Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 3 विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 3 विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 3 विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना

Bihar Board Class 11 Philosophy विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निर्णायक उदाहरण किससे प्राप्त होता है?
(क) निरीक्षण से
(ख) प्रयोग से
(ग) दोनों से
(घ) किसी से नहीं
उत्तर:
(ग) दोनों से

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प्रश्न 2.
किसने कहा था- “आगमन में कल्पना का उद्देश्य आविष्कार है, प्रमाण नहीं।”
(क) हेवेल
(ख) मिल
(ग) पियर्सन
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) हेवेल

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक पूर्वकल्पना आधारित है –
(क) साधारण विश्वास पर
(ख) वैज्ञानिक विश्वास पर
(ग) कारणता नियम पर
(घ) अंधविश्वास पर
उत्तर:
(ग) कारणता नियम पर

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प्रश्न 4.
विधि-संबंधी पूर्वकल्पना का संबंध है –
(क) परिस्थिति से
(ख) कर्त्ता से
(ग) प्रक्रिया से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) प्रक्रिया से

प्रश्न 5.
“निर्णायक उदाहरण केवल एक कल्पना का समर्थन ही नहीं करता है, बल्कि दूसरी कल्पना का खंडन भी करता है।” यह कथन किसका है?
(क) बेन का
(ख) बेकन का
(ग) जेवन्स का
(घ) मिल का
उत्तर:
(ग) जेवन्स का

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प्रश्न 6.
प्राक-कल्पना का लक्ष्य है –
(क) सामान्य नियम की स्थापना
(ख) विशेष नियम की स्थापना
(ग) (क) तथा (ख) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सामान्य नियम की स्थापना

प्रश्न 7.
किसका कथन है – किसी कल्पना के अति पर्याप्त (Super adequacy) भी इसके सत्य होने के प्रमाण हैं?
(क) मिल
(ख) हेवेल
(ग) पियर्सन
(घ) डेकार्ट
उत्तर:
(ख) हेवेल

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प्रश्न 8.
वह प्रयोग जिससे निर्णायक उदाहरण (Crucial instance) प्राप्त होता है, कहलाता है –
(क) निर्णायक प्रयोग (Experimentum crucis)
(ख) कल्पना की अतिपर्याप्त (Super adequacy)
(ग) वास्तविक कारण
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) निर्णायक प्रयोग (Experimentum crucis)

प्रश्न 9.
कल्पना की जाँच निरीक्षण एवं प्रयोग द्वारा किया जाता है। यह रीति क्या है?
(क) साक्षात् रीति
(ख) परोक्ष रीति
(ग) दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) साक्षात् रीति

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प्रश्न 10.
कर्ता सम्बन्धी कल्पना (Hypothesis concerning agent) का अभिप्राय है –
(क) घटना घटने की परिस्थिति मालूम हो
(ख) घटना घटने की विधि मालूम हो
(ग) कर्ता (Agent) मालूम नहीं रहता है
(घ) उपर्युक्त तीनों
उत्तर:
(घ) घटना घटने की विधि मालूम हो

प्रश्न 11.
“कल्पना व्याख्या करने का एक प्रयत्न है” यह कथन किसका है?
(क) कॉफी
(ख) बेकन
(ग) न्यूटन
(घ) मिल
उत्तर:
(क) कॉफी

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प्रश्न 12.
घटना एक व्याख्या की दृष्टि में प्राक्-कल्पना कितने प्रकार का होता है?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ग) तीन

प्रश्न 13.
परिस्थिति सम्बन्धी कल्पना (Hypothesis Concerning Collection) होता है?
(क) व्याख्यात्मक
(ख) वर्णनात्मक
(ग) दोनों
(घ) वैज्ञानिक
उत्तर:
(ग) दोनों

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प्रश्न 14.
निर्णायक प्रयोग (Crucial experiment) प्राक्-कल्पना का/की –
(क) शर्त है
(ख) प्रमाण है
(ग) दोनों है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) प्रमाण है

प्रश्न 15.
वैज्ञानिक सत्यता (Scientific truth) की स्थापना में प्राक्कल्पना –
(क) एक अनावश्यक स्थिति है
(ख) आवश्यक शर्त है
(ग) अनावश्यक शर्त है
(घ) अनुपयोगी है
उत्तर:
(ख) आवश्यक शर्त है

Bihar Board Class 11 Philosophy विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किसने कहा कि आगमन में कल्पना का स्थान प्रमुख नहीं बल्कि गौण है?
उत्तर:
ऐसा कल्पना के सम्बन्ध में जे. एस. मिल (John Stuart Mill) ने कहा।

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प्रश्न 2.
वास्तविक कारण (Vera cause) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
घटना के सम्बन्ध में वह कल्पना जो तर्कसंगत होती है और जिससे घटना के घटने की संभावना रहती है, वास्तविक कारण (Vera cause) कहलाती है।

प्रश्न 3.
“किसी कल्पना की अतिपर्याप्त (Super adequacy) भी इसके सत्य होने के प्रमाण हैं।” ऐसा किसने कहा?
उत्तर:
यह कथन तर्कशास्त्री हेवेल (Whewell) का है।

प्रश्न 4.
कल्पना की जाँच के साक्षात् रीति (directly) का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
कल्पना की जाँच साक्षात् रीति से करने का मतलब है निरीक्षण एवं प्रयोग की विधियों का व्यवहार।

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प्रश्न 5.
निर्णायक उदाहरण (Crucial instance) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
निर्णायक उदाहरण (Crucial instance) ऐसे उदाहरण को कहते हैं जो अनेक कल्पनाओं में किसी एक को सत्य प्रमाणित कर देता है।

प्रश्न 6.
कल्पना की जाँच कितने तरह से की जाती है?
उत्तर:
कल्पना की जाँच दो तरह से की जाती हैं। वे हैं-साक्षात् रीति (directly) एवं परोक्ष रीति (indirectly) से।

प्रश्न 7.
प्राक-कल्पना के महत्त्व के सम्बन्ध में हेवेल (Whewell) का क्या कथन हैं।
उत्तर:
प्राक्-कल्पना के महत्व के सम्बन्ध में हेवेल का कहना है कि आगमन में कल्पना का उद्देश्य आविष्कार है, प्रमाण नहीं।

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प्रश्न 8.
निर्णायक प्रयोग (Experimentum Crucis) क्या है?
उत्तर:
निर्णायक उदाहरण जब प्रयोग से पाया जाता है तो इसे निर्णायक प्रयोग कहते हैं।

प्रश्न 9.
कर्ता सम्बन्धी कल्पना (Hypothesis concerning agent) का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब घटना घटने की परिस्थिति और विधि मालूम रहे लेकिन कर्ता (agent) मालूम नहीं रहता है। अतः कर्ता (agent) के बारे में अन्दाज लगाना ही कर्ता सम्बन्धी कल्पना है।

प्रश्न 10.
प्राक्-कल्पना (Hypothesis) की एक परिभाषा दें।
उत्तर:
प्राक्-कल्पना व्याख्या करने का प्रयत्न है। यह सामयिक (provisional) कल्पना है जिसके द्वारा हम वैज्ञानिक दृष्टि से लक्ष्यों या घटनाओं की व्याख्या करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
साधारण कल्पना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
कल्पना दो तरह की होती है –

  1. साधारण कल्पना
  2. वैज्ञानिक कल्पना।

साधारण कल्पना में एक तरह की अटकलबाजी लगानी पड़ती है। इसमें यह जरूरी नहीं है कि जो कल्पना कर रहे हैं वह अंदाजा सही ही हो। इस तरह की कल्पना का रूप पूर्णव्यापी नहीं होता है। बल्कि व्यक्तिगत या अंशव्यापी होता है। इस तरह की कल्पना साधारण लोग लगाते हैं। इसमें सही कारण कोई कार्य के लिए स्वीकार नहीं किया जाता है। इसमें दूसरे कारण को स्वीकार किया जाता है, जो व्यक्तिगत होता है। अतः, इस तरह की कल्पना साधारण कल्पना कहलाती है।

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प्रश्न 2.
निर्णायक उदाहरण क्या है?
उत्तर:
निर्णायक उदाहरण कल्पना का एक प्रमुख कारण माना जाता है। जब किसी घटना के बारे में कल्पना की जाती है। उसमें एक ऐसा ही प्रमाण मिल जाता है जो घटना को सही प्रमाणित कर देता है, उसी को निर्णायक उदाहरण के रूप में माना जाता है।

निर्णायक उदाहरण निरीक्षण या प्रयोग से पाए जाते हैं। एक पात्र में रंगहीन, गंधहीन, स्वादहीन, गैस को पाकर इसमें दो प्रकार की कल्पना की जाती है यह ऑक्सीजन गैस या हाइड्रोजन? इसे प्रमाणित करने के लिए जलती हुई मोमबत्ती ले जाते हैं। मोमबत्ती बुझने पर हाइड्रोजन और जलने पर ऑक्सीजन गैस समझते हैं। यही निर्णायक उदाहरण कहलाता है।

प्रश्न 3.
अच्छी और बुरी कल्पना क्या है?
उत्तर:
कल्पना अच्छा होना या बुरा होना उसकी शत्तों पर निर्भर करता है। इसका अर्थ है कि जो कल्पना शर्तों को पूरा करती है वह अच्छी कल्पना कही जाती है और जो कल्पना शर्तों को पूरा नहीं करती है वह बुरा कल्पना नहीं जाती है। जैसे-जब पृथ्वी में कम्पन्न होती है तो कल्पना करें कि पृथ्वी शेषनाग पर अवस्थित है। इस शेषनाग के हिलने-डूबने से पृथ्वी पर कम्पन्न होती है तो इस प्रकार की कल्पना को बुरी कल्पना कहते हैं। क्योंकि इस प्रकार की कल्पना उटपटांग होती है। परन्तु भौगोलिक कारणों से इस कम्पन्न की व्याख्या करने पर इसे अच्छी कल्पना कहते हैं।

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प्रश्न 4.
वैज्ञानिक कल्पना क्या है?
उत्तर:
वैज्ञानिक कल्पना में कारण-कार्य नियम का पालन किया जाता है। यह पूर्णव्यापी होता है। यह कल्पना जनसमुदाय के लिए किया जाता है। इसमें किसी भी कार्य के लिए सह कारण को स्वीकार किया जाता है। इसमें निष्कर्ष को सत्य होने के लिए वैज्ञानिक आधार रहता है। भले ही कल्पित कारण गलत हो जाए, किन्तु उसकी व्याख्या वैज्ञानिक तरीके से की जाती है।

प्रश्न 5.
वैज्ञानिक आगमन में प्राक्-कल्पना के महत्त्व की विवेचना करें।
उत्तर:
तर्कशास्त्री हेवेल वैज्ञानिक आगमन में प्राक्-कल्पना के महत्त्व को बहुत अधिक बताते हैं। उनके अनुसार वैज्ञानिक खोज में प्राक्-कल्पना का महत्त्व अत्यधिक है। घटनाओं के बीच कारण-कार्य का सम्बन्ध स्थापित करने हेतु प्राक्-कल्पना की आवश्यकता होती है। प्राक्-कल्पना का दूसरा महत्त्व यह है कि यह हमारे निरीक्षण एवं प्रयोग को नियंत्रित करता है। कभी-कभी हमारे खोज का विषय ऐसा होता है कि हम उसका अध्ययन निरीक्षण एवं प्रयोग से नहीं कर सकते हैं।

ऐसी स्थिति में हम अपनी सूझ के बल पर उस विषय या वस्तु के स्वरूप की कुछ कल्पना करते हैं तथा उस कल्पना के द्वारा आवश्यक परिणामों को निकालते हैं। यदि हमारी कल्पना यथार्थता से मेल खाती है तो कल्पना की सत्यता सिद्ध हो जाती है। वस्तुतः वैज्ञानिक पद्धति में प्राक्-कल्पना तथ्यों के सागर में दिशा सूचक (Compass) की तरह कार्य करता है। ऊर्जा के सापेक्षवाद का सिद्धान्त वस्तुतः प्राक्-कल्पना की ही देन है। इसी तरह, ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का संकेत अवलोकन के द्वारा प्राक्-कल्पना से हुआ है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
न्याय संगत या यथार्थ कल्पना की शर्तों की सोदाहरण व्याख्या करें ।
उत्तर:
आगमन का संबंध सही कल्पना से है। सही कल्पना होने के लिए कुछ शर्तों का पालन करना पड़ता है।

1. कल्पना को आंतरिक विरोध रहित निश्चित एवं स्पष्ट होना चाहिए:
इसमें आंतरिक विरोध रहित का अर्थ है कि इसमें विचारों का आपसी मेल होना चाहिए। तभी उसमें संदेह की कम संभावना होती है। दिन-रात होने के लिए हम यदि यह कल्पना करें कि ‘शायद पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ नहीं घूमती है, तो हमारी यह कल्पना संदेहपूर्ण रहेगी।

वैज्ञानिक कल्पनाएँ संदेह को दूर करना ही निश्चितता को लाना है। ”कल्पना को स्पष्ट होने का अर्थ है कि उटपटांग न होकर युक्ति संगत और सुव्यवस्थित हो। वर्षा के कारण बादल को नहीं मानकर इन्द्र की कृपा को मानें तो ऐसी कल्पना अस्पष्ट होगी। समुद्र का पानी वाष्प बनकर ऊपर जाता है और बादल बनकर वर्षा होती है। कल्पना का यही सही रूप है।

2. कल्पना को किसी स्थापित सत्य का विरोध नहीं होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि पहले से कुछ बातें सत्य हैं जैसे पृथ्वी में एक आकर्षण शक्ति है यह सत्य है। किन्तु, यदि हम यह कल्पना करें कि जहाज जो आकाश में उड़ता है उसमें पृथ्वी की आकर्षण शक्ति काम नहीं करती है, तो असत्य होगी। पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है यह पूर्व स्थापित सत्य है।

3. कल्पना को यथार्थ एवं वास्तविक होना चाहिए। किसी घटना का पता लगाने के लिए कल्पना किया जाता है। यथार्थ कल्पना के लिए यह जरूरी है कि हमें निष्पक्ष भाव से किसी घटना के घटने की कल्पना करनी चाहिए। इसमें वास्तविकता भी होनी चाहिए। अर्थात् घटना का vera cause होना चाहिए। इसका अर्थ है कि सच्चा कारण vera cause जिससे घटना के घटने की संभावना हो। किसी घटना के बारे में वैसा कारण जिससे वह घटना घटती है। जैसे-वर्षा का वास्तविक कारण बादल है। बादल के अभाव में वर्षा नहीं हो सकती है।

4. कल्पना को परीक्षा के योग्य होना चाहिए। इसके अंतर्गत कहा गया है कि कल्पना के सत्य होने के लिए उसकी जाँच या परीक्षा होनी चाहिए। बिना परीक्षा के कल्पना सत्य नहीं हो सकती है। जाँच प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से की जाती है। यदि नींद की अवस्था में कोई आवाज आती है तो इसकी परीक्षा करते हैं और देखते हैं कि कहीं चोर तो नहीं है।

या चूहे के द्वारा खट-पट की आवाज आ रही है। अतः, परीक्षा के बाद ही हमारी कल्पना सत्य होती है। कल्पना की ये शर्ते मितव्ययिता नियम (Law of Parsimony) के अनुकूल है। यदि किसी घटना की व्याख्या एक ही कल्पना से हो जाती है तो उसके लिए अधिक अटकलबाजी करने की जरूरत नहीं है। इसलिए सही कारण को जानने के लिए कम-से-कम संख्या में कल्पना को लाना चाहिए।

5. कल्पना को अधिक-से-अधिक सरल होना चाहिये। कल्पना में जटिलता का बहिष्कार करना चाहिए। जैसे-वर्षा के अभाव के कारण अच्छी फसल का नहीं होना सरल कल्पना है। इस तरह कल्पना के सही होने के लिए उपर्युक्त शर्तों की व्याख्या की गई है।

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प्रश्न 2.
कल्पना क्या है? कल्पना के स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर:
साधारण जीवन में साधारण कल्पना के द्वारा मनुष्य अपने या दूसरे के खास व्यक्तिगत जीवन का विभाग खोज सकता है। इस तरह की कल्पना का रूप पूर्णव्यापी न होकर व्यक्तिगत रहता है। इसमें अंधविश्वास का स्थान भी रहता है। किन्तु, आगमन का लक्ष्य पूर्णव्यापी वाक्य की स्थापना करना है। इसके लिए कुछ विधियों को बतलाया गया है।

इन्हीं विधियों में से कल्पना भी एक है। कल्पना के माध्यम से हम घटना के कारण का पता लगाना चाहते हैं। इसके लिए छान-बीन भी करना पड़ता है। एक तरह से अटकलबाजी भी करना शुरू कर देते हैं। अतः, घटनाओं के कारण को पता लगाने के लिए जो संभावित कारण को पहले मानते हैं, उसे कल्पना कहते हैं।

कौफी (Coffy) महोदय ने इसकी परिभाषा में कहा है –
“Ahypothesis is an attempt of explanation a provisional supposition made in order to explain scientifi cally some facts or phenomenon.” अर्थात् कल्पना व्याख्या करने का एक प्रयत्न है, यह सामयिक कल्पना है जिसके द्वारा हम वैज्ञानिक दृष्टि से तथ्यों या घटनाओं की व्याख्या करते हैं।

इसी कल्पना की परिभाषा Mill महोदय ने इस तरह दिए हैं, “A hypothesis is any supposition which we make in order to endeavour to deduce from its conclusion in accordance with facts which are known to be real under the idea that if the conclusion to which the hypothesis leads are known truths the hypothesis itself either must be or at fast is likely to be true.”

“प्राक्-कल्पना वह कल्पना है जिसे हमलोग इस लक्ष्य से बनाते हैं कि हम उससे वे निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न करें जो उन तथ्यों के अनुकूल हों, जिन्हें हम सत्य मानते हैं। ऐसा करने में हमारा विचार यह रहता है कि यदि वे निष्कर्ष, जो इस कल्पना के द्वारा प्राप्त करते हैं, वास्तव में सत्य हैं, तो वह कल्पना स्वयं सत्य होगी या कम-से-कम सत्य होने की संभावना होगी।” इस परिभाषा के विश्लेषण करने पर निम्नलिखित बातें हम पाते हैं।

1. निरीक्षण:
सहज रूप में जब कोई घटना घटती है तो उसके कारण को जानने की इच्छा होती है। उसी के फलस्वरूप कल्पना का जन्म होता है। अतः, जो घटना घटती है उसका सबसे पहले निरीक्षण करना जरूरी हो जाता है, जैसे चन्द्रग्रहण या सूर्यग्रहण यदि घटना के रूप में है तो उसके निरीक्षण करने के बाद ही उसके कारण को जानने की कल्पना की गई है। इसी तरह भूकंप के निरीक्षण के बाद ही उसके कारण जानने की प्रक्रिया शुरू करते हैं, जिसे कल्पना कहते हैं।

2. अटकलबाजी या अंदाज:
जब घटी हुई घटना का हम निरीक्षण कर लेते हैं तो उसके कारण को शीघ्र ही जान लेना संभव नहीं होता है। इसके लिए हम तरह-तरह की अटकलें लगाते हैं, अंदाज करते हैं कि अमुक कारण से अमुक घटना घटी है। यही कल्पित कारण कल्पना का एक मुख्य अंग बनकर काम करता है। इसी के द्वारा सही कारण को भी जानने का संकेत मिलता है। न्यूटन ने जब वृक्ष से फल को पृथ्वी पर गिरते हुए निरीक्षण किया तो उसके कारण को जानने की इच्छा हुई। इससे उन्होंने अंदाज लगाया कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिसके कारण सभी वस्तुएँ नीचे पृथ्वी पर गिरती हैं।

3. कल्पित कारण से निष्कर्ष निकालना:
कल्पित कारण से निष्कर्ष निकालना भी एक प्रमुख तथ्य रहता है इसमें कल्पित कारण के बाद ही एक संभावित कारण का पता लगाया जाता है। यह कल्पना का निष्कर्ष होता है कि पृथ्वी में आकर्षण-शक्ति है। यह निष्कर्ष तभी निकलता है जब हम कल्पित कारण को पहले स्वीकार कर लेते हैं।

4. निष्कर्ष की परीक्षा:
अटकलबाजी के समय बहुत-सी बातें दिमाग में आती हैं, किन्तु निष्कर्ष पर पहुँचने हेतु बहुत-सी संभावित अटकलों को परीक्षा के द्वारा छाँटकर हटा दिया करते हैं। इस तरह परीक्षा के बाद केवल एक ही कारण सामने आती है, जिसका संबंध कल्पना से रहता है। अतः, यह उत्पत्ति आवश्यक अंग है। कल्पना की सत्यता इसी पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 3.
कल्पना के विभिन्न प्रमाणों की व्याख्या करें।
उत्तर:
कल्पना को वैज्ञानिक बनाने के लिए निम्नलिखित कुछ प्रमाणों को बताया गया है –

1. परीक्षा योग्य (Verifiable):
किसी परीक्षा के बाद ही कल्पना की सत्यता जानी जा सकती है। परीक्षा दो तरह की हो सकती है – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष परीक्षा हमें निरीक्षण और प्रयोग द्वारा पूरी होती है। जैसे किसी के सर पर गाँधी टोपी देखकर कल्पना कर लेते हैं कि यह काँग्रेसी है।

फुलवारी में कोयल की आवाज सुनकर वसन्त ऋतु की कल्पना कर लेते हैं। इसी तरह प्रयोग द्वारा विभिन्न बीमारियों के कारणों के बारे में कल्पना की और उसकी सत्यता भी प्रयोग द्वारा हम स्थापित कर सकते हैं। जैसे-मादा अनोफिल मच्छर के काटने से मलेरिया होता है। इसी तरह अप्रत्यक्ष परीक्षा में बहुत-सी बातों को सत्य मानकर उससे बहुत कुछ अनुमान निकालते हैं।

2. कल्पना के लिए सहज बुद्धि और तेजीपन का होना जरूरी है। जैसे – ‘राम घर से भागकर कोलकात्ता चला गया’ क्योंकि उसके बड़े भाई ने डाँट-डपट की थी। यह परीक्षणीय भी है। लेकिन हमें यहाँ सहज बुद्धि और तेजीपन का व्यवहार कर यह सोचना चाहिए। उसके भागने का कारण और भी है। जैसे-घर में माँ-बाप का प्यार नहीं मिलना, स्वभाव से भावुक होना, कोलकात्ता से किसी मित्र या संबंधी की बुलाहट आना आदि। इसलिए कल्पना के लिए बुद्धि का प्रयोग करना भी जरूरी है।

3. कल्पना को समुचित व्याख्या करने की क्षमता हो – कल्पना ऐसी हो कि जिससे किसी वस्तु की पूर्ण और उपयुक्त व्याख्या हो सके। जैसे-परीक्षा में फेल करने का कारण, परीक्षा के समय बीमार रहना, क्लास से बराबर अनुपस्थित रहना, लिखने की आदत में कमी होना, नोट पढ़ना और फेल करना कल्पना की पूरी व्याख्या नहीं है।

4. कल्पना ऐसी हो कि केवल किसी एक ही वस्तु की व्याख्या हो जाए। यदि उसकी व्याख्या और किसी दूसरी पूर्व कल्पना से उसी तरह की जाए तो उसमें यथार्थता नहीं रह पाती है। अतः, इसे दूर करना चाहिए। कभी-कभी दो प्रतिद्वन्द्वी पूर्व कल्पनाओं में किसी काम को गलत या सही सिद्ध करने का काम निर्णायक उदाहरण से कर सकते हैं।

Crucial Instances:
मानलिया कि सिनेमा के मालिक ने शिकायत किया कि कुछ छात्र आधा घंटे पहले सिनेमा हॉल का शीशा और दरवाजा तोड़-फोड़ दिए हैं। हमारे सामने एक साथ दो कल्पनाएँ उठती हैं कि छात्र कॉलेज का है या स्कूल का। इसी समय एक नौकर आकर दर्शनशास्त्र की किताब देते हुए कहा है कि उस छात्र की यह पुस्तक गिर गई है।

इस किताब से हमें तुरत पता चलता है कि वह छात्र कॉलेज का हैं इस हालत में उस पुस्तक को हम निर्णायक उदाहरण कहेंगे क्योंकि उसी पुस्तक से हम कुछ निर्णय कर सके। इसलिए Jevons का कथन है कि “निर्णायक उदाहरण किसी एक पूर्व कल्पना का समर्थन ही नहीं करता बल्कि दूसरी पूर्व कल्पना का निषेध भी करता है।” निर्णायक उदाहरण की प्राप्ति दो तरह से होता है-निरीक्षण और प्रयोग द्वारा।

गाड़ी पकड़ने के लिए स्टेशन पाँच मिनट देर से पहुंचते हैं। दो कल्पनाएँ उठती हैं। गाड़ी आकर चली गई या गाड़ी आने में विलम्ब है। दोनों कल्पनाएँ ठीक हैं। सिगनल को देखने पर पता चला कि सिगनल हरा है। इससे पता चलता है कि गाड़ी अभी आ रही है। यहाँ निर्णायक उदाहरण का निरीक्षण किया जिसमें एक कल्पना सत्य और दूसरा असत्य साबित हुआ।

इसी तरह एक बरतन में गैस है। दो कल्पनाएँ उठती हैं। ऑक्सीजन है या हाइड्रोजन गैस। देखने से दोनों रंगहीन, स्वादहीन एवं गंधहीन होती है। एक निर्णायक उदाहरण की खोज करते हैं। एक जलती हुई लकड़ी को बरतन में डालते हैं। गैस प्रज्वलित हो जाती है। इससे सिद्ध हुआ कि गैसें ऑक्सीजन गैस है। जलती लकड़ी निर्णायक उदाहरण है जो प्रयोग से प्राप्त हुआ है।

5. कल्पना में भविष्यवाणी (Power of prediction) की शक्ति हो। अर्थात् भविष्य की व्याख्या हो सके अर्थात् जो कुछ कल्पना की जाए वह भविष्य में सत्य निकले। ज्योतिषी लोग इसी कारण से भविष्य की घटनाओं का वर्णन पहले कर देते हैं। कल्पना में भविष्यवाणी करने की शक्ति रहने से उसे सत्य होने की अधिक संभावना रहती है।

लेकिन मिल साहब का कथन है कि भविष्यवाणी की कल्पना को यथार्थता का प्रमाण नहीं मानना चाहिए क्योंकि कभी गलत और कभी सत्य होता रहता है। अतः, पूर्वकल्पना, सिद्धांत, नियम और तथ्य (Hypothesis theory, law and fact) के ऊपर के जितने भी नाम हैं सबों का प्रयोग एक मत और एक अर्थ में न होकर बदलते रूप में रहता है। इस तरह निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि उपर्युक्त प्रमाण कल्पना के बारे में जो दिया गया है, वह सत्य है इसके आधार पर ही कल्पना सत्य होती है।

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प्रश्न 4.
कल्पना के कितने भेद हैं? वर्णन करें।
उत्तर:
घटना की व्याख्या की दृष्टि से प्राक्कल्पना तीन की प्रकार होती हैं –

  1. कर्ता संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning Agent)
  2. विधि संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning law of Method)
  3. परिस्थिति संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning Collection)

1. कर्ता संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning Agent):
घटना की व्याख्या तब – होती है जब उसके कारण का पता लगता है। इसका कारण कर्त्ता होता है। कारण के संबंध में जो कल्पना करते हैं वहीं कर्ता संबंधी कल्पना कहलाती है। चोरी की व्याख्या के लिए चोर के संबंध में जो कल्पना की जाएगी वह कर्ता संबंधी कल्पना कहलाएगी।

विज्ञान के क्षेत्र में भी इसी तरह के उदाहरण मिलते हैं। जैसे-यूरेनस ग्रह की गति में गड़बड़ी देखी गई। वैज्ञानिकों ने कल्पना की कि कोई दूसरा ग्रह उसकी गति में बाधा डाल रहा है। जिसके चलते ही गड़बड़ी है और पता चला कि यह नेपच्युन ग्रह के चलते ऐसा हो रहा है। यह कल्पनाकर्त्ता-संबंधी कल्पना कहलाता है।

2. विधि संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning law of Method):
घटना घटने की विधि का अर्थ है कि कर्ता ने किस तरीके से किस नियम से घटना को संपादित किया। जैसे-चोर ने चोरी कैसे की? इस संबंध में जो कल्पना करते हैं वह विधि संबंधी कल्पना है। चोर दरवाजे को खोलकर आया था, उसे तोड़कर या सेंध मारकर आदि।

3. परिस्थिति संबंधी कल्पना (Hypothesis Concerning Collection):
कभी-कभी किसी घटना के कर्ता और विधि या तरीके दोनों मालूम रहते हैं किन्तु परिस्थिति मालूम नहीं रहती है, तो ऐसी स्थिति में परिस्थिति का पता लगाना पड़ता हैं जैसे-गाँव में चोरी हुई। चोरी एक घटना है, इसके कर्ता मालूम है, विधि भी मालूम है। चोरी किवाड़ को तोड़कर हुई है, किन्तु परिस्थिति मालूम नहीं है, इसके लिए परिस्थिति का पता लगाना पड़ता है।

परिस्थिति यही है कि परिवार के सभी लोग सिनेमा देखने चले गये थे। रात में देर से आने के कारण चोरी हुई। इस तरह घटना की परिस्थिति संबंधी कारण का पता लगाने को परिस्थिति संबंधी कल्पना कहते हैं। अतः, निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि कल्पना के तीन भेद हैं, कर्ता, विधि एवं परिस्थिति संबंधी कल्पना। तीनों के बारे में पता लगाने के बाद ही घटना के सही कारण का पता चल जाता है।

दूसरी दृष्टि से कल्पना के दो भेद बताए गए हैं –

  1. साधारण कल्पना एवं
  2. वैज्ञानिक कल्पना।

1. साधारण कल्पना:
साधारण कल्पना का संबंध किसी व्यक्तिगत समस्याओं के सुलझाने से रहता है। जैसे कोई व्यापारी व्यापार में हानि होने के कारण के संबंध में कल्पना करता है। कोई छात्र परीक्षा में फेल होने के कारण के संबंध में कल्पना करता है।

2. वैज्ञानिक कल्पना:
वैज्ञानिक कल्पना का संबंध ऐसी घटनाओं से रहता है, जिनका संबंध सबों से रहता है। वैज्ञानिक कल्पना तर्क प्रमाण पर आधारित रहती है। विज्ञान के क्षेत्र में जो कल्पनाएँ की जाती हैं, वे वैज्ञानिक कल्पना हैं।

तीसरी दृष्टिकोण से कल्पना दो प्रकार की है –

  1. व्याख्यात्मक कल्पना एवं
  2. वर्णनात्मक कल्पना।

इसमें कारण संबंधी या कर्ता संबंधी कल्पना को व्याख्यात्मक कल्पना कहते हैं। विधि या नियम संबंधी कल्पना को वर्णनात्मक कल्पना कहते हैं। व्याख्यात्मक कल्पना यह बतलाती है कि कोई घटना क्यों घटती है और वर्णनात्मक कल्पना बतलाती है कि घटना कैसे घटती है? व्यावहारिक दृष्टि से कल्पना दो तरह की है –

  1. काम चलाऊ कल्पना एवं
  2. सादृश्यानुमान मूलक कल्पना।

1. काम चलाऊ कल्पना (Working hypothesis):
कभी कभी किसी घटना के कारण के लिए कोई उपयुक्त कल्पना नहीं दिखाई पड़ती है तो उस हालत में हम काम चलाने के लिए एक नकली कल्पना कर बैठते हैं उसे जब मन चाहे तब हटाकर बदल सकते हैं।

जैसे-कलम को जेब में नहीं रहने पर अटकल लगाते हैं कि शायद क्लास में छूट गई, या रास्ते में गिर गई या राम ने चुरा लिया। उसमें एक को परीक्षा के बाद सही पाते हैं। इस तरह की कल्पना को काम चलाऊ कल्पना कहते हैं “A working hypothesis means a provisional support tion.”

2. सादृश्यानुमान मूलक कल्पना (Analogical):
इस तरह की कल्पना में हैं कि जो बात एक वस्तु में सत्य है वह दूसरे में भी सत्य होगी। यदि इन दोनों वस्तुनो में और कुछ बातों की समानता हो तो, जैसे-पृथ्वी और मंगलग्रह में कुछ बातों की समानता है, वैसे दोनों ग्रह हैं, दोनों सूर्य के चारों तरफ घूमते हैं। दोनों का वातावरण एक-सा है। दोनों पर पर्वत, नदी, जंगल हैं। इस तरह पृथ्वी पर आदमी हैं तो कल्पना करते हैं कि मंगल ग्रह पर भी आदमी होंगे। इस तरह की कल्पना सादृश्यानुमान मूलक कल्पना कहलाती है।

काल्पनिक प्रतिरूपक कल्पना (Representative fiction):
बेकन ने कल्पना का एक और रूप दिया है जिसे काल्पनिक प्रतिरूपक कहा जाता है जिसका ज्ञान इन्द्रियों से संभव नहीं है। जैसे-अणु, परमाणु। इस तरह की कल्पना के कारण-स्वरूप हमारे सामने आज अणु-परमाणु के सिद्धान्त ईश्वर की कल्पना, मोझ की कल्पना, प्रकाश तरंग सिद्धान्त तथा भूत-प्रेम या आत्मा-परमात्मा के विषय में दिखाई पड़ते हैं। इस तरह कल्पना के कई प्रकार बताए गए हैं।

Bihar Board Class 11 Philosophy Solutions Chapter 3 विज्ञान एवं प्राक्-कल्पना

प्रश्न 5.
वैज्ञानिक विधि में प्राक-कल्पना का स्थान क्या है? अथवा, वैज्ञानिक आगमन में कल्पना के स्थान की विवेचना करें। अथवा, आगमन में कल्पना के महत्त्वों को लिखें।
उत्तर:
अज्ञात वस्तुओं की छानबीन करने की प्रवृत्ति मनुष्य में जन्मजात होती है। वह भिन्न-भिन्न वस्तुओं के बीच छिपे रहस्यों को जानना चाहता है। वस्तुतः मनुष्य खोजी प्रवृत्ति का होता है। इन सभी बातों की पूर्ति तभी हो सकती है जब हम प्राक्-कल्पना की सहायता लेते हैं।

अतः प्राक्-कल्पना की आवश्यकता हमें प्रयोग करने, वैज्ञानिक एवं कलात्मक खोजों में होती है। प्राकृतिक नियमों की खोज, प्राकृतिक जटिलताओं के कारणों की खोज आदि में प्राक्-कल्पना की सहायता लेते हैं। वस्तुतः बिना कल्पना के हम कोई भी वैज्ञानिक खोज आरंभ नहीं कर सकते हैं।

किसी भी वैज्ञानिक विधि यानि वैज्ञानिक खोज में प्राक्-कल्पना का प्रथम स्थान है। वैज्ञानिक आगमन में कार्य-कारण (Causal relation) स्थापित करते हैं। यही कारण-सम्बन्ध स्थापित करना वैज्ञानिक विधि का लक्ष्य होता है। कार्य-कारण सम्बन्ध निश्चित करने के लिए हम प्राक्-कल्पना ही करते हैं। उसके बाद उसकी जाँच करते हैं तथा जब प्राक्-कल्पना जाँच में सही उतरती है तब उसे हम सिद्धान्त का रूप देते हैं फिर उसे नियम के रूप में मानकर वैज्ञानिक खोज में निश्चित निष्कर्ष पर आते हैं।

वैज्ञानिक विधि में निरीक्षण एवं प्रयोग (Observation and experiments) की सहायता लेना आवश्यक होता है। इसके बिना निश्चितता नहीं आती है। व्यवहार में हम देखते हैं कि निरीक्षण एवं प्रयोग आरंभ से ही प्राक्-कल्पना के द्वारा नियंत्रित होते हैं। निरीक्षण की तरह प्रयोग (Experiment) में भी प्राक्कल्पना का स्थान प्रमुख है। प्रयोग में हम कृत्रिम ढंग से घटना उपस्थित करते हैं। इसके लिए हम पहले प्राक्-कल्पना करते हैं और इसकी जाँच के लिए प्रयोग का सहारा लेते हैं।

जैसे हम पहले यह प्राक्-कल्पना करते हैं कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की निश्चित मात्रा को मिलाने के बाद जब हम उससे होकर विद्युतधारा प्रवाहित करते हैं तो ‘जल’ बनता है। इस प्राक-कल्पना की जाँच हम प्रयोग के सहारे करते हैं। प्रयोगशाला में हम आवश्यक परिस्थिति उत्पन्न कर प्राक्-कल्पना की सत्यता का पता लगा लेते हैं। प्रयोग के लिए पहले किसी-न-किसी प्रकार की प्राक्-कल्पना करना आवश्यक है, क्योंकि प्रयोग में प्राक्-कल्पना की ही जाँच की जाती है।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि निरीक्षण और प्रयोग जिसका महत्त्व वैज्ञानिक खोज में अधिक है, प्राक्-कल्पना द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। बेकन प्राक्-कल्पना के महत्त्व को कम आँकते हैं। लेकिन हम उनके विचार को गहराई से देखें तो बहिष्कार एवं निरीक्षण में भी शुद्ध निष्कर्ष प्राप्त करने हेतु प्राक्-कल्पना की आवश्यकता होती है।

महान् वैज्ञानिक न्यूटन का कहना है कि “मैं प्राक्-कल्पना की कल्पना ही नहीं करता हूँ।” लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से प्राक्-कल्पना की स्वीकृति गुरुत्वाकर्षण के नियम को सिद्ध करने में दीखता है। न्यूटन ने जब सेव को जमीन पर गिरते हुए देखा था तो सर्वप्रथम इसके कारण के बारे में प्राक्-कल्पना ही की थी। तर्कशास्त्री जेएस मिल के अनुसार, प्राक्-कल्पना का अधिक महत्त्व खोज के सम्बन्ध में होता है, प्रमाण (Proof) के सम्बन्ध में नहीं। तर्कशास्त्री ह्वेवेल के अनुसार वैज्ञानिक आगमन का संबंध आविष्कार से अधिक है। अतः उनकी नजर में प्राक्-कल्पना का महत्त्व बहुत अधिक है।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Amrita Bhag 1 Chapter 12 नीतिश्लोकाः Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

Bihar Board Class 6 Sanskrit नीतिश्लोकाः Text Book Questions and Answers

अभ्यासः

मौखिकः

प्रश्न 1.
निम्न श्लोकों को सस्वर गावें
उत्तर-
नीति श्लोकाः पाठ के प्रत्येक श्लोक को लय (सुन्दर स्वर) में . गावें।

लिखितः

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें –

(क) ……………… सर्वे तुष्यन्ति ………………।
तस्मात्तदेव ………………….. दरिद्रता ।।
उत्तर-
प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

(ख) काव्यशास्त्र विनोदेन …………………….. ।
…………… निद्रया. …………… वा ॥
उत्तर-
काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन तु मुर्खाणां निद्रया कलहेन वा

प्रश्न 3.
श्लोकों को जोड़ें –

  1. काव्यशास्त्रविनोदेन – (i) सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
  2. हस्तस्यभूषणं दानं – (ii) कालो गच्छति धीमताम्
  3. प्रियवाक्यप्रदानेन । – (iii) न प्रीतिर्न च बान्धवाः
  4. यस्मिन् देशे न सम्मानो – (iv) अविद्यस्य कुतो धनम्
  5. अलसस्य कुतो विद्या – (v) सत्यं कण्ठस्य भूषणम्

उत्तर-

  1. काव्यशास्त्रविनोदेन – (ii) कालो गच्छति धीमताम्
  2. हस्तस्यभूषणं दानं – (v) सत्यं कण्ठस्य भूषणम्
  3. प्रियवाक्यप्रदानेन । – (i) सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः
  4. यस्मिन् देशे न सम्मानो – (iii) न प्रीतिर्न च बान्धवाः
  5. अलसस्य कुतो विद्या – (iv) अविद्यस्य कुतो धनम्

प्रश्न 4.
उपयुक्त कथनों के सामने सही ✓ का तथा अनुपयुक्त कथनों के सामने गलत ✗ का चिह्न लगावें :

यथा – प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्तिा – ✓
मूर्खाणां कालः काव्यशास्त्रविनोदन गच्छति। – ✗

प्रश्नोत्तर साथ दिये गए हैं

  1. दानं हस्तस्य भूषणम् । – ✓
  2. सत्यं श्रोत्रस्य भूषणम् । – ✗
  3. धीमतां कालः निद्रया गच्छति। – ✗
  4. यत्र सम्मानः तत्र वसेत्। – ✓
  5. श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रम् । – ✓

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

प्रश्न 5.
उत्तराणि लिखत –

  1. सर्वे जन्तवः केन तुष्यन्ति ?
  2. कुत्र न वसेत् ?
  3. धीमताम् कालः कधं गच्छति ?
  4. मूर्खाणां कालः कथं गच्छति ?
  5. हस्तस्य भूषणं किम् ?

उत्तर-

  1. सर्वे जन्तवः प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति ।।
  2. यत्र न सम्मानः मिलति, न प्रीतिः ना च बान्धवाः न विद्या आगमनस्य साधनं तत्र न वसेत् ।
  3. धीमताम् कालः काव्यशास्त्र विनोदेन गच्छति ।
  4. मूर्खाणां काल: व्यसनेन निद्रया कलहेन वा गच्छति ।
  5. हस्तस्य भूषणं दानम् ।

Bihar Board Class 6 Sanskrit नीतिश्लोकाः Summary

प्रियवाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ।।1।।

अर्थ – प्रिय वचन बोलने से सभी जीव प्रसन्न होते हैं। इसलिए वैसा ही बोलना चाहिए। बोलने में गरीबी (कंजूसी) कैसी । अर्थात प्रिय वाक्य बोलने से क्या गरीबी आ जाएगी?

यस्मिन्देशे न सम्मानो न प्रीतिर्न चबा-वाः।
न च विद्यागमः कश्चिन्न तत्र दिवसं वसेत् ।।2।।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

अर्थ – जिस स्थान पर सम्मान न मिले, जहाँ प्रसन्नता नहीं हो, जहाँ कोई बान्धव (मित्र) नहीं हो, और जहाँ विद्याध्ययन की व्यवस्था नहीं हो, वहाँ एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।

काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम् ।
व्यसनेन तु मूर्खाणां निद्रया कलहेन वा ।।3।।

अर्थ – बुद्धिमानों का समय काव्य शास्त्र के अधययन-अध्यापन में बीतता है। लेकिन मूखों का समय बुरे कार्यों में सोने में या झगड़ा (विवाद) करने में बीतता है।

आलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम् ।
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतः सुखम् ।।4।।

अर्थ – आलसी को विद्या कहाँ प्राप्त होती है, जो विद्याहीन (मूर्ख) होते हैं उनको धन नहीं प्राप्त होता है। धनहीन को मित्र नहीं होता तथा बिना मित्र के सुख की प्राप्ति नहीं होती है।

हस्तस्य भूषणं दानं सत्यं कण्ठस्य भूषणम् ।
श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्र भूषणैः किं प्रयोजनम् ।।5।।

अर्थ- हाथ की शोभा दान देने से होती है। कण्ठ की शोभा सत्य वचन बोलने से होती है। कान की शोभा शास्त्र की बातें सुनने से होती है। जिसने दान-सत्य और शास्त्ररूपी आभूषण धारण कर लिया है उसके लिए. अन्य आभूषण (स्वर्णालंकार) की क्या आवश्यकता है।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 12 नीतिश्लोकाः

शब्दार्थ:-प्रियवाक्यप्रदानेन – प्रिय वचन बोलने से। तुष्यन्ति ( तुष् + लट्)- प्रसन्न होते हैं। जन्तवः (जन्तु, प्रथमा, बहु०) – प्राणियों (सभी प्राणी)। तस्मात्तदेव (तस्मात् + तत् + एव) – इसलिए वैसा ही। वक्तव्यम् – (वच् + तव्यत्) – बोलना चाहिए। दक्षिा – निर्धनता, कंजूसी, कमजोरी। . सम्मानः – आदर, मान, सम्मान। प्रीतिः – प्रसन्नता। विद्यागमः (विद्या + आगम:) – विद्या-प्राप्ति की व्यवस्था। वसेत् (वस् + विधिलिङ्) – वसना

चाहिए, रहना चाहिए। काव्यशास्त्र-विनोदेन – काव्य शास्त्र के अध्ययन-अध्यापन से। धीमताम् (धीमत् + षष्ठी बहुवचन) – बुद्धिमानों का व्यसनेन – बुरी आदतें/ बुरे काम सो निद्रया (निद्रा + तृतीया विभक्ति) – सोने से । सोकर। कलहेन – झगड़ा करने / विवाद करने में। आलसस्य – आलसी का। कुतः – कहाँ से, कैसे। अविद्यस्य – विद्या से हीन (मूर्ख) का। अधनस्य – ध नहीन (दरिद्र) का। अमित्रस्य – मित्रहीन (मित्ररहित) व्यक्ति का। श्रोत्रस्य – कान का।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 1 Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

Bihar Board Class 9 Political Science लोकतांत्रिक अधिकार Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है ?
(क) भाषण की स्वतंत्रता
(ख) संगठन बनाने का अधिकार
(ग) समान काम के लिए स्त्री एवं पुरुष को समान वेतन पाने का अधिकार
(घ) दंगों में शस्त्र लेकर चलना
उत्तर-
(ग) समान काम के लिए स्त्री एवं पुरुष को समान वेतन पाने का अधिकार

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान द्वारा यहाँ के नागरिकों को कितने मौलिक अधिकार प्राप्त हैं ?
(क) 6
(ख) 7
(ग) 8
(घ) 5
उत्तर-
(क) 6

प्रश्न 3.
भारतीय नागरिकों के कितने मौलिक कर्त्तव्य हैं ?
(क) दस
(ख) पन्द्रह
(ग) सात
(घ) छः
उत्तर-
(क) दस

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प्रश्न 4.
इनमें से कौन मौलिक अधिकार है ?
(क) सम्पत्ति का अधिकार
(ख) समानता का अधिकार
(ग) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(घ) असमानता का अधिकार
उत्तर-
(क) सम्पत्ति का अधिकार

प्रश्न 5.
मौलिक अधिकारों की सूची से किस वर्ष सम्पत्ति के अधिकार को हटा दिया गया?
(क) 1976 ई. में
(ख) 1978 ई. में
(ग) 1979 ई. में
(घ) 1985 ई. में
उत्तर-
(ख) 1978 ई. में

प्रश्न 6.
किस संविधान संशोधन द्वारा मौलिक कर्तव्य निश्चित किया गया?
(क) 42वाँ
(ख) 43वाँ
(ग) 44वाँ
(घ) 45वाँ ।
उत्तर-
(क) 42वाँ

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प्रश्न 7.
प्रतिनिधात्मक प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की स्थापना की पहली शर्त क्या है?
(क) अधिकारों की मौजूदगी
(ख) कर्त्तव्यों का न होना
(ग) साम्प्रदायिक दंगे
(घ) महिलाओं के माथ गैर-सरकारी का व्यवहार
उत्तर-
(क) अधिकारों की मौजूदगी

प्रश्न 8.
विश्व के परिप्रेक्ष्य में मौलिक अधिकारों का सर्वप्रथम प्रयोग कब किया गया?
(क) 1648 ई. में
(ख) 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के समय
(ग) 1948 ई. में
(घ) 1990 ई. में
उत्तर-
(ख) 1789 में फ्रांसीसी क्रान्ति के समय

प्रश्न 9.
भारत में सबसे पहले किस राजनेता ने मौलिक अधिकारों का सवाल उठाया ?
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू ने
(ख) गाँधी जी ने
(ग) बालगंगाधर तिलक ने
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले ने
उत्तर-
(ग) बालगंगाधर तिलक ने

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प्रश्न 10.
स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लेख भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है ?
(क) अनुच्छेद 15-21 में
(ख) अनुच्छेद 14-18 में
(ग) अनुच्छेद 19-22 में
(घ) अनुच्छेद 12 में
उत्तर-
(ग) अनुच्छेद 19-22 में

प्रश्न 11.
समता का अधिकार का उल्लेख भारतीय संविधान के किस
अनुच्छेद में किया गया है ?
(क) अनुच्छेद 24 में
(ख) अनुच्छेद 32 में
(ग) अनुच्छेद 19-22 में
(घ) अनुच्छेद 14-18 में
उत्तर-
(घ) अनुच्छेद 14-18 में

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सी स्वतंत्रता नागरिकों को प्राप्त है ?
(क) किसो का निरादर करने का
(ख) झठा अभियोग लगाने का
(ग) हिंसा भड़काने का
(घ) देश के किसी भी हिस्से में जाकर बसने का
उत्तर-
(घ) देश के किसी भी हिस्से में जाकर बसने का

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रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

प्रश्न 1.
प्रजातंत्र की रक्षा के लिए ………………. की सुरक्षा आवश्यक है।
उत्तर-
मौलिक अधिकार

प्रश्न 2.
प्रत्येक ………………… संविधान में मूल अधिकारों की व्यवस्था है।
उत्तर-
लोकतांत्रिक

प्रश्न 3.
अधिकार लोकतांत्रिक राजनीति की ………………………. है।
उत्तर-
सहगामी

प्रश्न 4.
समाज सिर्फ ऐसी ही माँगों को स्वीकारता है जिसमें …………… की भावना-निहित होती है।
उत्तर-
सार्वजनिक कल्याण

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प्रश्न 5.
किसी व्यक्ति से बेगारी लेना ………….. के विरुद्ध अधिकार है।
उत्तर-
शोषण

प्रश्न 6.
मौलिक अधिकारों की रक्षा ………….. करता है।
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 7.
भारत के सभी नागरिकों को अपनी धर्म, भाषा, संस्कृति को सुरक्षित रखने का ……………. अधिकार है।
उत्तर-
शिक्षा एवं संस्कृति संबंधी

प्रश्न 8.
सरकार में किसी पद पर नियुक्ति या रोजगार के मामले में भी सभी नागरिकों के लिए है।
उत्तर-
अवसर की समानता

प्रश्न 9.
सरकार को सार्वजनिक व्यवस्था तथा सदाचार को ध्यान में रखकर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को ………….. कर सकता है।
उत्तर-
नियमित तथा नियंत्रित

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प्रश्न 10.
यदि सरकार को किसी व्यक्ति पर अपराधी होने का संदेह है तो अपराध करने के पहले ही वह . कर सकती है।
उत्तर-
नजरबंद

प्रश्न 11.
नजरबंदी की व्यवस्था को ………. को संसद के दोनों सदनों ने …………… आतंकवाद विरोधी अधिनियम को समाप्त कर दिया। .
उत्तर-
26 मार्च, 2002

प्रश्न 12.
कोई भी व्यक्ति …………. से कम उम्र के बच्चे से खरनाक काम नहीं करवा सकता है।
उत्तर-
14 वर्ष

प्रश्न 13.
………………………. वाँ संवैधानिक संशोधन 2002 के द्वारा भारत में शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार बनाया गया है।
उत्तर-
86

प्रश्न 14.
अब 6 से ………………………. वर्ष की आयु के सभी भारतीय बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त है।
उत्तर-
14 वर्ष

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प्रश्न 15.
सभी मौलिक अधिकार व्यर्थ हैं अगर इन्हें माननेवाला और लागू करनेवाला ……………………… हो।
उत्तर-
वन

प्रश्न 16.
यदि मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो तो हम सीधे ………………….. भी जा सकते हैं।
उत्तर-
सर्वोच्च

प्रश्न 17.
सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों का मौलिक अधिकार लागू कराने के मामले में आदेश या ………………जारी करने का अधिकार है।
उत्तर-
लेख (रिट)

प्रश्न 18.
अधिकारों का दायरा ……………………… जाता है।
उत्तर-
बढ़ता

प्रश्न 19.
मूल अधिकारों में से बहुत सारे अधिकार निकले हैं जैसे …………………।
उत्तर-
सूचना का अधिकार

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प्रश्न 20.
दक्षिण अफ्रीका में नागरिकों और उनके …………….. को सरकार नहीं ले सकती है।
उत्तर-
घर

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों को सुरक्षा कौन प्रदान करता है ?
उत्तर-
न्यायालय (उच्च या सर्वोच्च न्यायालय)।

प्रश्न 2.
अधिकारों के बिना जीवन कैसा होता है ?
उत्तर-
बुरा।

प्रश्न 3.
अधिकारों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
एक अच्छे नागरिक के विकास के लिए तथा जीवन को जीने योग्य बनाने के लिए।

प्रश्न 4.
संविधान लागू करने वाला पहला देश कौन था ?
उत्तर-
फ्रांस ने 1789 ई. में संविधान की घोषणा की।

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प्रश्न 5.
जातीय नरसंहार के नाम पर विश्व में क्या हुआ? .
उत्तर-
इराक में, युगोस्लाविया में, भारत में तथा विश्व के कई देशों में जातीय नरसंहार हुए।

प्रश्न 6.
मनुष्य के दावे किस तरह के होने चाहिए?
उत्तर-
दावे तार्किक एवं विवेकपूर्ण होने चाहिए ।

प्रश्न 7.
मताधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रशासन के लिए प्रतिनिधियों को चुनने के लिए नागरिकों को जिस अधिकार की जरूरत होती है उसे मताधिकार कहते हैं।

प्रश्न 8.
नेहरू समिति ने मौलिक अधिकारों की मांग कब की?
उत्तर-
1933 ई. के कराँची अधिवेशन में।

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प्रश्न 9.
मौलिक अधिकारों के मामले ने कब जोर पकड़ा?
उत्तर-
सुपसमिति ने 1945 ई० में मौलिक अधिकारों का मामला जोर-शोर से उठाया।

प्रश्न 10.
किस स्थिति में राज्य धर्म के क्षेत्र में दखल देकर उसे नियंत्रित तथा स्थगित कर सकता है ?
उत्तर-
किसी धर्म के अनुयायियों के धर्म प्रचार के ढंग से राज्य के अन्दर अमन-चैन में खलल पहुँच सकती है तो ऐसी स्थिति में राज्य उसे नियंत्रित तथा स्थगित कर सकता है।

प्रश्न 11.
बंधुआ मजदूरी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी मजदूर से जबरन जीवन भर काम कराना बंधुआ मजदूरी कहलाता है।

प्रश्न 12.
दावा का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सभी नागरिकों, समाज या सरकार से किसी नागरिक द्वारा कानूनी या नैतिक अधिकारों की माँग दावा है।

प्रश्न 13.
‘रिट’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को जारी किया गया एक औपचारिक लिखित आदेश है।

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प्रश्न 14.
उत्प्रेषण क्या है ?
उत्तर-
इस अधिकार के द्वारा उच्च न्यायालय निम्न न्यायालय से किसी अभियोग संबंधित सारे रिकार्ड अपने पास मँगवा सकता है।

प्रश्न 15.
व्यक्ति के बढ़ते अधिकार किस बात की गवाही देते हैं ?
उत्तर-
यह इस बात की गवाही देते हैं कि समाज में लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हो रही हैं।

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय गान का सम्मान करना किसका कर्तव्य है ?
उत्तर-
भारत के नागरिकों का।।

प्रश्न 17.
माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति क्या कर्त्तव्य है ?
उत्तर-
उचित शिक्षा एवं संबंधित अवसरों की व्यवस्था करना ।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अपने विकास हेतु ऐसी जायज माँगें, जो उनके राज्य द्वारा स्वीकृत हो, नागरिक अधिकार कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
प्रत्येक मनुष्य में कुछ शक्तियाँ अन्तर्निहित होती हैं। उन शक्तियों के विकास से ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है । इन शक्तियों के विकास के लिए मनुष्य को कुछ अधिकारों की आवश्यकता होती है। ऐसे अधिकारों को ही हम मौलिक अधिकार कहते हैं। इन अधिकारों की चर्चा संविधान में कर दी गयी है । लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए मौलिक अधिकार आवश्यक हैं।

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प्रश्न 3.
कानून के समक्ष समानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
कानून के समक्ष समानता का साधारण अर्थ है कि कानून सभी व्यक्तियों को समान समझता है तथा किसी भी आधार पर किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष में कानून के द्वारा कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। यह सार्वजनिक स्थलों-जैसे दूकान, होटल, मनोरंजन गृह. कुआँ, स्नान घाट और पूजा स्थलों में समानता के आधार पर प्रवेश देता है । जाति नस्ल, रंग, लिंग, धर्म या जन्म स्थान के आधार पर प्रवेश में कोई भेद-भाव नहीं कर सकता।

प्रश्न 4.
अधिकारों का क्या महत्व है ?
उत्तर-
जहाँ व्यक्ति के अधिकारों का हनन होता है जिसके कारण अपनी तकलीफ एवं त्रासदी स्वभावत: व्यक्ति के मन मस्तिष्क को यह अहसास कराता है कि अधिकारों के बिना जीवन कैसा होता है । वास्तव में लोकतंत्र में जनता की सत्ता में साझेदारी होती है । यह साझेदारी व्यक्ति के अधिकारों के माध्यम से संभव हो पाती है, जैसे नागरिकों के मतदान का अधिकार, विचार अभिव्यक्ति का अधिकार, सूचना पाने का अधिकार आदि । इसलिए व्यक्ति के अधिकार न सिर्फ लोकतंत्र की स्थापना को अनिवार्य शर्त है; वरन् लोकतांत्रिक राजनीति की सहगामी है जिसकी उपस्थिति लोकतांत्रिक शासन के वास्तविक स्वरूप को निरन्तर प्रकट करने में होती है।

प्रश्न 5.
अधिकारों के बिना जीवन कैसा? संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा, लोकतंत्र में अधिकारों की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-
मनुष्य अच्छा जीवन जीना चाहता है। प्रत्येक नागरिक के जीवन का मुख्य लक्ष्य सुखमय जीवन की प्राप्ति है। समाज के सभी लोगों को ये सुविधाएँ चाहिए इसलिए माँगे गए दावे तार्किक एवं विवेकपूर्ण होना चाहिए । इन दावों को सब पर समान रूप से लागू किया जाने वाला होना चाहिए तथा जिसे कानून द्वारा मान्यता हो वह अधिकार हो जाता है । यह अधिकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में ही संभव है। अतः लोकतांत्रिक राज्य का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह अपने नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास या सर्वांगीण विकास के लिए उचित अधिकार दें । वास्तव में नागरिकों के लिए अधिकार एक अवसर है, इसके अभाव में मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता । यह सरकार एवं अन्य लोगों के अत्याचार से सुरक्षा प्रदान करता है।

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प्रश्न 6.
अधिकारों को संविधान में लिखने की क्या जरूरत है ?
उत्तर-
कभी-कभी ऐसा देखा जाता है कि लोकतांत्रिक सरकार भी अपने नागरिकों के अधिकार की रक्षा नहीं करती है या इससे भी बढ़कर . वह स्वयं नागरिकों के अधिकार पर हमला करती है, जैसे भागलपुर की जेल में कैदियों की आँखें पुलिस द्वारा फोड़ दी गयीं । इस प्रकार नागरिकों के अधिकारों का अतिक्रमण किया गया । अतः इस बात की बहुत आवश्यकता है कि कुछ नागरिक अधिकारों को सरकार से भी ऊँचा दर्जा प्रदान किया जाए ताकि भविष्य में कोई भी सरकार इनका अतिक्रमण नहीं कर सके तथा इसे सख्ती से लागू करवाया जा सके । इसलिए लोकतानिक शासन व्यवस्था में नागरिकों के अधिकार को लिखने की जरूरत होती है।

प्रश्न 7.
विश्व के परिप्रेक्ष्य में मौलिक अधिकारों के संबंध में बतावें।,
उत्तर-
विश्व के संदर्भ में मौलिक अधिकारों का सर्वप्रथम प्रयोग 1789 ई. में फ्रांसीसी क्रान्ति के समय किया गया । फ्रांस की राष्ट्रीय सभा में दो मानव अधिकारों की घोषणा करते हुए संविधान में नागरिकों के कुछ मूल अधिकारों को शामिल किया गया। मानव अधिकारों की घोषणा ने विश्व के बहुत सारे संविधानों को प्रभावित किया । संयुक्त राज्य अमेरिका ने संविधान लागू होने के दो वर्ष के अन्दर दस संशोधनों के द्वारा मूल ‘अधिकारों को संविधान का अंग बनाया । आज लगभग सभी देशों के संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है। यहाँ तक कि रूस और चीन जैसे सर्वाधिकार वादी संविधान में भी नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लेख किया गया है ।

प्रश्न 8.
भारत के संदर्भ में मौलिक अधिकारों की चर्चा कब से शुरू हुई ?
उत्तर-
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के जुझारू नेताओं में से एक बाल गंगाधर तिलक ने सर्वप्रथम मौलिक अधिकारों की मांग की। स्वतंत्रता आन्दोलन में अनेक बार कांग्रेस ने मौलिक अधिकारों की मांग की। 1918 ई. में बम्बई अधिवेशन, 1933 ई. में कराची अधिवेशन में नेहरू समिति ने 1928 ई. में तथा संप्रभु समिति ने 1945 में मौलिक अधिकारों का मामला जोर-शोर से उठाया लेकिन भारतीयों को मौलिक अधिकार नहीं दिए गए । अतः स्वाभाविक था कि स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण के समय अधिकारों का अनिवार्य रूप से समावेश किया जाय और संविधान के मूल ढाँचे में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया जिन्हें सुरक्षा देनी थी। यही मौलिक अधिकार कहलाए।

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प्रश्न 9.
किन परिस्थितियों में मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है?
उत्तर-
सार्वजनिक व्यवस्था तथा राज्य की शांति एवं सुरक्षा के हित में राज्य सरकार को स्वतंत्रता के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त है। संकटकालीन स्थिति में राष्ट्रपति इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सकता है । संविधान को संशोधित कर मूल अधिकारों को स्थगित या सीमित किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
मौलिक अधिकारों की रक्षा कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
यदि राज्य सरकार या कोई व्यक्ति किसी नागरिक के मूल अधिकारों का अपहरण करता है या उसके उपभोग में अनुचित हस्तक्षेप . करता है, तो संवैधानिक उपचार के अन्तर्गत नागरिक उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है। न्यायालय ऐसा करने से रोक लगा सकता है । नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा का दायित्व उच्चतम न्यायालय को है।

प्रश्न 11.
समता के किन्हीं चार अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
समता के चार अधिकार निम्नलिखित हैं जो अनुच्छेद 1418 तक में वर्णित हैं-

  • कानूनी समता-कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं; चाहे वह अमीर हो या गरीब ।
  • सामाजिक समता-किसी भी नागरिक को उसकी जाति, धर्म, लिंग तथा जन्म स्थान आदि के आधार पर सार्वजनिक स्थानों जैसेहोटलों, पार्को, मनोरंजन गृहों, स्नानघरों आदि में प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता है।
  • अवसर की समानता- सभी नागरिकों को नौकरी पाने के क्षेत्र · में अवसर. की समानता का अधिकार प्राप्त है।
  • उपाधियों का अंत-सेना एवं शिक्षा को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों का अंत कर दिया गया है।

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प्रश्न 12.
संविधान में वर्णित नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
संविधान की धारा 19 से 22 तक में नागरिकों के स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन है । जिनमें छः अधिकार प्रमुख हैं-

  • भाषण तथा विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
  • शान्तिपूर्वक एवं बिना हथियार के एकत्र होने की स्वतंत्रता ।
  • नागरिकों को संगठन बनाने की भी स्वतंत्रता है ।
  • किसी भी नागरिक को देश के किसी भी हिस्से में जाने या रहने की स्वतंत्रता ।
  • पेशा चुनने के मामले में भी ऐसी ही स्वतंत्रता प्राप्त है।
  • प्रेस स्वतंत्रता की व्यवस्था ।

प्रश्न 13.
शोषण के विरुद्ध अधिकार के अन्तर्गत उठाए गए किन्हीं चार उपायों की चर्चा करें।
उत्तर-
शोषण के विरुद्ध अधिकार के अंतर्गत उठाए गए कदम निम्नलिखित हैं

  • बंधुआ मजदूर की प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
  • संविधान बाल मजदूरी (चौदह वर्ष से कम) का भी निषेध . करता है।
  • संविधान मनुष्य जाति के अवैध व्यापार का निषेध करता है।
  • देवदासी प्रथा को अधिनियम बनाकर समाप्त कर दिया गया ।

प्रश्न 14.
सूचना का अधिकार का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
यह एक महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक अधिकार है। लोकतंत्र की भावनाओं के अनुरूप भारत की संसद के द्वारा विधि-निर्माण कर भारत के नागरिकों को सूचना प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया है। यदि सरकारी कर्मचारी इस प्रकार के आलेखों की प्रति नहीं देते तो उनके विरुद्ध भी कानन के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है।

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प्रश्न 15.
अधिकार-पृच्छा लेख से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
यह एक प्रकार का अदालती आदेश है । इसके द्वारा न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति को जिसकी नियुक्ति या चुनाव कानून के अनुसार नहीं । हुआ हो, उसे सरकारी कार्य करने से रोक सकता है।

प्रश्न 16.
विधि का शासन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समता का अधिकार भारत को एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में किसी भी व्यक्ति का दर्जा; पद, चाहे जो भी हो सब पर कानूनन समान रूप से लागू होता है। इसे ही विधि का शासन कहते हैं।

प्रश्न 17.
आरक्षण क्या है ?
उत्तर-
भारत सरकार ने नौकरियों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की है। अनेक सरकारी विभिन्न योजनाओं के तहत कुछ नौकरियों में विशेष आरक्षण है। कई बार अवसर की समानता निश्चित करने के लिए कुछ लोगों को विशेष अवसर देना जरूरी होता है । आरक्षण यही करता है। इस बात को साफ करने के लिए संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि इस तरह आरक्षण. समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं है।

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प्रश्न 18.
44वें संवैधानिक संशोधन के द्वारा विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में क्या संशोधन किया गया ?
उत्तर-
1978 के 44वें संवैधानिक संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गयी है कि संसद के किसी सदन अथवा राज्य विधानमंडल में किसी कारण सदन की कार्यवाही की सच्ची रिपोर्ट प्रकाशित करने के कारण किसी व्यक्ति के विरुद्ध किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जा सकती। किन्तु प्रकाशन बुरी भावना से किया गया है तो संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध कानूनी कार्रवाही की जा सकती है।

प्रश्न 19.
धार्मिक स्वतंत्रता क्या है ?
उत्तर-
भारत एक धर्म निरपेक्ष ग्रज्य है। राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है। धर्म व्यक्तिगत स्वतंत्रता की वस्तु बना दी गयी है । संविधान के अंतर्गत भारत में नागरिकों को किसी भी धर्म को ग्रहण करने तथा प्रसार करने तथा उसके लिए अन्य कार्य करने का अधिकार दिया गया । विभिन्न धर्मावलम्बियों को अपने धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए भाषण देने, सभा करने, पुस्तकें प्रकाशित करने, संस्थाओं की स्थापना करने तथा शिक्षण संस्थान चलाने का अधिकार है।

प्रश्न 20.
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को किस स्थिति में सरकार नियमित तथा नियंत्रित कर सकती है ?
उत्तर-
भारत में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं। इनमें धर्म प्रचार के ढंग से आपस में मतभेद हो जाने की संभावना है। फलस्वरूप सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह सार्वजनिक व्यवस्था तथा सदाचार को ध्यान में रखकर धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को नियमित तथा नियंत्रित कर सकता है। अगर धर्म प्रचार से राज्य के अन्दर अमन-चैन में खलल पहुँच सकती है या कोई अनैतिक कार्य होता है तो राज्य उसे नियंत्रित तथा स्थगित कर सकता है।

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प्रश्न 21.
धर्म और शिक्षण संस्थाओं से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
विभिन्न धर्मावलम्बियों द्वारा स्कूल, कॉलेज, पाठशाला तथा मदरसा खोलने की स्वतंत्रता है। दूसरी शिक्षण संस्थाओं की तरह इन्हें भी राज्य द्वारा आर्थिक सहायता मिलेगी। राज्य द्वारा संचालित तथा नियमित शिक्षण संस्थानों में धर्म संबंधी शिक्षा नहीं दी जाएगी और न विभिन्न धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं में किसी विद्यार्थी को उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी धर्म को मानने के लिए बाध्य किया जाएगा।

प्रश्न 22.
संस्कृति संबंधी नागरिकों के कौन-से अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
भारत में विविधता में एकता है। इसमें भाँति-भाँति के लोग तथा उनकी अपनी भाषा लिपि तथा संस्कृति है । संविधान में इन धाराओं के माध्यम से भारत में रहने वाले हर प्रकार के लोगों को अपनी-अपनी लिपि, भाषा तथा संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार दिया गया है। विभिन्न धर्मों पर आधारित वर्गों तथा अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति की रक्षा करने का अधिकार दिया गया है।

प्रश्न 23.
जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के हित में नागरिकों को कौन-से उपाय दिए गए हैं ?
उत्तर-
संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित.प्रक्रिया के अतिरिक्त जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है । इसका यह भी मतलब है कि कानूनी आधार होने पर सरकार या पुलिस अधिकारी किसी नागरिक को गिरफ्तार कर सकता है, पर उसे गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी देनी होती है। बिना कारण बताए किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता और गिरफ्तार होने के समय से चौबीस घंटे के भीतर निकटस्थ दंडाधिकारी के समक्ष पेश करना आवश्यक है । गिरफ्तार हुए व्यक्ति को यह भी अधिकार प्राप्त है कि वह अपनी इच्छानुसार किसी वकील से अपनी गिरफ्तारी के संबंध में परामर्श कर सके।

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प्रश्न 24.
शिक्षा का अधिकार क्या है ?
उत्तर-
86वाँ संवैधानिक संशोधन 2002 के द्वारा भारत में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया गया है। अब 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष के आयु के सभी भारतीय बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त है। 6 वर्ष तक के बच्चों को बाल्यकाल और शिक्षा की देखभाल करने के लिए सरकार द्वारा आवश्यक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी। यदि इस अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो इसे लागू कराने के लिए याचिका दायर की जा सकती है।

प्रश्न 25.
जनहित याचिका किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जनहित याचिका के द्वारा कोई भी व्यक्ति अथवा समूह सरकार के किसी कानून अथवा कार्य के खिलाफ सार्वजनिक हितों की सुरक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालयों में जा सकता है। इस प्रकार के मामले जज के नाम पोस्टकार्ड पर लिखा निजी अर्जी के माध्यम से भी उठाए जा सकते हैं। अगर न्यायाधीशों को लगे कि वास्तव में इस मामले में सार्वजनिक हितों पर चोट पहुँच रही है तो वे मामले को विचार के लिए स्वीकार कर सकते हैं।

प्रश्न 26.
बंदी प्रत्यक्षीकरण क्या है ?
उत्तर-
बंदी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा न्यायालय गैर-कानूनी ढंग से गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अपने सम्मुख प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। अगर न्यायालय द्वारा उसकी गिरफ्तारी अनुचित तथा गैर-कानूनी समझी गयी तो उसे रिहा करने का भी आदेश दे सकती है।

प्रश्न 27.
परमादेश क्या है ?
उत्तर-
यह भी एक प्रकार का अदालती आदेश है जो किसी व्यक्ति या संस्था को अपने उस कर्त्तव्य को करने के लिए बाध्य कर सकता है जिसे काननी रूप से करने के लिए वह बाध्य है। जैसे कोई कारखाने का, मालिक या नियोक्ता किसी मजदूर को बिना कारण बताए हटा देता है या उसके वेतन भत्ता से कटौती करता है तो मजदूर के आवेदन पर कारखाने के मालिक के विरुद्ध न्यायालय द्वारा परमादेश जारी किया जा सकता है और जाँच के बाद न्यायालय उचित फैसला दे सकता है।

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प्रश्न 28.
प्रतिषेध क्या है ?
उत्तर-
यह भी एक प्रकार का अदालती आदेश है । प्रतिषेध के द्वारा सर्वोच्च या उच्च न्यायालय की ओर से किसी अधीनस्थ न्यायालय को ऐसा कार्य करने से रोकने के लिए रिट जारी किया जा सकता है जो कानून के विरुद्ध हो या उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो ।

प्रश्न 29.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मौलिक अधिकार व्यर्थ है अगर इन्हें माननेवाला और लागू करनेवाला न हो। संभव है कि कई बार हमारे अधिकारों का उल्लंघन कोई व्यक्ति या कोई संस्था या फिर स्वयं सरकार ही कर रही हो । अगर हमारे किसी भी अधिकार का उल्लंघन होता है तो हम अदालत के जरिए उसे रोक सकते हैं।

अगर मामला मौलिक अधिकारों का हो तो हम सीध सर्वोच्च न्यायालय या किसी राज्य के उच्च न्यायालय में जा सकते हैं। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय को आदेश या ‘रिट’ जारी करने का अधिकार है । यह संवैधानिक उपचार है जिससे नागरिक अपने मौलिक अधिकारों को बचा सकते हैं।

प्रश्न 30.
अधिकारों का बढ़ता दायरा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मौलिक अधिकारों के अलावा और भी बहुत सारे अधिकार एवं कानून संविधान द्वारा प्राप्त होते हैं, जो सामाजिक, राजनैतिक, परिस्थितियों में विकास एवं बदलाव करते हैं। इस तरह से अधिकारों का दायरा बढ़ता जाता है । लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में अधिकारों की माँग तेजी से बढ़ती है। वास्तव में लोकतांत्रिक मूल्यों के विकास के समानान्तर अधिकारों का विकास होता है। अर्थात व्यक्ति के बढ़ते अधिकार इस बात की गवाही देते हैं कि उस समाज में लोकतंत्र की जड़ें कितनी मजबूत हो रही हैं।

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प्रश्न 31.
नये संविधान के निर्माण के समय दक्षिण अफ्रीका में कौन-कौन से नये अधिकार आए ?
उत्तर-
नये संविधान के निर्माण में भी नये-नये अधिकार सामने आये । जैसे- दक्षिण अफ्रीका में नागरिकों और उनके घरों की तलाशी नहीं ली जा सकती, उनके फोन टेप नहीं किए जा सकते, उनके पत्र आदि खोलकर नहीं पढ़े जा सकते ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों को कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं ?
उत्तर-
भारतीय संविधान के तीसरे अध्याय में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार प्रदान किये गए हैं

  • समता का अधिकार।
  • स्वतंत्रता का अधिकार।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार।
  • संवैधानिक उपचार का अधिकार।

नोट : इन सभी का विस्तार देखें लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर क्रमश: 12, 13, 14, 20, 30 एवं 26 में।

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प्रश्न 2.
भारतीय नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
86वाँ संशोधन के अनुसार भारतीय नागरिकों के निम्नलिखित दस कर्तव्य निश्चित किये गए हैं

  1. संविधान का पालन करना उसके व्यवस्थाओं के अनुसार संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रीय गान का सम्मान करना
  2. स्वतंत्रता के लिए किये गए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रोत्साहित करनेवाले आदर्शों का पालन करना ।
  3. भारत की सम्प्रभुता, एकता, अखंडता का समर्थन और रक्षा करना ।
  4. देश की रक्षा एवं आवश्यकता के समय राष्ट्रीय सेवा करना ।
  5. धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय अथवा वर्गीय भिन्नता से ऊपर उठकर भाईचारा बढ़ाना।
  6. संयुक्त सांस्कृतिक तथा समृद्ध विरासत का सम्मान करना और इसको स्थिर रखना।
  7. पर्यावरण एवं वन्य प्राणियों का संरक्षण करना ।
  8. दृष्टिकोण में वैज्ञानिकता, मानवतावाद, अन्वेषण एवं सुधार की भावना का विकास करना ।
  9. हिंसा से परहेज करना, सार्वजनिक सम्पत्ति की सुरक्षा करना तथा राष्ट्रहित उच्च के स्तरों की ओर बढ़ते रहना।
  10. माता-पिता द्वारा बच्चों के लिए शिक्षा संबंधी अवसरों की व्यवस्था करना।

प्रश्न 3.
अधिकार और मौलिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट करते हुए भारत के नागरिकों के अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतांत्रिक राज्य में नागरिक को अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है । इस तरह अधिकार लोगों के वे तार्किक दावे हैं जिसे समाज से स्वीकृति एवं अदालतों द्वारा मान्यता मिलती है।

मौलिक अधिकार वैसे अधिकार जिसकी चर्चा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता एवं न्याय दिलाने का वायदा करता है। मौलिक अधिकार इन्हीं वायदों को पूरा करने का प्रयास है।

भारतीय नागरिकों के अधिकार इस प्रकार हैं-

(i) जीवन जीने का अधिकार-हर मनुष्य अच्छा जीवन जीना चाहता है । व्यक्ति इन सुविधाओं को माँग दावे के रूप में करता है । उन दावों जिनमें व्यक्त्वि विकास की भावना हो जीने का अधिकार कहलाता है। इसके विरुद्ध कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का प्रयास करता है तो वह अपराध है और उस पर मुकदमा चलाया जायेगा।

(ii) विचार अभिव्यक्ति का अधिकार- अपने विचारों को हम भाषण देकर, पुस्तक लिखकर अभिव्यक्त कर सकते हैं । अपमान जनक शब्दों द्वारा नहीं।

(iii) संगठन बनाने का अधिकार नागरिकों को यह अधिकार है . कि वे अपने हित के लिए संगठन बना सकते हैं। ये संगठन सरकारी अथवा गैर-सरकारी स्तर पर बना सकते हैं । जैसे किसी शहर के कुछ लोग भ्रष्टाचार या प्रदूषण के खिलाफ अभियान चलाने के लिए संगठन बना सकते हैं। किसी कारखाने में मजदूर संघ का निर्माण हो सकता है ।

(iv) धार्मिक स्वतंत्रता-भारत में नागरिकों को किसी भी धर्म को ग्रहण करने उसका प्रचार-प्रसार तथा उसके लिए अन्य कार्य करने का अधिकार दिया गया है।

(v) संपत्ति का अधिकार प्रत्येक मनुष्य को धन अर्जन करने, जमा करने का अधिकार है।

(vi) शिक्षा का अधिकार प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि किसी भी शिक्षण संस्था में जाति, धर्म, लिंग, भाषा, क्षेत्र इत्यादि के भेदभाव के बिना दाखिला ले सकते हैं और शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।

(vii) वैवाहिक स्वतंत्रता का अधिकार-कोई भी बालिग लड़का व लड़की अपनी मर्जी से विवाह कर सकते हैं।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 6 लोकतांत्रिक अधिकार

प्रश्न 4.
दक्षिण अफ्रीका के संविधान द्वारा वहाँ के नागरिकों को कौन-कौन से प्रमुख अधिकार दिए गए हैं ?
उत्तर-
दक्षिण अफ्रीका के संविधान द्वारा वहाँ के नागरिकों को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं –
(i) गरिमा का अधिकार ।
(ii) निजता का अधिकार ।
(iii) श्रम · संबंधी समुचित व्यवहार का अधिकार ।
(iv) स्वस्थ पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण का अधिकार ।
(v) समुचित आवास का अधिकार ।
(vi) स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार ।
(vii) बाल अधिकार ।
(viii) बुनियादी और उच्च शिक्षा का अधिकार ।
(ix) संस्कृति, आर्थिक और भाषायी समुदायों का अधिकार ।
(x) सूचना का अधिकार ।

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Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 5 संसदीय लोकतंत्र की संस्थाएँ

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 1 Chapter 5 संसदीय लोकतंत्र की संस्थाएँ Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Political Science Solutions Chapter 5 संसदीय लोकतंत्र की संस्थाएँ

Bihar Board Class 9 Political Science संसदीय लोकतंत्र की संस्थाएँ Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नीतिगत फैसला निम्नलिखित में से कौन लेती है ?
(क) विधायिका
(ख) कार्यपालिका
(ग) न्यायपालिका
(घ) राष्ट्रपति
उत्तर-
(ख) कार्यपालिका

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प्रश्न 2.
राजनैतिक कार्यपालिका का प्रधान कौन होता है ?
(क) प्रधानमंत्री
(ख) जज
(ग) राष्ट्रपति
(घ) राजनैतिक नेता
उत्तर-
(ग) राष्ट्रपति

प्रश्न 3.
भारत के राष्ट्रपति द्वारा संकट काल की घोषणा निम्नलिखित में से किस वर्ष हुई?
(क) 1960 ई. में
(ख) 1970 ई. में
(ग) 1972 ई. में
(घ) 1975 ई० में
उत्तर-
(घ) 1975 ई० में

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प्रश्न 4.
भारत में राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा कौन करता है ?
(क) विदेशमंत्री
(ख) रक्षामंत्री
(ग) राष्ट्रपति
(घ) प्रधानमंत्री
उत्तर-
(ग) राष्ट्रपति

प्रश्न 5.
राष्ट्रपति का चुनाव होता है
(क) प्रत्यक्ष रूप से
(ख) अप्रत्यक्ष रूप से
(ग) दोनों ढंग से
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष रूप से

प्रश्न 6.
उपराष्ट्रपति का चुनाव होता है
(क) अप्रत्यक्ष ढंग से
(ख) प्रत्यक्ष ढंग से
(ग) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ढंग से
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) अप्रत्यक्ष ढंग से

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प्रश्न 7.
केन्द्र में मंत्रियों की नियुक्ति कौन करता है?
(क) राष्ट्रपति
(ख) संसद
(ग) उपराष्ट्रपति
(घ) प्रधानमंत्री
उत्तर-
(घ) प्रधानमंत्री

प्रश्न 8.
केन्द्र में कानून बनाने का कार्य कौन करती है ?
(क) विधायिका
(ख) न्यायपालिका
(ग) राज्यसभा
(घ) सर्वोच्च न्यायालय
उत्तर-
(क) विधायिका

प्रश्न 9.
राज्यपाल की नियुक्ति कितने वर्षों के लिए होती है ?
(क) 3 वर्षों
(ख) 4 वर्षों
(ग) 5 वर्षों
(घ) 6 वर्षों
उत्तर-
(ग) 5 वर्षों

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प्रश्न 10.
बिहार राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति इनमें से कौन करता है ?
(क) राष्ट्रपति
(ख) बिहार का राज्यपाल
(ग) मुख्य न्यायाधीश
(घ) मुख्यमंत्री
उत्तर-
(ख) बिहार का राज्यपाल

प्रश्न 11.
बिहार विधान मंडल के कितने सदन हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर-
(ख) दो

प्रश्न 12.
बिहार विधान परिषद् में वर्तमान में कितने सदस्य हैं ?
(क) 75
(ख) 60
(ग) 40
(घ) 36
उत्तर-
(क) 75

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प्रश्न 13.
विधानसभा के मनोनीत सदस्यों को छोड़कर बाकी सदस्यों का चुनाव किस प्रकार होता है ?
(क) अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा
(ख) प्रत्यक्ष मतदान द्वारा
(ग) एकल विधि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) प्रत्यक्ष मतदान द्वारा

प्रश्न 14.
विधान सभा का कार्यकाल कितने वर्षों का होता है ?
(क) 3 वर्ष
(ख) 4 वर्ष
(ग) 5 वर्ष
(घ) 6 वर्ष
उत्तर-
(ग) 5 वर्ष

प्रश्न 15.
न्यायाधीशों की नियुक्ति किसके द्वारा होती है ?
(क) मुख्य न्यायाधीश द्वारा
(ख) राष्ट्रपति द्वारा
(ग) मुख्यमंत्री द्वारा
(घ) प्रधानमंत्री द्वारा
उत्तर-
(ख) राष्ट्रपति द्वारा

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प्रश्न 16.
पटना उच्च न्यायालय की स्थापना हुई थी ?
(क) 1 मार्च, 1910 ई०
(ख) 1 मार्च, 1912 ई०
(ग) 1 मार्च, 1914 ई०
(घ) 1 मार्च, 1916 ई०
उत्तर-
(घ) 1 मार्च, 1916 ई०

प्रश्न 17.
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के अवकाश प्राप्त करने की उम्र निम्नलिखित में से क्या है ?
(क) 62 वर्ष
(ख) 60 वर्ष
(ग) 65 वर्ष
(घ) 70 वर्ष
उत्तर-
(क) 62 वर्ष

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प्रश्न 18.
भारत का राष्ट्रपति जटिल कानूनी मामलों पर किससे परामर्श ले सकता है ?
(क) कानून मंत्री से
(ख) प्रधानमंत्री से
(ग) उपराष्ट्रपति से
(घ) सर्वोच्च न्यायालय से
उत्तर-
(घ) सर्वोच्च न्यायालय से

प्रश्न 19.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय किसका निरीक्षण कर सकता है ? .
(क) अपने अधीनस्थ न्यायालयों का
(ख) संसद का
(ग) लोकसेवा आयोग का
(घ) सेना का
उत्तर-
(क) अपने अधीनस्थ न्यायालयों का

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प्रश्न 20.
राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को कितने रुपये जमानत की राशि जमा करनी होती है ?
(क) 10,000
(ख) 12,000
(ग) 14,000
(घ)15,000
उत्तर-
(घ)15,000

प्रश्न 21.
राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ रहे व्यक्ति के नाम को कितने मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित होना चाहिए?
(क) 50
(ख) 60
(ग) 70
(घ) 100
उत्तर-
(क) 50

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प्रश्न 22.
बाबू जगजीवन राम कब उपप्रधानमंत्री बने थे ?
(क) 1947 ई. में
(ख)1950 ई. में
(ग) 1960 ई० में
(घ) 1978 ई० में
उत्तर-
(घ) 1978 ई० में

प्रश्न 23.
लालकृष्ण आडवानी कब उप प्रधानमंत्री बने थे ?
(क) 1947 ई. में
(ख) 1978 ई. में
(ग) 2002 ई. में
(घ) 2006 ई. में
उत्तर-
(ग) 2002 ई. में

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प्रश्न 24.
लोकसभा को कहा जाता है ?
(क) प्रथम सदन
(ख) द्वितीय सदन
(ग) उच्च सदन
(घ) तृतीय सदन
उत्तर-
(क) प्रथम सदन

प्रश्न 25.
लोकसभा और विधानसभा के कुल स्थानों की संख्या कब तक
परिवर्तन नहीं किया जायेगा?
(क) 2015 तक
(ख) 2020 तक
(ग) 2025 तक
(घ) 2026 तक
उत्तर-
(घ) 2026 तक

प्रश्न 26.
राज्य सभा की कार्यवाही चलाने के लिए इसमें कुल सदस्यों के कितने भाग की उपस्थिति अनिवार्य होती है ?
(क) 1/10 भाग
(ख) 1/12 भाग
(ग) 1/15 भाग
(घ) 1/20 भाग
उत्तर-
(क) 1/10 भाग

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प्रश्न 27.
पटना विश्वविद्यालय का कुलपति कौन है ?
(क) राज्यपाल
(ख) मुख्यमंत्री
(ग) राष्ट्रपति
(घ) मुख्य न्यायाधीश
उत्तर-
(क) राज्यपाल

रिक्त स्थान की पूर्ति करें

प्रश्न 1.
शासन के कार्यकारी स्वरूप का निर्धारण व्यावहारिक रूप में …………………. द्वारा होता है।
उत्तर-
कार्यपालिका

प्रश्न 2.
केन्द्र सरकार ………………… महत्व के विषयों पर निर्णय लेती है।
उत्तर-
सर्वदेशीय

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प्रश्न 3.
राज्य सरकार ……………….. महत्व के विषयों पर निर्णय लेती है।
उत्तर-
स्थानीय

प्रश्न 4.
आधुनिक देशों में विभिन्न कार्य करने के लिए विभिन्न …………………. होती है।

प्रश्न 5.
……………….प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करते हैं।
उत्तर-
राष्ट्रपति

प्रश्न 6.
राज्य में …………………….. कानून बनाता है।
उत्तर-
विधायिका

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प्रश्न 7.
लोकसभा…………..का प्रतिनिधि है।
जनता

प्रश्न 8.
इंगलैंड में संसद को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
हाउस ऑफ कौमन्स

प्रश्न 9.
अमेरिका में संसद को …………………. कहते हैं।
उत्तर-
प्रतिनिधिसभा

प्रश्न 10.
कानून बनाने हेतु जो प्रस्ताव तैयार किया जाता है उसे ………………… कहते
उत्तर-
विधेयक

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प्रश्न 11.
संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का अधिकार इतना अधिक बढ़ गया है कि इसे ……………….. व्यवस्था कहा जाने लगा है।
उत्तर-
प्रधानमंत्रीय शासन

प्रश्न 12.
भारत में ……… व्यवस्था है।
उत्तर-
संघीय शासन

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प्रश्न 13.
राज्य में ………………. कार्यपालिका का प्रधान होता है।
उत्तर-
मुख्यमंत्री

प्रश्न 14.
राज्यपाल विधानमंडल के दोनों सदनों के ………………. में भाषण देते हैं।
उत्तर-
संयुक्त अधिवेशन

प्रश्न 15.
राज्यपाल के भाषण को ………………. कहा जाता है।
उत्तर-
अभिभाषण

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प्रश्न 16.
राष्ट्रपति शासन होने पर राज्यपाल केन्द्र के ……………….  के रूप में कार्य – करते हैं।
उत्तर-
एजेंट

प्रश्न 17.
राज्यपाल मुख्यमंत्री की ……………….  से सारा कार्य करते हैं। उत्तर-सलाह
उत्तर-
संस्थाएँ

प्रश्न 18.
भारतीय न्यायपालिका में पूरे देश के लिए ………………. . है।
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय

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प्रश्न 19.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति ……………….  करते हैं।
उत्तर-
राष्ट्रपति

प्रश्न 20.
भारत का सर्वोच्च न्यायालय को ………………. बनाया गया है।
उत्तर-
स्वतंत्र और निष्पक्ष

प्रश्न 21.
फाँसी के सजा की माफी का अधिकार केवल ……………….  की है।
उत्तर-
राष्ट्रपति

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प्रश्न 22.
ग्राम कचहरी को………………. की सजा देने का अधिकार प्राप्त है।
उत्तर-
एक माह

प्रश्न 23.
राष्ट्रपति के चुनाव के लिए जन्मजात और ……………….  में भेदभाव नहीं किये जाने का प्रावधान है।
उत्तर-
राज्यकृत

प्रश्न 24.
राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे व्यक्ति का 50 मतदाताओं द्वारा ……………….  होना चाहिए।
उत्तर-
अनुमोदित

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प्रश्न 25.
संसद और विधान सभा के मनोनित सदस्य राष्ट्रपति के ………………………….. में भाग नहीं लेंगे।
उत्तर-
चुनाव

प्रश्न 26.
संसद और विधान सभा के मनोनित सदस्य राष्ट्रपति को ……………………की प्रक्रिया में अवश्य भाग लेंगे।
उत्तर-
हटाने

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प्रश्न 27.
सर्वोच्च न्यायालय वह संस्था है, जहाँ नागरिक और सरकार के बीच ………………. सुलझाये जाते हैं।
उत्तर-
विवाद अंततः

प्रश्न 28.
नीतिगत फैसले कार्यपालिका जनता के ………………… . में लेती है।
उत्तर-
हित

प्रश्न 29.
राज्य स्तर पर विधान मंडल …………………. .कहलाती है।
उत्तर-
विधानसभा

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प्रश्न 30.
अध्यक्षीय शासन का उदाहरण ………………. है।
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमेरिका

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय सरकार के अधीन कार्य करनेवाली महत्वपूर्ण संस्थाओं का नाम लिखें।
उत्तर-
तीन संस्थाएँ हैं- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका ।

प्रश्न 2.
भारतीय संसद के कितने सदन हैं ?
उत्तर-
भारतीय संसद के दो सदन हैं- लोकसभा तथा राज्य सभा ।

प्रश्न 3.
राज्य सभा के सदस्य कितने वर्ष के लिए चुने जाते हैं ?
उत्तर-
छः वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

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प्रश्न 4.
उपराष्ट्रपति का कार्यकाल कितने साल का होता है ?
उत्तर-
5 वर्ष ।

प्रश्न 5.
राज्यसभा का सभापति कौन होता है ?
उत्तर-
उपराष्ट्रपति ।

प्रश्न 6.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति ।

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प्रश्न 7.
लोकसभा में सदस्यों की कुल संख्या कितनी है ?
उत्तर-
वर्तमान समय में 545 है।

प्रश्न 8.
मंडल आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर-
सन् 1979 ई० में।

प्रश्न 9.
मंडल आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
उत्तर-
श्री बी.पी. मंडल ।

प्रश्न 10.
संघीय कार्यपालिका का प्रधान कौन होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति ।

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प्रश्न 11.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति कौन करता है ? .
उत्तर-
राष्ट्रपति ।

प्रश्न 12.
केन्द्र में किसके हस्ताक्षर के बाद कानून बन जाता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति के ।

प्रश्न 13.
राज्य की कार्यपालिका शक्ति का वास्तविक प्रधान कौन होता है ?
उत्तर-
मुख्यमंत्री।

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प्रश्न 14.
सबसे निचले स्तर पर कौन-सा न्यायालय होता है ?
उत्तर-
ग्राम कचहरी ।।

प्रश्न 15.
विधेयक कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
दो प्रकार के-(i) सामान्य विधेयक (ii) धन विधेयक ।

प्रश्न 16.
पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरी में कितना प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई है ?
उत्तर-
27%।

प्रश्न 17.
पिछड़े वर्गों के लिए 27% का आरक्षण कानून कब बना?
उत्तर-
13 अगस्त, 1990 ई. को।

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प्रश्न 18.
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति का नाम बताएँ।
उत्तर-
श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ।

प्रश्न 19.
बिहार के मुख्यमंत्री का नाम बताएँ।
उत्तर-
श्री नीतिश कुमार ।

प्रश्न 20.
विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक कानून कब बनता है ?
उत्तर-
राज्यपाल की स्वीकृति के बाद ।

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प्रश्न 21.
बिहार में सरकार के खिलाफ अविश्वास या काम रोको प्रस्ताव किस सदन में उठाया जाएगा?
उत्तर-
सिर्फ विधानसभा में ।

प्रश्न 22.
विधान का उच्च सदन कौन है ?
उत्तर-
विधान परिषद ।

प्रश्न 23.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को समय से पहले कैसे हटाया जा सकता है ?
उत्तर-
महाभियोग प्रस्ताव के द्वारा ।

प्रश्न 24.
किस प्रकार के मुकदमों को सीधे उच्च न्यायालय में ले जाया जा सकता है ?
उत्तर-
मौलिक अधिकारों से संबंधित।

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प्रश्न 25.
क्या भारत में राज्यसभा में सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व है ?
उत्तर-
नहीं, ऐसा होता ही नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय संसद की रचना लिखें।
उत्तर-
संघीय संसद में राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा शामिल हैं । लोकसभा के सदस्यों की संख्या 552 हो सकती है। पर, आजकल लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 545 है। इनमें 543 निर्वाचित सदस्य हैं और दो राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य हैं। राज्य सभा सदन का ऊपरी सदन है जो जनता का प्रतिनिधित्व न करके राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें अधिकतम संख्या 250 हो सकती है पर इसमें 245 सदस्य हैं जिनमें 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं।

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प्रश्न 2.
सरकार के अधीन कार्य करनेवाली संस्थाओं के नाम लिखें । इसमें कार्यपालिका के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
सरकार के अधीन कार्य करनेवाली तीन महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका । इन तीनों के द्वारा ही शासन के सम्पूर्ण कार्यों का संचालन होता है । लेकिन शासन के कार्यकारी स्वरूप का निर्धारण व्यावहारिक रूप से कार्यपालिका द्वारा होता है । इसके द्वारा किए जाने वाले कार्य-

  • प्रशासकीय कार्य
  • नियुक्ति संबंधी कार्य
  • विधायिनी कार्य
  • सैनिक कार्य ।

प्रश्न 3.
संसद की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
निम्नलिखित बातों को लेकर इसकी आवश्यकता है

  • कानून बनाने के लिए ।
  • सरकार पर नियंत्रण रखने के लिए।
  • सार्वजनिक धन पर नियंत्रण रखने के लिए ।
  • लोगों के प्रतिनिधियों को एक मंच प्रदान करने के लिए संसद की आवश्यकता होती

प्रश्न 4.
नीतिगत फैसला क्या है ?
उत्तर-
केन्द्र सरकार के कार्य पद्धति को सर्वोच्च समझकर लिया गया फैसला ही नीतिगत फैसला है।

  • नीतिगत फैसला कार्यपालिका लेती है।
  • नीतिगत फैसले कार्यपालिका जनता के हित में लेती है।
  • नीति निर्धारण के क्रम में कार्यपालिका संसद की अनदेखी नहीं कर सकती है।

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प्रश्न 5.
संसदीय शासन-प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के सहयोग पर सरकार आधारित है। इस प्रणाली में कार्यपालिका का प्रधान नाममात्र का होता है। . वास्तविक शक्ति व्यवस्थापिका में बहुमत प्राप्त दल के नेता के हाथों में – होती है। वह अपने कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। भारत का राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका का प्रधान होता है, वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के हाथों में होती है ।

प्रश्न 6.
अध्यक्षात्मक सरकार किसे कहते हैं, उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
लोकतांत्रिक सरकार का दूसरा रूप अध्यक्षात्मक सरकार है । इसमें राज्य और सरकार का वास्तविक प्रधान राष्ट्रपति होता है। इस प्रणाली में राष्ट्रपति कार्यपालिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होता । अमेरिका में अध्यक्षात्मक सरकार है। संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति कार्यपालिका का सर्वेसर्वा होता है । विधायिका उसे समय के पूर्व हटा नहीं सकती है ।

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प्रश्न 7.
कार्यपालिका कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
कार्यपालिका दो तरह की होती है।
(i) राजनैतिक कार्यपालिका (ii) स्थायी कार्यपालिका

(i) राजनैतिक कार्यपालिका में ही शासन की वास्तविक शक्ति छिपी हुई है। राजनैतिक कार्यपालिका जनता के प्रतिनिधि के रूप में जनता की ओर से शासन करती है । इसका कार्यकाल निश्चित अवधि के लिए होता है । अथवा लोकसभा में बहुमत रहने तक दायित्व संभाले रहता है ।
(ii) स्थायी कार्यपालिका ऐसे उच्च पदाधिकारियों की फौज है जो , विभिन्न स्तर पर सरकार के नीति निर्धारण में परामर्श देती है एवं निर्देशानुसार नीति के स्वरूप को अमली जामा पहनाती है। इसका कार्यकाल पदस्थापित अधिकारियों के अवकाश ग्रहण करने तक बना रहता है।

प्रश्न 8.
राष्ट्रपति पद के निर्वाचन के लिए योग्यताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिए योग्यताओं का वर्णन संविधान में किया गया है। ये योग्यताएँ इस प्रकार हैं-

  • वह भारत का नागरिक हो ।
  • वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो ।
  • वह लोकसभा के लिए सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो ।
  • किसी लाभवाले पद पर कार्यरत न हो।

प्रश्न 9.
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्वाचन मंडल द्वारा होता है, जिसमें दो तरह के सदस्य होते हैं-

  • भारतीय संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य।
  • राज्य के विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य ।

राष्ट्रपति का निर्वाचन एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote System) द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में एक सदस्य एक मत वाली विधि नहीं अपनाई गई है। वैसे एक मतदाता को केवल एक ही मत मिलता है, लेकिन उसके मत की गणना नहीं होती बल्कि उसका मूल्यांकन होता है।

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प्रश्न 10.
राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने तथा उसे पद से हटाने के लिए संविधान में कौन-सी प्रक्रिया दी गयी है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति को पाँच वर्ष के लिए चुना जाता है; परंतु यदि कोई राष्ट्रपति अपनी शक्तियों के प्रयोग में संविधान का उल्लंघन करे तो पाँच वर्ष से पहले भी उसे अपने पद से हटाया जा सकता है। उसे महाभियांग द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है । एक सदन राष्ट्रपति के विरुद्ध आरोप लगाता है। यदि दूसरा सदन 2/3 बहुमत से उन आरोपों की पुष्टि कर दे तो राष्ट्रपति को उसी दिन पद त्यागना पड़ेगा। जब तक दूसरा सदन राष्ट्रपति को हटाये जाने का प्रस्ताव पास नहीं करता, उस समय तक राष्ट्रपति अपने पद पर आसीन रहता है।

प्रश्न 11.
उपराष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है ? उनके किन्हीं तीन अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
उपराष्ट्रपति का चुनाव 5 वर्ष के लिए होता है । उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों द्वारा गठित एक निर्वाचक मंडल द्वारा एकल संक्रमणीय मतविधि से आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होता है।

इनके तीन अधिकार निम्नलिखित हैं –

  • राज्य सभा की बैठक का सभापतित्व करना।
  • राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में राष्ट्रपति का कार्यभार संभालना।
  • राज्यसभा में मत समानता की स्थिति में निर्णायक मत देना ।
  • जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है तब वैसी स्थिति में नव-नियुक्त राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक वह राष्ट्रपति का पद सम्भालता है।

प्रश्न 12.
बिहार विधान परिषद् का गठन कैसे होता है ?
उत्तर-
यह विधानमंडल का दूसरा सदन है। यह एक स्थायी सदन है। विधान परिषद के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 40 एवं अधिकतम संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या की एक-तिहाई तक हो सकती है। वर्तमान में बिहार विधानपरिषद में 75 सदस्य हैं । विधान परिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली से होता है।

  • एक-तिहाई सदस्य राज्य की विधानसभा सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
  • एक-तिहाई सदस्य राज्य के स्थानीय निकायों के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।
  • 1/2 सदस्य राज्य के माध्यमिक एवं उच्च शिक्षण संस्थानों के अध्यापकों द्वारा।
  • 1/2 सदस्य स्नातकों द्वारा चुने जाते हैं।
  • 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत होते हैं।

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प्रश्न 13.
बिहार विधानसभा का गठन किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
विधानसभा विधान मंडल का निम्न सदन है । विधानसभा का गठन जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा हाता है। निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है । संपूर्ण राज्य को कई विधानसभा क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है तथा प्रत्येक क्षेत्र से एक-एक उम्मीदवार निर्वाचित होते हैं। बिहार विधानसभा में कुल 243 सदस्य हैं। बिहार विधान सभा जनता की प्रतिनिधि सभा है । संविधान के अनुसार राज्य में विधानसभा के सदस्यों की संख्या अधिक-से-अधिक 500 तथा कम-से-कम 50 हो सकती है।

राज्य में रहनेवाले प्रत्येक नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष या उससे अधिक हो, विधान सभा के चुनाव में हिस्सा ले सकता है। प्रत्येक विधानसभा में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित रखा जाता है । चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति भारत का नागरिक हो तथा 25 वर्ष की आयु पूरा कर चुका हो । बिहार विधानसभा में अनुसूचित जातियों के लिए 39 स्थान सुरक्षित हैं पर अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान सुरक्षित नहीं है, क्योंकि यहाँ उनकी आबादी नगण्य है।

प्रश्न 14.
प्रधानमंत्री का निर्वाचन कैसे होता है ?
उत्तर-
संविधान की धारा 74 में अंकित है कि राष्ट्रपति के कार्यों में सहायता एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा। प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है । राष्ट्रपति लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करता है । लोकसभा में अगर किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है, उस परिस्थिति में वह संयुक्त संसदीय दल के नेता को प्रधानमंत्री के पद पर नियुक्त करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मंडल आयोग क्या है ? उसने क्या सिफारिशें की ? उसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर-
मंडल आयोग की स्थापना जनता पार्टी की सरकार ने 1979 ई. में की थी । इसके अध्यक्ष श्री वी. पी. मंडल थे। इस आयोग का कार्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों की पहचान करना तथा उनके विकास के लिए सुझाव देना था, मंडल आयोग ने 31 दिसम्बर, 1980 को अपनी रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत की। मंडल आयोग ने निम्नलिखित सिफारिशें की –

(i) सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण होना चाहिए।
(ii) अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए बनाए गए कार्यक्रम के लिए धन, केन्द्र सरकार को देना चाहिए ।

1989 ई० का लोकसभा चुनाव हुआ। चुनाव के बाद जनता दल की सरकार बनी । प्रधानमंत्री श्री वी. पी. सिंह ने संसद में राष्ट्रपति भाषण के जरिए मंडल रिपोर्ट लागू करने की अपनी मंशा की घोषणा को। तब जाकर 6 अगस्त, 1990 ई. को केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में एक औपचारिक निर्णय लिया गया । केन्द्रीय सरकार की तरफ से इस पर स्वीकृति दे दी गई और 13 अगस्त, 1990 ई. में संयुक्त सचिव के हस्ताक्षर से कानून निर्गत हुआ। देशभर में इसका काफी विरोध हुआ। इस निर्णय के विरुद्ध कई अदालतों में मुकदमें दायर किये गये । निर्णय को अवैध घोषित करने की मांग हुई। परन्तु भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इन सभी मुकदमों को एक साथ जोड़ दिया और मुकदमें को ‘इंदिरा साहनी एवं अन्य बनाम भारत सरकार मामला’ कहा । कोर्ट के 11 सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 1992 ई. में फैसला दिया कि पिछड़े वर्ग में अच्छी स्थिति वाले लोगों को इस आरक्षण से वंचित करते हुए मंडल आयोग को वैध ठहराया। उसी के मुताबिक 8 सितम्बर 1993 ई. को कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने एक आदेश जारी किया । यह विवाद सुलझ गया और तभी से इस नीति पर अमल किया जा रहा है।

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प्रश्न 2.
संसद की शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन करें ।
उत्तर-
भारतीय संसद संघ की विधानपालिका है और संघ की सभी विधायिनी शक्तियाँ उसे प्राप्त हैं। इसके अतिरिक्त उसे और भी कई शक्तियाँ प्राप्त हैं। संसद को निम्नलिखित शक्तियाँ दी गई हैं-

  •  विधायिनी शक्तियाँ-इसका मुख्य कार्य है कानून बनाना ।
  • वित्तीय शक्तियाँ-संसद राष्ट्र के धन पर नियंत्रण रखती है । वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने से पहले बजट संसद में पेश किया जाता है ।
  • कार्यपालिका पर नियंत्रण-संसद हर कार्य के लिए उत्तरदायी है।
  • राष्ट्रीय नीतियों का कार्यान्वयन कार्यान्वयन करना भी संसद का एक महत्वपूर्ण कार्य है।
  • संवैधानिक शक्तियाँ संविधान संशोधन का भी अधिकार इस प्राप्त है।
  • विकास संबंधी कार्य-आधुनिक काल में सरकार का स्वरूप लोक कल्याणकारी हो गया है । इसका उद्देश्य केवल जनता की जानमाल की रक्षा ही नहीं बल्कि सर्वांगीण विकास है । जैसे-सड़कें बनवाना, रोशनी की व्यवस्था करना, सिंचाई की व्यवस्था, विद्यालयों, महाविद्यालयों की स्थापना करना, आवास के लिए भवनों का निर्माण कराना, अस्पताल की व्यवस्था करना, सफाई पर ध्यान देना इत्यादि ।

प्रश्न 3.
संसदीय और अध्यक्षात्मक शासन में क्या अंन्तर है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
संसदीय शासन और अध्यक्षात्मक शासन में निम्नलिखित अंतर हैं-

  • संसदीय शासन में कार्यपालिका प्रधान नाममात्र का संविधानिक प्रधान होता है। अध्यात्मक शासन देश का प्रधान कार्यपालिका का ही प्रधान नहीं होता वरन राष्ट्र का भी वास्तविक प्रधान होता है।
  • संसदीय शासन का आधार शक्तियों का संयोग है। इसके विपरीत अध्यक्षात्मक शासन का आधार पृथक्करण का सिद्धान्त है ।
  • संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका एवं विधायिका में घनिष्ठ संबंध है। अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका और विधायिका एक दूसरे से पृथक और स्वतंत्र है।
  • संसदीय शासन में कार्यपालिका विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी
    अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
  • संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका पर विधायिका का नियंत्रण होता है और वह उसके प्रति उत्तरदायी भी रहता है। अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका पर विधायिका का नियंत्रण नहीं होता।
  • संसदीय शासन में कार्यपालिका और विधायिका के बीच संघर्ष की संभावना नहीं रहती। अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका और विधायिका के बीच संघर्ष की सम्भावना रहती है । अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका और विधायिका में संघर्ष का वातावरण हमेशा बना रहता है।
  • संसदीय शासन में मंत्रिमंडल के सदस्य विधानमंडल के प्रति उत्तरदाीय होते हैं क्योंकि वे विधानमंडल के सदस्य होते हैं । अध्यक्षात्मक शासन में मंत्रिमंडल के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

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प्रश्न 4.
संघीय सरकार किसे कहते हैं ? इसके गुण-दोषों का वर्णन करें।
उत्तर-
संघीय शासन वह पद्धति है जिसमें समस्त शासकीय शक्ति केन्द्रीय सरकार तथा उन विभिन्न राज्यों या क्षेत्रीय उपविभागों की सरकारों के बीच बँटी रहती है जिसे मिलाकर संघ बनता है।

संघीय सरकार के निम्नलिखित गुण हैं-

  • राष्ट्रीय एकता में वृद्धि-इसका निर्माण अनेक इकाइयों के सहयोग से होता है; इसलिए विभिन्न इकाइयाँ पारस्परिक एकता के सूत्र में बँध जाती हैं।
  • क्षेत्रीय स्वतंत्रता-संघीय शासन से केवल राष्ट्रीय एकता में ही वृद्धि नहीं होती बल्कि विभिन्न इकाइयों तथा राज्यों की स्वतंत्रता एवं समानता भी कायम रहती है।
  • जन जागरूकता-संघीय शासन प्रणाली में शक्ति विकेन्द्रित रहती है इसलिए जनता को शासन में भाग लेने का अधिक समय मिलता है। इससे जनता अपने सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों से परिचित रहती है।
  • उत्तरदायी पूर्ण शासन-संघीय शासन में अधिकारों का विभाजन केन्द्र तथा विभिन्न इकाइयों में रहता है। इसलिए केन्द्र तथा इकाइयाँ अपने-अपने दायित्व के अनुसार शासन के प्रति उत्तरदायी रहता है।
  • आर्थिक दृष्टि से उपयोगी-संघीय शासन प्रणाली आर्थिक दृष्टि से उपयोगी होता है क्योंकि केन्द्र तथा विभिन्न राज्यों को अपने आर्थिक साधनों में वृद्धि करने का समान अवसर मिलता है।
  • कुशल प्रशासन–संघीय शासन में अधिकारों का स्पष्ट विभाजन हो जाता है। इसमें प्रशासन की कार्य-कुशलता में वृद्धि हो जाती है।
  • प्रजातांत्रिक मूल्यों की रक्षा-संघीय शासन प्रणाली का सबसे बड़ा गुण है कि यह प्रजातात्रिक मूल्यों की रक्षा करता है।

संघीय शासन व्यवस्था के दोष-

(i) प्रधानमंत्री शासन व्यवस्था संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का अधिकार हाल के दशकों में इतना अधिक बढ़ गया है कि संसदीय लोकतंत्र को कभी-कभी प्रधानमंत्रीय शासन व्यवस्था कहा जाने लगा है क्योंकि प्रधानमंत्री के पास सारे अधिकार सीमित रहने की प्रवृत्ति देखी गयी है। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ढेर सारे अधिकारों का इस्तेमाल किया । इन्दिरा गाँधी काफी प्रभावशाली प्रधानमंत्री थीं।

(ii) एकता का अभाव-बहमत नहीं मिलने पर गठबंधन सरकार का निर्माण होता है। गठबंधन सरकार का प्रधानमंत्री अपने मर्जी से फैसले नहीं कर सकता। गठबंधन के साझीदारों की राय भी माननी पड़ती है क्योंकि उन्हीं के समर्थन के आधार पर सरकार टिके होती है। हाल के ताजा उदाहरण डा. मनमोहन सिंह के सरकार पर संकट तब हुआ जब एंटमी करार पर वामदल ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था।

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प्रश्न 5.
राष्ट्रपति के अधिकार एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति भारतीय संघ का प्रधान होता है। उनकी शक्तियाँ एवं कार्य निम्न हैं

(i) कार्यपालिका संबंधी अधिकार-राष्ट्रपति संघीय कार्यपालिका का प्रधान होता है। शासन. का सारा कार्य उन्हीं के नाम से होता है। कार्यपालिका के क्षेत्र में उसे निम्न अधिकार प्राप्त है-

(क) राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है, तथा प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है तथा उनके बीच कार्यों का बँटवारा करता है।
(ख) प्रधानमंत्री की सलाह से ही राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, चुनाव आयुक्त, राजदूतों, महालेखा परीक्षक, संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
(ग) सेनाध्यक्षों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करते हैं।
(घ) राष्ट्रपति किसी देश के विरुद्ध युद्ध एवं शान्ति की घोषणा कर सकता है।
(ङ) भारतीय संघ के मुख्य कार्यपालक होने के नाते उसका दायित्व है कि वह सदैव प्रशासन पर निगरानी रखे।

(ii) विधायिका संबंधी कार्य-राष्ट्रपति को भारतीय संसद की बैठक बुलाने, स्थगित करने तथा लोकसभा भंग करने का अधिकार प्राप्त
राष्ट्रपति के प्रमुख कार्यों में अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हैं, इसके अतिरिक्त वित्त आयोग की नियुक्ति, धनविधेयक की मंजूरी आदि महत्वपूर्ण कार्य हैं ।

(iii) वित्तीय अधिकार-वार्षिक बजट तैयार करने तथा वित्तमंत्री के माध्यम से संसद में प्रस्तुत कराने का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है । कोई भी धन विधेयक राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति के बिना संसद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। राज्यों के बीच वित्त वितरण का अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है। .

(iv) न्यायसंबंधी अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं।
राष्ट्रपति किसी अपराधी के फाँसी की सजा को माफ या आजीवन कारावास की सजा में बदल सकते हैं।

(v) संकट कालीन अधिकार-भारतीय संविधान द्वारा राष्ट्रपति को कुछ संकटकालीन शक्तियाँ सौंपी गई हैं । ।

(क) युद्ध तथा बाहरी आक्रमण के समय राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकते हैं।
(ख) राज्यों में संवैधानिक विफलता पर ।
(ग) भारत में वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर :
राष्ट्रपति के इस अधिकार का प्रयोग हमारे देश में 1962, 1971 एवं 1975 ई० में हुआ।

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प्रश्न 6.
प्रधानमंत्री के अधिकार और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
संविधान की धारा 74 में उल्लेख है कि राष्ट्रपति के कार्यों ‘ में सहायता एवं परामर्श देने के लिए एक मंत्री परिषद होगी जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा। प्रधानमंत्री के अधिकार एवं कार्य निम्नलिखित हैं

  • मंत्रीपरिषद् गठन करने का अधिकार-प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद् का निर्माता, पालनकर्ता एवं विनाशकर्ता है। वह मंत्रियों की नियुक्ति करता है। उसकी इच्छा पर ही मंत्री मंत्री परिषद में बने रहते हैं।
  • वह मंत्रियों के बीच कार्यों का विभाजन करता है तथा उनके कार्यों पर निगरानी रखता है।
  • नीति निर्धारण का अधिकार-प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों की सहायता से सरकार के लिए उच्चस्तरीय नीतियों का निर्धारण करता है ।
  • मंत्रीपरिषद और राष्ट्रपति के बीच की कड़ी-प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति के बीच कड़ी का काम करता है। मंत्री परिषद के निर्णय की सूचना प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को देता है तथा राष्ट्रपति के विचारों से मंत्रिपरिषद को अवगत कराता है।
  • मध्यस्थता का कार्य-दो मंत्रियों या विभागों के बीच अगर किसी बात को लेकर मतभेद उत्पन्न होता है, तो उसे सुलझाने में प्रधानमंत्री मदद करता है।
  • संसद संबंधी कार्य-लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता होने के कारण प्रधानमंत्री का दायित्व बढ़ जाता है। वह लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। संसद में कार्यों का संचालन, समय निर्धारण इत्यादि में प्रधानमंत्री मुख्य भूमिका निभाता है।
  • नियुक्ति संबंधी अधिकार कार्यपालिका के क्षेत्र में जो अधिकार राष्ट्रपति को प्राप्त है, उसका वास्तविक रूप से उपयोग प्रधानमंत्री करते हैं।
  • वैदेशिक मामले संबंधी-यह अधिकार अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रधानमंत्री महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है । इसमें प्रधानमंत्री अपने देश का प्रतिनिधित्व करता है।
  • संकटकालीन अधिकार-राष्ट्रपति को प्राप्त संकटकालीन अधिकारों का उपयोग प्रधानमंत्री ही करता है।

प्रश्न 7.
लोकसभा का गठन कैसे होता है ? इसके कार्य एवं अधिकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकसभा भारतीय जनता की प्रतिनिधि सभा है। इसके सदस्यों का निर्वाचन प्रत्येक 5 वर्ष पर वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष ढंग से होता है । यह जनता की ओर से असली प्रतिनिधि सभा है। इसमें सदस्यों की संख्या 552 तक हो सकती है जिनमें 530 सदस्य विभिन्न राज्यों से एवं 20 सदस्य केन्द्रशासित प्रदेशों से चुनकर आते हैं।

शेष 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं । अनुसूचित जातियों ” के लिए 84 तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 47 स्थान सुरक्षित है। लोकसभा का सदस्य वही हो सकता है जो-

  • भारत का नागरिक हो।
  • जिसने 25 वर्ष की आयु पूरा कर लिया हो।

लोकसभा के कार्य एवं अधिकार

(i) विधायिका संबंधी कार्य-लोकसभा को उन सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है। वह संघ सूची, समवर्ती सूची तथा आवश्यकता पड़ने पर राज्य सूची पर भी नियम बनाता है।

(ii) वित्तीय अधिकार भारतीय संसद वित्त पर पूर्ण नियंत्रण रखती है। लोकसभा नये करों को लगाने, पुराने करों को कम करने अथवा हटाने की स्वीकृति प्रदान करती है। भारत का वित्तमंत्री प्रतिवर्ष आय-व्यय का लेखा संसद में पेश करता है। लोकसभा को यह अधिकार प्राप्त है कि खर्च की रकम कम कर दे या अस्वीकार कर दे।

(iii) कार्यपालिका संबंधी अधिकार-संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका विधायिका का एक सहायक निकाय है, इसलिए कार्यपालिका को हमेशा विधायिका के नियंत्रण में काम करना पड़ता है। कार्यपालिका निम्नलिखित तरीके से मंत्रीपरिषद पर नियंत्रण रखती है- (क) अविश्वास प्रस्ताव द्वारा, (ख) प्रश्न द्वारा, (ग) पूरक प्रश्न द्वारा, (घ) सरकारी विधेयक द्वारा, (ङ) सरकारी विधेयक को अस्वीकृत करके, (च) आलोचना करके, (छ) निंदा प्रस्ताव के द्वारा ।।

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प्रश्न 8.
साधारण विधेयक को कानून बनने के पहले कितने चरणों से – गुजरना पड़ता है ? वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण विधेयक को कानून बनने के पहले पाँच चरणों से गुजरना पड़ता है।
(i) प्रथम वाचन-साधारण विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों में से किसी एक सभा में उपस्थित किया जा सकता है। विधेयक उपस्थापित करनेवाले उस विधेयक के नाम और शीर्षक बताने के बाद विधेयक से संबंधित मुख्य बातों की चर्चा करते हैं।

(1) द्वितीय वाचन-इस स्तर पर यह तय होता है कि विधेयक को प्रवर समिति के पास विचार के लिए प्रस्तुत किया जाय अथवा जनमत हेतु इसे प्रस्तावित किया जाए । अथवा उस पर सदन से ही तुरंत विचार कर लिया जाय । इसमें संशोधन का सुझाव देती है।

(iii) तृतीय वाचन-तृतीय वाचन में विधेयक पर मतदान होता है। मतदान में बहुमत मिलने पर विधेयक पास समझा जाता है। तृतीय वाचन में विधेयक में कोई हेर-फेर नहीं किया जाता है।

(iv) दूसरे सदन में पेश करना-एक सदन में पारित होने के बाद विधेयक दूसरे सदन में प्रस्तुत किया जाता है। दूसरे सदन में भी विधेयक को उन्हीं सब स्तरों से गुजरना पड़ता है जैसे पहले सदन में गुजरा है। संयुक्त बैठक में बहुमत मिल जाता है क्योंकि लोकसभा में सदस्यों की संख्या अधिक होती है।

(v) राष्ट्रपति की स्वीकृति—दोनों सदनों से पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जिसका स्वीकृति मिलने के बाद विधेयक कानून बन जाता है। राष्ट्रपति चाहे तो विधेयक को संसद में पुन: विचार के लिए वापस कर सकते हैं । अगर संसद विधेयक की राष्ट्रपति के पास पुनः भेज देती है तो हस्ताक्षर करना अनिवार्य हो जाता है। इस तरह विधेयक कानून बन जाता है।

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प्रश्न 9.
राज्य सभा के गठन एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
सदन के दो सदन हैं-लोकसभा और राज्यसभा । राज्य सभा को द्वितीय सदन भी कहते हैं।
गठन-यह सदन स्थायी सदन होता है। इसमें सदस्यों की संख्या 250 है। इसमें 238 सदस्य विभिन्न राज्यों के विधानसभा सदस्यों द्वारा निर्वाचित होते हैं तथा 12 सदस्य विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशिष्टता के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं। राज्यसभा के सदस्यों की कार्य अवधि 6 साल की होती है। इसमें सदस्यों की उम्र सीमा कम-से-कम 30 साल का होना चाहिए तथा वह भारत का नागरिक हो तथा लोकसभा की सदस्यता की योग्यता रखता हो । राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष उपराष्ट्रपति होते हैं । एक उपाध्यक्ष भी होते हैं जो उपराष्ट्रपति की अनुपस्थिति में सभा का संचालन करते हैं।

  • कार्यपालिका संबंधी-राज्यसभा सदस्य प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव पास कर यह सदन कार्यपालिका पर. नियंत्रण रखती है।
  • विधायिका संबंधी विधायिका संबंधी शक्तियाँ सीमित हैं। साधारण विधेयक राज्यसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं । दोनों सदनों में मतभेद हो जाने पर राज्यसभा की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। ऐसी हालत में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होती है, किन्तु संयुक्त बैठक में सदस्य संख्या कम होने के कारण वह बात स्वीकृत नहीं हो पाती; यह . एकमात्र रुकावट है।
  • वित्त संबंधी राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही संसद में बजट पेश किया जाता है । धन-विधेयक को स्वीकृति प्रदान करना, वित्त आयोग की नियुक्ति करना भी राष्ट्रपति के महत्वपूर्ण कार्य हैं।

प्रश्न 10.
राज्यपाल की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसके कार्य एवं अधिकारों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
नियुक्ति-भारतीय संविधान के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति. राष्ट्रपति द्वारा होती है। राष्ट्रपति राज्यपाल की नियुक्ति केन्द्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह से करता है, जिसमें प्रधानमंत्री की भूमिका अधिक रहती है। राज्यपाल की नियुक्ति के लिए आवश्यक है-

  • वह भारत का नागरिक हो
  • वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  • वह किसी विधानमंडल या संसद का सदस्य नहीं हो ।
  • वह किसी लाभ के पद पर न हो।

कार्य एवं अधिकार राज्य के निम्नलिखित कार्य एवं अधिकार हैं-

(i) कार्यपालिका संबंधी अधिकार राज्यपाल कार्यपालिका प्रधान होता है। इस कारण राज्य के सभी काम राज्यपाल के नाम होते हैं। राज्य के प्रमुख पदाधिकारियों की नियुक्ति करते हैं । राज्यपाल बहुमत दल के नेता को मुख्य मंत्री के पद पर नियुक्त करता है तथा मुख्यमंत्री की सलाह से मंत्री परिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति करता है।

(ii) विधायिका संबंधी अधिकार-विधायिका क्षेत्र में निम्नलिखित अधिकार हैं

  • राज्यपाल ही राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों की बैठक बुलाता है। वह विधान सभा को भंग भी कर सकता है।
  • राज्य सत्र के आरम्भ में विधानमंडल के दोनों सदनों को सम्बोधित करता है।
  • वह विधानपरिषद के 1/6 सदस्यों को मनोनीत करता है।
  • राज्यपाल के हस्ताक्षर के बिना कोई भी विधेयक कानून नहीं बन सकता।
  • धन विधेयक राज्यपाल की स्वीकृति के बिना विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता है।

(iii) न्यायपालिका संबंधी अधिकार-उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में राष्ट्रपति राज्यपाल से भी परामर्श लेता है। वह किसी
अपराधी की सजा को कम कर सकता है या माफ भी कर सकता है।

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प्रश्न 11.
मुख्यमंत्री की नियुक्ति कैसे होती है ? इसके अधिकार एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
जो स्थान संघीय मंत्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री का होता है, वही स्थान राज्यमंत्री परिषद में मुख्यमंत्री का होता है।
नियुक्ति- संविधान के अनुच्छेद 164 में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जायेगी लेकिन व्यवहार में राज्यपाल उसी व्यक्ति को मुख्य पद पर नियुक्त करता है जो विधानमंडल में बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है। अगर किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होता है उस परिस्थिति में राज्यपाल संयुक्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के पद पर नियुक्त करता है।

मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कार्य-

  • मंत्रिमंडल का निर्माणमुख्यमंत्री ही मंत्रिमंडल का निर्माता होता है, राज्यपाल उस पर अपनी सहमति दे देते हैं और विभागों का बंटवारा भी मंत्रियों के बीच वही करता
  • मंत्रीपरिषदका अध्यक्ष-मुख्यमंत्री मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष होता है और मंत्रिपरिषद की बैठक का सभापतित्व करता है।
  • विधानसभा का नेतृत्व-बहुमत दल का नेता होने के कारण वह सदन का कुशल नेतृत्व भी करता है। सभी प्रशासनिक विभागों का निरीक्षण करता है तथा मंत्रियों के बीच किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न होने पर मुख्यमंत्री उस विवाद का निपटारा कर अन्तिम निर्णय देता है।
  • नियुक्तियाँ-राज्यपाल एक औपचारिक प्रधान है। उसकी वास्तविक शक्ति का प्रयोग मुख्यमंत्री ही करता है। उसके कहने पर ही राज्यपाल किसी मंत्री को नियुक्त अथवा पदच्युत कर सकता है तथा विधान सभा को विघटित कर सकता है।
  • राज्यपाल एवं मंत्रिपरिषद के बीच एक कड़ी का काम मुख्यमंत्री करते हैं। वह राज्यपाल को मंत्रिपरिषद के सभी कार्यों की सूचना देता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मुख्यमंत्री राज्य शासन का कप्तान है और राज्य मंत्रिमंडल में उसकी विशिष्ट स्थिति होती है।

प्रश्न 12.
विधानसभा के अधिकार और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
विधानसभा राज्य विधान मंडल का प्रमुख सदन है। यह राज्य का प्रतिनिधि सभा है । इसके निम्नलिखित कार्य हैं

(i) विधान संबंधी अधिकार-विधान सभा कानून बनाने वाला प्रमुख सदन है। धन विधेयक तो सिर्फ विधान सभा में ही उपस्थापित किया जाता है। विधानसभा द्वारा पारित विधेयक पर विधान परिषद चार महीने के भीतर अपना अनुमोदन देने के लिए बाध्य है। चार महीना से अधिक विलम्ब होने पर विधेयक अपने आप पारित समझा जाता है। अतः विधि निर्माण में विधान सभा एक सशक्त सदन है।

(i) कार्यपालिका संबंधी अधिकार राज्य मंत्रिपरिषद अपने कार्यों के लिए विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है। मंत्रिपरिषद को विधानसभा के सदस्य काम रोको प्रस्ताव एवं निंदा प्रस्ताव लाकर मंत्रिपरिषद को नियंत्रित रखती है।

(iii) वित्तीय शक्तियाँ-विधानसभा को राज्य के वित्त पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है। वित्त विधेयक सबसे पहले विधानसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। वित्त विधेयक में अन्तिम निर्णय विधान सभा के अध्यक्ष ही दे सकता है। जहाँ तक विधान परिषद का अधिकार है वह वित्त विधेयक को 14 दिनों तक ही रोक कर रख सकती है। 14 दिनों के अन्दर वह वापस नहीं करती तो धन विधेयक अपने आप पारित समझा जाता है।

(iv) विविध अधिकार-विविध अधिकार निम्नलिखित हैं-

(क) राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग लेना
(ख) संवैधानिक संशोधन में सहयोग करना

इस प्रकार विधान मंडल एक लोकप्रिय तथा शक्तिशाली सदन है।

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प्रश्न 13.
विधान परिषद के अधिकारों एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
विधान परिषद विधान सभा की अपेक्षा एक निर्बल सदन है।

इसके निम्नलिखित कार्य हैं-

(i) विधायिनी शक्तियाँ-धन विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक विधान परिषद में पेश किया जा सकता है। परंतु कोई भी विधेयक विधान सभा के सहमति के बिना पारित नहीं होता। अत: विधायनी शक्तियों नियः

(ii) वित्तीय शक्तियाँ-वित्तीय क्षेत्र में विधानपरिषद की स्थिति , केन्द्र सरकार के राज्यसभा की तरह है। धन विधेयक इस सभा में पेश ‘नहीं किया जाता है। विधानसभा में पारित होने के बाद धन विधयक विधानपरिषद में आता है। विधान परिषद अपनी सुझाव के साथ अधिक-से-अधिक 14 दिनों तक रख सकता हैं। 14 दिनों के अन्दर विधानसभा में लौटा देना पड़ता है नहीं तो विधेयक स्वतः पारित समझा जाता है।

(iii) प्रशासकीय अधिकार-विधान परिषद का कार्यकारिणी पर बहुत कम अधिकार है। विधान परिषद अविश्वास के द्वारा नहीं हटा सकता, सिर्फ आलोचना कर सकता है। वास्तव में विधान परिषद के पास नगण्य अधिकार है।

प्रश्न 14.
भारत में सर्वोच्च न्यायालय का गठन कैसे होता है ? इसके क्षेत्राधिकार का वर्णन करें।’
उत्तर-
सर्वोच्च न्यायालय देश का सबसे बड़ा न्यायालय है। इसका गठन सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना 26 जनवरी 1950 को की गई और यह नई दिल्ली में स्थित है। वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता निम्न है

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • कम से कम पाँच वर्ष किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या
  • कम से कम दस वर्ष किसी उच्च न्यायालय में वकालत कर” चुका हो या
  • राष्ट्रपति की राय में कानून का ज्ञाता हो ।

न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होता है। भारत में 65 वर्ष के उम्र तक सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद पर बने रहते हैं।

क्षेत्राधिकार-

  • प्रारंभिक क्षेत्राधिकार-इसमें दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद, केन्द्र एवं राज्यों के मध्य विवाद, मौलिक अधिकारों से संबंधित मुकदमें आदि सम्मिलित है।
  • अपीलीय अधिकार-सर्वोच्च न्यायालय को दीवानी एवं आपराधिक दोनों क्षेत्रों में अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है । सर्वोच्च न्यायालय में कोई भी नागरिक अथवा राज्य सरकार उच्च न्यायालयों के निर्णय के विरुद्ध अपील कर सकता है।
  • परामर्श संबंधी अधिकार-सर्वोच्च न्यायालय को परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार भी प्राप्त है। राष्ट्रपति कानून के किसी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ले सकते हैं, पर उस परामर्श को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
  • संविधान का रक्षक-नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का दायित्व सर्वोच्च न्यायालय पर है । इसलिए वह संविधान का रक्षक है।
  • पुनर्विचार का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों पर पुनर्विचार करने का भी अधिकार है।
  • निरीक्षण का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति के पूर्वानुमति से न्यायालय के अधिकारियों के वेतन, भत्ते, छुट्टी, पेंशन और सेवा की अन्य शर्तों से संबंधित नियम बना सकता है।

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प्रश्न 15.
लोकसभा के अध्यक्ष का निर्वाचन कैसे होता है ? उसके अधिकार एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकसभा का एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष होता है, जिसका निर्वाचन लोकसभा सदस्य अपने में से ही करते हैं। अध्यक्ष लोकसभा की कार्यवाहियों में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, और लोकसभा की कार्यवाहियों का संचालन करता है। इनका कार्यकाल सामान्यत: 5 वर्षों के लिए होता है । यह अपने पद पर तब तक बना रहता है जबतक कि नव-निर्वाचित लोकसभा अपने अध्यक्ष का चुनाव न कर ले।

लोकसभा के अध्यक्ष के कार्य एवं अधिकार निम्नलिखित हैं-

  • सभापतित्व करना लोकसभा का अध्यक्ष बैठक का सभापतित्व करता है.। सभापतित्व करते हुए सदन में शांति एवं अनुशासन बनाये रखना उसी का दायित्व है।
  • वाद-विवाद का समय निश्चित करना अध्यक्ष सदन के नेता से राय लेकर विभिन्न विषयों के संबंध में वाद-विवाद का समय निश्चित करता है।
  • काम रोको प्रस्ताव-किसी भी सार्वजनिक महत्व के प्रश्न पर काम रोको प्रस्ताव लोकसभा में पेश करने की आज्ञा अध्यक्ष द्वारा ही दी जाती है।
  • प्रवर समिति के अध्यक्षों की नियुक्ति-लोकसभा के अध्यक्ष _ही प्रवर समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है।
  • बजट संबंधी भाषणों की सीमा निर्धारण करना—इसकी काल . सीमा का निर्धारण अध्यक्ष ही करता है।
  • अन्य अधिकार-सदन को स्थगित करने, राष्ट्रपति तथा लोकसभा का माध्यम होना, सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना, संसदीय कार्यवाही से आपत्तिजनक शब्दों को हटाने का आदेश देना, संसद के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता करना, तथा सभी विधेयकों का संचालन लोकसभा का अध्यक्ष ही करता है।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Amrita Bhag 1 Chapter 11 गंगा नदी Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

Bihar Board Class 6 Sanskrit गंगा नदी Text Book Questions and Answers

अभ्यासः

मौखिक:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण करें –

  1. गङ्गायाः – गङ्गायाम् – गङ्गया
  2. लतायाः – लतायाम् – लतया
  3. सीतायाः – सीतायाम् – सीतया
  4. अयोध्यायाः – अयोध्यायाम् – अयोध्यया
  5. गीतायाः – गीतायाम् – गीतया

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

(ख ) शब्द – द्वितीया – तृतीया – पंचमी

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी 1

लिखितः

प्रश्न 2.
कोष्ठ में दिये गये शब्दों से तृतीया विभक्ति का रूप देकर रिक्त स्थानों को भरें

जैसे -सीता रामेण सह वनम् अगच्छत् (राम)

  1. मोहनः ……………… मह विद्यालय गच्छाति। (सोहन)
  2. लता …………….. सह वाटिकां गच्छति। (सीता)
  3. सीता …………. सह पुस्तक पठति। (गीता)
  4. रमेशः ………….. लिखांता कलम)
  5. मुकेशः …………….. सह खादति। (मित्र)

उत्तर-

  1. मोहनः सोहनेन सह विद्यालयं गच्छाति।
  2. लता सीतया सह वाटिका गच्छति।
  3. सीता गीतया सह पुस्तक पठति।
  4. रमेशः कलमेन लिखति।
  5. मुकेशः मिण सह खादति।

प्रश्न 3.
सुमेलित करें-

  1. कृषकः – (क) प्रवहति।
  2. छात्र – (ख) उपचारं करोति।
  3. चिकित्सकः – (ग) कृषिकार्य करोति।
  4. गङ्गा – (घ) भवनम्।
  5. विद्यालयस्य – (ङ) पठति।

उत्तर-

  1. कृषक: – (ग) कृषिकार्य करोति।
  2. छात्रः – (ङ) पठति।
  3. चिकित्सक – (ख) उपचारं करोति।
  4. गंगा – (क) प्रवहति ।
  5. विद्यालयस्य – (घ) भवनम्।

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प्रश्न 4.
मंजूषा में से सही शब्द चुनकर रिक्त स्थानों को भरें –

(सन्ति, बहूनि, पवित्रतमा, पातयन्ति गंगाजलम्, प्रभवति, गंगाजलेन)

  1. गंगा हिमालयात् ………. ।
  2. नदीषु गंगा …….. अस्ति।
  3. गंगातटे ………. नगराणि …….
  4. ……… जनाः पिबन्ति । ।
  5. ………. कृषि-भूमेः सेचनं भवति।
  6. जनाः मलजलानि गंगायां ………. ।

उत्तर-

  1. गंगा हिमालयात् प्रभवति ।
  2. नदीषु गंगा पवित्रतमा अस्ति।
  3. गंगातटे बहूनि नगराणि सन्ति।
  4. गंगाजलम् जनाः पिबन्ति ।
  5. गंगाजलेन कृषिभूमेः संचन भवति।
  6. जनाः मलजलानि गंगायां पातयन्ति।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों का वर्ण-विच्छेद करें –
जैस – रामः – र् + आ + म् + अः

(गंगा हिमालयः, गोमुखम, नगरम्, भवति)
उत्तर-

  • गंगा- ग् + अं+ ग + आ।
  • हिमालयः-ह + इ + म् + आ + ल् + अ + य् + अः।
  • गोमुखम् – ग् + आ + म् + उ + ख् + अ + म्।
  • नगरम् – न् + अ + ग् + अ + र् + अ + म्। ।
  • भवति – भ् + अ + व् + अ + त् + इ।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित विषयों पर संस्कृत में पाँच-पाँच वाक्य लिखें –
हिमालयः, विद्यालयः, दीपावली
उत्तर-
हिमालयः –

हिमालयः पर्वतेषु उन्नततमः अस्ति। अयं भारतस्य उत्तरदिशायां अस्ति। हिमालयात् गंगा निःसरति। हिमालयः भारतस्य रक्षकः अस्ति। हिमालयस्य रक्षणे भारतस्य रक्षणम्।

विद्यालयः –

विद्यायाः आलयः विद्यालयः कथ्यते। विद्यालये छात्राः पठन्ति। विद्यालये शिक्षकाः पाठयन्ति। विद्यालये छात्रान् अनुशासनस्य पाठं पाठयति। विद्यालयः ज्ञानकेन्द्रः भवति।

दीपावली –

दीपावली हिन्दुनां प्रमुख पर्व भवति। अस्मिन् अवसरे जनाः स्व-स्व गृहं दीपैः सुसज्जितं कुर्वन्ति। जनाः लक्ष्मी-गणेशयोः पूजयन्ति। जनाः मिष्टानं वितरन्ति खादन्ति च। महिलाजनाः अल्पनां कुर्वन्ति।

प्रश्न 7.
उत्तराणि लिखतप्रश्न –

प्रश्न (क)
भारतस्य पवित्रमा नदी का ?
उत्तर-
भारतस्य पवित्रमा नदी गंगा ।

प्रश्न (ख)
गंगा कुतः प्रभवति ?
उत्तर-
गंगा हिमालयात् प्रभवति ।

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प्रश्न (ग)
अस्याः जलं कीदृशं भवति?
उत्तर-
अस्याः जलं पवित्रं भवति।

प्रश्न (घ)
शुभकार्येषु कस्याः जलस्य आवश्यकता भवति?
उत्तर-
शुभकार्येषु गंगायाः जलस्य आवश्यकता भवति ।

प्रश्न (ङ)
अधुना जनाः गंगाजलं किं कुर्वन्ति ?
उत्तर-
अधुना जनाः गंगाजलं प्रदूषितं कुर्वन्ति ।

Bihar Board Class 6 Sanskrit गंगा नदी Summary

पाठ – गङ्गा भारतवर्षस्य पवित्रतमा नदी वर्तते। इयं हिमालयस्य गोमुख स्थानात् प्रभवति। बंगोपसागरे गंगासागरनामिके स्थाने इयं सागरजले मिलति।

अर्थ – गंगा भारतवर्ष की अत्यन्त पवित्र नदी है। यह हिमालय के गोमुख स्थान से निकलती है। बंगाल की खाडी में गंगा सागर नामक स्थान पर यह समुद्र जल में मिलती है।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

पाठ – गङ्गातटे बहूनि नगराणि सन्ति। अस्माकं बिहारस्य राजधानी पाटलिपुत्रमपि गङ्गायाः तटे स्थितम् अस्ति। गङ्गाजलम् अति पवित्रं भवति। अस्याः जलेन धार्मिक कार्यम् भवति । हिन्दूध विलम्बिनां सर्वेषु शुभकार्येषु गङ्गाजलस्य आवश्यकता

भवति। – गंगा तट पर बहुत नगर हैं। हमारे बिहार की राजधानी पटना भी गंगा के तट पर स्थित है। गंगा का जल बहुत पवित्र होता है। इसके जल से धार्मिक कार्य होता है। हिन्दू धर्म को मानने वालों के सभी शुभ कार्यों में गंगा जल की आवश्यकता होती

पाठ – गङ्गायाम् अनेकाः नद्यः मिलन्ति। तासु यमुना-सरयू गंडकी-कौशिकी प्रभृतयः सन्ति। गङ्गायाः तटे हरिद्वार-प्रयाग-काशी-प्रभृतीनि प्रसिद्ध तीर्थस्थानानि सन्ति। गङ्गाजलेन कृषिभूमेः सेचनं भवति।

अर्थ – गंगा में अनेक नदियाँ मिलती हैं। उनमें यमुना-सरयू-गंडकी, कौशिकी (कोसी) इत्यादि हैं। गंगा के तट पर हरिद्वार-प्रयाग-काशी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थ-स्थल हैं। गंगा जल से कृषि भूमि की सिंचाई होती है।

पाठ – अधुना जनाः गङ्गाजलं प्रदूषितं कुर्वन्ति। गङ्गातटे स्थितानां नगराणां सर्वाणि मलजलानि गङ्गायां पातयन्ति। केचन मनुष्याणां पशूनाञ्च मृतशरीराणि नद्यां प्रवाहयन्ति। इदं न साधु कार्यम् अस्ति। नदीजले मलानां क्षेपणं वैज्ञानिकविचारेण धार्मिकविचारेण च न शोभनम्।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

अर्थ – आजकल लोग गंगाजल को गन्दा कर रहे हैं। गंगा किनारे स्थित शहरों के सभी गन्दे जल गंगा में गिराये जाते हैं। कुछ मनुष्यों के और पशुओं के मृत शरीरों को नदी में प्रवाहित किये (बहाये)जाते हैं। यह अच्छा काम नहीं है। नदी के जल में गन्दे वस्तुओं को फेंकना वैज्ञानिक-विचार और धार्मिक-विचार से अच्छा काम नहीं है।

शब्दार्थाः-भारतवर्षस्य – भारतवर्ष के। पवित्रतमा – अत्यन्त पवित्र। वर्त्तते – है। हिमालयस्य – हिमालय के। गोमुखस्थानात् – गोमुख स्थान से। प्रभवति – निकलती है/निकलता है। बंगोपसागरे – बंगाल की खाड़ी में। गंगासागरनामके – गंगासागर नामक (स्थान) में। स्थाने – स्थान में। गंगातटे – गंगा के किनारे पर। बहूनि – बहुत(अनेक)। नगराणि – नगरे। सन्ति – हैं। अस्माकम – हमारे। बिहारस्य – बिहार के। पाटलिपुत्रम् – पटना। अपि — भी। गङ्गायाः – गंगा के । तटे – तीर पर। स्थितम् – स्थित। अस्ति -. है। अति – बहुत। पवित्रम् – पवित्र/स्वच्छ। भवति – होता है। अस्याः – इसकी । जलेन – जल से। शास्त्रानुसारेण – शास्त्र के अनुसार।

हिन्दूध र्मावलम्बिना – हिन्दू धर्म के मानने वाले। धर्मावलम्बिनाम् – धर्म को मानने वाले । शुभकार्येषु – शुभ कामों में । सर्वेषु – सभी में। गंगायाम् – गंगा में। अनेकाः – अनेक। नद्यः – नदियाँ। मिलन्ति – मिलते हैं। तासु – उनमें। कौशिकी – कोशी। प्रभृतयः – इत्यादि। प्रभृतीनि – इत्यादि(नपु0 में)। कृषि भूमेः – कृषि भूमि का। सेचनम् – सिंचाई। अधुना – आजकल। प्रदूषितं – गन्दा। कुर्वन्ति – करते हैं। मलजलानि – गन्दे पानी को। पातयन्ति – गिराते हैं। मनुष्याणाम् – मनुष्यों के । पशूनाज्य – और पशुओं के। मृत शरीराणि – मरे शरीर को । प्रवाहयन्ति – प्रवाहित करते हैं/बहाते हैं। साधु -उत्तम। क्षेपणम् – फेंकना । वैज्ञानिक विचारेण – वैज्ञानिक विचार से । शोभनम् – अच्छा। न – नहीं।

व्याकरणम्

पवित्रतमा (स्त्री.), पवित्रतमः (पु.), पवित्रतमम् (नपु०) प्रभवति – प्र + भू + लट् लकार

व्याख्या : ‘भू’ धातु के लट् लकार में “भवति” रूप होता है जिसका अर्थ है- “होता है।” परंतु ‘प्र’ उपसर्ग लगने पर ‘प्रभवति’ शब्द का निर्माण होता है जिसका अर्थ है उत्पन्न होना। इसी प्रकार उपसर्ग लगने पर धातु का अर्थ बदल जाता है। बंग + उपसागरे -बंगोपसागरे । गंगाजलस्य + आवश्यकता – गंगाजलस्यावश्यकता। मिल् + लट् लकार – मिलति। अस् + लट् लकार – अस्ति। अस् + लट् लकार बहुवचन -सन्ति। कृ + लट् लकार, बहुवचन – कुर्वन्ति।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 11 गंगा नदी

प्रेरणार्थक क्रिया का प्रयोग 

सामान्य क्रिया और अर्थ – प्रेरणार्थक क्रिया एवं अर्थ एकवचन में बहुवचन में पतति (गिरता है)-पातयति (गिराता है)-पातयन्ति (गिराते हैं) पठति (पढ़ता है)-पाठयति (पढ़ाता है)-पाठयन्ति (पढ़ाते हैं) लिखति (लिखता है) लेखयति (लिखाता है)-लेखयन्ति (लिखवाते हैं) चलति (चलता है)चालयति (चलाता है)-चालयन्ति (चलाते हैं)

वाक्य प्रयोग –

  1. पत्ता गिरता है – पत्रम् पतति।
  2. बालक जल गिराता है – बालकः जलं पातयति।
  3. छात्र पढ़ता है – छात्रः पठति।
  4. शिक्षक पढ़ाते हैं – शिक्षकः पाठयति।
  5. वह लिखता है – सः लिखति।
  6. सीता पत्र लिखवाती है – सीता पत्रं लेखयति।
  7. हाथी चलता है – गजः चलति।
  8. वह साइकिल चलाता है – सः द्विचक्रीम चालयति।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 4 चुनावी राजनीति

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 1 Chapter 4 चुनावी राजनीति Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Political Science Solutions Chapter 4 चुनावी राजनीति

Bihar Board Class 9 Political Science चुनावी राजनीति Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुनाव का मतलब है
(क) पैसा कमाना
(ख) राजनीतिक प्रतिस्पर्धा
(ग) राजनीतिक खेल
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) राजनीतिक प्रतिस्पर्धा

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प्रश्न 2.
लोकतांत्रिक देश में क्या नियमित होता है ?
(क) युद्ध
(ख) आपसी संघर्ष
(ग) चुनाव
(घ) खेती
उत्तर-
(ग) चुनाव

प्रश्न 3.
लोकसभा में सीटों की संख्या निम्नलिखित में से क्या है ?
(क) 500
(ख) 520
(ग) 525
(घ) 543
उत्तर-
(घ) 543

प्रश्न 4.
बिहार विधान सभा में विधायकों की सीटें हैं
(क) 243
(ख) 253
(गे) 250
(घ) 153
उत्तर-
(क) 243

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प्रश्न 5.
लोकसभा में अनुसूचित जन जातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित
(क) 60
(ख) 41
(ग) 40
(घ) 20
उत्तर-
(ख) 41

प्रश्न 6.
लोकसभा एवं विधान सभा के उम्मीदवार होने के लिए न्यूनतम आयु सीमा क्या है ?
(क) 20 वर्ष
(ख) 18 वर्ष
(ग) 21 वर्ष
(घ) 25 वर्ष
उत्तर-
(क) 20 वर्ष

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प्रश्न 7.
चुनावी मतदाता होने के लिए कम से कम आयु कितनी होनी’ चाहिए?
(क) 18 वर्ष
(ख) 21 वर्ष
(ग) 25 वर्ष
(घ) 30 वर्ष
उत्तर-
(क) 18 वर्ष

प्रश्न 8.
1971 ई० में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव प्रचार में नारा दिया था.
(क) लोकतंत्र बचाओ
(ख) तेलगू स्वाभिमान
(ग) गरीबी हटाओ
(घ) अमीरी मिटाओ
उत्तर-
(ग) गरीबी हटाओ

प्रश्न 9.
1977 ई. में जनता पार्टी ने देशभर में नारा दिया था
(क) गरीबी मिटाओ
(ख) गरीबी हटाओ
(ग) अमीरी मिटाओ
(घ) लोकतंत्र बचाओ
उत्तर-
(घ) लोकतंत्र बचाओ

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प्रश्न 10.
एक विधान सभा का उम्मीदवार वैधानिक ढंग से अपने चुनाव अभियान में अधिकतम कितनी धनराशि खर्च कर सकता है ?
(क) 5 लाख
(ख) 10 लाख
(ग) 15 लाख
(घ) 20 लाख
उत्तर-
(ख) 10 लाख

प्रश्न 11.
एक लोकसभा का उम्मीदवार वैधानिक ढंग से अपने चुनाव अभियान में अधिकतम कितनी धनराशि खर्च कर सकता है ?
(क) 5 लाख
(ख) 8 लाख
(ग) 20 लाख
(घ) 25 लाख
उत्तर-
(घ) 25 लाख

प्रश्न 12.
लोकसभा के चुनाव हेतु सम्पूर्ण भारत को कितने निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है ?
(क) 250
(ख) 324
(ग) 420
(घ) 543
उत्तर-
(क) 250

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प्रश्न 13.
चुनाव प्रचार में निम्नलिखित में से किस पर प्रतिबंध नहीं है ?
(क) धर्म के नाम पर प्रचार
(ख) सरकारी वाहन का प्रयोग
(ग) सरकार को नीतिगत फैसला करना
(घ) सीधा-सादा प्रचार
उत्तर-
(क) धर्म के नाम पर प्रचार

प्रश्न 14.
लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित हैं ?
(क) 70
(ख) 72
(ग) 75
(घ) 79
उत्तर-
(घ) 79

प्रश्न 15.
बिहार विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए कितनी सीटें आरक्षित हैं ?
(क) 5
(ख) 8
(ग) 0 (शून्य)
(घ) 10
उत्तर-
(घ) 10

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

प्रश्न 1.
राजनीतिक पार्टियों के बीच ………….. होता है।
उत्तर-
प्रतिस्पर्धा

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प्रश्न 2.
अगर प्रतिस्पर्धा नहीं रहे तो चुनाव ………….हो जायेंगे।
उत्तर-
बेमानी

प्रश्न 3.
नियमित अंतराल पर चुनावी मुकाबलों का लाभ ……………………….. और नेताओं को मिलता है।
उत्तर-
राजनीतिक दलों

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक चुनाव की यह विशेषता है कि हर वोट को ……………….. .. का आधार बनाया जाता है। ..
उत्तर-
मूल्य

प्रश्न 5.
निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन के लिए जनसंख्या एवं …………………. …. का आधार बनाया जाता है।
उत्तर-
क्षेत्रफल

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प्रश्न 6.
महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर सिर्फ ………………. . चुनाव लड़ सकती
उत्तर-
महिलाएँ

प्रश्न 7.
भारत में चुनाव प्रचार के लिए आमतौर पर ……………… . का समय दिया जाता है।
उत्तर-
दो सप्ताह

प्रश्न 8.
…………….. में आन्ध्र प्रदेश में तेलगू स्वाभिमान का नारा दिया गया था।
उत्तर-
1983

प्रश्न 9.
……………. में झारखंड में ‘झारखंड बचाओ’ का नारा दिया गया था।
उत्तर-
2000

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प्रश्न 10.
भारतीय संविधान ने चुनावों की निष्पक्षता की जाँच के लिए स्वतंत्र चुनाव ………. का गठन किया है।
उत्तर-
आयोग

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग को …………….. कहते हैं उत्तर-भारतीय निर्वाचन आयोग

प्रश्न 12.
चुनाव का स्वतंत्र और निष्पक्ष होने का आखिरी पैमाना उसके …………. हैं।
उत्तर-
नतीजे

प्रश्न 13.
नगर परिषद् से चुने गए प्रतिनिधियों को नगर …………….. कहते हैं।
उत्तर-
पार्षद

प्रश्न 14.
गाँवों में आप कहते सुनेंगे कि …………….. ने हमारे घरों को बाँट दिया है।
उत्तर-
पार्टी-पॉलिटिक्स

प्रश्न 15.
चुनाव के लिए राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के नामों की ……………… करते हैं।
उत्तर-
घोषणा

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राज्य की ओर से नागरिकों को जो मत देने का अधिकार दिया गया है उसे मताधिकार कहते हैं।

प्रश्न 2.
मतदान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
निर्वाचन के समय कोई व्यक्ति उसमें भाग लेकर अपने मत का प्रयोग करते हैं उसे मतदान कहते हैं।

प्रश्न 3.
मतदाता किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चुनाव में मतदान करनेवाले व्यक्ति को मतदाता कहते हैं।

प्रश्न 4.
चुनाव का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
जनता अपनी पसंद के प्रतिनिधियों का चुनाव करे।

प्रश्न 5.
चुनाव नियमित रूप से क्यों होना चाहिए?
उत्तर-
इसलिए ताकि मतदाताओं को अपनी पसंद के अनुसार प्रतिनिधियों का चुनाव करने का अवसर मिलता रहे।

प्रश्न 6.
चुनाव चिह्न का क्या महत्व होता है ? .
उत्तर-
भारत के अधिकांश मतदाता अनपढ़ हैं जिस कारण मतदाता चुनाव चिह्न को पहचान कर अपनी पसंद से मतदान कर सकें।

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प्रश्न 7.
लोकतांत्रिक देश में चुनाव से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
लोकतांत्रिक देश में चुनाव वास्तव में लोकतंत्र का आधार है। चुनाव के द्वारा ही लोकतंत्र में प्रत्याशी चयनित किए जाते हैं।

प्रश्न 8.
मतदान केन्द्रों पर चुनाव सम्पन्न करने का उत्तरदायित्व किस पर होता है ?
उत्तर-
पीठासीन पदाधिकारी पर ।

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प्रश्न 9.
मतदाताओं की अंगुली पर एक अमिट स्याही क्यों लगा दी जाती है?
उत्तर-
ताकि वह दुबारा वोट न दे सके।

प्रश्न 10.
भारतीय चुनाव प्रणाली की एक विशेषता को लिखें।
उत्तर-
नियमित चुनाव प्रणाली ।

प्रश्न 11.
मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति ।

प्रश्न 12.
भारत का चुनाव आयोग कैसा है ?
उत्तर-
काफी शक्तिशाली और स्वतंत्र ।

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प्रश्न 13.
किन लोगों को मताधिकार नहीं दिया गया है ?
उत्तर-
गंभीर प्रकार के अपराधी, पागल एवं दिवालिया को मताधिकार नहीं दिया गया।

प्रश्न 14.
निर्वाचन क्षेत्र क्या है ?
उत्तर-
एक खास भौगोलिक क्षेत्र जहाँ से मतदाता एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 15.
आदर्श चुनाव आचार संहिता क्या है ?
उत्तर-
चुनाव की अधिसूचना के पश्चात् पार्टियाँ और उम्मीदवारों द्वारा अनिवार्य रूप से माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश को आचार संहिता कहते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मतदाता की कौन-सी तीन योग्यताएँ होनी चाहिए ?
उत्तर-

  • वह भारत का नागरिक हो ।
  • उसकी आयु कम से कम 18 वर्ष होनी चाहिए।
  • मतदाता सूची में उसका नाम हो ।

प्रश्न 2.
भारत में संसदीय चुनाव के उम्मीदवार की कोई तीन योग्यताएँ बताएँ।
उत्तर-

  • वह भारत का नागरिक हो ।
  • उसकी आयु कम-से-कम 25 वर्ष होनी चाहिए और राज्य सभा का चुनाव लड़ने के लिए कम-से-कम उसकी उम्र 30 वर्ष होनी चाहिए।
  • गंभीर आपराधिक मामले उसके खिलाफ न चल रहे हों।

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प्रश्न 3.
चुनाव प्रणाली क्या है ?
उत्तर-
भारत एक लोकतांत्रिक देश है । यहाँ शासन का संचालन जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा होता है। सर्वप्रथम जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है, उसके बाद निर्वाचित प्रतिनिधि देश की संसद या राज्य के विधान मंडलों में पहुँचकर जनता की सेवा करते हैं। प्रतिनिधियों को चुनने के लिए जो संवैधानिक प्रणाली होती है उसे चुनाव प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 4.
चुनाव को आवश्यक क्यों माना गया है ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक देश में यह जानने के लिए कि उनका प्रतिनिधि जो शासन चला रहे हैं, वे लोगों के अनुरूप शासन कर रहे हैं अथवा नहीं। ये प्रतिनिधि लोगों को पसंद है कि नहीं। इन्हीं बातों की जानकारी के लिए चुनाव आवश्यक है। इसके लिए ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जिससे लोग नियमित अंतराल पर अपने प्रतिनिधियों को चुन सकें और इच्छानुसार उन्हें बदल सकें। इस व्यवस्था का नाम चुनाव है । इसलिए आज के समय में लोकतंत्र में चुनाव को जरूरी माना गया है।

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प्रश्न 5.
राजनैतिक प्रतिस्पर्धा से आमलोगों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राजनैतिक प्रतिस्पर्धा नुकसानदायी है। हर गाँव घर में बँटवारे जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। लोग आपस में बातचीत करते हुए कहते हैं कि ‘पार्टी पॉलिटिक्स’ ने हमारे घरों को बाँट दिया है। विभिन्न दलों के लोग एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगाते हैं। चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। चुनाव जीतने की होड़ में सही किस्म की राजनीति बलि चढ़ जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि अच्छे लोग जो देश एवं समाज की राजनीति में सेवा भावना से आना चाहते हैं, उन्हें घोर निराशा होती है।

प्रश्न 6.
क्या हमारे देश में चुनाव लोकतांत्रिक है ?
उत्तर-
हमारे देश में चुनाव लोकतांत्रिक हैं। इसके निम्नलिखित प्रमाण हैं-

  • अपने देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हर पाँच साल बाद होते हैं। इस प्रकार जो प्रतिनिधि चुनकर जाते हैं, उनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है ।
  • हर पाँच वर्षों बाद लोकसभा और विधान सभाएँ भंग हो जाती हैं ।
  • फिर सभी चुनाव क्षेत्रों में एक ही दिन अथवा एक छोटे अंतराल पर अलग-अलग दिन चुनाव होते हैं । इसे आम चुनाव कहते हैं।

इस प्रकार भारत में चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन चलाते हैं और हर पाँच साल पर उन्हें चुनाव जीतना पड़ता है अन्यथा सत्ता हाथ से निकल जाती है। इस तरह यह लोकतांत्रिक व्यवस्था को सिद्ध करता है।

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प्रश्न 7.
निर्वाचन क्षेत्र क्या है ? इसके निर्माण का क्या आधार है ?
उत्तर-
चुनाव के उद्देश्य से देश को जनसंख्या के हिसाब से कई क्षेत्रोंमें बाँट दिया जाता है। इन्हें निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है। एक क्षेत्र में रहने वाले मतदाता अपने एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। जिस प्रकार बिहार में विधायक चुनने के लिए 243 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है, उसी प्रकार लोकसभा चुनाव के लिए देश को 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बाँटा गया है। निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन के लिए जनसंख्या एवं क्षेत्रफल को आधार बनाया जाता है। इस प्रकार एक खास भौगोलिक क्षेत्र जहाँ से मतदाता एक प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं उसे ही निर्वाचन क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 8.
संविधान निर्माताओं ने कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित क्षेत्र की बात क्यों सोची?
उत्तर-
हमारे संविधान निर्माताओं ने कमजोर वर्गों के लिए आरक्षित क्षेत्र की विशेष व्यवस्था करने की बात सोची । हमारे संविधान निर्माता इस बात से चिंतित थे कि इस खुले मुकाबले में सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से कमजोर समूहों के लिए लोकसभा एवं विधान सभाओं में शायद नहीं पहुंच पायें । ऐसा इसलिए कि उनके पास चुनाव लड़ने और जीतने लायक जरूरी संसाधन, शिक्षा एवं संपर्क नहीं हो। यह भी संभव है कि संसाधन सम्पन्न एवं प्रतिभाशाली लोग उनको चुनाव जीतने से रोक भी सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो संसद एवं विधानसभाओं में एक बड़ी आबादी की आवाज पहुँच नहीं पायेगी । इससे हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्वरूप कमजोर होगा और यह व्यवस्था कम लोकतांत्रिक होगी। इसलिए संविधान निर्माताओं ने ऐसा किया।

प्रश्न 9.
भारत में कौन ऐसा राज्य है जहाँ स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आधी सीटें आरक्षित कर दी गयीं हैं ?
उत्तर-
सम्पूर्ण भारतवर्ष में बिहार पहला राज्य है जिसने महिलाओं को कमजोर समूह का हिस्सा मानते हुए उनके लिए पंचायतों, नगरपालिकाओं एवं नगर निगमों में आधी सीटें आरक्षित कर दिया है। इन आधी सीटों में कुछ सीटें अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर सिर्फ महिलाएँ चुनाव लड़ सकती हैं। इनमें सामान्य एवं पिछड़े वर्ग की सीटों के लिए उसी समूह की महिलाएँ चुनाव में उम्मीदवार हो सकती हैं।

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प्रश्न 10.
मतदाता सूची का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक चुनाव में मतदान की योग्यता रखने वालों की सूची चुनाव से काफी पहले तैयार कर ली जाती है और इसे सर्वसुलभ बना दिया जाता है। इस सूची को आधारित रूप से मतदाता सूची कहते हैं, इसे ही ‘वोटर लिस्ट’ भी कहते हैं। मतदाता सूची का निर्माण एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसके बिना चुनाव संभव नहीं।

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सही पहचान के लिए कितने प्रकार के पहचानों को वैध माना है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग ने पहचान के तौर पर 14 प्रकार के पहचानों की वैद्यता स्वीकार की है। जैसे मतदाता का राशन कार्ड, बिजली बिल, ड्राइविंग लाइसेंस, टेलीफोन बिल, पैन कार्ड आदि । पिछले कुछ वर्षों से चुनावों में फोटो पहचान पत्र की व्यवस्था लागू की गई है । फोटो पहचान कार्य अभी भी जारी है।

प्रश्न 12.
चुनाव का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
चुनाव का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि लोग अपनी पसंद के प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकें। सरकार बनाने में सहभागी बन सकें। इसके लिए जरूरी है कि लोग जानें कि कौन प्रतिनिधि बेहतर है, कौन पार्टी अच्छी सरकार देगी या किसकी नीति कल्याणकारी है ।

प्रश्न 13.
वे कौन-कौन से ऐसे प्रतिबंधित कार्य हैं जिन्हें चुनाव के समय उम्मीदवार या पार्टी नहीं कर सकती ? अथवा, किस स्थिति में चुनाव रद्द घोषित हो सकता है ?
उत्तर-
निम्नलिखित कार्य प्रतिबंधित हैं

  • मतदाताओं को प्रलोभन देना, घूस देना या धमकी देना।
  • चुनाव अभियान में सरकारी संसाधनों जैसे-सरकारी गाड़ियों का प्रयोग।
  • लोकसभा चुनाव में एक निर्वाचन क्षेत्र में 25 लाख और विधानसभा चुनाव में 10 लाख रुपये से ज्यादा खर्च आदि ।

कोई भी उम्मीदवार इनमें से किसी मामले में दोषी पाए जायेंगे तो उनका चुनाव रद्द घोषित हो सकता है।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 4 चुनावी राजनीति

प्रश्न 14.
चुनाव के समय ‘आदर्श-आचार संहिता’ लागू होती है। वह क्या है?
उत्तर-
कुछ कानूनों के अतिरिक्त राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में ‘आदर्श-आचार संहिता’ लाग होती है जिसे स्वीकार करना पड़ता है। वे निम्नलिखित हैं

  • चुनाव प्रचार के लिए किसी धर्म अथवा धर्मस्थल का उपयोम नहीं करना ।
  • सरकारी वाहन, विमान अथवा सरकारी कर्मियों का चुनाव में उपयोग नहीं करना।
  • चुनाव की अधिसूचना के बाद सरकार के द्वारा किसी बड़ी योजना का शिलान्यास अथवा कोई नीतिगत फैसला, लोगों को सुविधाएँ देने वाले वायदे नहीं किये जा सकते हैं।

प्रश्न 15.
चुनाव घोषणा पत्र क्या है ?
उत्तर-
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि प्रत्येक उम्मीदवार को अपने बारे में कुछ ब्यौरे देते हुए घोषणा करनी होगी। प्रत्येक उम्मीदवार को इन मामलों के सारे विवरण देने होते हैं

  • उम्मीदवार के खिलाफ चल रहे गंभीर आपराधिक मामले ।
  • उम्मीदवार और उसके परिवार के सदस्यों की सम्पत्ति और सभी देनदारियों का ब्यौरा।
  • उम्मीदवार की शैक्षिक योग्यता ।

प्रश्न 16.
चुनाव अभियान पर अपना विचार व्यक्त करें।
उत्तर-
चुनाव अभियान निर्वाचन प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। चुनाव की तिथि की घोषणा हो जाने के साथ ही चुनाव अभियान आरम्भ हो जाता है । अपने देश में चुनाव प्रसार के लिए आम तौर पर दो सप्ताह का समय दिया जाता है। यह समय चुनाव अधिकारी तथा उम्मीदवारों के अंतिम सूची और मतदान के तिथि के बीच का होता है। इस अंतराल में उम्मीदवार लोगों से व्यक्तिगत सम्पर्क करते हैं, छोटी-छोटी सभाएँ करते हैं, अखबारों एवं टी.वी. चैनलों द्वारा विभिन्न राजनीतिक दल चुनाव प्रचार करते हैं । चुनाव अभियान में राजनीतिक दल किसी-न-किसी मोहक नारे द्वारा लोगों को आकर्षित करते हैं। जैसे 1971 ई. में काँग्रेस पार्टी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था । 1977 ई० में जनता पार्टी ने देश भर में लोकतंत्र बचाओ’ का नारा दिया था। इस तरह उम्मीदवारों का चुनाव अभियान चलता है।

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प्रश्न 17.
चुनाव में प्रयोग होनेवाले मशीन का क्या नाम है ? यह कैसे कार्य करता है?
उत्तर-
मतदान को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए एक मशीन का प्रयोग किया जाता है जिसे ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ कहा जाता है। मशीन के ऊपर उम्मीदवार के नाम और उनके चुनाव चिह्न बने होते हैं । मतदाता को जिस उम्मीदवार को वोट देना होता है उसके चुनाव चिह्न के आगे बने बटन को एक बार दबा देना होता है।

प्रश्न 18.
मत-पत्र क्या होता है ?
उत्तर-
चुनाव के समय चुनाव केन्द्र पर मतदाताओं को मत देने के लिए एक मतपत्र दिया जाता है जिस पर सभी उम्मीदवारों के नाम के साथ चुनाव चिह्न भी अंकित रहता है जिस पर वे अपनी पसंद के उम्मीदवार को अपना मोहर लगाते हैं । अब मतपत्र के स्थान पर ‘इलेक्ट्रॉनिक वाटिंग मशीन’ का प्रयोग होता है।

प्रश्न 19.
मतदान केन्द्र के चुनाव अधिकारी एवं पीठासीन पदाधिकारी के कार्यों का परिचय दीजिए।
उत्तर-
चुनाव अधिकारी को चुनाव आयुक्त द्वारा नियुक्त किया जाता है । मतदान केन्द्र पर चुनाव को सम्पन्न करने के लिए सरकार द्वारा इनकी नियुक्ति होती है। जब मतदाता केन्द्र पर जाता है तो चुनाव अधिकारी उसे पहचान कर उसकी अंगुली पर एक अमिट स्याही लगा देता है ताकि वह दुबारा मत डालने न आ सके । मतदान की समाप्ति पर सभी बैलेट.बॉक्सों अथवा वोटिंग मशीनों का सील बंद कर चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित एवं सुरक्षित स्थान पर पहुँचाया

जाता है । फिर एक निश्चित एवं घोषित तारीख को मतों की गिनती शुरु की जाती है।

प्रश्न 20.
भारत में चुनाव परिणामों को स्वीकार करने की बाध्यता है । क्यों ?
उत्तर-
भारत में चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र ढंग से होता है। लोग चुनावी नतीजों को स्वीकार करने की मूल बाध्यता है या मूल पैमाना है। बड़े-बड़े नेता भी चुनाव हार जाते हैं। 2009 में रामविलास पासवान जैसे दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए। यही लोकतंत्र का तकाजा है । निर्वाचन आयोग के सशक्त पर्यवेक्षक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया भी चुनाव परिणामों की वैधता पर कड़ी नजर रखते हैं। यही कारण है कि चुनाव परिणाम घोषित होने पर उम्मीदवार उसे स्वीकार कर लेता है, यह संवैधानिक बाध्यता भी है।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 4 चुनावी राजनीति

प्रश्न 21.
‘री-पोलिंग’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चुनाव आयोग द्वारा यह बात भी महत्वपूर्ण है कि अगर चुनाव अधिकारी किसी मतदान केन्द्र पर या पूरे चुनाव क्षेत्र में मतदान ठीक ढंग .. से नहीं होने के पुख्ता प्रमाण देते हैं तो वहाँ ‘री पोलिंग’ का पुनर्मतदान होता है।

प्रश्न 22.
भारतीय चुनाव में भागीदारी पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
चुनाव में लोगों की भागीदारी का पैमाना अक्सर मतदान करनेवालों के आँकड़ों को बनाया जाता है। इससे पता लग जाता है कि मतदान की योग्यता रखनेवाले कितने मतदाताओं ने वास्तविक मतदान किया। पिछले 50 वर्षों में जहाँ यूरोप, उत्तरी अमरीका के लोकतांत्रिक देशों में मतदान का प्रतिशत गिरा है, वही भारत में या तो स्थिर रहा है अथवा ऊपर गया है।
भारत में अमीर एवं बड़े लोगों की तुलना में गरीब, निरक्षर और – कमजोर लोग अधिक संख्या में मतदान करते हैं। जबकि अमरीका में
गरीब लोग, अफ्रीकी मूल के लोग अमीर एवं श्वेत लोगों की तुलना में काफी कम मतदान करते हैं।

प्रश्न 23.
उप चुनाव क्या है ?
उत्तर-
जब किसी सदस्य की मृत्यु या इस्तीफे के कारण संसहीय या विधान सभा क्षेत्र खाली होता है तो उसे भरने के लिए पुनः मतदान होता है। इस प्रकार के चुनाव को उप चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 24.
मध्यावधि चुनाव क्या है ?
उत्तर-
कभी-कभी सरकार अल्पमत के कारण लोकसभा या विधानसभा में विश्वासमत हासिल करने में विफल हो जाती हैं, तब वैसी स्थिति में मध्यावधि चुनाव होता है। ऐसी स्थिति में यह मध्यावधि चुनाव आम चुनाव बन जाता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुनाव को लोकतांत्रिक मानने के क्या आधार हैं ?
उत्तर-
लोकतांत्रिक चुनावों के लिए कुछ जरूरी न्यूनतम शर्ते हैं। वे निम्नलिखित हैं –

  • सभी को मत देने का अधिकार हो और सभी के मत का समान मूल्य हो।
  • चुनाव में विकल्प की गुंजाइश हो । पार्टियों और उम्मीदवारों को चुनाव में भाग लेने की आजादी हो और वें मतदाताओं के लिए विकल्प पेश करें।
  • चुनाव का अवसर नियमित अंतराल पर मिलता रहे ।
  • चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग से सम्पन्न हो ताकि लोग अपनी इच्छा से उम्मीदवार का चुनाव कर सकें।

ये शर्ते सरल लगती हैं, लेकिन दुनिया में ऐसे अनेक देश हैं जहाँ के चुनावों में इन न्यूनतम शर्तों को पूरा नहीं किया जाता । भारत में इन शर्तों को पूरा किया जाता है। अतः यहाँ का चुनाव लोकतांत्रिक है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
चुनाव प्रतिस्पर्धा का खेल है। चुनाव के समय में विभिन्न दलों के उम्मीदवार एवं नेता अपने दल या अपनी सरकार की नीतियों का जमकर प्रचार-प्रसार करते हैं । विभिन्न प्रकार के लुभावने नारे भी देते हैं

ताकि आम जनता प्रभावित हो। जनता उसी को अपना नेता चुनती है जिनसे कल्याण की अपेक्षा की जाती है, जिसमें लोगों की सेवा करने वाले राजनेताओं को जीत मिले तथा ऐसा नहीं करने वालों को हार मिले इस का फैसला जनता करती है। चुनावी प्रतिस्पर्धा का ग्रही वास्तविक अर्थ है । नियमित अंतराल पर चुनावी मुकाबलों का लाभ राजनीतिक दलों को मिलता है। इससे इन्हें यह भी पता चलता है कि अगर नेताओं ने लोगों की समस्याओं के समाधान में रुचि नहीं दिखाई तो लोग उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे और लोग उन्हें पराजित कर देंगे। वैसे नेता चुनाव जीत जाते हैं जो आम समस्या से अधिक व्यक्तियों को खुश रखने में विश्वास रखते हैं।
लेकिन राजनीतिक प्रतिस्पर्धा सिर्फ चुनाव के लिए नहीं बल्कि लोकतंत्र के लिए भी हितकर है।

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प्रश्न 3.
भारत में चुनाव कितना लोकतांत्रिक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
चुनाव परिणामों की घोषणा के बाद चुनाव में गड़बड़ियों की सूचना मिलती है। अगर ये गड़बड़ियाँ चुनाव में पाई जाती हैं तो उस चुनाव को लोकतांत्रिक नहीं कहेंगे।
कुछ गड़बड़ियाँ इस प्रकार हैं-

  • मतदाता सूची में फर्जी नाम डालने और वास्तविक नामों को गायब करने का मामला ।
  • मतदाताओं को डराना और फर्जी मतदान करना ।
  • सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी सुविधाओं, धन, बल और अधिकारियों के दुरुपयोग।
  • मतदान पूर्व मतदाताओं के बीच जाति व धर्म के नाम पर अफवाहें फैलाना या उनके बीच धन वितरित करना ।

चुनाव लोकतांत्रिक तभी होगा जब उपर्युक्त गड़बड़ियाँ न हों। इसके लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना जरूरी है –

  • प्रत्येक मतदाता का मत बराबर हो ।
  • प्रत्येक वयस्क नागरिक को वोट देने का अधिकार हो।
  • चुनाव निश्चित अंतराल पर हो ।
  • चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष हो ।

अतः स्पष्ट है कि किसी चुनाव को लोकतांत्रिक तभी कहा जाएगा जब वे उपर्युक्त शर्तों का पालन करें।

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प्रश्न 4.
चुनाव आयोग के महत्वपूर्ण कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान ने चुनावों की निष्पक्षता की जाँच के लिए एक स्वतंत्र चुनाव आयोग का गठन किया है। जिसे ‘भारतीय निर्वाचन आयोग’ कहते हैं। इसके मुख्य चुनाव आयोग की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति करते हैं। इन्हें कार्यकाल के पहले कोई सरकार हटा नहीं सकती
दुनिया के शायद ही किसी चुनाव आयोग को भारत के चुनाव आयोग जितने अधिकार प्राप्त हैं। इनके अधिकार और कार्य इस प्रकार हैं

  • मतदाता सूचियों को तैयार करना-चुनाव आयोग का महत्वपूर्ण कार्य संसद तथा राज्य विधानमंडलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करना है।
  • चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना-चुनाव आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है । नामांकन पत्रों के दाखिले की अंतिम तिथि तथा नामांकन पत्रों की जाँच करने की तिथि घोषित करता है।
  • चुनाव का निरीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण-उपर्युक्त तीनों अधिकार चुनाव आयोग को प्राप्त हैं।
  • चुनाव में तैनात अधिकारी सरकार के नियंत्रण में नहीं होते बल्कि निर्वाचन आयोग के अधीन कार्य करते हैं।
  • चुनाव क्षेत्र में मतदान ठीक ढंग से नहीं होने के पुख्ता प्रमाण देते ही वहाँ पुनर्मतदान होता है, यह अधिकार चुनाव आयोग का हैं।
  • चुनाव आयोग लगातार चुनाव सुधारों के काम में लगा हुआ है और लोगों की कठिनाइयों एवं चुनावी धांधलियों पर नियंत्रण रखने के लिए नये-नये उपाय कर रहा है । अब फोटो पहचान पत्र बनाने का कार्य अनवरत चल रहा है।

प्रश्न 5.
निर्वाचन आयोग ने बिहार विधान सभा के गठन (2005 ई.) की क्या अधिसूचना जारी की थी?
उत्तर-
बिहार में सन् 2005 ई. के आम चुनावों में आयोग काफी सक्रिय था। निर्वाचन आयोग ने बिहार विधान सभा के गठन की निम्नलिखित अधिसूचना जारी की

  • चुनाव में मतदान के लिए फोटो पहचान पत्र अनिवार्य है।
  • चुनाव आयोग ने सरकार के मंत्री को आदर्श चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के लिए दोषी करार दिया।
  • निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्च पर नकेल कसी।
  • राजनीतिक विज्ञापनों पर सेंसर अथवा रोक ।
  • चुनाव के गुप्त खर्च पर चुनाव आयोग की नजर ।
  • माननीय न्यायालय ने चुनाव आयोग से अपराधी उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर नकेल कसने को कहा।
  • चुनाव आयोग ने चुनाव के ऐन मौके पर जिले के कलेक्टर, एस.पी. को बदला ।

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प्रश्न 6.
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग को कौन-कौन से उचित कदम उठाने चाहिए?
उत्तर-
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयाग का निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए

  • निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को ईमानदार तथा निष्पक्ष व्यक्तियों की नियुक्ति करनी चाहिए ।
  • आदर्श आचार संहिता को सख्ती से लागू करना चाहिए।
  • शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस और सेना की सहायता लेनी चाहिए ताकि मतदाता निडर होकर अपने मत का प्रयोग कर सकें।
  • चुनाव मूचियों की तैयारी व जाँच में सावधानी बरती जानी चाहिए।
  • फर्जी मतदान पत्रों पर रोक लगनी चाहिए।
  • चुनाव आयोग द्वारा जनता में मताधिकार के महत्व का प्रसार किया जाना चाहिए ताकि अधिक-से-अधिक मतदाता मतदान में भाग ले सकें।

Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 5 कृषि, खाद्यान सुरक्षा एवं गुणवत्ता

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 1 Chapter 5 कृषि, खाद्यान सुरक्षा एवं गुणवत्ता Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 5 कृषि, खाद्यान सुरक्षा एवं गुणवत्ता

Bihar Board Class 9 Economics कृषि, खाद्यान सुरक्षा एवं गुणवत्ता Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
बिहारवासियों के जीवन निर्वाह का मुख्य साधन है ?
(क) उद्योग
(ख) व्यापार
(ग) कृषि
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) कृषि

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प्रश्न 2.
राज्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिंचाई साधन हैं ?
(क) कुएँ एवं नलकूप
(ख) नहरें
(ग) तालाब
(घ) नदी
उत्तर-
(क) कुएँ एवं नलकूप

प्रश्न 3.
बाढ़ से राज्य में बर्बादी होती है ?
(क) फसल की
(ख) मनुष्य एवं मवेशी की
(ग) आवास की
(घ) इन सभी की
उत्तर-
(घ) इन सभी की

प्रश्न 4.
अकाल से राज्य में बर्बादी होती है ?
(क) खाद्यान्न फसल
(ख) मनुष्य एवं मवेशी की
(ग) उद्योग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(क) खाद्यान्न फसल

Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 5 कृषि, खाद्यान सुरक्षा एवं गुणवत्ता

प्रश्न 5.
शीतकालीन कृषि किसे कहा जाता है ?
(क) भदई
(ख) खरीफ या अगहनी
(ग) रबी
(घ) ग़रमा
उत्तर-
(ख) खरीफ या अगहनी

प्रश्न 6.
सन् 1943 ई0 में भारत के किस प्रांत में भयानक अकाल पड़ा?
(क) बिहार
(ख) राजस्थान
(ग) बंगाल
(घ) उड़ीसा
उत्तर-
(ग) बंगाल

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प्रश्न 7.
विगत वर्षों के अंतर्गत भारत की राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान?
(क) बढ़ा है
(ख) घटा है
(ग) स्थिर है
(घ) बढ़ता-घटता है
उत्तर-
(ख) घटा है

प्रश्न 8.
निर्धनों में भी निर्धन लोगों के लिए कौन सा कार्ड उपयोगी है ?
(क) बी० पी० एल० कार्ड
(ख) अंत्योदय कार्ड
(ग) ए० पी० एल० कार्ड
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) अंत्योदय कार्ड

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में कौन खाद्यान्न के स्रोत हैं ?
(क) गहन खेती नीति
(ख)आयात नीति
(ग) भंडारण नीति
(घ) इनमें सभी
उत्तर-
(घ) इनमें सभी

प्रश्न 10.
गैर सरकारी संगठन के रूप में बिहार में कौन-सा डेयरी प्रोजेक्ट कार्य कर रहा है ?
(क) पटना डेयरी
(ख) मदर डेयरी
(ग) अमूल डेयरी
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(क) पटना डेयरी

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रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. बिहार राज्य में कृषि …………… जनसंख्या के आजीविका का
साधन है।
2. बिहार में कृषि की ……………….. निम्न है।
3. बिहार की कृषि के लिए सिंचाई …. … महत्व रखती है।
4. राज्य में बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र …………….. है। .
5. बफर स्टॉक का निर्माण ………………. करती है।
6. निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए …………………. कार्ड है।
7. भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ ……………… है।
8. औद्योगिक श्रमिक की दैनिक आवश्यकता ………… कलोरी
9. दिल्ली में ………………. डेयरी कार्य करती है।
10. हरित क्रांति ……………. से प्रभावित होकर भारत में लागू की गयी।
उत्तर-
1. बहुसंख्यक
2. उत्पादकता
3. अत्यधिक
4. काफी अधिक
5. सरकार
6. बी० पी० एल०
7. कृषि
8. 3600
9. मदर
10. मेक्सिको।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिहार की कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार उपाए बताएँ।
उत्तर-
बिहार की कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के निम्नलिखित उपाय हैं
(क) जनसंख्या को नियंत्रित करना
(ख) सुनिश्चित सिंचाई व्यवस्था
(ग) उन्नत बेहतर कृषि तकनीकों का प्रयोग
(घ) कृषि में संस्थागत वित्त का अधिक प्रवाह ।

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प्रश्न 2.
खाद्य फसल एवं नकदी फसल में अंतर बताएँ।।
उत्तर-
खाद्य फसलें खाने के काम में आती हैं। जैसे-धान. गेहूँ, मक्का आदि।
नकदी फसलें-वैसी फसलें हैं जिन्हें बेच कर किसान नकद रुपया प्राप्त करता है, जैसे-गन्ना, जूट, दलहन, आलू ।

प्रश्न 3.
कौन लोग खाद्य असुरक्षा से अधिक ग्रस्त हो सकते हैं ?
उत्तर-
ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन किसान, खेतीहर मजदूर तथा निध नता से पीड़ित जनता । शहरी क्षेत्रों में श्रमिक, रिक्शा चलाने वाले, मेहनत-मजदूरी करने वाले एवं छोटा-मोटा काम करनेवाले लोग खाद्य असुरक्षा से ग्रसित हैं।

प्रश्न 4.
क्या आप मानते हैं कि हरित क्रांति ने भारत को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बना दिया है । केसे ?
उत्तर-
हाँ, हरित क्रान्ति ने भारत को आत्म निर्भर बनाया है । भारत के कुछ राज्यों में खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता देखने को मिली है। इन राज्य में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश आदि । यह संभव हुआ अच्छे बीजों, अच्छी सिचाई व्यवस्था एवं कृति के मशीनीकरण के प्रभात्र सं, ट्रैक्टर, हार्वेस्टर, थ्रेशर, रासायनिक खाः कीटनाशकों आदि के उपयोग ने कृषि उत्पादन में क्रातिकारी परिवर्तन ला दिया ।

प्रश्न 5.
सरकार बफर स्टॉक क्यों बनाती है ?
उत्तर-
खाद्यान्न की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार खाद्य के भंडार एकत्रित करती है। उसे वफर स्टाक कहा जाता है। सरकार अपने गोदामों में खाद्यान्नों को जमा करती है । जरूरत या आपदा के समय खाद्यान्न उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है।

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प्रश्न 6.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम द्वारा अधिप्राप्त अनाज को सरकार .. नियमित राशन दुकानों के माध्यम से समाज के गीत वर्गों में वितरित करती है इसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहते हैं .

प्रश्न 7.
राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं : चर्चा करें।
उत्तर-
राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं-

  • अंत्योदय कार्ड-जो निर्धन में भी निर्धन को दिया जाता है ।
  • BPL Card-गरीबी रेखा वाला कार्ड-निर्धनता रेखा के नीचे वाले लोगों के लिए।
  • APL Card-गरीबी रेखा के उपर वाले लोगों के लिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि की भूमिका की विवेचना करें।
उत्तर-
बिहार राज्य की बहुसंख्यक जनसंख्या जो लगभग 80% से अधिक गाँवों में निवास करती है साथ ही राज्य की अधिकांश जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर आश्रित है। कृषि बिहार के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

(क) खाद्यान्न की आपूर्ति-राज्य में खाद्यान्न फसलें जैसे-धान, गेहूँ, मकई की खेती करना लोगों के लिए खाद्यान की पूर्ति करता है।
(ख) कच्चेमाल की पूर्ति-अपने तथा अन्य राज्यों के उद्योगों के लिए या व्यापार के लिए साधन जुटाता है।
(ग) सरकार की आय का साधन-बचत एवं करों के रूप में साध न का काम करती है।
(घ) विदेशी मुद्रा का अर्जन-बिहार फलों की खेती में अग्रणी राज्य है। यहाँ आम, लीची, गन्ने केले आदि का निर्यात कर बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है।

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प्रश्न 2.
बिहार की खाद्यान्न फसलों एवं उनके प्रकार की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-
बिहार की खाद्यान्न फसलों के प्रकार निम्नलिखित है-

(क) भदई (शरद कालीन)-भदई फसलें मई-जून में बोयी जाती _हैं। जो अगस्त-सितम्बर में तैयार हो जाती है । इसमें मक्का, ज्वार, जूट एवं धान की कुछ खास किस्में, इनकी खेती बिहार के मैदानी भाग में होती

(ख) खरीफ या अगहनी (शीत कालीन)-इसमें मुख्यतः धान की खेती होती है । इसकी बुआई जून में की जाती है और हिन्दी माह अगहन अर्थात दिसम्बर में कटनी होती है। बिहार की कृषि में अगहनी फसल का सर्वोच्य स्थान है।

(ग) रबी (बसंत कालीन)-रबी के अंतर्गत गेहूँ, जौ, चना, खेसारी, मटर, मसूर, अरहर, सरसों आदि तथा अन्य दलहन एवं तेलहन की खेती होती है। राज्य के कुल एक तिहाई भाग में इसकी खेती होती है।

(घ) गरमा (ग्रीष्मकालीन)-सिंचाई वाले स्थानों पर अथवा नमी वाले क्षेत्रों में गरमा फसलों की खेती होती है। इनमें हरी सब्जियाँ तथा विशेष प्रकार के धान एवं मक्का की खेती होती है। बिहार के नालन्दा जिले तथा वैशाली एवं सारण के गंगा तट पर हरी सब्जियाँ उपजाई जाती

प्रश्न 3.
जब कोई आपदा आती हैं तो खाद्य पूर्ति पर क्या प्रभाव होता है ? चर्चा करें।
उत्तर-
जब कोई आपदा जैसे-सूखा, भूकम्प, बाढ़, सुनामी आती है तो फसलों की बर्बादी के कारण अकाल जैसी आपदा हो जाती है। खादय फसलों की बर्बादी के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं जिससे खाद्य पूर्ति अधि क कीमतों पर होती है सामान्य जनता को अधिक बोझ बैठ जाता है, कुछ ऐसे भी होते हैं जो खरीद नहीं पाते । अगर यह आपदा अधिक विस्तृत क्षेत्र में आती है या अधिक लंबे समय तक बनी रहती है, तो भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। व्यापक भुखमरी से अकाल की स्थिति बन सकती है। अत: किसी भी देश में खादय सुरक्षा आवश्यक होती है ताकि इन विपदाओं का सामना किया जा सके।

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प्रश्न 4.
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने क्या किया? सरकार की ओर से शुरू की गई किन्हीं दो योजनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
गरीबों को खाद्य सुरक्षा देने के लिए सरकार ने दो विभिन्न योजनाएं शुरू की हैं जिनमें कम लागत पर खाद्य उपलब्ध करवाये जाते हैं, जो इस प्रकार हैं

(क) सार्वजनिक वितरण प्रणाली-सरकार ने जून, 199? ई० सं सभी क्षेत्रों में गरीबों को लक्षित करने के लिए यह योजना शुरू की। इसमें पहली बार निर्धनों और गैर-निर्धनों के लिए विभेदक कीमत नीति अपनाई गई है। इसमें राशन कार्ड रखने वाला व्यक्ति निर्धारित राशन की सरकारी दुकानों से प्रत्येक परिवार पर एक अनुबंधित मात्रा ने 35 किलोग्राम अनाज, 5 लीटर मिट्टी का तेल, 5 किलोग्राम चीनी खरीद सकता है।

(ख) अन्तयोदय अन्न योजना-यह योजना दिसम्बर, 2001) ई० में शुरू की गई थी। इसमें गरीबी रेखा से नीचे के गरीब परिवारों को 2 रुपये प्रति किलोग्राम गेहूँ और 3 रुपये प्रतिकिलोग्राम की अत्यधिक आर्थिक सहायता प्राप्त दर पर प्रत्येक पात्र परिवार को 25 किलोम्राम अनाज उपलब्ध कराया गया। अगस्त, 2004 में इसमें 50-50 लाख अतिरिक्त B.P.L परिवार को जोड़ दिया गया। इससे इस योजना में आने वाले परिवारों की संख्या 2 करोड़ हो गई।

प्रश्न 5.
खाद्य और संबंधित वस्तुओं को उपलब्ध कराने में गैर सरकारी संगठन की भूमिका पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत में विशेषकर देश के दक्षिणी और पश्चिमी भागों में गैर सरकारी संगठन एवं सहकारी समितियाँ गरीबों को खाद्यान्न की बिक्री के लिए कम कीमत वाली दुकाने खोलती हैं। दिल्ली मदर डेयरी उपभोक्ताओं को दिल्ली सरकार द्वारा निर्धारित नियंत्रित दरों पर दूध और सब्जियाँ उपलब्ध कराने में तेजी से प्रगति कर रही है। तमिलनाडु में जितनी भी राशन की दुकाने हैं उनमें से 94% सहकारी समितियों के माध्यम से चलाई जा रही हैं । गुजरात में दूध और दुग्ध उत्पादकों में अमूल एक और सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। बिहार में दूध तथा दूध उत्पादों में पटना डेयरी जो ‘सुधा’ नाम से जानी जाती है, जो सफल सहकारी समिति का उदाहरण है। इन सभी ने देश में श्वेत क्रांति ला दी है। विभिन्न क्षेत्रों में अनाज बैंकों की स्थापना के लिए गैर-सरकारी संगठनों के लिए खाद्य सुरक्षा के विषय में प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम संचालित करती है। ADS (Academy for Developmment Science) अनाज बैंक कार्यक्रम को एक सफल और नए प्रकार के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के रूप में स्वीकृति मिली है।

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टिप्पणी लिखें

(i) न्यूनतम समर्थित कीमत (ii) सब्सिडी (अनुदान) (iii) बी० पी० एल० कार्ड (iv) बफर स्टॉक (v) जन-वितरण प्रणाली
उत्तर-
(i) न्यूनतम समर्थित कीमत-भारतीय खाद्य निगम अधिशेष . उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों
को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित कीमतें दी जाती है । इस मूल्य को न्यूनतम समर्थित कीमत कहते हैं।
(ii) सब्सिडी ( अनुदान)-वह भुगतान है जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है । वही सब्सिडी कहलाती है।
(iii) बी०पी०एल० कार्ड (BPL Card)-निर्धनता रेखा से नीचे के लोगों के लिए यह राशन कार्ड दिया जाता है जो सरकारी राशन की दुकान से निर्धारित सस्ते दर पर खाद्यान्न प्राप्त कर सकता है।
(iv) बफर स्टॉक (Buffer Stock)-भारतीय खाद्य निगम के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज, गेहूँ और चावल का भंडार है जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
(v) जन वितरण प्रणाली-सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत राशन की जिन दुकानों की व्यवस्था की जाती है, ऐसे दुकानों से चीनी, खाद्यान्न और मिट्टी के तेल, कार्ड धारियों को उचित मूल्य पर प्राप्त होते हैं। ऐसी दुकानों को जन वितरण प्रणाली की दुकाने कहते हैं तथा सरकारी इस वितरण प्रणाली को जन वितरण प्रणाली कहते हैं।

Bihar Board Class 6 Sanskrit व्याकरण शब्दरूपाणि

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Amrita Bhag 1 व्याकरण शब्दरूपाणि

BSEB Bihar Board Class 6 Sanskrit शब्दरूपाणि

अकारान्त -पुंल्लिङ्ग – शब्द

बालक

विभक्तिः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम

  1. प्रथमा – बालकः – बालको – बालकाः
  2. द्वितीया – बालकम् – बालको – बालकान्
  3. तृतीया – बालकेन – बालकाभ्याम् – बालकैः
  4. चतुर्थी – बालकाय – बालकाभ्याम् – बालकेभ्यः
  5. पञ्चमी – बालकात् – बालकाभ्याम् – बालकेभ्यः
  6. षष्ठी – बालकस्य – बालकयोः – बालकानाम्
  7. सप्तमी – बालके – बालकयो: – बालकेषु
  8. सम्बोधनम् – हे बालक! हे – बालकौ ! – हे बालकाः !

समान शब्द – राम, कृष्ण, देव, छात्र, शिक्षक, विद्यालय, हिमालय, वृक्ष, पुस्तकालय आदि जिस शब्द का अन्त ‘अ” से हो तथा शब्द पलिङ्ग हो तो. ऊपर के शब्द रूप “बालक” जैसा ही समान रूप सभी शब्दों के चलेंगे।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions शब्दरूपाणि

आकारान्त -स्त्रीलिङ्ग – शब्द

बालिका

विभक्तिः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमा – बालिका – बालिके – बालिकाः
  2. द्वितीया – बालिकाम् – बालिके – बालिकाः
  3. तृतीया – बालिकया – बालिकाभ्याम् – बालिकाभिः
  4. चतर्थी – बालिकायै – बालिकाभ्याम् – बालिकाभ्यः
  5. पञ्चमी – बालिकायाः – बालिकाभ्याम् – बालिकाभ्यः
  6. षष्ठी – बालिकायाः – बालिकयोः – बालिकानाम्
  7. सप्तमी – बालिकायाम् – बालिकयोः – बालिकासु
  8. सम्बोधनम् – हे बालिके! – हे बालिके! – हे बालिकाः

समान शब्द – लता, सीता, रमा, माला, छात्रा, शिक्षिका, अजा (बकरी), अश्वा (घोड़ी) बाटिका(बगीचा), बाला (लड़की, उमा, आदि जिस स्त्रीलिङ्ग शब्द का अन्त आ से होगा उसका रूप बालिका के समान चलेगा।

अकारान्त -नपुंसकलिङ्ग – शब्द

पुष्पे

विभक्तिः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमा – पुष्पम् – पुष्पे – पुष्पाणि
  2. द्वितीया – पुष्पम् – पुष्पैः – पुष्पाणि
  3. तृतीया – पुष्पेण – पुष्पाभ्याम् – पुष्प
  4. चतुर्थी – पुष् – पाभ्याम् – पुष्पेभ्यः
  5. पञ्चमी – पुष्पात् – पुष्पाभ्याम् – पुष्पेभ्यः
  6. षष्ठी – पुष्पस्य – पुष्पयोः – पुष्पाणाम्
  7. सप्तमी – पुष्पे – पुष्पयोः – पुष्पेषु
  8. सम्बोधनम् – हे पुष्प ! – हे पुष्पे – हे पुष्पाणि

समान शब्द – पत्र, फल, पुस्तक, नगर, मित्र, उद्यान,वन (जंगल) अन्न, दुग्ध (दूध) जल आदि अ से अन्त होने वाले नपुंसकलिङ्ग शब्दों के रूप पुष्प के समान ही चलेंगे।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions शब्दरूपाणि

इकारान्त -पुंलिङ्ग – शब्द

हरि (विष्णु अथवा बन्दर)

विभक्ति – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. प्रथमा – हरिः – हरी – हरयः
  2. द्वितीया – हरिम् – हरी – हरीन्
  3. तृतीया – हरिणा – हरिभ्याम् – हरिभिः
  4. चतुर्थी – हरये – हरिभ्याम् – हरिभ्यः
  5. पञ्चमी – हरेः – हरिभ्याम् – हरिभ्यः
  6. षष्ठी – हरेः – हर्योः – हरीणाम्
  7. सप्तमी – हरौ – होः – हरिषु
  8. सम्बोधनम् – हे हरे ! – हे हरी ! – हे हरयः !

समान शब्द – कवि, मुनि, कपि, अग्नि, अतिथि, रवि (सूर्य) गिरि ,ऋषि, जलघि (समुद्र) विधि (ब्रह्मा), भूपति, सेनापति,राष्ट्रपति, नरपति, गृहपति, सुरपति, गणपति, वृहस्पति इत्यादि इ से अन्त होने वाले पुल्लिङ्ग शब्द के रूप हरि के समान ही चलेंगे ।

उकारान्त – पुल्लिङ्ग – शब्द

साधु

कारक – विभक्तिः – एकवचनम् – द्विवचनम् – बहुवचनम्

  1. कर्ता – प्रथमा – साधुः – साधुः – साधवः
  2. कर्म – द्वितीया – साधुम् – साधु – साधुन्
  3. करण – तूंतीया – साधुभ्याम् – साधुभिः
  4. सम्प्रदान – चतुर्थी – साधवे – साधुभ्याम् – साधुभ्यः
  5. आपादान – पञ्चमी – साधो: – साधुभ्याम् – साधुभ्यः
  6. सम्बन्ध – षष्ठी – साधोः – साध्वोः – साधनाम्
  7. अधिकरण – सप्तमी – साधौ – साध्वोः – साधुष
  8. सम्बोधन – सम्बोधनम् – हे साधो! – हे साध ! – हे साधवः !

समान शब्द – शिशु, भानु, गुरु, विष्णु, रिपु, पशु, विमु (चन्द्रमा) बन्धु (मित्र) शम्भु, ऋतु, वायु इत्यादि के शब्द रूप साधु के समान ही चलेंगे।

अस्मद् (-मैं, हम) पुरुषवाचक सर्वनाम-उत्तमपुरुष

Bihar Board Class 6 Sanskrit व्याकरण शब्दरूपाणि 1

(सामान्यतया सर्वनाम में संबोधन का व्यवहार नहीं होता)

युष्मद् (तू, तुम, तुमलोग)-पुरुषवाचक सर्वनाम-मध्यम पुरुष

विभक्तिः – एकवचन – द्विवचन । – बहुवचन

  1. प्रथमा – त्वम् । – युवाम् – यूयम् ।
  2. द्वितीया – त्वाम्, त्वा – युवाम्, वाम् – युष्मान्, वः
  3. तृतीया – त्वया – युवाभ्याम् – युष्माभिः
  4. चतुर्थी – तुभ्यम्, ते – युवाभ्याम्, वाम् युष्मभ्यम्, वा
  5. पंचमी – त्वत्. – युवाभ्याम् – युष्मत्
  6. षष्ठी – तव, ते – युवयोः – वाम् – युष्माकम्, वः
  7. सप्तमी – त्वयि – युवयोः । – युष्मासु

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions शब्दरूपाणि

भवत् (आप, आपलोग) आदरसूचक सर्वनाम-अन्यपुरुष

विभक्तिः – एकवचन – द्विवचन – बहुवचन

  1. प्रथमा – भवान् – भवन्तौ – भवन्तः
  2. द्वितीया – भवन्तम् – भवन्तौ – भवतः
  3. तृतीया – भवता – भवद्भ्याम् – भवद्भिः
  4. चतुर्थी – भवते – भवद्भ्याम् – भवद्भ्यः
  5. पंचमी – भवतः – भवद्भ्याम् – भवद्भ्यः
  6. षष्ठी – भवतः – भवतो: – भवताम्
  7. सप्तमी : – भवति – भवतो: – भवत्सु

तद् (-वह, वे)-निश्चयवाचक सर्वनाम-अन्यपुरुष

Bihar Board Class 6 Sanskrit व्याकरण शब्दरूपाणि 2

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Amrita Bhag 1 Chapter 10 सामाजिकं समत्वम् Text Book Questions and Answers, Summary.

BSEB Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

Bihar Board Class 6 Sanskrit सामाजिकं समत्वम् Text Book Questions and Answers

अभ्यासः

मौखिकः

प्रश्न 1.
उच्चारण करें –
Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम् 1

लिखितः

प्रश्न 2.
कोष्ठ में दिये गये शब्दों में षष्ठी विभक्ति का रूप देकर रिक्त स्थानों को भरें –

यथा – रामः दशरथस्य पुत्रः आसीत्। (दशरथ)

  1. पाटलिपुत्रः …………………. राजधानी अस्ति। (बिहार)
  2. डाक्टर राजेन्द्र प्रसादः …………. प्रथमः राष्ट्रपतिः आसीत्। (भारत)
  3. सीता ……………….. पत्नी आसीत्। (रामः)
  4. अहं …………………. छात्र: अस्मि । (षष्ठवर्ग)
  5. ………………. जलं क्षारं भवति। (समुद्र)
  6. ……………….. उत्तरदिशायां हिमालयः अस्ति। (भारत)

उत्तर-

  1. पाटलिपुत्रं बिहारस्य. राजधानी अस्ति।
  2. डाक्टर राजेन्द्र प्रसादः भारतस्य प्रथमः राष्ट्रपतिः आसीत्।
  3. सीता रामस्य पत्नी आसीत्।
  4. अहं षष्ठवर्गस्य छात्रः अस्मि ।
  5. समुद्रस्य जलं क्षारं भवति।
  6. भारतस्य उत्तरदिशायां हिमालयः अस्ति।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

प्रश्न 3.
सुमेलित करें

  1. कुम्भकारः – (क) पाकं करोति।
  2. स्वर्णकारः – (ख) पादत्राणम् रचयति ।
  3. रजक: – (ग) काष्ठसामग्री निर्माति ।
  4. चर्मकार: – (घ) छात्रान् पाठयति।।
  5. काष्ठकारः – (ङ) अलंकारं रचयति ।
  6. पाचक: – (च) कुम्भं करोति ।
  7. शिक्षक: – (छ) वस्त्रं प्रक्षालयति।

उत्तर-

  1. कुम्भकारः – (च) कुम्भं करोति ।
  2. स्वर्णकारः – (ङ) अलंकारं रचयति ।
  3. रजक: – (छ) वस्त्रं प्रक्षालयति।
  4. चर्मकार: – (ख) पादत्राणम् रचयति ।
  5. काष्ठकारः – (ग) काष्ठसामग्री रचयति ।
  6. पाचकः – (क) पाकं करोति ।
  7. शिक्षकः – (घ) छात्रान् पाठयति।

प्रश्न 4.
मंजूषा में से सही शब्द चुनकर रिक्त स्थानों को भरें..

(प्रणमन्ति, विकसन्ति, अस्ति, सन्ति, गुञ्जन्ति, पठामः, पाठयन्ति)

  1. अयम् अस्माकं विद्यालयः ……………..।
  2. वयं विद्यालये ……………….।
  3. विद्यालये सप्त शिक्षका: …………।
  4. ते अस्मान्
  5. सर्वे विद्यार्थिनः अध्यापकान् ……………
  6. उद्याने विविधानि पुष्पाणि ………………….।
  7. पुष्पेषु भ्रमरा: ……………………..।

उत्तर-

  1. अयम् अस्माकं विद्यालयः अस्ति।
  2. वयं विद्यालये पठामः।
  3. विद्यालये सप्त शिक्षकाः सन्ति।
  4. ते अस्मान् पाठयन्ति।
  5. सर्वे विद्यार्थिनः अध्यापकान् प्रणमन्ति।
  6. उद्याने विविधानि पुष्पाणि विकसन्ति।
  7. पुष्पेषु भ्रमरा: गुञ्जन्ति.।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

प्रश्न 5.
निम्नांकित शब्दों का वर्ण विच्छेद करें-
यथा – विद्यार्थी – व् + इ + द् + य् + आ + र् + थ् + ई
उत्तर – विद्यालय:- + इ + द् + य् + आ + ल् + अ + य् + अ
श्रवणम् – श्र् + अ + व् + अ + ण् + अ + म्
दृश्यम् – द् + ऋ + श् + य् + अ + म्
शिक्षक:- श् + इ + क्ष् + अ + क + अ:
महोत्सवः- म् + अ + ह् + ओ + त् + स् + अ + व् + अः

प्रश्न 6.
निम्नलिखित विषयों पर हिन्दी में पाँच-पाँच वाक्य लिखेंईद, होली, क्रिसमस
उत्तर-
ईद-

मुसलमानों का मुख्य उत्सवों में श्रेष्ठ उत्सव है। ईद के चाँद उगने के दिन से ही मुसलमानों का वर्ष आरम्भ होता है। इस दिन लोग परस्पर एक-दूसरों से मिलकर गले लगते हैं। बच्चे -बूढ़े-जवान सभी लोग ईदगाह जाते हैं। सभी लोग नये-नये कपड़े पहनते हैं। परस्पर सेवई और मिठाई बांटते हैं।

होली-

होली हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में श्रेष्ठ है। इस रोज से ही नये वर्ष का आरम्भ होता है। लोग नये-नये कपड़े पहनते हैं तथा परस्पर एक-दूसरे को रंग-अबीर देते हैं। हरेक घर में पुआ और मिठाई बनते हैं। लोग इस खुशी के पर्व पर नाचते-गाते दिखाई पड़ते हैं। यह खुशी का त्योहार है।

क्रिसमस-

क्रिसमस ईसाइयों का प्रमुख त्योहार है। इस अवसर पर लोग अपने-अपने घर को सजाते हैं। क्रिसमस -ट्री(पेड़) बनाये जाते हैं। ईसाई लोग चर्च पर जाकर प्रार्थना करते हैं। हरेक ईसाइयों के घर अच्छे-अच्छे भोजन बनते हैं। यह खुशियों का त्योहार है।

प्रश्न 7.
संस्कृते प्रश्नानां उत्तराणि लिखत –

प्रश्न (क)
मनुष्यः कीदृशः प्राणी अस्ति ?
उत्तर-
मनुष्यः समाजिकः प्राणी अस्ति ।

प्रश्न (ख)
कं विना जीवनं कठिनं भवति ?
उत्तर-
समाज विना जीवनं कठिनं भवति ।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

प्रश्न (ग)
अस्माकं देशस्य किं नाम अस्ति ?
उत्तर-
अस्माकं देशस्य भारतं नाम अस्ति ।

प्रश्न (घ)
भारतं प्रबलं राष्ट्रं कथं भवेत् ?
उत्तर-
यदा वयं परस्परं सौहार्दैन निवसामः तदं भारतं प्रबलं राष्ट्रं भवते ।

Bihar Board Class 6 Sanskrit सामाजिकं समत्वम् Summary

पाठ – मनुष्यः सामाजिकः प्राणी वर्तते। समाजं विना मनुष्याणां जीवनं कठिनं भवति। एकं भवनं जनानां सहयोगेन निर्मितं भवति। केचन जनाः इष्टकानां निर्माणम् अकुर्वन्। केचन अस्य भवनस्य कपाट-गवाक्षयोः निर्माणम् अकुर्वन्। एवमेव सामाजिक-सहयोगेन एवं अनेकानि वस्तूनि निर्मितानि भवन्ति ।

अर्थ – मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्यों का जीवन कठिन हो जाता है। एक मकान लोगों के सहयोग से निर्मित होता है। कुछ लोगों ने ईंटों का निर्माण किया। किसी ने इस भवन के दरवाजा-खिड़की का निर्माण किया। इसी प्रकार सामाजिक-सहयोग से ही अनेकों वस्तुओं के निर्माण होते हैं।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

पाठ – अस्माक देशे विविधाः जनाः वसन्ति। विविधान् धर्मान् ते आचरन्ति। किन्तु सर्वे भ्रातृभावेन निवसन्ति। वयं परस्परं सौहार्दैन निवसामः। ईद – होलिका – क्रिसमस – प्रभृतीनाम्
उत्सवानाम् अवसरेषु परस्परं सहयोगं कुर्मः।

अर्थ – हमारे देश में अनेकों लोग रहते हैं। अनेकों धर्मों का वे सब आचरण करते हैं।किन्तु सभी भाईचारे की भावना से निवास करते हैं। हमलोग आपस में प्रेम से निवास करते हैं। ईद – होली, क्रिसमस इत्यादि उत्सवों के अवसरों पर पस्पर सहयोग करते हैं।

पाठ – केचन जनाः धर्मकारणात् विवादं कुर्वन्ति। ते स्वधर्म श्रेष्ठ वदन्ति। परधर्म हीनं गणयन्ति। वस्तुतः सर्वे धर्माः समानाः
सन्ति ।

अर्थ – कुछ लोग धर्म के कारण झगड़ा करते हैं। वे लोग अपने ध म को श्रेष्ठ बताते हैं। दूसरे के धर्म को छोटा बताते हैं। वस्तुतः सभी धर्म समान हैं।-

पाठ – एवमेव समाजे केचन संपन्नाः, केचन निर्धनाः सन्ति। सर्वे समाजस्य सदस्याः एव सन्ति। तेषु परस्परं समता भवेत्। यन्त्रस्य प्रत्येकः खण्डः अनिवार्यः अस्ति। तथैव समाजस्य सर्वे जनाः अनिवार्याः सन्ति।

अर्थ – इसी प्रकार समाज में कुछ अमीर कुछ गरीब हैं। सभी समाज के सदस्य ही हैं। उनमें परस्पर एकता होनी चाहिए। मशीन के प्रत्येक भाग की अनिवार्यता है। उसी प्रकार समाज के सभी लोगों की अनिवार्यता है।’

पाठ – यदा भारतीयाः परस्परं सौहार्दैन निवसामः। तदा । भारतवर्ष विश्वस्य प्रबलं राष्ट्रं भवेत् ।

Bihar Board Class 6 Sanskrit Solutions Chapter 10 सामाजिकं समत्वम्

अर्थ – यदि भारतीय लोग आपस में प्रेम से रहते हैं तो भारतवर्ष । विश्व का प्रबल देश होगा।

शब्दार्थाः – समत्वम् – समता, एकता। वर्त्तते – है। जनानां – लोग। सहयोगेन – सहयोग से । इष्टकानां – ईंटों का। अकुर्वन् – किये । किये थे। केचन – किन्हीं ने / कई लोगों ने। अस्य – इसका / इसकी / इसके। अस्य भवनस्य – इस भवन का । कपाटः – दरवाजा। गवाक्षयोः – खिड़कियों का। एवमेव -इसी प्रकार। एव – ही। वस्तूनि – वस्तुओं। भवन्ति – होते हैं। अस्माकं – हमारे। विविधाः जनाः – अनेक लोग। वसन्ति – रहते हैं। विविधान्-धर्मान् – अनेक धर्मों को। आचरन्ति – आचरण करते हैं । मानते हैं। सर्वे – सभी। भ्रातृभावेन – भाईचारे की भावना / भाई-भाई की भावना से। सौहार्दैन – प्रेम से । प्रभृतीनाम् – इत्यादि का । उत्सवानाम् – उत्सवों के । अवसरेषु – अवसरों पर। कर्मः – करते हैं। धर्मकारणात् – ध र्म के कारण से। स्वधर्मम् – अपने धर्म को। श्रेष्ठम् – श्रेष्ठ (ऊँचा)। परध मम् – दूसरों के धर्म को। हीनम् – नीच। सम्पन्नाः – सम्पन्न लोग। निर्धनाः – गरीब! तेषु – उनसबों में। भवेत – होना चाहिए/होनी चाहिए। यन्त्रस्य -मशीन का। यदा – जब । सदा – तब। एकेकः – प्रत्येक / सभी। खण्डः – टुकड़ा / भाग।

व्याकरणम्

निम्नलिखित व्युत्पन्न अव्यय पदों का बहुधा प्रयोग होता है। इन्हें जानना आवश्यक है:

अत्र – यहाँ, कुत्र – कहाँ, तत्र – वहाँ, यत्र – जहाँ, सर्वत्र – सभी जगह, एकत्र – एक जगह, अन्यत्र – दूसरी जगह(अन्य जगह), यदा – जब, कदा – कब, सदा – हमेशा, एकदा – एकबार, तदा – तब, सर्वदा – हर बार, हमेशा, इतः – यहाँ से, कुतः – कहाँ से, क्यों, यतः – जहाँ से, सर्वतः – सभी जगह से, विद्यालयतः – स्कूल से, गृहतः – घर से।

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Political Science राजनीति विज्ञान : लोकतांत्रिक राजनीति भाग 1 Chapter 3 संविधान निर्माण Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

Bihar Board Class 9 Political Science संविधान निर्माण Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई ?
(क) दिसम्बर 1940
(ख) दिसम्बर 1942
(ग) दिसम्बर 1945
(घ) दिसम्बर 1946
उत्तर-
(ग) दिसम्बर 1945

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे?
(क) डा० भीमराव अंबेदकर
(ख) डा. राजेन्द्र प्रसाद
(ग) सरदार पटेल
(घ) पं. जवाहरलाल नेहरू
उत्तर-
(ग) सरदार पटेल

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान सभा के लिए चुनाव कब हुआ था ?
(क) जुलाई 1950
(ख) जुलाई 1946
(ग) जुलाई 1935
(घ) जुलाई 1940
उत्तर-
(ग) जुलाई 1935

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान लिखने वाली सभा में कितने सदस्य थे?
(क) 299
(ख) 290
(ग) 295
(घ) 292
उत्तर-
(ग) 295

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान कब तैयार हुआ?
(क) 26 नवंबर 1950 को
(ख) 26 नवंबर 1947 को
(ग) 26 नवंबर 1948 को
(घ) 26 नवंबर 1949 को
उत्तर-
(ग) 26 नवंबर 1948 को

प्रश्न 6.
भारतीय संविधान कब लागू हुआ?
(क) 26 जनवरी 1948 को
(ख) 26 जनवरी 1949 को
(ग) 26 जनवरी 1950 को
(घ) 26 जनवरी 1951 को
उत्तर-
(ग) 26 जनवरी 1950 को

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

प्रश्न 7.
भारत ब्रिटिश शासन से कब मुक्त हुआ?
(क) 10 जनवरी 1947 को
(ख) 15 अगस्त 1947 को
(ग) 15 फरवरी 1947 को
(घ) 15 दिसम्बर 1947 को
उत्तर-
(ग) 15 फरवरी 1947 को

प्रश्न 8.
सन् 1931 में कांग्रेस का अधिवेशन कहाँ हुआ था ?
(क) इलाहाबाद में
(ख) बम्बई में
(ग) इस्लामाबाद में
(घ) कराची में
उत्तर-
(ग) इस्लामाबाद में

प्रश्न 9.
कांग्रेस के किस अधिवेशन में भारत के संविधान की रूपरेखा रखी गयी थी?
(क) सन् 1919
(ख) सन् 1931
(ग) सन् 1940
(घ) सन् 1950
उत्तर-
(ग) सन् 1940

Bihar Board Class 9 Political Science Solutions Chapter 3 संविधान निर्माण

प्रश्न 10.
दक्षिण अफ्रीका का प्रधान नेता कौन था ?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) नेल्सन मंडेला
(ग) अबुल कलाम आजाद
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) अबुल कलाम आजाद

प्रश्न 11.
भारतीय संविधान के संशोधनों पर कितनी बार चर्चा हुई ?
(क) 100 बार
(ख) 2000 से ज्यादा
(ग) 50 बार
(घ) 1000 से ज्यादा
उत्तर-
(ग) 50 बार

प्रश्न 12.
इनमें कौन-सा तत्व है, जो भारतीय संविधान की प्रस्तावना में नहीं
(क) स्वतंत्रता
(ख) लोकतंत्रात्मकता
(ग) एकता और अखंडता
(घ) सांप्रदायिकता
उत्तर-
(ग) एकता और अखंडता

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प्रश्न 13.
दक्षिण अफ्रीका में अश्वेत, रंगीन, चमड़ीवाले और भारतीय मूल के लोगों ने रंगभेद प्रणाली के खिलाफ कब संघर्ष किया ?
(क) 1940 से
(ख) 1945 से
(ग) 1947 से
(घ) 1950 से
उत्तर-
(ग) 1947 से

प्रश्न 14.
नेल्सन मंडेला को कितने वर्षों तक जेल में रखा गया था?
(क). 20 वर्षों तक
(ख) 25 वर्षों तक
(ग) 28 वर्षों तक
(घ) 15 वर्षों तक
उत्तर-
(ग) 28 वर्षों तक

प्रश्न 15.
दक्षिण अफ्रीका को किस वर्ष स्वतंत्रता मिली?
(क) 1964 में
(ख) 1965 में
(ग) 1970 में
(घ) 1975 में
उत्तर-
(ग) 1970 में

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प्रश्न 16.
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति कौन बने ?
(क) जैक्शन मंडेला
(ख) जे. बी. मंडेला
(ग) मि. एक्स
(घ) नेल्सन मंडेला
उत्तर-
(ग) मि. एक्स

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान निर्माण करते समय कितने दिनों तक गंभीर चर्चा
(क) 100 दिनों तक
(ख) 114 दिनों तक
(ग) 115 दिनों तक
(घ) 200 दिनों तक
उत्तर-
(ग) 115 दिनों तक

प्रश्न 18.
भारतीय संविधान को कितने खंडों में प्रकाशित किया गया ?
(क) 10
(ख) 15
(ग) 12
(घ) 20
उत्तर-
(ग) 12

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प्रश्न 19.
किस संशोधन के द्वारा वयस्कता की उम्र को 21 से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई?
(क) 55 वें
(ख) 60 वें
(ग) 65 वें
(घ) 66 वें
उत्तर-
(ग) 65 वें

प्रश्न 20.
किसी कानूनी दस्तावेज का प्रारंभिक रूप क्या कहलाता है ?
(क) धारा
(ख) प्रारूप
(ग) संविधान
(घ) प्रस्तावना
उत्तर-
(ग) संविधान

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

प्रश्न 1.
राज्य की कल्पना करना बेमानी है।
उत्तर-
संविधानहीन

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प्रश्न 2.
नियमों के संग्रह को ……………………. कहा जाता है।
उत्तर-
संविधान

प्रश्न 3.
……………………….वर्षों की चर्चा और बहस के बाद दक्षिण अफ्रीका एक बेमिसाल संविधान बनाने में सफल हुआ।
उत्तर-
दो

प्रश्न 4.
दक्षिण अफ्रीका के स्थानीय लोगों की चमड़ी का रंग …………………. होता है।
उत्तर-
काला

प्रश्न 5.
दक्षिण अफ्रीकी संविधान से दुनिया भर के लोकतांत्रिक लोग ………….. लेते हैं।
उत्तर-
प्रेरणा

प्रश्न 6.
संविधान स्पष्ट करती है कि ……………………… कैसे होगा। उत्तर-सरकार का गठन

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प्रश्न 7.
………………….. ई. में महात्मा गाँधी ने यह उद्गार व्यक्त किया कि ‘भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा।’
उत्तर-
1922

प्रश्न 8.
1924 ई. में …………………. द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए।
उत्तर-
मोतीलाल नेहरू

प्रश्न 9.
……………………. ई. में मोतीलाल नेहरू और आठ कांग्रेस नेताओं ने भारत का एक संविधान लिखा था ।
उत्तर-
1928

प्रश्न 10.
संविधान सभा के सदस्यों की विचारधारा भी …………. थी।
उत्तर-
अलग-अलग.

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प्रश्न 11.
महात्मा गाँधी के पत्रिका का नाम ……………………… था।
उत्तर-
यंग इंडिया

प्रश्न 12.
हमारे संविधान में …………. वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में भारत को समाजवादी राज्य घोषित किया गया है।
उत्तर-
42

प्रश्न 13.
42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में भारत को एक ………………. राज्य घोषित किया गया है।
उत्तर-
समाजवादी

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प्रश्न 14.
स्वतंत्र न्यायपालिका प्रजातंत्र की ……………. है।
उत्तर-
आधारशिला

प्रश्न 15.
अब सम्पत्ति का अधिकार एक ………….. अधिकार नहीं है ।
उत्तर-
मौलिक

प्रश्न 16.
शिक्षा के अधिकार को ………….. के रूप में मान्यता प्राप्त है।
उत्तर-
मौलिक अधिकार

प्रश्न 17.
जन-प्रतिनिधियों की वह सभा जो संविधान लिखने का काम करती है उसे ……….. कहते हैं ।
उत्तर-
संविधान सभा

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प्रश्न 18.
किसी सोच और काम को दिशा देने वाले सबसे बुनियादी विचार को ……………… कहते हैं।
उत्तर-
दर्शन

प्रश्न 19.
देश की सरकार को उखाड़ फेंकने की कोशिश करने के अपराध को …………………. कहते हैं।
उत्तर-
देशद्रोह

प्रश्न 20.
संविधान का वह पहला कथन जिसमें कोई अपने संविधान के …………….. बुनियादी मूल्यों और अवधारणाओं को स्पष्ट ढंग से कहता
उत्तर-
प्रस्तावना

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान क्या है?
उत्तर-
किसी देश का शासन जिन नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार पर चलता है, उन सिद्धान्तों या नियमों को संविधान कहते हैं।

प्रश्न 2.
अफ्रीकी रंगभेद नीति का विरोध किस संगठन ने किया ?
उत्तर-
अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस पार्टी ने।

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प्रश्न 3.
भारत का संविधान किसने बनाया ?
उत्तर-
संविधान सभा ने।।

प्रश्न 4.
भारतीय संविधान प्रारूप कमेटी के अध्यक्ष कौन थे? ।
उत्तर-
डा. अम्बेदकर।।

प्रश्न 5.
संविधान सभा ने भारत का संविधान बनाने में कितना समय लगाया?
उत्तर-
2 वर्ष, 11 महीने एवं.18 दिन ।

प्रश्न 6.
भारत में संसदीय प्रणाली किस देश से प्रभावित होकर ली गई है ?
उत्तर-
इंग्लैंड से।

प्रश्न 7.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में किस वर्ष ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया ?
उत्तर-
1976 में।

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प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में कितने अनुच्छेद एवं अनुसूचियाँ हैं?
उत्तर-
कुल 395 अनुच्छेद, 22 भाग एवं 12 अनुसूचियाँ हैं।

प्रश्न 9.
संविधान की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
संविधान के बिना लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली की कल्पना बेमानी है।

प्रश्न 10.
संविधान निर्माण में निर्माता फ्रांस के संविधान से किस तरह प्रभावित थे ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रान्ति के आदर्शों से।

प्रश्न 11.
संविधान निर्माता किसके संसदीय कार्य से प्रभावित थे ?
उत्तर-
ब्रिटेन के संसदीय लोकतंत्र के कामकाज से ।

प्रश्न 12.
संविधान निर्माता अमेरिका के संविधान से किस तरह प्रभावित थे ?
उत्तर-
अमेरिका के अधिकारों की सूची से काफी प्रभावित थे।

प्रश्न 13.
संविधान निर्माता रूस के संविधान से किस तरह प्रभावित थे ?
उत्तर-
रूस की समाजवादी क्रान्ति से प्रभावित थे।

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प्रश्न 14.
स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री कौन थे?
उत्तर-
पं. जवाहरलाल नेहरू ।

प्रश्न 15.
संविधान सभा के लिए कब चुनाव कराए गए ?
उत्तर-
जुलाई 1946 में।

प्रश्न 16.
हम भारतवासी हर वर्ष गणतंत्र दिवस कब मनाते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी को ।

प्रश्न 17.
संविधान के अनुसार भारत किस प्रकार का राज्य है ?
उत्तर-
भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य है।

प्रश्न 18.
गणराज्य का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
गणराज्य का अर्थ है, शक्ति का संपूर्ण स्रोत ‘गण’ अर्थात् जनता में है।

प्रश्न 19.
भारतीय संविधान के अनुसार संप्रभुता कहाँ निहित है ?
उत्तर-
भारत की जनता में।

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प्रश्न 20.
पता लगाएं, स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर-
डा. राजेन्द्र प्रसाद ।।

प्रश्न 21.
पता लगाएँ, ब्रिटिश भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे ?
उत्तर-
लार्ड माउंटबेटन ।

प्रश्न 22.
लार्ड माउंटबेटन के बाद स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल
कौन थे?
उत्तर-
श्री सी. राजगोपालाचारी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण अफ्रीका में रंगीन चमड़ीवाला किसे कहा गया है ?
उत्तर-
दक्षिण अफ्रीका में मुख्य रूप से काले चमड़ी वाले लोग रहते हैं। आबादी में उनका हिस्सा तीन चौथाई है और उन्हें अश्वेत कहा जाता है। श्वेत गोरे लोग कहलाते हैं। श्वेत और अश्वेत के अलावा वहाँ मिश्रित नस्लों के लोग रहते हैं जिन्हें ‘रंगीन चमड़ी’ वाला कहा जाता है। , इनकी त्वचा का रंग लाल होता है।

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प्रश्न 2.
रंगभेद नीति क्या थी?
उत्तर-
रंगभेद की नीति अश्वेतों के लिए खासतौर से दमनकारी थी। उन्हें गोरों की बस्तियों में रहने-बसने की इजाजत नहीं थी। परमिट होने पर ही वे वहाँ जाकर काम कर सकते थे। रेलगाड़ी, किसी भी सवारी, होटल, अस्पताल, स्कूल और कॉलेज, पुस्तकालय, सिनेमाघर, समुद्रतट, तरणताल तथा अन्य सार्वजनिक शौचालयों तक में गोरों और कालों के लिए एकदम अलग-अलग व्यवस्था थी । इसे पृथककरण या अलग-अलग करने का इंतजाम कहा जाता था । अश्वेतों को संगठन बनाने और इस भेदभावपूर्ण व्यवहार का विरोध करने का अधिकार नहीं था । इस तरह रंगभेद नीति अत्यन्त ही दमनकारी थी।

प्रश्न 3.
रंगभेद नीति के खिलाफ किन लोगों ने संघर्ष किया?
उत्तर-
1950 ई. से ही अश्वेत, रंगीन चमड़ी वाले और भारतीय मूल के लोगों ने रंगभेद प्रणाली के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने विरोध प्रदर्शन किए और हड़ताल आयोजित किया अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस के झंडे तले एक जुट हुए इनमें कई मजदूर संगठन और कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। अनेक समझदार और संवेदनशील गोरे नेशनल कांग्रेस के साथ आए और संघर्ष में साथ दिया । लेकिन गोरे सरकार ने रंगभेद में हजारों अश्वेतों और रंगीन चमड़ी वाले लोगों की हत्या और दमन कर डाला

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प्रश्न 4.
नेल्सन मंडेला के विषय में संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के महान नेता थे । गोरों की सरकार ने मंडेला पर देशद्रोह का मुकदमा चलाकर जेल में बंद कर दिया ।
मंडेला गोरों की सरकार का विरोध करते थे । नेल्सन को 28 वर्षों तक – जेल में बंद रहने के बाद आजाद कर दिया गया और दक्षिण अफ्रीका
स्वतंत्र हो गया । नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के प्रथम राष्ट्रपति 1994 ई. में बने।

प्रश्न 5.
दक्षिण अफ्रीका के उदय के साथ अश्वेत नेताओं ने अश्वेत समाज से क्या आग्रह किया?
उत्तर-
नए लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका के उदय के साथ ही अश्वेत नेताओं ने अश्वेत समाज से आग्रह किया कि सत्ता में रहते हुए गोरे लोगों ने जो जुल्म किये थे उन्हें भूल जाएँ और गोरों को माफ कर दें। यह भी आग्रह किया कि अब सभी नस्लों तथा स्त्री-पुरुष की समानता, लोकतांत्रिक मूल्यों, सामाजिक न्याय और “मानवाधिकार पर आधारित नए दक्षिण अफ्रीका का निर्माण करें।

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प्रश्न 6.
दक्षिण अफ्रीका का संविधान बेमिसाल संविधान है। कैसे?
उत्तर-
नए संविधान के निर्माण के लिए सभी साथ-साथ मिलकर बैठें। दो वर्षों की चर्चा और बहस के बाद एक बेमिसाल संविधान बनाने में वे सफल रहे । उनका संविधान अपने इतिहास अर्थात् भूतकाल एवं भविष्यतकाल के सुनहरे दिनों की बात करता है। इस संविधान में नागरिकों
को व्यापक अधिकार दिये गये। अतीत के दुःस्वप्न से बाहर निकलकर – इस बात पर सहमति बनी कि अब से हर समस्या के समाधान में पूर्वाग्रह से मुक्त होकर सबकी भागीदारी होगी।
दक्षिण अफ्रीकी संविधान ऐसा तैयार हुआ कि दुनिया भर के लोकतांत्रिक देश इससे प्रेरणा लेते हैं।

प्रश्न 7.
संविधान की आवश्यकता क्यों है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
लोकतंत्र की सफलता के लिए संविधान जरूरी है। किसी देश का शासन जिन नियमों एवं सिद्धान्तों के आधार पर चलता है, उन सिद्धान्तों या नियमों का संग्रह ही संविधान है। संविधानहीन राज्य की कल्पना करना बेमानी है। संविधान के अभाव में राज्य, राज्य न होकर एक प्रकार की अराजकता होगी। इसके अतिरिक्त संविधान नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान करते हैं जिससे उनका सर्वांगीण विकास हो सके।

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प्रश्न 8.
संविधान के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
संविधान के निम्नलिखित कार्य हैं-(i) यह स्पष्ट करता है कि सरकार का गठन कैसे होगा और किसे फैसले लेने का अधिकार होगा । (ii) संविधान सरकार के अधिकारों की सीमा तय करता है और हमें बताता है कि नागरिकों के क्या अधिकार हैं । (iii) यह अच्छे समाज के गठन के लिए लोगों की आवश्यकताओं को व्यक्त करता है। (iv) संविधान एक ऐसा दस्तावेज है जिसे किसी देश के नागरिक स्वाभाविक रूप से मानते हैं । संविधान सर्वोच्च कानून है जिससे किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों के बीच आपसी संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच संबंध तय होते हैं।

प्रश्न 9.
‘यंग इंडिया’ में गाँधीजी ने भारत के संविधान के विषय में क्या लिखा था?
उत्तर-
1931 ई. में अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में गाँधीजी ने संविधान में अपनी अपेक्षा के बारे में लिखा था, “मैं भारत के लिए ऐसा संविधान चाहता हूँ जो उसे गुलामी और अधीनता से मुक्त करें। मैं ऐसे भारत के लिए प्रयास करूंगा जिसे सबसे गरीब व्यक्ति भी अपना माने और उसे लगे कि देश को बनाने में उसकी भी भागीदारी है, ऐसा भारत जिसमें लोगों का उच्च वर्ग और निम्न वर्ग न रहे, सभी समुदाय के लोग पूरे मेल-जोल से रहें। जिसमें छुआछूत, शराब और नशीली चीजों के लिए कोई जगह न हो। औरतों को मदों जैसे अधिकार मिले । मैं इससे कम पर संतुष्ट नहीं होऊँगा ।”

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प्रश्न 10.
डॉ. अम्बेडकर ने संविधान के विषय में क्या भाषण दिया था ?
उत्तर-
संविधान सभा में दिए गए अपने अंतिम भाषण में डॉ. अम्बेडकर ने स्पष्ट ढंग से कहा था-“26 जनवरी, 1950 को हम विशेषाधिकारों से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं । राजनीति के मामले में यहाँ समानता होगी पर आर्थिक और सामाजिक जीवन असमानताओं से भरा होगा । राजनीति में हम ‘एक व्यक्ति एक वोट’ और ‘हर वोट का समान महत्व’ के सिद्धान्त को मानेंगे।”

प्रश्न 11.
संविधान की प्रस्तावना क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रस्तावना किसी देश के संविधान की कुंजी है। संविधान अपने बुनियादी मूल्यों की एक छोटी-सी उद्देशिका के साथ आरम्भ करता है। इसे ही संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका कहते हैं। अमेरिकी संविधान की प्रस्तावना से प्रेरणा लेकर समकालीन दुनिया के अधिकांश देश अपने संविधान की शुरूआत एक प्रस्तावना से करते हैं। वास्तव में प्रस्तावना में संविधान के स्रोतों, लक्ष्यों, आदर्शों और सरकार के बुनियादी राजनीतिक ढाँचों का संक्षिप्त विवरण होता है।

प्रश्न 12.
संयुक्त राज्य के संविधान की प्रस्तावना के विषय में लिखें।
उत्तर-
संयुक्त राज्य के संविधान की प्रस्तावना कुछ इस प्रकार है’संयुक्त राज्य के हम सभी लोग अधिक अच्छा संघ बनाने, न्याय की स्थापना करने, घरेलू शांति बनाने, साझा सुरक्षा व्यवस्था बनाने, जन कल्याण को बढ़ावा देने, अपने और अपनी समृद्धि में स्वतंत्रता साथ लेने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के इस संविधान को स्थापित करते हैं और इसका अभिषेक करते हैं।

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प्रश्न 13.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना लोकतंत्र पर लिखित रूप में खूबसूरत कविता-सी लगती है। इसमें वह दर्शन शामिल है जिस पर पूरे संविधान का निर्माण हुआ है। यह दर्शन सरकार के किसी भी कानून और फैसले के मूल्यांकन और परीक्षण का मानक तय करता है । इसके सहारे परखा जा सकता है कि कौन कानून, कौन फैसला अच्छा या बुरा है। प्रस्तावना में ही भारतीय संविधान की आत्मा बसती है।

प्रश्न 14.
क्या भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है ?
उत्तर-
धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। 42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। धर्मनिरपेक्ष राज्य का तात्पर्य यह है कि राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और राज्य के द्वारा विभिन्न धर्मावलम्बियों में कोई भेद-भाव नहीं किया जायगा। सभी नागरिक स्वेच्छा से कोई धर्म अपनाने और उपासना करने में स्वतंत्र हैं।

प्रश्न 15.
संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संविधान किसी भी देश के उन आधारभूत सिद्धान्तों का समूह होता है । संविधान वहाँ की सरकार के निर्माण, संचालन तथा कार्यपद्धति का ब्यौरा प्रस्तुत करता है । संविधान एक ऐसा लिखित दस्तावेज है जिसे किसी देश के नागरिक स्वाभाविक रूप से मानते हैं । संविधान सर्वोच्च कानून है जिससे किसी क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों के बीच के आपसी संबंध तय होने के साथ-साथ लोगों और सरकार के बीच संबंध भी तय होते हैं।

प्रश्न 16.
भारतीय संविधान जनता का संविधान क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान जनता का संविधान है । यह बात सत्य है कि संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर ही चुने जाते हैं। संविधान सभा के सदस्य प्रांतीय विधानमंडल द्वारा चुने जाते हैं। वास्तव में देश के सभी महत्वपूर्ण नेता संविधान सभा के सदस्य होते हैं। सभी वर्गों (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, महिलाएँ) के प्रतिनिधि संविधान सभा में होते हैं । यदि वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव होता तो यही व्यक्ति चुनाव जीतकर आते । अतः हमारा संविधान जनता का संविधान है।

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प्रश्न 17.
संविधान के आधार पर गणतंत्र का अर्थ क्या है ?
अथवा, भारत एक लोकतंत्रात्मक गणराज्य है ! कैसे ?
उत्तर-
सरकार की स्थापना जनता के प्रतिनिधियों द्वारा होती है और प्रतिनिधियों का चुनाव जनता संविधान द्वारा प्रदत्त वयस्क मताधिकार द्वारा करती है । गणराज्य से तात्पर्य ऐसे राज्य से है, जहाँ शासनाध्यक्ष चंशानुगत न होकर जनता द्वारा निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है । गणराज्य का अर्थ ही यही है कि यहाँ शक्ति का संपूर्ण स्रोत ‘गण’ अर्थात् जनता में है। ‘लोकतंत्रात्मक’ शब्द इस बात का परिचायक है कि सरकार का स्रोत जनता में ही निहित है, लोकतंत्रात्मक सरकार जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा स्थापित होती है।

प्रश्न 18.
संसदात्मक शासन प्रणाली क्या है ? भारत में किस प्रकार संसदीय शासन प्रणाली है ?
उत्तर-
संसदात्मक शासन प्रणाली वह शासन प्रणाली है जहाँ कार्यपालिका व विधानपालिका के बीच अटूट संबंध होता है। कार्यपालिका, विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होता है। कार्यपालिका अर्थात् मंत्रिपरिषद् के सदस्य संसद् के प्रति उत्तरदायी होते हैं। सभी मंत्री प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कार्य करते हैं तथा उनका प्रधानमंत्री के प्रति निजी उत्तरदायित्व होता है। भारत में संसदात्मक प्रणाली अपनाई गई है। सभी मंत्रियों का लोकसभा के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व होता है।

प्रश्न 19.
भारत में संघीय प्रणाली होते हुए भी एकल नागरिकता की व्यवस्था है, कैसे?
उत्तर-
हमारे देश में संघीय प्रणाली होते हुए भी एकल नागरिकता की ही व्यवस्था है। भारत का कोई भी निवासी चाहे वह किसी भी राज्य का हो, किसी भी धर्म या संप्रदाय को मानने वाला हो, किसी भी भाषा अथवा क्षेत्र से संबंध रखता है, भारत का नागरिक है। भारत में अखंडता के साथ-साथ मौलिक एकता पर जोर दिया गया है। इसलिए एकल नागरिकता की ही व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 20.
संविधान संशोधन प्रक्रिया क्या है, इसे क्यों आवश्यक बनाया गया?
उत्तर-
संविधान सिर्फ मूल्यों और दर्शन का बयान भर नहीं है। यह .एक बहुत ही लम्बा और विस्तृत दस्तावेज है। इसलिए समय-समय पर इसे नया रूप देने के लिए इसमें बदलाव की जरूरत पड़ती है। निर्माताओं को लगा कि इसे भावनाओं के अनुरूप चलना चाहिए और समाज में हो रहे बदलावों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने इसे पवित्र स्थायी और न बदले जा सकने वाले कानून के रूप में नहीं देखा था। इसलिए उन्होंने बदलाओं को समय-समय पर शामिल करने का प्रावधान भी रखा । इन बदलावों को ‘संविधान संशोधन’ कहते हैं।

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प्रश्न 21.
संविधान में वर्णित समाजवादी सिद्धान्त क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान में प्रशासन के समाजवादी सिद्धान्त पर बल दिया गया है । जिस राजनीतिक प्रशासनिक सिद्धान्त के अन्तर्गत व्यक्ति की अपेक्षा सम्पूर्ण समाज को विकास का समान अवसर प्रदान किया जाता है, उसे ‘समाजवाद’ कहते हैं। इसका उद्देश्य संपूर्ण समाज में आर्थिक, राजनीतिक और आधिकारिक दृष्टि से समानता स्थापित करना होता है । वास्तव में समाजवाद का तात्पर्य ऐसे सामाजिक नीति या सिद्धान्त से है, जो उत्पादन के साधनों, पूँजी, जमीन, सम्पत्ति आदि का सम्पूर्ण समुदाय द्वारा नियंत्रण तथा स्वामित्व का समर्थन करता है तथा सभी के हित में वितरण और प्रशासन की व्यवस्था करता है।

प्रश्न 22.
संविधान सभा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जनता द्वारा चुने गए वैसे प्रतिनिधियों की सभा जो संविधान निर्माण का कार्य करती है संविधान सभा कहलाती है । भारतीय संविधान सभा ने 9 दिसम्बर, 1946 से अपना कार्य करना प्रारम्भ कर दिया था । भारत का संविधान 26 नवम्बर,च 1949 ई. को अपना काम पूरा कर . लिया । संविधान 26 जनवरी, 1950 ई. को लागू हुआ ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत का संविधान किस प्रकार बना?
उत्तर-
भारत का संविधान एक संविधान सभा ने निर्माण किया है। इसव निर्माण के तत्व इस प्रकार हैं
(i) संविधान सभा का गठन-भारतीय नेता काफी समय से यह मांग करते आ रहे थे कि भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा बनाई गई। 1946 में हुई संविधान सभा में 299 सदस्य थे। इसमें बड़े-बड़े नेता थे। जैसे- पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी श्रीमती सरोजनी नायडू । डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे।
(ii) प्रारुप समिति की नियक्ति तथा संविधान का निर्माण२ प्रधान का प्रारुप तैयार करने के लिए एक समिति की नियुक्ति की गई। – 7 समिति के प्रधान डॉ. भीमराव अंबेदकर थे।

इस समिति ने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन करके बड़े परिश्रम से संविधान की रूप-रेखा बनाई। इसी रूप रेखा के आधार पर ही देश के लिए विशाल संविधान तैयार किया गया । संविधान तैयार करने में 2 वर्ष, 11 मास और 18 दिन का समय लगा। इस दौरान संविधान. सभा की 114 दिनों तक गंभीर चर्चा हुई। सभा में पेश हर प्रस्ताव, हर शब्द ओर वहाँ कही गई हर बात का रिकार्ड किया गया । इन्हें “कांस्टीट्यूट असेम्बली डिबेट्स’ नाम से 12 मोटे खंडों में प्रकाशित किया गया । 26 नवंबर, 1949 ई० को संविधान पूरा हुआ और पारित किया गया । इसे 26 जनवरी 1950 ई. को लागू किया गया। इस प्रकार संविधान का गठन हुआ।

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प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के महत्व की चर्चा करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारतीय संविधान की आत्मा बसती है । इसलिए इसके बहुत महत्व हैं । वे निम्नलिखित हैं

  • जनता का संविधान-प्रस्तावना का आरंभ ‘हम भारत के लोग’ से किया गया है। इससे स्पष्ट है यह लोगों अर्थात् जनता का संविधान है, जिसका निर्माण जनता ने अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से किया है।
  • आदर्श मूल्यों की चर्चा-प्रस्तावना के अध्ययन से पता चलता है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता, अखंडता, समानता, स्वतंत्रता, विश्वशांति आदि भारतीय संविधान के मूल आदर्श हैं।
  • धर्मनिरपेक्ष राज्य-संविधान के 42वें संशोधन द्वारा 1976 में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया है। अतः धर्म के आधार पर भारत के किसी भी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। कोई भी नागरिक किसी भी धर्म को मान सकता है।
  • सरकार की अभिव्यक्ति-प्रस्तावना में सरकार के स्वरूप की स्पष्ट झलक मिलती है, कि भारत एक संप्रभुता संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य है।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • लोकतांत्रिक गणराज्य-भारतीय संविधान की पहली विशेषता है कि यह लोकतांत्रिक गणराज्य है। यह बताता है कि सरकार की वास्तविक शक्ति का संपूर्ण स्रोत ‘गण’ अर्थात् जनता में है।
  • विशाल एवं लिखित संविधान भारतीय संविधान विश्व का सर्वाधिक विशाल संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 12 अनुसूचियाँ हैं । इसमें संघ और राज्यों की व्यापकता से वर्णन है।
  • समाजवादी राज्य-42वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में । भारत को समाजवादी राज्य घोषित किया गया । जो सामाजिक नीति पर आधारित है, जो उत्पादन के साधनों पूँजी, जमीन, सम्पत्ति आदि का सम्पूर्ण द्वारा नियंत्रण तथा स्वामित्व का समर्थन करता है।
  • सम्प्रभुता-भारत को सम्प्रभुत्व गणराज्य बनाया गया है। इस पर अब किसी बाहरी शक्ति का नियंत्रण नहीं रहा । यहाँ शासन की शक्ति जनता के हाथ में है; जिसका प्रयोग वह अपने प्रतिनिधियों के द्वारा करता है।
  • धर्मनिरपेक्षता यहाँ राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और राज्य के द्वारा विभिन्न धर्मावलम्बियों में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  • संसदीय शासन प्रणाली—इस शासन व्यवस्था के अन्तर्गत शासन की वास्तविक सत्ता मंत्रिपरिषद् में निहित होती है और मंत्रिपरिषद् का नियंत्रण व्यवस्थापिका द्वारा होता है। राष्ट्रपति और राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होते हैं।
  • संघीय शासन प्रणाली-भारत राज्यों का एक संघ है । संविधान ने शासन शक्ति एक स्थान पर केन्द्रित न करके केन्द्र और राज्य सरकारों में विभाजित कर दी है। यहाँ भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है, तथापि व्यावहारिक रूप में उसकी आत्मा एकात्मक है।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका-भारतीय संविधान सारे देश के लिए न्याय प्रशासन की एक व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर उच्चतम न्यायालय है। न्यायपालिका को कार्यकारिणी के दबाव और नियंत्रण से स्वतंत्र होना आवश्यक है। स्वतंत्र न्यायपालिका प्रजातंत्र की आधारशिला है ।
  • मौलिक अधिकार एवं मूल कर्त्तव्य-संविधान द्वारा नागरिकों को, मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, जैसे–समानता, स्वतंत्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा के अधिकार आदि 42वें संशोधन, 1976 में 10 मूल कर्त्तव्यों की चर्चा है जिनमें वैधानिक व्यवस्थाओं का पालन, राष्ट्रध्वज का सम्मान करना, राष्ट्रगान का सम्मान करना आदि कर्त्तव्य हैं।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्व-इसका मुख्य लक्ष्य है लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना ।
  • वयस्क मताधिकार-हर 18 वर्ष से ऊपर पुरुष एवं स्त्री को मत देने का अधिकार प्राप्त है। इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं
  • एकल नागरिकता-सभी नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है, वह है भारत की नागरिकता।
  • एक राष्ट्रभाषा की व्यवस्था भारतीय संविधान में कई भाषाओं को मान्यता प्राप्त है पर हिन्दी को राष्ट्रभाषा माना गया है।

प्रश्न 4.
15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि के समय संविधान सभा में दिए पं. जवाहर लाल नेहरू के प्रसिद्ध भाषण का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत करें।
उत्तर-
15 अगस्त, 1947 की मध्यरात्रि के समय संविधान में पं. जवाहर लाल नेहरू के भाषण कुछ इस प्रकार थे “वर्षों पहले हमने अपनी नियति के साथ साक्षात्कार किया था, और अब वक्त आ गया है कि हम अपने वायदों पर अमल करें-पूरी तरह, या हर तरह से नहीं तो काफी हद तक। 12 बजते ही भारत आजाद होगा। ऐसे पवित्र क्षण में हम अपने आपको भारत और उसके लोगों तथा उससे भी अधिक मानवता की सेवा में समर्पित करें, यही हमारे लिए उचित है। आजादी और सत्ता जिम्मेवारियाँ लाती हैं। भारत के संप्रभु लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली इस संप्रभुता सम्पन्न सभा के ऊपर अब जिम्मेवारी है। आजादी के जन्म से पूर्व हमने पूरी प्रसव पीडा झेली है और इस क्रम में हुए दुखों से हमारा दिल भारी है। इसमें कुछ दर्द अभी भी बने हुए हैं। फिर भी इतिहास अब बीत चुका है और भविष्य हमें सुनहरे संकेत दे रहा है।

Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह

Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह

Bihar Board Class 11 Home Science पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है –
(क) अंडा
(ख) दाल
(ग) पालक
(घ) सोयाबीन
उत्तर:
(घ) सोयाबीन

प्रश्न 2.
40% प्रोटीन पाया जाता है।
(क) सोयाबीन
(ख) दाल
(ग) दूध
(घ) मूंगफली
उत्तर:
(क) सोयाबीन

प्रश्न 3.
राइबोप्लोबिन और फॉलिक अम्ल में विटामिन काफी मात्रा में पाया जाता है।
(क) विटामिन ‘A’ में
(ख) विटामिन ‘B’ में
(ग) विटामिन ‘C’ में
(घ) विटामिन ‘D’ में
उत्तर:
(ग) विटामिन ‘C’ में

Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह

प्रश्न 4.
वयस्क पुरुष-शरीर भार होता है –
(क) 50 किग्रा
(ख) 60 किग्रा
(ग) 80 किग्रा
(घ) 90 किग्रा
उत्तर:
(ख) 60 किग्रा

प्रश्न 5.
वयस्क स्त्री भार कि. ग्रा. होता है.
(क) 60 किग्रा
(ख) 50 किग्रा
(ग) 40 किग्रा
(घ) 70 किग्रा
उत्तर:
(ग) 40 किग्रा

प्रश्न 6.
कार्टिलेज से अस्थियों में परिवर्तित होने की क्रिया को कहते हैं। [B.M.2009A]
(क) कैल्सिकरण
(ख) गम्यता
(ग) निर्जलीकरण
(घ) अवशोषण
उत्तर:
(क) कैल्सिकरण

प्रश्न 7.
भाप द्वारा पकाया गया भोजन – [B.M.2009A]
(क) स्वादहीन होता है।
(ख) स्वास्थ्य के लिए उत्तम है
(ग) कच्चा होता है
(घ) हल्का होता है
उत्तर:
(ख) स्वास्थ्य के लिए उत्तम है

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प्रश्न 8.
भोजन पकाने से क्या बदलाव आता है ? [B.M.2009A]
(क) भोजन में भौतिक बदलाव आता है
(ख) भोजन स्वादिष्ट एवं सुपाच्य हो जाता है
(ग) पोषक मूल्य घट जाता है
(घ) सुरक्षित रहता है
उत्तर:
(ख) भोजन स्वादिष्ट एवं सुपाच्य हो जाता है

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
शीघ्र नष्ट होने वाले दो पदार्थों के नाम बताएँ।
उत्तर:
1. दूध
2. मांस।

प्रश्न 2.
शीघ्र नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ कौन-से हैं ?
उत्तर:
अनाज, दालें, तेल, घी, नमक इत्यादि।

प्रश्न 3.
खाद्य पदार्थ खरीदते समय ध्यान रखने योग्य कोई दो बातें बताइए।
उत्तर:
1. खाद्य पदार्थ आवश्यकतानुसार ही खरीदें।
2. संग्रह के लिए उपलब्ध स्थान के अनुसार सामग्री खरीदें।

प्रश्न 4.
शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सामान्य ताप पर रखे जाने पर इन खाद्य पदार्थों के 3 दिन में ही रंग-रूप में परिवर्तन आने लगता है क्योंकि यह शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।

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प्रश्न 5.
खाद्य पदार्थ दूषित कब माना जाता है ?
उत्तर:
जब निम्नलिखित परिवर्तन पाए जाएँ:

  1. रंग
  2. स्वाद
  3. गंध
  4. दिखावट
  5. रचना
  6. सघनता
  7. आकार
  8. पोषण मूल्य।

प्रश्न 6.
खाद्य संदूषण को प्रभावित करने वाले चार कारक बताइए।
उत्तर:

  1. जीवाणु तथा एन्जाइमों की उपस्थिति।
  2. रासायनिक क्रियाएँ।
  3. बाह्य चोट।
  4. चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा नुकसान या अजैविक संदूषण।

प्रश्न 7.
खाद्य संदूषण की सहायतार्थ परिस्थितियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:

  1. जैविक खाद्य पदार्थ
  2. अनुरूप तापमान
  3. नमी/पानी
  4.  हवा।

प्रश्न 8.
खाद्य परिरक्षण को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब किसी खाद्य पदार्थ को लम्बे समय तक –
1. रोगवाहक जीवाणुओं व रासायनिक पदार्थों के प्रभाव से मुक्त रखा जा सके।
2. उनके रंग, रचना, स्वाद, सुगंध व पोषण मूल्य बनाये रखा जा सके तो उसे खाद्य परिरक्षण कहते हैं।

प्रश्न 9.
पौष्टिक तत्त्वों के स्तर को बढ़ाने के क्या उपाय हैं ?
उत्तर:
पोषक तत्त्वों का स्तर निम्नलिखित तीन उपायों से बढ़ाया जा सकता है:

  1. अंकुरण (Germination)
  2. खमीरीकरण या किण्वन (Fermentation)
  3. मिला-जुलाकर पकाना (Combination)

प्रश्न 10.
पोषण प्रक्रिया बढ़ाने का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
पोषण को मिलने वाली मात्रा और स्तर में सुधार करना। ये उपाय घर पर या औद्योगिक स्तर पर किए जा सकते हैं।

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प्रश्न 11.
आपने दो महीने पहले 50 किलो चावल खरीदा था। आपको यह कैसे पता चलेगा कि यह खराब हो गया है। इसके खराब होने के दो कारण बताएँ।
उत्तर:

  • चावल में नमी
  • ड्रम में नमी
  • चावल में पहले से ही कीड़ा लगा हो
  •  गर्म अंधेरे वाली जगह पर संगृहीत हो।

प्रश्न 12.
खिचड़ी सादे चावलों से ज्यादा पौष्टिक क्यों है ? एक और व्यंजन का नाम लिखें जिसमें यही सिद्धांत पाया जाता हो।
उत्तर:
खिचड़ी में अच्छी किस्म का प्रोटीन पाया जाता है जिसको मिला जुलाकर खाने वाला सिद्धान्त है। अन्य उदाहरण जैसे –
1. अनाज + दाल
2. अनाज + दूध
3. अनाज + सब्जियाँ।
व्यंजन-दलिया, डोसा, रायता, डोकला, भरवां पराठा।

प्रश्न 13.
दो सुविधाजनक खाद्य पदार्थों के नाम बताएँ। अपने प्रतिदिन के भोजन में इन्हें खाने से एक लाभ व एक हानि लिखें।
उत्तर:
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ-बोतलबन्द या डिब्बा बंद सुरक्षित पदार्थ, जैसे-जैम, जैली, अचार, चटनी, फल-चैरी और फलों का रस।

लाभ –

  • समय की बचत
  • ईंधन की बचत
  • आसानी से संगृहीकरण किया जा सकता है
  • मेहनत कम लगती है 5. देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

हानियाँ:

  • यह महंगे होते हैं।
  • खाद्य परिरक्षकों तथा रासायनिक पदार्थों का हानिकारक प्रभाव
  • कम पौष्टिक होना।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
खाद्य पदार्थों को उनके नष्ट होने के समय का किन आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है ?
उत्तर:

  • विकारीय अथवा शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ (Perishable foods): दूध, दूध से बने पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियाँ आदि।
  • अविकारीय अथवा नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ (Non perishable foods): गेहूँ, दालें, चावल, तेल, घी, आदि।
  • अर्ध-विकारीय अथवा नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थ (Semi-perishable foods): मैदा, सूजी, बेसन, मक्खन आदि।
  • सुविधाजनक खाद्य पदार्थ (Convenience foods): दूध पाउडर, जमे हुए खाद्य पदार्थ, डिब्बाबन्द खाद्य पदार्थ, डबल रोटी आदि।

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प्रश्न 2.
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सुविधाजनक खाद्य पदार्थ (Convenience Foods): ऐसे पदार्थ जिससे महिला को किसी भी समय परिवार को भोजन देने की सुविधा की सामर्थ्य हो, सुविधाजनक खाद्य-पदार्थ कहलाते हैं। खाद्य पदार्थ को पहले से तैयार, आधे पके या पकाने की आवश्यकता नहीं होती, केवल गर्म करने पड़ते हैं। शीघ्र नष्ट होने वाले पदार्थों को साफ करके बनाकर जमा दिया जाता है तथा इस प्रकार वह सुविधाजनक खाद्य पदार्थ बन जाते हैं।

ये पदार्थ हैं –

  • बोतल बन्द या डिब्बा बंद सुरक्षित पदार्थ, जैसे जैम, जैली, अचार, चटनी, फल, चैरी और फलों का रस।
  • साग, पुलाव, पालक-पनीर, मटर-पनीर इत्यादि।
  • सूखे हुए खाद्य पदार्थ जैसे दूध का पाउडर, खोआ, सूप का सूखा पाउडर, गाढ़े रस के सत्तु इत्यादि।

जमे हुए पदार्थ-मटर, गाजर, टमाटर, भिंडी और फूलगोभी आदि। आज के समय में भिन्न-भिन्न कंपनियाँ कई प्रकार के खाद्य बाजार में ला रही हैं। __तुरत प्रयोगार्थ जमे हुए तैयार खाद्य पदार्थ भी मिलते हैं, जैसे कटलेट, कबाब, सीख, सलामी, चटनियाँ इत्यादि।

प्रश्न 3.
मसाले खरीदते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखेंगे?
उत्तर:

  • जहाँ तक सम्भव हो, साबुत मसाले ही खरीदें।
  • यदि पिसे हुए खरीदने हों तो खुले मसाले न खरीदें, पैकेट बन्द ही खरीदें।
  • विश्वसनीय नाम व साख के मसाले खरीदें।
  • पैकेट पर एगमार्क (Agmark) की मोहर लगे मसाले ही खरीदें।
  • रंग व स्वाद परख कर ही मसाले खरीदें, यदि मसाला पुराना है तो सुगन्ध नहीं आएगी।
  • विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें, कम मात्रा में खरीदें ताकि उनकी सुगन्ध बनी रहे।

प्रश्न 4.
सूखे मेवों को खरीदने से पूर्व इनका निरीक्षण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर:

  • सूखे मेवे साफ प्राकृतिक रंग व चमक वाले होने चाहिए।
  • दाग, धब्बे, कीड़े, मिट्टी, पत्थर न हों।
  • सिकुड़े हुए न हों।
  • क्रय करने से पूर्व इन्हें तोड़ कर इनकी गिरी का निरीक्षण कर लेना चाहिए। यदि उनमें किसी प्रकार का जाला अथवा कीड़ा लगा हो तो उन्हें नहीं खरीदना चाहिए।
  • फफूंदी के लिए भी इनका निरीक्षण करना आवश्यक है क्योंकि सूखे मेवों में फफूंदी विषैला पदार्थ उत्पन्न करती है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है।

प्रश्न 5.
दूध संग्रह (Storage of Milk) करते समय आप किन बातों को ध्यान में रखेंगी?
उत्तर:
दूध एक शीघ्र नष्ट होने वाला खाद्य पदार्थ है। अतः इसे उचित प्रकार से संगृहित किया जाना चाहिए।

  • दूध को उबाल कर ठण्डा करके ठण्डे स्थान पर रखें।
  • यदि फ्रिज नहीं है तो गर्मियों में 5-6 घण्टे पश्चात् दोबारा उबाल कर रखने से दूध खराब नहीं होता।
  • पुराने दूध को ताजे दूध में नहीं मिलाना चाहिए।
  • तेज गन्ध वाले पदार्थों जैसे प्याज, लहसुन, खरबूजा आदि से दूध को दूर रखें क्योंकि यह गन्ध को बहुत जल्द ग्रहण कर लेता है।

प्रश्न 6.
भोजन पकाने के सिद्धांत का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भोजन पकाने के सिद्धांत (Principles of Cooking): प्रतिदिन के पकाने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों के प्रयोग से परिवार के हर सदस्य का स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जाता है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि हम इन सिद्धांतों को बेहतर समझें और उपभोक्ता की जानकारी के लिए अध्ययन करें।

पकाने के सिद्धान्त निम्न हैं –
1. सुगंध को सुरक्षित रखना (To keep ‘Flavour in’): जब आप खाद्य पदार्थों को ढंककर या खुले में वसा माध्यम में पकाते हैं जैसे कि पकौड़े, कटलट, आलू चिप्स आदि तो खाद्य की सुगंध उसकी कड़क परत के अन्दर ही रह जाती है। यह खाद्य पदार्थों को स्वादिष्ट बना देती है तथा पाचक द्रव को सावित होने में सहायता होती है, जिससे पोषक तत्त्वों का बेहतर प्रयोग हो जाता है।

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2. सुगंध को बाहर निकालना (To keep ‘Flavour out’): कभी-कभी खाने को पकाया जाता है ताकि उसकी सुगंध ग्रेवी व तरल में चली जाए, जैसे मीट करी, समग्र सब्जियों व मटन ब्रोध आदि धीमे-धीमे पकाया जाना, खाने के आकार को भी बदल देता है। पानी में घुलनशील पोषक तत्त्व तरी में आ जाते हैं, जो पौष्टिक होने के अतिरिक्त स्वादिष्ट भी होते हैं।

3. उचित पकाने के तरीकों द्वारा अधिक से अधिक पौष्टिक खाना बनाना-प्रोटीन, कार्बोज व वसा जैसे पोषक तत्त्वों पर पकाने के प्रभाव का अध्ययन आवश्यक है।

प्रश्न 7.
खाद्य परिरक्षण प्रश्न (Food Preservation) के महत्त्व, लाभ बताइए।
उत्तर:
खाद्य परिरक्षण के निम्नलिखित लाभ हैं –

  • ताजे खाद्य पदार्थ अधिक स्थान घेरते हैं, जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ। इनके भार तथा घनत्व में कमी लाने के लिए इन्हें परिरक्षित करना चाहिए।
  • परिरक्षित खाद्य पदार्थ भोजन में विभिन्नता लाते हैं।
  • परिरक्षित खाद्य पदार्थों के आवागमन में सुविधा होती है।
  • पोषण की दृष्टि से परिरक्षित खाद्य पदार्थों के प्रयोग से भोजन को पूर्णतः संतुलित बनाया जा सकता है।
  • खाद्य पदार्थों के परिरक्षण की विधिया सीखकर बचे हुए खाली समय का सदुपयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
मिलाने-जुलाने से खाद्य पदार्थ पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पोषक मान में वृद्धि –

  • एक-दूसरे का पूरक होने के कारण सभी पौष्टिक तत्त्वों की प्राप्ति शरीर को हो जाती है।
  • दो अंशतः या पूर्ण प्रोटीनों के सम्मिश्रण से पूर्ण प्रोटीन की प्राप्ति हो जाती है।

उदाहरण के लिए, अनाजों में लाइसिन (आवश्यक अमीनो अम्ल) कम मात्रा में तथा अन्य सभी उपयुक्त मात्रा में होते हैं। दालों में आवश्यक अमीनो अम्ल, मिथायोनिन कम मात्रा में तथा अन्य सभी उपयुक्त मात्रा में होते हैं, अतः इनका मिश्रण खाने से वे एक-दूसरे के पूरक का कार्य करते हुए लाइसिन मिथायोनिन सहित अन्य सभी आवश्यक अमीनो अम्लों की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 9.
खमीरीकरण से खाद्य पदार्थों पर प्रभाव बताइए।
उत्तर:
पोषक मान में वृद्धि –

  • खाद्य पदार्थों में उपस्थित विटामिन B समूह (विशेष रूप से थायमिन) (B), राइबोफ्लेविन (B) तथा निकोटिनिक अम्ल (B) की मात्रा बढ़ कर दुगनी हो जाती है।
  • लौह तत्त्व अपने संयोजी बंधनों से मुक्त होकर शरीर को सरल रूप में उपलब्ध हो जाता है।
  • विटामिन ‘सी’ की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 10.
अंकुरण की प्रक्रिया से क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
लाभ:

  1. विटामिन बी समूह के विटामिनों की मात्रा दुगनी हो जाती है। नायसिन भी 48 घंटों में 50-100 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
  2. अनाजों तथा दालों में लोहा रासायनिक यौगिक के रूप में होता है तथा शरीर उसे पूर्णतः अवशोषित करने में समर्थ नहीं होता, परन्तु अंकुरण के कारण लोहा अपने यौगिकों से पृथक् होकर स्वतंत्र हो जाता है जिसका शरीर आसानी से उपयोग कर पाता है।
  3. विटामिन ‘सी’ (एस्कॉर्बिक एसिड) जो सूखी दाल में न के बराबर होता है, अंकुरण से 24 घण्टे में 7-8 मिग्रा., 48 घण्टे में 10-12 मिग्रा. तथा 72 घण्टे में 12-14 मिग्रा. प्रति 100 ग्राम तक हो जाता है।
  4. कुछ पॉलीसैक्राइड्स तथा डाइसैक्राइड्स सरलतम रूप (मोनोसैक्राइड्स) में बदल जाते हैं जो खाद्य पदार्थ को पाचनशील बनाते हैं। उदाहरण के लिए स्टार्च का सूक्रोज, फ्रक्टोज तथा ग्लूकोज में बदलना।
  5. अंकुरण के कारण अनाजों व दालों की ऊपरी परत फट जाती है तथा उन्हें पकाना सरल हो जाता है तथा कम समय लगता है।
  6. अंकुरण के द्वारा खाद्य पदार्थों में उपस्थित पोषण विरोधी तत्त्व नष्ट हो जाते हैं तथा पोषक तत्त्वों के उपयोग को बढ़ाते हैं।
  7. भोजन ज्यादा स्वादिष्ट तथा आकर्षक बन जाता है।

प्रश्न 11.
खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर खाने से क्या लाभ है? .
उत्तर:
सभी खाद्य पदार्थों में सभी पौष्टिक तत्त्व उपस्थित नहीं होते हैं परन्तु प्रत्येक में कोई न कोई तत्त्व अवश्य होता है। शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार यदि इन खाद्य पदार्थों का चयन करके मिश्रित रूप से खाया जाए तो न केवल हम पौष्टिक आहार की प्राप्ति कर सकते हैं वरन् धन तथा श्रम भी बचा सकते हैं।

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प्रश्न 12.
डोसे का पौष्टिक मान अधिक होता है। वे विधियाँ बताइए जिसके द्वारा यह पौष्टिक मान बढ़ाया गया है। प्रत्येक का एक पौष्टिक तत्त्व लिखें जो बढ़ा हो।
उत्तर:
डोसा बनाते समय दो विधियाँ –
1. मिला-जुलाकर खाना
2. खमीरीकरण प्रयोग में लाया जाता है जिससे इसका पौष्टिक मान बढ़ता है। मिला-जुला कर खाने से प्रोटीन की किस्म बेहतर हो जाती है तथा खमीरीकरण से विटामिन बी कम्पलेक्स समूह (B-complex) तथा विटामिन सी (Vitamin C) की मात्रा बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
प्रेशर कूकर द्वारा भोजन पकाने की विधियों के चार लाभ लिखें।
उत्तर:
वाष्प के दबाव द्वारा (Pressure Cooking):

  • प्रेशर कूकर में भोजन बनाने से समय, ईंधन व श्रम की बचत होती है।
  • प्रेशर कूकर के साथ मिले सेपरेटर (Separater) से अलग तरह के भोजन एक साथ पकाए जा सकते हैं।
  • प्रेशर कूकर में खाना बनाने से भोजन के पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं।
  • कूकर में ताप व भाप भोजन में प्रवेश कर उसे जल्दी पका देते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भोजन पकाने का खाद्य पदार्थों की पौष्टिकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ? [B.M. 2009A]
उत्तर:
भोजन में विभिन्नता स्वाद, सुगंध और आकर्षण लाने के लिए तथा भोजन को पाचनशील बनाने के लिए उसे पकाना आवश्यक हो जाता है। भोजन पकाना एक कला है, जो हमारी ‘संस्कृति’ का महत्त्वपूर्ण अंग है। भोजन को विभिन्न विधियों द्वारा पकाया जाता है पकाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसमें उपस्थित पोषक तत्त्व नष्ट न हो। भोजन पकाने पर कुछ पौष्टिक तत्त्व विघटित होकर आसानी से पचने योग्य हो जाते हैं कुछ कड़े होकर अपचित हो जाते हैं तथा कुछ नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों को पकाने में प्रयुक्त हुए ताप से विभिन्न पौष्टिक तत्त्वों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है।

1. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrate): आद्र ताप पर खाद्य पदार्थ में उपस्थित स्टार्च मुलायम हो जाती है, कोशिकाएँ फट जाती हैं और स्टार्च बाहर निकल जाता है जबकि शुष्क ताप पे पकाने पर स्टार्च डेक्सटिन में बदल जाता है और अधिक पाचनशील हो जाता है। चीनी, गुड़ शक्कर आदि गर्म होकर पिघल कर भूरे रंग का हो जाता है।

2. प्रोटीन (Protein): पंकने पर प्रोटीन अधिक पाचनशील हो जाते हैं। ताप से अंडे का प्रोटीन और दूध का प्रोटीन जम जाता है। माँस में उपस्थित प्रोटीन कोलेजन और इलास्टिन अघुलनशील शीघ्र होते है तथा ये शुष्क ताप द्वारा कड़ी हो जाते हैं। दालों में पाई जाने वाली प्रोटीन पकाने पर अधिक पौष्टिक तथा पाचनशील हो जाता है।

3. वसा (Fats): पकने पर वसा पर कोई अधिक प्रभाव न पड़ता है केवल इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वयत्युक पदार्थ को उचित ताप पर रखा जाय एवं सुनहरी रंग होने पर ताप से हटा लिया जाए।

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4. विदामिन्स (Vitamins): पकाने पर विटामिन ‘सी’ सबसे अधिक नष्ट होते हैं अतः विटामिन ‘सी’ युक्त फल एवं सब्जियों को ताजा ही प्रयुक्त किया जाना चाहिए, विटामिन ‘बी’ समूह पकाने पे ताप द्वारा नष्ट हो जाता है साथ ही विटामिन ‘ए’ ‘डी’ ‘ई’ कुछ मात्रा में वसा में घूल जाते हैं।

5. खनिज लवण (Minerals): सामान्यतः पकने पर खनिज लवण पर प्रभाव नहीं पड़ता है किन्तु यदि भोज्य पदार्थ को पकाने के बाद उनका पानी फेंक दिया जाए तो बहुत से खनिज नष्ट हो जाते हैं। अतः खाद्य पदार्थों को वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर पकाना चाहिए ताकि पोषण मान उपस्थित रहे और पोषक तत्त्व कम-से-कम बर्बाद हो साथ ही जहाँ तक संभव हो बिना पालीस किया चावल, साबूत दाल, चोकर सहित अनाज का ही प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 2.
खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कारक-जैसा खाओगे अन्य, वैसा होगा मन। कोई भी व्यक्ति अपौष्टिक खुराक पर कुछ समय तक बच जाएगा परन्तु शीघ्र ही उसका स्वास्थ्य गिरना शुरू हो जाता है। इसके परिणाम होंगे, कुपोषण, कमी के रोग, रोगग्रस्तता, शीघ्र व असामयिक मृत्यु।
आपके खाद्य पदार्थों के चयन को प्रभावित करने वाले कुछ कारक निम्नलिखित हैं –

1. माध्यम (Media): खाद्य पदार्थों के उत्पादक विज्ञापनों पर काफी पैसा खर्च करते हैं ताकि वह अपने पदार्थों को प्रचार करके उसकी मांग बढ़ा सकें। यह प्रचार जनता को मोहने के लिए व आकर्षित करने के लिए किया जाता है। आपको ऐसे कई विज्ञापनों के बारे में पता होगा जिन्हें दूरदर्शन, रेडियो पर देखते/सुनते हैं।

  • कौन-सा खाद्य-पदार्थ वृद्धि के लिए आवश्यक होगा?
  • ऊर्जा और बल के लिए आपको क्या लेना चाहिए?
  • पकाने के कौन-से तेल में PUFA की मात्रा अधिक होती है ?
  • अपनी चाय/कॉफी के लिए कौन-सा दूध पाउडर प्रयोग करना चाहिए?
  • ऊपर लिखित उदाहरणों की तरह बहुत कुछ और भी हैं।
  • उत्पादक समय व ऊर्जा बचाने की भी बात करते हैं, जैसे-मिनट में तैयार आदि।

2. सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्य (Cultural and family food values): इनका प्रभाव आपके भोजन पर प्रत्यक्ष रूप से होता है। अंडे, दूध, मांस और दूसरे अच्छे पदार्थ जीविका कमाने वाले को तथा परिवार के पुरुष सदस्यों को दिये जाते हैं। परिवार के दूसरे सदस्यों में शेष भाग बाँटा जाता है। कुछ राज्यों में दालें, ताजे फल और सब्जियाँ गर्भवती और स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को नहीं दिया जाता।

ऐसे सांस्कृतिक रीति-रिवाज मातृत्व स्तर को नीचे गिरा देते हैं। कई परिवारों में मांसाहारी भोजन को खाने पर अधिक जोर दिया जाता है। सब्जियाँ काफी मात्रा में विटामिन और खनिज लवण देती हैं और इसके अतिरिक्त रूक्षांश भी देती हैं जो शारीरिक प्रक्रिया को नियंत्रित करने में सहायता देता है। यह वांछनीय है कि मूल्यों को भूलकर आगे बढ़ें। मिश्रित, ऋतु के अनुसार खाद्य पदार्थ कम दाम पर अच्छे स्वास्थ्य को सुनिश्चित करते हैं।

3. मित्रसमूह वर्ग (Peer Group): मित्रसमूह का विशेषकर किशोरों की खाने-पीने की आदतों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विकासशील बच्चों में चॉकलेट, शीतल पेय और पीजा, बर्गर आदि खाने की अधिक इच्छा होती है। अक्सर ये सब खाद्य पदार्थ पौष्टिक नहीं होते हालांकि इन पर काफी पैसे खर्च किए जाते हैं। यह अक्सर देखने में आया है कि बच्चे अपने मित्रों के साथ वह सब कुछ खा लेते हैं जो उनको स्वादिष्ट नहीं लगता। पोषण के अध्ययन से मित्रसमूह में खाने के चयन में बुद्धिमत्ता आती है।

4. आर्थिक कारण (Economical Factors): एक बुद्धिमत्ती गृहस्वामिनी अपने परिवार के लिए किफायती दामों पर संतुलित आहार का चयन करती है। उसे ऋतु के अनुसार खाद्य पदार्थों की उपलब्धि, उनकी पौष्टिक क्षमता के बारे में सब कुछ पता होता है। वह इनके लिए वही पदार्थ चयन करती है जिससे घर के लोगों को फायदा हो।

जैसे-खीर के लिए टूटे चावल और जैम बनाने के लिए सेब। एक बुद्धिमत्ती मां विशेष मौकों के लिए स्वादिष्ट भोजन घर पर बनाना अधिक पसंद करती है बजाय इसके कि बाहरी होटलों से महंगा खाना मंगाकर खाया जाए। कीमत, मात्रा, समय, ऊर्जा और ईंधन, हर ओर किफायत का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 3.
खाना पकाने के कौन-कौन-से कारण हैं ?
उत्तर:
खाना पकाने के कारण (Reasons of Cooking Food) :
1. भौतिक और रासायनिक परिवर्तन-पकाने से मांस में प्राकृतिक (भौतिक) बदलाव आता है जिससे इसे खाना आसान हो जाता है। कच्चा मांस खाया नहीं जाता। पकाने से इसका रंग और आकार भी बदल जाता है। आलू, मांस आदि में रासायनिक बदलाव भी आ जाता है। पकाने के बाद वे अधिक मीठे हो जाते हैं। स्टार्च कोशिकाएं फट जाती हैं और सारी मात्रा खाने के योग्य हो जाती हैं।

2. पाचन शक्ति बढ़ जाती है-सख्त खाद्यान्न जैसे सूखे बीज, मटर इत्यादि को नर्म करने के लिए पकाया जाता है। पाचक रस नर्म बीज के अन्दर पहुंच जाता है। यह प्रोटीन और कार्बोज का पूरा उपयोग सुनिश्चित कर लेता है।

3. स्वाद, सुगंध और रुचि में परिवर्तन-पकाने पर शकरकन्द का स्वाद बदल जाता है। मछली और मांस के गन्ध में बेहद सुधार हो जाता है अर्थात् उसकी सुगंध अच्छी हो जाती है तथा अधिक रुचिकर बन जाती है।

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4. पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है-दालों, फलियाँ और सोयाबीन में रोधक ट्राइपसिन होता है। सूखे या नम पकाने पर यह नष्ट हो जाता है तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है।

5.खाद्य पदार्थ को सुरक्षित बनाता है और भण्डारण समय बढ़ जाता है-कच्चा खाद्य पदार्थ खराब होना शुरू हो जाता है तथा शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। जैसे टमाटर । अगर आप इसको पका लें तो चटनी के रूप में लम्बी अवधि तक खराब नहीं होता। .. जीवाणु की उपस्थिति के कारण दूध फट जाता है। उबालने से वे जीवाणु मर जाते हैं और दूध के खराब होने की अवधि बढ़ जाती है।

6.भिन्नता के लिए पकाना-एक ही प्रकार का खाना खाते-खाते मन ऊब जाता है। पकाने से एक ही खाद्य पदार्थ को विभिन्न रूपों से खाया जा सकता है। जैसे गेहूँ का दलिया, चपाती, पराठा, पूरी-कचौरी और बिस्कुट आदि के रूप में खाया जाता है। पकाने से एक प्रकार से खाने से छुट्टी मिलती है।

प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थों का किस प्रकार चयन, क्रय एवं संग्रह करेंगे?
उत्तर:
1. नष्ट होने वाले भोज्य पदार्थों का चयन, क्रय व संग्रह-इसके अन्तर्गत सब्जी, फल, जन्तुजन्य खाद्य पदार्थ जैसे-दूध, मछली, मीट आदि आते हैं। इन खाद्य पदार्थों से हमें प्रोटीन, विटामिन व खनिज लवण प्राप्त होते हैं।

चयन व क्रय (Selection & Purchase) :
1. दूध (Milk): कई प्रकार के दूध बाजार में उपलब्ध हैं। गर्मी पाकर दूध शीघ्र खराब होता है। ताजा दूध की सुगन्ध व स्वाद उत्तम होते हैं व रंग सफेद होता है। बासी दूध की सुगन्ध व स्वाद घटिया होते हैं। दूध का उपयोग करने से पहले उसे उबाल लेना चाहिए।

2. पनीर (Cheese): पनीर में नमी अधिक होती है। इसे स्वच्छ स्थान से ही खरीदना चाहिए व खरीदने के पश्चात् जल्दी ही उपयोग में ले लेना चाहिए। पनीर को छूकर देखें। यह सख्त व पीला न हो।

3. मक्खन (Butter): मक्खन में 11 से 16% नमी होती है। कमरे के तापक्रम पर यह जल्दी ही खराब हो जाता है। घर में बने मक्खन में नमी और भी ज्यादा होती है। नमक वाला प्रोसेस्ड मक्खन कुछ दिन रखा जा सकता है।

पशुजन्य पदार्थ (Animal Product):
1. अण्डा (Egg): यदि अण्डे को प्रकाश, जैसे जलती मोमबत्ती के सामने रखकर देखें तो उसमें उपस्थित वायु कोष (Air cell) छोटा पाएँगे। अण्डों के व्यापारियों द्वारा वर्गीकरण साइज के अनुसार किया जाता है। पुराने अण्डे में वायुकोष बड़ा होता है।

यदि पानी में डालने पर अण्डा ऊपर तैरने लगता है तो इसका अर्थ. अण्डा अन्दर से खराब है। अण्डा ऐसा खरीदें जो ऊपर से साफ व साबुत हो। टूटे अण्डों में जीवाणु प्रवेश पा जाते हैं। ऊपर लगी गन्दगी में उपस्थित जीवाणु साबुत अण्डे के अन्दर प्रवेश पा जाते हैं।
2. मछली (Fish):

  • ताजा मछली का मांस ठोस हो।
  • ऊपर की पर्त (Scales) कसी हुई व त्वचा भी जुड़ी होनी चाहिए।
  • अगर मछली पर अंगुली से दबाव डालें तो गड्ढा नहीं पड़ता।
  • अगर पानी में मरी मछली डालें तो वह डूब जाती है।
  • खरीदते समय देखें कि मछली का गलफड़ा (Gills) चमकीले लाल रंग का हो।
  • आँखें चमकीली हों।
  • यदि छूने पर लसलसी हो तो इसका अर्थ है कि मछली फ्रिज या बर्फ पर नहीं रखी थी व बासी पड़ने लगी है।
  • मछली में किसी प्रकार की गन्ध नहीं होनी चाहिए।

3. मांस (Meat): मांस का रंग चमकीला लाल रंग का होना चाहिए। स्पर्श करने पर चिकना व रेशे महीन प्रतीत होने चाहिए। उसके ऊपर लगा वसा सफेद एवं दृढ़ होना चाहिए। गहरे रंग का मोटे रेशे वाला, पीली नारंगी रंग के वसे वाला व स्पर्श पर अत्यधिक नर्म मांस उपयोग के लिए अच्छा नहीं होता।

मांस निम्न पशु के हो सकते हैं –
एक साल तक भेड़ का मांस (Lambs Meat)। एक साल के ऊपर वाली भेड़ का मांस (Mutton)। सूअर का मांस (Pork)। गाय का मांस (Beef)। पोर्क मांस में छोटे जानवर के मांस का रंग भूरे से गुलाबी रंग का हो सकता है परन्तु बड़े जानवर के मांस का रंग गहरे लाल रंग का होता है। सूअर के मांस को खाने से उसमें उपस्थित जीवाणु (Round worm) शरीर में प्रवेश पाकर Trichinosis नामक रोग उत्पन्न करता है इसलिए इसे अच्छी तरह पकाना चाहिए क्योंकि ऊँचे तापक्रम पर यह जीवाणु नष्ट हो जाता है। मांस सदैव साफ, स्वच्छ दुकानों से ही खरीदें। खास कर ऐसी दुकानों से जहाँ इसे ठण्डा रखने का साधन हो।

Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह

सब्जियाँ और फल (Vegetebles and Fruit): सब्जियों व फलों से भोजन रंग, बनावट व सुगन्ध के कारण अधिक आकर्षक हो जाता है। फल व सब्जियों से आहार में खनिज लवण व बी समूह के विटामिनों के अतिरिक्त विटामिन ए व सी भी पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। फल व सब्जियाँ अधिक दिनों तक रखे नहीं जा सकते।

सब्जियाँ (Vegetables):
1. पत्ते वाली सब्जियाँ (Leafy Vegetables): इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के खाद्य आते हैं। जैसे-बथुआ, पालक, सरसों, हरा धनियाँ, मेथी आदि।

  • पत्ते वाली सब्जी का रंग गहरा हरा हो, पीलापन लिये न हो।
  • पत्तियाँ चमकदार व चिकनी हों व मुरझाई न हों।
  • पत्तियाँ कीड़ों द्वारा खाई हुई या कीटाणुयुक्त नहीं होनी चाहिए।
  • पत्तियाँ आधी टूटी या मिट्टी लगी भी नहीं होनी चाहिए।

2. अन्य सब्जियाँ (Other Vegetables): इनके अन्तर्गत बैंगन, खीरा, लौकी, भिण्डी, टमाटर, मटर, फूलगोभी, बन्दगोभी आदि आते हैं।

  • ठोस, नमकीले रंग की हों।
  • कीड़े या चोट नहीं लगे हों।
  • जरूरत से ज्यादा न पकी हों।
  • सूखी, मुरझाई, बेरंगी सब्जियाँ न खरीदें।
  • फल वाली सब्जियाँ रसदार होनी चाहिए।

सब्जी के आकार देखकर सबसे बड़ी सब्जी न उठाएँ। मध्यम आकार की सब्जी अच्छी रहती है। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार की विधि से बनानी है उस पर भी चयन निर्भर करेगा। टमाटर सलाद के लिए बड़े व ठोस होने चाहिए, परन्तु सब्जी में डालने के लिए छोटे आकार के भी चलेंगे।

3. फल (Fruits): कई फल सब्जियों की तरह उपयोग में आते हैं, जैसे टमाटर। गहरे पीले-नारंगी फलों में विटामिन ए अधिक होता है। आंवला, अमरूद, अनानास में विटामिन सी की मात्रा अधिक है।

  • फल ताजे, पके, भारी, ठोस तथा चमकदार होने चाहिए।
  • वे अत्यधिक पके न हों तथा फफूंदी आदि न लगी हो।
  • सड़े व दागी फल न खरीदें।
  • फल हरे व अधिक कच्चे भी न हों।

खट्टे रसदार फल जैसे संतरा, मौसमी आदि पतले छिलके वाले तथा मध्य आकार के अनुपात में हों तो ऐसे फल अधिक रसदार होते हैं। अन्य फलों में सेब, अनानास, अंगूर आदि आते हैं। केले पीले, थोड़े सख्त खरीदें व कमरे के तापक्रम पर पकने दें। पकने के पश्चात् केले बहुत जल्दी सड़ने लगते हैं। सेब अब पूरे साल ही उपलब्ध होते हैं। अच्छे सेब दृढ, चमकीले रंग के व भारी होते हैं। सेब को लम्बे समय तक रखने से वे बेस्वाद, सुगन्धरहित व भार में हल्के हो जाते हैं। अंगूर रस से भरे, मोटे, चमकीले, टहनी से लगे व लम्बे होने चाहिए।

अनानास अच्छे आकार का, सुगन्ध से भरपूर, पीले रंग का पका हुआ होना चाहिए। पके होने की जाँच करने के लिए उसके ऊपर की पत्तियों को खींच कर देखें। यदि पत्तियाँ आसानी से खिंच जाए तो समझें कि अनानास पका हुआ है। फल हमेशा मौसम में ही खरीदें। बेमौसम के फलों का स्वाद अच्छा नहीं होता तथा शीतगृहों में पड़े रहने के कारण पौष्टिकता भी कम हो जाती है। संग्रह (Storage) खाद्य पदार्थ एन्जाइम व जीवाणुओं के कारण खराब होता है। एक खराब खाद्य पदार्थ को उसकी खट्टी दुर्गन्ध, ऊपर उगी सफेद पर्त तथा लिसलिसे स्पर्श से पहचाना जा सकता है। निम्न तापक्रम खराब होने की क्रिया को कम कर देता है।

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1. दूध (Milk): दूध को उबाल कर ठण्डा करके बर्तन को ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। गर्मी पाकर दूध शीघ्र खराब हो जाता है। गर्मी के कुप्रभाव से बचने के लिए दूध के बर्तन को पानी से भरी परात में रखना चाहिए। ढक्कन पर गीला रूमाल डाल दें। रेफ्रीजरेटर व आइस बाक्स में भी दूध सुरक्षित रहता है। उबला दूध 12 – 24 घण्टे कमरे के तापक्रम पर रखा जा सकता है।

2. पनीर: पनीर सख्त न हो जाए इसलिए उसे चिकनाई का असर न होने वाले कागज में रखना चाहिए। यह भी जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए बर्फ या फ्रिज में दो सप्ताह तक रख सकते हैं।

3. मक्खन: इसे भी मक्खन के कागज या बर्तन में ढंककर ठण्डे स्थान पर दो सप्ताह तक बिना खराब हुए रखा जा सकता है।

4. पशु जन्य खाद्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, कीमा आदि शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इन्हें जमाव बिन्दु से कुछ कम तापक्रम पर थोड़े समय के लिए रखा जा सकता है। मांस खरीदते समय यह देखें कि दुकान पर

  • मांस लटका हो ताकि उसे हवा लगती रहे।
  • मक्खियों से बचाने की व्यवस्था हो। मलमल के थैले में लटकाना उचित होगा। थैला मांस से स्पर्श करता हुआ नहीं हो।
  • घरों में रेफ्रीजरेटर में ही रखें।

अण्डों को भी ठण्डे स्थान पर फ्रिज में ही रखें।
फल एवं सब्जियाँ: फल और सब्जियाँ ताजा ही प्रयोग में लाना चाहिए। उन्हें टोकरियों में पृथक् फैलाकर रखें। जिस स्थान पर रखें, वह हवादार हो । आलू, प्याज जैसी जड़दार सब्जियाँ ठण्डे तथा अंधेरे स्थान पर रखें जिससे अंकुर न फूटे। फ्रिज में यदि सब्जियाँ खुली रखी जाती हैं तो वह आकार में छोटी होकर झुरियोंदार हो जाती हैं । फ्रिज में क्रिसपर (Crisper) वाले भाग में सब्जियों व फल को सुखाकर थैलियों में डालकर रखें।

II अर्द्ध नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ (Semi-Perishable Foods): इसके अन्तर्गत निम्नलिखित भोज्य पदार्थ आते हैं :
1. अनाज-अनाज के अन्तर्गत गेहूँ व उससे बने अन्य पदार्थ आते हैं, जैसे-मैदा, सूजी, आटा, दलिया आदि। यह सब गेहूँ को पीसकर बनाया जाता है। गेहूँ पीसने से उसकी ऊपरी सतह का ज्यादा क्षेत्र वातावरण के संपर्क में आता है। पकाने में समय कम लगता है और संग्रह कम समय के लिए कर सकते हैं।

साबुत गेहूँ को एक साल या अधिक समय तक संग्रह कर सकते हैं परन्तु उससे बने पदार्थ, जैसे-रवा, मैदा आदि को दो सप्ताह से कुछ महीनों तक ही रखा जा सकता है। दलिया एक पौष्टिक आहार है। एक अच्छा गुण (Quality) वाला दलिया स्वाद में मीठा, फफूंदी व दुर्गन्धरहित होता है परन्तु रखने पर इसमें जल्दी कीड़े पड़ जाते हैं।

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सूजी के कण कई प्रकार के होते हैं। बहुत ही महीन कण वाली सूजी हलवा बनाने के उपयोग में लाई जाती है। थोड़े मोटे कण वाली सूजी उपमा, चिड़वा बनाने के काम में आती है। चयन करते समय कणों की एकरूपता, कणों का जाले से बंधना, पत्थर व गेहूँ के छिलके की अनुपस्थिति देखनी चाहिए। मैदे में कम प्रोटीन, लोहा, व बी समूह के विटामिन पाए जाते हैं। इसे सूजी से भी कम समय के लिए संग्रह कर सकते हैं। अच्छे गुण वाला मैदा सफेद, कीड़े रहित होता है। इसके कण आपस में जुड़कर ढीले नहीं बन जाने चाहिए।

चावल से चिड़वा व फूलिया (Rice fibres, rice puffs) बनाए जाते हैं। फूलिया काफी समय तक रखी जा सकती है। यह कुरमुरी, कंकड़ रहित, मिट्टी रहित होनी चाहिए। चिड़वा सफेद, कुरकुरा, कीड़े रहित व गन्दगी रहित होना चाहिए। अनाज में बहुधा कीड़े लग जाते हैं जो इन्हें काट देते हैं और पोषक तत्त्व को बिल्कुल नष्ट कर देते हैं।

कीड़े लग जाने से अनाज का भार भी कम हो जाता है। हमारे देश में अनाज का प्रमुख स्थान है। चावलों के लिए तो यह प्रसिद्ध है कि वह जितना पुराना होता है, उतना ही स्वादिष्ट तथा अच्छा बनता है। भारतीय ऐसा चावल पसंद करते हैं जो पकने के पश्चात् दाना-दाना अलग दिखाई दे। गेहूँ बहुत पुराना बढ़िया नहीं माना जाता। मार्च और अप्रैल के महीनों में जब गेहूँ की फसल होती है, तब बहुत से घरों में एक साल तक के लिए गेहूँ जमा कर लिया जाता है।

अनाज चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें –

  1. दिखावट।
  2. छूकर अनुभव करना।
  3. रंग।
  4. विभिन्न जाति या प्रकार।
  5. सुगन्ध।
  6. मिलावट, मिट्टी आदि।
  7. कीड़े।
  8. कीमत।

अनाज के कणों में एकरूपता होनी चाहिए। साफ, टूटे टुकड़ों की अनुपस्थिति, कीड़ेरहित, मिट्टी, कंकड़, रेत, तिनकेरहित अनाज के कुछ दाने मुँह में डाल कर चबाने से यदि दाना सख्त तथा मीठा है तो अनाज की किस्म अच्छी है। नमीयुक्त एवं कड़वे स्वाद के अनाज को नहीं खरीदना चाहिए। सूजी, मैदा आदि अधिक मात्रा में नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि इनमें कीड़े पड़ जाते हैं।

2. दाल (Pulse): दालों में अरहर, चना, उड़द आदि दालें आती हैं। इन्हें भी अनाजों के समान देखकर चयन करना चाहिए। दालें साबुत और दली आती हैं। सूखे डिब्बों में भर कर रखें। नमी में बहुत जल्दी खराब हो जाती हैं।

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3. वसा व तेल-घी का उपयोग हलवा, तड़का आदि के लिए किया जाता है। मक्खन, डबल रोटी या बेकिंग में उपयोग होता है। तेल सब्जियों के पकाने, तलने आदि के काम में आता है। हर प्रान्त में भिन्न प्रकार का चिकना पदार्थ पकाने के काम में आता है। बंगाल में सरसों का तेल, केरल में नारियल का तेल, गुजरात में मूंगफली का तेल उपयोग में ज्यादा आता है।
वसा या तेल खरीदते समय

  • सुगन्ध
  • वास्तविक रंग
  • अन्य किसी तेल का मिश्रण
  • गन्दगी
  • दुकान पर सफाई से रखा देखकर ही लेना चाहिए।

तेल, घी खुला न लेकर बन्द डिब्बे में ही खरीदना चाहिए क्योंकि खुली चीजों में मिलावट आसानी से की जा सकती है।

संग्रह (Storage): कई घरों में एक भण्डार गृह होता है।

भण्डार (Store Room): घर में संग्रहीकरण हेतु एक भण्डार गृह का होना आवश्यक है। इसमें नमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा वस्तुएँ खराब हो जाएँगी। दीवारों पर यदा-कदा सफेदी कराते रहना चाहिए। भण्डार गृह में वायु तथा धूप आने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। फर्श पक्का होना चाहिए। कच्चे फर्श पर ईंटें या लकड़ी के तख्ने रखकर उस पर डिब्बे, कनस्तर आदि रखने चाहिए।

उसमें अलमारियाँ, एक मेज, तराजू तथा एक हिसाब लिखने की पुस्तिका भी होनी चाहिए। दाल के लिए ऐसे डिब्बें हों जिनमें वायु प्रवेश न कर सके। आटे के लिए कनस्तर तथा गेहूँ के लिए टंकी होनी चाहिए। डिब्बों, कनस्तरों व टंकियों पर पेण्ट कर देना चाहिए तथा उनमें रखी वस्तु के नाम का लेबिल लगाना चाहिए ताकि इन्हें निकालने में सुविधा रहे।

1. अनाज (Cereals): गेहूँ को सुरक्षित रखने के लिए सर्वप्रथम धूप में भली-भाँति सुखा लेना चाहिए तथा ड्रम में भरते समय छाया में सूखी हुई नीम की पत्तियाँ डाल देनी चाहिए। इससे गेहूँ में घुन नहीं लगता। नीम की पत्तियाँ कीटाणुनाशक एवं नि:संक्रामक होती हैं। यदि नीम की पत्ती न हो तो कीटाणुनाशक औषधि डाल कर सुरक्षित रखा जा सकता है परन्तु प्रयोग में लाने से पूर्व धोकर सुखा लेना चाहिए जिससे कीटाणुनाशक औषधि का असर न हो।

आटा अधिक नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि अधिक रहने पर उसमें सीलन आ जाती है और कीड़े पड़ जाते हैं। आटे को सदैव ढककर सूखे स्थान पर रखना चाहिए। नया आटा लाने से पूर्व पुराने को काम में ले लेना चाहिए। चावल इल्लियों द्वारा नष्ट होता है। इनमें गुच्छियाँ बंध जाती हैं। सुरक्षा के लिए हल्दी व तेल का प्रयोग किया जाता है। ऐसा करने से कीड़े चावल को खराब नहीं करते । चावल को धूप में नहीं सुखाना चाहिए। इससे यह टूट जाता है।

2. दाल (Pulse): प्राय: दालों को भी पूरे मास की आवश्यकतानुसार खरीदा जाता है। साबुत दाल को दलने से पूर्व साफ करके तेल और पानी लगाकर रात भर बोरी या अन्य कपड़े में रख देना चाहिए। दूसरे दिन 3-4 घण्टे तक धूप में सुखाकर दल लेना चाहिए। दाल को संग्रह करने से पूर्व छाँट, फटककर दिन भर तेज धूप में सुखाना चाहिए ताकि नमी न रहे। कीड़ों से बचाने के लिए हींग के टुकड़े रख देने चाहिए। फिर इन्हें सूखे डिब्बों में भली प्रकार बन्द करके रखना चाहिए। डिब्बा हवा बन्द (Air tight) हो व नमी वाले स्थान पर न रखें। समय-समय पर दालों का निरीक्षण करते रहें।

3. शक्कर (Sugar): शक्कर शीघ्रता से खराब नहीं होती । इसलिए इसे पर्याप्त मात्रा में खरीद सकते हैं। इसे नमी से दूर रखना चाहिए । इसे इस प्रकार सुरक्षित बर्तन में रखना चाहिए कि चींटियाँ व कीड़े-मकोड़े प्रवेश न कर सकें।

4. चाय तथा कॉफी (Tea and Coffee): इसके लिए किसी ऐसे बर्तन की आवश्यकता है जिसमें वायु प्रवेश नहीं कर सके । इसे नमी से बचाने के लिए टिन या प्लास्टिक के डिब्बे में रखना चाहिए।

5. घी (Ghee): घी को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए उसे खूब गरम करके छान कर छाछ निकाल दें। तत्पश्चात् उसमें थोड़ा-सा नमक का ढेला डालकर किसी बर्तन में संगृहीत कर सकते हैं। इसे शीतल हवादार स्थान पर रखना चाहिए। अधिक गर्मी से इसका स्वाद बिगड़ जाता है।

6. मसाले (Spices): साधारणतः हल्दी, धनिया, लाल मिर्च आदि मसाले घर में प्रयुक्त किए जाते हैं। सभी मसालों को बाजार से खरीदने के बाद भली प्रकार साफ करना चाहिए । इसके बाद उन्हें आवश्यकतानुसार तब तक कड़ी धूप में सुखाना चाहिए जब तक कि उनमें से नमी पूर्णतः न निकल जाए। तत्पश्चात् उन्हें कूटकर सूखे व ढक्कनदार बर्तनों में रखना चाहिए । धनिया को सुरक्षित रखने के लिए उसमें हींग की डेली डाल देनी चाहिए। मिर्च को जाले से सुरक्षित करने के लिए एक किलो पीसी मिर्च में 100 ग्राम पीसा नमक मिला दें। हल्दी समय-समय पर सुखाते रहें। मसालों को नमी से हमेशा बचाते रहें।

III. अनाशवान भोज्य पदार्थ (Non-Perishable Foods): डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ के लिए ISI: FPO अथवा Agmark वाले खाद्य पदार्थों पर दिए गए पैकिग की तारीख देखकर ही खरीदना चाहिए। सुविधा वाले खाद्य-पदार्थों का क्रय-इन खाद्य पदार्थों का सोच-विचार कर चयन करने के पश्चात् इन्हें क्रय करना होता है। क्रय करते समय कई बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जिनका उल्लेख नीचे किया गया है:

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1. डबल रोटी तथा अन्य सेंके हुए पदार्थ (Bakery Products): इन्हें हमेशा साफ, विश्वसनीय दुकानों से खरीदना चाहिए। क्रय करने से. पूर्व उनकी ताजगी का निरीक्षण कर लेना चाहिए। बासी सेंके हुए पदार्थ कदापि नहीं खरीदने चाहिए क्योंकि एक या दो दिन के भीतर अनुचित परिस्थितियों में फफूंदी इन पर उगने लगती है। प्रारम्भ में यह फफूंदी बहुत कम मात्रा में होने के कारण स्पष्ट दिखाई नहीं देती परन्तु खाने पर शरीर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। यदि डबल रोटी को फ्रीज में रखना हो तो एक दिन की पुरानी डबल रोटी लेनी चाहिए क्योंकि ताजी डबल रोटी फ्रिज में रखने से गीली-गीली (Soggy) हो जाती है।

2. डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ (Canned foods): डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ, जैसे-जैम, जैली, मांस, फल, सब्जियाँ आदि क्रय करते समय डिब्बे का निरीक्षण करना चाहिए। यदि डिब्बा कहीं से फूला हुआ या पिचका हुआ हो तो उसे कभी भी नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि वह डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थ के खराब होने का सूचक है। डिब्बे पर दी हुई खराब होने की सम्भावित तिथि को अवश्य पढ़ना चाहिए। जिन पदार्थों की तिथि निकल चुकी हो या निकट भविष्य में हो उन्हें क्रय नहीं करना चाहिए। शीशे, प्लास्टिक एवं पालीथिन में पैक किए गए खाद्य पदार्थों को बाहर से देखा जा सकता है। अतः इनका निरीक्षण करने के पश्चात् इन्हें खरीदना चाहिए।

3. पापड़, चिप्स अथवा सूप, डोसा आदि के तैयार पाउडर-इन खाद्य पदार्थों को खरीदने से पूर्व इनके लेबल पर दिए गए निर्देशों से भली प्रकार परिचित हो जाना चाहिए । इनकी खराब होने की सम्भावित तिथि को पढ़कर ही इन्हें खरीदना चाहिए। क्रय करने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि इनके पैकेट अच्छी तरह से बन्द हैं या नहीं। फटे हुए, पुराने पैकेटों को खरीदना उचित नहीं है क्योंकि इनके शीघ्र खराब होने का भय रहता है।

4. जमे हुए खाद्य पदार्थ (Frozen foods): जमे हुए खाद्य पदार्थ केवल उतनी ही मात्रा में खरीदने चाहिए जितनी मात्रा में उन्हें घर पर सुरक्षित फ्रीज में रखा जा सके। इन्हें अधिक समय तक नहीं रखना चाहिए। क्रय करने के तुरत बाद ही प्रयोग में लाने तक इन्हें इसी जमी हुई दशा में रखनी चाहिए। एक बार जमे हए पदार्थ को बाहर निकालने पर प्रयोग कर लेना चाहिए क्योंकि यह कमरे के तापमान पर शीघ्र ही नष्ट होने लगते हैं। हमारे देश में कम साधनों की उपलब्धि के कारण इनका प्रचलन बहुत कम है।

सुविधा वाले खाद्य पदार्थों का संग्रह (Storage): सुविधा वाले खाद्य पदार्थों को खरीदने के पश्चात् उनका संग्रह करना भी आवश्यक है। डबल रोटी तथा सेंके हुए पदार्थों को अधिक समय के लिए संग्रह नहीं करना चाहिए क्योंकि इनमें उपस्थित नमी के कारण इनके खराब होने का भय बना रहता है। जहाँ तक सम्भव हो इन्हें ताजा खरीदकर ही प्रयोग करना चाहिए। यदि इन्हें संग्रह करना पड़े तो किसी चीज में भली प्रकार लपेट कर किसी ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए। डबल रोटी का मिट्टी या चीनी-मिट्टी के बर्तन में रखना चाहिए। धातु के बर्तन में रखने से रोटी पसीजकर धातु की दुर्गन्ध से युक्त हो जाती है।

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बर्तन के ऊपर हवादार ढक्कन होना चाहिए. ताकि उसे मक्खियों से बचाया जा सके। पापड़, चिप्स तथा अन्य सूखे हुए पदार्थों या मिश्रणों को पालीथिन के पैकेटों में किसी साफ स्थान पर रखना चाहिए। इन्हें आवश्यकता से बहुत अधिक मात्रा में नहीं खरीदना चाहिए क्योंकि इनके खराब होने का भय रहता है। डिब्बा बन्द खाद्य पदार्थों को फ्रिज में रखना चाहिए तथा एक बार खोलने के पश्चात् इन्हें शीघ्र ही प्रयोग कर लेना चाहिए। जमे हुए खाद्य पदार्थों को जमे हुए रूप में ही संगृहीत करना चाहिए। यदि इन्हें जमी हुई स्थिति में न रखा जा सके तो शीघ्र ही इनका प्रयोग कर लेना आवश्यक है। इन खाद्य पदार्थों को खरीदने की तिथि इन पर लिख देनी चाहिए तथा इनका निरीक्षण करते रहना चाहिए। खराब होने से पूर्व इनका उपयोग कर लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
खाद्य संदूषण को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तारपूर्वक समझाइए। [B.M.2009A]
उत्तर:
खाद्य पदार्थ जीवाणुओं तथा उनमें उपस्थित एन्जाइमों के कारण संदूषित होते हैं। खाद्य पदार्थ में तथा उसके आस-पास के वातावरण में होने वाले रासायनिक परिवर्तन उसे दूषित करते हैं। खाद्य पदार्थों को बाह्य चोट भी उनके खराब होने का एक कारण है। खाद्य पदार्थों : को संदूषित करने वाले कारकों की सूची बना सकते है सूची निम्न है –

  • जीवाणु तथा एन्जाइमों की उपस्थिति।
  • रासायनिक क्रियाएँ।
  • बाह्य चोट।
  • चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा नुकसान या अजैविक संदूषण।

1. जीवाणु तथा एन्जाइमों द्वारा संदूषण (Bacterial / Enzymatic Spoilage): कुछ जावाण तो खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूस से ही पाये जाते हैं और कुछ फसल कटने, यातायात, सग्रहण, हम्तन व पकाने के समय खाद्य पदार्थों में प्रवेश कर जाते हैं। ये जीवाणु हैं बैक्टीरिया, उत्प्रेरक, खमीर, फफूंदी आदि। जैव प्रक्रियाओं में कुछ मात्रा में एन्जाइम की उत्पत्ति होती है।

कुछ बैक्टीरिया औरों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ते हैं। जल्द ही इनकी संख्या भोज्य पदार्थ में अत्यधिक बढ़ जाती है। अधिकतर बैक्टीरिया कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों में ही अपने नए वातावरण में पूर्ण रूप से ढल जाते हैं। इसलिए आपको यह निश्चित कर लेना चाहिए कि खरीदे हुए खाद्य पदार्थ को चार घंटों में ही खाने से पहले गर्म करना है या ठंडा।

एन्जाइम खाद्य पदार्थों का अभिन्न अंग है। हम जानते हैं कि टमाटर/आम का पकना एन्जाइम के कारण ही होता है। एन्जाइम क्रियाशील होने पर खाद्य पदार्थ के रंग, स्वाद, सुगंध व रचना में परिवर्तन आने लगते हैं। इनके अधिक समय तक क्रियाशील रहने पर खाद्य पदार्थ अत्यधिक पक कर सड़ने लगते हैं। एन्जाइम क्रिया द्वारा लाए गए इच्छित परिवर्तन ‘सकारात्मक’ कहलाते हैं जबकि अनैच्छिक परिवर्तन जिससे भोज्य पदार्थ सड़ने लगते हैं ‘नकारात्मक’ कहलाते हैं।

2. रासायनिक व जैव-रासायनिक संदूषण (Chemical/Biochemical Spoilage): कीटनाशकों, रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भी खाद्य पदार्थों में संदूषण हो सकता है। जबकि जैव-रासायनिक संदूषण; जीवाणुओं द्वारा उत्पादित विष तथा उनकी जैव-क्रियाओं के अवशेषों द्वारा उत्पन्न होता है।

3. बाह्य चोट द्वारा खाद्य पदार्थों में संदूषण-प्रकृति ने खाद्य पदार्थों को सुरक्षा कवच प्रदान किए हैं। ये हमारी त्वचा की भाँति ही कार्य करते हैं। आहार हस्तन के गलत तरीकों से ये कवच खराब हो जाते हैं। साथ ही बाह्य चोट खाद्य पदार्थ की रचना तथा दिखावट पर भी प्रभाव डालती है। इससे खाद्य पदार्थ जल्दी खराब होते हैं तथा उनका क्रय मूल्य भी कम होता जाता है।

4. चूहों, कीड़ों, झींगुरों द्वारा अजैविक खाद्य संदूषण (Rats, Insects, Non Biological Spoilage of food): चूहे फसलों को अत्यधिक नुकसान पहुंचाते हैं। चूहों के मल-मूत्र से होने वाले संक्रमण को “स्पाइरोचीटल संक्रमण” कहते हैं। कीड़े अनाज में छेद करके उसके कार्बोज को खा जाते हैं। इन छेद वाले दानों में से बदबू-सी आने लगती है और यह खाने के योग्य नहीं होते। झींगुरों के लार से अनाज के दाने चिपके हुए-से दिखाई देते हैं। इनसे अनाज में बदबू पैदा हो जाती है। चूहे, कीड़े व झींगुर खाद्य फसलों को प्रति वर्ष काफी नुकसान पहुंचाते हैं।

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प्रश्न 6.
संदूषण को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ (Situations helping in food spoilage) कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
संदूषण को प्रभावित करने वाली परिस्थितियाँ इस प्रकार हैं –
1. जैविक खाद्य पदार्थ
2. अनुरूप तापमान
3. नमी/पानी
4. हवा और
5. अनुरूप pH

1. जैविक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता (Availability of Biological Foods): सभी जीवित प्राणियों की भाँति जीवाणुओं को भी जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। बैक्टीरिया सूक्ष्म-जीव होते हैं, इसलिए उन्हें बहुत थोड़ा भोजन चाहिए। थोड़ा-बहुत प्रोटीन, वसा तथा कार्बोहाइड्रेट, चाकू के किनारे पर लगा खाद्य पदार्थ, सब्जी काटने के बोर्ड पर अथवा डिब्बों के किनारों पर थोड़ा बहुत लगा खाद्य पदार्थ उनके लिए दावत के समान हैं। इसलिए खाद्यं पदार्थों के संपर्क में आने वाले सभी उपकरण अच्छी तरह से साफ होने चाहिए। साथ ही खाद्य संग्रहण तथा खाद्य हस्तन स्वच्छता के नियमों के अनुसार ही करना चाहिए।

2. अनुरूप तापमान (Favourable Temperature): विभिन्न बैक्टीरिया की वृद्धि के लिए अलग-अलग तापमान की आवश्यकता होती है। साइक्रोफिलिक (Psychrophilic) बैक्टीरिया शीतल तापमान पर बढ़ते हैं। माइक्रोफिलिक (Microphilic) बैक्टीरिया हमारे सामान्य तापमान पर बढ़ते हैं। गर्मी पसंद करने वाले बैक्टीरिया को थर्मोफिलिक (Thermophilic) कहते हैं, क्योंकि ये अत्यधिक गर्म तापमान लगभग 140°F तक सह सकते हैं, खाद्य पदार्थों को संदूषित करने वाले बैक्टीरिया अधिकतर 70°F-80°F में वृद्धि करते हैं। यदि खाद्य पदार्थ में बैक्टीरिया की. संख्या व तापमान कम है तो वह अधिक समय तक रखा जा सकता है। खाद्य पदार्थ जितने समय के लिए स्वादिष्ट व खाने योग्य (फसल कटने के समय से लेकर, सुरक्षित करने के बाद खाने तक) रहते हैं, उसे उसकी ‘शैल्फ लाइफ’ कहते हैं।

3. नमी, पानी की उपलब्धता (Moist/Water Availability): सभी जीवित पदार्थों के जीवन के लिए पानी की आवश्यकता होती है। ताजे खाद्य पदार्थों में अधिक नमी होती है जो जीवाणुओं की वृद्धि में सहायता करती है। जीवाणु में एन्जाइम उसकी कोशिका से निकलकर खाद्य पदार्थ से मिलकर फिर वापस कोशिका में आ जाते हैं।

यह प्रक्रिया निरन्तर जीवाणुओं की वृद्धि के साथ-साथ चलती रहती है। दुग्ध पाउडर, सूप-पाउडर, व सूखे अनाज देर तक खाने योग्य रहते हैं क्योंकि उनमें कुछ सूक्ष्म जीव तो हैं किन्तु उनमें नमी जो कि इसे सूक्ष्म जीवों की वृद्धि में सहायक है, नहीं होती। इसी प्रकार अचार व जैम में नमक व चीनी डालने से सूक्ष्मजीवियों को नमी नहीं मिल पाती और उनकी वृद्धि नहीं होती।

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4. हवा की उपलब्धता (Availability of Air): हवा सभी जीवों के जीवन का अभिन्न अंग है। सूक्ष्म जीवों को अपनी वृद्धि के लिए वायु की आवश्यकता होती है। यदि उन्हें हवा न मिले तो उनकी प्रक्रिया धीमी हो जाती है। बोतल बंद, डिब्बा बंद व बाँधे हुए खाद्य पदार्थों में हवा प्रवेश नहीं कर पाती, किंतु कुछ अत्यधिक विषाक्त जीवाणु बिना हवा के भी जीवित रह सकते और इनके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

5. अनुरूप खाद्य pH की उपलब्धता (Availability of Required pH): खाद्य पदार्थों में pH खाद्य संदूषण को प्रभावित करती है। pH पदार्थों की अम्लता व क्षारता को बताती है। pH-7 होने का तात्पर्य है कि खाद्य पदार्थ उदासीन है। अधिक जीवाणु उन खाद्य पदार्थों को संदूषित करते हैं जिनके माध्यम pH-7 के आसपास हो, जैसे प्रोटीन व मांसाहारी खाद्य पदार्थ, नींबू का रस, सिरका, खटाई इत्यादि खाद्य पदार्थ pH को कम करते हैं तथा उन खाद्य पदार्थों को संदूषण से बचाते हैं। खमीर कम pH वाले खाद्य पदार्थों पर हमला करते हैं जिनमें चीनी होती है, जैसे जैम आदि। ये चीनी से जीवित रहने के लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं और उसे एल्कोहल व.CO2 में बदल देते हैं। खमीर के इस गुण को शराब बनाने के उद्योग में भरपूर प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 7.
भोजन पकाने की विधियों का उल्लेख करते हुए उनके लाभ-हानि बताइए।
उत्तर:
भोजन पकाने की विधियाँ (Methods of food preparation): भोजन पकाने के लिए कई विभिन्न प्रकार की विधियों का प्रयोग किया जाता है। परन्तु सभी विधियों में ताप की आवश्यकता होती है।
पकाने के माध्यम के आधार पर इन विधियों को हम दो मुख्य भागों में बांटते है –

  1. आई ताप द्वारा पकाना (Moist Heat)।
  2. शुष्क ताप द्वारा पकाना (Dry Heat)।

1.आर्द्र ताप द्वारा पकाना-आई ताप द्वारा पकाने के लिए माध्यम के रूप में जल का प्रयोग किया जाता है। इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं
(a) उबालना (Boiling)
(b) भाप से पकाना (Steaming)।
(c) धीमी आग पर पकाना या स्टूयिंग (Stewing)

(a) उबालना-इस विधि में खाद्य पदार्थ को जल के सीधे सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है। यह भोजन पकाने की सरल विधि है। पकाने की विधि-किसी बर्तन में जल लेकर उसमें खाद्य पदार्थ डालकर, आग पर रखकर तब तक उबाला जाता है, जब तक गल न जाए। उबालने की विधि में ताप 100° सेंटीग्रेड या 212° फारेनहाइट होना चाहिए। पानी गर्म होने पर जब उसकी सतह पर बुलबुले उठने लगे तो समझना चाहिए कि पानी में उबाल आने लगा है। जब पानी उबलने लगे तो आग धीमी कर देनी चाहिए और खाद्य पदार्थ के गलने पर आग बन्द कर देनी चाहिए।

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उबालने के लाभ (Advantages of Boiling): खाद्य पदार्थ को उबाल कर पकाने से निम्न लाभ हैं –
1. खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना (Easy to digest): पानी में उबाला गया खाद्य पदार्थ गलने पर सुपाच्य हो जाता है। यह आसानी से पक जाता है तथा रोगियों के लिए विशेषकर श्रेष्ठ समझा जाता है।
2. खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना (Making the food Nutritious): यदि उबालने की विधि का ठीक ढंग से प्रयोग किया जाए तो खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है।

उबालने से हानियाँ (Losses due to Boiling):
खाद्य पदार्थों को जहाँ उबालकर पकाने से लाभ हैं, वहाँ कुछ हानियाँ भी हैं –

1. खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता में कमी होना (Loss of nutritive value of foods): खाद्य पदार्थों को उबालने से उनके कुछ पोषक तत्त्व, स्वाद एवं सुगन्ध जल में आ जाते हैं जिससे खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनाए रखने के लिए उन्हें छिलकों सहित पर्याप्त जल में ही उबालना चाहिए तथा जिस जल में यह उबाले जाएँ उसे सूप बनाने, आटा गूंथने आदि के काम में लाना चाहिए।

उबालने की विधि से खाद्य पदार्थ में उपस्थित जल में घुलनशील विटामिन जैसे बी समूह के विटामिन और विटामिन सी तथा कुछ खनिज लवपानी में आ जाते हैं तथा इस पानी को फेंक देने से ये पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता को बनाए रखने के लिए उबालते समय उसे ढंककर रखना चाहिए। ढंककर पकाने से उबालने की विधि में कम समय लगता है तथा पानी कम सूखता है।

2. खाद्य पदार्थ का रंग नष्ट होना (Loss of colour of food): उबालने की विधि में कुछ मात्रा में खाद्य पदार्थों का रंग भी नष्ट हो जाता है। विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियों को ढंककर पर्याप्त जल में पकाने से उनका रंग कम नष्ट होता है। उबालने की विधि द्वारा चावल, दालें, सब्जियाँ, सूप आदि बनाए जाते हैं।

(b) भाप से पकाना (Steaming): इस विधि में जल के स्थान पर पकाने का कार्य भाप के माध्यम से किया जाता है। इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ को पकाने में समय अधिक लगता है परन्तु खाद्य पदार्थ अधिक सुपाच्य एवं हल्का हो जाता है तथा उसमें उपस्थित पोषक तत्त्व कम मात्रा में नष्ट होते हैं । इस विधि द्वारा पकाया हुआ भोजन रोगियों के लिए भी श्रेष्ठ माना जाता है। भाप द्वारा पकाने की विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है। भाप द्वारा खाद्य पदार्थों को तीन विधियों द्वारा पकाया जाता है

  1. प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Direct Steaming)
  2. अप्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Indirect Steaming)
  3. 9474 o Gala GRT 400191 (Pressure Steaming)

1. प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Direct Steaming): इस विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के सीधे सम्पर्क से पकाया जाता है। विधि-किसी बर्तन में पानी उबाला जाता है तथा उस पर छलनी में खाद्य पदार्थों को रखकर बर्तन को ढक्कन से ढंक देते हैं। पानी से भाप निकलकर छलनी के छिद्रों द्वारा खाद्य पदार्थ के सम्पर्क में आती है और वह खाद्य पदार्थ पक जाता है। यदि जाली न हो तो किसी पतले कपड़े में खाद्य पदार्थों को बाँधकर बर्तन में लटकाया जा सकता है।

बाजार में कुछ विशेष प्रकार के स्टीमर भी मिलते हैं। इसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली सी लगी होती है। जिस पर खाद्य पदार्थों को रखकर पकाया जाता है। कई स्टीमर में दो या अधिक जाली भी होती है जिससे उनमें एक ही समय में एक साथ दो या तीन खाद्य पदार्थों को.पकाया जा सकता है। भाप के सीधे सम्पर्क में आने के कारण इन खाद्य पदार्थों में से जल में घुलनशील विटामिन बी तथा सी नष्ट हो जाते हैं।

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2. अप्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा पकाना (Indirect Steaming): इस विधि में खाद्य पदार्थ को भाप के सीधे सम्पर्क में नहीं लाया जाता है। विधि-किसी बर्तन में पानी को उबालने के लिए आग पर रखते हैं। किसी अन्य छोटे बर्तन में खाद्य पदार्थ को रखकर उस बड़े बर्तन में रख दिया जाता है तथा ढक्कन बन्द कर देते हैं। पानी द्वारा बनी भाप छोटे बर्तन में रखे पदार्थों को गर्म करती है तथा पदार्थ अपने जलांश द्वारा पक जाते हैं।

उदाहरण के लिए कस्टर्ड या पुडिंग बनाते समय दूध, अण्डे आदि के मिश्रण को छोटे बर्तन में रखकर इस बर्तन का मुंह ढक्कन या बटर पेपर (Butter Paper) से भली प्रकार बन्द करके किसी पानी से भरे बर्तन में रख देते हैं तथा इस पानी को उबालते हैं और दूध का मिश्रण पक जाता है। इस विधि में क्योंकि खाद्य पदार्थ केवल अपने जलांश द्वारा ही पकता है तथा पानी या भाप के सम्पर्क में नहीं आता है, अतः इनमें से विटामिन और खनिज लवण बहुत कम मात्रा में नष्ट होते हैं।

3. भाप के दबाव द्वारा पकाना (Pressure Steaming): इस विधि में भाप द्वारा बने दबाव की सहायता से खाद्य पदार्थ को पकाया जाता है। दबाव में बढ़ोत्तरी के साथ-साथ ताप में भी बढ़ोतरी आ जाती है। कई बार किसी खाद्य पदार्थ को जल्दी उबालने के लिए बर्तन के ढक्कन पर कोई भारी वस्तु रखकर दबाव को अधिक किया जाता है जिससे पानी से बनी भाप बाहर न निकलने के कारण अन्दर दबाव अधिक कर देती है जिससे ताप अधिक हो जाता है और वह खाद्य पदार्थ जल्दी पक जाता है।

आजकल भाप के दबाव द्वारा पकाने के लिए प्रेशर कूकर (Pressure Cooker): का प्रयोग किया जाता है। प्रेशर कूकर का ढक्कन बाहर नहीं निकला होता है जिससे भाप अन्दर दबाव को बढ़ाती है जिससे खाद्य पदार्थ जल्दी पक जाता है। प्रेशर कूकर में विभिन्न खाद्य पदार्थों को उनकी क्षमता के अनुसार भिन्न-भिन्न दबाव पर पकाया जाता है।

इसमें 5, 10 और 15 पौंड दबाव किया जा सकता है। 15 पौंड के दबाव पर प्रेशर कूकर के अन्दर का ताप लगभग 250° फारेनहाइट होता है। यह देखा गया है कि प्रत्येक 20 फारेनहाइट ताप की वृद्धि करने पर खाद्य पदार्थ पकाने का समय लगभग आधा हो जाता है। इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं।

भाप द्वारा पकाने के लाभ (Advantages of Boiling):
भाप द्वारा पकाने के कई लाभ हैं:
1. खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना (Making the food easy to digest): भाप द्वारा पकाया गया भोजन हल्का एवं सुपाच्य होता है। यही कारण है कि रोगियों एवं वृद्धों के लिए भोजन पकाने की इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
2. खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना (Making the food stuff Nutritious): इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन के पोषक तन्व नष्ट नहीं होते और खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है विशेषकर अप्रत्यक्ष भाप द्वारा पकाने एवं भाप के दबाव द्वारा पकाने की विधि सर्वोत्तम मानी जाती है।
3. ईंधन की बचत (Saving of fuel): भाप के दबाव द्वारा पकाने से भोजन शीघ्र बन जाता है तथा ईंधन की बचत होती है।
4. खाद्य पदार्थ के रंग व रूप में परिवर्तन न होना: खाद्य पदार्थ का रंग व रूप वैसा ही बना रहता है।

(C) धीमी आग पर पकाना या स्टूयिंग (Cooking slow heat or stewing): इस विधि में खाद्य पदार्थ को जल के सीधे सम्पर्क से पकाया जाता है।

विधि: जिस खाद्य पदार्थ को स्टूय बनाना हो, उसे छीलकर उसके बारीक-बारीक टुकड़े करके किसी बर्तन में लेकर इतना पानी डालें कि खाद्य पदार्थ भली प्रकार पक जाए । फिर इसे धीमी-धीमी आग पर खाद्य पदार्थ को गलने तक पकाते रहें। उदाहरण के लिए सेब का स्ट्रय बनाने के लिए सेब को छीलकर उसके बारीक-बारीक टुकड़े काट कर उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी डाल कर और थोड़ी-सी चीनी डालकर धीमी-धीमी आग पर पकाते रहें। जब सेब गल जाए तो उसे उसमें उपस्थित पानी-रसे के साथ ही परोसें।

स्टूयिंग करने से लाभ (Advantages of Stewing):

  1. खाद्य पदार्थ सुपाच्य होना-इस विधि से चूँकि खाद्य पदार्थ धीमी-धीमी आग पर अधिक समय के लिए पकाते हैं, अतः वह सुपाच्य हो जाता है।
  2. खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना-खाद्य पदार्थ जिस पानी में पकाया जाता है, उसे साथ ही परोस देते हैं। अत: खाद्य पदार्थ की पौष्टिकता बनी रहती है।
  3. श्रम की बचत-इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ पकाने से श्रम कम लगता है तथा खाद्य पदार्थ के जलने का भय नहीं होता है।
  4. ईंधन की बचत-धीमी-धीमी आग पर पकाने के कारण ईंधन की बचत होती है।

स्टूयिंग से हानियाँ (Disadvantages of Stewing) :
1. अधिक समय लगना-इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ बहुत धीमी-धीमी आग पर पकाया जाता है जिससे समय अधिक लगता है।
2. दाँतों का कम कार्य-इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन को खाने के लिए दाँतों को कम कार्य करना पड़ता है। अतः दाँतों के काटने की क्रिया एवं लार रस द्वारा आशिक पाचन की कमी रहती है।

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2. शुष्क ताप द्वारा पकाना (Dry Heat): शुष्क ताप द्वारा पकाने के लिए माध्यम के रूप में वायु एवं चिकनाई का प्रयोग किया जाता है। इस वर्ग के अन्तर्गत निम्न विधियाँ आती हैं
(क) वायु को माध्यम के रूप में प्रयोग करके निम्न विधियों का प्रयोग करते हैं –

  • भूनना (Roasting)
  • अंगीठी पर भूनना (Grilling)
  • सेंकना (Baking)

(ख) चिकनाई को माध्यम के रूप में प्रयोग करके निम्न विधियों का प्रयोग करते हैं
तलना (Frying):
यह दो प्रकार की होती है:

  • उथली विधि (Shallow frying)
  • गहरी विधि (Deep frying)

(क) वायु को माध्यम के रूप में प्रयोग करना :
1. भूनना (Roasting): इस विधि में खाद्य पदार्थ सीधा आग के सम्पर्क में नहीं आता है, शुष्क गर्म वायु माध्यम का कार्य करती है। भूनने की विधि में खाद्य पदार्थ को गर्म रेत या राख में दबा दिया जाता है। इस विधि द्वारा आलू, शकरकंद, मूंगफली, अरबी आदि भूने जाते हैं। रेत को भट्टी में गर्म करके या अंगीठी के नीचे जो गर्म-गर्म राख निकलती है उसमें खाद्य पदार्थ को दबाकर भूना जाता है। इस विधि द्वारा भोजन छिलकों सहित पकाना चाहिए तथा भूनने के पश्चात् उसे साफ करके छिलका अलग कर देना चाहिए।

भूनने से लाभ (Advantages of Roasting) :
खाद्य पदार्थ पौष्टिक होना-जब खाद्य पदार्थ छिलके सहित भूना जाता है तो उसकी पौष्टिकता बनी रहती है और कोई भी पोषक तत्त्व बाहर नहीं निकलता है।

भूनने से हानियाँ-(Disadvantage of Roasting):

  1. कई बार खाद्य पदार्थ अधिक गर्म रेत या राख के कारण जल जाता है।
  2. यदि रेत या राख गर्म न हो तो खाद्य पदार्थ कच्चे रहने की सम्भावना रहती है।
  3. यदि खाद्य पदार्थ को बराबर उल्टा-पुल्टा न जाए तो वह कहीं से कच्चा और कहीं से पक जाता है।

2. अंगीठी पर भूनना (Grilling): इस विधि में खाद्य पदार्थ को आग के सीधे सम्पर्क में लाकर पकाया जाता है तथा शुष्क वायु ही माध्यम का कार्य करती है। जिस खाद्य पदार्थ को ग्रिलिंग द्वारा पकाना हो उसे आग पर रख दिया जाता है तथा उसे थोड़े-थोड़े समय के बाद उलटते-पलटते रहते हैं जिससे वह चारों ओर से बराबर-बराबर पक जाए।

साबुत खाद्य पदार्थों को ग्रिल करने के लिए उन पर थोड़ा सा घी या तेल लगा देते हैं जिससे वह एकदम जले नहीं और उनका रंग बना रहे। ग्रिलिंग करने के लिए एक विशेष प्रकार का उपकरण जिसे ग्रिल कहते हैं, का प्रयोग किया जाता है। ग्रिल में खाद्य पदार्थ रखने से पहले इसके चारों ओर चिकनाई लगा देते हैं जिससे खाद्य पदार्थ इन पर नहीं चिपके। ग्रिल को उलटने-पलटने के लिए इन पर हत्थे लगे होते हैं।

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बैंगन, मछली, मुर्गी आदि खुली आग पर भूने जाते हैं। सींक कबाब बनाने के लिए मांस के तैयार मिश्रण को सींक में पिरोकर घी लगाकर खुली आग पर भूना जाता है। खुली आग पर भूनने के लिए भी खाद्य पदार्थ को छिलका सहित भूनना चाहिए अन्यथा पौष्टिक तत्त्व काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं। इस विधि द्वारा पकाने से लाभ और हानियाँ भूनने की विधि से होने वाले लाभ और हानियों जैसी हैं।

3. सेंकना (Baking): इस विधि से भी पकाने के लिए माध्यम के रूप में शुष्क वायु का प्रयोग किया जाता है। सेंकने के लिए तन्दूर या भट्टी का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में गर्म वायु से पूरी भट्टी का तापक्रम एक-सा हो जाता है। किसी भी पदार्थ को लेकर उसे गर्म भट्टी में रख देते हैं और भट्टी का मुँह बन्द कर देते हैं। वायु गर्म होकर खाद्य पदार्थ के चारों ओर घूमती है और उसे पका देती है।

इस विधि द्वारा केक, पेस्ट्री, बिस्कुट, नानखटाई, डबल रोटी आदि बनाये जाते हैं। साधारणतया भट्टी का तापमान 250° फारेनहाइट से लेकर 500° फारेनहाइट का होता है तथा प्रत्येक खाद्य पदार्थ को पकाने के लिए अलग-अलग ताप उचित रहता है। आजकल बिजली की भट्टी (Electric Oven) भी बाजार में उपलब्ध हैं जिनमें तापमान को आवश्यकतानुसार नियन्त्रित किया जा सकता है।

सेंकने के लाभ (Advantages of Baking) :
1. भोजन हल्का व सुपाच्य हो जाता है।
2. इस विधि द्वारा पकाए गए भोजन स्वादिष्ट होते हैं।

सेंकने से हानियाँ (Disadvantages of Baking): कई बार भट्टी का तापमान बहुत अधिक होने पर खाद्य पदार्थ ऊपर से तो बना हुआ प्रतीत होता है परन्तु अन्दर से कच्चा रह जाता है।

(ख) चिकनाई को माध्यम के रूप में प्रयोग करना :
तलना-तलने की विधि से खाद्य पदार्थ के पकाने का प्रमुख माध्यम कोई भी स्निग्ध पदार्थ होता है। अधिकतर घी या तेल का प्रयोग किया जाता है। इससे भोजन अन्य विधियों की अपेक्षा शीघ्रता से बनता है। स्निग्ध पदार्थ को गर्म करके उसमें खाद्य पदार्थ डाला जाता है जिससे खाद्य पदार्थ की ऊपरी परतें कड़ी हो जाती हैं और ताप के कारण वह भीतर से भी पक जाता है।

तलने के लिए मुख्यतः दो विधियों का प्रयोग करते हैं –
1. उथली विधि
2.  गहरी विधि।

1. उथली विधि (Shallow frying): इस विधि में खाद्य पदार्थ को कम घी या तेल में तला जाता है। किसी भी गहरे बर्तन जैसे तवे, फ्राइंग पैन (Frying pan) आदि में घी या तेल गर्म करके उनमें खाद्य पदार्थ डालकर पकाते हैं। जब खाद्य पदार्थ एक तरफ से पक जाता है तो उसे पलट कर दूसरी तरफ से पकाते हैं। इसमें घी या तेल उतनी ही मात्रा में प्रयोग किए जाते हैं जितना कि आसानी से सोख सकें। घी व चिकनाई के कारण खाद्य पदार्थ बर्तन से चिपकता नहीं है। इस विधि द्वारा पराठे, पूड़ी डोसा आदि पकाये जाते हैं।

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2. गहरी विधि (Deep-frying): इस विधि में पर्याप्त मात्रा में घी या तेल का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए प्रायः कड़ाही का प्रयोग किया जाता है। जब वह एक तरफ से पक जाता है तो झरनी या पोनी की सहायता से उले पलट देते हैं और दूसरी तरफ से भी पका लेते हैं। तलने के लिए घी का उचित ताप होना आवश्यक है क्योंकि कम ताप पर तलने से, खाद्य पदार्थ अधिक मात्रा में वसा सोख लेता है और देर में पकता है तथा अधिक ताप पर तलने से पदार्थ जल जाता है और वसा भी जल जाती है।

तलने के लाभ (Advantages of frying) :

  • खाद्य पदार्थ बहुत शीघ्र पक जाता है।
  • खाद्य पदार्थ स्वादिष्ट हो जाता है।
  • खाद्य पदार्थ से पोषक तत्त्व कम मात्रा में बाहर निकलते हैं।

तलने से हानियाँ (Disadvantages of frying):

  • खाद्य पदार्थ में वसा होने के कारण वह शीघ्र नहीं पचता अर्थात् भारी हो जाता है।
  • खाद्य पदार्थ की ऊपरी परत कड़ी हो जाती है।
  • तले खाद्य पदार्थ रोगियों एवं बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।
  • इस विधि द्वारा खाद्य पदार्थ महंगे पड़ते हैं।

प्रश्न 8.
खाद्य परिरक्षण की विधियाँ कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर:
परिरक्षण की घरेलू विधियों द्वारा खाद्य पदार्थों को छोटे पैमाने पर परिवार में प्रयोग के लिए परिरक्षित किया जा सकता है। गृह विज्ञान के छात्र प्रयोगशाला में इन विधियों को सीख सकते हैं। व्यावसायिक पैमाने पर खाद्य पदार्थों की बड़ी मात्रा को सुव्यवस्थित व उचित उपकरणों से लैस फैक्ट्रियों में परिरक्षित किया जा सकता है। व्यावसायिक तौर पर परिरक्षण का प्रयोग मुनाफा पाने के लिए किया जाता है। वह उद्योग/फैक्ट्रियाँ खाद्य कानूनों व योग्य संस्थाओं के नियमों से . बाध्य होती हैं। – परिरक्षण के नियम घरेलू व व्यावसायिक क्षेत्र में एक समान रहते हैं।

1. विसंक्रमण (Asepsis): विसंक्रमण का अर्थ है उन परिस्थितियों को हटाना जो खाद्य पदार्थ के संदूषण में सहायता करती हैं। यह अत्यावश्यक है कि खाद्य पदार्थ को फसल काटने से लेकर, एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने, संग्रह करने, पकाने तथा अंततः खाने तक सुरक्षित रखा जाए। स्वच्छ वातावरण तथा साफ-सुथरे खाद्य हस्तन से खाद्य संदूषण को न्यूनतम किया जा सकता है। जीवाणु संख्या में कमी लाकर खाद्य पदार्थ को लंबे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है। इस संदर्भ में प्रयुक्त परिरक्षण का नियम निम्नलिखित है-सूक्ष्मजीवियों को हटाना।

2. छीलना, पकाना तथा कीटाणु हनन (Peeking, Cooling & Disinsecting): खाद्य पदार्थ को उबलते पानी में थोड़ी देर तक रखकर उनके एन्जाइम निष्क्रिय किये जाते हैं। इससे एन्जाइमों की क्रियाशीलता को कम करके खाद्य पदार्थ को खराब होने से बचाया जाता है। इस. प्रक्रिया में ‘एन्जाइमों की निष्क्रियता’ का नियम प्रयोग में लाया जाता है। खाना पकाने की सूखी व गीली विधियों से कुछ जीवाणु को नष्ट किया जा सकता है। पके हुए खाद्य पदार्थ की सुरक्षा उन्हें पकाते समय के तापमान व पकाने की अवधि पर निर्भर करती है। अधिक तापमान पर लम्बे समय तक पकाने से जीवाणु संख्या में काफी कमी लाई जा सकती है।

यह परिरक्षण की ‘जीवाणुनाशक’ विधि है। कीटाणु हनन का अर्थ है सभी एन्जाइमों, सूक्ष्मजीवियों व उनके अंडों का हनन। यह घर में प्रेशर कूकर में भोजन पकाने से संभव हो सकती है। क्या आप प्रेशर कूकर में पकाने की विधि जानती हैं ? व्यावसायिक स्तर पर आवों के प्रयोग से कीटाणु हनन किया जाता है। इस प्रकार के खाद्य पदार्थ सूक्ष्मजीवियों से पूर्णतः मुक्त होते हैं।

3. स्वच्छ एवं स्वास्थ्यवर्धक खाद्य हस्तन (Handling of clean & healthy food): यह परिरक्षण की एक प्रक्रिया ही नहीं अपितु खाद्य हस्तन की आवश्यकता भी है। खाद्य पदार्थ से संबंधित व्यक्तिगत स्वच्छता. रसोईघर एवं सभी उपकरण साफ एवं स्वच्छ होने चाहि ताकि सूक्ष्मजीवी आदि भोजन के संपर्क में आकर उसे संदूषित न कर पाएँ। हम जानते हैं कि विसंक्रमित परिस्थितियाँ खाद्य परिरक्षण की नीव हैं।

4. ठंडा करना (Refrigeration): यह खाद्य पदार्थों को कम तापमान पर रखकर परिरक्षित करने की प्रक्रिया है। जीवाणु एवं एन्जाइमों की क्रियाशीलता कम तापमान पर धीमी होती है। यह खाद्य परिरक्षण में ऊष्मा कम करने का नियम है जो क्रियाशीलता में आवश्यक है। विभिन्न प्रकार के रेफ्रीजरेटर व गहरे फ्रीजर जो तापमान को निश्चित करते हैं, बाजार में उपलब्ध हैं। शीघ्र नष्ट होने वाले खाद्य पदार्थ फ्रीजर में रखने चाहिए। पकाया हुआ खाना सदैव ढंककर फ्रिज की ऊपरी शेल्फों पर रखना चाहिए।

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ताजे फल एवं सब्जियाँ ‘फ्रिज बैग’ में रखने चाहिए जो उनकी नमी व ताजगी बनाए रखते हैं। फ्रिज में अत्यधिक सामान नहीं रखना चाहिए। ठंडी शीतल हवा यदि फ्रिज में घूमती है तो खाद्य पदार्थ लम्बे समय तक ताजा रखा जा सकता है। गाँवों में लोग खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक परिरक्षित रखने के लिए वे खाद्य पदार्थों को गीले कट्टों में या बर्फ की पेटी में तथा ठंडे स्थान पर रखकर थोड़े समय के लिए परिरक्षित रखते हैं।

5. सुखाना (Drying): इस प्रक्रिया में खाद्य पदार्थ की नमी को हटाया जाता है। सदियों से खाद्य पदार्थों को धूप में रखकर परिरक्षित किया जाता रहा है। विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मटर, मछली, टमाटर, आडू आदि को वर्षों से सुखाया जाता रहा है, किन्तु आजकल हम खाद्य पदार्थों को कम समय में निश्चित परिस्थितियों व नवीनतम तकनीकों से सुखा सकते हैं।

इस प्रकार सुखाए गए खाद्य पदार्थ का रंग, स्वाद, सुगंध व पोषण मूल्य नष्ट नहीं होते। खाद्य पदार्थों को अपूर्ण रूप से भी सुखाया जा सकता है, जैसे खोआ, कंडेंस्ड दूध, टमाटर की प्यूरी आदि। अपूर्ण रूप से सुखाये गए खाद्य पदार्थों में नमक/चीनी की मात्रा अधिक होगी। इस माध्यम से सूक्ष्मजीवी क्रियाशील नहीं हो पाते। इस प्रक्रिया में प्रयुक्त परिरक्षण का यह नियम है, नमी/पानी को हटाना।

6. पैकिंग, डिब्बा बंद व बोतल बंद करना (Packing and Canning): इन प्रक्रियाओं से सूक्ष्मजीवियों को हवा उपलब्ध नहीं होती। घरेलू तौर पर हवा बंद डिब्बों में रखे खाद्य पदार्थों का संदूषण न्यूनतम होता है। व्यावसायिक पैमाने पर हवा की उपलब्धता कम करने के अनेक उपाय हैं। किन्तु हवा के बिना जीवित रहने वाले जीवाणुओं से डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ विषाक्त हो सकते हैं। नई तकनीकों द्वारा पैक किए गए खाद्य पदार्थों में हवा के स्थान पर अप्रवृत गैसें भरी जाती हैं।

7. pH को बदलने के लिए रसायनों का प्रयोग:

1. अचार बनाना (Pickles): खट्टे-मीठे स्वाद के अचार व चटनियाँ बनाना भारतीय घरों में प्रचलित है। अचार तेल या तेल के बिना भी बनाए जा सकते हैं। खाद्य पदार्थ पर तेल की सतह उसमें हवा का आवागमन रोक देती है। अम्लीय खाद्य पदार्थों, जैसे आम, नीबू आदि के अचार बनाए जा सकते हैं। सिरका, नींबू का रस, सिट्रिक एसिड व एसिटिक एसिड का प्रयोग सब्जियों का अचार बनाने में किया जाता है।

अचार बनाते समय, पिसी हुई राई के प्रयोग से, खमीरीकरण की प्रक्रिया से अम्लता बढ़ जाती है। अम्लीय खाद्य पदार्थों की pH कम होने के कारण ये देर तक खराब नहीं होते। अचार व चटनियों में नमक प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त होता है। यह जीवाणुओं तक नहीं पहुंचने देता। अचार व चटनियों में मसालों के प्रयोग से विसंक्रमण किया जाता है। अचार खाद्य पदार्थ को लम्बे समय तक परिरक्षित रख सकते हैं, क्योंकि इसमें परिरक्षण के विभिन्न नियमों का प्रयोग करते हैं। ये नियम हैं

(क) नमक का प्रयोग – आर्द्रता हटाना
(ख) अम्लीय पदार्थ मिलाना – pH में बदलाव लाना
(ग) तेल का प्रयोग – हवा उपलब्ध न होने देना
(घ) मसालों का प्रयोग – संक्रमण के कारक हटाना।

2. जैम, जैली व मारमलेड बनाना (Zam, Zelly, Marmalade): इसमें चीनी का प्रयोग किया जाता है। अधिक चीनी नमी को सोखकर जीवाणुओं तक नमी नहीं पहुँचने देती। अम्लीय पदार्थ pH को कम करके जैम आदि को जीवाणुओं से उत्पन्न संदूषण से बचाया जा सकता है। मीठे माध्यम में कभी-कभी फफूंदी आदि से संदूषण हो सकता है। अतः सभी जैम इत्यादि संक्रमित हवा बंद बोतलों में ही संगृहीत किये जाने चाहिए। आप प्रयोगशाला में कुछ घरेलू खाद्य परिरक्षण की विधियाँ सीखें। खाद्य परिरक्षण की कुछ नवीनतम तकनीकें हैं : डीहाइड्रोफ्रीजिंग, प्रकाशमान करना, फ्रीजड्राइंग तथा एंटीबाइटिक के प्रयोग द्वारा।

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प्रश्न 9.
पाक क्रियाओं का भोजन घटकों पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर:
“बहुत-से भोज्य पदार्थ अपनी स्वाभाविक स्थिति में मनुष्य के खाने के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उन्हें खाने के योग्य बनाने के लिए जो क्रिया अपनायी जाती है, वह पाक क्रिया कहलाती है।” प्रत्येक खाद्य-पदार्थ की ताप-ग्रहणता अलग-अलग होती है। अनेक आन्तरिक गुणों पर ताप का पृथक्-पृथक् प्रभाव पड़ता है। ताप की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप ही भोज्य पदार्थों के स्वाद में वृद्धि होती है तथा उसके स्वरूप में परिवर्तन होता है। भोज्य तत्त्वों अर्थात् वसा, प्रोटीन, श्वेतसार, खनिज लवण, विटामिन आदि पर ताप का निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है :

(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन (Colour changes)।
(ख) खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन (Flavour changes)।
(ग) खाद्य पदार्थों की प्रकृति में परिवर्तन (Texture changes)।

(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन-खाद्य पदार्थों को पकाने पर उनके रंग में कई परिवर्तन आते हैं। कुछ परिवर्तन ऐसे होते हैं जिनसे वह पकने के पश्चात् अधिक आकर्षित हो जाते हैं तथा कुछ खाद्य पदार्थों में ऐसे परिवर्तन आते हैं कि उनका प्राकृतिक रंग नष्ट हो जाता है और वह पहले की भाँति आँचों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण के लिए फलों और सब्जियों के चमकीले आकर्षक रंग पकने के पश्चात् कुछ मात्रा में नष्ट हो जाते हैं तथा चमकहीन हो जाते हैं। इसके विपरीत राजमा आदि पकने के पश्चात् लाल रंग के हो जाते हैं और उनका रंग पहले की अपेक्षा अधिक आकर्षक हो जाता है।

(क) खाद्य पदार्थों के रंग में परिवर्तन-खाद्य पदार्थों के रंगों पर निम्न प्रकार से प्रभाव पड़ता है :
1. क्लोरोफिल (Chlorophyll): सब्जियों तथा फलों में हरा रंग उनमें उपस्थित क्लोरोफिल के कारण होता है। पकाने के ताप एवं माध्यम के pH के कारण इस हरे रंग में विशेषकर हरी पत्तेदार सब्जियों में परिवर्तन आते हैं। इनका रंग पकाने पर पहले कुछ गहरा तथा अधिक पकाने पर भूरा हो जाता है। यदि हरी सब्जियों को पकाते समय माध्यम अम्लीय हो तो इनका रंग जल्दी ही भूरा हो जाता है परन्तु क्षारीय माध्यम में इनके रंग में अधिक परिवर्तन नहीं होता और गहरा हरा ही रहता है।

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यही कारण है कि हरी सब्जियों के रंग को बनाए रखने के लिए कई बार पकाते समय उनमें कुछ खाने वाला सोडा डाल देते हैं जिससे माध्यम क्षारीय हो जाए और उनके रंग में परिवर्तन न हो, परन्तु खाने वाले सोडे या बेकिंग सोडे के प्रयोग से खाद्य पदार्थ में उपस्थित थायमिन और विटामिन सी की काफी मात्रा नष्ट हो जाती है। हरी पत्तेदार सब्जियों के उत्तम रंग को बनाए रखने के लिए पहले कुछ मिनटों के लिए उन्हें ढकना नहीं चाहिए और खुले बर्तन में ही पकाना चाहिए।

2. कैरोटीनॉयड्स (Carotenoids): सब्जियों या फलों का लाल रंग कैरोटीनॉयड्स के कारण होता है। जब लाल सब्जियाँ या फल जैसे गाजर, आडू आदि को पकाया जाता है तो इनका लाल रंग पानी में बाहर आ जाता है और यह स्वयं पीले रंग के हो जाते हैं। अम्लीय माध्यम में इनका लाल रंग वैसा ही रहता है तथा क्षारीय माध्यम में इनका रंग नीलेपन पर आ जाता है। अतः लाल रंग की गाजर, आडू आदि को पकाते समय थोड़ा सा नींबू डालकर माध्यम को अम्लीय करने से उनका रंग वैसा का वैसा ही बना रहता है।

3. फ्लेवोनॉयड्स (Flevonoids): सब्जियों या फलों का पीला रंग फ्लेवोनॉयड्स के कारण होता है। जब हल्के पीले रंग वाले फल या सब्जियों जैसे प्याज, सेब आदि को क्षारीय पानी में धोते हैं और पकाते हैं तो उनका रंग गहरा पीला या भूरा हो जाता है, अतः इसके क्षारीय माध्यम के प्रभाव को हटाने के लिए इसमें थोड़ा-सा नींबू का रस या टाटरी डाल दी जाती है।
कई बार पानी क्षारीय होने के कारण उसमें पकाए गए चावल पीले हो जाते हैं। इस पीलेपन को चावल पकाते समय उसमें थोड़ा-सा नीबू का रस या टाटरी डालकर रोका जा सकता है।

4. मायोग्लोबिन एवं हीमोग्लोबिन (Mayoglobin and Haemoglobin): मांस का लाल रंग उसमें उपस्थित मायोग्लोबिन एवं हीमोग्लोबिन के कारण होता है। पकाने के ताप द्वारा यह लाल रंग भूरे रंग में बदल जाता है। यही कारण है कि पके हुए मांस का रंग भूरा होता है।

(ख) खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन (Changes in flavour of foods): पकाने पर खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में काफी परिवर्तन आता है तथा यह परिवर्तन उस खाद्य पदार्थ की प्राकृतिक सुगन्ध, उसमें डाले गए मिर्च-मसालों या अन्य पदार्थों पर निर्भर करती है। अच्छी सुगन्ध वाले खाद्य पदार्थ हमारी ज्ञानेन्द्रियों को उत्तेजित करते हैं तथा मुँह में लार रस स्रावित होने लार रस भोजन में उपस्थित कार्बोज के पाचन में सहायता करता है। पकाने पर खाद्य पदार्थों की सुगन्ध में परिवर्तन उनमें हुए कई भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तनों के कारण होता है।

कच्चे मांस, मछली एवं मुर्गे की गन्ध अच्छी नहीं लगती परन्तु पकने के पश्चात् मिर्च-मसालों की सुगन्ध के कारण उसमें जो सुगन्ध उत्पन्न होती है, उसके कारण वही मांस अच्छा लगने लगता है। कॉफी की विशेष सुगन्ध, कॉफी के बीजों को भूनने और पीसने पर ही उत्पन्न होती है अन्यथा कच्चे कॉफी के बीजों में कोई सुगन्ध नहीं होती है।

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खाद्य पदार्थों की प्राकृतिक सुगन्ध को बनाए रखने के लिए उन्हें आवश्यकता से अधिक नहीं पकाना चाहिए, ठीक ताप पर पकाना चाहिए तथा जहाँ तक सम्भव हो, मिर्च-मसाले खाद्य पदार्थ के पकने के पश्चात् ही डालने चाहिए। यदि मिर्च-मसाले जल्दी डाल दिए जाएँ तो खाद्य पदार्थ की प्राकृतिक सुगन्ध पर कुप्रभाव पड़ता है।

(ग) खाद्य पदार्थों की प्रकृति में परिवर्तन (Changes in nature of foods): पकाने से खाद्य पदार्थ की प्रकृति पर बहुत प्रभाव पड़ता है। कुछ खाद्य पदार्थ पकाने के ताप द्वारा मुलायम हो जाते हैं तो कुछ खाद्य पदार्थ ताप द्वारा कड़े हो जाते हैं। प्रत्येक खाद्य पदार्थ अपनी एक विशेष प्रकृति के कारण ही अच्छा लगता है।

1. कार्बोज (Carbohydrates): कार्बोज स्टार्च एवं शर्करा के रूप में ग्रहण की जाती है। जब कच्ची अवस्था में स्टार्च को ग्रहण किया जाता है तो वह आसानी से नहीं पचता । शुष्क ताप या बेकिंग की विधि को डेक्सट्रीन में परिवर्तित करती है जो कि शीघ्र व सरलता से पचने वाला होता है। उबलने की क्रिया द्वारा श्वेतसार के कण अधिक मुलायम होकर फूल जाते हैं। द्रवणांक बिन्दु (Boiling Point) पर पहुँचने पर सेल्यूलोज का आवरण फट जाता है तथा श्वेतसार निकलकर द्रव पदार्थ में मिल जाता है।

द्रव पदार्थ गाढ़ा हो जाता है। यही कारण है कि किसी तरल खाद्य पदार्थ को गाढ़ा करने के लिए मैदे या किसी अन्य स्टार्च का प्रयोग किया जाता है। शुष्क उष्णता से शक्कर जलकर भूरे रंग की शक्कर (Caramel Sugar) बन जाती है तथा और अधिक गर्म होने पर जल जाती है। आर्द्र विधि में गन्ने की शक्कर द्वारा मुरब्बे इत्यादि बनाए जाते हैं।

2. प्रोटीन (Protein): ताप द्वारा कुछ वानस्पतिक प्रोटीन के पौष्टिक मूल्य में वृद्धि होती है तथा भोज्य पदार्थों को पकाने से अधिक पाचनशील बन जाते हैं । उबला दूध कच्चे दूध की अपेक्षा अधिक पाचनशील है। इसका कारण उबले हुए दूध पर रेनिन की क्रिया से जठर में वह सरल प्रकार के दही के कणों के रूप में फटती है और इस क्रिया द्वारा वह शीघ्र पच जाता है।

प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं –
(अ) घुलनशील
(ब) मांसपेशीय

(अ) घुलनशील प्रोटीन दूध, रक्त प्लाज्मा और अण्डे की सफेदी में पाया जाता है। जब इन्हें गर्म करते हैं तो उनकी रचना में अन्तर आ जाता है। ताप में घुलनशील प्रोटीन जमकर ठोस (Coagulate) हो जाता है। जब अण्डे को अधिक. उबाला जाता है तो उसकी सफेदी का ऐल्ब्यूमिन घुलनशीलता के गुण को त्याग कर सख्त अघुलनशील ठोस पदार्थ का रूप धारण कर लेता है। इसलिए अण्डा चाहे उबाला जाए या फेंटकर घी में पकाया जाए परन्तु पकाने की क्रिया में तापक्रम कम ही होना चाहिए नहीं तो उसका प्रोटीन कड़ा हो जाएगा।

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(ब) मांसपेशियों का प्रोटीन लचीले (elastic) रेशों से बना होता है। पकाने से ये रेशे सिकुड़ जाते हैं। यह आम धारणा है कि पकाने से मांस के प्रोटीन का अभिपचन अधिक सरल हो जाता है। परन्तु ऐसा नहीं है, पकाने से केवल मांसपेशियों के रेशों को घेरे हुए संयोजक ऊतकों (Connective tissues) के मजबूत रेशे नरम व कमजोर हो जाते हैं जिससे पाचक रस प्रोटीनों तक सरलता से पहुँच सकता है। मछली मांस की भाँति पकाने से अधिक पाचनशील हो जाती है। इसके संयोजक ऊतक ताप से छिन्न-भिन्न हो जाते हैं जिससे वह नरम हो जाते हैं। ताप से एक और लाभ होता है कि पकाने में मछली में वह एन्जाइम नष्ट हो जाता है जो थायमिन को नष्ट करता है।

3. वसा (Fats): साधारण पकाने में वसा की रासायनिक रचना और उसके पोषक मूल्य में कोई परिवर्तन नहीं होता। जमा हुआ वसा पिघल जाता है और जलांश बुलबुले को आवाज के साथ बाहर निकल जाता है। अधिक गर्म करने पर उसमें से अधिक धुआँ निकलता है और वह जलने लगता है। अत्यधिक ताप पर गर्म करने पर ग्लिसरॉल और स्निग्ध अम्ल तत्त्व विभक्त हो जाते हैं तथा उसमें से एकरोलीन (Acrolein) नामक तत्त्व धुएँ के रूप में निकलता है जो गले. में खरखराहट व अपच उत्पन्न करता है। एकरोलीन अश्रु गैस का कार्य करती है जिससे नेत्रों में कष्ट होता है। जब वसा को बहुत समय तक गर्म किया जाता है तो उसका ऑक्सीकरण हो जाता है। इससे वसा का स्वाद बिगड़ जाता है। ऑक्सीकृत वसा में विटामिन ई नष्ट हो जाता है।

4. खनिज लवण (Mineral Salts): यदि भोज्य पदार्थों को पकाने के बाद उसके पानी को फेंक दिया जाता है तो बहुत से खनिज लवण (मैग्नीशियम, पोटैशियम और सोडियम) नष्ट हो जाते हैं। यदि कठोर जल में सब्जी को उबाला जाता है तो उसका कैल्शियम सब्जी में भी आ जाएगा। पकाने की क्रिया द्वारा लौह लवण आसानी से प्राप्त किया जाता है।

यदि पकाई जाने वाली वस्तु को लोहे की कढ़ाई में पकायी जाए तो लौह लवण की मात्रा में और अधिक वृद्धि हो जाती है। जड़दार तरकारियों को छिलके सहित उबालने से उसमें भोज्य तत्त्वों की मात्रा नष्ट नहीं होती क्योंकि तरकारियों के छिलके ऐसे तत्त्वों से बने होते हैं जिनमें से तत्त्वों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता।

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5. विटामिन (Vitamins): विटामिन-ए और डी वसा में घुलनशील तथा जल में अघुलनशील हैं इसलिए सब्जियों को उबालकर पकाने से यह नष्ट नहीं होते, परन्तु घी में तलकर भोज्य पदार्थ बनाने से विटामिन ए नष्ट हो जाता है। विटामिन डी आँच तथा रोशनी के प्रति स्थिर होने के कारण उष्णता से प्रभावित नहीं होता। विटामिन बी जल में अत्यधिक घुलनशील – होता है इसलिए जल में पकाए हुए भोजन में विटामिन बी का बहुत बड़ा भाग जल में ही घुल जाता है।

ऊँचे तापक्रम पर भोज्य पदार्थ पकाने से विटामिन बी अधिक मात्रा में नष्ट हो जाता है। इसके अतिरिक्त बेकिंग पाउडर में क्षार के कारण भी यह विटामिन शीघ्र नष्ट हो जाता है। धूप में दूध को खुला रखने से राइबोफ्लेविन का कुछ अंश नष्ट हो जाता है। विटामिन सी जल में घुलनशील है और ऊँचे ताप पर नष्ट हो जाता है। भोज्य पदार्थ को जल में घोलकर पकाने से यह घुले हुए जल में घुल जाता है। भोज्य पदार्थ उबालने पर उसके जल को फेंकने से इसकी हानि होती है। हरी पत्तेदार सब्जियों में एक एन्जाइम होता है। जो विटामिन सी को नष्ट कर देता है। इस विटामिन का तनिक से ताँबे की उपस्थिति में भी नाश हो जाता है।

भोजन पकाते समय कुछ सब्जियों में विटामिन की हानि –
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प्रश्न 10.
खाद्य पदार्थों को पकाते समय किन नियमों का पालन करना चाहिए?
अथवा
खाना पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों का ह्रास न हो तथा उन्हें बचाया जा सके, कोई आठ तरीके सुझाएँ।
उत्तर:
खाद्य पदार्थों को पकाते समय हमें निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए –
1. अनाज एवं दालें (Cereals & pulses):
(i) आटे को चोकर सहित प्रयोग करना चाहिए क्योंकि चोकर गेहूँ के दाने की ऊपरी परत होती है और इसमें बी समूह के विटामिन उपस्थित होते हैं। चोकर का प्रयोग न करने से यह विटामिन व्यर्थ हो जाते हैं।

(ii) चावल को कम-से-कम पानी में धोना चाहिए तथा पर्याप्त पानी में भिंगो कर उसी पानी में पकाना चाहिए । बी समूह के विटामिन जो चावल की ऊपरी परत में होते हैं, जल में घुल जाते हैं और यदि इस पानी को फेंक दिया जाए तो यह विटामिन भी व्यर्थ हो जाते हैं।

(iii) दालों को पर्याप्त जल में ही पकाना चाहिए तथा इनको जल्दी गलाने के लिए खाने वाले सोडे का प्रयोग कदाचित् नहीं करना चाहिए क्योंकि सोडे के प्रयोग से माध्यम क्षारीय हो जाने के कारण विटामिन काफी मात्रा में नष्ट हो जाते हैं।

(iv) जहाँ तक सम्भव हो, पकाने के लिए प्रेशर कूकर का प्रयोग करना चाहिए जिससे पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होते तथा भोजन जल्दी पक जाता है।

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2. सब्जियाँ (Vegetables):
(i) सब्जियों को काटने, छीलने से पहले धो लेना चाहिए अन्यथा काफी मात्रा में जल में घुलनशील विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

(ii) सब्जियों का छिलका पतला-पतला उतारना चाहिए क्योंकि मोटे छिलके के साथ बहुत से खनिज लवण और विटामिन भी व्यर्थ हो जाते हैं।

(iii) सब्जियों को हमेशा बड़े-बड़े टुकड़ों में काटना चाहिए जिससे इनकी कम सतह वायु के सम्पर्क में आए तथा ऑक्सीकरण की क्रिया द्वारा अधिक विटामिन ऑक्सीकृत होकर नष्ट न हों।

(iv) सब्जियों को पकाने से बहुत समय पूर्व काट कर नहीं रखना चाहिए। यदि पकाने से बहुत समय पूर्व इन्हें काट कर रख देंगे तो ऑक्सीकरण अधिक होगा और विटामिन अधिक मात्रा में नष्ट होंगे।

(v) सब्जियों को पकाते समय कम-से-कम पानी का प्रयोग करना चाहिए तथा किसी भी दशा में पकाने के लिए प्रयुक्त किए गए पानी को फेंकना नहीं चाहिए। यदि किसी कारणवश पानी अधिक हो जाए तो उसे किसी अन्य कार्य के लिए प्रयोग में लाना चाहिए।

(vi) हरी पत्तेदार सब्जियों में जलांश काफी होता है। अतः जहाँ तक सम्भव हो, इन्हें बिना पानी के ही पकाना चाहिए।

(vii) सब्जियों को पकाने के लिए उबलते हुए पानी में डालना अधिक उचित है क्योंकि उच्च ताप पर एन्जाइम नष्ट हो जाते हैं और विटामिन ऑक्सीकृत नहीं होते तथा नष्ट होने से बच जाते हैं।

(viii) सब्जियों को सदैव ढंक कर पकाना चाहिए परन्तु हरी पत्तेदार सब्जियों के उत्तम रंग को बनाए रखने के लिए इन्हें केवल कुछ मिनटों तक खुला पकाना चाहिए और फिर ढंक देना चाहिए।

(ix) पकाने के पश्चात् सब्जियों को बार-बार गर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से बहुत से विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

(x) कछ मात्रा में सलाद के रूप में कच्ची सब्जियों का अवश्य प्रयोग करना चाहिए जिससे । पोषक तत्त्वों के साथ-साथ भोजन आकर्षक एवं स्वादिष्ट भी लगे।

3. फल (Fruits):

  • फलों को कच्चा ही प्रयोग में लाना चाहिए। केवल रोगियों को या बच्चों को फलों का स्ट्यू बनाकर दिया जाना चाहिए।
  •  जिन फलों के छिलकों को प्रयोग में लाया जा सके, उन्हें छिलकों सहित ही खाना चाहिए या उनके छिलकों को किसी और रूप में प्रयोग में लाना चाहिए।
  • फलों को खाते समय ही काटना चाहिए तथा काटकर नहीं रखना चाहिए।
  • फलों को ताजा ही खा लेना चाहिए क्योंकि बासी फल की पौष्टिकता कम हो जाती है और इसमें उपस्थित पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

4. दूध (Milk):

  • दूध को धूप के सीधे सम्पर्क में नहीं रखना चाहिए। इसे अंधेरे तथा ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।
  • दूध को आवश्यकता से अधिक नहीं उबालना चाहिए।

5. अंडे (Eggs):

  • अण्डों को बहत अधिक ताप तथा बहत अधिक समय तक नहीं पकाना चाहिए।
  • अण्डों को पोंछकर ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए।

6. मांस, मछली, मुर्गा आदि (Meat, fish, chicken) :

  • इन्हें पर्याप्त जल में ही पकाना चाहिए तथा पकाने के लिए प्रयुक्त जल को फेंकना नहीं चाहिए ।
  • इन्हें बहुत अधिक ताप पर नहीं पकाना चाहिए क्योंकि अधिक ताप पर प्रोटीन कड़ा होकर अपचय हो जाता है।

7.चाय, कॉफी आदि (Tea, Coffee):

  • इन्हें बनाते समय पानी के साथ उबालना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करने से कुछ हानिकारक तत्त्व इनमें आ जाते हैं ।
  • पहले से बनी हुई चाय को गर्म करके प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

प्रश्न 11.
भोजन के पौष्टिक मान बढ़ाने के क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
लाभ (Advantages): किसी व्यक्ति को पोषण आहार का ज्ञान हो तो वह कम मूल्य में भी पौष्टिक आहार प्राप्त कर सकता है।
1. आहार का मिश्रण-चावल व दालों को समुचित तालमेल में प्रयोग करने से दालों में उपस्थित अधिक लाइसिन चावल में कमी को पूर्ण कर देता है जिससे दोनों खाद्य पदार्थों चावल व दाल की शरीर में उपयोगिता बढ़ जाती है।

2. खाद्य पदार्थों का अधिक सुपाच्य होना-विभिन्न विधियों के प्रयोग से खाद्य पदार्थ अधिक सुमपाच्य हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों में उपस्थित पोषक तत्त्वों की रासायनिक संरचना में कुछ ऐसे परिवर्तन आते हैं कि यह पाचक रसों से जल्दी विघटित होकर छोटी आंत से सरलतापूर्वक अवशोषित हो जाते हैं। उदाहरण के लिए अंकुरण की क्रिया में दालों में उपस्थित कार्बोज में कुछ ऐसे रासायनिक परिवर्तन आते हैं जिससे कार्बोज अधिक पाचनशील हो जाते हैं तथा अंकुरित दाल. कच्ची खाने पर भी पच जाती है।

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3. सीमित व्यय में अधिक पौष्टिक तत्त्व प्राप्त होना-भारतीय जनता की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें संतुलित आहार प्राप्ति हेतु सभी खाद्य पदार्थों के सेवन के लिए नहीं कहा जा सकता है। अत: आज के युग की माँग है कि अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार उपलब्ध खाद्य पदार्थों का ही पौष्टिक मान बढ़ाया जाए।

4. खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट होना-पौष्टिक मान बढ़ाने के लिए विभिन्न विधियों के प्रयोग से खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट हो जाते हैं तथा व्यक्ति इन्हें अधिक रुचि से खाते हैं। उदाहरण के लिए चावल और उड़द की दाल से बना डोसा, चावल और दाल की खिचड़ी आदि से अधिक स्वादिष्ट लगता है। इसी प्रकार चने की दाल का बड़ा, चने की दाल से अधिक स्वादिष्ट लगता है।

प्रश्न 12.
खाद्य पदार्थों के पोषण मान बढ़ाने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं ?
उत्तर:
खाद्य पदार्थों के पोषण मान बढ़ाने की विधि-भोजन का पौष्टिक मान निम्न प्रकार से बढ़ाया जा सकता है:

  • भोज्य पदार्थों के पौष्टिक मूल्य को बढ़ाना (Enchanging the nutritive value of foods)
  • भिन्न प्रकार के भोज्य समूह को मिलाकर (Nutritious Combination of different kind of food stuffs)
  • भोजन पकाते समय पौष्टिक तत्त्वों को बचाकर रखना (Adopting methods of cooking which helps to conserve nutrient losses)
  • भोज्य पदार्थों को खरीदते समय सावधानी (Better buying of Foods)

1. भोजन का पौष्टिक मूल्य बढ़ाना:
अंकुरण (Germination): भोजन का पौष्टिक मूल्य बढ़ाने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण विधि है। अन्न व दालों दोनों को ही अंकुरित कर सकते हैं। भोजन में अन्न का प्रमुख स्थान है। अन्न से शरीर को ऊर्जा एवं आवश्यक पोषक तत्त्व आसानी से मिल जाते हैं। दालों का उपभोग भी लगभग सभी व्यक्ति करते हैं। यह शाकाहारी लोगों के लिए प्रोटीन प्राप्ति का अच्छा साधन है।

अंकुरण करने की विधि (Method of Sprouting):
1. अनाज या दाल को बीनकर धो लें। अन्दाज से पानी डालकर 10 से 12 घण्टे तक भिंगों दें।

2. भीगे हुए दाल या अनाज को गीले या मलमल के कपड़े में ढीला बाँध दें। 24-28 घण्टे में अंकुर निकल सकते हैं। बीच-बीच में नमी रखने के लिए पानी छिड़कते रहें। नमी व गर्मी के कारण अंकुर निकल आएँगे। अंकुर निकलने का समय वातावरण के तापमान पर निर्भर करता है। गर्म मौसम में अंकुरण जल्दी निकलते हैं। ठण्डे में समय अधिक लगता है। अंकुरित दाल व अन्न को विभिन्न तरीकों से उपयोग करके भोजन को पौष्टिक एवं स्वादिष्ट बना सकते हैं।

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उपयोग:

  1. गेहूँ के आटे में कुछ मात्रा में अंकुरित दालों अथवा बाजरे के आटे को मिला देने से आहार की पौष्टिकता बढ़ जाती है।
  2. अंकुरित गेहूँ को छाया में सुखा कर हल्का भून कर दलिया बना लें। यह बच्चों को दे सकते हैं।
  3. अंकुरित दालों एवं रागी इत्यादि को सुखाकर, हल्का भूनकर पीसकर छान लें। यह आटा दूध व चीनी मिलाकर छोटे बच्चों को खिलाइए।
  4. अंकुरित दालों को नीबू का रस व नमक मिला कर कच्चा भी खाया जा सकता है।

अंकुरण से लाभ (Advantages of Germination) अंकुरित करने से दालों में पाए जाने वाले रासायनिक एन्जाइम्स क्रियाशील हो जाते हैं और दालों की पौष्टिकता को बढ़ा देते हैं।

1. विटामिनों की बढ़ोतरी (Increase in Vitamins): दालों व अनाजों में विटामिन सी लगभग न के बराबर होता है। केवल 24 घण्टे अंकुरित करने से विटामिन सी काफी मात्रा में उत्पन्न हो जाता है। अंकुरण के पश्चात् विटामिन सी दस गुना बढ़ जाता है। यह विटामिन हमारी त्वचा व मसूढ़ों की मजबूती बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है। नायसिन व बी कम्पलेक्स के अन्य विटामिन 2.3 गुना बढ़ जाते हैं।

अंकरित करने से पौष्टिकता पर प्रभाव –
चना 100 ग्राम
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2. खनिज लवणों की अधिक प्राप्ति-यह देखा गया है कि दालों में कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जो पौष्टिक तत्त्वों को ग्रहण करने में बाधा डालते हैं। ऐसे पदार्थ अंकुरित करने पर नष्ट हो जाते हैं। पचने योग्य लोहे खनिज की मात्रा बढ़ जाती हैं।

3. पोषण विरोधी तत्त्वों का नष्ट होना-खाद्य पदार्थों में कुछ पोषण विरोधी तत्त्व होते हैं जो विशेष तत्त्वों के उपभोग में बाधा डालते हैं। अंकुरण की प्रक्रिया के दौरान ये. नष्ट हो जाते हैं। पोषक तत्त्व शरीर में उपयोग हो जाता है।

4. खाद्य पदार्थ अधिक पाचनशील-दालों में उपस्थित प्रोटीन अंकुरण के बाद आसानी से पच जाता है। कठिनाई से पचने वाली दालें जैसे कि सोयाबीन, अंकुरण के बाद आसानी से पच जाती हैं।

5. खाद्य पदार्थों का पकने में कम समय लगना-अंकुरण के दौरान दालों का बाहरी छिलका ढीला पड़ जाता है। परिणामस्वरूप दालें शीघ्र पक जाती हैं।

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6. बच्चों के लिए एक पौष्टिक आहार-अंकुरित दालों को बच्चों के भोजन में निःसंकोच दिया जा सकता है। क्योंकि अंकुरित करने से वायु बनाने वाले पदार्थ कम हो जाते हैं।

7. ईंधन की बचत-अंकुरित दालें शीघ्र पक जाने के कारण ईंधन की बचत भी होती है।

खमीरीकरण (Fermentation): इस विधि द्वारा अनुकूल वातावरण से खाद्य पदार्थों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कुछ विशेष प्रकार के वांछनीय (Desirable) जीवाणु तेजी से बढ़ते हैं। ये जीवाणु सूक्ष्म होते हैं। वायुमण्डल की भाँति यह मिट्टी में विद्यमान रहते हैं। इन्हीं जीवाणुओं के कारण फलों के रस, तरल पदार्थ, शर्करा, आटा आदि में खमीरीकरण की क्रिया होती है।

यह वायु के बुलबुलों के रूप में दिखाई देता है तथा खाद्य पदार्थों के स्वाद में भी अन्तर आ जाता है। जीवाणु उपयुक्त स्थल व तापक्रम पाने से 90°F से 102°F पर) अत्यधिक क्रियाशील हो जाता है। खमीरीकरण में कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर निकलती है जो कि बुलबुलों के रूप में दिखाई देता है।

खमीरीकरण की विधि (Method of Fermentation):

  • खमीर उठाने के लिए अनाज व दालों को पानी में भिंगों देते हैं।
  • फिर महीन पिट्ठी पीस लें। जितना बारीक खाद्य पदार्थों को पीसा जाएगा, उतना अच्छा खमीर उठेगा।
  • पिट्ठी को एक बड़े बर्तन में डाल कर थोड़ा-सा नमक या चीनी मिलाकर रख दें। नमक व शक्कर खमीर उठाने में सहायता करते हैं। इस क्रिया में जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड बनाते हैं जिससे पिट्ठी साधारण मात्रा में दुगनी या तिगुनी बढ़ जाती है। अतः पिट्ठी को बड़े बर्तन में रखते हैं ताकि बर्तन से बाहर न निकले।
  • पिट्ठी को अच्छी तरह फेंट कर खमीर उठाने के लिए रखें। गर्मी के दिनों में खमीर जल्दी उठता है। सर्दी के मौसम में खमीर जल्द उठाने के लिए पिट्ठी में थोड़ा-सा दही भी मिला सकते हैं। बर्तन को चारों ओर से मोटे कपड़े से लपेट कर रखना चाहिए।
  • अनाज व दालों में प्रायः खमीर उठाया जाता है। कभी-कभी दाल व अनाज को अलग-अलग खमीर उठाते हैं और कभी दोनों को मिलाकर। अनाज व दाल के मिश्रित घोल में खमीर उठायें तो अच्छा रहता है क्योंकि इससे स्वाद बढ़ जाता है।

खमीरीकरण से लाभ (Advantages of Fermentation): खमीर उठाने की क्रिया में भोज्य पदार्थ में कुछ परिवर्तन आ जाते हैं जिनके कारण भोज्य पदार्थ अधिक पौष्टिक हो जाते हैं ।

  • खाद्य पदार्थ का पोषक मान बढ़ता है-इस क्रिया से निकोटिनिक अम्ल तथा राइबोफ्लेविन बढ़ जाते हैं।
  • खाद्य पदार्थ का अधिक पाचनशील होना-खमीर की प्रक्रिया में जीवाणुओं द्वारा एन्जाइम बनाते हैं। इनके द्वारा शर्करा तथा प्रोटीन का आशिक पाचन हो जाता है।
  • अधिक प्रोटीन-खमीर से दालों में उपस्थित, ट्रिपसिन प्रतिरोधक भी खण्डित हो जाता है, जिससे शरीर को अधिक मात्रा में प्रोटीन उपलब्ध हो जाता है।
  • खनिज लवण, लोहे की अधिक प्राप्ति-खमीरीकरण द्वारा खाद्य पदार्थ में उपस्थित लोहे की सम्पूर्ण मात्रा हमें आसानी से उपलब्ध हो जाती है।
  • खाद्य पदार्थ का अधिक स्वादिष्ट होना-भोज्य पदार्थ का स्वाद तथा बनावट भी अच्छी हो जाती है। खमीरीकरण द्वारा भोज्य पदार्थ में खटास आ जाती है। उदाहरण भठूरे, इडली, डोसा, कांजी आदि।

खमीर का उपयोग (Uses of Fermentation) :

  • डबल रोटी बनाने में यीस्ट या खमीर का उपयोग होता है।
  • अंकुरित जौ (Barley) से बीयर (Beer) बनाई जाती है। जौ को पानी में भिंगोकर उचित ताप में अंकुरित कराते हैं। इसका स्टार्च विकारों के कारण शक्कर में बदल जाता है
  • अंगूर के रस के यीस्ट द्वारा खमीरीकरण से शराब बनाई जाती है। खमीर घर में बनाया जा सकता है तथा बाजार में भी खमीर के पैकेट मिलते हैं जिनकी सहायता से कई खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं।

II. भोजन का मिश्रण (Combination of Foods): यदि भोजन भोज्य समूहों के खाद्यों से मिलाकर तैयार किया जाए तो वह संतुलित और उत्तम श्रेणी का हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर गेहूँ का आटा, दाल का आटा और मूंगफली का आटा मिलाकर भोजन का मिश्रण तैयार किया जाए और उस मिश्रण की रोटियाँ बनाई ज्ञाएँ तो उसका प्रोटीन दूध के प्रोटीन के समान गुणकारी बन जाता है।

Bihar Board Class 11 Home Science Solutions Chapter 13 पौष्टिक आहार : उचित चयन, तैयारी, पकाना तथा संग्रह

लाभ (Advantages):
1. प्रोटीन की उपयोगिता बढ़ाना-विभिन्न खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर प्रयोग करने से उनमें उपस्थित प्रोटीन की उपयोगिता बढ़ जाती है। हम पिछले अध्यायों में पढ़ चुके हैं कि प्रोटीन की किस्म या उपयोगिता उनमें उपस्थित अनिवार्य अमीनो अम्लों पर निर्भर करती है। जिन खाद्य पदार्थों में अधिक अनिवार्य अमीनो अम्ल पाए जाते हैं वह खाद्य पदार्थ प्रोटीन के उतने ही अच्छे साधन माने जाते हैं। खाद्य पदार्थों विशेषकर वानस्पतिक खाद्य पदार्थों में कोई अमीनो अम्ल अधिक मात्रा में उपस्थित होता है तो कोई दूसरा अमीनो अम्ल बहुत कम मात्रा में या बिल्कुल नहीं होता है।

ऐसी स्थिति में एक खाद्य पदार्थ की कमी को दूसरी खाद्य पदार्थ द्वारा पूरा किया जा सकता है। उदाहरण के लिए अनाजों में अमीनो अम्ल लाइसिन तथा दालों में अमीनो अम्ल मिथायोनिन कम मात्रा में पाए जाते हैं और अनाजों में अमीनो अम्ल मिथायोनिन तथा दालों में अमीनो अम्ल लाइसिन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। अतः जब अनाजों और दालों के मिश्रण. का प्रयोग करते हैं तो उनमें दोनों ही अनिवार्य अमीनो अम्ल उचित मात्रा में हो जाते हैं।

2. खाद्य पदार्थ का पौष्टिक मान बढ़ाना-इस अनाज और दाल के मिश्रण में यदि सब्जियों का प्रयोग भी किया जाए तो सब्जियों में पाए जाने वाले खनिज लवण और विटामिन भी उचित मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।

3. पकाने में कम समय लगना-यदि हम खाद्य पदार्थों को अलग-अलग पकाएं तो उन्हें तैयार करने में अधिक समय लगता है। जब गृहिणी नौकरी करती हो या किसी कारणवश उसके पास समय कम हो तो विभिन्न खाद्य पदार्थों को मिला-जुला कर पकाने से समय तो कम लगता ही है, पोषक तत्त्व भी अधिक मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं।