Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : संसाधन एवं उपयोग Chapter 6 मानचित्र अध्ययन Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन के लिए हैश्यूर विधि का विकास किसने किया था ?
(क) गुटेनबर्ग
(ख) लेहमान
(ग) गिगर
(घ) रिटर
उत्तर-
(ख) लेहमान ।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
पर्वतीय छायाकरण विधि में भू-आकृतियों पर किस दिशा से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है?
(क) उत्तर-पूर्व
(ख) पूर्व-दक्षिण
(ग) उत्तर-पश्चिम
(घ) दक्षिण-पश्चिम
उत्तर-
(ग) उत्तर-पश्चिम

प्रश्न 3.
छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं को ढाल की दिशा में खींचकर उच्चावच प्रदर्शन की विधि को क्या कहा जाता है ?
(क) स्तर रंजन
(ख) पर्वतीय छायाकरण
(ग) हैश्यूर
(घ) तल चिह्न
उत्तर-
(ग) हैश्यूर

प्रश्न 4.
तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊँचाई को क्या कहा जाता
(क) स्थानिक ऊँचाई.
(ख) विशेष ऊँचाई
(ग) समोच्च रेखा
(घ) त्रिकोणमितीय स्टेशन
उत्तर-
(क) स्थानिक ऊँचाई.

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 5.
स्तर रंजन विधि के अंतर्गत मानचित्रों में नीले रंग से किस भाग को दिखाया जाता है ?
(क) पर्वत
(ख) पठार
(ग) मैदान
(घ) जल
उत्तर-
(घ) जल

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हैश्यूर विधि तथा पर्वतीय छायाकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हैश्यूर विधि इस विधि के अन्तर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं की सहायता से उच्चावच को निरूपित करते हैं। ये रेखाएँ ढाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं।

पर्वतीय छायाकरण विधि- इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

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प्रश्न 2.
तल चिह्न और स्थानिक ऊँचाई क्या है ?
उत्तर-
तलचिह्न-वास्तविक सर्वेक्षणों के द्वारा भवनों, पुष्पों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थायी वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गयी ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न कहते हैं। मानचित्र पर ऐसे ऊँचाई को प्रदर्शित करने के लिए ऊँचाई को फीट अथवा मीटर किसी एक इकाई में लिखा जाता है।

स्थानिक ऊँचाई तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊंचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊंचाई संख्या में लिख दी जाती है।

प्रश्न 3.
समोच्च रेखा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वे कल्पित रेखाएं जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं।
मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. क्रुकुइस ने 1730 में किया था।

प्रश्न 4.
स्तर रंजन क्या है?
उत्तर-
भू-आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर विभिन्न रंगों की अलग-अलग आभाओं द्वारा करना स्तर रंजन कहलाता है। जैसे -समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग द्वारा, मैदान को हरे रंग द्वारा, पर्वतों को बादामी रंग द्वारा, ऊँची जमीन को भूरे रंग द्वारा इत्यादि।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 5.
समोच्च रेखाओं द्वारा शंक्वाकार पहाड़ी का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
जिस प्रदेश की ऊँचाई 1000 मी. से कम हो वह शंक्वाकार पहाड़ी कहलाता है और इससे अधिक ऊँचाई वाले भाग को पर्वत कहते हैं। इसके प्रदर्शन के लिए समोच्च रेखाएँ गोलाकार होती हैं जिनका मान भीतर की ओर बढ़ता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन की प्रमुख विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
(i) हैश्यूर विधि-इस विधि के अन्तर्गत मानचित्र में छोटी, महीन एवं खंडित रेखाओं की सहायता से उच्चावच को निरूपित करते हैं। ये रेखाएँ ढाल की दिशा अथवा जल बहने की दिशा में खींची जाती हैं।

पर्वतीय छायाकरण विधि-इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों कर पर उत्तर-पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

(ii) तल चिह्न वास्तविक सर्वेक्षणों के द्वारा भवनों, पुष्पों, खंभों, पत्थरों जैसे स्थायी वस्तुओं पर समुद्र तल से मापी गयी ऊँचाई को प्रदर्शित करने वाले चिह्न को तल चिह्न कहते हैं। मानचित्र पर ऐसे ऊँचाई को प्रदर्शित करने के लिए ऊंचाई को फीट अथवा मीटर किसी एक इकाई में लिखा जाता है।

स्थानिक ऊँचाई तल चिह्न की सहायता से किसी स्थान विशेष की मापी गई ऊंचाई को स्थानिक ऊँचाई कहा जाता है। इस विधि के द्वारा मानचित्र में विभिन्न स्थानों की ऊँचाई संख्या में लिख दी जाती है।

(iii) वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं। .. मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. क्रुकुइस ने 1730 में किया था।

(iv) भू-आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर विभिन्न रंगों की अलग-अलग आभाओं द्वारा करना स्तर रंजन कहलाता है। जैसे-समुद्र या जलीय भाग को नीले रंग द्वारा, मैदान को हरे रंग द्वारा, पर्वतों को बादामी रंग द्वारा, ऊँची जमीन को भूरे रंग द्वारा इत्यादि।

(v) त्रिकोणमितीय स्टेशन–इसका संबंध उन बिन्दुओं से है जिनका उपयोग त्रिभुजन विधि (एक प्रकार का सर्वेक्षण) द्वारा करते समय स्टेशन के रूप में उभरा हुआ था। मानचित्र पर त्रिभुज बनाकर उसके बगल में धरातल की समुद्रतल से ऊंचाई लिख दी जाती है।

(vi) आकृतिक विधि-स्थलाकृतिक लक्षणों से मिलते-जुलते प्रतीकों के द्वारा मानचित्र में दृश्य भूमि के प्रदर्शन को आकृतिक विधि कहते हैं।

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प्रश्न 2.
समोच्च रेखा क्या है ? इसके द्वारा विभिन्न प्रकार के ढालों का प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
समोच्च रेखा-वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाते हुए खींची जाती हैं जिनकी ऊंचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं।

विभिन्न पठार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए समोच्च रेखाओं के खींचने या बनाने का प्रारूप अलग-अलग होता है। समोच्च रेखाओं द्वारा ढाल का प्रदर्शन सरलतापूर्वक किया जाता है जिसका विवरण निम्न है

  • एक समान ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाओं को समान दूरी पर खींचा जाता है।
  • खड़ी ढाल को दिखाने के लिए समोच्च रेखाएँ पास-पास बनाई जाती हैं, जबकि मंद ढाल के लिए इन रेखाओं को दूर-दूर बनाया जाता है।
  • जब किसी मानचित्र में अधिक ऊँचाई की समोच्च रेखाएँ पास पास तथा कम ऊँचाई की समोच्च रेखाएं दूर-दूर बनी होती हैं तो समझना चाहिए कि इन समोच्च रेखाओं का समूह अवतल ढाल का प्रदर्शन कर रहा है। इसके विपरीत स्थिति उतल ढाल का प्रतिनिधित्व करती है।
  • सीढ़ीनुमा ढाल के लिए समोच्च रेखाएं अंतराल पर परंतु दो या तीन रेखाएँ एक साथ जोड़ में बनाई जाती हैं।

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
यदि समोच्च रेखाएं एक-दूसरे से बहुत अधिक दूरी पर खींची गयी हों, तो इनसे किस प्रकार की भूआकृति का प्रदर्शन होता है ?
(क) धीमी ढाल
(ख) खड़ी ढाल
(ग) सागर तल
(घ) सीढ़ीनुमा ढाल
उत्तर-
(क) धीमी ढाल

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
यदि भूमि की ढाल को छोटी-छोटी और सटी हुयी रेखाओं से प्रदर्शित किया गया हो, तो इसे क्या कहा जाता है ?
(क) छायालेखन
(ख) हैश्यूर
(ग) समोच्च रेखाएँ
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ख) हैश्यूर

प्रश्न 3.
यदि समोच्च रेखाओं द्वारा किसी नदी को प्रदर्शित करने में दो से अधिक रेखाएँ.एक ही बिंदु पर मिलती दिखायी गयी हों तो उस स्थान पर किस प्रकार की भूआकृति का अनुमान लगाया जाता है ?
(क) झील
(ख) पहाड़
(ग) जलप्रपात
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) जलप्रपात

प्रश्न 4.
जब समोच्च रेखाएँ संकेंद्रीय वृत्ताकार हों जिनके बीच की वृत्तीय रेखा अधिक ऊँचाई प्रदर्शित करती हो तो इससे किस प्रकार की भूआकृति का अनुमान लगाया जाता है ?
(क) पहाड़
(ख) पठार
(ग) नदीघाटी
(घ) जलप्रपात
उत्तर-
(क) पहाड़

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 5.
उच्चावच प्रदर्शन की हैश्यूर विधि का विकास किसने किया था ?
(क) गुटेनबर्ग
(ख) लेहमान
(ग) शिगर
(घ) रिटर
उत्तर-
(ख) लेहमान

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
समोच्च रखाएँ क्या हैं ?
उत्तर-
वे कल्पित रेखाएँ जो मानचित्र पर स्थित उन सभी स्थानों को मिलाती हैं जिनकी ऊँचाई समुद्र तल से समान हो, समोच्च रेखाएँ कहलाती हैं। मानचित्र पर इन समोच्च रेखाओं को बादामी रंग से दिखाया जाता है। इसका प्रतिपादन एक डच अभियंता एन. कुकुइस ने 1730 ई. में किया था।

प्रश्न 2.
किसी देश के मानचित्र में हरे रंग का प्रयोग किस प्रकार के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिये किया जाता है?
उत्तर-
किसी देश के मानचित्र में हरे रंग का प्रयोग मैदानों के उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
हैश्यर से आप क्या समझते हैं ? इसका प्रयोग किस काम के लिए किया जाता है?
उत्तर-
मानचित्र बनाने में भूमि की ढाल दिखाने के लिए छोटी-छोटी और सटी रेखाओं से काम लिया जाता है, जिन्हें हैश्यूर कहते हैं। खड़ी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अधिक छोटी और सटी रेखाएँ तथा धीमी ढाल प्रदर्शित करने के लिए अपेक्षाकृत बड़े और दूर-दूर रेखा चिन्ह खींचे जाते हैं। समतल भाग के लिए रेखा चिह्न नहीं खींचे जाते, ये भाग खाली छोड़ दिए जाते हैं।
इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। ऊँचाई का सही ज्ञान नहीं हो पाता है। इस विधि में रेखाचिह्नों को खींचने में अधिक समय लगता है। समोच्च रेखा वाले मानचित्र में छोटी आकृतियों को प्रदर्शित करने के लिए यह विधि अपनायी जाती है। इस विधि का विकास आस्ट्रेलिया के एक सैन्य अधिकारी लेहमान ने किया था।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

प्रश्न 2.
समोच्च रेखाएँ (Contoursor Contour line) क्या हैं ?
उत्तर-
समुद्र की सतह के समानांतर समान ऊँचाई वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखा समोच्च रेखा कहलाती है। विभिन्न ऊंचाई के लिए विभिन्न समोच्च रेखाएँ खींची जाती हैं जो एक दूसरे से कभी नहीं कटती हैं। जिस भू-भाग में खड़ी ढाल रहती है, वहाँ यह रेखाएँ सटी और घनी नजर आती हैं। इसके विपरीत कम ढाल आने पर ये दूर हो जाती हैं। प्रत्येक समोच्च रेखा पर ऊँचाई के अंक अंकित किए जाते हैं।

ऊँचाई-गहराई दिखाने की यह सर्वोत्तम विधि है। इस विधि से पहाड़, पठार, नदी घाटी, जल प्रपात या विभिन्न प्रकार की ढाल को भली-भाँति दिखाया जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चावच प्रदर्शन में पर्वतीय छाया विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वतीय छायाकरण विधि- इस विधि के अन्तर्गत उच्चावच प्रदर्शन के लिए भू-आकृतियों पर उत्तर-पश्चिम कोने पर ऊपर से प्रकाश पड़ने की कल्पना की जाती है। इसके कारण अंधेरे में पड़ने वाले हिस्से को या ढाल को गहरी आभा से भर देते हैं जबकि प्रकाश वाले हिस्से या कम ढाल को हल्की आभा से भर देते हैं या खाली छोड़ देते हैं।

इस विधि से स्थलाकृति का साधारण ज्ञान तो प्राप्त किया जा सकता है, पर सही-सही ऊँचाई या निचाई का पता नहीं लगाया जा सकता है और न ढाल की यथेष्ट जानकारी ही मिल सकती है। लघु मापक मानचित्रों में यह विधि काम में लायी जा सकती है।

प्रश्न 2.
रंग विधि से उच्चावच प्रदर्शन किस प्रकार किया जाता है ? समझाकर लिखें।
उत्तर-
रंग विधि या स्तर-रंजन में स्थल के विभिन्न भागों को विभिन्न रंगों से भी दिखाया जाता है। साधारणत: मैदान को हरे रंग से और पहाड़ को या पठार को भूरे रंग से दिखाया जाता है। भूरे रंग के साथ हल्के गुलाबी रंग का भी प्रयोग किया जा सकता है। बर्फीला भाग सफेद रंग से एवं जलीय भाग या समुद्र नीले रंग से प्रदर्शित किया जाता है। मरुभूमि पीले रंग से दिखायी जाती है। रंगों के अभाव में काली स्याही के विभिन्न स्तरों से ही काम लिया जाता है। – यह विधि भी दोष से युक्त नहीं है। इसमें भी ऊँचाई-निचाई का ठीक-ठीक पता नहीं चलता । है। उदाहरण के लिए, 0 m से 100 m तक ऊँची भूमि के लिए जब एक ही रंग का प्रयोग किया । जाता है तो भूमि की वास्तविक ढाल नहीं जानी जा सकती है।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन

Bihar Board Class 10 Geography मानचित्र अध्ययन Notes

  • पूरे भू-पटल या इसके एक भाग की समतल सतह पर समानुपाती प्रदर्शन मानचित्र कहलाता
  • जब धरातल की विभिन्न आकृतियों का प्रदर्शन मानचित्र पर किया जाता है तो उसे उच्चावच मानचित्र कहा जाता है।
  • मानचित्र पर जमीन या मैदान को हरे तथा पीले रंग से, ऊँची जमीन को भूरे रंग से तथा अधिक ऊँची जमीन को अधिक भूरे रंग से दिखाया जाता है।
    Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 6 मानचित्र अध्ययन - 1

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : संसाधन एवं उपयोग Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Geography बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
2001 में बिहार की कल जनसंख्या थी-
(क) 8 करोड़ से कम
(ख)-9 करोड़ से अधिक
(ग) 8 करोड़ से अधिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) 8 करोड़ से अधिक

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 2.
1991-2001 के दौरान बिहार की जनसंख्या वृद्धि दर है
(क) 30 प्रतिशत
(ख) 28 प्रतिशत
(ग) 28.63 प्रतिशत
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) 28.63 प्रतिशत

प्रश्न 3.
बिहार में ग्रामीण आबादी है
(क) 89.5 प्रतिशत
(ख) 79.5 प्रतिशत
(ग) 99.5 प्रतिशत
(घ) शून्य प्रतिशत
उत्तर-
(क) 89.5 प्रतिशत

प्रश्न 4.
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रतिवर्ग किलोमीटर कितने व्यक्ति रहते हैं ?
(क) 772 व्यक्ति
(ख) 881 व्यक्ति
(ग) 981 व्यक्ति
(घ) 781 व्यक्ति
उत्तर-
(ख) 881 व्यक्ति

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 5.
सबसे अधिक आबादी वाला कौन जिला है ?
(क) भागलपुर
(ख) पटना
(ग) नालन्दा
(घ) मुंगेर
उत्तर-
(ख) पटना

प्रश्न 6.
सासाराम नगर का विकास हुआ था
(क) मध्ययुग में
(ख) प्राचीन युग में
(ग) वर्तमान युग में
(घ) आधुनिक समय में
उत्तर-
(क) मध्ययुग में

प्रश्न 7.
अविभाजित बिहार में एक मात्र नियोजित नगर था
(क) पटना
(ख) मुंगेर
(ग) टाटानगर
(घ) गया
उत्तर-
(ग) टाटानगर

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 8.
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार की नगरीय आबादी है-
(क) 20.5 प्रतिशत
(ख) 15.5 प्रतिशत
(ग) 10.5 प्रतिशत
(घ) 25.5 प्रतिशत
उत्तर-
(ग) 10.5 प्रतिशत

प्रश्न 9.
बिहार का सबसे बड़ा नगर कौन है ?
(क) पटना
(ख) गया
(ग) भागलपुर
(घ) दरभंगा
उत्तर-
(क) पटना

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिहार के अत्यधिक घनत्व वाले जिलों का नाम लिखें।
उत्तर-
पटना, दरभंगा, वैशाली, बेगूसराय, सीतामढ़ी, सारण एवं सीवान।

प्रश्न 2.
बिहार में अत्यन्त कम घनत्व वाले जिले कौन-कौन हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी चम्पारण, बांका, जमुई और कैमूर।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 3.
बिहार की जनसंख्या आकार को बताइए।
उत्तर-
2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की कुल जनसंख्या 829,98,509 है। इनमें 432,43,795 पुरुष एवं 3,97,54,714 महिलाएं हैं। यहाँ भारत की कुल जनसंख्या का 8.07% है। बिहार में लिंग अनुपात 919 महिलाएँ प्रति हजार पुरुष हैं।

प्रश्न 4.
बिहार की जनसंख्या सभी जगह एक समान नहीं है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
यहाँ जनसंख्या के असमान वितरण का मुख्य कारण है आर्थिक-सामाजिक परिवेश और भौतिक विविधता।
जहाँ भी धरातल समतल जलोढ़ एवं मैदानी है वहाँ घनी आबादी है। जहाँ कृषि कार्य, प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है वहाँ जनसंख्या अधिक है।

प्रश्न 5.
मध्ययुग में बिहार में नगरों का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
मध्यकाल में नगरों का विकास सड़कों के विकास एवं प्रशासनिक कारणों से हुआ था। ऐसे नगरों में सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि हैं।

प्रश्न 6.
दो प्राचीन एवं दो आधुनिक नगरों का नाम लिखिए।
उत्तर-
प्राचीन नगर पाटलीपुत्र, नालन्दा आधुनिक नगर डालमियानगर, मुंगेर।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बिहार की जनसंख्या घनत्व पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
2001 की जनगणना के अनुसार बिहार में प्रतिवर्ग किमी. घनत्व 881 व्यक्ति है। सबसे अधिक घनत्व पटना जिला में है जहाँ प्रति वर्ग किमी. 1,471 व्यक्ति निवास करते हैं। इसके बाद दरभंगा और वैशाली का स्थान आता है। जहाँ क्रमशः 1,342 और 1,332 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. रहते हैं। चौथे स्थान पर बेगुसराय जिला है, यहाँ घनत्व 1,222 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है।

यहाँ के विभिन्न जिलों की जनसंख्या घनत्व बहुत ही असमान है। इसके आधार पर बिहार को पाँच वर्गों में बाँटा गया है।

(i)अत्यधिक घनत्व वाले जिले जिन जिलों का घनत्व 1200 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। इसे इस वर्ग में रखा गया है। पटना, दरभंगा, वैशाली, बेगुसराय, सीतामढ़ी, सारण, सीवान इसके अन्तर्गत हैं। इन जिलों में राज्य की 17.50% भूमिपर 28.17% आबादी रहती है।

(ii) उच्च घनत्व के जिलेइसके अन्तर्गत वे जिले हैं, जहाँ औसत घनत्व 1000-1200 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. के बीच है। मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, गोपालगंज, मधुबनी तथा नालन्दा इस वर्ग में आते हैं। इस समूह में नालन्दा जिला को छोड़कर सभी जिले उत्तरी बिहार में स्थित है।

(iii) मध्यम घनत्व के जिले-इसके अन्तर्गत 1000-800 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. में रहते हैं। पूर्वी चम्पारण, भागलपुर, जहानाबाद, अरवल, भोजपुर, सहरसा, खगड़िया, मधेपुरा, बक्सर और मुंगेर जिले इस वर्ग में सम्मिलित हैं। इन जिलों में राज्य की 24% से अधिक भूमि और राज्य की कुल जनसंख्या की 18% अबादी वास करती है।

(iv) कम घनत्व जिले—इस वर्ग के अन्तर्गत पूर्णिया, कटिहार, अररिया, नवादा, शेखपुरा, सुपौल, गया, किशनगंज, लक्खीसराय, रोहतास और औरंगाबाद जिले आते हैं। इसमें औसत 600-800 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. निवास करते हैं। इन जिलों की लगभग 30% भूमि पर 26% अबादी वास करती है।

(v) अत्यंत कम घनत्व वाले जिले- इस वर्ग में वो आते हैं जिनकी अबादी 600 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. से कम है। इस वर्ग के अन्तर्गत पश्चिमी चम्पारण, बाँका, जमुई और कैमूर जिला आते हैं। जिनका घनत्व 38.2 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी. है। इन जिलों में राज्य की भूमि का 14.58 एवं कुल जनसंख्या का 9% आबादी निवास करती है।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

प्रश्न 2.
बिहार में नगर विकास पर एक विश्लेषण प्रस्तुत करें।
उत्तर-
बिहार में नगरों के विकास का इतिहास बहुत पुराना है। यहाँ के अधिकतर प्रमुख नगर किसी न किसी नदी के तट पर विकसित है। यहाँ के प्राचीन नगरों का इनमें पाटलिपुत्र, नालन्दा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया उदवेतपुरी, सीतामढ़ी आदि प्राचीन नगरों के उदाहरण हैं। मध्यकाल में भी यहाँ नगरों का विकास सड़कों के विकास एवं प्रशासनिक कारणो से हुआ था। ऐसे नगरों में, सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि आते हैं। अंग्रेजों के समय में बिहार में कुछ बदलाव आया रेल और सड़क मार्गों का विकास हुआ जिसके किनारे नगर विकसित होने लगे। आजादी के बाद यहाँ नगरों के विकास में तेजी आयी, राज्यों में औद्योगिक विकास स्वास्थ्य शिक्षा एवं जीवन की मौलिक सुविधाओं के कारण कई नए नगर भी विकसित हुए। इनमें बरौनी, हाजीपुर, दानापुर, डालमिया नगर, मुंगेर, जमालपुर कटिहार आदि हैं। किन्तु आज के बिहार में नगरों का विकास भारत के बड़े राज्यों की तुलना में बहुत ही कम हुआ है। यह सबसे कम शहरीकृत सध्य है। – वर्तमान में बिहार में 1 लाख से अधिक जनसंख्या वाले नगरों की संख्या मात्र एक है। 10 लाख से ऊपर आबादी वाले महानगर में केवल पटना नगर है। 2001 की जनगणना के अनुसार कुल नगरीय बस्तिया की संख्या 131 है।

बिहार के नगरों का कार्यात्मक स्वरूप इनकी उत्पत्ति से सम्बंधित है। यहाँ के पुराने नगर प्रशासन तथा व्यापार से जुड़े हो परन्तु आधुनिक नगर उद्योग, यातायात, व्यापार एवं शिक्षा से सम्बन्धित है। यहाँ के लगभग सभी जिला मुख्यालय शुरू से ही प्रशासनिक कार्य के साथ-साथ थोक व्यवसाय, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे नगरियो कार्यों से विकसित है। बिहार में कुछ चुने हुए नगरों में ही औद्यौगिक इकाइयाँ स्थापित हैं। इनमें मुंगेर, बरौनी, जमालपुर, कटिहार प्रमुख हैं।

बिहार विभाजन से पूर्व टाटानगर इस राज्य का मात्र नियोजित नगर था, जमशेदजी टाटा ने केवल बिहार को बल्कि भारत को आधुनिक नगर नियोजन से सर्वप्रथम परिचय कराया। किन्तु विभाजन के उपरांत बिहार में एक भी नियोजित नगर विकसित नहीं है। बिहार की राजधानी पटना भी आंशिक रूप से विकसित है। बिहार के अधिकतर नगर अव्यवस्थित हैं।

Bihar Board Class 10 Geography Solutions Chapter 5C बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण

Bihar Board Class 10 Geography बिहार : जनसंख्या एवं नगरीकरण Notes

  • यहाँ 3000 वर्ष पूर्व से ही मानव बसाव के प्रमाण मिलते हैं।
  • मगध साम्राज्य में 80 हजार से भी अधिक गाँव आबाद थे।
  • वर्तमान समय में उ. प्र. और महाराष्ट्र के बाद जनसंख्या की दृष्टि से बिहार तीसरा बड़ा राज्य है।
  • 2001 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या-8,2998,509 है। इनमें 4,32,43,795
  • पुरुष एवं 397,54,714 महिलाएँ हैं।
    • बिहार में लिंग अनुपात 919 महिलाएँ प्रति हजार पुरुष हैं।
    • बिहार में प्रतिवर्ग किमी. घनत्व 881 व्यक्ति है।
    • सर्वाधिक जनसंख्या घनत्व वाला जिला पटना एवं सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाला जिला कैमूर है।
    • यहाँ के प्राचीन नगर-पटलीपुत्र, नालन्दा, राजगीर, गया, वैशाली, बोधगया, उदंतपुरी, सीतामढ़ी आदि हैं। ।
    • मध्यकालीन नगर-सासाराम, दरभंगा, पूर्णिया, छपरा, सिवान आदि हैं।
    • डालमियानगर, मुंगेर, बरौनी, जमालपुर, कटिहार इत्यादि आधुनिक नगर हैं।

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Bihar Board Class 10 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 2 Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 10 Social Science Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

I. सही विकल्प चुनें।

प्रश्न 1.
भारत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की घोषणा कब हुई ?
(क) 1986
(ख) 1980
(ग) 1987
(घ) 1988
उत्तर-
(क) 1986

Bihar Board Class 10 Economics Solutions Chapter 7 उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण

प्रश्न 2.
उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है ?
(क) 17 मार्च
(ख) 15 मार्च
(ग) 19 अप्रैल
(घ) 22 अप्रैल
उत्तर-
(ख) 15 मार्च

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन नं क्या है ?
(क) 100
(ख) 1000-100
(ग) 1800-11-4000
(घ) 2000-114000
उत्तर-
(ग) 1800-11-4000

प्रश्न 4.
स्वर्णाभूषणों की परिशुद्धता को सुनिश्चित करने के लिए किस मान्यता प्राप्त चिह्न का होना आवश्यक है ?
(क) ISI मार्क
(ख) हॉल मार्क
(ग) एगमार्क
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) हॉल मार्क

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प्रश्न 5.
यदि किसी वस्तु या सेवा का मूल्य 20 लाख से अधिक तथा 1 करोड़ से कम है जो उपभोक्ता शिकायत करेगा
(क) जिला फोरम
(ख) राज्य आयोग
(ग) राष्ट्रीय आयोग
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ख) राज्य आयोग

प्रश्न 6.
उपभोक्ता द्वारा शिकायत करने के लिए आवेदन शुल्क कितना लगता है.?
(क) 50 रु.
(ख) 70 रु.
(ग) 10 रु. .
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(घ) इनमें से कोई नहीं

II. सही कथन में सही का (V) तथा गलत में (x) का निशान लगाएँ।

प्रश्न 1.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 को संक्षिप्त रूप में कोपरा (COPRA) कहते हैं।
उत्तर-
सही

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन टेलीफोन नं. 15,000 है।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 3.
भारत में ‘सूचना पाने का अधिकार 2005’ कानून बनाया गया।
उत्तर-
सही

प्रश्न 4.
उपभोक्ता को खराब वस्तु या सेवा मिलने पर उत्पादक से मुआवजा पाने का अधिकार है, जो क्षति की मात्रा पर निर्भर करती है।
उत्तर-
सही

प्रश्न 5.
‘हॉलमार्क’ आभूषणों की गुणवत्ता को प्रमाणित करने वाला चिह्न है।
उत्तर-
सही

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
आप किसी खाद्य पदार्थ संबंधी वस्तुओं को खरीदते समय कौन-कौन सी मुख्य बातों का ध्यान रखेंगे, बिन्दुवार उल्लेख करें।
उत्तर-
खाद्य पदार्थ संबंधी वस्तुओं को खरीदते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है

  • अवयवों की सूची
  • वजन का परिमाण
  • निर्माता का नाम व पता
  • निर्माण की तिथि।
  • इस्तेमाल की समाप्ति, निर्दिष्ट से पहले इस्तेमाल की तिथि
  • निरामिष सामिष चिह्न
  • डाले गये रंग और खुशबू की घोषणा।
  • पोषाहार का दावा-सम्मिलित पौष्टिक तत्वों की मात्राएँ।
  • स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक चेतावनी।
  • वैधानिक चेतावनी तम्बाकू। शिशु के लिए हल्का विकल्प।

प्रश्न 2.
उपभोक्ता जागरण हेतु विभिन्न नारों को लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता जागरण हेतु विभिन्न नारे इस प्रकार हैं

  • सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
  • ग्राहक सावधान।
  • अपने अधिकार को पहचानो।
  • जागो ग्राहक जागो।
  • उपभोक्ता के रूप में अपने अधिकारों की रक्षा करें

प्रश्न 3.
कुछ ऐसे कारकों की चर्चा करें जिससे उपभोक्ताओं का शोषण होता है।
उत्तर-
उपभोक्ता के शोषण होने के निम्नलिखित प्रमुख कारक इस प्रकार हैं

  • मिलावट की समस्या-महँगी वस्तुओं में मिलावट करके उपभोक्ता का शोषण होता है
  • कम तौलने द्वारा वस्तुओं की माप में हेरा-फेरी करके भी उपभोक्ता का शोषण होता है
  • कम गुणवत्तावाली वस्तु-उपभोक्ता को धोखे से अच्छी वस्तु के स्थान पर का गुणवत्ता वाली वस्तु देकर शोषण करना।
  • ऊँची कीमत द्वारा-ऊंची कीमतें वसूल करके भी उपभोक्ता का शोषण किया जाता है
  • डुप्लीकेट वस्तुएँ सही कम्पनी की डुप्लीकेट वस्तुएँ प्रदान करके उपभोक्ता का शोषा होता है।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता के रूप में बाजार में उनके कुछ कर्तव्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
उपभोक्ता जब कोई वस्तु खरीदता है, तो यह आवश्यक है कि वह उस वस्तु की रसी अवश्य ले ले एवं वस्तु की गुणवत्ता, ब्रांड, मात्रा, शुद्धता, मानक, माप-तौल, उत्पाद/निर्माण के तिथि, उपभोग की अंतिम तिथि, गारंटी/वारंटी पेपर, गुणवत्ता का निशान जैसे आई. एस. आई. एगमार्क, हॉलमार्क (आभूषण) और मूल्य की दृष्टि से किसी प्रकार के दोष, अपूर्णता पाते है तो सेवाएँ लेते समय अतिरिक्त सतर्कता एवं जागरुकता रखें। इस प्रकार उपभोक्ता अपने कर्त्तव्य का निर्वाह कर वस्तुओं एवं सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

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प्रश्न 5.
उपभोक्ता कौन हैं ? संक्षेप में बतायें।
उत्तर-
उपभोक्ता बाजार व्यवस्था का महत्वपूर्ण अंग है। व्यक्ति जब वस्तुएँ एवं सेवाएँ अप प्रयोग के लिए खरीदता है तब वह उपभोक्ता कहलाता है। खरीददारी की अनुमति से ऐसी वस्तुऊ और सेवाओं का प्रयोग करने वाला व्यक्ति भी उपभोक्ता है। महात्मा गाँधी के शब्दों में, “उपभोक्ता हमारी दुकान” में आने वाला सबसे महत्वपूर्ण व्यकि है। वह हम पर निर्भर नहीं, हम उनपर निर्भर हैं।”

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उपभोक्ता के कौन-कौन अधिकार हैं ? प्रत्येक अधिकार को सोदाहरण लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता के निम्नलिखित प्रमुख अधिकार इस प्रकार हैं (i) सुरक्षा का अधिकार- उपभोक्ता का प्रथम अधिकार, सुरक्षा का अधिकार है। इर अधिकार का सीधा संबंध बाजार से खरीदी जानेवाली वस्तुओं और सेवाओं से जुड़ा हुआ है उपभोक्ता को ऐसी वस्तुओं और सेवाओं से सुरक्षा प्राप्त करने का अधिकार है जिससे उसके शरी या सम्पत्ति को हानि हो सकती है। जैसे—बिजली का आयरन विद्युत आपूर्ति की खराबी के कारण करंट मार देता है या एक डॉक्टर ऑपरेशन करते समय लापरवाही बरतता है जिसके कारण मरील को खतरा या हानि होती है।

(ii) सूचना पाने का अधिकार– उपभोक्ता को वे सभी आवश्यक सूचनाएं भी प्राप्त कर का अधिकार है जिसके आधार पर वह वस्तु या सेवाएँ खरीदने का निर्णय कर सकते हैं। जैसे पैकेट बंद सामान खरीदने पर उसका मूल्य, इस्तेमाल करने की अवधि, गुणवत्ता इत्यादि की सूचना प्राप्त करें।

(iii) चुनाव या पसंद करने का अधिकार-उपभोक्ता अपने अधिकार के अन्तर्गत विभिन्न निर्माताओं द्वारा निर्मित विभिन्न ब्राण्ड, किस्म, गुणा, रूप, रंग, आकार तथा मूल्य की वस्तुओं में किसी भी वस्तु का चुनाव करने को स्वतंत्र है।

(iv) सुनवाई का अधिकार-उपभोक्ता को अपने हितों को प्रभावित करनेवाली सभी बातों को उपयुक्त मंचों के समक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार है। उपभोक्ता को अपने मंचों के साथ जुड़कर अपने बातों को रखनी चाहिए।

(v) शिकायत निवारण या क्षतिपूर्ति का अधिकार-यह अधिकार लोगों को आश्वासन प्रदान करता है कि क्रय की गयी वस्तु या सेवा उचित ढंग की नहीं निकले तो उन्हें मुआवजा दिया जायेगा।

(vi) उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार-उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार के अन्तर्गत किसी .. वस्तु के मूल्य, उसकी उपयोगिता, कोटि तथा सेवा की जानकारी तथा अधिकारों से ज्ञान प्राप्ति की सुविधा जैसी बातें आती हैं जिसके माध्यम से शिक्षित उपभोक्ता धोखाधड़ी या दगाबाजी से बचने के लिए स्वयं सबल संरक्षित एवं शिक्षित हो सकते हैं एवं उचित न्याय के लिए खड़े हो सकते हैं। इसलिए एक सजग उपभोक्ता बने रहने के लिए निरंतर शिक्षा पाने का अधिकार दिया गया है।

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प्रश्न 2.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की मुख्य विशेषताओं को लिखें।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  • यह सभी वस्तुओं एवं सेवाओं पर लागू होता है जब तक कि केन्द्रीय सरकार ने विशेष छूट नहीं दी हो।
  • यह सभी क्षेत्रों पर लागू होता है चाहे वह निजी क्षेत्र हो, सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा .सहकारिता का क्षेत्र हो।
  • इस अधिनियम के प्रावधान प्रकृति से क्षतिपूरक हैं। दूसरे शब्दों में, यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अन्य कानूनों में उपलब्ध निवारण के अतिरिक्त निवारण प्रदान करता है तथा उनमें से चुनाव उसकी स्वेच्छा पर निर्भर करता है। .
  • सुरक्षा, सूचना, चयन, प्रतिनिधित्व, शिकायत निवारण एवं उपभोक्ता शिक्षा से संबंधित अधिकारों को उच्च स्थान प्रदान करता है।
  • उपभोक्ता को कुछ अनुचित एवं पतिबंधात्मक व्यापार, कार्यवाहियों, सेवाओं में कमियों. अथवा बुराइयों एवं सेवाओं को रोक लेने पर रोक लगाने तथा बाजार से खतरनाक वस्तुओं को हटाने की मांग का अधिकार है।

प्रश्न 3.
उपभोक्ता संरक्षण हेतु सरकार द्वारा गठित न्यायिक प्रणाली (त्रिस्तरीय प्रणाली)को विस्तार से समझायें।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत उपभोक्ताओं को उनकी शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था की गयी है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है

  • राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आयोग
  • राज्य स्तर पर राज्य स्तरीय आयोग।
  • जिला स्तर पर जिला मंच (फोरम)।

उपभोक्ताओं की शिकायतों के समाधान अथवा उपभोक्ता-विवादों के निपटारे हेतु सरकार द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में त्रिस्तरीय अर्द्ध-न्यायिक व्यवस्था है जिसमें जिला * मंचों, राज्य आयोग एवं राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की गयी है।

यह न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यावहारिक है। इस व्यवस्था से उपभोक्ताओं को त्वरित (जल्दी) एवं सस्ता न्याय प्राप्त होता है और समय एवं धन की बचत होती है। जिस तरह आदालतों में मुकदमे दायर होते हैं उसी तरह उनकी सुनवाई की होती है। पहले शिकायत जिला फोरम में की जाती है। शिकायतकर्ता अगर संतुष्ट नहीं है, तो मामला को राज्य फोरम फिर राष्ट्रीय फोरम में ले जा सकता है। पुनः अगर उपभोक्ता राष्ट्रीय फोरम से संतुष्ट नहीं होता तो वह आदेश के 30 दिनों के अंदर उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में अपील कर सकता है।
अतः सरकार त्रिस्तरीय प्रणाली द्वारा उपभोक्ता शिकायतों का निवारण करती है और उसे हर संभव न्याय देती है।

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प्रश्न 4.
दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरुकता की जरूरतों का वर्णन करें।
उत्तर-
(i) व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जित करना है किन्तु कुछ व्यापारी अधिक लाभ कमाने की इच्छा से उपभोक्ताओं का शोषण करने लगे जिसके कारण एक ऐसे तंत्र की आवश्यकता महसूस हुई जिससे उपभोक्ता के हितों की रक्षा की जा सके। । (ii) कभी-कभी उपभोक्ता व्यापारियों के द्वारा अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है। – उसे चुकाये गये मूल्य के बराबर वस्तु अथवा सेवा प्राप्त नहीं होती। यहाँ तक कि कभी-कभी उसे मिलावट की वस्तुएँ प्राप्त होती हैं जिससे उसे अनावश्यक परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उसे उपभोक्ता संरक्षण की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 5.
मानवाधिकार अधिकार आयोग के महत्व को लिखें।।
उत्तर-
हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर एक उच्चतम संस्था है जो मानवीय अधिकारों की रक्षा और उनके अधिकार से संबंधित हितों के लिए सुरक्षा प्रदान करती है। इस संस्था को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था कहते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का महत्व इस बात से बढ़ जाता है कि इसके अध्यक्ष भारत के उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त प्रधान न्यायाधीश होते हैं। इसी तरह देश के प्रत्येक राज्य में एक राज्य मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया है जो देश के नागरिकों के अधिकारऔर सुरक्षा संबंधी बातों को देखती है। विगत दिनों इस आयोग के कार्यों को देखने से पता लगता है कि यह अति संवेदनशील है। अतः कहा जा सकता है कि मानवाधिकार आयोग का बहुत अधिक महत्व है। इसके अन्तर्गत मानवीय अधिकारों का संरक्षण होता है।

परियोजना कार्य

प्रश्न 1.
आपका विद्यालय उपभोक्ता जागरूकता हेतु आपके वर्ग में एक पोस्टर प्रतियोगिता आयोजन करता है जिसमें सभी उपभोक्ता अधिकार बिन्दुवार शामिल करते हुए एक पोस्टर तैयार करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
आकर्षक नारा संबंधी विज्ञापन तैयार करें।
उत्तर-

  1. जागो ग्राहक जागो।
  2. अपने अधिकारों को पहचानो।

प्रश्न 3.
सतर्क उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता है।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
अपने आस-पास के चार-पाँच लोगों का प्रश्नावली के आधार पर साक्षात्कार लें जिसमें यह पता चले कि वे शोषण के शिकार कहाँ और कैसे हुए हैं ? उनके शोषण के अनुभवों को कहानीबद्ध करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
उपभोक्ता अधिकार से संबंधित प्रश्नावली को वितरित कर अपने क्षेत्र का सर्वेक्षण करें और जानें कि वे उपभोक्ता के रूप में कितने जागरुक है ?
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टिप्पणी-
(क) यदि प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘ग’ और शेष के लिए ‘क’ है, तो आप उपभोक्ता के रूप में पूरी तरह जागरुक हैं।
(ख) अगर प्रश्न 5,12,13,15 और 16 के लिए आपका उत्तर ‘क’ और शेष के लिए ‘ग’ है. तो आपको उपभोक्ता के रूप में जागरुक होने की जरूरत है।
(ग) यदि सभी प्रश्नों के लिए आपका उत्तर ‘ख’ है, तो आप आशिक रूप से जागरुक हैं।

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Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Additional Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपभोक्ताओं के शोषण के मुख्य प्रकार है
(क) माप-तौल में कमी
(ख) मिलावट
(ग) भ्रामक प्रचार
(घ) इनमें तीनों ही
उत्तर-
(घ) इनमें तीनों ही

प्रश्न 2.
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ पारित हुआ
(क) 1982 में
(ख) 1984 में
(ग) 1986 में
(घ) 1991 में
उत्तर-
(ग) 1986 में

प्रश्न 3.
‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ के अन्तर्गत उपभोक्ताओं की अपील सुनने का अधिकार है
(क) राज्य आयोग को
(ख) राष्ट्रीय आयोग को
(ग) दोनों को
(घ) इनमें कोई नहीं
उत्तर-
(ग) दोनों को

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प्रश्न 4.
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस कब मनाया जाता है।
(क) 15 जनवरी को
(ख) 15 मार्च को
(ग) 15 अप्रैल को
(घ) 15 दिसंबर को
उत्तर-
(ख) 15 मार्च को

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन भोज्य पदार्थों की शद्धता की गारंटी देता है ?
(क) हॉलमार्क
(ख) एगमार्क
(ग) आई.एस.आई.
(घ) बुलमार्क
उत्तर-
(ख) एगमार्क

अतिलघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपभोक्ता शोषण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
उत्पादकों तथा विक्रेताओं के द्वारा जब किसी वस्तु को उपभोक्ताओं के बीच बेचा जाता है तथा उपभोक्ताओं द्वारा उसकी गुणवत्ता की जाँच करने पर गलत पाया जाता है तो इसे ही हम उपभोक्ता शोषण कहते हैं।

प्रश्न 2.
बाजार में अनुचित व्यापार कब अधिक होता है ?
उत्तर-
खाद्यान्न की कमी अत्यधिक होने के कारण या किसी भी वस्तु की बाजार में अत्यधिक माँग होने पर उस वस्तु की कमी होना, बाजार में अनुचित व्यापार को बढ़ावा देता है। कालाबाजारी जमाखोरी इत्यादि अनुचित व्यापार-आरंभ हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
बाजार में नियमों और विनिमयों की आवश्यकता क्यों पड़ती है ?
उत्तर-
बाजार में उपभोक्ताओं के शोषण को रोकने तथा उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नियमों और विनियमों की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 4.
‘उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन’ का प्रारंभ सर्वप्रथम किस देश में हुआ?
उत्तर-
उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ सर्वप्रथम इंगलैंड में हुआ।

प्रश्न 5.
उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर-
उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।

प्रश्न 6.
“विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस’ कब मनाया जाता है?
उत्तर-
15 मार्च को प्रत्येक वर्ष विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रश्न 7.
‘कोपरा’ क्या है?
उत्तर-
सरकार द्वारा 1986 में पारित उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को ही संक्षेप में ‘कोपरा’ कहते हैं।

प्रश्न 8.
क्या “कोपरा’ केवल वस्तुओं के विक्रय पर लागू होता है ?
उत्तर-
कोपरा’ वस्तुओं के विक्रय के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तथा दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था करती है।

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प्रश्न 9.
जब आप कोई सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते हैं तो उसके पैकेट पर किस प्रकार की जानकारी रहती है ?
उत्तर-
सौंदर्य प्रसाधन या दवा खरीदते समय उसके पैकेट पर उस वस्तु के उत्पादक कम्पनी का नाम मूल्य, निर्माण की तिथि, अंतिम तिथि आदि की जानकारी दी हुई रहती है।

प्रश्न 10.
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए किस प्रकार के कानून बनाए गए हैं.
उत्तर-
उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाए गए हैं। जो एक कानूनी उपाय है।

प्रश्न 11.
उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें किस प्रकार का अधिकार प्रदान किया गया है?
उत्तर-
उपभोक्ताओं की क्षति होने पर उन्हें क्षतिपूर्ति अधिकार की व्यवस्था की गयी है। इसके लिए सरकार में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की व्यवस्था की जिसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर क्षतिपूर्ति की व्यवस्था. है।

लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बाजार में उपभोक्ताओं का किस प्रकार से शोषण किया जाता है ?
उत्तर-
बाजार में उपभोक्ताओं को निम्न प्रकार से शोषण किया जाता है

  • विक्रेता प्रायः वस्तुओं का उचित ढंग से माप-तौल नहीं करता तथा माप-तौल में कमी करते हैं।
  • कई अवसरों पर विक्रेता ग्राहकों से वस्तुओं के निर्धारित खुदरा मूल्य से अधिक राशि वसूलते हैं।
  • बाजारों में प्रायः घी, खाद्य पदार्थ, मसालों आदि में मिलावट होती है।
  • कई बार विक्रेता या उत्पादक उपभोक्ताओं को गलत था अधूरी जानकारी देकर धोखे में डाल देते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में किन कारणों से उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन का प्रारंभ हुआ? संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में एक सामाजिक शक्ति के रूप में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात खाद्यान्न की अत्यधिक कमी होने के कारण जमाखोरी और कालाबाजारी बहुत बढ़ गयी थी। अत्यधिक लाभ कमाने के लालच में उत्पादक और विक्रेता खाद्य पदार्थों में मिलावट करने लगे थे। इसके विरोध में देश में उपभोक्ता आंदोलन संगठित रूप में प्रारंभ हुआ। 1970 के इराक में कई उपभोक्ता संगठन जन-प्रदर्शन तथा पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित करने लगे थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भी विक्रेता उपभोक्ताओं को निर्धारित मात्रा में तथा उचित समय पर वस्तुओं की आपूर्ति नहीं करते थे तथा कई प्रकार से मनमानी करते थे। विगत वर्षों के अंतर्गत देश में उपभोक्ता संगठनों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है जिन्होंने उपभोक्ताओं को जागरूक बनाने का प्रयास किया हैं उपभोक्ता आंदोलनों ने व्यापारिक संस्थानों तथा सरकार दोनों को अनुचित व्यवसाय व्यवहार में सुधार लाने के लिए बाध्य किया है। सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम को पारित किया।

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प्रश्न 3.
दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता का वर्णन करें।
उत्तर-
उपभोक्ता जागरण की आवश्यकता अनेक अवसरों पर महसूस की जाती है जैसे शिक्षण संस्थाएँ अपने लुभावने प्रचारों के माध्यम से छात्रों को आकर्षित करते हैं, लेकिन वास्तव में वहाँ ऐसी कोई व्यवस्था नहीं होती। डॉक्टरों के द्वारा मरीज देखते समय फीस के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है जिससे मरीजों का खूब शोषण होता हैं कई बार डॉक्टर की लापरवाही से मरीज की जान भी चली जाती है।
अतः इन सभी मामले ने उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित करने की आवश्यकता क्यों हुई?
उत्तर-
भारत में काफी समय पूर्व से ही उपभोक्ताओं को कई प्रकार से शोषण किया जाता रहा है। कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी, या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण उपभोक्ताओं को अनदेखी की जा रही थी। सरकार ने उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए समय-समय पर कदम उठाते हुए अनेक उपभोक्ता कानून बनाए हैं और वर्तमान में सरकार द्वारा विभिन्न माध्यमों से उपभोक्ता को जागरूक बनाने का सतत् प्रयास किया जा रहा है। ताकि लोग अपने अधिकारों को समझ सकें और अपनी शिकायत का निवारण कर सकें। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार के सामने उपभोक्ता संरक्षण
अधिनियम (1986) पारित करने की आवश्यकता महसूस हुई।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में उपभोक्ताओं का किस प्रकार शोषण किया जाता है ? उपभोक्ताओं के क्या अधिकार है तथा उनके संरक्षण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ?
उत्तर-
भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ताओं की स्थिति सोचनीय है। वे सदैव व्यवसायियों द्वारा अनुचित लाभ कमाने के उद्देश्य से ठगे जाते हैं, साथ ही उनमें शिक्षा की कमी गरीबी का प्रभाव और जागरूकता अभाव के कारण भी उपभोक्ता शोषण के शिकार होते हैं। वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है जहाँ उपभोक्ताओं का शोषण नहीं हो रहा हो वह चाहे शिक्षा का क्षेत्र दो या बैकिंग, दूरसंचार, डाक, खाद्य सामग्री या फिर भवन निर्माण। सभी क्षेत्र में त्रुटि लापरवाही और कालाबाजारी उपभोक्ता के लिए घातक सिद्ध हो रही है। उपभोक्ता का कई प्रकार से शोषण किया जाता है यानि कभी माल या सेवा की घटिया किस्म के कारण तो कभी कम माप-तौल के कारण, कभी नकली वस्तु उपलब्ध होने के कारण, कभी वस्तु की कालाबाजारी या जमाखोरी के कारण तो कभी स्तरहीन विज्ञापनों के कारण।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 6 के अंतर्गत उपयोगताओं को कछ अधिकार प्रदान किए गए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • जान-माल के लिए खतरनाक वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार।
  • वस्तुओं की सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, मानक और मूल्य संबंधी सूचना का अधिकार।
  • विभिन्न वस्तुओं को देख परखकर चुनाव करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर उन्हें प्राप्त करने का अधिकार।
  • उपभोक्ताओं को उचित स्थान पर अपनी शिकायत दर्ज कराने का अधिकार।
  • अनुचित व्यापार तरीकों एवं शोषण के विरुद्ध न्याय पाने का अधिकार।
  • उपभोक्ता प्रशिक्षण का अधिकार।

उपभोक्ताओं के अधिकार की रक्षा एवं हितों का संरक्षण करने के लिए सरकारी स्तर पर ‘केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद्’ एवं राज्य स्तर पर ‘राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद’ की स्थापना की गयी है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986′ के तहत उपभोक्ताओं को उनकी
शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था दी गई है जिसे तीन स्तरों पर स्थापित किया गया है
(i) राष्ट्रीय स्तर पर ‘राष्ट्रीय स्तरीय आयोगा
(ii) राज्य तर पर ‘राज्य स्तरीय आयोगा
(iii) जिला स्तर पर जिला मंच’ (फोरम)।
न्यायिक व्यवस्था उपभोक्ताओं के लिए बहुत ही उपयोगी एवं व्यवहारिक है।

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Bihar Board Class 10 Economics उपभोक्ता जागरण एवं संरक्षण Notes

  • समाज का प्रत्येक व्यक्ति एक उपभोक्ता है तथा इसमें बच्चे, बूढ़े आदि सभी शामिल है।
  • उपभोक्ता जागरूकता आंदोलनसर्वप्रथम इंग्लैंड में प्रारंभ हुआ।
  • उपभोक्ता अधिकारों की घोषणा सर्वप्रथम 1962 में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई।
  • 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस’ के रूप में मनाते हैं।
  • शेल्फ नादर उपभोक्ता आंदोलन के प्रवर्तक माने जाते हैं।
  • भारत में उपभोक्ता आंदोलन का उदय व्यापारियों के अनुचित व्यवसाय व्यवहार के कारण हुआ।
  • उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए भारत सरकार ने 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पारित किया है।
  • सरकार ने जागो ग्राहक, जागो’ के नारे से उपभोक्ता जागरण के लिए एक व्यापक प्रचार प्रसार अभियान आरंभ किया है।.
  • सूचना का अभाव उपभोक्ता शोषण का एक प्रमुख कारण है।
  • सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार तथा चयन का अधिकार उपभोक्ताओं के कुछ प्रमुख अधिकार है।
  • उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने तीन प्रकार के उपाय कानूनी प्रशासनिक एवं तकनीकी अपनाए हैं।
  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने का एक कानूनी
  • उपाय है तथा इसके अंतर्गत दंड देने के स्थान पर उपभोक्ताओं की क्षतिपूर्ति की व्यवस्था की गई है।
  • अधिनियम में राष्ट्र, राज्य एवं जिला स्तर पर एक त्रिस्तरीय न्यायिक तंत्र स्थापित करने का प्रावधान है।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना उपभोक्ता संरक्षण के लिए अपनाया गया एक प्रशासनिक उपाय है।
  • उपभोक्ताओं की हितों की रक्षा के लिए उत्पादों का मानकीकरण एक तकनीकी उपाय है।
  • भारतीय मानक ब्यूरों हमारे देश की प्रमुख मानकीकरण संस्था है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना 1993 में हुई।
  • 24 दिसंबर भारत में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • भी भारत में करीब 700 गैर-सरकारी उपभोक्ता संगठन है।
  • ग्राहकों के पास रसीद नहीं होने से उपभोक्ता के लिए प्रमाण एकत्र करना कठिन हो जाता है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत InText Questions and Answers

अनुच्छेद 14.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
ऊर्जा का उत्तम स्रोत किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा का उत्तम स्रोत, वह स्रोत है जो।

  1. प्रति इकाई द्रव्यमान या आयतन में अधिक कार्य करता हो।
  2. आसानी से प्राप्त हो सके।
  3. आसानी से भंडारित एवं परिवहित हो सके।
  4. सस्ता और सुरक्षित हो।

प्रश्न 2.
उत्तम ईंधन किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्तम ईंधन वह ईंधन है –

  1. जिसका कैलोरी मान अधिक हो।
  2. जिसका मध्यम ज्वलन ताप हो।
  3. जिसके दहन के पश्चात् हानिकारक गैसें उत्पन्न न होती हों।
  4. जो दहन के पश्चात् ठोस अवशेष न छोड़ता हो।
  5. जो सस्ता हो एवं जिसका रख-रखाव आसान हो।

प्रश्न 3.
यदि आप अपने भोजन को गरम करने के लिए किसी भी ऊर्जा-स्रोत का उपयोग कर सकते हैं तो आप किसका उपयोग करेंगे और क्यों?
उत्तर:
हम ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत का उपयोग करेंगे जो प्रदूषण उत्पन्न न करता हो; क्योंकि उपर्युक्त विशेषता का ईंधन प्रकृति में असंतुलन उत्पन्न नहीं करेगा और पुनः स्थापित हो जाएगा जिससे बार-बार उपयोग हो सके।

अनुच्छेद 14.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
जीवाश्मी ईंधन की क्या हानियाँ हैं?
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधन उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –

  1. जीवाश्मी ईंधन बनने में लाखों वर्ष लगते हैं और इनके भंडार सीमित हैं।
  2. जीवाश्मी ईधन अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हैं।
  3. जीवाश्मी ईंधन जलने से वायु-प्रदूषण होता है।

कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइडों का जलीय विलयन अम्लीय होता है। अत: जीवाश्मी ईंधनों के धुएँ अम्लीय वर्षा
के कारक हैं जो मनुष्य में श्वसन सम्बन्धी तथा शरीर के खुले अंगों में जलन पैदा करते हैं।

प्रश्न 2.
हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर क्यों ध्यान दे रहे हैं?
उत्तर:
तकनीकी विकास के साथ-साथ ऊर्जा की खपत भी बढ़ रही है। हमारी बदलती जीवन शैली, अपने आराम के लिए अधिक-से-अधिक मशीनों के उपयोग के कारण भी ऊर्जा की माँग अधिक हो रही है। यह ऊर्जा की माँग की आपूर्ति परंपरागत ऊर्जा स्रोतों से पूरी नहीं हो पा रही है। अतः हम ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

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प्रश्न 3.
हमारी सुविधा के लिए पवनों तथा जल ऊर्जा के पारंपरिक उपयोग में किस प्रकार के सुधार किए गए हैं?
उत्तर:
जल और पवनें ऊर्जा के परंपरागत स्रोत हैं। शुरू में इनकी ऊर्जा का उपयोग बहुत सीमित था, परन्तु तकनीकी विकास के कारण ये एक मुख्य ऊर्जा स्रोत की तरह विकसित हो रहे हैं। इस क्रम में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं –
1. पवन ऊर्जा एक प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा स्रोत है। पवन-चक्की द्वारा पवन की गतिज ऊर्जा का उपयोग यांत्रिक कार्य जैसे कुएँ से जल निकालना और विद्युत जनित्र चलाकर इसे विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है।

2. बहते जल का उपयोग सामान्यत: यातायात के लिए किया जाता था परन्तु अब बाँध बनाकर इस ऊर्जा को जल विद्युत ऊर्जा में बदलकर विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा रहा है। उपर्युक्त सम्बन्ध में नई तकनीक के प्रयोग द्वारा उच्च दक्षता की मशीनें बनाकर अधिक मात्रा में ऊर्जा का दोहन सुलभ हो गया है।

अनुच्छेद 14.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
सौर कुकर के लिए कौन-सा दर्पण-अवतल, उत्तल अथवा समतल सर्वाधिक उपयुक्त होता है? क्यों?
उत्तर:
सौर कुकर के लिए अवतल दर्पण सर्वाधिक उपयुक्त होता है क्योंकि यह सूर्य से आने वाले विकिरण को ठीक से एक बिन्दु पर फोकस कर सकता है जिससे उच्च ऊष्मा उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
महासागरों से प्राप्त हो सकने वाली ऊर्जाओं की क्या सीमाएँ हैं?
उत्तर:
यद्यपि महासागर ऊर्जा के बडे स्रोत हैं, परन्तु औद्योगिक स्तर पर इनका दोहन कठिन है।

प्रश्न 3.
भूतापीय ऊर्जा क्या होती है?
उत्तर:
भूमि के नीचे स्थित गर्न स्थानों से प्राप्त ऊष्मा अथवा ऊष्मीय ऊर्जा भूतापीय ऊर्जा कहलाती

प्रश्न 4.
नाभिकीय ऊर्जा का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
नाभिकीय ऊर्जा एक गैर परंपरागत ऊर्जा है। आजकल विखंडन से प्राप्त ऊर्जा का सफलतापूर्वक उपयोग हो रहा है। संलयन अभिक्रिया से प्राप्त ऊर्जा के दोहन की संभावना व्यक्त की जा रही है।

अनुच्छेद 14.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
क्या कोई ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त हो सकता है? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
किसी भी प्रकार के ऊर्जा स्रोत के समाप्त होने से वातावरण असंतुलित होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कोई भी ऊर्जा स्रोत प्रदूषण मुक्त नहीं हो सकता है। उदाहरणार्थ, यदि हम लकड़ी को ऊर्जा स्रोत की तरह उपयोग करते हैं तब पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न होता है। वायु में CO2 और O2 का भी संतुलन प्रभावित होता है। लकड़ी जलने से उत्पन्न CO2 SO2 और NO2 वायु-प्रदूषण करते हैं। यहाँ तक कि सौर ऊर्जा के अधिक उपयोग से भूमंडलीय ऊष्मीय प्रभाव उत्पन्न होगा।

प्रश्न 2.
रॉकेट ईंधन के रूप में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता रहा है? क्या आप इसे CNG की तुलना में अधिक स्वच्छ ईंधन मानते हैं? क्यों अथवा क्यों नहीं?
उत्तर:
निम्नलिखित कारणों से हाइड्रोजन CNG की अपेक्षा एक स्वच्छ ईंधन माना जाता है –

  1. हाइड्रोजन का कैलोरी मान CNG की अपेक्षा अधिक है।
  2. CNG एक परंपरागत ऊर्जा स्रोत है जबकि H2 नहीं है।
  3. CNG एक ग्रीन हाउस गैस है जबकि H2 नहीं है। H2 प्रदूषण नहीं फैलाती है।
  4. CNG के दहन से CO तथा CO2 मुक्त होती हैं जबकि H2 के दहन से ऐसी हानिकारक गैसें उत्पन्न नहीं होती हैं।

अनुच्छेद 14.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप नवीकरणीय मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
दो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत निम्नवत् हैं –
(a) जल ऊर्जा बहते जल में उपस्थित ऊर्जा को जल ऊर्जा कहते हैं। यहाँ ऊँचाई से नीचे बहते जल की ऊर्जा का उपयोग कर लिया जाता है तथा उपयोग के बाद बहता हुआ जल समुद्र में चला जाता है। जल चक्र के कारण जल पुन: ऊँचाई पर पहुँच जाता है। इसलिए जल ऊर्जा को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं।

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(b) पवन ऊर्जा हम पवन ऊर्जा का विभिन्न कार्यों के लिए उपयोग करते हैं। प्रकृति में पवनें चक्रीय प्रक्रमों के कारण उत्पन्न होती हैं। इसलिए यह भी ऊर्जा का नवीकरणीय स्रोत है।

प्रश्न 2.
ऐसे दो ऊर्जा स्रोतों के नाम लिखिए जिन्हें आप समाप्य मानते हैं। अपने चयन के लिए तर्क दीजिए।
उत्तर:
कोयला और पेट्रोलियम ऊर्जा के समापन योग्य स्रोत हैं क्योंकि यदि वे पुनर्स्थापित भी हों तो इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लग जाएँगे।

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गर्म जल प्राप्त करने के लिए हम सौर जल तापक का उपयोग किस दिन नहीं कर सकते?
(a) धूप वाले दिन
(b) बादलों वाले दिन
(c) गरम दिन
(d) पवनों (वायु) वाले दिन
उत्तर:
(b) बादलों वाले दिन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन जैवमात्रा ऊर्जा स्रोत का उदाहरण नहीं है?
(a) लकड़ी
(b) गोबर गैस
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) कोयला
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 3.
जितने ऊर्जा स्रोत हम उपयोग में लाते हैं उनमें से अधिकांश सौर ऊर्जा को निरूपित करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा स्रोत अंततः सौर ऊर्जा से व्युत्पन्न नहीं है?
(a) भूतापीय ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) नाभिकीय ऊर्जा
(d) जैवमात्रा
उत्तर:
(c) नाभिकीय ऊर्जा

प्रश्न 4.
ऊर्जा स्रोत के रूप में जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जीवाश्मी ईंधनों तथा सूर्य की तुलना –
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प्रश्न 5.
जैव मात्रा तथा ऊर्जा स्रोत के रूप में जल विद्युत की तुलना कीजिए और उनमें अंतर लिखिए।
उत्तर:
जैव मात्रा तथा जल विद्युत की तुलना –
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प्रश्न 6.
निम्नलिखित से ऊर्जा निष्कर्षित करने की सीमाएँ लिखिए
(a) पवनें
(b) तरंगें
(c) ज्वार-भाटा
उत्तर:
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प्रश्न 7.
ऊर्जा स्रोतों का वर्गीकरण निम्नलिखित वर्गों में किस आधार पर करेंगे?
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय
(b) समाप्य तथा अक्षय
क्या
(a) तथा
(b) के विकल्प समान हैं?
उत्तर:
(a) नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जल ऊर्जा, पवन ऊर्जा, सौर ऊर्जा आदि ऊर्जा के वे स्रोत जो बार-बार उपयोग किए जा सकते हैं, उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं। परन्तु वे ऊर्जा स्रोत जिनके भंडार सीमित हैं और जिनके पुनर्स्थापन में लाखों वर्ष लगते हैं उन्हें अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहते हैं; जैसे-कोयला और पेट्रोलियम।

(b) समाप्य तथा अक्षय ऊर्जा स्रोत अनवीकरणीय स्रोत की पुनर्स्थापना में लाखों वर्ष लगते हैं। अतः इसे समाप्य ऊर्जा स्रोत कहा जा सकता है। ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत; जैसे-पवन, जल और सौर ऊर्जा का उपयोग बार-बार और लम्बे समय तक किया जा सकता है। अत: ये अक्षय ऊर्जा स्रोत हैं।

उपर्युक्त तथ्य के आधार पर हम कह सकते हैं कि –
(a) और
(b) के विकल्प समान हैं।

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प्रश्न 8.
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में क्या गुण होते हैं?
उत्तर:
ऊर्जा के आदर्श स्रोत में निम्नलिखित गुण होते हैं।

  1. इकाई द्रव्यमान ऊर्जा स्रोत से अधिक मात्रा में कार्य होना चाहिए।
  2. यह आसानी से प्राप्त होने वाला होना चाहिए।
  3. इसका भंडारण और परिवहन भी आसान होना चाहिए।
  4. यह सस्ता होना चाहिए।

प्रश्न 9.
सौर कुकर का उपयोग करने के क्या लाभ तथा हानियाँ हैं? क्या ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर कुकरों की सीमित उपयोगिता है?
उत्तर:
लाभ सौर कुकर उपयोग करने के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. यह बिना प्रदूषण किए भोजन पकाने में सहायक है।
  2. सौर कुकर का उपयोग सस्ता है; क्योंकि सौर ऊर्जा के उपयोग का मूल्य नहीं चुकाना पड़ता है।
  3. सौर कुकर का रख-रखाव आसान होता है। इसमें किसी प्रकार के खतरे की संभावना नहीं होती है।

हानियाँ सौर कुकर उपयोग करने की निम्नलिखित हानियाँ हैं –

  1. रात में और बादल वाले दिनों में सौर कुकर का उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  2. यह भोजन पकाने में अधिक समय लेता है।
  3. सौर कुकर के परावर्तक की दिशा लगातार बदलते रहना पड़ता है जिससे सूर्य की रोशनी सौर कुकर में प्रवेश कर सके।
  4. सभी स्थानों पर हर समय सूर्य की रोशनी उपलब्ध नहीं होती है।

सौर कुकर के सीमित उपयोगिता वाले क्षेत्र हाँ, कछ ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ सौर ककर की सीमित उपयोगिता है। ध्रुवों पर जहाँ सूर्य आधे वर्ष तक नहीं दिखाई देता है वहाँ सौर कुकर का उपयोग सीमित है। पहाड़ी क्षेत्रों में जहाँ सूर्य की किरणें कुछ समय के लिए और काफी तिरछी पड़ती हैं वहाँ सौर कुकर का उपयोग बहुत कठिन है।।

प्रश्न 10.
ऊर्जा की बढ़ती माँग के पर्यावरणीय परिणाम क्या हैं? ऊर्जा की खपत को कम करने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
आधुनिकीकरण तथा बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों को पूरा करने में जुटे उद्योगों में ऊर्जा की अधिक आवश्यकता है। ऊर्जा की बढ़ती माँग के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं –
1. ऊर्जा की बढ़ती माँग ऊर्जा स्रोत को समाप्त कर सकती है जो पर्यावरणीय असन्तुलन उत्पन्न कर सकती है।
2. ऊर्जा की बढ़ती माँग से परंपरागत ऊर्जा स्रोतों का अधिक दोहन होगा। इनके प्राकृतिक भंडार सीमित हैं। अतः भविष्य में ऊर्जा ह्रास की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

ऊर्जा के उपयोग को सीमित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव हैं –
1. ऊर्जा के दुरुपयोग को रोककर एवं न्यायसंगत उपयोग से ऊर्जा का उपयोग घटाया जा
सकता है।
2. ऊर्जा के अनवीकरणीय स्त्रोतों पर भार को कम करने के लिए गैर-परंपरागत और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों; जैसे—पवन ऊर्जा, जल ऊर्जा, महासागरीय ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।

Bihar Board Class 10 Science उर्जा के स्रोत Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव गैस एक उत्तम ईंधन है, इसमें कितने प्रतिशत ईंधन गैस होती है?
(a) 65%
(b) 75%
(c) 85%
(d) 70%
उत्तर:
(b) 75%

प्रश्न 2.
भारत का पवन ऊर्जा द्वारा विद्युत उत्पादन करने वाले देशों में कौन-सा स्थान है?
(a) पहला
(b) दूसरा
(c) चौथा
(d) पाँचवाँ
उत्तर:
(d) पाँचवाँ

प्रश्न 3.
तमिलनाडु में कन्याकुमारी के समीप भारत का विशालतम पवन ऊर्जा फॉर्म कितनी विद्युत उत्पन्न करता है?
(a) 380 MW
(b) 480 MW
(c) 280 MW
(d) 400 MW
उत्तर:
(a) 380 MW

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प्रश्न 4.
हमारा देश प्रतिवर्ष लगभग कितनी सौर ऊर्जा प्राप्त करता है?
(a) 450,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(b) 400,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
(d) 550,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा
उत्तर:
(c) 500,000,000 करोड़ किलोवाट-घण्टा

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रकाश संश्लेषण क्या है?
उत्तर:
प्रकाश संश्लेषण वह क्रिया है, जिसमें हरे पेड़-पौधे अपना भोजन प्राप्त करने के लिए सौर-ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में बदलते हैं।

प्रश्न 2.
नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन के दो लाभ तथा दो हानियाँ लिखिए।
उत्तर:
लाभ नदियों पर बाँध बनाकर जल-विद्युत उत्पादन करने से सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होता है तथा बाढ़-नियन्त्रण में सहायता मिलती है। हानियाँ बाँध बनाने से बहुत-सी भूमि जलमग्न हो जाती है तथा बाँध के इब क्षेत्र में आने वाले गाँवों से लोगों को पलायन करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त नदी के जल-प्रवाह क्षेत्र का पर्यावरण भी प्रभावित होता है।

प्रश्न 3.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता कितनी है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की क्षमता लगभग 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है।

प्रश्न 4.
जल विद्युत-गृह, तापीय विद्यत-गृह की अपेक्षा क्यों उपयोगी है?
उत्तर:
तापीय विद्युत-गृह के समीपवर्ती क्षेत्रों में कोयले के धुएँ के कारण वायु प्रदूषित हो जाती है, जबकि जल विद्युत-गृह से प्रदूषण उत्पन्न नहीं होता।

प्रश्न 5.
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग कितना होना चाहिए?
उत्तर:
पवन चक्की से उपयोगी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पवन का न्यूनतम वेग 15 किमी/ घण्टा होना चाहिए।

प्रश्न 6.
सौर-ऊर्जा को अप्रत्यक्ष रूप में उपयोग करने की कौन-कौन-सी विधियाँ हैं?
उत्तर:
1. पवन-ऊर्जा का उपयोग
2. समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग
3. सागर की विभिन्न गहराइयों पर जल के तापान्तर का उपयोग आदि।

प्रश्न 7.
सौर कुकर कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
सौर-कुकर दो प्रकार के होते हैं –
(1) बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा
(2) गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर।

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प्रश्न 8.
उन चार क्षेत्रों के नाम लिखिए जहाँ सौर-सेलों को ऊर्जा-स्त्रोत के रूप में उपयोग किया जाता है।
उत्तर:
कृत्रिम उपग्रहों में, सुदूर स्थानों पर स्थित अनुसन्धान केन्द्रों में, दूरदर्शन रिले स्टेशनों में तथा ट्रैफिक लाइटों में सौर-सेलों का उपयोग ऊर्जा-स्रोत के रूप में किया जाता है।

प्रश्न 9.
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता कितनी होती है?
उत्तर:
आधुनिक सेलेनियम सौर-सेलों की दक्षता 25% तथा अर्द्धचालकों से निर्मित सौर-सेलों की दक्षता 10% से 18% तक होती है।

प्रश्न 10.
अर्द्धचालक क्या हैं?
उत्तर:
अर्द्धचालक वे पदार्थ, जिनकी विद्युत चालकता बहुत कम होती है, अर्द्धचालक कहलाते हैं। ये न तो विद्युत के सुचालक होते हैं और न ही पूर्णतया विद्युतरोधी होते हैं।

प्रश्न 11.
ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए, जो महासागर में उपलब्ध हैं।
उत्तर:
महासागर से दोहन (harness) किए जा सकने वाले ऊर्जा के तीन रूप –
1. सागरीय तापीय ऊर्जा
2. सागरीय लहरों की ऊर्जा तथा
3. ज्वारीय-ऊर्जा हैं।

प्रश्न 12.
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु कौन-कौन-से स्थान चुने गए हैं?
उत्तर:
भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा के दोहन हेतु तीन स्थान-गुजरात में कच्छ की खाड़ी, कैम्बे और पश्चिम बंगाल के पूर्वी समुद्री तट पर सुन्दरवन-चुने गए हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवाश्म ईंधन क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवाश्म ईंधन आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर उपस्थित विशालकाय पेड़ पृथ्वी की भूपर्पटी के नीचे दब गए थे। ये वनस्पति अवशेष, समय बीतने के साथ, उच्च ताप तथा उच्च दाब की अवस्था में, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ईंधन के रूप में बदलते चले गए। वनस्पति अवशेषों से बने इस प्रकार के ईंधन को जीवाश्म ईंधन कहते हैं। कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जीवाश्म ईंधन के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
पेट्रोलियम गैस कैसे प्राप्त की जाती है? उस गैस का नाम लिखिए जो पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक है।
उत्तर:
पेट्रोलियम गैस, तेल शोधक संयन्त्रों में पेट्रोलियम के प्रभाजी आसवन के दौरान उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त पेट्रोलियम गैस, पेट्रोल के भंजन से भी प्राप्त की जाती है। पेट्रोलियम गैस का मुख्य घटक ब्यूटेन नामक गैस है।

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प्रश्न 3.
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त लिखिए।
उत्तर:
जल-विद्युत उत्पन्न करने का मूल सिद्धान्त इसके लिए नदियों के बहते हुए जल को एक ऊँचा बाँध बनाकर एकत्र कर लिया जाता है। बाँध की तली के समीप जल टरबाइन लगा देते हैं। बाँध के ऊपरी भाग से इस जल को लगातार नीचे की ओर गिराते हैं। जब तेजी से गिरता हुआ जल, ‘जल टरबाइन’ के ब्लेडों पर गिरता है, तो उसकी ऊर्जा से जल टरबाइन तेजी से घूमने लगता है। जल टरबाइन की शाफ्ट विद्युत जनित्र के आमेचर से जुड़ी होने के कारण, इसका आमेचर भी जल टरबाइन के घूमने के कारण तेजी से घूमने लगता है। इस प्रकार, विद्युत का उत्पादन होने लगता है; अत: गतिज ऊर्जा विद्युत-ऊर्जा में रूपान्तरित हो जाती है।

प्रश्न 4.
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता कितनी है? इस क्षमता का कितना भाग प्रयुक्त होता है?
उत्तर:
भारत में जल विद्युत-शक्ति की कुल क्षमता 4 x 1011 किलोवाट-घण्टा है। आज तक इस क्षमता का 11% से कुछ अधिक भाग ही उपयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, यह भी अनुमान लगाया गया है कि लगभग 2.5 x 1010 किलोवाट-घण्टा विद्युत-ऊर्जा लघु तथा सूक्ष्म जल-विद्युत परियोजनाओं द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है। आजकल हमारे देश में उत्पादित कुल विद्युत-शक्ति का 23% से कुछ अधिक भाग जल-विद्युत से आता है।

प्रश्न 5.
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण क्या है? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन व्यावसायिक स्तर पर पवन ऊर्जा का दोहन करने हेतु पहला चरण ‘पवन ऊर्जा मानचित्र’ बनाना है। इस मानचित्र को बनाने के लिए यह आवश्यक है कि किसी दिए गए स्थान पर पूरे वर्ष पवन की चाल मापी जाए।
1. पवन ऊर्जा के मानचित्र विभिन्न स्थानों पर पवन की वार्षिक औसत चाल दर्शाते हैं। ये जनवरी तथा जुलाई माह में पवन की औसत चाल भी दर्शाते हैं (क्योंकि पवन की चाल जनवरी में अत्यधिक मन्द तथा जुलाई में अत्यधिक तीव्र होती है)।

2. पवन ऊर्जा के मानचित्र भूमि तल से लगभग 10 मीटर की ऊँचाई पर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में उपलब्ध पवन-ऊर्जा के बारे में प्रमुख सूचनाएँ किलोवाट-घण्टे में देते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत में पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ क्या हैं? या भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन किस प्रदेश में होता है? इनकी उत्पादन क्षमता क्या है?
उत्तर:
पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु बनाई गई योजनाएँ भारत में उपलब्ध पवन ऊर्जा की क्षमता का लाभ उठाने हेतु विस्तृत योजनाएँ बनाई गई हैं। इनमें से कुछ योजनाओं को तो विद्युत उत्पादन हेतु लागू भी किया जा चुका है। भारत में पवन ऊर्जा से विद्युत उत्पादन संयन्त्र गुजरात प्रदेश के ‘ओखा’ नामक स्थान पर स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 1 मेगावाट (1 MW) है। दूसरा पवन ऊर्जा संयन्त्र गुजरात के पोरबन्दर में स्थित ‘लांबा’ नामक स्थान पर है। यह 200 एकड़ से भी अधिक भूमि पर फैला हुआ है। इसमें 50 पवन ऊर्जाचालित टरबाइन लगी हैं, जिनकी क्षमता 200 करोड़ यूनिट विद्युत उत्पन्न करने की है।

प्रश्न 7.
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत क्या है? ऊर्जा के इस स्रोत को व्यापारिक स्तर पर उपयोग करने की क्यों आवश्यकता हुई?
उत्तर:
पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे विशाल स्रोत सूर्य है। सूर्य द्वारा दी गई ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी पर प्रतिदिन पड़ने वाले सूर्य के प्रकाश द्वारा दी गई ऊर्जा संसार के सभी देशों द्वारा एक वर्ष में उपयोग की गई कुल ऊर्जा का 50,000 गुना है। व्यापारिक स्तर पर ऊर्जा के इस स्रोत को उपयोग करने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि जीवाश्म ईंधनों के ज्ञात भण्डार बहुत कम रह गए हैं जो कुछ ही दशकों में समाप्त हो जाएंगे। इस ऊर्जा के संकट को दूर करने के लिए मानव ने ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों की खोज की। इनमें से एक नवीकरणीय स्रोत सौर-ऊर्जा भी है।

प्रश्न 8.
बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर बताइए। या बॉक्सनुमा सौर-कुकर तथा गोलीय परावर्तक-युक्त सौर-कुकर में अन्तर बताइए।
उत्तर:
बॉक्सनुमा सौर कुकर तथा संकेन्द्रक सौर-ऊष्मक में अन्तर –
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प्रश्न 9.
OTEC शक्ति संयन्त्र क्या है? ये किस प्रकार कार्य करते हैं?
उत्तर:
OTEC शक्ति संयन्त्र महासागरों की तापीय ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित करने के लिए प्रयोग किए जाने वाले संयन्त्रों को OTEC शक्ति संयन्त्र कहा जाता है। कार्य-सिद्धान्त ये संयन्त्र समुद्र की ऊपरी परत की ऊष्मा का प्रयोग कुछ तीव्र वाष्पशील पदार्थों को वाष्पित करने के लिए करते हैं। तत्पश्चात् इन वाष्पों की ऊष्मीय ऊर्जा का प्रयोग टरबाइन को चलाने के लिए किया जाता है। सबसे अन्त में टरबाइन की गतिज ऊर्जा द्वारा विद्युत जनित्र को चलाकर विद्युत-ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।

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प्रश्न 10.
नाभिकीय रिऐक्टरों के प्रमुख उद्देश्यों की सूची बनाइए। इनमें से कौन-से उद्देश्य लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टरों के उद्देश्य नाभिकीय रिऐक्टर विभिन्न उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए बनाए जाते हैं जो कि निम्नलिखित हैं।
1. विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन नाभिकीय रिऐक्टरों का यह सर्वप्रमुख उद्देश्य है।

2. नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन कुछ नाभिकीय रिऐक्टरों का उद्देश्य विद्युत-ऊर्जा उत्पादन के अतिरिक्त नए विखण्डनीय पदार्थों का उत्पादन करना भी होता है। ऐसे रिऐक्टरों को ब्रीडर रिऐक्टर कहते हैं।

3. तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का उत्सर्जन रिऐक्टर में U235 के विखण्डन से तीव्रगामी न्यूट्रॉन उत्सर्जित होते हैं, जिनके द्वारा अन्य तत्वों के कृत्रिम नाभिकीय विघटनों का अध्ययन किया जाता है।

4. कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन रिऐक्टर में अनेक तत्वों के कृत्रिम रेडियोऐक्टिव आइसोटोप बनाए जाते हैं, जिनका उपयोग चिकित्सा, जीवविज्ञान, उद्योगों तथा कृषि आदि में होता है। उपर्युक्त सभी उद्देश्यों में से विद्युत-ऊर्जा का उत्पादन तथा कृत्रिम रेडियो आइसोटोपों का उत्पादन ऐसे। उद्देश्य हैं जो लोगों की व्यापक भलाई के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 11.
यूरेनियम के विखण्डन को समीकरण से समझाइए।
उत्तर:
यूरेनियम का विखण्डन यूरेनियम के दो आइसोटोप 92U238 तथा 92U235 हैं। 92U238 का विखण्डन केवल तीव्रगामी न्यूट्रॉनों द्वारा ही सम्भव है जबकि 92U235 का विखण्डन मन्दगामी न्यूट्रॉनों द्वारा होता है। जब मन्दगामी न्यूट्रॉन92U235 से टकराता है तो वह उसमें अवशोषित कर लिया जाता है तथा92U236 बन जाता है। चूंकि 92U236 अत्यन्त अस्थायी है; अतः यह दो खण्डों बेरियम तथा क्रिप्टन में टूट जाता है तथा न्यूट्रॉनों व ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।
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प्रश्न 12.
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद क्या हैं?
उत्तर:
यूरेनियम के विखण्डन उत्पाद जब यूरेनियम आइसोटोप (U235) के नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यह दो अपेक्षाकृत हल्के नाभिकों में टूट जाता है और इसके साथ ही बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। U235 के विखण्डन से अनेक प्रकार के भिन्न-भिन्न नाभिक प्राप्त होते हैं। इस प्रकार किसी विशिष्ट U235 नाभिक के विखण्डन से कौन-कौन से दो नाभिक उत्पन्न होंगे पहले से यह बता पाना सम्भव नहीं है। U235 नाभिक के विखण्डन से मुख्यत: नाभिकों के दो सह उत्पन्न होते हैं –
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  1. नाभिकों का भारी समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 130 से 149 के बीच पाई जाती है।
  2. नाभिकों का हल्का समूह इनकी द्रव्यमान संख्या 84 से 104 के बीच पाई जाती है।

नाभिकों के भारी समूह के दो प्रमुख उदाहरण बेरियम-139 तथा लैन्थेनम-139 हैं, जबकि नाभिकों के हल्के समूह के दो उदाहरण – क्रिप्टन-94 तथा मॉलिब्डेनम-95 हैं। इस प्रकार U 235 के विखण्डन उत्पाद 56Ba139तथा 36Kr94 अथवा 57La139 तथा 42Mo95 हो सकते हैं।
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प्रश्न 13.
तापीय न्यूट्रॉन किसे कहते हैं? तापीय न्यूट्रॉन द्वारा प्रारम्भिक U235 नाभिक के विखण्डन को एक चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
तापीय न्यूट्रॉन कम ऊर्जा (1ev ऊर्जा से कम) वाले वे न्यूट्रॉन जिनका उपयोग U235 नाभिक का विखण्डन करने के लिए किया जाता है, तापीय न्यूट्रॉन कहलाते हैं।
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प्रश्न 14.
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
रेडियोऐक्टिव विघटन तथा नाभिकीय विखण्डन में अन्तर –
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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिए। स्पष्ट कीजिए कि अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन से क्या तात्पर्य है? या जैव अपशिष्ट से जैव-गैस प्राप्त करने की विधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जैव-गैस का निर्माण जैव-गैस; कई ईंधन गैसों का मिश्रण है। इसे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव पदार्थों के अपघटन से प्राप्त किया जाता है। जैव-गैस का मुख्य घटक मेथेन (CH4) गैस है जो कि एक आदर्श ईंधन है। जैव-गैस उत्पन्न करने के लिए गोबर, वाहित मल, फल-सब्जियों तथा कृषि आधारित उद्योगों के अपशिष्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। जैव-गैस बनाने के लिए दो प्रकार के संयन्त्रों का प्रयोग किया जाता है –
1. स्थायी गुम्बद प्रकार तथा
2. प्लावी (तैरती) टंकी प्रकार।

गोबर से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए प्रायः ‘प्लावी टंकी प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग करते हैं जबकि मानव मल तथा अन्य अपशिष्टों से जैव-गैस प्राप्त करने के लिए ‘स्थिर गुम्बद प्रकार’ के संयन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

जैव-गैस प्राप्त करने के विभिन्न चरण –
प्रथम चरण: स्लरी का निर्माण सर्वप्रथम गाय-भैंस आदि घरेलू पशुओं के गोबर को पानी के साथ मिलाकर मिश्रण-टंकी में एक गाढ़ा घोल (स्लरी) तैयार कर लेते हैं। तत्पश्चात् स्लरी को डाइजेस्टर में डालकर छोड़ देते हैं। डाइजेस्टर, ईंटों का बना हुआ एक भूमिगत टैंक होता है जो चारों ओर से बन्द रहता है।
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द्वितीय चरण: स्लरी का अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी या अनॉक्सी सूक्ष्मजीव, पानी की उपस्थिति में, स्लरी में उपस्थित जैव-मात्रा का अपघटन कर उसे सरल यौगिकों में बदलने लगते हैं। इस क्रिया को पूरा होने में कुछ दिन लग जाते हैं तथा। निर्गम टंकी क्रिया पूर्ण होने पर डाइजेस्टर में मेथेन, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन तथा सल्फर डाइऑक्साइड गैसों का मिश्रण प्राप्त होता है। यह मिश्रण ही जैव-गैस है।

यह गैसीय मिश्रण डाइजेस्टर में ऊपर उठकर प्लावी डाइजेस्टर टंकी या स्थिर गुम्बद में एकत्र हो जाता है। प्लाती टंकी या स्थिर गुम्बद के ऊपरी भाग में लगी नलिका द्वारा इस गैस को उपभोक्ता की रसोई तक ले जाया जाता है और गैस चूल्हों में जलाया जाता है।
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जैव-गैस के लाभ जैव-गैस एक उत्तम ईंधन है जो बिना धुआँ दिए जलती है। इसको जलाने से राख जैसा कोई ठोस अपशिष्ट भी नहीं बचता है। इस प्रकार, जैव-गैस एक पर्यावरण-हितैषी ईंधन है। डाइजेस्टर में, जैव गैस प्राप्त करने के पश्चात् शेष स्लरी में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस के यौगिक प्रचुर मात्रा में होते हैं; अतः यह एक उत्तम खाद का कार्य करती है।

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इस प्रकार, जैव-गैस प्राप्त करने की क्रिया में न केवल हमें एक उत्तम ईंधन प्राप्त होता है, साथ-ही खेतों के लिए खाद भी प्राप्त होता है तथा पर्यावरण भी प्रदूषित होने से बच जाता है। अवायुजीवी (अनॉक्सी) अपघटन डाइजेस्टर में उपस्थित अवायुजीवी सूक्ष्मजीवों को ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती है; अतः ये ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में ही स्लरी का अपघटन करते हैं। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होने वाला इस प्रकार का अपघटन अवायुजीवी अथवा अनॉक्सी अपघटन कहलाता है।

प्रश्न 2.
पवन चक्की का कार्य-सिद्धान्त क्या है? पवन चक्की का विवरण चित्र सहित समझाइए।
उत्तर:
पवन चक्की पवन चक्की एक ऐसी युक्ति है, जिसमें वायु की गतिज ऊर्जा ब्लेडों को घुमाने में प्रयुक्त की जाती है। यह बच्चों के खिलौने ‘फिरकी’ जैसी होती है। पवन चक्की के ब्लेडों की बनावट विद्युत पंखे के ब्लेडों के समान होती है। इनमें केवल इतना अन्तर है कि विद्युत पंखे में जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन अर्थात् वायु चलती है। इसके विपरीत, पवन चक्की में जब पवन चलती है, तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं।

घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति के कारण पवन चक्की से गेहूँ पीसने की चक्की को चलाना, जल-पम्प चलाना, मिट्टी के बर्तन के चाक को घुमाना आदि कार्य किए जा सकते हैं। पवन चक्की ऐसे स्थानों पर लगाई जाती है, जहाँ वायु लगभग पूरे वर्ष तीव्र वेग से चलती रहती है। यह पवन ऊर्जा को उपयोगी यान्त्रिक-ऊर्जा के रूप में बदलने का कार्य करती है। रचना पवन चक्की की रचना को चित्र में प्रदर्शित किया गया है। इसमें ऐलुमिनियम के पतले-चपटे आयताकार खण्डों के रूप में, बहुत-सी पंखुड़ियाँ लोहे के पहिये पर लगी रहती हैं।

यह पहिया एक ऊर्ध्वाधर स्तम्भ के ऊपरी सिरे पर लगा रहता है तथा अपने केन्द्र से गुजरने वाली लौह शाफ्ट (अक्ष) के परितः घूम सकता है। पहिये का तल स्वत: वायु की गति की दिशा के लम्बवत् समायोजित हो जाता है, जिससे वायु सदैव पंखुड़ियों पर सामने से टकराती है। पहिये की अक्ष एक लोहे की फ्रैंक से जुड़ी रहती है। फ्रैंक का दूसरा सिरा उस मशीन अथवा डायनमो से जुड़ा रहता है, जिसे पवन-ऊर्जा द्वारा गति प्रदान करनी होती है।

कार्य-विधि:
चित्र में पवन चक्की द्वारा पानी खींचने की क्रिया का प्रदर्शन किया गया है। पवन चक्की की बैक एक जल-पम्प की पिस्टन छड़ से जुड़ी है। जब वायु, पवन चक्की की पंखुड़ियों से टकराती है तो चक्की का पहिया घूमने लगता है और पहिये से जुड़ी अक्ष घूमने लगती है। अक्ष की घूर्णन गति के कारण बॅक ऊपर-नीचे होने लगती है और जल-पम्प की पिस्टन छड़ भी ऊपर-नीचे गति करने लगती है तथा जल-पम्प से जल बाहर निकलने लगता है।
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कार्य-सिद्धान्त तेजी से बहती हई पवन जब पवन चक्की के ब्लेडों से टकराती है तो वह उन पर एक बल लगाती है जो एक प्रकार का घूर्णी प्रभाव उत्पन्न करता है और इसके कारण पवन चक्की के ब्लेड घूमने लगते हैं। पवन चक्की का घूर्णन उसके ब्लेडों की विशिष्ट बनावट के कारण होता है जो विद्युत के पंखे के ब्लेडों के समान होती है। पवन चक्की को विद्युत के पंखे के समान माना जा सकता है जो कि विपरीत दिशा में कार्य कर रहा हो, क्योंकि जब पंखे के ब्लेड घूमते हैं तो पवन चलती है।

इसके विपरीत, जब पवन चलती है तो पवन चक्की के ब्लेड घूमते हैं। पवन चक्की के लगातार घूमते हुए ब्लेडों की घूर्णन गति से जल-पम्प तथा गेहूँ पीसने की चक्की चलाई जा सकती है। पवन चक्की की भाँति ‘फिरकी’ भी पवन ऊर्जा से ही घूमती है।

प्रश्न 3.
चित्र की सहायता से बॉक्सनुमा सौर-कुकर की संरचना व कार्य-विधि का वर्णन कीजिए।
या सौर-ऊर्जा क्या है? सोलर-कुकर का सिद्धान्त एवं कार्य-विधि समझाइए। सोलर कुकर के लाभ भी लिखिए।
या सोलर कुकर के उपयोग, लाभ एवं सीमाएँ लिखिए।
उत्तर:
सूर्य द्वारा उत्सर्जित ऊर्जा को सौर-ऊर्जा कहते हैं। बॉक्सनुमा सोलर-कुकर यह एक ऐसी युक्ति है, जिसमें सौर-ऊर्जा का उपयोग करके भोजन को पकाया जाता है, इसलिए इसे सौर-चूल्हा भी कहते हैं। चित्र में बॉक्सनुमा सौर-कुकर को प्रदर्शित किया गया है। संरचना सामान्यतः यह एक लकड़ी का बक्सा A होता है जिसे बाहरी बक्सा भी कहते हैं। इस लकड़ी के बक्से के अन्दर लोहे अथवा ऐलुमिनियम की चादर का बना एक और बक्सा होता है, इसे भीतरी बक्सा कहते हैं। भीतरी बक्से के अन्दर की दीवारें तथा नीचे की सतह काली कर दी जाती है।

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भीतरी बक्से के अन्दर काला रंग इसलिए किया जाता है, जिससे कि सौर-ऊर्जा का अधिक-से-अधिक अवशोषण हो तथा परावर्तन द्वारा ऊष्मा की कम-से-कम हानि हो। भीतरी बक्से तथा बाहरी बक्से के बीच के खाली स्थान में थर्मोकोल अथवा काँच की रुई अथवा कोई भी ऊष्मारोधी पदार्थ भर देते हैं, इससे सौर-कुकर की ऊष्मा बाहर नहीं जा पाती। सौर कुकर के बक्से के ऊपर एक लकड़ी के फ्रेम में मोटे काँच का एक ढक्कन G लगा होता है, जिसे आवश्यकतानुसार खोला तथा बन्द किया जा सकता है। सौर-कुकर के बक्से में एक समतल दर्पण M भी लगा होता है जो कि परावर्तक तल का कार्य करता है।
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कार्य-विधि:
सर्वप्रथम पकाए जाने वाले भोजन को स्टील अथवा ऐलमिनियम के एक बर्तन C में डालकर जिसकी बाहरी सतह काली पुती हो, सौर-कुकर के अन्दर रख देते हैं तथा ऊपर से शीशे के ढक्कन को बन्द कर देते हैं। परावर्तक तल M अर्थात् समतल दर्पण को चित्रानुसार खड़ा करके सौर-कुकर को भोजन पकाने के लिए धूप में रख देते हैं। जब सूर्य के प्रकाश की किरणें परावर्तक तल M पर गिरती हैं तो परावर्तक तल उन्हें तीव्र प्रकाश-किरण पुंज के रूप में सौर-कुकर के ऊपर डालता है। सूर्य की ये किरणें काँच के ढक्कन में से गुजरकर सौर-कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तथा कुकर के अन्दर की काली सतह द्वारा अवशोषित कर ली जाती हैं। चूँकि सूर्य की किरणों का

लगभग एक-तिहाई भाग ऊष्मीय प्रभाव वाली अवरक्त किरणों का होता है, इसलिए जब ये किरणें कुकर के बक्से में प्रवेश कर जाती हैं तो काँच का ढक्कन G इन्हें वापस बाहर नहीं आने देता। इस प्रकार सूर्य की और अधिक अवरक्त किरणें धीरे-धीरे कुकर के बक्से में प्रवेश करती जाती हैं, जिनके कारण सौर-कुकर के अन्दर का ताप बढ़ता जाता है। लगभग दो अथवा तीन घण्टे में सौर-कुकर के अन्दर का ताप 100°C तथा 140°C के बीच हो जाता है।

यही ऊष्मा सौर-कुकर के अन्दर बर्तन में रखे भोजन को पका देती है। उपयोग बॉक्सनुमा सौर-कुकर को उन खाद्य पदार्थों को पकाने के लिए प्रयुक्त करते हैं, जिन्हें पकाने के लिए धीमी आँच की आवश्यकता होती है। इस कुकर को रोटियाँ सेंकने में प्रयुक्त नहीं करते।

सोलर-कुकर के लाभ इसके निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. सोलर-कुकर से किसी प्रकार का धुआँ अथवा गन्ध नहीं निकलती है; अत: इसके प्रयोग से प्रदूषण नहीं होता।
  2. सोलर-कुकर में मिट्टी का तेल, कोयला, विद्युत आदि जैसे किसी ईंधन की आवश्यकता नहीं होती है। इस प्रकार इसके प्रयोग से ईंधन तथा विद्युत दोनों की बचत होती है।
  3. सोलर-कुकर से बहुत धीमी गति से खाना पकता है; अत: इसके द्वारा पके भोजन से पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते।
  4. सोलर-कुकर से खाना पकाते समय निरन्तर देखभाल की आवश्यकता नहीं होती है।

सोलर-कुकर की परिसीमाएँ इसकी निम्नलिखित परिसीमाएँ हैं –

  1. सोलर-कुकर रात्रि में, बरसात में तथा बादल वाले दिनों में काम नहीं करते।
  2. सोलर-कुकर को रोटी बनाने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।
  3. सोलर-कुकर को खाने वाली वस्तुओं को तलने में प्रयुक्त नहीं कर सकते।

प्रश्न 4.
सौर-सेल क्या है? सौर-सेलों के विकास तथा उपयोगों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सौर-सेल यह एक ऐसी युक्ति है, जो सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाली ऊर्जा को सीधे विद्युत ऊर्जा में बदल देती है। सौर-सेल का विकास आज से लगभग 100 वर्ष पहले यह खोज हो चुकी थी कि सेलीनियम की किसी पतली पर्त को सौर प्रकाश में रखने पर विद्युत उत्पन्न होती है। यह भी ज्ञात था कि सेलेनियम के किसी टुकड़े पर आपतित सौर-ऊर्जा का केवल 0.6% भाग ही विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित हो पाता है।

चूँकि इस प्रकार के सौर-सेल की दक्षता बहुत कम थी, इसलिए विद्युत उत्पादन के लिए इस परिघटना का उपयोग करने के कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए। प्रथम व्यावहारिक सौर-सेल सन् 1954 में बनाया गया था। यह सौर-सेल लगभग 1.0% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था। इस सौर-सेल की दक्षता भी बहुत कम थी। अन्तरिक्ष कार्यक्रमों द्वारा उत्पन्न बढ़ती हुई माँग के कारण अधिक-से-अधिक दक्षता वाले सौर-सेलों को विकसित करने की दर तेजी से बढ़ी है। सौर सेलों के निर्माण के लिए अर्द्धचालकों के उपयोग से सौर-सेलों की दक्षता बहुत अधिक बढ़ गई है।

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सिलिकन, गैलियम तथा जर्मेनियम जैसे अर्द्धचालकों से बने हुए सौर-सेलों की दक्षता 10 से 18% तक होती है अर्थात् ये 10 से 18% सौर-ऊर्जा को विद्युत-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकते हैं। सेलेनियम से बने आधुनिक सौर-सेलों की दक्षता 25% तक होती है। सौर-सेलों के उपयोग सौर-सेलों का उपयोग दुर्गम तथा दूरस्थ स्थानों में विद्युत-ऊर्जा उपलब्ध कराने में अत्यन्त प्रभावशाली सिद्ध हुआ है। सौर-सेलों के महत्त्वपूर्ण उपयोग अनलिखित हैं –

1. सौर-सेलों का उपयोग कृत्रिम उपग्रहों तथा अन्तरिक्ष यानों में विद्युत उपलब्ध करने के लिए किया जाता है। वास्तव में, सभी कृत्रिम उपग्रह तथा अन्तरिक्ष यान मुख्यत: सौर-पैनलों के द्वाराउत्पादित विद्युत-ऊर्जा पर ही निर्भर करते हैं।

2. भारत में सौर-सेलों का उपयोग सड़कों पर प्रकाश व्यवस्था करने में, सिंचाई के लिए जलपम्पों को चलाने तथा रेडियो व टेलीविजन सैटों को चलाने में किया जाता है।

3. सौर सेलों का उपयोग समुद्र में स्थित द्वीप स्तम्भों में तथा तट से दूर निर्मित खनिज तेल के कुएँ खोदने वाले संयन्त्रों को विद्युत-शक्ति प्रदान करने में किया जाता है।

4. आजकल सौर-सेलों का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक घड़ियों तथा कैलकुलेटरों को चलाने में भी किया जाता है।

प्रश्न 5.
महासागर में ऊर्जा का दोहन कितने रूपों में और किस प्रकार किया जा सकता है? या महासागर में किन-किन रूपों में ऊर्जा भण्डारित है? ऊर्जा के उन तीन रूपों के नाम बताइए जिनका महासागर से दोहन किया जा सकता है।
उत्तर:
महासागरों में ऊर्जा का भण्डारण अथवा दोहन महासागरों में ऊर्जा भण्डारण अथवा दोहन के निम्नलिखित स्वरूप हैं –
1. सागरीय तापीय-ऊर्जा महासागर की सतह के जल तथा गहराई के जल के ताप में सदैव कुछ अन्तर होता है। इस तापान्तर के कारण उपलब्ध ऊर्जा को सागरीय तापीय-ऊर्जा कहते हैं। कहीं-कहीं पर यह तापान्तर 20°C तक भी होता है। इस सागरीय तापीय-ऊर्जा को विद्युत के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इसके लिए सागरीय तापीय ऊर्जा रूपान्तरण विद्युत संयंत्र का प्रयोग किया जाता है।

2. सागरीय लहरों की ऊर्जा वायु का प्रवाह अधिक होने के कारण समुद्र की सतह पर जल की लहरें बहुत तेजी से चलती हैं, जिसके कारण उनमें गतिज ऊर्जा होती है। इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा को सागरीय लहरों की ऊर्जा कहते हैं। इन गतिशील समुद्री लहरों की ऊर्जा का उपयोग विद्युत उत्पादन में किया जाता है।

3. ज्वारीय-ऊर्जा चन्द्रमा के आकर्षण के कारण समुद्र के जल के ऊपर उठने को ज्वार तथा जल के नीचे उतरने को भाटा कहते हैं। ज्वार-भाटा की लहरें दिन में दो बार चढ़ती हैं तथा दो बार उतरती हैं। समुद्रतटीय क्षेत्रों में ज्वार तथा भाटा के बीच जल की विशाल मात्रा की गतिशीलता, ऊर्जा का एक बहुत बड़ा स्रोत उत्पन्न करती है।

ज्वारीय लहरों की ऊर्जा ज्वारीय बाँध बनाकर काम में लाई जाती है। ज्वार के समय उठे जल को बाँध द्वारा रोककर, जल को ऊँचाई से धीरे-धीरे जल टरबाइन के ब्लेडों पर गिराकर जल टरबाइन को घुमाते हैं और विद्युत उत्पादित करते हैं। भारत में ज्वारीय लहरों की ऊर्जा का दोहन करने के लिए तीन स्थान चुने गए हैं-कच्छ की खाड़ी, कैम्बे (गुजरात) तथा सुन्दरवन (पश्चिम बंगाल)।

4. समुद्रों में लवणीय प्रवणता से ऊर्जा चूँकि भिन्न-भिन्न समुद्रों के जल में लवणों की सान्द्रता भिन्न-भिन्न होती है; अतः दो समुद्रों के जल के लवणों की सान्द्रता के अन्तर को ‘लवणीय प्रवणता’ कहते हैं। दो भिन्न-भिन्न समुद्रों का जल जिस स्थान पर आपस में मिलता है, उस स्थान पर लवणों की सान्द्रता के अन्तर का उपयोग ऊर्जा प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

5. समुद्री वनस्पतियों अथवा जैव-द्रव्यमान से ऊर्जा समुद्री वनस्पतियाँ अर्थात् पेड़-पौधे अथवा जैव-द्रव्यमान सागरीय ऊर्जा प्राप्त करने का एक स्रोत हैं। भविष्य में सागर में उपस्थित समुद्री शैवाल की विशाल मात्रा मेथेन नामक ईंधन प्रदान कर सकती है।

6. सागरीय ड्यूटीरियम के नाभिकीय संलयन से ऊर्जा सागर का जल, हाइड्रोजन के भारी परमाणु अर्थात् ड्यूटीरियम का एक असीमित स्रोत है। यह सागर में भारी जल के रूप में उपस्थित रहता है। डयूटीरियम, हाइड्रोजन का समस्थानिक है, जिसके नाभिक में एक प्रोटॉन तथा एक न्यूट्रॉन होता है। ड्यूटीरियम का नाभिकीय संलयन करके ऊर्जा प्राप्त करने के प्रयास चल रहे हैं। इन प्रयासों में सफलता मिल जाने पर सागर, ऊर्जा का एक विशाल स्रोत बन जाएगा, जो करोड़ों वर्षों तक हमें ऊर्जा प्रदान करता रहेगा।

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प्रश्न 6.
किसी नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटकों के नाम लिखिए तथा उनके प्रकार्यों का वर्णन कीजिए।
या नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख भागों का उल्लेख करते हुए इसकी प्रक्रिया का सचित्र वर्णन कीजिए।
या समझाइए कि नाभिकीय रिऐक्टर में विमन्दकों तथा नियन्त्रकों की सहायता से श्रृंखला अभिक्रिया को किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है?
उत्तर:
नाभिकीय रिऐक्टर के प्रमुख घटक: नाभिकीय रिऐक्टर एक ऐसा उपकरण है, जिसके भीतर नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है। इसके निम्नलिखित मुख्य भाग हैं –
1. ईंधन: (Fuel) विखण्डित किए जाने वाले पदार्थ (U235 अथवा Pu 239 ) को रिऐक्टर का ईंधन कहते हैं।

2. मन्दक: (Moderator) विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉनों की गति (ऊर्जा) को कम करने के लिए मन्दक प्रयोग किए जाते हैं। इसके लिए भारी जल, ग्रेफाइट अथवा बेरिलियम ऑक्साइड (BeO) प्रयोग किए जाते हैं। भारी जल सबसे अच्छा मन्दक है।

3. परिरक्षक (Shield) नाभिकीय विखण्डन के समय कई प्रकार की तीव्र किरणें (जैसे–किरणे) निकलती हैं, जिनसे रिऐक्टर के पास काम करने वाले व्यक्ति प्रभावित हो सकते हैं। इन किरणों से उनकी रक्षा करने के लिए रिऐक्टर के चारों ओर कंक्रीट की मोटी-मोटी (सात फुट मोटी) दीवारें बना दी जाती हैं।

4. नियन्त्रक: (Controller) रिऐक्टर में विखण्डन की गति पर नियन्त्रण करने के लिए कैडमियम की छड़ें प्रयुक्त की जाती हैं। रिऐक्टर की दीवार में इन छड़ों को आवश्यकतानुसार
अन्दर-बाहर करके विखण्डन की गति को नियन्त्रित किया जा सकता है।

5. शीतलक: (Coolant) विखण्डन के समय उत्पन्न होने वाली ऊष्मा को शीतलक पदार्थ द्वारा हटाया जाता है। इसके लिए वायु, जल अथवा कार्बन डाइऑक्साइड को रिऐक्टर में प्रवाहित करते हैं। ऊष्मा प्राप्त कर जल अतितप्त हो जाता है और जलवाष्प में परिवर्तित हो जाता है, जिससे टरबाइन चलाकर विद्युत उत्पादित की जाती है।

रचना नाभिकीय रिऐक्टर का सरल रूप चित्र में दिखाया गया है। इसमें ग्रेफाइट की ईंटों से बना एक ब्लॉक है, जिसमें निश्चित स्थानों पर साधारण यूरेनियम की छड़ें लगी रहती हैं। इन छड़ों पर ऐलुमिनियम के खोल चढ़ा दिए जाते हैं जिससे इनका ऑक्सीकरण न हो। ब्लॉक के बीच-बीच में कैडमियम की छड़ें लगी होती हैं, जिन्हें ‘नियन्त्रक-छड़ें’ कहते हैं। इन्हें इच्छानुसार अन्दर अथवा बाहर खिसका सकते हैं।

ग्रेफाइट मन्दक का कार्य करता है तथा कैडमियम न्यूट्रॉनों का अच्छा अवशोषक होने के कारण नाभिकीय विखण्डन को रोक सकता है। कैडमियम छड़ों के अतिरिक्त इसमें कुछ सुरक्षा छड़ें भी लगी रहती हैं जो दुर्घटना होने पर स्वत: रिऐक्टर में प्रवेश कर जाती हैं और अभिक्रिया को रोक देती हैं। रिऐक्टर के चारों ओर सात फुट मोटी कंक्रीट की दीवार बना दी जाती है, जिससे कर्मचारियों को हानिकारक विकिरणों से बचाया जा सके।
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कार्य-विधि:
रिऐक्टर को चलाने के लिए किसी बाह्य स्रोत की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि इसमें सदैव कुछ न्यूट्रॉन उपस्थित रहते हैं; अत: जब रिऐक्टर को चलाना होता है तो कैडमियम की छड़ों को बाहर खींच लेते हैं, तब रिऐक्टर में मौजूद न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों का विखण्डन प्रारम्भ कर देते हैं। जब रिऐक्टर में उपस्थित न्यूट्रॉनों द्वारा U235 का विखण्डन होता है तो इससे उत्पन्न तीव्रगामी न्यूट्रॉनों का ग्रेफाइट के साथ बार-बार टकराने से मन्दन हो जाता है, जिससे ये अगले U235के नाभिक का विखण्डन करने लगते हैं।

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इस प्रकार, विखण्डन की श्रृंखला-अभिक्रिया शुरू हो जाती है। जब कभी अभिक्रिया अनियन्त्रित होने लगती है, तब कैडमियम की छड़ों को अन्दर खिसका देते हैं। कैडमियम की छड़ें कुछ न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे विखण्डन दर कम हो जाती है और इस प्रकार, उत्पन्न ऊर्जा पर नियन्त्रण हो जाता है और विस्फोट नहीं हो पाता। रिऐक्टर में श्रृंखला-अभिक्रिया चलाने के लिए यूरेनियम की छड़ों का आकार, क्रान्तिक आकार से बड़ा रखते हैं।

प्रश्न 7.
श्रृंखला अभिक्रिया किसे कहते हैं तथा यह कैसे सम्पन्न की जाती है?
उत्तर:
नाभिकीय विखण्डन में श्रृंखला अभिक्रिया:
Ban जब यूरेनियम (92U235) पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो यूरेनियम नाभिक दो लगभग बराबर खण्डों में टूट जाता है। विखण्डन की इस अभिक्रिया में 2 या 3 नए न्यूट्रॉन निकलते हैं तथा अपार ऊर्जा उत्सर्जित मन्द गति होती है। अनुकूल परिस्थितियों में ये नए न्यूट्रॉन अन्य न्यूट्रॉन यूरेनियम नाभिकों को विखण्डित कर देते हैं और प्रत्येक नाभिक के विखण्डन से 2 या 3 नए न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं, जो अन्य नाभिकों का विखण्डन करते हैं। इस प्रकार नाभिकों के विखण्डन की श्रृंखला बन जाती है जो एक बार प्रारम्भ होने के पश्चात् स्वत: नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया। चालू रहती है और तब तक चलती रहती है, जब तक कि समस्त यूरेनियम समाप्त नहीं हो जाता।

इस प्रकार की अभिक्रिया को नाभिकीय विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। चूँकि यूरेनियम के एक नाभिक के विखण्डित होने से लगभग 200 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है; अतः शृंखला अभिक्रिया में विखण्डित होने वाले नाभिकों की संख्या तेजी से बढ़ने के कारण उत्पन्न ऊर्जा बहुत शीघ्र ही अपार रूप धारण कर लेती है।
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शृंखला अभिक्रिया निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –

1. अनियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Uncontrolled chain reaction) इस अभिक्रिया में प्रत्येक विखण्डन से उत्पन्न न्यूट्रॉनों में से औसतन एक से अधिक न्यूट्रॉन आगे विखण्डन करते हैं, जिसके कारण विखण्डनों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है; अत: यह अभिक्रिया अति तीव्र गति से होती है और कुछ क्षणों में सम्पूर्ण पदार्थ का विखण्डन हो जाता है। इससे ऊर्जा की बहुत अधिक मात्रा मुक्त होती है, जो भयानक विस्फोट का रूप ले लेती है। परमाणु बम में यही क्रिया होती है।

2. नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया: (Controlled chain reaction) इस अभिक्रिया में कृत्रिम उपायों द्वारा (मन्दक एवं नियन्त्रक पदार्थों से) इस प्रकार का नियन्त्रण किया जाता है कि प्रत्येक विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉनों में से केवल एक ही न्यूट्रॉन आगे विखण्डन कर सके। इस प्रकार, इसमें विखण्डनों की दर नियत रहती है; अत: यह अभिक्रिया धीरे-धीरे होती है तथा उत्पन्न ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में किया जा सकता है। नाभिकीय रिऐक्टर अथवा परमाणु-भट्टी में यही क्रिया होती है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 14 उर्जा के स्रोत

श्रृंखला अभिक्रिया में कठिनाइयाँ तथा उनका निवारण शृंखला अभिक्रिया के प्रचलन में निम्नलिखित दो कठिनाइयाँ आती हैं –

1. प्रथम कठिनाई यह है कि साधारण यूरेनियम में U238 तथा U235 दो आइसोटोप होते हैं। इनमें U235 केवल 0.7% होता है, जबकि U23899.3% होता है। जहाँ U238 केवल तीव्रगामी (ऊर्जा 1 MeV से अधिक) न्यूट्रॉनों द्वारा ही विखण्डित होता है, वहीं U238 मन्द न्यूट्रॉनों (ऊर्जा 0.025 ev) द्वारा ही विखण्डित हो जाता है, जबकि U238 आइसोटोप मन्द गति न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेता है।

प्राकृतिक यूरेनियम में U238 की मात्रा अधिक होने के कारण, विखण्डन क्रिया में उत्पन्न हुए न्यूट्रॉनों के U238 नाभिकों द्वारा अवशोषित कर लिए जाने की सम्भावना अधिक होती है। इससे विखण्डन की क्रिया शीघ्र ही रुक जाती है। इसलिए श्रृंखला अभिक्रिया को सम्पन्न करने के लिए प्राकृतिक यूरेनियम में विसरण विधि द्वारा U235 का अनुपात बढ़ाया जाता है। इस क्रिया को यूरेनियम संवर्द्धन कहते हैं तथा इस प्रकार प्राप्त यूरेनियम को संवर्द्धित यूरेनियम कहते हैं।

2. श्रृंखला अभिक्रिया को चलाने में द्वितीय कठिनाई यह है कि U235 नाभिक के विखण्डन से प्राप्त न्यूट्रॉन की गति इतनी तीव्र होती है कि वे सीधे ही अन्य U235 नाभिकों का विखण्डन नहीं कर पाते। इसलिए विखण्डन में भाग लेने से पूर्व इन न्यूट्रॉनों को मन्दित करना होता है। इसके लिए विखण्डनीय पदार्थ को कुछ विशेष प्रकार के पदार्थों से घेरकर रखा जाता है।

इन पदार्थों को मन्दक पदार्थ कहते हैं। जब विखण्डन में उत्पन्न न्यूट्रॉन बार-बार मन्दक पदार्थ के अणुओं से टकराते हैं तो उनकी ऊर्जा कम होती जाती है। जब न्यूट्रॉनों की ऊर्जा 0.025 ev तक कम हो जाती है तो वे U235 नाभिकों का विखण्डन करने लगते हैं। इस प्रकार श्रृंखला अभिक्रिया जारी रहती है।

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

Bihar Board Class 11 Political Science नागरिकता Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतान्त्रिक राज्य में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व है?
उत्तर:
एक समय था जब सुविधाएँ, अधिकार और महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व समाज के सीमित वर्ग के उन लोगों को दिए गए थे, जो इसके योग्य समझे जाते थे। इसका आधार जाति, आनुवंशिकता और सामाजिक, आर्थिक स्तर था। समाज के अन्य लोग अधिकार और आभार के अयोग्य समझे जाते थे। समाज पूर्ण रूप से पूरक होता था। अब सम्पूर्ण पर्यावरण में बदलाव आ गया है और कोई भी बढ़ती हुई गतिशीलता और आवागमन के साधनों के कारण समाज स्थिर नहीं है।

ऐसी स्थिति में नागरिकता के विचार का अर्थ बदल जाता है। अब नागरिकता अपने अर्थ, क्षेत्र और विस्तार की दृष्टि से विस्तृत अर्थ में स्वीकार किया जाता है। यह अनेक लोगों को नागरिकता प्रदान करती है, जिसमें जाति, रंग, सामाजिक-आर्थिक स्तर का ध्यान नहीं रखा जाता। इसमें अधिकारों और आभार के साथ राजनीतिक समुदाय को पूर्ण एवं समान सदस्यता दी जाती है। आधुनिक उदार प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं में टी. एच. मार्शल (T. H. Marshal) के फार्मूला के अनुसार नागरिकों को अधिकार एवं कर्त्तव्य प्रदान किए गए हैं।

मार्शल ने तीन प्रकार के अधिकारों का उल्लेख किया है –

  1. नागरिक अधिकार
  2. राजनीतिक अधिकार
  3. सामाजिक अधिकार

1. नागरिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति के जीवन और स्वतन्त्रता से सम्बन्धित हैं।

2. राजनीतिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति को राजनीतिक प्रक्रिया और सरकार के कार्यों में शामिल होने की प्रेरणा देता है।

3. सामाजिक अधिकार:
ये अधिकार व्यक्ति के शैक्षिक उपलब्धि और रोजगार से सम्बन्धित हैं।

राज्य और सभी राजनीतिक समुदाय नागरिकों से कुछ कर्तव्यों एवं आभार की आशा करते हैं, जो सरकार के प्रजातान्त्रिक ढाँचे में शामिल हैं। यह कानून और व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्रीय सेवा और संस्कृति, ऐतिहासिक स्मारक और सामुदायिक समरसता का सुदृढ़ीकरण का संरक्षण आदि है।

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प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अधिकांश समाज अधिक्रमिक व्यवस्था में संगठित हैं, जो लोगों की योग्यताओं और क्षमताओं पर आधारित होता है। यह उनके सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरण और मौलिक आवश्यकताओं और सुविधाओं की दृष्टि से भिन्न हो सकते हैं। नागरिकता के परिवर्तित और विस्तृत अवधारणा के अर्थ में और राजनीति के प्रजातान्त्रिक ढाँचे के दृष्टि से अधिक से अधिक लोगों को नागरिक के रूप में राज्य के गतिविधियों में शामिल किया जाता है।

नागरिक रूप में वे अनेक अधिकार कर्त्तव्य और सम्बन्धित नैतिक बन्धन के लिए अधिकृत हैं। सार्वजनिक नागरिकता में लोगों की सहभागिता और संलग्नता महत्त्वपूर्ण है। सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर दिए जा सकते हैं परन्तु यह सामान्य प्रक्रिया नहीं है।

लोगों की विभिन्न समुदायों की विभिन्न आवश्यकताओं, समस्याएँ, योग्यताएँ और समताएँ हो सकती हैं, क्योंकि उनके सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दशाएँ अलग होती हैं। विभिन्न समुदाय के नागरिकों के अधिकार दूसरे समुदाय के नागरिकों के अधिकारों के विरोधाभासी हो सकते हैं। समान अधिकार का तात्पर्य निश्चित नीति विभिन्न समुदायों के लिए नहीं होता।

लोगों को अधिक से अधिक समान बनाने के लिए लोगों के विभिन्न आवश्यकताओं और माँगों को भी ध्यान में रखना चाहिए। एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए जा सकते हैं परन्तु यह आवश्यक नहीं है कि सभी नागरिक इनका उपभोग समान रूप से कर सकते हैं। भारतीय संविधान ने सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं परन्तु समाज के कुछ ही वर्ग अपनी क्षमताओं और योग्यताओं से इसका उपभोग करते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिए। इन संघर्षों में किन अधिकारों की माँग की गई थी?
उत्तर:
हाल के वर्षों में अनेक ऐसे संघर्ष नागरिकों के अधिकारों के उपभोग के लिए हुए हैं, जिनका उद्देश्य लोगों की आवश्यकताओं में परिवर्तन करना है। ये संघर्ष निम्नलिखित हैं –

  1. महिलाओं के आन्दोलन
  2. दलितों के आन्दोलन

1. महिलाओं के आन्दोलन:
यद्यपि भारत 15 अगस्त, 1947 ई. को आजाद हो गया था तथापि अधिकांश महिलाएँ अन्याय और भेदभाव की शिकार और आश्रित हैं। उन्हें पुरुष की अपेक्षा निम्न माना जाता है और किसी भी कार्य के योग्य नहीं समझा जाता है। ग्रामीण महिलाओं में चेतना आ गयी है और अपनी योग्यताओं और क्षमताओं को पहचानने लगी हैं।

फलस्वरूप महिला आन्दोलन का जन्म हुआ। इस आन्दोलन ने जनता और सरकार का ध्यान आकृष्ट किया, जिससे सरकार की नीतियाँ महिलाओं के पक्ष में बनायी गईं। अब महिलाओं के आन्दोलन के फलस्वरूप महिलाओं ने राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर लिया है। महिलाओं को शक्तिशाली बनाने और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए घोषणा हुई है। भारत में राष्ट्रीय महिला आयोग का निर्माण महिलाओं की उन्नति और उनकी सुरक्षा के लिए किया गया है।

दलित आन्दोलन:
दलित आन्दोलन शोषित वर्ग का एक अन्य आन्दोलन है। भारतीय समाज में इस वर्ग को दबाया गया था। यह आन्दोलन स्वतन्त्रता से पूर्व और बाद में भी हुआ। इस वर्ग का लम्बे समय तक शोषण किया गया और वे अन्याय के शिकार रहे। अनेक सामाजिक सुधारकों ने आन्दोलन शुरू किए, जिसने पूरे दृश्य को बदल दिया। सरकार ने दलितों की दशा सुधारने के लिए कई कदम उठाए।

उनके लिए सरकारी नौकरियों में, शिक्षा और चुनावों में उनके लिए सीट आरक्षित किया। इसके अलावा विधान सभा और सांसद के सीटों में भी इन्हें शामिल किया गया और आज समाज के अंग बन गयी हैं। समाज, राजनीति और प्रशासन में उनकी स्थिति
महत्त्वपूर्ण हो गयी है।

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प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्याएँ क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
उत्तर:
शरणार्थी वे लोग होते हैं, जो राज्यविहीन होते हैं और दूसरे राज्य में निवास करने के लिए प्रयास करते हैं और अपनी बस्ती की खोज में रहते हैं। ये शरणार्थी (Refugees) या तो युद्ध के कारण अथवा राष्ट्रीय संकट जैसे-अकाल, बाढ़ आदि से राज्यरहित हो जाते हैं। समान्यतः लोग पड़ोसी देशों में शरणार्थी बन जाते हैं।

शरणार्थियों को अनेक प्रकार के सामाजिक, आर्थिक और मानवतावादी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि कोई राज्य उन्हें अपने यहाँ रखने के तैयार नहीं होता, वे अपने घर भी वापस नहीं जा सकते, क्योंकि वे प्रारम्भ से निवास रहित होते हैं। वे निवासरहित, राज्यरहित और अनिश्चितता में होते हैं। इसलिए कैम्प में गैर-कानूनी प्रवजन कर्ता के रूप में रहने के लिए विवश होते हैं।

बहुधा कानूनी तौर पर कार्य नहीं कर सकते हैं और बच्चों को शिक्षा नहीं दे सकते। उनके बच्चों का भविष्य अनिश्चित होता है। वे किसी सम्पत्ति को भी अपना नहीं सकते। उनकी समस्या इतनी गम्भीर है कि संयुक्त राष्ट्र (UNE) ने इनकी सहायता के लिए एक उच्च आयोग (High Commission) नियुक्त किया है। 1947 ई. में भारत विभाजन के समय हजारों लोग शरणार्थी बन गए। सभी शरणार्थियों को कोई भी राज्य अपने अन्दर समन्जित नहीं कर सकता। वस्तुतः इस समस्या का सामना केवल शरणार्थी ही नहीं कर रहे हैं अपितु सम्पूर्ण विश्व समुदाय इससे जूझ रही है।

वैश्विक नागरिकता का विचार निश्चित रूप से इस समस्या को हल कर सकता है चाहे यह पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से हो। संचार के नये साधन जैसे इंटरनेट, दूरदर्शन और सेलफोन ने वैश्विक नागरिकता को पर्याप्त ग्रहणीय और अनुकूल बनाया है। वैश्विक नागरिकता के समर्थक तर्क देते हैं कि यद्यपि एक विश्व, समुदाय और वैश्विक समाज आज भी विद्यमान नहीं है, परन्तु लोग राष्ट्रीय सीमा के बाहर के लोगों से जुड़े हुए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लोग विश्व के किसी भी भाग के प्राकृतिक आपदा के समय एक साथ हो जाते हैं। यह वैश्विक विचार को मजबूत करते हैं, जो आगे चलकर शरणार्थियों की समस्या को हल कर सकते हैं।

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प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के अप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर:
प्रवास की प्रक्रिया और फलस्वरूप शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से अनेक समस्या उत्पन्न होती है, जिसकी प्रतिक्रिया स्थानीय लोगों में दिखाई देती है। स्थानीय लोग इन्हें अपना प्रतिद्वन्दी मानते हैं और इस प्रकार दोनों का विभाजन भीतरी और बाहरी (insiders & outsiders) के रूप में हो जाता है। बाहरी लोगों को अपने जीवन में खतरा दिखाई देता है।

इसी प्रकार की प्रवृतियाँ शहरी क्षेत्रों और यहाँ तक कि विभिन्न देशों में दिखाई देती हैं। फिलीस्तीनी लोग अब तक भी व्यवस्थित नहीं हैं। इसी प्रकार का विवाद श्रीलंका में है। स्थानीय लोग हरेक प्रकार का प्रयास बाहरी लोगों के प्रवेश को रोकने के लिए करते हैं। इस समस्या से जुड़े अनेक प्रकार के नारे भी प्रचलित हो गए हैं जैसे-मुम्बई, मुंबई वालों की है, हरियाणा, हरियाणवी के लिए है। उत्तर-दक्षिण का भी विवाद है। इस सन्दर्भ में भूमि-पुत्र का सिद्धान्त भी विकसित हुआ है।

भीतरी लोगों और बाहरी लोगों, स्थानीय और शरणार्थियों के मध्य विवाद के कारण सभी लोगों को पूर्ण और समान सदस्यता देने की आवश्यकता महसूस हुई है। इससे सम्बन्धित अनेक संघर्ष उत्तर-पूर्व राज्यों, मुम्बई और पंजाब में हुए हैं। देश की विभिन्न भागों में बिहार के लोग रोजगार की खोज में प्रवास किए हैं। ऐसे स्थानों पर उनके स्थानीय लोगों के मध्य संघर्ष हुए हैं। लोगों का राज्य के एक भाग से दूसरे भाग में रोजगार की खोज में प्रवास करना नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों पक्ष है।

प्रवास करने वाली के उस स्थान पर बाहरी एवं भीतरी लोगों में विभाजित हैं। उन्हें रोजगार एवं नागरिक सुविधाएँ जैसे–शिक्षा, स्वास्थ्य, जल और विद्युत्त के लिए धमकाया जाता है परन्तु सकारात्मक पहलू भी है। ऐसे प्रवासी लोग सामान्यतः कठोर परिश्रम करते हैं और उस राज्य की अर्थव्यवस्था में उपयोगी योगदान देते हैं, जहाँ वे बाहरी कार्यकर्ता के रूप में कार्य करते हैं। वे वहाँ मजदूर, श्रमिक और विशेषज्ञ कारीगर के रूप में कार्य करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के अकुशल श्रमिक हरियाणा, पश्चिमी उत्तरप्रदेश और पंजाब में काम करके अपनी जीविका चला रहे हैं, उनको अपने राज्य में रोजगार उपलब्ध नहीं हैं।

यहाँ तक कुछ लोग जीविका के लिए विदेश जाते हैं। कुशल श्रमिकों के लिए देश के विभिन्न भागों में बाजार विकसित हुए हैं। आई. टी. (प्रोफेशनल) अर्थात् कम्प्यूटर इंजीनियर बंगलोर में अच्छा कार्य कर रहे हैं, केरल की नसें देश के विभिन्न भागों में कार्य कर रही हैं। वे उपयोगी और कीमती सेवा मानव जाति की अपने राज्य की चिन्ता किए बिना कर रहीं हैं। मुम्बई में भवन और रोड के विकास में शिक्षित और अशिक्षित लोग कार्य कर रहे हैं। वे अपने लिए और अपने देश के लिए कार्य कर रहे हैं। हमारे देश के आवागमन का अधिकार संविधान से मिला हुआ है, जो अत्यन्त उपयोगी, सिद्ध हुआ है।

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प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतान्त्रिक नागरिकता का एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दे की चर्चा कीजिए, जो आजकल भारत में उठाए जा रहे हैं?
उत्तर:
नागरिकता की आदर्श परिभाषा राजनैतिक समुदाय की पूर्ण एवं समान सदस्यता है। यह परिभाषा एक लोकतान्त्रिक राजनीतिक समुदाय में अधिकाधिक ऐच्छिक है। यह सन्तोष की बात है कि लोकतान्त्रिक नागरिकता अथवा पूर्ण और समान सदस्यता अधिक जागरुकता के साथ विश्व के अधिकांश देशों में हैं। हालाँकि इसकी अधिकांश पृष्ठभूमि अभी व्यवहार में नहीं है।

पूर्ण एवं समान नागरिकता के उद्देश्य को प्राप्त करना अभी दूर ही है। इसलिए यह ठीक ही कहा जाता है कि लोकतान्त्रिक नागरिकता का विचार अभी पूर्ण तथ्य की अपेक्षा एक परियोजना है। यहाँ तक कि लोकतान्त्रिक राजनीतिक समुदाय यथा भारत में भी अभी एक प्रयोग के रूप में है। भारत ने 59 वर्ष से अधिक लोकतान्त्रिक प्रक्रिया को निभाया है, जो वयस्क मताधिकार और लोगों की सहभागिता पर आधारित है।

भारतीय संविधान में आवश्यक लोकतान्त्रिक और समाविष्ट नागरिकता को अपनाया गया है। भारत में नागरिकता जन्म से, निवास से, पंजीकरण से और प्राकृतिकरण से प्राप्त की जा सकती है। नागरिकों के अधिकार एवं आभार को संविधान में उल्लेखित किया गया है। यह भी वर्णन है कि राज्य को नागरिकों के विरुद्ध भेदभाव नहीं करना चाहिए।

इस प्रकार के समाविष्ट अधिकार ऐच्छिक अधिकार को जन्म नहीं देते। महिला आन्दोलन और दलित आन्दोलन धनी और गरीब में गलतफहमी पैदा कर रहे हैं। ये सामाजिक समूह के पूरक या प्रभावी स्थिति को प्रकट करते हैं। सामाजिक परिवर्तन के रूप में नये मुद्दे निरन्तर उठाए जा रहे हैं और समूहों के द्वारा नई माँगें की जा रही है। वे अपने को तटस्थ मानने लगते हैं और समाज के मुख्य धारा से हटा दिए जाते हैं। प्रजातान्त्रिक राज्य में इन मांगों को सामाजिक एकता के लिए ध्यान में रखना चाहिए।

Bihar Board Class 11 Political Science नागरिकता Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
श्री अनिल अभी-अभी एक व्यस्त कारोबारी दौरे से लौटकर आए थे। अगले दिन उसका कार्यालय चुनाव के कारण बन्द था। उन्होंने पूरा दिन फिल्म देखने और सोने में बिताया। श्री अनिल रवैये में क्या गड़बड़ हैं? (Mr. Anil had just come from a busy business tour The next day the office was closed because of elections. He spent the whole day watching a film and sleeping. What is wrong with Mr. Anil’s attitude?)
उत्तर:
उदासीनता अर्थात् गलत रवैये (Wrong attitude) का पनपना या नागरिकता के प्रति अस्वस्थ दृष्टिकोण।

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प्रश्न 2.
पचास शब्दों के बीच भेद कीजिए। (Answer in about 50 words)
1. निम्नलिखित के बीच भेद कीजिए (Distinguish between)
(क) नागरिक और बाहरी व्यक्ति।
(ख) जन्मजात और देशीयकृत नागरिकता।
उत्तर:
(क) नागरिक और बाहरी व्यक्ति के भेद-नागरिक वह व्यक्ति है, जो किसी देश या राज्य का सदस्य होता है, वह उसके प्रति निष्ठावान होता है। वह नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों का उपयोग करता है। वह देश के शासन संचालन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। बाहरी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य राज्य (देश) में अस्थाई रूप में निवास किया जाता है। वह नागरिकों की भाँति राजनीतिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकता और न ही देश के शासन (Administration) में भाग ले सकता है।

(ख) जन्मजात और देशीयकृत नागरिकता में भेद-जन्मजात नागरिक वह कहलाता है, जो किसी देश में पैदा या उसके माता-पिता उस देश के नागरिक होते हैं। देशीयकृत नागरिक वह होता है, जो किसी अन्य देश की नागरिकता कुछ आवश्यक शर्तों को पूर्ण करके प्राप्त करता है।

2. गोआ के लोग भारत के नागरिक कैसे बने? (How did the people of Goa become Indian citizens?)
उत्तर:
गोआ सन् 1961 ई. में पुर्तगाल से स्वतन्त्र होकर भारत का हिस्सा बन गया। अतः गोआवासी, भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अन्तर्गत भारतीय बन गए।

3. यदि कोई व्यक्ति अपने देश से कई वर्षों तक बाहर रहे, तो क्या होगा? (What would happen if a person stayed away from his/her country for many years?)
उत्तर:
उस व्यक्ति को दीर्घकालीन अनुपस्थिति के कारण उसे अपने देश की नागरिकता खोनी पड़ेगी।

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प्रश्न 3.
नागरिकता से क्या अभिप्राय है? (What is ineant by citizenship?)
उत्तर:
नागरिकता (Citizenship):
नागरिकता नागरिक की वह विशेषता अथवा गुण है, जिसके कारण उसे राज्य से राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं वह राज्य का नागरिक कहलाता है।

प्रश्न 4.
नागरिक व विदेशी में क्या अन्तर है? (What is the difference between a citizen and a foreigner?)
उत्तर:
नागरिक तथा विदेशी में निम्नलिखित अन्तर हैं –

  1. नागरिक उस राज्य का स्थायी निवासी होता है और विदेशी दूसरे राज्य का होता है।
  2. दोनों के अधिकारों में भी भिन्नता होती है। नागरिकों को राजनीतिक व सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, विदेशियों को नहीं।
  3. अपने राज्य के प्रति वफादारी रखना नागरिक का कर्तव्य है परन्तु विदेशी अपने राज्य (जिसका वह नागरिक है) के प्रति वफादार होता है।
  4. युद्ध के समय विदेशियों को राज्य की सीमा से बाहर जाने के लिए कहा जा सकता है परन्तु नागरिकों को नहीं।
  5. नागरिक अपने राज्य की दीवानी तथा फौजदारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अधीन होता है, जबकि विदेशी अस्थायी से निवास वाले राज्य के दीवानी, फौजदारी न्यायालयों के क्षेत्राधिकार के अधीन होता है।

प्रश्न 5.
नागरिकता अधिनियम, 1955 का निम्नलिखित में से किससे सम्बन्ध है? (Which of the following does the Citizenship Act of 1955 deal with?)
(क) नागरिक की परिभाषा
(ख) बाहरी व्यक्ति की परिभाषा
(ग) बाहरी व्यक्तियों के अधिकार
(घ) नागरिकता की प्राप्ति तथा समाप्ति
उत्तर:
(घ) नागरिकता की प्राप्ति तथा समाप्ति

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन भारत में बाहरी व्यक्ति हैं?
(From the option give below, choose which of the following are aliens in India?)

  1. रीता जो भारत में जन्मे अपने पिता और फ्रांसीसी माँ के साथ रहती है।
  2. जानकी जो भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए मारीशस से आई है।
  3. श्री विलियम बेकर जो आस्ट्रेलिया के उच्चायोग में विदेश सेवा के अधिकारी हैं।
  4. लखनऊ का रहने वाला एक लड़का खालिद आमीर, अमरिका में पढ़ाई कर रहा है।

उत्तर:
(2) – (3)

प्रश्न 7.
भारत की नागरिकता ग्रहण करने के गलत विकल्प को चुनिए। (Select the incorrect option of acquiring Indian citizenship)
(क) कोई एक भारतीय भाषा बोल सकता/सकती है।
(ख) कम से कम पाँच वर्ष तक भारत में रह चुका/चुकी है।
(ग) जिस देश का/की वह है, वहाँ की नागरिकता छोड़ चुका/चुकी है।
(घ) अच्छा वेतन अर्जित करने में सक्षम है।
उत्तर:
(घ) अच्छा वेतन अर्जित करने में सक्षम है।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (Answer the following questions)
1. फिलिप टेलर का जन्म नई दिल्ली में हुआ था, उसके पिता एक अमेरिकी हैं, जो नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास में काम करते हैं। फिलिप किस देश का नागरिक होगा?
(Phillip Taylor was born in New Delhi. His fater is an American working at the American Embassy in New Delhi Which country’s citizenship would Philip have?)
उत्तर:
फिलिप के पास भारतीय या अमरिकी नागरिकता में से कोई एक चुनने का विकल्प है।

1. भारत के श्रीरामदीन को मलेशिया की न्यायपालिका में मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किया गया है। क्या वे देशीकृत नागरिक बन सकते हैं। (Mr. Ram Deen of Indian has been appointed as a Magistrate in the Malay sian Judiciary. Can he become a naturalized citizen of the country?)
उत्तर:
हाँ, यदि किसी विदेशी को किसी सरकारी पद पर नियुक्त किया जाता है, तो वह उस देश की नागरिकता ग्रहण कर सकता है, जहाँ का वह लोकसेवक बना है।

2. पाकिस्तान का एक भाग, पूर्वी पाकिस्तान, 1971 ई. में मुक्त होकर स्वतन्त्र देश, बंगलादेश बन गया। भूतपूर्व पूर्वी पाकिस्तानियों की नागरिकता पर इसका क्या प्रभाव पड़ा? (In 1971, East Pakistan, a part of Pakistan, was liberated and became an independent country Bangladesh. How did this affect the citizenship of the former East Pakistanis?)
उत्तर:
उन्होंने बंगलादेश की नागरिकता ग्रहण कर ली।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से किसे अपनी भारतीय नागरिकता छोड़नी पड़ेगी? (Which of the following would have to surrender their Indian citizen ship?)
(क) ज्योत्सना सिंह, जिसे आस्ट्रेलिया में अध्ययन के लिए शोधवृत्ति मिली है।
(ख) जग्ग, जिसे डकैती डालते हुए पकड़ा गया।
(ग) राधिका, जो छुट्टियाँ मनाने स्वीडेन गई है।
(घ) सिद्धार्थ मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।
उत्तर:
(घ) सिद्धार्थ मेहता, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति का सलाहकार नियुक्त किया गया है।

प्रश्न 10.
सही विकल्प चुनिए। (Choose the correct option) अर्थहीन प्रथाओं और अन्धविश्वासों को दूर किया जा सकता है। Meaningless social customs and superstitions can be removed by –
(क) अधिक शहरीकरण से
(ख) अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने से
(ग) गरीबी दूर करके
(घ) शिक्षा के प्रसार से
उत्तर:
(घ) शिक्षा के प्रसार से

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक आदर्श नागरिक के गुणों का वर्णन कीजिए। (Describe the merits of a good citizen)
उत्तर:
1. सुशिक्षित (Educated):
सुशिक्षित होना आदर्श नागरिक के लिए परमावश्यक है। शिक्षा के अभाव में वह अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों को नहीं समझ सकता। अतः प्रजातन्त्र की सफलता के लिए अच्छे नागरिकों का सुशिक्षित होना आवश्यक है।

2. स्वस्थ (Healthy):
एक आदर्श नागरिक का स्वस्थ होना आवश्यक है। स्वस्थ नागरिक ही देश व समाज की भली-भाँति सेवा कर सकता है।

3. मताधिकार का उचित प्रयोग (Proper use of vote):
आदर्श नागरिक अपने मताधिकार का सही प्रयोग कर सकता है और अपना मूल्यवान वोट योग्य, शिक्षित, नि:स्वार्थ एवं देशभक्त को दे सकता है।

4. अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान (Awaknes about theirrights and duties):
एक आदर्श नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों का प्रयोग ठीक से करता है।

5. देशभक्त (Patriot):
एक आदर्श नागरिक को देशभक्त होना चाहिए। देश के प्रति स्वाभाविक अनुराग होना चाहिए।

6. परिश्रमी (Hardworkers):
एक अच्छे नागरिक को परिश्रमी एवं फुर्तीला होना चाहिए, जिससे वह सफलतापूर्वक सामाजिक कार्य कर सके।

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प्रश्न 2.
आधुनिक राज्य अपने नागरिकों को कौन-कौन से राजनैतिक अधिकार प्रदान करते हैं? (Which type of political rights are given to the citizens by the Modern States?)
उत्तर:
आधुनिक युग में अधिकतर देश प्रजातन्त्रीय हैं। ये देश अपने नागरिकों को बहुत से राजनीतिक अधिकार प्रदान करते हैं। उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं –

1. मतदान का अधिकार (Right to Vote):
जिन देशों में प्रजातन्त्रात्मक शासन की स्थापना की जाती है, उनमें वहाँ के वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्रदान किया जाता है। इस अधिकार के अनुसार लोग समय-समय पर होने वाले चुनावों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं। जनता के प्रतिनिधि ही सरकार का निर्माण करते हैं और शासन चलाते हैं।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to Contest Election):
प्रजातन्त्रीय शासन में, प्रत्येक व्यक्ति जो यह समझता है कि उसके सहयोगी उसे अपना प्रतिनिधि चुनना चाहते हैं, उसे निर्वाचन में खड़ा होने का अधिकार है। निर्वाचित होने के बाद व्यक्ति नागरिकों के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्माण करते हैं।

3. सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार (Right to hold public office):
आधुनिक युग में नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के सरकारी नौकरियाँ पाने का अधिकार है।

4. कानून के समक्ष समानता का अधिकार (Right to equality before Law):
आधुनिक राज्यों में नागरिकों को कानून के सम्मुख समानता का अधिकार प्रदान किया जाता है।

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प्रश्न 3.
किसी राज्य की नागरिकता के लिए आवश्यक शर्ते क्या हैं? (What are the essential conditions for the citizenship of a state?)
उत्तर:
नागरिकता के लिए चार चीजों की आवश्यकता होती है –
1. राज्य की सदस्यता-वर्तमान में प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी राज्य का सदस्य अवश्य होता है। राज्य की सदस्यता ही व्यक्ति को उस राज्य की नागरिकता दिलाती है और वह उक्त समाज का अंग बन जाता है।

2. राज्य के प्रति भक्ति-राज्य के प्रति भक्ति होना अत्यन्त आवश्यक है। 1999 ई. में जब पाकिस्तान के कारगिल में सैनिकों ने घुसपैठ की तो सारे भारत में विरोध के बदले की भावना उत्पन्न हुई तथा जनवरी 2001 ई. में गुजरात में जब भूकम्प से जान व माल को नुकसान हुआ, तो भारतीयों में सहयोग की भावना उत्पन्न हुई। यह समाज के प्रति भक्ति का अच्छा उदाहरण है।

3. नागरिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति-किसी राज्य का नागरिक किसी व्यक्ति को उसी दशा में कहा जा सकता है, जबकि उसे राज्य की ओर से नागरिक, राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकार प्राप्त हों। प्रारम्भ से आज तक किसी न किसी रूप में राज्य ने अपने नागरिकों को ये अधिकार प्रदान किए हैं।

4. कर्तव्य-पालन-राजनीतिक तथा सामाजिक अधिकारों की प्राप्ति के बदले में नागरिक में कर्तव्य पालन की भावना होना आवश्यक है। नागरिक को चाहिए कि वह राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों को अवश्य पूरा करे तथा राज्य की सुरक्षा, उन्नति एवं विकास में सभी प्रकार का सहयोग प्रदान करें।

Bihar Board Class 11th Political Science Solutions Chapter 6 नागरिकता

प्रश्न 4.
नागरिकता ग्रहण करने के कौन-कौन से तरीके हैं? (What are the different ways of acquiring citizenship?)
उत्तर:
नागरिकता ग्रहण करने के तरीके निम्नलिखित हैं –

  1. विवाह-कोई विदेशी स्त्री भारतीय पुरुष से विवाह करने के बाद भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकती है। जापान में नागरिकता कानून भिन्न हैं। यदि कोई जापानी स्त्री भारतीय या किसी अन्य राष्ट्र के पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यक्ति जापान की नागरिकता ग्रहण कर सकता है।
  2. सरकारी पद पर कर्मचारी या अधिकारी के रूप में नियुक्ति-यदि किसी विदेशी को किसी सरकारी पद पर नियुक्त किया जाता है, तो वह उस देश की नागरिकता ग्रहण कर सकता/सकती है, जहाँ का वह लोक सेवक बना/बनी है।
  3. अचल संपत्ति की खरीद या क्रय करके-कुछ देशों में यदि किसी व्यक्ति को अचल संपत्ति जैसे घर या जमीन खरीदने का अनुमति है, तो वह नागरिकता भी ग्रहण कर सकता/सकती है।
  4. भूमि का अधिग्रहण-यदि किसी देश की भूमि अन्य देशों के द्वारा अधिग्रहीत कर ली जाती है, तो उस क्षेत्र के सभी निवासी उस देश के नागरिक बन जाते हैं।

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प्रश्न 5.
किसी नागरिक की नागरिकता कैसे समाप्त हो सकती है? (How can a citizen lose her/his citizenship?)
उत्तर:

  1. देशद्रोह या निरन्तर विद्रोही गतिविधियाँ-यदि कोई नागरिक देश के साथ गद्दारी करते हुए संविधान का अनादर करे तथा देश की शान्ति और व्यवस्था को लगातार भंग करे तो उसे देश की नागरिकता से वंचित किया जा सकता है।
  2. किसी भू-भाग के पृथक होने पर-यदि देश का कोई हिस्सा किसी समझौते या संधि द्वारा अलग हो जाए, तो वहाँ के सभी नागरिक दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करेंगे, व उन्हें पहले देश की नागरिकता छोड़नी होगी।
  3. विदेशी में सरकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त-जब कोई व्यक्ति किसी विदेशी सरकार की सेवा में पद ग्रहण करता है, तो उसकी मूल नागरिकता समाप्त हो सकती है।
  4. विदेश सेना, नौसेना या वायुसेना में सेवा-रक्षा सेवाएँ किसी देश के संवेदनशील अंग होते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की रक्षा सेवाओं में पद ग्रहण करता है, तो उसकी मूल नागरिकता समाप्त हो सकती है।
  5. विदेशी से विवाह-यह नागरिकता समाप्त होने के सबसे प्रचलित कारणों में से एक है। यदि कोई भारतीय स्त्री किसी विदेशी से विवाह करती है, तो वह भारतीय नागरिकता छोड़कर अपने पति के देश की नागरिकता ग्रहण कर सकती है।
  6. विदेश में स्थायी निवास-यदि कोई भारतीय किसी अन्य देश में जाकर रहने लगे, तब वह अपने देश की नागरिकता खो देता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
एक नागरिक के तीन प्रमुख कर्त्तव्यों की व्याख्या करें। (Explain three primary duties of a citizen)
उत्तर:
कर्त्तव्य का अर्थ (Meaning of Duty):
साधारण शब्दों में किसी काम को करने या न करने के दायित्वों को कर्तव्य कहते हैं। कर्त्तव्य सकारात्मक या नकारात्मक कार्य है, जो व्यक्ति को दूसरों के लिए करना पड़ता है, चाहे उसकी इच्छा उस कार्य को करने की हो या न हो। संक्षेप में, कर्त्तव्य कुछ ऐसी निश्चित और अवश्य किए जाने वाले कार्यों को कहते हैं, जो कि सभ्य समाज और राज्य में रहते हुए व्यक्ति को प्राप्त किए गए अधिकारों के बदले में करने पड़ते हैं।

नागरिकों के कानूनी कर्तव्य (Legal Duties of the Citizens):
ऐसे कर्तव्य जिनको करने के लिए प्रत्येक नागरिक बाध्य होता है, कानूनी कर्त्तव्य कहलाते हैं, जो व्यक्ति कानूनी कर्तव्यों का पालन नहीं करता, राज्य उन्हें दण्ड दे सकता है। देश के प्रति वफादार रहना, सैनिक सेवा कर देना इत्यादि नागरिकों के कानूनी कर्त्तव्यों की श्रेणी में आते हैं।

1. राज्य के प्रति वफादारी (Loyalty towards the State):
राज्य प्रत्येक नागरिक को अनेक प्रकार के अधिकार प्रदान करता है व कई प्रकार की सुख-सुविधाएँ भी प्रदान करता है। राज्य अपने नागरिकों की बाहरी आक्रमणों से तथा प्राकृतिक विपत्तियों से भी रक्षा करता है और उनके विकास के लिए प्रयत्नशील रहता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति से राज्य के प्रति निष्ठा व भक्ति की आशा की जाती है। प्रत्येक नागरिक का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह देशद्रोह न करे और देश पर आए संकट के समय अपना तन-मन-धन न्यौछावर करने को तैयार रहे।

2. कानूनों का पालन करना (Obedience of Laws):
कानून-पालन की भावना से राज्यों में शान्ति व व्यवस्था व्यवस्थित हो सकती है। आजकल के प्रजातान्त्रिक देशों में कानूनों का निर्माण जनता के प्रतिनिधि करते हैं। जिस देश में नागरिकों की प्रकृति कानूनों का उल्लंघन करने की होती है, उस देश में शान्ति व व्यवस्था विद्यमान नहीं रहती। अतः कानूनों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है।

3. टैक्स देना (Payment of taxes):
सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है। सरकार धन की प्राप्ति कर लगाकर करती है। अत: नागरिकों का यह कानूनी कर्त्तव्य है कि वे अपने हिस्से के करों को ईमानदारी से चुकाएँ। करों को ईमानदारी से न चुकाने पर राज्य द्वारा दण्ड भी दिया जा सकता है।

4. राजनीतिक अधिकारों का उचित प्रयोग करना (Proper use of the Political Rights):
प्रजातन्त्रीय शासन में नागरिकों को बहुत से राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। उनमें से प्रमुख हैं-मत देने का अधिकार, निर्वाचित होने का अधिकार व सरकारी नौकरी प्राप्त करने का अधिकार। प्रत्येक अधिकार का यह कानूनी कर्त्तव्य है कि वह अपने मत का सदुपयोग करे और किसी अच्छे उम्मीदवार को ही देश का शासन चलाने के लिए अपना प्रतिनिधि चुने। इसके साथ-साथ अपने निर्वाचित होने के अधिकार का भी ईमानदारी से प्रयोग करे।

5. सैनिक सेवा में भाग लेना (To take in defence service):
नागरिकों का यह भी कर्तव्य है कि आवश्यकता पड़ने पर देश की सुरक्षा हेतु सेना में भर्ती हो।

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प्रश्न 2.
लोकतन्त्र में नागरिक की भूमिका की व्याख्या कीजिए। (Explain the role of a citizen in a democracy)
उत्तर:
लोकतन्त्र में नागरिक की भूमिका –
1. लोकतन्त्र लोगों की, लागों द्वारा तथा लोगों के लिए कार्य करने वाली सरकार है। आजकल राज्यों का आकार (जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से) बहुत बड़ा है। नागरिक समय-समय पर मतदान में भाग लेकर, चुनाव लड़कर या अपने दल गठन करने एवं चुनाव के बाद उसके कार्यों में रुचि लेकर एवं सहयोग देकर अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।

2. अपने कर्तव्यों का पालन करके तथा दायित्वों का निर्वाह करके-लोकतन्त्र में हर नागरिक अपने कार्यों तथा दायित्वों की जिम्मेदारी निष्ठा से निभा कर लोकतन्त्रीय सरकार में योगदान देते हैं या अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं।

3. अनुशासनबद्धता का पालन एवं सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करके-नागरिक लोकतन्त्र की सफलता के लिए शान्ति तथा अनुशासन को जरूरी मानते हैं। वे कानून को अपने हाथ में नहीं लेते तथा अपने विचारों को समाचार-पत्रों, टेलीविजन, रेडियो, सभाओं, प्रदर्शनों द्वारा अभिव्यक्त करते हैं। वे सार्वजनिक सम्पत्ति तथा राष्ट्रीय विरासत की रक्षा में भाग लेते हैं।

4. शिक्षा प्राप्त करना तथा संकीर्ण भावनाओं में न बहना-लोकतन्त्र में नागरिक शिक्षा प्राप्त करके तथा ज्ञान प्राप्ति की प्रक्रिया को जीवन भर जारी रखते हैं तथा सदैव ही स्वयं को तंग दृष्टिकोण जैसे-जातिवाद, साम्प्रदायिकता, संकीर्ण भाषायी नजरिया, क्षेत्रवाद से बचा कर रखते हैं, क्योंकि वे मानते और जानते हैं कि संकीर्ण भावनाएँ लोकतन्त्र की सफलता की राह में बहुत ही शक्तिशाली अवरोधक (Hindrances) हैं।

5. कर भुगतान तथा उच्च नैतिक मूल्यों को बनाए रखना-लोकतन्त्र में नागरिक प्रायः ईमानदारी के साथ नियमित रूप से कर चुकाते हैं। अपने कर्तव्यों को वे निष्ठापूर्वक रहकर निभाते हैं। वे उच्च नैतिक चरित्र का पालन करते हैं। हर सार्वजनिक गतिविधि की जानकारी रखते हैं। बुरे कानूनों का शान्तिपूर्ण उपायों से विरोध करते हैं। वे देशभक्त होते हैं तथा अपने देश को अपने निजी स्वार्थों से.ऊपर रखते हैं।

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प्रश्न 3.
‘नागरिक’ शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए। भारतीय संविधान नागरिकों के बारे में क्या कहता है? भारत की नागरिकता ग्रहण करने की पाँच पद्धतियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(क) नागरिक शब्द का अर्थ-नागरिक वह व्यक्ति है, जो किसी राज्य का सदस्य होता है, वह देश के प्रति निष्ठावान होता है, उसे नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं और वह देश के शासन में भागीदारी करता है।

(ख) भारत का संविधान एवं नागरिक-भारत का संविधान कहता है कि निम्नलिखित व्यक्ति संविधान लागू होने के साथ ही भारत का नागरिक बन जाता है –

  • भारत के क्षेत्र में जन्मा कोई भी व्यक्ति।
  • भारत में निवास कर रहा व्यक्ति या जिसके माता-पिता का जन्म भारत में हुआ हो।
  • कोई व्यक्ति जिसके माता-पिता भारत में नहीं जन्मे किन्तु वे संविधान लागू होने के कम से कम पाँच वर्ष पहले से भारत में रह रहे हों।

(ग) भारत की नागरिकता ग्रहण करने की पाँच पद्धतियाँ निम्न हैं –

  • जन्म के आधार पर नागरिकता-भारत में जन्मा हर व्यक्ति जन्म से भारत का नागरिक होगा।
  • वंशानुगत आधार पर नागरिकता-किसी व्यक्ति का जन्म भारत के बाहर हुआ है पर यदि उसके पिता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हैं, तो वह वंशानुगत आधार पर भारत का नागरिक होगा या होगी।
  • पंजीकरण द्वारा नागरिकता-व्यक्तियों के कुछ वर्ग जिन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं है, निर्धारित अधिकारियों के समक्ष पंजीकरण करवा कर इसे ग्रहण कर सकते हैं। उदाहरण के लिए भारत के किसी नागरिक से विवाहित कोई स्त्री अपना पंजीकरण करवा कर भारतीय नागरिकता ग्रहण कर सकती है।
  • देशीयकरणं के आधार पर नागरिकता-कोई विदेशी व्यक्ति भारत सरकार को देशीयकरण के लिए आवेदन करके भारत की नागरिकता ग्रहण कर सकता है। देशीयकरण का अर्थ है कुछ शर्तों का पालन करके किसी देश की नागरिकता लेना।
  • क्षेत्र के समावेशन के आधार पर नागरिकता-यदि कोई क्षेत्र भारत का भाग बन जाता है, तो भारत सरकार उस क्षेत्र के लोगों को नागरिकता दे देगी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
नागरिकता निर्धारण का एक कौन-सा तरीका सही नहीं है?
(क) रक्त सम्बन्ध
(ख) जन्मस्थान
(ग) द्वैद्य सिद्धान्त
(घ) पारिवारिक सम्बन्ध
उत्तर:
(घ) पारिवारिक सम्बन्ध

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

BSEB Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

Bihar Board Class 10 Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव InText Questions and Answers

अनुच्छेद 13.1 पर आधारित

प्रश्न 1.
चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित क्यों हो जाती है?
उत्तर:
वास्तव में दिक्सूचक की सुई एक छोटा-छड़ चुंबक ही होती है। किसी दिक्सूचक की सुई के दोनों सिरे लगभग उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करते हैं। उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव अथवा उत्तर ध्रुव कहते हैं। दूसरा सिरा जो दक्षिण दिशा की ओर संकेत करता है उसे दक्षिणोमुखी ध्रुव अथवा दक्षिण ध्रुव कहते हैं। हम जानते हैं कि चुंबकों में सजातीय ध्रुवों में परस्पर प्रतिकर्षण तथा विजातीव ध्रुवों में परस्पर आकर्षण होता है। अतः चुंबक के निकट लाने पर दिक्सूचक की सुई विक्षेपित हो जाती है।

अनुच्छेद 13.1 से 13.2.2 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी छड़ चुंबक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ खींचिए।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के गुणों की सूची बनाइए।
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के कुछ प्रमुख गुण निम्नवत् हैं –

  1. ये काल्पनिक रेखाएँ चुंबक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं एवं दक्षिणी ध्रुव पर जाकर समाप्त हो जाती हैं।
  2. ये क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।
  3. इन रेखाओं के किसी बिन्दु पर स्पर्श रेखा की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को दर्शाती है।

प्रश्न 3.
दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ एक-दूसरे को प्रतिच्छेद क्यों नहीं करतीं?
उत्तर:
यदि दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद करें तो प्रतिच्छेद करने वाले बिन्दु पर चुंबकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होंगी जो संभव नहीं है। अतः ये क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिच्छेद नहीं करती हैं।

अनुच्छेद 13.2.3 और 13.2.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
मेज़ के तल में पड़े तार के वृत्ताकार पाश पर विचार कीजिए। मान लीजिए इस पाश में दक्षिणावर्त विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। दक्षिण-हस्त अंगुष्ठ नियम को लागू करके पाश के भीतर तथा बाहर चुंबकीय क्षेत्र की दिशा ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
चित्र से स्पष्ट है कि पाश के भीतर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश के तल (मेज के तल) के लम्बवत् नीचे की ओर होगी, जबकि पाश के बाहर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा पाश (मेज) के तल के लम्बवत् ऊपर की ओर होगी।
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प्रश्न 2.
किसी दिए गए क्षेत्र में चुंबकीय क्षेत्र एकसमान है। इसे निरूपित करने के लिए आरेख खींचिए।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
सही विकल्प चुनिए किसी विद्युत धारावाही सीधी लंबी परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र
(a) शून्य होता है।
(b) इसके सिरे की ओर जाने पर घटता है।
(c) इसके सिरे की ओर जाने पर बढ़ता है।
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।
उत्तर:
(d) सभी बिंदुओं पर समान होता है।

अनच्छेद 13.3 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी प्रोटॉन का निम्नलिखित में से कौन-सा गुण किसी चुंबकीय क्षेत्र में मुक्त गति करते समय परिवर्तित हो जाता है? ( यहाँ एक से अधिक सही उत्तर हो सकते हैं।)
(a) द्रव्यमान
(b) चाल
(c) वेग
(d) संवेग
उत्तर:
(c) वेग तथा (d) संवेग

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प्रश्न 2.
क्रियाकलाप 13.7 में हमारे विचार से छड़ AB का विस्थापन किस प्रकार प्रभावित होगा यदि –
1. छड़ AB में प्रवाहित विद्युत धारा में वृद्धि हो जाए
2. अधिक प्रा. नाल चुंबक प्रयोग किया जाए; और
3. छड़ AB की लंबाई में वृद्धि कर दी जाए?
उत्तर:
हम जानते हैं कि F = BiL इसलिए,

  1. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ i बल का मान चालक में प्रवाहित धारा के मान के समानुपाती होता है।
  2. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ B बल का मान चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता के समानुपाती होता है।
  3. छड़ का विस्थापन बढ़ जायेगा; क्योंकि; F ∝ L बल का मान चालक की लंबाई के समानुपाती होता है।

प्रश्न 3.
पश्चिम की ओर प्रक्षेपित कोई धनावेशित कण (अल्फा-कण) किसी चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उत्तर की ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
(a) दक्षिण की ओर
(b) पूर्व की ओर
(c) अधोमुखी
(d) उपरिमुखी
उत्तर:
(d) उपरिमुखी।

अनुच्छेद 13.4 पर आधारित

प्रश्न 1.
फ्लेमिंग का वामहस्त नियम लिखिए। (2011, 13, 14, 15, 16)
उत्तर:
यदि हम वामहस्त (बायें हाथ) की तीन चालक पर बल / अंगुलियों – अंगूठा, तर्जनी एवं मध्यमा को एक-दूसरे के लम्बवत् इस प्रकार फैलाएँ कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एवं मध्यमा चालक में प्रवाहित विद्यत धारा की दिशा को दर्शाए तो चालक पर लगने वाले बल की विद्युत धारा की दिशा में होती है।
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प्रश्न 2.
विद्युत मोटर का क्या सिद्धांत है?
उत्तर:
विद्युत मोटर का सिद्धान्त जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है। यही विद्युत मोटर का सिद्धान्त है।

प्रश्न 3.
विद्युत मोटर में विभक्त वलय की क्या भूमिका है?
उत्तर:
विद्युत मोटर में विभक्त वलय कॉम्यूटेटर का कार्य करता है। धारा की दिशा परिवर्तन के कारण आर्मेचर में लगने वाले बल की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार कुण्डली पर लगने वाला घूर्णी बल कुण्डली में घूर्णन उत्पन्न करता है।

अनुच्छेद 13.5 पर आधारित

प्रश्न 1.
किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रेरित करने के विभिन्न ढंग स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निम्नलिखित ढंग से किसी कुण्डली में विद्युत धारा उत्पन्न की जा सकती है –

  1. कुण्डली एवं चुंबक को आपेक्षिक गति में लाकर।
  2. एक धारावाही कुण्डली एवं एक सामान्य कुण्डली में सापेक्षिक गति उत्पन्न करके।
  3. दो कुण्डलियों में से किसी एक में धारा के मान को परिवर्तित करके।

अनुच्छेद 13.6 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
विद्युत जनित्र का सिद्धान्त जब किसी बन्द कुण्डली को किसी शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है तो उसमें से होकर गुजरने वाले चुम्बकीय-फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक विद्युत धारा प्रेरित हो जाती है। कुण्डली को घुमाने में किया गया कार्य ही कुण्डली में विद्युत-ऊर्जा के रूप में परिणत हो जाता है।

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प्रश्न 2.
दिष्ट धारा के कुछ स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
दिष्ट धारा के कुछ मुख्य स्रोत निम्नवत् हैं –
1. विद्युत रासायनिक सेल
2. स्टोरेज सेल
3. dc जनित्र।

प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती विद्युत धारा उत्पन्न करने वाले स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा के स्रोतों के नाम निम्नवत् हैं –

  1. ac जनित्र
  2. ताप शक्ति विद्युत
  3. जल विद्युत
  4. न्यूक्लिअर रियेक्टर।

प्रश्न 4.
सही विकल्प का चयन कीजिए ताँबे के तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र में घी गति कर रही है। इस कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा की दिशा में कितने परिभ्रमण के पश्चात परिवर्तन होता है?
(a) दो (b) एक (c) आधे (d) चौथाई
उत्तर:
(c) आधे

अनुच्छेद 13.7 पर आधारित

प्रश्न 1.
विद्युत परिपथों तथा साधित्रों में सामान्यतः उपयोग होने वाले दो सुरक्षा उपायों के नाम लिखिए। उत्तर–सामान्यतः उपयोग में आने वाले दो उपायों के नाम निम्नवत् हैं
1. विद्युत फ्यूज।
2. भू-संपर्क तार का उपयोग

प्रश्न 2.
2 kW शक्ति अनुमतांक का एक विद्युत तंदूर किसी घरेलू विद्युत परिपथ (220V) में प्रचालित किया जाता है जिसका विद्युत धारा अनुमतांक 5 A है, इससे आप किस परिणाम की अपेक्षा करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
हल:
दिया है, शक्ति P = 2kW
= 2 x 1000W = 2000 W
वोल्टेज, V = 220 V
हम जानते हैं कि, शक्ति, P = V x I या I = \(\frac {P}{V}\)
= \(\frac {2000}{220}\) = 9.09A
अर्थात् विद्युत तंदूर लाइन से 9.09A की धारा लेगा जोकि फ्यूज की क्षमता से अधिक है, अत : फ्यूज का तार गल जायेगा।

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प्रश्न 3.
घरेलू विद्युत परिपथों में अतिभारण से बचाव के लिए क्या सावधानी बरतनी चाहिए?
उत्तर:
एक ही सॉकिट से बहुत ज्यादा विद्युत उपकरणों को संयोजित नहीं करना चाहिए; क्योंकि इससे अतिभारण हो सकता है।

Bihar Board Class 10 Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन किसी लंबे विद्युत धारावाही तार के निकट चुंबकीय क्षेत्र का सही वर्णन करता है?
(a) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के लम्बवत् होती हैं।
(b) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ तार के समांतर होती हैं।
(c) चुंबकीय क्षेत्र की क्षेत्र रेखाएँ अरीय होती हैं जिनका उद्भव तार से होता है।
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।
उत्तर:
(d) चुंबकीय क्षेत्र की संकेंद्री क्षेत्र रेखाओं का केंद्र तार होता है।

प्रश्न 2.
वैद्युत-चुंबकीय प्रेरण की परिघटना –
(a) किसी वस्तु को आवेशित करने की प्रक्रिया है।
(b) किसी कुंडली में विद्युत धारा प्रवाहित होने के कारण चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने की प्रक्रिया है।
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।
(d) किसी विद्युत मोटर की कुंडली को घूर्णन कराने की प्रक्रिया है।
उत्तर:
(c) कुंडली तथा चुंबक के बीच आपेक्षिक गति के कारण कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न करना है।

प्रश्न 3.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति को कहते हैं –
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) ऐमीटर
(d) मोटर
उत्तर:
(a) जनित्र

प्रश्न 4.
किसी ac जनित्र तथा dc जनित्र में एक मूलभूत अंतर यह है कि –
(a) ac जनित्र में विद्युत चुंबक होता है जबकि dc जनित्र में स्थायी चुंबक होता है।
(b) dc जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(c) ac जनित्र उच्च वोल्टता का जनन करता है।
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।
उत्तर:
(d) ac जनित्र में सी वलय होते हैं जबकि dc जनित्र में दिक्परिवर्तक होता है।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 5.
लघुपथन के समय परिपथ में विद्युत धारा का मान –
(a) बहुत कम हो जाता है।
(b) परिवर्तित नहीं होता।
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।
(d) निरंतर परिवर्तित होता है।
उत्तर:
(c) बहुत अधिक बढ़ जाता है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित प्रकथनों में कौन-सा सही है तथा कौन-सा गलत है? इसे प्रकथन के सामने अंकित कीजिए।
(a) विद्युत मोटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करता है।
(b) विद्युत जनित्र वैद्युतचुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है।
(c) किसी लंबी वृत्ताकार विद्युत धारावाही कुंडली के केंद्र पर चुंबकीय क्षेत्र समांतर सीधी क्षेत्र रेखाएँ होता है।
(d) हरे विद्युतरोधन वाला तार प्रायः विद्युन्मय तार होता है।
उत्तर:
(a) असत्य
(b) सत्य
(c) सत्य
(d) सत्य

प्रश्न 7.
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने के तीन तरीकों की सूची बनाइए।
उत्तर:
चुंबकीय क्षेत्र को उत्पन्न करने वाले तीन तरीके निम्नवत् हैं –
1. स्थायी चुम्बक
2. विद्युत धारा
3. गतिमान आवेश

प्रश्न 8.
परिनालिका चुंबक की भाँति कैसे व्यवहार करती है? क्या आप किसी छड़ चुंबक की सहायता से किसी विद्युत धारावाही परिनालिका के उत्तर ध्रुव तथा दक्षिण ध्रुव का निर्धारण कर सकते हैं?
उत्तर:
पास-पास लिपटे विद्युतरोधी ताँबे के तार की बेलन की आकृति की अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं। धारावाही परिनालिका का एक सिरा दक्षिणी ध्रुव एवं दूसरा सिरा उत्तरी ध्रुव की तरह कार्य करता है। परिनालिका के अंदर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ परस्पर समानांतर होती हैं।
Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव
इसका अर्थ है कि परिनालिका के केन्द्र पर विद्युत क्षेत्र – सबसे अधिक होता है तथा सभी जगह एकसमान होता है। हाँ, परिनालिका के उत्तरी ध्रुव एवं दक्षिणी ध्रुव की पहचान हम छड़ चुम्बक से कर सकते हैं। यदि छड़ चुम्बक का उत्तरी ध्रुव परिनालिका की ओर आकर्षित होता है तो यह सिरा दक्षिणी ध्रुव होता है। इसी प्रकार उत्तरी ध्रुव की भी पहचान की जा सकती है।

प्रश्न 9.
किसी चुंबकीय क्षेत्र में स्थित विद्युत धारावाही चालक पर आरोपित बल कब अधिकतम होता है?
उत्तर:
जब किसी धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उस पर कार्यरत बल के लिए व्यंजक
F = BIL sinθ
जहाँ B = चुंबकीय क्षेत्र
I = धारा की शक्ति
L = चालक की लंबाई
θ = धारावाही चालक एवं चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के बीच का कोण।
अत: F का मान जब θ = 90° होगा तो अधिकतम होगा अर्थात् चालक एवं चुंबकीय क्षेत्र दोनों एक-दूसरे के लंबवत् हैं।

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 10.
मान लीजिए आप किसी चैंबर में अपनी पीठ को किसी एक दीवार से लगाकर बैठे हैं। कोई इलेक्ट्रॉन पुंज आपके पीछे की दीवार से सामने वाली दीवार की ओर क्षैतिजतः गमन करते हुए किसी प्रबल चुंबकीय क्षेत्र द्वारा आपके दाईं ओर विक्षेपित हो जाता है। चुंबकीय क्षेत्र की दिशा क्या है?
उत्तर:
फ्लेमिंग के बाएं हाथ के नियमानुसार, चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऊर्ध्वाधरतः नीचे की ओर होगी।

प्रश्न 11.
विद्युत मोटर का नामांकित आरेख खींचिए। इसका सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। विद्युत मोटर में विभक्त वलय का क्या महत्त्व है? (2011, 13, 15, 16, 18)
उत्तर:
विद्युत मोटर विद्युत मोटर एक ऐसा साधन है, जो विद्युत-ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है। सिद्धान्त जब किसी कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में रखकर उसमें धारा प्रवाहित की जाती है तो कुण्डली पर एक बलयुग्म कार्य करने लगता है, जो कुण्डली को उसकी अक्ष पर घुमाने का प्रयास करता है। यदि कुण्डली अपनी अक्ष पर घूमने के लिए स्वतन्त्र हो तो वह घूमने लगती है।
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कार्य-विधि जब बैटरी से कुण्डली में विद्युत-धारा प्रवाहित करते हैं तो फ्लेमिंग के बाएँ हाथ के नियम से, कुण्डली की भुजाओं AB तथा CD पर बराबर, परन्तु विपरीत दिशा में दो बल कार्य करने लगते हैं। ये बल एक बल-युग्म बनाते हैं, जिसके कारण कुण्डली दक्षिणावर्त दिशा में घूमने लगती है। कुण्डली के साथ उसके सिरों पर लगे विभक्त वलय भी घूमने लगते हैं। इन विभक्त वलयों की सहायता से धारा की दिशा इस प्रकार रखी जाती है कि कुण्डली पर बल लगातार एक ही दिशा में कार्य करे अर्थात् कुण्डली एक दिशा में घूमती रहे।

विभक्त वलय का महत्त्व विभक्त वलय का कार्य कुण्डली में प्रवाहित धारा की दिशा को बदलना है। जब कुण्डली आधा चक्कर पूर्ण कर लेती है तो विभक्त वलयों का ब्रुशों से सम्पर्क समाप्त हो जाता है और विपरीत ब्रुशों से सम्पर्क जुड़ जाता है। इसके फलस्वरूप कुण्डली में धारा की दिशा सदैव इस प्रकार बनी रहती है कि कुण्डली एक ही दिशा में घूमती रहे।

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प्रश्न 12.
ऐसी कुछ युक्तियों के नाम लिखिए जिनमें विद्युत मोटर उपयोग किए जाते हैं।
उत्तर:

  1. कूलर
  2. पंखा;
  3. एअर कंडीशनर;
  4. पंप आदि में विद्युत मोटर का उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 13.
कोई विद्युतरोधी ताँबे के तार की कुंडली किसी गैल्वेनोमीटर से संयोजित है। क्या होगा यदि कोई छड़ चुंबक –

  1. कुंडली में धकेला जाता है।
  2. कुंडली के भीतर से बाहर खींचा जाता है।
  3. कुंडली के भीतर स्थिर रखा जाता है।

उत्तर:

  1. कुण्डली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित करेगा।
  2. कुण्डली में एक प्रेरित धारा उत्पन्न होगी तथा गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित करेगा, परन्तु विक्षेप की दिशा पहले की विपरीत होगी।
  3. कुण्डली में कोई प्रेरित धारा उत्पन्न नहीं होगी इसलिए गैल्वेनोमीटर विक्षेप प्रदर्शित नहीं करेगा।

प्रश्न 14.
दो वृत्ताकार कुंडली A तथा B एक-दूसरे के निकट स्थित हैं। यदि कंडली A में विद्युत धारा में कोई परिवर्तन करें तो क्या कुंडली B में कोई विद्युत धारा प्रेरित होगी? कारण लिखिए।
उत्तर:
हाँ, प्रेरित धारा उत्पन्न होगी। कुंडली A में धारा परिवर्तन के कारण A से होकर गुजरने वाली चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की संख्या में परिवर्तन होने के कारण B में धारा प्रेरित होती है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित की दिशा को निर्धारित करने वाला नियम लिखिए –
1. किसी विद्युत धारावाही सीधे चालक के चारों ओर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र
2. किसी चुंबकीय क्षेत्र में, क्षेत्र के लंबवत् स्थित, विद्युत धारावाही सीधे चालक पर आरोपित बल तथा
3. किसी चुंबकीय क्षेत्र में किसी कुंडली के घूर्णन करने पर उस कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा।
उत्तर:
1. किसी धारावाही चालक के चारों ओर दक्षिण हस्त चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को मैक्सवेल के दक्षिण-हस्त नियम से ज्ञात किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि धारावाही चालक चुम्बकीय को दाहिने हाथ में इस प्रकार पकड़ें कि अंगूठा क्षेत्र चालक में प्रवाहित धारा की दिशा को निर्देशित करे तो चालक को पकड़ने वाली अंगुलियों की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा होती है।
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2. चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम से ज्ञात की चालक पर बल जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र इस नियम के अनुसार यदि बाएँ हाथ की प्रथम तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लंबवत् इस प्रकार रखा जाए कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में एवं मध्यमा धारा की दिशा में हो तो अँगूठे की दिशा चालक पर आरोपित बल की दिशा को दर्शाता है।
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3. चुंबकीय क्षेत्र में गतिशील चालक में उत्पन्न प्रेरित धारा की दिशा ज्ञात करने के लिए फ्लेमिंग के दाहिने चुम्बकीय क्षेत्र चालक की गति हस्त के नियम को उपयोग किया जाता है। इस नियम के अनुसार यदि दाएँ हस्त की प्रथम तीन अंगुलियों को एक-दूसरे के लम्बवत् इस प्रकार रखें कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा एवं अँगूठा चालक में गति की दिशा को दर्शाता है तो चालक में प्रेरित 0 धारा की दिशा मध्यमा द्वारा सूचित होती है।
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प्रश्न 16.
नामांकित आरेख खींचकर किसी विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत तथा कार्यविधि स्पष्ट कीजिए। इसमें ब्रशों का क्या कार्य है? । (2009, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18)
उत्तर:
विद्युत जनित्र (अथवा डायनमो) वह यन्त्र है जो यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। विद्युत जनित्र विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है। ये दो प्रकार के होते हैं –
1. प्रत्यावर्ती धारा जनित्र
2. दिष्ट धारा जनित्र।

दोनों का सिद्धान्त एक ही है।
सिद्धान्त जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से गुजरने वाली चुम्बकीय फ्लक्स रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहने लगती है। अत: कुण्डली को घुमाने में व्यय यान्त्रिक ऊर्जा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

रचना (Construction) प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (प्रत्यावर्ती धारा डायनमो) में चित्र में दिखाए अनुसार तीन मुख्य भाग होते हैं –
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1. क्षेत्र चुम्बक (Field magnet) इसमें N, S ध्रुव खण्डों वाला एक शक्तिशाली चुम्बक होता है; जिससे N, S के बीच में शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सके। इस चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली (coil) को घुमाया जाता है।

2. कुण्डली (Coil) यह ताँबे के पृथक्कित तारों की एक कुण्डली ABCD होती है; जिसे आर्मेचर (armature) कहते हैं। कुण्डली को मुलायम लोहे के क्रोड पर लपेटा जाता है। इसे ध्रुवों के बीच क्षैतिज अक्ष के परितः जल के टरबाइन या डीजल या पेट्रोल इंजन द्वारा घुमाया जाता है।

3. सी वलय तथा बुश (Slip rings and bushes) ये ताँबे के बने दो छल्ले या सी वलय (slip rings) होते हैं, जिनका सम्बन्ध एक ओर तो कुण्डली ABCD से आए ताँबे के तारों से होता है तथा दूसरी ओर कार्बन के दो बुशों X, Y से होता है। इन बुशों का सम्बन्ध बाह्य परिपथ जिसमें धारा भेजनी है, से कर देते हैं। चित्र में बाह्य परिपथ एक बल्ब के द्वारा दिखाया गया है।

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क्रिया-विधि –
1. चित्र में दिखाए अनुसार कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है, अर्थात् इस समय उत्पन्न प्रेरित वि०वा० बल तथा धारा शून्य होगी।

2. जैसे-जैसे कुण्डली दक्षिणावर्त दिशा में घूमती है, उनमें से होकर गुजरने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं या फ्लक्स का मान बढ़ता जाता है तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा उत्पन्न होती है, जिसकी दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ वाले नियम से ज्ञात की जा सकती है। बाह्य परिपथ में इसकी दिशा X से Y की ओर होगी। जब कुण्डली उसी दिशा में घूमते हुए ऊर्ध्वाधर (भुजा AB ऊपर तथा CD नीचे) हो जाती है, तो प्रेरित वि० वा० बल तथा धारा अधिकतम होती है। कुण्डली इस बीच 0° से 90° घूमी है।

3. कुण्डली के और अधिक घूमने पर कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान कम होता जाता है तथा कुण्डली के क्षैतिज होने पर (भुजा CD के स्थान पर AB तथा AB के स्थान पर CD) प्रेरित वि०वा० बल तथा विद्युत धारा धीरे-धीरे कम होकर शून्य हो जाती है। कुण्डली इस बीच 90° से 180° के बीच घूमी है।

4. कुण्डली को और घुमाने पर उसमें से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान फिर से बढ़ना शुरू होता है, परन्तु इस समय यदि धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ से ज्ञात की जाए, तो वह दिशा (ii) की तुलना में विपरीत दिशा में होगी तथा बाह्य परिपथ में Y से X की ओर प्रवाहित होगी। कुण्डली के ऊर्ध्वाधर (भुजा CD ऊपर तथा AB नीचे) होने पर प्रेरित वि०वा० बल तथा विद्युतधारा अधिकतम होगी। इस बीच कुण्डली 180° से 270° के बीच घूमी है।

5. यदि कुण्डली को और घुमाया जाए, जिससे कि वह दशा (i) की स्थिति में हो तो प्रेरित वि०वा० बल तथा प्रेरित विद्युत धारा का मान कुण्डली के क्षैतिज होने पर शून्य होगा। यदि कुण्डली में प्रेरित वि०वा० बल और कुण्डली के घूर्णीय कोण में एक ग्राफ खींचा जाए, तो वह निम्न चित्र के अनुसार होगा।
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कुण्डली का एक पूरा चक्कर लगाने पर विद्युत वाहक बल दो बार अधिकतम तथा दो बार शून्य होता है। कुण्डली के प्रत्येक घूर्णन में यह क्रिया दोहराई जाती है। इस प्रकार उत्पन्न धारा को प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current or A.C.) कहते हैं।

प्रश्न 17.
किसी विद्युत परिपथ में लघुपथन कब होता है?
उत्तर:
जब घरेलू विद्युत परिपथ में विद्युतमन्य तार एवं उदासीन तार एक-दूसरे के संपर्क में आ जाते हैं तो परिपथ में धारा का मान बहुत अधिक हो जाता है। इस घटना को ही लघुपथन कहते हैं।

प्रश्न 18.
भूसंपर्क तार का क्या कार्य है? धातु के आवरण वाले विद्युत साधित्रों को भूसंपर्कित करना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
किसी विद्युत उपकरण के धात्विक भाग को तार की मदद से पृथ्वी के संपर्क करने वाले तार को भू-संपर्क तार कहते हैं। यह तार सुरक्षा यंत्र के रूप में विद्युत परिपथ में उपयोग में लाया जाता है। यदि किसी भी प्रकार से उपकरण में विद्युत धारा आ जाती है तो यह पृथ्वी को स्थानांतरित हो जाती है जिसके फलस्वरूप कोई दुर्घटना होने से बच जाती है।

Bihar Board Class 10 Science विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव Additional Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक गतिमान आवेशित कण उत्पन्न करता है – (2013, 14, 16)
(a) केवल चुम्बकीय क्षेत्र
(b) केवल विद्युत क्षेत्र
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) चुम्बकीय व विद्युत क्षेत्र दोनों

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक है – (2012, 13)
(a) न्यूटन/ऐम्पियर-मी2
(b) न्यूटन/ऐम्पियर-मी (टेस्ला)
(c) न्यूटन-ऐम्पियर-मी
(d) न्यूटन/ऐम्पियर-मी
उत्तर:
(b) न्यूटन/ऐम्पियर-मी (टेस्ला)

प्रश्न 3.
कौन-सा चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक नहीं है? (2012, 17, 18)
(a) वेबर/मीटर2
(b) टेस्ला
(c) गौस
(d) न्यूटन/ऐम्पियर
उत्तर:
(d) न्यूटन/ऐम्पियर2

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प्रश्न 4.
‘वेबर’ किस राशि का मात्रक है? (2018)
(a) चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता
(b) चुम्बकीय फ्लक्स
(c) चुम्बकीय फ्लस्क घनत्व
(d) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता
उत्तर:
(b) चुम्बकीय फ्लक्स

प्रश्न 5.
1 टेस्ला बराबर होता है – (2015)
(a) 1 वेबर/मी2
(b) 1 गॉस
(c) 10-4 वेबर/मीटर
(d) 10-4 गॉस
उत्तर:
(a) 1 वेबर/मी2

प्रश्न 6.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेश पर लगने वाले बल की दिशा ज्ञात की जाती है – (2012, 13)
(a) दाहिने हाथ के अंगठे के नियम से
(b) फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से
(d) ऐम्पियर के नियम से
उत्तर:
(c) फ्लेमिंग के बायें हाथ के नियम से

प्रश्न 7.
एक इलेक्ट्रॉन वेग से एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत् गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाला बल होगा – (2011, 13)
(a) ev / B
(b) evB
(c) eB / υ
(d) vB / e
उत्तर:
(b) evB

प्रश्न 8.
किसी धारावाही चालक में बहने वाली धारा। और लम्बाई। को लम्बवत् B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। उस पर लगने वाला बल है (2014, 17)
(a) i /Bl
(b) B/ il
(c) iBl
(d) l/Bi
उत्तर:
(c) iBl

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प्रश्न 9.
B,A और Φ क्रमशः चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, क्षेत्रफल व फ्लक्स के संकेत हैं। इनके बीच सम्बन्ध है – (2016)
(a) Φ = B .A
(b) B = Φ ·A
(c) A = B Φ
(d) ABΦ = 1
उत्तर:
(a) Φ = B.A

प्रश्न 10.
विद्युत मोटर परिवर्तित करता है।
(a) विद्युत ऊर्जा को ध्वनि ऊर्जा में
(b) विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में।
(c) यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(d) रासायनिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में
उत्तर:
(b) विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में

प्रश्न 11.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण में एक कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल अनुक्रमानुपाती होता है –
(a) चुम्बकीय फ्लक्स के
(b) परिपथ के प्रतिरोध के
(c) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन के
(d) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के
उत्तर:
(d) चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की दर के

प्रश्न 12.
विद्युत धारा उत्पन्न करने की युक्ति है – (2016)
(a) जनित्र
(b) गैल्वेनोमीटर
(c) अमीटर
(d) मोटर
उत्तर:
(a) जनित्र

प्रश्न 13.
डायनमो उत्पन्न करता है – (2016)
(a) आवेश
(b) विद्युत वाहक बल
(c) विद्युत क्षेत्र
(d) चुम्बकीय क्षेत्र
उत्तर:
(b) विद्युत वाहक बल

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प्रश्न 14.
डायनमो परिवर्तित करता है – (2018)
(a) रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(b) ध्वनि ऊर्जा को चुम्बकीय ऊर्जा में
(c) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में
(d) यांत्रिक ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में
उत्तर:
(c) यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
धारा की दिशा बदलने पर परिनालिका की ध्रुवता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
ध्रुवता भी बदल जाती है।

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक S.I. पद्धति में बताइए। (2011, 16)
उत्तर:
वेबर/मीटर।

प्रश्न 3.
अनन्त लम्बाई के सीधे धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र लिखिए। (2012, 14)
उत्तर:
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जहाँ एक नियतांक है μ0 जिसे वायु या निर्वात की चुम्बकशीलता कहते हैं।

प्रश्न 4.
एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2013, 17)
उत्तर:
Bil sin θ; जबकि θ चालक की चुम्बकीय क्षेत्र से दिशा है।

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प्रश्न 5.
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिमान आवेशित कण पर कार्यकारी बल का सूत्र लिखिए। (2014)
उत्तर:
यदि कोई गतिमान आवेशित कण जिसका आवेश q है चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से कोण θ पर। वेग से गतिमान है तो इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sin θ

प्रश्न 6.
दायें हाथ के अंगूठे का नियम क्या है? (2012, 13)
उत्तर:
यदि हम दायें हाथ में वैद्युत धारा ले जाने वाला तार इस प्रकार पकड़ें कि अँगुलियाँ तार पर लिपटी हों व अँगूठा वैद्युत धारा की दिशा में हो तो लिपटी हुई, अँगुलियों की दिशा चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा होगी।
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प्रश्न 7.
चुम्बकीय फ्लक्स का क्या मात्रक है? (2015, 16, 17)
उत्तर:
वेबर या –
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प्रश्न 8.
यदि 100 चक्करों की एक तार की कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में 2 सेकण्ड में 15 वेबर की वृद्धि होती है, तो कुण्डली में उत्पन्न विद्युत वाहक बल क्या होगा? (2013, 14, 15, 16)
हल:
दिया है, N = 100, Δt = 2 सेकण्ड, ΔΦ = 15 वेबर, e = ?
∴ कुण्डली में उत्पन्न वि० वा० बल e = N \(\frac{\Delta \phi}{\Delta t}\)
= \(\frac{100 \times 15}{2}\)
उत्तर:
= 750 वोल्ट

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प्रश्न 9.
प्रेरित विद्युत वाहक बल को परिभाषित कीजिए। (2014)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है यह धारा केवल तभी तक बहती है जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल कहते हैं।

प्रश्न 10.
लेन्ज का नियम क्या है ? (2009)
उत्तर:
लेन्ज के नियम के अनुसार, प्रेरित विद्युत वाहक बल सदैव उस कारण का विरोध करता है, जिसके द्वारा बल स्वयं उत्पन्न होता है।

प्रश्न 11.
डायनमो का क्या कार्य है?
उत्तर:
यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

प्रश्न 12.
घरों में भेजी जाने वाली ए० सी० (प्रत्यावर्ती धारा) किस वोल्टता तथा किस आवृति की होती है?
या घरों में प्रयुक्त विद्युत धारा की आवृत्ति कितनी होती है ?
उत्तर:
220 वोल्ट तथा 50 हर्ट्स की।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय बल रेखाओं से क्या तात्पर्य है? चुम्बकीय बल रेखाओं के गुण लिखिए। (2011, 17, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का अविरत प्रदर्शन करती हैं। चुम्बकीय बल-रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गयी स्पर्श-रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है। एक समान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर तथा समदूरस्थ (equidistant) होती हैं। असमान चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कहीं अधिक व कहीं कम होती है। जिस क्षेत्र में बल-रेखाएँ सघन होती हैं वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता अधिक होती है तथा जिस क्षेत्र में बल-रेखाओं की सघनता कम होती है, वहाँ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता कम होती है।

चुम्बकीय बल-रेखाओं के गुण –

  1. चुम्बकीय बल-रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करती हैं और चुम्बक के अन्दर से आती हुई पुन: उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं। इस प्रकार चुम्बकीय बल-रेखाएँ बन्द वक्र के रूप में होती हैं।
  2. दो बल-रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटतीं। यदि काटतीं, तो कटान-बिन्दु पर दो स्पर्श-रेखाएँ खींची जा सकती थी अर्थात् उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दो दिशाएँ होती जो कि असम्भव हैं।
  3. चुम्बक के ध्रुव के समीप जहाँ चुम्बकीय क्षेत्र प्रबल होता है, वहाँ बल-रेखाएँ पास-पास होती हैं। ध्रुव से दूर जाने पर चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता घटती जाती है तथा बल-रेखाएँ भी परस्पर दूर-दूर होती जाती हैं।
  4. एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर एवं बराबर-बराबर दूरियों पर होती हैं।

प्रश्न 2.
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की परिभाषा लिखिए। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक बल तथा धारा के पदों में लिखिए। (2011, 16, 18)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता किसी चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता उस बल से व्यक्त की जाती है जो उस स्थान पर चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् स्थित एकांक लम्बाई के तार में एकांक प्रबलता की धारा प्रवाहित करने पर तार पर कार्य करता है। हम जानते हैं कि किसी बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 90° का कोण बनाते हुए धारावाही चालक पर लगने वाला बल
F = Bil या B = \(\frac {F}{i × l}\)
जहाँ F बल, B बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता, i चालक में प्रवाहित धारा तथा। चालक की लम्बाई है।
अत: B का मात्रक =
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प्रश्न 3.
बायो सेवर्ट नियम क्या है? (2012, 14, 15, 16)
उत्तर:
बायो सेवर्ट ने प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता का सूत्र प्राप्त किया। इन प्रयोगों के आधार पर धारावाही चालक के एक छोटे खण्ड A द्वारा किसी बिन्दु P पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र B की तीव्रता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करती है –

  1. चालक खण्ड की लम्बाई Δl के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ Δl
  2. चालक खण्ड में प्रवाहित धारा i के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ i
  3. चालक खण्ड से बिन्दु की दूरी r के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ \(\frac{1}{r^{2}}\)
  4. धारा की दिशा तथा बिन्दु के बीच के कोण के ज्या के अनुक्रमानुपाती होती है अर्थात् B ∝ sin θ
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प्रश्न 4.
मैक्सवेल के दक्षिणावर्त पेंच का नियम क्या है? किरणे आरेख है। धारा सहित व्याख्या कीजिए। (2011)
उत्तर:
यदि हम पेंच कसते समय पेंचकस को दायें हाथ में पकड़कर इस प्रकार। घुमायें कि पेंच की नोंक धारा बहने की दिशा में चले तो जिस दिशा में पेंच को घुमाने के लिए अंगूठा घूमता है, वही चुम्बकीय बल-रेखाओं की दिशा होगी। चित्र में एक। तार में विद्युत-धारा नीचे से ऊपर की ओर बह रही है। पेंच की नोंक को ऊपर की ओर चलाने के लिए दाहिने हाथ के अंगूठे को वामावर्त दिशा में (ऊपर से देखने पर) चलाना पड़ेगा। यही चुम्बकीय-बल रेखाओं की दिशा होगी।
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प्रश्न 5.
समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाला बल किन बातों पर निर्भर करता है? बल की दिशा किस नियम से ज्ञात की जाती है? (2013, 17)
उत्तर:
माना एक एकसमान बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र B में। लम्बाई का एक चालक स्थित है जिसमें। धारा प्रवाहित हो रही है (देखें चित्र)। यदि चालक व चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा के बीच ९ कोण बनता है तो चालक पर लगने वाले बल F का मान –
1. छड़ में प्रवाहित धारा (i) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F∝ i
2. बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र की प्रबलता (B) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ B
3. चालक छड़ की लम्बाई के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ l
4. चालक की लम्बाई एवं चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच बनने वाले कोण (θ) की ज्या (अर्थात् sin θ) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात्
F ∝ sin θ
बल की दिशा फ्लेमिंग के बायें हस्त (बायें हाथ) के नियम द्वारा ज्ञात की जाती है।
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प्रश्न 6.
किसी चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल किन-किन कारकों पर निर्भर करता है? इस बल के लिए आवश्यक सूत्र लिखिए। (2017)
उत्तर:
चुम्बकीय क्षेत्र में गतिशील आवेशित कण पर लगने वाला बल कण के आवेश के परिमाण, चुम्बकीय क्षेत्र के परिमाण, कण के वेग व इसकी गति की दिशा व चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा के बीच के कोण पर निर्भर करता है। यदि किसी गतिशील आवेशित कण का आवेश q, वेग। υ है तथा यह B तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाते हुए गति करता है तब इस पर लगने वाला बल
F = Bq υ sinθ

Bihar Board Class 10 Science Solutions Chapter 13 विद्युत धारा का चुम्बकीय प्रभाव

प्रश्न 7.
इलेक्ट्रॉन का आवेश 1.6 x 10-19 कूलॉम है। यह 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र से 30° के कोण पर 5 x 106 मी/से के वेग से गति कर रहा है। इलेक्ट्रॉन पर आरोपित चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2011, 13, 14, 16)
हल:
प्रश्नानुसार, q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
B = 1000 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर
θ = 30°, υ = 5 x 106 मी/से, F = ?
सूत्र F = Bq υ sin θ से,
आरोपित चुम्बकीय बल (F) = 1000 x 1.6 x 10-19 x 5 x 106 x sin 30°
= 8.0 x 10-10 x \(\frac {1}{2}\)
उत्तर:
= 4.0 x 10-10 न्यूटन

प्रश्न 8.
1 मीटर लम्बे विद्युत चालक में 2.0 ऐम्पियर की धारा बह रही है। चालक को 2.5 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर तीव्रता वाले चुम्बकीय क्षेत्र में 30° के कोण पर रखा जाता है। चालक पर लगने वाले चुम्बकीय बल की गणना कीजिए। (2009, 11 12, 14, 15, 16, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 2.0 ऐम्पियर, l = 1 मीटर,
B = 2.5 न्यूटन/ ऐम्पियर-मीटर, 0 = 30°, F = ?
सूत्र F = Bil sine से,
बल (F) = 2.5 x 2.0 x 1 x sin 30° = 5 x \(\frac {1}{2}\)
उत्तर:
2.5 न्यूटन

प्रश्न 9.
1 मीटर लम्बे तार में कितनी धारा प्रवाहित की जाये कि उसे 1.2 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में लम्बवत् रखने से उस पर 0.128 न्यूटन का बल उत्पन्न हो सके? (2012)
हल:
प्रश्नानुसार, F = 0.128 न्यूटन, l = 1 मीटर,
B = 1.2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
सूत्र F = Bil sin θ से,
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उत्तर:
0.11 ऐम्पियर

प्रश्न 10.
1.5 मीटर लम्बे तार में 0.5 ऐम्पियर की धारा बह रही है। यह तार 3.0 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर की तीव्रता वाले समरूप चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् रखा जाता है। उस चालक पर लगने वाले बल की गणना कीजिए। (2014, 15, 17, 18)
हल:
प्रश्नानुसार, 1 = 1.5 मीटर, i = 0.5 ऐम्पियर,
B = 3.0 न्यूटन / ऐम्पियर-मीटर, θ = 90°
F = Bil sin θ से, बल F = 3.0 x 0.5 x 1.5 sin 90°
= 2.25 x 1
उत्तर:
= 2.25 न्यूटन

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प्रश्न 11.
चुम्बकीय फ्लक्स से क्या तात्पर्य है? इसका मात्रक बताइए। (2009)
उत्तर:
किसी क्षेत्र के लम्बवत् गुजरने वाली समस्त चुम्बकीय बल – रेखाओं की संख्या को उस क्षेत्र से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कहते हैं, जिसे से निरूपित किया जाता है। चित्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् एक – तल PQRS रखा हुआ है, जिसका क्षेत्रफल A है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र की है तीव्रता B हो, तो PORS में से गुजरने वाला सम्पूर्ण चुम्बकीय फ्लक्स Φ = BA यदि PQRS तल चुम्बकीय क्षेत्र से θ कोण बनाए, तो चुम्बकीय फ्लक्स
Φ = BA cos θ
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चुम्बकीय फ्लक्स का मात्रक –
M.K.S. पद्धति में का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
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∴ चुम्बकीय क्षेत्र B का मात्रक न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर भी होता है। अतः Φ का एक अन्य मात्रक भी होता है।
Φ  का मात्रक = B का मात्रक x A का मात्रक
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= न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर
अतः फ्लक्स + का मात्रक वेबर या न्यूटन x मीटर/ऐम्पियर है।

प्रश्न 12.
एक 0.2 मीटर लम्बे तार में 2 ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है। तार के 0.5 मीटर दूर बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिए। (u = 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता B = img
प्रश्नानुसार, \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi}=10^{-7}\) न्यूटन/ऐम्पियर
i = 2 ऐम्पियर, l = 0.2 मीटर, r = 0.5 मीटर, sin 0 = sin 90° = 1
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उत्तर:
= 1.6 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

प्रश्न 13.
एक लम्बे सीधे तार में 3.0 ऐम्पियर विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है। तार से 50 सेमी दूर स्थित बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता (चुम्बकीय फ्लक्स घनत्व) ज्ञात कीजिए। (2009, 11, 12, 15, 16, 17)
हल:
प्रश्नानुसार, i = 3.0 ऐम्पियर, r = 50 सेमी = 0.5 मीटर
∴ चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता = \(\frac{\mu_{0}}{4 \pi} \frac{2 i}{r}\) (∴ चालक की लम्बाई अनन्त है)
= \(\frac {2i}{r}\) x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर (∴ μ0 = 4 x x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर)
= \(\frac{2 \times 3.0}{0.5} \times 10^{-7}\)
उत्तर:
= 12 x 10-7 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

प्रश्न 14.
50 फेरों वाली एवं 0.5 मीटर क्षेत्रफल वाली तार की एक कुण्डली को 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर के समचुम्बकीय क्षेत्र में रखने पर कुण्डली से सम्बद्ध फ्लक्स कितना होगा? यदि कुण्डली का तल क्षेत्र के –
1. लम्बवत् हो
2. अनुदिश हो तथा
3. 30° का कोण बनाता है।
हल:
प्रश्नानुसार,
A = 0.5 मी2, B = 2 x 10-2 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर, N = 50
1. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के लम्बवत् है, तो θ = 90°
सूत्र Φ = NBA cos θ, से
Φ = NBA cos 90° = 0 (∴ cos 90° = 0)

2. जब कुण्डली का तल क्षेत्र के अनुदिश है तो θ =0°
∴ Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x 1 (∴ cos 0° = 1)
उत्तर:
= 0.5 वेबर

3. कुण्डली का तल क्षेत्र से 30° का कोण बनाता है।
Φ = NBA cos θ = 50 x 2 x 10-2 x 0.5 x cos 30°
= \(0.5 \times \frac{\sqrt{3}}{2}\)
= \(\frac{0.5 \times 1.73}{2}\)
उत्तर:
= 0.43 वेबर

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प्रश्न 15.
1000 फेरों वाली एक वृत्ताकार कुण्डली 0.32 वेबर प्रति मीटर वाले चुम्बकीय क्षेत्र में स्थापित है। इसे 0.2 सेकण्ड के अन्तराल में क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। कुण्डली से सम्बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन की गणना कीजिए तथा इससे उत्पन्न विद्युत वाहक बल की भी गणना कीजिए। कुण्डली का क्षेत्रफल 0.09 वर्ग मीटर है। (2015, 16)
हल:
कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स क Φ = NBA
जहाँ B = 0.32 वेबर/मी2 तथा A = 0.09 मी2
= 1000 x 0.32 x 0.09 = 28.8 वेबर
∴ चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन = Φ1 – Φ2 = 28.8 – 0 = 28.8 वेबर
(चूँकि कुण्डली चुम्बकीय क्षेत्र से बाहर हो जाती है ∴  Φ2 = 0)
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\(\frac {28.8}{0.2}\)
उत्तर:
= 144 वोल्ट

प्रश्न 16.
वैद्युत मोटर व वैद्युत जनित्र के बीच क्या अन्तर है? (2014, 17)
उत्तर:
विद्युत मोटर इस सिद्धान्त पर कार्य करता है कि चुम्बकीय क्षेत्र में रखी कुण्डली में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कुण्डली पर एक बल-युग्म कार्य करता है; जो कुण्डली को उसकी अक्ष के परित: घुमाने का प्रयास करता है। कुण्डली घूमने के लिए स्वतन्त्र होने के कारण वह घूमने लगती है। मोटर, फ्लेमिंग के वाम-हस्त नियम (Fleming’s left hand rule) पर कार्य करता है। यह विद्युत ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में बदलता है।

विद्युत जनित्र (डायनमो) का सिद्धान्त यह है कि जब किसी बन्द कुण्डली को चुम्बकीय क्षेत्र में तेजी से घुमाया जाता है, तो उसमें से गुजरने वाली फ्लक्स रेखाओं में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, जिसके कारण कुण्डली में एक प्रेरित वि० वा० बल और बाह्य परिपथ व कुण्डली में प्रेरित विद्युत धारा बहती है। जनित्र, फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम (Fleming’s right hand rule) पर कार्य करता है। यह यान्त्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।

प्रश्न 17.
दिष्टधारा एवं प्रत्यावर्ती धारा में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर:
दिष्ट धारा (Direct current) दिष्ट धारा वह वैद्युत धारा है जिसका परिमाण नियत रहता है तथा परिपथ के किसी बिन्दु में को एक ही दिशा में प्रवाहित होती रहती है। प्राथमिक तथा संचायक सेलों द्वारा प्राप्त धारा, दिष्ट धारा ही होती है। प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current) प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसका परिमाण आवर्त रूप से बदलता रहता है तथा दिशा बार-बार उत्क्रमित होती है रहती है।
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वैद्युत जनित्र अथवा डायनमो द्वारा प्राप्त धारा प्रत्यावर्ती धारा ही होती है। यदि प्रत्यावर्ती धारा के परिमाण व समय के बीच ग्राफ खींचे तो वह एक ज्या-वक्र (sine curve) के रूप में आता है (देखें चित्र)। इस वक्र का भाग विद्युत जनित्र की कुण्डली के एक चक्कर को निरूपित करता है। इससे स्पष्ट है कि कुण्डली के प्रत्येक चक्कर में धारा की दिशा दो बार उत्क्रमित होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित धारावाही चालक पर लगने वाले बल का सूत्र प्राप्त कीजिए। (2016) या
यदि कोई धारावाही चालक चुम्बकीय क्षेत्र के –
1. समान्तर
2. लम्बवत्
3. 60°
का कोण बनाते हुए रखा जाये तो चालक पर लगने वाले बल का सूत्र लिखिए। (2011, 13, 14, 15)
उत्तर:
यदि। लम्बाई का धारावाही चालक, जिसमें प्रवाहित धारा। है B चुम्बकीय क्षेत्र में, क्षेत्र से e कोण पर रखा हो तो उस पर लगने वाला बल
F = Bil sin θ

1. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर हो इस स्थिति में θ का मान शून्य होने के कारण sin θ का मान शून्य होगा। अतः चालक पर लगने वाला बल शून्य (न्यूनतम) होगा।

2. चालक, बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् हो इस स्थिति में θ का मान 90° होने के कारण sin θ का मान 1 (अधिकतम) होगा। अत: चालक पर लगने वाला बल,
F = Bil sin θ या F = Bil sin 90° या F = Bil x 1 या F = Bil
अतः इस दशा में लगने वाला बल अधिकतम होगा।

3. चालक बाह्य चुम्बकीय क्षेत्र से 60° का कोण बनाता हो इस स्थिति में θ का मान 60° होने के कारण sin θ का मान \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) होगा। अत: चालक पर लगने वाला बल, F = Bil sin θ या F = Bil sin 60° या F = Bil x \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) या F = \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) Bil

प्रश्न 2.
एक इलेक्ट्रॉन 1200 न्यूटन प्रति ऐम्पियर-मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में 2 x 104 मीटर प्रति सेकण्ड के वेग से प्रवेश करता है। इलेक्ट्रॉन पर लगने वाले बल के परिमाण की गणना कीजिए, यदि वह –
1. क्षेत्र के लम्बवत्
2. क्षेत्र के समान्तर
3. क्षेत्र से 30° का कोण बनाते हुए प्रवेश करे (2016, 18)
(इलेक्ट्रॉन का आवेश = 1.6 x 10-19 कूलॉम)
हल:
चुम्बकीय क्षेत्र B में υ वेग से गतिमान आवेशित कण पर लगने वाला बल = q uB sin θ
जहाँ q कण का आवेश तथा θ चुम्बकीय क्षेत्र B व आवेशित कण के वेग के बीच कोण है।
यहाँ q =1.6 x 10-19 कूलाम, y =2 x 104 मी/सेकण्ड, B = 1200 न्यूटन/ऐम्पियर-मीटर

1. यदि θ = 90° (क्षेत्र के लम्बवत्)
तो अभीष्ट बल F =1.9 x 10-19 x 2 x 104x 1200 x sin 90°
= 4560 x 10-15 x 1 (∴ sin 90° = 1)
= 4.56 x 10-12 न्यूटन

2. यदि θ = 0° (क्षेत्र के समान्तर)
तो अभीष्ट बल F = q vB sinθ = 0 (∴ sin θ = 0)

3. यदि θ = 30°
तो अभीष्ट बल F = 1.9 x 10-19 x 2 x 104 x 1200 . sin 30°
= 4.56 x 10-12 x \(\frac {1}{2}\) न्यूटन
उत्तर:
= 2.28 x 10-12 न्यूटन

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प्रश्न 3.
एक इलेक्ट्रॉन जिसका द्रव्यमान 9x 10-31 किग्रा व आवेश – 1.6 x 10-19 कूलॉम है, x-अक्ष के समान्तर 3 x 106 मी/से के वेग से गति करता हुआ z – अक्ष के समान्तर कार्यरत 0.3 वेबर/मीटर के चुम्बकीय क्षेत्र में प्रवेश करता है। उस पर कार्य करने वाले बल, त्वरण एवं त्वरण की दिशा ज्ञात कीजिए
(2013, 17)
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हल:
दिया है,
q = 1.6 x 10-19 कूलॉम,
υ = 3x 106 मी/से,
B = 0.3 वेबर/मी2
F = ?
तथा θ = 90°
लारेंज बल के सूत्र F = B qυ sin θ से,
इलेक्ट्रॉन पर बल F = 0.3 x 1.6 x 10-19 x 3 x 106 x sin 90°
1.44 x 10-13 न्यूटन। (∴ sin 90° = 1)
तथा बल की दिशा इलेक्ट्रॉन की गति की दिशा तथा चुम्बकीय क्षेत्र दोनों की दिशा के लम्बवत् Y – अक्ष की दिशा में होगी। पुन: F = 1.44 x 10-13 न्यूटन, m = 9 x 10-31 किग्रा
∴ सूत्र F =ma से,
उत्पन्न त्वरण = \(\frac {F}{m}\)
= \(\frac{1.44 \times 10^{-13}}{9 \times 10^{-31}}\)
उत्तर:
= 1.6 x 1017 मी/से2

प्रश्न 4.
विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से क्या तात्पर्य है? प्रयोग द्वारा इसे कैसे प्रदर्शित करेंगे? (2014, 16, 17)
उत्तर:
जब किसी बन्द विद्युत परिपथ से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है, तो उस परिपथ में एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है और परिपथ में धारा बहने लगती है। यह धारा केवल तभी तक बहती है; जब तक कि चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है। इस क्रिया को वैद्युत चुम्बकीय प्रेरण, उत्पन्न विद्युत वाहक बल को प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा उत्पन्न धारा को प्रेरित विद्युत धारा कहते हैं।

चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी फैराडे का प्रयोग विद्युत चुम्बकीय प्रेरण को निम्नलिखित प्रयोग द्वारा दिखाया जा सकता है प्रयोग पृथक्कित ताँबे के तार की गत्ते के खोखले बेलन पर एक कुण्डली बनाकर धागमापी से जोड़ देते हैं। यदि किसी चुम्बक का उत्तरी ध्रुव कुण्डली की ओर को तेजी से ले जाया जाता है, तो धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है |चित्र (a)]। जब इस चुम्बक को वापस कुण्डली से दूर हटाते हैं; तब भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, परन्तु वह पिछले विक्षेप से विपरीत दिशा में होता है [चित्र (b)]।

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यदि इसी कुण्डली की ओर चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव लाया जाए या दूर हटाया जाए, तो भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है; परन्तु यह विक्षेप चित्र (a) व (b) वाली दिशा की अपेक्षा विपरीत दिशा में होता है [चित्र (c) तथा (d)] धारामापी में विक्षेप तभी तक होता है; जब तक चुम्बक व कुण्डली में आपेक्षिक गति होती है। दोनों के स्थिर रहने या दोनों के समान वेग से एक दिशा में चलने पर धारामापी में विक्षेप नहीं होता है। चुम्बक को जितनी तेजी से चलाया जाता है धारामापी में विक्षेप उतना ही अधिक होता है तथा यदि कुण्डली में फेरों की संख्या बढ़ा दी जाए, तो धारामापी में विक्षेप बढ़ जाता है।
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नोट:
उपर्युक्त चित्रों में चुम्बक के दोनों ध्रुव दिखाने के स्थान पर एक ही ध्रुव दिखाया गया है। इस प्रयोग से स्पष्ट है कि धारामापी वाले परिपथ में सेल न होने पर भी धारामापी में क्षणिक विक्षेप होता है, जिससे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का प्रदर्शन होता है।

प्रश्न 5.
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम लिखिए। प्रेरित विद्युत धारा की दिशा ज्ञात करने के सम्बन्ध में फ्लेमिंग का नियम लिखिए। (2012, 14, 15, 16, 18)
या फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियमों की व्याख्या कीजिए। प्रेरित धारा की दिशा कैसे ज्ञात की जाती है? (2012, 16, 18)
या फैराड़े के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम बताइए तथा प्रेरित विद्युत वाहक बल का सत्र लिखिए। (2009, 11)
या फ्लेमिंग के दाएँ हाथ का नियम लिखिए। (2015, 16)
उत्तर:
फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण सम्बन्धी दो नियम निम्नवत हैं –
प्रथम नियम “जब किसी बन्द कुण्डली (coil) में से होकर जाने वाली चुम्बकीय बल रेखाओं (चुम्बकीय फ्लक्स) में परिवर्तन होता है, तो उस कुण्डली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है; जो केवल उसी समय तक रहता है, जब तक चुम्बकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता रहता है।” द्वितीय नियम “किसी कुण्डली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत वाहक बल का परिमाण कुण्डली में होकर जाने वाली बल रेखाओं की संख्या (चुम्बकीय फ्लक्स) के परिवर्तन की दर के अनुक्रमानुपाती होता है।” यदि किसी कुण्डली से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 व बहुत कम समयान्तर Δt के बाद उसमें से गुजरने वाले
चुम्बकीय फ्लक्स का मान Φ1 हो, तो

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कुण्डली में फ्लक्स के परिवर्तन की दर = \(\frac{\phi_{2}-\phi_{1}}{\Delta t}\)
अतः प्रेरित विद्युत वाहक बल (e) =\(\frac{\phi_{2}-\phi_{1}}{\Delta t}\)
अथवा e = K \(\frac{\left(\phi_{2}-\phi_{1}\right)}{\Delta t}\)
जहाँ K एक नियतांक है। यदि K = 1 तो, e = \(\frac{\left(\phi_{2}-\phi_{1}\right)}{\Delta t}\) वोल्ट
प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दायें हाथ के नियम से ज्ञात की जाती है।

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फ्लेमिंग के दायें हाथ का नियम यदि किसी चालक को चुम्बकीय क्षेत्र चुम्बकीय क्षेत्र में गति करायें, तो उसमें प्रेरित विद्युत वाहक बल की दिशा 90° उत्पन्न हो जाता है और यदि परिपथ बन्द हो, तो परिपथ में – प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है; जिसकी दिशा को 90° फ्लेमिंग के दाएँ हाथ वाले नियम से ज्ञात किया जा सकता है। प्रेरित धारा ! की दिशा RAM इस नियम के अनुसार, “यदि हम अपने दाएँ हाथ की तर्जनी, मध्यमा अंगुली तथा अँगूठे को एक-दूसरे के लम्बवत् फैलाकर रखें और यदि तर्जनी अंगुली चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा, अंगूठा चालक की गति की दिशा में संकेत करे, तो मध्यमा अँगुली प्रेरित विद्युत धारा की दिशा प्रदर्शित करेगी (देखें चित्र)।

प्रश्न 6.
दिष्ट धारा जनित्र की क्रिया-विधि का सचित्र वर्णन करें। इसकी रचना एवं सिद्धान्त का भी उल्लेख करें। (2013, 17)
या दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धान्त स्पष्ट कीजिए तथा इसकी संरचना व कार्य-प्रणाली दिष्ट धारा जा का सचित्र वर्णन कीजिए। (2009, 12, 13, 14, 16, 17, 18)
उत्तर:
दिष्ट धारा जनित्र की संरचना इसमें निम्नलिखित तीन भाग होते हैं –
1. क्षेत्र चुम्बक (Field magnets) N-S एक शक्तिशाली चुम्बक के ध्रुव खण्ड (Pole pieces) हैं। इस चुम्बक का कार्य एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करना है, जिसमें कुण्डली घूमती है।

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2. आर्मेचर कुण्डली (Armature Coil) यह एक कच्चे लोहे के बेलन पर ताँबे के पृथक्कित तार के बहुत से चक्करों को लपेटकर बनायी जाती है। N-S

3. विभक्त वलय तथा बुश (Split rings and bushes) विभक्त वलय ताँबे के खोखले बेलन को लम्बाई के अनुदिश काटकर बनाए जाते हैं। कुण्डली के ऊपर लिपटे तार का एक सिरा एक विभक्त वलय S1 तथा दूसरा सिरा दूसरे विभक्त वलय S2 से जोड़ दिया जाता है।

S1 व S2 को कार्बन के दो बुश B1 तथा B2 लगातार छूते रहते हैं तथा इसका सम्बन्ध बाह्य परिपथ से रहता है। सिद्धान्त सिद्धान्त के लिए ‘अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर’ के प्रश्न 16 का उत्तर (सिद्धान्त) देखें।

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कार्य-विधि (Working):
चित्र में ABCD एक कुण्डली है, जो दक्षिणावर्त दिशा में घुमायी जा रही है। कुण्डली के घूर्णन के कारण उससे गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है, जिससे कुण्डली में विद्युत चुम्बकीय प्रेरण से प्रेरित विद्युत धारा उत्पन्न होती है। कुण्डली में धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम से ज्ञात की जा सकती है। कुण्डली चित्र में दिखायी स्थिति (कुण्डली की क्षैतिज स्थिति) से आधा चक्कर पूरा करने तक बाह्य परिपथ में धारा की दिशा B2 से B1की ओर रहती है।

आधा चक्कर पूरा होने पर धारा की दिशा उलट जाती है। उसके बाद कुण्डली के घूर्णन के कारण S1 धनात्मक तथा S2 ऋणात्मक हो जाता है, परन्तु उसी समय S1 का सम्बन्ध B2 से तथा S2 का सम्बन्ध B1 से हो जाता है। अत: B2 धनात्मक तथा B1 ऋणात्मक ही रहते हैं तथा बाहरी परिपथ में धारा B2 से B1 की ओर ही प्रवाहित होती है। इस प्रकार बाह्य परिपथ में कुण्डली के पूरे चक्कर में धारा सदैव एक ही दिशा में बहती रहती है। इस प्रकार डायनमो से प्राप्त धारा के लिए यदि विद्युत वाहक बल तथा कुण्डली के घूर्णन कोण के बीच ग्राफ खींचा जाए, तो वह चित्र की आकृति का होता है।
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इस प्रकार के डायनमो से प्राप्त विद्युत वाहक बल तथा प्रेरित धारा समान दिशा की अवश्य होती है, परन्तु उसका मान विभिन्न घूर्णन कोणों पर एक समान नहीं होता है या हम यह भी कह सकते हैं कि धारा या विद्युत वाहक बल का मान समय के साथ बदलता रहता है, स्थिर नहीं रहता। इस दोष को दूर करने के लिए विभिन्न तलों में विभिन्न कुण्डलियाँ बनाते हैं। उनसे प्राप्त विद्युत वाहक बल या धारा का मान समय के साथ बदलता नहीं है, अर्थात् स्थिर विद्युत वाहक बल प्राप्त होता है।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

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अतिलघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक विज्ञान में विशेषकर समाजशास्त्र जैसे विषय में ‘वस्तुनिष्ठता’ के अधिक जटिल होने का क्या कारण है?
उत्तर:
प्रतिदिन की बोलचाल की भाषा में ‘वस्तुनिष्ठता’ का आशय पूर्वाग्रह रहित, तटस्थ या केवल तथ्यों पर आधारित होता है। किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए, हमें वस्तु के बारे में अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। सामाजिक विज्ञान और समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठता की अधिक जटिलता का कारण ‘व्यक्तिपरकता’ है। इसमें व्यक्ति पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहता है और परिणाम स्पष्ट नहीं आते हैं।

प्रश्न 2.
सर्वेक्षण का अर्थ बताइए।
उत्तर:
सर्वेक्षण विधि का अर्थ : सर्वेक्षण विधि का प्रयोग सामाजिक विज्ञानों में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्ययनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं । मोर्स के अनुसार, “संक्षेप में, सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से विश्लेषण की एक पद्धति है।”

सर्वेक्षण पद्धति की निम्नलिखित चार प्रमुख प्रक्रियाएँ हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतीकरण।

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक पद्धति का प्रश्न विशेषताः समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
अन्य सभी वैज्ञानिक विषयों की तरह समाजशास्र में भी पद्धतियाँ प्रक्रियाएँ महत्पूर्ण हैं जिसके द्वारा ज्ञान एकत्रित होता है। अंतिम विश्लेषण में सभी समाजशास्त्री एक आम आदमी से अलग होने का दावा कर सकते हैं। इसका कारण यह नहीं है कि वे कितना जानते हैं या वे क्या जानते हैं, परन्तु इसका कारण है कि वे किस ज्ञान को प्राप्त करते हैं? यही एक कारण है कि समाजशास्र में वैज्ञानिक पद्धति का विशेष महत्व है।

प्रश्न 4.
सहभागी प्रेक्षण के दौरान समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञानी क्या करते हैं?
उत्तर:
सहभागी प्रेक्षण विधि के अंतर्गत समाजशास्त्री और नृजाति विज्ञान अनुसंधानकर्ता स्वयं भूमिका का संपादन करता है अथवा वह अध्ययन की स्थिति में स्वयं हिस्सा लेता है। प्रतिभागी प्रेक्षण आँकड़े एकत्र करने की एक प्रविधि है। इसमें समाजशास्त्री और नृवंश विधानशास्री अध्ययन किए जाने वाले व्यक्तियों के व्यवहारों को बिना प्रभावित किए उनकी गतिविधियों में भाग लेता है । चूँकि इसमें अनुसंधाकर्ता स्वयं भाग लेता है अत: इसके निष्कर्ष में इसके (अनुसंधानकर्ता संवेगात्मक रूप से संबंद्ध होने का भय बना रहता है।

प्रश्न 5.
“प्रतिबिंबता’ का क्या तात्पर्य है तथा समाजशास्त्र में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
‘प्रतिबिंबता का तात्पर्य है-एक अनुसंधानकर्ता की वह क्षमता जिसमें वह स्वयं को अवलोकन और विश्लेषण करता है। समाजशास्त्र में अनुसंधानकर्ता प्रतिबिंबित होने के पश्चात् पूर्वाग्रहों से ग्रस्त नहीं रहता जिस कारण परिणाम सदैव सटीक आते हैं।

प्रश्न 6.
असहभागी अवलोकन का अर्थ बताइए।
उत्तर:
असहभागी अवलोकन का अर्थ-असहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता जिस समूह का अध्ययन करता है, वह उससे पृथक् अथवा असम्बद्ध रहता है। समूह के लोगों को साधारणतया इस बात की जानकारी नहीं होती है कि उनका अवलोकन किया जा रहा है हमेरस्ले तथा अकिंसन के अनुसार, “इस अपरिचित स्थिति को अनुसंधानकर्ता केवल देखकर तथा सुनकर ही समझ पाता है तथा इसी से (देखकर, सुनकर) वह उस समूह की संरचना तथा संस्कृति को भी समझता है। असहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता अवलोकित व्यक्तियों की गतिविधियों में भागीदारी अथवा हस्तक्षेप नहीं करता है।

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प्रश्न 7.
प्रविधियों की परिभाषा दीजिए तथा इसकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
प्रविधियों की परिभाषा-समाज विज्ञानों में वास्तविक तथ्यों तथा संरचनाओं के एकत्रीकरण हेतु कुछ विशेष तरीकों का प्रयोग करना पड़ता है, इन्हें प्रविधि कहा जाता है। मोजर के अनुसार, “प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिए वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन में संबंधित विश्वसनीय तथ्यों को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।”

प्रविधियों की विशेषताएँ –

  • प्रविधियों के द्वारा संबंधित वस्तुपरक तथा विश्वसनीय तथ्यों को वैज्ञानिक तरीके से एकत्रित किया जाता है।
  • प्रविधियों का चुनाव अनुसंधान की प्रकृति के अनुसार किया जाता है।
  • प्रविधियों का प्रयोग तर्कसंगत तरीके से किया जाता है।

प्रश्न 8.
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श का अर्थ-निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श के अंतर्गत अध्ययन किए जाने वाले समस्त व्यक्तियों से प्रश्न नहीं पूछे जाते हैं। इसके अंतर्गत जिन इकाइयों का अध्ययन किया जाता है, उनका चयन समग्र से सावधानीपवूक किया जाता है। चयन में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि निदर्शन सर्वेक्षण में सम्मिलित समस्त व्यक्ति जनसमुदाय की विशेषताओं के प्रतिनिधि हों।

उदाहरण के लिए जब हम दाल पकाते हैं तो एक अथवा दो दानों की जाँच करके यह बता देते हैं कि दाल पक गई अथवा नहीं। इस प्रकार एक या दो पके दाल के दोन संपूर्ण पकी दाल के प्रतिनिधि बन जाते हैं। निदर्शन सर्वेक्षण का प्रयोग वर्तमान समय से सभी सामाजिक विज्ञानों में हो रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल सेम्पल सर्वे विकास योजनाओं का अध्ययन निदर्शन सर्वेक्षण द्वारा करता है।

प्रश्न 9.
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की सीमाएँ बताइए।
उत्तर:
एक प्रविधि के रूप में अवलोकन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं –

  • किसी घटना विशेष के बारे में पूर्वानुमान काफी कठिन कार्य है।
  • किसी घटना विशेष की अवधि के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं होती है।।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से एकत्रित सामग्री को परिमाणीकत नहीं किया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि अपेक्षाकृत एक व्ययपूर्ण प्रविधि है।
  • अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ आती है।

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प्रश्न 10.
प्रश्नावली प्रविधि के मुख्य लाभ बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली प्रविधि के प्रमुख लाभ निम्नलिखित है।

  • प्रश्नावली प्रविधि अपेक्षाकृत कम खर्चीली है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा प्रशासकीय समय की भी बचत होती है।
  • प्रश्नावलियाँ एक ही समय में डाक द्वारा सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली प्रविधि की सहायता से एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ एकत्रित की जा सकती हैं।

लुंडबर्ग के अनुसार, “मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अंतर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।”

प्रश्न 11.
प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ तथा प्रकार बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली प्रविधि का अर्थ – प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमब तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए गए प्रश्नों के सूचीक्रम को प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है। साधारणतया, प्रशनावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।

(ii) प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख निम्नलिखित है।

  • स्तरीय प्रश्नावली
  • खुली अथवा अप्रतिबंधित प्रश्नावली
  • बंद अथवा प्रतिबंधित प्रश्नावली
  • चित्रित प्रश्नावली तथा
  • मिश्रित प्रश्नावली

प्रश्न 12.
वैज्ञानिक पद्धति क्या है?
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति उस पद्धति को कहते हैं जिसमें अध्ययनकर्ता निष्पक्ष ढंग से किसी विषय समस्या या घटना का वर्णन करता है। वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों का व्यवस्थित अवलोकन, वर्गीकरण तथा व्याख्या करता है। इतना ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक पद्धति एक सामूहिक शब्द है जो अनेक प्रक्रियाओं को व्यक्त करता है तथा जिनकी सहायता से विज्ञान का निर्माण होता है। वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त किया जाता है। अतः वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ ज्ञान के विशिष्ट संचय से है।

प्रश्न 13.
सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सामाजिक सर्वेक्षण समाजिक अनुसंधान की एक विधि है। सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करता है। कोई भी शोधकर्ता किसी क्षेत्र में जाकर किसी समस्या से संबंधित तथ्यों का संकलन करता है, उसे सामाजिक सर्वेक्षण कहते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताइए।
उत्तर:
वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –

  1. समस्या का निर्धारण – वैज्ञानिक पद्धति के अंतर्गत सर्वप्रथम समस्या का निर्धारण किया जाता है। समस्या से संबंधित सामान्य अवधारणाओं में परिभाषा देनी पड़ती है।
  2. अनुसंधान की रूपरेखा का नियोजन करना – वैज्ञानिक पद्धति के दूसरे चरण के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से आँकड़ों का संकलन, विश्लेषण तथा मूल्यांकन किया जाता है।
  3. क्षेत्र कार्य – आँकड़ों का एकत्रीकरण पूर्व निर्धारित योजना के अंतर्गत किया जाता है।
  4. आँकड़ों का विश्लेषण करना – समाज वैज्ञानिकों द्वारा सावधानीपूर्वक आँकड़ों को संहिताबद्ध किया जाता है। इसके पश्चात् इसका वर्गीकरण तथा सारणीबद्ध करते हैं।
  5. निष्कर्ष निकालना – अनसंधानकर्ता द्वारा आँकड़ों का क्रमबद्ध अंकलन करने के पश्चात् परिणामों का सामान्यीकरण किया जाता है। इस प्रकार, निष्कर्ष निकाल जाते हैं।
  6. निष्कर्षों का पुनः सत्यापन भी किया जाता है।

प्रश्न 2.
वैज्ञानिक अवलोकन की दशाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • वैज्ञानिक अवलोकन में भी अन्य विज्ञानों की भाँति आँकड़े इंद्रिजन्य अवलोकन के माध्यम से एकत्रित किए जाते हैं।
  • अवलोकन जैसा कि हम जाते हैं कि एक प्रविधि है, जो सामाजिक प्रघटना की प्रत्यक्ष जानकारी को संभव बनाती है।
  • अवलोकन प्रविधिं तुलनात्मक रूप से अच्छी जानकारी तथा विश्वसनीयता निश्चित करती है।
  • अवलोकन शब्द का प्रयोग यहाँ तथा दूसरे स्थानों पर उन समस्त स्वरूपों के लिए किया जाता है, जिनके विषय में हमें जानकारी होती है तथा जो हमारी इंद्रियों पर प्रभाव डालते हैं।
  • हमें यह प्रत्युत्तर तथा एक आँकड़े में अंतर करना चाहिए। एक प्रत्युत्तर किया का प्रकटीकरण है। एक आँकड़ा प्रत्युत्तर के अभिलेखन का उत्पाद है।
    (a) विश्वसनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठता।
    (b) विश्सनीयता तथा अंतर-व्यक्तिनिष्ठा को अवलोकन प्रक्रिया के दो तत्वों के साथ कार्य करना पड़ता है जिन्हें बोध तथा अभिलेखन कहते हैं।

गालतुंग ने दो सिद्धान्त दिए हैं –

  • अंतर – व्यक्तिनिष्ठा तथा विश्वसनीयता का सिद्धान्त-एक ही अवलोकनकर्ता द्वारा एक ही प्रत्युत्तर का जब बार-बार अवलोकन किया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।
  • अंतर – वस्तुनिष्ठता का सिद्धान्त-जब एक ही प्रत्युत्तर को विभिन्न अवलोकनकर्ताओं द्वारा बार-बार दोहराया जाता है तो समान आँकड़े प्राप्त होंगे।

उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर वैधता के सिद्धान्त का उल्लेख किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार एक अवलोकन वैध है, जब अवलोकनकर्ता वही अवलोकित रहता है जो वह चाहता है। इस प्रकार वैधता प्रकट तथा प्रच्छन्न संबंधों को स्पष्ट रूप से देखते हैं वैधता के सिद्धान्त के अंतर्गत आँकड़ों को इस प्रकार एकत्रित किया जाता है कि उसके आधार पर उपयुक्त अनुमान प्राप्त किए जा सकें। इन निष्कर्ष द्वारा प्रकट स्तर तथा प्रच्छन्न स्तर के अंतर को स्पष्ट किया जाता है।

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प्रश्न 3.
अवलोकन की परिभाषा दीजिए। इसके लक्षण बताइए।
उत्तर:
(i) अवलोकन की परिभाषा – अवलोकन वस्तुत: वैज्ञानिक पद्धति की मूल प्रविधि है। वैज्ञानिक अवलोकन के माध्यम से ऐसे तथ्यात्मक प्रमाणों को एकत्रित किया जाता है, जिन्हें सत्यापित किया जा सके । वैज्ञानिक अवलोकन के लिए निम्नलिखित चरणों का अनुसरण आवश्यक है –

  • यथार्थता
  • सुस्पष्टता अथवा शुद्धता
  • क्रमबद्धता
  • प्रतिवेदन

मोजर के अनुसार, “अवलोकन को स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक अन्वेषण की शास्त्रीय पद्धति कहा जा सकता है।………….वास्तविक रूप में अवलोकन में कानों तथा वाणी की अपेक्षा आँखों का अधिक प्रयोग होता है। पी० वी० यंग के अनुसार, “अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जिस सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली में उपयोग किया जाता है।”

(ii) अवलोकन के प्रमुख लक्षण : ब्लैक तथा चैपियन ने अवलोकन के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण बताए हैं –

  • मानव व्यवहार का अवलोकन किया जाता है।
  • अवलोकन के जरिए उन महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है जिनसे सहभागियों का सामाजिक व्यवहार प्रभावित होता है।
  • जिस व्यक्ति का अवलोकन किया जाता है उसके विषय में वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
  • सामाजिक जीवन की आधार सामग्री जो नियमित थी बार-बार अवलोकित की जाती है, कि परिभाषित की जा सकती है तथा दूसरे अध्ययनों की तुलना में इसे काम में लाया जा सकता है।
  • अवलोकन प्रविधि के माध्यम से अवलोकनकर्ता पर कुद नियंत्रण रखा जाता है। हालाँकि, जिन व्यक्तियों तथा वस्तुओं का अध्ययन किया जाता है, उन पर अवलोकन प्रविधि कोई नियंत्रण नहीं रखती है।
  • अवलोकन पद्धति उपकल्पनाओं से मुक्त अन्वेषण पर केन्द्रित होती है।
  • अवलोकन प्रविधि स्वतंत्र चर के साथ किसी भी प्रकार के फेर-बदल से बचती है।
  • भिलेखन चयनित नहीं होता है।

प्रश्न 4.
सहभागी अवलोकन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
सहभागी अवलोकन का अर्थ – सहभागी अवलोकन के अंतर्गत अवलोकनकर्ता के अध्ययन की स्थिति में स्वयं भाग लिया जाता है। सहभागी अवलोकन में अवलोकनकर्ता के द्वारा भूमिका का संपादन स्वयं किया जाता है।

सहभागी अवलोकन तीन प्रकार का होता है –

  • सहभागी अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन का यह स्वरूप छिपा हुआ नहीं होता है। अवलोकनर्ता की भूमिका संपादन न होकर केवल अवलोकर्ता ही होता है।
  • अवलोकनकर्ता सहभागी के रूप में – अवलोकनकर्ता संबंधित व्यक्ति से मिलकर कुछ प्रश्न पूछता है । इसके साथ-साथ वह परिस्थिति का अवलोकन भी करता है। इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता अवलोकन करता है तथा वह उत्तरदाता का सहभागी बन जाता है।
  • अवलोकनकर्ता एक अवलोकनकर्ता के रूप में – अवलोकन की इस प्रविधि के अंतर्गत अवलोकनकर्ता परिस्थिति का अवलोकन करता है, लेकिन जिन व्यक्तियों का वह अवलोकन करता है उन्हें इस विषय में कोई जानकारी नहीं होती है।

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प्रश्न 5.
प्रश्नावली की संचार और वैधता की समस्या का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली के संचार की समस्या –

  • यद्यपि प्रश्नावली की विषयवस्तु अध्ययन के उद्देश्या से नियंत्रित होती है तथापि सर्वेक्षण में संचार की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • प्रश्नों की भाषा स्पष्ट, संक्षिप्त तथा सरल होना चाहिए जिससे उत्तरदाताओं को उन्हें समझने में आसानी हो।

(ii) प्रश्नावली की वैधता की समस्या –

  • प्रश्नों की संरचना इस प्रकार की जानी चाहिए जिससे अनुसंधानकर्ता को इच्छित सूचना मिल जाए।
  • प्रश्नों के उत्तर के विषय में वास्तविक समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब उत्तरदाता सही तथ्यों की जानकारी देता है लेकिन अनुसंधानकर्ता उन उत्तरों की विश्वसनीयता तथा तथ्यात्मकता के विषय में आश्वस्त नहीं हो पाता है।
  • वैधता की समस्या उस समय उतपन्न हो जाती है तब उत्तरदाता का कथन तकनीकी रूप से सत्य होता है, लेकिन वास्तव में यह कथन असत्य होता है।
  • उत्तरदाताओं के उत्तरों की वैधता के सत्यापन हेतु वैकल्पिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

प्रश्न 6.
पद्धति तथा प्रविधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पद्धति तथा प्रविधि में निम्नलिखित अन्तर हैपद्धति प्रविधि –
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प्रश्न 7.
एक पद्धति के रूप में सहभागी प्रेक्षण की क्या-क्या खूबियाँ और कमियाँ हैं?
उत्तर:
खूबियाँ –

  • यह छिपा हुआ प्रेक्षण नहीं होता है।
  • अनुसंधानकर्ता समुदाय में अवलोकनकर्ता के रूप में प्रवेश करता है।
  • सीधे व्यक्ति से संपर्क होता है।
  • उत्तरदाता भी सहभागी बन जाता है।

कमियाँ –

  • इससे प्राप्त निष्कर्षों का सामान्यीकरण नहीं हो सकता।
  • यह अधिक समय लेने वाली खर्चीली पद्धति है।
  • निष्कर्षों में वास्तुनिष्ठता की कमी आ जाती है।

प्रश्न 8.
सर्वेक्षण और वैयक्तिक अध्ययन में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
सर्वेक्षण तथा वैयक्तिक अध्ययन में निम्नलिखित अंतर हैं –
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प्रश्न 9.
सामाजिक अनुसंधान क्या है?
उत्तर:
अनुसंधान का अर्थ है अन्वेषण या शोध या खोज से हैं। जब कोई भी अनुसंधान सामाजिक जीवन सामाजिक घटनाओं अथवा सामाजिक जटिलताओं से संबद्ध होता है तब उसे सामाजिक अनुसंधान कहा जाता है । सामाजिक अनुसंधान में सर्वप्रथम किसी व्यवहार समस्या या घटना से संबंधित मूल-भूत तथ्यों का अवलोकन किया जाता है ताकि उसकी सामान्य प्रकृति को भली-भाँति समझा जा सके।

सामाजिक अनुसंधान में यर्थाथताओं की वैज्ञानिक विधि द्वारा खोज पर विशेष बल दिया जाता है। सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य तार्किक एवं क्रमांक पद्धतियों के द्वारा नवीन तथ्यों की खोज अथवा पुराने तथ्यों की परीक्षा और सत्यापन, उनके क्रमों, पारस्परिक संबंधों, कार्य-कारण की व्याख्या एवं उन्हें संचालित करनेवाले स्वभाविक नियमों का विश्लेषण करना है।

प्रश्न 10.
अवलोकन की सीमाएँ या कमियाँ बताइए।
उत्तर:
अवलोकन की कमियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. मानव व्यवहार का अवलोकन करते समय अवलोकनकर्ता की प्राथमिकताओं तथा पक्षपातों के कारण अवलोकन में वस्तुनिष्ठता की कमी आ सकती है। इस प्रकार के निष्कर्ष वैज्ञानिक अवलोकन की श्रेणी में रखे जा सकते हैं।
  2. कोई सामाजिक प्रघटना कितनी अवधि तक घटेगी, इसका पूर्वानुमान करने में व्यवहारिक कठिनाइयाँ आती हैं।
  3. अवलोकनकर्ता के मूल्यों, आदर्शों, अभिरुचियों तथा पूर्व निर्धारित दृष्टिकोणों तथा विश्वासों का प्रभाव अवलोकन की प्रक्रिया पर पड़ सकता है।
  4. अवलोकन की प्रविधि में विश्वसनीयता तथा वैधता की समस्याएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं।
  5. अवलोकनकर्ता का प्रशिक्षित होना आवश्यक हैं, लेकिन प्रायः प्रशिक्षित अवलोकनकर्ता भी निरपेक्षा रूप से अवलोकन प्रविधि का प्रयोग नहीं कर पाते हैं।’
  6. कभी-कभी अवलोकनकर्ता द्वारा दिए गए निष्कर्षों का पुनः सत्यापन करने पर निष्कर्षों में विभिन्नता आ जाती है।
  7. अवलोकन प्रविधि द्वारा प्राप्त निष्कर्षों में वस्तुनिष्ठता तथा निश्चितता का अभाव हो सकता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
प्रश्नावली और साक्षात्कार अनुसूची को परिभाषित करते हुए उनमें अंतर बताइए।
उत्तर:
(i) प्रश्नावली की परिभाषा – प्रश्नावली का प्रयोग किसी विशेष स्थिति अथवा समस्या के बारे में महत्वपूर्ण आधार सामग्री प्राप्त करने के लिए किया जाता है। जे0 डी0 पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” सूचनादाता को बिना एक अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है लेकिन इसे व्यक्तियों में बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकार भेजी जाती है।

(ii) साक्षात्कार अनुसूची की परिभाषा – संरचित प्रश्नों या समूह जिनके उत्तर स्वयं साक्षात्कारकर्ता द्वारा अभिलेखित किए जाते हैं, साक्षात्कार अनूसूची कहलाती है।
प्रश्नावली तथा साक्षात्कार सूची में अंतर –
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प्रश्न 2.
सर्वेक्षण पद्धति की कुछ कमजोरियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अन्य अनुसंधान पद्धतियों की तरह से सर्वेक्षणों की भी अपनी कमजोरियाँ होती हैं। यद्यपि इसमें व्यापक विस्तार की संभावना होती है तथा यह विस्तार की गहनता के आधार पर प्राप्त किया जाता है। सामान्यतया एक बड़े सर्वेक्षण के भाग के रूप में उत्तरदाताओं से गहन सूचना प्राप्त करना संभव नहीं होता। उत्तरदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति पर व्यय किया जाने वाला समय सीमित होता है। साथ ही अन्वेषकों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या द्वारा सर्वेक्षण प्रश्नावलियाँ उत्तरदाता को उपलब्ध कराई जाती हैं। इससे यह सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है कि जटिल प्रश्नों या जिन प्रश्नों के लिए विस्तृत सूचना चाहिए, उन्हें उत्तरदाताओं से ठीक एक ही तरीके से पूछा जाएगा।

प्रश्न पूछने या उत्तर रिकार्ड करने के तरीके में अन्तरहोने पर सर्वेक्षण में त्रुटियाँ आ सकती हैं। यही कारण है कि किसी भी सर्वेक्षण के लिए प्रश्नावली (कभी-कभी इन्हें सर्वेक्षण का उपकरण भी कहा जाता है) की रूपरेखा सावधानीपूर्वक तैयार करनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग अनुसंधानकर्ता के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों द्वारा किया जायेगा, अतः इसके प्रयोग के दौरान इसमें त्रुटि को दूर करने या संशोधित करने की थोड़ी-बहुत संभावना रहती है। अन्वेषक तथा उत्तरदाता के बीच किसी प्रकार के दीर्घकालिक संबंध नहीं होते अतः कोई आपसी पहचान या विश्वास नहीं होता। किसी भी सर्वेक्षण में पूछे गए प्रश्न ऐसे होने चाहिए जो कि अजनवियों के मध्य पूछे जा सकते हों तथा उनका उत्तर दिया जा सकता हो।

कोई भी निजी या संवेदनशील प्रश्न पूछा जा सकता या अगर पूछा भी जाता है तो इसका उत्तर सच्चाईपूर्वक देने के स्थान पर ‘सावधानीपूर्वक’ दिया जाता है। इस प्रकार की समस्याओं को कभी-कभी ‘गैर-प्रतिदर्शा त्रुटियाँ’ कहा जाता है अर्थात् ऐसी त्रुटियाँ जो प्रतिदर्श की प्रक्रिया के कारण न हों अपितु अनुसंधान रूपरेखा में कभी या त्रुटि के कारण हों। दुर्भाग्यवश इनमें से कुछ त्रुटियों का पता लगाना तथा इनसे बचना कठिन होता है । इस कारण से सर्वेक्षण में गलती होना तथा जनसंख्या की विशेषताओं के बारे में भ्रामक या गलत अनुमान लगाना संभव होता है।

अंत में, किसी भी सर्वेक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण सीमा यह है कि इसे सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए इन्हें कठोर संरचित प्रश्नावली पर आधारित होना पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्रश्नावली की. रूपरेखा चाहे कितनी भी अच्छी क्यों न हो, इसकी सफलता अंत में अन्वेषकों तथा उत्तरदाताओं की अंतःक्रिया की प्रकृति पर और विशेष रूप से उत्तरदाता की सद्भावना तथा सहयोग पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 3.
वस्तुनिष्ठता परिणाम को प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को किस प्रकार की कठिनाइयों और प्रयत्नों से गुजरना पड़ता है।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के बारे में वस्तुनिष्ठ होने के लिए अथवा वास्तविक परिणाम को प्राप्त करने के लिए हमें वस्तु के अपनी भावनाओं या प्रवृत्तियों को अनदेखा करना चाहिए। दूसरी तरफ ‘व्यक्तिपरकता’ से छुटकारा पाना होगा। व्यक्तिपरकता से आशय है कुछ ऐसा जो व्यक्तिगत मूल्यों तथा मान्यताओं पर आधारित हो । सभी विज्ञानों से वस्तुनिष्ठ होने व केवल तथ्यों पर आधारित पूर्वाग्रह रहित ज्ञान उपलब्ध कराने की आशा की जाती है, परन्तु प्राकृतिक विद्वानों की तुलना में समाज विज्ञान में ऐसा करना बहुत कठिन है।

जब कोई भू-वैज्ञानिक चट्टानों का अध्ययन करता है या वनस्पतिशास्त्री पौधों का अध्ययन करता है तो वे सावधान रहते हैं कि उनके व्यक्तिगत पूर्वाग्रह या मान्यताएँ उनके काम को प्रभावित न कर पाएँ । उन्हें सही तथ्यों को ही प्रस्तुत करना चाहिए। उदाहरण के लिए, उन्हें अपने अनुसंधान कार्य के परिणामों पर किसी विशेष वैज्ञानिक सिद्धान्त या सिद्धांतवादी के प्रति अपनी पसंद का प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए। हालांकि भू-वैज्ञानिक तथा वनस्पतिशास्त्री स्वयं उस संसार का हिस्सा नहीं होते जिनका वे अध्ययन करते हैं, चट्टानों या पौधों की प्राकृतिक दुनिया इसे विपरीत समाज वैज्ञानिक जिस संसार में रहते हैं, उसका ही अध्ययन करते हैं जो मानव संबंधों की सामाजिक दुनिया है। इससे समाजशास्त्र जैसे सामाजिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता की विशेष समस्या उत्पन्न होती है।

सर्वप्रथम पर्वाग्रह की स्पष्ट समस्या है कि क्योंकि समाजशास्त्री भी समाज के सदस्य हैं. उनकी भी लोगों की तरह से सामान्य पसंद तथा नापसंद होती है। पारिवारिक संबंधों का अध्ययन करने वाला समाजशास्त्री भी स्वयं किसी परिवार का सदस्य होगा और उसके अनुभव का इस पर प्रभाव हो सकता है। यहाँ तक कि समाजशास्त्री को अपने अध्ययनशील समूह के साथ कोई प्रत्यक्ष या व्यक्तिगत अनुभव न होने पर भी उसके अपने सामाजिक संदर्भो के मूल्यों तथा पूर्वाग्रहों का प्रभाव होने का संभावना रहती है। उदाहरणार्थ अपने से अलग किसी जाति या धार्मिक समुदाय का अध्ययन करते समय समाजशास्त्री उस समुदाय की कुछ प्रवृतियों से प्रभावित हो सकता है जो कि उसे अतीत या वर्तमान के सामाजिक वातावरण में प्रचलित हैं।

समाजशास्त्री इनसे किस प्रकार बचते हैं ? –
इसकी प्रथम पद्धति अनुसंधान के विषय के बारे में अपनी भावनाओं तथा विचारों की कठोरता से लगातार जाँचना है। अधिकांशतः समाजशास्त्री अपने कार्य के लिए किसी बाहरी व्यक्ति के दृष्टिकोण को ग्रहण करने का प्रयास करते हैं। वे अपने आपको तथा अपने अनुसंधान कार्य को दूसरे की आँखों से देखने का प्रयास करते हैं। इस तकनीक को ‘स्ववाचक’ या कभी-कभी ‘आत्मवाचक’ कहते हैं। समाजशास्त्री निरंतर अपनी प्रवृत्तियों तथा मतों की स्वयं जाँच करते रहते हैं। वह अन्य व्यक्तियों के मतों को सावधानीपूर्वक अपनाते रहते हैं, विशेष रूप से उनके बारे में जो उनके अनुसंधान का विषय होते हैं।

आत्मवाचक का एक व्यावहारिक पक्ष है किसी व्यक्ति द्वारा किए जा रहे कार्य का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करना। अनुसंधान पद्धतियों में श्रेष्ठता के दावे का एक हिस्सा सभी विधियों के दस्तावेजीकरण तथा साक्ष्य के सभी स्रोतों के औपचारिक संदर्भ में निहित है जो यह सुनिश्चित करता है कि हमारे द्वारा किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने हेतु किए गए उपायों को अन्य अपना सकते हैं तथा वे स्वयं देख सकते हैं, हम सही हैं या नहीं। इससे हमें अपनी सोच या तर्क की दिशा को परखने या पुनः परखने में भी सहायता मिलती है। तथापि समाजशास्त्री आत्मवाचक होने का कितना भी प्रयास करें, अवचेतन पूर्वाग्रह की संभावना सदा रहती है। इस संभावना से निपटने के लिए समाजशास्त्री अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के उन लक्षणों को स्पष्ट रूप से उल्लिखित करते हैं जो कि अनुसंधान के विषय पर संभावित पूर्वाग्रह के स्रोत के रूप में प्रासांगिक हो सकते हैं। यह पाठकों के पूर्वाग्रह की संभावना से सचेत करता है तथा अनसंधान अध्ययन को पढते समय यह उन्हें मानसिक रूप से इसकी ‘क्षतिपूर्ति करने के लिए तैयार करता है।

समाजशास्र में वस्तुनिष्ठता के साथ एक अन्य स्थिति यह है कि सामाजिक विश्व में ‘सत्य’ के अनेक रूप होते हैं। वस्तुएँ विभिन्न लाभ के बिन्दुओं से अलग-अलग दिखाई देती हैं तथा इसी कारण से सामाजिक विश्व में सच्चाई के अनेक प्रतिस्पर्धी रूप या व्याख्याएँ शामिल हैं। उदाहणार्थ, ‘सही’ कीमत के बारे में एक दुकानदार तथा एक ग्राहक के अलग-अलग विचार हो सकते हैं, एक युवा व्यक्ति के लिए ‘अच्छे भोजन’ या इसी तरह से अन्य विषयों के बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं।

कोई भी ऐसा सरल तरीका नहीं है जिससे किसी विशेष व्याख्या के अन्य या सही हो के बारे में निर्णय लिया जा सके एवं प्राय: इन शर्तों के तहत सोचना भी लाभप्रद नहीं होता । वास्तव में समाजशास्र इस तरीके से जाँचने का प्रयास भी नहीं करता क्योंकि इसकी वास्तविक रुचि इसमें होती है कि लोग क्या सोचते हैं तथा वे जो सोचते हैं वैसा क्यों सोचते हैं।

एक अन्य कठिनाई स्वयं समाज विज्ञान में उपस्थित बहुविध मतों से उत्पन्न होती है। समाज विज्ञान की तरह समाजशास्त्र भी एक ‘बहु-निर्देशात्मक’ विज्ञान है इसका अर्थ है कि इस विषय में प्रतिस्पर्धी तथा परस्पर विरोधी विचारों वाले विद्यमान हैं। इन सबसे समाजशास्त्र में वस्तुनिष्ठ एक बहुत कठिन तथा जटिल वस्तु बन जाती है। वास्तव में, वस्तुनिष्ठता की प्राचीन धारणा को व्यापक तौर पर एक प्राचीन दृष्टिकोण माना जाता है। समाज वैज्ञानिक अब विश्वास नहीं करते कि ‘वस्तुनिष्ठता एवं अरुचि’ की पारंपरिक धारणा, समाज विज्ञान में प्राप्त की जा सकती है।

वास्तव में ऐसे आदर्श भ्रामक हो सकते हैं। इसका यह आशय नहीं है कि समाजशास्त्र के माध्यम से कोई लाभप्रद ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता या वास्तविक एक व्यर्थ धारणा है। इसका तात्पर्य है कि वस्तुनिष्ठता को पहले से प्राप्त अंतिम परिणाम के स्थान पर लक्ष्य प्राप्ति हेतु निरंतर चलती रहने वाले प्रक्रिया के रूप में लिया न जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
सर्वेक्षण पद्धति के आधारभूत तत्त्व क्या हैं ? इस पद्धति का प्रमुख लाभ क्या है?
उत्तर:
सर्वेक्षण पद्धति का प्रयोग सामाजिक विज्ञान में गणनात्मक अध्ययन के लिए किया जाता है। अध्यनकर्ता के द्वारा अध्ययन की समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से प्रश्न पूछे जाते हैं। सर्वेक्षण पद्धति के निम्नलिखित चार आधारभूत तत्व हैं –

  • सर्वेक्षण का नियोजन
  • आँकड़ों का एकत्रीकरण
  • आँकड़ों का विश्लेषण तथा विवेचन
  • आँकड़ों का प्रस्तुतिकरण

सर्वेक्षण पद्धति के लाभ –

  • सामान्यतः सर्वेक्षण का अध्ययन क्षेत्र विशाल होता है।
  • सर्वेक्षण की अवधि कम होती है।
  • सर्वेक्षण प्रविधियाँ विशाल होती हैं।
  • सर्वेक्षण में सामाजिक प्रघटना को विस्तृत आकार में देखा जाता है।
  • सर्वेक्षण में अन्वेषक अपनी समस्या के अनुसार व्यक्तियों से सुनियोजित तथा क्रमबद्ध प्रश्न पूछता है तथा उनका अभिलेख करता है।
  • सर्वेक्षण से प्राप्त आँकड़ों तथा निष्कर्षों का सामान्यीकरण हो सकता है।
  • सर्वेक्षण प्रणाली में निदर्शन सर्वेक्षण अथवा प्रतिदर्श संभव है।

प्रश्न 5.
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन के कुछ आधार बताएँ।
उत्तर:
प्रतिदर्श प्रतिनिधित्व चयन की प्रक्रिया दो मुख्य सिद्धान्तों पर आधारित है –
पहला सिद्धान्त यह है कि जनसंख्या में सभी महत्वपूर्ण उपसमूहों को पहचाना जाए और प्रतिदर्श में उन्हें प्रतिनिधित्व दिया जाए। अधिकतर बड़ी जनसंख्याएँ एक समान नहीं होती, उनमें भी स्पष्ट उप-श्रेणियाँ होती हैं। इसे समाजीकरण कहा जाता है। उदाहरणार्थ जब भारत की जनसंख्या के बारे में बात करते हैं तो हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बँटी हुई है जो कि एक-दूसरे से काफी हद तक अलग है। कभी भी एक राज्य की ग्रामीण जनसंख्या पर विचार करते समय हमें ध्यान रखना होगा कि यह जनसंख्या विभिन्न आकार वाले गाँवों में रहती है।

इसी तरह से किसी एक गाँव की जनसंख्या भी वर्ग, जाति लिंग, आयु, धर्म या अन्य मापदंडों के आधार पर स्तरीकृत हो सकती है। सारांश में स्तरीकरण की संकल्पना हमें बताती है कि प्रतिदर्श का प्रतिनिधित्व दी गई जनसंख्या के सभी संबद्ध स्तरों की विशेषताओं को दर्शाने की सक्षमता पर निर्भर है। किस प्रकार के प्रतिदर्शों को प्रासंगिक माना जाए यह अनुसंधान के अध्ययन के विशिष्ट उद्देश्यों पर निर्भर है। उदाहरणार्थ धर्म के प्रति प्रवृत्तियों के बारे में अध्ययन करते समय यह महत्वपूर्ण हो सकता है कि सभी धर्मों के सदस्यों . को शामिल किया जाए। मजदूर संसाधनों के प्रति प्रवृत्तियों पर अनुसंधान करते समय कामगारों, प्रबंधकों तथा उद्योगपतियों एवं अन्य को शामिल करना चाहिए।

प्रतिदर्श चयन का दूसरा सिद्धांत है वास्तविक इकाई अर्थात् व्यक्ति या गाँव या घर का चयन पूर्णतया अवसर आधारित होना चाहिए। इसे यादृच्छीकरण कहा जाता है जोकि स्वयं संभावित की संकल्पना पर आधारित है। आपने अपने पाठ्यक्रम में संभावित के बारे में पढ़ा होगा। संभावित का आशय घटना के घटित होने के अवसरों तथा विषमताओं से है। उदाहरण के लिए, जब हम सिक्का उछालते हैं तो यह चित की ओर पड़ता है या फिर पट की ओर । सामान्य सिक्कों में चित या पट आने का अवसर या संभावित लगभग एक समान अर्थात् प्रत्येक की 50 प्रतिशत दिखाई देती है। वास्तव में जब आप सिक्का उछालते हैं दोनों में से कौन-सी घटना होनी है अर्थात् चित्त आता है या पट, यह पूरी तरह से अवसर पर निर्भर करता है। इस प्रकार की घटनाओं को यादृच्छिक घटनाएँ कहा जाता है।

हम एक प्रतिदर्श को चुनने में समान आँकड़े का उपयोग करते हैं। हम सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं कि प्रतिदर्श में चयन किए गए व्यक्ति या घर या गाँव पूर्णतः अवसर द्वारा चयनित हों, किसी अन्य तरह से नहीं। अतः प्रतिदर्श में चयन होना किस्मत की बात है, जैसे कि लॉटरी जीतना। यह तभी हो सकता है जब यह सच हो कि प्रतिदर्श एक प्रतिनिधित्व प्रतिदर्श होगा। यदि कोई सर्वेक्षण दल अपने में केवल उन्हीं गाँवों का चयन करता है जो मुख्य सड़क के निकट हों तो यह प्रतिदर्श यादृच्छिक या संयोगवश न होकर पूर्वाग्रहित होंगे। इसी तरह से यदि हम अधिकतर के मध्यवर्ग के परिवारों को या अपने जानकर परिवरों का चयन करते हैं तो प्रतिदर्श पुनः पूर्वाग्रहित होंगे।

यह बात है कि जनसंख्या से संबंधित स्तरों का पता लगाने के बाद प्रतिदर्श घरों या उत्तरदाताओं का वास्तविक चयन पूर्णतया संयोग के आधार पर होना चाहिए । इसे विभिन्न तरीकों से सुनिश्चित किया जा सकता है। इसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इनमें सामान्य रूप से (लॉटरी) निकालना, पांसे फेंकना, इस उद्देश्यों हेतु विशेष रूप से बनाई गई प्रतिदर्श नंबर प्लेटों का प्रयोग आदि।

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प्रश्न 6.
प्रश्नावली से आप क्या समझते हैं ? एक प्रश्नावली की विशेषताएँ, प्रकार, गुण तथा दोष बताइए।
उत्तर:
प्रश्नावली का अर्थ तथा परिभाषा-प्रश्नावली प्रविधि के अंतर्गत क्रमबद्ध तरीके से प्रश्न पूछे जाते हैं तथा आवश्यक आँकड़े एकत्रित किए जाते हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध तरीके से तैयार किए जा सकते हैं।” इसे साधारणतया, प्रश्नावली अथवा साक्षात्कार तालिका कहते हैं। जे० डी० पोप के अनुसार, “एक प्रश्नावली को प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।” साधारणतया, प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है।

प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है। लुंडबर्ग के अनुसार, “मूलरूप में, प्रश्नावली प्रेरणाओं का एक समूह है जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा वे इन उत्तेतनाओं के अंतर्गत अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि की विशेषताएँ –

  • प्रश्नावली प्रविधि के द्वारा विशाल क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों से जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
  • किसी स्थिति विशेष अथवा समस्या के विषय में प्रश्नावली विधि के माध्यम से महत्वपूर्ण आधारभूत सामग्री प्राप्त की जा सकती है।
  • सूचनादाता अनुसंधानकर्ता के समक्ष आए बिना प्रश्नों का उत्तर देता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में वैज्ञानिक अन्वेषण की अन्य पद्धति की अपेक्षा कम खर्च होती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से जटिल प्रश्नों तथा समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्नावली के प्रकार : प्रश्नावली के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है –

  • स्तरीयय प्रश्नावली,
  • खुली प्रश्नावली तथा
  • बंद प्रश्नावली

1. स्तरीय प्रश्नावली –

  • स्तरीय प्रश्नावली के अंतर्गत निश्चित, ठोस तथा पूर्व-विचारित प्रश्न होते हैं।
  • पेक्षाकृत जटिल प्रश्नों के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु कुछ अतिरिक्त प्रश्न भी होते हैं।
  • सभी उत्तरदाताओं को समान क्रम में संगठित प्रश्न दिए जाते हैं।
  • स्तरीय प्रश्नावली के उत्तरों की तुलना सुगमतापूर्वक की जा सकती है।
  • स्तरीय प्रश्नावली का प्रयोग आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, प्रशासनिक आदि विषयों तथा घटनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

2. खुली प्रश्नावली –

  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत वैकल्पिक उत्तर नहीं होते हैं।
  • खुली प्रश्नावली में प्रश्नों को इस प्रकार संचित किया जाता है, जिससे उत्तरदाता प्रश्नों का उत्तर खुले रूप से दे सकें।
  • खुली प्रश्नावली के अंतर्गत विषयों को उठाया जाता है, लेकिन सूचनादाता के लिए वैकल्पिक उत्तरों का प्रावधान नहीं होता है।
  • खुली प्रश्नावली की प्रकृति नमनीय होती है, जिसके कारण अनुसंधानकर्ता को पर्याप्त सूचना मिल जाती है।
  • खुली प्रश्नावली के उत्तर अनुसंधान के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं।

3. बंद प्रश्नावली –

  • बंद प्रश्नावली में उत्तर सीमाबद्ध होते हैं।
  • बंद प्रश्नावली में एक प्रश्न के कई वैकल्पिक उत्तर भी दिए जाते हैं।
  • अनेक बार प्रश्न के बार ही संभावित उत्तरों का उल्लेख कर दिया जाता है।
  • आमतौर पर तीन वैकल्पिक उत्तर दिए जाते हैं।
  • बंद प्रश्नावली के निष्कर्ष भ्रमरहित, स्पष्ट तथा तुलनात्मक होते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के गुण –

  • प्रश्नावली प्रविधि द्वारा कम समय में एक विस्तृत क्षेत्र से सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में खर्चा कम आता है।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती हैं।
  • प्रश्नावली एक ही समय में डाक द्वारा सभी सूचनादाताओं के पास भेजी जा सकती है।
  • प्रश्नावली में दिए गए प्रश्नों का उत्तर सूचनदाता बिना किसी दबाव के देते हैं।

प्रश्नावली प्रविधि के दोष –

  • प्रश्नावली प्रविधि में व्यक्ति के दृष्टिकोण का कोई अधिक महत्व नहीं होता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि में भौतिक अभिव्यक्ति को कोई महत्व प्रदान नहीं किया जाता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि के माध्यम से प्राप्त निष्कर्षों में विश्वासनीयता तथा सत्यता का अभाव पाया जाता है।
  • सूचनादाता प्रश्नों का उत्तर देते समय तथ्यों को दिखा सकता है।
  • प्रश्नावली प्रविधि अशिक्षित लोगों के लिए उपयागी नहीं होती है।

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प्रश्न 7.
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण को प्रायः एक ही मान लिया जाता है। क्योंकि सामाजिक सर्वेक्षण, सामाजिक अनुसंधान की ही एक विधि है फिर भी दोनों में प्रर्याप्त अंतर है। यद्यपि दोनों ही विज्ञान सामाजिक घटनाओं का ही अध्ययन करता है। दोनों में नवीन तथ्यों की खोज करने का प्रयत्न किया जाता है। इतना ही नहीं बल्कि सामाजिक व्यवहार और उसाकी यर्थाथता को जानने का प्रयत्न किया जाता है ताकि सामाजिक जीवन पर अधिक नियंत्रण पाया जा सके तथापि सामाजिक अनुसंधान एवं सामाजिक सर्वेक्षण में अन्तर पाया जाता है, जो निम्न है –

  • सामाजिक सर्वेक्षण में सामाजिक तथ्यों और घटनाओं का अध्ययन करने में उपकल्पना की आवश्यकता नहीं पड़ती। जबकि सामाजिक अनुसंधान का प्रारंभ ही किसी उपकल्पना का परीक्षण करने हेतु किया जाता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध किसी एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र अथवा एक समुदाय में निवास करने वाले लोगें से होता है जबकि सामाजिक अनुसंधान का संबंध अमूर्त समस्याओं से होता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार एवं समाज कल्याण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान का उद्देश्य इससे अधिक महत्त्वपूर्ण है।
  • सामाजिक अनुसंधान का संबंध प्रत्येक प्रकार की सामाजिक घटना संबंधों एवं व्यवहारों से है जबकि सामाजिक सर्वेक्षण सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करता है।
  • सामाजिक सर्वेक्षण का संबंध तात्कालिक समस्याओं, आवश्यकताओं के नियंत्रण से है जबकि सामाजिक अनुसंधान सामाजिक समस्याओं के शीघ्र निवारण से संबंध नहीं रखता है।

प्रश्न 8.
अनुसंधान पद्धति के रूप में साक्षात्कार के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर:
साक्षात्कार-एक साक्षात्कार मूलत: अनुसंधानकर्ता तथा उत्तरदाता के बीच निर्देशित बातचीत होती है, हालांकि इसके साथ कुछ तकनीकी पक्ष जुड़े होते हैं। प्रारूप की सरलता भ्रामक हो सकती है क्योंकि एक अच्छा साक्षात्कारकर्ता बनने के लिए व्यापक अनुभव तथा कौशल होना जरूरी है। साक्षात्कार. सर्वेक्षण में प्रयोग की गई संरचित प्रश्नावली तथा सहभागी अवलोकन पद्धति की तरह पूर्णरूप से खुली अंत:क्रियाओं के बीच स्थान रखते हैं।

इसका सबसे बड़ा लाभ प्रारूप का अत्यधिक लचीलापन है । प्रश्नों को पुनः निर्मित किया जा सकता है या अलग ढंग से बताया जा सकता है; बातचीत में हुई प्रगति (या प्रगति कम होने पर) के अनुसार विषयों या प्रश्नों का क्रम बदला जा सकता है; जिन विषयों पर अच्छी सामग्री मिल रही हो, उन्हें विस्तारित किया जा सकता है या किसी अन्य अवसर पर बाद में जानने हेतु स्थगित किया जा सकता है और यह . सब स्वयं साक्षात्कार के दौरान किया जा सकता है। । दूसरी तरफ साक्षात्कार विधि के रूप में साक्षात्कार से संबंधित लाभों के साथ अनेक हानियाँ भी हैं।

इसका यह लचीलापन उत्तरदाता की मनोदशा बदल जाने के कारण या फिर साक्षात्कार करने वाले की एकाग्रता में त्रुटि होने के कारण साक्षात्कार को कमजोर बना देता है । इस प्रकार यह एक अविश्वसनीय तथा अस्थिर प्रारूप है जो जब कार्य करता है तो बहुत अच्छा करता है तथा जब असफल होता है तो बहुत बुरी तरह से होता है। साक्षात्कार लेने की अनेक शैलियाँ हैं तथा इससे संबंधित विचार तथा अनुभव लाभों के अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ व्यक्ति अत्यंत असंगठित प्रारूप को प्राथमिकता देते हैं जिसमें वास्तविक प्रश्नों के स्थान पर विषय की जाँच सूची ही होती है। अन्य व्यक्ति इसके संगठित रूप से वरीयता देते हैं जिसमें सभी उत्तरदाताओं से विशेष प्रश्न पूछे जाते हैं। परिस्थितियों तथा वरीयताओं के अनुसार साक्षात्कार को रिकार्ड करने के तरीके भी अलग-अलग हैं जिनमें वास्तविक विडियो या ऑडियो रिकार्ड करना, साक्षात्कार के दौरान विस्तृत नोट तैयार करना या स्मरण शक्ति पर निर्भर करना और साक्षात्कार समाप्त होने पर इसे लिखना शामिल है।

रिकार्ड करने वाले या इसी प्रकार के अन्य उपकरणों का बार-बार प्रयोग करने से उत्तरदाता असमान्य महसूस करता है तथा इससे बातचीत में काफी हद तक औपचारिकता आ जाती है। दूसरी तरफ जब रिकार्ड करने की अन्य कम व्यापक विधियों का प्रयोग किया जाता है तो कभी-कभी महत्त्वपूर्ण सूचना छूट जाती है या रिकार्ड नहीं हो पाती है। कभी-कभी साक्षात्कार के समय भौतिक या सामाजिक परिस्थितियाँ भी रिकार्ड के माध्यम को निर्धारित करती हैं। बाद में प्रकाशन के लिए साक्षात्कार को लिखने या अनुसंधान रिपोर्ट के हिस्से के रूप में लिखने का तरीका भी भिन्न हो सकता है। कुछ अनुसंधानकर्ता प्रतिलिपि को संपादित करना तथा इसे ‘स्पष्ट’ नियमित वर्णनात्मक रूप से प्रस्तुत करना पसंद करते हैं; जबकि दूसरे मूल वार्तालाप को यथासंभव वैसा ही बनाए रखना चाहते हैं तथा इसके लिए वे हरसंभव प्रयास करते हैं।

साक्षात्कार को प्रायः अन्य पद्धतियों के साथ अनुरूप के रूप में विशेषता सहभागी अवलोकन तथा सर्वेक्षणों के साथ प्रयुक्त किया जाता है। ‘महत्वपूर्ण सूचनादाता’ (सहभागिता अवलोकन अध्ययन का मुख्य सूचनादाता) के साथ लंबी बातचीत से प्रायः संकेन्द्रित जानकारी प्राप्त हाती है जो साथ में लगाई गई सामग्री प्रदान करती है, स्पष्ट करती है तथा इसी तरह से गहन साक्षात्कारो द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्षों को गहनता तथा व्यापकता प्राप्त होती है। हालांकि एक पद्धति के रूप में साक्षात्कार व्यक्तिगत पहुँच पर और उत्तरदाता तथा अनुसंधानकर्ता के आपसी संबंधों या आपसी विश्वास पर निर्भर होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
“मूल रूप से, प्रश्नावली प्रेरणओं का एक समूह है, जिसके प्रति शिक्षित व्यक्ति उत्तेजित किए जाते हैं तथा इन उत्तेजनाओं के अन्तर्गत वे अपने व्यवहार का वर्णन करते हैं।” यह कथन है …………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(ब) लुंडबर्ग

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प्रश्न 2.
“अवलोकन नेत्रों द्वारा एक विचारपूर्वक अध्ययन है-जैसे सामूहिक व्यवहार तथा जटिल सामाजिक संस्थाओं तथा साथ ही साथ संपूर्णता वाली पृथक् इकाइयों के अन्वेक्षण हेतु प्रणाली के रूप में उपयोग किया जाता है।” यह कथन है ……………………
(अ) मेजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(द) पी० वी० यंग

प्रश्न 3.
“एक प्रश्नावली के प्रश्नों के समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। सूचनादाता को बिना अनुसंधानकर्ता या प्रगणक की व्यक्तिगत सहायता के उत्तर देना होता है।साधारणतया प्रश्नावली डाक द्वारा भेजी जाती है, लेकिन इसे व्यक्तियों को बाँटा भी जा सकता है। प्रत्येक स्थिति में यह सूचना प्रदान करने वाले द्वारा भरकर भेजी जाती है।” यह कथन है ………………….
(अ) मोजर
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स

प्रश्न 4.
“प्रविधियाँ एक समाज वैज्ञानिक के लिये वे मान्य तथा सुव्यवस्थित तरीके होते हैं, जिन्हें वह अपने अध्ययन से संबंधित विश्वसनीय तथ्यों (Reliable facts) को प्राप्त करने हेतु प्रयोग में लाता है।” यह कथन है …………………….
(अ) मोज
(ब) लुंडबर्ग
(स) मोर्स
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(अ) मोजर

Bihar Board Class 11 Sociology Solutions Chapter 5 समाजशास्त्र : अनुसंधान पद्धतियाँ

प्रश्न 5.
“सर्वेक्षण किसी सामाजिक स्थिति या समस्या अथवा जनसंख्या के परिभाषित उद्देश्यों के लिए वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित रूप से अवश्लेषण की एक पद्धति है।” यह कथन …………………….
(अ) मोज़र
(स) मोर्स
(ब) लुंडबर्ग
(द) पी० वी० यंग
उत्तर:
(स) मोर्स

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions  Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Bihar Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन मौलिक अधिकारों का सबसे सटीक वर्णन है?
(क) किसी व्यक्ति को प्राप्त समस्त अधिकार।
(ख) कानून द्वारा नागरिक को प्रदत्त समस्त अधिकार।
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त तथा सुरक्षित समस्त अधिकार।
(घ) संविधान द्वारा प्रदत्त वे अधिकार जिन पर कभी प्रतिबन्ध नहीं लगाया जा सकता।
उत्तर:
(ग) संविधान द्वारा प्रदत्त तथा सुरक्षित समस्त अधिकार।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रत्येक कथन के बारे में बताएँ कि वह सही है या गलत –

  1. अधिकार-पत्र में किसी देश की जनता को हासिल अधिकारों का वर्णन रहता है।
  2. अधिकार-पत्र स्वतन्त्रता की रक्षा करता है।
  3. विश्व के हर देश में अधिकार-पत्र होता है।

उत्तर:

  1. सही
  2. सही
  3. गलत

प्रश्न 3.
निम्नलिखित स्थितियों को पढ़ें। प्रत्येक स्थिति के बारे में बताएं कि किस मौलिक अधिकार का उपयोग या उल्लंघन हो रहा है और कैसे?
(क) राष्ट्रीय एयरलाइन के चालक-परिचालक दल के ऐसे पुरुषों को जिनका वजन ज्यादा है-नौकरी में तरक्की दी गई, लेकिन उनकी ऐसी महिला-सहकर्मियों को दंडित किया गया, जिनका वजन बढ़ गया था।
(ख) एक निर्देशक एक डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाता है, जिसमें सरकारी नीतियों की आलोचना है।
(ग) एक बड़े बाँध के कारण विस्थापित हुए लोग अपने पुनर्वास की माँग करते हुए रैली निकलते हैं।
(घ) आन्ध्र-सोसायटी आन्ध्रप्रदेश के बाहर तेलगू माध्यम में विद्यालय चलाती है।
उत्तर:
(क) नेशनल एयरलाइन्स के अधिक भारी पुरुष कर्मचारी को प्रोन्नति दी जाती है। परन्तु उनके साथी महिला कर्मचारी जो अधिक भारी हो जाती हैं, को प्रोन्नति नहीं दी जाती वरन उनको पेनेलाइज्ड किया जाता है। इस दशा में समानता के अधिकार का उल्लंघन होता है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समानता से या समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। अनुच्छेद 15 (i) में कहा गया है कि राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।

अनुच्छेद 16 (i) के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या नियुक्ति से सम्बन्धित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी। अनुच्छेद 16 (ii) के अनुसार राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के सम्बन्ध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा। परन्तु उपरोक्त घटना में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया है। अत: महिला कर्मचारियों को लिंग भेद के कारण प्रोमोशन नहीं दिया गया। यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

(ख) इस घटना में एक निर्देशक के द्वारा डॉक्यूमेन्ट्री फिल्म बनाकर सरकार की नीतियों की आलोचना की गयी है। अनुच्छेद 19 (i) के अनुसार व्यक्ति को (सभी नागरिकों को) विचार, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।

(ग) इस घटना में क्योंकि बड़े बाँध के निर्माण को लेकर विस्थापित व्यक्तियों द्वारा पुनः स्थापित करने की माँग को लेकर रैली का आयोजन किया गया। यहाँ पर अनुच्छेद 19 (ii) में दिए गए शान्तिपूर्वक सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता के अधिकार का प्रयोग हुआ है।

(घ) इस घटना में अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्राप्त है। उसी के आधार पर आन्ध्र सोसायटी, आन्ध्रप्रदेश के बाहर तेलगू भाषा का विद्यालय चलाती है। यहाँ अल्पसंख्यकों के अधिकार का प्रयोग हुआ है।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में कौन सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की सही व्याख्या है?
(क) शैक्षिक-संस्था खोलने वाले अल्पसंख्यक वर्ग के ही बच्चे इस संस्थान में पढ़ाई कर सकते हैं।
(ख) सरकारी विद्यालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यक-वर्ग के बच्चों को उनकी संस्कृति और धर्म-विश्वासों से परिचित कराया जाए।
(ग) भाषाई और धार्मिक-अल्पसंख्यक अपने बच्चों के लिए विद्यालय खोल सकते हैं और उनके लिए इन विद्यालयों को आरक्षित कर सकते हैं।
(घ) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक यह माँग कर सकते हैं कि उनके बच्चे उनके द्वारा संचालित शैक्षणिक-संस्थाओं के अतिरिक्त किसी अन्य संस्थान में नहीं पढ़ेंगे।
उत्तर:
उपरोक्त चारों कथनों में से (ग) भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए और अपनी व संस्कृति की रक्षा के लिए स्कूल खोलने का अधिकार है। यह कथन सत्य है, क्योंकि यही संस्कृति और शैक्षणिक अधिकार की सही अभिव्यक्ति है। अनुच्छेद 29 (i) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण हेतु भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को जिनकी अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना प्रशासन का अधिकार होगा।

प्रश्न 5.
इनमें कौन-मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और क्यों?
(अ) न्यूनतम देय मजदूरी नहीं देना।
(ब) किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाना।
(स) 9 बजे रात के बाद लाउड-स्पीकर बजाने पर रोक लगाना।
(द) भाषण तैयार करना।
उत्तर:
भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। प्रारम्भ में 7 मूल अधिकार दिए गए थे किन्तु 44वें संविधान द्वारा सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया। दिसम्बर 2002 में 86वें संविधान संशोधन द्वारा 6 – 14 वर्ष आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। अत: मूल अधिकारों की संख्या पुन: 7 हो गयी है। उपरोक्त प्रश्न में 4 घटनाएँ दी गयी हैं। इनमें से पहली घटना न्यूनतम मजदूरी न देना ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ का उल्लंघन माना जाएगा।

परन्तु अन्य तीन घटनाओं में मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता, क्योंकि किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाने से उस पुस्तक के लेखक के विचार, अभिव्यक्ति पर यद्यपि प्रतिबन्ध तो है। परन्तु समाज के किसी वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुँचाने पर किसी पुस्तक पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। इसी प्रकार तीसरी घटना में रात्रि 9 बजे के बाद लाउडस्पीकर पर प्रतिबन्ध भी समाज के हित में लगाया जाता है। भाषण देना तो विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार की पूर्ति ही है। अत: उपरोक्त घटनाओं में से प्रथम घटना जिसमें न्यूनतम मजदूरी नहीं दी गयी, में उस श्रमिक के ‘शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकार’ का उल्लंघन हुआ है।

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प्रश्न 6.
गरीबों के बीच काम कर रहे एक कार्यकर्ता का कहना है कि गरीबों को मौलिक अधिकारों की जरूरत नहीं है। उनके लिए जरूरी यह है कि नीति निर्देशक सिद्धान्तों को कानूनी तौर पर बाध्यकारी बना दिया जाय। क्या आप इससे सहमत हैं? अपने उत्तर का कारण बताएँ।
उत्तर:
मैं इस कथन से सहमत नहीं हूँ, क्योंकि नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार नीति निर्देशक तत्त्वों से अधिक जरूरी है. दूसरे नीति निर्देशक तत्त्वों को बाध्यकारी (न्यायसंगत) नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि हमारे पास सभी को नीति निर्देशक तत्त्वों में दी गयी सुविधाओं को देने के लिए पर्याप्त श्रोत नहीं है।

प्रश्न 7.
अनेक रिपोर्टों से पता चलता है कि जो जातियाँ पहले झाडू देने के काम में लगी थीं, उन्हें मजबूरन यही काम करना पड़ रहा है, जो लोग अधिकार-पद पर बैठे हैं, वे इन्हें कोई और काम नहीं देते। इनके बच्चों को पढ़ाई-लिखाई करने पर हतोत्साहित किया जाता है। इस उदाहरण में किस मौलिक-अधिकार का उल्लंघन हो रहा है।
उत्तर:
इस उदाहरण में निम्न मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है –

1. स्वतन्त्रता का अधिकार:
जब उन व्यक्तियों को हमेशा उसी व्यवसाय को अपनाने को बाध्य किया गया हो तो उनके स्वतन्त्रता अधिकार का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अनुसार संविधान ने सभी नागरिकों को वृत्ति, उपजीविका, व्यापार अथवा व्यवसाय की स्वतन्त्रता प्रदान की है। यह स्वतन्त्रता उनको नहीं दी जा रही है। अत: उनके स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है।

2. संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार:
उपरोक्त घटना में उन व्यक्तियों के संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार का भी उल्लंघन हुआ है। अनुच्छेद 29 के उपखंड (2) के अनुसार राज्य द्वारा घोषित वा राज्यनिधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के भी आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।

3. समानता का अधिकार:
उपरोक्त घटना में समानता के अधिकार का भी उल्लंघन होता है। अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत के राज्य क्षेत्र में प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान समझा जाएगा। अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है।

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प्रश्न 8.
एक मानवाधिकार-समूह ने अपनी याचिका में अदालत का ध्यान देश में मौजूद भूखमरी की स्थिति की तरफ खींचा। भारतीय खाद्य-निगम के गोदामों में 5 करोड़ टन से ज्यादा अनाज भरा हुआ था। शोध से पता चलता है कि अधिकांश राशन-कार्डधारी यह नहीं जानते कि उचित-मूल्य की दुकानों से कितनी मात्रा में वे अनाज खरीद सकते हैं। मानवाधिकार समूह ने अपनी याचिका में अदालत से निवेदन किया कि वह सरकार को सार्वजनिक-वितरण-प्रणाली में सुधार करने का आदेश दे।
(अ) इस मामले में कौन-कौन से अधिकार शामिल हैं? ये अधिकार आपस में किस तरह जुड़े हैं?
(ब) क्या ये अधिकार जीने के अधिकार का एक अंग हैं?
उत्तर:
(अ) उक्त उदाहरण के अन्तर्गत संवैधानिक उपचारों का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा स्वतन्त्रता का अधिकार लिप्त है। ये अधिकार आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भूख से मरने के कारण जीने के अधिकार का उल्लंघन हुआ। गोदामों में पाँच करोड़ टन अनाज होते हुए भी सरकार ने वितरण व्यवस्था ठीक नहीं की और मानव अधिकार समूह द्वारा कोर्ट से प्रार्थना की गयी कि सरकार को पब्लिक वितरण व्यवस्था सुधारने के लिए आदेश दिया जाए अर्थात् संवैधानिक उपचारों का अधिकार सम्मिलित है।

(ब) ये अधिकार यद्यपि सभी अलग-अलग मूल अधिकार हैं। परन्तु ये इस मामले में जीव के अधिकार के भाग बने हुए हैं।

प्रश्न 9.
इस अध्याय में उद्धृत सोमनाथ लाहिड़ी द्वारा संविधान-सभा में दिए गए वक्तव्य को पढ़ें। क्या आप उनके कथन से सहमत हैं? यदि हाँ तो इसकी पुष्टि में कुछ उदाहरण दें। यदि नहीं तो उनके कथन के विरुद्ध तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर:
सोमनाथ लाहिड़ी का संविधान सभा में दिया गया कथन इस प्रकार है – “मैं समझता हूँ कि इसमें ये अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। … आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबन्ध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद के बाद एक उपबन्ध है, जो इन अधिकारों को वापस ले लेता है। … मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए? … हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं, जो हमारी जनता चाहती है।”

इस कथन से यह तात्पर्य निकलता है कि हमारे संविधान में मौलिक अधिकार दिए ही कम हैं, बहुत सी ऐसी बातों को छोड़ दिया गया है, जो मौलिक अधिकारों में शामिल होनी चाहिए थीं। जैसे काम करने का अधिकार, निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार, आवास का अधिकार, सूचना प्राप्त करने का अधिकार आदि। दूसरी आलोचना इस कथन से पता चलती है कि प्रत्येक मौलिक अधिकारों के साथ अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं, जिससे यह समझना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को मौलिक अधिकारों से क्या मिला? आलोचकों का मत है कि भारतीय संविधान एक हाथ से अधिकार देता है, तो दूसरे हाथ से उन्हें छीन लेता है।

तीसरी महत्त्वपूर्ण बात उक्त कथन से प्रकट होती है कि हमारे संविधान में मौलिक अधिकार पुलिस के सिपाही के दृष्टिकोण से दिए गए हैं। इसका यह अर्थ है कि प्रत्येक अधिकार पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए हैं। हरिविष्णु कामथ ने भी संविधान सभा में कहा था कि “इस व्यवस्था द्वारा तानाशाही राज्य और पुलिस राज्य की स्थापना कर रहे हैं।”

इसी प्रकार सरदार हुकमसिंह ने कहा था “यदि हम इन स्वतन्त्रताओं को व्यवस्थापिका की इच्छा पर ही छोड़ देते हैं, जो कि एक राजनीतिक दल के अलावा कुछ नहीं है, तो इन स्वतन्त्रताओं के अस्तित्व में भी सन्देह हो जाएगा।” संविधान में मौलिक अधिकारों पर जो प्रतिबन्ध लगे हैं जैसे विचार अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया कि किसी की भावना को ठेस न पहुँचे। बिना शस्त्र सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता के अधिकार पर कभी यह प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है कि इससे साम्प्रदायिक दंगा भड़कने की आशंका है। इस प्रकार मौलिक अधिकारों की उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है।

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प्रश्न 10.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को संक्षेप में लिखें और तर्क देकर समझायें कि यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
भारतीय संविधान में दिया गया अन्तिम अधिकार संवैधानिक उपचारों का अधिकार सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह अधिकार है कि अगर संविधान में दिये गये अन्य मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो यह अधिकार नागरिकों को न्यायालय में जाने का अधिकार देता है। न्यायालय केस के आधार पर आवश्यक आदेश जारी करता है, जिससे उस अधिकार की रक्षा की जाती है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने भी इस अधिकार को संविधान का हृदय व आत्मा (Heart and Soul) कहा है।

Bihar Board Class 11 Political Science भारतीय संविधान में अधिकार Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
अधिकारों से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अधिकार:
व्यक्ति की उन माँगों को, जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हो तथा राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त हो, अधिकार कहते हैं। कभी-कभी असंरक्षित माँगें भी अधिकार बन जाती हैं, भले ही उन्हें कानून का संरक्षण प्राप्त न हुआ हो। उदाहरण के लिए काम पाने का अधिकार राज्य ने भले ही स्वीकार न किया हो परन्तु उसे अधिकार ही माना जाएगा क्योंकि काम के बिना कोई भी व्यक्ति अपना सर्वोच्च विकास नहीं कर सकता।

बेन तथा पीटर्स ने अधिकार की परिभाषा देते हुए कहा है, “अधिकारो की स्थापना एक। सुस्थापित नियम द्वारा होती है। वह नियम चाहे कानून पर आधारित हो या परम्परा पर।” अस्टिन के अनुसार, “अधिकार एक व्यक्ति की वह सामर्थ्य है, जिससे वह किसी दूसरे से कोई काम करा सकता हो या दूसरे को कोई काम करने से रोक सकता है।” लास्की के अनुसार, “अधिकार सामान्य जीवन की वह परिस्थितियाँ हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने जीवन को पूर्ण नहीं पर सकता।”

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प्रश्न 2.
मौलिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकार-किसी देश के नागरिकों को लोकतन्त्रिक शासन व्यवस्था में जिन अनेक व्यक्तियों की प्राप्ति होती है, उनमें से कुछ प्रमुख अधिकार, जिनके बिना व्यक्ति अपनी उन्नति व विकास नहीं कर सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। जैसे-जीवन का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार इत्यादि। जिन कारणों से इन अधिकारों को मौलिक कहा जाता है, वे हैं –

  1. ये व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अत्यावश्यक है।
  2. देश के संविधान में इन अधिकारों का वर्णन किया गया है। कोई सरकार स्वेच्छा से इनमें परिवर्तन नहीं कर सकती।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का महत्त्व बताइए।
उत्तर:
ब्रिटिश शासन में जनता के अधिकारों का हनन हुआ जिस कारण भारतीय समाज पिछड़ता गया। इस कारण संविधान निर्माताओं ने मौलिक अधिकारों को संवैधानिक प्रावधानों के द्वारा सुरक्षित बना दिया। संविधान में दिए गए इन अधिकारों का बहुत महत्त्व है। इन अधिकारों के द्वारा व्यक्ति के जीवन, सम्पत्ति और स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। ये अधिकार शासन को निरन्कुश होने से रोकते हैं, तथा नागरिकों को आत्म-विकास का अवसर देते हैं। मूल अधिकार देश की एकता बनाए रखने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 4.
नागरिकों के दो धार्मिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. धार्मिक विश्वास का अधिकार-कोई भी मनुष्य अपनी इच्छानुसार धार्मिक विश्वास रख सकता है। धर्म उसका व्यक्तिगत मामला है। अतः प्रत्येक मनुष्य को अपने धार्मिक विश्वास के अनुसार पूजा-पाठ करने का अधिकार है।
  2. धार्मिक प्रचार का अधिकार-प्रत्येक धर्म के मानने वालों को अपने धर्म का प्रचार करने का समान अधिकार प्राप्त है। धर्म-प्रचारक अपने धर्म के प्रचार के लिए शान्तिपy सम्मेलन कर सकते हैं।

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प्रश्न 5.
नागरिक के किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक अधिकार –

  1. चुनाव में उम्मीदवार के रूप में खड़ा होने का अधिकार।
  2. चुनाव में मत देने का अधिकार।
  3. रातनीतिक पद प्राप्त करने का अधिकार।
  4. कानून के समक्ष समानता का अधिकार।

प्रश्न 6.
भारत में स्त्रियों के कल्याण से सम्बन्धित कोई दो निर्देशक सिद्धान्त लिखें।
उत्तर:

  1. महिला और पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
  2. स्त्रियों व बच्चों का शोषण न किया जाए। महिला और पुरुष कामगारों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो।
  3. पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।

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प्रश्न 7.
राज्य के दो नीति निर्देशक सिद्धान्त लिखें जो भारत में बाल कल्याण से सम्बन्धित हैं।
उत्तर:
भारत में बाल कल्याण से सम्बन्धित राज्य के दो नीति निर्देशक तत्व निम्नलिखित हैं –

  1. बालकों को स्वतन्त्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएँ दी जाएँ और बालकों व अल्पवय व्यक्तियों की शोषण तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जाए।
  2. राज्य इस संविधान के प्रारम्भ से दस वर्ष की अवधि के भीतर सभी बालकों को चौदह वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने के लिए उपबन्ध करने का प्रयास करेगा।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रतिषेध लेख’ तथा ‘अधिकार पृच्छा’ पर टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों से किसी को वंचित न किया जाए इस हेत संविधान ने मौलिक अधिकारों की रक्षा का भार सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को सौंपा है। ये न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध लेख, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख या आदेश जारी करते हैं। इनमें से प्रतिबन्ध लेख तथा अधिकार पृच्छा का वर्णन निम्नलिखित है –

1. प्रतिषेध लेख:
प्रतिषेध का अर्थ है ‘मना करना’। जब कोई अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर जा रहा हो या कानूनी प्रक्रिया के विरुद्ध जा रहा हो तो उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय उस अधीनस्थ न्यायालय को ऐसा करने पर प्रतिषेध (मना) कर सकता है। इसके लिए सम्बन्धित उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय को इस प्रतिषेध लेख द्वारा उचित कार्यवाही करने के लिए आदेश दे सकता है।

2. अधिकार पृच्छा:
इसका अर्थ है ‘किस अधिकार से?’ यदि किसी व्यक्ति ने कानून के विरुद्ध किसी पद पर अधिकार प्राप्त कर रखा है, तो उच्च न्यायालय उसे ऐसा करने से रोक सकता है। जैसे केन्द्रीय लोकसेवा आयोग के सदस्य की आयु की सीमा 65 वर्ष है। यदि कोई व्यक्ति इस आयु के पश्चात् भी सदस्य बना हुआ है, तो उच्चतम न्यायालय उससे यह पूछ सकता है, कि किस कानून के अन्तर्गत उसने ऐसा किया है, और उसे अधिकार है, कि,आवश्यक समझने पर वह उस व्यक्ति को पदमुक्त करने का आदेश दे सकता है।

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(क) गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण।
(ख) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा।
(ग) बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख।
(घ) परमादेश।
उत्तर:
(क) गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण:
अनुच्छेद 22 के अनुसार जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है, तो यथाशीघ्र इसकी गिरफ्तारी का कारण बताया जाना आवश्यक है। गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर निकटतम न्यायाधीश के सम्मुख पेश किया जाना चाहिए। गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी रुचि का वकील करने या वकील से परामर्श लेने का अधिकार है।

(ख) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा:
अनुच्छेद 39 अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने की स्वतन्त्रता देता है। यदि राज्य किसी ऐसी शिक्षण संस्थाओं का आधिपत्य ग्रहण करता है, जिसकी स्थापना अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा हुई हो तो उतना मुआवजा देना अनिवार्य होगा जिससे अल्पसंख्यक के अधिकार समाप्त अथवा सीमित न हों।

(ग) बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, कि ‘शरीर को हमारे सम्मुख प्रस्तुत करो।’ इसके द्वारा न्यायालय को अधिकार प्राप्त होता है, कि वह बन्दी बनाए गए किसी व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित करने का आदेश दे सके यदि बन्दी बनाया गया व्यक्ति यह अनुभव करता है, कि उसे गैरकानूनी अथवा अवैध रूप से बन्दी बनाया गया है, तो वह स्वयं अथवा उसका कोई साथी उच्च या सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन पत्र दे सकता है, कि बन्दी बनाए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष उपस्थित किया जाए।

(घ) परमादेश:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, ‘हम आज्ञा देते हैं। जब कोई व्यक्ति या संस्था अपने कर्त्तव्य की पूर्ति न करे तो न्यायालय उसे अपने कर्त्तव्य पालन के लिए परमादेश द्वारा आदेश दे सकता है। जैसे कोई विश्वविद्यालय अपने किसी सफल विद्यार्थी को डिग्री न दे अथवा कोई संस्था अपने कर्मचारी को बिना समुचित कारण बताए नौकरी से निकाल दे और न्यायालय के निर्णय के बाद भी उसे पुनः नियुक्त न करे। ऐसी अवस्था में उच्च तथा सर्वोच्च न्यायालय परमादेश के द्वारा इन संस्थाओं को कर्तव्य पालन करने के लिए आदेश दे सकती है।

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प्रश्न 3.
किन्हीं दो मौलिक अधिकारों का उल्लेख करें, जो संविधान अल्पसंख्यकों को देता है।
उत्तर:
किसी देश के नागरिकों को लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था में जिन अधिकारों की प्राप्ति होती है, उनमें से कुछ प्रमुख अधिकार, जिनके बिना व्यक्ति अपनी उन्नति व विकास नहीं कर सकता, मौलिक अधिकार कहलाते हैं। जैसे-जीवन का अधिकार, समानता का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा व संस्कृति का अधिकार इत्यादि। भारतीय संविधान द्वारा भारत के सभी नागरिकों को छः प्रकार के मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनमें से दो मौलिक अधिकार जो अल्पसंख्यकों को दिए गए हैं, निम्नलिखित हैं –

  1. संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक को योग्यता होने पर बिना किसी भेदभाव के नौकरी के लिए समान अवसर प्रदान किए गए हैं, परन्तु अल्पसंख्यकों अथवा पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में कुछ स्थान सुरक्षित रखे गए हैं।
  2. अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार होगा। उसका प्रबन्धन वे स्वयं कर सकेंगें, राज्य उसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा।

प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों तथा निर्देशक तत्वों में कोई दो अन्तर बताएँ।
उत्तर:
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों तथा नीति-निर्देशक सिद्धान्तों को एक महत्त्वपूर्ण अंग मानकर इसकी व्याख्या की गई है, ताकि इनके द्वारा प्रत्येक अपना विकास कर सकें और सभी को सामाजिक और आर्थिक न्याय मिल सके। यद्यपि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, किन्तु फिर भी दोनों में भिन्न अन्तर हैं –

1. मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्राप्त है, लेकिन निर्देशक सिद्धान्त को नहीं-संविधान द्वारा मौलिक अधिकारों को कानूनी संरक्षण प्रदान किया गया है, अर्थात् यदि सरकार किसी कानून या प्रशासनिक आदेश द्वारा नागरिकों के अधिकार पर आक्षेप करती है तो, नागरिक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। इन न्यायालयों का कर्तव्य है, कि वे अधिकारों की रक्षा करें परन्तु निर्देशक सिद्धान्तों को इस प्रकार का कोई कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।

2. नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य से संबन्धित हैं, लेकिन मौलिक अधिकार नागरिकों से-मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं और इनका सम्बन्ध नागरिकों से है, किन्तु नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य से सम्बन्धित हैं। इनका पालन करना राज्य का काम है। मौलिक अधिकार संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान की गई सुविधाएँ हैं, जब कि निर्देशक सिद्धान्तों के द्वारा सरकार को जनता के कल्याण के कार्य करने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

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प्रश्न 5.
संविधान के 42 वीं संशोधन द्वारा जोड़े गए राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
42 वीं संविधान संशोधन द्वारा नीति निर्देशक तत्वों का विस्तार किया गया जो निम्नलिखित है –

  1. राज्य अपनी नीति का संचालन इस प्रकार करेगा कि बच्चों को स्वस्थ, स्वतन्त्र और प्रतिष्ठापूर्ण वातावरण में अपने विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्राप्त हों।
  2. राज्य ऐसी कानून प्रणाली के प्रचलन की व्यवस्था करेगा जो समाज में अवसर के आधार पर न्याय का विकास करे। राज्य उपयुक्त कानून या अन्य ढंग से आर्थिक दृष्टि से कमजोर व्यक्तियों के लिए मुफ्त कानूनी सहायता की व्यवस्था करने का प्रयत्न करंगा।
  3. राज्य उपयुक्त कानून द्वारा या अन्य उपायों से श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्धन में भागीदार बनाने के लिए कदम उठाएगा।
  4. राज्य पर्यावरण की सुरक्षा और विकास तथा देश के वन और वन्य जीवों को सुरक्षित रखने का प्रयत्न करेगा।

प्रश्न 6.
शिक्षा और संस्कृति से सम्बन्धित कौन से अधिकार भारतीय नागरिकों को प्रदान किए गए हैं?
उत्तर:
संस्कृति तथा शिक्षा-सम्बन्धी अधिकार- भारतीय संविधान की धारा 29 व 30 में इन अधिकारों का वर्णन है। इन अधिकारों को संविधान में स्थान देकर अल्पसंख्यकों के लिए नया युग आरम्भ किया गया है।

  1. भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है।
  2. धर्म, वंश, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर किसी भी नागरिक को किसी राजकीय संस्था या राजकीय सहायता प्राप्त संस्था में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।
  3. अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छानुसार स्कूल, कॉलेज खोलने का अधिकार होगा। इस प्रकार की संस्थाओं को अनुदान देने में राज्य कोई भेदभाव नहीं करेगा।

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प्रश्न 7.
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से आप क्या समझते हैं? राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में इसे किस प्रकार व्यक्त किया गया है?
उत्तर:
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का अर्थ है, कि भिन्न देशों के बीच सहयोग व सद्भावना का वातावरण बना रहे। इससे अभिप्राय यह भी है, कि भिन्न देश एक-दूसरे के साथ मित्र की भाँति व्यवहार करे। निर्देशक सिद्धान्तों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को और अधिक दृढ़ करने के लिए संविधान की धारा 51 में निम्न प्रावधान का मुख्य रूप से उल्लेख किया गया है –

  1. सदस्य देश अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन करें।
  2. आपसी झगड़ों को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास करें। अन्तर्राष्ट्रीय विवाद को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने की व्यवस्था को राज्य प्रोत्साहन दे।
  3. आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए एक दूसरे के साथ हरेक प्रकार के सहयोग का आदान-प्रदान करें।
  4. सह-अस्तित्व की भावना पर बल दें। राज्य विभिन्न राज्यों के बीच न्याय और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना के लिए प्रयत्न करे।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों व अन्तर्राष्ट्रीय संधियों के प्रति राज्य सरकार आदर की भावना बढ़ाने की कोशिश करे।

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प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत प्रदत्त छः स्वतन्त्रताओं का मूल्यांकन करें। इनकी रक्षा किस प्रकार की जाती है?
उत्तर:
नागरिक स्वतन्त्रता:
अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को सात स्वतन्त्रताएँ दी गई थीं जिनमें से 44 वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अर्जन स्वतन्त्रता को निकाल दिया गया है। शेष छः स्वतन्त्रताएँ निम्नलिखित हैं –

1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचार को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। 44 वें संशोधन द्वारा संविधान में एक नया अनुच्छेद 361 – A जोड़ा गया है, जिसके अन्तर्गत समाचार पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी परन्तु राज्य को अधिकार है कि देश की अखंडता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान और विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।

2. शान्तिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा:
सम्मेलन करने की स्वन्तत्रता-नागरिकों को शान्तिपूर्वक एकत्र होकर सभा करने की स्वन्तत्रता है, परन्तु सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

3. संस्था या संघ बनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु उसका उद्देश्य सुरक्षा व शान्ति को खतरा पहुँचाना न हो।

4. भ्रमण की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश की सीमाओं के भीतर घूमने-फिरने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजनिक हितों तथा जनजातियों की रक्षा के लिए राज्य इस स्वतन्त्रता पर रोक लगा सकता है।

5. देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजनिक हित और जनजाति, संस्कृति की रक्षा के लिए इस अधिकार पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

6. व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है, पर सार्वजनिक हित में इस पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। सितम्बर 1989 में एक विवाद में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि “पटरियों और गली-कूचों में बैठकर या फेरी लगाकर व्यापार करना नागरिकों का मौलिक अधिकार है, पर उसके लिए किसी भी जगह पर स्थायी रूप से बैठने या जम जाने का कोई भी बुनियादी हक उन्हें नहीं है।”

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प्रश्न 2.
राज्य-नीति के निर्देशक सिद्धान्तों को व्यवहारिक रूप देने के लिए भारत सरकार तथा भारत के राज्यों की सरकारों ने क्या किया?
उत्तर:
भारत में केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों ने 1950 ई. से लेकर अब तक निर्देशक सिद्धान्तों को लागू करने के लिए बहुत से प्रयत्न किए हैं। उनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं –

  1. भारत में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, कबीलों और अन्य पिछड़े हुए वर्गों को बहुत सी सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं। जैसे-संसद और राज्य विधान मण्डलों में इनके लिए सीटें सुरक्षित रखी गयी हैं। इन्हें सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्राप्त है।
  2. भारत के प्रायः सभी राज्यों में प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क तथा अनिवार्य है। कुछ राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा व केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली में तो माध्यमिक स्तर तक शिक्षा निःशुल्क है।
  3. संसद द्वारा कानून बनाकर स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए है। अब स्त्रियों को समान कार्य के लिए पुरुषों के समान वेतन दिया जाता है।
  4. महिला कल्याण के लिए सरकार द्वारा प्रसूति गृह खोले गए हैं, और वेश्यावृत्ति को कानूनन समाप्त किया जा रहा है।
  5. केन्द्र में व भारत के अधिकांश राज्यों में न्यायापालिका को कार्यपालिका से मुक्त रखा गया है।
  6. भारत में कई राज्यों ने नशाबन्दी के लिए प्रयास किए हैं। इन राज्यों में शराब बनाने, बेचने, खरीदने पर पाबन्दी लगा दी गयी है।
  7. समाजवाद के उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़े-बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया है। भूतपूर्व राजाओं के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए गए हैं।
  8. भारत के प्राचीन स्मारकों की रक्षा के लिए भारतीय संसद द्वारा कई कानून बनाए गए हैं, और कार्यपालिका ने उन कानूनों को लागू किया है।
  9. कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई योजनाएँ, ट्रैक्टर, उन्नत किस्म के बीज, किसानों को ऋणी सुविधाएँ आदि प्रदान की गयी हैं।
  10. पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया है। पंचायतों को अधिक शक्तियाँ भी दी गई हैं।
  11. विदेश नीति को पंचशील के सिद्धान्तों पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिए भारत ने सदा ही संयुक्त राष्ट्र जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सहयोग प्रदान किया है।

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प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों का अधिकार से क्या तात्पर्य है? इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार (धारा 32 व 36 ):
इस अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है, कि यदि उसे प्राप्त मौलिक अधिकारों में आक्षेप किया जाए या छीना जाए, चाहे वह सरकार की ओर से ही क्यों न हो, वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है। मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय भिन्न प्रकार के निर्देश, आदेश या लेख जारी कर सकते हैं –

1. बंदी प्रत्यक्षीकरण:
इसके अन्तर्गत न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त होता है, कि वह बन्दी बनाए गए किसी व्यक्ति को अपने सामने उपस्थित करने का आदेश दे सके ताकि इस बात की जाँच की जा सके कि उसे गैर-कानूनी तौर पर बन्दी नहीं बनाया गया। निर्दोष साबित होने पर उसे तुरन्त छोड़ दिया जाता है।

2. परमादेश:
लैटिन भाषा के इस शब्द का अर्थ है, हम आज्ञा देते हैं। जब किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा अपना कर्त्तव्य पालन न किए जाने की दशा में परमादेश जारी किया जाता है, तो परमादेश जारी होने पर उसे अपना कर्त्तव्य पालन करने का आदेश दिया जाता है।

3. प्रतिषेध:
प्रतिषेध द्वारा किसी अधिकारी या न्यायालय को ऐसा करने से रोका जाता है, जो उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो।

4. अधिकार पृच्छा:
गैरकानूनी एवं अनुचित तरीके से किसी व्यक्ति द्वारा किसी सरकारी, अर्धसरकारी या निर्वाचित पद को सम्भालने का प्रयत्न जारी करने की स्थिति में सर्वोच्च या उच्च अधिकार पृच्छा जारी करके उसे रोक सकता है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार की महत्ता-भारतीय संविधान में भारतीय नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनका तब तक कोई महत्त्व नहीं जब तक कि संविधान उनकी सुरक्षा की व्यवस्था न करे।

संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा दी गई है। इन उपचारों का उल्लेख संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों, में किया गया है। इस अधिकार द्वारा संविधान मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यविधियाँ प्रतिपादित करता है। इस अधिकार के बिना मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते हैं। संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों द्वारा नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह उन न्यायालयों में प्रार्थना पत्र देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है।

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प्रश्न 4.
आपके अनुसार कौन-सा मौलिक अधिकार सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? इसके प्रावधानों को लिखें और तर्क देकर बताएँ कि यह क्यो महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
मौलिक अधिकार जो भारतीय संविधान में दिए गए थे, उनकी संख्या प्रारम्भ में 7 थी। 44 वें संशोधन द्वारा 1979 में सम्पत्ति का अधिकार समाप्त कर दिया गया और इनकी संख्या 6 हो गयी। परन्तु 86 वें संशोधन द्वारा प्राथमिक शिक्षा का अधिकार भी मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया । इस प्रकार पुनः इसकी संख्या 7 हो गई। भारतीय संविधान द्वारा छः
अधिकारों की सूची निम्न प्रकार है –

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
  4. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  5. संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार

इन सभी अधिकारों की उपयोगिता तभी सम्भव है, जबकि इन सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में सुरक्षा की गारंटी मिले। यह गारंटी संविधान में संवैधानिक उपचारों के अधिकार द्वारा दी गई है। इन उपचारों का उल्लेख संविधान के 32 और 226 अनुच्छेदों में किया गया है। अधिकार के बिना अन्य मौलिक अधिकारों के लिए प्रभावी कार्यविधियाँ प्रतिपादित करता है। इस अधिकार के बिना अन्य मौलिक अधिकार खोखले वायदे साबित होते हैं।

संविधान के द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों को सौंपा गया है। यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो वह न्यायालयों में प्रार्थना पत्र (application) देकर अपने अधिकार की रक्षा कर सकता है। न्यायालय इस हेतु बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार पृच्छा तथा उत्प्रेषण लेख जारी कर सकता है। इस अधिकार के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है, कि न्यायालय ऐसे मामलों में तुरन्त कार्यवाही करता है, ताकि एक क्षण के लिए भी मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न हो सके। संक्षेप में संवैधानिक उपचारों का अधिकार सर्वश्रेष्ठ मौलिक अधिकार है।

प्रश्न 5.
‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग’ पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में मूल अधिकारों का प्रावधान होते हुए भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एमनेस्टी इण्टरनेशनल तथा कुछ अन्य मानव अधिकार समर्थकों द्वारा यह कहा जा रहा था कि राज्य के पुलिस बल, अर्धसैनिक बल, सेना और जेल अधिकारियों द्वारा व्यक्ति के अधिकारों का हनन किया जाता है। अतः इस प्रसंग में पहले तो सितम्बर 1993 में राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी किया गया उसके बाद दिसम्बर 1993 में “मानव अधिकार अयोग व न्यायालय’ गठन सम्बन्धी विधेयक पारित किया गया। यह आयोग भारतीय संविधान द्वारा स्वीकृत अधिकारों तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रसविदाओं से मान्यता प्राप्त अधिकारों के हनन की स्थिति में सरकारी कर्मचारियों की उपेक्षा की शिकायतों पर विचार करता है।

आयोग को केवल जाँच करने व सिफारिश करने का अधिकार है। इस आयोग में 8 सदस्य होते हैं। आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश करते हैं। आयोग के अन्य सदस्यों में सर्वोच्च न्यायालय का एक वर्तमान या सेवानिवृत्त न्यायाधीश, दो प्रतिष्ठित व्यक्ति जिन्हें मानवी अधिकारों के विषय में ज्ञान और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त हो, अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष, अनुसूचित जाति व जनजाति का अध्यक्ष तथा महिला आयोग का अध्यक्ष शामिल होंगे। आयोग को सशस्त्र बलों या अन्य सैनिक बलों के सम्बन्ध में जाँच करने का अधिकार नहीं है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को मानव अधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं की स्वतन्त्र रूप से जाँच करने का अधिकार है। आयोग अपने जाँच कार्य में ‘एमनेस्टी इण्टरनेशनल’ अथवा अन्य किसी अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्सी की सहायता भी ले सकता है। आयोग को यह भी अधिकार है, कि वह मानवीय अधिकारों की रक्षा की दृष्टि से, विद्यमान कानूनों में संशोधन के लिए शासन को सुझाव दे सके। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 1994 ई. के प्रारम्भिक दिनों से ही अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया। टाडा कानून की समाप्ति और बाल श्रम का निषेध करने के बारे में इस आयोग का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।

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प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में दी गई विभिन्न मूल स्वतन्त्रताओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में अनुच्छेद 19 से 22 तक विभिन्न स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 19 में नागरिक स्वतन्त्राओं का वर्णन दिया है।

1. नागरिक स्वतन्त्रताएँ:
अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को सात स्वतन्त्रताएँ दी गई थीं, जिनमें से 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अर्जन सम्बन्धी स्वतन्त्रता को निकाल दिया गया है। शेष छः स्वतन्त्रताएँ हैं –

(क) भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को भाषण, लेख, चलचित्र अथवा अन्य किसी माध्यम से अपने विचारों को प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। 44 वें संशोधन द्वार संविधान में एक नया अनुच्छेद 361 A जोड़ा गया जिसके अन्तर्गत समाचार-पत्रों को संसद, विधानमण्डलों की कार्यवाही प्रकाशित करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी परन्तु. राज्य को अधिकार है कि देश की अखन्डता, सुरक्षा, शान्ति, नैतिकता, न्यायालयों के सम्मान और विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को ध्यान में रखते हुए इन अधिकारों पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।

(ख) शान्तिपूर्ण ढंग से बिना हथियारों के सभा:
सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता-नागरिकों को शान्तिपूर्ण एकत्र होने की स्वतन्त्रता है, परन्तु सुरक्षा और शान्ति की दृष्टि से इस अधिकार पर भी उचित प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

(ग) संस्था या संघ बनाना:
नागरिकों को संस्था व संघ बनाने की पूर्ण स्वतन्त्रता है, परन्तु सार्वजानिक हितों तथा जनजातियों की रक्षा के लिए इस स्वतन्त्रता पर रोक लगाया जा सकता है।

(घ) देश के किसी भाग में निवास करने और बसने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को देश में कहीं भी बसने की स्वतन्त्रता दी गई है, सार्वजानिक हित में इस पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है।

(ङ) व्यवसाय अपनाने की स्वतन्त्रता:
नागरिकों को अपना कोई भी व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता दी गई है पर सार्वजानिक हित में इस पर भी प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। दूसरे, किसी भी व्यवसाय के लिए कुछ व्यावसायिक योग्यताएँ निर्धारित की जा सकता हैं। तीसरे राज्य को स्वयं या किसी सरकारी कम्पनी द्वारा किसी भी व्यापार या धन्धे को अपने हाथों में लेने का अधिकार है।

2. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता:
अनुच्छेद 20, 21, 22 में ये स्वतन्त्रताएँ दी गई हैं। अनुच्छेद 20 के अनुसार –
(क) किसी भी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता जो अपराध करते समय लागू न हो।
(ख) किसी व्यक्ति को उससे अधिक दण्ड नहीं दिया जा सकता जो उस कानून के लिए उल्लंघन करते समय निश्चित हो।
(ग) किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक न तो मुकद्दमा चलाया जा सकता है, और न ही दोबारा दण्डित किया जा सकता है।
(घ) किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध किसी अपराध में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 21 में जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता की रक्षा की व्यवस्था की गई है। किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य किसी तरीके से जीवन अथवा निजी स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 20 तथा 21 में प्राप्त अधिकारों को आपात स्थिति में भी निलम्बित नहीं किया जा सकता।

3. बन्दीकरण व नजरबन्दी से रक्षा:
अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत –
(क) बन्दी बनाये गए व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण शीघ्र बताया जाएगा।
(ख) बन्दी व्यक्ति को अपनी इच्छा से वकील से सलाह लेने का अधिकार होगा।
(ग) बन्दी बनाए गए व्यक्ति को 24 घंटे के अन्दर न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।

44 वें संशोधन के अनुसार नजरबन्दी का मामला दो महीने के भीतर सलाहकार मण्डल के पास जाना आवश्यक है। सलाहकार मण्डल का गठन उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा।

आलोचना:
उपरोक्त स्वतन्त्रताओं की निम्न आधार पर आलोचना की जाती है –

  1. नागरिकों की स्वतन्त्रताओं पर अनेक सीमाएँ लगा दी गई हैं। ये स्वतन्त्रताएँ यदि एक हाथ से दी गई हैं तो दूसरे हाथ से छीन ली गई हैं।
  2. सीमाएँ अत्यधिक व्यापक होने के कारण अस्पष्टता से ग्रसित हो जाती है। परिणामस्वरूप विधायिका व न्यायापालिका में टकराव की संभावना बनी रहती है।
  3. निवारक नजरबन्दी का अधिकार राज्य को प्राप्त है, जिसके कारण शान्तिकाल में भी जीवन तथा निजी स्वतन्त्रता का अधिकार अर्थहीन हो जाता है।
  4. न्यायाधीश मुखर्जी के शब्दों में, “जहाँ तक मुझे मालूम है, संसार के किसी भी देश में निवारक मिरोध को संविधान का अटूट भाग नहीं बनाया गया हैं, जैसे भारत में किया गया है। यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।”

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प्रश्न 7.
भारतीय संविधान में दिए गए समानता के अधिकार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समानता का अधिकार-समानता का अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक दिया गया है।

1. कानून के समक्ष समानता:
संविधान के अनुच्छेद 14 में कहा गया है – “राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता अथवा कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। “कानून के समक्ष समानता का तात्पर्य यह है, कि एक जैसे लोगों के साथ एक सा व्यवहार किया जाए।”

2. भेदभाव की मनाही:
अनुच्छेद 15 दो बातें स्पष्ट करता है। प्रथम “राज्य केवल धर्म, वंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान या इनमें से किसी एक आधार पर कोई नागरिक दुकानों, भोजनालयों, मनोरंजन की जगहों, तालाबों और कुओं का प्रयोग करने से वंचित नहीं किया जा सकेगा। परन्तु महिलाओं और बच्चों को विशेष सुविधाएँ प्रदान की जा सकती हैं। अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए राज्य विशेष प्रकार की व्यवस्था कर सकता है।

3. अवसरों की समानता:
अनुच्छेद 16 के अनुसार सरकारी नियुक्तियों के लिए सभी नागरिकों को समान अवसर दिए जाएंगे। कोई भी नागरिक धर्म, वंश, जाति, जन्मस्थान या निवास स्थान के आधार पर सरकारी नियुक्तियों के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। इस अनुच्छेद 16 के कुछ अपवाद भी दिए गए हैं –

(क) कुछ विशेष पदों के लिए निवास स्थान सम्बन्धी शर्ते आवश्यक मानी जा सकती हैं।
(ख) पीछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित किए जा सकते हैं।
(ग) यह व्यवस्था. की जा सकेगी कि धार्मिक या साम्प्रदायिक संस्थाओं के पदाधिकारी किसी विशेष धर्म या सम्प्रदाय के ही हों।

अगस्त, 1990 ई. में भारत सरकार ने, सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए समुदायों के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। यह घोषणा मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए की गई थी। राज्य स्तर पर तो आरक्षण पिछले कई दशकों से चला आ रहा है, पर केन्द्र के अधीन नौकरियों में आरक्षण की घोषणा पहली बार की गई।

4. अस्पृश्यता की समाप्ति:
अस्पृश्यता अथवा छुआछूत का अन्त अनुच्छेद 17 में कर दिया गया है, और किसी भी रूप में छुआछूत को बरतने की मनाही की गई है। 1976 ई. में संसद ने कैद और जुर्माने की व्यवस्था को और कठोर बना दिया। छुआछूत बरतने या उसका प्रचार करने के अपराध में तीसरी बार या उससे अधिक बार दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों को दो साल की सजा और एक हजार जुर्माना किया जाएगा।

पहली बार किए गए अपराध के लिए कम से कम एक महीने की कैद और एक सौ रुपया जुर्माने की व्यवस्था की गई है। कानून में यह भी कहा गया है, कि छुआछूत के अन्तर्गत दोषी पाया गया व्यक्ति सजा की तारीख से छः वर्षों तक संसद और राज्य विधानमण्डल का चुनाव नहीं लड़ सकता।

5. उपाधियों की समाप्ति:
अनुच्छेद 18 के अनुसार –

  • राज्य सेना या शिक्षा सम्बन्धी सम्मान के सिवाय कोई ओर उपधि प्रदान नहीं करेगा।
  • भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
  • कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लागू या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
  • राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य के या उसके अधीन संस्थान से किसी रूप में कोई भेंट उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

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प्रश्न 8.
भारतीय संविधान में वर्णित शोषण के विरुद्ध अधिकार का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध का उद्देश्य है समाज के निर्बल वर्ग को शक्तिशाली वर्ग के अन्याय से बचाना। इस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्थाएँ दी गई है –

1. मानव के क्रय-विक्रय तथा शोषण पर प्रतिबन्ध:
अनुच्छेद 23 के अनुसार मानव तथा किसी भी व्यक्ति से बेगार लेना गैरकानूनी घोषित किया गया है, परन्तु इस अधिकार का यह अपवाद है कि राज्य सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा लागू कर सकता है। उदाहरण के लिए अनिवार्य सैन्य कानून के अन्तर्गत लोग सेना में भर्ती किए जा सकते हैं । शोषण की मनाही के बावजूद पिछड़े वर्गों के लोग, जनजातियाँ, महिलाएँ और बन्धक मजदूर आज भी शोषण के शिकार हैं।

2. कारखानों आदि में बच्चों को काम करने की मनाही:
अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे को फैक्ट्री या खान में नहीं लगाया जाएगा और न किसी अन्य जोखिम के काम पर लगाया जाएगा। ऐसा करना अब एक दण्डनीय अपराध है। यह व्यवस्था इसलिए की गई है, ताकि उनके स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव न पड़े। भारत में मध्यकाल में जमींदार, राजा और नवाब तथा अन्य लोग अपने अधीनस्थ लोगों से बेगार लेते थे।

अपना निजी कार्य कराकर उनको बदले में कुछ नहीं देते थे। इसके विपरीत ग्रामों में स्त्रियों, दासों व बालकों के क्रय-विक्रय की कुरीति प्रचलन में थी। स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी समाज के दुर्बल वर्ग का सर्वत्र शोषण होता रहा है। भारत के संविधान में दी गई उपरोक्त व्यवस्थाओं से शोषण कुछ रुका है। इस प्रकार बालकों व उपेक्षित वर्ग के शोषण या बेगार पर प्रतिबन्ध लगा है।

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प्रश्न 9.
राज्य के नीति निर्देशक तत्व एवं मौलिक अधिकारों में अन्तर स्पष्ट करें और यह भी स्पष्ट करें की सरकार निर्देशक तत्वों को उपेक्षा कर सकती है।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निर्देशक तत्व दोनों ही भारतीय लोकतंत्र की आधारभूत संरचना है। फिर भी दोनों में मौलिक अन्तर है, जो निम्नलिखित है –

  1. मौलिक अधिकार नकारात्मक प्रकृति का है। ये राज्य को कुछ कार्य करने से रोकती है। जबकि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त सकारात्मक प्रकृति के हैं। ये राज्य को कुछ कार्य करने के लिए निर्देश है।
  2. मौलिक अधिकार का उद्देश्य भारत में राजनीतिक लोकतन्त्र की स्थापना करना है, जबकि नीति निर्देशक सिद्धान्तों का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लोकतन्त्र एवं लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
  3. मौलिक अधिकार की प्रकृति कानूनी है। अर्थात् मौलिक अधिकार के उल्लंघन होने पर न्यायालय में जा सकते हैं। जबकि नीति निर्देशक तत्व की प्रकृति राजनीतिक है । लागू नहीं होने पर न्यायालय में नहीं जा सकते हैं। अर्थात् यह न्याय-योग्य नहीं है।
  4. मौलिक अधिकार अधिक स्पष्ट और निश्चित है, जबकि निर्देशक सिद्धान्त अस्पष्ट और अनिश्चित है। इस तरह स्पष्ट है, कि मौलिक अधिकार और निर्देशक तत्व में व्यापक अन्तर है।
  5. जहाँ तक सरकार द्वारा निर्देशक तत्वों की उपेक्षा का प्रश्न है, इसमें उत्तर में कहा जा सकता है। कि निर्देशक तत्वों का संवैधानिक और व्यावहारिक दोनों दृष्टि से काफी महत्त्व है, इसलिए इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती है।

नीति निर्देशक तत्व का मुख्य उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य और आर्थिक लोकतन्त्र एवं सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। यह हमारे पूर्वजों एवं महापुरुषों का सपना है, इसके पीछे जनमत की शक्ति है। इसलिए सरकार इसकी उपेक्षा नहीं कर सकती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान स्वीकृत हुआ था –
(क) 30 जनवरी, 1948
(ख) 26 नवंबर, 1949
(ग) 15 अगस्त, 1947
(घ) 26 जनवरी, 1950
उत्तर:
(ख) 26 नवंबर, 1949

प्रश्न 2.
‘संविधान की आत्मा’ की संज्ञा दी गई है?
(क) अनुच्छेद 14 को
(ख) अनुच्छेद 19 को
(ग) अनुच्छेद 21 को
(घ) अनुच्छेद 32 को
उत्तर:
(घ) अनुच्छेद 32 को

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प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में राज्यों को ग्राम पंचायतों की स्थापना का निर्देश दिया गया है?
(क) अनुच्छेद 38
(ख) अनुच्छेद 39
(ग) अनुच्छेद 40
(घ) अनुच्छेद 44
उत्तर:
(ग) अनुच्छेद 40

Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप

Bihar Board Class 6 Social Science Solutions Civics Samajik Aarthik Evam Rajnitik Jeevan Bhag 1 Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप Text Book Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप

Bihar Board Class 6 Social Science शहरी जीवन-यापन के स्वरूप Text Book Questions and Answers

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
किन आधारों पर कहेंगे कि फुटपाथ या पटरी पर काम करने वाले स्वरोजगार में लगे होते हैं ?
उत्तर-
फुटपाथ या पटरी पर काम करने वाले लोग अपना व्यवसाय खुद चलाते हैं । वे स्वयं योजना बनाते हैं कि किन-किन चीजों को बेचें, माल कितना खरीदें, कहाँ से खरीदे, अपनी दुकान कहाँ लगाएँ । वह अपनी सड़क के किनारे चादर या चटाई बिछाकर दुकान लगाते हैं। ये रोज खरीदते हैं, रोज बेचते हैं, इनकी कमाई कम होती है। इनकी आय मजदूरों जैसी है। पर ये अपना रोजगार स्वयं करते हैं। ये सभी लोग स्वरोजगार में लगे होते हैं। उनको कोई दूसरा व्यक्ति रोजगार नहीं देता है। उन्हें अपना काम स्वयं ही संभालना पड़ता है।

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प्रश्न 2.
अपने आस-पास के फुटपाथ पर फल की दूकान लगाने वाले व्यक्ति से पूछ कर बताएँ कि उसकी दिनचर्या, जैसे वह फल कहाँ से एवं कब खरीदता है ? वह सुबह दुकान कब लगाता है ? शाम को दुकान कब उठाता है ? यानी वे दिन भर में कितने घंटे काम करते हैं? इस काम में उनके परिवार के सदस्य उसकी क्या मदद करते हैं ?
उत्तर-
फुटपाथ पर फल की दूकान लगाने वाला व्यक्ति फल बाजार समिती से वह सुबह ही खरीदता है। वह सुबह दुकान 5-6 के बीच में लगाता है। शाम को वह दुकान 8-9 के बीच उठाता है। वह 15-16 घंटे काम करता है। इस काम में उनके घर परिवार भी उनकी सहायता करते हैं।

प्रश्न 3.
श्याम नारायण कुछ समय शहर में रहता है एवं कुछ समय गाँव में क्यों?
उत्तर-
श्याम नारायण एक कृषक मजदूर है। उसके पास जमीन नहीं है। गाँवों में साल भर खेती में मजदूरों की आवश्यकता नहीं होती है। ये फसल के कटाई-बुवाई के समय गाँवों में काम करते हैं। इस काम से जो कमाई होती है उससे परिवार का खर्च नहीं चल पाता है। इसलिए जब खेतों में काम नहीं मिलता है तो ये शहर में आकर रिक्शा चलाते हैं।’

प्रश्न 4.
श्यामनारायण रैन-बसेरा में क्यों रहता है?
उत्तर-
श्याम नारायण रेन बसेरा में रहता है। रोज उसकी कमाई 200300 रु. होती है जिसमें उसे प्रतिदिन रिक्शा का भाडा 30-50 रु. देना पड़ता है। प्रतिदिन 600-100 रू खाने के एवं अन्य जरूरतों में खर्च होता है जिससे उसकी अच्छी कमाई नहीं हो पाने की वजह से श्याम नारायण रैन-बसेरा में रहता है।

प्रश्न 5.
जो बाजार में सामान बेचते हैं और जो सड़कों पर सामान बेचते हैं उनमें क्या अंतर है?
उत्तर-
जो बाजार में सामान बेचते हैं ये दुकान पक्की होती है। बाजार की दुकानें रविवार, सोमवार को बंद रहती हैं। ये दुकानें वह स्वयं चलाते हैं। जरूरत पड़ने पर वे नौकर भी रखते हैं। वे दुकान किराये पर लेते हैं। उनकी कमाई भी अच्छी होती है। इन बाजारों में दुकान होने से बहुत लाभ होता है। उनका जीवन सुखमय होता है। जो सड़कों पर सामान बेचते हैं, ये दुकान कच्ची होती है। उसे रोज लगाना एवं उठाना पड़ता है। उसे रोज काम करना पड़ता है। वह स्वयं योजना बनाते हैं। सामान खरीदते एवं बेचते हैं। और उसके घर परिवार भी उसकी सहायता करते हैं । इन व्यापारियों के पास कोई सुरक्षा नहीं होती है। उनको अक्सर दुकान हटाने के लिए कहा जाता है। उनका जीवन-यापन कष्टमय बीतता है।

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प्रश्न 6.
प्रमोद और अंशु ने एक बड़ी दकान क्यों शरू की? उनको यह दुकान चलाने के लिए कौन-कौन से कार्य करने पड़ते हैं ?
उत्तर-
प्रमोद और अंशु ने दोनों मिलकर एक बड़ी दुकान शोरूम खोला है। बड़ी दुकान में उसे बहुत मेहनत मिलजुल कर करते हैं। इससे व्यापार में बढ़ोत्तरी हुई है। इसके लिए उसे प्रचार-प्रसार के लिए विज्ञापन देना पड़ता है और वह अपने दुकान में दूसरों को नौकरी भी देता है। इनके पास नगर-निगम के लाईसेंस होते हैं। इस दुकान की कमाई अच्छी होती है।

प्रश्न 7.
आकांक्षा जैसे लोगों की नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है। ऐसा आप किस आधार पर कह सकते हैं?
उत्तर-
आकांक्षा की तरह बहुत सारे लोग कारखाने में व अन्य जगहों पर हैं जिन्हें वर्ष भर काम नहीं मिलता। ये अनियमित रूप से काम में लगे होते. हैं, इन्हें बचे हुए समय में दूसरा काम ढूँढना पड़ता है। ऐसे लोगों की नौकरियाँ स्थाया नहीं होता । अगर कारीगर अपनी तनख्वाह या परिस्थितियों के बारे में शिकायत करते हैं, तो उन्हें निकाल दिया जाता है। इस तरह आकांक्षा जैसे लोगों की नौकरी की कोई सुरक्षा नहीं है।

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प्रश्न 8.
आकांक्षा जैसे लोगं अनियमित रूप से काम पर रखे जाते हैं। ऐसा क्यों है ?
उत्तर-
आकांक्षा जैसे लोग अनियमित रूप से काम पर रखे जाते हैं। यह कारीगरों को बरसात में कार्यमुक्त कर दिया जाता है। करीब तीन से चार महोने के लिए उनके पास काम नहीं रहता है। इन्हें बचे हुए समय में दूसरा काम’ ढूँढ़ना पड़ता है।

प्रश्न 9.
दूसरों के घरों में काम करने वाली एक कामगार महिला के दिन र के काम का विवरण दीजिए।
उत्तर-
सरला दूसरों के घरों में काम करती है। वह दूसरों के घर जाकर बर्तन साफ करना, झाडू देना, पोछा लगाना आदि काम करती है और वह बच्चों को समय पर स्कूल जाने के लिए बस स्टैण्ड तक छोड़ने तथा लाने का काम करती है।

प्रश्न 10.
दफ्तर में काम करने वाली महिला और कारखानों में काम करने वाली महिला में क्या-क्या अंतर है?
उत्तर-
दफ्तर में काम करने वाली महिला प्रतिदिन साढे नौ बजे काम पर जाती है, और साढ़े पांच बजे वापस आती है। वह एक स्थायी कर्मचारी होती है, उनके वेतन का एक हिस्सा भविष्य निधि में जमा होता है। बचत पर ब्याज भी मिलता है। रविवार और अन्य पर्व त्योहारों में छुट्टी मिलती है। उनको समय पर वेतन मिलता है, उन्हें काम नहीं होने पर अनियमित मजदूरों की तरह निकाला नहीं जाता है। कारखानों में काम करने वाली महिला प्रतिदिन काम करती है। उसे कोई छुट्टी नहीं मिलती है । वह एक अस्थायी रूप से काम करती है । उनको समय के अनुसार वेतन भी नहीं मिल पाता है। उन्हें काम नहीं होने पर अनियमित मजदूरों की तरह काम से निकाल दिया जाता है। पर्व-त्योहारों पर साल में एक बार इन्हें कपड़ा दिया जाता है।

प्रश्न 11.
क्या भविष्यनिधि, अवकाश या चिकित्सा सुविधाहर में स्थायी नौकरी के अलावा दूसरे काम करने वालों को मिल सकती है? चर्चा करें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

अभ्यास

प्रश्न 1.
अपने अनुभव तथा बड़ों से चर्चा कर शहरों में जीवन-यापन के विभिन्न स्वरूपों की सूची बनायें।
उत्तर-
छात्र शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप

प्रश्न 2.
अपने अनुभव के आधार पर नीचे दी गई तालिका के खाली स्थान को भरें
उत्तर-
Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप 1
प्रश्न 3.
पटरी पर दुकानदार एवं अन्य दुकानदारों की स्थिति में क्या अंतर है?
उत्तर-
पटरी पर दुकानदारों की स्थिति दयनीय होती है। वह अपना दुकान रोज लगाते एवं उठाते हैं उनकी दुकानें अस्थायी होती हैं वे रोज योजना बनाते हैं। रोज समान खरीदते और बेचते है। वे अपना व्यवसाय स्वयं चलाते हैं। उनके पास कोई सुरक्षा नहीं होती है। पुलिस या नगर निगम वाले इन्हें तंग करते रहते हैं। उनको अक्सर दुकान हटाने के लिए कहा जाता है।

उनकी आय भी बहुत कम होती है। _अन्य दुकानदारों की स्थिति अच्छी होती है। उनकी दुकानें स्थायी होती हैं। वह अपना व्यापार खुद संभालते हैं। वे किसी दूसरे की नौकरी नहीं करते बल्कि दूसरों को नौकरी पर रखते हैं। इनके पास सुरक्षा के तौर पर गार्ड रखते हैं। सहायता के लिए सहायक, मैनेजर, साफ-सफाई के लिए कर्मचारी आदि की भी व्यवस्था होती है। ये दुकानें पक्की होती हैं। इनके पास नगर-निगम के लाईसेंस होते हैं।

Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप

प्रश्न 4.
एक स्थायी और नियमित नौकरी, अनियमित काम से किस तरह अलग हैं।
उत्तर-
एक स्थायी और नियमित नौकरी होने से उन्हें नियमित और स्थायी कर्मचारी की तरह रोजगार मिलता है। उनका विभाग एवं कार्य तय होता है। काम नहीं होने पर भी उन्हें मजदूरों की तरह निकाला नहीं जाता है। उन्हें सही समय पर वेतन भी मिलता है। अनियमित मजदूरों की तरह उसे दूसरे कामों को करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इस तरह एक स्थायी नौकरी और – एक अनियमित काम से अलग है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तालिका को पूरा कीजिए।
उत्तर-
Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप 2

प्रश्न 6.
एक स्थायी एवं नियमित नौकरी करने वालों के वेतन के अलावा और कौन-कौन से लाभ मिलते हैं ?
उत्तर-
एक स्थायी एवं नियमित नौकरी करने वालों को वेतन के अलावे और कई लाभ मिलते है। जैसे बुढ़ापे के लिए बचत – उनके वेतन का एक हिस्सा भविष्य निधि में. जमा होता है। उसको बचत पर ब्याज भी मिलता है। उसे पेंशन भी सरकार देती है। रविवार और अन्य पर्व त्योहारों में छुट्टी मिलती. है। वार्षिक छुट्टी के रूप में कुछ दिन भी मिलते हैं। परिवार के लिए चिकित्सा की सुविधाएँ-सरकार एक सीमा तक कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्यों के इलाज का खर्च उठाती है।

Bihar Board Class 6 Social Science शहरी जीवन-यापन के स्वरूप Notes

पाठ का सारांश

भारत में पाँच हजार से ज्यादा शहर हैं और कई महानगर हैं। इन महानगरों में दस लाख से भी ज्यादा लोग रहते हैं और काम करते हैं। शहर की जिन्दगी कभी रुकती नहीं। वे नौकरी करते हैं या अपने व्यवसाय में लगे रहते हैं। वे अपना जीवन रोजगार और कमाई के द्वारा चलाते हैं।

यह बिहार की राजधानी पटना है। यह बहत बड़ा शहर है। में अक्सर यहाँ आती हूँ। देखती!

सडके के किनारे फल, सब्जी बेचने वाले अपने ठेले पर सब्जी एवं फल सजाकर अपना ठेला लेकर जा रहा होता है। सड़क के दूसरी ताफ एक व्यक्ति टेबल पर कई तरह के अखबार रखकर बेच रहा होता है।

Bihar Board Class 6 Social Science Civics Solutions Chapter 3 शहरी जीवन-यापन के स्वरूप

फुटपाथ, पटरी पर काम करने वाले की संख्या काफी अधिक होती है। सभी लोग स्वरोजगार में लगे होते हैं ! उनको कोई दूसरा व्यक्ति रोजगार नहीं देता है। वे स्वयं ही योजना के अनुसार अपना रोजगार करके अपना खुद का । व्यवसाय चलाते हैं। इन सभी व्यापारी को पटरीवाला व्यापारी कहा जाता है। ये व्यापारी सड़कों के किनारे फुटपाथ पर रखकर अपना सामान बेचते हैं। इनके द्वारा बेची जाने वाली वस्तुएँ दैनिक उपयोग की होती हैं। उदाहरण के लिए सड़कों पर गुप-चुप, समोसे, चाट, भंजा आदि इन व्यापारियों के पास कोई सुरक्षा नहीं होती है। पुलिस या नगरनिगम वाले इन्हें तंग भी करते हैं। उनको अक्सर दुकान हटाने के लिए कहा जाता है।

हमारे देश के शहरी इलाकों में लगभग एक करोड़ लोग फुटपाथ और ठेलों पर सामान बेचते हैं।

एक रिक्शा चालक-श्यामनारायण एक कृषक मजदूर हैं। जो गाँवों में खेती की फसल कटाई-बुवाई के समय गाँवों में काम करते हैं। जब खेतों में काम नहीं मिलता है तो ये शहर आकर रिक्शा चलाते हैं और रैन बसेरा में रात गुजारते हैं। इनके घर की महिलायें भी घर-घर के कार्य करती हैं।

परिवार के लिए चिकित्सा की सविधाएँ-सरकार एक सीमा तक कर्मचारी और उनके परिवार के सदस्यों के इलाज का खर्च उठाती है। इस तरह के कई कर्मचारी को बीमार पड़ने पर उसका इलाज का खर्च उठाती है।

इसी तरह सरकारी कर्मचारी को सुविधा दी जाती है। हमारे सहकर्मी के यहाँ काम करने वाली सरला घरों में अपनी सेवा देती है। ये दूसरे के घर जाकर बर्तन साफ करना, झाडू देना, पोछा लगाना आदि काम करती है। इसी प्रकार शहर में इतने सारे लोग इतनी तरह का काम करके अपना जीवन-यापन करते हैं। वे कभी एक-दूसरे से मिलते भी नहीं, मगर उनका काम उन्हें बांधता है और शहरी जीवन को बनाए रखता है।

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान : क्यों और कैसे?

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान : क्यों और कैसे? Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 1 संविधान : क्यों और कैसे?

Bihar Board Class 11 Political Science संविधान : क्यों और कैसे? Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
इनमें कौन-सा संविधान का कार्य नहीं है?
(क) यह नागरिकों के अधिकार की गारंटी देता है।
(ख) यह शासन की विभिन्न शाखाओं की शक्तियों के अलग-अलग क्षेत्र का रेखांकन करता है।
(ग) यह सुनिश्चित करता है, कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।
(घ) यह कुछ साझे मूल्यों की अभिव्यक्ति करता है।
उत्तर:
(ग) यह सुनिश्चित करता है, कि सत्ता में अच्छे लोग आएँ।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा कथन इस बात की दलील है, कि संविधान की प्रमाणिकता संसद से ज्यादा है?
(क) संसद के अस्तित्व में आने से कहीं पहले संविधान बनाया जा चुका था।
(ख) संविधान के निर्माता संसद के सदस्यों से कहीं ज्यादा बड़े नेता थे।
(ग) संविधान ही यह बताता है, कि संसद कैसे बनायी जाय और इसे कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
(घ) संसद, संविधान का संशोधन नहीं कर सकती।
उत्तर:
(ग) संविधान ही यह बताता है, कि संसद कैसे बनायी जाये और इसे कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त हो सकेगी।

Bihar Board Class 11th Political Science Solutions Chapter 1 संविधान : क्यों और कैसे?

प्रश्न 3.
बताएँ संविधान के बारे में निम्नलिखित कथन सही हैं या गलत?
(क) सरकार के गठन और उसकी शक्तियों के बारे में संविधान एक लिखित दस्तावेज है।
(ख) संविधान सिर्फ लोकतांत्रिक देशों में होता है, और उसकी जरूरत ऐसे ही देशों में होती है।
(ग) संविधान एक कानूनी दस्तावेज है, और आदर्शों तथा मूल्यों से इसका कोई सरोकार नहीं।
(घ) संविधान एक नागरिक को नई पहचान देता है।
उत्तर:
(क) सही
(ख) गलत
(ग) गलत
(घ) सही

प्रश्न 4.
बताएँ कि भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में निम्नलिखित अनुमान सही है, या नहीं। अपने उत्तर का कारण बताएँ।
(क) संविधान सभा में भारतीय जनता की नुमाइंदगी नहीं हुई। इसका निर्वाचन सभी नागरिकों द्वारा नहीं हुआ था।
(ख) संविधान बनाने की प्रक्रिया में कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया क्योंकि उस समय नेताओं के बीच संविधान की बुनियादी रूपरेखा के बारे में आम सहमति थी।
(ग) संविधान में कोई मौलिकता नहीं है, क्योंकि इसका अधिकांश हिस्सा दूसरे देशों से लिया गया है।
उत्तर:
(क) हमारी संविधान सभा के सदस्य सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं चुने गए थे, पर उसे अधिक से अधिक प्रतिनिधियात्मक बनाने की कोशिश की गयी थी विभाजन के बाद संविधान सभा में कांग्रेस का वर्चस्व था। कांग्रेस में सभी विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व था। अतः यह कहना असत्य होगा कि संविधान सभा भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी।

(ख) यह बात भी असत्य है, कि संविधान सभा के सदस्य एकमत थे, और उन्हें कोई बड़े निर्णय लेने की आवश्यकता नहीं थी। वास्तव में संविधान का केवल एक ही ऐसा प्रावधान है, जो बिना किसी वाद-विवाद के पारित हुआ कि मताधिकार किसे प्राप्त हो। इसके अतिरिक्त प्रत्येक विषय पर गंभीर विचार-विमर्श और वाद-विवाद हुए।

(ग) यह कहना गलत है, कि भारतीय संविधान मौलिक नहीं है, क्योंकि इसका अधिकांश भाग विश्व के अन्य देशों के संविधानों से लिया गया है। वास्तव में हमारे संविधान निर्माताओं ने आत्य संवैधानिक परम्पराओं से कुछ ग्रहण करने में परहेज नहीं किया। दूसरे देशों के प्रयोगों और अनुभवों से कुछ सीखने में संकोच भी नहीं किया। परन्तु उन विचारों को लेना कोई अनुकरण की मानसिकता नहीं थी, वरन संविधान के प्रत्येक प्रावधान को भारत की समस्याओं और आशाओं के अनुरूप ग्रहण कर उन्हें अपना बना लिया गया। भारत का संविधान एक विशाल दस्तावेज है। इसकी मौलिकता पर कोई प्रश्न नहीं लगाया जा सकता।

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प्रश्न 5.
भारतीय संविधान के बारे में निम्नलिखित प्रत्येक निष्कर्ष की पुष्टि में दो उदाहरण दें।
(क) संविधान का निर्माण विश्वसनीय नेताओं द्वारा हुआ। इनके लिए जनता के मन में आदर था।
(ख) संविधान ने शक्तिओं का बँटवारा इस तरह किया कि इसमें उलट-फेर मुश्किल है।
(ग) संविधान जनता की आशा और आकांक्षाओं का केन्द्र है।
उत्तर:
(क) संविधान का निर्माण उस संविधान सभा ने किया जो विश्वसनीय नेताओं से बनी थी। इस सभी नेताओं ने न केवल राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया था, वरन वे भारतीय समाज के सभी अंगों, सभी जातियों या समुदायों अथवा सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करते थे। भारतीय जनता का इनमें पूर्ण विश्वास था, और राष्ट्रीय आन्दोलन में उठने वाली सभी माँगों का संविधान बनाते समय ध्यान रखा गया। संविधान सभा के सदस्यों ने पूरे देश के हित को ध्यान में रखकर विचार-विमर्श किया।

(ख) संविधान ने शक्तियों का वितरण भी इस प्रकार किया कि जिससे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अपना-अपना कार्य समुचित रूप से कर सकें। कार्य वितरण के समय नियंत्रण एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को भी महत्त्व दिया गया। कोई एक सरकारी अंग अन्य दूसरे अंगों पर हावी नहीं हो सकता। कार्यपालिका के कार्यों पर संसद नियंत्रण रखती है। न्यायिक पुनरावलोकन द्वारा संसद अथवा मंत्रिमंडल के कार्यों की समीक्षा की जा सकती है। संविधान ने सुनिश्चित किया कि किसी एक समूह के लिए संविधान को नष्ट करना आसान न हो।

(ग) संविधान लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप बनाया गया। संविधान न्यायपूर्ण है। भारत के संविधान में न्याय के बुनियादी सिद्धान्तों का विशेष ध्यान रखा गया। लोगों के मौलिक अधिकार सुरक्षित रहें। जनता के उत्थान के लिए राज्य नीति निर्देशक सिद्धान्त, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, वयस्क मताधिकार, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों का विशेष ध्यान रखने के विभिन्न प्रावधान संविधान में दिए गए हैं। इस प्रकार संविधान जनता की आशाओं और आकांक्षाओं के अनुरूप ही बनाया गया है।

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प्रश्न 6.
किसी देश के लिए संविधान में शक्तियों और जिम्मेदारियों का साफ-साफ निर्धारण क्यों जरूरी है? इस तरह का निर्धारण न हो, तो क्या होगा?
उत्तर:
किसी भी देश के संविधान में विभिन्न संस्थाओं की शक्तियों का सीमांकन करना अत्यन्त आवश्यक होता है। जब कोई एक समूह या संस्था अपनी शक्तियों को बढ़ा लेती है, तो वह पूरे संविधान को नष्ट कर सकती है। इस समस्या के बचाव के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है, कि संविधान में शक्तियों का सीमांकन विभिन्न संस्थाओं में इस प्रकार किया जाए कि कोई भी समूह या संस्था संविधान को नष्ट न कर सके। संविधान को इस प्रकार बनाया जाए आर्थात् संविधान की रूपरेखा इस प्रकार से तैयार की जाए कि शक्तियों को ऐसी चतुराई से बाँट दिया जाए कि कोई एक संस्था एकाधिकार प्राप्त न कर सके।

ऐसा करने के लिए शक्तियों का विभाजन विभिन्न संस्थाओं में किया जाए। उदाहरणार्थ, भारतीय संविधान में शक्तियों का विभाजन कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के मध्य तथा कुछ स्वतन्त्र संवैधानिक निकायों जैसे निर्वाचन आयोग आदि में किया जाता है। केन्द्र और राज्यों के बीच भी शक्तियों का सीमांकन किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है, कि यदि कोई एक संस्था संविधान को नष्ट करना चाहे तो अन्य संस्थाएँ उसके अतिक्रमण को रोक सकती हैं। भारतीय संविधान में अवरोध व सन्तुलन का सिद्धान्त भी इसीलिए अपनाया गया है।

जब विधायिका अपने क्षेत्र का अतिक्रमण करती है तो न्यायापलिका को यह अधिकार है, कि वह उसके द्वारा निर्मित विधान को असंवैधानिका घोषित कर सकती है। कार्यपालिका की शक्तियों को असीम बनने से रोकने के लिए विधायिका को उस पर विभिन्न प्रकार से अंकुश लगाने का अधिकार है। वह प्रश्न पूछकर, काम रोको प्रस्ताव लाकर, अविश्वास प्रस्ताव आदि के द्वारा कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों का सीमांकन संविधान द्वारा पहले से ही किया है, और ये सभी संस्थाएँ अपने-अपने कार्यक्षेत्र में स्वतन्त्र रूप से कार्य करती हैं परन्तु अपनी सीमाओं का अतिक्रमण नहीं कर सकतीं।

दूसरी संस्थाएँ उनके अतिक्रमण को नियंत्रित कर लेती हैं। यदि संविधान में इन शक्तियों का बँटवारा या सीमांकन विभिन्न संस्थाओं में नहीं किया जाता तो कोई एक संस्था या सरकार कोई एक अंग अपनी शक्तियों को बढ़ा लेता और वह संविधान को नष्ट कर सकता था, तथा निरंकुशता पूर्ण शासन करने लगता जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है।

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प्रश्न 7.
शासकों की सीमा का निर्धारण संविधान के लिए क्यों जरूरी है? क्या कोई ऐसा भी संविधान हो सकता है, जो नागरिकों को कोई अधिकार न दे।
उत्तर:
संविधान का एक प्रमुख कार्य यह भी है, कि वह सरकार द्वारा अपने नागरिकों पर लागू किए जाने वाले कानूनों पर कुछ सीमाएँ लगाए। ये सीमाएँ इस रूप में मौलिक होती हैं, कि सरकार कभी उनका उल्लंघन नहीं कर सकती। संसद नागरिकों के लिए कानून बनाती है, कार्यपालिका कानूनों के प्रारूप तैयार करती है, और कई बार मंत्रिमंडल के सदस्य अथवा संसद ही इस प्रकार के कानून बनाने का प्रयास करें जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रता समाप्त हो जाए तो इसे रोकने के लिए संसद की शक्तियों पर नियंत्रण लगाना अत्यन्त आवश्यक है।

भारतीय संविधान में संशोधान करने के लिए संसद को न्यायपालिका द्वारा निषेध कर दिया गया है, कि संसद संविधान के बुनियादी ढाँचे में परिवर्तन नहीं कर सकती अथवा वह संविधान के मूल स्वरूप को नहीं बदल सकती। संविधान सरकार की शक्तियों को कई प्रकार से सीमित करता है। संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का स्पष्टीकरण किया गया है, जिनका उल्लंघन कोई भी सरकार नहीं कर सकती। नागरिकों को मनमाने ढंग से बिना किसी कारण के गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह सरकार की शक्तियों के ऊपर एक बन्धन या सीमा कहलाती है। प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार अपना व्यवसाय चुनने का अधिकार है।

इस पर सरकार कोई प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। नागरिकों को जो स्वतन्त्रताएँ मूलतः प्राप्त है जैसे-भाषण की स्वतन्त्रता अन्तरात्मा की अवाज पर काम करने का अधिकार या संगठन बनाने की स्वतन्त्रता या देश के किसी भी भाग में भ्रमण करने की स्वतन्त्रता आदि पर सरकार सामान्य परिस्थिति में प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती।

कोई भी सरकार स्वयं भी किसी से बेगार नहीं ले सकती और न ही किसी व्यक्ति को इस बात की छूट दे सकती कि वह दूसरे व्यक्तियों का शोषण करें, उन्हें बन्धुआ मजदूर बनाए आदि। इस प्रकार के कर्त्तव्यों पर सीमाएँ लगायी जाती हैं। दुनिया का कोई भी संविधान अपने नागरिकों को शक्तिविहीन नहीं कर सकता। हाँ तानाशाह शासक अवश्य संविधान को नष्ट कर देते हैं, और वे नागरिकों की स्वतन्त्रताओं का हनन करने की कोशिश करते हैं, यद्यपि संविधान में नागरिकों को सुविधाएँ प्रदान की जाती है।

प्रश्न 8.
जब जापान का संविधान बना तब दूसरे विश्वयुद्ध में पराजित होने के बाद जापान अमेरिकी सेना के कब्जे में था। जापान के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान होना संभव नहीं था, जो अमेरिको सेना की पसंद न हो। क्या आपको लगता है, कि संविधान को इस तरह बनाने में कोई कठिनाई है? भारत में संविधान बनाने का अनुभव किस तरह इससे अलग है?
उत्तर:
जापान का संविधान ऐसे समय में निर्मित हुआ था, जब वह अमेरिका की सेना की नियंत्रण में था। अतः जापान के संविधान का कोई भी प्रावधान अमेरिका की सरकार की आकांक्षाओं के विरुद्ध नहीं था। यह सब इस कारण से होता है, क्योंकि अधिकतर देशों में संविधान वह लिखित दस्तावेज होता है, जिसमें राज्य के विषय में कई प्रावधान होते हैं, जो यह बताते हैं, कि राज्य किन सिद्धान्तों का पालन करेगा।

राज्य की सरकार किस विचारधारा पर आधारित नियमों एवं सिद्धान्तों के द्वारा शासन चलाएगी। जब किसी राज्य पर दूसरे राज्य का आधिपत्य हो जाता है, तो उस राज्य के संविधान में शासकों की इच्छओं के विपरीत कोई प्रावधान नहीं रखे जा सकते। अतः यह स्वाभाविक ही है, कि जापान के संविधान में अमेरिकी शासकों के हितों का विशेष ध्यान रखा गया।

भारत के संविधान को बनाते समय ऐसी कोई बात नहीं थी। भारत ने लोकतन्त्रीय शासन को अपनाया तथा अपने राष्ट्रीय आन्दोलन के समय सामने आने वाली समस्याओं के निराकरण का भी ध्यान रखा। अनेक देशों में संविधान निष्प्रभावी होते हैं, क्योंकि वे सैनिक शासकों या ऐसे नेताओं के द्वारा बनाये जाते हैं, जो लोकप्रिय नहीं होते और जिसके पास लोगों को अपने साथ लेकर चलने की क्षमता नहीं होती।

यद्यपि भारतीय संविधान को औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने दिसम्बर 1946 ई. और नवम्बर 1949 ई. के मध्य बनाया। पर, ऐसा करने में उसने राष्ट्रीय आन्दोलन के लम्बे इतिहास से काफी प्रेरणा ली, जिसमें समाज में सभी वर्गों को एक साथ लेकर चलने की विलक्षण क्षमता थी। संविधान को भारी वैधता मिली क्योंकि उसे ऐसे लोगों द्वारा बनाया गया जिनकी अत्यधिक सामजिक विश्वसनीयता थी। संविधान का अन्तिम प्रारूप उस समय की राष्ट्रीय व्यापक आम सहमति को व्यक्त करता है।

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प्रश्न 9.
रजत ने अपने शिक्षक से पूछा-‘संविधान एक पचास साल पुराना दस्तावेज है, और इस कारण पुराना पड़ चुका है। किसी ने इसको लागू करते समय मुझसे राय नहीं माँगी। यह इतनी कठिन भाषा में लिखा हुआ है, कि मैं इसे समझ नहीं सकता। आप मुझे बताएँ की मैं इस दस्तावेज की बातों का पालन क्यों करूँ?’ अगर आप शिक्षक होते तो रजत को क्या उत्तर देते?
उत्तर:
यदि मैं रजत का शिक्षक होता तो उसके प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार से देता-भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता है, कि यह कठोर तथा लचीला दोनों का मिश्रण है। संविधान अनेक धाराओं के साधारण बहुमत से संशोधित किया जा सकता है। संशोधन की यह प्रक्रिया संविधान को लचीला बना देती है। कुछ विषय ऐसे भी हैं, जिनमें संशोधन की प्रक्रिया अत्यधिक जटिल है। इन धाराओं में संशोधन करने के लिए संसद के स्पष्ट बहुमत तथा उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संशोधन किया जा सकता है। कुछ अनुच्छेद ऐसे भी हैं, जिनमें संशोधन करने के लिए कम से कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों से अनुमोदन कराना आवश्यक है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि 50 वर्षों के बाद भी भारतीय संविधान कोई बीते दिनों की पुस्तक नहीं कही जा सकती क्योंकि यह एक ऐसा संविधान है, जिसमें आवश्यकतानुसार संशोधन किया जा सकता है, परन्तु उसके अधिकांश प्रावधान इस प्रकार के हैं जो कभी भी पुराने नहीं पड़ सकते। संविधान का मूल ढाँचा तो सदैव ही एक जैसा रहेगा उसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता। अतः यह कहना त्रुटिपूर्ण होगा कि भारतीय संविधान 50 वर्षों के बाद बीते दिनों की पुस्तक बनकर रह गयी है।

इसमें अभी तक लगभग 93 संशोधन हो चुके हैं। इस संविधान का निर्माण जिस संविधान सभा के द्वारा किया गया उसमें लगभग 82 प्रतिशत प्रतिनिधि कांग्रेस के सदस्य थे, और इसमें भारत के सभी घटकों, सभी धर्मों, सभी विचारधाराओं तथा सभी जाति एवं जनजातियों व पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधि भी शामिल थे। ये सभी व्यक्ति बड़े योग्य एवं अनुभवी थे। अत: संविधान को इस प्रकार से तैयार किया गया जिससे की वह समय के साथ-साथ सभी चुनौतियों का सामना करता रहेगा।

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प्रश्न 10.
संविधान के क्रिया-कलाप से जुड़े अनुभवों को लेकर एक चर्चा में तीन वक्ताओं ने तीन अलग-अलग पक्ष दिए –
(अ) हरबंस-भारतीय संविधान में एक लोकतान्त्रिक ढाँचा प्रदान करने में सफल रहा है।
(ब) नेहा-संविधान में स्वतन्त्रता, समता और भाईचारा सुनिश्चित करने का विधिवत् वादा है। चूंकि ऐसा नहीं हुआ इसलिए संविधान असफल है।
(स) नाजिमा-संविधान असफल नहीं हुआ, हमने उसे असफल बनाया। क्या आप इनमें से किसी पक्ष से सहमत हैं, यदि हाँ, तो क्यों? यदि नहीं, तो आप अपना पक्ष बताएँ।
उत्तर:
तीनों व्यक्तियों के इस संवाद में यह दर्शाने की कोशिश की गयी है, कि हमारे संविधान के क्रियाकलाप लाभप्रद हैं, अथवा नहीं। अपने प्रथम अनुभव के आधार पर हरबंश का मानना है, कि भारतीय संविधान हमें एक लोकतन्त्रात्मक सरकार का आधारभूत ढाँचा देने में सफल रहा है। परन्तु दुसरे वक्ता के रूप में नेहा का विश्वास है, कि संविधान में समानता, स्वतन्त्रता एवं बन्धुता के आश्वासन दिए जाने के बावजूद उनको पुरा नहीं किया गया है। ऐसा न होने के कारण संविधान असफल हो रहा है। नाजिमा का कथन कुछ इस प्रकार है, कि यह संविधान नहीं है, जिसने हमें असफल किया है, वरन ये हम हैं जिन्होंने संविधान को ही असफल कर दिया।

हम जानते हैं, कि भारतीय संविधान का निर्माण एक ऐसी संविधान सभा द्वारा किया गया जिसके सदस्य बड़े योग्य तथा राजनीतिक रूप से बड़े अनुभवी व्यक्ति थे। उन्होंने एक ऐसा संविधान तैयार किया जो भारत के नागरिकों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने का साधन हो और भारत के विभिन्नताओं के लोगों को सर्वमान्य हो। अतः सभी वर्गों के कल्याण एवं उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान में लोकतन्त्रीय शासन को स्थापित किया गया। संविधान में शासन के विभिन्न अंगों के सम्बन्धों का भी वर्णन किया गया।

व्यक्ति की स्वतन्त्रता को कायम रखने के लिए मौलिक अधिकार, न्यायालय की स्वतन्त्रता, विधि की शासन आदि को अपनाया गया। भारत में लोकतन्त्र की नींव रखी गयी और इसे शक्तिशाली बनाने के हरसम्भव प्रयास किए गए। भारत के संविधान की प्रस्तावना में ही यह भी दर्शाया गया है, कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना है, जिससे भारतीय नागरिक अपने को स्वतन्त्र महसूस करें। यह प्रयास किया गया कि संविधान में भारतीय शासन को आदर्श लोकतन्त्रात्मक शासन के रूप में सिद्धान्ततः स्वीकार किया जाए। परन्तु व्यवहार में भारतीय लोकतन्त्र विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक बुराईयों से पीड़ित हो रहा है।

नेहा के विश्वास के अनुसार संविधान में अनेक वायदों को लिया गया। नागरिकों को स्वतन्त्रता, समानता, बन्धुता एवं धार्मिक उपासना जैसे अधिकारों से सुसज्जित किया गया है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। नागरिकों की स्वतन्त्रता पर सरकार विशेष अवसरों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है। समानता का अधिकार हमारे समाज मे अभी भी पूरी तरह से सफल नहीं हुआ। समानता, स्वतन्त्रता और बन्धुता समाज में कायम नहीं हो पायी अतः संविधान असफल रहा है। आज भी चुनाव के समय धन एवं बाहुबलियों का सहारा लिया जाता है। लोगों की भावनाओं को भड़काकर वोट माँगे जाते हैं, और बाद में उनके हितों की अनदेखी होती रहती है।

नाजिमा को यह विश्वास है, कि संविधान ने हमें असफल नहीं किया वरन हमने ही संविधान को फेल कर दिया है। संविधान के मूल ढाँचे से भी हम छेड़छाड़ करने लगते हैं। संविधान में सबं कुछ लिखा हुआ होते हुए भी हमारी सरकारों ने ईमानदारी से नागरिकों को काम करने का अधिकार, शिक्षा का अधिकार या एक ही प्रकार के कार्य के लिए स्त्री तथा पुरुष दोनों को समान वेतन आदि कार्यों को पूर्ण नहीं किया। अत: यह संविधान नहीं है, जिसने हमें असफल किया है, वरन यह हम हैं, जिन्होंने संविधान को असफल किया है। परन्तु नाजिमा का यह कथन पूर्णतया सत्य नहीं है। हमारा संविधान तो काफी आगे बढ़ने का प्रयास कर रहा है। भले ही भारत में अभी भी 26 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं, परन्तु पहले की अपेक्षा ‘उसमें कमी तो हो रही है। 2020 तक भारत को विकसित देशों की श्रेणी में लाने के प्रयास हो रहे हैं, तो यह संविधान की सफलता ही तो है।

Bihar Board Class 11 Political Science संविधान : क्यों और कैसे? Additional Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारत के संविधान में किन विषयों में संशोधन करने के लिए साधारण प्रक्रिया अपनायी जाती है?
उत्तर:
भारत का संविधान लचीला भी है, कठोर भी अर्थात् लचीले और कठोर का समन्वय है। कुछ प्रावधानों में संशोधन करने की प्रक्रिया केवल साधारण विधेयक पारित करने की प्रक्रिया के सामन ही है। जैसे –

  1. राज्यों के नाम में परिवर्तन करना।
  2. राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करना।
  3. राज्यों में विधान परिषद् की स्थापना या समाप्ति, आदि।

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प्रश्न 2.
भारतीय संविधान के कोई चार एकात्मक लक्षण बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के चार एकात्मक लक्षण निम्नलिखित हैं –

  1. शक्तिशाली केन्द्र: संविधान निर्माता संघात्मक शासन की कमजोरियों से अवगत थे। अतः उन्होंने भारत में शक्तिशाली केन्द्र की स्थापना की। केन्द्र संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर तो कानून बनाता ही है, वह विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकता है।
  2. आपातकालीन शक्तियाँ: राष्ट्रपति के द्वारा आपातकाल की घोषणा करने पर भारत संघीय शासन का रूप ले लेते।
  3. राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है, और वे विशेष परिस्थितियों में केन्द्र के एजेन्ट के रूप में कार्य करते हैं।
  4. भारत में इकहरी नागरिकता है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में कौन सा सर्वाधिक उपयुक्त कारण हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता हो कि संविधान संसद की अपेक्षा सर्वोच्च है?

  1. संविधान संसद से पहले अस्तित्व में आया।
  2. संविधान निर्माता संसद सदस्यों से अधिक महत्त्वपूर्ण नेता थे।
  3. संविधान तय करता है, कि संसद का निर्माण कैसे हो तथा उसकी शक्तियाँ क्या हों।
  4. संविधान संसद द्वारा संशोधन नहीं किया जा सकता।

उत्तर:
संविधान संसद से सर्वोच्च है, क्योंकि संविधान ही तय करता है, कि संसद का निर्माण कैसे हो तथा उसकी शक्तियाँ क्या होंगी।

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प्रश्न 4.
संविधान में प्रस्तावना की आवश्यकता पर एक टिप्पणी लिखो। अथवा, संविधान की प्रस्तावना का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। दर्शन को समझे बिना संविधान समझना कठिन होता है, और इस विशेष दर्शन का वर्णन ‘प्रस्तावना’ में किया जाता है। हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है। संविधान में प्रस्तावना की आवश्यकता इसलिए है, ताकि संविधान के लक्ष्यों, उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का संक्षिप्त और स्पष्ट वर्णन किया जा सके। सरकार के मार्गदर्शक सिद्धान्तों का वर्णन भी प्रस्तावना में ही किया जाता है।

इसके अतिरिक्त संविधान का आरम्भ एक प्रस्तावना से करना एक संवैधानिक प्रथा बन गई है। 1789 ई. के संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान, 1874 ई. के स्विट्जरलैंड के संविधान, 1937 ई. के आयरलैंड के संविधान, 1946 ई. के जापान के संविधान, 1949 ई. के तत्कालीन पश्चिमी जर्मनी के संविधान, 1954 ई. के समाजवादी चीन के संविधान और 1973 ई. के बंग्लादेश के संविधान का आरम्भ प्रस्तावना से होता है। अतः भारतीय संविधान निर्माताओं ने संविधान का आरम्भ भी प्रस्तावना से किया।

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. प्रस्तावना में भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय प्रदान करने की बात कही गयी है।
  2. प्रस्तावना में कहा गया है, की भारतीय जनता को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता होगी।
  3. प्रस्तावना में प्रतिष्ठा व अवसर की समानता की बात कही गई है।
  4. प्रस्तावना में बन्धुत्व की कल्पना की गई है।
  5. प्रस्तावना में राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को सर्वोपरि स्थान दिया गया है।

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प्रश्न 6.
भारतीय संविधान के दो स्त्रोतों से लिए गए प्रावधानों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत का संविधान 1935 ई. के भारत शासन अधिनियम तथा विभिन्न देशों के संविधानों से प्रभावित संविधान है। इसके विभिन्न स्रोतों में से दो स्रोतें निम्नलिखित हैं –

  1. ब्रिटेन का संविधान
  2. अमेरिका का संविधान

ब्रिटेन के संविधान का प्रभाव तत्कालीन भारतीय नेताओं पर था, और होना भी स्वाभाविक था। इस संविधान से हमने संसदीय शासन प्रणाली, विधि प्रक्रिया, विधायिका के अध्यक्ष का पद, इकहरी नागरिकता और न्यायपालिका के ढाँचे का प्रावधान भारतीय संविधान में लिए हैं। अमेरिका के संविधान से संविधान की सर्वोच्चता, संघीय व्यवस्था, न्यायिक पुनरावलोकन, निर्वाचित राज्याध्यक्ष, राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने की प्रक्रिया, संविधान संशोधन में राज्यों की विधायिकाओं द्वारा अनुमोदन आदि प्रमुख प्रावधान लिए गए हैं।

प्रश्न 7.
संसदीय शासन प्रणाली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत में संसदीय शासन प्रणाली अपनायी गयी है। संसदात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका का अध्यक्ष नाममात्र का होता है। वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिपरिषद् के पास होती हैं। मंत्रिपरिषद् का निर्माण व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। प्रधानमंत्री निम्न सदन के बहुमत दल का नेता होता है। मंत्रियों को सामूहिक उत्तरदायित्व होता है। भारत में इसी प्रकार की शासन व्यवस्था है।

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प्रश्न 8.
इकहरी नागरिकता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
इकहरी नागरिकता का अर्थ है, कि किसी राज्य में व्यक्तियों को केवल एक ही नागरिकता प्राप्त होती है। संघात्मक शासन वाले राज्यों में सामान्यतः दोहरी नागरिकता होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में व्यक्ति अमेरिका का नागरिक होने के साथ-साथ अपने उस राज्य का भी नागरिक होता है, जिसका वह निवासी है। भारत में संघात्मक शासन होते हुए भी यहाँ पर नागरिकों को इकहरी नागरिकता ही प्राप्त है।

प्रश्न 9.
क्या संविधान संशोधनों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है?
उत्तर:
भारत के संविधान में 42वीं संशोधन करके यह व्यवस्था बना दी गयी है, कि संविधान संशोधन को किसी भी न्यायालय में किसी आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी परन्तु मिनर्वा मिल केस (1980 ई.) में उच्चतम न्यायलय ने संविधान की इस धारा को अवैध घोषित कर दिया। इसका अभिप्राय यह है, कि न्यायलय को संविधान की जाँच करने की शक्ति प्राप्त है।

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो –
(क) पंथ निरपेक्ष राज्य
(ख) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार
(ग) भारतीय संविधान के स्वतंत्र अधिकरण
उत्तर:
(क) पंथ निरपेक्ष राज्य:
जिन राज्यों में किसी धर्म विशेष को राज्य का धर्म स्वीकार न करके सभी धर्मों को समान समझा जाए तथा राज्य के नागरिक अपनी इच्छानुसार अपने धर्म का पालन कर सकें उसे पंथ-निरपेक्ष राज्य कहते हैं।

(ख) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार:
राज्य के द्वारा जब एक निश्चित आयु (वयस्क होने की आयु, भारत में यह 18 वर्ष है) पूरी करने वाले अपने सभी नागरिकों को जाति, रंग, नस्ल, लिंग, शिक्षा तथा आय के भेदभाव के बिना मताधिकार दिया जाता है तो इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहते हैं।

(ग) भारतीय संविधान के स्वतन्त्र अभिकरण:
भारतीय संविधान में निम्नलिखित स्वतन्त्र अभिकरण दिए गए हैं –

  • निर्वाचन आयोग
  • नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक
  • संघ लोक सेवा आयोग
  • राज्य लोक सेवा आयोग आदि

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प्रश्न 11.
राजनैतिक और आर्थिक न्याय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में राजनीतिक और आर्थिक न्याय का वर्णन निम्नलिखित सन्दर्भ में किया गया है –

  1. राजनैतिक न्याय-राजनैतिक न्याय का अर्थ है, कि सभी व्यक्तियों को धर्म, जाति, रंग आदि भेदभाव के बिना समान राजनैतिक अधिकार प्राप्त हों। सभी नागरिकों को समान मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
  2. आर्थिक न्याय-आर्थिक न्याय से अभिप्राय है, कि प्रत्येक को अपनी आजीविका कमाने के समान अवसर प्राप्त हों तथा कार्य के लिए उचित वेतन प्राप्त हो।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना से क्या तात्पर्य है? प्रस्तावना में लिखे गए प्रमुख आदर्श कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है। संविधान की प्रस्तावना में संविधान के लक्ष्यों, उद्देश्यों तथा सिद्धान्तों का संक्षिप्त और स्पष्ट वर्णन किया गया है। भारत सरकार व राज्य सरकारों के मार्गदर्शक सिद्धान्तों का वर्णन भी प्रस्तावना में ही किया गया है। प्रस्तावना ही हमें यह बतलाती है, कि भारत में सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य की स्थापना की गई है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श हैं, कि भारत प्रभुत्वसंपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य है।

प्रश्न 13.
भारतीय संविधान की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. भारतीय संविधान लिखित तथा विश्व का विशालतम संविधान है।
  2. संविधान के द्वारा भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्त्तव्यों का वर्णन किया गया है।
  3. भारतीय संविधार कठोर और लचीले संविधानों का मिश्रण है।

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प्रश्न 14.
संविधान सभा के किन्हीं आठ सदस्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
संविधान सभा के मुख्य सदस्य थे –

  1. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  2. डॉ. भीमराव अम्बेडकर
  3. पण्डित जवाहरलाल नेहरू
  4. सरदार वल्लभ भाई पटेल
  5. मौलाना अबुल कलाम आजाद
  6. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
  7. सरदार बलदेव सिंह
  8. श्रीमती सरोजनी नायडू

प्रश्न 15.
संविधान सभा द्वारा संविधान कब पारित किया गया तथा कब इसे लागू किया गया?
उत्तर:
संविधान सभा द्वारा संविधान को 26 नवम्बर, 1949 को पारित किया गया तथा इसे 26 जनवरी, 1950 ई. को लागू किया गया।

प्रश्न 16.
राजनीतिक समानता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
राजनीतिक समानता भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता है। राजनीतिक समानता का अर्थ है, कि देश की राजनीतिक क्रिया-कलापों में सभी को बिना किसी भेदभाव के भाग लेने का अधिकार एवं सभी को वोट देने का अधिकार।

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प्रश्न 17.
भारतीय संविधान का जन्म या निर्धारण करने वाली संविधान सभा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा में जनसंख्या के आधार पर प्रान्तों से 296 और देशी रियासतों से 93 प्रतिनिधियों की व्यवस्था की गई। प्रान्तों के प्रतिनिधियों को प्रान्तों की व्यवस्थापिका के निचले सदन से अप्रत्यक्ष रूप से चुना गया। इन्हें तीन श्रेणियों-सामान्य, मुस्लिम, और सिक्ख, में जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया। रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव का प्रश्न आपसी समझौते के आधार पर तय होना था।

प्रश्न 18.
संविधान सभा में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद तथा डॉ. भीमराव अम्बेडकर के विशिष्ट स्थान कैसे थे?
उत्तर:
संविधान सभा ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को अपना सभापति तथा डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को प्रारूप समिति का सभापति बनाया।

प्रश्न 19.
किसी देश के लिए संविधान का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी भी देश के लिए संविधान बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए संविधान को सरकार की शक्ति तथा सत्ता का स्रोत कहा जाता है। संविधान में यह वर्णित है, कि सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियाँ क्या हैं, तथा वे क्या कर सकती हैं। ऐसा करने का उद्देश्य यह होता है, कि सरकार के विभिन्न अंगों में तनाव उत्पन्न न हो। संविधान के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं –

  1. सरकार के विभिन्न अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों का व्याख्या करना।
  2. सरकार और नागरिकों के सम्बन्धों का वर्णन करना। संविधान की सबसे अधिक उपयोगिता यह है, कि वह सरकार द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकता है। इसलिए संविधान देश में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रलेख है।

प्रश्न 20.
संविधान का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संविधान किसी देश के शासन की रीढ़ है। शासन के नियमों का समूह, उसके आधारभूत सिद्धान्तों का संग्रह संविधान कहलाता है। शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए संविधान की रचना की जाती है। इस कार्य में देश की तत्कालीन परिस्थितियों और संविधान निर्माताओं के आदर्शों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

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प्रश्न 21.
लिखित संविधान किसे कहते हैं?
उत्तर:
लिखित संविधान उस संविधान सभा द्वारा पारित होता है, जो इसी उद्देश्य के लिए बुलाई जाती है। भारत का संविधान लिखित है। 1946 में एक संविधान सभा की रचना की गई जिसने इस संविधान का निर्माण किया।

प्रश्न 22.
भारतीय संविधान की अद्वितीय विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान की अद्वितीय विशेषताएँ –

  1. भारत का संविधान एकात्मक और संघात्मक दोनों का मिश्रण है।
  2. भारत के संविधान में यद्यपि संसदात्मक शासन को अपनाया गया है, परन्तु इसमें अध्यक्षात्मक शासन के भी तत्व पाये जाते हैं।
  3. भारत एक संघात्मक राज्य है, परन्तु यहाँ इकहरी नागरिकता है।
  4. भारत के संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार एवं मूल स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गई हैं, परन्तु राष्ट्रीय हित में उन पर प्रतिबन्ध भी लगाए जा सकते हैं। आपात स्थिति में उन्हें राष्ट्रपति द्वारा निलम्बित किया जा सकता है।
  5. भारत का संविधान भारतीय जनता द्वारा निर्मित है। एक संविधान सभा का निर्माण किया गया जो प्रान्तीय विधान सभाओं द्वारा परोक्ष रूप से निर्वाचित की गयी।
  6. देश की सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित है।
  7. भारत को संविधान द्वारा एक गणराज्य घोषित किया गया है।
  8. संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व दिए गए हैं।
  9. संघीय तथा राज्य विधानमण्डलों के अधिनियमों और कार्यपालिका के क्रियाकलापों की न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था है।
  10. भारतीय संविधान कठोर तथा लचीला दोनों का मिश्रण है।

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प्रश्न 23.
भारतीय संविधान का निर्माण कब हुआ?
उत्तर:
भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा किया गया। 9 दिसम्बर, 1946 ई. को संविधान सभा बुलाई गई। डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा इसके अस्थायी अध्यक्ष थे। 11 दिसम्बर, 1946 ई. को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया। संविधान सभा के 2 वर्ष 11 मास और 18 दिन के अथक प्रयास द्वारा 26 नवम्बर 1949 ई. को भारत का संविधान सम्पूर्ण हुआ और ऐतिहासिक दिवस 26 जनवरी, 1950 ई. से इसे लागू किया गया।

प्रश्न 24.
भारतीय संविधान 26 जनवरी, 1950 ई. को क्यों लागू किया गया?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई. को बनकर तैयार हो गया था, परन्तु उसे 2 महीने बाद 26 जनवरी, 1950 ई. को लागू किया गया। इसका एक कारण यह था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस के 31 दिसम्बर, 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग का प्रस्ताव पारित कराया था और 26 जनवरी, 1930 ई. का दिन सारे भारत में ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाया गया था। इसके बाद प्रतिवर्ष 26 जनवरी को इसी रूप में मनाया जाने लगा। इसी पवित्र दिवस की यादगार को ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने संविधान को 26 जनवरी, 1950 ई. से लागू किया।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना लिखें।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना प्रकार है –
“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न समाजवादी धर्म निरपेक्ष लोकतन्त्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष) शुक्ल सप्तमी संवत् 2006 वि. को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते है।”

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प्रश्न 2.
“न्यायिक पुनरावलोकन” के सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन-संविधान ने भारत में संघीय व्यवस्था की स्थापना की है। ऐसी व्यवस्था में न्यायपालिका को संविधान के रक्षक के रूप में स्थापित किया जाता है। भारत में सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों को पुनरावलोकन का अधिकार प्राप्त है। इसका अर्थ है, न्यायपालिका विधानमण्डलों (संसद तथा राज्यों के विधानमण्डल) द्वारा बनाए गए कानून संविधान की दृष्टि से पुनरावलोकन कर सकती है, कि सम्बन्धित विधायिका ने वह कानून संविधान के अनुसार बनाया है या नहीं। यदि न्यायपालिका की दृष्टि में विधायिका द्वारा पारित कोई कानून संविधान की धाराओं के विपरीत है, तो वह उसे निरस्त या रद्द घोषित कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने अपने इस अधिकार का काफी प्रयोग किया है। न्यायपालिका का मानना है, कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, परन्तु संविधान के मूलभूत ढाँचे को नहीं बदल सकती।

प्रश्न 3.
भारतीय संविधान की संघात्मक विशेषताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के द्वारा भारत में संघात्मक शासन की स्थापना की गई है, या एकात्मक की, इसके बारे में विद्वानों के विचारों में मतभेद है। कुछ विद्वान इसे पूर्णतया संघात्मक मार मानते हैं, तो कुछ उसे इसे अर्द्ध-संघात्मक तथा कुछ विचारक ऐसे भी हैं, जो इसे एकात्मक शासन के रूप में स्वीकार करते हैं। श्री के. सी. बीहर के अनुसार, “भारत एकात्मक राज्य है, जिसमें संघीय विशेषताएँ नाममात्र की हैं, न कि यह एक संघात्मक राज्य है, जिसमें कुछ एकात्मक ‘विशेषताएँ हैं।” डी. डी. बसु के अनुसार, “भारतीय संविधान न तो पूर्णतया संघात्मक है, और न ही पूर्णतया एकात्मक, यह दोनों का मिश्रण है।

भारतीय संविधान की संघात्मक विशेषताएँ:

1. लिखित संविधान-भारत में एक लिखित संविधान है। इसमें संघात्मक शासन की व्यवस्था विभिन्न इकाईयों (राज्यों) के समझौते द्वारा की जाती है। इसीलिए यहाँ भी संविधान सभा ने अमेरिका, रूस या जापान की तरह एक लिखित: संविधान तैयार किया है।

2. कठोर संविधान-भारत का संविधान लिखित होने के साथ-साथ कठोर भी है। इसमें संशोधन करने की विधि आसान नहीं है। संविधान के महत्त्वपूर्ण विषयों में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों के उपस्थित सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत एवं कुल सदस्यों का बहुमत तथा कम से कम आधे राज्यों के विधान मण्डलों की स्वीकृति आवश्यक होती है।

3. शक्तियों का विभाजन-भारतीय संविधान के अनुसार संघ तथा राज्यों के बीच शक्तियों का बँटवारा किया गया है। दोनों के अधिकारों को –

  • संघ सूची
  • राज्य सूची और
  • समवर्ती सूची में विभाजित किया गया है।
  1. संघ सूची में 97 विषय है। इन विषयों पर संसद को कानून का अधिकार है।
  2. राज्य सूची में 66 विषय हैं, जिन पर राज्य की विधायिकाओं को कानून बनाने का अधिकार है।
  3. समवर्ती सूची में 47 विषय हैं। इस पर केन्द्र तथा राज्य विधान मण्डल दोनों का अधिकार है, परन्तु टकराव की स्थिति में केन्द्र की संसद द्वारा निर्मित कानून लागू होगा।
  4. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता सुनिश्चित की गई है।
  5. द्विसदनीय व्यवस्थापिक है। निम्न सदन लोक सभा तथा उच्च सदन राज्य सभा है।

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प्रश्न 4.
भारतीय संविधान संसदीय सर्वोच्चता एवं न्यायपालिका की सर्वोच्चता के बीच से गुजरता है। बताइए, कैसे?
उत्तर:
भारतीय संविधान में ब्रिटेन की तरह संसदीय प्रभुता तथा अमेरिका की तरह न्यायिक सर्वोच्चता इन दोनों के बीच का मार्ग अपनाकर दोनों में समन्वय स्थापित किया गया है। ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। उसके द्वारा पारित कानूनों को न तो सम्राट वीटो कर सकता है, और न न्यायालय उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। उधर अमेरिका में संविधान की व्याख्या और विधियों की संवैधानिकता के सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को प्राप्त है।

भारतीय संविधान में ब्रिटिश संविधान की भाँति संघात्मक व्यवस्था के आदर्श को अपनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय को संविधान का संरक्षण तथा व्याख्या करने का अधिकार भी दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय उन विधियों को अवैध घोषित कर सकता है, जो संविधान के विरुद्ध. हों। संसद को भी यह अधिकार है, कि आवश्यकता पड़ने पर विशिष्ट बहुमत के आधार पर संविधान में संशोधन कर सकती है। इस प्रकार भारतीय संविधान अद्भुत ढंग से संसदीय सर्वोच्चता एवं न्यायालय की सर्वोच्चता के बीच का मार्ग अपनाता है।

प्रश्न 5.
भारतीय नागरिकों के कोई पाँच मौलिक कर्त्तव्य लिखें।
उत्तर:
भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह –

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्श, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
  2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
  3. भारत की प्रभुसत्ता, एकता और अखण्डता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
  4. देश की रक्षा करे और आहान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।

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प्रश्न 6.
संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ किसने प्रस्तुत किया? इसके मुख्य उपबन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव:
संविधान सभा के समक्ष 13 दिसम्बर, 1946 ई. को पं. जवाहर लाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इस उद्देश्य प्रस्ताव में स्पष्ट किया गया है कि “संविधान सभा भारत के लिए एक ऐसा संविधान बनाने का दृढ़ निश्चय करती है जिसमें –
(क) भारत के सभी निवासियों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त हो, विचार, भाषण, अभिव्यक्ति और विश्वास की स्वतन्त्रता हो, अवसर और कानून के समक्ष समानता हो और भाईचारा हो,

(ख) अल्पसंख्यक वर्गों, अनुसूचित जातियों और पिछड़ी जातियों की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था हो।” 22 जनवरी, 1947 ई. को संविधान सभा ने यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। पं. जवाहर लाल नेहरू के अनुसार उद्देश्य प्रस्ताव एक घोषणा है, एक दृढ़ निश्चय है, एक शपथ है, एक वचन है, और हम सबका एक आदर्श के लिए समर्पण है। उद्देश्य प्रस्ताव के इन आदर्श को कुछ संशोधित करके संविधान की प्रस्तावना में स्वीकार किया गया है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना लिखकर इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए। अथवा, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों के क्या अर्थ हैं?
(क) न्याय
(ख) स्वतन्त्रता
(ग) समानता
(घ) बन्धुता
(ड.) एकता व अखण्डता।
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना का विवेचन निम्नलिखित शब्दों में किया गया है-संविधान धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य बनाने तथा इसके सब नागरिकों को …… ।

न्याय:
सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक।

स्वतन्त्रता:
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म पूजा की।

समानता:
प्रतिष्ठा, और अवसर की और उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता, सुनिश्चित करने वाली, बन्धुत्व की भावना बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवम्बर, 1949 को इसे अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के उद्देश्य –

1. न्याय-सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक:
प्रस्तावना में भारत के सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक न्याय प्रदान करने की बात कही गयी है। सामाजिक न्याय से अर्थ लिया गया है, कि भारतीय समाज में ऐसी स्थिति पैदा की जाए जिसके अनुसार व्यक्ति-व्यक्ति में भेदभाव न हो, ऊँच-नीच की भावना न हो तथा समाज के सभी वर्गों के लोगों को अपने व्यक्तित्व के विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हों। आर्थिक न्याय से तात्पर्य लोगों को अपने व्यक्तित्व के विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त हों।

आर्थिक न्याय से तात्पर्य उस स्थिति से है, जिसमें देश के धन का यथासम्भव समान बँटवारा हो, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यतानुसार धनोपार्जन के साधन उपलब्ध हों तथा किसी व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति का आर्थिक शोषण करने का अधिकार प्राप्त न हो। राजनैतिक न्याय के अनुसार देश के नागरिकों को अपने देश की शासन व्यवस्था में भाग लेने का अधिकार हो। बात को ध्यान में रखते हुए भारत में वयस्क मताधिकार प्रणाली की व्यवस्था की गयी है।

2. स्वतन्त्रता-विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि “भारतीय जनता को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता होगी।” जिससे भारतीय नागरिकों को व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के अवसर प्राप्त होंगे। संविधान की धारा 25 से 28 तक में भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का मौलिक अधिकार भी प्रदान किया गया है।

3. समानता-प्रतिष्ठा व अवसर की:
संविधान की धारा 14 के अनुसार नागरिकों को कानूनी समानता प्रदान की गयी तथा धारा 15 के अनुसार सामाजिक समानता की व्यवस्था की गयी है। धारा 16 के अनुसार सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। धारा 18 के आनुसार शिक्षा तथा सैनिक उपाधियों के अतिरिक्त सब प्रकार की उपाधियाँ समाप्त कर दी गयी हैं। प्रस्तावना में इन सबका उल्लेख किया गया है।

4. बन्धुता:
बन्धुत का अर्थ भाईचारे और नागरिकों की समानता से है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग फ्रांसीसी क्रांति के घोषण पत्र में और फिर संयुक्त राष्ट्र संघ के मानव अधिकारों की घोषणा में किया गया था। भारत के इतिहास में बन्धुता की भावना के विकास का विशेष महत्त्व है। संविधान की प्रस्तावना में जिस बन्धुत्व की कल्पना की गयी है, उसे अनुछेद 17 व 18 में छुआछूत को समाप्त करके, उपाधियाँ प्राप्त करने पर प्रतिबन्ध लगाकर और अनेक सामाजिक बुराईयों को दूर करके भारतीय समाज में स्थापित किया गया है।

5. राष्ट्र की एकता व अखण्डता:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के अनुसार अखण्डता शब्द को जोड़कर भारत में विघटनकारी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने की कोशिश की गयी है। इसके द्वारा इस भावना का विकास किया गया है, कि भारत के सभी लोग पूरे देश को अपनी मातृभूमि समझें और इसके विघटन की भावना को मन में न लाएँ।

Bihar Board Class 11th Political Science Solutions Chapter 1 संविधान : क्यों और कैसे?

प्रश्न 2.
उद्देश्य प्रस्ताव से आप क्या समझते हैं? उद्देश्य प्रस्ताव के मुख्य बिन्दुओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य प्रस्ताव भारतीय संविधान की प्रस्तावना का आधार है। इसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने 13 दिसम्बर, 1946 ई. को संविधान सभा में प्रस्तुत किया था। इस उद्देश्य प्रस्ताव को रखकर पं. जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा का मार्ग प्रशस्त किया। इसके द्वारा भावी संविधान की मौलिक रूपरेखा व सिद्धान्तों की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत की।

वास्तव में उद्देश्य प्रस्ताव भारतीय स्वाधीनता का घोषण पत्र था। पं. नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव को रखते हुए कहा कि, इस प्रस्ताव के माध्यम से हम देशों की करोड़ों जनता को जो हमारी और निहार रही है, तथा समूचे विश्व को यह बताना चाहते हैं कि हम क्या करेंगे और हमारा लक्ष्य क्या है, और हमें किधर जाना है। प्रस्ताव होते हुए भी यह प्रस्ताव से कहीं अधिक है। यह एक घोषणा है, दृढ़ निश्चय है, प्रतिज्ञा है, और हमारे ऊपर दायित्व है। 22 जनवरी, 1947 ई. को संविधान सभा ने इसे स्वीकार कर लिया।

उद्देश्य प्रस्ताव के प्रमुख बिन्दु –

  1. भारत एक स्वतन्त्र, संप्रभु गणराज्य है।
  2. भारत पूर्व ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों, देशी रियासतों और ब्रिटिश क्षेत्रों तथा देशी रियासतों के बाहर के ऐसे क्षेत्रों जो हमारे संघ का अंग बनना चाहते हैं, का एक संघ होगा।
  3. संघ की इकाइयाँ स्वायत्त होंगी और उन सभी शक्तियों का प्रयोग और कार्यों का सम्पादन करेंगी जो संघीय सरकार को नहीं दी गयी।
  4. सम्प्रभु और स्वतन्त्र भारत तथा इसके संविधान की समस्त शक्तियाँ और सत्ता का स्रोत जनता है।
  5. भारत के सभा लोगों को समाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, कानून के समक्ष प्रतिष्ठा और अवसर की समानता तथा कानून और नैतिकता की सीमाओं के रहते हुए, भाषण, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना, व्यवसाय, संगठन और कार्य करने की मौलिक स्वतन्त्रता की गारण्टी और सुरक्षा दी जाएगी।
  6. अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातियों, दलित व अन्य पिछड़े वर्गों को समुचित सुरक्षा दी जाएगी।
  7. गणराज्य की क्षेत्रीय अखण्डता तथा जल, थल और आकाश में इसके संप्रभु अधिकारों की रक्षा सभ्य राष्ट्रों के कानून और न्याय के अनुसार की जाएगी।
  8. विश्व शन्ति और मानव कल्याण के विकास के लिए देश स्वेच्छापूर्वक और पूर्ण योगदान करेगा।

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प्रश्न 3.
भारतीय संविधान के प्रमुख स्रोत बताइए। इनमें से किन्हीं दो स्रोतों की पहचान कीजिए और संक्षेप में बताइए कि इन स्रोतों से कौन-कौन से प्रावधान लिए गए हैं?
उत्तर:
भारतीय संविधान के मुख्य स्त्रोत-भारतीय संविधान निर्माताओं ने विश्व के अनेक देशों के संविधनों का गहन अध्ययन कर उनसे भारत के लिए उपयोगी तत्वों को बिना हिचक अपनाया। इस कारण कुछ लोगों ने भारतीय संविधान को उधार ली गयी वस्तुओं का संकलन मात्र भी कहा है। भारतीय संविधान के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं –

  1. 1935 का भारत सरकार अधिनियम
  2. ब्रिटिश संविधान
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान
  4. आयरलैण्ड का संविधान
  5. कनाडा का संविधान
  6. आस्ट्रेलिया का संविधान
  7. वीमर संविधान
  8. जापान का संविधान
  9. नेहरू रिपोर्ट का प्रभाव

प्रमुख स्त्रोत और उनसे लिए गए प्रावधान –

1. ब्रिटेन का संविधान:
संविधान निर्माताओं ने ब्रिटिश संविधान से निम्नलिखित प्रावधान लिए है –

  • सम्पूर्ण संसदीय व्यवस्था। संवैधानिक अध्यक्ष की धारणा एवं प्रधानमंत्री का पद
  • द्विसदनात्मक संसद
  • संसदीय सम्प्रभुता की धारणा
  • संसद के प्रथम सदन की प्रमुखता
  • विधि का शासन, अभिसमय, विशेषाधिकारों की धारणा
  • लोकसभा के स्पीकर का पद
  • विधि निर्माण प्रक्रिया

2. संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान:
भारतीय संविधान पर अमेरिका के संविधान की व्याख्या की शक्ति, उपराष्ट्रपति का पद तथा कार्य एवं संविधान संशोधन विधि, संविधान का लिखितं स्वरूप, संघीय, धारणा, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना तथा निर्वाचन राष्ट्रपति के पद का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान –
(क) संसदीय सर्वोच्चता पर जोर देता है।
(ख) न्यायिक सर्वोच्चता पर जोर देता है।
(ग) संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता के मध्यम मार्ग का अनुसरण करता है।
(घ) इनमें से किसी पर जोर नहीं देता है।
उत्तर:
(ग) संसदीय सर्वोच्चता और न्यायिक सर्वोच्चता के मध्यम मार्ग का अनुसरण करता है।

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प्रश्न 2.
विकसित संविधान का श्रेष्ठ उदाहरण है –
(क) भारत
(ख) अमेरिका
(ग) इंग्लैंड
(घ) रूस
उत्तर:
(ख) अमेरिका

प्रश्न 3.
“भारतीय संविधान वकीलों का स्वर्ग है।” किसने कहा था –
(क) मौरिस जोंस
(ख) ऑस्टिन
(ग) जेनिंग्स
(घ) वीनर
उत्तर:
(ग) जेनिंग्स

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प्रश्न 4.
संविधान की अवधारणा सर्वप्रथम कहाँ उत्पन्न हुई?
(क) ब्रिटेन
(ख) भारत
(ग) चीन
(घ) अमेरिका
उत्तर:
(क) ब्रिटेन

प्रश्न 5.
भारतीय संविधान स्वीकृत हुआ था –
(क) 30 जनवरी, 1948
(ख) 26 जनवरी, 1949
(ग) 15 अगस्त, 1947
(घ) 26 जनवरी, 1950
उत्तर:
(घ) 26 जनवरी, 1950

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प्रश्न 6.
‘संविधान की आत्मा’ की संज्ञा दी गई है?
(क) अनुच्छेद 14 को
(ख) अनुच्छेद 19 को
(ग) अनुच्छेद 21 को
(घ) अनुच्छेद 32 को
उत्तर:
(घ) अनुच्छेद 32 को

प्रश्न 7.
भारत के मूल संविधान में कितने अनुच्छेद हैं?
(क) 400
(ख) 395
(ग) 390
(घ) 385
उत्तर:
(ख) 395

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प्रश्न 8.
संविधान का संरक्षक किसे बनाया गया है?
(क) सर्वोच्च न्यायालय को
(ख) लोकसभा को
(ग) राज्य सभा को
(घ) उपराष्ट्रपति को
उत्तर:
(क) सर्वोच्च न्यायालय को

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 विकास

Bihar Board Class 11 Political Science Solutions Chapter 10 विकास Textbook Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

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Bihar Board Class 11 Political Science विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आप ‘विकास’ से क्या समझते हैं? क्या ‘विकास’ की प्रचलित परिभाषा से समाज के सभी वर्गों को लाभ होता है?
उत्तर:
विकास की संकल्पना का एक विस्तृत अर्थ है परन्तु इसका प्रयोग सीमित दृष्टि से किया जाता है। यह समाज के परिवर्तन, उन्नति, वृद्धि और पर्याप्त अग्रसर होने से है। विस्तृत दृष्टिकोण में इस शब्द का अर्थ (विकास की संकल्पना) सुधार, उन्नति, सुखी और अच्छे जीवन के लिए आकांक्षा के विचार से है। विकास का उद्देश्य समाज के उन सपनों पर आधारित है, जो इच्छित और सुनियोजित जीवन के लिए जरूरी है। इसलिए विकास विभिन्न उपायों की प्रक्रिया है, जो समाज के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सम्प्रेषण से लिया जाता है। यह इस प्रकार ग्रहण किया जाता है कि विकास का लाभ और उन्नति प्रत्येक को प्राप्त हो सके।

लुसियन पाये ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द आस्पेकट्स आफ डेवेलपमेन्ट’ (The Aspects of Development) में विकास को एक आधुनिक समाज के निर्माण में उपलब्ध साधनों के न्यायपूर्ण सदुपयोग के रूप में परिभाषित किया है। उसने विकास को अनेक पहलुओं जैसे पर्यावरणीय परिवर्तन राज्य के निर्माण के रूप में विकास, राष्ट्र के निर्माण के रूप में विकास, आधुनिकीकरण के रूप में विकास, गतिशीलता के रूप में विकास, सांस्कृतिक प्रसाद के रूप में विकास और समाज के आधुनिकीकरण के मशीनीकरण के विकास की व्याख्या की। इसका अन्तिम उद्देश्य सभी समान्य व्यक्तियों के अन्दर वृद्धि और उन्नति को लाना है। इसका लक्ष्य समाज के सभी वर्गों के सभी व्यक्तियों का सुनिश्चित रूप से जीवन बदलना है।

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प्रश्न 2.
जिस तरह का विकास अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है उससे पड़ने वाले सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
वस्तुतः विश्व के विभिन्न भागों में विकास की अवधारणा को विभिन्न प्रकार से समझा गया है, इसलिए इसे उसी ढंग से लागू किया जाता है। परन्तु इससे इच्छित परिणाम पर्याप्त वित्तीय लागत के बावजूद नहीं प्राप्त हुए हैं और उन देशों पर पर्याप्त ऋण हो गया है। विकास के सामाजिक लागत और पर्यायवरणीय लागत दो प्रकारों का विवरण निम्नलिखित है –

(क) विकास की सामाजिक लागतें (Social Costs of Development):
विकास की सामाजिक लागत निम्नलिखित कारणों से है –

  • अनेक लोग अपने घर और स्थानीय आवास से विकास के कार्यों जैसे बाँध के निर्माण और औद्योगिक इकाई की स्थापना के कारण स्थानान्तरित हो जाते हैं।
  • जीविका की हानि।
  • परम्परागत व्यवसाय का स्थानान्तरण होना।
  • शहरी और ग्रामीण गरीबी में वृद्धि।
  • जीवन के नये ढंग और नई संस्कृति की ग्राह्यता।
  • परम्परागत कौशल की हानि।
  • विषमताओं और असमानताओं में वृद्धि। इसका विशिष्ट उदाहरण ‘नर्मदा बचाओं आन्दोलन’ है, जो सरदार सरोबर बाँध के विरुद्ध नर्मदा नदी पर चलाया जा रहा है।

(ख) विकास का पर्यावरणीय लागत (Environmental costs of Development):
विकास की आज की विधि पर्यावरणीय लागत की है। इसको निम्नलिखित क्षेत्रों में समझा जा सकता है –

  • यह एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित कर रहा है। इसने बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा किया है।
  • इससे पारिस्थितिक सन्तुलन में गड़बड़ी आई है।
  • इससे वैश्विक चेतावनी मिली है।
  • हरे भरे क्षेत्र कम होते जा रहे हैं।
  • इसके कारण ऊर्जा संकट उत्पन्न हो गया है।
  • प्राकृतिक संकट यथा-बाढ़ और सुनामी का जन्म।

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प्रश्न 3.
विकास की प्रक्रिया ने किन नए अधिकारों के दावों का जन्म दिया है?
उत्तर:
लोकतान्त्रिक सहभागिता के रूप में नई माँगें-समाज और राजनीति के लोकतान्त्रिक ढाँचे में और आधुनिक युग में प्रत्येक व्यक्ति अपना अच्छा जीवन व्यतीत करना चाहता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति निर्णय, निर्माण प्रक्रिया, किास के लक्ष्यों के निर्धारण और इसके कार्यान्वयन की प्रणाली में शामिल होना पसन्द करता है। ऐसा सहभागिता के उद्देश्य और शक्तिशाली होने के लिए किया जाता है। विकास और लोकतन्त्र सामान्य हित को अनुभव करने से सम्बन्धित है।

लोकतान्त्रिक राजनीतिक उद्देश्य सामान्य हित के लोगों के अधिकार को प्राप्त करने से है। यह संसाधनों के अधिकतम सदुपयोग द्वारा विकास की प्रक्रिया और सामान्य लोगों को विकास का लाभ लेने से सम्भव है। लोकतान्त्रिक समाजों में लोगों की सहभागिता के अधिकार की प्रशंसा की गई है और इस पर जोर दिया गया है। इस प्रकार की सहभागिता की एक विधि यह बताई जाती है कि स्थानीय क्षेत्रों में विकास की परियोजनाओं के विषय में निर्णय निर्माण संस्था को लेना चाहिए।

इसीलिए अधिकतर संसाधन जो स्थानीय निकायों के हैं, बढ़ाये जा रहे हैं। भारतीय संविधान का 73 वाँ और 74 वाँ संशोधन इस दिशा में किए गए प्रयास हैं। इन संशोधनों के द्वारा सभी वर्ग के लोगों की सहभागिता को सुनिश्चित करने के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसके साथ यह कार्य कमजोर वर्ग जैसे महिलाओं, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों के लिए भी किया जा रहा है, जिससे वे विकासगत परियोजनाओं को प्रेरित कर सकें। नीतियों का नियोजन और सूत्रीकरण लोगों को अपनी आवश्यकताओं के लिए संसाधनों के निर्धारण का आदेश देता है। इसलिए विकास के मॉडल को शामिल करने की आवश्यकता है, जो कल्याण के लक्ष्य को प्राप्त करने के लोकतान्त्रिक आधुनिक समाज के उद्देश्यों की सेवा कर सकता है।

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प्रश्न 4.
विकास के बारे में निर्णय सामान्य हित को बढ़ावा देने के लिए किए जाएँ, यह सुनिश्चित करने में अन्य प्रकार की सरकार की अपेक्षा लोकतान्त्रिक व्यवस्था के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
लोकतन्त्र ऐसी सरकार है, जो लोगों की है, लोगों के लिए है और लोगों द्वारा निर्मित होती है। इसका तात्पर्य यह है कि लोकतान्त्रिक सरकार केवल लोगों से सम्बन्धित है और सभी अधिकार लोगों के साथ है। यह तानाशाही के विपरीत है, जिसमें सम्पूर्ण शक्ति एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के हाथ में होती है और जहाँ लोगों को निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं होता। इसलिए लोकतान्त्रिक सरकार अन्य सरकारों की अपेक्षा अधिक लाभदायक होती है। विशेष रूप से जनता के हित के मामले में लोकतान्त्रिक सरकार मुख्य रूप से लोगों की रुचियों, अधिकारों और कल्याण से अधिक सम्बन्धित होती हैं।
प्रजातन्त्र निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित होता है –

  1. यह समानता पर आधारित होता है।
  2. यह न्याय पर आधारित होता है।
  3. यह जनता के अधिकारों को प्रेरित करता है।
  4. यह लोगों की स्वतन्त्रता को बढ़ावा देता है।
  5. यह भाई-चारे का बढ़ाता है।
  6. यह एक विस्तृत संविधान उपलब्ध कराता है।
  7. यह वाद-विवाद, बातचीत पर आधारित होता है।
  8. यह अधिकारों के विकेन्द्रीकरण पर आधारित है।
  9. सर्वाधिक अधिकार लोगों के पास होते हैं।
  10. प्रजातन्त्र में लोगों को अभिव्यक्ति का अधिकार होता है।

उपरोक्त सभी विशिष्ट लक्षण किसी अन्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं मिलते। यही कारण है कि लोगों के हित के लिए लोकतन्त्र को अन्य व्यवस्थाओं की अपेक्षा सबसे अच्छी व्यवस्था माना जाता है। प्रजातान्त्रिक संस्कृति विकासगत प्रक्रिया के प्रसार को बढ़ावा देता है। इसमें व्यक्ति और राष्ट्र के सभी पहलुओं का समावेश होता है।

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प्रश्न 5.
विकास से होने वाली सामाजिक और पर्यावरणीय क्षति के प्रति सरकार को जवाबदेह बनवाने में लोकप्रिय संघर्ष और आन्दोलन कितने सफल रहे हैं?
उत्तर:
अनेक राज्यों की सरकारों और यहाँ तक कि केन्द्रीय सरकार ने विकास के नाम पर विभिन्न क्षेत्रों में अनेक महत्त्वकांक्षी परियोजनाएं शुरू की हैं। परन्तु इन परियोजनाओं का अपना ही सामाजिक और पर्यावरणीय मूल्य है। स्थानीय लोगों ने सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में इन परियोजनाओं के विरुद्ध आन्दोलन छेड़ दिया है। उदाहरण के लिए मेधापाटेकर और सुन्दरलाल बहुगुणा के आन्दोलन इन परियोजनाओं के खिलाफ चल रहे हैं, फलस्वरूप वे मुद्दे राजनीतिक बन गए हैं। हाल के वर्षों में सरकार की कुछ नई विवासस्पद परियोजनाएँ शुरू हुई हैं। इनमें से एक परियोजना एस.ई.जेड. (Creation of Special Economic Jone) है, जो किसानों के आक्रोश का शिकार है। इसका विभिन्न राजनैतिक दलों द्वारा राजनीतिकरण किया गया है।

स्थानीय लोगों ने इन्हें विकासगत क्रियाओं के रूप में नये भविष्य को स्वीकार नहीं किया है। उनके प्रभाव को सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनाया है। इस प्रकार के आन्दोलनों में ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ सरदार सरोवर बाँध के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण आन्दोलन रहा है। इस बाँध का निर्माण नर्मदा नदी पर विद्युत्त उत्पादन के लिये किया गया है। इसके अलावा एक बड़े क्षेत्र की सिंचाई करने में सहायता मिलेगी और सौराष्ट्र तथा कच्छ क्षेत्र के लोगों को पेय जल मिल सकेगा। परन्तु इसके विरोधी इस योजना से सहमत नहीं हैं और मेघा पाटेकर के नेतृत्व में अनेक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आन्दोलन शुरू कर दिया है। इस प्रकार के आन्दोलनों ने निश्चित रूप से सरकार को सभी मुद्दों पर विचार करने के लिए विवश कर दिया है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
‘समतावादी समाज’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। Write short note on ‘Equalized Society’
उत्तर:
समतावादी समाज (Equalized Society):
जी.डी.एच. कोल के अनुसार समाजवाद भाईचारे की व्यवस्था पर बल देता है, जो वर्ग, जाति व वर्ग-विषयक भेदों को नकारती है, उनका खण्डन करती है। समाजवादी समाज में राजनीतिक शक्ति का उद्देश्य समाज का कल्याण होता है। समानता और स्वतन्त्रता पर बल दिया जाता है। सबको आजीविका कमाने के समान अवसर दिए जाते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति को न्यूनतम जीवन-स्तर की गारन्टी दी जाती है। इसमें यह मान्यता है कि समानता के बिना वास्तविक स्वतन्त्रता सम्भव नहीं हो सकती। बिना स्वतन्त्रता के सुरक्षा सम्भव नहीं है।

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प्रश्न 2.
समाजवादी समाज का क्या अर्थ है? (What is meant by Socialist Society?)
उत्तर:
श्री जयप्रकाश नारायण के अनुसार समाजवादी समाज एक ऐसा वर्गहीन समाज होता है, जिसमें व्यक्तिगत सम्पत्ति के लिए मजदूरों का शोषण नहीं होता, जिसमें समस्त सम्पत्ति राष्ट्र की होती है, जिसमें किसी को बिना किए कुछ नहीं मिलता, जहाँ आय की अधिक असमानताएँ नहीं होती, जिसमें मनुष्य जीवन की उन्नति योजनानुसार की जाती है और जिसमें सब सबके लिए जीवित रहते हैं। इस प्रकार के समाज में आर्थिक शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केन्द्रित नहीं होने दी जाती।

प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक समाजवाद से क्या अभिप्राय है? (What is meant by Democratic Socialism?) अथवा, लोकतान्त्रिक समाजवाद पर टिप्पणी लिखो। (Write a short note on Democratic Socialism)
उत्तर:
लोकतन्त्रीय समाजवाद उसे कहते हैं, जहाँ समाजवाद के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए हिंसा और क्रान्ति को छोड़कर लोकतान्त्रिक साधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें राज्य को व्यक्तिवादी तथा उदारवादियों की भाँति आवश्यक बुराई नहीं माना जाता और न ही अराजकतावादियों की भाँति अनावश्यक बुराई माना जाता है। वे तो राज्य को शुभ मानते हैं और इसका उपयोग जन-कल्याण में करना चाहते हैं। उनका लोकतन्त्र में पूर्ण विश्वास होता है।

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प्रश्न 4.
विकासवादी समाजवाद किसे कहते हैं? (What is Evolutionary Socialism?)
उत्तर:
लोकतन्त्रीय समाजवाद को ही विकासवादी समाजवाद कहते हैं। लोकतन्त्रीय देश कार्ल मार्क्स के विचारों से तो प्रभावित थे किन्तु ये देश अपना लोकतन्त्रीय स्वरूप समाप्त नहीं करना चाहते थे। इनके विचार में पूँजीवादी व्यवस्था में भी समानता की अधिक क्षमता विद्यमान है। वे सर्वहारा की तानाशाही में विश्वास नहीं करते थे। विकासवादी समाजवाद सभी नागरिकों को आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक अधिकारों और न्याय की उपलब्धि कराता है। इनके विचार में राज्य एक कल्याणकारी संस्था है। लोकतान्त्रिक समाज का मूलमंत्र क्रमिक विकास है।

प्रश्न 5.
समाजवाद के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए। (Give any four arguments in favour of Socialism)
उत्तर:
समाजवाद के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Socialism):

  1. समाजवाद न्याय का समर्थक है। व्यापार व उद्योग-धंधों का राष्ट्रीयकरण करके यह सभी व्यक्तियों को समान उन्नति का अवसर उपलब्ध कराता है।
  2. बिना समाजवाद के प्रजातन्त्र अर्थहीन है। जब तक आर्थिक प्रजातन्त्र की स्थापना नहीं होती, राजनैतिक प्रजातन्त्र सम्भव नहीं हो सकती।
  3. समाजवादी व्यवस्था अधिक वैज्ञानिक है।
  4. समाजवादी आर्थिक अपव्यय को रोकता है, क्योंकि इसमें उत्पादन के लिए प्रतियोगिता का नहीं, सहयोग का सिद्धान्त अपनाया जाता है।

प्रश्न 6.
‘समाजवाद का उदय पूँजीवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।’ इस कथन पर टिप्पणी लिखो। (“’Socialism emerged as a reaction of Capitalism.” Comment)
उत्तर:
समाजवाद वास्तव में “पूँजीवाद व आर्थिक असमानता” के विरोध में विकसित हुआ। यूरोप में आद्योगिक विकास ने श्रमिकों के जीवन को नरक बना दिया था। पूँजीवादी उनका शोषण कर रहे थे। अहस्तक्षेप की नीति के कारण श्रमिकों की दशा बिगड़ने लगी। कुछ विचारशील लोगों का ध्यान उनकी दुर्दशा की ओर गया और पूँजीवाद के विरुद्ध प्रतिक्रिया हुई। व्यक्ति के स्थान पर समाज को महत्त्व दिया जाने लगा।

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प्रश्न 7.
मुक्त उद्यम से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मुक्त उद्यम (Free enterprise):
बाजार अर्थव्यवस्था मुक्त उद्यम पर आधारित है। इसमें उद्योगपति को उद्योग प्रारम्भ करने, उनकी वृद्धि करने, उनमें पूँजी निवेश करने आदि की पूरी छूट होगी। इस कार्य के लिए उन्हें सरकार से किसी प्रकार के लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं होगी। सरकार केवल कुछ उद्योगों को अपने पास रखती है। इनमें भी वह निजी उद्यमियों से सहयोग प्राप्त कर सकती है।

प्रश्न 8.
मुक्त व्यापार से क्या आशय है? (What did you mean by free trade?)
उत्तर:
मुक्त व्यापार (Free Trade):
बाजार अर्थव्यवस्था मुक्त व्यापार पर आधारित होती है। इसकी मान्यता है कि विश्व को एक बाजार समझा जाए और उसमें सभी देशों को मुक्त रूप से व्यापार करने की सुविधा हो अर्थात् विभिन्न देशों की सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले आयात व निर्यात करों से व्यापार प्रतिबन्धित न हो। सामान्यतः सभी देशों में सरकारें अपने उद्योगों को संरक्षण देने के लिए तथा अपने आय के स्रोत के रूप में करों का प्रावधान करती है। बाजार अर्थव्यवस्था ऐसे करों को उदारीकरण के विरुद्ध मानती है, क्योंकि इनसे कीमतों में माँग व पूर्ति द्वारा अवरोध उत्पन्न होता है।

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प्रश्न 9.
विकास क्या है? (What is development?)
उत्तर:
वर्तमान के भौतिकवादी युग में विकास का अर्थ केवल भौतिक विकास से ही लगाया जाता है, जबकि भारत के सन्दर्भ में यह भौतिक व आध्यात्मिक दोनों ही रहा है।

प्रश्न 10.
तृतीय विश्व क्या है। (What is third world?)
उत्तर:
भौतिक विकास की दिशा में प्रयत्नशील देशों को अनेक नामों से पुकारा जाता है, जैसे-विकासशील देश, उभरते हुए राष्ट्र, तृतीय विश्व के देश आदि।

प्रश्न 11.
विकास के तीन उद्देश्य लिखिए। (Write three objectives of development)
उत्तर:

  1. दरिद्रों के न्यूनतम जीवन को जीवन स्तर तक (Minimum Living Standard) लाना।
  2. बेरोजगारी की समस्या को दूर करना।
  3. विकास प्रक्रिया को लोकतान्त्रिक पद्धति से चलाना।

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प्रश्न 12.
समाजवाद की परिभाषा दीजिए और इसका अर्थ समझाइए। (Define Socialism and discuss meaning)
उत्तर:
समाजवाद की परिभाषा-समाजवाद की कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी जा सकती। विभिन्न विचारकों ने इसकी परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है –
1. हमफ्री के शब्दों में, “समाजवाद एक सामाजिक व्यवस्था है, जिसके अन्तर्गत जीवन के साधनों पर सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व होता है और पूरा समाज सामान्य जन-कल्याण के उद्देश्य से विकास और प्रयोग करता है।”

2. राबर्ट के अनुसार, “समाजवाद के कार्यक्रम की माँग है कि सम्पत्ति तथा उत्पादन के अन्य साधन जनता की सामूहिक सम्पत्ति हो और उसका प्रयोग भी जनता के द्वारा जनता के लिए ही किया जाए।” इस प्रकार समाजवाद एक ऐसी विचारधारा है, जो समानता पर आधारित है और जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण समाज का हित है। यह विचारधारा देश की सम्पत्ति तथा उत्पादन के साधनों पर व्यक्तिगत स्वामित्व को समाप्त करके उस पर सम्पूर्ण समाज का नियन्त्रण चाहती है।

प्रश्न 13.
समाजवाद के दो मूल सिद्धान्त बताइए। (Mention two basic principles of Socialism)
उत्तर:
समाजवाद के दो मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं –

1. पूँजीवाद का विरोध (Opposition of Capitalism):
समाजवाद पूँजीवाद का विरोध करता है। समाज के हित को अधिक महत्त्व देता है। उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों पर समाज का नियन्त्रण होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
समाजवाद के किन्हीं दो गुणों का उल्लेख कीजिए। (Mention any two merits of Socialism)
उत्तर:
समाजवाद के गुण (Merits of Socialism):

1. समाजवाद आर्थिक समानता पर बल देता है (Socialism consists of Economic Equality):
समाजवादी चाहते हैं कि सभी को रोजगार के अवसर सुलभ हो, राष्ट्रीय सम्पत्ति का उचित बँटवारा हो और सभी को विकास का उचित अवसर मिले। समाजवाद में प्रत्येक व्यक्ति को श्रम करना आवश्यक है। उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व रहता है और इन साधनों का सार्वजनिक हित के लिए उपयोग किया जाता है।

2. समाजवाद अधिक प्रजातन्त्रीय है (Socialism is more democratic):
विद्वानों का कहना है कि बिना समाजवाद के प्रजातन्त्र अस्वाभाविक और अर्थहीन है। वास्तव में समाजवाद प्रजातन्त्र का पूरक हैं। यह राज्य के लोकतांत्रिक स्वरूप में विश्वास रखता है। यह मताधिकार का विस्तार करके संसद में बहुमत प्राप्त दल को सरकार बनाने का अधिकार देने के पक्ष में है। अतः जनता का हित साधन होता रहता है।

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प्रश्न 2.
समाजवाद के दो प्रमुख दोष बताइए। (What are the two main shortcomings of Socialism?)
उत्तर:
समाजवाद के दोष (Short comings of Socialism)

1. कार्य करने की प्रेरणा का अन्त हो जाता है (No incentives to work):
समाजवाद में क्योंकि सभी कार्य सरकार की इच्छा पर निर्भर होते हैं। अत: व्यक्ति को उनके बारे में सोचने, उनकी योजना बनाने, उनमें पहल करने आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। व्यक्ति एक मशीन बनकर रह जाता है और उसकी कार्य करने की प्रेरणा का अन्त हो जाता है।

2. सरकार सभी उद्योग-धंधों का भली प्रकार प्रबन्ध नहीं कर सकती है (All that is managed by the State is not well managed):
समाजवादी व्यवस्था में राज्य का कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ जाता है। बहुत अधिक कार्यों के भार से कई बुराईयाँ पैदा हो जाती हैं। सरकार के लिए सभी उद्योग-धंधों का संचालन करना आसान नहीं है। प्रबन्धन में व्याप्त भ्रष्टाचार और अक्षमता के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में उपक्रमों की हालत खराब हुई है।

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प्रश्न 3.
विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के क्या लाभ होते हैं? (What are the advantages of decentralised economy)
उत्तर:
जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया तथा रॉजर गॉरोड़ी ने अर्थव्यवस्था के विकेन्द्रीकरण पर अत्यधिक बल दिया है। केन्द्रीयकृत नियोजन आर्थिक विकास की एक ऐसी एकरूपी व्यवस्था निर्मित करता है, जो वैयक्तिक आकांक्षाओं की स्थानीय विविधता पर पूरा ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाती। उत्पादन के बारे में निर्णय का अधिकार एक स्थान पर केन्द्रित न करके यह अधिक लाभदायक होगा। यदि उसे कई केन्द्रों में विभाजित् कर दिया जाए और प्रत्येक केन्द्र अपने क्षेत्र के लोगों की आवश्यकताओं तथा उपलब्ध साधनों को सामने रखकर निर्णय करें। केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में वास्तविक शक्ति नौकरशाही के हाथों में चली जाती है, जनता के हाथों में नहीं। आज लोकतन्त्र का युग है और अर्थव्यवस्था का विकेन्द्रीकरण उसका आधार है।

प्रश्न 4.
पूँजीवाद के उदय और विकास के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में समाजवाद का उदय हुआ था। इस कथन की समीक्षा कीजिए। (Socialism emerged as a reaction to the rise and development of capitalism Discuss)
उत्तर:
समाजवाद वर्तमान पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध एक आन्दोलन है। यह पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था को समाप्त करके, उत्पादन तथा विवरण के साधनों पर समाज के नियन्त्रण का समर्थक है, जिसमें आर्थिक समानता की स्थापना हो। समाजवाद का उदय पूँजीवाद के उदय और विकास के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप प्रकट हुआ था। अहस्तक्षेप (Leissezfaire) के सिद्धान्त ने समाज में गम्भीर संकट पैदा कर दिया था। स्वतन्त्र प्रतियोगिता के कारण विसंगतियाँ प्रकट होने लगी थीं।

आर्थिक शक्ति का केन्द्र होने के कारण अमीर और गरीब का भेद बढ़ता जा रहा था। अधिकांश लोगों की जरूरी आवश्यकताएँ भी पूरी नहीं हो रही थी। उद्योगपति पूँजी के बल पर अपने हित साधन में ही लगे हुए थे। इस कारण समाज में अव्यवस्था फैलने लगी और समाज पर जंगल का कानून लागू होने का डर लोगों को सताने लगा था। इस प्रकार स्वयं पूँजीवाद ने उद्यमियों की स्वतन्त्रता को परिसीमित किया है। धीरे-धीरे समाजवाद विकसित होने लगा। व्यक्ति के स्थान पर समाज के कल्याण की बात आई और व्यापार व उद्योग-धंधों के राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता अनुभव की गई। इस प्रकार पूँजीवाद के उदय और विकास के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप समाजवाद का अभ्युदय हुआ।

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प्रश्न 5.
संसदीय समाजवाद से आप क्या समझते हैं? (What do you mean by Parliamentry Socialism?)
उत्तर:
समाजवाद के विभिन्न रूप हैं। इनमें से कुछ हिंसा के माध्यम से समाजवाद लाना चाहते हैं। जैसे-साम्यवाद, मार्क्सवाद तथा श्रमिक संघवाद दूसरी ओर विकासवादी समाजवादी हिंसा के माध्यम से समाजवाद स्थापित न करके धीरे-धीरे जन जागरण के माध्यम से समाजवाद स्थापित करना चाहते हैं। संसदीय समाजवाद इन्हीं में एक है।

संसदीय समाजवाद इंग्लैंड के मजदूर दल (Labour Party) की देन है। इसकी मुख्य विशेषता यह है कि समाजवाद की स्थापना के लिए संसदीय पद्धति के मार्ग को अपनाता है। इसका संविधान उपायों में अटल विश्वास रखता है। संसदीय पद्धति के माध्यम से यह न केवल मजदूरों बल्कि अन्य कमजोर वर्गों की मांगों को पूरा करने में विश्वास रखता है। यह समाजवादी पुनर्निर्माण के लिए भी आश्वस्त है। यह दृष्टिकोण मार्क्स के वर्ग-संघर्ष के स्थान पर मानव बन्धुत्व में आस्था प्रकट करता है और सभी वर्गों को संतुष्ट करने की बात कहता है।

प्रश्न 6.
विकास के उदारवादी लोकतान्त्रिक मॉडल का क्या अर्थ है?
उत्तर:
विकास के उदारवादी लोकतान्त्रिक मॉडल का अर्थ-पश्चिम के विकसित राष्ट्रों में उदारवादी लोकतन्त्र एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है उदारवादी विचारधारा व्यक्ति को समाज की तुलना में उच्च नैतिक मूल्य प्रदान करती है। उदारवादी लोकतन्त्र में श्रमिकों को पर्याप्त पारिश्रमिक सम्मानपूर्ण जीवन, निजी संपत्ति के अधिकार अर्थव्यवस्था पर बाजारवाद का प्रभाव उत्पादन एवं वितरण के साधनों निजी शक्तियों द्वारा नियन्त्रण, बेरोजगारी, वृद्धावस्था, बीमारी असमानता की स्थिति में राज्य द्वारा लोकतान्त्रिक भावना के अनुरूप है।

प्रश्न 7.
मानव विकास के चार तत्त्वों का उल्लेख करें।
उत्तर:
मानव विकास का अर्थ है व्यक्ति के विकास के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना। मानव विकास के चार तत्त्व हैं – साक्षरता, शैक्षिक स्तर, आयु-सम्भाविता और मातृ मृत्युदर। मानव विकास के इन चार तत्त्वों के अलावे भी अनेक तत्त्व हैं। जैसे-भोजन, वस्त्र एवं आवास जिसको प्राप्त करने का प्रयास प्रत्येक राज्य करता है।

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प्रश्न 8.
स्थायी या सतत् विकास किसे कहते हैं? (What is sustainable development?)
उत्तर:
स्थायी विकास के लिए पर्यावरण तन्त्र और औद्योगिक तन्त्र के मध्य सही सम्बन्ध तथा संयोजन की आवश्यकता है। विकास के नाम पर औद्योगीकरण ने पर्यावरण को दूषित किया है। विकास के लिए आर्थिक रूप और नीतियों का निर्धारण होना चाहिए। मनुष्य के लिए पर्यावरण प्रदूषण को रोकते हुए विकास के कार्यक्रम किए जाने चाहिए। अधिक प्रभावी देशों में जीवन शैली के साथ-साथ जीव-जन्तु और मानव को पर्यावरण प्रदूषण से बचाए रखने का प्रयास होना चाहिए। पर्यावरण को विकास नीतियों के साथ प्रबन्ध के स्तर पर जोड़ दिया जाना चाहिए। वास्तव में पर्यावरण और विकास नीति एक दूसरे के पूरक हैं। स्थायी विकास तभी सम्भव है।

प्रश्न 9.
“विकास का आधार प्राकृतिक दोहन होना चाहिए न कि शोषण।” (The base of development is natural utilisation not the exploitation. Explain)
उत्तर:
भौतिकवादी जगत की मान्यता है कि विश्व में जो भी कुछ है वह उसके उपयोग के लिए है और जितना अधिक उपयोग किया जा सकता है उतना ही भौतिक सुख प्राप्त किया जा सकता है। इसी कारण पश्चिम के लोग प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर शोषण कर रहे हैं। वह भूल जाते हैं कि ईश्वर ने विश्व में मानव, पशुओं; कीट, पतंग, प्रकृति की प्रत्येक वस्तु आदि सभी का सन्तुलन स्थापित किया है। मानव जाति से प्रकृति का उतना ही उपयोग करने की आशा की जाती है जितनी उसकी आवश्यकता है।

अधिकतम उपभोग की प्रकृति देने की शक्ति को कम कर देता है। अधिकतम उपयोग से प्रकृति का विनाश होता है और उसके कारण मानव को अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। वर्तमान में हम इसका अनुभव कर रहे हैं। एक ओर प्रकृति की सम्पदा समाप्त हो रही है और दूसरी ओर प्राकृतिक प्रकोपों से मानव भयभीत है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि प्रकृति की देन की शक्ति बनाए रखने तथा प्राकृतिक प्रकोपों से बचने के लिए प्रकृति का शोषण न करके उसका मात्र दोहन किया जाए। विकास के लक्ष्य निर्धारण का यह महत्त्वपूर्ण आधार है।

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प्रश्न 10.
कल्याणकारी राज्य की कोई विशेषताएँ बताइए। (Mention two features of a welfare state)
उत्तर:
कल्याणकारी राज्य की विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  1. कल्याणकारी राज्य का तात्पर्य उस राज्य से है, जो जन-कल्याण को ध्यान में रखकर अपनी योजनाओं एवं कार्यक्रमों का निर्धारण करता है। यह समाज के कमजोर वर्गों की सेवाएँ तथा वस्तुएँ सुलभ कराने का सामाजिक दायित्व स्वयं वहन करता है। इसका कार्यक्रम काफी विकसित होता है।
  2. कल्याणकारी राज्य की संरचना स्वायत्तता पर आधारित होती है। यह सामाजिक न्याय तथा समानता के प्रति समर्पित होता है।
  3. कल्याणकारी राज्य सामान्य इच्छा का समर्थक है। यह जाति, वर्ण, साम्प्रदायिक विचारों तथा मान्यताओं से ऊपर उठने की क्षमता रखता है।

प्रश्न 11.
श्रेणी समाजवाद पर टिप्पणी लिखिए। (Write a short not on Guild Socialism)
उत्तर:
श्रेणी समाजवाद, समाजवाद का अंग्रेजी संस्करण है। इस विचारधारा का जन्म इंग्लैंड में हुआ। श्रेणी समाजवाद का उद्देश्य एक ऐसी व्यवस्था स्थापित करना है, जिसमें वेतन प्रणाली का उन्मूलन कर उद्योगों में मजदूरों की स्वायत्त सरकार की स्थापना की जाएगी, जो राष्ट्रीय श्रेणी संघों द्वारा एक प्रजातन्त्रात्मक प्रणाली पर चलती हुई समाज के अन्य व्यवहारिक संघों के साथ मिलकर कार्य करेगी। श्रेणी समाजवादी की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. उत्पादन के साधनों पर मजदूरों का नियन्त्रण होना चाहिए।
  2. यह एक मध्यममार्गी विचारधारा है, न तो यह पूरी सत्ता मजदूरों के हाथ में देना चाहता है और न ही सम्पूर्ण सत्ता उत्पादकों को देने के पक्ष में है।
  3. श्रेणी समाजवाद पूँजीवादी व्यवस्था का घोर विरोध करता है।
  4. श्रेणी समाजवाद प्रजातन्त्र और प्रादेशिक प्रतिनिधित्व की निन्दा करता है।
  5. श्रेणी समाजवाद व्यावसायिक प्रतिनिधित्व चाहता है।
  6. श्रेणी समाजवाद सत्ता के विकेन्द्रीकरण का समर्थक है।

वास्तव में समाज में किसी कार्य विशेष को उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से सम्पन्न करने के लिए संगठित और परस्पर निर्भर व्यक्तियों का एक स्वायत्त समुदाय ही श्रेणी है। इन श्रेणियों का उद्देश्य समस्त राज्य की सेवा करना है। प्रत्येक स्तर पर श्रेणी के सदस्य अपनी श्रेणी के संचालन के लिए अधिकारियों और समितियों आदि का चुनाव करेंगे और ऊपर की श्रेणियों के सदस्य नीचे की श्रेणियों द्वारा निर्वाचित और उनके प्रति उत्तरदायी होंगे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
बाजार अर्थव्यवस्था के गुण-दोष संक्षेप में लिखें। (Write merits and demerits of market economy)
उत्तर:
I. गुण (Merits):
बाजार अर्थव्यवस्था के गुणों को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –

  • तकनीक का सुदृढ़ विकास-वस्तु की गुणवत्ता बढ़ाने तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन के दृष्टिकोण के कारण उद्योगों में नई-नई तकनीकी के अनुसन्धानों की व्यवस्था की जाती है, जिससे देश में तकनीकी का विकास होता है।
  • उपभोक्ता की पसन्द-यह अर्थव्यवस्था ग्राहक या उपभोक्ता की पसन्द पर अधिक ध्यान देती है। अतः बाजार में ग्राहक को मनपसन्द सन्तुलित कीमत पर वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं।
  • उत्तम वस्तु का उत्पादन-इस अर्थव्यवस्था में प्रत्येक उत्पादक दूसरे उत्पादकों की तुलना में अधिक उत्तम वस्तु का उत्पादन करना चाहता है, जिससे बाजार में उसकी माल की माँग बढ़े।
  • लोकतान्त्रिक पद्धति पर आधारित-बाजार अर्थव्यवस्था पूरी तरह लोकतान्त्रिक है। प्रत्येक व्यापारी व उद्योगपति को बिना बन्धनों के विकास करने के अवसर प्राप्त होते हैं।
  • कीमतों में सन्तुलन-कीमतों में सन्तुलन इस व्यवस्था का सर्वोत्तम गुण है। कोई भी उत्पादक मनचाही कीमत नहीं रख सकता। अन्य उत्पादों की कीमतों में सन्तुलन बनाए रखने योग्य कीमतें निर्धारित की जाती है।
  • आय में वृद्धि-बाजार की अर्थव्यवस्था में भाग लेने के कारण व्यापार व उद्योग की वृद्धि से सरकार को करों के रूप में धन प्राप्त होता है। सरकार यह धन समाज सेवा व समाज सुरक्षा के कार्यों पर व्यय कर सकती है।
  • निजी क्षेत्र का उपयोग-यह व्यवस्था निजी क्षेत्र में विद्यमान प्रतिभा व साधनों को देश के लिए उपयोग को सम्भव बनाती है। स्वार्थ के जुड़ जाने से समाज का उद्यमी वर्ग देश की समृद्धि में हाथ बँटाता है।

II. हानियाँ (Demerits):
बाजार अर्थव्यवस्था का एक रूप यह भी है, जो अधिक भयावह है। इस व्यवस्था की हानियों को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –

  • उदारीकरण का दुष्परिणाम-बाजार अर्थव्यवस्था उदारीकरण की नीति पर आधारित होती है। इसमें विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने विशाल स्रोतों के माध्यम से नवोदित राष्ट्रों से अधिक लाभ कमाने के लिए आती है। उदारीकरण विकसित देशों के हितों का सन्वर्धन करता है, क्योंकि इन देशों के भारी मात्रा में उत्पाद को नवोदित राष्ट्रों की विशाल जनसंख्या का बाजार प्राप्त हो जाता है।
  • विदेशी मुद्रा भी प्राप्त नहीं होती-नवोदित राष्ट्र विदेशी मुद्रा के लालच में जिन कम्पनियों को आमन्त्रित करते हैं, वे कम्पनियाँ कम से कम मुद्रा का नवोदित राष्ट्रों को लाभ होने देती हैं। वे अधिकांश अपने उन्हीं देशों में जाकर आकर्षक भाव पर जनता से प्राप्त करके अपना कारोबार करती है।
  • निजी लाभ की प्राप्ति-बाजार अर्थव्यवस्था के मूल में निजी लाभ की प्राप्ति करना पाया जाता है। उद्योगपति ऐसे उद्योगों में रुचि लेते हैं, जिनमें लाभ की सम्भावनाएँ अधिक हों। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन कभी नहीं करना चाहेंगे, जो कम लाभ दे और समाज के दुर्बल वर्ग की आवश्यकताओं की पूर्ति करें।
  • तकनीक का आयात नहीं हो सकता-नवोदित राष्ट्र विदेशी आधुनिक तकनीक के आयात के लिए तत्पर रहते हैं। इसी कारण वे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमन्त्रित भी करते हैं, किन्तु ये कम्पनियाँ पाश्चात्य देशों में पुरानी पड़ गई तकनीक को हस्तान्तरित करती हैं और उसी पर आधारित मशीनरी का निर्यात करती हैं।

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प्रश्न 2.
विकास के प्रमुख उद्देश्यों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए। (Explain in brief the main objectives of development)
उत्तर:
विकास के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते समय सामान्यतः विकासशील देशों का गरीब वर्ग ही दृष्टि में आता है, किन्तु वास्तव में पश्चिम के धनी देशों की स्थिति भी इस दृष्टि से कुछ अच्छी नहीं है। वहाँ भी व्यक्तिवादी पूँजीवादी व्यवस्था ने एक बड़े वर्ग को आर्थिक दृष्टि से निर्धन बनाया है। वहाँ के प्रत्येक देश में एक अथवा अधिक उपेक्षित वर्ग देखने को मिल जाएंगे, जिनके पास देश का समृद्धि का कुछ भी अंश नहीं पहुँच पाता है और वहाँ की समृद्धि की तुलना में ये वर्ग स्वयं को गरीब पाते हैं। अतः विकास के उद्देश्यों पर विचार करते समय विकसित देशों के इन वर्गों का भी अध्ययन करना समीचीन होगा।

पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि में विश्व के सभी देशों के सामान्य लोग अब आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ विलास की वस्तुओं का भी उपयोग करने लगे हैं। अर्थात् वर्तमान में आर्थिक दृष्टि से दुर्बल व सबल वर्गों की अवधारणा अब अदृश्य होती जा रही है। वास्तव में इन पाश्चात्य विचारकों की दृष्टि पश्चिम के धनी समाजों तक सीमित है। उन्होंने विकासशील देशों के आर्थिक दृष्टि से दरिद्र लोगों को अपने अध्ययन का केन्द्र बनाया ही नहीं है। विकास के उद्देश्यों को निर्धारित करते समय विश्व के निर्धन लोगों को आधार बनाना आवश्यक है। इन उद्देश्यों का निम्नलिखित प्रकार से वर्णन किया जा सकता है –

1. अन्त्योदय (Development of the last Man):
हम कह सकते हैं कि विकास का कार्य कहाँ से प्रारम्भ किया जाना उचित है। वास्तव में विकास के महत्त्व को तभी समझा जा सकता है, जबकि समाज का निर्धन व्यक्ति विकास की योजना का लाभ प्राप्त कर सके। अतः विकास का लक्ष्य अन्त्योदय होना चाहिए। यदि लक्ष्य अन्त्योदय नहीं रखा गया, तो समाज का विकास तो होगा, किन्तु विकास का लाभ धनी व सामान्य निर्धन वर्ग को ही प्राप्त होगा। अत्यन्त निर्धन तथा निर्धन समाज के अन्त के व्यक्ति की विकास में कोई भागीदारी सम्भव नहीं होगी।

2. जीवन का न्यूनतम स्तर (Minimum Living Standard):
विकास का पहला उद्देश्य दरिद्र लोगों को जीवन के ऐसे न्यूनतम स्तर की प्राप्ति करना चाहिए, जिसमें न केवल नितान्त आवश्यक आवश्यकताओं की पूर्ति हो बल्कि उनके सुखा सुविधा की भी व्यवस्था हो सके। उन्हें व सामान्य परिस्थितियाँ प्राप्त हों, जिनमें उनकी प्रतिभा के विकास के अवसर विद्यमान हों तथा उनकी कार्यकुशलता को बढ़ाया जा सके।

3. Michalot Here for art facire (Development through Democratic Method):
यह उचित है कि अधिनायकवादी देशों में विकास की गति तीव्र होती है और अधिनायक विकास की जो दिशा निश्चित करता है, उसी दिशा में विकास होता है। भय व आतंक के कारण विकास में किसी प्रकार का अवरोध नहीं होता, किन्तु ऐसे देशों में जन सहयोग के अभाव में न विकास के लाभ का सही वितरण हो पाता है और न ही ऐसे विकास में जनता की रुचि जागृत होतो है।

साम्यवादी देशों के विकास की स्थिति से विश्व भली-भाँति परिचित है कि वहाँ विकास के प्रतिमानों का कितना बढ़ा-चढ़ाकर प्रचार हुआ, जबकि वास्तविकता इसके सर्वथा विरुद्ध थी। लोकतन्त्र में विकास जनसहयोग से होता है, यह विकास खुला तथा जन हिताय होता है। किसी विशिष्ट वर्ग के लिए किए जाने वाले विकास का लोकतान्त्रिक पद्धति में विरोध होता है।

4. बेरोजगारी की समस्या का हल (Solution of the Problem of Unemployment):
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर मशीनों की सहायता से उत्पादन किया जाता है। इस कारण जिन देशों में जनसंख्या अधिक है वहाँ बेरोजगारी की समस्या का गम्भीर रूप प्रकट हुआ है।

अब तो स्थिति यह है कि पूँजीवादी समृद्ध देशों में, जिनमें अमेरिका व इंग्लैंड भी सम्मिलित हैं, बेरोजगारी की समस्या विकट रूप में सामने आ रही है। यद्यपि कुछ देशों ने अपने बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ते प्रारम्भ किया है, किन्तु यह समस्या का निदान नहीं है। भारत में भी कुछ राज्य बेरोजगारी भत्ता दे रहे हैं। विकास के लक्ष्यों का निर्धारण करते समय बेरोजगारी दूर करने के लक्ष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि प्रत्येक देश अर्थव्यवस्था के स्कम का निर्धारण अपने यहाँ के साधनों की प्राप्ति को ध्यान में रखकर करें।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न एवं उनके उत्तर

प्रश्न 1.
विकास सम्बन्धी मॉडलों का प्रभाव निम्न में से सबसे ज्यादा किस पर पड़ा?
(क) पर्यावरण एवं समाज पर
(ख) व्यक्ति एवं कृषि पर
(ग) मानव एवं सभ्यता पर
(घ) शिक्षा एवं संस्कृति पर
उत्तर:
(क) पर्यावरण एवं समाज पर

प्रश्न 2.
जून 1992 में पर्यावरण और विकास विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया –
(क) जेनेवा
(ख) रियो द जेनेरो
(ग) टोकियो
(घ) न्यूयार्क
उत्तर:
(ख) रियो द जेनेरो

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प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्रसंघ की विश्व जल विकास सम्बन्धी प्रतिवेदन प्रकाशित हुआ –
(क) मई 2007
(ख) अप्रैल 2006
(ग) मार्च 2006
(घ) फरवरी 2005
उत्तर:
(क) मई 2007