Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
बाजार मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं ? बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
बाजार मूल्यांकन- उत्पाद और सेवाओं का चयन माँग और पति के घटकों के अतिरिक्त अन्य अनेक घटकों पर भी निर्भर करता है। जैसे-उत्पाद की गुणवत्ता पूर्ति के लिए स्रोत एवं वितरण’ के तंत्र। बाजार मूल्यांकन करते समय एक साहसी को निम्न रूपरेखा बना लेनी चाहिए-

  • माँग
  • पूर्ति और प्रतियोगिता
  • उत्पादन की लागत और कीमत एवं
  • परियोजना की नवीनीकरण तथा परिवर्तन।

बाजार मल्यांकन पर प्रभाव डालने वाले घटक- किसी कम्पनी के बाह्य वातावरण के अग्र भागों में बाँटा जा सकता है-
(i) सक्ष्म वातावरण- सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कम्पनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। ये शक्तियाँ बाह्य होती हैं परंतु कम्पनी की बाजार व्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन शक्तियों में माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, प्रतियोगी, ग्राहक तथा जनता आती है। साधारणतया इन घटकों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

(ii) पर्ति करने वाले- उत्पाद और सेवाओं को बनाने और देने में किसी कम्पनी को बहुत-से चरों को देखना होता है। वस्तुओं/सेवाओं की पूर्ति देने वालों को ही सुपुर्दगीदाता कहा जाता है। इनका कम्पनी की सफलता व असफलता से सीधा संबंध होता है। विपणन कर्मचारियों का वस्तु की पूर्ति देने वालों से कोई संबंध नहीं होता। हालांकि जब माल की कमी होती है, तब इन्हें भी परेशानी होती है। विपणन की सफलता के लिए पर्याप्त मात्रा, अच्छी किस्म का सामान हर समय उपलब्ध होना चाहिए। जितने अधिक पूर्तिकर्ता, उतनी ही अधिक निर्भरता होगी। अतः पूर्तिकर्ता विपणन को प्रभावित कर सकता है। विपणन प्रबंधकों को सामान की नियमित पूर्ति पर ध्यान देना चाहिए। माल की कमी तथा देरी बिक्री को प्रभावित करती है। ऐसा होने से कम्पनी की ख्याति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

(iii) विपणन मध्यस्थ- विपणन मध्यस्थ वे स्वतंत्र व्यक्ति अथवा फर्म हैं जो कम्पनी को प्रत्यक्ष सेवाएँ देकर उसकी बिक्री बढ़ाने में सहायता करती हैं तथा उत्पादों को शीघ्र से शीघ्र अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं।

(iv) प्रतियोगी- विपणन के सही अर्थ में एक सफल कम्पनी को ग्राहकमुखी होना चाहिए। उसको इस बात का प्रयत्न करना चाहिए कि अपने ग्राहकों की इच्छा और आवश्यकताओं का ध्यान अपने प्रतियोगी फर्म से अधिक अच्छा हो। किसी संस्था के विपणन निर्णय केवल ग्राहकों को ही प्रभावित नहीं करते वरन् उस कम्पनी के प्रतियोगी की विपणन व्यूह-रचना पर प्रभाव डालते हैं। परिणामस्वरूप विपणनकर्ताओं को बाजार की प्रतियोगिता, उत्पादों की गुणवत्ता, विपणन माध्यम तथा मूल्यों पर ध्यान रखते हुए विक्रय संवर्द्धन करना चाहिए।

(v) ग्राहक- प्रत्येक कम्पनी को अपने ग्राहकों को पाँच प्रकार के वर्ग में रखना होता है-

  • उपभोक्ता बाजार- इस श्रेणी में वे संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं और सेवाओं का क्रय केवल भविष्य में उत्पादन क्रिया में उपयोग के लिए करती हैं, आज के लिए नहीं।
  • औद्योगिक बाजार- इस श्रेणी में वे संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं और सेवाओं का क्रय केवल भविष्य में उत्पादन क्रिया में उपयोग के लिए करती हैं, आज के लिए नहीं।
  • सरकारी बाजार- इस श्रेणी में सरकारी कार्यालय अथवा अन्य एजेंसी जो वस्तुओं और सेवाओं का क्रय करके उन्हें बेचते हैं जिन्हें उनकी आवश्यकता होती है।
  • पुनः बिक्री बाजार- इस श्रेणी में वे व्यक्ति अथवा संस्थाएँ आती हैं जो वस्तुओं और सेवाओं को खरीदकर दूसरों को बेचकर लाभ कमाती हैं। ये फुटकर व्यापारी अथवा थोक व्यापारी हो सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय बाजार- व्यक्ति/संगठन भी ग्राहक हो सकते हैं, यहाँ क्रेता दूसरे देशों के होते हैं। इसमें उपभोक्ता, उत्पादक, पुनः विक्रेता तथा सरकार भी क्रेता हो सकती है।
  • जनता- जनता से हमारा अभिप्राय ऐसे व्यक्ति के समुदाय से है जिसका वर्तमान तथा भविष्य कम्पनी की स्थिरता से जुड़ा हो और कम्पनी के उत्पादों को खरीदकर कम्पनी के उद्देश्यों को पूरा करने में सहयोग दे।

प्रश्न 2.
कोष प्रवाह विवरण आर्थिक चिट्ठे से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
कोष प्रवाह विवरण तथा चिट्ठे में मुख्य अन्तर इस प्रकार है-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 1, 1

प्रश्न 3.
उद्यमिता की परिभाषा दें एवं इसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
उद्यमिता या साहसिक कार्य की परिभाषा देते हुए यह कहा जा सकता है कि कार्यो को देखना, विनयोग करना, उत्पादन के अवसरों को देखना, उपक्रम को संगठित करना, नयी विधि से उत्पादन करना, पूँजी प्राप्त करना, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना और उच्च पद के अधिकारी, प्रबंधकों का चयन को संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करेंगे।

1. उद्यमिता से अभिप्राय निवेश तथा उत्पादन अवसरों को खोजना, एक नई उत्पादन प्रक्रिया को स्वीकार कर एक नये उद्यम का गठन करना, पूँजी जुटाना, श्रम उपलब्ध करना, कच्चे माल की आपूर्ति की व्यवस्था करना, स्थान का चयन, नई तकनीकी सामग्री के स्रोत की जानकारी प्राप्त करना तथा उद्यम के दैनिक कार्य हेतु उच्च प्रबन्धकों की नियुक्ति आदि क्रियाओं का संयोजन है।

यह परिभाषा उद्यमी के कार्यों से सम्बन्धित है। इन क्रियाओं के अन्तर्गत आर्थिक क्रियाओं व्यवहरण, जोखिम वहन, कुछ नया सृजन तथा साधनों का गठन एवं समन्वय सम्मिलित है।

2. उद्यमिता की परिभाषा के अन्तर्गत मूल रूप से ऐसे कार्य किये जाते हैं जो कि व्यवसाय के साधारण व्यवहार में नहीं किये जाते हैं।

इस परिभाषा ने शुम्पीटर के नव-सृजन प्रक्रिया जो उद्यमी द्वारा संचालित होती है, पर बल दिया है। उसके द्वारा साधनों का एकत्रण, निपुणता का संयोजन तथा व्यवसाय को सफल बनाने हेतु नेतृत्व प्रदान करना शामिल है।

3. उद्यमिता अतिरिक्त धन सृजित करने को गतिशील करने की गतिशील प्रक्रिया है। यह धन व्यक्तियों द्वारा सृजित किया जाता है जो पूँजी, समय तथा वृत्ति की वचनबद्धता द्वारा किसी उत्पादन अथवा सेवा में मूल्य प्रदान करते हैं। उत्पाद अथवा सेवा स्वयं में एकाकी न भी हो, परन्तु उद्यमी द्वारा आवश्यक गुणों एवं साधनों के संयोजन, द्वारा उनमें मूल्य (Value) सृजित किया जाता है।

इन परिभाषा में उद्यमिता प्रक्रिया का अन्तिम परिणाम, अतिरिक्त धन का सृजन है। मूल्य सृजन जोखिमी प्रक्रिया है परन्तु उद्यमी को पूँजी व समय की संलग्नता में जोखिमों को कम करना आवश्यक है।

4.”उद्यमिता तब उजागर होती है जब साधनों का पुन: निर्देशन, अवसरों की प्रगति की और प्रशासनिक कार्यशीलता समृद्ध करते हुए सुनिश्चित की जाती है। उद्यमिता स्वाभाविक नहीं होती, यह कार्य करने में निहित है। उद्यमिता जोखिम के प्रबन्धन से जुड़ी है।

उपरोक्त परिभाषा में, ड्रकर उद्यमिता को प्रबन्धन उन्मुख बताते हैं वे पुनः स्पष्ट करते हैं कि उद्यमितीय संगठन अपनी सफलता के लिए वर्तमान प्रबन्ध की अपेक्षा भिन्न प्रबन्धन को अनिवार्य मानते हैं। परन्तु वर्तमान के अनुरूप, प्रबंधन उसी प्रकार तंत्र युक्त, संगठित एवं उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। समूह नियम प्रत्येक उद्यम के लिए समान होते हुए भी वर्तमान व्यवसाय, लोक सेवा संस्थाएँ तथा नए उद्यम भिन्न-भिन्न चुनौतियाँ एवं समस्याएँ प्ररस्तुत करते हैं, उसके ऊपर उनमें विघटनकारी प्रवृतियों पर रोक लगाने की चेष्टा अनिवार्य है। व्यक्तिगत उद्यमियों को अपनी भूमिका एवं समर्पिताओं हेतु निर्णय लेने चाहिए।

उद्यमिता की विशेषता- उद्यमिता की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • उद्यमिता एक प्रक्रिया है।
  • उद्यमिता सृजन की प्रक्रिया है।
  • उद्यमिता एक कार्य-योजना है।
  • उद्यमिता प्रशासन एवं नियंत्रण है।
  • उद्यमिता उत्पादन के साधनों को प्रयोग करने की प्रक्रिया है।
  • उद्यमिता जोखिम के साधनों को प्रयोग करने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
आर्थिक चिट्ठा का काल्पनिक प्रारूप तैयार करें।
उत्तर:
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 1, 2

प्रश्न 5.
नियोजन प्रक्रिया में प्रबन्ध द्वारा लिये गये कदम क्या हैं ?
उत्तर:
नियोजन प्रक्रिया में प्रबन्ध द्वारा लिये गये कदम निम्नलिखित हैं-

  • समस्या का विश्लेषण।
  • उद्देश्यों की स्पष्ट व्याख्या।
  • आवश्यक सूचनाओं का एकत्रीकरण।
  • एकत्रित सूचनाओं का विश्लेषण और वर्गीकरण।
  • नियोजन की आधारभूत धारणाएँ एवं सीमाएँ निश्चित करना।
  • विभिन्न कार्यों तथा दशाओं का निर्णय।
  • विभिन्न विकल्पों का मूल्यांकन।
  • नियोजन क्रम और समय निश्चित करना।
  • सहायक योजनाओं का निर्माण।
  • नियोजन की उपलब्धियों का मूल्यांकन।
  • नियोजन कार्य पर नियंत्रण।

प्रश्न 6.
केन्द्रीयकरण तथा विकेन्द्रीकरण के बीच अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब प्रबंधक या उच्च अधिकारी अपने कार्य भार को स्वयं अपने पास रखता है तथा प्रबन्ध और संचालक की सम्पूर्ण क्रियाएँ स्वयं करता है तो उसे केन्द्रीकरण’ कहा जाता है। इसमें उत्तरदायित्व का वितरण अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच नहीं किया जाता है।

इसके ठीक विपरीत विकेन्द्रीकरण में अधिकार एवं दायित्वों का वितरण छोटी-से-छोटी इकाई को किया जाता है।

कीथ डेविस ने विकेन्द्रीकरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि “संगठन की छोटी-से-छोटी इकाई तक, जहाँ तक व्यावहारिक हो, अधिकार एवं दायित्व का वितरण विकेन्द्रीकरण कहलाता है।”

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि केन्द्रीकरण और विकेन्द्रीकरण दोनों अलग-अलग चीजें हैं और दोनों में स्पष्ट अंतर है।

प्रश्न 7.
प्रबन्ध के आधारभूत विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबन्ध की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह एक उद्देश्यपूर्ण क्रिया है।
  • यह एक सामाजिक प्रक्रिया है।
  • यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो निरंतर चलती रहती है।
  • यह एक क्रियाशील कार्य है।
  • यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
  • यह एक पेशा है।
  • यह कला एवं विज्ञान दोनों है।
  • यह मानवीय प्रयासों से संबंधित है।
  • इसका कार्य दूसरों से कार्य कराना है।
  • यह कार्य करने सम्बन्धी वातावरण उत्पन्न करने की युक्ति है।

प्रश्न 8.
पूंजी बाजार और मुद्रा बाजार में अंतर बताइए।
उत्तर:
पूँजी बाजार से अभिप्राय उस बाजार से है जहाँ पर दीर्घकालीन वित्त का क्रय-विक्रय या माँग और पूर्ति की जाती है। पूँजी बाजार वह केन्द्र है जहाँ पर दीर्घकालीन पूँजी की माँग एवं पूर्ति का परस्पर समायोजन होता है। यह वह स्थान है जहाँ पर किसी राष्ट्र की उधार देय पूँजी का संचय किया जाता है तथा जहाँ पर दीर्घकालीन पूँजी के साथ व्यवहार किया जाता है। इस बाजार में विशेष रूप से निजी उद्यमियों जिन्होंने नये औद्योगिक संस्थान या पुराने औद्योगिक संस्थानों के विस्तार के लिए दीर्घकालीन पूँजी की माँग की जाती है। दीर्घकालीन पूँजी की पूर्ति सरकार, अर्द्ध-सरकारी संस्थाएँ, व्यापारिक तथा औद्योगिक कंपनियाँ आदि करती है, जबकि उधार देने वालों में व्यापारिक बैंक, औद्योगिक वित्तीय संगठन तथा देशी साहूकार आदि आते हैं।

दीर्घकालीन पूँजी की माँग एवं पूर्ति का स्रोत पूँजी बाजार के अंतर्गत अंश, ऋण-पत्र आदि का क्रय-विक्रय होता है। इसके अंतर्गत दीर्घकालीन पूँजी का बड़े पैमाने पर व्यवहार किया जाता है। पूँजी बाजार संगठित और असंगठित होता है। पूँजी बाजार वित्तीय स्रोतों को प्रोत्साहन देता है। किसी भी देश की समृद्धि एवं प्रगतिशील अर्थव्यवस्था का बैरोमीटर. पूँजी बाजार है। शासन की नीति पूँजी बाजार को प्रभावित करती है।

भारतीय मुद्रा बाजार संगठित तथा असंगठित भागों का एक मिश्रण है। भारतीय मुद्रा बाजार के विभिन्न अंगों में एक ही समय पर ब्याज की भिन्न दरें विद्यमान रहती हैं। भारतीय मुद्रा बाजार के संगठित भाग में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया तथा इसके सात सहायक बैंक, विदेशी तथा भारतीय अनुसूचित बैंक सम्मिलित है। इसके अलावे बीमा कंपनी, अर्द्ध सरकारी संस्थाएँ तथा मिश्रित पूँजी कम्पनियों भी मुद्रा बाजार में उधारदाताओं के रूप में प्रवेश करती है। इन संस्थाओं के अतिरिक्त मुद्रा बाजार में ऋण दलाल, सामान्य वित्त एवं पूँजी दलाल तथा हामीदार भी वित्तीय मध्यस्थों के रूप में कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय मुद्रा बाजार में स्वीकृत व्यापार भी कोई विशेष मात्रा में नहीं होता है।

प्रश्न 9.
विपणन मिश्रण के आवश्यक तत्त्व क्या हैं ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण शब्द का प्रयोग जेम्स कुलिशन ने किया, जिसे नील एच. ब्राउन ने लोकप्रिय बनाया। ऐसे समस्त विपणन निर्णय जो कि विक्रय को प्रेरित या प्रोत्साहित करते हैं विपणन मिश्रण कहलाते हैं। विपणन मिश्रण के आवश्यक तत्त्व चार हैं जो P अक्षर से आरम्भ होते हैं। इसलिए प्रसिद्ध अमेरिकन प्रोफेसर जेरोम मेककारटी ने विपणन मिश्रण को चार ‘P’ कहा है, जो इस प्रकार है-

  1. उत्पाद (Product)- उत्पाद से आशय किसी भौतिक वस्तु या सेवा से है जिससे क्रेता की आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है।
  2. मूल्य (Price)- मूल्य से आशय किसी उत्पाद या सेवा के लिए ग्राहक से वसूल की जाने वाली मुद्रा से है।
  3. स्थान (Place)- स्थान से आशय उस स्थान से है जहाँ वस्तुएँ और सेवाएँ उचित मूल्य पर विक्रय के लिए रखा जाता है। बिना स्थान के विपणन संभव नहीं है।
  4. संवर्द्धन (Promotion)- संवर्द्धन से आशय उन सभी क्रियाओं से है जो ग्राहकों को उत्पाद या सेवा के सम्बन्ध में सूचना देने तथा उन्हें क्रय करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु सम्पन्न की जाती है। इन सभी का उद्देश्य उत्पाद या सेवा की बिक्री में वृद्धि करना होता है।

प्रश्न 10.
उपक्रम के चुनाव में साहसी को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
अथवा, व्यावसायिक उपक्रम के प्रवर्तन में ध्यान देने योग्य तत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर:
एक उपक्रम के चुनाव में साहसी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. व्यवसाय का चयन- जब साहसी या उद्यमी में कोई व्यावसायिक विचार उत्पन्न होता है उसी समय नए उपक्रम की स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो जाती है उसे व्यवसाय की लाभदायकता, उसमें सन्निहित जोखिम एवं आवश्यक पूँजी का विश्लेषण कर व्यवसाय का चयन करना चाहिए।

2. संगठन के प्रारूप का चुनाव- बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए कम्पनी प्रारूप और छोटे या मध्यम आकार के व्यवसाय के लिए एकांकी या साझेदारी प्रारूप उपयुक्त होता है। परन्तु आजकल छोटे एवं मध्यम वर्ग के उद्यमी भी कम्पनी प्रारूप को पसंद करते हैं, क्योंकि इसमें लोचनीयता एवं असीमित स्वीकृति का गुण होता है।

3. वित्तीय साधन- उद्यमी यदि पूँजी जुटाने में स्वयं सक्षम है तो उसे एकांकी व्यापार का उपक्रम चुनना चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो साझेदारी उपयुक्त होगी। किन्तु इससे भी अधिक पूँजी की आवश्यकता होने पर कम्पनी प्रारूप वाला उपक्रम ठीक होगा।

4. प्लाण्ट का स्थान निर्धारण- उद्यमी को व्यवसाय के लिए ऐसे स्थान की खोज करनी चाहिए जहाँ कच्चा माल, श्रम, शक्ति, बाजार एवं अन्य सहायक सुविधाएँ उचित मात्रा में उपलब्ध हो।

5. इकाई का आकार- यदि उद्यमी अपने उत्पाद की बिक्री एवं आवश्यक वित्त की व्यवस्था करने में समर्थ है तो बड़े पैमाने पर उत्पादन अच्छा विकल्प होगा।

6. संयंत्र विन्यास- संयंत्र विन्यास ऐसा होना चाहिए जो श्रमिकों, मशीन, औजार एवं स्थान का सर्वोत्तम उपयोग निश्चित कर सके।

7. श्रमशक्ति की उपलब्धता- उद्यमी को कुशल श्रमिकों को नियुक्त करना चाहिए, क्योंकि अच्छी श्रमशक्ति की उपलब्धता उपक्रम के सफल संचालन के लिए आवश्यक है।

8. प्रक्रियागत औपचारिकताओं की पूर्ति- एकांकी व्यापार एवं साझेदारी संस्थाओं को केवल सामान्य औपचारिकताएँ पूरी करनी होती है, किन्तु कम्पनी संगठन के अंतर्गत उद्यमी को रजिस्ट्रेशन, अंशों को सूचीबद्ध कराना, उत्पादों का रजिस्ट्रेशन कराना आदि औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती है।

9. उपक्रम आरम्भ करना- उद्यमी श्रम, सामग्री, मशीन, मुद्रा, प्रबंधकीय कौशल आदि की व्यवस्था कर संस्था की संरचना विकसित कर सकता है तथा प्रबंधक एवं कर्मचारियों के बीच कार्य का विभाजन करेगा। साहसिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए क्रियात्मक संगठन संरचना से काफी मदद मिलती है।

प्रश्न 11.
एक व्यवसाय की दीर्घकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वित्त के कौन-कौन से प्रमुख स्रोत हैं ?
उत्तर:
व्यवसाय में दीर्घकालीन कोषों की आवश्यकता सामान्यतः इसकी स्थिर पूँजी की प्रकृति की होती है।

दीर्घकालीन पूँजी प्राप्त करने के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-
(i) अंश- एक कम्पनी दीर्घकालीन एवं स्थायी वित्त प्राप्त करने के लिए समता एवं पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन कर सकती है।

(ii) ऋण पत्र- एक कम्पनी अपने वित्तीय साधनों को बढ़ाने के लिए ऋणपत्रों को जारी कर सकती है। ऋणपत्रों पर ब्याज की दर निश्चित हो सकती है। इसका शोधान एक निश्चित तिथि पर किया जा सकता है। इसका निर्गमन मूल्य निश्चित हो सकता है।

(iii) ऋण- व्यावसायिक संस्था बैंक या विशिष्ट संस्थाओं से ऋण प्राप्त कर सकती है। ऋण की स्वीकृति की शर्ते हो सकती हैं और स्वीकृत ऋण का सवितरण समय-समय पर किया जा सकता है।

(iv) प्राप्त लाभों का पुनर्विनियोग- यह अर्थ प्रबन्धन का आन्तरिक स्रोत है। बहुत सी संस्थाएँ अपने व्यवसाय के वित्त की व्यवस्था के लिए अवितरित लाभ, संचय आदि को पूँजी के रूप में प्रयोग कर लेती है। इसे लाभों का पुनर्विनियोग कहा जाता है।

प्रत्येक व्यवसाय को सर्वप्रथम अपनी दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की प्रकृति राशि, अवधि एवं उद्देश्य को चिह्नित करना चाहिए और तब संसाधानों का प्रयोग करना चाहिए ताकि उनका लाभप्रद उपयोग हो सके।

प्रश्न 12.
प्रबन्ध की प्रकृति का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रबंध की प्रकृति को निम्न रूप में समझ सकते हैं-
1. प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों है।
प्रबंध कला के रूप में,
प्रबंध को सामान्यतया कला समझा जाता है क्योंकि कला का अर्थ किसी कार्य को करने अथवा किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए ज्ञान एवं कुशलता का प्रयोग करना है। वास्तव में कला सिद्धांतों को व्यावहारिक रूप प्रदान करने की विधि है। जार्ज टैरी का कथन है कि “चातुर्य के प्रयोग से इच्छित परिणाम प्राप्त करना ही कला है।”

प्रबंध विज्ञान के रूप में,
व्यवस्थित ज्ञान जो किसी सिद्धांतों पर आधारित हो, विज्ञान कहलाता है। अर्थात् विज्ञान ज्ञान का वह रूप है जिसमें अवलोकन तथा प्रयोग द्वारा कुछ सिद्धांत निर्धारित किये जाते हैं। विज्ञान को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। वास्तविक विज्ञान और नीति प्रधान विज्ञान। वास्तविक विज्ञान के अन्तर्गत हम केवल वास्तविक अवस्था का ही अध्ययन करते हैं जबकि नीति प्रधान विज्ञान के अन्तर्गत हम आदर्श भी निर्धारित करते हैं। व्यावसायिक प्रबंध भी निश्चित सिद्धांतों पर आधारित सुव्यवस्थित ज्ञान का भंडार है। विद्वानों ने समय-समय पर अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है जो प्रबंध को विज्ञान की कोटि में रखने के लिए पर्याप्त उदाहरणार्थ, वैज्ञानिक प्रबंध, विवेकीकरण, विज्ञापन व बिक्री कला के सिद्धांत आदि।

प्रबंध विज्ञान एवं कला दोनों के रूप में, उपरोक्त अध्ययन करने के उपरांत हम कह सकते हैं कि प्रबंध कला और विज्ञान दोनों है। वास्तव में उसके वैज्ञानिक एवं कलात्मक रूप को अलग नहीं कर सकते हैं। सैद्धांतिक ज्ञान व्यावहारिक ज्ञान के बिना अधूरा है तथा व्यावहारिक ज्ञान सैद्धांतिक ज्ञान के बिना अपूर्ण है। अर्थात् एक कुशल प्रबंधक के लिए प्रबंध का ज्ञान और अनुभव दोनों आवश्यक है।

प्रबंध एक पेशा है। आधुनिक प्रबंध विद्वानों का मत है कि प्रबंध एक पेशा है तथा उसी रूप में उसका धीरे-धीरे विकास होता जा रहा है। उनके अनुसार विकसित शब्द जैसे अमरीका, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी अन्य उद्योग प्रधान देशों में व्यावसायिक प्रबंध एक तंत्र देश के रूप में विकसित हो चुका है तथा प्रबंधकों को उनकी प्रबंध योग्यता के आधार पर ही कार्य सौंपा जाता है। भारत में भी अब पूँजी प्रबंधकों का स्थान धीरे-धीरे पेशेवर प्रबंधक ग्रहण करते जा रहे हैं।

प्रश्न 13.
बतायें कि प्रबंधन को निर्णय लेने की प्रक्रिया के रूप में क्यों जाना जाता है ?
उत्तर:
एक व्यावसायिक उपक्रम का संवर्द्धन, परिचालन एवं विस्तार मुख्यतः प्रबन्धन की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। प्रबन्धन सदैव कुशलता के लिए चिन्तित व जागरूक रहती है। कुशलता प्राप्त करने के लिए प्रबन्ध निम्न कार्यों को सम्पन्न करता है-

  • नियोजन
  • संगठन
  • नियुक्तिकरण
  • निर्देशन
  • नियंत्रण
  • समन्वय

इसके अन्य कार्य भी है जैसे-सम्वादवाहन, प्रेरित करना एवं नेतृत्व प्रदान करना।

प्रबन्धन के इन सभी चरणों में निर्णयन या निर्णय लेना एक सतत समस्या है। यह किसी समस्या के समाधान हेतु विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ को चयन करने की प्रक्रिया है। प्रबन्ध में विभिन्न प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं और उनकी प्रकृति भी भिन्न-भिन्न होती है। ये निर्णय निम्न हैं-

  • उद्यमी के रूप में निर्णय- अवसरों की पहचान एवं चुनाव, नीतियों में परिवर्तन लाने की आवयश्यकता, उन परिवर्तनों को लागू करना।
  • धमकियों का सामना करना- गैर अनुमानित समस्याओं जैसे हड़ताल या दुर्घटना आदि से निपटने के लिए सुधार के उपाय करना।
  • संसाधनों के आवंटन के सम्बन्ध में निर्णय- संसाधनों का अनुमान लगाना, पर्याप्त संसाधान जुटाने के लिए इसकी आपूर्ति पर ध्यान देना।
  • संगठनात्मक प्रतिनिधि के रूप में निर्णय करना- अंशधारियों, कर्मचारियों, लेनदारों, समाज, व्यापारियों, सरकार तथा देश के हितों की रक्षा करना।

इस प्रकार प्रबन्धन निर्णय लेने की प्रक्रिया है। इसका अर्थ यह है कि विभिन्न विकल्पों में से उचित एवं सही विकल्प का चुनाव करना है ताकि आवश्यक कदम उठाया जा सके।

प्रश्न 14.
स्थायी (स्थिर) लाग्न तथा परिवर्तनशील लागत में अंतर बताइये।
उत्तर:
स्थायी लागत तथा परिवर्तनशील लागत में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Long Answer Type Part 1, 3

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 5 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 5 in Hindi

प्रश्न 1.
व्यवहार्यता अध्ययन क्या है ?
उत्तर:
सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यावसायिक लेन-देन के व्यवहार के अध्ययन को व्यवहार्यता अध्ययन कहा जाता है। वस्तु एवं सेवाओं की भविष्य में कुल माँग क्या होगी, परियोजना का बाजार अंश कितना होगा इत्यादि प्रश्नों से बाजार व्यवहार्यता सम्बन्धित होता है। इसके लिए विभिन्न सूचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक होता है। जैसे-पूर्व एवं वर्तमान की आपूर्ति की स्थिति, पूर्व एवं वर्तमान का उपभोग स्तर, आयात एवं निर्यात की स्थिति, माँग की लोच, प्रतियोगिता की स्थिति उपभोक्ता की पसंद और संतुष्टि तथा बाजार संबंधी नीतियाँ इत्यादि।

प्रश्न 2.
वातावरण अध्ययन के तीन उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
वातावरण अध्ययन के तीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • खतरा और अवसरों की पहचान- वातावरण अध्ययन से साहसी को व्यापार में आने वाले खतरे और सुनहरे अवसर का ज्ञान प्राप्त होते रहता है।
  • भविष्य का अवलोकन- वातावरण का अध्ययन प्रबंधक को भविष्य के अवलोकन में मदद करता है।
  • व्यूह रचना बनाने में- वातावरण विश्लेषण के द्वारा विविधीकरण तथा विकास और व्यवसाय में आने वाली समस्याओं का हल संभव हो पाता है।

प्रश्न 3.
विपणन मिश्रण के तीन तत्व लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन के तीन तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • उत्पाद-कम्पनी के उत्पाद में ऐसी गुणवत्ता होनी चाहिए जिससे उपभोक्ता की जरूरत पूरी हो सके।
  • संवर्द्धन- कई बार संभावनाएँ होती हैं कि उत्पाद बड़ा गुणवत्ता वाला होता है परन्तु उपभोक्ताओं में लोकप्रिय नहीं होता और परिणामस्वरूप बिक्री कम होता है। इसके लिए विज्ञापन समाचार पत्रों, रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन द्वारा किया जाता है।
  • मूल्य-मूल्य सामान्य रूप से उत्पादन के मूल्य का निर्माणकर्ता ही फैसला करते हैं। माल के मूल्य का निर्णय संगठन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

प्रश्न 4.
विज्ञापन के तीन कार्य बताइए।
उत्तर:
विज्ञापन वातावरण को प्रभावित करने वाले घटक निम्नलिखित हैं-

  • नये उत्पादों की जानकारी- लोगों को किसी नवनिर्मित वस्तु अथवा सेवा की बाजार में विद्यमानता की जानकारी देना एवं उन्हें आकर्षित करके माँग उत्पन्न करना विज्ञापन का महत्वपूर्ण कार्य है।
  • विक्रय वृद्धि करना- विक्रय वृद्धि करना विज्ञापन का एक महत्वपूर्ण कार्य है। व्यापारी हमेशा विक्रय में वृद्धि करना चाहता है जिसके लिए वह विज्ञापन का सहारा लेता है।
  • नये-नये बाजारों का सृजन एवं विकास करना- विज्ञापन का महत्वपूर्ण कार्य नये नये बाजारों का सृजन एवं उनका विकास भी करना है।

प्रश्न 5.
उद्यमी कौन है ?
उत्तर:
वाणिज्य व्यवसाय और उद्योग-धन्धों के क्षेत्र में जो व्यक्ति या व्यापारी जोखिम उठाते हुए साहस करके व्यवसाय को चलाता है, उसे ही उद्यमी कहा जाता है।

उद्यमी एक जड़ एवं मृतक अर्थव्यवस्था में नयी ऊर्जा का संचार करते हैं। वर्षों से निरन्तर घाटे पर चल रहे उद्योगों की पुनःस्थापना करता है। उसमें नवाचार, नियोजन तथा कुशल प्रबंध का संचार करता है और अन्ततः उसे लाभप्रद इकाई के रूप में परिवर्तित करता है।

रिचर्ड केण्टीलोन के अनुसार, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो किसी उत्पाद को अनिश्चित मूल्य पर बेचने के लिए निश्चित धनराशि देता है और तदनुसार उसे प्राप्त करने एवं साधनों का उपयोग करने का निर्णय लेता है।”

एफ० एच० नाइट के अनुसार, “उद्यमी विशिष्ट व्यक्तियों को वह समूह है जो जोखिम उठाते हैं और अनिश्चितता का सामना करते हैं।”

एफ० वी० हैने के अनुसार, “उत्पत्ति में निहित जोखिम उठाने वाला साधन ही उद्यमी है।”

प्रश्न 6.
उपक्रम क्या है ?
उत्तर:
उपक्रम से आशय ऐसी उपक्रम से है जिसमें अनिश्चित जोखिम, खतरा और हानि निहित होती है। उपक्रम इन्हीं वातावरण में जन्म लेता है और लाभार्जन व शक्ति प्राप्त करने के लिए संघर्ष करता है। वास्तव में, किसी भी व्यापारिक संस्था और औद्योगिक संस्था व्यापार तथा उद्योग को चलाने के लिए जब स्थापित की जाती है तो ऐसी व्यापार करने वाली संस्था को ही उपक्रम कहा जाता है। उपक्रम करने का उद्देश्य लाभ कमाना है और वाणिज्य व्यवसाय या उद्योग-धन्धों में सफलता प्राप्त करना है।

प्रश्न 7.
लेखांकन अनुपात के विभिन्न प्रकार कौन-कौन-से हैं ?
उत्तर:
लेखांकन अनुपात के विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं-

  • तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)
  • चालू अनुपात (Current Ratio)
  • स्कन्ध अनुपात (Stock Ratio)
  • स्वामित्व अनुपात (Proprietory Ratio)
  • आवर्त या बिक्री अनुपात (Turn over or sales ratio)
  • खर्चा अनुपात (Expenses Ratio)
  • आय अनुपात (Earning Ratio)
  • तरलता, शोधन-क्षमता या कार्यशील पूँजी अनुपात (Liquidity Solvency or Working Capital Ratio)
  • देनदार एवं लेनदार अनुपात (Debtors and Creditor Ratio)
  • विक्रय अनुपात (Sales Ratio)
  • लाभांश अनुपात (Dividend Ratio)
  • लागत अनुपात (Cost Ratio)
  • संचालन अनुपात (Operating Ratio)
  • विनियोजित पूँजी पर अनुपात (Return on capital employed)
  • पूँजी मिलान अनुपात (Capital Gearing Ratio)
  • सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Assets Turn over Ratio)
  • लाभ अनुपात (Profit Ratio)
  • लाभदायक अनुपात (Profitability Ratio)
  • निष्पादन अनुपात. (Activity Ratio)
  • वित्तीय स्थिति अनुपात (Financial Position Ratio)

प्रश्न 8.
प्रबन्ध की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्रबंध की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(i) प्रबन्ध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है- यदि हमारे सामने कोई उद्देश्य नहीं है तो प्रबंध की जरूरत नहीं है। अन्य शब्दों में, प्रबंध की आवश्यकता तब होती है जबकि प्राप्त करने के लिए कोई उद्देश्य हमारे पास हो। प्रबंधक अपने विशेष ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है। अतः प्रबंध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है।

(ii) प्रबंध सर्वव्यापक है- यदि किसी क्रिया में से प्रबंध को घटा दिया जाए तो शेष शुन्य बचता है। यहाँ किसी क्रिया का अर्थ व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक सभी प्रकार की क्रियाओं से है। यदि इन क्रियाओं को करने के लिए प्रबंध आवश्यक है। अतः प्रबंध सर्वव्यापक है।

(iii) प्रबंध एक समह क्रिया है- इसका अभिप्राय है कि संगठन की सभी क्रियाओं को करने वाला कोई एक व्यक्ति (प्रबंधक) नहीं होता है बल्कि यह तो अनेक व्यक्तियों (प्रबंधकों) का समूह होता है। अतः प्रबंध एक समूह क्रिया है।

प्रश्न 9.
विपणन के कोई तीन कार्यों को बताइए।
उत्तर:
विपणन के तीन कार्य इस प्रकार हैं-
(i) खरीदना और बेचना- विपणन में खरीदना पहला काम होता है। निर्माणकर्ता को उत्पादन के लिए कच्चा माल खरीदना होता है। थोक व्यापारी को फुटकर व्यापारी को ग्राहक के लिए माल खरीदना होता है। खरीदने का अर्थ है माल का स्वामित्व बदला जाना। इकट्ठा करना का मतलब है कि माल इकट्ठा करना और उसका रख-रखाव करना जिसे विभिन्न स्रोतों से खरीदा जाता है। बेचने का कार्य विक्रेता तथा ग्राहक दोनों के लिए बड़ा महत्त्वपूर्ण होता है। लाभ कमाने का उद्देश्य माल की बिक्री से ही पूरा होता है।

(ii) मानकीकरण/प्रमाणीकरण- विपणन में मानकीकरण एक नैतिक आधार स्वीकार हो गया है। मानक एक ऐसा माप है जिसे प्रायः तुलना के लिए आदर्श माना जाता है। मानक रंग, वजन, गुणवत्ता, गुण और उत्पादन के दूसरे तथ्यों के आधार पर निश्चित होते हैं। यह माल की खरीद या बिक्री के लिए लाभदायक होता है। माल को व्यापार चिह्न के आधार पर खरीदा जाता है जैसे कि BPL. TV. LG इत्यादि।

(iii) मण्डी विषयक सचना- विपणन का महत्त्व ऐसे ही समझा जा रहा है, जैसे कि मण्डियों और बड़ी मात्रा में उत्पादन का। मण्डी की स्थिति को देखकर ही विपणन के फैसले किए जाते हैं। इसलिए मण्डी शोध विपणन का एक आवश्यक अंग बन गयी है।

प्रश्न 10.
विपणन का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
मुरानी विपणन अवधारणा के अनुसार वस्तुओं के क्रय-विक्रय को ही विपणन कहते हैं किन्तु आधुनिक विपणन अवधारणा के अनुसार विपणन एक व्यापक शब्द है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की जाने वाली क्रियाओं से लेकर उनके विक्रय, वितरण और आवश्यक विक्रयोपरान्त सेवाओं तक को सम्मिलित किया जता है।

प्रश्न 11.
विज्ञापन के कोई तीन उद्देश्यों को बताइए।
उत्तर:
विज्ञापन के तीन उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • स्थिति की सचना देना- विज्ञापन का प्रथम उद्देश्य है ग्राहकों को एक विशिष्ट वस्तु को बाजार में लाने एवं उसके बाजार में उपलब्ध होने की सूचना देना।
  • माँग उत्पन्न करना- एक अन्य उद्देश्य नदी-वस्तु की माँग उत्पन्न करने हेतु लोगों को इसके लिए आकर्षित करना है। उत्पन्न माँग को निरंतर प्रचार के माध्यम से बनाए रखना विज्ञापन का उद्देश्य है।
  • माल के प्रयोग करने की शिक्षा देना- विज्ञापन न केवल नयी वस्तु के संबंध में लोगों को सूचना देता है बल्कि उन्हें उसके उपयोग की शिक्षा भी देता है।

प्रश्न 12.
बाजार व्यवहार्यता क्या है ? अथवा, बाजार विश्लेषण क्या है ?
उत्तर:
प्रस्तुत वस्तुओं या सेवाओं की भविष्य में कुल माँग क्या होगी, परियोजना का बाजार अंश कितना होगा यदि प्रश्नों से बाजार व्यवहार्यता या बाजार विश्लेषण संबंधित होता है। इसके लिए निम्न सूचनाओं का उपयोग आवश्यक होता है-

  • पूर्व एवं वर्तमान का उपभोग।
  • पूर्व एवं वर्तमान की आपूर्ति स्थिति।
  • आयात एवं निर्यात की स्थिति।
  • प्रतियोगिता की स्थिति।
  • माँग की लोच।
  • उपभोक्ता की पसंद एवं संतुष्टि।
  • विपणन नीतियाँ एवं व्यूह रचना।
  • लागत संरचना।

प्रश्न 13.
औद्योगिक क्षेत्र क्या है ?
अथवा, औद्योगिक क्षेत्र की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
वैसा क्षेत्र, जहाँ सरकार पिछड़ेपन को दूर करने के लिए उद्यमी को कई प्रकार के प्रोत्साहन देती है, औद्योगिक क्षेत्र कहलाता है। सरकार इसके लिए उद्यमी को ऊर्जा, जल, परिवहन, बैंक सुरक्षा आदि सुविधाएँ उपलब्ध कराती है।

औद्योगिक क्षेत्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यह उद्योग समूह विकसित करने की योजना है।
  • यह उपक्रमों को निश्चित स्थान पर स्थापित करने की योजना है।
  • यह उद्यमी को विभिन्न प्रकार के संसाधन उपलब्ध कराने का प्रयास है।
  • यह उन व्यक्तियों को समुचित ज्ञान एवं तकनीक उपलब्ध कराता है जिसके पास कोई औद्योगिक अनुभव नहीं है।
  • यह लघु उद्योग उपक्रम को सहायता प्रदान करने का समन्वित प्रयास है।

प्रश्न 14.
वितरण प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
उत्पादक अथवा निर्माणकर्ता अपने अंतिम उपभोक्ताओं तक वस्तु की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार के बिचौलिये की सहायता लेते हैं, जैसे-थोक व्यापारी, फटकर व्यापारी, अभिकर्ता आदि जिसे वितरण प्रणाली कहा जाता है। वितरण प्रणाली के अंतर्गत उन मध्यस्थों को शामिल करते हैं जो वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ता तक पहुँचाने में शामिल होते हैं। इसे वितरण चक्र भी कहा जाता है। वास्तव में, वितरण प्रणाली पाईप लाइन की भाँति है जो कि सही उत्पाद की सही मात्रा, सही स्थान तक जहाँ उपभोक्ता पहुँचाने के लिए कहे सही समय पर पहुँचाते हैं। इस वितरण प्रणाली को विपणन विधि के रूप में भी जाना जाता है।

प्रश्न 15.
समता अंश क्या है ?
अथवा, समता अंश के लाभों का उल्लेख करें।
उत्तर:
समता अंश किसी भी उपक्रम की वित्तीय संरचना का आधार होता है। समता अंशधारियों को लाभ प्राप्त करने एवं संचालक मण्डल के चुनाव में असीमित अधिकार होता है। किसी कम्पनी की सम्पत्ति में भी समता अंशधारियों को असीमित अधिकार होता है। साधारणतया कम्पनी अपनी पूँजी का अधिकतर भाग समता अंश निर्गत कर प्राप्त करती है। समता अंशधारियों को लाभांश, अधिमान अंशधारियों को लाभांश भुगतान के बाद दिया जाता है। कम्पनी के समापन की स्थिति में समता अंशधारियों को पूँजी का भुगतान अधिमान अंशधारियों के पूँजी भुगतान के उपरान्त किया जाता है। समता अंशधारियों को निम्न लाभ होते हैं-

  • लाभ में परिवर्तन के साथ लाभांश दर में भी परिवर्तन होते रहता है।
  • कम्पनी की सम्पत्तियों पर किसी प्रकार का भार उत्पन्न किए बिना समता अंशों का निर्गमन किया जा सकता है।
  • यह पूँजी का स्थायी स्रोत है तथा कम्पनी के समापन की स्थिति के बिना इसे लौटाना नहीं पड़ता है।
  • समता अंशधारी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं तथा उन्हें वोटिंग अधिकार होता है।

प्रश्न 16.
समामेलन को परिभाषित करें।
अथवा, समामेलन के लाभ-हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक विद्यमान उद्यम मिलकर एक बड़े उद्यम का निर्माण करते हैं तो उसे समामेलन कहा जाता है। समामेलन के निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  1. उत्पादन तथा विक्रय बढ़ाने में यह मदद करता है।
  2. यह साधनों का श्रेष्ठर उपयोग करता है।
  3. यह विभिन्न व्यावसायिक अवसरों द्वारा व्यवसाय को लाभ पहुँचाता है।
  4. यह रुग्ण उद्यम को स्वस्थ उद्यमों में समामेलत करने में सहायक होता है।

समामेलन के निम्न हानि भी होते हैं-

  1. कभी-कभी यह एकाधिकार को जन्म देता है जो समाज के हित में नहीं होता है।
  2. छोटे उपक्रम की तुलना में बड़े उपक्रम पर नियंत्रण अधिक कठिन होता है।

प्रश्न 17.
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। नियोजन के अन्तर्गत प्रत्येक प्रबंधक अपने अधीनस्थों की प्रक्रिया पर सर्वोत्तम ढंग से नियंत्रण स्थापित करने का प्रयत्न करता है। नियोजन को प्रभावी बनाने के लिए नियोजित ढंग से अधीनस्थों की क्रियाओं का माप भी किया जाता है। यही नहीं, बजट भी नियोजन का एक अंग है और साथ ही यह नियंत्रण का भी एक अंग है। अतः बजट द्वारा भी प्रबंधकीय नियंत्रण प्रभावी बनता है। परिणामस्वरूप प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 18.
एक उद्यमी की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
एक सफल उद्यमी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • व्यावसायिक अवसर, बाजार या उत्पादक को मान्यता देने की योग्यता
  • वित्तीय एवं गैर वित्तीय संसाधनों को संग्रह करने या जुटाने की क्षमता
  • विचारों को व्यावहारिक रूप देने की प्रति उत्साह
  • कार्य के प्रति समर्पण
  • विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य प्राप्त करने की इच्छा
  • उपभोक्ताओं की वास्तविक आवश्यकआतों एवं इच्छाओं को चिन्हित करने की क्षमता एवं उन्हें प्रभावशाली ढंग से पूरा करने के लिए पद्धतियाँ।
  • जोखिम एवं चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्पर रहना।
  • शीघ्रता से और सही निर्णय लेने के तत्परता।
  • दूर दृष्टि के लिए चतुराई, समृद्धि के लिए पूर्वानुमान एवं भावी नियोजन।

प्रश्न 19.
साहसी के तीन कार्य बताइए।
उत्तर:
साहसी के तीन कार्य निम्नलिखित हैं-

  • जोखिम उठाना- प्रत्येक साहसी का जोखिम वहन करना महत्वपूर्ण कार्य है।
  • व्यापार प्रबंध तथा निर्णय- साहसी का दूसरा कार्य व्यापार का प्रबंध तथा व्यापार संबंधी निर्णय का है।
  • व्यवसाय का चयन- एक साहसी को व्यापार का चयन करना भी महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यवसाय विभिन्न प्रकार के होते हैं उनमें से किसका चुनाव किया जाय वह उसकी योग्यता, पूँजी, व्यापार की प्रतियोगिता तथा उत्पाद की माँग आदि को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

प्रश्न 20.
प्रबंध कला है या विज्ञान, बताएँ।
उत्तर:
प्रबंध न ही कला है और न ही विज्ञान बल्कि यह कला और विज्ञान दोनों है। प्रबंध को कला और विज्ञान दोनों के रूप में समझा जाना चाहिए।

प्रबंध कला के रूप में- कूण्ट्ज ने प्रबंध को कला माना है और कहा है कि-

  • प्रबंध औपचारिक रूप से संगठित समूहों में व्यक्तियों के द्वारा तथा उनके कार्य कराने की कला है।
  • प्रबंध ऐसे वातावरण के निर्माण की कला है जिसमें लोगों को व्यक्तिगत रूप से कार्य करने की प्रेरणा प्राप्त होती है और सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पारस्परिक सहयोग की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।
  • प्रबंध ऐसी कला है जो कार्य के निष्पादन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करती है।
  • प्रबंध ऐसी कला है जो लक्ष्यों तक प्रभावशाली ढंग से पहुँचने की कुशलता को अनुकूलतम बनाती है।

प्रबंध विज्ञान के रूप में- कीन्स के अनुसार, “प्रबंध विज्ञान ज्ञान की वह शाखा है जो प्रस्तुत स्थिति का अध्ययन करते हुए कार्य और कारण में सम्बन्ध स्थापित करती है और आदर्श उपस्थित करती है।” विज्ञान का मुख्य कार्य कारण-परिमाण सम्बन्ध का अध्ययन करके उससे लाभदायक निष्कर्ष निकालना होता है। अत: यह एक ऐसा ज्ञान है जो अनुसंधान एवं परीक्षण के आधार पर व्यवस्थित होता है। प्रबंध निर्णय लेते समय अपने अनुभव को भी आधार बनाता है। दूसरे लोगों के अनुभव और सीमाओं पर विचार करके लागू करता है। कार्य को प्रारंभ करने से पहले नियोजन करता है और उसके कारण-परिणाम पर विचार करता है।

अतः उपरोक्त अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रबंध न ही कला है और न ही विज्ञान बल्कि प्रबंध कला और विज्ञान दोनों है।

प्रश्न 21.
कर्मचारी और साहसी कैसे भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
कर्मचारी और साहसी निम्नलिखित प्रकार से भिन्न होते हैं-
कर्मचारी:

  1. कर्मचारी किसी दूसरे का उत्पाद तथा अपनी सेवाएँ बेचता है।
  2. कर्मचारी केवल श्रमिक है। वह अपना श्रम बेचता है।
  3. कर्मचारी को कोई जोखिम नहीं होती है।
  4. कर्मचारी को मालिक के आज्ञा-नुसार कार्य करना पड़ता है।

साहसी:

  1. साहसी अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ बेचता है।
  2. साहसी दोनों है-श्रमिक और स्वामी।
  3. साहसी को सम्पूर्ण जोखिम होती है।
  4. साहसी एवं स्वतंत्र है उसे किसी से कोई आदेश नहीं लेना होता है।

प्रश्न 22.
किस्म नियंत्रण का महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
किस्म (गुणवत्ता) नियंत्रण के निम्नलिखित महत्त्व हैं-

  • ब्रॉड उत्पादन की अपनी ख्याति एवं छवि बनती है, जिससे बिक्री अधिकाधिक बढ़ती है।
  • यह निर्माताओं द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में कार्यरत कार्मिकों का दायित्व निर्धारण करता है और कर्तव्यों को निभाने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह लागतों का न्यूनीकरण, कार्यकुशलता, प्रमापीकरण, कार्यकारी शर्तों में वृद्धि करके संभव बनाता है।
  • इससे उत्पादक को पूर्व में ही उत्पादन लागत ज्ञात हो जाती हैं जो उसे उत्पाद की स्पर्धी कीमतें निश्चित करने में सहायक होती है।
  • उत्पादक तय कर सकता है कि उसके द्वारा निर्मित माल निश्चित मापदण्डों के अनुसार है। उसे प्रमाप लागत के निकटतम लाने हेतु प्रेरित करता है।

प्रश्न 23.
भौतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
आदमी, मशीन, सामग्री और धन उत्पादन के महत्वपूर्ण पहलू हैं। धन या पूँजी या वित्त को उद्योग का जीवन रक्त कहा जाता है। उद्यमी द्वारा वित्त के विभिन्न स्रोतों को जुटाने से पूर्व वित्तीय आवश्यकताओं का हिसाब लगाना या उन्हें निश्चित करना आवश्यक होता है। भौतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाले तत्व ये हैं-

  • स्थायी परिसंपत्तियों की लागत
  • चालू परिसंपत्तियों की लागत
  • वित्त पोषण की लागत।

प्रश्न 24.
प्रोजेक्ट रिपोर्ट क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाना बहुत आवश्यक है। इसकी आवश्यकता को निम्नलिखित विचार बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • योग्य कर्मचारियों की उपलब्धता की स्थिति जानना।
  • विपणन तकनीक, वित्त, कर्मचारी, उत्पादन आदि अनुमानित प्रदर्शन के संदर्भ में पूर्व में ही योजना बनाना है।
  • सही तकनीक का चुनाव करना।
  • पूँजी स्रोतों का सही पूर्वानुमान लगाना।
  • निवेश से अधिकतम लाभार्जन करने हेतु उत्पादन के विभिन्न घटकों के बीच समन्वय लाना।
  • सरकारी नियमों और अधिनियमों के पालन और क्रियान्वन को भली-भाँति जानना।

प्रश्न 25.
ब्रांड के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
व्यापार चिह्न किसी उत्पाद को पहचानने का जो किसी एक विक्रेता अथवा विभिन्न विक्रेताओं के समूह ने उस उत्पाद को अपने प्रतियोगियों से अलग पहचान बनाने से है। दूसरे शब्दों में, व्यापार चिह्न का उद्देश्य वस्तु की गुणवत्ता का बोध कराना है।

प्रश्न 26.
अल्पकालीन वित्त के क्या साधन हैं ?
उत्तर:
जब व्यवसाय को कुछ समय के लिए वित्त की आवश्यकता हो तो उसे अल्पकालीन वित्त कहा जाता है। अल्पकालीन वित्त बैंक के द्वारा या मित्रों के द्वारा या महाजनों के द्वारा दिया जा सकता है।

प्रश्न 27.
निर्यात उत्पादों के गुण नियंत्रण संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
जिसे वस्तु का निर्माण कर एक देश से दूसरे देश में भेजा जाता है, उसे निर्यात व्यापार कहते हैं। उद्यमी एक अच्छे किस्म के वस्तु का उत्पादन करता जाता है ताकि वस्तु की माँग बाजार के हो जब विदेश के बाजार की स्थिति को ध्यान में रखकर उद्यमी द्वारा नए उत्पाद का निर्माण निर्यात करने के लिए तैयार किया जाता है। निर्यात उत्पादों में कई प्रकार के सरकारी नियम को ध्यान में रखा जाता है ताकि निर्यात व्यापार में कोई अड़चन नहीं आए।

प्रश्न 28.
परियोजना में समयबद्धता क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
परियोजना में समयबद्धता आवश्यक है क्योंकि कोई भी साहसी या उद्यमी एक निश्चित समय सीमा के अंतर्गत निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करना चाहता है। किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि उसके एक निश्चित समय निहित हो। समय सीमा के अंदर ही कार्य-योजना या परियोजना बनाकर सफलता प्राप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, व्यवसाय में सफल होने के लिए समयबद्धता का होना आवश्यक है।

प्रश्न 29.
संवृद्धि को प्रभावित करनेवाला कोई तीन तत्व बताइए।
उत्तर:
संवृद्धि को प्रभावित करने वाले तीन तत्व ये हैं-

  • सही नीति का निर्धारण
  • विकास पर बल
  • उच्च तकनीकी सुविधा।

प्रश्न 30.
व्यावसायिक वातावरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक वातावरण या पर्यावरण का अर्थ उन समस्त बाहरी, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा तकनीकी शक्तियों से है जो कि व्यवसाय एवं उसके प्रचलन को प्रभावित करते हैं। वास्तव में, व्यावसायिक वातावरण का आशय व्यवसाय करने की दशाओं से है। जिस प्रकार के वातावरण रहता है उसी के अनुसार व्यापार को चलाया जाता है।

प्रश्न 31.
विपणन एवं विक्रय में कोई एक अन्तर बताएँ।
उत्तर:
विपणन से आशय ग्राहकों की आवश्यकताओं का अनुमान लगाने, उन्हीं के अनुरूप उत्पादन करने उन्हें ग्राहकों तक पहुँचवाने एवं संतुष्टि प्रदान करने से है। जबकि विक्रय से आशय वस्तुओं और सेवाओं को ग्राहकों को बेचने से है।

प्रश्न 32.
क्या प्रबंध को एक पेशा माना जाता है ?
उत्तर:
प्रबंध पेशे की कुछ विशेषताओं विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी चातुर्य, प्रशिक्षण एवं अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक व्यवस्था, सेवा भावना को (प्राथमिकता) तो पूरा करता है तथा कुछ अन्य विशेषताओं (प्रतिनिधि पेशेवर संघ का होना, आचार संहिता) का इसमें अभी पूरा विकास नहीं हुआ है। भारत में अभी प्रबंध का पेशे के रूप में विकास अपनी शैशवावस्था में है तथा धीमी गति से चल रहा है। जैसे-जैसे विकास की गति में तेजी आएगी वैसे-वैसे प्रबंध को पेशे के रूप में स्वीकृति मिलती जाएगी।

प्रश्न 33.
लागत को परिभाषित करें।
उत्तर:
किसी भी वस्तु के उत्पादन कार्य करने के लिए कुछ-न-कुछ लागत अवश्य लगती है। विभिन्न प्रकार के सामग्रियों और खर्चों का उपयोग करके उत्पादन प्राप्त किया जाता है। सामग्रियों के मूल्य और कुल खर्चों के योग को लागत कहा जाता है। इस लागत के आधार पर ही उत्पादन-कार्य होता है।

प्रश्न 34.
प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध का वह भाग है जो उद्यम के उद्देश्यों का नियोजन एवं उन उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों का निश्चय करता है। इसके अंतर्गत यह निर्णय किया जाता है कि क्या करना है। कैसे करना है, कब करना है तथा किसके द्वारा किया जाना है। इन सभी विषय में निर्णय लेना नियोजन कहलाता है।

किसी उद्यम या व्यावसायिक संस्था के प्रभावशाली नियंत्रण में नियोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। क्योंकि व्यावसायिक संस्था का नियंत्रण और संचालन करते समय नियोजन के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए यह निर्णय लेना पड़ता है। कि नियंत्रण करने के लिए क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है और किसके द्वारा किया जाना है। इन सभी बातों का निर्णय लेना पड़ता है। ऐसा होने से व्यावसायिक संस्था या किसी उद्यम का प्रभावशाली ढंग से नियंत्रण किया जा सकता है। परिणामस्वरूप उद्यम या व्यापार सफल होता है।

प्रश्न 35.
कार्यशील पूंजी के चक्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी उस पूँजी को कहा जाता है जिसकी आवश्यकता प्रतिदिन की व्यावसायिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होती है। चालू दायित्वों के ऊपर चालू संपत्तियों के आधिक्य को कार्यशील पूँजी कहा जाता है। इसकी आवश्यकता कच्चे माल को क्रय करने, वेतन तथा मजदूरी, किराया, विज्ञापन आदि खर्चों के लिए होती है। यह व्यवसाय के सफल संचालन के लिए आवश्यक है। किसी भी उद्यम या व्यापार के लिए कार्यशील पूँजी का होना आवश्यक है।

उद्यम या व्यापार में कार्यशील पूँजी का चक्र सदा चलता रहता है। कभी कार्यशील पूँजी कम रहती है तो कभी कार्यशील पूँजी बढ़ जाती है। क्योंकि व्यापार की प्रकृति यह है कि सभी समय व्यापार एक ढंग से नहीं चलते रहता है बल्कि तेजी और मंदी का दौर आते रहता है। परिणामस्वरूप कभी संपत्ति दायित्व की अपेक्षा बढ़ जाती है तो कार्यशील पूँजी का निर्माण हो जाता है। दूसरी ओर जब व्यापार में मंदी छाई रहती है और लाभ कम हो जाता है या कभी हानि भी हो जाती है तो कार्यशील पूँजी कम हो जाती है। व्यापार में यह चक्र सदा चलते रहता है।

प्रश्न 36.
वित्तीय संसाधन जुटाने के क्या स्रोत हैं ?
उत्तर:
वित्तीय संसाधन जुटाने के लिए दो तरह के स्रोत होते हैं-

  • दीर्घकालीन स्रोत तथा
  • अल्पकालीन स्रोत।

वित्तीय संसाधन जुटाने के दीर्घकालीन स्रोत-

  • अंशों का निर्गमन (Issue of Shares)
  • ऋणपत्रों का निर्गमन (Issue of Debentures)
  • लाभों का पुनः विनियोग
  • विशिष्ट वित्तीय संस्थाओं से ऋण जैसे-IFCI, IDBI आदि।

वित्तीय संसाधन जुटाने के अल्पकालीन स्रोत-

  • पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन।
  • जनता का निक्षेप (Public Deposits)
  • बैंक ऋण (Bank Loan)

प्रश्न 37.
स्थायी पूँजी की विशेषताओं को बताएँ।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की विशेषताएँ (Characteristics of Fixed Capital)-

  • इसका उपयोग स्थायी सम्पत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
  • यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
  • इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।
  • यह लागत संरचना को प्रभावित करती है।
  • इसमें अत्यधिक जोखिम होती है।
  • काफी समय व्यतीत हो जाने पर प्रत्याय (Return) प्राप्त होता है।
  • व्यवसाय का भावी मार्ग निर्धारित करती है तथा
  • दीर्घकालीन ऋणों के रूप में प्राप्त होती है।

प्रश्न 38.
साहसिक पूँजी या उद्यमी पूँजी क्या है ?
उत्तर:
जो व्यक्ति किसी नए व्यवसाय को शुरू करने का जोखिम उठाता है या साहस करता है उसे साहसी या उद्यमी कहते हैं। जब उस व्यवसाय को प्रारंभ करने में जो उद्यमी के द्वारा विनियोग के रूप में उद्योग या व्यापार में लगाया जाता है, तो उसे उद्यमी या साहसिक पूँजी कहा जाता है।

प्रश्न 39.
उपक्रम स्थापना को क्रियान्वित करने के किन्हीं दो चरणों की व्याख्या को ?
उत्तर:
उपक्रम स्थापना के क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न चरणों की क्रियाओं को पूरा करना पड़ता है। इसमें से दो चरण निम्नलिखित हैं-
(i) उत्पाद या उद्योग का चयन- उपक्रम स्थापना के क्रियान्वित करने के लिए उत्पाद या उद्योग का चुनाव करना पड़ता है। एक उद्यमी उस उद्योग की स्थापना करना चाहता है जिसे चलाने से अधिक लाभ की प्राप्ति हो सके।

(ii) वित्तीय प्रबंध- उपक्रम स्थापना को क्रियान्वित करने के लिए वित्तीय प्रबंध करने की आवश्यकता पड़ती है। एक उद्यम या उद्योग की स्थापना करने के लिए पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ती है क्योंकि पर्याप्त पूँजी रहने पर ही उद्योग या उपक्रम का व्यापार सफलतापूर्वक चल सकता है।

प्रश्न 40.
नियोजन में समयबद्धता क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
नियोजन में समयबद्धता आवश्यक है क्योंकि कोई भी साहसी या उद्यमी एक निश्चित समय-सीमा के अन्तर्गत निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहता है। किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य की प्राप्ति तभी हो सकती है जबकि उसके एक निश्चित समय निहित हो। समय-सीमा के अंदर ही नियोजन बनाकर सफलता प्राप्त किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में व्यवसाय में सफल होने के लिए समयबद्धता का होना आवश्यक है।

प्रश्न 41.
परियोजना मूल्यांकन के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
परियोजना मूल्यांकन का प्रमुख उद्देश्य यह होता है कि जो भी परियोजना बनाई गई है वह मानक स्तर पर बनाई गई है या नहीं इसकी पहचान या जाँच करना है। साथ ही, जो परियोजना बनायी गयी है वह लाभदायक है या नहीं इसकी भी जानकारी मूल्यांकन से होती है। एक साहसी या उद्यमी के लिए परियोजना का मूल्यांकन करना एक कठिन कार्य है साहसी के पास अनेक विकल्प विद्यमान है उन विकल्पों के आधार पर ही साहसी परियोजना की पहचान करता है। दूसरे शब्दों में साहसी स्थान, वातावरण, तकनीक कच्चा माल, संयंत्र और बाजार के आधार पर परियोजना का मूल्यांकन करता है।

प्रश्न 42.
अनुपात को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
अनुपात एक अंकगणितीय अभिव्यक्ति है जो दो सम्बन्धित एवं एक-दूसरे पर आंधारित मदों के मध्य सम्बन्ध को स्पष्ट करती है। परिभाषा के रूप में एक ही जाति के दो मात्राओं, राशियों अथवा अंकों के बीच ऐसे सम्बन्ध को अनुपात कहते हैं, जिससे यह स्पष्ट हो कि उनसे एक-दूसरे का कितना प्रतिशत, कितने गुना अथवा कौन-सा भाग है ?

प्रश्न 43.
लाभ मात्रा अनुपात क्या है ?
उत्तर:
लाभ मात्रा अनुपात संस्था को लाभ अर्जन क्षमता की माप है। यह वित्तीय कुशलता को दर्शाता है। सकल लाभ अनुपात शुद्ध लाभ अनुपात निवेश पर आय प्रति अंश आय उनके उदाहरण है और ये प्रतिशत में व्यक्त किये जाते हैं।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
बिचौलिए अथवा मध्यस्थ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
एक वितरण प्रणाली में मौलिक उत्पादक, अन्तिम क्रेता एवं कोई भी मध्यस्थ, जैसे थोक एवं फुटकर व्यापारी शामिल होते हैं। मध्यस्थ शब्द का अभिप्राय उन संस्थाओं एवं व्यक्तियों से सम्बद्ध है जो प्रणाली के मध्य स्थित, जोकि वस्तु के अधिकार को हस्तांकन/विक्रय बिक्री एजेन्ट अथवा कमीशन एजेन्ट के रूप में हस्तांकन अथवा विक्रय कर सके। माल के स्वामित्व अधिकार को लिए हुए मध्यस्थों को व्यापारी के रूप में विभाजित कर सकते हैं यथा मध्यस्थ एवं एजेन्ट मध्यस्थ। मध्यस्थ पहले स्वामित्व व अधिकार प्राप्त कर उसे आगे अपने तरीके से बिक्री करते हैं। एजेन्ट मध्यस्थ को ऐसा अधिकार प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 2.
अंश क्या है ?
उत्तर:
कम्पनी की पूँजी सम- मूल्य अनेक भागों में बाँटी जाती है, जिन्हें अंश कहते हैं। जे० फारवैल (J. Farwel) के अनुसार, “एक अंश, कम्पनी में अंशधारी की रुचि है जोकि एक मुद्रा राशि में मापा जाता है, प्रथम कम्पनी के दायित्व के रूप में, द्वितीय, उसकी रुचि का सूचक तथा .अंशधारियों के परस्पर सम्बन्ध की शर्तों का सम्मेलन है।” कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 2 (46) अंश को इस प्रकार परिभाषित करती है, “कम्पनी की अंश पूँजी का एक भाग एवं जिसमें स्टॉक भी सम्मिलित है जब तक कि स्टॉक एवं अंशों का अन्तर स्पष्ट अथवा समाविष्ट रखा जाए।”

प्रश्न 3.
ऋण पत्र क्या है ?
उत्तर:
एक कम्पनी दीर्घवित्त, सार्वजनिक उधार लेकर एकत्रित कर सकती है। ऐसे ऋण, ऋण पत्रों के निर्गमन द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं। ऋण पत्र, किसी ऋण की स्वीकृति है। थॉमस इवलिन (Thomas Evelyn) के अनुसार, “ऋण पत्र कम्पनी की सार्वमुद्रा के अंतर्गत एक प्रलेख है जो कम्पनी को मूलधन प्रदान करता है तथा उस पर एक निश्चित दर से ब्याज का भुगतान करने का अनुबंध है, जिसे प्रायः कम्पनी का स्थायी या परिवर्तनीय संपत्तियों पर प्रभार (charge) देकर प्राप्त किया जाता है तथा जो कम्पनी को दिए गए ऋण की स्वीकृति है।”ऋण पत्र का धारक कम्पनी का ऋणदाता होता है। ऋण पत्रों पर निश्चित दर पर ब्याज देने की व्यवस्था होती है। ऐसा ब्याज कम्पनी के लाभों पर एक भार होता है। जब ऋण पत्र सुरक्षित होता है, तब अन्य ऋणदाताओं की तुलना में उसे भुगतान प्राप्ति की प्राथमिकता भी प्राप्त है।”

प्रश्न 4.
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ता के हितों की रक्षा करने हेतु अर्द्ध-वैधानिक अधिकारियों जैसे जिला परिषद् (District Forum) राज्य एवं राष्ट्रीय कमीशन के गठन का प्रावधान करता है। इसका उद्देश्य है माल के विक्रेता से उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना। उपभोक्ता को सुरक्षा नशीले व खतरनाक वस्तुओं की आपूर्ति से हानि की सुरक्षा का अधिकार, माल की कीमत, किस्म की सूचना प्राप्त करने का अधिकार, प्रतिस्पर्धी कीमत पर विविध वस्तु पर पहुँच का अधिकार, अनुचित व्यापार व्यवहारों के विरुद्ध निवारण का अधिकार एवं उपभोक्ता शिक्षण का अधिकारों के प्रावधान है।

प्रश्न 5.
व्यावासायिक संवृद्धि की प्रकृति एवं आशय बतावें।
उत्तर:
संवृद्धि उपक्रम के बाजार में बने रहने तथा सफलता का प्रतीक है। यह उर्द्धगामी क्रमिक विकास है जो क्रियाओं के प्रारंभिक स्तर से प्रारंभ होता है।

व्यवसाय की संवृद्धि का आशय है-

  • फर्म की बेहतर ख्याति
  • बाजार के अंश में सुधार
  • पर्याप्त लाभदायकता
  • उपभोक्ता का विश्वास
  • व्यवसाय का विस्तार तथा उत्पाद विविधीकरण
  • प्रतिस्पर्धा का सामना करने की क्षमता
  • इकाई का दीर्घकालीन जीवन

संवृद्धि प्रदर्शित (इंगित) होता है-

  • परिचालन के स्तर में सुधार द्वारा
  • संसाधनों के बेहतर उपयोग द्वारा
  • उत्पादन की बढ़ती मात्र द्वारा
  • नई वस्तुओं व सेवाओं में वृद्धि से
  • नये बाजारों में प्रवेश से
  • लाभदायकता तथा उत्पादकता से
  • कार्य निष्पादन में प्रबन्धकीय कुशलता से।

प्रश्न 6.
व्यावसायिक प्रबंध में समविच्छेद-बिन्दु (B. E. P.) का क्या महत्व है?
उत्तर:
सम-विच्छेद बिन्दु उत्पादन एवं विक्रय का वह स्तर या बिन्दु है जहाँ पर व्यवसाय को न लाभ होता है न हानि होती है। अर्थात इस बिन्दु पर शून्य लाभ व शून्य हानि की स्थिति रहती है। यह वह बिन्दु है जहाँ लागत एवं आगम बराबर होते हैं।
(Cost = Revenue )

सम-विच्छेद बिन्दु के निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. यह उत्पादन की न्यूनतम मात्रा निर्धारित करने में सहायता करता है।
  2. यह बिक्री की न्यूनतम मात्रा के निर्धारण में सहायता करता है।
  3. यह उत्पादन में कमी या वृद्धि का व्यवस्था के लाभ पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाने में पथ-प्रदर्शक का कार्य करता है।
  4. यह विश्लेषण यह जानने में उपयोगी है कि किस उत्पादन से आय का अधिक अर्जन हो रहा है।
  5. वांछित लाभ की गणना में यह सहायक है।
  6. यह निर्णय प्रक्रिया को आसान बनाता है और निर्णय में शीघ्रता लाता है।
  7. यह वस्तु व सेवाओं के संशोधित विक्रय मूल्य के निर्धारण में सहायता करता है।

प्रश्न 7.
एक व्यवसाय में कार्यशील पूँजी की मुख्य आवश्यकताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
पूँजी व्यवसाय के परिचालन का आधार है।
पूँजी को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • स्थायी पूँजी
  • कार्यशील पूँजी

कार्यशील पूँजी की आवश्यकता व्यवसाय की निम्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करती है-

  • कच्चे माल तथा उपभोग वस्तुओं के क्रय के लिए।
  • अर्द्ध निर्माणी चरण के कार्य को पूरा करने के लिए।
  • निर्मित वस्तुओं को पूरा करने के लिए. ताकि वे विक्रय के लिए उपलब्धा हो सके।
  • दिन-प्रतिदिन के कार्यों की लागत या खर्चे को पूरा करने के लिए जैसे- मजदूरी, बिजली खर्च, बिजली बिल, टेलीफोन , डाक, किराया तथा अन्य आकस्मिकताओं को पूरा करने के लिए।
  • व्यवसाय की शोधन क्षमता को बनाये रखने के लिए।

प्रश्न 8.
बाजार वातावरण का अर्थ लिखें।
उत्तर:
बाजार वातावरण का अर्थ (Meaning of Market Environment)- वस्तुतः विपणन के कार्य एक निश्चित वातावरण में सम्पादित होते हैं। विपणन कार्य का निष्पादन करते समय विपणन वातावरण की सही-सही जानकारी आवश्यक होती है। विपणन मिश्रण भी एक निश्चित वातावरण में ही संभव होता है। विपणन वातावरण के सभी घटकों द्वारा भी विपणन प्रबन्ध को नियंत्रित करना संभव नहीं होता है।

विपणन वातावरण सूक्ष्म अध्ययन करने के बाद ही विपणन की व्यूह-रचना तैयार की जानी चाहिए। विपणन क्रिया को प्रभावित करने वाले मुख्यतः दो घटक होते हैं-नियन्त्रणीय घटक एवं अनियन्त्रणीय घटक, जो व्यवसाय को प्रभावित करते हैं। विपणन विभाग को चाहिए कि इन घटकों की सीमा में रहकर ही कार्य-निष्पादन करे।

प्रश्न 9.
बाजार मूल्यांकन क्या है ? बाजार मूल्यांकन करते समय एक उद्यमी को किन बातों पर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर:
वस्तुत: बाजार में उन वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है जिनकी माँग ग्राहक करते है। किन्तु यह निर्धारित करना कि ग्राहक क्या चाहते हैं, एक जटिल काम है। बाजार में विविध प्रकार के ग्राहक होते हैं। उनकी पृष्ठभूमि शिक्षा, आय, चाहत, पसन्द आदि के सम्बन्ध में अलग-अलग होती है। ये विजातीय ग्राहक उपक्रम के निकट एवं दूरस्थ में होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी माँगें भी भिन्न-भिन्न होती हैं। किसी भी उत्पादक के लिए असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है कि इन विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए विविध कोटि की वस्तुओं का उत्पादन करें। अतः एक उद्यमी को यह तय कर लेना चाहिए कि किस कोटि के ग्राहकों के लिए वह वस्तुओं का उत्पादन करना चाहता है। इस बात का निर्धारण कर लेने के बाद सम्बन्धित समूह के ग्राहकों की माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। इस सम्बन्ध में माँग-पूर्वानुमान से उद्यमियों को काफी मदद मिलती है।

बाजार मूल्यांकन करते समय एक उद्यमी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
1. माँग (Demand)- उत्पाद की पहचान कर लेने के बाद माँग का अनुमान लगा लेना चाहिए । माँग का अनुमान लगाते समय बाजार के आकार तथा उस क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए जहाँ वस्तुएँ अथवा सेवाएँ बेचनी हैं। उदाहरणतः वस्तुओं को स्थानीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बेचना। इतना ही नहीं, यह भी ध्यान में रखना आवश्यक होगा कि लक्षित उपभोक्ता कौन है ? उनकी पसन्द कैसी है ? रुचि कैसी है ? आदि।

2. पूर्ति एवं प्रतिस्पर्धा की प्रकृति (Supply and Nature of Competition)- बाजार मूल्यांकन करते समय साहसी द्वारा वस्तुओं की बाजार में पूर्ति एवं प्रतिस्पर्धा सम्बन्धी बातों का अध्ययन कर लेना चाहिए। जब किसी उत्पाद की माँग किसी मौसम विशेष से होती है तो उसका उत्पादन भी अनियमित ही करना चाहिए। वस्तुओं की पूर्ति करने वालों के बीच में प्रतिस्पर्धा भी होती है, अतः एक उद्यमी को प्रतिस्पर्धियों की उत्पादन क्षमता, पूर्ति बढ़ाने की क्षमता, वित्तीय स्थिति का ज्ञान तथा उनकी ख्याति का सही-सही अध्ययन कर लेना चाहिए। .

3. उत्पाद की लागत एवं कीमत(Cost and Price of the Product)- उत्पाद की पहचान करते समय उसकी लागत पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसी वस्तु की कीमत उसकी लागत पर ही निर्भर करती है। वस्तु की कीमत बाजार के ही अनुरूप निर्धारित की जानी चाहिए अन्यथा उद्यमी को किसी भी अन्य परिस्थिति में क्षति ही होगी।

4. परियोजना का नवीनीकरण तथा परिवर्तन(Project Innovation and Change)- बाजार आकलन के लिए योजना का नवीनीकरण एवं नवीन परिवर्तनों का अध्ययन आवश्यक होता है। इसके अतिरिक्त उन्हें तकनीकी लाभों को भली-भाँति समझ लेना चाहिए क्योंकि इनका प्रभाव वस्तु की गुणवत्ता, लागत तथा बिक्री मूल्य पर पड़ता है।

प्रश्न 10.
उद्यमिता क्या है ?
उत्तर:
उद्यमिता एक प्रक्रिया है-

  • निवेश एवं उत्पादन अवसर के पहचान करने की,
  • व्यावसायिक क्रियाकलापों के संगठन की,
  • संसाधनों जैसे श्रम, पूँजी, सामग्री तथा प्रबन्धन को गतिशील बनाने की,
  • सामाजिक निर्णय लेने की।

प्रश्न 11.
उपक्रम का प्रवर्तन अथवा विन्यास का वर्णन करें।
उत्तर:
एक उद्यमी वह है जो अपनी कल्पना को कार्यरूप में परिणत करे और वह कार्यरूप व्यावसायिक उपक्रम के प्रवर्तन से सम्बन्धित हो। एक उद्यमी व्यावसायिक अवसरों को ढूँढता है, इसके भविष्य का विश्लेषण करता है, व्यावसायिक विचार का सृजन करता है एवं संसाधनों जैसे-श्रम, मशीन, सामग्री, एवं प्रबन्धकीय कौशल आदि में गतिशीलता उत्पन्न कर नये उपक्रम की स्थापना करता है। अतः एक उद्यमी से प्रवर्तक के रूप में कार्य करने की आशा की जाती है। एक नये उपक्रम की स्थापना के सम्बन्ध में उसे साहसिक निर्णय लेने होते हैं। प्रवर्तक के प्रारम्भिक कार्य के अभाव में नये उपक्रमों के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।

जी० डब्ल्यू० गेस्टनबर्ग के अनुसार, “प्रवर्तन नये व्यवसाय के अवसरों की खोज के रूप में परिभाषित किया जा सकता है और उसके बाद कोष, सम्पत्ति एवं प्रबन्धकीय क्षमता को संगठित कर व्यवसाय में प्रयुक्त करना ताकि उनसे लाभार्जन हो सके।” इस प्रकार प्रवर्तक का आशय व्यवसाय अथवा उत्पाद के विचार का सृजन करना, व्यावसायिक अवसरों की खोज करना, जाँच-पड़ताल, एकत्रीकरण, वित्तीय व्यवस्था एवं उपक्रम को एक गतिमान संस्था के रूप में प्रस्तुत करना आदि से है।

प्रश्न 12.
परियोजना के चरणों का वर्णन करें।
उत्तर:
एक परियोजना विभिन्न चरणों से होकर गुजरती है। हालाँकि यह जरूरी नहीं है कि एकं परियोजना निम्नांकित चरणों से होकर गुजरे। परियोजना के प्रमुख चरणों को नीचे बताया गया है-

1. संकल्पना चरण (Conception Phase)- परियोजना से संबंधित विचारों का सृजन इस चरण में किया जाता है। परियोजनाओं की पहचान के पश्चात् उन्हें प्राथमिकता के आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। प्राथमिकता के आधार पर ही परियोजनाओं का चुनाव एवं विकास किया जाता है।

2. परिभाषा चरण (Definition Phase)- दूसरे चरण में प्रारम्भिक विश्लेषण किया जाना चाहिए। इस विश्लेषण में मार्केटिंग, तकनीकी, वित्तीय तथा आर्थिक पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है। इस विश्लेषण का उद्देश्य यह जानना होता है कि वित्तीय संस्थाओं तथा विनियोगकर्ताओं के लिए परियोजना कितनी आकर्षक है। इसके बाद परियोजनाओं की व्यवहार्यता जानने के लिए साध्यता अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन से गहन विश्लेषण के बाद एक अच्छी परियोजना तैयार की जा सकती है। इसके परिणाम को साध्यता प्रतिवेदन के रूप में रखा जाता है। परिभाषा चरण के बाद परियोजना कार्यान्वयन हेतु तैयार हो जाती है, परन्तु कार्यान्वयन से पहले कुछ योजना बनायी जाती है।

3. योजना एवं संगठन का चरण (Planning and Organising Phase)- इस चरण में परियोजना से संबंधित विभिन्न पहलुओं जैसे आधारभूत संरचना, अभियांत्रिकी अभिकल्पना, नित्यक्रम, बजट, वित्त आदि से सम्बन्धित एक विस्तृत योजना बनायी जानी चाहिए। परियोजना की , संरचना का सृजन इस प्रकार से करना चाहिए ताकि वह संगठन, मानव शक्ति, तकनीक, प्रक्रिया आदि से संबंधित हो तथा परियोजना प्रबंधक इसको आसानी से लागू कर सके।

4. क्रियान्वयन चरण (Implementation Phase)- इस चरण में विस्तृत अभियांत्रिकी, उपकरण, मशीनरी, सामग्री एवं निर्माण ठेके के संबंध में आदेश दिए जाते हैं। इसके पश्चात् दीवानी एवं अन्य निर्माण कार्य किया जाता है। इसके अलावा प्लांट का पूर्व परीक्षण तथा परीक्षण जाँच किया जाता है। अतः कार्यान्वयन चरण सबसे महत्त्वपूर्ण चरण है जिस दौरान परियोजना को आकार . मिलता है तथा उसे अस्तित्त्व में लाया जाता है।

5. अंतिम चरण (Clean-up Phase)- इस चरण में परियोजना की आधारभूत संरचना को खोल दिया जाता है तथा मशीनों को संचालक श्रमिकों के हवाले कर दिया जाता है। अर्थात् उत्पादन प्रारम्भ करने की तैयारी की जाती है। उपर्युक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि परियोजना के मुख्यतः तीन चरण होते हैं, क्योंकि योजना एवं संगठन चरण तथा अंतिम चरण, क्रियान्वयन चरण के ही भाग हैं।

प्रश्न 13.
परियोजना प्रबन्ध क्या है ?
उत्तर:
आधुनिक समय में परियोजना प्रबन्ध एक जटिल एवं तेजी से विकसित होने वाली धारणा एवं व्यवहार है। परियोजना प्रबन्ध को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है “परियोजना प्रबन्ध दिए गए समय एवं लागत में निश्चित परिणामों को प्राप्त करने के लिए प्रारम्भ से अंत तक योजना एवं निर्देशन की एक प्रक्रिया है।” इसलिए परियोजना प्रबन्ध आधुनिक समय की माँग है। अपने प्रस्तावित विनियोग से अच्छे परिणामों को प्राप्त करने के लिए उद्यमी को एक प्रभावशाली परियोजना प्रबन्ध का अनुसरण करना चाहिए। वास्तविकता में विनियोग की कुशलता दोनों समय एवं लागत व्यवहार के प्रभावशाली प्रबन्ध पर निर्भर करती है। किसी भी उद्यम की सफलता उसमें किए गए विनियोग से सफलतापूर्वक लाभों को बढ़ाने की क्षमता पर निर्भर करती है।

प्रश्न 14.
परियोजना पर्यावरण के आयामों का वर्णन करें।
उत्तर:
एक उद्यमी को उपयुक्त अवसरों की पहचान करने की जरूरत होती है। विभिन्न आयामों जैसे उत्पाद सेवा, तकनीक, उपकरण, उत्पादन का स्तर, बाजार, स्थान आदि के लिए. लोगों के विचार अलग-अलग होते हैं। उद्यमी के लिए इन आयामों के बीच चुनाव करना एक कठिन कार्य है। परियोजन विनियोगों के अवसरों की पहचान में अपने व्यवसाय के वातावरण को समझना एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। पर्यावरण के विभिन्न आयाम निम्नलिखित हैं-

  • व्यावसायिक वातावरण
  • औद्योगिक नीति
  • औद्योगिक विकास का नियम
  • विदेशी विनियोग के लिए नियमों का ढाँचा
  • औद्योगिक विकास के संवर्धन हेतु उठाए गए कदम
  • उदारीकरण एवं नई आर्थिक नीति आदि।

प्रश्न 15.
व्यवसाय नियोजन के उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
व्यवसाय नियोजन योजनाबद्ध एवं लचीला होना चाहिए ताकि आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन लाया जा सके। यह तभी संभव है जब प्रबन्धक व्यवसाय नियोजन तैयार करते समय दल के अन्य सदस्यों से विचार-विमर्श कर ले। व्यवसाय नियोजन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • कार्य का संचालन करने के लिए आधार की व्यवस्था करना तथा योजना में प्रत्येक भाग लेने वाले के बीच उत्तरदायित्व का निर्धारण करना।
  • नियोजन तैयार करने वाले दल के सदस्यों के बीच सम्प्रेषण एवं समन्वयन की व्यवस्था करना।
  • परियोजना में भाग लेने वालों को आगे (भविष्य) देखने के लिए प्रेरित करना।
  • परियोजना में भाग लेने वालों को शीघ्र कार्य-निष्पादन के लिए जागरूक करना जिससे नियोजन का कार्य समय पर पूरा किया जा सके।
  • परियोजना को लागू करने में उत्पन्न होने वाली अनिश्चितता को दूर करना।
  • संचालन की दक्षता में सधार लाना।
  • परियोजना के सम्बन्ध में आवश्यक सूचना प्रदान करना।
  • उद्देश्यों को समझने की समुचित व्यवस्था करना।
  • कार्य की देख-रेख एवं नियंत्रित करने का आधार तैयार करना आदि।

प्रश्न 16.
प्रबन्धकीय दक्षता का वर्णन करें।
उत्तर:
उपक्रम की सफलता में प्रबन्ध की अहम भूमिका होती है। वस्तुतः प्रबन्धकीय दक्षता के आभाव में परियोजना की सारी साध्यता शून्य हो जाती है। इसके विपरीत आर्थिक दृष्टिकोण से कमजोर परियोजना भी प्रबन्धकीय दक्षता की स्थिति में सफल हो सकती है। अतः किसी परियोजना का मूल्यांकन एवं विश्लेषण करते समय प्रबन्धकीय दक्षता को ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता है कि प्रबन्धकीय दक्षता के अभाव में बहुत सारे उद्योग-धंधे बीमार हो गये और कुछ तो बंद हो गये और अन्त बंद होने के कगार पर खड़े हो गये। यह स्थिति विशेषकर लघु-उद्योगों के सम्बन्ध में अधिक देखने को मिलती है।

प्रबन्धकीय दक्षता के अन्तर्गत केवल प्रवर्तकों की दक्षता का मूल्यांकन करना शामिल नहीं होता बल्कि महत्त्वपूर्ण कर्मचारियों, प्रशिक्षण व्यवस्था एवं पारिश्रमिक भुगतान की पद्धति आदि भी शामिल होते हैं।

प्रश्न 17.
स्थिर पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
अलग-अलग उपक्रमों में स्थिर पूँजी की आवश्यकता अलग-अलग होती है। स्थिर पूँजी की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. व्यवसाय के प्रकार (Type of Business)- व्यवसाय का आकार एवं प्रकृति पर निर्भर करता है कि कितनी स्थिर पूँजी की आवश्यकता होगी। निर्माणी संस्थाओं में स्थिर पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें भूमि, भवन, मशीन, औजार, फर्नीचर आदि क्रय करने होते हैं। इसी प्रकार सामाजिक उपयोगिता की संस्थाएँ जैसे-रेलवे, बिजली विभाग, जल आपूर्ति संस्थाओं में अधिक स्थिर पूँजी की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें स्थिर सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करना होता है। दूसरी ओर व्यापारिक संस्थाओं में चल सम्पत्तियों पर अधिक विनियोग करने की आवश्यकता होती है। इनमें कार्यशील पूँजी की अधिक आवश्यकता होती है।

2. व्यवसाय का आकार (Size of the Business)- व्यवसाय के आकार से भी स्थिर पूँजी प्रभावित होती है। बड़े व्यवसाय गृहों में बड़ी-बड़ी मशीनों की आवश्यकता होती है जिनके क्रय पर अधिक स्थिर पूँजी की आवश्यकता होती है।

3. उत्पादन तकनीक (Technique of Production)- स्थिर पूँजी की आवश्यकता संस्था द्वारा अपनायी गयी उत्पादन तकनीक पर निर्भर करती है। जिन संस्थाओं में गहन-पूँजी तकनीक अपनायी जाती है वहाँ स्थिर पूँजी की आवश्यकता अधिक होती है। इसके विपरीत जिन संस्थाओं में गहन-श्रम तकनीक अपनायी जाती है वहाँ स्थिर पूँजी की आवश्यकता कम होती है।

4. अपनायी गयी क्रियाएँ (Activities Undertaken)- संस्था द्वारा अपनायी गई क्रियाओं पर भी स्थिर पूँजी की आवश्यकता निर्भर करती है। यदि उत्पादन एवं वितरण दोनों प्रकार की क्रियाएँ अपनायी जाती हैं तो स्थिर पूँजी की आवश्यकता अधिक होगी। इसके विपरीत यदि केवल निर्माण अथवा व्यापारिक क्रियाओं का ही निष्पादन किया जाता है तो स्थिर पूँजी की आवश्यकता कम होगी।

प्रश्न 18.
कोष के प्रवाह का अर्थ एवं अवधारणा का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रवाह का आशय बहाव से है जिसके अन्तर्गत अन्तर्ग्रवाह एवं बाह्य प्रवाह दोनों शामिल होते हैं। कोष प्रवाह का आशय एक निश्चित अवधि में कोष में होने वाले अन्तर से है। कोष का प्रवाह तब माना जाता है जब लेन-देन के पूर्व के कोष में अन्तर हो जाये। यह परिवर्तन धनात्मक अथवा ऋणात्मक कुछ भी हो सकता है, अर्थात् कार्यशील पूँजी से कमी अथवा वृद्धि को कोष प्रवाह कहा जाता है। कार्यशील पूँजी को प्रभावित करने वाले लेन-देन कोष के स्रोत अथवा उपयोग के रूप में कार्य करते हैं।

व्यवसाय में विभिन्न लेन-देन किये जाते हैं। उनमें से कुछ कोष को बढ़ाते हैं तथा कुछ घटाते हैं तथा कुछ कोष पर कोई प्रभाव नहीं डालते हैं। यदि कोई लेन-देन कोष में वृद्धि करता है तो इसे कोष का स्रोत कहेंगे। उदाहरण के लिए व्यवसाय में पूर्व से विद्यमान कोष 25,000 रु० का है एवं बाद में 5,000 रु० का अंश निर्गमित होता है तो अब कुल 30,000 रु० (25,000+ 5000) को हो जायेगा। यहाँ अंश के निर्गमन से प्राप्त 5,000 रु० को स्रोत माना जाएगा। यदि लेन-देन से कोष में कमी होती है तो इसे कोष का प्रयोग कहेंगे।

उदाहरण के लिए पूर्व का कोष 25,000 रु० है एवं बाद में 5,000 रु० का उपस्कर खरीदा गया जिसके परिणामस्वरूप अब कोष 20,000 रु० (25,000 – 5,000) हो जायेगा। यहाँ उपस्कर के क्रय पर लगे धन,5.000 रु० को कोष का प्रयोग कहा जायेगा। यदि लेन-देन के परिणामस्वरूप कोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो इसे गैर-कोष लेन-देन कहेंगे। उदाहरण के लिए पूर्व का कोष 25,000 रु० है एवं बाद में 5,000 रु० की स्थायी सम्पत्ति अंशों के निर्गमन द्वारा क्रय किया जाता है तो कोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अर्थात् 25,000 रु० (25,000 + 0) ही रहेगा क्योंकि लेन-देन के दोनों पक्ष (नाम एवं जमा) गैर-चालू (Non-current) प्रकृति के हैं।

प्रश्न 19.
सम-विच्छेद विश्लेषण के लाभों का विश्लेषण करें।
उत्तर:
सम-विच्छेद विश्लेषण विभिन्न प्रबन्धकीय समस्याओं के हल में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है-

  • निर्माणी, प्रशासनिक, सामान्य, विक्रय एवं वितरण आदि व्ययों का नियन्त्रण।
  • एक नए उत्पाद की प्रवर्तनात्मक सम्भावना का मूल्यांकन करना।
  • मूल्य परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • मजदूरी दर में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • प्लाण्ट के आकार एवं प्रविधि में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • विक्रय मार्ग में परिवर्तन का लाभ एवं सम-विच्छेद बिन्दु पर पड़ने वाले प्रभावों का पूर्वानुमान करना।
  • संचालन एवं वित्तीय उत्तोलक का परीक्षण करना।
  • दो या दो से अधिक उपक्रमों की लाभदायकता की तुलना करना।
  • करारोपण के लाभ पर प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • व्यवसाय के संचालन, मितव्ययिता पर संचालन, संगठन एवं भवन संरचना के प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • कौन-सा उत्पाद सर्वाधिक लाभप्रद तथा कौन-सा सबसे कम लाभप्रद होगा ?
  • क्या किसी वस्तु की बिक्री या किसी संयंत्र या परिचालन बंद कर दिया जाए ?
  • क्या फर्म को स्थायी रूप से बंद कर दिया जाए आदि।

प्रश्न 20.
उत्पादन तकनीकों के विभिन्न प्रकार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वुड वार्ड (Wood ward) के अनुसार उत्पादन तकनीक के निम्नांकित वर्ग हैं-
1. इकाई एवं अल्प बैच प्रौद्योगिकी (Unit or small Batch Technology)- प्रौद्योगिकी के इस वर्ग के अन्तर्गत वस्तुएँ ग्राहक (माँग) आयामों के अनुसार उत्पादित की जाती हैं अथवा चतुर तकनीक विशेषज्ञों द्वारा अल्प मात्राओं में निर्मित की जाती हैं। ऐसी तकनीक का प्रयोग करने वाले संगठनों में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लि० (Hindustan Aeronatics Ltd.) जो भारत सरकार के लिए हैलीकॉप्टर बनाता है तथा डीजल लोकोमोटिव वर्कस, जो भारतीय रेलवे तथा अन्य देशों की रेल व्यवस्था हेतु डीजल इंजन बनाता है।

2. विस्तृत उत्पादन एवं बड़ी बैच प्रौद्योगिकी (Mass Production and Large Batch Technology)- इस प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत उत्पादन बड़ी मात्रा में किया जाता है। ऐसा जटिल तकनीक मारुति उद्योग लि० अथवा सुजुकी मोटर कार कम्पनी द्वारा स्वचालित वाहन बनाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

3. निरंतर प्रवाह प्रक्रिया प्रौद्योगिकी (Continuous Flow Process Technology)- प्रौद्योगिकी के इस वर्ग में उत्पाद एक निरन्तर रूपान्तरण प्रक्रिया में से होकर गुजरता है। यह प्रौद्योगिकी अधिक जटिल है तथा प्रक्रिया निर्माणी दवाइयों जैसे रसायन अथवा शुद्धीकरण कम्पनियों द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 21.
प्रबन्ध के क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबन्ध के क्षेत्र को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-
1. प्रबन्ध की विषय सामग्री (Subject Matter of Management)- इसके अन्तर्गत प्रबन्ध के विभिन्न कार्य आते हैं जैसे नियोजन, संगठन, कार्मिकता, निर्देशन एवं नियंत्रण जिनकी चर्चा पाठ में आगे की गई है।
2. प्रबन्ध का कार्यक्षेत्र (Functional Area of Management)- इस पक्ष के अन्तर्गत, प्रबन्ध के अन्तर्गत निम्नांकित कार्य क्षेत्र आते हैं-

  • वित्तीय प्रबन्ध (Financial Management)- इसमें व्यवसाय के वित्तीय पहलू सम्मिलित हैं जैसे लागत नियंत्रण, बजट नियंत्रण, प्रबन्धकीय लेखांकन आदि।
  • कार्मिक प्रबन्ध (Personnel Management)- इसमें एक उद्यम के कार्मिकों के विभिन्न पक्ष सम्मिलित हैं जैसे भर्ती, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदोचित, पदमुक्ति, औद्योगिक सम्बन्ध, सामाजिक सुरक्षा, श्रम कल्याण आदि।
  • उत्पादन प्रबन्ध (Production Management)- इसमें उत्पादन सम्बन्धी पहलू आते हैं जैसे उत्पादन नियोजन, नियंत्रण, किस्म नियंत्रण आदि।
  • कार्यालय प्रबन्ध (Office Management)- इसमें कार्यालय रूपरेखा, कार्मिकता, यन्त्र रूपरेखा आदि।
  • विपणन प्रबन्ध (Marketing Management)- व्यवसाय द्वारा उत्पादित उत्पाद के विपणन पक्षों से सम्बद्ध हो इसमें कीमत निर्धारण, वितरण प्रणालियाँ (Channels), विपणन अनुसंधान, विक्रय सम्वर्द्धन एवं विज्ञापन आदि आते हैं।
  • रख-रखाव प्रबन्ध (Maintenance Management)- इसका सम्बन्ध व्यवसाय की सम्पत्ति, प्लान्ट, मशीनरी एवं फर्नीचर के रख-रखाव एवं समुचित व्यवस्था से है।

प्रश्न 22.
वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन किन कारणों से करना आवश्यक है ?
उत्तर:
कुछ ऐसे कारण हैं जिनके चलते वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन करना आवश्यक है। ये कारण हैं-

  • संसाधनों का प्रभावशाली प्रक्षेप
  • वातावरण का लगातार अध्ययन
  • व्यूह रचना बनाने में सहायक
  • खतरों और अवसरों की पहचान
  • प्रबंधकों के लिए सहायक
  • भविष्य का अवलोकन करने में सहायक इत्यादि।

प्रश्न 23.
प्रबन्ध के उद्देश्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
साधनों का उचित उपयोग (Proper Utilisation of Management)- प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के विभिन्न साधनों का मितव्ययी ढंग से उपयोग करना है। व्यक्तियों, सामग्री, मशीनरी एवं मुद्रा के सही उपयोग द्वारा समुचित अर्जित लाभों से विभिन्न पक्षों को सन्तुष्ट करना प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य होता है। स्वामी प्रबन्ध से अधिक प्रत्याय की अपेक्षा करते हैं जबकि कर्मचारी, ग्राहक तथा जनता प्रबन्ध से अच्छे व्यवहार की आशा करते हैं। यह सभी हित तभी सन्तुष्ट होंगे जबकि व्यवसाय के भौतिक साधनों का सही उपयोग किया जाये।

2. सम्पादन सुधार (Improving Performance)- प्रबन्ध का लक्ष्य उत्पादन के प्रत्येक घटक का सम्पादन सुधारना है। वातावरण इतना विशुद्ध होना चाहिये कि श्रमिक अपनी अधिकतम क्षमता समर्पित करें। उत्पादन घटकों का समुचित लक्ष्य निर्धारण द्वारा उनका सम्पादन सुधारा जा सकता है।

3. श्रेष्ठतम चातुर्य मंथन (Mobilizing Best Talent)- प्रबन्ध को विभिन्न क्षेत्रों में व्यक्तियों को इस प्रकार लगाना चाहिए जिससे श्रेष्ठतम परिणाम प्राप्त हों। विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञों की नियुक्ति उत्पादन घटकों की कुशलता बढ़ायेगी; इसके श्रेष्ठ वातावरण निर्माण करने की आवश्यकता है ताकि अच्छे लोगों को उद्यम विशेष से जुड़ने की प्रेरणा मिले। श्रेष्ठ वेतन, उचित सुविधाएँ, भावी विकास सम्भावनाएँ अधिक व्यक्तियों को व्यवसाय में जुड़ने को आकर्षित करेगा!

4. भविष्य हेतु नियोजन (Planning for Future)- प्रबन्ध का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य योजना तैयार करना है। किसी भी प्रबन्ध को वर्तमान कार्य से सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए यदि वह कल की नहीं सोचता। भावी योजनाएँ यह तय करें कि आगे क्या करना है। भावी सम्पादन वर्तमान के नियोजन पर निर्भर करता है। अतः भविष्य के प्रति नियोजन किसी भी व्यावसायिक संस्था के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 24.
बाजार क्या है ?
उत्तर:
बाजार वह स्थान है जहाँ वस्तुओं के क्रेता एवं विक्रेता मुद्रा के बदले अपने उत्पादों का क्रय-विक्रय करने हेतु एकत्रित होते हैं। प्रत्येक व्यवसाय लोगों को कोई वस्तु अथवा सेवा बेचता है। परन्तु, प्रत्येक ग्राहक आपकी अथवा प्रतिद्वंदी की सेवाएँ क्रय नहीं करेगा। सक्षम ग्राहकों को निम्न तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है-

  • व्यक्ति जो उत्पाद अथवा सेवाएँ चाहते हैं,
  • व्यक्ति जो सेवाओं अथवा उत्पादों को क्रय करने योग्य हैं एवं
  • व्यक्ति जो सेवाएँ अथवा उत्पादों को क्रय करने के इच्छुक हैं।

उपरोक्त कथन निम्न प्रकार से समझाए जा सकते हैं-
Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 4, 1
लोगों का प्रत्येक वर्ग अनेक व्यक्तियों से जुड़ा हुआ होता है। परन्तु, बाजार केवल उन्हीं व्यक्तियों द्वारा घिरा होता है जो आपके द्वारा प्रस्तुत उत्पाद अथवा सेवाओं को क्रय करने के इच्छुक एवं सक्षम हैं।

प्रश्न 25.
माँग पूर्वानुमान अथवा बाजार माँग क्या है ?
उत्तर:
इसके पूर्व कि हम माँग पूर्वानुमान की चर्चा करें, हमें माँग का अर्थ समझना चाहिए।
माँग (Demand)- माँग का साधारण एवं सरलत्तम अर्थ है, ग्राहकों को वस्तु अथवा सेवाएँ क्रय करने की स्वीकृति एवं सामर्थ्य। अन्य शब्दों में, जब ग्राहक वस्तु अथवा सेवाएँ क्रय करने के योग्य होते हैं, हम कह सकते हैं कि उत्पाद अथवा सेवा की माँग उपलब्ध है।

फीलिप कोटहर (Philip Kottler) द्वारा, ‘बाजार माँग’ को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “बाजार माँग उत्पाद की वह कुल मात्रा है जो कि किसी एक ग्राहक वर्ग द्वारा एक भौगोलिक क्षेत्र, एक निश्चित समय में एक निश्चित विपणन वातावरण एवं एक निश्चित विपणन कार्यक्रम के अन्तर्गत क्रय की जाएँ।” ‘बाजार माँग’ को माँग पूर्वानुमान भी कहते हैं।

प्रश्न 26.
माँग पूर्वानुमान की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर:
माँग पूर्वानुमान की प्रमुख निम्न विधियाँ हैं-
1. सर्वेक्षण विधि (Survey Method)- यह किसी उत्पाद की भावी माँग अनुमानित करने की विस्तृत प्रयुक्त विधि है। यह विधि सम्भावी ग्राहकों, दुकानदारों एवं बाजार का इस विषय पर जान रखने वाले लोगों से प्राप्त सचनाओं के एकत्रण से है। सर्वेक्षण के अन्तर्गत सचनादाताओं की संख्या कम होने पर सूचना (अल्प संख्या की तुलना में) समस्त लोगों से एकत्र की जाती है। यदि सूचनादाता अधिक हों तो एक प्रतिनिधि संख्या से ही सर्वेक्षण अथवा साक्षात्कार द्वारा सूचना एकत्र कर ली जाती है। बाद वाली विधि ‘न्यादर्श सर्वेक्षण विधि’ कहलाती है।

2. सांख्यिकीय विधि (Statistical Method)- कुछेक सांख्यिकीय विधियाँ भी हैं जैसे “समय श्रेणी विश्लेषण” एवं प्रतीपगमन विश्लेषण (Regression analysis) विधियाँ जो उत्पाद की भावी-माँग का अनुमान लगाने में प्रयोग की जाती हैं। समय श्रेणी विश्लेषण उस समय प्रयोग किया जाता है जब उत्पाद की भावी माँग ज्ञात करने सम्बन्धी माँग के ऐतिहासिक आँकड़े उपलब्ध हों। प्रतीपगमन विश्लेषण का प्रयोग ऐसी अवस्था में किया जाता है जब आय एवं माँग में एक निश्चितं सम्बन्ध प्रस्तुत हो।

अग्रणी सूचक विधि (Leading Indicator Method)- यह विधि इस तथ्य पर आधारित है कि कुछ सूचक अन्य की तुलना में ऊपर अथवा नीचे हर्कत करते हैं। उनकी हलचल के अवलोकन द्वारा, वह घटना जो अनुसरण करे, उससे पूर्व निश्चित किया जाता है। ऐसी हलचल का एक उदाहरण बादलों का वर्षा द्वारा घटित होना है। इसी प्रकार, सरकार द्वारा ऑटोमोबाइल उत्पादन में वृद्धि करना, आटो पूर्जी, डीजल अथवा पेट्रोल की माँग में वृद्धि का सूचक है।

प्रश्न 27.
मध्यस्थ के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यस्थ कई प्रकार के होते हैं
1. व्यापारिक मध्यस्थ (Merchant Middlemen)- यह व्यापारी थोक विक्रेता एवं फुटकर व्यापारी है जो माल का स्वामित्व अधिकार प्राप्त कर, माल को पिछले स्तर से वितरण व्यवस्था में अगली प्रणाली तक पहुँचाते हैं। साधारणतः वह अपनी सेवाओं के लिए लाभ एवं बोनस प्राप्त करने के अधिकारी होते हैं। उल्लेखनीय है कि यह व्यापारी माल की सुपुर्दगी लेकर उसे क्रय/विक्रय करते हैं एवं जोखिम वहन करते हैं और उनके श्रम की कीमत उन्हें लाभ प्राप्त होते हैं। व्यापारिक मध्यस्थों के उदाहरण हैं। दुकानदार (dealer), थोक व्यापारी (wholesaler) एवं फुटकर प्रणाली (retailer) हैं।

2. एजेन्ट मध्यस्थ (Agent Middlemen)- यह मध्यस्थ निर्माता को सम्भावी ग्राहकों की पहचान करवाते हैं। वे माल/सेवा का अधिकार प्राप्त नहीं करते और न ही निर्माता के जोखिम। ऐसे मध्यस्थों में (विदेशी व्यापार से जुड़े/माल छुड़ाने/भिजवाने वाले एजेन्ट), ब्रेकर, जॉबर्स, फैक्टर्स, नीलामकर्ता, कमीशन एजेन्ट एवं विक्रय अभिकर्ता आदि आते हैं। अन्य शब्दों में, बिना वस्तु या सेवाओं के अधिकार लिए, निर्माताओं से वस्तुओं एवं सेवाओं को प्रयोगकर्ताओं को प्रस्तुत करने का कार्य करने वाले एजेन्ट मध्यस्थ कहलाते हैं। वास्तव में, वे निर्माताओं की ओर से कार्य करते हैं, कमीशन के लिए काम करते हैं तथा विपणन एवं खर्च आदि प्राप्त करने के अधिकारी हैं।

3. सुविधा प्रदाता (Facilitator)- यह वह स्वतन्त्र प्रतिनिधि है जो वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्माता से उपभोक्ता तक माल ग्राहकों को भिजवाने में सहायक सिद्ध होता है। ऐसी ऐजन्सी में यातायात, बैंक एवं बीमा कम्पनियाँ, कोरियर सेवाएँ, पोस्ट ऑफिस, गोदाम आदि सम्मिलित हैं। वह अपनी सेवा फीस चार्ज करता है जैसे भाड़ा व्यय, कमीशन, किराया आदि। परन्तु वे निर्माता की ओर से किसी भी बातचीत प्रक्रिया में शामिल नहीं होते और न ही उन्हें वस्तुओं का स्वामित्व अधिकार ही प्राप्त होता है।

प्रश्न 28.
विक्रय संवर्द्धन को विभिन्न परेभाषा दें।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन से अभिप्राय किसी ऐसी क्रिया, जोकि बिक्री बढ़ाने एवं ग्राहक के लिए माल का मूल्य बढ़ा सके। मूल्य सृजन, थोक अथवा खुदरा व्यापारियों को मात्रा बट्टा देकर उनका लाभ बढ़ाता है। अतः विक्रय संवर्द्धन विशिष्ट क्रय को प्रत्यक्ष रूप से उत्साहित करता है। यदि उद्यमी थोक विक्रेताओं के माध्यम से बढ़ावा देता है तो उद्यमी को उसके लिए विक्रय संवर्द्धन के प्रयास करने चाहिए, जिसके लिए उसे उपयुक्त वितरण प्रणाली का चयन करना पड़ता है।

विक्रय संवर्द्धन की परिभाषाएँ (Definitions of Sale Promotion)- अनेक लेखकों ने विक्रय संवर्द्धन की इस प्रकार परिभाषाएँ दी हैं-

  1. विलयम जे० स्टाटन (William J. Stanton) के अनुसार, “विक्रय संवर्द्धन सूचना, सुझाव एवं प्रभावित करने का एक अभ्यास है।”
  2. फिलीप कोटलर के अनुसार, “संवर्द्धन के अन्तर्गत विपणन मिश्रण के सभी यन्त्रों से है जिनका प्रमुख उद्देश्य विश्वास प्रेषण है।”
  3. अमरीकन विपणन परिषद् के शब्दों में, “व्यक्तिगत विक्रय, विज्ञापन एवं प्रसारण को छोड़ सभी विपणन क्रियाओं तथा प्रस्तुति-शो एवं प्रदर्शनी एवं अन्य विक्रय प्रयास जो साधारणतया न किए जाएँ जिनका उद्देश्य उपभोक्ता क्रय, एवं दुकानदार प्रभाविकता को बढ़ावा देना हो, को विक्रय संवर्द्धन कहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाएँ संक्षिप्त करती हैं कि विक्रय एवं संवर्द्धन मे सभी क्रियाएँ (विज्ञापन, व्यक्तिगत बिक्री एवं प्रसारण को छोड़) सम्मिलित हैं जिनका उद्देश्य बिक्री मात्रा बढ़ाना हो। विक्रय संवर्द्धन के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • विक्रय संवर्द्धन में विज्ञापन, व्यक्तिगत विक्रय एवं प्रसारण सम्मिलित नहीं हैं।
  • विक्रय संवर्द्धन क्रियाएँ नियमित क्रियाएँ नहीं हैं। यह बिल्कुल क्षणिक हैं और विशेष अवसरों जैसे, प्रदर्शन, निशुल्क नमूने आदि के द्वारा सम्पन्न की जाती हैं।
  • यह विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय को अधिक प्रभावी बनाती है।
  • विक्रय संवर्द्धन, दुकानदारों, वितरकों एवं उपभोक्ताओं को प्रोत्साहित करता है।

प्रश्न 29.
उद्यमिता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर:
उद्यमिता में निम्नलिखित सन्निहित हैं-

  • वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की प्रक्रिया
  • एक व्यावसायिक इकाई का निर्माण
  • संघटन, प्रेरणा, पहल एवं नेतृत्व
  • जोखिमों को स्वीकार करने के लिए निर्णय लेना
  • लाभ अर्जन करने के लिए वृद्धि एवं कौशल का उपयोग करना।

प्रश्न 30.
विक्रय संवर्द्धन के उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन क्रियाओं के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं-

  • किसी उत्पाद अथवा सेवा के सम्बन्ध में पूछताछ सृजित करना,
  • निशुल्क सैम्पल एवं अतिरिक्त समान देकर उत्पाद प्रयास सुनिश्चित करना,
  • प्रोत्साहन, कूपन, विशेष बिक्री सुझाव द्वारा ब्राण्ड वफादरी (Brand loyalty) विकसित करना,
  • नये ग्राहकों को फुटकर कूपन एवं प्रीमियम देकर उत्तेजित करना,
  • फुटकर व्यापारियों को अधिक स्टॉक रखने के लिए उन्हें अधिक रियायतें देकर प्रेरित करना,
  • व्यापारियों को, बिक्री मुकाबलों, विशेष कैश एवं व्यापारिक बट्टे आदि के माध्यम से संवर्धी सहायता देना,
  • फुटकर व्यापारियों को माल के आगम-निर्णयों को बढ़ावा देना,
  • उत्पादों को सशक्त बनाना एवं उनकी उपयोगिता बढ़ाना,
  • प्रतिद्वंद्वी क्रियाओं को विकसित करना एवं नये माल प्रस्तुत करने से पूर्व, स्टॉक बिक्री अभियान (Clearance Stock Sale) चलाना एवं
  • बिक्री को उत्साहित करना।

प्रश्न 31.
विज्ञापन क्या है ? इसकी विभिन्न परिभाषा दें।
उत्तर:
विज्ञापन किसी पहचानयुक्त प्रवर्तक द्वारा विचारों, माल अथवा सेवाओं की गैर-व्यक्ति प्रस्तुतीकरण अथवा संवर्द्धनात्मक स्वरूप है। विज्ञापन, उपभोक्ताओं को प्रस्तुत उत्पाद एवं प्रस्तुत सेवाओं के सम्बन्ध में तथा वस्तु निर्माता के विषय में भी तथ्य विज्ञापित करता है। इस प्रकार विज्ञापन सूचना को प्रसारित करता है। प्रस्तुत संदेश को विज्ञापन कहा जाता है। आजकल के विपणन. में विज्ञापन व्यावसायिक विपणन क्रियाओं का अभिन्न अंग है। विज्ञापन के बिना आधुनिक संसार में किसी व्यवसाय की कल्पना करना असम्भव है। हालाँकि विज्ञापन का स्वरूप व्यवसाय के अनुरूप भिन्न होता है।

अनेक विद्वानों द्वारा विज्ञापन को इस प्रकार परिभाषित किया गया है-

  1. हीलर के अनुसार (Wheller), “विज्ञापन, विचारों, वस्तुओं अथवा सेवाओं का गैर वैयक्तिक प्रदत्त स्वरूप है, ताकि लोग अधिक क्रय करें।”
  2. रिकर्ड बिस्कर्क (Ricard Buskirk) के अनुसार, “विज्ञापन, एक पहचाने हुए प्रवर्तक द्वारा, विचारों, वस्तुओं अथवा सेवाओं के शुल्क सहित प्रस्तुति का स्वरूप है।”
  3. सी० एल० बोलिंग (C.L. Bolling) के अनुसार, “विज्ञापन किसी वस्तु अथवा सेवा की माँग सृजित करने की कला के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं की विवेचना करने पर विज्ञापन की निम्नांकित विशेषताएँ उजागर होती हैं-

  • यह वस्तुओं एवं सेवाओं अथवा विचारों की एक व्यक्तियों के समूह के प्रति गैर वैयक्तिक प्रस्तुति है।
  • यह सभी व्यक्तियों के लिए कई संदेश लिये हैं।
  • संदेश वस्तु अथवा सेवाओं आदि की किस्म एवं उपयोगिता का होता है।
  • विज्ञापन सशुल्क एवं उत्तरदायी होता है।
  • विज्ञापन के पीछे विज्ञापक के इरादे के अनुसार आचरण करने के लिए प्रतिबद्ध करना है।

प्रश्न 32.
जीव विज्ञान और वातावरणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जीव विज्ञान एवं वातावरण के बीच गहरा सम्बन्ध है। इसी प्रकार, उद्योग धन्धों से भी वातावरण काफी सीमा तक प्रभावित होता है। उत्पादन प्रक्रिया से वातावरण की स्थिति उत्पन्न होती है। यह प्रदूषण विभिन्न प्रारूपों में हो सकता है जैसे-शोरगुल के रूप में, धुएँ के रूप में एवं दुर्गन्ध के रूप में। कुछ उपक्रम जीव-विज्ञान के दृष्टिकोण से घातक स्थिति उत्पन्न करने वाले होते हैं। कुछ अन्य कारण भी हैं, जैसे-जंगल का कटाव, अत्यधिक मोटरगाड़ी के प्रयोग का प्रचलन आदि जो मनुष्य एवं जानवरों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।

अतः साहसी को इस दैत्य रूपी प्रदूषण के प्रति अपने दायित्व को स्वीकार करना चाहिए तथा प्रदूषण पर नियन्त्रण रखने में अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए क्योंकि प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करता है। प्रदूषण के घातक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए साहसी को पूर्ण अनुशासित दायरे में रहते हुए ही अपने कार्य का निष्पादन करना चाहिए तथा वातावरण को स्वच्छ एवं अप्रदूषित रखने का हर सम्भव प्रयास करना चाहिए।

प्रश्न 33.
क्या उद्यमी जन्मजात होते हैं ? अपने विचार दीजिए।
उत्तर:
उद्यमी जन्मजात नहीं हैं। वे पर्यावरणीय घटकों के बीच विकसित होते हैं। एक उद्यमी में सृजनशीलता, नवप्रवर्तन, जोखिम उठाने की योग्यता, पहल करने की क्षमता, दृढ़ता, विश्वास एवं प्रतिबद्धता आदि जैसे तत्व धीरे-धीरे विकसित होते हैं और पर्यावरणीय घटक पर निर्भर करते हैं। उद्यमी शब्द उन लोगों के लिए होता है जो नये विचार उत्पादित करते हैं और अपनी स्वतंत्र पहल करके समाज को अतिरिक्त मूल्य प्रदान करते हैं। उनकी दृष्टि मिशन की ओर उन्मुख होती है। वे रचनात्मक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।

प्रश्न 34.
उद्यमी की नई एवं पुरानी अवधारणा क्या है ?
उत्तर:
पुरानी अवधारणा में उद्यमी को एक आर्थिक मनुष्य कहा जाता था जो हमेशा अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयत्न खोज करता है।

नई अवधारणा के अन्तर्गत उद्यमी उपक्रमों को संगठित करता है, पूँजी की व्यवस्था, अवसरों की खोज, नव प्रवर्तन, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना कार्यों को देखना व संगठित करना, प्रबन्ध का चयन करना आदि कार्य करते हैं। एक उद्यमी के लिए केवल लाभ प्राप्त की अवधारणाएँ शिथिल पड़ गई हैं। एक उद्यमी सामाजिक राष्ट्रीय उत्तरदायित्व को भी निभाता है।

प्रश्न 35.
विपणन क्या है ?
उत्तर:
विपणन में सभी क्रियाएँ या कार्यकलाप शामिल हैं जो उत्पादन के पूर्व से लेकर विक्रय पश्चात सेवा तक के होते हैं। विपणन उत्पादक तथा उपभोक्ता के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी है।

इसके दो उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • व्यावसायिक लाभों को अधिकतम करना।
  • ग्राहकों को अधिकतम संतुष्टि प्रदान करना।

विपणन ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं के अनुसार वस्तु और सेवाओं के उत्पादन की योजना बनाता है। विपणन लोगों की जीवन स्तर में सुधार लाने का प्रयास करता है। विपणन माँग और पूर्ति में संतुलन बनाये रखता है। विपणन अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करता है। जाहिर है. कि यह ग्राहकों के कल्याण पर ध्यान देता है।

प्रश्न 36.
प्रबन्ध जन्मजात प्रतिभा है या अर्जित प्रतिभा ?
उत्तर:
प्रबंध में व्यावहारिक ज्ञान, निपुणता, रचनात्मक उद्देश्य एवं अभ्यास द्वारा विषय जैसे प्रमुख तत्व समाहित रहते हैं। अतः प्रबंध एक ऐसा ज्ञान है जो अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के आधार पर व्यवस्थित होता है। प्रबंध निर्णय लेते समय अपने अनुभव को आधार बनाता है। दूसरे लोगों के अनुभव और सीमाओं पर विचार करके लागू करता है। कार्य का आरंभ करने से पहले नियोजन करता है और उसके कारण परिणाम पर विचार करता है। अत: हम कह सकते हैं कि प्रबंध अर्जित प्रतिभा है।

प्रश्न 37.
उद्यमिता की परिभाषा दें एवं इसके दो विशेषताओं को बताएँ।
उत्तर:
उद्यमिता एक प्रक्रिया है-

  • निवेश एवं उत्पादन अवसर के पहचान करने की
  • व्यावसायिक क्रियाकलापों के संगठन की
  • साधनों जैसे श्रम, पूँजी, सामग्री तथा प्रबंधन को गतिशील बनाने की
  • सामाजिक निर्णय लेने की।

उद्यमिता की दो विशेषताएँ निम्न हैं-

  • जोखिम उठाने की योग्यता
  • नये कार्यों की सोच।

प्रश्न 38.
व्यावसायिक अवसर शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक अवसर उद्यमी को किसी निश्चित परियोजना में विनियोग के लिए प्रोत्साहित करता है। एक उद्यमी व्यावसायिक अवसर द्वारा योजना को मूर्त रूप देने का प्रयास करता है। विभिन्न संभावनाओं का विश्लेषण कर उद्यमी. सर्वाधिक जोखिम वाली संभावनाओं का चयन करता है। व्यावसायिक संभावना व्यावसायिक अवसर तब कहलाती है जब वह व्यावसायिक दृष्टि से लाभप्रद एवं संभव हो। व्यावसायिक संभावनाओं को व्यावसायिक अवसर में बदलने के लिए उद्यमी को दो बातों का ख्याल रखना पड़ता है-

  1. अनुकूल बाजार माँग या बाजार में उपलब्ध आपूर्ति पर माँग का आधिक्य।
  2. विनियोग पर प्रत्याय सामान्य प्रत्याय दर एवं जोखिम प्रीमियम की दर के योग के बराबर होता है।

प्रश्न 39.
प्रबन्ध की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
प्रबन्ध की परिभाषा (Definition of Management)- प्रबन्ध के विभिन्न लेखकों ने प्रबन्ध शब्द को भिन्न-भिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। सम्बोधन के आधार पर प्रबन्ध की कुछ एक परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. मेरी पार्कर फॉलैट्टज (Mary Parker Follett) के अनुसार, “प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से काम लेने की कला है।”
  2. फ्रेड्रिक विन्सेला टेयलर (Frederick Winston Taylor) के अनुसार, “प्रबन्ध सर्वप्रथम यह ज्ञात करना कि आप व्यक्तियों से क्या (कार्य) करवाना चाहते हैं तथा पुनः यह निश्चित करना कि वे इसे किस प्रकार सस्ते एवं श्रेष्ठतम तरीके से करें।”
  3. पीटर एफ० डुक्कर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहुआयामी अंग है जो एक व्यवसाय-प्रबन्धक, श्रमिकों एवं कार्य की व्यवस्था करता है।”
  4. जार्ज आर० टैरी (George R. Terry) के अनुसार, “प्रबन्ध एक विशिष्ट प्रक्रिया है जिसके द्वारा नियोजन, संगठन, क्रिया-संचालन, कार्य नियंत्रण किया जाए तथा व्यक्तियों एवं साधनों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति को सुनिश्चित किया जाए।”
  5. हैरोल्ड कूज (Haroald Kohz) के अनुसार, “व्यक्तियों के जरिये एवं उनके द्वारा औपचारिक वर्गों के रूप में, कार्य सम्पन्न करने की कला है।”

इन परिभाषाओं के अवलोकन के पश्चात्, प्रबन्ध को अन्यों द्वारा कार्य सम्पन्न कराने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, यह विभिन्न कार्यों के निष्पादन तथा नियोजन, संगठन, समन्वयन, नेतृत्व एवं व्यावसायिक परिचालनों को इस प्रकार सम्पन्न करने की प्रक्रिया है ताकि व्यावसायिक फर्म के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो व्यावसायिक नियोजन से लेकर इसके वास्तविक संपादन तक व्यापक हो।

प्रश्न 40.
अवसर एवं उद्यमी के क्या संबंध है ?
उत्तर:
अवसर का अर्थ होता है किसी नयी व्यावसायिक परिस्थिति के अनुसार कुछ नया करना। अवसर की पहचान करना और उसके अनुसार कुछ नया काम ,करना उद्यमी के लिए लाभदायक होता है। साहसिक अवसर की पहचान करते हुए उद्यमी नव-सृजन की क्रियाओं को करता है और किसी नये उद्यम या उद्योग की स्थापना करता है। अवसर की पहचान करके काम करने से उद्यमी को अधिक लाभ होता है। अतः स्पष्ट है कि अवसर और उद्यमी का पारस्परिक संबंध है।

प्रश्न 41.
पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के किन्हीं तीन उद्देश्यों को बतायें।
उत्तर:
पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उन्नत वित्तीय निष्पादन हेतु संसाधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग प्राप्त करना।
  • व्यवसाय के क्षेत्रों एवं अवसरों की पहचान करना।
  • उपभोक्ता के व्यवहार बाजार प्रतिस्पर्धा, सरकार की नीति इत्यादि में निरंतर होने वाले परिवर्तनों पर पैनी निगाह रखना।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
सतत् विकास से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यवसाय, उपक्रमों और उद्योग-धंधों की प्रगति को निरंतर बनाए रखना ही सतत् विकास कहलाता है। संसाधनों का पूर्ण उपयोग करके सतत् विकास की गति को बनाए रखा जाता है जिससे देश की अर्थव्यवस्था का समुचित विकास होता है।

प्रश्न 2.
उदारीकरण क्या है ?
उत्तर:
उदारीकरण एक ऐसी नीति है जिसके अनुसार साहसी कोई भी उद्योग-धंधे स्थापित कर सकता है। कोई उत्पाद बना सकता है और लाभ कमा सकता है। इस संबंध में सरकार उदार बनी रहती है और अपना हस्तक्षेप नहीं करती है।

प्रश्न 3.
निजीकरण क्या है ?
उत्तर:
जब निजी क्षेत्र में उपक्रमों और उद्योगों को लगाया जाता है और उत्पादन-कार्य किया जाता है तो इसे निजीकरण कहा जाता है। इसमें कोई भी उद्यमिता या उद्योगपति अपना निजी उद्योग लगा सकता है। ऐसे उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं होते हैं बल्कि निजी क्षेत्र में रहते हैं।

प्रश्न 4.
वैश्वीकरण क्या है ?
उत्तर:
वैश्वीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अनुसार विश्व स्तर पर विभिन्न देशों का आपस में व्यापारिक और औद्योगिक संबंध बना रहता है। इसमें विश्वस्तर पर विभिन्न देश एक-दूसरे से निकट बने रहते हैं। इसमें विदेशी व्यापार अधिक होता है। विभिन्न देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक संबंध स्थापित रहता है।

प्रश्न 5.
विविधीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विविधीकरण का अर्थ है विभिन्न प्रकार के नए उत्पाद बनाना। उदाहरण के लिए टाटा समुदाय मुख्य रूप से लोहा एवं इस्पात उद्योग, रसायन, चाय, खाद, शक्ति, कपड़ा और ट्रक इत्यादि के लिए प्रसिद्ध था, लेकिन इस समुदाय ने अब नए क्षेत्रों में भी कदम रखा है, जैसे मोटरकार, कम्प्यूटर, गृह-निर्माण, वित्त और बीमा इत्यादि।

प्रश्न 6.
संगठन क्या है ?
उत्तर:
संगठन (Organisation) शब्द की उत्पत्ति ‘Organism’ से हुई है जिसका अर्थ शरीर के ऐसे टुकड़ों से है जो आपस में इस प्रकार संबंधित हैं कि एक पूर्ण इकाई के रूप में कार्य करते हैं। उदाहरणार्थ, मानव शरीर की रचना शरीर के विभिन्न अंगों (हाथ, पैर, मुँह, नाक, आँख, मस्तिष्क आदि) से हुई है। इन अंगों के निश्चित कार्य है। जैसे–हाथों का कार्य काम करना, मुँह का खाना, पेट का पचाना, आँखों का देखना, नाक का सूंघना, कान का सुनना।

ये सभी क्रियाएँ पारस्परिक रूप से एक-दूसरे अंग की क्रियाओं पर आश्रित रहती हैं। किन्तु इन विभिन्न अवयवों के अलावा मानव शरीर के मस्तिष्क में एक केन्द्रीय विभाग भी होता है, जो समस्त अंगों, की क्रियाओं को नियंत्रित करता है। इस प्रकार विभिन्न विभागों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित करने की कला को ही संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 7.
प्रबन्ध के महत्त्व के क्या कारण हैं ?
अथवा, प्रबन्ध क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर:
प्रबन्ध प्रत्येक संगठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्रियाकलाप है। निम्नलिखित कारणों से यह महत्त्वपूर्ण है-

  1. सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति में यह सहायक है।
  2. यह क्षमता में वृद्धि करता है।
  3. यह गतिशील संगठन का निर्माण करता है।
  4. यह व्यक्तिगत उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  5. यह समाज के विकास में सहायक होता है।

प्रश्न 8.
स्कन्ध विनिमय बाजार के क्या कार्य हैं ?
अथवा, स्कन्ध विनिमय बाजार के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
स्कन्ध विनिमय बाजार के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. प्रतिभूतियों में लेन-देन हेतु विपणन सुविधाएँ प्रदान करना।
  2. पूँजी बाजार में तरलता एवं गतिशीलता प्रदान करना।
  3. प्रतिभूतियों का उचित मूल्यांकन करना।
  4. व्यवहारों की सुरक्षा एवं उनमें समता प्रदान करना।
  5. पूँजी निर्माण में सहायता।
  6. बचतों को गतिशीलता प्रदान करना।
  7. मध्यस्थ के रूप में कार्य करना।
  8. सूचीयन द्वारा प्रतिभूतियों को सुदृढ़ता प्रदान करना।

प्रश्न 9.
विपणन मिश्रण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण उत्पादन, इसके वितरण के तरीके को बढ़ाना और इसका मूल्य निर्धारण के मिश्रण को कहा जाता है। यह कुछ ऐसे सोचे-समझे उपकरणों का समूह है जिनसे एक लक्षित मण्डी की आवश्यकताएँ पूरी की जाती हैं।

प्रश्न 10.
वित्तीय नियोजन के दो मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:
वित्त किसी भी व्यवसाय का जीवन-रक्त है। इसके बिना किसी व्यवसाय का संचालन नहीं हो सकता है। किसी भी व्यवसाय के वित्त का नियोजन ही वित्तीय नियोजन कहलाता है। इसके दो मुख्य उद्देश्य निम्नवत् हैं-

1. लाभों को अधिकतम करना- इसका मुख्य उद्देश्य व्यवसाय के लाभों को अधिकतम करना होता है। लाभों के अधिकतम होने के व्यवसाय का जीवन काल लम्बे समय तक बना रहता है। इससे व्यवसाय के स्वामियों को लाभ होता है। साथ-ही-साथ उसके एजेंटों को भी लाभ होता है।

2. जोखिमों को कम-से-कम करना- जोखिमों को कम करना भी इसका उद्देश्य है। जोखिम कम होने से व्यवसाय के स्वामी को व्यवसाय के संचालन में सुविधा होगी। साथ ही व्यवसाय का भी विकास होगा।

प्रश्न 11.
अवसर लागत तथा संयुक्त लागत क्या है ?
उत्तर:
अवसर लागत- अवसर लागत ऐसी लागत है जो किसी अन्य स्थान पर व्यय करने से भी प्राप्त हो सकती है। उदाहरण के लिए, अपनी इमारत (Building) को व्यवसाय में उपयोग कर लिया जाए तो किराया जो प्राप्त हो सकता था, यह अवसर लागत है। इस प्रकार की लागत को तभी ध्यान में रखा जाता है जब किसी परियोजना की लाभदायकता निकाली जाती है।

संयक्त लागत जब कभी सामग्री से दो या अधिक उत्पाद बनते हों, ऐसी लागत को सभी उत्पादों में बाँट देने को संयुक्त लागत कहा जाता है। उदाहरण के लिए, मिट्टी का तेल, ईंधन, गैस आदि कच्चे तेल से निकाले जाते हों तो संयुक्त लागत उस बिंदु तक होती है जहाँ से वे अलग अलग होती है। सामान्य लागत (common cost) और संयुक्त लागते (joint cost) एक-दूसरे के . साथ अदलती–बदलती रहती हैं।

प्रश्न 12.
नियंत्रण की प्रक्रिया में सम्मिलित विभिन्न कदमों को बताएं।
उत्तर:
नियंत्रण की प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम शामिल होते हैं-

  1. प्रमापों का निर्धारण करना।
  2. वास्तविक निष्पादन का मापन करना।
  3. वास्तविक निष्पादन की तुलना प्रमापों से करना और विचलन का पता लगाना।
  4. आवश्यकतानुसार उचित सुधारात्मक कार्यवाही करना।

प्रश्न 13.
अवसर कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
सामान्य तौर पर अवसर दो तरह के होते हैं-
(i) पर्यावरण में विद्यमान अवसर (Existing Opportunities in the Environment)- कुछ अवसर ऐसे होते हैं जो पहले से ही मौजूद होते हैं; जैसे-कागज, कपड़ा, जूता आदि का कारखाना स्थापित करके इसी पुरातनता में कुछ नवीनता लाना। यहाँ साहसी को कुछ नयापन (Something -new) लाने का प्रयास करते रहना है। इसी में वह ऐसे अवसर ढूँढता है कि विद्यमान किस कमी को कैसे दूर करके कुछ नई चीज बाजार में पेश की जाय ?

(ii) निर्मित अवसर (Created Opportunities)- ऐसे अवसर पहले से मौजूद नहीं होते बल्कि ये उपभोक्ताओं की रुचि, फैशन, तकनीकी परिवर्तन, परिस्थिति के अनुसार नित्य नये-नये रूप में जन्म लेते रहते हैं। जैसे-सूचना तकनीक में विकास के चलते टेलीविजन, कम्प्यूटर, सॉफ्टवेयर आदि के क्षेत्र में नये-नये उपकरणों का कारोबार, बायोटेक्नोलोजी के क्षेत्र में विकास के चलते नई बीमारियों की जाँच उपकरण, दवाओं आदि की आवश्यकतायें आदि नये-नये अवसर निर्मित करती हैं।

प्रश्न 14.
उद्यमिता के लिए बाजार मूल्यांकन क्यों आवश्यक है ?
उत्तर:
वस्तुत: बाजार में उन वस्तुओं को प्रस्तुत किया जाता है जिनकी माँग ग्राहक करते है। किन्तु यह निर्धारित करना कि ग्राहक क्या चाहते हैं, एक जटिल काम है। बाजार में विविध प्रकार के ग्राहक होते हैं। उनकी पृष्ठमा शिक्षा, आय, चाहत, पसन्द आदि के सम्बन्ध में अलग-अलग होती है। ये विजातीय प्राक. उपक्रम के निकट एवं दूरस्थ में होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी माँगें भी भिन्न भिन्न होती हैं।

किसी भी उत्पादक के लिए असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है कि इन विविध प्रकार के ग्राहकों के लिए विविध कोटि की वस्तुओं का उत्पादन करें। अतः एक उद्यमी को यह तय कर लेना चाहिए कि किस कोटि के ग्राहकों के लिए वह वस्तुओं का उत्पादन करना च.: इस बात का निर्धारण कर लेने के बाद सम्बन्धित समूह के ग्राहकों की माँग का अनुमान लगाया जा सकता है। इसलिए उद्यमिता के लिए बाजार मूल्यांकन आवश्यक है।

प्रश्न 15.
पैकेजिंग के चार कार्य बताइए।
उत्तर:
अधिकांश व्यक्ति उत्पाद सुरक्षा को ही पैकेजिंग का एकमात्र कार्य समझते हैं। वास्तव में ऐसा सोचना उचित नहीं है। बाटा इण्डिया अपने पैकेज से तीन कार्यों की अपेक्षा करता है- (i) उत्पाद सुरक्षा (Product Protection), (ii) उत्पाद की मूल्य वृद्धि (Increase in the Value of the Product) एवं (iii) उत्पाद का विज्ञापन (Product Advertisement)।

प्रश्न 16.
पर्यावरण के प्रति उद्यमी का दायित्व बताइए।
उत्तर:
उद्यमी वातावरण के सभी घटकों के प्रति उत्तरदायी है। यह नागरिक समुदाय, उपभोक्ताओं, कर्मचारियों, विनियोजकों, प्रतिस्पर्धी संस्थाओं, राजनीतिक या सरकारी व्यवस्था, अर्थव्यवस्था (राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय) आदि सभी वातावरण के घटकों के प्रति उत्तरदायी है। दूसरे शब्दों में, सभी उद्यमशील क्रियाओं के निर्णयों में इनके हितों को ध्यान में रखना जरूरी होता है।

प्रश्न 17.
सम-विच्छेद बिन्दु क्या है ?
उत्तर:
उद्यमी जो व्यवसाय में नया प्रविष्ट होता है, उसे तुरन्त लाभ नहीं होने लगता बल्कि कुछ दिनों तक उसे ‘न लाभ न हानि’ की नीति पर भी व्यवसाय चलाना पड़ता है। इसी नीति से सम्बन्धित आगणन (calculation) सम-विच्छेद विश्लेषण’ होता है जिसकी जानकारी रखना एक उद्यमी के लिये आवश्यक होता है।

बिक्री का वह बिन्दु जहाँ व्यवसाय को न लाभ न हानि, ‘सम-विच्छेद बिन्दु’ कहलाती है। यहाँ विक्रय मूल्य कुल लागत के बराबर होता है। कुल लागत में स्थायी (Fixed) तथा परिवर्तनशील (Variable) दोनों शामिल होते हैं। उद्यमी कोई भी बिक्री करते समय इस बिन्दु का ध्यान रखता . है क्योंकि इस बिन्दु से अधिक बिक्री लाभ प्रदान करेगी और इससे नीचे की बिक्री से हानि होगी।

प्रश्न 18.
उत्पाद मिश्रण क्या है ?
उत्तर:
उत्पाद से आशय किसी भौतिक वस्तु अथवा सेवा से है जिससे क्रेता की आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है। यह विपणन व्यूहरचना है जिसमें उत्पाद के अंगों का विवेचन एवं निर्णयन होता है। फिलिप कोटलर (Philip Kotler) के अनुसार, “उत्पाद क्रेता को संतुष्टियाँ अवकाश प्रदान करने की क्षमता वाले भौतिक सेवा एवं चिह्नात्मक विवरण का पुलिन्दा है।”

प्रत्येक व्यावसायिक फर्म उत्पाद विक्रय का कार्य करती है, भले ही कोई दिखाई दे या नहीं। उदाहरण के लिए, एक लॉण्डी जो कि धोने की सेवा का विक्रय करती है, उसी प्रकार उत्पाद में है जिस प्रकार एक फुटकर विक्रेता उन धुलाई वह लॉण्ड्री कर रही है। कोई भी उत्पाद का विक्रय करती है, वास्तव में, उस उत्पाद के सेवाओं का भी विक्रय करती है। एक उपभोक्ता इसलिए करता हैं क्योंकि उसको उस उत्पाद से एवं भौतिक संतोष प्राप्त होते हैं। अतः एक विक्रेता वास्तव में किसी उत्पाद का विपणन नहीं करता बल्कि उसके माध्यम से इन भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक संतोषों , का विपणन करता है।

प्रश्न 19.
नवप्रवर्तन क्या है ?
उत्तर:
नवप्रवर्तन का आशय है-

  • विद्यमान स्थिति का विश्लेषण
  • उपलब्ध संसाधनों का नया संयोजन
  • सृजनात्मक विचार एवं चतुराई
  • नई वस्तु व सेवाएँ प्रदान करनः।
  • उत्पादन की नई विधि का उपयाग करना।
  • उत्पादों के लिये नये बाजार खोलना।
  • कच्चे माल की पूर्ति के. नये स्रोत को प्राप्त करना।
  • औद्योगिक क्रियाओं का पुनर्गठन।

प्रश्न 20.
एक उद्यमी को अपने पदार्थों के विपणन हेतु क्यों उचित ध्यान देना चाहिए?
उत्तर:
विपणन आधुनिक व्यवसाय का एक आवश्यक कार्य है। इसमें विस्तृत प्रतिस्पर्धा, अत्यधिक विविधीकरण तथा अन्तर्राष्ट्रीय वितरण है।

विपणन पर उचित ध्यान देने की आवश्यकता निम्न लाभों के कारण है-

  • यह उपभोक्ताओं की संतुष्टि हेतु संसाधनों का उपयोग करने में व्यावसायिक इकाई को मदद करता है।
  • उपभोक्ता क्या चाहता है, उसके अनुसार उत्पादन करने में यह सहायता प्रदान करता है और लाभदायकता में वृद्धि करता है।
  • यह इकाई के दीर्घकालीन विकास, ख्याति, उत्कर्ष तथा जीवित रहने के लिए पथ प्रदर्शन करता है।
  • यह उत्पादन के विविधीकरण, जोखिम को न्यूनतम करने, उत्पाद-विशिष्टीकरण तथा ग्राहक समर्थन के अवसरों को प्रदान करता है।

प्रश्न 21.
कोष-प्रवाह विवरण व आय विवरण के एक अन्तर बताएँ।
उत्तर:
कोष-प्रवाह विवरण एक विशेष लेखांकन अवधि में चालू वर्ष व गत वर्ष के स्थिति विवरणों की तुलना करके शुद्ध कार्यशील पूँजी में होने वाले परिवर्तन की व्याख्या करता है जबकि आय विवरण एक अवधि विशेष की क्रियाओं का परिणाम प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 22.
गैस्-चालू सम्पत्तियाँ क्या होती हैं ? इनके उदाहरण दें।
उत्तर:
ऐसी-सम्पत्तियाँ जो व्यापार चलाने के उद्देश्य से खरीदी जाती है, बेचने के लिए नहीं, गैर चालू सम्पत्तियाँ कहलाती है। जैसे-ख्याति, भूमि, मशीनरी आदि।

प्रश्न 23.
पर्यावरण के सूक्ष्म परीक्षण के किन्हीं तीन उद्देश्यों को बताएं।
उत्तर:
पर्यावरण सूक्ष्म परीक्षण के तीन मुख्य उद्देश्य हैं-

  • उन्नत वित्तीय निष्पादन हेतु संसाधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग प्राप्त करना।
  • उपभोक्ता के व्यवहार, बाजार प्रतिस्पर्धा, सरकार की नीति इत्यादि में निरन्तर होने वाले परिवर्तनों पर पैनी निगाह रखना।
  • उभरती समस्याओं तथा संवृद्धि को सुरक्षित रखने की दिशा में रणनीति विकसित करना।
  • व्यवसाय के क्षेत्रों एवं अवसरों की पहचान करना।
  • प्रबन्धकीय निर्णयों को दिशा-निर्देश देना।
  • भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान करना तथा तद्नुसार समायोजन करना।

प्रश्न 24.
एक उपक्रम को सहायता प्रदान करने के लिए आवश्यक किन्हीं तीन तलरचनात्मक (इन्फ्रास्ट्रक्चर) सुविधाओं को बताएँ।
उत्तर:
बिना अनुकूल तलरचना (आधारभूत ढाँचा) के कोई भी उपक्रम सही ढंग से संचालित नहीं हो सकता है। यह व्यावसायिक कुशलता के लिए आवश्यक है।

आधारभूत ढाँचागत (तलरचनात्मक) सुविधाएँ उपक्रम को सहायता करने के लिए आवश्यक है। ये सुविधाएँ हैं-

  • उपयुक्त आकार एवं भूमि की स्थिति
  • संसाधनों के आगमन व बहिर्गमन के लिए परिवहन का पर्याप्त साधन
  • उचित संयंत्र एवं मशीनरी
  • निर्बाध रूप से विधुत की आपूर्ति
  • जल की उचित उपलब्धता
  • प्रशिक्षित एवं निपुण कारीगरों को प्राप्त करने के अवसर।

प्रश्न 25.
कोष प्रवाह विवरण क्या है ?
उत्तर:
कोष प्रवाह विवरण दर्शाता है-

  • एक विशेष अवधि में रोकड़ अन्तर्वाह एवं रोकड़ बहिर्वाह को
  • व्यवसाय द्वारा मुख्य स्रोतों को जिनसे कोष प्राप्त किये गये हैं और व्यवसाय में इन कोषों के प्रयोग की।
  • एक दी हुई अवधि में व्यवसाय की कार्यशील पूँजी में कमी या वृद्धि।
  • व्यवसाय की वित्तीय स्थिति में परिवर्तन के कारण।
  • संसाधनों की गति तथा वित्तीय परिणामों पर उसके शुद्ध प्रभाव।
  • व्यवसाय में कोषों को उगाहने एवं उपयोग के तरीके।
  • व्यवसाय की वित्तीय स्थिति की प्रमुख प्रवृति जिसका और विश्लेषण होना. आवश्यक है।
  • अधिक लाभप्रद तरीके जिनका प्रयोग लाभांश के निर्णय, निवेश निर्णय तथा वित्तीय निर्णयों में किया जा सकता है।

प्रश्न 26.
वित्त की व्यवसाय को क्या आवश्यकता है ?
उत्तर:
आधुनिक समय में वित्त की आवश्यकता व्यवसाय के लिए ठीक उसी प्रकार से है जिस प्रकार मनुष्य के जीवन के लिए रक्त की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार बिना रक्त के शरीर काम नहीं कर सकता है। उसी प्रकार बिना वित्त के व्यावसायिक क्रियाओं को चलाना कठिन होता है। अतः व्यवसाय के कार्यों को निरंतर गति से चलाने के लिए वित्त या पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 27.
व्यावसायिक सम्वृद्धि के मुख्य सूचक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
सम्वृद्धि प्रबंधन उद्यमी का मुख्य दायित्व है। व्यावसायिक संस्था में वित्तीय स्वस्थता और अनुकूल लाभ का होना आवश्यक है। व्यवसाय द्वारा प्राप्त विकास. या सम्वृद्धि स्तर निम्नलिखित घटकों द्वारा प्रदर्शित होती है-

  • लाभ का अधिकोष या बचत जिससे आगे की निवेश जरूरतें पूरी हो सकें।
  • परिसम्पत्तियों व जायदादों का मूल्य जो शोधान क्षमता एवं मजबूत स्थिति को प्रस्तुत करता है।
  • तकनीकी सुधार जिसमें उत्पादन के गुण एवं मात्रा में वृद्धि होती है।
  • चतुर एवं प्रशिक्षित कर्मचारी।
  • संगठनात्मक कार्यकुशलता।
  • बिक्री की बढ़ती मात्रा।

ये तत्व बाह्य कारकों से भी प्रभावित होते हैं। अतः ये सदैव बदलते रहते हैं। वे परिवर्तनशील हैं। इसलिए सम्वृद्धि स्थिर (Static) नहीं होती।

प्रश्न 28.
एक सफल उद्यमी के क्या गुण हैं ?
उत्तर:
एक सफल उद्यमी के निम्न लक्षण या गुण हैं-

  • व्यावसायिक अवसर बाजार या उत्पादक को मान्यता देने की योग्यता ( Talent)
  • वित्तीय एवं गैर वित्तीय संसाधानों को संग्रह करने या जुटाने की क्षमता (Ability)
  • विचारों को व्यावहारिक रूप (कार्यरूप) देने के प्रति उत्साह ( Zeal)
  • कार्य के प्रति समर्पण (Dedication)
  • विपरीत परिस्थितियों में भी लक्ष्य प्राप्त करने की इच्छा ( Desire)
  • उपभोक्ताओं की वास्तविक आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को चिह्नित करने की क्षमता एवं उन्हें प्रभावशाली ढंग से पूरा करने के लिए पद्धतियाँ
  • जोखिम एवं चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्पर रहना
  • शीघ्रता से और सही निर्णय लेने की तत्परता
  • दूर दृष्टि के लिए चतुराई, सम्वृद्धि के लिए पूर्वानुमान एवं भावी नियोजन।

प्रश्न 29.
एक उद्यमी की क्या मुख्य विशेषताएँ (लक्षण) हैं ?
उत्तर:
एक उद्यमी की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • भविष्य की अनिश्चितताओं की जोखित को उठाने की क्षमता।
  • लाभदायक अवसर के रूप में किसी नये उत्पाद के नवप्रवर्तन की क्षमता।
  • विद्यमान वातावरण के अनुरूप वस्तु और सेवाओं का निर्माण करना।
  • वांछित फल प्राप्त करने के लिए संगठन करने की क्षमता।
  • एक उच्च प्रतिस्पर्धात्मक बाजार की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता।

प्रश्न 30.
‘आदेश की एकता’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यह सिद्धांत प्रबंध का महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसका संबंध आदर्श प्राप्त करने वालों से है। “एक व्यक्ति दो स्वामियों की एक साथ सेवा नहीं कर सकता” की कहावत को प्रबंध पर लागू किया गया है तथा कार्य-कुशलता के लिए कर्मचारी को एक ही उच्चाधिकारी से आदेश मिलना चाहिए। संस्था के सफल संचालन एवं कार्य के कुशल संपादन के लिए यह आवश्यक है कि कर्मचारी विशेष को अधिकारी विशेष से ही आदेश प्राप्त हो। इस प्रकार एक व्यक्ति जो एक से अधिक व्यक्तियों से आदेश प्राप्त करता है। आवश्यक रूप से अकुशल, अनुशासनहीन, भ्रमपूर्ण तथा अनुत्तरदायी होता है।

प्रश्न 31.
एक नये व्यावसायिक उपक्रम का चुनाव करते समय किन-किन घटकों या कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए ?
उत्तर:
नये व्यावसायिक उपक्रम के चुनाव के संबंधा में निम्न घटकों या कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए-

  • परियोजना लागत को पूरा करने के लिए आवश्यक निवेश का आकार।
  • इकाई का स्थान जिससे प्रबंधन में सुविधा हो सके।
  • प्रस्तावित वस्तु और सेवाओं के उत्पादन के लिए आवश्यक तकनीकी स्तर।
  • कच्चे माल की आपूर्ति के स्रोत।
  • श्रम शक्ति की उपलब्धता, उपकरण के गुण जो उत्पादन प्रक्रिया को मदद करते हैं।
  • बाजार में प्रतिस्पर्धा की स्थिति।

प्रश्न 32.
प्रबंध के मुख्य कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यवसाय के साधनों के कुशल नियोजन, संगठन, निर्देशन एवं समन्वय ही प्रंबध है। प्रबंध के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. नियोजन-पहले से ही निर्णय करना कि क्या करना है, क्यों करना है, कहाँ करना है, कैसे करना है तथा किस व्यक्ति द्वारा करना है, इन सभी बातों पर ध्यान देते हुए प्रबंध के उक्त कार्य के लिए कार्यक्रम तैयार करना होता है, उद्देश्य एवं नीतियाँ भी निर्धारित करनी होती हैं। इसी को नियोजन कहा जाता है।

2. संगठन-संगठन का आशय योजना द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति करने वाले तंत्रों से है अतः संगठन कर्तव्यों को निर्धारित करता है। यह संबंध, उत्तरदायित्व तथा अधिकार निर्धारित करता है।

3. नियुक्तियाँ-प्रबंध के इस कार्य के अन्तर्गत आवश्यक पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति करना और उनको आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है।

4. निर्देशन-प्रबंध का एक महत्वपूर्ण कार्य निर्देशन है। अतः दूसरे व्यक्तियों से कार्य कराने के लिए यह आवश्यक है कि उनके कार्यों को निर्धारित उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक दिशा-निर्देश दिया जाए।

5. नियंत्रण कार्य सही ढंग से निष्पादित हो रहा है या नहीं इसके लिए नियंत्रण की आवश्यकता होती है। कार्य निष्पादन का मूल्यांकन, कार्य के स्तर में सुधार के लिए उपाय करना इस कार्य के प्रमुख अंश हैं।

प्रश्न 33.
बाजार अवलोकन क्या है ?
उत्तर:
विभिन्न उत्पाद सम्बन्धी ज्ञान बाजार सर्वेक्षण से प्राप्त हो सकता है। संकलित सूचनाओं के आधार पर विभिन्न उत्पादों की भावी माँग एवं पूर्ति का विश्लेषण किया जा सकता है। भावी अनुमानित माँग की जानकारी के बाद संभावित परिवर्तन, कीमत, फैशन, आय-स्तर, प्रतिस्पर्धा, तकनीक इत्यादि के सम्बन्ध में आवश्यक प्रावधान किये जा सकते हैं। उत्पादों की भावी माँग के सम्बन्ध में अनुभवी विक्रेताओं, विज्ञापन एजेंसियों, वाणिज्य परामर्शदाताओं आदि की राय ली जा सकती है। इस प्रकार संकलित सूचनाओं के आधार पर एक भावी प्रवर्तक एक ऐसे उत्पाद का चुनाव कर सकता है जिसकी भावी माँग अधिक हो और अन्ततः लाभप्रद हो।

प्रश्न 34.
उपभोक्ता सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी व्यवसाय की सफलता भावी उपभोक्ताओं के ऊपर निर्भर करती है। उपभोक्ता सर्वेक्षण के माध्यम से उनकी रुचि, फैशन, पसन्द, गैर-पसन्द, वे कब खरीदेंगे, कहाँ खरीदेंगे, कितनी कीमत पर खरीदेंगे सम्बन्धी सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इस प्रकार, कोई ऐसा उत्पाद बाजार में प्रस्तुत किया जाना चाहिए जो ग्राहकों (उपभोक्ताओं) की चाहत के अनुकूल हो। उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया जानने के लिए स्वाद-परीक्षण की तकनीक अपनायी जानी चाहिए।

इससे उत्पाद की कमियों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है और जिन्हें उत्पाद को बाजार में प्रस्तुत करने के पूर्व समाप्त किया जा सकता है। प्रारम्भ में किसी कम्पनी को एक या दो उत्पादों को ही बाजार में प्रस्तुत करना चाहिए तथा उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया जानने के बाद ही उत्पादों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए अन्यथा कम्पनी को भारी क्षति हो सकती है।

प्रश्न 35.
विपणन वातावरण की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
विपणन वातावरण की परिभाषाएँ (Definitions of Marketing Environment) विपणन वातावरण की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. कोटलर एवं आर्मस्ट्राँग के अनुसार, “किसी कम्पनी के विपणन वातावरण का सामंजस्य उन समस्त बाह्य घटकों एवं शक्तियों से है जिनका सम्बन्ध विपणन प्रबन्ध की क्षमता को वांछित उपभोक्ताओं के साथ विकसित करने से होता है।”
  2. क्रेवेन्स एवं अन्य के अनुसार, “विपणन वातावरण, जिसमें विपणन प्रबन्ध के बाह्य कार्यों का निष्पादन किया जाता है जो अनियंत्रित निर्णय लेने से सम्बन्धित एवं बदलाव तथा सुधारात्मक प्रकृति के होते हैं।”

प्रश्न 36.
नेटवर्क तकनीक क्या है ?
उत्तर:
नेटवर्क तकनीकें पारम्परिक दण्ड-चार्ट की तुलना में अधिक परिस्कृत हैं। यह एक तकनीक है जो परियोजना क्रियाओं, घटनाओं एवं उनके बीच सम्बन्ध को नेटवर्क डायग्राम के माध्यम से प्रस्तुत करती है। नेटवर्क तकनीक जटिलता परियोजनाओं को शुरू से अंत तक, तैयार करने के रूप में जाना जा सकता है, हालाँकि यह कार्य कागज के टुकड़े पर डायग्राम के आधार पर किया जाता है। यह तकनीक शिक्षाप्रद एवं प्रकटित दोनों हो सकती है। यह शिक्षाप्रद है क्योंकि इससे यह पता चलता है कि दूसरे क्रियात्मक विभाग के कार्य कैसे पूरे किये जाते हैं। यह प्रकटित भी है क्योंकि यह परियोजना की रूप-रेखा को भी स्पष्ट करती है।

प्रश्न 37.
स्थिर पूँजी क्या है ?
उत्तर:
स्थिर पूँजी उस पूँजी का प्रतिनिधित्व करती है जिसकी आवश्यकता दीर्घकालीन उत्पादन सुविधाओं को प्राप्त करने हेतु होती है। इसके अन्तर्गत भूमि, भवन, मशीन, फर्नीचर आदि के क्रय पर विनियोग की राशि शामिल की जाती है।

ह्वीलर के अनुसार, “स्थिर पूँजी स्थिर एवं दीर्घकालीन सम्पत्तियों में विनियोजित होती है। स्थिर पूँजी की राशि उत्पादक द्वारा स्थिर सम्पत्तियों के प्रयोग के अनुसार आनुपातिक दर से बदलती है।’

प्रश्न 38.
कोषों के कौन-कौन स्रोत हैं, बतायें।
उत्तर:
कोषों के निम्न स्रोत हैं-

  • संचालन से कोष (Funds from Operations)
  • अंश पूँजी का निर्गमन (Issue of Share Capital)
  • ऋणपत्रों का निर्गमन (Issue of Debentures)
  • ऋण लिया जाना (Raising of Loans)
  • स्थायी सम्पत्तियों की बिक्री (Sale of Fixed Assets)
  • प्राप्त लाभांश (Dividend Received)
  • कार्यशील पूँजी में शुद्ध कमी (Net Decrease in Working Capital)।

प्रश्न 39.
खंड सम-विच्छेद विश्लेषण की परिभाषा दें।
उत्तर:

  • चार्ल्स टी० हॉनग्रेन के अनुसार, “खंड-सम बिन्दु विक्रय मात्रा का वह बिन्दु है जिस पर कुल आगम और कुल व्यय बराबर हों, इसे शून्य लाभ एवं शून्य हानि का बिन्दु भी कहते हैं।”
  • केलर तथा फरेरा के शब्दों में, “किसी फर्म अथवा इकाई का खंड-सम बिन्दु विक्रय आय का वह स्तर है जो कि इसकी स्थिर तथा परिवर्तनशील लागतों के योग के बराबर हो।”
  • जी० आर० क्राउनिंगशिल्ड के अनुसार, “खंड-सम बिन्दु वह बिन्दु होता है जिस पर विक्रय आगम वस्तु को उत्पादित करने तथा विक्रय की लागत के बराबर हो और न तो कोई लाभ हो और न हानि हो।”

प्रश्न 40.
बुनियादी ढाँचे के महत्त्व को लिखें।
उत्तर:
बुनियादी ढाँचा उत्पादकता वृद्धिकर एवं सुविधाओं के प्रसारण द्वारा जीवन शैली को प्रभावित करते हुए आर्थिक विकास में योगदान करता है। ये सेवाएँ उत्पादन के विकास को कई प्रकार से प्रभावित करती हैं-

  • बुनियादी सुविधाएँ उत्पादन का अन्तरंग अंग (Intermediate input) हैं तथा इनकी लागतों में कमी करके उत्पादन की लाभदायकता को बढ़ाती हैं। साथ ही उत्पाद, आय एवं रोजगार के उच्च स्तरों को जन्म देती हैं।
  • बुनियादी सेवाएँ अन्य घटकों जैसे श्रम एवं पूँजी की उत्पादकता बढ़ाती हैं। इसलिए बुनियादी ढाँचे को उत्पादन का नि:शुल्क घटक भी कहा जाता है क्योंकि इसकी उपलब्धता दूसरे घटकों को उच्चतर प्रत्याय प्रदान करती है।

प्रश्न 41.
प्रबन्ध का अर्थ क्या है ?
अथवा, प्रबन्ध की परिभाषा लिखें।
उत्तर:
‘प्रबन्ध’ शब्द को कई अर्थों में प्रयोग किया गया है। कभी-कभी एक संगठन में कार्यरत “प्रबन्धकीय कर्मिकों के समूह” का प्रबन्ध करने के लिए किया जाता है। अन्य समयों में प्रबन्ध का तात्पर्य नियोजन, संगठन, कार्मिकता, निर्देशन, समन्वयन एवं नियंत्रण प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है। ‘ संबोधन के आधार पर प्रबन्ध की कुछ एक परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मेरी पार्कर फॉलेट्टज (Mary Parker Follett) के अनुसार, “प्रबन्ध अन्य व्यक्तियों से काम लेने की कला है।”

2. फ्रेड्रिक विन्सेला टेयलर (Frederick Winston Taylor) के अनुसार, “प्रबंन्ध सर्वप्रथम यह ज्ञात करना कि आप व्यक्तियों से क्या (कार्य) करवाना चाहते हैं तथा पुनः यह निश्चित करना कि वे इसे किस प्रकार सस्ते एवं श्रेष्ठतम तरीके से करें।”

इन परिभाषाओं के अवलोकन के पश्चात्, प्रबन्ध को अन्यों द्वारा कार्य सम्पन्न कराने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। अन्य शब्दों में, यह विभिन्न कार्यों के निष्पादन तथा नियोजन, संगठन, समन्वयन, नेतृत्व एवं व्यावसायिक परिचालनों को इस प्रकार सम्पन्न करने की प्रक्रिया है ताकि व्यावसायिक फर्म के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। इसके अन्तर्गत वे सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो व्यावसायिक नियोजन से लेकर इसके वास्तविक संपादन तक व्यापक हो।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
साहसी के दो मुख्य कार्य बताएँ।
उत्तर:
साहसी के दो कार्य निम्नलिखित हैं- (i) व्यावसायिक अवसरों की पहचान तथा (ii) नवप्रवर्तन।

प्रश्न 2.
साझेदारी क्या है ?
उत्तर:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति आपस में मिलकर समझौता करके जिस व्यवसाय की स्थापना करते हैं उसे साझेदारी व्यवसाय कहा जाता है। यह व्यक्तियों का एक संघ है। साझेदार आपस में मिलकर ही व्यवसाय का संचालन करते हैं। वे आपस में मिलकर लाभालाभ अनुपात में लाभ-हानियों को बाँटते हैं।

प्रश्न 3.
संयुक्त पूँजी कम्पनी क्या है ?
उत्तर:
संयुक्त पूँजी कम्पनी विधान द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसकी पूँजी अंशों के विभाजित रहती है। अंशधारी कम्पनी के सदस्य होते हैं। लेकिन कम्पनी का अस्तित्व अंशधारियों से अलग रहता है। कम्पनी अपने अंशधारियों के बीच लाभांश के वितरण करती है। कम्पनी का एक सार्वमुद्रा भी होती है।

प्रश्न 4.
परियोजना प्रतिवेदन के विभिन्न तत्व या अंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
परियोजना प्रतिवेदन के विभिन्न तत्व या अंग इस प्रकार हैं-

  • प्रवर्तकों का विवरण,
  • उद्यम का विवरण,
  • आर्थिक जीवन योग्यता,
  • तकनीकी सुविधाएँ,
  • वित्तीय सुविधाएँ,
  • लाभदायकता विश्लेषण और
  • संबंधित प्रपत्र इत्यादि।

प्रश्न 5.
कार्यशील पूँजी क्या है ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी एक ऐसी पूँजी है जिससे कच्चा माल को खरीदा जाता है और उत्पादन कार्य में होने वाले खर्चों को पूरा किया जाता है। यह व्यवसाय के कार्यों को करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 6.
परियोजना प्रतिवेदन के क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
परियोजना प्रतिवेदन उपक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए बहुत आवश्यक है। इसके विभिन्न लाभ हैं, जैसे-यह उद्यमों के साथ-साथ वित्तीय संस्थाओं और सरकार के लिए लाभदायक होती है।

प्रश्न 7.
वित्तीय नियोजन क्या है ?
उत्तर:
वित्तीय नियोजन किसी संगठन की पूँजी की आवश्यकता को निर्धारित करता है। यह निश्चित नीतियाँ बनाती हैं जिससे पूँजी का उपयोग और प्रशासन एक निश्चित योजना के द्वारा होता है।

प्रश्न 8.
वित्तीय नियोजन के कौन-कौन उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
वित्तीय नियोजन के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • वित्तीय साधनों का निर्धारण करना,
  • पूँजी के स्रोतों का निर्धारण,
  • वित्तीय नीतियों का निर्धारण,
  • वित्तीय नियंत्रण का निर्धारण,
  • उच्च प्रबंध को प्रतिवेदन करना,
  • लोचपूर्ण,
  • सरलता का तत्त्व।

प्रश्न 9.
अदृश्य सम्पत्ति के उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
अदृश्य सम्पत्तियों के उदाहरण इस प्रकार हैं-परावर्तन व्यय, कानूनी धर्म, वित्तीय निर्गमन व्यय, ख्याति और पेटेंस इत्यादि।

प्रश्न 10.
स्थायी पूँजी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
स्थायी पूँजी किसी कम्पनी या उपक्रम की स्थायी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। यह वैसी पूँजी होती है जो स्थायी सम्पत्तियों में लगी होती है। यह व्यावसायिक संस्था के लिए लाभ अर्जित करती है।

प्रश्न 11.
सम-सीमान्त बिंदु क्या है ?
उत्तर:
सम-सीमान्त बिंदु एक ऐसा बिंदु होता है जहाँ आय और व्यय बराबर होते हैं। साथ ही लाभ और हानि भी नहीं होगा। बिक्री और उत्पादन की मात्रा सम-सीमान्त बिन्दु से अधिक होने पर लाभ होता है। दूसरी ओर सम-सीमान्त बिन्दु से नीचं बिक्री की मात्रा तथा उत्पादन की मात्रा की स्थिति में सदा हानि होती है।

प्रश्न 12.
एक नया उद्यम स्थापित करते समय किन-किन बातों पर ध्यान दिया जाता है ?
उत्तर:
एक नया उद्यम या उपक्रम को स्थापित करने के लिए विभिन्न बातों पर ध्यान दिया जाता है। इन तत्त्वों को ध्यान में रखकर ही उद्यम को स्थापित किया जा सकता है और संचालन किया जाता है।

उद्यम स्थापित करना- एक उद्यमी को निम्नलिखित अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है-

  • उत्पाद/उद्योग का चयन,
  • पंजीकरण,
  • भूमि/आवास व्यवस्था,
  • वित्तीय सहायता,
  • तकनीकी जानकारी,
  • विपणन सहायता,
  • आयात व निर्यात। इस प्रकार इन सभी अवस्थाओं से गुजर कर एक उद्यमी नया उपक्रम स्थापित करके उसका प्रबंध और संचालन करता है।

प्रश्न 13.
राज्य वित्त निगम क्या है ?
उत्तर:
राज्य वित्त निगम उद्योग-धंधों को वित्त प्रदान करने वाली एक प्रमुख संस्था है। यह भूमि खरीदने, फैक्ट्री के उत्पाद कार्य करने और मशीनों और यंत्रों को खरीदने के लिए ऋण प्रदान करता है। यह निगम नए उद्योगों को स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता देता है। साथ ही विद्यमान उद्योगों का विस्तार और उसका आधुनिकीकरण करने के लिए भी यह ऋण देता है।

प्रश्न 14.
प्रबंध का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रबंध शब्द को कई अर्थों में प्रयोग किया जाता है। कभी-कभी एक संगठन में कार्यरत प्रबंधकीय कर्मियों के समूह का प्रबंध करने के लिए किया जाता है। अन्य समयों में प्रबंध का तात्पर्य नियोजन, संगठन, कार्मिकता, निर्देशन, समन्वयन एवं नियंत्रण प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है। इसे ज्ञान के स्वरूप, व्यवहार एवं अनुशासन में जाना जाता है। अनेक लोग हमें इसे नेतृत्व एवं निर्णयन का तकनीक मानते हैं अथवा समन्वयन का साधन तथा कुछ लोग प्रबंध को एक आर्थिक साधन, उत्पादन का एक घटक अथवा अधिग्रहण की व्यवस्था मानते हैं।

प्रश्न 15.
हेनरी फियोल द्वारा दी गयी प्रबंध की परिभाषा को लिखें।
उत्तर:
हेनरी फियोल ने प्रबंध की परिभाषा देते हुए कहा है कि प्रबंध ने एक योजना होती है। संगठन होता है आज्ञा होती है, समन्वय होता है, नियंत्रण होता है, वित्तीय साधनों को एकत्र करना होता है, आगे देखना होता है तथा भविष्य की परीक्षा और कार्य करने के लिए योजना बनायी जाती है।

प्रश्न 16.
उद्यमशीलता क्या है ?
उत्तर:
उद्यमशीलता एक ऐसी व्यवस्थित नवीनता है जो परिवर्तनों के लिए की गयी उद्देश्यपूर्ण एवं संगठित खोज में अंतर्निहित होती है और सुअवसरों के प्रणालीबद्ध विश्लेषण में ऐसे परिवर्तन कम खर्च वाली और सामाजिक नवीनताएँ प्रदान कर सकती हैं।

प्रश्न 17.
संगठन क्या है ?
उत्तर:
संगठन किसी उद्यम के सदस्यों के बीच संबंध स्थापित करने की प्रक्रिया है। यह संबंध अधिकार और कर्तव्यों के हिसाब से बनाए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को एक विशेष कार्य सौंपा जाता है। साथ ही उस कार्य को करने का अधिकार भी दिया जाता है।

प्रश्न 18.
संचार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संचार शब्द लैटिन भाषा के शब्द Communis से निकला है जिसका अर्थ होता है-सामान्य। अत: Communication अर्थात् संचार का मतलब हुआ कि सामान्य रूप से विचारों में भागीदारी। अर्थात् दो या दो से अधिक लोगों के बीच तथ्यों, विचारों, मतों और भावनाओं को समझने के लिए साझी भूमिका निभाना संचार है।

प्रश्न 19.
उत्पादन का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
माल और सेवाओं का निर्माण करना ही उत्पादन कहलाता है। उत्पादन के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं का निर्माण होता है। जबकि अर्थशास्त्र के अनुसार किसी पदार्थ की उपयोगिता को बढ़ाना, उत्पादन कहलाता है।

प्रश्न 20.
स्कंध नियंत्रण से आप क्या समझते हैं ? .
उत्तर:
स्कंध नियंत्रण उस प्रणाली को कहा जाता है जो उत्पादन के उपयुक्त समय उचित मूल्य पर आवश्यकता के अनुसार तालिकाएँ उपलब्ध कराता है। प्रबंधकों को यह सुनिश्चित करना है कि स्कंद की मात्रा न तो बहुत कम हो जिससे उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़े और न ही इतनी अधिक हो कि पूँजी ब्लॉक हो जाए।

प्रश्न 21.
ABC विश्लेषण क्या है ?
अथवा, ABC विश्लेषण की परिभाषा बताइए।
उत्तर:
विभिन्न वर्गों में माल का विश्लेषण ही ABC विश्लेषण कहलाता है। मालं पर नियंत्रण की ABC तकनीक को सदा उत्तम नियंत्रण तरीका माना जाता है। A श्रेणी में अधिक उपयोग वाली वस्तुओं को रखा जाता है। जबकि । श्रेणी में मध्यम उपयोग वाली वस्तुओं को रखा जाता है और C श्रेणी में कम उपयोग वाली वस्तुओं को रखा जाता है।

प्रश्न 22.
विपणन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जिस प्रक्रिया से माल उपभोक्ता तक पहुँचता है, उसे विपणन कहा जाता है। यह वैसी प्रणाली है जिससे व्यापार की गतिविधियाँ आपस में चलती हैं और योजना, मूल्य, बिक्री में वृद्धि और माल के वितरण को उपभोक्ताओं तक पहुँचाया जाता है। वास्तव में, विपणन के आधार पर माल की क्रय-विक्रय की सारी क्रियाएँ पूरी की जाती हैं।

प्रश्न 23.
विपणन प्रबंधन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
विपणन प्रबंधन प्रबंध के विशाल क्षेत्र की एक शाखा होती है। इसका संबंध उद्देश्यपूर्ण कार्य से है जिससे विपणन लक्ष्य की प्राप्ति होती है। इसके अंतर्गत उपभोक्ता संतुष्टि, लाभ में वृद्धि और बिक्री के मूल्य में वृद्धि इत्यादि बातें शामिल रहती हैं।

प्रश्न 24.
थोक व्यापारी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
थोक व्यापारी एक ऐसा व्यापारी है जो उत्पादकों से माल खरीदकर उन्हें थोक रूप में फुटकर व्यापारियों के हाथ में बेचता है।

प्रश्न 25.
फुटकर व्यापारी क्या है ?
उत्तर:
फुटकर व्यापारी एक ऐसा व्यापारी है जो थोक व्यापारियों से माल खरीदकर अपने दुकान में रखता है और उन्हें ग्राहकों को खुदरा रूप में बेचता है।

प्रश्न 26.
विज्ञापन क्या है ?
उत्तर:
विज्ञापन एक ऐसी विधि है जिसके अनुसार लोगों का ध्यान किसी वस्तु की ओर आकृष्ट करना है। लोग विज्ञापन पढ़ या सुनकर अपनी मनपसंद की वस्तुएँ खरीदने के लिए तैयार हो जाते हैं। अत: विज्ञापन के द्वारा बिक्री में वृद्धि होती है।

प्रश्न 27.
विज्ञापन के दो उद्देश्यों को लिखें।
उत्तर:
विज्ञापन के दो उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  • नये उत्पादों की जानकारी-विज्ञापन के माध्यम से लोगों को नये उत्पादों की जानकारी प्राप्त होती है। लोग विज्ञापन देखकर किसी नई वस्तु को खरीदने के लिये तैयार हो जाते हैं।
  • माँग उत्पन्न होना-विज्ञापन के माध्यम से किसी विशेष वस्तु के सम्बन्ध में माँग उत्पन्न की जाती है। वस्तु के गुणों के बारे में जानकारी देकर विज्ञापन उस वस्तु के लिये नया ग्राहक तैयार करते हैं। माँग में वृद्धि होने से बिक्री में वृद्धि होती है।

प्रश्न 28.
विज्ञापन के साधनों के नाम लिखें।
उत्तर:
विज्ञापन के विभिन्न साधन हैं जो ये हैं-

  • समाचार पत्र द्वारा विज्ञापन,
  • पत्रपत्रिकाओं द्वारा विज्ञापन,
  • प्रसारण विज्ञापन,
  • सिनेमा विज्ञापन,
  • विज्ञापन बोर्ड द्वारा विज्ञापन,
  • सिनेमा स्लाइड द्वारा विज्ञापन,
  • मेले प्रदर्शनी द्वारा विज्ञापन,
  • पम्पलेट या हैण्डबिल द्वारा विज्ञापन एवं लाउडस्पीकर द्वारा विज्ञापन इत्यादि।

प्रश्न 29.
संवर्धन क्या है ?
उत्तर:
संवर्धन का अर्थ उत्पादन और सेवा के प्रति ग्राहक की रुचि बढ़ाना है और उत्पादन के विषय में जानकारी देना है।

प्रश्न 30.
विक्रय कला का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
विक्रय कला एक ऐसी कला है जिसके आधार पर विक्रेता वस्तुओं की बिक्री करते हैं। इस कला के माध्यम से विक्रेता ग्राहकों को. वस्तुएँ खरीदने के लिए तैयार कर लेते हैं। इसमें ग्राहकों का दिल और विश्वास जीता जाता है।

प्रश्न 31.
वित्त की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
पूँजी या धन को वित्त कहा जाता है। वित्त को धन का विज्ञान माना जाता है। वित्त को प्रशासनिक क्षेत्र या प्रशासनिक क्रियाओं जिनका संबंध नगद और साख को संगठित करने से है जिससे संगठन के कार्यों को किया जा सके और वांछित उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। वास्तव में वित्त किसी संस्था के लिए रक्त की तरह होती है, क्योंकि इसके माध्यम से ही उपक्रम का कार्य सुचारू रूप से चलाया जाता है।

प्रश्न 32.
पूर्वाधिकार अंश क्या है ?
उत्तर:
पूर्वाधिकार अंश कम्पनी द्वारा पूँजी प्राप्त करने का एक साधन है। इस प्रकार के अंशों . पर कुछ प्राथमिकता होती है जो दूसरे अंशधारियों को नहीं मिलती है, जैसे-कम्पनी के समापन के समय इनका भुगतान समता अंशों से पहले मिलता है तथा निश्चित दर से लाभांश अवश्य दिया जाता है। भले ही कम्पनी को लाभ न हो, लेकिन इस प्रकार के अंशधारियों को मताधिकार नहीं होता है।

प्रश्न 33.
समता अंश से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यह भी कम्पनी द्वारा पूँजी प्राप्त करने का एक साधन है। समता अंशधारी ही कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं जिन्हें मताधिकार भी प्राप्त रहता है। यह कम्पनी के कार्यकलापों पर नियंत्रण रखते हैं। इन्हें लाभांश पूर्वाधिकार अंशों के लाभांश के बाद ही दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष की लाभांश पर बदलती रहती है। यानी कभी कम और कभी अधिक भी हो सकती है। कम्पनी का समापन होने पर पूर्वाधिकार अंशधारियों के बाद ही इन्हें पूँजी वापस की जाती है।

प्रश्न 34.
कुल लागत क्या है ?
उत्तर:
किसी भी वस्तु के उत्पादन कार्य में लागत विभिन्न प्रकार के होते हैं, जिनके कुल योग को कुल लागत कहा जाता है। इसमें प्रारंभिक लागत, कारखाना लागत, कार्यालय लागत इत्यादि शामिल रहते हैं।

प्रश्न 35.
कारखाना लागत क्या है ?
उत्तर:
कारखाना लागत का अर्थ उस लागत से है जो मूल लागत में कारखने के खर्च जोड़ने से प्राप्त होती है। इसे Work cost या Factory cost भी कहा जाता है।

प्रश्न 36.
कार्यालय लागत क्या है ?
उत्तर:
कार्यालय के खर्चों को कारखाने की लागत में जोड़कर कार्यालय लागत प्राप्त की जाती है। इसमें बिक्री और वितर। के व्यय शामिल नहीं किए जाते हैं। इसे Office cost या Production cost भी कहा जाता है।

प्रश्न 37.
कोहलर और आर्मस्ट्रांग द्वारा विपणन वातावरण की परिभाषा को लिखें।
उत्तर:
विपणन वातावरण की परिभाषा देते हुए कोहलर और आर्मस्ट्रांग ने यह कहा है कि किसी कंपनी के विपणन वातावरण के उन सब घटकों और शक्तियों से है जिनका विपणन प्रबंध की क्षमता को विकसित करने तथा वांछित उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक विपणन क्रियाओं को करने से होता है।

प्रश्न 38.
सूक्ष्म वातावरण क्या है ?
उत्तर:
सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कंपनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। यह शक्ति बाध्य होती है। लेकिन कंपनी के बाजार व्यवस्था इसे प्रभावित करती है। इन शक्तियों में माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, ग्राहक तथा जनता इत्यादि आते हैं।

प्रश्न 39.
बिक्री मूल्य से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
यदि कुल लागत में एक निश्चित प्रतिशत लाभ जोड़ दिया जाता है, तब उसे बिक्री मूल्य कहते हैं। इस प्रकार बिक्री मूल्य में लाभ सम्मिलित कर लिया जाता है।

प्रश्न 40.
सीमान्त लागत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
सीमान्त लागत ऐसी लागत होती है जो एक अतिरिक्त इकाई के उत्पादन करने पर कुल लागत को प्रभावित करती है। कुल लागत में वृद्धि या कमी केवल चल लागत के कारण होती है।

प्रश्न 41.
वितरण व्यय (Distribution expenses) क्या है ?
उत्तर:
वितरण व्ययों में वे व्यय आते हैं जहाँ उत्पादन क्रिया पूरी हो जाती है वहाँ से लेकर जब तक उत्पाद उपभोक्ता तक पहुँचता है तब तक के व्यय आते हैं। जैसे-गोदाम के खर्चे, माल ढोने वाली गाड़ी के व्यय, बैंकिंग के व्यय, भेजने के व्यय आदि।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
नियोजन की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
नियोजन की तीन विशेषताएँ ये हैं-

  • नियोजन विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चयन है।
  • नियोजन एक निरंतर एवं लोचयुक्त प्रक्रिया है।
  • नियोजन का एक महत्वपूर्ण विशेषता इसकी पारम्परिक निर्भरता का होना है।

प्रश्न 2.
उद्यमिता को सृजनशील क्रियाकलाप क्यों समझा जाता है ?
उत्तर:
उद्यमिता को सृजनशील क्रियाकलाप कहा जाता है, क्योंकि उद्यमिता अतिरिक्त धन सृजित करने की गतिशील प्रक्रिया है। यह धन व्यक्तियों द्वारा सृजित किया जाता है, जो पूँजी, समय तथा वृत्ति की वचनबद्धता द्वारा किसी उत्पादन अथवा सेवा में मूल्य प्रदान करते हैं। उद्यमिता विशेष रूप से एक व्यापार का एक नया विचार वाला कार्य है। इस क्रिया में निम्न गतिविधियाँ आती हैं-

  • किसी नए उत्पादन को शुरू करना।
  • किसी उत्पादन की नई विधि का उपयोग करना।
  • किसी नए बाजार क्षेत्र में प्रविष्ट होना।
  • सामग्री को किसी नए स्रोत से प्राप्त करना।
  • एक नए ढंग का संगठन बनाना। अतः कहा जा सकता है कि उद्यमिता एक सृजनशील क्रियाकलाप है।

प्रश्न 3.
क्या प्रबंध एक पेशा है ?
उत्तर:
प्रबंध पेशे की विशेषताओं (विशिष्ट ज्ञान एवं तकनीकी चातुर्य, प्रशिक्षण एवं अनुभव प्राप्त करने की औपचारिक व्यवसाय, सेवा भावना को (प्राथमिकता) को तो पूरा करता है तथा कुछ अन्य विशेषताओं (प्रतिनिधि पेशेवर संघ का होना, आचार संहिता) का इसमें अभी पूरा विकास नहीं हुआ है। भारत में अभी प्रबंध का पेशे के रूप में विकास अपनी शैशवास्था में है तथा धीमी गति से चल रहा है। जैसे-जैसे विकास की गति में तेजी आएगी वैसे-वैसे प्रबंध को पेशे के रूप में स्वीकृति मिलती जाएगी।

प्रश्न 4.
प्रबंध के विभिन्न स्तरों का वर्णन करें।
उत्तर:
सामान्यतः प्रबंध के तीन स्तर होते हैं
(i) उच्च स्तरीय प्रबंध (Top level management) – इसके अंतर्गत संचालक मण्डल, अध्यक्ष, प्रबंधकीय संचालक, जनरल मैनेजर आदि आते हैं, ये शक्ति का अंतिम स्रोत है। ये उद्देश्यों को निर्धारित करके परिणामों की जाँच करते हैं।

(ii) मध्य स्तरीय प्रबंध (Middle level management) – मध्यम प्रबंधक, विभागीय, अध्यक्षों, सुपरिटेंडेंट आदि अधिकारियों से बनता है। इसके अंतर्गत उप-प्रबंधक, उत्पादन प्रबंधक, शाखा प्रबंधक तथा श्रम अधिकारी आते हैं। ये प्रबंधक प्रतिदिन के कार्य की जाँच करके अपने उच्च प्रबंधकों को बतलाते रहते हैं।

(iii) निम्न स्तरीय प्रबंध (Lower level management) – इसके अंदर कार्यालय, फैक्टरी, व्यापार आदि के कार्यों में निरीक्षण करने वाले व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है। निरीक्षण वर्ग में फोरमैन, इंस्पेक्टर तथा सुपरवाइजर्स आते हैं। इनका कार्य श्रमिकों की देखभाल करना, प्रत्येक श्रमिक को कार्य सौंपना, कार्य की योजना बनाना इत्यादि है।

प्रश्न 5.
उद्यमिता की परिभाषा दें। अथवा, उद्यमिता क्या है ?
उत्तर:
नए विचार का सृजन करने की प्रक्रिया और नए उद्यम की स्थापना करने की क्रिया को उद्यमिता कहा जाता है। उद्यमिता की प्रक्रिया उद्यमि द्वारा संचालित होती है। उद्यमिता के अंतर्गत उद्यमी या साहसी द्वारा साधनों का एकत्रीकरण, निपुणता का संयोजन तथा व्यवसाय को सफल बनाने के लिए नेतृत्व प्रदान करना इत्यादि बातें शामिल रहती हैं।

प्रश्न 6.
साहसी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वाणिज्य, व्यवसाय और उद्योग-धन्धों के क्षेत्र में जो व्यक्ति या व्यापारी जोखिम उठाते हुए साहस करके व्यवसाय को चलाता है उसे ही साहसी कहा जाता है। उद्योगों में साहसी अनिश्चिताओं और जोखिमों को वहन करके उत्पादन कार्य करता है। इस कार्य से वे लाभ रूप में आय प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 7.
साहसी के कार्यों को लिखें।
उत्तर:
साहसी के कार्य निम्नलिखित हैं- (i) जोखिम उठाना (ii) व्यापार प्रबंध तथा निर्णय लेना (iii) व्यवसाय चयन (iv) उत्पादन का चयन (v) संयंत्र के आकार का चयन (vi) उत्पादन के स्थान का चयन (vii) विक्रय संगठन (viii) नवीन प्रवर्तन विधि को चलाना (ix) समन्वय स्थापित करना (x) साहसी द्वारा कच्चे उत्पाद का प्रबंध।

प्रश्न 8.
साहस का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
साहस शब्द फ्रेंच शब्द से बना है जिसे फ्रेंच मापन में एन्ट्रीप्रीन्डर (Entreprendre) कहा जाता है जिसका अर्थ होता है किसी कार्य को हाथ में लेना।

प्रश्न 9.
वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
व्यवसाय और उद्योगों के क्षेत्र में साहसी द्वारा किए गए वातावरण का बारीकी से अध्ययन करना ही वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन कहलाता है। इसके अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य सहायक तत्त्वों का अध्ययन उद्यमी या साहसी द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 10.
वातावरण का सूक्ष्म अध्ययन किन कारणों से करना आवश्यक है ?
उत्तर:
कुछ ऐसे कारण है जिनके चलते वातावरण को सूक्ष्म अध्ययन करना आवश्यक है। ये कारण हैं- (i) संसाधनों का प्रभावशाली प्रयोग (ii) वातावरण का लगातार अध्ययन (iii) व्यूह-रचना बनाने में सहायक (iv) खतरों और अवसरों की पहचान (v) प्रबंधकों के लिए सहायक (vi) भविष्य का अवलोकन करने में सहायक, इत्यादि।

प्रश्न 11.
विचार का जन्म किस प्रकार हो सकता है ?
उत्तर:
विचार विभिन्न प्रकार से आ सकते हैं, जैसे-दिमागी हलचल, विपणन अनुसंधान, विभिन्न प्रकाशनों से सूचनाएँ प्राप्त करना, दूसरे साहसियों से सहायता लेना, प्रिय व्यापार द्वारा विचार प्राप्त करना, मनुष्यों से बात करना और उन्हें सुनना तथा दिवास्वप्न इत्यादि।

प्रश्न 12.
नियोजन की परिभाषा दें।
उत्तर:
नियोजन का अर्थ निर्धारित करना है कि क्या करना है, कैसे और कब करना है, किसे करना है तथा परिणामों का मूल्यांकन कैसे किया जाना है।

प्रश्न 13.
व्यवसाय का प्रवर्तन क्या है ?
उत्तर:
व्यवसाय के प्रवर्तन का तात्पर्य व्यवसाय का अधिक-से-अधिक विकास करने से है। वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री और व्यवसाय का विकास करने के लिए विज्ञापन, नमूने, मेले, नुमाइशें प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन का सहारा लिया जाता है । इसी से व्यवसाय का प्रवर्तन होता है। परिणामस्वरूप व्यवसाय अपने लक्ष्य को प्राप्त करती है।

प्रश्न 14.
वातावरण का क्या महत्व है ?
उत्तर:
वातावरण का महत्व निम्न से है-

  • अवसर की खोज में
  • अस्तित्व बनाए रखने में
  • सफलता प्राप्त करने में।

प्रश्न 15.
विक्रय के बाद सेवा क्या है ?
उत्तर:
उपभोक्ता को संतुष्ट रखने के लिए वस्तु के विक्रय के बाद सेवा प्रदान की जाती है, जैसे-वस्तु पसंद न आने पर बदलने की सुविधा, मुफ्त मरम्मत, गारंटी देना आदि को विपणन के क्षेत्र के अन्तर्गत सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 16.
संयत्र विन्यास क्या है ?
उत्तर:
संयत्र विन्यास का मुख्य उद्देश्य कार्यक्षमता में वृद्धि करना एवं उत्पादन प्रक्रिया को मितव्ययी बनाना होता है। एक सफल संयंत्र विन्यास वह है जिसमें कम-से-कम समय में सामग्री को विभिन्न संचालन चरणों में से होकर गुजरने की गति उत्पन्न करता है। संयंत्र विन्यास ऐसा होना चाहिए जो, श्रमिकों, मशीन, औजार एवं स्थान का सर्वोतम उपयोग निश्चित कर सके।

प्रश्न 17.
परियोजना पहचान क्या है ?
उत्तर:
एक साहसी के लिए परियोजना को पहचान करना एक कठिन कार्य है साहसी के पास अनेक विकल्प विद्यमान हैं उन विकल्पों के आधार पर ही साहसी परियोजना की पहचान करता है। दूसरे शब्दों में साहसी स्थान, वातावरण, तकनीक, कच्चा माल, संयंत्र और बाजार के आधार पर परियोजना की पहचान करता है।

प्रश्न 18.
गर्भावधि क्या है ?
उत्तर:
सामान्य बोलचाल की भाषा में गर्भावधि का अर्थ होता है वह समय जो प्रकट रूप में सामने नहीं रहती है, बल्कि समय गर्भ में रहता है। उद्यमवृत्ति में कारोबार के सिलसिले में कुल अवधि गर्भ में भी हो सकती है जिसकी जानकारी प्रकट रूप में सामने आती है।

प्रश्न 19.
अल्पकालीन पूर्वानुमान क्या है ?
उत्तर:
वैसा पूर्वानुमान जो बहुत कम समय में तथा बहुत कम समय के लिए लगाई जाती है, उसे अल्पकालीन पूर्वानुमान कहा जाता है। उद्यम या व्यवसाय वर्तमान में भविष्य के लिए पूर्वानुमान लगाकर उसी के अनुसार व्यापार या उद्यम की योजना बनाई जाती है उसी योजना के अनुसार व्यापार को संचालित किया जाता है और लाभ कमाने का उद्देश्य पूरा किया जाता है।

प्रश्न 20.
विस्तार परियोजना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
विस्तार संबंधी परियोजनाओं के अन्तर्गत नवीन वस्तुओं का उत्पादन, नवीन उत्पादन की इकाइयों की स्थापना करना, वस्तुओं की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना आदि परियोजनाओं को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 21.
शुद्ध कार्यशील पूँजी कैसे ज्ञात की जाती है ?
उत्तर:
कार्यशील पूँजी से आशय शुद्ध कार्यशील पूँजी से है। यदि चालू सम्पत्तियों के योग से चालू दायित्व के योग को घटा दिया जाये तो जो शेष बचेगा वह शुद्ध कार्यशील पूँजी होगी।
शुद्ध कार्यशील पूँजी = चालू संपत्तियाँ – चालू दायित्व।

प्रश्न 22.
कोष प्रवाह विवरण क्या है ?
उत्तर:
कोष प्रवाह विवरण एक ऐसा विवरण है जिसमें धन के प्रवाह के स्रोतों को दिखाया जाता है। यह स्रोत कहाँ से आए और एक निश्चित अवधि में कहाँ उपयोग किए गए इसके बारे में जानकारी प्राप्त होती है। वास्तव में यह ऐसा विवरण है जो संपत्तियों और दायित्वों में परिवर्तन को स्पष्ट करता है।

प्रश्न 23.
शोधन क्षमता अनुपात क्या व्यक्त करता है ?
उत्तर:
शोधन क्षमता अनुपात से आशय किसी फर्म की उस क्षमता से है जिससे दीर्घकालीन ऋणों का भुगतान किया जाता है। सरल शब्दों में, संपत्ति में से दायित्वों के भुगतान करने की क्षमता को ही संस्था की शोधन क्षमता अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 24.
विपणन की आधुनिक विचारधारा की कोई दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
आधुनिक बाजार विचारधारा की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • इसमें ग्राहकों की संतुष्टि पर अधिक बल दिया गया है।
  • विपणन में सम्पूर्ण व्यावसायिक क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।

प्रश्न 25.
परियोजना चक्र के तत्व क्या हैं ?
उत्तर:
परियोजना चक्र के तत्व या अंग इस प्रकार हैं- (i) प्रवर्तकों का विवरण (ii) उद्यम का विवरण, (iii) आर्थिक जीवन योग्यता, (iv) तकनीकी सुविधाएँ, (v) वित्तीय सुविधाएँ, (vi) लाभदायकता विश्लेषण और (vii) संबंधित प्रपत्र, इत्यादि।

प्रश्न 26.
स्थायी और कार्यशील पूँजी में अंतर बताएँ।
उत्तर:
कार्यशील पूँजी एक ऐसी पूँजी है जिससे कच्चा माल को खरीदा जाता है और उत्पादन-कार्य में होने वाले खर्चों को पूरा किया जाता है। यह व्यवसाय के कार्यों को करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है जबकि स्थायी पूँजी एक ऐसी पूँजी है जिससे भवन, फर्नीचर, मशीन, औजार तथा यातायात के साधन खरीदे जाते हैं जिन्हें लम्बी अवधि के लिए व्यवसाय में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 27.
साहसिक पूँजी का क्या महत्व है ?
उत्तर:
जो व्यक्ति किसी नए व्यवसाय को शुरू करने का जोखिम उठाता है या साहस करता है उसे उद्यमी या साहसी कहते हैं। जब उस व्यवसाय को प्रारंभ करने में जो उद्यमी के द्वारा विनियोग के रूप में उद्योग या व्यापार में लगाया जाता है तो उसे उद्यमी या साहसिक पूँजी कहा जाता है।

प्रश्न 28.
परियोजना क्या है ?
उत्तर:
परियोजना अथवा प्रोजेक्ट से आशय पूँजी का विनियोग किसी ऐसे व्यावसायिक अवसरों में करने से है जिसमें लाभ की संभावनाएँ अधिक मात्रा में नजर आती है।

प्रश्न 29.
चालू अनुपात क्या है ?
उत्तर:
यह अनुपात चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के सम्बन्ध को बताता है। व्यवसाय को उस अनुपात में होना चाहिए कि वह चालू दायित्वों का भुगतान चालू-सम्पत्तियों से कर सके। इन चालू -दायित्वों का भुगतान करने के लिए स्थायी स्रोतों पर आश्रित नहीं होना चाहिए। इसे कार्यशील अनुपात भी कहते हैं।
Current Ratio = \(\frac{\text { Current Assets }}{\text { Current Liabilities }}\)

प्रश्न 30.
पूँजी गहन प्रौद्योगिकी क्या है ?
उत्तर:
पूँजी गहन तकनीक को ऐसी तकनीक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक पूँजी मात्रा प्रयोग की जाती है जबकि श्रम की अल्प मात्रा प्रयुक्त होती है।

प्रश्न 31.
कोष क्या है ?
उत्तर:
कोष शब्द का आशय चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों का अन्तर है
कोष = चालू-सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व

प्रश्न 32.
तरलता अनुपात क्या है ?
उत्तर:
ये अनुपात किसी भी संस्था की शोधन क्षमता का पता लगाने के लिए प्रयोग किये जाते हैं। ये व्यवसाय की तरलता के मापदण्ड होते हैं। इन अनुपातों में प्रमुख अनुपात हैं- (i) चालू अनुपात अथवा कार्यशील पूँजी अनुपात तथा (ii) शीघ्र अनुपात।

प्रश्न 33.
विक्रय संवर्द्धन की परिभाषा दें।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन का अभिप्राय उन सभी क्रियाओं से है जो विक्रय वृद्धि के लिए विज्ञापन, वैयक्तिक विक्रय एवं प्रचार के अतिरिक्त की जाती है।

अमरीकन विपणन परिवाद के वाक्यों में “व्यक्तिगत विक्रय, विज्ञापन एवं प्रसारण को छोड़ सभी विपणन क्रियाओं तथा प्रस्तुति एवं प्रदर्शनी एवं अन्य विक्रय प्रयास जो साधारतया न किए जाएँ जिनका उद्देश्य उपभोक्ता क्रम एवं दुकानदार प्रभाविकता को बढ़ावा देना हो, को विक्रय संर्वन कहते हैं।

प्रश्न 34.
क्या विक्रय एवं विपणन में अन्तर है ? ।
उत्तर:
हाँ, विक्रय और विपणन में अंतर है। विपणन बाजार का अभिन्न अंग है। बाजार वह स्थान है जहाँ विक्रेता एवं क्रेता अपने उत्पाद को मुद्रा (उसके विपरीत भी) के बदले विनिमय करने हेतु एकत्रित होते हैं। विपणन के अंतर्गत उत्पादन से. उपभोग तक की सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं। जबकि विक्रय का संबंध केवल वस्तु एवं सेवाओं की खरीद-बिक्री से है।

प्रश्न 35.
आधारभूत सेवाएँ क्या है ?
उत्तर:
आधारभूत सेवाओं से आशय शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, संचार आदि से है। इसमें सुधार कर मानवीय संसाधन की गुणवत्ता को सुधारा जाता है। मानवीय संसाधन उत्पादन का सक्रिय साधन है।

प्रश्न 36.
सूक्ष्म वातावरण क्या है ?
उत्तर:
सूक्ष्म वातावरण में उन शक्तियों का वर्णन होता है जिनसे कम्पनी के ग्राहकों को प्रभावित किया जाता है। यह शक्ति बाध्य होती है, लेकिन कम्पनी के बाजार व्यवस्था इसे प्रभावित करती है। इन शक्तियों से माल की पूर्ति देने वाले मध्यस्थ, प्रतियोगी, ग्राहक तथा जनता इत्यादि आते हैं।

प्रश्न 37.
एक उद्यम का चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब एक उद्यमी या साहसी किसी नए उपक्रम की स्थापना करने के लिए जो विचार रखता है और उसी के अनुसार उपक्रम का चयन करता है तो उसको एक उद्यम का चुनाव करना कहा जाता है।

प्रश्न 38.
अवसर कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
अवसर प्रमुख रूप से तीन प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं- (i) आदत संबंधी अवसर (ii) पूरक अवसर (iii) रुकावट वाले अवसर।

प्रश्न 39.
विचार का चुनाव से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब साहसी या उद्यमी किसी नए उपक्रम को स्थापित करने का विचार मन में लाता है और इसके संबंध में चयन की प्रक्रिया अपनाता है तो इसे विचार का चुनाव कहा जाता है। उचित विचार का चयन करने से साहसी एक अच्छे नए उपक्रम की स्थापना कर सकता है और उसमें अधिक-से-अधिक लाभ अर्जित कर सकता है।

प्रश्न 40.
व्यावसायिक संगठन के तीन प्रमुख स्वरूप कौन-कौन हैं ?
उत्तर:
व्यावसायिक संगठन के तीन प्रमुख स्वरूप इस प्रकार हैं-

  • एकाकी व्यापार,
  • साझेदारी व्यवसाय,
  • संयुक्त पूँजी कम्पनी।

प्रश्न 41.
एकाकी व्यापार क्या है ?
उत्तर:
एकाकी व्यापार व्यावसायिक संगठन का एक ऐसा स्वरूप है जिसकी स्थापना एक ही व्यक्ति द्वारा पूँजी लगाकर की जाती है। एकाकी व्यापारी ही अपने व्यापार का अकेला मालिक होता है और वह अपने व्यवसाय का प्रबंध और संचालन करता है। वह स्वयं ही अपने व्यापार के लाभ-हानियों को ग्रहण करता है।

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4 in Hindi

प्रश्न 1.
एक उत्पाद के मुख्य लागत में शामिल हैं
(a) प्रत्यक्ष सामग्री
(b) कारखाना उपरिव्यय
(c) प्रत्यक्ष मजदूरी
(d) प्रत्यक्ष व्यय
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष सामग्री, (d) प्रत्यक्ष व्यय

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन संचालन व्यय नहीं है ?
(a) किराया
(b) विज्ञापन व्यय
(c) प्रारंभिक व्यय
(d) मजदूरी
उत्तर:
(b) विज्ञापन व्यय

प्रश्न 3.
लेबलिंग है
(a) आवश्यक
(b) अनिवार्य
(c) धन की बर्बादी
(d) ऐच्छिक
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 4.
व्यापार नीति का उद्देश्य निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित नहीं है ?
(a) वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति
(b) प्रतिकूल भुगतान संतुलन का नियंत्रण
(c) वैकल्पिक आयात के उपाय
(d) प्रभावशीलता की लागत
उत्तर:
(d) प्रभावशीलता की लागत

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा घटक बाजार मूल्यांकन पर प्रभाव डालता है ?
(a) सूक्ष्म वातावरण
(b) उत्पाद की लागत
(c) माँग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उत्पाद की लागत

प्रश्न 6.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण में पहचान किया जाता है
(a) पूर्ति संभावना
(b) माँग संभावना
(c) निर्यात संभावना
(d) आयात संभावना
उत्तर:
(b) माँग संभावना

प्रश्न 7.
सामाजिक व्यवहार संबंधित नहीं होता है
(a) सार्वजनिक वस्तुओं के उत्पादन से
(b) अनैतिक व्यवहार का परिवर्तन से
(c) सामाजिक बाध्यता की पूर्ति से
(d) लाभ-अर्जन प्रक्रिया से
उत्तर:
(d) लाभ-अर्जन प्रक्रिया से

प्रश्न 8.
नियमित कार्यशील पूँजी का अंश होता है
(a) स्थायी कार्यशील पूँजी
(b) परिवर्तनशील कार्यशील पूँजी
(c) शुद्ध कार्यशील पूँजी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थायी कार्यशील पूँजी

प्रश्न 9.
चल लागत का श्रेष्ठतम उदाहरण है
(a) पूँजी पर ब्याज
(b) सामग्री लागत
(c) धन कर
(d) किराया
उत्तर:
(c) धन कर

प्रश्न 10.
अधिमान अंशों पर लाभांश दर होती है
(a) स्थिर
(b) चल
(c) अर्द्ध-चल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थिर

प्रश्न 11.
सामाजिक ढाँचा की रचना होती है
(a) समाज के क्रियात्मक विभाजन से
(b) जाति के क्रियात्मक विभाजन से
(c) समुदाय के क्रियात्मक विभाजन से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) समुदाय के क्रियात्मक विभाजन से

प्रश्न 12.
लाभदायकता अनुपात में सम्मिलित हैं
(a) सकल लाभ अनुपात
(b) शुद्ध लाभ अनुपात
(c) संचालन लाभ अनुपात
(d) (a), (b) एवं (c) तीनों
उत्तर:
(d) (a), (b) एवं (c) तीनों

प्रश्न 13.
विकास की गिरती स्थिति में
(a) उद्यम अपने आय को जीवित रखना कठिन पाता है
(b) उद्यम को तेज गति से हानियाँ होती हैं
(c) उद्यम दुकान बन्द करने को अच्छा मानता है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 14.
परियोजना तैयार की जाती है
(a) प्रवर्तकों द्वारा
(b) प्रबन्धकों द्वारा
(c) उद्यमियों द्वारा
(d) (a), (b) एवं (c) द्वारा
उत्तर:
(d) (a), (b) एवं (c) द्वारा

प्रश्न 15.
एक उद्यमी कहा जाता है
(a) आर्थिक विकास का प्रवर्तक
(b) आर्थिक विकास का प्रेरक
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 16.
निम्न में कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) सृजनात्मक क्रिया
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(d) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 17.
चिट्ठा में शामिल नहीं रहता है
(a) शुद्ध हानि
(b) अदत्त व्यय
(c) व्यापारिक लेनदार
(d) आयकर का भुगतान
उत्तर:
(c) व्यापारिक लेनदार

प्रश्न 18.
एक नई फैक्ट्री को स्थापित करने के लिए हमें आवश्यकता होती है
(a) वृहत् पूँजी की
(b) भूमि का बड़ा खण्ड का
(c) पर्याप्त मानव शक्ति की
(d) आयातित मशीन की
उत्तर:
(a) वृहत् पूँजी की

प्रश्न 19.
जन निपेक्ष साधन है
(a) अल्पकालीन वित्त का
(b) दीर्घकालीन वित्त का
(c) मध्यकालीन वित्त का
(d) सामाजिक निवेश
उत्तर:
(a) अल्पकालीन वित्त का

प्रश्न 20.
“कम्पनी का विपणन वातावरण विपणन के बाहर उन सब घटकों और शक्तियों से होता है जिनका विपणन प्रबंध की क्षमता को विकसित करने तथा वांछित उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक विपणन क्रियाओं को करने से होता है।” यह कथन किसका है ?
(a) क्रेवेन्स
(b) कोटलर एवं आर्मस्ट्रांग
(c) मार्शल
(d) थॉमस
उत्तर:
(b) कोटलर एवं आर्मस्ट्रांग

प्रश्न 21.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है
(a) ब्रांड का
(b) लेबलिंग का
(c) पैकेजिंग का
(d) व्यापार मार्क का
उत्तर:
(a) ब्रांड का

प्रश्न 22.
विपणन व्यय भार है
(a) उद्योग पर
(b) व्यवसायियों पर
(c) उपभोक्ताओं पर
(d) इनमें से सभी पर
उत्तर:
(d) इनमें से सभी पर

प्रश्न 23.
IFCI स्थापित की गयी वर्ष
(a) 1939 में
(b) 1948 में
(c) 1950 में
(d) 1956 में
उत्तर:
(d) 1956 में

प्रश्न 24.
आदर्श चालू अनुपात होता है
(a) 2 : 1
(b) 1 : 2
(c) 3 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(a) 2 : 1

प्रश्न 25.
उपक्रम चुनाव के आवश्यक तत्व हैं
(a) गोपनीयता
(b) व्यावसायिक क्रिया
(c) परिचालन का क्षेत्र
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 26.
व्यवसाय के प्रारूप को निर्धारित करता है
(a) स्थान
(b) अध्ययन
(c) आकार
(d) आविष्कार
उत्तर:
(c) आकार

प्रश्न 27.
विपणन स्वभाव में शामिल है
(a) ग्राहक
(b) उत्पादन
(c) उत्पाद नियोजन
(d) विक्रय
उत्तर:
(c) उत्पाद नियोजन

प्रश्न 28.
गैर-बैंक साधन है
(a) खुला खाता
(b) व्यापारिक ऋण
(c) जन निक्षेप
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) व्यापारिक ऋण

प्रश्न 29.
सम-विच्छेद की उपयोगिता में शामिल है
(a) लाभ सुधार
(b) जोखिम
(c) नैदानिक
(d) इसमें सभी
उत्तर:
(d) इसमें सभी

प्रश्न 30.
लाभ मात्रा अनुपात अंशदान
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4, 1
उत्तर:
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 4, 2

प्रश्न 31.
जोखिम पूँजी शिलाधार स्थापित किया गया
(a) 1970 में
(b) 1975 में
(c) 1986 में
(d) 1988 में
उत्तर:
(c) 1986 में

प्रश्न 32.
भारतीय प्रौद्योगिकी विकास एवं आधारभूत निगम स्थापित किया गया वर्ष
(a) 1975 में
(b) 1986 में
(c) 1988 में
(d) 1990 में
उत्तर:
(d) 1990 में

प्रश्न 33.
प्रबंध क्या है ?
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) कला और विज्ञान दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) कला और विज्ञान दोनों

प्रश्न 34.
किसी भी देश के विकास में सबसे अधिक आवश्यक है
(a) भौतिक संसाधन की
(b) आर्थिक संसाधन की
(c) कुशल प्रबंध की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आर्थिक संसाधन की

प्रश्न 35.
वर्तमान उत्पादन व्यवस्था वास्तव में है
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन
(b) अप्रत्यक्ष उत्पादन
(c) प्राथमिक
(d) द्वितीयक
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन

प्रश्न 36.
निम्न में से कौन-सी किस्म नियंत्रण की विधि है ?
(a) निरीक्षण विधि
(b) सांख्यकीय किस्म नियंत्रण विधि
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 37.
निम्न में से कौन उत्पादन का प्रकार हैं ?
(a) प्रत्यक्ष उत्पादन विधि
(b) अप्रत्यक्ष उत्पादन विधि
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त (a) व (b) दोनों

प्रश्न 38.
अच्छे ब्राण्ड की विशेषताएँ हैं
(a) सूक्ष्म नाम
(b) स्मरणीय
(c) आकर्षक
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 39.
सबसे अधिक व्यापक क्षेत्र है
(a) ब्राण्ड
(b) लेबलिंग
(c) पैकेजिंग
(d) व्यापार मार्क
उत्तर:
(d) व्यापार मार्क

प्रश्न 40.
ब्राण्ड बतलाता है
(a) चिह्न
(b) डिजाइन
(c) नाम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3 in Hindi

प्रश्न 1.
उपकरणों के प्रमाणीकरण में कमी होती है
(a) आंतरिक बाधाओं से
(b) बाह्य बाधाओं से
(c) सरकारी बाधाओं से
(d) नियामक बाधाओं से
उत्तर:
(a) आंतरिक बाधाओं से

प्रश्न 2.
परियोजना का जीवन चक्र निम्नलिखित से संबंधित नहीं होता है
(a) विनियोग-पूर्व चरण
(b) रचनात्मक चरण
(c) सामान्यीकरण चरण
(d) स्थिरीकरण चरण
उत्तर:
(c) सामान्यीकरण चरण

प्रश्न 3.
आधुनिकीकरण सुधारता है
(a) उत्पादों को
(b) उत्पादन को
(c) प्रक्रियाओं को
(d) क्षमता को
उत्तर:
(b) उत्पादन को

प्रश्न 4.
गर्भावधि सम्बन्धित होती है
(a) विचार सृजन अवधि से
(b) उद्भवन अवधि से
(c) कार्यान्वयन अवधि से
(d) वाणिज्यीकरण अवधि से
उत्तर:
(c) कार्यान्वयन अवधि से

प्रश्न 5.
किसी भी उपक्रम की स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी के लिए क्या आवश्यक है ?
(a) वित्त
(b) विपणन
(c) नियोजन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) वित्त

प्रश्न 6.
कोष-प्रवाह विश्लेषण में प्रयुक्त “कोष” शब्द का आशय है
(a) केवल रोकड़
(b) चालू सम्पत्तियाँ
(c) चालू दायित्व
(d) चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्व पर आधिक्य
उत्तर:
(d) चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्व पर आधिक्य

प्रश्न 7.
प्लान्ट का क्रय कार्यशील पूँजी में क्या करेगा?
(a) कमी
(b) वृद्धि
(c) कोई प्रभाव नहीं
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वृद्धि

प्रश्न 8.
सम विच्छेद बिन्दु
Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 3, 1
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 9.
समूह-प्रणाली है
(a) उद्यमों का स्थानीय संग्रह
(b) उद्यमों का स्थानीय झुण्ड
(c) उद्योगों का स्थानीयकरण
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उद्यमों का स्थानीय संग्रह

प्रश्न 10.
औद्योगिक विकास योजना कब प्रारम्भ की गई ?
(a) 1980
(b) 1985
(c) 1990
(d) 1995
उत्तर:
(b) 1985

प्रश्न 11.
औद्योगिक वाटिकाएँ हैं
(a) साधारण औद्योगिक समूह
(b) विशिष्ट औद्योगिक समूह
(c) निर्यातोन्मुख इकाइयों के स्थान
(d) समन्वित व्यावसायिक केन्द्र
उत्तर:
(b) विशिष्ट औद्योगिक समूह

प्रश्न 12.
श्रम गहन प्रौद्योगिकी के लिए उपयोगी है
(a) विकासशील देशों हेतु
(b) विकसित देशों हेतु
(c) पिछड़ी अर्थव्यवस्थाओं हेतु
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) विकासशील देशों हेतु

प्रश्न 13.
श्रम गहन प्रौद्योगिकी उपयुक्त हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध है
(a) प्रकृति में अविचल
(b) प्रकृति में गतिशील
(c) प्रकृति में रुकी हुई
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रकृति में अविचल

प्रश्न 14.
पूँजी गहन प्रौद्योगिकी की वकालत की जाती है क्योंकि
(a) शीघ्र आर्थिक विकास
(b) सामाजिक प्रभाव
(c) रोजगार अवसरों में वृद्धि
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 15.
चरों (Variables) का प्रयोग प्रायः तकनीकी योग्यता के लिए किया जाता है
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 5
उत्तर:
(c) 4

प्रश्न 16.
नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए बनाया गया पिंजड़ा है। यह कथन है
(a) न्यूमैन
(b) हर्ले
(c) एलेने
(d) टैरी
उत्तर:
(c) एलेने

प्रश्न 17.
एक अच्छी योजना होती है
(a) खर्चीली
(b) समय लेने वाली
(c) लोचपूर्ण
(d) संकीर्ण
उत्तर:
(c) लोचपूर्ण

प्रश्न 18.
टेलीफोन व्यय है
(a) स्थायी
(b) चल
(c) अर्द्धचल
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अर्द्धचल

प्रश्न 19.
आर्थिक सहायता है
(a) बट्टा
(b) रियायत
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पुनः भुगतान

प्रश्न 20.
बाजार की माँग को निम्न में से क्या कहते हैं ?
(a) मांग की भविष्यवाणी
(b) वास्तविक माँग
(c) पूर्ति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मांग की भविष्यवाणी

प्रश्न 21.
आधुनिकीकरण सुधारता है
(a) उत्पादों को
(b) उत्पादन को
(c) प्रक्रियाओं को
(d) क्षमता को
उत्तर:
(d) क्षमता को

प्रश्न 22.
परियोजना पहचान में आवश्यकता होती है
(a) अनुभव
(b) मस्तिष्क का उपयोग
(c) उपरोक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 23.
विपणन मिश्रण में शामिल हैं
(a) उत्पाद
(b) व्यक्ति
(c) मालिक
(d) नौकर
उत्तर:
(a) उत्पाद

प्रश्न 24.
संचालन व्यय है
(a) किराया
(b) प्रारंम्भिक व्यय
(c) ह्रास
(d) संचिति
उत्तर:
(c) ह्रास

प्रश्न 25.
समता अंशधारी है
(a) मालिक
(b) नौकर
(c) लेनदार
(d) देनदार
उत्तर:
(a) मालिक

प्रश्न 26.
एक उत्पाद की प्रमुख लागत में शामिल होता है
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी
(b) कार्यालय उपरिव्यय
(c) कारखाना उपरिव्यय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी

प्रश्न 27.
सम-विच्छेद बिन्दु दर्शाता है
(a) शून्य लाभ, शून्य हानि
(b) लागत आगम संबंध
(c) न्यूनतम विक्रय मूल्य
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 28.
विक्रय संवर्द्धन के प्रमुख उदाहरण हैं
(a) स्पर्धा
(b) जोखिम
(c) व्यक्तिगत बिक्री
(d) लकी कूपन
उत्तर:
(d) लकी कूपन

प्रश्न 29.
बाजार मिश्रण के कितने तत्व हैं ?
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8
उत्तर:
(b) 4

प्रश्न 30.
परियोजना मूल्यांकन में शामिल होता है
(a) निर्यात विश्लेषण
(b) वित्तीय विश्लेषण
(c) लाभदायकता विश्लेषण
(d) विशेषज्ञ विश्लेषण
उत्तर:
(c) लाभदायकता विश्लेषण

प्रश्न 31.
प्रबंध है
(a) कला
(b) विज्ञान
(c) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) दोनों

प्रश्न 32.
एक उद्यमी की सबसे बड़ी विशेषता है
(a) सम्पन्नता
(b) सख्त होना
(c) व्यक्तित्व
(d) सृजनशीलता
उत्तर:
(d) सृजनशीलता

प्रश्न 33.
गिरते लाभ की अवधि में कार्य का सर्वोत्तम उपाय है
(a) विस्तार
(b) आधुनिकीकरण
(c) पुनर्गठन
(d) समापन
उत्तर:
(c) पुनर्गठन

प्रश्न 34.
शुद्ध कार्यशील पूँजी का अर्थ है
(a) चालू सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व
(b) चालू सम्पत्तियाँ + चालू दायित्व
(c) चालू दायित्व – चालू सम्पत्तियाँ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चालू सम्पत्तियाँ – चालू दायित्व

प्रश्न 35.
एक उत्पाद के प्रमुख (मूल) लागत में शामिल होता है?
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी
(b) कार्यालय उपरिव्यय
(c) कारखाना उपरिव्यय
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रत्यक्ष मजदूरी

प्रश्न 36.
SFC अधिनियम भारत में किस वर्ष पारित किया गया?
(a) 1948
(b) 1949
(c) 1950
(d) 1951
उत्तर:
(d) 1951

प्रश्न 37.
फ्रेन्चाइजिंग किसके अन्तर्गत है ?
(a) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजर के पास
(b) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजी के हाथ में
(c) (a) और (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) उत्पाद पर नियंत्रण फ्रेन्चाइजर के पास

प्रश्न 38.
व्यवसाय संवृद्धि की सर्वोत्तम विधि है
(a) अधिकतम कीमत
(b) उपभोक्ता संतुष्टि
(c) प्रतिबंधित पूर्ति
(d) इनमें कोई नहीं
उत्तर:
(b) उपभोक्ता संतुष्टि

प्रश्न 39.
परिवर्तनशील लागतों में शामिल रहता है
(a) गोदाम किराया
(b) प्रबंधक का वेतन
(c) शक्ति की लागत
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) शक्ति की लागत

प्रश्न 40.
विक्रय संवर्द्धन के प्रमुख उपाय हैं
I. उधार विक्रय
II. व्यक्तिगत विक्रय
III. प्रदर्शनी
IV. लकी कूपन
कूट :
(a) I और II
(b) II और IV
(c) III और IV
(d) II और I
उत्तर:
(c) III और IV

प्रश्न 41.
थोक व्यापारी माल बेचते हैं
(a) सीधे उपभोक्ताओं को
(b) फुटकर व्यापारियों को
(c) उपभोक्ताओं को डाक के द्वारा
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) फुटकर व्यापारियों को

प्रश्न 42.
एक सफल उद्यमी में अवश्य ही गुण होने चाहिए
(a) नेतृत्व की
(b नियंत्रण की
(c) नव प्रवर्तन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 43.
कारखाना लागत का आशय है
(a) मूल लागत + कारखाना उपरिव्यय
(b) मूल लागत + कार्यालय एवं प्रशासन उपरिव्यय
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मूल लागत + कारखाना उपरिव्यय

प्रश्न 44.
निम्न में कौन-सा अवसर बोध का तत्त्व है ?
(a) नव प्रवर्तनीय गुण
(b) समझ की शक्ति
(c) परिवर्तन का ज्ञान
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 45.
कोष प्रवाह विवरण दर्शाता है
I. लाभ व हानि
II. स्थिति विवरण
III. एक अवधि में व्यवसाय की कार्यशील पूँजी में परिवर्तन
IV. व्यवसाय में कोषों को उगाहने एवं उपयोग के तरीके
कूट :
(a) IV, V और III
(b) II और I
(c) III और IV
(d) II और IV
उत्तर:
(c) III और IV

प्रश्न 46.
व्यवसाय एक खेल है
(a) प्रतियोगिता का
(b) चुनौती का
(c) चतुराई का
(d) कर्मचारी का
उत्तर:
(a) प्रतियोगिता का

प्रश्न 47.
विपणन का लाभ होता है
I. उपभोक्ताओं को
II. व्यवसायियों को
III. निर्माताओं को
IV. प्रबंधकों को
कूट :
(a) III और IV
(b) II, III और IV
(c) I, II और III
(d) II और IV
उत्तर:
(c) I, II और III

प्रश्न 48.
विपणन पर किया गया व्यय है
(a) बर्बादी
(b) अनावश्यक व्यय
(c) ग्राहकों पर भार
(d) विनिवेश
उत्तर:
(d) विनिवेश

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 2 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 2 in Hindi

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान देने योग्य बात है ?
(a) प्रतियोगिता
(b) उत्पादन लागत
(c) लाभ की संभावना
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 2.
मूल्य नीति होती है
(a) उपभोक्ता के पक्ष में
(b) सरकार के पक्ष में
(c) उत्पादक-निर्माता के पक्ष में
(d) सभी के पक्ष में
उत्तर:
(d) सभी के पक्ष में

प्रश्न 3.
नग्न ऋणपत्र होते हैं
(a) पूर्णतः सुरक्षित
(b) आंशिक सुरक्षित
(c) असुरक्षित
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) असुरक्षित

प्रश्न 4.
माँग पूर्वानुमान में शामिल है
(a) अल्पकालीन पूर्वानुमान
(b) दीर्घकालीन पूर्वानुमान
(c) उपभोक्ता पूर्वानुमान
(d) विपणन पूर्वानुमान
उत्तर:
(a) अल्पकालीन पूर्वानुमान

प्रश्न 5.
निम्न में कौन-सा अवसर का बोध तत्व है ?
(a) नवप्रवर्तनीय गुण
(b) समक्ष की शक्ति
(c) परिवर्तन पर नजर
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) नवप्रवर्तनीय गुण

प्रश्न 6.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण पहचान करता है
(a) माँग सम्भावना
(b) आपूर्ति सम्भावना
(c) आयात सम्भावना
(d) निर्यात सम्भावना
उत्तर:
(a) माँग सम्भावना

प्रश्न 7.
वस्तु व सेवाओं के विपणन पर किया गया व्यय है
(a) मुद्रा का अपव्यय
(b) अनउत्पादक
(c) उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार
(d) निवेश
उत्तर:
(b) अनउत्पादक

प्रश्न 8.
लेखांकन अनुपात नहीं बतलाता है
(a) शोधन क्षमता
(b) लाभदायकता
(c) विक्रय मूल्य
(d) परिचालन क्रिया
उत्तर:
(c) विक्रय मूल्य

प्रश्न 9.
संसाधनों को प्रभावपूर्ण उपयोग चाहता है
(a) आवश्यकताओं की प्राथमिकता
(b) निवेश की उदारनीति
(c) सामग्री का बड़ा स्टॉक
(d) श्रमिकों की अच्छी संख्या
उत्तर:
(a) आवश्यकताओं की प्राथमिकता

प्रश्न 10.
विपणन व्यय का अतिरिक्त भार पड़ेगा
(a) उपभोक्ताओं को
(b) उद्योग को
(c) व्यावसायिक बिचौलियों को
(d) सरकार को
उत्तर:
(a) उपभोक्ताओं को

प्रश्न 11.
पूर्वाधिकार अंशों पर लाभांश की दर है
(a) परिवर्तनशील
(b) स्थिर
(c) अर्द्ध परिवर्तनीय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(b) स्थिर

प्रश्न 12.
एक परियोजना है
(a) गतिविधियों का समूह
(b) एकल गतिविधि
(c) असंख्य गतिविधियों का समूह
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) गतिविधियों का समूह

प्रश्न 13.
लेखांकन अनुपात पथ प्रदर्शन करता है
(a) निवेशकों को
(b) लेनदारों को
(c) प्रबंधक को
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 14.
एक नई फैक्टरी को स्थापित करने के लिए हमें आवश्यकता होती है
(a) वृहत पूँजी
(b) भूमि का बड़ा खण्ड
(c) पर्याप्त मानव शक्ति
(d) आयातीत मशीन
उत्तर:
(c) पर्याप्त मानव शक्ति

प्रश्न 15.
एक ब्रांड एम्बेस्डर है
(a) विक्रेता
(b) उत्पादक
(c) प्रसिद्ध व्यक्ति
(d) साइन बोर्ड
उत्तर:
(c) प्रसिद्ध व्यक्ति

प्रश्न 16.
ऋण पत्र है
(a) असुरक्षित ऋण
(b) पूर्णतः सुरक्षित ऋण
(c) अंशतः सुरक्षित ऋण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) असुरक्षित ऋण

प्रश्न 17.
परियोजना मूल्यांकन के पहलू है
(a) तकनीकी मूल्यांकन
(b) वित्तीय मूल्यांकन
(c) प्रबंधकीय मूल्यांकन
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 18.
परियोजना निम्नलिखित से संबंधित नहीं होती है
(a) नव प्रवर्तन
(b) कल्पना शक्ति
(c) जोखिम
(d) सृजनशीलता
उत्तर:
(d) सृजनशीलता

प्रश्न 19.
ऋणपत्रों पर होता है
(a) स्थिर ब्याज की दर
(b) स्थिर लाभांश की दर
(c) परिवर्तनशील ब्याज की दर
(d) परिवर्तनशील लाभांश की दर
उत्तर:
(a) स्थिर ब्याज की दर

प्रश्न 20.
कारखाना लागत का आशय है
(a) कारखाना उपरिव्यय
(b) अप्रत्यक्ष व्यय
(c) मशीन का रख-रखाव
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 21.
परियोजना है
(a) एकल कार्य
(b) कार्यों का समूह
(c) औद्योगीकरण
(d) कार्यों का जमाव
उत्तर:
(d) कार्यों का जमाव

प्रश्न 22.
उद्यमिता में नव-प्रवर्तन की क्रिया का आशय है
(a) एक नये उत्पाद का आरंभ
(b) उत्पादन की एक नई विधि का प्रयोग
(c) एक नये बाजार को खोलना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 23.
समता अंश
(a) एक निश्चित दर से लाभांश चुकाता है
(b) अनिश्चित दर से लाभांश चुकाता है
(c) कोई लाभांश नहीं देता
(d) सिर्फ ब्याज देता है
उत्तर:
(b) अनिश्चित दर से लाभांश चुकाता है

प्रश्न 24.
एक उत्पाद का विक्रय मूल्य है
(a) इसका लागत मूल्य
(b) इसका बाजार मूल्य
(c) इसके लाभ की मार्जिन
(d) इसकी लागत + लाभ
उत्तर:
(d) इसकी लागत + लाभ

प्रश्न 25.
एक कम्पनी के वित्त का प्रमुख स्रोत है
(a) अंश
(b) ऋण पत्र
(c) बैंक ऋण
(d) उधार क्रय
उत्तर:
(a) अंश

प्रश्न 26.
पूर्वाधिकार अंश हो सकता है
(a) भागयुक्त
(b) संचयी
(c) शोधनीय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 27.
शुद्ध वर्तमान मूल्य विधि संबंधित है
(a) मुद्रा का समय मूल्य से
(b) मुद्रा का बढ़े हुए मूल्य से
(c) मुद्रा का वर्तमान मूल्य से
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) मुद्रा का समय मूल्य से

प्रश्न 28.
उत्पाद विकास प्रक्रिया में शामिल होते हैं
(a) एक अवस्था
(b) दो अवस्था
(c) तीन अवस्था
(d) चार अवस्था
उत्तर:
(d) चार अवस्था

प्रश्न 29.
एक अच्छी योजना होती है
(a) खर्चीली
(b) लोचपूर्ण
(c) संकीर्ण
(d) समय लेनेवाली
उत्तर:
(b) लोचपूर्ण

प्रश्न 30.
भारत निवेश कोष द्वारा स्थापित किया गया
(a) आई० एफ० सी० आई०
(b) स्टेट बैंक
(c) ग्रिण्डले बैंक
(d) कैन बैंक
उत्तर:
(b) स्टेट बैंक

प्रश्न 31.
इनमें से कौन भौतिक संसाधन का एक प्रकार है?
(a) विपणन
(b) वित्त
(c) संसाधन
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(c) संसाधन

प्रश्न 32.
उपक्रम की स्थापना में शामिल है
(a) कच्चा माल
(b) प्रतिवेदन
(c) लाभ-हानि
(d) प्रौद्योगिकी
उत्तर:
(a) कच्चा माल

प्रश्न 33.
दीर्घकालीन ऋण पर होता है
(a) परिवर्तित ब्याज दर
(b) शून्य समान दर
(c) स्थिर ब्याज दर
(d) ब्याज 1%
उत्तर:
(c) स्थिर ब्याज दर

प्रश्न 34.
उदभवन अवस्था सम्बन्धित होती है
(a) नमूना विकास
(b) विचार विकास
(c) आदि प्रारूप विकास
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) आदि प्रारूप विकास

प्रश्न 35.
उत्पादन प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए
(a) लम्बी
(b) समय नष्ट करने वाली
(c) जटिल
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 36.
उत्पाद चुनाव प्रभावित होता है
(a) तकनीकी ज्ञान
(b) बाजार की उपलब्धता
(c) प्रतिस्पर्धा की स्थिति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 37.
परियोजना निर्माण का उद्देश्य, निर्धारण करना होता है
(a) प्रस्तावित परियोजना का कुल प्रभाव
(b) प्रस्तावित परियोजना का अधिकांश प्रभाव
(c) प्रस्तावित परियोजना का अल्पांश प्रभाव
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(a) प्रस्तावित परियोजना का कुल प्रभाव

प्रश्न 38.
तकनीकी-आर्थिक विश्लेषण में पहचान किया जाता है
(a) पूर्ति संभावना
(b) माँग संभावना
(c) निर्यात संभावना
(d) आयात संभावना
उत्तर:
(b) माँग संभावना

प्रश्न 39.
निवेश विश्लेषण संबंधित है
(a) निधिकरण आवश्यकताएँ
(b) सामग्री आवश्यकताएँ
(c) श्रम आवश्यकताएँ
(d) संसाधन आवश्यकताएँ
उत्तर:
(d) संसाधन आवश्यकताएँ

प्रश्न 40.
DPR है
(a) कार्य योजना
(b) कार्यवाही योजना
(c) क्रियान्वयन योजना
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कार्यवाही योजना

प्रश्न 41.
निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण विषय नहीं हैं
(a) तकनीक
(b) श्रमिक
(c) उत्पाद
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(a) तकनीक

प्रश्न 42.
पीछे हटने की क्षमता है
(a) प्रमुख व्यूहरचना की क्षमता
(b) वैकल्पिक व्यूहरचना की क्षमता
(c) सहायक व्यूहरचना की क्षमता
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(b) वैकल्पिक व्यूहरचना की क्षमता

प्रश्न 43.
आधारभूत सक्षमता सम्बन्धित है
(a) बाह्य मूल्य वर्धन
(b) तात्विक मूल्य वर्धन
(c) आंतरिक मूल्य वर्धन
(d) उपर्युक्त में कोई नहीं
उत्तर:
(b) तात्विक मूल्य वर्धन

प्रश्न 44.
समूह व्यवस्था (Cluster system) है
(a) उपक्रमों का खण्डीय केन्द्रीकरण
(b) उपक्रमों का भौगोलिक केन्द्रीकरण
(c) उपक्रमों का खण्डीय एवं भौगोलिक केन्द्रीकरण
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) उपक्रमों का खण्डीय एवं भौगोलिक केन्द्रीकरण

प्रश्न 45.
औद्योगिक क्षेत्र (Industrial Estate) है
(a) व्यावसायिक स्थान
(b) औद्योगिक स्थान
(c) श्रम आवासीय नगरी (Locality)
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) औद्योगिक स्थान

प्रश्न 46.
व्यवसाय की सामान्य योजना का निर्माण आप कैसे करेंगे?
(a) उत्पादन नियोजन करके
(b) लागत नियोजन करके
(c) वित्तीय नियोजन करके
(d) उपरोक्त सभी द्वारा
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी द्वारा

प्रश्न 47.
निम्न में से कौन-सी व्यवसाय से जुड़ी एक समस्या है ?
(a) लाभ
(b) मुद्रा
(c) बिक्री
(d) जोखिम प्रबंध
उत्तर:
(d) जोखिम प्रबंध

प्रश्न 48.
निम्न में से किस पर व्यवसाय की सामान्य योजना का निर्माण निर्भर करता है ?
(a) प्रोजेक्ट रिपोर्ट
(b) संयन्त्र एवं उत्पाद नियोजन
(c) विपणन योजना
(d) वित्तीय नियोजन
उत्तर:
(c) विपणन योजना

Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Entrepreneurship Objective Important Questions Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
क्या किसी निश्चित निर्णय के पूर्व आन्तरिक संसाधनों पर ध्यान देना आवश्यक होता है ?
(a) हाँ, जरूरी है
(b) नहीं जरूरी नहीं
(c) बाह्य संसाधनों को जरूरी
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(a) हाँ, जरूरी है

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा व्यावसायिक अवसर की पहचान को प्रभावित करने वाला घटक है ?
(a) आन्तरिक माँग की मात्रा
(b) निर्मित अवसर
(c) पर्यावरण के विद्यमान अवसर
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) निर्मित अवसर

प्रश्न 3.
ज्ञान अर्जन प्रक्रिया में शामिल होते हैं
(a) संचालन
(b) मनोभाव
(c) अनुक्रिया
(d) संचालन, मनोभाव एवं अनुक्रिया
उत्तर:
(d) संचालन, मनोभाव एवं अनुक्रिया

प्रश्न 4.
आर्थिक सहायता है
(a) रियायत
(b) बट्टा
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बट्टा

प्रश्न 5.
व्यवसाय का नियामक ढाचा किससे संबंधित होता है ?
(a) व्यवसाय की दिशा
(b) व्यवसाय की मात्रा
(c) व्यवस्थापन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) व्यवस्थापन

प्रश्न 6.
आर्थिक नीतियाँ क्या निर्धारित करती हैं ?
(a) व्यवसाय की दिशा
(b) व्यवसाय की मात्रा
(c) व्यवसाय की दिशा एवं मात्रा
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) व्यवसाय की दिशा एवं मात्रा

प्रश्न 7.
अल्पकालीन पूर्वानुमान कितने माह की अवधि को शामिल करता है ?
(a) 12 माह
(b) 24 माह
(c) 18 माह
(d) 36 माह
उत्तर:
(a) 12 माह

प्रश्न 8.
माँग पूर्वानुमान को निम्न में से किस रूप में जाना जाता है ?
(a) विपणन
(b) बाजार माँग
(c) माँग एवं पूर्ति
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सी उत्पाद या सेवा का चुनाव करते समय ध्यान रखना जरूरी है ?
(a) प्रतियोगिता
(b) उत्पादन लागत
(c) लाभ की सम्भावना
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 10.
व्यवहार्यता अध्ययन में निम्न में से किसका अध्ययन किया जाता है ?
(a) लागत
(b) मूल्य
(c) संचालन
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 11.
बाजार की माँग को जाना जाता है
(a) माँग की भविष्यवाणी
(b) वास्तविक माँग
(c) पूर्ति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) माँग की भविष्यवाणी

प्रश्न 12.
बाजार में पूर्णता की स्थिति को क्या सृजित करता है जो अंततः बिक्री एवं लाभ में वृद्धि करता है ?
(a) आविष्कार
(b) संवर्द्धन
(c) विपणन
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) विपणन

प्रश्न 13.
“टैरी” के अनुसार नियोजन के प्रकार हैं
(a) 04
(b) 14
(c) 16
(d) 08
उत्तर:
(a) 04

प्रश्न 14.
परियोजना प्रतिवेदन सारांश है
(a) विश्लेषण का
(b) तथ्यों का
(c) सूचनाओं का
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 15.
परियोजना निम्न से संबंधित नहीं होती
(a) जोखिम
(b) सृजनता
(c) नवप्रवर्तन
(d) कल्पना शक्ति
उत्तर:
(b) सृजनता

प्रश्न 16.
बाजार में पूर्णतः बिक्री एवं लाभ को बढ़ाता है
(a) विपणन
(b) प्रवर्तन
(c) आविष्कार
(d) स्थान
उत्तर:
(b) प्रवर्तन

प्रश्न 17.
उपक्रम स्थापना का क्रियांवयन है
(a) बाजार में प्रवेश
(b) जाँच उत्पादन
(c) भवन निर्माण
(d) सभी
उत्तर:
(d) सभी

प्रश्न 18.
साहसी का कर्तव्य है
(a) मुनाफा वसूली
(b) कर चोरी
(c) पर्यावरण प्रदूषण
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) मुनाफा वसूली

प्रश्न 19.
IDBI किस वर्ष स्थापित की गयी?
(a) 1994
(b) 1954
(c) 1964
(d) 1974
उत्तर:
(c) 1964

प्रश्न 20.
लाभांश है
(a) शुद्ध लाभ
(b) लाभ का नियोजन
(c) संचय कोष
(d) अवितरित लाभ का अंश
उत्तर:
(d) अवितरित लाभ का अंश

प्रश्न 21.
अंतिम रहतिया है
(a) कोष के स्रोत
(b) कोष का प्रयोग
(c) कोष का प्रवाह नहीं
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) कोष के स्रोत

प्रश्न 22.
विपणन व्यय भार है
(a) उद्योग पर
(b) व्यवसायियों पर
(c) उपभोक्ताओं पर
(d) सभी
उत्तर:
(c) उपभोक्ताओं पर

प्रश्न 23.
दीर्घकालीन ऋण पर होता है
(a) स्थिर ब्याज दर
(b) शून्य ब्याज दर
(c) परिवर्तनशील ब्याज दर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) स्थिर ब्याज दर

प्रश्न 24.
निम्न में से कौन-सा अवसर बोध का तत्व है ?
(a) समझ की शक्ति
(b) परिवर्तन पर नजर
(c) नवप्रवर्तनीय गुण
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 25.
बाजार माँग को निम्न में से क्या कहते हैं ?
(a) पूर्ति
(b) वास्तविक माँग
(c) माँग की भविष्यवाणी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) माँग की भविष्यवाणी

प्रश्न 26.
व्यावसायिक अवसर की पहचान करने वाला घटक है
(a) वाह्य सहायता का स्वरूप
(b) निर्यात संभावना
(c) आंतरिक माँग की मात्रा
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 27.
आर्थिक सहायता है
(a) रियायत
(b) बट्टा
(c) पुनः भुगतान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पुनः भुगतान

प्रश्न 28.
निम्न में से कौन-सा अवसर का प्रकार है ?
(a) प्रथम अवसर
(b) निर्मित अवसर
(c) अंतिम अवसर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 29.
उत्पाद चुनाव प्रभावित होता है
(a) तकनीकी ज्ञान द्वारा
(b) बाजार की उपलब्धता द्वारा
(c) प्रतिस्पर्धा की स्थिति द्वारा
(d) उपर्युक्त सभी.
उत्तर:
(b) बाजार की उपलब्धता द्वारा

प्रश्न 30.
अल्पकालीन पूर्वानुमान की अवधि होती है
(a) 24 माह
(b) 15 माह
(c) 12 माह
(d) 6 माह
उत्तर:
(c) 12 माह

प्रश्न 31.
नियोजन है
(a) आवश्यक
(b) आनावश्यक
(c) समय की बर्बादी
(d) धन की बर्बादी
उत्तर:
(a) आवश्यक

प्रश्न 32.
नियोजन किया जाता है
(a) अल्पकालीन
(b) दीर्घकालीन
(c) मध्यकालीन
(d) सभी अवधियों के लिए
उत्तर:
(d) सभी अवधियों के लिए

प्रश्न 33.
एक अच्छी योजना होती है
(a) लक्ष्य अभिमुखी
(b) उद्देश्य अभिमुखी
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) उद्देश्य अभिमुखी

प्रश्न 34.
नियोजन होता है
(a) भूतकाल के लिए
(b) भविष्य के लिए
(c) वर्तमान के लिए
(d) सभी के लिए
उत्तर:
(b) भविष्य के लिए

प्रश्न 35.
अंतिम रहतिया है
(a) कोष का प्रवाह नहीं है
(b) कोष के स्रोत
(c) कोष का प्रवाह है
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(b) कोष के स्रोत

प्रश्न 36.
आदर्श चालू अनुपात होता है
(a) 2 : 1
(b) 1 : 2
(c) 3 : 2
(d) 4 : 1
उत्तर:
(a) 2 : 1

प्रश्न 37.
कौन-सा संचालन व्यय नहीं है ?
(a) विज्ञापन व्यय
(b) मजदूरी
(c) अपलिखित प्रारंभिक व्यय
(d) किराया
उत्तर:
(c) अपलिखित प्रारंभिक व्यय

प्रश्न 38.
उद्यमी पूँजी विचार कहाँ उत्पन्न हुआ ?
(a) भारत
(b) इंगलैंड
(c) अमेरिका
(d) जापान
उत्तर:
(d) जापान

प्रश्न 39.
जोखिम पूँजी शिलाधार स्थापित किया गया
(a) 1970 ई०
(b) 1975 ई०
(c) 1986 ई०
(d) 1988 ई०
उत्तर:
(b) 1975 ई०

प्रश्न 40.
“प्रबंध एक पेशा है।” यह कथन है
(a) फेयोल
(b) टैरी
(c) रॉबिन्स
(d) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन
उत्तर:
(d) अमेरिकन प्रबंध एसोसिएशन

प्रश्न 41.
व्यवसाय के लिए विपणन है
(a) अनिवार्य
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) विलासिता
उत्तर:
(a) अनिवार्य

प्रश्न 42.
लाभांश है
(a) शुद्ध लाभ
(b) संचय कोष
(c) लाभ का नियोजन
(d) हानि दर
उत्तर:
(c) लाभ का नियोजन

प्रश्न 43.
परियोजना प्रतिवेदन सारांश है
(a) तथ्यों का
(b) सूचनाओं का
(c) विश्लेषण का
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 44.
एक सफल उद्यमी में अवश्य ही गुण होना चाहिए
(a) नेतृत्व का
(b) नियंत्रण का
(c) नवप्रवर्तन का
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 45.
प्राप्तकर्ता को डेबिट और प्रदाता को क्रेडिट का नियम लागू होता है
(a) व्यक्तिगत खाता में
(b) वास्तविक खाता में
(c) नाममात्र खाता में
(d) व्यापार खाता में
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत खाता में

प्रश्न 46.
जन निक्षेप साधन है
(a) अल्पकालीन वित्त का
(b) दीर्घकालीन वित्त का
(c) मध्यकालीन वित्त का
(d) सामाजिक वित्त का
उत्तर:
(b) दीर्घकालीन वित्त का

प्रश्न 47.
ब्राण्ड बतलाता है
(a) चिह्न
(b) डिजाइन
(c) नाम
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 48.
स्थिर लागत में शामिल रहता है
(a) सामग्री की लागत
(b) श्रम की लागत
(c) शक्ति की लागत
(d) कारखाना की लागत
उत्तर:
(c) शक्ति की लागत

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद्-राज्यों तथा केंद्रों के बीच शक्तियों के विभाजन को देखते हुए योजना तैयार करने में राज्यों का भाग लेना अनिवार्य था। इसलिए 1952 में राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।

परिषद् की स्थापना के उद्देश्य-

  • योजना आयोग की सहायता के लिए राज्य के स्रोतों तथा परिश्रम को सुदृढ़ करने तथा उनको गतिशील बनाना।
  • सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समरूप आर्थिक नीतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • देश के सभी भागों के तीव्र तथा संतुलित विकास के लिए प्रयास करना।

परिषद् के कार्य-

  • राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों संबंधी विषयों पर विचार तथा
  • राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए सुझाव देना।

प्रश्न 2.
वर्तमान समय के संदर्भ में भारत और चीन के संबंधों की विवेचना करें।
उत्तर:
चीन के साथ भारत का संबंध (India’s Relations with China)-
(i) प्रस्तावना (Introduction) – पश्चिमी साम्राज्यवाद के उदय से पहले भारत और चीन एशिया की महाशक्ति थे। चीन का अपने आसपास के इलाकों पर भी काफी प्रभाव था और आसपास के छोटे देश इसके प्रभुत्व को मानकर और कुछ नजराना देकर चैन से रहा करते थे। चीनी राजवंशों के लम्बे शासन में मंगोलिया, कोरिया, हिन्द-चीन के कुछ इलाके और तिब्बत इसकी अधीनता मानते रहे थे। भारत के भी अनेक राजवंशों और साम्राज्यों का प्रभाव उनके अपने राज्य से बाहर भी रहा था।

भारत हो या चीन, इनका प्रभाव सिर्फ राजनैतिक नहीं था-यह आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भी था। पर चीन और भारत अपने प्रभाव क्षेत्रों के मामले में कभी नहीं टकराए थे। इसी कारण दोनों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रत्यक्ष सम्बन्ध सीमित ही थे। परिणाम यह हुआ कि दोनों देश एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जान सके और जब बीसवीं सदी में दोनों देश एक-दूसरे से टकराए तो दोनों को ही एक-दूसरे के प्रति विदेश नीति विकसित करने में मश्किलें आई।

(ii) ब्रिटिश शासन के उपरांत भारत-चीन संबंध (After British rule India-China relations) – अंग्रेजी राज से भारत के आजाद होने और चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल बाहर करने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि ये दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और खास तौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। कुछ समय के लिए हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा भी लोकप्रिय हुआ। सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने इस उम्मीद को समाप्त कर दिया। आजादी के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच संबंध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों मुल्क अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते 1962 ई० में लड़ पड़े।

(iii) भारत-चीन युद्ध और उसके बाद (Indo-China War and later on) – 1962 ई० के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त होते रहे। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों के बीच सम्बन्धों में सुधार शुरू हुआ। 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला। चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए। इसलिए चीन भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए विवादास्पद मामलों को छोड़ने को तैयार हो गया। 1981 ई. सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं की श्रृंखला भी शुरू की गई।

(iv) भारत-चीन संबंध-राजीव गांधी के काल में (Indo-China relation period Rajiv Gandhi Period) – दिसम्बर 1988 ई. में राजीव गाँधी द्वारा चीन का दौरा करने से भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। इसके बाद से दोनों देशों ने टकराव टालने और सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के उपायों की शुरूआत की है। दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने के समझौते भी किए हैं।

(v) भारत-चीन संबंध शीत युद्ध के बाद (Indo-China relation after Cold War) – शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारत चीन सम्बन्धों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। अब इनके संबंधों का रणनीतिक ही नहीं, आर्थिक पहलू भी है। दोनों ही खुद को विश्व-राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।

(vi) भारत-चीन के आर्थिक संबंध, 1992 से (Since 1992 India Sino-Economic relation) – 1999 से भारत और चीन के बीच व्यापार सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इससे चीन के साथ संबंधों में नयी गर्मजोशी आयी है। चीन और भारत के बीच 1992 ई० में 33 करोड़ 80 लाख डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था जो 2006 ई० में बढ़कर 18 अरब डॉलर का हो चुका है। हाल में, दोनों देश ऐसे मसलों पर भी सहयोग करने के लिए राजी हुए हैं। जिनसे दोनों के बीच विभेद पैदा हो सकते थे, जैसे-विदेशों में ऊर्जा-सौदा हासिल करने का मसला। वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी हैं।

(vi) सैनिक उतार-चढ़ाव एवं कूटनीतिक संबंध (Military development and diplomatic relations) – 1998 ई० में भारत के परमाणु हथियार परीक्षण को कुछ लोगों ने चीन से खतरे के मद्देनजर उचित ठहराया था लेकिन इससे भी दोनों के बीच संपर्क कम नहीं हुआ। यह सच हैं कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में भी चीन को मददगार माना जाता है। बंगलादेश और म्यां से चीन के सैनिक संबंधों को भी दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के खिलाफ माना जाता है, पर इनमें से कोई भी मुद्दा दोनों मुल्कों में टकराव करवा देने लायक नहीं माना जाता।

इस बात का (क प्रमाण यह है कि इन चीजों के बने रहने के बावजूद सीमा विवाद सुलझाने की बातचीत और सैन्य स्तर पर सहयोग का कार्यक्रम जारी है। चीन और भारत के नेता तथा अधिकारी अब अक्सर नयी दिल्ली और बीजिंग का दौरा करते हैं। परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोत्तरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान के संबंधों की मुख्य समस्यायें क्या हैं ?
उत्तर:
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति एवं मित्रता का संबंध बनाए रखना चाहता है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म एक पड़ोसी के रूप में हुआ। अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध रहे तो संबंधित राज्य मानसिक चिंताओं और तनाव के वातावरण से मुक्त होकर अपने साधनों का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में लगा सकता है। भारत के पड़ोसी राज्यों से लगभग अच्छे हैं। चीन के साथ हमारे सीमा विवाद का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। पाकिस्तान के साथ बनते-बिगड़ते संबंधों के चलते हमारी परेशानियां बढ़ी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में भारत अपने पड़ोसियों के साथ शांति और मित्रता से रहना चाहता है। आकार और जनसंख्या में बड़ा होने पर भी वह छोटे देशों के साथ समानता के आधार पर सहयोग करना चाहता है। भारत पाकिस्तान के मध्य संबंधों में कटुता विद्यमान है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • कश्मीर का मामला
  • शरणार्थियों का प्रश्न
  • आतंकवाद
  • नहर पानी विवाद
  • ऋण की अदायगी का प्रश्न।

ये ऐसी समस्याएँ है जिसके चलते दोनों के बीच काफी उग्रता उत्पन्न हुई हैं पाकिस्तान ने तोड़-फोड़ जासूसी सीमा अतिक्रमण, आदि कार्यवाहियों के अलावा 1947, 1965 और 1971 में आक्रमण भी किया।

प्रश्न 4.
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति के सकारात्मक एवं नकारत्मक पहलुएँ बताइए।
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ : सरकारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायाता देने की नीति अपनायी थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीच, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरूआत थी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम (Two Positive Results of Green Revolution)-

  • हरित क्रांति में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। हरित क्रांति से खेतीहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी) और देश में खाद्यान्न उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।
  • इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।

हरित क्रांति के दो नकारात्मक परिणाम (Two Negative Reseults of Green Revolution)-

  • इस क्रांति का एक बुरा परिणाम तो यह हुआ कि गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंत: मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थित पैदा हुई।
  • हरित क्रांति के कारण कृषि में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उद्धार हुआ। इन्हें बदलावों से फायदा हुआ था और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations)-
(i) चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Help in Preparation of theU.N. Charter) – संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभावं के लाग करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री स. राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था।

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations) – संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(iii) आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems) – भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है
और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

(iv) निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India’s Co-operation to U. N. for the disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुनः पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में, भारत का सहयोग (India’s Co-operation in the Political Functions of the United Nations) – भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

(i) कोरिया की समस्या (Korean Problems) – जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था! ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal) – जुलाई, 1956 के बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अत: उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मित्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

(iii) हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo-China) – सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

(iv) हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery) – जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

(v) चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China) – विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

(vi) नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) – भारत का सदा प्रयत्न रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

(vii) रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) – जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

(viii) भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चका है (India had worked at different posts) – भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं! डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था।

अब तक छः बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ॰ नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के. पी. एस. मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।

प्रश्न 6.
भारतीय विदेश नीति के मुख्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति (Foreign Policy) – साधारण शब्दों में विदेश नीति से तात्पर्ग उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। उसे राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करना है उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।

भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of India’s foreign policy)-
(i) गुट निरपेक्षता (Non-alignment) – दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। इसमें से एक पश्चिमी देशों का गुट था और दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के काफी प्रयास किए, परंतु भारत ने दोनों ही प्रकार से सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी सैनिक गठबन्धन का सदस्य नहीं बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा तथा प्रत्येक राष्ट्रय महत्व के प्रश्न पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।

(ii) उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का विरोध (Opposition to colonialism and imperialism) – साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतंत्रता का अपहरण करके उनका शोषण करते हैं। संघर्ष और युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा है। द्वितीय महायुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र हो गए। पर साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो पाया है। भारत ने एशियाई और अफ्रीकी देशों की एकता का स्वागत किया है।

(iii) अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly relations with other countries) – भारत की विदेश नीति की अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढ़ाए हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाएं हैं। भारत के नेताओं ने कई बार स्पष्ट . घोषणा की है कि भारत सभी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।

(iv) पंचशील और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Panchsheel) – पंचशील का अर्थ है पाँच सिद्धांत। ये सिद्धांत हमारी विदेश नीति के मूल आधार हैं। इन पाँच सिद्धातों के लिए “पंचशील” शब्द का प्रयोग सबसे पहले 24 अप्रैल 1954 ई० को किया गया था। ये ऐसे सिद्धांत है कि यदि इन पर विश्व के सब देश चलें तो विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  • एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
  • एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  • एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को मानना।
  • आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।

पंचशील के ये पाँच सिद्धांत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये संसार के बचाव की एकमात्र आशा हैं क्योंकि आज का युग परमाणु बम और हाइड्रोजन बम का युग है। युद्ध छिड़ने से कोई नहीं बच पायेगा। अत: केवल इन सिद्धांतों को मानने से ही संसार में शांति स्थापित हो सकती है।

(v) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा (Safeguarding the national Interests) – भारत प्रारंभ से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए उसने अपने विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने संसार के सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों (रूस तथा अमेरिका) एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे हैं।

प्रश्न 7.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है ?
उत्तर:
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यस्था से निम्नलिखित प्रकार से अलग है-

  1. 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याआपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की।
  2. इस घोषणा के पश्चात् यह निश्चित किया गया कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाय। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका अपनाया।
  3. चीन ने शॉक थेरेपी को महत्त्व नहीं दिया बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को क्रमबद्ध तरीके से आरंभ किया।
  4. कृषि का निजीकरण कर दिया गया जिसके कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण में पर्याप्त आय हुई।
  5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत को महत्व दिया गया जिससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई। इस प्रकार उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  6. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones) का निर्माण किया गया। इससे विदेशी व्यापार में अद्भुत बढ़ोत्तरी हुई।
  7. उसने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को महत्त्व दिया। फलस्वरूप उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हो गया है। विदेशी मुद्रा की सहायता से वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।
  8. 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया है। इस प्रकार वह दूसरे देशों में अपनी अर्थव्यवस्था खोलने में सक्षम हो गया है।

प्रश्न 8.
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के गठन एवं क्षेत्राधिकार का परीक्षण करें।
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्याय व्यवस्था के शीर्ष स्थान पर है। मूल संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीश हो सकते थे। परन्तु संविधान संशोधन द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि कर दी गई है।

गठन (Composition) – सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश होते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही नियुक्त किया जा सकता है जो-

  • भारत का नागरिक हो।
  • एक या एक से अधिक न्यायालयों में पाँच वर्षों तक न्यायाधीश रह चुका हो या किसी एक अथवा एक से अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  • राष्ट्रपति की दृष्टि से वह एक सुविख्यात विधिवेत्ता हो।

सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने पद पर 65 वर्ष तक बना रह सकता है। इसके पहले भी वह त्याग-पत्र देकर हट सकता है। इसके अतिरिक्त कदाचारिता या अक्षमता के आरोप में संसद के दोनों सदनों के पृथक्-पृथक् दो-तिहाई बहुमत में प्रस्ताव पारित कर किसी न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है। वर्तमान समय में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपये तथा अन्य न्यायाधीश को 90,000 रुपये मासिक वेतन एवं अन्यान्य सुविधायें प्राप्त हैं।

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) – सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों एवं कार्यों को निम्नलिखित वर्ग में बाँटा जा सकता है-
(i) प्रारंभिक अधिकार इस श्रेणी में वे विषय आते हैं जिनकी सुनवाई केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही होती है। ऐसे विषय निम्नलिखित हैं-

  • संघ तथा राज्य विवाद।
  • भारत सरकार, राज्य या कई राज्यों तथा एक या उससे अधिक राज्यों के बीच विवाद।
  • दो या दो से अधिक राज्यों की बीच विवाद, जिसमें कोई ऐसा प्रश्न अन्तर्निहित हो, जिस पर किसी वैध अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर हो।

इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकार के मामले भी सर्वोचच न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। परन्तु इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में भी हो सकती है।

(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय केवल उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है। यह अपील संवैधानिक, फौजदारी, दीवानी और कुछ विशिष्ट मामलों में सुनी जाती है।

संवैधानिक मामलों में अपील तभी सुनी जा सकती है, जबकि उच्च न्यायालय ऐसा प्रमाण दे कि इस मामले में अपील की जा सकती है, या सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा विश्वास हो जाए कि उसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है। फौजदारी मामलों में अपील तभी की जा सकती है जबकि-

  • उच्च न्यायालय ने अपने अधीनस्थ न्यायालय द्वारा किए गए किसी अभियुक्त को मृत्यु दंड का आदेश दिया हो। अथवा
  • उच्च न्यायालय या अपने अधीनस्थ न्यायालय में किसी फौजदारी मामले को मंगाकर अभियुक्त को प्राण दण्ड देना।

दीवानी मामले में निम्नलिखित परिस्थितियों में अपील की जा सकती है-

  • यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण दे कि इस मामले में कानून की व्याख्या का प्रश्न निहित है।
  • उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है। कुछ विशिष्ट मामलों में सर्वोच्च न्यायालय अपील की अनुमति दे सकता है।

(iii) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार – संविधान की धारा 143 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह किसी भी संवैधानिक मामले अथवा समझौते या सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न से संबंधित किसी भी विषय पर सार्वजनिक न्यायालय के समक्ष विचार के लिए रख सकता है।. सर्वोच्च न्यायालय इस पर अपनी सलाह देता है। परन्तु इस सलाह का मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।

(iv) आवत्ति संबंधी क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय अपने किसी निर्णय पर पूर्ण विचार कर सकता है और उसे परिवर्तित कर भूल सुधार कर सकता है।

(v) अभिलेख न्यायालय – सर्वोच्च न्यायालय को ऊपर वर्णित अधिकारों के अतिरिक्त भी बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। जैसे-

यह मौलिक अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है। उसकी रक्षा के लिए यह विभिन्न नियम जारी कर सकता है। यह संविधान का भी एक रक्षक है। यह संसद तथा राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून को जो संविधान के विरुद्ध हैं, अवैध घोषित कर सकता है। उसे अपनी कार्य-प्रणाली के संचालन के लिए नियम बनाने का भी अधिकार है। यह अपने कर्मचारियों पर भी नियंत्रण रखता है।

प्रश्न 9.
लोक सभा के संगठन और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
लोकसभा का गठन-लोकसभा संसद का प्रथम अथवा निम्न सदन है। इसके कुल सदस्यों की संख्या अधिकतम 550 हो सकती है। इनमें से 530 सदस्य राज्यों की जनता के द्वारा तथा 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों की जनता के प्रतिनिधि हो सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। आजकल लोकसभा में 545 सदस्य हैं जिसमें से दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एंग्लो-इण्डियन हैं। सदस्यों के निर्वाचन में वस्यक मताधिकार का प्रयोग होता है। प्रत्येक 18 वर्ष की आयु वाले नागरिक वोट डालते हैं। 25 वर्ष की आयु वाला नागरिक जिसका नाम मतदाता सूची में हो, चुनाव लड़ सकता है। सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए किया जाता है।

लोकसभा का कार्य :

  • लोकसभा संघ की सूची के विषयों पर कानून बनाती है। संसद में कोई विधेयक लोकसभा और राज्य सभा दोनों में अलग-अलग पारित किया जाता है, तभी राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करता है। उसके बाद वह विधेयक कानून बन जाता है।
  • वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जाते हैं तथा अंतिम रूप से इसी के द्वारा पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में लेती है।
  • लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री बनाया जाता है।
  • लोकसभा लोगों की सभा है। लोगों के कल्याण के लिए यहाँ अनेक प्रस्ताव पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती है। वह उसके प्रति अविश्वास का प्रस्ताव भी पारित कर सकती है, जिससे मंत्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव लाकर, प्रश्न पूछकर लोकसभा मंत्रिमण्डल पर नियंत्रण रखती है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने का अधिकार संसद को है। इस प्रकार लोकसभा इस कार्य में भी राज्यसभा की सहभागी है। वह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को भी उनके पद से हटा सकती है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आलोचनात्मक व्याख्या करें। इसकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन (Basic Philosophy) हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है, जिसे के. एम. मुंशी ने राजनीतिक जन्म-पत्री (Political Horoscope) का नाम दिया है। यद्यपि कानूनी दृष्टि से प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं होती और इसे न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जाता है तथापि संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तवेज है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है।

जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और इसका अर्थ स्पष्ट न हो, तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में, प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या की जा सकती है। प्रस्तावना से यह पता चलता है कि संविधान-निर्माताओं की भावनाएँ क्या थीं। प्रस्तावना संविधान बनानेवालों को मन की कुंजी है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से संविधान के उद्देश्यों, लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा हमारे स्वप्नों का स्पष्ट पता चल जाता है।

हमारे संविधान की प्रस्तावना की सर्वश्रेष्ठ प्रशंसा सर अर्नेस्ट बार्कर (Sir Earnest Barker) ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के सिद्धान्त पर (Principle of Social and Political Theory) में इन शब्दों में की है : “जब मैं इसे पढ़ता हूँ, तो मुझे लगता है कि इस पुस्तक का अधिकांश तर्क संक्षेप में वर्णित है, अतः इसे इसकी कुंजी कहा जा सकता है। मैं इसे देखने के लिए इसलिए भी और लालायित हूँ कि मुझे इस बात का गर्व है कि भारत के लोग अपने स्वतंत्र जीवन का प्रारम्भ राजनीतिक परम्परा के उन सिद्धान्तों के साथ कर रहे हैं, जिन्हें हम पश्चिम के लोग पाश्चात्य कहकर पुकारते हैं, परन्तु जो अब पाश्चात्य से कहीं अधिक है।” संविधान सभा के सदस्य पण्डित ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना की सराहना करते हुए कहा था, “प्रस्तावना संविधान का सबसे मूल्यवान अंग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का रत्न है।”

(The Preamble is the most precious part of the Constitution. It is the key to the Constitution. It is the jewel in the Constitution.) कुछ वर्ष पूर्व श्री एन. ए. पालकीवाला ने सुप्रीम कोर्ट में 24, 25 और 29वें संविधानों की आलोचना करते समय कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक आवश्यक अंग है।

प्रस्तावना (Preamble) – प्रस्तावना एक वैधानिक प्रलेख में प्राक्कथन के रूप में होती है। संविधान की प्रस्तावना संविधान के अनुसार ही होती है और इसलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान सभा ने संविधान पारित करने के उपरांत पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में उन भावनाओं का वर्णन है, जो दिसम्बर, 1946 ई० को पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव में रखा था। उद्देश्य प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान सभा घोषित करती है कि इसका ध्येय व दृढ़ संकल्प भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना है और इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल प्रस्तावना में किया गया है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवाद (Socialism) तथा धर्म-निरपेक्ष (Secular) शब्दों को प्रस्तावना में अकित किया गया। हमारे वर्तमान संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है।

“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष-लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, विचार-अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्तवंत्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने और उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़-संकल्प होकर अपनी इस विधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हजार छ: विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।”

महत्व – M.P. Pylee के अनुसार, “भारतीय संविधान की प्रस्तावना आज तक अकित इस प्रकार के प्रलेखों में सर्वोच्च है। यह विचार, आदर्श और अभिव्यक्ति में अनुपम है। यह संविधान की आत्मा है। यह प्रस्तावना भारतीयों के दृढ़-संकल्प की प्रतीक है कि वे एकता प्राप्त कर ऐसे स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करेंगे, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृभाव की विजय हो।” वी० एन० शुक्ला (V. M. Shukla) ने प्रस्ताव के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखा है, “यह सामान्य तथा राजनीतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों का स्पष्टीकरण करती है, जिन्हें संविधान प्रोत्साहित करना चाहता है।”

भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है-

  1. सांविधानिक शक्ति का स्रोत क्या है,
  2. भारतीय शासन-व्यवस्था कैसी है तथा
  3. संविधान के उद्देश्य या लक्ष्य क्या हैं ?

प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द यह इंगित करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता है। भारतीय शासन की अंतिम सत्ता जनता में निहित है तथा भारतीय जनता ने ही संविधान को अंगीकृत और अधिनियमित किया है। इसके सम्बन्ध में पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “यह संविधान राज्यों ने नहीं बनाया और न ही कुछ राज्यों के लोगों ने और न ही यह संभव है कि हमारे राज्यों में से एक अथवा उनका एक घटक इस संविधान को भंग कर दे और वे हमसे अलग हो जायँ।” Dr. Ambedkar के अनुसार, “The preamble emobides what is the desire of every member of the house, that this constitution should have its roots, its authority, its sovereignty from the people.”

प्रश्न 11.
राष्ट्रपति शासन से आप क्या समझते हैं ? अथवा, राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जाता है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की दशा में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। ऐसा राष्ट्रपति की उद्घोषणा द्वारा संभव है। राष्ट्रपति शासन छः माह की अवधि के लिए लगाया जा सकता है, जिसे पुनः छः माह तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। एके वर्ष की अवधि के उपरांत यह तभी लागू रह सकता है जब राष्ट्रीय आपात लागू हो तथा चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि राज्य विधान सभा का चुनाव कराना फिलहाल संभव नहीं है। राष्ट्रपति शासन की दशा में राज्य मंत्रिमण्डल बर्खास्त कर दिया जाता है तथा राज्य की कार्यपालिकीय शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती हैं। राज्य की विधानसभा या तो बर्खास्त कर दी जाती है या लम्बित रहती है। राष्ट्रपति शासन में राज्य के उच्च न्यायालय की शक्तियों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 12.
भारत के राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का वर्णन कीजिए। अथवा, ‘भारतीय राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
जर्मनी के वाइमर संविधान के राष्ट्रपति की तरह भारत के राष्ट्रपति को भी संकटकाल में उत्पन्न कठिनाइयों का समाधान करने के लिए अत्यन्त ही विस्तृत और निरंकुश अधिकार दिए गए हैं। जब राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करेगा तब उसके हाथों में ऐसे बहुत-से अधिकार आ जाएँगै जो उसे साधारण स्थिति में प्राप्त नहीं है। संकट तीन प्रकार के हो सकते हैं-

  • युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट;
  • राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकट;
  • आर्थिक संकट।

(a) युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा आंतरिक अशांति से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छे 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा तथा शांति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकट में है, तो वह संकटकाल की घोषणा कर देश का या देश के किसी भाग का शासन अपने हाथ में ले सकता है। राष्ट्रपति इस आशय की घोषण उस दशा में भी कर सकता है, जब उसे यह विश्वास हो जाए कि युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा और शांति निकट भविष्य में संकट में पड़नेवाली है। तात्पर्य यह है कि संभावना मात्र से ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।

संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार में अनेक परिवर्तन किए गए; जैसे-

  • अपने मंत्रिमण्डल के निर्णय के बाद प्रधानमंत्री द्वारा लिखित सिफारिश के बाद ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा के 30 दिनों के अन्तर्गत घोषणा पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा छह महीने के बाद संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • यदि लोकसभा के 1/10 सदस्य इस आशय का प्रस्ताव रखें कि संकटकाल समाप्त हो जाना चाहिए तो 14 दिनों के अन्दर ही इस प्रस्ताव पर विचार के लिए सदन की बैठक बुलाने की व्यवस्था की जाएगी।
  • नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार संकटकाल की घोषणा के बाद भी समाप्त नहीं किए जाएँगे। भारत के राष्ट्रपति ने अपने इस अधिकार का प्रयोग सर्वप्रथम 1962 ई० में किया, जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दूसरी बार इसका प्रयोग 1971 ई० में किया गया। तीसरी बार इसका प्रयोग 26 जून, 1975 को आंतरिक अशांति के लिए किया गया।

जब तक यह घोषणा लागू रहेगी तब तक

  • संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को यह आदेश दे सकती है कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका-शक्ति का किस रीति से उपयोग करें,
  • संसद राज्यों की सूची में वर्णित विषयों पर कानून-निर्माण कर सकती है,
  • नागरिकों के कई मूल अधिकार (स्वतंत्रता-संबंधी अधिकार) स्थगित हो जाएँगे,
  • राष्ट्रपति मूल अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए किसी व्यक्ति के उच्च या अन्य न्यायालयों में जाने के अधिकार को स्थगित कर सकता है और
  • राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व-विभाजन-संबंधी समस्त उपबन्ध को स्थगित कर सकता है।

(b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छेद 356 अनुसार, यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल से सूचना मिले अथवा उसे यह विश्वास हो जाए कि अमुक राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असंभव हो गया है, तो वह घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। ऐसी स्थिति में राज्य की कार्यपालिका-शक्ति अपने हाथों में ले सकता है, राज्य के विधानमण्डल की शक्तियाँ संसद राष्ट्रपति को दे सकती है। राष्ट्रपति कभी भी दूसरी घोषणा द्वारा इस घोषणा को रद्द कर सकता है। इस अधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति ने अगस्त 1988 को नागालैंड में किया।

इस प्रकार की घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और दो महीने तक लागू रहेगी। लेकिन, यदि इसी बीच संसद की स्वीकृति मिल जाए, तो वह दो महीनों के पश्चात भी स्वीकृति की तिथि से छह महीने तक लागू रहेगी। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार अब किसी राज्य में राष्ट्रपति-शासन अधिक-से-अधिक । वर्ष रह सकता है। 1 वर्ष से अधिक तभी रह सकता है जब निर्वाचन आयोग यह सिफारिश करे कि राज्य में चुनाव करना संभव नहीं है। संविधान का 48वाँ संशोधन-अधिनियम, 1984 के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन को 1 वर्ष और बढ़ाने का प्रावधान है।

इस प्रकार की घोषणा से राष्ट्रपति राज्य से उच्च न्यायालय के अधिकारों को छोड़कर राज्य के समस्त कार्यों और अधिकारों को अपने हाथ में ले सकता है। यदि लोकसभा अधिवेशन में न हो, तो राज्य की संचित निधि में से वह व्यय करने की आज्ञा भी दे सकता है। संविधान द्वारा संघ सरकार का राज्यों की सरकारों के लिए जो निर्देश देने का अधिकार है यदि उनका पालन सुचारू रूप से न होता हो, तो राष्ट्रपति यह समझ सकता है कि राज्य का सांविधानिक तंत्र विफल हो चुका है और वह इस आशय की घोषणा निकाल सकता है।

(c) आर्थिक संकट – संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें भारत अथवा उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की आर्थिक स्थिरता एवं साख को खतरा है, तो वह इस आशय की घोषणा कर सकता है। दूसरी घोषणा के द्वारा उसे इस घोषणा को रद्द करने का भी अधिकार है। यह घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और संसद की स्वीकति मिल जाए तो यह दो महीनों तक लाग रहेगी। दो महीनों तक लागू रहेगी। यदि यह घोषणा उस समय की गई है जबकि लोकसभा के भंग होने के पूर्व स्वीकृति न हुई हो, तो युद्ध अथवा आंतरिक अशांति के लिए निर्धारित व्यवस्था काम में लाई जाएगी।

इस घोषणा का प्रभाव यह होगा कि संघ की कार्यपालिका-शक्ति को राज्यों के आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जाएगा। राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह सरकारी नौकरों, यहाँ तक कि सर्वोच्च और न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन कम करने और राज्यों के विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत धन-विधेयक और वित्त-विधेयक को अपनी स्वीकृति के लिए रोक रखने का आदेश दे। इसका प्रयोग नहीं हुआ है।

प्रश्न 13.
किसी राज्य के मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है। राज्यपाल साधारणतः उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जो विधान सभा में बहुमत दल का नेता हो।

अधिकार एवं कार्य- मुख्यमंत्री के निम्नलिखित अधिकार एवं कार्य हैं-

  • वह मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष है। इस हैसियत से वह इसकी बैठकों का सभापतित्व करता है और मंत्रिपरिषद के समक्ष किसी बात को विचार हेतु रखता है।
  • वह यह देखता है कि सभी मंत्री एक टीम के रूप में कार्य करें। उसे सभी प्रशासकीय विभागों के निरीक्षण तथा समन्वय का अधिकार प्राप्त है। इसका निर्णय अन्तिम होता है।
  • विधानमंडल के नेता के रूप में यह देखता है कि कोई भी विधेयक समय पर पास हो जाए, किस विषय पर और कब मतदान लिया जाए तथा किस विषय पर कर लगाया जाए।
  • राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श पर नियुक्तियाँ करता है, मंत्रियों की नियुक्ति और पदच्युति तथा. विधान सभा के विघटन के बारे में कार्य करता है।
  • मुख्यमंत्री राज्यपाल तथा मंत्रिपरिषद के बीच में सम्पर्क स्थापित करने के लिए कड़ी का काम करता है। राज्यपाल को सभी निर्णयों की सूचना देना उसका कर्तव्य है।
  • राज्य सरकार तथा सत्तारूढ़ दल का प्रमुख प्रवक्ता होने के कारण उसके शब्द तथा आश्वासन आधिकारिक माने जाते हैं।
  • राज्यपाल महाधिवक्ता तथा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है, लेकिन ये नियुक्तियाँ वस्तुत: मुख्यमंत्री द्वारा की जाती हैं।
  • अगर राज्यपाल चाहे तो वह मुख्यमंत्री से कह सकता है कि किसी मंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से लिये गये निर्णय पर सम्पूर्ण मंत्रिमंडल फिर से विचार करे। मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत हो जाने पर उस निर्णय को राज्यपाल को मानना ही होगा।

प्रश्न 14.
भारत में साम्प्रदायिकता पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का आरंभ उस धारणा से होता है कि किसी समुदाय विशेष के लोगों के एक सामान्य अर्थ के अनुयायी होने के नाते राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक हित भी एक जैसे ही होते हैं। उस मत के अनुसार भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अलग-अलग सम्प्रदायों से संबंधित हैं। साम्प्रदायिकता की शुरुआत हितों की पारस्परिक भिन्नता से होती है किंतु इसका अंत विभिन्न धर्मानुयायियों में पारस्परिक विरोध तथा शत्रुता की भावना से होता है।

साम्प्रदायवादी वह व्यक्ति है जो स्वयं अपने सम्प्रदाय के हितों या स्वार्थों की रक्षा करता है जबकि एक धर्म निरपेक्ष व्यक्ति व्यापक राष्ट्रीय हितों अथवा सभी सम्प्रदायों के हितों को ध्यान में रखता है। अर्थात् साम्प्रदायवादी हितों को बढ़ावा देने से संबंधित नीति को साम्प्रदायिकता कहा जाता है।

भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली। 1986 के बाद उस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिंदू राष्ट्रवाद के तत्वों पर जोड़ देना शुरू किया। भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिंदुओं को लामबंद करने की रणनीति अपनायी।

मुस्लिम साम्प्रदायिकता की जड़ें भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों के कारण गहरी हो चुकी थी। भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक थे। अल्पसंख्यकों की यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं कि उन्हें यह खतरा रहता है कि बहुसंख्यक लोग उन पर हावी न हो जाएँ भले ही ऐसा महसूस करने के कोई वास्तविक आधार मौजूद न हों। इस संबंध में बहुसंख्यकों का विशेष दायित्व होता है। उन्हें एक निश्चित उदारता के साथ व्यवहार करना चाहिए जिससे कि अल्पसंख्यकों का यह भय धीरे-धीरे समाप्त हो जाय। दुर्भाग्यवश हिंदू साम्प्रदायवाद ने उसके विपरीत भूमिका अदा की। उन्होंने भारत को हिंदुओं की भूमि कहा और घोषित किया कि हिंदुओं का यह एक अलग शब्द है।

भाजपा ने अयोध्या मसले को उभारकर देश में हिंदुत्व को लामबंद करने की कोशिश की। उन्होंने जनसमर्थन जुटाने के लिए गुजरात स्थित सोमनाथ से उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या (राम जन्म भूमि) तक की बड़ी रथ यात्रा निकाली।

राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर रहे संगठन 1992 के दिसम्बर में एक कार सेवा का आयोजन किया। 6 दिसंबर, 1992 को देश के विभिन्न भागों में लोग अयोध्या पहुँचे और इन लोगों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। मस्जिद के विध्वंस की खबर सुनते ही देश के कई भागों में हिंदू और मुसलमानों के बीच झगड़ा हुई। 1993 के जनवरी में एक बार फिर मुम्बई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक जारी रही। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर गहरा धक्का लगा।

2002 के फरवरी-मार्च में गुजरात के मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक कारण साबित हुई। इस साम्प्रदायिक हिंसा में 1100 व्यक्ति मारे गए जो अधिकतर मुसलमान थे।

1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के समान गुजरात के दंगों से भी यह जाहिर हुआ कि सरकारी मशीनरी साम्प्रदायिक भावनाओं के आवेग में आ सकती है। गुजरात में घटी यह घटनाएँ हमें अगाह करती है कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना खतरनाक हो सकता है। इससे हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को खतरा पैदा हो सकता है।