Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 9 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया : थार प्रदेश में जन-जीवन

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions Geography Hamari Duniya Bhag 2 Chapter 9 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया : थार प्रदेश में जन-जीवन Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 9 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया : थार प्रदेश में जन-जीवन

Bihar Board Class 7 Social Science मानव पर्यावरण अंतःक्रिया : थार प्रदेश में जन-जीवन Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न (i)
रवि को रेगिस्तानी देश ‘थार’ में जाने के लिए किन आवश्यक चीजों को ले जाना होगा ? सूची बनाइये और कारण भी लिखिये।
उत्तर-
‘थार’ में जाने के लिये निम्नलिखित वस्तुएँ साथ ले जाना चाहिए :

  1. रात में ओढ़ने के लिये कंबल । पहनने के लिये काफी कपड़े।
  2. खाने के तैयार समान, जैसे-बिस्कुट, पावरोटी, मक्खन ।
  3. एक बड़ा थर्मस तथा एक गिलास ।
  4. थार यह क्षेत्र का नक्शा ।

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प्रश्न (ii)
थार प्रदेश में जनसंख्या कम क्यों है ?
उत्तर-
थार प्रदेश में जनसंख्या इसलिए कम है क्योंकि वहाँ का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण है । जीवन-यापन के साधनों का अभाव है। सड़कों की कमी से यात्रा करना कठिन है । दिन में काफी गर्म तथा रात में भारी ठंड झेलना पड़ता है।

प्रश्न (iii)
आपके प्रदेश के जनजीवन और थार प्रदेश के जनजीवन में अंतरों की सूची बनाइए ।
उत्तर-
हमारे प्रदेश के जनजीवन और थार प्रदेश के जनजीवन में अंतरों की सूची निम्नलिखित है :

हमारे प्रदेश का जन-जीवन-

  1. केवल गर्मी के मौसम में ही गर्मी पड़ती है
  2. केवल जाड़े में रात में जाड़ा पड़ता है
  3. वर्षा ऋतु में सामान्य वर्षा होती है|
  4. हर प्रकार का वाहन मिलता है
  5. पानी की कोई किल्लत नहीं ह
  6. हर तरह के अन्न की प्रमुखता है

थार प्रदेश का जन-जीवन-

  1. सालों भर गर्मी पड़ती है
  2. सालों भर रात में जाड़ा पड़ता है
  3. वर्षा नहीं के बराबर होती है
  4. केवल ऊँट ही वाहन है.
  5. पानी की भारी किल्लत है
  6. केवल बजारे की प्रमुखता है

प्रश्न (iv)
नखलिस्तान का मॉडल या चित्र बनाइए।
उत्तर-
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प्रश्न (v)
थार प्रदेश में जल की उपलब्धता कैसे बढ़ाई जा सकती है?
उत्तर-
पक्का टैंक बनाकर वर्षा के जल को एकत्र किया जा सकता है। वर्षा ऋतु में जो भी वर्षा हो, पूरे गाँव के वर्षा जल को इसमें एकत्र किया जाय । यह जल पीने से लेकर सिंचाई के काम में भी आ सकता है।

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प्रश्न (vi)
थार प्रदेश में बहने वाली नदियों में पानी कैसे बढ़ सकता है ?
उत्तरे-
नदियाँ प्राकृतिक होती हैं । वह भी राजस्थान की नदियाँ शुष्क है। अतः नदियों में पानी बढ़ाना कठिन है ! हाँ, उसके स्थान पर इन्दिरा नहर से उप-नहरों की संख्या बढ़ाकर नदियों की कमी दूर की जा सकती है।

प्रश्न (vii)
यातायात, सुरक्षा, खानपान के लिए ऊँट जीवन रेखा है कैसे ? अपने प्रदेश के ऐसे किसी उपयोगी जानवर के बारे में बताएँ
उत्तर-
जैसा कि हम पूरे पाठ में पढ़ चुके हैं. ऊँट ही यहाँ की मुख्य सवारी है । यातायात के लिये यही एकमात्र साधन है । बालू पर दूसरी सवारी चल भी नहीं सकती । यह क्षेत्र पाकिस्तान सीमा पर अवस्थित है, अतः सुरक्षा की अति आवश्यकता है, कम-से-कम बार्डर सिक्युरिटी फोर्स के लिए, सो वे भी ऊँट का ही उपयोग करते हैं । ऊँटनी का दूध ही यहाँ मिलता है । उसी. के दूध से चाय बनती है । खोवा, पनीर सब ऊँटनी के दूध से ही बनते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि यातायात, सुरक्षा, खानपान के लिए ऊँट ही जीवन रेखा है ।

हमारे प्रदेश बिहार में ऐसी बात नहीं है । यातायात के लिए घोडा समेत अनेक साधन मौजूद है । सुरक्षा के लिए उत्तर नेपाल की सीमा पर घोड़ा और जीप का उपयोग होता है । दूध के लिए बकरी, गाय और भैंस बहुतायत से उपलब्ध हैं।

प्रश्न 2.
सही विकल्प पर सही (✓) का चिह्न लगाएँ ।

प्रश्न (i)
थार का रेगिस्तान फैला है :
(क) गुजरात-महाराष्ट्र
(ख) गुजरात-राजस्थान
(ग) पंजाब-राजस्थान
उत्तर-
(ख) गुजरात-राजस्थान

प्रश्न (ii)
साफा कहते हैं:
(क) सफाई वाले कपड़े को
(ख) पूरी आस्तीन वाली कमीज को
(ग) सिर पर बाँधने वाली पगड़ी को
उत्तर-
(ग) सिर पर बाँधने वाली पगड़ी को

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प्रश्न (iii)
थार प्रदेश में पाये जाने वाले खनिज हैं
(क) संगमरमर-अभ्रक
(ख) बॉक्साइट-संगमरमर
(ग) संगमरमर-जिप्सम
उत्तर-
(ग) संगमरमर-जिप्सम

प्रश्न (iv)
नखलिस्तान का अर्थ है :
(क) एक बहुत छोटा प्रदेश
(ख) ठंड. लवायु का क्षेत्र
(ग) रेगिस्तान में हरियाली व जल वाला क्षेत्र
उत्तर-
(ख) ठंड. लवायु का क्षेत्र

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पाठ का सार संक्षेप

राजस्थान और गुजरात राज्यों के पश्चिम में थार का मरुस्थल है। जहाँ तक नजर जाती है वहाँ तक बाल-बाल ही दिखाई पड़ता है। बीच-बीच में अरावली की पहाड़ियाँ और जहाँ-तहाँ बालू के टिब्बे मिलते हैं। पूरा क्षेत्र शुष्क और गर्म है । दिन में प्राय: बालू भरी आँधियाँ चलती हैं और रात में तापमान काफी नीचे चला जाता है । वर्षा नहीं होती और होती भी है तो नाममात्र की (वार्षिक 25 सेमी से भी कम) । दिन की गर्मी और रात में जाड़े से बचने के लिए काफी वस्त्र की आवश्यकता पड़ती है ।

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पेड़-पौधे नहीं मिलते । मिलते भी हैं तो कंटीली झाड़ियाँ, बबूल, नागफनी आदि के रूप में । खजूर भी उपजता है। जहाँ-तहाँ मरुद्यान हैं, जहाँ कुछ हरियाली दिखाई पड़ती है। यहाँ जहाँ-तहाँ बलई मिट्टी मिलती है, जिसमें बाजरा, जौ और जई जैसे अनाज उपजाए जाते. हैं । जहाँ सिंचाई की सुविधा है, वहाँ गेहूँ, मकई, दलहन और सब्जियों की खेती होती है। यहाँ के लोगों का मुख्य भोजन बाजरे की रोटी है। ऊँट इनकी मुख्य सवारी है । हालाँकि यहाँ के लोग भेड़ भी पालते हैं । ऊँट कंटीली झाड़ियाँ

और बबूल की टहनियाँ आराम से खा लेते हैं । ऊँटनी के दूध का उपयोग होता है। जहाँ-जहाँ बावड़ी या कुएँ मिलते हैं, उन्हीं के आसपास आबादी पाई जाती है। मरुद्यानों से पानी ढोकर लाया जाता है । जैसलमेर जैसे नगरों में टैंकर से पानी पहुँचाया जाता है । यहाँ के लोग पानी का उपयोग काफी सावध नी से करते हैं।

थार प्रदेश में जिप्सम, संगमरमर, छींटेदार इमारती पत्थर, लिग्नाइट कोयला, ताँबा, अभ्रख, नमक आदि मिलते हैं । संगमरमर और लाह की मूर्तियाँ. चूड़ियाँ, हाथी-दाँत की वस्तुओं पर नक्काशी, कपड़ों की रंगाई और छपाई इनका मुख्य व्यवसाय है।

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जीवन-यापन की कमी के कारण जनसंख्या अत्यन्त विरल है। मुख्य नगर बिकानेर, जैसलमेर, बाड़मेड़, जोधपुर आदि है । पानी की कमी को दूर करने के लिए सतलज नदी पर बाँध बना कर इन्दिरा गाँधी नहर बनाई गई है। इसे राजस्थान नहर भी कहा जाता है । इस नहर के बन जाने से पानी की कमी दूर हुई है और गहन कृषि होने से हरियाली भी दिखाई देती है । थार रेगिस्तान को देखने और ऊँट की सवारी करने के लिये देशी-विदेशी सैलानियों का तांता लगा रहता है।

Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 8 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया : लहाख प्रदेश में जन-जीवन

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अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के उत्तर दें :

प्रश्न (i)
हम प्रकृति के साथ अनुकूलित हैं । कैसे ?
उत्तर-
हम जिस पारितंत्र में रहते हैं वहीं के वातावरण के अनुकूल अपने को अनुकूलित कर लेते हैं । हम ही क्यों ? वहाँ के पशु-पक्षी, फसलें, वनस्पतियाँ जलवायु के अनुकूल ढालने में हमारा साथ देती हैं, हालांकि उन्हें भी अनुकूलित होने में समय लगा होगा।

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प्रश्न (ii)
जम्मू कश्मीर के नक्शे में सिंध नदी का बहाव, कराकोरम दर्रा और जोजिला दर्रा को चिह्नित करें ।
उत्तर-
Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 8 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया लहाख प्रदेश में जन-जीवन 1Bihar Board Class 7 Social Science Geography Solutions Chapter 8 मानव पर्यावरण अंतःक्रिया लहाख प्रदेश में जन-जीवन 1

प्रश्न (iii)
लद्दाख क्षेत्र की जलवायु कैसी है ?
उत्तर-
लद्दाख क्षेत्र की जलवायु शुष्क और ठंडा है । यह दुनिया की छत कहे जाने वाला तिब्बत के पठार का पश्चिमी भागा है । तात्पर्य कि इसे हम उच्च भूमि भी कह सकते हैं। यहाँ की सामान्य ऊँचाई 6700 मीटर है । अधि क ऊँचाई के कारण ही जलवायु ठंडी है । हिमालय पहाड़ की वृष्टि छाया में पड़ जाने से यहाँ वर्षा नहीं होती । इसी कारण यह क्षेत्र शुष्क हो गया है। जाड़ा सालों भर पड़ता है, कभी बहुत अधिक और कभी थोड़ा कम ।

प्रश्न (iv)
लद्दाख में विरल वनस्पति और विरल जनसंख्या क्यों है ?
उत्तर-
उच्च शुष्कता के कारण यह उजाड़ है और वनस्पतियाँ कम है। हरियाली जिसे कहते हैं वह कहीं नहीं दिखती । कृषि योग्य भूमि की भारी कमी है । जीवन-यापन की असुविधा के कारण जनसंख्या भी विरल ही है ।

प्रश्न (v)
याक की उपयोगिता हमारे यहाँ के किस पशु से मिलती है ?
उत्तर-
याक की उपयोगिता हमारे यहाँ के भैंस से है । मादा याक बच्चे पैदा करती है । इनसे दूध मिलता है, जिससे खोवा, पनीर और मक्खन बनता है। नर याक बोझ ढोने, गाड़ी और हल खींचने के काम आते हैं ।

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प्रश्न (vi)
लद्दाख जैसे ठंडे रेगिस्तानी क्षेत्र में पर्यटन की क्या संभावनाएँ हैं ?
उत्तर-
जाड़े की अधिकता तथा कोई प्राचीन स्मारक के नहीं रहने के कारण यहाँ पर्यटन की कोई संभावना नहीं है । यातायात की भी कोई खास सस्ती व्यवस्था नहीं है।

प्रश्न (vii)
ठंडे रेगिस्तानी प्रदेशों में आपको जाना है । साथ ले जाने ‘वाले सामानों की सूची बनाइए ।
उत्तर-
ठंडे रेगिस्तानी प्रदेश में जाने के लिए हमें मोटे-मोटे कम्बल, गर्म कपड़े जिसमें ओभर कोट अवश्य हो, ऊनी मोजा, कांटेदार जूता । रात बिताने के लिए रावटी भी साथ में होना चाहिए। तैयार खाने का सामान भी साथ ले जाना पड़ेगा । स्टोव और किरासन तेल भी साथ रहे ।

प्रश्न (viii)
आप अपने और लद्दाख के निवासियों के जीवन शैली की तुलना करके पता करें कि कहाँ का जीवन अधिक कठिन है और क्यों?
उत्तर-
हम धान, गेहूँ और विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ उगाते हैं। ये सुविधा लद्दाख के लोगों के पास बहुत कम है । हमारा वातावरण सुखमय है जबकि लद्दाखवासियों को मशक्कत का जीवन-जीना पडता है । हम तीनों मौसमों जाड़ा, गर्मी और बरसात का मजा लेते हैं तीनों में से किसी में अधि कता नहीं है । लद्दाख में तो केवल जाड़ा पड़ता है और वह भी भीषण ।

प्रश्न 2.
सही विकल्प पर सही (✓) का चिह्न लगाएँ :

प्रश्न (i)
लद्दाख की जलवायु शुष्क है, इसका कारण है लद्दाख का :
(क) ऊँचाई पर होना
(ख) वनस्पतियों का न होना
(ग) हिमालय की वृष्टि-छाया में होना
उत्तर-
(क) ऊँचाई पर होना

प्रश्न (ii)
लद्दाख में पाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण जानवर है:
(क) पांडा
(ख) जंगली भैंसा
(ग) याक
उत्तर-
(ग) याक

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प्रश्न (iii)
कश्मीर से लद्दाख होते हुए तिब्बत को जोड़ता है:
(क) रोहतांग दर्रा
(ख) काराकोरम दर्रा
(ग) जोजीला दर्रा
उत्तर-
(ख) काराकोरम दर्रा

प्रश्न (iv)
लद्दाख में बहने वाली नदियाँ हैं :
(क) सिंधु-नर्मदा
(ख) सिंधु-वाका
(ग) सिंधु-गंगा
उत्तर-
(ख) सिंधु-वाका

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पाठ का सार संक्षेप

लद्दाख जम्मू-कश्मीर राज्य का एक भाग है । यह तिब्बत के पठार के पश्चिमी सीमा पर है । यहाँ ऐसे तो सालों भर बर्फ रहती है, लेकिन नवम्बर से जनवरी तक के महीनों में यह क्षेत्र पूर्णतः बर्फ में बदल जाता है । पेड़-पौधे कहीं-कहीं नाममात्र के ही हैं । यहाँ की सामान्य ऊँचाई 6700 मीटर है। यहाँ वर्षा नहीं होती बल्कि बर्फ गिरती है । कहीं वनस्पति नहीं दिखाई देती और दिखाई देती थी है तो बहुत कम । जब बर्फ नहीं रहती तब जौ, गेहूँ, जई और आलू आदि फसलें उपजाई जाती हैं। यहाँ अच्छे किस्म का जीरा उपजता है। सिंधु नदी लद्दाख से ही निकलती है। इसके अलावा शियांकबाका, छ् आदि नदियाँ भी बड़ी नदियों में शुमार होती हैं । झरनों की कमी नहीं है । यहाँ बिजली उत्पादन की अपार सम्भावनाएँ हैं । याक यहाँ का मुख्य पशु है ।

इसके दूध से पनीर और मक्खन बनाया जाता है । जंगली भेंड़ें, बकरियाँ भी मिलती हैं। इनके दूध और माँस का उपयोग होता है । याक, भेड़, बकरी के बालों से ऊनी वस्त्र बनाये जाते हैं । कम्बल, लोई व टोपी, जूते आदि कुटीर उद्योग के तहत बनाए जाते हैं। सड़के कम हैं। अधिकांश आवागमन पैदल होता है । लद्दाख के लिए हवाई जहाज उपलब्ध है । रोहतांग दर्रा होकर एक सुरंग बनाई गई है, जिससे होकर सालों पर शेष भारत से लद्दाख का सम्पर्क बना रहता है । सेना के लोग अधिकतर हवाई जहाज और हेलिकॉप्टर से आवाजाही करते हैं। पगडडियाँ भी आवागमन में मुख भूमिका निभाती हैं । यहाँ मंगोल प्रजाति के

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लोग हैं, जो बौद्ध धर्म मानते हैं अत: बौद्ध मठों की संख्या अधिक है । इन मठों को ‘गोम्पा’ कहा जाता है। हेमिस, थिकसे, लामायुस प्रसिद्ध बौद्ध मठ हैं। मठों को चारों ओर से रंगीन झंडे-पताकाओं से घेर दिया जाता है । उनका मानना है कि झर्ड-पताकाओं पर लिखे संदेश सीधे ईश्वर तक पहुँच जाता है। लद्दाख में ईरानी मूल के कुछ लोग हैं, जिन्हें ‘बाल्टी’ कहा जाता है । ये इस्लाम धर्म को मानने वाले हैं । यहाँ रहने वाले मनुष्य और पशु यहाँ के वातावरण के योग्य अपने को अनुकूलित कर लिये हैं।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

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Bihar Board Class 7 Science जलवायु और अनुकूलन Text Book Questions and Answers

अभ्यास

प्रश्न 1.
इस कथन को पढ़े और सही उत्तर दें –

(i) इनमें से कौन मौसम के घटक नहीं है –
(A) पवन
(B) तापमान
(C) आर्द्रता
(D) पहाड़
उत्तर:
(D) पहाड़

(ii) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु हैं –
(A) ध्रुवीय भालू
(B) पैग्विन
(C) रेनडियर
(D) कस्तूरी मृग
उत्तर:
(B) पैग्विन

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(iii) ध्रुवीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु हैं –
(A) टूकन पक्षी
(B) हाथी
(C) लायन टेल्ड लंगर
(D) ध्रुवीय भालू
उत्तर:
(D) ध्रुवीय भालू

(iv) वैसे जन्तु जिनके शरीर पर बालों (फर) की दो मोटी परतें होती हैं वे पाये जाते हैं –
(A) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र
(B) रेगिस्तान
(C) ध्रुवीय क्षेत्र
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(C) ध्रुवीय क्षेत्र

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(i) दीर्घ अवधि के मौसम का औसत …………. कहलाता है।
(ii) वर्ष भर सूर्योदय और सूर्यास्त के …………. में परिवर्तन होता है।
(iii) तापमान आर्द्रता आदि …………. के घटक हैं।
उत्तर:
(i) ऋतुएँ
(ii) जलवायु
(iii) मौसम ।

प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वनों में रहने वाले हाथी किस प्रकार अनुकूलित है ?
उत्तर:
हाथी घास और पेड़ों के पत्ते खाते हैं। पर्याप्त घास की मात्रा सभी मौसम में प्राप्त नहीं होते । हाथी के सूंड लम्बे होते हैं। टहनियों के पत्ते ताड़कर मुंह में डालने के लिए अनुकूलित है। हाथी का आकार बड़ा होने के कारण शरीर की सतह पर वाष्पन नहीं होता। हाथी के कान बड़ा होता है। त्वचा पतली होती है। हाथी हमेशा कान हिलाता रहता है ताकि शरीर का तापमान नियत्रित करता है। अफ्रिकन हाथी का कान और बड़े होते हैं क्योंकि वहाँ अधिक गर्मी पड़ती है। इस प्रकार हाथी अपने को अनुकूलित करते हैं।

प्रश्न 4.
मौसम और जलवायु में से किसमें तेजी से परिवर्तन होता है ?
उत्तर:
प्रतिदिन हम प्रकृति में परिवर्तन देखते हैं। सूर्य को उदय और अस्त होते देखते हैं। तेज हवा का चलना, बिजली चमकना, वर्षा होना, फूलों का खिलना । इस प्रकार हम देखते हैं कि मौसम का परिवर्तन तेजी से होता है। किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन वेग आदि के संदर्भ में वायुमण्डल की दिन-प्रतिदिन की स्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है।

जलवायु लम्बी अवधि में लिये गये मौसम के आँकड़ों पर आधारित प्रतिरूप उस स्थान का जलवायु है। जलवाय मानसून पर निर्भर करता है। जलवायु पर दो तरह के मौसमी हवाओं का प्रभाव पड़ता है। उत्तर पूर्वी मानसून और दक्षिण पश्चिम मानसून । मानसून तेजी से परिवर्तन नहीं होता है।

Bihar Board Class 7 Science Solutions Chapter 4 जलवायु और अनुकूलन

Bihar Board Class 7 Science जलवायु और अनुकूलन Notes

प्रतिदिन प्रकृति में परिवर्तन होता है। सूर्य का निकलना, डूबना, पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, दिन रात होना, वर्षा होना, तुफान आना, फूलों का खिलना इत्यादि। ये सभी परिवर्तन हमारे दैनिक जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। अत: किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, पवन वेग में प्रतिदिन का परिवर्तन उस स्थान का मौसम कहलाता है। किसी भी स्थान का मीसम प्रतिदिन बदलता रहता है। कभी गर्म तो कभी ठंडा । प्रतिदिन आर्द्रता और तापमान में परिवर्तन होता है । भिन्न-भिन्न स्थानों का आर्द्रता और तापमान भिन्न-भिन्न होता है। तापमान, आर्द्रता ओर अन्य कारक मोसम के घटक हैं। हमारे देश में जलवायु उष्णकटिबंधीय है जो मानसन पर निर्भर करती है।

हमारे यहाँ चार ऋतुएँ होती हैं –
(i) शीत ऋतु
(ii) ग्रीष्म ऋतु
(iii) वर्षा ऋतु
(iv) वसंत ऋतु ।

हमारे यहाँ उत्तर पूर्वी और दक्षिण पश्चिम मानसून हवाओं का प्रभाव पड़ता है। उत्तर पूर्वी मानसून को शीत मानसून कहा जाता है । जिस स्थान का तापमान ज्यादा समय उच्च रहता है उस स्थान की जलवायु गर्म होती है और प्राय: दिनों में वर्षा होती है। जीव-जन्तु विभिन्न क्षेत्रों एवं अलग-अलग जलवायु के अनुसार पाये जाते हैं। ऊँट की शारीरिक रचना, मरुस्थलीय प्रदेशों की जलवायु के अनुसार रचनात्मक अनुकूलन है। पृथ्वी के दो ध्रुव, उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव, ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवाय सर्द होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों में सूर्यास्त और सुर्योदय छ: माह के अन्तराल में होता है। तापमान-37°C तक हो जाता है। हमारा देश उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। ध्रुवीय क्षेत्र में पाये जाने वाले जन्तु पैग्विन है। मछलियाँ, कस्तुरी-मृग, रेनडियर, लोमड़ी, सील और अनेक प्रकार के पक्षी हैं। पक्षियाँ प्रवासी होते हैं। साइबेरियाई, केन भारत के राजस्थान और हरियाणा में प्रवास के लिए आते हैं। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र की जलवायु गर्म और नम रहती है।

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हमारा इसी क्षेत्र में पड़ता है। यहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव-जंतु पाये जाते हैं। वनों की संख्या अधिक है। भौगोलिक कारणों के कारण हमारे देश में बहुत विविधता पायी जाती है। जैसे वर्षा वन पतक्षरवन, शुष्क शोतोष्ण वन, शंकुधारी वन और मरुभूमि बन। भिन्न-भिन्न वनों में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव जन्त और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। भारतीय उप महाद्वीप में बंदरों की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं। हनुमान, लंगूर भारतीय बंदरों में सबसे अधिक पाये हैं। इस प्रकार का बन्दर कन्याकुमारी से हिमालय की तराई क्षेत्र तक आर्द्र राजस्थान के रेगिस्तान. से उत्तर-पश्चिम की घनी वर्षा वनों तक सभी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके लम्बे हाथ, लम्बी पंछ, छोटा अंगूठा और लम्बे पैर होते हैं। वर्षा वनों में जीवित रहने के लिए यह पूर्णतः अनुकूलित हैं। ये तरह-तरह की चीजें खाते हैं। इनका भोजन फल फूल और नयी पनियाँ हैं। ये उछल-कूद करते रहते हैं। चारों पेरों पर चलते हैं। ये हमेशा टालियों में रहना पसंद करते हैं। ये सभी जगह रह सकते हैं। भारतीय जंगलों में एशियाई हाथी पाये जाते हैं, ये मौसम, जलवायु और पर्यावरण के प्रभाव के कारण इनमें अनुकूलन देखने को मिलता है। ये घास तथा पेड़ों के पत्ते खाते हैं। हाथी कान हिलाकर अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 9 18 वीं शताब्दी में नयी राजनैतिक संरचनाएँ

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 9 18 वीं शताब्दी में नयी राजनैतिक संरचनाएँ Text Book Questions and Answers, Notes.

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Bihar Board Class 7 Social Science 18 वीं शताब्दी में नयी राजनैतिक संरचनाएँ Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वयात्त राज्य किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जो राज्य अपना सम्पूर्ण प्रशासनिक निर्णय और नीति-निर्धारण स्वयं करता है, उस राज्य को ‘स्वायत्त राज्य’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
नये राज्यों को तीन समूह में विभाजित करने के आधार क्या रहा होगा?
उत्तर-
पहले से चले आ रहे केन्द्रीय शासकों का कमजोर हो जाना ही ऐसा प्रमुख कारण रहा होगा, जिससे राज्य तीन राज्यों में विभाजित हो गया।

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प्रश्न 3.
तकावी ऋण क्या था ?
उत्तर-
राज्य द्वारा किसानों को दिये गये ऐसे ऋण को तकावी ऋण कहा जाता था, जिस ऋण की रकम का मकसद उपज को बढ़ाना था ।

प्रश्न 4.
ठेकेदारी या इजारेदारी व्यवस्था क्या थी ?
उत्तर-
राजस्व वसूली के लिये एक निश्चित क्षेत्र पर निर्धारित रकम के लिए कुछ लोगों से शासक द्वारा किए गए समझौता ठेकेदारी या इजारेदारी व्यवस्था थी।

प्रश्न 5.
चौथ किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
मराठों द्वारा पड़ोसी राज्यों पर हमला नहीं किये जाने के बदले किसानों से ली जाने वाली उपज का चौथाई भाग के कर को चौथ कहा गया ।

प्रश्न 6.
सरदेशमुखी क्या था ?
उत्तर-
मराठों से बड़े जमींदार परिवारों, जिन्हें सरदेशमुख कहा जाता था, ” इनके द्वारा लोगों के हितों की रक्षा के बदले लिया जाने वाला उपज का दसवाँ भाग होता था । ऐसे कर वसूलने वाले को सरदेशमुख कहा जाता है ।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

आइए याद करें :

प्रश्न (i)
मुगलों के उत्तराधिकारी राज्य में कौन राज्य आता है ?
(क) सिक्ख
(ख) जाट
(ग) मराठा
(घ) अवध
उत्तर-
(घ) अवध

प्रश्न (ii)
बंगाल में स्वायत राज्य की स्थापना किसने की ?
(क) मुर्शिद कुली खाँ
(ख) शुजाउद्दीन
(ग) बुरहान-उल-मुल्क
(घ) शुजाउद्दौला
उत्तर-
(क) मुर्शिद कुली खाँ

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प्रश्न (iii)
सिक्खों के एक शक्तिशाली राजनैतिक और सैनिक शक्ति के रूप में किसने परिवर्तित किया :
(क) गुरुनानक
(ख) गुरु तेगबहादुर
(ग) गुरु अर्जुनदेव
(घ) गुरु गोविन्द सिंह
उत्तर-
(घ) गुरु गोविन्द सिंह

प्रश्न (iv)
शिवाजी ने किस वर्ष स्वतंत्र राज्य की स्थापना की ?
(क) 1665
(ख) 1680
(ग) 1674
(घ) 1660
उत्तर-
(ग) 1674

प्रश्न (v)
मराठा परिसंघ का प्रमुख कौन था?
(क) पेशवा
(ख) भोंसले
(ग) सिंधिया
(घ) गायकवाड़
उत्तर-
(क) पेशवा

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में मेल बैठाएँ :

  1. ठेकेदारी प्रथा – मराठा
  2. सरदेशमुखी – औरंगजेब का निधन
  3. निजाम-उल-मुल्क – जाट
  4. सूरजमल – हैदराबाद
  5. 1707 ई० – भू-राजस्व प्रशासन

उत्तर-

  1. ठेकेदारी प्रथा – भू-राजस्व प्रशासन
  2. सरदेशमुखी – मराठा
  3. निजाम-उल-मुल्क – हैदराबाद
  4. सूरजमल – जाट
  5. 1707 ई० – औरंगजेब का निधन

आइए विचार करें

प्रश्न (i)
अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश क्यों की?
उत्तर-
अवध और बंगाल के नवाबों ने जागीरदारी प्रथा को हटाने की कोशिश इसलिए की कि वे मुगल-प्रभाव को कम करना चाहते थे । यही हाल हैदराबाद का भी था । इस प्रकार धीरे-धीरे ये मुगलों से पूर्णतः मुक्त होकर स्वतंत्र शासक बन बैठे ।

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प्रश्न (ii)
शिवाजी ने अपने राज्य में कैसी प्रशासनिक व्यवस्था कायम की?
उत्तर-
शिवाजी के काल में प्रशासन का केन्द्र राजा अर्थात स्वयं शिवाजी थे । राजा को सहयोग देने के लिए आठ मंत्री थे जिन्हें ‘अष्ठ प्रधान’ कहा जाता था ।

  1. पेशवा-पेशवा प्रधानमंत्री था । प्रशासन और अर्थ विभाग की देखरेख करता था । राजा के बाद यही सबसे अधिक शक्ति वाला अधिकारी था ।
  2. सर-ए-नौबत-यह सेनापति की नियुक्ति करता था तथा घोडा के साथ ही अन्य सैनिक साजो-सामान की देखरेख करता था ।
  3. मजुमदार-लेखाकार-इनका काम राज्य के आय-व्यय का लेखा रखना था ।
  4. वाके नवीस-गृह विभाग के साथ ही गुप्तचर विभाग का यह प्रध न होता था । राज्य के विरोधी शक्तियों का यह विवरण रखता था ।
  5. सुरु नवीस-राजा को पत्र व्यवहार में मदद करना सुरु नवीस का ही काम था ।
  6. दबीर-दबीर विदेश विभाग का प्रधान होता था । पड़ासी राज्यों से सम्बंध बनाये रखना इसी का काम था ।
  7. पंडित राव-पंडित राव धार्मिक मामलों का प्रभारी था। विद्वानों और धार्मिक कार्यों हेतु मिलने वाले अनुदानों का वितरण यही करता था
  8. न्यायाधीश शास्त्री-हिन्दू न्याय प्रणाली का व्याख्याता न्यायाधीश शास्त्री ही हुआ करता था ।

प्रश्न (iii)
पेशवाओं के नेतृत्व में मराठा राज्य का विस्तार क्यों हुआ?
उत्तर-
शिवाजी की मृत्यु के बाद और औरंगजेब के जीवित रहने तक मराठा क्षेत्रों पर पुन: मुगलों का अधिकार हो गया । लेकिन जैसे ही 1707 में औरंगजेब की मृत्यु हुई, शिवाजी के राज्य पर चितपावन ब्राह्मणों के एक परिवार का प्रभाव स्थापित हो गया। शिवाजी के उत्तराधिकारियों ने उसे पेशवा का पद दे दिया । इस नये बने पेशवा ने पुणा को मराठा राज्य का केन्द्र बनाया। पेशवाओं ने मराठों के नेतृत्व में सफल सेन्य संगठन का विकास किया, जि

सके बल पर उन्होंने अपने राज्य का बहुत विस्तार दिया । मुगलों के कई परवर्ती शासकों ने पेशवाओं का नेतृत्व स्वीकार कर लिया। इसी कारण पेशवाओं के नेतृत्व में मराठा राज्य का विस्तार हुआ।

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प्रश्न (iv)
मुगल सत्ता के कमजोर होने का भारतीय इतिहास पर क्या . प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
मुगल सत्ता के कमजोर होने का भारतीय इतिहास पर दरगामी प्रभाव पड़ा । छोटे-छोटे राज्यों की भरमार हो गई । छोटे राज्यों के सभी नायक ऐश-मौज का जीवन व्यतीत करते रहे। खर्च को पूरा करने के लिए किसानों पर कर-पर-कर बढ़ाये गये । किसान तबाह होने लगे । इनकी इन कमजोरियों को अंग्रेज पैनी नजर से देख रहे थे । फल हुआ कि अंग्रेजों ने एक-एक कर . सभी छोटे राज्यों को अपने अधिकार में कर लिया । इसके लिये इनको बल के साथ छल का भी व्यवहार करना पड़ा । अंततोगत्वा किसी भी रूप में ये पूरे भारत पर अधिकार करने में सफल हो गये ।

प्रश्न (v)
अठारहवीं शताब्दी में उदित होने वाले राज्यों के बीच क्या समानताएँ थीं?
उत्तर-
अठारहवीं शताब्दी में उदित होने वाले राज्यों तीन राज्य प्रमुख थे-बंगाल, अवध और हैदराबाद । तीनों गुलाम शासन के अधीन रहने वाले सूबे थे । इसका फल हुआ कि बहुत बातों में ये तीनों राज्य समान थे । आय का स्रोत भूत-राजस्व वसूली की व्यवस्था तीनों ने एक समान ही रखी । इन तीनों ने जागीरदारी व्यवस्था को समाप्त कर दिया ताकि राज्य शासन पर इनका आधिपत्य पूरी तरह स्थापित हो जाय । इस प्रकार तीनों राज्यों के बी क .. समानताएँ थीं।

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पाठ का सार संक्षेप

अठारहवीं सदी के पूर्वार्द्ध में अनेक स्वतंत्र भारतीय राज्यों का उदय हुआ। इसका परिणाम हुआ कि मुगल साम्राज्य सिमटकर छोटा हो गया । 1707 में औरंगजंघ की मृत्यु के बाद मुगलों के अनेक सूबे स्वतंत्र हो गये । विरोधी शक्तियाँ भी सशक्त होकर स्वतंत्र राज्य बनकर निष्कटंक हो गई । मुगलों के जो सूबेदार औरंगजेब के जितने विश्वासी थे, उन्होंने उतना ही बड़ा विश्वासघात किया और सूबों के स्वतंत्र शासक बन बैठे ।

भारतीय उपमहाद्वीप में प्रथम साम्राज्य के खंडहर पर निम्नलिखित राज्य थे : मुगल साम्राज्य के सूबेदार : बंगाल, अवध और हैदराबाद । मुगलों के मनसबदार-जागीरदार : राजपुताना, क्षेत्र के सभी राज्य । मुगलों से युद्ध कर चुके राज्य : मराठा, सिक्ख, जाट एवं बुन्देल।।

इन नये राज्यों में सर्वाधिक प्रमुख राज्य थे : बंगाल, अवध और हैदराबाद । हैदराबाद के नवाबों को ‘निजाम’ कहा जाता था । इन तीनों का मुगल दरबार . में बहुत इज्जत किया जाता था। इन्होंने इसी का लाभ उठाया ।

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बंगाल-बंगाल को स्वतंत्र राज्य बनाने में दो नवाबों का हाथ था : मुर्शिद कली खाँ और अलीवर्दी खाँ । मुर्शिद कुली खाँ को 1700 में बंगाल का सूबेदार बनाया गया था, तभी से उसने यहाँ एकाधिकारी प्रवृति दिखाने लगा था । भूमिकर वसूलने के लिए उसने जमींदारी तथा ठेकेदारी व्यवस्था कायम कर अपने लिए अनेक हसबखाह बना लिये । इन लोगों ने उसके शासन को व्यवस्थित रखने में मदद की । इसने हिन्दुओं और मुसलमानों को रोजगार में समान अवसर देकर शासन में स्थिरता कायम की । हैदराबाद-हैदराबाद का सूबेदार निजाम-उल-मुल्क आसफजाह था । इसका मुगल दरबार में काफी प्रभाव था । दरबार के षड्यंत्रों से तं

ग आकर इसने अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया। इसने भी बंगाल के तर्ज पर भू-राजस्व वसूली के लिए जमींदार और ठेकेदार नियुक्त किये । चौक राज्य में हिन्दुओं की संख्या अधिक थी इसलिए इसके राज्य में हिन्दू जमींदारों की संख्या अधिक थी । इससे राज्य में स्थिरता आई ।

राजपूत राज्य-अकबर ने जिन राजपूतों को जोड़कर अपना साम्राज्य फैलाया था, औरंगजेब और उसके बाद के मुगल शासकों से राजपूतों की दूरी बढ़ती गई । अब राजपूतों में भी अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की आकांक्षा जागने लगी । क्षेत्र तथा प्रभूत्व बढाने के लिये ये आपस में ही लड़ने लगे और अपने को कमजोर करते रहे । सर्वाधिक श्रेष्ठ राजपूत शासक आमेर का सवाई जयसिंह था जिसका काल 1681 से 1743 तक माना जाता है। इसी ने गुलाबी नगर जयपुर की स्थापना की थी।

उसने जयपुर को जाटों से प्राप्त की थी । जयसिंह ने ही आगरा, दिल्ली, जयपुर, मथुरा और उज्जैन में पर्यवेक्षणशालाएँ बनवाई थीं, जिन्हें जन्तर-मन्तर कहा जाता है।

मराठा राज्य-मराठों का उदय मुगलों से संघर्ष के कारण हुआ था । मुगलों के विरुद्ध तलवार उठाने वाले पहले व्यक्ति थे शिवाजी । शिवाजी का जन्म 1627 में शाहजी भोंसले के घर हुआ। इनका आरंभिक जीवन मना जीजाबाई तथा अभिभावक दादाजी कोण देव के संरक्षण में हुआ । शिवाजी अपनो छोटी जागीर को सैनिक शक्ति द्वारा बढ़ाना चाहते थे । ये मात्र 18 वर्ष की आयु में ही रायगढ़, कोंकण तथा तोरण के किलों पर कब्जा करके अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का परिचय दे दिया । मुगल बीजापुर को अपने नियंत्रण में करना चाहते थे । लेकिन शिवाजी ने ऐसा नहीं होने दिया ।

औरंगजेब शिवाजी की शक्ति को कम करना चाहता था । उसने छल-बल सभी का प्रयास किया लेकिन शिवाजी को दबा नहीं पाया । शिवाजी

ने रायगढ़ के किले में अपना राज्याभिषेक करवाया और अपने को एक स्वतंत्र राजा घोषित किया ।

शिवाजी की प्रशासनिक व्यवस्था बहत ही उत्तम कोटि की थी। इनके आठ मंत्री थे जिन्हें अष्ट प्रधान कहा जाता था । वे थे:

  1. पेशवा
  2. सर-ए-नौबत
  3. मजुमदार-लेखाकार
  4. वाके नवीस
  5. गुरु नवीस
  6. दबीर
  7. पंडित राव और
  8. न्यायाधीश शास्त्री ।

इन सभी के कार्य बँटे हुए थे। इन सबके ऊपर राजा अर्थात शिवाजी थे।

पेशवाओं के अधीन मराठा शक्ति का विकास-शिवाजी की मृत्यु 1680 में हुई । फिर औरंगजेब के 1707 में मरने के बाद मराठा क्षेत्रपर चितपावन ब्राह्मणों के एक परिवार का प्रभुत्व स्थापित हो गया । शिवाजी के उत्तराधिकारियों द्वारा उसे पेशवा का पद प्रदान किया गया । पेशवा ने पुणा को मराठा राज की राजधानी बनाया । पेशवाओं ने मराठों के नेतृत्व में सफल सैन्य संगठन का विकास किया ।

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बाद में पेशवाओं ने पाँच परिवारों में मराठा क्षेत्र को बाँटकर अलग-अलग राज्य करने लगे। पुणे के इलाका पर पेशवाओं का अधिकार रहा । ग्वालियर का इलाका सिंधिया के अधीन हो गया । इन्दौर पर होल्कर राज्य करने लगे। विदर्भ का इलाका गायकवाड़ के पास रहा तो नागपुर का इलाका भोंसले के अधिकार में रहे ।

इन सबका सैद्धांतिक प्रमुख पेशवा ही था । सबको मिलाकर मराठा परिसंघ कहा जाता था । पेशवा के अधीन मराठा राज्य भारत का एक शक्तिशाली राज्य बन गया । लेकिन 1761 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में मराठा अहमद शाह अब्दाली से हार गये, जिससे उनकी शक्ति छिन्न-भिन्न हो गई । हार का कारण राजपूतों का चुप रहना और मराठों की स्वार्थ नीति भी थी । अब सिंधिया, होल्कर, गायकवाड, भोंसले तथा पुणे में पेशवा अपने-अपने क्षेत्र में सिमटकर रह गए ।

जाट एक कृषक समूह होने के बावजूद मुगलों से संघर्ष कर अपने को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में बदल लिया । इनका प्रभाव दिल्ली और आगरा के क्षेत्रों में बढ़ा । जाट राज्य की स्थापना चूडामन और बदन सिंह के नेतृत्व में हुआ । लेकिन इस राज्य का पूर्ण विकास 1750 और 1763 ई० के बीच सूरजमल के नेतृत्व में हुआ।

सिक्ख राज्य-सिक्ख एक धर्म था, जिसे गुरु नानक ने स्थापित किया था । सतरहवीं शताब्दी में सिक्ख एक राजनैतिक समुदाय में संगठित होने लगे। . सिक्खों के अंतिम गुरु गुरु गोविन्द सिंह (1666-1708) के नेतृत्व में सिक्खों ने अपने को धार्मिक और राजनैतिक रूपों में संगठित करने का प्रयास किया । गुरु गोविन्द सिंह के बाद गुरु परम्पग समाप्त हो गई । इनके अनुयायी बन्दा बहादुर के नेतृत्व में सिक्खों ने 8 वर्षों तक मुगलों से संघर्ष किया लेकिन राज्य निर्माण नहीं कर सके

नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब के प्रशासन में अव्यवस्था फैल गई । अब्दाली की वापसी के बाद सिक्ख पुनः संगठित होने लगे । पहले ये जत्थों तथा बाद में मिस्लों में संगठित हुए। इन मिस्लों के ही एक मिस्ल के प्रधान रणजीत सिंह के नेतृत्व में सिक्खों ने उन्नीसवीं शताब्दी में एक शक्तिशाली राज्य का गठन कर लिया।

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भारतीय राज्य और राजाओं के बिखराव का लाभ अंग्रेजों ने खब उठाया। 1857 में इन सभी राज्यों ने मिलकर अंग्रेजों का विरोध करने का संकल्प लिया था, लेकिन वे अंग्रेजों को दबा नहीं सके । इसका कारण कुछ राज्यों का धोखा देना भी था ।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 8 क्षेत्रीय संस्कृतियों का उत्कर्ष

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अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें:

  1. उर्दू एक ……….. भाषा है । (मिश्रित/एकल/मधुर)
  2. उर्दू की उत्पत्ति………. शताब्दी में हुयी । (ग्यारहवीं /चौदहवीं/बारहवीं)
  3. उर्दू का शाब्दिक अर्थ है ……….. । (घर/महल/शिविर/खेमा)
  4. इरानी लोग सिंधु को ……… कहने थे । (हिन्द/हिन्दू/हिन्दी)
  5. तुलसीदास ने……की रचना की । (महाभारत/मेघदूतम्/रामचरितमानस)
  6. पहाड़ी चित्रकला ……….. क्षेत्र में विकसित हुयी। (मध्य भारत/उत्तर पश्चिम हिमालय/राजस्थान)

उत्तर-

  1. मिश्रित
  2. ग्यारहवीं
  3. शिविर
  4. हिन्दू
  5. रामचरितमानस
  6. उत्तर-पश्चिम हिमालय ।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न (a)
उर्दू का विकास कैसे हुआ ?
उत्तर-
उर्दू का विकास एक अपभ्रंश भाषा के रूप में हुआ। इसमें अनेक भाषाओं के शब्द मिले हैं, जैसे : अरबी, फारसी तथा तुर्की । इसी कारण उर्दू को एक मिश्रित भाषा कहते हैं । इसकी लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिन्दी-अंग्रेजी जैसा ही है।

प्रश्न (b)
लौकिक साहित्य के बारे में पाँच पंक्तियों में बताइए ।
उत्तर-
लौकिक साहित्य में ‘ढोला-मारुहा’ नामक काव्य लिखा गया । इसमें ढोला नामक राजकुमार और मारवाणी नामक राजकुमारी की प्रणय लीला का वर्णन है । इस काव्य में महिलाओं के कोमल भावों का मार्मिक वर्णन किया गया है । इसी काल के लौकिक साहित्य के रचनाकारों में अमीर खुसरो भी हैं । अमीर खुसरु ने पहेलियों से हिन्दी के भंडार को भरा ।।

प्रश्न (c)
रहीम कौन थे ? उनके द्वारा रचित किसी एक दोहा को लिखें।
उत्तर-
रहिम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था । ये अकबर के दरबार के नवरत्नों में एक थे । इनकी अधिक पहचान कृष्ण भक्त कवि के रूप में है । इन्होंने हिन्दी में अनेक कविताओं की रचना की । इनकी एक प्रसिद्ध रचना का अंश निम्नलिखित है :

रहिमन विपदा तू भली. जो थोड़े दिन होई । हित अनहित या जगत में जान पड़े सब कोई

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प्रश्न (d)
‘हम्जानामा’ क्या है ?
उत्तर-
हम्जानामा’ मुगलकाल का बना चित्रों का एक अलबम है । मुगलों ने चित्रकला की जिस शैली की नींव डाली वह मुगल चित्रकला के नाम से प्रसिद्ध हुई । ‘हम्जानामा’ मुगल शैली की ही एक अद्भुत कृति है । यह ऐसी – पाण्डुलिपि है, जिसमें 1200 चित्र हैं । सभी चित्र स्थूल और नटकीन्ने गंगों में कपड़े पर बने हुए हैं।

प्रश्न (e)
पहाड़ी चिरकला में किन-किन विषयों पर चित्र बराये जाते थे ?
उत्तर-
पहाड़ी चित्रकला में विशेष रूप से सामाजिक विषय चुने गरे । चित्र सामाजिक विषयों पर ही बने । बच्चियों को गेंद खेलते, संगीत के साज बजाते, पक्षियों या पशुओं के साथ मनोरंजन करते हुए चित्र बनाये जाते थे । राजा-महाराजाओं का अंकेले या दरबारियों के साथ बैठे हुए चित्र बनाये जाते थे । प्राकृतिक दृश्यों के चित्र भी बने । पत्तों और फलों से लदे वृक्षों के चित्र सराहनीय हैं । पहाड़ी चित्रकला में इन्हीं विषयों पर चित्र बनाये जाते थे ।

प्रश्न (f)
गजल और कव्वाली में अंतर बताएँ।
उत्तर-
सल्तनत काल में दो प्रकार की गायन शैली का विकास हुआ-पहला था गजल और दूसरा कव्वाली । गजल को अरबी भाषा में स्त्रीलिंग माना जाता है, जबकि हिन्दी में इसे पुल्लिग मानते हैं । गजल का शाब्दिक अर्थ है अपने प्रेम पात्र से वार्ता । एक गजल में कम-से-कम पाँच और अधिक-से-अधि क ग्यारह शेर होते थे। इसके संग्रह को दीवान कहा जाता है । गजलें कि शृंगार रस में लिखी होती थी, जिस कारण इसका गायन संगीत प्रेमियों को अच्छा लगता था । सूफियों को भी गजल प्रिय रहा ।

कव्वाली का चलन विशेषतः सूफी गायकों में था । ‘कौल’ का अर्थ है कथन । इसको गाने वाला कव्वाल कहलाता था । यही शैली कौव्वाली कहलायी । कोदाली गाते हुए गायक भक्तिमय हो जाता था । उसके समक्ष लगता था कि अल्ला सामने आ गया हो । गाते-गाते वे झूमने और नाचने लगते

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चर्चा करें

प्रश्न 1.
क्षेत्रीय भाषा एवं साहित्य के विकास का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सोलहवीं शतादी से क्षेत्रीय भाषाओं में लेखन कार्य होने लगा था । सत्रहवीं शताब्दी के आते-आते इसमें काफी परिपक्वता आ गई । संगीतमय काव्य भी रचे गये । बंगला, उड़िया, हिन्दी, गजस्थानी तथा गुजराती भाषाओं के काव्य में राधाकृष्ण एवं गोपियों की लीला तथा भागवत की कहानियों का भरपूर उपयोग हुआ । इसी काल में मल्लिक महम्मद जायसी ने हिन्दी में ‘पद्मावत’ लिखा । इसका बंगला में भी अनुवाद हुआ । अब्दुर्रहीम खानखाना ने कृष्ण को सामने रख अनेक काव्यमय रचनाएँ की ।

तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना अवधी में की जिसमें भोजपुरी शब्दों का खुब उपयोग हुआ है । सूरदास ने ब्रज भाषा में कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया । यह इनका महत्त्वपूर्ण योगदान था ।

दक्षिण भारत में मलयालम भाषा की साहित्यिक परम्परा का प्रारंभ मध्यकाल में ही हुआ। महाराष्ट्र में एकनाथ और तुकाराम ने मराठी भाषा में काफी कुछ लिखा ।

बिहार अनेक भाषाओं का क्षेत्र है । यहाँ की कुछ भाषाएँ पूरे देश में । बोली-समझी जाती हैं। बिहार के चन्द्रेश्वर मध्यकाल के नामी टीकाकार थे। इन्होंने सूफी संतों से प्रभावित होकर धर्म की व्याख्या की ।

खासकर बिहार हिन्दी भाषी क्षेत्र है । यहाँ हिन्दी की उत्पत्ति संस्कृत के अपभ्रंश के रूप में हुई । अन्य भाषाओं में, जिन्हें शुद्ध क्षेत्रीय कहा जा सकता है, वे हैं भोजपुरी, मगही, मैथिली और उर्दू आदि । मैथिली भाषा को कवि कोकिल विद्यापति ने बहुत ऊँचाई पर पहुंचा दिया । मंडन मिश्र तथा भारती मिथिला की ही देन थे। भोजपुरी का क्षेत्र बहुत विस्तृत हैं।

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प्रश्न 2.
आपके घर में जो भाषा बोली जाती है ? उसका प्रयोग लिखने में कब से शुरू हुआ?
उत्तर-
में अपने घर में भोजपुरी भाषा बोलता हैं । लेखन में इसका आरम्भ कबीर के समय से हुआ। स्वतंत्रता संग्राम के समय अनेक महाकाव्य भोजपुरी में रचे गए । बटोहिया, फिरंगिया और कुंवर सिंह महाकाव्य अधिक प्रशसित रहे हैं । महेन्द्र मिश्र तथा भिखारी ठाकुर भोजपुरी के महान गीतकार रह चुके हैं । आज तो भोजपुरी भाषा का काफी विकास हो चुका है।

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पाठ का सार संक्षेप

गुप्त साम्राज्य के विघटन के फलस्वरूप छठी शताब्दी में क्षेत्रीय शासकों को पनपने का मौका मिला। इनमें प्रमख थे पाल, गर्जर प्रतिहार, राष्ट्रकूट, पल्लव, चोल आदि । क्षेत्रीयता के साथ ही इस काल को साहित्य, चित्रकला, संगीत में भी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया । फलतः उत्तर भारत में जहाँ बंगला, असमिया, मैथिली, भोजपुरी, उड़िया तथा अवधि के साथ-साथ ब्रज भाषा का भी विकास हुआ । दक्षिण भारत में तमिल और मलयालम भाषाएँ विकसित हुई । आगे आने वाली शताब्दियों में हिन्दी और उर्दू भाषाओं के विकास के साथ-साथ इन भाषाओं के साहित्य का भी भंडार भरा । इस काल में भाषा के साथ चित्रकला और संगीत कलाएँ भी विकसित हुईं।

क्षेत्रीय भाषाओं की उत्पत्ति लगभग आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच हुई। कई राज्यों में संस्कृत के साथ-साथ तमिल, कन्नड़ एवं मराठी का प्रयोग प्रशासन में किया जाता था । विजयनगर राज्य में तेलुगु विकसित हुआ तो बहमनी राज्य में मराठी का विकास हुआ। इन भाषाओं के विकास में मुस्लिम शासकों ने भी सहयोग दिया । बंगाल के शासक नुशरतशाहा ने ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ का बंगला में अनुवाद कराया ।

दिल्ली के शासकों ने भी हिन्दी, उर्दू, बंगला जैसी अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को पहचान दिलाने का काम किया । आम लोग अपने-अपने क्षेत्र की क्षेत्रीय भाषाओं का व्यवहार करते रहे, जिन्हें अपभ्रंश कहते हैं । इसी अपभ्रंश से हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, बंगला आदि भाषाओं की उत्पत्ति हुई थी । उर्दू एक मिश्रित भाषा है, जिसमें अरबी, फारसी, तुर्की के शब्द शामिल हैं । उर्दू की लिपि फारसी है, लेकिन व्याकरण हिन्दी जैसा ही है।

उर्दू भाषा का विकास ग्यारहवीं शताब्दी से शरू हुआ । विभिन्न भाषा / बोलने वाले सैनिक आपसी बातचीत में जिस भाषा का प्रयोग करते थे वही भाषा उर्दू कहलाई । ‘उर्दू’ का शाब्दिक अर्थ है ‘शिविर’ या ‘खेमा’ । सूफी संतों ने धर्म प्रचार के क्रम में वहीं के लोगों जैसा बोलना चाहते थे, लेकिन अपनी अंतरंग भावना को व्यक्त करते हुए उन्हें अपनी मातृभाषा का व्यवहार करना पड़ता था । फलतः स्थानीय भाषाओं में फारसी, अरबी, तुर्की के शब्द प्रवेश करते गये। आज ही हिन्दी बिना इन शब्दों के व्यवहार के लिखी ही नहीं जा सकती । हिन्दी वाले भी इसके इतने निकट हो गए हैं कि उर्दू के शब्द भी उन्हें हिन्दी ही लगते हैं। केवल बंगला भाषा है. जिसमें विशद्ध संस्कृत

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शब्द का व्यवहार होता है, जिसे बंगलादेश के मुसलमान भी व्यवहार में लाते हैं। तात्पर्य कि सूफी संतों के कारण भी उर्दू एक भाषा के रूप में जानी जाने

लगी । चौदहवीं शताब्दी में अमीर खुसरो ने इस भाषा को उर्दू न कहकर रेख्ता’ या ‘हिन्दवी’ नाम दिया । इसी भाषा में उन्होंने अपनी काव्य रचनाएँ । की थीं । उनके काव्य का एक नमूना है :

गोरी सोये सेजपर, मुख पर डाले केश । जल खुसरो घर आपनो, रैन भई चाहूँ देश ।

दक्षिण भारत में जिस उर्दू का विकास हआ वह ‘दक्कनी’ कहलाई । अठारहवीं शताब्दी के अंत तक उर्दू को ‘दक्कनी’, हिन्दवी, हिन्दुस्थानी कहा जाता रहा । मुगल काल में उर्दू मुगलों की मातभाषा बन गई।

‘हिन्दी’, ‘हिन्द’, ‘हिन्दवी’ और हिन्दुस्तान आदि शब्दों की उत्पत्ति का कारण उत्तर-पश्चिम में बनने वाली नदी ‘सिंध’ थी । समकालीन लौकिक हिन्दी साहित्य के अमर कति अमीर खुसरो हैं। इनकी पहेलियाँ बहुत प्रसिद्ध हुई । गद्य साहित्य में इतिहास की प्रमुखता रही । जियाउद्दीन बरनी, अधीक, इसानी आदि इस युग के प्रसिद्ध इतिहासकार थे । जिया नक्शवी ने ‘तुतीनामा’ लिखा, जिसमें एक तोता एक विरहिणी नायिका को कथा सुनाता है । यह कहानी मूलतः संस्कृत में थी, जिमका नक्शवी ने फारसी में अनुवाद किया।

अकबर के काल में साहित्यिक विकास शिखर पर था । अब्दुल रहीम खान खाना, जिन्हें ‘रहीम’ के नाम से जानते हैं, अकबरी दरबार के नवरत्नों में थे । ये कृष्ण भक्त थे और उन्हीं के गुणगान में रचना की । तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई आदि इसी काल के कवि थे । तुलसी दास ने अवधि में रामचरित मानस लिखा तो सूरदास ने ब्रजभाषा में सूरसागर लिखा । मीराबाई भी कृष्ण भक्त थीं जिन्होंने राजस्थानी में कृष्ण के गीत गाये ।

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मुगलों ने मानां भारत में चित्रकला की नींव ही रख दी । मुगल दरबार में चित्रकारों का बहुत मान था । इस काल का एक चित्र संग्रह है ‘हज्जानाम’, जिसमें 1200 चित्र हैं । जसवंत तथा दसावन गुगल दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे । औरंगजेब के काल में चित्रकला का पतन हो गया। चित्रकार अब छोटे-छोटे क्षेत्रीय राजाओं के शरण में चले गये । वे दिल्ली से चलकर जौनपुर, लखनऊ, पटना और मुर्शिदाबाद तक फैल गये । वहाँ के नवाबों. सुबेदारों से उन्हें संरक्षण मिला। पटना में जो चित्रकला विकसित हुई उसे ‘पटना कलम’ कहा गया । सल्तनत काल से ही संगीत का विकास शुरू हो चुका था जो आज तक जारी है ।

अकबर के दरबार में एक-से-एक शास्त्रीय गायक थे। तानसेन अकबर के नवरत्नों में थे । दरगाहों में कव्वाली का विकास हुआ वहाँ अमीर-उमरा लोगों में गजल को प्रोत्साहित किरण । बिहार भी संगीत से अछूता नहीं था । यहाँ पटना, गया, आरा, छपरा आदि शहर संगीत के प्रमुख क्षेत्र थे। लखनऊ और बनारस के गायक पटना में आकर बस गये । गजल, दादरा, जरी, चैता, ख्याल, टुमरी आदि का विशेष विकास हुआ।

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण

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BSEB Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण

Bihar Board Class 7 Maths त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1

प्रश्न 1.
उन ठोस आकृतियों को पहचानें जिनके जाल नीचे दिए गए है-
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q1
हल :
(अ) बेलन
(ब) शंकु
(स) घनाभ
(द) घन

प्रश्न 2.
पासे के लिए एक जाल खीचिए और प्रत्येक फलक पर संख्या लिखिए
हल :
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q2
(अ) AB
(ब) LK

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण

प्रश्न 4.
दिए गए चित्र एक पासे का जाल दिखाते है| फलकों पर चिहित x, y और z का संख्यात्मक मान क्या होगा?
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q4
हल :
x = 2
y = 4
z = 6

प्रश्न 5.
उन जालों को पहचानिए जिनका उपयोग एक घन बनाने के लिए किया जा सकता है?
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5.1
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5.2
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5.3
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5.4
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.1 Q5.5
हल :
ब, स, द, य और रं के जाल घन बनाते हैं।

Bihar Board Class 7 Maths त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.2

प्रश्न 2.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.2 Q2

प्रश्न 3.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.2 Q3

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण

प्रश्न 5.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.2 Q5

Bihar Board Class 7 Maths त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण Ex 16.3

प्रश्न 1.
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
वर्ग – माला
त्रिभुज – अशोक का पेड़
वृत्त – बॉल
आयत – पुस्तक

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 16 त्रिविमीय आकृतियों का द्विविमीय निरूपण

प्रश्न 3.
(अ) हाँ
(ब) हाँ

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

Bihar Board Class 7 Social Science सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आप बता सकते हैं कि इस्लाम धर्म अपने साथ खाने-पीने और पहनने की कौन-कौन-सी चीजें साथ लेकर आया ?
उत्तर-
इस्लाम धर्म अपने साथ पहनने के लिये कुर्ता-पायजामा, सलवार-समीज, लँगी, कमीज अचकन आदि लाये, जिन्हें हिन्दुओं ने भी अपना लिया । इस्लाम खाने की चीजों में हलवा, समोसा, पोलाव, बिरयानी आदि लाये, जिसे हिन्दू भी खाते हैं।

प्रश्न 2.
विभिन्न धर्मों के समानताओं एवं असमानतों को चार्ट के माध्यम से बताएँ।
उत्तर-
Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास 1
इन छोटी-मोटी समानता या असमानता किसी तरह मेल-जोल में बाधक नहीं बनतीं । सभी मिल-जुलकर रहते हैं ।

प्रश्न 3.
आप अपने शिक्षक या माता-पिता की सहायता से पाँच-पाँच हिन्दू देवी-देवताओं, सूफी एवं भक्ति संतों से जुड़े स्थलों की सूची बनाइए।
उत्तर-
Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास 2

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

आइए याद करें:

प्रश्न 1.
सिंध विजय किसने की?
(क) मुहम्मद-बिन-तुगलक
(ख) मुहम्मद बिन कासिम
(ग) जलालुद्दीन अकबर
(घ) फिरोशाह तुगलक
उत्तर-
(ख) मुहम्मद बिन कासिम

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 2.
महमूद गजनी के साथ कौन-सा विद्वान भारत आया ?
(क) अल-बहार
(ख) अल जवाहिरी
(ग) अल-बेरूनी
(घ) मिनहाज उस सिराज
उत्तर-
(ग) अल-बेरूनी

प्रश्न 3.
भारत में कुर्ता-पायजामा का प्रचलन किनके आगमन से शरू हुआ?
(क) ईसाई
(ख) मुसलमान
(ग) पारसी
(घ) यहूदी
उत्तर-
(ख) मुसलमान

प्रश्न 4.
अलवार और नयनार कहाँ के भक्त संत थे ?
(क) उत्तर भारत
(ख) पूर्वी भारत
(ग) महाराष्ट्र
(घ) दक्षिण भारत
उत्तर-
(घ) दक्षिण भारत

प्रश्न 5.
मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ?
(क) दिल्ली
(ख) ढाका
(ग) अजमेर
(घ) आगरा
उत्तर-
(ग) अजमेर

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

प्रश्न 2.
इन्हें सुमेलित करें :

  1. निजामुद्दीन औलियां – (1) बिहार
  2. शंकर देव – (2) दिल्ली
  3. नानकदेव – (3) असम
  4. एकनाथ – (4) राजस्थान
  5. मीराबाई – (5) महाराष्ट्र
  6. संत दरिया साहब – (6) पंजाब

उत्तर-

  1. निजामुद्दीन औलियां – (2) दिल्ली
  2. शंकर देव – (3) असम
  3. नानकदेव – (6) पंजाब
  4. एकनाथ – (5) महाराष्ट्र
  5. मीराबाई – (4) राजस्थान
  6. संत दरिया साहब – (1) बिहार

आइए समझकर विचार करें 

प्रश्न 1.
भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास कैसे हुआ ? प्रकाश डालें।
उत्तर-
1206 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के बाद बौद्धिक और आध्यात्मिक स्तर पर हिन्दू और मुसलमानों का सम्पर्क बना । इसके पूर्व जहाँ भारत के लोग तुर्क-अफगानों को एक लुटेरा और मूर्ति भंजक समझते थे, अब शासक के रूप में स्वीकारने लगे । इस भावना को फैलाने में उन भारतीयों की याददाश्त भी थी, जिन्हें मालूम था कि कभी अफगानिस्तान पर भारत का शासन था ।

अतः यहाँ के लोग अफगानों को गैर नहीं मानते थे । खासकर बिहार में, क्योंकि अशोक बिहार का ही था । अलबरूनी, जो महमूद गजनी के साथ भारत आया था, यहाँ रहकर संस्कृत की शिक्षा ली और हिन्दू धर्मग्रंथों और विज्ञान का अध्ययन किया । उसने यहाँ के सामाजिक जीवन को भी निकट से देखा । खूब सोच-समझकर उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी ।

दूसरी ओर अनेक सूफी संत और धर्म प्रचारक भारत के विभिन्न नगरों में बसने लगे। इससे इन दोनों धर्मों को मानने वालों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान और समन्वय का वातावरण बना ।

मुस्लिम शासकों, खासकर मुगलों द्वारा स्थापित राजनीतिक एकता का सबसे बड़ा प्रभाव हिन्दू भक्त संतों एवं सुफी संतों के मेल मिलाप बढ़ने पर दोनों ने इस भावना का प्रचार किया कि भगवान एक है । ईश्वर और अल्लाह में कोई फर्क नहीं । सभी धर्म के लोगों की चरम अभिलाषा खुदा तक पहुँचने की होती है। तुम खुद में खुदा को देखो ।

आगे चलकर एक के पहनावे और खानपान को दूसरे ने अपनाया । राज काज में हिस्सा लेने वाले हिन्दू भी फारसी पढ़ने लगे और पायजामा और अचकन का व्यवहार करने लगे । इसी प्रकार भारत में मिली-जुली संस्कृति का विकास हुआ।

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प्रश्न 2.
निर्गुण भक्त संतों की भारत में एक समृद्ध परम्परा रही है। कैसे?
उत्तर-
रामानन्द के अनुयायियों काएक अन्य वर्ग उदारवादी अथवा निर्गुण सम्प्रदाय कहलाता है । इन निर्गुण भक्त संतों ने ईश्वर को तो माना लेकिन उसके किसी रूप को मानने से इंकार कर दिया। ये निराकार ईश्वर में विश्वास करते थे । निर्गुण भक्त संतों ने, जाति-पात, छुआछूत, ऊँच-नीच, मूर्ति-पूजा का घोर विरोध किया ।

ये कर्मकांडों में भी विश्वास नहीं करते थे। निर्गुण भक्त संतों में कबीर को सर्वाधिक प्रमुख संत माना जाता है । ये एक मुखर कवि के रूप में भी प्रसिद्ध है । कबीर इस्लाम और हिन्दू-दोनों धर्म के माहिर जानकार थे । इन्होंने दोनों धर्मों के ढकोसलेबाजी की घोर भर्त्सना की । इनके विचार ‘साखी’ और ‘सबद’ नामक ग्रंथ में सकलित हैं । इन दोनों को मिलाकर जो ग्रंथ बना है उसे ‘बीजक’ कहते हैं ।

कबीर के उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दु धर्म और इस्लाम धर्म, दोनों के आडम्बरपूर्ण पूजा-पाठ और आचार-व्यवहार पर कठोर कुठारापात किया गया । यद्यपि इन्होंने सरल भाषा का उपयोग किया किन्तु कहीं-कहीं रहस्यमयी भाषा का भी उपयोग किया है। ये राम को. तो मानते थे लेकिन इनके राम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र नहीं थे । इन्होंने अपने राम के रूप का इन शब्दों में बताया है :

“दशरथ के गृह ब्रह्म न जनमें, ईछल माया किन्हा ।” इन्होंने दशरथ के पुत्र राम को विष्णु का अवतार मानने से भी इंकार किया :

चारि भुजा के भजन में भूल पड़ा संसार । कबिरा सुमिरे ताहि को जाकि भुजा अपार गुरु नानक देव तथा दरिया साहेब निर्गुण भक्त संतों की परम्परा में ही थे।

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प्रश्न 3.
बिहार के संत दरिया साहेब के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें।
उत्तर-
दरिया साहब का कार्य क्षेत्र तत्कालीन शाहाबाद जिला था, जिसके अब चार जिले-भोजपुर, रोहतास, बक्सर और कैमूर हो गये हैं।

विचार से दरिया साहेब एकेश्वरवादी थे । इनका मानना था कि ईश्वर सर्वव्यापी है तथा वेद और पुराण दोनों में ही उसी का प्रकाश है । ईश्वर को. दरिया साहब ने निर्गुण और निराकार माना। इन्होंने अवतार और पूजा-पाठ को मानने से इंकार कर दिया । इन्होंने मात्र प्रेम, भक्ति और ज्ञान को मोक्ष प्राप्ति का साधन माना ।

इनके अनुसार प्रेम के बिना भक्ति असंभव है और भक्ति के बिना ज्ञान भी अधूरा है । इनका कहना था कि ईश्वर के प्रति प्रेम पाप से बचाता है और ईश्वर की अनुभूति में सहायक बनता है । ये मानते थे कि ज्ञान पुस्तकों में नहीं है, बल्कि चेतना में निहित है, जबकि विश्वास ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण मात्र है । दरिया साहब ने जाति-प्रथा, छुआछूत का विरोध किया । इनके विचारों पर इस्लाम का एवं व्यावहारिक पहलुओं पर निर्गुण भक्ति का प्रभाव दिखाई देता है । इनको मानने वालों में दलित वर्ग की संख्या अधिक थी।

दरिया साहब के विचारों को मानने वालों की सख्या आज के भोजपर, बक्सर, रोहतास और भभुआ जिलों में अधिक थी । उन्होंने वहाँ मठ की भी स्थापना की । इनके मानने वालों की संख्या वाराणसी में भी कम नहीं थी।

दरिया साहब के क्या उपदेश थे, उसे निम्नांकित अंशों से मिल सकते हैं: “एक ब्रह्म सकल घटवासी, वेदा कितेबा दुनों परणासी -1”. “ब्रह्म, विसुन, महेश्वर देवा, सभी मिली रहिन ज्योति सेवा।” “तीन लोक से बाहरे सो सद्गुरु का देश ।” “तीर्थ, वरत, भक्ति बिनु फीका तथा पड़ही पाखण्ड पथल का पूजा ।” दरिया साहब को बहुत हद तक कबीर का अनुगामी कहा जा सकता है।

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प्रश्न 4.
मनेरी साहब बिहार के महान सुफी संत थे। कैसे?
उत्तर-
मनेरी, साहब का पूरा नाम था ‘हजरत मखदुम शरफुद्दीन याहिया मनेरी । बिहार में फिरदौसी परम्परा के संतों में मनेरी साहब का विशेष महत्व है। भारत में मिली-जुली संस्कृति की जो पवित्र धारा सूफी संतों ने बहायी, उस संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने ही किया। इन्होंने संकीर्ण विचारधारा का न केवल विरोध किया, बल्कि जाति-पाति एवं धार्मिक कट्टरता का भी विरोध किया । इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया ।

इनके प्रयास से फिरदौसी परम्परा को बिहार में काफी लोकप्रियता मिली । मनेरी साहब ने मनेर से मुनारगाँव, जो अभी बांग्लादेश में पड़ता है, तक की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया । इसके बाद ये राजगीर तथा बिहारशरीफ में तपस्या करते हुए धर्म प्रचार में भी लीन रहे। फारसी भाषा में उनके पत्रों के दो संकलन मकतुबाते सदी एवं मकतुबात दो ग्रंथ प्रमुख हैं। मनेरी साहब ने हिन्दी में भी बहुत लिखा है, जिनमें इन्होंने ईश्वर को अपने सूफियाना ढंग से व्यक्त किया है । इन्होंने इस लेख में अपने को प्रेयसी तथा ईश्वर या अल्ला को प्रेमी माना है ।

मनेरी साहब का मजार मनेर में न होकर बिहार शरीफ में इनकी मजार के बगल में ही उनकी माँ बीबी रजिया का भी मजार है । बीबी रजिया सूफी संत पीर जगजोत की बेटी थी।

प्रश्न 5.
महाराष्ट्र के भक्त संतों की क्या विशेषता थी?
उत्तर-
महाराष्ट्र के भक्त संतों की विशेषता को जानने के लिये हमें 13वीं सदी से 17वीं सदी तक ध्यान देना होगा । भक्त संतों की परम्परा के जन्मदाता रामानुज थे जो दक्षिण भारत के थे। उन्हीं के उपदेशों को भक्त संतों ने पक्षिण

भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैलाया । महाराष्ट्र में 13वीं सदी में नामदेव ने। भक्ति धारा को प्रवाहित किया, जिसे 17वीं सदी में तुकाराम ने आगे बढ़ाया।

इस बीच हम भक्त संतों की एक समृद्ध परम्परा को देखते हैं । इन भक्त संतों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति एवं प्रेम के सिद्धान्त को लोकप्रिय बनाया । इन संतों ने धार्मिक आडम्बर, मूर्ति पूजा, तीर्थ व्रत, उपासना और कर्मकाण्डों का घोर विरोध किया और कहा कि यह सब कुछ नहीं, केवल दिखावा मात्र है।

इन्होंने आयों की वर्ण व्यवस्था को भी मानने से इंकार कर दिया और जाति-पाति, ऊंच-नीच के भेदभाव का घोर विरोध किया । इनके अनुयायियों ने सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया।

महाराष्ट्र के इन संतों ने भक्ति की यह परम्परा पंढरपुर में विट्ठल स्वामी को जन-जन के ईश्वर और आराध्य के रूप में स्थापित किया । ये विठ्ठल स्वामी विष्णु के ही एक रूप श्रीकृष्ण थे । महाराष्ट्रीय भक्त संतों की रचनाओं में सामाजिक कुरीतियों पर करारा प्रहार किया गया । इन्होंने सभी वर्गों, जातियों, यहाँ तक कि अंत्यज कहे जाने वाले दलितों को भी समान दृष्टि से देखा । इन भक्त संतों ने अपने अभंग द्वारा सामाजिक व्यवस्था पर ही प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया।

संत तुकाराम ने अपने अभंग में लिखा
जो दीन-दुखियों, पीड़ितों को
अपना समझता है वही संत है क्योंकि ईश्वर उसके साथ है।

विचारणीय मुद्दे

प्रश्न 1.
मध्यकालीन भक्त संतों में कुछ अपवादों को छोड़कर एक समान विशेषताएँ थीं। कैसे?
उत्तर-
मध्यकालीन भारत में भक्त आंदोलन के उद्भव और विकास में कई परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं । वैदिक पंडा-पुरोहित कर्मकांडों को आधार बनाकर जनता का शोषण करते थे । जो कर्मकांडों के व्यय को वहन करने योग्य नहीं थे, उन्हें नीच करार दिया गया । इस कारण समाज में दलितों की संख्या बढ़ गई । इन्हीं बुराइयों को दूर करने में भक्त संत लगे रहे । यद्यपि आगे चलकर इनमें भी दो मतावलम्बी हो गये, लेकिन धर्म सुधार की जिस मकसद से ये संत बने थे उसमें कोई अन्तर नहीं आया । इसलिये कहा गया है कि कुछ अपवादों को छोड़कर भक्त संतों की एक समान विशेषताएँ थीं।

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प्रश्न 2.
शंकराचार्य ने भारत को सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बांधा। कैसे?
उत्तर-
शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठों का निर्माण कर भारत को सांस्कृतिक रूप में एक सूत्र में बाँधने का काम किया । वे चारों मठ थे:

उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी, परब में परी तथा पश्चिम में द्वारिका । इस प्रकार हर भारतीय जीवन में एक बार इन मठों में जाकर पूजा अर्चना करना अपना एक कृत्य मानने लगा । इससे सम्पूर्ण भारत धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से एक सूत्र में बंध गया । उस शंकराचार्य को आदि शंकराचार्य कहते हैं। अभी हर मठ के अलग-अलग शंकराचार्य होते हैं, ताकि परम्परा कायम रहे । एक शंकराचार्य की मृत्यु के बाद दूसरे शंकराचार्य नियुक्त ‘ हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
क्या आपके गाँव के पुजारी मध्यकालीन संतों की तरह कर्मकांड, जात-पात, आडम्बर आदि का विरोध करते हैं? अगर नहीं तो क्यों ?
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्रों में अभी बहुत बदलाव नहीं आया । अभी भी यहाँ के पुजारी कर्मकांड, जातपात, आडम्बर आदि का विरोध नहीं करते । कारण कि यदि वे ऐसा करें तो उनकी रोजी ही समाप्त हो जाय । दूसरी बात है कि गाँव के ऊँची जातियाँ उनका समर्थन भी करती है । इसलिये कानून की परवाह किये बिना वे लगातार लकीर के फकीर बने हुए है । आर्य समाज का जबतक बोलबाला था तब तक इसमें कुछ कमी आई थी । लेकिन अब वे निरंकुश हो गये हैं। सरकार भी कुछ नहीं कर पाती ।

प्रश्न 4.
क्या आपने हिन्दू और मुसलमानों को साथ रहते हुए देखा है? उनमें क्या-क्या समानताएँ हैं ?
उत्तर-
मैं तो जन्म से ही हिन्दू और मुसलमानों को साथ-साथ रहते हुए देखा है। हमने देखा ही नहीं है, बल्कि साथ-साथ रहे भी हैं और आज भी साथ-साथ रह रहे हैं। अभी का आर्थिक जीवन इतना पेचिदा हो गया है कि बिना एक-दूसरे का सहयोग लिये हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते। हम सभी साथ-साथ है । कभी-कभी कुछ राजनीतिक कारणों से विभेद-सा लगता है, हे अन्दर से सभी साथ-साथ हैं । कुछ राजनीतिक दल तो ऐसे

हैं जो एक होने ही नहीं देना चाहते हैं ? सदैव लड़ाते रहना चाहते हैं । वे यही दिखाने में मशगूल रहते हैं कि कौन पार्टी कितना मुसलमानों की हितैषी है। लेकिन इस धूर्तता को मुसलमान भी समझ गये हैं । इसका उदाहरण अभी बिहार और गुजरात है। अब राजनीतिक आधार पर वोट पड़ने लगे हैं । ध म और जाति के आधार पर नहीं ।

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प्रश्न 5.
सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये आप क्या-क्या करना चाहेंगे, जिससे सौहार्दपूर्ण माहौल बने ?
उत्तर-
सांस्कृतिक रूप से सभी धर्मावलम्बियों को और करीब लाने के लिये हम सभी मिलजुलकर संस्कृत उत्सव मनाएँगे । उनके शादी-विवाह आदि खुशी के मौके पर उनको अपने यहाँ बुलाएँगे और उनके बुलावे पर उनके यहाँ जाएँगे । ऐसा करना क्या है, सदियों से ऐसा होता भी आया है और अभी भी हो रहा है । यदि राजनीतिक नेता चुप रहें तो कहीं कोई गड़बड़ी नहीं होगी।

Bihar Board Class 7 Social Science सामाजिक-सांस्कृतिक विकास Notes

पाठ का सार संक्षेप

भारत में प्राचीन काल से ही मेल-जोल की परम्परा रही है। तर्क-अफगान आक्रमणकारियों के पहले जितने भी आक्रमणकारी आये, वे हारे या जीते यहीं के होकर रह गये । आज कौन यूनानी है और कौन शक या हूण किसी की कोई पहचान नहीं, सब परस्पर घुल-मिल गये । तुर्क-अफगानों के बाद मुगल आये । आरम्भ में थोड़ा-बहुत मनोमालिन्य के बाद सभी एक-दूसरे के साथ घुलमिल गये, लेकिन इन्होंने अपनी पहचान कायम रखी । वैसे तो व्यापारिक काम से अरब के लोग सातवीं सदी के आरम्भ से ही आना आरम्भ कर दिये थे, जिस समय इस्लाम का जन्म भी नहीं हुआ था । इस्लाम के फैलने के बाद पहला आक्रमण आठवीं सदी में मुहम्मद-बिन-कासिम के नेतृत्व में सिंध और दक्षिण-पश्चिम पंजाब पर हुआ और वहाँ उनका शासन स्थापित हो गया। लेकिन ये अल्पकाल तक ही टीक पाये।

सिलसिलेवार आक्रमण महमूद गजनवी का था, किन्तु राज्य विस्तार के लिये नहीं, बल्कि लूट-पाट मचाने के लिये । इसके लूट-पाट की खबरों से भारतीय राजाओं की शक्ति की पोल खुल गई । मुहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर यहाँ दिल्ली को हड़प लिया । उसी ने यहाँ उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र को अपने नियंत्रण में कर दिल्ली सल्तनत की नींव डाल दी। स्वयं तो गोरी लौट गया किन्तु अपने एक विश्वासी सेनापति को यहाँ का शासन सौंप गया । सेनापति चूँकि उसका गुलाम था, अत: उसके वंश को गुलाम वंश कहा गया । 1206 में गुलाम वंश की स्थापना हो चुकी थी।

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तेरहवीं शताब्दी के आरम्भ से तुर्क-अफगानों के साथ कुछ बौद्धिक स्तर, पर मेलजोल बढ़ने लगा था । अलबरूनी ने हिन्दुओं के धर्म, विज्ञान और सामाजिक जीवन से सम्बद्ध ‘किताब-उल-हिन्द’ लिखी । सूफी संत और इस्लाम धर्म प्रचारक गाँव-गाँव घूमकर लोगों को मन से तुर्कों के निकट लाने का सफल प्रयास किया । सूफी संतों के प्रति हिन्दुओं का उतना ही सम्मान . था जितना मुसलमानों का । खानकाहों और पीरों के दरगाहों पर हिन्दुओं का आना-जाना बढ़ गया । तुर्क-अफगान और मुगलों के शासन कार्य की भाषा फारसी थी । अतः हिन्दू राज्य कर्मचारियों को फारसी पढ़ना पड़ा । आगे चलकर फारसी, तुर्की, ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली हिन्दी को मिलाकर उर्दू भाषा का विकास हुआ । उर्दू ने हिन्दू-मुसलमानों को और भी निकट ला दिया ।

यद्यपि कागज का आविष्कार चीन में हुआ, लेकिन इसके तकनीक को भारत में लाने वाले फारस वाले ही थे । इससे लाभ हुआ कि अब भारत में पुस्तक लेखन का काम पत्तों के बजाय कागज पर होने लगा । जिन हिन्दुओं ने इस्लाम धर्म को कबूला, उन्होंने शादी-विवाह की अपनी पुरानी परम्परा को । जारी रखा । कुछ बाहरी मुसलमान भारतीय परम्पराओं को अपनाने लगे । इससे एक मिल-जुली संस्कृति का विकास हुआ ।
भारत में भक्ति अर्थात ईश्वर के प्रति अनुराग की परम्परा प्राचीन काल से ही चलती आई है। दक्षिण भारत में भक्ति एक आन्दोलन के रूप में चल पड़ी । इन्होंने तीन मार्ग, बताए :

  1. ज्ञान मार्ग
  2. कर्म मार्ग तथा
  3. भक्ति मार्ग ।

श्रीमद्भागवत बताता है कि मनुष्य भक्ति भाव से ईश्वर की शरण में जाकर पुनर्जन्म के झंझट से मुक्ति प्राप्त कर सकता है । पुराणों में उल्लेख है कि भक्त भले ही किसी जाति-पाति का हो, वह सच्ची भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है । वेदों और उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा के बीच सीधा सम्बंध स्थापित करने का विचार व्यक्त किया गया है । उपनिषदों ने धार्मिक ब्राह्माडम्बर को त्यागने को कहा ।

वैदिक रीति-रिवाज, पूजा-पाठ, धार्मिक कर्मकांड काफी महंगा हो गया था । पुरोहित अपने लाभ के लिये कर्मकाण्ड को खर्चीला बनाते जा रहे थे । सर्वसाधारण इन पाखंडों से ऊबने लगा था । दलित वर्ग छुआ-छूत और ऊँच-नीच के भेद-भाव से अपने को अपमानित महसूस कर रहा था ।

इस्लाम धर्म एकेश्वरवादी एवं समतावादी सिद्धान्त का प्रचार करता था। इस्लाम में कोई ऊँच और न कोई नीच होता है । इससे भक्त संतों ने हिन्दू-ध म में आत्म सुधार के प्रयास शुरू किए और भक्ति आन्दोलन चल पड़ा । भक्ति आन्दोलन को आप लोगों तक पहुँचाने का काम तमिल क्षेत्र के अलवार और नयनार संतों ने किया । इन्होंने भी पुनर्जन्म से मुक्ति और ईश्वर के पूर्ण भक्ति पर बल दिया । इन्होंने समाज के सभी लोगों के बीच अपने

मत का प्रचार किया । भक्त संतों का आम जनों से सीधा संबंध था । फलतः लोगों ने इनके सम्मान में मंदिरों का निर्माण किया तथा इनकी जीवनियाँ लिखीं।

भक्ति काल में ही महान दार्शनिक आदि शंकराचार्य का प्रादुर्भाव हुआ। … अपनी 32 वर्ष की अल्पाआयु में इन्होंने भारत के चारों ओर मठों का निर्माण

कराया, जिससे देश की एकता हर तरह से बनी रहे । शंकराचार्य ने उत्तर में बद्रीकाश्रम, दक्षिण में शृंगेरी मठ, पूरब में पुरी तथा पश्चिम में द्वारिका मठ का निर्माण कराया और वहाँ पुजारियों को नियुक्त किया । शंकराचार्य अद्वैतवादी सिद्धांत के प्रतिपादक थे। उनका मानना था कि केवल ब्रह्म ही सत्य है, बाकी सब मिथ्या हैं। इनके मत को रामानुज ने आगे बढ़ाया।

दक्षिण भारत में ‘वीरशैव’ आन्दोलन शुरू हुआ । इन्होंने ब्राह्मणवाद के विरुद्ध निम्न जातियों और नारियों के प्रति समर.कदी विचार प्रस्तुत किये । मूर्तिपूजा और कर्मकाण्डों का विरोध किया गया । रामानुज के विचार सम्पूर्ण दक्षिण भारत से लेकर महाराष्ट्र तक फैल गया ।

महाराष्ट्र की वैष्णव भक्ति की धारा में 13वीं सदी के नामदेव से 17वीं सदी के तुकाराम तक भक्तों की एक समृद्ध परम्परा देखने को मिलती है। इन लोगों ने ईश्वर के प्रति श्रद्धा, भक्ति और प्रेम के सिद्धान्त का प्रचार किया। इन्होंने मूर्ति पूजा, तीर्थ, कर्मकाण्ड आदि का खण्डन किया, ऊँच-नीच के भेद-भाव का विरोध किया तथा अपने अनुयायियों में सभी जाति के लोगों, महिलाओं और मुसलमानों को भी शामिल किया ।

तेरहवीं सदी के बाद उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन सुधारवादी आन्दोलन में बदल गया। इस आधार पर ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म, इस्लाम, सूफी संतों एवं तत्कालिन धार्मिक सम्प्रदायों नाथ पंथियों, सिद्धों तथा योगियों आदि की विचारधाराओं को स्पष्ट झलक देखने को मिलती है । इसमें सूफी संतों का भी योग था ।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

रामानुज की भक्ति परम्परा को उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाने का श्रेय रामानन्द को है । कबीर रामानन्द को ही अपना गुरु मानते थे । कबीर ने इनके मत के प्रचार के लिये बहुत कुछ किया । जाति-पाति और धर्म आदि सबसे ऊपर उठकर कबीर ने कहा : “जात-पात पूछे नहिं कोई, हरि को भजै सी हरि को होई ।”

सगुण सम्प्रदाय वाले राम को विष्णु का अवतार मानते हैं, जबकि निर्गुण सम्प्रदाय वाले ईश्वर की कल्पना निराकार ब्रह्म के रूप में करते हैं । सगुण सम्प्रदाय के प्रमुख संत तुलसी दास थे। वैष्णव धर्म की परम्परा में कृष्ण भक्तों की भी अच्छी जमात है। इस परम्परा के प्रमुख कवि थे मीरा बाई, चैतन्य महाप्रभु, सूरदास, रसखान आदि ।

कबोर ने ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म और इस्लाम-दोनों के ब्राह्मडबर तथा कार्यकलापों की निन्दा की । कबीर के समकालीन गुरुनानक थे । ये भी सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों के विरोधी थे। इनको मानने वाले ‘सिक्ख’ कहलाते हैं । एसे संतों में दरिया साहब भी एक प्रमुख संत थे । बिहार के शाहाबाद क्षेत्र में इन्होंने अपने मत का प्रचार किया । ये भी एकेश्वरवादी थे। इन्हें मानने वाले वाराणसी तक में थे ।

सूफीवाद के तहत रहस्यवाद की भावना का अर्थ था कि ईश्वर के रहस्य को जानने का प्रयास करना । भक्त संतों तथा सूफी संतों में काफी समानता थी। सूफी संतों ने मूर्ति पूजा को अस्वीकार किया और एकेश्वरवाद को माना ।

इस्लाम ने शरियत एवं नमाज को प्रधानता दी. जबकि सफी ईश्वर के साथ किसी की परवाह किये बगैर वैसे ही जुड़ा रहना चाहते थे जिस प्रकार बच्चा अपनी माँ से ।

भारत में सबसे पहले सूफी खानकाह की स्थापना का श्रेय सुहरावर्दी परम्परा के संत बहाउद्दीन जकरिया को है । इस परम्परा के संतों ने राजकीय सहयोग से सुखमय जीवन व्यतीत किया और धर्मान्तरण को बढ़ावा दिया ।

खानकाह शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्र थे । यहाँ अरबी और फारसी की शिक्षा दी जाती थी। यहाँ हिन्दू और मुसलमान दोनों शिक्षा पाते थे । फुलवारी शरीफ का खानकाह बहुत प्रसिद्ध था । यहाँ की लाइब्रेरी अत्यंत समृद्ध है और यहाँ पाण्डुलिपियों का अम्बार है। देश-विदेश के शोधकर्ता यहाँ आते थे और आते हैं।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 7 सामाजिक-सांस्कृतिक विकास

भारत में चिश्ती परम्परा भी काफी लोकप्रिय हुई । इसकी स्थापना अजमेर, शरीफ में ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने की थी। इस परम्परा के महत्त्वपूर्ण चिश्ती थे राजस्थान के हमीदुद्दीन नागोरी, दिल्ली के ख्वाजा निजामद्दीन औलिया । निजामुद्दीन औलिया को इस सम्प्रदाय के फैलाने का श्रेय दिया जाता है।

भारत की मिली-जुली संस्कृति को बिहार में मजबूत करने का काम मनेरी साहब ने किया। इन्होंने समन्वयवादी संस्कृति के निर्माण का सक्रिय प्रयास किया। मनेरी साहब ने मनेर से सुनार गाँव की यात्रा की और ज्ञानार्जन किया । इन्होंने राजगीर एवं बिहार शरीफ में तपस्या की और धर्म प्रचार किया । मनेरी साहब का मजार बिहार शरीफ में है ।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 6 शहर, व्यापारी एवं कारीगर

Bihar Board Class 7 Social Science शहर, व्यापारी एवं कारीगर Text Book Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

फिर से याद करें :

प्रश्न 1.
शासक, व्यापारी एवं धनाढ्य लोग मंदिर क्यों बनवाते थे?
उत्तर-
शामक, व्यापारी एवं धनाढय लोग मंदिर इसलिये बनवाते थे ताकि उनकी धार्मिक आस्था का प्रकटीकरण हो सके। नाम कमाने के साथ पुण्य कमाने की इच्छा भी रहती हागी । अपन को शक्तिशाली और धनी होने की धाक जमाना भी कारण रहा होगा ।

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प्रश्न 2.
शहरों में कौन-कौन लोग रहते थे ?
उत्तर-
शहरों में व्यापारी, दस्तकार, शिल्पी, आभूषण बनाने वाले सब्जी ‘ बेचने वाले, जूता बनाने वाले, रंगरेज आदि रहते थे । व्यापारियों में अनाज बेचने वाले और कपड़ा बेचने वाले दोनों रहते थे । बड़े शहरों में थोक खरीद बिक्री भी होता था ।

प्रश्न 3.
व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के क्या साधन थे?
उत्तर-
व्यापारिक वस्तुओं के यातायात के लिये सड़क विकसित थे । सड़कों पर बैलगाड़ी, घोड़ा, खच्चर सामान ढोने के साधन थे । दूर-दराज का व्यापार नदी मार्गों से होता था । तटीय क्षेत्रों में समुद्री मार्ग का उपयोग भी होता था । बन्दरगाहों को अच्छी सड़कों द्वारा जोड़ा गया था । विदेश व्यापार समुद्री जहाजों द्वारा होता था । ऊँट भी सामान ढाने के अच्छे साधन थे।

प्रश्न 4.
सतरहवीं शताब्दी में किन यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का भारत में आगमन हुआ ?
उत्तर-
सतरहवीं शताब्दी में अंग्रेज, हॉलैंड (डच) और फ्रांस के यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों का आगमन हुआ । पुर्तगाली पन्द्रहवीं शताब्दी में ही आ चुके थे।

प्रश्न 5.
सुमेल करें :

  1. मंदिर नगर – (i) दिल्ली
  2. तीर्थ स्थल – (ii) तिरुपति
  3. प्रशासनिक नगर – (iii) गोआ
  4. बन्दरगाह नगर – (iv) पटना
  5. वाणिज्यिक नगर – (v) पुष्कर

उत्तर-

  1. मंदिर नगर – (ii) तिरुपति
  2. तीर्थ स्थल – (v) पुष्कर
  3. प्रशासनिक नगर – (i) दिल्ली
  4. बन्दरगाह नगर – (iii) गोआ
  5. वाणिज्यिक नगर – (iv) पटना

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आइए समझें 

प्रश्न 6.
मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची बनाइए।
उत्तर-
मध्यकालीन भारत में आयात-निर्यात की वस्तुओं की सूची निम्न है

निर्यात की वस्तुएँ – आयात की वस्तुएँ

  1. मसाले – ऊनी वस्त्र
  2. सूती कपड़े – सोना
  3. नील – चाँदी
  4. जडी-बूटी – हाथी दाँत
  5. खाद्य सामग्री – खजूर
  6. सूती धागा – सूखे मेवे रेशम (चीन से)

प्रश्न 7.
भारत में यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों के आगमन के कारणों को रेखांकित कीजिए।
उत्तर-
यूरोपीय व्यापारियों को भारतीय मसालों और बारीक मलमल की भनक लग गई थी। पहले तो भारतीय व्यापारी ये वस्तएँ लेकर यरोप जाते थे और वहाँ से सोना-चाँदी लादकर समुद्री जहाजों से भारत लाते थे। बाद में फारस के व्यापारी मध्यस्थ बन गए और वे भारत से माल लेकर यूरोप जाने लगे । यूरोपीय व्यापारी यह काम स्वयं करना चाहते थे। उन्हें किसी की मध्यस्थता स्वीकार नहीं था ।

सबसे पहले पुर्तगाल का एक नाविक 1498 में वहां की सरकार की मदद से भारत पहुंचने का निश्चय किया । उसने उत्तमाशा अंतरीप का मार्ग पकड़ा और भारतीय तट पर पहुँचने में सफलता पाई । यहाँ से उसने स्वयं व्यापार करना आरम्भ किया ।

इसके बाद इंग्लैंड, हॉलैंड और फ्रांस का ध्यान इस ओर गया। ये भी सत्रहवीं शताब्दी में भारत पहुंच गये और व्यापार करना आरम्भ किया । अंग्रेजों ने कपड़े खरीदने पर अधिक ध्यान दिया । इसके लिये ये दलालों के मार्फत करघा चालकों को अग्रिम रकम भी देने लगे । आगे चलकर विभिन्न स्थानों में इन विदेशियों ने अपनी-अपनी कोठियाँ बनाईं । यूरोपीय कम्पनियों के भारतीय दलाल ‘दादनी’ कहलाते थे।

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प्रश्न 8.
आपके विचार से मंदिरों के आसपास नगर क्यों विकसित हुए?
उत्तर-
हम सभी जानते हैं कि भारत एक धर्म प्रधान देश रहा है । देवी-देवताओं के प्रति यहाँ के लोगों के मन में अपार श्रद्धा रहती आई है। अतः जहाँ-जहाँ मंदिर बने वहाँ-वहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ जुटने लगी । अधि क लोगों के आवागमन के कारण उनके उपयोग की वस्तुओं की दुकानें खलने लगीं । बाद में स्थानीय लोग भी इन उत्पादों को खरीदने लगे । इसी तरह क्रमशः मंदिरों के आसपास नगर विकसित हो गए।

प्रश्न 9.
लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लोगों के जीवन में मेले एवं हाटों की भूमिका बड़े महत्त्व की थी। हाटों से वे नित्य उपयोग की वस्तुएँ खरीदते थे। जो अन्न या सब्जी वे नहीं उपजा पाते थे, उन्हें वे हाटों से खरीदते थे। मेलों का महत्त्व इस बात में था कि उत्कृष्ट वस्तुएँ मेलों में ही उपलब्ध होती थीं । देश भर के कलाकार और शिल्पी अपने उत्पाद लेकर मेलों में आते थे । वे ऐसी वस्तुएँ हुआ करती थीं जो सामान्यतः हाट-बाजारों में उपलब्ध नहीं होती थीं । लोग मेलों का बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा करते थे । वहाँ मनोरंजन के साधन भी उपलब्ध हो जाते थे। .आइए विचार करें:

प्रश्न 10.
इस अध्याय में वर्णित शहरों की तुलना अपने जिले में स्थित शहरों से करें। क्या दोनों के बीच कोई समानता या असमानता है?
उत्तर-
इस अध्याय में वर्णित शहर चहारदीवारियों से घिरे होते थे लेकिन हमारे जिले का शहर चारों ओर से खुला है। वर्णित शहर जैसे हमारे जिले

में भी खास-खास वस्तुओं के खास-खास महल्ले हैं । यहाँ थोक और खुदरा-दोनों प्रकार के व्यापार हैं । जिलों में सरकारी अधिकारी भी रहते हैं। । राज्य कर्मचारियों के अलावा व्यापारियों के कर्मचारी भी रहते हैं । हमारे जिले के शहर में सड़क और पानी की व्यवस्था के लिए नगरपालिका है जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है । रात में सड़कों पर रोशनी का प्रबंध है. जबकि वर्णित शहरों में इनका कोई उल्लेख नहीं है।

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प्रश्न 11.
धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
धातुमूर्ति निर्माण के लुप्त मोम तकनीक के अनेक लाभ थे । पहला लाभ तो यह था कि इस तकनीक से मनचाही आकृति की मूर्ति बनाई जाती थी । मोम बर्बाद नहीं होता था । पिघलाकर निकालने के बाद उसे पुनः ठोस रूप में प्राप्त कर लिया जाता था। इस तकनीक में कम ही समय में अधिक मूर्तियाँ बनाई जा सकती थीं।

Bihar Board Class 7 Social Science शहर, व्यापारी एवं कारीगर Notes

पाठ का सार संक्षेप

पाठ में नगों के चार प्रकार बताये गये हैं :

  1. प्रशासनिक नगर
  2. मंदिर एवं तीर्थ स्थलीय नगर
  3. वाणिज्यिक नगर तथा
  4. बन्दरगाह अर्थात् पत्तनीय नगर ।

प्रशासनिक नगर सत्ता के केन्द्र थे । इन्हें राजधानी मान सकते हैं । शासक और रनव अधिकारी, परिवार तथा नौकर-चाकर रहते थे । शासक यहीं से सारा करता था । राज्य कर्मचारियों की आवश्यकता पूर्ति के लिए दुकानें हुआ करता थीं । यहाँ थोक और खुदरा, दोनों तरह के व्यापारी रहते थे । मंदिर एवं तीर्थ स्थलीय नगरों में भी दुकानें होती थीं । तीर्थ यात्रियों की आवश्यकता पूर्ति ये ही करते थे । वहाँ की प्रमुख एवं प्रसिद्ध वस्तुएँ दुकानकार ही बेचते थे।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है वाणिज्यिक नगर वाणिज्य व्यापार के केन्द्र थे । खास-खास वस्तुओं के लिए खास-खास केन्द्र थे । बन्दरगाह या पत्तनीय नगर विदेश व्यापार के केन्द्र थे । गाँवों में तैयार या उपजायी वस्तुएँ व्यापारिक नगरों में एकत्र होती थीं और वहाँ से पत्तन तक पहुँचाई जाती थी । वहाँ से

जहाजों द्वारा विदेशों में जाती थीं । बाद में विदेशी व्यापारियों के आने के कारण ये प्रशासनिक और सैनिक केन्द्र का रूप लेने लगे।

नगरों के मुख्य आकर्षण मडियाँ थीं । शहरों के बाजारों में देश-विदेश के व्यापारी आया-जाया करते थे । देश का आंतरिक व्यापार विकास पर था । बैलों और घोड़ों पर लादकर बंजारे यहाँ से वहाँ माल पहुँचाते रहते थे । आंतरिक व्यापार में बंजारों का प्रमुख स्थान था । ये सेना के लिये भी जरूरी सामान मुहैया कराते थे।

बड़े व्यापार कुछ खास-खास समुदाय ही करते थे, जैसे : उत्तर भारत में मुलतानी, गुजरातनी, दक्षिण भारत के मलय, चेट्टी एवं मूर । मूर व्यापारी अरब, तुर्की, खुरासान के मुस्लिम व्यापारी थे । भारत के पश्चिम तट पर सूरत, भड़ौच, खंभात, कालीकट, गोआ आदि बन्दरगाहों से मसाला, सूती कपड़ा, नील, जड़ी-बूटी पश्चिमी देशों में भेजे जाते थे । पूर्वी तट के बन्दरगाहों में हुगली, सतगाँव, पुलीकट, मसुलीपट्टनम, नागपट्टनम से कपड़ा, अनाज, सती धागा आदि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को भेजे जाते थे !

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भारत में सड़कों का जाल बिछा था । कुछ सड़क बन्दरगाहों से जुड़े थे । नदी मार्ग की भी प्रमुखता थी । बैलगाड़ी, बैल, घोड़े, खच्चर आदि व्यापारिक माल लाने-ले-जाने के काम करते थे । लेन-देन में सिक्कों की प्रमुखता थी । व्यापारियों का एक वर्ग सर्राफों का था । हँडियों का चलन भी था । सर्राफ बैंकर का भी काम करते थे ।

यूरोप के व्यापारी कपड़ों तथा मसालों के लिये भारत की खोज में लगे हुए थे । इसमें 1498 में पुर्तगाल का नाविक वास्को-डि-गामा उतमाशा अंतरीप होते हुए भारत पहुँचने में सफल हो गया । पुर्तगालियों ने हिन्द महासागर से लेकर लाल सागर तक के क्षेत्र में अपने को महत्त्वपूर्ण जहाजी शक्ति का इस्तेमाल कर इस रास्ते पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया ।

पुर्तगालियों ने गोवा, कालीकट, कोचीन, हुगली, मयलापुर में अपने सैनिक अड्डे स्थापित कर लिये। काली मिर्च, नील, शोरा, सृती वस्त्र, घोड़े उनके व्यापार की मुख्य वस्तुएँ थीं। सतरहवीं सदी में अन्य यूरोपीय देशों ने भी भारत में अपनी पहुँच दर्ज कराई। इनमें इंग्लैंड, हॉलैंड तथा फ्रांस के व्यापारी प्रमुख थे। इन्होंने तटीय क्षेत्रों में अपनी कोठियाँ बनाईं। व्यापार के सिलसिले में इन चारों युरोपीय देशों में संघर्ष हुआ, जिनमें सबको दबाकर अंग्रेज आगे निकल गये । ये छल और बल दोनों का इस्तेमाल करते थे।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

Bihar Board Class 7 Social Science Solutions History Aatit Se Vartman Bhag 2 Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

Bihar Board Class 7 Social Science शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल Text Book Questions and Answers

पाठगत प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लिंगराज और. महाबोधि मंदिर की संरचना में क्या. अंतर दिखता है ?
उत्तर-
लिंगराज मंदिर का ऊपरी भाग जहाँ कम पतला है वहीं महाबोधि मंदिर का ऊपरी भाग नुकीला होता गया है । लिंगराज मंदिर के पास छोटे मंदिरों का एक समूह दिखाई देता है वहीं महाबोधि मंदिर में मात्र दो ही छोटे मंदिर दिख पाते हैं।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

प्रश्न 2.
कोणार्क का सूर्य मंदिर तथा मीनाक्षी मंदिर के ऊपरी भागों में क्या अंतर है?
उत्तर-
कोणार्क का सूर्य मंदिर का शिखर मीनाक्षी मंदिर की अपेक्षा छोटा है। कोणार्क मंदिर का शिखर त्रिकोणकार है जबकि मीनाक्षी मंदिर का शिखर चौकोर है और ऊपर धनुषाकर होता गया है।

अभ्यास के प्रश्नोत्तर

आओ याद करें :

प्रश्न 1.
मध्यकाल में मंदिर निर्माण की कितनी शैलियाँ मौजूद थीं ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) तीन
(घ) दो
उत्तर-
(ग) तीन

प्रश्न 2.
बिहार में नागर शैली में बने मंदिरों का सबसे अच्छा उदाहरण । कौन-सा है?
(क) महाबोधि मंदिर
(ख) देव का सूर्य मंदिर
(ग) पटना का महावीर मंदिर
(घ) गया का विष्णु मंदिर
उत्तर-
(क) महाबोधि मंदिर

प्रश्न 3.
मुसलमानों द्वारा बिहार में बनाई गई सबसे महत्त्वपूर्ण इमारत कौन है ?
(क) मलिकबया का मकबरा
(ख) बेगु हजाम की मस्जिद
(ग) तेलहाड़ा की मस्जिद
(घ) मनेर की दरगाह ।
उत्तर-
(घ) मनेर की दरगाह ।

प्रश्न 4.
मुगलकालीन स्थापत्य कला अपने चरम पर कब पहुँचा?
(क) अकबर के काल में
(ख) जहाँगीर के काल में
(ग) शाहजहाँ के काल में
(घ) औरंगजेब के काल में
उत्तर-
(ग) शाहजहाँ के काल में

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प्रश्न 5.
शाहजहाँ ने लाल किला का निर्माण दिल्ली में किस वर्ष करवाया ?
(क) 1638
(ख) 1648
(ग) 1636
(घ) 1650
उत्तर-
(क) 1638

आओ याद करें

प्रश्न 1.
सही और गलत की पहचान करें :

  1. उत्तर भारत में मंदिर निर्माण की द्राविड़ शैली प्रचलित थी ।
  2. कोणार्क का सूर्य मंदिर बंगाल में स्थित है।
  3. मुगलकालीन वास्तुकला अकबर के शासन काल में अपने चरम । विकास पर पहुँचा ।।
  4. शेरशाह का मकबरा सल्तनत काल और मुगल काल की वास्तुकला के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाता है ।
  5. बिहार में मुस्लिम उपासना स्थल निर्माण का प्रथम उदाहरण बेगुहजाम मस्जिद है ।

उत्तर-

  1. गलत है। सही है कि ‘नागर शैली’ प्रचलित थी।
  2. गलत है । सही है कि ‘उड़ीसा’ में है ।
  3. गलत है । सही है कि ‘शाहजहाँ’ के शासन काल में।
  4. सही है।
  5. गलत है । सही है कि मनेर का दरगाह प्रथम उदाहरण है ।

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आइए विचार करें

प्रश्न 1.
मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान कैसे होता है ?
उतर-
मध्यकालीन शासकों ने जितने मंदिर बनवाये, यह उनकी आस्था का प्रतीक तो था ही, यह भी सम्भव है कि वे राजा प्रजा को यह दिखाना चाहते हों कि वे उनकी आस्था को भी आदर देना चाहते हैं । वे प्रजा से अपने आदर के भी आकांक्षी थे। वे यह भी दिखाना चाहते थे कि वे न सिर्फ सैनिक शक्ति में, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी मजबूत हैं । वे वास्तकारों को रोजगार भी महया कराना चाहते थे । इस प्रकार हम देखते हैं कि मंदिरों के निर्माण से राजा की महत्ता का ज्ञान निश्चित ही प्राप्त होता है ।

प्रश्न 2.
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर आप क्या अन्तर देखते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान इमारत और मध्यकालीन इमारतों में उपयोग की जाने वाली सामग्री के स्तर पर हम यह अंतर पाते हैं कि वर्तमान में ईंट, बालू, सीमेंट, छड़ की प्रधानता रहती है । कुछ धनी-मानी लोग फर्श बनाने में, संगमरमर का उपयोग भी करते हैं । इसके पूर्व अंग्रेजी काल में ईंट, चूना-सूर्जी का गारा, लकड़ी और छड़ आदि का उपयोग होता था । 1950 के पहले के बने इमारतों में ये ही सामग्रियाँ व्यवहार की जाती थीं । मध्यकालीन इमारतों में मुख्य सामग्री पत्थर थे । पत्थरों को तराशा जाता था । मन्दिरों की बाहरी और भीतरी दीवारों को विभिन्न प्रकार की मूर्तियों से अलंकृत किया जाता था ।

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प्रश्न 3.
मंदिर निर्माण की नागर और द्रविड़ शैलियों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
मंदिर निर्माण की नागर और द्राविड़ शैलियों का उपयोग साथ-साथ ही हुआ । नागर शैली जहाँ उत्तर भारत में प्रचलित थी वहीं द्राविड़ शैली दक्षिण भारत में प्रचलित थी । नागर शैली के मंदिर आधार से शीर्ष तक आयताकार एवं शंक्वाकार संरचना से बने होते थे । शीर्ष क्रमशः नीचे से ऊपर पतला होता जाता है, जिसे शिखर कहा जाता था । प्रधान देवता की मूर्ति जहाँ स्थापित होती थी, उसे गर्भ गृह कहते थे । मंदिर अलंकृत स्तंभों पर टिका होता था। चारों ओर प्रदक्षिणा पथ भी होता था ।

द्राविड़ शैली की विशेषता थी कि गर्भ गृह के ऊपर कई मंजिलों का निर्माण होता था जो न्यूनतम 5 और अधिकतम 7 मंजिल तक होते थे । स्तंभों पर टिका एक बड़ा कमरा होता था, जिसे मंडपम कहा जाता था । गर्भ गृह के सामने अलंकृत स्तंभों पर टिका एक बडा कक्ष होता था, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान किये जाते थे । प्रवेश द्वार भव्य और अलंकृत होता था । इसे गोपुरम कहा जाता था ।

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पाठ का सार संक्षेप

महल हो या मंदिर इन सबका बनना समय की सम्पन्नता के सचक होते हैं। जब साधारण किसान. या व्यापारी को धन होता है तो वह अपना घर बनवाता है । वैसे ही राजाओं और बादशाहों द्वारा निर्मित महल, किला और मंदिर उनकी सम्पन्नता के सूचक हैं। ऐसे निर्माणों से कारीगरों को रोजी मिलती ही है, कला-कौशल जीवित रहता है । मध्यकालीन शासकों ने स्थापत्य कला के बेहतरीन नमूने प्रस्तुत किए।

आठवीं से अठारहवीं शताब्दी के बीच विभिन्न शैलियों में विभिन्न इमारतें, किले, मंदिर, मस्जिद और मकबरे बने । आठवीं से तेरहवीं सदी के बीच जो मंदिर बने वे सभी नगर और द्राविड़ नामक दो शैलियों में बने । उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर, सूर्य मंदिर, मध्य प्रदेश में खजुराहो मंदिर अपनी सभ्यता और सुन्दरता में सानी नहीं रखते । ये मंदिर नागर शैली के हैं। ऊपरी शीर्ष को शिखर कहा जाता है । मंदिर के केंद्रीय भाग प्रमुख देवता के लिए होता था, जिसे गर्भ गृह कहा जाता है ।

कोणार्क का सूर्य मंदिर रथ के आकार का है । वह इसलिये कि सूर्य अपने रथ पर ही घूमते हैं, जिनमें सात घोड़े जुते रहते हैं। इस मंदिर में भी रथ के पहिये तथा सात घोडों का आकार उकेरित है।

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तेरहवीं से सोलहवीं सदी के बीच, मुस्लिम शासकों द्वारा इमारतों का निर्माण हुआ। ये शासक तुर्क और अफगान थे । सर्वप्रथम इन्होंने अपने रहने के लिए भवन बनवाये । बाद में उपासना हेतु मस्जिदों का निर्माण कराया ।

इन्होंने पहले से मौजूद कुछ मंदिरों को तोड़कर मस्जिदों में परिवर्तित किया । तुर्क-अफगानों ने पहली मस्जिद कुतुबमीनार परिसर में बनाया, जिसका नाम कुव्वत-उल-इस्लाम रखा । इस काल की शैली में परिवर्तन के साथ ही सामग्री में भी बदलाव आए । हिन्दू मंदिर और किले जहाँ पत्थरों को तराशकर बनाए जाते थे वहीं अब ईंट का उपयोग होने लगा। चूना और सूर्जी के मिश्रण से गारा बनाया जाता था ।

कुतुबमीनार के प्रवेश द्वार ‘अलाई दरवाजा’ को बनाने में पूर्णतः वैज्ञानिक विधि अपनाई गई। तुगलककालीन स्थापत्य कला में गयासुद्दीन का मकबरा में एक नई शैली का इजाद हुआ । इस काल के इमारत ऊँचे चबूतरे पर बनाये जाते थे ।

जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत कमजोर होता गया, वैसे-वैसे कारीगर इध र-उधर बिखरते गये। अब स्थानीय शासकों ने भवन बनवाये । जौनपुर की ‘आटाला मस्जिद’ इसी का प्रमाण है । जौनपुर के अलावा गुजरात, बंगाल और मालवा के स्थानीय शासकों ने कला को काफी संरक्षण दिया। बिहार में भी तुर्क-अफगान शैली में ‘इमारतों का निर्माण हुआ । बिहार शरीफ का मलिक इब्राहिम का मकबरा, तेलहरा की मस्जिद, बेगुहजाम की मस्जिद उसी कला के नमूने हैं।

आगे चलकर मुगल काल में अनेक इमारतें बनीं । मुगलों ने भव्य महलों, किलों, विशाल द्वारों, मस्जिदों एवं बागों का निर्माण कराया । बाबर ने चार बाग की योजना बनाई थी। उसके वंशजों ने उसे कार्य रूप में परिणत किया । कुछ सर्वाधिक सुन्दर बागों में कश्मीर, आगरा, दिल्ली आदि में जहाँगीर और शाहजहाँ के बनवार्य बाग हैं ।

अकबर द्वारा बनवाई इमारतों में इस्लामिक, हिन्दू, बौद्ध, जैन तथा स्थानीय वास्तुशैलियों को प्रश्रय दिया गया । उसने आगरा तथा फतहपुर सिकरी में किले और महलों का निर्माण कराया । उसका बनवाया बुलन्द दरवाजा उसी समय की स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना है । हुमायूँ का मकबरा संगमरमर का बना है । एमतादुदौला के मकबरा में पहली बार ‘पितरादूरा’ का उपयोग हुआ ।

शाहजहाँ का शासन काल, भव्य इमारतों का काल था । शाहजहाँ ने पितरादूरा का उपयोग खूब किया । ताजमहल की गिनती विश्व के सात आश्चर्यों में होती है। शाहजहाँ ने दिल्ली और आगरे में लाल किले का निर्माण कराया । शाहजहाँ के काल में निर्माण कार्य अनवरत रूप में चलते रहे । ताजमहल में सिंहासन के पीछे ‘पितरादूरा’ उकेरित है ।

औरंगजेब के शासन काल में निर्माण कार्य ठप रहा । उसने लाल किला में मोती मस्जिद बनवाई । औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में उसने अपनी पत्नी का मकबरा बनवाया जो ‘बीबी का मकबरा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

Bihar Board Class 7 Social Science History Solutions Chapter 5 शक्ति के प्रतीक के रूप में वास्तुकला, किले एवं धर्मिक स्थल

बिहार में भी मुगलकालीन शैली का नमूना है । वह है मनेर स्थित शाह दौलत का मकबरा, जो 1617 में बना । इसमें अकबरकालीन मुगल शैली की विशेषताएँ स्पष्ट देखी जा सकती हैं । अवध के नवाबों ने भी अनेक भवन बनवाए जिसमें ‘भुलभुलैया’ काफी प्रसिद्ध है।

बिहार के भवनों में शेरशाह का मकबरा भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक झील के बीच में बना अष्टकोणीय इमारत अफगान वास्तुकला की कहानी कह रहा है। यह 1545 में पूरी तरह बनकर तैयार हो गया था । शायद शेरशाह को अपने उत्तराधिकारियों की योग्यता का विश्वास नहीं था । इसलिए उसने अपना मकबरा अपने जीवन काल में ही बनवा लिया था ।

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 14 सममिति

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 14 सममिति Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 14 सममिति

Bihar Board Class 7 Maths सममिति Ex 14.1

प्रश्न 1.
नीचे दी आकृतियों में से किन में घूर्णन सममिति का क्रम एक से अधिक है?
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हल
(i), (ii), (iv)

प्रश्न 2.
दो वैसी आकृतियों के नाम बताइए, जिसमे रैखिक सममिति और क्रम 1 से अधिक की घूर्णन सममिति दोनों ही है।
हल
वृत्त एवं चतुर्भुज।

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प्रश्न 3.
नहीं, यह आवश्यक नहीं है कि किसी आकृति में दो या दो से अधिक सीमिति रेखाएँ हों, तो उसमें क्रम 1 से अधिक की घूर्णन सममति हो।

प्रश्न 4.
ऐसे चतुर्भुज का नाम बताइए जिसमे रैखिक सममिति और क्रम 1 से अधिक की घूर्णन सममिति दोनों हो।
हल
आयत, समान्तर चतुर्भुज, वर्ग इत्यादि।

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 14 सममिति

प्रश्न 5.
किसी आकृति का उसके पारित 60° का घूमने पर वह उसकी प्रारम्भिक स्थिति जैसी दिखाई पड़ती है और किन-किन के लिए ऐसे स्थिति बनेगी?
हल
60°, 120°, 180°, 240°, 300°, 360°

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Text Book Questions and Answers.

BSEB Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना

Bihar Board Class 7 Maths ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.1

प्रश्न 1.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.1 Q1

प्रश्न 2.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.1 Q2

प्रश्न 3.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.1 Q3

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना

प्रश्न 4.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.1 Q4

Bihar Board Class 7 Maths ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2

प्रश्न 1.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q1

प्रश्न 2.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q2

प्रश्न 3.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q3

Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना

प्रश्न 4.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q4

प्रश्न 5.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q5

प्रश्न 6.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q6

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प्रश्न 7.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q7

प्रश्न 8.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q8

प्रश्न 9.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q9

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प्रश्न 10.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q10

प्रश्न 11.
Bihar Board Class 7 Maths Solutions Chapter 13 ज्यामितीय आकृतियों की रचना Ex 13.2 Q11