Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार

Bihar Board Class 12 Economics प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
माँग वक्र का आकार क्या होगा ताकि कुल संप्राप्ति वक्र –
(a) a मूल बिन्दु से गुजरती हुई धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
(b) a समस्तरीय रेखा हो।
उत्तर:
(a) माँग वक्र का ढाल नीचे की ओर या ऋणात्मक होगा।
(b) माँग वक्र का ढाल x – अक्ष (क्षैतिज अक्ष) के समान्तर होगा।
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प्रश्न 2.
नीचे दी गई सारणी से कुल संप्राप्ति माँग वक्र और माँग की कीमत लोच की गणना कीजिए।
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उत्तर:
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फर्म का माँग वक्र व उद्योग का माँग वक्र एकदम समान होंगे।
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इकाई 1 से 3 तक माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला है। इकाई 3 से 5 तक माँग क्षैतिज अक्ष के समांतर है इकाई 5 से 6 तक माँग वक्र पुनः ऋणात्मक ढाल वाला है। 5 वीं इकाई के बाद वस्तु की कोई माँग नहीं है।
माँग की लोच
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प्रश्न 3.
जब माँग वक्र लोचदार हो तो सीमांत संप्राप्ति का मूल्य क्या होगा?
उत्तर:
जब माँग पूर्णतया लोचदार होती है तो सीमांत आगम का मूल्य शून्य होता है। जब माँग वक्र लोचदार अर्थात् माँग की लोच इकाई से अधिक होती है तब सीमांत आगम धनात्मक होता है।

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प्रश्न 4.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपये और निम्नलिखित माँग सारणी है –
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अल्पकाल में संतुलन मात्रा, कीमत और कुल लाभ प्राप्त कीजिए। दीर्घकाल में संतुलन मात्रा क्या होगी? जब कुल लागत 1000 रुपये हो तो अल्पकाल और दीर्घकाल में संतुलन का वर्णन करें।
उत्तर:
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अल्पकालीन संतुल उस बिन्दु पर होता है जहाँ एकाधिकारी फर्म को अधिकतम आगम प्राप्त होता है। अनुसूची में उत्पादन स्तर 6 पर अधिक आगम 300 फर्म को प्राप्त हो रहा है।
अतः अल्पकालीन साम्य मात्रा = 6
कीमत = 50
कुल लाभ = कुल आगम – कुल लागत
= 300 – 0 = 300
जब कुल लागत 1000 रुपये है तो अल्पकाल में संतुलन उस बिन्दु पर होता है जहाँ एकाधिकारी फर्म की कुल आगम व कुल लागत का अंतर अधिक होता है।
अधिकतम लाभ = कुल आगत – कुल लागत
= 300 – 1000 = -700 रुपये
उपरोक्त सूचना यह दर्शाती है कि फर्म को 700 रुपये की हानि हो रही है। अतः संतुलन अवस्था का प्रश्न ही नहीं उठता है। दीर्घकाल के लिए भी एकाधिकारी फर्म के संतुलन की वही शर्त लागू होती है।

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प्रश्न 5.
यदि अभ्यास 3 का एकाधिकारी फर्म सार्वजनिक क्षेत्र का फर्म हो, तो सरकार इसके प्रबंधक के लिए दी हुई सरकारी स्थिर कीमत (अर्थात् वह कीमत स्वीकार करता है और इसलिए पूर्ण प्रतिस्पर्धात्मक बाजार के फर्म जैसा व्यवहार करता है) स्वीकार करने के लिए नियम बनाएगी और सरकार यह निर्धारित करेगी कि ऐसी कीमत निर्धारित हो, जिससे बाजार माँग और पूर्ति समान हो। उस स्थिति में संतुलन कीमत, मात्रा और लाभ क्या होंगे?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत संतुलन स्थापित वहाँ होता है जहाँ वस्तु की बाजार माँग व बाजार पूर्ति समान होती है। संतुलन बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा बेची व खरीदी गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य कीमत एवं मात्रा को नीचे चित्र में दिखाया गया है।
माँग वक्र DD, पूर्ति वक्र SS, साम्य बिन्दु E, साम्य कीमत Op, साम्य मात्रा Oq
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पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म को शून्य लाभ प्राप्त होता है। इसका अभिप्राय है कि प्रतियोगी फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 6.
उस स्थिति में सीमांत संप्राप्ति वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए, जिसमें कुल संप्राप्ति वक्र –

  1. धनात्मक प्रवणता वाली सरल रेखा हो।
  2. समस्तरीय सरल रेखा हो।

उत्तर:
1. कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वाली सीधी रेखा है –
नीचे बताई गई तीन स्थितियाँ हो सकती हैं –

  • यदि कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है लेकिन उसमें समान दर से वृद्धि होती है तो सीमांत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष (x – अक्ष) के समांतर होगा।
  • यदि कुल आगम वक्र धनात्मक ढाल वक्र है और बढ़ती हुई दर से बड़ता है तो सीमांत आगम वक्र का ढाल धनात्मक होता है।
  • यदि कुल वक्र का ढाल धनात्मक परंतु कम दर से बढ़ता है तो सीमांत का ढाल ऋणात्मक होता है।

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प्रश्न 7.
नीचे सारणी में वस्तु की बाजार माँग वक्र और वस्तु उत्पादक एकाधिकारी फर्म के लिए कुल लागत दी हुई है। इनका उपयोग करके निम्नलिखित की गणना करें –
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  1. सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत सारणी।
  2. वह मात्रा जिस पर सीमांत संप्राप्ति और सीमांत लागत बराबर है।
  3. निर्गत की संतुलन मात्रा और वस्तु की संतुलन कीमत।
  4. संतुलन में कुल संप्राप्ति, कुल लागत और कुल लाभ।

उत्तर:
1.
सीमांत संप्राप्ति।
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सीमांत लागत अनुसूची
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2. उत्पादन स्तर c फर्म की सीमांत लागत व सीमांत आगम दोनों समान हैं। इस उत्पादन स्तर पर MR = MC = 4

3. संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ MR = MC इस शर्त में निम्नलिखित सूचना प्राप्त होती है –
साम्य मात्रा = 6
इकाइयाँ साम्य कीमत = 19

4. साम्य उत्पाद स्तर = 6 इकाई
साम्य उत्पादन स्तर पर
कुल आगम = 114
कुल लागत = 109
कुल लाभ = कुल आगाम – कुल लागत
= 114 – 109 = 5

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प्रश्न 8.
निर्गत के उत्तम अल्पकाल में यदि घाटा हो, तो क्या अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म उत्पादन को जारी रखेगी?
उत्तर:
यदि अल्पकाल में किसी फर्म को हानि उठानी पड़ती है तो वह उत्पादन जारी रखेगी इसका निर्धारण निम्न प्रकार से किया जाता है –
1. यदि उत्पादन के इस स्तर पर सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को ऊपर से काटता है अथवा सीमांत लागत वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है तो फर्म हानि की स्थिति में भी उत्पादन जारी रखेगी क्योंकि उत्पादन के इस स्तर के बाद फर्म को लाभ प्राप्त होगा ऐसा इसलिए संभव होता है कि सीमांत लागत घट रही है।

2. यदि उत्पादन के इस स्तर पर सीमांत लागत वक्र, सीमांत आगम वक्र को नीचे से काटता है अथवा सीमांत लागत वक्र धनात्मक ढाल का है तो फर्म इस उत्पादन स्तर से आगे उत्पादन नहीं करेगी। इस उत्पादन स्तर से आगे उत्पादन करने पर सीमांत लागत में वृद्धि होती है और फर्म की हानि में और बढ़ोतरी होगी।

प्रश्न 9.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में किसी फर्म की माँग वक्र की प्रवणता ऋणात्मक क्यों होती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में एक फर्म वस्तु की कीमत घटाकर ही ज्यादा इकाइयाँ बेच सकती है। क्योंकि कीमत घटने पर माँग बढ़ जाती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि सीमांत आगम वक्र का ढाल ऋणात्मक होगा। एकाधिकारात्मक प्रतियोगी फर्म का औसत आगम, माँग वक्र के समान होता है। अतः इस बाजार में फर्म का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 10.
एकाधिकारी प्रतिस्पर्धा में दीर्घकाल के लिए किसी फर्म का संतुलन शून्य लाभ पर होने का क्या कारण है?
उत्तर:
एकाधिकारात्मक प्रतियोगी बाजार में फर्मों की अधिक संख्या होती है। फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है। इस बाजार में फर्म विभेदीकृत वस्तु का उत्पादन करती है। अल्पकाल में फर्मों की संख्या कम होने के कारण प्रतियोगिता कम पायी जाती है। अतः फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त हो सकता है। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फमें बाजार में प्रवेश कर सकती है।

वस्तु का उत्पादन बढ़ेगा। इससे वस्तु की कीमत घटेगी। नई फर्मों का प्रवेश, उत्पादन में बढ़ोतरी, वस्तु की कीमत में गिरावट का सिलसिला उस सीमा तक रहता है जब तक फर्म का लाभ शून्य नहीं हो जाता है। इस स्तर पर बाजार में प्रवेश पाने के लिए नई फर्मों के पास कोई आकर्षण नहीं रहता है।

इसके विपरीत यदि अल्पकाल में कोई फर्म हानि उठा रही है तो नुकसान उठाने वाली कुछ फर्म उत्पादन बंद करक बाजार छोड़कर बाजार से बाजार जा सकती है। उत्पादन में संकुचन होगा जिससे बाजार कीमत में बढ़ोतरी होगी। फर्मों का प्रवेश, उत्पादन में संकुचन आदि तब तक जारी रहेगा जब तक लाभ शून्य नहीं होगा। इस प्रकार फर्मों का प्रवेश व गमन उस समय रुक जाता है जब दीर्घकाल में लाभ शून्य हो जाता है। यह स्थिति ही दीर्घकालीन संतुलन की स्थिति होती है।

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प्रश्न 11.
तीन विभिन्न विधियों की सूची बनाइए, जिसमें अल्पाधिकारी फर्म व्यवहार कर सकता है।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें एक अधिक परंतु सीमित फर्म होती है अल्पाधिकार कहलाता है। अल्पाधिकारी में एक फर्म निम्नलिखित तीन प्रकार से व्यवहार कर सकती है –
1. यदि वस्तु बाजार में दो फर्म मौजूद होती हैं तो इस संरचना को द्वैदाधिकार कहते हैं। दोनों फर्म मिलकर विलय कर सकती है और प्रतियोगिता न करने का निर्णय कर सकती है। सामूहिक रूप से दोनों फर्मे अपना लाभ अधिकतम कर सकती है। इस स्थिति में दोनों फर्मे अलग-अलग उत्पादन इकाई के रूप में उत्पादन करती है परंतु अधिक लाभ कमाने के लिए एकाधिकारी फर्म की तरह व्यवहार करती है।

2. यह भी हो सकता है कि दोनों फर्मे आपस में अधिकतम लाभ के लिए उत्पादन की मात्राएँ तय कर सकती हैं। निर्णय के बाद दोनों में से कोई भी फर्म उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन न करने की बात स्वीकार करती है।

3. कुछ अर्थशास्त्री ऐसा भी मानते हैं कि अल्पाधिकार बाजार संरचना में कठोर कीमत नीति काम करती है। अर्थात् बाजार कीमत में बाजार माँग के अनुसार परिवर्तन नहीं होता है। इस संरचना में कीमत परिवर्तन करना कोई भी फर्म विवेकपूर्ण नहीं मानती है। यदि कोई एक फर्म कीमत बढ़ाने का निर्णय लेती है तो वह फर्म अपने लाभ को कम कर सकती है। यदि दूसरी फर्म कीमत नहीं बदलती है तो पूर्व फर्म को कम माँग का सामना करना पड़ेगा।

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प्रश्न 12.
यदि द्वि – अधिकारी का व्यवहार कुर्नोट के द्वारा वर्णित व्यवहार के जैसा हो, तो बाजार माँग वक्र को समीकरण q = 200 – 4p द्वारा दर्शाया जाता है तथा दोनों फर्मों की लागत शून्य होती है। प्रत्येक फर्म के द्वारा संतुलन और संतुलन बाजार कीमत में उत्पादन की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
माँग फलन q = 200 – 4p
जब माँग वक्र एक सीधी रेखा होता है और उत्पादन लागत शून्य होती है तो माँग की आधी पूर्ति करना एकाधिकारी के लिए अधिकतम लाभकारी होता है।

माँग वक्र समीकरण q = 200 – 4p = 200 – 4 × 0 (कीमत स्तर शून्य पर अधिकतम माँग)
फर्म व वस्तु की शून्य इकाइयों की पूर्ति करती है –
फर्म अ के लिए माँग = 200 इकाइयाँ
फर्म अ की आपूर्ति = \(\frac{200}{2}\) इकाइयाँ = 100 इकाइयाँ
फर्म ब के लिए माँग = 200 – \(\frac{200}{2}\)
फर्म ब की आपूर्ति = \(\frac{1}{2}\) (200 – \(\frac{200}{2}\)) = 50 इकाइयाँ
फर्म ब की आपूर्ति 0 से 50 इकाइयाँ तक बदल चुकी है। अतः फर्म अ के लिए माँग = 200 – 50 = 150 इकाइयाँ
अतः फर्म अ आपूर्ति करना चाहेगी \(\frac{150}{2}\) = 75 इकाइयाँ
इन चक्रों का क्रम तब तक जारी रहेगा जब तक दोनों फर्मों की आपूर्ति समान नहीं हो जायेगी। इसकी गणना निम्नलिखित तालिका में की गई है –

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इस प्रकार अन्त में दोनों फर्म समान मात्रा की आपूर्ति करेंगी।
आपूर्ति = \(\frac{200}{2}\) – \(\frac{200}{4}\) + \(\frac{200}{8}\) – \(\frac{200}{16}\) + \(\frac{200}{32}\) – \(\frac{200}{64}\) + …………. = \(\frac{200}{3}\)
बाजार पूर्ति = फर्म अ आपूर्ति + फर्म ब आपूर्ति = \(\frac{200}{3}\) + \(\frac{200}{3}\) = \(\frac{400}{3}\) इकाइया
कीमत निर्धारण q = 200 – 4p
या 4p = 200 – q
= 200 – \(\frac{400}{3}\) (मूल्य प्रतिस्थापित करने पर)
या = \(\frac{200}{3}\)
या p = \(\frac{200}{3×4}\) = \(\frac{50}{3}\)
प्रत्येक फर्म द्वारा की गई आपूर्ति = \(\frac{200}{3}\) इकाइयाँ
दोनों फर्मों द्वारा की गई पूर्ति = \(\frac{400}{3}\) इकाइयाँ
साम्य कीमत = \(\frac{50}{3}\) रु.

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प्रश्न 13.
आय अनन्य कीमत का क्या अभिप्राय है? अल्पाधिकार के व्यवहार से इस प्रकार का निष्कर्ष कैसे निकल सकता है?
उत्तर:
अल्पाधिकारी बाजार में वस्तु की कीमत में परिवर्तन मुक्त रूप से माँग में परिवर्तन के अनुसार नहीं होता है। यदि एक फर्म अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से वस्तु की कीमत बढ़ा देती है और दूसरी फर्म ऐसा नहीं करती है। कीमत में वृद्धि के कारण पहली फर्म की वस्तु की माँग अधिक मात्रा में घट जायेगी। इससे इस फर्म के कुल आगम में कमी आ जायेगी। अतः कीमत बढ़ाना किसी भी फर्म के लिए विवेकपूर्ण निर्णय नहीं होगा।

दूसरी ओर यदि कोई फर्म कीमत घटाकर कुल लाभ अधिकतम करना चाहती है और दूसरी फर्म इस निर्ण को चुनौती मानकर कीमत को घटा देती है। इस प्रकार कीमत को घटाकर माँग में वृद्धि की हिस्सेदारी दोनों फर्मों को प्राप्त होगी। तरह कीमत घटाकर माँग में वृद्धि का फायदा इस बाजार में कोई फर्म थोड़े समय के लिए उठा सकती है। दूसरी फर्म द्वारा कीमत घटाने पर फम का कुल आगम भी घटेगा और कुल लाभ में भी कमी आयेगी। इसलिए अल्पाधिकार में कीमत स्थिर पाई जाती है।

Bihar Board Class 12 Economics प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एकाधिकार को परिभाषित करो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें एक वस्तु का बाजार में एक अकेला विक्रेता होता है, एकाधिकार कहलाती है।

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प्रश्न 2.
एकाधिकारी फर्म के कुल आगम वक्र की प्रकृति किस बात पर निर्भर करती है?
उत्तर:
कुल आगम वक्र की प्रकृति औसत आगम पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3.
एकाधिकारी फर्म का बाजार माँग वक्र क्या होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म का औसत आगम वक्र ही फर्म का माँग वक्र होता है।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी फर्म द्वारा पूर्ति की गई वस्तु की कीमत का निर्धारण किस पर निर्भर होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म द्वारा पूर्ति की गई वस्तु की मात्रा के आधार पर वस्तु की कीमत का निर्धारण होता है।

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प्रश्न 5.
वह शर्त लिखो जिससे वस्तु बाजार एकाधिकार संरचना रखता है।
उत्तर:
वस्तु बाजार की संरचना एकाधिकारी होती है यदि उस बाजार में केवल एक विक्रेता हो, वस्तु की कोई निकट प्रतिस्थापन वस्तु न हो तथा बाजार बाजार में नई फर्म के प्रवेश पर प्रतिबंध हो।

प्रश्न 6.
सीमांत आगम वक्र की स्थिति और माँग वक्र के ढाल में क्या संबंध होता है?
उत्तर:
ऋणात्मक ढाल वाला माँग वक्र जितना अधिक ढाल होता है सीमांत आगम वक्र उतना ही नीचे होता है।

प्रश्न 7.
औसत आगम वक्र कब नीचे गिरता है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम औसत आगम से कम होती है तब औसत आगम वक्र नीचे गिरता है।

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प्रश्न 8.
कुल आगम वक्र का आकार क्या होगा यदि माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली सीधी रेखा है?
उत्तर:
माँग ऋणात्मक ढाल वाली रेखा होने पर कुल आगम वक्र उल्टे परवलय की तरह का होता है।

प्रश्न 9.
कुल आगम से औसत आगम वक्र की गणना किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
उत्पादन के किसी भी स्तर पर कुल आगम वक्र पर स्थित संबंधित बिन्दु से मूल बिन्दु को मिलाने वाली रेखा के ढाल के आधार पर औसत आगम की गणना की जाती है।

प्रश्न 10.
कुल आगम से सीमांत आगम ज्ञात करने की विधि लिखो।
उत्तर:
उत्पादन के किसी भी स्तर कुल आगम वक्र के संबंधित बिन्दु से स्पर्श खींची गई, स्पर्श रेखा के द्वारा सीमांत आगम की गणना की जाती है।

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प्रश्न 11.
साम्य कीमत किससे प्राप्त होती है?
उत्तर:
वह माँग वक्र जिससे साम्य मात्रा प्राप्त होती है साम्य कीमत प्रदान करता है।

प्रश्न 12.
साम्य मात्रा की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
साम्य कीमत पर खरीदी व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।

प्रश्न 13.
यदि फर्म की लागत शून्य हो तो एकाधिकारी फर्म द्वारा आपूर्ति की गई मात्रा कितनी होती है?
उत्तर:
साम्य की अवस्था में पूर्ति की गई मात्रा उस बिन्दु पर प्राप्त होती है जहाँ सीमांत आगम शून्य होती है।

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प्रश्न 14.
प्रतियोगी फर्म द्वारा पूर्ति की गई साम्य मात्रा किस प्रकार प्राप्त होती है?
उत्तर:
प्रतियोगी फर्म द्वारा पूर्ति की गई साम्य मात्रा उस बिन्दु पर प्राप्त होती है जहाँ औसत आगम शून्य होती है।

प्रश्न 15.
वस्तु बाजार में अल्पाधिकार की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
जब कम संख्या में फर्म एक समान वस्तु का उत्पादन करती है।

प्रश्न 16.
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में दीर्घकाल में लाभ का स्तर क्या होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी वस्तु बाजार में दीर्घकाल में लाभ का स्तर शून्य होता है।

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प्रश्न 17.
अपूर्ण प्रतियोगी वस्तु बाजार में फर्म का लाभ शून्य क्यों होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों का प्रवेश स्वतंत्र होता है। फर्मों की संख्या बढ़ने पर अल्पकाल फर्मों के बीच पूर्ण प्रतियोगिता हो जाती है इसलिए लाभ का स्तर शून्य हो जाता है।

प्रश्न 18.
पूर्ण प्रतियोगिता एवं अपूर्ण प्रतियोगिता के अल्पकालीन साम्य की तुलना करो।
उत्तर:
अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता में पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में उत्पादन मात्रा कम व कीमत ऊँची होती है।

प्रश्न 19.
वस्तु बाजार में एकाधिकार प्रतियोगिता उत्पन्न होने का कारण लिखो।
उत्तर:
वस्तु विभेद के कारण एकाधिकार प्रतियोगिता वस्तु बाजार में उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 20.
कौन से बाजार में दीर्घकाल में भी लाभ का धनात्मक स्तर प्राप्त होता है?
उत्तर:
एकाधिकार में दीर्घकाल में भी लाभ का धनातमक स्तर होता है।

प्रश्न 21.
एकाधिकारी फर्म के संतुलन को परिभाषित करो।
उत्तर:
सीमांत आगम वक्र जहाँ सीमांत लागत वक्र को काटता है उसे फर्म का संतुलन बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 22.
एकाधिकार प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें अनेक क्रेता व विक्रेता होते हैं। विभिन्न फर्म विभेदीकृत वस्तु को बेचती हैं, फर्मों का प्रवेश स्वतंत्र होता है, एकाधिकार प्रतियोगिता कहलाती है।

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प्रश्न 23.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जिसमें विशाल संख्या में क्रेता व विक्रेता होते हैं, सभी विक्रेता समांगी वस्तु बेचते हैं, फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है।

प्रश्न 24.
बाजार की परिभाषा दो।
उत्तर:
वह संरचना जिसमें वस्तु के क्रेता व विक्रेता निकट संपर्क में रहकर विनिमय का कार्य करते हैं, बाजार कहलाती है।

प्रश्न 25.
जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक हो तो माँग की लोच क्या होती है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम का मूल्य धनात्मक होता है तो माँग लोचदार होती है।

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प्रश्न 26.
एकाधिकारी फर्म के लिए माँग कब बेलोचदार हो जाती है?
उत्तर:
जब सीमांत आगम का मूल्य ऋणात्मक होता है तो एकाधिकारी फर्म के लिए माँग बेलोचदार होती है।

प्रश्न 27.
उस बाजार का नाम लिखो जिसमें फर्म स्वयं ही उद्योग होती है?
उत्तर:
एकाधिकार वह बाजार है जिसमें फर्म स्वयं ही उद्योग होती है।

प्रश्न 28.
समांगी वस्तु की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
समांगी उत्पाद से अभिप्राय उद्योग की सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु शक्ल, आकार, स्वाद आदि गुणों में एक समान हों।

प्रश्न 29.
विभेदीकृत वस्तु की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
विभेदीकृत उत्पाद से अभिप्राय उद्योग की विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ जो ‘शक्ल, आकार, स्वाद आदि गुणों में भिन्न हों।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
कुल आगम वक्र से औसत आगम ज्ञात करने की विधि लिखो।
उत्तर:
ज्यामितीय रूप से औसत आगम का मूल्य उत्पाद के किसी भी स्तर पर कुल आगम वक्र से ज्ञात किया जा सकता है। इसकी विधि नीचे लिखी गई है –

  1. कुल आगम वक्र (TR) खींचिए।
  2. उत्पाद का कोई भी स्तर लेकर क्षैतिज अक्ष से लम्ब खींचो।
  3. क्षैतिज अक्ष से लम्ब कुल आगम वक्र को जिस बिन्दु पर काटता है उसको a लिखो।
  4. बिन्दु a को मूल बिन्दु से मिलाओ।
  5. किरण Oa का ढाल ही औसत आगम होता है।
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प्रश्न 2.
अन्य बाजार संरचनाओं की तुलना में एकाधिकारी फर्म के साम्य निर्धारण की विभिन्नता की मान्यताएँ लिखिए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म की मान्यताएँ –

  1. माँग पक्ष की तरफ से बाजार में पूर्ण प्रतियोगिता है। इसका अभिप्राय है कि उपभोक्ता इस बाजार में कीमत स्वीकारक होते हैं।
  2. वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधन बाजार में माँग पक्ष व पूर्ति पक्ष दोनों पूर्ण प्रतियोगिता होती है।

प्रश्न 3.
वे शर्ते लिखो जिनके आधार पर पूर्ण प्रतियोगी बाजार की संरचना का अनुमान लगाया जाता है।
उत्तर:
वह बाजार संरचना जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करती है, पूर्ण प्रतियोगी बाजार कहलाता है –

  1. इस बाजार में एक वस्तु के क्रेताओं एवं विक्रेताओं की भारी संख्या होती है। एक फर्म द्वारा पूर्ति की मात्रा कुल बाजार पूर्ति की तुलना में नगण्य होती है। इसी प्रकार एक उपभोक्ता की वस्तु के लिए माँग बाजार माँग की तुलना में नगण्य होती है।
  2. बाजार में फर्मों को प्रवेश व बाहर जाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है।
  3. उद्योग में सभी फर्मों का उत्पाद समांगी होता है। दूसरे उद्योग की कोई फर्म प्रतियोगी वस्तु की पूर्ति नहीं करती है।
  4. क्रेता व विक्रेताओं को उत्पाद व उसकी कीमत की पूर्ण जानकारी होती है।

प्रश्न 4.
एकाधिकारी फर्म के लिए कुल आगम वक्र सीधी रेखा नहीं होता इसकी आकृति माँग वक्र की आकृति पर निर्भर करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कुल आगम वक्र बेची गई मात्रा का फलन होता है।
TR = p × q माँग फलन …………….. (i)
q = a – bp ………… (ii)
सभी (i) व (ii) से
TR = p(a – bp)
= ap – bp2
अतः एकाधिकारी फर्म का कुल आगम द्विघात समीकरण है जिसका वर्ग वाला पद ऋणात्मक है। इस प्रकार की समीकरण का चित्र उल्टा परवलय होता है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
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प्रश्न 5.
एकाधिकारी फर्म की कीमत बेची गई मात्रा का घटता हुआ फलन है, संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म उत्पाद की अधिक मात्रा की बिक्री कीमत घटाकर ही कर सकती है। दूसरी ओर उत्पाद की कम मात्रा बेचकर फर्म ऊँची प्राप्त कर सकती है। इस प्रकार एकाधिकारी बाजार कीमत पूर्ति की गई मात्रा पर निर्भर करती है। इसलिए एकाधिकारी के लिए कीमत बेची गई मात्रा का घटता प्रतिफल होता है। बाजार माँग वक्र आपूर्ति की गई विभिन्न मात्राओं के लिए उपलब्ध बाजार कीमत को दर्शाता है। एकाधिकार फर्म का माँग वक्र ही बाजार माँग वक्र होता है।

प्रश्न 6.
एकाधिकारी फर्म के संतुलन को समझाइए जब फर्म को लागत वहन करनी पड़ती है।
उत्तर:
फर्म की कुल आगम एवं कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं। कुल आगम वक्र व कुल लागत वक्र के मध्य ऊर्ध्वाधर अंतर एकाधिकारी फर्म के लाभ को दर्शाता है। जब कुल लागत वक्र कुल आगम वक्र से ऊपर स्थित होता है तो इसका अभिप्राय है कि कुल लागत, कुछ आगम से अधिक है। अर्थात् फर्म को ऋणात्मक लाभ या हानि हो रही है।

जिस उत्पादन स्तर पर कुल आगम वक्र, कुल लागत वक्र से ऊपर होता है तो कुल आगम, कुल लागत से अधिक होती है। इसका अभिप्राय है फर्म को लाभ प्राप्त हो रहा है। एकाधिकारी फर्म हमेशा उस उत्पाद स्तर तक उत्पादन करती है जहाँ लाभ अधिकतम होता है। यह उत्पादन स्तर वह स्तर होता है जिस पर कुल आगम वक्र व कुल लागत वक्र के बीच ऊर्ध्वाधर दूरी अधिकतम होती है। फर्म का लाभ उल्टे परवलय द्वारा दर्शाया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 16
उत्पादन स्तर Oq2 से कम स्तर फर्म को हानि होती है।
उत्पादन स्तर 0q2 से 0q3 के मध्य फर्म को लाभ प्राप्त होता है।
उत्पादन स्तर Oq0 पर अधिकतम लाभ प्राप्त होगा। फर्म उत्पादन स्तर Oq0 कीमत स्तर पर वस्तु का विक्रय करेगी।

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प्रश्न 7.
शून्य लागत की स्थिति में एकाधिकारी फर्म के अल्पकालीन संतुलन को समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म स्टॉक नहीं बनाती है। यह फर्म जितना उत्पादन करती है उतनी ही मात्रा में बाजार में बेच देती है। कुल आगम व कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं।
लाभ = कुल आगम – कुल लागत लाभ = कुल आगम (कुल लागत 30) कुल लाभ जब अधिकतम होता है जब फर्म का कुल आगम अधिकतम होता है। जिस उत्पाद स्तर पर कुल आगम अधिकतम होता है उसे साम्य उत्पादन स्तर तथा उस उत्पाद स्तर की कीमत को साम्य कीमत कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 17

प्रश्न 8.
एकाधिकारी फर्म के लिए औसत आगम व सीमांत आगम में संबंध लिखों उत्तर-औसत आगम एवं सीमांत आगम में संबंध –

  1. उत्पादन के सभी स्तरों पर सीमांत आगम वक्र औसत आगम वक्र के नीचे स्थित रहता है।
  2. यदि औसत आगम वक्र अधिक ढालू होता है तो सीमांत आगम वक्र तथा औसत आगम वक्र में ज्यादा अंतर होता है।
  3. यदि औसत आगम वक्र कम ढालू होता है तो सीमांत आगम वक्र तथा औसत आगम वक्र के मध्य अंतर कम होता है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 18

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प्रश्न 9.
एकाधिकारी फर्म के लिए सीमांत आगम तथा माँग लोच में संबंध लिखो।
उत्तर:
एकाधिकारी फर्म के लिए सीमांत आगम तथा कीमत माँग लोच में संबंध –

  1. जब सीमांत आगम का मान धनात्मक होता है तो माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होती है।
  2. जब सीमांत आगम का मान ऋणात्मक होता है तो माँग की कीमत लोच इकाई से कम होती है।
  3. जब सीमांत आगम का मूल्य शून्य होता है तो कीमत माँग, लोच इकाई के बराबर होती है।

प्रश्न 10.
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचनाओं के नाम लिखो तथा पूर्ण प्रतियोगी बाजार की दीर्घकाल में अधिकतम लाभ की शर्त लिखो।
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचनाओं के नाम –

  1. एकाधिकार
  2. अपूर्ण प्रतियोगिता तथा
  3. अल्पाधिकार

पूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचना की दीर्घकाल में लाभ की शर्त-वस्तु की कीमत तथा दीर्घकाल सीमांत लागत दोनों बराबर होनी चाहिए। यह फर्म का दीर्घकाल औसत आगम तथा दीर्घकाल सीमांत लागत दोनों बराबर हों।

प्रश्न 11.
एकाधिकार के बारे में कुछ आलोचनात्मक विचार लिखो।
उत्तर:
1. यह माना जाता है कि एकाधिकारी फर्म उपभोक्ताओं की लागत पर लाभ कमाती है। एकाधिकारी फर्म दीर्घकाल में भी लाभ कमाती है। उपभोक्ता भुगतान ज्यादा करते हैं और संतुष्टि कम प्राप्त करते हैं। कुछ अर्थशास्त्री ऐसा भी मानते हैं कि व्यवहार में एकाधिकारी फर्म नहीं होती है क्योंकि सभी वस्तुओं का प्रतिस्थापन इस या उस वस्तु से हो जाता है।

अतः सभी फर्मों को उपभोक्ताओं के हाथ से आय प्राप्त करने के लिए प्रतियोगिता करनी पड़ती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था स्थैतिक होने की बजाय गतिशील होती है इसलिए शुद्ध एकाधिकारी फर्म भी प्रतियोगिता से नहीं बचती है। नई खोजों व तकनीक के प्रयोग से उत्पादित नई वस्तुओं के कारण एकाधिकारी फर्म को प्रतियोगिता के लिए बाध्य कर सकती है।

2. एकाधिकार के बारे में दूसरा पक्ष भी है। कुछ अर्थशास्त्री तर्क देते हैं कि एकाधिकारी समाज के लिए भी उपयोगी हो सकता है। एकाधिकारी फर्म को अधिक लाभ प्राप्त होता है। अतः यह फर्म अनुसंधान व विकास के लिए अधिक कोष जुटा सकती है। प्रतियोगी फर्मों के अनुसंधान व विकास कार्यों के लिए फंड जुटाना मुश्किल होता है। आर्थिक समृद्धता के कारण एकाधिकारी उन्नत एवं आधुनिक उत्पादन तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन लागत को कम कर सकती है। कम उत्पादन लागत वाले उत्पाद को यह प्रतियोगिता की तुलना में नीची कीमत पर उपभोक्ताओं को बेच सकती है।

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प्रश्न 12.
औसत व सीमांत आगम तथा औसत व सीमांत लागत वक्रों सहायता से एकाधिकारी फर्म के साम्य को समझाइए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 19
उत्पादन स्तर Oq0 से कम पर MR का मान MC से अधिक है। इसका अभिप्राय है प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से फर्म को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा। फर्म उस स्तर तक उत्पादन बढ़ाने का प्रयास करती है जब तक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन से फर्म के अतिरिक्त लाभ में बढ़ोतरी होती है। उत्पादन स्तर बढ़ाने का सिलसिला Oq0 उत्पाद स्तर बंद हो जायेगा क्योंकि इस उत्पादन स्तर पर MR व MC समान हैं।

उत्पादन बढ़ाने से अतिरिक्त लाभ में वृद्धि नहीं होगी। उत्पादन स्तर Oq0 से अधिक पर MR, MC से कम रह जाती है। इसका अभिप्राय है कि उत्पादन से फर्म को हानि होगी। अतः फर्म उत्पादन स्तर को घटाने का प्रयास करेगी जब तक फर्म की हानि शून्य हो जाए या फर्म की MR व MC समान हो जाए। अतः उत्पादन स्तर Oq0 साम्य उत्पादन स्तर है। इस स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम होगा। लाभ उस बिन्दु पर अधिकतम होता है जहाँ MC व MR दोनों समान होते हैं और MC ऊपर की ओर उठती हुई होती है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित का अर्थ लिखो –
(a) विक्रय लागते
(b) विज्ञापन लागतें तथा
(c) विश्वासोत्पादक विज्ञापन
उत्तर:
(a) विक्रय लागत:
एकाधिकार प्रतियोगी संरचना वाले बाजार में विभिन्न फर्मे विभेदीकृत वस्तु का उत्पादन करती हैं। सभी फर्मों की वस्तुएँ एक-दूसरे के लिए निकट प्रतियोगी होती हैं। अत: प्रत्येक फर्म को अपना उत्पाद उपभोक्ताओं के बीच लोकप्रिय बनाने की बहुत आवश्यकता पड़ती है। उत्पाद को उपभोक्ताओं के मध्य लोकप्रिय बनाने अथवा अधिक संख्या में उपभोक्ताओं को उत्पाद की ओर आकर्षित करने के लिए किए गए व्यय को विक्रय लागत कहते हैं।

(b) विज्ञापन लागत:
दूरदर्शन, रेडियो, समाचार पत्रों, मैग्जीन, हैण्ड बिल, पोस्टर आदि के माध्यम से उत्पाद को प्रचारित करने पर किया गया व्यय विज्ञापन लागत कहलाता है।

(c) विश्वासोत्पादक विज्ञापन:
यदि कोई फर्म अधिक क्रय शक्ति वाले उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए खर्च करती है तो इन्हें चित्त आकर्षक लागतें या विश्वासोत्पादक विज्ञापन कहते हैं। इस प्रकार के विज्ञापन किसी नामीगिरामी व्यक्तित्व (खिलाड़ी/कलाकार/संगीतकार) के माध्यम से दिए जाते हैं।

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प्रश्न 14.
एकाधिकारी बाजार में औसत आगम तथा सीमांत आगम में क्या संबंध होगा?
उत्तर:
एकाधिकारी बाजार संरचना में फर्म का माँग वक्र ही बाजार माँग वक्र होता है। एकाधिकारी को वह कीमत स्वीकार करनी पड़ती है जिसे उपभोक्ता चुकाने को तैयार होते हैं। दूसरे शब्दों में, एकाधिकारी फर्म उस कीमत पर आपूर्ति करती है जिस पर उपभोक्ता अधिकतम माँग करते हैं। अत: एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल का होता है।

फर्म की औसत आगम सदैव कीमत के समान इसलिए होती है क्योंकि औसत आगम वक्र भी ऋणात्मक ढाल वाला होता है। फर्म वस्तु की कीमत घटाकर ही कुल आगम बढ़ोतरी कर सकती है। अतः प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के विक्रय से कुल आगम में बढ़ोतरी घटती दर से होती है या सीमांत आगम भी ऋणात्मक ढाल का होता है। सीमांत आगम वक्र सदैव औसत वक्र से नीचे रहता है।
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प्रश्न 15.
निम्नलिखित की परिभाषा लिखो –
(a) असामान्य लाभ तथा
(b) असामान्य हानि। पूर्ण प्रतियोगिता में उपरोक्त दोनों का फर्मों की संख्या पर प्रभाव भी लिखो।
उत्तर:
असामान्य लाभ-जब फर्म को वस्तु के विक्रय से प्राप्त कुल आगम, उसकी कुल लागत से अधिक होता है तो फर्म को असामान्य लाभ प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में वस्तु के उत्पादन में आयी कुल लागत पर उसके विक्रय से प्राप्त कुल आगम के अधिशेष को असामान्य लाभ कहते हैं। असामान्य लाभ की स्थिति में पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या बढ़ती है जब तक असामान्य लाभ समाप्त होकर सामान्य लाभ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।

असामान्य हानि-जब फर्म को वस्तु के विक्रय से प्राप्त कुल आगम, उसकी कुल लागत से कम होता है तो फर्म को हानि होती है। हानि को ऋणात्मक लाभ भी कहते हैं। असामान्य हानि की स्थिति में पूर्ण प्रतियोगी बाजार संरचना में फर्मों की संख्या में कमी आती है। यह कभी उस समय तक जारी रहती है जब जक हानि, शून्य लाभ में नहीं बदल जाती।

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प्रश्न 16.

  1. दीर्घकालिक प्रतियोगी संतुलन में सीमांत लागत और औसत लागत का संबंध लिखो तथा इस बिन्दु पर कीमत और सीमांत लागत का संबंध लिखो।
  2. दीर्घकालीन संतुलन की दशा में पूर्ण प्रतियोगी फर्म दीर्घकालीन औसत लागत वक्र के किस बिन्दु पर उत्पादन करेगी?

उत्तर:
1. दीर्घकालीन प्रतियोगी संतुलन में सीमांत लागत और औसत लागत दोनों समान होते हैं और सीमांत लागत ऊपर उठती (बढ़ती) हुई होती है दीर्घकालीन संतुलन या समकारी बिन्दु पर कीमत और सीमांत लागत दोनों समान होते हैं। इस बिन्दु पर सीमांत लागत बढ़ती हुई होती है।
p = MC तथा MC बढ़ रही हो

2. MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
उत्तर:
2. MR > MC तथा MC बढ़ रही हो

प्रश्न 17.
बाजारों की संरचना के वर्गीकरण का आधार बताइए।
उत्तर:
बाजार संरचनाओं का वर्गीकरण कई आधार पर किया जाता है। उनमें से कुछ प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तु की प्रकृति-समरूप या वस्तु विभेद।
  2. वस्तु की कीमत-वस्तु की समान या असमान कीमत।
  3. कीमत निर्धारण-कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा, कीमत का निर्धारण फर्म द्वारा अथवा वस्तु की कीमत का निर्धारण फर्म व उद्योग दोनों के द्वारा।
  4. विक्रेताओं की संख्या-बहुत अधिक, बहुत कम, कम या एक विक्रेता।
  5. बाजार का ज्ञान-पूर्ण या अपूर्ण।
  6. माँग वक्र-पूर्ण लोचशील, लोचशील या बेलोचशील।
  7. साधनों की गतिशीलता-पूर्ण गतिशीलता, अपूर्ण गतिशीलता या गतिशीलता का अभाव।
  8. लाभ-सामान्य – या असामान्य लाभ।

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प्रश्न 18.
विशुद्ध प्रतियोगिता क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
विशुद्ध प्रतियोगिता की अवधारणा पूर्ण प्रतियोगिता की अवधारणा से संकुचित है। वह बाजार संरचना जिसमें असंख्य विक्रेता एवं क्रेता होते हैं, सभी विक्रेता समरूप वस्तु का विक्रय करते हैं तथा फर्मों को उद्योग में प्रवेश करने व छोड़कर जाने की स्वतंत्रता होती विशुद्ध प्रतियोगिता कहलाती है।

विशुद्ध प्रतियोगिता के लक्षण –
1. फर्मों की अधिक संख्या:
इस बाजार संरचना में क्रेता व विक्रेताओं की बहुत अधिक संख्या होती है। एक विक्रेता, कुल बाजार पूर्ति की तुलना वस्तु की नगण्य मात्रा की पूर्ति करती है इसलिए एक फर्म वस्तु की बाजार कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है।

2. समरूप:
इस प्रतियोगिता में विभिन्न फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु समरूप होती है। दूसरे उद्योग में उत्पादित वस्तु/वस्तुओं से एक उद्योग में उत्पादित वस्तु से प्रतिस्थापन नहीं किया जा सकता है। समरूप वस्तु होने के कारण इस बाजार में वस्तु की कीमत समान होती है।

3. फर्मों का उद्योग में प्रवेश व गमन:
इस बाजार में लाभ से प्रभावित होकर कोई भी नई फर्म प्रवेश कर सकती है इसी प्रकार हानि उठाने वाली फर्म बाजार छोड़कर जाने के लिए स्वतंत्र होती है।

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प्रश्न 19.
एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र लोचदार होने के कारण –
1. विक्रेताओं की अधिक संख्या:
इस बाजार में छोटे-छोटे विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है। एक विक्रेता कुल बाजार पूर्ति का थोड़ा भाग ही पूर्ति करता है। वह बाजार को ज्यादा प्रभावित नहीं कर पाता है।

2. निकट प्रतियोगी वस्तुएँ:
एकाधिकार प्रतियोगी बाजार विभिन्न फर्म विभेदित वस्तु का उत्पादन करती है परंतु उनकी वस्तुएं एक-दूसरे की निकट प्रतिस्थापक होती है। निकट प्रतिस्थापन्नता के कारण इस बाजार में मांग वक्र लोचशील होता है।

प्रश्न 20.
दो फर्मों के विलय से दक्षता में वृद्धि कैसे संभव है? समझाइए।
उत्तर:
प्रतियोगिता से बचने के लिए या अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए कभी-कभी दो या अधिक फर्म अपने निजी अस्तित्व को कायम रखते हुए उत्पादन की मात्रा व कीमत नीति से इस प्रकार से समन्वय करती हैं कि उनके निर्णय एक फर्म द्वारा लिए गए निर्णय प्रतीत होते हैं। इस प्रक्रिया को फर्मों का विलय कहते हैं। विलय होने के बाद इनकी गतिविधियों का संचालन एकाधिकारी फर्म की तरह होता है। विलय के बाद फर्म विशिष्ट सेवाओं का उपयोग कर सकती है। उनमें नई खोज या विकास की भावना बढ़ जाती है। एकता के कारण उपभोक्ताओं से ऊँची कीमत वसूल सकती है।

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प्रश्न 21.
पेटेन्ट अधिकारों का अनुमोदन किस ध्येय से किया जाता है?
उत्तर:
पेटेन्ट अधिकारों का अनुमोदन निम्नलिखित ध्येयों से किया जाता है –

  1. पेटेन्ट अधिकार का अनुमोदन होने पर पेटेन्ट काल में केवल पेटैन्ट अधिकार प्राप्त फर्म वस्तु का उत्पादन/तकनीक का प्रयोग कर सकती है। इससे वस्तु बाजार या उत्पादन तकनीक के क्षेत्र में फर्म का एकाधिकार हो जाता है । एकाधिकार के कारण फर्म उत्पाद के लिए ऊँची कीमत प्राप्त कर सकती है और उसे असामान्य लाभ प्राप्त हो सकता है।
  2. पेटेन्ट अधिकार से फर्मों में नए उत्पाद या नई उत्पादन तकनीक खोजने की प्रवृत्ति प्रबल होती है। इससे आर्थिक विकास को गति प्राप्त होती है।
  3. उत्पादन लागत घटाने वाली तकनीक के प्रयोग से क्रेताओं को सस्ती कीमत पर भी वस्तु प्राप्त हो सकती है।

प्रश्न 22.
पेटेन्ट अधिकार क्या होते हैं? पेटेन्ट का जीवन काल क्या होता है?
उत्तर:
पेटेन्ट अधिकार-इस अधिकार के माध्यम से कानूनी तौर पर यह घोषणा होती है कि जिस फर्म/कंपनी ने नए उत्पाद या नई तकनीक की खोज की है केवल वे फर्म या उससे अनुमति प्राप्त फर्म ही उस वस्तु का उत्पादन या उस उत्पादन तकनीक का प्रयोग कर सकती है। किसी अन्य फर्म के लिए ऐसे उत्पाद या तकनीक का प्रयोग गैर कानूनी करार कर दिया जाता है। पेटेन्ट का कोई सुनिश्चित जीवन काल नहीं होता है। एक पेटेन्ट से दूसरे पेटेन्ट का जीवन काल भिन्न हो सकता है। फिर भी पेटेन्ट का जीवन काल कुछ वर्षों का होता है या जितने वर्ष के लिए फर्म या कंपनी को पेटेन्ट अधिकार प्राप्त होता है उसे पेटेन्ट काल कहते हैं।

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प्रश्न 23.
पूर्ण प्रतियोगिता एवं विशुद्ध प्रतियोगिता में अंतर लिखो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 21
पहली तीन विशेषताएँ पूर्ण प्रतियोगिता एवं विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए समान होती हैं। अंतिम दो विशेषताएँ केवल पूर्ण प्रतियोगिता के लिए आवश्यक होती हैं विशुद्ध प्रतियोगिता के लिए आवश्यक नहीं होती है।

प्रश्न 24.
अल्पाधिकारी की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
अल्पाधिकार बाजार संरचना की विशेषताएँ –

  1. अल्पाधिकार बाजार में फर्मों की संख्या दो से अधिक परंतु कम होती है।
  2. अल्पाधिकारी फर्म का माँग वक्र अनिश्चित होता है। माँग वक्र की आकृति कोनेदार
  3. अल्पाधिकार में फर्मों में कीमत प्रतियोगिता के अलावा गैर कीमत प्रतियोगिता भी पायी जाती है।
  4. फर्म उत्पादन की मात्रा व कीमत के संबंध में आपसी तालमेल से नीति बनाती है। अथवा तालमेल के अभाव में उनमें कठोर प्रतियोगिता हो जाती है।
  5. प्रत्येक फर्म स्वतंत्र कीमत नीति बना सकती है। परंतु इस नीति को दूसरी फर्मों की नीति को भांपकर ही लागू करने का प्रयास करती है।

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प्रश्न 25.
पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म का मांग वक्र पूर्णतया लोचशील क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी संरचना वाले बाजार में फर्मों की व क्रेताओं की संख्या बहुत ज्यादा होती है। एक फर्म बाजार आपूर्ति का बहुत छोटा (नगण्य) भाग ही आपूर्ति करती है। अतः अकेली फर्म बाजार पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है। इसलिए फर्म को उद्योग द्वारा तय की गई कीमत पर ही वस्तु की आपूर्ति करनी है। इस बाजार में सभी फर्मों द्वारा उत्पादित वस्तु समरूप होती है। वस्तु विभेद के आधार पर भी फर्म वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। इसी प्रकार एक क्रेता भी वस्तु की पूर्ति तथा कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगी माँग वक्र पूर्णतया लोचशील होता।
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वे विभिन्न कारक समझाइए जो एकाधिकार को जन्म देते हैं।
उत्तर:
एकाधिकार के लिए उत्तरदायी कारक –
1. पेटेन्ट अधिकार:
यदि कोई फर्म किसी उत्पाद या उत्पादन तकनीक को खोजने का दावा पेश करती है और उसके दावे की पुष्टि हो जाती है तो उस फर्म को उस उत्पाद या तकनीक के लिए पेटेन्ट अधिकार स्वीकृत किया जा सकता है। पेटेन्ट अधिकार मिलने पर कोई अन्य फर्म उस उत्पाद या तकनीक का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए नहीं कर सकती है। पेटेन्ट अधिकार से फर्मों को अनुसंधान व विकास के कार्यों की प्रेरणा मिलती है।

2. सरकार द्वारा लाइसेंस (अनुज्ञा पत्र):
यदि सरकार कानून के माध्यम से किसी एक वस्तु के उत्पादन का कार्य एक ही फर्म को सौंप देती है तो अन्य फमैं उस वस्तु बजार में कानून की बाध्यता के कारण प्रवेश नहीं कर सकती है। जैसे अंतर राष्ट्रीय दूरभाषा सेवाएं प्रदान कराने का अधिकार वी.एस.एन.एस. (VSNL) कंपनी को भारत सरकार ने प्रदान किया हुआ है।

3. कारटेल का गठन:
यदि कुछ फर्मों का विलय इस प्रकार से हो जाता है कि वे एकाधिकार के लाभ उठायेंगे तो इस गठन को कारटेल कहते हैं। इसके अन्तर्गत फर्म अलग-अलग उत्पादन इकाई के रूप में कार्य करती हैं परंतु उन सभी का निर्णय एक और सामूहिक होता है। जैसे तेल उत्पादक देशों ने OPEC नामक संगठन बनाया हुआ है जो एकाधिकारी की तरह कार्य करता है।

4. बाजार का आकार:
यदि किसी वस्तु की बाजार का आकार इतना छोटा होता है कि मौजूदा एक फर्म के उत्पादन की भी खपत उसमें नहीं हो पाती है तो अन्य फर्मे उसमें प्रवेश नहीं करती हैं।

5. भारी निवेश:
यदि किसी वस्तु के उत्पादन के लिए भारी निवेश की आवश्यकता पड़ती है तो कम वित्तीय संसाधन वाली फम उस वस्तु बाजार में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाती हैं। आदि।

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प्रश्न 2.
रेखाचित्रों की सहायता से पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार के औसत आगम वक्रों का अंतर समझाइए।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत औसत आगम वक्र:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत औसत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर एक सीधी रेखा होती है। प्रतियोगी फर्म उद्योग द्वारा निर्धारित की गई कीमत की स्वीकारक होती है। अर्थात् पूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत उद्योग तय करता है। दी गई कीमत पर वस्तु की कितनी भी मात्रा फर्म बेच सकती है। बिक्री के प्रत्येक स्तर पर कीमत समान रहने के कारण प्रति इकाई बिक्री से प्राप्त आगम समान रहता है। इसलिए पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का औसत आगम वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।
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एकाधिकारी फर्म का औसत आगम वक्र:
एकाधिकारी फर्म के औसत आगम वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है। एकाधिकारी फर्म केवल कीमत स्तर को कम करके ही वस्तु की अधिक इकाइयों का विक्रय कर सकती है। निकट प्रतिस्थापन वस्तु न होने के कारण एकाधिकारी द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग बेलोचदार होती है। इसलिए औसत आगम वक्र भी बेलोचदार या कम ढाल वाला होता है।
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प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म कीमत स्वीकारक होती जबकि एकाधिकारी फर्म कीमत निर्धारक होती है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु की कीमत का निर्धारण बाजार माँग व बाजार पूर्ति के साम्य द्वारा होता है। बाजार में किसी वस्तु के सभी उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के सामूहिक समूह को उद्योग कहते हैं। दूसरे शब्दों में, बाजार माँग उद्योग की माँग तथा बाजार पूर्ति उद्योग की पूर्ति है। बाजार माँग की तुलना में व्यक्तिगत माँग लगभग नगण्य होती है इसलिए एक उपभोक्ता बाजार माँग को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी प्रकार एक फर्म वस्तु की बाजार पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकती है।

अत: फर्म को उद्योग द्वारा निर्धारित कीमत स्वीकार करके ही अपना उत्पाद बेचना पड़ता है। इसीलिए पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कीमत स्वीकारक कहा जाता है। एकाधिकार में एक वस्तु के उत्पादन पर एक ही फर्म का अधिकार होता है। अकेला विक्रेता होने के कारण फर्म वस्तु की आपूर्ति को पूरी तरह प्रभावित कर सकती है। इसी कारण एकाधिकारी फर्म कीमत निर्धारक होती है। एकाधिकारी फर्म वस्तु की आपूर्ति को प्रभावित करके वस्तु की कीमत को प्रभावित कर सकती है।

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प्रश्न 4.
स्वतंत्र प्रवेश व गमन का क्या अभिप्राय है? पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत स्वतंत्र प्रवेश व गमन का बाजार पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
स्वतंत्र प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि कोई भी फर्म उद्योग में स्वतंत्र रूप से प्रवेश कर सकती है और जब चाहे बाजार छोड़कर जा भी सकती है। स्वतंत्र प्रवेश व गमन का बाजार पर प्रभाव –
1. यदि उद्योग में किसी उत्पाद का मूल्य ऊँचा तय कर दिया जाता है तो मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलता है। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फमैं बाजार में प्रवेश करेंगी। वस्तु की आपूर्ति में वृद्धि होगी और कीमत का स्तर कम हो जायेगा। फर्मों की संख्या बढ़ने से साधन बाजार में साधनों की माँग बढ़ेगी और साधनों की कीमत भी बढ़ जायेगी। इससे औसत लागत में वृद्धि हो जायेगी। कम कीमत व ऊंची औसत लागत के कारण फर्मों को केवल सामान्य लाभ ही मिल पायेगा।

2. यदि उद्योग में वस्तु की कीमत नीची तय की जाती है तो मौजूदा कुछ फर्मों को हानि उठानी पड़ सकती है। अल्पकाल में फर्म कुछ सीमा तक हानि हो वहन कर सकती है लेकिन दीर्घकाल में हानि की स्थिति में फर्म बाजार छोड़कर चली जाती है। उद्योग में फर्मों की संख्या कम होने से आपूर्ति कम हो जायेगी और वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जायेगी। उद्योग को छोड़कर जाने का सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक मौजूदा सभी फर्मों को सामान्य लाभ नहीं मिलेगा। इस प्रकार मुक्त प्रवेश व गमन का बाजार पर यह प्रभाव होता है कि सभी फर्मों को शून्य लाभ या सामान्य लाभ प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में, शून्य लाभ स्तर पर फर्म संतुलन में होती है। संतुलन की अवस्था LAC, LMC व कीमत समान होते हैं।
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प्रश्न 5.
विशेषताओं के आधार पर पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में अंतर:

1. वस्तु की प्रकृति:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत सभी फमें समांगी वस्तु का उत्पादन करती हैं। एकाधिकार में वस्तु समांगी हो भी सकती है और नहीं भी।

2. क्रेता-विक्रेताओं की संख्या:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक वस्तु को बेचने व खरीदने वालों की बहुत विशाल संख्या होती है। जबकि एकाधिकार में एक वस्तु का विक्रय करने वाली केवल एक फर्म होती है लेकिन क्रेता अधिक संख्या में होते हैं।

3. प्रवेश व गमन:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत नई फर्म स्वतंत्र रूप से उद्योग में शामिल हो सकती है। उसके प्रवेश पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। इसी प्रकार हानि उठाने वाली फर्म उद्योग को छोड़कर जाने के लिए भी स्वतंत्र होती है। जबकि एकाधिकार में नई फर्म के प्रवेश पर प्रतिबंध होता है।

4. वस्तु की कीमत:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तु की कीमत का निर्धारण उद्योग द्वारा किया जाता है और उद्योग द्वारा जय की गई कीमत पर फर्म वस्तु का विक्रय करती है। जबकि एकाधिकारी फर्म स्वयं ही कीमत निर्धारक होती है। पूर्ण प्रतियोगिता बिक्री के प्रत्येक स्तर पर कीमत समान रहती है। लेकिन एकाधिकारी कीमत करके ही वस्तु की अधिक मात्रा का विक्रय कर सकता है।

5. आपूर्ति वक्र:
पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत एक फर्म के आपूर्ति वक्र का आंकलन उसकी सीमांत आगम वक्र से किया जाता है। फर्म दी गई कीमत पर उत्पाद का विक्रय करती है इस कीमत पर फर्म केवल उत्पाद की मात्रा में ही समन्वय कर सकती है। जबकि एकाधिकार में फर्म के आपूर्ति वक्र का कोई सुनिश्चित आकार नहीं होता है।

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प्रश्न 6.
एकाधिकार एवं एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 42

प्रश्न 7.
समझाइए कि दीर्घकाल में निर्बाध प्रवेश/निकासी के कारण एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म के असामान्य लाभ शून्य कैसे हो जाते हैं?
उत्तर:
एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगी बाजार की तुलना में कम होती हैं। सभी फर्मे विभेदित वस्तु का उत्पादन करती हैं। अल्पकाल में प्रतियोगिता का स्तर कम होने के कारण एकाधिकारी प्रतियोगी फर्म कुछ अधिक कीमत उत्पादकों से वसूल कर असामान्य लाभ कमाती है। प्रवेश की स्वतंत्रता के कारण नई फर्म असामान्य लाभ से आकर्षित होकर बाजार में प्रवेश करने लगती है। नई फर्मों के प्रवेश से बाजार में फर्मों की संख्या बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप बाजार में वस्तु की आपूर्ति बढ़ने लगती है।

इसके कारण मौजूदा फर्मों में प्रतियोगिता का स्तर बढ़ जाता है। अपने उत्पाद को बेचने के लिए फर्मों को कीमत स्तर घटाना पड़ता है। फर्मों के प्रवेश का क्रम उस स्तर तक चलता है जब तक असामान्य लाभ पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाता है। दूसरी ओर यदि प्रतियोगी एकाधिकार बाजार में मौजूदा फर्मों को हानि उठानी पड़ती है तो स्वतंत्रता के कारण वे फर्म बाजार से बाहर होने लगती हैं। उद्योग में फर्मों की संख्या कम होने के कारण मौजूदा फर्मों में प्रतियोगिता का स्तर घटने लगता है। परिणामस्वरूप वस्तु की कीमत बढ़ने लगती है और हानि के स्तर में कमी आ जाती है। फर्मों के बाहर जाने की क्रिया उस समय तक चलती है जब तक हानि समाप्त नहीं हो जाती है।

प्रश्न 8.
एकाधिकारी प्रतियोगिता के लक्षणों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
एकाधिकारी के लक्षण –
1. क्रेता तथा विक्रेताओं की संख्या:
इस बाजार में फर्मों की संख्या अधिक होती है। एक फर्म कुल उत्पादन के एक छोटे भाग का उत्पादन करती है। इस बाजार में क्रेताओं की संख्या भी अधिक होती है। एक क्रेता बाजार माँग का छोटा हिस्सा ही क्रय करता है।

2. वस्तु विभेद:
एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में सभी फर्म रूप, रंग, आकार, गुणवत्ता. आदि गुणों में अलग-अलग वस्तु का उत्पादन करती हैं। अत: इस बाजार में वस्तु विभेद पाया जाता है।

3. प्रवेश पाने व बाहर जाने की स्वतंत्रता:
इस बाजार में नई फर्मों को बाजार में प्रवेश करने व पुरानी फर्मों को उद्योग से बाहर जाने की स्वतंत्रता होती है। यदि इस बाजार में मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता है तो नई फर्म इससे आकर्षित होकर बाजार में प्रवेश कर सकती है। दूसरी ओर यदि फर्मों को हानि होती है तो हानि उठाने वाली फर्म बाजार छोड़कर बाहर जाने के लिए स्वतंत्र होती है।

4. बिक्री लागत:
इस बाजार में वस्तु विभेद होने के कारण बिक्री लागतों का बहुत अधिक महत्त्व होता है। इन लागतों की मदद से एक फर्म अधिक संख्या में उपभोक्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करके लाभ को बढ़ा सकती है।

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प्रश्न 9.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 27

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी एकाधिकारी फर्म की MR सारणी नीचे दी जा रही है। उसकी AR तथा TR सारणी बनाइये।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 28
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 29

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प्रश्न 2.
प्रौद्योगिकी इस प्रकार की है कि 10 इकाई उत्पादन पर फर्म की दीर्घकालीन औसत लागत न्यूनतम हो जाती है। यह न्यूनतम लागत 15 रुपये है। कल्पना करो कि वस्तु की माँग निम्न सारणी में दी गई है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 30

  • बाजार में बिक्री की कुल मात्रा क्या होगी तथा दीर्घकाल संतुलन में कितनी फर्म कार्यशील होंगी?
  • माना उत्पादन तकनीक में प्रगति के कारण न्यूनतम औसत लागत 12 रुपये हो जाती है और न्यूनतम लागत संयोजन उत्पाद की 8 इकाइयों पर प्राप्त होता है। अब दीर्घकाल में कितनी फर्म कार्य करेंगी?

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 31a
AC = 15
AR = 15 (12000 इकाइयों की माँग पर)
दीर्घकालीन संतुलन की अवस्था में –
AR = AC = 15
फर्मों की संख्या = \(\frac{1200}{10}\) फर्म = 120 फर्म
बाजार में बिक्री की मात्रा 12000 इकाइयाँ
बाजार में कार्यशील फर्मों की संख्या = 120 फर्म

2. AC = 12
AR = 12 (1440 इकाइयों की माँग पर)
अतः दीर्घकालीन संतुलन की अवस्था में –
AR = AC = 12
फर्मों की संख्या = \(\frac{1440}{8}\) = 180
दीर्घकाल में 180 फर्म कार्य करेंगी।

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प्रश्न 3.
एकाधिकारी फर्म का माँग वक्र नीचे सारणी में दिया गया है। इसकी TR,AR तथा MR सारणियाँ बनाओ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 part - 2 img 33a

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका से कुल आगम तथा औसत आगम तालिका बनाओ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 34
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 35

प्रश्न 5.
एक एकाधिकारी फर्म की कुल स्थिर लागत 20 रुपये है। फर्म का माँग वक्र नीचे दिया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 36
अल्पकालीन साम्य मात्रा, कीमत तथा कुल लाभ ज्ञात करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 37
एकाधिकारी फर्म का अल्पकालीन संतुलन वहाँ होता है जहाँ फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। तालिका में अधिकतम आगम उत्पादन स्तर 6 पर है।
अल्पकालीन संतुलन उत्पादन स्तर = 6
अल्पकालीन संतुलन कीमत स्तर = 5
कुल लाभ = कुल आगम – कुल लागत
= 30 – 20
= 10
साम्य उत्पादन स्तर = 6
साम्य कीमत = 6
कुल लाभ = 10

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प्रश्न 6.
वस्तु की बाजार माँग व कुल लागत एकाधिकारी फर्म के लिए नीचे दिए गए हैं –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 38
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 39
निम्नलिखित की गणना करो –

  1. सीमांत आगम व लागत अनुसूची बनाओ।
  2. उत्पाद की वह मात्रा जिस पर MR तथा MC समान हों।
  3. साम्य मात्रा एवं वस्तु की साम्य कीमत।

उत्तर:
1. सीमांत आगम तालिका
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 40

2. सीमांत लागत तालिका
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 6 प्रतिस्पर्धारहित बाज़ार part - 2 img 41

3. उत्पादन इकाई 6 के लिए
MR = MC = 4
साम्य कीमत यह स्तर है जिसमें उत्पादन स्तर पर MR = MC

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एकाधिकार के बारे में मान्यता है –
(A) कि एक फर्म उत्पादित वस्तु की मात्रा का स्टॉक नहीं बनाती है
(B) कि एक फर्म उत्पादित सम्पूर्ण मात्रा को विक्रय के लिए पेश करती है
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

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प्रश्न 2.
फर्म द्वारा प्राप्त लाभ होता है –
(A) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का अंतर
(B) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का योग
(C) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का गुणनफल
(D) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का भागफल
उत्तर:
(A) फर्म द्वारा प्राप्त कुल आगम व कुल लागत का अंतर

प्रश्न 3.
यदि कुल लागत शून्य होती है तो लाभ अधिकतम होता है जब –
(A) कुल आगम न्यूनतम होता है
(B) कुल आगम अधिकतम होता है
(C) कुल आगम धनात्मक होता है
(D) कुल आगम ऋणात्मक होता है
उत्तर:
(C) कुल आगम धनात्मक होता है

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प्रश्न 4.
कुल आगम होता है –
(A) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का योग
(B) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का अंतर
(C) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का गुणनफल
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) फर्म द्वारा बेची गई मात्रा व औसत आगम का गुणनफल

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता में साम्य स्थापित होता है अधिक मात्रा –
(A) ऊँची कीमत पर बेचकर
(B) कम कीमत पर बेचकर
(C) न तो ऊँची कीमत न ही नीची कीमत पर बेचकर
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) कम कीमत पर बेचकर

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प्रश्न 6.
यदि कुल लागत वक्र कुल आगम वक्र से ऊपर होता है तो –
(A) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म लाभ कमाती है
(B) लाभ धनात्मक होता है और फर्म लाभ कमाती है
(C) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म को हानि होती है
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) लाभ ऋणात्मक होता है और फर्म को हानि होती है

प्रश्न 7.
एकाधिकार का लाभ अधिकतम होता है उस उत्पादन स्तर पर जिस पर –
(A) कुल आगम व कुल लागत वक्रों में से ऊर्ध्वाधर दूरी अधिकतम होती है
(B) कुल आगम वक्र, कुल लागत वक्र से ऊपर होता है
(C) (A) तथा (B) दोनों
(D) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) (A) तथा (B) दोनों

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प्रश्न 8.
एकाधिकार का लाभ उस उत्पादन स्तर पर अधिकतम होता है जिस पर –
(A) MR = MC तथा MC बढ़ रही हो
(B) MR = MC तथा MC घट रही हो
(C) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
(D) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो
उत्तर:
(C) MR > MC तथा MC बढ़ रही हो

प्रश्न 9.
एकाधिकार में उत्पादित की मात्रा का निर्धारण होता है उस कीमत पर जिस पर –
(A) उपभोक्ता खरीदने को तैयार होते हैं
(B) उत्पादक बेचने को तैयार होते हैं
(C) उपभोक्ता प्राप्त करने को तैयार होते है
(D) उत्पादक देने को तैयार होते हैं
उत्तर:
(C) उपभोक्ता प्राप्त करने को तैयार होते है

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प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगी फर्म होती है –
(A) कीमत निर्धारक
(B) कीमत स्वीकारक
(C) (A) तथा (B) में से कोई नहीं
(D) (A) तथा (B) दोनों
उत्तर:
(B) कीमत स्वीकारक

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Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाजार सन्तुलन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वह स्थिति, जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं होती है उसे साम्य या सन्तुलन की स्थिति कहते हैं। साम्य की अवस्था में मांगी गई मात्रा तथा पूर्ति की गई मात्रा समान होती है। माँग व पूर्ति में परिवर्तन करने के लिए किसी के लिए कोई प्रेरणा नहीं होती है। बाजार सन्तुलन की अवस्था में सभी फर्मों द्वारा की गई आपूर्ति व सभी उपभोक्ताओं द्वारा की गई माँग के बराबर होती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो फर्म न ही उपभोक्ता किसी परिवर्तन की इच्छा करते हैं। गणितीय रूप से बाजार सन्तुलन को दर्शाया जा सकता है –
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति

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प्रश्न 2.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिमाँग है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार माँग वस्तु की बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। गणितीय रूप में अधिमाँग को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है –
yd > ys
जहाँ yd → बाजार माँग तथा
ys → बाजार पूर्ति

प्रश्न 3.
हम कब कहते हैं कि बाजार में किसी वस्तु के लिए अधिपूर्ति है?
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर बाजार आपूर्ति वस्तु की बाजार माँग से अधिक होती है, तो इस स्थिति को अधिशेष आपूर्ति कहते हैं।
ys > ys
जहाँ ys → बाजार माँग तथा
yd बाजार पूर्ति

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प्रश्न 4.
क्या होगा यदि बाजार में प्रचलित मूल्य है?

  1. सन्तुलन कीमत से अधिक
  2. सन्तुलन कीमत से कम

उत्तर:
1. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से अधिक है, तो फर्म उस वस्तु की आपूर्ति अधिक मात्रा में करेगी तथा उपभोक्ता उस वस्तु की माँग कम मात्रा में करेंगे। इससे बाजार में सन्तुलन की अवस्था बिगड़ जायेगी। अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। इस स्थिति को चित्र में दर्शाया गया है।
कीमत Op1 > Op
कीमत Op1 कीमत पर
माँगी गई मात्रा = Oyd
पूर्ति की गई मात्रा = Oy5
Oys > oyd
जिसका अभिप्राय अधिशेष आपूर्ति से है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 1

2. यदि बाजार में प्रचलित वस्तु की कीमत उसकी साम्य कीमत से कम होती है, तो बाजार में उस वस्तु के उत्पादक पूर्ति कम करेंगे तथा उस वस्तु के क्रेता माँग अधिक मात्रा में करेंगे। इस प्रकार बाजार का सन्तुलन बिगड़ जायेगा। इस स्थिति को स्वल्पता या अधिमाँग कहते हैं। इसे चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
कीमत Op1 < Op
कीमत Op1 कीमत पर –
माँग = Oyd
पूर्ति = Oy5
oyd < oy5
जिसका अर्थ है अधिमाँग या स्वल्पता।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 2

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

प्रश्न 5.
फर्मों की एक स्थिर संख्या होने पर पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत का निर्धारण किस प्रकार होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्मों की संख्या निश्चित होती है, तो साम्य की स्थिति का निर्धारण माँग व पूर्ति के एक साथ काम करने से होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जहाँ फर्मों की संख्या निश्चित होती है क्रेता एवं विक्रेता दोनों ही कीमत स्वीकारक होते हैं। बाजार पूर्ति वक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर सभी फर्म कितनी मात्रा बेचने के लिए तैयार है। इसी प्रकार बाजार माँग चक्र यह दर्शाता है कि विभिन्न कीमत स्तर पर विभिन्न क्रेता वस्तु की कितनी मात्रा खरीदने को तैयार है।

सन्तुलन वह अवस्था है जहाँ बाजार में माँगी गई मात्रा पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है। ज्यामितीय रूप से साम्य अवस्था वह बिन्दु है, जहाँ बाजार माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। इस बिन्दु पर वस्तु की माँगी गई मात्रा उसकी पूर्ति की गई मात्रा के बराबर होती है इस बिन्दु के अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो अधिमाँग की स्थिति होती है या अधिशेष पूर्ति की। साम्य बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा क्रय व विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य कीमत निर्धारण को निम्नलिखित चित्र द्वारा दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 3
आपूर्ति वक्र SS व माँग DD एक-दूसरे को बिन्दु E पर काटते हैं। अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है। इस बिन्दु पर साम्य कीमत = Op, साम्य मात्रा = Oy

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प्रश्न 6.
मान लिजिए की अभ्यास 5 में सन्तुलन कीमत बाजार में फर्मों की न्यूनतम औसत लागत से अधिक है। अब यदि फर्मों के निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति दे दें, तो बाजार कीमत इसके साथ किस प्रकार समायोजन करेगी?
उत्तर:
एक फर्म उत्पाद की धनात्मक मात्रा का उत्पादन केवल उस स्थिति में करती है, जब वस्तु कीमत न्यूनतम परिवर्तनशील लागत समान या अधिक होती है। जब बाजार में फर्म का प्रवेश व गमन स्वतंत्र होता है, तो हमेशा फर्म उस कीमत पर आपूर्ति करती है, जहाँ किसी फर्म को न तो असामान्य लाभ प्राप्त होता है और न ही हानि होती है। अत: कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होगा, जहाँ वस्तु की कीमत, न्यूनतम अवसर लागत के समान होगी। यदि साम्य कीमत, न्यूनतम औसत लागत से अधिक है, तो फर्म को असामान्य लाभ मिलता है।

कई अन्य फर्मे बाजार में प्रवेश करने लगती है। इससे अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न होगी। फर्मों में प्रतियोगिता बढ़ने से वे वस्तु की कीमत कम करेंगे। जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ प्राप्त होता रहेगा नई फमें बाजार में प्रवेश करती रहेगी, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के समान हो जायेगी, तो फर्मों का प्रवेश बाजार में बन्द हो जायेगा। इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ मिलेगा। अतः मुक्त प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के हमेशा बराबर होगी।
p = Min AC

इस कीमत पर फर्म पूर्तिको माँग के समान समायोजित करने का प्रयास करती है। रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण माँग वक्र तथा p = न्यूनतम AC रेखा द्वारा होता है। साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र, p = AC न्यूनतम रेखा को काटता है स्वतन्त्र प्रवेश व गमन की स्थिति नीचे रेखाचित्र द्वारा साम्य का निर्धारण दिखाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 4
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र रूप से होता है, तो कीमत का निर्धारण न्यूनतम औसत लागत के बराबर होता है। साम्य मात्रा का निर्धारण भी माँग वक्र व न्यूनतम औसत लागत के प्रतिच्छेदन बिन्दु पर होता है।

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प्रश्न 7.
एक बाजार में निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति है, तो फर्मे पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में कीमत के किस स्तर पर पूर्ति करती है? ऐसे बाजार में सन्तुलन मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
बाजार में फर्मों के स्वतन्त्र प्रवेश व गमन का अभिप्राय है कि कोई भी फर्म असामान्य लाभ प्राप्त नहीं करेगी। इस स्थिति में फर्म को हानि भी नहीं होगी। साम्य कीमत का निर्धारण उस स्तर पर होगा, जहाँ कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होगी। यदि बाजार कीमत का स्तर न्यूनतम औसत लागत से अधिक होगा, तो फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश के कारण बाजार पूर्ति में वृद्धि होगी और आपूर्ति आधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। सम्पूर्ण उत्पाद को बेचने के लिए फर्मे कीमत घटाती है, ताकि वे अपने सम्पूर्ण उत्पाद को बेच सकें।

जब तक मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा नई फर्मों का बाजार में प्रवेश जारी रहता है, जब वस्तु की कीमत, औसत लागत के बराबर हो जाती है, तो फर्मों का प्रवेश रूक जाता है, क्योंकि इस कीमत पर सभी मौजूदा फर्मों को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। मौजूदा फर्म साम्य की अवस्था में बाजार छोड़कर नहीं जाती है, क्योंकि उन्हें कोई हानि नहीं उठानी पड़ती है।

साम्य के निर्धारण के आकलन को उस स्थिति में भी स्पष्ट किया जा सकता है, जब वस्तु की बाजार कीमत औसत लागत से कम होती है। जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है, तो साम्य निर्धारण माँग वक्र तथा p = AC न्यूनतम रेखा के कटाव बिन्दु पर होता है। साम्य का निर्धारण, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होता है नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 5
पूर्ण प्रतियोगी बाजार फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण साम्य का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ बाजार कीमत, न्यूनतम औसत लागत के समान होती है। इसी बिन्दु पर क्रय-विक्रय की गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।
साम्य कीमत = Op0 = Min AC
साम्य मात्रा = Oy0

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प्रश्न 8.
एक बाजार में फर्मों की सन्तुलन संख्या किस प्रकार निर्धारित होती है, जब उन्हें निर्बाध प्रवेश व बहिर्गमन की अनुमति हो?
उत्तर:
बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व गमन इस बात का प्रतीक है कि बाजार पूर्ति उस कीमत पर होती है, जहाँ किसी भी फर्म को न तो असामान्य लाभा प्राप्त है और न ही हानि उठानी पड़ती है। बाजार कीमत उस स्तर पर तय होती है, जहाँ कीमत न्यूनतम AVC के समान होती है। यदि बाजार कीमत न्यूनतम AVC से अधिक होती है, तो फर्मों असामान्य लाभ मिलता है। इससे आकर्षित होकर नई फर्में बाजार में प्रवेश करती है। फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति बढ़ जाती है, जो अधिक आपूर्ति को जन्म देती है। अधिशेष आपूर्ति के कारण बाजार कीमत घटती है, जिससे सारा उत्पादन बेचा जा सके।

नई फर्मों का प्रवेश, जब तक जारी रहता है, तव तक फर्मों का असामान्य लाभ मिलता है। जब कीमत न्यूनतम AVC के समान हो जाती है, तो नई फर्मों का प्रवेश रुक जाता है। इस कीमत पर प्रत्येक मौजूदा फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होगा, इस स्थिति में कोई नई फर्म बाजार में प्रवेश नहीं करेगी। इसके, क्योंकि फर्मों को सामान्य लाभ मिलता है और हानि उठानी नहीं पड़ती है, इसलिए मौजूदा फर्मे बाजार छोड़कर इस स्थिति में बाहर नहीं जाती है। इस अवस्था में फर्म साम्य की स्थिति में है फर्मों की संख्या की व्याख्या, इसके विपरीत स्थिति में भी की जा सकती है, जब फर्मों को हानि उठानी पड़ती है।

प्रश्न 9.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होती है, जब उपभोक्ताओं की आय में –
(I) वृद्धि होती है
(II) कमी होती है
उत्तर:
यदि बाजार में फर्मों की स्ख्या स्थिर है, तो उपभोक्ता की आय साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा को प्रभावित करेगी। इसे नीचे समझाया गया है –

(I) उपभोक्ता की आय में वृद्धि:
1. आय बढ़ने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की खरीद पर कम व्यय करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग में कमी होने के कारण घटिया वस्तु का माँग वक्र नीचे/बायीं ओर खिसक जायेगा। माँग में कमी के कारण पूर्ति आधिक्य की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में कमी आयेगी।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 6

2. आय बढ़ने पर उपभोक्ता सामान्य वस्तु की खरीद पर अधिक व्यय करेगा। अतः सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं/ऊपर की ओर खिसक जायेगा। माँग में वृद्धि के कारण बाजार में माँग की अधिकता के कारण साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 7

(II) उपभोक्ता आय में कमी:
1. आय कम होने पर उपभोक्ता घटिया वस्तु की अधिक खरीद करेगा। ऐसी वस्तुओं की माँग बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र ऊपर/दायीं ओर खिसक जायेगा माँग बढ़ने के कारण पूर्ति में कमी की स्थिति पैदा होगी, जिससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा में बढ़ोतरी होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 8

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प्रश्न 10.
पूर्ति तथा माँग वक्रों का उपयोग करते हुए दर्शाइए कि जूतों की कीमतों में वृद्धि, खरीदी व बेची जाने वाली मोजों की जोड़ी की कीमतों को तथा संख्या को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
जूते व जुराब एक-दूसरे की पूरक वस्तु है। जूतों की कीमत में वृद्धि का जुराब की माँग पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अर्थात् जूतों की कीमत में वृद्धि होने पर जुराबों की माँग में कमी आ जायेगी। अतः जुराबों की मॉग बायीं/नाचे की ओर खिसक जायेगा। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 9

प्रश्न 11.
कॉफी की कीमत में परिवर्तन, चाय की सन्तुलन कीमत को किस प्रकार प्रभावित करेगा? एक आरेख द्वारा सन्तुलन मात्रा पर प्रभाव को भी समझाइए।
उत्तर:
कॉफी व चाय एक-दूसरे की प्रतियोगी वस्तु है। कॉफी की कीमत में परिवर्तन होने पर चाय की माँग में समान दिशा में परिवर्तन होगा। कॉफी की कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप चाय की साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 10Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 11

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प्रश्न 12.
जब उत्पादन में प्रयुक्त अगतों की कीमत परिवर्तन होता है, तो किसी वस्तु की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन दो प्रकार से साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करता है –

  1. साधन आगतों की कीमत बढ़ सकती है
  2. साधन आगतों की कीमत घट सकती है

1. साधनों की कीमत में वृद्धि:
साधन आगतों की कीमत में वृद्धि का वस्तु की पूर्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति में कमी आ जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 12

2. साधनों की कीमत में कमी:
साधन आगतों की कीमत में कमी का वस्तु की पूर्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। अर्थात् साधन आगतों की कीमत घटने पर वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 13
नई साम्य कीमत घटेगी तथा साम्य मात्रा बढ़ेगी।

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प्रश्न 13.
यदि वस्तु x की स्थानापन्न वस्तु (y) की कीमत में वृद्धि होती है, तो वस्तु x की सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर इसका क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
यदि वस्तु (x) की प्रतिस्थापन वस्तु (y) की कीमत बढ़ जायेगी, तो वस्तु (x) सापेक्ष रूप से सस्ती हो जायेगी। इससे वस्तु (x) की माँग में वृद्धि होगी। अर्थात् वस्तु (x) का माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जायेगा। इस परिवर्तन का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 14
नई साम्य कीमत तथा मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।

प्रश्न 14.
बाजार फर्मों की संख्या स्थिर होने पर तथा निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्थिति में, माँग वक्र के स्थानान्तरण का सन्तुलन पर प्रभाव की तुलना कीजिए।
उत्तर:
1. जब फर्मों की संख्या स्थिर हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तो माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से बाजार में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी। अधिमाँग के कारण साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसके विपरीत माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से बाजार में माँग कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में कमी उत्पन्न हो जायेगी। माँग वक्र में खिसकाव. के कारण साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 15
इस स्थिति में साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।

2. जब फर्मों का प्रवेश में निर्गम स्वतन्त्र हो, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव:
जब बाजार में फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतन्त्र होता है, तो साम्य बिन्दु का निर्धारण हमेशा न्यूनतम औसत लागत पर तय होता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में किसी भी फेर्म को असामान्य लाभ प्राप्त नहीं होता है। माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में अधिमाँग की स्थिति पैदा हो जाती है, इससे बाजार कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। बढ़ी कोभत पर मौजूदा फर्मों को असामान्य लाभ मिलेगा। इससे आकर्षित होकर कई नई फर्मे बाजार में प्रवेश करेंगी। नई फर्मों के प्रवेश से बाजार पूर्ति में बढ़ोतरी हो जायेगी। इससे साम्य कीमत अपने मूल स्तर पर पहुँच जायेगी।

माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर बाजार में न्यून माँग की स्थिति पैदा होती है इससे बाजार कीमत कम हो जाती है। मौजूदा फर्मों को हानि उठानी पड़ती है। जिन फर्मों को हानि होती है, वे बाजार छोड़कर बाहर चली जाती है । फर्मों के बाहर होने से बाजार आपूर्ति कम हो जायेगी, इससे साम्य कीमत पुनः अपने पूर्व स्तर पर पहुँच जाती है। इस प्रकार फर्मों के मुक्त प्रवेश व निर्गम का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है। लेकिन माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा बढ़ जायेगी। इसी प्रकार माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव से साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 16
जब बाजार से फर्मों का प्रवेश व निर्गम स्वतंत्र होता है, तो माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन साम्य मात्रा प्रभावित होती है।

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प्रश्न 15.
माँग तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर शिफ्ट का सन्तुलन कीमत तथा मात्रा पर प्रभाव को एक आरेख द्वारा समझाइए।
उत्तर:
नीचे दर्शायी गई तीन स्थितियाँ हो सकती है –
(I) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं वक्र में खिसकाव से ज्यादा हो –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 17

(II) यदि माँग वक्र के दायीं ओर खिसकाव पूर्ति चक्र में खिसकाव से कम हो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 18
नई साम्य कीमत कम हो जायेगी परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।

(III) यदि माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के बराबर हो –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 19

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प्रश्न 16.
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार प्रभावित होते हैं जब –
(I) माँग तथा पूर्ति दोनों समान दिशा में शिफ्ट होते हैं।
(II) माँग तथा पूर्ति वक्र विपरीत दिशा में शिफ्ट होते हैं।
उत्तर:
(I) माँग और पूर्ति वक्र दोनों समान दिशा में खिसकाव –

1. माँग व पूर्ति वक्र दोनों में बायीं ओर खिसकाव
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर ज्यादा खिकाव
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 20

(b) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में बायीं ओर कम खिसकाव
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(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र में बायीं ओर समान खिसकाव
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 22

(II) दायीं ओर माँग वक्र व पूर्ति वक्र में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में पूर्ति वक्र की तुलना में दायीं ओर कम खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 23

(b) माँग वक्र में दायीं ओर पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 24

(c) माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर समान खिसकाव –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 25

(III) माँग व पूर्ति वक्र में विपरीत दिशा में खिसकाव –
(a) माँग वक्र में बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 26

(b) माँग वक्र में दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव –Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 27

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प्रश्न 17.
वस्तु बाजार में तथा श्रम बाजार में माँग तथा पूर्ति वक्र किस प्रकार भिन्न होते हैं?
उत्तर:
वस्तु बाजार के माँग वक्र व पूर्ति वक्र तथा श्रम बाजार के माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र में मूलभूत अन्तर होता है। वस्तु बाजार में वस्तु की माँग उपभोक्ता करते हैं और उत्पादक वस्तु की पूर्ति करते हैं। लेकिन श्रम बाजार में श्रम की माँग उत्पादक करते हैं व श्रम की पूर्ति परिवार करते हैं। वस्तुओं की माँग उपयोगिता पाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की माँग उत्पादकता के कारण की जाती है। वस्तुओं की पूर्ति उत्पादक लाभ कमाने के लिए की जाती है, जबकि श्रम की पूर्ति का उद्देश्य रोजगार व मजदूरी प्राप्त करना होता है। हालाँकि मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा उसी प्रकार होता है। जैसे-वस्तु की कीमत का निर्धरण माँग व पूर्ति की शक्तियाँ करती है।

प्रश्न 18.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में श्रम की इष्टतम मात्रा किस प्रकार निर्धारित होती है?
उत्तर:
प्रतियोगी होने के कारण प्रत्येक फर्म लाभ अधिकतम करने के प्रयास करती है। अतः उत्पादक इकाई उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ श्रम की अन्तिम इकाई की लागत उस अतिरिक्त श्रम के नियोजन से फर्म की आय में बढ़ोतरी होती है। श्रम की अन्तिम इकाई की लागत मजदूरी दर के समान होती है। श्रम की अन्तिम इकाई के नियोजन से अतिरिक्त लाभ (आय) उस इकाई की सीमान्त उत्पादकता के समान होती है। अत: फर्म उस बिन्दु तक श्रम का नियोजन करती है जहाँ –
मजदूरी दर = सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRP1
जहाँ MRp2 = MR × MP2
अथवा MRp2 = p × Mp2 (MR =p प्रतियोगी फर्म के लिए)
अथवा MRp2 = VMp2
अथवा w = VMp2

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प्रश्न 19.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी श्रम बाजार में मजदूरी दर किस प्रकार निर्धारित होती है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम की मजदूरी दर का निर्धारण माँग और पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। फर्म लाभ कमाने के उद्देश्य से श्रम की माँग करती है। श्रम के नियोजन पर फर्म को लागत भी उठानी पड़ती है। श्रम को क्रय करने की अतिरिक्त लागत श्रम को दी गई मजदूरी होती है। श्रम के नियोजन से प्राप्त लाभ श्रम की सीमान्त उत्पादकता के समान होता है। एक फर्म श्रम की अधिकतम इकाइयों का नियोजन उस सीमा तक करती है जहाँ श्रम की मजदूरी दर श्रम की सीमान्त आगत उत्पादकता के समान होती है।

श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता ह्रासमान सीमान्त उत्पादकता के नियमानुसार प्राप्त होती है और फर्म हमेशा w = VMp2 = MRp2 के आधार पर उत्पादन करती है। इसका अभिप्राय है श्रम का माँग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है। इस प्रकार श्रम की माँग व पूर्ति श्रम को दी जाने वाली मजदूरी दर में विपरीत सम्बन्ध होता है। श्री की आपूर्ति परिवार करते हैं। परिवार श्रम से प्राप्त मजदूरी तथा आराम के बीच चयन के आधार पर श्रम की आपूर्ति करते हैं। सामान्यतः परिवार ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की ज्यादा आपूर्ति करते हैं।

कोई व्यक्तिगत श्रमिक हो सकते हैं, जो ऊँची मजदूरी दर भी आराम पसन्द करते हैं लेकिन सामान्यत: ऊँची मजदूरी दर पर अधिक श्रम की आपूर्ति द्वारा अधिक कमाना ज्याद पसन्द करते हैं। अतः श्रम का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। जिस बिन्दु पर ऋणात्मक ढाल वाला श्रम माँग वक्र तथा धनात्मक ढाल वाला श्रम का पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य की अवस्था में श्रम की माँग व पूर्ति दोनों समान होते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 28
श्रम की साम्य मजदूरी दर Ow तथा साम्य माँग व पूर्ति OL है।

प्रश्न 20.
क्या आप किसी ऐसी वस्तु के विषय में सोच सकते हैं, जिस पर भारत में कीमत की उच्चतम निर्धारित कीमत लागू है। निर्धारित उच्चतम कीमत सीमा के क्या परिणाम हो सकते हैं?
उत्तर:
हाँ, गेहूँ एक ऐसी वस्तु है जिस पर भारत में कीमत नियंत्रण किया जाता है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के तेल, चावल आदि पर भी कीमत नियंत्रण का प्रयोग किया जाता है।

कीमत नियन्त्रण के प्रभाव:
सामान्यतः कीमत नियन्त्रण के साथ ही राशन प्रणाली शुरू करनी पड़ती है। कीमत नियन्त्रण के निम्नलिखित तीन प्रभाव होते हैं –

1. प्रायः
उपभोक्ताओं को उपभोग के लिए घटिया वस्तु मिलती है, क्योंकि कीमत नियन्त्रण के कारण उत्पादकों को वस्तु की कीमत मिलती है। उत्पादन लागत को घटाने के लिए वे नीची गुणवत्ता वाली वस्तु उत्पन्न करते हैं।

2. प्रत्येक उत्पादक को उपभोग हेतु वस्तु की निश्चित मात्रा प्राप्त होती है। वस्तु की स्वल्पता के कारण उपभोक्ताओं को लम्बी-लम्बी कतारों में खड़ा होना पड़ता है।

3. ज्यादातर उपभोक्ताओं को आवश्यकता से कम मात्रा में ही उपभोग के लिए वस्तु मिल पाती है। उनमें से कुछ उपभोक्ता अतिरिक्त मात्रा प्राप्त करने के लिए ऊँची कीमत देने को तैयार हो जाते हैं। इससे रिश्वत, कालाबाजारी, जमाखोरी जैसी समस्याएँ पैदा हो जाती है।

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प्रश्न 21.
माँग वक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों की तुलना करें, जब निर्बाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो। व्याख्या करें।
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में साथ-साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 29
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन का प्रभाव, जब फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र हो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 30

प्रश्न 22.
मान लीजिए, एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में वस्तु x की माँग तथा पूर्ति वक्र निम्न प्रकार दिए गए हैं –
qD = 700 – p
qS = 500 + 3p क्योंकि p ≥ 15
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 15 मान लीजिए कि बाजार में समरूपी फर्मे हैं। 15 रुपये से कम, किसी भी कीमत पर वस्तु x की बाजार पूर्ति के शून्य होने के कारण की पहचान कीजिए। इस वस्तु के लिए सन्तुलन कीमत क्या होगी? सन्तुलन की स्थिति में x की कितनी मात्रा का उत्पादन होगा?
उत्तर:
qD
yD = 700 – p
qS = 500 + 3p p ≥ 15 के लिए
= 0 p ≤ 15 के लिए
15 रुपये से कम कीमत वस्तु पूर्ति मात्रा शून्य है। इसका कारण यह है कि पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन नहीं करती है।

साम्य अवस्था में –
yD = yS
700 – p = 500 + 3p (मूल्य स्थापित करने पर)
या – 3p – p = 500 – 700
या – 4p = – 200
200 या 4p = 200 या p = \(\frac{200}{4}\) या p = 50
p का मूल्य किसी भी समीकरण में प्रतिस्थापित करने पर –
yD = 700 – 50 = 650
yS = 500 + 3 × 50 = 500 + 150 = 650
साम्य कीमत = 50 रुपये
साम्य मात्रा = 650

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प्रश्न 23.
अभ्यास 22 में दिए गए समान माँग वक्र को लेते हुए, आइए, फर्मों को वस्तु x का उत्पादन करने के निर्बाध प्रवेश तथा बर्हिगमन की अनुमति देते हैं। यह भी मान लीजिए कि बाजार समानरूपी फर्मों से बना है, जो वस्तु x का उत्पादन करती है। एक अकेली फर्म का पूर्ति वक्र निम्न प्रकार है –
\(\boldsymbol{q}_{\boldsymbol{f}}^{\boldsymbol{s}}\) = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 20
= 0 क्योंकि 0 ≤ p ≤ 20

  1. p = 20 का क्या महत्त्व है?
  2. बाजार में x के लिए किस कीमत पर सन्तुलन होगा? अपने उत्तर का कारण बताइए।
  3. सन्तुलन मात्रा तथा फर्मों की संख्या का परिकलन कीजिए।

उत्तर:
1. p = 20 न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत है।
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कोई भी फर्म न्यूनतम AVC से कम कीमत पर धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं करती है। बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन मुक्त होने के कारण साम्य कीमत 20 रु. होगी।

2. साम्यावस्था के लिए साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र होने के कारण 20 रुपये से कम कीमत पर कोई भी फर्म धनात्मक स्तर पर उत्पादन नहीं करेगी क्योंकि 20 रुपये से कम कीमत पर वस्तु बेचने से फर्म को हानि होगी। 20 रुपये से अधिक किसी भी कीमत पर फर्मों का असामान्य लाभ मिलेगा। असामान्य लाभ से आकर्षित होकर नई फर्म बाजार में प्रवेश करने लगती है। फर्मों का प्रवेश उस समय तक जारी रहता है, जब तक फर्मों का लाभ सामान्य नहीं हो जाता। एक बार कीमत न्यूनतम औसत लागत के समान होते ही साम्य स्थापित हो जाती है। इस अवस्था में फर्मों का प्रवेश व गमन रुक जाता है।

3. बाजार में फर्मों का प्रवेश व गमन स्वतन्त्र है। अतः साम्य कीमत 20 रुपये होगी।
yS = 8 + 3p
= 8 + 3 × 20 (p का मान रखने पर)
= 8 + 60 = 68 एक फर्म की आपूर्ति
साम्य स्तर पर बाजार माँग yD = 700 – p = 700 – 20 (p का मान रखने पर)
= 680
68 इकाइयों की पूर्ति करती है = 1 फर्म
1 इकाई की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) फर्म
680 इाकइयों की पूर्ति करती है = \(\frac{1}{68}\) × 680 फर्म = 10 फर्म
बाजार में साम्य मात्रा = 680 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = 10

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प्रश्न 24.
मान लीजिए कि नमक की माँग तथा पूर्ति वक्र को इस प्रकार दिया गया है –
qD = 1000 – p; qS = 700 + 2p
1. सन्तुलन कीमत तथा मात्रा ज्ञात कीजिए।

2. अब मान लीजिए कि नमक के उत्पादन के लिए प्रयुक्त एक आगत की कीमत में वृद्धि हो जाती है और नया पूर्ति वक्र है –
qS = 400 + 2p
सन्तुलन कीमत तथा मात्रा किस प्रकार परिवर्तित होती है ? क्या परिवर्तन आपकी अपेक्षा के अनुकूल है?

3. मान लीजिए, सरकार नमक की बिक्री पर 3 रुपये प्रति इकाई कर लगा देती है। यह सन्तुलन कीमत तथा मात्रा को किस प्रकार करेगा?
उत्तर:
1. qD yd = 1000 – p
qSy = 700 + 2p
साम्य अवस्था में yd = ys
100 – p = 700 + 2p
या – 2p – p = 700 – 1000
या – 3p = -300
या 3p = 300 या p = \(\frac{300}{3}\) = 100
p का मान माँग व पूर्ति समीकरणों में प्रतिस्थापित करने पर
yd = 1000 – p = 1000 – 100 = 900
ys = 700 + 2p = 700 + 2 × 100 = 700 + 200 = 900
साम्य कीमत = 100 रुपये
साम्य मात्रा = 900 इकाइयाँ

2. नई आपूर्ति समीकरण ys = 400 + 2p
साम्यावस्था में, ys = ys
1000 – p = 400 – 1000
या – 2p – p = 400 – 1000 या – 3p = 600
या 3p = 600 या p = \(\frac{600}{3}\) p = 200 p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर yd = 1000 – p = 1000 – 200 = 800
ys = 400 + 2p = 400 + 2 × 200 = 400 + 400 = 800
साम्य कीमत = 200 रुपये
साम्य मात्रा = 800 इकाइयाँ
सन्साधनों की कीमत में वृद्धि से पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है लेकिन साम्य मात्रा घट जाती है। अतः परिणाम हमारी अपेक्षाओं को सत्यापित करता है।

3. yd = 1000 – p
ys = 700 + 2p
उत्पादन शुल्क 3 रुपये/इकाई लगाने पर आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। खण्ड (i) में साम्य कीमत 100 रुपये था, 3 रु./इकाई उत्पाद शुल्क आरोपित होने पर फर्म को प्रति इकाई 3 रुपये कम प्राप्त होंगे। अत:
ys = 700 + 2(p – 3)
साम्यावस्था में yd = ys
1000 – p = 700 + 2(p – 3)
या 1000 – p = 700 + 2p – 6 या – 2p – p = 700 – 6 – 1000
या -3p = -306 या 3p = 306
या p = \(\frac{306}{3}\) = 102
p का मान माँग व पूर्ति समीकरण में रखने पर –
yd = 1000 – p = 1000 – 102 = 898
ys = 700 + 2(p – 3) = 700 + 2(102 – 3)
= 700 + 2 × 99 = 700 + 198 = 98
नई साम्य कीमत = 102 रुपये
नई साम्य मात्रा = 898 इकाइयाँ

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प्रश्न 25.
मान लीजिए कि एपार्टमेन्टों के लिए बाजार-निर्धारण किराया इतना अधिक है कि सामान्य लोगों द्वारा वहन नहीं किया जा सकता, यदि सरकार किराए पर एपार्टमेन्ट लेने वालों की मदद करने के लिए किराया नियन्त्रण लागू करती है, तो इसका एपार्टमेन्टों के बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि बाजार सामान्य जन की पहुँच से अधिक किराया अपार्टमेन्ट्स का तय करता है, तो सरकार किराए की उच्चतम सीमा तय कर सकती है, ताकि सामान्य आदमी के लिए आवास प्रयोज्य हो जाएँ। सरकार किराए की सीमा, बाजार किराए से काफी कम तय करेगी। कम किराए पर ज्यादा लोग आपार्टमेन्ट की माँग करेंगे, आपूर्ति पक्ष कम अपार्टमेन्ट किराये देने को तैयार होगा। इससे किराये के मकानों की अधिकता उत्पन्न हो जायेगी। इस स्थिति को नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है। किराया
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 31
अधिक माँग पर काबू पाने के लिए सरकार अपार्टमेन्ट की राशनिंग कर सकती है, जिससे एक व्यक्ति एक से अधिक अपार्टमेन्ट न ले सके। इस व्यवस्था के निम्नलिखित परिणाम होंगे –

  1. कम किराए पर उत्पादक घटिया गुणवत्ता वाले अपार्टमेन्ट का निर्माण कर सकते हैं, ताकि इन्हें निर्मित करने की लागत कम हो जाए।
  2. अधिक माँग या स्वल्पता के कारण सामान्य लोगों को लम्बी कतार में खड़ा होना पड़ेगा।
  3. नियन्त्रित किराए पर सभी चाहने वाले लोगों को किराये पर अपार्टमेन्ट नहीं मिलेंगे। इससे कालाबाजारी, रिश्वतखोरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।

Bihar Board Class 12 Economics बाजार संतुलन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साम्य कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह कीमत स्तर, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की जाने वाली मात्रा दोनों बराबर होती है, साम्य कीमत कहलाती है।

प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी ‘बाजार में सन्तुलन कब स्थापित होता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में सन्तुलन तब स्थापित होता है, जब किसी दी गई कीमत पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर हो जाती है।

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प्रश्न 3.
जब फर्मों की संख्या स्थिर रहती है, तब माँग व पूर्ति वक्रों के द्वारा कैसे निर्धारित होता है?
उत्तर:
जब फर्मों की संख्या स्थिर होती है, तब सन्तुलन माँग व पूर्ति का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है, जहाँ माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं।

प्रश्न 4.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में श्रम रोजगार का अधिकतम स्तर क्या होता है?
उत्तर:
प्रत्येक फर्म उस स्तर तक श्रम का नियोजन करती है, जहाँ सीमान्त आगम उत्पादकता श्रम की मजदूरी दर के समान होती है।

प्रश्न 5.
किसी उत्पाद के लिए अधिमाँग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर एक वस्तु के लिए बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति से अधिक होती है, तो इसे अधिक माँग कहते हैं।

प्रश्न 6.
किसी वस्तु की अधिक पूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
यदि किसी दी गई कीमत पर वस्तु की बाजार माँग की तुलना में उसकी बाजार पूर्ति अधिक होती है, तो इसे अधिक पूर्ति कहते हैं।

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प्रश्न 7.
बाजार सन्तुलन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति, जिसमें दी गई कीमत पर किसी वस्तु की बाजार माँग उसकी बाजार पूर्ति के समान होती है, साम्य कीमत कहलाती है। सन्तुलन की अवस्था में न तो उपभोक्ता माँग में परिवर्तन करना चाहते हैं और न ही
उत्पादक पूर्ति में परिवर्तन करना चाहते हैं।

प्रश्न 8.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 9.
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब पूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तब साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी।

प्रश्न 10.
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य मात्रा पर प्रभाव किस प्रकार निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र में एक साथ परिवर्तन होने पर दोनों वक्रों के ढाल तथा खिसकाव के स्तर के आधार पर साम्य मात्रा पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।

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प्रश्न 11.
माँग व पूर्ति में एक साथ परिवर्तन होने पर साम्य कीमत पर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर:
माँग वक्र व पूर्ति वक्र के ढाल एवं दोनों में खिसकाव की माप के द्वारा साम्य कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव का निर्धारण होता है।

प्रश्न 12.
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
यदि माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 14.
साम्य मात्रा पर माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य मात्रा कम हो जाती है।

प्रश्न 15.
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है।

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प्रश्न 16.
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।

प्रश्न 17.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा कम हो जाती है।

प्रश्न 18.
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव का साम्य कीमत पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत बढ़ जाती है।

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प्रश्न 19.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो व पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत घट जाती है।

प्रश्न 20.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो ओर पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है।

प्रश्न 21.
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो और पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत बढ़ जायेगी।

प्रश्न 22.
एक वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है, क्या साम्य कीमत बदल जायेगी?
उत्तर:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर माँग वक्र बायीं ओर खिसकने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 23.
जब एक वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार है और माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा है। क्या साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी?
उत्तर:
जब किसी वस्तु का पूर्ति वक्र लोचदार होता है, तो माँग वक्र बायीं ओर खिसक रहा हो, तो साम्य मात्रा कम हो जायेगी।

प्रश्न 24.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, तो साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।

प्रश्न 25.
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो और पूर्ति वक्र दायीं खिसक जाए, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 26.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग में माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को क्यों नहीं काटते हैं?
उत्तर:
इस प्रकार के उद्योग में उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होती है। अत: माँग वक्र व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं।

प्रश्न 27.
अक्षम्य (non-viable) उद्योग का अर्थ बताओ।
उत्तर:
वह उद्योग, जिसके बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को नहीं काटते हैं, उसे अक्षम्य उद्योग कहते हैं।

प्रश्न 28.
नियन्त्रित कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी वस्तु के विक्रय मूल्य की अधिकतम सीमा तय करना कीमत नियन्त्रण कहलाता है। उच्चतम कीमत निर्धारण के बाद विक्रेता तय कीमत से ज्यादा कीमत पर अपने उत्पाद को नहीं बेच सकता है।

प्रश्न 29.
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा पर इसका प्रभाव पड़ेगा बताइए।
उत्तर:
यदि किसी वस्तु का माँग वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो एवं पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाए, तो साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहेगी।

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प्रश्न 30.
क्या प्रतियोगी वस्तु की कीमत पूर्णप्रतियोगी बाजार में वस्तु की साम्य कीमत को प्रभावित करती है?
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है, जिससे साम्य कीमत बढ़ जाती है। इसके विपरीत प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी से वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है, जिससे
साम्य कीमत कम हो जाती है।

प्रश्न 31.
क्या अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन का वस्तु की साम्य कीमत पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
अभिरुचि में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। अतः साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है।

प्रश्न 32.
समर्थन कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
छोटे उत्पादकों किसानों आदि के हितों की रक्षा के लिए सरकार द्वारा किसी उत्पाद के घोषित मूल्य को समर्थन मूल्य कहते हैं। प्रायः समर्थन मूल्य सरकार बाजार मूल्य से ज्यादा तय करती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नियन्त्रित कीमत एवं साम्य कीमत में सम्बन्ध लिखो।
उत्तर:
साम्य कीमत वह कीमत स्तर होता है, जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई बाजार मात्रा उसकी बाजार पूर्ति के बराबर होती है। जबकि नियन्त्रित कीमत वह कीमत स्तर है, जो सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए तय की जाती है। सरकार कीमत नियन्त्रण करने के लिए किसी वस्तु की अधिकतम कीमत तय कर देती है। कीमत नियन्त्रण होने पर उत्पादक बाजार में उससे ज्यादा कीमत पर नहीं बेच सकता है। सामान्यत नियन्त्रित कीमत साम्य कीमत से नीची तय की जाती है। कीमत नियन्त्रण बाजार में वस्तु की स्वल्पता उत्पन्न करती है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 32

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प्रश्न 2.
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। क्या यह सम्भव है? यदि हाँ, तो समझाइए।
उत्तर:
माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत में वृद्धि हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा अपरिवर्तित रहती है, जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार होता है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 33

प्रश्न 3.
क्या उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि साम्य कीमत एवं मात्रा को प्रभावित करती है? यदि हाँ, तो चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
हाँ, उत्पाद शुल्क की दर में वृद्धि वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों को प्रभावित करती है। उत्पाद शुल्क की दर बढ़ने से सीमान्त लागत बढ़ जाती है। इससे आपूर्ति में कमी आ जाती है। वस्तु की आपूर्ति में कमी होने पर आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है। जैसा कि चित्र में दिखाया गया है, साम्य कीमत बढ़ जाती है परन्तु साम्य मात्रा घट जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 33

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प्रश्न 4.
लागत बचाने वाली तकनीक साम्य कीमत एवं मात्रा को किस प्रकार से प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
लागत बचाने वाली तकनीक का प्रयोग करने से सीमान्त लागत घटने लगती है। परिणामस्वरूप पूर्ति में वृद्धि हो जाती है। पूर्ति में वृद्धि होने से पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत का स्तर कम हो जाता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 34

प्रश्न 5.
क्या अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर बाजार कीमत तथा विनिमय की गई मात्रा पर प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
उपभोक्ता की अभिरुचियों में अनुकूल परिवर्तन होने पर माँग में वृद्धि हो जाती है । माँग में वृद्धि के कारण माँग वक्र ऊपर दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 35

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प्रश्न 6.
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि साम्य कीमत को किस प्रकार प्रभावित करती है? चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु का उपभोग बढ़ जाता है। वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है, इससे माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दिखाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 36

प्रश्न 7.
एक उद्योग अक्षम्यता से क्या अभिप्राय है। स्पष्ट करो।
उत्तर:
बाजार में कभी-कभी यह स्थिति भी हो सकती है कि किसी वस्तु की बाजार माँग शून्य हो जाती है। ऐसा तब हो सकता है, जब किसी वस्तु की उत्पादन लागत बहुत ऊँची हो। उत्पादन लागत बहुत ज्यादा होने से उत्पादक कम कीमत पर वस्तु बेच नहीं सकता है और उपभोक्ता इतनी ऊँची कीमत देने को तैयार नहीं होते हैं। इस स्थिति में वस्तु का उत्पादन/आपूर्ति नहीं होती है। माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र विनिमय की किसी धनात्मक मात्रा पर नहीं काटते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 37

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प्रश्न 8.
समर्थन कीमत से किस प्रकार अधिशेष उत्पादन/आपूर्ति किस प्रकार उत्पन्न होती है?
उत्तर:
समर्थन मूल्य या न्यूनतम कीमत सरकार द्वारा किसानों या छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए घोषित किया जाता है। समर्थन मूल्य घोषित करने का उद्देश्य किसी विशिष्ट वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहन देना होता है। सामान्यतः समर्थन मूल्य बाजार कीमत से अधिक घोषित किया जाता है। ऊँची कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा क्रय करते हैं तथा उत्पादक ज्यादा मात्रा उत्पन्न करने की इच्छा करते हैं। इसी कारण बाजार में अधिशेष आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 38

प्रश्न 9.
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ति में बहुत कमी आ जाती है? इस घटना का गेहूँ की बाजार कीमत पर प्रभाव चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
भयंकर सूखे के कारण गेहूँ की आपूर्ते में बहुत कमी आने का अभिप्राय है गेहूँ का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इस घटना में गेहूँ की कीमत में बहुत बढ़ोतरी होगी लेकिन मात्रा कम हो जायेगी। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 39

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प्रश्न 10.
माना जीन्स के उत्पादन में प्रयोग होने वाली रुई की कीमत में वृद्धि हो जाती है। इसका जीन्स की बाजार कीमत व साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
रुई जीन्स के उत्पादन में प्रयुक्त एक साधन है। रुई की कीमत बढ़ने पर जीन्स की उत्पादन की सीमान्त लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। जिससे जीन्स का आपूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा। अर्थात् साम्य कीमत में वृद्धि हो जायेगी। परन्तु साम्य मात्रा कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 40

प्रश्न 11.
आय में कमी से साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
आय में कमी का साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –
1. सामान्य वस्तु:
आय में कमी होने पर सामान्य वस्तु की माँग घट जाती है। सामान्य वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर बायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत तथा साम्य मात्रा दोनों घट जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 41

2. घटिया वस्तु:
आय में कमी होने पर घटिया वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। घटिया वस्तु का माँग वक्र, उपभोक्ता की आय कम होने पर दायीं ओर खिसक जाता है। साम्य कीमत व साम्य मात्रा दोनों में वृद्धि हो जाती है। इस प्रभाव को नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 42

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प्रश्न 12.
उपभोक्ताओं एवं विक्रेताओं के निर्णयों में बाजार में किस प्रकार तालमेल बैठता है?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में बाजार निर्णय उपभोक्ताओं व क्रेताओं के आपसी संव्यवहारों के द्वारा लिए जाते हैं। बाजार में साम्य का निर्धारण माँग व पूर्ति की शक्तियों के आधार पर होता है। उपयोगिता के स्तर को अधिकतम करने के लिए एक उपभोक्ता वस्तु की सीमान्त उपयोगिता के समान अधिकतम कीमत प्रदान कर सकता है।

दूसरी ओर उत्पादक लाभ को अधिकतम करने के लिए वस्तु की सीमान्त लागत के समान न्यूनतम कीमत स्वीकार कर सकता है। कीमत की अधिकतम एवं न्यूनतम सीमाओं के बीच जहाँ कही माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है साम्य कर निर्धारण हो जाता है। सन्तुलन बिन्दु पर कीमत को साम्य कीमत तथा खरीदी व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की अवस्था में उपभोक्ता व विक्रेता खरीदी व बेची गई मात्रा में परिवर्तन नहीं करना चाहते हैं।

प्रश्न 13.
माँग वक्र में खिसकाव का वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
माँग वक्र में खिसकाव की स्थिति में साम्य कीमत एवं मात्रा पर प्रभाव वस्तु के पूर्ति वक्र की प्रकृति पर निर्भर करता है । नीचे विभिन्न आपूर्ति वक्रों के साथ में माँग वक्र में खिसकाव का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव दर्शाए गए हैं –

1. जब आपूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा बढ़ जाती है और माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा घट जाती है ।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 43

2. जब पर्ति वक्र पूर्णतया बेलोचदार हो:
जब वस्तु का पूर्ति वक्र पूर्णतया लोचदार होता है, तो माँग वक्र में दायीं अथवा बायीं ओर खिसकाव का साम्य मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। माँग में दायीं ओर खिसकाव से साम्य कीमत बढ़ जाती है व माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव को साम्य कीमत कम हो जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 44

3. जब पूर्ति वक्र लोचदार हो:
जब वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है, तो. माँम – बक्र में खिसकाव का साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों पर प्रभाव पड़ता है। माँग वक्र जब दायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है तथा माँग वक्र जब बायीं ओर खिसकता है, तो साम्य कीमत एवं मात्रा दोनों घट जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 45

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प्रश्न 14.
चित्र की सहायता से समझाइए कि कीमत नियन्त्रण की स्थिति में राशनिंग घ्रणाली आवश्यक होती है।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर, साम्य कीमत से कम तय करती है परिणामस्वरूप वस्तु की आपूर्ति नियंत्रित कीमत पर माँग की तुलना में कम हो जाती है। अर्थात् बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उपलब्ध कम मात्रा को अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करने के लिए राशनिंग प्रणाली लागू करना आवश्यक हो जाता है। राशनिंग प्रणाली लागू होने पर निम्न आय वर्ग वाले उपभोक्ता भी कम कीमत वस्तु की निर्धारित मात्रा राशनिंग प्रणाली के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 46

प्रश्न 15.
उपभोक्ता की आय में वृद्धि किस प्रकार से वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा को प्रभावित करती है? समझाइए।
उत्तर:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि का साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करता है। जैसे –

1. सामान्य वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। उपभोक्ता की आय में वृद्धि से सामान्य वस्तु का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। इससे साम्य कीमत व मात्रा दोनों में बढ़ोतरी हो जाती है। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 47

2. घटिया वस्तु:
उपभोक्ता की आय में वृद्धि होने पर घटिया वस्तु की माँग कम होती है। आय बढ़ने पर घटिया वस्तु का माँग वक्र बायीं ओर खिसक जाता है। इससे घटिया वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जाते हैं। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 48

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प्रश्न 16.
यदि सरकार बाजार मजदूरी दर से न्यूनतम मजदूरी ऊँची तय करती है, तो इसका बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि सरकार न्यूनतम मजदूरी दर का निर्धारण बाजार मजदूरी दर से ऊपर तय करती है, तो इसका बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा –

  1. यदि सरकार मजदूरी नीति को सख्ती से लागू करती है, तो श्रमिकों को बाजार से ऊँची मजदूरी दर प्राप्त होगी।
  2. ऊँची मजदूरी दर पर आपूर्ति की तुलना श्रम की माँग कम होगी। इससे श्रम बाजार में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होगी।
  3. काम करने की विवशता के कारण कुछ बेरोजगार श्रमिक नीची मजदूरी दर पर काम करने को तैयार हो जाते हैं। श्रमिक वास्तव में ऊँची मजदूरी दर पर हस्ताक्षर करते हैं और वास्तव में पाते हैं कम मजदूरी। इससे श्रम बाजार में कालाबाजारी जन्म लेती है।

प्रश्न 17.
किसी वस्तु के पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखे।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो किसी वस्तु की पूर्ति में वृद्धि करते हैं, पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक निम्नलिखित है –

  1. उत्पादन तकनीक में प्रगति।
  2. फर्मों की संख्या में वृद्धि।
  3. उत्पादन शुल्क की दर में कमी।
  4. वस्तु के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में कमी।
  5. प्राकृतिक कारकों में अनुकूल परिवर्तन।

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प्रश्न 18.
वस्तु के माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग में कमी उत्पन्न करते हैं माँग वक्र में बायीं ओर खिसकाव पैदा करते हैं। उनमें से कुछ कारक नीचे दिए गए हैं –

  1. पूरक वस्तु की कीमत में वृद्धि।
  2. वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी।
  3. उपभोक्ता की रुचि अभिरुचियों में प्रतिकूल परिवर्तन।
  4. जलवायु व मौसम में प्रतिकूल परिवर्तन।

प्रश्न 19.
समझाइए कि राशनिंग प्रणाली कालाबाजारी को जन्म देती है।
उत्तर:
जब सरकार नियन्त्रण करती है, तो बाजार में वस्तु की स्वल्पता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सामान्यतः नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से कम तय किया जाता है। साम्य कीमत से कम कीमत पर वस्तु की बाजार माँग वस्तु की पूर्ति से कम रहती है। राशनिंग प्रणाली लागू करके सरकार वस्तु की उपलब्ध कम मात्रा अधिक उपभोक्ताओं में वितरित करती है। यदि उच्च आय वर्ग के उपभोक्ताओं को आवश्यकता से वस्तु की कम मात्रा राशन में प्राप्त होती है, तो वे चोरीछिपे ऊँची कीमत देकर वस्तु की तय मात्रा से ज्यादा मात्रा खरीदने की पेशकश करते हैं। परिणामस्वरूप विक्रेता काला बाजार की गतिविधियों में लिप्त होने लगते हैं।

प्रश्न 20.
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखिए।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक –

  1. उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत में परिवर्तन।
  2. उत्पादन तकनीक में परिवर्तन।
  3. फर्मों की संख्या में परिवर्तन।
  4. सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
  5. उत्पादन शुल्क की दर में परिवर्तन।
  6. प्राकृतिक कारकों में परिवर्तन।

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प्रश्न 21.
माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक लिखो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत के अलावा अन्य वे सभी कारक, जो वस्तु की माँग को प्रभावित करते हैं माँग वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी होते हैं। जैसे –

  1. सम्बन्धित वस्तु की कीमत में परिवर्तन।
  2. उपभोक्ता की आय में परिवर्तन।
  3. उपभोक्ता की रुचि एवं अभिरुचियों में परिवर्तन।
  4. उपभोक्ताओं की संख्या में परिवर्तन।

प्रश्न 22.
वर्ष 2002-03 के लिए मुख्य बजट में चाय पर उत्पाद शुल्क 2 रु./किग्रा. से घटाकर 1रु./किग्रा. कर दिया गया। अन्य बातें समान रहती है। चाय की साम्य कीमत पर इस प्रभाव को दर्शाइए।
उत्तर:
चाय उत्पादन पर उत्पाद शुल्क की दर 2 रु./किग्रा. से 1 रु./किग्रा. कर देने से चाय उत्पादन की सीमान्त लागत प्रति किग्रा 1 रुपये कम हो जायेगी। सीमान्त लागत घटने से चाय की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। अर्थात् चाय का पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। इससे चाय की साम्य कीमत घट जायेगी परन्तु साम्य मात्रा में वृद्धि हो जायेगी। इसे नीचे चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 49

प्रश्न 23.
यदि सरकार वस्तु की कीमत का नियन्त्रण बाजार कीमत से कम करती है, तो इसके बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेंगे?
उत्तर:
यदि सरकार नियन्त्रित कीमत का स्तर बाजार कीमत से कम तय करती है, तो इसके बाजार पर निम्नलिखित प्रभाव होंगे –

  1. बाजार कीमत से कम नियन्त्रित कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा में माँग करेंगे तथा उत्पादक कम मात्रा में पूर्ति करेंगे इससे बाजार में वस्तु की स्वल्पता की समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
  2. स्वल्पता की समस्या से “पहले आओ पहले पाओ” या “जिसकी लाठी उसकी भैंस” की समस्या पैदा हो सकती है।
  3. दूसरे क्रम पर स्थित समस्या से बचने के लिए सरकार राशनिंग प्रणाली लागू कर सकती है।
  4. राशनिंग प्रणाली लागू होने पर रिश्वतखोरी, जमा खोरी, काला बाजारी जैसी समस्या पनपने लगती है।

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प्रश्न 24.
समर्थन कीमत का बाजार पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
सामान्यतः सरकार, जो समर्थन मूल्य घोषित करती है, उसका स्तर बाजार कीमत से ऊपर होता है। इससे बाजार में निम्नलिखित प्रभाव उत्पन्न होते हैं –

  1. बाजार कीमत से ऊपर समर्थन कीमत पर बाजार में वस्तु की आपूर्ति उसकी माँग की तुलना में ज्यादा हो जाती है। इससे बाजार में अधिशेष उत्पादन की समस्या पैदा हो जाती है।
  2. अधिशेष उत्पादन की स्थिति में उत्पादक बाजार में सम्पूर्ण उत्पादन नहीं बेच पाते हैं, बल्कि सरकार को उस अधिशेष उत्पादन को क्रय करने की व्यवस्था करनी पड़ती है।
  3. अधिशेष उत्पादन को क्रय करके सरकार बफर स्टॉक बनाती है।
  4. उपभोक्ताओं को न्यायोचित कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए सरकार को आर्थिक सहायता की व्यवस्था करनी पड़ती है।

प्रश्न 25.
बाजार कीमत व सामान्य कीमत में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 50

प्रश्न 26.
एक उदाहरण की सहायता से फर्मों की संख्या में परिवर्तन से आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव को समझाइए तथा इसका साम्य कीमत व मात्रा पर प्रभाव लिखो।
उत्तर:
इस विषय में मोबाइल फोन का उदाहरण उपयुक्त रूप से पेश किया जा सकता है। 1990 के मध्य दशक में भारतवर्ष में एयर-टैल, एस्सार आदि गिनी-चुनी कम्पनियों मोबाइल फोन की सेवाएँ उपलब्ध कराती थी। फर्मों की कम संख्या के कारण ये फर्म काल भेजने-सुनने की ऊँची कीमत उपभोक्ताओं से वसूलती थी। वर्ष 2002 के अन्त तक कुछ नई कम्पनियाँ जैसे-डॉलफिन, हच, टाटा-बिरला आदि इस क्षेत्र में प्रवेश कर गई अर्थात् मोबाइल क्षेत्र में काम करने वाली फर्मों की संख्या में वृद्धि हो गई। इससे मोबाइल फोन सेवा की आपूर्ति बढ़ गई और परिणामस्वरूप मोबाइल सुनने की स्थानीय लागत बिल्कुल समाप्त हो गई। मोबाइल से स्थानीय, एस. टी. डी. आदि पर काल करना सस्ता हो गया है।

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प्रश्न 27.
माना चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटा लिया जाता है। इसका चीनी की साम्य मात्रा व कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को समझाइए।
उत्तर:
सामान्यत: नियन्त्रित कीमत का स्तर साम्य कीमत से नीचे तय किया जाता है। चीनी पर से कीमत नियन्त्रण हटाने पर बाजार में साम्य का निर्धारण उस कीमत पर होगा, जहाँ चीनी की बाजार माँग व पूर्ति दोनों समान हो जायेगी। उपभोक्ताओं की खुले बाजार में नियन्त्रित कीमत से ऊँची कीमत पर चीनी क्रय करनी पड़ेगी। अतः उपभोक्ता पक्ष नियन्त्रित कीमत पर चीनी की माँग की तुलना में कम मात्रा में चीनी की माँग करेंगे। दूसरी ओर उत्पादक चीनी की अधिक मात्रा में आपूर्ति करेंगे। साम्य का निर्धारण नियन्त्रित कीमत से ऊपर होगा। उपभोक्ताओं को ज्यादा मात्रा में उपभोग के लिए चीनी प्राप्त होगी। इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 51

प्रश्न 28.
अभिरुचि में प्रतिकूल परिवर्तन के कारण माँग में कमी का कोई एक उदाहरण समझाइए।
उत्तर:
इस सम्बन्ध में वायु-यात्रा का उदाहरण पेश किया जा सकता है। 11.9.2001 को अमेरिका स्थित व्यावसायिक टॉवर पर आतंकवादी हमले के बाद से लोग हवाई यात्राओं से डरने लगे। हवाई यात्रा के भय से हवाई यात्रा का माँग वक्र बायीं ओर खिसक गया अर्थात् हवाई यात्रा करने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आ गई। अमरिका में हवाई यात्रा किराए में गिरावट आ गई। कई हवाई यात्रा कम्पनियों को अपना उत्पादन पैमाना संकुचित करना पड़ा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
माँग व पूर्ति अनुसूचियों एवं वक्रों की सहायता से वस्तु की साम्य कीमत एवं साम्य निर्धारण की विधि समझाइए।
उत्तर:
वस्तु बाजार में सन्तुलन की अवस्था उस बिन्दु पर उत्पन्न होती है, जहाँ वस्तु की बाजार माँग तथा बाजार पूर्ति दोनों समान होते हैं। माँगी अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ताओं द्वारा माँगी गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। पूर्ति अनुसूची में विभिन्न कीमतों पर उत्पादकों द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाया जाता है। उपभोक्ता वस्तु की ऊँची कीमत पर कम इाकइयों की माँग करते हैं तथा इसके विपरीत नीची कीमत पर अधिक इकाइयों की माँग करते हैं। उत्पादक वस्तु की ऊँची कीमत पर अधिक इकाइयों की पूर्ति करते हैं और नीची कीमत पर कम इकाइयों की पूर्ति करते हैं।

लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादक सीमान्त लागत से कम कीमत पर वस्तु नहीं बेच सकते हैं। इसी प्रकार उपभोक्ता अधिकतम सन्तुष्टि पाने के लिए वस्तु की सीमान्त उपयोगिता से अधिक कीमत नहीं दे सकते हैं। इस प्रकार उपभोक्ता पक्ष के लिए अधिकतम कीमत देने की सीमा वस्तु की सीमान्त उपयोगिता होती है और उत्पादक के लिए न्यूनतम कीमत स्वीकार करने की सीमा वस्तु की सीमान्त लागत होती है। इन दो न्यूनतम एवं अधिकतम कीमत सीमाओं के बीच में जहाँ कहीं वस्तु की माँग व पूर्ति बराबर हो जाती है वहाँ साम्य का निर्धारण होता है। साम्य बिन्दु पर कीमत स्तर को साम्य कीमत एवं मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। साम्य की स्थिति को निम्नलिखित अनुसूची से भी समझाया जा सकता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 52
उपरोक्त अनुसूची में कीमत स्तर 3 पर वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य कीमत स्तरों पर या तो वस्तु माँग अधिक या पूर्ति। अतः तालिका में साम्य कीमत 3 तथा साम्य मात्रा 16 है। साम्य का निर्धारण रेखाचित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। वस्तु का माँग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला होता है तथा पूर्ति वक्र SS धनात्मक ढाल वाला होता है। माँग वक्र व पूर्ति वक्र दोनों बिन्दु E पर एक-दूसरे को काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों बराबर है। इसके अलावा अन्य बिन्दुओं पर या तो वस्तु की माँग पूर्ति से ज्यादा है अथवा पूर्ति माँग से ज्यादा है। साम्य बिन्दु से कीमत अक्ष पर खींचे गए लम्ब को p साम्य कीमत स्तर तथा साम्य बिन्दु से मात्रा अक्ष पर खींचे गए लम्ब का पद साम्य मात्रा को दर्शाता है।
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प्रश्न 2.
जब किसी वस्तु के बाजार माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों दायीं ओर खिसकते हैं, तो साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकते हैं नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों में दायीं ओर खिसकाव होने पर साम्य मात्रा व कीमत में परिवर्तन हो भी सकता है और नहीं भी इसे नीचे समझाया गया है –
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव से अधिक है:
माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र की तुलना में ज्यादा होता है, तो साम्य कीमत व मात्रा दोनों बढ़ जाती है। इस स्थिति को नीचे चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 54

2. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र से कम हो:
जब माँग में वृद्धि वस्तु की पूर्ति में वृद्धि से कम होती है, तो साम्य कीमत कम हो जाती है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती . है। इसे नीचे रेखाचित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 55

3. जब माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव पूर्ति वक्र में खिसकाव के समान हो:
जब किसी वस्तु की माँग में वृद्धि उसकी पूर्ति में वृद्धि के बराबर होती है तो वस्तु की समय कीमत पर इस परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 56

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प्रश्न 3.
साम्य कीमत एवं साम्य मात्रा पर क्या प्रभाव पड़ेगा जब –

  1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव हो।
  2. माँग वक्र पूर्णतया लोचदार हो, पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाए।
  3. माँग व पूर्ति वक्र दोनों समानुपात में घटते हों।

उत्तर:
1. माँग वक्र में दायीं ओर खिसकाव का मतलब है माँग में वृद्धि । माँग में वृद्धि होने पर साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
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2. यदि माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है और पूर्ति वक्र बाहर की ओर खिसक जाता है, तो वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा बढ़ जायेगी।
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3. माँग व पूर्ति में समानुपात में कमी होने पर वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर खिसक जाते हैं। इस परिवर्तन के होने पर साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
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प्रश्न 4.
इस सभी प्रश्नों के माँग और आपूर्ति वक्रों के खिसकाव या उन्हीं वक्रों पर स्थान परिवर्तन द्वारा हल करो।

  1. वर्ष 2001 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगा दी। इसका सिगरेटों की औसत कीमत व बिक्री पर क्या प्रभाव होगा?
  2. खनिज तेल के नये भण्डारों की खोज से डीजल और पेट्रोल की कीमत कम हो जाती है इसका नई कारों के बाजार पर क्या प्रभाव होगा?
  3. नए पर्यावरण नियमों के अनुसार औषध-निर्माताओं की ऐसी उत्पादन विधियों का प्रयोग करने को बाध्य होना पड़ता है, जो महंगी तो रहती है पर जिससे पहले की अपेक्षा हानिकारक रसायनों का उत्सर्जन कम हो जाता है। इनका औषधियों की कीमतों पर क्या प्रभाव होगा?

उत्तर:
1. वर्ष 2001 में भारतवर्ष के सर्वोच्च न्यायालय में सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान वर्जित कर दिया इससे भारत में सिगरेट की माँग कम हो जायेगी। इस परिवर्तन से सिगरेट की साम्य कीमत कम हो जायेगी और साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 60

2. कारों के लिए पेट्रोल/डीजल पूरक वस्तु है। पूरक वस्तु की कीमत कम होने से वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि पेट्रोल/डीजल की कीमत घटने पर कारों की माँग में वृद्धि हो जायेगी। कार का माँग वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। कार की साम्य कीमत व मात्रा दोनों में वृद्धि हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 61

3. पर्यावरण-मित्र उत्पादन तकनीक का प्रयोग करने पर औषधि उत्पादन की लागत में बढ़ोतरी हो जायेगी। उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से औषधि का आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा। इसके परिणामस्वरूप साम्य कीमत व मात्रा दोनों कम हो जायेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 62

इस परिवर्तन का दूसरा रूप भी है। पर्यावरण मित्र उत्पादन तकनीक के प्रयोग से विषैले पदार्थों का स्राव कम मात्रा में होगा। इससे पर्यावरण पहले की तुलना से अच्छा हो जायेगा। स्वस्थ पर्यावरण में लोगों का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। उत्तम स्वास्थ्य होने पर औषधियों की माँग में कमी आ जायेगी। साम्य कीमत व मात्रा पर औषधियों की माँग व पूर्ति में कमी के स्तर के आधार पर प्रभाव पड़ेगा।

यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में कम होगी, तो औषधियों की साम्य कीमत बढ़ जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति की तुलना में ज्यादा होगी, तो साम्य कीमत कम हो जायेगी। यदि औषधियों की माँग में कमी, पूर्ति में कमी के समान होगी, तो साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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प्रश्न 5.
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी। व्याख्या करो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की माँग व पूर्ति दोनों में कमी आती है, तो वस्तु की साम्य कीमत व मात्रा बदल भी सकती है और नहीं भी, नीचे समझाया गया है –

1. जब माँग वक्र में कमी पूर्ति वक्र में कमी से अधिक हो:
जब किसी वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से अधिक हो, तो वस्तु की साम्य कीमत कम हो जायेगी तथा साम्य मात्रा भी कम हो जायेगी।
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2. जब वस्तु की माँग में कमी पूर्ति में कमी के बराबर होगी-जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी के बराबर होगी, तब उस वस्तु की साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा परन्तु साम्य मात्रा घट जायेगी।
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3. जब वस्तु की माँग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम हो-जब वस्तु की मांग में कमी उसकी पूर्ति में कमी से कम होगी, तब वस्तु की साम्य कीमत बढ़ जायेगी तथा वस्तु की मात्रा घट जायेगी।
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प्रश्न 6.
चीन टेलीफोन यंत्रों का एक बहुत बड़ा उत्पादक है। यह हाल ही में विश्व व्यापार संगठन का सदस्य बना है। अब इसे भारत जैसे अन्य देशों में अपना माल बेचने की छुट हो गई है। कल्पना कीजिए-ये कोई टेलीफोनों की बड़ी भारी खेप का निर्यात कर देता है।

  1. भारत के बाजार में टेलीफोनों की कीमत और मात्रा पर क्या प्रभाव होगा?
  2. यदि भारत में टेलीफोनों की खरीदारी पर कुल व्यय पर क्या प्रभाव होगा?

उत्तर:
1. चीन द्वारा भारतवर्ष में भारी संख्या में टेलीफोन उपकरणों का निर्यात करने पर टेलीफोन उपकरणों की आपूर्ति में वृद्धि हो जायेगी। इससे टेलीफोन उपकरण का आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जायेगा। उपकरणों की साम्य कीमत घट जायेगी। इसे नीचे समझाया गया है –
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2. यदि भारत में टेलीफोन उपकरणों की माँग पूर्णतया लोचदार है, तो चीन द्वारा भारत बड़ी संख्या में टेलीफोन उपकरणों के निर्यात का साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। साम्य मात्रा बढ़ने से टेलीफोन उपकरणों पर भारत का व्यय बढ़ जायेगा।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 67

प्रश्न 7.
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण समझाइए।
उत्तर:
श्रम बाजार में मजदूरी दर का निर्धारण श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है। परिवार क्षेत्र श्रम की आपूर्ति करता है तथा श्रम की माँग उत्पादक करते हैं। श्रम से अभिप्राय श्रमिकों की संख्या से न होकर श्रम के घंटों से होता है। जहाँ श्रम माँग व पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं मजदूरी दर का निर्धारण उसी बिन्दु पर होता है।

फर्म लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती है। अत: फर्म उस इकाई तक श्रम का नियोजन करती है, जिस पर श्रम की अतिरिक्त लागत तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ दोनों समान हो जाते हैं। श्रम की इकाई को नियोजित करने की अतिरिक्त लागत श्रम की मजदूरी दर होती है तथा श्रम के नियोजन से प्राप्त अतिरिक्त लाभ श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता के समान होता है। अतः फर्म निम्नलिखित शर्त तक श्रम का नियोजन बढ़ाती है –
मजदूरी = श्रम की सीमान्त आगम उत्पादकता
w = MRp2
जहाँ MRp2 = MR × Mp2
जब तक MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से ज्यादा होता है फर्म को श्रम का नियोजन बढ़ाना लाभकारी रहता है। जब MRp2 का मूल्य मजदूरी दर से कम होता है, तो श्रम का नियोजन करना फर्म के लिए हानिकारक रहता है। अतः फर्म को श्रम नियोजन उसी स्थिति में अधिकतम लाभकारी होता है, जब w = mRp2, होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 68

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में चाय के माँग वक्र व पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 500 – p
ys = 300 + 3p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 P < 40 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
साम्य अवस्था में –
yd = ys
500 – p = 300 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-3p – p = 300 – 500
-4p = -200
4p = 200
p = \(\frac{200}{4}\)
p = 50
p का मान रखने पर yd = 500 – 50 = 450
ys = 300 + 3 × 50 = 300+ 150 = 450
चाय की साम्य कीमत = 50 रुपये
चाय की साम्य मात्रा = 450

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प्रश्न 2.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जूतों के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 1200 – p
ys = 600 + 2p क्योंकि p ≥ 200 के लिए
क्योंकि p < 200 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो । साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
1200 – p = 600 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
-2p – p = 600 – 1200
3p = 600
p = \(\frac{100}{3}\)
p = 200
p का मान प्रतिस्थापित करने पर yd = 1200 – 200 = 1000
ys = 600 + 2 × 200 = 600 + 400 = 1000
जूतों की साम्य कीमत = 200 रुपये
जूतों की साम्य मात्रा = 1000

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प्रश्न 3.
मानिए सी. पी. गाइड्स के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
क्योंकि p < 140 के लिए
मानिए बाजार सभी फर्म एक समान है। चाय की साम्य कीमत की गणना करो। साम्य मात्रा का भी आंकलन करो।
उत्तर:
सन्तुलन की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3000
20p = 3000
p = \(\frac{300}{20}\)
p = 150
p का मान करने पर yd = 10000 – 150 = 9850
साम्य कीमत = 150 रुपये
साम्य मात्रा = 9850

प्रश्न 4.
माना सरकार बी. पी. गाइड्स की बिक्री पर 10 रु./इकाई की दर से उत्पाद शुल्क आरोपित कर देती है प्रश्न 3 में दी गई समीकरण के आधार पर अनुमान लगाइए कि इससे आपूर्ति पर क्या प्रभाव पड़ेगा? नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p ≥ 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
सी. पी. गाइड्स की साम्य कीमत व साम्य मात्रा का परिकलन करो।
उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 7000 + 19p क्योंकि p > 140 के लिए
= 0 क्योंकि p < 140 के लिए
गाइड की बिक्री पर कर आरोपित होने पर न्यूनतम औसत लागत बढ़ जायेगी। अतः
ys = 7000 + 19 (p-10) p ≥ 140 के लिए
= 0 p < 140 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 7000 + 19p (p – 10) (yd व ys के मान रखने पर)
10000 – p = 7000 + 19p – 190
– p – 19p = 7000 – 10000
-20p = -3190
20p = 3190
p = \(\frac{3190}{20}\) = 1595
yd = 10000 – 159.5
= 9840.5
ys = 7000 + 19 (159.5 – 10)
= 7000 + 3030.5 – 190 = 7000 + 2840.5
= 9840.5
साम्य कीमत = 159.5 रुपये
साम्य मात्रा = 9840.5 इकाइयाँ

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प्रश्न 5.
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल के माँग वक्र व पूर्ति वक्र की समीकरण निम्नलिखित है –
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 80 के लिए
= 0 क्योंकि p < 80 के लिए
किस कीमत पर गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की माँग व आपूर्ति दोनों बराबर हो जायेंगी?
उत्तर:
yd = 368 – p
ys = 8 + 3p
yd = ys
368 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 8 – 368 – 4p = 360
या 4p = 360 या p = \(\frac{360}{4}\); p = 90
गोल्डेन सीरिज स्टडी मैटीरियल की साम्य कीमत = 90 रुपये

प्रश्न 6.
टी-शर्ट का माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 368 -p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए

  1. टी-शर्ट की साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
  2. यदि सरकार टी-शर्ट की बिक्री से 12 रु./शर्ट की दर से उत्पाद शुल्क हटा लेती है, तो नई साम्य कीमत व साम्य मात्रा क्या होगी?

उत्तर:
1. yd = 368 – p
ys = 68 + 5p क्योंकि p ≥ 40 के लिए
= 0 क्योंकि p < 40 के लिए
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
368 – p = 68 + 5p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 5p = 68 – 368
6p = 300
p = \(\frac{360}{6}\)
p = 150

2. सरकार प्रति इकाई विक्रय पर से 12 रु. उत्पाद शुल्क हटा लेती है। उत्पादक को प्रति इकाई 12 रु. अधिक प्राप्त होंगे। अतः पूर्ति होगा।
ys = 68 + 5 (p + 12)
साम्य की अवस्था में –
ys = ys
368 – p = 68 + 5p (p + 12)
(yd व ys के मान रखने पर)
368 – p = 68 + 5p + 60
-p – 5p = 68 + 60 – 368
-6p = -240
6p = 240
p = \(\frac{240}{6}\)
p का मान रखने पर yd = 368 – 40
= 328
ys = 68 + 5 (40 + 12) = 68 + 260
= 7000 + 2840.5 = 328
नई साम्य कीमत = 40 रुपये प्रति इकाई
नई साम्य मात्रा = 328 इकाइयाँ

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में पेन के माँग वक्र व पूर्ति वक्र इस प्रकार है –
yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए

  1. ys = 0, p < 15 के लिए का क्या महत्त्व है?
  2. पेन की साम्य कीमत ज्ञात करो।
  3. पेन की साम्य मात्रा ज्ञात करो।

उत्तर:
1. yd = 700 – p
ys = 8 + 3p क्योंकि p ≥ 15 के लिए
= 0 क्योंकि p < 15 के लिए
ys = 0, p < 15 के लिए का अभिप्राय है, न्यूनतम औसत लागत 15 रुपये है। अत: 15 रुपये प्रति इकाई कीमत से कम पर फर्म वस्तु की शून्य मात्रा की आपूर्ति करेगी।

2. साम्य की अवस्था में yd = ys
700 – p = 8 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
-p – 3p = 8 – 700
– 4p = -692
4p = 692
p = \(\frac{692}{4}\)
p = 173
साम्य कीमत = 173 रुपये

3. p का मान प्रतिस्थापित करने पर
yd = 700 – p
= 700 – 173
= 527
ys = 8 + 3p
= 8 + 3 × 173
= 38 + 519
= 3527
साम्य मात्रा = 527 इकाइयाँ

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प्रश्न 8.
यदि माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र नीचे दिए गए हैं –
yd = 400 – p
ys = 240 + 3p
साम्य की अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3p (yd व ys के मान रखने पर)
या – p – 3p = 24 – 400
-4p = – 160
4p = 160
p = \(\frac{160}{4}\) = 40
p का मान रखने पर –
yd = 400 – p = 400 – 40 = 360
ys = 240 + 3p = 3 × 240 + 3 × 40
240 + 3 × 40 = 240 + 120 = 360
साम्य कीमत = 40 रुपये/इकाई
साम्य मात्रा = 360 इकाइयाँ

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 बाजार संतुलन

प्रश्न 9.
प्रश्न 8 में दिए गए उत्पादन वक्र की वस्तु के उत्पाद में प्रयुक्त साधनों की कीमत बढ़ने से 4रु./इकाई लागत बढ़ जाती है। उसी माँग वक्र का प्रयोग करते हुए नई साम्य कीमत ज्ञात करो तथा नई साम्य मात्रा की गणना करो।
उत्तर:
1. yd = 400-p
ys = 240 + 3(p – 4) (पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जायेगा क्योंकि उत्पादक को प्रति इकाई 4 रुपये कम प्राप्त होंगे)
साम्य क अवस्था में –
yd = ys
400 – p = 240 + 3(p – 4) (yd व ys के मान रखने पर)
400 – p = 240 + 3p – 12
– p – 3p = 240 – 12 – 400
4p = – 172
4p = 172
p = \(\frac{172}{4}\)
p = 43

2. p का मान रखने पर yd = 400 – p = 400 – 43 = 357
ys = 240 + 3(p – 4) = 240 + 3(43 – 4)
240 + 3 × 39 = 240 + 117 = 357
साम्य कीमत = 43 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 357 इकाइयाँ

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प्रश्न 10.
बाजार माँग वक्र एवं पूर्ति वक्र निम्नलिखित है –
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 3p

  1. साम्य कीमत व साम्य मात्रा की गणना करो।
  2. माना एक फर्म का आपूर्ति वक्र ys = 0+p, फर्मों की संख्या ज्ञात करो, साम्य मात्रा की पूर्ति कर रही है।

उत्तर:
yd = 10000 – p
ys = 4000 + 2p

1. साम्य की अवस्था में –
yd = ys
10000 – p = 4000 + 2p (yd व ys के मान रखने पर)
– p – 2p = 4000 – 10000
– 3p = 3 – 6000
3p = 6000
p = \(\frac{6000}{3}\)
p = 2000
p का मान रखने पर
yd = 10000 – p = 10000 – 2000 = 8000
ys = 4000 + 2p
= 4000 + 2 × 2000 = 4000 + 4000 = 8000
साम्य कीमत = 2000 रुपये प्रति इकाई
साम्य मात्रा = 8000 इकाइयाँ

2. एक फर्म की आपूर्ति = 0 + 2000 इकाइयाँ (p का मान रखने पर)
= 2000 इकाइयाँ
फर्मों की संख्या = image 68 = \(\frac{8000}{2000}\) = 4 फर्म
फर्मों की संख्या = 4 फर्म

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु की कीमत निर्धारण के जितना समय अधिक होता है उतनी ही ज्यादा महत्ता होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(A) पूर्ति पक्ष की

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प्रश्न 2.
वस्तु की कीमत निर्धारण में अल्पकाल में अधिक भूमिका होती है –
(A) पूर्ति पक्ष की
(B) माँग पक्ष की
(C) तकनीकी प्रगति की
(D) कर नीति की
उत्तर:
(B) माँग पक्ष की

प्रश्न 3.
वह बाजार, जिसमें फर्मों का प्रवेश व गमन पूर्ण स्वतन्त्र होता है, कहलाता है।
(A) एकाधिकारी
(B) पूर्ण प्रतियोगी
(C) एकाधिकारात्मक प्रतियोगी
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) पूर्ण प्रतियोगी

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प्रश्न 4.
माँग व पूर्ति से ज्यादा वृद्धि होने पर साम्य कीमत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती है या बढ़ती है
(D) न तो घटती है न ही बढ़ती है
उत्तर:
(B) बढ़ती है

प्रश्न 5.
एक वस्तु के माँग वक्र तथा पूर्ति वक्र दोनों बायीं ओर समान रूप से खिसकते हैं, तो साम्य कीमत –
(A) घटेगी
(B) बढ़ेगी
(C) घटेगी या बढ़ेगी
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी
उत्तर:
(D) न तो घटेगी और न बढ़ेगी

प्रश्न 6.
वस्तु की पूर्ति में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता है यदि वस्तु माँग –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो

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प्रश्न 7.
किसी वस्तु की माँग में वृद्धि या कमी से साम्य कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जब वस्तु की पूर्ति –
(A) पूर्णतया लोचदार हो
(B) पूर्णतया बेलोचदार हो
(C) इकाई से कम लोचदार हो
(D) इकाई से अधिक लोचदार हो
उत्तर:
(A) पूर्णतया लोचदार हो

प्रश्न 8.
इकाई लोचदार पूर्ति वक्र है –
(A)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 69

(B)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 70
(C)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 71
(D)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 72
उत्तर:
(C)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 5 बाजार संतुलन part - 2 img 71

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प्रश्न 9.
सामान्य सरकार उच्चतम कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) साम्य कीमत से कम

प्रश्न 10.
सरकार समर्थन कीमत का निर्धारण करती है –
(A) साम्य कीमत के बराबर
(B) साम्य कीमत से कम
(C) साम्य कीमत से अधिक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) साम्य कीमत से अधिक

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

Bihar Board Class 12 Economics पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

  1. बाजार में क्रेताओं व विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है जो कीमत स्वीकारक होते हैं।
  2. सभी उत्पादक सामंगी वस्तु का विक्रय करते हैं।
  3. क्रेताओं एवं विक्रेताओं को एक निश्चित समय अवधि वस्तु उपलब्धता एवं कीमत के बारे में पूर्ण ज्ञान होता है।
  4. बाजार में फर्म का प्रवेश एवं बाह्य गमन स्वतंत्र होता है।

पूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं के प्रभाव:

1. क्रेताओं एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होने के कारण कोई भी विक्रेता वस्तु की पूर्ति को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। इसी प्रकार एक क्रेता वस्तु की माँग को घटाकर या बढ़ाकर वस्तु की पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकता है। ऐसा इसलिए होता है कि बाजार आपूर्ति में एक फर्म की आपूर्ति नगण्य होती है और बाजार माँग की तुलना में एक व्यक्ति की माँग नगण्य होती है। विक्रेताओं-क्रेताओं की विशाल संख्या, समांगी वस्तु एवं बाजार के बारे में पूर्ण जानकारी के कारण पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत एक समान होती है और व्यक्तिगत माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होता है।

2. फर्म का स्वतंत्र प्रवेश एक बाह्य गमन यह दर्शाता है कि एक फर्म केवल लाभकारी उत्पाद स्तर तक ही उत्पादन करती है। ऐसा न होने पर फर्म बाजार से बाहर चली जायेगी और यदि वर्तमान असामान्य लाभ अर्जित करती है तो नई फर्म बाजार में प्रवेश कर सकती है।

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प्रश्न 2.
एक फर्म की संप्राप्ति, बाजार कीमत तथा उसके द्वारा बेची गई मात्रा में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पादित मात्रा को विक्रय करके एक फर्म आगम प्राप्त करती है। उत्पाद की मात्रा एवं प्रति इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद की मात्रा × प्रति इकाई कीमत
TR = Y × P
जहाँ TR – कुल आगम
Y – उत्पादक की मात्रा एवं
P – प्रति इकाई वस्तु की कीमत
एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म कीमत स्वीकारक होती है वह वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है। अतः प्रतियोगी फार्म वस्तु की कीमत में परिवर्तन के द्वारा कुल आगम को प्रभावित नहीं कर सकती है वह केवल उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के माध्यम से ही कुल आगम को प्रभावित कर सकती है।

प्रश्न 3.
कीमत रेखा क्या है?
उत्तर:
उत्पाद-कीमत तल में विभिन्न उत्पाद मात्राओं के लिए खींची गई रेखा को कीमत रेखा कहते हैं। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक फर्म की कीमत रेखा एवं माँग वक्र समान रेखाएँ होती हैं।

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प्रश्न 4.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म का कुल संप्राप्ति वक्र ऊपर की ओर प्रवणता वाली सीधी रेखा क्यों होती है? यह वक्र उद्गम से होकर क्यों गुजरती है?
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल आगम शून्य होता है। कुल आगम मूल बिन्दु से आरम्भ होता है। जैसे-जैसे उत्पाद में वृद्धि होती है कुल आगम में भी वृद्धि होती है। अतः आगम वक्र मूल बिन्दु से धनात्मक ढाल वाली सीधी रेखा होती है क्योंकि उत्पाद के सभी स्तरों पर वस्तु की कीमत एक समान रहती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 1

प्रश्न 5.
एक कीमत-स्वीकार फर्म का बाजार कीमत तथा औसत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद के कुल आगम को औसत आगम कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 2
AR = \(\frac{TR}{y}\) = \(\frac{py}{p}\) (∵TR = py)
अतः औसत आगम प्रति इकाई कीमत के बराबर है।

प्रश्न 6.
एक कीमत-स्वीकारक फर्म की बाजार कीमत तथा सीमांत संप्राप्ति में क्या संबंध है?
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में वृद्धि को सीमांत आगम कहते हैं।
सीमांत आगम = y1 इकाइयों से प्राप्त कुल आगम – (y1 – 1) इकाइयों से प्राप्त कुल आगम
MR = TRy1 – TRy1-1-1 अथवा MR = p × y1 – p(y1 – 1)
अथवा MR = py1 – Py1 + p
अथवा MR = p
इस प्रकार कीमत स्वीकारक फर्म का सीमान्त आगम प्रति इकाई कीमत के समान होता है।

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प्रश्न 7.
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ अधिकतमीकरण फर्म की सकारात्मक उत्पादन करने की क्या शर्ते हैं?
उत्तर:
निश्चित विक्रय अवधि में कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं।
लाभ = कुल आगम – कुल लागत
यदि उत्पादन स्तर धनात्मक है तो उस उत्पादन स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त है –

  1. सीमांत आगम = सीमांत लागत।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो।

प्रश्न 8.
क्या प्रतिस्पर्धा बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म जिसकी बाजार कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है, उसका निर्गत का स्तर सकारात्मक हो सकता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी धनात्मक स्तर पर सीमांत आगम जो एक फर्म प्रतियोगी लाभ कमाने वाली फर्म के लिए सीमांत लागत के बराबर नहीं होता तो या तो MR का मूल्य MC के मूल्य से ज्यादा होता है या कम।

1. यदि MR का मान MC के मान से ज्यादा है:
इसका अभिप्राय है कि उत्पाद की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से फर्म इस इकाई की लागत से ज्यादा आगम अर्जित कर रही हैं इसे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y0 पर MR, MC से अधिक है। उत्पादन में थोड़ी अधिक मात्रा में वृद्धि करने पर MR, MC से ज्यादा रहता है।

अत: उत्पादन स्तर y0 से y, तक बढ़ाने पर लाभ में बढ़ोतरी होती है। अत: फर्म उत्पादन स्तर y2 से दायीं ओर जब तक उत्पादन बढ़ाती है जब तक MR, MC के समान नहीं होता है। दूसरे शब्दों में, जब तक MR, MC से ज्यादा रहता है। फर्म उत्पादन स्तर बढ़ाकर लाभ में वृद्धि कर सकती है। अतः MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं होती है।

2. यदि MR का मान MC के मान से कम है:
इसका अभिप्राय उत्पादन की इकाई का उत्पादन करके इसकी बिक्री से, लागत की तुलना में कम आगम प्राप्त करती है। इस स्थिति को चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन स्तर y3 पर MR का मान MC से कम है। अर्थात् y3 उत्पादन स्तर पर फर्म को हानि उठानी पड़ रही है।

अत: 9. उत्पादन स्तर पर फर्म का लाभ अधिकतम नहीं है। फर्म उत्पादन स्तर y3 से बायीं ओर उत्पादन स्तर को तब तक घटाती है जब तक MR व MC दोनों समान नहीं हो जाते हैं। अतः लाभ अधिकतम करने वाली फर्म का धनात्मक उत्पादन स्तर अधिकतम लाभ का नहीं हो सकता है यदि कीमत सीमांत लागत के बराबर नहीं है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 3

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प्रश्न 9.
क्या एक प्रतिस्पर्धी बाजार में कोई लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक निर्गत स्तर पर उत्पादन कर सकती है, जब सीमांत लागत घट रही हो। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एक फर्म उत्पादन के उस स्तर तक उत्पादन करती है जिस पर उसका लाभ अधिकतम होता है। यदि उत्पादन किसी धनात्मक स्तर पर अधिकतम लाभ हो रहा है तो निम्नलिखित शर्ते पूरी होनी चाहिए –

  1. सीमांत आगम (MR) = सीमांत लागत (MC)।
  2. सीमांत लागत में वृद्धि हो रही हो।

यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की सीमांत लागत के समान है और MC घट रही है:
इसे चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। उत्पादन के y1, स्तर पर MC व वस्तु की कीमत समान है तथा MC घट रही है। उत्पादन का स्तर अधिकतम लाभ का स्तर नहीं हो सकता है। उत्पादन स्तर में बढ़ोतरी करने पर कीमत या MR, MC से ज्यादा हो जाती है। अर्थात् y1, स्तर से उत्पादन बढ़ाकर फर्म अपने लाभ को बढ़ा सकती है। इस प्रकार यदि उत्पादन के किसी स्तर पर MC वस्तु की कीमत के समान है और MC घट रही है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 4

प्रश्न 10.
क्या अल्पकाल में प्रतिस्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकता है, यदि बाजार में कीमत न्यूनतम औसत परिवर्ती लागत से कम है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत AVC कम किसी भी कीमत स्तर पर उत्पादन का धनात्मक उत्पादन स्तर उत्पन्न नहीं कर सकती है। इसे निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है –
उत्पादन के Y1, स्तर पर –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 5
अतः हानि का मान TFC से ज्यादा है जबकि उत्पादन के शून्य स्तर पर हानि TFC के समान होती है। अतः उत्पादन नहीं करके फर्म अपनी हानि को घटा रही है। अतः न्यूनतम AVC से कम कीमत पर फर्म उत्पादन का कोई स्तर नहीं चुनना पसंद करती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 6

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प्रश्न 11.
क्या दीर्घकाल में स्पर्धी बाजार में लाभ-अधिकतमीकरण फर्म सकारात्मक स्तर पर उत्पादन कर सकती है? यदि बाजार सीमांत न्यूनतम औसत लागत से कम है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उन सभी कीमत स्तरों जो TVC की भरपाई कर सकते हैं, उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करती है। इस बात को निम्नलिखित चित्र द्वारा समझाया जा सकता है। माना Y1, उत्पादन का ऐसा स्तर है जो दिए गए स्तर पर अधिकतम लाभ की शर्त को पूरा करता है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है। कीमत स्तर न्यूनतम औसत लागत से कम है। उत्पादन के Y1, स्तर पर –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 7
अत: उत्पादन स्तर Y1, पर शून्य उत्पादन स्तर से कम हानि है जब वस्तु की कीमत SAC से कम परंतु AVC से ज्यादा होती है। अर्थात् एक पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यदि कीमत, न्यूनतम AVC से ज्यादा होता है तो फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर चयन करना पसंद करती है क्योंकि इससे हानि में कमी आती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 8

प्रश्न 12.
अल्पकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
किसी दी गई कीमत पर अधिकतम लाभ कमाने वाली फर्म अल्पकाल में उत्पाद की जितनी मात्रा उत्पादन के लिए चयन करती उसे आपूर्ति वक्र कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आपूर्ति विभिन्न कीमतों पर अधिकतम लाभ के विभिनन उत्पादन स्तरों को दर्शाती है। किसी भी कीमत जो न्यूनतम AVC के समान या अधिक हो फर्म कीमत को संगत उत्पादन की SMC के समान करेगी। ऐसी सभी कीमतों के लिए न्यूनतम AVC से व उससे ऊपर SMC वक्र संगत उत्पादन स्तरों के अधिकतम लाभ स्तरों के संयोजनों को प्रदान करते हैं। एक फर्म का न्यूनतम AVC से तथा उससे ऊपर SMC का ऊपर जाता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 9
गहरा रेखाखण्ड अल्पकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

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प्रश्न 13.
दीर्घकाल में एक फर्म का पूर्ति वक्र क्या होता है?
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में आवश्यकतानुसार समायोजन कर सकती है। अतः दीर्घकाल में स्थिर लागत उत्पन्न नहीं होती है। उत्पादन के शून्य स्तर पर, फर्म की लागत भी शून्य होती है। अतः शून्य उत्पादन स्तर पर न लाभ न हानि की स्थिति होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के उन स्तरों का चयन करती जिससे उसकी कुल लागत को पूरा किया जा सके। दूसरे शब्दों में, फर्म उत्पादन के उन सभी स्तरों का चयन करती है जिनके लिए कीमतें न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक होती है। न्यूनतम LRAC के समान या उससे अधिक सभी कीमतों पर LRMC का ऊपर उठता हुआ भाग दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 10
चित्र में गहरा रेखाखण्ड (LRMC) दीर्घकालीन आपूर्ति वक्र को दर्शाता है।

प्रश्न 14.
प्रौद्योगिकीय प्रगति एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन तकनीक में प्रगति के माध्यम से एक फर्म उत्पादन साधनों की समान मात्रा से अधिक उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में, प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन के समान स्तर को, साधनों की कम इकाइयों के प्रयोग से भी उत्पन्न किया जा सकता है। प्रोन्नत उत्पादन तकनीक से सीमान्त लागत घट जाती है। अत: SMC वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म उन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है। आवश्यक रूप से, न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः फर्म का आपूर्ति वक्र भी नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जब कोई फर्म प्रोन्नत उत्पादन तकनीक का प्रयोग करती है।

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प्रश्न 15.
इकाई कर लगाने में एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
प्रति इकाई बिक्री पर सरकार द्वारा लगाए गए शुल्क को इकाई शुल्क कहते हैं। इकाई उत्पादन शुल्क आरोपित करने पर फर्म की सीमांत लागत बढ़ जाती है। इससे सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता भाग आपूर्ति वक्र को दर्शाता है। अतः कर लगाने पर फर्म का आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 16.
किसी आगत की कीमत में वृद्धि एक फर्म के पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। इससे सीमांत लागत बढ़ जाती है। सीमांत लागत वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है। न्यूनतम AVC से व इससे ऊपर SMC का ऊपर उठता हुआ भाग आपूर्ति वक्र होता है। अतः साधनों आगतों की कीमत/लागत बढ़ने से आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 17.
बाजार में फर्मों की संख्या में वृद्धि, बाजार पूर्ति वक्र को किस प्रकार प्रभावित करती है?
उत्तर:
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर बाजार आपूर्ति वक्र में खिसकाव होता है। फर्मों की संख्या बढ़ोतरी होने पर आपूर्ति में वृद्धि होती है अतः बाजार आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसके विपरीत फर्मों की संख्या में कमी होने से बाजार आपूर्ति में कमी आ जाती है। इससे आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

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प्रश्न 18.
पूर्ति की कीमत लोच का क्या अर्थ है? हम इसे कैसे मापते हैं?
उत्तर:
कीमत परिवर्तन के प्रति वस्तु की आपूर्ति में प्रतिक्रियात्मक परिवर्तन की माप को पूर्ति की लोच कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 11

प्रश्न 19.
निम्न तालिका में कुल संप्राप्ति, सीमान्त संप्राप्ति तथा औसत संप्राप्ति का परिकलन कीजिए । वस्तु की प्रति इकाई बाजार कीमत 10 रुपये है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 12
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 13
प्रति इकाई उत्पाद विक्रय के लिए कीमत 10 रुपये/इकाई है अतः सीमांत आगम MR व औसत आगम AR दोनों कीमत 10 रुपये प्रति इकाई के समान है। जैसे-जैसे फर्म बिक्री का स्तर बढ़ाती है कुल आगत TR एक समान दर से बढ़ती है।

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प्रश्न 20.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल संप्राप्ति तथा कुल लागत सारणियों को दर्शाता जाता है। प्रत्येक उत्पादन स्तर के लाभ की गणना कीजिए। वस्तु की बाजार कीमत भी निर्धारित कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 14
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 15
प्रत्येक विक्रय स्तर पर वस्तु की कीमत एक समान 5 रुपये प्रति इकाई है।

प्रश्न 21.
निम्न तालिका में एक प्रतिस्पर्धी फर्म की कुल लागत सारणी को दर्शाया गया है। वस्तु की कीमत 10 रुपये दी हुई है। प्रत्येक उत्पादन स्तर पर लाभ की गणना कीजिए। लाभ-अधिकतमीकरण निर्गत स्तर ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 16
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 17
अधिकतम लाभ का उत्पादन स्तर 7 इकाइयाँ हैं क्योंकि उत्पादन स्तर 8 पर लाभ का स्तर ऋणात्मक है। उत्पाद स्तर 7 पर कुल लागत वक्र नीचे से कुल आगम वक्र को काटेगा।

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प्रश्न 22.
दो फर्मों वाले एक बाजार को लीजिए। निम्न तालिका दोनों फर्मों के पूर्ति सारणियों को दर्शाती है: SS1 कालम में फर्म-1 की पूर्ति सारणी, कालम SS2, में फर्म-2 की पूर्ति साराणि है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 18
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 19

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प्रश्न 23.
एक दो फर्मों वाले बाजार को लीजिए। निम्न तालिका में कालम SS1 , तथा कालम SS2, क्रमशः फर्म-1 तथा फर्म-2 के पूर्ति सारणियों को दर्शाते हैं। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 20
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 21

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प्रश्न 24.
एक बाजार में तीन समरूपी फर्म हैं। निम्न तालिका फर्म-1 की पूर्ति सारणी दर्शाती है। बाजार पूर्ति सारणी का परिकलन कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 22
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 23

प्रश्न 25.
10 रुपये प्रति इकाई बाजार कीमत पर एक फर्म की संप्राप्ति 50 रुपये है। बाजार कीमत बढ़कर 15 रु. हो जाती है और फर्म को 150 रु. की संप्राप्ति होती है। पूर्ति वक्र की कीमत लोच क्या है?
उत्तर:
कीमत स्तर 10 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 50 रु.
पूत का गई इकाइया (y) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{50}{10}\) = 5 इकाइयाँ
कीमत स्तर 15 रु./इकाई पर कुल आगम TR = 150 रु.
पूर्ति की/बेची गई इकाइयाँ (y1) = \(\frac{TR}{p}\) = \(\frac{150}{15}\) = 10 इकाइयाँ
कीमत में परिवर्तन ∆p1 = p1 – p0 = 15 – 10 = 5 रु.
मात्रा में परिवर्तन ∆y = y1 – y = 10 – 5 = 5 इकाइयों
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\) = \(\frac{5}{5}\) × \(\frac{10}{5}\) = 2
पूर्ति की लोच = 2

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प्रश्न 26.
एक वस्तु की बाजार कीमत 5 रु. से बदलकर 20 रु. हो जाती है। फलस्वरूप फर्म पूर्ति की मात्रा 15 इकाई बढ़ जाती है। फर्म के पूर्ति वक्र की कीमत लोच 0.5 है। फर्म का आरम्भिक तथा अंतिम निर्गत स्तर ज्ञात करें।
उत्तर:
p = 5 रु.; P1 = 20 रु.
∆p = P1 – p = 20 – 5 = 15 रु;
∆y = 15 इकाइयाँ (दी गई)
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 0.5 = \(\frac{15}{15}\) × \(\frac{5}{y}\) अथवा 0.5 × y = 5
y = \(\frac{5}{0.5}\) = \(\frac{50}{5}\) = 10
y1 = y + ∆y [P1 = 15 पर आपूर्ति होगी क्योंकि पूर्ति में उसी दिशा में परिवर्तन होगा जिस दिशा में कीमत बदलती है]
= 10 + 15
= 25
आरम्भिक उत्पादन स्तर = 10 इकाइयाँ, अंतिम उत्पादन स्तर = 25 इकाइयाँ।

प्रश्न 27.
10 रुपये बाजार कीमत पर एक फर्म निर्गत की 4 इकाइयों की पूर्ति करता है। बाजार कीमत बढ़कर 30 रुपये हो जाती है। फर्म की पूर्ति कीमत लोच 1.25 है। नई कीमत पर फर्म कितनी मात्रा की पूर्ति करेगी?
उत्तर:
p = 10; y = 4 इकाइयाँ, P1 = 30 रुपये, y1 = ?, es = 1.25
∆p = P1 – p = 30 – 10 = 20 रुपये,
∆y = y1 – y = y1 – 4 इकाइयाँ
es = \(\frac{∆y}{∆p}\) × \(\frac{p}{y}\); 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) × \(\frac{10}{4}\)
अथवा 1.25 = \(\frac { y_{ 1 }-4 }{ 8 } \) अथवा y1 – 4 = 1.25 × 8
अथवा y1 – 4 = 10.00 अथवा y1 = 10 + 4 = 14 इकाइयाँ
नई कीमत पर फर्म 14 इकाइयों की पूर्ति करेगी।

Bihar Board Class 12 Economics पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
स्थिर लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह उत्पादन लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित नहीं होती है स्थिर लागत कहलाती है। जैसे इमारत का किराया, स्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

प्रश्न 2.
परिवर्तनशील लागत का अर्थ उदाहरण सहित लिखो।
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित होती रहती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है। जैसे कच्चे माल का मूल्य, अस्थायी कर्मचारियों का वेतन आदि।

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प्रश्न 3.
परिवर्तनशील औसत लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई उत्पाद की परिवर्तनशील लागत को औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।

प्रश्न 4.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
उत्पादन आगतों के स्वामी उन्हें पूर्ति करने में जो त्याग, दर्द, कष्ट आदि उठाते हैं, वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 5.
लागत फलन को परिभाषित करो।
उत्तर:
उत्पादन की निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर जो लागत आती है उसे लागत फलन कहते हैं। अथवा उत्पादन मात्रा एवं लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं।

प्रश्न 6.
सीमान्त लागत की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल लागत या कुल परिवर्तनशील लागत में जो वृद्धि होती है उसे सीमांत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 7.
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति बताओ।
उत्तर:
सीमांत लागत वक्र की सामान्य आकृति अंग्रेजी अक्षर U जैसी होती है।

प्रश्न 8.
औसत स्थिर लागत (AFC) वक्र की प्रकृति लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC) हमेशा ऋणात्मक ढाल का वक्र होता है।

प्रश्न 9.
बाजार का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बाजार शब्द से अभिप्राय उस सम्पूर्ण क्षेत्र से है जिसमें क्रेता एवं विक्रेता फैले होते हैं और वस्तु विनिमय का व्यापार करते हैं।

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प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाजार की वह स्थिति जिसमें बहुत अधिक क्रेता एवं विक्रेता समांगी वस्तु का विनिमय करते हैं।

प्रश्न 11.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कीमत स्वीकारक कौन होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में फर्म/उत्पादक कीमत स्वीकारक होती है।

प्रश्न 12.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र किस प्रकृति का होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र पूर्णतः लोचदार होता है। अथवा व्यक्तिगत फर्म का प्रतियोगी बाजार में क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।

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प्रश्न 13.
कुल आगम का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कुल उत्पाद तथा इकाई कीमत के गुणनफल को कुल आगम कहते हैं।
कुल आगम = उत्पाद मात्रा × प्रति इकाई कीमत

प्रश्न 14.
लाभ की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
कुल आगम तथा कुल लागत के अंतर को लाभ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, लागत के ऊपर अर्जित कुछ आगम को लाभ कहते हैं।

प्रश्न 15.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए औसत आगम सदैव कीमत के बराबर होती है।

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प्रश्न 16.
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमान्त आगम एवं कीमत में संबंध लिखो।
उत्तर:
कीमत स्वीकारक फर्म के लिए सीमांत आगम एवं कीमत दोनों एक समान होते हैं।

प्रश्न 17.
आपूर्ति का अर्थ लिखो।
उत्तर:
निश्चित कीमत व निश्चित समय पर कोई फर्म किसी वस्तु की जितनी मात्रा में बिक्री करती है उसे आपूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 18.
आपूर्ति एवं स्टॉक में अंतर लिखो।
उत्तर:
किसी निश्चित समय बिन्दु पर एक फर्म के पास उपलब्ध उत्पाद की मात्रा को स्टॉक कहते हैं। एक निश्चित समय में दी गई कीमत पर उत्पादक वस्तु की जितनी मात्रा बेचने को तैयार होता है उसे आपूर्ति कहते हैं।

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प्रश्न 19.
व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर एक फर्म द्वारा बेची गई विभिन्न मात्राओं को दर्शाती है, व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूची कहलाती है।

प्रश्न 20.
बाजार पूर्ति अनुसूची का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह अनुसूची जो विभिन्न कीमत स्तरों पर बाजार में उपस्थित सभी विक्रेताओं द्वारा बेची गई उत्पाद की मात्राओं के योग को दर्शाती है उसे बाजार पूर्ति अनुसूची कहते हैं।

प्रश्न 21.
पूर्ति में वृद्धि का अर्थ लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत के अलावा अन्य कारकों के कारण वृद्धि होती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।

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प्रश्न 22.
सीमान्त आगम की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय बढ़ाने पर कुल आगम में जितनी वृद्धि होती है उसे सीमांत आगम कहते हैं।

प्रश्न 23.
समविच्छेद बिन्दु क्या होता है?
उत्तर:
वह बिन्दु जिस पर वस्तु की कीमत औसत लागत के समान होती है उसे समविच्छेद बिन्दु कहते हैं। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 24.
सरकार द्वारा किसी वस्तु की बिक्री पर इकाई उत्पादन शुल्क लगाने पर उसकी पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
उत्पादन शुल्क लगाने पर फर्म का पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

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प्रश्न 25.
फर्मों की संख्या में परिवर्तन होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
यदि फर्मों की संख्या में वृद्धि होगी तो पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा। यदि फर्मों की संख्या में कमी होगी तो पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 26.
साधन आगतों की कीमत कम होने पर आपूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
साधन आगतों की कीमत घटने पर आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जायेगा।

प्रश्न 27.
यदि दो पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो इनमें से किस वक्र की पूर्ति लोच अधिक होगी?
उत्तर:
वह पूर्ति वक्र जो दूसरे वक्र की तुलना में ज्यादा चपटा होगा उसकी पूर्ति लोच ज्यादा होती है।

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प्रश्न 28.
पूर्ति में कमी की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
जब किसी वस्तु की मात्रा में उसकी कीमत में अलावा अन्य कारकों के कारण कमी आती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं।

प्रश्न 29.
पूर्ति में संकुचन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा घटती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 30.
पूर्ति में विस्तार का अर्थ लिखो।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर जब किसी वस्तु की कीमत में बढ़ोतरी होने पर उसकी पूर्ति की गई मात्रा बढ़ती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं।

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प्रश्न 31.
एक फर्म के आपूर्ति वक्र पर तकनीकी प्रगति का प्रभाव लिखो।
उत्तर:
तकनीकी प्रगति से एक फर्म का आपूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
लाभ को ज्यामितीय विधि द्वारा समझाइए।
उत्तर:
कीमत स्तर P1 एवं उत्पादन स्तर y1 पर –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 24

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प्रश्न 2.
यदि MR का मान MC से अधिक हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि उत्पादन के किसी विशिष्ट स्तर पर फर्म की सीमांत आगम, सीमांत लागत से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होता है कि उस उत्पादन इकाई के उत्पादन से फर्म को उस इकाई की लागत से अधिक आगम प्राप्त हो रहा है। अर्थात् उस इकाई का उत्पादन लाभकारी है। उत्पादन में थोड़ी अधिक वृद्धि करने पर भी MR, MC से अधिक रहता है।

अर्थात् उत्पादन की कुछ और इकाइयों का उत्पादन बढ़ाकर फर्म लाभ को बढ़ा सकती है। अतः जब MR, MC से अधिक होता है तो फर्म उत्पादन स्तर को बढ़ाने का प्रयास करती है और जब तक MR व MC समान नहीं होते उसके लाभ में भी बढ़ोतरी होती रहती है। इसलिए MR, MC से ज्यादा होने पर अधिकतम लाभ की स्थिति उत्पन्न नहीं होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 25
उत्पादन स्तर y0 पर MR > MC लाभ
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR > MC लाभ में बढ़ोतरी
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

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प्रश्न 3.
यदि MR का मान MC से कम हो तो क्या यह अधिकतम लाभ की स्थिति हो सकती है? समझाइए।
उत्तर:
यदि किसी विशिष्ट उत्पादन स्तर पर MR, MC से कम होता है, इसका मतलब यह होता है कि उस इकाई का उत्पादन करने पर फर्म को उसकी लागत से कम आगम प्राप्त होता है। अतः उस इकाई. का उत्पादन फर्म के लिए हानिप्रद है। उत्पादन स्तर में थोड़ी कमी से भी MR, MC से कम रहता है अर्थात् फर्म को हानि उठानी पड़ती है लेकिन हानि के स्तर में उत्पादन स्तर में वृद्धि करने पर कमी आती है।

फर्म उत्पादन स्तर को कम करती है, जब तक MR, MC से कम होती है और इस प्रकार उत्पादन स्तर कम करके कुल हानि में भी कमी आती है। उत्पादन स्तर घटाने का सिलसिला उस उत्पादन स्तर तक रहता है जब तक MR व MC समान नहीं होते हैं। अतः यदि MR का मान MC से कम होता है तो यह अधिकतम लाभ की स्थिति नहीं हो सकती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 26
चित्र में उत्पादन स्तर y0 पर MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y0 से y1 तक MR < MC हानि
उत्पादन स्तर y1 पर MR = MC अधिकतम लाभ

प्रश्न 4.
दीर्घकालीन समता बिन्दु की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन बढ़ाना उस स्तर तक जारी रखती है जब तक कीमत, न्यूनतम दीर्घकालीन औसत लागत (LARC) से अधिक रहती है। जब कीमत न्यूनतम LRAC के समान हो जाती है तो फर्म उत्पादन स्तर न बढ़ाने का निर्णय कर सकती है। यदि कीमत, न्यूनतम LRAC से कम रह जाती है तो फर्म उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से कुल लागत को पूरा नहीं कर सकती है।

अत: फर्म उत्पादन के उस स्तर पर उत्पादन बढ़ाना बंद करती है जहाँ (Min.) LRAC कीमत के बराबर होती है। अतः आपूर्ति वक्र नीचे चला जाता है। अंतिम कीमत उत्पादन स्तर संयोजन वहाँ प्राप्त होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र को नीचे से काटता है। इस बिन्दु पर कीमत, न्यूनतम LRAC दोनों समान हो जाते हैं इस बिन्दु से उत्पादन स्तर घटाने पर कुल TR, कुल लागत से कम हो जाती है। आगे और फर्म को हानि उठानी पड़ती है। अत: फर्म को उस बिन्दु से आगे उत्पादन बढ़ाना पसंद नहीं जहाँ LRAC, कीमत के समान हो जाती है उससे आगे उत्पाद बढ़ाने पर फर्म को उठानी पड़ती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 27

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प्रश्न 5.
क्या होता है जब कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक परंतु न्यूनतम औसत लागत से कम होती है?
उत्तर:
माना उत्पादन स्तर y निम्नलिखित दो शर्तों को पूरा करता है –

  1. कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक है तथा
  2. कीमत, अल्पकालीन न्यूनतम औसत लागत से कम है।

कीमत का मान न्यूनतम SAC से कम है अर्थात फर्म को हानि पड़ेगी। कीमत का मान न्यूनतम AVC से ज्यादा है इसका अभिप्राय है TR का मान TVC से अधिक होगा। इस स्थिति में फर्म उत्पाद को बेचकर सम्पूर्ण लागत की भरपाई नहीं कर सकती है। फर्म TVC एवं TFC का कुछ भाग उत्पाद को बेचकर पूरा कर रही है। यदि फर्म उत्पादन स्तर शून्य रखने का निर्णय करेगी तो फर्म की कुल हानि कुल स्थिर लागत के समान होगी। इस प्रकार हानि के स्तर को कम करने के लिए फर्म उत्पादन का धनात्मक स्तर उत्पन्न करने का निर्णय लेगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 28
जब P = Min AVC कुल हानि सम्पूर्ण छायांकित भाग
जब P > Min AVC and
P < Min SAC – हानि क्रोस छायांकित भाग

प्रश्न 6.
संक्षेप में फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु (Shutdown point) समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म उस उत्पादन स्तर तक उत्पादन करने का निर्णय करती है जब तक कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत (Min AVC) के समान या इससे अधिक होती है। यदि कीमत स्तर, न्यूनतम AVC से कम हो जाता है तो फर्म अपनी कुल परिवर्तनशील लागत की भरपाई उत्पाद को बेचकर प्राप्त आगम से नहीं कर सकती है। अतः यह बिन्दु जिस पर SMC नीचे से AVC वक्र को काटती है फर्म का अल्पकालीन समता बिन्दु होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 29

प्रश्न 7.
उत्पादक संतुलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
उत्पादक संतुलन उत्पादन की वह स्थिति होती है जब फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। उत्पादक की साम्य अवस्था में फर्म का कुल आगम, कुल लागत समान होता है। गणितीय रूप में उत्पादक संतुलन को नीचे लिखा गया है –
कुल आगम (TR) = कुल लागत (TC)
दूसरे शब्दों में उत्पादक उस स्थिति में साम्य की अवस्था में होता है जब फर्म उत्पाद के लिए मिलने वाला कीमत सीमांत लागत के बराबर होती है। साम्य की अवस्था में – कीमत (AR) = सीमांत लागत (MC) साम्य की अवस्था में फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है।

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प्रश्न 8.
संक्षेप में समविच्छेद बिन्द की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
दीर्घकाल में यदि कोई फर्म सामान्य लाभ से कम अर्जित करती है तो वह उत्पादन कतई नहीं करती है। अल्पकाल में कोई फर्म सामान्य लाभ से कम स्तर पर भी उत्पादन कर सकती है। दूसरे शब्दों में फर्म हानि उठाकर भी उत्पादन जारी रख सकती है। लेकिन कोई भी फर्म अल्पकाल में भी उत्पादन नहीं करेगी। यदि उत्पाद की कीमत, न्यूनतम औसत परिवर्तनशील लागत से कम रहती है। आपूर्ति वक्र पर वह बिन्दु जिस पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। अल्पकाल में जिस बिन्दु पर SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को न्यूनतम बिन्दु पर काटता है। दीर्घकाल में समविच्छेद बिन्दु आपूर्ति वक्र RMC वक्र के उस बिन्दु पर होता है जहाँ LRMC वक्र, LRAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 30
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 31

प्रश्न 9.
उदाहरण सहित सामान्य लाभ की परिभाषा समझाइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन करने के लिए फर्म विभिन्न साधन आगतों का प्रयोग करती है। अधिकांशतः साधनों का प्रयोग करने के लिए फर्म इनकी कीमत प्रत्यक्ष रूप से चुकाती है। फर्म उत्पादन में कुछ निजी साधनों का प्रयोग भी करती है। निजी साधनों के बाजार मूल्य को अस्पष्ट लागत कहते हैं। स्पष्ट लागतों एवं अस्पष्ट लागतों के योग को कुल लागत कहते हैं।

उत्पाद को बाजार में बेचकर फर्म जितना आगम प्राप्त करती है उसे कुल आगम कहते हैं। कुल लागत पर कुल आगम के अधिशेष को लाभ कहते हैं। लाभ का वह स्तर जिस पर फर्म केवल स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागतों की भरपाई कर पाती है सामान्य लाभ कहलाता है। दूसरे शब्दों में सामान्य लाभ वह न्यूनतम लाभ होता है जो फर्म को व्यवस्था में बने रहने के लिए अवश्य प्राप्त होना चाहिए। सामान्य लाभ को शून्य लाभ भी कहते हैं क्योंकि इस स्तर पर फर्म की कुल आगम व कुल लागत दोनों एक समान होते हैं।

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प्रश्न 10.
अवसर लागत की अवधारणा को समझाइए।
उत्तर:
किसी गति विधि की अन्य सभी वैकल्पिक गतिविधियों के अधिकतम् मूल्य को अवसर लागत कहते हैं। माना पारिवारिक व्यापार में निवेश के अलावा वह उक्त धनराशि को शून्य प्रतिफल के लिए अपनी तिजोरी में रख सकता है अथवा 10 प्र.श. ब्याज पर बैंक में जमा करवा सकता है। अतः वैकल्पिक गतिविधियों में निवेश का अधिकतम प्रतिफल बैंक में धनराशि जमा करवाना है। बैंक जमा करवाना पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है। एक बार घरेलू व्यापार में निवेश करने के बाद अवसर लागत की अवधारणा खत्म हो जाएगी। परंतु जब तक पारिवारिक व्यापार में निवेश नहीं किया जाता है तब तक बैंक जमा से ब्याज के रूप में प्रतिफल पारिवारिक व्यापार में निवेश की अवसर लागत है।

प्रश्न 11.

  1. इकाई लोचदार पूर्ति वक्र एवं
  2. शून्य लोचदार पूर्ति वक्र बनाइए

उत्तर:
1. धनात्मक ढाल वाला पूर्ति वक्र जो मूल बिन्दु से गुजरता है, इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 32

2. क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत पूर्ति वक्र, शून्य लोचदार को दर्शाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 33

प्रश्न 12.
कोई तीन कारक लिखिए जो आपूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति को ऊपर/बायीं ओर खिसकाने वाले कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
  2. उत्पाद शुल्क लगाना/उत्पाद शुल्क में वृद्धि
  3. फर्मों की संख्या में कमी
  4. प्रतिस्थापक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 13.
आपूर्ति के नियम का अर्थ लिखो। इसे आपूर्ति अनुसूची एवं वक्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
अन्य कारक समान रहने पर वस्तु की कीमत में वृद्धि होने पर उत्पादक उसकी अधिक करता है तथा वस्तु की कीमत में कमी होने पर उत्पादक वस्तु की कम मात्रा में पूर्ति करता है। इसे पूर्ति का नियम कहते हैं। पूर्ति के नियम को पूर्ति अनुसूची व वक्र की सहायता से समझाया जा सकता है –

पूर्ति अनुसूची:
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पूर्ति अनुसूची विभिन्न कीमतों पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्राओं को दर्शाती है। जैसे जैसे कीमतों में बढ़ोतरी होती है तो पूर्ति की मात्रा भी बढ़ती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 35
पूर्ति वक्र का ढाल धनात्मक है जो इस बात को दर्शाता है कि पूर्ति की मात्रा वस्तु की कीमत बढ़ने पर बढ़ जाती है।

प्रश्न 14.
समांगी उत्पाद होने का क्या अर्थ है ? बाजार में इसका कीमत निर्धारण में प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
समांगी उत्पाद का अभिप्राय है एक समान वस्तु। इसका मतलब होता है सभी उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ रंग, आकार, शक्ल, स्वाद आदि में एकदम एक जैसी होती है। समांगी वस्तु का परिणाम यह होता है कि बाजार में सभी उत्पादक वस्तु की समान कीमत प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई भी उत्पादक बाजार कीमत से अधिक वसूलने की हिम्मत करता है तो समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण वह वस्तु की मात्रा बाजार में नहीं बेच सकता है। अर्थात समांगी वस्तु उपलब्ध होने के कारण एक कीमत स्वीकारक के रूप में कार्य करती है वह स्वयं कीमत का निर्धारण नहीं कर सकती है।

प्रश्न 15.
वे कारक लिखो जो पूर्ति वक्र को नीचे/दायीं ओर खिसकाते हैं।
उत्तर:
पूर्ति वक्र को दायीं ओर खिसकाने के लिए उत्तरदायी कारक:

  1. साधन आगतों की कीमत में कमी
  2. उत्पाद शुल्क में कमी
  3. उत्पादन तकनीक में प्रगति
  4. फर्मों की संख्या में वृद्धि

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प्रश्न 16.
माँग वक्र पर संचरण तथा माँग वक्र में खिसकाव में अंतर लिखो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर वस्तु की कीमत बढ़ने से पूर्ति की मात्रा बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति की गई मात्रा कम हो जाती है तो इससे पूर्ति वक्र पर संचरण होता है। जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति बढ़ जाती है अथवा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से पूर्ति कम हो जाती है इससे पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

पूर्ति वक्र पर संचरण पूर्ति में विस्तार या संकुचन की स्थिति में होता है जबकि पूर्ति वक्र में खिसकाव पूर्ति में वृद्धि या कमी होने पर होता है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में पूर्ति वक्र पर नीचे ऊपर तथा पूर्ति में संकुचन की स्थिति में ऊपर से नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव नीचे/दायीं ओर होता है व पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 36

प्रश्न 17.
पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन तथा पूर्ति में परिवर्तन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति बढ़ जाती है अथवा वस्तु की कीमत कम होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन से पूर्ति में वृद्धि तथा अन्य कारकों में वृद्धि तथा अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन से वस्तु की पूर्ति कमी को पूर्ति में परिवर्तन कहते हैं। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची में बदलाव नहीं होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन से पूर्ति अनुसूची बदला जाती है। पूर्ति की गई मात्रा में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र पर संचरण होता है जबकि पूर्ति में परिवर्तन होने पर पूर्ति वक्र में खिसकाव होता है।

प्रश्न 18.
नीचे चित्र में विभिन्न आपूर्ति वक्र दर्शाए गए हैं। घटते क्रम में पूर्ति लोच की श्रेणियाँ लिखो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 37
उत्तर:
पूर्ति वक्र का ढ़ाल पूर्ति की लोच को निर्धारित करता है। वह सीधी रेखा जो मूल बिन्दु से गुजरती है इकाई लोचदार पूर्ति को दर्शाती है। इस वक्र की तुलना अधिक चपटे वक्र की पूर्ति लोच इकाई से अधिक तथा इससे अधिक ऊर्द्धवाधर ढाल वाले वक्र की पूर्ति लोच इकाई से कम होती है। इन तथ्यों के आधार पर चित्र में दर्शाए गए वक्रों की पूर्ति लोच इस प्रकार होगी –

  1. वक्र C अधिक चपटा है वक्र B की तुलना में अतः यह इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति को दर्शाता है।
  2. वक्र B, बिन्दु से गुजर रहा है, इसकी पूर्ति लोच इकाई है।
  3. पूर्ति वक्र A अधिक उर्ध्वाधर है वक्र B की अपेक्षा अतः इसकी पूर्ति लोच इकाई से कम है।

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प्रश्न 19.
उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम को सीमांत आगम कहते हैं। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, उत्पाद की अंतिम इकाई से प्राप्त आगम सीमांत आगम नहीं होता है। उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का विक्रय करने पर कुल आगम में होने वाली बढ़ोतरी को सीमान्त आगम कहते हैं।
MR = TRn – TRn – 1
अतः सीमांत आगम उत्पाद की अंतिम इकाई की बिक्री से प्राप्त आगम नहीं हो सकता है।

प्रश्न 20.
एक प्रतियोगी फर्म के लिए सीमांत आगम व कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
सीमांत आगम तथा कुल आगम में संबंध –

  1. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है और इसमें बढ़ने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल आगम अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमांत आगम धनात्मक होता है लेकिन उसमें घटने की प्रवृत्ति पायी जाती है तब कुल घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमांत आगम शून्य होता है तब कुल आगम अधिकतम होता है।
  4. जब सीमांत आगम ऋणात्मक होता है तब कुल आगम घटने लगता है।

प्रश्न 21.
एक अप्रतियोगी फर्म के लिए औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध लिखो।
उत्तर:
औसत आगम तथा कुल आगम में संबंध:

  1. जब औसत आगम में वृद्धि होती है, कुल आगम अधिक दर से बढ़ती है।
  2. जब औसत आगम में कमी होती है, कुल आगम में घटती हुई दर से बढ़ोतरी होती है।
  3. औसत आगम तथा कुल आगम किसी भी धनात्मक विक्रय स्तर पर शून्य एवं धनात्मक नहीं हो सकते हैं।

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प्रश्न 22.
पूर्ति में वृद्धि में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। वस्तु की कीमत समान रहने पर जब अन्य कारकों में प्रतिकूल परिवर्तन होने पर पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है जबकि पूर्ति में कमी होने पर पूर्ति वक्र ऊपर की ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 38

प्रश्न 23.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में वृद्धि में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती . है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं, जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति बढ़ जाती है इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है जबकि पूर्ति में वृद्धि होने पर पूर्ति अनुसूची में बदल जाती है। पूर्ति में विस्तार की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है जबकि पूर्ति में वृद्धि की स्थिति में पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 39

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प्रश्न 24.
पूर्ति में संकचन तथा पूर्ति में कमी में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
यदि अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत में कमी होने से वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं जबकि वस्तु की कीमत समान रहने पर यदि अन्य कारकों में प्रति अनुकूल परिवर्तन होने से पूर्ति घट जाती है इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति अनुसूची नहीं बदलती है। जबकि पूर्ति में कमी होने से पूर्ति अनुसूची बदल जाती है। पूर्ति में संकुचन की स्थिति में उसी पूर्ति वक्र पर ऊपर नीचे संचरण होता है जबकि पूर्ति में कमी की स्थिति में पूर्ति वक्र ऊपर बायीं ओर खिसक जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 40

प्रश्न 25.
पूर्ति की लोच की परिभाषा दीजिए। पूर्ति की लोच ज्ञात करने के लिए प्रतिशत विधि को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन की माप जो वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण होती है।
माना आरंभिक कीमत (p) पर वस्तु की पूर्ति = q1
कीमत स्तर (p) पर पूर्ति = q1
कीमत में परिवर्तन ∆p = P1 – p
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 41

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प्रश्न 26.
पूर्ति में विस्तार तथा पूर्ति में संकुचन में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत बढ़ने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है तो इसे पूर्ति में विस्तार कहते हैं। अन्य कारकों के समान रहने पर कीमत घटने से वस्तु की पूर्ति घट जाती है तो इसे पूर्ति में संकुचन कहते हैं। पूर्ति में विस्तार होने पर पूर्ति वक्र पर नीचे से ऊपर संचरण होता है पूर्ति में संकुचन होने पर पूर्ति वक्र पर ऊपर से नीचे संचरण होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 42

प्रश्न 27.
वस्तु की पूर्ति एवं समय अवधि में संबंध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. अति अल्पकाल अथवा बाजारकाल इतनी छोटी अवधि होती है कि इसमें फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकती है।
  2. अल्पकाल वह समय अवधि होती है जिसमें फर्म केवल परिवर्तनशील साधन को बदल सकती है जबकि अन्य साधन स्थिर रहते हैं। अत: फर्म उत्पादन के परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर ही उत्पादन को बढ़ा सकती है।
  3. अर्थात फर्म एक सीमित सीमा तक ही वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है।
  4. दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। अतः इस अवधि फर्म साधनों के प्रयोग से वस्तु की पूर्ति को प्रभावित कर सकती है। इसलिए इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।
    Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 43

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प्रश्न 28.
मूल बिन्दु से गुजरने वाले पूर्ति वक्र की लोच 1 इकाई क्यों होती है।
उत्तर:
आपूर्ति वक्र के किसी बिन्दु पर \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) का अनुपात पूर्ति लोच कहलाता है जहाँ MY0 मात्रा अक्ष का भाग है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु जहाँ पूर्ति व क्रय विस्तारित पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष को काटता है। Y0 वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से क्षैतिज रेखा पर डाला गया लम्ब क्षैतिज अक्ष को काटता है।

OP0 कीमत अक्ष का वह बिन्दु है जहाँ पूर्ति वक्र से खींचा गया लम्ब कीमत अक्ष को काटता है। मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए बिन्दु M तथा O दोनों समान होते हैं। अत: MY0 तथा OY0 दोनों समान होते हैं। इसलिए मूल बिन्दु से गुजरने वाले वक्र के लिए MY0 व OY0 का अनुपात 1 होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 44
es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) = \(\frac{\mathrm{OY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\) [∵MY0 = OY0]

प्रश्न 29.
पूर्ति लोच को ज्ञात करने की ज्यामीतिय विधि समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की गणना आपूर्ति वक्र के उदगम के आधार पर की जाती है। पूर्ति वक्र पर स्थित किसी बिन्दु s पर MY0 तथा OY0 के अनुपात से पूर्ति लोच की गणना की जाती है। M मात्रा अक्ष का वह बिन्दु है जिस पर पूर्ति वक्र या विस्तारित पूर्ति वक्र, मात्रा अक्ष को काटता है, Y0 मात्रा अक्ष पर वह बिन्दु है जिस पर बिन्दु s से क्षैतिज अक्ष पर डाला गया लम्ब मिलता है।
es = \(\frac{\mathrm{MY}_{0}}{\mathrm{OY}_{0}}\)
यदि MY0 > OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से अधिक होगी
यदि MY0 = OY0 तो पूर्ति की लोच के समान होगी
यदि MY0 < OY0 तो पूर्ति की लोच इकाई से कम होगी
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 45
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 45a

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प्रश्न 30.
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म का माँग वक्र पूर्णतया लोचदार क्यों होता है?
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी बाजार में एक समान कीमत होने का कारण यह है कि इस बाजार में अधिक क्रेता व विक्रेता समान वस्तु का आदान प्रदान करते हैं। क्रेता व विक्रेताओं को बाजार का पूर्ण ज्ञान होता है। क्रेता न्यूनतम कीमत पर वस्तु का क्रय करते हैं। यदि कोई विक्रेता अपने उत्पाद की ऊँची कीमत तय करता है तो कोई भी क्रेता उसकी वस्तु क्रय नहीं करता है, और उस फर्म को बाजार से बाहर जाना पड़ता है। प्रत्येक फर्म यह जानती है कि बाजार में इसके द्वारा की गई पूर्ति का क्या महत्व है अर्थात बाजार कीमत पर कितनी मात्रा में बिक्री की जायेगी। कोई भी फर्म बाजार कीमत से कम कीमत नहीं स्वीकार कर सकती है इसलिए एक फर्म का माँग वक्र पूर्तियोगिता में पूर्णतया लोचदार होता है।

प्रश्न 31.
पूर्ण प्रतियोगी फर्म का MR व AR का मान स्थिर क्यों होता है।
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगी फर्म के MR व AR वक्र x अक्ष के समांतर होते हैं जो Y – 3 अक्ष को कीमत स्तर p पर काटते हैं। ये दोनों वक्र कीमत रेखा होते हैं। पूर्ण प्रतियोगी फर्म के AR एवं MR का मान समान व स्थिर होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत समान रहने के कारण AR व MR का मान स्थिर रहता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 46

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित को समझाइए।

  1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन
  2. समविच्छेद बिन्दु

उत्तर:
1. उत्पादन साधनों का न्यूनतम लागत संयोजन:
प्रत्येक उत्पादन इकाई का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। इस लक्ष्य को पाने के लिए फर्म उत्पादन साधनों के ऐसे संयोजनों का चयन करती है जिससे उसकी उत्पादन लागत न्यूनतम हो जाए। उत्पादन साधनों का ऐसा संयोजन जिसकी लागत न्यूनतम होती है, न्यूनतम लागत संयोजन कहलाता है।

2. समविच्छेद बिन्दु:
वह बिन्दु जिस पर फर्म की कुल आगम उसकी कुल उत्पादन लागत के समान होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिस बिन्दु पर कुल औसत लागत वस्तु की कीमत के बराबर होती है समविच्छेद बिन्दु कहलाता है। समविच्छेद बिन्दु पर फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता है। इसका अभिप्राय यह है कि न तो फर्म को हानि होती है और न लाभ। परंतु इस बिन्दु पर फर्म का कुल लाभ अधिकतम होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 47

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प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत फर्म की संतुलन/साम्य अवस्था को समझाइए।
उत्तर:
एक पूर्ण प्रतियोगी फर्म संतुलन की अवस्था में उस बिन्दु पर पहुँचती है जहाँ सीमांत लागत बढ़ती हुई स्थिति में कीमत रेखा को काटती है। पूर्ण प्रतियोगी फर्म की साम्य अवस्था को नीचे चित्र की सहायता से समझाया जा सकता है। चित्र में बिन्दु E अधिकतम लाभ की दोनों शर्तों को पूरा करता है इस बिन्दु पर वस्तु की कीमत व सीमांत लागत समान है तथा सीमांत लागत का ऊपर उठाता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है। इस बिन्दु पर कुल लाभ ज्यादा होगा।
कुल आगम = कीमत रेखा के अंतर्गत क्षेत्रफल कुल आगम = क्षेत्रफल
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 48

उत्पादन (इकाइयाँ) उत्पादन स्तर OQ पर फर्म को अधिकतम लाभ मिलेगा। इसके अतिरिक्त अन्य किसी भी उत्पादन स्तर पर कुल लाभ बिन्दु E पर लाभ की तुलना में कम होगा। अतः फर्म का संतुलन बिन्दु वहाँ स्थापित होता है जहाँ सीमांत लागत वक्र का ऊपर उठता हुआ भाग कीमत रेखा को काटता है।

प्रश्न 3.
वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले कारक:
1. प्रयोग में लाए जाने वाले साधनों की प्रकृति:
वस्तु की पूर्ति लोच साधनों की प्रकृति से प्रभावित होती है। यदि वस्तु के उत्पादन में विशिष्ट साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। दूसरी ओर यदि वस्तु के उत्पादन में सामान्य रूप उपलब्ध साधनों का प्रयोग किया जाता है तो वस्तु की पूर्ति लोचदार होती है।

2. प्राकृतिक कारक:
प्राकृतिक कारक भी वस्तु की पूर्ति लोच को प्रभावित करते हैं यदि किसी वस्तु के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो वस्तु की पूर्ति बेलोचदार होती है। उदाहरण के लिए जैसे टीक लकड़ी के उत्पादन में अधिक समय लगता है तो इसकी पूर्ति बेलोचदार होती है।

3. जोखिम:
वस्तु की पूर्ति लोच उत्पाद की जोखिम वहन करने की इच्छा पर भी निर्भर करती है। यदि उत्पादक की जोखिम उठाने की अधिक तत्परता/इच्छा होती है तो वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है इसके विपरीत यदि उत्पादक जोखिम उठाने से बचता है तो पूर्ति लोच कम होगी।

4. वस्तु की प्रकृति:
शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं की पूर्ति बेलोचदार होती है तथा टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोच अधिक होती है।

5. उत्पादन लागत:
वस्तु की उत्पादन लागत भी पूर्ति लोच को प्रभावित करती है। यदि वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ती है तो पूर्ति बेलोचदार होती है इसके विपरीत यदि उत्पादन लागत घटती है तो पूर्ति की लोच ज्यादा होती है।

6. समयावधि:
पूर्ति लोच समयावधि से बहुत ज्यादा प्रभावित होती है। उत्पादक के पास जितना अधिक समय होता है पूर्ति उतनी अधिक लोचदार होती है इसके विपरीत फर्म के जितनी कम समयावधि होती है पूर्ति उतनी ही कम लोचदार होती है। समयावधि के आधार पर पूर्ति लोच को निम्न प्रकार भी समझाया जा सकता है –

7. अति अल्पकाल:
यह समय अवधि इतनी कम होती है कि इसमें उत्पादक साधनों में परिवर्तन नहीं कर सकता है इसलिए पूर्ति लगभग पूर्णतः बेलोचदार होती है।

8. अल्पकाल:
इस समय अवधि में फर्म परिवर्तनशील साधनों की संख्या तो बढ़ा सकती है लेकिन सभी साधनों की संख्या नहीं बढ़ा सकती है अतः इस अवधि में पूर्ति बेलोचदार होती है।

9. दीर्घकाल:
इस अवधि फर्म में सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है अतः कीमत के अनुसार फर्म वस्तु की पूर्ति को बदल सकती है। इस अवधि में पूर्ति लोचदार होती है।

10. उत्पादन तकनीक:
यदि वस्तु के उत्पादन की तकनीक जटिल होती है तो इसे बदलने के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है अतः पूर्ति लोच कम होती है। इसके विपरीत सरल उत्पादन तकनीक से उत्पन्न वस्तु की पूर्ति लोच अधिक होती है।

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प्रश्न 4.
संक्षेप में समझाइए कि विभिन्न कारक वस्तु की पूर्ति को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक –
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत व उसकी पूर्ति में सीधा संबंध होता है। सामान्यतः ऊँची कीमत पर वस्तु की अधिक पूर्ति की जाती है और नीची कीमत पर वस्तु की पूर्ति की गई मात्रा कम होती है।

2. संबंधित वस्तुओं की कीमत:
प्रतियोगी वस्तु की कीमत और वस्तु की कीमत में विपरीत संबंध होता है। प्रतियोगी वस्तु की कीमत बढ़ने पर, वस्तु सापेक्ष रूप से सस्ती हो जाती है और उत्पादक के लिए उसे बेचना कम लाभप्रद हो जाता है इसलिए उत्पादक वस्तु की कम पूर्ति करता है।

3. फर्मों की संख्या:
फर्मों की संख्या तथा वस्तु की आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। किसी वस्तु के उत्पादन में जितनी अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है उसकी पूर्ति उतनी ही अधिक होती है तथा फर्मों की संख्या जितनी कम होती है पूर्ति भी उतनी ही कम होती है।

4. फर्म का उद्देश्य:
यदि फर्म का उद्देश्य अधिक लाभ कमाना होता है तो फर्म ऊँची कीमत पर अधिक उत्पादन/पूर्ति करती है। इसके विपरीत यदि कोई फर्म नाम कमाना चाहती है, यह बिक्री अधिक करना चाहती है या रोजगार स्तर को ऊँचा करना चाहती है तो कम कीमत पर भी फर्म अधिक पूर्ति करने का प्रयास करती है।

5. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत तथा वस्तु की पूर्ति में विपरीत संबंध होता है। यदि उत्पादन आगतों की कीमत कम होती है तो उत्पादन लागत कम आती है इससे फर्म अधिक उत्पादन करती है। इसके विपरीत यदि उत्पादन आगतों की कीमत बढ़ती है तो लागत ऊँची होने के कारण पूर्ति घट जाती है।

6. उत्पादन तकनीक में परिवर्तन:
उत्पादन तकनीक एवं वस्तु की पूर्ति में सीधा संबंध होता है उन्नत उत्पादन तकनीक के प्रयोग से उत्पादन लागत घटती है जिसमें उत्पादक वस्तु की अधिक पूर्ति करता है।

7. भावी कीमत:
यदि उत्पाक को ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में वस्तु की कीमत घटने वाली है तो वर्तमान में वस्तु की अधिक पूर्ति करेगा इसके विपरीत यदि निकट भविष्य में कीमत बढ़ने की संभावना होती है तो उत्पादक वस्तु की वर्तमान पूर्ति को कम करेगा।

8. सरकारी नीति:
सरकार की कर नीति एवं आर्थिक सहायता की नीति भी वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करती है। कर की ऊँची दर वस्तु की पूर्ति को घटाती है और आर्थिक सहायता वस्तु की पूर्ति को प्रोत्साहित करती है।

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प्रश्न 5.
पूर्ति लोच की विभिन्न श्रेणियों के बारे में समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति लोच की श्रेणियाँ –
1. पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति (शून्य लोचदार पूर्ति):
यदि वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की पूर्ति अप्रभावित रहती है तो पूर्ति लोच शून्य या पूर्णतया बेलोचदार कहलाती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 49
चित्र में कीमत स्तर Op, Op1, Op2, पर पूर्ति की गई मात्रा एक समान OQ रहती है। अतः – पूर्ण बेलोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष पर लम्बवत होता है।

2. अपूर्ण लोचदार या इकाई से कम लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम होता है तो पूर्ति लोच इकाई से कम होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 50
चित्र में pp1, में प्रतिशत परिवर्तन, पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन QQ1 से ज्यादा है।

3. इकाई लोचदार पूर्तिवक्र:
जब कीमत में परिवर्तन होने पर पूर्ति की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के समान होता है तो पूर्ति लोच इकाई के बराबर होती है। इकाई लोचदार पूर्ति वक्र मूल बिन्दु से गुजरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 51

4. लोचदार या इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति:
जब कीमत परिवर्तन होने पर पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन, कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से ज्यादा होता है तो पूर्ति लोच इकाई से अधिक होती है। इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति वक्र बढ़ाने पर कीमत अक्ष को काटता है।

5. अनन्त लोचदार/पूर्णतया लोचदार पूर्ति:
जब कीमत में नगण्य परिवर्तन या बिना किसी परिवर्तन के कारण वस्तु की पूर्ति बदल जाती है तो पूर्ति लोच पूर्णतया लोचदार/अनन्त लोचदार कहलाती है। पूर्णतया लोचदार पूर्ति वक्र क्षैतिज अक्ष के समांतर होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 52

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प्रश्न 6.
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक:
1. वस्तु की कीमत:
वस्तु की कीमत उसकी बाजार पूर्ति को प्रभावित करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। ऊँची कीमत पर बाजार पूर्ति अधिक एवं नीची कीमत पर बाजार पूर्ति कम होती है।

2. उत्पादन तकनीक:
बाजार पूर्ति उत्पादन तकनीक से भी प्रभावित होती है। यदि नई एवं उन्नत उत्पादन तकनीक से उत्पादन लागत कम हो जाती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है। दूसरी पिछड़ी एवं लागत बढ़ाने वाली तकनीक का प्रयोग करने पर बाजार पूर्ति कम होती है।

3. उत्पादन साधनों की कीमत:
उत्पादन साधनों की कीमत से उत्पादन लागत का निर्धारण होता है। साधनों की कीमत बढ़ने पर उत्पादन लागत बढ़ जाती है इससे बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत उत्पादन साधनों की कीमत बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ जाती है और बाजार पूर्ति कम हो जाती है।

4. कर नीति:
कर नीति भी बाजार पूर्ति को प्रभावित करती है यदि सरकार उत्पादन शुल्क की दर बढ़ा देती है या आर्थिक सहायता कम कर देती है उत्पादन लागत में बढ़ोतरी हो जाती है। परिणामतः वस्तु की बाजार पूर्ति कम हो जाती है। इसके विपरीत यदि सरकार शुल्क की दर घटा देती है अथवा आर्थिक सहायता बढ़ा देती है तो उत्पादन लागत घट जाती है इससे बाजार पूर्ति में वृद्धि हो जाती है।

5. फर्मों की संख्या:
यदि किसी वस्तु की उत्पादन में अधिक संख्या में फर्म संलग्न होती है तो बाजार पूर्ति अधिक होती है इसके विपरीत वस्तु के उत्पादन में जितनी कम संख्या में फर्म संलग्न होती है वस्तु की बाजार शर्ते उतनी कम होती है।

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प्रश्न 7.
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारकों को समझाइए।
उत्तर:
पूर्ति वक्र में खिसकाव के लिए उत्तरदायी कारक:
1. तकनीकी परिवर्तन:
उत्पादन की नई एवं प्रोनोत्त तकनीक जो उत्पादन लागत को घटाती है पूर्ति में वृद्धि पैदा करती है जिससे पूर्ति वक्र नीचे दायीं ओर खिसक जाता है। इसकी विपरीत पिछड़ी एवं घिसी हुई तकनीक से उत्पादन लागत बढ़ जाती है जो पूर्ति में कमी उत्पन्न करती है परिणामतः पूर्ति वक्र ऊपर/बायीं ओर खिसक जाता है।

2. साधन आगतों की कीमत में परिवर्तन:
साधनों आगतों की कीमतें जैसे मजदूरी दर, कच्चे माल का मूल्य, किराया आदि सीमांत लागत को प्रभावित करते हैं। सीमांत लागत के परिवर्तित होने से पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है। साधन आगतों में वृद्धि (कमी) से सीमांत ज्यादा (कम) हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र बायीं (दायीं) ओर खिसक जाता है।

3. करों में परिवर्तन:
उत्पादकों को बिक्री पर कर देना पड़ता है। करों की दर में, परिवर्तन से सीमांत लागत बढ़ जाती है। इस प्रकारा करों में वृद्धि (कमी) से सीमांत लागत में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। अतः करों में वृद्धि (कमी) से पूर्ति वक्र में बायीं (दायी) ओर खिसकाव उत्पन्न होता है।

4. संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन:
दिए गए साधनों से एक से अधिक वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है फर्म उस वस्तु के उत्पादन के उत्पादन में ज्यादा प्रयोग करती है जिसका उत्पादन ज्यादा लाभकारी होता है। अतः प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत में कमी (वृद्धि) से वस्तु की पूर्ति ज्यादा (कम) हो जाती है परिणामतः पूर्ति वक्र दायों (बायीं) ओर खिसक जाता है।

5. फर्मों की संख्या में परिवर्तन:
फर्मों की संख्या में वृद्धि (कमी) होने से वस्तु की पूर्ति में वृद्धि (कमी) उत्पन्न हो जाती है। इससे पूर्ति वक्र में दायीं (बायीं) और खिसकाव उत्पन्न होता है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका के पूरा करो –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 53
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 54

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प्रश्न 2.
एक फर्म की कुल आगम अनुसूची नीचे दी गई है इससे औसत आगम, सीमांत आगम तथा कीमत की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 55
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 56

क्यों औसत आगम प्रत्येक उत्पादन स्तर पर स्थिर है और कीमत हमेशा औसत आगम के बराबर रहती है। इस प्रकार कीमत स्तर 7 रु. है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 57
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 58

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 59
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 60

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगी बाजार वस्तु की बाजार कीमत 25 रु. है।

  1. 0 – 8 उत्पादन इकाई के लिए फर्म की कुल आगम अनुसूची बनाइए।
  2. माना बाजार कीमत बढ़कर 30 रु. हो जाती है। नया कुल अधिक ढ़ालू या चपटा होगा।

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 61

2. नई कीमत 30 रु. पर कुल आगम अनुसूची
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 62
नया कुल आगम वक्र अधिक ढ़ालू होगा।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 63
हल:
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प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
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हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 66

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 8.
एकाधिकारी फर्म की माँग अनुसूची नीचे दी गई है।
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हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 68

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका से कुल आगम, औसत आगम तथा सीमांत आगत ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 69
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 70

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत

प्रश्न 10.
निम्नलिखित तालिका से औसत आगम व सीमांत आगम का परिकलन करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 71
हल:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 4 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत part - 2 img 72

प्रश्न 11.
जब बाल पैन की कीमत 4रु./इकाई है तो एक बाल पैन निर्माता प्रति दिन 8 पैन बेचता है। जब कीमत बढ़कर 5 रु./इकाई हो जाती है तो वह प्रतिदिन 10 पैन बेचने का निर्णय करता है। पैन की कीमत पूर्ति लोच की गणना करो।
हल:
p = Rs.4 q = 38 पैन
∆p = Rs. (5 – 4) = Rs.1 ∆q = 10 – 8 = 2 पैन
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\) es = \(\frac{2}{1}\) × \(\frac{4}{8}\) = 1 (चरों के मूल्य रखने)
पैन की पूर्ति कीमत लोच = 1

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प्रश्न 12.
जब आम की कीमत 24 रु./किग्रा. है तो एक आम विक्रेता 80 क्विंटल आम प्रतिदिन बेचना चाहता है। यदि आम की पूर्ति लोच 2 है तो आम विक्रेता 30 रु./इकाई आम की कितनी मात्रा बेचेगा?
हल:
p = Rs. 24 प्रति किलो q = 80 क्विंटल
∆p = Rs. (30 – 24) प्रति किलो
∆q = q1 – 80 क्विंटल = Rs.6 प्रति किलो
es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) (मूल्य प्रतिस्थापित करने पर)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{6}\) × \(\frac{24}{80}\) या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{4}{80}\)
या, 2 = \(\frac{q_{1}-80}{1}\) × \(\frac{1}{20}\) या, q1 – 80 = 20 × 2
q1 = 40 + 80 = 120
30 रु./इकाई कीमत 120 क्विंटल आम बेचेगा। .

प्रश्न 13.
एक वस्तु की पूर्ति लोच 25 है । 5 रु./इकाई पर एक विक्रेता 300 इकाइयों की पूर्ति करता है। 4रु./इकाई कीमत पर वह वस्तु की कितनी मात्रा की पूर्ति करेगा?
हल:
p = Rs. 5
∆p = 4 – 5 = Rs.(-1)
es = 2.5; es = \(\frac{∆q}{∆p}\) × \(\frac{p}{q}\)
2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{5}{300}\), 2.5 = \(\frac{q_{1}-300}{-1}\) × \(\frac{1}{60}\)
या, q1 – 300 = 2.5 × (-1) × 60 = – 150 या, q1 = – 150 + 300 = 150
4 रु./इकाई कीमत पर वह 150 इकाइयाँ बेचेगा।

प्रश्न 14.
8 रु./इकाई कीमत एक वस्तु की आपूर्ति 200 रु./इकाइयाँ हैं । इसकी पूर्ति लोच 1.5 है। यदि वस्तु की कीमत बढ़कर 10 रु./इकाई हो जाए तो नई कीमत पर पूर्ति की गई मात्रा की गणना करो।
हल:
p = 3D 8 रु. प्रति इकाई
∆p = 10 – 8 = 2 रु. प्रति इकाई
q = 200 इकाइयाँ ∆q = q1 – 200
es = 1.5
1.5 = \(\frac{q_{1}-200}{2}\) × \(\frac{1}{25}\) या, q1 – 200 = 1.5 × 2 × 25
या, q1 – 200 = 75 या, q1 = 75 + 200 = 275
नई कीमत पर पूर्ति की गई इकाइयाँ 275

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प्रश्न 15.
वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होने के कारण वस्तु की पूर्ति की गई इकाइयाँ 400 से बढ़कर 450 हो जाती हैं। पूर्ति की लोच की गणना करो।
हल:
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
पूर्ति में परिवर्तन = 450 – 400 = 50 इकाइयाँ
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{50}{400}\) × 100 = \(\frac{50}{4}\) = 12.5%
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= 1.25
पूर्ति में कीमत लोच = 1.25

प्रश्न 16.
8 रुपये प्रति इकाई कीमत पर एक वस्तु की गई मात्रा 400 इकाइयाँ है। इसकी पूर्ति लोच 2 है। वह कीमत ज्ञात करो जिस पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा?
हल:
p = 8 रुपये प्रति इकाई
∆p = (P1 – 8) रुपये
q = 400 इकाइयाँ
∆q = 600 – 400 = 200 इकाइयाँ
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या, P1 = 2 + 8 = 10
10 रु./इकाई कीमत पर विक्रेता 600 इकाइयों की पूर्ति करेगा

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

निम्नलिखित कथनों के लिए सर्वोत्तम विकल्पों का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
आपूर्ति लोच हमें आपूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन का बोध कराती है –
(A) कीमत में 10 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(B) कीमत में 100 प्रतिशत परिवर्तन के कारण
(C) 50 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण
उत्तर:
(D) 1 प्रतिशत कीमत परिवर्तन के कारण

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प्रश्न 2.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि

प्रश्न 3.
यदि बाजार आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक रहा है तो कारण हो सकता है –
(A) फर्मों की संख्या में कमी
(B) फर्मों की अपरिवर्तित संख्या
(C) फर्मों की संख्या में वृद्धि
(D) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
उत्तर:
(A) फर्मों की संख्या में कमी

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प्रश्न 4.
फर्मों के आपूर्ति वक्रों का क्षैतिज योग होता है –
(A) बाजार आपूर्ति वक्र
(B) व्यक्तिगत आपूर्ति वक्र
(C) बाजार माँग वक्र
(D) व्यक्तिगत माँग वक्र
उत्तर:
(A) बाजार आपूर्ति वक्र

प्रश्न 5.
उत्पाद शुल्क लगाने से –
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है
(B) आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है
(C) आपूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचरण होता है
(D) आपूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचरण होता है
उत्तर:
(A) आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसक जाता है

प्रश्न 6.
यदि आपूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में कमी
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(C) साधन आगतों की साम्य कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि

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प्रश्न 7.
यदि आपूर्ति वक्र दायीं ओर खिसकता है तो कारण हो सकता है –
(A) साधन आगतों की कीमत में वृद्धि
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी
(C) साधन आगतों की समान कीमत
(D) साधन आगतों की शून्य कीमत
उत्तर:
(B) साधन आगतों की कीमत में कमी

प्रश्न 8.
आपूर्ति वक्र में दायीं ओर खिसकाव का कारण हो सकता है –
(A) तकनीकी प्रगति
(B) तकनीकी पिछड़ापन
(C) स्थिर तकनीकी
(D) या तो तकनीकी प्रगति या तकनीकी पिछड़ापन
उत्तर:
(A) तकनीकी प्रगति

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प्रश्न 9.
कीमत स्वीकारक फर्म सीमांत आगम होता है –
(A) कीमत से कम
(B) शुद्ध लागत के समान
(C) कीमत के समान
(D) लागत के समान
उत्तर:
(C) कीमत के समान

प्रश्न 10.
किसी फर्म का लाभ वह आगम है जो –
(A) शून्य लागत पर प्राप्त होता है
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है
(C) सकल लागत पर प्राप्त होता है
(D) अतिरिक्त लागत पर होता है
उत्तर:
(B) शुद्ध लागत पर प्राप्त होता है

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्पादन फलन की संकल्पना को समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म द्वारा प्रयोग किए गए साधनों एवं उत्पादित की गई मात्रा के संबंध को उत्पादन फलन कहते हैं। प्रयोग किए गए साधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पन्न होती है। संसाधनों के विभिन्न संयोजनों से उत्पादन की अधिकतम मात्रा का निर्धारण तकनीकी के आधार पर होता है। उत्पादन तकनीकी में सुधार होने पर उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है।

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प्रश्न 2.
एक आगत का कुल उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
अन्य साधन आगतों के स्थिर रहने पर परिवर्तनशील साधन और उत्पाद के संबंध को कुल उत्पाद के रूप में परिभाषित किया जाता है। गणितीय रूप में कुल उत्पादन का निरूपण निम्न प्रकार किया जाता है –
y = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) जहाँ y कुल उत्पादक परिवर्ती साधन है तथा \(\overline{x_{2}}\), स्थिर साधन। अथवा एक निश्चित समय अवधि में अन्य साधनों को समान रखकर परिवर्तनशील साधन की इकाइयों से फर्म को जितना उत्पादन प्राप्त होता है उसे कुल उत्पादन कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक आगत का औसत उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्तनशील साधन से प्राप्त उत्पादन को औसत उत्पाद कहते हैं।
AP1 = \(\frac { TP_{ 1 } }{ x_{ 1 } } \) = \(\frac{f\left(x_{1}, \bar{x}_{2}\right)}{x_{1}}\)
जहाँ AP1 = एक साधन का औसत उत्पाद
TP1 = कुल उत्पाद
x1 = परिवर्तनशील आगत
\(\overline{x_{2}}\) = स्थिर आगत

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प्रश्न 4.
एक आयत का सीमान्त उत्पाद क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तनशील साधन की एक अतिरिक्त इकाई बढ़ाने पर कुल उत्पाद में जितनी बढ़ोतरी होती है, उसे सीमान्त कहते हैं।
गणितीय रूप में सीमान्त उत्पाद को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है –
MP1 = ∫(x1, \(\bar{x}_{2}\)) – ∫(x1 – 1, \(\bar{x}_{2}\))
MP2 = TP at (x1 units) – TP at (x1 – units)

प्रश्न 5.
एक आगत के सीमान्त उत्पाद तथा कुल उत्पाद के बीच संबंध समझाइए।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व बढ़ने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद अधिक दर से बढ़ता है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद धनात्मक व घटने की प्रवृति में होता है तो कुल उत्पाद घटती दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तो कुल उत्पाद घटता है।

प्रश्न 6.
अल्पकाल तथा दीर्घकाल की संकल्पनाओं को समझाइए।
उत्तर:
अल्पकाल में फर्म अन्य साधनों को स्थिर रखते हुए एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाकर उत्पादन करती हैं। दूसरे वाक्यों में अल्पकाल में फर्म केवल परिवर्ती साधन को बढ़ाकर उत्पादन स्तर में परिवर्तन करती है। दीर्घकाल में दो या दो से अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करके फर्म उत्पादन का पैमाना बदलती है।

इस अवधि में कोई भी साधन स्थिर नहीं रहता है सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। किसी भी उत्पादन प्रक्रिया के लिए दीर्घकाल, अल्पकाल के अपेक्षाकृत एक लम्बी समय अवधि होती है। अलग-अलग उत्पादन प्रक्रियाओं के लिए दीर्घकाल में अलग-अलग अवधि होती है। अल्प एवं दीर्घकाल दोनों को ही घण्टा, दिन, सप्ताह, मास, एवं वर्ष के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता है। ये समय अवधियाँ इस बात से निर्धारित होती हैं कि सभी साधनों में परिवर्तन हो सकता है या नहीं।

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प्रश्न 7.
हासमान सीमान्त का नियम क्या है?
उत्तर:
हासमान सीमान्त उत्पाद नियम यह दर्शाता है कि रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद एक साधन का सीमान्त उत्पाद घटता है। जब परिर्वनशील साधन की इकाइयाँ अत्यधिक हो जाती है तो सीमान्त उत्पाद शून्य एवं ऋणात्मक हो जाता है।

प्रश्न 8.
परिवर्ती अनुपात का नियम क्या है?
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम यह स्पष्ट करता है कि जब परिवर्ती साधन की इकाइयों का रोजगार स्तर कम होता है तो सीमान्त उत्पाद है लेकिन रोजगार के एक निश्चित स्तर के बाद साधन का सीमान्त उत्पाद घटने लगता है।

प्रश्न 9.
एक उत्पादन फलन स्थिर पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का स्थिर प्रतिफल का नियम-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में ये अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों से अनुपातिक वृद्धि के समान बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 10.
एक उत्पादन फलन वर्धमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का वधमान प्रतिफल:
दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।

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प्रश्न 11.
एक उत्पादन फलन हासमान पैमाने के प्रतिफल को कब संतुष्ट करता है?
उत्तर:
पैमाने का हासमान प्रतिफल-दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल उत्पाद में, साधनों में अनुपातिक वृद्धि से कम बढ़ोतरी होती है तो इसे पैमाने का हासमान प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 12.
लागत फलन की संकल्पनाओं को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
एक फर्म के लिए उत्पादन व लागत के संबंध को लागत फलन कहते हैं। साधनों की दी गई कीमतों पर एक फर्म साधनों के ऐसे संयोजन का चयन करती है जिसकी लगात न्यनतम होती है। दूसरे शब्दों में एक उत्पादन इकाई प्रत्येक उत्पादन स्तर के लिए न्यूनतम लागत वाले साधन संयोजनों का चुनाव करती है।

प्रश्न 13.
एक फर्म की कुल स्थिर लागत, कुल परिवर्ती लागत था कुल लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित हैं?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत (TFC):
उत्पादन के स्थिर साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल स्थिर लागत कहते हैं। अल्प काल में उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर कुल स्थिर लागत सामान रहती है। दूसरे शब्दों में अल्पकाल में एक फर्म की कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है।

कुल परिवर्तनशील लागत (TVC):
उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों के नियोजन पर फर्म को जितनी लागत वहन करनी पड़ती है उसे कुल परिवर्तनशील लागत भिन्न-भिन्न होती है। दूसरे शब्दों में, एक उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लागत दूसरे उत्पादन स्तर की कुल परिवर्तनशील लगात से भिन्न होती है।

कुल लागत:
कुल स्थिर लागत एवं कुल परिवर्तनशील लागत के योग को कुल लागत कहते हैं।
TC = TFC + TVC

उत्पादन स्तर बढ़ाने के लिए फर्म को परिवर्ती साधन की इकाइयां को अधिक मात्रा में नियोजित करने की जरूरत पड़ती है। अतः कुल परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है और परिणामस्वरूप कुल लागत में भी वृद्धि होती है परन्तु कुल स्थिर लागत रहती है।

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प्रश्न 14.
एक फर्म की औसत स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा औसत लागत क्या है, वे किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत (AFC):
एक फर्म के लिए प्रति इकाई उत्पादन पर कुल स्थिर लागत को औसत स्थिर लागत कहते हैं।
AFC = \(\frac{TFC}{y}\)
जहाँ AFC = औसत स्थिर लागत, TFC = कुल स्थिर लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत परिवर्तनशील लागत (AVC):
एक फर्म को प्रति इकाई उत्पादन के लिए जितनी कुल परिवर्तनशील लागत वहन कमी पड़ती है उसे औसत परिवर्तनशील लागत कहते हैं।
जहाँ AFC = औसत परिवर्तनशील लागत, TFC = कुल परिवर्तनशील लगात, y = उत्पादन की इकाइयाँ

औसत लागत (AC):
एक प्रति इकाई उत्पादन के लिए कुल जितनी लागत वहन करती है उसे औसत लागत कहते हैं।
जहाँ AC = औसत लागत, TC = कुल लागत, y = कुल उत्पादन
अथवा AC = \(\frac{TFC+TVC}{y}\) (∵TC = TFC + TVC)
अथवा AC = \(\frac{TFC}{y}\) + \(\frac{TVC}{y}\)
अथवा AC = AFC + AVC
अत: औसत स्थिर लागत एवं औसत परिवर्तशील लागत के योग को औसत लागत कहते हैं।

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प्रश्न 15.
क्या दीर्घकाल में कुछ स्थिर लागत हो सकती है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, दीर्घकाल में कोई स्थिर लागत नहीं होती है क्योंकि इस अवधि में एक फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 16.
औसत लागत वक्र कैसा दिखता है? यह ऐसा क्यों दिखता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत व कुल उत्पादन के अनुपात को औसत स्थिर लागत कहते हैं। कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है। कुल उत्पादन (y) की मात्रा बढ़ाने पर औसत स्थिर लागत AFC घटती है। जब उत्पादन शून्य के निकटतम होता है तो औसत स्थिर लागत का मान अत्याधिक होता है। जैसे-जैसे कुल उत्पादन में वृद्धि होती है औसत स्थिर लागत शून्य की ओर जाती है परन्तु शून्य कभी-भी नहीं होती है। इस कारण AFC वक्र एक आयताकार हापरबोला (Rectangular Hyperbola) होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 1

प्रश्न 17.
अल्पकालीन सीमान्त लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत वक्र कैसे दिखाई देते हैं?
उत्तर:
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र, औसत परिवर्तशील लागत वक्र तथा औसत लागत वक्र का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसे होता है। इन वक्रों के आकार साधन के वर्धमान प्रतिफल, समता प्रतिफल और हासमान प्रतिफल का उत्पादन प्रक्रिया में क्रमशः लागू होना है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 2

उत्पादन (इकाइयाँ) अल्पकालीन सीमान्त लागत व औसत परिवर्तनशील लागत में संबंध –

  1. जब तब AVC घटती है जब तक SMC का मान AVC से कम होता है।
  2. जब SMC वक्र नीचे से AVC वक्र को काटता है तो उसे बिन्दु पर AVC का मान न्यूनतम होता है और SMC तथा AVC दोनों समान होती हैं।
  3. जैसे ही AVC ऊपर बढ़ने लगती है तो SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है।

अल्पकालीन सीमान्त लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत में संबंध –

  1. जब तक अल्पकालीन औसत लागत घटती है तब तक SMC, AC से कम रहती है।
  2. SMC व AC समान हो जाती है जब SMC वक्र AC वक्र को AC के न्यूनतम बिन्दु पर नीचे से ऊपर काटता है।
  3. जैसे ही SAC में वृद्धि होती है, SMC का स्तर, AC के स्तर से अधिक हो जाता है।

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प्रश्न 18.
क्यों अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र औसत परिवर्ती लागत वक्र को उसके न्यूनतम बिन्दु पर?
उत्तर:
SMC एवं AVC के प्रतिच्छेदन बिन्दु से पूर्व AVC घटती है तथा SMC का मान AVC से कम होता है। प्रतिच्छेदन बिन्दु के दायीं ओर AVC बढ़ने लगती है तथा SMC का मान AVC से अधिक हो जाता है। SMC वक्र AVC को नीचे से AVC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 3

प्रश्न 19.
किस बिन्दु पर अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र अल्पकालीन औसत लागत को काटता है? अपने स्तर के समर्थन में कारण बताइए।
उत्तर:
SMC वक्र SAC वक्र को SAC वक्र के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है क्योंकि जब तक SAC घटती है, SMC, SAC से कम होती है। जब SAC में वृद्धि होती है तो SMC, SAC की तुलना में ज्यादा दर से बढ़ती है। SMC वक्र, SAC वक्र को नीचे से SAC के न्यूनतम बिन्दु पर काटता है।
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प्रश्न 20.
अल्पकालीन सीमान्त लागत वक्र ‘U’ के आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
आरम्भ में जब फर्म उत्पादन प्रक्रिया शुरू करती है तो सीमान्त लागत घटती है क्योंकि आरम्भ में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ नियोजित करने पर साधन का वर्धमान प्रतिफल फर्म को प्राप्त होता है। साधन की निश्चित इकाइयों के नियोजन तक ही सीमान्त लागत घटती है। इसके बाद फर्म को साधन का समता प्रतिफल प्राप्त होता है। अत: सीमान्त लागत स्थिर होने लगती है। अन्त में साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है इस अवस्था में सीमान्त लागत वक्र ऊपर उठाने लगता है। इस उत्पादन प्रक्रिया के आरंभिक चरण में सीतान्त लागत घटती है इसके बाद यह लगभग स्थिर होन लगती है और अन्तिम चरण में यह बढ़ने लगती है इसीलिए सीमान्त लागत वक्र अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
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प्रश्न 21.
दीर्घकालीन सीमान्त लागत तथा औसत लागत वक्र कैसे दिखते हैं?
उत्तर:
दीर्घकाल में एक फर्म उत्पादन प्रक्रिया में सभी साधनों को समायोजित कर सकती है। उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन का पैमाना बढ़ाने पर शुरू में पैमाने का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। इस स्थिति में उत्पादन की समान मात्रा का उत्पादन करने पर अपेक्षाकृत कम लागत आती है। फर्म जब तक उत्पादन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त करती है तब तक सीमान्त औसत लागत दोनों घटती हैं। इसके बाद समता प्रतिफल प्राप्त होता है अतः समान उत्पादन के लिए समान लागत आती है जिससे औसत व सीमानत लागत दोनों स्थिर हो जाती हैं। अंततः पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर सीमान्त व औसत लागत दोनों बढ़ती हैं। इसलिए सीमान्त व औसत लागत वक्रों का आकार अंग्रेजी के अक्षर U जैसा होता है।
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प्रश्न 22.
निम्नलिखित तालिका, श्रम का कुल उत्पादन अनुसूची देती है। तदनुरूप श्रम का औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 8

प्रश्न 23.
नीचे दी गई तालिका, श्रम का औसत उत्पाद अनुसूची बताती है। कुल उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद अनुसूची निकालिए, जबकि श्रम प्रयोगता के शून्य स्तर पर यह दिखाया गया है कि कुल उत्पाद शून्य है।
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उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 10

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प्रश्न 24.
निम्नलिखित तालिका श्रम का सीमान्त उत्पाद अनुसूची देती है। यह भी दिखाया गया है कि श्रम का कुल उत्पाद शून्य है। प्रयोग के शून्य स्तर पर श्रम के कुल उत्पाद तथा औसत उत्पाद अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 11
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 12

प्रश्न 25.
नीचे दी गई तालिका एक फर्म की कुल लागत अनुसूची दर्शाती है। इस इस फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है? फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत, औसत परिवर्ती लागत, अल्पकालीन औसत लागत तथा अल्पकालीन सीमांत लागत अनुसूची की गणना कीजिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 13
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 14a
नोट:
TFC का मान उत्पादन के शनय स्तर की TC के समान होता है।

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित तालिका एक फर्म के लिए कुल लागत अनुसूची देती है। यह भी दिया गया है कि औसत स्थिर लागत निर्गत की 4इकाइयों पर 5 रुपये हैं। कुल परिवर्ती लागत, कुल स्थिर लागत औसत परिवर्ती लागत, औसत स्थिर लागत, अल्पकालीन औसत लागत, अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची फर्म के निर्गत के तदनुरूप मूल्यों के लिए निकालिए।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 15
उत्तर:
चौथी उत्पादन इकाई की कुल स्थिर लागत = AFC × 4 इकाइयाँ
= Rs.5 × 4
= Rs. 20
उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल स्थिर लागत समान रहती है। अतः सभी स्तरों पर कुल स्थिर लागत 20 रुपया होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 16

प्रश्न 27.
एक फर्म की अल्पकालीन सीमान्त लागत अनुसूची को निम्नलिखित तालिका में दिया गया है। फर्म की कुल स्थिर लागत 100 रुपए है। फर्म के कुल परिवर्ती लागत, कुल लागत, औसत परिवर्ती लागत तथा अल्पकालीन औसत लागत अनुसूची निकालिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 17
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 18

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प्रश्न 28.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 5L1/2K1/2
निकालएि, अधिकतम संभावित निर्गत जिसका उत्पादन फर्म कर सकती है 100 इकाइयाँ L तथा 100 इकाइयाँ K द्वारा।
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 5L1/2K1/2 जहाँ L = 100 इकाइयाँ और K = 100 इकाइयाँ L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 5 × 1001/2 1001/2 = 5 × 10 × 10 = 500 इकाइयाँ

प्रश्न 29.
मान लिजिए, एक फर्म का उत्पादन फलन है,
Q = 2L2K2
अधिकतम संभावित निर्गत ज्ञात कीजिए, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, 5 इकाइयाँ L तथा 2 इकाइयाँ K द्वारा। अधिकतम संभावित निर्गत क्या है, जिसका फर्म उत्पादन कर सकती है, शून्य इकाई L तथा 10 इकाई Kद्वारा?
उत्तर:
उत्पादन फलन Y = 22 K2
L = 5 एवं
K = 2
L व K का मान प्रतिस्थापित करने पर
Y = 2 × 52.22 = 2 × 25 × 4 = 2000 इकाइयाँ
यदि L = 0 और K = 10 तब Y = 2 × 02 × 102
Y = 2× 0 × 100 = 0
L की 5 इकाइयों व K की 2 इकाइयों का प्रयोग करके फर्म उत्पादन कर सकती है = 200 इकाइयाँ तथा L की शून्य व K की 10 इकाई का प्रयोग फर्म उत्पादन कर सकती है = 0.

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प्रश्न 30.
एक फर्म के लिए शून्य इकाई L तथा 10 इकाइयों K द्वारा अधिकतम संभावित निर्गत निकालिए जब इसका उत्पादन फलन हैः
Q = 5L + 2K
उत्तर:
उत्पादन फलन
Y = 5L + 2K
L = 0 तथा
K = 10
L तथा K का मान रखने पर Y = 5 × 0 + 2 × 10 = 0 + 20 = 20 इकाइयाँ
फर्म 20 इकाइयों का उत्पादन कर सकती है।

Bihar Board Class 12 Economics उत्पादन तथा लागत Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उत्पादन का क्या अर्थ है?
उत्तर:
उत्पादन से अभिप्राय उन मानवीय क्रियाओं से जिनसे पदार्थों की उपयोगिता में वृद्धि होती है। उदाहरण चमड़े से जूते बनाया, लकड़ी से फर्नीचर का विनिर्माण आदि।

प्रश्न 2.
उत्पादन तकनीक के प्रकार बताइए।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक दो प्रकार की होती है –

  1. श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक एवं
  2. पूँजी प्रधान उत्पादन तकनीक

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प्रश्न 3.
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतों के नाम लिखो।
उत्तर:
उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली तीन साधन आगतें –

  1. भूमि
  2. श्रम एवं
  3. पूँजी

प्रश्न 4.
कुल भौतिक उत्पाद का क्या अर्थ है?
उत्तर:
साधन आगतों के प्रयोग में एक निश्चित समय में उत्पादित की गई वस्तु की इकाइयों को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 5.
औसत भौतिक उत्पाद की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
प्रति इकाई परिवर्ती साधन के प्रयोग से उत्पादित भौतिक वस्तुओं की मात्रा को औसत भौतिक उत्पाद कहते हैं। कुल भौतिक उत्पाद औसत भौतिक
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 19

प्रश्न 6.
सीमान्त भौतिक उत्पाद का अर्थ बताओ।
उत्तर:
साधन की एक अतिरिक्त इकाई का प्रयोग बढ़ाने पर कुल भौतिक उत्पाद में होने वाली शुद्ध बढ़ोतरी को सीमान्त भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 7.
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा हो तो सीमान्त भौतिक उत्पाद का क्या होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घट रहा होता है तब सीमान्त भौतिक उत्पाद ऋणात्मक हो। जाता है।

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प्रश्न 8.
सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का सामान्यतः आकार कैसा होता है?
उत्तर:
सामान्यतः सीमान्त भौतिक उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 9.
औसत भौतिक उत्पाद वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत भौतिक उत्पाद का आकार सामान्यतः उल्टे U आकार का होता है।

प्रश्न 10.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का अर्थ लिखो।
उत्तर:
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल बताता है कि कुल भौतिक उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि से ज्यादा होती है।

प्रश्न 11.
औसत स्थिर लागत का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है।

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प्रश्न 12.
सीमान्त लागत का सामान्य आकार बताओ?
उत्तर:
सीमान्त लागत वक्र सामान्यतः अंग्रेजी अक्षर U जैसा होता है।

प्रश्न 13.
परिणम मित्तव्यिता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
परिणाम मित्तव्यिता का अर्थ है कि जब कोई फर्म अधिक मात्रा में क्रय करती है तो उसे अपेक्षाकृत कीमत कम देनी पड़ती है।

प्रश्न 14.
दीर्घकाल में पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के दो कारण लिखो।
उत्तर:

  1. श्रम विभाजन
  2. परिणाम मित्तिव्यिता

प्रश्न 15.
अस्पष्ट लागत का अर्थ उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म के निजी साधनों को प्रयोग करने की लागत को अस्पष्ट लागत कहते हैं।

प्रश्न 16.
स्पष्ट लागत का अर्थ लिखो। उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
उन साधनों की लागत जिनका भुगतान फर्म से बाहर उनके स्वामियों को किया जाता है स्पष्ट लागत कहते हैं।

उदाहरण:
श्रमिकों को पारिश्रमिक का भुगतान, क्रय किए गए कच्चे माल का मूल्य आदि।

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प्रश्न 17.
वास्तविक लागत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
साधन आगतों के स्वामी उनकी आपूर्ति करने में जो त्याग करते हैं कष्ट उठाते है, अर्थ दर्द सहन करते है उन्हें वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 18.
स्थिर लागत क्या होता है?
उत्तर:
वह लागत जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर नहीं बदलती है, स्थिर लागत कहलाती है। ये लागत केवल अल्पकाल में ही स्थिर रहती है लेकिन दीर्घकाल में यह लागत बदल जाती है।

प्रश्न 19.
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ रहा है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है?
उत्तर:
जब कुल भौतिक उत्पाद घटती दर से बढ़ता है तो सीमान्त उत्पाद धनात्मक होता है परन्तु उसमें घटने की प्रवृत्ति होती है।

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प्रश्न 20.
जब कुल भौतिक उत्पाद बढ़ रहा होता है तो सीमान्त उत्पाद कैसा होता है।
उत्तर:
सीमान्त भौतिक उत्पाद धनात्मक होता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त भौतिक उत्पाद से कुल भौतिक उत्पाद की गणना किस प्रकार से की जाती है।
उत्तर:
किसी भी रोजगार स्तर पर सीमान्त भौतिक उत्पादों के योग को कुल भौतिक उत्पाद कहते हैं।

प्रश्न 22.
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र का आकार कैसा होता है।
उत्तर:
कुल परिवर्तनशील लागत वक्र मूल बिन्दु से आरम्भ होता है और दायीं ओर ऊपर की ओर उठता है। दूसरे शब्दों में कुल परिवर्तनशील लागत वक्र धनात्मक ढाल का वक्र होता है।

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प्रश्न 23.
कुल स्थिर लागत वक्र का आकार कैसा होता है?
उत्तर:
कुल स्थिर लागत वक्र x – अक्ष के समान्तर क्षैतिज रेखा होती है?

प्रश्न 24.
निजी लागत की परिभाषा दो।
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में फर्म द्वारा वहन की गई लागतों को निजी लागत कहते हैं।

प्रश्न 25.
बाह्य बचतों की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
बाह्य बचतों से अभिप्राय उन लाभों से जो एक उद्योग की सभी फर्मों को प्रात होता हैं।

प्रश्न 26.
आन्तरिक बचतों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
फर्म द्वारा उत्पादन का आकार बढ़ाने पर जो व्यय प्राप्त होते हैं उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं।

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प्रश्न 27.
पैमाने के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में उत्पादन के दो या अधिक साधनों में अनुपातिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन के व्यवहार को पैमाने के प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 28.
साधन के प्रतिफल की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
उत्पादन के अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक साधन की इकाइयों में परिवर्तन करने पर उत्पाद में परिवर्तन के व्यवहार को साधन का प्रतिफल कहते हैं।

प्रश्न 29.
उत्पादन के परिवर्तन साधन का मतलब बताओ।
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन जो अल्पकाल में बदले जा सकते हैं अथवा उत्पादन के वे साधन जिनकी मात्रा, उत्पादन स्तर में परिवर्तन के साथ परिवर्तित हो जाती है उत्पादन के परिवर्तनशील साधन कहलाते है। जैसे कच्चा माल, अस्थयी श्रमिक आदि।

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प्रश्न 30.
उत्पादन के स्थिर साधनों का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
उत्पादन के वे साधन अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है उन्हें उत्पादन के स्थिर के साधन कहते हैं। जैसे मशीन, फैक्टरी की इमारत आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पैमाने के प्रतिफल का गणितीय निरूपण लिखो।
उत्तर:
माना एक फर्म का उत्पादन फलन है –
y = f(x1, x2)
इस उत्पादन फलन का अभिप्राय यह है कि साधन – 1 की  × इकाइयाँ एवं साधन – 2 की x1, इकाइयों का प्रयोग करने से उत्पाद की y मात्रा का उतपादन होता है। माना फर्म दोनो साधनों को t गुना बढ़ाती है। जहाँ t > 1 गतिणतीय रूप में पैमाने तीनों प्रतिफलों को निम्नलिखित ढंग से प्रदर्शित किया जा सकता है।
पैमाने का वर्धमान प्रतिफल f(tx1, tx2) > t(x1, X2)
पैमाने का समता प्रतिफल f(tx1, tx2) = t(x1, X2)
पैमाने का हासमान प्रतिफल f(tx1, tx2) < t(x1, x2)

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प्रश्न 2.
कॉब डगलस उत्पादन फलनों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
माना उत्पादन फल
\(y=x_{1}^{\alpha}, x_{2}^{\beta}\)
इस प्रकार के उत्पादन फलन को कॉब डगलस उत्पादन फलन कहते हैं।
मान xc = \(\bar{x}_{1}\), x2 = \(\bar{x}_{1}\), y उत्पादन की मात्रा
\(y_{0}=x \beta_{2}^{-\alpha-\beta}\)
दोनों साधनों t गुना बढ़ोतरी करने पर नया उत्पाद फलन होगा = \(t^{\alpha+\beta} \bar{x}_{1}^{\alpha} \cdot \bar{x}_{2}^{\beta}\)
α + β = 1 के लिए
y1 = ty0 यह पैमाने के समता प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β > 1 के लिए उत्पादन फलन, वर्धमान प्रतिफल को दर्शाता है।
α + β < 1 के लिए उत्पादन फलन, हासमान प्रतिफल को दर्शाता है।

प्रश्न 3.
आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक क्यों होता है?
उत्तर:
जब सीमान्त उत्पादन धनात्मक होता है तो यदि उत्पादन का समान स्तर उत्पन्न करने के लिए एक साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो दूसरे साधन में परिवर्तन के विपरीत दिशा में दूसरे साधन में विपरीत दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है इसीलिए आइसोक्वेंट का ढाल ऋणात्मक होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 20

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प्रश्न 4.
आइसोक्वेंट की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
उत्पादन तकनीक को वैकल्पिक विधि से दर्शाने की विधि को आइसोक्वेंट कहते हैं। दो साधन आगतों के वे सभी संभव समुच्चय जिनसे समान मात्रा में उत्पादन की अधिकतम मात्रा उत्पादित की जाती है, आइसोक्वेंट कहलाता है। प्रत्येक आइसोक्वेंट उत्पादन के विशिष्ट स्तर को दर्शाता है और उसे उस उत्पादन स्तर से नामांकित किया जाता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 21

साधन आगतों के समतल में रेखाचित्र उत्पादन स्तर y = y1, y = y2 तथा y = y3 को दर्शाता है। साधन आगतों के दो संयोजन (x’1, x’2) और (x”1,x’2) उत्पादन के समान स्तर y1, को उत्पन्न करते हैं। यदि साधन 2 को समान रखा जाए और साधन 1 को x”1 तक बढ़ाया जाए तो उत्पादन में बढ़ोतरी होती है इससे हम ऊँचे उत्पादन स्तर y2, पर पहुंचते हैं।

प्रश्न 5.
साधन के घटते प्रतिफल के कारण लिखो।
उत्तर:
साधन के घटते प्रतिफल के कारण:
1. उत्पादन साधनों का अधिक उपयोग:
परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर एक सीमा के बाद उत्पादन के स्थिर साधनों का अधिक उपयोग होने लगता है जिससे साधन का घटता प्रतिफल लागू होता है।

2. अपूर्ण प्रतिस्थापन:
उत्पादन के साधन एक-दूसरे के पूर्ण प्रतिस्थापक नहीं होता हैं। एक फर्म एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन लाभपूर्वक एक सीमा तक ही कर सकती है। उस सीमा के बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाकर प्रतिस्थापन घटते प्रतिफल को जन्म देता है।

3. सहयोग का अभाव:
उत्पादन साधनों में आदर्श संयोग के बाद परिवर्ती साधन की इकाइयों को बढ़ाने पर परिवर्ती साधन व स्थिर साधनों में बेहतर तालमेल होने लगता है जो घटते प्रतिफल का कारण होती है।

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प्रश्न 6.
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के क्या कारण है? उनमें से किसी एक को समझाओ।
उत्तर:
उत्पादन पैमाने को बढ़ाने पर एक फर्म को पैमाने बचतें एवं अबचतें प्राप्त होती हैं। जब उत्पादन पैमाने की बचतों का योग अबचतों के योग से ज्यादा है तो पैमाने का वर्धमान प्रतिफल होता है। उत्पादन पैमाने की बचतों को दो वर्गों में बांटा जाता है –

  1. उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें तथा
  2. उत्पादन पैमाने की बाहा बचतें

उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतें:
वे बचतें जो फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने के कारण प्राप्त होती हैं आन्तरिक बचतें कहलाती हैं। कुछ आन्तरिक बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. तकनीकी बचतें
  2. श्रम बचतें
  3. प्रबन्धकीय बचतें
  4. वित्तीय बचतें
  5. क्रय-विक्रय की बचतें

प्रश्न 7.
कुल उत्पाद, औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
कुल उत्पाद, ओसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध –

  1. रोजगार के एक निश्चित स्तर तक कुल उत्पाद, औसत उत्पाद, तथा सीमान्त उत्पाद तीनों में वृद्धि होती है। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है।
  2. जब औसत उत्पाद व सीमान्त उत्पाद दोनों समान होते हैं तो औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. इसके बाद परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद कम दर से बढ़ता है तथा सीमान्त व औसत उत्पाद दोनों घटते हैं।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल उत्पाद अधिकतम होता है, परन्तु औसत उत्पाद कभी भी शून्य नहीं होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है तो कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 8.
पैमाने के घटते प्रतिफल तथा साधन के घटते प्रतिफल में अन्तर लिखो।
उत्तर:
दीर्घकाल में जब दो या अधिक साधन आगतों में अनुपातिक बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक रूप से कम बढ़ोतरी होती है तो उसे पैमाने का घटता प्रतिफल कहते हैं। अल्पकाल में जब अन्य साधनों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में बढ़ोतरी करने पर कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है तो इसे साधन का घटता प्रतिफल कहते हैं। पैमाने के घटते प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि साधन के घटते प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 9.
साधन के वृद्धि प्रतिफल के पीछे क्या कारण है?
उत्तर:
साधन के वृद्धि प्रतिफल के कारण –

  1. जब परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाया जाता है तो स्थिर साधनों का बेहतर उपयोग शुरू हो जाता है।
  2. परिवर्तनशील साधन बढ़ी हुई इकाइयों पर श्रम विभाजन सभव हो जाता है।
  3. परिवर्ती साधन की इकाइयों बढ़ने पर फर्म स्थिर व परिवर्तनशील साधन उत्तम एवं आदर्श संयोग बनाती है।

प्रश्न 10.
उत्पादन पैमाने की आन्तरिक बचतों को समझाओ।
उत्तर:
वे बचतें जो किसी फर्म को उत्पादन का आकार बढ़ाने पर प्राप्त होती हैं, उन्हें आन्तरिक बचतें कहते हैं। कुछ आन्तरिक बचतें इस प्रकार से हैं –
1. श्रम बचतें:
उत्पादन का पैमाने बढ़ाने पर एक फर्म जटिल श्रम विभाजन का प्रयोग कर सकती हैं। जटिल श्रम विभाजन से श्रम की दक्षता एवं उत्पादकता में बढ़ोतरी होती है।

2. प्रबन्धकीय बचतें:
उत्पादन पैमाने का बड़ा आकार फर्म को कुशल एवं दक्ष प्रबन्धक नियोजित करने की अनुमति प्रदान करता है। कुशल एवं दक्ष प्रबन्धकों के कारण उत्पादन में वृद्धि अधिक दर से होती है।

3. तकनीकी बचतें:
उत्पादन का बड़ा आकार होने से उत्पादन की उन्नत एवं विकसित उत्पादन तकनीक का उपयोग करने की संभावना बढ़ जाती है। उन्नत उत्पादन तकनीकी से वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

4. वित्तीय बचते:
बड़े आकार वाली फर्म की साख प्रतिष्ठा उच्च स्तर की होती है। बड़े आकार वाली फर्म कम ब्याज दर पर आसानी से बड़े आकार में ले सकती है।

5. क्रय-विक्रय की बचतें:
एक फर्म जो उत्पादन का आकार बढ़ाती है वह मध्यवर्ती वस्तुओं को विशाल मात्रा में क्रय करती है तथा बड़ी मात्रा में उत्पादन करती है। बड़े आकार में क्रय-विक्रय से फर्म को फायदा होता है।

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प्रश्न 11.
रेक्टेगुलर हाइपरबोला (आयताकार अति परवलय) की अवधारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर:
समीकरण xy = C से प्राप्त वक्र को अति परवलय कहते हैं। जहाँ x तथा y चर मूल्य है एवं c स्थिरांक है।
अतिपरवलंय x – y तल में एक ऋणात्मक ढाल वाला वक्र है। x अथवा y को अनन्त मान के लिजए अतिपरवलय वक्र x – अक्ष (y – अक्ष) के सममित हो जाता है। वक्र के किन्हीं दो बिन्दुओं p तथा q पर ay1.px1, और ay2.qx2, का क्षेत्रफल समान होता है जिसका मान स्थिरांक c के सामन होता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 22

प्रश्न 12.
स्थिर अनुपात एवं परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:

  1. स्थिर अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की विभिन्न मात्राओं पर विभिन्न साधनों का अनुपात एक समान रहता है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है।
  2. उत्पादन के स्थिर अनुपात फलन में सभी उत्पादन साधनों में परिवर्तन के कारण उत्पादन की मात्रा बदलती है जबकि परिवर्ती अनुपात उत्पादन फलन में उत्पादन की मात्रा उत्पादन के साधन में परिवर्तन के कारण बदलती है।
  3. स्थिर अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन पैमाने में परिवर्तन के कारण होता है जबकि परिवर्ती अनुपात में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन उत्पादन स्तर में परिवर्तन के कारण होता है।
  4. स्थिर अनुपात फलन का संबंध दीर्घकाल से होता है जबकि परिवर्ती अनुपात फलन का संबंध अल्पकाल से है।

प्रश्न 13.
बाह्य बचतें क्या हैं? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
किसी उद्योग का समग्र रूप से विस्तार होने पर नए बाजारें, नई उत्पादन तकनीक, विकसित व कुशल प्रबन्धन, जटिल श्रम विभाजन, नई खोजों के विदोहन की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। दूसरे शब्दों में, उद्योग का समग्र विस्तार सभी फर्मों के लिए लाभकारी होता है चाहे फर्म अपना उत्पादन का पैमाना बढ़ाए या ना बढ़ाए। इन्हें बाह्य बचते कहते हैं। कुछ बाह्म बचतें निम्नलिखित हैं –

  1. सघनता की बचतें
  2. सूचनाओं की बचतें
  3. विकेन्द्रीयकरण की बचतें

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प्रश्न 14.
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
अल्पकाल एवं दीर्घकाल में अन्तर –

  1. अल्पकाल से अभिप्राय उस समय अवधि से है जो स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से कम होती है। जबकि दीर्घकाल यह समय अवधि होती है जिसमें स्थिर साधनों में परिवर्तन के लिए आवश्यक समय अवधि से ज्यादा होती है।
  2. अल्पकाल में फर्म उत्पादन के परिर्वनशील साधन में परिवर्तन करके उत्पादन स्तर को बदल सकती है जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन करके उत्पादन का पैमाना बदल सकती है।
  3. अल्पकाल में एक साधन परिवर्तनशील होता है तथा अन्य साधन स्थिर रहते हैं जबकि दीर्घकाल में फर्म सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है।

प्रश्न 15.
स्थिर अनुपात उत्पादन फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
जब कोई फर्म सभी साधनों में अनुपातिक परिवर्तन करती है तो यह माना जाता है कि फर्म का उत्पादन पैमाने परिवर्तित होता है। वह उत्पादन फलन जो उत्पादन के पैमाने का अध्ययन करता है उसे स्थिर अनुपात उत्पादन फलन कहते हैं। स्थिर अनुपात उत्पादन फलन उस उत्पादन व्यवहार से संबंधित होता है जिसमें सभी साधनों को अनुपातिक रूप में बदल जाता है। बड़ा उत्पादन पैमाना उत्पादन की अधिकतम क्षमता को व्यक्त करता है तथा छोटा उत्पादन पैमाना उत्पादन की कम क्षमता को व्यक्त करता है। विभिन्न पैमानों पर साधनों का अनुपात स्थिर होता है।

प्रश्न 16.
औसत उत्पाद वक्र उल्टे U आकार का क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है जिससे प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन ज्यादा दर से प्राप्त होता है। अतः औसत उत्पाद वक्र ऊपर की ओर उठता है। इसके बाद समता प्रतिफल लागू होता है तो प्रति इकाई साधन कुल उत्पादन समान दर से प्राप्त होता है। औसत उत्पाद स्थिर हो जाता है। अन्त में जब साधन का ह्यसमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की औसत उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 23

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प्रश्न 17.
आरम्भ में परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर सीमान्त उत्पाद क्यों बढ़ता है, इसे कब कम होना चाहिए?
उत्तर:
यह आवश्यक नहीं है कि आरम्भ में सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है। यह उत्पाद के स्थिर साधनों का, परिवर्ती साधन की इकाइयों से अपूर्ण विदोहन ही होता है तो परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाने पर स्थिर साधनों का विदोहन अधिक होने लगता है और साधन का वर्धमान प्रतिफल मिलता है। जब स्थिर साधनों का परिवर्ती साधन से पूर्ण विदोहन हो जाता है तो इसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर हासमान प्रतिफल लागू हो जाता है अतः सीमान्त उत्पाद घटने लगता है। आरम्भिक अवस्था में परिवर्ती साधन की इकाइयाँ की कम मात्रा के कारण स्थिर साधनों का पूर्ण विदोहन नहीं हो पाता है। इसलिए परिवर्ती साधन की इकाई बढ़ाने पर स्थिर के विदोहन में बढ़ोतरी होने लगती है और सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 24

प्रश्न 18.
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध बताओ।
उत्तर:
सीमान्त उत्पाद व कुल उत्पाद में संबंध –

  1. जब तक सीमान्त उत्पाद में वृद्धि होती है, कुल उत्पाद में अधिक दर से वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद लगभग स्थिर होने लगता है तो कुल उत्पाद एक समान दर से बढ़ता है।
  3. जब सीमान्त घटता है परन्तु धनात्मक होता है तब कुल उत्पाद में कम दर से वृद्धि होती है।
  4. जब सीमान्त उत्पाद शून्य होता है तब कुल उत्पाद अधिकतम होता है।
  5. जब सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक होता है तब कुल उत्पाद घटने लगता है।

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प्रश्न 19.
औसत उत्पाद तथा सीमान्त उत्पाद में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से अधिक होता है, औसत उत्पाद में वृद्धि होती है।
  2. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद के समान होता है, औसत उत्पाद अधिकतम होता है।
  3. जब सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से कम होता है, औसत उत्पाद में कमी होती है।

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प्रश्न 20.
सीमान्त उत्पाद वक्र का आकार उल्टे U जैसा क्यों होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में एक फर्म को परिवर्ती साधन का वर्धमान प्रतिफल प्राप्त होता है। अतः परिवर्ती साधन की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि ज्यादा दर से होती है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र ऊपर कुल ओर उठता है। इसके बाद जब साधन का समता प्रतिफल लागू होता है तो कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि स्थिर हो जाती है या परिवर्ती साधन की अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पादन में अनुपातिक वृद्धि समान दर से होता है। अन्त में जब साधन का हासमान प्रतिफल लागू होता है तो परिवर्ती साधन की एक अतिरिक्त इकाई का नियोजन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में अनुपातिक वृद्धि कम दर से होता है। अतः सीमान्त उत्पाद वक्र नीचे की ओर गिरता है।
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प्रश्न 21.
अवसर लागत की अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
दूसरे स्तर के सर्वोत्तम प्रयोग में साधन के मूल्य को उसकी अवसर लागत कहते हैं। प्रत्येक ऐसे साधन की अवसर लागत होती है जिसके वैकल्पिक उपयोग संभव होते हैं। उत्पाद में काम आने वाले फर्म के निजी साधनों की भी अवसर लागत होती है। उदाहरण के लिए एक स्वः नियोजित श्रमिक की अवसर लागत, श्रम बाजार में उस श्रमिक की मजदूरी के बराबर होती हैं यदि वह अपनी सेवाएं दूसरों को प्रदान करें।

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प्रश्न 22.
क्या सीमान्त में स्थिर लागत शामिल होती है? समझाइए।
उत्तर:
उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई का उत्पादन बढ़ाने पर कुल उत्पाद में बढ़ोतरी को सीमान्त लागत कहते हैं। इस प्रकार सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती है। एक अतिरिक्त लागत परिवर्तन लागत होती है। अतः सीमान्त लागत स्थिर लागत का भाग नहीं हो सकती है क्योंकि स्थिर लागत उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर एक समान रहती है। स्थिर लागत में उत्पादन स्तर में उतार-चढ़ाव होने पर बदलाव नहीं होता है। अतः यह प्रश्न ही नहीं उठता है कि सीमान्त लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।

प्रश्न 23.
आयताकार अति परवलय की विशिष्टता के बारे में लिखो।
उत्तर:
औसत स्थिर लागत वक्र का आकार आयताकार अतिपरवलय के समान होता है। यदि हम औसत स्थिर लागत पर कोई भी बिन्दु लेते हैं तो उस बिन्दु पर AFC तथा उत्पादन मात्रा का गुणनफल एक समान प्राप्त है। यह इसीलिए होता है क्योंकि AFC तथा उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर समान रहती है। इस विशिष्टता वाले वक्र को आयताकार अतिपरवलय कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 27

प्रश्न 24.
हासमान प्रतिफल का नियम एवं परिवर्ती अनुपात का नियम में अंतर लिखो।
उत्तर:
हासमान प्रतिफल, परिवर्ती के नियम का परपरागत रूप है। ह्रासमान प्रतिफल के नियम का प्रतिपादन डेविट रिकार्डो ने किया था। यह नियम कृषि क्षेत्र में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में कमी को स्पष्ट करने के लिए प्रतिपादित किया गया था। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम के उपयोग के क्षेत्र का विकास हेतु परिवर्ती अनुपात के नियम का प्रतिपादन किया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने यह माना कि हासमान प्रतिफल कृषि क्षेत्र के अलावा उद्योग क्षेत्र में भी लागू होता है। स्थिर साधनों एवं परिवर्ती साधन की इकाइयों के प्रयोग से एक सीमा तक कुल उत्पाद दर से वृद्धि होती है उसके बाद परिवर्ती साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर साधन का ह्रासमान प्रतिफल प्राप्त होता है।

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प्रश्न 25.
स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अंतर लिखो।
उत्तर:
1. लागत का वह भाग जो उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर भी नहीं बदलता है उसे स्थिर लागत कहते हैं जबकि जो लागत उत्पादन स्तर में परिवर्तन होने पर बदल जाती है परिवर्तनशील लागत कहलाती है।

2. स्थिर लागत का संबंध उत्पादन स्तर से नहीं होता है यह लागत शून्य उत्पादन स्तर एवं अधिकतम उत्पादन स्तर पर एक समान होती है। जबकि परिवर्तशील लागत शून्य उत्पादन स्तर पर शून्य होती है और जैसे-जैसे स्तर बढ़ता है परिवर्तनशील लागत बढ़ती है।

3. उदाहरण:
स्थिर लागत – भूमि का किराया स्थायी श्रमिकों की मजदूरी आदि –

परिवर्तनशील लागत –

  1. कच्चे माल का मूल्य
  2. अस्थायी श्रम की मजदूरी आदि

प्रश्न 26.
नीचे श्रम उत्पादन अनुसूची दी गई है। श्रम की औसत एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 28
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 29

प्रश्न 27.
सीमान्त लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागत के संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. जब सीमान्त लागत, औसत परिवर्तनशील लागत से कम होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत औसत परिवर्तनशील लागत के समान होती है तो औसत परिवर्तनीशल लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त औसत परिवर्तनशील लागत से अधिक होती है तो औसत परिवर्तनशील लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 30

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प्रश्न 28.
सीमान्त लागत तथा औसत लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. सीमान्त लागत, औसत लागत से कम होती है तो औसत लागत घटती है।
  2. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के बराबर होती है तो औसत लागत न्यूनतम होती है।
  3. जब सीमान्त लागत, औसत लागत के ज्यादा होती है तो औसत लागत में वृद्धि होती है।

Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 31

प्रश्न 29.
नीचे श्रम की औसत उत्पादकता अनुसूची दी गई है। कुल उत्पादकता एवं सीमान्त उत्पादकता अनुसूची बनाइए। श्रम के शून्य रोजगार स्तर पर कुल उत्पादकता शून्य मानिए।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 33

प्रश्न 30.
कुल लागत सीमान्त लागतों का योग होती है। संक्षेम में समझाइए।
उत्तर:
नहीं, उत्पादन के प्रत्येक स्तर के लिए कुल लागत सीमान्त लागत का योग नहीं होती है। सीमान्त लागत एक अतिरिक्त लागत होती हैं अतिरिक्त लागत परिवर्तनशील लागत होती है। इस प्रकार सीमान्त लागत का योग कुल परिवर्तनशील लागत होती है। सीमान्त लागत का योग कुल लागत नहीं होती है। कुल लागत में स्थिर लागत भी शामिल होती है।
इस प्रकार ΣMC # TC
EMC = TVC

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प्रश्न 31.
सीमान्त लागत और कुल लागत में संबंध लिखो।
उत्तर:

  1. दो सतत उत्पादन स्तरों की कुल लागत के अन्तर को सीमान्त लागत कहते हैं।
    MC = TCN – TCNN-1
  2. जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत कम दर से बढ़ती है।
  3. जब सीमान्त लागत न्यूनतम होती है तो कुल लागत समान दर से बढ़ती है।
  4. जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो कुल लागत ज्यादा दर से बढ़ती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
साधन के प्रतिफल एवं पैमाने के प्रतिफल में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
1. साधन के प्रतिफल में साधन आगतों:
उत्पाद के उस व्यवहार का अध्ययन किया जाता है जिसमें अन्य साधनों की स्थिर इकाइयों के साथ फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है जबकि उत्पादन के पैमाने में साधन आगतों-उत्पाद के उस संबंध का अध्ययन किया जाता है जिसमें फर्म उत्पादन के दो या अधिक साधनों का अनुपातिक नियोजन बढ़ाती है।

2. साधन के प्रतिफल का संबंध अल्पकाल से होता है जबकि पैमाने के प्रतिफल का संबंध दीर्घकाल से है।

3. साधन के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात अलग-अलग होता है जबकि पैमाने के विभिन्न प्रतिफलों के लिए विभिन्न साधनों का अनुपात स्थिर (समान) होता है।

4. साधन के प्रतिफल में उत्पादन का पैमाना नहीं बदलता जबकि पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन पैमाना बदल जाता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 2.
पैमाने के बढ़ते एवं घटते प्रतिफल क्रमशः दीर्घकालीन औसत लागत के घटते व बढ़ते भाग होते हैं। पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।
उत्तर:
पैमाने के वर्धमान प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत घटती है। पैमाने के घटते प्रतिफल के कारण प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत में वृद्धि होती है। आरम्भ में अल्पकाल में स्थिर लागतें अपरिवर्तित रहती हैं इसलिए उत्पादन की मात्रा बढ़ाने पर प्रति इकाई कुल लागत में इस कारण से कमी आती है कि साधन के वर्धमान प्रतिफल लागू होने पर कुल परिवर्तनशील लागत कम दर से बढ़ती है।

लेकिन दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। अतः इस अवधि में सभी लागतें परिवर्तनशील होती हैं। उत्पादन पैमाने का वर्धमान प्रतिफल लागू होने से प्रति इकाई दीर्घकालीन कुल लागत अथवा दीर्घकालन औसत लागत घटती है। इसी प्रकार पैमाने का हासमान प्रतिफल लागू होने पर प्रति इकाई दीर्घकालिन कुल लागत अथवा औसत लागत में वृद्धि होती है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 34

प्रश्न 3.
साधन के प्रतिफल के परिवर्ती अनुपात का नियम बताइए एवं समझाइए।
उत्तर:
परिवर्ती अनुपात का नियम:
यह नियम साधन आगतों एवं उत्पाद के उस संबंध को बताता है जब फर्म अन्य साधन आगतों को स्थिर रखकर एक परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है। यह नियम बताता है कि स्थिर साधनों की निश्चित इकाइयों के साथ परिवर्ती साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो आरम्भ में कुल भौतिक उत्पाद में अधिक दर से बढ़ोतरी होती है इसके बाद कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है और अन्त में यह कम होने लगता है।

प्रथम चरण:
उत्पादन प्रक्रिया के आरम्भ में जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों को बढ़ाती है तो एक सीमा तक कुल भौतिक उत्पाद में ज्यादा दर से वृद्धि होती है। इस चरण में सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद बढ़ते है। सीमान्त भौतिक उत्पाद घटने लगता है और इस चरण के अन्त में सीमान्त भौतिक उत्पाद, औसत भौतिक उत्पाद के बराबर हो जाता है।

द्वितीय चरण:
सीमान्त भौतिक उत्पाद व औसत भौतिक उत्पाद के समान होने के बाद जब फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल भौतिक उत्पाद कम दर से बढ़ता है। सीमान्त व औसत भौतिक उत्पाद दोनों घटते हैं। सीमान्त उत्पाद, औसत उत्पाद से ज्यादा दर से घटता है। इस चरण के अन्त में सीमान्त उत्पाद शून्य हो जाता है तो कुल भौतिक उत्पाद अधिकतम होता है। लेकिन औसत उत्पाद कभी शून्य नहीं होता है।

तृतीय चरण:
सीमान्त भौतिक कुल उत्पाद उत्पाद शून्य होने के बाद यदि फर्म परिवर्तनशील साधन की इकाइयों का नियोजन बढ़ाती है तो कुल उत्पाद घटने लगता है तो सीमान्त उत्पाद ऋणात्मक हो जाता है। एक विवेकशील उत्पादक तीसरे चरण में उत्पादन नहीं करता है। वह दूसरे चरण में ही उत्पादन करेगा।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 35

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 4.
पैमाने के प्रतिफल के नियम समझाए।
उत्तर:
पैमाने का प्रतिफल नियम:
दीर्घकाल में फर्म उत्पादन के सभी साधनों में परिवर्तन कर सकती है। दीर्घकाल में दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि और उत्पाद मात्रा के संबंध को पैमाने का प्रतिफल कहते हैं।

पैमाने के प्रतिफल के तीन नियम हैं:

1. पैमाने का वर्धमान प्रतिफल-दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में अधिक अनुपातिक वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का वर्धमान प्रतिफल कहते हैं।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 36

2. पैमाने का समता प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में समान अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समता प्रतिफल कहते हैं।

3. पैमाने का हासमान प्रतिफल:
दो या अधिक साधनों में अनुपातिक वृद्धि करने पर यदि कुल भौतिक उत्पाद में कम अनुपात में वृद्धि होती है तो इसे पैमाने का समान प्रतिफल कहते हैं। रेखाचित्र में बिन्दु A से B तक वर्धमान प्रतिफल, बिन्दु B से C तक समता प्रतिफल तथा C से D तक हासमान प्रतिफल दर्शाया गया है।

संख्यात्मक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूचि नीचे दी गई है –
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 37

(a) फर्म की कुल स्थिर लागत क्या है?
(b) औसत स्थिर लागत AFC, औसत परिवर्तनशील लागत AVC,कुल औसत लागत ATC तथा सीमान्त लागत MC की गणना करो।
उत्तर:
(a) शून्य उत्पाद स्तर पर कुल लागत = 60 रुपये, अतः फर्म की कुल स्थिर लागत = 60 रुपये

(b)
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 38

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प्रश्न 2.
यदि उत्पादन स्तर 1 पर औसत स्थिर लागत 40 रुपये है तो निम्नलिखित तालिका को पूरा करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 39
उत्तर:
उत्पादन इकाई – 1 पर AFC 40 रुपये है। अतः कुल स्थिर लागत भी 40 रुपये है।Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 40

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प्रश्न 3.
एक फर्म की स्थिर लागत 1200 रुपये है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC, AVC, TC और ATC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 41a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 42a

प्रश्न 4.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC एवं AVC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 43a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत = 50 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत 50 रुपये है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांतpart - 2 img 44a

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके TVC व MC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 45a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत 40 रुपये है अंत: कुल स्थिर लागत भी 40 है।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 46a

प्रश्न 6.
एक फर्म की स्थिर लागत 2000 रु0 है। निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करे TVC, AVC, TC तथा AC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 47
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 48

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 49
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 50

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 उत्पादन तथा लागत

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका से AVC ज्ञात करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 51a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 52a

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका को पूरा करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 53a
उत्तर:
शून्य उत्पादन स्तर पर कुल लागत = 12 रुपये
अतः कुल स्थिर लागत TFC = 12 रुपये
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 54a

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प्रश्न 10.
TFC, TVC,AFC,ATC तथा MC की गणना करो।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 55a
उत्तर:
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 56a

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प्रश्न 11.
निम्नलिखित तालिका का प्रयोग करके AFC तथा MC ज्ञात करें।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उत्पादन तथा लागत part - 2 img 57a
उत्तर:
उत्पादन स्तर शून्य पर कुल लागत 90 रु० है। अतः कुल स्थिर लागत 90 रु० होगी।
Bihar Board Class 12 Economics Chapter 3 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 2 img 58a

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वास्तविक लागत है –
(A) उत्पादन लागत
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत
(C) उत्पाद की कीमत
(D) औसत लागत
उत्तर:
(B) स्वामियों के द्वारा साधन की पूर्ति में उठाई गई सभी लागत

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प्रश्न 2.
मौद्रिक लागत से अभिप्राय है –
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय
(B) उत्पाद का विक्रय मूल्य
(C) कुल परिवर्तनशील लागत
(D) कुल स्थिर लागत
उत्तर:
(A) एक वस्तु के उत्पादन तथा विक्रय में खर्च किया गया मुद्रा में व्यय

प्रश्न 3.
सामाजिक लागत निजी लागत में कम होगी यदि –
(A) औसत लागत कम हो रही है
(B) सीमान्त लागत कम हो रही है
(C) औसत लागत बढ़ रही है
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है
उत्तर:
(D) एक व्यक्ति के कार्य के समाज को कुल लाभ रहा है

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प्रश्न 4.
किसी वस्तु की मौद्रिक लागत में निम्नलिखित मदें सम्मिलित की जाती है –
(A) स्पष्ट लागते
(B) केवल अस्पष्ट लागते
(C) सामान्य लाभ
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
स्पष्ट लागतों में शामिल है –
(A) कच्चे माल की कीमत
(B) श्रमिकों की मजदूरी
(C) उधार पूँजी पर ब्याज
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 6.
उत्पादनकर्ता के स्वयं के साधनों का मूल्य –
(A) स्पष्ट लागतें कहलाती हैं
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है
(C) उत्पादनकर्ता का सामान्य लाभ होता है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(B) अस्पष्ट लागतें कहलाती है

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है?
(A) मौद्रिक लागत = स्पष्ट
(B) असामान्य लाभ = मौद्रिक लागत – स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागत
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
(D) स्पष्ट लागत = मौद्रिक लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ
उत्तर:
(C) मौद्रिक लागत = स्पष्ट लागत + अस्पष्ट लागतें + सामान्य लाभ

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प्रश्न 8.
अवसर लागत को निम्नलिखित नाम से भी सम्बोधित किया जाता है –
(A) वैकल्पिक लागत
(B) हसतान्तरण आय
(C) त्याग
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 9.
वह लागत अथवा आय, जो किसी साधन को उसके परिवर्तन कार्य में बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, उसे –
(A) स्पष्ट लागत कहते हैं
(B) अस्पष्ट लागत कहते हैं
(C) अवसर लागत कहते हैं
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(C) अवसर लागत कहते हैं

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प्रश्न 10.
किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म को जितनी लागत सहन करनी पड़ती है, उसे फर्म की –
(A) औसत लागत कहते हैं
(B) कुल लागत कहते हैं
(C) सीमान्त लागत कहते हैं
(D) अवसर लागत कहते हैं
उत्तर:
(B) कुल लागत कहते हैं

प्रश्न 11.
कुल लागत –
(A) सीमान्त लागत का योग होती है
(B) औसत लागत को वस्तु की मात्रा से गुणा करने पर ज्ञात की जा सकती है
(C) से तात्पर्य किसी वस्तु की एक निश्चित मात्रा का उत्पादन करने पर फर्म द्वारा किया गया वयय है
(D) उपर्युक्त कोई भी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त कोई भी

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प्रश्न 12.
जब सीमान्त लागत घटती है तो कुल लागत –
(A) घटती है
(B) बढ़ती है
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है
(D) समान रहती है
उत्तर:
(C) घटती हुई दर से बढ़ती है

प्रश्न 13.
जब सीमान्त लागत बढ़ती है तो –
(A) औसत लागत भी बढ़ती है
(B) कुल लागत बढ़ती है
(C) औसत लागत सीमान्त लागत से कम रहती है
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 14.
उत्पादन शून्य होने पर अल्पकाल में स्थिर लागत
(A) शून्य हो जाती है
(B) धनात्मक रहती है
(C) ऋणात्मक हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(B) धनात्मक रहती है

प्रश्न 15.
स्थिर लागतों का उत्पादन की मात्रा से –
(A) सम्बन्ध नहीं होता
(B) कोई सम्बन्ध नहीं होता
(C) सम्बन्ध केवल दीर्घकाल में होता है
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है
उत्तर:
(D) सम्बन्ध अल्पकाल और दीर्घकाल दोनों में होता है

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प्रश्न 16.
वस्तु के उत्पादन की मात्रा में किसी अथवा वृद्धि होने पर कुल स्थिर लागत –
(A) समान रहती है
(B) क्रमशः कम या अधिक हो जाती है
(C) क्रमशः अधिक या कम हो जाती है
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(A) समान रहती है

प्रश्न 17.
परिवर्तनशील लागतें उत्पादन की मात्रा के साथ –
(A) कम या अधिक हो सकती हैं
(B) परिवर्तित नहीं होती
(C) प्रारंभ में समान रहती हैं तथा फिर कम होती जाती हैं
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(A) कम या अधिक हो सकती हैं

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प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से किस लागत वक्र का आकार यू की भाँति होता है?
(A) औसत लागत
(B) औसत परिवर्तनशील लागत
(C) सीमान्त लागत
(D) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(D) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 19.
उत्पादन लागतें हैं –
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक
(B) वस्तु की बिक्री कीमत
(C) उत्पादनकर्ता का व्यय
(D) मशीनों का लागत
उत्तर:
(A) उत्पादन के साधनों को दिया जाने वाला पारितोषिक

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प्रश्न 20.
स्पष्ट एवं अस्पष्ट लागते अंग हैं –
(A) मौद्रिक लागत का
(B) वास्तविक लागत का
(C) अवसर लागत का
(D) उपर्युक्त सभी का
उत्तर:
(A) मौद्रिक लागत का

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ –

1. क्या उत्पादित किया जाए एवं कितनी मात्रा में:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था को खाद्य सामग्री, आवास अथवा विलासिता पूर्ण वस्तुओं के उत्पादन के लिए चयन करना पड़ता है। दूसरे शब्दों में प्रत्येक अर्थव्यवस्था को कृषि व उद्योग उत्पादों के बीच चयन करना पड़ता है। कि किनका उत्पादन अधिक व किनका उत्पादन कम मात्रा में किया जाए। अन्य शब्दों में उपभोक्ता वस्तुओं व पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के बारे में चयन करना पड़ता है।

2. इन वस्तुओं का उत्पादन किस प्रकार किया जाए:
वस्तुओं के उत्पादन की दो प्रकार की तकनीक (श्रम प्रधान एवं पूंजी प्रधान) होती है। प्रत्येक अर्थव्यवस्था श्रम प्रधान अथवा पूंजी प्रधान तकनीक का प्रयोग करके उत्पादन कर सकती है। अर्थव्यवस्था को यह चयन करना पड़ता है कि उत्पादन के लिए इन तकनीकों का किस अनुपात में प्रयोग किया जाए।

3. किसके लिए वस्तुओं का उत्पादन क्या जाए:
इस समस्या का संबंध उत्पादन को अर्थव्यवस्था में विभिन्न व्यक्तियों में किस प्रकार आबंटित किया जाए, किसको उत्पादन का अधिक व किसको उत्पादन का कम भाग बांटा जाए। प्राथमिक आवश्यकताएँ जैसे प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ, रोटी, कपड़ा व मकान सभी को आसानी व मुक्त रूप से उपलब्ध हो या नहीं यह समस्या अर्थव्यवस्था को हल करनी पड़ती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निश्चित संसाधनों एवं तकनीकी स्टाक के ज्ञान से वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की विभिन्न संभावनाओं के संयोजन को उत्पादन संभावना कहते हैं।

प्रश्न 3.
सीमांत उत्पादन संभावना क्या है?
उत्तर:
सीमांत उत्पादन संभावना वक्र निश्चित संसाधनों व तकनीकी ज्ञान के पूर्ण उपयोग से दो वस्तुओं के उत्पादन की विभिन्न मात्राओं को रेखाचित्र की सहायता से दर्शाता है। यह वक्र एक वस्तु की किसी निश्चित मात्रा के बदले दूसरी वस्तु की अधिकतम संभावित मात्रा तथा दूसरी वस्तु की मात्रा को दर्शाता है। उत्पादन संभावना वक्र पर स्थित प्रत्येक बिन्दु संसाधनों के पूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं। उत्पादन संभावना के अन्दर स्थित बिन्दु संसाधनों के अपूर्ण उपयोग को दर्शाते हैं इस स्थिति में कुछ संसाधन या तो बेकार पड़े रहते हैं या उनका पूर्ण उपयोग नहीं किया जाता है।
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प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु का दो मुख्य शाखाओं (व्यष्टि व समष्टि) के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं के लिए बाजार में व्यक्गित आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। इस शाखा में व्यक्तियों के संव्यवहारों के आधार पर वस्तु की कीमत व मात्रा का निर्धारण के निर्धारण सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक इकाइयों के संव्यवहारों का अध्ययन किया जाता है। जैसे- सामूहिक माँग, सामूहिक पूर्ति, रोजगार आदि। अर्थशास्त्र की इस शाखा में इन प्रश्नों के उत्तर ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है। अर्थव्यवस्था में आय। उत्पाद का स्तर क्या है? कुल उत्पाद का आंकलन किस प्रकार किया जाता है? यह शाखा पूरी अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करती है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 5.
केन्द्रीकृत योजनाबद्ध अर्थव्यवस्था तथा बाजार अर्थव्यवस्था के भेद को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में सभी आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा किया जाता है। उपभोग, उत्पादन व निवेश के महत्त्वपूर्ण निर्णय केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों के उचित बंटवारे का प्रयास किया जाता है। केन्द्रीय सत्ता अन्तिम वस्तुओं के न्यायोचित आबंटन के लिए हस्तक्षेप करती है। एक बाजार अर्थव्यवस्था में सभी महत्त्वपूर्ण आर्थिक निर्णय बाजार शक्तियों के आधार पर तय होते हैं। इस अर्थव्यवस्था में आर्थिक एजेन्ट मुक्त रूप से उत्पादों का विनियम करते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

प्रश्न 6.
सकारात्मक आर्थक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से है जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि विभिन्न तंत्र किस प्रकार से कार्य करते हैं। यह विश्लेषण विभिन्न आर्थिक तंत्र के क्रियाकलापों का मूल्यांकन करता है।

प्रश्न 7.
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
आदर्शक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय उस विश्लेषण से जिसमें हम यह अध्ययन करते हैं कि कोई तंत्र वांछनीय है अथवा नहीं। इसका संबंध इन प्रश्नों से होता है – क्या वांछनीय है? क्या वांछनीय नहीं है? क्या होना चाहिए? क्या नहीं होना चाहिए?

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र:

  1. यह शाखा व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों का अध्ययन करती है।
  2. कीमत सिद्धांत एवं संसाधन के आबंटन की समस्या का अध्ययन इस शाखा में किया जाता है।
  3. माँग व आपूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन आदि का विश्लेषण किया जाता है।

समष्टि अर्थशास्त्र:

  1. समष्टि में सामूहिक आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जता है।
  2. इस शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है।
  3. सामूहिक माँग व सामूहिक पूर्ति इस शाखा के प्रमुख उपकरण हैं।
  4. इसमें आय एवं रोजगार के साम्य निर्धारण का अध्ययन किया जाता है।

Bihar Board Class 12 Economics व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वस्तु से अभिप्राय भौतिक चीजों से होता है जिनका उपयोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
सेवा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
सेवा से अभिप्राय अभौतिक चीजों से है जिनका प्रयोग आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 3.
‘एक व्यक्ति’ का अर्थ लिखो।
उत्तर:
‘एक व्यक्ति’ से अभिप्राय निर्णय लेने वाली इकाई से होता है।

प्रश्न 4.
क्या संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में असीमित होते हैं?
उत्तर:
नहीं, संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में सीमित होते हैं।

प्रश्न 5.
उन चीजों की सूची बनाइए जिनकी ग्रामीण लोगों को प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है?
उत्तर:
भोजन, वस्त्र, आवास, परिवहन एवं अन्य सेवाएँ।

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प्रश्न 6.
एक व्यक्ति को प्रतिदिन गाँव में कुछ लोगों के पास अपने श्रम का विदोहन करते के लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।
उत्तर:
गाँव में एक व्यक्ति को प्रतिदिन जिन चीजों की जरूरत पड़ती है उनकी सूची लम्बी होती है।

प्रश्न 7.
क्या यह कथन सत्य है कि गांव में कुछ लोगों के पास अपने श्रम का विदोहन करने के लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।
उत्तर:
हाँ, भूमिहीन श्रमिकों के पास अपने श्रम का विदोहन करने लायक भी संसाधन नहीं होते हैं।

प्रश्न 8.
अतिरिक्त उत्पादन का इस्तेमाल क्या होता है?
उत्तर:
अतिरिक्त उत्पादन का इस्तेमाल अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का विनियम करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 9.
एक व्यक्ति अपने संसाधनों का क्या करता है?
उत्तर:
संसाधनों का प्रयोग अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 10.
दुर्लभता की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
एक व्यक्ति के पास संसाधन, उनकी आवश्यकताओं की तुलना में कम होते हैं, इसे दुर्लभता कहते हैं।

प्रश्न 11.
‘एक प्रतिदर्श’ क्या समाहित करने का प्रयास करता है?
उत्तर:
‘एक प्रतिदर्श’ वास्तविकता की आवश्यक विशेषताओं का समाहित करने का प्रयास करता है।

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प्रश्न 12.
विनियम की उपयोगिता लिखिए।
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति के लिए उत्पादन में विशिष्ट एवं उपभोग में विविधता की खाई को पाटने में विनियम प्रक्रिया उपयोगी होती है।

प्रश्न 13.
आधुनिक समाज में प्राथमिक आर्थिक एजेन्ट या निर्णायक इकाई कौन होती है?
उत्तर:
उपभोक्ता एवं उत्पादक आधुनिक समाज में प्राथमिक आर्थिक एजेन्ट होते हैं।

प्रश्न 14.
उत्पादक का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह इकाई जो वस्तु या सेवा का उत्पादन करती है, उसे उत्पादक कहते हैं।

प्रश्न 15.
चयन करने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
दुर्लभता चयन का मुख्य कारण है।

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प्रश्न 16.
संसाधनों की दुर्लभता का सामना कौन करता है?
उत्तर:
प्रत्येक व्यक्ति को दुर्लभता की समस्या का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 17.
सर्वोत्कृष्ट उपयोग में संसाधनों का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?
उत्तर:
संसाधन दुर्लभ होते हैं इसलिए इनका इस्तेमाल सर्वोत्कृष्ट रूप में किया जाता है।

प्रश्न 18.
सामग्री का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वस्तुओं एवं सेवाओं को सामग्री (द्रव्य) कहते हैं।

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प्रश्न 19.
उपभोक्ता वस्तुओं एवं सेवाओं का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनका उपयोग उपभोग के लिए किया जाता है, उपभोक्ता वस्तु कहलाती है।

प्रश्न 20.
साधन आगत या उत्पादन साधन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पन्न करने के लिए किया जाता है उत्पादन साधन कहलाते हैं।

प्रश्न 21.
उपभोक्ता का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह व्यक्ति जो सन्तुष्टि पाने के लिए वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग करता है, उपभोक्ता कहलाता है।

प्रश्न 22.
समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन कौन करता है?
उत्तर:
केन्द्रीय सत्ता समाजवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाकलापों का नियोजन करती है।

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प्रश्न 23.
एक बाजार अर्थव्यवस्था संसाधनों का वितरण किस प्रकार करती है?
उत्तर:
एक बाजार अर्थव्यवस्था संसाधनों का वितरण मुक्त संव्यवहारों के माध्यम से करती है।

प्रश्न 24.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या का अर्थ लिखो।
उत्तर:
विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए दुलर्भ संसाधनों का आबंटन अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्या कहलाती है।

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था कब सन्तुलन में कही जाती है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था उस समय सन्तुलन में मानी जाती है जब अर्थव्यवस्था के प्राथमिक एजेन्टों की सभी योजनाएँ पूरी हो जाती है।

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प्रश्न 26.
किस अर्थ में एक उपभोक्ता विवेकशील होता है?
उत्तर:
एक उपभोक्ता इस अर्थ में विवेकशील होता है कि व उपभोग के लिए वस्तुओं का चयन अपनी रूचि व अभिरूचियों के अनुसार करता है।

प्रश्न 27.
एक उत्पादक कब विवेकशील होता है?
उत्तर:
जब एब उत्पादक को इस बात का स्पष्ट आंकलन होता है कि उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर संभावित बिक्री से उसे कितना लाभ प्राप्त होगा तब उसे विवेकशील कहा जाता है।

प्रश्न 28.
एक बाजार कब सन्तुलन में होता है?
उत्तर:
जब किसी कीमत स्तर पर बाजार में वस्तु की माँगी गई मात्रा, उसकी बाजार में की गई पूर्ति के बराबर होती है तब बाजार सन्तुलन में होता है।

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प्रश्न 29.
साम्य कीमत का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह कीमत स्तर जिस पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा समान होती है, साम्य कीमत कहलाती है।

प्रश्न 30.
साम्य मात्रा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
बाजार में साम्य कीमत पर खरीदी गई व बेची गई मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं अर्थव्यवस्था की तुलना कीजिए।
उत्तर:
वास्तविक रूप से एक अर्थव्यवस्था ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक जटिल एवं व्यापक होती है। लेकिन एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरल रूप में अर्थव्यवस्था की सरलीकृत तस्वीर समाहित होती है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के मुद्दे एवं समस्याएँ एक जैसी होती हैं केवल उनके क्षेत्र का अन्तर होता है।

प्रश्न 2.
आर्थिक समस्याओं का समाधान करने हेतु किन विधियों का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
आर्थिक समस्याओं का समाधान निम्नलिखित ढंग से किया जाता है –

  1. अपने लक्ष्यों को केन्द्रित करके विभिन्न व्यक्ति / इकाई मुक्त संव्यवहार द्वारा बाजार तंत्र की भाँति आर्थिक समस्याओं को हल कर सकती हैं।
  2. नियोजन के माध्यम से भी आर्थिक समस्याओं को हल किया जा सकता है। नियोजन का कार्य केन्द्रीय सत्ता जैसे ग्राम-पंचायत या सरकारी अधिकारी कर सकते हैं।

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प्रश्न 3.
एक छोटी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मूल रूप में किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
उत्तर:
एक छोटी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मूल रूप से निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ता है –

  1. गाँव के सीमित संसाधनों का आबंटन
  2. उत्पादित अन्तिम वस्तुओं का आबंटन

प्रश्न 4.
वस्तु एवं सेवाओं में भेद लिखिए।
उत्तर:
वस्तुएँ:

  1. वस्तुएँ भौतिक होती हैं जिनका उपयोग आवश्यकताओं को सन्टुष्ट करने के लिए होता है।
  2. वस्तुओं का भण्डारण किया जा सकता है।
  3. वस्तुओं के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में अन्तर पाया जाता है। उनका पहले उत्पादन किया जाता है इसके बाद उपभोग किया जाता है।
  4. जैसे-भोजन सामग्री, फर्नीचर, पंखा आदि।

सेवाएँ:

  1. सेवाएँ अभौतिक होती हैं जिनका उपयोग आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए होता है।
  2. सेवाओं का भण्डारण नहीं किया जा सकता है।
  3. सेवाओं के उत्पादन काल एवं उपभोग काल में कोई अंतर नहीं होता है। सेवाएँ जैसे ही उत्पन्न होती हैं उसी समय उनका उपभोग किया जाता है।
  4. जैसे-अध्यापक की सेवाएँ, डॉक्टर की सेवाएँ, वकील की सेवाएँ आदि।

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प्रश्न 5.
एक सरल ग्रामीण अर्थव्यवस्था में संसाधनों एवं आवश्यकताओं की तुलना कीजिए एवं अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
किसी भी व्यक्ति के पास संसाधन उसकी आवश्यकताओं की तुलना में असीमित नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए एक ग्रामीण परिवार अपने सीमित संसाधनों के माध्यम से सीमित मात्रा में ही खाद्य सामग्री का उत्पादन कर सकता है। अत: वह परिवार खाद्य सामग्री के जरिए विनियम प्रक्रिया के द्वारा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं को सीमित मात्रा मे ही प्राप्त कर सकता है। अतः प्रत्येक परिवार को उपलब्ध वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा में उपभोग के लिए चयन करना पड़ता है।

प्रश्न 6.
क्या होगा जब एक गाँव में गेहूं का उत्पादन करने वाली इकाइयाँ गेहूँ का जरूरत से ज्यादा उत्पादन करती हैं?
उत्तर:
यदि गाँव में लोगों को उतनी गेहूँ की मात्रा की आवश्यकता नहीं होती है जिनका गाँव की उत्पादन इकाइयाँ गेहूँ का उत्पादन करती हैं तो या तो गाँव के लोग अतिक्ति उत्पादन से अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का विनियम करेंगे। अथवा गेहूँ के उत्पादन से कुछ संसाधनों को हटाकर उन वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में लगा सकती है जिनकी गाँव में माँग अधिक होगी।

प्रश्न 7.
यदि एक गाँव में गेहूँ के उत्पादन की मात्रा उसकी मांग की तुलना में कम है तो क्या होगा?
उत्तर:
यदि एक गाँव में गेहूँ की उत्पादन मात्रा उसकी माँग की तुलना में कम है तो गाँव के लोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं में लगे संसाधनों का पुनर्वितरण कर सकते हैं। वे उन वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से कुछ साधन हटा सकते हैं जिनकी माँग तुलनात्मक रूप से कम होगी और उनका उपयोग गेहूँ के उत्पादन में कर सकते हैं अथवा अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं के अधिशेष उत्पादन का विनियम करके उसके बदले में गेहूँ प्राप्त कर सकते हैं।

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प्रश्न 8.
एक गाँव के संसाधनों के बारे में टिप्पणी कीजिए और उनका वितरण किस प्रकार से किया जाता है?
उत्तर:
एक गाँव के लोगों को सामूहिक आधार पर जितने संसाधनों की आवश्यकता होती है उनकी तुलना में उनकी उपलब्धता सीमित होती है। पसन्द एवं नापसन्द का ध्यान रखकर गाँव के लोग विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए सीमित संसाधनों का उचित प्रकार से वितरण करते हैं ताकि उनकी आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

प्रश्न 9.
प्रतिदर्श को परिभाषित करें।
उत्तर:
वास्तविक बाजार की सरलीकृत तस्वीर को प्रतिदर्श कहते हैं। बाजार का प्रतिदर्श वास्तविक बाजार की विशेषताओं को केन्द्रीकृत रूप में दर्शाता है। दूसरे शब्दों में प्रतिदर्श, वास्तविक तस्वीर की आवश्यक विशेषताओं को प्रतिबिम्बित करता है। एक प्रतिदर्श, वास्तविक जटिल प्रारूप को सरल रूप में पेश करता है।

प्रश्न 10.
उत्पादन साधनों का अर्थ लिखिए। उत्पादन साधनों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए किया जाता है उन्हें उत्पादन के साधन कहते हैं।
उत्पादन के साधनों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. साधन आगत/मुख्य साधन/प्राथमिक साधन-भूमि एवं श्रम।
  2. मध्यवर्ती वस्तुएँ/गैर साधन आगत/गौण साधन-उत्पादित वस्तु जो अन्य वस्तुओं के उत्पादन में काम आती हैं। जैसे- मिठाई बनाने में चीनी, टायर के विनिर्माण में रबर आदि।

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प्रश्न 11.
उपभोग एवं उत्पादन वस्तुओं की परिभाषा दीजिए। प्रत्येक के दो-दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तु:
वे वस्तुएँ जिनका उपयोग उपभोग के लिए किया जाता है, उपभोक्ता वस्तु कहलाती हैं। जैसे – भोजन सामग्री, वस्त्र आदि।

उत्पादक वस्तु:
वे वस्तु जिनका उपयोग अन्य वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए होता है। जैसे – मशीन, कच्चा माल आदि।

प्रश्न 12.
एक व्यक्ति के स्वामित्व में कुछ मात्रा में ही वस्तुएँ होती हैं। समझाइए।
उत्तर:
एक व्यक्ति को जितनी वस्तुओं की आवश्यकता होती है न तो उनकी मात्रा में उसके पास उपलब्ध होती हैं और न ही वह उन सबका उत्पादन कर सकता है। वह केवल उपलब्ध साधनों में से कुछ को ही अपने स्वामित्व में रख सकता है अथवा उत्पादन कर सकता है। इस प्रकार वस्तुओं के स्वामित्व एवं उत्पादन के मामले में प्रत्येक व्यक्ति विशिष्ट होता है जबकि उपलब्ध एवं उत्पादित सभी वस्तुओं की अर्थव्यवस्था में एक लम्बी श्रृंखला होती है।

प्रश्न 13.
विशिष्ट उतपादन एवं व्यापक उपभोग के बीच की खाई को किस तरह भरा जाता है?
उत्तर:
संसाधनों की दुर्लभता एवं आवश्यकताओं की असीमितता के कारण उत्पादन विशिष्टता एवं उपभोग की विविधता में काफी अन्तर होता है। इस अन्तर को पूरा करने के लिए विनियम प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है। आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में उपभोग, उत्पादन एवं विनियम क्रियाएँ बाजार में सतत् रूप से चलती है।

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प्रश्न 14.
एक अर्थव्यवस्था के संसाधनों के बारे में टिप्पणी करें।
उत्तर:
प्रत्येक अर्थव्यवस्था अथवा व्यक्ति के पास उपलब्ध संसाधन आवश्यकताओं की तुलना में सीमित एवं दुर्लभ होते हैं। अतः कोई भी अर्थव्यवस्था अथवा व्यक्ति उपलब्ध सीमित व दुर्लभ संसाधनों से सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकती/सकता है। वह रूचियों के आधार पर कुछ आवश्यकताओं का चयन करके अपनी अधिक से अधिक आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है। संसाधन मानवकृत एवं प्राकृतिक दो प्रकार के होते हैं। प्राकृतिक संसाधन सीमितता के अलावा गैरपुरूत्पादनीय भी होते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थव्यवस्था की उत्पादन संभावनाओं को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था के संसाधन सीमित होते हैं। अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उपलब्ध संसाधनों को वैकल्पिक आधार पर प्रयोग कर सकती है। संसाधनों का विभिन्न वस्तुओं के लिए उत्पादन में अनेक प्रकार से आबंटन करके अर्थव्यवस्था उत्पादन के विभिन्न समुच्चय प्राप्त कर सकती है। संसाधनों की दी गई मात्रा से विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन की संभावनाओं को उत्पादन संभावनाएँ कहते हैं।

प्रश्न 16.
एक उदाहरण की सहायता से विवेकशीलता को समझाइए।
उत्तर:
संसाधनों की दुर्लभता के कारण व्यक्ति संसाधनों का बेहतर उपयोग करने का प्रयास करता है। यह माना जाता है कि प्रत्येक उपभोक्ता को वस्तुओं के उपलब्ध समुच्चयों के बारे में, अभिरूचियों के बारे में स्पष्ट जानकारी होती है। इस अर्थ में उपभोक्ता विवेकशील माना जाता है क्योंकि आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए वह अपनी रूचियों के अनुसार चयन करता है अतः संसाधनों का उपयोग करने में वह विवेकशील होता है और अपनी अधिकतम आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करता है।

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प्रश्न 17.
बाजार का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जिससे लोगों को आर्थिक क्रियाओं को मुक्त रूप से संचालित करने की आजादी होती है, उसे बाजार कहते हैं। एक बाजार में एक व्यक्ति अपने अधिशेष उत्पादन को उन लोगों को बेच सकता है जिन्हें उसकी वस्तुओं की आवश्यकता होती है। विक्रय से प्राप्त मुद्रा का उपयोग वह व्यक्ति उन वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय करने के लिए कर सकता है, जिनकी उसे आवश्यकता होती है।

प्रश्न 18.
उन स्थितियों के उदाहरण दीजिए जिनमें क्रेता एवं विक्रेता आपस में एम-दूसरे से व्यवहार करते हैं।
उत्तर:
बाजार में क्रेता एवं विक्रेता विभिन्न स्थितियों में एक-दूसरे से व्यवहार कर सकते हैं। उनमें से कुछ स्थितियाँ निम्नलिखित हैं।

  1. एक ग्रामीण चौक में
  2. शहर के सुपर बाजार में
  3. दूरभाष के माध्यम से
  4. इंटरनेट के जरिए एवं
  5. ई-मेलिंग के जरिए

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प्रश्न 19.
यह कहना कहाँ तक न्यायोचित है कि कोई भी अकेला क्रेता बाजार में किसी वस्तु की कीमत का निर्धारण नहीं कर सकता है।
उत्तर:
एक वस्तु बाजार में क्रेताओं एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होती है। बाजार में क्रय-विक्रय की गई वस्तु की कुल मात्रा का एक क्रेता नगण्य मात्रा में ही क्रय करता है अतः अकेला क्रेता बाजार में नगण्य रूप में महत्त्व रखता है। अतः अकेला क्रेता बाजार में वस्तु की कीमत का निर्धारण नहीं कर सकता है। उसे बाजार द्वारा तय की गई कीमत स्वीकार करनी पड़ती है। एक विक्रेता बाजार में प्रचालित कीमत पर वस्तु की क्रय की गई मात्रा को ही निर्धारित कर सकता है।

प्रश्न 20.
एक अकेला क्रेता अथवा विक्रेता अपने दम पर वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता है। आप सहमत हैं? समझाइए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र में बाजार से अभिप्राय उस क्षेत्र से है जहाँ एक वस्तु के अधिक क्रेता एवं विक्रेता एक-दूसरे से संव्यवहार करते हैं। बहुत-सी वस्तुओं के बाजार इस प्रकार के नहीं होते हैं। अधिकांश वस्तु बाजारों में जहाँ एक वस्तु का विक्रय करने वाले विक्रेताओं की संख्या कम होती है वहाँ अकेला विक्रेता वस्तु की कीमत एवं विक्रय की जाने वाली मात्रा दोनों को कुछ हद तक प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए एकाधिकारी बाजार में एक वस्तु का अकेला विक्रेता होता है। एकाधिकारी इस बाजार में वस्तु की विक्रय की जाने वाली मात्रा एवं कीमत दोनों को प्रभावित कर सकता है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में जहाँ क्रेता एवं विक्रेताओं की विशाल संख्या होती है, अकेला विक्रेता वस्तु की मात्रा एवं कीमत किसी को भी प्रभावित नहीं कर सकता है।

प्रश्न 21.
उन प्रश्नों के उदाहरण दीजिए जिनका समष्टि अर्थशास्त्र में अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में अध्ययन किए जाने वाले प्रमुख प्रश्न हैं –

  1. संसाधनों के बेरोजगार होने के क्या कारण हैं?
  2. सामान्य कीमत स्तर क्यों बढ़ता है?
  3. क्या अर्थव्यवस्था के सभी संसाधनों का पूर्ण विदोहन हो रहा है?
  4. आय का सन्तुलन स्तर कैसे निर्धारित किया जाए?
  5. सामूहिक पूर्ति का निर्धारण कैसे क्यिा जाए?
  6. अर्थव्यवस्था में सामूहिक पूर्ति का स्तर कया है?

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प्रश्न 22.
सकारात्मक एवं आदर्शात्मक आर्थिक विश्लेषण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सकारात्मक आर्थिक विश्लेषण से अभिप्राय किसी तंत्र के कार्य का मूल्यांकन करना है जबकि आदर्शात्मक विश्लेषण से अभिप्राय किसी तंत्र की वांछनीयता या अवांछनीयता के बारे में मूल्याकन करने से होता है। सकारात्मक एवं आदर्शात्मक मुद्दे केन्द्रीय आर्थिक समस्याओं के अध्ययन में घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। एक के प्रभाव में दूसरे को समझना संभव नहीं होता है। अतः दोनों प्रकार के विश्लेषण एक-दूसरे के पूरक होते हैं।

प्रश्न 23.
व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
कुछ महत्त्वपूर्ण व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय निम्नवत हैं –

  1. एक वस्तु की माँग
  2. एक वस्तु की आपूर्ति
  3. एक वस्तु की कीमत का निर्धारण
  4. एक फर्म का सम्य
  5. एक वस्तु की उत्पादन लागत
  6. एक फर्म को प्राप्त लागत

प्रश्न 24.
एक बाजार अर्थव्यवस्था के द्वारा केन्द्रीय समस्याओं को हल करने के तरीके के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
एक बाजार अर्थव्यवस्था में विभिन्न आर्थिक इकाइयाँ मुक्त रूप से आपस में संव्यवहार करती हैं। अतः विवेकशील आर्थिक इकाइयों के संव्यवहार से बाजार की समस्याएँ स्वतः हल हो जाती हैं। मूल आर्थिक समस्याओं का निराकरण विकेन्द्रीयकृत हल होता है अर्थात् समस्याओं का हल केन्द्रीय सत्ता नहीं करती है बल्कि सब मिलकर करते हैं। समाजवादी अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्याओं का हल नियोजन के माध्यम से केन्द्रीय सत्ता करती है।

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प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था सन्तुलन के कब कही जाती है?
उत्तर:
कोई अकेली आर्थिक इकाई सन्तुलन प्राप्त नहीं कर सकती है। बाजार अर्थव्यवस्था में विवेकशील व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयाँ अपने हित के अनुरूप आर्थिक क्रियाओं का संचालन करके स्वतः ही आर्थिक समस्याओं को हल करती हैं और सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त करती हैं। अदृश्य शक्तियाँ क्रियाशील होकर सन्तुलन की अवस्था को प्राप्त करती है। प्रत्येक, आर्थिक इकाई इस प्रकार से कार्य करती है जो दूसरी आर्थिक इकाइयों के साथ मिलान करने लायक हो। संसाधनों के आबंटन एवं उनकी उपलब्धता के आधार पर ही अन्तिम वस्तुओं का आबंटन आधारित होता है। जब अर्थव्यवस्था कोई भी परिवर्तन नहीं चाहती है तब उसे सन्तुलन में माना जाता है।

प्रश्न 26.
अर्थशास्त्र की दो मुख्य शाखाओं के नाम लिखिए, उनके अर्थ भी लिखिए।
उत्तर:
अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु का मुख्य रूप से दो शाखाओं के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है, जो निम्नवत हैं –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र, व
  2. समष्टि अर्थशास्त्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र-अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, उसे व्यष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। यह शाखा यह प्रदर्शित करती है कि विभिन्न आर्थिक इकाइयाँ आपसी व्यवहार के द्वारा किस प्रकार से वस्तु की मात्रा एवं कीमत का निर्धारण करती हैं। समष्टि अर्थशास्त्र-अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसमें सामूहिक आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है, उसे समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। इस शाखा में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को एक आर्थिक इकाई के रूप में अध्ययन किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक बाजार होता है –
(A) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।
(B) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने के अनुमति प्रदान नहीं करता है।
(C) व्यवस्थाओं का कोई भी ऐसे समुच्चय जो लोगों को आपस में बंधन मुक्त व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(A) व्यवस्थाओं का कोई भी समुच्चय जो लोगों को आपस में मुक्त रूप से व्यवहार करने की अनुमति प्रदान करता है।

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प्रश्न 2.
एक व्यक्ति के पास संसाधन होते हैं –
(A) असीमित
(B) सीमित
(C) न तो असीमित, न सीमित
(D) या तो सीमित या असीमित
उत्तर:
(B) सीमित

प्रश्न 3.
लोग प्रयास करते हैं –
(A) अपने संसाधनों का सबसे बेकार उपयोग करने का
(B) अपने संसाधनों का अच्छा उपयोग करने का
(C) अपने संसाधनों का सर्वोच्य रूप से उपयोग करने का
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(C) अपने संसाधनों का सर्वोच्य रूप से उपयोग करने का

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 4.
उपभोग के वक्त विभिन्न वस्तुओं का चयन करते वक्त एक उपभोक्ता विवेकशील होता है –
(A) जब वह रूचि व अभिरुचियों के अनुरूप चयन करता है
(B) जब वह रूचि व अभिरुचियों के विरूद्ध चयन करता है
(C) जब वह अपने रिश्तेदारों की रूचि-अभिरुचियों के अनुरूप चयन करता है
(D) जब वह अपनी भावनाओं के अनुरूप चयन करता है
उत्तर:
(D) जब वह अपनी भावनाओं के अनुरूप चयन करता है

प्रश्न 5.
वह तालिका जिसमें उपभोक्ता द्वारा विभिन्न कीमतों पर माँगी गई मात्राओं को दर्शाया जाता है, उसे कहते हैं –
(A) बाजार माँग अनुसूचि
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) उत्पादक पूर्ति अनुसूचित
उत्तर:
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि

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प्रश्न 6.
वह तालिका जिसमें उत्पादक द्वारा विभिन्न कीमतों पर बेची गई मात्राओं को दर्शाया जाता है, उसे कहते हैं –
(A) बाजार माँग अनुसूचि
(B) उपभोक्ता माँग अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) उत्पादक पूर्ति अनुसूचित
उत्तर:
(D) बाजार पूर्ति अनुसूचि

प्रश्न 7.
विभिन्न कीमतों पर बाजार में मौजूद सभी उत्पादकों द्वारा बेची जाने वाली मात्राओं को दर्शाने वाली तालिका को कहते हैं।
(A) व्यक्तिगत माँग अनुसूचि
(B) व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) बाजार माँग अनुसूचि
उत्तर:
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि

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प्रश्न 8.
विभिन्न कीमतों पर बाजार में मौजूद सभी उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली मात्राओं को दर्शाने वाली तालिका को कहते हैं –
(A) व्यक्तिगत माँग अनुसूचि
(B) व्यक्तिगत पूर्ति अनुसूचि
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि
(D) बाजार माँग अनुसूचि
उत्तर:
(C) बाजार पूर्ति अनुसूचि

प्रश्न 9.
जिस कीमत पर वस्तु की माँगी गई मात्रा व पूर्ति की गई मात्रा दोनों समान होती हैं, उस कीमत को कहते हैं –
(A) साम्य मांगी गई मात्रा
(B) साम्य पूर्ति की गई मात्रा
(C) साम्य कीमत
(D) लागत
उत्तर:
(C) साम्य कीमत

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प्रश्न 10.
अवसर लागत का वैकल्पिक नाम है –
(A) आर्थिक लागत
(B) साम्य कीमत
(C) सीमांत लागत
(D) औसत लागत
उत्तर:
(A) आर्थिक लागत

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

Bihar Board Class 12 Economics खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
संतुलित व्यापार शेष और चालू खाता संतुलन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष एवं चालू खाता शेष में अन्तर –

  1. व्यापार के निर्यात एवं आयात शेष को कहते हैं जबकि व्यापार शेष, सेवाओं के निर्यात व आयात शेष तथा हस्तातरण भुगतान शेष के योग को चालू खाता शेष कहते हैं।
  2. चालू खाता शेष की तुलना में व्यापार शेष एक संकुचित अवधारण है।
  3. व्यापार शेष में केवल भौतिक वस्तुओं के आयात-निर्यात को ही शामिल किया जाता है जबकि चालू खाता शेष में भौतिक वस्तुओं के निर्यात आयात के साथ-साथ सेवाओं व हस्तातरण भुगतान के लेन-देन को भी शामिल करते हैं।

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प्रश्न 2.
आधिकारिक आरक्षित निधि का लेन-देन क्या है? अदायगी-संतुलन में इनके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मौद्रिक अधिकारियों द्वारा वित्तीय घाटे का वित्तीयन करने के लिए परिसपत्तियों को बेचना अथवा ऋण लेना आधिकारिक लेन-देन कहलाता है। दूसरा भुगतान शेष धनात्मक होने पर मौद्रिक अधिकारियों द्वारा उधार देना या परिसंपत्तियों का क्रय करना भी आधिकारिक लेन-देन की श्रेणी में आता है।

आधिकारिक लेन-देन का महत्त्व:

  1. समग्र भुगतान शेष घाटे या अधिशेष का समायोजन आधिकारिक लेन-देन से किया जा सकता है।
  2. भुगतान शेष घाटे का भुगतान मौद्रिक सत्ता का दायित्व होता है तथा भुगतान शेष अधिशेष मौद्रिक सत्ता की लेनदारी होती है इस उद्देश्य की पूर्ति आधिकारिक लेन-देन से पूरी होती है।
  3. रेखा से ऊपर व रेखा से नीचे के समायोजन आधिकारिक लेन-देन पूरा करते हैं।

प्रश्न 3.
मौद्रिक विनिमय दर और वास्तविक विनिमय दर में भेद कीजिए। यदि अपको घेरलू वस्तु अथवा विदेशी वस्तुओं के बीच किसी को खरीदने का निर्णय करना हो, तो कौन सी दर अधिक प्रासंगिक होगी?
उत्तर:
दूसरी मुद्रा के रूप में एक मुद्रा की कीमत को विनिमय दर कहते हैं। दूसरे शब्दों में विदेशी मुद्रा की एक इकाई मुद्रा का क्रय करने के लिए घरेलू मुद्रा की जितनी इकाइयों की जरूरत पड़ती है उसे विनिमय दर कहते हैं। इसे मौद्रिक अथवा सांकेतिक विनिमय दर कहते हैं क्योंकि इसे मुद्रा के रूप में व्यक्त किया जाता है। एक ही मुद्र में मापित विदेशी एवं घरेलू कीमतों के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।

वास्तविक विनिमय दर = e \(\frac { P_{ F } }{ P } \) जहाँ e विदेशी की एक इकाई की कीमत अथवा सांकेतिक विनिमय दर P r विदेशी कीमत स्तर तथा P देशी कीमत स्तर

घरेलू अथवा विदेशी वस्तुओं को खरीदने के लिए सांकेतिक विनिमय दर अधिक प्रभावशाली होती हैं क्योंकि एक देश का संबंध कई देशों से होता है अतः द्विवर्षीय दर के बजाय एकल दर अधिक पसंद की जाती है। करेन्सियों की विनिमय दर की सूची सांकेतिक विनियिम दर के आधार पर की जाती है जिससे विदेशी करेंसियों की प्रतिनिधि टोकरी की कीमत प्रकट होती है। वास्तविक विनिमय दर का प्रयोग किसी देश की अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा की माप के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 4.
यदि 1 रुपये की कीमत 1.25 येन है और जापान में कीमत स्तर 3 हो तथा भारत में 1.2 हो, तो भारत और जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर की गणना कीजिए (जापानी वस्तु की कीमत भारतीय वस्तु के संदर्भ में) संकेत : रुपये में येन की कीमत के रूप में मौद्रिक विनिमय दर को पहले ज्ञात कीजिए।
हल:
PF = 3 एवं P = 1.2; 1.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत \(\frac{1}{1.25}\) रूपय \(\frac{1}{125}\) रुपया = \(\frac{1}{125}\) रुपया
वास्तविक विनिमय दर = \(\frac{1}{100}\), \(\frac{4}{5}\) × \(\frac{30}{100}\) = 2
उत्तर:
वास्तविक विनिमय दर = 2

प्रश्न 5.
स्वचलित युक्ति की व्याख्या कीजिए जिसके द्वारा स्वर्णमान के अंतर्गत अदायगी-संतुलन प्राप्त किया जाता था।
उत्तर:
वर्ष 1870 से प्रथव विश्व युद्ध तक स्थायी विनिमय दर के लिए मानक स्वर्ण-मान पद्धित ही आधार थी। इस पद्धति में सभी देश अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में परिभाषित करते थे। प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा को निःशुल्क स्वर्ण में परिवर्तित करने की गारंटी देनी पड़ती थी। स्थिर कीमतों पर मुद्रा की सोने में परिवर्तनीयता सभी देशों को स्वीक त थी।

विनिमय दर समष्टीय खुली अर्थव्यवस्थाओं के द्वारा सोने की कीमत के आधार पर परिकलित किए जाते थे। विनिमय दर उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के मध्य उच्चवचन करते थे। उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं का निर्धारण मुद्रा की ढलाई, दुलाई आदि के आधार पर तय की जाती थी। आधिकारिक विश्वसनीयता कायम रखने के लिए प्रत्येक देश को स्वर्ण का पर्याप्त भण्डार आरक्षित रखना पड़ता था। स्वर्ण के आधार पर सभी देश स्थायी विनिमय दर रखते थे।

प्रश्न 6.
नम्य विनिमय दर व्यवस्था मे विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
परिवर्तनशील विनिमय दर का निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है। लोचशील विनिमय दर प्रणाली में केन्द्रीय साधारण नियमों को अपनाता है। ये नियम प्रत्यक्ष रूप से लोचशील दर को निर्धारित करने में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। इस प्रणाली में आधिकारिक लेन-देन का स्तर शून्य होता है।

लोचशील विनिमय दर में परिवर्तन विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की समानता लाने के लिए होता है। दूसरे शब्दों में एक दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत के रूप में विनिमय दर तय होती हैं। एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा के रूप में कीमत मुद्रा की मांग व पूर्ति पर निर्भर करती हैं। विदेशी मुद्रा की मांग-निम्नलिखित कारको के कारण विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है।

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं का आयात करने के लिए।
  2. वित्तीय परिसंपत्तियों का आयात करने के लिए।
  3. उपहार या हस्तातरण भुगतान विदेशों को भेजने के लिए।
  4. विदेशी विनिमय दर पर सट्टा उद्देश्य के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग एवं विनिमय दर से विपरीत संबंध होता है इसलिए विदेशी मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढ़ाल का होता है।

विदेशी मुद्रा की आपूर्ति:
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के निम्नलिखित स्रोत हैं –

  1. घरेलू वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात
  2. वित्तीय परिसपत्तियों का निर्यात
  3. विदेशों से उपहार तथा हस्तातरण भुगतान की प्राप्ति
  4.  सट्टा उद्देश्य के लिए

विदेशी मुद्रा की आपूर्ति एवं विनिमय दर में सीधा संबंध होता है अतः विदेशी मुद्रा का आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल का होता है। विनिमय दर का निर्धारण-जहाँ विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है, विनिमय दर वहाँ निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति का साम्य बिन्दु वह होता है मुद्रा का मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र एक-दूसरे को काटते हैं। साध्य बिन्दु पर विनिमय दर को साम्य विनिमय दर तथा मांग व पूर्ति की मात्रा को साम्य मात्रा कहते हैं। इसे निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 1

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प्रश्न 7.
अवमूल्यन और मूल्यह्रास में अंतर कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा अवमूल्न का अभिप्राय सामाजिक क्रिया के द्वारा विनिमय दर को बढ़ाने से है। विनिमय दर Pagged Exchange पद्धति से बढ़ायी जाती है। व्यापार शेष घाटे को पूरा करने के लिए अवमूल्न एक उपकरण माना जाता है। अवमूल्यन से घरेलू उत्पाद सापेक्ष रूप से सस्ते हो जाते हैं इसके विपरीत विदेशी उत्पादों की घरेलू बाजार में मांग बढ़ जाती है। बार-बार अवमूल्न से आधिकारिक आरक्षित कोष समाप्त हो जाते हैं। जब बाजार की मांग एंव पूर्ति शक्तियों के प्रभाव से एक देश की मुद्रा का मूल्य बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के विदेशी मुद्रा में कम हो जाता है तो इसे मूल्य ह्रास कहते हैं।

प्रश्न 8.
क्या केंद्रीय बैंक प्रबंधित तिरती व्यवस्था में हस्तक्षेप करेगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्धित तरणशीलता पद्धति दो विनिमय दर पद्धतियों का मिश्रण होती है। यह दो चरम विनिमय दरों-स्थिर विनिमय दर एवं लोचशील विनिमय दर के बीच की दर हैं। इस पद्धति में सरकार विनिमय दर निर्धारण में हस्तक्षेप कर सकती है जब कभी केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन उचित समझता है तो विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय करके हस्तक्षेप कर सकता है। अर्थात् विनिमय दर की इस पद्धति में आधिकारिक लेन-देन शून्य नहीं होता है।

प्रश्न 9.
क्या देशी वस्तुओं की मांग और वस्तुओं की देशीय माँग की संकल्पनाएँ एक समान है?
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान होती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि देश की घरेलू सीमा के बाहर न तो घरेलू वस्तुओं की मांग होती है और न ही घरेलू सीमा में विदेशी वस्तुओं की मांग होती है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग समान नहीं होती है।

घरेलू वस्तुओं की मांग में उपभोग मांग (परिवार क्षेत्र द्वारा), निवेश मांग, सरकारी उपभोग के लिए मांग व निर्यात के लिए मांग के योग में आयात की मांग को घटाते हैं। संक्षेप में घरेलू वस्तुओं की मांग = परिवार क्षेत्र की उपयोग मांग + निवेश मांग + सरकारी व्यय मांग + निर्यात (मांग) – आयात (मांग)
= C + I + G + X – M
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)

वस्तुओं के लिए घरेलू मांग में परिवार क्षेत्र का उपयोग व्यय, निवेश व्यय, सरकारी व्यय व आयात के योग से निर्यात मांग को घटाते हैं।
वस्तुओं की घरेलू मांग = C + I + G + M – X
= C + I + G + NX (NX शुद्ध निर्यात)

यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य शून्य होता होगा तो घरेलू वस्तुओं की मांग तथा वस्तुओं की घरेलू मांग दोनों समान होंगे। यदि शुद्ध निर्यात का मूल्य धनात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं की घरेलू मांग से अधिक होगी। इसके विपरीत यदि शुद्ध निर्यात का मान ऋणात्मक होता है तो घरेलू वस्तुओं की मांग, वस्तुओं को घरेलू मांग से कम होगी।

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प्रश्न 10.
जब M = 3D60 + 0.06Y हो, तो आयात की सीमांत प्रवृत्ति कया होगी? आयात की सीमांत प्रवृत्ति और समस्त माँग फलन में क्या संबंध है?
उत्तर:
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति अतिरिक्त मुद्रा आय का वह भाग है जो आयात पर व्यय किया जाता है। आयात की सीमान्त प्रवृत्ति की अवधारणा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जैसी ही है। इसलिए आयात की मांग आय के स्तर पर निर्भर करती है तथा कुछ भाग स्वायत्त होता है। M = m + my M स्वायत्त आयात, m आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 60 + 0.06Y उक्त दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत्त आयात M = 60, आयात की सीमान्त प्रवृत्ति m = 0.06 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान 1 से कम तथा शून्य से अधिक होता है।

MPC का मान शून्य से अधिक उपभोग होने पर प्रेरित प्रभाव विदेशी वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। इससे घरेलू वस्तुओं की मांग घट जाती है। आयात एक प्रकार का स्राव होता है अतः साम्य आय का स्तर कम हो जायेगा। अत: आयात की स्वायत्त मांग में वृद्धि घरेलू वस्तुओं की मांग को घटाता है।

प्रश्न 11.
खुली अर्थव्यवस्था स्वायत्व व्यय खर्च गुणक बंद अर्थव्यवस्था के गुणक की तुलना में छोटा कयों होता है?
उत्तर:
बंद अर्थव्यवस्था में साम्य आय कर स्तर
Y = C + cY + 1 + G या, Y – cY = C + 1 + G
या, Y(1 – c) = C + 1 + G या, Y = \(\frac{C+1+G}{1-c}\) = \(\frac{A}{1-c}\) (C + 1 + G = A)
\(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c}\), व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-c}\)

खुली अर्थव्यस्था में साम्य आय का स्तर Y = C+ cY + 1 + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C + 1 + G + X
Y(1 – c + m) = C + 1 + G + X
Y = \(\frac{C+1+G+X}{1-C+m}\) या Y = \(\frac{A}{1-c+m}\) (A = C + 1 + G + X)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c+m}\)
आयात की सीमान्त प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक है अतः उपभोग का प्रेरित कुछ भाग आयात के लिए वस्तुओं की मांग पर चला जाता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के व्यय गुणकों की तुलना करने पर बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक, बन्द अर्थव्यवस्था के व्यय गुणक से ज्यादा है।

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प्रश्न 12.
पाठ में एकमुश्त कर की कल्पना के स्थान पर आनुपातिक कर T = tY के साथ खुली अर्थव्यवस्था गुणक की गणना कीजिए।
उत्तर:
अनुपतिक कर की स्थिति में साम्य आय स्तर
Y = 3DC + C (I – t)Y + I + G + X – M – mY
Y – C (1 – t)Y+ mY = C + I + G + X – M
Y [1 – C + ct + m] = C + I + G + X – M
Y = \(\frac{C + I + G + X – M}{1 – C(1 – t) + m}\) (A = DC + I + G + X – M)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c(1-t)+m}\)
एकमुश्त कर की स्थिति में साम्य आय
Y = C + C (Y – T) + I + G + X – M – mY
Y – cY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y [1 – c + m] = C – CT + I + G + X – M
Y = \(\frac{c – ct + I + G + X – M}{1 – c + m}\)
= \(\frac{A}{1 – c + m}\) (A = C – CT + I + G + X – M)

व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-c+m}\)

प्रश्न 13.
मान लीजिए C = 40 + 08YD, T = 50,G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) संतुलन आया ज्ञात कीजिए
(b) संतुलन आय पर निवल निर्यात संतुलन ज्ञात कीजिए
(c) संतुलन आय और निवल निर्यात संतुलन क्या होता है, जब सरकार के क्रय में 40 से 50 की वृद्धि होती है।
उत्तर:
C = 40 + 0.8YD, T = 50, 1 = 60, G = 40, X = 90, M = 50 + 0.05Y
(a) साम्य आय का स्तर:
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
या Y = \(\frac{A}{1-C+M}\), = \(\frac{C-CT+I+G+X-M}{1-C+M}\)
= \(\frac{40 – 0.8 × 50 + 60 + 40 + 90 – 50}{1 – 0.8 + 0.05}\) = \(\frac{40 – 40 + 60 + 40 + 90 – 50}{1 – 0.75}\)
= \(\frac{140}{0.25}\) = \(\frac{140×100}{25}\) = 560

(b) साम्य आय स्तर पर शुद्ध निर्यात –
NX = X – M – my = 90 – 50 – 0.05 × 560 = 40 – 28.0 = 12

(c) जब सरकारी व्यय 40 से 50 हो जायेगा साम्य आय
Y = C – CT + 1 + G + X – MI – C + m
= 40 – 8 × 50 + 60 + 50 + 90 – 50
= 1 – 0.08 – 0.05
= 150.25
= 600

साम्य आय सतर शुद्ध निर्यात शेष NX = X – M – mY
= 90 – 50 + 0.05 × 600 = 90 – 50 + 30
= 10
उत्तर:
(a) साम्य आय = 560
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 12
(c) नई साम्य आय = 600
शुद्ध निर्मात शेष = 10

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प्रश्न 14.
उपर्युक्त उदाहरण में यदि निर्यात में x = 100 का परिवर्तन हो, तो सन्तुलन आय और निवल निर्यात संतुलन में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
C = 40 + 0.08 YD, T = 50, I = 60, G = 40, X = 100, M = 50 + 0.05Y
साम्य आय Y = \(\frac{A}{1-C+M}\) = \(\frac{C-CT+G+I+X-M}{I-C+M}\)
[∵ A = C – CT + G + I + X – M]
= \(\frac{40-0.8×50+40+60+100-50}{1-0.8+0.05}\)
= \(\frac{40-40+40+60+100-50}{1-0.75}\) = \(\frac{150}{0.25}\) = \(\frac{150 × 100}{25}\) = 600
= 100 – 50 – 30 = 20
उत्तर:
साम्य आय स्तर = 600
शुद्ध निर्यात शेष = 20

प्रश्न 15.
व्याख्या कीजिए कि G – T = (SG – 1) – (X – M)
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में बचत एवं निवेश आय के साम्य स्तर पर समान होते है। लेकिन एक खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय स्तर पर बचत एवं निवेश असमान हो सकते हैं।
Y = C + G + I + NX
S – I + NX
एक अर्थव्यवस्था में निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की बचतों का योग समग्र बचत के बराबर होता है –
NX = SP + SG – 1
NX = Y – T + T – G – 1
[∵SP = Y – C – T & SG = T – G]
NX = Y – C – G – 1
G = Y – C – 1 – NX
G – T = Y – C – T – 1 – NX
= [SP – 1] – N [∵ SP = Y – C – T]

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प्रश्न 16.
यदि देश B से देश A में मुद्रास्फीति ऊँची हो और दोनों देशों में विनिमय दर स्थिर हो, तो दोनों देशों के व्यापार शेष का क्या होगा?
उत्तर:
देश ‘अ’ में स्फीति का स्तर देश ‘ब’ से ऊंचा है। स्थिर विनयम दर की स्थिति में देश ‘ब’ से देश ‘अ’ को वस्तुओं का आयात करना लाभ-प्रद होगा। परिणाम स्वरूप देश ‘अ’ अधिक वस्तुओं का अधिक मात्रा में आयात करेगा और देश ब को कम मात्रा में वस्तुओं का निर्यात करेगा। अतः ‘अ’ के सामने व्यापार शेष घाटे की समस्या उत्पन्न होगी। दूसरी ओर देश ‘ब’ देश ‘अ’ से कम मात्रा में वस्तुओं का आयात करेगा और निर्यात अधिक मात्रा में करेगा। अतः देश ‘ब’ का व्यापार शेष अधिशेष (धनात्मक) होगा।

प्रश्न 17.
क्या चालू पूँजीगत घाटा खतरे का संकेत होगा? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि व्यापार शेष घाटा कम बचत और अधिक बजट घाटे को जन्म देता है यह चिन्ता का विषय हो भी सकता है और नहीं भी। यदि इस स्थिति में निजी क्षेत्र अथवा सरकारी क्षेत्र का उपभोग अधिक हो तो उस देश के पूंजी भण्डार अधिक दर से नहीं बढ़ेगा और पर्याप्त आर्थिक समृद्धि नहीं होगी। इसके अलावा इसे ऋण का भुगतान भी करना होगा पडेगा। इस दशा में चालू खाता घाटा चेतावनीपूर्ण एवं चिन्ता का विषय होता है। यदि व्यापार शेष व्यापार शेष घाटा अधिक निवेश के लिए काम आता है तो भण्डार स्टॉक अधिक दर बढ़कर पर्याप्त आर्थिक सवृद्धि को जन्म देता है। इस दशा में चालू खाता घाटा चिन्तनीय नहीं होता है।

प्रश्न 18.
मान लीजिए C + 100 + 0.75 YD, I = 500, G – 750, कर आय का 20 प्रतिशत है, x = 150, M = 100 + 0.2Y, तो संतुलन आय, बजट घाटा अथवा आधिक्य और व्यापार घाटा अथवा आधिक्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
साम्य आय Y = C + C(Y – T) + 1 + G + X – M – mY
= 100 + 0.75 (Y – Y) का 20%) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 100 + 7.5 [y – 5) + 500 + 750 + 150 – 100 – 0.2Y
= 1400 + 2 + 4y – 0.2Y
= 1400 + \(\frac{3}{4}\) + \(\frac{4}{5}\) Y – 0.2Y = 1400 + \(\frac{2}{5}\)Y
Y – \(\frac{2}{5}\)Y = 1400 – \(\frac{3}{5}\)Y = 1400
Y = 1400 × \(\frac{5}{3}\) = \(\frac{7000}{3}\)

सरकारी व्यय = 750
सरकारी प्राप्तियाँ = 20% of Y
20% of Y \(\frac{7000}{3}\) = \(\frac{20×7000}{3×100}\) = \(\frac{140000}{3×100}\) = 466.67

सरकारी व्यय सरकारी प्राप्तियों से अधिक हैं इसलिए यह बजट घाटा है।
NX = X – M – mY
Y = 150 – 100 – 2 × \(\frac{7000}{3}\) = 150 – 100 – 466.67 = – 416.67

यह व्यापार घाटा दर्शा रहा है क्योंकि NX ऋणात्मक है।

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प्रश्न 19.
उन विनिमय दर व्यवस्थाओं की चर्चा कीजिए, जिन्हें कुछ देशों ने अपने बाहा खाते में स्थायित्व लाने के लिए किया है।
उत्तर:
विभिन्न देशों ने अपने विदेशी खातों में स्थायित्व लाने के उद्देश्य विभिन्न विनिमय दर पद्धतियों को अपनाया जैसे –
(I) स्थिर विनिमय दर:
इस विनिमय दर से अभिप्राय सरकार द्वारा निर्धारित स्थिर विनिमय दर से है। स्थिर विनिमय दर की उप-पद्धतियां इस प्रकार है –

1. विनिमय दर की स्वर्णमान पद्धति:
1920 तक पूरे विश्व में इस पद्धति को व्यापक स्तर पर प्रयोग किया गया। इस व्यवस्था में प्रत्येक भागीदार देश को अपनी मुद्रा की कीमत सोने के रूप में घोषित करनी पड़ती थी। मुद्राओं का विनिमय स्वर्ण के रूप में तय की गई कीमत सोने की स्थिर कीमत पर होता है।

2. ब्रैटन वुड पद्धति:
विनिमय की इस प्रणाली में भी विनिमय दर स्थिर रहती है। इस प्रणाली में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारी तय की गई विनिमय दर में एक निश्चित सीमा तक परिवर्तन की अनुमति प्रदान कर सकते हैं। सभी मुद्राओं का मूल्य इस प्रणाली में अमेरिकन डालर में घोषित करना पड़ता था। अमेरिकन डालर की सोने में कीमत घोषित की जाती थी। लेकिन दो देश मुद्राओं का समता मूल्य अन्त में केवल स्वर्ण पर ही निर्भर होता था। प्रत्येक देश की मुद्रा के समता मूल्य में समायोजन विश्व मुद्रा कोष का विषय था।

(II) लोचशील विनिमय दर:
यह वह विनिमय दर होती है जिसका निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति की शक्तियां के द्वारा होता है। जिस विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति समान हो जाती है वही दर साम्य विनिमय दर कहलाती है। आजकल समूचे विश्व में विभिन्न देशों के मध्य आर्थिक लेन-देन का निपटरा लोचशील विनिमय दर के आधार पर होता है।

Bihar Board Class 12 Economics खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार क्या होता है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय भुगतानों का सार है कि आय से अधिक खर्च की भरपाई स्वर्ण, स्टाँक, विदेशी ऋण आदि के द्वारा की जायेगी।

प्रश्न 2.
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत लिखो।
उत्तर:
चालू खाते में घाटे का वित्तीय स्रोत शुद्ध पूंजी प्रवाह से किया जाता है।

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प्रश्न 3.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।
उत्तर:
लगभग 24 वर्ष भारत का व्यापार शेष घाटे वाला था।

प्रश्न 4.
वह अवधि लिखो जिसमें भारत का व्यापार शेष घाटा कम हो गया और अधिशेष में बदल गया।
उत्तर:
2001 – 02 से 2003 – 04 की अवधि में भारत का चालू घाटे में अधिशेष था।

प्रश्न 5.
चालू खाते में अधिक घाटे को किससे पूरा नहीं करना चाहिए?
उत्तर:
अदृश्य अधिशेष से चालू खाते के घाटे की भरपाई नहीं करनी चाहिए।

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प्रश्न 6.
अर्थव्यवस्था के खुलेपन की माप क्या होती है?
उत्तर:
कुल विदेशी व्यापार (आयात व निर्यात) का सकल घरेलू उत्पाद के साथ अनुपात से अर्थव्यवस्था के खुलेपन को मापते हैं।

प्रश्न 7.
2004 – 05 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
2004 – 05 में भारत की विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 38.9 प्र.श. था। इसमें 17.1 प्र.श. आयात व 11.8 प्र.श निर्यात था।

प्रश्न 8.
5 वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार कितना था?
उत्तर:
वर्ष 1985-86 में भारत का विदेशी व्यापार सकल घरेलू उत्पाद का 16 प्र.श. था।

प्रश्न 9.
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को कब स्वीकार करते हैं?
उत्तर:
विदेशी आर्थिक एजेन्ट राष्ट्रीय मुद्रा को तब स्वीकार करते है जब उन्हें विश्वास होता मुद्रा की क्रय शक्ति स्थिर रहेगी।

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प्रश्न 10.
मुद्रा का अधिक मात्रा में प्रयोग करने वाले लोगों का विश्वास जीतने के लिए सरकार क्या काम करती है?
उत्तर:
सरकार को यह घोषणा करनी पड़ती है कि मुद्रा को दूसरी परिसपत्तियों में स्थिर कीमतों पर परिवर्तित किया जायेगा।

प्रश्न 11.
भुगतान शेष के चालू खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात-आयात तथा हस्तातरण भुगतान चालू खाते में दर्ज किए जाते हैं।

प्रश्न 12.
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में क्या दर्ज किया जाता है?
उत्तर:
भुगतान शेष के पूंजीगत खाते में मुद्रा, स्टॉक, बॉण्ड आदि का विदेशों के साथ क्रय विक्रय दर्ज किया जाता है।

प्रश्न 13.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं कैसी हैं?
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्थाएं खुली अर्थव्यवस्थाएं हैं।

प्रश्न 14.
एक खुली अर्थव्यवस्था क्या होती है?
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसके दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ आर्थिक संबंध होते हैं खुली अर्थव्यवस्था कहलाती है।

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प्रश्न 15.
विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा का दसूरी मुद्रा में मूल्य विनिमय दर कहलाता है।

प्रश्न 16.
विदेशी विनिमय बाजार के मुख्य भागीदार के नाम लिखो।
उत्तर:
विदेशी बाजार के मुख्य भागीदार होते हैं –

  1. व्यापारिक बैंक
  2. विदेशी विनिमय एजेन्ट
  3. आधिकारिक डीलर्स तथा
  4. मौद्रिक सत्ता

प्रश्न 17.
विदेशी विनिमय बाजार की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह अन्तर्राष्ट्रीय बाजार जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं का आदान-प्रदान होता है विदेशी विनिमय बाजार कहलाता है।

प्रश्न 18.
वास्तविक विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
एक मुद्रा में मापी गई विदेशी कीमत एसं घरेलू कीमत के अनुपात को वास्तविक विनिमय दर कहते हैं।
वास्तविक विनिमय दर = ePF eP
जहाँ e सांकेतिक/मौद्रिक विनिमय दर, PF विदेशी कीमत तथा P घरेलू कीमत

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प्रश्न 19.
लोचशील विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह विनिमय दर जिसका निर्धारण विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा होता है लोचशील विनिमय दर कहलाती है।

प्रश्न 20.
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तन को क्या कहते हैं?
उत्तर:
विदेशी विनिमय दरों में परिवर्तनों को मुद्रा का अपमूल्यन या अवमूल्यन कहते हैं।

प्रश्न 21.
स्थिर विनिमय दर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर से अभिप्राय उस विनिमय दर से जो एक निश्चित स्तर पर रहती है। इसमें मुद्रा की मांग व पूर्ति में परिवर्तन होने पर परिवर्तन नहीं होता है।

प्रश्न 22.
क्या स्थिर विनिमय दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित किया जा सकता है?
उत्तर:
स्थिर विनियिम दर से भुगतान शेष घाटे या अधिशेष को समायोजित नहीं किया जा सकता है।

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प्रश्न 23.
भुगतान शेष के समग्र घाटे (अधिशेष) का अर्थ लिखो।
उत्तर:
आधिकारिक आरक्षित कोष में कमी (वृद्धि) को भुगतान शेष का समग्र घाटा (अधिशेष) कहते हैं।

प्रश्न 24.
भुगतान शेष का मूल वचन (वायदा) क्या है?
उत्तर:
भुगतान शेष का मूल वचन यह है कि मौद्रिक सत्ता भुगतान शेष के किसी घाटे को पूरा करने के लिए उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 25.
एक अर्थव्यवस्था साम्य की अवस्था में कब कही जाती है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था भुगतान शेष के संबंध में सन्तुलन में कही जाती हैं जब इसके चाले खाते तथा पूंजी के गैर आरक्षित कोषों का योग शून्य होता है।

प्रश्न 26.
भुगतान शेष के चालू खाते को सन्तुलित करने की विधि लिखो।
उत्तर:
बिना आरक्षित कोष में परिवर्तन किए अन्तर्राष्ट्रीय उधार से चालू खाते को संतुलित किया जाता है।

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प्रश्न 27.
किन मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
स्वायत्त मदों को रेखा से ऊपर कहते हैं।

प्रश्न 28.
स्वायत्त मदों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
ऐसे विनिमय (लेन-देन) जो भुगतान शेष की स्थिति से स्वतंत्र होते हैं स्वायत्त मदें कहलाती हैं।

प्रश्न 29.
किन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है?
उत्तर:
समायोजन मदों को रेखा से नीचे कहा जाता है।

प्रश्न 30.
आधिकारिका लेन-देन किस श्रेणी में रखे जाते हैं?
उत्तर:
आधिकारिक लेन-देन समायोजन या रेखा से नीचे वाले मंदों में रखे जाते हैं।

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प्रश्न 31.
खुली अर्थव्यस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –

  1. उपभोग
  2. सरकारी व्यय
  3. घरेलू निवेश
  4. शुद्ध निर्यात

प्रश्न 32.
एक बंद अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं के मांग के स्रोत लिखो।
उत्तर:
घरेलू वस्तुओं की मांग के स्रोत –

  1. उपभोग
  2. सरकारी उपभागे
  3. घरेलू निवेश

प्रश्न 33.
उन देशों के नाम लिखो जिन्होंने लोचशील विनिमय दर को अपनाया।
उत्तर:
1970 के दशक के आरंभ में स्विट्जलैंड एवं जापान ने लोचशील विनिमय दर को अपनाया था।

प्रश्न 34.
प्रबंधित तरणशील विनिमय दर का अर्थ लिखो।
उत्तर:
प्रबंधित तरण शील विनिमय दर, स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर का मिश्रण होती है। इस प्रणाली में प्रत्येक अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक विनिमय दर में मामूली परिवर्तन के द्वारा विदेशी मुद्रा को क्रय-विक्रय में हस्तक्षेप कर सकता है।

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प्रश्न 35.
खुली अर्थव्यवस्था के लिए गुणक का सूत्र लिखो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1  खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 2

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था में आयात की मांग के लिए निर्धारक कारक बताइए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में आयात की वस्तुओं की मांग के निर्धारक कारक –

  1. घरेलू आग एवं
  2. विनिमय

घरेलू आय का स्तर जितना ऊँचा होता है आयात की मांग की उतनी ज्यादा होती है। इस प्रकार घरेलू आय तथा आयात की मांग में सीधा संबंध होता है। विनियिम दर और आयात में विपरीत संबंध होता है। ऊंची विनिमय से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाती है। इसलिए ऊँची विनिमय दर आयात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा कम हो जाती है।

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प्रश्न 2.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए राष्ट्रीय आय प्रतिमान को समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यस्था में आर्थिक लेन-देन देश की भौगोलिक सीमा तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि आर्थिक क्रियाओं का विस्तार समूचे विश्व में रहता है। खुली अर्थव्यवस्था निर्यात के लिए घरेलू वस्तुओं की मांग, घरेलू वस्तुओं की मांग अतिरिक्त रूप में बढ़ाती है।

इसके विपरीत घरेलू अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति को बढ़ाती है। इस प्रकार घरेलू अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात से राष्ट्रीय आय प्रतिमान बनता है, संक्षेप में इसे निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y + M = DC + I + G + x
Y = C + I + G + X – M
Y = C + I + G + NX
जहाँ NX शुद्ध निर्यात है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में शुद्ध निर्यात का अर्थ लिखो।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में एक देश कके शेष विश्व को निर्यात एवं अर्थव्यवस्था द्वारा शेष विश्व से आयात के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते हैं। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है तो शुद्ध निर्यात धनात्मक होता है। जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होता है तो शुद्ध निर्यात का मूल्य ऋणात्मक होता है, जब निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य के बराबर होता है तो शुद्ध निर्यात शून्य होता है, शुद्ध निर्यात के मूल्य पर व्यापार शेष निर्भर करता है। इसे निम्नलिखित ढंग से व्यस्त किया जा सकता है –

  1. निर्यात – आयात = धनात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष
  2. निर्यात – आयात = ऋणात्मक शुद्ध निर्यात = व्यापार शेष घाटा
  3. निर्यात – आयात = शून्य निर्यात = सन्तुलित व्यापार शेष

प्रश्न 4.
निर्यात को स्थिर मानकर X = \(\bar { X } \), अपनी अर्थव्यवस्था के लिए आय का निर्धारण करो।
उत्तर:
आयात की मांग अर्थव्यवस्था में घरेलू आय पर निर्भर करती है और आयात की मांग का एक स्वायत्त भाग तथा दूसरा भाग सीमान्त आयात प्रवत्ति पर निर्भर करता है –
M = M + mY
जहाँ M → स्वायत्त आयात मांग एवं m – सीमान्त आयात प्रवृत्ति
अर्थव्यवस्था में आय के स्तर को उपभोग व्यय, निवेश, सरकारी व्यय के साथ आयात-निर्यात की मांग को समायोजित करके साम्य आय को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M – mY)
Y = C – CT + I + G + X – M = A
माना Y = A + CY – MY
Y – CY + mY = A
Y(I – C + m) = A
Y = \(\frac{A}{1-C+M}\)

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प्रश्न 5.
एक बन्द एवं खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय के स्तर गुणक की तुलना करो।
उत्तर:
एक बन्द अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रहते है अतः साम्य आय को गणितीय रूप में निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + G + 1
Y = C + CY – CT + G + 1
Y – Cy = C – CT + G + 1
Y(1 – C) = C – CT + G + 1
Y = \(\frac{C-CT+G+1}{1-C}\) = \(\frac{A}{1-C}\) = (जहाँ A = C – CT + G + I)

एक खुली अर्थव्यवस्था में आर्थिक लेन-देन घरेलू अर्थव्यवस्था तक ही सीमित नहीं रहते हैं बल्कि खुली अर्थव्यवस्था वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन शेष विश्व के साथ भी करती है। खुली अर्थव्यवस्था में साम्य आय प्रतिमान को गणितीय रूप में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –
Y = C + C(Y – T) + I + G + X – (M + mY)
Y = C + CY – CT + I + G + X – M – mY
या Y – CY + mY = C – CT + I + G + X – M
Y (1 – C + M) = C – CT + 1 + G + X – M
Y = \(\frac{A}{1-C+M}\), [∵A = C – CT + I + G + X – M]

दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था में साम्य आय, स्वायत व्यय गुणक तथा स्वायत्त व्यय के गुणनफल के समपन है सीमान्त आयात प्रवृत्ति का मान शून्य से अधिक होता है अत: 1 – C + m का मान 1 – C के मान से अधिक होता है। अतः खुली अर्थव्यवस्था गुणक का मान बन्द अर्थव्यवस्था में गुणक के मान से छोटा होता है।

प्रश्न 6.
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग का स्वायत्त व्यय गुणक पर प्रभाव समझाए।
उत्तर:
निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए वस्तुओं की सामूहिक मांग को बढ़ाती है। बन्द अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग वृद्धि उपभोग, सरकारी व्यय एवं निवेश में वृद्धि के कारण होती है। खुली अर्थव्यवस्था में निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में अतिरिक्त अन्तः क्षेपण को जन्म देती है इसलिए स्वायत्त गुणक में वृद्धि होती है। इसकी गुणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है –
\(\frac{∆Y}{∆X}\) = \(\frac{1}{1-C+M}\)

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प्रश्न 7.
पत्राचार निवेश क्या है? परिसंपत्ति की खरीददारी को क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ क्यों अंकित किया जाता है?
उत्तर:
किसी देश द्वारा विदेशों के अंश पत्रों तथा ऋण पत्रों की खरीददारी को पत्राचार निवेश कहते हैं। इस प्रकार के निवेश से क्रेता का परिसंपत्ति पर नियंत्रण नहीं होता है। परंपरानुसार यदि कोई देश दूसरे देश से परिसंपत्ति की खरीददारी करता है तो इसे क्रेता देश के पूंजी खाते में ऋणात्मक चिन्ह के साथ दर्शाया जाता है क्योंकि इस लेन-देन में विदेशी मुद्रा का प्रवाह देश से बाहर की ओर होता है। यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे देश की तरफ होता है तो इसे ऋणात्मक चिह्न दिया जाता है। इसके विपरीत यदि विदेशी मुद्रा का प्रवाह दूसरे से उस देश की ओर होता है तो उसे धनात्मक चिन्ह से दर्शाया जाता है।

प्रश्न 8.
आयात में वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव को जन्म देती है। समझाइए।
उत्तर:
उपभोग पर प्रेरित उपभोग का कुछ भाग विदेशी वस्तुओं की मांग पर हस्तांतरित हो जाता है। MPC में वृद्धि का मान धनात्मक या शून्य से अधिक होता है। अतः घरेलू वस्तुओं की मांग व घरेलू आय प्ररेति प्रभाव कम हो जाएगा। इसीलिए आयात में अतिरिक्त वृद्धि घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में अतिरिक्त स्राव का कारण बनता है। गुणक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में घरेलू आय का अधिक स्राव होता है। व्यय गुणक का मान कम हो जाता है –
\(\frac{∆Y}{∆M}\) = \(\frac{1}{1-C+M}\)

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प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग वक्र बन्द अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक चपटा होता है। समझाए।
उत्तर:
एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के योग को सामूहिक मांग कहते हैं।
AD = C + I + G

एक खुली अर्थव्यवस्था में उपभोग, निवेश एवं सरकारी व्यय के अलावा निर्यात व आयात भी सामूहिक मांग को प्रभावित करते हैं। आयात के लिए विदेशी वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग कम होती है तथा निर्यात के लिए वस्तुओं की मांग से घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। खुली अर्थव्यवस्था के सामूहिक मांग को निम्नलिखित सूत्र से दर्शाया जाता है –
AA = C + I + G + X – M

AA वक्र तथा AD वक्र के बीच की दूरी आयात की मात्रा की समान होती है। दोनों रेखाओं के बीच दूरी, आयात की मांग बढ़ने से अधिक हो जाती है। आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की घरेलू मांग घटती है जबकि निर्यात के लए वस्तुओं की मांग आय बढ़ने पर नहीं बढ़ती है। इसलिए खुली अर्थव्यवस्था का सामूहिक मांग वक्र AA बन्द अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग AD से चपटा या कम ढालू होता है। दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लिए सामूहिक मांग वक्र नीचे चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 3

प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव बताइए।
उत्तर:
खुली अर्थव्यवस्था के दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में जितना अधिक खुलापन होता है गुणक का मान उतना कम होता है।
  2. अर्थव्यवस्था जितनी ज्यादा खुली होती है व्यापार शेष उतना ज्यादा घाटे वाला होता है।

खुली अर्थव्यवस्था में सरकारी व्यय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को जन्म देती है। खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक का प्रभाव उत्पाद व आय पर कम होता है। इस प्रकार अर्थव्यव्था का अधिक खुलापन अर्थव्यवस्था के लिए कम लाभ प्रद या कम आकर्षक होता है।

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प्रश्न 11.
शुद्ध निर्यात की आय के फलन के रूप में समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि के लाए एक अर्थव्यवस्था के निर्यात मूल्य एवं आयात मूल्य के अन्तर को शुद्ध निर्यात कहते है। शुद्ध निर्यात घरेलू आय का घटता फलन है। घरेलू आय बढ़ने पर निर्यात मूल्य पर प्रभाव नहीं पढ़ता है लेकिन आयात मूल्य में बढ़ोतरी होती है। दूसरे शब्दों में आय बढ़ने व्यापार शेष घाटे में बढोतरी होती है। इसे निम्नलिखित चित्र दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1  खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र img 4

प्रश्न 12.
उत्पाद में वृद्धि व्यापार शेष घाटे के द्वार है? अथवा व्यापार शेष घाटा उत्पाद में वृद्धि के गलियारे से होकर गुजरता है। समझाइए।
उत्तर:
घरेलू उत्पाद अथवा घरेलू आय में वृद्धि व्यापार शेष घाटे को बढ़ाती है। व्यापार शेष में घाटा अथवा छोटा (कम) गुणक दोनों के उदय का मूल कारण एक है। घरेलू आय बढ़ने पर घरेलू अर्थव्यवस्था में घरेलू वस्तुओं की मांग कम हो जाती है और घरेलू अर्थव्यवस्था में गुणक प्रभाव के कारण आयात-वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है आयात वस्तुओं की मांग में परिवर्तन स्वायत्त प्रभाव व प्रेरित प्रभाव के सामूहिक प्रभाव से आयात वस्तुओं की मांग आय से प्रभावित होती है, इस कारण आय बढ़ने पर व्यापार शेष घाटे में बढ़ोतरी होती है अथवा व्यापार शेष घाटे में वृद्धि होती है इस प्रभाव को निम्नलिखित चित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 part - 1 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र  img 5

प्रश्न 13.
स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में होता मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई का काम नहीं करती है। टिप्पणी करो।
उत्तर:
जब वस्तुओं का प्रवाह अन्तर्राष्ट्रीय सीमाओं में होता है तो मुद्रा का प्रवाह, वस्तुओं के प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अकेली मुद्रा से विनिमय कार्य नहीं होता है। अतः विदेशी आर्थिक एजेन्ट ऐसी किसी मुद्रा को स्वीकार नहीं करते हैं जिसकी क्रय शक्ति में स्थिरता न हो। इसलिए सरकार समूचे विश्व को मुद्रा की क्रय शक्ति की स्थिरता का दायित्व लेने का विश्वास दिलाती है। अतः स्थायी क्रय शक्ति के विश्वास के अभाव में कोई भी मुद्रा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विनिमय का माध्यम अथवा लेखे की इकाई नहीं बन सकती है।

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प्रश्न 14.
किस प्रकार से एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन चयन व्यापक बनाता है?
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था का दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ लेन-देन तीन प्रकार से चयन को व्यापक बनाता है –

  1. उपभोक्ताओं एवं उत्पादकों को घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं में चयन का अधिक अवसर प्राप्त होता है। इससे वस्तु बाजार का आकार अधिक व्यापक हो जाता है।
  2. निवेशकों को घरेलू एवं विदेशी पूंजी बाजारों में निवेश करने के लिए अधिक अवसर प्राप्त होते हैं। इससे अनेक पूंजी बाजार आपस में जुड़कर वृहत्त पूंजी बाजार को जन्म देते हैं।
  3. फर्म उत्पादन करने के लिए सर्वोत्तम स्थिति का चयन कर सकती है। उत्पादन साधनों विशेष रूप से श्रमिकों को कम करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प चुनने के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 15.
विदेशी व्यापार से अर्थव्यवस्था की सामूहिक मांग किस प्रकार से प्रभावित होती है?
उत्तर:
विदेशी व्यापार एक अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग को दो प्रकार से प्रभावित करता है –

  1. जब एक देश के निवासी विदेशों से वस्तुओं को खरीदते हैं तो घरेलू आय के चक्रीय प्रवाह में से स्राव होता है इससे उस अर्थव्यवस्था में आय का स्तर गिरता है और अर्थव्यवस्था में सामूहिक मांग का स्तर कम हो जाता है।
  2. जब एक देश निवासी उत्पादक वस्तुओं को विदेशों में बेचते हैं तो इससे आय के चक्रीय प्रवाह में अन्तःक्षेपण होता है अर्थात् आय में बढ़ोतरी होती है। सामूहिक मांग का स्तर निर्यात के कारण बढ़ जाता है।

प्रश्न 16.
आय एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
जब घरेलू आय बढ़ती है तो उपभोक्ताओं का व्यय बढ़ जाता है। घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की मांग बढ़ने के साथ-साथ आयातित वस्तुओं या विदेशी वस्तुओं की मांग में भी वृद्धि होती है। अर्थात् विदेशी वस्तुओं की खरीद पर व्यय बढ़ जाता है। विदेशी वस्तुओं की मांग में वृद्धि होने पर विदेशी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर खिसक जाता है और घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन हो जाता है।

इसके विपरीत यदि विदेशी अर्थव्यवस्थाओं की आय बढ़ती है तो घरेलू अर्थव्यवस्था की वस्तुओं की वस्तुओं का मांग वक्र अन्तर्राष्ट्रीय बाजार मे दायीं ओर खिसक जायेगा इससे घरेलू मुद्रा का अपमूल्यन होगा। अन्य बाते समान रहने पर जिस देश में वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ती है उस देश की मुद्रा का अवमूल्यन होता है क्योंकि ऐसे देश में निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से अधिक होता है। इस देश में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र पूर्ति की तुलना में ज्यादा दायीं ओर खिसक जाता है।

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प्रश्न 17.
ब्याज दर एवं विनिमय दर में संबंध लिखिए।
उत्तर:
अल्पकाल में विनिमय दर निर्धारण में ब्याज दर की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। विनिमय दर में चलन ब्याज दरों का अन्तर होता है। बैंकों के कोष, बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियाँ, धनी व्यक्ति ऊंची ब्याज दर की तलाश में पूरे विश्व में घूमते हैं। जिन देशों में ब्याज दर कम होती है उनकी मुद्रा की मांग वक्र बायीं ओर तथा पूर्ति वक्र दायीं ओर खिसक जाता है। उपरोक्त ढंग से मांग व पूर्ति में खिसकाव से मुद्रा का अवमूल्यन होता है। इसके विपरीत जिन देशों में ब्याज दर ऊंची पायी जाती है उनकी मुद्रा का मांग वक्र दायीं ओर तथा पूर्ति वक्र बायीं ओर खिसकता है वहाँ मुद्रा अपमूल्यन होता है।

प्रश्न 18.
सट्टा उद्देश्य एवं विनिमय दर में संबंध लिखो।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार विनियिम दर निर्यात व आयात के लिए वस्तुओं की मांग व पूर्ति की शक्तियों पर निर्भर करने के साथ-साथ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पर भी निर्भर करती है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग मुद्रा के अपमूल्यन से होने वाले संभावित लाभ पर निर्भर करती है। मुद्रा अपमूल्यन से जितने अधिक लाभ की संभावना होती है उतनी अधिक मात्रा में मुद्रा की मांग की जाती है विनिमय दर ऊँची होती है। इसके विपरीत मुद्रा के अवमूल्यन से होने वाली हानि की स्थिति में मुद्रा की मांग कम की जाती है और विनिमय दर नीची पायी जाती है।

प्रश्न 19.
एक मुद्रा की साथ को प्रभावित करने वाले कथनों को बताइए।
उत्तर:
एक मुद्रा की साख कथनों से निम्न प्रकार से प्रभावित होती है –

1. असीमित रूप से निः
शुल्क परिवर्तनीयता का गुण। मुद्रा के परिवर्तन की कीमत जिस मुद्रा में अरिवर्तनीयता का गुण जितना अधिक एवे कीमत स्थिरता का दावा पेश किया जायेगा उस मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा होती है। इसके विपरीत मुद्रा में परिर्वनीयता का गुण जितना कम होगा और कीमत स्थिरता का कमजोर दावा पेश किया जायेगा मुद्रा की साख उतनी ही ज्यादा कमजोर होगी।

2. अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सत्ता (पद्धति) जो अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन में स्थिरता का आश्वासन दे।

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प्रश्न 20.
लोचशील विनिमय दर को समझाए।
उत्तर:
वह विनिमय दर जो विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन के आधार पर तय की जाती है उसे लोचशील विनिमय दर कहते हैं। लोचशील विनिमय दर विदेशी बाजार में मुद्रा की मांग अथवा आपूर्ति अथवा दोनों में परिवर्तन होने पर बदल जाती है। लोचशील विनिमय दर दो प्रकार की होती है –

  1. स्वतन्त्र लोचशील
  2. प्रबंधित लोचशील

स्वतन्त्र लोचशील विनिमय दर पूरी तरह मुद्रा की मांग व आपूर्ति की शक्तियों के आधार पर तय होती है केन्द्रीय बैंक इसके निर्धारण में कोई हस्तक्षेप नहीं करता है जबकि प्रबन्धित लोचशील विनिमय दर को प्रभावित करने के लिए केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का क्रय-विक्रय करता है।

प्रश्न 21.
स्थिर और नम्य विनिमय दरों में भेद समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश की सरकार अपनी विनिमय दर की घोषणा करती है। यह दर स्थिर रखी जाती है। इस दर में होने वाले मामूली परिवर्तन भी अर्थव्यवस्था में सहनीय नहीं होते हैं।

नम्य विनिमय दरः
यदि विनिमय की दर बाजार में आपूर्ति और मांग के सन्तुलन के द्वारा तय होती है तो इसे नम्य विनिमय दर कहते हैं। नम्य विनिमय दर का मान बदलता रहता है।

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प्रश्न 22.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनयिम दर सरकार द्वारा तय की जाती है। अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक इस विनिमय दर का निर्धारण करता है। सामान्यतः स्थिर विनिमय दर में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए निश्चित सीमाओं के बीच में परिवर्तन कर सकता है। केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्राओं का कोष स्थापित करता है इसका प्रयोग विनिमय दर को स्थिर बनाए रखने के लिए किया जाता है।

स्थिर विनयिम दर देश की स्टैण्डर्ड मुद्रा सोने (Gold) की मात्रा पर निर्भर करती है। देसरे शब्दो में, स्थिर विनिमय दर का निर्धारण मुद्रा के सरकार द्वारा घोषित सोने के मूल्य पर निर्भर करता है। माना भारत की सरकार ने एक रूपये की कीमत 1 ग्राम सोना तथा इंग्लैण्ड की सरकार ने एक पौंड कीमत 10 ग्राम सोना तय की तो पौण्ड की विनिमय दर 10 रूपया होती तथा रूपये विनिमय दर। 110 पौंड होगी। 1977 के बाद इस विनिमय दर का प्रचलन अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्यों ने समाप्त कर दिया है।

प्रश्न 23.
विनिमय दर तथा दीर्घकाल में संबंध लिखो।
उत्तर:
समयावधि जितनी अधिक होती है उतने ही व्यापार प्रतिबन्ध जैसे प्रशुल्क, कोटा, विनयम दर आदि समायोजित हो जाते हैं। विभिन्न मुद्राओं में मापी जाने वाले उत्पाद की कीमत समान होनी चाहिए लेकिन लेन-देन का स्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है। इसलिए लम्बी समयावधि में दो देशों के बीच विनिमय दर दो देशों में कीमत स्तरों के आधार पर समायोजित होती है। इस प्रकार देशों में विनिमय की दर दो देशों में कीमतों में अन्तर के आधार पर निर्धारित होती है।

प्रश्न 24.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति को समझाइए।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष की अवधि में ऐ देश को समस्त लेनदारियों के बदले जितनी मुद्रा प्राप्त होती हैं उसे विदेशी मुद्रा की पूर्ति कहते हैं।
विदेशी विनिमय की पूर्ति को निम्नलिखित बातें प्रभावित करती हैं –

  1. निर्यात दृश्य व अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती हैं।
  2. निर्यात दृश्य उस देश में निवेश।
  3. विदेशों से प्राप्त हस्तातरण भुगतान।

विदेशी विनिमय की दर तथा आपूर्ति में सीधा संबंध होता है। ऊंची विनिमय दर पर विदेशी मुद्रा की अधिक आपूर्ति होती हैं।

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प्रश्न 25.
विदेशी मुद्रा की मांग को समझाएं। यह विनिमय दर को किस प्रकार प्रभावित करती है।
उत्तर:
एक लेखा वर्ष के दौरान एक देश को समस्त विदेशी दायित्वों का निपटारा करने के लिए जितनी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है उसे विदेशी मुद्रा की मांग कहते हैं। एक देश निम्नलिखित कार्यों के लिए विदेशी मुद्रा की मांग करता है –

  1. आयात का भुगतान करने के लिए दृश्य एवं अदृश्य सभी मदें शामिल की जाती है।
  2. विदेशी अल्पकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
  3. विदेशी दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान करने के लिए।
  4. शेष विश्व में निवेश करने के लिए।
  5. विदेशों को उपहार या आर्थिक सहायता देने के लिए। विदेशी मुद्रा की मांग व विनिमय दर में उल्टा संबंध है। विनिमय दर ऊँची हाने पर विदेशी मुद्रा की मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 26.
भारतीय नागरिकों द्वारा विदेशों में खर्च विदेशी मुद्रा बाजार भारतीय रूपयों की आपूर्ति के समान है। समझाइए।
उत्तर:
यदि भारत के लोग विदेशों से वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करते हैं तो भुगतान करने के लिए भारत के लोगों के पास रूपये होते हैं। परन्तु विदेशी विक्रेता अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अपने देश की मुद्रा में स्वीकार करते हैं। अतः भारत के लोग भारतीय मुद्रा रूपये से विदेशी मुद्रा प्राप्त करते हैं। विदेशी मुद्रा के समान भारत लोग रूपये की आपूर्ति विदेशी मुद्रा बाजार को करते हैं। इस प्रकार भारत के लोग का खर्च विदेशी मुद्रा बाजार को भारतीय रूपयों की आपूर्ति होती है। माना एक भारतीय पर्यटक अमेरिका में बीमार पड़ने पर चिकित्सक की सेवाएं प्राप्त करता है। चिकित्सक की फीस 20 डालर प्राप्त करने के विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये देगा। अतः विदेशी मुद्रा बाजार को 800 रूपये की आपूर्ति होती है।

प्रश्न 27.
क्रय शक्ति समता सिद्धांत की तीन आलोचनाएं लिखें।
उत्तर:

  1. यह सिद्धांत कीमत सूचकांक पर आधारित है। जबकि कीमत सूचकांक अनिश्चित एवं अविश्वसनीय होते हैं।
  2. अदृश्य मदों की उपेक्षाः यह सिद्धांत यह मानता है कि विनिमय दर केवल वस्तुओं के आयात निर्यात से प्रभावित होती है। सेवाएं प्रभावित नहीं करती हैं जबकि व्यवहार में यह बात सही नहीं है।
  3. ऊपरी लागतों की उपेक्षा: इस सिद्धांत में परिवहन व्यय की अनदेखी की गई है जबकि परिवहन व्यय एक देश में वस्तुओं की कीमत कम ज्यादा कर सकता है।

प्रश्न 28.
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था पर चर्चा करें।
उत्तर:
विस्तृत सीमा पट्टी व्यवस्था में देश की सरकार अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। परन्तु इस व्यवस्था के स्थिर घोषित विनिमय दर के दोनों ओर 10 प्रतिशत उतार-चढाव मान होने चाहिए। ससे सदस्य देश अपने भुगतान शेष के समजन का काम आसानी से कर सकते हैं। उहाहरण के लिए यदि किसी देश का भुगतान शेष घाटे का है तो इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उस देश को अपनी मुद्धा की दर 10 प्रतिशत तक घटाने को छूट होनी चाहिए। मुद्रा की दर कम होने पर दूसरे देशों के लिए उस देश की वस्तुएं एव सेवाएं सस्ती हो जाती हैं जिससे विदेशों में उस देश की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती हैं और उस देश को विदेशी मुद्रा पहले से ज्यादा प्राप्त होती है।

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प्रश्न 29.
प्रबंधित तरणशीलता की अवधारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबंधित तरणशीलता स्थिर एवं नम्य विनिमय दर के बीच की व्यवस्था है। इस व्यवस्था में विनिमय दर को स्वतंत्र रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी यदा कदा हस्तक्षेप करते हैं। मौद्रिक अधिकारी अधिकारिक रूप से बनाए गए नियमों एवं सूत्रों के अन्तर्गत ही हस्तक्षेप कर सकते हैं। अधिकारी विनिमय दर तय नहीं करते हैं। विनिमय दर के उतार-चढ़ाव की कोई सीमा तय नहीं की जाती है। हस्तक्षेप की आवश्यकता महसूस होने पर मौद्रिक अधिकारी समन्वय के लिए उचित कदम उठा सकते हैं। नियमों एवं मार्गदर्शकों के अभाव में यह व्यवस्था गन्दी तरणशीलता बन जाती है।

प्रश्न 30.
चालू खाते व पूंजीगत खाते में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
चालू खाता:

  1. भुगतान शेष के चालू खाते में वस्तुओं व सेवाओं के निर्यात व आयात शामिल करते हैं।
  2. भुगतान शेष के चालू खाते के शेष का एक देश की आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश का चालू खाते का शेष उस देश के पत्र में होता हैं तो उस देश की राष्ट्रीय आय बढ़ती है।

पूंजी खाता:

  1. भुगतान शेष के पूंजी खातों में विदेशी ऋणों का लेन-देन ऋणों का भुगतान व प्राप्तियों, बैंकिग पूंजी प्रवाह आदि को दर्शाते हैं।
  2. भुगतान शेष का देश की राष्ट्रीय आय पर प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं पड़ता है ये केवल परसिम्पतियों की मात्रा को दर्शाते हैं।

प्रश्न 31.
लोग विदेशी मुद्रा की मांग किसलिए करते हैं?
उत्तर:
लोग विदेशी मुद्रा की मांग निम्नाकिंत उद्देश्यों की पूर्ति के लिए करते हैं –

  1. दूसरे देशों से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने के लिए।
  2. विदेशों में उपहार भेजने के लिए।
  3. दूसरे णों का लेन-देन ऋणों का भाव देश में भौतिक एवं वित्तीय परिसंपत्तियों को क्रय करने के लिए।
  4. विदेशी मुद्राओं के मूल्य के संदर्भ में व्यापारिक दृष्टि से सट्टेबाजी के लिए।
  5. विदेशों में पर्यटन के लिए।
  6. विदेशों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाएं प्रापत करने के उद्देश्य के लिए आदि।

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प्रश्न 32.
भुगतान शेष की संरचना के पूंजी खाते को समझाएं।
उत्तर:
पूंजी खातों में दीर्घकालीन पूंजी के लेन-देन को दर्शाया जाता है। इस खाते में निजी व सरकारी पूंजी लेन-देन, बैंकिंग पूंजी प्रवाह व अन्य वित्तीय विनिमय दर्शाए जाते हैं। पूंजी खाते की मदें: इस खाते की प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

1. सरकारी पूंजी का विनिमय:
इसमें सरकार द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण तथा विदेशों को दिए गए ऋणों के लेन-देन, ऋणों के भुगतान तथा ऋणों की प्राप्तियों के अलावा विदेशी मुद्रा भण्डार, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भण्डार, विश्व मुद्रा कोष के लेन-देन आदि को दर्शाया जाता है।

2. बैंकिग पूंजी:
बैंकिग पूंजी प्रवाह में वाणिज्य बैंकों तथा सहकारी बैंकों की विदेशी लेनदारियों एवं देनदारियों को दर्शाया जाता है। इसमें केन्द्रीय बैंक के पूंजी प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं।

3. निजी ऋण:
इसमें दीर्घकालीन निजी पूंजी में विदेशी निवेश ऋण, विदेशी जमा आदि को शामिल करते हैं। प्रत्यक्ष पूंजीगत वस्तुओं का आयात व निर्यात प्रत्यक्ष रूप से विदेशी निवेश में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 33.
इनकी परिभाषा करें:

  1. NEER
  2. REER
  3. Rer

उत्तर:
1. NEER(मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर):
मुद्रा की औसत सापेक्ष पर कीमत स्तर के परिवर्तन के प्रभावों को खत्म नहीं करने का प्रयास नहीं किया जाता है अर्थात् मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति कीमत स्तर के परिवर्तन प्रभावों से प्रभावित होती है इसिलए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर कहते हैं।

2. REER:
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर इससे वास्तविक विनिमय की गणना की जाती है।
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3. RER:
स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर को (RER) कहते है। इसमें कीमत परिवर्तन का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
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प्रश्न 34.
विदेशी मुद्रा के –

  1. हाजिर बाजार तथा
  2. वायदा बाजार क्या होते हैं?

उत्तर:
1. हाजिर बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन दैनिक आधार पर होते हैं तो ऐसे बाजार को हाजिर बाजार या चालू बाजार कहते हैं। इस बाजार में विदेशी मुद्रा की तात्कालिक दरों पर विनिमय होता है।

2. वायदा बाजार:
विदेशी विनिमय बाजार में यदि लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है तो इसे वायदा बाजार कहते हैं। इस बाजार में भविष्य में निश्चित तिथि पूरी होने पर लेन-देन का काम होता है।

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प्रश्न 35.
विदेशी विनिमय बाजार में चलित सीमाबन्ध व्यवस्था की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
चलित सीमा बन्ध व्यवस्था स्थिर एवं नम्य व्यवस्थाओं के बीच की व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था में एक देश की सरकार विनिमय दर की घोषणा करने के बाद उसे दोनों ओर 1 प्रतिशत परिवर्तन कर सकती है अथात् विनिमय दर को 1 प्रतिशत बढ़ा भी सकती है और घटा भी सकती है। परन्तु देश के विनिमय भण्डरों की समीक्षा के कारण निश्चित विनिमय दर में समय-समय पर संशोधन किए जाते हैं। संशोधन करते वक्त मुद्रा की आपूर्ति व कीमतों में उतार-चढ़ाव का भी ध्यान रखा जाता है। देश के मौद्रिक अधिकारी उच्चतम एवं न्यूनतम सीमाओं के माध्यम से वित्तीय अनुशासन रख सकते हैं।

प्रश्न 36.
क्रोलिंग पेग और मैनेजड फ्लोटिंग समझाइए।
उत्तर:
क्रोलिग पेग:
(स्थिर विनिमय दर) वह योजना जिसके द्वारा एक देश अपनी मुद्रा के सम मूल्य (Parity Vaiue) की घोषणा करता है और सम मूल्य में बहुत कम उच्चावन 1 प्रतिशत का समायोजन करता है उसे क्रोलिग पेग कहते हैं। हालाकि सम मूल्य में समायोजन देश के विदेशी भण्डार के आधार पर बहुत कम मात्रा में निरन्तर समायोजित किये जाते हैं। सम मूल्य में परिवर्तन मुद्रा की आपूर्ति, कीमत व विनिमय दर के आधार पर भी किए जाते हैं।

प्रबंधित लोचशल (मैनेजड फ्लोटिंग):
स्थिर व परिवर्तनशील विनिमय दर के प्रबन्धन में यह अंतिम और विकसित विधि है। इस व्यवस्था में विनिमय दर की बाधाओं को मुद्रा अधिकारी बातचीत के जरिए ठीक कर देते हैं। दूसरे शब्दों में इस व्यवस्था में सम मूल्य पूर्व निर्धारित नहीं होता है, उच्चावन की घोषणा का समय भी नहीं होता, मुद्रा अधिकारी स्थिति को भांप कर हस्तक्षेप करते हैं। हस्तक्षेप दूसरे देशों के साथ ताल मेल के आधार पर भी हो सकता है। लेकिन इस व्यवस्था में विनिमय दर से संबंधित दिशा निर्देशों की औपचारिक घोषणा की जाती है। दिशा निर्देशों के अभाव में यह अभिशाप भी सिद्ध हो सकता है।

प्रश्न 37.
भुगतान शेष तथा राष्ट्रीय आय लेखों के बीच संबंध की व्याख्या करें।
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर दो प्रकार से भुगतान प्राप्त करने एवं भुगतान प्राप्त करने की जरूरत होती है। एक उत्पादन एवं बिक्री तथा दो, वित्तीय ओर वास्तविक परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय। खुली अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन पर कुल व्यय में निजी उपभोग, सरकारी अन्तिम उपभोग, निवेश के अलावा विदेशियों द्वारा आयात पर व्यय को शामिल किया जाता है।

राष्ट्रीय आय = उपभोग + सरकारी उपभोग + निर्यात
सृजित आय का प्रयोग, बचत, कर भुगतान एवं आयात पर किया जाता है।
राष्ट्रीय आया = उपभोग + बचत + कर + आयात।

इस प्रकार भुगतान शेष की मदें निर्यात एवं आयात राष्ट्रीय आय अथवा राष्ट्रीय व्यय को प्रभावित करते हैं। अतः भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय लेखें परस्पर संबंधित हैं। इसके अतिरिक्त खुली अर्थव्यवस्थाएं अदृश्य मदों का भी लेन-देन करती हैं। विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय राष्ट्रीय आय का अंग हैं अर्थात् भुगतान शेष की अदृश्य मदें भी राष्ट्रीय लेखा से संबंध रखती हैं। भुगतान शेष एवं राष्ट्रीय आय दोनों के लेखांकन की पद्धति द्विअंकन प्रणाली है।

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प्रश्न 38.
भुगतान शेष में असंतुलन के कारण बताएं।
उत्तर:
भुगतान शेष में असंतुलन के निम्नलिखित कारण है –
1. एक देश का वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात, आयात से कम ज्यादा होने पर। यदि निर्यात का मूल्य आयात से अधिक होगा तो भुगतान शेष पक्ष का होगा लेकिन यदि निर्यात का मूल्य आयात के मूल्य से कम होगा तो भुगतान शेष प्रतिकूल होता है।

2. एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण भुगतान प्राप्ति एवं व्यय की असमानता। यदि देश को अन्तरण भुगतान प्राप्त होते हैं तो जमा में और यदि देश अन्तरण भुगतान देता है तो ये नामें में दर्शाए जाते हैं। यदि एक देश को विदेशों से प्राप्त अन्तरण ज्यादा होते हैं। अन्तरण भुगतान व्यय प्राप्ति की तुलना में ज्यादा होते हैं तो भुगतान शेष पक्ष का होता है। समष्टीय आधार पर भुगतान शेष संतुलन में होता है। भुगतान शेष में असंतुलन चालू खातें एवं अन्तरण खातों के असन्तुलन की वजह से होता है।

प्रश्न 39.
इन खातों के घटकों की व्याख्या करें –

  1. चालू खाता।
  2. पूंजी खाता।

उत्तर:
1. चालू खाता:
चालू खाते के घटक निम्नलिखित है –

  • वस्तुओं का आयात-निर्यात।
  • सेवाओं का आयात-निर्यात।
  • एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं वयय।

वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात एवं विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति को ‘जमा’ में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को ‘नामे’ में दर्शाया जाता है।

2. पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  • निजी लेन-देन
  • सरकारी लेन-देन
  • प्रत्यक्ष निवेश
  • पत्राचार निवेश

एक देश द्वारा विदेशों से परिसंपत्ति की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसपत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है।

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प्रश्न 40.
भुगतान सन्तुलन की संरचना में शामिल ‘चालू खाते’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के चालू खाते में अल्पकालीन वास्तविक सौदों को दर्शाया जाता है।

चालू खाते की मदें:
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के के अनुसार चालू खाते में निम्नलिखित मदों को दर्शाया जाता है –

1. दृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सभी भौतिक वस्तुओं को शामिल किया जाता है।

2. अदृश्य मदें:
इसमें एक देश द्वारा निर्यात व आयात की जाने वाली सेवाओं को शामिल करते हैं। जैसे: व्यक्तियों द्वारा सेवाओं का विनिमय (सेवाओं का निर्यात व आयात
व्यापारिक उपक्रमों की सेवाएं –

  • बीमा व बैकिंग
  • परिवहन सेवाएं
  • सरकारी लेन-देन
  • निवेश/पूंजी की आय
  • हस्तातरण भुगतान
  • विशेषज्ञों की सेवाएं आदि

चालू खाते का भुगतान शेष = निर्यात (दृश्य + अदृश्य मदें) – आयात (दृश्य + अदृश्य)

प्रश्न 41.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापार शेष:

  1. व्यापार शेष विदेशी विनिमय की एक संकुचित अवधारण हैं।
  2. इसमें निर्यात व आयात की केवल दृश्य मदों को शामिल करते हैं।
  3. व्यापार शेष संतुलित एवं असंतुलित दोनों तरह का हो सकता हैं।
  4. व्यापार शेष विदेशी आर्थिक विश्लेषण के लिए पूरी जानकारी नहीं देता है।

भुगतान शेष:

  1. भुगतान शेष विदेशी विनिमय की विस्तृत अवधारणा है।
  2. भुगतान शेष में दृश्य एवं अदृश्य सभी प्रकार की मदों को शामिल करते हैं।
  3. भुगतान शेष सदैव संतुलन शेष में हो सकता है।
  4. भुगतान शेष विदेशी लेनदारियों व देनदारियों के आर्थिक विश्लेषण के लिए पर्याप्त जानकारी देता है।

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प्रश्न 42.
भुगतान शेष के खातों का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
भुगतान शेष के खातों का निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. भुगतान शेष के खाते एक देश की विदेशों से सभी लेनदारियों तथा उस देश की विदेशों को देनदारियों का विवरण प्रदान करते हैं। जिससे किसी भी विनिमय के गलत दिशा में जाने पर उसे रोका जा सकता है।
  2. इन खातों से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक लेन-देन की कमजोरियों की जानकारी प्राप्त होती है।
  3. इन खातों के आधार पर एक देश भावी आर्थिक नीति का निर्माण कर सकता है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में होने वाले लाभ व हानि की भी जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
किसी देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा विदेशी सुरक्षित निधियों का परिवर्तन भुगतान शेष खाते को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर:
यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक सुरक्षित निधियों में वृद्धि या किसी करता है तो इसे अधिकारिक विदेशी परिसंपत्तियों में परिवर्तन कहते हैं। यदि किसी देश का केन्द्रीय बैंक विदेशी मुद्रा का सुरक्षित भण्डार बढ़ाता है तो दूसरे देश के भुगतान शेष खाते के धनात्मक पक्ष (जमा पक्ष) में प्रविष्टि होगी क्योंकि दूसरे देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ेगा या उस देश को विदेशी मुद्रा प्राप्त होगी।

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प्रश्न 44.
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
विशेष आहरण अधिकार व्यवस्था के अन्तर्गत एक देश अपनी मुद्रा के बदले एक तय सीमा के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से जरूरी विदेशी मुद्राएं प्राप्त कर सकता है। किसी देश के निधि कोष के परिवर्तन उस देश के भुगतान शेष खाते के बाकी सभी घटकों के परिणामस्वरूप होते हैं। इन कोषों की कमी से विदेशी में व्यय करने की जरूरत पूरी होती है। कमियां उत्पन्न करने से विदेशी मुद्रा का प्रवाह उस देश की ओर होता है अतः भुगतान शेष खाते के जमा पक्ष में प्रविष्टि पाते हैं। यदि नामे पक्ष की ओर दर्शाया जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
किसी अर्थव्यवस्था के लिए भुगतान संतुलन का महत्त्व समझाइए।
उत्तर:
आर्थिक दृष्टि से किसी देश के लिए भुगतान संतुलन का बड़ा महत्त्व होता है। इस बात की पुष्टि निम्न तथ्यों से हो जाती है –
1. आर्थिक स्थिति का सूचक:
भूगतान संतुलन अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनेक पक्षों को उजागर करता है। जिन देशों में भुगतान संतुलन की स्थिति होती है वहाँ इसे ठीक माना जाता है जबकि प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में अर्थव्यवस्था को ठीक नहीं समझा जाता।

2. विदेशी निर्भरता का सूचक:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि कोई देश किस सीमा तक विदेशों पर निर्भर है। किसी देश के भुगतान शेष में प्रतिकूलता जितनी अधिक होती है उसकी अन्य देशों पर निर्भरता उतनी ही ज्यादा होती है।

3. शेष विश्व प्राप्तियों एवं भुगतानों का ज्ञान:
शेष विश्व को दिए गए कुल भुगतानों व प्राप्तियों का ज्ञान भुगतान संतुलन खाते लग जाता है।

4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की स्थिति का सूचक:
भुगतान संतुलन के अध्ययन से देश के विदेशी व्यापार की स्थिति का ज्ञान होता है।

5. आर्थिक नीतियों का निर्धारण:
भुगतान संतुलन राष्ट्रीय आर्थिक नीति के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। अनेक बार भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही देश की आर्थिक नीतियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए जाते हैं।

6. विदेशी निवेश का ज्ञान:
भुगतान संतुलन से पता चल जाता है कि विदेशियों द्वारा किसी देश में किए गए निवेश से उनको कितनी आय प्राप्त हुई है और इसी प्रकार किसी देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से क्या लाभ हो रहा है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के लिए सूचक:
भुगतान संतुलन की स्थिति के आधार पर ही अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं जैसे-विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि किसी देश के लिए सहायता राशि को तय करती है।

8. भुगतान शेष के खातों की सहायता से हम यह जान सकते हैं कि संसार के साथ लेन-देन का देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है और वह उन्हें कैसे प्रभावित करती है।

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प्रश्न 2.
भुगतान शेष के असन्तुलन का क्या अर्थ है? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
समुचित भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है। भुगतान शेष से अभिप्राय एक देश की विदेशों से समस्त लेनदारियों व विदेशों के प्रति समस्त दायित्त्वों के अन्तर से है। तुलन पत्र (Balance Sheet) में समस्त लेनदारियां व देनदारियां बराबर दर्शायी जाती है। भुगतान शेष के असंतुलन को समझने के लिए भुगतान शेष में शामिल खातों को जानना पड़ेगा। भुगतान शेष में शामिल खाते निम्नलिखित हैं –

  1. चालू खाता-चालू खाते का सन्तुलन = निर्यात (दृश्य + अदृश्य) आयात (दृश्य + अदृश्य)।
  2. पूंजी खाता पूंजी खाते का सन्तुलन = स्वर्ण आदान – प्रदान + दीर्घकालीन ऋणों का आदान – प्रदान अल्पकालीन ऋणों का आदान – प्रदान

उपरोक्त दोनों खातों में समग्र रूप से सन्तुलन रहता है। परन्तु चालू खाते में सदैव सन्तुलन होना जरूरी नहीं है। जब किसी देश के चालू खाते में असंतुलन होता है तो उसे पूंजी खाते से पूरा किया जाता है। इसे पूरा करने के लिए कर्को देश आरक्षित स्वर्ण भण्डारों व विदेशी आरक्षित मुद्रा भण्डारों में परिवर्तन कर सकता है। जैसे भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए वह अपने उक्त भण्डारों में कमी कर सकता है।

भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए एक देश विदेशों से अल्पकालीन व दीर्घकालीन ऋण भी ले सकता है। परन्तु भुगतान शेष के घाटे को पूरा करने के लिए उपरोक्त उपाय हमेशा उचित नहीं होते हैं। वास्तविक भुगतान शेष को जानने के लिए सन्तुलन के लिए इस्तेमाल किये जाने वाली मदों को अलग रखना चाहिए जैसे स्वर्ण भण्डारों व विदेशी मुद्रा के आरक्षित भण्डारों में कमी, विदेशी से अल्पकालीन या दीर्घकालीन ऋण। यदि इन मदों को निकाल कर किसी देश का भुगतान में है तो यह वास्तविक सन्तुलन माना जायेगा अन्यथा भुगतान शेष वास्तव में असन्तुलन में माना जायेगा । सन्तुलन संबंधी तीन स्थितियां हो सकती हैं –

  1. सन्तुलित भुगतान शेष – निर्यात = आयात
  2. बचत का भुगतान शेष – निर्यात > आयात
  3. घाटे का भुगतान शेष – निर्यात < आयात

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प्रश्न 3.
विदेशी मुद्रा बाजार मे संतुलन की प्रक्रिया समझाए।
उत्तर:
विनिमय बाजार में संतुलन की प्रक्रिया सामान्य बाजार की तरह मुद्रा की मांग और आपूर्ति के साम्य द्वारा तय होती है। विदेशी विनिमय बाजार में मुद्रा का मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाला और आपूर्ति वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है। मांग वक्र तथा पूर्ति वक्र जिस बिन्दु पर काटते हैं उस बिन्दु को साम्य बिन्दु कहते हैं। साम्य बिन्दु पर विनिमय की दर संतुलन विनिमय दर कहलाती है तथा मात्रा को संतुलन मात्रा कहते हैं। विनिमय बाजार में संतुलन को चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है। आपूर्ति वक्र S का ढाल धनात्मक है।

जिसका अभिप्राय यह है कि विनिमय दर ऊँची होने पर विदेशी मुद्रा अधिक मात्रा में प्राप्त हो सकती है। इससे विदेशियों को वस्तुएं सस्ती लगती हैं और परिणामस्वरूप विदेशी मुद्रा की आपूर्ति बढ़ जाती है। मुद्रा का मांग वक्र DD ऋणात्मक ढाल वाला है। पूर्ति वक्र और वक्र दोनों बिन्दु E पर काटते हैं। बिन्दु E साम्य बिन्दु है। बिन्दु Eसे X अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद (फुट) संतुलन मात्रा को दर्शाया है तथा साम्य बिन्दु से Y अक्ष पर डाले गए लम्ब का पाद संतुलन विनिमय दर को दर्शाया है।
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प्रश्न 4.
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व व्यापार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था से एकदम उल्टी है। विश्व स्थिर विनिमय दर का निर्धारण सरकार करती है और उसमें परिवर्तन की गुंजाइश बहुत कम होती है। जबकि नम्य विनिमय दर व्यवस्था में सरकार अथवा मौद्रिक अधिकारियों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत विश्व मुद्रा बाजार में विनिमय की दर विश्व बाजार में मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति के साम्य से तय होती है। मांग और आपूर्ति में परिवर्तन होने पर विनिमय दर बदलती रहती है।
पूर्णतः नम्य विनिमय दर व्यवस्था के निम्नलिखित गुण हैं –

  1. विश्व मुद्रा बाजार में नम्य विनिमय दर व्यवस्था के कारकों की वजह से देशों के केन्द्रीय बैकों को विदेशी मुद्राओं के भण्डार रखने की जरूरत नहीं होती है।
  2. नम्य विनिमय दर व्यवस्था लागू होने से सदस्य देशों के बीच व्यापार तथा पूंजी के आवागमन की रुकावटें समाप्त हो जाती हैं।
  3. नम्य विनिमय दर व्यवस्था से अर्थव्यवस्था संसाधनों का अभीष्टतम वितरण करके अर्थव्यवस्था की कुशलता में बढ़ोतरी करती है।

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प्रश्न 5.
भारत के भुगतान शेष खातों की संरचना समझाइए।
उत्तर:
भुगतान शेष खाते को द्विअंकन पद्धित (Double Entry System) में तैयार किया जाता है। अतः भुगतान शेष खाते में जमा व नामे की दो प्रविष्टियां होती है। इस प्रविष्टियों का आकार समान होता है इसलिए यह खाता हमेशा संतुलन में होगा है। भुगतान शेष के सभी लेन-देनों को 5 वर्गों में बाटकर निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है नामे (-)

(I) श्रेणी – 1:

  • वस्तु का आयात
  • सेवाओं का आयात

श्रेणी – 2:
प्रदान गए अन्तरण भुगतान

श्रेणी – 3

  • देश के निवासियों एवं सरकार द्वारा धारित दीर्घकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि
  • विदेशी नागरिको एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसपत्तियों में कमी।

श्रेणी – 4

  • देश के नागरिकों द्वारा अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि।
  • विदेशी नागरिकों द्वारा धारित विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।

जमा (+)

  • वस्तुओं का निर्यात
  • सेवाओं का आयात

(II) प्राप्त किए गए हस्तातरण भुगतान

(III)

  • देश के नागरिकों और सरकार द्वारा धारित दीर्घ कालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
  • विदेशी नागरिकों एवं सरकारों द्वारा धारित इस देश की दीर्घकालिक परिसंपत्तियों में वृद्धि।

(IV)

  • देश के नागरिकों द्वारा धारित अल्पकालिक विदेशी परिसंपत्तियों में कमी।
  • विदेशी नागरिकों द्वारा धारित इस देश की अल्पकालिक परिसपत्तियों में वृद्धि।

प्रश्न 6.
विदेशी विनिमय बाजार की कार्यपद्धति के हाजिर बाजार एवं वायदा बाजार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विदेशी विनिमय बाजार के विश्लेषण में लेन-देन की विधि समय अवधि से जुड़ी होती है। लेन-देन के समय अवधि के आधार पर इसे दो भागों में बांटा जा सकता है –

1. हाजिर बाजार:
इस बाजार को चालू बाजार भी कहा जाता है। इस बाजार में लेन-देन दैनिक आधार पर किया जता है। किसी देश की मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति के नाम को प्रभावी विनिमय दर कहते हैं। प्रभावी विनिमय दर में कीमत परिवर्तन के प्रभावों को समाप्त नहीं किया जाता है। इसलिए इसे मौद्रिक प्रभावी विनिमय दर भी कहते है। विश्व विनिमय दर सुधार या गिरावट का अनुमान वास्तविक विनिमय दर के आधार पर किया जाता है। इसमें केवल चालू खाते के लेन-देनों में संतुलन होता है। इसका आधार यह है कि एक ही मुद्रा में आकलन करने से सभी देशों में कीमतें एक समान हो जाती है। सापेक्ष क्रय शक्ति दर से सदस्य देशों की कीमत वृद्धि दर को विश्व विनिमय दर से जोड़ा जाता है।

2. वायदा बाजार:
इस बाजार में लेन-देन भविष्य में देयता के आधार पर होता है। इस बाजार में भविष्य में किसी तिथि पर पूरे होने वाले लेन-देन का कामकाज होता है। विश्व व्यापार में ज्यादातर लेन-देन उसी दिन पूरे नहीं होते हैं जिस दिन लेन-देन के दस्तावेजों पर दो देश हस्ताक्षर करते हैं। लेन-देन उसके कई दिन बाद होता है इसलिए इस बाजार में भविष्य में होने वाली सम्भावित विनिमय दर पर भी ध्यान दिया जाता है। इससे सदस्य देशों को सम्भावित विनिमय दर से उत्पन्न होने वाले जोखिमों का उपाय करने का मौका मिल जाता है। वायदा बाजार में ऐसे व्यापारी भागीदार होते हैं जिनको भविष्य में किसी दिन किसी मुद्रा की जरूरत होगी अथवा वे मुद्रा की आपूर्ति करेंगे। भविष्य के सौदे करने में दो उद्देश्य होते हैं –

  • विनिमय दर परिवर्तन के कारण सम्भवित जोखित को कम करना।
  • लाभ कमाना, पहले उद्देश्य को जोखिम का पूर्व उपाय कहते हैं और दूसरे को सट्टेबाजी।

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प्रश्न 7.
भुगतान शेष के चालू एवं पूंजी खाते में सम्मिलित विभिन्न मदों के ब्यौरे दर्शाइए।
उत्तर:
चालू खाता-चालू खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तुओं का आयात निर्यात
  2. सेवाओं का आयात निर्यात
  3. एक पक्षीय अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति एवं व्यय

वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात विदेशों से अन्तरण भुगतानों की प्राप्ति जमा में तथा वस्तुओं एवं सेवाओं के आयात तथा अन्तरण भुगतानों पर व्यय को नामे में दर्शाया जाता है। चालू खाते की मदों को तालिका में निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है –

चालू खाते की मदें लेनदारी:

  1. वस्तओं का निर्यात (दृश्य)
  2. अदृश्य मदें

शेष विश्व को दी गई सेवाएं (शिक्षा, स्वास्थ, यात्रा, बीमा, यातायात, बैकिंग आदि।)
शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान –

  1. सरकारी
  2. निजी

शेष विश्व से प्राप्त/आर्जित निवेश –

  1. शेष विश्व से प्राप्त निवेश आय
  2. शेष विश्व से प्राप्त कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति। मुआवजा।

देनदारी:

  1. वस्तुओं का आयात (दृश्य)
  2. अदृश्य मदें
  3. शेष विश्व से प्राप्त सेवाए
  4. शेष विश्व से हस्तातरण भुगतान (दान एवं उपहार)
  5. शेष विश्व को प्रदान की गई अर्जित आय
  6. शेष विश्व को दी गई निवेश आय
  7. शेष विश्व को दी गई कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति/मुआवजा

पूंजीगत खाता:
इस खाते में पूंजीगत परिसंपत्तियों तथा दायित्वों का लेन-देन दर्शाया जाता है। इस खाते के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निजी लेन-देन
  2. सरकारी लेन-देन
  3. प्रत्यक्ष निवेश
  4. पत्राचार निवेश

एक देश द्वारा विदेशों से परिसम्पत्तियों की खरीद को उस देश के पूंजी खाते के नामे में और देश द्वारा विदेशों को परिसम्पत्तियों की बिक्री को जमा में दर्शाया जाता है। पूंजी खाते की मदें कुल पूंजीगत प्राप्तियां –

  1. विदेशी निजी ऋणों की प्राप्ति।
  2. बैकिंग पूंजी का आन्तरिक प्रवाह।
  3. सरकारी क्षेत्र द्वारा प्राप्त ऋण।
  4. रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण प्राप्तियां।
  5. स्वर्ण अन्तर विक्रय।

कुल पूंजीगत भुगतान –

  1. स्वदेशियों द्वारा निजी ऋणों की वापसी।
  2. बैकिंग पूंजी का बाहा प्रवाह।
  3. सरकार क्षेत्र द्वारा ऋणों का भुगतान।
  4. रिजर्व एवं मौद्रिक स्वर्ण अन्तरण भुगतान।
  5. स्वर्ण क्रय।

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प्रश्न 8.
विनिमय दर के भुगतान संतुलन सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर:
विनिमय दर के भुगतान सन्तुलन सिद्धान्त को विनिमय दर का आधुनिक सिद्धान्त भी कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण एक देश की अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार ‘मैं मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से तय होती है। प्रो. कुरीहारा के अनुसार स्वतन्त्र विनिमय दर उस बिन्दु पर तय हाती है जिस पर विदेश विनिमय की मांग तथा आपूर्ति दोनों बराबर हो जाए। इस सिद्धांत के अनुसार निम्न स्थितियों में विनिमय दर में परिवर्तन होता है –

1. अनुकूल भुगतान शेष:
यदि किसी देश का भुगतान शेष अनुकूल होता है तो इसका अभिप्राय यह है कि उसे देश की विदेशों से समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से ज्यादा हैं। इससे विदेशी मुद्रा की आपूर्ति उस देश में बढ़ जाएगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी।

2. प्रतिकूल भुगतान शेष:
प्रतिकूल भुगतान शेष की अवस्था में एक देश की विदेशों में समस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियों से कम होती हैं। इससे उसे देश में विदेशी पूंजी की आपूर्ति कम हो जायेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर में कमी आ जायेगी।

3. सन्तुलित भुगतान शेष:
इस स्थिति में एक देश की विदेशों से स्मस्त लेनदारियां, समस्त देनदारियां के समान होती हैं अर्थात् विदेशी पूंजी की आपूर्ति स्थिर रहेगी और उस देश की मुद्रा की विनिमय दर भी स्थिर रहेगी। इस सिद्धान्त को मुद्रा की मांग व आपूर्ति वक्रों के सन्तुलन से भी समझाया जा सकता है।

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चित्र में विदेशी मुद्रा का मांग वक्र = DD
विदेशी मुद्रा का पूर्ति वक्र = SS
सन्तुलन बिन्दु E पर विनिमय दर = OR
सन्तुलित मांग व आपूर्ति = OQ

सिद्धान्त की मान्यताएं –

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पायी जाती है।
  2. सरकारी हस्तक्षप आर्थिक मामलों में नगण्य होता है।
  3. विनिमय दर आयात व निर्यात से प्रभावित होता है।
  4. विनिमय दर निर्धारण से देश के कीमत स्तर पर प्रभाव नहीं पड़ता है।
  5. विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व आपूर्ति के सन्तुलन से निर्धारित होती है।

सिद्धान्त की आलोचनाएं –

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्णप्रतियोगिता की मान्यता कोरी कल्पना है।
  2. सरकारी अहस्तक्षेप की मान्यता भी अव्यावहारिक है।
  3. विनियिम दर आयात-निर्यात से प्रभावित होती है परन्तु विनिमय दर भी आयात-निर्यात से परिवर्तन करती है।
  4. देश का कीमत स्तर भी आयात व निर्यात को प्रभावित करता है अर्थात् अप्रत्यक्ष रूप से देश में कीमत स्तर विदेशी विनिमय को प्रभावित करता है।
  5. विदेशी विनिमय दर केवल विदेशी मुद्रा की मांग व पूर्ति से ही प्रभावित नहीं होती है बल्कि सट्टा बाजार, राजनैतिक परिवर्तन, वित्तीय संस्थाओं की कार्यपद्धति, विदेशी आर्थिक क्रियाकलाप भी विदेशी विनिमय दर पर प्रभाव डालते हैं।

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प्रश्न 9.
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था तथा समजंनीय सीमा व्यवस्था को समझाइए।
उत्तर:
स्थिर विनिमय दर व्यवस्था:
इस व्यवस्था के अन्तर्गत देश की सरकार देश की अपनी मुद्रा की विनिमय दर की घोषणा करती है। सरकार द्वारा घोषित दर स्थिर रखी जाती है। इसमें बहुत मामूली परिवर्तन ही मान्य होते हैं। इस प्रकार की व्यवस्था 1880 से लेकर 1914 तक स्वर्ण मांग व्यवस्था के रूप में थी। प्रत्येक देश स्वर्ण मांग में स्वर्ण के निश्चित भार का देश की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। घोषित मूल्यों के अधार पर विभिन्न देशों की मुद्राओं का निर्धारण किया जाता था। इसे टकसाल मांग समता दर कहते थे। उदाहरण के लिए यदि 1 रूपये के बदले 150 शुद्ध कण मिल रहे हैं ओर एक येन के बदले 25 तो 1 = 150/25 = 6 येन अर्थात् एक रूपया = 6 येन की विनिमय दर तय की जाती थी।

समजनीय सीमा व्यवस्था:
विनिमय दर की स्वर्ण व्यवस्था भुगतान शेष की समस्याओं को सुलझाने में नाकाम रही। अतः इस व्यवस्था को 1920 में त्याग दिया गया और 1944 में ब्रेटन बुडस व्यवस्था लागू की गई। इस व्यवस्था में केवल बार घोषित दर को बनाए रखने का दायित्व सरकार का रहता था। अतः यह व्यवस्था स्थिर विनिमय दर व्यवस्था का संशोधित रूप है। स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं –

  1. स्थिर विनिमय दर की सहायता से आर्थिक नीतियों को कमजोर बनाने वाले संकटों पर नियंत्रण रहता है।
  2. स्थिर विनिमय दर सदस्य देशों की समष्टि स्तरीय आर्थिक नीतियों में समन्वय बनाने में मदद करती है।
  3. स्थिर विनिमय दर से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता और जोखिम समाप्त होते हैं और विश्व व्यापार में बढ़ोतरी होती है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आपको एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था के उपभोग फलन को दर्शाता है:Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था समष्टि अर्थशास्त्र part - 1  img 10

उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 100 + 8(y – 40) + 38 + 75 + 25 – 0.05(y – 40)
= 238 + 8y – 8 × 40 – 0.05Y + 0.056 × 40 = 208 + 0.75y
y – 0.75y = 208
25y = 208

(b) सरकारी घाटा = G – T
= 75 – 40 = 35

(c) चालू खाता शेष = X – M = X – 0.05 yD [∵YD = Y – T]
= 25 – 0.05 (832 – 40) T = tax
325 – 0.05 × 792
= 25 – 39.60 = -14.6

(a) साम्य राष्ट्रीय आय = 432
(b) सरकारी घाटा = 35
(c) चालू खाता शेष = -14.6

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प्रश्न 2.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 2.45 येन देने पड़ते हैं। जापान में कीमत स्तर और भारत में कीमत स्तर 2.21 है भारत व जापान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5 व P = 2.2 अ
2.45 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = \(\frac{1}{2.46}\) रुपया
= \(\frac { 100 }{ 245 } \) = 0.408 रुपया

वास्तविक विनिमय दर –
= ePF/P
= \(\frac { 0.408\times 5 }{ 2.2 } \)
= 0.92
वास्तविक विनिमय दर = 0.92

प्रश्न 3.
जब M = – 40 + 0.25 y है तो आयात की सीमान्त प्रवृत्ति क्या होगी? आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में क्या संबंध होगा?
उत्तर:
M = – 40 + 0.25y (दी गई समीकरण)
M = m + my (मानक समीकरण) दोनों समीकरणों की तुलना करने पर स्वायत आयात
M = -40 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति
m = 0.25 आयात की सीमान्त प्रवृत्ति 0.25 है इसका अभिप्राय यह है कि सामूहिक व्यय प्रयोज्य आय बढ़ने पर इसका 25 प्र. श. आयात बढ़ेगा । अर्थात् आयात की सीमान्त प्रवृत्ति व सामूहिक व्यय में सीधा संबंध है।

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प्रश्न 4.
माना C = 85 + 5yD, T = 60, I = 85, G = 60, X = 90, M = 40 + 0.05 y
(a) साम्य आय क्या होगी?
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात ज्ञात करो।
उत्तर:
(a) साम्य आय
y = \(\frac{C-CT+I+G+X-M}{1-C+m}\)
= \(\frac{85 – 0.5 60 + 85 + 60 + 90 – 45}{1-0.5+0.5}\)
= \(\frac{250}{0.55}\) = 454.5

(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष
NX = X – M – mY
= 90 – 40 – 0.5 × 454.5
= 52 – 22.7 = 27.3
(a) साम्य आय = 454.3
(b) साम्य आय पर शुद्ध निर्यात शेष = 27.3

प्रश्न 5.
माना MPC = 0.8 or C = 0.8, M = 60 + 0.06Y तो व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
MPC = 0.8
c = 0.8
M = M + mY (मानक समीकरण)
M = 60 + 0.06Y (दी गई समीकरण)
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
M = 0.06
\(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5+0.6}\)
= \(\frac{1}{2+0.06}\) = \(\frac{1}{0.26}\) = \(\frac{100}{26}\) = 3.84
व्यय गुणक = 3.84

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प्रश्न 6.
यदि C = 0.05 व M = 0.45 बन्द व खुली अर्थव्यवस्था के लिए व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
बन्द अर्थव्यवस्था के लिए – \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5}\) = \(\frac{1}{95}\) = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था के लिए – \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.05+0.45}\) = \(\frac{1}{1.4}\) = 0.71
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.05
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 0.71

प्रश्न 7.
माना एक रुपया खरीदने के लिए 0.25 येन की आवश्यकता पड़ती है। जापान व पाकिस्तान में कीमत स्तर 5 व 0.2 है। जापान व पाकिस्तान के बीच वास्तविक विनिमय दर ज्ञात करो।
उत्तर:
PF = 5, P = 0.2
0.25 येन की कीमत = 1 रुपया
1 येन की कीमत = \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4 रुपया
वास्तविक विनिमय दर = e\(\frac { P_{ F } }{ P } \) = 4 × \(\frac{5}{0.2}\) = 20 × 5 = 100
वास्तविक विनिमय दर = 100

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प्रश्न 8.
यदि C = 0.5 एवं m = 0.2, बन्द व खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक ज्ञात करो।
उत्तर:
1. बन्द अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.5}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = 2

2. खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\) = \(\frac{1}{1-0.5+0.2}\) = \(\frac{1}{0.7}\) = 1.42
बन्द अर्थव्यवस्था में व्यय गुणम = 2
खुली अर्थव्यवस्था में व्यय गुणक = 1.42

प्रश्न 9.
आपको नीचे एक प्रतिदर्श दिया गया है जो एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था से संबंधित है –
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उत्तर:
(a) Y = C + I + G + X – M
= 85 + 5(y – 50) + 60 + 85 + 90 – 0.05(y – 60)
= 85 + 5y – 25 + 60 + 85 + 90 – 0.5y + 30 = 325 + 0 = 325

(b) सरकारी घाटा = G – T = 85 – 50 = 35

(c) निर्यात शेष = X – M = 90 – 0.5 (325 – 60)
= 90 – 132.5 = -42.5
उत्तर:
(a) साम्य आय = 325
(b) सरकारी घाटा 335
(c) निर्यात शेष = – 42.5

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
केन्द्रीय दर से 25 प्र. श. ऊपर या नीचे विनिमय पट्टी पर चलन देश घाटे के प्रभाव को कम करते हैं यह तर्क संबंधित है –
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से
(B) कीनस के आय, रोजगार और मुद्रा सिद्धांत से
(C) रिकार्डो सिद्धांत से
(D) उपभोक्ता सिद्धांत से
उत्तर:
(A) 1971 में स्मिथ सोनियन तर्क से

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प्रश्न 2.
कुछ देश अपनी मुद्राओं को जोड़ते हैं –
(A) पौड़ से
(B) रुपये से
(C) येन से
(D) डालर से
उत्तर:
(D) डालर से

प्रश्न 3.
यूरोपियन मुद्रा संघ का गठन किया गया
(A) जनवरी 1999 में
(B) फरवरी 1999 में
(C) मार्च 1999 में
(D)अप्रैल 1999 में
उत्तर:
(A) जनवरी 1999 में

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प्रश्न 4.
यूरोप के देशों की सामान्य (common) मुद्रा है –
(A) डालर
(B) पौड़
(C) यूरो
(D) स्टर्लिंग
उत्तर:
(C) यूरो

प्रश्न 5.
25 में से 12 यूरोप के देशों के सदस्यों ने यूरो को स्वीकृत किया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1971 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 6.
समग्र रूप से अन्तर्राष्ट्रीय पद्धति की विशेषता है –
(A) वर्गीकृत पद्धति
(B) बहुविकल्पीय पद्धति
(C) पद्धतियों का योग
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) बहुविकल्पीय पद्धति

प्रश्न 7.
अर्जेन्टिना ने यूरो बोर्ड पद्धति को अपनाया?
(A) 1991 में
(B) 1981 में
(C) 1996 में
(D) 1961 में
उत्तर:
(A) 1991 में

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 8.
एक बंद अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारूप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) Y = C + I + G

प्रश्न 9.
एक खुली अर्थव्यवस्था के लिए साम्य आय का प्रारुप है –
(A) Y = C + I + G
(B) Y = C + I + G + X – M
(C) Y = C + I + G – X – M
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(B) Y = C + I + G + X – M

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 6 खुली अर्थव्यवस्था : समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 10.
खुली अर्थव्यवस्था का व्यय गुणक है –
(A) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\)
(B) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(A) \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C+m}\)

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति किसे कहते हैं? यह किस प्रकार सीमान्त बचत प्रवृत्ति से सम्बन्धित है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से अभिप्राय:
आय में परिवर्तन के कारण उपभोग में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 1
MPC = \(\frac{∆c}{∆y}\)

सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग सदैव एक (इकाई) के बराबर होता है।
MPC + MPS = 1
यदि किसी एक MPC (MPS) का मान दिया हो तो MPS (MPC) का मूल्य ज्ञात किया जा सकता है। M यदि MPC या MPS में किसी एक का मूल्य घटता है तो दूसरे के मूल्य में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 2.
प्रत्याशित निवेश और यथार्थ निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर:

  1. नियोजित निवेश-यह वह निवेश होता है, जिसकी एक अर्थव्यवस्था एक लेखा वर्ष की अवधि के लिए योजना बनाती है। दूसरे शब्दों में अनुमानित निवेश को नियोजित निवेश कहते हैं। जबकि Ex post Investment (कार्योंत्तर निवेश) वह निवेश होता है, जिसे एक अर्थव्यवस्था एक वर्ष की अवधि में वास्तव में करती है।
  2. नियोजित पूर्णत:-अनुमानित या काल्पनिक विचार है, जबकि Expost Investment (कार्योत्तर निवेश) वास्तविक विचार है।
  3. नियोजित निवेश भावी संभावनाओं पर आधारित होता है, जबकि Expost Investment अर्थव्यवस्था में अनेक आर्थिक गतिविधियों का परिणाम होता है।

प्रश्न 3.
“किसी रेखा में पैरामेट्रिक शिफ्ट” से आप क्या समझते हैं? रेखा में किस प्रकार शिफ्ट होता है, जब इसकी –

  1. ढाल घटती है और
  2. इसके अंत: खंड में वृद्धि होती है

उत्तर:
b = ma + “प्रकार की समीकरण लीजिए जहाँ m > 0 जिसे रेखा/वक्र का ढाल कहते हैं” > 0 यह उर्द्धावाधर अक्ष का Intercept (भाग) होता है। जब a के मूल्य में 1 (इकाई) वृद्धि होती है तो b में m इकाई की बढ़ोतरी होती है। इन्हें रेखा के साथ चरों में संचरण कहते हैं। तथा m को रेखा के Parameter (स्थिरांक) कहते हैं।

जैसे m के मूल्य में वृद्धि होती है तो रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है। इसे रेखा Parametric Shift कहते हैं।

  1. यदि किसी धनात्मक रेखा का ढाल कम होता है तो रेखा नीचे की ओर खिसक जाती है।
  2. धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है यदि इसका Intercept (भाग) घटता है तो।

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प्रश्न 4.
प्रभावी माँग क्या है? जब अन्तिम वस्तुओं की कीमत और ब्याज की दर दी हुई हो, तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे?
उत्तर:
यदि आपूर्ति लोच पूर्णतयाः लोचदार है तो दी गई कीमत पर उत्पाद का निर्धारण पूर्णतः सामूहिक माँग पर निर्भर करता है। इसे प्रभावी माँग कहते हैं। दी गई कीमत पर साम्य उत्पाद, सामूहिक माँग और ब्याज की दर का निर्धारण/गणना निम्नलिखित समीकरण से की जाती है –
y = AD
y = A + Cy
या y – Cy = A
या y (1 – C) = A
या y = \(\frac{A}{1-C}\)
y का मान A तथा C के मान पर निर्भर करता है।
या \(\frac{∆Y}{∆C}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
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प्रश्न 5.
जब स्वायत्त निवेश और उपभोग व्यय (A)50 करोड़ रु. हो और सीमांत बचत प्रवृत्ति (MPS) 0.2 तथा आय (Y) का स्तर 4000.00 करोड़ रु. हो, तो प्रत्याशित समस्त माँग ज्ञात करें। यह भी बताएँ कि अर्थव्यवस्था संतुलन में है या नहीं (कारण भी बताएँ)।
उत्तर:
A = 50 करोड़ रु.
MPS = 0.2
Y = 4000.00 करोड़ रु.
AD = A + CY
= 500 + (1-0.2) 4000.00
(c = 1 – MPS तथा Y का मान रखने पर)
= 500 + 0.8 × 4000.00
= 500 + 3200.00
= 3700.00 करोड़ रु.
अत: AD>Y (∵3700 < 4000)
अत: अर्थव्यवस्था सन्तुलन में नहीं है। यहाँ अभावी माँग या अधिशेष आपूर्ति की स्थिति है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 6.
मितव्ययिता के विरोधाभास की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
बचत (मित्तव्ययता) का विरोधाभास यह बताता है कि यदि एक अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का अधिक भाग बचत करना आरम्भ कर देते हैं तो कुल बचत का स्तर या तो स्थिर रहेगा या कम हो जायेगा। दूसरे शब्दों में यदि अर्थव्यवस्था में सभी लोग अपनी आय का कम बचाना आरम्भ कर देते हैं तो अर्थव्यवस्था में कुल बचत का स्तर बढ़ जायेगा। इस बात को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यदि लोग ज्यादा मित्तव्ययी हो जाते हैं तो या तो वे अपने आय का पूर्व स्तर रखेंगे या उनकी आय का स्तर गिर जायेगा।

Bihar Board Class 12 Economics आय निर्धारण Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग माँग क्या होता है?
उत्तर:
उपभोक्ताओं द्वारा माँगी जाने वाली वह माँग जिन्हें परिवार खरीदने के लिए तैयार है और खरीदने की क्षमता रखते हैं। उपभोक्ता माँग कहलाती है। यह माँग कई कारकों से प्रभावित होती है जैसे वस्तु या सेवा की कीमत, आय, सम्पत्ति, प्रत्याशित आय, रुचि, पसंदगी आदि। कींस के अनुसार उपभोग माँग में वृद्धि हो जाती है यदि आय के स्तर में बढ़ोतरी होती है। कींस ने इसे उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम कहा है।

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ अर्थव्यवस्था की उस शाखा से हैं, जिसमें अर्थव्यवस्था का अध्ययन सम्पूर्ण रूप से किया जाता है। जैसे कुल माँग, कुल पूर्ति, रोजगार, आय, व्यय, बचत आदि।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 3.
निवेश प्रेरणा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
निवेश प्रेरणा-निवेश में वृद्धि करने की प्रेरणा को निवेश प्रेरणा कहते हैं। यह इस बात पर निर्भर करती है कि उद्यमियों को ब्याज दर की तुलना में निवेश पर किस दर से प्रतिफल मिलने की आशा है। निवेशकर्ता निवेश करते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखता है कि उसे निवेश पर भविष्य में कितना लाभ प्राप्त होगा।

प्रश्न 4.
निवेश माँग फलन क्या है?
उत्तर:
निवेश माँग और ब्याज दर के सम्बन्ध में निवेश माँग को फलन कहते हैं। ब्याज दरें और निवेश माँग के बीच ऋणात्मक (-) सम्बन्ध होता है। अन्य शब्दों में, यदि ब्याज की दर उच्च हो तो निवेश माँग निम्न रह जाती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 5.
समग्र माँग के घटक लिखिए।
उत्तर:
समग्र माँग के घटक निम्नलिखित हैं –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. निजी निवेश।
  3. सार्वजनिक फलन तथा शुद्ध नियमित निर्यात-आयात।

प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-यह अवधारणा बचत में परिवर्तन तथा आय में परिवर्तन के अनुपात को प्रकट करती है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है –
MPS = \(\frac{∆S}{∆Y}\)

प्रश्न 7.
निवेश को समझने के लिए किन तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है?
उत्तर:
निवेश को समझने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है –

  1. आगत
  2. लागत
  3. अपेक्षाएँ

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 8.
उपभोग के मनोवैज्ञानिक नियम को लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में भी बढ़ोतरी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई बढ़ोतरी से कम होती है। इसे कींस का मनोवैज्ञानिक नियम कहते हैं।

प्रश्न 9.
पूर्ण-रोजगार संतुलन का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
जब समग्र माँग (AD) तथा समग्र पूर्ति (AS) का सन्तुलन उस बिन्दु पर हो कि सभी साधनों को काम मिल जाये। पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक जितनी समग्र माँग की जरूरत है। समग्र माँग उतनी हो तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं।

प्रश्न 10.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की अवधारणा बताइए।
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति-सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ है कुल उपभोग में परिवर्तन तथा कुल आय में परिवर्तन का अनुपात। इस अवधारणा से यह ज्ञात किया जा सकता है कि लोग अपनी बढ़ी हुई आय का कितना भाग उपभोग पर व्यय करते हैं। MPC का मूल्य हमेशा शून्य तथा एक के बीच होता है। इसे निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है।
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
∆C = उपभोग में परिवर्तन
∆Y = आय में परिवर्तन

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 11.
अतिरेक माँग क्या होती है?
उत्तर:
जब पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग समग्र पूर्ति से अधिक होती है तो उसे अतिरेक माँग कहते हैं।

प्रश्न 12.
बचत प्रवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आय के विभिन्न स्तरों और बचत की विभिन्न मात्राओं के बीच कार्यात्मक सम्बन्ध बताने वाली अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
[S = F (y)]

प्रश्न 13.
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो उसका आय और रोजगार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग और सामूहिक पूर्ति बराबर होती है तो आय और रोजगार में सन्तुलन की स्थिति होगी।

प्रश्न 14.
अवस्फीतिकारी अन्तराल का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
अवस्फीतिकारी अन्तराल वह स्थिति है, जब कुल पूर्ति कुल माँग से अधिक होती है। उत्पादन व रोजगार घटने लगता है, लोगों की क्रय शक्ति घट जाती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 15.
किसी देश में पूर्ण-रोजगार आय का सन्तुलन स्तर कब प्राप्त होता है?
उत्तर:
जब सामूहिक माँग पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के लिए आवश्यक समग्र माँग और पूर्ण-रोजगार स्तर की पूर्ति के बराबर हो।
AS = AQ

प्रश्न 16.
बचत फलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बचत फलन-बचत फलन का अर्थ बचत तथा आय के सम्बन्ध से है । राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में भी बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 17.
समग्र पूर्ति से क्या आशय है?
उत्तर:
समग्र पूर्ति से आशय एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित कुल वस्तुओं और सेवाओं के भौद्रिक मूल्य से है।
सामूहिक पूर्ति = उपभोग + बचत
AS = C + S

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प्रश्न 18.
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में अभावी माँग की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब पूर्ण-रोजगार बिन्दु पर सामूहिक पूर्ति सामूहिक माँग से अधिक होती है।

प्रश्न 19.
अनैच्छिक बेरोजगारी का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अनैछिक बेरोजगारी का अर्थ एक ऐसी अवस्था जिसमें काम करने की इच्छा रखने वाले लोगों को प्रचलित मजदूरी की दर पर रोजगार प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 20.
माँग प्रबन्धन नीति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की बजाय सरकार द्वारा समग्र माँग में परिवर्तन के अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त करने के प्रयास को माँग प्रबन्धन नीति कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 21.
उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम लिखिए।
उत्तर:
जब किसी देश की कुल आय में बढ़ोतरी होती है तो उसके कुल उपभोग में वृद्धि भी होती है परन्तु उपभोग में होने वाली बढ़ोतरी आय में हुई वृद्धि से कम होती है।

प्रश्न 22.
उपभोग फलन को समझाइए।
उत्तर:
उपभोग और व्यय योग्य आय के बीच फलनात्मक सम्बन्ध को उपभोग प्रवृत्ति या उपभोग फलन कहते हैं।
C = F (y)
C = उपभोग
F = फलन
y = आय

प्रश्न 23.
कुल माँग के मुख्य घटक बताइए। उत्तर-कुल माँग के मुख्य घटक निम्नलिखित है –

  1. उपभोग।
  2. निवेश।
  3. सरकारी व्यय।
  4. las farta [AD = C + I + G + (X – M)]

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 24.
अत्यधिक माँग (अतिरेक माँग) किस स्थिति में उत्पन्न होती है?
उत्तर:
जब वर्तमान माँग पूर्ण-रोजगार के लिए आवश्यक समग्र माँग, समग्र पूर्ति से अधिक हो जाती है तो अतिरेक माँग की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 25.
सन्तुलन कितने प्रकार का हो सकता है?
उत्तर:
सन्तुलन निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन।
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन।

प्रश्न 26.
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र किसने बताया था तथा वह सूत्र क्या है?
उत्तर:
अपूर्ण-रोजगार स्तर का उपचार कर अर्थव्यवस्था को पूर्ण-रोजगार स्तर तक पहुँचाने का सूत्र कीन्स ने बताया था। समग्र माँग में वृद्धि करके पूर्ण-रोजगार प्राप्त किया जा सकता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 27.
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. जे. बी. से का बाजार नियम एवं
  2. मजदूरी कीमत नम्यता

प्रश्न 28.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग हमेशा एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया। क्योंकि आय का उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है।
∆C + ∆S = ∆Y
\(\frac{DC}{DY}\) + \(\frac{DS}{DY}\) = \(\frac{DX}{DY}\)
MPC + MPS = 1

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प्रश्न 29.
उपभोग फलन को समीकरण द्वारा व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
C = \(\bar { c } \) + by
\(\bar { c } \) > 0 = 0 < b < 1
C = उपभोग
\(\bar { c} \) = स्वायत्त उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
y = राष्ट्रीय आय

प्रश्न 30.
‘से’ के बाजार का नियम लिखिए।
उत्तर:
जे. ब. से के बाजार नियम के अनुसार “पूर्ति अपनी माँग का स्वयं निर्माण करती है।”

प्रश्न 31.
स्वायत्त उपभोग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग को स्वायत्त निवेश कहते हैं। स्वायत निवेश आय के शून्य स्तर पर भी होता है। स्वायत्त निवेश हमेशा धनात्मक (+) होता है।

प्रश्न 32.
अपबचत का अर्थ लिखें।
उत्तर:
यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। इसको अपबचत भी कहते हैं।

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प्रश्न 33.
सन्तुलन का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सन्तुलन अर्थव्यवस्था की वह अवस्था है, जिसमें किसी सामान्य कीमत पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति एक समान हो जाती है। सन्तुलन स्तर पर रोजगार के स्तर को सन्तुलन रोजगार कहते हैं।

प्रश्न 34.
समीकरण C =cY में निर्वहन उपभोग या न्यूनतम उपभोग स्तर जोड़ने की आवश्यकता क्यों पड़ती है।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय का स्तर शून्य होता है तो उपभोग का स्तर शून्य नहीं होता है लोग अपनी पुरानी बचतों या ऋण लेकर न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य करते हैं। इसलिए समीकरण C = cY निर्वहन उपभोग जोड़ने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 35.
अव्यवहारिक अथवा काल्पनिक विचार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0) = cY यह एक अव्यवहारिक उदाहरण है क्योंकि इसका अभिप्राय राष्ट्रीय आय शून्य तो उपभोग भी शून्य होगा। जबकि आय का स्तर शून्य होने पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है। निर्वहन उपभोग स्तर आय के शून्य स्तर पर भी पाया जाता है।

प्रश्न 36.
C = c (Y – 0) = cY, जहाँ c का अभिप्राय सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से है समीकरण का अभिप्राय स्पष्ट करो।
उत्तर:
इस समीकरण का अभिप्राय है यदि किसी विशिष्ट वर्ष में आय शून्य है तो अर्थव्यवस्था का उपभोग शून्य रहेगा अर्थात् अर्थव्यवस्था पूरे वर्ष भूखी रहेगी।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 37.
निर्वहन उपभोग को शामिल किए बिना एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाला समीकरण लिखिए।
उत्तर:
C = c (Y – 0)
= cY
जहाँ C कुल उपभोग, c सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा Y राष्ट्रीय आय

प्रश्न 38.
निर्वहन उपभोग को शामिल करके एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग को दर्शाने वाले समीकरण को लिखिए।
उत्तर:
C = C’ + cY

प्रश्न 39.
C = C’ + cY एक अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग का समीकरण है। इस समीकरण में स्थिराँक मद को लिखिए।
उत्तर:
C’ स्थिराँक मद हैं इसे निर्वहन उपभोग (न्यूनतम उपभोग) भी कहते हैं। यह उपभोग स्तर अर्थव्यवस्था में शून्य आय स्तर पर भी पाया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मजदूरी-कीमत नभ्यता की अवधारणा समझाइए।
उत्तर:
मजदूरी-कीमत नभ्यता का आशय है कि मजदूरी व कीमत में लचीलापन। वस्तु-श्रम की माँग व पूर्ति की शक्तियों में परिवर्तन होने पर मजदूरी दर व कीमत में स्वतन्त्र रूप से परिवर्तन को मजदूरी-कीमत नभ्यता कहा जाता है। श्रम बाजार में श्रम की मांग बढ़ने से मजदूरी दर बढ़ जाती है तथा श्रम की माँग कम होने से श्रम की मजदूरी दर कम हो जाती है। इसी प्रकार वस्तु बाजार में वस्तु की माँग बढ़ने पर वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत माँग कम होने से कीमत घट जाती है। मजदूरी-कीमत नम्यता के कारण श्रम एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलन बना रहता है।

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प्रश्न 2.
वास्तविक मजदूरी का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
श्रमिक अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाओं के प्रतिफल के रूप में कुल जितनी उपयोगिता प्राप्त कर सकते हैं उसे वास्तविक मजदूरी कहते हैं। दूसरे शब्दों में श्रमिक की अपनी आमदनी से वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता को वास्तविक मजदूरी कहते हैं। वास्तविक मजदूरी का निर्धारण श्रमिक की मौद्रिक मजदूरी एवं कीमत स्तर से होता है। वास्तविक मजदूरी एवं मौद्रिक मजदूरी में सीधा सम्बन्ध होता है अर्थात् ऊँची मौद्रिक मजदूरी दर पर वास्तविक मजदूरी अधिक होने की सम्भावना होती है। वास्तविक मजदूरी व कीमत स्तर में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत स्तर अधिक होने पर मुद्रा की क्रय शक्ति कम हो जाती है अर्थात् वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदने की क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही होता है। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
जे. बी. से के बाजार नियम एवं मजदूरी-कीमत नम्यता से मिलकर स्वचालित बाजार सन्तुलन की रचना होती है। दूसरे शब्दों में, लोचशील मजदूरी व कीमत के द्वारा श्रम बाजार एवं वस्तु बाजार में सदैव सन्तुलीन की अवस्था कायम रहती है। अस्थायी सन्तुलन मजदूरी व कीमत लोच के द्वारा ठीक हो जाता है। अर्थव्यवस्था हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही उत्पादन करती है। इसलिए प्रतिष्ठित समग्र आपूर्ति वक्र उत्पादन के पूर्ण-रोजगार स्तर पर ऊर्ध्व रेखा होती है। कीमत परिवर्तन का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। संक्षेप में, कीमत स्तर चाहे कुछ भी हो, उत्पादन तो पूर्ण-रोजगार स्तर पर ही रहता है।

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प्रश्न 4.
लोग काम करने को क्यों तैयार हो जाते हैं? जबकि काम करना कष्टप्रद होता है?
उत्तर:
प्रो. जे. बी. से का मानना था कि काम करने में लोगों को कष्ट होता है। अतः लोग काम के उद्देश्य से काम नहीं करते हैं। लोग काम करने के लिए इसलिए तैयार होते हैं क्योंकि काम के बदले उन्हें सन्तुष्टि प्राप्त होती है। काम करने के प्रतिफल के रूप में उन्हें नकद, किस्म या सामाजिक सुरक्षा के रूप से पारिश्रमिक प्राप्त होता है अर्थात् काम के बदले उन्हें उपभोग करने के लिए वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्राप्त होती है या उन्हें प्राप्त करने की क्षमता प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
मजदूरी दर की नम्यता श्रम बाजार को सन्तुलन में बनाए रखती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मजदूरी दर की नम्यता (लोचशीलता) के कारण श्रम की माँग व आपूर्ति सन्तुलन में रहती है। यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से अधिक होती है तो श्रम की मजदूरी दर में बढ़ोतरी हो जाती है। ऊँची मजदूरी दर पर श्रम की माँग में कमी आ जाती है तो श्रम की आपूर्ति बढ़ जाती है। श्रम की मजदूरी दर में तब तक वृद्धि जारी रहती है जब तक पुनः श्रम की माँग एवं आपूर्ति दोनों समान नहीं होती है। इसके विपरीत यदि श्रम की माँग, श्रम की आपूर्ति से कम होती है तो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर कम हो जाती है। मजदूरी दर से कमी श्रम की माँग व पूर्ति में पुनः सन्तुलन स्थापित करती है।

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प्रश्न 6.
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना केन्जीयन संकल्पना से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
समग्र आपूर्ति की प्रतिष्ठित संकल्पना:
पुरानी विचारधारा के अनुसार समग्र आपूर्ति पर कीमत परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् समग्र पूर्ति पूर्णतया बेलोचदार होती है। समग्र आपूर्ति वक्र Y – अक्ष के समान्तर होती है। इस विचारधारा के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार स्तर पाया जाता है।

समग्र आपूर्ति की केन्द्रीय संकल्पना:
कीन्स के अनुसार समग्र आपूर्ति पर सामान्य कीमत स्तर में परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है। समग्र आपूर्ति पूर्णत: लोचशील होती है। कीमतों में बिना उतार-चढ़ाव के उत्पादन स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है।
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प्रश्न 7.
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन एवं अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन में भेद कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग कर रही है तो इसे पूर्ण-रोजगार सन्तुलन की अवस्था कहते हैं। प्रतिष्ठित सिद्धान्त के अनुसार अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण-रोजगार सन्तुलन बना रहता है। इस अवस्था में समग्र माँग व आपूर्ति बराबर होती है। समग्र आपूर्ति हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर पर उत्पादन के बराबर होती है।

अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
यदि कोई अर्थव्यवस्था समग्र माँग व आपूर्ति की सन्तुलन अवस्था में अपने सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर रही है तो इसे अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन कहते हैं। कीन्स ने अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन के आधार पर ही आय एवं रोजगार सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।

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प्रश्न 8.
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी क्या दर्शाती है?
उत्तर:
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी उस स्थिति की ओर इशारा करती है, जिसमें कुछ लोग किसी कारणवश. एक काम को छोड़कर दूसरे काम की खोज करते हैं। नया रोजगार मिलने में कुछ समय लग सकता है। अत: किसी समय विशेष पर अर्थव्यवस्था में कुछ लोग बेरोजगार पाए जा सकते हैं। अतः प्रतिबन्धात्मक बेरोजगारी अस्थायी प्रकृति की होती है। इसे हल करने के लिए सरकार को अलग से प्रयास करने की आवश्यकता नहीं होती है। स्थायी बेरोजगारी की तरह यह अर्थव्यवस्था के लिए गम्भीर समस्या नहीं होती है।

प्रश्न 9.
प्रतिष्ठित विचारधारा का काल एवं सन्तुलन के बारे में ‘से’ की विचारधारा समझाइए।
उत्तर:
18 वीं शताब्दी में एडम स्मिथ से लेकर 20 शताब्दी में पीगू तक के सभी अर्थशास्त्रियों के चिन्तन को प्रतिष्ठित विचारधारा कहते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रो. जे. एम. कीन्स से पूर्व की सभी अर्थशास्त्रियों की विचारधारा को प्रतिष्ठित अर्थशास्त्र कहते हैं। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री ऐसा मानते थे कि अर्थव्यवस्था में सन्तुलन पूर्ण-रोजगार स्तर पर पाया जाता है। उनके इस मत का आधार जे. बी. से का बाजार नियम था। वे समग्र माँग के अभाव या अधिक्य को स्वीकार नहीं करते थे तथा अर्थव्यवस्था में वे बेरोजगारी की अवस्था को भी स्वीकार नहीं करते थे।

प्रश्न 10.
श्रम विभाजन व विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में किस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है?
उत्तर:
श्रम विभाजन एवं विनिमय पर आधारित अर्थव्यवस्था में लोग अभीष्ट वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि उन वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन करते हैं, जिनके उत्पादन में उन्हें कुशलता या विशिष्टता प्राप्त होती है। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में लोग आवश्यकता से अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं और दूसरे लोगों के अतिरेक से विनिमय कर लेते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में स्व-उपभोग के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन नहीं करते हैं बल्कि विनिमय के लिए उत्पादन करते हैं।

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प्रश्न 11.
कीमत नम्यता वस्तु बाजार में सन्तुलन कैसे बनाए रखती है?
उत्तर:
कीमत नम्यता (लोचशीलता) के कारण वस्तु व सेवा बाजार में सन्तुलन बना रहता है। यदि वस्तु की माँग, आपूर्ति से ज्यादा हो जाती है अर्थात् अतिरेक माँग की स्थिति पैदा हो जाती तो वस्तु बाजार में कीमत का स्तर अधिक होने लगता है। कीमत के ऊँचे स्तर पर वस्तु की माँग घट जाती है तथा उत्पादक वस्तु आपूर्ति अधिक मात्रा में करते हैं। वस्तु की कीमत में वृद्धि उस समय तक जारी रहती है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है। इसके विपरीत अभावी माँग की स्थिति में कीमत स्तर घटना शुरू हो जाता है। नीची कीमत पर उपभोक्ता अपेक्षाकृत वस्तु की माँग बढ़ाते हैं तथा उत्पादक आपूर्ति कम करते हैं। माँग व पूर्ति में परिवर्तन उस समय तक कायम रहता है जब तक माँग व आपूर्ति सन्तुलन में नहीं आ जाती है।

प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की परिभाषा करें।
उत्तर:
आय में एक इकाई बढ़ोतरी होने पर उपभोग में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 4
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 13.
व्यष्टि स्तर एवं समष्टि स्तर उपभोग को प्रभावित करने वाले कारक बताइए।
उत्तर:
व्यष्टि स्तर पर उपभोग उन वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के बराबर होता है, जिन्हें विशिष्ट समय एवं विशिष्ट कीमत पर परिवार खरीदते हैं। व्यष्टि स्तर पर उपभोग वस्तु की कीमत आय एवं सम्पत्ति संभावित आय एवं परिवारों की रूचि अभिरूचियों पर निर्भर करता है। समष्टि स्तर पर केन्ज ने मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की रचना की है। केन्ज के अनुसार अर्थव्यवस्था में जैसे-जैसे राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है लोग अपना उपभोग बढ़ाते हैं परन्तु उपभोग में वृद्धि की दर राष्ट्रीय आय में वृद्धि की दर से कम होती है। आय के शून्य स्तर पर स्वायत्त उपभोग किया जाता है। स्वायत्त उपभोग से ऊपर प्रेरित निवेश उपभोग प्रवृत्ति एवं राष्ट्रीय आय के स्तर से प्रभावित होता है।
C = C + by, जहाँ C उपभोग \(\bar { c } \) स्वायत्त निवेश
b सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, y राष्ट्रीय आय।

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प्रश्न 14.
मजदूरी अनम्यता (लोचहीनता) अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न करती है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर तक मजदूरी पूर्णतया लोचशील रहती है। पूर्ण-रोजगार उत्पादन स्तर पर पहुँचते ही मजदूरी दर बेलोच हो जाती है। पूर्ण-रोजगार स्तर पर सभी संसाधनों का चरम सीमा तक प्रयोग हो जाता है। अतः इससे आगे उत्पादन बढ़ाना सम्भव नहीं रहता है। इसके बाद पूर्ण-रोजगार प्राप्ति की बाधाएँ उत्पन्न हो जाती है। यदि मजदूरी दर किसी ऐसे स्तर पर स्थिर हो जाती है, जहाँ श्रम की आपूर्ति, श्रम की माँग से ज्यादा होती है तो श्रम के आधिक्य के कारण अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है। श्रम की लोचहीनता श्रम की आपूर्ति की अधिकता को कम करने में बाधा पैदा करती है। अतः श्रम की अनम्यता पूर्ण-रोजगार स्तर की प्राप्ति में बाधा उत्पन्न करती है।

प्रश्न 15.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की मान्यताएँ बताइए।
उत्तर:
यह सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. अर्थव्यवस्था पूंजीवादी है अर्थात् आर्थिक समस्याएँ कीमत तन्त्र के द्वारा हल की जाती है।
  2. सामान्य कीमत स्तर मजदूरी दर एवं ब्याज दर पूर्णत: लोचशील होती है।
  3. समग्र आपूर्ति, कीमत के प्रति पूर्ण लोचविहीन होती है जबकि समग्र माँग कीमत के प्रति पूर्णलोचशील होती है।
  4. बचत एवं निवेश ब्याज सापेक्ष होते हैं।
  5. सरकारी हस्तक्षेप शून्य स्तर का होना चाहिए।

प्रश्न 16.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त की आलोचनाएँ बताइए।
उत्तर:
रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त जिन मान्यताओं पर आधारित है, उसमें से ज्यादातर काल्पनिक है। इसकी प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित है –

  1. सभी अर्थव्यवस्थाएँ पूंजीवादी नहीं है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र के लिए निकाले गए निर्णयों को समष्टि अर्थशास्त्र पर लागू कर दिया जिससे वे महामंदी के चक्र को नहीं तोड़ पाए।
  3. समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचविहीन न होकर लोचशील होती है।
  4. बचत पूर्णतः ब्याज सापेक्ष नहीं होती है। बचत का स्तर आय के स्तर एवं उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है।
  5. निवेश का स्तर भी पूर्णतः ब्याज सापेक्ष न होकर पूंजी की सीमान्त कार्यक्षमता पर भी निर्भर रहता है।
  6. समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति के साम्य स्तर रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार स्तर न होकर सन्तुलन रोजगार स्तर कहलाता है। सन्तुलन रोजगार स्तर पूर्ण-रोजगार अथवा अपूर्ण-रोजगार स्तर भी हो सकता है।

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प्रश्न 17.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आय में परिवर्तन की वजह से बचत में होने वाली परिवर्तन की दर को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 5
MPS = \(\frac{∆C}{∆Y}\)
MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति, AC = बचत में परिवर्तन, AY = राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आँकड़ों की सहायता से चित्र बनाकर सम बिन्दु, अपबचत एवं बचत को दर्शाइए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 6
उत्तर:
आय के 500 स्तर से पूर्व उपभोग, वक्र, 45° रेखा के ऊपर है अर्थात् व्यय, आय से अधिक है। अतः बिन्दु से नीचे अपबचत का क्षेत्र है। बिन्दु (E) पर आय व व्यय दोनों एक समान 500 है। अतः बिन्दु (E) सम बिन्दु है इस पर बचत व अपबचत दोनों शून्य है। बिन्दु (E) के बाद आय के 500 से ऊपर स्तर पर आय, व्यय से अधिक है। अत: इसके बाद बचत प्राप्त होती है।

प्रश्न 19.
अपबचत क्या है? यह उपभोग के लिए किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
अपबचत बचत की विपरीत प्रक्रिया है। अपबचत के द्वारा लोग व्यय की तुलना में आय की कमी को पूरा करके उपभोग स्तर को बनाए रखते हैं। अपबचत को ऋणात्मक बचत भी कहते हैं। यदि परिवारों का उपभोग व्यय आय से ज्यादा होता है तो व्यय को पूरा करने के लिए लोग पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं अथवा पुरानी परिसम्पत्तियों को बेचते हैं अथवा उधार लेते हैं। उपरोक्त एक या अधिक युक्ति का प्रयोग करके ही लोग उपभोग के लिए आवश्यक व्यवस्था कर पाते हैं। इस प्रकार अपबचत आय से अधिक उपभोग व्यय को पूरा करने के लिए वित्तीय साधन जुटाने में मदद करती है।

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प्रश्न 20.
उपभोग फलन के सम्बन्ध में किन दो बातों का ध्यान रखना चाहिए।
उत्तर:
उपभोग फलन के बारे में निम्नलिखित दो बातों का ध्यान रखना चाहिए –
1. उपभोग का स्तर वैयक्तिक प्रयोज्य आय के स्तर पर निर्भर करता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष करों के भुगतान, दण्ड जुर्माना एवं सामाजिक सुरक्षा व्यय को घटाने पर प्राप्त होती है। उपभोग एवं वैयक्तिक प्रयोज्य आय का सीधा सम्बन्ध होता है। वैयक्तिक प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग अधिक किया जाता है।

2. आय का स्तर शून्य होने पर लोग उपभोग के लिए पुरानी बचतों का प्रयोग करते हैं। जब तक आय, उपभोग से कम रहती है उपभोग के लिए पुरानी बचतों का ही प्रयोग किया जाता है। यह उपभोग जीवित रहने के लिए आवश्यक न्यूनतम उपभोग कहलाता है।

प्रश्न 21.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की सीमाओं का निर्धारण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति की न्यूनतम एवं अधिकतम सीमाओं का निर्धारण उपभोग के मौलिक एवं मनोवैज्ञानिक नियम की सहायता से होता है। इस नियम के आधार पर राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी उपभोग शून्य नहीं होता है अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति भी शून्य नहीं होती है। दूसरे शब्दों में, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति शून्य से ज्यादा रहती है। आय के वृद्धि के साथ उपभोग में वृद्धि होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि दर आय में वृद्धि दर से कम होती है अर्थात् सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम रहती है। इन दोनों सीमाओं को मिलाकर हम कह सकते हैं कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान 0 व 1 के बीच में होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 22.
45° रेखा क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
अक्ष केन्द्र से 45° कोण पर खींची गई रेखा को 45° रेखा कहते हैं। दोनों अक्षों पर मापन का एक. समान पैमाना लिया जाता है। अत: 45° रेखा के प्रत्येक बिन्दु पर क्षैतिज एवं ऊर्ध्व अन्तर (राष्ट्रीय आय एवं उपभोग व्यय) बराबर रहते हैं। इस रेखा की सहायता से राष्ट्रीय आय एवं उपभोग की तुलना की जा सकती है। यदि उपभोग वक्र 45° रेखा से ऊपर होता है तो उपभोग व्यय आय से अधिक होता है। जब उपभोग वक्र, 45° रेखा को काटता है तो आय व्यय दोनों एक समान होते हैं और यदि 45° रेखा उपभोग के ऊपर होती है तो उपभोग व्यय आय से कम होता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 7

प्रश्न 23.
माँग का अभाव क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से कम होती है तो इसे माँग का अभाव या अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। न्यून माँग की स्थिति में अवस्फीति अन्तराल उत्पन्न हो जाता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 8

चित्र में राष्ट्रीय आय के OY1 स्तर पर समग्र माँग = AY1
समग्र पूर्ति = BY1 समग्र माँग AY1 < समग्र पूर्ति BY1
माँग का अभाव = BY1 – AY1 = AB

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प्रश्न 24.
MPS = 1 – MPC का क्या अर्थ है? MPC एवं MPS का योग सदैव एक क्यों होता है?
उत्तर:
MPS = 1 – MPC का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था अतिरिक्त राष्ट्रीय आय का वह भाग जो उपभोग पर खर्च नहीं हुआ बचत कर लिया गया या बचत में जुड़ गया क्योंकि आय को उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है। इसलिए सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति एवं सीमान्त बचत प्रवृत्ति का योग हमेशा एक होता है। गणितीय रूप में –
∆C + ∆S = ∆Y
\(\frac{∆C}{∆Y}\) + \(\frac{∆S}{∆Y}\) = \(\frac{∆Y}{∆Y}\) ∆Y से भाग देने पर
MPC + MPS = 1

प्रश्न 25.
औसत उपभोग प्रवृत्ति एवं औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ लिखिए। इनका सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
औसत उपभोग प्रवृत्ति-आय के किसी स्तर पर उपभोग एवं आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
औसत उपभोग प्रवृत्ति
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 9

औसत बचत प्रवृत्ति:
आय के किसी स्तर पर बचत एवं आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

औसत बचत प्रवृत्ति APS = बचत/आय = (S/Y)

APC तथा APS का योग सदैव एक के बराबर होता है क्योंकि आय का या तो उपभोग किया जाता है या बचत की जाती है।
APC + APS = 1
C + S = Y
\(\frac{C}{Y}\) + \(\frac{S}{Y}\) = \(\frac{Y}{Y}\) Y से भाग करने पर
APC + APS = 1

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित आँकड़ों से APC एवं APS ज्ञात कीजिए।
आय (Y) 0 100 200 300 400 500 600 700 800 900
उपभोग (C) 100 190 270 360 450 540 630 720 810 900
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 10

प्रश्न 27.
स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
स्वायत्त निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के सभी स्तरों पर एक समान पाया जाता है स्वायत्त निवेश कहलाता है। स्वायत्त निवेश लाभ प्रेरित नहीं होता है। स्वायत्त निवेश को अल्पकाल में नहीं बदला जा सकता है। दीर्घकाल में जनसंख्या परिवर्तन एवं तकनीकी परिवर्तन के साथ ही इस निवेश में परिवर्तन सम्भव होता है। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर भी होता है। प्रेरित निवेश-निवेश का वह भाग जो राष्ट्रीय आय के भिन्न-भिन्न स्तरों पर अलग-अलग पाया जाता है प्रेरित निवेश कहलाता है। प्रेरित निवेश लाभ से प्रभावित होता है। लाभ अधिक होने पर यह निवेश ज्यादा किया जाता है। इस प्रकार का निवेश अल्पकाल में भी बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार के निवेश को माल तालिका निवेश भी कहते हैं। इस प्रकार का निवेश राष्ट्रीय आय के शून्य स्तर पर शून्य होता है।

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प्रश्न 28.
माँग आधिक्य क्या होता है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तर पर समग्र आपूर्ति से अधिक होती है तो इसे माँग आधिक्य कहते हैं। माँग आधिक्य को अतिरेक माँग या अधिमाँग भी कहते हैं। माँग आधिक्य से स्फीति अन्तराल उत्पन्न होता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 11

चित्र में:
आय के OY1 स्तर पर
समग्र माँग = AY1
समग्र आपूर्ति = BY1
समग्र माँग AY1 समग्र आपूर्ति BY1
माँग आधिक्य = AY1 – BY1 = AB

प्रश्न 29.
सरकार क्षेत्र के समावेश से अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सरकार क्षेत्र की अनुपस्थिति में समग्र माँग, उपभोग व निवेश के योग के समान होते हैं।
AD = C + 1
सरकार क्षेत्र के समावेश के बाद समग्र माँग की स्थिति बदल जाती है। सरकार जन कल्याण के लिए व्यय करती है। अतः सरकारी व्यय के कारण समग्र माँग का स्तर बढ़ जाता है। सरकारी व्यय को हम स्थिर मानते हैं। अत: नया समग्र माँग वक्र पूर्व समग्र के समान्तर होता है परन्तु उसकी स्थिति ऊपर की ओर होती है। सरकारी समावेश के बाद सरकार माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की स्थितियों से निपटने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जैसे अभावी माँग की अवस्था सरकारी व्यय को बढ़ाकर प्रभावी माँग का स्तर ऊँचा किया जा सकता है। इससे अर्थव्यवस्था में उत्पादक अधिक उत्पादन करने के लिए और अधिक संसाधनों को रोजगार प्रदान करते हैं। इस प्रकार सरकारी हस्तक्षेप से अर्थव्यवस्था अपूर्ण-रोजगार से उत्पन्न स्फीतिकारी प्रभावों को कम करने के लिए सरकारी व्यय कम करके प्रभावी माँग का स्तर घटाया जा सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 12

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प्रश्न 30.
समझाइए कि अधिक बचत कम बचत को कैसे जन्म देती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय यह है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधनों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

प्रश्न 31.
समझाइए कि कम बचत से अधिक बचत कैसे हो जाती है?
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डार स्तर वांछित स्तर में कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो जाती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

प्रश्न 32.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से अधिक हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत का स्तर प्रायोजित निवेश से अधिक है तो इसका अभिप्राय यह होगा कि परिवार उससे कहीं अधिक उपभोग से बचने का प्रयास कर रहे हैं, जितना कि निदेशक निवेश करना चाहते हैं। परिणामस्वरूप बिना बिके हुए माल के स्टॉक में वृद्धि होगी अर्थात् उत्पादकों ने जो योजना बनाई थी वह पूरी नहीं होगी। बिना बिके माल को कम करने के लिए उत्पादक संसाधनों का कम प्रयोग करेंगे और सामान्य कीमत स्तर को भी कम करेंगे। इससे रोजगार उत्पादन, बचत और आय में कमी आएगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश के समान होगी।

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प्रश्न 33.
यदि अर्थव्यवस्था में प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम हो तो इसका राष्ट्रीय आय, रोजगार एवं कीमतों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि प्रायोजित बचत प्रायोजित निवेश से कम होती है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार जितनी राशि बचा रहा है वह फर्मों के निवेश के लिए पर्याप्त नहीं होगी अर्थात् परिवार ज्यादा व्यय करना चाहते हैं। इससे उपलब्ध वस्तुओं के भण्डार में कमी आएगी। फर्मों का वास्तविक निवेश प्रायोजित निवेश से कम रह जायेगा। ये बाध्य होकर माल भण्डार के स्तर को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाएंगे। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार और आय के स्तर में वृद्धि होगी। आय के ऊँचे स्तर पर बचत करने की क्षमता बढ़ेगी। परिवर्तन की यह प्रक्रिया उस समय तक जारी रहेगी जब तक बचत और निवेश समान होंगे।

प्रश्न 34.
अधिमाँग का अर्थ बताओ। इसका उत्पादन, रोजगार व कीमत स्तर पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
अधिमाँग-यदि पूर्ण-रोजगार स्तर पर नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं। अधिमाँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर ऊँचा होता है परिणामस्वरूप उत्पादक को सम्भावित आय से अधिक आय प्राप्त होती है। इससे उत्पादन बढ़ना या न बढ़ना निम्न स्थितियों पर निर्भर करता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 13

1. यदि पर्ण-रोजगार स्तर. साम्य रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर नहीं बढ़ेगा। इसलिए उत्पादन का स्तर भी नहीं बढ़ेगा। इस स्थिति, में केवल कीमत स्तर में तीव्र वृद्धि होगी। कीमतों में तीव्र वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. यदि पूर्ण-रोजगार स्तर साम्य रोजगार स्तर से अधिक है, तो अधिक उत्पादन करने के लिए फर्म रोजगार की संख्या बढ़ा सकते हैं। इससे उत्पादन भी बढ़ेगा। इस स्थिति में उत्पादन, रोजगार व कीमत तीनों का स्तर ऊँचा होगा।

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प्रश्न 35.
अभावी माँग से क्या समझते हैं? इसके प्रभाव को चित्र द्वारा उत्पादन रोजगार और आय पर दर्शाइए।
उत्तर:
अभावी माँग-यदि अनुमानित सामूहिक उपभोग पूर्ण-रोजगार प्रदान करने वाला अनुमानित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इसे अभावी माँग कहते हैं। उत्पादन, रोजगार व आय पर प्रभाव-अभावी माँग की स्थिति में सामान्य कीमत स्तर नीचे गिर जाता है। इससे उत्पादकों को अनुमानित आय से कम आय प्राप्त होती है। वे निरुत्साहित होते हैं और उत्पादन कम करने का निर्णय लेते हैं। उत्पादन स्तर घटाने के लिए उत्पादक कुछ उत्पादन साधनों को उत्पादन प्रक्रिया से हटा देते हैं। इस प्रकार सामान्य कीमत स्तर के साथ-साथ उत्पादन, रोजगार व आय सभी का स्तर गिर जाता है। गिरावट का यह चक्र अर्थव्यवस्था को आर्थिक मन्दी की
ओर धकेल सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 14

प्रश्न 36.
प्रोफेसर जे. एम. कीन्स के ‘मितव्ययिता के विरोधाभास’ की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
आर्थिक महामन्दी के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए जे. एम. कीन्स ने बचत का विरोध किया था। उससे अधिक उपभोग करने पर जोर दिया था क्योंकि अधिक बचत कम बचत को तथा कम बचत अधिक बचत को जन्म देती है। इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है यदि अर्थव्यवस्था में परिवार अधिक बचत करते हैं तो इसका अभिप्राय है कि वे उपभोग को घटा रहे हैं। दूसरे शब्दों में, वे उत्पादकों द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं की वांछित मात्रा से कम क्रय करते हैं। इससे उत्पादकों के पास बिना बिके माल का स्टॉक बढ़ता है। बिना बिके माल के स्टॉक को कम करने के लिए उत्पादक कीमत स्तर को घटाते हैं और संसाधानों का प्रयोग भी कम करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादन, रोजगार एवं राष्ट्रीय आय के स्तर में कमी आ जाती है। आय के निम्न स्तर पर अथवा बेरोजगारी के स्तर पर परिवारों की बचत करने की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है अर्थात् बचत का स्तर कम हो जाता है। इस प्रकार अधिक बचत, बचत स्तर को घटाती है।

यदि अर्थव्यवस्था में बचत का स्तर कम पाया जाता है तो इसका अभिप्राय यह है कि परिवार अपनी आय का अधिक भाग व्यय करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे उपभोग को अधिक करने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं की अधिक खरीदारी करते हैं। परिणामस्वरूप उत्पादकों का माल भण्डारण स्तर वांछित स्तर से कम हो जाता है। माल भण्डार को वांछित स्तर पर लाने के लिए वे अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं। उत्पादन के स्तर को बढ़ाने के लिए अधिक संसाधनों को काम पर लगाते हैं। परिणामस्वरूप राष्ट्रीय उत्पादन, आय एवं रोजगार के स्तर में वृद्धि होती है। राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का स्तर ऊँचा होने से परिवारों की बचत क्षमता में वृद्धि हो सकती है अर्थात् वे अधिक बचत कर सकते हैं। अतः कम बचत से बचत का स्तर ऊँचा होता है।

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प्रश्न 37.
स्थिर कीमत पर साम्य सामूहिक माँग के निर्धारक तत्त्व बताइए।
उत्तर:
स्थिर कीमत व व्याज दर पर साम्य सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
AS = AD
य Y = AD
य Y = A + CY
य (A = C + I)
य Y – CY = AY
य (1 – c) = A
य Y = \(\frac{A}{1-C}\)
Y का मान A तथा (के मान से निर्धारित होगा।
A = स्वायत्त उपभोग + स्वायत्त निवेश A का मान बढ़ने पर रेखा ऊपर की ओर खिसक जाती है।
C → रेखा का ढाल है इसमें वृद्धि से रेखा ऊपर की ओर झुक जाती है।

प्रश्न 38.
उदाहरण की सहायता से अधिमाँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान हो तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से ज्यादा हो तो इस स्थिति को अधिमाँग कहते हैं।
माना स्वायत्त उपभोग व्यय (C) = 50
स्वायत्त निवेश व्यय (I) = 20
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति = 0.8
नियोजित सामूहिक पूर्ति = 300
नियोजित सामूहिक माँग = C+ I + cY
= 350 + 20 + 0.8 × 300
= 70 + 240 = 310
सामूहिक माँग AD (310 रु.), सामूहिक पूर्ति AS (300 रु.) से अधिक है।

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प्रश्न 39.
एक उदाहरण की सहायता से अभावी माँग की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्रभावी माँग सिद्धान्त के अनुसार यदि पूर्व नियोजित सामूहिक माँग नियोजित सामूहिक पूर्ति के समान है तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होती है। यदि नियोजित सामूहिक माँग, नियोजित सामूहिक पूर्ति से कम होती है तो इस स्थिति को अभावी माँग या न्यून माँग कहते हैं। माना स्वायत्त अन्तिम उपभोग 50 रु. है, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = 0.8 है तथा आय का स्तर 500 रु. है तब
सामूहिक माँग = C + I + cY
= 50 + 20 + 0.8 × 500
= 70 + 400 = 470 रु.
अर्थव्यवस्था अभावी माँग की स्थिति होगी क्योंकि साम्य अवस्था के लिए सामूहिक माँग का स्तर 500 रु. होना चाहिए।

प्रश्न 40.
Y = C+ I + cY समीकरण में समाशोधन कीजिए जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है।
उत्तर:
जब सरकार आर्थिक क्रियाकलापों में हस्तक्षेप नहीं करती है तो राष्ट्रीय आय एवं सामूहिक माँग का समीकरण होता है –
Y = C + I + cY
Y = A+ cY
जब सरकार आर्थिक क्रियाओं में हस्तक्षेप करती है तो वस्तुओं एवं सेवाओं पर व्यय करके उपभोग माँग को बढ़ाती है दूसरी ओर सरकार जनता पर कर लगाकर प्रयोज्य आय को कम कर देती है। इस प्रकार से समाशोधित समीकरण निम्नलिखित होगा
Y = C + I + G + c (Y – T)

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प्रश्न 41.
b = ma + एक सीधी रेखा का समीकरण है। प्रयुक्त संकेताक्षरों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
b = ma एक सीधी रेखा का समीकरण है।
चर m का मान शून्य से अधिक है। इसे समीकरण का ढाल कहते हैं। (“) चार उर्ध्वाधर अक्ष का भाग है जिसे रेखा काटती है। जब a में एक (इकाई) वृद्धि होती है तो m का मान m इकाई बढ़ जाता है। इसे रेखा के साथ चरों का संचरण कहते हैं।

प्रश्न 42.
स्थिरॉक क्या करते हैं?
उत्तर:
समीकरण b = ma + “में m तथा” को रेखा के स्थिराँक कहते हैं। ये स्थिराँक चरों की भाँति अक्षों पर नहीं दर्शाए जाते हैं। लेकिन ये पर्दे के पीछे काम करते हैं और रेखा की स्थिति को नियंत्रित करते हैं। जैसे जब m का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर की ओर संचरित हो जाती है जिसे स्थिराँक खिसकाव कहते हैं। जब ” का मान बढ़ता है तो रेखा ऊपर (समान्तर) खिसक जाती है।

प्रश्न 43.
समीकरण Y = C + I + cY अथवा Y = A + CY क्या दर्शाता है?
उत्तर:
समीकरण Y = C + I + cY तथा Y = A + cY दर्शाता है –
बाँया पक्ष का चर Y अर्थव्यवस्था की पूर्व नियोजित आय या उत्पाद या सामूहिक पूर्ति को दर्शाता है। दाँया पक्ष C+ I + cY या A+ cY अर्थव्यवस्था में सामूहिक माँग को दर्शाता है सामूहिक माँग C + I या A भाग राष्ट्रीय आय से प्रभावित नहीं होता है जबकि cY भाग राष्ट्रीय आय में परिवर्तन या सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से प्रभावित होता है। यदि अर्थव्यवस्था में नियोजित सामूहिक पूर्ति व नियोजित सामूहिक माँग दोनों समान होते हैं तो अर्थव्यवस्था सन्तुलन में होगी।

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प्रश्न 44.
जब A तथा C के मान में वृद्धि होती है तो साम्य सामूहिक माँग तथा साम्य सामूहिक पूर्ति पर प्रभाव समझाइए।
उत्तर:
जब अर्थव्यवस्था में स्वायत्त उपयोग A में बढ़ोतरी होती है तो साम्य सामूहिक माँग एवं सामूहिक पूर्ति ऊपर की ओर खिसक जायेगी। स्वायत्त उपभोग में बढ़ोतरी होने से अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होगी। अधिमाँग की स्थिति अर्थव्यवस्था को पुनः सन्तुलन स्थापित करने की दिशा में परिवर्तन करना पड़ता है। परिणामतः साम्य उत्पाद एवं सामूहिक माँग बढ़ जायेगी। इसे निम्नांकित चित्र में दर्शाया गया है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 15

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करने वाले कारक समझाइए।
उत्तर:
उपभोग प्रवृत्ति को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं –
1. राष्ट्रीय आय-जे. एम. कीन्स ने उपभोग प्रवृत्ति का सबसे प्रमुख निर्धारित तत्त्व आय को बताया है। आय के बढ़ने पर उपभोग बढ़ता है परन्तु आय के बढ़ने पर उपभोग प्रवृत्ति घटती है और आय के घटने पर वह घटता है।

2. आय का वितरण-धन के असमान रूप से वितरण होने पर समाज के धनी वर्ग की बचत क्षमता बढ़ जाती है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घटती है। अतः उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि के लिए आय का समान वितरण आवश्यक है।

3. भावी परिवर्तन – भविष्य में होने वाली घटनाओं के प्रति अपेक्षाओं से भी उपभोग प्रवृत्ति प्रभावित होती है। यदि किसी युद्ध या अन्य प्रकार के संकट की सम्भावना हो तो लोग अधिक वस्तुओं का क्रय करेंगे और इससे उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा।

4. साख की उपलब्धता-आजकल उपभोक्ताओं को किस्त व साख सुविधाएँ मिलने लगी है। उपभोक्ता नयी-नयी वस्तुओं जैसे मकान, कार आदि उधार क्रय करते हैं या साख सुविधा प्राप्त कर किस्तों में क्रय कर सकते हैं। जिससे उपभोग प्रवृत्ति बढ़ती है।

5. ब्याज दर में परिवर्तन-यदि ब्याज में वृद्धि हो जाती है तो ऊँची ब्याज दर का लाभ उठाने के उद्देश्य से लोग उपभोग कम करके अधिक बचत करते हैं अर्थात् उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

6. कर नीति-यदि सरकार ज्यादा कर लगाती है तो प्रयोज्य आय कम हो जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है तथा इसके विपरित यदि सरकार कम कर लगाती है तो प्रयोज्य आय बढ़ जाती है परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

7. लाभांश नीति-यदि निगम अथवा संयुक्त पूँजी कम्पनियाँ अधिक धन सुरक्षित कोष में रखने का निर्णय लेती है अर्थात् अंशधारियों को कम राशि लाभांश के रूप में वितरित करती है तो लोगों को कम आय प्राप्त होगी और उपभोग कम होगा।

8. भविष्य में आय-परिवर्तन की सम्भावना-यदि भविष्य में लोगों को आय में बढ़ोतरी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है तथा इसके विपरीत यदि भविष्य में लोगों को आय में कमी की उम्मीद होती है तो वर्तमान उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।

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प्रश्न 2.
आय एवं रोजगार का परम्परावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
आय एवं रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्तों में जे. बी. से का बाजार नियम सबसे प्रमुख है। से के नियम के अनुसार आपूर्ति अपनी माँग की स्वयं ही जननी होती है। दूसरे शब्दों में यदि उत्पादन हो तो उसके लिए बाजार भी पैदा हो जाता है। कीमत तन्त्र के सहारे चलने वाली अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन, बेरोजगारी एवं मुद्रा स्फीति की समस्या उत्पन्न नहीं होती है। यदि उपरोक्त कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तो लोचशील वस्तु की कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से स्वतः ही ठीक हो जाती है। अतः परम्परावादी सिद्धान्त में सरकारी हस्तक्षेप को नकारा गया है। मजदूरी-कीमत नम्यता मिलकर ऐसे स्वचालित बाजार प्रक्रिया की रचना करते हैं कि अर्थव्यवस्था में हमेशा पूर्ण-रोजगार स्तर उत्पादन होता है। वस्तु बाजार, श्रम बाजार एवं मुद्रा बाजार में सन्तुलन की प्रक्रिया निम्नलिखित ढंग से कायम रहती है।

1. वस्तु बाजार:
कीमत नम्यता के आधार पर वस्तु बाजार में सदैव संतुलन की स्थिति रहती है। आपूर्ति माँग की जननी होती है। उत्पादन से आय का सृजन होता है। सृजित आय उत्पादन साधनों को प्राप्त होती है। साधनों के स्वामी वस्तुओं की माँग करते हैं। यदि किसी समय समग्र आपूर्ति, समग्र माँग से अधिक हो जाती है तो कीमत नभ्यता के कारण वस्तुओं का साम्य कीमत स्तर गिर जाता है। अतः समग्र माँग बढ़ने लगती है। कीमत में परिवर्तन के कारण समग्र माँग में परिवर्तन उस स्थिति तक जारी रहता है जब तक समग्र माँग, समग्र आपूर्ति के बराबर होती है।

2. श्रम बाजार-से के अनुसार श्रम बाजार में सदैव पूर्ण-रोजगार की स्थिति पायी जाती है। यदि किसी समय अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न होती है तो मजदूरी सम्यता उसे स्वतः ठीक कर देती है। प्रचलित मजदूरी दर पर सबको काम मिल जाता है। बेरोजगारी की अवस्था में मजदूरी दर गिर जाती है। कम मजदूरी दर पर श्रम की माँग अधिक होती है। अत: उत्पादन उस बिन्दु पर होता है जहाँ विश्राम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है।

3. मुद्रा बाजार-से के नियमानुसार मुद्रा की माँग एवं आपूर्ति दोनों ब्याज सापेक्ष होती है एवं दोनों सन्तुलन में होती है। मुद्रा की माँग निवेश के लिए की जाती है तथा मुद्रा की आपूत्ति बचत के द्वारी होती है। ब्याज दर बचत एवं निवेश को सन्तुलन में रखती है। संक्षेप में, अर्थव्यवस्था में सन्तुलन का निर्धारण लोचशील कीमत, लोचशील मजदूरी दर एवं लोचशील ब्याज दर से होता है। कीमत-मजदूरी नम्यता के द्वारा स्वचालित सन्तुलन प्रक्रिया कायम रहती है।

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प्रश्न 3.
अधिमाँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय उपाय-नीति कहते हैं। माँग आधिक्य को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। अधिक माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से कम करके समग्र माँग के स्तर को कम कर सकती है। यदि सरकारी व्यय को जन कल्याण की भावना से कम करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को बढ़ने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। अधिमाँग की अवस्था में सरकार कठोर कर नीति बना सकती है। कठोर नीति में सरकार ऊँचे कर लगाती है। कर की ऊँची दर पर लोगों
की प्रयोज्य आय कम हो जाती है। प्रयोज्य आय घटने से लोगों का उपभोग कम हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए सरकार कठोर मजदूरी नीति बनाकर अनावश्यक रूप से मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ाने पर रोक लगा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग अनावश्यक रूप से नहीं बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात:
आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। अधिमाँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को बढ़ाने के लिए कठोर निर्यात नीति एवं उदार आयात नीति बना सकती है।

5. उत्पादन नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार फर्मों को पंजीकरण, लाइसेंस, आर्थिक अनुदान आदि प्रदान करती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की समग्र आपूर्ति को बढ़ाने के लिए सरकार उदार उत्पादन नीति बनाकर पंजीकरण, लाइसेंसिग आदि में छूट देकर उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकती है। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।

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प्रश्न 4.
अधिमाँग का अर्थ बताइए। इसे ठीक करने के मौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से ज्यादा होती है तो इसे अधिमांग या माँग आधिक्य कहते हैं। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीतियाँ कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित हैं –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस दर पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर ऊँची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना महंगा हो जाता है। अत: कम साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति घट जाती है और उपभोग का स्तर कम हो जाता है। समग्र माँग का आधिक्य कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात CRR की दर को बढ़ा सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद राशि कम रह जाएगी और कम साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग कम होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का आधिक्य कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की मांग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग आधिक्य को कम करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को ऊँची कर सकता है। व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता घट जाएगी। कम साख की वजह से उपभोग का स्तर घटेगा और माँग आधिक्य का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। अधिमाँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंक को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह व्यापारिक बैंकों से केन्द्रीय बैंक की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता घट जाती है। परिवारों का उपभोग भी कम हो जाता है। इस प्रकार माँग आधिक्य पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख की राशनिंग-केन्द्रीय बैंक यदि व्यापारिक बैंकों की साख सृजन की उच्च सीमा तय कर देता है तो इसे साख की राशनिंग कहते हैं। साख राशनिंग होने से व्यापारिक बैंक निश्चित सीमा से अधिक साख का सृजन नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार परिवारों का उपभोग भी नियंत्रण में रहता है। माँग आधिक्य बेकाबू नहीं हो पाता है।

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प्रश्न 5.
न्यून माँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय समझाइए।
उत्तर:
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति पर नियंत्रण करने के लिए सरकार जो उपाय करती है उन्हें राजकोषीय नीति कहते हैं। माँग न्यूनता को ठीक करने के लिए निम्नलिखित राजकोषीय उपाय है –
1. बजट:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकारी आय-व्यय के अनुमान का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार सार्वजनिक व्यय को आय से अधिक करके समग्र माँग के स्तर को बढ़ा सकती है। यदि सरकारी व्यय को जनकल्याण की भावना से अधिक करना असंभव हो तो सरकार संतुलित बजट बनाकर समग्र माँग के स्तर को घटने से रोक सकती है।

2. कर नीति:
कर नीति के द्वारा सरकार प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों की दर तय करती है। न्यून माँग की अवस्था में सरकार उदार कर नीति बना सकती है। उदार नीति में सरकार नीचे कर लगाती है। कर की नीचि दर पर लोगों की प्रयोज्य आय अधिक हो जाती है। प्रयोज्य आय बढ़ने से लोगों का उपभोग अधिक हो जाता है।

3. मजदूरी नीति:
इस नीति के द्वारा सरकार श्रमिकों के पारिश्रमिक की दर तय करती है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए सरकार उदार मजदूरी नीति बनाकर मजदूरों के वेतन एवं भत्ते बढ़ा सकती है। इससे मजदूरों की क्रय शक्ति बढ़ती है। वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग बढ़ती है।

4. आयात-निर्यात-आयात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व से वस्तुएँ क्रय करती है। इससे वस्तुओं की आपूर्ति बढ़ती है। दूसरी ओर, निर्यात के द्वारा अर्थव्यवस्था शेष विश्व को वस्तुएँ बेचती है इससे अर्थव्यवस्था में वस्तुओं की आपूर्ति कम हो जाती है और समग्र माँग बढ़ जाती है। न्यून माँग की स्थिति में सरकार आपूर्ति को घटाने के लिए उदार निर्यात नीति एवं कठोर आयात नीति बना सकती है।

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प्रश्न 6.
न्यून माँग का अर्थ बताएँ। इसे ठीक करने के पौद्रिक उपाय समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में यदि वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय वांछित समग्र उत्पादन से कम होती है तो इसे न्यून माँग या माँग अभाव कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक जो उपाय करता है उन्हें मौद्रिक उपाय या मौद्रिक नीति कहते हैं। ये उपाय निम्नलिखित है –

1. बैंक दर-अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक जिस पर व्यापारिक बैंकों को उधार या अग्रिम प्रदान करता है या उनके बिलों के भुगतान पर कटौती करता है उसे बैंक दर कहते हैं। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक दर को नीची कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के लिए साख सृजन करना सस्ता हो जाता है। अतः ज्यादा साख का सृजन होता है। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है और उपभोग का स्तर अधिक हो जाता है। समग्र माँग का अभाव कम होने लगता है।

2. नकद जमा अनुपात-व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास जमा कराते हैं। जिस दर पर व्यापारिक बैंक को नकद राशि जमा करानी पड़ती है उसे नकद जमा अनुपात कहते हैं।
न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक नकद जमा अनुपात (CRR) की दर को कम कर सकता है। ऐसा करने से व्यापारिक बैंकों के पास नकद् राशि बढ़ जाएगी और वे अधिक साख का सृजन कर सकेंगे। परिणामस्वरूप उपभोग प्रवृत्ति एवं उपभोग अधिक होंगे। इस प्रकार समग्र माँग का अभाव कम हो सकेगा।

3. संवैधानिक तरलता अनुपात-माँग जमाओं की माँग को पूरा करने के लिए व्यापारिक बैंक को जिस दर पर नकद मुद्रा रखनी पड़ती है उसे संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) कहते हैं। माँग अभाव को अधिक करने के लिए केन्द्रीय बैंक SLR को नीची कर सकता है। इससे व्यापारिक बैंकों के उधार देने की क्षमता बढ़ जाएगी। अधिक साख की वजह से उपभोग का स्तर बढ़ेगा। माँग अभाव का प्रभाव कम हो सकेगा।

4. खुले बाजार की क्रियाएँ-इन क्रियाओं के माध्यम से केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय व्यापारिक बैंकों के साथ कर सकता है। न्यून माँग को ठीक करने के लिए केन्द्रीय बैंक सरकारी प्रतिभूतियाँ व्यापारिक बैंकों को बेच सकता है। इससे नकद मुद्रा का प्रवाह केन्द्रीय बैंक से व्यापारिक बैंकों की ओर होने लगता है और व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है। परिवारों का उपभोग की अधिक हो सकता है। इस प्रकार माँग न्यूनता पर नियंत्रण हो सकता है।

5. साख को प्रोत्साहन-माँग अभाव से मुक्ति पाने के लिए केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अधिक से अधिक साख सृजन करने के निदेश देने के अलावा अधिक साख सृजन करने वाले बैंकों को पुरस्कृत भी कर सकता है। अधिक साख से उपभोग में वृद्धि होती है।

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प्रश्न 7.
आय एवं रोजगार का केन्जीयन सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
केन्जीयन सिद्धान्त में आपूर्ति को सामान्य कीमत स्तर के प्रति लोचशील माना गया है। जे. एम. कीन्स का लोचशील आपूर्ति विचार मजदूरी-कीमत लोचहीनता एवं श्रम की स्थिर सीमान्त उत्पादकता पर आश्रित है। बेलोच मजदूरी दर तथा स्थिर सीमान्त उत्पादकता के ही कारण कीमत में लोचहीनता उत्पन्न होती है। प्रत्येक अतिरिक्त इकाई की उत्पादन लागत एक समान रहती है। यह लागत अतिरिक्त श्रम की संख्या एवं मजदूरी दर के गुणनफले के समान होती है।

इसलिए कीमतों में कोई परिवर्तन किए बगैर उत्पादन पूर्ण-रोजगार स्तर तक बढ़ाया जा सकता है। पूर्ण-रोजगार स्तर प्राप्त होने के बाद उत्पादन में बढ़ोतरी की तमाम उम्मीद खत्म हो जाती है। क्योंकि पूर्ण-रोजगार स्तर पर अर्थव्यवस्था सभी संसाधनों की चरम सीमा का प्रयोग करती है। मजदूरी अन्म्यता पूर्ण-रोजगार प्राप्ति में बाधक होती है। यदि मजदूरी ऐसी अवस्था में जड़ हो जाती है जहाँ श्रम की आपूर्ति माँग से अधिक होती है तो अतिरिक्त श्रम अनैच्छिक रूप से बेरोजगार हो जाता है।

अर्थव्यवस्था में सन्तुलन उस अवस्था में होता है जब किसी सामान्य कीमत स्तर पर समग्र माँग एवं समग्र आपूर्ति दोनों बराबर होती है। वह सामान्य कीमत स्तर, सन्तुलन कीमत स्तर एवं सन्तुलन बिन्दु पर रोजगार स्तर, सन्तुलन रोजगार कहलाता है। सन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है –

  1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन
  2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन

1. पूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
सन्तुलन की इस अवस्था में सभी संसाधनों की पूर्ण क्षमता का विदोहन होता है। इसलिए इस स्तर की प्राप्ति के बाद अर्थव्यवस्था में आय एवं उत्पादन की मात्रा को नहीं बढ़ाया जा सकता है। केवल सामान्य कीमत स्तर तेजी से बढ़ता है। सामान्य कीमत स्तर में तीव्र, वृद्धि को मुद्रा स्फीति कहते हैं।

2. अपूर्ण-रोजगार सन्तुलन:
इस स्थिति में अर्थव्यवस्था सभी साधनों की पूर्ण क्षमता का प्रयोग नहीं कर पाती है। कुछ साधन बिना प्रयोग या अधूरे प्रयोग के कारण बेकार पड़े रहते हैं। कीन्स साधनों की बेकारी का कारण समग्र माँग के अभाव को मानते हैं। प्रभावी माँग का स्तर बढ़ाने से सामान्य कीमत स्तर में बढ़ोतरी होती है। कीन्स के प्रतिमान में समग्र आपूर्ति कीमत के प्रति लोचशील होती है। अतः कीमत स्तर बढ़ने पर उत्पादक अधिक आपूर्ति करने के लिए संसाधनों का नियोजन बढ़ाते हैं। अतः माँग प्रबन्धन नीति के माध्यम से सरकार प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को अपूर्ण-रोजगार स्तर से पूर्ण-रोजगार स्तर तक ले जा सकती है। चित्र में-सन्तुलन बिन्दु E पर
प्रभावी माँग = EY
सन्तुलन रोजगार = ON1
प्रभावी माँग का बढ़ा हुआ स्तर = E1Y1
सन्तुलन रोजगार = ON1
ON1 > ON
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प्रश्न 8.
रोजगार के परम्परावादी सिद्धान्त तथा केन्ज (कीन्स) के सिद्धान्त में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 17

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प्रश्न 9.
समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति के द्वारा आय, उत्पादन एवं रोजगार का निर्धारण किस प्रकार होता है। समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सामान्य कीमत स्तर पर सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित माँग के योग को समग्र माँग (AD) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल वांछित आपूर्ति को समग्र आपूर्ति (AS) कहते हैं। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय होगी जब (AD) व (AS) दोनों एक समान होंगे। दूसरे शब्दों में, जब उपभोक्ता एवं निवेश वस्तुओं एवं सेवाओं की उतनी मात्रा खरीदने के लिए तैयार है जितनी सभी उत्पादक पैदा करते हैं। इसके अलावा सन्तुलन की कोई स्थिति नहीं हो सकती है। आय व रोजगार के जिस स्तर पर (AD) व (AS) समान होते हैं उसे सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं सन्तुलन रोजगार कहते हैं। इस सन्तुलन को निम्न अनुसूची एवं चित्र की सहायता से भी दर्शाया जा सकता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 18

तालिका में सन्तुलन राष्ट्रीय आय = 80
क्योंकि इस स्तर पर (AD) = (AS) = 80
चित्र में बिन्दु E सन्तुलन बिन्दु है क्योंकि इस बिन्दु पर AD = AS
इस बिन्दु पर सन्तुलन आय = OY
सन्तुलन आय/रोजगार = ON
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 19

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प्रश्न 10.
माँग अभाव एवं माँग आधिक्य की समस्याओं से कैसे निपटा जा सकता है?
उत्तर:
माँग अभाव:
यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, पूर्ण-रोजगार स्तरीय समग्र आपूर्ति सक कम होती है तो इसे माँग अभाव कहते हैं। इसमें सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है और उत्पादकों के पास बिना बिके माल का भण्डार अधिक होने लगता है। अत: कम उत्पादन करने के लिए वे संसाधनों को रोजगार से हटाने लगते हैं। अर्थव्यवस्था बेरोजगारी एवं आर्थिक मंदी से जूझने लगती है। इस समस्या का निराकरण प्रभावी माँग के स्तर को बढ़ाकर किया जा सकता है। सरकार आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करके समग्र माँग को बढ़ाती है। समग्र माँग को बढ़ाने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों में सरकार सार्वजनिक व्यय को बढ़ा सकती है अथवा कर कम करके लोगों की प्रयोज्य आय को बढ़ा सकती है।

प्रयोज्य आय के ऊँचे स्तर पर उपभोग ज्यादा किया जा सकता है। सरकार मौद्रिक उपायों जैसे बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि के माध्यम से अधिक साख का सृजन करके उपभोग को बढ़ा सकती है। माँग आधिक्य-यदि अर्थव्यवस्था में समग्र माँग पूर्ण-रोजगार स्तरीय समन आपूर्ति से अधिक होती है तो माँग आधिक्य कहते हैं। इसके स्फीतिकारी प्रभाव होते हैं। स्फीतिकारी प्रभावों पर लगाम कसने के लिए सरकार राजकोषीय एवं मौद्रिक उपाय अपना सकती है। राजकोषीय उपायों के माध्यम से सरकार सार्वजनिक व्यय को घटा सकती है अथवा करों की दर बढ़ा कर लोगों की प्रयोज्य आय कम कर सकती है अथवा दोनों उपायों का प्रयोग कर माँग आधिक्य में कमी ला सकती है। माँग आधिक्य को कम करने के लिए या अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में बनाये रखने के लिए केन्द्रीय बैंक, बैंक दर, नकद जमा अनुपात, खुले बाजार की क्रियाओं आदि उपायों के माध्यम से साख सृजन को घटा सकता है। कम साख पर उपभोग कम किया जाता है।

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प्रश्न 11.
साम्य राष्ट्रीय आय एवं रोजगार निर्धारण की वैकल्पिक विधि समझाइए अथवा, बचत एवं निवेश के द्वारा सन्तुलन आय एवं रोजगार का निर्धारण बताइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में बचत फलन का प्रत्येक बिन्दु राष्ट्रीय आय के विशेष स्तर पर वांछित बचत योजनाओं को प्रदर्शित करता है। उपभोग एवं बचत का योग राष्ट्रीय आय के समान होता है। दूसरे शब्दों में, उपभोग एवं बचत एक-दूसरे के पूरक हैं। निवेश माँग मुख्य रूप से ब्याज दर से तय होती है। परन्तु हम अपने प्रतिमान में ब्याज दर नहीं दिखा रहे हैं। यह मान रहे हैं कि उत्पादन एवं आय स्तर का निर्धारण निवेश के द्वारा होता है। अर्थव्यवस्था में सन्तुलन की अवस्था उस समय उत्पन्न होगी जब परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजनाओं के समान होगी।

उत्पादन के जिस स्तर पर परिवारों की बचत योजनाओं एवं निवेश योजनाएँ समान होती है। वह सन्तुलन उत्पादन, सन्तुलन राष्ट्रीय आय एवं रोजगार का सन्तुलन स्तर होता है क्योंकि यदि परिवारों की बचत योजनाएँ निवेशकों की निवेश योजना से मेल खाती है तो उनकी योजनाएँ सफल होती है। दोनों पक्ष उसी तरह काम करेंगे जैसे काम कर रहे थे। बचत एवं निवेश की असमानता में सन्तुलन कायम नहीं हो सकता है। निवेश एवं बचत के द्वारा साम्य को निम्न तालिका एवं चित्र में भी दर्शाया गया है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 20

तालिका में राष्ट्रीय आय के 80 स्तर पर
बचत = निवेश = 20
अतः सन्तुलित राष्ट्रीय/आय = 80 चित्र में बिन्दु E पर
प्रायोजित बचत = प्रायोजित निवेश
S = I
अतः बिन्दु E साम्य बिन्दु है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 21

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 12.
निवेश गुणक का अर्थ बताएँ। गुणक सिद्धान्त की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में निवेश में परिवर्तन के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में परिवर्तन एवं निवेश में परिवर्तन के अनुपात को निवेश गुणक कहते हैं।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 22
K = \(\frac{∆Y}{∆I}\)

निवेश में परिवर्तन के कारण राष्ट्रीय आय में परिवर्तन की दर को निवेश गुणक कहते हैं। निवेश गुणक सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रो. जे. एम. कीन्स ने किया था । गुणक सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि एक व्यक्ति द्वारा किया गया व्यय अन्य लोगों की आमदनी बनता है। इस सिद्धान्त में आय एवं रोजगार का स्तर बढ़ाने के लिए मितव्ययिता का विरोध किया गया है। निवेश गुणक की क्रिया को काल्पनिक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है।

माना अर्थव्यवस्था 100 करोड़ अतिरिक्त निवेश करती है। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। 100 करोड़ निवेश का अर्थ होगा कि पूंजीगत वस्तु बेचने वालों को 100 करोड़ रुपये की आय प्राप्त होगी। उपभोग प्रवृत्ति 0.8 होने के कारण वे 80 करोड़ रुपये व्यय करेंगे। इससे वस्तुएँ एवं सेवाएँ बेचने वालों को 80 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। उपभोग प्रवृत्ति के आधार पर वे 64 करोड़ खर्च करेंगे। यह क्रम चलता रहेगा और अर्थव्यवस्था में 500 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय का सृजन होगा। इस प्रक्रिया को निम्न तालिका के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 23

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
यदि आय 600 रुपये से बढ़कर 1000 रुपये हो जाती है और बचत का स्तर 200 रुपये से बढ़कर 500 रुपये हो जाता है; तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर:
आय में परिवर्तन = 1000 – 600 रुपये = 400 रुपये
बचत में परिवर्तन = 500 – 200 रुपये = 300 रुपये
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 24

प्रश्न 2.
प्रश्न संख्या 1 के आँकड़ों का प्रयोग करके सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
आय = 600 रुपये, बचत = 200 रुपये
उपभोग = 600 – 200 रुपये = 400 रुपये
आय = 1000 रुपये, बचत = 500 रुपये
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 25

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 26
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 27

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आँकड़ों से समग्र माँग अनुसूची एवं समग्र माँग वक्र बनाएँ। समग्र माँग अनुसूची (करोड़ रु. में)Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 28

उत्तर:
अर्थव्यवस्था में समग्र माँग, उपभोग माँग और निवेश माँग के जोड़ के बराबर होती है। इसलिए उपभोग मांग अनुसूची और निवेश माँग अनुसूची को जोड़कर समग्र माँग अनुसूची प्राप्त हो जाती है। इसे निम्नलिखित तालिका में दर्शाया गया है –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 29

समग्र माँग अनुसूची से बनाया गया रेखाचित्र समग्र माँग वक्र कहलाता है या समग्र माँग वक्र को उपभोग माँग वक्र एवं निवेश माँग वक्र को जोड़कर भी बनाया जा सकता है। इसे रेखाचित्र में दर्शाया गया है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 30

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 5.
यदि कोई अर्थव्यवस्था 500 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश करती है और अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 9 है, तो निम्नलिखित की गणना करें –

  1. निवेश गुणांक
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि

उत्तर:
1.
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 31

= \(\frac{1}{1-MPC}\) = \(\frac{1}{1-9}\) = \(\frac{1}{1}\) = \(\frac{10}{1}\) = 10

2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि = निवेश गुणांक × निवेश वृद्धि
∆Y = K × AI = 10 × 500 = 5000 करोड़ रु.
निवेश गुणांक (K) = 10; राष्ट्रीय आय में वृद्धि (∆Y) = 5000 करोड़ रु.

प्रश्न 6.
निम्नलिखित बचत फलन और तालिका से सन्तुलन राष्ट्रीय आय का स्तर बताइए।
बचत फलन -S = -1000 + 5Y
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 32
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 33

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 7.
निम्नलिखित उपभोग फलन और तालिका से सन्तुलन उत्पादन स्तर बताइए। उपभोग फलन – C = 1000 + 5Y
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 34
उत्तर:
उत्पादन स्तर का निर्धारण –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 35
उपरोक्त तालिका में सन्तुलन उत्पादन स्तर 2500 होगा, क्योंकि इस स्तर पर समग्र माँग समग्र आपूर्ति के बराबर है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 8.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 36
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 37

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा, यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.2 है –
(A) 0.8
(B) 0.7
(C) 0.6
(D) 0.4
उत्तर:
(A) 0.8

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 2.
The General Theory of Employment, interest and Money 7140 y Fitch लिखी है –
(A) रिकार्डो ने
(B) जे. एम. कीन्स ने
(C) जे. बी. से. ने
(D) मार्शल ने।
उत्तर:
(B) जे. एम. कीन्स ने

प्रश्न 3.
एक निश्चित समयावधि में अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य को कहते हैं –
(A) समग्र माँग
(B) समग्र पूर्ति
(C) समग्र निवेश
(D) समग्र ब्याज
उत्तर:
(B) समग्र पूर्ति

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था में उस समय सन्तुलन अवस्था होगी –
(A) पूर्ति के बराबर होगी
(B) पूर्ति से अधिक होगी
(C) पूर्ति के कम होगी।
(D) पूर्ति से कोई संबंध नहीं होगा
उत्तर:
(A) पूर्ति के बराबर होगी

प्रश्न 5.
आय के सन्तुलन स्तर पर –
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं
(B) बचत निवेश से कम होती है
(C) बचत निवेश से अधिक होती है
(D) बचत का निवेश से कोई सम्बन्ध नहीं है
उत्तर:
(A) बचत और निवेश बराबर होते हैं

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 6.
समग्र माँग –
(A) उपभोग माँग + निवेश
(B) उपभोग माँग × निवेश माँग
(C) उपभोग माँग + निवेश माँग
(D)Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 part - 1 पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में फर्म का सिद्धांत img 38
उत्तर:
(A) उपभोग माँग + निवेश

प्रश्न 7.
यह समग्र माँग का घटक नहीं है –
(A) निजी उपभोग माँग
(B) निजी निवेश माँग
(C) शुद्ध निर्यात
(D) कुल लाभ
उत्तर:
(D) कुल लाभ

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 4 आय निर्धारण

प्रश्न 8.
बाजार का नियम प्रस्तुत किया –
(A) जे. बी. क्लार्क ने
(B) जे. बी. से. ने
(C) जे. एम. कीन्स ने
(D) ए. सी. पीगू ने
उत्तर:
(B) जे. बी. से. ने

प्रश्न 9.
जे. बी. से. का बाजार नियम लागू होता है –
(A) वस्तु विनिमय पर
(B) मुद्रा विनिमय पर
(C) उपर्युक्त दोनों पर
(D) किसी पर नहीं।
उत्तर:
(C) उपर्युक्त दोनों पर

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प्रश्न 10.
कीन्स के अनुसार बेरोजगारी दूर की जा सकती है –
(A) समग्र माँग बढ़ाकर
(B) समग्र माँग एवं समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(C) समग्र पूर्ति बढ़ाकर
(D) किसी पर नहीं
उत्तर:
(A) समग्र माँग बढ़ाकर

प्रश्न 11.
एक धनात्मक ढाल वाली रेखा ऊपर समान्तर खिसक जाती है यदि –
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है
(B) ढाल में वृद्धि होती है
(C) Intercept (भाग) घट जाता है
(D) ढाल कम हो जाता है
उत्तर:
(A) Intercept (भाग) में वृद्धि होती है

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प्रश्न 12.
दी गई कीमतों पर साम्य उत्पादन का निर्धारण पूर्णतः निर्धारित होगा –
(A) सामूहिक पूर्ति से
(B) सामूहिक माँग से
(C) A तथा B दोनों से
(D) इनमें किसी से नहीं
उत्तर:
(C) A तथा B दोनों से

प्रश्न 13.
एक अर्थव्यवस्था में कीमतों को बदलने में समय लगता है –
(A) अधिशेष आपूर्ति की प्रतिक्रिया में
(B) अधिशेष माँग की तुलना में
(C) A या B
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) A या B

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प्रश्न 14.
एक व्यक्तिगत उत्पादक –
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है
(B) कीमत निर्धारक होता है
(C) कीमत स्वीकारक व निर्धारक दोनों होता है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) को कीमत स्वीकार करनी पड़ती है

प्रश्न 15.
जब एक अर्थव्यवस्था में सभी बाजारों में समायोजन असफल हो जाता है, तो कीमतों में परिवर्तित होता है –
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति
(B) सरकार द्वारा अधिशेष करों का आरोपण करने पर
(C) सरकार द्वारा आर्थिक सहायता देने पर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(A) अधिमाँग की स्थिति या अधिशेष उत्पादन की स्थिति

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प्रश्न 16.
अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का नियोजित उत्पादन समान होता है –
(A) नियोजित निवेश
(B) नियोजित बचत
(C) नियोजित ब्याज
(D) नियोजित माँग
उत्तर:
(D) नियोजित माँग

प्रश्न 17.
नियोजित सामूहिक माँग यदि उत्पादन से कम होती है, तो यह स्थिति होती है –
(A) अधिशेष आपूर्ति
(B) अधिशेष माँग
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति
उत्तर:
(C) नियोजित अधिशेष आपूर्ति

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प्रश्न 18.
Y + A + cY समीकरण का हल है –
(A) A = Y (1 – c)
(B) A = Y-A/Y
(C) Y = A/1 – C
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) Y = A/1 – C

प्रश्न 19.
एक अर्थव्यवस्था में अधिमाँग की स्थिति उत्पन्न होती है, जब –
(A) स्वायत्त उत्पादन में वृद्धि होती है
(B) स्वायत्त ब्याज बढ़ता है
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(C) स्वायत्त सामूहिक माँग बढ़ती है

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प्रश्न 20.
उत्पाद गुणक होता है –
(A) \(\frac{∆A}{∆Y}\)
(B) \(\frac{∆C}{∆Y}\)
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\)
(D) \(\frac{∆I}{∆C}\)
उत्तर:
(C) \(\frac{∆Y}{∆A}\)

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

Bihar Board Class 12 Economics मुद्रा और बैंकिंग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली क्या है? इसकी क्या कमियाँ हैं?
उत्तर:
वस्तु विनिमय वह प्रणाली होती है जिसमें वस्तुओं व सेवाओं का विनिमय एक-दूसरे के लिए किया जाता है उसे वस्तु विनिमय कहते हैं।

वस्तु विनिमय की कमियाँ –

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापन करने के लिए एक सामान्य इकाई का अभाव। इससे वस्तु विनिमय प्रणाली में लेखे की कोई सामान्य इकाई नहीं होती है।
  2. दोहरे संयोग का अभाव-यह बड़ा ही विरला अवसर होगा जब एक वस्तु या सेवा के मालिक को दूसरी वस्तु या सेवा का ऐसा मालिक मिलेगा कि पहला मालिक जो देना चाहता है और बदले में लेना चाहता है दूसरा मालिक वही लेना व देना चाहता है।
  3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई-वस्तु विनिमय में भविष्य के लिए निर्धारित सौदों का निपटारा करने में कठिनाई आती है। इसका मतलब है वस्तु के संबंध में, इसकी गुणवत्ता व मात्रा आदि के बारे में दोनों पक्षों में असहमति हो सकती है।
  4. मूल्य के संग्रहण की कठिनाई-क्रय शक्ति के भण्डारण का कोई ठोस उपाय वस्तु विनिमय प्रणाली में नहीं होता है क्योंकि सभी वस्तुओं में समय के साथ घिसावट होती है तथा उनमें तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण निम्न स्तर का होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 2.
मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है?
उत्तर:
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. मूल्य की इकाई
  2. विनिमय का माध्यम
  3. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मानक
  4. मूल्य का संचय

मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कमियाँ निम्न प्रकार से दूर हो जाती है –

  1. विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग को तलाशने की आवश्यकता खत्म हो जाती है। दोहरे संयोग को तलाशने में प्रयुक्त ऊर्जा व समय की बचत होती है।
  2. लेखे की इकाई के रूप में मुद्रा का प्रयोग होने पर वस्तुओं व सेवाओं के मूल्य को मापने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
  3. मूल्य संचय के लिए मुद्रा के प्रयोग से धन व संपत्ति संग्रह करने में कठिनाई समाप्त हो जाती है। मुद्रा में घिसावट नहीं होती है। मुद्रा में तरलता व हस्तांतरणीयता का गुण उच्च स्तरीय होता है।
  4. स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में मुद्रा का प्रयोग करने से मात्रा, गुणवत्ता आदि के संबंध में कोई असहमति नहीं होती है।

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प्रश्न 3.
संव्यवहार के लिए मुद्रा की मांग क्या है? किसी निर्धारित समयावधि में संव्यवहार मूल्य से यह किस प्रकार संबंधित है?
उत्तर:
लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग-रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और सतत् विनिमय के लिए मुद्रा की मांग को लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग कहते हैं। मुद्रा की मांग और लेन-देन के मूल्य में संबंध सामान्य रूप मे एक अर्थव्यवस्था में लेन-देन के लिए मुद्रा की मांग का समीकरण है –
\(M_{t}^{d}\) = KT अथवा \(\frac{1}{k}\) \(M_{t}^{d}\) = T
अथवा V.\(M_{t}^{d}\) = T
जहाँ V = \(\frac{1}{k}\) प्रवाह का वेग
T ⇒ मुद्रा की मांग का प्रवाह चर
V. \(M_{t}^{d}\) ⇒ निश्चित समय बिन्दु पर इच्छुक लोगों द्वारा संग्रह की गई मुद्रा का स्टॉक चर समय की माप का प्रयोग होता है। इसका अभिप्राय है इकाई समयावधि में मुद्रा की विभिन्न हाथों में मुद्रा की हस्तांतरणीयता की आवृत्ति।

प्रश्न 4.
मान लीजिए कि एक बंधपत्र दो वर्षों के बाद 500 रु. के वादे का वहन करता है, तत्काल कोई प्रतिफल प्राप्त नहीं होता है । यदि ब्याज दर 5% वार्षिक है, तो बंधपत्र की कीमत क्या होगी?
उत्तर:
माना बाँड की कीमत = x
तब x\((1+\frac { r }{ 100 } )^{ 2 }\) = 500; x \((1+\frac { 5 }{ 100 } )^{ 2 }\) = 500
x\((1+\frac { 1 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500; x \((1+\frac { 21 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500
x\((1+\frac { 1 }{ 20 } )^{ 2 }\) = 500; x\(\frac{21}{20}\)2 = 500
x. \(\frac{441}{400}\) = 500; x = \(\frac{500×400}{441}\) = 453.51
उत्तर:
बाँड की कीमत = 453.51

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प्रश्न 5.
मुद्रा की सट्टा मांग और ब्याज की दर में विलोभ संबंध क्यों होता है?
उत्तर:
एक व्यक्ति भूमि, बाँडस, मुद्रा आदि के रूप में धन को धारण कर सकता है। अर्थव्यवस्था में लेन-देन एवं सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग का ब्याज की दर के साथ उल्टा संबंध होता है। जब ब्याज की दर ऊँची होती है तब सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग कम होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ऊँची ब्याज पर सुरक्षित आय बढ़ने की आशा हो जाती है। परिणामस्वरूप लोग सट्टा उद्देश्य के लिए जमा की गई मुद्रा की निकासी करके उसे बाँडस खरीदने पर लगाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति सट्टा उद्देश्य के लिए नियोजित मुद्रा को बाँडस में परिवर्तित करने की इच्छा करने लगता है। इसके विपरीत जब ब्याज दर घटकर न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती है तो लोग सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग असीमित रूप से बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 6.
तरलता पाश क्या है?
उत्तर:
तरलता पाश वह स्थिति होती है जहाँ सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की मांग पूर्णतया लोचदार हो जाती है। तरलता पाश की स्थिति में ब्याज दर बिना बढ़ाये या घटाये अतिरिक्त अन्तः क्षेपित मुद्रा का प्रयोग कर लिया जाता है।

प्रश्न 7.
भारत में मुद्रा पूर्ति की वैकल्पिक परिभाषा क्या है?
उत्तर:
एक निश्चित सयम बिन्दु पर जनता के बीच प्रवाहित मुद्रा स्टॉक को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा की आपूर्ति को निम्नलिखित चार विकल्पों के रूप में परिभाषित करता है –
M1 ⇒ जनता के पास मुद्रा (नोट + सिक्के) + व्यापारिक बैंकों के पास शुद्ध जमाएं
M2 ⇒ M1 + डाकघर बचत खाते में जमाएं
M3 ⇒ M1 + व्यापारिक के पास शुद्ध समय जमाएं
M4 ⇒ M3 + डाकघर संगठन की सभी जमाएं (राष्ट्रीय बचत-पत्र को छोड़कर)

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प्रश्न 8.
वैधानिक पत्र क्या है? कागजी मुद्रा क्या है?
उत्तर:
करेन्सी नोट एवं सिक्के के मूल्य का निर्धारण मुद्रा जारी करने वाली सत्ता द्वारा दी जाने वाली गारंटी के आधार पर होता है। इस प्रकार जारी किए गए नोटों एवं सिक्कों को कानूनी/वैधानिक मुद्रा कहते हैं। वह मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उनके निहित (वास्तविक मूल्य) से अधिक होता है उसे फ्लैट मुद्रा भी कहते हैं।

प्रश्न 9.
उच्च शक्तिशाली मुद्रा क्या है?
उत्तर:
एक देश की मौद्रिक सत्ता के कुल दायित्त्व को मौद्रिक आधार अथवा ‘हाइ-पावरड मनी’ कहते हैं। भारत में RBI मौद्रिक आधार है। इसमें जनता के पास प्रवाह में करेन्सी नोटस एवं सिक्के, एवं व्यापारिक बैंक के पास नकद कोष तथा सरकार एवं व्यापारिक द्वारा RBI के पास जमा करायी गई राशि।

प्रश्न 10.
व्यावसायिक बैंक के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक बैंक के कार्य नीचे लिखे गए हैं –
1. जनता से जमाएं स्वीकार करना-व्यावसायिक बैंक तीन प्रकार की जमाएं जनता से स्वीकार करता है:

  • चालू खाते में जमाएं स्वीकार करना
  • सावधि जमा खाते में जमाएं स्वीकार करना
  • बचत बैंक खाते में जमाएं स्वीकार करना

2. ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित प्रकार के ऋण एवं अग्रिम जनता को प्रदान करता है।

  • नकद साख
  • मांग ऋण
  • अल्पकालीन ऋण आदि

3. बैंक के अभिकर्ता के रूप में कार्य-व्यावसायिक बैंक निम्नलिखित कार्य अभिकर्ता के रूप में करता है।

  • फंड्स का हस्तांतरण
  • फंडस् का संग्रह
  • विभिन्न मदों का भुगतान
  • लाभांश का संग्रह
  • संपत्ति का ट्रस्टी एवं कार्यापालक आदि

4. विदेशी व्यापार को वित्त प्रदान करना।

5. तरलता की आपूर्ति करना।

6. सामान्य उपयोगी सेवाएं प्रदान करना।\

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प्रश्न 11.
मुद्रा गुणक क्या है? इसका मूल्य आप कैसे निर्धारित करेंगे? मुद्रा गुणक के मूल्य के निर्धारण में किस अनुपातों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है?
उत्तर:
मुद्रा गुणक को मुद्रा स्टॉक तथा हाई पावर्ड मनी (आधार मुद्रा) के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 part - 1 उत्पादन तथा लागत img 1
मुद्रा गुणक का मूल्य सामान्यतः 1 से अधिक होता है।
मुद्रा गुणक ज्ञात करने की विधि –
मुद्रा की आपूर्ति = मुद्रा + जमाएं
M = Cu + DD = (1 + Cdr) DD
Cdr = Cu/DD

माना सरकार की ट्रेजरी जमाएं शून्य हैं –
आधार मुद्रा = जनता के पास मुद्रा + व्यापारिक बैंकों के आरक्षित कोष बैकों के आरक्षित कोष में नकद कोष तथा व्यापारिक बैंकों की RBI के साथ जमाएं शामिल की जाती है –
H = Cu + R = Cdr DD + rdr DD
= (Cdr + rdr) DD
मुद्रा गुणक = M/H
= \(\frac{(1+Cdr)DD}{(Cdr+rdr)DD}\) = \(\frac{1+Cdr}{Cdr+rdr}\)
इसका मूल्य इकाई से अधिक होगा क्योंकि rdr का मान 1 से कम होता है।
अत: 1 + Cdr > Cdr + rdr

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प्रश्न 12.
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के कौन-कौन से उपकरण हैं? बाह्य आघातों के विरुद्ध भारतीय रिजर्व बैंक किस प्रकार मुद्रा की पूर्ति को स्थिर करता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति के उपकरण –
1. खुले बाजार की क्रियाएं:
अर्थव्यवस्था आधार मुद्रा (High Powered Money) के स्टॉक को बढ़ाने अथवा घटाने के लिए रिजर्व बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को आम जनता को बेचता है अथवा उससे क्रय करता है। प्रतिभूतियों के क्रय विक्रय को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

2. बैंक दर:
बैंक दर से अभिप्राय उस दर से है जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करके उनका निपटारा करता है।

3. परिवर्तित आरक्षित आवश्यकताएँ:
न्यूनतम आरक्षित जमा अनुपात (CRR) अथवा संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR) की ऊँची या नीची दर से केन्द्रीय बैंक की आधार मुद्रा प्रभावित है। इनकी दर बढ़ाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है एवं इनकी दर घटाने से व्यापारिक बैंकों की साख सृजन क्षमता बढ़ जाती है।

सामान्यतः भारतीय रिजर्व बैंक मुद्रा सृजन के उपकरणों का प्रयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा भण्डार को स्थिर करने के लिए करता है। इनके माध्यम से केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था विदेशी प्रतिकूल प्रभावों से बचाकर स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास करता है।

प्रश्न 13.
क्या आप जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में व्यावसायिक बैंक ही मुद्रा का निर्माण करते हैं?
उत्तर:
गुणित जमा विस्तार एवं साख सृजन का अभिप्राय संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली से है। सभी बैंक सामूहिक आधार पर मांग जमाएं सृजित करते हैं और आरंभिक जमा से कई गुना साख सृजन करते हैं। मुद्रा सृजन की प्रक्रिया को नीचे समझाया गया है।

मुद्रा की वह मात्रा जिसे बैंक सुरक्षित रूप से आधार दे सकता है अधिशेष आरक्षित कोष कहलाती है। माना एक व्यक्ति 1000 रु. मूल्य का एक चैक, बैंक A में जमा करवाता है। बैंक A की मांग जमा 1000 रु. है। न्यूनतम आरक्षित कोष (CRR) अनुपात 10% की स्थिति में यह बैंक 1000 का 10% अर्थात् 100 रु. CRR के रूप में अपने पास नकद कोष रखेगा तथा शेष 900 रु. ऋण देने में प्रयोग कर सकता है। वह बैंक ऋणी के नाम से अपनी शाखा में बचत खाता खोलेगा। इस प्रकार बैंक के मांग जमा खाते में अधिक राशि जमा हो जायेगी। अर्थात् ऋण देकर बैंक मांग जमाओं का सृजन करता है। मांग जमाओं के द्वारा मुद्रा सृजन में वृद्धि होती है। मृदा सृजन बैंक की एक सतत् प्रक्रिया है। इस बात को नीचे तालिका में तथा गया है –
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Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 3 मुद्रा और बैंकिंग

प्रश्न 14.
भारतीय रिजर्व बैंक की किस भूमिका को अंतिम ऋणदाता कहा जाता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। आपदा अथवा प्रतिकूल परिस्थितियों में यह व्यापारिक बैंकों के साथ खड़ा होता है। और ऋणों का विस्तार करता है ताकि व्यापारिक बैंकों की प्रतिष्ठा बची रहे। गारंटी की पद्धति व्यक्तिगत खातेदार को आश्वस्त करती है कि विपदा के समय बैंक उसकी मुद्रा का वापिस भुगतान करने में समर्थ होगा और इस बारे में चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की यह भूमिका उसे अन्तिम ऋणदाता बनाती है।

Bihar Board Class 12th Economics मुद्रा और बैंकिंग Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मुद्रा का एक प्रमुख कार्य लिखो।
उत्तर:
मुद्रा का प्रमुख कार्य विनिमय का माध्यम है। विनिमय माध्यम के रूप में मुद्रा के प्रयोग से समय एवं श्रम दोनों की बचत होती है।

प्रश्न 2.
‘मुद्रा विकल्पों की धारक है। इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा विकल्पों की धारक है इसका अभिप्राय है कि यह धारक को चयन करने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। इसका सर्वोत्तम विकल्प का चयन कर सकता है तथा अवांछनीय वस्तुओं एवं सेवाओं को स्वीकार करने की मजबूरी समाप्त हो जाती है।

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प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य लिखिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक के दो प्रमुख कार्य –

  1. जनता से जमाएं स्वीकर करना।
  2. जनता को ऋण एवं अग्रिम प्रदान करना।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक प्रणाली की सर्वोच्च संस्था को केन्द्रीय बैंक कहते हैं। केन्द्रीय बैंक अर्थव्यवस्था के लिए मौद्रिक नीति बनाता है और उसका क्रियान्वयन करवाता है। यह ऋणदाताओं का अन्तिम आश्रयदाता होता है।

प्रश्न 5.
खुले बाजार की क्रियाओं का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
केन्द्रीय बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंकों को बेचना अथवा उनसे वापिस खरीदने की क्रियाओं को खुले बाजार की क्रियाएं कहते हैं।

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प्रश्न 6.
नकद जमा अनुपात (CRR) का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह दर जिस पर व्यापारिक बैंक अपनी जमाओं का कुछ भाग केन्द्रीय बैंकों के पास जमा करवाना पड़ता है उसे नकद जमा अनुपात (CRR) कहते हैं।

प्रश्न 7.
संवैधानिक तरलता अनुपात का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह दर जिस पर व्यापारिक बैंकों की मांग जमाओ की मांग को पूरा करने के लिए न्यूनतम आरक्षित नकद कोष रखना पड़ता है उसे बैंक दर कहते हैं ।

प्रश्न 8.
वैधानिक या कानूनी मुद्रा होती है?
उत्तर:
वह मुद्रा जो सरकार के आदेश पर जारी की जाती है उसे वैधानिक कानूनी मुद्रा कहते हैं। कानूनी मुद्रा की स्वीकार्यता के बारे में किसी को कोई सन्दर्भ नहीं होता है।

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प्रश्न 9.
कानूनी दायित्व अथवा फीयट मनी (Fiat Money) का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सरकार के आदेश पर जारी की गई मुद्रा कानूनी दायित्व धारण करती है। इसके माध्यम से सभी प्रकार के ऋणों को चुकाया जा सकता है। यदि कोई इस मुद्रा को स्वीकार करने से मना कर देता है तो उसको बदले में कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।

प्रश्न 10.
‘मूल्य संग्रह के रूप में मुद्रा’ के आश्य को स्पष्ट करो।
उत्तर:
मुद्रा का धारक कहीं भी किसी भी समय वांछित वस्तु अथवा सेवा को क्रय कर सकता है क्योंकि मुद्रा में कानूनी स्वीकार्यता गण विद्यमन होता है। इसलिए मुद्रा में मूल्य संग्रह की क्षमता/धारणीयता होती है।

प्रश्न 11.
पूर्णकाय मुद्रा की परिभाषा लिखो। अथवा संपूर्ण मूर्ति मान मुद्रा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
पूर्णकाय मुद्रा वह है जिसका गैर आर्थिक मूल्य मुद्रा के मूल्य के समान होता है। अथवा वह मुद्रा जिसका अंकित और वास्तविक मूल्य दोनों एक-समान होते हैं पूर्णकाय मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 12.
बैंक दर क्या होती है?
उत्तर:
वह दर जिस पर अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को ऋण प्रदान करता है अथवा अग्रिम प्रदान करता है अथवा उनके बिलों पर कटौती करने उनका निपटारा करता है।

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प्रश्न 13.
साख का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
किसी दूसरे व्यक्ति, फर्म, बैंक अथवा संगठन आदि को ऋण या वित्त उपलब्ध कराना साख कहलाता है।

प्रश्न 14.
बैंक किस प्रकार व्यावसायिक समुदाय की मदद करती हैं?
उत्तर:
बैंक आर्थिक क्रियाओं के मामले में विशेषज्ञ होते हैं। बैंक वित्त संबंधी सूचनाओं को एकत्रित करते हैं और उन्हें अपने ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।

प्रश्न 15.
व्यापारिक बैंक द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को मुद्रा (कोष) हस्तांतरित करने की विधि लिखो।
उत्तर:
बैंक ड्रॉफ्ट के माध्यमों से कोष हस्तांतरित एक स्थान से दूसरे स्थान किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का क्या अर्थ है?
उत्तर:
व्यापारिक बैंक द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद को सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कहते हैं।

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प्रश्न 17.
व्यापारिक बैंक का अर्थ लिखो।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करता है। व्यापारिक जमाएं स्वीकार करते हैं तथा जनता को उधार देकर साख का सृजन करते हैं।

प्रश्न 18.
मांग जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता अपनी सुविधा अनुसार कभी भी मांग सकता है मांग जमाएं कहलाती है। व्यापारिक बैंकों में बचत बैंक खाते तथा चालू खाते की जमाओं को मांग जमा कहते हैं।

प्रश्न 19.
समय जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे जमाएं जिन्हें जमाकर्ता किसी निश्चित समय अवधि के लिए व्यापारिक बैंकों में जमा करवाते हैं उन्हें समय जमा कहते हैं। जैसे समयावधि खाते में जमाएं, आवृत्ति जमाएं। इन जमाओं की राशि समय अवधि पूर्ण होने पर ही ब्याज सहित निकाली जा सकती है।

प्रश्न 20.
ओवर ड्राफ्ट का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह सुविधा जिसके द्वारा खातेदार जमा करवायी राशि से अधिक निकासी कर सकता है उसे ओवर ड्रॉफ्ट की सुविधा कहते हैं।

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प्रश्न 21.
ऋण व अग्रिम का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऋणी को बैंक द्वारा प्रदत्त ऋण या अग्रिम से अभिप्राय, निश्चित मात्रा में उसके खाते में हस्तांतरित की गई राशि से है जिसे ऋणी अपनी इच्छा अनुसार प्रयोग में ला सकता है।

प्रश्न 22.
भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए कौन उत्तरदायी होता है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक व्यापारिक मुद्रा की आपूर्ति को बदलने के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 23.
व्यापारिक बैंक के साथ जमा करायी जाने वाली दो प्रकार की बचतों के नाम लिखो।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक के साथ/पास जमा करायी जाने वाली दो बचते हैं –

  1. मांग जमाएं एवं
  2. समय जमाएं

प्रश्न 24.
मुद्रा की आपूर्ति में किसको शामिल किया जाता है?
उत्तर:
मुद्रा की आपूर्ति में करेंसी नोटस्, सिक्कों व साख को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 25.
आधुनिक अर्थव्यवस्था में दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं उन्हें लिखो।
उत्तर:
जिन दो उद्देश्यों के लिए लोग नकद मुद्रा रखते हैं वे हैं –

  1. दैनिक लेन-देन के लिए
  2. सट्टा उद्देश्य के लिए

प्रश्न 26.
प्राथमिक जमा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
लोगों द्वारा बैंक में जमा करायी गई नकद राशि को प्राथमिक जमा कहते हैं।

प्रश्न 27.
द्वितीयक जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जब बैंक ऋणी को नकद ऋण देने के बजाय, ग्राहक के खाते में राशि जमा करवाता है इसे द्वितीयक जमा कहते हैं।

प्रश्न 28.
नकद जमा अनुपात व साख गुणक का संबंध लिखिए।
उत्तर:
नकद जमा अनुपात तथा साख गुणक में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 29.
भारतीय अर्थव्यवस्था के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखो।
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक हमारी अर्थव्यवस्था का केन्द्रीय बैंक है।

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प्रश्न 30.
साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में क्या संबंध है?
उत्तर:
साख सृजन की शक्ति तथा बैंक द्वारा रखी जाने वाली नकदी में विपरीत संबंध होता है।

प्रश्न 31.
क्या वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन है?
उत्तर:
नहीं, वस्तु विनिमय प्रणाली मुद्रा का फलन नहीं है।

प्रश्न 32.
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का मौद्रिक मूल्य उसमें निहित वस्तु के मूल्य के समान होता है। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान मौद्रिक प्रयोग मान के समान ही होता है। उदाहरण के लिए बहुमूल्य धातुएं सोने व चाँदी के सिक्के। पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा का चलन पुराने समय में किया जाता था। आजकल ऐसी मुद्राओं का चलन लगभग बन्द है।

प्रश्न 33.
विनिमय के माध्यम का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विनिमय के माध्यम से अभिप्राय है कि मुद्रा के रूप में एक व्यक्ति अपनी वस्तुओं को बेचता है तथा दूसरी वस्तुओं को खरीदता है इस लेन-देन में मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।

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प्रश्न 34.
विदेशी/बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति कौन संरक्षित करता है?
उत्तर:
(RBI) भारतीय रिजर्व बैंक बाहरी झटकों के विरुद्ध भारत में मुद्रा की आपूर्ति को संरक्षित करता है।

प्रश्न 35.
वस्तु विनिमय प्रणाली का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
यदि वस्तुओं एवं सेवाओं का लेन-देन मुद्रा के बिना वस्तुओं एवं सेवाओं के बदले होता है तो इसे वस्तु विनिमय प्रणाली कहते हैं। इस प्रणाली का प्रयोग परंपरागत अर्थव्यवस्थाओं में किया जाता था। ऐसी अर्थव्यस्थाओं को वस्तु-वस्तु अर्थव्यस्था कहते हैं।

प्रश्न 36.
मुद्रा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा की निम्नलिखित दो परिभाषाएं दी जा सकती है –

  1. कानूनी परिभाषा-ऐसी कोई भी वस्तु मुद्रा हो सकती है जिसको कानून द्वारा मुद्रा घोषित कर दिया जाता है।
  2. कार्यात्मक परिभाषा-ऐसी वस्तु जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के माप, मूल्य के संचय एवं स्थगित भुगतान के मान का कार्य करती है, मुद्रा कहलाती है।

प्रश्न 37.
मुद्रा के कार्य लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा के निम्नलिखित कार्य हैं –

  1. मुद्रा विनिमय के माध्यम का काम करती है।
  2. मुद्रा मूल्य के माप का कार्य करती है।
  3. मुद्रा स्थगित भुगतानों का माप है।
  4. मुद्रा से मूल्य का संचय होता है।

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प्रश्न 38.
वाणिज्य बैंक का आशय लिखिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक से अभिप्राय उस बैंक से है जो लाभ कमाने के उद्देश्य से बैंकिंग कार्य करते हैं। इन्हें मिश्रित पूंजी वाले बैंक कहते हैं। ये मुद्रा व साख में लेन-देन करते हैं।

प्रश्न 39.
वस्तु विनिमय प्रणाली में ‘प्रतीक्षा की अनुपयोगिता’ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपयुक्त व्यक्ति जो वस्तु को खरीदने के लिए सहमत हो जो आप बेचना चाहते हैं और उस वस्तु को बेचना चाहते हो जिसे आप खरीदने के लिए तैयार हैं। ऐसे उपयुक्त व्यक्ति को तलाशने में प्रतीक्षा करनी पड़ती है, प्रतीक्षा में असुविधा उत्पन्न होती है। असुविधा में अनुपयोगिता छिपी होती है।

प्रश्न 40.
वस्तु विनिमय में अन्वेषण की लागत लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में ऐसे विकल्प की तलाश होती है जिसमें एक व्यक्ति की जरूरत की वस्तु दूसरे व्यक्ति के पास होती है तथा दूसरे व्यक्ति की जरूरत की वस्तु पहले व्यक्ति के पास है। ऐसे विकल्प को तलाशने में समय एवं ऊर्जा दोनों खर्च होते हैं। इसी को अन्वेषण की लागत कहते हैं।

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प्रश्न 41.
साख मुद्रा को संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
ऐसी मुद्रा का मौद्रिक मूल्य इसमें निहित वस्तु मूल्य से अधिक होता है। अन्य शब्दों का इस मुद्रा पर अंकित मूल्य उस वस्तु के मूल्य से अधिक होता है, जिससे यह वस्तु बनायी जाती है। साख मुद्रा निम्न प्रकार की होती है –

  1. सांकेतिक सिक्के
  2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा
  3. केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी/प्रचलित नोट
  4. बैंकों के पास जमाएं

प्रश्न 42.
विनिमय के रूप में मुद्रा की परिभाषा का आधार बताइए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की अव्यवहारिकता एवं अप्रभाव के कारण मुद्रा की खोज विनिमय की जरूरत को पूरा करने के लिए की गई थी। इसलिए मुद्रा की परिभाषा ऐसी वस्तु के रूप में की जाती है।

प्रश्न 43.
वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था की अवधारणा लिखिए।
उत्तर:
वह अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से होता है, वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था कहलाती है। वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तु प्रणाली काम करती है।

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प्रश्न 44.
नकद कोष अनुपात का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बैंक कुल जमा राशि में से कुछ भाग अपने पास नकद कोष के रूप में रख लेते हैं ताकि उससे जमाकर्ताओं की आवश्यकता को पूरा कर सकें। कुल जमा का जो अनुपात बैंक अपने पास नकदी के रूप में रखते हैं, उसे नकद कोष अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 45.
प्राथमिक जमा व गौण जमा का अर्थ लिखो।
उत्तर:
जो धनराशि बैंकों में नकदी के रूप में लोगों द्वारा जमा करायी जाती है, उसे ही प्राथमिक जमा कहते हैं। जब बैंक नकदी में उधार न देकर ऋणी के नाम खाता खोल कर उसमें जमा कर देते हैं तो इसे गौण जमाएं कहते हैं।

प्रश्न 46.
साख का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
जब कोई व्यक्ति, फर्म या बैंक किसी अन्य व्यक्ति फर्म या बैंक को उधार या वित्त प्रदान करता है तो वह साख कहलाती है।

प्रश्न 47.
बैंक किस तरह व्यापारियों की सहायता करते हैं?
उत्तर:
बैंक आर्थिक स्थिति में परिचित होने के कारण व्यापार संबंधी सूचनाएँ एवं आँकड़े एकत्रित करके अपने ग्राहकों को वित्तीय मामलों में सलाह देते हैं।

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प्रश्न 48.
चालू जमा व समय अवधि जमा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
चालू खाते में जमा रकम जमाकर्ता द्वारा मांग करने पर तुरन्त भुगतान करना पड़ता है। बैंकों में ऐसी जमा जिसकी अवधि जितनी लम्बी होती है ब्याज पर भी उतनी ही अधिक होती है।

प्रश्न 49.
नकद साख से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
इस ऋण के अन्तर्गत बैंक उधार लेने वाले व्यक्ति के नाम खाता खोला जाता है और उस खाते में मुद्रा की एक निश्चित मात्रा जमा कर देता है। व्यक्ति आवश्यकतानुसार इसमें से मुद्रा निकाल सकता है।

प्रश्न 50.
ओवर ड्रॉफ्ट का अर्थ बताइए।
उत्तर:
जो ग्राहक बैंक में चालू खाता रखते हैं आवश्यकता पड़ने पर जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की अनुमति बैंक से प्राप्त कर लेते हैं।

प्रश्न 51.
ऋण तथा अग्रिम का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ये ऋण एक निश्चित राशि के रूप में दिए जाते हैं। बैंक इस ऋण राशि को नकदी में न देकर ऋणी के नाम खाता खोल देता है। ऋणी कभी भी इसमें से रूपया निकाल सकता है।

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प्रश्न 52.
सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
बैंक जब सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदते हैं तो यह भी सरकार को उधार देने की एक विधि है। बैंकों द्वारा अपने ग्राहकों की सुविधा के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर रुपये भेजने की व्यवस्था बैंक ड्राफ्ट द्वारा की जाती है।

प्रश्न 53.
दोहरे संयोग की आवश्यकता को समझाइए।
उत्तर:
दैनिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रायः विभिन्न लोग आपस में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का लेन-देन करते हैं। अतः किसी एक व्यक्ति की वस्तु दूसरे व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है तथा दूसरे व्यक्ति की वस्तु पहले व्यक्ति की जरूरत को पूरा करती है।

प्रश्न 54.
साख मुद्रा के रूप लिखिए।
उत्तर:
साख मुद्रा के निम्नलिखित रूप हैं –

  1. प्रतीक सिक्के
  2. प्रतिनिधि प्रतीक सिक्के
  3. केन्द्रीय बैंक के प्रोनोट नोटों का प्रचलन
  4. बैंक की माँग जमाए

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प्रश्न 55.
मुद्रा के सहायक कार्य लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा के सहायक कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. स्थगित भुगतानों का मान
  2. मूल्य का संचय
  3. मूल्य का हस्तांतरण

प्रश्न 56.
मुद्रा के प्रमुख कार्यों की सूची बनाइए।
उत्तर:
मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. विनिमय का माध्यम
  2. मूल्य की इकाई अथवा मूल्य का मापदण्ड

प्रश्न 57.
मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में क्या-क्या शामिल किया जात है?
उत्तर:
मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में मुद्रा परिसपंत्तियों एवं निकट मुद्रा परिसंपत्तियों को शामिल किया जाता है।
मुद्रा = मौद्रिक परिसंपत्तियां + निकट मौद्रिक परिसंपत्तियां

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प्रश्न 58.
करेन्सी मुद्रा एवं बैंक मुद्रा की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
करेन्सी मुद्रा:
नोटों व सिक्कों के रूप में प्रचलित मुद्रा को करेन्सी मुद्रा कहा जाता है। इस मुद्रा के लिए कानूनी रूप में स्वीकार करने की बाध्यता होती है।

बैंक मुद्रा:
बैंक द्वारा साख निर्माण को बैंक मुद्रा कहा जाता है। बैंक साख को ऋणियों के खातों में जमा कर देते हैं। वे चेक के माध्यम से उसे निकलवा सकते हैं।

प्रश्न 59.
मुद्रा के कार्यों को कितने वर्गों में बांटा जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के कार्यों को निम्नलिखित तीन वर्गों में बांटा जाता है –

  1. मुद्रा के मुख्य या प्राथमिक कार्य।
  2. मुद्रा के सहायक या गौण कार्य।
  3. आक्समिक कार्य।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय व्यापार की लागतों को समझाइए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय के द्वारा व्यापार करने में अनावश्यक रूप से जो लागते उत्पन्न होती हैं उन्हें विनिमय की व्यापार लागते कहते हैं। ये लागतों निम्न प्रकार की होती है –

1. तलाश लागत:
क्रेता अपने उत्पाद के बदले वांछित वस्तु देने वाले व्यक्ति की खोज करता है। इस खोज में लगे समय को तलाश लागत कहते हैं।

2. प्रतीक्षा की अनुपयोगिता:
व्यापार करने वाला जिस वस्तु को बेचना चाहता है। उसे उस व्यक्ति की तलाश में इन्तजार करना पड़ता है जो उसे खरीदना चाहता है। यह काम बहुत जटिल और समय लेने वाला होता है क्योंकि बहुत सारे लोगों में उपयुक्त व्यक्ति एवं संयोग की तलाश बहुत मुश्किल है।

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प्रश्न 2.
मूल्य मान की इकाई के रूप में मुद्रा का कार्य उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में मुद्रा ही वह इकाई होती है जिसके रूप में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई भी कहा जाता है। अर्थव्यवस्था की मुद्रा के रूप में वस्तु अथवा सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाता है। वस्तु या सेवा की कीमत से अभिप्राय वस्तु की एक इकाई के बदले प्राप्त होने वाला मौद्रिक इकाइयों की संख्या होती है। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 125 रुपये है तो इसका अभिप्राय है कि 125 रुपयों के बदले एक कमीज मिल सकती है।

मौद्रिक इकाइयों में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य अभिव्यक्त करने से वस्तुओं एवं सेवाओं के आपस में मूल्य निश्चित करने में मदद मिलती है। जैसे यदि कमीज एवं पेन्ट की कीमत क्रमशः 125 रुपये एवं 250 रुपये है तो एक पेन्ट का मूल्य मान दो कमीज का होगा। इससे लेखांकन का कार्य सरल हो जाता है। मुद्रा का मूल्यमान क्रय शक्ति होती है जो कीमत स्तर के विलोम होती है।

प्रश्न 3.
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में विशिष्टिकरण का लाभ प्राप्त करने के लिए मुद्रा विनिमय आवश्यक है? समझाइए।
उत्तर:
मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार लागतें न्यूनतम हो जाती हैं। आजकल फर्मों में भौगोलिक क्षेत्रों तथा पूंजी के प्रकारों के स्तर पर विशिष्टिकरण पाया जाता है। विशिष्टिकरण के द्वारा व्यक्तिगत योग्यताओं एवं क्षमताओं, भौगोलिक क्षेत्रों की विशेषताओं एवं पूंजी के विशाल भण्डारों का उचित प्रयोग हो पाता है। विशिष्टिकरण के लाभों का प्रयोग करके उत्पादकता एवं जीवन निर्वाह के स्तर को उच्च किया जाता है। विशिष्टकरण का लाभ वस्तु विनिमय के द्वारा कदाचित नहीं उठाया जा सकता है। परन्तु मुद्रा विनिमय के द्वारा व्यापार व्यवस्था का विकास करके विशिष्टिकरण का भरपूर फायदा उठाया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
नकद साख पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
ग्राहक की साख सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक द्वारा ग्राहक के लिए उधार लेने की सीमा के निर्धारण को नकद साख कहते हैं। बैंक का ग्राहक तय सीमा तक की राशि का प्रयोग कर सकता है। इस राशि का प्रयोग ग्राहक की आहरण क्षमता से तय किया जाता है। आहरण क्षमता का निर्धारण ग्राहक की वर्तमान परिसंपत्तियों के मूल्य, कच्चे माल के भण्डार, अर्द्ध निर्मित एवं निर्मित वस्तुओं के भण्डार एवं हुन्डियों के आधार पर किया जाता है। ग्राहक अपने व्यवसाय एवं उत्पादक गतिविधियों के प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों का पूरो ब्यौरा बैंक के पास दस्तावेज के रूप में जमा कराता है। उधार की राशि न चुकाए जाने पर बैंक दस्तावेज में दिखाई गई परिसंपत्तियों पर अपना कब्जा करने की कार्यवाही शुरू कर सकता है। ब्याज केवल प्रयुक्त ब्याज सीमा पर चुकाया जाता है। नकद साख व्यापार एवं व्यवसाय संचालन में चिकनाई का काम करती है।

प्रश्न 5.
सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वह मुद्रा जिसका मौद्रिक मान, वस्तु मान के समान होता है सम्पूर्ण पूर्ति मान मुद्रा कहलाती है। पुराने समय में परंपरावादी अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा होती थी। सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा बहुमूल्य धातुओं जैसे सोना, चांदी, तांबा आदि से बनायी जाती थी। ऐसी मुद्रा का गैर मौद्रिक प्रयोग मान, मौद्रिक प्रयोग में मान के बराबर होता था। इस प्रकार की मुद्रा की ढलाई एक अथवा दो या अधिक प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य सिक्कों के रूप में बनायी जाती थी। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग के लिए बहुमूल्य धातुओं से बने भारी सिक्कों को फिजूल में इधर से उधर ले जाना पड़ता था। आधुनिक युग में इस मुद्रा का प्रचलन खत्म हो गया है।

प्रश्न 6.
मुद्रा की विनिमय के माध्यम के रूप में भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
व्यापार में विभिन्न पक्षों के बीच मुद्रा विनिमय या भुगतान के माध्यम का काम करती है। भुगतान का काम लोग किसी भी वस्तु से कर सकते हैं परन्तु उस वस्तु में सामान्य स्वीकृति का गुण होना चाहिए । कोई भी वस्तु अलग-अलग समय, काल एवं परिस्थितियों में अलग हो सकती है। जैसे पुराने समय में लोग विनिमय के लिए कोड़ियों मवेशियों, धातुओं अन्य लोगों के ऋणों को प्रयोग करते थे। इस प्रकार के विनिमय में समय एवं श्रम की लागत बहुत ऊँची होती थी। विनिमय के लिए मुद्रा को माध्यम बनाए जाने से समय एवं श्रम की लागत की बचत होती है। आदर्श संयोग तलाशने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मुद्रा के माध्यम से व्यापार करने से व्यापार प्रक्रिया बहुत सरल हो जाती है।

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प्रश्न 7.
मूल्य के भण्डार के रूप में मुद्रा की भूमिका बताइए।
उत्तर:
मूल्य की इकाई एवं भुगतान का माध्यम लेने के बाद मुद्रा मूल्य के भण्डार का कार्य भी सहजता से कर सकती है। मुद्रा का धारक इस बात से आश्वस्त होता है कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मालिक उनके बदले मुद्रा को स्वीकार कर लेते हैं। अर्थात् मुद्रा में सामान्य स्वीकृति का गुण होने के कारण मुद्रा का धारक उसके बदले कोई भी वांछित चीज खरीद सकता है। इस प्रकार, मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप में कार्य करती हैं। मुद्रा के अतिरिक्त स्थायी परिसपत्तियों जैसे भूमि, भवन एवं वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे बचत, ऋण पत्र आदि में भी मूल्य संचय का गुण होता है और इनसे कुछ आय भी प्राप्त होती है। परन्तु इनके स्वामी को इनकी देखभाल एवं रखरखाव की जरूरत होती है, इनमें मुद्रा की तुलना में कम तरलता पायी जाती है। और भविष्य में इनका मूल्य कम हो सकता है। अतः मुद्रा मूल्य भण्डार के रूप अन्य चीजों से बेहतर हैं।

प्रश्न 8.
अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों से कमीशन लेकर निम्न सेवाएं प्रदान करता है –

  1. नकद कोषों का अंतरण-बैंक अपने ग्राहकों के लिए दूरदराज के क्षेत्रों तक उनकी धनराशियों को सस्ती दर पर आसानी से अंतरण कर देते हैं। अंतरण का कार्य बैंक धनादेश, डाक धनादेश तथा तार धनादेशों के जरिए करता है।
  2. नकद संग्रहण-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए चैक, हुण्डियों आदि की रकम उनके अदा करने वालों से वसूलने का कार्य भी करता है।
  3. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए अंशपत्रों एवं अन्य प्रतिभूतियों का क्रय विक्रय करता है।
  4. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लाभांश और ब्याज वसुलने का कार्य भी करता है।
  5. अपने ग्राहकों के निवेदन पर व्यापारिक बैंक उनके विभिन्न प्रकार के बिलों एवं बीमा किस्तों के भुगतान का काम भी करता है।
  6. अपने ग्राहकों की वसीयतों के ट्रस्ट्री और प्रबन्धक का कार्य भी करता है।
  7. व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को आयकर के सम्बन्ध में सलाह देता है और आय कर के दायित्वों का भुगतान करता है आदि।

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प्रश्न 9.
मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुद्रा आपूर्ति की M3 अवधारणा M1 की तुलना में अधिक विस्तृत है। इसका प्रतिपादन मिल्टन फ्रिडमैन में किया था। M3 को समग्र मुद्रा साधन भी कहते हैं क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के समग्र मौद्रिक संसाधन (AMR) को व्यक्त करता है। इसमें M1 तथा बैंकों की शुद्ध समय अवधि जमाएं शामिल की जाती हैं। अर्थव्यवस्था में M3 मुद्रा की तरलता M1 से कम परन्तु M2 से ज्यादा होती है। जनता द्वारा धारित करेंसी, बैंकों के पास मांग जमा तथा बैंक जमाओं में निबल परिवर्तन के द्वारा M3 में भी परिवर्तन होते हैं। संक्षेप में M3 = M1 – बैंक के पास जमा निबल सावधि जमाएं।

प्रश्न 10.
मुद्रा की आपूर्ति क्या होती है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सभी प्रकार की मुद्राओं के योग मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं। मुद्रा की आपूर्ति में दो बातों का ध्यान रखना आवश्यक है –
1. मुद्रा की आपूर्ति एक स्टॉक है। यह किसी समय बिन्दु पर उपलब्ध मुद्रा की सारी मात्रा को दर्शाती है।

2. मुद्रा के स्टॉक से अभिप्राय जनता द्वारा धारित स्टॉक से है। जनता द्वारा धारित स्टॉक समस्त स्टॉक से कम होता है। भारतीय रिजर्व बैंक देश में मुद्रा की आपूर्ति के चार वैकल्पिक मानों के आंकड़े प्रकाशित करता है। ये मान क्रमशः (M1, M2, M3, M4) हैं।
जहाँ M1 = जनता के पास करेन्सी + जनता की बैंकों में मांग जमाएं
M2 = M1 + डाकघरों के बचत बैंकों में बचत जमाएं
M3 = M3 + बैंकों की निबल समयावधि योजनाएं
M4 = M3 + डाकघर बचत संगठन की सभी जमाएं

प्रश्न 11.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां क्या हैं?
उत्तर:
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां निम्नलिखित हैं –

  1. वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य के मापन की सर्वमान्य इकाई का अभाव। इससे लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
  2. विनिमय का आधार द्विपक्षीय संयोग होता है। व्यापार में हमेशा और सर्वत्र दो पक्षों के बीच वांछित संयोग का तालमेल होना असंभव होता है।
  3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के संदर्भ में निम्न कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती है –
    • भविष्य में भुगतान के रूप में दी जाने वाली वस्तुओं-सेवाओं के गुणधर्मों को लेकर दोनों पक्षों के बीच झगड़ा हो सकता है।
    • भविष्य में भुगतान की वस्तु पर असहमति हो सकती है।
    • भुगतान अनुबन्ध के समय अन्तराल में भुगतान की जाने वाली वस्तु का मूल्य कम ज्यादा हो सकता है।
  4. सामान्य क्रय शक्ति के भण्डारण में कठिनाई।

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प्रश्न 12.
अर्थव्यवस्था में मुद्रा की आपूर्ति के घटक M4 के बारे में समझाइए।
उत्तर:
M4 की अवधारणा मुद्रा आपूर्ति की सभी अवधारणाओं में अधिक विस्तृत है। दूसरे शब्दों में, MP4 मुद्रा से ज्यादा व्यापक है। M4 मुद्रा में M3 के अलावा डाकघर बचत संगठन की सभी जमाओं को शामिल किया जाता है। (राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर) संक्षेप में, M4 = M3 – राष्ट्रीय बचत सर्टिफिकेटों को छोड़कर डाक घर बचत संगठन की सभी जमाएं। M4 की तरलता सबसे कम होती है अर्थात् M4 को नकदी में परिवर्तित करने की क्षमता सबसे कम होती है।

प्रश्न 13.
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के मुख्य कार्य क्या होते हैं?
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा के निम्नलिखित कार्य होते हैं –

  1. मूल्यमान की इकाई या लेखे की इकाई का काम चलाना।
  2. मुद्रा विभिन्न प्रकार के लेन-देन में विनिमय के माध्यम का कार्य करती है।
  3. भविष्य में स्थगित भुगतानों के मानक का काम करती है।
  4. क्रय शक्ति एवं मूल्य का भण्डार।

प्रश्न 14.
व्यावसायिक बैंक के क्या कार्य हैं?
उत्तर:
व्यावसायिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं –

  1. आम जनता के जमाएं स्वीकर करना।
  2. ग्राहकों को अग्रिम एवं उधार देना।
  3. अधिविकर्ष।
  4. हुन्डियों की कटौती।
  5. जमा राशियों का निवेश।
  6. बैंक अभिकर्ता (एजेन्ट) के रूप में कार्य करते हैं।
  7. अन्य कार्य जैसे –
    • विदेशी मुद्रा का क्रय विक्रय।
    • पर्यटक चैक, उपहार चैक जारी करना।
    • कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना।
    • नए शेयर आदि के निर्गमन पर अविक्रित अंश को खरीदने का आश्वासन देना तथा निजी आधार पर चुनिंदा निवेशकों के बीच प्रतिभूतियों की बिक्री की व्यवस्था करना।

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प्रश्न 15.
भारत में किस प्रकार की मौद्रिक व्यवस्था का अनुसरण होता है?
उत्तर:
भारत में इस समय कागजी मुद्रा मान या प्रबन्धित मुद्रा मान की व्यवस्था का अनुसरण किया जा रहा है। भारत की मानक मुद्रा विधि ग्राहिय मुद्रा है। इसी के प्रयोग से हमारी सरकार सभी दायित्वों को निपटाती है। भारतीय रिजर्व बैंक ने कागज से बनी मानक मुद्रा को स्वीकर किया है। करेंसी मुद्रा के माध्यम से बड़े लेन-देन किये जाते हैं। परन्तु छोटे-छोटे भुगतानों के लिए सस्ती धातुओं के बने सिक्कों का प्रयोग होता है। सिक्कों की कानूनी स्वीकार्य सीमित होती है। भारत में एक रुपये के नोट और सिक्कों को छोकर सभी करेंसी नोटों का निर्गमन रिजर्व बैंक करता है। एक रुपये के नोट एवं सिक्के भारत सरकार जारी करती हैं। भारत में करेंसी निर्गमन व्यवस्था न्यूनतम सुरक्षित निधि व्यवस्था है। कागजी मुद्रा को सोने जैसी मूल्यवान धातु में नहीं बदला जा सकता है अर्थात् भारत की करेंसी अपरिवर्तनीय हैं।

प्रश्न 16.
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव का आशय संक्षेप में स्पष्ट करें।
उत्तर:
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है। क्रेता एवं विक्रेता की परस्पर आवश्यकता की संतुष्टि को आवश्यकता का दोहरा संयोग कहते हैं। सरल शब्दों में क्रेता तथा विक्रेता परस्पर वस्तुओं का आदान प्रदान करते हैं और एक-दूसरे से प्राप्त की गई वस्तु से अपनी-अपनी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करते हैं इसको आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहते हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली में दोहरे संयोग की कमी या अभाव पाया जाता है। उदाहरण के लिए गेहूँ उत्पादक को गेहूँ के बदले में कपड़ों की आवश्यकता है लेकिन ऐसा ढूँढना बड़ा मुश्किल काम है कि ऐसा वस्त्र उत्पादक मिल जाए जो बदले में गेहूँ स्वीकार कर सकता है। आवश्यकताओं के ऐसे संयोगों की अनुपस्थित या कमी को ही दोहरे संयोग के अभाव की संज्ञा दी जाती है।

प्रश्न 17.
मुद्रा स्टॉक (भण्डार) के विभिन्न मापक क्या है?
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा की माप के लिए संकुचित व व्यापक दोनों दृष्टिकोण अपनाएं हैं। ये निम्नलिखित हैं –
1. M1 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं –

  • जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के।
  • मांग जमाएं।
  • रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाएं।

2. M2 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है –

  • (a) M1
  • डाकघरों के पास बचत जमाएं

3. M3 इसमें निम्न को शामिल किया जाता है –

  • M1
  • व्यापारिक एवं सहकारी बैंको की अवधि जमाएं। यह मुद्रा का व्यापक दृष्टिकोण है।

4. M4 इसमें निम्नलिखित को शामिल करते हैं –

  • M3
  • डाकघर बचत संगठन की कुल जमाएं (NSC को छोड़कर)।

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प्रश्न 18.
मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयां समाप्त हो जाती हैं?
उत्तर:
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयाँ निम्नलिखित ढंग से समाप्त हो जाती है –

  1. वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मापने के लिए कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है अत: व्यवस्थित लेखांकन प्रणाली का विकास नहीं हो पाता है परन्तु मुद्रा के रूप में वस्तुओं का मूल्य मापन सर्वमान्य है। लेखांकन की प्रणाली का विकास हुआ है।
  2. वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव होता है। वांछित संयोग को तलाशने में श्रम एवं समय दोनों की बर्बादी होती है। मुद्रा के प्रयोग से दोहरे संयोग तलाशने की जरूरत नहीं पड़ती है। अतः श्रम समय दोनों की बचत होती है।
  3. वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों का निपटारा करने में वस्तु की किस्म, मात्रा, गुणवत्ता आदि के बारे में विवाद स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों को निपटाने में कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है।
  4. वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के मूल्य का संग्रहण करने के लिए बहुत ज्यादा उपयुक्त वस्तु नहीं होती है। परन्तु मुद्रा के माध्यम से मूल्य का संचय आसानी से किया जा सकता है।

प्रश्न 19.
मूल्य मापन की सामान्य इकाई का अर्थ लिखो। यह भी बताओ कि यह किस प्रकार से वस्तु विनिमय प्रणाली का एक दोष है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में मुद्रा वह इकाई होती हैं जिसके रूप में वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य अंकित किए जाते हैं। इसलिए मुद्रा को लेखे की इकाई कहा जाता है। मुद्रा के रूप में वस्तु या सेवा का मूल्य उसकी कीमत कहलाती है। वस्तु की कीमत से अभिप्राय वस्तु के बदले में प्राप्त होने वाली मुद्रा या किसी वस्तु की इकाइयां। उदाहरण के लिए यदि एक कमीज की कीमत 250 रु. है तो क्रेत 250 रु. के बदले में एक कमीज प्राप्त कर सकता है। मूल्यमापन की सामान्य इकाई होने पर विनिमय में कठिनाइयां उत्पन्न नहीं होती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य मापन की कोई सामान्य इकाई नहीं होती जिसमें सभी वस्तुओं या सेवाओं के मूल्य अंकित किए जा सकें और सर्वसमत्ति से स्वीकार किए जा सके।

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प्रश्न 20.
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय की कठिनाइयां –

  1. इस प्रणाली में वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य मापने की कोई सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। अतः वस्तु विनिमय लेखांकन की उपयुक्त व्यवस्था के विकास में एक बाधा है।
  2. आवश्यकताओं का दोहरा संयोग विनिमय का आधार होता है। व्यवहार में दो पक्षों में हमेशा एवं सब जगह परस्पर वांछित संयोग का तालमेल होना बहुत मुश्किल होता है।
  3. स्थगित भुगतानों को निपटाने में कठिनाई आती है। दो पक्षों के बीच सभी लेन-देनों का निपटारा साथ के साथ होना मुश्किल होता है अतः वस्तु विनिमय प्रणाली में स्थगित भुगतानों के संबंध में वस्तु की किस्म, गुणवत्ता, मात्रा आदि के संबंध में असहमति हो सकती है।

प्रश्न 21.
वस्तु विनिमय प्रणाली में पाए जाने वाले प्रमुख अभाव लिखिए।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में निम्नलिखित अभाव पाए जाते हैं –

  1. वस्तु-वस्तु अर्थव्यवस्था में वस्तुओं का उत्पादन केवल अत्यधिक तीव्र आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही किया जाता है।
  2. उत्पादन में विशिष्टीकरण का अभाव पाया जाता है।
  3. उत्पादन छोटे स्तर पर होता है।
  4. आर्थिक संवृद्धि एवं विकास कल्पना की चीजें हो जाती है।

प्रश्न 22.
वस्तु विनिमय प्रणाली में विशिष्टिकरण का अभाव पाया जाता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली में फैक्टरी प्रणाली का अभाव पाया जाता है। इस प्रणाली में उत्पादन बड़े पैमाने के बजाय छोटे स्तर पर किया जाता है। इस प्रणाली में विलासिता एवं विशिष्टता की वस्तुएँ उत्पन्न नहीं की जाती हैं। इस प्रणाली में केवल जीवन निर्वाह के लिए ही वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 23.
जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो कौन-सी समस्याएँ पैदा होती है?
उत्तर:
जब भावी भुगतानों का वस्तुओं के रूप में भुगतान किया जाता है तो निम्नलिखित समस्याएँ पैदा होती हैं –

  1. वस्तुओं के चयन की समस्या अथवा उन वस्तुओं के प्रकार की समस्या पैदा होती है जिनका भुगतान भविष्य में किया जाता है।
  2. विशिष्ट वस्तुओं की गुणवत्ता की समस्या।
  3. वस्तुओं के बाजार मूल्य की समस्या जो बाजार में दूसरी वस्तुओं की तुलना में घट-बढ़ सकती है।

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प्रश्न 24.
भारत में मुद्रा की पूर्ति कौन करता है?
उत्तर:
भारत में मुद्रा की पूर्ति करते हैं –

  1. भारत सरकार।
  2. केन्द्रीय बैंक।
  3. व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 25.
भारत में न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था के बारे में बताइए।
उत्तर:
भारत में मुद्रा जारी करने के लिए न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था को अपनाया जाता है। सुरक्षित निधि में 115 करोड़ रुपए का सोना तथा 85 करोड़ रुपए की विदेशी प्रतिभूतियाँ। इस प्रकार कुल 200 करोड़ रुपए की सुरक्षित निधि के बाद भारत का केन्द्रीय बैंक समस्त मुद्रा जारी करता है।

प्रश्न 26.
भारत में नोट जारी करने की क्या व्यवस्था है?
उत्तर:
भारत में नोट जारी करने की व्यवस्था को न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था कहा जाता है। जारी की गई मुद्रा के लिए न्यूनतम सोना व विदेशी मुद्रा सुरक्षित निधि में रखी जाती है।

प्रश्न 27.
न्याय मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
न्याय मुद्रा से अभिप्राय उस मुद्रा से है जो प्राप्तकर्ता एवं अदाकर्ता के बीच परस्पर विश्वास पर आधारित होती है। जैसे-चैक न्याय मुद्रा का उदाहरण है। इसे भुगतान के लिए करना प्राप्तकर्ता व अदाकर्ता के आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

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प्रश्न 28.
मुद्रा के अंकित व वस्तु मुल्य का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अंकित मूल्य-किसी पत्र व धातु मुद्रा पर जो मूल्य लिखा होता है, उसे मुद्रा का अंकित मूल्य कहते हैं। जैसे 500 रुपये के नोट का अंकित मूल्य 500 रु. होता है। वस्तु मूल्य-उस पदार्थ के मूल्य को वस्तु मूल्य कहते हैं जिससे मुद्रा बनायी जाती है। जैसे-चाँदी के सिक्के का धातु-मूल्य, उस सिक्के के निर्माण में प्रयुक्त धातु के मूल्य के समान होता है।

प्रश्न 29.
साख मुद्रा का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऐसी मुद्रा जिसका अंकित मूल्य उसके धातु मूल्य से अधिक होता है, साख मुद्रा कहलाती है। जैसे- भारतीय मुद्रा के 100 रु. के नोट का वस्तु मूल्य उसके अंकित मूल्य से बहुत कम है।

प्रश्न 30.
भारत में सिक्के सीमित विधि ग्राह्य हैं जबकि कागजी नोट असीमित विधि ग्राह्य है। इस कथन का आशय लिखिए।
उत्तर:
भुगतानों का निपटारा करने के लिए भारत के सिक्कों का प्रयोग केवल एक सीमा तक किया जा सकता है, जबकि भुगतानों की निपटारा करने के लिए नोटों का प्रयोग असीमित मात्रा में किया जा सकता है।

प्रश्न 31.
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक का आशय नष्ट कीजिए।
उत्तर:
2 अक्टूबर, 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक स्थापित किए गए। इनका कार्यक्षेत्र एक, राज्य के एक या दो जिले तक सीमित रखा गया। ये छोटे और सीमित किसानों, खेतीहर मजदूरों, ग्रामीण दस्तकारों, लघु उद्यमियों, छोटे व्यापार में लगे व्यवसायियों को ऋण प्रदान करते हैं। इन बैंकों का उद्देश्य ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास करना है। ये बैंक ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि, लघु-उद्योगों, वाणिज्य, व्यापार तथा अन्य क्रियाओं के विकास में सहायोग करते हैं।

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प्रश्न 32.
कृषि क्षेत्र को वाणिज्य बैंकों की ओर से प्रदत्त प्रत्यक्ष सहायता के बारे में लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यक्ष सहायता-वाणिज्य बैंक कृषि साख को अल्पकालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण प्रदान करते हैं। अल्पकालीन ऋण का भुगतान फसल तैयार होने के तुरन्त बाद करना होता है। मध्यकालीन और दीर्घकालीन ऋण विकास कार्यों अथवा पूंजी गहन कार्यों के लिए अधिकतम 15 वर्षों के लिए दिए जाते हैं।

प्रश्न 33.
बैंकिंग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वाणिज्य बैंक वह संस्था है जो कि लाभ के उद्देश्य से कार्य करती है। जनता से जमा स्वीकार करती है, गृहस्थों, फर्मों तथा सरकार को ऋण प्रदान करती है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. जनता से जमा स्वीकार करना।
  2. ऋण व निवेश के लिए जमा का प्रयोग करना।
  3. चैक या अन्य आदेश के द्वारा आहरण करना।

प्रश्न 34.
बचत खाता क्या होता है?
उत्तर:
बचत खाता-इसमें जनता की निष्क्रिय राशियाँ जमा की जाती हैं। इस खाते में सबसे कम ब्याज प्राप्त होता है, क्योंकि जमाकर्ता इस खाते में से किसी भी समय रुपया निकाल सकते हैं। सामान्य रूप से जमाकर्ता एक वर्ष में 100 बार इस खाते में जमा राशि निकाल सकते हैं।

प्रश्न 35.
वाणिज्य बैंक कोषों का अन्तरण किस प्रकार करते हैं?
उत्तर:
वाणिज्य बैंक एक स्थान से दूसरे स्थान पर धन राशि को भेजने में सहायक होते हैं। यह राशि साख पत्रों, जैसे-चैक, ड्रॉफ्ट, विनिमय, बिल आदि की सहायता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती है।

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प्रश्न 36.
वाणिज्य बैंक के कुछ कार्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वाणिज्य बैंक अपने ग्राहकों के लिए पैंशन, लाभांश, बीमे की किस्तों का भुगतान, बिजली-पानी के बिलों का भुगतान, टेलीफोन की किस्तों का भुगतान जैसे कार्यों को करता है। ग्राहकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करता है। लॉस की सुविधा, यात्री चैकों को जारी करना, उद्यमियों को आवश्यक सलाह देना जैसे-कार्यों को सम्पन्न करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
मुद्रा की परिभाषा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
मुद्रा की परिभाषा कई तरह से की जाती है –
1. मुद्रा की कानून आधारित परिभाषा-“मुद्रा वह है जिसे कानूनी रूप से मुद्रा घोषित कर दिया गया है।” इन परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा में सामान्य स्वीकार्यता का गुण आ जाता है। मुद्रा को विधि संगत देयता भी घोषित कर दिया जाता है। कानून आधारित मुद्रा प्रादिष्ट मुद्रा भी होती है। क्योंकि मुद्रा का होना सरकारी आदेश से तय होता है। इसे स्वीकार करने में देने वाले के विश्वास की जरूरत नहीं होती है।

2. कार्य आधारित परिभाषाएं-इन परिभाषाओं में कोई भी ऐसी वस्तु जो मुद्रा के चारों कार्य कर सकती है मुद्रा हो सकती है। जैसे जिस वस्तु से मूल्य मान तय हो सकता है, विनिमय का काम हो सकता है, स्थगित भुगतानों का मानक तय हो सकता है एवं मूल्य का भण्डारण हो सकता है मुद्रा बन सकती है। जैसे भारत में सिक्के-नोट कानूनी मुद्रा के रूप में कार्य करते हैं परन्तु बैंकों के पास जमाओं को भी मुद्रा में शामिल किया जाता है।

3. मुद्रा की संकुचित एवं विस्तृत परिभाषाएं-मुद्रा की संकुचित परिभाषाओं के आधार पर मुद्रा वह है जो विनिमय भुगतान के माध्यम का काम करती है। विस्तृत परिभाषाओं में अन्य चीजें भी मुद्रा में शामिल कर ली जाती हैं जिनमें मुद्रा की तरह के प्रबल गुण होते हैं। संकुचित परिभाषाओं में केवल करेंसी को ही मुद्रा माना जाता है परन्तु परिभाषाओं में करेंसी के साथ-साथ, बैंकों एवं डाकघरों के पास जमाओं को भी मुद्रा की श्रेणी में शामिल कर लिया जाता है।

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प्रश्न 2.
भारत में केन्द्रीय बैंक के कार्य संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
भारत में ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ केन्द्रीय बैंक है। इसका निम्नलिखित कार्य हैं –
1. मुद्रा निर्गमन करना-भारत में मुद्रा जारी करने का अधिकार केवल RBI के पास है। केवल भारत सरकार का वित्त मंत्रालय एक रुपये के नोट जारी करता है बाकी सभी प्रकार के नोटों को जारी करने एवं सिक्कों की ढलाई का काम RBI करता है। सिक्कों एवं सभी प्रकार के नोटों को प्रचलन में लाने का काम RBI को ही करना पड़ता है। न्यूनतम संरक्षित कोष (200 करोड़ रुपये के सोना, चाँदी आदि बहुमूल्य धातुएं एवं विदेशी मुद्रा के रूप में) रखकर RBI मुद्रा जारी करता है।

2. सरकार का बैंकर-RBI, केन्द्र एवं सभी राज्य सरकारों का बैंकर है। सभी सरकारी चालू खाते के नकद कोष RBI के पास जमा होते हैं। RBI सरकार की ओर से भुगतान भी करता है और भुगतान स्वीकार भी करता है। इसके अतिरिक्त विनिमय लेन-देन के काम भी RBI निपटाता है। RBI जरूरत पड़ने पर सरकार को अल्पावधि ऋण भी देता है । सरकारी ऋण पत्रों के प्रबन्धन का काम भी केन्द्रीय बैंक को ही करना पड़ता है। ऋण के आकार, ब्याज दर, समय एवं अन्य शर्तों के संबंध में यह बैंक सलाहकार के रूप में कार्य करता है। संक्षेप में, केन्द्रीय बैंक बैंकिग एवं वित्तीय मामलों में सरकार का परामर्शदाता है।

3. बैंकों का बैंक तथा पर्यवेक्षक-बैंकों के बैंक के रूप में RBI सभी बैंकों के नकद कोषों के एक अंश को अपने पास सुरक्षित रखता है, बैंकों को कम समय अवधि के लिए नकदी प्रदान करता है, केन्द्रीयकृत समाशोधन और धन विप्रेष का काम करता है। नकद कोष में जमा राशि का प्रयोग करके RBI अन्तिम आश्रयदाता के रूप में व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। RBI सभी बैंकों के व्यावसायिक कामों का पर्यवेक्षण, नियमन और नियंत्रण करता है। बैंकों को लाइसेंस देना, शाखाओं का विस्तार करना, परिसंपत्तियों की तरलता, प्रबंधन, विलप आदि कार्य भी RBI करता है।

4. मुद्रा की आपूर्ति तथा साख का नियंत्रण-RBI भारत में मुद्रा और साख की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इस काम के लिए RBI मौद्रिक नीति की रचना करता है। मौद्रिक नीति उपकरणों के रूप में निम्नलिखित उपाय करता है –

  • बैंक दर नीति-बैंक को उधार देने के लिए ब्याज दर का निर्धारण करना।
  • खुले बाजार की क्रियाएं-सरकारी प्रतिभूतियों को व्यापारिक बैंक के साथ क्रय-विक्रय करना।
  • सुरक्षित कोष अनुपातों में परिवर्तन-सुरक्षित कोष अनुपात दो प्रकार के होते हैं –
  • नकद जमा अनुपात (CRR)।
  • संवैधानिक तरलता अनुपात (SLR)।
  • साख की राशनिंग अथवा प्रोत्साहन।
  • नैतिक आग्रह।

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प्रश्न 3.
मुद्रा के प्रयोग से किस प्रकार वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त हो जाता है?
उत्तर:
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय की कठिनाइयों का अन्त निम्न प्रकार से होता है –

  1. वस्तु विनिमय में सेवाओं एवं वस्तुओं का मूल्य मापने के लिए सर्वमान्य इकाई नहीं होती है। मुद्रा के प्रयोग से वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को मापने के लिए मुद्रा का प्रयोग सर्वमान्य इकाई के रूप में होता है। अतः मुद्रा के प्रयोग से लेखांकन का विकास हुआ है।
  2. वस्तु विनिमय में संयोग तलाशने में अनावश्यक रूप से धन एवं समय की हानि होती है। लेन-देन में मुद्रा का प्रयोग करने से विनिमय प्रक्रिया सरल बन जाती है। मुद्रा विनिमय में संयोग तलाशे बिना प्रत्यक्ष रूप से विनिमय का कार्य कम समय में एवं सरलता से हो जाता है।
  3. वस्तु विनिमय में भविष्य में स्थगित भुगतानों पर वस्तु के गुण धर्म, वस्तु के प्रकार एवं वस्तु के मूल्य मान के संदर्भ में असहमति उत्पन्न होती है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से स्थगित भुगतानों की माप मुद्रा के द्वारा की जाती है।
  4. वस्तु विनिमय में क्रय शक्ति का भण्डारण संभव नहीं होता है। परन्तु मुद्रा के प्रयोग से मूल्य के भण्डार का काम आसानी से हो जाता है। मुद्रा का प्रयोग कभी भी वस्तुओं एवं सेवाओं को खरदीने के लिए किया जा सकता है। इस प्रकार मुद्रा मूल्य को संचय करने में भण्डारण का काम करती है।

प्रश्न 4.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे होता है?
उत्तर:
मुद्रा का वर्गीकरण मुद्रा स्वरूपी मान तथा वस्तु स्वरूपी मान के आधार पर किया जाता है। ये वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं –
1. सम्पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मान वस्तु मान के बराबर होता है। इनका गैर-मौद्रिक प्रयोग मान भी मौद्रिक प्रयोग मान के बराबर रहता है जैसे सोने एवं चांदी के सिक्के, इस प्रकार की मुद्रा का प्रचलन पुराने समय में होता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण मूर्ति मान मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा कागजी होती है। यह मुद्रा पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा या सोने चांदी को भण्डार में जमा कराने परे प्रचलन में आती हैं। दूसरे शब्दों में, यह पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा की मात्रा अथवा सोने चाँदी जैसे बहुमूल्य धातुओं को भण्डार गृह में जमा कराने की रसीद होती है। इस रसीदी कागज का अपना कोई मूल्य नहीं होता है। परन्तु इस मुद्रा पर अंकित राशि उतनी ही मुद्रा को व्यक्त करती है जितना उस मुद्रा का वस्तु मान होता है। इस प्रकार की मुद्रा के प्रयोग से बहुमूल्य एवं भारी धातुओं को इधर-उधर ले जाना नहीं पड़ता है।

3. साख मुद्रा-इस प्रकार की मुद्रा का मौद्रिक मूल्य वस्तु मूल्य से ज्यादा होता है। दूसरे शब्दों में, जिस चीज का इस्तेमाल करके मुद्रा बनाई जाती है उसका मूल्य अंकित मौद्रिक मूल्य से बहुत कम होता है। साख मुद्रा के निम्नलिखित प्रकार हैं –

  • सांकेतिक सिक्के
  • प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा
  • केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट
  • बैंकों के पास जमाएं

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प्रश्न 5.
साख मुद्रा क्या है? साख मुद्रा के विभिन्न प्रकार संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
साख मुद्रा, मुद्रा का वह प्रकार है जिसका मौद्रिक मूल्य, वस्तु मूल्य से अधिक होता है। जिस चीज से मुद्रा बनायी जाती है उसका मूल्य साख मुद्रा के मूल्य से कम होता है। साख मुद्रा कई प्रकार की होती है। जैसे –
1. सांकेतिक सिक्के-भारत में 25 पैसे, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये एवं 5 रुपये के सिक्के सांकेतिक सिक्के हैं। इन सिक्कों का मौद्रिक मूल्य इनमें लगी धातु के मूल्य से कम होता है। जैसे 2 रुपये के सिक्के को पिघलाकर प्राप्त धातु को बेचकर 2 रुपये प्राप्त करना बहुत मुश्किल है।

2. प्रतिनिधि सांकेतिक मुद्रा-यह सांकेतिक सिक्कों या चांदी के भण्डार की पावती रसीद होती है। सिक्के और चांदी के भण्डार का वस्तुमान, कागज पर लिखे मौद्रिक मान से कम होता है।

3. केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी प्रचलित नोट-आजकल विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाओं में इस प्रकार की मुद्रा का चलन ज्यादा है। भारत में करेंसी नोट जारी करने का काम (RBI) करता है। भारतीय रिजर्व बैंक का गवर्नर धारक को नोट में अंकित राशि अदा करने का वचन अदा करता है।

4. बैंकों के पास जमाएं-सामान्य जनता बैंकों में विभिन्न प्रकार के खातों में जमाएं कराती है। ये जमाएं बैंको के लिए दायित्व होते हैं। ग्राहक चैक के माध्यम से परस्पर इनका अन्तरण कर सकते हैं। बैंक चैक वाले जमा खातों के बराबर मुद्रा अपने पास सुरक्षित निधि कोष में निधि रखते हैं। इस प्रकार चैक जमाओं से बैंक मुद्रा का काम चलाते हैं।

प्रश्न 6.
अर्थव्यवस्था में व्यापारिक बैंकों की भूमिका पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
बैंकिंग व्यवसाय का मुख्य काम जमा स्वीकार करना एवं उधार देना है। बैंक जन सामान्य से चैक द्वारा आहरणीय जमा भी स्वीकार करते हैं। व्यापारिक बैंकों के निम्नलिखित कार्य हैं –

1. जमा स्वीकार करना:
व्यापारिक बैंक आम जनता से तीन तरह के खातों में जमाएं स्वीकार करता है। ये खाते इस प्रकार हैं –

  • चालू खाता जमा-इस प्रकार के खाते व्यावसायिक लोगों के लिए होते हैं इनमें जमा राशि पर बैंक को ब्याज का भुगतान नहीं करना पड़ता है। इन खातों में जमा मांग देय होती है। बैंक इन पर प्रशुल्क लेता है।
  • सावधि जमाएं-इस प्रकार की जमाएं निश्चित समय अवधि के लिए स्वीकार की जाती है। ये मांग जमाएं नहीं होती हैं। इन जमाओं पर बैंकों को ब्याज का भुगतान करना पड़ता है।
  • बचत खाता जमाएं-निश्चित चैकों के साथ में भी मांग जमाएं होती हैं। इन जमाओं पर ब्याज का भुगतान भी किया जाता है।

2. ऋण देना:
व्यापारिक बैंक सुरक्षित कोष के अलावा अन्य जमाओं का प्रयोग उधार देने के लिए करता है। इससे बैंकों को आमदनी प्राप्त होती है। व्यापारिक बैंक निम्न प्रकार के उधार या ऋण प्रदान करते हैं।

  • नकद साख-ग्राहक की सुपात्रता के आधार पर व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को उधार देने की सीमा तय करते हैं। नकद साख का निर्धारण ग्राहकों की परिसंपत्तियों एवं स्टॉक के आधार पर होता है। ग्राहक प्रयुक्त पर ब्याज का भुगतान करते हैं। ऋण न चुकाए जाने पर बैंक ग्राहक की परिसंपत्ति पर कब्जा कर सकता है।
  • मांग उधार-ऐसे ऋण बैंक कभी वापिस मांग सकता है। ऋण की राशि एकमुश्त उधार लेने वाले के खाते में जमा करा दी जाती है। ब्याज भी तुरन्त लगाया जाता है। इस प्रकार के ऋण प्रायः शेयर दलाल लेते हैं।
  • अल्पावधि ऋण-इस प्रकार के ऋणों में व्यक्तिगत उधार, कामचलाऊ पूंजी उधार तथा वरीयता प्राप्त क्षेत्रों को प्रदान किए जाते हैं। इस ऋण की राशि पर खातेदार के खाते में अन्तरण होने के बाद तुरंत ब्याज लगाया जाता है।

3. अधिविकर्ष:
चालू खाते के ग्राहक जमा राशि से निश्चित सीमा तक अधिक राशि का चैक जारी करने की सुविधा प्राप्त करते हैं। इस पर ब्याज दर नकद साख से कम होती है क्योंकि इस कार्य के लिए वित्तीय परिसंपत्तियों को प्रतिभूति के रूप में स्वीकार किया जाता है जिनका नकदीकरण सरल होता है।

4. हुन्डियों की कटौती:
प्राप्त हुई वस्तुओं के मूल्य को चूकाने के दायित्व को स्वीकार करने को हुन्डी कहते हैं। बैंक हुन्डी की राशि पर कुछ कमीशन लेकर शेष राशि हुन्डी धारक को अदा कर देता है।

5. जमा राशियों का निवेश:
व्यापारिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों, अनुमोदित प्रतिभूतियों आदि में निवेश करते हैं। ये प्रतिभूतियों सरल होती हैं और इनका नकदीकरण आसान होता है।

6. अभिकर्ता के रूप में व्यापारिक बैंक आजकल कमीशन एजेन्ट का काम भी बखूबी निभा रहे हैं। कमीशन लेकर बैंक अपने ग्राहकों के लिए अनेक सेवाएं उपलब्ध कराते हैं जैसे-नकद कोषों का अन्तरण, नकद संग्रहण, प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय, बिल एवं किश्तों का भुगतान, ट्रस्टी एवं प्रबन्धकीय सेवाएं, सलाहकार सेवाएं आदि।

7. अन्य कार्य:

  • विदेशी मुद्रा का क्रय-विक्रय
  • पर्यटक एवं उपहार चैक जारी करना
  • कीमती चीजों को लॉकरों में संभालकर रखना आदि

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत की मुद्रा है –
(A) पूर्ण मूर्तिमान मुद्रा
(B) प्रतिनिधि मूर्तिमान मुद्रा
(C) साख मुद्रा
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) साख मुद्रा

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प्रश्न 2.
भारत की मुद्रा को किस वर्ग में रखा जा सकता है –
(A) अपरिवर्तनीय
(B) पूर्णतः परिवर्तनीय
(C) न तो परिवर्तनीय न ही अपरिवर्तनीय
(D) परिवर्तनीय एवं अपरिवर्तनीय दोनों
उत्तर:
(A) अपरिवर्तनीय

प्रश्न 3.
भारत का केन्द्रीय बैंक है –
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) भारतीय रिजर्व बैंक
(C) भारत का वित्त मंत्रालय
(D) इलाहाबाद बैंक ऑफ इंडिया
उत्तर:
(B) भारतीय रिजर्व बैंक

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प्रश्न 4.
भारत में एक रुपये का नोट जारी करता है –
(A) भारतीय रिजर्व बैंक
(B) भारत का वित्त मंत्रालय
(C) भास्तीय रिवर्ज बैंक
(D) भारत का रेल मंत्रालय
उत्तर:
(B) भारत का वित्त मंत्रालय

प्रश्न 5.
भारत प्रतिनिधि सिक्कों की ढलाई कौन करता है –
(A) भारत क वित्त मंत्रालय
(B) भारत का गृह मंत्रालय
(C) भारतीय रिजर्व बैंक
(D) भारत का रेल मंत्रालय
उत्तर:
(A) भारत क वित्त मंत्रालय

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प्रश्न 6.
एक रुपये के नोट के अलावा भारतीय रुपयों पर हस्ताक्षर कौन करता है –
(A) वित्त मंत्री
(B) प्रधान मंत्री
(C) भारत का राष्ट्रपति
(D) भारतीय रिवर्ज बैंक का गवर्नर
उत्तर:
(D) भारतीय रिवर्ज बैंक का गवर्नर

प्रश्न 7.
एक रुपये के नोट के अलावा अन्य नोटों को कौन जारी करता है –
(A) भारतीय रिवर्ज बैंक
(B) भारतीय स्टेट बैंक
(C) वित्त मंत्रालय
(D) प्रधान मंत्री।
उत्तर:
(A) भारतीय रिवर्ज बैंक

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प्रश्न 8.
बढ़ते क्रम में मुद्रा की आपूर्ति के चार स्टॉक हैं –
(A) M1, M2, M3 व M4
(B) M4, M3, M2 व M1
(C) a व b दोनों
(D) a व b में कोई नहीं
उत्तर:
(A) M1, M2, M3 व M4

प्रश्न 9.
भारत में सामान्यतः बहुप्रचलित मुद्रा आपूर्ति स्टॉक है –
(A) M1
(B) M2
(C) M3
(D) M4
उत्तर:
(C) M3

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प्रश्न 10.
भारत में अंतिम ऋण आश्रयदाता है –
(A) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया
(B) सिंडिकेट बैंक
(C) भारतीय रिजर्व बैंक
(D) कृषि मंत्रालय
उत्तर:
(C) भारतीय रिजर्व बैंक

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

Bihar Board Class 12 Economics सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, प्रशासन आदि वस्तुओं या सेवाओं को सार्वजनिक वस्तु कहते हैं। सार्वजनिक वस्तुएँ निम्नलिखित कारणों से सरकार द्वारा ही उपलब्ध कराई जाने चाहिए –

  1. सार्वजनिक वस्तुओं के लाभ केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं होते हैं, बल्कि इनके लाभ सभी लोगों को प्राप्त हो सकते हैं। इनका प्रयोग प्रतिस्पर्धात्मक नहीं होता है। एक व्यक्ति दूसरों के लाभ में कमी किए बिना वस्तु का लाभ उठा सकता है।
  2. वह व्यक्ति, जो निजी वस्तुओं का भुगतान करने की इच्छा व सामर्थ्य नहीं रखता है निजी वस्तु के उपयोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के बारे में यह सोचने का प्रश्न ही नहीं उठता है। किसी भी व्यक्ति को, जो भुगतान कर सकता है या नहीं सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग से वंचित नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूंजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:

  1. सरकारी व्यय का वह भाग, जिससे भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है, राजस्व व्यय कहलाता है, इसके विपरीत सरकारी व्यय का वह भाग, जिससे भौतिक अथवा वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण होता है, पूंजीगत व्यय कहलाते हैं।
  2. सरकारी विभागों के सामान्य संचालन के लिए राजस्व व्यय किए जाते हैं, इसके अलावा ऋणों पर ब्याज भुगतान, राज्य सरकारों एवं अन्य संस्थाओं को दी जाने वाली आर्थिक सहायता भी राजस्व व्यय कहलाते हैं। दूसरी ओर भूमि, इमारत, मशीनों, अंश पत्रों में निवेश, राज्य सरकार को दिए जाने वाले ऋण एवं अग्रिमों पर किए जाने वाले व्यय पूंजीगत व्यय कहलाते हैं।
  3. राजस्व व्यय को योजना व गैर योजना व्यय में बाँटा जाता है, इसी प्रकार पूंजीगत व्यय भी योजना एवं गैर योजना व्यय में वर्गीकृत किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार का ऋण-ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
बजट घाटे से अभिप्राय है कि सरकार एक लेखा वर्ष की अवधि में प्राप्तियों से अधिक व्यय करती है। राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय एवं ऋण प्राप्तियों के अलावा अन्य प्राप्तियों के अंतर के समान होता है। राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – (कुल राजस्व प्राप्तियाँ + गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ) = ऋण प्राप्तियाँ
अतः राजकोषीय घाटे के लिए वित्त व्यवस्था ऋणों के माध्यम से की जाती है। सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए घरेलू अथवा विदेशी अथवा दोनों प्रकार के ऋण ले सकती है।

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प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में सम्बन्ध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा-एक लेखा वर्ष की अवधि में सरकार के कुल राजस्व व्यय एवं कुल राजस्व प्राप्तियों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
राजस्व घाटे में सरकारी चालू वर्ष के व्यय एवं प्राप्तियों को सम्मिलित किया जाता है, राजस्व व्यय वचनबद्ध व्यय होते हैं, इन्हें सरकार कम नहीं कर सकती है। राजस्व घाटे का वित्तीयन सरकार या तो भूतकाल की बचतों से करती है अथवा ऋण लेती है।

राजकोषीय घाटा:
एक लेखा वर्ष की अवधि में सरकार के कुल व्यय एवं गैर ऋण प्राप्तियों के अन्तर को राजकोषीय घाटा कहते हैं। राजकोषीय घाटे का वित्तीयन घरेलू अथवा विदेशी ऋणी से किया जाता है। राजस्व घाटे से राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होती है।

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अंतरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75 Y दिया हुआ है, तो
(a) सन्तुलन आय का स्तर क्या है?
(b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें।
(c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोतरी होती है, तो सन्तुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
हल:
निवेश I = 200 सरकारी खरीद G = 150
शुद्ध कर T = 100
उपभोग C = 100 + 0.75 y

(a) साम्य राष्ट्रीय आय Y = – (C – CT + CTR + I + G)
= \(\frac{1}{1-0.75}\) (100 – 0.75 × 100 + 200 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 – 75 + 200 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 – 75 + 200 + 150) = \(\frac{375}{0.25}\) = \(\frac{375 × 100}{25}\)

(b) सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.75}\) = \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4
कर गुणांक = \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = –\(\frac{75}{25}\) = -3

(c) ∆G = 200
नई साम्य आय = \(\frac{1}{1-C}\) = [C – CT + I + G + ∆G]
\(\frac{1}{1-0.75}\) [100 – 0.75 × 100 + 200 + 150 + 200]
= \(\frac{1}{0.25}\) [100 – 75 + 200 + 150 + 200]
= \(\frac{1}{0.25}\) × 575 = \(\frac{100×575}{25}\) = 2300
उत्तर:
(a) साम्य आय = 1400
(b) सरकारी व्यय गुणांक = 4
(c) नई साम्य आय = 2300
कर गुणांक = -3

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प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन है –
C = 20 + 0.80Y, I = 30, G = 50, TR = 100
(a) आय का सन्तुलन स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो संतुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोतरी का भुगतान किया जा सके, तो सन्तुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
हल:
(a) C= 20 + 0.80Y;
I = 30 G = 50 TR = 100
साम्य आय Y = \(\frac{1}{1-C}\) [C + CTR + I + G + G]
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 × 50]
= \(\frac{1}{0.20}\) [20 + 80 + 30 + 50] = \(\frac{1}{0.20}\) × 180 = 900
सरकारी व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.80}\) = \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{100}{20}\) = 5

(b) सरकारी व्यय में वृद्धि ∆G = 30
नई साम्य आय Y’ = \(\frac{1}{1-C}\) (C + CTR + I + G + ∆G)
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 + 50 + 30]
= \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{210 × 100}{20}\) = 1050
अथवा, आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆G}{1-C}\) = \(\frac{30}{1-0.80}\) = \(\frac{30}{0.20}\) = \(\frac{30 × 100}{20}\) = 150

(c) एकमुश्त किश्त ∆T = 30
आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆T(-C)}{1-C}\) = \(\frac{30(-0.80)}{1-0.80}\) = \(\frac{30 × – 0.80}{0.20}\)
= \(\frac{100 × 30 × -80}{20 × 100}\) = – 120
नई साम्य आय = Y + ∆Y = 900 + (- 120) = 780
उत्तर:
(a) साम्य आय = 900
व्यय गुणांक = 5

(b) नई साम्य आय = 1050
अथवा, साम्य आय में परिवर्तन = 150

(c) नई साम्य आय = 780
अथवा, आय में परिवर्तन = – 120

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प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अंतरण में 10 की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10 की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
हल:
उपरोक्त प्रश्न में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति C = 0.80, C = 20, I = 30, G = 50, TR = 100, ∆TR = 10
साम्य आय = \(\frac{1}{1-C}\) = [C + CTR + I + G + ∆TR]
= \(\frac{1}{1-0.80}\) [20 + 0.80 × 100 + 30 + 50 + 8]
= \(\frac{188}{0.20}\) = \(\frac{188×100}{20}\) = 940
आय में परिवर्तन = 940 – 900 = 40
अथवा, आय में परिवर्तन ∆Y = \(\frac{∆TR.C}{1-C}\) = \(\frac{10×0.80}{1-0.80}\) = \(\frac{8}{0.20}\) = \(\frac{8×100}{20}\) = 40
एकमुश्त कर में वृद्धि ∆T = 10
आय में परिवर्तन = \(\frac{∆T(-C)}{1-C}\) = \(\frac{10×-(0.8)}{1-0.80}\) = \(\frac{-8}{0.20}\) = \(\frac{8×100}{20}\) = – 40
उत्तर:
हस्तांतरण भुगतानों में 10 वृद्धि से आय में वृद्धि = 40
कर में 10 वृद्धि से आय में कमी = 40

प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C = 70 + 0.70YD, I = 90, G = 3D 100, T = 0.10Y
(a) सन्तुलन आय ज्ञात कीजिए।
(b) सन्तुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट सन्तुलित बजट है?
हल:
C = 70 + 70YD, I = 90, G = 100, T = 0.10Y
(a) Y = C + I + G
Y = 70 + 70YD + 90 + 100
Y = 70 + 70 (Y – T) + 190
= 260 + 70Y – 0.7 Y
Y = 260 + 0.63 Y
Y – 0.63 Y = 260
Y = \(\frac{260}{0.37}\) Y = 702.7 = 70.27

(b) सरकारी व्यय = 100
कर राजस्व = 70.27
G > T
नहीं, सरकारी बजट सन्तुलित है, सरकार का व्यय प्राप्तियों से अधिक है। अतः सरकार का बजट घाटे का बजट है।

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प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। सन्तुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें।
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि।
(b) अंतरण में 20 की कमी।
हल:
(a) अनुपातिक कर की स्थिति में
∆Y = \(\frac{1 × ∆G}{1-C(1-t)}\) = \(\frac{1 × 20}{1-0.75(1-(0.2)}\) = \(\frac{20}{1-0.75 × 0.8}\)
= \(\frac{20}{1+0.600}\) = \(\frac{20}{0.4}\) = \(\frac{20 × 10}{4}\) = 50
(b) ∆Y = \(\frac{C}{1-C)}\) ∆TR = \(\frac{0.75}{1-0.75}\) × 20 = \(\frac{75}{25}\) × 20 = 3 × 20 = 60
उत्तर:
(a) आय में वृद्धि = 50
(b) आय में वृद्धि = 60

प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणांक की तुलना में कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य कम होता है। सार्वजनिक व्यय प्रत्यक्ष रूप से कुल को प्रभावित करता है लेकिन कर गुणक प्रक्रिया में प्रवेश करके प्रयोज्य आय को प्रभावित करता है। प्रयोज्य आय उपभोग व्यय को प्रभावित करती है। कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणांक से एक इकाई छोटा होता है, इसे एक उदाहरण की सहायता से समझाया जा सकता है –
माना अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति C = 0.75
सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.75}\) (C का मूल्य रखने पर)
= \(\frac{1}{0.25}\) = \(\frac{100}{25}\) = 4
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{0.75}{1-0.75}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3
कर गुणांक का निरपेक्ष मान = + 3
इस प्रकार कर गुणांक का निरपेक्ष मान 3, सार्वजनिक व्यय गुणांक से 1 कम है।

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प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण-ग्रहण में क्या सम्बन्ध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटा तथा ऋण दोनों में घनिष्ठः सम्बन्ध है। सरकारी घाटा एक प्रवाह है, जबकि सरकारी ऋण एक स्टॉक है। सरकारी घाटा (प्रवाह) सरकारी ऋण स्टॉक में वृद्धि करता है। यदि सरकार वर्ष दर वर्ष सार्वजनिक घाटे को पूरा करने के लिए ऋण लेती है, तो ऋण के भार में बढ़ोतरी होती जाती है और सार्वजनिक ऋणों का भुगतान बढ़ जाता है, क्योंकि ऋणों का ब्याज भुगतान स्वयं ऋण भार को और अधिक बढ़ाता है।

प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. सरकार वर्तमान पीढ़ी को बाँड जारी करके ऋण प्राप्त करती है। ऋण से सरकार के दायित्व में बढ़ोतरी होती है। इस दायित्व से निजात पाने के लिए अथवा दायित्व के भार को कम करने के लिए सरकार बाँड का भुगतान लगभग 20 वर्ष के बाद भारी कर आरोपित करके करती है। ये कर युवा पीढ़ी पर लगाए जाते हैं। इससे प्रयोज्य आय घट जायेगी, इसके परिणामस्वरूप उपभोग, बचत एवं पूंजी निर्माण के स्तर में कमी आयेगी। इस प्रकार सरकारी ऋण भावी पीढ़ी पर भार होते हैं।

2. उपरोक्त विचार के विपरीत सरकारी ऋण के बारे में दूसरा विचार भी है। उपभोक्ता दूर दृष्टिगोचर होते हैं। लोग विवेकशील होते हैं, वे अपने व्यय का निर्णय वर्तमान एवं भावी आय को ध्यान में रखकर करते हैं। वर्तमान पीढ़ी भावी पीढ़ी की अभिभावक या संरक्षक होती है। अतः वर्तमान पीढ़ी बच्चों के हितों को ध्यान रखते हुए निर्णय लेती है। वर्तमान पीढ़ी की बचत सरकार की अबचत के समान होती है। अतः राष्ट्रीय बचतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस विचार से ऋण कोई मुद्दा नहीं है। इसे हम अपने लिए लेते हैं। ऋणों से केवल संसाधनों का हस्तांतरण होता है। लेकिन देश के अन्दर क्रय शक्ति नहीं बदलती है। परन्तु विदेशी ऋण भार स्वरूप होते हैं, क्योंकि ब्याज भुगतान के बराबर वस्तुएँ एवं सेवाएँ विदेशों को भेजनी पड़ती है।

प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
सामान्यतः राजकोषीय घाटे को स्फीतिकारी माना जाता है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कटौती से राजकोषीय घाटे में बढ़ोतरी होती है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कमी करने पर सकल माँग में बढ़ोतरी होती है। सार्वजनिक व्यय में वृद्धि तथा करों में कमी करने पर सकल माँग में बढ़ोतरी होती है। फर्म या उत्पादन इतने छोटे समय में नहीं बढ़ पाता है।

अत: वर्तमान वस्तुओं की पूर्ति पर माँग का दाब बढ़ जाता है, जिससे सामान्य कीमत में बढ़ोतरी हो जाती है। अतः राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी होता है। इस तथ्य का दूसरा पक्ष भी है, यदि अर्थव्यवस्था में संसाधन बेकार पड़े होते हैं या आंशिक रूप से बेकार संसाधन मौजूद होते हैं अथवा कम माँग के कारण उत्पादन कम हो जाता है, तो राजकोषीय घाटा अधिक सामूहिक माँग को जन्म देता है। अधिक सामूहिक माँग से उत्पादन स्तर बढ़ जाता है। अत: यदि अर्थव्यवस्था में संसाधन बेकार पड़े रहने की स्थिति में राजकोषीय घाटा स्फीतिकारी नहीं होता है।

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प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
यदि सरकार सार्वजनिक व्यय का स्तर घटाती है अथवा करों की दर बढ़ाती है, तो राजकोषीय घाटे में कमी आ जाती है। सरकार करों की दर बढ़ाकर सार्वजनिक उद्यमों की इकाइयों के अंश पत्र बेचकर राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास किया जा रहा है। राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था में क्षेत्र के हिसाब से प्रभाव डालता है। सरकार आर्थिक क्रियाकलापों को प्रभावशाली बनाने, प्रशासन एवं प्रबन्ध को श्रेष्ठ बनाकर राजकोषीय घाटे को कम करने का प्रयास कर रही है। महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों से सरकारी व्यय घटाने पर कृषि, स्वास्थ्य शिक्षा आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है। निर्धनता निवारण कार्यक्रम, रोजगार कार्यक्रम आदि प्रभावित होते हैं। समान राजकोषीय नीति से घाटा अधिक या कम हो सकता है, यह बात अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करती है। मन्दी काल के दौरान GDP का स्तर घट जाता है, जिससे कर आगम में कमी आती है और राजस्व घाटे में बढ़ोतरी हो जाती है।

Bihar Board Class 12 Economics सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वित्त बिल का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वार्षिक वित्तीय विवरण के साथ पेश किए जाने वाला बिल वित्त बिल कहलाता है। बजट में कर आरोपण, कर छूट, पुनर्वितरण, नियमतिकरण आदि के विवरण को वित्त बिल कहते है।

प्रश्न 2.
उस कर का नाम लिखो, जो पुनर्वितरण के उद्देश्य से लगाया जाता है।
उत्तर:
प्रगतिशील कर से आय एवं संपत्ति का पुनः वितरण किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था में व्यय का निर्धारण किस आधार पर होता है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में व्यय का स्तर आय स्तर एवं साख उपलब्ध पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 4.
हस्तांतरण गुणांक ज्ञात करने का सूत्र लिखो।
उत्तर:
हस्तांतरण गुणांक = \(\frac{C}{1-C}\) जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 5.
कर गुणांक ज्ञात करने को सूत्र लिखिए।
उत्तर:
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\), जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 6.
सार्वजनिक व्यय गुणांक का सूत्र लिखिए।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणांक = \(\frac{1}{1-C}\) जहाँ C सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति है।

प्रश्न 7.
एकमुश्त कर किस प्रकार सामूहिक माँग को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
एकमुश्त कर लगाने से सामूहिक माँग वक्र नीचे की ओर खिसकता है।

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प्रश्न 8.
एकमुश्त कर की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
वह कर, जिसकी दर या मात्रा आय पर निर्भर नहीं करती है, एकमुश्त कर कहलाता है।

प्रश्न 9.
“The General Theory of Employment, Interest and Money” at मुख्य विचार क्या है?
उत्तर:
इस पुस्तक का मुख्य विचार उत्पाद स्तर व रोजगार स्तर में दायित्व लाने से है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित का अर्थ लिखिए –

  1. वित्त विधेयक।
  2. अनुपूरक बजट।

उत्तर:

  1. वित्त विधेयक-कर प्रस्तावों का विस्तृत विवरण, जिसे सरकार संसद में पेश करती है, उसे वित्त विधेयक कहते हैं।
  2. अनुपूरक बजट-प्राकृतिक आपदाओं जैसे-बाढ़, भूकंप, महामारी, सूखा, अकाल, तूफान एवं युद्ध जैसी स्थितियों से निपटने के लिए सरकार संसद में जो बजट पेश करती है, उसे अनुपूरक बजट कहते हैं।

प्रश्न 11.
कार्य निष्पादन बजट की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
एक वित्तीय वर्ष की अवधि के लिए सरकार अनेक परियोजनाएँ बनाती है, इन परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु दर्शाए गए बजट को कार्य निष्पादन बजट कहते हैं।

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प्रश्न 12.
कर राजस्व एवं गैर कर राजस्व का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कर राजस्व-संघीय सरकार द्वारा लगाए गए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों और शुल्कों से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। जैसे-आय कर, संपत्ति कर, बिक्री कर, उत्पादन शुल्क आदि से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। गैर कर राजस्व-सरकारी व्यावसायिक गतिविधियों, सरकारी निवेश से प्राप्त आय, ब्याज प्राप्ति, सरकारी प्रशासनिक विभागों की आय आदि को गैर कर राजस्व कहते हैं।

प्रश्न 13.
अर्थव्यवस्था में रोजगार व कीमत स्तर किससे निर्धारित होता है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में रोजगार व कीमत स्तर मुख्यतः सामूहिक माँग के स्तर से निर्धारित होता है।

प्रश्न 14.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका निभाने वाले क्षेत्र का नाम लिखो।
उत्तर:
मिश्रित अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 15.
बजट का अर्थ लिखिए। भारत में केन्द्रीय बजट कहाँ और कौन पेश करता है?
उत्तर:
एक वित्तीय वर्ष (1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक) की अवधि के लिए सरकार की अनुमानित आय एवं व्यय का विस्तृत लेखा-जोखा बजट कहलाता है। भारत में केन्द्रीय बजट भारतीय संसद में पेश किया जाता है। भारत सरकार का वित्त मंत्री केन्द्रीय बजट पेश करता है।

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प्रश्न 16.
बजट में राजस्व प्राप्ति की मदें लिखिए।
उत्तर:
बजट में राजस्व प्राप्ति की मदों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –

  1. कर राजस्व-सभी प्रकार के करों (प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष) से प्राप्त आय को कर श्रेणी में रखा जाता है।
  2. गैर कर राजस्व-व्यावसायिक राजस्व, निवेश से अर्जित लाभांश, ब्याज प्राप्ति, प्राशासकीय कार्यों से प्राप्त आय को गैर कर राजस्व की श्रेणी में रखा जाता है।

प्रश्न 17.
प्रगतिशील कर की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
कर की वह प्रणाली, जिसमें कर की दर आय एवं संपत्ति की मात्रा बढ़ने पर अधिक होती है एवं आय व संपत्ति की मात्रा घटने पर कर की दर कम होती है, प्रगतिशील कर प्रणाली कहलाती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में ज्यादातर कर प्रगतिशील कर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 18.
प्राथमिक घाटे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटे में से ऋणों पर किए गए ब्याज भुगतान को घटाने पर प्राप्त शेष को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
वास्तव में सरकार को खर्च करने के लिए उतनी ही रकम प्राप्त होती है, जो प्राथमिक घाटे के रूप में प्राप्त होती है।

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प्रश्न 19.
संतुलित एवं असंतुलित बजट का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
संतुलित बजट-सरकार का ऐसा बजट, जिसमें सरकार की सभी स्रोतों से प्राप्तियों का योग, समस्त मदों पर किए गए व्यय के समान होता है, तो ऐसा बजट को संतुलित बजट कहते हैं। असंतुलित बजट-सरकार का ऐसा बजट, जिसमें सरकार की सभी स्रोतों से प्राप्तियाँ, समस्त मदों पर खर्च से कम या ज्यादा होती है, तो इसे असंतुलित बजट कहते हैं।

प्रश्न 20.
राजस्व घाटे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकारी बजट में समस्त राजस्व प्राप्तियों तथा समस्त राजस्व व्ययों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
दूसरों शब्दों में राजस्व प्राप्तियों पर राजस्व व्यय के आधिक्य को राजस्व घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 21.
पूंजीगत घाटा क्या होता है?
उत्तर:
समस्त पूंजीगत प्राप्तियों पर पूंजीगत व्ययों के अधिशेष को पूंजीगत घाटा कहते हैं।
दूसरे शब्दों में समस्त पूंजीगत प्राप्तियों एवं समस्त पूंजीगत व्ययों के अन्तर को पूंजीगत घाटा कहते हैं।
पूंजीगत घाटा = पूंजीगत व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ

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प्रश्न 22.
कर की परिभाषा लिखिए एवं करों के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
ऐसे अनिवार्य भुगतान, जिन्हें आय व संपत्ति, वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद फरोख्न पर अनिवार्य रूप से करना पड़ता है, उन्हें कर कहते हैं। कर दो प्रकार के होते हैं –

  1. प्रत्यक्ष कर एवं
  2. अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 23.
योजना व्यय की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए व्यय, जिनका सम्बन्ध योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम पर किए जाते हैं, योजना व्यय कहलाते हैं। जैसे-नहरों व सड़कों के निर्माण आदि पर व्यय ।

प्रश्न 24.
गैर योजना व्यय का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
योजनाबद्ध विकास कार्यक्रम के अलावा सरकार द्वारा किया गया व्यय गैर-योजना व्यय कहलाता है। जैसे-भूकंप की एवं बाढ़ पीड़ितों की सहायता आदि पर किया गया व्यय।

प्रश्न 25.
विकास व्यय का अर्थ उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किया गया ऐसा व्यय, जो आर्थिक विकास हेतु किया जाता है, विकास व्यय कहलाता है। विकास व्यय से अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि होती है। उदाहरण-सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के विस्तार पर किया जाने वाला व्यय आदि।

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प्रश्न 26.
गैर विकास व्यय का सउदाहरण अर्थ लिखिए।
उत्तर:
ऐसा व्यय, जिसका आर्थिक विकास से सीधे तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं होता है। गैर विकास व्यय कहलाता है। गैर विकास व्यय का अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। जैसे-सुरक्षा, प्रशासन, कानून व्यवस्था आदि पर व्यय।

प्रश्न 27.
पूंजीगत व्यय का सउदाहरण अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे व्यय, जिनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि होती है अथवा सरकार के दायित्व कम हो जाते हैं, पूंजीगत व्यय कहलाते हैं। जैसे-ऋण का भुगतान, भवन निर्माण पर व्यय आदि।

प्रश्न 28.
प्रत्यक्ष कर किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह कर, जिसका भुगतान प्रत्यक्ष रूप से उसी व्यक्ति या संस्था को करना पड़ता है, जिस पर वह कर लगाया जाता है। प्रत्यक्ष कर का भार दूसरे लोगों पर हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। प्रत्यक्ष कर का उदाहरण-आय कर, संपत्ति कर, उपहार कर आदि।

प्रश्न 29.
अप्रत्यक्ष कर का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह कर, जिसका भार आंशिक अथवा पूरी तरह से करदाता दूसरे व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर हस्तांतरित कर सकता है, अप्रत्यक्ष कर कहलाता है। अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण-बिक्री कर, सीमा कर आदि।

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प्रश्न 30.
बजट के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
बचत के उद्देश्य –

  1. आर्थिक व सामाजिक समता को बढ़ावा देने हेतु आय व सम्पत्ति का पुनः वितरण।
  2. सामाजिक कल्याण को बढ़ाने के लिए संसाधनों का पुनः वितरण।
  3. आर्थिक स्थिरता।
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा संवृद्धि दर को तीव्र गति से बढ़ाना।

प्रश्न 31.
अर्थव्यवस्था पर बजट के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
बजट अर्थव्यवस्था को निम्न प्रकार से प्रभावित करता है –

  1. संपूर्ण राजकोषीय अनुशासन स्थापित हो सकता है।
  2. सामाजिक कल्याण में वृद्धि।
  3. सरकारी सेवाओं की उपलब्धता में बढ़ोतरी।
  4. संसाधनों का पुनः आबंटन।
  5. आर्थिक नीतियों की समीक्षा एवं नई आर्थिक नीतियों का निर्माण।

प्रश्न 32.
बजट की संरचना को अति संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:

  1. राजस्व बजट-इसमें सरकार की राजस्व प्राप्तियों तथा व्यय का विस्तृत लेखा-जोखा तैयार किया जाता है।
  2. पूंजीगत बजट-इसमें सरकार की समस्त पूंजीगत प्राप्तियों एवं पूंजीगत व्यय का विस्तृत ब्यौरा पेश किया जाता है।

प्रश्न 33.
राजस्व प्राप्ति का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार की ऐसी प्राप्तियाँ, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कोई कमी नहीं होती है अथवा सरकार के ऊपर कोई देयता उत्पन्न नहीं होती है, उन्हें राजस्व प्राप्तियाँ कहते हैं। जैसे-कर प्राप्तियाँ, ब्याज से प्राप्तियाँ आदि।

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प्रश्न 34.
पूंजीगत प्राप्ति का उदाहरण सहित अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार की ऐसी प्राप्तियों, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कमी आती है अथवा सरकार के ऊपर देयता उत्पन्न होती है, उन्हें पूंजीगत प्राप्तियाँ कहते हैं। जैसे-विनिवेश से प्राप्ति, बचत के रूप में प्राप्ति आदि।

प्रश्न 35.
प्रतिगामी कर का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वह कर, जिसमें आय बढ़ने पर कर की दर घट जाती है तथा आय घटने पर कर की दर बढ़ जाती है, उसे प्रतिगामी कर कहते हैं। प्रतिगामी कर का भार अमीर व्यक्तियों पर कम पड़ता है तथा गरीब व्यक्तियों पर इसका अधिक भार पड़ता है।

प्रश्न 36.
राजस्व व्यय का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे व्यय, जिनसे सरकार की परिसंपत्तियों में कोई वृद्धि नहीं होती है अथवा सरकार के दायित्व में कमी नहीं होती है, राजस्व व्यय कहलाते हैं। जैसे-छात्रों का छात्रवृत्ति पर खर्च, वृद्धा पेंशन आदि।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति के प्रयोग बताओ।
उत्तर:
General Theory of Income, Employment, Interest and Money में जे. एम. कीन्स ने राजकोषीय नीति के निम्नलिखित प्रयोग बताएँ हैं –

  1. इस नीति का प्रयोग उत्पादन-रोजगार स्थायित्व के लिए किया जा सकता है। व्यय एवं कर नीति में परिवर्तन के द्वारा सरकार उत्पादन एवं रोजगार में स्थायित्व पैदा कर सकती है।
  2. बजट के माध्यम से सरकार आर्थिक उच्चावचनों को ठीक कर सकती है।

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प्रश्न 2.
सार्वजनिक उत्पादन एवं सार्वजनिक बन्दोबस्त में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
सार्वजनिक बन्दोबस्त (व्यवस्था) से अभिप्राय उन व्यवस्थाओं से है, जिनका वित्तीयन सरकार बजट के माध्यम से करती है। ये सभी उपभोक्ताओं को बिना प्रत्यक्ष भुगतान किए मुफ्त में प्रयोग के लिए उपलब्ध होते हैं। सार्वजनिक व्यवस्था के अन्तर्गत आने वाली वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादन सरकार प्रत्यक्ष रूप से भी कर सकती है अथवा निजी क्षेत्र से खरीदकर भी इनकी व्यवस्था की जा सकती है। सार्वजनिक उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं सेवाओं से है, जिनका उत्पादन सरकार द्वारा संचालित एवं प्रबंधित होता है। इसमें निजी या विदीशी क्षेत्र की वस्तुओं को शामिल नहीं किया जाता है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यवस्था की अवधारणा सार्वजनिक उत्पादन से भिन्न है।

प्रश्न 3.
Free rider (मुफ्त सवारी) समस्या समझाओ।
उत्तर:
भुगतान न करने वाले उपभोक्ताओं को सार्वजनिक वस्तुओं के उपयोग से वंचित नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग के बदले शुल्क एकत्र करना बड़ा कठिन कार्य है। उपभोक्ता स्वेच्छापूर्वक इन वस्तुओं के प्रयोग की शुल्क देना नहीं चाहते हैं। अतः सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग करने से किसी को रोकने का कोई उपाय नहीं होता है। सभी धनी वर्ग व निर्धन वर्ग इन वस्तुओं का मुफ्त में उपयोग करते हैं इसको मुफ्त सवारी समस्या कहते हैं।

प्रश्न 4.
वितरण फलन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
प्रत्येक सरकार की एक राजकोषीय नीति होती है। राजकोषीय नीति माध्यम से प्रत्येक सरकार समाज में आय के वितरण में समानता या न्याय करने की कोशिश करती है। सरकार उच्च आय वर्ग या अधिक संपत्ति के स्वामियों पर उच्च कर लगाती है तथा कमजोर वर्ग को हस्तांतरण भुगतान प्रदान करती है। कर एवं हस्तांतरण भुगतान दोनों प्रयोज्य आय को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार आय व संपत्ति के वितरण को वितरण फलन कहते हैं।

प्रश्न 5.
आबंटन (Allocation) फलन का अर्थ समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा, सड़कें, प्रशासन, पार्क इत्यादि सार्वजनिक वस्तुएँ कहलाती है। सार्वजनिक वस्तुएँ निजी वस्तुओं से भिन्न होती है। निजी वस्तुएँ लोगों को कीमत तंत्र के द्वारा उपलब्ध होती है लेकिन सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार द्वारा निःशुल्क या सामान्य कीमत पर जनता को उपलब्ध करायी जाती है। सार्वजनिक वस्तुओं के प्रयोग से किसी भी व्यक्ति को वंचित नहीं किया जा सकता है। इसे आबंटन फलन कहते हैं।

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प्रश्न 6.
माँग को कम करने के लिए प्रतिबन्धात्मक या कठोर दशाओं की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
अधिक लम्बे समय तक बेरोजगारी अथवा स्फीतिकारी दशाओं में अर्थव्यवस्था को आर्थिक उच्चावचनों का सामना करना पड़ता है। यदि अर्थव्यवस्था में सभी संसाधनों का पूर्ण विदोहन करने लायक व्यय का स्तर नहीं होता है, तो मजदूरी दर एवं सामान्य कीमत स्तर में गिरावट आती है, तो पूर्ण रोजगार स्तर को स्वतः आधार पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इस स्थिति में सामूहिक माँग के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए नीतिगत उपाय आवश्यक होते हैं। उच्च रोजगार स्तर पर सामूहिक माँग के स्तर में बढ़ोतरी होती है, जिससे स्फीतिकारी प्रभाव पनपने लगता है अर्थात् अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर में वृद्धि होती है। इन स्थितियों में प्रतिबन्धात्मक नीति आवश्यक होती है।

प्रश्न 7.
निजी व सार्वजनिक वस्तुओं में भेद स्पष्ट करो।
उत्तर:
निजी एवं सार्वजनिक वस्तुओं में दो मुख्य अन्तर होते हैं, जैसे –

  1. निजी वस्तुओं का उपयोग व्यक्तिगत उपभोक्ता तक सीमित होता है लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं का लाभ किसी विशिष्ट उपभोक्ता तक सीमित नहीं होता है, ये वस्तुएँ सभी उपभोक्ताओं को उपलब्ध होती है।
  2. कोई भी उपभोक्ता, जो भुगतान देना नहीं चाहता या भुगतान करने की शक्ति नहीं रखता निजी वस्तु के उपभोग से वंचित किया जा सकता है। लेकिन सार्वजनिक वस्तुओं के उपभोग से किसी को वंचित रखने का कोई तरीका नहीं होता है।

प्रश्न 8.
कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सरकारी व्यय गुणांक से 1 कम होता है?
उत्तर:
कर गुणांक का निरपेक्ष मूल्य सरकारी व्यय गुणांक से कम इसलिए होता है, क्योंकि सार्वजनिक व्यय सीधे या प्रत्यक्ष रूप से कुल व्यय को प्रभावित करता है, जबकि कर प्रयोज्य आय को प्रभावित करते हैं और फिर गुणक प्रक्रिया केद्वारा उपभोग व व्यय को प्रभावित करता है। कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणक से 1 कम होता है, इसे नीचे समझाया गया है –
सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
कर गुणांक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
\(\frac{∆Y}{∆G}\) – \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{1}{1-C}\) – |\(\frac{C}{1-C}\)| = \(\frac{1}{1-C}\) – \(\frac{C}{1-C}\) = \(\frac{1-C}{1-C}\) = 1
इस प्रकार कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य सार्वजनिक व्यय गुणक से 1 कम है।

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प्रश्न 9.
कर गुणांक की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
करों में कटौती करने पर प्रयोज्य आय में बढ़ोतरी होती है। कर में कटौती करने पर सामूहिक माँग में वृद्धि होती है। दूसरी ओर करों में वृद्धि करने पर प्रयोज्य आय घटती है। प्रयोज्य आय घटने से उपभोग में कमी आती है। इससे उत्पादन एवं आय का स्तर घटता है। अत: कर गुणांक एक ऋणात्मक गुणक है। कर ∆T कमी करने पर कुल व्यय में बढ़ोतरी C∆T के समान होगी। गणितीय रूप में इसे निम्न प्रकार समझाया जा सकता है –
∆Y = \(\frac{1}{1-C}\) (-C) ∆T
या \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
कर गुणांक = \(\frac{-C}{1-C}\)

प्रश्न 10.
सार्वजनिक व्यय गुणक की अवधारणा स्पष्ट करो।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय गुणक की अवधारणा को समझने के लिए करों को स्थिर या समान माना जाता है। जब सरकार वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद बढ़ाती है, तो नियोजित व्यय में वृद्धि हो जायेगी। विभिन्न चक्रों के माध्यम से सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी से राष्ट्रीय आय में वृद्धि उत्पन्न होती है। सरकारी व्यय गुणक की कार्य पद्धति ठीक निवेश गुणक की भाँति होती है। सरकारी व्यय गुणांक –
∆Y = \(\frac{∆G}{1-C}\) या \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\)
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1  सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 1
सीमान्त उपयोग प्रवृत्ति सीमान्त उपयोग प्रवृत्ति ऊँची होने पर सरकारी व्यय गुणक ऊँचा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति नीची होने पर व्यय गुणक का मान कम रहता है।

प्रश्न 11.
यदि सरकार आर्थिक गतिविधियों में भागीदार होती है, तो उपभोग फलन लिखो एवं साम्य आय का स्तर लिखो।
उत्तर:
सरकार आर्थिक गतिविधियों में कई प्रकार से भूमिका निभाती है। जब सरकार जनता को हस्तांतरण भुगतान प्रदान करती है, तो सामूहिक माँग का स्तर ऊपर की ओर उठता है अर्थात् सामूहिक माँग में वृद्धि होती है। दूसरी ओर सरकार जनता पर कर आरोपित करती है, जिससे प्रयोज्य आय कम होती है और सामूहिक माँग नीचे की ओर गिरती है।
उपभोग फलन को निम्न प्रकार लिख सकते हैं उपभोग = C + CYD (YD प्रयोज्य आय) = C + C (Y – T + TR)
AD = C + C (YT + TR) + I + G
साम्य स्तर पर Y = AD
Y = C + C (Y – T + TR) + I + G
= C + CY – CT + CTR + I + G
Y – CY = C – CT + CTR + I + G
Y = C-CT + CTR+I+G
Y = \(\frac{1}{1-C}\) × [C – CT + CTR + I + G]

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प्रश्न 12.
एकमुश्त कर गुणक तथा अनुपातिक कर गुणक की तुलना करो।
उत्तर:
एकमुश्त कर प्रणाली की स्थिति में बजट गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{-C}{1-C}\)
अन्पातिक कर प्रणाली की स्थिति में बजट गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)
उपरोक्त दोनों समीकरणों से स्पष्ट है कि प्रगतिशील कर प्रणाली में गुणक का मान एकमुश्त गुणक के मान से कम होगा।

एकमुश्त कर की स्थिति में सरकारी व्यय से आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप उपभोग में वृद्धि आय से C गुना होती है, जबकि प्रगतिशील कर प्रणाली में सरकारी व्यय से उपभोग में वृद्धि C (1 – t) गुना होती है। C (1 – t) का मान C के मान से कम है। अत: C (1 – t) का गुणक, C के गुणक से कम होगा।

प्रश्न 13.
सन्तुलित बजट गुणक का मान सदैव इकाई (I) होता है। समझाइए।
उत्तर:
सरकार दो प्रकार से उपभोग या सामूहिक माँग को प्रभावित करती है। सरकार वस्तुओं एवं सेवाओं पर प्रत्यक्ष रूप से व्यय करती है। सरकारी व्यय प्रत्यक्ष रूप से कुल व्यय को प्रभावित करता है। खरीद और फिर गुणक प्रक्रिया द्वारा भी कुल व्यय प्रभावित होता है। इसे गणितीय रूप में इस प्रकार दर्शाया जा सकता है –
∆Y = ∆G + C∆G + C2 ∆G + …
= ∆G (1 + C + C2 + …)
सरकार लोगों पर कर लगाती है। कर प्रयोज्य आय के स्तर को घटाते हैं। प्रयोज्य आय में कमी से गुणक प्रक्रिया द्वारा कुल व्यय प्रभावित होता है। कर गुणक प्रभाव को नीचे दर्शाया गया है –
∆Y = C∆T – C2∆T + …
∆Y = ∆T (C + C2 + …)
सरकारी व्यय से आय में वृद्धि तथा करों से आय में कमी का योग आय पर शुद्ध प्रभाव के समान होता है। यदि सार्वजनिक व्यय में वृद्धि ∆G, कर राजस्व में वृद्धि ∆T के समान हो, तो इसे सन्तुलित बजट गुणक कहते हैं। उपरोक्त दोनों समीकरणों से –
∆Y = ∆G + C∆G + C (Y – ∆T)
∆Y = G + C (∆Y – ∆T) (∵∆G = ∆T)
∆Y = ∆G + C(∆Y – ∆G)
∆Y = ∆G + C∆Y – C∆G
∆Y – C∆Y = ∆G – C∆G
∆Y (1 – C) = ∆G(1 – C)
∆Y = ∆G \(\frac{(1-C)}{1-C}\) \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1-C}{1-C}\)
सन्तुलित बजट गुणक = 1

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प्रश्न 14.
प्रगतिशील कर की स्थिति में गुणक अवधारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
यदि सरकार के अनुपात में कर लगाती है, तो
T = tY
उपभोग C = C + C [Y – tY + TR] = C + C(1 – t) Y + CTR
अनुपातिक कर आय के प्रत्येक स्तर पर उपभोग को घटाते हैं। अनुपातिक कर से उपभोग प्रवृत्ति भी घटती है। अतः सामूहिक माँग निम्न प्रकार से ज्ञात की जाती है –
AD = C + C(1 – t) Y + CTR + I + G
= A + G (1 – t) Y (A = C + CTR + I + G)
AD = A + C (1 – t)Y
साम्य की अवस्था में
Y = AD
Y = A + C(1 – t)Y
Y = A +CY – CtY
Y = \(\frac{(A)}{1-C-Ct}\) Y = \(\frac{(A)}{1-C(1-t)}\)
अनुपातिक कर गुणांक \(\frac{∆Y}{∆A}\) = \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)

प्रश्न 15.
राजस्व बजट और पूंजी बजट का अन्तर क्या है?
उत्तर:
राजस्व बजट:
सरकार की राजस्व प्राप्तियों एवं राजस्व के विवरण को राजस्व बजट कहते हैं।
राजस्व प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  1. कर राजस्व एवं
  2. गैर कर राजस्व

राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किए गए खर्चों का विवरण है। राजस्व बजट में वे मदें आती है, जो आवृत्ति किस्म की होती है और इन्हें चुकाना नहीं पड़ता है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

पूंजी बजट:
सरकार की पूंजी प्राप्तियों एवं पूंजी व्यय के विवरण को पूंजी बजट कहते हैं।

पूंजी प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  1. ऋण प्राप्तियाँ एवं
  2. गैर ऋण प्राप्तियाँ

पूंजी व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के लिए पूंजी निर्माण पर किए गये व्यय को दर्शाता है।
पूंजी घाटा = पूंजी व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ
पूंजीगत राजस्व सरकार के दायित्वों को बढ़ाता व पूंजीगत व्यय से परिसम्पत्तियों का अर्जन होता है।

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प्रश्न 16.
विकास और गैर विकास व्यय में अन्तर समझाएँ।
उत्तर:
विकास व्यय:
विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर विभागीय उद्यमों के अपने स्रोतों, बाजार उधार, वित्तीय संस्थानों से सावधि उधार आदि गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, केन्द्र एवं राज्य सरकारी द्वारा गैर विभागीय एवं स्थानीय निकायों को प्रदत्त ऋण भी शामिल किए जाते हैं।

गैर विकास व्यय:
प्रतिरक्षा, ब्याज भुगतान, कर संग्रहण, पुलिस एवं प्रशासनिक व्यय के अलावा पेन्शन, राजाओं की अनुग्रह राशि, आर्थिक सहायता आदि व्यय सम्मिलित किए जाते हैं। गैर विकास कार्यों के लिए दिए गए ऋण भी गैर विकास व्यय की श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 17.
हस्तान्तरण गुणक की अवधारण T स्पष्ट करो।
उत्तर:
सरकार जनता को हस्तान्तरण भुगतान प्रदान करती है। हस्तान्तरण भुगतान की प्राप्ति से परिवार क्षेत्र की प्रयोज्य आय में बढ़ोतरी होती है। जब सरकार हस्तान्तरण भुगतान में वृद्धि करती है, तो स्वायत्त व्यय C ∆TR बढ़ जायेगा। लकिन कुल उत्पाद में वृद्धि कम होगी क्योंकि हस्तांतरण भुगतान का कुछ भाग बचत के रूप में रखा जाता है। हस्तांतरण भुगतान से आय में वृद्धि की गणना निम्नलिखित ढंग से की जा सकती है।
हस्तान्तरण गुणक \(\frac{∆Y}{∆TR}\) = \(\frac{C}{1-C}\)

प्रश्न 18.
इनकी परिभाषा करें –

  1. राजकोषीय घाटा
  2. बजट घाटा
  3. राजस्व घाटा
  4. प्राथमिक घाटा

उत्तर:
1. राजकोषीय घाटा:
राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियों, कर राजस्व तथा गैर कर राजस्व में अन्तर को राजकोषीय घाटा कहते हैं।
राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर ऋण पूंजीगत प्राप्तियाँ

2. बजट घाटा:
सरकार के कुल अनुमानित व्ययों और कुल अनुमानित आय के अन्तर को बजटीय घाटा कहा जाता है।
बजटीय घाटा = कुल अनुमानित आय – कुल अनुमानित प्राप्तियाँ

3. राजस्व घाटा:
राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियों के अन्तर को राजस्व घाटा कहते हैं।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

4. प्राथमिक घाटा:
राजकोषीय घाटे एवं ब्याज भुगतानों के अन्तर को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान।

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प्रश्न 19.
घाटे का वित्तीयन किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर:
समस्त व्यय एवं प्राप्तियों के अन्तर को बजटीय घाटा कहते हैं। बजटीय घाटा उस समय उत्पन्न होता है, जब सरकारी व्यय, सरकारी प्राप्तियों से ज्यादा होता है। घाटे के वित्तीयन के दो रास्ते हैं –
1. मौद्रिक प्रसार:
सरकार घाटे के समय नए नोट छपवा सकती है। यह प्रक्रिया सरकार द्वारा राजकोषीय हुन्डियों के आधार पर (RBI) से ऋण लेने जैसा है। रिजर्व बैंक नए नोट छापता है और सरकारी हुन्डियों के बदले उन्हें सरकार को देता है। सरकार इन नोटों से अपना घाटा पूरा कर सकती है।

2. ऋण लेना:
सरकार घाटे को पूरा करने के लिए घरेलू एवं विदेशी ऋण ले सकती है। भारत में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत तक हो सकता है, इससे अधिक नहीं।

प्रश्न 20.
पूंजीगत प्राप्तियों को संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय, जिसमें न, तो देनदारी उत्पन्न होती है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है, राजस्व प्राप्तियाँ कहलाती है।
राजस्व प्राप्तियों का वर्गीकरण-इन्हें दो भागों में बाँटा जाता है –

  1. कर राजस्व
  2. गैर कर राजस्व

1. कर राजस्व:
कर ऐसे अनिवार्य भुगतान होते हैं, जिनके बदले करदाता को किसी भी प्रकार सीधा लाभ प्राप्त नहीं होता है। सभी प्रकार के करों से प्राप्त आय को राजस्व कहते हैं। कर अनेक प्रकार के होते हैं। जैसे –

  • प्रत्यक्ष कर
  • अप्रत्यक्ष कर
  • आनुपातिक कर
  • प्रगतिशील कर
  • प्रतिगामी कर
  • मूल्यवर्धित कर

2. गैर कर राजस्व:
करों के अतिरिक्त सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय, जिससे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है, उसे गैर कर राजस्व कहते हैं। गैर कर राजस्व प्राप्तियों में निम्न को शामिल किया जाता है –

  • ब्याज प्राप्तियाँ
  • लाभांश व लाभ
  • राजकोषीय सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आय
  • विदेशी सहायता, आर्थिक एवं सामाजिक सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आय
  • सामान्य सेवाओं से प्राप्त आय

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प्रश्न 21.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करें।
उत्तर:
सार्वजनिक व्यय को तीन वर्गों में बाँटते हैं –
1. राजस्व व्यय एवं पूंजीगत व्यय:
राजस्व व्यय सरकार की सामाजिक, आर्थिक एवं सामान्य गतिविधियों के संचालन पर किया गया व्यय होता है। इस व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है। पूंजीगत व्यय भूमि, भवन, यंत्र-संयत्र आदि पर किया गया निवेश होता है। इस व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

2. योजना व्यय एवं गैर योजना व्यय:
योजना व्यय में तत्कालिक विकास और निवेश मदें शामिल होती है। ये मदें योजना प्रस्तावों के द्वारा तय की जाती है। बाकी सभी खर्चे गैर योजना व्यय होते हैं।

3. विकास व्यय तथा गैर विकास व्यय:
विकास व्यय में रेलवे, डाक एवं दूरसंचार तथा गैर विभागीय उद्यमों के गैर बजटीय स्रोतों से योजना व्यय, सरकार द्वारा गैर विभागीय उद्यमों एवं स्थानीय निकायों को प्रदत्त ऋण भी शामिल किए जाते हैं। गैरे किस व्यय में प्रतिरक्षा, आर्थिक अनुदान आदि भी इसी श्रेणी में आते हैं।

प्रश्न 22.
राजस्व व्यय एवं पूंजीगत व्यय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 2

प्रश्न 23.
पूंजीगत प्राप्तियों को संक्षेप में समझाएँ।
उत्तर:
पूंजीगत प्राप्तियों से अभिप्राय सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी आय से है, जिससे सरकार पर दायित्व उत्पन्न होता है या सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। पूंजीगत प्राप्तियों में निम्न को शामिल किया जाता है –

  1. विदेशों से ऋण प्राप्तिया
  2. ऋणों एवं अग्रिमों की वसूली
  3. विनिवेश से प्राप्त आय
  4. लघु बचतें
  5. भविष्य निधि एवं अन्य जमाओं से प्राप्तियाँ
  6. घरेलू ऋण से प्राप्तियाँ आदि

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प्रश्न 24.
राजस्व व्यय को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
राजस्व व्यय सार्वजनिक व्यय का वह भाग है, जिससे न तो सरकार की परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, न ही सरकार की देनदारियों में कमी आती है और न ही सरकार की लेनदारी उत्पन्न होती है। राजस्व व्यय सामान्य सेवाओं, सामाजिक सेवाओं एवं आर्थिक सेवाओं के संचालन पर किये जाते हैं। राजस्व व्यय दो वर्गों में बाँटे जाते हैं –

1. विकासात्मक व्यय-आर्थिक एवं सामाजिक विकास के साथ सीधे तौर पर जुड़ी गतिविधियों के संचालन पर किये गये व्यय विकासात्मक व्यय कहलाते हैं। जैसे-ग्रामीण विकास, सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, उद्योग, ऊर्जा, परिवहन, संचार
आदि।

2. गैर विकासात्मक व्यय-ऐसे व्यय, जिनसे प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक विकास का संचालन नहीं होता है, बल्कि इनके लिए वातावरण तैयार होता है, गैर विकासात्मक व्यय कहलाते हैं। जैसे-सुरक्षा, प्रशासन, आर्थिक सहायता, पेंशन आदि।

प्रश्न 25.
पूंजीगत व्यय पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
पूंजीगत व्यय सार्वजनिक व्यय का वह भाग है, जिससे सरकार की परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, सरकार की देनदारियाँ कम होती है या सरकार की लेनदारियाँ उत्पन्न होती है। पूंजीगत व्यय दो प्रकार के होते हैं –
1. विकासात्मक व्यय:
विकासात्मक पूंजीगत व्यय प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक एवं सामाजिक विकास से जुड़े होते हैं। जैसे-आर्थिक विकास, सामाजिक एवं सामुदायिक विकास, रक्षा, प्रशासन, सामान्य सेवाओं पर पूंजीगत व्यय आदि।

2. गैर विकासात्मक व्यय:
गैर विकासात्मक पूंजी व्यय आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए वातावरण प्रदान करने के लिए किये जाते हैं। जैसे-रक्षा, पूंजी, सार्वजनिक उद्यमों का ऋण, विदेशों को ऋण, राजस्व एवं केन्द्र शासित सरकारों को ऋण आदि।

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प्रश्न 26.
कर तथा गैर कर राजस्व की परिभाषा करें।
उत्तर:
कर राजस्व:
संघीय सरकार द्वारा लगाये गए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों तथा शुल्कों से प्राप्त आय को कर राजस्व कहते हैं। जैसे-आय कर, ब्याज कर, सम्पत्ति कर, बिक्री कर आदि।

गैर कर राजस्व:
सरकार की व्यावसायिक गतिविधियों, निवेशों पर अर्जित लाभांश, ब्याज एवं सरकारी प्रशासनिक कार्यों से प्राप्त आय के योग को गैर कर राजस्व आय कहते हैं।

प्रश्न 27.
सन्तुलित बजट का अर्थ लिखें तथा इसके पक्ष में तर्क दें।
उत्तर:
सन्तुलित बजट:
यदि सरकारी प्राप्तियाँ एवं व्यय बराबर होते हैं, तो ऐसे बजट को सन्तुलित बजट कहते हैं। सन्तुलित बजट के पक्ष में तर्क –

  1. सन्तुलित बजट बनाकर सरकार फिजूलखर्ची पर रोक लगा सकती है।
  2. सन्तुलित बजट देश को आर्थिक उतार-चढ़ाव (मन्दी व तेजी) से बचाने में सहायक हो सकता है।
  3. सन्तुलित बजट के आकार को बढ़ाकर आर्थिक मन्दी से भी बचा जा सकता है अर्थात् मन्दी से उभरने के लिए घाटे का बजट बनाना मजबूरी नहीं है।

प्रश्न 28.
सार्वजनिक राजस्व का अर्थ बताएँ तथा इसका महत्त्व भी बताएँ।
उत्तर:
अर्थ:
सार्वजनिक राजस्व से अभिप्राय एक लेखा वर्ष में सरकार को प्राप्त होने वाली ऐसी मौद्रिक आय से है, जिससे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है।

महत्त्व:
आधुनिक सरकार कल्याणकारी सरकार है। आजकल सरकारें समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए अनेक प्रकार की योजनाएँ बनाती है। इन योजनाओं पर काम करने के लिए मुद्रा की आवश्यकता पड़ती है। सार्वजनिक राजस्व सार्वजनिक व्यय का एक साधन है अर्थात् सार्वजनिक राजस्व के अभाव में सरकारों के लिए समाज कल्याण करना सम्भव नहीं होगा।

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प्रश्न 29.
बजट के उद्देश्य क्या होते हैं?
उत्तर:
बजट के माध्यम से सरकार अपनी आर्थिक एवं सामाजिक नीतियों को मूर्तरूप प्रदान करती है। बजट के निम्नांकित उद्देश्य होते हैं –

  1. संसाधनों का पुनः वितरण-संसाधनों को ज्यादा से ज्यादा सामाजिक, आर्थिक हितों के. अनुकूल पुनः बाँटने की कोशिश करती है।
  2. आय एवं सम्पत्ति का पुनः वितरण-बजट के माध्यम से सरकार आय एवं सम्पत्ति की असमानताओं को घटाने का प्रयास करती है।
  3. स्थायित्व: आय एवं रोजगार के ऊँचे स्तर को बनाएँ रखते हुए आर्थिक उतार-चढ़ाव को रोकना।
  4. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध: सरकारी उद्यमों के माध्यम से भारी विनिर्माण, उत्पादन की मित्तव्ययताओं, अनियमित एकाधिकार को रोकने आदि को प्राप्त करने का प्रयास करती है।

प्रश्न 30.
सरकारी बजट के कोई तीन उद्देश्य समझाइए।
उत्तर:
1. रोजगार में वृद्धि:
सरकारी बजट का उद्देश्य रोजगार स्तर में वृद्धि करना होता है। रोजगार बढ़ाने के लिए सरकार श्रम प्रधान उत्पादन तकनीक के प्रयोग पर बल देती है। सरकार विशिष्ट रोजगार कार्यक्रम तैयार करती है। सड़कें, बाँध, पुल, विद्युत परियोजनाओं, सिंचाई परियोजनाओं आदि को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में सरकार विशेष प्रावधान करती है।

2. आर्थिक समानता:
बजट का उद्देश्य गरीब व अमीर के फासले को कम करना भी होता है। गरीबी व अमीरी का अन्तर कम करने के उद्देश्य से सरकार प्रगतिशील कर प्रणाली आनुपातिक कर प्रणाली अपना कर गरीबों पर कर का भार कम डाल सकती है।

3. आर्थिक स्थिरता:
आर्थिक मन्दी एवं तेजी दोनों ही अर्थव्यवस्था के लिए घातक होती है। बजट के माध्यम से सरकार अनेक राजकोषीय उपायों से आर्थिक मन्दी व तेजी दोनों को नियन्त्रण में रख सकती है और देश के व्यापार एवं उद्योग दोनों में स्थिरता कायम की जा सकती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सरकार बजट की विभिन्न प्राप्तियों, व्यय एवं घाटों का खाका बनाइए।
उत्तर:
बजट अनुमान –
I. राजस्व प्राप्तियाँ –

  • कर राजस्व
  • गैर कर राजस्व

II. पूंजीगत प्राप्तियाँ –

  • ऋण प्राप्तियाँ
  • गैर ऋण प्राप्तियाँ

III. राजस्व व्यय –

  • ब्याज भुगतान
  • मुख्य आर्थिक सहायता
  • प्रतिरक्षा व्यय आदि

IV. पूंजीगत व्यय –

V. कुल व्यय –

  • योजना व्यय
  • गैर योजना व्यय

VI. राजस्व घाटा –

  • राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ।

VII. पूंजी घाटा = पूंजीगत व्यय – पूंजीगत प्राप्तियाँ।

VIII. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ – गैर ऋण
पूँजी प्राप्तियाँ = ऋण प्राप्तियाँ।

IX. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान % ऋण प्राप्तियाँ – ब्याज भुगतान।

X. निबल प्राथमिक घाटा = प्राथमिक घाटा – ब्याज प्राप्तियाँ।

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प्रश्न 2.
सरकारी बजट का स्वरूप संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
परिभाषा:
बजट आगामी लेखा वर्ष से सरकार के अनुमानित व्यय और प्राप्तियों का विवरण होता है।

बजट का स्वरूप:
बजट के स्वरूप से अभिप्राय बजट के विभिन्न अंगों से है। मुख्य रूप से बजट के दो अंग होते हैं –

I. बजट प्राप्तियाँ

II. बजट व्यय

I. बजट प्राप्तियाँ:
एक लेखा वर्ष में सरकार को सभी श्रोतों से जितनी आय प्राप्त होने का अनुमान होता है, उसे बजट प्राप्तियाँ कहते हैं। बजट प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

(I) राजस्व प्राप्तियाँ
(II) पूँजीगत प्राप्तियाँ।

(I) राजस्व प्राप्तियाँ:
राजस्व प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ हैं, जिनसे सरकार पर कोई दायित्व उत्पन्न नहीं होता है और न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। राजस्व प्राप्तियों भी दो प्रकार की होती है –

  • कर राजस्व-राजस्व में सरकार को सभी प्रकार के करों से प्राप्त होने वाली आय को शामिल किया जाता है। जैसे-प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर आदि।
  • गैर कर राजस्व-करों के अलावा सरकार की ऐसी प्राप्तियाँ, जिनसे सरकार पर दायित्व उत्पन्न नहीं होता है, गैर कर राजस्व कहलाती है। जैसे-फीस, लाइसेन्स तथा परमिट फीस, एसचीट, जुर्माना, लाभांश, आर्थिक सहायता आदि।

(II) पूँजीगत प्राप्तियाँ:
पूँजीगत प्राप्तियाँ सरकार की वे प्राप्तियाँ है, जिनसे सरकार पर दायित्व उत्पन्न होता है और सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी आती है। पूँजीगत प्राप्तियाँ दो प्रकार की होती है –

  • ऋण प्राप्तियाँ-इसमें विदेशी एवं घरेलू सभी प्रकार के ऋण एवं ऋणों की वसूली को शामिल किया जाता है।
  • गैर ऋण प्राप्तियाँ-इसमें विनिवेश से प्राप्तियाँ, लघु बचतें, प्रोविडेण्ट में जमा प्राप्तियाँ आदि।

II. बजट व्यय:
एक लेखा वर्ष के लिए सरकार द्वारा सभी मदों पर किए जाने वाले व्यय के अनुमान को बजट व्यय कहते हैं। बजट व्यय दो प्रकार के होते हैं –

  • राजस्व व्यय
  • पूँजीगत व्यय

राजस्व व्यय:
सरकार द्वारा किये जाने वाले ऐसे व्यय, जिनसे सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है, सरकार के दायित्वों में कमी उत्पन्न नहीं होती है, राजस्व व्यय कहलाते हैं। राजस्व व्यय प्रायः सामान्य, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं के संचालन के लिए किए जाते हैं। राजस्व व्ययों का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास के साथ प्रत्यक्ष रूप से नहीं होता है। ये व्यय आर्थिक विकास के लिए वातावरण तैयार करने में मदद करते हैं।

पूँजीगत व्यय:
सरकार द्वारा किये जाने वाले ऐसे व्यय, जिनसे सरकारी परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है, सरकार के दायित्वों में कमी आती है, पूँजीगत व्यय कहलाते हैं।

पूँजीगत व्यय प्रायः
सामान्य, सामाजिक एवं आर्थिक सेवाओं के लिए पूँजी निर्माण हेतु किए जाते हैं। पूँजीगत व्ययों का आर्थिक विकास के साथ सीधा सम्बन्ध होता है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 part - 1 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था img 3

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 3.
सार्वजनिक व्यय के विभिन्न प्रकारों को समझाएँ एवं उनका महत्त्व भी लिखिए।
उत्तर:
सरकार आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए खर्च करती है। इन्हें सार्वजनिक व्यय कहते हैं। सार्वजनिक व्यय कई प्रकार के होते हैं –
1. विकासात्मक व्यय:
विकासात्मक व्यय से अभिप्राय सरकार द्वारा किए गए ऐसे खर्चों से है, जिनका आर्थिक एवं सामाजिक विकास से सीधा सम्बन्ध होता है। जैसे-शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, कृषि, यातायात, बिजली आदि के विकास पर किया जाने वाला खर्च।

2. गैर-विकासात्मक व्यय:
सरकार द्वारा किए गए ऐसे खर्च, जिनका सम्बन्ध आर्थिक एवं सामाजिक विकास के साथ प्रत्यक्ष नहीं होता है। जैसे-रक्षा, कानून, प्रशासन, वृद्धावस्था पेन्शन आदि पर किया गया व्यय।

3. योजना व्यय:
सरकार चालू पंचवर्षीय योजना के अधीन कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए व्यय करती है, ये व्यय योजना व्यय कहलाते हैं। जैसे – कृषि, ऊर्जा, संचार, उद्योग, यातायात, सार्वजनिक सेवाएँ। जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर किया गया व्यय।

4. गैर योजना व्यय:
योजना कार्यक्रमों के अलावा सरकार द्वारा दूसरे कार्यों पर किए जाने वाले खर्चों को गैर-योजना व्यय कहते हैं। ये व्यय सामान्य सेवाओं पर किए जाते हैं। जैसे-आर्थिक सहायता, सुरक्षा, कानून, प्रशासन, ऋणों पर ब्याज का भुगतान आदि।

5. हस्तान्तरण भुगतान:
ऐसे भुगतान, जो बिना किसी वस्तु या सेवा के बदले दिये जाते हैं, उन्हें हस्तान्तरण भुगतान कहते हैं। हस्तान्तरण भुगतान एकपक्षीय होते हैं। इस प्रकार के भुगतानों से उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इस प्रकार के व्यय से वितरण प्रभावित होता है। जैसे-राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज, वृद्धावस्था पेन्शन, छात्रवृत्ति आदि।

सार्वजनिक व्यय का महत्त्व:
आधुनिक सरकारों का स्वरूप कल्याणकारी है, इसलिए सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बहुत अधिक है। जैसे –

1. सामाजिक कल्याण में वृद्धि:
सरकार अनेक सामाजिक सेवाओं के उत्पादन व संचालन पर व्यय करती है। इससे स्वास्थ्य, शिक्षा, मनोरंजन, सांस्कृतिक आदि सेवाएँ लोगों को अधिक मात्रा में उपलब्ध होती है।

2. आर्थिक विकास में वृद्धि:
सरकार योजना कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए व्यय करती है। इस प्रकार के खर्चों से कृषि, उद्योग, बीमा, बैंकिंग, यातायात, संचार आदि का विकास होता है। इससे आर्थिक विकास की दर अधिक हो जाती है।

3. आय व सम्पत्ति की असमानता में कमी:
सरकार आय व सम्पत्ति की असमानता को कम करने के लिए निर्धन व पिछड़े लोगों व क्षेत्रों पर अधिक खर्च करती है। पिछड़े हुए क्षेत्रों व लोगों को हस्तान्तरण भुगतान आर्थिक सहायता प्रदान करके उनका आर्थिक विकास करती है।

4. आर्थिक कल्याण में वृद्धि:
बेरोजगारी उन्मूलन, महिला उत्थान, बाल उत्थान अनुसूचित व जनजातियों के उत्थान के लिए सार्वजनिक व्यय बहुत उपयोगी है।

5. आर्थिक क्रियाकलापों पर नियन्त्रण:
आर्थिक मन्दी व तेजी पर नियन्त्रण करने के लिए भी सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण होते हैं। आर्थिक मन्दी के दुश्चक्र को तोड़ने के लिए सरकार सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर प्रभावी माँग को बढ़ा सकती है। आर्थिक तेजी के समय सार्वजनिक व्यय बढ़ाकर प्रभावी माँग को बढ़ा सकती है। आर्थिक तेजी के समय सार्वजनिक व्यय को कम करके सरकार प्रभावी माँग को कम कर सकती है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित के उत्तर दो –

  1. MPS = 0.4, सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  2. MPC = 0.9 सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  3. MPS = 0.5 सरकारी व्यय गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  4. MPC = 0.75 कर गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  5. MPS = 0.1 कर गुणक का मूल्य क्या होगा?

हल:
1. (सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{MPS}\) (∵MPS = 1 – C)
= \(\frac{1}{0.4}\) = 2.5

2. सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.9}\) = \(\frac{1}{0.1}\) = \(\frac{10}{1}\) = 10

3. सरकारी व्यय गुणक \(\frac{∆Y}{∆G}\) = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = \(\frac{10}{5}\) = 2

4. कर गुणक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) (∵C = MPC)
= \(\frac{-0.75}{1-0.75}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3

5. कर गुणक \(\frac{∆Y}{∆T}\) = \(\frac{-C}{1-C}\) = \(\frac{-(1-MPS)}{MPS}\) (∵C = MPC)
= \(\frac{-1}{(1-0.1)}\) = \(\frac{-0.9}{0.1}\) = – 9
उत्तर:

  1. 2.5
  2. 10
  3. 2
  4. – 3
  5. – 9

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

  1. यदि सरकारी व्यय गुणक 6 है, कर गुणक का मान क्या होगा।
  2. यदि कर गुणक का मान – 2 है, तो सरकारी व्यय गुणक का मान ज्ञात करो।

हल:
1. सरकारी व्यय गुणक = 6
\(\frac{1}{MPS}\) = 6; MPS = \(\frac{1}{6}\)
MPC = 1 – MPS = 1 – \(\frac{1}{6}\) = \(\frac{5}{6}\)
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-5/6}{1/6}\) = \(\frac{-5}{6}\) × \(\frac{6}{1}\) = – 5

2. कर गुणक = – 2
\(\frac{-MPC}{MPS}\) = – 2
– MPC = – 2 MPS
MPC = – 2 MPS
MPC = 2 MPS
या 2MPS = MPC
2MPS = 1 – MPS
2MPS + MPS = 1
या 3MPS = 1 (∵MPC = 1 – MPS)
या MPS = \(\frac{1}{3}\)
MPS = 1 – MPS = \(\frac{1/1}{3}\) = \(\frac{3}{1}\) = 3
उत्तर:

  1. कर गुणक = – 5
  2. सरकारी व्यय गुणक = 3

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ दी गई है –
C = 85 + 0.5Yd, 1 = 58, G = 60, T = -40 + 0.25Y, Yd = Y – T, Y = C + I + G

  1. साम्य आय की गणना करो।
  2. सरकार को कितनी मात्रा में शुद्ध कर एकत्र करना चाहिए, जब अर्थव्यवस्था साम्य में हो।
  3. सरकारी बजट घाटा क्या है या सरकारी अधिशेष क्या है?

हल:
1. Y = C + I + G = 85 + 0.5 (Y – T) + 85 + 60
= 230 + 0.5 [Y – (-40 + 0.25Y)]
= 230 + 0.5Y + 20 – 0.125Y = 250 + 0.375Y
Y – 0.375Y = 250
Y (1 – 0.375) = 250
0.625Y = 250
Y = \(\frac{250}{0.625}\) = 400

2. T = – 40 + 0.25Y = – 40 + 0.025 × 400 = – 40 + 100 = 60

3. कोई बजट घाटा या अधिशेष नहीं होगा
उत्तर:

  1. साम्य आय = 400
  2. कर = 60
  3. बजट घाटा या बजट अधिशेष = 0

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 4.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में नीचे सूचनाएँ दी गई है –
C = 100 + 0.5Yd, I = 100, G = 80, T = – 60 + 0.25Y
Y = C + I + G
Y = C + I + G

  1. साम्य आय ज्ञात करो।
  2. साम्यावस्था में सरकार को कितना कर एकत्र करना चाहिए?

हल:
1. Y = C + I + G
Y = 100 + 0.5Yd + 100 + 80
Y = 100 + 0.5 (Y – T) + 180
= 280 + 0.5 [Y – (- 60 + 0.25Y)]
= 280+ 0.5Y + 30 – 0.125Y
Y = 0.125Y – 0.5Y = 310
Y – 0.375Y = 310
0.625Y = 310
Y = \(\frac{310}{0.625}\) = \(\frac{310 × 1000}{625}\) = 496

2. T = – 60 + 0.25 × 496 = – 60 + 124 = 64
उत्तर:

  1. साम्य आय = 496
  2. कर राजस्व = 64

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
एक अर्थव्यवस्था के बारे में निम्नलिखित सूचनाएँ उपलब्ध है –
वास्तविक उत्पाद = 1000
सरकारी खरीद = 200
कुल कर = 200
निवेश आय = 100
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति प्रयोज्य आय की 75 प्र. श.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति प्रयाज्य आय की 25 प्र. श.

  1. उपरोक्त सूचनाओं के आधार पर माल तालिका निवेश तथा उत्पाद के बारे में अनुमान लगाइए।
  2. अर्थव्यवस्था आय के किस स्तर पर साम्य अवस्था में होगी।

हल:
1. Y = 1000, Yd = Y – T= 1000 – 200 = 800, I = 100, G = 200,
C = 800 का 75 प्र. श. = \(\frac{800 × 75}{100}\) = 600
S = Yd – C = 800 – 600 = 200
कुल व्यय = C + I + G = 600 + 100 + 200 = 900
लेकिन अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन = 1000
कुल व्यय < कुल उत्पादन
900 < 1000 साम्य अवस्था में

2. Y = C + I + G
Y = 600 + 100 + 200 = 900
उत्तर:
साम्य आय = 900

प्रश्न 6.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दो –
1. ∆C = 25, ∆Y = 100
सरकारी व्यय गुणक ज्ञात करो।

2. ∆S = 20, ∆Y = 100
सरकारी व्यय गुणक ज्ञात करो।
हल:
∆C = 25, ∆Y = 100
MPC = \(\frac{∆C}{∆Y}\) = \(\frac{25}{100}\) = 0.25
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-C}\) = \(\frac{1}{1-0.25}\) = \(\frac{1}{0.75}\) = \(\frac{100}{75}\) = \(\frac{4}{3}\)
MPS = \(\frac{∆S}{∆Y}\) = \(\frac{20}{100}\) = 0.20
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.20}\) = \(\frac{100}{20}\) = 5
उत्तर:

  1. सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{4}{3}\)
  2. सरकारी व्यय गुणक = 5

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।

  1. यदि MPS = 0.25 कर गुणक का मूल्य ज्ञात करो।
  2. यदि MPC = 0.1 कर गुणक का मूल्य निकालिए।

हल:
1. MPS = 0.25
MPC = 1 – MPS = 1 – 0.25 = 0.75
कर गुणक = – \(\frac{MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.75}{0.25}\) = \(\frac{-75}{25}\) = – 3

2. MPC = 0.1
MPS = 1 – MPC = 1 – 0.1 = 0.9
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.1}{0.9}\) = \(\frac{-1}{9}\)
उत्तर:

  1. कर गुणक = -3
  2. कर गुणक = \(\frac{-1}{9}\)

प्रश्न 8.
यदि किसी अर्थव्यवस्था में MPC = 0.5 है, तो गणना द्वारा बताइए कि कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य, सरकारी व्यय गुणक से कम है।
हल:
MPC = 0.5
MPS = 1 – MPC = 1 -0.5 = 0.5
सरकारी व्यय गुणक = \(\frac{1}{1-MPC}\) = \(\frac{1}{MPS}\) = \(\frac{1}{0.5}\) = \(\frac{10}{5}\) = 2
कर गुणक = \(\frac{-MPC}{1-MPC}\) = \(\frac{-MPC}{MPS}\) = \(\frac{-0.5}{0.5}\) = -1
कर गुणक का निरपेक्ष मूल्य = 1
उत्तर:
उपरोक्त गणना में कर गुणक का निरपेक्ष मान 1 है, जो सरकारी व्यय 2 से कम है।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूचना एक अर्थव्यवस्था के बारे में दी गई है –
C = 60 + 0.5Yd, I = 60, G = 45, T = -15 + 0.25Y
Yd = Y – T
Y = C + I + G
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो।

  1. साम्य आय की गणना करो।
  2. साम्य अवस्था में सरकार की कितना कर एकत्र करना चाहिए।

हल:
1. Y = C + I + G = 60 + 0.5Yd + 60 + 45
= 60 + 0.5 [Y – (- 15 + 0.25 × Y)] + 105
= 60 + 105 + 0.5 Y – 0.125Y + 7.5
= 172.5 + 0.375Y
Y – 0.375 = 172.5
0.625Y = \(\frac{1725}{0.625}\) = 276.4

2. कर (T) = – 15 + 0.25 × 276.4 = -15 + 69.10 = 54.10
उत्तर:
साम्य आय = 276.4
साम्य आय पर कर = 54.10

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वार्षिक वित्तीय विवरण में शामिल होता है –
(A) मुख्य बजट
(B) पूँजीगत बजट
(C) राजस्व बजट
(D) रेलवे बजट
उत्तर:
(A) मुख्य बजट

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प्रश्न 2.
राजस्व प्राप्तियों को दो वर्गों में बाँटा जाता है –
(A) कर एवं गैर कर प्राप्तियाँ
(B) ऋण एवं कर
(C) कर एवं हस्तान्तरण
(D) सरकार एवं विदेशों से हस्तान्तरण
उत्तर:
(A) कर एवं गैर कर प्राप्तियाँ

प्रश्न 3.
1990 – 91 से 2003 – 04 के मध्य कुल कर प्राप्तियों में प्रत्यक्ष करों की भागीदारी बढ़ी है –
(A) 29.1% से 50%
(B) 19.1% से 41.3%
(C) 41.3% से 50%
(D) 41.3% से 69.1%
उत्तर:
(B) 19.1% से 41.3%

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प्रश्न 4.
1990 – 91 से 2003 – 04 के मध्य भागीदारी घटी है –
(A) प्रत्यक्ष करों की
(B) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों करों की
(C) अप्रत्यक्ष करों की
(D) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर:
(C) अप्रत्यक्ष करों की

प्रश्न 5.
पूँजीगत बजट में शामिल होते हैं –
(A) राजस्व व्यय एवं राजस्व प्राप्तियाँ
(B) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष कर
(C) पूँजीगत व्यय एवं पूँजीगत प्राप्तियाँ
(D) सभी
उत्तर:
(C) पूँजीगत व्यय एवं पूँजीगत प्राप्तियाँ

प्रश्न 6.
राजस्व घाटा होता है –
(A) शुद्ध घरेलू ऋण
(B) RBI से ऋण
(C) विदेशों से ऋण
(D) राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ
उत्तर:
(D) राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियाँ

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प्रश्न 7.
राजकोषीय घाटा होता है।
(A) कुल व्यय-कुल प्राप्तियाँ
(B) कुल राजस्व व्यय – कुल राजस्व प्राप्तियाँ
(C) कुल व्यय-गैर ऋण कुल प्राप्तियाँ
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल व्यय-गैर ऋण कुल प्राप्तियाँ

प्रश्न 8.
प्राथमिक घाटा होता है –
(A) कुल राजकोषीय घाटा-विदेशों से ऋण
(B) ऋण
(C) कुल राजकोषीय घाटा-शुद्ध ब्याज दायित्व
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) कुल राजकोषीय घाटा-शुद्ध ब्याज दायित्व

प्रश्न 9.
जो कर आय पर निर्भर नहीं होता है, कहलाता है –
(A) अप्रत्यक्ष कर
(B) प्रत्यक्ष कर
(C) एकमुश्त कर
(D) अनुपातिक कर
उत्तर:
(C) एकमुश्त कर

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प्रश्न 10.
सरकारी व्यय गुणक का सूत्र होता है।
(A) \(\frac{1}{1-C}\)
(B) \(\frac{-C}{1-C}\)
(C) \(\frac{1-C}{1-C}\)
(D) \(\frac{1}{1-C(1-t)}\)
उत्तर:
(A) \(\frac{1}{1-C}\)

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

Bihar Board Class 12 Economics राष्ट्रीय आय का लेखांकन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्पादन के चार कारक कौन-कौन से हैं और इनमें से प्रत्येक के पारिश्रमिक को क्या कहते हैं?
उत्तर:
उत्पादन के निम्नलिखित चार साधन होते हैं –

  1. भूमि
  2. श्रम
  3. पूंजी एवं
  4. उद्यम

उत्पादन साधनों को दिए जाने वाले भुगतान नीचे लिखे गए हैं –

  1. भूमि की सेवाओं के लिए भूमिपति को दिए गए भुगतान को लगान या किराया कहते हैं।
  2. श्रमिक को मानसिक अथवा शारीरिक श्रम के बदले उत्पादन इकाई भुगतान करती है जिसे मजदुरी या वेतन कहते हैं।
  3. पूंजी के प्रयोग के बदले उत्पादन पूंजीपति को भुगतान प्रदान करता है जिसे ब्याज कहते हैं।
  4. उत्पादन प्रक्रिया में अनिश्चितता एवं जोखिमों को वहन करने के बदले उद्यमी को अधिशेष आय प्राप्त होती है जिसे लाभ कहते हैं।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 2.
किसी अर्थव्यवस्था में समस्त अंतिम व्यय समस्त कारक अदायगी के बराबर क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
यदि अर्थव्यवस्था में कोई बाह्य स्राव नहीं होता है अथवा मुद्रा खर्च करने का कोई और विकल्प नहीं होता है तो परिवार क्षेत्र के पास आय को खर्च करने का एक ही विकल्प होता है कि सम्पूर्ण आय को अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं पर खर्च किया जाए। दूसरे शब्दों में उत्पादन साधनों को साधन आय के रूप में आय प्राप्त होती है वे इसका प्रयोग वस्तुओं एवं सेवाओं को क्रय करने के लिए करते हैं। इस प्रकार उत्पादक इकाइयों द्वारा साधन भुगतान के रूप में प्रदान की गई मुद्रा वस्तुओं व सेवाओं के विक्रय से प्राप्त आगम के रूप में वापिस मिल जाती है।

इस प्रकार फर्मों द्वारा किए गए साधन भुगतानों के योग तथा सामूहिक उपभोग पर किए गए व्यय में कोई अन्तर नहीं होता है। दूसरे चक्र में उत्पादक पुन: वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करेंगे और साधनों को उनकी सेवाओं के लिए साधन भुगतान करेंगे। साधनों के स्वामी साधनों से प्राप्त आय को वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर खर्च करेंगे। इस प्रकार वर्ष दर वर्ष आय को वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर खर्च किया जाता है। अतः परिवार क्षेत्र द्वारा किया गया सामूहिक व्यय फर्मों को प्राप्त हो जाता है।

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प्रश्न 3.
स्टॉक और प्रवाह में भेद स्पष्ट कीजिए। निवल निवेश और पूंजी में कौन स्टॉक है और कौन प्रवाह? हौज में पानी के प्रवाह से निवल निवेश और पूंजी की तुलना कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक:
वह आर्थिक चर जिसे एक निश्चित समय बिन्दु पर मापा जात है स्टॉल कहलाता है।

प्रवाह:
आर्थिक चर जिसे एक निश्चित समयावधि में मापा जाता है, उसे प्रवाह कहते हैं।

शुद्ध निवेश:
सकल निवेश तथा स्थायी पूंजी के उपभोग के अन्तर को शुद्ध निवेश कहते हैं। सकल निवेश तथा स्थायी पूंजी के उपभोग को एक निश्चित समयावधि में मापा जाता है। सामान्यतः ये दोनों चर लेखा वर्ष की अवधि के लिए मापे जाते हैं। इस प्रकार शुद्ध निवेश प्रवाह आर्थिक चर का उदाहरण है।

पूंजी में वे सभी मानव निर्मित वस्तुएं शामिल की जाती हैं जो अन्य वस्तुओं अथवा सेवाओं के उत्पादन में काम आती है। पूंजी एक मशीन, कच्चे माल, उपकरण आदि के रूप में उत्पादन प्रक्रिया में पूंजी का प्रयोग किया जाता है। इनकी मात्रा का मापन एक निश्चित समय बिन्दु पर किया जाता है। इस प्रकार पूंजी एक आर्थिक स्टॉक है। शुद्ध निवेश एवं पूंजी की तुलना एक टैंक में बहने वाले पानी से की जा सकती है। टैंक मे बहने वाला पानी तथा शुद्ध निवेश दोनों आर्थिक प्रवाह हैं। इसी प्रकार किसी निश्चित समय बिन्दु पर टैंक में पानी की मात्रा तथा फर्म के पास पूंजी दोनों आर्थिक स्टॉक हैं।

प्रश्न 4.
नियोजित और अनियोजित माल-सूची संचय में क्या अंतर है? किसी फर्म की माल सूची और मूल्यवर्धित के बीच संबंध बताइए।
उत्तर:
बिना बिके माल, अर्द्धनिर्मित माल एवं कच्चे माल का स्टॉक जिसे कोई फर्म अगले वर्ष के लिए ले जाती है अथवा प्रयोग करने के लिए रखती है उसे माल तालिका निवेश कहते हैं। माल तालिका निवेश नियोजित एवं अनियोजित दोनों प्रकार का हो सकता है। माल तालिका निवेश में अनुमानित बढ़ोतरी के समान वृद्धि को नियोजित माल तालिका या भण्डार निवेश कहते हैं।

उदाहरण के लिए एक फर्म अपना भण्डार निवेश 100 कमीजों से बढ़ाकर 200 कमीज करना चाहती है। फर्म अनुमानित बिक्री 1000 कमीज के समान ही कमीजों की बिक्री करती है। फर्म का कमीज उत्पादन 1100 कमीज है तो फर्म का वास्तविक भण्डार निवेश निम्न प्रकार ज्ञात किया जा सकता है।

भण्डार निवेश में वृद्धि = आरंभिक स्टॉक + उत्पादन – बिक्री
= 100 + 1100 – 900 = 200 कमीज

इस उदाहरण में अनुमानित भण्डार निवेश में वृद्धि और वास्तविक भण्डार निवेश दोनों समान हैं। यदि किसी उत्पादक इकाई का वास्तविक भण्डार निवेश, अनुमानित भण्डार निवेश से अधिक या कम करता है तो इसे अनियोजित भण्डार निवेश कहते हैं। उदाहरण के लिए एक फर्म का आरंभिक स्टॉक 100 कमीज है वह अपना स्टॉक 200 कमीज बनाना चाहती है। फर्म 1100 कमीजों का उत्पादन करती है लेकिन फर्म केवल 900 कमीजों को ही बेच पाती है। इस उदाहरण में वास्तविक भण्डार निवेश में वृद्धि का आंकलन निम्न प्रकार से किया जा सकता है –

भण्डार निवेश में वृद्धि = आरंभिक स्टॉक + उत्पादन – बिक्री
= 100 + 1100 – 900
= 300 कमीज

इस तरह फर्म का वास्तविक भण्डार निवेश 300 कमीज नियोजित भण्डार निवेश 200 कमीज से अधिक हैं। इस प्रकार की भण्डार वृद्धि को अनियोजित निवेश कहते हैं। भण्डार निवेश में परिवर्तन तथा मूल्य वृद्धि में संबंध फर्म की सकल मूल्य वृद्धि = फर्म द्वारा विक्रय + भण्डार निवेश में परिवर्तन – मध्यवर्ती – उपभोग

इस समीकरण में मूल्य वृद्धि तथा भण्डार निवेश में परिवर्तन का संबंध स्पष्ट प्रतीत होता है। भण्डार निवेश में वृद्धि से मूल्य वृद्धि में बढ़ोतरी होती है। इसके विपरीत भण्डार निवेश में कमी आने पर मूल्य वृद्धि में कमी आती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 5.
तीन विधियों से किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद की गणना करने की किन्हीं तीन निष्पत्तियों लिखिए। संक्षेप में यह भी बताइए कि प्रत्येक विधि से सकल घरेलू उत्पाद का एक-सा मूल्य क्या आना चाहिए?
उत्तर:
GDP (सकल घरेलू उतपाद) को ज्ञात करने की तीन विधियां निम्नलिखित हैं –
1. मूल्य वृद्धि विधि
या अन्तिम उत्पाद विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = सभी घरेलू उत्पादक इकाइयों की सकल मूल्य वृद्धि का योग
GVA1 + GVA2 + ………….. + GVAN
\(\sum_{i=1}^{N} G V A i\)

2. अन्तिम उपभोग विधि या व्यय विधि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = सभी घरेलू उत्पादक इकाइयों द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आगम = कुल अन्तिम उपभोग का योग + निवेश + सरकारी
उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 1
जहाँ C, I, G, X व्यय के वे भाग हैं जो घरेलू उत्पादकों को प्राप्त होते हैं जबकि Cm, Im, Gm अन्तिम व्यय के वे भाग हैं जो विदेशी उत्पादकों को प्राप्त होते हैं।

3. आय विधि
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = उत्पादन साधनों को किए गए भुगतानों का योग
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 2
जहाँ Wi – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त मजदूरी एवं वेतन
Pi – परिवार क्षेत्र प्राप्त लाभ
li – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त ब्याज
Ri – परिवार क्षेत्र द्वारा प्राप्त किराया सरल रूप में इस समीकरण को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है
GDP = W + R + I + P

उपरोक्त तीनों विधियों का मिलान:
अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उत्पादक इकाइयां चार साधन आगतों भूमि, श्रमू, पूंजी एवं उद्यम की सहायता से मध्यवर्ती वस्तुओं का उपयोग करती है। फर्मों के द्वारा जो भी उत्पादन किया जाता है, उसे अर्थव्यवस्था में उपभोग एवं निवेश के उद्देश्य के लिए बेच दिया जाता है। फर्म उत्पादन साधनों को किराया, मजदूरी, ब्याज व लाभ का भुगतान करती हैं और उसे वस्तुओं व सेवाओं का विक्रय करके आगम के रूप में वापिस प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार उत्पादन स्तर जितना उत्पादन होता है या मूल्य वृद्धि होती है उसे साधनों में आय कगे रूप में बांट दिया जाता है, साधनों के स्वामी प्राप्त आय को अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं पर खर्च कर देती है।

इसलिए तीनों विधियों से GDP का समान प्राप्त होता है।
GDP = \(\sum_{i=1}^{N} G V A i\)
W + R + I + P
= C + I + G + X – M

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प्रश्न 6.
बजटीय घाटा और व्यापार घाटा को परिभाषित कीजिए। किसी विशेष वर्ष में किसी देश की कुल बचत के ऊपर निजी निवेश का आधिक्य 2000 करोड़ रु. था। बजटीय घाटे की राशि 1500 करोड़ रु. थी। उस देश के बजटीय घाटे का परिणाम क्या था?
उत्तर:
बजटीय घाटा:
एक वर्ष की अवधि में सरकार द्वारा किए गए व्यय तथा सरकार की प्राप्तियों के अन्तर को बजटीय घाटा कहते हैं।

बजट घाटा:
सरकार का व्यय-सरकार द्वारा अर्जित कर आगम व्यापार शेष-आयात पर व्यय का निर्यात आगम पर अधिशेष व्यापार शेष कहलाता है।

व्यापार शेष = आयात पर व्यय-निर्यात से प्राप्त
आगम निजी निवेश बचत = 2000 करोड़ रु.
I – S = 2000 करोड़ रु.
बजट घाटा = (-) 1500 करोड़ रु.
व्यापार शेष = (I – S) + (G – T)
= 2000 करोड़ रु. + – (1500) करोड़ रु.
= 500 करोड़ रु.

प्रश्न 7.
मान लिजिए कि किसी विशेष वर्ष में किसी देश की सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर 1100 करोड़ रु. था। विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय 100 करोड़ रु. था। अप्रत्यक्ष कर मूल्य-उत्पादन का मूल्य 150 करोड़ रु. और राष्ट्रीय आय 850 करोड़ रु. है, तो मूल्यहास के समस्त मूल्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद GDP at mp = 1100 करोड़ रु. विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय (NFIA) = 100 करोड़ रु.
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर NIT = 150 करोड़ रु.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद NNP at fc = 850 करोड़ रु.
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-घिसावट-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = राष्ट्रीय आय (NNP at fc)
1100 करोड़ रु. + 100 करोड़ रु.-घिसावट – 150 करोड़ रु.
= 850 करोड़ रु. 1050 करोड़ रु. – घिसावट = 850 करोड़ रु.
घिसावट = 850 करोड़ रु. -1050 करोड़ रु.
-घिसावट = (-)200 करोड़ रु.
घिसावट = 200 करोड़ रु.
उत्तर – घिसावट = 200 करोड़ रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 8.
किसी देश विशेष में एक वर्ष लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद 1900 करोड़ रु. है। फर्मों/सरकार के द्वारा परिवार को अथवा परिवार के द्वारा सरकार/फर्मों को किसी भी प्रकार का ब्याज अदायगी नहीं की जाती है, परिवारों की वैयक्तिक प्रयोज्य आय 1200 करोड़ रु. है। उनके द्वारा अदा किया गया वैयक्तिक आयकर 600 करोड़ रु. है और फर्मों तथा सरकार द्वारा अर्जित आय का मूल्य 200 करोड़ रु. है। सरकार और फर्म द्वारा परिवार को की गई अंतरण अदायगी का मूल्य क्या है?
उत्तर:
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at fc) = 1900 करोड़ रु.
परिवारों द्वारा ब्याज भुगतान = 0 रु
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 1200 करोड़ रु.
परिवारों द्वारा प्रत्यक्ष करों का भुगतान = 600 करोड़ रु.
फर्म व सरकार की प्रतिधारित आय = 200 करोड़ रु.
हस्तांतरण भुगतान से प्राप्ति = ?
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष करों का भुगतान – गैर कर भुगतान = [राष्ट्रीय आय-प्रतिधारित आय-परिवारों द्वारा शुद्ध ब्याज भुगतान – निगम कर + सरकार व फर्मों से परिवारों को हस्तांतरण भुगतान।] – प्रत्यक्ष करों का भुगतान-गैर कर भुगतान
1200 करोड़ रु. = 1900 करोड़ रु. – 200 करोड़ रु – 0 रु. – 0 रु. + सरकार व फर्मों से परिवारों को हस्तांतरण भुगतान – 0 रु.। – 600 करोड़ रु.
1200 करोड़ रु. = 1700 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से हस्तांतरण
भुगतान – 600 करोड़ रु. 1200 करोड़ रु. = 1100 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से हस्तांतरण भुगतान या 1100 करोड़ रु. + सरकार व फर्मों से परिवारों के हस्तांतरण भुगतान
= 1200 करोड़ रु. या सरकार व फर्मों से परिवार क्षेत्र को हस्तांतरण भुगतान
= 1200 करोड़ रु. – 1100 करोड़ रु.
= 100 करोड़ रु. उत्तर-सरकार व फर्मों से परिवार क्षेत्र को हस्तांतरण भुगतान = 100 करोड़ रु.

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आँकड़ों से वैयक्तिक आय और वैयक्तिक प्रयोज्य आय की गणना कीजिए:Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 3
हल:
वैयक्तिक आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय + हस्तांतरण आय-निगम कर-परिवारों द्वारा शुद्ध ब्याज प्राप्ति
= 800 + 200 + 300 – 500 – (1200 – 1500)
= 8500 – 500 – (- 300)
= 8500 – 500 + 300
= 8300 करोड़ रु.
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-वैयक्तिगत प्रत्यक्ष कर-गैर कर भुगतान
= 8300 – 500 – 0 करोड़ रु.
= 7800 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. वैयक्तिक आय = 8300 करोड़ रु.
  2. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 7800 करोड़ रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 10.
हजाम राजू एक दिन में बाल काटने के लिए 500 रु. का संग्रह करता है। इस दिन उसके उपकरण में 50 रु. का मूल्यह्रास होता है। इस 450 रु. में से राजू 30 रु. बिक्री कर अदा करता है। 200 रु. घर ले जाता है और 220 रु. उन्नति और नए उपकरणों का क्रय करने के लिए रखता है। वह अपनी आय में से 20 रु. आयकर के रूप में अदा करता है। इन पूरी सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित में राजू का योगदान ज्ञात कीजिए –
(a) सकल घरेलू उत्पाद।
(b) बाजार कीमत पर निबल राष्ट्रीय उत्पाद।
(c) कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद।
(d) वैयक्तिक आय।
(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय।
उत्तर:
ΣRi = 500 रु.
स्थायी पूंजी का उपभोग = 50 रु.
बिक्री कर = 30 रु.
प्रतिधारित आय = 220 रु.
घर ले जाई गई आय = 200 रु.
आयकर = 20 रु.

(a) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP at mp) में योगदान
= बाल काटने के लिए प्राप्त आगम
= 500रु.

(b) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at mp) में योगदान
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – स्थायी पूंजी का उपभोग
= 500 रु. – 50 रु.
= 450 रु.

(c) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान
= बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 450 रु. -30 रु.
= 420 रु.

(d) वैयक्तिक आय = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में योगदान – अवितरित लाभ
= 420 रु. -220 रु.
= 200 रु.

(e) वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर
= 200 रु. – 20 रु.
= 180 रु.
उत्तर:
(a) 500 रु.
(b) 450 रु.
(c) 420 रु.
(d) 200 रु.
(e) 180 रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 11.
किसी वर्ष एक अर्थव्यवस्था में मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य 2500 करोड़ रु. था। उसी वर्ष, उस देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद का मूल्य किसी आधार वर्ष की कीमत पर 3000 करोड़ रु. था। प्रतिशत के रूप में वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक के मूल्य की गणना कीजिए। क्या आधार वर्ष और उल्लेखनीय वर्ष के बीच कीमत स्तर में वृद्धि हुई।
हल:
विशिष्ट वर्ष में मौद्रिक GNP%3D 2500 करोड़ रु.
विशिष्ट वर्ष में स्थिर कीमतों पर/वास्तविक (GNP) = 3000 करोड़ रु.
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 4
= \(\frac{2500}{3000}\) × 100% = \(\frac{5}{6}\) × 100%
= \(\frac{500}{6}\) % = 83.33%
नहीं कीमत स्तर आधार वर्ष से विशिष्ट वर्ष के बीच कम हुआ है
= (100 – 83.33)%
= 16.67%
उत्तर:
कीमत स्तर में कमी = 16.67%

प्रश्न 12.
किसी देश में कल्याण के निर्देशांक के रूप में सकल घरेलू उत्पाद की कुछ सीमाओं को लिखो।
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद को कल्याण सूचकांक के रूप में प्रयोग करने की सीमाएं –

  1. सकल घरेलू उत्पाद के वितरण को अनदेखा किया जाता है।
  2. अमौद्रिक विनिमय इसमें शामिल नहीं किए जाते हैं।
  3. जनसंख्या वृद्धि की तरफ भी ध्यान नहीं दिया जाता है।
  4. उत्पादन तरीके की तरफ बाजिब ध्यान नहीं दिया जाता है।
  5. उत्पादन से होने वाले प्रदूषण का हिसाब इसमें नहीं होता है।
  6. उत्पादित वस्तुओं की प्रकृति इससे स्पष्ट नहीं होती है।
  7. नागरिक स्वतंत्रता का मुद्दा इससे प्रदर्शन नहीं होता है।
  8. GDP के माध्यम से कानून, सुरक्षा, न्याय आदि मूल्य प्रतिबिंबित नहीं होते हैं।
  9. प्राकृतिक संसाधनों का अधिक उपयोग अथवा पर्यावरण असन्तुलन की ओर ध्यान GDP के माध्यम से नहीं दिया जाता है।

Bihar Board Class 12th Economics राष्ट्रीय आय का लेखांकन Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आर्थिक सहायता क्या है?
उत्तर:
राज्य की ओर उत्पादकों की दिए जाने वाली आर्थिक अनुदान को आर्थिक सहायता कहते हैं। आर्थिक सहायता किसी वस्तु के उत्पादन को प्रोत्साहित करते एवं उत्पादन लागत को कम करने के उद्देश्य से दी जाती है।

प्रश्न 2.
मौद्रिक प्रवाह का अर्थ लिखें।
उत्तर:
इससे अभिप्राय कारक आय का उत्पादक क्षेत्र से परिवार की ओर तथा परिवार क्षेत्र से उत्पादक क्षेत्र की ओर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं पर होने वाले मौद्रिक व्यय से है।

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प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था की रचना के बारे में लिखें।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह की दृष्टि से एक अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। जैसे –

  1. परिवार क्षेत्र
  2. उत्पादक क्षेत्र
  3. सरकारी क्षेत्र
  4. मुद्रा बाजार/वित्तीय प्रणाली
  5. शेष विश्व क्षेत्र या विदेशी क्षेत्र या अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र

प्रश्न 4.
फर्म से परिवारों की ओर प्रवाहों की सूची बनाएं।
उत्तर:
फर्म से परिवारों की ओर निम्नलिखित प्रवाह है –

  1. अन्तिम वस्तुओं का क्रय फर्म से परिवार करते हैं अर्थात् अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह फर्म से परिवार की ओर होता है।
  2. साधन आगतों का क्रय फर्म परिवारों से करते हैं। साधन आगतों के पुरस्कार के रूप में लगान, मजदूरी, ब्याज व लाभ फर्म से परिवारों की ओर प्रवाहित होता है।

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प्रश्न 5.
तीन क्षेत्रीय मॉडल के किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
तीन क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था में तीन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है –

  1. परिवार क्षेत्र।
  2. उत्पादक क्षेत्र।
  3. सरकारी क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह क्या होता है?
उत्तर:
परिवार क्षेत्र द्वारा कारक सेवाओं का प्रवाह उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है और उत्पादित क्षेत्र द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह परिवार क्षेत्र की ओर होता है।

प्रश्न 7.
आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह क्यों कहते हैं?
उत्तर:
आय के प्रवाह को चक्रीय प्रवाह इसलिए कहते हैं, क्योंकि –

  1. विभिन्न क्षेत्रों में प्राप्तियों और भुगतानों का प्रवाह बराबर होता है और
  2. प्रत्येक वास्तविक प्रवाह जिस दिशा में होता है उसाक मौद्रिक प्रवाह उसकी विपरीत दिशा में होता है।

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प्रश्न 8.
चक्रीय प्रवाह मॉडल का महत्त्व बताएं।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह मॉडल का निम्नलिखित महत्त्व है –

  1. विभिन्न क्षेत्रों की परस्पर निर्भरता का ज्ञान।
  2. समावेश और वापसी का ज्ञान।
  3. राष्ट्रीय आय के अनुमान की सुविधा।
  4. महत्त्वपूर्ण समष्टि चरों का ज्ञान।
  5. अर्थव्यवस्था की रचना का ज्ञान।

प्रश्न 9.
प्रयोज्य आय से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वैयक्तिक आय में से प्रत्यक्ष करो तथा सरकारी प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियों अर्थात् फीस, जुर्माने आदि को कम करके जो आय बचती है, उसे प्रयोज्य आय कहते हैं।

प्रश्न 10.
क्या लॉटरी से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा?
उत्तर:
नहीं, राष्ट्रीय आय में लॉटरी से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जायेगा, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं के प्रवाह में कोई वृद्धि नहीं होगी।

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प्रश्न 11.
क्या पुरानी कार के विक्रय मूल्य को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय में पुरानी कार के विक्रय मूल्य के शामिल नहीं किया जाता क्योंकि जब उस कार का उत्पादन हुआ था तब ही उसे GNP में शामिल कर लिया गया था।

प्रश्न 12.
क्या शेयर्स की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
शेयर्स वित्तीय पुंजी के अंग हैं। इनके परिणामस्वरूप अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से कोई परिवर्तन नहीं होता, इसलिए शेयर्स की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है।

प्रश्न 13.
चार क्षेत्रीय मॉडल में किन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
चार क्षेत्रीय मॉडल में अर्थव्यवस्था के चार क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है –

  1. परिवार क्षेत्र।
  2. उत्पादक क्षेत्र।
  3. सरकारी क्षेत्र।
  4. शेष विश्व क्षेत्र के बीच होने वाले आय के चक्रीय प्रवाह।

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प्रश्न 14.
सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है? या बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
किसी राष्ट्र की घरेलू सीमाओं में एक वर्ष में निवासियों तथा गैर-निवासियों द्वारा उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के जोड़ को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 15.
कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद से क्या आशय है?
उत्तर:
कारक लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद से आशय बिना दोहरी गिनती के सभी कारकों को ब्याज, मजदूरी, लगान तथा लाभ क रूप में प्राप्त होने वाली कुल आय तथा निवल विदेशी कारक आय के जोड़ से है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय लेखांकन के महत्त्व बताएँ।
उत्तर:

  1. इसके द्वारा राष्ट्रीय आय को मापने में सहायता प्राप्त होती है।
  2. यह अर्थव्यवस्था के ढाँचे को समझने में सहायक होता है।
  3. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के सापेक्षिक महत्त्व का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. आय के कारकों में बँटवारे का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. अन्तक्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक है।
  6. विभिन्न सयम अवधियों में आय की तुलना में सहायक।

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प्रश्न 17.
किन मदों को घरेलू उत्पाद/आय में शामिल नहीं किया जाता है?
उत्तर:
निम्नलिखित मदों को घरेलू उत्पाद/आय में शामिल नहीं किया जाता है –

  1. गृहणियों की सेवाएं
  2. पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय
  3. हस्तांतरण भुगतान
  4. वित्तीय लेन-देन
  5. गैर-कानूनी गतिविधियाँ
  6. खाली समय की गतिविधियाँ
  7. मध्यवर्ती वस्तुएँ

प्रश्न 18.
वास्तविक GNP क्या है?
उत्तर:
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय तथा वास्तविक राष्ट्रीय आय किसी देश के सामान्य निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के स्थिर मूल्यों का जोड़ है।

प्रश्न 19.
कारक अदागियां क्या होती हैं?
उत्तर:
उत्पादन के कारकों यानि भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यमवृत्ति को प्राप्त आय जैसे-लगान, ब्याज, मजदूरी एवं लाभ को कारक अंदायगियां कहा जाता है।

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प्रश्न 20.
क्या लॉटरियों से प्राप्त अप्रत्याशित लाभों को कारक आय में शामिल किया जायेगा?
उत्तर:
लॉटरियों से प्राप्त अप्रत्याशित लाभों को कारक आय में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि यह एक हस्तांतरण भुगतान है।

प्रश्न 21.
क्या पुराने टेलीविजन की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है?
उत्तर:
नहीं, पुराने टेलीविजन की बिक्री से प्राप्त राशि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि राष्ट्रीय आय में केवल चालू वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य को ही शामिल कियो जाता है।

प्रश्न 22.
व्यक्ति अ, कमीशन एजेन्ट स की सहायता से ब का पुराना स्कूटर बेचता है। इसका राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
पुराने स्कूटर की बिक्री राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे, लेकिने कमीशन एजेन्ट का कमीशन का कमीशन राष्ट्रीय आय में शामिल करेंगे, क्योंकि यह नई सेवा का पुरस्कार है।

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प्रश्न 23.
हस्तांतरण आय क्या होती है?
उत्तर:
ऐसी आय जो बिना किसी वस्तु या सेवा के प्राप्त होती है, उसे हस्तांतरण आय कहते हैं। हस्तांतरण आय कहते हैं। हस्तांतरण आय एक पक्षीय होती है। इसमें वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं होती है। जैसे-वृद्धावस्था पेन्शन, छात्रवृत्ति आदि। हस्तांतरण आय को राष्ट्रीय आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करते।

प्रश्न 24.
सरकारी अंतिम उपभोग व्यय का अनुमान किस प्रकार लगाया जाता है?
उत्तर:
सरकार, प्रतिरक्षा, चिकित्सा, कानून और व्यवस्था तथा सांस्कृतिक सेवाओं का उत्पादन करती है। सरकार का अन्तिम उपभोग व्यय निम्न प्रकार से ज्ञात किया जा सकता है सरकार द्वारा अन्तिम उपभोग व्यय = वस्तुओं एवं सेवाओं का शुद्ध क्रय (विदेशी क्रय सहित) + कर्मचारियों का पारिश्रमिक

प्रश्न 25.
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद क्या है?
उत्तर:
बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद किसी अर्थव्यवस्था की घरेलू सीमा में एक लेखा वर्ष में सामान्य निवासियों द्वारा अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य एवं मूल्य ह्रास के अन्तर तथा विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय का जोड़ है।

प्रश्न 26.
मूल्य वृद्धि की अवधारणा की परिभाषा करें।
उत्तर:
विक्रय मूल्य एवं स्टॉक में वृद्धि के योग में से अंतर्वर्ती चीजों की लागत (मध्यवर्ती उपभोग) घटाने पर मूल्य वृद्धि प्राप्त होती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पादन वृद्धि
मध्यवर्ती उपभोग अथवा उत्पादन प्रक्रिया में फर्म साधन आगतों (भूमि, श्रम, पूँजी एवं अद्यम) की सेवाओं का प्रयोग करके गैर-साधन आगतों (मध्यवर्ती वस्तुओं) की उपयोगिता में जितनी वृद्धि होती है।

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प्रश्न 27.
मूल्य ह्रास क्या होता है?
उत्तर:
उत्पादन प्रक्रिया में पूंजीगत वस्तुओं जैसे-इमारत, मशीन, उपकरण आदि के मूल्य में घिसावट, सामान्य टूट-फूट, अप्रचलन (तकनीकी परिवर्तन) आदि के कारण कमी को मूल्य हास कहते हैं। इसे स्थायी पूंजी का उपभोग एवं अचर पूंजी का उपभोग अथवा घिसावट भी कहते हैं।

प्रश्न 28.
सकल व्यय के घटक क्या होते हैं?
उत्तर:
सकल व्यय में परिवार, फर्म एवं सरकार द्वारा किए गए व्ययों को शामिल करते हैं। इन क्षेत्रों के अंतिम व्यय को निम्न वर्गों में भी बाँटते हैं –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. निवेश व्यय।
  3. सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय।
  4. शुद्ध निर्यात।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय लेखांकन के उपयोग क्या हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय लेखांकन के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रीय आय का विभिन्न उत्पादन संसाधनों के बीच विभाजन समझाया जा सकता है अर्थात् राष्ट्रीय आय में किस संसाधन का कितना योगदान है-इसे जाना जा सकता है।
  2. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का राष्ट्रीय आय में योगदान, इन क्षेत्रों की सापेक्ष एवं निरपेक्ष संवृद्धि की जानकारी राष्ट्रीय आय लेखांकन से प्राप्त होती है।
  3. अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन का बोध होता है।
  4. राष्ट्रीय आय लेखांकन में अर्थव्यवस्था के मजबूत पक्षों व कमजोर पक्षों की जानकारी प्राप्त होती है।
  5. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों जीवन स्तर में वृद्धि, राष्ट्रीय आय का वितरण आदि की जानकारी प्रदान करते हैं।
  6. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से विभिन्न देशों के तुलनात्मक अध्ययन का आधार प्राप्त होता है।
  7. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से उपभोग, बचत व पूंजी निर्माण की जानकारी मिलती है।
  8. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों देश की आर्थिक नीतियों की समीक्षा का आधार होते हैं।
  9. राष्ट्रीय आय के आंकड़ों के आधार पर भावी आर्थिक नीतियों, सामाजिक नीतियों की रचना की जाती है आदि।

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प्रश्न 2.
आय के चक्रीय प्रवाह में निर्गत/निवर्तन एवं आगत/परिवर्धन की अवधारणाएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
निर्वतन-इसमें वे सभी मदें शामिल की जाती है जिनसे राष्ट्रीय आय में घटोतरी होती है। इसकी प्रमुख मदें निम्नलिखित हैं –

  1. बचत
  2. कर एवं
  3. आयात

आगत/परिवर्धन:
इसमें वे सभी मदें शामिल की जाती हैं जिनसे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होती है। इसकी मुख्य मदें निम्नलिखित हैं –

  1. निवेश,
  2. सरकारी व्यय एवं
  3. निर्यात

यदि अर्थव्यवस्था में आगतों के सापेक्ष निर्गत कम होते हैं तो आय का स्तर बढ़ता है इसके विपरीत यदि निर्गत, आगतों से ज्यादा होते हैं आय का स्तर घटता है। संतुलन की अवस्था में निर्गतों का मान आगतों के मान के बराबर रहता है।

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प्रश्न 3.
दो क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
दो क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था सरल अर्थव्यवस्था होती है। इस अर्थव्यवस्था में केवल दो क्षेत्र-परिवार व फर्म विद्यमान होते हैं। परिवार फर्मों को साधन सेवाएँ प्रदान करते हैं बदले में फर्म साधन सेवाओं का भुगतान परिवारों को करती है। इसी प्रकार फर्म परिवारों को वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करती है तथा परिवार वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य का भुगतान फर्म को करते हैं।

इस अर्थव्यवस्था में पूंजी बाजार, सरकार तथा विदेशी व्यापार का कोई अस्तित्व नहीं होती है। परिवार उत्पादक क्षेत्र को भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यम प्रदान करते हैं। फर्म परिवारों को मजदूरी, लगान, ब्याज व लाभ का भुगतान करती है। परिवार साधन आय की सहायता से फर्मों से वस्तु वे सेवाएं खरीदते हैं बदले में उनका मूल्य उत्पादक क्षेत्र को प्रवाहित होता है। इसे निम्न प्रकार भी दर्शाया जा सकता है –
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प्रश्न 4.
किसी चक्रीय प्रवाह प्रतिमान का प्रयोग कर दर्शाइए कि आय और उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं।
उत्तर:
चक्रीय प्रवाह के सभी प्रतिमानों में आय व उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं। उत्पादक क्षेत्र, परिवार क्षेत्र से साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम की सेवाएं क्रय करता है। इन साधन आगतों की सेवाओं की सहायता से उत्पादक क्षेत्र गैर साधन आगतों की उपयोगिता को बढ़ाता है। गैर साधन आगतों की उपयोगिता में वृद्धि को आय का सृजन कहते हैं। इस सृजित आय पर चार साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम का अधिकार होता है। अत: वितरण स्तर पर इस सृजित आय (उत्पादन) को चारों साधनों में आय के रूप में बांट दिया जाता है। उत्पादन के साधनों को उतनी ही आय प्राप्त होती है जितनी आय का सृजन उत्पादन क्षेत्र में होता है। अतः आय और उत्पादन के प्रवाह एक-समान होते हैं।

प्रश्न 5.
“समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मार्ग राष्ट्रीय लेखांकन के गलियारों से होकर गुजरता है”। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय लेखांकन की सहायता से हम दो प्रमुख कार्य करते हैं। एक देश की विशिष्ट आर्थिक उपलब्धियों का पता चलता है। दो, आर्थिक नीतियों की समीक्षा के लिए तर्कसंगत आधार प्राप्त होता है। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रीय लेखांकन की सहायता से न केवल आर्थिक समुच्चयों की माप की जाती है बल्कि अर्थव्यवस्था की कार्यशैली का मूल्यांकन व विश्लेषण भी किया जाता है और उनकी व्याख्या की जाती है। अतः यह कहना उचित है कि समष्टि अर्थशास्त्र के अध्ययन का मार्ग राष्ट्रीय लेखांकन के गलियारों से होकर गुजरता है।

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प्रश्न 6.
कृष्यर्थ शास्त्री कौन थे? आर्थिक गतिविधियों के बारे में उनके विचार क्या थे?
उत्तर:
18 वीं शताब्दी के फ्रांसीसी प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों को कृष्णर्थ अर्थशास्त्री कहते हैं। आर्थिक गतिविधियों के संचालन के बारे में वे मुक्त प्रवाह के पक्षधर थे। इसलिए वे अर्थशास्त्री आर्थिक क्रियाकलापों में सरकार के हस्तक्षेप के विरोधी थे। वे स्वतन्त्र व्यापार के पक्षधर थे। उनके विचार में समाज की प्रमुख गतिविधि कृषि थी। क्वीने ने अर्थतालिका के द्वारा धन के चक्रीय प्रवाह तथा समाज के विभिन्न वर्गों के बीच कृषि उत्पादन के वितरण का विधिपूर्ण चित्रांकन प्रस्तुत किया।

प्रश्न 7.
आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
प्रवाह की सहायता से एक निश्चित समय अवधि में आर्थिक चरों के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है। आय तथा उत्पादन भी आर्थिक प्रवाह हैं। आर्थिक प्रवाह, आर्थिक स्टॉक से भिन्न होते हैं क्योंकि स्टॉक की माप एक निश्चित समय बिन्दु पर की जाती है। अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रों जैसे परिवार, फर्म, सरकार एवं शेष विश्व की परस्पर निर्भरता के चित्रांकन को आय एवं उत्पादन का चक्रीय प्रवाह कहते हैं। दूसरे शब्दों में, एक क्षेत्र के आर्थिक निर्णय दूसरे क्षेत्रों के आर्थिक निर्णयों के प्रवाह के अनुरूप लिये, जाते हैं।

प्रश्न 8.
मौद्रिक प्रवाह की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि आर्थिक प्रवाह मुद्रा के रूप में होता है तो इसे मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। मौद्रिक प्रवाह में एक क्षेत्र से अन्य क्षेत्र/क्षेत्रों को मुद्रा का प्रवाह होता है। इस प्रकार के प्रवाह में वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह शामिल नहीं किया जाता है। जैसे-परिवार क्षेत्र से फर्म, सरकार एवं शेष विश्व द्वारा क्रय की गई वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य का प्रवाह। फर्म, सरकार एवं शेष विश्व द्वारा परिवार क्षेत्र को साधन आय (लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ) का भुगतान आदि।

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प्रश्न 9.
आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर:
वर्ष 1758 में क्वीने ने आय और उत्पादन की चक्रीय प्रवाह तालिका की रचना की थी। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री इस विषय में मौन रहे। 19वीं शताब्दी के मध्य में कार्ल मार्क्स ने आय और उत्पादन के चक्रीय प्रवाह के बारे में चर्चा की। आय व उत्पादन प्रवाह के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं –

  1. विनिमय चाहे वस्तु के माध्यम से हो अथवा मुद्रा के माध्यम से, प्रत्येक प्रक्रिया में उत्पादक/विक्रेता को उतनी ही राशि प्राप्त होती है जितनी उपभोक्ता/क्रेता खर्च करते हैं।
  2. वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह एक ही दिशा में होता है परन्तु उन्हें प्राप्त करने के लिए किए गए भुगतानों का प्रवाह विपरीत दिशा में होता है।

प्रश्न 10.
परिवारों की प्राप्तियों एवं भुगतानों को लिखिए।
उत्तर:
परिवार क्षेत्र की प्राप्तियां एवं भुगतान निम्न हैं –
प्राप्तियां:
परिवार क्षेत्र को साधन सेवाओं का पुरस्कार लगान, मजदूरी ब्याज व लाभ प्राप्त होता है। इस क्षेत्र को उत्पादक क्षेत्र से अन्तिम वस्तुएं एवं सेवाएं प्राप्त होती हैं। परिवार को सरकार से आर्थिक सहायता की प्राप्ति होती है। शेष विश्व से परिवार क्षेत्र को साधन भुगतान प्राप्त होता है, परिवार विदेशों से वस्तुओं एवं सेवाओं को भी प्रत्यक्ष रूप से खरीदते हैं। शेष विश्व से परिवार को चालू हस्तांतरण भी प्राप्त होते हैं।

भुगतान:
परिवार फर्म, सरकार व विदेशों से जो वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करते हैं उनके मौद्रिक मूल्यों का भुगतान करना पड़ता है। सरकार परिवारों पर प्रत्यक्ष कर लगाती है। परिवार करों का भुगतान सरकारी क्षेत्र को करते हैं।

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प्रश्न 11.
समष्टि स्तर पर लेखांकन का महत्त्व बताएं।
उत्तर:
लेखांकन सभी स्तरों पर महत्त्वपूर्ण होता है परन्तु समष्टि स्तर और भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। इसके कई कारण हैं-लेखांकन के आधार पर अर्थव्यवस्था में पूरे वित्तीय वर्ष की गतिविधियों की समीक्षा की जाती है। आर्थिक विश्लेषण के बाद सरकार जन कल्याण की भावना से उपयुक्त आर्थिक व सामाजिक नीतियाँ बनाती है। इसी के आधार पर अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय उत्पादन, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय व्यय, घरेलू पूंजी निर्माण, प्रति व्यक्ति आय आदि समाहारों की जानकारी प्राप्त होती है। लेखांकन के आधार पर अर्थव्यवस्था की विभिन्न वर्षों की उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन संभव होता है।

प्रश्न 12.
वैयक्तिक आय की परिभाषा दीजिए। यह वैयक्तिक प्रयोज्य आय से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
वैयक्तिक आय-परिवारों को सभी स्रोतों से प्राप्त आय के योग को वैयक्ति आय कहते हैं।
वैयक्तिक आय = निजी आय – निगम कर – निगमित बचत।
वैयक्तिक प्रयोज्य आय-वैयक्तिक आय का वह भाग जिसे परिवार स्वेच्छा से उपभोग या बचत के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – प्रत्यक्ष कर – दण्ड, जुर्माना आदि।

प्रश्न 13.
वस्तु एवं सेवा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 6

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प्रश्न 14.
मध्यवर्ती उपभोग क्या है? सरकार के मध्यवर्ती उपभोग के दो कारण दीजिए।
उत्तर:
मध्यवर्ती उपभोग-एक उत्पादक इकाई द्वारा दूसरी उत्पादन इकाई से खरीदी गई वे वस्तुएँ एवं सेवाएँ जिनको पुनः बेचा जाता है। मध्यवर्ती उपभोग कहलाती हैं। सरकार के मध्यवर्ती उपभोग के उदाहरण –

  1. सरकारी विभागों द्वारा खरीदी गई स्टेशनरी।
  2. सरकारी वाहनों के लिए खरीदा गया पेट्रोल।

प्रश्न 15.
हरित जीएनपी किसे कहते हैं?
उत्तर:
हरित जीएनपी की आवधारणा का विकास आर्थिक विकास के मापक के रूप में किया जा रहा है। जी.एन.पी. को मानवीय कुशलता को मापने के लायक बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं इसी सन्दर्भ में हरित जी.एन.पी. का प्रतिपादन किया है। हरित जीएनपी, आर्थिक संवृद्धि की कसौटी-प्राकृतिक संसाधनों के विवेकशील विदोहन और विकास के हित लाभों के समान वितरण पर जोर देती है। अर्थात् जीएनपी का संबंध प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग, संरक्षण एवं समाज के विभिन्न वर्गों में उनके न्यायोचित बंटवारे से हैं।

प्रश्न 16.
परिभाषा करें-
(क) मौद्रिक जीएनपी
(ख) वास्तविक जीएनपी।
उत्तर:
(क) मौद्रिक जीएनपी-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना लेखा वर्ष में बाजार में प्रचलित कीमतों के आधार पर की जाती है तो इसे मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। मौद्रिक जीएनपी में परिर्वतन तात्कालिक बाजार कीमतों में परिवर्तन, तात्कालिक लेखा वर्ष में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन अथवा दोनों में परिवर्तन के कारण हो सकता है।

(ख) वास्तविक जीएनपी-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना किसी आधार वर्ष की कीमतों के आधार पर की जाती है तो इसे वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीएनपी) कहते हैं। वास्तविक जीएनपी में बढ़ोतरी केवल वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि के कारण होती है।

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प्रश्न 17.
बाजार कीमत और स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय में भेद करें।
उत्तर:
बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय:
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार में प्रचलित कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।

स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय:
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा के उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के आधार वर्ष की कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहते हैं। बाजार कीमतों पर राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी के कारण हैं-कीमतों में वृद्धि अथवा उत्पादन की मात्रा में वृद्धि अथवा कीमतों एवं उत्पादन की मात्रा दोनों में वृद्धि। स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी केवल उत्पादन की मात्रा में बढ़ोतरी के कारण होती है।

प्रश्न 18.
कर्मचारियों के पारिश्रमिक की परिभाषा दीजिए। इसके विभिन्न संघटक क्या हैं? उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
परिभाषा:
उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान दिया जाता है, उसे कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहते हैं।
संघटक:

  1. नकद वेतन-उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान नकद मुद्रा के रूप में दिया जाता है, उसे नकद वेतन कहते हैं। जैसे मूल वेतन, भत्ते, बोनस, कमीशन आदि।
  2. किस्म के रूप में वेतन-उत्पादक इकाई द्वारा श्रमिकों को मानसिक एवं शारीरिक सेवाओं के बदले जो भुगतान वस्तु या सेवाओं के रूप में दिया जाता है। उसे किस्म के रूप में वेतन कहते हैं। जैसे-मुफ्त आवास, सहायता युक्त भोजन आदि।
  3. सामाजिक सुरक्षा अंशदान-श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का अंशदान। जैसे सामूहिक बीमा प्रीमियम, प्रोविडेण्ड फण्ड आदि में मालिकों का भुगतान।

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प्रश्न 19.
सामान्य सरकार क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
सामान्य सरकार क्षेत्र में ब्याज, लगान व लाभ की अवधारणा, उत्पन्न नहीं होती है, सरकार को अप्रत्यक्ष करों का भुगतान नहीं करना पड़ता है सरकार घिसावट के आंकड़े एकत्र नहीं करती है। अतः इस क्षेत्र में
उत्पादन मूल्य = सामान्य सरकार का मध्यवर्ती उपभोग + कर्मचारियों का पारिश्रमिक। शुद्ध मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग = कर्मचारियों का पारिश्रमिक। इस क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि कर्मचारियों के पारिश्रमिक के बराबर होती है।

प्रश्न 20.
मध्यवर्ती उत्पाद (वस्तुएं) तथा अन्तिम उत्पाद में अन्तर बताइए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 7

प्रश्न 21.
अन्तिम वस्तु और अन्तर्वती वस्तु में क्या भेद होता है?
उत्तर:
अन्तिम वस्तु-वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग या निवेश के लिए किया जाता है, अन्तिम वस्तु कहलाती है। इन वस्तुओं को उत्पादन प्रक्रिया में पुनः कच्चे माल की तरह प्रयोग में नहीं लाया जाता है। ये पूरी तरह से तैयार हो जाती हैं इनका पुनः रूप, रंग, आकार नहीं बदला जाता है। इन वस्तुओं को घरेलू/राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल किया जाता है। अन्तर्वर्ती वस्तु-वे वस्तुएँ जिनका प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में अन्य वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल की तरह किया जाता है अन्तर्वर्ती वस्तु कहलाती है। ये वस्तुएं पूरी तरह से तैयार नहीं होती है उत्पादन प्रक्रिया में एक चरण से दूसरे चरण में इनके रूप, रंग, आकार आदि में परिवर्तन किया जाता है। उत्पादन प्रक्रिया में दूसरी वस्तुओं के निर्माण में इनका अपना अस्तित्व खो जाता है। इन वस्तुओं को घरेलू/राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 22.
क्या GNP राष्ट्रीय कल्याण का मापन करता है?
उत्तर:
बहुत लम्बे समय से अर्थशास्त्री आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास के मापक रूप में GNP (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) का प्रयोग करते आ रहे हैं। GNP में बढ़ोतरी को अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा एवं GNP में कमी को खराब माना जाता रहा है। परन्तु GNP में वृद्धि से राष्ट्रीय आय का वितरण, संसाधनों के प्रयोग का स्वभाव एवं दर, जीवन की गुणवत्ता आदि के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। अत: GNP से राष्ट्रीय क्षेत्र स्तर का मापन नहीं होता है। आय की गणना का उद्देश्य लोगों को यह बताना है कि अपने आपको गरीब बनाए बगैर वे क्या कुछ उपभोग सकते हैं। GNP में बढ़ोत्तरी विकास का इकलौता उद्देश्य नहीं है। इसके अलग राष्ट्रीय आय के समान वितरण, जन समुदाय के जीवन की गुणवत्ता में सुधार तथा प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण आदि भी आर्थिक विकास के उद्देश्यों में शामिल किए जाने चाहिए। दूसरे शब्दों में, आर्थिक विकास का उद्देश्य उत्पादकता में वृद्धि। मानवीय कुशलता में बढ़ोतरी के साथ-साथ भावी पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सतत् विकास के लिए आवश्यक माना जाता है। अत: GNP में बढ़ोतरी राष्ट्रीय कल्याण का अधूरा माप है।

प्रश्न 23.
निजी अन्तिम उपभोग व्यय के संघटक समझाइए।
उत्तर:
परिवारों के अन्तिम उपभोग एवं परिवारों की सेवा मे निजी गैर-लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग का योग निजी अन्तिम उपभोग कहलाता है।
निजी अन्तिम उपभोग = परिवारों का अन्तिम उपभोग + परिवारों की सेवा में निजी गैर लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग।
परिवारों का अन्तिम उपभोग = टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय + गैर टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं पर व्यय + विदेशों से प्रत्यक्ष खरीद पर व्यय + मकानों का आरोपित किराया + किस्म के रूप में वेतन + स्थिर परिसम्पत्तियों का स्व-लेखा उत्पादन – उपहार-पुराने एवं रद्दी सामान की बिक्री।
निजी गैर लाभकारी संस्थाओं का अन्तिम उपभोग = मध्यवर्ती उपभोग-विदेशों से चालू खाते पर प्रत्यक्ष खरीद + कर्मचारियों का पारिश्रमिक – जनता को बिक्री।

प्रश्न 24.
सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण और स्टॉक में परिवर्तन के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 8

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प्रश्न 25.
इन वाक्यांशों का अर्थ बताइए –

  1. स्थिर व्यावसायिक निवेश
  2. भण्डार निवेश
  3. गृह निर्माण निवेश
  4. सार्वजनिक निवेश

उत्तर:
1. स्थिर व्यावसायिक निवेश:
फर्मों द्वारा नए यंत्र-सयंत्रों पर किया गया व्यय स्थिर व्यावसायिक निवेश कहलाता है। स्थिर व्यावसायिक निवेश करते समय उत्पादक इकाईयाँ विचार-विमर्श करती हैं। सकल स्थिर व्यावसायिक निवेश में मूल्यह्रास शामिल रहता है परन्तु शुद्ध स्थिर व्यावसायिक निवेश की गणना करने के लिए स्थिर व्यवसायिक निवेश में से मूल्यह्रास घटाते हैं।

2. भण्डार निवेश:
भण्डार निवेश उत्पादन का वह भाग होता है जिसे बाजार में बेचा नहीं गया है। भण्डार निवेश में कच्चा माल, अर्द्धनिर्मित माल एवं तैयार माल को शामिल करते हैं। भण्डार निवेश में वृद्धि की गणना अन्तिम स्टॉक से आरम्भिक स्टॉक घटाकर की जाती है।

3. गृह निर्माण निवेश:
भवन निर्माण पर व्यय को गृह निर्माण निवेश कहते हैं। शुद्ध गृह निर्माण निवेश में से गृह निर्माण का मूल्यह्रास घटाते हैं।

4. सार्वजनिक निवेश:
सरकार द्वारा स्थिर परिसंपत्तियों (सड़कों, पुलों, विद्यालयों, अस्पतलों आदि) के निर्माण पर व्यय की गई राशि को सार्वजनिक निवेश कहते हैं। शुद्ध सार्वजनिक निवेश ज्ञात करने के लिए सकल सार्वजनिक निवेश में से मूल्यह्रास को घटाते हैं।

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प्रश्न 26.
निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय में शामिल क्यों नहीं किया जाता है।

  1. एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय।
  2. एक घरेलू फर्म के नए शेयरों का क्रय।
  3. सरकार द्वारा छात्रों को छात्रवृत्ति।
  4. संपत्ति कर।
  5. अप्रत्यक्ष कर।
  6. वृद्धावस्था पेंशन।

उत्तर:

  1. एक घरेलू फर्म से पुरानी मशीन का क्रय केवल स्वामित्व का हस्तातरंण है, इससे चालू वर्ष में उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं हुई है।
  2. क्योंकि इससे वस्तुओं या सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं हुई है यह केवल कागजी परिसंपत्ति का विनिमय है।
  3. छात्रों को छात्रवृत्ति एक प्रकार का अंतरण भुगतान है यह पक्षीय भुगतान इससे वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह नहीं बढ़ता है।
  4. क्योंकि संपत्ति कर एक प्रकार का अनिवार्य अंतरण भुगतान है।
  5. क्योंकि अप्रत्यक्ष कर एक प्रकार का अनिवार्य अंतरण भुगतान है।
  6. क्योंकि वृद्धावस्था पेंशन अंतरण भुगतान है।

प्रश्न 27.
नीचे दिए गए सौदे घरेलू उत्पाद को किस प्रकार प्रभावित करेंगे –

  1. एक पुरानी कार के मालिक द्वारा कार बेचकर उस रुपये से नया स्कूटर खरीदना।
  2. एक नई कंपनी द्वारा दलालों की मार्फत अंश पत्रों की बिक्री जिनको कमीशन का भुगतान किया जाता है।
  3. किराये पर लिए गए मकान की खरीद।

उत्तर:

  1. पुरानी कार की बिक्री को राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जायेगा परन्तु नए स्कूटर की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  2. अंश पत्रों की बिक्री से केवल स्वामित्व का हस्तांतरण होता है अतः इनकी बिक्री राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे परन्तु इनकी बिक्री के लिए दलालों का कमीशन राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  3. किराये पर लिया गया मकान पुराना है। अतः पुराने मकान की खरीद को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करेंगे।

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प्रश्न 28.
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के अंकलन में किन कार्यों को शामिल नहीं किया जाता है?
उत्तर:
सकल राष्ट्रीय उत्पाद के अंकलन में निम्नलिखित कार्यों को शामिल नहीं किया जाता है –
1. सरकार द्वारा हस्तांतरण भुगतान:
हस्तांतरण एक पक्षीय होते हैं। इन भुगतानों से वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में बढ़ोतरी नहीं होती है। जैसे वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति आदि।

2. कागजी परिसंपत्तियों का क्रय-विक्रय:
इन परिसंपत्तियों के क्रय-विक्रय में केवल स्वामित्व का हस्तांतरण होता है। इनसे वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में बढ़ोतरी नहीं होती है। जैसे बचत पत्र, अंश पत्र, ऋण पत्र आदि का क्रय-विक्रय आदि।

3. गैर कानूनी क्रियाएं:
इन क्रियाओं को अपराध माना जाता है इसलिए इन्हें राष्ट्रीय आय के आंकलन में नहीं जोड़ते हैं। जैसे चोरी, डकैती, जुआ आदि।

4. गैर-बाजार वस्तुएं एवं सेवाएं:
ये वस्तुएं बाजार परिधि से बाजार रहती है। इनके बारे में पर्यात जानकारी का अभाव रहता है। इनके मूल्य का अनुमान लगाना असंभव सा होता है।

5. निजी अंतरण भुगतान:
ये भुगतान भी एक पक्षीय होते हैं। इनसे वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह नहीं बढ़ता है।

प्रश्न 29.
GNP (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) के आंकलन में किन कार्यों को अपवर्जित माना गया है? इसके कारण भी बताइए।
उत्तर:
GNP के मापन में निम्नलिखित कार्यों को छोड़ दिया जाता है –
1. वित्तीय/कागजी परिसंपत्तियों का लेन-देन:
बचत पत्र, ऋण पत्र, बाँड, अंश पत्र आदि को वित्तीय परिसपंत्ति कहते हैं। इनके क्रय-विक्रय से मात्र स्वामित्व बदलता हैं, वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि नहीं होती है। इसलिए इस प्रकार के लेन-देन GNP के आंकलन में छोड़ दिए जाते हैं।

2. सरकार द्वारा हस्तांतरण भुगतान:
हस्तांतरण भुगतान वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रतिफल नहीं होते हैं ये एक पक्षीय होते हैं। इनमें वस्तुओं एवं सेवाओं का सृजन नहीं होता है। जैसे-छात्रवृत्ति, वृद्धावस्था पेन्शन आदि। इसलिए इन्हें भी GNP के आंकलन में शामिल नहीं करते हैं।

3. निजी अन्तरण भुगतान-ये भी एक पक्षीय होते हैं इनमें भी आय का सृजन नहीं होता है। इसलिए इन्हें GNP में शामिल नहीं करते हैं। जैसे जेब खर्च आदि।

4. गैर बाजार वस्तुएं एवं सेवाएं-स्व-उपभोग के लिए उत्पन्न की गई सेवाएं बाजार की परिधि से बाहर रहती हैं उनके मूल्य का अनुमन लगाना असंभव होता है इसलिए इन्हें GNP से बाहर रखते हैं।

5. पुराने सामान की बिक्री-पुराने सामान को बेचने से आय का सृजन नहीं होता है। पुराने सामान के उत्पादक मूल्य को उत्पादित लेखा वर्ष में आय सृजन के रूप में शामिल किया जा चुका है। पुराने उत्पाद की बिक्री से नव उत्पादन नहीं होता है अतः पुराने सामान का मूल्य (GNP) में शामिल नहीं किया जाता है।

6. गैर-कानूनी क्रियाएँ-गैर-कानूनी क्रियाओं का उचित रूप में पता नहीं चलता है, या उनक सही हिसाब-किताब का ब्यौरा नहीं मिलता है। इससे भी ज्यादा देश में इन क्रियाओं को अपराध माना जाता है इसलिए GNP के आंकलन में इन्हें छोड़ देते हैं।

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प्रश्न 30.
किन परिस्थितियों में ऐसा होता है –

  1. राष्ट्रीय आय, घरेलू साधन आय के बराबर।
  2. निजी आय, वैयक्तिक आय के बराबर।
  3. राष्ट्रीय आय, घरेलू आय से कम।
  4. क्या वैयक्तिक आय निजी आय से अधिक हो सकती है।
  5. वैयक्तिक आय, वैयक्तिक प्रयोज्य आय के बराबर।

उत्तर:

  1. जब विदेशों से शुद्ध साधन आय शून्य होती है तो राष्ट्रीय आय, घरेलू साधन आय के समान होती है।
  2. वैयक्तिक आय में लाभ कर तथा अवितरित लाभ जोड़ने पर निजी आय प्राप्त होती है। यदि लाभ कर तथा अवितरित लाभ शून्य होते हैं वैयक्तिक आय व निजी आय समान होती है।
  3. यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है तो राष्ट्रीय आय, घरेलू आय से कम होती है।
  4. निजी आय = वैयक्तिक आय + लाभ कर + अवितरित लाभ। यदि लाभ कर अथवा अवितरित लाभ अथवा दोनों शून्य से अधिक होते हैं निजी आय, वैयक्तिक आय से ज्यादा होती है।
  5. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर-दण्ड जुर्माना आदि।

प्रश्न 31.
क्या निम्नलिखित को राष्ट्रीय आय के आंकलन में शामिल किया जाता है? कारण भी लिखो –

  1. सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय।
  2. विदेशों में काम कर रहे श्रमिक द्वारा उसके परिवार को मिली रकम।
  3. व्यावसायिक बैंक से परिवार को ब्याज की प्राप्ति।
  4. जमीन की बिक्री से प्राप्त राशि।
  5. सुरक्षा पर सरकारी व्यय।
  6. लंदन में सरकारी बैंक की एक शाखा द्वारा अर्जित लाभ।
  7. पाकिस्तान दूतावास में काम कर रहे भारतीय कर्मचारियों को मिली मजदूरी।

उत्तर:

  1. सड़क की रोशनी पर सरकारी व्यय, सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय का घटक है। अतः व्यय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करने में इसको शामिल किया जायेगा।
  2. विदेशों में काम कर रहे श्रमिक द्वारा परिवार को मिली रकम, विदेशों से अर्जित साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।
  3. व्यावसायिक बैंक से प्राप्त ब्याज साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।
  4. जमीन की बिक्री से प्राप्त आय राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होगी क्योंकि इस सौदे मे केवल स्वामित्व परिवर्तन होता है।
  5. सुरक्षा पर सरकारी व्यय अन्तिम उपभोग व्यय का एक संघटक है अतः इसे राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  6. विदेशों से अर्जित लाभ साधन आय का घटक है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल किया जायेगा।
  7. भारतीय कर्मचारी को पाकिस्तान दूतावास से मिली मजदूरी साधन आय है अतः राष्ट्रीय आय में शामिल की जायेगी।

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प्रश्न 32.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय किसे कहते हैं? यह कैसे ज्ञात की जाती है?
उत्तर:
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय-बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद, एवं शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तांतरण भुगतान के योग को राष्ट्रीय प्रयोज्य आय कहते हैं। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का उपयोग राष्ट्र जैसे चाहे कर सकता है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का उपयोग निम्न प्रकार किया जा सकता है।

  1. सरकारी अन्तिम उपभोग
  2. निजी अन्तिम उपभोग एवं
  3. राष्ट्रीय बचत

राष्ट्रीय प्रयोज्य आय का मान राष्ट्रीय आय में कम या ज्यादा हो सकता है। यदि शेष विश्व से चालू अंतरण धनात्मक होते है तो राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होती है इसके विपरीत यदि शेष विश्व से चालू अंतरण ऋणात्मक होते हैं तो राष्ट्रीय प्रयोज्य आय, राष्ट्रीय आय से कम होती है।

राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान या
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शेष विश्व से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान

प्रश्न 33.
घरेलू उत्पाद (राष्ट्रीय आय) के आंकलन की मूल्य वृद्धि विधि की रूपरेखा दीजिए।
उत्तर:
इस विधि से राष्ट्रीय आय ज्ञान करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जाते हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में उत्पादक इकाइयों की पहचान करना और उन्हें समान क्रियाओं के आधार पर विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों (प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक) में बांटना।
  2. प्रत्येक उत्पादन इकाई द्वारा मूल्य वृद्धि ज्ञात करना और उन्हें जोड़कर प्रत्येक क्षेत्र की साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि निकालना।
  3. देश की घरेलू सीमा में समस्त क्षेत्रों की साधन लागत पर मूल्य वृद्धि को जोड़कर घरेलू आय ज्ञात करना।
  4. शुद्ध विदेशी साधन आय ज्ञात करना और उसे घरेलू आय में जोड़कर राष्ट्रीय आय ज्ञात करना।

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प्रश्न 34.
स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय का महत्त्व बताइये।
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक संवृद्धि को ज्ञात करने के लिए एक वर्ष की राष्ट्रीय आय की तुलना आधार-वर्ष की राष्ट्रीय आय से की जाती है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि उत्पादन में वृद्धि के कारण भी हो सकती है और कीमतों में वृद्धि के कारण भी हो सकती है, जब कीमत में वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो यह वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति का वास्तविक चित्र प्रस्तुत नहीं करती।

जब उत्पादन में वृद्धि के कारण राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो इसे राष्ट्रीय आय में वास्तविक वृद्धि कहते हैं। यह वृद्धि आर्थिक संवृद्धि की सूचक है। प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय में कीमतों का प्रभाव शामिल होने के कारण इसकी तुलना आधार वर्ष की राष्ट्रीय आय से नहीं की जा सकती। अत: प्रचलित कीमतों पर राष्ट्रीय आय को, स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में परिवर्तित करके हम राष्ट्रीय आय की तुलना आधार वर्ष की राष्ट्रीय आय से कर सकते हैं।

प्रश्न 35.
माल भण्डार का अर्थ बताइए।
उत्तर:
किसी वस्तु का उत्पादने करने के लिए कच्चे माल, अर्द्धनिर्मित माल और तैयार माल की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार वस्तु के निर्माण की प्रक्रिया में उत्पादक नल तंत्र के बीच जितनी भी वस्तुएं होती हैं उसे ही माल भण्डार में निवेश करते हैं। यदि ये निवेश न किया जाये तो उत्पादन की प्रक्रिया बन्द हो जाती है। माल भण्डार के निवेश में निम्नलिखित वस्तुएँ शामिल की जाती है –

  1. उत्पादक और विक्रेताओं के पास निर्मित वस्तुएं।
  2. उत्पादन पाइप लाइन में अर्द्धनिर्मित वस्तुएं।
  3. उत्पादकों के पास कच्चा माल।

माल भण्डार धनात्मक भी हो सकता है और ऋणात्मक भी, यदि उपभोग उत्पादित वस्तुओं की मात्रा से अधिक हो तो भण्डार निवेश ऋणात्मक होगा। यदि उत्पादित वस्तुएं उपभोग की मात्रा से अधिक हैं तो माल भण्डार धनात्मक होगा।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के आंकलन की उत्पादन और आय विधियां समझाइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आय के आंकलन की उत्पादन विधि:
उत्पादन विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है –
(I) आर्थिक इकाइयों का वर्गीकरण:
अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाइयों को तीन क्षेत्रों-प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र में बांटते हैं। इन क्षेत्रों को विभिन्न उपक्षेत्रों में बांटा जाता है।

(II) बाजार कीमतो पर सकल उत्पादन मूल्य की गणना करना:
एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की बाजार कीमतों को सकल उत्पादन मूल्य कहते हैं। बाजार कीमतवे पर सकल उत्पादन मल्वा की गणला उत्तरदा-मूल्य लेहत वर्ष में बाजार कीमत पर उत्पादन मूल्य = उत्पादन की मात्रा × प्रति इकाई बाजार कीमत। सभी उत्पादक इकाइयों के उत्पादन मूल्य को जोड़कर पूरी अर्थव्यवस्था के लिए बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य की गणना की जाती है।

(III) अन्तर्वती/मध्यवर्ती उपभोग:
उत्पादक इकाइयां अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रयोग करती हैं। इस प्रकार की वस्तुओं के प्रयोग को मध्यवर्ती उपभोग कहते हैं। सभी उत्पादक इकाइयों के मध्यवर्ती उपभोग को जोड़कर पूरी अर्थव्यवस्था का मध्यवर्ती उपभोग ज्ञात कर लिया जाता है।

(IV) बाजार कीमतों पर सकल मूल्य वृद्धि:
बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य के आंकड़ों में से मध्यवर्ती उपभोग घटाकर बाजार कीमतों पर सकल मुल्य वृद्धि की गणना की जाती है। यह अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य या बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद के समान होती है।

(V) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि (NVA at fc) या साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NVA at fc) या घरेलू साधन आय घरेलू साधन आय ज्ञात करने के लिए बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद में से स्थायी पूंजी का उपभोग व शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाते हैं।
घरेलू साधन आय = बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद-स्थायी पूंजी का उपभोग,-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर, अथवा,
घरेलू साधन आय = बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-स्थायी पूंजी का उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

(VI) राष्ट्रीय आय:
घरेलू साधन आय अथवा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि में विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय जोड़कर राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।
राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय अथवा,
राष्ट्रीय आय = साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय अथवा,
राष्ट्रीय आय = बाजार कीमतों पर सकल उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-स्थायी पूंजी उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय आय विधि से राष्ट्रीय आय-आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना में निम्नलिखित चरणों का प्रयोग किया जाता है। सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की उत्पादन प्रक्रिया में सृजित आय के योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं –

1. कर्मचारियों का पारिश्रमिक:
श्रमिक वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करने के लिए अपनी शारीरिक एवं मानसिक सेवाएं प्रदान करते हैं। श्रमिकों की सेवाओं के बदले उन्हें नकद, किस्म या सामाजिक सुरक्षा के रूप में भुगतान दिया जाता है। श्रमिकों को दिए गए सभी भुगतानों के योग को कर्मचारियों का पारिश्रमिक कहते हैं।

2. लगान:
भूमि की सेवाओं के बदले भूमिपतियों को दिए जाने वाले भुगतान को लगान या किराया कहते हैं।

3. ब्याज:
पूंजी के प्रयोग के बदले पूंजीपतियों को किए गए भुगतान को ब्याज कहते हैं। इसमें परिवारों को प्राप्त शुद्ध ब्याज को शामिल किया जाता है। शुद्ध ब्याज की गणना करने के लिए परिवारों द्वारा प्राप्त ब्याज में से उनके द्वारा किए गए ब्याज भुगतानों को घटाते हैं।

4. लाभ:
उत्पादन प्रक्रिया के जोखिमों व अनिश्चिताओं को वहन करने के प्रतिफल को लाभ कहते हैं।

5. घरेलू साधन आय:
घरेलू साधन आय की गणना करने के लिए कर्मचारियों के पारिश्रमिक, लगान, ब्याज एवं लाभ का योग करते हैं। घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लगान + ब्याज + लाभ + मिश्रित आय (अनिगमित उद्यमों की आय जिसमें कर्मचारियों के पारिश्रमिक, लगान, ब्याज व लाभ को अलग बाँटना मुश्किल होता है)

6. राष्ट्रीय आय:
घरेलू साधन आय में विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय को जोड़कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय

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प्रश्न 2.
परिभाषा करें –

  1. बाजार कीमतों पर जी.एन.पी. (बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)।
  2. बाजार कीमतों पर एन.एन.पी. (बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद)।
  3. साधन लागत पर जी.एन.पी. (साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद)।
  4. साधन लागत पर एन.एन.पी. (साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद)।

उत्तर:
1. बाजार कीमतों पर जी.एन.पी. (GNP at mp):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के बाजार कीमतों पर मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग को बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय।

2. बाजार कीमतों पर एन.एन.पी. (NNP at mp):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूंजी का उपभोग घटाने पर प्राप्त बाजार कीमतों को शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।
अथवा बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद
= विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-स्थान पूंजी का उपभोग

3. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at fc):
एक लेखा वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में उत्पादित सभी अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर प्राप्त साधन लागत पर शुद्ध उत्पाद कहते हैं।
अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

4. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at fc):
एक लेखा वर्ष में देश की घरेलू सीमा में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय के योग में से स्थायी पूंजी का उपभोग एवं शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाने पर साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं।
अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
= साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय

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प्रश्न 3.
साधन बाजार में विभिन्न क्षेत्रों के बीच आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह को चित्रांकित कीजिए अथवा आय व्यय के चक्रीय प्रवाह को दर्शाइए।
उत्तर:
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में परिवार व फर्म दो क्षेत्र होते हैं। परिवार साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम के स्वामी होते हैं फर्म परिवार क्षेत्र से इन साधन सेवाओं को क्रय करती है। दूसरे शब्दों में फर्म साधन आगतों के प्रतिफलों, लगान, ब्याज, मजदूरी व लाभ का भुगतान परिवार क्षेत्र को करती है। अर्थात् फर्म साधन सेवाओं का भुगतान करने के लिए मुद्रा व्यय करती है। इस प्रकार फर्म से परिवार की ओर मुद्रा के रूप में परिवार क्षेत्र को प्राप्त होते हैं। परिवार इस प्राप्त आय को वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग करने के लिए व्यय करती है। इस प्रकार अर्थ व्यवस्था के दोनों क्षेत्र क्रेता एवं विक्रेता दोनों की भूमिका निभाते हैं इसलिए दोनों क्षेत्रों के बीच प्रवाह निरन्तर चलता है। इसे निम्नांकित चित्र से भी दर्शाया जा सकता है –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 9

प्रश्न 4.
द्विक्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के चक्रीय प्रवाह में वित्त क्षेत्र का समावेश होने पर आय और व्यय के चक्रीय प्रवाह को दर्शाइए।
उत्तर:
किसी अर्थव्यवस्था में विभिन्न वित्तीय संस्थाओं जैसे व्यापारिक बैंक, बीमा कंपनिया आदि को वित्तीय क्षेत्र या पूंजी बाजार कहते हैं। वित्तीय बाजार बचत करने वालों, निवेश करने वालों अथवा ऋण प्रदान करने वालों के बीच बिचौलिए का काम करता है। वास्तव में परिवार एवं उत्पादक दोनों क्षेत्र अपनी सम्पूर्ण आय को खर्च नहीं करते हैं। परिवार साधन आय में से कुछ बचत करते हैं। इसी प्रकार उत्पादक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री से प्राप्त आगम में से कुछ बचत करते हैं। कुछ फर्मों निवेश करने के लिए मुद्रा की मांग भी करती हैं।

अतः वित्तीय क्षेत्र को परिवार व उत्पादक के बीच मध्यवस्थ की भूमिका निभानी पड़ती है। वित्तीय संस्थाएँ उन परिवारों एवं फर्मों को जिनके पास अधिशेष आय होती है, बचत करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं तथा उनकी बचतों को अपने यहाँ जमा करवाती हैं। दूसरी ओर वित्तीय संस्थाएँ परिवारों एवं उद्यमों को उधार लेने अथवा फर्मों को निवेश करने के लिए भी प्रेरित करती हैं। इन क्षेत्रों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे बिना वित्त क्षेत्र के समावेश के। लेकिन वहाँ परिवार एवं उद्यमों की बचतों को सुन्न मान लिया जाता है।Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 10

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प्रश्न 5.
निम्न पर टिप्पणी कीजिए –

  1. निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय।
  2. निजी आय।
  3. वैयक्तिक आय।
  4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय।

उत्तर:
1. निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय:
घरेलू साधन आय में निजी व सरकारी दोनों क्षेत्रों की उपार्जित आय सम्मिलित होती है। सार्वजनिक क्षेत्र की उपार्जित आय में सार्वजनिक क्षेत्र के प्रशासनिक विभागों की आय एवं गैर विभागीय उद्यमों की बचत को शामिल करते हैं। निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से अपार्जित आय ज्ञात करने के लिए घरेलू साधन आय में से सार्वजनिक क्षेत्र की उपार्जित आय घटाती जाती है। संक्षेप में निजी क्षेत्र की उपार्जित आय = घरेलू साधन आय प्रशासनिक विभागों की उद्यम वृत्ति एवं संपत्ति की आय-गैर विभागीय उद्यमों की बचतें

2. निजी आय:
निजी क्षेत्र को एक लेखा वर्ष में सभी स्रोतों से जितनी आय प्राप्त होती है, उसे निजी आय कहते हैं। निजी क्षेत्र में उपार्जित एवं गैर उपार्जित दोनों प्रकार की आय प्रवाहित होती है। निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय एवं विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय निजी आय के उपार्जित घटक हैं तथा सरकार से चालू अन्तरण, शेष विश्व से शुद्ध चालू अन्तरण एवं राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज गैर उपार्जित आय के रूप में निजी क्षेत्र को प्रवाहित होते हैं। संक्षेप में निजी आय = निजी क्षेत्र की घरेलू उत्पाद से उपार्जित आय -विदेशों से शुद्ध साधन आय + सरकार से चालू अन्तरण – राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज

3. वैयक्तिक आय:
निजी आय का वह भाग जो परिवार क्षेत्र की ओर प्रवाहित होता है उसे वैयक्तिक आय कहते हैं। निजी आय का सम्पूर्ण भाग परिवारों की ओर प्रवाहित नहीं होता है। निजी आय का कुछ भाग सरकार को निगम कर के रूप में प्रवाहित होता है तथा कुछ भाग निजी उत्पादक क्षेत्र के पास निगमित बचत के रूप में रह जाता है।
अत: वैयक्तिक आय = निजी आय-निगम कर-निगमित बचत

4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय:
निजी आय का वह भाग जिसे परिवार स्वेच्छापूर्वक उपभोग या बचत के रूप में प्रयोग कर सकते हैं, वैयक्तिक प्रयोज्य आय कहलाता है। परिवार वैयक्तिक आय का सम्पूर्ण भाग स्वेच्छापूर्वक प्रयोग नहीं कर सकते हैं। कुछ भाग उन्हें इच्छा के विरुद्ध प्रत्यक्ष करों, दण्ड, जुर्माना आदि के भुगतान पर खर्च करना पड़ता है। संक्षेप में वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय-प्रत्यक्ष कर-दण्ड/जुर्माना आदि

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प्रश्न 6.
दिखाइए कि मूल्य वृद्धि का योग साधन आयों के योग के समान किस प्रकार हो जाता है?
उत्तर:
मल्य वद्धि-फर्म गैर साधन आगतों की उपयोगिता बढाने के लिए साधन आगतों भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम की सेवाएं क्रय करती है। साधन आगतों की सेवाओं पर किया गया व्यय साधन भुगतान कहलाता है। साधन भुगतान को ही साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि कहते हैं। साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि की गणना करने के लिए उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग, स्थायी पूंजी का उपभोग एवं शुद्ध अप्रत्यक्ष कर घटाते हैं।
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य-मध्यवर्ती उपभोग-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-स्थायी पूंजी का उपभोग अथवा = साधन भुगतान

साधन आय:
उत्पादन साधन भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम अपनी सेवाएं उत्पादन प्रक्रिया में फर्म को बेचती है। उनकी सेवाओं के बदले साधनों के मालिकों को जितनी-जितनी आय प्राप्त होती है उनके योग को साधनों की आयों का योग कहते हैं।

उपयुक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि फर्म साधनों की सेवाओं के प्रयोग के बदले उनके भुगतान पर जितना व्यय करती है ठीक उतनी ही राशि साधनों के मालिकों को आय के रूप में प्राप्त होती है। इसलिए साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि साधन आयों के योग के बराबर होती है।

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प्रश्न 7.
विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय की परिभाषा दीजिए और इसके संघटक बताइए।
उत्तर:
शेष विश्व से निवासियों द्वारा प्राप्त साधन-आय में से गैर-निवासियों को दिए गए साधन-भुगतान को घटाने पर हमें विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय प्राप्त होती है। शेष विश्व से शुद्ध साधन आय = निवासियों द्वारा शेष विश्व से प्राप्त साधन आय-गैर-निवासियों को दी जाने वाली साधन आय।
शेष विश्व से शुद्ध साधन आय के संघटक निम्नलिखित हैं –

  1. कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक।
  2. शेष विश्व से शुद्ध सम्पत्ति व उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय।
  3. विदेशों में निवासी कंपनियों द्वारा शुद्ध प्रतिधारित आय।

1. कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक:
इसके अन्तर्गत एक देश के निवासी कर्मचारियों द्वारा विदेशों में प्राप्त पारिश्रमिक में से गैर-निवासी कर्मचारियों को दिए गए पारिश्रमिक को घटाया जाता है।
कर्मचारियों का शुद्ध पारिश्रमिक = विदेशों में निवासी कर्मचारियों द्वारा प्राप्त पारिश्रमिक – गैर निवासी कर्मचारियों को दिया गया पारिश्रमिक

2. शेष विश्व से शुद्ध सम्पत्ति व उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय:
यह एक देश के निवासियों द्वारा किराया, ब्याज, लाभांश और लाभ के रूप में प्राप्त आय तथा इस प्रकार के शेष विश्व को किए गए भुगतान का अन्तर है। इसमें सरकार द्वारा विदेशी-ऋण पर दिया गया ब्याज भी
शामिल है।

3. विदेशों में निवासी कंपनियों द्वारा शुद्ध प्रतिधारित आय:
प्रतिधारित आय से तात्पर्य कंपनियों के अवितरित लाभ से है। विदेशों में काम करने वाली घरेलू कम्पनियों की प्रतिधारित आय और देश में विदेशी कम्पनियों की प्रतिधारित आय का अन्तर विदेशों में निवासी कम्पनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय कहलाती है। निवासी कंपनियों की शुद्ध प्रतिधारित आय = विदेशों में निवासी कम्पनियों द्वारा प्रतिधारित आय-गैर-निवासी कम्पनियों की प्रतिधारित आय।

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प्रश्न 8.
चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
आधुनिक अर्थव्यवस्था चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था हैं। चार क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में अधिक जटिलता पाई जाती है। इस प्रतिमान में परिवार, फर्म, सरकार व विदेशों को शामिल किया जाता है। परिवारों व फर्मों के बीच प्रवाह द्वि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था की ही तरह होता है। फर्म, परिवार व सरकार के मध्य प्रवाह त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था के समान होता है। शेष विश्व के साथ प्रवाह का संबंध अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व पूंजी प्रवाहों के रूप में होता है। एक देश के निर्यात व आयात की सहायता से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में उस देश को होने वाले लाभ व हानि की जानकारी प्राप्त होती है।

यदि किसी अर्थव्यवस्था का व्यापार शेष अनुकूल होता है तो उसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में लाभ मिलता है इसके विपरीत यदि व्यापार शेष प्रतिकूल होता है तो उस देश को विदेशों के साथ व्यापार में हानि होती है। परिवार विदेशों से प्रत्यक्ष रूप में वस्तुओं व सेवाओं को खरीदते हैं तथा उनके मौद्रिक मूल्यों का भुगतान करते हैं। विदेश में परिवार क्षेत्र से साधन सेवाएं खरीदी जाती है तथा साधन सेवाओं का मूल्य परिवार क्षेत्र को मिलता है। इसी प्रकार सरकार व उत्पादक क्षेत्र विदेशों से साधन आगतें क्रय करते हैं, उनकी सेवाओं का भुगतान विदेशों को प्रवाहित होता है। चक्रीय प्रवाह को निम्नांकित तरह से भी दर्शाया जा सकता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 11a

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प्रश्न 9.
तीन क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह समझाइए।
उत्तर:
तीन क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में परिवार क्षेत्र, उत्पादक क्षेत्र के अलावा सरकार का समावेश और हो जाता है। इस प्रकार के प्रतिमान में सरकार अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों में हस्तक्षेप करती है तथा जन-कल्याण की भावना से वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि करने में सहयोग करती है।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 12a

भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय प्रवाह को ही शामिल किया जाता है हस्तांतरण भुगतानों के प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं। फर्मों की ही तरह सरकार परिवार क्षेत्र से साधन आगतें, भूमि, श्रम, एवं पूंजी क्रय करती है और उनकी सेवाओं का भुगतान परिवार क्षेत्र को दिया जाता है। सरकार फर्मों से जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करती है और उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह सरकार से उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है।

फर्म से परिवार वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदते हैं और बदले में उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह फर्म की ओर होता है। सरकार, फर्म एवं परिवार क्षेत्रों के बीच विभिन्न प्रकार के हस्तांतरण भुगतानों जैसे-कर, आर्थिक सहायता आदि का प्रवाह भी होता है। त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित चित्र के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

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प्रश्न 10.
दोहरी गणना की समस्या को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। तथा बताइए कि दोहरी गणना की समस्या से किस प्रकार बच सकते हैं?
उत्तर:
राष्ट्रीय आय की गणना के लिए जब किसी वस्तु या सेवा के मूल्य की गणना एक से अधिक बार होती है तो उसे दोहरी गणना कहते हैं। दोहरी गणना के फलस्वरूप राष्ट्रीय आय बहुत अधिक हो जाती है। दोहरी गणना की समस्या को निम्न उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है मान लीजिए एक किसान 500 रु. के गेहूँ का उत्पादन करता है और उसे आटा मिल को बेच देता है। आटा मिल द्वारा गेहूँ की खरीद मध्यवर्ती उपभोग पर व्यय है। आटा-मिल गेहूँ से
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 part - 1 img 13a

भ्रम की स्थिति से बचने के लिए सरकार द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के क्रय-विक्रय प्रवाह को ही शामिल किया जाता है हस्तांतरण भुगतानों के प्रवाह को शामिल नहीं करते हैं। फर्मों की ही तरह सरकार परिवार क्षेत्र से साधन आगतें, भूमि, श्रम, एवं पूंजी क्रय करती है और उनकी सेवाओं का भुगतान परिवार क्षेत्र को दिया जाता है।

सरकार फर्मों से जरूरी वस्तुएं एवं सेवाएं क्रय करती है और उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह सरकार से उत्पादक क्षेत्र की ओर होता है। फर्म से परिवार वस्तुओं एवं सेवाओं को खरीदते हैं और बदले में उनके मौद्रिक मूल्य का प्रवाह फर्म की ओर होता है। सरकार, फर्म एवं परिवार क्षेत्रों के बीच विभिन्न प्रकार के हस्तांतरण भुगतानों जैसे-कर, आर्थिक सहायता आदि का प्रवाह भी होता है। त्रि-क्षेत्रकीय अर्थव्यवस्था में चक्रीय प्रवाह निम्नलिखित चित्र के द्वारा भी दर्शाया जा सकता है।

आंकिक प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
निम्न आंकड़ों के आधार पर फर्म (A) तथा फर्म (B) द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 14

उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 15

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प्रश्न 2.
निम्न आंकड़ों के आधार पर फर्म (X) तथा फर्म (Y) की मूल्य वृद्धि आकलित करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 16

उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 17

प्रश्न 3.
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 18

उत्तर:
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + (अन्तिम स्टॉक – आरम्भिक स्टॉक) कच्चे माल की खरीद – (अप्रत्यक्ष कर आर्थिक सहायता) – घिसावट
= 750 + (10 – 15) – 300 – (75 – 0) – 125
= 750 – 5 – 300 – 75 – 125
= 750 – 380 – 125
= 245 रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से प्रचालन – अधिशेष की गणना कीजिए –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 19

उत्तर:
प्रचालन अधिशेष = बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि – स्थायी पूंजी का उपभोग – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता – मजदूरी और वेतन
= 7000 – 400 – 700 + 100 – 3000
= 7100 – 4100
= 3000 करोड़ रु.

प्रश्न 5.
कर्मचारियों का पारिश्रमिक ज्ञात कीजिए –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 20

उत्तर:
कर्मचारियों का पारिश्रमिक = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद – किराया ब्याज – लाभ – घिसावट –
= 250 – 20 – 35 – 15 – 60
= 250 – 130
= 120 करोड़ रु.

प्रश्न 6.
इन आंकड़ों का प्रयोग करें और (क) व्यय विधि तथा (ख) आय विधि से शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 21

उत्तर:
(क) व्यय विधि –
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (कारक लागत पर) = निजी अन्तिम उपभोग + सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश + सकल गृह निर्माण निवेश-सकल सार्वजनिक निवेश + भण्डार निवेश + सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद + निर्यात – आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – मूल्यह्रास – सहायता – अप्रत्यक्ष कर
= 700 + 60 + 60 + 40 + 20 + 200 + 40 – 20 – 20 + (-10) – 10 + 20
= 700 + 440 – 20 – 10 – 10
= 1140 – 60
= 1080 लाख रुपये

(ख) आय विधि शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (कारक लागत पर) –
= मजदूरी व वेतन + सामाजिक सुरक्षा हेतु रोजगारदाताओं का अंशदान + लाभ + लगान/भाड़ा + ब्याज + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 700 + 100 + 100 + 50 + 40 + 100 + (-10) = 1090 – 10
= 1080 लाख रुपये

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 7.
निम्न जानकारी का प्रयोग कर (क) व्यय विधि (ख) आय विधि से साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPfc) का आंकलन करें –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 22

उत्तर:
(क) व्यय विधि
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद –
(GDpfc) = वैयक्तिक उपभोग व्यय + सकल व्यावसायिक स्थिर निवेश + सकल गृह निर्माण निवेश + वस्तुओं व सेवाओं की सरकारी खरीदारी + सकल सरकारी निवेश + भण्डार निवेश + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + सहायय्य
= 700 + 60 + 60 + 200 + 40 + 20 + 40 – 20 – 20 + 10
= 1130 – 40
= 1090 लाख रुपये

(ख) आय विधि
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद –
(GDPfc) = मजदूरी वेतन + रोजगारदाताओं का सामाजिक सुरक्षा में योगदान + लाभ + लगान + ब्याज + मिश्रित आय + मूल्य ह्रास
= 700 + 100 + 100 + 50 + 50 + 100 + 20
= 1120 लाख रुपये

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प्रश्न 8.
निम्न आंकड़ों से बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का आंकलन करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 23
उत्तर:
बाजार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य द्वितीयक क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग व प्राथमिक क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग + सेवा क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य + द्वितीयक क्षेत्र के उत्पादन का मूल्य – सेवा क्षेत्र का अन्तर्वर्ती उपभोग –
= 2000 – 800 – 1000 + 1400 + 1800 – 600
= (2000 + 1400 + 1800) – (800 – 1000 – 600)
= 5200 – 2400
= 2800 लाख रुपये

प्रश्न 9.
परिचालन अधिशेष ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 24
उत्तर:
परिचालन अधिशेष
= बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि – वेतन एवं मजदूरी – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – घिसावट –
= 15000 – 5000 – 750 – 250
= 15000 – 6000
= 9000 रु.

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से (क) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (ख) व्यय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय ज्ञात कीजिए।
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 25
उत्तर:
(क) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= कर्मचारियों का पारिश्रमिक + लगान, ब्याज, लाभ + मिश्रित आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता
= 240 + 100 + 280 + 40 + 90 – 90
= 740 करोड़ रु.
उत्तर:
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = 740 करोड़ रु.

(ख) व्यय विधि से राष्ट्रीय आय –
= निजी अन्तिम उपभोग + सरकारी अन्तिम उपभोग + सकल अचल पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + निर्यात – आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय — अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 510 + 75 + 130 + 35 + 50 – 60 – 5 – 90 + 10 – 40
= 615 करोड़
उत्तर:
राष्ट्रीय आय = 615 करोड़ रु.

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प्रश्न 11.
निम्न आंकड़ों से (क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (ख) राष्ट्रीय आय ज्ञात करो –Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 26
उत्तर:
(क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= निजी उपभोग व्यय + सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + शुद्ध घरेलू अंचल पूंजी निर्माण + स्थिर पूंजी का उपभोग + अन्तिम स्टॉक – शुद्ध आयात
= 300 + 70 + 30 + 40 + 10 – 25 – 15
= 410 करोड़ रु.

(ख) राष्ट्रीय आय –
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + अनुदान-अप्रत्यक्ष कर-स्थिर पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 410 + 5 – 50 – 40 + (-20)
= 305 करोड़ रु.
उत्तर:
(क) 410 करोड़ रुपये
(ख) 305 करोड़ रुपये

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प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके राष्ट्रीय आय की गणना करो –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 27

उत्तर:
(क) बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद –
= सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + अन्तिम स्टॉक आरंभिक स्टॉक + सकल अचल पूंजी निर्माण + निजी अन्तिम उपभोग व्यय + निर्यात – आयात
= 150 + 100 – 80 + 130 + 600 + 60 – 70
= 890 करोड़ रु.

(ख) राष्ट्रीय आय –
= बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – अचल पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय – अप्रत्यक्ष कर + अनुदान
= 890 – 20 + (-10) – 70 + 10
= 800 करोड़ रु.
उत्तर:
राष्ट्रीय आय = 800 करोड़ रुपये

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प्रश्न 13.
व्यय विधि तथा आय विधि से राष्ट्रीय आय ज्ञात करो –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 28
उत्तर:
व्यय विधि –
राष्ट्रीय आय = (ii) – (iii) + (iv) + (vii) + (viii) – (ix) + (x) + (xi) – (xii) + (xiii)
= 3800 – 3800 + 6300 + 1000 + 1700 – 1700 + 29000 + 300 – 2200 + 300
= 34700 करोड़ रु.

आय विधि –
राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का पारिश्रमिक + प्रचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 13300 + 5000 + 16000 + 300
= 34600 करोड़ रु.
उत्तर:
आय विधि से राष्ट्रीय आय = 34600 करोड़ रुपये व्यय विधि से राष्ट्रीय आय = 34700 करोड़ रुपये

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके ज्ञात करें –
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 29

1. घरेलू आय
= लगान + मजदूरी + ब्याज + लाभकर + लाभांश + मिश्रित आय + अवितरित लाभ
= 5000 + 30000 + 8000 + 2000 + 12000 + 4000 + 3000
= 64000 करोड़ रु.

2. राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 64000 + 7000
= 71000 करोड़ रु.

3. वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय – अधिशेष (सरकारी) – लाभकर – अवितरित लाभ + अंतरण भुगतान + उपहार व प्रेषणाएं
= 64000 – 15000 – 2000 – 3000 + 1000 + 2500
= 47500 करोड़ रु.

4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक कर
= 47500 – 1500 = 46000 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. घरेलू आय = 64000 करोड़ रु.
  2. राष्ट्रीय आय = 71000 करोड़ रु.
  3. वैयक्तिक आय = 47500 करोड़ रु.
  4. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 46000 करोड़ रु.

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों का प्रयोग करके ज्ञात करें –

  1. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
  2. वैयक्तिक आय
  3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 2 उपभोक्ता के व्यवहार का सिद्धांत part - 1 img 30
उत्तर:
1. राष्ट्रीय आय = बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध साधन आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 38000 + (-300) – 3000
= 34700 करोड़ रु.

2. वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय-सरकारी प्रशासनिक विभागों की आय-कम्पनी लाभकर + राष्ट्रीय ऋण पर बयाज + शेष विश्व से चालू अंतरण + सरकार से वृद्धावस्था पेंशन
= 34700 – 600 – 600 + 200 + 100 + 600
= 34400 करोड़ रु.

3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय – वैयक्तिक प्रत्यक्ष कर
= 34400 – 900
= 33500 करोड़ रु.
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय आय = 34700 करोड़ रु.
  2. वैयक्तिक आय = 34400 करोड़ रु.
  3. वैयक्तिक प्रयोज्य आय = 33500 करोड़ रु.

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामूहिक आर्थिक क्रियाकलापों को मापने का आधार होता है –
(A) आय का चक्रीय प्रवाह
(B) स्टॉक में परिवर्तन
(C) शुद्ध निवेश
(D) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय
उत्तर:
(A) आय का चक्रीय प्रवाह

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प्रश्न 2.
विभिन्न उत्पादक इकाइयों की मूल्य वृद्धि ज्ञात करने के लिए शामिल करते हैं –
(A) केवल मध्यवर्त वस्तुओं का मूल्य
(B) अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य
(C) केवल अन्तिम वस्तुओं का मूल्य
(D) सभी वस्तु का मूल्य
उत्तर:
(B) अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं का मूल्य

प्रश्न 3.
GNP अपसायक माप सकता है –
(A) विशिष्ट वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर
(B) सभी वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर
(C) कीमत वृद्धि
(D) कीमत में कमी
उत्तर:
(B) सभी वस्तुओं व सेवाओं का औसत कीमत स्तर

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प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय तथा घरेलू साधन आय समान होती है जब –
(A) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय शून्य हो
(B) शुद्ध निर्यात शून्य हो
(C) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय ऋणात्मक हो
(D) शुद्ध निर्यात धनात्मक हो
उत्तर:
(A) विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय शून्य हो

प्रश्न 5.
वित्तीय परिसंपत्तियों की खरीद-फरोख्त को –
(A) GNP में शामिल किया जाता है
(B) GNP में शामिल नहीं किया जाता है
(C) A व B में से कोई नहीं
(D) A व B दोनों
उत्तर:
(B) GNP में शामिल नहीं किया जाता है

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प्रश्न 6.
सकल निवेश का भाग निम्न में से कौन-सा नहीं है –
(A) व्यापारिक निवेश
(B) सरकारी निवेश
(C) ग्रह निर्माण निवेश
(D) घरेलू सीमा में पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय
उत्तर:
(D) घरेलू सीमा में पुरानी वस्तुओं का क्रय-विक्रय

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय है –
(A) NNP at mp + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान
(B) GDP + NFIA
(C) NNP at fc + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान
उत्तर:
(A) NNP at mp + विदेशों से शुद्ध चालू अंतरण भुगतान

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प्रश्न 8.
राष्ट्रीय आय व इसके अवयवों पर पुस्तक लिखी थी –
(A) साइमन कुजनेटस
(B) रिचर्ड स्टोन
(C) जे. एम. कीन्स
(D) डेविड रिकार्डों
उत्तर:
(A) साइमन कुजनेटस

प्रश्न 9.
राष्ट्रीय आय लेखांकन का मानक प्रारूप तैयार कियो था –
(A) रिचर्ड स्टोन ने
(B) साइमन कुजनेटस ने
(C) जे. एम. कीन्स ने
(D) एडम स्मिथ ने
उत्तर:
(A) रिचर्ड स्टोन ने

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प्रश्न 10.
ब्रिटिश भारत में राष्ट्रीय आय लिखी थी –
(A) बी. सी. महालनोविस
(B) डी. आर. गाडगिल
(C) वी. के. आर. वी. राव
(D) अम्बेडकर
उत्तर:
(C) वी. के. आर. वी. राव

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 12 Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

Bihar Board Class 12 Economics समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में क्या अंतर है?
उत्तर:
शेष अर्थव्यवस्था को समान मानकर व्यक्तिगत क्षेत्र की कार्य पद्धति का अध्ययन व्यष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। उदाहरण के लिए वस्तु विशेष की कीमत का निर्धारण, वस्तु विशेष की मांग अथवा पूर्ति आदि व्यष्टि अर्थशास्त्र के विषय हैं। समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। इस शाखा में विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों के अन्तर्संबंधों का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए आय एवं रोजगार का निर्धारण, पूंजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, आदि विषयों का विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

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प्रश्न 2.
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की विशेषताएं –

  1. इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर जनता का निजी स्वामित्व होता है।
  2. वस्तु एवं सेवाओं का उत्पादन बाजार में बिक्री के लिए किया जाता है।
  3. बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर श्रम संसाधन का क्रय-विक्रय किया जाता है।
  4. उत्पादक लाभ कमाने के लिए वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं।
  5. विभिन्न उत्पादक इकाइयों में परस्पर प्रतियोगिता पायी जाती हैं।

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्रकों का वर्णन करें।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के चार प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं –

  1. परिवार क्षेत्र
  2. फर्म या उत्पादक क्षेत्र
  3. सामान्य सरकार
  4. विदेशी क्षेत्र

परिवार क्षेत्र से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के उन सभी व्यक्तियों से जो उपभोग के लिए वस्तुएँ/सेवाएं खरीदते हैं। इसके परिवार क्षेत्र साधन आगतों जैसे भूमि, श्रम पूँजी एवं उद्यम की आपूर्ति करते हैं। उत्पादक क्षेत्र में उन सभी उत्पादक इकाइयों को शामिल किया जाता है जो साधनों को क्रय करती है, उनका संगठन करती है, उनकी सेवाओं का प्रयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादक करती है और बाजार में उनका विक्रय करती है। फर्म का आकार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है।

सरकार से अभिप्राय उस संगठन से है जो जनता को सुरक्षा, कानून, मनोरंजन, न्याय, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सेवाएं निःशुल्क या सामान्य कीमत पर प्रदान करता है। सामान्यतः सरकार जनहित के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन करती है। सरकार लाभ कमाने के लिए आर्थिक क्रियाओं का संचालन नहीं करती है। शेष विश्व से अभिप्राय उन सभी आर्थिक इकाइयों से है जो देश की घरेलू सीमा से बाहर स्थित होती है। शेष विश्व में दूसरे देशों की अर्थव्यवस्थाओं, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार, विश्व बैंक, विश्व मुद्रा कोष आदि को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 4.
1929 की महामंदी का वर्णन करें।
उत्तर:
वर्ष 1929 से 1933 की अवधि को महामंदी कहते हैं। इस अवधि में यूरोप व अमेरिका में उत्पादन, रोजगार में भारी कमी उत्पन्न हो गई थी। इस अवधि में वस्तुओं की मांग का स्तर कम था। उत्पादन साधन बेकार पड़े थे। श्रम शक्ति को भारी संख्या में कार्य क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था। अमेरिका में बेरोजगारी का स्तर 3% से बढ़कर 25% हो गया था।

लगभग विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ अभावी मांग की समस्या एवं मुद्रा अवस्फीति की समस्याओं से ग्रस्त थीं। आर्थिक महामंदी के काल में अर्थशास्त्रियों को समूची अर्थव्यवस्था को एक इकाई मानकर अध्ययन करने के लिए विवश कर दिया। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि महामंदीकाल की समस्याओं के परिणामस्वरूप ही समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

Bihar Board Class 12 Economics समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय Additional Important Questions and Answers

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र के दो विषय क्या हैं?
उत्तर:
अर्थशास्त्र अध्ययन के निम्नलिखित दो विषय हैं –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र, तथा
  2. समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र में किन समस्याओं का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र में विशिष्ट अथवा व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र में किन आर्थिक इकाइयों का अध्ययन किया जाता है?
उत्तर:
सामूहिक या वृहत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्ण रोजगार का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह स्थिति जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को उनकी रुचि एवं योग्यतानुसार प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हो जाता है पूर्ण रोजगार की स्थिति कहलाती है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की उस शाखा का नाम लिखो जो समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन करती है।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक चरों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास क्या है?
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का विरोधाभास यह है कि जो बात एक व्यक्तिगत आर्थिक चर के बारे में सत्य होती है आवश्यक नहीं कि सामूहिक आर्थिक चरों के बारे में भी सत्य हो।

प्रश्न 7.
पूरी अर्थव्यवस्था के विश्लेषण का कार्य किससे होता है?
उत्तर:
विभिन्न आर्थिक इकाइयों अथवा क्षेत्रों में घनिष्ठ संबंध के कारण समूची अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है।

प्रश्न 8.
प्रतिनिधि वस्तु का अर्थ लिखो।
उत्तर:
एक अकेली वस्तु जो अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रतिनिधित्व करती है प्रतिनिधि वस्तु कहलाती है।

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प्रश्न 9.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का अर्थ लिखो।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रचलित मजदूरी दर पर सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

प्रश्न 10.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु लिखो।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त के मुख्य बिन्दु –

  1. वस्तु की आपूर्ति अपनी मांग की स्वयं जननी होती है।
  2. एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है।

प्रश्न 11.
समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा बताओ।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में सामूहिक आर्थिक चरों को समरूप माना जाता है जबकि वे वास्तव में समान होते नहीं हैं।

प्रश्न 12.
चार परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के नाम लिखो।
उत्तर:
चार परंपरावादी अर्थशास्त्री –

  1. डेविड रिकार्डों
  2. जे. बी. से
  3. जे. एस. मिल तथा
  4. आल्फ्रेड मार्शल

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प्रश्न 13.
जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित अर्थशास्त्र की पुस्तक का क्या नाम है?
उत्तर:
प्रो. जे. एम. कीन्स द्वारा लिखित पुस्तक का नाम है General Theory of Employment Interest and Money.

प्रश्न 14.
स्वतंत्र आर्थिक चरों का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे आर्थिक चर जो दूसरी किसी आर्थिक चर/चरों को प्रभावित करता है स्वतंत्र आर्थिक चर कहलाते हैं। जैसे राष्ट्रीय आय आदि।

प्रश्न 15.
आश्रित आर्थिक चर का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वह आर्थिक चर दूसरे किसी आर्थिक चर से प्रभावित होता है आश्रित चर कहलाता है। जैसे उपभोग, बचत आदि।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र के चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
समष्टि चरों के उदाहरण –

  1. सामूहिक मांग
  2. सामूहिक पूर्ति
  3. रोजगार
  4. सामान्य कीमत स्तर आदि

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प्रश्न 17.
‘से’ का नियम क्या है?
उत्तर:
‘से’ का नियम बताता है कि किसी वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की स्वयं जननी होती है।

प्रश्न 18.
1929-1933 की अवधि में महामंदी के मुख्य बिन्दु लिखो।
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल में बाजारों में वस्तुओं की आपूर्ति उपलब्ध थी लेकिन वहाँ मांग की कमी की समस्या थी और बेरोजगारी का स्तर भी बढ़ गया था।

प्रश्न 19.
उस आर्थिक चर का उदाहरण दीजिए जिसे समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।
उत्तर:
वस्तुओं के कीमत स्तर को समष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।

प्रश्न 20.
सामूहिक मांग की परिभाषा लिखो।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग/सामूहिक मांग कहते हैं।

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प्रश्न 21.
उपभोग फलन का अर्थ लिखो।
उत्तर:
उपभोग राष्ट्रीय आय का फलन है। दूसरे शब्दों में उपभोग फलन, उपभोग व राष्ट्रीय आय के बीच संबंध को व्यक्त करता है।

प्रश्न 22.
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन किस शाखा में किया जाता था?
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) से पूर्व अर्थशास्त्र का अध्ययन केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र के रूप में किया जाता था।

प्रश्न 23.
समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र को आय सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 24.
कीमत सिद्धान्त को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
वैकल्पिक तौर पर कीमत सिद्धान्त को व्यष्टि अर्थशास्त्र के नाम से जाना जाता था।

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प्रश्न 25.
दो आश्रित चरों के उदाहरण लिखो।
उत्तर:
आश्रित चरों के उदाहरण –

  1. उपभोग एवं
  2. बचत

प्रश्न 26.
अन्तः क्षेपण का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में बढ़ोतरी होती है अन्तः क्षेपण कहलाती हैं। जैसे निवेश, उपभोग आदि।

प्रश्न 27.
बाह्य स्राव का अर्थ लिखो।
उत्तर:
वे आर्थिक क्रियाएं जिनसे राष्ट्रीय आय में कमी आती है बाह्य स्राव कहलाती है।

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प्रश्न 28.
समष्टि अर्थशास्त्र का उदय किस कारण हुआ?
उत्तर:
केन्द्रीय क्रांति अथवा आर्थिक महामंदी के बाद समष्टि अर्थशास्त्र का उदय हुआ।

प्रश्न 29.
उस आर्थिक चर का नाम लिखो जिसे व्यष्टि स्तर पर स्थिर माना जाता है।
उत्तर:
आय एवं रोजगार स्तर को व्यष्टि पर स्थिर माना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर लिखो।
उत्तर:
व्यष्टि व समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर –

  1. व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक स्तर पर आर्थिक चरों का अध्ययन करता है।
  2. व्यष्टि अर्थशास्त्र समझने में सरल है जबकि समष्टि अर्थशास्त्र सापेक्ष रूप से जटिल विषय है।
  3. संसाधनों का वितरण व्यष्टि अर्थशास्त्र का एक आवश्यक उपकरण है लेकिन समष्टि स्तर पर इसे स्थिर माना जाता है।
  4. व्यष्टि अर्थशास्त्र कीमत सिद्धान्त तथा संसाधनों के आबटन पर जोर देता है लेकिन आय व रोजगार समष्टि के मुख्य विषय हैं।

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प्रश्न 2.
समष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र अर्थव्यवस्था को इकाई मानकर सामूहिक आर्थिक चरों का विश्लेषण करता है। समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र अधिक व्यापक है। निम्नलिखित आर्थिक चरों का इस शाखा में अध्ययन किया जाता है –

  1. सामूहिक मांग
  2. सामूहिक पूर्ति
  3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण
  4. स्वायत्त एवं प्रेरित निवेश
  5. निवेश गुणांक
  6. औसत उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति
  7. सीमान्त उपभोग एवं बचत प्रवृत्ति
  8. पुंजी की सीमान्त कार्य क्षमता

प्रश्न 3.
संक्षेप में पूर्ण रोजगार की अवधारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर:
वह स्थिति जिसमे एक अर्थव्यवस्था में सभी इच्छुक लोगों को दी गई या प्रचलित मजदूरी दर पर योग्यतानुसार आसानी से कार्य मिल जाता है पूर्ण रोजगार कहलाती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री जे. बी. से का पूर्ण रोजगार के बारे में अलग विचार था। परंपरावादी रोजगार सिद्धान्त के अनुसार पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है क्योंकि प्रचलित मजदूरी पर काम करने के इच्छुक सभी व्यक्तियों को आसानी से काम मिल जाता है।

जे. एम. कीन्स के अनुसार आय के सन्तुलन स्तर पर रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर कहते हैं। आवश्यक रूप से साम्य रोजगार का स्तर पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है। साम्य रोजगार का स्तर यदि पूर्ण रोजगार स्तर से कम होता है तो अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या रहती है। परंपरावादी अर्थशास्त्री साम्य रोजगार को ही पूर्ण रोजगार कहते थे।

प्रश्न 4.
व्यष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध विशिष्ट या व्यक्गित आर्थिक चरों से है। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में विशिष्ट आर्थिक इकाइयों या व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयों के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की व्यष्टि शाखा में उपभोक्ता सन्तुलन, उत्पादक सन्तुलन, साम्य कीमत निर्धारण, एक वस्तु की मांग, एक वस्तु की पूर्ति आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। आर्थिक महामंदी से पूर्व अर्थशास्त्र के रूप में केवल व्यष्टि अर्थशास्त्र का ही अध्ययन किया जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत-सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।

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प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र की अवधारणा संक्षेप में स्पष्ट करो।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का संबंध सामूहिक या समष्ट्रीय आर्थिक चरों से हैं। दूसरे शब्दों में अर्थशास्त्र की इस शाखा में सामूहिक या समष्टि आर्थिक चरों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र की समष्टि शाखा में आय एवं रोजगार निर्धारण, पूँजी निर्माण, सार्वजनिक व्यय, सरकारी व्यय, सरकारी बजट, विदेशी व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र ही इस शाखा का उदय आर्थिक महामंदी के बाद हुआ है। इस शाखा को आय एवं रोजगार सिद्धान्त के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 6.
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त समझाइए।
उत्तर:
रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार एक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक इच्छुक व्यक्ति को प्रचलित मजदूरी पर उसकी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार आसानी से काम मिल जाता है। दूसरे शब्दों में प्रचलित मजदूरी दर पर अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। काम करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए दी गई मजदूरी दर पर बेरोजगारी की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को बनाने में डेविड रिकार्डो, पीगू, मार्शल आदि व्यष्टि अर्थशास्त्रियों ने योगदान दिया है। रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त में जे. बी. से का रोजगार सिद्धान्त बहुत प्रसिद्ध है।

प्रश्न 7.
संक्षेप में अनैच्छिक बेरोजगार को समझाइए।
उत्तर:
यदि दी गई मजदूरी दर या प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति को आसानी से कार्य नहीं मिल पाता है तो इस समस्या को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। एक अर्थव्यवस्था में अनैच्छिक बेरोजगारी के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  1. अर्थव्यवस्था में जनसंख्या विस्फोट की स्थिति हो सकती है।
  2. प्राकृतिक संसाधनों की कमी।
  3. पिछड़ी हुई उत्पादन तकनीक।
  4. आधारिक संरचना की कमी आदि।

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प्रश्न 8.
सामूहिक मांग का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
दी गई अवधि में एक अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के योग को कुल मांग या सामूहिक मांग कहते हैं। अर्थव्यवथा में वस्तुओं की मांग उपभोग तथा निवेश के लिए की जाती है। इस प्रकार वस्तुओं की उपभोग के लिए मांग तथा निवेश के लिए मांग के योग को भी सामूहिक मांग कह सकते हैं। संक्षेप में सामूहिक मांग = उपभोग + निवेश। सामूहिक मांग के संघटको को निम्न प्रकार से भी लिखा जा सकता है –

  1. निजी अन्तिम उपभोग व्यय।
  2. सार्वजनिक अन्तिम उपभोग व्यय।
  3. सकल घरेलू पूंजी निर्माण।
  4. शुद्ध निर्यात।

प्रश्न 9.
वे कारक लिखिए जिन पर कीन्स का रोजगार सिद्धान्त निर्भर करता है।
उत्तर:
कीन्स का आय एवं रोजगर सिद्धान्त निम्नलिखित कारकों पर निर्भर है –

  1. अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर, सामूहिक मांग के स्तर पर निर्भर होता है। सामूहिक मांग का स्तर जितना ऊँचा होता है, आय एवं रोजगार का स्तर भी उतना ही अधिक होता है। इसके विपरीत सामूहिक मांग का स्तर नीचा होने पर आय एवं रोजगार का स्तर भी नीचा रहता है।
  2. अर्थव्यवस्था आय एवं रोजगार के स्तर को उपभोग का स्तर बढ़ाकर बढ़ाया जा सकता है।
  3. अर्थवव्यवस्था के उपभोग का स्तर आय के स्तर व उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर होता है।

प्रश्न 10.
कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध व्यक्तिगत या विशिष्ट आर्थिक चरों से होता है। कुछ व्यष्टि आर्थिक चरों के उदाहरण निम्नलिखित हैं –

  1. संसाधनों का आंबटन
  2. उपभोक्ता व्यवहार एवं उपभोक्ता सन्तुलन
  3. वस्तु की मांग
  4. वस्तु की मांग की लोच
  5. वस्तु की आपूर्ति
  6. उत्पादक व्यवहार एवं उत्पादक सन्तुलन
  7. वस्तु की पूर्ति लोच
  8. वस्तु की कीमत का निर्धारण।

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प्रश्न 11.
समष्टि अर्थशास्त्र में संरचना की भ्रान्ति को स्पष्ट करो।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में समूह की इकाइयों में बहुत अधिक विषमता पायी जाती है। समूह की इकाइयों की विषमता को पूरी तरह से अनदेखा किया जाता है। इस विषमता के कारण कई भ्रान्तियाँ पैदा हो जाती हैं। जैसे पूंजी वस्तुओं की कीमत गिरने से सामान्य कीमत स्तर गिर जाता है। लेकिन दूसरी ओर खाद्यान्नों की बढ़ती हुई कीमतें उपभोक्ताओं की कमर तोड़ती रहती हैं। लेकिन सरकार आंकड़ों की मदद से सामान्य कीमत स्तर को घटाने का श्रेय बटोरती है।

प्रश्न 12.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व लिखिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैसे –

  1. समष्टि शाखा से आर्थिक भ्रान्तियों को सुलझाने में मदद मिलती है।
  2. इस. शाखा के अध्ययन से आर्थिक उतार-चढ़ावों को समझना सरल हो जाता है।
  3. व्यष्टि अर्थशास्त्र के पूरक के रूप में इसके विकास को समष्टि अर्थशास्त्र सहायक है।
  4. समष्टि आर्थिक विश्लेषण से आर्थिक नियोजन से मदद मिलती है।
  5. आर्थिक नियोजन के क्रियान्वयन में मदद मिलती है।

प्रश्न 13.
परंपरावादी रोजगर सिद्धान्त की मान्यताएं लिखिए।
उत्तर:
आय एवं रोजगार का परंपरावादी सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है –

  1. वस्तु की आपूर्ति उसकी मांग की जननी होती है।
  2. मजदूरी दर पूर्णतया लोचदार होती है।
  3. ब्याज दर पूर्णतया लोचदार होती है।
  4. वस्तु की कीमत पूर्णतथा नम्य होती है।
  5. अर्थव्यवस्था में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है।
  6. आर्थिक क्रियाकलापों के संचालन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है।

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प्रश्न 14.
समष्टि अर्थव्यवस्था के उपकरण बताइए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उपकरणों का उपयोग किया जाता है –
1. आय एवं रोजगार नीति –

  • सामूहिक मांग
  • सामूहिक पूर्ति

2. राजकोषीय नीति –

  • सरकारी बजट
  • मजदूरी नीति
  • आयात व निर्यात नीति
  • उत्पादन नीति

3. मौद्रिक नीति –

  • बैंक दर
  • नकद जमा अनुपात
  • संवैधानिक तरलता अनुपात
  • खुले बाजार की क्रियाएँ
  • साख नीति

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प्रश्न 15.
समष्टि अर्थशास्त्र के लिए व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
जिस प्रकार व्यक्ति-व्यक्ति को मिलाकर समाज का गठन होता है फर्म-फर्म के संयोजन से उद्योग की रचना होती है। उद्योगों को मिलाकर अर्थव्यवस्था अर्थात् समग्र बनता है। इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र समष्टि अर्थशास्त्र के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। जैसे –

  1. अलग-अलग वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत के आधार पर ही सामान्य कीमत स्तर का आकलन करते हैं।
  2. व्यक्तिगत आर्थिक/उत्पादक इकाइयों के आय के योग के योग से राष्ट्रीय आय ज्ञात की जाती है।
  3. आर्थिक नियोजन के लिए फर्मों व उद्योगों के नियोजन का जानना अति आवश्यक है।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र में समूहों को मापने में आने वाली कठिनाइयों को लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन अलग-अलग इकाइयों में किया जाता है। दूसरे शब्दों में सभी उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मापन करने के लिए कोई एक उपयुक्त इकाई नहीं है। अत: वस्तुओं एवं सेवाओं को मापने में केवल मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 17.
आय व उत्पादन के बारे में परंपरावादी विचार को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
आय एवं उत्पादन के परंपरावादी सिद्धान्त के अनुसार वस्तु की आपूर्ति, मांग की जननी होती है। अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता पायी जाती है। वस्तुओं की कीमत पूर्णतः नम्य होती है। इसका अभिप्राय यह है कि वस्तुओं की आपूर्ति एवं मांग में परिवर्तन के अनुसार कीमत में परिवर्तन हो जाता है। नम्य कीमत पर से वस्तु बाजार में मांग व पूर्ति में स्वतः सन्तुलन स्थापित हो जाता है।

इसलिए अधिशेष उत्पादन अथवा अधिमांग की कोई समस्या पैदा नहीं होती है। यदि अस्थायी तौर पर अधिशेष उत्पादन की समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की कीमत गिर जाती है। कम कीमत पर वस्तु की मांग बढ़ जाती है और उत्पादक पूर्ति कम मात्रा में करने लगते हैं। मांग व पूर्ति में परिवर्तन का क्रम संतुलन स्थापित होने पर रुक जाता है। वस्तु बाजार की तरह श्रम बाजार में भी नम्य मजदूरी दर के द्वारा सन्तुलन स्थापित हो जाता है और अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति रहती है।

Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र का परिचय

प्रश्न 18.
व्यष्टिं अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र की परस्पर निर्भरता स्पष्ट करो।
उत्तर:
व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र की दो अलग-अलग शाखाएं हैं। ये दोनों शाखाएं परस्पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत निर्धारण व्यष्टि विश्लेषण के आधार पर किया जाता है और सामान्य कीमत का निर्धारण समष्टि विश्लेषण के द्वारा होता है। उद्योग में मजदूरी दर निर्धारण व्यष्टि अर्थशास्त्र का मुद्दा है। सामान्य मजदूरी दर का निर्धारण समष्टि अर्थशास्त्र का विषय है। इस प्रकार से कहा जा सकता है। कि व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र एक-दूसरे पर निर्भर शाखाएं हैं।

प्रश्न 19.
संक्षेप में समष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र की एक विस्तृत श्रृंखला है। इस शाखा के कुछ क्षेत्र नीचे लिखे गए हैं –

  1. रोजगर सिद्धान्त-रोजगार एवं बेरोजगार से संबंधित विभिन्न अवधारणाओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  2. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-राष्ट्रीय आय से संबंधित समाहारों जैसे बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद, साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद, बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद, राष्ट्रीय प्रयोज्य आयं आदि तथा उनके संघटकों का अध्ययन किया जाता है।
  3. मुद्रा सिद्धान्त-मुद्रा के कार्य, मुद्रा के प्रकार, बैंकिग प्रणाली आदि का विश्लेषण अर्थशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है।
  4. विश्व व्यापार का सिद्धान्त- व्यापार शेष, भुगतान शेष, विनिमय दर आदि के बारे में विश्लेषण समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है।

प्रश्न 20.
आर्थिक विरोधाभास को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र किस प्रकार सहायक है?
उत्तर:
कुछ आर्थिक तथ्य ऐसे होते हैं जो व्यक्तिगत स्तर पर उपयुक्त होते हैं परन्तु सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। ऐसी धारणाओं को आर्थिक विरोधाभास कहते है। जैसे महामंदीकाल में व्यक्तिगत बचत व्यक्तिगत स्तर पर लाभकारी रही परन्तु पूरी अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक सिद्ध हुई। इस विरोधाभास को प्रो. जे. एम. कीन्स ने समष्टि अर्थव्यवस्था की सहायता से स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि बचत व्यक्तिगत स्तर पर वरदान होती है परन्तु सामूहिक स्तर पर अभिशाप होती है।

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प्रश्न 21.
क्या व्यष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन जरूरी है?
उत्तर:
कई बार व्यक्तिगत निर्णय समष्टि निर्णयों को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इसी प्रकार व्यक्तिगत आर्थिक इकाइयां निर्णय लेने के लिए सामूहिक निर्णयों को ध्यान में रखना जरूरी होता है –

  1. एक फर्म के उत्पादन का स्तर का पैमाना कुल मांग अथवा लोगों की क्रय शक्ति को ध्यान में रखकर तय करती है।
  2. एक वस्तु की कीमत उस वस्तु की मांग व पूर्ति से ही तय नहीं होती है बल्कि दूसरी वस्तुओं की मांग व पूर्ति को भी ध्यान में रखकर तय की जाती है।
  3. एक फर्म साधन भुगतान के निर्धारण के लिए दूसरी फर्मों के साधन भुगतान संबंधी निर्णय ध्यान में रखती है। आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
आय एवं रोजगार सिद्धान्त की कीन्स विचारधारा के मुख्य बिन्दु बताइए।
उत्तर:
आर्थिक महामंदीकाल (1929-1933) ने कई ऐसी आर्थिक समस्याओं को जन्म दिया जिनको व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों के आधार पर हल नहीं किया जा सका। इन समस्याओं के समाधान हेतु प्रो. जे. एम. कीन्स ने General Theory of Employment, Interest & Money लिखी। इस पुस्तक में कीन्स ने आय एवं रोजगार के बारे में निम्नलिखित मुख्य बातें बतायीं –

1. एक अर्थव्यवस्था में आय एवं रोजगार का स्तर संसाधनों की उपलब्धता एवं उपयोग पर निर्भर करता है। यदि किसी अर्थव्यवस्था में कुछ संसाधन बेकार पड़े होते हैं तो अर्थव्यवस्था उन्हें उपयोग में लाकर आय एवं रोजगार के स्तर को बढ़ा सकती है।

2. कीन्स ने परंपरावादियों के इस विचार को कि एक वस्तु की पूर्ति मांग की जनक होती है खारिज कर दिया। कीन्स ने बताया कि वस्तु की कीमत उपभोक्ता की आय और उपभोक्ता की उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है।

3. परंपरावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार सन्तुलन की अवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। लेकिन कीन्स ने सन्तुलन स्तर के रोजगार स्तर को साम्य रोजगार स्तर का नाम दिया और स्पष्ट किया कि साम्य रोजगार स्तर आवश्यक रूप से पूर्ण रोजगार स्तर के समान नहीं होता है यदि साम्य रोजगार स्तर, पूर्ण रोजगार स्तर से कम है तो अर्थव्यवस्था उपभोग या सामूहिक मांग को बढ़ाकर आय एवं रोजगार स्तर में वृद्धि कर सकती है।

4. परंपरावादी विचार में सरकारी हस्तक्षेप को निषेध करार दिया गया था। लेकिन कीन्स ने सुझाव दिया कि विषम परिस्थितियों जैसे अभावी मांग अधिमांग आदि में हस्तक्षेप करके इन्हें ठीक करने के लिए उपाय अपनाने चाहिए।

5. परंपरावदी सिद्धांत में बचतों को वरदान बताया गया है जबकि समष्टि स्तर पर कीन्स ने बचतों को अभिशाप की संज्ञा दी है। व्यक्तिगत स्तर पर बचत वरदान हो सकती है।

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प्रश्न 2.
व्यष्टि एवं समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
Bihar Board Class 12th Economics Solutions Chapter 1 व्यष्टि अर्थशास्त्र का परिचय part - 1 img 1

प्रश्न 3.
आय एवं रोजगार के परंपरावादी सिद्धान्त को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीग, डेविड रिकार्डों, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल, जे. बी. से आदि ने व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। दूसरे शब्दों में परंपरावादी अर्थशास्त्रियों ने अपना ध्यान व्यष्टि अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों एवं नियमों का प्रतिपादन करने की ओर केन्द्रित किया। परंपरावादी अर्थशास्त्रियों की मान्यता थी कि साम्य स्तर पर एक अर्थव्यवस्था में सदैव पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। आर्थिक परिवर्तन से अस्थायी अधिशेष उत्पादन अथवा बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। परन्तु नम्य मजदूरी दर एवं नम्य कीमत के द्वारा ये समस्याएं स्वतः सरकारी हस्तक्षेप के बिना ठीक हो जाती है। इस सिद्धांत की मुख्य बातें निम्न प्रकार हैं –

  1. एक वस्तु की आपूर्ति, मांग की जनक होती है।
  2. साम्य की अवस्था में अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है।
  3. अर्थव्यवस्था में अधिशेष उत्पादन कोई समस्या नहीं होती है। यदी कभी यह समस्या उत्पन्न होती है तो वस्तु की नम्य कीमत के द्वारा यह समस्या स्वयं हल हो जाती है।
  4. अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है। यदि अस्थायी रूप से यह समस्या उत्पन्न होती है तो नुम्य मजदूरी दर उसे ठीक कर देती है।
  5. अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति अथवा अवस्फीति की भी कोई समस्या नहीं होती है। नम्य ब्याज दर मुद्रा की मांग एवं आपूर्ति में सन्तुलन बना देती है।
  6. सरकार को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

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प्रश्न 4.
समष्टि आर्थिक दृष्टिकोण की आवश्यकता को स्पष्ट करो।
उत्तर:
परंपरावादी अर्थशास्त्रियों जैसे पीगू, डेविड रिकाडौँ, आल्फ्रेड मार्शल, जे. एस. मिल. जे. बी. से आदि ने व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने में अहम भूमिका निभायी। इन अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक समस्याओं का हल ढूंढने का काम व्यष्टि स्तर तक सीमित रखा। 1929 तक व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्त एवं उनकी मान्यताओं से आर्थिक समस्याओं का स्वतः समाधान होता रहा। लेकिन (1929-1933) के महामंदीकाल ने व्यष्टि अर्थशास्त्रियों की मान्यताओं एवं सिद्धान्त को असफल कर दिया। वस्तुएं प्रचुर मात्रा में बाजार में उपलब्ध थीं परन्तु अपनी मांग नहीं उत्पन्न कर पा रही थी। वस्तु की कीमत नम्यता के आधार पर कीमत घटने पर भी वस्तुओं की मांग नहीं बढ़ी।

इसी प्रकार साधन बाजार नम्य मजदूरी पर बेरोजगारी की समस्या को ठीक नहीं कर पाई। नम्य ब्याज दर से अर्थव्यवस्थाओं में अवस्फीति की स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। महामंदी की लम्बी अवधि, इसके द्वारा उत्पन्न विकट समस्याओं जैसे अभावी मांग, मुद्रा अवस्फीति, बेरोजगारी आदि ने अर्थव्यवस्थाओं को बेहाल बना दिया। इन समस्याओं का समाधान करने में व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों के हाथ खड़े हो गए। अर्थात् व्यष्टि सिद्धान्तों से इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा था।

इसी संदर्भ मे जे. एम. कीन्स ने General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखी। इस पुस्तक ने महामंदी की समस्याओं से छुटकारा पाने की नई राह दिखाई। इस नई राह को समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं। इस सिद्धान्त में सुझाए गये सिद्धान्तों के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं में बेकार पड़े, साधनों का सदोपयोग बढ़ा, जिससे उत्पादन, आय एवं रोजगार स्तर में सुधार संभव हो पाया। अतः समष्टि स्तर की समस्याओं जैसे आय का स्तर बढ़ाने, बेरोजगारी दूर करने, अवस्फीति या स्फीति आदि को ठीक करने के लिए समष्टि दृष्टिकोण आवश्यक है।

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प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्रों का संक्षिप्त ब्योरा दीजिए।
उत्तर:
समष्टि अर्थशास्त्र में निम्नांकित विषयों का अध्ययन किया जाता है –

  1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त-इस शाखा में राष्ट्रीय आय की विभिन्न अवधारणाओं, संघटकों माप की विधियों तथा सामाजिक लेखांकनों का अध्ययन किया जाता है।
  2. मुद्रा का सिद्धान्त-मुद्रा की मांग व पूर्ति रोजगार के स्तर को प्रभावित करती है। मुद्रा के कार्य, प्रकर तथा मुद्रा सिद्धान्तों का अध्ययन समष्टि स्तर पर किया जाता है।
  3. सामान्य कीमत सिद्धान्त-मुद्रा स्फीति, मुद्रा, अवस्फिति, इनके उत्पन्न होने के कारणों एवं इन्हें ठीक करने के उपायों का अध्ययन एवं विश्लेषण अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त-आर्थिक विकास/प्रति व्यक्ति आय में होने वाले परिवर्तनों एवं इनकी समस्याओं का अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र में किया जाता है। सरकार की राजस्व नीति, एवं मौद्रिक नीतियों का अध्ययन समष्टि शाखा में किया जाता है।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त-विभिन्न देशों के बीच आयात-निर्यात की मात्रा, दिशा के साथ विभिन्न देशों के दूसरे आर्थिक लेन-देनों का विश्लेषण भी इस शाखा में किया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पूर्ण रोजगार वह स्थिति होती है जिसमें सभी इच्छुक व्यक्तियों को आसानी से कार्य मिल जाता है –
(A) बाजार मजदूरी दर पर
(B) स्थिर मजदूरी दर पर
(C) बाजार से कम मजदूरी दर पर
(D) बाजार से अधिक मजदूरी दर पर
उत्तर:
(A) बाजार मजदूरी दर पर

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प्रश्न 2.
सन्तुलन रोजगारी स्थिति वह होती है जिसमें –
(A) सामूहिक मांग व सामूहिक पूर्ति समान होती है
(B) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से ज्यादा होती है
(C) सामूहिक मांग, सामूहिक पूर्ति से कम होती है
(D) सामूहिक मांग शून्य होती है
उत्तर:
(A) सामूहिक मांग व सामूहिक पूर्ति समान होती है

प्रश्न 3.
उपभोग प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन
(B) आय के कारण निवेश में परिवर्तन
(C) आय के कारण ब्याज दर में परिवर्तन
(D) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन
उत्तर:
(D) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन

प्रश्न 4.
वर्ष 1929 से पूर्व अर्थशास्त्र जिस शाखा का अध्ययन किया जाता था वह है –
(A) समष्टि अर्थशास्त्र
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(C) A तथा B दोनों
(D) बीजगणित व समष्टि अर्थशास्त्र
उत्तर:
(B) व्यष्टि अर्थशास्त्र

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प्रश्न 5.
Teh General Theory of Income & Employment, Money and Interest लिखा था –
(A) आल्फ्रेड मार्शल
(B) जे. एस. मिल
(C) डेविड रिकार्डो
(D) जे. एम. कीन्स
उत्तर:
(D) जे. एम. कीन्स

प्रश्न 6.
Teh General Theory of Income & Employment,Money and Interest प्रकाश में आयी –
(A) वर्ष 1929
(B) वर्ष 1729
(C) वर्ष 1936
(D) वर्ष 1991
उत्तर:
(C) वर्ष 1936

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प्रश्न 7.
समष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –
(A) आय सिद्धान्त
(B) कीमत सिद्धान्त
(C) उपभोक्ता सिद्धान्त
(D) उत्पादक सिद्धान्त
उत्तर:
(A) आय सिद्धान्त

प्रश्न 8.
व्यष्टि अर्थशास्त्र का वैकल्पिक नाम है –
(A) आय सिद्धान्त
(B) कीमत सिद्धांत
(C) उपभोक्ता सिद्धान्त
(D) उत्पादक सिद्धान्त
उत्तर:
(B) कीमत सिद्धांत

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प्रश्न 9.
बचत प्रवृत्ति जिस परिवर्तन के बारे में बताती है वह है –
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन
(B) आय के कारण उपभोग में परिवर्तन
(C) आय के कारण निवेश में परिवर्तन
(D) आय के कारण ब्याज परिवर्तन
उत्तर:
(A) आय के कारण बचत में परिवर्तन

प्रश्न 10.
आर्थिक महामंदीकाल की अवधि थी –
(A) 1939-1942
(B) 1857-1860
(C) 1929-1932
(D) 1947-1950
उत्तर:
(C) 1929-1932