × 500 = 5000 करोड़ रु.
निवेश गुणांक (K) = 10; राष्ट्रीय आय में वृद्धि (∆Y) = 5000 करोड़ रु.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित बचत फलन और तालिका से सन्तुलन राष्ट्रीय आय का स्तर बताइए।
बचत फलन -S = -1000 + 5Y
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 33

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 7.
निम्नलिखित उपभोग फलन और तालिका से सन्तुलन उत्पादन स्तर बताइए। उपभोग फलन – C = 1000 + 5Y
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 34
उत्तर:
उत्पादन स्तर का निर्धारण –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 35
उपरोक्त तालिका में सन्तुलन उत्पादन स्तर 2500 होगा, क्योंकि इस स्तर पर समग्र माँग समग्र आपूर्ति के बराबर है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 36
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 37

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा, यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.2 है –
(A) 0.8
(B) 0.7
(C) 0.6
(D) 0.4
उत्तर:
(A) 0.8

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 2.
The General Theory of Employment, interest and Money 7140 y Fitch लिखी है –
(A) रिकार्डो ने
(B) जे. एम. कीन्स ने
(C) जे. बी. से. ने
(D) मार्शल ने।
उत्तर:
(B) जे. एम. कीन्स ने

प्रश्न 3.
एक निश्चित समयावधि में अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को कहते हैं –
(A) समग्र माँग
(B) समग्र पूर्ति
(C) समग्र निवेश
(D) समग्र ब्याज
उत्तर:
(B) समग्र पूर्ति

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था में उस समय सन्तुलन अवस्था होगी –
(A) पूर्ति के बराबर होगी
(B) पूर्ति से अधिक होगी
(C) पूर्ति के कम होगी।
(D) पूर्ति से कोई संबंध नहीं होगा
उत्तर:
(A) पूर्ति के बराबर होगी

प्रश्न 5.
आय के सन्तुलन स्तर पर –
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं
(B) बचत निवेश से कम होती है
(C) बचत निवेश से अधिक होती है
(D) बचत का निवेश से कोई सम्बन्ध नहीं है
उत्तर:
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 6.
समग्र माँग –
(A) उपभोग माँग + निवेश
(B) उपभोग माँग × निवेश माँग
(C) उपभोग माँग + निवेश माँग
(D)Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 38
उत्तर:
(A) उपभोग माँग + निवेश

प्रश्न 7.
यह समग्र माँग का घटक नहीं है –
(A) निजी उपभोग माँग
(B) निजी निवेश माँग
(C) शुद्ध निर्यात
(D) कुल लाभ
उत्तर:
(D) कुल लाभ

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 8.
बाजार का नियम प्रस्तुत किया –
(A) जे. बी. क्लार्क ने
(B) जे. बी. से. ने
(C) जे. एम. कीन्स ने
(D) ए. सी. पीगू ने
उत्तर:
(B) जे. बी. से. ने

प्रश्न 9.
जे. बी. से. का बाजार नियम लागू होता है –
(A) वस्तु विनिमय पर
(B) मुद्रा विनिमय पर
(C) उपर्युक्त दोनों पर
(D) किसी पर नहीं।
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों पर

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 10.
कीन्स के अनुसार बेरोजगारी दूर की जा सकती है –
(A) समग्र माँग बढ़ाकर
(B) समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(C) समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(D) किसी पर नहीं
उत्तर:
(A) समग्र माँग बढ़ाकर

प्रश्न 11.
एक धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर समान्तर खिसक जाती है यदि –
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है
(B) ढाल में वृद्धि होती है
(C) Intercept (भाग) घट जाता है
(D) ढाल कम हो जाता है
उत्तर:
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है

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प्रश्न 12.
दी गई कीमतों पर साम्य उत्पादन का निर्धारण पूर्णतः निर्धारित होगा –
(A) सामूहिक पूर्ति से
(B) सामूहिक माँग से
(C) A तथा B दोनों से
(D) इनमें किसी से नहीं
उत्तर:
(C) A तथा B दोनों से

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में कीमतों को बदलने में समय लगता है –
(A) अधिशेष आपूर्ति की प्रतिक्रिया में
(B) अधिशेष माँग की तुलना में
(C) A या B
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) A या B

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 14.
एक व्यक्तिगत उत्पादक –
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है
(B) कीमत निर्धारक होता है
(C) कीमत स्वीकारक व निर्धारक दोनों होता है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है

प्रश्न 15.
जब एक अर्थव्यवस्था में सभी बाजारों में समायोजन असफल हो जाता है, तो कीमतों में परिवर्तित होता है –
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति
(B) सरकार द्वारा अधिशेष करों का आरोपण करने पर
(C) सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देने पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 16.
अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का नियोजित उत्पादन समान होता है –
(A) नियोजित निवेश
(B) नियोजित बचत
(C) नियोजित ब्याज
(D) नियोजित माँग
उत्तर:
(D) नियोजित माँग

प्रश्न 17.
नियोजित सामूहिक माँग यदि उत्पादन से कम होती है, तो यह स्थिति होती है –
(A) अधिशेष आपूर्ति
(B) अधिशेष माँग
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति
उत्तर:
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 18.
Y + A + cY समीकरण का हल है –
(A) A = Y (1 – c)
(B) A = Y-A/Y
(C) Y = A/1 – C
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) Y = A/1 – C

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है, जब –
(A) स्वायत्त उत्पादन में वृद्धि होती है
(B) स्वायत्त ब्याज बढ़ता है
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 20.
उत्पाद गुणक होता है –
(A) \(\frac{∆A}{∆Y}\)
(B) \(\frac{∆C}{∆Y}\)
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\)
(D) \(\frac{∆I}{∆C}\)
उत्तर:
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\)

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Bihar Board Class 12 Economics मुद्रा और बैंकिंग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
वस्तु विनिमय वह प्रणाली होती है जिसमें वस्तुओं व सेवाओं का विनिमय एक-दूसरे के लिए किया जाता है उसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

वस्तु विनिमय की कमियाँ –

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापन करने के लिए एक सामान्य इकाई का अभाव। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में लेखे की कोई सामान्य इकाई नहीं होती है।
  2. दोहरे संयोग का अभाव-यह बड़ा ही विरला अवसर होगा जब एक वस्तु या सेवा के मालिक को दूसरी वस्तु या सेवा का ऐसा मालिक मिलेगा कि पहला मालिक जो देना चाहता है और बदले में लेना चाहता है दूसरा मालिक वही लेना व देना चाहता है।
  3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई-वस्तु विनिमय में भविष्य के लिए निर्धारित सौदों का निपटारा करने में कठिनाई आती है। इसका मतलब है वस्तु के संबंध में, इसकी गुणवत्ता व मात्रा आदि के बारे में दोनों पक्षों में असहमति हो सकती है।
  4. मूल्य के संग्रहण की कठिनाई-क्रय शक्ति के भण्डारण का कोई ठोस उपाय वस्तु विनिमय प्रणाली में नहीं होता है क्योंकि सभी वस्तुओं में समय के साथ घिसावट होती है तथा उनमें तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण निम्न स्तर का होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है?
उत्तर:
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. मूल्य की इकाई
  2. विनिमय का माध्यम
  3. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मानक
  4. मूल्य का संचय

मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कमियाँ निम्न प्रकार से दूर हो जाती है –

  1. विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग को तलाशने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। दोहरे संयोग को तलाशने में प्रयुक्त ऊर्जा व समय की बचत होती है।
  2. लेखे की इकाई के रूप में मुद्रा का प्रयोग होने पर वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को मापने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  3. मूल्य संचय के लिए मुद्रा के प्रयोग से धन व संपत्ति संग्रह करने में कठिनाई समाप्त हो जाती है। मुद्रा में घिसावट नहीं होती है। मुद्रा में तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण उच्च स्तरीय होता है।
  4. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मुद्रा का प्रयोग करने से मात्रा, गुणवत्ता आदि के संबंध में कोई असहमति नहीं होती है।

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प्रश्न 3.
संव्यवहार के लिए मुद्रा की मांग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग-रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और सतत् विनिमय के लिए मुद्रा की मांग को लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग कहते हैं। मुद्रा की मांग और लेन-देन के मूल्य में संबंध सामान्य रूप मे एक अर्थव्यवस्था में लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग का समीकरण है –
\(M_{t}^{d}\) = KT अथवा \(\frac{1}{k}\) \(M_{t}^{d}\) = T
अथवा V.\(M_{t}^{d}\) = T
जहाँ V = \(\frac{1}{k}\) प्रवाह का वेग
T ⇒ मुद्रा की मांग का प्रवाह चर
V. \(M_{t}^{d}\) ⇒ निश्चित समय बिन्दु पर इच्छुक लोगों द्वारा संग्रह की गई मुद्रा का स्टॉक चर समय की माप का प्रयोग होता है। इसका अभिप्राय है इकाई समयावधि में मुद्रा की विभिन्न हाथों में मुद्रा की हस्तांतरणीयता की आवृत्ति।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु. के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है । यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?
उत्तर:
माना बाँड की कीमत = x
तब x\((1+\frac { r }{ 100 } )^{ 2 }\) = 500; x \((1+\frac { 5 }{ 100 } )^{ 2 }\) = 500
x\((1+\frac { 1 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500; x \((1+\frac { 21 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500
x\((1+\frac { 1 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500; x\(\frac{21}{20}\)2 = 500
x. \(\frac{441}{400}\) = 500; x = \(\frac{500×400}{441}\) = 453.51
उत्तर:
बाँड की कीमत = 453.51

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 5.
मुद्रा की सट्टा मांग और ब्याज की दर में विलोभ संबंध क्यों होता है?
उत्तर:
एक व्यक्ति भूमि, बाँडस, मुद्रा आदि के रूप में धन को धारण कर सकता है। अर्थव्यवस्था में लेन-देन एवं सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग का ब्याज की दर के साथ उल्टा संबंध होता है। जब ब्याज की दर ऊँची होती है तब सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऊँची ब्याज पर सुरक्षित आय बढ़ने की आशा हो जाती है। परिणामस्वरूप लोग सट्टा उद्देश्य के लिए जमा की गई मुद्रा की निकासी करके उसे बाँडस खरीदने पर लगाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति सट्टा उद्देश्य के लिए नियोजित मुद्रा को बाँडस में परिवर्तित करने की इच्छा करने लगता है। इसके विपरीत जब ब्याज दर घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती है तो लोग सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग असीमित रूप से बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 6.
तरलता पाश क्या है?
उत्तर:
तरलता पाश वह स्थिति होती है जहाँ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पूर्णतया लोचदार हो जाती है। तरलता पाश की स्थिति में ब्याज दर बिना बढ़ाये या घटाये अतिरिक्त अन्तः क्षेपित मुद्रा का प्रयोग कर लिया जाता है।

प्रश्न 7.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?
उत्तर:
एक निश्चित सयम बिन्दु पर जनता के बीच प्रवाहित मुद्रा स्टॉक को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की आपूर्ति को निम्नलिखित चार विकल्पों के रूप में परिभाषित करता है –
M1 ⇒ जनता के पास मुद्रा (नोट + सिक्के) + व्यापारिक बैंकों के पास शुद्ध जमाएं
M2 ⇒ M1 + डाकघर बचत खाते में जमाएं
M3 ⇒ M1 + व्यापारिक के पास शुद्ध समय जमाएं
M4 ⇒ M3 + डाकघर संगठन की सभी जमाएं (राष्ट्रीय बचत-पत्र को छोड़कर)

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प्रश्न 8.
वैधानिक पत्र क्या है? कागजी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
करेन्सी नोट एवं सिक्के के मूल्य का निर्धारण मुद्रा जारी करने वाली सत्ता द्वारा दी जाने वाली गारंटी के आधार पर होता है। इस प्रकार जारी किए गए नोटों एवं सिक्कों को कानूनी/वैधानिक मुद्रा कहते हैं। वह मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उनके निहित (वास्तविक मूल्य) से अधिक होता है उसे फ्लैट मुद्रा भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?
उत्तर:
एक देश की मौद्रिक सत्ता के कुल दायित्त्व को मौद्रिक आधार अथवा ‘हाइ-पावरड मनी’ कहते हैं। भारत में RBI मौद्रिक आधार है। इसमें जनता के पास प्रवाह में करेन्सी नोटस एवं सिक्के, एवं व्यापारिक बैंक के पास नकद कोष तथा सरकार एवं व्यापारिक द्वारा RBI के पास जमा करायी गई राशि।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के कार्य नीचे लिखे गए हैं –
1. जनता से जमाएं स्वीकार करना-व्यावसायिक बैंक तीन प्रकार की जमाएं जनता से स्वीकार करता है:

  • चालू खाते में जमाएं स्वीकार करना
  • सावधि जमा खाते में जमाएं स्वीकार करना
  • बचत बैंक खाते में जमाएं स्वीकार करना

2. ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित प्रकार के ऋण एवं अग्रिम जनता को प्रदान करता है।

  • नकद साख
  • मांग ऋण
  • अल्पकालीन ऋण आदि

3. बैंक के अभिकर्ता के रूप में कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य अभिकर्ता के रूप में करता है।

  • फंड्स का हस्तांतरण
  • फंडस् का संग्रह
  • विभिन्न मदों का भुगतान
  • लाभांश का संग्रह
  • संपत्ति का ट्रस्टी एवं कार्यापालक आदि

4. विदेशी व्यापार को वित्त प्रदान करना।

5. तरलता की आपूर्ति करना।

6. सामान्य उपयोगी सेवाएं प्रदान करना।\

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प्रश्न 11.
मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किस अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?
उत्तर:
मुद्रा गुणक को मुद्रा स्टॉक तथा हाई पावर्ड मनी (आधार मुद्रा) के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 part - 1 उत्पादन तथा लागत img 1
मुद्रा गुणक का मूल्य सामान्यतः 1 से अधिक होता है।
मुद्रा गुणक ज्ञात करने की विधि –
मुद्रा की आपूर्ति = मुद्रा + जमाएं
M = Cu + DD = (1 + Cdr) DD
Cdr = Cu/DD

माना सरकार की ट्रेजरी जमाएं शून्य हैं –
आधार मुद्रा = जनता के पास मुद्रा + व्यापारिक बैंकों के आरक्षित कोष बैकों के आरक्षित कोष में नकद कोष तथा व्यापारिक बैंकों की RBI के साथ जमाएं शामिल की जाती है –
H = Cu + R = Cdr DD + rdr DD
= (Cdr + rdr) DD
मुद्रा गुणक = M/H
= \(\frac{(1+Cdr)DD}{(Cdr+rdr)DD}\) = \(\frac{1+Cdr}{Cdr+rdr}\)
इसका मूल्य इकाई से अधिक होगा क्योंकि rdr का मान 1 से कम होता है।
अत: 1 + Cdr > Cdr + rdr

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प्रश्न 12.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण –
1. खुले बाजार की क्रियाएं:
अर्थव्यवस्था आधार मुद्रा (High Powered Money) के स्टॉक को बढ़ाने अथवा घटाने के लिए रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को आम जनता को बेचता है अथवा उससे क्रय करता है। प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

2. बैंक दर:
बैंक दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करके उनका निपटारा करता है।

3. परिवर्तित आरक्षित आवश्यकताएँ:
न्यूनतम आरक्षित जमा अनुपात (CRR) अथवा संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) की ऊँची या नीची दर से केन्द्रीय बैंक की आधार मुद्रा प्रभावित है। इनकी दर बढ़ाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं इनकी दर घटाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है।

सामान्यतः भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा सृजन के उपकरणों का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा भण्डार को स्थिर करने के लिए करता है। इनके माध्यम से केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था विदेशी प्रतिकूल प्रभावों से बचाकर स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 13.
क्या आप जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं?
उत्तर:
गुणित जमा विस्तार एवं साख सृजन का अभिप्राय संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली से है। सभी बैंक सामूहिक आधार पर मांग जमाएं सृजित करते हैं और आरंभिक जमा से कई गुना साख सृजन करते हैं। मुद्रा सृजन की प्रक्रिया को नीचे समझाया गया है।

मुद्रा की वह मात्रा जिसे बैंक सुरक्षित रूप से आधार दे सकता है अधिशेष आरक्षित कोष कहलाती है। माना एक व्यक्ति 1000 रु. मूल्य का एक चैक, बैंक A में जमा करवाता है। बैंक A की मांग जमा 1000 रु. है। न्यूनतम आरक्षित कोष (CRR) अनुपात 10% की स्थिति में यह बैंक 1000 का 10% अर्थात् 100 रु. CRR के रूप में अपने पास नकद कोष रखेगा तथा शेष 900 रु. ऋण देने में प्रयोग कर सकता है। वह बैंक ऋणी के नाम से अपनी शाखा में बचत खाता खोलेगा। इस प्रकार बैंक के मांग जमा खाते में अधिक राशि जमा हो जायेगी। अर्थात् ऋण देकर बैंक मांग जमाओं का सृजन करता है। मांग जमाओं के द्वारा मुद्रा सृजन में वृद्धि होती है। मृदा सृजन बैंक की एक सतत् प्रक्रिया है। इस बात को नीचे तालिका में तथा गया है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 part - 1 उत्पादन तथा लागत img 2

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प्रश्न 14.
भारतीय रिजर्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। आपदा अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में यह व्यापारिक बैंकों के साथ खड़ा होता है। और ऋणों का विस्तार करता है ताकि व्यापारिक बैंकों की प्रतिष्ठा बची रहे। गारंटी की पद्धति व्यक्तिगत खातेदार को आश्वस्त करती है कि विपदा के समय बैंक उसकी मुद्रा का वापिस भुगतान करने में समर्थ होगा और इस बारे में चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की यह भूमिका उसे अन्तिम ऋणदाता बनाती है।

Bihar Board Class 12th Economics मुद्रा और बैंकिंग Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मुद्रा का एक प्रमुख कार्य लिखो।
उत्तर:
मुद्रा का प्रमुख कार्य विनिमय का माध्यम है। विनिमय माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है।

प्रश्न 2.
‘मुद्रा विकल्पों की धारक है। इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा विकल्पों की धारक है इसका अभिप्राय है कि यह धारक को चयन करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसका सर्वोत्तम विकल्प का चयन कर सकता है तथा अवांछनीय वस्तुओं एवं सेवाओं को स्वीकार करने की मजबूरी समाप्त हो जाती है।

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प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य –

  1. जनता से जमाएं स्वीकर करना।
  2. जनता को ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रणाली की सर्वोच्च संस्था को केन्द्रीय बैंक कहते हैं। केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति बनाता है और उसका क्रियान्वयन करवाता है। यह ऋणदाताओं का अन्तिम आश्रयदाता होता है।

प्रश्न 5.
खुले बाजार की क्रियाओं का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंकों को बेचना अथवा उनसे वापिस खरीदने की क्रियाओं को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

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प्रश्न 6.
नकद जमा अनुपात (CRR) का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह दर जिस पर व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंकों के पास जमा करवाना पड़ता है उसे नकद जमा अनुपात (CRR) कहते हैं।

प्रश्न 7.
संवैधानिक तरलता अनुपात का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह दर जिस पर व्यापारिक बैंकों की मांग जमाओ की मांग को पूरा करने के लिए न्यूनतम आरक्षित नकद कोष रखना पड़ता है उसे बैंक दर कहते हैं ।

प्रश्न 8.
वैधानिक या कानूनी मुद्रा होती है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो सरकार के आदेश पर जारी की जाती है उसे वैधानिक कानूनी मुद्रा कहते हैं। कानूनी मुद्रा की स्वीकार्यता के बारे में किसी को कोई सन्दर्भ नहीं होता है।

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प्रश्न 9.
कानूनी दायित्व अथवा फीयट मनी (Fiat Money) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सरकार के आदेश पर जारी की गई मुद्रा कानूनी दायित्व धारण करती है। इसके माध्यम से सभी प्रकार के ऋणों को चुकाया जा सकता है। यदि कोई इस मुद्रा को स्वीकार करने से मना कर देता है तो उसको बदले में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 10.
‘मूल्य संग्रह के रूप में मुद्रा’ के आश्य को स्पष्ट करो।
उत्तर:
मुद्रा का धारक कहीं भी किसी भी समय वांछित वस्तु अथवा सेवा को क्रय कर सकता है क्योंकि मुद्रा में कानूनी स्वीकार्यता गण विद्यमन होता है। इसलिए मुद्रा में मूल्य संग्रह की क्षमता/धारणीयता होती है।

प्रश्न 11.
पूर्णकाय मुद्रा की परिभाषा लिखो। अथवा संपूर्ण मूर्ति मान मुद्रा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
पूर्णकाय मुद्रा वह है जिसका गैर आर्थिक मूल्य मुद्रा के मूल्य के समान होता है। अथवा वह मुद्रा जिसका अंकित और वास्तविक मूल्य दोनों एक-समान होते हैं पूर्णकाय मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 12.
बैंक दर क्या होती है?
उत्तर:
वह दर जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करने उनका निपटारा करता है।

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प्रश्न 13.
साख का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
किसी दूसरे व्यक्ति, फर्म, बैंक अथवा संगठन आदि को ऋण या वित्त उपलब्ध कराना साख कहलाता है।

प्रश्न 14.
बैंक किस प्रकार व्यावसायिक समुदाय की मदद करती हैं?
उत्तर:
बैंक आर्थिक क्रियाओं के मामले में विशेषज्ञ होते हैं। बैंक वित्त संबंधी सूचनाओं को एकत्रित करते हैं और उन्हें अपने ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।

प्रश्न 15.
व्यापारिक बैंक द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को मुद्रा (कोष) हस्तांतरित करने की विधि लिखो।
उत्तर:
बैंक ड्रॉफ्ट के माध्यमों से कोष हस्तांतरित एक स्थान से दूसरे स्थान किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापारिक बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कहते हैं।

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प्रश्न 17.
व्यापारिक बैंक का अर्थ लिखो।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करता है। व्यापारिक जमाएं स्वीकार करते हैं तथा जनता को उधार देकर साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 18.
मांग जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता अपनी सुविधा अनुसार कभी भी मांग सकता है मांग जमाएं कहलाती है। व्यापारिक बैंकों में बचत बैंक खाते तथा चालू खाते की जमाओं को मांग जमा कहते हैं।

प्रश्न 19.
समय जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता किसी निश्चित समय अवधि के लिए व्यापारिक बैंकों में जमा करवाते हैं उन्हें समय जमा कहते हैं। जैसे समयावधि खाते में जमाएं, आवृत्ति जमाएं। इन जमाओं की राशि समय अवधि पूर्ण होने पर ही ब्याज सहित निकाली जा सकती है।

प्रश्न 20.
ओवर ड्राफ्ट का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह सुविधा जिसके द्वारा खातेदार जमा करवायी राशि से अधिक निकासी कर सकता है उसे ओवर ड्रॉफ्ट की सुविधा कहते हैं।

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प्रश्न 21.
ऋण व अग्रिम का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऋणी को बैंक द्वारा प्रदत्त ऋण या अग्रिम से अभिप्राय, निश्चित मात्रा में उसके खाते में हस्तांतरित की गई राशि से है जिसे ऋणी अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग में ला सकता है।

प्रश्न 22.
भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए कौन उत्तरदायी होता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक व्यापारिक मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 23.
व्यापारिक बैंक के साथ जमा करायी जाने वाली दो प्रकार की बचतों के नाम लिखो।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक के साथ/पास जमा करायी जाने वाली दो बचते हैं –

  1. मांग जमाएं एवं
  2. समय जमाएं

प्रश्न 24.
मुद्रा की आपूर्ति में किसको शामिल किया जाता है?
उत्तर:
मुद्रा की आपूर्ति में करेंसी नोटस्, सिक्कों व साख को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 25.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं उन्हें लिखो।
उत्तर:
जिन दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं वे हैं –

  1. दैनिक लेन-देन के लिए
  2. सट्टा उद्देश्य के लिए

प्रश्न 26.
प्राथमिक जमा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
लोगों द्वारा बैंक में जमा करायी गई नकद राशि को प्राथमिक जमा कहते हैं।

प्रश्न 27.
द्वितीयक जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जब बैंक ऋणी को नकद ऋण देने के बजाय, ग्राहक के खाते में राशि जमा करवाता है इसे द्वितीयक जमा कहते हैं।

प्रश्न 28.
नकद जमा अनुपात व साख गुणक का संबंध लिखिए।
उत्तर:
नकद जमा अनुपात तथा साख गुणक में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 29.
भारतीय अर्थव्यवस्था के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखो।
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक हमारी अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक है।

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प्रश्न 30.
साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में क्या संबंध है?
उत्तर:
साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 31.
क्या वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन है?
उत्तर:
नहीं, वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन नहीं है।

प्रश्न 32.
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का मौद्रिक मूल्य उसमें निहित वस्तु के मूल्य के समान होता है। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान मौद्रिक प्रयोग मान के समान ही होता है। उदाहरण के लिए बहुमूल्य धातुएं सोने व चाँदी के सिक्के। पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का चलन पुराने समय में किया जाता था। आजकल ऐसी मुद्राओं का चलन लगभग बन्द है।

प्रश्न 33.
विनिमय के माध्यम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय के माध्यम से अभिप्राय है कि मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है तथा दूसरी वस्तुओं को खरीदता है इस लेन-देन में मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।

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प्रश्न 34.
विदेशी/बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति कौन संरक्षित करता है?
उत्तर:
(RBI) भारतीय रिजर्व बैंक बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति को संरक्षित करता है।

प्रश्न 35.
वस्तु विनिमय प्रणाली का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
यदि वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन मुद्रा के बिना वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले होता है तो इसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग परंपरागत अर्थव्यवस्थाओं में किया जाता था। ऐसी अर्थव्यस्थाओं को वस्तु-वस्तु अर्थव्यस्था कहते हैं।

प्रश्न 36.
मुद्रा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा की निम्नलिखित दो परिभाषाएं दी जा सकती है –

  1. कानूनी परिभाषा-ऐसी कोई भी वस्तु मुद्रा हो सकती है जिसको कानून द्वारा मुद्रा घोषित कर दिया जाता है।
  2. कार्यात्मक परिभाषा-ऐसी वस्तु जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के माप, मूल्य के संचय एवं स्थगित भुगतान के मान का कार्य करती है, मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 37.
मुद्रा के कार्य लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं –

  1. मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।
  2. मुद्रा मूल्य के माप का कार्य करती है।
  3. मुद्रा स्थगित भुगतानों का माप है।
  4. मुद्रा से मूल्य का संचय होता है।

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प्रश्न 38.
वाणिज्य बैंक का आशय लिखिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करते हैं। इन्हें मिश्रित पूंजी वाले बैंक कहते हैं। ये मुद्रा व साख में लेन-देन करते हैं।

प्रश्न 39.
वस्तु विनिमय प्रणाली में ‘प्रतीक्षा की अनुपयोगिता’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त व्यक्ति जो वस्तु को खरीदने के लिए सहमत हो जो आप बेचना चाहते हैं और उस वस्तु को बेचना चाहते हो जिसे आप खरीदने के लिए तैयार हैं। ऐसे उपयुक्त व्यक्ति को तलाशने में प्रतीक्षा करनी पड़ती है, प्रतीक्षा में असुविधा उत्पन्न होती है। असुविधा में अनुपयोगिता छिपी होती है।

प्रश्न 40.
वस्तु विनिमय में अन्वेषण की लागत लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसे विकल्प की तलाश होती है जिसमें एक व्यक्ति की जरूरत की वस्तु दूसरे व्यक्ति के पास होती है तथा दूसरे व्यक्ति की जरूरत की वस्तु पहले व्यक्ति के पास है। ऐसे विकल्प को तलाशने में समय एवं ऊर्जा दोनों खर्च होते हैं। इसी को अन्वेषण की लागत कहते हैं।

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प्रश्न 41.
साख मुद्रा को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
ऐसी मुद्रा का मौद्रिक मूल्य इसमें निहित वस्तु मूल्य से अधिक होता है। अन्य शब्दों का इस मुद्रा पर अंकित मूल्य उस वस्तु के मूल्य से अधिक होता है, जिससे यह वस्तु बनायी जाती है। साख मुद्रा निम्न प्रकार की होती है –

  1. सांकेतिक सिक्के
  2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा
  3. केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी/प्रचलित नोट
  4. बैंकों के पास जमाएं

प्रश्न 42.
विनिमय के रूप में मुद्रा की परिभाषा का आधार बताइए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की अव्यवहारिकता एवं अप्रभाव के कारण मुद्रा की खोज विनिमय की जरूरत को पूरा करने के लिए की गई थी। इसलिए मुद्रा की परिभाषा ऐसी वस्तु के रूप में की जाती है।

प्रश्न 43.
वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था की अवधारणा लिखिए।
उत्तर:
वह अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से होता है, वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था कहलाती है। वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तु प्रणाली काम करती है।

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प्रश्न 44.
नकद कोष अनुपात का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बैंक कुल जमा राशि में से कुछ भाग अपने पास नकद कोष के रूप में रख लेते हैं ताकि उससे जमाकर्ताओं की आवश्यकता को पूरा कर सकें। कुल जमा का जो अनुपात बैंक अपने पास नकदी के रूप में रखते हैं, उसे नकद कोष अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 45.
प्राथमिक जमा व गौण जमा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
जो धनराशि बैंकों में नकदी के रूप में लोगों द्वारा जमा करायी जाती है, उसे ही प्राथमिक जमा कहते हैं। जब बैंक नकदी में उधार न देकर ऋणी के नाम खाता खोल कर उसमें जमा कर देते हैं तो इसे गौण जमाएं कहते हैं।

प्रश्न 46.
साख का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति, फर्म या बैंक किसी अन्य व्यक्ति फर्म या बैंक को उधार या वित्त प्रदान करता है तो वह साख कहलाती है।

प्रश्न 47.
बैंक किस तरह व्यापारियों की सहायता करते हैं?
उत्तर:
बैंक आर्थिक स्थिति में परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों में सलाह देते हैं।

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प्रश्न 48.
चालू जमा व समय अवधि जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
चालू खाते में जमा रकम जमाकर्ता द्वारा मांग करने पर तुरन्त भुगतान करना पड़ता है। बैंकों में ऐसी जमा जिसकी अवधि जितनी लम्बी होती है ब्याज पर भी उतनी ही अधिक होती है।

प्रश्न 49.
नकद साख से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस ऋण के अन्तर्गत बैंक उधार लेने वाले व्यक्ति के नाम खाता खोला जाता है और उस खाते में मुद्रा की एक निश्चित मात्रा जमा कर देता है। व्यक्ति आवश्यकतानुसार इसमें से मुद्रा निकाल सकता है।

प्रश्न 50.
ओवर ड्रॉफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
जो ग्राहक बैंक में चालू खाता रखते हैं आवश्यकता पड़ने पर जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की अनुमति बैंक से प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न 51.
ऋण तथा अग्रिम का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ये ऋण एक निश्चित राशि के रूप में दिए जाते हैं। बैंक इस ऋण राशि को नकदी में न देकर ऋणी के नाम खाता खोल देता है। ऋणी कभी भी इसमें से रूपया निकाल सकता है।

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प्रश्न 52.
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बैंक जब सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदते हैं तो यह भी सरकार को उधार देने की एक विधि है। बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपये भेजने की व्यवस्था बैंक ड्राफ्ट द्वारा की जाती है।

प्रश्न 53.
दोहरे संयोग की आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रायः विभिन्न लोग आपस में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का लेन-देन करते हैं। अतः किसी एक व्यक्ति की वस्तु दूसरे व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है तथा दूसरे व्यक्ति की वस्तु पहले व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है।

प्रश्न 54.
साख मुद्रा के रूप लिखिए।
उत्तर:
साख मुद्रा के निम्नलिखित रूप हैं –

  1. प्रतीक सिक्के
  2. प्रतिनिधि प्रतीक सिक्के
  3. केन्द्रीय बैंक के प्रोनोट नोटों का प्रचलन
  4. बैंक की माँग जमाए

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प्रश्न 55.
मुद्रा के सहायक कार्य लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. स्थगित भुगतानों का मान
  2. मूल्य का संचय
  3. मूल्य का हस्तांतरण

प्रश्न 56.
मुद्रा के प्रमुख कार्यों की सूची बनाइए।
उत्तर:
मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. विनिमय का माध्यम
  2. मूल्य की इकाई अथवा मूल्य का मापदण्ड

प्रश्न 57.
मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में क्या-क्या शामिल किया जात है?
उत्तर:
मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में मुद्रा परिसपंत्तियों एवं निकट मुद्रा परिसंपत्तियों को शामिल किया जाता है।
मुद्रा = मौद्रिक परिसंपत्तियां + निकट मौद्रिक परिसंपत्तियां

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प्रश्न 58.
करेन्सी मुद्रा एवं बैंक मुद्रा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
करेन्सी मुद्रा:
नोटों व सिक्कों के रूप में प्रचलित मुद्रा को करेन्सी मुद्रा कहा जाता है। इस मुद्रा के लिए कानूनी रूप में स्वीकार करने की बाध्यता होती है।

बैंक मुद्रा:
बैंक द्वारा साख निर्माण को बैंक मुद्रा कहा जाता है। बैंक साख को ऋणियों के खातों में जमा कर देते हैं। वे चेक के माध्यम से उसे निकलवा सकते हैं।

प्रश्न 59.
मुद्रा के कार्यों को कितने वर्गों में बांटा जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के कार्यों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जाता है –

  1. मुद्रा के मुख्य या प्राथमिक कार्य।
  2. मुद्रा के सहायक या गौण कार्य।
  3. आक्समिक कार्य।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय व्यापार की लागतों को समझाइए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय के द्वारा व्यापार करने में अनावश्यक रूप से जो लागते उत्पन्न होती हैं उन्हें विनिमय की व्यापार लागते कहते हैं। ये लागतों निम्न प्रकार की होती है –

1. तलाश लागत:
क्रेता अपने उत्पाद के बदले वांछित वस्तु देने वाले व्यक्ति की खोज करता है। इस खोज में लगे समय को तलाश लागत कहते हैं।

2. प्रतीक्षा की अनुपयोगिता:
व्यापार करने वाला जिस वस्तु को बेचना चाहता है। उसे उस व्यक्ति की तलाश में इन्तजार करना पड़ता है जो उसे खरीदना चाहता है। यह काम बहुत जटिल और समय लेने वाला होता है क्योंकि बहुत सारे लोगों में उपयुक्त व्यक्ति एवं संयोग की तलाश बहुत मुश्किल है।

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प्रश्न 2.
मूल्य मान की इकाई के रूप में मुद्रा का कार्य उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में मुद्रा ही वह इकाई होती है जिसके रूप में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई भी कहा जाता है। अर्थव्यवस्था की मुद्रा के रूप में वस्तु अथवा सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाता है। वस्तु या सेवा की कीमत से अभिप्राय वस्तु की एक इकाई के बदले प्राप्त होने वाला मौद्रिक इकाइयों की संख्या होती है। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 125 रुपये है तो इसका अभिप्राय है कि 125 रुपयों के बदले एक कमीज मिल सकती है।

मौद्रिक इकाइयों में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अभिव्यक्त करने से वस्तुओं एवं सेवाओं के आपस में मूल्य निश्चित करने में मदद मिलती है। जैसे यदि कमीज एवं पेन्ट की कीमत क्रमशः 125 रुपये एवं 250 रुपये है तो एक पेन्ट का मूल्य मान दो कमीज का होगा। इससे लेखांकन का कार्य सरल हो जाता है। मुद्रा का मूल्यमान क्रय शक्ति होती है जो कीमत स्तर के विलोम होती है।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में विशिष्टिकरण का लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा विनिमय आवश्यक है? समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार लागतें न्यूनतम हो जाती हैं। आजकल फर्मों में भौगोलिक क्षेत्रों तथा पूंजी के प्रकारों के स्तर पर विशिष्टिकरण पाया जाता है। विशिष्टिकरण के द्वारा व्यक्तिगत योग्यताओं एवं क्षमताओं, भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषताओं एवं पूंजी के विशाल भण्डारों का उचित प्रयोग हो पाता है। विशिष्टिकरण के लाभों का प्रयोग करके उत्पादकता एवं जीवन निर्वाह के स्तर को उच्च किया जाता है। विशिष्टकरण का लाभ वस्तु विनिमय के द्वारा कदाचित नहीं उठाया जा सकता है। परन्तु मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार व्यवस्था का विकास करके विशिष्टिकरण का भरपूर फायदा उठाया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
नकद साख पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ग्राहक की साख सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक द्वारा ग्राहक के लिए उधार लेने की सीमा के निर्धारण को नकद साख कहते हैं। बैंक का ग्राहक तय सीमा तक की राशि का प्रयोग कर सकता है। इस राशि का प्रयोग ग्राहक की आहरण क्षमता से तय किया जाता है। आहरण क्षमता का निर्धारण ग्राहक की वर्तमान परिसंपत्तियों के मूल्य, कच्चे माल के भण्डार, अर्द्ध निर्मित एवं निर्मित वस्तुओं के भण्डार एवं हुन्डियों के आधार पर किया जाता है। ग्राहक अपने व्यवसाय एवं उत्पादक गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों का पूरो ब्यौरा बैंक के पास दस्तावेज के रूप में जमा कराता है। उधार की राशि न चुकाए जाने पर बैंक दस्तावेज में दिखाई गई परिसंपत्तियों पर अपना कब्जा करने की कार्यवाही शुरू कर सकता है। ब्याज केवल प्रयुक्त ब्याज सीमा पर चुकाया जाता है। नकद साख व्यापार एवं व्यवसाय संचालन में चिकनाई का काम करती है।

प्रश्न 5.
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मान, वस्तु मान के समान होता है सम्पूर्ण पूर्ति मान मुद्रा कहलाती है। पुराने समय में परंपरावादी अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा होती थी। सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना, चांदी, तांबा आदि से बनायी जाती थी। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान, मौद्रिक प्रयोग में मान के बराबर होता था। इस प्रकार की मुद्रा की ढलाई एक अथवा दो या अधिक प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य सिक्कों के रूप में बनायी जाती थी। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य धातुओं से बने भारी सिक्कों को फिजूल में इधर से उधर ले जाना पड़ता था। आधुनिक युग में इस मुद्रा का प्रचलन खत्म हो गया है।

प्रश्न 6.
मुद्रा की विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
व्यापार में विभिन्न पक्षों के बीच मुद्रा विनिमय या भुगतान के माध्यम का काम करती है। भुगतान का काम लोग किसी भी वस्तु से कर सकते हैं परन्तु उस वस्तु में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए । कोई भी वस्तु अलग-अलग समय, काल एवं परिस्थितियों में अलग हो सकती है। जैसे पुराने समय में लोग विनिमय के लिए कोड़ियों मवेशियों, धातुओं अन्य लोगों के ऋणों को प्रयोग करते थे। इस प्रकार के विनिमय में समय एवं श्रम की लागत बहुत ऊँची होती थी। विनिमय के लिए मुद्रा को माध्यम बनाए जाने से समय एवं श्रम की लागत की बचत होती है। आदर्श संयोग तलाशने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने से व्यापार प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

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प्रश्न 7.
मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा की भूमिका बताइए।
उत्तर:
मूल्य की इकाई एवं भुगतान का माध्यम लेने के बाद मुद्रा मूल्य के भण्डार का कार्य भी सहजता से कर सकती है। मुद्रा का धारक इस बात से आश्वस्त होता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मालिक उनके बदले मुद्रा को स्वीकार कर लेते हैं। अर्थात् मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण मुद्रा का धारक उसके बदले कोई भी वांछित चीज खरीद सकता है। इस प्रकार, मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में कार्य करती हैं। मुद्रा के अतिरिक्त स्थायी परिसपत्तियों जैसे भूमि, भवन एवं वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे बचत, ऋण पत्र आदि में भी मूल्य संचय का गुण होता है और इनसे कुछ आय भी प्राप्त होती है। परन्तु इनके स्वामी को इनकी देखभाल एवं रखरखाव की जरूरत होती है, इनमें मुद्रा की तुलना में कम तरलता पायी जाती है। और भविष्य में इनका मूल्य कम हो सकता है। अतः मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप अन्य चीजों से बेहतर हैं।

प्रश्न 8.
अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों से कमीशन लेकर निम्न सेवाएं प्रदान करता है –

  1. नकद कोषों का अंतरण-बैंक अपने ग्राहकों के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक उनकी धनराशियों को सस्ती दर पर आसानी से अंतरण कर देते हैं। अंतरण का कार्य बैंक धनादेश, डाक धनादेश तथा तार धनादेशों के जरिए करता है।
  2. नकद संग्रहण-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए चैक, हुण्डियों आदि की रकम उनके अदा करने वालों से वसूलने का कार्य भी करता है।
  3. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अंशपत्रों एवं अन्य प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय करता है।
  4. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लाभांश और ब्याज वसुलने का कार्य भी करता है।
  5. अपने ग्राहकों के निवेदन पर व्यापारिक बैंक उनके विभिन्न प्रकार के बिलों एवं बीमा किस्तों के भुगतान का काम भी करता है।
  6. अपने ग्राहकों की वसीयतों के ट्रस्ट्री और प्रबन्धक का कार्य भी करता है।
  7. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को आयकर के सम्बन्ध में सलाह देता है और आय कर के दायित्वों का भुगतान करता है आदि।

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प्रश्न 9.
मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा M1 की तुलना में अधिक विस्तृत है। इसका प्रतिपादन मिल्टन फ्रिडमैन में किया था। M3 को समग्र मुद्रा साधन भी कहते हैं क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के समग्र मौद्रिक संसाधन (AMR) को व्यक्त करता है। इसमें M1 तथा बैंकों की शुद्ध समय अवधि जमाएं शामिल की जाती हैं। अर्थव्यवस्था में M3 मुद्रा की तरलता M1 से कम परन्तु M2 से ज्यादा होती है। जनता द्वारा धारित करेंसी, बैंकों के पास मांग जमा तथा बैंक जमाओं में निबल परिवर्तन के द्वारा M3 में भी परिवर्तन होते हैं। संक्षेप में M3 = M1 – बैंक के पास जमा निबल सावधि जमाएं।

प्रश्न 10.
मुद्रा की आपूर्ति क्या होती है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं के योग मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। मुद्रा की आपूर्ति में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
1. मुद्रा की आपूर्ति एक स्टॉक है। यह किसी समय बिन्दु पर उपलब्ध मुद्रा की सारी मात्रा को दर्शाती है।

2. मुद्रा के स्टॉक से अभिप्राय जनता द्वारा धारित स्टॉक से है। जनता द्वारा धारित स्टॉक समस्त स्टॉक से कम होता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा की आपूर्ति के चार वैकल्पिक मानों के आंकड़े प्रकाशित करता है। ये मान क्रमशः (M1, M2, M3, M4) हैं।
जहाँ M1 = जनता के पास करेन्सी + जनता की बैंकों में मांग जमाएं
M2 = M1 + डाकघरों के बचत बैंकों में बचत जमाएं
M3 = M3 + बैंकों की निबल समयावधि योजनाएं
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठन की सभी जमाएं

प्रश्न 11.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां क्या हैं?
उत्तर:
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के मापन की सर्वमान्य इकाई का अभाव। इससे लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
  2. विनिमय का आधार द्विपक्षीय संयोग होता है। व्यापार में हमेशा और सर्वत्र दो पक्षों के बीच वांछित संयोग का तालमेल होना असंभव होता है।
  3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के संदर्भ में निम्न कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती है –
    • भविष्य में भुगतान के रूप में दी जाने वाली वस्तुओं-सेवाओं के गुणधर्मों को लेकर दोनों पक्षों के बीच झगड़ा हो सकता है।
    • भविष्य में भुगतान की वस्तु पर असहमति हो सकती है।
    • भुगतान अनुबन्ध के समय अन्तराल में भुगतान की जाने वाली वस्तु का मूल्य कम ज्यादा हो सकता है।
  4. सामान्य क्रय शक्ति के भण्डारण में कठिनाई।

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प्रश्न 12.
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति के घटक M4 के बारे में समझाइए।
उत्तर:
M4 की अवधारणा मुद्रा आपूर्ति की सभी अवधारणाओं में अधिक विस्तृत है। दूसरे शब्दों में, MP4 मुद्रा से ज्यादा व्यापक है। M4 मुद्रा में M3 के अलावा डाकघर बचत संगठन की सभी जमाओं को शामिल किया जाता है। (राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर) संक्षेप में, M4 = M3 – राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर डाक घर बचत संगठन की सभी जमाएं। M4 की तरलता सबसे कम होती है अर्थात् M4 को नकदी में परिवर्तित करने की क्षमता सबसे कम होती है।

प्रश्न 13.
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के मुख्य कार्य क्या होते हैं?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के निम्नलिखित कार्य होते हैं –

  1. मूल्यमान की इकाई या लेखे की इकाई का काम चलाना।
  2. मुद्रा विभिन्न प्रकार के लेन-देन में विनिमय के माध्यम का कार्य करती है।
  3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के मानक का काम करती है।
  4. क्रय शक्ति एवं मूल्य का भण्डार।

प्रश्न 14.
व्यावसायिक बैंक के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं –

  1. आम जनता के जमाएं स्वीकर करना।
  2. ग्राहकों को अग्रिम एवं उधार देना।
  3. अधिविकर्ष।
  4. हुन्डियों की कटौती।
  5. जमा राशियों का निवेश।
  6. बैंक अभिकर्ता (एजेन्ट) के रूप में कार्य करते हैं।
  7. अन्य कार्य जैसे –
    • विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय।
    • पर्यटक चैक, उपहार चैक जारी करना।
    • कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना।
    • नए शेयर आदि के निर्गमन पर अविक्रित अंश को खरीदने का आश्वासन देना तथा निजी आधार पर चुनिंदा निवेशकों के बीच प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

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प्रश्न 15.
भारत में किस प्रकार की मौद्रिक व्यवस्था का अनुसरण होता है?
उत्तर:
भारत में इस समय कागजी मुद्रा मान या प्रबन्धित मुद्रा मान की व्यवस्था का अनुसरण किया जा रहा है। भारत की मानक मुद्रा विधि ग्राहिय मुद्रा है। इसी के प्रयोग से हमारी सरकार सभी दायित्वों को निपटाती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कागज से बनी मानक मुद्रा को स्वीकर किया है। करेंसी मुद्रा के माध्यम से बड़े लेन-देन किये जाते हैं। परन्तु छोटे-छोटे भुगतानों के लिए सस्ती धातुओं के बने सिक्कों का प्रयोग होता है। सिक्कों की कानूनी स्वीकार्य सीमित होती है। भारत में एक रुपये के नोट और सिक्कों को छोकर सभी करेंसी नोटों का निर्गमन रिजर्व बैंक करता है। एक रुपये के नोट एवं सिक्के भारत सरकार जारी करती हैं। भारत में करेंसी निर्गमन व्यवस्था न्यूनतम सुरक्षित निधि व्यवस्था है। कागजी मुद्रा को सोने जैसी मूल्यवान धातु में नहीं बदला जा सकता है अर्थात् भारत की करेंसी अपरिवर्तनीय हैं।

प्रश्न 16.
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव का आशय संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर:
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है। क्रेता एवं विक्रेता की परस्पर आवश्यकता की संतुष्टि को आवश्यकता का दोहरा संयोग कहते हैं। सरल शब्दों में क्रेता तथा विक्रेता परस्पर वस्तुओं का आदान प्रदान करते हैं और एक-दूसरे से प्राप्त की गई वस्तु से अपनी-अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करते हैं इसको आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में दोहरे संयोग की कमी या अभाव पाया जाता है। उदाहरण के लिए गेहूँ उत्पादक को गेहूँ के बदले में कपड़ों की आवश्यकता है लेकिन ऐसा ढूँढना बड़ा मुश्किल काम है कि ऐसा वस्त्र उत्पादक मिल जाए जो बदले में गेहूँ स्वीकार कर सकता है। आवश्यकताओं के ऐसे संयोगों की अनुपस्थित या कमी को ही दोहरे संयोग के अभाव की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 17.
मुद्रा स्टॉक (भण्डार) के विभिन्न मापक क्या है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा की माप के लिए संकुचित व व्यापक दोनों दृष्टिकोण अपनाएं हैं। ये निम्नलिखित हैं –
1. M1 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं –

  • जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के।
  • मांग जमाएं।
  • रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं।

2. M2 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है –

  • (a) M1
  • डाकघरों के पास बचत जमाएं

3. M3 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है –

  • M1
  • व्यापारिक एवं सहकारी बैंको की अवधि जमाएं। यह मुद्रा का व्यापक दृष्टिकोण है।

4. M4 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं –

  • M3
  • डाकघर बचत संगठन की कुल जमाएं (NSC को छोड़कर)।

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प्रश्न 18.
मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयां समाप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयाँ निम्नलिखित ढंग से समाप्त हो जाती है –

  1. वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मापने के लिए कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है अत: व्यवस्थित लेखांकन प्रणाली का विकास नहीं हो पाता है परन्तु मुद्रा के रूप में वस्तुओं का मूल्य मापन सर्वमान्य है। लेखांकन की प्रणाली का विकास हुआ है।
  2. वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव होता है। वांछित संयोग को तलाशने में श्रम एवं समय दोनों की बर्बादी होती है। मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है। अतः श्रम समय दोनों की बचत होती है।
  3. वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में वस्तु की किस्म, मात्रा, गुणवत्ता आदि के बारे में विवाद स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों को निपटाने में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
  4. वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के मूल्य का संग्रहण करने के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त वस्तु नहीं होती है। परन्तु मुद्रा के माध्यम से मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।

प्रश्न 19.
मूल्य मापन की सामान्य इकाई का अर्थ लिखो। यह भी बताओ कि यह किस प्रकार से वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में मुद्रा वह इकाई होती हैं जिसके रूप में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई कहा जाता है। मुद्रा के रूप में वस्तु या सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाती है। वस्तु की कीमत से अभिप्राय वस्तु के बदले में प्राप्त होने वाली मुद्रा या किसी वस्तु की इकाइयां। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 250 रु. है तो क्रेत 250 रु. के बदले में एक कमीज प्राप्त कर सकता है। मूल्यमापन की सामान्य इकाई होने पर विनिमय में कठिनाइयां उत्पन्न नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य मापन की कोई सामान्य इकाई नहीं होती जिसमें सभी वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य अंकित किए जा सकें और सर्वसमत्ति से स्वीकार किए जा सके।

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प्रश्न 20.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां –

  1. इस प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापने की कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। अतः वस्तु विनिमय लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में एक बाधा है।
  2. आवश्यकताओं का दोहरा संयोग विनिमय का आधार होता है। व्यवहार में दो पक्षों में हमेशा एवं सब जगह परस्पर वांछित संयोग का तालमेल होना बहुत मुश्किल होता है।
  3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई आती है। दो पक्षों के बीच सभी लेन-देनों का निपटारा साथ के साथ होना मुश्किल होता है अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों के संबंध में वस्तु की किस्म, गुणवत्ता, मात्रा आदि के संबंध में असहमति हो सकती है।

प्रश्न 21.
वस्तु विनिमय प्रणाली में पाए जाने वाले प्रमुख अभाव लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में निम्नलिखित अभाव पाए जाते हैं –

  1. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तुओं का उत्पादन केवल अत्यधिक तीव्र आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही किया जाता है।
  2. उत्पादन में विशिष्टीकरण का अभाव पाया जाता है।
  3. उत्पादन छोटे स्तर पर होता है।
  4. आर्थिक संवृद्धि एवं विकास कल्पना की चीजें हो जाती है।

प्रश्न 22.
वस्तु विनिमय प्रणाली में विशिष्टिकरण का अभाव पाया जाता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में फैक्टरी प्रणाली का अभाव पाया जाता है। इस प्रणाली में उत्पादन बड़े पैमाने के बजाय छोटे स्तर पर किया जाता है। इस प्रणाली में विलासिता एवं विशिष्टता की वस्तुएँ उत्पन्न नहीं की जाती हैं। इस प्रणाली में केवल जीवन निर्वाह के लिए ही वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 23.
जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो कौन-सी समस्याएँ पैदा होती है?
उत्तर:
जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो निम्नलिखित समस्याएँ पैदा होती हैं –

  1. वस्तुओं के चयन की समस्या अथवा उन वस्तुओं के प्रकार की समस्या पैदा होती है जिनका भुगतान भविष्य में किया जाता है।
  2. विशिष्ट वस्तुओं की गुणवत्ता की समस्या।
  3. वस्तुओं के बाजार मूल्य की समस्या जो बाजार में दूसरी वस्तुओं की तुलना में घट-बढ़ सकती है।

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प्रश्न 24.
भारत में मुद्रा की पूर्ति कौन करता है?
उत्तर:
भारत में मुद्रा की पूर्ति करते हैं –

  1. भारत सरकार।
  2. केन्द्रीय बैंक।
  3. व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 25.
भारत में न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारत में मुद्रा जारी करने के लिए न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था को अपनाया जाता है। सुरक्षित निधि में 115 करोड़ रुपए का सोना तथा 85 करोड़ रुपए की विदेशी प्रतिभूतियाँ। इस प्रकार कुल 200 करोड़ रुपए की सुरक्षित निधि के बाद भारत का केन्द्रीय बैंक समस्त मुद्रा जारी करता है।

प्रश्न 26.
भारत में नोट जारी करने की क्या व्यवस्था है?
उत्तर:
भारत में नोट जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था कहा जाता है। जारी की गई मुद्रा के लिए न्यूनतम सोना व विदेशी मुद्रा सुरक्षित निधि में रखी जाती है।

प्रश्न 27.
न्याय मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
न्याय मुद्रा से अभिप्राय उस मुद्रा से है जो प्राप्तकर्ता एवं अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है। जैसे-चैक न्याय मुद्रा का उदाहरण है। इसे भुगतान के लिए करना प्राप्तकर्ता व अदाकर्ता के आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

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प्रश्न 28.
मुद्रा के अंकित व वस्तु मुल्य का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अंकित मूल्य-किसी पत्र व धातु मुद्रा पर जो मूल्य लिखा होता है, उसे मुद्रा का अंकित मूल्य कहते हैं। जैसे 500 रुपये के नोट का अंकित मूल्य 500 रु. होता है। वस्तु मूल्य-उस पदार्थ के मूल्य को वस्तु मूल्य कहते हैं जिससे मुद्रा बनायी जाती है। जैसे-चाँदी के सिक्के का धातु-मूल्य, उस सिक्के के निर्माण में प्रयुक्त धातु के मूल्य के समान होता है।

प्रश्न 29.
साख मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऐसी मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उसके धातु मूल्य से अधिक होता है, साख मुद्रा कहलाती है। जैसे- भारतीय मुद्रा के 100 रु. के नोट का वस्तु मूल्य उसके अंकित मूल्य से बहुत कम है।

प्रश्न 30.
भारत में सिक्के सीमित विधि ग्राह्य हैं जबकि कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य है। इस कथन का आशय लिखिए।
उत्तर:
भुगतानों का निपटारा करने के लिए भारत के सिक्कों का प्रयोग केवल एक सीमा तक किया जा सकता है, जबकि भुगतानों की निपटारा करने के लिए नोटों का प्रयोग असीमित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 31.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का आशय नष्ट कीजिए।
उत्तर:
2 अक्टूबर, 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए। इनका कार्यक्षेत्र एक, राज्य के एक या दो जिले तक सीमित रखा गया। ये छोटे और सीमित किसानों, खेतीहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु-उद्योगों, वाणिज्य, व्यापार तथा अन्य क्रियाओं के विकास में सहायोग करते हैं।

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प्रश्न 32.
कृषि क्षेत्र को वाणिज्य बैंकों की ओर से प्रदत्त प्रत्यक्ष सहायता के बारे में लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष सहायता-वाणिज्य बैंक कृषि साख को अल्पकालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। अल्पकालीन ऋण का भुगतान फसल तैयार होने के तुरन्त बाद करना होता है। मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण विकास कार्यों अथवा पूंजी गहन कार्यों के लिए अधिकतम 15 वर्षों के लिए दिए जाते हैं।

प्रश्न 33.
बैंकिंग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वाणिज्य बैंक वह संस्था है जो कि लाभ के उद्देश्य से कार्य करती है। जनता से जमा स्वीकार करती है, गृहस्थों, फर्मों तथा सरकार को ऋण प्रदान करती है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. जनता से जमा स्वीकार करना।
  2. ऋण व निवेश के लिए जमा का प्रयोग करना।
  3. चैक या अन्य आदेश के द्वारा आहरण करना।

प्रश्न 34.
बचत खाता क्या होता है?
उत्तर:
बचत खाता-इसमें जनता की निष्क्रिय राशियाँ जमा की जाती हैं। इस खाते में सबसे कम ब्याज प्राप्त होता है, क्योंकि जमाकर्ता इस खाते में से किसी भी समय रुपया निकाल सकते हैं। सामान्य रूप से जमाकर्ता एक वर्ष में 100 बार इस खाते में जमा राशि निकाल सकते हैं।

प्रश्न 35.
वाणिज्य बैंक कोषों का अन्तरण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
वाणिज्य बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन राशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों, जैसे-चैक, ड्रॉफ्ट, विनिमय, बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

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प्रश्न 36.
वाणिज्य बैंक के कुछ कार्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वाणिज्य बैंक अपने ग्राहकों के लिए पैंशन, लाभांश, बीमे की किस्तों का भुगतान, बिजली-पानी के बिलों का भुगतान, टेलीफोन की किस्तों का भुगतान जैसे कार्यों को करता है। ग्राहकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है। लॉस की सुविधा, यात्री चैकों को जारी करना, उद्यमियों को आवश्यक सलाह देना जैसे-कार्यों को सम्पन्न करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मुद्रा की परिभाषा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
मुद्रा की परिभाषा कई तरह से की जाती है –
1. मुद्रा की कानून आधारित परिभाषा-“मुद्रा वह है जिसे कानूनी रूप से मुद्रा घोषित कर दिया गया है।” इन परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा में सामान्य स्वीकार्यता का गुण आ जाता है। मुद्रा को विधि संगत देयता भी घोषित कर दिया जाता है। कानून आधारित मुद्रा प्रादिष्ट मुद्रा भी होती है। क्योंकि मुद्रा का होना सरकारी आदेश से तय होता है। इसे स्वीकार करने में देने वाले के विश्वास की जरूरत नहीं होती है।

2. कार्य आधारित परिभाषाएं-इन परिभाषाओं में कोई भी ऐसी वस्तु जो मुद्रा के चारों कार्य कर सकती है मुद्रा हो सकती है। जैसे जिस वस्तु से मूल्य मान तय हो सकता है, विनिमय का काम हो सकता है, स्थगित भुगतानों का मानक तय हो सकता है एवं मूल्य का भण्डारण हो सकता है मुद्रा बन सकती है। जैसे भारत में सिक्के-नोट कानूनी मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं परन्तु बैंकों के पास जमाओं को भी मुद्रा में शामिल किया जाता है।

3. मुद्रा की संकुचित एवं विस्तृत परिभाषाएं-मुद्रा की संकुचित परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा वह है जो विनिमय भुगतान के माध्यम का काम करती है। विस्तृत परिभाषाओं में अन्य चीजें भी मुद्रा में शामिल कर ली जाती हैं जिनमें मुद्रा की तरह के प्रबल गुण होते हैं। संकुचित परिभाषाओं में केवल करेंसी को ही मुद्रा माना जाता है परन्तु परिभाषाओं में करेंसी के साथ-साथ, बैंकों एवं डाकघरों के पास जमाओं को भी मुद्रा की श्रेणी में शामिल कर लिया जाता है।

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प्रश्न 2.
भारत में केन्द्रीय बैंक के कार्य संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
भारत में ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ केन्द्रीय बैंक है। इसका निम्नलिखित कार्य हैं –
1. मुद्रा निर्गमन करना-भारत में मुद्रा जारी करने का अधिकार केवल RBI के पास है। केवल भारत सरकार का वित्त मंत्रालय एक रुपये के नोट जारी करता है बाकी सभी प्रकार के नोटों को जारी करने एवं सिक्कों की ढलाई का काम RBI करता है। सिक्कों एवं सभी प्रकार के नोटों को प्रचलन में लाने का काम RBI को ही करना पड़ता है। न्यूनतम संरक्षित कोष (200 करोड़ रुपये के सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य धातुएं एवं विदेशी मुद्रा के रूप में) रखकर RBI मुद्रा जारी करता है।

2. सरकार का बैंकर-RBI, केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों का बैंकर है। सभी सरकारी चालू खाते के नकद कोष RBI के पास जमा होते हैं। RBI सरकार की ओर से भुगतान भी करता है और भुगतान स्वीकार भी करता है। इसके अतिरिक्त विनिमय लेन-देन के काम भी RBI निपटाता है। RBI जरूरत पड़ने पर सरकार को अल्पावधि ऋण भी देता है । सरकारी ऋण पत्रों के प्रबन्धन का काम भी केन्द्रीय बैंक को ही करना पड़ता है। ऋण के आकार, ब्याज दर, समय एवं अन्य शर्तों के संबंध में यह बैंक सलाहकार के रूप में कार्य करता है। संक्षेप में, केन्द्रीय बैंक बैंकिग एवं वित्तीय मामलों में सरकार का परामर्शदाता है।

3. बैंकों का बैंक तथा पर्यवेक्षक-बैंकों के बैंक के रूप में RBI सभी बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास सुरक्षित रखता है, बैंकों को कम समय अवधि के लिए नकदी प्रदान करता है, केन्द्रीयकृत समाशोधन और धन विप्रेष का काम करता है। नकद कोष में जमा राशि का प्रयोग करके RBI अन्तिम आश्रयदाता के रूप में व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। RBI सभी बैंकों के व्यावसायिक कामों का पर्यवेक्षण, नियमन और नियंत्रण करता है। बैंकों को लाइसेंस देना, शाखाओं का विस्तार करना, परिसंपत्तियों की तरलता, प्रबंधन, विलप आदि कार्य भी RBI करता है।

4. मुद्रा की आपूर्ति तथा साख का नियंत्रण-RBI भारत में मुद्रा और साख की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इस काम के लिए RBI मौद्रिक नीति की रचना करता है। मौद्रिक नीति उपकरणों के रूप में निम्नलिखित उपाय करता है –

  • बैंक दर नीति-बैंक को उधार देने के लिए ब्याज दर का निर्धारण करना।
  • खुले बाजार की क्रियाएं-सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंक के साथ क्रय-विक्रय करना।
  • सुरक्षित कोष अनुपातों में परिवर्तन-सुरक्षित कोष अनुपात दो प्रकार के होते हैं –
  • नकद जमा अनुपात (CRR)।
  • संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR)।
  • साख की राशनिंग अथवा प्रोत्साहन।
  • नैतिक आग्रह।

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प्रश्न 3.
मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त हो जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त निम्न प्रकार से होता है –

  1. वस्तु विनिमय में सेवाओं एवं वस्तुओं का मूल्य मापने के लिए सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को मापने के लिए मुद्रा का प्रयोग सर्वमान्य इकाई के रूप में होता है। अतः मुद्रा के प्रयोग से लेखांकन का विकास हुआ है।
  2. वस्तु विनिमय में संयोग तलाशने में अनावश्यक रूप से धन एवं समय की हानि होती है। लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग करने से विनिमय प्रक्रिया सरल बन जाती है। मुद्रा विनिमय में संयोग तलाशे बिना प्रत्यक्ष रूप से विनिमय का कार्य कम समय में एवं सरलता से हो जाता है।
  3. वस्तु विनिमय में भविष्य में स्थगित भुगतानों पर वस्तु के गुण धर्म, वस्तु के प्रकार एवं वस्तु के मूल्य मान के संदर्भ में असहमति उत्पन्न होती है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों की माप मुद्रा के द्वारा की जाती है।
  4. वस्तु विनिमय में क्रय शक्ति का भण्डारण संभव नहीं होता है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से मूल्य के भण्डार का काम आसानी से हो जाता है। मुद्रा का प्रयोग कभी भी वस्तुओं एवं सेवाओं को खरदीने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य को संचय करने में भण्डारण का काम करती है।

प्रश्न 4.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे होता है?
उत्तर:
मुद्रा का वर्गीकरण मुद्रा स्वरूपी मान तथा वस्तु स्वरूपी मान के आधार पर किया जाता है। ये वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं –
1. सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मान वस्तु मान के बराबर होता है। इनका गैर-मौद्रिक प्रयोग मान भी मौद्रिक प्रयोग मान के बराबर रहता है जैसे सोने एवं चांदी के सिक्के, इस प्रकार की मुद्रा का प्रचलन पुराने समय में होता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण मूर्ति मान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा कागजी होती है। यह मुद्रा पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा या सोने चांदी को भण्डार में जमा कराने परे प्रचलन में आती हैं। दूसरे शब्दों में, यह पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा अथवा सोने चाँदी जैसे बहुमूल्य धातुओं को भण्डार गृह में जमा कराने की रसीद होती है। इस रसीदी कागज का अपना कोई मूल्य नहीं होता है। परन्तु इस मुद्रा पर अंकित राशि उतनी ही मुद्रा को व्यक्त करती है जितना उस मुद्रा का वस्तु मान होता है। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग से बहुमूल्य एवं भारी धातुओं को इधर-उधर ले जाना नहीं पड़ता है।

3. साख मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से ज्यादा होता है। दूसरे शब्दों में, जिस चीज का इस्तेमाल करके मुद्रा बनाई जाती है उसका मूल्य अंकित मौद्रिक मूल्य से बहुत कम होता है। साख मुद्रा के निम्नलिखित प्रकार हैं –

  • सांकेतिक सिक्के
  • प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा
  • केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट
  • बैंकों के पास जमाएं

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प्रश्न 5.
साख मुद्रा क्या है? साख मुद्रा के विभिन्न प्रकार संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
साख मुद्रा, मुद्रा का वह प्रकार है जिसका मौद्रिक मूल्य, वस्तु मूल्य से अधिक होता है। जिस चीज से मुद्रा बनायी जाती है उसका मूल्य साख मुद्रा के मूल्य से कम होता है। साख मुद्रा कई प्रकार की होती है। जैसे –
1. सांकेतिक सिक्के-भारत में 25 पैसे, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये एवं 5 रुपये के सिक्के सांकेतिक सिक्के हैं। इन सिक्कों का मौद्रिक मूल्य इनमें लगी धातु के मूल्य से कम होता है। जैसे 2 रुपये के सिक्के को पिघलाकर प्राप्त धातु को बेचकर 2 रुपये प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।

2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा-यह सांकेतिक सिक्कों या चांदी के भण्डार की पावती रसीद होती है। सिक्के और चांदी के भण्डार का वस्तुमान, कागज पर लिखे मौद्रिक मान से कम होता है।

3. केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट-आजकल विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं में इस प्रकार की मुद्रा का चलन ज्यादा है। भारत में करेंसी नोट जारी करने का काम (RBI) करता है। भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर धारक को नोट में अंकित राशि अदा करने का वचन अदा करता है।

4. बैंकों के पास जमाएं-सामान्य जनता बैंकों में विभिन्न प्रकार के खातों में जमाएं कराती है। ये जमाएं बैंको के लिए दायित्व होते हैं। ग्राहक चैक के माध्यम से परस्पर इनका अन्तरण कर सकते हैं। बैंक चैक वाले जमा खातों के बराबर मुद्रा अपने पास सुरक्षित निधि कोष में निधि रखते हैं। इस प्रकार चैक जमाओं से बैंक मुद्रा का काम चलाते हैं।

प्रश्न 6.
अर्थव्यवस्था में व्यापारिक बैंकों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग व्यवसाय का मुख्य काम जमा स्वीकार करना एवं उधार देना है। बैंक जन सामान्य से चैक द्वारा आहरणीय जमा भी स्वीकार करते हैं। व्यापारिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं –

1. जमा स्वीकार करना:
व्यापारिक बैंक आम जनता से तीन तरह के खातों में जमाएं स्वीकार करता है। ये खाते इस प्रकार हैं –

  • चालू खाता जमा-इस प्रकार के खाते व्यावसायिक लोगों के लिए होते हैं इनमें जमा राशि पर बैंक को ब्याज का भुगतान नहीं करना पड़ता है। इन खातों में जमा मांग देय होती है। बैंक इन पर प्रशुल्क लेता है।
  • सावधि जमाएं-इस प्रकार की जमाएं निश्चित समय अवधि के लिए स्वीकार की जाती है। ये मांग जमाएं नहीं होती हैं। इन जमाओं पर बैंकों को ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
  • बचत खाता जमाएं-निश्चित चैकों के साथ में भी मांग जमाएं होती हैं। इन जमाओं पर ब्याज का भुगतान भी किया जाता है।

2. ऋण देना:
व्यापारिक बैंक सुरक्षित कोष के अलावा अन्य जमाओं का प्रयोग उधार देने के लिए करता है। इससे बैंकों को आमदनी प्राप्त होती है। व्यापारिक बैंक निम्न प्रकार के उधार या ऋण प्रदान करते हैं।

  • नकद साख-ग्राहक की सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को उधार देने की सीमा तय करते हैं। नकद साख का निर्धारण ग्राहकों की परिसंपत्तियों एवं स्टॉक के आधार पर होता है। ग्राहक प्रयुक्त पर ब्याज का भुगतान करते हैं। ऋण न चुकाए जाने पर बैंक ग्राहक की परिसंपत्ति पर कब्जा कर सकता है।
  • मांग उधार-ऐसे ऋण बैंक कभी वापिस मांग सकता है। ऋण की राशि एकमुश्त उधार लेने वाले के खाते में जमा करा दी जाती है। ब्याज भी तुरन्त लगाया जाता है। इस प्रकार के ऋण प्रायः शेयर दलाल लेते हैं।
  • अल्पावधि ऋण-इस प्रकार के ऋणों में व्यक्तिगत उधार, कामचलाऊ पूंजी उधार तथा वरीयता प्राप्त क्षेत्रों को प्रदान किए जाते हैं। इस ऋण की राशि पर खातेदार के खाते में अन्तरण होने के बाद तुरंत ब्याज लगाया जाता है।

3. अधिविकर्ष:
चालू खाते के ग्राहक जमा राशि से निश्चित सीमा तक अधिक राशि का चैक जारी करने की सुविधा प्राप्त करते हैं। इस पर ब्याज दर नकद साख से कम होती है क्योंकि इस कार्य के लिए वित्तीय परिसंपत्तियों को प्रतिभूति के रूप में स्वीकार किया जाता है जिनका नकदीकरण सरल होता है।

4. हुन्डियों की कटौती:
प्राप्त हुई वस्तुओं के मूल्य को चूकाने के दायित्व को स्वीकार करने को हुन्डी कहते हैं। बैंक हुन्डी की राशि पर कुछ कमीशन लेकर शेष राशि हुन्डी धारक को अदा कर देता है।

5. जमा राशियों का निवेश:
व्यापारिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों, अनुमोदित प्रतिभूतियों आदि में निवेश करते हैं। ये प्रतिभूतियों सरल होती हैं और इनका नकदीकरण आसान होता है।

6. अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक आजकल कमीशन एजेन्ट का काम भी बखूबी निभा रहे हैं। कमीशन लेकर बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक सेवाएं उपलब्ध कराते हैं जैसे-नकद कोषों का अन्तरण, नकद संग्रहण, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय, बिल एवं किश्तों का भुगतान, ट्रस्टी एवं प्रबन्धकीय सेवाएं, सलाहकार सेवाएं आदि।

7. अन्य कार्य:

  • विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय
  • पर्यटक एवं उपहार चैक जारी करना
  • कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना आदि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत की मुद्रा है –
(A) पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा
(B) प्रतिनिधि मूर्तिमान मुद्रा
(C) साख मुद्रा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) साख मुद्रा

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
भारत की मुद्रा को किस वर्ग में रखा जा सकता है –
(A) अपरिवर्तनीय
(B) पूर्णतः परिवर्तनीय
(C) न तो परिवर्तनीय न ही अपरिवर्तनीय
(D) परिवर्तनीय एवं अपरिवर्तनीय दोनों
उत्तर:
(A) अपरिवर्तनीय

प्रश्न 3.
भारत का केन्द्रीय बैंक है –
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) भारतीय रिजर्व बैंक
(C) भारत का वित्त मंत्रालय
(D) इलाहाबाद बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(B) भारतीय रिजर्व बैंक

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 4.
भारत में एक रुपये का नोट जारी करता है –
(A) भारतीय रिजर्व बैंक
(B) भारत का वित्त मंत्रालय
(C) भास्तीय रिवर्ज बैंक
(D) भारत का रेल मंत्रालय
उत्तर:
(B) भारत का वित्त मंत्रालय

प्रश्न 5.
भारत प्रतिनिधि सिक्कों की ढलाई कौन करता है –
(A) भारत क वित्त मंत्रालय
(B) भारत का गृह मंत्रालय
(C) भारतीय रिजर्व बैंक
(D) भारत का रेल मंत्रालय
उत्तर:
(A) भारत क वित्त मंत्रालय

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 6.
एक रुपये के नोट के अलावा भारतीय रुपयों पर हस्ताक्षर कौन करता है –
(A) वित्त मंत्री
(B) प्रधान मंत्री
(C) भारत का राष्ट्रपति
(D) भारतीय रिवर्ज बैंक का गवर्नर
उत्तर:
(D) भारतीय रिवर्ज बैंक का गवर्नर

प्रश्न 7.
एक रुपये के नोट के अलावा अन्य नोटों को कौन जारी करता है –
(A) भारतीय रिवर्ज बैंक
(B) भारतीय स्टेट बैंक
(C) वित्त मंत्रालय
(D) प्रधान मंत्री।
उत्तर:
(A) भारतीय रिवर्ज बैंक

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 8.
बढ़ते क्रम में मुद्रा की आपूर्ति के चार स्टॉक हैं –
(A) M1, M2, M3 व M4
(B) M4, M3, M2 व M1
(C) a व b दोनों
(D) a व b में कोई नहीं
उत्तर:
(A) M1, M2, M3 व M4

प्रश्न 9.
भारत में सामान्यतः बहुप्रचलित मुद्रा आपूर्ति स्टॉक है –
(A) M1
(B) M2
(C) M3
(D) M4
उत्तर:
(C) M3

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प्रश्न 10.
भारत में अंतिम ऋण आश्रयदाता है –
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) सिंडिकेट बैंक
(C) भारतीय रिजर्व बैंक
(D) कृषि मंत्रालय
उत्तर:
(C) भारतीय रिजर्व बैंक

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर

Bihar Board Class 7 Social Science शहर, व्यापारी एवं कारीगर Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

फिर से याद करें :

प्रश्न 1.
शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर क्यों बनवाते थे?
उत्तर-
शामक, व्यापारी एवं धनाढय लोग मंदिर इसलिये बनवाते थे ताकि उनकी धार्मिक आस्था का प्रकटीकरण हो सके। नाम कमाने के साथ पुण्य कमाने की इच्छा भी रहती हागी । अपन को शक्तिशाली और धनी होने की धाक जमाना भी कारण रहा होगा ।

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प्रश्न 2.
शहरों में कौन-कौन लोग रहते थे ?
उत्तर-
शहरों में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पी, आभूषण बनाने वाले सब्जी ‘ बेचने वाले, जूता बनाने वाले, रंगरेज आदि रहते थे । व्यापारियों में अनाज बेचने वाले और कपड़ा बेचने वाले दोनों रहते थे । बड़े शहरों में थोक खरीद बिक्री भी होता था ।

प्रश्न 3.
व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के क्या साधन थे?
उत्तर-
व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के लिये सड़क विकसित थे । सड़कों पर बैलगाड़ी, घोड़ा, खच्चर सामान ढोने के साधन थे । दूर-दराज का व्यापार नदी मार्गों से होता था । तटीय क्षेत्रों में समुद्री मार्ग का उपयोग भी होता था । बन्दरगाहों को अच्छी सड़कों द्वारा जोड़ा गया था । विदेश व्यापार समुद्री जहाजों द्वारा होता था । ऊँट भी सामान ढाने के अच्छे साधन थे।

प्रश्न 4.
सतरहवीं शताब्दी में किन यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का भारत में आगमन हुआ ?
उत्तर-
सतरहवीं शताब्दी में अंग्रेज, हॉलैंड (डच) और फ्रांस के यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन हुआ । पुर्तगाली पन्द्रहवीं शताब्दी में ही आ चुके थे।

प्रश्न 5.
सुमेल करें :

  1. मंदिर नगर – (i) दिल्ली
  2. तीर्थ स्थल – (ii) तिरुपति
  3. प्रशासनिक नगर – (iii) गोआ
  4. बन्दरगाह नगर – (iv) पटना
  5. वाणिज्यिक नगर – (v) पुष्कर

उत्तर-

  1. मंदिर नगर – (ii) तिरुपति
  2. तीर्थ स्थल – (v) पुष्कर
  3. प्रशासनिक नगर – (i) दिल्ली
  4. बन्दरगाह नगर – (iii) गोआ
  5. वाणिज्यिक नगर – (iv) पटना

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आइए समझें 

प्रश्न 6.
मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची बनाइए।
उत्तर-
मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची निम्न है

निर्यात की वस्तुएँ – आयात की वस्तुएँ

  1. मसाले – ऊनी वस्त्र
  2. सूती कपड़े – सोना
  3. नील – चाँदी
  4. जडी-बूटी – हाथी दाँत
  5. खाद्य सामग्री – खजूर
  6. सूती धागा – सूखे मेवे रेशम (चीन से)

प्रश्न 7.
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के आगमन के कारणों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
यूरोपीय व्यापारियों को भारतीय मसालों और बारीक मलमल की भनक लग गई थी। पहले तो भारतीय व्यापारी ये वस्तएँ लेकर यरोप जाते थे और वहाँ से सोना-चाँदी लादकर समुद्री जहाजों से भारत लाते थे। बाद में फारस के व्यापारी मध्यस्थ बन गए और वे भारत से माल लेकर यूरोप जाने लगे । यूरोपीय व्यापारी यह काम स्वयं करना चाहते थे। उन्हें किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं था ।

सबसे पहले पुर्तगाल का एक नाविक 1498 में वहां की सरकार की मदद से भारत पहुंचने का निश्चय किया । उसने उत्तमाशा अंतरीप का मार्ग पकड़ा और भारतीय तट पर पहुँचने में सफलता पाई । यहाँ से उसने स्वयं व्यापार करना आरम्भ किया ।

इसके बाद इंग्लैंड, हॉलैंड और फ्रांस का ध्यान इस ओर गया। ये भी सत्रहवीं शताब्दी में भारत पहुंच गये और व्यापार करना आरम्भ किया । अंग्रेजों ने कपड़े खरीदने पर अधिक ध्यान दिया । इसके लिये ये दलालों के मार्फत करघा चालकों को अग्रिम रकम भी देने लगे । आगे चलकर विभिन्न स्थानों में इन विदेशियों ने अपनी-अपनी कोठियाँ बनाईं । यूरोपीय कम्पनियों के भारतीय दलाल ‘दादनी’ कहलाते थे।

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प्रश्न 8.
आपके विचार से मंदिरों के आसपास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर-
हम सभी जानते हैं कि भारत एक धर्म प्रधान देश रहा है । देवी-देवताओं के प्रति यहाँ के लोगों के मन में अपार श्रद्धा रहती आई है। अतः जहाँ-जहाँ मंदिर बने वहाँ-वहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ जुटने लगी । अधि क लोगों के आवागमन के कारण उनके उपयोग की वस्तुओं की दुकानें खलने लगीं । बाद में स्थानीय लोग भी इन उत्पादों को खरीदने लगे । इसी तरह क्रमशः मंदिरों के आसपास नगर विकसित हो गए।

प्रश्न 9.
लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका बड़े महत्त्व की थी। हाटों से वे नित्य उपयोग की वस्तुएँ खरीदते थे। जो अन्न या सब्जी वे नहीं उपजा पाते थे, उन्हें वे हाटों से खरीदते थे। मेलों का महत्त्व इस बात में था कि उत्कृष्ट वस्तुएँ मेलों में ही उपलब्ध होती थीं । देश भर के कलाकार और शिल्पी अपने उत्पाद लेकर मेलों में आते थे । वे ऐसी वस्तुएँ हुआ करती थीं जो सामान्यतः हाट-बाजारों में उपलब्ध नहीं होती थीं । लोग मेलों का बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे । वहाँ मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हो जाते थे। .आइए विचार करें:

प्रश्न 10.
इस अध्याय में वर्णित शहरों की तुलना अपने जिले में स्थित शहरों से करें। क्या दोनों के बीच कोई समानता या असमानता है?
उत्तर-
इस अध्याय में वर्णित शहर चहारदीवारियों से घिरे होते थे लेकिन हमारे जिले का शहर चारों ओर से खुला है। वर्णित शहर जैसे हमारे जिले

में भी खास-खास वस्तुओं के खास-खास महल्ले हैं । यहाँ थोक और खुदरा-दोनों प्रकार के व्यापार हैं । जिलों में सरकारी अधिकारी भी रहते हैं। । राज्य कर्मचारियों के अलावा व्यापारियों के कर्मचारी भी रहते हैं । हमारे जिले के शहर में सड़क और पानी की व्यवस्था के लिए नगरपालिका है जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है । रात में सड़कों पर रोशनी का प्रबंध है. जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है।

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प्रश्न 11.
धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के अनेक लाभ थे । पहला लाभ तो यह था कि इस तकनीक से मनचाही आकृति की मूर्ति बनाई जाती थी । मोम बर्बाद नहीं होता था । पिघलाकर निकालने के बाद उसे पुनः ठोस रूप में प्राप्त कर लिया जाता था। इस तकनीक में कम ही समय में अधिक मूर्तियाँ बनाई जा सकती थीं।

Bihar Board Class 7 Social Science शहर, व्यापारी एवं कारीगर Notes

पाठ का सार संक्षेप

पाठ में नगों के चार प्रकार बताये गये हैं :

  1. प्रशासनिक नगर
  2. मंदिर एवं तीर्थ स्थलीय नगर
  3. वाणिज्यिक नगर तथा
  4. बन्दरगाह अर्थात् पत्तनीय नगर ।

प्रशासनिक नगर सत्ता के केन्द्र थे । इन्हें राजधानी मान सकते हैं । शासक और रनव अधिकारी, परिवार तथा नौकर-चाकर रहते थे । शासक यहीं से सारा करता था । राज्य कर्मचारियों की आवश्यकता पूर्ति के लिए दुकानें हुआ करता थीं । यहाँ थोक और खुदरा, दोनों तरह के व्यापारी रहते थे । मंदिर एवं तीर्थ स्थलीय नगरों में भी दुकानें होती थीं । तीर्थ यात्रियों की आवश्यकता पूर्ति ये ही करते थे । वहाँ की प्रमुख एवं प्रसिद्ध वस्तुएँ दुकानकार ही बेचते थे।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है वाणिज्यिक नगर वाणिज्य व्यापार के केन्द्र थे । खास-खास वस्तुओं के लिए खास-खास केन्द्र थे । बन्दरगाह या पत्तनीय नगर विदेश व्यापार के केन्द्र थे । गाँवों में तैयार या उपजायी वस्तुएँ व्यापारिक नगरों में एकत्र होती थीं और वहाँ से पत्तन तक पहुँचाई जाती थी । वहाँ से

जहाजों द्वारा विदेशों में जाती थीं । बाद में विदेशी व्यापारियों के आने के कारण ये प्रशासनिक और सैनिक केन्द्र का रूप लेने लगे।

नगरों के मुख्य आकर्षण मडियाँ थीं । शहरों के बाजारों में देश-विदेश के व्यापारी आया-जाया करते थे । देश का आंतरिक व्यापार विकास पर था । बैलों और घोड़ों पर लादकर बंजारे यहाँ से वहाँ माल पहुँचाते रहते थे । आंतरिक व्यापार में बंजारों का प्रमुख स्थान था । ये सेना के लिये भी जरूरी सामान मुहैया कराते थे।

बड़े व्यापार कुछ खास-खास समुदाय ही करते थे, जैसे : उत्तर भारत में मुलतानी, गुजरातनी, दक्षिण भारत के मलय, चेट्टी एवं मूर । मूर व्यापारी अरब, तुर्की, खुरासान के मुस्लिम व्यापारी थे । भारत के पश्चिम तट पर सूरत, भड़ौच, खंभात, कालीकट, गोआ आदि बन्दरगाहों से मसाला, सूती कपड़ा, नील, जड़ी-बूटी पश्चिमी देशों में भेजे जाते थे । पूर्वी तट के बन्दरगाहों में हुगली, सतगाँव, पुलीकट, मसुलीपट्टनम, नागपट्टनम से कपड़ा, अनाज, सती धागा आदि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को भेजे जाते थे !

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर

भारत में सड़कों का जाल बिछा था । कुछ सड़क बन्दरगाहों से जुड़े थे । नदी मार्ग की भी प्रमुखता थी । बैलगाड़ी, बैल, घोड़े, खच्चर आदि व्यापारिक माल लाने-ले-जाने के काम करते थे । लेन-देन में सिक्कों की प्रमुखता थी । व्यापारियों का एक वर्ग सर्राफों का था । हँडियों का चलन भी था । सर्राफ बैंकर का भी काम करते थे ।

यूरोप के व्यापारी कपड़ों तथा मसालों के लिये भारत की खोज में लगे हुए थे । इसमें 1498 में पुर्तगाल का नाविक वास्को-डि-गामा उतमाशा अंतरीप होते हुए भारत पहुँचने में सफल हो गया । पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से लेकर लाल सागर तक के क्षेत्र में अपने को महत्त्वपूर्ण जहाजी शक्ति का इस्तेमाल कर इस रास्ते पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया ।

पुर्तगालियों ने गोवा, कालीकट, कोचीन, हुगली, मयलापुर में अपने सैनिक अड्डे स्थापित कर लिये। काली मिर्च, नील, शोरा, सृती वस्त्र, घोड़े उनके व्यापार की मुख्य वस्तुएँ थीं। सतरहवीं सदी में अन्य यूरोपीय देशों ने भी भारत में अपनी पहुँच दर्ज कराई। इनमें इंग्लैंड, हॉलैंड तथा फ्रांस के व्यापारी प्रमुख थे। इन्होंने तटीय क्षेत्रों में अपनी कोठियाँ बनाईं। व्यापार के सिलसिले में इन चारों युरोपीय देशों में संघर्ष हुआ, जिनमें सबको दबाकर अंग्रेज आगे निकल गये । ये छल और बल दोनों का इस्तेमाल करते थे।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 15 ऐसे-ऐसे

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 15 ऐसे-ऐसे Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 15 ऐसे-ऐसे

Bihar Board Class 7 Hindi ऐसे-ऐसे Text Book Questions and Answers

पाठ से –

प्रश्न 1.
माँ मोहन के “ऐसे-ऐसे” कहने पर क्यों घबड़ा रही थी?
उत्तर:
माँ “ऐसे-ऐसे” होता है, मोहन की इस बीमारी (बहाने) को समझ नहीं पा रही थी। दूसरी तरफ मोहन माँ को देख-देखकर और भी अधिक बेचैनी का श्वांग (नाटक) दिखाता था। इसलिए माँ घबड़ा रहीं थी।

प्रश्न 2.
ऐसे कौन-कौन से बहाने होते हैं जिन्हें मास्टर जी एक ही बार में सुनकर समझ जाते हैं ? ऐसे कुछ बहानों के बारे में लिखो।।
उत्तर:
प्रायः होमवर्क पूरा नहीं होने पर या स्कूल जाने से बचने के लिए । स्कूली बच्चे अनेक बहाने का सहारा लेते हैं उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं –

  1. सिर दुःखना
  2. पैर दर्द देना
  3. पेट दु:खना
  4. सिर घुमना (चक्कर आना) इत्यादि।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 15 ऐसे-ऐसे

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
स्कूल के काम से बचने के लिए मोहन ने कई बार पेंट में “ऐसे-ऐसे” होने का बहाने बनाए।
मान लो, एक बार सचमुच पेट में दर्द हो गया और उसकी बातों पर लोगों ने विश्वास नहीं किया, तब मोहन पर क्या बीती होगी।
उत्तर:
सचमुच में यदि मोहन के पेट में दर्द हो जाय तो उसे दवा लाकर भी कोई नहीं देगा और वह पेट दर्द से कराहता रह जाएगा तथा अपने किये अपराध पर पछतायेगा।

प्रश्न 2.
पाठ में आए वाक्य “लोचा-लोचा फिरे है” के बदले
इस तरह की अन्य पंक्तियाँ भी हैं जैसे –
इत्ती नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं,
राम मारी बीमारियों ने तंग कर दिया,
तेरे पेट में तो बहुत बड़ी दाढ़ी है।
अनुमान लगाओ, इन पंक्तियों को दूसरे ढंग से कैसे लिखा जा सकता हैं ?
इत्ती नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं।
उत्तर:
कितनी नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं।
बहुत-सी नयी-नयी बीमारियाँ निकली हैं।
राम मारी बीमारियों ने तंग कर दिया।
छोटी-छोटी बीमारियों ने तंग कर दिया।
अनेकों बीमारियों ने तंग कर दिया।

तेरे पेट में तो बहुत बड़ी दाढ़ी है।
उत्तर:
तुम तो बहुत बड़े बहानेबाज हो।
तुम्हारे पेट में तो दाढ़ी ही दाढ़ी है।

प्रश्न 3.
मान लीजिए ………. संवाद के रूप में लिखिए। (स्वयं)
उत्तर:
हेलो मोहन, कहो तबियत खराब हो गई है?
मोहन नहीं, मेरे दोस्त ऐसे ऐसे केवल हो रहा है।
(स्वयं) खुलकर बोलो “ऐसे-ऐसे” का अर्थ तो यूँ ही (कुछ भी नहीं) होता है। फिर क्या तुम्हारा वर्क नहीं पूरा हुआ है।
मोहन मेरे प्यारे दोस्त, यही तो हमारी बीमारी है। भला तुम कैसे “ऐसे-ऐसे” का अर्थ जान लिया ।
(स्वयं)”यूँ ही” मुझे भी कभी-कभी “ऐसे-ऐसे” हो जाता है जब स्कूल वर्क को छुट्टी में पूरा नहीं करता हूँ।
(दोनों ठहाके लगाते हैं)

प्रश्न 4.
संकट के समय के लिए ……….. कैसे बात करेंगे? कक्षा में करके बताइए।
उत्तर:
थाना नम्बर-हैलो खाजकेला पुलिस स्टेशन ! मैं मोगलपुरा से बोल रहा हूँ। अभी-अभी कुछ अपराधी किसी अप्रिय घटना की योजना बनाते हुए देखे गये हैं। कृपया शीघ्र आकर अपराधी को गिरफ्तार करें। तब तक मैं उन अपराधियों को रोकने का प्रयास करता हूँ।

फायर ब्रिगेड-(नम्बर) – हेलो फायर ब्रिगेड स्टेशन-मैं मोगलपुरा से बोल रहा हूँ। मेरे मोहल्ले के मकान संख्या 40 में आग लग गई है। ऊँची-ऊँची लपटें दिखाई पड़ने लगी हैं, शिघ्रातिशीघ्र पहुँचें।

डॉक्टर (नंबर)-हेलो डॉक्टर साहब, मैं आपके पुत्र अनोज का दोस्त मनोज बोल रहा हूँ। मेरी माँ तेज बुखार से काँप रही है। कृपया आकर देख लें। हाँ, कुछ दवाईयाँ भी साथ ले लेंगे।

कुछ करने को –

मास्टर …………….. स्कूल का कारण ………
मोहन जो सब काम …………
उत्तर:
इस स्थिति में नाटक का अंत दवाई खिलाकर होता ।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 15 ऐसे-ऐसे

ऐसे-ऐसे Summary in Hindi

सारांश – प्रस्तुत पाठ एक लघु नाटक है। जिसका मुख्य पात्र मोहन एक मास का ग्रीष्मावकाश खेल-कूद मार-पीट में बिता दिया। कल स्कूल खुलने _ वाला है। आजः मोहन को याद आया होमवर्क नहीं बन पाया। दो-चार दिन तो अवश्य लगेंगे होमवर्क बनाने में, कल ही स्कूल खुलेगा। वर्ग में पिटाई पड़ेगी । अतः उसने अबूझ पहेली “ऐसे-ऐसे” नामक बीमारी का सहारा लेकर . बेचैनी का नाटक करता है। माता-पिता “ऐसे-ऐसे” अबूझ पहेली को नहीं.. समझ पाये। पड़ोसिन आई पहेली को और भी असाध्य बना गई। दीनानाथ जी आये पहेली में उलझ गये, वैद्य जी आये, डॉक्टर साहब आये, अपने-अपने – ढंग से बीमारी को पकड़ा 15–20 रुपये की दवाईयाँ भी आ गयी । लेकिन मोहन की बीमारी को मास्टर साहब आते ही “ऐसे-ऐसे” में समझ गये । दो-चार दिनों की और छुट्टी मिल गई होमवर्क पूरा करने के लिए। दो-चार दिनों की छुट्टी नामक औषधि पाते ही मोहन चंगा हो जाता है। सभी हैरान हो जाते हैं और ठहाके लगाते हैं क्योंकि माता-पिता अपने पुत्र को अपने से भी चतुर मानते हैं।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 3 Chapter 5 न्यायपालिका Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका

Bihar Board Class 8 Social Science न्यायपालिका Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बच्चों के पिता ने क्या जवाब दिया होगा? सोचकर लिखिए।
उत्तर-
बच्चों के पिता ने दोनों बच्चों को डाँटा होगा कि तुम दोनों ही बदमाशी किये हो। उन्होंने यह भी कहा होगा कि आगे से आपस के झगडे में किताब-कॉपी मत फाड़ना नहीं तो दोनों को खूब मार पड़ेगी।

प्रश्न 2.
आपकी समझ में कौन सही है-गीता या उसके भाई ? आपस में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
गीता के भाई गलत थे। पिता की संपत्ति में सभी संतान का बराबर का हिस्सा होता है। अत: गीता को भी अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए था । अत: गीता सही थी। उसकी माँग सही थी । उसे भी अपने पिता की संपत्ति में से हिस्सा मिलना चाहिए था । यदि उसके भाई उसे स्वेच्छा से कुछ कम राशि भी दे देते तो वह खुशी से वह स्वीकार कर संतोष कर लेती ।

पर भाइयों ने उसे कुछ भी रकम नहीं दिया तो अदालत ने उसे बराबर का भागीदार बना अच्छी बल्कि भाइयों के समान राशि ही दिलवा दी। अतः मेरी समझ में गीता के भाई गलत थे और गीता सही थी।

प्रश्न 3.
क्या आप ग्राम कचहरी के फैसले से सहमत हैं?
उत्तर-
नहीं, ग्राम कचहरी के लोगों की मानसिकता गलत थी । अदालत ने उनके फैसले को खारिज कर उन्हें यह एहसास करा दिया होगा कि वे गलत . हैं। वे पुरानी पीढ़ी के प्रतिनिधि हैं जो नये संविधान और नये कानूनों की रोशनी से नितांत दूर हैं। मैं भी ग्राम कचहरी के फैसले से सहमत नहीं हूँ।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका

प्रश्न 4.
अदालत ने गीता के पक्ष में क्या फैसला सुनाया और क्यों ?
उत्तर-
अदालत ने गीता के पक्ष में फैसला सुनाया । अदालत का फैसला था कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत पिता की संपत्ति में बेटा हो या बेटी, सभी बराबर के हकदार हैं। अत: गीता के भाइयों को अपनी पैतृक संपत्ति का बंटवारा चार भागों में करना होगा। गीता को अदालत के फैसले से तीन लाख रुपए मिल गये ।

उसके तीन भाई और वह चारों के बीच पिता की जमीन को बेचकर भाइयों ने जो बारह लाख रुपये आपस में बांट लिये थे, उन्हें उसमें से तीन लाख रुपये गीता को देना पड़ा। अदालत ने गीता के अधिकारों की रक्षा करने के लिए उसके हक में फैसला सुनाया जो कि हमारे संविधान में उल्लेखित कानून के तहत आता

प्रश्न 5.
इस कहानी को पढ़ने के बाद न्याय के बारे में आपकी क्या समझ बनती है? इस पर अपनी शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
इस कहानी को पढ़ने के बाद मैं समझता हूँ कि न्याय लोगों के अधिकारों व उनके सम्मान की रक्षा करने के लिए निर्मित किये गये हैं। यदि किसी व्यक्ति के साथ कहीं अन्याय होता हो, तो वह न्याय पाने के लिए न्यायपालिका का द्वार खटखटा सकता है। वहाँ उसे न्याय अवश्य मिलेगा।

प्रश्न 6.
अपने शिक्षक की सहायता से इस तालिका में दिये गये खाली स्थानों को भरिए।
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका 1
उत्तर-
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका 2

प्रश्न 7.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए क्या-क्या किया गया?
उत्तर-
न्यायपालिका को विधायिका और कार्यपालिका से बिल्कुल ही स्वतंत्र रखा गया । सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार का सीधा हस्तक्षेप नहीं होता।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका

प्रश्न 8.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता में किस-किस तरह की बाधाएँ आती
उत्तर-
कई बार यह देखने में आता है कि कुछ ताकतवर लोग अपने पैसे और पहुँच का इस्तेमाल करके न्यायपालिका की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने की कोशिश करते हैं।

कई बार कुछ न्यायाधीश भी पैसे व तरक्की की लालच में फंसकर गलत फैसले देते हैं। इससे लोगों को उचित न्याय नहीं मिल पाता । इस तरह के गलत कामों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को गहरा धक्का लगता है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता में इस प्रकार की घटनाएँ बड़ी बाधाएँ हैं।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या आपको ऐसा लगता है कि इस तरह की नई न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक किसी भी ताकतवर या अमीर व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा जीत सकता है ? कारण सहित समझाइये।
उत्तर-
इस तरह की नई न्यायिक व्यवस्था में एक आम नागरिक किसी भी ताकतवर या अमीर व्यक्ति के विरुद्ध मुकदमा तभी जीत सकता है जबकि न्यायाधीश ईमानदार हो । न्यायाधीश यदि ईमानदारीपूर्वक फैसला देगा तभी एक गरीब व्यक्ति अमीर व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा जीत पायेगा । साथ ही, उस गरीब आदमी के पास लंबी न्यायिक प्रक्रिया से गुजरने के लिए पर्याप्त पैसे होने चाहिए ताकि वह लंबे समय तक अपना केस लड़ सके।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका

प्रश्न 2.
हमें न्यायपालिका की जरूरत क्यों है?
उत्तर-
कई बार लोगों का आपस में कुछ मुद्दों पर विवाद हो जाता है जो आपस में सुलझाना संभव नहीं होता । यहाँ तक कि स्थानीय पंचायत में भी वे विवाद नहीं सुलझ पाते । तब, फिर उस विवाद के निपटारे के लिए हमें न्यायपालिका की जरूरत पड़ती है। न्यायपालिका में संबंधित विवाद पर पक्ष-विपक्ष के वकील बहस करते हैं। उन्हीं बहस को सुनकर हमारे संविधान में लिखित कानूनों के आलोक में न्यायाधीश न्याय करते हैं।

प्रश्न 3.
निचली अदालत से ऊपरी अदालत तक हमारी न्यायपालिका की संरचना एक पिरामिड जैसी है। न्यायपालिका की संरचना को पढ़ने के बाद उसका एक चित्र बनाएँ।
उत्तर-
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 5 न्यायपालिका 3

प्रश्न 4.
भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाने के लिए क्या-क्या कदम उठाये गये हैं?
उत्तर-
भारत में न्यायपालिका को स्वतंत्र बनाने के लिए इसे विधायिका और कार्यपालिका से सर्वथा स्वतंत्र रखा गया है। यहाँ तक कि सर्वोच्च और उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार सीधे-सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोई भी ताकवर व्यक्ति न्यायाधीशों पर अपने पद या रुतबा का धौंस नहीं दिखा सकता। ऐसा करने पर वह व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने के जुर्म में दंड का भागी बन जा सकता है।

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प्रश्न 5.
आपके विचार में भारत में न्याय प्राप्त करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा कौन-सी है ? इसे दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
कानूनी प्रक्रिया में काफी पैसा व समय लगता है और ऊपर से कागजी कार्यवाही की भी जरूरत पड़ती है। यह काम वकीलों का होता है। इस प्रक्रिया को आम लोगों के लिए समझ पाना मुश्किल होता है। गरीब इंसान के लिए यह सब कर पाना, समझ पाना और लंबी अवधि तक चलने वाले मुकदमे के लिए आवश्यक धनराशि का जुगाड़ कर पाना मुश्किल होता है। कोर्ट कचहरी के काम में समय काफी लगता है क्योंकि यह ध्यान रखना होता

है कि जल्दबाजी में किसी के साथ अन्याय न हो। इस वजह से कई केस सालों-साल खिंचते जाते हैं और लोगों के लिए अपना काम-धंधा छोड़कर नियमित रूप से कोर्ट-कचहरी जा पाना मुश्किल होता है। वैसे तो ये समस्याएँ सभी वर्ग के लोगों के लिए हैं पर गरीब लोगों के लिए तो ऐसा करना बेहद मुश्किल होता है।

न्याय की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए, सभी तरह के न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ, गरीब लोगों के लिए नि:शुल्क या कम पैसों में कानूनी सहायता की व्यवस्था करना और जनहित याचिकाएँ, ये उपाय किये जाने जरूरी हैं।

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प्रश्न 6.
अगर भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र न हो तो नागरिकों को न्याय प्राप्त करने के लिए किन-किन मश्किलों का सामना करना पड सकता है?
उत्तर-
अगर भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र न हो तो आम नागरिकों को न्याय प्राप्त करना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाएगा। एक तो पैसे वालों का बोलबाला हो जाएगा। दूसरे दबंगों की चलती हो जाएगी। फिर तो, समाज में जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत लागू हो जाएगी। गरीब आदमी

यदि अस्वतंत्र न्यायपालिका में जायेगा तो वहाँ न्यायाधीश बिका हुआ तैयार – मिलेगा जो पैसों वाले के पक्ष में ही फैसला करेगा। फिर तो समाज में अँधेरगर्दी – मच जाएगी, पूँजीतंत्र और गुंडावाद हावी हो जाएगा।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

Bihar Board Class 7 Social Science शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लिंगराज और. महाबोधि मंदिर की संरचना में क्या. अंतर दिखता है ?
उत्तर-
लिंगराज मंदिर का ऊपरी भाग जहाँ कम पतला है वहीं महाबोधि मंदिर का ऊपरी भाग नुकीला होता गया है । लिंगराज मंदिर के पास छोटे मंदिरों का एक समूह दिखाई देता है वहीं महाबोधि मंदिर में मात्र दो ही छोटे मंदिर दिख पाते हैं।

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प्रश्न 2.
कोणार्क का सूर्य मंदिर तथा मीनाक्षी मंदिर के ऊपरी भागों में क्या अंतर है?
उत्तर-
कोणार्क का सूर्य मंदिर का शिखर मीनाक्षी मंदिर की अपेक्षा छोटा है। कोणार्क मंदिर का शिखर त्रिकोणकार है जबकि मीनाक्षी मंदिर का शिखर चौकोर है और ऊपर धनुषाकर होता गया है।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

आओ याद करें :

प्रश्न 1.
मध्यकाल में मंदिर निर्माण की कितनी शैलियाँ मौजूद थीं ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर-
(ग) तीन

प्रश्न 2.
बिहार में नागर शैली में बने मंदिरों का सबसे अच्छा उदाहरण । कौन-सा है?
(क) महाबोधि मंदिर
(ख) देव का सूर्य मंदिर
(ग) पटना का महावीर मंदिर
(घ) गया का विष्णु मंदिर
उत्तर-
(क) महाबोधि मंदिर

प्रश्न 3.
मुसलमानों द्वारा बिहार में बनाई गई सबसे महत्त्वपूर्ण इमारत कौन है ?
(क) मलिकबया का मकबरा
(ख) बेगु हजाम की मस्जिद
(ग) तेलहाड़ा की मस्जिद
(घ) मनेर की दरगाह ।
उत्तर-
(घ) मनेर की दरगाह ।

प्रश्न 4.
मुगलकालीन स्थापत्य कला अपने चरम पर कब पहुँचा?
(क) अकबर के काल में
(ख) जहाँगीर के काल में
(ग) शाहजहाँ के काल में
(घ) औरंगजेब के काल में
उत्तर-
(ग) शाहजहाँ के काल में

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प्रश्न 5.
शाहजहाँ ने लाल किला का निर्माण दिल्ली में किस वर्ष करवाया ?
(क) 1638
(ख) 1648
(ग) 1636
(घ) 1650
उत्तर-
(क) 1638

आओ याद करें

प्रश्न 1.
सही और गलत की पहचान करें :

  1. उत्तर भारत में मंदिर निर्माण की द्राविड़ शैली प्रचलित थी ।
  2. कोणार्क का सूर्य मंदिर बंगाल में स्थित है।
  3. मुगलकालीन वास्तुकला अकबर के शासन काल में अपने चरम । विकास पर पहुँचा ।।
  4. शेरशाह का मकबरा सल्तनत काल और मुगल काल की वास्तुकला के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता है ।
  5. बिहार में मुस्लिम उपासना स्थल निर्माण का प्रथम उदाहरण बेगुहजाम मस्जिद है ।

उत्तर-

  1. गलत है। सही है कि ‘नागर शैली’ प्रचलित थी।
  2. गलत है । सही है कि ‘उड़ीसा’ में है ।
  3. गलत है । सही है कि ‘शाहजहाँ’ के शासन काल में।
  4. सही है।
  5. गलत है । सही है कि मनेर का दरगाह प्रथम उदाहरण है ।

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आइए विचार करें

प्रश्न 1.
मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान कैसे होता है ?
उतर-
मध्यकालीन शासकों ने जितने मंदिर बनवाये, यह उनकी आस्था का प्रतीक तो था ही, यह भी सम्भव है कि वे राजा प्रजा को यह दिखाना चाहते हों कि वे उनकी आस्था को भी आदर देना चाहते हैं । वे प्रजा से अपने आदर के भी आकांक्षी थे। वे यह भी दिखाना चाहते थे कि वे न सिर्फ सैनिक शक्ति में, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत हैं । वे वास्तकारों को रोजगार भी महया कराना चाहते थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान निश्चित ही प्राप्त होता है ।

प्रश्न 2.
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर आप क्या अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर हम यह अंतर पाते हैं कि वर्तमान में ईंट, बालू, सीमेंट, छड़ की प्रधानता रहती है । कुछ धनी-मानी लोग फर्श बनाने में, संगमरमर का उपयोग भी करते हैं । इसके पूर्व अंग्रेजी काल में ईंट, चूना-सूर्जी का गारा, लकड़ी और छड़ आदि का उपयोग होता था । 1950 के पहले के बने इमारतों में ये ही सामग्रियाँ व्यवहार की जाती थीं । मध्यकालीन इमारतों में मुख्य सामग्री पत्थर थे । पत्थरों को तराशा जाता था । मन्दिरों की बाहरी और भीतरी दीवारों को विभिन्न प्रकार की मूर्तियों से अलंकृत किया जाता था ।

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प्रश्न 3.
मंदिर निर्माण की नागर और द्रविड़ शैलियों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
मंदिर निर्माण की नागर और द्राविड़ शैलियों का उपयोग साथ-साथ ही हुआ । नागर शैली जहाँ उत्तर भारत में प्रचलित थी वहीं द्राविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित थी । नागर शैली के मंदिर आधार से शीर्ष तक आयताकार एवं शंक्वाकार संरचना से बने होते थे । शीर्ष क्रमशः नीचे से ऊपर पतला होता जाता है, जिसे शिखर कहा जाता था । प्रधान देवता की मूर्ति जहाँ स्थापित होती थी, उसे गर्भ गृह कहते थे । मंदिर अलंकृत स्तंभों पर टिका होता था। चारों ओर प्रदक्षिणा पथ भी होता था ।

द्राविड़ शैली की विशेषता थी कि गर्भ गृह के ऊपर कई मंजिलों का निर्माण होता था जो न्यूनतम 5 और अधिकतम 7 मंजिल तक होते थे । स्तंभों पर टिका एक बड़ा कमरा होता था, जिसे मंडपम कहा जाता था । गर्भ गृह के सामने अलंकृत स्तंभों पर टिका एक बडा कक्ष होता था, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान किये जाते थे । प्रवेश द्वार भव्य और अलंकृत होता था । इसे गोपुरम कहा जाता था ।

Bihar Board Class 7 Social Science शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Notes

पाठ का सार संक्षेप

महल हो या मंदिर इन सबका बनना समय की सम्पन्नता के सचक होते हैं। जब साधारण किसान. या व्यापारी को धन होता है तो वह अपना घर बनवाता है । वैसे ही राजाओं और बादशाहों द्वारा निर्मित महल, किला और मंदिर उनकी सम्पन्नता के सूचक हैं। ऐसे निर्माणों से कारीगरों को रोजी मिलती ही है, कला-कौशल जीवित रहता है । मध्यकालीन शासकों ने स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने प्रस्तुत किए।

आठवीं से अठारहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न शैलियों में विभिन्न इमारतें, किले, मंदिर, मस्जिद और मकबरे बने । आठवीं से तेरहवीं सदी के बीच जो मंदिर बने वे सभी नगर और द्राविड़ नामक दो शैलियों में बने । उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर, सूर्य मंदिर, मध्य प्रदेश में खजुराहो मंदिर अपनी सभ्यता और सुन्दरता में सानी नहीं रखते । ये मंदिर नागर शैली के हैं। ऊपरी शीर्ष को शिखर कहा जाता है । मंदिर के केंद्रीय भाग प्रमुख देवता के लिए होता था, जिसे गर्भ गृह कहा जाता है ।

कोणार्क का सूर्य मंदिर रथ के आकार का है । वह इसलिये कि सूर्य अपने रथ पर ही घूमते हैं, जिनमें सात घोड़े जुते रहते हैं। इस मंदिर में भी रथ के पहिये तथा सात घोडों का आकार उकेरित है।

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तेरहवीं से सोलहवीं सदी के बीच, मुस्लिम शासकों द्वारा इमारतों का निर्माण हुआ। ये शासक तुर्क और अफगान थे । सर्वप्रथम इन्होंने अपने रहने के लिए भवन बनवाये । बाद में उपासना हेतु मस्जिदों का निर्माण कराया ।

इन्होंने पहले से मौजूद कुछ मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों में परिवर्तित किया । तुर्क-अफगानों ने पहली मस्जिद कुतुबमीनार परिसर में बनाया, जिसका नाम कुव्वत-उल-इस्लाम रखा । इस काल की शैली में परिवर्तन के साथ ही सामग्री में भी बदलाव आए । हिन्दू मंदिर और किले जहाँ पत्थरों को तराशकर बनाए जाते थे वहीं अब ईंट का उपयोग होने लगा। चूना और सूर्जी के मिश्रण से गारा बनाया जाता था ।

कुतुबमीनार के प्रवेश द्वार ‘अलाई दरवाजा’ को बनाने में पूर्णतः वैज्ञानिक विधि अपनाई गई। तुगलककालीन स्थापत्य कला में गयासुद्दीन का मकबरा में एक नई शैली का इजाद हुआ । इस काल के इमारत ऊँचे चबूतरे पर बनाये जाते थे ।

जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत कमजोर होता गया, वैसे-वैसे कारीगर इध र-उधर बिखरते गये। अब स्थानीय शासकों ने भवन बनवाये । जौनपुर की ‘आटाला मस्जिद’ इसी का प्रमाण है । जौनपुर के अलावा गुजरात, बंगाल और मालवा के स्थानीय शासकों ने कला को काफी संरक्षण दिया। बिहार में भी तुर्क-अफगान शैली में ‘इमारतों का निर्माण हुआ । बिहार शरीफ का मलिक इब्राहिम का मकबरा, तेलहरा की मस्जिद, बेगुहजाम की मस्जिद उसी कला के नमूने हैं।

आगे चलकर मुगल काल में अनेक इमारतें बनीं । मुगलों ने भव्य महलों, किलों, विशाल द्वारों, मस्जिदों एवं बागों का निर्माण कराया । बाबर ने चार बाग की योजना बनाई थी। उसके वंशजों ने उसे कार्य रूप में परिणत किया । कुछ सर्वाधिक सुन्दर बागों में कश्मीर, आगरा, दिल्ली आदि में जहाँगीर और शाहजहाँ के बनवार्य बाग हैं ।

अकबर द्वारा बनवाई इमारतों में इस्लामिक, हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा स्थानीय वास्तुशैलियों को प्रश्रय दिया गया । उसने आगरा तथा फतहपुर सिकरी में किले और महलों का निर्माण कराया । उसका बनवाया बुलन्द दरवाजा उसी समय की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है । हुमायूँ का मकबरा संगमरमर का बना है । एमतादुदौला के मकबरा में पहली बार ‘पितरादूरा’ का उपयोग हुआ ।

शाहजहाँ का शासन काल, भव्य इमारतों का काल था । शाहजहाँ ने पितरादूरा का उपयोग खूब किया । ताजमहल की गिनती विश्व के सात आश्चर्यों में होती है। शाहजहाँ ने दिल्ली और आगरे में लाल किले का निर्माण कराया । शाहजहाँ के काल में निर्माण कार्य अनवरत रूप में चलते रहे । ताजमहल में सिंहासन के पीछे ‘पितरादूरा’ उकेरित है ।

औरंगजेब के शासन काल में निर्माण कार्य ठप रहा । उसने लाल किला में मोती मस्जिद बनवाई । औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में उसने अपनी पत्नी का मकबरा बनवाया जो ‘बीबी का मकबरा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

बिहार में भी मुगलकालीन शैली का नमूना है । वह है मनेर स्थित शाह दौलत का मकबरा, जो 1617 में बना । इसमें अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । अवध के नवाबों ने भी अनेक भवन बनवाए जिसमें ‘भुलभुलैया’ काफी प्रसिद्ध है।

बिहार के भवनों में शेरशाह का मकबरा भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक झील के बीच में बना अष्टकोणीय इमारत अफगान वास्तुकला की कहानी कह रहा है। यह 1545 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था । शायद शेरशाह को अपने उत्तराधिकारियों की योग्यता का विश्वास नहीं था । इसलिए उसने अपना मकबरा अपने जीवन काल में ही बनवा लिया था ।