Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 4 कानून की समझ

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 3 Chapter 4 कानून की समझ Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 4 कानून की समझ

Bihar Board Class 8 Social Science कानून की समझ Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जब एक केन्द्रीय मंत्री के भाई को हत्या के आरोप में सजा सुनायी गयी तो वह अपने भाई को राज्य से बाहर भाग निकलने में विशेष मदद करता है। क्या आपको लगता है कि उस केन्द्रीय मंत्री ने सही काम किया ? क्या उसके भाई को केवल इसलिए कानून से माफी मिलनी चाहिए क्योंकि उसका भाई आर्थिक और राजनैतिक रूप से बहुत ताकतवर है?
उत्तर-
नहीं, उस केन्द्रीय मंत्री ने अपने हत्या के आरोपी भाई को राज्य से बाहर भगाकर सही काम नहीं किया । ऐसा कर वह स्वयं भी कानून का अपराधी बन गया । कानून सभी के लिए समान है और उसे मानना छोटे-बड़े सभी लोगों का राष्ट्रीय धर्म है।

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प्रश्न 2.
कानून बनाते समय संविधान की किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
अलग-अलग समूह बनाकर इस विषय पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
रमेश : समाज के लिए सुनिश्चित कानून-व्यवस्था बेहद जरूरी
मुकेश : सही है । कानून मानव कल्याण और मानवीय अधिकारों के आधार पर बनाये जाते हैं।
समय : कानून आम तौर पर स्थिर और निश्चित होते हैं …..।
रेशु : हाँ, पर किसी विशेष परिस्थिति या जनता के पुरजोर विरोध किये जाने पर खास कानूनों को संशोधित किया जाता है।
हेमा : हाँ, कई बार तो सरकार अलोकप्रिय कानूनों को जन-दबाव में वापस भी ले लिया करती है।
संतोष : कुल मिलाकर कानून बनाते वक्त जनता के हितों को ध्यान में रखना सर्वोपरि है।

प्रश्न 3.
मान लीजिए आपके विद्यालय में बाल मजदूरी के विरुद्ध अभियान चल रहा है और आपको उसके लिए पोस्टर बनाने को कहा जाए तो आप क्या बनाएँगे ? ऊपर दी गई जगह पर बनाएँ।

आओ मिलकर
यह प्रण लें ……
उत्तर-
आओ मिलकर
यह प्रण लें
कि हम सब
बाल मजदूरी का
विरोध करेंगे।

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प्रश्न 4.
अपनी शिक्षिका की मदद से, कुछ ऐसे कानूनों की सूची बनाएँ जो जनता के दबाव में वापस ले लिये गये।
उत्तर-
जनता के दबाव में कई अलोकप्रिय कानूनों को सरकार ने वापस ले लिया । जैसे-बिहार प्रेस बिल 1980, उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में लागू सशस्त्र सेना अधिनियम, 1974 से 1976 के बीच कांग्रेस द्वारा देश पर थोपे गये आपातकाल में प्रेस और लोगों की आजादी पर लगायी गयी सख्त रोक । आपातकाल को भी लोगों के जबर्दस्त विरोध पर वापस लेना पड़ा था।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
कानून के शासन से आप क्या समझते हैं ? एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
कानून के शासन का अर्थ है कि देश के सभी नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या वर्ग के हों, छोटे या बड़े, ऊँचे या नीच जाति के हों, सभी पर वह कानून समान रूप से लागू होता है। जैसे, बाबरी मस्जिद के विध्वंस पर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को मस्जिद की’ सुरक्षा न कर पाने के जुर्म में एक दिन के जेल की सजा भुगतनी पड़ी थी।

अभी भी तिहाड़ जेल में कुछ केन्द्रीय मंत्री और बड़े अधिकारी सजा भुगत रहे हैं। कानून समर्थ और लाचार, किसी नागरिक के बीच भेदभाव नहीं करता । सब पर कानून के नियम समान रूप से लागू होते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में कानून बनाने की प्रक्रिया की मुख्य बातों को अपने शब्दों में लिखिये।
उत्तर-
भारत में कानून बनाने का कार्य देश की संसद करती है । पहले जनता के बीच किसी कानून को बनाने के लिए चर्चा एवं बहस होती है । फिर सरकार द्वारा सदन में कानून के सम्बन्ध में विधेयक पेश किया जाता है । इस पर सदन में चर्चा बहस होती है। फिर या तो विधेयक पारित किया जाता है या रद्द कर दिया जाता है। एक सदन से पारित विधेयक को दूसरे सदन में भेजा जाता है।

दूसरे सदन में चर्चा/बहस के बाद आवश्यक संशोधन के बाद उसे पारित कर दिया जाता है। फिर विधेयक को राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजा जाता है। फिर सहमति के बाद विधेयक कानून बन जाता है।

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प्रश्न 3.
आपके विचार में शिक्षा के अधिकार के कानून में किन-किन बातों को शामिल करना चाहिए और क्यों ?
उत्तर-
मेरे विचार में शिक्षा के अधिकार के कानून में हर वर्ग के बच्चों को उच्च शिक्षा तक मुफ्त शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए । ऐसा इसलिए कि शिक्षा ही राष्ट्र के सम्मान को बढ़ाती है। शिक्षित समाज ही विकसित समाज होता है। अतः सभी बच्चों को शिक्षा पाने का अधिकार होना चाहिए और शिक्षा जगत में छोटे-बड़े का भेद नहीं होना चाहिए।

ऐसा कानून बनने पर आज जो स्कूल-कॉलेज शिक्षा के नाम पर दूकान बनते जा रहे हैं, ऐसा .. होना बंद हो जायेगा । पूर्व में भी तो राजे-महाराजे गुरुकुलों को आर्थिक मदद

देकर शिक्षा का संचालन धार्मिक कार्य की तरह करवाया करते थे तो अब जनता की सरकार तमाम जनता को उच्च शिक्षा तक शिक्षित होने का अधिकार और सुविधा क्यों नहीं दे सकती !

प्रश्न 4.
अगर किसी राज्य या केन्द्र की सरकार ऐसा कोई कानून बनाती है जो लोगों की जरूरतों के अनुसार न हो, तो आम लोगों को क्या करना चाहिए?
उत्तर-
यदि राज्य या केन्द्र की सरकार ऐसा कोई कानून बनाती है जो लोगों की जरूरतों के अनुसार न हो, तो आम लोगों को ऐसे कानून के विरोध में धरना-प्रदर्शन आदि कर अपना विरोध जताना चाहिए। साथ ही, जनता को ऐसे कानून के विरोध में न्यायालय की शरण भी लेनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
मान लीजिए आप प्रतिरोध नामक महिला संगठन के सदस्य हैं और आप बिहार राज्य में शराबबंदी पर कानून लागू करवाना चाहते हैं। इस विषय में अपने राज्य के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन लिखिये जिसमें शराबबंदी के कानून की आवश्यकता के बारे में बताया गया हो।
उत्तर-
सेवा में,
मुख्यमंत्री, बिहार

हम ‘प्रतिरोध’ नामक महिला संगठन के सदस्य, आपसे सविनय निवेदन करना चाहता है कि कृपा कर अपने राज्य में शराबबंदी पर कानून लागू कराएँ। आम जनता की गाढ़ी कमाई शराब जैसी विलास सम्बन्धी चीज के पीछे नाहक बर्बाद हो रही है। शराबखोरी ने छेड़खानी, लूट-खसोट, बलात्कार, हत्या जैसे कई अपराधों को बढ़ावा देने का अनैतिक कार्य किया है।

शराबखोरी को बढ़ावा देने का कोई औचित्य नहीं है। अतः आप जैसे सहृदय और विवेकी मुख्यमंत्री से सादर निवेदन है कि हमारे राज्य में शराबबंदी का कानून सख्ती से लागू किया जाए।

सदस्यगण
‘प्रतिरोध’
(जागरूक महिला संगठन)

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प्रश्न 6.
अगर पटवारी के पास जमीन दर्ज करवाने का कानून न हो, तो आम लोगों को किन-किन असुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है ?
उत्तर-
अगर पटवारी के पास जमीन दर्ज करवाने का कानन न हो, तो आम लोगों को इसके लिए शहर जाकर अदालत के चक्कर लगाने का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। ऐसा करना उनके लिए शारीरिक और आर्थिक दोनों रूप से कष्टप्रद होगा। पैसों का अनुचित खर्च अलग और शारीरिक परेशानी अलग । जबकि पटवारी के पास जमीन दर्ज करवाने के कानून से ग्रामीणों को हर प्रकार की सुविधा हो जाती है। वह भी उनके गाँव में ही।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 22 समय का महत्व

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 22 समय का महत्व Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 22 समय का महत्व

समय का महत्व Summary in Hindi

समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना,

चला गया तो समय लौटकर, कभी नहीं फिर आता।
सदा समय को खोने वाला, मल-मल हाथ पछताता,
जिसने इसे न माना उसको समय सदा ठुकराता ।
लाख यत्न करने पर भी फिर हाथ न उसके आता,
हो जाता है एक घड़ी के लिए जन्म-भर रोना।
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना ।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 22 समय का महत्व

धन खो जाता, श्रम करने से फिर मनुष्य है पाता,
स्वास्थ्य बिगड़ जाने पर, उपचारों से है बन जाता।
विद्या खो जाती, फिर भी पढ़ने से है आ जाती,
लेकिन खो जाने से मिलती नहीं समय की थाती।
जीवन-भर भटको छानो दुनिया का कोना-कोना,
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खाना।

किया मान आदर जिसने भी, और इसे अपनाया,
जिसने आँका मूल्य उससे इसने है अमर बनाया।
महापुरुष हो गए विश्व में जितने यश के भागी,
सब जीवन पर्यंत रहे हैं पल-पल के अनुरागी।
उचित प्रयोग समय का ही है, सफल मनोरथ होना,
समय बहुत ही मूल्यवान है, व्यर्थ कभी मत खोना ।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Bihar Board Class 12 Economics सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, प्रशासन आदि वस्तुओं या सेवाओं को सार्वजनिक वस्तु कहते हैं। सार्वजनिक वस्तुएँ निम्नलिखित कारणों से सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराई जाने चाहिए –

  1. सार्वजनिक वस्तुओं के लाभ केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं होते हैं, बल्कि इनके लाभ सभी लोगों को प्राप्त हो सकते हैं। इनका प्रयोग प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होता है। एक व्यक्ति दूसरों के लाभ में कमी किए बिना वस्तु का लाभ उठा सकता है।
  2. वह व्यक्ति, जो निजी वस्तुओं का भुगतान करने की इच्छा व सामर्थ्य नहीं रखता है निजी वस्तु के उपयोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के बारे में यह सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता है। किसी भी व्यक्ति को, जो भुगतान कर सकता है या नहीं सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग से वंचित नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. सरकारी व्यय का वह भाग, जिससे भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है, राजस्व व्यय कहलाता है, इसके विपरीत सरकारी व्यय का वह भाग, जिससे भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है, पूंजीगत व्यय कहलाते हैं।
  2. सरकारी विभागों के सामान्य संचालन के लिए राजस्व व्यय किए जाते हैं, इसके अलावा ऋणों पर ब्याज भुगतान, राज्य सरकारों एवं अन्य संस्थाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी राजस्व व्यय कहलाते हैं। दूसरी ओर भूमि, इमारत, मशीनों, अंश पत्रों में निवेश, राज्य सरकार को दिए जाने वाले ऋण एवं अग्रिमों पर किए जाने वाले व्यय पूंजीगत व्यय कहलाते हैं।
  3. राजस्व व्यय को योजना व गैर योजना व्यय में बाँटा जाता है, इसी प्रकार पूंजीगत व्यय भी योजना एवं गैर योजना व्यय में वर्गीकृत किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार का ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
बजट घाटे से अभिप्राय है कि सरकार एक लेखा वर्ष की अवधि में प्राप्तियों से अधिक व्यय करती है। राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय एवं ऋण प्राप्तियों के अलावा अन्य प्राप्तियों के अंतर के समान होता है। राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – (कुल राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ) = ऋण प्राप्तियाँ
अतः राजकोषीय घाटे के लिए वित्त व्यवस्था ऋणों के माध्यम से की जाती है। सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए घरेलू अथवा विदेशी अथवा दोनों प्रकार के ऋण ले सकती है।

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प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा-एक लेखा वर्ष की अवधि में सरकार के कुल राजस्व व्यय एवं कुल राजस्व प्राप्तियों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे में सरकारी चालू वर्ष के व्यय एवं प्राप्तियों को सम्मिलित किया जाता है, राजस्व व्यय वचनबद्ध व्यय होते हैं, इन्हें सरकार कम नहीं कर सकती है। राजस्व घाटे का वित्तीयन सरकार या तो भूतकाल की बचतों से करती है अथवा ऋण लेती है।

राजकोषीय घाटा:
एक लेखा वर्ष की अवधि में सरकार के कुल व्यय एवं गैर ऋण प्राप्तियों के अन्तर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। राजकोषीय घाटे का वित्तीयन घरेलू अथवा विदेशी ऋणी से किया जाता है। राजस्व घाटे से राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो
(a) सन्तुलन आय का स्तर क्या है?
(b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें।
(c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोतरी होती है, तो सन्तुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
निवेश I = 200 सरकारी खरीद G = 150
शुद्ध कर T = 100
उपभोग C = 100 + 0.75 y

(a) साम्य राष्ट्रीय आय Y = – (C – CT + CTR + I + G)
= \(\frac{1}{1-0.75}\) (100 – 0.75 × 100 + 200 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 – 75 + 200 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 – 75 + 200 + 150) = \(\frac{375}{0.25}\) = \(\frac{375 × 100}{25}\)

(b) सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.75}\) = \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4
कर गुणांक = \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = –\(\frac{75}{25}\) = -3

(c) ∆G = 200
नई साम्य आय = \(\frac{1}{1-C}\) = [C – CT + I + G + ∆G]
\(\frac{1}{1-0.75}\) [100 – 0.75 × 100 + 200 + 150 + 200]
= \(\frac{1}{0.25}\) [100 – 75 + 200 + 150 + 200]
= \(\frac{1}{0.25}\) × 575 = \(\frac{100×575}{25}\) = 2300
उत्तर:
(a) साम्य आय = 1400
(b) सरकारी व्यय गुणांक = 4
(c) नई साम्य आय = 2300
कर गुणांक = -3

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प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन है –
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का सन्तुलन स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोतरी का भुगतान किया जा सके, तो सन्तुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
(a) C= 20 + 0.80Y;
I = 30 G = 50 TR = 100
साम्य आय Y = \(\frac{1}{1-C}\) [C + CTR + I + G + G]
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 × 50]
= \(\frac{1}{0.20}\) [20 + 80 + 30 + 50] = \(\frac{1}{0.20}\) × 180 = 900
सरकारी व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.80}\) = \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{100}{20}\) = 5

(b) सरकारी व्यय में वृद्धि ∆G = 30
नई साम्य आय Y’ = \(\frac{1}{1-C}\) (C + CTR + I + G + ∆G)
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 + 50 + 30]
= \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{210 × 100}{20}\) = 1050
अथवा, आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆G}{1-C}\) = \(\frac{30}{1-0.80}\) = \(\frac{30}{0.20}\) = \(\frac{30 × 100}{20}\) = 150

(c) एकमुश्त किश्त ∆T = 30
आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆T(-C)}{1-C}\) = \(\frac{30(-0.80)}{1-0.80}\) = \(\frac{30 × – 0.80}{0.20}\)
= \(\frac{100 × 30 × -80}{20 × 100}\) = – 120
नई साम्य आय = Y + ∆Y = 900 + (- 120) = 780
उत्तर:
(a) साम्य आय = 900
व्यय गुणांक = 5

(b) नई साम्य आय = 1050
अथवा, साम्य आय में परिवर्तन = 150

(c) नई साम्य आय = 780
अथवा, आय में परिवर्तन = – 120

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प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10 की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10 की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
उपरोक्त प्रश्न में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति C = 0.80, C = 20, I = 30, G = 50, TR = 100, ∆TR = 10
साम्य आय = \(\frac{1}{1-C}\) = [C + CTR + I + G + ∆TR]
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 + 50 + 8]
= \(\frac{188}{0.20}\) = \(\frac{188×100}{20}\) = 940
आय में परिवर्तन = 940 – 900 = 40
अथवा, आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆TR.C}{1-C}\) = \(\frac{10×0.80}{1-0.80}\) = \(\frac{8}{0.20}\) = \(\frac{8×100}{20}\) = 40
एकमुश्त कर में वृद्धि ∆T = 10
आय में परिवर्तन = \(\frac{∆T(-C)}{1-C}\) = \(\frac{10×-(0.8)}{1-0.80}\) = \(\frac{-8}{0.20}\) = \(\frac{8×100}{20}\) = – 40
उत्तर:
हस्तांतरण भुगतानों में 10 वृद्धि से आय में वृद्धि = 40
कर में 10 वृद्धि से आय में कमी = 40

प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, I = 90, G = 3D 100, T = 0.10Y
(a) सन्तुलन आय ज्ञात कीजिए।
(b) सन्तुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट सन्तुलित बजट है?
हल:
C = 70 + 70YD, I = 90, G = 100, T = 0.10Y
(a) Y = C + I + G
Y = 70 + 70YD + 90 + 100
Y = 70 + 70 (Y – T) + 190
= 260 + 70Y – 0.7 Y
Y = 260 + 0.63 Y
Y – 0.63 Y = 260
Y = \(\frac{260}{0.37}\) Y = 702.7 = 70.27

(b) सरकारी व्यय = 100
कर राजस्व = 70.27
G > T
नहीं, सरकारी बजट सन्तुलित है, सरकार का व्यय प्राप्तियों से अधिक है। अतः सरकार का बजट घाटे का बजट है।

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प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। सन्तुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें।
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि।
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
(a) अनुपातिक कर की स्थिति में
∆Y = \(\frac{1 × ∆G}{1-C(1-t)}\) = \(\frac{1 × 20}{1-0.75(1-(0.2)}\) = \(\frac{20}{1-0.75 × 0.8}\)
= \(\frac{20}{1+0.600}\) = \(\frac{20}{0.4}\) = \(\frac{20 × 10}{4}\) = 50
(b) ∆Y = \(\frac{C}{1-C)}\) ∆TR = \(\frac{0.75}{1-0.75}\) × 20 = \(\frac{75}{25}\) × 20 = 3 × 20 = 60
उत्तर:
(a) आय में वृद्धि = 50
(b) आय में वृद्धि = 60

प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणांक की तुलना में कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य कम होता है। सार्वजनिक व्यय प्रत्यक्ष रूप से कुल को प्रभावित करता है लेकिन कर गुणक प्रक्रिया में प्रवेश करके प्रयोज्य आय को प्रभावित करता है। प्रयोज्य आय उपभोग व्यय को प्रभावित करती है। कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणांक से एक इकाई छोटा होता है, इसे एक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है –
माना अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति C = 0.75
सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.75}\) (C का मूल्य रखने पर)
= \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{0.75}{1-0.75}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3
कर गुणांक का निरपेक्ष मान = + 3
इस प्रकार कर गुणांक का निरपेक्ष मान 3, सार्वजनिक व्यय गुणांक से 1 कम है।

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प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या सम्बन्ध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटा तथा ऋण दोनों में घनिष्ठः सम्बन्ध है। सरकारी घाटा एक प्रवाह है, जबकि सरकारी ऋण एक स्टॉक है। सरकारी घाटा (प्रवाह) सरकारी ऋण स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष दर वर्ष सार्वजनिक घाटे को पूरा करने के लिए ऋण लेती है, तो ऋण के भार में बढ़ोतरी होती जाती है और सार्वजनिक ऋणों का भुगतान बढ़ जाता है, क्योंकि ऋणों का ब्याज भुगतान स्वयं ऋण भार को और अधिक बढ़ाता है।

प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. सरकार वर्तमान पीढ़ी को बाँड जारी करके ऋण प्राप्त करती है। ऋण से सरकार के दायित्व में बढ़ोतरी होती है। इस दायित्व से निजात पाने के लिए अथवा दायित्व के भार को कम करने के लिए सरकार बाँड का भुगतान लगभग 20 वर्ष के बाद भारी कर आरोपित करके करती है। ये कर युवा पीढ़ी पर लगाए जाते हैं। इससे प्रयोज्य आय घट जायेगी, इसके परिणामस्वरूप उपभोग, बचत एवं पूंजी निर्माण के स्तर में कमी आयेगी। इस प्रकार सरकारी ऋण भावी पीढ़ी पर भार होते हैं।

2. उपरोक्त विचार के विपरीत सरकारी ऋण के बारे में दूसरा विचार भी है। उपभोक्ता दूर दृष्टिगोचर होते हैं। लोग विवेकशील होते हैं, वे अपने व्यय का निर्णय वर्तमान एवं भावी आय को ध्यान में रखकर करते हैं। वर्तमान पीढ़ी भावी पीढ़ी की अभिभावक या संरक्षक होती है। अतः वर्तमान पीढ़ी बच्चों के हितों को ध्यान रखते हुए निर्णय लेती है। वर्तमान पीढ़ी की बचत सरकार की अबचत के समान होती है। अतः राष्ट्रीय बचतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस विचार से ऋण कोई मुद्दा नहीं है। इसे हम अपने लिए लेते हैं। ऋणों से केवल संसाधनों का हस्तांतरण होता है। लेकिन देश के अन्दर क्रय शक्ति नहीं बदलती है। परन्तु विदेशी ऋण भार स्वरूप होते हैं, क्योंकि ब्याज भुगतान के बराबर वस्तुएँ एवं सेवाएँ विदेशों को भेजनी पड़ती है।

प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
सामान्यतः राजकोषीय घाटे को स्फीतिकारी माना जाता है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कटौती से राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होती है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कमी करने पर सकल माँग में बढ़ोतरी होती है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कमी करने पर सकल माँग में बढ़ोतरी होती है। फर्म या उत्पादन इतने छोटे समय में नहीं बढ़ पाता है।

अत: वर्तमान वस्तुओं की पूर्ति पर माँग का दाब बढ़ जाता है, जिससे सामान्य कीमत में बढ़ोतरी हो जाती है। अतः राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है। इस तथ्य का दूसरा पक्ष भी है, यदि अर्थव्यवस्था में संसाधन बेकार पड़े होते हैं या आंशिक रूप से बेकार संसाधन मौजूद होते हैं अथवा कम माँग के कारण उत्पादन कम हो जाता है, तो राजकोषीय घाटा अधिक सामूहिक माँग को जन्म देता है। अधिक सामूहिक माँग से उत्पादन स्तर बढ़ जाता है। अत: यदि अर्थव्यवस्था में संसाधन बेकार पड़े रहने की स्थिति में राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता है।

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प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
यदि सरकार सार्वजनिक व्यय का स्तर घटाती है अथवा करों की दर बढ़ाती है, तो राजकोषीय घाटे में कमी आ जाती है। सरकार करों की दर बढ़ाकर सार्वजनिक उद्यमों की इकाइयों के अंश पत्र बेचकर राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था में क्षेत्र के हिसाब से प्रभाव डालता है। सरकार आर्थिक क्रियाकलापों को प्रभावशाली बनाने, प्रशासन एवं प्रबन्ध को श्रेष्ठ बनाकर राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास कर रही है। महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से सरकारी व्यय घटाने पर कृषि, स्वास्थ्य शिक्षा आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। निर्धनता निवारण कार्यक्रम, रोजगार कार्यक्रम आदि प्रभावित होते हैं। समान राजकोषीय नीति से घाटा अधिक या कम हो सकता है, यह बात अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करती है। मन्दी काल के दौरान GDP का स्तर घट जाता है, जिससे कर आगम में कमी आती है और राजस्व घाटे में बढ़ोतरी हो जाती है।

Bihar Board Class 12 Economics सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वित्त बिल का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वार्षिक वित्तीय विवरण के साथ पेश किए जाने वाला बिल वित्त बिल कहलाता है। बजट में कर आरोपण, कर छूट, पुनर्वितरण, नियमतिकरण आदि के विवरण को वित्त बिल कहते है।

प्रश्न 2.
उस कर का नाम लिखो, जो पुनर्वितरण के उद्देश्य से लगाया जाता है।
उत्तर:
प्रगतिशील कर से आय एवं संपत्ति का पुनः वितरण किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था में व्यय का निर्धारण किस आधार पर होता है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में व्यय का स्तर आय स्तर एवं साख उपलब्ध पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 4.
हस्तांतरण गुणांक ज्ञात करने का सूत्र लिखो।
उत्तर:
हस्तांतरण गुणांक = \(\frac{C}{1-C}\) जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 5.
कर गुणांक ज्ञात करने को सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\), जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 6.
सार्वजनिक व्यय गुणांक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 7.
एकमुश्त कर किस प्रकार सामूहिक माँग को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
एकमुश्त कर लगाने से सामूहिक माँग वक्र नीचे की ओर खिसकता है।

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प्रश्न 8.
एकमुश्त कर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह कर, जिसकी दर या मात्रा आय पर निर्भर नहीं करती है, एकमुश्त कर कहलाता है।

प्रश्न 9.
“The General Theory of Employment, Interest and Money” at मुख्य विचार क्या है?
उत्तर:
इस पुस्तक का मुख्य विचार उत्पाद स्तर व रोजगार स्तर में दायित्व लाने से है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित का अर्थ लिखिए –

  1. वित्त विधेयक।
  2. अनुपूरक बजट।

उत्तर:

  1. वित्त विधेयक-कर प्रस्तावों का विस्तृत विवरण, जिसे सरकार संसद में पेश करती है, उसे वित्त विधेयक कहते हैं।
  2. अनुपूरक बजट-प्राकृतिक आपदाओं जैसे-बाढ़, भूकंप, महामारी, सूखा, अकाल, तूफान एवं युद्ध जैसी स्थितियों से निपटने के लिए सरकार संसद में जो बजट पेश करती है, उसे अनुपूरक बजट कहते हैं।

प्रश्न 11.
कार्य निष्पादन बजट की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
एक वित्तीय वर्ष की अवधि के लिए सरकार अनेक परियोजनाएँ बनाती है, इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु दर्शाए गए बजट को कार्य निष्पादन बजट कहते हैं।

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प्रश्न 12.
कर राजस्व एवं गैर कर राजस्व का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कर राजस्व-संघीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों और शुल्कों से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। जैसे-आय कर, संपत्ति कर, बिक्री कर, उत्पादन शुल्क आदि से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। गैर कर राजस्व-सरकारी व्यावसायिक गतिविधियों, सरकारी निवेश से प्राप्त आय, ब्याज प्राप्ति, सरकारी प्रशासनिक विभागों की आय आदि को गैर कर राजस्व कहते हैं।

प्रश्न 13.
अर्थव्यवस्था में रोजगार व कीमत स्तर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में रोजगार व कीमत स्तर मुख्यतः सामूहिक माँग के स्तर से निर्धारित होता है।

प्रश्न 14.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाने वाले क्षेत्र का नाम लिखो।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 15.
बजट का अर्थ लिखिए। भारत में केन्द्रीय बजट कहाँ और कौन पेश करता है?
उत्तर:
एक वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक) की अवधि के लिए सरकार की अनुमानित आय एवं व्यय का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। भारत में केन्द्रीय बजट भारतीय संसद में पेश किया जाता है। भारत सरकार का वित्त मंत्री केन्द्रीय बजट पेश करता है।

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प्रश्न 16.
बजट में राजस्व प्राप्ति की मदें लिखिए।
उत्तर:
बजट में राजस्व प्राप्ति की मदों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. कर राजस्व-सभी प्रकार के करों (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) से प्राप्त आय को कर श्रेणी में रखा जाता है।
  2. गैर कर राजस्व-व्यावसायिक राजस्व, निवेश से अर्जित लाभांश, ब्याज प्राप्ति, प्राशासकीय कार्यों से प्राप्त आय को गैर कर राजस्व की श्रेणी में रखा जाता है।

प्रश्न 17.
प्रगतिशील कर की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
कर की वह प्रणाली, जिसमें कर की दर आय एवं संपत्ति की मात्रा बढ़ने पर अधिक होती है एवं आय व संपत्ति की मात्रा घटने पर कर की दर कम होती है, प्रगतिशील कर प्रणाली कहलाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ज्यादातर कर प्रगतिशील कर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
प्राथमिक घाटे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से ऋणों पर किए गए ब्याज भुगतान को घटाने पर प्राप्त शेष को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
वास्तव में सरकार को खर्च करने के लिए उतनी ही रकम प्राप्त होती है, जो प्राथमिक घाटे के रूप में प्राप्त होती है।

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प्रश्न 19.
संतुलित एवं असंतुलित बजट का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
संतुलित बजट-सरकार का ऐसा बजट, जिसमें सरकार की सभी स्रोतों से प्राप्तियों का योग, समस्त मदों पर किए गए व्यय के समान होता है, तो ऐसा बजट को संतुलित बजट कहते हैं। असंतुलित बजट-सरकार का ऐसा बजट, जिसमें सरकार की सभी स्रोतों से प्राप्तियाँ, समस्त मदों पर खर्च से कम या ज्यादा होती है, तो इसे असंतुलित बजट कहते हैं।

प्रश्न 20.
राजस्व घाटे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में समस्त राजस्व प्राप्तियों तथा समस्त राजस्व व्ययों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
दूसरों शब्दों में राजस्व प्राप्तियों पर राजस्व व्यय के आधिक्य को राजस्व घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 21.
पूंजीगत घाटा क्या होता है?
उत्तर:
समस्त पूंजीगत प्राप्तियों पर पूंजीगत व्ययों के अधिशेष को पूंजीगत घाटा कहते हैं।
दूसरे शब्दों में समस्त पूंजीगत प्राप्तियों एवं समस्त पूंजीगत व्ययों के अन्तर को पूंजीगत घाटा कहते हैं।
पूंजीगत घाटा = पूंजीगत व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ

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प्रश्न 22.
कर की परिभाषा लिखिए एवं करों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
ऐसे अनिवार्य भुगतान, जिन्हें आय व संपत्ति, वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद फरोख्न पर अनिवार्य रूप से करना पड़ता है, उन्हें कर कहते हैं। कर दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्रत्यक्ष कर एवं
  2. अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 23.
योजना व्यय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए व्यय, जिनका सम्बन्ध योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम पर किए जाते हैं, योजना व्यय कहलाते हैं। जैसे-नहरों व सड़कों के निर्माण आदि पर व्यय ।

प्रश्न 24.
गैर योजना व्यय का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम के अलावा सरकार द्वारा किया गया व्यय गैर-योजना व्यय कहलाता है। जैसे-भूकंप की एवं बाढ़ पीड़ितों की सहायता आदि पर किया गया व्यय।

प्रश्न 25.
विकास व्यय का अर्थ उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किया गया ऐसा व्यय, जो आर्थिक विकास हेतु किया जाता है, विकास व्यय कहलाता है। विकास व्यय से अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होती है। उदाहरण-सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के विस्तार पर किया जाने वाला व्यय आदि।

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प्रश्न 26.
गैर विकास व्यय का सउदाहरण अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऐसा व्यय, जिसका आर्थिक विकास से सीधे तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं होता है। गैर विकास व्यय कहलाता है। गैर विकास व्यय का अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे-सुरक्षा, प्रशासन, कानून व्यवस्था आदि पर व्यय।

प्रश्न 27.
पूंजीगत व्यय का सउदाहरण अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे व्यय, जिनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि होती है अथवा सरकार के दायित्व कम हो जाते हैं, पूंजीगत व्यय कहलाते हैं। जैसे-ऋण का भुगतान, भवन निर्माण पर व्यय आदि।

प्रश्न 28.
प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह कर, जिसका भुगतान प्रत्यक्ष रूप से उसी व्यक्ति या संस्था को करना पड़ता है, जिस पर वह कर लगाया जाता है। प्रत्यक्ष कर का भार दूसरे लोगों पर हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। प्रत्यक्ष कर का उदाहरण-आय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।

प्रश्न 29.
अप्रत्यक्ष कर का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह कर, जिसका भार आंशिक अथवा पूरी तरह से करदाता दूसरे व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर हस्तांतरित कर सकता है, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है। अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण-बिक्री कर, सीमा कर आदि।

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प्रश्न 30.
बजट के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
बचत के उद्देश्य –

  1. आर्थिक व सामाजिक समता को बढ़ावा देने हेतु आय व सम्पत्ति का पुनः वितरण।
  2. सामाजिक कल्याण को बढ़ाने के लिए संसाधनों का पुनः वितरण।
  3. आर्थिक स्थिरता।
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा संवृद्धि दर को तीव्र गति से बढ़ाना।

प्रश्न 31.
अर्थव्यवस्था पर बजट के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
बजट अर्थव्यवस्था को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है –

  1. संपूर्ण राजकोषीय अनुशासन स्थापित हो सकता है।
  2. सामाजिक कल्याण में वृद्धि।
  3. सरकारी सेवाओं की उपलब्धता में बढ़ोतरी।
  4. संसाधनों का पुनः आबंटन।
  5. आर्थिक नीतियों की समीक्षा एवं नई आर्थिक नीतियों का निर्माण।

प्रश्न 32.
बजट की संरचना को अति संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:

  1. राजस्व बजट-इसमें सरकार की राजस्व प्राप्तियों तथा व्यय का विस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया जाता है।
  2. पूंजीगत बजट-इसमें सरकार की समस्त पूंजीगत प्राप्तियों एवं पूंजीगत व्यय का विस्तृत ब्यौरा पेश किया जाता है।

प्रश्न 33.
राजस्व प्राप्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार की ऐसी प्राप्तियाँ, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती है अथवा सरकार के ऊपर कोई देयता उत्पन्न नहीं होती है, उन्हें राजस्व प्राप्तियाँ कहते हैं। जैसे-कर प्राप्तियाँ, ब्याज से प्राप्तियाँ आदि।

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प्रश्न 34.
पूंजीगत प्राप्ति का उदाहरण सहित अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार की ऐसी प्राप्तियों, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आती है अथवा सरकार के ऊपर देयता उत्पन्न होती है, उन्हें पूंजीगत प्राप्तियाँ कहते हैं। जैसे-विनिवेश से प्राप्ति, बचत के रूप में प्राप्ति आदि।

प्रश्न 35.
प्रतिगामी कर का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह कर, जिसमें आय बढ़ने पर कर की दर घट जाती है तथा आय घटने पर कर की दर बढ़ जाती है, उसे प्रतिगामी कर कहते हैं। प्रतिगामी कर का भार अमीर व्यक्तियों पर कम पड़ता है तथा गरीब व्यक्तियों पर इसका अधिक भार पड़ता है।

प्रश्न 36.
राजस्व व्यय का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे व्यय, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कोई वृद्धि नहीं होती है अथवा सरकार के दायित्व में कमी नहीं होती है, राजस्व व्यय कहलाते हैं। जैसे-छात्रों का छात्रवृत्ति पर खर्च, वृद्धा पेंशन आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति के प्रयोग बताओ।
उत्तर:
General Theory of Income, Employment, Interest and Money में जे. एम. कीन्स ने राजकोषीय नीति के निम्नलिखित प्रयोग बताएँ हैं –

  1. इस नीति का प्रयोग उत्पादन-रोजगार स्थायित्व के लिए किया जा सकता है। व्यय एवं कर नीति में परिवर्तन के द्वारा सरकार उत्पादन एवं रोजगार में स्थायित्व पैदा कर सकती है।
  2. बजट के माध्यम से सरकार आर्थिक उच्चावचनों को ठीक कर सकती है।

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प्रश्न 2.
सार्वजनिक उत्पादन एवं सार्वजनिक बन्दोबस्त में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
सार्वजनिक बन्दोबस्त (व्यवस्था) से अभिप्राय उन व्यवस्थाओं से है, जिनका वित्तीयन सरकार बजट के माध्यम से करती है। ये सभी उपभोक्ताओं को बिना प्रत्यक्ष भुगतान किए मुफ्त में प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन सरकार प्रत्यक्ष रूप से भी कर सकती है अथवा निजी क्षेत्र से खरीदकर भी इनकी व्यवस्था की जा सकती है। सार्वजनिक उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं सेवाओं से है, जिनका उत्पादन सरकार द्वारा संचालित एवं प्रबंधित होता है। इसमें निजी या विदीशी क्षेत्र की वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यवस्था की अवधारणा सार्वजनिक उत्पादन से भिन्न है।

प्रश्न 3.
Free rider (मुफ्त सवारी) समस्या समझाओ।
उत्तर:
भुगतान न करने वाले उपभोक्ताओं को सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग के बदले शुल्क एकत्र करना बड़ा कठिन कार्य है। उपभोक्ता स्वेच्छापूर्वक इन वस्तुओं के प्रयोग की शुल्क देना नहीं चाहते हैं। अतः सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग करने से किसी को रोकने का कोई उपाय नहीं होता है। सभी धनी वर्ग व निर्धन वर्ग इन वस्तुओं का मुफ्त में उपयोग करते हैं इसको मुफ्त सवारी समस्या कहते हैं।

प्रश्न 4.
वितरण फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
प्रत्येक सरकार की एक राजकोषीय नीति होती है। राजकोषीय नीति माध्यम से प्रत्येक सरकार समाज में आय के वितरण में समानता या न्याय करने की कोशिश करती है। सरकार उच्च आय वर्ग या अधिक संपत्ति के स्वामियों पर उच्च कर लगाती है तथा कमजोर वर्ग को हस्तांतरण भुगतान प्रदान करती है। कर एवं हस्तांतरण भुगतान दोनों प्रयोज्य आय को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार आय व संपत्ति के वितरण को वितरण फलन कहते हैं।

प्रश्न 5.
आबंटन (Allocation) फलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, प्रशासन, पार्क इत्यादि सार्वजनिक वस्तुएँ कहलाती है। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से भिन्न होती है। निजी वस्तुएँ लोगों को कीमत तंत्र के द्वारा उपलब्ध होती है लेकिन सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार द्वारा निःशुल्क या सामान्य कीमत पर जनता को उपलब्ध करायी जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता है। इसे आबंटन फलन कहते हैं।

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प्रश्न 6.
माँग को कम करने के लिए प्रतिबन्धात्मक या कठोर दशाओं की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
अधिक लम्बे समय तक बेरोजगारी अथवा स्फीतिकारी दशाओं में अर्थव्यवस्था को आर्थिक उच्चावचनों का सामना करना पड़ता है। यदि अर्थव्यवस्था में सभी संसाधनों का पूर्ण विदोहन करने लायक व्यय का स्तर नहीं होता है, तो मजदूरी दर एवं सामान्य कीमत स्तर में गिरावट आती है, तो पूर्ण रोजगार स्तर को स्वतः आधार पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में सामूहिक माँग के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए नीतिगत उपाय आवश्यक होते हैं। उच्च रोजगार स्तर पर सामूहिक माँग के स्तर में बढ़ोतरी होती है, जिससे स्फीतिकारी प्रभाव पनपने लगता है अर्थात् अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर में वृद्धि होती है। इन स्थितियों में प्रतिबन्धात्मक नीति आवश्यक होती है।

प्रश्न 7.
निजी व सार्वजनिक वस्तुओं में भेद स्पष्ट करो।
उत्तर:
निजी एवं सार्वजनिक वस्तुओं में दो मुख्य अन्तर होते हैं, जैसे –

  1. निजी वस्तुओं का उपयोग व्यक्तिगत उपभोक्ता तक सीमित होता है लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी विशिष्ट उपभोक्ता तक सीमित नहीं होता है, ये वस्तुएँ सभी उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है।
  2. कोई भी उपभोक्ता, जो भुगतान देना नहीं चाहता या भुगतान करने की शक्ति नहीं रखता निजी वस्तु के उपभोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग से किसी को वंचित रखने का कोई तरीका नहीं होता है।

प्रश्न 8.
कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सरकारी व्यय गुणांक से 1 कम होता है?
उत्तर:
कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सरकारी व्यय गुणांक से कम इसलिए होता है, क्योंकि सार्वजनिक व्यय सीधे या प्रत्यक्ष रूप से कुल व्यय को प्रभावित करता है, जबकि कर प्रयोज्य आय को प्रभावित करते हैं और फिर गुणक प्रक्रिया केद्वारा उपभोग व व्यय को प्रभावित करता है। कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणक से 1 कम होता है, इसे नीचे समझाया गया है –
सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
कर गुणांक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
\(\frac{∆Y}{∆G}\) – \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{1}{1-C}\) – |\(\frac{C}{1-C}\)| = \(\frac{1}{1-C}\) – \(\frac{C}{1-C}\) = \(\frac{1-C}{1-C}\) = 1
इस प्रकार कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणक से 1 कम है।

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प्रश्न 9.
कर गुणांक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
करों में कटौती करने पर प्रयोज्य आय में बढ़ोतरी होती है। कर में कटौती करने पर सामूहिक माँग में वृद्धि होती है। दूसरी ओर करों में वृद्धि करने पर प्रयोज्य आय घटती है। प्रयोज्य आय घटने से उपभोग में कमी आती है। इससे उत्पादन एवं आय का स्तर घटता है। अत: कर गुणांक एक ऋणात्मक गुणक है। कर ∆T कमी करने पर कुल व्यय में बढ़ोतरी C∆T के समान होगी। गणितीय रूप में इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है –
∆Y = \(\frac{1}{1-C}\) (-C) ∆T
या \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\)

प्रश्न 10.
सार्वजनिक व्यय गुणक की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणक की अवधारणा को समझने के लिए करों को स्थिर या समान माना जाता है। जब सरकार वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद बढ़ाती है, तो नियोजित व्यय में वृद्धि हो जायेगी। विभिन्न चक्रों के माध्यम से सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी से राष्ट्रीय आय में वृद्धि उत्पन्न होती है। सरकारी व्यय गुणक की कार्य पद्धति ठीक निवेश गुणक की भाँति होती है। सरकारी व्यय गुणांक –
∆Y = \(\frac{∆G}{1-C}\) या \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1  सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 1
सीमान्त उपयोग प्रवृत्ति सीमान्त उपयोग प्रवृत्ति ऊँची होने पर सरकारी व्यय गुणक ऊँचा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति नीची होने पर व्यय गुणक का मान कम रहता है।

प्रश्न 11.
यदि सरकार आर्थिक गतिविधियों में भागीदार होती है, तो उपभोग फलन लिखो एवं साम्य आय का स्तर लिखो।
उत्तर:
सरकार आर्थिक गतिविधियों में कई प्रकार से भूमिका निभाती है। जब सरकार जनता को हस्तांतरण भुगतान प्रदान करती है, तो सामूहिक माँग का स्तर ऊपर की ओर उठता है अर्थात् सामूहिक माँग में वृद्धि होती है। दूसरी ओर सरकार जनता पर कर आरोपित करती है, जिससे प्रयोज्य आय कम होती है और सामूहिक माँग नीचे की ओर गिरती है।
उपभोग फलन को निम्न प्रकार लिख सकते हैं उपभोग = C + CYD (YD प्रयोज्य आय) = C + C (Y – T + TR)
AD = C + C (YT + TR) + I + G
साम्य स्तर पर Y = AD
Y = C + C (Y – T + TR) + I + G
= C + CY – CT + CTR + I + G
Y – CY = C – CT + CTR + I + G
Y = C-CT + CTR+I+G
Y = \(\frac{1}{1-C}\) × [C – CT + CTR + I + G]

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प्रश्न 12.
एकमुश्त कर गुणक तथा अनुपातिक कर गुणक की तुलना करो।
उत्तर:
एकमुश्त कर प्रणाली की स्थिति में बजट गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
अन्पातिक कर प्रणाली की स्थिति में बजट गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)
उपरोक्त दोनों समीकरणों से स्पष्ट है कि प्रगतिशील कर प्रणाली में गुणक का मान एकमुश्त गुणक के मान से कम होगा।

एकमुश्त कर की स्थिति में सरकारी व्यय से आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोग में वृद्धि आय से C गुना होती है, जबकि प्रगतिशील कर प्रणाली में सरकारी व्यय से उपभोग में वृद्धि C (1 – t) गुना होती है। C (1 – t) का मान C के मान से कम है। अत: C (1 – t) का गुणक, C के गुणक से कम होगा।

प्रश्न 13.
सन्तुलित बजट गुणक का मान सदैव इकाई (I) होता है। समझाइए।
उत्तर:
सरकार दो प्रकार से उपभोग या सामूहिक माँग को प्रभावित करती है। सरकार वस्तुओं एवं सेवाओं पर प्रत्यक्ष रूप से व्यय करती है। सरकारी व्यय प्रत्यक्ष रूप से कुल व्यय को प्रभावित करता है। खरीद और फिर गुणक प्रक्रिया द्वारा भी कुल व्यय प्रभावित होता है। इसे गणितीय रूप में इस प्रकार दर्शाया जा सकता है –
∆Y = ∆G + C∆G + C2 ∆G + …
= ∆G (1 + C + C2 + …)
सरकार लोगों पर कर लगाती है। कर प्रयोज्य आय के स्तर को घटाते हैं। प्रयोज्य आय में कमी से गुणक प्रक्रिया द्वारा कुल व्यय प्रभावित होता है। कर गुणक प्रभाव को नीचे दर्शाया गया है –
∆Y = C∆T – C2∆T + …
∆Y = ∆T (C + C2 + …)
सरकारी व्यय से आय में वृद्धि तथा करों से आय में कमी का योग आय पर शुद्ध प्रभाव के समान होता है। यदि सार्वजनिक व्यय में वृद्धि ∆G, कर राजस्व में वृद्धि ∆T के समान हो, तो इसे सन्तुलित बजट गुणक कहते हैं। उपरोक्त दोनों समीकरणों से –
∆Y = ∆G + C∆G + C (Y – ∆T)
∆Y = G + C (∆Y – ∆T) (∵∆G = ∆T)
∆Y = ∆G + C(∆Y – ∆G)
∆Y = ∆G + C∆Y – C∆G
∆Y – C∆Y = ∆G – C∆G
∆Y (1 – C) = ∆G(1 – C)
∆Y = ∆G \(\frac{(1-C)}{1-C}\) \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1-C}{1-C}\)
सन्तुलित बजट गुणक = 1

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प्रश्न 14.
प्रगतिशील कर की स्थिति में गुणक अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि सरकार के अनुपात में कर लगाती है, तो
T = tY
उपभोग C = C + C [Y – tY + TR] = C + C(1 – t) Y + CTR
अनुपातिक कर आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग को घटाते हैं। अनुपातिक कर से उपभोग प्रवृत्ति भी घटती है। अतः सामूहिक माँग निम्न प्रकार से ज्ञात की जाती है –
AD = C + C(1 – t) Y + CTR + I + G
= A + G (1 – t) Y (A = C + CTR + I + G)
AD = A + C (1 – t)Y
साम्य की अवस्था में
Y = AD
Y = A + C(1 – t)Y
Y = A +CY – CtY
Y = \(\frac{(A)}{1-C-Ct}\) Y = \(\frac{(A)}{1-C(1-t)}\)
अनुपातिक कर गुणांक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)

प्रश्न 15.
राजस्व बजट और पूंजी बजट का अन्तर क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट:
सरकार की राजस्व प्राप्तियों एवं राजस्व के विवरण को राजस्व बजट कहते हैं।
राजस्व प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  1. कर राजस्व एवं
  2. गैर कर राजस्व

राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किए गए खर्चों का विवरण है। राजस्व बजट में वे मदें आती है, जो आवृत्ति किस्म की होती है और इन्हें चुकाना नहीं पड़ता है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

पूंजी बजट:
सरकार की पूंजी प्राप्तियों एवं पूंजी व्यय के विवरण को पूंजी बजट कहते हैं।

पूंजी प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  1. ऋण प्राप्तियाँ एवं
  2. गैर ऋण प्राप्तियाँ

पूंजी व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के लिए पूंजी निर्माण पर किए गये व्यय को दर्शाता है।
पूंजी घाटा = पूंजी व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ
पूंजीगत राजस्व सरकार के दायित्वों को बढ़ाता व पूंजीगत व्यय से परिसम्पत्तियों का अर्जन होता है।

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प्रश्न 16.
विकास और गैर विकास व्यय में अन्तर समझाएँ।
उत्तर:
विकास व्यय:
विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर विभागीय उद्यमों के अपने स्रोतों, बाजार उधार, वित्तीय संस्थानों से सावधि उधार आदि गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, केन्द्र एवं राज्य सरकारी द्वारा गैर विभागीय एवं स्थानीय निकायों को प्रदत्त ऋण भी शामिल किए जाते हैं।

गैर विकास व्यय:
प्रतिरक्षा, ब्याज भुगतान, कर संग्रहण, पुलिस एवं प्रशासनिक व्यय के अलावा पेन्शन, राजाओं की अनुग्रह राशि, आर्थिक सहायता आदि व्यय सम्मिलित किए जाते हैं। गैर विकास कार्यों के लिए दिए गए ऋण भी गैर विकास व्यय की श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 17.
हस्तान्तरण गुणक की अवधारण T स्पष्ट करो।
उत्तर:
सरकार जनता को हस्तान्तरण भुगतान प्रदान करती है। हस्तान्तरण भुगतान की प्राप्ति से परिवार क्षेत्र की प्रयोज्य आय में बढ़ोतरी होती है। जब सरकार हस्तान्तरण भुगतान में वृद्धि करती है, तो स्वायत्त व्यय C ∆TR बढ़ जायेगा। लकिन कुल उत्पाद में वृद्धि कम होगी क्योंकि हस्तांतरण भुगतान का कुछ भाग बचत के रूप में रखा जाता है। हस्तांतरण भुगतान से आय में वृद्धि की गणना निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है।
हस्तान्तरण गुणक \(\frac{∆Y}{∆TR}\) = \(\frac{C}{1-C}\)

प्रश्न 18.
इनकी परिभाषा करें –

  1. राजकोषीय घाटा
  2. बजट घाटा
  3. राजस्व घाटा
  4. प्राथमिक घाटा

उत्तर:
1. राजकोषीय घाटा:
राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियों, कर राजस्व तथा गैर कर राजस्व में अन्तर को राजकोषीय घाटा कहते हैं।
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ

2. बजट घाटा:
सरकार के कुल अनुमानित व्ययों और कुल अनुमानित आय के अन्तर को बजटीय घाटा कहा जाता है।
बजटीय घाटा = कुल अनुमानित आय – कुल अनुमानित प्राप्तियाँ

3. राजस्व घाटा:
राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

4. प्राथमिक घाटा:
राजकोषीय घाटे एवं ब्याज भुगतानों के अन्तर को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान।

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प्रश्न 19.
घाटे का वित्तीयन किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर:
समस्त व्यय एवं प्राप्तियों के अन्तर को बजटीय घाटा कहते हैं। बजटीय घाटा उस समय उत्पन्न होता है, जब सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से ज्यादा होता है। घाटे के वित्तीयन के दो रास्ते हैं –
1. मौद्रिक प्रसार:
सरकार घाटे के समय नए नोट छपवा सकती है। यह प्रक्रिया सरकार द्वारा राजकोषीय हुन्डियों के आधार पर (RBI) से ऋण लेने जैसा है। रिजर्व बैंक नए नोट छापता है और सरकारी हुन्डियों के बदले उन्हें सरकार को देता है। सरकार इन नोटों से अपना घाटा पूरा कर सकती है।

2. ऋण लेना:
सरकार घाटे को पूरा करने के लिए घरेलू एवं विदेशी ऋण ले सकती है। भारत में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत तक हो सकता है, इससे अधिक नहीं।

प्रश्न 20.
पूंजीगत प्राप्तियों को संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय, जिसमें न, तो देनदारी उत्पन्न होती है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है, राजस्व प्राप्तियाँ कहलाती है।
राजस्व प्राप्तियों का वर्गीकरण-इन्हें दो भागों में बाँटा जाता है –

  1. कर राजस्व
  2. गैर कर राजस्व

1. कर राजस्व:
कर ऐसे अनिवार्य भुगतान होते हैं, जिनके बदले करदाता को किसी भी प्रकार सीधा लाभ प्राप्त नहीं होता है। सभी प्रकार के करों से प्राप्त आय को राजस्व कहते हैं। कर अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे –

  • प्रत्यक्ष कर
  • अप्रत्यक्ष कर
  • आनुपातिक कर
  • प्रगतिशील कर
  • प्रतिगामी कर
  • मूल्यवर्धित कर

2. गैर कर राजस्व:
करों के अतिरिक्त सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय, जिससे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है, उसे गैर कर राजस्व कहते हैं। गैर कर राजस्व प्राप्तियों में निम्न को शामिल किया जाता है –

  • ब्याज प्राप्तियाँ
  • लाभांश व लाभ
  • राजकोषीय सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आय
  • विदेशी सहायता, आर्थिक एवं सामाजिक सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आय
  • सामान्य सेवाओं से प्राप्त आय

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प्रश्न 21.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को तीन वर्गों में बाँटते हैं –
1. राजस्व व्यय एवं पूंजीगत व्यय:
राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किया गया व्यय होता है। इस व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है। पूंजीगत व्यय भूमि, भवन, यंत्र-संयत्र आदि पर किया गया निवेश होता है। इस व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

2. योजना व्यय एवं गैर योजना व्यय:
योजना व्यय में तत्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती है। ये मदें योजना प्रस्तावों के द्वारा तय की जाती है। बाकी सभी खर्चे गैर योजना व्यय होते हैं।

3. विकास व्यय तथा गैर विकास व्यय:
विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर विभागीय उद्यमों के गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, सरकार द्वारा गैर विभागीय उद्यमों एवं स्थानीय निकायों को प्रदत्त ऋण भी शामिल किए जाते हैं। गैरे किस व्यय में प्रतिरक्षा, आर्थिक अनुदान आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 22.
राजस्व व्यय एवं पूंजीगत व्यय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 2

प्रश्न 23.
पूंजीगत प्राप्तियों को संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
पूंजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय से है, जिससे सरकार पर दायित्व उत्पन्न होता है या सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। पूंजीगत प्राप्तियों में निम्न को शामिल किया जाता है –

  1. विदेशों से ऋण प्राप्तिया
  2. ऋणों एवं अग्रिमों की वसूली
  3. विनिवेश से प्राप्त आय
  4. लघु बचतें
  5. भविष्य निधि एवं अन्य जमाओं से प्राप्तियाँ
  6. घरेलू ऋण से प्राप्तियाँ आदि

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प्रश्न 24.
राजस्व व्यय को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
राजस्व व्यय सार्वजनिक व्यय का वह भाग है, जिससे न तो सरकार की परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, न ही सरकार की देनदारियों में कमी आती है और न ही सरकार की लेनदारी उत्पन्न होती है। राजस्व व्यय सामान्य सेवाओं, सामाजिक सेवाओं एवं आर्थिक सेवाओं के संचालन पर किये जाते हैं। राजस्व व्यय दो वर्गों में बाँटे जाते हैं –

1. विकासात्मक व्यय-आर्थिक एवं सामाजिक विकास के साथ सीधे तौर पर जुड़ी गतिविधियों के संचालन पर किये गये व्यय विकासात्मक व्यय कहलाते हैं। जैसे-ग्रामीण विकास, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, उद्योग, ऊर्जा, परिवहन, संचार
आदि।

2. गैर विकासात्मक व्यय-ऐसे व्यय, जिनसे प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक विकास का संचालन नहीं होता है, बल्कि इनके लिए वातावरण तैयार होता है, गैर विकासात्मक व्यय कहलाते हैं। जैसे-सुरक्षा, प्रशासन, आर्थिक सहायता, पेंशन आदि।

प्रश्न 25.
पूंजीगत व्यय पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
पूंजीगत व्यय सार्वजनिक व्यय का वह भाग है, जिससे सरकार की परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, सरकार की देनदारियाँ कम होती है या सरकार की लेनदारियाँ उत्पन्न होती है। पूंजीगत व्यय दो प्रकार के होते हैं –
1. विकासात्मक व्यय:
विकासात्मक पूंजीगत व्यय प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक विकास से जुड़े होते हैं। जैसे-आर्थिक विकास, सामाजिक एवं सामुदायिक विकास, रक्षा, प्रशासन, सामान्य सेवाओं पर पूंजीगत व्यय आदि।

2. गैर विकासात्मक व्यय:
गैर विकासात्मक पूंजी व्यय आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए वातावरण प्रदान करने के लिए किये जाते हैं। जैसे-रक्षा, पूंजी, सार्वजनिक उद्यमों का ऋण, विदेशों को ऋण, राजस्व एवं केन्द्र शासित सरकारों को ऋण आदि।

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प्रश्न 26.
कर तथा गैर कर राजस्व की परिभाषा करें।
उत्तर:
कर राजस्व:
संघीय सरकार द्वारा लगाये गए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों तथा शुल्कों से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। जैसे-आय कर, ब्याज कर, सम्पत्ति कर, बिक्री कर आदि।

गैर कर राजस्व:
सरकार की व्यावसायिक गतिविधियों, निवेशों पर अर्जित लाभांश, ब्याज एवं सरकारी प्रशासनिक कार्यों से प्राप्त आय के योग को गैर कर राजस्व आय कहते हैं।

प्रश्न 27.
सन्तुलित बजट का अर्थ लिखें तथा इसके पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
सन्तुलित बजट:
यदि सरकारी प्राप्तियाँ एवं व्यय बराबर होते हैं, तो ऐसे बजट को सन्तुलित बजट कहते हैं। सन्तुलित बजट के पक्ष में तर्क –

  1. सन्तुलित बजट बनाकर सरकार फिजूलखर्ची पर रोक लगा सकती है।
  2. सन्तुलित बजट देश को आर्थिक उतार-चढ़ाव (मन्दी व तेजी) से बचाने में सहायक हो सकता है।
  3. सन्तुलित बजट के आकार को बढ़ाकर आर्थिक मन्दी से भी बचा जा सकता है अर्थात् मन्दी से उभरने के लिए घाटे का बजट बनाना मजबूरी नहीं है।

प्रश्न 28.
सार्वजनिक राजस्व का अर्थ बताएँ तथा इसका महत्त्व भी बताएँ।
उत्तर:
अर्थ:
सार्वजनिक राजस्व से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी मौद्रिक आय से है, जिससे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है।

महत्त्व:
आधुनिक सरकार कल्याणकारी सरकार है। आजकल सरकारें समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए अनेक प्रकार की योजनाएँ बनाती है। इन योजनाओं पर काम करने के लिए मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। सार्वजनिक राजस्व सार्वजनिक व्यय का एक साधन है अर्थात् सार्वजनिक राजस्व के अभाव में सरकारों के लिए समाज कल्याण करना सम्भव नहीं होगा।

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प्रश्न 29.
बजट के उद्देश्य क्या होते हैं?
उत्तर:
बजट के माध्यम से सरकार अपनी आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों को मूर्तरूप प्रदान करती है। बजट के निम्नांकित उद्देश्य होते हैं –

  1. संसाधनों का पुनः वितरण-संसाधनों को ज्यादा से ज्यादा सामाजिक, आर्थिक हितों के. अनुकूल पुनः बाँटने की कोशिश करती है।
  2. आय एवं सम्पत्ति का पुनः वितरण-बजट के माध्यम से सरकार आय एवं सम्पत्ति की असमानताओं को घटाने का प्रयास करती है।
  3. स्थायित्व: आय एवं रोजगार के ऊँचे स्तर को बनाएँ रखते हुए आर्थिक उतार-चढ़ाव को रोकना।
  4. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध: सरकारी उद्यमों के माध्यम से भारी विनिर्माण, उत्पादन की मित्तव्ययताओं, अनियमित एकाधिकार को रोकने आदि को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट के कोई तीन उद्देश्य समझाइए।
उत्तर:
1. रोजगार में वृद्धि:
सरकारी बजट का उद्देश्य रोजगार स्तर में वृद्धि करना होता है। रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक के प्रयोग पर बल देती है। सरकार विशिष्ट रोजगार कार्यक्रम तैयार करती है। सड़कें, बाँध, पुल, विद्युत परियोजनाओं, सिंचाई परियोजनाओं आदि को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में सरकार विशेष प्रावधान करती है।

2. आर्थिक समानता:
बजट का उद्देश्य गरीब व अमीर के फासले को कम करना भी होता है। गरीबी व अमीरी का अन्तर कम करने के उद्देश्य से सरकार प्रगतिशील कर प्रणाली आनुपातिक कर प्रणाली अपना कर गरीबों पर कर का भार कम डाल सकती है।

3. आर्थिक स्थिरता:
आर्थिक मन्दी एवं तेजी दोनों ही अर्थव्यवस्था के लिए घातक होती है। बजट के माध्यम से सरकार अनेक राजकोषीय उपायों से आर्थिक मन्दी व तेजी दोनों को नियन्त्रण में रख सकती है और देश के व्यापार एवं उद्योग दोनों में स्थिरता कायम की जा सकती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सरकार बजट की विभिन्न प्राप्तियों, व्यय एवं घाटों का खाका बनाइए।
उत्तर:
बजट अनुमान –
I. राजस्व प्राप्तियाँ –

  • कर राजस्व
  • गैर कर राजस्व

II. पूंजीगत प्राप्तियाँ –

  • ऋण प्राप्तियाँ
  • गैर ऋण प्राप्तियाँ

III. राजस्व व्यय –

  • ब्याज भुगतान
  • मुख्य आर्थिक सहायता
  • प्रतिरक्षा व्यय आदि

IV. पूंजीगत व्यय –

V. कुल व्यय –

  • योजना व्यय
  • गैर योजना व्यय

VI. राजस्व घाटा –

  • राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ।

VII. पूंजी घाटा = पूंजीगत व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ।

VIII. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर ऋण
पूँजी प्राप्तियाँ = ऋण प्राप्तियाँ।

IX. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान % ऋण प्राप्तियाँ – ब्याज भुगतान।

X. निबल प्राथमिक घाटा = प्राथमिक घाटा – ब्याज प्राप्तियाँ।

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प्रश्न 2.
सरकारी बजट का स्वरूप संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
परिभाषा:
बजट आगामी लेखा वर्ष से सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का विवरण होता है।

बजट का स्वरूप:
बजट के स्वरूप से अभिप्राय बजट के विभिन्न अंगों से है। मुख्य रूप से बजट के दो अंग होते हैं –

I. बजट प्राप्तियाँ

II. बजट व्यय

I. बजट प्राप्तियाँ:
एक लेखा वर्ष में सरकार को सभी श्रोतों से जितनी आय प्राप्त होने का अनुमान होता है, उसे बजट प्राप्तियाँ कहते हैं। बजट प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

(I) राजस्व प्राप्तियाँ
(II) पूँजीगत प्राप्तियाँ।

(I) राजस्व प्राप्तियाँ:
राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ हैं, जिनसे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। राजस्व प्राप्तियों भी दो प्रकार की होती है –

  • कर राजस्व-राजस्व में सरकार को सभी प्रकार के करों से प्राप्त होने वाली आय को शामिल किया जाता है। जैसे-प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर आदि।
  • गैर कर राजस्व-करों के अलावा सरकार की ऐसी प्राप्तियाँ, जिनसे सरकार पर दायित्व उत्पन्न नहीं होता है, गैर कर राजस्व कहलाती है। जैसे-फीस, लाइसेन्स तथा परमिट फीस, एसचीट, जुर्माना, लाभांश, आर्थिक सहायता आदि।

(II) पूँजीगत प्राप्तियाँ:
पूँजीगत प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ है, जिनसे सरकार पर दायित्व उत्पन्न होता है और सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। पूँजीगत प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  • ऋण प्राप्तियाँ-इसमें विदेशी एवं घरेलू सभी प्रकार के ऋण एवं ऋणों की वसूली को शामिल किया जाता है।
  • गैर ऋण प्राप्तियाँ-इसमें विनिवेश से प्राप्तियाँ, लघु बचतें, प्रोविडेण्ट में जमा प्राप्तियाँ आदि।

II. बजट व्यय:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकार द्वारा सभी मदों पर किए जाने वाले व्यय के अनुमान को बजट व्यय कहते हैं। बजट व्यय दो प्रकार के होते हैं –

  • राजस्व व्यय
  • पूँजीगत व्यय

राजस्व व्यय:
सरकार द्वारा किये जाने वाले ऐसे व्यय, जिनसे सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है, सरकार के दायित्वों में कमी उत्पन्न नहीं होती है, राजस्व व्यय कहलाते हैं। राजस्व व्यय प्रायः सामान्य, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं के संचालन के लिए किए जाते हैं। राजस्व व्ययों का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के साथ प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है। ये व्यय आर्थिक विकास के लिए वातावरण तैयार करने में मदद करते हैं।

पूँजीगत व्यय:
सरकार द्वारा किये जाने वाले ऐसे व्यय, जिनसे सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, सरकार के दायित्वों में कमी आती है, पूँजीगत व्यय कहलाते हैं।

पूँजीगत व्यय प्रायः
सामान्य, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं के लिए पूँजी निर्माण हेतु किए जाते हैं। पूँजीगत व्ययों का आर्थिक विकास के साथ सीधा सम्बन्ध होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 3

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प्रश्न 3.
सार्वजनिक व्यय के विभिन्न प्रकारों को समझाएँ एवं उनका महत्त्व भी लिखिए।
उत्तर:
सरकार आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए खर्च करती है। इन्हें सार्वजनिक व्यय कहते हैं। सार्वजनिक व्यय कई प्रकार के होते हैं –
1. विकासात्मक व्यय:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा किए गए ऐसे खर्चों से है, जिनका आर्थिक एवं सामाजिक विकास से सीधा सम्बन्ध होता है। जैसे-शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, कृषि, यातायात, बिजली आदि के विकास पर किया जाने वाला खर्च।

2. गैर-विकासात्मक व्यय:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे खर्च, जिनका सम्बन्ध आर्थिक एवं सामाजिक विकास के साथ प्रत्यक्ष नहीं होता है। जैसे-रक्षा, कानून, प्रशासन, वृद्धावस्था पेन्शन आदि पर किया गया व्यय।

3. योजना व्यय:
सरकार चालू पंचवर्षीय योजना के अधीन कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए व्यय करती है, ये व्यय योजना व्यय कहलाते हैं। जैसे – कृषि, ऊर्जा, संचार, उद्योग, यातायात, सार्वजनिक सेवाएँ। जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर किया गया व्यय।

4. गैर योजना व्यय:
योजना कार्यक्रमों के अलावा सरकार द्वारा दूसरे कार्यों पर किए जाने वाले खर्चों को गैर-योजना व्यय कहते हैं। ये व्यय सामान्य सेवाओं पर किए जाते हैं। जैसे-आर्थिक सहायता, सुरक्षा, कानून, प्रशासन, ऋणों पर ब्याज का भुगतान आदि।

5. हस्तान्तरण भुगतान:
ऐसे भुगतान, जो बिना किसी वस्तु या सेवा के बदले दिये जाते हैं, उन्हें हस्तान्तरण भुगतान कहते हैं। हस्तान्तरण भुगतान एकपक्षीय होते हैं। इस प्रकार के भुगतानों से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार के व्यय से वितरण प्रभावित होता है। जैसे-राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज, वृद्धावस्था पेन्शन, छात्रवृत्ति आदि।

सार्वजनिक व्यय का महत्त्व:
आधुनिक सरकारों का स्वरूप कल्याणकारी है, इसलिए सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बहुत अधिक है। जैसे –

1. सामाजिक कल्याण में वृद्धि:
सरकार अनेक सामाजिक सेवाओं के उत्पादन व संचालन पर व्यय करती है। इससे स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, सांस्कृतिक आदि सेवाएँ लोगों को अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है।

2. आर्थिक विकास में वृद्धि:
सरकार योजना कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए व्यय करती है। इस प्रकार के खर्चों से कृषि, उद्योग, बीमा, बैंकिंग, यातायात, संचार आदि का विकास होता है। इससे आर्थिक विकास की दर अधिक हो जाती है।

3. आय व सम्पत्ति की असमानता में कमी:
सरकार आय व सम्पत्ति की असमानता को कम करने के लिए निर्धन व पिछड़े लोगों व क्षेत्रों पर अधिक खर्च करती है। पिछड़े हुए क्षेत्रों व लोगों को हस्तान्तरण भुगतान आर्थिक सहायता प्रदान करके उनका आर्थिक विकास करती है।

4. आर्थिक कल्याण में वृद्धि:
बेरोजगारी उन्मूलन, महिला उत्थान, बाल उत्थान अनुसूचित व जनजातियों के उत्थान के लिए सार्वजनिक व्यय बहुत उपयोगी है।

5. आर्थिक क्रियाकलापों पर नियन्त्रण:
आर्थिक मन्दी व तेजी पर नियन्त्रण करने के लिए भी सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण होते हैं। आर्थिक मन्दी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर प्रभावी माँग को बढ़ा सकती है। आर्थिक तेजी के समय सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर प्रभावी माँग को बढ़ा सकती है। आर्थिक तेजी के समय सार्वजनिक व्यय को कम करके सरकार प्रभावी माँग को कम कर सकती है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के उत्तर दो –

  1. MPS = 0.4, सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  2. MPC = 0.9 सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  3. MPS = 0.5 सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  4. MPC = 0.75 कर गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  5. MPS = 0.1 कर गुणक का मूल्य क्या होगा?

हल:
1. (सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{MPS}\) (∵MPS = 1 – C)
= \(\frac{1}{0.4}\) = 2.5

2. सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.9}\) = \(\frac{1}{0.1}\) = \(\frac{10}{1}\) = 10

3. सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = \(\frac{10}{5}\) = 2

4. कर गुणक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) (∵C = MPC)
= \(\frac{-0.75}{1-0.75}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3

5. कर गुणक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{-(1-MPS)}{MPS}\) (∵C = MPC)
= \(\frac{-1}{(1-0.1)}\) = \(\frac{-0.9}{0.1}\) = – 9
उत्तर:

  1. 2.5
  2. 10
  3. 2
  4. – 3
  5. – 9

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

  1. यदि सरकारी व्यय गुणक 6 है, कर गुणक का मान क्या होगा।
  2. यदि कर गुणक का मान – 2 है, तो सरकारी व्यय गुणक का मान ज्ञात करो।

हल:
1. सरकारी व्यय गुणक = 6
\(\frac{1}{MPS}\) = 6; MPS = \(\frac{1}{6}\)
MPC = 1 – MPS = 1 – \(\frac{1}{6}\) = \(\frac{5}{6}\)
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-5/6}{1/6}\) = \(\frac{-5}{6}\) × \(\frac{6}{1}\) = – 5

2. कर गुणक = – 2
\(\frac{-MPC}{MPS}\) = – 2
– MPC = – 2 MPS
MPC = – 2 MPS
MPC = 2 MPS
या 2MPS = MPC
2MPS = 1 – MPS
2MPS + MPS = 1
या 3MPS = 1 (∵MPC = 1 – MPS)
या MPS = \(\frac{1}{3}\)
MPS = 1 – MPS = \(\frac{1/1}{3}\) = \(\frac{3}{1}\) = 3
उत्तर:

  1. कर गुणक = – 5
  2. सरकारी व्यय गुणक = 3

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ दी गई है –
C = 85 + 0.5Yd, 1 = 58, G = 60, T = -40 + 0.25Y, Yd = Y – T, Y = C + I + G

  1. साम्य आय की गणना करो।
  2. सरकार को कितनी मात्रा में शुद्ध कर एकत्र करना चाहिए, जब अर्थव्यवस्था साम्य में हो।
  3. सरकारी बजट घाटा क्या है या सरकारी अधिशेष क्या है?

हल:
1. Y = C + I + G = 85 + 0.5 (Y – T) + 85 + 60
= 230 + 0.5 [Y – (-40 + 0.25Y)]
= 230 + 0.5Y + 20 – 0.125Y = 250 + 0.375Y
Y – 0.375Y = 250
Y (1 – 0.375) = 250
0.625Y = 250
Y = \(\frac{250}{0.625}\) = 400

2. T = – 40 + 0.25Y = – 40 + 0.025 × 400 = – 40 + 100 = 60

3. कोई बजट घाटा या अधिशेष नहीं होगा
उत्तर:

  1. साम्य आय = 400
  2. कर = 60
  3. बजट घाटा या बजट अधिशेष = 0

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प्रश्न 4.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में नीचे सूचनाएँ दी गई है –
C = 100 + 0.5Yd, I = 100, G = 80, T = – 60 + 0.25Y
Y = C + I + G
Y = C + I + G

  1. साम्य आय ज्ञात करो।
  2. साम्यावस्था में सरकार को कितना कर एकत्र करना चाहिए?

हल:
1. Y = C + I + G
Y = 100 + 0.5Yd + 100 + 80
Y = 100 + 0.5 (Y – T) + 180
= 280 + 0.5 [Y – (- 60 + 0.25Y)]
= 280+ 0.5Y + 30 – 0.125Y
Y = 0.125Y – 0.5Y = 310
Y – 0.375Y = 310
0.625Y = 310
Y = \(\frac{310}{0.625}\) = \(\frac{310 × 1000}{625}\) = 496

2. T = – 60 + 0.25 × 496 = – 60 + 124 = 64
उत्तर:

  1. साम्य आय = 496
  2. कर राजस्व = 64

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प्रश्न 5.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध है –
वास्तविक उत्पाद = 1000
सरकारी खरीद = 200
कुल कर = 200
निवेश आय = 100
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति प्रयोज्य आय की 75 प्र. श.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति प्रयाज्य आय की 25 प्र. श.

  1. उपरोक्त सूचनाओं के आधार पर माल तालिका निवेश तथा उत्पाद के बारे में अनुमान लगाइए।
  2. अर्थव्यवस्था आय के किस स्तर पर साम्य अवस्था में होगी।

हल:
1. Y = 1000, Yd = Y – T= 1000 – 200 = 800, I = 100, G = 200,
C = 800 का 75 प्र. श. = \(\frac{800 × 75}{100}\) = 600
S = Yd – C = 800 – 600 = 200
कुल व्यय = C + I + G = 600 + 100 + 200 = 900
लेकिन अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन = 1000
कुल व्यय < कुल उत्पादन
900 < 1000 साम्य अवस्था में

2. Y = C + I + G
Y = 600 + 100 + 200 = 900
उत्तर:
साम्य आय = 900

प्रश्न 6.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दो –
1. ∆C = 25, ∆Y = 100
सरकारी व्यय गुणक ज्ञात करो।

2. ∆S = 20, ∆Y = 100
सरकारी व्यय गुणक ज्ञात करो।
हल:
∆C = 25, ∆Y = 100
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\) = \(\frac{25}{100}\) = 0.25
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.25}\) = \(\frac{1}{0.75}\) = \(\frac{100}{75}\) = \(\frac{4}{3}\)
MPS = \(\frac{∆S}{∆Y}\) = \(\frac{20}{100}\) = 0.20
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{100}{20}\) = 5
उत्तर:

  1. सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{4}{3}\)
  2. सरकारी व्यय गुणक = 5

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।

  1. यदि MPS = 0.25 कर गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  2. यदि MPC = 0.1 कर गुणक का मूल्य निकालिए।

हल:
1. MPS = 0.25
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.25 = 0.75
कर गुणक = – \(\frac{MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3

2. MPC = 0.1
MPS = 1 – MPC = 1 – 0.1 = 0.9
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.1}{0.9}\) = \(\frac{-1}{9}\)
उत्तर:

  1. कर गुणक = -3
  2. कर गुणक = \(\frac{-1}{9}\)

प्रश्न 8.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में MPC = 0.5 है, तो गणना द्वारा बताइए कि कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य, सरकारी व्यय गुणक से कम है।
हल:
MPC = 0.5
MPS = 1 – MPC = 1 -0.5 = 0.5
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-MPC}\) = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = \(\frac{10}{5}\) = 2
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.5}{0.5}\) = -1
कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य = 1
उत्तर:
उपरोक्त गणना में कर गुणक का निरपेक्ष मान 1 है, जो सरकारी व्यय 2 से कम है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूचना एक अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई है –
C = 60 + 0.5Yd, I = 60, G = 45, T = -15 + 0.25Y
Yd = Y – T
Y = C + I + G
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।

  1. साम्य आय की गणना करो।
  2. साम्य अवस्था में सरकार की कितना कर एकत्र करना चाहिए।

हल:
1. Y = C + I + G = 60 + 0.5Yd + 60 + 45
= 60 + 0.5 [Y – (- 15 + 0.25 × Y)] + 105
= 60 + 105 + 0.5 Y – 0.125Y + 7.5
= 172.5 + 0.375Y
Y – 0.375 = 172.5
0.625Y = \(\frac{1725}{0.625}\) = 276.4

2. कर (T) = – 15 + 0.25 × 276.4 = -15 + 69.10 = 54.10
उत्तर:
साम्य आय = 276.4
साम्य आय पर कर = 54.10

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वार्षिक वित्तीय विवरण में शामिल होता है –
(A) मुख्य बजट
(B) पूँजीगत बजट
(C) राजस्व बजट
(D) रेलवे बजट
उत्तर:
(A) मुख्य बजट

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प्रश्न 2.
राजस्व प्राप्तियों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –
(A) कर एवं गैर कर प्राप्तियाँ
(B) ऋण एवं कर
(C) कर एवं हस्तान्तरण
(D) सरकार एवं विदेशों से हस्तान्तरण
उत्तर:
(A) कर एवं गैर कर प्राप्तियाँ

प्रश्न 3.
1990 – 91 से 2003 – 04 के मध्य कुल कर प्राप्तियों में प्रत्यक्ष करों की भागीदारी बढ़ी है –
(A) 29.1% से 50%
(B) 19.1% से 41.3%
(C) 41.3% से 50%
(D) 41.3% से 69.1%
उत्तर:
(B) 19.1% से 41.3%

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प्रश्न 4.
1990 – 91 से 2003 – 04 के मध्य भागीदारी घटी है –
(A) प्रत्यक्ष करों की
(B) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों करों की
(C) अप्रत्यक्ष करों की
(D) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर:
(C) अप्रत्यक्ष करों की

प्रश्न 5.
पूँजीगत बजट में शामिल होते हैं –
(A) राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियाँ
(B) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर
(C) पूँजीगत व्यय एवं पूँजीगत प्राप्तियाँ
(D) सभी
उत्तर:
(C) पूँजीगत व्यय एवं पूँजीगत प्राप्तियाँ

प्रश्न 6.
राजस्व घाटा होता है –
(A) शुद्ध घरेलू ऋण
(B) RBI से ऋण
(C) विदेशों से ऋण
(D) राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
उत्तर:
(D) राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

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प्रश्न 7.
राजकोषीय घाटा होता है।
(A) कुल व्यय-कुल प्राप्तियाँ
(B) कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
(C) कुल व्यय-गैर ऋण कुल प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल व्यय-गैर ऋण कुल प्राप्तियाँ

प्रश्न 8.
प्राथमिक घाटा होता है –
(A) कुल राजकोषीय घाटा-विदेशों से ऋण
(B) ऋण
(C) कुल राजकोषीय घाटा-शुद्ध ब्याज दायित्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल राजकोषीय घाटा-शुद्ध ब्याज दायित्व

प्रश्न 9.
जो कर आय पर निर्भर नहीं होता है, कहलाता है –
(A) अप्रत्यक्ष कर
(B) प्रत्यक्ष कर
(C) एकमुश्त कर
(D) अनुपातिक कर
उत्तर:
(C) एकमुश्त कर

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प्रश्न 10.
सरकारी व्यय गुणक का सूत्र होता है।
(A) \(\frac{1}{1-C}\)
(B) \(\frac{-C}{1-C}\)
(C) \(\frac{1-C}{1-C}\)
(D) \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{1}{1-C}\)

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 4 मुगल साम्राज्य

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 4 मुगल साम्राज्य Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 4 मुगल साम्राज्य

Bihar Board Class 7 Social Science मुगल साम्राज्य Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
इकाई 3 की तालिका-1 पर नजर डालिये एवं मानचित्र 4 को देखकर लोदियों के राज्य क्षेत्र को चिह्नित कीजिए।
उत्तर-
लोदियों के राज्य क्षेत्र थे :

  1. बनारस
  2. बिहार
  3. अवध
  4. बदायू
  5. कोल
  6. दिल्ली
  7. कहराम
  8. सरहिंद
  9. सरसुती
  10. हाँसी
  11. लाहौर
  12. नंदाना
  13. कच्छ
  14. मुल्तान
  15. राजकोट आदि ।

प्रश्न 2.
अफगान और मुगल संघर्ष के क्या कारण थे ?
उत्तर-
अफगान और मुगल संघर्ष के कारण थे अपने-अपने राज्य क्षेत्र का विस्तार और शेर खाँ द्वारा दिल्ली पर अधिकार ।

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प्रश्न 3.
क्या आप सल्तनतकालीन अमीर एवं मुगलकालीन अमीर _वर्ग में कोई अंतर देखते हैं ?
उत्तर-
सल्तनत काल में कुछ ऐसे अमीर बना दिये गये थे, जो वास्तव में उसके योग्य नहीं थे । बरनी ने इसी बात की आलोचना की थी । सल्तनत काल में अमीरों की संख्या कम थी। हालांकि इन्होंने भारतीय मुसलमानों को भी अमीर बनाया और कुछ हिन्दू, जैन, अफगान और अरब लोगों को अमीर बनाया लेकिन उनकी संख्या नगण्य थी।

अकबर के दरबार में 51 दरबारी अमीर के ओहदा पर थे । यही लोग शासन-प्रशासन की देखरेख करते थे । इनमें अनेक अकबर के रिश्तेदार भी शामिल थे । इनको बड़ी-बड़ी जागीरें दी गई थीं । ये अपने को बादशाह के समकक्ष समझते थे । अकबर ने कुछ भारतीय मुसलमानों को भी अमीर बनाया और इसके कुछ अमीर ईरानी और तूरानी भी थे । हिन्दुओं को इसने अमीरों से भी ऊँचे ओहदों पर रखा ।

प्रश्न 4.
अभी के अधिकारी और मुगलकालीन मनसबदारों में क्या कोई समानता है ?
उत्तर-
हाँ, समानता है । मुगलकालीन मनसबदार प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते थे, तो आधुनिक अधिकारी भी प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाते हैं।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

फिर से याद करें :

प्रश्न 1.
सही जोड़ बनाएँ :

  1. मनसब – न्याय की जंजीर
  2. बैरम खाँ – पद
  3. सूबेदार – अकबर
  4. जहाँगीर – चित्तौड़
  5. महाराणा प्रताप – गवर्नर

उत्तर-

  1. मनसब – पद
  2. बैरम खाँ – अकबर
  3. सूबेदार – गवर्नर
  4. जहाँगीर – न्याय की जंजीर
  5. महाराणा प्रताप – चित्तौड

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों को भरें :

  1. पानीपत की प्रथम लडाई बाबर और …… के बीच……ई० में हई।
  2. यदि जात एक मनसबदार के पद और वेतन का द्योतक था, तो सवार उसके ………….. को दिखाता था ।
  3. शेरशाह ने …………. बड़ी संख्या में निर्माण करवाया।
  4. अकबर का दरबारी इतिहासकार ………….. था जिसने ………….. नामक पुस्तक लिखी।
  5. …………..मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।

उत्तर-

  1. इब्राहिम लोदी, 1526
  2. सैन्य बल
  3. सरायों की
  4. अबुल फजल, अकबरनामा
  5. अकबर

आइए विचार करें

प्रश्न 1.
मनसबदार और जागीरदार में क्या संबंध था ?
उत्तर-
मनसबदार और जागीरदार में यह संबंध था कि मनसबदार केवल भूमि कर से मतलब रखते थे किंतु जागीरदार अपने जागीर पर प्रशासनिक कार्य भी करते थे । जागीरदार भूमि कर स्वयं वसूलते थे, जिसके लिए उन्हें अपनी जागीर में ही रहना अनिवार्य था, लेकिन मनसबदार कहीं भी रहकर अपने कर्मचारियों से लगान वसूलवाते थे ।

प्रश्न 2.
पानीपत के मैदान में होने वाली प्रथम लड़ाई का भारतीय इतिहास में क्या महत्व है ?
उत्तर-
पानीपत के मैदान में होने वाली प्रथम लड़ाई का भारतीय इतिहास में यह महत्व है कि इस लड़ाई ने भारत में लोदी वंश का सर्वनाश कर दिया और भारत में एक नये वंश मुगल वंश की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया ।

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प्रश्न 3.
मुगल शासन की विशेषताओं को बताइए । उनमें मनसबदारों की क्या भूमिका थी?
उत्तर-
मुगल शासन की विशेषता थी कि उस काल में जनसाधारण का जीवन सुखी और सम्पन्न था । अमीरों के लिये एशो आराम की वस्तुएँ बनाने वालों को यद्यपि मजदूरी कम मिलती थी लेकिन खाद्यान्नों के सस्ता होने के कारण इन्हें कठिनाई नहीं होती थी । बंगाल में मछली-भात खाने का रिवाज था वहीं उत्तर भारत में रोटी-दाल खाया जाता था । बिहार के लोग भात खाते थे । पशुपालन के कारण दूध, दही, घी भी खूब मिलते. थे । हालाँकि कपड़े की कमी थी । इसके बावजूद लोग सुखी थे।

मनसबदार प्रशासनिक काम देखते थे । ये बादशाह के आदेशों और कानूनों का लोगों से पालन कराते थे । आवश्यकता पड़ने पर ये बादशाह को सैनिक मदद भी देते थे । मनसबदारों को एक निश्चित संख्या में घुड़सवार सैनिक रखना पड़ता था । इस खर्च को वहन करने के लिये इन्हें जमीन दी जाती थी, जिसकी लगान की आय से ये अपने सैनिकों को वेतनादि तो देते ही थे और अपना खर्च भी चलाते थे ।

प्रश्न 4.
मुगल साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे?
उत्तर-
मुगल साम्राज्य के पतन के कारण थे औरंगजेब की अदूरदर्शिता । वह बिना सोचे समझे निर्णय ले लिया करता था । जजिया कर को लागू करके, जिसे अकबर ने उठा दिया था, हिन्दुओं को नाराज कर दिया । उसने दक्षिण विजय के लिये अपनी सारी शक्ति झोंक दी। इससे उत्तर के सूबेदार निरंकुश होने लगे। 1707 में उसकी मृत्यु ने आग में घी का काम किया । अब मुगल दरबार षड्यंत्र का अखाड़ा बन गया और धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य ध्वस्त हो गया।

प्रश्न 5.
भू-राजस्व से प्राप्त होनेवाली आय, मुगल साम्राज्य के स्थायित्व के लिए कहाँ तक जरूरी थी ?
उत्तर-
ऐसा ज्ञात होता है कि मुगल सम्राटों को भू-राजस्व के अलावा आय का कोई अन्य स्रोत नहीं था। शहर के शिल्पियों से कुछ कर मिल जाता था, लेकिन वह दाल में नमक के बराबर था । साम्राज्य में जो भी वाणिज्य-व्यापार था वह स्थानीय ही था । अतः वाणिज्य कर भी नगण्य ही था । इसी कारण मुगल साम्राज्य के स्थायित्व के लिए भू-राजस्व से प्राप्त होनेवाली आय ही जरूरी थी।

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प्रश्न 6.
मुगल अपने आपको तैमूर का वंशज क्यों कहते थे ?
उत्तर-
मुगलों का मंगोल और तैमूर-दोनों वंशजों से संबंध था । माता की ओर से वे मंगोलों से सम्बद्ध थे तो पिता की ओर से वे तैमूर वंश से संबंध रखते थे । उन्होंने मंगोल कहलाना इसलिए अच्छा नहीं समझा क्योंकि मंगोल अपनी नृशंसता के लिए बदनाम थे । तैमूर का नाम ऊँचाई पर पहुँचा हुआ था क्योंकि उसने दिल्ली को फतह किया था। हालांकि नृशंसता में तैमूर भी कोई कम नहीं था लेकिन वीरता में उसका बड़ा नाम था । इसी कारण मुगलों ने खुद को मंगोल की अपेक्षा तैमूर का वंशज कहलाना अधिक अच्छा समझा और उसी पर बल दिया

Bihar Board Class 7 Social Science मुगल साम्राज्य Notes

पाठ का सार संक्षेप

दिल्ली सल्तनत कमजोर पड़ गया । इसका लाभ उठाकर लादियों ने सल्तनत पर अधिकार कर लिया। बाबर एक बडी सेना के साथ बन्दुक और तोपखानों से लैस होकर दिल्ली विजय के लिये चल पड़ा । उस समय दिल्ली सल्तनत का शासक इब्राहिम लोदी था । पानीपत के मैदान में दोनों की मुठभेड़ हुई । अधिक सैनिक के बावजूद इब्राहिम लोदी ‘तोपों’ का मुकाबला नहीं कर सका और युद्ध में मारा गया । 1526 में दिल्ली सल्तनत पर बाबर का अधि कार हो गया । इसके पहले बाबर काबुल और कंधार का शासक था । उसके

अधिकांश अधिकारी लूट-पाट मचाकर काबुल लौट जाना चाहते थे । लेकिन ‘बाबर ने उन्हें समझा-बुझा कर रोका और दिल्ली पर मुगल शासन की नींव रखी । इसके बाद उसनं 1527 में चित्तौड़ के शासक राणा सांगा तथा 1528 में चन्देरी के राजा मेदिनी राय और 1529 में पूर्वी भारत के अफगानों को हराया।

शेर खाँ, जो बिहार के सासाराम में राजधानी बनाकर शासन करता था, हारने के बाद मुगलों के यहाँ ही नौकरी कर ली । इस अवधि में वह मुगलों के कार्यकलापों का पैनी दृष्टि से निगरानी कर रहा था।

हुमायूँ जो शेरशाह से हारकर भारत में ही लुका-छिपी खेल रहा था, दिल्ली पर 1555 में फिर अधिकार जमा लिया । लेकिन वह भी अधिक दिनों. तक जीवित नहीं रहा । उसका बेटा अकबर मात्र 13 वर्ष की आयु में दिल्ली की तख्त पर बैठा । शासन का काम-काज उसका मामा बैरम खाँ चला रहा था । 17 वर्ष की उम्र में अकबर ने शासन सूत्र अपने हाथ में ले लिया । सर्वप्रथम उसने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने और वहाँ अपनी स्थिति मजबूत करने में लग गया।

1556 से 1576 के बीच उसने अपने राज्य को काफी बढ़ा लिया। इसके अगले दस वषों तक वह राजपूतों से मित्रता बढ़ाने और इससे भी नहीं हुआ तो आक्रमण करके राजपूताने में अपनी स्थिति मजबूत की । उसने राजपूतों से वैवाहिक सम्बंध भी कायम किये । अनेक राजपूत सरदारों को ऊँचे ओहदे दे दिये । चित्तौड़ का संघर्ष बहुत महत्त्व का था । वहाँ का शासक महाराणा प्रताप हार गया किन्तु उसने जीवन पर अकबर की अधीनता कबूल. नहीं की । चित्तौड़ के बाद अकबर ने रणथम्भौर तथा गुजरात को भी जीत लिया । यह व्यापारिक केन्द्र था, जहां से उसे अचछी आय प्राप्त होने लगी।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 4 मुगल साम्राज्य

बंगाल और बिहार अभी भी अफगानों के अधिकार में थे । भीषण युद्ध के’ बाद उसने इन दोनों को अपने राज्य में मिलाया । दक्षिण में भी उसने कुछ क्षेत्रों को अपने राज्य में मिलाया । वह और आगे बढ़ना चाहता था। लेकिन 1602 में सलीम के विद्रोह के कारण उसे अपने कदम रोकने पड़े। 1605 में अकबर की मृत्यु हो गई । उसकी मृत्यु के पहले तक मुगल साम्राज्य काफी फैल चुका था

शाहजहाँ के चार पुत्र थे, दारा, शुजा, औरंगजेब और मुराद । अपनी बीमारी के चलते वह दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया । यह बात तीनों भाइयों को नागवार गुजरी । औरंगजेब ने छल-कपट से अपने तीनों भाइयों को मौत के घाट उतार दिया और पिता को कैदकर स्वयं बादशाह बन गया।

औरंगजेब का शासक बनना मुगल साम्राज्य के लिए शुभ नहीं रहा । हालांकि वह अच्छा लड़ाका था और अपना अधिक समय दक्षिण विजय में ही लगाए रखा । इधर उत्तर में उसके सूबेदार अपने को स्वतंत्र घोषित करने के फिराक में रहने लगे । फलतः राज्य अस्त-व्यस्त हो गया । 1707 में औरंगजेब की मृत्यु दक्षिण भारत में ही हो गई । अब मुगल दरबार षड्यंत्रों का अड्डा बन गया । बंगाल तथा अवध अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिये। सभी सूबों के सूबेदार अब स्वतंत्र शासक के रूप में काम करने लगे ।

यहाँ की कमजोरी को भाँप 1739 में ईरान के शासक नादिरशाह ने आक्रमण कर दिल्ली-को तहस-नहस कर दिया । अब्दाली ने भी आक्रमण किया जिसे मुगल झेल नहीं पाये।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 21 गुरु की सीख

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 21 गुरु की सीख Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 21 गुरु की सीख

Bihar Board Class 7 Hindi गुरु की सीख Text Book Questions and Answers

गुरु की सीख Summary in Hindi

एक दिन गुरु जी अपने शिष्यों को जड़ी-बूटियों की जानकारी देने के लिए किसी जंगल में लेकर जा रहे थे। रास्ते में अवारा कुत्ते भौंकते हुए उनके पीछे आ गए । गुरु और उनका एक शिष्य उनकी ओर ध्यान न देकर चुपचाप अपनी राह पर चलते रहे। पर उनके अन्य शिष्य वहीं रूक गए। वे पत्थर मारकर उन आवारा कुत्तों को भगाने लगे।

उन्हें भगाकर जैसे ही वे आगे बढ़े, अचानक एक बंदर उनके रास्ते में आ गया। वे उसे भी पत्थर मारने लगे। बंदर तब भी वहाँ से भागा नहीं। वह उन शिष्या से चिढ़ गया था। बहुत देर तक वे उस बंदर से ही उलझे रह।

जब जंगल में पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जब वे अपने गुरु के पास आए, गुरु ने उनकी ओर देखा भी नहीं। उनकी अनदेखी करते हुए गुरु ने अपने साथ आए शिष्य से कहा-“वत्स, शाम होनेवाली है। जंगल में अब रूकना ठीक नहीं है, हमें यहाँ से अब शीघ्र जाना होगा।” यह सुनकर अन्य शिष्य हैरान रह गए । जड़ी-बूटियों के बारे में तो गुरु जी ने कुछ बताया ही नहीं था।

उन शिष्यों ने विनम्र भाव से गुरु से कहा-“गुरुजी, आप तो हमें जंगल में जड़ी-बूटियों की जानकारी देने के लिए लाए थे, पर आप तो बिना जानकारी दिए जाने की बात कह रहे हैं।”

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 21 गुरु की सीख

गुरु ने कठोरता से कहा “बच्चो, तुम सही कह रहे हो । पर गुम अभी इस योग्य नहीं हो।”

गुरु की बात को वे समझ नहीं सके। शिष्यों ने पुनः याचना भरे स्वर में कहा – “गुरुजी, आप हम से नाराज क्यों हैं ? हमारा दोष क्या है ?”

शिष्यों को समझाते हुए गुरु ने कहा-“बच्चो, यदि तुम समय पर जंगल में आ जाते, तो संभवत: मैं तुम्हें जड़ी-बूटियों की जानकारी अवश्य देता । पर तुमने लो अपना सारा समय रास्तं में व्यर्थ की बातों में उलझनों में ही गंवा दिया।”

शिष्यों को अपनी गलती का एहसास हो गया था। वे खाली हाथ-मुँह लटकाए कुटिया में वापस आकर अपनी गलती पर पश्चाताप करने लगे।

जबकि वह शिष्य, जो रास्ते में न रूककर गुरु के साथ ही रहा था, अपने साथ कई उपयोगी जड़ी-बूटियाँ जंगल से एकत्रित कर ले आया था।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 20 यशास्विनी

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 20 यशास्विनी Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 20 यशास्विनी

Bihar Board Class 7 Hindi यशास्विनी Text Book Questions and Answers

पाठ से –

प्रश्न 1.
इन पद्यांशों के अर्थ स्पष्ट कीजिए।

(क) पग-नुपूर कंगन हार नहीं,
तुम विद्या से श्रृंगार करो।
अर्थ – हे नारी ! पैर में पायल, हाथ में कंगन और गले में हार पहनना हों अपना शृंगार मत समझो। आज तुझे विद्या से अपने को शृंगार करने का समय है।

(ख) वह दान दया की वस्तु नहीं,
वह जीव नहीं वह नारी है।
अर्थ – हे पुरुषो ! नारी को मात्र दान-दया का जीव मत मानो। वह पुरुषों के साथ-साथ चलने वाली नारी है।

(ग) उसे टेरेसा बन जीने दो,
उसे इंदिरा बन जीने दो।
अर्थ-हे पुरुषो। इसी नारी में कोई महान समाज सेविका मदर टेरेसा अथवा कोई इंदिरा भी बन सकती है। अत: इन्हें भी टेरेसा, इंदिरा बनने दो।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 20 यशास्विनी

पाठ से आगे –

प्रश्न 1.
समाज में लिंग-भेद मिटाना क्यों जरूरी है ? इसको मिटाने के लिए आप क्या-क्या कर सकते हैं ?
उत्तर:
समाज में अभी भी लिंग भेद व्याप्त है जिसे मिटाना जरूरी है क्योंकि बेटा-बेटी दोनों एक समान हैं। बेटियाँ भी अच्छी विद्या पाकर राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान दे रही हैं। इसके बाद भी स्त्री-पुरुष में विभेद किया जा रहा है जो स्त्री के साथ अन्याय हो रहा है।

इसको मिटाने के लिए हम सबसे पहले भ्रूण हत्या रोकने की कोशिश करेंगे। लड़कियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देंगे। लड़कियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करेंगे। बेटा-बेटी को एक समान बताने का प्रयास कर लिंग-भेद मिटाया जा सकता है।

प्रश्न 2.
समाज में स्त्री एवं पुरुष में भेद-भाव किन-किन रूपों में दिखाई देता है। इन्हें समाप्त करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है ?
उत्तर:
आज के युग में भी स्त्री-पुरुष में भेद-भाव विभिन्न रूपों में दिखाई देता है जिसे हम निम्न रूप में देखते हैं –

  1. विशेषतः स्त्रियों को पुरुष अपना सेविका मानती हैं।
  2. विशेषत: स्त्रियों को घर के कामों में सीमित रखा जाता है।
  3. स्त्रियों को शिक्षित करना अभिशाप मानते हैं।
  4. उनके रहन-सहन पढ़ाई-लिखाई और खान-पान भी पुरुषों की अपेक्षा कमजोर दिखाई पड़ते हैं।

अर्थात् पुरुषों की अपेक्षा नारियों का महत्व समाज में कम देते हैं। इसको दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं –

  1. समाज में नारी के योगदान की चर्चा करना चाहिए।
  2. नारी सह पुरुष शिक्षा का समान शिक्षा प्रणाली बने ।
  3. नारी को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाय ।
  4. नारी को आगे बढ़ने देने के लिए सहयोग करना चाहिए।

प्रश्न 3.
समाज में भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। लगातार महिलाओं की संख्या में कमी हो रही है। लोग लड़के की कामना करते हैं तथा लड़कियों को दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में देखा जाता है। वर्तमान समय में कमोवेश नारी की यही स्थिति है। इस परिदृश्य को ध्यान में रखकर एक स्वरचित कविता का निर्माण कीजिए।
उत्तर:
बेटी
गर्भ में बेटो को कम मत समझो,
मात्र नारी नहीं तुम जननी समझो।
कौन कहता जो पुत्र तुम्हारें गर्भ में है,
वह कुकर्मी, शैतान चोर-डाकू नहीं है।
तुम्हारी बेटी क्यों नहीं हो सकती.ऐसा,
कल्पना, इंदिरा लता मंगेशकर के जैसा।
जन्म लेने दो उसे उसका यह अधिकार है।
नहीं तो तुम्हें नारी होने पर धिक्कार है।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 20 यशास्विनी

व्याकरण –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम लिखिए –
उत्तर:
तोड़ो = जोड़ो
संवारना = मिटाना
नफरत = प्रेम
सम्मान = असम्मान
स्वीकार = अस्वीकार
दया = कठोरता

प्रश्न 2.
दिये गये पुलिङ्ग शब्दों के स्त्रीलिंग शब्द लिखिए –
उत्तर:
अभिनेता = अभिनेत्री।
नेता = नेताइन।
लेखक = लेखिका।
छात्र = छात्रा।
अध्यापक = अध्यापिका।
नर = नारी।

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कुछ करने को –

प्रश्न 1.
बाल विवाह, दहेज-प्रथा, भ्रूण हत्या जैसी सामाजिक कुरीतियाँ हमारे समाज में हैं। आपके विद्यालय में “मीना मंच” से संबंधित या कुछ अन्य पुस्तकें होगी। जिनमें बालिका शिक्षा तथा नारी गणनितकरण से सम्बन्धित कहानियाँ हैं। आप उनका अध्ययन कीजिए और नुक्कड़ नाटक के द्वारा समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने के लिए लोगों को प्रेरित कीजिए।
उत्तर:
बालिका शिक्षा और नारी सशक्तिकरण से सम्बन्धित अनेक पुस्तकें हैं उसका अध्ययन कर नुक्कड़ नाटक करें।

प्रश्न 2.
प्रत्येक वर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस दिन क्या-क्या होता है। अपने शिक्षक से चर्चा कीजिए।
उत्तर:
प्रतिवर्ष 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है जिसमें राष्ट्र के श्रेष्ठ महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। मेघावी छात्राओं को सम्मानित किया जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय नारी विभिन्न क्षेत्रों में अपना परचम लहराया है, जैसे –
इन्दिरा गाँधी – राजनीति क्षेत्र में।
कल्पना चावला – अंतरिक्ष क्षेत्र में।
मदर टेरेसा – समाज सेवा क्षेत्र में।
लता मंगेशकर – संगीत के क्षेत्र में।
क्या आपके आस-पास कोई ऐसी नारी है, जिसने किसी क्षेत्र में अपना विशेष नाम किया हो । शिक्षक, अभिभावक की सहायता से पता कर उनसे मिलिए और बातचीत कीजिए।
उत्तर:
हमारे पास एक वयोवृद्ध महिला भगवती देवी जी हैं मैं उनसे मिलकर बातचीत किया और जाना।

प्रश्न 4.
क्या आप महिलाओं की शिक्षा के प्रति अधिक व्यस्त रही?
उत्तर:
हाँ मैंने जीवन में अधिकाधिक महिलाओं को शिक्षित करने का व्रत रख लिया है।

प्रश्न 5.
आपने महिलाओं की क्या दशा देखी?
उत्तर:
पहले महिलाओं को केवल बच्चा पैदा करने वाली और खाना बनाने वाली मानकर उसे पुरुष रखते थे। उनको शिक्षा से वंचित रखा जाता था । उनको घर से निकलने नहीं दिया जाता था।

प्रश्न 6.
आपके द्वारा कितनी महिलाएँ शिक्षित हुई ?
उत्तर:
गिनती करना तो मुश्किल है लेकिन हजारों की संख्या में लड़कियाँ एवं महिलाओं को मैंने शिक्षा देकर उन्हें शिक्षित किया है।

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प्रश्न 7.
महिला शिक्षा के लिए आपने क्या-क्या उपाय किये?
उत्तर:
सबसे पहले उन्हें चर्खा कतवाकर, गुड़िया बनवाकर अर्थोपार्जन के लिए आकृष्ट किया। फिर उनके बच्चे को पढ़ाने का काम भी करने लगे तथा अनपढ़ महिलाओं को भी साक्षर होने के लिए प्रोत्साहित किया। लड़कियों का स्कूल खोला।

प्रश्न 8.
आज आपके विद्यालय में कहाँ तक लड़कियाँ अध्ययन कर सकती हैं?
उत्तर:
वर्तमान समय में हमारे यहाँ वर्ग प्रथम से दशम वर्ग तक की छात्राएँ शिक्षा प्राप्त कर रही हैं।

प्रश्न 9.
आपके इस कार्य में सरकार का क्या सहयोग रहा?
उत्तर:
सरकार भी बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक है। हमारे यहाँ वर्ग आठ तक की शिक्षा को सरकार अपने अधिकार में लेकर मान्यता दे दी है। लेकिन हाई स्कूल के शिक्षिकागण सरकारी सहायता से वंचित है। हाईस्कूल को भी वित्तरहित मान्यता देकर छोड़ दिया गया है।

प्रश्न 10.
क्या आए सरकार से संतुष्ट हैं ?
उत्तर:
वर्तमान सरकार नारी शिक्षा के प्रति अधिक जागरूक है जिससे हम संतुष्ट हैं।

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गतिविधि –

जूतों की दुकान में जाकर जूते-चप्पलों तथा सैंडलों की बनावट, रंग तथा उपयोग में लाई गई सामग्री पर जानकारी एकत्रित करके नीचे दिये गये प्रश्नों के जवाब दीजिए।

(क) क्या लड़के तथा लड़कियों के जूते-चप्पल तथा सैंडल में अन्तर है ? यदि हाँ तो ये अन्तर कान-कौन से हैं ?
उत्तर:
लड़कियों के जूते चप्पल तथा सैंडल प्रायः लड़के के जूते चप्पलों से ऊँची ऐडियों की होती हैं। लड़कियों के जूते-चप्पल विशेषतः रंग-बिरंगी रंगों में होती है।

(ख) लड़के तथा लड़कियों के लिए अलग-अलग जूते-च बनाने के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
लड़कियों के जूते-चप्पल को अलग-अलग बनाने का मुख्य कारण उन्हें आकर्षक बनाना है तथा लिंग-भेद कायम रखना है।

(ग) लड़के तथा लड़कियों के जूते चप्पलों तथा सैंडलों में अन्तर ‘लिंग-भेद को बनाये रखने का एक तरीका है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हाँ, लड़के तथा लड़कियों के जूते चप्पलों तथा सैंडड़ों में अन्तर कर लिंग-भेद में बढ़ावा देना है। जो नहीं होना चाहिए।’

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शारीरिक ताकत का भ्रम

स्त्रियाँ तेजी से दौड़ नहीं सकतों—यह धारणा ‘सुसंस्कृत’ गृहिणियों’ को देखकर पैदा होती है। लेकिन तथ्य गवाह है कि यदि स्त्री को समान अवसर मिले तो वह पुरुपों से ज्यादा पीछे नहीं रह सकतीं । ओलंपिक के रिकार्ड इसके गवाह हैं। ओपिक प्रतियोगिताओं में 100 मीटर की दौड़ में पुरुषों का रेकार्ड 1183 सेकेंड (1984 में) का है और स्त्रियों का रेकार्ड 10.76 सेकेंड (1984 में) का । यानि स्त्री की अधिकतम रफ्तार पुरुष की अधिकतम रफ्तार से सिर्फ 17.94 प्रतिशत कम है। लेकिन 10 हजार मीटर की दौड़ में यह फर्क लगभग आधा हो जाता है। 0 हजार मीटर की दौड़ में पुरुषों का अब तक का रेकार्ड है 27 मिनट 18,81 सेकेंड और स्त्रियों का 30 मिनट 13.74 सेकेंड। यानी स्त्री की अधिकतम रफ्तार पुरुष से सिर्फ 9.95 प्रतिशत कम. है। क्या 9.95 प्रतिशत की कमी स्त्री और पुरुष की दौड़ने की क्षमता में किसी बड़े, मूलभूत फर्क की ओर इशारा करती है? फिर यह सर्वोच्च अंतर्राष्ट्रीय रेकॉर्ड का मामला है।

औसत के स्तर पर यह फर्क और भी कम हो सकता है। बल्कि कम हो जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि स्त्रियों की रफ्तार स्थिर नहीं है। यह पिछले पाँच दशकों में लगातार बढ़ती गयी है। उदाहरण के लिए 100 मीटर की दूरी स्त्री द्वारा तय करने का रेकार्ड 1928 में 12.2 सेकेंड था, जो 1984 में घटकर 10.97 सेकेंड रह गया। 800 मीटर की दूरी में यह फर्क इस प्रकार रहा : 1928 में 4 मिनट 16.8 सेकेंड और 1984 में 1 मिनट 57.60 सेकेंड । इससे क्या हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि आदिम युग में, जल विषमता नहीं थी या न्यूनतम थी तथा स्त्री को बलपूर्वक सुकुमार नहीं किया जाता था, तब यह भी पुरुष की तरह ही हष्ट-पुष्ट होती होगी-उतनी ही सक्षम, उतनी ही चुस्त और शायद उतनी ही हिंसक भी ?

(राजकिशोर स्त्री-पुरुष : कुछ पुनर्विचार से साभार)

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यशास्विनी Summary in Hindi

सारांश – आज के युग में भी नारियों को स्थान पुरुषों की अपेक्षा पीछे माना जा रहा है जबकि नारियों ने सभी क्षेत्रों में अपना योगदान पुरुष से कम नहीं दे रही हैं। इसी पर आधारित इस कविता में नारियों के प्रति सम्मान व्यक्त किया गया है।

अर्थ लेखन –
मत उसके नभ को छीनो तम,
मत तोड़ो उसके सपनों को।
वह दान दया की वस्तु नहीं,
वह जीव नहीं वह नारी है।

अर्थ – ई पुरुषो । नारी की स्वतंत्रता को तुम मत छीनो । उसके सपनों को साकार होने दो । नारी केवल दान, दया की वस्तु नहीं है। नारी सामान्य जीव नहीं बल्कि नर के साथ-साथ चलने वाली, सहायक रूप में काम आने वाली नारी है।

अगर कर सकते हो कुछ भी तम,
तो कुछ न करो-यह कार्य करो!
जो चला गया पर अब जो है
उसको संवारना आर्य करो।

अर्थ – हे आर्य । आपने नारियों का बहुत परित्याग किया है। भ्रूण हत्या आदि से उसको नाश किया है लेकिन जो बची है उसको संवारने का कार्य करो।

क्या दादी-नानी-चाची मां।
बस यह बनकर है रहने को?
निर्जीव नहीं, वह नारी है
उसे टेरेसा बन जीने दो,
उसे इंदिरा बन जीने दो।

अर्थ – क्या नारी को दादी-नानी-चाची और माँ बनाना ही औचित्य है। वह निर्जीव पत्थर नहीं कि जिस रूप में चाहो बना लो । वह तो पुरुषों को साथ देने वाली नारी है। उसे मदर टेरेसा या इंदिरा बनकर जीने दो।

हाँ तोड़ो उस बेड़ी को जरा
जिसमें नफरत की कड़ियाँ हैं।
फिर पंखों को खुल जाने दो,
उसे कल्पना बन जीने दो,
उसे लता बन जीने दो।

अर्थ – बेटी से नफरत की बेड़ी को काँट दो उसे भी स्वतंत्रता से जीने दो जिससे वे भी कल्पना चावला बनकर आकाश में विचरण करें या लता मंगेशकर की तरह संगीत की दुनिया में नाम कमा सकें।

पग-नुपूर कंगन-हार नहीं
तुम विद्या से श्रृंगार करो ।
तुम खुद अपना सम्मान करो
अपना नारीत्व स्वीकार करो।

अर्थ – हे नारी ! पैर में पायल पहनना, हाथ में कंगन पहनना और गले में हार पहनना ही तुम्हारा श्रृंगार नहीं। अब तुम विद्या से अपना श्रृंगार करो। तुम अपने आपको सम्मान करो। अपने नारीत्व गुण को स्वीकार करो । अर्थात् नारी होने का गौरव प्राप्त करो।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 8 खाद्य सुरक्षा

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 3 Chapter 8 खाद्य सुरक्षा Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 8 खाद्य सुरक्षा

Bihar Board Class 8 Social Science खाद्य सुरक्षा Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या खेतों में काम करके रामू को नियमित आय होती होगी ? क्या इस आय से वह पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कर पाता होगा? चर्चा करें।
उत्तर-
नहीं, रामू को खेतों में काम करके नियमित आय नहीं होती होगी। वह लगभग हजार रुपये प्रति वर्ष कमाता है । इस क्षुद्र आय से वह अपने परिवार के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था कभी नहीं कर पाता होगा ।

प्रश्न 2.
कमला की बीमारी और उसके छोटे से बच्चे के मृत्यु का क्या कारण
उत्तर-
कमला की बीमारी और उसके छोटे से बच्चे के मृत्यु का कारण कुपोषण है।

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प्रश्न 3.
सोमू अपनी उम्र से छोटा क्यों दिखता है ?
उत्तर-
कुपोषण के कारण ।

प्रश्न 4.
रामू और उसके परिवार को लम्बे समय तक पर्याप्त भोजन क्यों नहीं मिल पाता है ? ऐसा क्यों है कि पीढ़ी दर पीढ़ी इस परिवार के लोग कमजोर पैदा होते हैं ?
उत्तर-
नियमित रोजगार न होने से पास में जरूरी पैसा के न होने के कारण रामू और उसके परिवार को लम्बे समय तक पर्याप्त भोजन नहीं मिल पाया । अभाव से रामू का परिवार कुपोषण का शिकार है। इसी कुपोषण के कारण पीढ़ी दर पीढ़ी इस परिवार के लोग कमजोर पैदा होते हैं।

प्रश्न 5.
सरला जता से ही कमजोर क्यों है ?
उत्तर-
सरला की माँ भी कुपोषण का शिकार थी। कुपोषित माँ की संतान होने से ही सरला जन्म से ही कमजोर थी।

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प्रश्न 6.
किन चीजों की कमी के कारण कुपोषण होता है ?
उत्तर-
पौष्टिक भोजन जैसे दूध, घी, फल व उचित मात्रा में भोजन न मिल पाने के कारण कुपोषण होता है।

प्रश्न 7.
कुपोषण के क्या-क्या लक्षण होते हैं ?
उत्तर-
कुपोषण के लक्षण

  1. शरीर की वृद्धि का रुक जाना ।
  2. खून की कमी का होना ।
  3. मांसपेशियाँ ढीली होना या सिकुड़ जाना।
  4. शरीर का वजन कम होना ।
  5. हाथ-पर पतले और पेट बड़ा होना ।
  6. शरीर में सूजन होना।
  7. कमजोरी महसूस करना ।

प्रश्न 8.
पुरुषों के मुकाबले, महिलाएँ अधिकतर कुपोषण से क्यों ग्रसित होता
उत्तर-
महिलाएँ घर का ज्यादातर काम करती हैं और दिन-रात काम करती रहती हैं। उस अनुपात में उन्हें उचित पौष्टिक आहार न मिलने से वे अधिकतर कुपोषण ग्रसित हो जाती हैं।

प्रश्न 9.
कुपोषण जैसी समस्या से निपटने के लिए हमें क्या करना चाहिए? शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
कुपोषण जैसी समस्या से निपटने के लिए सबसे जरूरी है कि हर व्यक्ति के पास उचित और सम्मानजनक काम हो । उस काम से उन्हें निश्चित और नियमित आय हो जिससे वे अपने परिवार को उचित और पौष्टिक भोजन दे पाएँ । यही कुपोषण जैसी समस्या से निपटने के लिए प्रथम शर्त है। द्वितीय, सरकार बिना काम या कम आय वाले लोगों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध करवाए । यह लोगों का मौलिक अधिकार भी है।

प्रश्न 10.
आप अपने पड़ोस के आंगनबाड़ी केन्द्र जाकर निम्न सूचना एकत्र कर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।

  1. बच्चों एवं महिलाओं का वजन क्यों लिया जाता है?
  2. वहाँ लोग किस प्रकार का आहार लेते हैं ?
  3. आंगनबाड़ी केन्द्र का मुख्य उद्देश्य क्या है ?

उत्तर-
संकेत – यह परियोजना कार्य है। आपको स्वयं करना है।

प्रश्न 11.
अपनी शिक्षिका व अपने घर के बड़े-बूढ़ों से जानकारी इकट्ठा करके अपने आसपास की ऐसी योजनाओं के बारे में पता लगाइये जिससे लोगों को रोजगार व आय की प्राप्ति हो रही है।
उत्तर-
बेरोजगारी का कुपोषण से सीधा-सीधा संबंध है। बेरोजगारी यानी आय से यानी पैसों से वंचित होना । बिना पैसों के पौष्टिक क्या साधारण पेट भर भोजन भी नहीं जटता तो फिर कपोषण होगा ही होगा।

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प्रश्न 13.
लोगों को रोजगार दिलाने का दायित्व सरकार का क्यों होना चाहिए? अपने संविधान में दिए गए अधिकारों/प्रावधानों को ध्यान में रखकर इसका उत्तर दें।
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा पाना लोगों का मौलिक अधिकार है। यह अधिकार उन्हें भारत का संविधान देता है । अतः खाद्य सुरक्षा के लिए लोगों को रोजगार दिलाने का दायित्व सरकार का है।

प्रश्न 14.
क्या आपके घरों में भी अनाज का भंडारण किया जाता है ? अगर हाँ, तो इसका क्या उद्देश्य है?
उत्तर-
हाँ, हमारे घरों में भी अनाज का भंडारण किया जाता है। इसका उद्देश्य होता है कि अनाज खरीदने के लिए बार-बार खुदरा बाजार न जाना पड़े और थोक में अनाज सस्ते में मिल जाता है।

प्रश्न 15.
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है ?
उत्तर-
थोक में सस्ते में अनाज खरीदने के लिए । जब फसल नहीं हो तो यही बफर स्टॉक देश की जनता के काम में आता है विशेषकर गरीब व कम आय प्राप्त करने वाली जनता को

प्रश्न 16.
उचित मूल्य की दुकानों तक अनाज कैसे पहुँचता है ? अपने शब्दों में लिखिये।
उत्तर-
सरकार उत्पादकों से अनाज खरीदकर बफर स्टॉक में जमा करती है। गोदामों में अनाज का भंडारण करती है और उन गोदामों से उचित मूल्य की दूकानों तक पहुँचाती है।

प्रश्न 17.
क्या आपने कभी इस तरह की परिस्थिति देखी है ?
उत्तर-
हाँ, राशन दुकानों में सामान न होने की परिस्थिति मैंने कई बार देखा है।

प्रश्न 18.
आपके विचार में क्या दुकानदार सच बोल रहा है?
उत्तर-
नहीं, राशन दुकानदार अधिकतर झूठ ही बोलते हैं।

प्रश्न 19.
क्या आपके परिवार के पास राशन कार्ड है ?
उत्तर-
हाँ।

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प्रश्न 20.
इस राशन कार्ड से आपके परिवार में हाल में कौन-कौन-सी चीज खरीदी है ?
उत्तर-
बस किरासन तेल ही मिलता है हमें।

प्रश्न 21.
क्या आपके परिवार को राशन की चीजें लेने में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ता है ? उनसे पता लगाएँ।
उत्तर-
हाँ, राशन दुकानदार या तो समान नहीं है कहेगा या फिर कभी कुछ राशन देगा भी तो खराब क्वालिटी का।

प्रश्न 22.
आपकी समझ से राशन की दुकानें क्यों जरूरी हैं ?
उत्तर-
जनता को राशन उचित दर पर घर-घर पहुँचाने के लिए हर मुहल्ले में राशन की दूकानें जरूरी हैं।

प्रश्न 23.
अपने इलाके की राशन की दुकान पर जाएँ और ये जानकास्यिाँ
प्राप्त करें।

  1. राशन की दुकान कब खलती है?
  2. वहाँ पर कौन-कौन-सी चीजें बेची जाती हैं ?
  3.  वहाँ किस-किस तरह के कार्डधारी आते हैं?
  4. वहाँ राशन कहाँ से आता है ?
  5. क्या इन दुकानों से सभी कार्डधारियों के लिए एक समान मूल्य होता है ?
  6. क्या राशन की दूकान और खुले बाजार की सामग्रियों की गुणवत्ता एवं मूल्य में अंतर होता है ? पता लगाइए।
  7. लक्षित जन वितरण प्रणाली के अन्तर्गत ए. पी. एल., बी.पी.एल, अन्त्योदय,’वृद्ध लोगों के लिए अन्नपूर्णा योजना संचालित की जाती हैं। अपनी शिक्षिका से इस विषय पर जानकारी एकत्रित कीजिये। ।
  8. निर्धन और गैर निर्धन के लिए चीजों का अलग-अलग मूल्य रखने में, क्या कोई व्यावहारिक कठिनाई हो सकती है ? कारण सहित समझाइये।

उत्तर-

  1. राशन दुकान सुबह-शाम निश्चित समय पर खुलती है।
  2. किरासन तेल, चावल, गेहूँ, चीनी आदि ।
  3. ए.पी.एल., बी.पी.एल., अन्त्योदर कार्डधारी आते हैं।
  4. वहाँ राशन सरकारी गोदामों से आता है।
  5. नहीं, हर कार्डधारी के लिए अलग मूल्य होता है।
  6. हाँ, खुले बाजार की वस्तुओं की गुणवत्ता अच्छी होती है, राशन दुकान में अधिकतर खराब गुणवत्ता के सामान ही मिलते हैं।
  7. सामान्य लोगों के लिए ए.पी.एल. कार्ड होते हैं जबकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए बी.पी.एल. कार्ड होते हैं।
  8. गह तय करना ही पहले तो संभव नहीं होता कि निर्धन कौन है और गैर निर्धन कौन । कई बार तो समर्थ लोग भी निर्धन का कार्ड हासिल कर लेते हैं। वैसे दोनों श्रेणी के लिए अलग-अलग चीजों का अलग-अलग मूल्य रखने में कोई व्यावहारिक कठिनाई नहीं आनी चाहिए । इच्छा शक्ति और धैर्य हो
    दुकानदारों में तो सब संभव हो सकता है।

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प्रश्न 24.
क्या आपको लगता है कि सरकार का गरीबों का स्वास्थ्य सुरक्षित कराने का यह तरीका सही है? कारण सहित समझाइए।
उत्तर-
नहीं, राशन दुकानें सही ढंग से काम नहीं करतीं। उन पर निगरानी रखने वाले लोग भी भ्रष्ट ही होते हैं।

प्रश्न 25.
क्या ऐसा भी किया जा सकता है कि कम दामों पर खाद्य सुरक्षा सार्वजनिक रूप से सभी लोगों को उपलब्ध करायी जाए? इसके लाभ तथा नुकसान पर अपनी शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
ऐसा किया जा सकता है। इसका लाभ होगा कि जिनके पास राशन कार्ड नहीं है उन्हें भी उचित दर पर राशन मिलेगा। नुकसान यह है कि समर्थ व्यापारी ज्यादा राशन सस्ते दाम पर खरीद कहीं कालाबाजारी का धंधा कर राशन और महँगा न कर दें।

प्रश्न 26.
क्या कुछ लोग गलत तरीकों से अपने-आपको इस रेखा के नीचे प्रमाणित करने की कोशिशें करते होंगे?
उत्तर-
ऐसा तो बहुत लोग करते हैं। हमारे गाँव में तो मुखिया के परिवार में सभी लोगों के पास गरीबों को मिलने वाला लाल कार्ड है।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
ऐसे कौन से लोग हैं जो खाद्य सुरक्षा से सर्वाधिक ग्रस्त हो सकते
उत्तर-
जिनके पास रोजगार नहीं है और न ही कोई राशन कार्ड है। खेतिहर मजदूर और अनियमित मजदूरी पाने वाले श्रमिकों के साथ भी यही स्थिति है। वे भी खाद्य सुरक्षा से सर्वाधिक ग्रस्त हैं।

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प्रश्न 2.
राशन की दुकान होना क्यों जरूरी है ? समझाइये।
उत्तर-
सरकार तो घर-घर स्वयं जाकर सबको राशन नहीं पहँचा सकती। उसे भी इस काम के लिए किसी एजेंसी की जरूरत पड़ेगी। राशन . की दूकान सरकारी एजेंसी के रूप में कार्य करती है। जन-जन तक राशन की पहुँच होने के लिए राशन की दूकानें होना जरूरी है।

प्रश्न 3.
लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा खाद्य उपलब्ध कराने के अतिरिक्त खाद्य सुरक्षा के लिए और क्या-क्या उपाय किये जा सकते हैं ? शिक्षक के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए सरकार तमाम लोगों को, विशेषकर बेरोजगारों को लक्षित कर, उन्हें उचित रोजगार दिलाकर उन्हें खाद्य सुरक्षा प्रदान कर सकती है। साथ ही, बाजार पर नियंत्रण कर खाद्य वस्तुएँ उचित दर पर आम लोगों को उपलब्ध कराने से भी यह काम हो सकता है।

प्रश्न 4.
खाद्य सुरक्षा से आप क्या समझते हैं ? यह सभी लोगों के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
लोगों को अपना जीवन-यापन करने के लिए जरूरी राशन मिले। इतनी क्रय-शक्ति उनकी हा कि वे अपने परिवार के लिए राशन खरीद सकें – बाजार से या राशन दुकान से । इसी को खाद्य सुरक्षा कहते हैं। यह सभी लोगों के लिए बेहद जरूरी है। बिना खाद्य पदार्थ के वे जी कैसे पाएँगे और कम खाद्य पदार्थ मिलने से वे कुपोषण का शिकार हो जाएँगे।

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प्रश्न 5.
कुपोषण क्या है ? कुपोषण से लोगों पर किस-किस तरह के असर पड़ते हैं ?
उत्तर-
शरीर को पूरी खुराक न मिल पाना ही कुपोषण है । कुपोषण से लोगों का स्वास्थ्य खराब हो जाता है । वे कई बीमारियों के शिकार हो असमय ही काल-कवलित हो जाते हैं । कुपोषित लोगों की पीढ़ी दर पीढ़ी कुपोषित हो जाती है।

प्रश्न 6.
आपके क्षेत्र में सरकार द्वारा लोगों को रोजगार देने के लिए कौन-कौन-सी योजनाएं चलाई जा रही हैं ? आपके विचार में इनमें से किस योजना का लाभ लोगों को सबसे अधिक हो रहा है और क्यों?
उत्तर-
महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत हमारे क्षेत्र में कई गरीब लोगों को रोजगार मिल रहा है।

प्रश्न 7.
भारत में अनाज की मात्रा पर्याप्त होने के बावजूद कई लोगों को भरपेट भोजन क्यों नहीं मिल पाता? अपने शब्दों में समझाइये।
उत्तर-
भारत में अनाज की मात्रा में तो कोई कमी नहीं है । पर, सरकारी गोदामों में लाखों टन अनाज सड़ते रहते हैं। राशन दूकान वालों तक अच्छा अनाज पहुँचते भी हैं तो अच्छा अनाज वे बेच खाते हैं और लोगों को खराब अनाज खरीदकर देते हैं ।

इस खेल में उनकी जेब गर्म होती है । खुले बाजार में भी काफी राशन रहती है फिर भी बड़े व्यापारी कालाबाजारी करने के लिए काफी खाद्य सामग्री छुपाकर संग्रहित किये रहते हैं। इसी कारण, भारत में अनाज की मात्रा पर्याप्त होने के बावजूद कई लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता।

प्रश्न 8.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है ? एक उदाहरण देकर समझाइये।
उत्तर-
सरकार द्वारा राशन दुकानों के माध्यम से लोगों तक सस्ते दर पर अनाज उपलब्ध करवाना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहलाता है।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 8 खाद्य सुरक्षा

प्रश्न 9.
भारत में अपनाई जाने वाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किस प्रकार की समस्याएँ हैं ? आपके विचार में इन्हें हल करने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
भारत में अपनाई जाने वाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली के साथ बड़ी समस्याएँ हैं। सरकार द्वारा सरकारी गोदामों से राशन दुकान तक अनाज़ समय पर पहुंचाने की व्यवस्था होनी चाहिए। इस मामले में राज्य स्तर पर लोकपाल नियुक्त कर राशन दुकानों की निगरानी करवानी चाहिए कि वे सही अनाज सही लोगों को सही दर पर ही दें।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट

Bihar Board Class 7 Hindi Book Solutions Kislay Bhag 2 Chapter 19 आर्यभट Text Book Questions and Answers and Summary.

BSEB Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट

Bihar Board Class 7 Hindi आर्यभट Text Book Questions and Answers

पाठ से –

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में सही के सामने सही (✓) का और गलत के सामने गलत (☓) का निशान लगाइए।
प्रश्नोत्तर –
(i) आर्यभट्ट एक प्रसिद्ध किसान थे। (☓)
(ii) वे पाटलीपुत्र के रहने वाले थे। (☓)
(iii) आर्यभट्ट भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने कहा था कि पृथ्वी अपनी धूरी पर चक्कर लगाती है। (✓)
(iv) चाँद के प्रकट होने तथा पूरा गायब होने के मध्य एक निश्चित अवधि होती है। (✓)

प्रश्न 2.
आर्यभट्ट ने कौन-कौन-सी खोज की?
उत्तर:
आर्यभट्ट एक महान खगोलविद्, महान गणितज्ञ एवं ज्योतिष सम्राट के रूप में जाने जाते हैं।
उन्होंने निम्नलिखित खोज की।
(i) पृथ्वी गोल है।
(ii) पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है।
(iii) सूर्य स्थिर है।
(iv) राशियाँ 12 हैं।
(v) पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ने से चन्द्रग्रहण होता है।
(vi) चन्द्रमा के लोप होने की अवधि होती है।
(vii) रवि मार्ग पर सभी नक्षत्र भ्रमण करते हैं।
(viii) वृत्त की परिधि जानने का तरीका इत्यादि !

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट

प्रश्न 3.
अन्धविश्वास से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
परम्परा को मानना, वैज्ञानिक सम्मत नहीं होना फिर भी उसे मानना अन्धविश्वास कहलाता है। जैसे—इस वैज्ञानिक युग में भी हम मरे हुए को भृत कहकर पुकारते हैं। वह मनुष्य को तंग करता है ऐसा जानते हैं। यह एक भयंकर अन्धविश्वास का उदाहरण है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दीजिए।
(क) आर्यभट्ट का सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण के विषय में क्या मानना था?
उत्तर:
आर्यभट्ट का मानना था कि जब चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण और जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण होता है।

(ख) “आर्य भट्टीयम्” किन विषयों पर लिखा ग्रन्थ है ?
उत्तर:
“आर्य भट्टीयम्” खगोली ज्ञान, गणित और ज्योतिषीय ज्ञान पर साधारित ग्रन्थ है।

(ग) रवि मार्ग किसे कहते हैं ?
उत्तर:
आकाशीय पिण्ड सूर्य की परिक्रमा करते हैं, जिस मार्ग से आकाशीय पिण्ड परिक्रमा करते हैं उसे “रवि मार्ग” कहते हैं।

(घ) आर्यभट्ट ने जब “आर्यभट्टीयम्” की रचना की उस समय उनकी उम्र क्या थी?
उत्तर:
मात्र तैइस वर्ष की उम्र में आर्यभट्ट ने आर्यभट्टीयम् की रचना की।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट

व्याकरण –

(क) विज्ञान + इक = वैज्ञानिक। इसी तरह “इक” प्रत्यय जोड़कर अन्य कुछ शब्दों का निर्माण कीजिए।
उत्तर:
दर्शन + इक = दार्शनिक।
साहित्य + इक = साहित्यिक ।
साहस + इक = साहसिक।
परम्परा + इक = पारम्परिक ।
भूगोल + इक = भौगोलिक।
शब्द + इक = शाब्दिक इत्यादि ।

(ख) निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाइए-
उत्तर:
उपग्रह–उपग्रह बड़े ग्रहों की परिक्रमा करते हैं।
उद्योग – उद्योग-धन्धे को बढ़ावा देना चाहिए।
भौगोलिक – भौगोलिक स्थिति का ज्ञान भूगोल में मिलता है।
नैतिक – हमारे नैतिक कर्म समय पर होना चाहिए।
पृथ्वी – पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है।

(ग) निम्नलिखित शब्दों को अ और आ के उच्चारण में अंतर पर ध्यान देते हुए बोलिए-
उत्तर:
Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट 1

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट
कुछ करने को

प्रश्न 1.
संध्या समय आकाश में सूर्य को देखते हुए सूर्यास्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संध्या समय सूर्य पश्चिम की ओर आकाश में दिखता है। अस्त से पूर्व सूर्य लाल रंग का दिखाई पड़ता है। आकाश के बादल भी लाल सिन्दुरिया रंग के दिखते हैं पेड़-पौधे पर सूर्य की लाल किरणें पड़ने से लालिमायुक्त दिखते हैं।

धीरे-धीरे सूर्यास्त हो जाता है।

प्रश्न 2.
कुछ धर्मग्रन्थों का मानना है कि पृथ्वी स्थिर एवं सूर्य सहित बाकी ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं, जबकि वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य स्थित है एवं पृथ्वी सहित बाकी ग्रह उसके चारों ओर घूमते हैं । इन दोनों बातों में से आप किसे सही मानते हैं और क्यों?
उत्तर:
वैज्ञानिकों के मत से हम असहमत हैं क्योंकि सूर्य घूमता तो सभी आकाशीय पिण्ड (ग्रह) पर. पृथ्वी के समान ही शीत-गर्मी होता । सर्य से जितनी दूरी पर जो ग्रह या उपग्रह हैं वे उतने ही सूर्य की गर्मी से प्रभावित हैं।

प्रश्न 3.
आर्यभट्ट ने कई जटिल सवालों का हल खोजा। क्या आप बता सकते हैं कि पानी को उबालने पर वह नीचे नहीं गिरता। लेकिन दूध उफान लेकर नीचे गिर जाता है। क्यों? उत्तर:
दूध पानी की अपेक्षा गाढ़ा द्रव पदार्थ है जब दूध को उबाला जाता है तो उसके गाढ़ा तत्व गर्म होकर. ऊपर आकर परत बना लेता है। वह परत गर्म होकर ऊपर की ओर उठने लगता है और अंत में गिरने लगता है जो पानी में नहीं होता।

Bihar Board Class 7 Hindi Solutions Chapter 19 आर्यभट

आर्यभट Summary in Hindi

सारांश – भारत के प्रथम और महान खगोलविद् महान गणितज्ञ तथा महान ज्योतिषी के रूप में अपना स्थान बनाने वाले आर्यभट्ट का जन्म 476 ई. में गोदावरी और नर्मदा नदी के बीच अश्मक प्रदेश में हुआ था।

वे अपने नये विचारों का प्रचार कर लोगों में व्याप्त खगोल सम्बन्धित अन्धविश्वास को दूर करने एवं उत्तर भारत के ज्योतिषियों के विचारों का अध्ययन करने हेतु पटना आये थे। पटना से थोड़ी दूर पर उनकी वेधशाला थी जहाँ ताँबे, पीतल और लकड़ी के तरह-तरह के यंत्र रखे थे।

ज्योतिष सम्राट आर्यभट्ट स्वतंत्र विचार के थे। उन्होंने पुराने विचारों का खंडन कर अपना नये विचार की स्थापना करने के लिए “आर्य मट्टीयम्” नामक श्रेष्ठ ग्रन्थ मात्र 23 वर्ष की आयु में लिखा । पहले लोग जानते थे कि पृथ्वी स्थिर तथा सूर्य आदि ग्रह घूमते हैं। परन्तु आर्यभट्ट ने लिखा कि पृथ्वी घूमती है, सूर्य स्थिर रहता है। अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर परिक्रमा लगा है। जिस मार्ग पर सभी नक्षत्र गमन करते हैं उसे “रविमार्ग” कहते हैं।

आर्यभट्ट का आर्यभट्टीयम् मात्र 242 पंक्तियों एवं इक्कीस श्लोक में सिमटा हुआ है। उन्होंने चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण की प्राचीन अन्धविश्वासों का भी खण्डन करते हुए कहा कि जब पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रग्रहण तथा जब चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है तो सूर्यग्रहण होता है।

“आर्यभट्टीयम्” पूर्णतः विज्ञान पर आधारित ग्रन्थ है। इसमें शून्य की उपयोगिता पर विशेष रूप से चर्चा की गई है जो आज कम्प्यूटर के लिए बहुत महत्वदायक है। आर्यभट्ट ने अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित और ज्यामिति क्षेत्रों में भी अपनी प्रतिभा का अनुपम प्रदर्शन किया। सबसे पहले उन्होंने ही बताया कि वृत्त का व्यास यदि मालूम हो तो परिधि निकालना सरल है। उनके ज्ञान का प्रचार यूनानी गणितज्ञों ने यूरोप में भी किया। आज विद्यालय में रेखा गणित को यूनानी गणितज्ञ यूक्लिड की ज्यामिति पर आधारित माना जाता है लेकिन इसकी जड़ “आर्यभट्टीयम्” में देखा जा सकता है।

आर्यभट्ट में वैज्ञानिकों को खोज के लिए नया रास्ता दिया ।

वेद-पुराण उपनिपद् और स्मृतियों में स्थापित परम्परा का विरोध कर सही विचार देकर उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया जिसके कारण उन्हें क्रांति पुरुष के नाम से भी जाना जाता है।

भारत को ज्ञान में अग्रणी स्थापित करने वाले उस महान विभूति को आसमान में स्थापित करने के लिए भारत ने अपना पहला कृत्रिम उपग्रह का नाम “आर्यभट्ट” रखा।

Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 7 सहकारिता

Bihar Board Class 8 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 3 Chapter 7 सहकारिता Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 7 सहकारिता

Bihar Board Class 8 Social Science सहकारिता Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
Bihar Board Class 8 Social Science Civics Solutions Chapter 7 सहकारिता 1
ऊपर दिये गये स्थान में दो ऐसे कार्यों को दर्शाएँ जो आप (1) अकेले करते हैं (2) जिसे औरों के साथ मिलकर ज्यादा आसानी से किया जा सकता है।
उत्तर

(1) अकेले करते हैं

  • नौकरी करना
  • बच्चों को पढ़ाना
  • दर्जी का काम
  • नाई का काम
  • लेख लिखना
  • निशानेबाजी करना
  • तैरना
  • दौड़ना
  • व्यक्तिगत व्यापार
  • तानाशाही
  • कंचे खेलना

(2) औरों के साथ मिलकर

  • खेल खेलना
  • समारोह मनाना
  • दुग्ध उत्पादक सहयोग
  • समिति बनाना
  • कोई संस्था बनाना
  • बैंक चलाना
  • सरकार का गठन करना
  • सहकारी समिति बनाना
  • सामूहिक व्यापार
  • लोकतंत्र
  • क्रिकेट खेलना

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प्रश्न 2.
मधुरापुर में मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने से पहले दूध बेचने व खरीदने की क्या व्यवस्था थी? ।
उत्तर-
तब, दुग्ध उत्पादक अपने दूध को पास के बाजार में या शहर में बेचने ले जाते थे जहां मख्य तौर पर शहर के निवासी या मिठाई दुकानदार दूध खरीदते थे।

प्रश्न 3.
सहकारी समिति को चलाने के लिए कार्यकारिणी क्यों बनाई जाती है?
उत्तर-
ऐसा, समिति के कार्यों का उचित रूप से संचालन करने और समिति के अंदर लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रखने के उद्देश्य से किया जाता है।

प्रश्न 4.
दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने के बाद दूध उत्पादक परिवारों की जिंदगियों में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर-
दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति बनने के बाद वहाँ के दुग्ध उत्पादक परिवारों और किसानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में निरंतर सुधार होने लगा। उन्हें अपने दूध का निश्चित ग्राहक भी मिल गया और दूध की पूरी और सही कीमत भी मिलने लगी।

प्रश्न 5.
क्या आपके आस-पास इस प्रकार की कोई दुग्ध समिति है ? वर्णन करें।
उत्तर-
संकेत : यदि आपके आस-पास है कोई दुग्ध समिति तो आपका उत्तर हाँ में होगा, यदि नहीं है तो आपका उत्तन्ना में होगा।

प्रश्न 6.
पैक्स के सदस्य कौन होते हैं ?
उत्तर-
कृषक।

प्रश्न 7.
ऋण देने के लिए पैक्स के पास पैसा कहाँ से आता है ?
उत्तर-
सरकार द्वारा ।

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प्रश्न 8.
ऋण देने के अलावा पैक्स और कौन से कार्य करती है ?
उत्तर-

  1. किसानों की बचत का संचय कर बैंक का काम करना ।
  2. उचित दर पर खाद उपलब्ध कराना ।
  3. बीज भी उचित दर पर देना।
  4. यह सुनिश्चित करना कि किसानों की फसलों को सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदा जाय ।

प्रश्न 9.
पैक्स के कारण किसानों को महाजनों के चंगुल से मुक्ति कैसे मिलती है?
उत्तर-
आवश्यकता होने पर पैक्स के सदस्य किसानों को सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है। इससे किसानों को महाजनों के चंगुल में फंस जाने से मुक्ति मिलती है।

प्रश्न 10.
पैक्स द्वारा फसल खरीदने से किसानों को क्या फायदा होता है ?
उत्तर-
पैक्स द्वारा फसल खरीदने से किसानों को उचित दर पर वे फसल मिल जाती हैं।

प्रश्न 11.
पैक्स के सदस्य किस साझा उद्देश्य के लिए एकजुट होते हैं ?
उत्तर-

  1. किसानों की कृषि सम्बन्धी जरूरतें पूरी होती हैं।
  2. सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है।
  3. उचित दर पर खाद और बीज मिल जाते हैं।
  4. अच्चने मूल्य पर फसल बिक जाती है।

प्रश्न 12.
सरकार कमजोर वर्गों को पैक्स में हिस्सेदारी दिलाने के लिए क्या करती है ? अपनी शिक्षक/शिक्षिका के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
कोई भी किसान निर्धारित सदस्यता-शुल्क और एक शेयर की राशि देकर पैक्स का सदस्य बन सकता है।

प्रश्न 13.
उपभोक्ता सहकारी समिति जैसी समितियाँ क्यों बनाई जाती हैं ?
उत्तर-
उपभोक्ता सहकारी समिति की स्थापना का उद्देश्य थोक व्यापारी अथवा उत्पादकों से सीधे अधिक मात्रा में माल खरीदकर अपने सदस्यों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना है। ये समितियाँ वित्तीय आधार पर कमजोर लोगों को व्यापारियों व दलालों द्वारा किये जाने वाले शोषण से बचाती हैं।

लोगों की पारस्परिक समस्याओं का समाधान निकालने और उस क्षेत्र के लोगों की जीविका या रोजमर्रा के जीवन से सम्बन्धित समस्याओं या मुश्किलों को कम करने के उद्देश्य से ही उपभोक्ता सहकारी समिति जैसी समितियाँ बनाई जाती

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प्रश्न 14.
इसके सदस्य बनने के लिए क्या अनिवार्य है ?
उत्तर-
इसकी सदस्यता स्वैच्छिक होती है यानी कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से किसी सहकारी समिति का सदस्य बन सकता है।

प्रश्न 15.
थोक व्यापारी या उत्पादक से अधिक मात्रा में सामग्री खरीदने के लिए पूँजी कहाँ से आती है?
उत्तर-
समिति के सदस्यों द्वारा जमा राशि से जो पँजी इकटठा होती है. उससे अधिक मात्रा में थोक व्यापारी या उत्पादकों से सीधे सामग्री खरीदी जाती है। इस प्रकार खुदरा बाजार से काफी कम मूल्य पर सामग्री मिल जाती

प्रश्न 16.
चर्चा कर पता करें – थोक व्यापारी या उत्पादक से खरीदी गई वस्तु बाजार से सस्ते मूल्य पर क्यों उपलब्ध होती है ?
उत्तर-
थोक व्यापारी से या सीधे उत्पादकों से बड़ी मात्रा में वस्तुएँ खरीदने के कारण ही वस्तुएँ बाजार से सस्ते मूल्य पर उपलब्ध होती हैं।

प्रश्न 17.
आपके इलाके में किस प्रकार की सहकारी समितियाँ हैं ? एक सूची बनाएँ। फिर टोली बनाकर नीचे दिए गए बिन्दुओं पर इनके बारे में जानकारी ढूंढ़िये और अपनी रिपोर्ट बनाकर कक्षा में पेश कीजिये।

  1. आपके इलाके की सहकारी समिति के सदस्य कौन हैं ?
  2. सदस्य मिलकर क्या करते हैं ?
  3. इससे क्या लाभ होता है ?
  4. समिति के सामने किस तरह की समस्याएँ आती हैं ?

उत्तर-
मेरे इलाके में जो सहकारी समिति है उसके सदस्य मेरे क्षेत्र में रहने वाले किसान भाई हैं।

सहकारी समिति के सदस्य मिलकर अपने सदस्यों के हितों व उनकी आर्थिक उन्नति के लिए कई प्रकार के प्रयास करती हैं। इन समितियों का काम निजी व्यवसाय से अलग है । इसमें व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर सामूहिक हित . पर विशेष जोर दिया जाता है।

इन समितियों के बनने से किसानों को कई प्रकार के लाभ होते हैं। जरूरत पडने पर उन्हें सस्ते दर पर ऋण मिल जाता है। इससे वे महाजनों के चंगुल में फंसने से बच जाते हैं। सस्ते दर पर वस्तुएँ मिल जाती हैं। उनकी फसल का अच्छा दाम मिल जाता है। यानी उन्हें फायदा ही फायदा होता है । शोषण से मुक्ति मिल जाती है। इससे उनकी आर्थिक दशा सुधर जाती है।

ऐसी समिति की सदस्यता स्वैच्छिक और खुली होने से कुछ स्वार्थी तत्व इसमें आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। फिर वे अपना स्वार्थ सिद्ध करने की तिकड़म भिड़ाने में लग जाते हैं। ज्यादा मुनाफा वे खुद हड़प करने की जुगत ‘भिडाते रहते हैं। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो समिति में आए दिन झगड़ा-कोहराम मचने लगता है।

इससे समिति का विकास होने के बदले उसके अस्तित्व पर ही संकट के बादल मँडराने लगते हैं। बिहार में मत्स्यजीवी सहयोग समिति और व्यापार मंडल की असफलता के पीछे भी यही कारण थे । पर, हमारे क्षेत्र की सहकारी समिति में ऐसी समस्या फिलहाल नहीं है । गलत व्यक्ति को सदस्य बनाया ही नहीं जाता । इससे अभी इस समिति में शांति और उन्नति ही है।

प्रश्न 18.
अपनी शिक्षिका व घर के सदस्यों से चर्चा करके बिहार मत्स्यजीवी सहयोग समिति और व्यापार मंडल की असफलता के कारण हूँढ़िए।
उत्तर-
गलत व स्वार्थी लोगों द्वारा इन समितियों की सदस्यता लेने व उनके द्वारा निजी लाभ उठाने और अन्य सदस्यों की हकमारी करने से ही ये समितियाँ असफलता का शिकार हो गईं।

प्रश्न 19.
संचित कोष की जरूरत क्यों है ?
उत्तर-
संचित कोष के माध्यम से समिति की बेहतरी के लिए नई मशीनें या सामग्री खरीदने तथा आकस्मिक खर्चों को पूरा करने की सुविधा मिल जाती

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प्रश्न 20.
आपके अनुसार दुग्ध उत्पादक समितियाँ किस प्रकार की योजनाओं पर खर्च करती हैं ?
उत्तर-

  1. नई मशीनें या नई सामग्री खरीदने के लिए।
  2. अन्य कल्याणकारी योजनाओं, जैसे अपने सदस्यों को सस्ते में जरूरत पड़ने पर ऋण दिलाना, व थोक में सामान खरीद सदस्यों को सस्ते दर पर उपलब्ध कराना, जैसे चारा, खल्ली आदि ।
  3. किसानों को लाभ में से बोनस देना।

प्रश्न 21.
दूधिया का काम और समिति के काम में क्या अंतर है?
उत्तर-
दुधिया सिर्फ अपने अकेले के निचली व्यापार की बात सोचता है। उसका काम उसी से शुरू होकर उसी पर खत्म हो जाता है। अपने काम के पूरे लाभ व पूरी हानि का भागीदार वह स्वयं होता है। जबकि समिति सामूहिक व्यापार व सामूहिक हितों व लाभ का समान वितरण के बारे में सोचती है।

समिति एक बैंक की तरह भी काम करती है और सरकार के एक अत्यन्त छोटी इकाई की तरह भी काम करती है। जिसका उद्देश्य अपने सभी सदस्यों की मुश्किलों को दूर करना व उनका संरक्षक बन संकट में उन्हें पिता की तरह बल देना है। समिति सामूहिक हित पर ध्यान देती है जबकि दूधिया निजी हित पर।

अभ्यास-प्रश्न

प्रश्न 1.
सहकारी समिति के सदस्य कौन होते हैं? वे मिलकर क्या करते हैं? इससे क्या लाभ होता है?
उत्तर-
सहकारी समिति का सदस्य कोई भी उत्पादक हो सकता है। जिन उत्पादकों के हितों के लिए समिति बनती है उन्हीं से जुड़े उत्पादक उस समिति के सदस्य बनते हैं। जैसे- दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति में केवल दुग्ध उत्पादक ही सदस्य बन सकते हैं। ये सदस्य मिलकर अपने हितों व अपनी आर्थिक उन्नति के लिए मिल-जुलकर प्रयास करते हैं। इससे लाभ यह होता है कि समिति के सदस्य शोषण, व्यर्थ की परेशानियों और अपने उत्पाद को बेचने के भागमभाग से बच जाते हैं। उनकी आर्थिक दशा सुधरने लगती है।

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प्रश्न 2.
सहकारिता से आप क्या समझते हैं ? एक उदाहरण देकर समझाइए। सहकारी समितियाँ बनने से पहले, इनसे सम्बन्धित लोगों को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था ? इनके बनने के बाद, ये कठिनाइयाँ कैसे दूर हो पाईं ?
उत्तर-
आपस में मिल-जुलकर समूह में, एक समिति गठित कर कार्य-व्यापार करने को सहकारिता कहते हैं। जैसे-पाठ में, मधुरापुर में महिला दुग्ध उत्पादक

सहयोग समिति’ नामक एक सहकारी समिति गठित की गई। यह समिति जिला स्तर पर वैशाली पाटलिपुत्र दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड, जिसे हम पटना डेयरी के नाम से भी जानते हैं, के साथ जुड़कर काम करती है।

सहकारी समितियाँ बनने से पहले, इनसे सम्बन्धित उत्पादकों को अपना उत्पाद बेचने के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाकर अपने ग्राहक ढूँढ़ने पड़ते थे। उन्हें उचित दाम भी नहीं मिल पाता था।

इन समितियों के बनने के बाद उनसे जुड़े उत्पादकों को अपने उत्पाद एक जगह बेचने की सुविधा मिल गयी और वह भी उचित मूल्य पर । साथ ही, ‘जरूरत पड़ने पर उन्हें समिति से ऋण लेने की सुविधा भी मिल गयी, वह भी सस्ते दर पर । इससे वे महाजनों के चंगुल में फंसने से बच गये।

प्रश्न 3.
अध्याय में जिन तीन सहकारी समितियों की बात की गई है, उनमें से आप किस सहकारी समिति को सबसे अधिक उपयोगी मानते हैं और क्यों?
उत्तर-
अध्याय में वर्णित तीन सहकारी समितियों में से मुझे ‘दुग्ध उत्पादक सहयोग समिति’ सर्वाधिक उपयोगी जान पड़ती है। कारण कि ऐसी समिति के गठन से अच्छी गुणवत्ता का दूध उचित मूल्य पर शहरों में, घर-घर तक उपलब्ध हो जाता है, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता ।

गाँवों में तो दूध की उपलब्धता खटालों से हो भी जाती है पर शहरों में उतने खटाल होना संभव ही नहीं हैं जो पूरे शहर की दुग्ध आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाएँ। वह भी अच्छी क्वालिटी का और उचित दर पर और निर्धारित समय पर । दुग्ध

बूथों पर फौरन पैकेट का दूध ले लेने से खटाल में जाकर देर तक गाय दुहाने तक इंतजार करने का समय भी बच जाता है।

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प्रश्न 4.
सहकारी समितियों के काम-काज में कौन-कौन-सी मुश्किलें आती हैं? आपके विचार में इन मुश्किलों को हल करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है? मान लीजिए आप मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादन समिति के अध्यक्ष हैं। अपनी समिति को अच्छी तरह से चलाने और उसमें अधिक-से-अधिक लोगों को जोड़ने के लिए आप क्या-क्या कोशिशें करेंगे?
उत्तर-
सहकारी समितियों के काम-काज में मश्किलें तब आने लगती हैं जब उनमें स्वार्थी चरित्र के व्यक्ति प्रवेश कर जाते हैं। वे स्वार्थी व्यक्ति अपने हितों के लिए समिति के गठन का उद्देश्य भी प्रभावित करने लगते हैं। ऐसे सदस्य समिति के माध्यम से अपना व्यक्तिगत स्वार्थ सिद्ध करने लगते हैं। इससे जो लाभ सबको मिलना चाहिए वह कुछ लोगों को ही प्राप्त हो पाता है,। जब दूसरे सदस्य इसका विरोध करते हैं तो आपसी झगड़े होना शरू हो जाते हैं। तब, समिति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

इन मुश्किलों को हल करने के लिए नये सदस्यों की जाँच-पड़ताल करके ही उन्हें समिति का सदस्य बनाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति के बारे में कोई शंकास्पद बात मालूम हो तो उसे समिति से निकाल दिया जाना चाहिए।

यदि मैं मधुरापुर महिला दुग्ध उत्पादन समिति का अध्यक्ष होता. तो समिति को अच्छी तरह से चलाने के लिए मैं उसमें गलत व्यक्ति को प्रवेश नहीं लेने देता । यदि बाद में पता चलता कि कोई व्यक्ति संगठन में गलत है तो उसे फौरन निकाल देता । अधिक से अधिक लोगों को अपनी समिति से जोड़ने के लिए मैं समिति का अच्छी तरह से प्रचार करता । समिति के कार्यों का प्रदर्शन कर उसे जनता से जोड़ता ताकि समिति का अधिक-से-अधिक प्रचार हो और अधिक-से-अधिक लोग मेरी समिति से जुड़ सकें।

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Bihar Board Class 12 Economics राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्पादन के चार कारक कौन-कौन से हैं और इनमें से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के निम्नलिखित चार साधन होते हैं –

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूंजी एवं
  4. उद्यम

उत्पादन साधनों को दिए जाने वाले भुगतान नीचे लिखे गए हैं –

  1. भूमि की सेवाओं के लिए भूमिपति को दिए गए भुगतान को लगान या किराया कहते हैं।
  2. श्रमिक को मानसिक अथवा शारीरिक श्रम के बदले उत्पादन इकाई भुगतान करती है जिसे मजदुरी या वेतन कहते हैं।
  3. पूंजी के प्रयोग के बदले उत्पादन पूंजीपति को भुगतान प्रदान करता है जिसे ब्याज कहते हैं।
  4. उत्पादन प्रक्रिया में अनिश्चितता एवं जोखिमों को वहन करने के बदले उद्यमी को अधिशेष आय प्राप्त होती है जिसे लाभ कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 2.
किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में कोई बाह्य स्राव नहीं होता है अथवा मुद्रा खर्च करने का कोई और विकल्प नहीं होता है तो परिवार क्षेत्र के पास आय को खर्च करने का एक ही विकल्प होता है कि सम्पूर्ण आय को अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च किया जाए। दूसरे शब्दों में उत्पादन साधनों को साधन आय के रूप में आय प्राप्त होती है वे इसका प्रयोग वस्तुओं एवं सेवाओं को क्रय करने के लिए करते हैं। इस प्रकार उत्पादक इकाइयों द्वारा साधन भुगतान के रूप में प्रदान की गई मुद्रा वस्तुओं व सेवाओं के विक्रय से प्राप्त आगम के रूप में वापिस मिल जाती है।

इस प्रकार फर्मों द्वारा किए गए साधन भुगतानों के योग तथा सामूहिक उपभोग पर किए गए व्यय में कोई अन्तर नहीं होता है। दूसरे चक्र में उत्पादक पुन: वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करेंगे और साधनों को उनकी सेवाओं के लिए साधन भुगतान करेंगे। साधनों के स्वामी साधनों से प्राप्त आय को वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर खर्च करेंगे। इस प्रकार वर्ष दर वर्ष आय को वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर खर्च किया जाता है। अतः परिवार क्षेत्र द्वारा किया गया सामूहिक व्यय फर्मों को प्राप्त हो जाता है।

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प्रश्न 3.
स्टॉक और प्रवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूंजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूंजी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक:
वह आर्थिक चर जिसे एक निश्चित समय बिन्दु पर मापा जात है स्टॉल कहलाता है।

प्रवाह:
आर्थिक चर जिसे एक निश्चित समयावधि में मापा जाता है, उसे प्रवाह कहते हैं।

शुद्ध निवेश:
सकल निवेश तथा स्थायी पूंजी के उपभोग के अन्तर को शुद्ध निवेश कहते हैं। सकल निवेश तथा स्थायी पूंजी के उपभोग को एक निश्चित समयावधि में मापा जाता है। सामान्यतः ये दोनों चर लेखा वर्ष की अवधि के लिए मापे जाते हैं। इस प्रकार शुद्ध निवेश प्रवाह आर्थिक चर का उदाहरण है।

पूंजी में वे सभी मानव निर्मित वस्तुएं शामिल की जाती हैं जो अन्य वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन में काम आती है। पूंजी एक मशीन, कच्चे माल, उपकरण आदि के रूप में उत्पादन प्रक्रिया में पूंजी का प्रयोग किया जाता है। इनकी मात्रा का मापन एक निश्चित समय बिन्दु पर किया जाता है। इस प्रकार पूंजी एक आर्थिक स्टॉक है। शुद्ध निवेश एवं पूंजी की तुलना एक टैंक में बहने वाले पानी से की जा सकती है। टैंक मे बहने वाला पानी तथा शुद्ध निवेश दोनों आर्थिक प्रवाह हैं। इसी प्रकार किसी निश्चित समय बिन्दु पर टैंक में पानी की मात्रा तथा फर्म के पास पूंजी दोनों आर्थिक स्टॉक हैं।

प्रश्न 4.
नियोजित और अनियोजित माल-सूची संचय में क्या अंतर है? किसी फर्म की माल सूची और मूल्यवर्धित के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
बिना बिके माल, अर्द्धनिर्मित माल एवं कच्चे माल का स्टॉक जिसे कोई फर्म अगले वर्ष के लिए ले जाती है अथवा प्रयोग करने के लिए रखती है उसे माल तालिका निवेश कहते हैं। माल तालिका निवेश नियोजित एवं अनियोजित दोनों प्रकार का हो सकता है। माल तालिका निवेश में अनुमानित बढ़ोतरी के समान वृद्धि को नियोजित माल तालिका या भण्डार निवेश कहते हैं।

उदाहरण के लिए एक फर्म अपना भण्डार निवेश 100 कमीजों से बढ़ाकर 200 कमीज करना चाहती है। फर्म अनुमानित बिक्री 1000 कमीज के समान ही कमीजों की बिक्री करती है। फर्म का कमीज उत्पादन 1100 कमीज है तो फर्म का वास्तविक भण्डार निवेश निम्न प्रकार ज्ञात किया जा सकता है।

भण्डार निवेश में वृद्धि = आरंभिक स्टॉक + उत्पादन – बिक्री
= 100 + 1100 – 900 = 200 कमीज

इस उदाहरण में अनुमानित भण्डार निवेश में वृद्धि और वास्तविक भण्डार निवेश दोनों समान हैं। यदि किसी उत्पादक इकाई का वास्तविक भण्डार निवेश, अनुमानित भण्डार निवेश से अधिक या कम करता है तो इसे अनियोजित भण्डार निवेश कहते हैं। उदाहरण के लिए एक फर्म का आरंभिक स्टॉक 100 कमीज है वह अपना स्टॉक 200 कमीज बनाना चाहती है। फर्म 1100 कमीजों का उत्पादन करती है लेकिन फर्म केवल 900 कमीजों को ही बेच पाती है। इस उदाहरण में वास्तविक भण्डार निवेश में वृद्धि का आंकलन निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

भण्डार निवेश में वृद्धि = आरंभिक स्टॉक + उत्पादन – बिक्री
= 100 + 1100 – 900
= 300 कमीज

इस तरह फर्म का वास्तविक भण्डार निवेश 300 कमीज नियोजित भण्डार निवेश 200 कमीज से अधिक हैं। इस प्रकार की भण्डार वृद्धि को अनियोजित निवेश कहते हैं। भण्डार निवेश में परिवर्तन तथा मूल्य वृद्धि में संबंध फर्म की सकल मूल्य वृद्धि = फर्म द्वारा विक्रय + भण्डार निवेश में परिवर्तन – मध्यवर्ती – उपभोग

इस समीकरण में मूल्य वृद्धि तथा भण्डार निवेश में परिवर्तन का संबंध स्पष्ट प्रतीत होता है। भण्डार निवेश में वृद्धि से मूल्य वृद्धि में बढ़ोतरी होती है। इसके विपरीत भण्डार निवेश में कमी आने पर मूल्य वृद्धि में कमी आती है।

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प्रश्न 5.
तीन विधियों से किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की किन्हीं तीन निष्पत्तियों लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का एक-सा मूल्य क्या आना चाहिए?
उत्तर:
GDP (सकल घरेलू उतपाद) को ज्ञात करने की तीन विधियां निम्नलिखित हैं –
1. मूल्य वृद्धि विधि
या अन्तिम उत्पाद विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = सभी घरेलू उत्पादक इकाइयों की सकल मूल्य वृद्धि का योग
GVA1 + GVA2 + ………….. + GVAN
\(\sum_{i=1}^{N} G V A i\)

2. अन्तिम उपभोग विधि या व्यय विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = सभी घरेलू उत्पादक इकाइयों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आगम = कुल अन्तिम उपभोग का योग + निवेश + सरकारी
उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
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जहाँ C, I, G, X व्यय के वे भाग हैं जो घरेलू उत्पादकों को प्राप्त होते हैं जबकि Cm, Im, Gm अन्तिम व्यय के वे भाग हैं जो विदेशी उत्पादकों को प्राप्त होते हैं।

3. आय विधि
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = उत्पादन साधनों को किए गए भुगतानों का योग
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 2
जहाँ Wi – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त मजदूरी एवं वेतन
Pi – परिवार क्षेत्र प्राप्त लाभ
li – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त ब्याज
Ri – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त किराया सरल रूप में इस समीकरण को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है
GDP = W + R + I + P

उपरोक्त तीनों विधियों का मिलान:
अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उत्पादक इकाइयां चार साधन आगतों भूमि, श्रमू, पूंजी एवं उद्यम की सहायता से मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग करती है। फर्मों के द्वारा जो भी उत्पादन किया जाता है, उसे अर्थव्यवस्था में उपभोग एवं निवेश के उद्देश्य के लिए बेच दिया जाता है। फर्म उत्पादन साधनों को किराया, मजदूरी, ब्याज व लाभ का भुगतान करती हैं और उसे वस्तुओं व सेवाओं का विक्रय करके आगम के रूप में वापिस प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार उत्पादन स्तर जितना उत्पादन होता है या मूल्य वृद्धि होती है उसे साधनों में आय कगे रूप में बांट दिया जाता है, साधनों के स्वामी प्राप्त आय को अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं पर खर्च कर देती है।

इसलिए तीनों विधियों से GDP का समान प्राप्त होता है।
GDP = \(\sum_{i=1}^{N} G V A i\)
W + R + I + P
= C + I + G + X – M

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प्रश्न 6.
बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रु. था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रु. थी। उस देश के बजटीय घाटे का परिणाम क्या था?
उत्तर:
बजटीय घाटा:
एक वर्ष की अवधि में सरकार द्वारा किए गए व्यय तथा सरकार की प्राप्तियों के अन्तर को बजटीय घाटा कहते हैं।

बजट घाटा:
सरकार का व्यय-सरकार द्वारा अर्जित कर आगम व्यापार शेष-आयात पर व्यय का निर्यात आगम पर अधिशेष व्यापार शेष कहलाता है।

व्यापार शेष = आयात पर व्यय-निर्यात से प्राप्त
आगम निजी निवेश बचत = 2000 करोड़ रु.
I – S = 2000 करोड़ रु.
बजट घाटा = (-) 1500 करोड़ रु.
व्यापार शेष = (I – S) + (G – T)
= 2000 करोड़ रु. + – (1500) करोड़ रु.
= 500 करोड़ रु.

प्रश्न 7.
मान लिजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर 1100 करोड़ रु. था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रु. था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य-उत्पादन का मूल्य 150 करोड़ रु. और राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रु. है, तो मूल्यहास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDP at mp = 1100 करोड़ रु. विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय (NFIA) = 100 करोड़ रु.
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर NIT = 150 करोड़ रु.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद NNP at fc = 850 करोड़ रु.
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-घिसावट-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = राष्ट्रीय आय (NNP at fc)
1100 करोड़ रु. + 100 करोड़ रु.-घिसावट – 150 करोड़ रु.
= 850 करोड़ रु. 1050 करोड़ रु. – घिसावट = 850 करोड़ रु.
घिसावट = 850 करोड़ रु. -1050 करोड़ रु.
-घिसावट = (-)200 करोड़ रु.
घिसावट = 200 करोड़ रु.
उत्तर – घिसावट = 200 करोड़ रु.

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प्रश्न 8.
किसी देश विशेष में एक वर्ष लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रु. है। फर्मों/सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार/फर्मों को किसी भी प्रकार का ब्याज अदायगी नहीं की जाती है, परिवारों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रु. है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आयकर 600 करोड़ रु. है और फर्मों तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रु. है। सरकार और फर्म द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है?
उत्तर:
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at fc) = 1900 करोड़ रु.
परिवारों द्वारा ब्याज भुगतान = 0 रु
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 1200 करोड़ रु.
परिवारों द्वारा प्रत्यक्ष करों का भुगतान = 600 करोड़ रु.
फर्म व सरकार की प्रतिधारित आय = 200 करोड़ रु.
हस्तांतरण भुगतान से प्राप्ति = ?
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष करों का भुगतान – गैर कर भुगतान = [राष्ट्रीय आय-प्रतिधारित आय-परिवारों द्वारा शुद्ध ब्याज भुगतान – निगम कर + सरकार व फर्मों से परिवारों को हस्तांतरण भुगतान।] – प्रत्यक्ष करों का भुगतान-गैर कर भुगतान
1200 करोड़ रु. = 1900 करोड़ रु. – 200 करोड़ रु – 0 रु. – 0 रु. + सरकार व फर्मों से परिवारों को हस्तांतरण भुगतान – 0 रु.। – 600 करोड़ रु.
1200 करोड़ रु. = 1700 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से हस्तांतरण
भुगतान – 600 करोड़ रु. 1200 करोड़ रु. = 1100 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से हस्तांतरण भुगतान या 1100 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से परिवारों के हस्तांतरण भुगतान
= 1200 करोड़ रु. या सरकार व फर्मों से परिवार क्षेत्र को हस्तांतरण भुगतान
= 1200 करोड़ रु. – 1100 करोड़ रु.
= 100 करोड़ रु. उत्तर-सरकार व फर्मों से परिवार क्षेत्र को हस्तांतरण भुगतान = 100 करोड़ रु.

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए:Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 3
हल:
वैयक्तिक आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय + हस्तांतरण आय-निगम कर-परिवारों द्वारा शुद्ध ब्याज प्राप्ति
= 800 + 200 + 300 – 500 – (1200 – 1500)
= 8500 – 500 – (- 300)
= 8500 – 500 + 300
= 8300 करोड़ रु.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-वैयक्तिगत प्रत्यक्ष कर-गैर कर भुगतान
= 8300 – 500 – 0 करोड़ रु.
= 7800 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. वैयक्तिक आय = 8300 करोड़ रु.
  2. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 7800 करोड़ रु.

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प्रश्न 10.
हजाम राजू एक दिन में बाल काटने के लिए 500 रु. का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रु. का मूल्यह्रास होता है। इस 450 रु. में से राजू 30 रु. बिक्री कर अदा करता है। 200 रु. घर ले जाता है और 220 रु. उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रु. आयकर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राजू का योगदान ज्ञात कीजिए –
(a) सकल घरेलू उत्पाद।
(b) बाजार कीमत पर निबल राष्ट्रीय उत्पाद।
(c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद।
(d) वैयक्तिक आय।
(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।
उत्तर:
ΣRi = 500 रु.
स्थायी पूंजी का उपभोग = 50 रु.
बिक्री कर = 30 रु.
प्रतिधारित आय = 220 रु.
घर ले जाई गई आय = 200 रु.
आयकर = 20 रु.

(a) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP at mp) में योगदान
= बाल काटने के लिए प्राप्त आगम
= 500रु.

(b) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at mp) में योगदान
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – स्थायी पूंजी का उपभोग
= 500 रु. – 50 रु.
= 450 रु.

(c) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान
= बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 450 रु. -30 रु.
= 420 रु.

(d) वैयक्तिक आय = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान – अवितरित लाभ
= 420 रु. -220 रु.
= 200 रु.

(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर
= 200 रु. – 20 रु.
= 180 रु.
उत्तर:
(a) 500 रु.
(b) 450 रु.
(c) 420 रु.
(d) 200 रु.
(e) 180 रु.

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प्रश्न 11.
किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रु. था। उसी वर्ष, उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 3000 करोड़ रु. था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई।
हल:
विशिष्ट वर्ष में मौद्रिक GNP%3D 2500 करोड़ रु.
विशिष्ट वर्ष में स्थिर कीमतों पर/वास्तविक (GNP) = 3000 करोड़ रु.
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 4
= \(\frac{2500}{3000}\) × 100% = \(\frac{5}{6}\) × 100%
= \(\frac{500}{6}\) % = 83.33%
नहीं कीमत स्तर आधार वर्ष से विशिष्ट वर्ष के बीच कम हुआ है
= (100 – 83.33)%
= 16.67%
उत्तर:
कीमत स्तर में कमी = 16.67%

प्रश्न 12.
किसी देश में कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो।
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद को कल्याण सूचकांक के रूप में प्रयोग करने की सीमाएं –

  1. सकल घरेलू उत्पाद के वितरण को अनदेखा किया जाता है।
  2. अमौद्रिक विनिमय इसमें शामिल नहीं किए जाते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि की तरफ भी ध्यान नहीं दिया जाता है।
  4. उत्पादन तरीके की तरफ बाजिब ध्यान नहीं दिया जाता है।
  5. उत्पादन से होने वाले प्रदूषण का हिसाब इसमें नहीं होता है।
  6. उत्पादित वस्तुओं की प्रकृति इससे स्पष्ट नहीं होती है।
  7. नागरिक स्वतंत्रता का मुद्दा इससे प्रदर्शन नहीं होता है।
  8. GDP के माध्यम से कानून, सुरक्षा, न्याय आदि मूल्य प्रतिबिंबित नहीं होते हैं।
  9. प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग अथवा पर्यावरण असन्तुलन की ओर ध्यान GDP के माध्यम से नहीं दिया जाता है।

Bihar Board Class 12th Economics राष्ट्रीय आय का लेखांकन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आर्थिक सहायता क्या है?
उत्तर:
राज्य की ओर उत्पादकों की दिए जाने वाली आर्थिक अनुदान को आर्थिक सहायता कहते हैं। आर्थिक सहायता किसी वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहित करते एवं उत्पादन लागत को कम करने के उद्देश्य से दी जाती है।

प्रश्न 2.
मौद्रिक प्रवाह का अर्थ लिखें।
उत्तर:
इससे अभिप्राय कारक आय का उत्पादक क्षेत्र से परिवार की ओर तथा परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं पर होने वाले मौद्रिक व्यय से है।

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प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था की रचना के बारे में लिखें।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह की दृष्टि से एक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। जैसे –

  1. परिवार क्षेत्र
  2. उत्पादक क्षेत्र
  3. सरकारी क्षेत्र
  4. मुद्रा बाजार/वित्तीय प्रणाली
  5. शेष विश्व क्षेत्र या विदेशी क्षेत्र या अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र

प्रश्न 4.
फर्म से परिवारों की ओर प्रवाहों की सूची बनाएं।
उत्तर:
फर्म से परिवारों की ओर निम्नलिखित प्रवाह है –

  1. अन्तिम वस्तुओं का क्रय फर्म से परिवार करते हैं अर्थात् अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह फर्म से परिवार की ओर होता है।
  2. साधन आगतों का क्रय फर्म परिवारों से करते हैं। साधन आगतों के पुरस्कार के रूप में लगान, मजदूरी, ब्याज व लाभ फर्म से परिवारों की ओर प्रवाहित होता है।

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प्रश्न 5.
तीन क्षेत्रीय मॉडल के किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
तीन क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था में तीन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है –

  1. परिवार क्षेत्र।
  2. उत्पादक क्षेत्र।
  3. सरकारी क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह क्या होता है?
उत्तर:
परिवार क्षेत्र द्वारा कारक सेवाओं का प्रवाह उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है और उत्पादित क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह परिवार क्षेत्र की ओर होता है।

प्रश्न 7.
आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह इसलिए कहते हैं, क्योंकि –

  1. विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्तियों और भुगतानों का प्रवाह बराबर होता है और
  2. प्रत्येक वास्तविक प्रवाह जिस दिशा में होता है उसाक मौद्रिक प्रवाह उसकी विपरीत दिशा में होता है।

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प्रश्न 8.
चक्रीय प्रवाह मॉडल का महत्त्व बताएं।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह मॉडल का निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. विभिन्न क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता का ज्ञान।
  2. समावेश और वापसी का ज्ञान।
  3. राष्ट्रीय आय के अनुमान की सुविधा।
  4. महत्त्वपूर्ण समष्टि चरों का ज्ञान।
  5. अर्थव्यवस्था की रचना का ज्ञान।

प्रश्न 9.
प्रयोज्य आय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष करो तथा सरकारी प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियों अर्थात् फीस, जुर्माने आदि को कम करके जो आय बचती है, उसे प्रयोज्य आय कहते हैं।

प्रश्न 10.
क्या लॉटरी से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा?
उत्तर:
नहीं, राष्ट्रीय आय में लॉटरी से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जायेगा, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं के प्रवाह में कोई वृद्धि नहीं होगी।

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प्रश्न 11.
क्या पुरानी कार के विक्रय मूल्य को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में पुरानी कार के विक्रय मूल्य के शामिल नहीं किया जाता क्योंकि जब उस कार का उत्पादन हुआ था तब ही उसे GNP में शामिल कर लिया गया था।

प्रश्न 12.
क्या शेयर्स की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
शेयर्स वित्तीय पुंजी के अंग हैं। इनके परिणामस्वरूप अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से कोई परिवर्तन नहीं होता, इसलिए शेयर्स की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है।

प्रश्न 13.
चार क्षेत्रीय मॉडल में किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
चार क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है –

  1. परिवार क्षेत्र।
  2. उत्पादक क्षेत्र।
  3. सरकारी क्षेत्र।
  4. शेष विश्व क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह।

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प्रश्न 14.
सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है? या बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी राष्ट्र की घरेलू सीमाओं में एक वर्ष में निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के जोड़ को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 15.
कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद से क्या आशय है?
उत्तर:
कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद से आशय बिना दोहरी गिनती के सभी कारकों को ब्याज, मजदूरी, लगान तथा लाभ क रूप में प्राप्त होने वाली कुल आय तथा निवल विदेशी कारक आय के जोड़ से है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय लेखांकन के महत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. इसके द्वारा राष्ट्रीय आय को मापने में सहायता प्राप्त होती है।
  2. यह अर्थव्यवस्था के ढाँचे को समझने में सहायक होता है।
  3. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के सापेक्षिक महत्त्व का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. आय के कारकों में बँटवारे का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. अन्तक्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक है।
  6. विभिन्न सयम अवधियों में आय की तुलना में सहायक।

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प्रश्न 17.
किन मदों को घरेलू उत्पाद/आय में शामिल नहीं किया जाता है?
उत्तर:
निम्नलिखित मदों को घरेलू उत्पाद/आय में शामिल नहीं किया जाता है –

  1. गृहणियों की सेवाएं
  2. पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय
  3. हस्तांतरण भुगतान
  4. वित्तीय लेन-देन
  5. गैर-कानूनी गतिविधियाँ
  6. खाली समय की गतिविधियाँ
  7. मध्यवर्ती वस्तुएँ

प्रश्न 18.
वास्तविक GNP क्या है?
उत्तर:
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय तथा वास्तविक राष्ट्रीय आय किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के स्थिर मूल्यों का जोड़ है।

प्रश्न 19.
कारक अदागियां क्या होती हैं?
उत्तर:
उत्पादन के कारकों यानि भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यमवृत्ति को प्राप्त आय जैसे-लगान, ब्याज, मजदूरी एवं लाभ को कारक अंदायगियां कहा जाता है।

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प्रश्न 20.
क्या लॉटरियों से प्राप्त अप्रत्याशित लाभों को कारक आय में शामिल किया जायेगा?
उत्तर:
लॉटरियों से प्राप्त अप्रत्याशित लाभों को कारक आय में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है।

प्रश्न 21.
क्या पुराने टेलीविजन की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
नहीं, पुराने टेलीविजन की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि राष्ट्रीय आय में केवल चालू वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को ही शामिल कियो जाता है।

प्रश्न 22.
व्यक्ति अ, कमीशन एजेन्ट स की सहायता से ब का पुराना स्कूटर बेचता है। इसका राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुराने स्कूटर की बिक्री राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे, लेकिने कमीशन एजेन्ट का कमीशन का कमीशन राष्ट्रीय आय में शामिल करेंगे, क्योंकि यह नई सेवा का पुरस्कार है।

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प्रश्न 23.
हस्तांतरण आय क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी आय जो बिना किसी वस्तु या सेवा के प्राप्त होती है, उसे हस्तांतरण आय कहते हैं। हस्तांतरण आय कहते हैं। हस्तांतरण आय एक पक्षीय होती है। इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं होती है। जैसे-वृद्धावस्था पेन्शन, छात्रवृत्ति आदि। हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करते।

प्रश्न 24.
सरकारी अंतिम उपभोग व्यय का अनुमान किस प्रकार लगाया जाता है?
उत्तर:
सरकार, प्रतिरक्षा, चिकित्सा, कानून और व्यवस्था तथा सांस्कृतिक सेवाओं का उत्पादन करती है। सरकार का अन्तिम उपभोग व्यय निम्न प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है सरकार द्वारा अन्तिम उपभोग व्यय = वस्तुओं एवं सेवाओं का शुद्ध क्रय (विदेशी क्रय सहित) + कर्मचारियों का पारिश्रमिक

प्रश्न 25.
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है?
उत्तर:
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में सामान्य निवासियों द्वारा अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य एवं मूल्य ह्रास के अन्तर तथा विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय का जोड़ है।

प्रश्न 26.
मूल्य वृद्धि की अवधारणा की परिभाषा करें।
उत्तर:
विक्रय मूल्य एवं स्टॉक में वृद्धि के योग में से अंतर्वर्ती चीजों की लागत (मध्यवर्ती उपभोग) घटाने पर मूल्य वृद्धि प्राप्त होती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पादन वृद्धि
मध्यवर्ती उपभोग अथवा उत्पादन प्रक्रिया में फर्म साधन आगतों (भूमि, श्रम, पूँजी एवं अद्यम) की सेवाओं का प्रयोग करके गैर-साधन आगतों (मध्यवर्ती वस्तुओं) की उपयोगिता में जितनी वृद्धि होती है।

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प्रश्न 27.
मूल्य ह्रास क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में पूंजीगत वस्तुओं जैसे-इमारत, मशीन, उपकरण आदि के मूल्य में घिसावट, सामान्य टूट-फूट, अप्रचलन (तकनीकी परिवर्तन) आदि के कारण कमी को मूल्य हास कहते हैं। इसे स्थायी पूंजी का उपभोग एवं अचर पूंजी का उपभोग अथवा घिसावट भी कहते हैं।

प्रश्न 28.
सकल व्यय के घटक क्या होते हैं?
उत्तर:
सकल व्यय में परिवार, फर्म एवं सरकार द्वारा किए गए व्ययों को शामिल करते हैं। इन क्षेत्रों के अंतिम व्यय को निम्न वर्गों में भी बाँटते हैं –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. निवेश व्यय।
  3. सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय।
  4. शुद्ध निर्यात।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन के उपयोग क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रीय आय का विभिन्न उत्पादन संसाधनों के बीच विभाजन समझाया जा सकता है अर्थात् राष्ट्रीय आय में किस संसाधन का कितना योगदान है-इसे जाना जा सकता है।
  2. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में योगदान, इन क्षेत्रों की सापेक्ष एवं निरपेक्ष संवृद्धि की जानकारी राष्ट्रीय आय लेखांकन से प्राप्त होती है।
  3. अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन का बोध होता है।
  4. राष्ट्रीय आय लेखांकन में अर्थव्यवस्था के मजबूत पक्षों व कमजोर पक्षों की जानकारी प्राप्त होती है।
  5. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों जीवन स्तर में वृद्धि, राष्ट्रीय आय का वितरण आदि की जानकारी प्रदान करते हैं।
  6. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से विभिन्न देशों के तुलनात्मक अध्ययन का आधार प्राप्त होता है।
  7. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से उपभोग, बचत व पूंजी निर्माण की जानकारी मिलती है।
  8. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों देश की आर्थिक नीतियों की समीक्षा का आधार होते हैं।
  9. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों के आधार पर भावी आर्थिक नीतियों, सामाजिक नीतियों की रचना की जाती है आदि।

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प्रश्न 2.
आय के चक्रीय प्रवाह में निर्गत/निवर्तन एवं आगत/परिवर्धन की अवधारणाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
निर्वतन-इसमें वे सभी मदें शामिल की जाती है जिनसे राष्ट्रीय आय में घटोतरी होती है। इसकी प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

  1. बचत
  2. कर एवं
  3. आयात

आगत/परिवर्धन:
इसमें वे सभी मदें शामिल की जाती हैं जिनसे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होती है। इसकी मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

  1. निवेश,
  2. सरकारी व्यय एवं
  3. निर्यात

यदि अर्थव्यवस्था में आगतों के सापेक्ष निर्गत कम होते हैं तो आय का स्तर बढ़ता है इसके विपरीत यदि निर्गत, आगतों से ज्यादा होते हैं आय का स्तर घटता है। संतुलन की अवस्था में निर्गतों का मान आगतों के मान के बराबर रहता है।

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प्रश्न 3.
दो क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
दो क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था सरल अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में केवल दो क्षेत्र-परिवार व फर्म विद्यमान होते हैं। परिवार फर्मों को साधन सेवाएँ प्रदान करते हैं बदले में फर्म साधन सेवाओं का भुगतान परिवारों को करती है। इसी प्रकार फर्म परिवारों को वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करती है तथा परिवार वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का भुगतान फर्म को करते हैं।

इस अर्थव्यवस्था में पूंजी बाजार, सरकार तथा विदेशी व्यापार का कोई अस्तित्व नहीं होती है। परिवार उत्पादक क्षेत्र को भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यम प्रदान करते हैं। फर्म परिवारों को मजदूरी, लगान, ब्याज व लाभ का भुगतान करती है। परिवार साधन आय की सहायता से फर्मों से वस्तु वे सेवाएं खरीदते हैं बदले में उनका मूल्य उत्पादक क्षेत्र को प्रवाहित होता है। इसे निम्न प्रकार भी दर्शाया जा सकता है –
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प्रश्न 4.
किसी चक्रीय प्रवाह प्रतिमान का प्रयोग कर दर्शाइए कि आय और उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह के सभी प्रतिमानों में आय व उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं। उत्पादक क्षेत्र, परिवार क्षेत्र से साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम की सेवाएं क्रय करता है। इन साधन आगतों की सेवाओं की सहायता से उत्पादक क्षेत्र गैर साधन आगतों की उपयोगिता को बढ़ाता है। गैर साधन आगतों की उपयोगिता में वृद्धि को आय का सृजन कहते हैं। इस सृजित आय पर चार साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम का अधिकार होता है। अत: वितरण स्तर पर इस सृजित आय (उत्पादन) को चारों साधनों में आय के रूप में बांट दिया जाता है। उत्पादन के साधनों को उतनी ही आय प्राप्त होती है जितनी आय का सृजन उत्पादन क्षेत्र में होता है। अतः आय और उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं।

प्रश्न 5.
“समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मार्ग राष्ट्रीय लेखांकन के गलियारों से होकर गुजरता है”। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय लेखांकन की सहायता से हम दो प्रमुख कार्य करते हैं। एक देश की विशिष्ट आर्थिक उपलब्धियों का पता चलता है। दो, आर्थिक नीतियों की समीक्षा के लिए तर्कसंगत आधार प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रीय लेखांकन की सहायता से न केवल आर्थिक समुच्चयों की माप की जाती है बल्कि अर्थव्यवस्था की कार्यशैली का मूल्यांकन व विश्लेषण भी किया जाता है और उनकी व्याख्या की जाती है। अतः यह कहना उचित है कि समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मार्ग राष्ट्रीय लेखांकन के गलियारों से होकर गुजरता है।

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प्रश्न 6.
कृष्यर्थ शास्त्री कौन थे? आर्थिक गतिविधियों के बारे में उनके विचार क्या थे?
उत्तर:
18 वीं शताब्दी के फ्रांसीसी प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों को कृष्णर्थ अर्थशास्त्री कहते हैं। आर्थिक गतिविधियों के संचालन के बारे में वे मुक्त प्रवाह के पक्षधर थे। इसलिए वे अर्थशास्त्री आर्थिक क्रियाकलापों में सरकार के हस्तक्षेप के विरोधी थे। वे स्वतन्त्र व्यापार के पक्षधर थे। उनके विचार में समाज की प्रमुख गतिविधि कृषि थी। क्वीने ने अर्थतालिका के द्वारा धन के चक्रीय प्रवाह तथा समाज के विभिन्न वर्गों के बीच कृषि उत्पादन के वितरण का विधिपूर्ण चित्रांकन प्रस्तुत किया।

प्रश्न 7.
आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रवाह की सहायता से एक निश्चित समय अवधि में आर्थिक चरों के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है। आय तथा उत्पादन भी आर्थिक प्रवाह हैं। आर्थिक प्रवाह, आर्थिक स्टॉक से भिन्न होते हैं क्योंकि स्टॉक की माप एक निश्चित समय बिन्दु पर की जाती है। अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों जैसे परिवार, फर्म, सरकार एवं शेष विश्व की परस्पर निर्भरता के चित्रांकन को आय एवं उत्पादन का चक्रीय प्रवाह कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक क्षेत्र के आर्थिक निर्णय दूसरे क्षेत्रों के आर्थिक निर्णयों के प्रवाह के अनुरूप लिये, जाते हैं।

प्रश्न 8.
मौद्रिक प्रवाह की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि आर्थिक प्रवाह मुद्रा के रूप में होता है तो इसे मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। मौद्रिक प्रवाह में एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र/क्षेत्रों को मुद्रा का प्रवाह होता है। इस प्रकार के प्रवाह में वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह शामिल नहीं किया जाता है। जैसे-परिवार क्षेत्र से फर्म, सरकार एवं शेष विश्व द्वारा क्रय की गई वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य का प्रवाह। फर्म, सरकार एवं शेष विश्व द्वारा परिवार क्षेत्र को साधन आय (लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ) का भुगतान आदि।

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प्रश्न 9.
आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
वर्ष 1758 में क्वीने ने आय और उत्पादन की चक्रीय प्रवाह तालिका की रचना की थी। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इस विषय में मौन रहे। 19वीं शताब्दी के मध्य में कार्ल मार्क्स ने आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह के बारे में चर्चा की। आय व उत्पादन प्रवाह के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं –

  1. विनिमय चाहे वस्तु के माध्यम से हो अथवा मुद्रा के माध्यम से, प्रत्येक प्रक्रिया में उत्पादक/विक्रेता को उतनी ही राशि प्राप्त होती है जितनी उपभोक्ता/क्रेता खर्च करते हैं।
  2. वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह एक ही दिशा में होता है परन्तु उन्हें प्राप्त करने के लिए किए गए भुगतानों का प्रवाह विपरीत दिशा में होता है।

प्रश्न 10.
परिवारों की प्राप्तियों एवं भुगतानों को लिखिए।
उत्तर:
परिवार क्षेत्र की प्राप्तियां एवं भुगतान निम्न हैं –
प्राप्तियां:
परिवार क्षेत्र को साधन सेवाओं का पुरस्कार लगान, मजदूरी ब्याज व लाभ प्राप्त होता है। इस क्षेत्र को उत्पादक क्षेत्र से अन्तिम वस्तुएं एवं सेवाएं प्राप्त होती हैं। परिवार को सरकार से आर्थिक सहायता की प्राप्ति होती है। शेष विश्व से परिवार क्षेत्र को साधन भुगतान प्राप्त होता है, परिवार विदेशों से वस्तुओं एवं सेवाओं को भी प्रत्यक्ष रूप से खरीदते हैं। शेष विश्व से परिवार को चालू हस्तांतरण भी प्राप्त होते हैं।

भुगतान:
परिवार फर्म, सरकार व विदेशों से जो वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करते हैं उनके मौद्रिक मूल्यों का भुगतान करना पड़ता है। सरकार परिवारों पर प्रत्यक्ष कर लगाती है। परिवार करों का भुगतान सरकारी क्षेत्र को करते हैं।

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प्रश्न 11.
समष्टि स्तर पर लेखांकन का महत्त्व बताएं।
उत्तर:
लेखांकन सभी स्तरों पर महत्त्वपूर्ण होता है परन्तु समष्टि स्तर और भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। इसके कई कारण हैं-लेखांकन के आधार पर अर्थव्यवस्था में पूरे वित्तीय वर्ष की गतिविधियों की समीक्षा की जाती है। आर्थिक विश्लेषण के बाद सरकार जन कल्याण की भावना से उपयुक्त आर्थिक व सामाजिक नीतियाँ बनाती है। इसी के आधार पर अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय उत्पादन, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय व्यय, घरेलू पूंजी निर्माण, प्रति व्यक्ति आय आदि समाहारों की जानकारी प्राप्त होती है। लेखांकन के आधार पर अर्थव्यवस्था की विभिन्न वर्षों की उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन संभव होता है।

प्रश्न 12.
वैयक्तिक आय की परिभाषा दीजिए। यह वैयक्तिक प्रयोज्य आय से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
वैयक्तिक आय-परिवारों को सभी स्रोतों से प्राप्त आय के योग को वैयक्ति आय कहते हैं।
वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निगमित बचत।
वैयक्तिक प्रयोज्य आय-वैयक्तिक आय का वह भाग जिसे परिवार स्वेच्छा से उपभोग या बचत के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – प्रत्यक्ष कर – दण्ड, जुर्माना आदि।

प्रश्न 13.
वस्तु एवं सेवा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 6

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प्रश्न 14.
मध्यवर्ती उपभोग क्या है? सरकार के मध्यवर्ती उपभोग के दो कारण दीजिए।
उत्तर:
मध्यवर्ती उपभोग-एक उत्पादक इकाई द्वारा दूसरी उत्पादन इकाई से खरीदी गई वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनको पुनः बेचा जाता है। मध्यवर्ती उपभोग कहलाती हैं। सरकार के मध्यवर्ती उपभोग के उदाहरण –

  1. सरकारी विभागों द्वारा खरीदी गई स्टेशनरी।
  2. सरकारी वाहनों के लिए खरीदा गया पेट्रोल।

प्रश्न 15.
हरित जीएनपी किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित जीएनपी की आवधारणा का विकास आर्थिक विकास के मापक के रूप में किया जा रहा है। जी.एन.पी. को मानवीय कुशलता को मापने के लायक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं इसी सन्दर्भ में हरित जी.एन.पी. का प्रतिपादन किया है। हरित जीएनपी, आर्थिक संवृद्धि की कसौटी-प्राकृतिक संसाधनों के विवेकशील विदोहन और विकास के हित लाभों के समान वितरण पर जोर देती है। अर्थात् जीएनपी का संबंध प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, संरक्षण एवं समाज के विभिन्न वर्गों में उनके न्यायोचित बंटवारे से हैं।

प्रश्न 16.
परिभाषा करें-
(क) मौद्रिक जीएनपी
(ख) वास्तविक जीएनपी।
उत्तर:
(क) मौद्रिक जीएनपी-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना लेखा वर्ष में बाजार में प्रचलित कीमतों के आधार पर की जाती है तो इसे मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। मौद्रिक जीएनपी में परिर्वतन तात्कालिक बाजार कीमतों में परिवर्तन, तात्कालिक लेखा वर्ष में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन अथवा दोनों में परिवर्तन के कारण हो सकता है।

(ख) वास्तविक जीएनपी-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना किसी आधार वर्ष की कीमतों के आधार पर की जाती है तो इसे वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) कहते हैं। वास्तविक जीएनपी में बढ़ोतरी केवल वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि के कारण होती है।

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प्रश्न 17.
बाजार कीमत और स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय में भेद करें।
उत्तर:
बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय:
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार में प्रचलित कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।

स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय:
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा के उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के आधार वर्ष की कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। बाजार कीमतों पर राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी के कारण हैं-कीमतों में वृद्धि अथवा उत्पादन की मात्रा में वृद्धि अथवा कीमतों एवं उत्पादन की मात्रा दोनों में वृद्धि। स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी केवल उत्पादन की मात्रा में बढ़ोतरी के कारण होती है।

प्रश्न 18.
कर्मचारियों के पारिश्रमिक की परिभाषा दीजिए। इसके विभिन्न संघटक क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
परिभाषा:
उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान दिया जाता है, उसे कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहते हैं।
संघटक:

  1. नकद वेतन-उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान नकद मुद्रा के रूप में दिया जाता है, उसे नकद वेतन कहते हैं। जैसे मूल वेतन, भत्ते, बोनस, कमीशन आदि।
  2. किस्म के रूप में वेतन-उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान वस्तु या सेवाओं के रूप में दिया जाता है। उसे किस्म के रूप में वेतन कहते हैं। जैसे-मुफ्त आवास, सहायता युक्त भोजन आदि।
  3. सामाजिक सुरक्षा अंशदान-श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का अंशदान। जैसे सामूहिक बीमा प्रीमियम, प्रोविडेण्ड फण्ड आदि में मालिकों का भुगतान।

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प्रश्न 19.
सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
सामान्य सरकार क्षेत्र में ब्याज, लगान व लाभ की अवधारणा, उत्पन्न नहीं होती है, सरकार को अप्रत्यक्ष करों का भुगतान नहीं करना पड़ता है सरकार घिसावट के आंकड़े एकत्र नहीं करती है। अतः इस क्षेत्र में
उत्पादन मूल्य = सामान्य सरकार का मध्यवर्ती उपभोग + कर्मचारियों का पारिश्रमिक। शुद्ध मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग = कर्मचारियों का पारिश्रमिक। इस क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि कर्मचारियों के पारिश्रमिक के बराबर होती है।

प्रश्न 20.
मध्यवर्ती उत्पाद (वस्तुएं) तथा अन्तिम उत्पाद में अन्तर बताइए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 7

प्रश्न 21.
अन्तिम वस्तु और अन्तर्वती वस्तु में क्या भेद होता है?
उत्तर:
अन्तिम वस्तु-वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग या निवेश के लिए किया जाता है, अन्तिम वस्तु कहलाती है। इन वस्तुओं को उत्पादन प्रक्रिया में पुनः कच्चे माल की तरह प्रयोग में नहीं लाया जाता है। ये पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं इनका पुनः रूप, रंग, आकार नहीं बदला जाता है। इन वस्तुओं को घरेलू/राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल किया जाता है। अन्तर्वर्ती वस्तु-वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में अन्य वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल की तरह किया जाता है अन्तर्वर्ती वस्तु कहलाती है। ये वस्तुएं पूरी तरह से तैयार नहीं होती है उत्पादन प्रक्रिया में एक चरण से दूसरे चरण में इनके रूप, रंग, आकार आदि में परिवर्तन किया जाता है। उत्पादन प्रक्रिया में दूसरी वस्तुओं के निर्माण में इनका अपना अस्तित्व खो जाता है। इन वस्तुओं को घरेलू/राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 22.
क्या GNP राष्ट्रीय कल्याण का मापन करता है?
उत्तर:
बहुत लम्बे समय से अर्थशास्त्री आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास के मापक रूप में GNP (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) का प्रयोग करते आ रहे हैं। GNP में बढ़ोतरी को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा एवं GNP में कमी को खराब माना जाता रहा है। परन्तु GNP में वृद्धि से राष्ट्रीय आय का वितरण, संसाधनों के प्रयोग का स्वभाव एवं दर, जीवन की गुणवत्ता आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। अत: GNP से राष्ट्रीय क्षेत्र स्तर का मापन नहीं होता है। आय की गणना का उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि अपने आपको गरीब बनाए बगैर वे क्या कुछ उपभोग सकते हैं। GNP में बढ़ोत्तरी विकास का इकलौता उद्देश्य नहीं है। इसके अलग राष्ट्रीय आय के समान वितरण, जन समुदाय के जीवन की गुणवत्ता में सुधार तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण आदि भी आर्थिक विकास के उद्देश्यों में शामिल किए जाने चाहिए। दूसरे शब्दों में, आर्थिक विकास का उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि। मानवीय कुशलता में बढ़ोतरी के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सतत् विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। अत: GNP में बढ़ोतरी राष्ट्रीय कल्याण का अधूरा माप है।

प्रश्न 23.
निजी अन्तिम उपभोग व्यय के संघटक समझाइए।
उत्तर:
परिवारों के अन्तिम उपभोग एवं परिवारों की सेवा मे निजी गैर-लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग का योग निजी अन्तिम उपभोग कहलाता है।
निजी अन्तिम उपभोग = परिवारों का अन्तिम उपभोग + परिवारों की सेवा में निजी गैर लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग।
परिवारों का अन्तिम उपभोग = टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय + गैर टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय + विदेशों से प्रत्यक्ष खरीद पर व्यय + मकानों का आरोपित किराया + किस्म के रूप में वेतन + स्थिर परिसम्पत्तियों का स्व-लेखा उत्पादन – उपहार-पुराने एवं रद्दी सामान की बिक्री।
निजी गैर लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग = मध्यवर्ती उपभोग-विदेशों से चालू खाते पर प्रत्यक्ष खरीद + कर्मचारियों का पारिश्रमिक – जनता को बिक्री।

प्रश्न 24.
सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण और स्टॉक में परिवर्तन के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 8

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प्रश्न 25.
इन वाक्यांशों का अर्थ बताइए –

  1. स्थिर व्यावसायिक निवेश
  2. भण्डार निवेश
  3. गृह निर्माण निवेश
  4. सार्वजनिक निवेश

उत्तर:
1. स्थिर व्यावसायिक निवेश:
फर्मों द्वारा नए यंत्र-सयंत्रों पर किया गया व्यय स्थिर व्यावसायिक निवेश कहलाता है। स्थिर व्यावसायिक निवेश करते समय उत्पादक इकाईयाँ विचार-विमर्श करती हैं। सकल स्थिर व्यावसायिक निवेश में मूल्यह्रास शामिल रहता है परन्तु शुद्ध स्थिर व्यावसायिक निवेश की गणना करने के लिए स्थिर व्यवसायिक निवेश में से मूल्यह्रास घटाते हैं।

2. भण्डार निवेश:
भण्डार निवेश उत्पादन का वह भाग होता है जिसे बाजार में बेचा नहीं गया है। भण्डार निवेश में कच्चा माल, अर्द्धनिर्मित माल एवं तैयार माल को शामिल करते हैं। भण्डार निवेश में वृद्धि की गणना अन्तिम स्टॉक से आरम्भिक स्टॉक घटाकर की जाती है।

3. गृह निर्माण निवेश:
भवन निर्माण पर व्यय को गृह निर्माण निवेश कहते हैं। शुद्ध गृह निर्माण निवेश में से गृह निर्माण का मूल्यह्रास घटाते हैं।

4. सार्वजनिक निवेश:
सरकार द्वारा स्थिर परिसंपत्तियों (सड़कों, पुलों, विद्यालयों, अस्पतलों आदि) के निर्माण पर व्यय की गई राशि को सार्वजनिक निवेश कहते हैं। शुद्ध सार्वजनिक निवेश ज्ञात करने के लिए सकल सार्वजनिक निवेश में से मूल्यह्रास को घटाते हैं।

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता है।

  1. एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय।
  2. एक घरेलू फर्म के नए शेयरों का क्रय।
  3. सरकार द्वारा छात्रों को छात्रवृत्ति।
  4. संपत्ति कर।
  5. अप्रत्यक्ष कर।
  6. वृद्धावस्था पेंशन।

उत्तर:

  1. एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय केवल स्वामित्व का हस्तातरंण है, इससे चालू वर्ष में उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
  2. क्योंकि इससे वस्तुओं या सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं हुई है यह केवल कागजी परिसंपत्ति का विनिमय है।
  3. छात्रों को छात्रवृत्ति एक प्रकार का अंतरण भुगतान है यह पक्षीय भुगतान इससे वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह नहीं बढ़ता है।
  4. क्योंकि संपत्ति कर एक प्रकार का अनिवार्य अंतरण भुगतान है।
  5. क्योंकि अप्रत्यक्ष कर एक प्रकार का अनिवार्य अंतरण भुगतान है।
  6. क्योंकि वृद्धावस्था पेंशन अंतरण भुगतान है।

प्रश्न 27.
नीचे दिए गए सौदे घरेलू उत्पाद को किस प्रकार प्रभावित करेंगे –

  1. एक पुरानी कार के मालिक द्वारा कार बेचकर उस रुपये से नया स्कूटर खरीदना।
  2. एक नई कंपनी द्वारा दलालों की मार्फत अंश पत्रों की बिक्री जिनको कमीशन का भुगतान किया जाता है।
  3. किराये पर लिए गए मकान की खरीद।

उत्तर:

  1. पुरानी कार की बिक्री को राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जायेगा परन्तु नए स्कूटर की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  2. अंश पत्रों की बिक्री से केवल स्वामित्व का हस्तांतरण होता है अतः इनकी बिक्री राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे परन्तु इनकी बिक्री के लिए दलालों का कमीशन राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  3. किराये पर लिया गया मकान पुराना है। अतः पुराने मकान की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे।

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प्रश्न 28.
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के अंकलन में किन कार्यों को शामिल नहीं किया जाता है?
उत्तर:
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के अंकलन में निम्नलिखित कार्यों को शामिल नहीं किया जाता है –
1. सरकार द्वारा हस्तांतरण भुगतान:
हस्तांतरण एक पक्षीय होते हैं। इन भुगतानों से वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में बढ़ोतरी नहीं होती है। जैसे वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति आदि।

2. कागजी परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय:
इन परिसंपत्तियों के क्रय-विक्रय में केवल स्वामित्व का हस्तांतरण होता है। इनसे वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में बढ़ोतरी नहीं होती है। जैसे बचत पत्र, अंश पत्र, ऋण पत्र आदि का क्रय-विक्रय आदि।

3. गैर कानूनी क्रियाएं:
इन क्रियाओं को अपराध माना जाता है इसलिए इन्हें राष्ट्रीय आय के आंकलन में नहीं जोड़ते हैं। जैसे चोरी, डकैती, जुआ आदि।

4. गैर-बाजार वस्तुएं एवं सेवाएं:
ये वस्तुएं बाजार परिधि से बाजार रहती है। इनके बारे में पर्यात जानकारी का अभाव रहता है। इनके मूल्य का अनुमान लगाना असंभव सा होता है।

5. निजी अंतरण भुगतान:
ये भुगतान भी एक पक्षीय होते हैं। इनसे वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह नहीं बढ़ता है।

प्रश्न 29.
GNP (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) के आंकलन में किन कार्यों को अपवर्जित माना गया है? इसके कारण भी बताइए।
उत्तर:
GNP के मापन में निम्नलिखित कार्यों को छोड़ दिया जाता है –
1. वित्तीय/कागजी परिसंपत्तियों का लेन-देन:
बचत पत्र, ऋण पत्र, बाँड, अंश पत्र आदि को वित्तीय परिसपंत्ति कहते हैं। इनके क्रय-विक्रय से मात्र स्वामित्व बदलता हैं, वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं होती है। इसलिए इस प्रकार के लेन-देन GNP के आंकलन में छोड़ दिए जाते हैं।

2. सरकार द्वारा हस्तांतरण भुगतान:
हस्तांतरण भुगतान वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रतिफल नहीं होते हैं ये एक पक्षीय होते हैं। इनमें वस्तुओं एवं सेवाओं का सृजन नहीं होता है। जैसे-छात्रवृत्ति, वृद्धावस्था पेन्शन आदि। इसलिए इन्हें भी GNP के आंकलन में शामिल नहीं करते हैं।

3. निजी अन्तरण भुगतान-ये भी एक पक्षीय होते हैं इनमें भी आय का सृजन नहीं होता है। इसलिए इन्हें GNP में शामिल नहीं करते हैं। जैसे जेब खर्च आदि।

4. गैर बाजार वस्तुएं एवं सेवाएं-स्व-उपभोग के लिए उत्पन्न की गई सेवाएं बाजार की परिधि से बाहर रहती हैं उनके मूल्य का अनुमन लगाना असंभव होता है इसलिए इन्हें GNP से बाहर रखते हैं।

5. पुराने सामान की बिक्री-पुराने सामान को बेचने से आय का सृजन नहीं होता है। पुराने सामान के उत्पादक मूल्य को उत्पादित लेखा वर्ष में आय सृजन के रूप में शामिल किया जा चुका है। पुराने उत्पाद की बिक्री से नव उत्पादन नहीं होता है अतः पुराने सामान का मूल्य (GNP) में शामिल नहीं किया जाता है।

6. गैर-कानूनी क्रियाएँ-गैर-कानूनी क्रियाओं का उचित रूप में पता नहीं चलता है, या उनक सही हिसाब-किताब का ब्यौरा नहीं मिलता है। इससे भी ज्यादा देश में इन क्रियाओं को अपराध माना जाता है इसलिए GNP के आंकलन में इन्हें छोड़ देते हैं।

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प्रश्न 30.
किन परिस्थितियों में ऐसा होता है –

  1. राष्ट्रीय आय, घरेलू साधन आय के बराबर।
  2. निजी आय, वैयक्तिक आय के बराबर।
  3. राष्ट्रीय आय, घरेलू आय से कम।
  4. क्या वैयक्तिक आय निजी आय से अधिक हो सकती है।
  5. वैयक्तिक आय, वैयक्तिक प्रयोज्य आय के बराबर।

उत्तर:

  1. जब विदेशों से शुद्ध साधन आय शून्य होती है तो राष्ट्रीय आय, घरेलू साधन आय के समान होती है।
  2. वैयक्तिक आय में लाभ कर तथा अवितरित लाभ जोड़ने पर निजी आय प्राप्त होती है। यदि लाभ कर तथा अवितरित लाभ शून्य होते हैं वैयक्तिक आय व निजी आय समान होती है।
  3. यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है तो राष्ट्रीय आय, घरेलू आय से कम होती है।
  4. निजी आय = वैयक्तिक आय + लाभ कर + अवितरित लाभ। यदि लाभ कर अथवा अवितरित लाभ अथवा दोनों शून्य से अधिक होते हैं निजी आय, वैयक्तिक आय से ज्यादा होती है।
  5. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर-दण्ड जुर्माना आदि।

प्रश्न 31.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय के आंकलन में शामिल किया जाता है? कारण भी लिखो –

  1. सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय।
  2. विदेशों में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम।
  3. व्यावसायिक बैंक से परिवार को ब्याज की प्राप्ति।
  4. जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि।
  5. सुरक्षा पर सरकारी व्यय।
  6. लंदन में सरकारी बैंक की एक शाखा द्वारा अर्जित लाभ।
  7. पाकिस्तान दूतावास में काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों को मिली मजदूरी।

उत्तर:

  1. सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय, सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय का घटक है। अतः व्यय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करने में इसको शामिल किया जायेगा।
  2. विदेशों में काम कर रहे श्रमिक द्वारा परिवार को मिली रकम, विदेशों से अर्जित साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।
  3. व्यावसायिक बैंक से प्राप्त ब्याज साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।
  4. जमीन की बिक्री से प्राप्त आय राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होगी क्योंकि इस सौदे मे केवल स्वामित्व परिवर्तन होता है।
  5. सुरक्षा पर सरकारी व्यय अन्तिम उपभोग व्यय का एक संघटक है अतः इसे राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  6. विदेशों से अर्जित लाभ साधन आय का घटक है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  7. भारतीय कर्मचारी को पाकिस्तान दूतावास से मिली मजदूरी साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।

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प्रश्न 32.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय किसे कहते हैं? यह कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय-बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद, एवं शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण भुगतान के योग को राष्ट्रीय प्रयोज्य आय कहते हैं। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का उपयोग राष्ट्र जैसे चाहे कर सकता है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का उपयोग निम्न प्रकार किया जा सकता है।

  1. सरकारी अन्तिम उपभोग
  2. निजी अन्तिम उपभोग एवं
  3. राष्ट्रीय बचत

राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का मान राष्ट्रीय आय में कम या ज्यादा हो सकता है। यदि शेष विश्व से चालू अंतरण धनात्मक होते है तो राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होती है इसके विपरीत यदि शेष विश्व से चालू अंतरण ऋणात्मक होते हैं तो राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से कम होती है।

राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान या
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शेष विश्व से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान

प्रश्न 33.
घरेलू उत्पाद (राष्ट्रीय आय) के आंकलन की मूल्य वृद्धि विधि की रूपरेखा दीजिए।
उत्तर:
इस विधि से राष्ट्रीय आय ज्ञान करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जाते हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में उत्पादक इकाइयों की पहचान करना और उन्हें समान क्रियाओं के आधार पर विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) में बांटना।
  2. प्रत्येक उत्पादन इकाई द्वारा मूल्य वृद्धि ज्ञात करना और उन्हें जोड़कर प्रत्येक क्षेत्र की साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि निकालना।
  3. देश की घरेलू सीमा में समस्त क्षेत्रों की साधन लागत पर मूल्य वृद्धि को जोड़कर घरेलू आय ज्ञात करना।
  4. शुद्ध विदेशी साधन आय ज्ञात करना और उसे घरेलू आय में जोड़कर राष्ट्रीय आय ज्ञात करना।

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प्रश्न 34.
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संवृद्धि को ज्ञात करने के लिए एक वर्ष की राष्ट्रीय आय की तुलना आधार-वर्ष की राष्ट्रीय आय से की जाती है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि उत्पादन में वृद्धि के कारण भी हो सकती है और कीमतों में वृद्धि के कारण भी हो सकती है, जब कीमत में वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो यह वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति का वास्तविक चित्र प्रस्तुत नहीं करती।

जब उत्पादन में वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो इसे राष्ट्रीय आय में वास्तविक वृद्धि कहते हैं। यह वृद्धि आर्थिक संवृद्धि की सूचक है। प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय में कीमतों का प्रभाव शामिल होने के कारण इसकी तुलना आधार वर्ष की राष्ट्रीय आय से नहीं की जा सकती। अत: प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय को, स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में परिवर्तित करके हम राष्ट्रीय आय की तुलना आधार वर्ष की राष्ट्रीय आय से कर सकते हैं।

प्रश्न 35.
माल भण्डार का अर्थ बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु का उत्पादने करने के लिए कच्चे माल, अर्द्धनिर्मित माल और तैयार माल की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार वस्तु के निर्माण की प्रक्रिया में उत्पादक नल तंत्र के बीच जितनी भी वस्तुएं होती हैं उसे ही माल भण्डार में निवेश करते हैं। यदि ये निवेश न किया जाये तो उत्पादन की प्रक्रिया बन्द हो जाती है। माल भण्डार के निवेश में निम्नलिखित वस्तुएँ शामिल की जाती है –

  1. उत्पादक और विक्रेताओं के पास निर्मित वस्तुएं।
  2. उत्पादन पाइप लाइन में अर्द्धनिर्मित वस्तुएं।
  3. उत्पादकों के पास कच्चा माल।

माल भण्डार धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी, यदि उपभोग उत्पादित वस्तुओं की मात्रा से अधिक हो तो भण्डार निवेश ऋणात्मक होगा। यदि उत्पादित वस्तुएं उपभोग की मात्रा से अधिक हैं तो माल भण्डार धनात्मक होगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के आंकलन की उत्पादन और आय विधियां समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के आंकलन की उत्पादन विधि:
उत्पादन विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है –
(I) आर्थिक इकाइयों का वर्गीकरण:
अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाइयों को तीन क्षेत्रों-प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में बांटते हैं। इन क्षेत्रों को विभिन्न उपक्षेत्रों में बांटा जाता है।

(II) बाजार कीमतो पर सकल उत्पादन मूल्य की गणना करना:
एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की बाजार कीमतों को सकल उत्पादन मूल्य कहते हैं। बाजार कीमतवे पर सकल उत्पादन मल्वा की गणला उत्तरदा-मूल्य लेहत वर्ष में बाजार कीमत पर उत्पादन मूल्य = उत्पादन की मात्रा × प्रति इकाई बाजार कीमत। सभी उत्पादक इकाइयों के उत्पादन मूल्य को जोड़कर पूरी अर्थव्यवस्था के लिए बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य की गणना की जाती है।

(III) अन्तर्वती/मध्यवर्ती उपभोग:
उत्पादक इकाइयां अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोग करती हैं। इस प्रकार की वस्तुओं के प्रयोग को मध्यवर्ती उपभोग कहते हैं। सभी उत्पादक इकाइयों के मध्यवर्ती उपभोग को जोड़कर पूरी अर्थव्यवस्था का मध्यवर्ती उपभोग ज्ञात कर लिया जाता है।

(IV) बाजार कीमतों पर सकल मूल्य वृद्धि:
बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य के आंकड़ों में से मध्यवर्ती उपभोग घटाकर बाजार कीमतों पर सकल मुल्य वृद्धि की गणना की जाती है। यह अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य या बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद के समान होती है।

(V) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि (NVA at fc) या साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NVA at fc) या घरेलू साधन आय घरेलू साधन आय ज्ञात करने के लिए बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में से स्थायी पूंजी का उपभोग व शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाते हैं।
घरेलू साधन आय = बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद-स्थायी पूंजी का उपभोग,-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर, अथवा,
घरेलू साधन आय = बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-स्थायी पूंजी का उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

(VI) राष्ट्रीय आय:
घरेलू साधन आय अथवा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि में विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय जोड़कर राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।
राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय अथवा,
राष्ट्रीय आय = साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय अथवा,
राष्ट्रीय आय = बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-स्थायी पूंजी उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय आय विधि से राष्ट्रीय आय-आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है। सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में सृजित आय के योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं –

1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक:
श्रमिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाएं प्रदान करते हैं। श्रमिकों की सेवाओं के बदले उन्हें नकद, किस्म या सामाजिक सुरक्षा के रूप में भुगतान दिया जाता है। श्रमिकों को दिए गए सभी भुगतानों के योग को कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहते हैं।

2. लगान:
भूमि की सेवाओं के बदले भूमिपतियों को दिए जाने वाले भुगतान को लगान या किराया कहते हैं।

3. ब्याज:
पूंजी के प्रयोग के बदले पूंजीपतियों को किए गए भुगतान को ब्याज कहते हैं। इसमें परिवारों को प्राप्त शुद्ध ब्याज को शामिल किया जाता है। शुद्ध ब्याज की गणना करने के लिए परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज में से उनके द्वारा किए गए ब्याज भुगतानों को घटाते हैं।

4. लाभ:
उत्पादन प्रक्रिया के जोखिमों व अनिश्चिताओं को वहन करने के प्रतिफल को लाभ कहते हैं।

5. घरेलू साधन आय:
घरेलू साधन आय की गणना करने के लिए कर्मचारियों के पारिश्रमिक, लगान, ब्याज एवं लाभ का योग करते हैं। घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लगान + ब्याज + लाभ + मिश्रित आय (अनिगमित उद्यमों की आय जिसमें कर्मचारियों के पारिश्रमिक, लगान, ब्याज व लाभ को अलग बाँटना मुश्किल होता है)

6. राष्ट्रीय आय:
घरेलू साधन आय में विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय

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प्रश्न 2.
परिभाषा करें –

  1. बाजार कीमतों पर जी.एन.पी. (बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)।
  2. बाजार कीमतों पर एन.एन.पी. (बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद)।
  3. साधन लागत पर जी.एन.पी. (साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)।
  4. साधन लागत पर एन.एन.पी. (साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद)।

उत्तर:
1. बाजार कीमतों पर जी.एन.पी. (GNP at mp):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय।

2. बाजार कीमतों पर एन.एन.पी. (NNP at mp):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूंजी का उपभोग घटाने पर प्राप्त बाजार कीमतों को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
अथवा बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद
= विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-स्थान पूंजी का उपभोग

3. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at fc):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर प्राप्त साधन लागत पर शुद्ध उत्पाद कहते हैं।
अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

4. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at fc):
एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूंजी का उपभोग एवं शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं।
अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय

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प्रश्न 3.
साधन बाजार में विभिन्न क्षेत्रों के बीच आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह को चित्रांकित कीजिए अथवा आय व्यय के चक्रीय प्रवाह को दर्शाइए।
उत्तर:
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में परिवार व फर्म दो क्षेत्र होते हैं। परिवार साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम के स्वामी होते हैं फर्म परिवार क्षेत्र से इन साधन सेवाओं को क्रय करती है। दूसरे शब्दों में फर्म साधन आगतों के प्रतिफलों, लगान, ब्याज, मजदूरी व लाभ का भुगतान परिवार क्षेत्र को करती है। अर्थात् फर्म साधन सेवाओं का भुगतान करने के लिए मुद्रा व्यय करती है। इस प्रकार फर्म से परिवार की ओर मुद्रा के रूप में परिवार क्षेत्र को प्राप्त होते हैं। परिवार इस प्राप्त आय को वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करने के लिए व्यय करती है। इस प्रकार अर्थ व्यवस्था के दोनों क्षेत्र क्रेता एवं विक्रेता दोनों की भूमिका निभाते हैं इसलिए दोनों क्षेत्रों के बीच प्रवाह निरन्तर चलता है। इसे निम्नांकित चित्र से भी दर्शाया जा सकता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 9

प्रश्न 4.
द्विक्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के चक्रीय प्रवाह में वित्त क्षेत्र का समावेश होने पर आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह को दर्शाइए।
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में विभिन्न वित्तीय संस्थाओं जैसे व्यापारिक बैंक, बीमा कंपनिया आदि को वित्तीय क्षेत्र या पूंजी बाजार कहते हैं। वित्तीय बाजार बचत करने वालों, निवेश करने वालों अथवा ऋण प्रदान करने वालों के बीच बिचौलिए का काम करता है। वास्तव में परिवार एवं उत्पादक दोनों क्षेत्र अपनी सम्पूर्ण आय को खर्च नहीं करते हैं। परिवार साधन आय में से कुछ बचत करते हैं। इसी प्रकार उत्पादक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आगम में से कुछ बचत करते हैं। कुछ फर्मों निवेश करने के लिए मुद्रा की मांग भी करती हैं।

अतः वित्तीय क्षेत्र को परिवार व उत्पादक के बीच मध्यवस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है। वित्तीय संस्थाएँ उन परिवारों एवं फर्मों को जिनके पास अधिशेष आय होती है, बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं तथा उनकी बचतों को अपने यहाँ जमा करवाती हैं। दूसरी ओर वित्तीय संस्थाएँ परिवारों एवं उद्यमों को उधार लेने अथवा फर्मों को निवेश करने के लिए भी प्रेरित करती हैं। इन क्षेत्रों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे बिना वित्त क्षेत्र के समावेश के। लेकिन वहाँ परिवार एवं उद्यमों की बचतों को सुन्न मान लिया जाता है।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 10

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प्रश्न 5.
निम्न पर टिप्पणी कीजिए –

  1. निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय।
  2. निजी आय।
  3. वैयक्तिक आय।
  4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

उत्तर:
1. निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय:
घरेलू साधन आय में निजी व सरकारी दोनों क्षेत्रों की उपार्जित आय सम्मिलित होती है। सार्वजनिक क्षेत्र की उपार्जित आय में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रशासनिक विभागों की आय एवं गैर विभागीय उद्यमों की बचत को शामिल करते हैं। निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से अपार्जित आय ज्ञात करने के लिए घरेलू साधन आय में से सार्वजनिक क्षेत्र की उपार्जित आय घटाती जाती है। संक्षेप में निजी क्षेत्र की उपार्जित आय = घरेलू साधन आय प्रशासनिक विभागों की उद्यम वृत्ति एवं संपत्ति की आय-गैर विभागीय उद्यमों की बचतें

2. निजी आय:
निजी क्षेत्र को एक लेखा वर्ष में सभी स्रोतों से जितनी आय प्राप्त होती है, उसे निजी आय कहते हैं। निजी क्षेत्र में उपार्जित एवं गैर उपार्जित दोनों प्रकार की आय प्रवाहित होती है। निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय निजी आय के उपार्जित घटक हैं तथा सरकार से चालू अन्तरण, शेष विश्व से शुद्ध चालू अन्तरण एवं राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज गैर उपार्जित आय के रूप में निजी क्षेत्र को प्रवाहित होते हैं। संक्षेप में निजी आय = निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय -विदेशों से शुद्ध साधन आय + सरकार से चालू अन्तरण – राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज

3. वैयक्तिक आय:
निजी आय का वह भाग जो परिवार क्षेत्र की ओर प्रवाहित होता है उसे वैयक्तिक आय कहते हैं। निजी आय का सम्पूर्ण भाग परिवारों की ओर प्रवाहित नहीं होता है। निजी आय का कुछ भाग सरकार को निगम कर के रूप में प्रवाहित होता है तथा कुछ भाग निजी उत्पादक क्षेत्र के पास निगमित बचत के रूप में रह जाता है।
अत: वैयक्तिक आय = निजी आय-निगम कर-निगमित बचत

4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय:
निजी आय का वह भाग जिसे परिवार स्वेच्छापूर्वक उपभोग या बचत के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, वैयक्तिक प्रयोज्य आय कहलाता है। परिवार वैयक्तिक आय का सम्पूर्ण भाग स्वेच्छापूर्वक प्रयोग नहीं कर सकते हैं। कुछ भाग उन्हें इच्छा के विरुद्ध प्रत्यक्ष करों, दण्ड, जुर्माना आदि के भुगतान पर खर्च करना पड़ता है। संक्षेप में वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर-दण्ड/जुर्माना आदि

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प्रश्न 6.
दिखाइए कि मूल्य वृद्धि का योग साधन आयों के योग के समान किस प्रकार हो जाता है?
उत्तर:
मल्य वद्धि-फर्म गैर साधन आगतों की उपयोगिता बढाने के लिए साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम की सेवाएं क्रय करती है। साधन आगतों की सेवाओं पर किया गया व्यय साधन भुगतान कहलाता है। साधन भुगतान को ही साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि कहते हैं। साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि की गणना करने के लिए उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग, स्थायी पूंजी का उपभोग एवं शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाते हैं।
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा = साधन भुगतान

साधन आय:
उत्पादन साधन भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम अपनी सेवाएं उत्पादन प्रक्रिया में फर्म को बेचती है। उनकी सेवाओं के बदले साधनों के मालिकों को जितनी-जितनी आय प्राप्त होती है उनके योग को साधनों की आयों का योग कहते हैं।

उपयुक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि फर्म साधनों की सेवाओं के प्रयोग के बदले उनके भुगतान पर जितना व्यय करती है ठीक उतनी ही राशि साधनों के मालिकों को आय के रूप में प्राप्त होती है। इसलिए साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि साधन आयों के योग के बराबर होती है।

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प्रश्न 7.
विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय की परिभाषा दीजिए और इसके संघटक बताइए।
उत्तर:
शेष विश्व से निवासियों द्वारा प्राप्त साधन-आय में से गैर-निवासियों को दिए गए साधन-भुगतान को घटाने पर हमें विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय प्राप्त होती है। शेष विश्व से शुद्ध साधन आय = निवासियों द्वारा शेष विश्व से प्राप्त साधन आय-गैर-निवासियों को दी जाने वाली साधन आय।
शेष विश्व से शुद्ध साधन आय के संघटक निम्नलिखित हैं –

  1. कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक।
  2. शेष विश्व से शुद्ध सम्पत्ति व उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय।
  3. विदेशों में निवासी कंपनियों द्वारा शुद्ध प्रतिधारित आय।

1. कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक:
इसके अन्तर्गत एक देश के निवासी कर्मचारियों द्वारा विदेशों में प्राप्त पारिश्रमिक में से गैर-निवासी कर्मचारियों को दिए गए पारिश्रमिक को घटाया जाता है।
कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक = विदेशों में निवासी कर्मचारियों द्वारा प्राप्त पारिश्रमिक – गैर निवासी कर्मचारियों को दिया गया पारिश्रमिक

2. शेष विश्व से शुद्ध सम्पत्ति व उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय:
यह एक देश के निवासियों द्वारा किराया, ब्याज, लाभांश और लाभ के रूप में प्राप्त आय तथा इस प्रकार के शेष विश्व को किए गए भुगतान का अन्तर है। इसमें सरकार द्वारा विदेशी-ऋण पर दिया गया ब्याज भी
शामिल है।

3. विदेशों में निवासी कंपनियों द्वारा शुद्ध प्रतिधारित आय:
प्रतिधारित आय से तात्पर्य कंपनियों के अवितरित लाभ से है। विदेशों में काम करने वाली घरेलू कम्पनियों की प्रतिधारित आय और देश में विदेशी कम्पनियों की प्रतिधारित आय का अन्तर विदेशों में निवासी कम्पनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय कहलाती है। निवासी कंपनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय = विदेशों में निवासी कम्पनियों द्वारा प्रतिधारित आय-गैर-निवासी कम्पनियों की प्रतिधारित आय।

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प्रश्न 8.
चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था हैं। चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में अधिक जटिलता पाई जाती है। इस प्रतिमान में परिवार, फर्म, सरकार व विदेशों को शामिल किया जाता है। परिवारों व फर्मों के बीच प्रवाह द्वि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था की ही तरह होता है। फर्म, परिवार व सरकार के मध्य प्रवाह त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था के समान होता है। शेष विश्व के साथ प्रवाह का संबंध अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व पूंजी प्रवाहों के रूप में होता है। एक देश के निर्यात व आयात की सहायता से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उस देश को होने वाले लाभ व हानि की जानकारी प्राप्त होती है।

यदि किसी अर्थव्यवस्था का व्यापार शेष अनुकूल होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में लाभ मिलता है इसके विपरीत यदि व्यापार शेष प्रतिकूल होता है तो उस देश को विदेशों के साथ व्यापार में हानि होती है। परिवार विदेशों से प्रत्यक्ष रूप में वस्तुओं व सेवाओं को खरीदते हैं तथा उनके मौद्रिक मूल्यों का भुगतान करते हैं। विदेश में परिवार क्षेत्र से साधन सेवाएं खरीदी जाती है तथा साधन सेवाओं का मूल्य परिवार क्षेत्र को मिलता है। इसी प्रकार सरकार व उत्पादक क्षेत्र विदेशों से साधन आगतें क्रय करते हैं, उनकी सेवाओं का भुगतान विदेशों को प्रवाहित होता है। चक्रीय प्रवाह को निम्नांकित तरह से भी दर्शाया जा सकता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 11a

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 9.
तीन क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
तीन क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में परिवार क्षेत्र, उत्पादक क्षेत्र के अलावा सरकार का समावेश और हो जाता है। इस प्रकार के प्रतिमान में सरकार अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करती है तथा जन-कल्याण की भावना से वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि करने में सहयोग करती है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 12a

भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय प्रवाह को ही शामिल किया जाता है हस्तांतरण भुगतानों के प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं। फर्मों की ही तरह सरकार परिवार क्षेत्र से साधन आगतें, भूमि, श्रम, एवं पूंजी क्रय करती है और उनकी सेवाओं का भुगतान परिवार क्षेत्र को दिया जाता है। सरकार फर्मों से जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करती है और उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह सरकार से उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है।

फर्म से परिवार वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदते हैं और बदले में उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह फर्म की ओर होता है। सरकार, फर्म एवं परिवार क्षेत्रों के बीच विभिन्न प्रकार के हस्तांतरण भुगतानों जैसे-कर, आर्थिक सहायता आदि का प्रवाह भी होता है। त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित चित्र के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 10.
दोहरी गणना की समस्या को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। तथा बताइए कि दोहरी गणना की समस्या से किस प्रकार बच सकते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की गणना के लिए जब किसी वस्तु या सेवा के मूल्य की गणना एक से अधिक बार होती है तो उसे दोहरी गणना कहते हैं। दोहरी गणना के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय बहुत अधिक हो जाती है। दोहरी गणना की समस्या को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है मान लीजिए एक किसान 500 रु. के गेहूँ का उत्पादन करता है और उसे आटा मिल को बेच देता है। आटा मिल द्वारा गेहूँ की खरीद मध्यवर्ती उपभोग पर व्यय है। आटा-मिल गेहूँ से
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 13a

भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय प्रवाह को ही शामिल किया जाता है हस्तांतरण भुगतानों के प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं। फर्मों की ही तरह सरकार परिवार क्षेत्र से साधन आगतें, भूमि, श्रम, एवं पूंजी क्रय करती है और उनकी सेवाओं का भुगतान परिवार क्षेत्र को दिया जाता है।

सरकार फर्मों से जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करती है और उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह सरकार से उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है। फर्म से परिवार वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदते हैं और बदले में उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह फर्म की ओर होता है। सरकार, फर्म एवं परिवार क्षेत्रों के बीच विभिन्न प्रकार के हस्तांतरण भुगतानों जैसे-कर, आर्थिक सहायता आदि का प्रवाह भी होता है। त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित चित्र के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्न आंकड़ों के आधार पर फर्म (A) तथा फर्म (B) द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 14

उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 15

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 2.
निम्न आंकड़ों के आधार पर फर्म (X) तथा फर्म (Y) की मूल्य वृद्धि आकलित करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 16

उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 17

प्रश्न 3.
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 18

उत्तर:
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + (अन्तिम स्टॉक – आरम्भिक स्टॉक) कच्चे माल की खरीद – (अप्रत्यक्ष कर आर्थिक सहायता) – घिसावट
= 750 + (10 – 15) – 300 – (75 – 0) – 125
= 750 – 5 – 300 – 75 – 125
= 750 – 380 – 125
= 245 रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से प्रचालन – अधिशेष की गणना कीजिए –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 19

उत्तर:
प्रचालन अधिशेष = बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि – स्थायी पूंजी का उपभोग – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता – मजदूरी और वेतन
= 7000 – 400 – 700 + 100 – 3000
= 7100 – 4100
= 3000 करोड़ रु.

प्रश्न 5.
कर्मचारियों का पारिश्रमिक ज्ञात कीजिए –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 20

उत्तर:
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद – किराया ब्याज – लाभ – घिसावट –
= 250 – 20 – 35 – 15 – 60
= 250 – 130
= 120 करोड़ रु.

प्रश्न 6.
इन आंकड़ों का प्रयोग करें और (क) व्यय विधि तथा (ख) आय विधि से शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 21

उत्तर:
(क) व्यय विधि –
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (कारक लागत पर) = निजी अन्तिम उपभोग + सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश + सकल गृह निर्माण निवेश-सकल सार्वजनिक निवेश + भण्डार निवेश + सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद + निर्यात – आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – मूल्यह्रास – सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 700 + 60 + 60 + 40 + 20 + 200 + 40 – 20 – 20 + (-10) – 10 + 20
= 700 + 440 – 20 – 10 – 10
= 1140 – 60
= 1080 लाख रुपये

(ख) आय विधि शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (कारक लागत पर) –
= मजदूरी व वेतन + सामाजिक सुरक्षा हेतु रोजगारदाताओं का अंशदान + लाभ + लगान/भाड़ा + ब्याज + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 700 + 100 + 100 + 50 + 40 + 100 + (-10) = 1090 – 10
= 1080 लाख रुपये

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 7.
निम्न जानकारी का प्रयोग कर (क) व्यय विधि (ख) आय विधि से साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPfc) का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 22

उत्तर:
(क) व्यय विधि
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद –
(GDpfc) = वैयक्तिक उपभोग व्यय + सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश + सकल गृह निर्माण निवेश + वस्तुओं व सेवाओं की सरकारी खरीदारी + सकल सरकारी निवेश + भण्डार निवेश + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + सहायय्य
= 700 + 60 + 60 + 200 + 40 + 20 + 40 – 20 – 20 + 10
= 1130 – 40
= 1090 लाख रुपये

(ख) आय विधि
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद –
(GDPfc) = मजदूरी वेतन + रोजगारदाताओं का सामाजिक सुरक्षा में योगदान + लाभ + लगान + ब्याज + मिश्रित आय + मूल्य ह्रास
= 700 + 100 + 100 + 50 + 50 + 100 + 20
= 1120 लाख रुपये

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प्रश्न 8.
निम्न आंकड़ों से बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का आंकलन करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 23
उत्तर:
बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य द्वितीयक क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग व प्राथमिक क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग + सेवा क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य + द्वितीयक क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य – सेवा क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग –
= 2000 – 800 – 1000 + 1400 + 1800 – 600
= (2000 + 1400 + 1800) – (800 – 1000 – 600)
= 5200 – 2400
= 2800 लाख रुपये

प्रश्न 9.
परिचालन अधिशेष ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 24
उत्तर:
परिचालन अधिशेष
= बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि – वेतन एवं मजदूरी – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – घिसावट –
= 15000 – 5000 – 750 – 250
= 15000 – 6000
= 9000 रु.

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से (क) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 25
उत्तर:
(क) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लगान, ब्याज, लाभ + मिश्रित आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
= 240 + 100 + 280 + 40 + 90 – 90
= 740 करोड़ रु.
उत्तर:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = 740 करोड़ रु.

(ख) व्यय विधि से राष्ट्रीय आय –
= निजी अन्तिम उपभोग + सरकारी अन्तिम उपभोग + सकल अचल पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + निर्यात – आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय — अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 510 + 75 + 130 + 35 + 50 – 60 – 5 – 90 + 10 – 40
= 615 करोड़
उत्तर:
राष्ट्रीय आय = 615 करोड़ रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
निम्न आंकड़ों से (क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (ख) राष्ट्रीय आय ज्ञात करो –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 26
उत्तर:
(क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= निजी उपभोग व्यय + सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू अंचल पूंजी निर्माण + स्थिर पूंजी का उपभोग + अन्तिम स्टॉक – शुद्ध आयात
= 300 + 70 + 30 + 40 + 10 – 25 – 15
= 410 करोड़ रु.

(ख) राष्ट्रीय आय –
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + अनुदान-अप्रत्यक्ष कर-स्थिर पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 410 + 5 – 50 – 40 + (-20)
= 305 करोड़ रु.
उत्तर:
(क) 410 करोड़ रुपये
(ख) 305 करोड़ रुपये

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके राष्ट्रीय आय की गणना करो –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 27

उत्तर:
(क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + अन्तिम स्टॉक आरंभिक स्टॉक + सकल अचल पूंजी निर्माण + निजी अन्तिम उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
= 150 + 100 – 80 + 130 + 600 + 60 – 70
= 890 करोड़ रु.

(ख) राष्ट्रीय आय –
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – अचल पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय – अप्रत्यक्ष कर + अनुदान
= 890 – 20 + (-10) – 70 + 10
= 800 करोड़ रु.
उत्तर:
राष्ट्रीय आय = 800 करोड़ रुपये

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 13.
व्यय विधि तथा आय विधि से राष्ट्रीय आय ज्ञात करो –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 28
उत्तर:
व्यय विधि –
राष्ट्रीय आय = (ii) – (iii) + (iv) + (vii) + (viii) – (ix) + (x) + (xi) – (xii) + (xiii)
= 3800 – 3800 + 6300 + 1000 + 1700 – 1700 + 29000 + 300 – 2200 + 300
= 34700 करोड़ रु.

आय विधि –
राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 13300 + 5000 + 16000 + 300
= 34600 करोड़ रु.
उत्तर:
आय विधि से राष्ट्रीय आय = 34600 करोड़ रुपये व्यय विधि से राष्ट्रीय आय = 34700 करोड़ रुपये

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके ज्ञात करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 29

1. घरेलू आय
= लगान + मजदूरी + ब्याज + लाभकर + लाभांश + मिश्रित आय + अवितरित लाभ
= 5000 + 30000 + 8000 + 2000 + 12000 + 4000 + 3000
= 64000 करोड़ रु.

2. राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 64000 + 7000
= 71000 करोड़ रु.

3. वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – अधिशेष (सरकारी) – लाभकर – अवितरित लाभ + अंतरण भुगतान + उपहार व प्रेषणाएं
= 64000 – 15000 – 2000 – 3000 + 1000 + 2500
= 47500 करोड़ रु.

4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 47500 – 1500 = 46000 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. घरेलू आय = 64000 करोड़ रु.
  2. राष्ट्रीय आय = 71000 करोड़ रु.
  3. वैयक्तिक आय = 47500 करोड़ रु.
  4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 46000 करोड़ रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके ज्ञात करें –

  1. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
  2. वैयक्तिक आय
  3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 30
उत्तर:
1. राष्ट्रीय आय = बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 38000 + (-300) – 3000
= 34700 करोड़ रु.

2. वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय-सरकारी प्रशासनिक विभागों की आय-कम्पनी लाभकर + राष्ट्रीय ऋण पर बयाज + शेष विश्व से चालू अंतरण + सरकार से वृद्धावस्था पेंशन
= 34700 – 600 – 600 + 200 + 100 + 600
= 34400 करोड़ रु.

3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 34400 – 900
= 33500 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय आय = 34700 करोड़ रु.
  2. वैयक्तिक आय = 34400 करोड़ रु.
  3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 33500 करोड़ रु.

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामूहिक आर्थिक क्रियाकलापों को मापने का आधार होता है –
(A) आय का चक्रीय प्रवाह
(B) स्टॉक में परिवर्तन
(C) शुद्ध निवेश
(D) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय
उत्तर:
(A) आय का चक्रीय प्रवाह

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प्रश्न 2.
विभिन्न उत्पादक इकाइयों की मूल्य वृद्धि ज्ञात करने के लिए शामिल करते हैं –
(A) केवल मध्यवर्त वस्तुओं का मूल्य
(B) अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य
(C) केवल अन्तिम वस्तुओं का मूल्य
(D) सभी वस्तु का मूल्य
उत्तर:
(B) अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य

प्रश्न 3.
GNP अपसायक माप सकता है –
(A) विशिष्ट वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर
(B) सभी वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर
(C) कीमत वृद्धि
(D) कीमत में कमी
उत्तर:
(B) सभी वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर

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प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय तथा घरेलू साधन आय समान होती है जब –
(A) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय शून्य हो
(B) शुद्ध निर्यात शून्य हो
(C) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय ऋणात्मक हो
(D) शुद्ध निर्यात धनात्मक हो
उत्तर:
(A) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय शून्य हो

प्रश्न 5.
वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद-फरोख्त को –
(A) GNP में शामिल किया जाता है
(B) GNP में शामिल नहीं किया जाता है
(C) A व B में से कोई नहीं
(D) A व B दोनों
उत्तर:
(B) GNP में शामिल नहीं किया जाता है

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प्रश्न 6.
सकल निवेश का भाग निम्न में से कौन-सा नहीं है –
(A) व्यापारिक निवेश
(B) सरकारी निवेश
(C) ग्रह निर्माण निवेश
(D) घरेलू सीमा में पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय
उत्तर:
(D) घरेलू सीमा में पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय है –
(A) NNP at mp + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान
(B) GDP + NFIA
(C) NNP at fc + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान
उत्तर:
(A) NNP at mp + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय आय व इसके अवयवों पर पुस्तक लिखी थी –
(A) साइमन कुजनेटस
(B) रिचर्ड स्टोन
(C) जे. एम. कीन्स
(D) डेविड रिकार्डों
उत्तर:
(A) साइमन कुजनेटस

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आय लेखांकन का मानक प्रारूप तैयार कियो था –
(A) रिचर्ड स्टोन ने
(B) साइमन कुजनेटस ने
(C) जे. एम. कीन्स ने
(D) एडम स्मिथ ने
उत्तर:
(A) रिचर्ड स्टोन ने

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प्रश्न 10.
ब्रिटिश भारत में राष्ट्रीय आय लिखी थी –
(A) बी. सी. महालनोविस
(B) डी. आर. गाडगिल
(C) वी. के. आर. वी. राव
(D) अम्बेडकर
उत्तर:
(C) वी. के. आर. वी. राव

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
शेष अर्थव्यवस्था को समान मानकर व्यक्तिगत क्षेत्र की कार्य पद्धति का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। उदाहरण के लिए वस्तु विशेष की कीमत का निर्धारण, वस्तु विशेष की मांग अथवा पूर्ति आदि व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय हैं। समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा में विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के अन्तर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए आय एवं रोजगार का निर्धारण, पूंजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, आदि विषयों का विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

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प्रश्न 2.
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं –

  1. इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर जनता का निजी स्वामित्व होता है।
  2. वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन बाजार में बिक्री के लिए किया जाता है।
  3. बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर श्रम संसाधन का क्रय-विक्रय किया जाता है।
  4. उत्पादक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं।
  5. विभिन्न उत्पादक इकाइयों में परस्पर प्रतियोगिता पायी जाती हैं।

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

  1. परिवार क्षेत्र
  2. फर्म या उत्पादक क्षेत्र
  3. सामान्य सरकार
  4. विदेशी क्षेत्र

परिवार क्षेत्र से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के उन सभी व्यक्तियों से जो उपभोग के लिए वस्तुएँ/सेवाएं खरीदते हैं। इसके परिवार क्षेत्र साधन आगतों जैसे भूमि, श्रम पूँजी एवं उद्यम की आपूर्ति करते हैं। उत्पादक क्षेत्र में उन सभी उत्पादक इकाइयों को शामिल किया जाता है जो साधनों को क्रय करती है, उनका संगठन करती है, उनकी सेवाओं का प्रयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादक करती है और बाजार में उनका विक्रय करती है। फर्म का आकार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है।

सरकार से अभिप्राय उस संगठन से है जो जनता को सुरक्षा, कानून, मनोरंजन, न्याय, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाएं निःशुल्क या सामान्य कीमत पर प्रदान करता है। सामान्यतः सरकार जनहित के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन करती है। सरकार लाभ कमाने के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन नहीं करती है। शेष विश्व से अभिप्राय उन सभी आर्थिक इकाइयों से है जो देश की घरेलू सीमा से बाहर स्थित होती है। शेष विश्व में दूसरे देशों की अर्थव्यवस्थाओं, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार, विश्व बैंक, विश्व मुद्रा कोष आदि को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 4.
1929 की महामंदी का वर्णन करें।
उत्तर:
वर्ष 1929 से 1933 की अवधि को महामंदी कहते हैं। इस अवधि में यूरोप व अमेरिका में उत्पादन, रोजगार में भारी कमी उत्पन्न हो गई थी। इस अवधि में वस्तुओं की मांग का स्तर कम था। उत्पादन साधन बेकार पड़े थे। श्रम शक्ति को भारी संख्या में कार्य क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था। अमेरिका में बेरोजगारी का स्तर 3% से बढ़कर 25% हो गया था।

लगभग विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ अभावी मांग की समस्या एवं मुद्रा अवस्फीति की समस्याओं से ग्रस्त थीं। आर्थिक महामंदी के काल में अर्थशास्त्रियों को समूची अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करने के लिए विवश कर दिया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि महामंदीकाल की समस्याओं के परिणामस्वरूप ही समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

Bihar Board Class 12 Economics समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र के दो विषय क्या हैं?
उत्तर:
अर्थशास्त्र अध्ययन के निम्नलिखित दो विषय हैं –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र, तथा
  2. समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र में किन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र में विशिष्ट अथवा व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र में किन आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
सामूहिक या वृहत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्ण रोजगार का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह स्थिति जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को उनकी रुचि एवं योग्यतानुसार प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो जाता है पूर्ण रोजगार की स्थिति कहलाती है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की उस शाखा का नाम लिखो जो समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन करती है।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक चरों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास क्या है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास यह है कि जो बात एक व्यक्तिगत आर्थिक चर के बारे में सत्य होती है आवश्यक नहीं कि सामूहिक आर्थिक चरों के बारे में भी सत्य हो।

प्रश्न 7.
पूरी अर्थव्यवस्था के विश्लेषण का कार्य किससे होता है?
उत्तर:
विभिन्न आर्थिक इकाइयों अथवा क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध के कारण समूची अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 8.
प्रतिनिधि वस्तु का अर्थ लिखो।
उत्तर:
एक अकेली वस्तु जो अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रतिनिधित्व करती है प्रतिनिधि वस्तु कहलाती है।

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प्रश्न 9.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का अर्थ लिखो।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रचलित मजदूरी दर पर सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

प्रश्न 10.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु लिखो।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु –

  1. वस्तु की आपूर्ति अपनी मांग की स्वयं जननी होती है।
  2. एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 11.
समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा बताओ।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों को समरूप माना जाता है जबकि वे वास्तव में समान होते नहीं हैं।

प्रश्न 12.
चार परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के नाम लिखो।
उत्तर:
चार परंपरावादी अर्थशास्त्री –

  1. डेविड रिकार्डों
  2. जे. बी. से
  3. जे. एस. मिल तथा
  4. आल्फ्रेड मार्शल

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प्रश्न 13.
जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित अर्थशास्त्र की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
प्रो. जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित पुस्तक का नाम है General Theory of Employment Interest and Money.

प्रश्न 14.
स्वतंत्र आर्थिक चरों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे आर्थिक चर जो दूसरी किसी आर्थिक चर/चरों को प्रभावित करता है स्वतंत्र आर्थिक चर कहलाते हैं। जैसे राष्ट्रीय आय आदि।

प्रश्न 15.
आश्रित आर्थिक चर का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह आर्थिक चर दूसरे किसी आर्थिक चर से प्रभावित होता है आश्रित चर कहलाता है। जैसे उपभोग, बचत आदि।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र के चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
समष्टि चरों के उदाहरण –

  1. सामूहिक मांग
  2. सामूहिक पूर्ति
  3. रोजगार
  4. सामान्य कीमत स्तर आदि

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 17.
‘से’ का नियम क्या है?
उत्तर:
‘से’ का नियम बताता है कि किसी वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की स्वयं जननी होती है।

प्रश्न 18.
1929-1933 की अवधि में महामंदी के मुख्य बिन्दु लिखो।
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल में बाजारों में वस्तुओं की आपूर्ति उपलब्ध थी लेकिन वहाँ मांग की कमी की समस्या थी और बेरोजगारी का स्तर भी बढ़ गया था।

प्रश्न 19.
उस आर्थिक चर का उदाहरण दीजिए जिसे समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।
उत्तर:
वस्तुओं के कीमत स्तर को समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।

प्रश्न 20.
सामूहिक मांग की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग/सामूहिक मांग कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 21.
उपभोग फलन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
उपभोग राष्ट्रीय आय का फलन है। दूसरे शब्दों में उपभोग फलन, उपभोग व राष्ट्रीय आय के बीच संबंध को व्यक्त करता है।

प्रश्न 22.
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन किस शाखा में किया जाता था?
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व अर्थशास्त्र का अध्ययन केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 23.
समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र को आय सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 24.
कीमत सिद्धान्त को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
वैकल्पिक तौर पर कीमत सिद्धान्त को व्यष्टि अर्थशास्त्र के नाम से जाना जाता था।

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प्रश्न 25.
दो आश्रित चरों के उदाहरण लिखो।
उत्तर:
आश्रित चरों के उदाहरण –

  1. उपभोग एवं
  2. बचत

प्रश्न 26.
अन्तः क्षेपण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होती है अन्तः क्षेपण कहलाती हैं। जैसे निवेश, उपभोग आदि।

प्रश्न 27.
बाह्य स्राव का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में कमी आती है बाह्य स्राव कहलाती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 28.
समष्टि अर्थशास्त्र का उदय किस कारण हुआ?
उत्तर:
केन्द्रीय क्रांति अथवा आर्थिक महामंदी के बाद समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

प्रश्न 29.
उस आर्थिक चर का नाम लिखो जिसे व्यष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।
उत्तर:
आय एवं रोजगार स्तर को व्यष्टि पर स्थिर माना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर लिखो।
उत्तर:
व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र समझने में सरल है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सापेक्ष रूप से जटिल विषय है।
  3. संसाधनों का वितरण व्यष्टि अर्थशास्त्र का एक आवश्यक उपकरण है लेकिन समष्टि स्तर पर इसे स्थिर माना जाता है।
  4. व्यष्टि अर्थशास्त्र कीमत सिद्धान्त तथा संसाधनों के आबटन पर जोर देता है लेकिन आय व रोजगार समष्टि के मुख्य विषय हैं।

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प्रश्न 2.
समष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को इकाई मानकर सामूहिक आर्थिक चरों का विश्लेषण करता है। समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है। निम्नलिखित आर्थिक चरों का इस शाखा में अध्ययन किया जाता है –

  1. सामूहिक मांग
  2. सामूहिक पूर्ति
  3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण
  4. स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश
  5. निवेश गुणांक
  6. औसत उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति
  7. सीमान्त उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति
  8. पुंजी की सीमान्त कार्य क्षमता

प्रश्न 3.
संक्षेप में पूर्ण रोजगार की अवधारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर:
वह स्थिति जिसमे एक अर्थव्यवस्था में सभी इच्छुक लोगों को दी गई या प्रचलित मजदूरी दर पर योग्यतानुसार आसानी से कार्य मिल जाता है पूर्ण रोजगार कहलाती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री जे. बी. से का पूर्ण रोजगार के बारे में अलग विचार था। परंपरावादी रोजगार सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है क्योंकि प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक सभी व्यक्तियों को आसानी से काम मिल जाता है।

जे. एम. कीन्स के अनुसार आय के सन्तुलन स्तर पर रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर कहते हैं। आवश्यक रूप से साम्य रोजगार का स्तर पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है। साम्य रोजगार का स्तर यदि पूर्ण रोजगार स्तर से कम होता है तो अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या रहती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री साम्य रोजगार को ही पूर्ण रोजगार कहते थे।

प्रश्न 4.
व्यष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध विशिष्ट या व्यक्गित आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में विशिष्ट आर्थिक इकाइयों या व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की व्यष्टि शाखा में उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन, साम्य कीमत निर्धारण, एक वस्तु की मांग, एक वस्तु की पूर्ति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। आर्थिक महामंदी से पूर्व अर्थशास्त्र के रूप में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही अध्ययन किया जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत-सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा संक्षेप में स्पष्ट करो।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध सामूहिक या समष्ट्रीय आर्थिक चरों से हैं। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में सामूहिक या समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की समष्टि शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण, पूँजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, सरकारी व्यय, सरकारी बजट, विदेशी व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र ही इस शाखा का उदय आर्थिक महामंदी के बाद हुआ है। इस शाखा को आय एवं रोजगार सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 6.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार आसानी से काम मिल जाता है। दूसरे शब्दों में प्रचलित मजदूरी दर पर अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। काम करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए दी गई मजदूरी दर पर बेरोजगारी की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को बनाने में डेविड रिकार्डो, पीगू, मार्शल आदि व्यष्टि अर्थशास्त्रियों ने योगदान दिया है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त में जे. बी. से का रोजगार सिद्धान्त बहुत प्रसिद्ध है।

प्रश्न 7.
संक्षेप में अनैच्छिक बेरोजगार को समझाइए।
उत्तर:
यदि दी गई मजदूरी दर या प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को आसानी से कार्य नहीं मिल पाता है तो इस समस्या को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति हो सकती है।
  2. प्राकृतिक संसाधनों की कमी।
  3. पिछड़ी हुई उत्पादन तकनीक।
  4. आधारिक संरचना की कमी आदि।

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प्रश्न 8.
सामूहिक मांग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
दी गई अवधि में एक अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग या सामूहिक मांग कहते हैं। अर्थव्यवथा में वस्तुओं की मांग उपभोग तथा निवेश के लिए की जाती है। इस प्रकार वस्तुओं की उपभोग के लिए मांग तथा निवेश के लिए मांग के योग को भी सामूहिक मांग कह सकते हैं। संक्षेप में सामूहिक मांग = उपभोग + निवेश। सामूहिक मांग के संघटको को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. सार्वजनिक अन्तिम उपभोग व्यय।
  3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण।
  4. शुद्ध निर्यात।

प्रश्न 9.
वे कारक लिखिए जिन पर कीन्स का रोजगार सिद्धान्त निर्भर करता है।
उत्तर:
कीन्स का आय एवं रोजगर सिद्धान्त निम्नलिखित कारकों पर निर्भर है –

  1. अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर, सामूहिक मांग के स्तर पर निर्भर होता है। सामूहिक मांग का स्तर जितना ऊँचा होता है, आय एवं रोजगार का स्तर भी उतना ही अधिक होता है। इसके विपरीत सामूहिक मांग का स्तर नीचा होने पर आय एवं रोजगार का स्तर भी नीचा रहता है।
  2. अर्थव्यवस्था आय एवं रोजगार के स्तर को उपभोग का स्तर बढ़ाकर बढ़ाया जा सकता है।
  3. अर्थवव्यवस्था के उपभोग का स्तर आय के स्तर व उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।

प्रश्न 10.
कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत या विशिष्ट आर्थिक चरों से होता है। कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण निम्नलिखित हैं –

  1. संसाधनों का आंबटन
  2. उपभोक्ता व्यवहार एवं उपभोक्ता सन्तुलन
  3. वस्तु की मांग
  4. वस्तु की मांग की लोच
  5. वस्तु की आपूर्ति
  6. उत्पादक व्यवहार एवं उत्पादक सन्तुलन
  7. वस्तु की पूर्ति लोच
  8. वस्तु की कीमत का निर्धारण।

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प्रश्न 11.
समष्टि अर्थशास्त्र में संरचना की भ्रान्ति को स्पष्ट करो।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में समूह की इकाइयों में बहुत अधिक विषमता पायी जाती है। समूह की इकाइयों की विषमता को पूरी तरह से अनदेखा किया जाता है। इस विषमता के कारण कई भ्रान्तियाँ पैदा हो जाती हैं। जैसे पूंजी वस्तुओं की कीमत गिरने से सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है। लेकिन दूसरी ओर खाद्यान्नों की बढ़ती हुई कीमतें उपभोक्ताओं की कमर तोड़ती रहती हैं। लेकिन सरकार आंकड़ों की मदद से सामान्य कीमत स्तर को घटाने का श्रेय बटोरती है।

प्रश्न 12.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैसे –

  1. समष्टि शाखा से आर्थिक भ्रान्तियों को सुलझाने में मदद मिलती है।
  2. इस. शाखा के अध्ययन से आर्थिक उतार-चढ़ावों को समझना सरल हो जाता है।
  3. व्यष्टि अर्थशास्त्र के पूरक के रूप में इसके विकास को समष्टि अर्थशास्त्र सहायक है।
  4. समष्टि आर्थिक विश्लेषण से आर्थिक नियोजन से मदद मिलती है।
  5. आर्थिक नियोजन के क्रियान्वयन में मदद मिलती है।

प्रश्न 13.
परंपरावादी रोजगर सिद्धान्त की मान्यताएं लिखिए।
उत्तर:
आय एवं रोजगार का परंपरावादी सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की जननी होती है।
  2. मजदूरी दर पूर्णतया लोचदार होती है।
  3. ब्याज दर पूर्णतया लोचदार होती है।
  4. वस्तु की कीमत पूर्णतथा नम्य होती है।
  5. अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
  6. आर्थिक क्रियाकलापों के संचालन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

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प्रश्न 14.
समष्टि अर्थव्यवस्था के उपकरण बताइए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपकरणों का उपयोग किया जाता है –
1. आय एवं रोजगार नीति –

  • सामूहिक मांग
  • सामूहिक पूर्ति

2. राजकोषीय नीति –

  • सरकारी बजट
  • मजदूरी नीति
  • आयात व निर्यात नीति
  • उत्पादन नीति

3. मौद्रिक नीति –

  • बैंक दर
  • नकद जमा अनुपात
  • संवैधानिक तरलता अनुपात
  • खुले बाजार की क्रियाएँ
  • साख नीति

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प्रश्न 15.
समष्टि अर्थशास्त्र के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
जिस प्रकार व्यक्ति-व्यक्ति को मिलाकर समाज का गठन होता है फर्म-फर्म के संयोजन से उद्योग की रचना होती है। उद्योगों को मिलाकर अर्थव्यवस्था अर्थात् समग्र बनता है। इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे –

  1. अलग-अलग वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत के आधार पर ही सामान्य कीमत स्तर का आकलन करते हैं।
  2. व्यक्तिगत आर्थिक/उत्पादक इकाइयों के आय के योग के योग से राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।
  3. आर्थिक नियोजन के लिए फर्मों व उद्योगों के नियोजन का जानना अति आवश्यक है।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों को मापने में आने वाली कठिनाइयों को लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन अलग-अलग इकाइयों में किया जाता है। दूसरे शब्दों में सभी उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन करने के लिए कोई एक उपयुक्त इकाई नहीं है। अत: वस्तुओं एवं सेवाओं को मापने में केवल मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17.
आय व उत्पादन के बारे में परंपरावादी विचार को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
आय एवं उत्पादन के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार वस्तु की आपूर्ति, मांग की जननी होती है। अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता पायी जाती है। वस्तुओं की कीमत पूर्णतः नम्य होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तुओं की आपूर्ति एवं मांग में परिवर्तन के अनुसार कीमत में परिवर्तन हो जाता है। नम्य कीमत पर से वस्तु बाजार में मांग व पूर्ति में स्वतः सन्तुलन स्थापित हो जाता है।

इसलिए अधिशेष उत्पादन अथवा अधिमांग की कोई समस्या पैदा नहीं होती है। यदि अस्थायी तौर पर अधिशेष उत्पादन की समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की कीमत गिर जाती है। कम कीमत पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है और उत्पादक पूर्ति कम मात्रा में करने लगते हैं। मांग व पूर्ति में परिवर्तन का क्रम संतुलन स्थापित होने पर रुक जाता है। वस्तु बाजार की तरह श्रम बाजार में भी नम्य मजदूरी दर के द्वारा सन्तुलन स्थापित हो जाता है और अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

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प्रश्न 18.
व्यष्टिं अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता स्पष्ट करो।
उत्तर:
व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की दो अलग-अलग शाखाएं हैं। ये दोनों शाखाएं परस्पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत निर्धारण व्यष्टि विश्लेषण के आधार पर किया जाता है और सामान्य कीमत का निर्धारण समष्टि विश्लेषण के द्वारा होता है। उद्योग में मजदूरी दर निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुद्दा है। सामान्य मजदूरी दर का निर्धारण समष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। इस प्रकार से कहा जा सकता है। कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर शाखाएं हैं।

प्रश्न 19.
संक्षेप में समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र की एक विस्तृत श्रृंखला है। इस शाखा के कुछ क्षेत्र नीचे लिखे गए हैं –

  1. रोजगर सिद्धान्त-रोजगार एवं बेरोजगार से संबंधित विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  2. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-राष्ट्रीय आय से संबंधित समाहारों जैसे बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद, साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद, बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद, राष्ट्रीय प्रयोज्य आयं आदि तथा उनके संघटकों का अध्ययन किया जाता है।
  3. मुद्रा सिद्धान्त-मुद्रा के कार्य, मुद्रा के प्रकार, बैंकिग प्रणाली आदि का विश्लेषण अर्थशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है।
  4. विश्व व्यापार का सिद्धान्त- व्यापार शेष, भुगतान शेष, विनिमय दर आदि के बारे में विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 20.
आर्थिक विरोधाभास को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
कुछ आर्थिक तथ्य ऐसे होते हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर उपयुक्त होते हैं परन्तु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। ऐसी धारणाओं को आर्थिक विरोधाभास कहते है। जैसे महामंदीकाल में व्यक्तिगत बचत व्यक्तिगत स्तर पर लाभकारी रही परन्तु पूरी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इस विरोधाभास को प्रो. जे. एम. कीन्स ने समष्टि अर्थव्यवस्था की सहायता से स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि बचत व्यक्तिगत स्तर पर वरदान होती है परन्तु सामूहिक स्तर पर अभिशाप होती है।

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प्रश्न 21.
क्या व्यष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन जरूरी है?
उत्तर:
कई बार व्यक्तिगत निर्णय समष्टि निर्णयों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इसी प्रकार व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयां निर्णय लेने के लिए सामूहिक निर्णयों को ध्यान में रखना जरूरी होता है –

  1. एक फर्म के उत्पादन का स्तर का पैमाना कुल मांग अथवा लोगों की क्रय शक्ति को ध्यान में रखकर तय करती है।
  2. एक वस्तु की कीमत उस वस्तु की मांग व पूर्ति से ही तय नहीं होती है बल्कि दूसरी वस्तुओं की मांग व पूर्ति को भी ध्यान में रखकर तय की जाती है।
  3. एक फर्म साधन भुगतान के निर्धारण के लिए दूसरी फर्मों के साधन भुगतान संबंधी निर्णय ध्यान में रखती है। आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आय एवं रोजगार सिद्धान्त की कीन्स विचारधारा के मुख्य बिन्दु बताइए।
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) ने कई ऐसी आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया जिनको व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर हल नहीं किया जा सका। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रो. जे. एम. कीन्स ने General Theory of Employment, Interest & Money लिखी। इस पुस्तक में कीन्स ने आय एवं रोजगार के बारे में निम्नलिखित मुख्य बातें बतायीं –

1. एक अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर संसाधनों की उपलब्धता एवं उपयोग पर निर्भर करता है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में कुछ संसाधन बेकार पड़े होते हैं तो अर्थव्यवस्था उन्हें उपयोग में लाकर आय एवं रोजगार के स्तर को बढ़ा सकती है।

2. कीन्स ने परंपरावादियों के इस विचार को कि एक वस्तु की पूर्ति मांग की जनक होती है खारिज कर दिया। कीन्स ने बताया कि वस्तु की कीमत उपभोक्ता की आय और उपभोक्ता की उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है।

3. परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार सन्तुलन की अवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। लेकिन कीन्स ने सन्तुलन स्तर के रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर का नाम दिया और स्पष्ट किया कि साम्य रोजगार स्तर आवश्यक रूप से पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है यदि साम्य रोजगार स्तर, पूर्ण रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था उपभोग या सामूहिक मांग को बढ़ाकर आय एवं रोजगार स्तर में वृद्धि कर सकती है।

4. परंपरावादी विचार में सरकारी हस्तक्षेप को निषेध करार दिया गया था। लेकिन कीन्स ने सुझाव दिया कि विषम परिस्थितियों जैसे अभावी मांग अधिमांग आदि में हस्तक्षेप करके इन्हें ठीक करने के लिए उपाय अपनाने चाहिए।

5. परंपरावदी सिद्धांत में बचतों को वरदान बताया गया है जबकि समष्टि स्तर पर कीन्स ने बचतों को अभिशाप की संज्ञा दी है। व्यक्तिगत स्तर पर बचत वरदान हो सकती है।

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प्रश्न 2.
व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
आय एवं रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीग, डेविड रिकार्डों, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल, जे. बी. से आदि ने व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दूसरे शब्दों में परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने अपना ध्यान व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का प्रतिपादन करने की ओर केन्द्रित किया। परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की मान्यता थी कि साम्य स्तर पर एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। आर्थिक परिवर्तन से अस्थायी अधिशेष उत्पादन अथवा बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। परन्तु नम्य मजदूरी दर एवं नम्य कीमत के द्वारा ये समस्याएं स्वतः सरकारी हस्तक्षेप के बिना ठीक हो जाती है। इस सिद्धांत की मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं –

  1. एक वस्तु की आपूर्ति, मांग की जनक होती है।
  2. साम्य की अवस्था में अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है।
  3. अर्थव्यवस्था में अधिशेष उत्पादन कोई समस्या नहीं होती है। यदी कभी यह समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की नम्य कीमत के द्वारा यह समस्या स्वयं हल हो जाती है।
  4. अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है। यदि अस्थायी रूप से यह समस्या उत्पन्न होती है तो नुम्य मजदूरी दर उसे ठीक कर देती है।
  5. अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति अथवा अवस्फीति की भी कोई समस्या नहीं होती है। नम्य ब्याज दर मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति में सन्तुलन बना देती है।
  6. सरकार को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

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प्रश्न 4.
समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्पष्ट करो।
उत्तर:
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीगू, डेविड रिकाडौँ, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल. जे. बी. से आदि ने व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने में अहम भूमिका निभायी। इन अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक समस्याओं का हल ढूंढने का काम व्यष्टि स्तर तक सीमित रखा। 1929 तक व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्त एवं उनकी मान्यताओं से आर्थिक समस्याओं का स्वतः समाधान होता रहा। लेकिन (1929-1933) के महामंदीकाल ने व्यष्टि अर्थशास्त्रियों की मान्यताओं एवं सिद्धान्त को असफल कर दिया। वस्तुएं प्रचुर मात्रा में बाजार में उपलब्ध थीं परन्तु अपनी मांग नहीं उत्पन्न कर पा रही थी। वस्तु की कीमत नम्यता के आधार पर कीमत घटने पर भी वस्तुओं की मांग नहीं बढ़ी।

इसी प्रकार साधन बाजार नम्य मजदूरी पर बेरोजगारी की समस्या को ठीक नहीं कर पाई। नम्य ब्याज दर से अर्थव्यवस्थाओं में अवस्फीति की स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। महामंदी की लम्बी अवधि, इसके द्वारा उत्पन्न विकट समस्याओं जैसे अभावी मांग, मुद्रा अवस्फीति, बेरोजगारी आदि ने अर्थव्यवस्थाओं को बेहाल बना दिया। इन समस्याओं का समाधान करने में व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों के हाथ खड़े हो गए। अर्थात् व्यष्टि सिद्धान्तों से इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा था।

इसी संदर्भ मे जे. एम. कीन्स ने General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखी। इस पुस्तक ने महामंदी की समस्याओं से छुटकारा पाने की नई राह दिखाई। इस नई राह को समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। इस सिद्धान्त में सुझाए गये सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं में बेकार पड़े, साधनों का सदोपयोग बढ़ा, जिससे उत्पादन, आय एवं रोजगार स्तर में सुधार संभव हो पाया। अतः समष्टि स्तर की समस्याओं जैसे आय का स्तर बढ़ाने, बेरोजगारी दूर करने, अवस्फीति या स्फीति आदि को ठीक करने के लिए समष्टि दृष्टिकोण आवश्यक है।

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प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्रों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नांकित विषयों का अध्ययन किया जाता है –

  1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-इस शाखा में राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाओं, संघटकों माप की विधियों तथा सामाजिक लेखांकनों का अध्ययन किया जाता है।
  2. मुद्रा का सिद्धान्त-मुद्रा की मांग व पूर्ति रोजगार के स्तर को प्रभावित करती है। मुद्रा के कार्य, प्रकर तथा मुद्रा सिद्धान्तों का अध्ययन समष्टि स्तर पर किया जाता है।
  3. सामान्य कीमत सिद्धान्त-मुद्रा स्फीति, मुद्रा, अवस्फिति, इनके उत्पन्न होने के कारणों एवं इन्हें ठीक करने के उपायों का अध्ययन एवं विश्लेषण अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त-आर्थिक विकास/प्रति व्यक्ति आय में होने वाले परिवर्तनों एवं इनकी समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। सरकार की राजस्व नीति, एवं मौद्रिक नीतियों का अध्ययन समष्टि शाखा में किया जाता है।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त-विभिन्न देशों के बीच आयात-निर्यात की मात्रा, दिशा के साथ विभिन्न देशों के दूसरे आर्थिक लेन-देनों का विश्लेषण भी इस शाखा में किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पूर्ण रोजगार वह स्थिति होती है जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को आसानी से कार्य मिल जाता है –
(A) बाजार मजदूरी दर पर
(B) स्थिर मजदूरी दर पर
(C) बाजार से कम मजदूरी दर पर
(D) बाजार से अधिक मजदूरी दर पर
उत्तर:
(A) बाजार मजदूरी दर पर

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प्रश्न 2.
सन्तुलन रोजगारी स्थिति वह होती है जिसमें –
(A) सामूहिक मांग व सामूहिक पूर्ति समान होती है
(B) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से ज्यादा होती है
(C) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से कम होती है
(D) सामूहिक मांग शून्य होती है
उत्तर:
(A) सामूहिक मांग व सामूहिक पूर्ति समान होती है

प्रश्न 3.
उपभोग प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन
(B) आय के कारण निवेश में परिवर्तन
(C) आय के कारण ब्याज दर में परिवर्तन
(D) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन
उत्तर:
(D) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन

प्रश्न 4.
वर्ष 1929 से पूर्व अर्थशास्त्र जिस शाखा का अध्ययन किया जाता था वह है –
(A) समष्टि अर्थशास्त्र
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(C) A तथा B दोनों
(D) बीजगणित व समष्टि अर्थशास्त्र
उत्तर:
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र

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प्रश्न 5.
Teh General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखा था –
(A) आल्फ्रेड मार्शल
(B) जे. एस. मिल
(C) डेविड रिकार्डो
(D) जे. एम. कीन्स
उत्तर:
(D) जे. एम. कीन्स

प्रश्न 6.
Teh General Theory of Income & Employment,Money and Interest प्रकाश में आयी –
(A) वर्ष 1929
(B) वर्ष 1729
(C) वर्ष 1936
(D) वर्ष 1991
उत्तर:
(C) वर्ष 1936

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प्रश्न 7.
समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –
(A) आय सिद्धान्त
(B) कीमत सिद्धान्त
(C) उपभोक्ता सिद्धान्त
(D) उत्पादक सिद्धान्त
उत्तर:
(A) आय सिद्धान्त

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –
(A) आय सिद्धान्त
(B) कीमत सिद्धांत
(C) उपभोक्ता सिद्धान्त
(D) उत्पादक सिद्धान्त
उत्तर:
(B) कीमत सिद्धांत

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प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन
(B) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन
(C) आय के कारण निवेश में परिवर्तन
(D) आय के कारण ब्याज परिवर्तन
उत्तर:
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन

प्रश्न 10.
आर्थिक महामंदीकाल की अवधि थी –
(A) 1939-1942
(B) 1857-1860
(C) 1929-1932
(D) 1947-1950
उत्तर:
(C) 1929-1932