Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 2

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
भारत में स्त्री उत्थान के लिए उठाए गए कदमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्त्री उत्थान के लिए उठाए गए कदम (Steps taken for upliftment of Women)- स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद भारत ने स्त्रियों की दशा में सुधार लाने के लिए बहुत-से कदम उठाए गए हैं-
1. महिला अपराध प्रकोष्ठ तथा परिवार न्यायपालिका (Cells of crimes against Women and family courts)- यह महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए सुनवाई करते हैं। विवाह, तलाक, दहेज, पारिवारिक मुकदमे भी सुनते हैं।

2. सरकारी कार्यालयों में महिलाओं की भर्ती (Recruitment of woman in government)- लगभग सभी सरकारी कार्यालयों में महिला कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। अब तो वायुसेना, नौसेना तथा थलसेना और सशस्त्र सेनाओं के तीनों अंगों में अधिकारी पदों पर स्त्रियों की भर्ती पर लगी रोक को हटा लिया गया है। सभी क्षेत्रों में महिलाएँ कार्य कर रही हैं।

3. स्त्री शिक्षा (Women Education)- स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में स्त्री शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है।

4. राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women)- 1990 के एक्ट के अंतर्गत एक राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है। महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, असम एवं गुजरात राज्यों में भी महिला आयोगों की स्थापना की जा चुकी है। ये आयोग महिलाओं पर हुए अत्याचार, उत्पीड़न, शोषण तथा अपहरण आदि के मामलों की जाँच पड़ताल करते हैं। सभी राज्यों में महिला आयोग स्थापित किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है और इन आयोगों को प्रभावी बनाने की मांग भी जोरों पर है।

5. महिलाओं का आरक्षण (Reservation of Seats for Women)- महिलाएँ कुल जनसंख्या की लगभग 50 प्रतिशत हैं परंतु सरकारी कार्यालयों, संसद, राज्य विधान मंडलों आदि में इनकी संख्या बहुत कम है। 1993 के 73वें व 74वें संविधान संशोधनों द्वारा पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं में एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। संसद तथा राज्य विधानमंडलों में भी इसी प्रकार आरक्षण किए जाने की माँग जोर पकड़ रही है। यद्यपि इस ओर प्रयास किया जा रहा है परंतु सर्वसम्मति के अभाव में जब भी यह विधेयक संसद में लाया जाता है तो विभिन्न दल लग जाते हैं। अभी तक यह विधेयक पारित नहीं कराया गया है यद्यपि सभी राजनैतिक दल इसके समर्थन में बातें तो बहत करते हैं पर किसी ने ईमानदारी से इस विधेयक का समर्थन करने की ओर ध्यान नहीं दिया है।

उपर्युक्त प्रयासों के अतिरिक्त अखिल भारतीय महिला परिषद् तथा कई अन्य महिला संगठन स्त्रियों के अत्याचार, उत्पीड़न और अन्याय से बचाने, उन पर अत्याचार तथा बलात्कार करने वाले अपराधियों को दंड दिलवाने तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

प्रश्न 2.
द्रविड़ आंदोलन पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
द्रविड़ आंदोलन (Dravidian Movement)
I. प्रस्तावना (Introduction)- द्रविड़ आंदोलन भारत के क्षेत्रीय आंदोलनों में से एक शक्तिशाली आंदोलन था देश की राजनीति में यह आंदोलन क्षेत्रीयवादी भावनाओं की सर्वप्रथम और सबसे प्रबल अभिव्यक्ति था।

II. आंदोलन का बदला स्वरूप (Changing natue of the movement)- सर्वप्रथम इस आंदोलन के नेतृत्व के एक हिस्से. की आकांक्षा (aspiration) एक स्वतंत्र द्रविड़ राष्ट्र बनाने की थी, परंतु आंदोलन ने तभी सशस्त्र संघर्ष (Armed Rebellion) का मार्ग नहीं अपनाया। इस आंदोलन के प्रारंभ में द्रविड़ भाषा में एक बहुत ज्यादा लोकप्रिय नारा दिया था जिसका हिंदी रूपान्तर है- ‘उत्तर हर दिन बढ़ता जाए, दक्षिण दिन-दिन घटता जाए’।

द्रविड़ आंदोलन अखिल दक्षिण भारतीय संदर्भ में अपनी बात रखता था लेकिन अन्य दक्षिणी राज्यों से समर्थन न मिलने के कारण यह आंदोलन धीरे-धीरे तमिलनाडु तक ही सिमट कर रह गया।

उपर्युक्त नारे में यह स्पष्ट है इसके संचालक देश के उत्तर और दक्षिण दो विशाल भागों में विभाजन चाहते थे।

III. नेतृत्व और तरीके (Leadership and Methods)- द्रविड़ आंदोलन का नेतृत्व तमिल सुधारक नेता ई. वी. रामास्वामी नायकर जो पेरियार के नाम से प्रसिद्ध हुए, के हाथों में था। पेरियार ने अपने नेतृत्व में द्रविड़ आंदोलन की माँग आगे बढ़ाने के लिए सार्वजनिक बहसें (Public Debates) और चुनावी मंच (Election plateforms) का ही प्रयोग किया।

IV. आंदोलन के राजनैतिक उत्तरदायी संगठन (Political Sucessor organisation of the Movement)-
(a) द्रविड़ आंदोलन की प्रक्रिया से एक राजनैतिक संगठन ‘द्रविड़ कषगम’ का सूत्रपात हुआ। यह संगठन ब्राह्मणों के वर्चस्व (Domination of the Brahman) की खिलाफत (विरोध) करता था तथा उत्तरी भारत के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक प्रभुत्व को नकारते हुए क्षेत्रीय गौरव की प्रतिष्ठा पर जोर देता था।

(b) कालांतर में द्रविड़ कषगाम दो धड़ों में बंट गया और आंदोलन की समूची राजनीतिक विरासत द्रविड़ मुनेत्र कषगम के पाले में केंद्रित हो गई। 1953-54 के दौरान डी. एम. के. ने तीन सूत्रीय आंदोलन के साथ राजनीति में कदम रखा। आंदोलन की तीन माँगें थी-पहली, कल्लाकुडभ नामक रेलवे स्टेशन का नया नाम डालमियापुरम समस्त किया जाए और स्टेशन का मूल नाम दुबारा दिया जाए। संगठन की यह माँग उत्तर भारतीय आर्थिक प्रतीकों के विरोध को प्रकट करती थी। दूसरी माँग इस बात को लेकर थी कि स्कूली पाठ्यक्रम में तमिल संस्कृति के इतिहास को ज्यादा महत्त्व दिया जाए। संगठन की तीसरी माँग राज्य सरकार की व्यावसायिक शिक्षा नीति को लेकर थी। संगठन के अनुसार यह नीति समाज में ब्राह्मण दृष्टिकोण को बढ़ावा देती थी। डी० एम० के० के हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने के खिलाफ थी।

V. डी० एम० के० की सफलताएँ (Success of DMK)- 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलन की सफलता ने डी० एम० के० को जनता के बीच और भी लोकप्रिय बना दिया। राजनीतिक आंदोलनों के एक लंबे सिलसिले के बाद डी० एम० के० को 1967 के विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हाथ लगी। तब से लेकर आज तक तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ दलों का वर्चस्व कायम है।

VI. डी० एम० के० का विभाजन एवं कालांतर की राजनैतिक घटनाएँ (Division of DMK and Political events)- डी० एम० के संस्थापक सी० अन्नादुरै की मृत्यु के बाद दल में दो फाड़ हो गया। इसमें एक दल मूल नाम यानी डी. एम. के. को लेकर आगे चला जबकि दूसरा दल खुद को ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक कहने लगा। यह दल स्वयं को द्रविड़ विरासत का असली हकदार बताता था। तमिलनाडु की राजनीतिक में ये दोनों दल चार दशकों से दबदबा बनाए हुए हैं। इनमें से एक दल 1996 से केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा रहा है।

1990 के दशक में एम०डी०एम०के०, पी०एम०के० डी०एम०डी० जैसे कई अन्य दल अस्तित्व में आए। तमिलनाडु की राजनीति में इन सभी दलों ने क्षेत्रीय गौरव के मुद्दे को किसी न किसी रूप में जिंदा रखा है। एक समय क्षेत्रीय राजनीति को भारतीय राष्ट्र के लिए खतरा माना जाता था। लेकिन तमिलनाडु की राजनीति क्षेत्रवाद और राष्ट्रवाद के बीच सहकारिता की भावना का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करती है।

प्रश्न 3.
असम आंदोलन सांस्कृतिक अभियान आर्थिक पिछड़ेपन की मिली-जुली अभिव्यक्ति था। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असम आंदोलन का स्वरूप नि:संदेह असम आंदोलन सांस्कृतिक अभियान और आर्थिक पिछड़ेपन की (मुख्यतः) मिली-जुली अभिव्यक्ति था। हम निम्न तथ्यों और बिंदुओं के आधार पर इस कथन की व्याख्या कर सकते हैं-
(i) असम पूर्वोत्तर में सबसे बड़ा और ऐतिहासिक दृष्टि से प्राचीनतम राज्य रहा है। कुल मिलाकर पूर्वोत्तर क्षेत्र में 7 राज्य हैं जिनमें चलाए गए समय-समय पर आंदोलन असम आंदोलन के हिस्से ही हैं। पूर्वोत्तर में बड़े पैमाने पर अप्रवासी आए हैं। इससे एक खास समस्या पैदा हुई है। स्थानीय जनता इन्हें ‘बाहरी’ समझती है और ‘बाहरी”लोगों के खिलाफ उसके मन में गुस्सा है।

भारत के दूसरे राज्यों अथवा किसी अन्य देश से आए लोगों को यहाँ की जनता रोजगार के अवसरों और राजनीतिक सत्ता के एतबार से एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती है। स्थानीय लोग बाहर से आए लोगों के बारे में मानते हैं कि ये लोग यहाँ की जमीन हथिया रहे हैं। पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इस मसले ने राजनीतिक रंग ले लिया है और कभी-कभी इन बातों के कारण हिंसक घटनाएँ भी होती हैं।

(ii) 1979 से 1985 तक चला असम आंदोलन ‘बाहरी’ लोगों के खिलाफ चले आंदोलनों का सबसे अच्छा उदाहरण है। असमी लोगों को संदेह था कि बांग्लादेश से आकर बहुत-सी मुस्लिम आबादी असम में बसी हुई थी। लोगों के मन में यह भावना घर कर गई थी कि इन विदेशी लोगों को पहचानकर उन्हें अपने देश नहीं भेजा गया तो स्थानीय असमी जनता अल्पसंख्यक हो जाएगी। कुछ आर्थिक मसले भी थे। असम में तेल, चाय और कोयला जैसे प्राकृतिक संसाधनों की मौजूदगी के बावजूद व्यापक गरीबी थी। यहाँ की जनता ने माना कि असम के प्राकृतिक संसाधन बाहर भेजे जा रहे हैं और असमी लोगों को कोई फायदा नहीं हो रहा है।

(iii) 1979 में ऑल असम स्टूडेंटस् यूनियन (आसू-AASU) ने विदेशियों के विरोध में एक आंदोलन चलाया। ‘आसू’ एक छात्र-संगठन था और इसका जुड़ाव किसी भी राजनीतिक दल से नहीं था। ‘आसू’ का आंदोलन अवैध अप्रवासी, बंगाली और अन्य लोगों के दबदबे तथा मतदाता दर्ज कर लेने के खिलाफ था। आंदोलन की माँग थी कि 1951 के बाद जितने भी लोग असम में आकर बसे हैं उन्हें असम से बाहर भेजा जाए। इस आंदोलन ने नए तरीकों को आजमाया और असमी जनता के हर तबके का समर्थन हासिल किया।

इस आंदोलन को पूरे असम में समर्थन मिला आंदोलन के दौरान हिंसक और त्रासद घटनाएँ भी हुई। बहुत-से लोगों को जान गंवानी पड़ी और धन-संपत्ति का नुकसान हुआ। आंदोलन के दौरान रेलगाड़ियों की आवाजाही तथा बिहार स्थित बरौनी तेलशोधक कारखाने को तेल-आपूर्ति रोकने की भी कोशिश की गई।

(iv) समझौता (Agreement)- छह साल की सतत अस्थिरता के बाद राजीव गाँधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ‘आसू’ के नेताओं से बातचीत शुरू की । इसके परिणामस्वरूप 1985 में एक समझौता के अंतर्गत तय किया गया कि जो लोग बांग्लादेश-युद्ध के दौरान अथवा उसके बाद के सालों में असमय आए हैं, उनकी पहचान की जाएगी और उन्हें वापस भेजा जाएगा। आंदोलन की कामयाबी के बाद ‘आसू’ और असमगण संग्राम परिषद् ने साथ मिलकर अपने को एक क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के रूप में संगठित किया। इस पार्टी का नाम असमगण परिषद् रखा गया। असमगण परिषद् 1985 में इस वायदे के साथ सत्ता में आई थी कि विदेशी लोगों की समस्या को सुलझा लिया जाएगा और एक ‘स्वर्णिम असम’ का निर्माण किया जाएगा।

(v) शांति प्रदेश और क्षेत्र (Peace in Province and Area)- असम-समझौता से शांति कायम हुई और प्रदेश की राजनीति का चेहरा भी बदला लेकिन अप्रवास’ की समस्या का समाध न नहीं हो पाया। ‘बाहरी’ का मसला अब भी असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में राजनीति में एक जीवंत मसला है। यह समस्या त्रिपुरा में ज्यादा गंभीर है क्योंकि यहाँ के मूलनिवासी खुद अपने ही प्रदेश में अल्पसंख्यक बन गए हैं। मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश के लोगों में भी इसी भय के कारण चकमा शरणार्थियों को लेकर गुस्सा है।

प्रश्न 4.
“मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है।” इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्यों क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धंधों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा देती है। ये आर्थिक संगठन बनेंगे तो लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। रोजगारी गरीबी को दूर करती है। समृद्धि का प्रतीक राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय का बढ़ाना प्रमुख सूचक है।

जब लोगों को रोजगार मिलेगा, गरीबी दूर होगी तो, आर्थिक विषमता कम करने के लिए साधारण लोग भी अपने-अपने आर्थिक संगठनों में आवाज उठाएँगे। श्रमिकों को उनका उचित हिस्सा, अच्छी मजदूरियों/वेतनों, भत्तों, बोनस आदि के रूप में मिलेगा तो उनकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। वे अपने परिवार के जनों को शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संवादवहन आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतयों से गहरा संबंध रखती है।

हर देश अपने यहाँ कृषि, उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों (देशों) से सहयोग माँगते हैं और उन्हें पड़ोसियों को सहयोग देना होता है। वे चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले वे अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात करना चाहते हैं। ये तभी संभव होगा जब क्षेत्रों और राष्ट्रीय स्तर पर शांति होगी। बिना शांति के विकास नहीं हो सकता। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन पूरा व्यय नहीं कर सकते। पूरा उत्पादन हुए बिना समृद्धि नहीं आ सकती। संक्षेप में क्षेत्रीय आर्थिक संगठन विभिन्न देशों में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता, यातायात सुविधाओं के विस्तार, विद्युत उत्पादन वृद्धि में सहायक होते हैं। यह सब मूल्कों की शांति और समृद्धि को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.
अन्य पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए सरकार ने क्या कदम उठाए हैं ?
उत्तर:
अनुच्छेद 340 में कहा गया है कि सरकार अन्य पिछड़ी जाति के लिए आयोग नियुक्त कर सकती है। पहली बार 1953 में काका कालेलकर की अध्यक्षता में इस प्रकार का आयोग नियुक्त किया गया। इस आयोग ने 2399 जातियों को पिछड़ी जातियों में सम्मिलित किया। 1978 में वी.वी. मंडल की अध्यक्षता में इस आयोग ने 3743 प्रजातियों को पिछड़ी जाति में शामिल करने की सिफारिश की। कमीशन ने 27 प्रतिशत नौकरियाँ अन्य पिछड़ी जाति के लिए आरक्षितं की।

1998-99 से निम्न कार्यक्रम अन्य पिछड़े वर्ग के लिए शुरू किया गया।

  1. परीक्षा पूर्व कोचिंग अन्य पिछड़े वर्ग के उन लोगों के बच्चों के लिए जिनकी आय एक लाख रु. से कम हो।
  2. अन्य पिछड़े वर्ग के लड़के-लड़कियों के लिए हॉस्टल।
  3. प्री-मैट्रिक छात्रवृतियाँ।
  4. पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृतियाँ।
  5. सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक दशा सुधारने के लिए कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों की सहायता करना।

प्रश्न 6.
‘भारत विभाजन की सर्वाधिक जटिल कठिनाई अल्पसंख्यकों की थी।’ इस कथन की लगभग 100-150 शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तावना (Introduction)- भारत का विभाजन देश और लोगों के लिए अत्यधिक दुखदायी घटना थी। इस विभाजन से देश के समक्ष अनेक समस्याएँ और कठिनाई उपस्थित थीं लेकिन इन सभी में विभाजन की अबूज या जटिल कठिनाई अथवा समस्या अल्पसंख्यकों की थी।

अल्पसंख्यक (Minority)- अल्पसंख्यक का यहाँ संबंध देश-विभाजन के बाद अस्तित्व में आए दोनों देशों-भारत और पाकिस्तान की सीमाओं के दोनों ओर अल्पसंख्यक अर्थात् भारत से जाने वाले मुस्लिम और पाकिस्तान से आने वाले लाखों हिंदू और सिख आबादी से है। भारत के हिस्से में आए पंजाब और बंगाल के लाखों की संख्या में मुसलमानों की आजादी थी। इसका विस्थापन और पुनर्वास दोनों देशों की सरकारों के समक्ष जटिल कठिनाइयाँ थीं।

समस्या की जटिलता (Complexity ofProblem)- (i) भारत से जाने वाले मुसलमान लाखों की संख्या में पंजाब, बंगाल और दिल्ली उसके आस-पास के क्षेत्रों, विभाजन के कारण बड़ी कठिनाई, दुविधा और संकट में पड़ गए। इलाके में भी मुसलमानों की एक बड़ी आबादी थी। ये सब लोग एक तरह से साँसत में थे। इन लोगों ने पाया कि हम तो अपने ही घर में विदेशी बन गए। जिस जमीन पर वे और उनके पुरखे सदियों से आबाद रहे उसी जमीन पर वे ‘विदेशी’ बन गए थे। जैसे ही यह बात साफ हुई कि देश का बँटवारा होने वाला है वैसे ही दोनों तरफ के अल्पसंख्यकों पर हमले होने लगे। बड़ी जल्दी हिंसा नियंत्रण से बाहर हो गई। दोनों के पास एकमात्र रास्ता यही बचा था कि वे अपने-अपने घरों को छोड़ दें। कई बार तो उन्हें ऐसा चंद घंटों की मोहलत के अंदर करना पड़ा।

(ii) 1947 ई० में बड़े पैमाने पर एक जगह की आबादी दूसरी जगह जाने को मजबूर हुई थी। आबादी का यह स्थानांतरण आकस्मिक, अनियोजित और त्रासदी से भरा था। मानव-इतिहास के अब तक ज्ञात सबसे बड़े स्थानांतरणों में से यह एक था। धर्म के नाम पर एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के लोगों को बेहरमी से मारा। लाहौर, अमृतसर और कलकत्ता जैसे शहर सांप्रदायिक अखाड़े में बदल गए। जिन क्षेत्रों में ज्यादातर हिंदू अथवा सिख आबादी थी। उन क्षेत्रों में मुसलमानों ने जाना छोड़ दिया। ठीक इसी तरह मुस्लिम बहुल आबादी वाले क्षेत्रों में हिंदू और सिख भी नहीं गुजरते थे।

(iii) दोनों ही तरफ के अल्पसंख्यक अपने घरों से भाग खड़े हुए और अकसर अस्थाई तौर पर उन्हें शरणार्थी शिविरों में शरण लेनी पड़ी। कल तक जो लोगों का अपना वतन हुआ करता था वहीं की पुलिस अथवा स्थानीय प्रशासन अब इन लोगों के साथ रुखाई का बरताव कर रहा था। लोगों को सीमा के दूसरी तरफ जाना पड़ा और ऐसा उन्हें हर हाल में करना था। अकसर लोगों ने पैदल चलकर यह दूरी तय की।

(iv) सीमा के दोनों ओर हजारों की संख्या में औरतों को अगवा कर लिया गया। उन्हें जबरन शादी करनी पड़ी और अगवा करने वाले का धर्म भी अपनाना पड़ा। कई मामलों में यह भी हुआ कि खुद परिवार के लोगों ने अपने ‘कुल की इज्जत’ बचाने के नाम पर घर की बहू-बेटियों को मार डाला।

(v) बहुत-से बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ गए। जो लोग सीमा पार करने में किसी तरह सफल रहे उन्होंने पाया कि अब वे बेठिकाना हो गए हैं। इन लाखों शरणार्थियों के लिए देश की आजादी का मतलब था महीनों और कभी-कभी सालों तक किसी शरणार्थी शिविर में जिंदगी काटना।।

प्रश्न 7.
भारतीय किसान यूनियन, किसानों की दुर्घटना की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर:
भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दे (Issued raised by Bhartiya Kisan Union)-

  • बिजली के दरों में बढ़ोतरी का विरोध किया।
  • 1980 के दशक के उत्तरार्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकण के प्रयास हुए और इस क्रम में नगदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा। भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोतरी करने,
  • कृषि उत्पादों के अंतर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियाँ हटाने,
  • समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करना।
  • किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की माँग की।

सफलताएँ (Success)- (i) जिला समाहर्ता के दफ्तर के बाहर तीन हफ्तों तक डेरा डाले रहे। इसके बाद इनकी माँग मान ली गई। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धारणा था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस-पास के गाँवों से उन्हें निरंतर राशन-पानी मिलता रहा। मेरठ के इस धरने को ग्रामीण शक्ति को या कहें कि काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रदर्शन माना गया।

(ii) बीकेयू (BKU) जैसी माँगें देश के अन्य किसान संगठनों ने भी उठाई। महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन ने किसानों के आंदोलन को ‘इंडिया’ की ताकतों (यानी शहरी औद्योगिक क्षेत्र) के खिलाफ ‘भारत’ (यानी ग्रामीण कृषि क्षेत्र) का संग्राम करार दिया।

(iii) 1990 के दशक के शुरुआती सालों तक बीकेयू ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों को साथ लेकर अपनी कुछ माँगें मनवाने में सफलता पाई। इस अर्थ में किसान आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक-आंदोलन था।

(iv) इस आंदोलन की सफलता के पीछे इसके सदस्यों की राजनीतिक मोल-भाव की क्षमता का हाथ था। यह आंदोलन मुख्य रूप से देश के समृद्ध राज्यों में सक्रिय था। खेती को अपनी जीविका का आधार बनाने वाले अधिकांश भारतीय किसानों के विपरीत बीकेयू जैसे संगठनों के सदस्य बाजार के लिए नगदी फसल उपजाते थे। बीकेयू की तरह राज्यों के अन्य किसान संगठनों ने अपने सदस्य उन समुदायों के बीच से बनाए जिनका क्षेत्र की चुनावी राजनीति में पहुँच था। महाराष्ट्र का शेतकारी संगठन और कर्नाटक को रैयत संघ ऐसे किसान-संगठनों के जीवंत उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
पुर्तगाल से गोवा मुक्ति का संक्षेप में विवरण दीजिए।
अथवा, गोवा का भारत में विलय किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
भारत में गोवा का विलय आसानी से नहीं हुआ। इसका कारण पुर्तगालियों फ्रांसीसीयों का जिद्दी दृष्टिकोण था। वह इसे अपनी इज्जत का चिह्न समझते थे और वे इसे अपने नियंत्रण में रखना चाहते थे। उनका यह दृष्टिकोण भारतीय दृष्टिकोण के बिल्कुल विपरीत था जो इसे पुर्तगालियों द्वारा भारत के आक्रमण की कार्यवाही और उसे जबरदस्ती हथियाये रखने का अपने देश के सम्मान के लिए एक धब्बा मानते थे। भारतीय सरकार ने भरसक कोशिश की कि पुर्तगालियों को गोवा छोड़कर जाने के लिए राजी करे। गोवा को प्राप्त करने के लिए पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में अपना कार्यालय खोला ताकि वहाँ की सरकार को गोवा छोड़ने के लिए राजी किया जा सके लेकिन आखिरकार 1953 को यह कार्यालय बंद कर दिया गया क्योंकि भारत के तमाम कटनीतिज्ञ प्रयास विफल रह गए।

अब भारतवासियों ने गोवा राष्ट्रीय कमेटी का गठन किया ताकि गोवा में आजादी के कार्य के लिए संलग्न सभी राष्ट्रवादी पार्टियों की गतिविधियों में सामंजस्य स्थापित किया जा सके और गोवा को भारत संघ में शामिल किया जा सके। 18 जून, 1954 को अनेक सत्याग्रही कैद कर लिए गए जब उन्होंने गोवा में भारतीय ध्वज लहराया। 22 जुलाई को क्रांतिकारियों ने दादर-नागर हवेली को आजाद करा लिया। इस कार्य में जनसंघ और गोवावादी लोगों की पार्टी (Goan Peoples party) का संयुक्त रूप से क्रांतिकारियों को समर्थन प्राप्त था।

15 अगस्त, 1955 को गोवा की आजादी ने एक नाटकीय मोड़ लिया। इस दिन हजारों भारतवासी चलकर गोवा में प्रवेश कर गए। ऐसा ही दमन और दीव में भी हुआ। इस प्रक्रिया में 200 प्रदर्शनकारी शहीद हो गए।

पुर्तगाल की इस गलत कार्यवाही से भारत भौंचक्का रह गया। हमारे प्रधानमंत्री ने पुर्तगालियों की निंदा की। सभी प्रमुख शहरों में हड़ताल हुई। नवंबर 1961 में पुर्तगालियों ने भारत के एक जहाज पर हमला करके कुछ लोगों को मार दिया। अंततः भारतीय सेना ने कारवाई की और ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) की कार्यवाही रंग लाई। 19 दिसंबर, 1961 को गोवा व दमन दीव पूरी तरह आजाद हो गया।

प्रश्न 9.
‘भारत में सिक्किम विलय’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में सिक्किम का विलय (Annexation of Sikkim in India)-
1. पृष्ठभूमि (Background)- मतलब यह कि तब सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को सँभाल नहीं सके।

2. सिक्किम में लोकतंत्र तथा विजयी पार्टी का सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास (Democracy in Sikkim and Victorious party’s efforts to connect Sikkim with India)- एक बड़ा हिस्सा नेपालियों का था। नेपाली मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे-से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदाय के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया। सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम काँग्रेस को भारी विजय मिली। वह पार्टी सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने के पक्ष में थी।

3. सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य (प्रांत ) बनाया गया (Sikkim was declared 22nd State (orprovince) of India)- विधानसभा ने पहले भारत के ‘सह-प्रान्त’ बनने की कोशिश की और इसके बाद 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया और जनमत संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तत्काल मान लिया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया। चोग्याल ने इस फैसले को नहीं माना और उसके समर्थकों ने भारत सरकार पर साजिश रचने तथा बल-प्रयोग करने का आरोप लगाया। बहरहाल, भारत संघ में सिक्किम के विलय को स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था। इस कारण यह मामला सिक्किम की राजनीति में कोई विभेदकारी मुद्दा न बन सका।

प्रश्न 10.
गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगे, 2002 पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठभूमि (Background)- कहा जाता है गोधरा (गुजरात) रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी इस हिंसा का तात्कालिक उकसाना बहुत ही हानिकारक और दुखदायी साबित हुआ। अयोध्या (उत्तर प्रदेश) की ओर से आ रही एक ड़ी की बोगी कार सेवकों से भरी हुई थी और न जाने किस कारण से उसमें आग लग गई।

इस आग की दुर्घटना में 57 व्यक्ति जीवित जलकर मर गए। कुछ लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि गोधरा के खड़े रेल के डिब्बे में आग मुसलमानों ने लगायी होगी अथवा लगवाई होगी।

अफवाहें बड़ी खतरनाक और हानिकारक होती है। गोधरा की दुर्घटना से जुड़ी-अफवाह जंगल की आग की तरह संपूर्ण गुजरात में फैल गई। अनेक भागों में मुसलमानों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक चलता रहा। लगभग 1100 व्यक्ति इस हिंसा में मारे गए।

मुसलमानों के विरुद्ध हुए दंगों को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पीड़ित भुक्तभोगियों के परिजनों को राहत देने और दोषी दंगाईयों को तुरंत कानून के हवाले करने एवं पर्याप्त दंड देने के लिए कहा गया। आयोग का यह कहना था पुलिस और सरकारी मशीनरी ने अपने राजधर्म का निर्वाह नहीं किया है सरकार ने अनेक लोगों को राहत दी है। अनेक लोगों पर मुकदमें चल रहे हैं लेकिन यह गानना पड़ेगा कि आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के कारण दंगे करना या कराना हमारे देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था (System) के किसी भी तरह से अनुकूल नहीं है।

प्रश्न 11.
भारत अमेरिका समझौता का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत की परमाणु नीति दो बातों पर निर्भर करती है। भारत के पड़ोसी चीन और पाकिस्तान · परमाणु शक्ति सम्प न राष्ट्र हैं, अतः सुरक्षात्मक आवश्यकता है कि भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न दुश्मनों से अपनी सुरक्षा व्यवस्था निश्चित करने के लिए परमाणु नीति को अपनाये। परमाणु नीति के संदर्भ में दूसरी बात यह है कि भारत को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमाणु संयंत्रों की जरूरत है।

1974 तथा बाद में 1999 में दो बार भारत परमाणु परीक्षण कर चुका है। इस कारण अमेरिका सहित विश्व के सभी विकसित राष्ट्रों का इसे कोपभाजन होना पड़ा। फिर भी भारत ने स्पष्ट किया कि उसके सभी परीक्षण शांतिपूर्ण कार्यों के लिए हैं।

भारत पर अमेरिका द्वारा प्रारंभ से ही एन. पी. टी. तथा सी. टी. बी. टी. जैसे संधियों पर हस्ताक्षर करने का दबाव पड़ता रहा है। इसका अर्थ है कि भारत परमाणु परीक्षण नहीं कर सकता है। भारत इन संधियों को भेदभाव पूर्ण मानता है। भारत की स्पष्ट नीति है कि जबतक विश्व के कुछ देश परमाणु शक्ति सम्पन्न रहेंगे या परमाणु परीक्षण का अधिकार रखेंगे, तब तक भारत अपने को इससे वंचित रखने का निर्णय नहीं ले सकता है। भारत की घोषणा है-

  • भारत हथियारों की दौड़ से बाहर रहकर आवश्यक परमाणु अवरोधक शक्ति बना रहेगा।
  • भारत भविष्य में भूमिगत परमाणु विस्फोट नहीं करेगा।
  • भारत ने स्वेच्छा से इनका पहले प्रयोग न करने के सिद्धांत को स्वीकार किया है।

बदलते संदर्भ में परमाणु कार्यक्रमों को जारी रखते हुए भारत अमेरिका से अपने संबंध सुधारने तथा आवश्यक समझौता करने का निर्णय लिया। इस हेतु प्रयत्न वाजपेयी सरकार के समय से ही किया जा रहा था। अंतत: 2008 में राष्ट्रपति बुश तथा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बीच समझौता सम्पन्न हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 2016 में आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, तकनीकी एवं हथियार संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किया है जिसके कारण दोनों देशों का संबंध अधिक मधुर हुआ है।

प्रश्न 12.
हमारी राजव्यवस्था के निम्नलिखित पक्ष पर आपातकाल का क्या असर हुआ?
(a) नागरिक अधिकारों की दशा और नागरिकों पर इसका असर।
(b) कार्यपालिका और न्यायपालिका के संबंध।
(c) जनसंचार माध्यमों के कामकाज।
(d) पुलिस और नौकरशाही की कार्रवाइयाँ।
उत्तर:
(a) सबसे बड़ी बात यह हुई कि आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत नागरिकों के विभिन्न मौलिक अधिकार निष्प्रभावी हो गए। उनके पास अब यह अधिकार भी नहीं रहा कि मौलिक अधिकारों की बहाली के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाएँ। सरकार ने निवारक नजरबंदी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया। इस प्रावधान के अंतर्गत लोगों को गिरफ्तार इसलिए नहीं किया जाता कि उन्होंने कोई अपराध किया है बल्कि इसके विपरीत इस प्रावधान के अंतर्ग लोगों को इस आशंका से गिरफ्तार किया जाता है कि वे कोई अपराध कर सकते हैं।

सरकार ने आपातकाल के दौरान निवारक नजरबंदी अधिनियमों का प्रयोग करके बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ की। जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया वे बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का सहारा लेकर अपनी गिरफ्तारी को चुनौती भी नहीं दे सकते थे। आपातकाल का विरोध और प्रतिरोध की कई घटनाएँ घटी। पहली लहर में जो राजनैतिक कार्यकर्ता गिरफ्तारी से बच गए थे वे भूमिगत हो गए और सरकार के खिलाफ मुहिम चलाई।

(b) गिरफ्तार लोगों अथवा उनके पक्ष से किन्हीं और ने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में कई मामले दायर किए, लेकिन सरकार का कहना था कि गिरफ्तार लोगों को गिरफ्तारी का कारण बताना कतई जरूरी नहीं है। अनेक उच्च न्यायालयों ने फैसला दिया कि आपातकाल की घोषणा के बावजूद अदालत किसी व्यक्ति द्वारा दायर की गई ऐसी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को विचार के लिए स्वीकार कर सकती है जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी को चुनौती दी हो।

1976 के अप्रैल माह में सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने उच्च न्यायालयों के फैसले को उलट दिया और सरकार की दलील मान ली। इसका आशय यह था कि सरकार आपातकाल के दौरान नागरिक से जीवन और आजादी का अधिकार वापस ले सकती है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से नागरिकों के लिए अदालत के दरवाजे बन्द हो गए। इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय के सर्वाधिक विवादास्पद फैसलों में एक माना गया।

(c) आपातकालीन प्रावधानों के अंतर्गत प्राप्त अपनी शक्तियों पर अमल करते हुए सरकार ने प्रेस का आजादी पर रोक लगा दी। समाचारपत्रों को कहा गया कि कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेनी जरूरी है। इसे प्रेस सेंसरशिप के नाम से जाना जाता है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘स्टेट्समैन’ जैसे अखबारों ने प्रेस पर लगी सेंसरशिप का विरोध किया। जिन समाचारों को छापने से रोका जाता था उनकी जगह ये अखबार खाली छोड़ देते थे। ‘सेमिनार’ और ‘मेनस्ट्रीम’ जैसी पत्रिकाओं ने सेंसरशिप के आगे घुटने टेकने की जगह बंद होना मुनासिब समझा। सेंसरशिप को धत्ता बताते हुए गुपचुप तरीके से अनेक न्यूजलेटर और लीफलेट्स निकले।

(d) पुलिस की ज्यादतियाँ बढ़ गईं। पुलिस हिरासत में कई लोगों की मौत हुई। नौकरशाही मनमानी करने लगे। बड़े अधिकारी, समय की पाबंदी और अनुशासन के नाम पर तानाशाही नजरिए से हर मामले में मनमानी करने लगे। पुलिस और नौकरशाही ने जबरदस्ती परिवार नियोजन को थोपा। अनाधिकृत ढाँचे गिराए। रिश्वतखोरी बढ़ गई।

प्रश्न 13.
आजकल अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पारंपरिक सहयोग को क्यों महत्त्वपूर्ण समझा जा रहा है ? समझाइए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और पारस्परिक सहयोग- (i) आज की दुनिया परस्पर बहुत समीप आ गई है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर मँडराते इन अनेक अपारंपरिक खतरों से निपटने के लिए सैन्य-संघर्ष की नहीं बल्कि आपसी सहयोग की जरूरत है। आतंकवाद से लड़ने अथवा मानवाधिकारों को बहाल करने में भले ही सैन्य-बल की कोई भूमिका हो (और यहाँ भी सैन्यबल एक सीमा तक ही कारगर हो सकता है) लेकिन गरीबी मिटाने, तेल तथा बहुमूल्य धातुओं की आपूर्ति बढाने, अप्रवासियों और शरणार्थियों की आवाजाही के प्रबंधन तथा महामारी के नियंत्रण से सैन्य-बल के प्रयोग से मामला और बिगड़ेगा।

(ii)ज्यादा प्रभावी यही होगा कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से रणनीतियाँ तैयार की जायें। सहयोग द्विपक्षीय (दो देशों के बीच) क्षेत्रीय, महादेशीय अथवा वैश्विक स्तर का हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि खतरे की प्रकृति क्या है और विभिन्न देश इससे निपटने के लिए कितने इच्छुक तथा सक्षम हैं। सहयोगमूलक सुरक्षा में विभिन्न देशों के अतिरिक्त अंतर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर की अन्य संस्थाएँ जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन (संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष आदि) (एमनेस्टी इंटरनेशनल, रेड क्रॉस, निजी संगठन तथा दानदाता संस्थाएँ, चर्च और धार्मिक संगठन, मजदूर संगठन, सामाजिक और विकास संगठन) व्यवसायिक संगठन और निगम तथा जानी-मानी हस्तियाँ (जैसे नेल्सन मंडेला, मदर टेरेसा) शामिल हो सकती हैं।

(iii) सहयोग मूलक सुरक्षा में भी अंतिम उपाय के रूप में बल-प्रयोग किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी उन सरकारों से निबटने के लिए बल-प्रयोग की अनुमति दे सककती है जो अपनी जनता को मार रही हो अथवा गरीबी, महामारी और प्रलयंकारी घटनाओं की मार झेल रही जनता के दु:ख-दर्द की उपेक्षा कर रही हो। ऐसी स्थिति में सुरक्षा की अपारंपरिक धारणा का जोर होगा कि बल-प्रयोग सामूहिक स्वीकृति से और सामूहिक रूप में किया जाए न कि कोई एक देश अंतर्राष्ट्रीय और स्वयंसेवी संगठन समेत अन्यों की मर्जी पर कान दिए बगैर बल प्रयोग का रास्ता अख्तियार करे।

प्रश्न 14.
विश्व स्तर पर असमानता किस प्रकार के खतरे उत्पन्न करती है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
असमानता और विश्व के लिए खतरे- (i) विश्व स्तर पर यह असमानता उत्तरी गोलार्द्ध के देशों को दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों से अलग करती है। दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में असमानता अच्छी-खासी बढ़ी है। यहाँ कुछ देशों ने आबादी की रफ्तार को काबू में किया है और आय को बढ़ाने में सफल रहे हैं जबकि बाकी देश ऐसा नहीं कर पाये हैं। उदाहरण के लिए दुनिया में सबसे ज्यादा सशस्त्र संघर्ष अफ्रीका के सहारा मरुस्थल के दक्षिणवर्ती देशों में होते हैं। यह इलाका दुनिया का सबसे गरीब इलाका है। 21वीं सदी के शुरूआती समय में इस इलाके के युद्धों में शेष दुनिया की तुलना में कहीं ज्यादा लोग मारे गए।

(ii) दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों में मौजूद गरीबी के कारण अधिकाधिक लोग बेहतर जीवन खासकर आर्थिक अवसरों की तलाश में उत्तरी गोलार्द्ध के देशों में प्रवास कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक मतभेद उठ खड़ा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय कायदे कानून अप्रवासी (जो अपनी मर्जी से स्वदेश छोड़ते हैं) और शरणार्थी (जो युद्ध प्राकृतिक आपदा अथवा राजनीतिक उत्पीड़न के कारण स्वदेश छोड़ने पर मजबूर होते हैं) में भेद करते हैं।

(iii) सामान्यतया उम्मीद की जाती है कि कोई राज्य शरणार्थियों को स्वीकार करेगा लेकिन उन्हें अप्रवासियों को स्वीकारने की बाध्यता नहीं होती। शरणार्थी अपनी जन्मभूमि को छोड़ते हैं जबकि जो लोग अपना घर-बार छोड़ चुके हैं परंतु राष्ट्रीय सीमा के भीतर ही उन्हें “आंतरिक रूप से विस्थापित जन” कहा जाता है। सन् 1990 के दशक के शुरूआती सालों में हिंसा से बचने के लिए कश्मीर घाटी छोड़ने वाले पंडित “आंतरिक रूप से विस्थापित जन” के उदाहरण हैं।

प्रश्न 15.
भारत में विपक्षी दलों के उदय पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
(i) आपातकाल लागू होने के पहले की बड़ी विपक्षी पार्टियाँ एक-दूसरे के नजदीक आ रही थी। चुनाव के ऐन पहले इन पार्टियों ने एकजुट होकर जनता पार्टी नाम से एक नया दल बनाया। नयी पार्टी ने जयप्रकाश नारायण का नेतृत्व स्वीकार किया। कांग्रेस के कुछ नेता भी जो आपातकाल के खिलाफ थे, इस पार्टी में शामिल हुए।

(ii) कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं ने जगजीवन राम के नेतृत्व में एक नयी पार्टी बनाई। इस पार्टी का नाम ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ था और बाद में यह पार्टी भी जनता पार्टी में शामिल हो गई।

(iii) 1977 ई० के चुनावों को जनता पार्टी ने आपातकाल के ऊपर जनमत संग्रह का रूप दिया। इस पार्टी में चुनाव प्रचार में शासन के अलोकतांत्रिक चरित्र और आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों पर जोर दिया।

(iv) हजारों लोगों की गिरफ्तारी और प्रेस की सेंसरशिप की पृष्ठभूमि में जनमत कांग्रेस के विरुद्ध था। जनता पार्टी के गठन के कारण यह भी सुनिश्चित हो गया कि गैर-कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किल आ पड़ी थी।

(v) लेकिन चुनाव के अंतिम नतीजों ने सबको चौंका दिया। आजादी के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार गई। कांग्रेस को लोकसभा की मात्र 154 सीटें मिली थी। उसे 35 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए। जनता पार्टी और उसके साथी दलों को लोकसभा की कुल 542 सीटों में से 330 सीटें मिलीं। खुद जनता पार्टी अकेले 295 सीटों पर जीत गई थी और उसे स्पष्ट बहुमत मिला था। उत्तर भारत में चुनावी माहौल कांग्रेस के एकदम खिलाफ था। कांग्रेस बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में एक भी सीट न पा सकी। राजस्थान और मध्य प्रदेश में उसे महज एक-एक सीट मिली। इन्दिरा गांधी रायबरेली से और उनके पुत्र संजय गांधी अमेठी से चुनाव हारे।

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
नई आर्थिक नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अप्रैल, 1991 की नई आर्थिक नीति की मुख्य विशेषता अर्थव्यवस्था का उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation) एवं वैश्वीकरण (Globalisation) करना है।

(1) उदारीकरण (Liberalisation)-
उदारीकरण का अर्थ (Meaning of Liberalisation)- उदारीकरण से आशय व्यवसाय तथा उद्योग पर लगे प्रतिबन्धों को न्यूनतम करना ताकि अनावश्यक प्रतिबन्धों को समाप्त किया जा सके। उदारीकरण के द्वारा देश में ऐसा आर्थिक पर्यावरण स्थापित करने के प्रयास किये जाते हैं जिससे देश के व्यवसाय व उद्योग स्वतन्त्र रूप में विकसित हो सकें तथा उन्हें कार्य करने में किसी प्रकार की बाधाओं का सामना न करना पड़े। वास्तव में, उदारीकरण से हमारा अभिप्राय, “सरकार द्वारा लगाये गये प्रत्यक्ष या भौतिक नियन्त्रणों से अर्थव्यवस्था की मुक्ति है।” (Liberalisation of the economy means to free it from direct or physical controls imposed by the government.)

उदारीकरण के प्रमुख उपाय (Main Measures of Liberalisation)-
उदारीकरण के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-

  • वस्तुओं एवं सेवाओं के आवागमन पर लगी बाधाओं को हटाना;
  • लाइसेंसिंग प्रणाली को न्यूनतम तथा सरल बनाना;
  • नवीन उद्योगों की स्थापना की स्वतन्त्रता देना;
  • इन्सपेक्टर राज्य को समाप्त करना अथवा न्यूनतम करना;
  • वस्तुओं की कीमत का निर्धारण उत्पादकों/निर्माताओं द्वारा किया जाना;
  • आयात नीति को सरल बनाना:
  • उत्पादों के वितरण पर लगी रोकों को हटाना;
  • स्कन्ध विपणि क्रियाओं को नियमित करना एवं
  • सरकारी नियन्त्रणों के स्थान पर बाजार शक्तियों को प्रोत्साहित करना।

उदारीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रभाव (Impact of Liberalisation on Business and Industry)- उदारीकरण के व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं-
1. औद्योगिक लाइसेंसिंग तथा पंजीकरण की समाप्ति (Abolition of Industrial Licencing and Registration)- उदारीकरण नीति के अन्तर्गत उद्योगों के पंजीकरण की प्रणाली को समाप्त कर दिया गया है। इसी प्रकार 6 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों को लाइसेंसिंग से मुक्त कर दिया गया है। ये उद्योग हैं- (i) रक्षा उपकरण, (ii) शराब, (iii) सिगरेट, (iv) औद्योगिक विस्फोटक, (v) खतरनाक रसायन तथा (vi) औषधियाँ।

2. लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि (Increase in the Investment Limit of Small Industries)- लघु उद्योगों की निवेश सीमा 1 करोड़ रु० कर दी गई है तथा अति लघु उद्योगों की निवेश सीमा बढ़ाकर 25 लाख रु० कर दी गई है।

3. एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक कानून से रियायतें (Concessions in M.R.T.P. Act)- एकाधिकार एवं प्रतिबंधात्मक कानून के अन्तर्गत आने वाले 22 उद्योगों को लाइसेंस से मुक्ति प्रदान कर दी गई है और इस कानून के अन्तर्गत आने वाली कम्पनियों में पूँजी वाली कम्पनियाँ ही अब इस कानून के अन्तर्गत आ सकेंगी।

4. टेक्नोलॉजी आयात से मुक्ति (Freedom from Import Technology)- उदारीकरण नीति के अन्तर्गत उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को विदेशों से टेक्नोलॉजी का आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

5. उद्योगों के विस्तार की स्वतन्त्रता (Freedom of Expansion of Industries)- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत विद्यमान उद्योगों को विस्तार के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

6. पूँजीगत माल के आयात की स्वतन्त्रता (Freedom to Import Capital Goods)- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत विद्यमान्: ज्योग को अपना विस्तार तथा आधुनिकीकरण करने के लिए विदेशों से पूँजीगत माल (जैसे-मशीनें) आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

7. ब्याज दरों का स्वतन्त्र निर्धारण (Free Determination of Interest Rates)- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत अब अनुसूचित बैंकों को ब्याज दर निर्धारण की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है।

8. शत-प्रतिशत निर्यात-उन्मुखी औद्योगिक इकाइयों को छुटे (Exemptions to 100% Export oriented Industrial Units)- उदारीकरण की नीति के अन्तर्गत अपने उत्पादन का सम्पूर्ण भाग निर्यात करने वाली औद्योगिक इकाइयों को भारी छूटें प्रदान की गई हैं।

(II) निजीकरण (Privatisation)-
निजीकरण से आशय (Meaning of Privatisation)- सरल शब्दों में, निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियन्त्रण में थी। निजीकरण वह सामान्य प्रक्रिया है जिसके द्वारा निजी क्षेत्र किसी सरकारी उद्यम का मालिक बन जाता है या उसका प्रबन्ध करता है (Privatisation is the general process of involving the private sector in the ownership or operation of a state owned enterprise.) निजीकरण की आवश्यकता मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के अकुशल होने के कारण महसूस की गई। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश उपक्रम घाटा उठा रहे थे। इस कारण निजीकरण की जरूरत महसूस की गई क्योंकि निजीकरण के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की कुशलता में वृद्धि होगी, प्रतियोगिता बढ़ेगी एवं उत्पादन की गुणवत्ता तथा विविधता में वृद्धि होगी। जिसका विशेष रूप से, उपभोक्ताओं को लाभ मिलेगी।

निजीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रभाव (Impact of Privatisation on Business and Industry)- सन् 1991 की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत निजीकरण की नीति का अनुकरण करने से इसके व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं-

1. विनिवेश की नीति (Disinvestment Policy)- सार्वजनिक क्षेत्र के जो उद्योग घाटे में चल रहे थे, उनमें सरकार विनिवेश की नीति का अनुकरण कर रही है अर्थात् सरकार इन उद्योगों में अपनी हिस्सेदारी को कम कर रही है। इसके परिणामस्वरूप 31 मार्च, 2004 तक सरकार 43,176 करोड़ रुपये के सार्वजनिक कम्पनियों के शेयर निजी क्षेत्र को बेच चुकी थी। इनमें Maruti Udyog Ltd., Gail, IBP, DCIL, ONGC आदि प्रमुख सरकारी कम्पनियाँ हैं जिनमें विनिवेश की प्रक्रिया लागू की गई है।

2. निजी क्षेत्र के निवेश में वृद्धि (Increase in Private Sector Investment)- भारत के व्यावसायिक एवं औद्योगिक क्षेत्र में आर्थिक सुधारों के अन्तर्गत निजीकरण की प्रक्रिया अपनाने के कारण निजी क्षेत्र के कुल निवेश में तेजी से वृद्धि हुई है। निजी क्षेत्र में कुल निवेश 45% से बढ़कर 55% हो गया है।

3. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का संकुचित होना (Contraction of Public Sector Units)- एक समय था, विशेषकर द्वितीय पंचवर्षीय योजना में, जब सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में उद्योगों की स्थापना एवं विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही थी किन्तु सन् 1991 की नवीन आर्थिक नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के संकुचन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई है। सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित उद्योगों की संख्या 17 से घटकर 4 रह गई है अर्थात् निम्नलिखित चार सार्वजनिक क्षेत्रों- (i) परमाणु ऊर्जा, (ii) सैनिक साज-सामान, (iii) रेल परिवहन तथा (iv) परमाणु धातुओं का खनन को छोड़कर शेष औद्योगिक क्षेत्र निजी क्षेत्र के लिए खोल दिये गये हैं।

4. निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास एवं विस्तार को प्रोत्साहन (Incentive to clopment and Expansion to Private Sector Industries)- सन 1991 की नवीन आर्थिक नीति के अन्तर्गत सरकार निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास एवं विस्तार के लिए हर सम्भव प्रोत्साहन प्रदान कर रही है।

5. ऋणों की अंशों में परिवर्तनीयता आवश्यक नहीं (Conversion of Loans into Shares not necessary)- सन् 1991 की नवीन आर्थिक नीति के अन्तर्गत अब ऋणों की अंशों में परिवर्तनीयता आवश्यक नहीं है।

(III) agaicharut (Globalisation)-
वैश्वीकरण का अर्थ (Meaning of Globalisation)- वैश्वीकरण में सम्पूर्ण विश्व को एक बाजार का रूप प्रदान किया जाता है। वैश्वकरण से आशय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई अन्तर्निर्भरता (पारस्परिक निर्भरता) तथा आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है। इसके अन्तर्गत विश्व बाजारों के मध्य पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न होती है तथा व्यवसाय देश की सीमाओं को पार करके विश्वव्यापी रूप धारण कर लेता है। वैश्वीकरण के द्वारा ऐसे प्रयास किये जाते हैं कि विश्व के सभी देश व्यवसाय एवं उद्योग के क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ सहयोग एवं समन्वय स्थापित करें। वास्तव में, “वैश्वीकरण से अभिप्राय विश्व अर्थव्यवस्था में आये खुलेपन, बढ़ती हुई परस्पर आर्थिक निर्भरता एवं आर्थिक एकीकरण के फैलाव से है।” (Globalisation may be described as a process associated with increasing openness, growing economic interdependence and depending economic integration in the world economy.)

वैश्वीकरण की विशेषताएँ (Characteristics of Globalisation)- वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. देश की अर्थव्यवस्था को विश्व की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया जाता है अर्थात् आर्थिक क्रियाओं का राष्ट्रीय सीमा से आगे विस्तार किया जाता है;
  2. वस्तुओं, सेवाओं, पूँजी, तकनीकी तथा श्रम सम्बन्धी अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों का एकीकरण हो जाता है अर्थात् इनके आवागमन पर सभी प्रकार की रुकावटें हटा ली जाती हैं;
  3. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का विस्तार होता है; एवं
  4. सरकार की राष्ट्रीय मैक्रो आर्थिक नीतियों (National Macro Economic Policies) का क्षेत्र कम हो जाता है।

वैश्वीकरण का व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रभाव (Impact of Globalisation on Business and Industry)- भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रिया जुलाई 1991 की आर्थिक नीति के अन्तर्गत प्रारम्भ हुई है। इसके व्यवसाय तथा उद्योग पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं

1. व्यवसाय का वैश्वीकरण (Globalisation of Business)- जुलाई 1991 की नई आर्थिक नीति के अन्तर्गत व्यवसाय पर सरकारी नियन्त्रण को कम किया गया है तथा आयात-निर्यात से सम्बन्धित उदारवादी नीति अपनायी गई है-

  • आयात शुल्क में पर्याप्त कमी की गई है।
  • भारतीय रुपये का अवमूल्यन किया गया है ताकि रुपये की वास्तविक विनिमय दर निर्धारित हो सके।
  • शत-प्रतिशत निर्यात-उन्मुखी उद्योगों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है;
  • आयात-निर्यात प्रतिबन्धों को कम किया गया है;
  • चालू खाते पर पूर्ण परिवर्तनीयता लागू की गई है;
  • लगभग 2,000 भारतीय कम्पनियों ने 15,09,000 प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिए हैं जोकि उच्च गुणवत्ता की गारण्टी है। इससे निर्यात को प्रोत्साहन मिला है;
  • निर्यात को प्रोत्साहन देने की प्रक्रिया को सरल बना दिया गया है तथा
  • उद्योगों के विकास एवं आधुनिकीकरण के लिए विदेशी आधुनिक टेक्नोलॉजी के आयात को छूट दे दी गई है।

2. निवेश का वैश्वीकरण (Globalisation of Investment)- सन् 1991 की नवीन आर्थिक नीति के अन्तर्गत विदेशी निवेश पर लगे कई प्रतिबन्ध हटा लिए गए हैं तथा उन्हें आकर्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार से रियायतें दी गई हैं। इस क्षेत्र में उठाए गए प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

  • विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के लिए द्वार खोल दिए गए हैं;
  • अमेरिकन ऋण बाजार में भारतीय निगम सक्रिय हो रहे हैं;
  • यदि विदेशी कम्पनियाँ भारत में स्थापित संयुक्त उपक्रमों में पूर्ण स्वामित्व प्राप्त करना चाहती हैं अथवा पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कम्पनियाँ (Subsidiaries) स्थापित करना चाहती हैं तो इसके लिए उन्हें पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान की गई हैं;
  • फेरा अधिनियम में संशोधन करके फेरा कम्पनियों को कई सुविधाएँ दी गई हैं;
  • अनिवासी भारतीय के लिए अंशों के हस्तांतरण पर लगे प्रतिबन्धों को समाप्त कर दिया गया है;
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को भारत में निर्यातोन्मुखी इकाइयों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ एवं रियायतें प्रदान की गई हैं;
  • विदेशी निवेश की स्वीकृति के लिए एकल खिड़की (Single Window) योजना लागू की गई है। अब विदेशी निवेश की स्वीकृति एक ही स्थान से प्राप्त हो जाएगी। निवेशकों को भारत में व्याप्त लालफीताशाही का शिकार नहीं होना पड़ेगा;
  • अनिवार्य भारतीय उद्योगों को निर्यात इकाइयों की स्थापना, अस्पतालों, होटलों आदि में शत-प्रतिशत निवेश की अनुमति प्रदान कर दी गई है।
  • विदेशियों को आधारभूत सुविधाओं, जैसे-बिजली, सड़क, संचार आदि में निवेश के लिए विभिन्न प्रकार की रियायतें एवं सुविधाएँ प्रदान की गई हैं;
  • सन् 1991 की आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप भारत में विदेशी निवेशों की निरन्तर वृद्धि हो रही है एवं
  • अनिवासी भारतीयों को जनवरी, 2005 तक दोहरी नागरिकता प्रदान करने की घोषणा की गई है।

3. पूँजी का वैश्वीकरण (Globalisation of Capital)- सन् 1991 की आर्थिक नीति के परिणामस्वरूप भारत में पूँजी का तीव्र गति से वैश्वीकरण हो रहा है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं-

  • भारत में विदेशी पूँजी का तेजी से आगमन हो रहा है;
  • भारत में विदेशी विनिमय कोषों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। सन् 1990-91 में विदेशी विनिमय कोष मात्र 4,388 करोड़ रु० थे जो सन् 2003-04 में बढ़कर 113 बिलियन अमरीकन डॉलर हो गए; एवं
  • विदेशी पूँजी विनियोग की सीमा 40% से बढ़ाकर 49% कर दी गई।

प्रश्न 2.
विकेन्द्रीयकरण के अर्थ, परिभाषा एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विकेन्द्रीयकरण का अर्थ- विकेन्द्रीयकरण का आशय उत्तरदायित्व को टालने अथवा बदलने से नहीं, अपितु इसका आशय निर्णय सम्बन्धी अधिकार प्रबन्ध के निम्न स्तरों को सौंपने से है। इसको यह भी नहीं समझना चाहिए कि उच्च प्रबन्ध अपने सभी अधिकार त्याग देता है। अपितु वह महत्त्वपूर्ण मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है। विकेन्द्रीयकरण का मुख्य उद्देश्य कर्मचारियों में स्वायत्तता तथा उत्तरदायित्व की भावना जागृत करने के लिए उन्हें निर्णय सम्बन्धी अधिकार प्रदान करने से है।

1. ऐलन के शब्दों में, “विकेन्द्रीयकरण का तात्पर्य समस्त संगठन में, व्यवस्थित ढंग से, निर्णय सम्बन्धी अधिकारों को अधीन व्यक्तियों को सौंपने से है।”

उक्त परिभाषा के अनुसार विकेन्द्रीयकरण में कुछ अधिकारों का उच्च स्तर पर आरक्षण माना है जैसे नियोजन, संगठन, निर्देशन व नियन्त्रण के अधिकार का भारार्पण उस सीमा तक किया जाता है। जहाँ तक इन्हें क्रियान्वित किया जाना हो।

2. हेनरी फेयोल के शब्दों में, “अधीनस्थ कर्मचारियों की भूमिका के महत्त्व में वृद्धि करने के लिए जो भी कदम उठाये जाते हैं, वे सब विकेन्द्रीयकरण के अन्तर्गत आते हैं, इनमें कमी करने का हर उपाय केन्द्रीयकरण है।”

उपरोक्त परिभाषा में फेयोल ने ऐसे समस्त कार्यों की जो अधीनस्थ कर्मचारियों के महत्त्व को बढ़ाते हैं, विकेन्द्रीयकरण में शामिल किया है।

3. कून्ट्ज ओ’डोनेल के शब्दों में, “अधिकारों का विकेन्द्रीयकरण अधिकार सौंपने की प्रक्रिया का प्रथम पहलू है और जिस सीमा तक अधिकार नहीं सौंपे जाते उनका केन्द्रीयकरण होता है।”

4. कीथ डेविस (Kcith Davis) के अनुसार, “संगठन की छोटी से छोटी इकाई तक, जहाँ तक व्यावहारिक हो, अधिकार एवं दायित्व का वितरण विकेन्द्रीयकरण कहलाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन के उपरांत इसकी निम्न विशेषताएँ दृष्टिगोचर होता है-

  • विकेन्द्रीयकरण संस्था में अधीनस्थों की भूमिका के महत्त्व को बढ़ाता है;
  • विकेन्द्रीयकरण में निर्णय लेने की क्रिया में समस्त कर्मचारियों का योगदान रहता है;
  • विकेन्द्रीयकरण निम्नतम स्तर तक अधिकारों के अंतरण का प्रयास है;
  • विकेन्द्रीयकरण अधीनस्थ कर्मचारियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करता है; एवं
  • विकेन्द्रीयकरण उच्च प्रबन्ध वर्ग के कार्य भार में कमी करता है।

विकेन्द्रीयकरण के उद्देश्य (Objects of Decentralisation)- विकेन्द्रीयकरण का अन्तर्गत सभी कार्यकारी संभाग अपने आप में स्वतंत्र होते हैं एवं प्रत्येक सम्भागीय अधिकारी अपने स्वतंत्र निर्णय लेता है। विकेन्द्रीयकरण की तकनीक का प्रयोग निम्न उद्देश्यों (Objects) के लिए किया जाता है-

  • कार्यभार में कमी लाने के लिए;
  • प्रबन्धकीय प्रतिभा को विकसित करने के लिए;
  • निर्णय में होने वाले, विलम्ब को समाप्त करने के लिए;
  • प्रजातान्त्रिक प्रणाली का विकास करने के लिए;
  • कर्मचारियों को प्रेरित करने के लिए;
  • निम्न स्तरीय प्रबन्धों को प्रेरणा देने के लिए;
  • विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित करने के लिए; एवं
  • प्रबन्धकों में आपसी तालमेल स्थापित करने के लिए।

निष्कर्ष-विकेन्द्रीयकरण प्रबन्ध का दर्शन (Philosophy) है और यह प्रबन्ध के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है।

प्रश्न 3.
प्रशिक्षण के विभिन्न तरीकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के अनेक ढंग हैं। प्रत्येक ढंग की अपनी विशेषतायें, लाभ एवं हानियाँ हैं। कोई भी एक ढंग सभी संगठनों के लिए उपयोगी नहीं हो सकता। अतः प्रत्येक संगठन को अपनी जरूरत, कर्मचारियों के प्रकार, कार्य की प्रकृति, कार्य की उपयोगिता, प्रशिक्षण की आवश्यकता इत्यादि को ध्यान में रखकर प्रशिक्षण की पद्धति अथवा पद्धतियों का चुनाव करना होता है। उद्योगों में प्रयोग होने वाली प्रशिक्षण पद्धतियों का अध्ययन निम्न दो प्रकार से किया जा सकता है-

कार्य पर प्रशिक्षण (Training on the job)- कर्मचारियों को कार्य पर प्रशिक्षण देने का उद्देश्य उन्हें कार्यों की वास्तविक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं से कम-से-कम समय में परिचित कराना है। जब कर्मचारी कार्यों पर प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं तो वे समस्त क्रियाओं को स्वयं देखते हैं और उन्हीं क्रियाओं के द्वारा सीखते हैं। इससे प्रशिक्षण के समय में पर्याप्त कमी आती है। इस विधि की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि पर्यवेक्षक कितने अनुभवी व योग्य हैं एवं उनकी प्रशिक्षण देने में कितनी रुचि है। इसी सन्दर्भ में जे.बैटी (J. Betty) ने कहा है कि, “कार्य पर प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षित प्रशिक्षक की जरूरत होती है, नहीं तो एक अयोग्य प्रशिक्षक अनेक अयोग्य सन्तान पैदा कर देगा।” (On-the-job training, for its success needs a properly trained instructor. Otherwise an inefficient instructor can produce a number of inefficient off-springs.)

कार्य पर प्रशिक्षण की प्रमुख विधियाँ (Main Methods of on-the-Job Training)-
1. कार्य बदली प्रशिक्षण (Job Rotation Training)- इस विधि का उद्देश्य एक प्रबन्धक को संस्था के सभी विभागों की जानकारी प्रदान करना है। प्रबन्धक को पहले एक विभाग (जैसे-उत्पादन विभाग) में नियुक्त किया जाता है और जब वह इस विभाग के बारे में सभी सम्बन्धित जानकारियों प्राप्त कर लेता है तो उसे किसी दूसरे विभाग (जैसे-विपणन विभाग) में भेज दिया जाता है और इसके बाद अन्य विभागों में। इस प्रशिक्षण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य संस्था में ऐसे प्रबन्धकों को उपलब्ध कराना है जो विपरीत परिस्थितियों में किसी भी विभाग को संभाल सके।

2. नवसिखिया प्रशिक्षण एवं कार्यक्रम (Apprenticeship Training or Programme)- यह विधि प्रायः कर्मचारियों को विशिष्ट कौशल सिखलाने के लिए काम में लायी जाती है। इसके अन्तर्गत अलग-अलग कक्षाओं में अध्ययन होता है और जॉब पर भी वास्तविक कार्य करवाया जाता है। कक्षाओं में विशिष्ट ज्ञान रखने वाले विशेषज्ञ सैद्धान्तिक अध्ययन करवाते हैं तथा फैक्ट्री में सुपरवाइजर अपनी देख-रेख में उनसे वास्तविक कार्य करवाते हैं। इस प्रकार उन्हें जॉब का अनुभव तथा ज्ञान दोनों प्रदान किये जाते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण की अवधि प्रायः लम्बी होती है।

3. प्रकोष्ठशाला प्रशिक्षण (Vestibule Training)- यद्यपि यह प्रशिक्षण कारखाने में न देकर कारखाने से बाहर एक विशेष प्रशिक्षण केन्द्र पर दिया जाता है। लेकिन इसकी यह विशेषता है कि प्रशिक्षण केन्द्र का वातावरण कारखाने जैसा ही होता है जिससे कर्मचारियों को जब वे कारखाने में काम पर आते हैं किसी प्रकार की घबराहट नहीं होती जिससे उनकी कार्यकुशलता अधिक बढ़ जाती है।

4. संयुक्त प्रशिक्षण योजना (Internship Training)- प्रबन्धकों को सैद्धान्तिक ज्ञान शिक्षण संस्थाओं से प्राप्त होता है जबकि कार्य का व्यावहारिक ज्ञान उन्हें व्यावसायिक संस्थाओं में कुशल विशेषज्ञों के माध्यम से प्रदान किया जाता है। यह पद्धति प्रबन्धकों को उनके पेशे की बारीकियों व पेचीदगियों से परिचित कराती है।

कार्य से दूर प्रशिक्षण (Off the Job Training)- इस विधि के अन्तर्गत श्रमिक को एक विनिर्दिष्ट अवधि के लिए कार्य-स्थल से दूर प्रशिक्षण दिया जाता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण विशेष गोष्ठियाँ, विश्वविद्यालयों अथवा प्रबन्ध संस्थाओं में, संगोष्ठियाँ आयोजित करके अथवा समस्याओं का अध्ययन करके अथवा संयुक्त प्रशिक्षण योजनाओं के माध्यम से दिया जाता है। इस प्रशिक्षण के दौरान सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार की जानकारी दी जाती है। इसकी मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं-

  • सम्मेलन पद्धति (Conference Method);
  • भूमिका करना (Role Playing);
  • विशेष व्याख्यान एवं चर्चा (Special Lecture and Discussion);
  • समस्या अध्ययन (Case Study);
  • विश्वविद्यालयों एवं प्रबन्ध संस्थाओं में प्रशिक्षण (Training in the Management Institutes and Universities); एवं
  • संगोष्ठी (Seminar)।

प्रश्न 4.
उद्यमिता को एक पेशा के रूप में चुनने के लिये लोगों को क्या अभिप्रेरित करता है ?
उत्तर:
उद्यमिता को एक पेशा के रूप में चुनने के लिये निम्नलिखित घटक लोगों को अभिप्रेरित करता है-

  1. स्वतंत्र, आत्म-विश्वास एवं कुछ अपना करने का विचार
  2. अपनी खोज एवं इच्छा को कार्य रूप देने की पद्धति।
  3. स्वयं के यथार्थकरण की आवश्यकता
  4. प्रतिस्पर्धा की स्थिति में व्यक्तिगत अभिलाषा।
  5. उच्च स्तर की दक्षता।

दूसरे शब्दों में, उद्यमिता की अभिप्रेरणा चार मुख्य आवश्यकताओं का मिश्रण है-

  • कुछ प्राप्त करने की आवश्यकता- स्वयं के विकास के लिये कुछ कठिन कार्य करना जो दूसरे से भिन्न हो, स्वयं को प्रोजेक्ट करना, आत्म-सम्मान का बढ़ाना, अपनी योग्यता का प्रयोग करना आदि।
  • शक्ति की आवश्यकता- दूसरे को प्रभावित करने की तमन्ना ताकि निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति की जा सके।
  • विद्यमानता की आवश्यकता- विद्यमानता एवं परिपाटी के अनुकूल कार्य करने की इच्छा, पारिवारिक व्यवसाय को चलाने की इच्छा।
  • स्वायत्तता की आवश्यकता- स्वतंत्रता की इच्छा, निष्पादन के लिये स्वयं का अधिकार, व्यक्तिगत योग्यता का पूर्ण प्रयोग, अपने कार्यक्रम को चुनने का निर्णय आदि।

अभिप्रेरणा के अभाव में, योग्य व्यक्ति भी उद्यमिता को प्रारंभ नहीं कर सकता है।

प्रश्न 5.
प्रबन्ध कला है या विज्ञान अथवा दोनों स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध विज्ञान एवं कला दोनों है (Management is both Science and Art)- प्रबन्ध विज्ञान है अथवा कला यह निश्चित करने से पूर्व प्रबन्ध का विज्ञान के रूप में तथा कला के रूप में अलग-अलग अध्ययन कर लेना नितान्त जरूरी है। इस अध्ययन के उपरांत ही यह कहा जा सकता है कि प्रबन्ध विज्ञान है अथवा कला अथवा दोनों :

प्रबन्ध कला के रूप में (Management as an Art)- प्रबन्ध को सामान्यतया कला समझा जाता है क्योंकि कला का अर्थ किसी कार्य को करने अथवा किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञान एवं कुशलता का उपयोग करता है। वास्तव में कला सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की विधि है। जार्ज टेरी का कथन है कि “चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।”

कला ठोस परिणामों को प्राप्त करने का एक तरीका है। कलाकार की सफलता उसके कार्य के परिणामों से आँकी जाती है। अतः प्रबन्ध को कला की संज्ञा देना गलत नहीं है क्योंकिः

  1. प्रबन्ध का महत्त्व इस बात में है कि उससे व्यवसाय की कुशलता कितनी बढ़ती है न कि इस बात में कि प्रबन्धक को प्रबन्ध शास्त्र का कितना ज्ञान है;
  2. प्रबन्ध का उद्देश्य किसी उपक्रम में सार्थक परिणाम प्राप्त करना है;
  3. प्रबन्ध में व्यवसाय के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ज्ञान एवं कुशलता का उपयोग निहित होता है एवं
  4. प्रबन्ध की कुशलता में उसके दैनिक अनुभव और अभ्यास से वृद्धि होती है।

कून्टज ने प्रबन्ध को कला माना है और लिखा है कि-

  • प्रबन्ध औपचारिक रूप से संगठित समूहों में व्यक्तियों के द्वारा तथा उन के साथ कार्य कराने की कला है;
  • प्रबन्ध ऐसे वातावरण के निर्माण की कला है जिसमें लोगों को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है और सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पारस्परिक सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलता है;
  • प्रबन्ध ऐसी कला है जो कार्य के निष्पादन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करती है एवं
  • प्रबन्ध ऐसी कला है जो लक्ष्यों तक प्रभावशाली ढंग से पहुँचने की कुशलता को अनुकूलतम बनाती है।

प्रबन्ध विज्ञान के रूप में (Management as a science)- व्यवस्थित ज्ञान, जो किन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हो, विज्ञान कहलाता है अर्थात् विज्ञान ज्ञान का वह रूप है जिसमें अवलोकन तथा प्रयोगों द्वारा कुछ सिद्धांत निर्धारित किये जाते हैं। विज्ञान को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-वास्तविक विज्ञान और नीति प्रधान विज्ञान। वास्तविक विज्ञान के अन्तर्गत हम केवल वास्तविक अथवा वर्तमान अवस्था का ही अध्ययन करते हैं, जबकि नीति प्रधान विज्ञान के अन्तर्गत हम आदर्श भी निर्धारित करते हैं। व्यावसायिक प्रबन्ध भी निश्चित सिद्धांतों पर आधारित सुव्यवस्थित ज्ञान का भंडार है। विद्वानों ने अपने अनुभव एवं ज्ञान के आधार पर समय-समय पर व्यवसाय सम्बन्धी अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जो प्रबन्ध को विज्ञान की कोटि में रखने के लिए पर्याप्त हैं। उदाहरणार्थ- वैज्ञानिक प्रबन्ध, विवेकीकरण, विज्ञापन व बिक्री कला के सिद्धांत आदि ।

कीन्स के अनुसार, “विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जो प्रस्तुत स्थिति का अध्ययन करते हुए कार्य और कारण में सम्बन्ध स्थापित करती है और आदर्श उपस्थित करती है।” विज्ञान का मुख्य कार्य कारण परिणाम सम्बन्ध का अध्ययन करके उससे लाभदायक निष्कर्ष निकालना होता है। अतः प्रबन्ध एक ऐसा ज्ञान है जो अनुसन्धान एवं परीक्षण के आधार पर व्यवस्थित होता है। प्रबन्धक निर्णय लेते समय अपने अनुभव को ही आधार बनाता है। दूसरे लोगों के अनुभव और सीमाओं पर विचार करके लागू करता है। कार्य को प्रारम्भ करने से पहले नियोजन करता है और उसके कारण तथा परिणाम पर विचार करता है।

प्रबन्ध विज्ञान और कला के रूप में (Management is both art as well as science)- उपरोक्त अध्ययन करने के उपरांत हम कह सकते हैं कि प्रबन्ध कला और विज्ञान दोनों है। प्रबन्ध में कला की सभी विशेषताए जैसे व्यक्तिगत कुशलता (personal skill), व्यावहारिक ज्ञान (practical knowledge), सार्थक परिणाम प्राप्त धारणा (concrete result-oriented approach), अभ्यास द्वारा विकास (development through practice) एवं रचनात्मक शक्ति (creative power) विद्यमान है। इसी आधार पर प्रबन्ध को कला स्वीकार कर लिया गया है।

दूसरी ओर, प्रबन्ध में विज्ञान की भी सभी विशेषताएँ जैसे-व्यवस्थित ज्ञान का समूह (systematised body of knowledge), तथ्यों के संग्रह (collection of facts), विश्लेषण (analysis) एवं प्रयोगों पर आधारित (based on experiments), सार्वभौमिक उपयोग (universal application), कारण एवं परिणाम सम्बन्ध (cause and effect relationship), परिणामों की वैधता की जाँच (verification of result) एवं पूर्वानुमान (prediction) इत्यादि विद्यमान हैं, इसीलिए प्रबन्ध को विज्ञान कहा जा सकता है।

परन्तु इसे भौतिक (Physics) एवं रसायन शास्त्र (Chemistry) की श्रेणी का विज्ञान नहीं कहा जा सकता। इसे एक व्यावहारिक विज्ञान (applied science) अथवा अयथार्थ विज्ञान (inexact science or soft science) कहना अधिक उचित होगा। वास्तव में इसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूपों को अलग नहीं किया जा सकता। सैद्धांतिक ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान के बिना अधूरा है तथा व्यावहारिक ज्ञान के बिना सैद्धांतिक ज्ञान का उपयोग नहीं हो सकता अर्थात् एक कुशल प्रबन्धक को प्रबन्ध का ज्ञान और अनुभव दोनों परमावश्यक है।

प्रश्न 6.
केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीयकरण के बीच अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
केन्द्रीयकरण :

  • केन्द्रीयकरण में सारे निर्णय उच्च अधिकारी स्वयं ही लेते हैं, वह अपने अधीनस्थों के ऊपर सिर्फ आदेश रखते हैं।
  • केन्द्रीयकरण उच्च अधिकारियों के भार में कमी नहीं करता।
  • केन्द्रीयकरण लालफीताशाही के जन्म देता है।
  • इसमें निर्णयों को विविधता नहीं मिल पाती।
  • केन्द्रीयकरण अधीनस्थयों की प्रेरणा या उनके मनोबल में वृद्धि नहीं करता।
  • केन्द्रीयकरण में निर्णयों का भार एक ही अधिकारी पर होने के कारण कभी-कभी निर्णयों में विलम्ब होता है।
  • इसमें उच्च अधिकारियों के निर्णयों को अधीनस्थों को मानना ही होता है। वह अपने विचार प्रस्तुत नहीं करते।
  • केन्द्रीयकरण प्रबन्ध में एकरूपता देता है।
  • केन्द्रीयकरण में निर्णय लेने के अधिकार का केन्द्रीकरण होने के कारण नीतियों में समानता पायी जाती है।

विकेन्द्रीकरण :

  • विकेन्द्रीकरण में अधीनस्थों के कुछ मामलों में उनके स्तर पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाती है।
  • इसके माध्यम से उच्च अधिकारियों के कार्यभार में पर्याप्त कमी हो जाती है। वे छोटे-मोटे कार्यों में अपना ध्यान न उलझाकर, महत्वपूर्ण निर्णयों की ओर बढ़ते हैं।
  • चूँकि विकेन्द्रीयकरण में क्रिया के निकटतम ही निर्णय लेने का अधिकार प्रदान किया जाता है, अतः लालफीताशाही नहीं पनपती।
  • इसमें अलग-अलग क्रियाओं के लिए अधिक अध्यक्षों की नियुक्ति के कारण निर्णयों की विविधता मिलती है।
  • विकेन्द्रित व्यवस्था अधीनस्थ कर्मचारियों को स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने का अधिकार देकर उन्हें अधिक उत्तरदायी बनाया जा सकता है।
  • विकेन्द्रीयकरण में प्रत्येक अध्यक्ष अपने स्तर पर शीघ्र निर्णय ले सकता है।
  • विकेन्द्रीयकरण में अधीनस्थों द्वारा अपने-अपने विचार प्रस्तुत करते समय समन्वय का अभाव होने पर उनके मध्य मतभेद हो सकते हैं।
  • विकेन्द्रीयकरण में एकरूपता का अभाव पाया जाता है।
  • विकेन्द्रीयकरण के कारण कभी-कभी उपक्रम की नीतियों में इतनी अधिक भिन्नता आ जाती है कि उपक्रम का भविष्य खतरे में पड़ जाता है।

प्रश्न 7.
प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
प्रशिक्षण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी विशिष्ट कार्य को करने की किसी व्यक्ति की योग्यता निपुणता तथा कुशलता में वृद्धि की जाती है। प्रशिक्षण के द्वारा कर्मचारी को न केवल कार्य के प्रति सामान्य ज्ञान प्राप्त होता है अपितु उसकी सौंपे गये कार्य के प्रति रुचि उत्पन्न होती है। पहल करने की क्षमता, वर्तमान उत्पादन प्रणालियों में सुधार करने की योग्यता तथा उत्पादन की किस्म में सुधार करने की दशा में मार्गदर्शन मिलता है। प्रशिक्षण का उद्देश्य कृत्य की आवश्यकताओं तथा कर्मचारी की वर्तमान क्षमता के अंतर को पाटना है।

प्रशिक्षण एक श्रेष्ठ प्रबंध प्रणाली का मूल मंत्र है। यह समस्याओं के समाधान का साधन है। “जिस प्रकार स्वास्थ्य को बनाने के लिए विटामिन की गोलियाँ लाभदायक होती हैं, ठीक उसी प्रकार मानव-शक्ति समस्याओं के निराकरण के लिए प्रशिक्षण लाभदायक होती हैं,” एक सतत् पूर्ण व्यवस्थित, नियोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के महत्त्व के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-

  • उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि- प्रशिक्षण से कर्मचारियों की योग्यता, चातुर्यता तथा कुशलता में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि होती है।
  • मनोबल में वृद्धि- प्रशिक्षण से कर्मचारियों में उत्तरदायित्वों की भावना जाग्रत होती है, कार्य के प्रति संतुष्टि होती है, आय में वृद्धि होती है कार्यकुशलता में वृद्धि होती है तथा कार्य-सुरक्षा में वृद्धि होती है जिनके परिणामस्वरूप उनके मनोबल में वृद्धि होती है।
  • कार्य की श्रेष्ठ किस्म- औपचारिक प्रशिक्षण में कर्मचारियों के कार्य करने की श्रेष्ठतम विधि सिखलायी जाती है जिसके परिणाम स्वरूप कार्य की किस्म में सुधार होता है।

प्रश्न 8.
प्रबन्ध के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
प्रबन्ध कुछ उद्देश्यों को पूरा करने के लिये कार्य करता है। उद्देश्य किसी भी क्रिया के अपेक्षित परिणाम होते हैं। इन्हें व्यवसाय के मूल प्रयोजन से प्राप्त किया जा सकता है। किसी भी संगठन के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं तथा प्रबन्ध को इन सभी उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से एवं दक्षता से प्राप्त करना होता है। उद्देश्यों को संगठनात्मक उद्देश्य (Organisational objectives), सामाजिक उद्देश्य (Social objectives) एवं व्यक्तिगत उद्देश्यों (Personal objectives) में वर्गीकृत किया जा सकता है-

1. संगठनात्मक उद्देश्य (Organisational objectives)-संगठनात्मक उद्देश्यों से हमारा अर्थ सम्पूर्ण संगठन के लिये निर्धारित किये जाने वाले उद्देश्यों से है। इन उद्देश्यों का निर्धारण करते समय प्रबन्ध द्वारा व्यवसाय में हित रखने वाले सभी पक्षों जैसे-स्वामी (Owner), कर्मचारी (Employee), ग्राहक (Customer), सरकार (Govt.) आदि से है। व्यवसाय में अपना हित रखने वाले विभिन्न पक्षकारों को लाभ पहुँचाने के लिये समस्त उपलब्ध संसाधनों, मानवीय व भौतिक, का अनुकूलतम (Optimum) उपयोग को सम्भव बनाया जाता है। इससे व्यवसाय के आर्थिक उद्देश्यों जैसे-जीवित रहना (Survival), लाभ (Profit) एवं विकास (Growth) की भी पूर्ति होती है।

(a) जीवित रहना (Survival)- प्रत्येक व्यवसाय का आधारभूत उद्देश्य अपने आपको लम्बे समय तक बनाये रखना होता है। अतः प्रबन्ध को विभिन्न व्यावसायिक क्रियाओं से सम्बन्धित सकारात्मक निर्णय लेकर यह सनिश्चित करना चाहिए कि व्यवसाय लम्बे समय तक जीवित रहे ।

(b) लाभ (Profit)- व्यवसाय के जोखिमों का सामना करने तथा व्यावसायिक क्रियाओं के सफलतापूर्वक संचालन में लाभ की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अतः प्रबन्ध द्वारा यह सुनिश्चत किया जाना चाहिए कि व्यवसाय पर्याप्त लाभ अर्जित करे।

(c) विकास (Growth)- प्रत्येक व्यवसाय यह चाहता है कि वह पर्याप्त विकास करे। प्रबन्ध को चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि व्यवसाय पर्याप्त विकास करे। विकास को बिक्री, कर्मचारियों की संख्या, पूँजी विनियोग, उत्पादों की संख्या आदि द्वारा मापा जा सकता है। यदि इन सब में वृद्धि हो रही है तो यह माना जायेगा कि व्यवसाय विकास के पथ पर अग्रसर है।

2. सामाजिक उद्देश्य (Social objectives)- प्रबन्ध के सामाजिक उद्देश्य से हमारा अभिप्राय प्रबन्धकीय क्रियाओं के दौरान सामाजिक हित का ध्यान रखे जाने से है। संगठन चाहे व्यावसायिक है अथवा गैर-व्यावसायिक, समाज के अंग होने के कारण उसे कुछ सामाजिक दायित्वों को पूरा करना होता है। इसका अर्थ है समाज के विभिन्न अंगों के लिये आर्थिक मूल्यों की रचना करना। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये प्रबन्ध स्वास्थ्य (Health), सुरक्षा (Safety), पर्यावरण (Environment) रोजगार के अवसरों की उपलब्धि (Employment opportunities) एवं मूल्य नियन्त्रण (Price control) इत्यादि को सुनिश्चित करने का वायदा करते हैं। प्रबन्ध के प्रमुख सामाजिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • पर्यावरण प्रदूषण को रोकना (Prevent environment pollution)
  • रोजगार के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराना (Availability of sufficient employment opportunities)
  • जीवन स्तर के सुधार में योगदान देना (Contribution in raising standard of living)
  • शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में अपना योगदान देना (Contribute towards health and education)
  • गुणवत्ता को बनाये रखना (Quality control)
  • मिलावट को रोकना (Prevent adulteration)
  • असभ्य विज्ञापनों का सहारा न लेना (Not to indulge in vulgar advertisement)

3. व्यक्तिगत उद्देश्य (Individual objectives)- प्रबन्ध के व्यक्तिगत उद्देश्यों से हमारा अभिप्राय कर्मचारियों के सन्दर्भ में निश्चित किये जाने वाले उद्देश्यों से है। कर्मचारी कम्पनी के विवेकशील एवं संवेदनशील संसाधन होते हैं अतः इनकी भावनाओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। कर्मचारियों की सन्तुष्टि होने पर संस्था दिन-दूनी रात-चौगुनी उन्नति करने लगती है। व्यक्तिगत उद्देश्यों का निर्धारण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि संगठनात्मक व व्यक्तिगत उद्देश्यों में टकराव की स्थिति पैदा न हो। उदाहरण के लिए यदि संगठनात्मक उद्देश्य अधिक लाभ अर्जित करना है व व्यक्तिगत उद्देश्य न्यूनतम वेतन देना है तो इनमें टकराव होना स्वाभाविक है। अतः इन दोनों उद्देश्यों में सन्तुलन स्थापित किया जाना चाहिए। कर्मचारियों के प्रति प्रबन्ध के प्रमुख उद्देश्य निम्न हो सकते हैं-

  • कर्मचारियों को उचित पारिश्रमिक देना (Adquate reward to employees);
  • स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराना (To provide healthy atmosphere);
  • प्रबन्ध में हिस्सा प्रदान करना (Worker participation in management);
  • लाभ में हिस्सा प्रदान करना (Provide participation in profit);
  • नौकरी में सुरक्षा प्रदान करना (Safety in service);
  • प्रशिक्षण की व्यवस्था करना (Arrangement of training) एवं
  • पदोन्नति व विकास के अवसर उपलब्ध करना (Opportunity for promotion and development).

प्रश्न 9.
संदेशवाहन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सम्बन्धों के आधार पर संदेशवाहन के साधनों को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

औपचारिक संदेशवाहन (Formal Communication)-
अर्थ (Meaning)- विचारों का वह आदान-प्रदान जो अधिकार और दायित्व के औपचारिक ढाँचे पर आधारित हो इस प्रकार के सम्प्रेषण में उच्च स्तर के अधिकारी कोई भी संदेश या सूचना निचले अधिकारियों को लम्बवत् सीढ़ी को ध्यान में रखते हुए, ऊपर से नीचे की ओर आगे भेजते हैं। दूसरे शब्दों में उच्च प्रबन्धक यह संदेश अपने अधीनस्थ अधिकारियों को देते हैं, अधीनस्थ अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारियों को। सूचना के प्रवाह का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक भेजी जाने वाली सूचना इसको प्राप्त करने वाले अधिकारी तक न पहुँच जाए। इसी प्रकारं निचले स्तर के कर्मचारियों की प्रार्थनाएँ शिकायतें तथा रिपोर्ट भी इसी लम्बवत् सीढ़ी के अनुसार नीचे से ऊपर तक भेजनी होती है।

औपचारिक संदेशवाहन के प्रकार (Types of Formal Communication)-
1. लम्बवत् सन्देशवाहन(Vertical Communication)- एक व्यावसायिक संस्था के संगठन में संदेश प्रवाह उच्च अधिकारियों से अधीनस्थों की ओर, अधीनस्थों से उच्च अधिकारियों की ओर तथा एक ही स्तर के दो कर्मचारियों के मध्य हो सकता है। सन्देशवाहन के इन रूपों की व्याख्या इस प्रकार है

(क) नीचे की ओर संदेशवाहन (Downward Communication)- वह संदेशवाहन जिस में संस्था के संगठन में सन्देश ऊपर से नीचे की ओर यानी संस्था के उच्चाधिकारियों से उनके अधीनस्थों की ओर चलती है, नीचे की ओर का संदेशवाहन कहलाता है। इस तरह प्रत्येक संदेश जो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से मुख्य प्रबन्धक को, मुख्य से सहायक प्रबन्धकों को, सहायक प्रबन्धकों से सुपरवाइजरों को तथा सुपरवाईजरों से श्रमिकों को होता है। नीचे की ओर संदेशवाहन के अन्तर्गत आता है। आदेश, निर्देश, जॉब शीट, मैनुअल, समाचार बुलैटिन, पोस्टर आदि नीचे की ओर संदेशवाहन के मुख्य साधन हैं।

(ख) ऊपर की ओर संदेशवाहन (Upward Communication)- वह संदेशवाहन जो एक संस्था के संगठन में नीचे से ऊपर यानी अधीनस्थों से उनके उच्चाधिकारियों की ओर चलता है, ऊपर की ओर संदेशवाहन कहलाता है। इस अर्थ मे कोई भी संदेशवाहक जो श्रमिकों से फोरमैन को, फोरमैन से सुपरवाईजर को, सुपरवाईजर से सहायक प्रबन्धकों को, सहायक प्रबन्धकों से मुख्य प्रबन्धकों यानी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को होता है। ऊपर की ओर के संदेशवाहन के अन्तर्गत आते हैं। सुझाव शिकायतें, समस्यायें, कार्य, रिपोर्ट, सर्वे सूचनायें आदि इस तरह के संदेशवाहन के मुख्य उदाहरण हैं।

2. समतल संदेशवाहन (Horizontal Communication)- वह संदेशवाहन जो एक प्रबन्धक के दो अधीनस्थों के मध्य यांनी संस्था के एक स्तर या पद पर कार्य कर रहे कर्मचारियों के मध्य हो समतल संदेशवाहन कहलाता है इस तरह प्रत्येक संदेशवाहन जो दो सहायक प्रबन्धकों के मध्य, दो फोरमैन या सुपरवाईजर के मध्य, दो क्लर्क या श्रमिकों के मध्य होता है। समतल संदेशवाहन के अन्तर्गत आता है। यह सन्देशवाहन मुख्यतः समूह मीटिंग के माध्यम से होता है। तथा इसके लिए संस्था में विभिन्न स्तर पर समितियों की व्यवस्था होती है। समान समस्याओं को सुलाझने एक-दूसरे के अनुभव का लाभ उठाने या किसी समस्या को सुलझाने में उनकी सहायता लेने के लिए समान स्तर के अधिकारीगण एक जगह बैठकर विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।

औपचारिक संदेशवाहन जाल (Formal Communication Network)- जिस व्यवस्था में औपचारिक संदेशवाहन होता है उसे औपचारिक संदेशवाहन जाल कहते हैं। औपचारिक संदेशवाहन चाहे लम्बवत् (Vertical) हो अथवा समतल (llorizontal) यह अनेक प्रकार से हो सकता है।

  1. इकहरी श्रृंखला सन्देशवाहन (Single Chain Communication)- इकहरी श्रृंखला संदेशवाहन का अर्थ पर्यवेक्षक (Superior) तथा अधीनस्थ (Subordinate) के मध्य होने वाले संदेशवाहन से है। एक संगठन में सभी लोग ऊपर से नीचे एक अधिकार शृंखला (Scalar Chain) में बँधे होते हैं।
  2. चक्रीय सन्देशवाहन (Circular Communication)- इस संदेशवाहन में एक अधिकारी के सभी अधीनस्थ उसके माध्यम से एक-दूसरे से बातचीत करते हैं। अधिकारी एक पहिए के केन्द्र (हब) के रूप में कार्य करता है।
  3. घूमता हुआ सन्देशवाहन (Circular Communication)- इस संदेशवाहन समूह के विभिन्न सदस्यों के मध्य होता है। समूह का प्रत्येक सदस्य अपने निकटतम दो सहयोगियों से संदेशवाहन कर सकता है। इसमें संदेशवाहन की गति धीमी होती है।
  4. मुक्त प्रवाह सन्देशवाहन (Free Flow Communication)- यह संदेशवाहन भी एक समूह के विभिन्न सदस्यों के मध्य होता है। इसकी विशेषता यह है कि समूह का प्रत्येक सदस्य शेष सभी से सीधी बात कर सकता है। इसमें संदेशवाहन तीव्र गति से होता है।
  5. अधोमुखी ‘वी’ सन्देशवाहन (Inverted ‘V’ Communication)- इस संदेशवाहन के अन्तर्गत अधीनस्थ को अपने अधिकारी को संदेश तीव्र गति से प्रेषित होते हैं।

अनौपचारिक संदेशवाहन (Informal Communication)- संदेशवाहन को इस विधि का प्रयोग दो समान स्तर के कर्मचारी और अधिकारियों के बीच होता है। संस्था की ओर से इसकी कोई व्यवस्था नहीं होती। यह प्रायः प्रत्यक्ष एवं मौखिक ही होता है। जैसे केवल अपना सिर हिलाकर की स्वीकृति दे देना क्योंकि यह पारस्परिक मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर ही निर्भर होता है। संदेश का लिखित होना आवश्यक नहीं है, और यह भी हो सकता है कि इसमें कुछ बोलने की आवश्यकता न पड़े और केवल सिर या हाथ हिलाने से ही काम निकल जाए।

उदाहरणार्थ, टाइपिस्ट द्वारा किसी अधिकारी के निजी सहायक को कोई टाईप किया हुआ आलेख अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किया जाए और व्यस्तता के कारण निजी सहायक इसका अनुमोदक केवल गर्दन हिलाकर संदेशवाहन या अन्य प्रकार की कोई मुद्रा बनाकर सूचित कर देता है तो इसे हम अनौपचारिक संदेशवाहन कहेंगे। अनौपचारिक संदेश शब्दों के बिना उच्चारण किए शारीरिक अंगों के परिचालन मात्र से भी प्रेषित किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
नियंत्रण की परिभाषा दीजिए एवं इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नियन्त्रण को प्रबन्ध विशेषज्ञों ने विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं-
1. राबर्ट एन्थोनी के अनुसार, “नियन्त्रण एक ऐसी प्रक्रिया है, जो प्रबन्धकों को इस प्रकार का आश्वासन दिलाती है कि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए साधनों की उपलब्धि एवं उपयोग प्रभावशाली रूप में तथा कुशलता से की जा रही है।”

2. ई० एफ० एल बेच के अनुसार, “नियन्त्रण वर्तमान निष्पादन की योजनाओं में समाविष्ट पूर्व निर्धारित प्रमाप से तुलना है ताकि पर्याप्त प्रगति तथा सन्तोषजनक निष्पादन को सुनिश्चित किया जा सके तथा इन योजनाओं को कार्यान्वित करने से प्राप्त अनुभव को भावी सम्भावित क्रियाओं के लिए मार्गदर्शन के लिए रखना है।”

3. कून्टज व ओ’डोनेल के अनुसार, “नियन्त्रण का प्रबन्धकीय कार्य अधीन कर्मचारियों द्वारा किए गए कार्यों का माप तथा उनमें आवश्यक सुधार करना होता है जिससे कि इस बात का निश्चय हो सके कि उपक्रम तथा उनके प्राप्त करने के लिए योजनाओं को कार्यान्वित किया जा रहा है या नहीं।”

4. हैनरी फेयोल के शब्दों में, “नियन्त्रण का आशय यह जाँच करने से है कि क्या प्रत्येक कार्य अपनाई गई योजनाओं, दिए गए निर्देशों तथा निर्धारित नियमों के अनुसार हो रहा है या नहीं। इसके उद्देश्य (कार्य की) कमजोरियों तथा त्रुटियों का पता लगाना है, जिन्हें यथासम्भव सुधारा जा सके और (भविष्य में) उनकी पुनरावृत्ति रोकी जा सके। नियन्त्रण हर बात, वस्तुओं, व्यक्तियों तथा क्रियाओं पर लागू होता है।”

नियन्त्रण की आवश्यकता व महत्त्व (Need and Importance of Control)- व्यावसायिक प्रबन्ध का एकमात्र उद्देश्य व्यावसायिक लक्ष्य की प्राप्ति है। इसकी प्राप्ति महत्त्वाकांक्षी योजनाओं में नहीं अपितु उसके समुचित रूप से क्रियान्वित करने में है। कार्य का केवल पूरा होना ही पर्याप्त नहीं बल्कि वास्तविक प्रगति इच्छित और प्रमापित मानदण्डों के अनुरूप होनी चाहिए यदि ऐसा न हो तो विचलन के कारणों का पता लगा कर आवश्यक सुधारात्मक कार्यवाही की जानी चाहिए। इस प्रकार व्यावसायिक लक्ष्य की प्राप्ति कार्य के उचित, नियमित और अव्यवस्थित नियन्त्रण में है। वास्तव में नियन्त्रण ही प्रबन्ध का सार और उसका निर्दिष्ट लक्ष्य है।

नियन्त्रण का महत्त्व निम्न बातों से प्रकट हो जाता है-
1. नियन्त्रण समन्वय स्थापित करने में सहायता प्रदान करता है (Controlling helps the task of Co-ordination)- समन्वय, नियन्त्रण की सहायता से सुगम बन जाता है। पूर्व निर्धारित लक्ष्यों, उद्देश्यों व प्रमापों की सहायता से नियन्त्रण समस्त संगठन को एक समन्वित रूप से काम करते हुए उन लक्ष्यों की प्राप्ति की दशा में अग्रसर करता है। नियन्त्रण के इस बिन्दु को जार्ज टैरी (George R. Terry) ने इस प्रकार दर्शाया है, “नियन्त्रण क्रियाओं को योजनाओं के अनुसार सम्पन्न होने में सहयोग देता है और यह निश्चित करता है कि उनकी दिशा ठीक है तथा विभिन्न घटकों में उचित अन्तर्सम्बन्ध बना हुआ है ताकि समन्वय की प्राप्ति हो सके।”

2. नियन्त्रण भारार्पण तथा विकेन्द्रीयकरण में सहायता करता है (Controlling helps the process of delegation and decentralisation of authority)- नियन्त्रण की आधुनिक प्रणालियों ने उच्च प्रबन्धकों को बिना नियन्त्रण खोये हुए विकेन्द्रीयकरण की सीमा को बढ़ाने में सहायता प्रदान की है। यही कारण है कि नियन्त्रण को भारार्पण तथा विकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया में सहयोग देने वाला कार्य माना गया है। नियन्त्रण के माध्यम से उच्चाधिकारी अपने अधिकारों का भारार्पण अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को करते हुए भी नियन्त्रण-सूत्र को अपने हाथ में बनाये रखते हैं। अतएव अधिकारों का भारार्पण या विकेन्द्रीयकरण तभी सम्भव हो पाता है जबकि नियन्त्रण की उचित व्यवस्था हो।

3. नियन्त्रण कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाता है (Controlling enhances employee’s morale)- डाल्टन ई० मैकफरलेण्ड (Dalton E. McFarland) लिखते हैं कि “कर्मचारी उस स्थिति को पसन्द नहीं करते जोकि नियन्त्रण न हो? ऐसा होने पर वे यह अनुमान नहीं लगा सकते कि उनके प्रति क्या होगा? वे लाभकारी बनने के बदले स्वेच्छाचारी के शिकार बन जाते हैं।”अतः नियन्त्रण न होने पर कर्मचारियों का मनोबल बनाये रखने के लिए आवश्यक होता है।

4. नियन्त्रण निर्णय लेने में सहयोग देता है (Controlling facilitates decision making)- नियन्त्रण उचित प्रबन्ध को निर्णय लेने में महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान करता है। व्यवहार में लिए जाने वाले अधिशासी निर्णय प्राथमिक तौर पर ‘नियन्त्रण निर्णय’ ही होते हैं। (Executive decisions are considered to be primarily control decisions.) अर्थात् व्यवहार में देखा जाए तो उच्च प्रबन्ध द्वारा लिए गए निर्णय ही नियन्त्रण का रूप होता है। अतः नियन्त्रण व निर्णयन में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है इसलिए उचित निर्णय लेने के लिए नियन्त्रण व्यवस्था प्रभावशाली होनी चाहिए।

5. नियन्त्रण अभिप्रेरणा का साधन है (Controlling is a means of motivation)- नियन्त्रण से यह पता लग जाता है कि कौन-सा कर्मचारी कुशल है और कौन-सा अकुशल, कौन-सा अच्छा कार्य करता है और कौन काम से जी चुराता है। अतएव कुशल कर्मचारियों की प्रशंसा करके उन्हें अभिप्रेरित किया जा सकता है तथा अकुशल या काम से जी चुराने वाले कर्मचारियों को दण्ड देकर उन्हें कुशलतापूर्वक काम करने के लिए अभिप्रेरित किया जा सकता है।

6. नियोजन योजनाओं व लक्ष्यों की व्यावहारिकता का परीक्षण करता है (Controlling tests the feasibility of plans and objectives)- संस्था की बनाई गई योजनाओं का व्यावहारिक नियन्त्रण द्वारा स्पष्ट प्रकट होता है। अनावश्यक तौर पर ऊँचे लक्ष्यों अथवा अव्यावहारिकता नीतियों व निर्देशों का शीघ्र ज्ञान हो जाता है। आवश्यक होने पर लक्ष्य पुनरीक्षित कर दिये जाते हैं और निष्पादन सुनिश्चित हो जाता है।

7.नियन्त्रण भावी योजनाओं का मार्गदर्शन करता है (Controlling is guide for future plans)- वर्तमान योजनाओं को लागू करने से प्राप्त अनुभवों व परिणामों का विवरण रखा जाता है जो भावी योजनाओं व क्रियाओं का पथ-प्रदर्शन करता है। साथ ही वर्तमान नियोजन की त्रुटियों को दूर करने तथा योजना की प्रभावशीलता को बनाये रखने के लिए भी नियन्त्रण आवश्यक है।

8. नियन्त्रण अवांछित क्रियाओं पर रोक लगाता है (Controlling checks the various undesirable activities)- एक प्रभावशाली नियन्त्रण व्यवस्था किसी भी संस्था में पाई जाने वाली अवांछित क्रियाओं जैसे चोरी, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, कार्य में देरी आदि पर रोक लगाती है तथा अनुशासन को बनाये रखती है।

9.नियन्त्रण प्रबन्ध के अन्य कार्यों को लागू करने में सहायता करता है (Controlling helps carrying out other functions of management)- नियन्त्रण नियोजन तथा संगठन की परख करता है। यह नियोजन के दोषों को बताता है जिसके फलस्वरूप संगठन, निर्देशन, नियुक्तियों आदि में पाई जाने वाली दुर्बलताओं तथा सीमाओं को ज्ञात किया जा सकता है। नियन्त्रण संदेशवाहन को भी दृढ़ करता है और प्रबन्ध की सम्पूर्ण प्रक्रिया को सफल बनाता है।

10. नियन्त्रण का अन्य क्षेत्रों में महत्त्व (Importance of Controlling in other fields)- (i) व्यापार के बढ़ते हुए आकार तथा इसमें बढ़ती हुई जटिलताओं ने भी नियन्त्रण के महत्त्व को और बढ़ा दिया है; (ii) नियन्त्रण जोखिम से सुरक्षा प्रदान करने का एक महत्त्वपूर्ण बीमा है; (iii) नियन्त्रण लागत में कमी लाता है; एवं (iv) नियन्त्रण संस्था द्वारा बनाई गई तथा बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की किस्म को प्रमापित करता है।

प्रश्न 11.
संदेशवाहन से आप क्या समझते हैं ? इसकी प्रक्रिया का वर्णन करें।
उत्तर:
संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Cummunis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है- Common। किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य (Common) बना देता है। इस प्रकार संदेशवाहन का अर्थ विचारों तथा सूचनाओं को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके। इस तरह संदेशवाहन एक द्विमार्गीय (Two way) प्रक्रिया है तथा इसके लिए आवश्यक है कि यह संबंधित व्यक्तियों तक उसी अर्थ में पहुँच सके जिस अर्थ में संदेशवाहनकर्ता ने उन विचारों का हस्तांतरण किया है। इस रूप में यदि हमने कुछ बोला या लिखा है तथा पढ़ने या सुनने वाला उसे प्राप्त नहीं करता या प्राप्त करने पर उससे वह अर्थ नहीं लेता जो उसका वास्तविक अर्थ है, तब इसे संदेशवाहन नहीं कहा जा सकता है।

परिभाषायें (Definitions)- प्रसिद्ध प्रबन्ध विद्वानों द्वारा संदेशवाहन की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी गई हैं-

  1. हडसन (Hudson) के अनुसार, “संप्रेषण का अर्थ संदेश को एक व्यक्ति से दूसरे. व्यक्ति तक पहुँचाना है।”
  2. न्यूमैन व समर (Newmen and Summer) के शब्दों में, “संदेशवाहन दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच तथ्यों, विचारों, राय एवं भावनाओं का आदान-प्रदान है।”

सन्देशवाहन की प्रक्रिया (Process of communication)- संदेशवाहन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें विचारों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान विभिन्न व्यक्तियों के मध्य निरंतर चलता रहता है। यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। इसमें एक के बाद एक कई तत्त्व अथवा चरण (Elements or Steps) होते हैं। इसे निम्न विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

1. प्रेषक (Sender)- जो व्यक्ति संदेश भेजता है, वह संदेश प्रेषक कहलाता है। यह संदेशवाहन प्रक्रिया का सूत्रधार होता है।

2. विचार (Ideas)- संदेश प्रेषक का विचार ही संदेशवाहन की विषय-वस्तु है। इसके अंतर्गत धारणा, सम्मति, भावनाएँ, विचार, दृष्टिकोण, अनुभव, सुझाव, आदेश-निर्देश आदि को सम्मिलित किया जाता है।

3. लिपिबद्धकरण (Encoding)- संदेश या सूचना की विषय-वस्तु अदृश्य होती है। अतः उसको स्वरूप प्रदान करने के लिए उसे लिपिबद्ध किया जाता है। इसे लिपिबद्ध करने के लिए शब्दों, चित्रों, संकेतों का उपयोग किया जा सकता है।

4. माध्यम (Media)- संदेश या सूचना को लिपिबद्ध करने के बाद संदेश का माध्यम या साधन निर्धारित किया जाता है। संदेश तथा संदेश की लिपि माध्यम के चुनाव को प्रभावित करती है। अतः माध्यम का चुनाव करते समय संदेश या संदेश की लिपि को ध्यान में रखा जाता है। सुविधा एवं आवश्यकता के अनुसार लिखित, मौखिक, सांकेतिक दृश्य-श्रव्य आदि में से किसी भी माध्यम का चुनाव किया जा सकता है।

5. संदेश प्राप्तकर्ता (Receiver)- संदेश एवं माध्यम का निर्धारण होने के पश्चात् संदेश प्राप्तकर्ता का नम्बर आता है। यह वह व्यक्ति होता है जिसके लिए संदेश भेजा जाता है। संदेश प्राप्तकर्ता संदेशवाहन प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण अंग होता है।

6. व्याख्या करना (Interpreting or Decoding)- जब संदेश प्राप्तकर्ता को संदेश प्राप्त हो जाता है तो वह उसकी व्याख्या करता है। वह शब्दों, संकेतों, चित्रों आदि का अर्थ लगाता है और उनके समझने का प्रयास करता है। संदेशवाहन की सफलता इस बात पर ही निर्भर करती है कि प्राप्तकर्ता संदेशों की किस प्रकार व्याख्या करता है।

7. प्रतिपुष्टि (Feedback)- संदेशवाहन प्रक्रिया प्रतिपुष्टि के बिना अधूरी रहती है। संदेशवाहनं प्रक्रिया तब पूरी होती है जबकि संदेश प्रेषक को यह जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् संदेशवाहन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।

प्रश्न 12.
एक अच्छे नेता के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर:
एक अच्छे नेता के निम्नलिखित गुण होना आवश्यक है-
(i) शारीरिक विशेषताएँ- शारीरिक विशेषताएँ, जैसे कद, वजन, स्वास्थ्य आदि लोगों को आकर्षित करते हैं। ये गुण एक नेता को मेहनतपूर्वक कार्य करने में सहायता करते हैं।

(ii) सत्यनिष्ठा/ईमानदारी- एक अच्छे नेता में उच्च स्तर की सत्यनिष्ठा तथा ईमानदारी होना आवश्यक है। उसे पूरी निष्ठा के साथ कार्य करना चाहिए।

(iii) ज्ञान- एक अच्छे नेता में आवश्यक ज्ञान तथा कौशल अवश्य होने चाहिए जिससे वह अपने अधीनस्थों को सही रूप से आदेश दे सकते हैं।

(iv) स्फूर्ति तथा सहनशीलता स्फूर्ति का अर्थ है- चैतन्यता अथवा सफलता सहनशीलता का अर्थ है। कठिनाइयों के समय धैर्य से काम लेना। एक अच्छे नेता में इन दोनों गुणों का होना परम आवश्यक है। इसका कारण यह है कि दोनों गुणों के होने से संकट की स्थिति में वह हिम्मत नहीं हारता है अपितु निरंतर प्रयास करता रहता है।

(v) व्यक्तिगत आकर्षण- शक्ति-व्यक्तिगत आकर्षण शक्ति वह शक्ति है जो स्वतः ही अन्य व्यक्तियों के विश्वास एवं आदर को आकर्षित करती है। यह गुण धारिता का वह भाग होता है जो कुछ तो जन्मजात जैसे-भावनाएँ, स्वभाव आदि होता है और कुछ प्राप्त (जैसे-अच्छा शिष्टाचार आचरण आदि) किया जा सकता है।

(vi) उत्साह, साहस और लगन- व्यवसाय में तरह-तरह के उतार-चढ़ाव रहते हैं, जिनका सामना करने के लिए एक नेता में उत्साह, साहस और लगन का होना परमावश्यक है।

(vii) चातुर्य-चातुर्य एक ऐसी चैतन्यशील मानसिक सतर्कता है जो इस विषय में सतर्क रहती है कि दूसरों से व्यवहार करते समय आक्षेपों से बचने के लिए क्या करना अथवा कहना अधिक उपयुक्त होगा। कुछ लोग, इसका अर्थ धोखा, असत्यता एवं विश्वासघात से लगाते हैं जो कि सर्वथा गलत है। एक अच्छे को दूसरे व्यक्तियों से व्यवहार करते समय चातुर्य से काम लेना चाहिए।

इन प्रमुख गुणों के अतिरिक्त एक अच्छे नेता में आदर्श चरित्र होना भी आवश्यक है।

प्रश्न 13.
अंश एवं ऋण-पत्र में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
अंश एवं ऋणपत्र में निम्नलिखित अंतर है-
अंश:

  1. एक अंश स्वामित्व पूँजी का एक भाग है।
  2. अंशधारियों को उनके अंशों पर लाभांश दिया जाता है।
  3. लाभांश दर विभाजन लाभों एवं निदेशक मण्डल की नीति पर निर्भर करता है।
  4. अंशधारियों को वोटिंग अधिकार होता है एवं उनका कम्पनी प्रबंध पर नियंत्रण होता है, क्योंकि वे कम्पनी के स्वामी होते हैं।

ऋण-पत्र:

  1. ऋणपत्र एक ऋण की स्वीकृति है।
  2. ऋणपत्रों पर ऋणधारियों को ब्याज दिया जाता है।
  3. ऋणपत्रों पर एक निश्चित दर पर ब्याज दिया जाता है।
  4. ऋण-पत्र कम्पनी के ऋणदाता होते हैं। इनका कम्पनी के प्रबंध में कोई हाथ नहीं होता है।

प्रश्न 14.
भर्ती के आन्तरिक स्रोतों का वर्णन करें।
अथवा, भर्ती के आन्तरिक क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
कर्मचारी भर्ती प्रक्रिया का दूसरा चरण भर्ती स्रोतों की पहचान करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसी पर सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया की सफलता निर्भर करती है। क्योंकि यदि प्रबन्धक भर्ती स्रोतों की पहचान नहीं कर पाएगा तो योग्य कर्मचारियों को चुनाव नहीं हो सकेगा। परिणामतः संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में कठिनाई आएगी। व्यावसायिक संस्थाओं में कर्मचारियों को प्राप्त करने के लिए प्रायः दो प्रकार के साधनों को उपयोग में लाया जाता है-

आन्तरिक स्रोत (Internal Sources)- आन्तरिक स्रोत का अभिप्राय संस्था में रिक्त उच्च तथा मध्य स्तर के पदों को उससे नीचे पदों पर आसीन कर्मचारियों की पदोन्नति के द्वारा या समान पदों पर कु-समायोजित कर्मचारियों या फालतू (Surplus) घोषित किए जाने वाले कर्मचारियों की बदली करके भरना है। इस प्रकार इनके तीन स्रोत शामिल हैं- (i) निम्न स्तर पदों पर काम करने वाले कर्मचारियों की पदोन्नति करना, (ii) कु-समायोजित कर्मचारियों (maladjusted employees) का स्थानान्तरण करना, एवं (iii) किसी अन्य विभाग में फालतू या अतिरिक्त घोषित या अघोषित किए जाने वाले कर्मचारी (Surplus employee) का स्थानान्तरण करना।

(i) अतिरिक्त घोषित कर्मचारी का स्थानान्तरण (Transfer of Surplus Employee)- कभी-कभी एक संस्था में किसी विशिष्ट काम की कमी या काम की प्रणाली में परिवर्तन के कारण कुछ विभागों में कर्मचारियों की आवश्यकता कम हो जाती है, और कई अन्य विभागों में बढ़ जाती है। फलस्वरूप कर्मचारी प्रबन्धक यह प्रयत्न करते हैं कि उन विभागों से जहाँ कर्मचारी अतिरिक्त घोषित कर दिए जाते हैं. इन कर्मचारियों के विवरण इकटठे करके यह देखा जाए कि इन्हें कौन-से-ऐसे विभागों में खपाया जा सकता है। जहाँ और ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत है। रिक्त पद और अतिरिक्त घोषित कर्मचारी की योग्यता का मेल हो जाने पर, रिक्त पद इस स्थानांतरण के द्वारा भी भरा जा सकता है, कर्मचारियों की इस प्रकार के भर्ती करने के निम्नलिखित लाभ हैं-

  • अतिशीघ्र तथा सुविधा से चुनाव;
  • कर्मचारियों में अधिक उत्साह की भावना;
  • अतिरिक्त घोषित कर्मचारी को निकालने के दुखद निर्णय से बचाव; एवं
  • औद्योगिक सम्बन्धों में सुधार।

(ii) पदोन्नति के द्वारा रिक्त स्थान भरना (Filling the Vacancy by Promotion)- इस प्रणाली की तीन विशेषताएँ हैं-सर्वप्रथम पदोन्नति के द्वारा रिक्त स्थानों को भरने की प्रणाली केवल उच्च या मध्य स्तर के पदों को भरने के लिए प्रयोग की जाती है। द्वितीय, उच्च पदों पर पदोन्नति सामान्यतः एक श्रृंखला (chain) को जन्म देती है। क्योंकि एक उच्च पद को पदोन्नति से भरने पर उससे नीचे का पद खाली हो जाता है। तृतीय, पदोन्नति से उच्च स्थान भरने पर संस्था में कर्मचारियों की आवश्यकता खत्म नहीं होती बल्कि इस आवश्यकता का स्तर तथा स्वरूप बदल जाता है।

(iii) कर्मचारियों का अस्थायी अलगाव (Lay-off of workers)- इससे हमारा अर्थ है नियोक्ता के प्रयास से कर्मचारियों को कुछ समय के लिए नियोक्ता से दूर कर देना। अस्थायी अलगाव का कारण प्रायः काम की कमी होती है। नियोक्ता व कर्मचारी के मध्य इस बात की पूर्ण सहमति हो जाती है कि जब भी काम उपलब्ध होगा, इसी कर्मचारी को प्राथमिकता दी जाएगी। इस प्रकार हटाए गए कर्मचारी को काम पर पुनः रख कर उसकी भर्ती की जा सकती है।

प्रश्न 15.
कार्यशील पूँजी की आवश्यकता को निर्धारित करने वाले तत्वों का वर्णन
अथवा, कार्यशील पूँजी की आवश्यकता आप कैसे निर्धारित करेंगे ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी की आवश्यकता का निर्धारण इस प्रकार हो सकता है-
1. क्रियाओं का स्तर- कार्यशील पूँजी एवं क्रियाओं के स्तर में सीधा सम्बन्ध होता है। अर्थात् बड़े आकार की संस्थाओं में अधिक व छोटे आकार की संस्थाओं में कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

2. व्यावसायिक चक्र- व्यावसायिक चक्र के विभिन्न चरणों से कार्यशील पूँजी की आवश्यकता प्रभावित होती है। तेजी काल में माँग बढ़ने से उत्पादन व बिक्री में वृद्धि होती है। इसलिए अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, मंदीकाल में माँग घटने से उत्पादन व बिक्री दोनों कम होते हैं। अतः इस स्थिति में कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

3. उत्पादन चक्र- उत्पादन चक्र का अभिप्राय कच्चे माल को तैयार माल में परिवर्तित करने में लगने वाले समय से है। यह अवधि जितनी लम्बी होगी उतने ही अधिक समय के लिए पूँजी कच्चे माल व अर्द्ध निर्मित माल में फंसी रहेगी। अत: अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत, जहाँ उत्पादन चक्र की अवधि बहुत कम है वहाँ कम कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

4. उधार उपलब्ध कराना- जो संस्थायें अधिक बिक्री नकद करती है उन्हें कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, जो संस्थायें अधिक बिक्री उधार करती है उन्हें अधिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

5. उधार सुविधा की प्राप्ति- यदि कच्चा माल एवं अन्य सामग्री उधार पर आसानी से उपलब्ध हो जाती है तो कम कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी। इसके विपरीत यदि ये चीजें उधार पर उपलब्ध न हों तो शीघ्र भुगतान करने के लिए अधिक कार्यशील पूँजी की जरूरत होती है।

6. क्रय तथा विक्रय की शर्ते- क्रय तथा विक्रय की शर्तों का भी कार्यशील पूँजी की मात्रा पर प्रभाव पड़ता है। यदि व्यावसायिक इकाई कच्चा माल और अन्य सेवाएँ उधार प्राप्त करती हैं और निर्मित माल नकद बेचती है तो उसे कम मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यावसायिक इकाई नकद कच्चा माल खरीदती है और उधार माल का विक्रय करती है तो उसे अधिक मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होती है।

7. व्यवसाय की मौसमी प्रकृति- अनेक कम्पनियों का व्यापार वर्ष के किसी मौसम विशेष में अधिक होता है। उस मौसम में इन कम्पनियों को अधिक मात्रा में कार्यशील पूँजी की आवश्यकता होगी।

8. व्यवसाय के विकास की सामान्य दर- व्यवसाय आरम्भ करने के बाद कुछ वर्षों में उसका धीरे-धीरे विकास होने लगता है। विकास के साथ-साथ कार्यशील पूँजी की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है। व्यवसाय के विकास की दर एवं कार्यशील पूँजी में वृद्धि की मात्रा में पूर्ण सामंजस्य होना चाहिए अन्यथा पूँजी की कमी के कारण विकास रुक जायेगा। प्रायः सामान्य विकास का वित्त पोषण लाभ के पुनर्वियोग के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 16.
उत्पाद की परिभाषा दें एवं इसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
सामान्यतः उत्पादन का अर्थ किसी भौतिक चीज से किया जाता है। जैसे-मोबाइल फोन, पुस्तक, कलम आदि। लेकिन विपणन की दृष्टि से उत्पाद का अभिप्राय प्रत्येक उस चीज से है जिससे क्रेता की किसी आवश्यकता की संतुष्टि होती है। अर्थात् उत्पाद के अंतर्गत भौतिक चीजों के साथ-साथ सेवाओं (जैसे-बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि) को नहीं बल्कि दूसरों के विचारों तथा सूचनाएँ भी उत्पाद की श्रेणी में आते हैं।

उत्पादन से निम्न तीन प्रकार की संतष्टि प्राप्त होती है-

  • कार्यात्मक संतुष्टि- कमीज पहनकर शरीर को ढंकना कार्यात्मक संतुष्टि है।
  • मनोवैज्ञानिक संतुष्टि- कमीज पहनकर अधिक विश्वस्त एवं चुस्त लगना मनोवैज्ञानिक संतुष्टि है।
  • सामाजिक संतुष्टि- कमीज पहनकर एक विशेष समूह से मान्यता प्राप्तकरना सामाजिक संतुष्टि है।

उत्पाद को दो श्रेणियों में बाँटा जाता है-उपभोक्ता उत्पाद तथा औद्योगिक उत्पाद।

उपभोक्ता उत्पाद से अभिप्राय ऐसे उत्पाद से है जो अंतिम उपभोक्ताओं द्वारा अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने हेतु खरीदे जाते हैं। जैसे-शर्ट, छड़ी, साबुन आदि। यह उपभोक्ता की आवश्यकता की पूर्ति कर उसे संतुष्टि प्रदान करता है।

औद्योगिक उत्पाद उन्हें कहते हैं जो उपभोक्ता उत्पादों को निर्मित करने के लिए कच्चे माल के रूप में क्रय किए जाते हैं जैसे चमड़ा, लोहा, कोयला, मशीनरी आदि। सेवाओं की उपलब्धता भी मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि में उत्पाद की महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 17.
उत्पादों तथा समाज के लिए विज्ञापन के लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन उपभोक्ताओं तथा अन्य किसी विशेष उत्पादक को उत्पाद की विशेषताएँ तथा अन्य संबंधित तथ्य बताकर उन्हें उस उत्पाद को क्रय करने के लिए प्रेरित करने का साधन है।

विज्ञापन से उत्पादकों को लाभ :

  • नवनिर्मित वस्तुओं की मांग में वृद्धि करना- निर्माता अपनी नई वस्तु या विज्ञापन करके अपनी वस्तु की माँग उत्पन्न कर सकते हैं।
  • वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि- विज्ञापन का प्रमुख उद्देश्य वस्तु की माँग में वृद्धि करना है। विज्ञापन के द्वारा वस्तु के नए ग्राहक बनते हैं। परिणामस्वरूप बिक्री बढ़ती है।
  • माँग में स्थायित्व (Stability in Demand)- विज्ञापन वस्तुओं की मौसमी माँग के परिवर्तन को न्यूनतम करके पूरे वर्ष माँग को बनाए रखता है जैसे-बिजली के पंखे गर्मियों में तो बिकते ही हैं लेकिन सर्दियों में भी पंखों की माँग भारी छूट के विज्ञापन के कारण बनी रहती है।
  • शीघ्र बिक्री तथा कम स्टॉक- विज्ञापन से बाजार में वस्तु की माँग होती है और वस्तु की बिक्री में वृद्धि होती है। परिणामस्वरूप वस्तु का स्टॉक अधिक समय के लिए नहीं रखना पड़ता।
  • प्रतिस्पर्धा का अंत- विज्ञापन के माध्यम से वस्तु की माँग बाजार में स्थायी बनायी जा सकती है। यदि कोई हमारी वस्तु का प्रतिस्पर्धा है तो भी उसकी दाल नहीं गलेगी क्योंकि हम अपनी वस्तु की उपयोगिता को विज्ञापन के द्वारा ग्राहकों को समझा सकते हैं।
  • कम लागत- बड़े पैमाने पर उत्पादन करके उत्पादन लागत और वितरण लागत दोनों में कमी की जा सकती है क्योंकि विज्ञापन से माँग में वृद्धि होती है और बढ़ी हुई माँग की पूर्ति बड़े पैमाने के उत्पादन से ही संभव है।
  • संस्था की ख्याति में वृद्धि- विज्ञापन से संस्था तथा उसके द्वारा उत्पादित वस्तु लोकप्रिय हो जाती है। यही नहीं, ऐसी संस्था अपने सहायक उत्पादन को बेचने में भी सफल हो जाती है।
  • कर्मचारियों को प्रेरणा- विज्ञापन से जब वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तो संस्था में काम करने वाले कर्मचारियों में भी गर्व की भावना आती है।
  • उपभोक्ताओं के समय में बचत- विज्ञापन की सहायता से कम समय में उचित मूल्य पर सही वस्तु उपभोक्ता को मिल जाती है।

विज्ञापन से समाज को लाभ-

  • आजीविका का साधन-विज्ञापन के धंधे में असंख्य व्यक्ति लगे हुए हैं जो कि इस धंधे से रोजी पाते हैं।
  • आशावादी समाज का निर्माण-विज्ञापन समाज के प्रगतिशील व्यक्तियों को काम में लगाए रहने की प्रेरणा देता रहता है क्योंकि विज्ञाप्ति वस्तु को खरीदने के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 18.
उपभोक्ता के किन्हीं छः अधिकारों का वर्णन करें।
अथवा, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार उपभोक्ता के अधिकार क्या हैं ? लिखिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ता के निम्नलिखित अधिकारों की सुरक्षा के लिए बनाया गया है-

  1. मूल आवश्यकताएँ- इसके अन्तर्गत न केवल जीने के लिए बल्कि सभ्य जीवन के लिए सभी आवश्यकताओं की पूर्ति आती है। ये आवश्यकताएँ हैं भोजन, मकान, कपड़ा, बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा आदि।
  2. जागरूकता- इस अधिकार के अन्तर्गत चयन के लिए आपको विक्रेताओं द्वारा सही जानकारी देना।
  3. चयन- उपभोक्ताओं को सही चयन करने के लिए उचित गुणवत्ता और अधिक कीमत वाली कई वस्तुओं को दिखाना ताकि वे उनमें से उपयुक्त वस्तु खरीद सकें।
  4. सुनवाई- इसके अन्तर्गत उपभोक्ता को अपने विचार निर्माताओं के समक्ष रखने का अधिकार है। उपभोक्ता की समस्याओं से निर्माताओं को वस्तु-निर्माण में उसकी गुणवत्ता बढ़ाने में सहायता मिलती है।
  5. स्वस्थ वातावरण- इससे जीवन और प्रकृति में सामंजस्य स्थापित करके जीवन स्तर ऊँचा किया जा सकता।
  6. उपभोक्ता शिक्षण- सही चयन के लिए वस्तु/सामग्री और सेवाओं को उचित जानकारी व ज्ञान का अधिकार उपभोक्ता को मिलना चाहिए।
  7. क्षतिपूर्ति (Redressal)- इसका अर्थ है कि यदि उचित सामान प्राप्त न हुआ हो तो उसका उचित परिशोधन या मुआवजा मिलने का अधिकार। जिस भी उपभोक्ता के साथ अन्याय हुआ हो वह अधिकारी के पास जाकर उचित क्षतिपूर्ति ले सकता है।

प्रश्न 19.
एक उद्यमी के मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर:
उद्यमी के कार्यों से सम्बद्ध उपलब्ध साहित्य यह स्पष्ट नहीं करता है कि उद्यमी के क्या कार्य हैं। शास्त्रीय (Classical) अर्थशास्त्रियों के अनुसार, उद्यमी व्यवसाय का पूँजी प्रदान कर उसके स्वामी होते हैं। उन्होंने पूँजीपति तथा उद्यमी में अन्तर स्पष्ट नहीं किया। परन्तु आधुनिक निगम में स्वामित्व, प्रबन्ध/नियंत्रण से भिन्न होता है, जबकि संचालक मण्डल के कुछ लोग नगन्य जोखिम उठाये, बहुत-सा मुआवजा प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं, भले ही अंशधारियों को कोई लाभांश न मिले। अतः वृद्धाकार लोक कम्पनी में शास्त्रीय सिद्धान्त उपयुक्त नहीं समझे जाते।

आधुनिक लेखों द्वारा एक उद्यमी निम्नांकित कार्यों को संचालित करता है-
1. नवकरण (Innovation)- उद्यमी शब्द नवकरण से जुड़ा हुआ है जिसका अर्थ है नवीन कार्यों को करना। शुम्पीटर के अनुसार, उद्यमी का प्रमुख कार्य नव-सृजन है, अर्थात् नये उत्पादों का उत्पादन, नये बाजारों का सृजन, उत्पादन की नई विधियों का विकास, कच्चे माल के नवीन आपूर्ति प्रवाहों का अन्वेषण तथा नवीन संगठनात्मक ढाँचे का निर्माण करना है।

नवकरण अन्वेषण तथा आविष्कार से भिन्न है। अन्वेषण हमें ज्ञान प्रदान करता है जबकि नवकरण हमें ज्ञान का उपयोग नवीन वस्तुओं के उत्पादन हेतु करता है। नवकरण शोध पर आधारित नहीं है-नवकरण पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो सकता है। प्रायः नवकरण शोध पर आधारित नहीं होते। नवकरण अन्वेषण से भी भिन्न है। अन्वेषण का अर्थ नवीन विचारों, वस्तुओं तथा नई विधियों की खोज है जबकि नवकरण, अन्वेषित नयी वस्तुओं के उत्पादों पर अन्वेषित खोजों के प्रयोग द्वारा उन्हें बाजार में बेचना है। यह भी सही नहीं है कि केवल बड़ी फर्मे ही नव-सृजन करती हैं। तथ्य स्पष्ट करते हैं कि लघु एवं मध्यम आकार फर्मे अपनी गहन लोचकता द्वारा तकनीकी विकास को समृद्ध बना सकती है।

2.जोखिम वहन (Risk Bearing)- अपूर्वानुमानित संदिग्धताओं, जैसे उपभोक्ता रुचि, उत्पादन तकनीक, राजकीय नीतियों में परिवर्तनों तथा नए अन्वेषणों के कारण उद्यमी को हानियाँ उठानी पड़ती हैं। उद्यमी को जहाँ पुरस्कार एवं प्रचुर लाभ प्राप्त होते हैं, हानियों को भी वहन करना पड़ता है। वह अन्वेषणों, उपक्रम तथा विस्तार आदि में होने वाले जोखिमों को सहन करता है। जे० बी० से० (J. B. Say) व अन्य ने उद्यमी द्वारा जोखिम वहन करने को उसका विशिष्ट कार्य माना है।

3. संगठन एवं प्रबन्धन (Organisation and Management)- अल्फ्रेड मार्शल ने ठीक ही कहा है, “उद्यमी का मुख्य कार्य उपक्रम का संगठन एवं प्रबन्धन है।” उसे वस्तुओं एवं सेवाओं की प्रकृति आदि का निर्णय करना होता है जिसका वह उत्पादन करे। इस हेतु वह उत्पादन के विभिन्न घटकों को जुटाता है। उद्यमी ही संसार में अलग-अलग उपलब्ध भूमि, श्रम तथा पूँजी को इकट्ठा कर उन्हें उत्पादन में लगाता है। वह मूल रूप से एक निर्णायक है। हानियों को न्यूनतम करने के लिए, वह साधनों का उपयोग बड़े विवेकपूर्ण ढंग से करता है, आवश्यकतानुसार वह व्यवसाय के आकार, स्थिति, उत्पादन तकनीकों आदि में संशोधन करता है। वह प्रबन्धकीय कार्य जैसे उत्पादन नीतियों का निर्माण, बिक्री, संगठन एवं कार्मिक प्रबन्धन आदि को वहन करता है।

4. प्रबन्धकीय कार्य (Managerial Functions)- उद्यमी द्वारा दैनिक कार्यक्रम में अनेक प्रबन्ध कीय कार्य करने पड़ते हैं। उसे पहले से ही भावी कार्यों का नियोजन करना, आवश्यक संगठनात्मक क्रियाएँ जुटाना, कर्मचारियों के बीच समन्वय व संदेशवाहन व्यवस्था करना तथा अन्त में व्यावसायिक गतिविधियों पर नियंत्रण आदि करने होते हैं।

5. मार्गदर्शन (Leadership)- उद्यमी को अपने कर्मचारियों एवं अधिकारियों का मार्गदर्शन करना होता है ताकि वे उसे सहयोग प्रदान करें। उपक्रम के मार्गदर्शक के रूप में उसे अन्य कर्मचारियों के सम्मुख कार्य निष्ठा, समर्पण एवं अनुशासन के आदर्श प्रस्तुत कर उन्हें प्रेरित करता है।

6. वित्तीय व्यवस्था करना (Arranging Finance)- उद्यमी को व्यापार आरम्भ करने तथा नये अवसरों के रहते व्यवसाय के विस्तार करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है, जिसे अनेक बार वह निजी साधनों से नहीं जुटा पाता। ऐसी स्थिति में वह बैंक तथा विकासशील संस्थाओं, साधारण जनता से अंश एवं ऋणपत्रों के निर्गमन द्वारा धन एकत्रित करता है। न्यूनतम लागत पर वित्तीय व्यवस्था करने के लिए इसे अच्छा वित्त प्रबन्धक होना आवश्यक है।

7.सामरिक प्रबन्ध (Strategic Management)- यह उद्यमी का मुख्य कार्य है। अपने प्रतिद्वन्द्वी से आगे बढ़ने के उद्देश्य से उसे व्यूह रचना तैयार करनी होती है जिसके अन्तर्गत प्रस्तुत व्यावसायिक वातावरण एवं अपनी शक्तियों एवं कमियों के दृष्टिगत आवश्यक कूटनीतियाँ तैयार करनी होती हैं। कई बार, वह अपने अधिकारियों तथा कर्मचारियों को अपनी भावी सोच से अवगत करवाता है ताकि वे इस सम्बन्ध में व्यूह रचनाएँ तैयार करें।

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 8

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Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 8

प्रश्न 1.
किसने कहा “स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है” ?
(a) सरदार पटेल
(b) भगत सिंह
(c) तिलक
(d) चन्द्रशेखर आजाद
उत्तर:
(c) तिलक

प्रश्न 2.
प्रथम पंचवर्षीय योजना की अवधि क्या थी ?
(a) 1951-56
(b) 1952-57
(c) 1947-52
(d) 1955-60
उत्तर:
(a) 1951-56

प्रश्न 3.
शिव सेना किस प्रांत में सक्रिय है ?
(a) महाराष्ट्र
(b) गुजरात
(c) पंजाब
(d) हरियाणा
उत्तर:
(a) महाराष्ट्र

प्रश्न 4.
शीतयुद्ध का अंत कब हुआ ?
(a) 1991
(b) 1891
(c) 2001
(d) 2002
उत्तर:
(a) 1991

प्रश्न 5.
गोलकनाथ मुकदमा कब आया ?
(a) 1965
(b) 1966
(c) 1970
(d) 1960
उत्तर:
(a) 1965

प्रश्न 6.
सूचना का अधिकार किस वर्ष लागू हुआ ?
(a) 2004
(b) 2005
(c) 2006
(d) 2007
उत्तर:
(b) 2005

प्रश्न 7.
हमारी नियोजन व्यवस्था किस विचारधारा पर आधारित है ?
(a) उदारवाद
(b) साम्यवाद
(c) गाँधीवाद
(d) लोकतांत्रिक समाजवाद
उत्तर:
(d) लोकतांत्रिक समाजवाद

प्रश्न 8.
कौन सैनिक गठबंधन सोवियत संघ से संबंधित था ?
(a) नाटो
(b) सीआटो
(c) वारसा पैक्ट
(d) सेन्टो
उत्तर:
(c) वारसा पैक्ट

प्रश्न 9.
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म कब हुआ ?
(a) 23 जनवरी, 1897
(b) 25 जनवरी, 1898
(c) 30 जनवरी, 1897
(d) 25 जनवरी, 1897
उत्तर:
(a) 23 जनवरी, 1897

प्रश्न 10.
“भारतीय विविधता में एकता का देश है।” किसने कहा ?
(a) गाँधीजी
(b) नेहरूजी
(c) सुभाषचन्द्र बोस
(d) सरदार पटेल
उत्तर:
(b) नेहरूजी

प्रश्न 11.
शॉक थेरेपी को अपनाया गया
(a) 1990 में
(b) 1991 में
(c) 1989 में
(d) 1992 में
उत्तर:
(a) 1990 में

प्रश्न 12.
लिट्टे एक आतंकवादी संगठन है
(a) श्रीलंका का
(b) पाकिस्तान का
(c) भारत का
(d) रूस का
उत्तर:
(a) श्रीलंका का

प्रश्न 13.
1971 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण कहाँ किया ?
(a) पोखरन
(b) बीकानेर
(c) मिर्जापुर
(d) त्रिवेन्द्रम
उत्तर:
(a) पोखरन

प्रश्न 14.
गोवा भारत संघ का राज्य किस वर्ष बना ?
(a) 1967
(b) 1987
(c) 1985
(d) 1980
उत्तर:
(b) 1987

प्रश्न 15.
NATO की स्थापना किस वर्ष की गई ?
(a) 1948
(b) 1967
(c) 1949
(d) 1950
उत्तर:
(c) 1949

प्रश्न 16.
योजना आयोग कौन-सा निकाय है ?
(a) संवैधानिक निकाय
(b) गैर-संवैधानिक निकाय
(c) व्यक्तिगत निकाय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) गैर-संवैधानिक निकाय

प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्रसंघ के चार्टर में किस व्यवस्था को स्थान दिया गया है ?
(a) सत्ता का संतुलन
(b) शांति स्थापना
(c) शांति निर्णय
(d) सामूहिक सुरक्षा
उत्तर:
(d) सामूहिक सुरक्षा

प्रश्न 18.
डॉ० मनमोहन सिंह सरकार के गठबंधन का क्या नाम है ?
(a) संप्रग
(b) राजग
(c) पंजाब गठबंधन
(d) सभी
उत्तर:
(a) संप्रग

प्रश्न 19.
‘गरीबी हटाओ’ के नारे ने किस चुनाव को अपना चमत्कारी प्रभाव दिखाया ?
(a) 1971 का मध्यावधि चुनाव
(b) 1967 का चौथा चुनाव
(c) 1957 का दूसरा चुनाव
(d) 1962 का तीसरा चुनाव
उत्तर:
(a) 1971 का मध्यावधि चुनाव

प्रश्न 20.
मेधा पाटकर का नाम किंस आंदोलन से जुड़ा है ?
(a) नर्मदा बचाओ आंदोलन
(b) चिपको आंदोलन
(c) टेहरी बाँध रोको आंदोलन
(d) पर्यावरण प्रदूषण रोको आंदोलन
उत्तर:
(a) नर्मदा बचाओ आंदोलन

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है ?
(a) संयुक्त सैन्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारात्मक लड़ाई का अंत
(b) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सी० आई० एस०) का जन्म
(c) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव
(d) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(d) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 22.
गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव किस सम्मेलन में पड़ी ?
(a) बांडुंग सम्मेलन
(b) बेलग्रेड सम्मेलन
(c) काहिरा सम्मेलन
(d) लुसाका सम्मेलन
उत्तर:
(a) बांडुंग सम्मेलन

प्रश्न 23.
भारत में 1940 के दशक के अंतिम सालों में किसके निर्देशन में परमाणु कार्यक्रम शुरू हुआ ?
(a) होमी जहाँगीर भाभा
(b) अब्दुल कलाम
(c) सी० वी० रमण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) होमी जहाँगीर भाभा

प्रश्न 24.
तेलुगु देशम किस राज्य का क्षेत्रीय दल है ?
(a) तमिलनाडु
(b) कर्नाटक
(c) आन्ध्र प्रदेश
(d) केरल
उत्तर:
(a) तमिलनाडु

प्रश्न 25.
ताशकंद समझौते के समय सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व कौन नेता कर रहा था ?
(a) स्टालिन
(b) कोसिजिन
(c) पुतीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कोसिजिन

प्रश्न 26.
2003 में अमेरिका ने किस देश पर हमला किया ?
(a) कुवैत
(b) इराक
(c) ईरान
(d) तेहरान
उत्तर:
(b) इराक

प्रश्न 27.
किस देश के प्रभुत्व से एक ध्रुवीयता कायम हुआ ?
(a) रूसी संघ
(b) चीन
(c) फ्रांस
(d) अमेरिका
उत्तर:
(d) अमेरिका

प्रश्न 28.
कौन-सा वर्ष भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाया गया ?
(a) 1954
(b) 1962
(c) 1988
(d) 2006
उत्तर:
(a) 1954

प्रश्न 29.
2014 में भारत-चीन संबंध सुधारने की ओर किस भारतीय प्रधानमंत्री ने पहल की?
(a) मनमोहन सिंह
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) दोनों ने
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 30.
दक्षिण एशिया का कौन-सा देश नस्लीय उग्रवाद से पीड़ित है ?
(a) नेपाल
(b) बांग्लादेश
(c) श्रीलंका
(d) भारत
उत्तर:
(c) श्रीलंका

प्रश्न 31.
भारत में चुनाव आयोग का गठन कब हुआ ?
(a) जनवरी 1950
(b) फरवरी 1950
(c) जून 1950
(d) अगस्त 1950
उत्तर:
(a) जनवरी 1950

प्रश्न 32.
किस दक्षिण एशियाई देश में संवैधानिक संकट है ?
(a) पाकिस्तान
(b) बांग्लादेश
(c) भूटान
(d) नेपाल
उत्तर:
(d) नेपाल

प्रश्न 33.
भारत में विदेश नीति के संचालक हैं
(a) डॉ० मनमोहन सिंह
(b) यशवंत सिन्हा
(c) वी० पी० सिंह
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) यशवंत सिन्हा

प्रश्न 34.
संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा अंग कौन है ?
(a) सुरक्षा परिषद्
(b) महासभा
(c) सचिवालय
(d) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
उत्तर:
(b) महासभा

प्रश्न 35.
विश्व बैंक की स्थापना कब हुई ?
(a) 1946 में
(b) 1947 में
(c) 1948 में
(d) 1949 में
उत्तर:
(a) 1946 में

प्रश्न 36.
विश्व के देशों के बीच व्यापार संबंधों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) विश्व व्यापार संगठन
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) विश्व बैंक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) विश्व व्यापार संगठन

प्रश्न 37.
किस संधि में परमाणु परीक्षण को पूर्णतया वर्जित किया गया है ?
(a) परमाणु अप्रसार
(b) आंशिक परीक्षण प्रतिबंध
(c) व्यापक परीक्षण प्रतिबंध
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) परमाणु अप्रसार

प्रश्न 38.
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई ?
(a) 1945
(b) 1946
(c) 1947
(d) 1948
उत्तर:
(d) 1948

प्रश्न 39.
बच्चों के अधिकारों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) रेड क्रॉस सोसाइटी
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल
(c) यूनिसेफ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल

प्रश्न 40.
पंजाब समस्या के समाधान हेतु राजीव गाँधी ने पंजाब के किस नेता के साथ समझौता किया था ?
(a) सुरजीत सिंह वरनाला
(b) प्रकाश सिंह बादल
(c) हरचरण सिंह लौंगोवाल
(d) अरविन्दर सिंह
उत्तर:
(c) हरचरण सिंह लौंगोवाल

प्रश्न 41.
कांशीराम किस राजनीतिक दल के संस्थापक थे ?
(a) बहुजन समाज पार्टी
(b) लाल सेना
(c) राष्ट्रीय जनता दल
(d) लोक जनशक्ति पार्टी
उत्तर:
(a) बहुजन समाज पार्टी

प्रश्न 42.
वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है ?
(a) वैश्वीकरण का संबंध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है
(b) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता
(c) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्व गौण है
(d) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है
उत्तर:
(d) वैश्वीकरण का संबंध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है

प्रश्न 43.
जवाहरलाल नेहरू का देहान्त कब हुआ ?
(a) 17 मई, 1964
(b) 30 मई, 1964
(c) 27 मई, 1964
(d) 28 मई, 1964
उत्तर:
(a) 17 मई, 1964

प्रश्न 44.
स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल कौन थे ?
(a) लॉर्ड माउण्टबेटन
(b) राजगोपालाचारी
(c) कामराज
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(a) लॉर्ड माउण्टबेटन

प्रश्न 45.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता?
(a) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना।
(b) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना।
(c) वैश्विक मामलों में आर्थिक तटस्थता की नीति अपनाना।
(d) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित, करना।
उत्तर:
(c) वैश्विक मामलों में आर्थिक तटस्थता की नीति अपनाना।

प्रश्न 46.
भारत में एकदलीय प्रभुत्व का दौर किस दल के नेतृत्व में चला ?
(a) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस
(b) भारतीय जनसंघ
(c) जनता पार्टी
(d) समाजवादी पाटी
उत्तर:
(a) भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस

प्रश्न 47.
काँग्रेस पार्टी को भंग कर लोक सेवक संघ गठित करने का सुझाव किसने दिया था?
(a) जयप्रकाश नारायण
(b) एम० एन० राय
(c) महात्मा गाँधी
(d) अरविन्द घोष
उत्तर:
(c) महात्मा गाँधी

प्रश्न 48.
पंचायत व्यवस्था किस देश में स्थापित की गई ?
(a) बांग्लादेश
(b) पाकिस्तान
(c) नेपाल
(d) भूटान
उत्तर:
(c) नेपाल

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 1

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
भारत के किसी एक सामाजिक आन्दोलन की विवेचना कीजिए और इसके मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नर्मदा बचाओ आंदोलन- मेधा पाटकर गुजरात में नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोबर बांध के निर्माण का विरोध कर रही है। उसकी माँग है कि जिन लोगों को वहाँ से हटाया जाय उन्हें कहीं और जगह देकर बसाया जाय। यह भी माँग है कि बाँध की ऊँचाई बहुत अधिक न हो। ऐसा न हो कि वह टूट जाए। यदि ऐसा हुआ तो गुजरात का काफी भाग जल-मग्न हो जायेगा।

पर्यावरण संबंधी आंदोलन चलाने वाले यह भी माँग कर रहे हैं कि गंदे नालों की सफाई की जाय, मलेरिया तथा डेंगू जैसे बुखारों से बचने के लिए मच्छरों को मारा जाए, कारखानों का गंदा पानी नदियों में न छोड़ा जाए आदि। क्षेत्र में पोषणीय विकास को बढ़ावा दिया जाए।

(i) लोगों द्वारा 2003 ई० में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की माँग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है।

(ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बांध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए।

(iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी मांग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ जो जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

(iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती हैं। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया।

प्रश्न 2.
विश्व शान्ति की स्थापना में भारत के मुख्य योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत ने विश्व शांति की स्थापना में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। विश्व शांति . में भारत के योगदान को निम्नलिखित तरीके से स्पष्ट किया जा रहा है-

विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान (India’s Contribution towards World Peace)-
1. सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the Military Alliances)- इस समय विश्व में बहुत सैनिक गुट बन रहे हैं। जैसे नाटो, सीटो सैण्टो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा है कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधः हैं। अतः भारत ने हमेशा इन सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं की बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है।

2. निशस्त्रीकरण में सहायता (Support of Disarmament)- संयुक्त राष्ट्र संघ ने निशस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है तथा इस समस्या को हल करने के लिए बहुत ही प्रयास किये हैं। भारत ने इस समस्या का समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद की है क्योंकि भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की स्थापना हो सकती है।

3. जातीय भेदभाव का विरोध (Opposition to the Policy of Discriminations based on Caste, Cree and Colour)- भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेद को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिणी अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाया तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है।

एन० पी० टी० तथा सी० टी० बी० टी० पर हस्ताक्षर नहीं किये जाने के बावजूद अमेरिका ने भारत को शांतिपूर्ण कार्यों हेतु परमाणु कार्यक्रम चलाने की अनुमति दी तथा इसके लिए आवश्यक यूरेनियम की आपूर्ति करने का समझौता यूरेनियम आपूर्तिकर्ता देशों से करने पर सहमति हुई। यह भी निर्णय हुआ कि सामरिक दृष्टि से महत्वूर्ण परमाणु संस्थानों की निगरानी का अधिकार अमेरिका या अन्य किसी भी देश को नहीं होगा।

कुछ त्रुटियों के बावजूद इस समझौते का व्यापक स्वागत किया जा रहा है। भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने के लिए इस समझौते की आवश्यकता थी।

प्रश्न 3.
राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तावना (Introduction)- अनेक वर्षों की अधीनता के बाद स्वतंत्र भारत के नियोजन को अपनाने का निर्णय लिया गया। क्योंकि उस समय व्यावहारिक रूप में देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेता के पास थी। रोजगार को उत्पन्न करने के लिए भारत में राज्य क्षेत्र को विकसित किया और देश में नए आर्थिक हितों को जन्म दिया गया। उन सभी गलत आर्थिक नीतियों को छोड़ने का प्रयास किया गया जो साम्राज्यवादियों ने अपने मातृ देश (ब्रिटेन) के हित के लिए लिखी थी।

रोजगार बढ़ाने का प्रयास (Means to increase employment)- 1 अप्रैल 1951 से पहली योजना लागू हुई यद्यपि इस योजना में कृषि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। लेकिन सरकार ने ऐसे कार्यक्रमों को अधिक प्राथमिकता दी जिससे देश के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार न दिया जा सके क्योंकि रोजगार मिलने पर ही देश की गरीबी दूर हो सकती थी। देश के अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ यह मानते थे कि योजनाओं द्वारा निश्चित लागत से बनाये गये कार्यक्रमों से लागत हटकर हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के बारे में नहीं सोच सकते।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना स्पष्ट करती है, “निम्नलिखित लागत से रोजगार अंतर्निहित है और अवश्य ही, लागत के स्वरूप को निश्चित करते समय इस सोच-विचार को एक प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस तरह की योजना में लागत की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि होगी तथा विकासवादी खर्च का अर्थ है कि वह आय में वृद्धि करेगा तथा हर क्षेत्र में श्रम की मांग में वृद्धि करेगा।

सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार (Expansion of Public Industry)- देश में भारी उद्योगों को लगाने, तेल की खोज और कोयले के विकास के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा के विकास के कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। इन सभी कार्यक्रमों को चलाने का मुख्य दायित्व देश की केन्द्रीय सरकार पर था। पहली योजना की बजाय दूसरी योजना में इस कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दिया गया। अनेक देशों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े-बड़े लौह इस्पात उद्योग शुरू किए गए।

नए आर्थिक हित (New Econominc interest)- देश में आर्थिक हितों को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी अपनाया गया। वस्तुतः समाजवाद और पूँजीवाद व्यवस्थाओं के सभी गुणों को अपनाने का प्रयत्न किया गया। देश में एक नई आर्थिक नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। रोजगार के क्षेत्र में सार्वजनिक खासकर सेवाओं (service) द्वारा रोजगार देने वाला एक विशाल उद्यम विकसित हो सका। यद्यपि देश में सरकार को आशा के अनुरूप सफलताएँ नहीं मिली और रोजगार के अवसर धीमी गति से ही उत्पन्न हो सके।

प्रश्न 4.
नव अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (New International Economic Order)-
1. गुटनिरपेक्ष देश शीतयुद्ध के दौरान महज मध्यस्थता करने वाले देश भर नहीं थे। गुटनिरपेक्ष आंदोलन में शामिल अधिकांश देशों को ‘अल्प विकसित देश’ का दर्जा मिला था। इन देशों के सामने मुख्य चुनौती आर्थिक रूप से और ज्यादा विकास करने तथा अपनी जनता को गरीबी से उबारने की थी। नव-स्वतंत्र देशों की आजादी के लिहाज से भी आर्थिक विकास महत्वपूर्ण था। बगैर टिकाऊ विकास के कोई देश सही मायनों में आजाद नहीं रह सकता । उसे धनी देशों पर निर्भर रहना पड़ता । इसमें वह उपनिवेशक देश भी हो सकता था। जिससे राजनीतिक आजादी हासिल की गई।

2. इसी समझ से नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की धारणा का जन्म हुआ। 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ के व्यापार और विकास से संबंधित सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस कॉनफ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट-अंकटाड) में ‘टुवार्ड्स अ न्यू ट्रेड पॉलिसी फॉर डेवलपमेंट’ शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई। इस रिपोर्ट में वैश्विक व्यापार-प्रणाली में सुधार का प्रस्ताव किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सुधारों से-

  • अल्प विकसित देशों को अपने उन प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण प्राप्त होगा जिनका दोहन पश्चिम के विकसित देश करते हैं;
  • अल्प विकसित देशों की पहुँच पश्चिमी देशों के बाजार तक होगी; वे अपना सामान बेच सकेंगे और इस तरह गरीब देशों के लिए यह व्यापार फायदेमंद होगा;
  • पश्चिमी देशों से मँगायी जा रही प्रौद्योगिकी की लागत कम होगी; और
  • अल्प विकसित देशों की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थानों में भूमिका बढ़ेगी।

3. गुटनिरपेक्षता की प्रकृति धीरे-धीरे बदली और इसमें आर्थिक मुद्दों को अधिक महत्व दिया जाने लगा। बेलग्रेड में हए पहले सम्मेलन (1961) में आर्थिक मुद्दे ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 5.
भारत-अमेरिका समझौते से संबंधित लोकसभा में हुई बहस के तीन अंश इस अध्याय में दिए गए हैं। इन्हें पढ़ें और किसी एक अंश को आधार मानकर पूरा भाषण तैयार करें जिसमें भारत-अमेरिकी संबंध के बारे में किसी एक रुख का समर्थन किया गया हो।
उत्तर:
1. भारत और अमेरिका के मध्य परमाणु ऊर्जा के मसले पर समझौता हुआ। भारत की लोकसभा में इस मुद्दे पर बहस हुई। हम देश के प्रधानमंत्री डॉ० मनमोहन सिंह के विचारों से सहमत होकर भारत-अमेरिकी संबंधों के बारे में निम्नलिखित भाषण तैयार कर सकते हैं।

2. मान्यवर हमारे विचारानुसार इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका विश्व की एक महाशक्ति है। यह भी सही है कि शीतयुद्ध के दौरान (1945-91) भारत अमेरिकी गुट के विरुद्ध खड़ा था। भारत इन लगभग 45-46 वर्षों में मित्रता की दृष्टि से विश्व की दूसरी महाशक्ति सोवियत संघ और उसके समर्थक देशों के साथ था लेकिन अब तो सोवियत संघ ही नहीं रहा। उनके 15 गणतंत्र उससे अलग हो गए हैं। सोवियत संघ बिखर गया है। भारत ने अपनी विदेश नीति को अमेरिका की ओर बदला।

3. नि:संदेह भारत ने 1991 ई० में ही नई आर्थिक नीति अपनाने की घोषणा की। वर्तमान प्रधानमंत्री ही उस समय देश के वित्त मंत्री थे और काँग्रेस पार्टी की ही सरकार थी। तब भी भारत मानता था और आज भी वर्तमान सरकार मानती है कि ताकत की राजनीति अब भी बीते दिनों की बात नहीं कही जा सकती। भारत स्वयं महाशक्ति बनना चाहता है।

4. हम पहले भी मानते थे और अब भी मानते हैं कि भास्त की प्रगति के मार्ग में अमेरिका जैसी महाशक्ति अवरोध ला सकती है या अपनी शर्ते थोप सकती है। ऐसा वह पहले भी करता रहा है। हमारा कोई भी राष्ट्रीय नेता या राजनीतिक दल हमारे देश की सुरक्षा पर आँच नहीं आने देगा। क्योंकि वह देश अधिकांश राष्ट्रभक्त-नागरिकों का देश है, परंतु वर्तमान परिस्थितियों में देश के लिए आर्थिक और सैनिक लाभ न उठाना और परमाणु समझौते को न लागू करना भी ठीक नहीं ठहराया जा सकता। भारत सभी शक्तिशाली और बड़े देशों के साथ मित्रता के संबंध बनाए रखना चाहता है।

5. संयुक्त राज्य अमेरिका हमारा एक अच्छा मित्र है और मित्र रहेगा। हाल के वर्षों में प्रभावशाली आर्थिक वृद्धि दर के कारण भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका सहित अनेक देशों के लिए आकर्षण आर्थिक सहयोगी बन गया है। अनेक तथ्य यह बताते हैं कि भारत का निर्यात अमेरिका को सबसे ज्यादा है। भारतीय मूल के नागरिक और प्रवासी भारतीय अमेरिका में तकनीकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और प्रौद्योगिकी सेवाओं में संलग्न है। जो लोग भारत और अमेरिका की बढ़ती हुई दोस्ती से भयभीत हैं वस्तुत: अमेरिका के प्रति या तो अपने राजनैतिक विचारधारा के कारण दुर्भाव रखते हैं या यह भूल जाते हैं कि अमेरिका और भारत दोनों ही लोकतांत्रिक और उदारवादी देश हैं। यह भी जरूरी है कि हमें देश की सुरक्षा के साथ किसी भी कीमत पर अनदेखी नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे। ठीक इसी तरह यह भी बताएँ कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर:
वैसे तो मैं कक्षा बारहवीं का विद्यार्थी हूँ लेकिन एक नागरिक के रूप में और राजनीति विज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते मुझे प्रश्न में जो कहा गया उनके अनुसार मैं दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहूँगा। (i) सी-टी०बी०टी० के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को और परमाणु नीति की वर्तमान नीति को जारी रखूगा। (ii) मैं संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता जारी रखते हुए विश्व बैंक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से सहयोग जारी रखूगा। (iii) दो बदलने वाले पहलू निम्नलिखित होंगे-

(a) मैं गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता को त्याग करके संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोपीय देशों के साथ अधिक मित्रता बढ़ाना चाहूँगा क्योंकि आज दुनियाँ में पश्चिमी देशों की तूती बोलती है और वे ही सम्पत्ति और शक्ति सम्पन्न हैं। रूस और साम्यवाद निरंतर ढलाने की दिशा में अग्रसर हो रहा है।

(b) मैं पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक संधि करूँगा तो जर्मनी के बिस्मार्क की तरह अपने राष्ट्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए सोवियत संघ देश के साथ ऐसी संधि करूँगा ताकि चीन 1962 की तरह भारत देश के भू-भाग को अपने कब्जे में न रखें और शीघ्र ही तिब्बत, बारमाँसा, हाँगकाँग को अंतर्राष्ट्रीय समाज में स्वायतपूर्ण स्थान दिलाने का प्रयत्न करूँगा और संभव हुआ तो नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका के साथ समूहिक प्रतिरक्षा संबंधी व्यापक उत्तरदायित्व और गठजोड़ की संधियाँ/ समझौते करूँगा।

प्रश्न 7.
किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है ? भारत की विदेश-नीति के उदाहरण देते हुए प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर:
हर देश का राजनैतिक नेतृत्व उस राष्ट्र की विदेश नीति पर प्रभाव डालता है। उदाहरण के लिए नेहरू जी के सरकार के काल में गुट-निरपेक्षता की नीति बड़ी जोर-शोर से चली लेकिन शास्त्री जी ने पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से देकर वह साबित कर दिया कि भारत की तीनों तरह की सेनाएँ हर दुश्मन को जवाब देने की ताकत रखती है। उन्होंने स्वाभिमान से जीना सिखाया। ताशकंद समझौता किया लेकिन गुटनिरपेक्षता की नीति को नेहरू जी के समान जारी रखा।

कहने को श्रीमती इंदिरा गाँधी नेहरू जी की पुत्री थीं लेकिन भावनात्मक रूप से वह रूस से अधिक प्रभावित थीं। उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। भूतपूर्व देशी नरेशों के प्रिवीपर्स पर्स समाप्त किए, गरीबी हटाओ का नारा दिया और रूस से दीर्घ अनाक्रमांक संधि की।

राजीव गांधी के काल में चीन पाकिस्तान सहित अनेक देशों से संबंध सुधारे गए तो श्रीलंका के उन देश द्रोहियों को दबाने में वहाँ की सरकार को सहायता देकर यह बता दिया कि भारत छोटे-बड़े देशों की अखंडता का सम्मान करता है।

कहने को एन.डी.ए. या बी.जे.पी. की सरकार कुछ तो ऐसे तत्वों से प्रभावित थी जो साम्प्रदायिक अक्षेप से बदनाम किए जाते हैं लेकिन उन्होंने भारत को चीन, रूस, अमेरिका, पाकिस्तान, बंग्लादेश, श्रीलंका जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि सभी देशों से विभिन्न क्षेत्रों से समझौते करके बस, रेल, वायुयान, उदारीकरण उन्मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण और आतंकवादी विरोधी नीति को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पड़ोसी देशों में उठाकर यह साबित कर दिया कि भारत की विदेश नीति केवल देश हित में होगी। उस पर धार्मिक या किसी राजनैतिक विचारधारा का वर्चस्व नहीं होगा।

अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीति, नेहरू जी के विदेश नीति से जुदा न होकर लोगों को अधिक प्यारी लगी क्योंकि देश में परमाणु शक्ति का विस्तार हुआ जय जवान के साथ आपने दिया नारा ‘जय जवान जय किसान और जय विज्ञान’ । 2014 के 26 मई को श्री नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने है। उनके द्वारा किये गये सकारात्मक कार्यों से भारत की छवि दुनिया में बढ़ी है।

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations):
1. चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Help in Preparation of the U.N. Charter)- संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के लागू करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री स. राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations)- संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems)- भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

4. निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India’s Co-operation to U. N. for the disarmament)- संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिएं। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पन: पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में भारत का सहयोग (India’s Co-operation in the Political Functions of the United Nations)- भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

1. कोरिया की समस्या (Korean Problems)- जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था। ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal)- जुलाई, 1956 के ‘बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अतः उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मिस्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

3. हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo-China)- सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

4. हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery)- जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

5. चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China)- विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

6. नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations)- भारत का सदा प्रयत्न रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

7. रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia)- जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

8. भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चुका है (India had worked at different posts)- भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं। डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था। अब तक छ: बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ० नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी; 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के० पी० एस० मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।

निष्कर्ष (Conclusion)- भारत विश्व शांति व सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सहयोग देता रहा है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति को बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण यंत्र है। पं० जवाहरलाल ने एक बार कहा था, “हम संयुक्त राष्ट्र के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।”

प्रश्न 9.
यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ युद्धों को रोकने से असफल रहा है और इससे जुड़े हुए दर्दनाक परिणामों को विश्व नहीं बचा सका है तो भी इसे जारी रखना बहुत जरूरी है। ऐसी कौन-सी बातें हैं जो संयुक्त राष्ट्र संघ के अस्तित्व को अनिवार्य और परम आवश्यकता बना देती है ?
उत्तर:
यह कथन सही है कि अपने जीवन काल के लगभग 62 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व के अनेक भागों में छिड़े अनेक राष्ट्रों के मध्य संघर्षों, झड़पों और युद्धों को पूरी तरह नहीं रोक सका। यह भी सत्य है कि प्रत्येक युद्ध का दुष्परिणाम प्रभावित लोगों को जान, माल और भी सत्य है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अपने पूर्ववर्ती संस्था राष्ट्र संस्था (League of Nation) की तरह दूसरे विश्वयुद्ध के बाद असफल नहीं हुआ और सौभाग्यवश विश्वयुद्ध या दूसरे विश्वयुद्ध का स्तर का था उससे भी ज्यादा विनाशकारी स्तर का तीसरा विश्वयुद्ध अभी तक नहीं हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र संघ को बनाये रखना बहुत जरूरी है क्योंकि (i) आज संयुक्त राष्ट्र संघ में 50 या 55 राष्ट्र इसके सदस्य नहीं हैं। बल्कि 1 जनवरी, 2007 तक 192 देश इसके सदस्य बन चुके हैं यह दुनिया का सबसे बड़ा, प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय मंच है यहाँ पर अन्तर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा, सामाजिक-आर्थिक समस्याओं पर खुले मस्तिष्क के वाद-विवाद और विचार-विमर्श होता है। नि:संदेह इससे अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण को सौहार्द्र बनाये रखने में प्रशंसनीय मदद मिली है।

(ii) यह सही है कि कुछ राष्ट्रों के पास अणु और परामाणु बम हैं लेकिन यह भी सही है कि बड़ी शक्तियों के प्रभाव के कारण पर्याप्त सीमा तक सर्वाधिक भयंकर हथियारों के निर्माण और रसायन व जैविक हथियारों के प्रयोग और निर्माण को रोकने में सफलता इस संस्था को मिली है।

(iii) आज साम्यवादी विचारधारा लगभग शांत है। सोवियत संघ और चीन सहित अनेक पूर्व साम्यवादी यूरोपीय देश वैश्वीकरण, उदारीकरण और नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक नीति और अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे हैं।

(iv) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, पिछड़े और गरीब राष्ट्रों को ऋण, भुगतान और आपातकाल में अनेक प्रकार की सहायता दिलाने में सक्षम रहा है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ का बना रहना जरूरी है। युद्ध मानवीय मस्तिष्क और निहित स्वार्थों, अहंकार, गलत राष्ट्रीय नीतियों और मानव विरोधी नेताओं के कार्यों की उपज है। कब सह-शस्त्र, सैन्य गुट बनने लगेंगे या कब साम्यवाद और पूँजीवाद के मध्य द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 45 वर्षों तक जारी रहा। संघर्ष उन्हें जन्म तो देगा। इसके विषय में कोई भी व्यक्ति यह भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि ऐसा कभी नहीं होगा।

(v) आज संयुक्त राष्ट्र संघ शिक्षा, प्रचार, स्वास्थ्य सेवाओं में बढ़ोतरी, महामारियों को रोकने आदि में अहम् भूमिका निभा रहा है। आतंकवाद, धर्मांधता और शस्त्रीकरण के स्थान पर आर्थिक, सामाजिक विकास और लोकतंत्र के प्रसार और सशस्त्रीकरण को मजबूत करना है तो संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रयोग और अधिक मानव मूल्यों, विश्व बंधुत्व, पारस्परिक सहयोग की भावना से किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है ?
उत्तर:
1. भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव (Impact of Globalisation in India)- पूँजी, वस्तु, विचार और लोगों की आवाजाही का भारतीय इतिहास कई सदियों का है। औपनिवेशिक दौर में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी मंसूबों के परिणामस्वरूप भारत आधारभूत वस्तुओं को कच्चे माल का निर्यातक तथा बने-बनाये सामानों का आयातक देश था। आजादी हासिल करने के बाद, ब्रिटेन के साथ अपने इन अनुभवों से सबक लेते हुए हमने फैसला किया कि दूसरे पर निर्भर रहने के बजाय खुद सामान बनाया जाय। हमने यह भी फैसला किया कि दूसरे देशों को निर्यात की अनुमति नहीं होगी ताकि हमारे अपने उत्पादक चीजों को बनाना सीख सके। इस ‘संरक्षणवाद’ से कुछ नयी दिक्कतें पैदा हुईं। कुछ क्षेत्रों में तरक्की हई तो कुछ जरूरी क्षेत्रों जैसे स्वास्थ्य, आवास और प्राथमिक शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितने के वे हकदार थे। भारत में आर्थिक वृद्धि की दर धीमी रही।

2. भारत में वैश्वीकरण को अपनाना (Adoptation of Globalisation in India)- 1991 में नई आर्थिक नीति के अंतर्गत भारत ने उदारीकरण और वैश्वीकरण को अपना लिया। अनेक देशों की तरह भारत में भी संरक्षण की नीति को त्याग दिया गया। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की समानता, विदेशी पूँजी के निवेश का स्वागत किया गया। विदेशी प्रौद्योगिकी और कुछ विशेषज्ञों की सेवाएँ ली जा रही हैं। दूसरी ओर भारत ने औद्योगिक संरक्षण की नीति को त्याग दिया है। अब अधिकांश वस्तुओं के आयात के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य नहीं है। भारत स्वयं को अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जोड़ रहा है। भारत का निर्यात बढ़ रहा है लेकिन साथ ही साथ अनेक वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं। लाखों लोग बेरोजगार हैं। कुछ लोग जो पहले धनी थे वे अधिक धनी हो रहे हैं और गरीबों की संख्या बढ़ रही है।

3. भारत की वैश्वीकरण का प्रतिरोध (Resistence of Globalisation in India)- वैश्वीकरण बड़ा बहसमतलब मुद्दा है और पूरी दुनिया में इसकी आलोचना हो रही है। वैश्वीकरण के आलोचक कई तर्क देते हैं।
(a) वामपंथी राजनीतिक रुझान रखने वालों का तर्क है कि मौजूदा वैश्वीकरण विश्वव्यापी पूँजीवादी की एक खास अवस्था है जो धनिकों को और ज्यादा धनी (तथा इनकी संख्या में कमी) और गरीब को और ज्यादा गरीब बनाती है।

(b) राज्य के कमजोर होने से गरीबों के हित की रक्षा करने की उसकी क्षमता में कमी आती है। वैश्वीकरण के दक्षिणपंथी आलोचक इसके राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं। राजनीतिक अर्थों में उन्हें राज्य के कमजोर होने की चिंता है। वे चाहते हैं कि कम-से-कम कुछ क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता और ‘संरक्षणवाद’ का दौर फिर कायम हो। सांस्कृतिक संदर्भ में इनकी चिंता है कि परम्परागत संस्कृति की हानि होगी और लोग अपने सदियों पुराने जीवन-मूल्य तथा तौर-तरीकों से हाथ धो देंगे। यहाँ हम गौर करें कि वैश्वीकरण-विरोधी आंदोलन भी विश्वव्यापी नेटवर्क में भागीदारी करते हैं और अपने से मिलती-जुलती सोच रखने वाले दूसरे देशों के लोगों से गठजोड़ करते हैं। वैश्वीकरण-विरोधी बहुत से आंदोलन वैश्वीकरण की धारणा के विरोधी नहीं बल्कि वैश्वीकरण किसी खास कार्यक्रम के विरोधी हैं जिसे वे साम्राज्यवाद का एक रूप मानते हैं।

वैश्वीकरण के प्रतिरोध को लेकर भारत के अनुभव क्या हैं ?
(a) सामाजिक आंदोलनों से लोगों को अपने पास-पड़ोस की दुनिया को समझने में मदद मिलती है। लोगों को अपनी समस्याओं के हल तलाशने में भी सामाजिक आंदोलन से मदद मिलती है। भारत में वैश्वीकरण का विरोध कई हलकों से हो रहा है। आर्थिक वैश्वीकरण के खिलाफ वामपथी तेवर की आवाजें राजनीतिक दलों की तरफ से उठी है तो इंडियन सोशल फोरम जैसे मंचों से भी। औद्योगिक श्रमिक और किसानों के संगठनों ने बहुराष्ट्रीय निगमों में प्रवेश का विरोध किया है। कुछ वनस्पतियों मसलन ‘नीम’ को अमेरिकी और यूरोपीय फर्मों ने पेटेण्ट कराने के प्रसास किए। इसका भी कड़ा विरोध हुआ।

(b) वैश्वीकरण का विरोध राजनीति के दक्षिणपंथी खेमों से भी हुआ है। यह खेमा विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का विरोध कर रहा है जिसमें केबल नेटवर्क के जरिए उपलब्ध कराए जा रहे विदेशी टी० वी० चैनलों से लेकर वैलेण्टाइन-डे मनाने तथा स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं की पश्चिमी पोशाकों के लिए बढ़ती अभिरुचि तक का विरोध शामिल है।

प्रश्न 11.
9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
9/11 और आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध (9/11 and the Global War on Terror)-
(i) पृष्ठभूमि (Background)- 11 सितंबर, 2001 ई० के दिन विभिन्न अरब देशों के 19 अपहरणकर्ताओं ने उड़ान भरने के चंद मिनटों बाद चार अमेरिकी व्यावसायिक विमानों पर कब्जा कर लिया। अपहरणकर्ता इन विमानों को अमेरिका की महत्त्वपूर्ण इमारतों की सीध में उड़ाकर ले गये। दो विमान न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के उत्तरी और दक्षिणी टावर से टकराए। तीसरा विमान वर्जिनिया के अर्लिंगटन स्थित ‘पेंटागन’ से टकराया। ‘पेंटागन’ में अमेरिकी रक्षा-विभाग का मुख्यालय है। चौथे विमान को अमेरिकी काँग्रेस की मुख्य इमारत से टकराना था लेकिन यह पेन्सिलवेनिया के एक खेत में गिर गया। इस हमले को ‘नाइन एलेवन’ कहा जाता है।

(ii) आतंकवादी हमले के प्रभाव (Consequences of terrorist attack)- इस हमले में लगभग तीन हजार व्यक्ति मारे गये। अमेरिकियों के लिए यह दिल दहला देने वाला अनुभव था। उन्होंने इस घटना की तुलना 1814 और 1941 की घटनाओं से की 1814 में ब्रिटेन ने वाशिंगटन डीसी में आगजनी की थी और 1941 में जापानियों ने पर्ल हार्बर पर हमला किया था। जहाँ तक जान-माल की हानि का सवाल है तो अमेरिकी जमीन पर यह अब तक का सबसे गंभीर हमला था। अमेरिका 1776 में एक देश बना और तब से उसने इतना बड़ा हमला नहीं झेला था।

(iii) अमेरिका की प्रतिक्रिया (Reaction of America) :
(a) 9/11 के जवाब में अमेरिका ने कदम उठाये और भयंकर कार्यवाही की। अब क्लिंटन की जगह रिपब्लिकन पार्टी के जॉर्ज डब्ल्यू. बुश राष्ट्रपति थे। ये पूर्ववर्ती राष्ट्रपति एच. डब्ल्यू. बुश के पुत्र हैं। क्लिंटन के विपरीत बुश ने अमेरिकी हितों को लेकर कठोर रवैया अपनाया और इन हितों को बढ़ावा देने के लिए कड़े कदम उठाये।

(b) ‘आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध’ के अंग के रूप में अमेरिका ने ‘ऑपरेशन एण्डयूरिंग फ्रीडम’ चलाया। यह अभियान उन सभी के खिलाफ चला जिन पर 9/11 का शक था। इस अभियान में मुख्य निशाना अल-कायदा और अफगानिस्तान के तालिबान-शासन को बनाया गया। तालिबान के शासन के पाँव जल्दी ही उखड़ गए लेकिन तालिबान और अल-कायदा के अवशेष अब भी सक्रिय हैं। 9/11 की घटना के बाद से अब तक इनकी तरफ से पश्चिमी मुल्कों में कई जगहों पर हमले हुए हैं। इससे इनकी सक्रितया की बात स्पष्ट हो जाती है।

(c) अमेरिकी सेना ने पूरे विश्व में गिरफ्तारियाँ की। अक्सर गिरफ्तार लोगों को अलग-अलग देशों में भेजा गया और उन्हें खुफिया जेलखानों में बंदी बनाकर रखा गया। क्यूबा के निकट अमेरिकी नौसेना का एक ठिकाना ग्वांतानामो वे में है। कुछ बंदियों को वहाँ रखा गया। इस जगह रखे गये बंदियों को न तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की सुरक्षा प्राप्त है और न ही अपने देश या अमेरिका के कानूनों की। संयुक्त राष्ट्रसंघ के प्रतिनिधियों तक को इन बंदियों से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।

प्रश्न 12.
नेपाल के लोग अपने देश में लोकतंत्र को बहाल करने में कैसे सफल हुए ?
उत्तर:
नेपाल में लोकतंत्र की बहाली (Establishment of democracy in Nepal)-
1. नेपाल अतीत में एक हिन्दू-राज्य था फिर आधुनिक काल में कई सालों तक यहाँ संवैधानिक राजतंत्र रहा। संवैधानिक राजतंत्र के दौर में नेपाल की राजनीतिक पार्टियाँ और आम जनता एक ज्यादा खुले और उत्तरदायी शासन की आवाज उठाती रही, लेकिन राजा ने सेना की सहायता से शासन पर पूरा नियंत्रण कर लिया और नेपाल में लोकतंत्र की राह अवरुद्ध हो गई।

2. लोकतंत्र-समर्थक मजबूत आंदोलन की चपेट में आकर राजा ने 1990 में नए लोकतांत्रिक संविधान की माँग मान ली, लेकिन नेपाल में लोकतांत्रिक सरकारों का कार्यकाल बहुत छोटा और समस्याओं से भरा रहा। 1990 के दशक में नेपाल के माओवादी नेपाल के अनेक हिस्सों में अपना प्रभाव जमाने में कामयाब हुए। माओवादी, राजा और सत्ताधारी अभिजन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करना चाहते थे। इस वजह से राजा की सेना और माओवादी गुरिल्लों के बीच हिंसक लड़ाई छिड़ गई।

3. कुछ समय एक राजा की सेना, लोकतंत्र-समर्थकों और माओवादियों के बीच त्रिकोणीय संघर्ष हुआ। 2002 में राजा ने संसद को भंग कर दिया और सरकार को गिरा दिया। इस तरह नेपाल में जो भी थोड़ा-बहुत लोकतंत्र था उसे राजा ने खत्म कर दिया।

4. अप्रैल 2006 में यहाँ देशव्यापी लोकतंत्र-समर्थक प्रदर्शन हुए। संघर्षरत लोकतंत्र-समर्थक शक्तियों ने अपनी पहली बड़ी जीत हासिल की जब राजा ज्ञानेन्द्र ने बाध्य होकर संसद को बहाल किया। इसे अप्रैल 2002 में भंग कर दिया गया था। मोटे तौर पर अहिंसक रहे इस प्रतिरोध का नेतृत्व सात दलों के गठबंधन (सेवन पार्टी अलाएंस), माओवादी तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया।

5. नेपाल में लोकतंत्र की आमद अभी मुकम्मल नहीं हुई है। फिलहाल, नेपाल अपने इतिहास के एक अद्वितीय दौर से गुजर रहा है क्योंकि वहाँ संविधान-सभा के गठन की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। यह संविधान-सभा नेपाल का संविधान लिखेगी। नेपाल में कुछ लोग अब भी मानते हैं कि अलंकारिक अर्थों में राजा का पद कायम रखना जरूरी है ताकि नेपाल अपने अतीत से जुड़ा रहे। माओवादी समूहों ने सशस्त्र संघर्ष की राह छोड़ देने की बात मान ली है।

माओवादी चाहते हैं कि संविधान में मूलगामी सामाजिक, आर्थिक पुनर्रचना के कार्यक्रमों को शामिल किया जाए। सात दलों के गठबंधन में शामिल हरेक दल को यह बात स्वीकार हो-ऐसा नहीं लगता। माओवादी और कछ अन्य राजनीतिक समूह भारत की सरकार और नेपाल के भविष्य में भारतीय सरकार की भूमिका को लेकर बहुत आशंकित है। 2017 में नेपाल में आम चुनाव के बाद वहाँ वामपंथी सरकार काम कर रही है।

प्रश्न 13.
‘बांग्लादेश में लोकतंत्र’ विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
बांग्लादेश में लोकतंत्र (Democracy in Bangladesh):
1. (a) पृष्ठभूमि (Background)- 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था। अंग्रेजी राज के समय के बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान का यह क्षेत्र बना था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने समुचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी की मांग भी उठायी।

(b) पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। उन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की। शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली आवामी लीग को 1970 के चुनावों पूर्वी पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इंकार कर दिया।

(c) शेख मुजीबुर को गिरफ्तार कर लिया गया। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के जन-आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए। भारत के सामने इन शरणार्थियों को सँभालने की समस्या आ खड़ी हुई।

2. भारत का समर्थन (Support of India)- भारत की सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आजादी की माँग का समर्थन किया और उन्हें वित्तीय और सैन्य सहायता दी। इसके परिणामस्वरूप 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध की समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण तथा एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई। बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। बहरहाल, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन प्रणाली को मान्यता मिली। शेख मुजीबुर ने अपनी पार्टी आवामी लीग को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई।

3. सैनिक विद्रोह ( 1975) अन्ततः लोकतंत्र की पुनः स्थापना (Military Revolt (1975) and at less democracy was re-established)- (a) 1975 के अगस्त में सेना ने उनके खिलाफ बगावत कर दिया और इस नाटकीय तथा त्रासद घटनाक्रम में शेख मुजीबुर सेना के हाथों मारे गए। नये सैनिक-शासन जियाऊर्रहमान ने अपनी बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी और 1979 के चुनाव में विजयी रहे। जियाऊर्रहमान की हत्या हुई और लेफ्टिनेंट जनरल एच. एम. इरशाद के नेतृत्व में बांग्लादेश में एक और सैनिक-शासन ने बागडोर संभाला।

(b) बांग्लादेश की जनता जल्दी ही लोकतंत्र के समर्थन में उठ खड़ी हुई। आंदोलन में छात्र आगे-आगे चल रहे थे। बाध्य होकर जनरल इरशाद ने एक हद तक राजनीतिक गतिविधियों की छूट दी। इसके बाद के समय में जनरल इरशाद पाँच सालों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। जनता के व्यापक विरोध के आगे झुकते हुए लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद को राष्ट्रपति का पद 1990 में छोड़ना पड़ा। 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र कायम है। 2016 में भारत और बंगलादेश में एक समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग में वृद्धि हुई।

प्रश्न 14.
नक्सलवादी आंदोलन पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
1. नक्सलवादी आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical background of Naxalite Movement)- पश्चिम बंगाल के पर्वतीय जिले दार्जिलिंग के नक्सलवादी पुलिस थाने के इलाके में 1967 में एक किसान विद्रोह उठ खड़ा हुआ। इस विद्रोह की अगुआई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के स्थानीय कैडर के लोग कर रहे थे। नक्सलवादी पुलिस थाने से शुरू होने वाला यह आंदोलन भारत के कई राज्यों में फैल गया। इस आंदोलन को नक्सलवादी आंदोलन के रूप में जाना जाता है।

2. सी.पी.आई. से अलग होना और गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाना (To be seperated from CPM and adopt guerilla Warfare strategy)- 1969 में नक्सलवादी सी.पी.आई. (एम) से अलग हो गए और उन्होंने सीपीआई (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) नाम से एक नई पार्टी चारु मजदूमदार के नेतृत्व में बनायी। इस पार्टी की दलील थी कि भारत में लोकतंत्र एक छलावा है। इस पार्टी ने क्रांति करने के लिए गुरिल्ला युद्ध की रणनीति अपनायी।

3. कार्यक्रम (Programme)- नक्सलवादी आंदोलन ने धनी भूस्वामियों से जमीन बलपूर्वक छीनकर गरीब और भूमिहीन लोगों को दी। इस आंदोलन के समर्थक अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हिंसक साधनों के इस्तेमाल के पक्ष में दलील देते थे।

4. नक्सलवाद का प्रसार और प्रभाव (Spread and Impact of Naxalism)- 1970 के दशक वर्षों में 9 राज्यों के लगभग 75 जिले नक्सलवादी हिंसा से प्रभावित हैं। इनमें अधिकतर बहुत पिछड़े इलाके हैं यहाँ आदिवासियों की जनसंख्या ज्यादा है। इन इलाकों के नक्सलवाद की पृष्ठभूमि पर अनेक फिल्में भी बनी हैं। उपन्यास पर आधारित ‘हजार चौरासी की माँ’ ऐसी ही में बँटाई या पट्टे पर खेतीबाड़ी करने वाले तथा छोटे किसान ऊपज में हिस्से, पट्टे की सुनिश्चित – कामकाजी महिलाओं वाले परिवार में दहेज की प्रथा का चलन कम है।

प्रश्न 15.
क्या आप शराब विरोधी आंदोलन को महिला-आंदोलन का दर्जा देंगे? कारण बताएँ।
उत्तर:
हाँ हम शराब विरोधी आंदोलन को महिला आंदोलन का दर्जा देंगे। क्योंकि-
(a) यह आंदोलन दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में ताड़ी-विरोधी आंदोलन महिलाओं का एक स्वतः स्फूत आंदोलन था ये महिलाएँ अपने आस-पड़ोस में मदिरा की बिक्री पर पाबंदी की माँग कर रही थी। वर्ष 1992 के सितंबर और अक्टूबर माह से ग्रामीण महिलाओं ने शराब के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी थी। यह लड़ाई माफिया और सरकार दोनों के खिलाफ थी। इस आंदोलन ने ऐसा रूप धारण किया कि इसे राज्य में ताड़ी-विरोधी आंदोलन के रूप में जाना गया।

(b) आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के एक दूर-दराज के गाँव दूबरगंटा में 1990 के शुरूआती दौर में महिलाओं के बीच प्रौढ़-साक्षरता कार्यक्रम चलाया गया जिसमें महिलाओं ने बड़ी संख्या में पंजीकरण कराया। कक्षाओं में महिलाएँ घर के पुरुषों द्वारा देशी शराब, ताड़ी आदि पीने की शिकायतें करती थीं। ग्रामीणों को शराब की गहरी लत लग चुकी थी। इसके चलते वे शारीरिक और मानसिक रूप से भी कमजोर हो गए थे। शराबखोरी से क्षेत्र की ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो रही थी। शराब की खपत बढ़ने से कर्ज का बोझ बढ़ा। पुरुष अपने काम से लगातार गैर-हाजिर रहने लगे। शराब के ठेकेदार ताड़ी व्यापार एक एकाधिकार बनाये रखने के लिए अपराध में में व्यस्त थे। शराबखोरी से सबसे ज्यादा दिक्कत महिलाओं को रही थी।

इससे परिवार की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। परिवार में तनाव और मारपीट का माहौल बनने लगा। नेल्लोर में महिलाएँ ताड़ी के खिलाफ आगे आई और उन्होंने शराब की दुकानों को बंद कराने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। यह खबर तेजी से फैली और करीब 5000 गाँवों की महिलाओं ने आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। प्रतिबंध-संबंधी एक प्रस्ताव को पास कर इसे जिला कलेक्टर को भेजा गया। नेल्लोर जिले में ताड़ी की नीलामी 17 बार रद्द हुई। नेल्लोर जिले का यह आंदोलन ध रे-धीरे पूरे राज्य में फैल गया।

(c) ताड़ी विरोधी आंदोलन से अपने जीवन से जुड़ी सामाजिक समस्याएँ जैसे-दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, घर से बाहर यौन उत्पीड़न, समाज में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, परिवार में लैंगिक भेदभाव आदि के विरुद्ध उन्होंने व्यापक जागरूकता पैदा की।

(d) महिलाओं ने पंचायतों, विधान सभाओं, संसद ने अपने लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण और सरकार के सभी विभागों जैसे-वायुयान, पुलिस सेवाएँ आदि में समान अवसरों और पदोन्नति की बात की। उन्होंने न केवल धरने दिए, प्रदर्शन किए, जुलूस निकाले बल्कि विभिन्न मुद्दों पर महिला आयोग, राष्ट्रीय आयोग और लोकतांत्रिक मंचों से भी आवाज उठाई।

(e) संविधान में ’73वाँ व 74वाँ संशोधन हुआ। स्थानीय निकायों में महिलाओं के स्थान आरक्षित हो गए। विधानसभाओं और संसद में आरक्षण के लिए विधेयक, अभी पारित नहीं हुए हैं। अनेक राज्यों में शराब बंदी लागू कर दी है और महिलाओं के विरुद्ध अत्याचारों पर कठोर दंड दिए जाने की व्यवस्था की गई है।

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 7

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Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 7

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा देश सार्क का सदस्य है ?
(a) मलेशिया
(b) इण्डोनेशिया
(c) जापान
(d) भारत
उत्तर:
(d) भारत

प्रश्न 2.
विश्व महिला दिवस कब मनाया जाता है ?
(a) 10 दिसम्बर को
(b) 8 मार्च को
(c) 1 दिसम्बर को
(d) 2 अक्टूबर को
उत्तर:
(b) 8 मार्च को

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन एक देश नहीं है ?
(a) म्यांमार
(b) भारत
(c) हांगकांग
(d) चीन
उत्तर:
(c) हांगकांग

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन एक सोवियत संघ के विखण्डन का परिणाम नहीं है ?
(a) सी० आई० एस० का जन्म
(b) अमेरिका एवं सोवियत संघ के बीच वैचारिक युद्ध की समाप्ति
(c) शीत युद्ध की समाप्ति
(d) मध्य-पूर्व में संकट
उत्तर:
(d) मध्य-पूर्व में संकट

प्रश्न 5.
‘यूरो’ क्या है ?
(a) सार्क देशों की मुद्रा
(b) पाकिस्तान की नई मुद्रा
(c) यूरोपीय संघ के सदस्यों की मुद्रा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) यूरोपीय संघ के सदस्यों की मुद्रा

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में कौन-सा एक मानवाधिकार संगठन है ?
(a) इन्टरपोल
(b) एमनेस्टी इण्टरनेशनल
(c) डब्ल्यू० एच० ओ०
(d) यूनीसेफ
उत्तर:
(b) एमनेस्टी इण्टरनेशनल

प्रश्न 7.
विश्व श्रम संगठन का मुख्यालय अवस्थित है
(a) जिनेवा में
(b) पेरिस में
(c) दिल्ली में
(d) लंदन में
उत्तर:
(a) जिनेवा में

प्रश्न 8.
किस आन्दोलन ने आन्ध्र क्षेत्र के लिए स्वायत्त प्रदेश की माँग की थी ?
(a) विशाल आन्ध्र आन्दोलन
(b) तेलंगाना आन्दोलन
(c) रेड रिबन आन्दोलन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) तेलंगाना आन्दोलन

प्रश्न 9.
राज्य पुनर्गठन आयोग के विषय में कौन-सा कथन असत्य है ?
(a) इसकी स्थापना 1953 में की गई थी
(b) इसके रिपोर्ट के आधार पर 1966 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया
(c) इसने भाषायी राज्यों के निर्माण के लिए सिफारिश की थी
(d) सभी कथन असत्य हैं
उत्तर:
(d) सभी कथन असत्य हैं

प्रश्न 10.
किसने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया ?
(a) गाँधी
(b) नेहरू
(c) जिन्ना
(d) पटेल
उत्तर:
(c) जिन्ना

प्रश्न 11.
विश्व एड्स दिवस कब मनाया जाता है ?
(a) 1 दिसम्बर
(b) 10 दिसम्बर
(c) 24 दिसम्बर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) 1 दिसम्बर

प्रश्न 12.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना कब हुई ?
(a) 1985 ई०
(b) 1885 ई०
(c) 1905 ई०
(d) 1906 ई०
उत्तर:
(b) 1885 ई०

प्रश्न 13.
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई ?
(a) 1953 ई०
(b) 1955 ई०
(c) 1956 ई०
(d) 1958 ई०
उत्तर:
(c) 1956 ई०

प्रश्न 14.
स्वतंत्रता के बाद भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी ?
(a) एनी बेसेन्ट
(b) इन्दिरा गाँधी
(c) सोनिया गाँधी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) एनी बेसेन्ट

प्रश्न 15.
भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1972 में कौन-सी समझौता पर हस्ताक्षर हुआ ?
(a) फरक्का समझौता
(b) आगरा समझौता
(c) शिमला समझौता
(d) लाहौर समझौता
उत्तर:
(c) शिमला समझौता

प्रश्न 16.
सबका साथ, सबका विकास का नाग किसने दिया था।
(a) अखिलेश यादव
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) अमित शाह
(d) राहुल गाँधी
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 17.
संविधान में 42वाँ संशोधन कब हुआ ?
(a) 1971
(b) 1976
(c) 1977
(d) 1978
उत्तर:
(b) 1976

प्रश्न 18.
काँग्रेस पार्टी का केन्द्र में प्रभुत्व कब तक रहा ?
(a) 1974-1977 तक
(b) 1947-1970 तक
(c) 1947-1960 तक
(d) 1947-1990 तक
उत्तर:
(a) 1974-1977 तक

प्रश्न 19.
भारतीय विदेशी नीति के विकास में प्रथम प्राथमिकता किससे संबंधित थी ?
(a) उद्योग
(b) स्वतंत्रता
(c) राष्ट्रीय हित
(d) कृषि
उत्तर:
(c) राष्ट्रीय हित

प्रश्न 20.
संविधान के किस संशोधन द्वारा शक्तियों के केन्द्रीयकरण का प्रयास किया गया ?
(a) 24वाँ संविधान संशोधन
(b) 42वाँ संविधान संशोधन
(c) 44वाँ संविधान संशोधन
(d) 52वाँ संविधान संशोधन
उत्तर:
(b) 42वाँ संविधान संशोधन

प्रश्न 21.
1977 में पहली बार केन्द्र में गैर-काँग्रेसी सरकार बनवाने का मुख्य श्रेय किन्हें दिया जाता है ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) मोरारजी देसाई
(c) जगजीवन राम
(d) कृपलानी
उत्तर:
(a) जय प्रकाश नारायण

प्रश्न 22.
जल, जंगल और जमीन के नारे से संबंधित आंदोलन कौन-सा है ?
(a) नर्मदा बचाओ आंदोलन
(b) चिपको आंदोलन
(c) नवराल आंदोलन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) चिपको आंदोलन

प्रश्न 23.
मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का निर्णय किस प्रधानमंत्री के काल में हुआ?
(a) चौधरी चरण सिंह
(b) वी० पी० सिंह
(c) एच० डी० देवगौड़ा
(d) चन्द्रशेखर
उत्तर:
(b) वी० पी० सिंह

प्रश्न 24.
पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण के संदर्भ में न्यायपालिका का निर्देश क्या है ?
(a) आरक्षण नहीं दिया जाए
(b) आरक्षण को समय सीमा में बांधा जाए
(c) क्रीमी लेयर से ऊपर वाले को आरक्षण न दिए जाए
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) क्रीमी लेयर से ऊपर वाले को आरक्षण न दिए जाए

प्रश्न 25.
विधायिका में महिलाओं को कितना प्रतिशत आरक्षण देने हेतु विधेयक पर लम्बे समय से संसद में निर्णय नहीं हो पाया है ?
(a) 50 प्रतिशत
(b) 33 प्रतिशत
(c) 40 प्रतिशत
(d) 25 प्रतिशत
उत्तर:
(b) 33 प्रतिशत

प्रश्न 26.
राष्ट्रीय महिला आयोग के गठन का निर्णय कब लिया गया ?
(a) 1975
(b) 1990
(c) 1985
(d) 2005
उत्तर:
(b) 1990

प्रश्न 27.
वैश्वीकरण के चलते विश्व का स्वरूप हो गया है
(a) वैश्विक गाँव
(b) मुक्त बाजार
(c) अंतर्राष्ट्रीय विचार मंच
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वैश्विक गाँव

प्रश्न 28.
वर्ल्ड सोसल फोरम की प्रथम बैठक निम्नलिखित में किस देश में हुई ?
(a) ब्राजील
(b) भारत
(c) पाकिस्तान
(d) नैरोबी
उत्तर:
(a) ब्राजील

प्रश्न 29.
भारत ने लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्रता पायी
(a) 15 अगस्त, 1947
(b) 26 जनवरी, 1950
(c) 15 अगस्त, 1948
(d) 26 जनवरी, 1951
उत्तर:
(a) 15 अगस्त, 1947

प्रश्न 30.
सोवियत गुट से सबसे पहले कौन-सा देश अलग हुआ ?
(a) पोलैंड
(b) युगोस्लाविया
(c) पूर्वी जर्मनी
(d) अल्बानिया
उत्तर:
(c) पूर्वी जर्मनी

प्रश्न 31.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम एशियाई महासचिव कौन थे?
(a) बान की मून
(b) यू थांट
(c) कोफी अन्नान
(d) बुतरस घाली
उत्तर:
(b) यू थांट

प्रश्न 32.
एम० एस० स्वामीनाथन का संबंध था
(a) श्वेत क्रांति से
(b) नीली क्रांति से
(c) आपरेशन फ्लड
(d) हरित क्रांति से
उत्तर:
(d) हरित क्रांति से

प्रश्न 33.
भारतीय विदेश नीति का आधार स्तम्भ है
(a) विश्वशांति
(b) शांति सह अस्तित्व
(c) पंचशील
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विश्वशांति

प्रश्न 34.
निम्नलिखित में से किस देश ने ‘खुले द्वार की नीति’ अपनाई ?
(a) भारत
(b) ब्रिटेन
(c) पाकिस्तान
(d) चीन
उत्तर:
(d) चीन

प्रश्न 35.
निम्नलिखित में कौन-सा एक मानवाधिकार संगठन है ?
(a) इन्टरपोल
(b) एमनेस्टी इण्टरनेशनल
(c) डब्ल्यू० एच० ओ०
(d) यूनीसेफ
उत्तर:
(b) एमनेस्टी इण्टरनेशनल

प्रश्न 36.
विश्व श्रम संगठन का मुख्यालय अवस्थित है।
(a) जेनेवा में
(b) पेरिस में
(c) दिल्ली में
(d) लंदन में
उत्तर:
(b) पेरिस में

प्रश्न 37.
किसने ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त’ का प्रतिपादन किया ?
(a) गांधी
(b) नेहरू
(c) जिन्ना
(d) पटेल
उत्तर:
(c) जिन्ना

प्रश्न 38.
1989 में किसने राष्ट्रीय नार्वा सरकार का नेतृत्व किया ?
(a) वी० पी० सिंह
(b) इंदिरा गांधी
(c) देवीलाल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वी० पी० सिंह

प्रश्न 39.
1967 ई० के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं ?
(a) काँग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई
(b) काँग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी
(c) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई
(d) काँग्रेस केंद्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा
उत्तर:
(c) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई

प्रश्न 40.
1971 ई० के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-कौन से बयान सही हैं ?
(a) इस चुनाव से पहले से ही काँग्रेस विभाजन के कारण इंदिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गई
(b) इस चुनाव में चुनावी मुकाबला काँग्रेस (आई) और जनता दल में था
(c) इस चुनाव के दौरान इंदिरा गाँधी ने पूरी तरह प्रिवी पर्स की समाप्ति संबंधी अपने विचार को बिल्कुल त्याग दिया था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इस चुनाव से पहले से ही काँग्रेस विभाजन के कारण इंदिरा गाँधी की सरकार अल्पमत में आ गई

प्रश्न 41.
संविधान ने किस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया है ?
(a) अंग्रेजी
(b) हिन्दी
(c) उर्दू
(d) हिन्दुस्तानी
उत्तर:
(b) हिन्दी

प्रश्न 42.
शीत युद्ध के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(a) यह संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और उसके साथी देशों के बीच की एक प्रतिस्पर्धा थी
(b) यह महाशक्तियों के बीच विचारधाराओं को लेकर एक युद्ध था
(c) शीत युद्ध ने हथियारों की होड़ शुरू की
(d) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे
उत्तर:
(d) अमेरिका और सोवियत संघ सीधे युद्ध में शामिल थे

प्रश्न 43.
न्यूयार्क स्थित वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों का हमला हुआ था
(a) सितंबर 2001
(b) सितंबर 2003
(c) सितंबर 2005
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सितंबर 2001

प्रश्न 44.
निम्न में से कौन-सा कथन गुट-निरपेक्ष आंदोलन के उद्देश्यों पर प्रकाश नहीं डालता.?
(a) उपनिवेशवाद से मुक्त हुए देशों को स्वतंत्र नीति अपनाने में समर्थ बनाना
(b) किसी भी सैन्य संगठन में शामिल होने से इंकार करना
(c) वैश्विक मामलों में आर्थिक तटस्थता की नीति अपनाना
(d) वैश्विक आर्थिक असमानता की समाप्ति पर ध्यान केन्द्रित करना
उत्तर:
(c) वैश्विक मामलों में आर्थिक तटस्थता की नीति अपनाना

प्रश्न 45.
भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करता है ?
(a) इसे भेदभाव पूर्ण मानता है
(b) इससे गुटनिरपेक्षता की नीति प्रभावित होगी
(c) भारत परमाणु बमों का प्रसार चाहता है
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इसे भेदभाव पूर्ण मानता है

प्रश्न 46.
किस राजनीतिक दल में 1975 में आपातकालीन घोषणा का स्वागत किया था?
(a) जनसंघ
(b) अकाली दल
(c) डी० एम० के०
(d) सी० पी० आई
उत्तर:
(d) सी० पी० आई

प्रश्न 47.
परम्परागत सुरक्षा नीति के कौन-कौन से तत्त्व हैं ?
(a) शक्ति संतुलन
(b) गठबंधन की राजनीति
(c) सामूहिक सुरक्षा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 48.
भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था
(a) 25 जून, 1975 में
(b) 6 अप्रैल, 1980 में
(c) 25 जुलाई, 1978 में
(d) 6 मार्च, 1982 में
उत्तर:
(a) 25 जून, 1975 में

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 6

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Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 6

प्रश्न 1.
सोवियत संघ ने कौन-सा सैनिक गुट बनाया ?
(a) नाटो
(b) सीटो
(c) सेन्टो
(d) वारसा सन्धि
उत्तर:
(d) वारसा सन्धि

प्रश्न 2.
1955 के वारसा सन्धि में कौन-सा देश सदस्य नहीं था ?
(a) सोवियत संघ
(b) पोलैण्ड
(c) पश्चिमी जर्मनी
(d) पूर्वी जर्मनी
उत्तर:
(d) पूर्वी जर्मनी

प्रश्न 3.
1917 में रूस में समाजवादी राज्य की स्थापना किसने की ?
(a) कार्ल मार्क्स
(b) फ्रेडरिक एंजिल्स
(c) लेनिन
(d) स्टालिन
उत्तर:
(c) लेनिन

प्रश्न 4.
परमाणु अप्रसार सन्धि पर किस राज्य ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं ?
(a) ईरान
(b) उत्तरी कोरिया
(c) भारत
(d) चीन
उत्तर:
(c) भारत

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय पंचायत किस देश की संसद है ?
(a) बांग्लादेश
(b) भूटान
(c) नेपाल
(d) पाकिस्तान
उत्तर:
(c) नेपाल

प्रश्न 6.
यू० एन० ओ० निःशस्त्रीकरण आयोग कब बना?
(a) 1945
(b) 1952
(c) 1960
(d) 1965
उत्तर:
(b) 1952

प्रश्न 7.
पर्यावरण सुरक्षा के लिए सबसे पहला अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन कहाँ हुआ?
(a) रियो डी जेनेरियो
(b) क्योटो
(c) स्टॉकहोम
(d) न्यूयार्क
उत्तर:
(a) रियो डी जेनेरियो

प्रश्न 8.
कौन भारतीय व्यक्ति भारत का प्रथम गर्वनर जनरल था?
(a) सी० आर० दास
(b) सी० राजगोपालाचारी
(c) पं० जवाहर लाल नेहरू
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) सी० राजगोपालाचारी

प्रश्न 9.
किस देश ने सुरक्षा परिषद में निषेधाधिकार का सर्वाधिक बार प्रयोग किया ?
(a) यू० एस० ए०
(b) फ्रांस
(c) रूस
(d) चीन
उत्तर:
(c) रूस

प्रश्न 10.
योजना आयोग को भंग कर कौन-सा आयोग बना ?
(a) नीति आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) राज्य वित्त आयोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) नीति आयोग

प्रश्न 11.
भारत के दूसरे राष्ट्रपति कौन थे ?
(a) जाकिर हुसैन
(b) राधाकृष्णन
(c) शंकर दयाल शर्मा
(d) आर० वेंकटरमन
उत्तर:
(b) राधाकृष्णन

प्रश्न 12.
भारत में हरित क्रांति के जनक कौन हैं ?
(a) एम० एस० स्वामीनाथन
(b) यू० आर० राव
(c) कुरियन
(d) बी० जी० देशमुख
उत्तर:
(a) एम० एस० स्वामीनाथन

प्रश्न 13.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना किसने की थी ?
(a) मायावती
(b) कांशी राम
(c) अम्बेडकर
(d) जगजीवन राम
उत्तर:
(b) कांशी राम

प्रश्न 14.
केन्द्र में जनता पार्टी किस वर्ष सत्ता में आई ?
(a) 1975
(b) 1976
(c) 1977
(d) 1978
उत्तर:
(c) 1977

प्रश्न 15.
ए० आई० ए० डी० एम० के किस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी है ?
(a) असम
(b) मिजोरम
(c) तमिलनाडु
(d) केरल
उत्तर:
(c) तमिलनाडु

प्रश्न 16.
ब्रेजनेव किस देश के राष्ट्रपति थे?
(a) अमेरिका
(b) इंग्लैण्ड
(c) सोवियत संघ
(d) चीन
उत्तर:
(c) सोवियत संघ

प्रश्न 17.
जर्मनी का एकीकरण कब हुआ ?
(a) 1988 ई०
(b) 1989 ई०
(c) 1990 ई०
(d) 1991 ई०
उत्तर:
(d) 1991 ई०

प्रश्न 18.
लाल बहादुर शास्त्री का निधन किस वर्ष हुआ ?
(a) 1965 ई०
(b) 1966 ई०
(c) 1967 ई०
(d) 1968 ई०
उत्तर:
(b) 1966 ई०

प्रश्न 19.
भारत एवं बांग्लादेश के बीच फरक्का समझौता पर हस्ताक्षर कब हुआ?
(a) 1967 में
(b) 1971 में
(c) 1996 में
(d) 2000 में
उत्तर:
(b) 1971 में

प्रश्न 20.
1992 में किस शहर में पृथ्वी सम्मेलन हुआ था?
(a) क्योटो
(b) रियो दे जानीरो
(c) न्यूयार्क
(d) लंदन
उत्तर:
(b) रियो दे जानीरो

प्रश्न 21.
भारत एवं चीन के बीच पंचशील समझौता पर हस्ताक्षर किस वर्ष हुआ था ?
(a) 1950 में
(b) 1952 में
(c) 1953 में
(d) 1954 में
उत्तर:
(d) 1954 में

प्रश्न 22.
1955 में किस शहर में एफ्रो-एशियाई सम्मेलन हुआ था?
(a) जकार्ता में
(b) बांदुंग में
(c) सिंगापुर में
(d) हांगकांग में
उत्तर:
(b) बांदुंग में

प्रश्न 23.
किस संविधान संशोधन के द्वारा पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया?
(a) 42वाँ
(b) 44वाँ
(c) 65वाँ
(d) 73वाँ
उत्तर:
(d) 73वाँ

प्रश्न 24.
11 सितम्बर, 2001 को निम्नलिखित में से कौन-सी घटना घटी?
(a) भारतीय संसद पर आतंकवादी हमला
(b) होटल ताज पर आतंकवादी हमला
(c) विश्व व्यापार केन्द्र पर आतंकवादी हमला
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विश्व व्यापार केन्द्र पर आतंकवादी हमला

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन एक गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के जनक नहीं थे?
(a) सुकर्णों
(b) अराफात
(c) मार्शल टीटो
(d) पंडित नेहरू
उत्तर:
(b) अराफात

प्रश्न 26.
अनुसूचित जाति संघ की स्थापना किसने की थी?
(a) मायावती
(b) बी० आर० अम्बेडकर
(c) पंडित नेहरू
(d) काशीराम
उत्तर:
(b) बी० आर० अम्बेडकर

प्रश्न 27.
किस देश ने सुरक्षा परिषद् में सर्वाधिक बार निषेधाधिकार का प्रयोग किया ?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) चीन
(c) रूस
(d) फ्रांस
उत्तर:
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश नाटो का सदस्य है ?
(a) चीन
(b) रूस
(c) भारत
(d) ब्रिटेन
उत्तर:
(d) ब्रिटेन

प्रश्न 29.
2010 के बिहार विधान सभा चुनावों में किस राजनीतिक दल ने प्रथम स्थान प्राप्त किया?
(a) जनता दल (यू)
(b) कांग्रेस
(c) राष्ट्रीय जनता दल
(d) भारतीय जनता पार्टी
उत्तर:
(a) जनता दल (यू)

प्रश्न 30.
मैकमोहन रेखा क्या है ?
(a) भारत एवं पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा
(b) चीन एवं पाकिस्तान के बीच की सीमा रेखा
(c) भारत एवं चीन के बीच की सीमा रेखा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 31.
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कौन थे?
(a) राजेन्द्र प्रसाद
(b) सरदार पटेल
(c) बी० आर० अम्बेडकर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 32.
1975 में राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह का नेतृत्व किसने किया था ?
(a) जयप्रकाश नारायण
(b) बी० पी० सिंह
(c) मोरारजी देसाई
(d) चन्द्रशेखर
उत्तर:
(a) जयप्रकाश नारायण

प्रश्न 33.
‘बाम्बे प्लान’ के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है ?
(a) यह भारत के आर्थिक भविष्य का ब्लू-प्रिंट था
(b) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था
(c) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी
(d) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया था।
उत्तर:
(b) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था

प्रश्न 34.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था ?
(a) नियोजन
(b) उदारीकरण
(c) सहकारी खेती
(d) आत्मनिर्भरता
उत्तर:
(b) उदारीकरण

प्रश्न 35.
1971 ई० के ‘ग्रैंड अलायंस’ के बारे में कौन-सा कथन ठीक है ?
(a) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-काँग्रेसी दलों ने किया था
(b) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था
(c) इसका गठन सभी गैर-काँग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-काँग्रेसी दलों ने किया था

प्रश्न 36.
‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ का सूत्र किस पंचवर्षीय योजना में अपनाया गया ?
(a) तीसरी पंचवर्षीय योजना
(b) चौथी पंचवर्षीय योजना
(c) पाँचवीं पंचवर्षीय योजना
(d) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(b) चौथी पंचवर्षीय योजना

प्रश्न 37.
किसने कहा है सम्प्रदायवाद फासीवाद का रूप है ?
(a) महात्मा गाँधी
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) सरदार पटेल
(d) बी० आर० अम्बेदकर
उत्तर:
(b) जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 38.
गठबंधन सरकारों के आने से संसदीय व्यवस्था में क्या प्रमुख खामियाँ आयी हैं ?
(a) राष्ट्रपति की कमजोर स्थिति
(b) प्रधानमंत्री की सबल स्थिति
(c) सामूहिक उत्तरदायित्व को अवहेलना
(d) क्षेत्रीय दलों का उत्कर्ष
उत्तर:
(c) सामूहिक उत्तरदायित्व को अवहेलना

प्रश्न 39.
अखिल भारतीय किसान काँग्रेस की स्थापना किसने की ?
(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) राजेन्द्र प्रसाद
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(d) चौधरी चरण सिंह
उत्तर:
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल

प्रश्न 40.
किसने कहा कि महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने का अधिकार नहीं है?
(a) प्लेटो
(b) अरस्तू
(c) मिल
(d) मार्क्स
उत्तर:
(b) अरस्तू

प्रश्न 41.
यह किस आंदोलन का नारा है “निजी सार्वजनिक है, सार्वजनिक निजी है” ?
(a) किसानों के आंदोलन
(b) महिलाओं के आंदोलन
(c) मजदूरों के आंदोलन
(d) पर्यावरण की सुरक्षा के आंदोलन
उत्तर:
(b) महिलाओं के आंदोलन

प्रश्न 42.
भारत में प्रतिबद्ध नौकरशाही तथा प्रतिबद्ध न्यायपालिका की धारणा को किसने जन्म दिया?
(a) इंदिरा गांधी
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) मोरारजी देसाई
(d) जवाहरलाल नेहरू,
उत्तर:
(a) इंदिरा गांधी

प्रश्न 43.
निम्नलिखित में से कौन-सा आपातकालीन घोषणा के संदर्भ में मेल नहीं खाता है ?
(a) सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान
(b) 1974 का रेल हड़ताल
(c) नक्सलवादी आंदोलन
(d) शाह आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष
उत्तर:
(c) नक्सलवादी आंदोलन

प्रश्न 44.
किस वर्ष स्टॉकहोम में मानव पर्यावरण का संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ था ?
(a) 1967
(b) 1971
(c) 1975
(d) 1972
उत्तर:
(d) 1972

प्रश्न 45.
सोवियत संघ के विभाजन के बाद रूस का प्रथम निर्वाचन राष्ट्रपति कौन था ?
(a) ब्रेजनेव
(b) येल्तसीन
(c) स्टालीन
(d) गोर्बाचेब
उत्तर:
(b) येल्तसीन

प्रश्न 46.
नीचे के देशों में आसियान का सदस्य कौन नहीं है ?
(a) इण्डोनेशिया
(b) फिलीपिन्स
(c) सिंगापुर
(d) श्रीलंका
उत्तर:
(d) श्रीलंका

प्रश्न 47.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के संस्थापक कौन थे ?
(a) लियाकत अली
(b) ए० ओ० ह्यूम
(c) एस० एन० बनर्जी
(d) जी० के० गोखले
उत्तर:
(b) ए० ओ० ह्यूम

प्रश्न 48.
दस सूत्री कार्यक्रम किसके द्वारा शुरू किया गया ?
(a) पं० जवाहरलाल नेहरू
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) इंदिरा गाँधी
(d) राजीव गाँधी
उत्तर:
(c) इंदिरा गाँधी

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता के बाद भारत जैसे नए राष्ट्र की कौन-सी चुनौतियाँ थी ?
उत्तर:
1947 के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के चलते भारत का विभाजन हुआ और भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्यों की स्थापना हुई। देश विभाजन के चलते देश की राष्ट्रीय एकता काफी प्रभावित हुई। देश का वातावरण खून-खराबा, लूटपाट तथा सांप्रदायिक दंगों से विषाक्त हो गया। वैसे तो स्वतंत्र भारत के समक्ष अनेक समस्याएँ और चुनौतियाँ थीं, लेकिन प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन चुनौतियाँ थीं, जिनपर काबू पाए बिना हम देश की एकता को बचाने में कामयाब नहीं रह सकते थे-

  • राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने की चुनौती,
  • देश में लोकतंत्र बहाल करने की चुनौती तथा
  • संपूर्ण समाज के विकास और भलाई को सुनिश्चित करने की चुनौती।

प्रश्न 2.
अखिल भारतीय काँग्रेस का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
अखिल भारतीय काँग्रेस का जन्म 1880 के दशक के मध्य में 1885 में अंग्रेज विद्वान लॉर्ड ह्यूम के नेतृत्व में हुआ। उस समय काँग्रेस नवशिक्षित, कामकाजी तथा व्यावसायिक वर्गों के एक हित-समूह मात्र एक सीमित थी। धीरे-धीरे काँग्रेस के क्षेत्र और दायरे में विस्तार हुआ और 20वीं सदी के आते-आते इसने जन आंदोलन का रूप धारण कर लिया। बाद में जब काँग्रेस का जनाधार व्यापक हुआ तब तक राजनीतिक व्यवस्था में इसका दबदबा स्थापित हुआ। प्रारंभ में काँग्रेस पर प्रभाव अंग्रेजी जाननेवालों, अगड़ी जातियों, उच्च मध्य वर्गों तथा शहरी अभिजनों का था। लेकिन बाद में जब काँग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ किया इसके सामाजिक आधार का विस्तार होता गया।

इसने परस्पर-विरोधी हितों के विभिन्न समूहों को एक साथ जोड़कर किसानों, उद्योगपतियों, शहर और गाँव के निवासियों, मजदूरों और मालिकों, मध्य, निम्न और उच्च वर्ग तथा सभी जातियों के लोगों को जगह दिया। धीरे-धीरे जब काँग्रेस के नेतृत्व वर्ग का विस्तार हुआ तब इसके अंतर्गत ऐसे लोगों को भी स्थान मिला जो अबतक खेती-गृहस्थी तथा गाँवों-देहातों तक ही अपने को सीमित रखते थे। स्वतंत्रता के समय तक काँग्रेस का स्वरूप एक सतरंगे इंद्रधनुष जैसा हो गया था, जिसके अंतर्गत सामाजिक गठबंधन का शक्ल स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रही थी। काँग्रेस के इस सतरंगे सामाजिक गठबंधन में वर्ग, जाति, धर्म, भाषा तथा अन्य हितों का प्रतिनिधित्व भारत की अनेकता में एकता के दर्शन का बोध करा रहा था।

प्रश्न 3.
जनता पार्टी के निर्माण का वर्णन करें।
उत्तर:
1977 के लोकसभा चुनावों में भाग लेनेवाले विपक्ष के गठजोड़ के फलस्वरूप औपचारिक रूप से 1 मई, 1977 को जनता पार्टी का जन्म हुआ। जनता पार्टी एक ओर देश की राजनीति में भिन्न-भिन्न दलों द्वारा एक दलीय प्रभुत्व के विरुद्ध चलाए गए संघर्ष के आधार पर बनाई गई थी। दूसरी ओर, जनता पार्टी अनेक विविध प्रकार के समूहों द्वारा बनाई गई थी जिनके नेता पहले काँग्रेसी थे तथा जो काँग्रेस से गुटबंदी के कारण बाहर आ गए थे। जनता पार्टी ऐसे समूहों का समूह था जिनकी भिन्न-भिन्न राजनीतिक पृष्ठभूमि थी तथा जिनके नेताओं का अलग-अलग वर्गों से उदय हुआ था। ऐसे समूह का सामजिक आधार भिन्न था तथा उनकी विचारधाराएँ अलग-अलग थीं। इन सबका जनता पार्टी के कार्यक्रम तथा उसकी कार्य शैली पर अत्यधिक प्रभाव रहा है।

प्रश्न 4.
क्षेत्रीय दलों के अभ्युदय के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर:
1967 के चुनाव के बाद क्षेत्रीय दलों की भूमिका बढ़ने लगी। 1985 में लोकसभा में विपक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल एक क्षेत्रीय दल तेलगु देशम था। 1989 के बाद गठबंधन “जनीति के विकास के साथ क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रीय राजनीति में विशिष्ट भूमिका हो गई। तेलगु देशम तथा शिवसेना जैसे क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधि को लोकसभा का अध्यक्ष पद तक प्राप्त हुआ। क्षेत्रीय दलों के अभ्युदय का मुख्य कारण राष्ट्रीय दलों का कमजोर पड़ना है। राष्ट्रीय दलों द्वारा क्षेत्रीय समस्या तथा पहचान की उपेक्षा का आरोप लगाया जाता है। इसी क्षेत्रीय भावना को उभारकर क्षेत्रीय दल अपनी स्थिति सुदृढ़ करते हैं। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को भारत में नहीं अपनाये जाने की परम्परा भी क्षेत्रीय दलों के विकास के कारण हैं।

प्रश्न 5.
महिला सशक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
महिला सशक्तिकरण का सीधा अर्थ है कि महिलाएँ इतनी सशक्त हो सकें कि वे सामाजिक, आर्थिक तथा राष्ट्रीय दायित्वों के निर्वाह की क्षमता प्राप्त कर लें। कोई भी व्यवस्था अपनी आधी आबादी की उपेक्षा कर या भागीदार न बना कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ नहीं कर सकता है। इस प्रकार महिला सशक्तिकरण का व्यापक अर्थ यह है कि महिलाओं की क्षमता का उपयोग राष्ट्र निर्माण के संदर्भ में किया जाए। अर्थात् महिला सशक्तिकरण एक सामाजिक और राष्ट्रीय आवश्यकता है। महिलाओं को पुरुषों के समान क्षमतावान, सक्रिय सहभागी तथा निर्णय निर्माता बनाना है। इसके लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं के लिए शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक बाधाएँ दूर की जाएँ।

प्रश्न 6.
श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है ? उनकी भूमिका पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
1. श्रीलंका के जातीय संघर्ष में भारतीय मूल के तमिल प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। उनके संगठन लिट्टे की हिंसात्मक कार्यवाहियों तथा आंदोलन के कारण श्रीलंका को जातीय संघर्ष का सामना करना पड़ा जिसकी माँग है कि श्रीलंका के एक क्षेत्र को अलग राष्ट्र बनाया जाये।

2. श्रीलंका की राजनीति पर बहुसंख्यक सिंहली समुदाय का दबदबा रहा है। तथा तमिल सरकार एवं नेताओं पर उनके (तमिलों के) हितों की उपेक्षा करने का दोषारोपण करते रहे हैं।

3. तमिल अल्पसंख्यक हैं। ये लोग भारत छोड़कर श्रीलंका आ बसी एक बड़ी तमिल आबादी के खिलाफ हैं। तमिलों का बसना श्रीलंका के आजाद होने के बाद भी जारी रहा। सिंहली राष्ट्रवादियों का मानना था कि श्रीलंका में तमिलों के साथ कोई रियायत’ नहीं बरती जानी चाहिए क्योंकि श्रीलंका सिर्फ सिंहली लोगों का है।

4. तमिलों के प्रति उपेक्षा भरे बर्ताव से एक उग्र तमिल राष्ट्रवाद की आवाज बुलंद हुई। 1983 के बाद से उग्र तमिल संगठन ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑव तमिल ईलम’ (लिट्टे) श्रीलंकाई सेना के साथ सशस्त्र संघर्ष कर रहा है। इसने ‘तमिल ईलम’ यानी श्रीलंका के तमिलों के लिए एक अलग देश की माँग की है। श्रीलंका के उत्तर पूर्वी हिस्से पर लिट्टे का नियंत्रण है।

प्रश्न 7.
ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है और इसी तरह दो ऐसे मसलों के नाम बताएँ जिन पर असहमति है।
उत्तर:
(a) भारत-बांग्लादेश के बीच दो आपसी सहयोग के मसले- भारत और बांग्लादेश कई मसलों पर सहयोग करते हैं पिछले दस वर्षों के दौरान दोनों के बीच आर्थिक संबंध ज्यादा बेहतर हुए हैं बांग्लादेश भारत के पूरब चलो’ की नीति का हिस्सा है। इस नीति के अंतर्गत म्यांमार के जरिए दक्षिण-पूर्व एशिया से संपर्क की बात है। आपदा प्रबंधन और पर्यावरण के मसले पर भी दोनों देशों ने निरंतर सहयोग किया है। इस बात के भी प्रयास किए जा रहे हैं कि साझे खतरों को पहचान कर तथा एक-दूसरे की जरूरतों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता बरतकर सहयोग के दायरे को बढ़ाया जाए।

(b) भारत-बांग्लादेश के बीच आपसी असहमति के मसले- बांग्लादेश और भारत के बीच गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी के जल में हिस्सेदारी सहित कई मुद्दों पर मतभेद हैं। भारतीय सरकारों के बांग्लादेश से नाखुश होने के कारणों में भारत में अवैध आप्रवास पर ढाका के खंडन, भारत-विरोधी इस्लामी कट्टरपंथी जमातों को समर्थन, भारतीय सेना को पूर्वोत्तर भारत में जाने के लिए अपने इलाके से रास्ता देने से बांग्लादेश के इंकार, ढाका के भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने के फैसले तथा म्यांमार को बांग्लादेशी इलाके से होकर भारत को प्राकृतिक गैस निर्यात न करने देने जैसे मसले शामिल हैं।

बांग्लादेश की सरकार का मानना है कि भारतीय सरकार नदी-जल में हिस्सेदारी के सवाल पर क्षेत्रीय दादा की तरह बर्ताव करती है। इसके अलावा भारत की सरकार पर चटगाँव पर्वतीय क्षेत्र में विद्रोह को हवा देने; बांग्लादेश के प्राकृतिक गैस में सेंधमारी करने और व्यापार में बेईमानी बरतने के भी आरोप हैं। रोटय्या शरणार्थियों का मामला भी दोनों देशों के आपसी असहमति का कारण है।

प्रश्न 8.
भारत और नेपाल के मध्य संबंधों पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत-नेपाल के संबंध-
1. भारत और नेपाल के बीच बड़े मधुर संबंध हैं और पूरी दुनिया में ऐसे संबंधों के इक्के-दुक्के उदाहरण ही मिलते हैं। दोनों देशों के बीच एक संधि हुई है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट (पारपत्र) और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं। खास संबंधों के बावजूद दोनों देश के बीच अतीत में व्यापार से संबंधित मनमुटाव पैदा हुए हैं।

2. नेपाल की चीन के साथ दोस्ती को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है। नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती। इससे भी भारत नाखुश है।

3. भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ नेपाल के चल रहे नक्सल आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती हैं क्योंकि भारत में उत्तर बिहार से लेकर दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश तक विभिन्न प्रांतों में नक्सलवादी समूहों का उभार हुआ है। नेपाल में बहुत से लोग यह सोचते हैं कि भारत की सरकार नेपाल के अंदरूनी मामले में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पनबिजली पर आँख गड़ाए हुए है।

4. चारों तरफ से जमीन से घिरे नेपाल को लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समुद्र तक पहुंचने से रोकता है। बहरहाल भारत-नेपाल के संबंध एकदम मजबूत और शांतिपूर्ण हैं। विभेदों के बावजूद दोनों देश व्यापार, वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं। नेपाल में लोकतंत्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद बंधी है।

प्रश्न 9.
तथ्य दीजिए कि पर्यावरण से जुड़े सरोकार 1960 के दशक के बाद से राजनैतिक चरित्र ग्रहण कर सके।
उत्तर:
पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लंबा इतिहास है लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता ने 1960 के दशक के बाद से राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया। वैश्विक मामलों से सरोकार रखनेवाले एक विद्वत् समूह ‘क्लब आव रोम’ ने 1992 में लिमिट्स टू ग्रोथ’ शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के आलोक में प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के संदेश को बड़ी खूबी से बताती है।

प्रश्न 10.
रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए ?
अथवा, रियो सम्मेलन का आयोजन क्यों और कहाँ हुआ था ? इससे जुड़ी कुछ विशेषताएँ भी लिखिए।
उत्तर:
1. उद्देश्य एवं स्थान- 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन, ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन कहा जाता है।

2. विशेषताएँ- (i) इस सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयं सेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला।

(ii) इस सम्मेलन मे पाँच साल पहले (1987) अवर कॉमन फ्यूचर’ शीर्षक बर्टलैंड रिपोर्ट छपी थी। रिपोर्ट में चेताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे। विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की माँग ज्यादा प्रबल है और रिपोर्ट में इसी हवाले से चेतावनी दी गई थी।

(iii) रियो-सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश यानी उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानी दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग अजेंडे के पैरोकार हैं। उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत की छे और वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) को लेकर थी। दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित थे।

(iv) रियो-सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन जैव-विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए । इसमें ‘एजेंडा-21’ के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए लेकिन इसके बाद भी आपसी अंतर और कठिनाइयाँ बनी रहीं।

(v) सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे इसे ‘टिकाऊ विकास’ का तरीका कहा गया लेकिन समस्या यह थी कि ‘टिकाऊ विकास’ पर अमल कैसे किया जाएगा। कुछ आलोचकों का कहना है कि ‘एजेंड-21’ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है।

प्रश्न 11.
विश्व की ‘साझी विरासत’ का क्या अर्थ है ? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है ?
उत्तर:
(i) विश्व की साझी विरासत का अर्थ- साझी संपदा वह संसाधन है जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का हक होता है। यह साझा चूल्हा, साझा चारागाह, साझा मैदान साझा कुआँ या नदी कुछ भी हो सकता है। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें ‘वैश्विक संपदा’ या ‘मानवता की साझी विरासत’ कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं।

(ii) दोहन और प्रदूषण-
1. ‘वैश्विक संपदा’ की सुरक्षा के सवाल पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कायम करना टेढ़ी खीर है। इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे अंटार्कटिका संधि (1959), मांट्रियल न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1991) हो चुके हैं। पारिस्थितिकी से जुड़े हर मसले के साथ एक बड़ी समस्या यह जुड़ी है कि अनुष्ट वैज्ञानिक साक्ष्यों और समय-सीमा को लेकर मतभेद पैदा होते हैं। ऐसे में एक सर्व-सामान्य पर्यावरणीय एजेंडा पर सहमति कायम करना मुश्किल होता है।

2. इस अर्थ में 1980 के दशक के मध्य में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज एक आँख खोल देनेवाली घटना है।

3. ठीक इसी तरह वैश्विक संपदा के रूप में बारी अंतरिक्ष के इतिहास से भी पता चलता है कि इस क्षेत्र में प्रबंधन पर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच मौजूद असमानता का असर पड़ा है। धरती के वायुमंडल और समुद्री सतह के समान यहाँ भी महत्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिक विकास का है यह एक जरूरी बात है क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष में जो दोहन-कार्य हो रहे हैं उनके फायदे न तो मौजूदा पीढ़ी में सबके लिए बराबर हैं और न आगे की पीढ़ियों के लिए।

प्रश्न 12.
विदेशी संबंध के विषय में संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत अनुच्छेद 51 में क्या कहा है। संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बढ़ावे’ के लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत के हवाले (संदर्भ से) कहा गया है कि राज्य-

  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का,
  • राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का,
  • संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और
  • अंतर्राष्ट्रीय विवादों को पारस्परिक बातचीत द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।

प्रश्न 13.
प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ, कब हुआ? इसकी कुछ विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े शहर बांडुग में 1955 में हुआ।
विशेषताएँ (Features)-

  • आमतौर पर इसे बांडुग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
  • इस सम्मेलन में गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों ने इंडोनेशिया से नस्लवाद खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद का विरोध किया।

प्रश्न 14.
लाल बहादुर शास्त्री के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में हुआ। उन्होंने 1930 ई० से स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी की और उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्री रहे। उन्होंने काँग्रेस पार्टी के महासचिव का पदभार संभाला। वे 1951-56 तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में मंत्री पद पर रहे। इसी दौरान रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने रेलमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। 1957-64 ई० के बीच भी वे मंत्री पद पर रहे। उन्होंने जय-जवान, जय किसान का मशहूर नारा दिया था।

प्रश्न 15.
1977 के चुनाव के बाद प्रथम बार केन्द्र में विपक्षी दल की सरकार बनी इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर:
स्वंतत्रता प्राप्ति के बाद भारत में कांग्रेस पार्टी ने सरकार का निर्माण किया और सत्तारूढ़ दल के रूप में 30 वर्षों तक केन्द्र में कांग्रेस का ही शासन चलता रहा। इसका कारण यह था कि भारत में संगठित और शक्तिशाली कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए एक सशक्त विरोधी दल का अभाव था। 25 जून, 1975 को सत्तारुढ़ इंदिरा सरकार द्वारा देश में आपात्काल की उद्घोषणा की गई और प्रायः सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को गिरफ्तार या नजरबंद कर लिया गया।

जनता पार्टी की स्थापना आपात्कालीन स्थिति के दौरान ही हो चुकी थी, लेकिन इसकी विधिवत स्थापना 1 मई, 1977 को हुई जब जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय लोकदल, ‘संगठन कांग्रेस, प्रजातांत्रिक कांग्रेस इत्यादि ने अपने पुराने स्वरूप को त्याग दिया। इन दलों ने जनता पार्टी में अपनी आस्था व्यक्त की। कृपलानी तथा लोकनायक जयप्रकाश नारायण का आशीर्वाद पाकर केन्द्र में जनता पार्टी ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व में 28 जुलाई, 1979 तक अपना शासन किया। जनता पार्टी की सरकार बनने के जिम्मेवार कारण निम्नलिखित थे-

1. जयप्रकाश के नेतृत्व में बिहार आंदोलन,
2. इलाहाबाद हाई कोर्ट का इंदिरा गांधी के विरुद्ध निर्णय,
3. 25 जून, 1975 को राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा।

  • जयप्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, राजनारायण, लालकृष्ण आडवानी, जॉर्ज फर्नांडीस जैसे बड़े नेताओं की गिरफ्तारी,
  • नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध, परिवार नियोजन संबधी ज्यादतियाँ,
  • रेडियो, समाचार-पत्र और दूरदर्शन पर प्रतिबंध,
  • न्यायपालिका की स्वतंत्रता की समाप्ति,
  • संजय गांधी की तानाशाही।

4. 42वाँ सांविधानिक संशोधन।

प्रश्न 16.
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र था। उस पर समस्त विश्व के नेतृत्व का उत्तरदायित्व था। दूसरा शक्तिशाली देश सोवियत रूस था जो अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी क्रांति का कार्य करता था। पश्चिमी यूरोप के देश शक्तिशून्य हो चुके थे। अफ्रीका और एशिया के देशों में आर्थिक दरिद्रता छाई हुई थी। इन देशों में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए अमेरिका ने अपनी विदेश नीति को साम्यवाद के प्रसार की रोक पर आधारित बनाया।

प्रश्न 17.
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों या उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. संक्षिप्त परिचय (A brief Introduction)- लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) का जन्म 1902 में हुआ था। वे गाँधीवादी विचारधारा के साथ-साथ समाजवाद तथा मार्क्सवाद से प्रभावित थे। वस्तुतः वे युवावस्था में मार्क्सवादी थे। उन्होंने स्वराज्य के संघर्ष के दिनों में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी एवं कालांतर में सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। वे इस दल के महासचिव (general secretary) के पक्षधर रहे।

2. प्रमुख कार्य एवं उपलब्धियाँ (Main works and achievements)- सन् 1942 में गाँधीजी द्वारा छेड़े भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के महानायक बन गए। उन्हें स्वतंत्रता के उपरांत जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया। उन्होंने विनोबा भावे के भूआंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उन्हें कई बार देश के राष्ट्रपति तथा नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा गया लेकिन उनहोंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वे निस्वार्थी महान् नेता थे। उन्होंने 1955 में सक्रिय राजनीति छोड़ दी। वे गाँधीवादी होकर भूदान आंदोलन में बहुत ही सक्रिय हो गए। वे वस्तुतः लोक नायक थे। उन्होंने नागा विद्रोहियों से सरकार की ओर से सुलह की बातचीत की। उन्होंने कश्मीर में शांति प्रयास किए।

उन्होंने चंबल (घाटी) के डकैतों से सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कराया। उन्होंने सन् 1970 के बाद लाए गए बिहार आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। वे अधिकांश विरोधी राजनीतिक दलों को एक मंच पर इंदिरा गाँधी द्वारा लगाई गई (जून 1975) की आपातकाल के घोर विरोधी के प्रतीक बन गए थे। उन्होंने जनता पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई। सन् 1979 में उनका निधन हो गया।

प्रश्न 18.
आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?
उत्तर:
आंध्र प्रदेश में शराब-विरोधी आंदोलन द्वारा चलाए गए जिन गंभीर मुद्दों की तरफ ध्यान खींचा (Issue and item attention drawn by anti-liquor movement launched in Andhra Pradesh)- ताड़ी-विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था- ‘ताड़ी की बिक्री बंद करो।’ लेकिन इस साधारण नारे ने क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरे प्रभावित किया।

(ii) ताड़ी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच एक गहरा नाता बन गया था। राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से काफी राजस्व प्राप्ति होती थी इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रही थी।

(ii) स्थानीय महिलाओं के समूहों ने इस जटिल मुद्दे को अपने आंदोलन में उठाना शुरू किया। वे घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुले तौर पर चर्चा करने लगीं। आंदोलन ने पहली बार महिलाओं को घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दों पर बोलने का मौका दिया।

(iv) ताड़ी-विरोधी आंदोलन महिला आन्दोलन, का एक हिस्सा बन गया। इससे पहले घरेलू हिंसा दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात पूरे देश पर लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खासा जटिल है।।

(v) आठवें दशक के दौरान महिला आंदोलन परिवार के अंदर और उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केंद्रित रहा। इन समूहों ने दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम चलाई और लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित व्यक्तिगत एवं संपत्ति कानूनों की माँग की।

(vi) इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा।

(vii) नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगा था। आपको ज्ञात ही होगा कि संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया है।

प्रश्न 19.
“ऑपरेशन विजय” का वर्णन कीजिए तथा उसका महत्त्व बताइए।
उत्तर:
पुर्तगालियों ने जब किसी भी तरह से भारतीय की प्रार्थना की, आपसी बातचीत को गोवा को छोडने के लिए नहीं माना और उसने गलतफहमी में राष्ट्रवादियों और देशप्रेमियों पर हमले करने शुरू कर दिए। सैंकड़ों लोगों को पुर्तगाली पुलिस ने जब अपना निशाना बनाया तो भारत ने गोवा की आजादी के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ (Operation Vijay) नामक सैनिक कार्यवाही की ताकि गोवा के साथ-साथ गोवा और दमन दीव को अत्याचारी शासन से छुड़ाया जा सके।

ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही 17-18 दिसंबर, 1961 को शुरू की गई। इस कार्यवाही के कमांडर जनरल जे. एन. चौधरी थे। दोपहर के 2 बजकर 25 मिनट पर 19 दिसंबर, 1961 को ‘ऑपरेशन विजय’ नामक कार्यवाही समाप्त हो गई।

यह कार्यवाही भारतीय स्वतंत्रता को पूर्ण करने वाली कार्यवाही थी। गोवा, दमन, दीव हवेली आदि में भारत का तिरंगा फहराया गया। निःसंदेह गोवा की स्वतंत्रता ने भारतीयों का स्वाभिमान बढ़ाया और उन्हें सुशोभित किया। वे भारत के अंग बन गए। भारत की भूमि से विदेशियों की अनाधिकृत उपस्थिति और वर्चस्व पूर्णतया समाप्त हो गया।

प्रश्न 20.
गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा सन् 1987 में किस तरह प्राप्त हुआ ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
दिसंबर 1961 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला गोवा एवं भारत संघ में शामिल हुए गोवा संघ प्रदेश में शीघ्र एक और समस्या उठ खड़ी हुई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व में एक तबके ने माँग रखी कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि यह मराठी भाषी क्षेत्र है। बहरहाल, बहुत से गोवावासी गोवानी पहचान और संस्कृति को स्वतंत्र अहमियत बनाए रखना चाहते थे। कोंकणी भाषा के लिए भी इनके मन में आग्रह था। इस तबके का नेतृत्व यूनाइटेड गोअन पार्टी ने किया। 1967 की जनवरी में केंद्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया।

इसमें गोवा के लोगों से पूछा गया कि आप लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। भारत में यही एकमात्र अवसर था जब किसी मसले पर सरकार ने जनता की इच्छा को जानने के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रक्रिया अपनायी थी। अधिकांश लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डालो। इस तरह गोवा संघशासित प्रदेश बना रहा। अंत: 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य : बना।

प्रश्न 21.
1986 से किन नागरिक मसलों ने भारतीय जनता पार्टी को सुदृढ़ता प्रदान की ?
अथवा, शाहबानों मामला क्या था ? इस पर भारतीय जनता पार्टी ने काँग्रेस विरोधी क्या रुख अपनाया?
उत्तर:
(i) 1986 में ऐसी दो बातें हुईं जो एक हिन्दूवादी पार्टी के रूप में भाजपा की राजनीति के लिहाज से प्रधान हो गईं। इसमें पहली बात 1985 के शाहबानों मामले से जुड़ी है। यह मामला एक 62 वर्षीया तलाकशुदा मुस्लिम महिला शाहबानों का था। उसने अपने भूतपूर्व पति से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में अर्जी दायर की थी।

(ii) सर्वोच्च अदालत ने शाहबानों के पक्ष में फैसला सुनाया। पुरातनपंथी मुसलमानों ने अदालत के इस फैसले को अपने ‘पर्सनल लॉ’ में हस्तक्षेप माना। कुछ मुस्लिम नेताओं की माँग पर सरकार ने मुस्लिम महिला (तलाक से जुड़े अधिकारों) अधिनियम (1986) पास किया। इस अधिनियम के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया गया।

(iii) सरकार के इस कदम का कई महिला संगठन, मुस्लिम महिलाओं की जमात तथा अधिकांश बुद्धिजीवियों ने विरोध किया। भाजपा ने काँग्रेस सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे अल्पसंख्यक समुदाय को दी गई अनावश्यक रियायत तथा तुष्टिकरण’ करार दिया।

प्रश्न 22.
वी० डी० सावरकर कौन था ? उन्होंने हिंदुत्व के महत्त्व की किन शब्दों में व्याख्या की?
उत्तर:
1. परिचय (Introduction)- वी० डी० सावरकर भारत के महान् स्वतंत्रता सेनानी तथा क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश के भीतर और देश के बाहर क्रांतिकारियों से मिलकर देश की आजादी में भाग लिया। 1 जून, 1909 को उन्हीं के एक घनिष्ठ मित्र और साथी मदन लाल धींगड़ा ने लंदन में उस. अंग्रेज अधिकारी (यानी सर विलियम कर्जन) की हत्या कर दी, जो अनेक निर्दोष लोगों की भारत में हत्याओं के लिए जिम्मेवार था वी० डी० सावरकर को कुछ समय बाद (अप्रैल 1910) कैद कर लिया गया और भारत जहाज पर बिठा कर भेज दिया गया। उन्होंने विदेशी सरकार को चकमा देकर जहाज से कूदकर समुद्र पार किया। वह उस समुद्र तट पर पहुँच गए जो उस समय फ्रांसीसियों के कब्जे में था। उन्होंने अपनी पुस्तक में 1857 के विप्लव को प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी।

2. हिंदुत्व और उसकी व्याख्या (Hinduism and its explanation)- (i) ‘हिंदुत्व’ अथवा ‘हिन्दपन’ शब्द को वी० डी० सावरकर ने गढा (coined) था और इसको परिभाषित (defined) करते हुए उन्होंने इसे भारतीय (और उनके शब्दों में हिन्दू) राष्ट्र की बुनियाद (नीव) बताया। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि भारत राष्ट्र का नागरिक वही हो सकता है जो भारतभूमि को न सिर्फ ‘पितृभूमि’ बल्कि अपनी ‘पुण्यभूमि’ भी स्वीकार करे।

(ii) हिंदुत्व के समर्थकों का तर्क है कि मजबूत राष्ट्र सिर्फ स्वीकृत राष्ट्रीय संस्कृति की बुनियाद पर ही बनाया जा सकता है। वे यह भी मानते हैं कि भारत के संदर्भ में राष्ट्रीयता की बुनियाद केवल हिन्दू संस्कृति (जो बहुत उदार एवं जिसकी पाचन शक्ति अद्भुत है) ही हो सकती है।

प्रश्न 23.
कारगिल की लड़ाई पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कारगिल की लड़ाई-
1. 1999 के शुरुआती महीनों में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिद्दीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान सेना की इसमें मिलीभगत भाँप कर भारतीय सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत में आई। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे ‘कारगिल की लड़ाई’ के नाम से जाना जाता है।

2. 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक साल पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।

3. जो भी हो यह लड़ाई सिर्फ कारगिल के क्षेत्र तक की सीमित रही। पाकिस्तान में इस लड़ाई को लेकर बहुत विवाद मचा। कहा गया कि सेना के प्रमुख ने प्रधानमंत्री को इस मामले में अँधेरे में रखा था। इस लड़ाई के तुरंत बाद पाकिस्तान की हुकूमत पर जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुआई में पाकिस्तान सेना ने नियंत्रण कर लिया।

प्रश्न 24.
भारत और विश्व शांति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व में शांति की स्थापना करना है। जवाहर लाल नेहरू ने 1949 में कहा था कि, “भारतीय विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य पंचशील शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, निरस्त्रीकरण, मानव अधिकारों का समर्थन आदि हैं । भारत ने 1947 से 1989 तक विश्व की दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध समाप्त करवाने के लिए हमेशा प्रयत्न किया। उपनिवेशों के स्वतंत्र आंदोलन का समर्थन किया। भारत हमेशा से विश्व शांति के प्रयास करता रहता है।

भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जानेवाली शांति स्थापना के लिए सैनिक कार्यवाही में अपना सहयोग दिया है। भारत ने इस उद्देश्य के लिए कई देशों में अपनी सेनाएँ भेजी हैं। उदाहरण के लिए, 1950 में कोरिया के युद्ध में भारत ने चिकित्सा शिष्टमंडल भेजा था। इसी प्रकार कांगो में (1960-64), साप्रस (1964) मिश्र तथा गाजा में (1956) तथा अन्य राज्यों में भी संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर शांति स्थापना के लिए सैनिक टुकड़ियाँ भेजी हैं।

प्रश्न 25.
‘क्षेत्रीय आकांक्षाओं के प्रति भारत सरकार का नजरिया’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
अथवा, क्षेत्रवाद के प्रति भारत सरकार के दृष्टिकोण पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
क्षेत्रीय आकांक्षाओं अथवा क्षेत्रवाद के प्रति भारत सरकार का नजरिया या दृष्टिकोण (Outlook of Government of India about Regional Aspiration or Regionalism)- भारत ने विविधता के सवाल पर लोकतांत्रिक दृष्टिकोण अपनाया। लोकतंत्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति है और लोकतंत्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र विरोधी नहीं मानता। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक राजनीति में इस बात के पूरे अवसर होते हैं कि विभिन्न दल और समूह क्षेत्रीय पहचान आकांक्षा अथवा किसी खास क्षेत्रीय समस्या का आधार बनाकर लोगों की भावनाओं को नुमाइंदगी करे। इस तरह लोकतांत्रिक राजनीति की प्रक्रिया में क्षेत्रीय आकांक्षाएँ और बलवती होती हैं।

साथ ही लोकतांत्रिक का एक अर्थ यह भी है कि क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाएगा और उन्हें इसमें भागीदारी दी जाएगी। ऐसी व्यवस्था में कभी-कभी तनाव या परेशानियाँ खड़ी हो सकती हैं। कभी ऐसा भी हो सकता है कि राष्ट्रीय एकता के सरोकार क्षेत्रीय आकांक्षाओं और जरूरतों पर भारी पड़े। कोई व्यक्ति ऐसा भी हो सकता है कि हम क्षेत्रीय सरोकारों के कारण राष्ट्र की वृहत्तर आवश्यकताओं से आँखें मूंद लें। जो राष्ट्र चाहते हैं कि विविधताओं का सम्मान हो साथ ही राष्ट्र की एकता भी बनी रहे। वहाँ क्षेत्रों की ताकतें, उनके अधिकार और अलग अस्तित्व के मामले पर राजनीतिक संघर्ष का होना एक आम बात है।

प्रश्न 26.
गुजरात के मुस्लिम विरोधी दंगे, 2002 पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठभूमि (Background)- कहा जाता है गोधरा (गुजरात) रेलवे स्टेशन पर एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी इस हिंसा का तात्कालिक उकसाना बहुत ही हानिकारक और दुखदायी साबित हुआ। अयोध्या (उत्तर प्रदेश) की ओर से आ रही एक रेलगाड़ी की बोगी कार सेवकों से भरी हुई थी और न जाने किस कारण से उसमें आग लग गई।

इस आग की दुर्घटना में 57 व्यक्ति जीवित जलकर मर गए। कुछ लोगों ने यह अफवाह फैला दी कि गोधरा के खड़े रेल के डिब्बे में आग मुसलमानों ने लगायी होगी अथवा लगवाई होगी।

अफवाहें बड़ी खतरनाक और हानिकारक होती है। गोधरा की दुर्घटना से जुड़ी-अफवाह जंगल की आग की तरह संपूर्ण गुजरात में फैल गई। अनेक भागों में मुसलमानों के विरुद्ध बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। हिंसा का यह तांडव लगभग एक महीने तक चलता रहा। लगभग 1100 व्यक्ति इस हिंसा में मारे गए।

मुसलमानों के विरुद्ध हुए दंगों को रोकने के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने पीड़ित भुक्तभोगियों के परिजनों को राहत देने और दोषी दंगाईयों को तुरंत कानून के हवाले करने एवं पर्याप्त दंड देने के लिए कहा गया। आयोग का यह कहना था पुलिस और सरकारी मशीनरी ने अपने राजधर्म का निर्वाह नहीं किया है सरकार ने अनेक लोगों को राहत दी है। अनेक लोगों पर मुकदमें चल रहे हैं लेकिन यह मानना पड़ेगा कि आतंकवाद और साम्प्रदायिकता के कारण दंगे करना या कराना हमारे देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था (System) के किसी भी तरह से अनुकूल नहीं है।

प्रश्न 27.
सामाजिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
इनमें मुख्य रूप से ये अधिकार शामिल हैं-

  • विवाह करने और घर बसाने का अधिकार।
  • कुटुम्ब समाज की प्राथमिक इकाई है, जिसे राज्य और समाज का पूर्ण संरक्षण मिले।
  • शिक्षा का अधिकार-कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी। शिक्षा का लक्ष्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना जगाना है।

प्रश्न 28.
“भारत की विदेश नीति जातिवाद व रंगभेद का विरोध करती है।” स्पष्ट करें।
उत्तर:
जातिवाद व रंगभेद-भारत की विदेश नीति की एक प्रमुख विशेषता जाति भेद वरंगभेद का विरोध है। भारत ने संप ही जातिभेद व रंगभेद का विरोध किया है। यूरोप के श्वेत जातियों ने अन्य जातियों के साथ दुर्व्यवहार किया है। उन्हें हेय समझा है। उन्हें हीन बताकर उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया है। भारत में भी अंग्रेजों ने भारतीयों के साथ बड़े अत्याचार किये थे। भारत ने स्वतंत्र होने के पश्चात् अफ्रीका के अश्वेत लोगों के साथ यूरोप की श्वेत जातियों द्वारा किये जानेवाले भेदभाव का कड़ा विरोध किया।

रोडेशिया (जिम्वाब्बे) तथा दक्षिण अफ्रीका के गोरे शासन की नीतियों का भारत ने खुलकर निरंतर विरोध किया और अफ्रीकी जनता के स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग दिया है। इतना ही नहीं अफ्रीकी देशों में और विशेषत: दक्षिण अफ्रीका में गोरी अल्पसंख्यक सरकार ही अश्वेतों के विरुद्ध रंगभेद नीति के संबंध में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ से कठोर रुख अपनाने का आग्रह किया। भारत के प्रयासों के परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र ने रंगभेद की नीति के विरुद्ध अनेक प्रस्ताव पारित किए हैं।

प्रश्न 29.
संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन के सुधार संबंधी सुझावों को लागू करने में जो कठिनाइयाँ आती हैं उनका आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
(i) यू० एन० ओ० के जो देश अब भी सदस्य नहीं हैं उन्हें सदस्य बनने के लिए राजी किया जाए। चीन, तिब्बत और ताइवान को स्वतंत्र सदस्यता दिये जाने का विरोध करता है जबकि अनेक सदस्य उसका समर्थन करते हैं।

(ii) सभी सदस्यों को एक मत देने का अधिकार होना चाहिए और वह व्यक्तिगत तौर पर गुप्त मतदान के रूप में प्रयोग किया जाना चाहिए। सभी निर्णय महासभा में बहुमत से होने चाहिए। बड़ी शक्तियाँ अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी हेकड़ी या वर्चस्व बनाये रखने के लिए इसकी अनुमति नहीं देती हैं।

(iii) सुरक्षा परिषद में पाँच की बजाय पंद्रह स्थायी सदस्य हों और वीटों का अधिकार समाप्त हो। यह सदस्यता विश्व के प्रमुख 50 राष्ट्रों को क्रमानुसार नम्बर दे दी जानी चाहिए, ऐसा पाँचों स्थायी सदस्य नहीं होने देना चाहते।

(iv) बदले हुए विश्व वातावरण में भारत, जापान, जर्मनी, कनाडा, ब्राजील, दक्षिणी अफ्रीका को स्थायी सदस्यता दी जानी चाहिए।

(v) पर्यावरण की समस्याओं, जनाधिक्य की समस्याओं, आतंकवाद की समस्याओं, परमाणु अस्त्र-शस्त्र को समाप्त करने के मामले में सभी संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को पूरा सहयोग करना चाहिए।

प्रश्न 30.
सामाजिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
इनमें मुख्य रुप से ये अधिकार शामिल हैं-

  • विवाह करने और घर बसाने का अधिकार।
  • कुटुम्ब समाज की प्राथमिक इकाई है, जिसे राज्य और समाज का पूर्ण संरक्षण मिले।
  • शिक्षा का अधिकार-कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी। शिक्षा का लक्ष्यमानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना जगाना है।

प्रश्न 31.
मानव अधिकारों में सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक मनुष्य को समाज में सांस्कृतिक जीवन में मुख्य रूप से भाग लेने, कलाओं का आनंद लेने और वैज्ञानिक प्रगति के फायदों में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है।

घोषणा-पत्र के अंत में यह भी कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति का उस समुदाय के प्रति कर्तव्य है, जिसमें रसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव है” नैतिकता सार्वजनिक व्यवस्था और जनकल्याण की दृष्टि में इन स्वतंत्रताओं के प्रयोग पर मर्यादाएँ लगाई जाएंगी।

प्रश्न 32.
वैश्विक तापवृद्धि विश्व में किस प्रकार खतरा उत्पन्न करता है ?
उत्तर:
वैश्विक ताप वृद्धि विश्व के अनेक भागों में भौगोलिक खतरों को उत्पन्न करता है।

उदाहरण- वैश्विक तापवृद्धि से अगर समुद्रतल 1.5-2.0 मीटर ऊँचा उठता है तो बांग्लादेश का 20 प्रतिशत हिस्सा डूब जाएगा; कमोबेश पूरा मालदीव सागर में समा जाएगा और थाइलैंड की 50 फीसदी आबादी को खतरा पहुँचेगा।

प्रश्न 33.
काका कालेलकर की अध्यक्षता में नियुक्त गठित आयोग संविधान की किसी धारा के अंतर्गत नियुक्त किया गया ? इस आयोग की सिफारिशों को क्यों नहीं स्वीकृत किया गया?
उत्तर:
काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति (Appointment of Kaka Kalelkar Commission)- भारतीय संविधान की धारा 340 (1) के अंतर्गत भारतीय राष्ट्रपति ने काका कालेलकर की अध ध्यक्षता में 1953 में आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन सामाजिक तथा शैक्षणिक दष्टि से पिछड़े वर्गों की स्थिति को सुधारने हेतु और उन कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक दिशा में कदम उठाने हेतु, सुझाव देने हेतु की गई थी।

काका कालेलकर की सिफारिशों को अस्वीकृति (Non-acceptance of suggestion of Kaka Kalelkar Commission)- काका कालेलकर आयोग ने मार्च 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस आयोजन ने 2399 जातियों को पिछड़ी जातियों की श्रेणी में रखा परंतु इस आयोग की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि इस आयोग ने उनके विकास के लिए किसी रियायत की सिफारिश नहीं की थी, क्योंकि कालेलकर स्वयं लोक सेवाओं में किसी भी समुदाय के लिए रियायत के विरुद्ध इस आधार पर था कि ‘सेवाएँ नौकरों के लिए नहीं परंतु समाज के लिए है।’ (Services are not for the servants but for the services of the entire society)

प्रश्न 34.
ज्योतिराव फूले पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ज्योतिराव फूले (1827-1890) : ज्योतिराव गोविंदराव फूले को ज्योतिबा फूले के नाम से जाना जाता था। ये पश्चिमी भारत के एक महान् समाज सुधारक थे। ये निम्न माली जाति से संबंध रखते थे। इनके पूर्वज फूल-मालाओं का व्यापार करते थे। ये बाल्यकाल से ही चिंतनशील थे एवं इनकी शिक्षा स्कॉटिश मिशन स्कूल में हुई थी। जयोतिबा फूले तत्कालीन भारतीय समाज की कुरीतियों को
दूर करने हेतु जीवन भर संघर्ष करते रहे एवं नारी को समाज में उच्च स्थान दिलाने हेतु आजीवन प्रयत्नशील रहे। इनकी 28 नवंबर, 1890 को मृत्यु हो गई।

प्रश्न 35.
महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति 2001 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
2001 में भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक राष्ट्रीय नीति घोषित की। दृप्त नीति के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं :

1. सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं का अपनी पूर्व क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।

2. महिलाओं द्वारा पुरुषों की भाँति राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर भी मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का कानूनी और वास्तविक उपभोग।

3. स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन रोजगार, समान पारिश्रमिक, व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएँ।

4. न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाकर महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन राष्ट्रीय नीति के अनुसार, केंद्रीय तथा राज्य मंत्रालयों को केंद्रीय, राज्य स्तरीय महिला एवं शिशु कल्याण विभागों और राष्ट्रीय एवं राज्य महिला आयोगों के साथ सहभागिता के माध्यम से विचार-विमर्श करके नीति को ठोस कार्यवाही में परिणत करने के लिए समयबद्ध कार्य योजना बनानी होगी।

प्रश्न 36.
किन्हीं पाँच मानव अधिकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र में 20 मानव अधिकारों की सूची सम्मिलित है जिनमें से कुछ महत्वपुर्ण अधिकार निम्नलिखित हैं-

  1. जीवन की सुरक्षा व स्वतंत्रता का अधिकार।
  2. दासता व बंधुआ मजदूरी से स्वतंत्रता का अधिकार।
  3. स्वतंत्र न्यायपालिका से न्याय प्राप्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार।
  4. विवाह करने व पारिवारिक जीवन का अधिकार।
  5. कहीं भी आने-जाने व घूमने फिरने की स्वतंत्रता का अधिकार।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
क्या किसी निश्चित निर्णय के पूर्व आन्तरिक संसाधनों पर ध्यान देना आवश्यक होता है ?
(a) हाँ, जरूरी है
(b) नहीं जरूरी नहीं
(c) बाह्य संसाधनों को जरूरी
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ, जरूरी है

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा व्यावसायिक अवसर की पहचान को प्रभावित करने वाला घटक है ?
(a) आन्तरिक माँग की मात्रा
(b) निर्मित अवसर
(c) पर्यावरण के विद्यमान अवसर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) निर्मित अवसर

प्रश्न 3.
ज्ञान अर्जन प्रक्रिया में शामिल होते हैं
(a) संचालन
(b) मनोभाव
(c) अनुक्रिया
(d) संचालन, मनोभाव एवं अनुक्रिया
उत्तर:
(d) संचालन, मनोभाव एवं अनुक्रिया

प्रश्न 4.
आर्थिक सहायता है
(a) रियायत
(b) बट्टा
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बट्टा

प्रश्न 5.
व्यवसाय का नियामक ढाचा किससे संबंधित होता है ?
(a) व्यवसाय की दिशा
(b) व्यवसाय की मात्रा
(c) व्यवस्थापन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) व्यवस्थापन

प्रश्न 6.
आर्थिक नीतियाँ क्या निर्धारित करती हैं ?
(a) व्यवसाय की दिशा
(b) व्यवसाय की मात्रा
(c) व्यवसाय की दिशा एवं मात्रा
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) व्यवसाय की दिशा एवं मात्रा

प्रश्न 7.
अल्पकालीन पूर्वानुमान कितने माह की अवधि को शामिल करता है ?
(a) 12 माह
(b) 24 माह
(c) 18 माह
(d) 36 माह
उत्तर:
(a) 12 माह

प्रश्न 8.
माँग पूर्वानुमान को निम्न में से किस रूप में जाना जाता है ?
(a) विपणन
(b) बाजार माँग
(c) माँग एवं पूर्ति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सी उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान रखना जरूरी है ?
(a) प्रतियोगिता
(b) उत्पादन लागत
(c) लाभ की सम्भावना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 10.
व्यवहार्यता अध्ययन में निम्न में से किसका अध्ययन किया जाता है ?
(a) लागत
(b) मूल्य
(c) संचालन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 11.
बाजार की माँग को जाना जाता है
(a) माँग की भविष्यवाणी
(b) वास्तविक माँग
(c) पूर्ति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) माँग की भविष्यवाणी

प्रश्न 12.
बाजार में पूर्णता की स्थिति को क्या सृजित करता है जो अंततः बिक्री एवं लाभ में वृद्धि करता है ?
(a) आविष्कार
(b) संवर्द्धन
(c) विपणन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विपणन

प्रश्न 13.
“टैरी” के अनुसार नियोजन के प्रकार हैं
(a) 04
(b) 14
(c) 16
(d) 08
उत्तर:
(a) 04

प्रश्न 14.
परियोजना प्रतिवेदन सारांश है
(a) विश्लेषण का
(b) तथ्यों का
(c) सूचनाओं का
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 15.
परियोजना निम्न से संबंधित नहीं होती
(a) जोखिम
(b) सृजनता
(c) नवप्रवर्तन
(d) कल्पना शक्ति
उत्तर:
(b) सृजनता

प्रश्न 16.
बाजार में पूर्णतः बिक्री एवं लाभ को बढ़ाता है
(a) विपणन
(b) प्रवर्तन
(c) आविष्कार
(d) स्थान
उत्तर:
(b) प्रवर्तन

प्रश्न 17.
उपक्रम स्थापना का क्रियांवयन है
(a) बाजार में प्रवेश
(b) जाँच उत्पादन
(c) भवन निर्माण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 18.
साहसी का कर्तव्य है
(a) मुनाफा वसूली
(b) कर चोरी
(c) पर्यावरण प्रदूषण
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) मुनाफा वसूली

प्रश्न 19.
IDBI किस वर्ष स्थापित की गयी?
(a) 1994
(b) 1954
(c) 1964
(d) 1974
उत्तर:
(c) 1964

प्रश्न 20.
लाभांश है
(a) शुद्ध लाभ
(b) लाभ का नियोजन
(c) संचय कोष
(d) अवितरित लाभ का अंश
उत्तर:
(d) अवितरित लाभ का अंश

प्रश्न 21.
अंतिम रहतिया है
(a) कोष के स्रोत
(b) कोष का प्रयोग
(c) कोष का प्रवाह नहीं
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) कोष के स्रोत

प्रश्न 22.
विपणन व्यय भार है
(a) उद्योग पर
(b) व्यवसायियों पर
(c) उपभोक्ताओं पर
(d) सभी
उत्तर:
(c) उपभोक्ताओं पर

प्रश्न 23.
दीर्घकालीन ऋण पर होता है
(a) स्थिर ब्याज दर
(b) शून्य ब्याज दर
(c) परिवर्तनशील ब्याज दर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थिर ब्याज दर

प्रश्न 24.
निम्न में से कौन-सा अवसर बोध का तत्व है ?
(a) समझ की शक्ति
(b) परिवर्तन पर नजर
(c) नवप्रवर्तनीय गुण
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 25.
बाजार माँग को निम्न में से क्या कहते हैं ?
(a) पूर्ति
(b) वास्तविक माँग
(c) माँग की भविष्यवाणी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) माँग की भविष्यवाणी

प्रश्न 26.
व्यावसायिक अवसर की पहचान करने वाला घटक है
(a) वाह्य सहायता का स्वरूप
(b) निर्यात संभावना
(c) आंतरिक माँग की मात्रा
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 27.
आर्थिक सहायता है
(a) रियायत
(b) बट्टा
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पुनः भुगतान

प्रश्न 28.
निम्न में से कौन-सा अवसर का प्रकार है ?
(a) प्रथम अवसर
(b) निर्मित अवसर
(c) अंतिम अवसर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 29.
उत्पाद चुनाव प्रभावित होता है
(a) तकनीकी ज्ञान द्वारा
(b) बाजार की उपलब्धता द्वारा
(c) प्रतिस्पर्धा की स्थिति द्वारा
(d) उपर्युक्त सभी.
उत्तर:
(b) बाजार की उपलब्धता द्वारा

प्रश्न 30.
अल्पकालीन पूर्वानुमान की अवधि होती है
(a) 24 माह
(b) 15 माह
(c) 12 माह
(d) 6 माह
उत्तर:
(c) 12 माह

प्रश्न 31.
नियोजन है
(a) आवश्यक
(b) आनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 32.
नियोजन किया जाता है
(a) अल्पकालीन
(b) दीर्घकालीन
(c) मध्यकालीन
(d) सभी अवधियों के लिए
उत्तर:
(d) सभी अवधियों के लिए

प्रश्न 33.
एक अच्छी योजना होती है
(a) लक्ष्य अभिमुखी
(b) उद्देश्य अभिमुखी
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उद्देश्य अभिमुखी

प्रश्न 34.
नियोजन होता है
(a) भूतकाल के लिए
(b) भविष्य के लिए
(c) वर्तमान के लिए
(d) सभी के लिए
उत्तर:
(b) भविष्य के लिए

प्रश्न 35.
अंतिम रहतिया है
(a) कोष का प्रवाह नहीं है
(b) कोष के स्रोत
(c) कोष का प्रवाह है
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) कोष के स्रोत

प्रश्न 36.
आदर्श चालू अनुपात होता है
(a) 2 : 1
(b) 1 : 2
(c) 3 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(a) 2 : 1

प्रश्न 37.
कौन-सा संचालन व्यय नहीं है ?
(a) विज्ञापन व्यय
(b) मजदूरी
(c) अपलिखित प्रारंभिक व्यय
(d) किराया
उत्तर:
(c) अपलिखित प्रारंभिक व्यय

प्रश्न 38.
उद्यमी पूँजी विचार कहाँ उत्पन्न हुआ ?
(a) भारत
(b) इंगलैंड
(c) अमेरिका
(d) जापान
उत्तर:
(d) जापान

प्रश्न 39.
जोखिम पूँजी शिलाधार स्थापित किया गया
(a) 1970 ई०
(b) 1975 ई०
(c) 1986 ई०
(d) 1988 ई०
उत्तर:
(b) 1975 ई०

प्रश्न 40.
“प्रबंध एक पेशा है।” यह कथन है
(a) फेयोल
(b) टैरी
(c) रॉबिन्स
(d) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन
उत्तर:
(d) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन

प्रश्न 41.
व्यवसाय के लिए विपणन है
(a) अनिवार्य
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) विलासिता
उत्तर:
(a) अनिवार्य

प्रश्न 42.
लाभांश है
(a) शुद्ध लाभ
(b) संचय कोष
(c) लाभ का नियोजन
(d) हानि दर
उत्तर:
(c) लाभ का नियोजन

प्रश्न 43.
परियोजना प्रतिवेदन सारांश है
(a) तथ्यों का
(b) सूचनाओं का
(c) विश्लेषण का
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 44.
एक सफल उद्यमी में अवश्य ही गुण होना चाहिए
(a) नेतृत्व का
(b) नियंत्रण का
(c) नवप्रवर्तन का
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 45.
प्राप्तकर्ता को डेबिट और प्रदाता को क्रेडिट का नियम लागू होता है
(a) व्यक्तिगत खाता में
(b) वास्तविक खाता में
(c) नाममात्र खाता में
(d) व्यापार खाता में
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत खाता में

प्रश्न 46.
जन निक्षेप साधन है
(a) अल्पकालीन वित्त का
(b) दीर्घकालीन वित्त का
(c) मध्यकालीन वित्त का
(d) सामाजिक वित्त का
उत्तर:
(b) दीर्घकालीन वित्त का

प्रश्न 47.
ब्राण्ड बतलाता है
(a) चिह्न
(b) डिजाइन
(c) नाम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 48.
स्थिर लागत में शामिल रहता है
(a) सामग्री की लागत
(b) श्रम की लागत
(c) शक्ति की लागत
(d) कारखाना की लागत
उत्तर:
(c) शक्ति की लागत

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 5

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Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 5

प्रश्न 1.
गुट निरपेक्षता का अर्थ है
(a) परस्पर विरोधी गुटों में शामिल होना
(b) विश्व के किसी भी गुट में शामिल नहीं होना
(c) विश्व के सभी गुटों में शामिल होना
(d) मौजूदा परस्पर विरोधी गुटों में सामंजस्य बनाए रखना
उत्तर:
(b) विश्व के किसी भी गुट में शामिल नहीं होना

प्रश्न 2.
भारत में लौह पुरुष की संज्ञा किसे दी गई है ?
(a) महात्मा गांधी
(b) पं० जवाहरलाल नेहरू
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल

प्रश्न 3.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?
(a) पं० नेहरू
(b) सरदार पटेल
(c) डॉ० राधाकृष्णन
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

प्रश्न 4.
शिमला समझौता पर 3 जुलाई, 1972 को किसके द्वारा हस्ताक्षर किया गया ?
(a) जुलफिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी
(b) अटल बिहारी वाजपेयी और चीन के प्रधानमंत्री
(c) जवाहरलाल नेहरू और कोसीजीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जुलफिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी

प्रश्न 5.
स्टालिन संविधान कब लागू हुआ ?
(a) 1936
(b) 1924
(c) 1977
(d) 1999
उत्तर:
(a) 1936

प्रश्न 6.
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों का हमला कब हुआ ?
(a) 11 सितंबर, 2001
(b) 11 नवंबर, 2003
(c) 21 जुलाई, 2005
(d) 30 अक्टूबर, 2008
उत्तर:
(a) 11 सितंबर, 2001

प्रश्न 7.
भारत का वायु प्रदूषित नगर है/हैं
(a) मुम्बई
(b) कोलकाता
(c) कानपुर
(d) सभी नगर
उत्तर:
(d) सभी नगर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य है ?
(a) संयुक्त राष्ट्र संघ
(b) नेपाल
(c) बिहार
(d) राष्ट्र संघ
उत्तर:
(b) नेपाल

प्रश्न 9.
छात्र आंदोलन की शुरुआत कहाँ से हुई ?
(a) बिहार
(b) पंजाब
(c) मद्रास
(d) महाराष्ट्र
उत्तर:
(a) बिहार

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा शहर किसी-न-किसी देश की राजधानी नहीं है ?
(a) चेन्नई
(b) बगदाद
(c) तेहरान
(d) डरबन
उत्तर:
(a) चेन्नई

प्रश्न 11.
काँग्रेस के एकदलीय प्रभुत्व कायम करने में निम्न में किस बात का योगदान नहीं था?
(a) ऐतिहासिक विरासत
(b) राजनीतिक विकल्प का अभाव
(c) नायक पूजा के प्रति झुकाव
(d) कानूनी प्रावधान
उत्तर:
(d) कानूनी प्रावधान

प्रश्न 12.
भारत विभाजन के श्रेय किस गवर्नर जनरल को दिया जाता है ?
(a) लॉर्ड वेवेल
(b) लॉर्ड माउण्टबेटेन
(c) लॉर्ड कर्जन
(d) लॉर्ड लिनलिथगो
उत्तर:
(b) लॉर्ड माउण्टबेटेन

प्रश्न 13.
किस देशी रियासत के विरुद्ध भारत सरकार को विलय हेतु बल का प्रयोग करना पड़ा?
(a) जूनागढ़
(b) हैदराबाद
(c) त्रावनकोर
(d) मणिपुर
उत्तर:
(b) हैदराबाद

प्रश्न 14.
1956 में भारतीय राज्यों के पुनर्गठन का आधार क्या बनाया गया ?
(a) भाषा
(b) भौगोलिक क्षेत्र
(c) जाति का धर्म
(d) देशी रियासत की पृष्ठभूमि
उत्तर:
(a) भाषा

प्रश्न 15.
कश्मीर समस्या के संदर्भ में कौन-सा कथन गलत है ?
(a) कश्मीर द्वारा भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया गया
(b) अन्य भारतीय क्षेत्रों की तरह कश्मीर के लोग चुनाव में भाग लेते हैं
(c) कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है
(d) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है
उत्तर:
(d) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है

प्रश्न 16.
इंदिरा गाँधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा कब की थी ?
(a) 18 मई, 1975
(b) 25 जून, 1975
(c) 5 जुलाई, 1975
(d) 10 अगस्त, 1975
उत्तर:
(b) 25 जून, 1975

प्रश्न 17.
समकालीन विश्व-व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(a) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके
(b) अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अमेरिका की चलती है
(c) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल प्रयोग कर रहे हैं
(d) जो देश अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ कठोर दंड देता है
उत्तर:
(a) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके

प्रश्न 18.
पंचशील के पाँच सिद्धांत किसके द्वारा घोषित किए गए थे ?
(a) लालबहादुर शास्त्री
(b) राजीव गाँधी
(c) जवाहरलाल नेहरू
(d) अटल बिहारी वाजपेयी
उत्तर:
(c) जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है ?
(a) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक युद्ध की समाप्ति
(b) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल की उत्पत्ति
(c) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
(d) मध्यपूर्व में संकट
उत्तर:
(c) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में परिवर्तन

प्रश्न 20.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना हुई
(a) 1957 में
(b) 1992 में
(c) 2005 में
(d) 2006 में
उत्तर:
(a) 1957 में

प्रश्न 21.
परंपरागत सुरक्षा नीति के कौन-कौन तत्व हैं ?
(a) शक्ति -संतुलन
(b) गठबंधन की राजनीति
(c) सामूहिक सुरक्षा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में समूचे पर्यावरण को कौन सुरक्षा देता है ?
(a) ओजोन मंडल
(b) वायुमंडल
(c) सौर्यमंडल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ओजोन मंडल

प्रश्न 23.
ताशकंद समझौते के समय सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व कौन नेता कर रहा था ?
(a) स्टालिन
(b) कोसिजिन
(c) पुतीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कोसिजिन

प्रश्न 24.
2003 में अमेरिका ने किस देश पर हमला किया ?
(a) कुवैत
(b) इराक
(c) ईरान
(d) तेहरान
उत्तर:
(b) इराक

प्रश्न 25.
किस देश के प्रभुत्व से एक ध्रुवीयता कायम हुआ ?
(a) रूसी संघ
(b) चीन
(c) फ्रांस
(d) अमेरिका
उत्तर:
(d) अमेरिका

प्रश्न 26.
कौन-सा वर्ष भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाया गया ?
(a) 1954
(b) 1962
(c) 1988
(d) 2006
उत्तर:
(a) 1954

प्रश्न 27.
2014 में भारत-चीन संबंध सुधारने की ओर किस भारतीय प्रधानमंत्री ने पहल की?
(a) मनमोहन सिंह
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) दोनों ने
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 28.
दक्षिण एशिया का कौन-सा देश नस्लीय उग्रवाद से पीड़ित है ?
(a) नेपाल
(b) बांग्लादेश
(c) श्रीलंका
(d) भारत
उत्तर:
(c) श्रीलंका

प्रश्न 29.
किस दक्षिण एशियाई देश में संवैधानिक संकट है ?
(a) पाकिस्तान
(b) बांग्लादेश
(c) भूटान
(d) नेपाल
उत्तर:
(d) नेपाल

प्रश्न 30.
संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा अंग कौन है ?
(a) सुरक्षा परिषद्
(b) महासभा
(c) सचिवालय
(d) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
उत्तर:
(b) महासभा

प्रश्न 31.
विश्व बैंक की स्थापना कब हुई ?
(a) 1946 में
(b) 1947 में
(c) 1948 में
(d) 1949 में
उत्तर:
(a) 1946 में

प्रश्न 32.
विश्व के देशों के बीच व्यापार संबंधों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) विश्व व्यापार संगठन
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) विश्व बैंक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) विश्व व्यापार संगठन

प्रश्न 33.
किस संधि में परमाणु परीक्षण को पूर्णतया वर्जित किया गया है ?
(a) परमाणु अप्रसार
(b) आंशिक परीक्षण प्रतिबंध
(c) व्यापक परीक्षण प्रतिबंध
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) परमाणु अप्रसार

प्रश्न 34.
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई ?
(a) 1945
(b) 1946
(c) 1947
(d) 1948
उत्तर:
(d) 1948

प्रश्न 35.
बच्चों के अधिकारों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) रेड क्रॉस सोसाइटी
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल
(c) यूनिसेफ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल

प्रश्न 36.
उत्तराखंड में किस दल की सरकार है ?
(a) काँग्रेस
(b) भाजपा
(c) समाजवादी दल
(d) आप
उत्तर:
(b) भाजपा

प्रश्न 37.
पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री कौन हैं ?
(a) बेनजीर भुट्टो
(b) नवाज शरीफ
(c) परवेज मुशरफ
(d) इमरान खान
उत्तर:
(d) इमरान खान

प्रश्न 38.
“गैर-काँग्रेसवाद” का नारा किसने दिया ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) मोरारजी देसाई
(c) राम मनोहर लोहिया
(d) राज नारायण
उत्तर:
(c) राम मनोहर लोहिया

प्रश्न 39.
भारत में नई आर्थिक नीति किस वर्ष शुरू की गई ?
(a) 1990
(b) 1991
(c) 1992
(d) 1993
उत्तर:
(b) 1991

प्रश्न 40.
राज्यों के पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
(a) गोविन्द बल्लभ पन्त
(b) के.एम. पन्निकर
(c) पण्डित हृदय नाथ कुंजरू
(d) न्यायमूर्ति फजल अली
उत्तर:
(d) न्यायमूर्ति फजल अली

प्रश्न 41.
भारत ने पहला सफल परमाणु परीक्षण कब किया ?
(a) 1963
(b) 1974
(c) 1980
(d) 1998
उत्तर:
(b) 1974

प्रश्न 42.
किस वर्ष चीन ने भारत पर आक्रमण किया ?
(a) 1962
(b) 1964
(c) 1965
(d) 1966
उत्तर:
(a) 1962

प्रश्न 43.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है ?
(a) अनुच्छेद 352
(b) अनुच्छेद 356
(c) अनुच्छेद 360
(d) अनुच्छेद 368
उत्तर:
(a) अनुच्छेद 352

प्रश्न 44.
विश्व में शान्ति बनाए रखने का दायित्व किस पर है ?
(a) महासभा
(b) सुरक्षा परिषद
(c) आर्थिक व सामाजिक परिषद्
(d) महासचिव
उत्तर:
(b) सुरक्षा परिषद

प्रश्न 45.
मण्डल कमीशन रिपोर्ट की सिफारिशों को किस प्रधानमंत्री ने लागू किया ?
(a) चन्द्रशेखर
(b) मोरार जी देसाई
(c) चरण सिंह
(d) वी० पी० सिंह
उत्तर:
(d) वी० पी० सिंह

प्रश्न 46.
किसे नए सामाजिक आन्दोलन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता?
(a) चिपको आन्दोलन
(b) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(c) टेहरी बाँध आन्दोलन
(d) गृह स्वराज्य आन्दोलन
उत्तर:
(d) गृह स्वराज्य आन्दोलन

प्रश्न 47.
भारतीय जनता पार्टी किस पार्टी का नया नाम है ?
(a) भारतीय जनसंघ
(b) भारतीय क्रान्ति दल
(c) भारतीय लोक दल
(d) भारतीय जनता दल
उत्तर:
(d) भारतीय जनता दल

प्रश्न 48.
भारत में गठबन्धन की सरकार के पहले प्रधानमंत्री कौन थे ?
(a) वी० पी० सिंह
(b) देवगौड़ा
(c) इन्द्रकुमार गुजराल
(d) अटल बिहारी वाजपेयी
उत्तर:
(a) वी० पी० सिंह

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
विश्व बैंक के प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
विश्व बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सदस्य देशों के प्रदेशों के पुनर्निर्माण व विकास में सहायक होना।
  • ऋण व अन्य उपनिवेशों में सहभागिता के आधार पर प्रत्याभूतियाँ देना व उनके विदेशी निजी निवेशकों को प्रोत्साहन देना।
  • विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निवेशों को प्रोत्साहित करना ताकि उत्पादकता, जीवन स्तर व श्रम की दशाएँ ऊँची हो।

प्रश्न 2.
नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या था ?
उत्तर:
(i) लोगों द्वारा 2003 ई० में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है।

(ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बाँध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए।

(iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी माँग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ को जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

(iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती है। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया।

प्रश्न 3.
‘भारत में सिक्किम विलय’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठभूमि- मतलब यह कि तब सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके।

(i) सिक्किम में लोकतंत्र तथा विजयी पार्टी का सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास- एक बड़ा हिस्सा नेपालियो का था| नेपाली मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे-से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदाय के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया। सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम कांग्रेस को भारी विजय मिली। यह पार्टी सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने के पक्ष में थी।

(ii) सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य (प्रांत) बनाया गया- विधान सभा ने पहले भारत के ‘सह-प्रान्त’ बनने की कोशिश की और इसके बाद 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत-संग्रह कराया गया और जनमत-संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तत्काल मान लिया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया। चोग्याल ने इस फैसले को नहीं माना और उसके समर्थकों ने भारत सरकार पर साजिश रचने तथा बल प्रयोग करने का आरोप लगाया। बहरहाल, भारत संघ में सिक्किम के विलय को स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था।

प्रश्न 4.
एकधुवीय व्यवस्था और द्विध्रुवीय व्यवस्था क्या है ?
उत्तर:
एकध्रुवीय व्यवस्था और द्विध्रुवीय व्यवस्था 1991 में सोवियत रूस के बिखर जाने के बाद विश्व की व्यवस्था पूँजीवादी ग्रुप अमेरिका के नेतृत्व में एकध्रुवीय व्यवस्था बन गई है जो आज भी कायम है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो गुटों में विभक्त होकर द्विध्रुवीय व्यवस्था में परिणत हो गया। पूँजीवादी गुटों के देशों का नेतृत्व अमेरिका द्वारा और साम्यवादी देशों का नेतृत्व सोवियत रूस के द्वारा होने लगा।

प्रश्न 5.
वामपंथी दल से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भारतीय राजनीति में कांग्रेस के विरुद्ध साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल को वामदल की संज्ञा दी जाती है। यह दल अपने कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब, दलित, शोषित एवं सर्वहारा दल के हित की रक्षा के लिए यह दल कार्यरत रहता है। यह दल पूँजीपतियों के खिलाफ है। एक लम्बे समय तक पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों के शासन में इसकी भूमिका प्रमुख थी।

प्रश्न 6.
बिमारू राज्यों का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
भारत में वैसे राज्य जो आर्थिक, दृष्टिकोण से पिछड़े हुए हैं। वहाँ पर लोगों में शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, महिलाओं की आर्थिक स्थिति दयनीय है। इसका उदाहरण उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आसाम के समीपवर्ती राज्य एवं बिहार का भी कुछ हिस्सा बिमारू राज्य के श्रेणी में आता है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
जो दल राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीतकर संसद में आता है उसे राष्ट्रीय दल की संज्ञा दी जाती है। इसमें कुल मतदान का कुछ प्रतिशत निर्धारित रहता है। भारत में भाजपा, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, कम्युनिष्ट पार्टी एवं तृणमुल दल राष्ट्रीय दल है।

जो दल क्षेत्रीय स्तर पर या प्रान्तीय स्तर पर जीत प्राप्त कर संसद या विधानमंडल की सदस्यता प्राप्त करता है उसे क्षेत्रीय दल की संज्ञा दी जाती है। बिहार में जनता दल यू, राजद एवं उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा आदि दल क्षेत्रीय दल में आते हैं।

प्रश्न 8.
राज्य और संघशासित राज्य में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
भारत में संघीय प्रणाली को अपनाकर शासन संचालित किया जाता है। संघ एवं राज्य के क्षेत्रों को विभक्त कर शासन चलाया जाता है। राज्य शासन का वास्तविक प्रधान मुख्यमंत्री होता है। जैसे बिहार, यू०पी०, बंगाल आदि राज्य हैं। अभी भारत में 29 राज्य है।

भारत के कुछ क्षेत्रों में संघशासित राज्य है जिसका प्रधान लेफ्टीनेंट गवर्नर जनरल होता है। वह केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है। भारत में संघशासित राज्यों की संख्या 6 है। जिसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूह, दमन, चंडीगढ़ आदि राज्य संघशासित राज्य हैं।

प्रश्न 9.
मोदी का नोटबन्दी प्रोग्राम क्या है ?
उत्तर:
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवम्बर, 2016 के एक घोषणा द्वारा यह कहा कि आज से भारत में 500 और 1000 के पुराने नोट नहीं चलेंगे। मोदी का यह एक क्रान्तिकारी फैसला था। इससे देश में काला धन पर रोक के साथ-साथ आतंकवादी गतिविधियों पर भी लगाम लगाया जा सकता है। किन्तु पुराने नोट भी 31 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों और पोस्टऑफिस में बदला जा सकता है। इतना ही नहीं 31 मार्च 2017 तक भारतीय रिजर्व बैंक में उचित कारण देकर पुराने नोट बदले जायेंगे।

प्रश्न 10.
मोदी का सर्जिकल स्ट्राइक क्या है ?
उत्तर:
पाकिस्तान द्वारा शुरू से लेकर आज तक भारत-पाकिस्तान सीमा पर आतंकवादियों द्वारा भारतीय सीमा में प्रवेश कर निरपराध भारतीयों की हत्या की जा रही है। इतना ही नहीं भारतीय सीमा में घुसकर लगभग 20 भारतीय जवानों को मौत के घाट उतार कर आतंकवादी पाक सीमा में घुस गये। इसी को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री मोदी ने जांबाज भारतीय सैनिकों को पाक में भेजकर सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर पुनः वापस आ गये।

प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवादियों द्वारा 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में 40 सैनिकों को मार दिये जाने के बाद 26 फरवरी, 2019 को सर्जिकल स्ट्राइक II द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकवादियों के ट्रेनिंग सेंटर पर हवाई हमलों द्वारा करीब 300 पाक आतंकवादियों को मारकर भारतीय सैनिक वापस लौट आया।

प्रश्न 11.
सुरक्षा से जुड़े केन्द्रीय मूल्यों (या चीजों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा के केन्द्रीय मूल्य (Central Values or things of Security)- आदमी जब भी अपने घर से बाहर कदम निकालता है तो उसके अस्तित्व अथवा जीवनयापन के तरीकों को किसी न किसी अर्थ में खतरा जरूर होता है। यदि हमने खतरे का इतना व्यापक अर्थ लिया तो फिर हमारी दुनिया में हर घड़ी और हर जगह सुरक्षा के ही सवाल नजर आयेंगे।

इसी कारण जो लोग सुरक्षा विषयक अध्ययन करते हैं उनका कहना है कि केवल उन चीजों को ‘सुरक्षा’ से जुड़ी चीजों का विषय बनाया जाय जिनसे जीवन के केन्द्रीय मूल्यों’ को खतरा हो। तो फिर सवाल उठता है कि किसके केन्द्रीय मूल्य ? क्या पूरे देश के केन्द्रीय मूल्य’ ? आम स्त्री-पुरूषों के केन्द्रीय मूल्य ? क्या नागरिकों की नुमाइंदगी करने वाली सरकार हमेशा केन्द्रीय मूल्यों’ का वही अर्थ ग्रहण करती है जो कोई साधारण नागरिक ?

प्रश्न 12.
सुरक्षा नीति का संबंध किससे होता है ? इसे क्या कहा जाता है ? इसे रक्षा कब कहा जाता है ?
उत्तर:
युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे ‘अपराध’ कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है।

प्रश्न 13.
हरित क्रांति क्या है ?
उत्तर:
सरकारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे। शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की नीति अपनायी थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने जब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।

सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीच, उर्वरक, कीटनाशाक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुमादित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरूआत थी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
दक्षिण एशिया क्या है ?
उत्तर:
सामान्यतया दक्षिण एशिया में नौ देशों को शामिल किया जाता है। इनमें आठ देश- (i) बांग्लादेश, (ii) भूटान, (iii) भारत, (iv) मालदीव, (v) नेपाल, (vi) पाकिस्तान, (vii) श्रीलंका एवं (viii) अफगानिस्तान को शामिल किया जाता है।

उत्तर की विशाल हिमायल पर्वत-श्रृंखला, दक्षिण का हिंदमहासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। यह भौगोलिक विशिष्टता ही उस उप-महाद्वीपीय क्षेत्र की भाषाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है। इस क्षेत्र की चर्चा में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है। चीन इस क्षेत्र का एक प्रमुख देश है लेकिन चीन को दक्षिण एशिया का अंग नहीं माना जाता।

प्रश्न 15.
शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
उत्तर:
पुरुषों और महिलाओं की स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अंतर है। स्त्री साक्षरता 2001 में 54.16 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की साक्षरता 75.85 प्रतिशत थी। शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता सीमित है।

प्रश्न 16.
जन आंदोलन की प्रकृति पर अति लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जन आंदोलन वे आंदोलन होते हैं। जो प्रायः समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय, अथवा स्थानीय हितों, माँगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए 1973 ई० में चलाया गया ‘चिपको आंदोलन’ भारतीय किसान यूनियन द्वारा चलाया गया आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन, आंध्र प्रदेश ताड़ी विरोधी आंदोलन, समय-समय पर चलाए गए छात्र आंदोलन, नारी मुक्ति और सशक्तिकरण समर्थित आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि जन आंदोलन के उदाहरण हैं।

प्रश्न 17.
उन कारणों/कारकों का उल्लेख कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने इस्पात उद्योग उड़ीसा में स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा ?
उत्तर:
(a) इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था और अभी इसका दोहन बाकी था। उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा। उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात-निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए।

(b) सरकार सोच रही थी कि इससे राज्य में जरूरी पूँजी-निवेश भी हो जाएगा और रोजगार के अवसर भी बड़ी संख्या में सामने आएँगे।

प्रश्न 18.
उड़ीसा में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना का, वहाँ के आदिवासियों ने क्यों विरोध किया था ?
उत्तर:
लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित इलाकों में हैंखासकर इस राज्य के आदिवासी-बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है कि अगर यहाँ उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर-बार से विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी।

प्रश्न 19.
पर्यावरण विदों के विरोध के क्या कारण थे ? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर:
उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता है कि अगर उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूंजी निवेश को बाधा पहुंचेगी।

प्रश्न 20.
‘साम्यवाद के प्रसार की रोक’ के लिए अमेरिका ने क्या कदम उठाए ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में साम्यवादी प्रसार की रोक के लिए टूमैन सिद्धांत, मार्शल योजना तथा आइजन हावर सिद्धांत बनाए।

अमेरिका ने 1971 तक चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ से पृथक् रखा तथा कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का पक्ष लिया। पूर्वी एशिया के देशों में आर्थिक तथा सैनिक सहायता दी। सुदूर पूर्व में जापान के साथ सैनिक सन्धि की तथा यूरोप में स्पेन और पश्चिमी जर्मनी के साथ। अंग्रेजों और फ्रांसीसी के उपनिवेशवाद की भी उसने अधिक तीव्र शब्दों में निन्दा नहीं की तथा पाकिस्तान को सैनिक सहायता प्रदान की।

प्रश्न 21.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर एक अति लघु टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 19:1 ई० में हुआ। वह महान देश भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू महासभा के प्रसिद्ध नेता थे। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री नियुक्त किया गया। वह संविधान सभा के सदस्य रह चुके थे। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। नेहरूजी के साथ पाकिस्तान के साथ संबंधों में मतभेदों के कारण 1950 में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। वह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वह कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर भारतीय जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1953 ई० में पुलिस हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 22.
दीनदयाल उपाध्याय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में हुआ। उन्होंने आजादी से पहले ही देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। 1942 से राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ (RSS) के पूर्ण कालिक कार्यकर्ता थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से थे। वह पहले तो भारतीय जनसंघ पार्टी के महासचिव और बाद में अध्यक्ष बने। यह कुशल विचारक नीतिकार तथा महान संगठनकर्ता थे। उन्हें समग्र मानवता के सिद्धान्त के प्रणेता के रूप में याद किया जाता है। 1968 ई० में उनका देहांत हो गया।

प्रश्न 23.
जे० सी० कुमारप्पा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जे० सी० कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे० सी० कार्नेलियस था। इन्होंने अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की भी अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की। यह महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृषि इकॉनोमी ऑफ परमानैंस को बड़ी ख्याति मिला। एक योजना आयोग के सदस्य के रूप में उन्हें ख्याति मिली।

प्रश्न 24.
चकबन्दी से क्या लाभ है ?
उत्तर:
चकबन्दी से कृषकों को उन्नत किस्म के आदानों का प्रयोग करने में सहायता मिलती है। तथा वे कम से कम प्रयत्नों से अधिकतम उत्पादन करने में सफल होते हैं। इससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है।

प्रश्न 25.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
भूमि सुधार से अभिप्राय भूमि (जोतों) के स्वामित्व में परिवर्तन लाना। दूसरे शब्दों में भूमि सुधार में भूमि के स्वामित्व के पुनः वितरण को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 26.
पंचशील क्या है ?
उत्तर:
28 जून, 1954 के दिन भारतीय तथा चीनी प्रधानमंत्रियों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में पंचशील के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।

पंचशील के पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता तथा सर्वोच्च सत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना।
  2. एक-दूसरे के प्रदेश पर आक्रमण का परित्याग।
  3. एक-दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने का संकल्प।
  4. समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धांत के आधार पर मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना।
  5. शांतिपूर्ण सहअस्तित्त्व का सिद्धांत।

14 दिसंबर, 1959 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में उपस्थित 82 देशों ने पंचशील के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 27.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गये ?
उत्तर:
असमानता को दूर करने के लिए भूमि सुधार किया गया तथा उत्पादन में वृद्धि लाने के लिए उन्नत बीजों का प्रयोग किया गया। सिंचाई विधाओं का विस्तार किया गया। कृषि में आधुनिक मशीनों तथा उपकरणों का प्रयोग में लाया गया।

प्रश्न 28.
भारत अमेरिकी सम्बन्धों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर:
भारत और अमेरिका के सम्बन्ध पुराने हैं। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व राष्ट्रीय आन्दोलन के समय से ही अमेरिका भारत के प्रति सहानुभूति रखता था और उसने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को गहारा दिया था। इस हेतु द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में अमेरिका ने ब्रिटेन पर दबाव बनाया कि भारत को भी आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए। भारत के लोगों के प्रति अमेरिका की सहानुभूति सोवियत प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से भी थी।

प्रश्न 29.
सीमांत गांधी कौन थे ? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत (North-West Frontier Province NWFP) (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वह काँग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के जन्मदाता थे। वह सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा, शांतिप्रेम के समर्थक थे। उनकी प्रसिद्धि ‘सीमांत गाँधी’ के रूप में थी। वे द्वि-राष्ट्र-सिद्धांत के एकदम विरोधी थे। संयोग से, उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

प्रश्न 30.
रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिन्की सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गए। अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए । इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय वाकियों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ।

प्रश्न 31.
आंध्रप्रदेश के गठन के संदर्भ में पोट्टी श्रीरामुलु का नाम किस तरह जुड़ा हुआ है ?
उत्तर:
1. प्रांत के तेलगुभाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क उठा। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। इसके कुछ हिस्से मौजूदा केरल एवं कर्नाटक में भी हैं। विशाल आंध्र आंदोलन (आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने के लिए चलाया गया आंदोलन) ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलगुभाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्रप्रदेश बनाया जाए। तेलुगुभाषी क्षेत्र की लगभग सारी राजनीतिक शक्तियाँ मद्रास प्रांत के भाषाई पुनर्गठन के पक्ष में थी।

2. केन्द्र सरकार ‘हाँ-ना’ की दुविधा में थी और उसकी इस मनोदशा से इस आंदोलन ने जोर पकड़ा। काँग्रेस के नेता और दिग्गज गांधीवादी, पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख-हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की भूख-हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। इससे बड़ी अव्यवस्था फैली।

3. आंध्र प्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुईं। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य की घोषणा की।

प्रश्न 32.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े ऐक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। इससे अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि मामले पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीका: किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जानेवाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए।

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद्-राज्यों तथा केंद्रों के बीच शक्तियों के विभाजन को देखते हुए योजना तैयार करने में राज्यों का भाग लेना अनिवार्य था। इसलिए 1952 में राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।

परिषद् की स्थापना के उद्देश्य-

  • योजना आयोग की सहायता के लिए राज्य के स्रोतों तथा परिश्रम को सुदृढ़ करने तथा उनको गतिशील बनाना।
  • सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समरूप आर्थिक नीतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • देश के सभी भागों के तीव्र तथा संतुलित विकास के लिए प्रयास करना।

परिषद् के कार्य-

  • राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों संबंधी विषयों पर विचार तथा
  • राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए सुझाव देना।

प्रश्न 2.
वर्तमान समय के संदर्भ में भारत और चीन के संबंधों की विवेचना करें।
उत्तर:
चीन के साथ भारत का संबंध (India’s Relations with China)-
(i) प्रस्तावना (Introduction) – पश्चिमी साम्राज्यवाद के उदय से पहले भारत और चीन एशिया की महाशक्ति थे। चीन का अपने आसपास के इलाकों पर भी काफी प्रभाव था और आसपास के छोटे देश इसके प्रभुत्व को मानकर और कुछ नजराना देकर चैन से रहा करते थे। चीनी राजवंशों के लम्बे शासन में मंगोलिया, कोरिया, हिन्द-चीन के कुछ इलाके और तिब्बत इसकी अधीनता मानते रहे थे। भारत के भी अनेक राजवंशों और साम्राज्यों का प्रभाव उनके अपने राज्य से बाहर भी रहा था।

भारत हो या चीन, इनका प्रभाव सिर्फ राजनैतिक नहीं था-यह आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भी था। पर चीन और भारत अपने प्रभाव क्षेत्रों के मामले में कभी नहीं टकराए थे। इसी कारण दोनों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रत्यक्ष सम्बन्ध सीमित ही थे। परिणाम यह हुआ कि दोनों देश एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जान सके और जब बीसवीं सदी में दोनों देश एक-दूसरे से टकराए तो दोनों को ही एक-दूसरे के प्रति विदेश नीति विकसित करने में मश्किलें आई।

(ii) ब्रिटिश शासन के उपरांत भारत-चीन संबंध (After British rule India-China relations) – अंग्रेजी राज से भारत के आजाद होने और चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल बाहर करने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि ये दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और खास तौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। कुछ समय के लिए हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा भी लोकप्रिय हुआ। सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने इस उम्मीद को समाप्त कर दिया। आजादी के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच संबंध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों मुल्क अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते 1962 ई० में लड़ पड़े।

(iii) भारत-चीन युद्ध और उसके बाद (Indo-China War and later on) – 1962 ई० के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त होते रहे। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों के बीच सम्बन्धों में सुधार शुरू हुआ। 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला। चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए। इसलिए चीन भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए विवादास्पद मामलों को छोड़ने को तैयार हो गया। 1981 ई. सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं की श्रृंखला भी शुरू की गई।

(iv) भारत-चीन संबंध-राजीव गांधी के काल में (Indo-China relation period Rajiv Gandhi Period) – दिसम्बर 1988 ई. में राजीव गाँधी द्वारा चीन का दौरा करने से भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। इसके बाद से दोनों देशों ने टकराव टालने और सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के उपायों की शुरूआत की है। दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने के समझौते भी किए हैं।

(v) भारत-चीन संबंध शीत युद्ध के बाद (Indo-China relation after Cold War) – शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारत चीन सम्बन्धों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। अब इनके संबंधों का रणनीतिक ही नहीं, आर्थिक पहलू भी है। दोनों ही खुद को विश्व-राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।

(vi) भारत-चीन के आर्थिक संबंध, 1992 से (Since 1992 India Sino-Economic relation) – 1999 से भारत और चीन के बीच व्यापार सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इससे चीन के साथ संबंधों में नयी गर्मजोशी आयी है। चीन और भारत के बीच 1992 ई० में 33 करोड़ 80 लाख डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था जो 2006 ई० में बढ़कर 18 अरब डॉलर का हो चुका है। हाल में, दोनों देश ऐसे मसलों पर भी सहयोग करने के लिए राजी हुए हैं। जिनसे दोनों के बीच विभेद पैदा हो सकते थे, जैसे-विदेशों में ऊर्जा-सौदा हासिल करने का मसला। वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी हैं।

(vi) सैनिक उतार-चढ़ाव एवं कूटनीतिक संबंध (Military development and diplomatic relations) – 1998 ई० में भारत के परमाणु हथियार परीक्षण को कुछ लोगों ने चीन से खतरे के मद्देनजर उचित ठहराया था लेकिन इससे भी दोनों के बीच संपर्क कम नहीं हुआ। यह सच हैं कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में भी चीन को मददगार माना जाता है। बंगलादेश और म्यां से चीन के सैनिक संबंधों को भी दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के खिलाफ माना जाता है, पर इनमें से कोई भी मुद्दा दोनों मुल्कों में टकराव करवा देने लायक नहीं माना जाता।

इस बात का (क प्रमाण यह है कि इन चीजों के बने रहने के बावजूद सीमा विवाद सुलझाने की बातचीत और सैन्य स्तर पर सहयोग का कार्यक्रम जारी है। चीन और भारत के नेता तथा अधिकारी अब अक्सर नयी दिल्ली और बीजिंग का दौरा करते हैं। परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोत्तरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान के संबंधों की मुख्य समस्यायें क्या हैं ?
उत्तर:
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति एवं मित्रता का संबंध बनाए रखना चाहता है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म एक पड़ोसी के रूप में हुआ। अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध रहे तो संबंधित राज्य मानसिक चिंताओं और तनाव के वातावरण से मुक्त होकर अपने साधनों का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में लगा सकता है। भारत के पड़ोसी राज्यों से लगभग अच्छे हैं। चीन के साथ हमारे सीमा विवाद का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। पाकिस्तान के साथ बनते-बिगड़ते संबंधों के चलते हमारी परेशानियां बढ़ी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में भारत अपने पड़ोसियों के साथ शांति और मित्रता से रहना चाहता है। आकार और जनसंख्या में बड़ा होने पर भी वह छोटे देशों के साथ समानता के आधार पर सहयोग करना चाहता है। भारत पाकिस्तान के मध्य संबंधों में कटुता विद्यमान है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • कश्मीर का मामला
  • शरणार्थियों का प्रश्न
  • आतंकवाद
  • नहर पानी विवाद
  • ऋण की अदायगी का प्रश्न।

ये ऐसी समस्याएँ है जिसके चलते दोनों के बीच काफी उग्रता उत्पन्न हुई हैं पाकिस्तान ने तोड़-फोड़ जासूसी सीमा अतिक्रमण, आदि कार्यवाहियों के अलावा 1947, 1965 और 1971 में आक्रमण भी किया।

प्रश्न 4.
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति के सकारात्मक एवं नकारत्मक पहलुएँ बताइए।
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ : सरकारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायाता देने की नीति अपनायी थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीच, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरूआत थी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम (Two Positive Results of Green Revolution)-

  • हरित क्रांति में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। हरित क्रांति से खेतीहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी) और देश में खाद्यान्न उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।
  • इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।

हरित क्रांति के दो नकारात्मक परिणाम (Two Negative Reseults of Green Revolution)-

  • इस क्रांति का एक बुरा परिणाम तो यह हुआ कि गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंत: मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थित पैदा हुई।
  • हरित क्रांति के कारण कृषि में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उद्धार हुआ। इन्हें बदलावों से फायदा हुआ था और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations)-
(i) चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Help in Preparation of theU.N. Charter) – संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभावं के लाग करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री स. राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था।

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations) – संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(iii) आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems) – भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है
और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

(iv) निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India’s Co-operation to U. N. for the disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुनः पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में, भारत का सहयोग (India’s Co-operation in the Political Functions of the United Nations) – भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

(i) कोरिया की समस्या (Korean Problems) – जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था! ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal) – जुलाई, 1956 के बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अत: उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मित्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

(iii) हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo-China) – सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

(iv) हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery) – जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

(v) चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China) – विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

(vi) नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) – भारत का सदा प्रयत्न रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

(vii) रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) – जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

(viii) भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चका है (India had worked at different posts) – भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं! डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था।

अब तक छः बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ॰ नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के. पी. एस. मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।

प्रश्न 6.
भारतीय विदेश नीति के मुख्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति (Foreign Policy) – साधारण शब्दों में विदेश नीति से तात्पर्ग उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। उसे राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करना है उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।

भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of India’s foreign policy)-
(i) गुट निरपेक्षता (Non-alignment) – दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। इसमें से एक पश्चिमी देशों का गुट था और दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के काफी प्रयास किए, परंतु भारत ने दोनों ही प्रकार से सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी सैनिक गठबन्धन का सदस्य नहीं बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा तथा प्रत्येक राष्ट्रय महत्व के प्रश्न पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।

(ii) उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का विरोध (Opposition to colonialism and imperialism) – साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतंत्रता का अपहरण करके उनका शोषण करते हैं। संघर्ष और युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा है। द्वितीय महायुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र हो गए। पर साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो पाया है। भारत ने एशियाई और अफ्रीकी देशों की एकता का स्वागत किया है।

(iii) अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly relations with other countries) – भारत की विदेश नीति की अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढ़ाए हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाएं हैं। भारत के नेताओं ने कई बार स्पष्ट . घोषणा की है कि भारत सभी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।

(iv) पंचशील और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Panchsheel) – पंचशील का अर्थ है पाँच सिद्धांत। ये सिद्धांत हमारी विदेश नीति के मूल आधार हैं। इन पाँच सिद्धातों के लिए “पंचशील” शब्द का प्रयोग सबसे पहले 24 अप्रैल 1954 ई० को किया गया था। ये ऐसे सिद्धांत है कि यदि इन पर विश्व के सब देश चलें तो विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  • एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
  • एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  • एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को मानना।
  • आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।

पंचशील के ये पाँच सिद्धांत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये संसार के बचाव की एकमात्र आशा हैं क्योंकि आज का युग परमाणु बम और हाइड्रोजन बम का युग है। युद्ध छिड़ने से कोई नहीं बच पायेगा। अत: केवल इन सिद्धांतों को मानने से ही संसार में शांति स्थापित हो सकती है।

(v) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा (Safeguarding the national Interests) – भारत प्रारंभ से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए उसने अपने विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने संसार के सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों (रूस तथा अमेरिका) एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे हैं।

प्रश्न 7.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है ?
उत्तर:
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यस्था से निम्नलिखित प्रकार से अलग है-

  1. 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याआपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की।
  2. इस घोषणा के पश्चात् यह निश्चित किया गया कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाय। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका अपनाया।
  3. चीन ने शॉक थेरेपी को महत्त्व नहीं दिया बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को क्रमबद्ध तरीके से आरंभ किया।
  4. कृषि का निजीकरण कर दिया गया जिसके कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण में पर्याप्त आय हुई।
  5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत को महत्व दिया गया जिससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई। इस प्रकार उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  6. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones) का निर्माण किया गया। इससे विदेशी व्यापार में अद्भुत बढ़ोत्तरी हुई।
  7. उसने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को महत्त्व दिया। फलस्वरूप उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हो गया है। विदेशी मुद्रा की सहायता से वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।
  8. 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया है। इस प्रकार वह दूसरे देशों में अपनी अर्थव्यवस्था खोलने में सक्षम हो गया है।

प्रश्न 8.
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के गठन एवं क्षेत्राधिकार का परीक्षण करें।
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्याय व्यवस्था के शीर्ष स्थान पर है। मूल संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीश हो सकते थे। परन्तु संविधान संशोधन द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि कर दी गई है।

गठन (Composition) – सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश होते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही नियुक्त किया जा सकता है जो-

  • भारत का नागरिक हो।
  • एक या एक से अधिक न्यायालयों में पाँच वर्षों तक न्यायाधीश रह चुका हो या किसी एक अथवा एक से अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  • राष्ट्रपति की दृष्टि से वह एक सुविख्यात विधिवेत्ता हो।

सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने पद पर 65 वर्ष तक बना रह सकता है। इसके पहले भी वह त्याग-पत्र देकर हट सकता है। इसके अतिरिक्त कदाचारिता या अक्षमता के आरोप में संसद के दोनों सदनों के पृथक्-पृथक् दो-तिहाई बहुमत में प्रस्ताव पारित कर किसी न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है। वर्तमान समय में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपये तथा अन्य न्यायाधीश को 90,000 रुपये मासिक वेतन एवं अन्यान्य सुविधायें प्राप्त हैं।

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) – सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों एवं कार्यों को निम्नलिखित वर्ग में बाँटा जा सकता है-
(i) प्रारंभिक अधिकार इस श्रेणी में वे विषय आते हैं जिनकी सुनवाई केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही होती है। ऐसे विषय निम्नलिखित हैं-

  • संघ तथा राज्य विवाद।
  • भारत सरकार, राज्य या कई राज्यों तथा एक या उससे अधिक राज्यों के बीच विवाद।
  • दो या दो से अधिक राज्यों की बीच विवाद, जिसमें कोई ऐसा प्रश्न अन्तर्निहित हो, जिस पर किसी वैध अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर हो।

इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकार के मामले भी सर्वोचच न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। परन्तु इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में भी हो सकती है।

(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय केवल उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है। यह अपील संवैधानिक, फौजदारी, दीवानी और कुछ विशिष्ट मामलों में सुनी जाती है।

संवैधानिक मामलों में अपील तभी सुनी जा सकती है, जबकि उच्च न्यायालय ऐसा प्रमाण दे कि इस मामले में अपील की जा सकती है, या सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा विश्वास हो जाए कि उसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है। फौजदारी मामलों में अपील तभी की जा सकती है जबकि-

  • उच्च न्यायालय ने अपने अधीनस्थ न्यायालय द्वारा किए गए किसी अभियुक्त को मृत्यु दंड का आदेश दिया हो। अथवा
  • उच्च न्यायालय या अपने अधीनस्थ न्यायालय में किसी फौजदारी मामले को मंगाकर अभियुक्त को प्राण दण्ड देना।

दीवानी मामले में निम्नलिखित परिस्थितियों में अपील की जा सकती है-

  • यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण दे कि इस मामले में कानून की व्याख्या का प्रश्न निहित है।
  • उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है। कुछ विशिष्ट मामलों में सर्वोच्च न्यायालय अपील की अनुमति दे सकता है।

(iii) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार – संविधान की धारा 143 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह किसी भी संवैधानिक मामले अथवा समझौते या सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न से संबंधित किसी भी विषय पर सार्वजनिक न्यायालय के समक्ष विचार के लिए रख सकता है।. सर्वोच्च न्यायालय इस पर अपनी सलाह देता है। परन्तु इस सलाह का मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।

(iv) आवत्ति संबंधी क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय अपने किसी निर्णय पर पूर्ण विचार कर सकता है और उसे परिवर्तित कर भूल सुधार कर सकता है।

(v) अभिलेख न्यायालय – सर्वोच्च न्यायालय को ऊपर वर्णित अधिकारों के अतिरिक्त भी बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। जैसे-

यह मौलिक अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है। उसकी रक्षा के लिए यह विभिन्न नियम जारी कर सकता है। यह संविधान का भी एक रक्षक है। यह संसद तथा राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून को जो संविधान के विरुद्ध हैं, अवैध घोषित कर सकता है। उसे अपनी कार्य-प्रणाली के संचालन के लिए नियम बनाने का भी अधिकार है। यह अपने कर्मचारियों पर भी नियंत्रण रखता है।

प्रश्न 9.
लोक सभा के संगठन और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
लोकसभा का गठन-लोकसभा संसद का प्रथम अथवा निम्न सदन है। इसके कुल सदस्यों की संख्या अधिकतम 550 हो सकती है। इनमें से 530 सदस्य राज्यों की जनता के द्वारा तथा 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों की जनता के प्रतिनिधि हो सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। आजकल लोकसभा में 545 सदस्य हैं जिसमें से दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एंग्लो-इण्डियन हैं। सदस्यों के निर्वाचन में वस्यक मताधिकार का प्रयोग होता है। प्रत्येक 18 वर्ष की आयु वाले नागरिक वोट डालते हैं। 25 वर्ष की आयु वाला नागरिक जिसका नाम मतदाता सूची में हो, चुनाव लड़ सकता है। सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए किया जाता है।

लोकसभा का कार्य :

  • लोकसभा संघ की सूची के विषयों पर कानून बनाती है। संसद में कोई विधेयक लोकसभा और राज्य सभा दोनों में अलग-अलग पारित किया जाता है, तभी राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करता है। उसके बाद वह विधेयक कानून बन जाता है।
  • वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जाते हैं तथा अंतिम रूप से इसी के द्वारा पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में लेती है।
  • लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री बनाया जाता है।
  • लोकसभा लोगों की सभा है। लोगों के कल्याण के लिए यहाँ अनेक प्रस्ताव पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती है। वह उसके प्रति अविश्वास का प्रस्ताव भी पारित कर सकती है, जिससे मंत्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव लाकर, प्रश्न पूछकर लोकसभा मंत्रिमण्डल पर नियंत्रण रखती है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने का अधिकार संसद को है। इस प्रकार लोकसभा इस कार्य में भी राज्यसभा की सहभागी है। वह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को भी उनके पद से हटा सकती है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आलोचनात्मक व्याख्या करें। इसकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन (Basic Philosophy) हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है, जिसे के. एम. मुंशी ने राजनीतिक जन्म-पत्री (Political Horoscope) का नाम दिया है। यद्यपि कानूनी दृष्टि से प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं होती और इसे न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जाता है तथापि संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तवेज है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है।

जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और इसका अर्थ स्पष्ट न हो, तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में, प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या की जा सकती है। प्रस्तावना से यह पता चलता है कि संविधान-निर्माताओं की भावनाएँ क्या थीं। प्रस्तावना संविधान बनानेवालों को मन की कुंजी है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से संविधान के उद्देश्यों, लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा हमारे स्वप्नों का स्पष्ट पता चल जाता है।

हमारे संविधान की प्रस्तावना की सर्वश्रेष्ठ प्रशंसा सर अर्नेस्ट बार्कर (Sir Earnest Barker) ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के सिद्धान्त पर (Principle of Social and Political Theory) में इन शब्दों में की है : “जब मैं इसे पढ़ता हूँ, तो मुझे लगता है कि इस पुस्तक का अधिकांश तर्क संक्षेप में वर्णित है, अतः इसे इसकी कुंजी कहा जा सकता है। मैं इसे देखने के लिए इसलिए भी और लालायित हूँ कि मुझे इस बात का गर्व है कि भारत के लोग अपने स्वतंत्र जीवन का प्रारम्भ राजनीतिक परम्परा के उन सिद्धान्तों के साथ कर रहे हैं, जिन्हें हम पश्चिम के लोग पाश्चात्य कहकर पुकारते हैं, परन्तु जो अब पाश्चात्य से कहीं अधिक है।” संविधान सभा के सदस्य पण्डित ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना की सराहना करते हुए कहा था, “प्रस्तावना संविधान का सबसे मूल्यवान अंग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का रत्न है।”

(The Preamble is the most precious part of the Constitution. It is the key to the Constitution. It is the jewel in the Constitution.) कुछ वर्ष पूर्व श्री एन. ए. पालकीवाला ने सुप्रीम कोर्ट में 24, 25 और 29वें संविधानों की आलोचना करते समय कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक आवश्यक अंग है।

प्रस्तावना (Preamble) – प्रस्तावना एक वैधानिक प्रलेख में प्राक्कथन के रूप में होती है। संविधान की प्रस्तावना संविधान के अनुसार ही होती है और इसलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान सभा ने संविधान पारित करने के उपरांत पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में उन भावनाओं का वर्णन है, जो दिसम्बर, 1946 ई० को पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव में रखा था। उद्देश्य प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान सभा घोषित करती है कि इसका ध्येय व दृढ़ संकल्प भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना है और इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल प्रस्तावना में किया गया है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवाद (Socialism) तथा धर्म-निरपेक्ष (Secular) शब्दों को प्रस्तावना में अकित किया गया। हमारे वर्तमान संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है।

“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष-लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, विचार-अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्तवंत्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने और उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़-संकल्प होकर अपनी इस विधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हजार छ: विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।”

महत्व – M.P. Pylee के अनुसार, “भारतीय संविधान की प्रस्तावना आज तक अकित इस प्रकार के प्रलेखों में सर्वोच्च है। यह विचार, आदर्श और अभिव्यक्ति में अनुपम है। यह संविधान की आत्मा है। यह प्रस्तावना भारतीयों के दृढ़-संकल्प की प्रतीक है कि वे एकता प्राप्त कर ऐसे स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करेंगे, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृभाव की विजय हो।” वी० एन० शुक्ला (V. M. Shukla) ने प्रस्ताव के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखा है, “यह सामान्य तथा राजनीतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों का स्पष्टीकरण करती है, जिन्हें संविधान प्रोत्साहित करना चाहता है।”

भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है-

  1. सांविधानिक शक्ति का स्रोत क्या है,
  2. भारतीय शासन-व्यवस्था कैसी है तथा
  3. संविधान के उद्देश्य या लक्ष्य क्या हैं ?

प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द यह इंगित करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता है। भारतीय शासन की अंतिम सत्ता जनता में निहित है तथा भारतीय जनता ने ही संविधान को अंगीकृत और अधिनियमित किया है। इसके सम्बन्ध में पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “यह संविधान राज्यों ने नहीं बनाया और न ही कुछ राज्यों के लोगों ने और न ही यह संभव है कि हमारे राज्यों में से एक अथवा उनका एक घटक इस संविधान को भंग कर दे और वे हमसे अलग हो जायँ।” Dr. Ambedkar के अनुसार, “The preamble emobides what is the desire of every member of the house, that this constitution should have its roots, its authority, its sovereignty from the people.”

प्रश्न 11.
राष्ट्रपति शासन से आप क्या समझते हैं ? अथवा, राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जाता है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की दशा में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। ऐसा राष्ट्रपति की उद्घोषणा द्वारा संभव है। राष्ट्रपति शासन छः माह की अवधि के लिए लगाया जा सकता है, जिसे पुनः छः माह तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। एके वर्ष की अवधि के उपरांत यह तभी लागू रह सकता है जब राष्ट्रीय आपात लागू हो तथा चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि राज्य विधान सभा का चुनाव कराना फिलहाल संभव नहीं है। राष्ट्रपति शासन की दशा में राज्य मंत्रिमण्डल बर्खास्त कर दिया जाता है तथा राज्य की कार्यपालिकीय शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती हैं। राज्य की विधानसभा या तो बर्खास्त कर दी जाती है या लम्बित रहती है। राष्ट्रपति शासन में राज्य के उच्च न्यायालय की शक्तियों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 12.
भारत के राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का वर्णन कीजिए। अथवा, ‘भारतीय राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
जर्मनी के वाइमर संविधान के राष्ट्रपति की तरह भारत के राष्ट्रपति को भी संकटकाल में उत्पन्न कठिनाइयों का समाधान करने के लिए अत्यन्त ही विस्तृत और निरंकुश अधिकार दिए गए हैं। जब राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करेगा तब उसके हाथों में ऐसे बहुत-से अधिकार आ जाएँगै जो उसे साधारण स्थिति में प्राप्त नहीं है। संकट तीन प्रकार के हो सकते हैं-

  • युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट;
  • राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकट;
  • आर्थिक संकट।

(a) युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा आंतरिक अशांति से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छे 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा तथा शांति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकट में है, तो वह संकटकाल की घोषणा कर देश का या देश के किसी भाग का शासन अपने हाथ में ले सकता है। राष्ट्रपति इस आशय की घोषण उस दशा में भी कर सकता है, जब उसे यह विश्वास हो जाए कि युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा और शांति निकट भविष्य में संकट में पड़नेवाली है। तात्पर्य यह है कि संभावना मात्र से ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।

संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार में अनेक परिवर्तन किए गए; जैसे-

  • अपने मंत्रिमण्डल के निर्णय के बाद प्रधानमंत्री द्वारा लिखित सिफारिश के बाद ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा के 30 दिनों के अन्तर्गत घोषणा पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा छह महीने के बाद संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • यदि लोकसभा के 1/10 सदस्य इस आशय का प्रस्ताव रखें कि संकटकाल समाप्त हो जाना चाहिए तो 14 दिनों के अन्दर ही इस प्रस्ताव पर विचार के लिए सदन की बैठक बुलाने की व्यवस्था की जाएगी।
  • नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार संकटकाल की घोषणा के बाद भी समाप्त नहीं किए जाएँगे। भारत के राष्ट्रपति ने अपने इस अधिकार का प्रयोग सर्वप्रथम 1962 ई० में किया, जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दूसरी बार इसका प्रयोग 1971 ई० में किया गया। तीसरी बार इसका प्रयोग 26 जून, 1975 को आंतरिक अशांति के लिए किया गया।

जब तक यह घोषणा लागू रहेगी तब तक

  • संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को यह आदेश दे सकती है कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका-शक्ति का किस रीति से उपयोग करें,
  • संसद राज्यों की सूची में वर्णित विषयों पर कानून-निर्माण कर सकती है,
  • नागरिकों के कई मूल अधिकार (स्वतंत्रता-संबंधी अधिकार) स्थगित हो जाएँगे,
  • राष्ट्रपति मूल अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए किसी व्यक्ति के उच्च या अन्य न्यायालयों में जाने के अधिकार को स्थगित कर सकता है और
  • राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व-विभाजन-संबंधी समस्त उपबन्ध को स्थगित कर सकता है।

(b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छेद 356 अनुसार, यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल से सूचना मिले अथवा उसे यह विश्वास हो जाए कि अमुक राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असंभव हो गया है, तो वह घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। ऐसी स्थिति में राज्य की कार्यपालिका-शक्ति अपने हाथों में ले सकता है, राज्य के विधानमण्डल की शक्तियाँ संसद राष्ट्रपति को दे सकती है। राष्ट्रपति कभी भी दूसरी घोषणा द्वारा इस घोषणा को रद्द कर सकता है। इस अधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति ने अगस्त 1988 को नागालैंड में किया।

इस प्रकार की घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और दो महीने तक लागू रहेगी। लेकिन, यदि इसी बीच संसद की स्वीकृति मिल जाए, तो वह दो महीनों के पश्चात भी स्वीकृति की तिथि से छह महीने तक लागू रहेगी। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार अब किसी राज्य में राष्ट्रपति-शासन अधिक-से-अधिक । वर्ष रह सकता है। 1 वर्ष से अधिक तभी रह सकता है जब निर्वाचन आयोग यह सिफारिश करे कि राज्य में चुनाव करना संभव नहीं है। संविधान का 48वाँ संशोधन-अधिनियम, 1984 के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन को 1 वर्ष और बढ़ाने का प्रावधान है।

इस प्रकार की घोषणा से राष्ट्रपति राज्य से उच्च न्यायालय के अधिकारों को छोड़कर राज्य के समस्त कार्यों और अधिकारों को अपने हाथ में ले सकता है। यदि लोकसभा अधिवेशन में न हो, तो राज्य की संचित निधि में से वह व्यय करने की आज्ञा भी दे सकता है। संविधान द्वारा संघ सरकार का राज्यों की सरकारों के लिए जो निर्देश देने का अधिकार है यदि उनका पालन सुचारू रूप से न होता हो, तो राष्ट्रपति यह समझ सकता है कि राज्य का सांविधानिक तंत्र विफल हो चुका है और वह इस आशय की घोषणा निकाल सकता है।

(c) आर्थिक संकट – संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें भारत अथवा उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की आर्थिक स्थिरता एवं साख को खतरा है, तो वह इस आशय की घोषणा कर सकता है। दूसरी घोषणा के द्वारा उसे इस घोषणा को रद्द करने का भी अधिकार है। यह घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और संसद की स्वीकति मिल जाए तो यह दो महीनों तक लाग रहेगी। दो महीनों तक लागू रहेगी। यदि यह घोषणा उस समय की गई है जबकि लोकसभा के भंग होने के पूर्व स्वीकृति न हुई हो, तो युद्ध अथवा आंतरिक अशांति के लिए निर्धारित व्यवस्था काम में लाई जाएगी।

इस घोषणा का प्रभाव यह होगा कि संघ की कार्यपालिका-शक्ति को राज्यों के आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जाएगा। राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह सरकारी नौकरों, यहाँ तक कि सर्वोच्च और न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन कम करने और राज्यों के विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत धन-विधेयक और वित्त-विधेयक को अपनी स्वीकृति के लिए रोक रखने का आदेश दे। इसका प्रयोग नहीं हुआ है।

प्रश्न 13.
किसी राज्य के मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है। राज्यपाल साधारणतः उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जो विधान सभा में बहुमत दल का नेता हो।

अधिकार एवं कार्य- मुख्यमंत्री के निम्नलिखित अधिकार एवं कार्य हैं-

  • वह मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष है। इस हैसियत से वह इसकी बैठकों का सभापतित्व करता है और मंत्रिपरिषद के समक्ष किसी बात को विचार हेतु रखता है।
  • वह यह देखता है कि सभी मंत्री एक टीम के रूप में कार्य करें। उसे सभी प्रशासकीय विभागों के निरीक्षण तथा समन्वय का अधिकार प्राप्त है। इसका निर्णय अन्तिम होता है।
  • विधानमंडल के नेता के रूप में यह देखता है कि कोई भी विधेयक समय पर पास हो जाए, किस विषय पर और कब मतदान लिया जाए तथा किस विषय पर कर लगाया जाए।
  • राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श पर नियुक्तियाँ करता है, मंत्रियों की नियुक्ति और पदच्युति तथा. विधान सभा के विघटन के बारे में कार्य करता है।
  • मुख्यमंत्री राज्यपाल तथा मंत्रिपरिषद के बीच में सम्पर्क स्थापित करने के लिए कड़ी का काम करता है। राज्यपाल को सभी निर्णयों की सूचना देना उसका कर्तव्य है।
  • राज्य सरकार तथा सत्तारूढ़ दल का प्रमुख प्रवक्ता होने के कारण उसके शब्द तथा आश्वासन आधिकारिक माने जाते हैं।
  • राज्यपाल महाधिवक्ता तथा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है, लेकिन ये नियुक्तियाँ वस्तुत: मुख्यमंत्री द्वारा की जाती हैं।
  • अगर राज्यपाल चाहे तो वह मुख्यमंत्री से कह सकता है कि किसी मंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से लिये गये निर्णय पर सम्पूर्ण मंत्रिमंडल फिर से विचार करे। मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत हो जाने पर उस निर्णय को राज्यपाल को मानना ही होगा।

प्रश्न 14.
भारत में साम्प्रदायिकता पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का आरंभ उस धारणा से होता है कि किसी समुदाय विशेष के लोगों के एक सामान्य अर्थ के अनुयायी होने के नाते राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक हित भी एक जैसे ही होते हैं। उस मत के अनुसार भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अलग-अलग सम्प्रदायों से संबंधित हैं। साम्प्रदायिकता की शुरुआत हितों की पारस्परिक भिन्नता से होती है किंतु इसका अंत विभिन्न धर्मानुयायियों में पारस्परिक विरोध तथा शत्रुता की भावना से होता है।

साम्प्रदायवादी वह व्यक्ति है जो स्वयं अपने सम्प्रदाय के हितों या स्वार्थों की रक्षा करता है जबकि एक धर्म निरपेक्ष व्यक्ति व्यापक राष्ट्रीय हितों अथवा सभी सम्प्रदायों के हितों को ध्यान में रखता है। अर्थात् साम्प्रदायवादी हितों को बढ़ावा देने से संबंधित नीति को साम्प्रदायिकता कहा जाता है।

भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली। 1986 के बाद उस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिंदू राष्ट्रवाद के तत्वों पर जोड़ देना शुरू किया। भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिंदुओं को लामबंद करने की रणनीति अपनायी।

मुस्लिम साम्प्रदायिकता की जड़ें भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों के कारण गहरी हो चुकी थी। भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक थे। अल्पसंख्यकों की यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं कि उन्हें यह खतरा रहता है कि बहुसंख्यक लोग उन पर हावी न हो जाएँ भले ही ऐसा महसूस करने के कोई वास्तविक आधार मौजूद न हों। इस संबंध में बहुसंख्यकों का विशेष दायित्व होता है। उन्हें एक निश्चित उदारता के साथ व्यवहार करना चाहिए जिससे कि अल्पसंख्यकों का यह भय धीरे-धीरे समाप्त हो जाय। दुर्भाग्यवश हिंदू साम्प्रदायवाद ने उसके विपरीत भूमिका अदा की। उन्होंने भारत को हिंदुओं की भूमि कहा और घोषित किया कि हिंदुओं का यह एक अलग शब्द है।

भाजपा ने अयोध्या मसले को उभारकर देश में हिंदुत्व को लामबंद करने की कोशिश की। उन्होंने जनसमर्थन जुटाने के लिए गुजरात स्थित सोमनाथ से उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या (राम जन्म भूमि) तक की बड़ी रथ यात्रा निकाली।

राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर रहे संगठन 1992 के दिसम्बर में एक कार सेवा का आयोजन किया। 6 दिसंबर, 1992 को देश के विभिन्न भागों में लोग अयोध्या पहुँचे और इन लोगों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। मस्जिद के विध्वंस की खबर सुनते ही देश के कई भागों में हिंदू और मुसलमानों के बीच झगड़ा हुई। 1993 के जनवरी में एक बार फिर मुम्बई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक जारी रही। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर गहरा धक्का लगा।

2002 के फरवरी-मार्च में गुजरात के मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक कारण साबित हुई। इस साम्प्रदायिक हिंसा में 1100 व्यक्ति मारे गए जो अधिकतर मुसलमान थे।

1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के समान गुजरात के दंगों से भी यह जाहिर हुआ कि सरकारी मशीनरी साम्प्रदायिक भावनाओं के आवेग में आ सकती है। गुजरात में घटी यह घटनाएँ हमें अगाह करती है कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना खतरनाक हो सकता है। इससे हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को खतरा पैदा हो सकता है।