Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : भूमि एवं लोग Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी

Bihar Board Class 9 Geography प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्राकृतिक वनस्पति और वन्य जीवन कक्षा 9 Bihar Board प्रश्न 1.
भारत में जीव संरक्षण अधिनियम कब लागू हुआ?
(क) 1982
(ख) 1972
(ग) 1992
(घ) 1985
उत्तर-
(ख) 1972

Bihar Board Class 9 Geography Solutions प्रश्न 2.
भरतपुर पक्षी बिहार कहाँ स्थित है ? ।
(क) असम
(ख) गुजरात
(ग) राजस्थान
(घ) पटना
उत्तर-
(ग) राजस्थान

Class 9 Geography Chapter 5 प्रश्न 3.
भारत में कितने प्रकार की वनस्पति प्रजातियाँ पायी जाती हैं ?
(क) 89000
(ख) 90000
(ग) 95000
(घ) 85000
उत्तर-
(क) 89000

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. भारत में तापमान चूँकि सर्वत्र पर्याप्त है अतः ………………. की मात्रा वनस्पति के प्रकार को यहाँ निर्धारित करती है।
2. धरातल पर एक विशिष्ट प्रकार की वनस्पति या प्राणी जीवन वाले परिस्थिति तंत्र को …………………. कहते हैं।
3. मनुष्य भी पारिस्थितिक तंत्र का एक …………………… अंग है।
4. घड़ियाल मगरमच्छ की एक प्रजाति विश्व में केवल ………… देश.में पायी जाती है।
5. देश में जीवन मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र) की कुल संख्या …………………… है जिसमें …………….. को विश्व के जीवमंडल निचों में सम्मिलित किया गया है।
उत्तर-
1. तापमान,
2. जीवोम,
3. अभिन्न,
4. भारत,
5.14, 4 ।

भौगोलिक कारण बताएँ

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 1.
हिमालय के दक्षिणी ढलान पर उत्तरी ढलान की अपेक्षा सघन वन पाए जाते हैं।
उत्तर-
इसके कारण निम्नलिखित हैं-

  • हिमालय पर्वत के दक्षिण ढालों पर ज्यादा सघन वनस्पति होने का कारण है वर्षा । इसमें सदाबहार तथा पर्णपाती वन मिलते हैं 1000 मीटर से 2000 मीटर तक की ऊचाई पर ।
  • दक्षिण ढालों पर सूर्य की किरणें अधिक समय तक पड़ती है जो वृक्षों के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
  • दक्षिण ढाल उपजाऊ मृदा वाले हैं। इसके विपरीत उत्तरी ढलान पर उपर्युक्त सुविधाओं के अभाव में घने वन नहीं मिलते हैं।

Bihar Board Solution Class 9 Social Science प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन में धरातल लता क्यों वितानों से ढंका हुआ है।
उत्तर-
उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन में सदाबहार जंगल मिलते हैं। जिन क्षेत्रों में 200 सें० मी० से अधिक वर्षा होती है । इस क्षेत्र में अधिक वर्षा ओर ऊँचे तापमान के कारण वृक्ष काफी अधिक बढ़ते हैं। वन काफी सघन होते हैं। इसके कारण सूर्य प्रकाश धरातल पर नहीं पहुंच पाता अत्यधिक वर्षा के कारण यहाँ विभिन्न प्रकार की लताएँ वृक्षों से लिपटी रहती हैं तथा धरातल विभिन्न प्रकार की झाड़ियों से आच्छादित रहता है।

Bihar Board Class 9 Social Science Solution प्रश्न 3.
जैव विविधता में भारत बहुत धनी है।
उत्तर-
वनस्पति विविधता की तरह भारत में वन्य पशुओं में भी विविधता देखी जा सकती है। यहाँ 89,000 प्रजातियों के अन्य वन्य प्राणी मिलते हैं। हाथी जैसे बड़े पशु से लेकर भालू, सिंह, बाघ, सियार और-स्थलचर, घड़ियाल केवल भारत में ही मिलते हैं। यहाँ मछलियों की ।

कोई 2500 प्रजातियाँ और पक्षियों में मोर, हंस, बत्तख, मैंना, तोता, कबूतर, सारस और बगुले मुख्य रूप से मिलते हैं। विश्व की कुल वन्य प्राणी प्रजातियों का 13% भारत में पाई जाती है। भारत में विश्व के 5% से 8% तक के स्तनधारी जानवर उभयचरी और रेंगने वाले जीव पाए जाते हैं।

Bihar Board Solution Class 9 History प्रश्न 4.
झाड़ी एवं कँटीले वन में पौधों की पत्तियाँ रोएँदार मोमी, गूदेदार एवं छोटी होती हैं।
उत्तर-
जहाँ वर्षा 50 सें मी० से कम होती है वहाँ अनेक प्रकार के कैंटीले वन तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। इस प्रकार की वनस्पति उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में पाई जाती है। इसके अंतर्गत गुजरात, राजस्थान, हरियाणा के आर्द्रशुष्क क्षेत्र, उत्तर-प्रदेश का पश्चिम क्षेत्र, मध्यप्रदेश का उत्तर-पश्चिम क्षेत्र आदि सम्मिलित हैं। इनके अंतर्गत-खजूर, यूफोर्बिया, एकेसिया (बबूल) तथा नागफनी (कैक्टस) प्रजातियाँ आती हैं। इन वनस्पतियों के लिए पानी की मांग सबसे महत्वपूर्ण है। अत इसे प्राप्त करने के लिए इनकी जड़े अत्यन्त गहरी होती हैं। पानी को अधिक से अधिक बचा कर रखा जा सके इसलिए इनके तने मोटे होते हैं। पत्तियाँ मोटी, रोएँदार या गूदेदार होती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 1.
सिमलीपाल जीवमंडल निचय कहाँ है ?
उत्तर-
सिमलीपाल जीवमंडल निचय उड़ीसा राज्य में है।

प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी Bihar Board प्रश्न 2.
बिहार किस प्रकार के वनस्पति प्रदेश में आता है ?
उत्तर-
बिहार उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन प्रदेश में आता है।

Geography Chapter 5 Class 9 प्रश्न 3.
हाथी किस वनस्पति प्रदेश में पाया जाता है ?
उत्तर-
हाथी उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन प्रदेश में पाया जाता है।

Bihar Board Class 9 Geography Book Solution प्रश्न 4.
भारत में पाए जाने वाले कुछ संकटग्रस्त वनस्पति एवम् प्राणियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
विश्व संरक्षण संघ ने लाल सूची के अंतर्गत 352 पादपों के को शामिल किया गया है जिनमें 52 पादप संकट ग्रस्त है और 49 किसमें तो नष्ट होने के कगार पर है। प्राणियों में-बाघ और सिंह संकट ग्रस्त हैं।

प्रश्न 5.
बिहार में किस वन्य प्राणी को सुरक्षित रखने के लिये वाल्मिकी नगर में प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है।
उत्तर-
हाथी को सुरक्षित रखने के लिए प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारिस्थितिक तंत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) शब्द का प्रयोग सबसे पहले ए० जी० टांसले (A.G. Tansley) नामक वैज्ञानिक ने सन् 1935 में किया। – परिभाषा-“पारिस्थितिक तंत्र पारिस्थितिकी की वह आधारभूत इकाई है जिसमें जैविक और अजैविक वातावरण एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हुए पारस्परिक अनुक्रिया से ऊर्जा एवं रासायनिक पदार्थों के निरंतर प्रभाव तंत्र की कार्यात्मक गतिशीलता बनाए रखते हैं।” -ई0 पी0 ओडम किसी भी स्थान पर पौधा या जीव अकेला नहीं पाया जाता है बल्कि ये दोनों साथ-साथ एवं समूहों में पाए जाते हैं और दोनों एक दूसरे पर आश्रित रहते हैं। जब किसी खास जगह की वनस्पति बदल जाती है तो वहाँ के रहने वाले जीव जंतुओं को प्रभावित करती हैं और उनकी संख्या तथा किस्म बदल जाती है। किसी भी जगह के पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु अपने भौतिक वातावरण से अंतर्संबंधित तथा एक दूसरे से भी संबंधित होते हैं। अतः ये दोनों मिलकर एक परिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। मनुष्य भी इस पारिस्थितिक तंत्र का एक अभिन्न अंग है।

प्रश्न 2.
भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन कारकों द्वारा प्रभावित होता है?
उत्तर-
भारत में वनस्पति तथा जीवों के वितरण के अग्रलिखित कारण हैं-

भारत के वर्षा वितरण तथा वनस्पति-वितरण एवं जीवों में गहरा संबंध है । धरातल का स्वरूप, वर्षा की मात्रा वृक्षों की जाति के आधार पर भारतीय वन एवं जीव निर्भर हैं।

(i) चिरहरितवन-जिन स्थानों में 200 सें. मी० से अधिक वर्षा होती है वहाँ चिररहित वन मिलते हैं। इनमें महोगनी, आबनूस, रोजवुड, बेंत, बाँस, झाउ, ताड़, सिनकोथ और रबर हैं।

स्थान-पूर्वी एवं पश्चिमीघाट, अंडमान द्वीप, हिमालय की तरई, उत्तर प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर मिजोरम तथा त्रिपुरा है।

पाये जानेवाले जीव-बंदर, लंगूर, एक सींगवाला मेंडा तथा हाथी मिलते हैं। विभिन्न प्रकार के पक्षी तथा रेंगनेवाले जीव मिलते हैं।

(ii) पर्णपाती वन-जहाँ 70 से 200 सें० मी० वर्षा होती है।
क्षेत्र-हिमालय की तराई, प्रायद्वीपीय पठार, छोटानागपुर, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा है।
वनस्पति-सागवान, सखुआ, शीशम, चंदन, आम, महुआ, आँवला, त्रिफला आदि।
जीव जन्तु-इन वनों में, वन के अनुरूप जीव मिलते हैं। जैस-सिंह, मोर, जंगली सूअर, हिरण और हाथी हैं।

(iii) शुष्क वन-जहाँ वर्षा 50 सें० मी० से 70 सें. मी. तक होती?
क्षेत्र-राजस्थान, पंजाब, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र गुजरात ।
वृक्ष एवं पौधे-कीकर, बबूल, खैर, झाऊ, नागफनी जीव-वनों के अनुरूप इस पर आधारित जन्तुओं में राजस्थान में ऊँट, जंगली गधं मिलते

(iv) पर्वतीय वन-पर्वतों की ऊँचाई पर वर्षा के अनुरूप 1500 मीटर की ऊँचाई तक वन मिलते हैं। जैसे-कोणधारी वन, अल्पाइन वनस्पति, देवदार, स्यूस, फर, चीड़ तथा ओक मिलते हैं।
क्षेत्र-पूर्वी एवं पश्चिमी हिमालय हैं।
जीव-वन पशुओं में तेंदुआ, बाघ, रीछ, घनेवालों वाली बकरियाँ ।

(v) ज्वारीय वन-मुख्यतः भारत के पूर्वी तट पर हैं। जहाँ दलदल है।
क्षेत्र-गंगा, गोदावरी, कृष्णा कावेरी आदि नदियों के डेल्टाई भाग में ।
वनस्पति-गैंग्रोव तथा सुन्दरी नामक पेड़ होते हैं।
जीव-सुन्दरवन डेल्टा में रॉयल बंगाल टाइगर, घड़ियाल, साँप, कछुआ आदि मिलते हैं।

प्रश्न 3.
वनस्पति जगत् एवं प्राणी जगत् हमारे अस्तित्व के लिये क्यों आवश्यक हैं ?
उत्तर-
वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत हमारे अस्तित्व के लिए अत्यन्त आवश्यक है । मानव जीवन के लिए इनकी अनेक उपयोगिताएँ

वनस्पति जगत ही वातावरण की गुणवत्ता निर्धारित करते हैं जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को संतुलित करना, वर्षा को आकर्षित करना., मिट्टी अपरदन रोकना, पत्तियों की खाद द्वारा मिट्टी का उर्वरता को बढ़ाना आदि । इसके साथ-साथ ये हमें अनेक प्रकार के वन उत्पाद भी उपलब्ध कराते है, जैसे-कीमती इमारती लकड़िया, जलावन, पशुओं के लिए चारा, कल कारखानों के लिए लाह, जड़ी-बूटियाँ, कत्था, शहद तथा विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणियों के लिए निवास स्थान और चिड़ियों को निवास स्थान प्रदान करते हैं।

इसी तरह प्राणी जगत भी हमारे अस्तित्व के लिए अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि प्रत्येक प्रजाति पारिस्थितिक तंत्र के सफल संचालन में योगदान देती हैं। सभ्यता के विकास में विभिन्न प्राणियों का सहयोग है। मनुष्य अपने आहार एवं कृषि कार्य के लिए विभिन्न प्राणियों पर आश्रित हैं। जैसे-दूध, मांस, ऊन, चमड़ा आदि के लिए पशुओं पर आश्रित हैं।

मानचित्र कौशल

प्रश्न 1.
भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें
(क) भारत के वनस्पति प्रदेश तथा
(ख) भारत के चौदह जीव मंडल।
उत्तर-
(क) भारत के वनस्पति प्रदेश
Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य प्राणी - 1

(ख) भारत के चौदह जैव मंडल निचय (आरक्षित क्षेत्र)

  1. सुन्दरवन
  2. मन्नार की खाड़ी
  3. नीलगिरि
  4. नंदादेवी
  5. नोकरेक
  6. ग्रेट निकोबार
  7. मानस
  8. सिमलीपाल
  9. दिहांग दिबांग
  10. डिबू साइक वोच
  11. पंचगढी
  12. कान्हा
  13. कच्छ का रन
  14. कंचन जंघा।

Bihar Board 9th English Reader Objective Answers Chapter 1 I’m going to Dance Again

Bihar Board 9th English Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 10th English Reader Objective Answers Chapter 1 I’m going to Dance Again

I Am Going To Dance Again Question Answer Bihar Board  Question 1.
Sonal Mansingh was a born
(a) writer
(b) reader
(c) dancer
(d) none of these
Answer:
(c) dancer

I Am Going To Dance Again Story In Hindi Bihar Board Question 2.
Sonal was rushed to the municipal hospital on a stretcher in a
(a) van
(b) ambulance
(c) pick-up
(d) taxi
Answer:
(b) ambulance

I Am Going To Dance Again Bihar Board Question 3.
The X-rays showed that Sonal had been badly injured and had many broken
(a) legs
(b) keen
(c) muscles
(d) bones
Answer:
(d) bones

I Am Going To Dance Bihar Board Question 4.
Sonal Mansingh gave her maiden performance in………..fourteen years ago in April 1961.
(a) Lucknow
(b) Agra
(c) Bangalore
(d) patna
Answer:
(c) Bangalore

Question 5.
Sonal Mansingh met with an accident on the evening of 24 August,
(a) 1974
(b) 1975
(c) 1980
(d) 1981
Answer:
(a) 1974

Question 6.
Sonal Mansingh was to give a new start on April 20, 1975 at Mumbai’s
(a) Sabha Bhawan
(b) Rang Bhawan
(c) Audotorium
(d) None of these
Answer:
(b) Rang Bhawan

Question 7.
……….was driving the car when Sonal met with an accident.
(a) George Rood
(b) Jeon Keets
(c) Karlose
(d) Geogre Lechner
Answer:
(d) Geogre Lechner

Question 8.
The doctor advised Lechner to take her to the university surgical clinic at………..
(a) Erlangen
(b) Fourteen
(c) Company
(d) None of these
Answer:
(a) Erlangen

Question 9.
At Montreal Lechner consulted Dr.
(a) Somarfield
(b) Garvelus
(c) Geogre rood
(d) Pierre Gravel
Answer:
(d) Pierre Gravel

Question 10.
Sonal married………….in August 1975.
(a) Goerge Lechner
(b) Somar Field
(c) Lancher
(d) None of these
Answer:
(a) Goerge Lechner

Question 11.
Sonal danced for……..long at Rang Bhawan.
(a) 2 hrs
(b) 2 1/2 hrs
(c) 3 hrs
(d) 3 1/2 hrs
Answer:
(b) 2 1/2 hrs

Question 12.
Geogre Lechner was Sonal Mansingh’s
(a) doctor
(b) servant
(c) husband
(d) finance
Answer:
(c) husband

Question 13.
Sonal coaches classes at her dance academy in
(a) New Delhi
(b) Kolkata
(c) Mumbai
(d) Varanasi
Answer:
(a) New Delhi

Question 14.
Sonal met an serious accident on the 14 August.
(a) 1974
(b) 1975
(c) 1976
(d) 1977
Answer:
(a) 1974

Question 15.
She was rushed to the
(a) Municipal hospital
(b) General hospital
(c) Govt, hospital Germany
(d) None of these
Answer:
(a) Municipal hospital

Question 16.
Finally she was made able to dance again by
(a) Dr. Smith
(b) Dr. Herbert
(c) Dr. Angle
(d) Dr. Pierre Gravel
Answer:
(d) Dr. Pierre Gravel

Question 17.
After three months the cast was
(a) bound
(b) removed
(c) tagged
(d) brought
Answer:
(b) removed

Question 18.
In March Gravel agreed to let her returns to
(a) Germany
(b) London
(c) India
(d) America
Answer:
(c) India

Question 19.
After accident Sonal gave her first dance performance on
(a) April 20, 1974
(b) April 15, 1975
(c) April 20, 1980
(d) April 20, 1975
Answer:
(d) April 20, 1975

Question 20.
Sonal married George Lechner in August.
(a) 1975
(b) 1974
(c) 1977
(d) 1971
Answer:
(a) 1975

Question 21.
George Lechner was driving the car when Sonal met with the
(a) accident
(b) Filmstar
(c) partner
(d) none of these
Answer:
(a) accident

Question 22.
Sonal gave her maiden performance in 1969 at
(a) Delhi
(b) Banglore
(c) Mumbal
(d) Kolkata
Answer:
(b) Banglore

Question 23.
In accident of car Sonal was thrown out of the car about……..metres away.
(a) two
(b) four
(c) six
(d)seven
Answer:
(b) four

Question 24.
Strong determination, mental discipline and the hope that she would be able to
(a) do that
(b) stand still
(c) walk again
(d) dance again
Answer:
(d) dance again

Question 25.
On April 20, 1975, she made a new start, by giving performance at…………..Rang Bhawan.
(a) Delhi’s
(b) Bombay’s
(e) Kolkata’s
(d) Banglore’s
Answer:
(b)Bombay’s

Question 26.
In the green room, Sonal anxiously looked in to the
(a) precious
(b) ready
(c) mirror
(d) sleepiess
Answer:
(c) mirror

Question 27.
Sonal had danced in India and abroad, she had been……….by everyone.
(a) praised
(b) roof
(c) Odissi
(d) cult
Answer:
(a) praised

Question 28.
Sonal had mastered………..style.
(a) praised
(b) mirror
(e) put
(d) cult
Answer:
(d) cult

Question 29.
After Bharat Natyam, Sonal had turned to………..
(a) precious
(b) Odissi
(c) ready
(cl) put
Answer:
(b) Odissi

Question 30.
Geogre Lechner was driving his car at………down a wet lonely road.
(a) 90 kph
(b) 100 kph
(c) 120 kph
(d) 110 kph
Answer:
(d) 110 kph

Question 31.
The car shipped side ways and turned over and rested
on the…………..
(a) mirror
(b) roof
(c) praised
(d) cult
Answer:
(b) roof

Question 32.
Lechner sprinkled water on Sonal’s face she shook her head and said, I am cold, please………..a shall on.
(a) roof
(b) praised
(c) put
(d) sleepless
Answer:
(c) put

Question 33.
Her appetite had gone, and her nights were often……….
(a) heavy
(b) ready
(c) precious
(d) sleepless
Answer:
(d) sleepless

Question 34.
A month later, sonal was………..
(a) ready
(b) precious
(c) roof
(d) mirror
Answer:
(a) ready

Question 35.
Sonal realises how……….Jife is.
(a) cult
(b) precious
(c) ready
(d) praised
Answer:
(b) precious

Question 36.
Physical desire……….
(a) appetite
(b) hip
(c) vertebra
(d) Fiance
Answer:
(a) appetite

Question 37.
Haunch
(a) Jingling
(b) Fiance
(c) Hip
(d) Vertebra
Answer:
(c) Hip

Question 38.
Moving
(a) vertebra
(b) Jingling
(c) appetite
(d) Hip
Answer:
(b) Jingling

Question 39.
Backbone
(a) Hip
(b) appetite
(c) vertebra
(d) Fiance
Answer:
(c) vertebra

Question 40.
One who is engaged to be married.
(a) precious
(b) Hip
(c) appetite
(d) Fiance
Answer:
(a) precious

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 6 अष्टावक्र

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 6 अष्टावक्र Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 6 अष्टावक्र

Bihar Board Class 9 Hindi अष्टावक्र Text Book Questions and Answers

अष्टावक्र क्या-क्या बेचा करता था Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 1.
इस रेखाचित्र के प्रधान पात्र को लेखक ने अष्टावक्र क्यों कहा है?
उत्तर-
उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाते थे और उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। इसलिए लेखक ने उसे अष्टावक्र कहा है।

Ashtavakra Ki Kahani Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 2.
कोठरियाँ कहाँ बनी हुई थी?
उत्तर-
खजांचियों की विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर सौभाग्य से चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी-छोटी, अंधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं।

Bihar Board 9th Class Hindi Book Solution प्रश्न 3.
अष्टावक्र कहाँ रहता था?
उत्तर-
अष्टावक्र कुएँ की जगत पर रहता था।

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solution प्रश्न: 4.
अष्टावक्र के पिता कब चल बसे थे?
उत्तर-
अष्टावक्र के पिता से परिचय होने से पहले ही उसके पिता चल बसे थे।

अष्टावक्र कहां रहता था Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 5.
चिड़चिड़ापन अष्टावक्र की मां का चिरसंगी क्यों बन गया?
उत्तर-
यद्यपि असमय से आ जानेवाले बुढ़ापे के कारण अष्टावक्र की मां का शरीर प्रायः शिथिल हो चुका था, वह कुछ लंगड़ाकर भी चलती थी। निरंतर अभावों से जूझते-जूझते चिड़चिड़ापन भी उसका चिरसंगी बन चुका था।

अष्टावक्र विष्णु प्रभाकर Bihar Board Class 9 Hindi प्रश्न 6.
अष्टावक्र: क्या-क्या बेचा करता था?
उत्तर-
अष्टावक्र कचालू की चाट, मूंग की दाल की पकौड़ियाँ, दही के आलू और पानी के बतासे बेचा करता था।

Hindi Class 9 Chapter 6 Bihar Board प्रश्न 7.
चार की संख्या अष्टावक्र के स्मृति पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित क्यों हो गई थी?
उत्तर-
माँ ने अष्टावक्र को समझाया था-पैसे के चार बतासे देना, चार पकौड़ी
दना और चार चम्मच आलू देना। इस चार की संख्या उसके मानस-पटल पर पत्थर की रेखा की तरह अंकित थे।

Bihar Board Solution Class 9 Hindi प्रश्न 8.
माँ माथा क्यों ठोका करती थी?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां अपने माथा में यूँ का स्थान बताकर कहती की देख तो। अष्टावक्र दार्शनिक की तरह गंभीरता से इधर-उधर देखता और जवाब देता, ‘माँ! यहाँ तो बाल है तोड़ दूँ? मां माथा ठोक लेती थी।

अष्टावक्र Bihar Board Class 9 Hindi प्रश 9.
गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कहाँ सोया करते थे?
उत्तर-
गर्मी के दिनों में माँ-बेटा कुएँ की जगत पर सोया करते थे।

Bihar Board Class 9 Hindi Solution प्रश्न 10.
अष्टावक्र ‘हाय माँ’ कहकर वहीं क्यों लुढक गया?
उत्तर-
अष्टावक्र ने पैर जलने के भय से कुछ ऊँचे से जो मुट्ठी भर आलू बेसन कड़ाही में छोड़े तो तेल सीधा छाती पर आया। तब ‘हाय माँ’ कहकर वह वहीं लुढ़क गया।

Class 9 Hindi Bihar Board प्रश्न 11.
माँ के शुष्क नयन सजल क्यों हो उठे?
उत्तर-
एक दिन अष्टावक्र ने माँ से कहा कि माँ चाट तू बेचा कर मुझे लडके मारते हैं। यह बात सुनकर माँ ने अपने बेटे को कुछ इस तरह देखा कि उसके शुष्क नयन सजल हो उठे।

Bihar Board 9th Class Hindi Book Pdf प्रश्न 12.
अष्टावक्र विमूढ़ सा क्यों बैठा था?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां के प्राण-पखेरू उड़ जाने के बाद भी जब विश्वास नहीं हुआ तो एक डाक्टर ने बताया कि उसकी मां मर गई है तो वह विमूढ़ सा बैठ गया।

Class 9 Bihar Board Hindi Solution प्रश्न 13.
कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद क्यों दिया?
उत्तर-
अष्टावक्र की मां मर गई और वह जिस अव्यवस्थित अवस्था में अस्पताल में कराह था फिर वह भी मर गया तो कुलफीवाले ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि आपने अष्टावक्र को अपने पास बुलाकर सुख की नींद सोने का अवसर दिया।

Bihar Board Class 9th Hindi Solutions प्रश्न 14.
इस पाठ का सबसे मार्मिक प्रसंग कौन है और क्यों?
उत्तर-
इस पाठ में सबसे मार्मिक प्रसंग दो जगह आये हैं। एक जगह जब अष्टावक्र की माँ मर गई है माँ की मृत्यु पर वह कितना व्यथित विकल है कि वह यह मानने को तैयार नहीं है कि अगर उसकी मां मर गई है तो वह लौटकर नहीं आयगी। दूसरी जगह जब वह खुद दर्द से कराह रहा है एक कुलफी वाला उसको अस्पताल पहुंचाता है। वहाँ उसका अपना कोई नहीं है उस परिस्थिति में वह दम तोड़ता है। यह बड़ा ही मार्मिक प्रसंग है।

Class 9th Hindi Bihar Board प्रश्न 15.
इस रेखाचित्र का सारांश लिखें।
उत्तर-
पाठ का सारांश देखें।

Bihar Board Class 9th Hindi प्रश्न 16.
माँ की मृत्यु के पश्चात् अष्टावक्र की मानसिक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
माँ की मृत्यु के बाद अष्टावक्र की मानसिक स्थिति एकदम बदल गई है। वह हतप्रभ है। कई बार उसकी बुद्धि जाग्रत होती है, लेकिन फिर शांत हो जाती है वह पागल सा हो जाता है।

नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. खजांचियों की विशाल अट्टालिका को जानेवाले मार्ग पर सौभाग्य के
चिरसंगी दुर्भाग्य की तरह अनेक छोटी-छोटी, अँधेरी और बदबूदार कोठरियाँ बनी हुई थीं। उन्हीं में से एक में विचित्र व्यक्ति रहता था जिसे संस्कृत पढ़े-लिखे लोग अष्टावक्र कहा करते थे। उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाते थे और उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। बोलने में वह साधारण आदमी के अनुपात से तिगुना समय लेता। वर्ण श्याम, नयन निरीह, शरीर एक शाश्वत खाज से पूर्ण, मुख लंबा
और वक्र, वस्त्र कीट से चिकटे, यह था उसका व्यक्तित्व और इसमें यदि कुछ कमी रह जाती तो उसे शीनके-शडाके पूरा कर देते। इस आखिरी बात के लिए उसकी माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत करती थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) ‘अष्टावक्र’ किस भाषा का शब्द है? उसका अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) अष्टावक्र कहाँ रहता था?
(घ) अष्टावक्र के शारीरिक स्वरूप का परिचय दें।
(ङ) अष्टावक्र की माँ किस बात के लिए उसकी लानत-मलामत ।किया करती थी?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अष्टावक्र संस्कृतभाषा का शब्द है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है विकलांग अर्थात् टेढ़ा-मेढ़ा शारीरिक स्वरूप वाला। अर्थात् जिस व्यक्ति के शरीर के अंग और हिस्से टेढ़े-मेढ़े शक्ल के असामान्य होते है उस व्यक्ति को अष्टावक्र कहा जाता है। अष्टावक्र के नाम से एक बड़े ही बुद्धिमान ऋषिपुत्र भी हुए हैं।

(ग) अष्टावक्र शहर की अट्टालिकाओं की ओर जानेवाले मार्ग पर बनी हुई एक छोटी अँधेरी और बदबूदार कोठरी में अपनी माँ के साथ रहता था।

(घ) अष्टावक्र विकलांग था। उसके पैर कवि की नायिका की तरह बलखाने वाले थे। उसका शरीर हिंडोले की तरह झूलता था। उसका वर्ण श्याम था। उसकी आँखें बेबस थीं। उसका मुख लंबा और टेढ़ा था। उसका सारा शरीर खाज दादा से भरा हुआ था। बोलने में वह सामान्य आदमी के अनुपात से तिगुना समय ले लेता था।

(ङ) अष्टावक्र का सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्विवाद रूप से असामान्य था। यदि इस असामान्यता में कुछ कमी भी रही होती तो उसे शीनके-शडाके पूरा कर देने के लिए काफी थे। इसी शीनके-शडाके के पूरा कर देने की आखिरी बात के लिए अष्टावक्र की माँ अक्सर उसकी लानत-मलामत किया करती थी।

2. यद्यपि असमय से आ-जानेवाले बुढ़ापे के कारण उसकी माँ का शरीर प्रायः शिथिल हो चुका था, वह बहुत लंगड़ाकर भी चलती थी और निरंतर अभावों से जूझते-जूझते चिड़चिड़ापन भी उसका चिरसंगी बन चुका था, पर बेटे से मुक्ति पाने की बात उसके मन में कभी नहीं उठी। वह विधवा थी इसलिए उसके वस्त्र काले-किष्ट ही नहीं थे, कटे हुए भी थे जिनमें गरीबी ने पैबंद लगाने के लिए कोई स्थान नहीं छोड़ा था। उसके सिर के बाल सदा उलझे रहते थे। कभी-कभी खुजलाने से तंग आकर जब वह अष्टावक्र को जूं दिखाने के लिए बैठाती तो अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की माँ का चिरसंगी कौन था और वह किस परिस्थिति में बना हुआ था?
(ग) अष्टावक्र की माँ असमय में ही बूढ़ी हो गई थी। उसके क्या लक्षण प्रकट थे?
(घ) अष्टावक्र की माँ के वैधव्य का पता कैसे चलता था?
(ङ) अष्टावक्र और उसकी माँ के बीच कब अच्छा-खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता था?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अष्टावक्र की माँ के चिरसंगी के रूप में उसका बुढ़ापा, उसके शरीर की शिथिलता और उसका चिड़चिड़ापन था। बुढ़िया का यह चिरसंगी इस बुढ़ापे में अब शाश्वत रूप में बना हुआ था। अर्थात जब तक उसका प्यारा बेटा उसके सामने जीवित खड़ा है तब तक उसके चिरसंगी के बने रहने की स्थिति रहेगी।

(ग) अष्टावक्र की माँ की असामायिक वद्धा हो जाने का लक्षण यह था कि उसका शरीर करीब-करीब शिथिल और सुस्त हो चुका था। पैर के रुग्न होने के कारण वह कुछ लंगड़ा कर चलती थी और वह बराबर अभावों से जूझते रहने के कारण चिड़चिड़ापन का शिकार हो गई थी।

(घ) अष्टावक्र की माँ के वैधव्य का पता उसकी शारीरिक अवस्था, उसकी मानसिक स्थिति और उसके वस्त्रों के स्वरूप और स्थिति को देखकर ही चल जाता था। उसके वस्त्र कालेकिष्ट होने के साथ-साथ फटे हुए भी थे। उसके सिर के बाल सूखे, कंड़े और उलझे बिखरे रहते थे।

(ङ) जब कभी अष्टावक्र की माँ अष्टावक्र को खोज-खुजाने से तंग आकर उसे नँ दिखाने के लिए बैठती तब वह अष्टावक्र को उँगली से वह स्थान बताकर वहाँ देखने के लिए कहती तो उस समय माँ और बेटे के बीच एक अच्छा खासा मनोरंजक दृश्य बन जाता।

3. तब माँ माथा ठोक लेती है और अष्टावक्र महाराज अपने वक्रमुख को ‘ और भी वक्र करके या तो कुएँ की जगत पर जा बैठते या फिर वहीं
बैठकर आने-जाने वालों को ताकने लगते। उस समय उसे देखकर जड़ भरत या मलूकदास की याद आ जाना स्वाभाविक था। वास्तव में वह उसी अवतार-परंपरा का रत्न था। नींद खुलते ही वह पैरों को नीचे लटकाकर और हाथों को गोदी में रखकर कुछ इस प्रकार बैठ जाता था, जिस प्रकार एक शिशु जननी के अंक में लेट जाता है। माँ आकर उसे नित्यकर्म की याद दिलाती और जब कई बार के कहने पर भी वह न उठता तो तंग आकर उसका मुँह ऐसे रगड़-रगड़ धोती जैसे वह कोई अबोध शिशु हो। उसके बाद उसे कलेउ मिला था जिसमें प्रायः रात की बची हुई रोटी या खोमचे की बची हुई चाट रहती थी।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) माँ के माथा ठोक लेने के उपरांत अष्टावक्र क्या करने लगता?
(ग) लेखक को कब और क्यों जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती?
(घ) नींद खुल जाने पर अष्टावक्र कौन-सी शारीरिक क्रिया करता?
(ङ) अष्टावक्र की माँ क्यों तंग आ जाती थी और उस मानसिक स्थिति में वह कौन-सा कार्य करने लगती?
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अष्टावक्र की माँ जब अष्टावक्र की शारीरिक और मानसिक स्थिति से तंग आकर माथा ठोक लेती तब उस समय अष्टावक्र अपने टेढ़े मुख को और भी टेढ़ा करके या तो कुएँ की जगत पर जाकर बैठ जाता या वहीं बैठकर उस रास्ते से गुजरनेवाले लोगों को असामान्य ढंग से देखने लगता।

(ग) अष्टावक्र की माँ उसकी मानसिक स्थिति को देखकर जब माथा ठोक लेती तब अष्टावक्र की उस समय की शारीरिक मुद्रा और गतिविधि को देखकर लेखक को जड़ भरत या मलूक दास की याद आ जाती। इसका कारण यह था कि अष्टावक्र की उस समय की शारीरिक मुद्रा जड़ भरत या मलूक दास की शारीरिक मुद्रा से साम्य रखनेवाली थी।

(घ) जब अष्टावक्र की नींद खुल जाती थी तब वह पैरों को नीचे लटकाकर और हाथों को गोदी में रखकर इस रूप और ढंग से बैठ जाता था मानो कोई शिशु अपनी जननी की गोद में पड़ा हुआ हो।

(ङ) अष्टावक्र नींद खुलने के बाद अपने पैर और हाथों को समेटकर माँ की गोद में लेटे शिशु के रूप में मालूम होता तो उस समय उसकी माँ आकर उसे नित्य कर्म से निबटने के लिए बार-बार कहती। अष्टावक्र कई बार माँ के कहने पर जब नहीं उठता, तब उसकी माँ प्रतिक्रिया के रूप में तंग आ जाती। उस मानसिक स्थिति में वह अष्टावक्र का मुँह खूब रगड़-रगड़कर धोती मानो वह कोई अबोध शिशु हो।

4. संध्या को उसके लौटने के समय माँ उसकी बाट जोहती बैठी रहती। उसपर निगाह पड़ते ही वह ललककर उठती। पहले उसका थाल सँभालती। फिर पानी भरे लोटे में से पैसे निकालकर गिनती। उस समय माथा ठोक लेना उसका नित्य का धर्म बन गया था। लगभग डेढ़ रुपये की बिक्री का समान ले जाकर वह सदा दस-बारह आने के पैसे लेकर लौटता था। माँ की डाँट-डपट या सिखावन उसके अटल नियम को कभी भंग नहीं कर सकी। वैसे कभी-कभी उसकी बुद्धि जाग्रत हो उठती थी। उदाहरण के लिए, एक दिन उसने माँ से कहा-“माँ! चाट तू बेचा कर। मुझे लड़के मारते हैं।”
(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की माँ संध्या के समय अपने पुत्र की बाट किस रूप में जोहती और क्यों जोहती?
(ग) अष्टावक्र के लौटने के समय उसकी माँ का माथा ठोक लेना, उसका नित्य का धर्म क्यों बन गया था?
(घ) यहाँ लेखक ने अष्टावक्र के किस नियम को अटल नियम की संज्ञा दी है और क्यों दी है?
(ङ) इस गद्याांश का आशय लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम-अष्टावक्र, लेखक का नाप-विष्णु प्रभाकर

(ख) अष्टावक्र अपनी माँ के द्वारा दिए गए पैसे और की गई व्यवस्था के तहत हर दिन दिनभर खोमचा लगाकर चाट बेचा करता था और संध्या के समय वह कार्य और पैसे समेटकर माँ के पास लौटा करता। अष्टावक्र की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि माँ उसकी हर गतिविधि से मुँह फेरकर निश्चितता की साँस लेती। इसीलिए, वह शाम को रोज उत्सुकता के साथ अष्टावक्र के लौटने की प्रतीक्षा करती।

(ग) अष्टावक्र की माँ अष्टावक्र को डेढ़ रुपये की पूँजी लगाकर बिक्री के समान के साथ चाट बेचने के लिए उसे घर के बाहर भेजती, लेकिन अष्टावक्र अपने भोलेपन के कारण रोज दस-बारह आने बिक्री के पैसे लेकर शाम में लौटता। उसकी माँ इस बात के लिए रोज समझाती और डाँट-डपट करती। इसके बावजद अवक के बिक्री के पैसे के इस रूप में लौटाने के नियम में कोई अंतर नहीं पड़तः सनः । कारण वह बेचारी नित्य माथा ठोककर रह जाती और इस रूप में उसका यह माथा ठोंक लेना उसका नित्य का धर्म बन गया था।

(घ) यहाँ लेखक ने अष्टावक्र द्वारा डेढ़ रुपये की पूँजी के बदले में सदा दस-बारह आने पैसे के लौटाने के नियम को अटल नियम की संज्ञा दी है। यह नियम इसलिए अटल कहा गया कि माँ की डाँट के बावजूद पूँजी की आधी राशि लौटाने के उसके नियम में कभी कोई परिवर्तन नहीं हुआ।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र की मानसिक अपरिपक्वता और सोच-विचार करने की अयोग्यता पर प्रकाश डाला है। अष्टावक्र की माँ रोज अपने ‘पुत्र को डेढ़ रुपये की पूँजी लगाकर चाट का समान तैयार कर देती और उसे बेचने के लिए भेज देती। अष्टावक्र संध्या समय रोज डेढ़ रुपये की पूँजी की आधी राशि ही बिक्री के पैसे के रूप में लेकर लौटता। उसकी माँ उसे रोज डाँट-फटकार करती और विक्रय-कार्य में सुधार लाकर घाटे की बात के संबंध में समझाती। लेकिन अष्टावक्र के विक्रय-कार्य की पद्धति पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेखक ने उसे अष्टावक्र के अटल नियम की संज्ञा दी है।

5. उसी रात को कुल्फीवाले ने सुना, अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ पुकार रहा है। उस पुकार में सदा की तरह सरल विश्वास नहीं है, एक कराहट है। कुल्फीवाले ने करवट बदल ली, पर इस ओर कर्ण-रंध्र में वह कराहट और भी कसक उठी। वह लेट न सका। धीरे-धीरे उठा और झंझलाता हुआ वहाँ आया जहाँ अष्टावक्र छटपटा रहा था। देखकर जाना उसके पेट में तीव्र दर्द है। यहाँ तक कि देखते-देखते उसे दस्त शुरू हो गए। अब तो कुल्फीवाला घबरा उठा। दौड़ा हुआ खजाँची के पास पहुंचा। वे पहले तो चिनचिनाए, फिर अस्पताल फोन किया। कुछ देर बाद गाड़ी आई और अष्टावक्र को लाद कर ले गई। उसके दो घंटे बाद कुल्फीवाले ने फिर उसे आइसोलेशन वार्ड में दूर से देखा। वह अकेला था। उसकी कराहट बढ़ती जा रही थी। प्राण खिंच रहे थे। वह लगभग मूर्च्छित था। कभी-कभी उसकी जीभ होठों से सम्पर्क स्थापित करने की चेष्टा करती थी। शायद वह प्यासा था।
(क) पाठ तथा लेखक के नाम लिखें।
(ख) अष्टावक्र की बार-बार माँ की पुकार में कुल्फीवाले ने क्या महसूस किया? कुल्फीवाले पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
(ग) कुल्फीवाला क्यों घबरा उठा और उसने उस घबराहट में क्या किया?
(घ) अंतिम समय में अष्टावक्र की क्या दशा थी?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश/आशय लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ-अष्टावक्र, लेखक का नाम-विष्णु प्रभाकर।

(ख) अपनी बीमारी की स्थिति में उस रात में अष्टावक्र बार-बार माँ-माँ की पुकार लगा रहा था। कुल्फीवाले ने उसे सुना और यह महसूस किया कि आज अष्टावक्र की माँ की पुकार के उस स्वर में पहले की तरह सरल विश्वास का भाव छिपा हुआ नहीं है, बल्कि उस पुकार में एक प्रकार की कराह और घबराहट है। कुल्फीवाले को नींद नहीं आई। उसके कानों में भी कराह और कसक उठ गई।

(ग) कुल्फीवाला सो नहीं सका। वह अष्टावक्र के पास जा पहुंचा। अष्टावक्र वहाँ छटपटा रहा था। वह पेट-दर्द और फिर दस्त से परेशान था। यह देख कुल्फीवाला घबरा उठा। वह उस घबराहट की स्थिति में दौड़ता हुआं खजाँची के पास पहुंचा और उनसे अस्पताल फोन करवाया।

(घ) जीवन के अंतिम क्षणों में अष्टावक्र की बड़ी दयनीय दशा थी। वह अस्पताल में अकेला पडा था। उसकी कराह बढ़ती जा रही थी। उसके प्राण खिंच रहे थे। वह अर्द्ध मूर्छितावस्था में था। उसकी जीभ होंठों से सम्पर्क करने के लिए लगातार चेष्टा कर रही थी। शायद वह बहुत प्यासा था।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने अष्टावक्र के जीवन के अंतिम क्षणों की बेहाली का वर्णन किया है। अष्टावक्र रात्रि के समय बार-बार माँ को पुकार रहा था। उसकी पुकार के स्वर में दर्दनाक कराह थी। वह पेट-दर्द और दस्त की पीड़ा से बुरी तरह पीड़ित था। कुल्फीवाले के प्रयास से उसे अस्पताल पहुंचाया गया। वहाँ उसकी पीड़ा और बेचैनी बढ़ती ही चली जा रही थी। वह कुछ होश में रहकर भी बहोश था! उसकी जीप प्यास से सूख रही थी।

Bihar Board Class 9 Hindi अपठित गद्यांश

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Bihar Board Class 9 Hindi अपठित गद्यांश Questions and Answers, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi अपठित गद्यांश

Bihar Board Class 9 Hindi अपठित गद्यांश Questions and Answers

 

साहित्यिक गद्यांश [12 अंक]

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती हैं, बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती हैं। अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने बाप के दुश्मन को परास्त कर दिया था जिसका एकमात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय, जब उसके बाप के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत नहीं थी।

महाभारत में देश के प्रायः अधिकांश वीर कौरवों के पक्ष में थे। मगर फिर भी जीत पांडवों की हुई, क्योंकि उन्होंने लाक्षागृह की मुसीबत झेली थी, क्योंकि उन्होंने वनवास के जोखिम को पार किया था।

श्री विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि जिन्दगी की सबसे बड़ी सिफ़त हिम्मत है। आदमी के और सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।

जिन्दगी की दो सरतें हैं। एक तो यह कि आदमी बड़े से बडे मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाए और अगर असफलताएँ कदम-कदम पर जोश की रोशनी के साथ अँधियाली का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाए।

दूसरी सूरत यह है कि उन गरीब आत्माओं का हमजोली बन जाए जो न तो बहत अधिक सुख पाती हैं और न जिन्हें बहत अधिक दुख पाने का ही संयोग है, याकि वे आत्माएँ ऐसी गोधूलि में बसती हैं जहाँ न तो जीत हँसती है और न कभी हार के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है। इस गोधूलि वाली दुनिया के लोग बँधे हुए घाट का पानी पीते हैं, वे जिन्दगी के साथ जुआ नहीं खेल सकते। और कौन कहता है कि पूरी जिन्दगी को दाँव पर लगा देने में कोई आनन्द नहीं है?

अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा हो तो फिर असली मज़ा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है।

साहस की जिन्दगी सबसे बडी जिन्दगी होती है। ऐसी जिन्दगी की सबसे बडी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोंग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना, यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं।

साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है।

साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है। झुंड में चलना और झुंड में चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है। सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मग्न रहता है।

प्रश्न
1. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
2. लेखक के अनुसार, पांडवों की जीत क्यों हुई?
3. ‘गोधूलि’ जीवन की किस स्थिति का प्रतीक है?
4. बँधे घाट का पानी पीने का अर्थ बताइए।
5. जिन्दगी के साथ जुआ खेलने का क्या आशय है?
6. दुनिया की असली ताकत किस मनुष्य को कहा गया है?
7. क्रांतिकारियों के क्या लक्षण हैं?
8. साधारण जीव कैसा जीवन जीते हैं?
9. ‘साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
10. भैंस और भेड़ कैसे जनों के प्रतीक हैं?
11. “हिम्मत’ के लिए किस पर्यायवाची शब्द का प्रयोग हुआ है?
12. ‘भाग खड़े होना’ का विलोम लिखिए।
उत्तर
(1) शीर्षक : “संकट तथा साहस”
(2) पांडवों की जीत इसलिए हुई क्योंकि उन्होनें लाक्षागृह का कष्ट झेला था और बनवास के खतरा को पार करने में सफल हुए थे।
(3) गोधूलि जीवन की उस स्थिति का प्रतीक है जहाँ न तो जीत हँसती है और न कभी हार के रोने की आवाज सुनाई पड़ती है।
(4) व्यक्ति द्वारा अपनी गतिविधियों को एक संकुचित क्षेत्र तक बाँध (सीमित) लेने का अर्थ बँधे घाट का पानी पीना है।
(5) बड़े उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, सफलता-असफलता की परवाह किए बिना अपनी जिन्दगी को दाँव पर लगा देने का अर्थ जिन्दगी के साथ जुआ खेलना है।
(6) जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है।
(7) क्रांतिकारी अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धिम करते हैं, यही उनका लक्षण होता है।
(8) साधारण जीव सुखी जीवन नहीं जी सकता। उसका जीवन कष्टमय एवं निराशापूर्ण होता है।
(9) अपने विचारों में मग्न जो व्यक्ति अकेले ही अपनी मंजिल तय करता है तथा झुंड में भेड़ों की तरह नहीं चलता, ऐसे मनुष्य से ही तात्पर्य है, “साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता।”
(10) भैंस और भेड़ ऐसे लोगों के प्रतीक हैं जो स्व-विवेक से काम नहीं लेते एवं दूसरे लोगों की नकल करते हैं वे उनके पीछे झुंड लगाकर चलते हैं।
(11) “साहंस”
(12) निडर होना, बेखौफ होना।

2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

वर्ष 1956 की बात है डॉ. हरिवंश राय बच्चन अब तक हिंदी के कवियों में सबसे अगली पंक्ति में आ खड़े हुए थे। वे यह ठान बैठे कि वे प्रयाग विश्वविद्यालय के अंग्रेजी प्रोफेसर का गरिमा-भरा पद छोड़कर दिल्ली चले जाएँगे-विदेश मंत्रालय में अंडर सेक्रेटरी का नाचीज़ पद सँभालने। इलाहाबाद प्रतिभा-पूर्ण शहर है, लेकिन प्रतिभाओं को समुचित आदर देने में कुछ-कुछ कृपण। “कुछ-कुछ नहीं बहुत कृपण”। बच्चन जी ने मेरी भाषा सुधारते हुए मुझसे कहा था। वर्ष 1984 और बच्चन जी उन दिनों ‘दशद्वार से सोपान तक’ पुस्तक पर काम कर रहे थे। उन्होंने कहा भी है कि किस तरह उनके विरुद्ध बहुत कुछ कहा ही नहीं गया, लिखा भी गया और छापे में भी आया। उनकी ‘मधुशाला’ पर ‘अभ्युदय’ पत्रिका में लेख छपा, जिसमें बच्चन के हिन्दी के उमर खैयाम बनने के स्वप्न पर कटु व्यंग्य करते हुए लेख का शीर्षक दिया गया था- ‘घूरन के लता कनातन से ब्योत बाँधे’ (घुरे की हिंदी चली है कनात से अपनी गाँठ बाँधने)। ‘मधुशाला’ तो पाठकों की सच्ची सराहना पाकर साहित्य के सर्वोच्च सोपान पर जा बैठी और अभ्युदय का लेख रह गया वहीं घूरे पर पड़ा हुआ।

बच्चन जी ने बहुत कष्ट देखे थे। बहुत संघर्ष किया था और महाकवि निराला की ही तरह आँसुओं को भीतर ही भीतर पीकर उनकी ऊर्जा और सौंदर्य में अपनी कविता को सोना बनाया था। स्पष्ट है इस कष्टसाध्य प्रक्रिया से वही कलाकार गुजर सकता है जिसके भीतर दुर्घर्ष जिजीविषा हो। दिल्ली आकर विदेश मंत्रालय में बड़े अधिकारी के ठंडे और हिंदी-विरोधी तेवरों ने उन्हें खिन्न तो किया, लेकिन बच्चन जी ने फिर कविता का आश्रय लिया। अपनी आत्मकथा में उन्होंने लिखा है ‘भला-बुरा जो भी मेरे सामने आया है, उसके लिए मैंने अपने को ही उत्तरदायी समझा है। गीता पढ़ते हुए मैं दो जगहों पर रुका। एक तो जब भगवान अर्जुन से कहते है- अर्जुन, आत्मवान बनो अर्थात् अपने सहज रूप से विकसित गुण-स्वभाव-व्यक्तित्व पर टिको। दूसरी जगह जब वे कहते हैं कि गुण स्वभाव-प्रकृति को मत छोड़ो। बच्चन जी, तुम भी आत्मवान बनो। बच्चन द्वारा उमर खैयाम की मधुशाला का अनुवाद एक बड़े कवि द्वारा दूसरे बड़े कवि की कविता की आत्मा से साक्षात्कार करना और अपने साहित्यिक व्यक्तित्व के अनुसार उसे अपनी भाषा में अपनी तरह से अभिव्यक्त करना है।

हर बड़ा साहित्यकार साहित्य और विशेषकर शब्द की गरिमा और मर्यादा पर लड़ मरने को तैयार रहता है। बच्चन जी के साथ भी कुछ ऐसा ही है। उन्होंने जितना आदर अपने साहित्य का किया, उतना ही भारत तथा विदेशों के साहित्य का भी और इसलिए समय-समय पर अनुवाद संबंधी नीति बनाते हुए उन्होंने भाषा की गरिमा बनाए रखने पर बहुत बल दिया। विदेश मंत्रालय में उन दिनों भी कठिन अंग्रेजी का अनुवाद हाट-बाजार वाली हिंदी में करने के बारे में एक आग्रह था। इस पर बच्चन जी बहुत बिगड़ते थे। उनका कहना था कि अंग्रेजी का अनुवाद बाजार स्तर की हिंदी में माँगना हिंदी के साथ अन्याय करना है। जब-जब हिंदी अंग्रेजी के स्तर तक उठने की कोशिश करती है तो उस पर तुरंत दोष लगाया जाता है कि वह कठिन और क्लिष्ट है और जब वह उससे घबराकर अति सरलता की ओर जाती है तो उसे अपरिपक्व कह दिया जाता है। बच्चन जी ने अपने गद्य और पद्य दोनों में ही एक सुंदर, सुगठित और सरल हिंदी का प्रयोग करके यह सिद्ध कर दिया कि आवश्यकता के अनुसार संस्कृत की ओर झुकती हिंदी भी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है।

लेखक हेनरी जेम्स ने कहा है कि हर बड़ा लेखक अपने जीवन और लेखन में जितना भी जझारू हो. अंतत: उसके भीतर मानव-जीवन के प्रति एक गहरी आ होती है। यह गहरी आस्था बच्चन जी के पूरे लेखन में व्याप्त है। ‘दशद्वार से सोपान तक’ के अंत में वह कहते है ‘जनार्दन के समक्ष जब प्रस्तुत होना होगा, वो होगा पर मैं जानता हूँ कि जनता जनार्दन के सामने मेरी सृजनशील लेखनी ने मेरी । संपूर्ण अपूर्णताओं के साथ मुझे प्रस्तुत कर दिया है।

प्रश्न
1. उचित शीर्षक दीजिए।
2. ‘अगली पंक्ति में आ खड़े होने’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
3. बच्चन जी ने हिंदी को कैसा रूपाकार दिया?
4. हरिवंशराय इलाहाबाद से किस कारण खिन्न थे?
5. अभ्युदय के संपादक ने कवि बच्चन की किसलिए निंदा की थी?
6. महाकवि निराला और बच्चन के जीवन में कौन-सी समानता थी?
7. “दुर्घर्ष जिजीविषा’ का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।
8. ‘ठंडे तेवर’ से क्या आशय है?
9. बच्चन जी ने गीता के संदेश से कौन-सा गण सीखा?
10. ‘अपर्णता’ तथा ‘जझारू’ के पर्यायवाची शब्द लिखिए।
11. अंग्रेजी का हिंदी अनुवाद करते हुए उन्हें कौन-सी बात दुख देती थी।
12. ‘काम’ का तत्सम शब्द लिखिए।
उत्तर
(1) शीर्षक : बच्चन की हिन्दी सेवा
(2) ‘अगली पंक्ति में आ खड़े होना’ का अर्थ है विशिष्ट स्थान प्राप्त करना। अपनी प्रतिभा, संकल्प, लगन तथा परिश्रम से सफलता के उत्कर्ष पर पहुँचने के अर्थ में इसे प्रयुक्त किया जा सकता है।
(3) बच्चन जी ने अपने गद्य और पद्य दोनों में ही एक सुन्दर, सुगठित और सरल हिन्दी का प्रयोग करके सिद्ध कर दिया कि आवश्यकता के अनुसार संस्कृत की ओर झुकती हिन्दी भी लोकप्रिय और लोकरंजक हो सकती है।
(4) इलाहाबाद में प्रतिभाओं को समुचित आदर नहीं दिया जाता था।
(5) कवि “बच्चन’- के काव्य “मधुशाला’ लिखने पर, उनपर हिन्दी के उमर खैयाम बनने की व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए ‘अम्युदय’ पत्रिका के सम्पादक ने कटु निंदा (आलोचना) की थी।
(6) ‘बच्चन’ जी ने महाकवि ‘निराला’ की भाँति ही कष्ट झेले, संघर्ष किया तथा आँसुओं को पीकर उनकी ऊर्जा और सौंदर्य द्वारा अपनी कविता को सोना बनाया था।
(7) ‘दुर्घर्ष जिजीविषा’ का तात्पर्य संघर्ष करने की असीम क्षमता एवं आकांक्षा है।
(8) ठंडे तेवर का आशय- नरम (निस्तेज) तथा उपेक्षापूर्ण रुख।
(9) बच्चन जी ने गीता के संदेश द्वारा आत्मवान बनने तथा अपने गुण, स्वभाव-प्रकृति पर टिके रहना तथा उसे नहीं छोड़ने का गुण सीखा।
(10) (1) अपूर्णता- अधूरापन, अपर्याप्त।
(2) जुझारू- संघर्षशील
(11) अंग्रेजी का हिन्दी में अनवाद करने के बारे में उनका एक स्पष्ट आग्रह था। वह हाट बाजार वाली स्तरहीन हिन्दी में अनुवाद के प्रबल विरोधी थे। हिन्दी के साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार उन्हें दुख देता था।
(12) काम का तत्सम् शब्द – कार्य।

3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानन को दिया जा सकता। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरू हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दब अवश्य गए हैं, लेकिन नष्ट नहीं हुए। आज भी वह मनष्य से प्रेम करता है. महिलाओं का सम्मान करता है. झट और चोरी को गलत समझता है, दूसरों को पीड़ा पहुँचाने को पाप समझता है। हर आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में इस बात का अनुभव करता है।

समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के प्रति इतना आक्रोश है, वह यही साबित करता है कि हम ऐसी चीजों को गलत समझते हैं और समाज से उन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं।

दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी आचरण के गलत पक्ष को उदघाटित करते समय उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई को उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोकचित में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।

एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ ‘रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सैकेंड-क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ। उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, “यह बहुत बड़ी गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।” उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।

ठगा भी गया हूँ धोखा भी खाया है, परन्तु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परन्तु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाँढ्स दिया है और हिम्मत बँधाई है। कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने एक प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े, तो ऐसे अवसरों पर भी हैं प्रभ! मझे ऐसी शक्ति दो कि में तुम्हार.ऊपर सदह न करू।

मनुष्य की बनाई विधियाँ गलत नतीजे तक पहुँच रही हैं तो इन्हें बदलना होगा। वस्तुतः आए दिन इन्हें बदला ही जा रहा है। लेकिन अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी। मेरे मन! निराश होने की जरूरत नहीं है।

प्रश्न
1. इस गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
2. व्यक्ति-चित्त की विशेषता बताइए।
3. ‘दकियानूसी’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
4. उन्नति के साथ-साथ कौन-से विकार बढ़ते चले गए?
5. धर्म और कानून में क्या अंतर कर दिया गया है?
6. ‘धर्मभीरू’ से क्या आशय है?
7. धर्मभीरू लोग कानून के साथ कैसा व्यवहार करते हैं?
8. भ्रष्टाचार के समाचार क्या सिद्ध करते हैं?
9. दोषों का पर्दाफाश करने मे बुराई कब आती है?
10. पर्दाफाश और दोषोद्घाटन के अर्थ बताइए।
11. बराई और अच्छाई के प्रदर्शन में कौन-सी बात बरी है?
12. टिकट बाबू के चेहरे पर संतोष की गरिमा क्यों थी?
उत्तर
(1) शीर्षक : “धर्म और कानून”
(2) व्यक्ति चित्त की विशेषता यह है कि वह ऐसी चीजों को गलत समझता है जिसके द्वारा गलत तरीके से धन या मान संग्रह किया जाता है।
(3) ‘दकियानूसी’ का अर्थ होता है, निरर्थक पुरानी परम्पराओं को ढोना। यदि मनुष्य द्वारा पूर्व में बनाई विधियाँ गलत नतीजे तक पहुँच रही हैं और हम उसका अंधानुकरण करते हैं तो इसे ‘दकियानूसी’ आचरण कहा जाएगा।
(4) राष्ट्र तथा समाज की उन्नति और विकास के साथ भ्रष्टाचार, छल-प्रपंच एवं अनाचार जैसे विकारों में वृद्धि हुई है।
(5) कानून को धर्म से अलग कर दिया गया है जिसके कारण अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं धर्म द्वारा सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता की भावना आज के कानून में गौण हो गई है। कानून अपराध के लिए सजा का प्रावधान करता है। अपराध मिटा नहीं सकता जबकि धर्म सच्चरित्रता के माध्यम से अपराध करने से रोकता है।
(6) ‘धर्मभीरूं’ का शाब्दिक अर्थ है- धर्म अर्थात् सत्कर्म के प्रति आस्था एवं भीरू होना अर्थात् डरना (आचरण करना)। अतः धर्मभीरू से तात्पर्य है- धर्माचरण।
(7) धर्मभीरू लोग कानून की बेटियों से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।
(8) समाचार-पत्रों में भ्रष्टाचार के समाचारों से यह प्रमाणित होता है कि लोगों में भ्रष्टाचार के प्रति जर्बदस्त आक्रोश है तथा वे ऐसी वस्तुओं को गलत समझते हैं जो अनैतिक ढंग से धन या मान अर्जित कर समाज तथा देश को कलंकित करती
(9) दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। लेकिन बुराई तब आती है जब किसी के आचरण के गलत पक्ष को जोर-शोर से उद्घाटित किया जाय तथा उसमें गहरी रुचि ली जाए।
(10) ‘पर्दाफाश करना’ का अर्थ रहस्य पर से पर्दा उठाना है, दोषी व्यक्ति के दोष को उजागर करना है। दोषोद्घाटन से तात्पर्य है दोषी व्यक्ति के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करना एवं उसकी बुराई में रस लेना है।
(11) बुराई और अच्छाई के प्रदर्शन में बुरी बात यह है कि कि इसके द्वारा गलत पक्ष का तो रहस्योद्घाटन किया जाता है, लेकिन उसके उन्मूलन का सार्थक प्रयास नहीं किया जाता है साथ ही अच्छाई को उतनी ही उत्सुकता से उजागर नहीं किया जाता है, जिन्हें प्रचारित करने में लोकचित में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।
(12) रेलवे स्टेशन का टिकट बाबू लेखक द्वारा टिकट के लिए दिए गए सौ रुपए की शेष राशि नब्बे रुपए देना भूल गया था। लेखक भी जल्दी बाजी में गाड़ी में आकर बैठ गया। टिकट बाबू उसे खोजते हुए सेकेंड क्लास के उस डिब्बे में जा पहुँचा जहाँ लेखक बैठा था। टिकट बाबू ने क्षमा माँगते हुए उक्त राशि उसे (लेखक) दे दी। इसी खुशी में टिकट बाबू के चेहरे पर संतोष का भाव (गरिमा) झलक रहा था।

4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखए :

कर्म के मार्ग पर आनंदपूर्वक चलता हुआ उत्साही मनुष्य यदि अंतिम फल तक न पहुँचे तो भी उसकी दशा कर्म न करने वाले की अपेक्षा अधिकतर अवस्थाओं में अच्छी रहेगी, क्योंकि एक तो कर्मकाल में उसका जीवन बीता, वह संतोष या आनंद में बीता, उसके उपरांत फल की अप्राप्ति पर भी उसे यह पछतावा न रहा कि मैंने प्रयत्न नहीं किया। फल पहले से कोई बना-बनाया पदार्थ नहीं होता। अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। बुद्धि द्वारा पूर्ण रूप से निश्चित की हुई व्यापार परंपरा का नाम ही प्रयत्न है। किसी मनुष्य के घर का कोई प्राणी बीमार है। वह वैद्यों के यहाँ से जब तक औषधि ला ला कर रोगी को देता जाता है और इधर-उधर दौड धप करता जाता है तब तक उसके चित्त में जो संतोष रहता है- प्रत्येक नये उपचार के साथ जो आनन्द का उन्मेष होता रहता है यह उसे कदापि न प्राप्त होता, यदि वह रोता हुआ बैठा रहता। प्रयत्न की अवस्था में उसके जीवन का जितना अंश संतोष, आशा और उत्साह में बीता, अप्रयत्न की दशा में उतना ही अंश केवल शोक और दुःख में कटता। इसके अतिरिक्त रोगी के न अच्छे होने की दशा में भी वह आत्मग्लानि के उस कठोर दुःख से बचा रहेगा जो उसे जीवन भर यह सोच-सोचकर होता कि मैंने पूरा प्रयत्न नहीं किया।

कर्म में आनंद अनुभव करने वालों ही का नाम कर्मण्य है। धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही एक ऐसा दिव्य आनंद भरा रहता है कि कर्ता को वे कर्म ही फलस्वरूप लगते हैं। अत्याचार का दमन और क्लेश का शमन करते हुए चित्त में जो उल्लास और पुष्टि होती है वही लोकोपकारी कर्म-वीर का सच्चा सुख है। उसके लिए सुख तब तक के लिए रुका नहीं रहता जब तक कि फल प्राप्त न हो जाये, बल्कि उसी समय से थोड़ा-थोड़ा करके मिलने लगता है जब से वह कर्म की ओर हाथ बढ़ाता है।

कभी-कभी आनंद का मूल विषय तो कुछ और रहता है, पर उस आनंद के कारण एक ऐसी स्फूर्ति उत्पन्न होती है। जो बहुत से कामों की ओर हर्ष के साथ अग्रसर रहती है। इसी प्रसन्नता और तत्परता को देख लोग कहते हैं कि वे अपना काम बड़े उत्साह से किए जा रहे हैं। यदि किसी मनुष्य को बहुत-सा लाभ हो जाता है या उसकी कोई बड़ी भारी कामना पूर्ण हो जाती है तो जो काम उसके सामने आते हैं उन सबको वह बड़े हर्ष और तत्परता के साथ करता है। उसके इस हर्प और तत्परता को भी लोग उत्साह ही कहते हैं। इसी प्रकार किसी उत्तम फल या सख-प्राप्ति को आशा या निश्चय से उत्पन्न आनंद, फलोन्मुख प्रयत्नों के अतिरिक्त और दूसरे व्यापारों के साथ संलग्न होकर, उत्साह के रूप में दिखाई पड़ता है। यदि हम किसी ऐसे उद्योग में लगे हैं जिससे आगे चलकर हमें बहुत लाभ या सुख की । आशा है तो हम उस उद्योग को तो उत्साह के साथ करते ही हैं, अन्य कार्यों में भी प्रायः अपना उत्साह दिखा देते हैं।

यह बात उत्साह में नहीं अन्य मनोविकारों में भी बराबर पाई जाती है। यदि हम किसी बात पर क्रुद्ध बैठे हैं और इसी बीच में कोई दूसरा आकर हमसे कोई बात सीधी तरह भी पूछता है, तो भी हम उस पर झुझला उठते हैं। इस झुंझलाहट का न तो कोई निर्दिष्ट कारण होता है, न उद्देश्य। यह केवल क्रोध की स्थिति के _व्याघात को रोकने की क्रिया है, क्रोध की रक्षा का प्रयत्न है। इस झुंझलाहट द्वारा हम यह प्रकट करते हैं कि हम क्रोध में है और क्रोध में ही रहना चाहते हैं। क्रोध को बनाये रखने के लिए हम उन बातों में भी क्रोध ही संचित करते हैं जिनसे दूसरी अवस्था में हम विपरीत भाव प्राप्त करते इसी प्रकार यदि हमारा चित्त किसी विषय में उत्साहित रहता है तो हम अन्य विषय में भी अपना उत्साह दिखा देते हैं।

प्रश्न
(i) अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) फल क्या है?
(iii)कर्मण्य किसे कहते हैं?
(iv) मनुष्य को कौन कर्म की ओर अग्रसर कराती है?
(v) हम प्रायः उत्साह कब प्रकट करते हैं?
(vi) उत्साह में झुंझलाहट क्या है?
(vii) उत्साही मनष्य किस मार्ग पर चलता है?
(viii) किसी फल की प्राप्ति के लिए किसी योजना की जाती है?
(ix) प्रयत्न क्या है?
(x) अप्रयत्न की दशा में जीवन कैसे कटता है?
(xi) दिव्य आनंद किस में भरा रहता है?
(xii) क्रोध क्या है?
उत्तर
(i) शीर्षक : “कर्मवीर” ।
(ii) अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के अनुसार, उसके एक-एक अंग की योजना होती है। यही फल का आधार होती है।
(iii) कर्म में आनन्द अनुभव करने वालों का ही नाम कर्मण्य है।
(iv) ‘स्फूर्ति’ मनुष्य को कर्म की ओर अग्रसर कराती है।
(v) हमारे अन्दर जब आनन्द के कारण स्फूर्ति उत्पन्न होती है तो हम अपना कार्य प्रसन्नता और तत्परता से करते हैं। इसमें हमारा उत्साह प्रकट होता है।
(vi) जिस प्रकार उत्साह एक मनोदशा है उसी प्रकार झुंझलाहट भी एक मनोदशा ही है।
(vii) उत्साही मनुष्य उस मार्ग पर चलता है जिस पर उसे लाभ हो। हर्ष और तत्परता से वह उस मार्ग का अनुसरण करता है।
(viii) फल की प्राप्ति के लिए प्रत्येक योजना अनुकूलन प्रयत्न-कर्म के एक-एक अंग के अनसार की जाती है।
(ix) कर्म के मार्ग पर आनन्दपूर्वकं चलना ही प्रयत्न कहलाता है।
(x) अप्रयत्न की दशा में जीवन शोक और दुःख में कटता है।
(xi) धर्म और उदारता के उच्च कर्मों के विधान में ही दिव्य आनन्द भरा रहता है।
(xii) क्रोध एक प्रकार का मनोविकार है।

5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए :

जातियाँ इस देश में अनेक आई हैं। लड़ती-झगड़ती भी रही हैं, फिर प्रेमपूर्वक बस भी गई हैं। सभ्यता की नाना सीढ़ियों पर खड़ी और नाना ओर मुख करके चलने वाली इन जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कोई सहज बात नहीं थी। भारतवर्ष के ऋषियों ने अनेक प्रकार से इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी। पर एक बात उन्होंने लक्ष्य की थी। समस्त वर्णों और समस्त जातियों का एक सामान्य आदर्श भी है। वह है अपने ही बंधनों से अपने को बांधना। मनुष्य पशु से किस बात में भिन्न है? आहार-निद्रा आदि पशु-सुलभ स्वभाव उसके ठीक वैसे ही हैं, जैसे अन्य प्राणियों के लेकिन वह फिर भी पशु से भिन्न है। उसमें संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है। यह मनुष्य के स्वयं के उदभावित बंधन हैं। इसीलिए मनष्य झगडे-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़ दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है और वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है। यह किसी खास जाति या वर्ण या समुदाय का धर्म नहीं है। वह मनुष्य-मात्र का धर्म है। महाभारत में इसीलिए निर्वेर भाव, सत्य और अक्रोध को वर्णो का सामान्य धर्म कहा है

एतद्धि त्रितयं श्रेष्ठं सर्वभूतेषु भारत।
निर्वेरत महाराज सत्यमक्रोध एव च।

अन्यत्र इसमें निरंतर दानशीलता को भी गिनाया गया है। (अनुशासन 12010)। गौतम ने ठीक ही कहा था कि मनुष्य की मनुष्यता यही है कि सबके दुःख-सुख को सहानुभूति के साथ देखता है। यह आत्म-निर्मित बंधन ही मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अहिंसा, सत्य और अक्रोधमूलक धर्म का मूल उत्स यही है मुझे आश्चर्य होता है कि अनजाने में भी हमारी भाषा से यह भाव कैसे रह गया है। लेकिन मुझे नाखून के बढने पर आश्चर्य हुआ था अज्ञान सर्वत्र आदमी को पछाड़ता है। और आदमी है कि सदा उससे लोहा लेने को कमर कसे है।

मनुष्य को सुख कैसे मिलेगा? बड़े बड़े नेता कहते हैं, वस्तुओं की कमी है, और मशीन बैठाओं, और उत्पादन बढ़ाओ, और धन की वृद्धि करो और बाह्य उपकरणों की ताकत बढ़ाओ। एक बूढ़ा था। उसने कहा था- बाहर नहीं, भीतर की ओर देखो। हिंसा को मन से दूर करो, मिथ्या को हटाओ, क्रोध और द्वेष को दूर करो, लोक के लिए कष्ट सहो। आराम की बात मत सोचो, प्रेम की बात सोचो, आत्म-पोषण की बात सोचो, काम करने की बात सोचो। उसने कहा- प्रेम ही बड़ी चीज है, क्योंकि वह हमारे भीतर है। उच्छृखलता पशु की प्रवृत्ति है, ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है। बूढ़े की बात अच्छी लगी या नहीं, पता नहीं। उसे गोली मार दी गई। आदमी के नाखून बढ़ने की प्रवृत्ति ही हावी हुई। मैं हैरान होकर सोचता हूँ-बूढ़े ने कितनी गहराई में पैठ कर मनुष्य की वास्तविक चरितार्थता का पता लगाया था।

प्रश्न
(i) अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
(ii) ऋषियों ने क्या किया था?
(iii)मनुष्य में पशु से भिन्न क्या है? .
(iv) मनुष्य किसे गलत आचरण मानता है?
(v) मनुष्य की मनुष्यता क्या है?
(vi) पशु की मूल प्रवृत्ति क्या है?
(vii) विभिन्न जातियाँ पहले क्या कर रही थीं?
(viii) तरह-तरह की जातियों के लिए क्या खोजना कठिन था?
(ix) सभी वर्गों और सभी जातियों का सामान्य आदर्श क्या है?
(x) मनुष्य किसे अपना आदर्श नहीं मानता?
(xi) महाभारत में सब वर्गों का सामान्य धर्म किसे माना गया है?
(xii) ‘स्व’ का बंधन किसका स्वभाव है?
उत्तर
(i) शीर्षक : मानव जीवन का उद्देश्य अथवा मनुष्यता तथा पशुता
(ii) देश में रहनेवाली विभिन्न जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना एक कठिन कार्य था। भारतवर्ष के ऋषियों ने इस समस्या को सुलझाने की कोशिश की थी।
(iii) मनुष्य में आहार-निद्रा जैसे पशु-सुलभ स्वभाव के बावजूद भी उसमें पशु से भिन्न गुण हैं। मनुष्य में संयम है, दूसरे के सुख-दुख के प्रति संवेदना है, श्रद्धा है, तप तथा त्याग है।
(iv) मनुष्य वचन, मन और शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत आचरण मानता है।
(v) मनुष्य की मनुष्यता यही है कि सबके सुख-दुख को सहानुभूति के साथ देखता है।
(vi) उच्छृखलता पशु की मूल प्रवृत्ति है।
(vii) विभिन्न जातियाँ पहले आपस में लड़ती-झगड़ती रहती थीं।
(viii) विभिन्न जातियों के लिए एक सामान्य धर्म खोज निकालना कठिन कार्य था।
(ix) सभी वर्गों और सभी जातियों का सामान्य आदर्श अपने ही बंधनों से अपने (स्वयं) को बाँधना था।
(x) मनुष्य झगड़े-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता।
(xi) महाभारत में निर्वैर भाव, सत्य तथा अक्रोध (क्रोध रहित गुण) सब वर्गों का सामान्य धर्म कहा गया है।
(xii) ‘स्व’ का बंधन मनुष्य का स्वभाव है।

6. निम्नलिखित अनुच्छेद को सावधानीपूर्वक पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर अति संक्षेप में लिखिए।

1. देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु, पक्षी, नदी, नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है। सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमे अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में यह अंत:करण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवाद या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा, वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा, वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते है कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, ये यदि दस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का पता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप-परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुःख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चहते हो, यह कैसे समझें। उनसे कोसों दूर बैठे-बैठे, पड़े-पड़े या खड़े-खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो।’ प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।

हिसाब-किताब से देश की दशा का ज्ञान मात्र हो सकता है। हित चिंतन और हितासाधन की प्रवृत्ति कोरे ज्ञान से भिन्न है। वह मन के वेग या ‘भाव’ पर अवलंबित है, उसका संबंध लोभ या प्रेम से है, जिसके बिना अन्य पक्ष में आवश्यक त्याग का उत्साह हो नहीं सकता।

पशु और बालक भी जिनके साथ अधिक रहते हैं, उनसे परच जाते हैं। यह परचना परिचय ही है। परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए। बाहर निकलिए तो आँख खोलकर देखिए कि खेत कैसे लहलहा रहे हैं, नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं, टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी लाल हो रही है, कछारों में चौपायों के झुंड इधर-उधर चरते हैं, चरवाहे तान लड़ा रहे हैं, अमराइयों के बीच गाँव झाँक रहे हैं; उनमें घुसिए, देखिए तो क्या हो रहा है। जो मिले उनसे दो-दो बाते कीजिए, उनके साथ किसी पेड़ की छाया के नीचे घड़ी-आध-घड़ी बैठ जाइए और समझिए कि ये सब हमारे देश के हैं। इस प्रकार जब देश का रूप आपकी आँखों में समा जाएगा, आप उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित हो जाएंगे, तब आपके अंत:करण में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कि वह कभी न छूटे, वह सदा हरा-भरा और फला-फूला रहे, उसके धनधान्य की वृद्धि हो, उसके सब प्राणी सुखी रहे।

पर आजकल इस प्रकार का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है। वे देश के स्वरूप से अनजान रहने या बनने में अपनी बड़ी शान समझते हैं। मैं अपने एक लखनवी दोस्त के साथ साँची का स्तूप देखने गया। वह स्तूप एक बहुत सुंदर छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर है। नीचे छोटा-मोटा जंगल है, जिसमें महुए के पेड़ भी बहुत से हैं। संयोग से उन दिनों वहाँ पुरातत्व विभाग का कैंप पड़ा हुआ था। रात हो जाने से उस दिन हम लोग स्तूप नहीं देख सके, सवेरे देखने का विचार करके नीचे उतर रहे थे। वसंत का समय था। महुए चारों ओर टपक रहे थे। मेरे मुँह से निकला- “महुओं की कैसी महक आ रही है।” इस पर लखनवी महाशय ने चट मुझे रोककर कहा- “यहाँ महुए-सहुए का नाम न लीजिए, लोग देहाती समझेंगे।” मैं चुप हो रहा, समझ गया कि महुए का नाम जानने से बाबूपन में बड़ा भारी बट्टा लगता है। पीछे ध्यान आया कि वह वही लखनऊ है जहाँ कभी यह पूछने वाले भी थे कि गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा है या बड़ा।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का शीर्षक दीजिए।
(ख) ‘साहचर्यगत प्रेम’ से क्या आशय है
साथियों का प्रेम
साथ-साथ रहने के कारण उत्पन्न प्रेम
देश-प्रेम
इनमें से कोई नहीं।
(ग) अंत:करण का एक पर्यायवाची लिखिए।
(घ) ‘आँख भर देखना’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ङ) ‘प्रेम हिसाब-किताब नहीं है’ में क्या व्यंग्य है?
(च) देश-प्रेम का संबंध किससे है

  • हिसाब-किताब से
  • ज्ञान से
  • मन के वेग से
  • हितचिंतन से।

(छ) “परिचय प्रेम का प्रवर्तक है’- का क्या आशय है?
(ज) देश-प्रेम के लिए पहली आवश्यकता क्या है?
(झ) लेखक ने किन बाबुओं पर व्यंग्य किया है?
(ञ) लखनवी दोस्त ने लेखक को महुओं का नाम लेने से क्यों रोका?
(ट) लखनऊ के लोगों पर क्या कटाक्ष किया गया है?
(ठ) “विलायती बोली’ के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
(ड) लेखक की नजरों में रसखान देशप्रेमी क्यों हैं?
(ढ) पुरातत्व विभाग का क्या काम होता है?
(ण) ‘वन’ का पर्यायवाची ढूंढ़िए।
(त) हानि पहुँचना’ के लिए किस मुहावरे का प्रयोग हुआ है?
उत्तर
(क) देश-प्रेम और स्वदेश-परिचय।
(ख) साथ-साथ रहने के कारण उत्पन्न प्रेम।
(ग) हृदय।
(घ) तृप्त होकर देखना, जी भरकर देखना।
(ङ) देश का हिसाब-किताब रखना अर्थात् आर्थिक उन्नति के बारे में सोचना देश-प्रेम की पहचान नहींहै।
(च) मन के वेग से।।
(छ) परिचय से ही प्रेम का आरंभ होता है।
(ज) देशप्रेम के लिए पहली आवश्यकता है-देश को पूरी तरह जानना।
(झ) लेखक ने उन शहरी बाबुओं पर व्यंग्य किया है जिन्हें देश के देशी फूल-पत्तों का नाम सुनकर अपने देहाती होने का अपमान अनुभव होता है।
((ञ)) लखनवी दोस्त महुओं की सुगंध में देहातीपन महसूस करते थे। इसलिए उन्होंने लेखक को महुओं का नाम लेने से रोका।
(ट) लेखक ने लखनऊ के लोगों के अज्ञान पर कटाक्ष किया है। वहाँ के कुछ लोग गाँव, खेती और कृषि से बिल्कुल अनजान थे।
(ठ) अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी बोलकर देशहित की कितनी ही बातें करें, किंतु वे सच्चे देशप्रेमी नहीं हो सकते।
(ड) लेखक की नजरों में रसखान को देश की ब्रजभूमि से असीम प्रेम है। इसलिए वे सच्चे देशप्रेमी हैं।
(ढ) पुरातत्व विभाग का काम देश की पुरानी धरोहरों को सुरक्षित रखना होता है।
(ण) जंगल
(त) बट्टा लगना।

7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए।

एक आदमी को व्यर्थ बक-बक करने की आदत है। यदि वह अपनी आदत को छोड़ता है, तो वह अपने व्यर्थ बोलने के अवगुण को छोड़ता है। किंतु साथ ही। अनायास ही वह मितभाषी होने के सदगण को अपनाता चला जाता है। यह तो हुआ ‘हाँ’ पक्ष का उत्तर। किंतु एक दूसरे आदमी को सिगरेट पीने का अभ्यास है। वह सिगरेट पीना छोड़ता है और उसके बजाय दूध से प्रेम करना सीखता है, तो सिगरेट पीना छोड़ना एक अवगुण को छोड़ना है और दूध से प्रेम जोड़ना एक सद्गुण को अपनाना है। दोनों ही भिन्न वस्तुएँ हैं- पृथक-पृथक।

अवगुण को दूर करने और सद्गुण को अपनाने के प्रयत्न में, मैं समझता हूँ कि अवगणों को दर करने के प्रयत्नों की अपेक्षा सदगणों को अपनाने का ही महत्त्व अधिक है। किसी कमरे में गंदी हवा और स्वच्छ वायु एक साथ रह ही नहीं सकती। कमरे में हवा रहे ही नहीं, यह तो हो ही नहीं सकता। गंदी हवा को निकालने का सबसे अच्छा उपाय एक ही है-सभी दरवाजे और खिड़कियाँ खोलकर स्वच्छ वायु को अंदर आने देना।

अवगुणों को भगाने का सबसे अच्छा उपाय है, सद्गुणों को अपनाना। ऐसी बातें पढ-सनकर हर आदमी वह बात कहता सनाई देता है जो किसी समय बेचारे दुर्योधन के मुँह से निकली थी-

“धर्म जानता हूँ, उसमें प्रवृत्ति नहीं।
अधर्म जानता हूँ, उससे निवृत्ति नहीं।”

एक आदमी को कोई कुटेव पड़ गई- सिगरेट पीने की ही सही। अत्यधिक सिनेमा देखने की ही सही। बेचारा बहुत संकल्प करता है, बहुत कसमें खाता है कि अब सिगरेट न पीऊँगा, अब सिनेमा देखने न जाऊँगा, किंतु समय आने पर जैसे आप ही आप उसके हाथ सिगरेट तक पहुँच जाते हैं और सिगरेट उसके मुँह तक। बेचारे के पाँव सिनेमा की ओर जैसे आप-ही-आप बढ़े चले जाते हैं।

क्या सिगरेट न पीने का और सिनेमा न देखने का उसका संकल्प सच्चा नहीं? क्या उसने झूठी कसम खाई है? क्या उसके संकल्प की दृढ़ता में कमी है? नहीं, उसका संकल्प तो उतना ही दृढ़ है जितना किसी का हो सकता है। तब उसे बार-बार असफलता क्यों होती है?

इस असफलता का कारण और सफलता का रहस्य कदाचित इस एक ही उदाहरण से समझ में आ जाए।
जमीन पर एक छ: इंच या एक फुट लंबा-चौड़ा लकड़ी का तख्ता रखा है। यदि आपसे उस पर चलने के लिए कहा जाए तो आप चल सकेंगे?

कोई पूछे क्यों? आप इसके अनेक कारण बताएँगे। सच्चा कारण एक ही है। आप नहीं चल सकते, क्योंकि आप समझते है आप नहीं चल सकते। यदि आप विश्वास कर लें कि आप चल सकते हैं, और उसी लकड़ी के तख्ते को थोड़ा-थोड़ा जमीन से ऊपर उठाते हुए उसी पर चलने का अभ्यास करें तो आप उस पर बड़े आराम से चल सकेंगे। सरकस वाले पतले-पतले तारों पर कैसे चल लेते हैं? वे विश्वास करते हैं कि वे चल सकते हैं, तदनुसार अभ्यास करते हैं और वे चल ही लेते हैं।

यदि आप किसी अवगुण को दूर करना चाहते हैं, तो उससे दूर रहने के दृढ़ संकल्प करना छोड़िए, क्योंकि जब आप उससे दूर-दूर रहने की कसमें खाते हैं, तब भी आप उसी का चिंतन करते हैं। चोरी न करने का संकल्प भी चोरी का ही संकल्प है। पक्ष में न सही, विपक्ष में सही। है तो चोरी के ही बारे में। चोरी न करने की इच्छा रखने वाले को चोरी के संबंध में कोई संकल्प-विकल्प नहीं करना चाहिए।

हम यदि अपने संकल्प-विकल्पों द्वारा अपने अवगुणों को बलवान न बनाएँ तो हमारे अवगुण अपनी मौत आप मर जाएँगे।
आपकी प्रकृति चंचल है, आप अपने ‘गंभीर स्वरूप’ की भावना करें। यथावकाश अपने मनमें ‘गंभीर स्वरूप’ का चित्र देखें। अचिरकाल से ही आपकी प्रकृति बदल जाएगी।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) ‘अनायास’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ग) मितभाषी का विपरीतार्थक लिखिए।
(घ) “पृथक्’ और ‘अभ्यास’ के कौन-कौन से पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त हुए
(ङ) गंदी हवा को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय क्या है?
(च) अवगुण को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय क्या है?
(छ) ‘धर्म जानता हूँ, उसमें प्रवृत्ति नहीं’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘अधर्म जानता हूँ, उसमें निवृत्ति नहीं’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(झ) लेखक अवगुणों को छोड़ने का संकल्प क्यों नहीं करना चाहता?
(ञ) अवगुण कब अपनी मौत मर जाते हैं?
(ट) ‘तुरंत’ या ‘शीघ्र’ के लिए किस नए शब्द का प्रयोग किया गया है।
(ठ) चंचल स्वभाव को छोड़ने के लिए क्या करना चाहिए?
(ड) ‘अनायास’ का संधिविच्छेद कीजिए।
उत्तर
(क) सद्गणों को अपनाने के उपाय।
(ख) बिना प्रयास किए।
(ग) अतिभाषी, वाचाल।
(घ) पृथक् – भिन्न
अभ्यास – आदत।
(ङ) गंदी हवा को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय है- स्वच्छ हवा को आने देना।
(च) अवगुण को दूर करने का सर्वोत्तम उपाय है- सद्गुणों को अपनाना।
(छ) इसका आशय है- मैं धर्म के सारे लक्षण तो जानता हूँ किंतु उस ओर मेरा रुझान नहीं है। मैं धर्म को अपनाने में रुचि नहीं ले पाता।
(ज) इसका आशय है- मैं अधर्म के लक्षण जानता हूँ किंतु जानते हुए भी उनसे बच नहीं पाता। मैं अधर्म के कार्यों में फंस जाता हूँ।
(झ) लेखक अवगुणों को छोड़ने का संकल्प इसलिए नहीं करना चाहता क्योंकि उससे अवगुण और पक्के होते हैं। उससे अवगुण चिंतन के केंद्र में आ जाते हैं।
(ञ) अवगुणों के बारे में कोई निश्चय-अनिश्चय न किया जाए तो वे अपनी मौत स्वयं पर जाते हैं, अर्थात् अपने-आप नष्ट हो जाते हैं।
(ट) अचिरकाल
(ठ) चंचल स्वभाव को छोड़ने के लिए अपने सामने अपने गंभीर रूप की भावना करनी चाहिए।
(ड) अन +आयास।

8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए:

भारत वर्ष बहुत पुराना देश है। उसकी सभ्यता और संस्कृति भी बहुत पुरानी है। भारतवासियों को अपनी सभ्यता और संस्कृति पर बड़ा गर्व है। वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा प्राप्त नए साधनों को अपनाते हुए भी जब अनेक अन्य देशवासी अपने पुराने रहन-सहन और रीति-रिवाज को बदलकर नए तरीके से जीवन बिताने लगे तब भी भारतवासी अपनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति पर डटे रहे और बहुत काल तक यह देश ऋषि मुनियों का देश ही कहलाता रहा। विश्व के मानव-जीवन के उस नए दौर का असर पूर्ण रूप से भारतवासियों पर पड़ा नहीं।

हवाई जहाज की सैर की सुविधा के मिलने के बाद भी पैदल की जाने वाली तीर्थ यात्राएँ होती ही रहीं। पाँच नक्षत्रवाले होटलों में ‘शावरबाथ’ की सुविधाओं के होते हुए भी गंगा-स्नान और संध्या-वंदन का दौर चलता ही रहा। कारण यह है कि जब जीवन में उन्नति के लिए अन्य देशवासी नए आविष्कारों और उनके द्वारा प्रदान की गई सुविधाओं के पीछे भाग रहे थे, तब भी भारतवासियों का अपने रीति-रिवाज और रहन-सहन पर पूरा विश्वास था और संपूर्ण रूप से नए आविष्कारों का शिकार होना नहीं चाहते थे। इसका कारण यह भी था कि विज्ञान के आविष्कारों के नाम से जीवन को आसान बनवाने वाली सुविधाओं को अपने देहाती ढंग से प्राप्त करके जीने का तरीका प्राचीन काल से भारतवासी जानते थे।

इसी भाँति छोटी क्षेत्रफल वाली जमीन को जोतने की बात तो अलग है। पर आज ट्रैक्टरों का इस्तेमाल करके विशाल क्षेत्रफल वाली भूमि को भी थोड़ी ही देर में आसानी से जोत डालने की सुविधा तो है। इसका मतलब यह नहीं था कि हमारे पूर्वज इस प्रकार की सुविधाओं के अभाव से विशाल क्षेत्रफल वाली भूमि को जोतते ही नहीं थे। उस जमाने में भी उस समय पर प्राप्त सामग्रियों का इस्तेमाल करके विशाल से विशाल भूमि को भी जोत डालते ही थे। ऐसी विशाल जमीन के चारों ओर सबसे पहले एक छोटे से द्वार मात्र को छोड़कर आट लगाते थे। पूरी जमीन पर जंगली पौधे अपने आप उग लेंगे ही। फिर सिर्फ एक रात्रि मात्र के लिए जमीन पर जंगली सूअरों को भगाकर द्वार बंद कर देते थे। पौधों की जड़ को खाने के उत्साह से जंगली सूअर जमीन खोदने लगेंगे। सुबह देखने पर पूरी जमीन जोतने के बराबर हो जाएगी। बाद में सूअरों को भगाकर जमीन समतल कर लेते थे। और खेती बारी करते थे।

उस कार्य के पीछे विज्ञान का नाम मात्र न था। यह कहना अत्युक्ति न होगी कि ट्रेक्टर नाम के इस नए आविष्कार के प्रेरक तो जंगली सूअर ही थे। कहने का तात्पर्य यह है कि प्राकृतिक साधनों का पूरा फायदा उठाना हमारे पूर्वज खूब जानते थे। बाद में वैज्ञानिकों ने जो सुविधाएँ प्रदान की थी, उनमें से अधिकांश को पूर्वकाल में ही प्रकृति पर निर्भर होकर हमारे पूर्वजों ने पा लिया था। यही कारण था कि नए आविष्कारों पर उन्हें इतना विस्मय न था जिनता अन्य देशवासियों को था। यही कारण था कि हम अपनी पुरानी सभ्यता और संस्कृति पर डटे रहे।

चिकित्सा और औषधियों के मामलों पर भी बात यही थी। रोगों से छुटकारा पाने के लिए जो काम आज दवा की गोलियाँ किया करती हैं, उसे जंगली बूटियाँ करती थीं। मृत व्यक्ति को जीवित कराने के लिए भी बूटियाँ उपलब्ध थीं। श्रीमद् रामायण में संजीवनी बूटी का जो उल्लेख हुआ है, वह इस बात का साक्षी है। प्राचीनकाल के सिद्ध जो थे, वे तपश्चर्या करने के साथ-साथ वैद्य का काम भी किया करते थे। पहाड़ियों में विचरण करना और विशिष्ट प्रकार की दवा बूटियों को ढूँढ लेना भी उनका काम था। विभिन्न प्रकार के रोगों के निवारण के लिए तरह-तरह की बूटियों को खोज रखा था उन्होंने। आज भी भारत के पहाड़ी इलाकों में बसे घने जंगलों में विभिन्न प्रकार के रोगों के लिए बूटियों का होना वैज्ञानिकों द्वारा मान लिया गया है।

प्रश्न
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
(ख) आज तीर्थ-यात्राएँ किस प्रकार संपन्न की जाती हैं?
(ग) पाँच. नक्षत्र वाले होटल से क्या तात्पर्य है?
(घ) शावरबाथ और संध्या-वंदन शब्दों का अर्थ स्पष्ट करें।
(ङ) ट्रैक्टर से आविष्कार की प्रेरणा किस से मिली?
(च) रामायण में संजीवनी बूटी का प्रयोग किस पात्र पर किया गया?
(छ) अत्युक्ति का क्या आशय है?
(ज) साक्षी व तपश्चर्या शब्दों का अर्थ बताओ।
(झ) आट लगाना का क्या अर्थ है?
(ञ) भारतीय जन अपनी प्राचीन रीतियों को क्यो अपनाते चले आ रहे हैं?
(ट) ट्रैक्टर के आने से पहले भारतीय लोग अपनी विशाल धरती को किनकी सहायता से जोतते थे?
(ठ) प्राचीन भारत में दवा की गोलियों की बजाय किससे काम लिया जाता था?
(ड) संजीवनी बूटी किसे कहा जाता था?
(ढ) ‘भारतवासी’ का विग्रह करके समास का नाम लिखिए।
(ण) ‘रहन-सहन’ में कौन-सा समास है?
उत्तर
(क) महान भारतीय संस्कृति।
(ख) पैदल चलकर।
(ग) पाँच सितारा होटल। (Five Star Hotel)
(घ) शावरबाथ – फव्वारे द्वारा किया गया. स्नान संध्या-वंदन – सायंकाल होने वाली पूजा-अर्चना।
(ङ) ट्रैक्टर के आविष्कार के प्रेरक जंगली सूअर थे।
(च) संजीवनी बूटी का प्रयोग लक्ष्मण पर किया गया।
(छ) अत्युक्ति अर्थात् अत्यधिक बढ़ा-चढ़ा कर कहना।
(ज) साथी – गवाह तपश्चर्या – तप करने की क्रिया, तपस्या करना।
(झ) आट लगाना अर्थात् बाड़ लगाना, घेराबंदी करना।
(ञ) भारतीय जन अपनी रीतियों पर आस्था रखने के कारण ही उन्हें आज तक अपनाते चले आ रहे हैं।
(ट) ट्रैक्टर के आने से पहले भारतीय लोग अपनी विशाल धरती को सूअरों की सहायता से जोत डालते थे।।
(ठ) जड़ी-बूटियों और प्रभावकारी वनस्पतियों से।
(ड) वह बूटी, जिसे खाकर मरा हुआ मनुष्य भी जीवित हो उठता है।
(ढ) भारत का वासी; तत्पुरुष समास।
(ण) द्वंद्व समास।

9. नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए:

शास्त्री जी की एक सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे एक सामान्य परिवार में पैदा हुए थे, सामान्य परिवार में ही उनकी परवरिश हुई और जब वे देश के प्रधानमंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंचे, तब भी वह सामान्य ही बने रहे।’ विनम्रता, सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व में एक विचित्र प्रकार का आकर्षण पैदा करती थी। इस दृष्टि से शास्त्री जी का व्यक्तित्व बापू के अधिक करीब था और कहना न होगा कि बापू से प्रभावित होकर ही सन् 1921 ई० में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ी थी। शास्त्री जी पर भारतीय चिन्तकों, डॉ. भगवानदास तथा बापू का कुछ ऐसा प्रभाव रहा कि वह जीवन-भर उन्हीं के आदर्शों पर चलते रहे और औरों को इसके लिए प्रेरित करते रहे। शास्त्री जी के संबंध में मुझे बाइबिल की वह उक्ति बिल्कुल सही जान पड़ती है कि विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे।

शास्त्री जी ने हमारे देश के स्वतंत्रता-संग्राम में तब प्रवेश किया था, जब वे एक स्कूल के विद्यार्थी थे और उस समय उनकी उम्र 17 वर्ष की थी। गाँधीजी के आह्ववान पर वे स्कूल छोड़कर बाहर आ गये थे। इसके बाद काशी विद्यापीठ में उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। उनका मन हमेशा देश की आजादी और सामाजिक कार्यों की ओर लगा रहा। परिणाम यह हुआ कि सन् 1926 ई. में वे ‘लोक सेवा मंडल’ में शामिल हो गए, जिसके वे जीवन-भर सदस्य रहे। इसमें शामिल होने के बाद से शास्त्री जी ने गाँधी जी के विचारों के अनुरूप अछूतोद्वार के काम में अपने आपको लगाया। यहाँ से शास्त्री जी के जीवन का नया अध्याय प्रारंभ हो गया। सन् 1930 ई० में जब ‘नमक कानून तोड़ों आंदोलन’ शुरू हुआ, तो शास्त्रीजी ने उसमें भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप उनहें जेल जाना पड़ा। यहाँ से शास्त्री जी की जेल-यात्रा की जो शुरूआत हुई तो वह सन् 1942 ई. में ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन तक निरंतर चलती रही। इन 12 वर्षों के दौरान वे सात बार जेल गये। इसी से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके अंदर देश की आजादी के लिए कितनी बड़ी ललक थी। दूसरी जेल-यात्रा उन्हें सन् 1932 ई. में किसान आंदोलन में भाग लेने के लिए करनी पडी। सन् 1942 ई. की उनकी जेल-यात्रा 3 वर्ष की था, जा सबस लंबी जेल-यात्रा थी।

इस दौरान शास्त्री जी जहाँ तक एक ओर गाँधीजी द्वारा बताये गये रचनात्मक कार्यों में लगे हुए थे, वहीं दूसरी ओर पदाधिकारी के रूप में जनसेवा के कार्यों में भी लगे रहे। इसके बाद के 6 वर्षों तक वे इलाहाबद की नगरपालिका से किसी न किसी रूप से जुड़े रहे। लोकतंत्र की इस आधारभूत इकाई में कार्य करने के कारण वे देश की छोटी-छोटी समस्याओं और उनके निराकरण की व्यावहारिक प्रक्रिया से अच्छी तरह परिचित हो गये थे। कार्य के प्रति निष्ठा और मेहनत करने की अदम्य क्षमता के कारण सन् 1937 ई० में वे संयुक्त प्रांतीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित हुए। सही मायने में यहीं से शास्त्री जी के संसदीय जीवन की शुरुआत हुई, जिसका समापन, देश के प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने में हुआ।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) शास्त्री जी के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाले गुण कौन-कौन से थे?
(ग) किस गुण के कारण शास्त्री जी का जीवन गाँधी जी के करीब था?
(घ) ‘विनम्र ही पृथ्वी के वारिस होंगे’ का क्या आशय है?
(ङ) शास्त्री जी ने स्वतंत्रता-आंदोलन में भाग लेने की शुरूआत कब से की?
(च) शास्त्री जी सन् 1942 ई० में किस सिलसिले में जेल गए?
(छ) बारह वर्षों के दौरान शास्त्री जी कितनी बार जेल गये?
(ज) शास्त्री जी ने जनसेवक के रूप में किस नगर की सेवा की?
(झ) किस ई० में शास्त्री जी संयुक्त प्रांतीय व्यवस्थापिका सभा के लिए निर्वाचित हुए?
(ञ) ‘अछूतोद्वार’ का सविग्रह समास बताएँ।
(ट) “ललक’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
(ठ) इस गद्यांश से उर्दू के दो शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर
(क) कर्मयोगी लाल बहादुर शास्त्री।
(ख) विनम्रता, सादगी और सरलता।
(ग) सादगी, सरलता और कर्मनिष्ठा के कारण।
(घ) प्रलयोपरांत विनम्र लोग ही बचेंगे जो धरती के सब सुख को भोग सकेंगे।
(ङ) 17 वर्ष की उम्र में विद्यार्थी जीवन से।
(च) भारत छोड़ो आंदोलन के सिलसिले में।
(छ) सात बार।
(ज) इलाहाबाद नगरपालिका की
(झ) 1932 ई.
(ञ) अछूतों का उद्वार-तत्पुरूष समास
(ट) ललक-उत्सुकता, व्यग्रतम।
(ठ) वारिस, परवरिश।

10. नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

हँसी भीतरी आनन्द का बाहरी चिन्ह है। जीवन की सबसे प्यारी और उत्तम से-उत्तम वस्तु एक बार हँस लेना तथा शरीर को अच्छा रखने की अच्छी-से-अच्छी दवा एक बार खिलखिला उठना है। पुराने लोग कह गये हैं कि हँसो और पेट फुलाओ। हँसी कितने ही कला-कौशलों से भली है। जितना ही अधिक आनंद से हँसोगे उतनी ही आयु बढ़ेगी। एक यनानी विद्वान कहता है कि सदा अपने कर्मों खींझने वाला हेरीक्लेस बहुत कम जिया. पर प्रसन्न मन डेमोक्रीटस 109 वर्ष तक जिया। हँसी-खुशी ही का नाम जोवन है। जो रोते हैं, उनका जीवन व्यर्थ है। कवि कहता है ‘जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है. मर्दादिल खाक जिया करते हैं।

मनुष्य के शरीर के वर्णन पर एक विलायती विद्वान ने एक पुस्तक लिखी है। उसमें वह कहता है कि उत्तम सुअवसर की हँसी उदास-से-उदास मनुष्य के चित्त को प्रफुल्लित कर देती है। आनन्द एक ऐसा प्रबल इंजन है कि उससे शोक और दुःख की दीवारों को ढा सकते हैं। प्राण-रक्षा के लिए सदा सब देशों में उत्तम-से-उत्तम मनुष्य के चित्त को प्रसन्न रखना है। सुयोग्य वैद्य अपने रोगी के कानों में आनंदरूपी मंत्र सुनाता है।

एक अँगरेज डॉक्टर कहता है कि किसी नगर में दवाई लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है। डॉक्टर हस्फलेंड ने एक पुस्तक में आयु बढ़ाने का उपाय लिखा है। वह लिखता है कि हँसी बहुत उत्तम चीज है। यह पाचन के लिए है। इससे अच्छी औषधि और नहीं है। एक रोगी ही नहीं, सबके लिए हँसी बहुत काम की वस्तु है। हँसी शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद देने वाली है। वह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसन्न करती है। पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त को चलाती और अधिक पसीना लाती है।

हँसी एक शक्तिशाली दवा है। एक डॉक्टर कहता है कि वह जीवन की. मीठी मदिरा है। डॉक्टर यूंड कहता है कि आनन्द से बढ़कर बहुमूल्य वस्तु मनुष्य के पास और नहीं है। कारलाइस एक राजकुमार था। वह संसार त्यागी हो गया था। वह कहता है कि जो जी से हँसता है, वह कभी बुरा नहीं होता। जी से हँसो, तुम्हें अच्छा लगेगा। अपने मित्र को हँसाओ, वह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुमसे कम घृणा करेगा। एक अनजान को हँसाओ, तुम पर भरोसा करेगा। उदास को हँसाओ, उसका दु:ख घटेगा। निराश को हँसाओ, उसकी आयु बढ़ेगी। एक बालक को हँसाओ, उसके स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। वह प्रसन्न और प्यारा बालक बनेगा। पर हमारे जीवन का उद्देश्य केवल हँसी ही नहीं, हमको बहुत काम करने हैं, तथापि उन कामों में, कष्टों में और चिन्ताओं में एक सुन्दर आन्तरिक हँसी बड़ी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है।

प्रश्न
(क) हँसी भीतरी आनन्द को कैसे प्रकट करती है?
(ख) पुराने समय में लोगों ने हँसी को महत्त्व क्यों दिया?
(ग) हँसी को एक शक्तिशाली इंजन की तरह क्यों माना गया है?
(घ) हेरीक्लेस और डेमोक्रीटस के उदाहरण से लेखक क्या स्पष्ट करना चाहते हैं?
(ङ) एक अँगरेज डॉक्टर ने क्या कहा है?
(च) डॉक्टर हस्फलेंड ने एक पुस्तक में आयु बढ़ाने का क्या उपाय लिखा है?
(छ) हँसी किस प्रकार एक शक्तिशाली दवा है?
(ज) इस गद्यांश में हँसी का क्या महत्त्व बताया गया है?
(झ) हँसी सभी के लिए उपयोगी किस प्रकार है?
(ञ) मित्र मंडली’ का सविग्रह समास बनायें।
(ट) ‘प्रफुल्लित’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय अलग कीजिए।
(ठ) ‘तथापि’ का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर
(क) हँसी भीतरी आनन्द का बाहरी चिन्ह है। हँसी जीवन में उल्लास, उमंग और प्रसन्नता का संचार करती है।
(ख) पुराने समय में लोगों ने हँसी को महत्त्व इसीलिए दिया कि हँसी अनेक कला-कौशलों से अच्छी है। .
(ग) हँसी को एक शक्तिशाली इंजन की तरह इसीलिए माना गया है क्योंकि उससे शोक और दुःख की दीवारों को ढाया जा सकता है।
(घ) लेखक यही स्पष्ट करना चाहते हैं कि प्रसन्नता आय को बढाती है।
(ङ) एक अँगरेज डॉक्टर ने कहा है कि किसी नगर में दवाई लदे हुए बीस गधे ले जाने से एक हँसोड़ आदमी को ले जाना अधिक लाभकारी है।
(च) उसने लिखा है कि हँसी बहुत उत्तम चीज है। वह पाचन के लिए है। इससे अच्छी औषधि और नहीं है।
(छ) हँसी पाचन-शक्ति बढ़ाती है, रक्त को चलाती है और अधिक पसीना लाती है।
(ज) हँसी सर्वोत्तम औषधि है। हँसी प्राणदायक तथा आयु-वर्द्धक है।
(झ) सचमुच हँसी सभी के लिए उपयोगी है। यह उदास और निराश व्यक्ति में प्रसन्नता और आशा का संचार करती है।
(ञ) मित्र-मंडली = मित्रों की मंडली-तत्पुरुष समास।
(ट) इत (प्रत्यय)।
(ठ) तथा + अपि।

प्रश्न 11.
नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए।

तुम्हें क्या करना चाहिए, इसका ठीक-ठीक उत्तर तुम्हीं को देना होगा, दूसरा कोई नहीं दे सकता। कैसा भी विश्वास-पात्र मित्र हो, तुम्हारे इस काम को वह अपने नहीं दे सकता। कैसा भी विश्वास-पात्र मित्र हो, तुम्हारे इस काम को वह अपने ऊपर नहीं ले सकता। हम अनुभवी लोगों की बातों को आदर के साथ सुने, बुद्धिमानों की सलाह को कृतज्ञतापूर्वक मानें, पर इस बात को निश्चित समझकर कि हमारे कामों से ही हमारी रक्षा व हमारा पतन होगा, हमें अपने विचार और निर्णय की स्वतंत्रता को दृढ़तापूर्वक बनाये रखना चाहिए। जिस पुरूष की दृष्टि सदा नीची रहती है, उसका सिर कभी ऊपर न होगा। नीची दृष्टि रखने से यद्यपि रास्ते पर रहेंगे, पर इस बात को न देखेंगे कि यह रास्ता कहाँ ले जाता है। चित्त की स्वतंत्रता का मतलब चेष्टी की कठोरता या प्रकृति की उग्रता नहीं है। अपने व्यवहार में कोमल रहो और अपने उद्देश्यों को उच्च रखो. इस प्रकार नम्र और उच्चाशय दोनों बनो। अपने मन को कभी मरा हुआ न रखों। जो मनुष्य अपना लक्ष्य जितना ही ऊपर रखता है, उतना ही उसका तीर ऊपर जाता है।

संसार में ऐसे-ऐसे दृढ़ चित्त मनुष्य हो गये हैं जिन्होंने मरते दम तक सत्य की टेक नहीं छोड़ी, अपनी आत्मा के विरूद्ध कोई काम नहीं किया। राजा हरिश्चंद्र के ऊपर इतनी-इतनी विपत्तियाँ आयीं, पर उन्होंने अपना सत्य नहीं छोड़ा। उनकी प्रतिज्ञा यही रही-

“चंद्र टरै, सूरज टरै, टरै जंगत व्यवहार।
पै दृढ़ श्री हरिश्चंद्र कौ, टरै न सत्य विचार।।”

महाराणा प्रताप सिंह जंगल-जंगल मारे-मारे फिरते थे, अपनी स्त्री और बच्चों को भूख से तड़पते देखते थे, परंतु उन्होंने उन लोगों की बात न मानी जिन्होंने उन्हें अधीनतापूर्वकं जीते रहने की सम्मति दी, क्योंकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिंता जितनी अपने को हो सकती है उतनी दूसरे को नहीं। एक इतिहासकार कहता है-“प्रत्येक मनुष्य का भाग्य उसके हाथ में है। प्रत्येक मनुष्य अपना जीवन-निर्वाह श्रेष्ठ रीति से कर सकता है। यही मैंने किया है और यदि अवसर मिले तो यही करूँ। इसे चाहे स्वतंत्रता कहो ‘चाहे आत्मा-निर्भरता कहो’ चाहे स्वावलंबन कहो, जो कुछ कहो वही भाव है जिससे मनुष्य और दास में भेद जान पड़ता है, यह वही भाव है जिसकी प्रेरणा से राम-लक्ष्मण ने घर से निकल बड़े-बड़े पराक्रमी वीरों पर विजय प्राप्त की यह वही भाव है जिसकी प्रेरणा से कोलंबस ने अमेरिका समान बडा महाद्वीप ढूंढ निकाला। चित्त की इसी वृत्ति के बल पर कुंभनदास ने अकबर के बुलाने पर फतेहपुर सीकरी जाने से इनकार किया और कहा था-

‘मोको कहा सीकरी सो काम।’ ।
इस चित्त वृत्ति के बल पर मनुष्य इसीलिए परिश्रम के साथ दिन काटता है और दरिद्रता के दु:ख को झेलता है। इसी चित्त-वृत्ति के प्रभाव से हम प्रलोभनों का निवारण करके उन्हें सदा पद-दलित करते हैं। कुमंत्रणाओं का निस्तार करते हैं और शुद्ध चरित्र के लोगों से प्रेम और उनकी रक्षा करते हैं।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) लेखक नीची दृष्टि न रखने की सलाह क्यों देते हैं?
(ग) मन को मरा हुआ रखने का क्या आशय है?
(घ) किसका तीर ऊपर जाता है और क्यों?
(ङ) महाराणा प्रताप ने गुलामी स्वीकार करने की सलाह क्यों नहीं मानी?
(च) कोलंबस और हनुमान ने किस गुण के बल पर महान कार्य किये?
(छ) मनुष्य किस आधार पर प्रलोभनों को पद-दलित कर पाते हैं?
(ज) टेक का पर्यायवाची इसी गद्यांश से ढूँढ़कर लिखिए।
(झ) विश्वासपात्र और पतन का विलोम शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
(ञ) सम्मति का उपसर्ग अलग कीजिए।
(ट) आत्मनिर्भरता का पर्यायवाची लिखिए।
(ठ) श्रेष्ठ, उत्तम, दृढ और उच्च में से अलग अर्थ वाले शब्द को चुनकर लिखिए।
उत्तर
(क) आत्मनिर्भरता का महत्त्व।
(ख) नीची दृष्टि रखने से मनुष्य को उन्नति पाने में बाधा होती है।
(ग) मन को उत्साहहीन, निराश, उदास और पराजित बनाये रखना।
(घ) जिसका लक्ष्य जितना ऊँचा होता है, उसका तीर उतना ही ऊपर जाता है क्योंकि लक्ष्य ऊँचा रखने से ही प्रयत्न का अवसर प्राप्त हो पाता है।
(ङ) महाराणा प्रताप जानते थे कि व्यक्ति को अपनी मर्यादा अपने कर्म से बनानी होती है। इसीलिए उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की सलाह नहीं मानी।
(च) आत्मनिर्भरता के बल पर।
(छ) स्वावलंबन के आधार पर।
(ज) टेक = प्रतिज्ञा, संकल्प आन।
(झ) विश्वासपात्र = विश्वासघाती। पतन = उत्थान।
(ञ) सम्
(ट) आत्मनिर्भरता = स्वावलंबन, स्वतंत्रता।

12. नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

सालों पहले कुशीनगर गया था। वहाँ बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा के पास खड़े होकर एक अलग किस्म का अनुभव हुआ था। उस वक्त तो ठीक-ठीक नहीं समझ पाया था लेकिन बाद में मुझे महसूस हुआ कि वहाँ एक अलग तरह की शांति मिली थी। अब किसी भी बुद्ध प्रतिमा को देखता हूँ तो असीम शांति का अहसास होता है। वहाँ खड़े होकर आपको महसूस होता है कि उन्हें करुण का महासागर क्यों कहा जाता है?

अक्सर सोचता हूँ कि असीम शांति कैसे हासिल हो सकती है? क्या दुख को साधे बिना उसे पाया जा सकता है? आखिर बुद्ध ने जब दुख को साधा तभी तो वह असीम शांति का अनुभव कर सके।

शायद बुद्ध के वजह से ही बौद्ध धर्म या दर्शन ने दुख या मानवीय पीड़ा पर इतना विचार किया। दरअसल, बौद्ध या दर्शन तो पीड़ा और दुख से ही निकल कर. आया था। बुद्ध का पूरा जीवन ही उस दुख और पीड़ा से जूझने में बीता।

बुद्ध ने अपने पूर्वजों की तरह दुख को नकारा नहीं था। जीवन में दुख को स्वीकार करने की वजह से ही वह अपने पार पाने की सोच सके। और उस दुख से पार पाने के लिए तथागत ने किसी चमत्कार या करिश्मे का सहारा नहीं लिया।

सचमुच बुद्ध ने कोई चमत्कार नहीं किया। आमतौर पर धर्म और अध्यात्म की दुनिया तो चमत्कार को एक जरूरी चीज के तौर पर मानती रही है। हाल का उदाहरण मदर टेरेसा का है। मदर को ही कैथोलिक चर्च ने चमत्कार के बिना संत कहाँ माना था?

बुद्ध ही अपने बेटे को खो चुकी और चमत्कार की आस में आयी माँ से कह सकते थे कि जाओ गाँव में किसी घर से एक मुट्ठी चावल ले आओ जहाँ कोई मौत न हुई हो।

अपने बेटे को खो चुकी माँ के लिए उन्होंने कोई चमत्कार नहीं किया था। महज एक उदाहरण से समझा दिया था कि मौत या दुख एक सच्चाई है। उसे कोई चमत्कार बदल नहीं सकते साथ जीने की कोशिश करनी होती है।

इसलिए बुद्ध ही कह सकते थे कि जीवन है तो दुख है। यानी आप दुख से बच ही नहीं सकते। लेकिन यह भी बुद्ध ही कह सकते थे कि जीवन है तो दुख है लेकिन उससे पार पाना ही जीवन है।

उस दुख से पार पाने के लिए बुद्ध किसी भी शरण में जाने को नहीं कहते हैं। वह तो ‘अप्प दीपो भव’ यानी अपने दीपक खुद बनों का मंत्र देते हैं।
मतलब, दुख को भी अपनी निगाहों से देखो। दुख अगर अंधेरा है तो अपने दीपक से उस अंधेरे को हटाओ। किसी और दीपक की रोशनी में न तो अपने दुखों को देखो न ही अपने दुखों को हटाने के लिए दूसरी रोशनी को बाट जोहो। आज बुद्ध पूर्णिमा है। क्या हमें अपने दीपक और उसकी रोशनी में जिंदगी को देखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए?
(ख) लेखक को बुद्ध की प्रतिमा के सामने कैसा अनुभव हुआ?
(ग) बुद्ध असीम शांति का अनुभव कब कर सके?
(घ) बद्ध ने अपना परा जीवन किससे जझने में व्यतीत कर दिया?
(ङ) दुख से पार पाने के लिए बुद्ध ने क्या किया?
(च) अपने मरे हुए बेटे को चमत्कार की आशा में आयी माँ को बुद्ध ने क्या कहा?
(छ) बुद्ध ने जीवन किसे माना है?
(ज) इस गद्यांश में दुख से पार पाने का क्या उपाय बताया गया है?
(झ) ‘अप्प दीप्पो भव’ का अर्थ है?.
(ञ) ‘बाट जोहना’ मुहाबरे का वाक्य-प्रयोग द्वारा अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(ट) ‘मौत’ के दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
(ठ) ‘चमत्कार’ का संधि-विच्छेद कीजिए।
उत्तर
(क) जीवन में दुख।
(ख) असीम शांति का अनुभव।
(ग) जब से दुख को साधने में सफल हुए।
(घ) दुख और पीड़ा से।।
(ङ) उन्होंने दुख को नकारने की अपेक्षा उसे स्वीकार किया और घोर तपस्या की।
(च) उन्होंने कहा कि जाओ गाँव में किसी घर में एक मुट्ठी चावल ले आओ, जहाँ कोई मौत न हुई हो।
(छ) बुद्ध ने दुख से पार पाने को ही जीवन माना है।
(ज) दुख से पार पाने के लिए दीपक स्वयं बनने का उपाय बताया गया है। (झ) अपना दीपक स्वयं बनों।
(ञ) बाट जोहना (प्रतीक्षा करना) = गोपियाँ निरन्तर कृष्ण आगमन की बाट जोहती रहती थीं।
(ट) मौत = मृत्यु, देयत, देहावसान, निधन, स्वर्गवास।
(ठ) चमत् + कार (व्यंजन संधि)।

2. वर्णनात्मक गद्यांश [8 अंक]

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

कहने को चाहे भारत में स्वशासन हो और भारतीयकरण का नाम हो, किंतु वास्तविकता में सब ओर आस्थाहीनता बढ़ती जा रही है। मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों या चर्च में बढ़ती भीड़ और प्रचार माध्यमों द्वारा मेलों और पर्वो के व्यापक कवरेज से आस्था के संदर्भ में कोई भ्रम मत पालिए, क्योंकि यह सब उसी प्रकार भ्रामक है जैसे लगे रहो मुन्ना भाई की गाँधीगीरी।

वास्तविक जीवन में जिस आचरण की अपेक्षा व्यक्ति या समूह से की जाती है उसकी झलक तक पाना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि गाँधीगीरी की काल्पनिक अवधारणा से महत्त्व पाने के लिए कुछ लोगों की नौटंकी की वाहवाही । प्रचार माध्यमों ने जमकर की, लेकिन अब गाँधी जयंती बीतने के बाद न तो कोई । गुलाब का फूल भेंट करता दिखाई देता है और न ही कोई छूट वाले काउंटरों से गद्यांश (8 अंक) गाँधी टोपी ही खरीदता नजर आता है।

गाँधी को ‘गौरी’ के रूप में आँकने के सिनेमाई कथानक का कोई स्थायी प्रभाव हो भी नहीं सकता। फिल्म उत्तरी और प्रभाव चला गया। गाँधी को बाह्य आवरण से समझने के कारण वर्षों से हम दो अक्टूबर और तीस जनवरी को कुछ आडंबर अवश्य करते चले आ रहे हैं, लेकिन जिन जीवन-मल्यों के प्रति आस्थावान होने की हम सौगंध खाते हैं और उन्हें आचरण में उतारने का संकल्प व्यक्त करते हैं उसका लेशमात्र प्रभाव भी हमारे आस-पास के जीवन में प्रतीत नहीं होता। जिसे हमने स्वतंत्रता के लिए संग्राम की संज्ञा दी थी उस संपूर्ण प्रयास को गाँधीजी ने स्वराज्य के लिए अभियान की संज्ञा प्रदान की थी।

स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और स्वराज्य के लिए अभियान का अंतर अतीत का संज्ञान रखने वाले ही समझ सकते हैं। विदेशियों के सत्ता में रहने के बावजद हम स्वतंत्र थे, क्योकि हमारी आस्था ‘स्व’ में निरंतर प्रगाढ़ होती जा रही थी। ‘स्व’ में आस्था की प्रगाढ़ता के लिए निरंतर प्रयास होते रहे। इसीलिए गाँधी जी का अभियान स्वराज्य का था. बतंत्रता का नहीं। उसके स्वराज्य की भी एक निश्चित अवधारणा थी। सर्वसाधारण को वह अवधारणा समझ में आ सके, इसलिए उन्होंने कहा था कि हमारा स्वराज्य रामराज्य होगा। ।

जिस सादे जीवन और उच्च विचार को आधार बनाकर वे भारत को आध्यात्मिक गुरु के रूप में विश्व के समक्ष खड़ा करना चाहते थे उस भारत की ‘स्व शासन’ व्यवस्था ने भौतिक भूख की आग को इतना अधिक प्रज्ज्वलित कर दिया है कि अब हमने येन-केन-प्रकारेण सफलता हासिल करने के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने स्थापित मूल्यों को तिलांजलि दे दी है।

1. इस अनुच्छेद का उचित शीर्षक दीजिए।
2. किस बात को नौटंकी कहा गया है और क्यों?
3. दो अक्टूबर और तीस जनवरी किसलिए विशेष है?
4. स्वराज्य और स्वतंत्रता में क्या अंतर है?
5. गाँधी जी कैसा स्वराज्य चाहते थे?
6. स्वशासन व्यवस्था ने. कौन-सी विसंगति दी है?
7. ‘संग्राम’ के लिए किस पर्यायवादी शब्द का प्रयोग हुआ है? “तिलांजलि देना’ मुहावरे का वाक्य में प्रयोग कीजिए। .
उत्तर
(1) शीर्षक : गाँधीगीरी की काल्पनिक अवधारणा अथवा उपेक्षित गाँधी
(2) गाँधीगीरी की काल्पनिक अवधारणा से महत्त्व पाने के लिए कुछ लोगों द्वारा किए गए प्रयास को नौटंकी कहा गया है।
(3) दो अक्टूबर को गाँधी जी के जन्म दिन पर गाँधी जयन्ती मनाई जाती है, तीस जनवरी को उनकी हत्या कर दिए जाने की स्मृति में निर्वाण दिवस मनाया जाता है।
(4) ‘स्वराज्य’ का अर्थ है रामराज्य के आधार पर स्वार्थ एवं अनाचार रहित आदर्श राज्य-व्यवस्था जबकि स्वतन्त्र का अर्थ है अन्य शासन व्यवस्था से मुक्ति, ‘स्व’ अर्थात् स्वयं को, “तन्त्र” अर्थात् शासन-व्यवस्था (प्रणाली) से विमुक्त होना।
(5) गाँधी जी रामराज्य के समान आदर्श स्वराज्य चाहते थे क्योंकि उन्होंने ‘स्वराज्य’ को अभियान की संज्ञा दी थी।
(6) स्वशासन-व्यवस्था ने भौतिक भूख की आग को इतना अधिक प्रज्जवलित कर दिया है कि अब हमने किसी भी प्रकार से सफलता हासिल करने __के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने स्थापित मूल्यों को तिलांजलि दे दी है।
(7) ‘संघर्ष’
(8) क्षणिक सुख की प्राप्ति के लिए हमें नैतिक-मूल्यों को तिलांजलि नहीं देना चाहिए।

2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर संबंधित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

जिसने अपनी परी जिंदगी देश सेवा में अर्पित कर दी हो. उसके आदर्शों का मूल्यांकन करना आसान है क्या? आप मिलें तो मालूम होगा कि इस वृद्धा की आत्मा समाज को कुछ देने के लिए आज भी कितनी बेचैन है। यही बेचैनी भाभी की जिंदगी है और पागलपन भी। कभी देश के लिए इसी तरह पागल होकर उन्होंने अपना सर्वस्व दाँव पर लगा दिया था।

शिव दा बताते हैं कि जब दुर्गा भाभी के पति भगवतीचरण . बोहरा 1930 में रावी तट पर बम विस्फोट में शहीद हो गए, तो भाभी ने डबडबाई आँखों को चुपचाप पोंछ डाला था। उस दिन भैया चंद्रशेखर आजाद ने धैर्य बँधाते हुए कहा था- “भाभी, तुमने देश के लिए अपना सर्वस्व दे दिया है। तुम्हारे प्रति हम अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलेंगे।” भैया आजाद का स्वर सुनकर भाभी के होंठों पर दृढ़ संकल्प की एक रेखा खींच गई थी उस दिन। वे उठ बैठीं। बोली- “पति नहीं रहे, लेकिन दल का काम चलेगा, रुकेगा नहीं। मैं करूँगी।” और भाभी दूने वेग से क्रांति की राह पर चल पड़ी। उनका पुत्र शची तब तीन वर्ष का था, पर उन्होंने उसकी परवाह नहीं की। वे बढ़ती गई, जिस राह पर जाना था उन्हें। रास्ते में दो पल बैठकर कभी सुस्ताया नहीं। दाँव देखकर कहीं ठहरी नहीं। चलती रहीं- निरंतर। जैसे चलना ही उनके लिए जीवन का ध्येय बन गया हो। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त को जेल से छुड़ाने के लिए आजाद और उनके साथी जब चले, तो भाभी ने आज़ाद से आग्रह किया-“संघर्ष में मुझे भी चलने दीजिए। यह हक सर्वप्रथम मेरा है।”

आजाद ने इसकी स्वीकृति नहीं दी। यह योजना कामयाब भी नहीं हो पाई। कहा जाता है कि भगत सिंह ने स्वयं इसके लिए मना कर दिया था। भाभी जेल में भगतसिंह से मिलीं। फिर लाहौर से दिल्ली पहुंची। गाँधी जी वहीं .. थे। यह करांची कांग्रेस से पहले की बात है। भगतसिंह की रिहाई के सवाल को लेकर

भाभी गाँधी जी के पास गईं। रात थी कोई साढ़े ग्यारह का वक्त था। बैठक चल रही थी। नेहरू जी वहीं घूम रहे थे। वे सुशीला दीदी और भाभी को लेकर अंदर गए। गाँधी जी ने देखा तो कहा “तुम आ गई हो। अपने को पुलिस को दे दो। मैं छुड़ा लूँगा।” ___गाँधी जी समझे कि वे संकट से मुक्ति पाने आई हैं। भाभी तुरंत बोली-“मैं इसलिए नहीं आई दरअसल, मैं चाहती हूँ कि जहाँ आप अन्य राजनीतिक कैदियों को छुड़ाने की बात कर रहे हैं, वहाँ भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को छुड़ाने की शर्त वाइसराय के सामने रखें।”

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) भाभी के जीवन की बैचेनी क्या है?
(ग) सर्वस्व दाँव पर लगाने का आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) भाभी गाँधी जी से किसलिए मिलीं?
(ङ) आजाद ने भाभी को किस बात की स्वीकृति नहीं दी?
(च) भाभी कभी ढीली नहीं पड़ी- इसके लिए कौन-सा वाक्य प्रयोग किया गया है?
(छ) ‘रिहाई’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ज) ‘कामयाब’ के लिए संस्कृत शब्द लिखिए।
उत्तर
(क) शीर्षक : देश सेवा |
(ख) भाभी समाज को कुछ देने के लिए बेचैन हैं।
(ग) दुर्गा भाभी के पति श्री भगवती चरण बोहरा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बम-विस्फोट में शहीद हो गए, अत्यन्त संघर्षमय जीवन का सामना भाभी ने किया किन्तु निराश नहीं हुईं, हार नहीं मानी। सर्वस्व दाँव पर लगाने का आशय यही है।
(घ) भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु जेल की सजा काट रहे थे। भाभी गाँधी जी से इसलिए मिलने गईं कि वे उन तीनों को छुड़ाने का प्रयास करें।
(ङ) भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को जेल से छुड़ाने के लिए चन्द्रशेखर आज़ाद एवं उनके साथी जब जाने लगे तो भाभी ने भी साथ चलने का आग्रह किया, किन्तु आजाद ने इसकी स्वीकृति नहीं दी।
(च) ‘वे चलती गई, जिस राह पर जाना था उन्हें।’ इस संदर्भ में अन्य वाक्य है,रास्ते में दो पल बैठकर सुस्ताया नहीं, दाँव देखकर कभी ठहरी नहीं, चलती रही- निरंतर!
(छ) रिहाई का आशय है जेल से ‘मुक्त’ होना या ‘मुक्त कराना’ (छुड़ाना)।
(ज) सफल

3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए

शिक्षा का लक्ष्य है संस्कार देना। मनुष्य के शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक विकास में योगदान देना शिक्षा का मुख्य कार्य है। शिक्षित व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहता है। स्वच्छता को जीवन में महत्व देता है और उन सब बुराइयों से दूर रहता है जिनसे स्वास्थ्य को हानि पहुँचती है। रुग्न शरीर के कारण शिक्षा में बाधा पड़ती है।

शिक्षा हमारे ज्ञान का विस्तार करती है। ज्ञान का प्रकाश जिन खिड़कियों से प्रवेश करता है उन्हीं से अज्ञान और रूढ़िवादिता का अंधकार निकल भागता है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य अपने परिवेश को पहचानने और समझने में सक्षम होता है। विश्व में ज्ञान का जो विशाल भंडार है उसे शिक्षा के माध्यम से ही हम प्राप्त कर सकते हैं। सृष्टि के रहस्यों को खोलने की कुंजी शिक्षा ही है। अशिक्षित व्यक्तियों, रूढ़ियों, अंधविश्वासों एवं कुरीतियों का शिकार हो सकता है। शिक्षा हमारी भावनाओं का संस्कार भी करती है। साहित्य और कलाओं में हमारी संवेदनशीलता तीव्र होती है। शिक्षा हमारे दृष्टिकोण को उदार बनाती है। समाज मानवीय संबंधों का ताना-बाना है। व्यक्ति और समाज का संबंध अत्यंत गहरा है। व्यक्ति के अभाव में समाज का अस्तित्व ही संभव नहीं और समाज के अभाव में सभ्य मनुष्य की कल्पना कर सकना भी असंभव है। जो संबंध रेत के कणों और रेत के ढेर में होता है वही संबंध व्यक्ति और समाज में होता है।

रेत के कण अपना अलग-अलग अस्तित्व रखते हुए भी रेत के ऐर का निर्माण करते हैं। प्यासा आदमी कुंए के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परंतु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं है कि आप सज्जनों के पास जाएं और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवन भर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उंडेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्सगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।

प्रश्न
(i) घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(ii) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का क्यों होता है?
(iii)पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(iv) उचित शीर्षक लिखिए।
(v) लेखक पुस्तकों को उपयोगी कैसे बनाते हैं?
(vi) शिक्षा का लक्ष्य क्या है?
(vii) शिक्षा में बाधा किससे पड़ती है?.
(viii) रूढ़िवादिता कैसे दूर हो सकती है?
उत्तर
(i) घर बैठे-बैठे हम सत्संगति का लाभ पुस्तकों द्वारा प्राप्त कर सकते है।
(ii) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का होता है। इसका कारण हर लेखक को जनसाधारण से एक विशेष बुद्धि प्राप्त होती है। वह अपने जीवन के संचित ज्ञान को अपने ढंग से पुस्तक द्वारा प्रकट करता है।
(iii) पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता सत्संगति का लाभ उपलब्ध कराना है।
(iv) शीर्षक :”शिक्षा का लक्ष्य”
(v) लेखक अपनी विद्वता द्वारा अपने संचित अनुभवों को पुस्तकों के माध्यम से जन-साधारण के लिए उपयोगी बनाते हैं।
(vi) शिक्षा का लक्ष्य शारीरिक, मानसिक तथा भावात्मक विकास द्वारा जनसाधारण में संस्कार का निर्माण (सृष्टि) करना होता है।
(vii) रुग्न शरीर के कारण शिक्षा में बाधा पड़ती है।
(viii) शिक्षा हमारे ज्ञान का विकास तथा विस्तार करती है जिसके द्वारा रुढ़िवादिता दूर हो सकती है।

4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

वर्तमान समाज में सर्वत्र. अव्यवस्था का साम्राज्य फैला हुआ है। विद्यार्थी, राजनेता, सरकारी कर्मचारी, श्रमिक आदि सभी स्वयं को स्वतंत्र भारत का नागरिक मानकर मनमानी कर रहे हैं। शासन में व्याप्त अस्थिरता समाज के अनुशासन को भी प्रभावित कर रही है। यदि किसी को अनुशासन में रहने के लिए कहा जाये तो वह ‘शासन का अनुसरण’ करने की बात कह कर अपनी अनुशासनहीनता पर पर्दा डालने का प्रयास करता है। वास्तव में अनुशासन शब्द का शाब्दिक अर्थ शासन अर्थात् गुरुजनों द्वारा दिखाए गए मार्ग पर नियमबद्ध रूप से चलना है। विद्यार्थी-जीवन में विद्यार्थियों की बुद्धि अपरिष्कृत होती है। अबोधावस्था के कारण उन्हें भले-बुरे की पहचान नहीं होती। ऐसी स्थिति में थोड़ी-सी असावधानी उन्हें अहंकारी बना देती है।

आजकल विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि नहीं है। वे आधुनिक शिक्षा पद्धति को बेकारों की सेना तैयार करने वाली नीति मानकर इसके प्रति उदासीन हो गए हैं तथा फैशन, सुख-सुविधापूर्ण जीवन जीने के लिए गलत रास्तों पर चलने लगे हैं। वर्तमान जीवन में व्याप्त राजनीतिक दलबंदी भी विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता को प्रोत्साहित करती हैं। राजनीतिक नेता अपने स्वार्थों के लिए विद्यार्थियों को भड़का देते हैं तथा विद्यार्थी वर्ग बुरे-भले की चिंता किए बिना तोड़-फोड़ में लग जाता है। इससे विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरा उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं।

अहं बुरी चीज कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है। किंतु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र के नहीं रह गए हैं। सदगुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं हैं। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्त्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।

प्रश्न
(i) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(ii) विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
(iii)विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(iv) उचित शीर्षक दीजिए।
(v) अधिकार और कर्त्तव्य में क्या संबंध है?
(vi) शासन में व्याप्त अस्थिरता किसे प्रभावित कर रही है?
(vii) आधुनिक शिक्षा पद्धति क्या कर रही है?
(viii) नेता किसे और किसलिए भड़काते हैं?
उत्तर
(i) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी होने का कारण (1) आवश्यकता से अधिक अहंकार का बढ़ना तथा (2) अधिकार पाने की लालसा का होना है। अपना कर्तव्य पूरा करने के प्रति उनका ध्यान नहीं रहता है।
(ii) विद्यार्थी अपने गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करते हैं।
(iii) विद्यार्थी अपने अधिकार के प्रति सर्वाधिक सजग है।
(iv) शीर्षक : “आधुनिक शिक्षा का स्वरूप” .
(v) अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से जुड़े रहते हैं; दोनों में संतुलन को ही स्वस्थ स्थिति कहा जा सकता है।
(vi) शासन में व्याप्त अस्थिरता समाज के अनुशासन को प्रभावित कर रही है।
(vii) आधुनिक शिक्षा पद्धति बेकारों की सेना तैयार कर रही है।
(viii) राजनीतिक नेता अपने स्वार्थों के लिए विद्यार्थियों को भड़का देते हैं।

5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

ताजमहल भारत का ही नहीं, संसार भर का लोकप्रिय आकर्षण केन्द्र है। कला-संस्कृति के अखंड प्रेमी शाहजहाँ ने इस भवन को अपनी प्रिय बेगम मुमताज की याद में बनवाया था। इसका निर्माण संगमरमर के श्वेत पत्थरों से किया गया।

ताजमहल के निर्माण में जो जन-धन-श्रम लगा, उसके आँकड़े चौंका देने वाले हैं। इसका निर्माण सत्रह वर्ष की अवधि में हआ था बीस हजार श्रमिक कारीगर्ग ने अपने जी-तोड़ परिश्रम से इसे बनाया। इसके अद्वितीय शिल्प तथा तकनीक के लिए विदेश के भी कई इंजीनियरों को आमंत्रित किया गया। संगमरमर के श्वेत पत्थरों तथा संगमूसा के काले पत्थरों से निर्मित इस महल पर उस समय सात करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

ताजमहल यमुना के किनारे पर स्थित है इसकी वास्तुकला संसार-भर में बेजोड़ है। इसका प्रवेश-द्वार लाल पत्थर का बना हुआ है, जिस पर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। यमुना के किनारे की एक तरफ को छोड़कर शेष तीनों दिशाओं में सुंदर, व्यवस्थित उपवन है जिन पर बैठकर दर्शक ताजमहल की सुंदरता को नयन भरकर निहारते हैं। महल के प्रवेश-द्वार से आगे चलकर मार्ग में दोनों ओर वृक्षों की कतारें हैं और जल के फव्वारे हैं, जो सहज ही अपनी झीनी-झीनी फुहारों से पर्यटकों को आनंदित कर देते हैं। वहीं निर्मल जल के सरोवर हैं, जिनमें सुंदर सुवर्णमय मछलियाँ तैरती रहती हैं उन्हीं सरोवरों के सामने सीमेंट के बड़े-बड़े बैंच हैं, जिनपर बैठकर सरोवर और महल दोनो के अनुपम सौंदर्य को निहारा जा सकता है।

ताजहमल का संपूर्ण भवन जिस धरती पर अवस्थित है, उसके नीचे संगमरमर का विशाल चबूतरा है, जिसके चारों कोनों पर श्वेत पत्थरों की ऊँची-ऊँची चार मीनारें है। इन मीनारें के ठीक मध्य ताजमहल का गुंबद है, जिसकी ऊँचाई लगभग 280 फुट है। यह गुंबद विश्व का सबसे ऊँचा और भव्य गुंबद है। इसके चारों ओर कुरान की आयतें खुदी हुई हैं। मीनारों पर भी पच्चीकारी का महीन काम हुआ है।

मुख्य गुंबद के नीचे शाहजहाँ और मुमताज की प्रतीक-समाधियाँ हैं। वास्तविक समाधियाँ नीचे के तहखाने में हैं, जहाँ घोर अंधकार छाया रहता है। दर्शक मोमबत्ती या माचिस की तीली की सहायता से उनके दर्शन कर पाते हैं। सुनते हैं कि प्रथम वर्षा जब होती है, तो पानी की कुछ बूंदें समाधि के ठीक ऊपर गिरती हैं, मानों वर्षा उनके अखंड प्रेम को श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर रही हो। चंद्रमा की श्वेत चाँदनी में ताजमहल का गौर-सौंदर्य और निरख उठता है। इस प्रकार ताजमहल जहाँ अखंड प्रेम का प्रतीक है, वहाँ मुगलीय कला का उत्कृष्ट नमूना भी है।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ख) ताजमहल किस पत्थर से निर्मित हुआ है?
(ग) शाहजहाँ के लिए किस विशेषण का प्रयोग किया गया है?
(घ) ताजमहल के निर्माण में कितना समय और धन गया?
(ङ) सुवर्णमय शब्द का अर्थ लिखें।
(च) गुंबद का आशय क्या है?
(छ) “मीनारों पर पच्चीकारी का महीन काम हुआ है।’ इस वाक्य से क्या अर्थ निकालेंगे।
(ज) “प्रतीक-समाधियाँ’ से क्या तात्पर्य है?
(झ) ‘ताजमहल अखंड प्रेम का प्रतीक है’-से आप क्या समझते हैं?
(ञ) ‘अनुपम’ में कौन-सा समास है?
उत्तर
(क) अखंड प्रेम का प्रतीक-ताजमहल।
(ख) ताजमहल सुंदर सफेद संगमरमर के पत्थरों से बनाया गया है।
(ग) कला-संस्कृति का अखंड प्रेमी।
(घ) ताजमहल के निर्माण में सत्रह वर्ष का समय और सात करोड़ रुपये लगे।
(ड) सोने के रंग का; सोने में ढला हुआ।
(च) गोलाकार छत वाली इमारत।
(छ) ताजमहल के बड़े-बड़े खंभों पर बहुत छोटे-छोटे और साफ-सुथरे फूल पत्ते उकेरे गए हैं। ..
(ज) समाधियों की स्मृति दिलाने के लिए बनाई गई अवास्तविक समाधियाँ।
(झ) ताजमहल शाहजहाँ और उनकी पत्नी मुमताज के अमर प्रेम की याद दिलाता है।
(ञ) नव-तत्पुरुष।

6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

वर्षा ऋतु का नाम आते ही मन-मयूर नाच उठता है। भयंकर गर्मी से राहत . मिलती है। ठंडी फुहारों से स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है। सभी ऋतुओं में मनमोहक वर्षा ऋतु है। गर्मी की तपन के बाद वर्षा के फुहारों का आगमन बड़ा आनंददायी होता है। पशु-पक्षी और मानव ही नहीं, पेड़-पौधों पर भी इस ऋतु का प्रभाव पड़ता हैं ऐसा लगता है मानो वीरान व बंजर जमीन पर रंग बिरंगे फूल खिले उठे हो।

वैशाख और ज्येष्ठ मास के भयंकर आगमन के बाद आषाढ़ मास में मोरों की कूक से अहसास होता है कि बरसात की ऋतु आने वाली है। तब तक गर्मी से मन व्यथित हो चुका होता है। वर्षा शुरू होते ही खेत-खलिहानों में हरियाली शुरू हो जाती है। लोग धान की बुआई में व्यस्त हो जाते हैं। मोर जी भरकर नृत्य करते हैं। कोयल की कूक बड़ी सुहानी लगती है। बच्चे उत्साह से भर जाते हैं। नंगे बदन वर्षा में भींगते हुए इधर-उधर भागना बड़ा अच्छा लगता है।

अच्छी बरसात हो तो नर-नारियाँ झूठ उठते हैं। खेतों में लबालब भरे पानी में धान की बुआई, खेतों की जुताई। किसानों का मन मुदित हो उठता है। ऐसा लगता है सारी प्रकृति एक नए अवतार में प्रकट हुई है। सब कुछ वर्षा में धुलकर नया-नया सा लगता है। अच्छी बरसात से धरती में पानी का स्तर बढ़ जाता है। सूखे कुएँ दोबारा पानी से भर जाते हैं। तालाबों और जोहड़ों में बतख और पशु नहाते नज़र आते हैं।

एक तरफ वर्षा ऋत प्रसन्नतादायी अनभति देती है। दूसरी तरफ इस ऋत में कुछ समस्याएँ भी खड़ी हो जाती हैं। महानगरों में सीवर जाम हो जाते हैं, जिसके कारण सड़कों पर नदी का-सा दृश्य दिखाई देता है। यातायात-व्यवस्था चौपट हो जाती है। नदियों में बाढ आ जाती है, जिससे गाँव के गाँव बरबाद हो जाते हैं। जान-माल की बहुत हानि होती है। रास्ते बंद हो जाते हैं अत्यंत परेशानी पैदा होती है। गरीबों में तो वर्षा कहर बनकर आती है। जीवन नारकीय हो जाता है। चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ मकानों की छतें गिर जाती है। झोंपड़ियों की हालत ऐसी हो जाती है मानों वर्षों से वीरान पड़ी हों।

वर्षा ऋतु के जाने के बाद भी हालात सहज नहीं हो पाते एक अजीब-सी बदबू चारों तरफ फैल जाती है। मच्छरों की भरमार हो जाती है। इस प्रकार वर्षा ऋतु खुशियों के साथ गमों का साया भी लेकर आती है।

प्रश्न
( क ) इस गद्यांश का उचित शीर्षक दें।
(ख) मन-मयूर क्यों नाच उठता है?
(ग) स्वर्गिक आनंद की अनुभूति का क्या अर्थ है?
(घ) वर्षा ऋतु किन-किन महीनों में आती है?
(ङ) मन मुदित हो उठना से क्या तात्पर्य है?
(च) वर्षा के बाद प्रकृति का नया रूप कैसे प्रकट होता है?
(छ) अनुभूति शब्द का अर्थ स्पष्ट करें।
(ज) यातायात-व्यवस्था कैसे चौपट हो जाती है?
(झ) गमों का साया से क्या तात्पर्य है?
(ञ) “मन-मयूर’ का विग्रह करके समास का नाम लिखिए।
(ट) ‘मोर’ का तत्सम् शब्द लिखिए।
उत्तर
(क) वर्षा ऋतु का जन-जीवन पर प्रभाव।
(ख) भयंकर गर्मों के बाद जब वर्षा की फुहारें पड़ती हैं तो तन-मन को प्रसन्न कर देती हैं। ठंडी-ठंडी हवाओं से मन नाच उठता है।।
(ग) स्वर्गिक आनंद की अति से अर्थ है-स्वर्ग का आनंद अनुभव होना। अत्यंत खुशी का अनुभव करना।
(घ) वर्षा ऋतु के मुख्य महीने – आषाढ़, श्रावण और भादो।
(ङ) मन मुदित से तात्पर्य है कि मन में अत्यंत खुशी का अनुभव होना। जब मनचाहो बात होती है तो स्वाभाविक रूप से मन प्रसन्न हो उठता है।
(च) वर्षा के बाद प्रकृति का वातावरण बड़ा सुहावना हो जाता है। वर्षा के कारण सब कुछ धुला-धुला सा लगता है। ऐसा लगता है प्रकृति ने वर्षा के माध्यम से हर वस्तु की सफाई कर दी हो। .
(छ) अनुभूति शब्द का अर्थ है- अनुभव होगा, महसूस होना।
(ज) वर्षा के कारण सीवर-व्यवस्था जाम हो जाती है। सब ओर पानी भर जाता है। यातायात व्यवस्था चौपट हो जाती है।
(झ) ‘गमों का साया- से तात्पर्य है-‘दुःख भरा समय आना’।
(ट) मन रूपी मयूर : कर्मधारय समास

7. निम्नलिखित. गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:

मनुष्य की पूरी जाति, मनुष्य का पूरा जीवन, मनुष्य की पूरी सभ्यता और संस्कृति अधूरी है क्योंकि नारो ने उस संस्कृति के निर्माण में कोई भी दान, कोई भी कंट्रीब्यूशन नहीं किया। नारी कर भी नहीं सकती थी। पुरुष ने उसे करने का कोई मौका भी नहीं किया। हजारों वर्षों तक स्त्री पुरुष से नीचे और छोटी और हीन समझी जाती रही है। कुछ तो देश ऐसे थे जैसे चीन में हजारों वर्ष तक यह माना जाता रहा कि स्त्रियों के भीतर कोई आत्मा नहीं होती। इतना ही नहीं, स्त्रियों की गिनती जड़ पदार्थों के साथ की जाती थी। आज से सौ बरस पहले चीन में अपनी पत्नी की हत्या पर किसी पुरुष को, किसी पति को कोद भी दंड नहीं दिया जाता था क्योंकि पत्नी अपनी संपदा थी। वह उसे जीवित रखे या मार डाले, इससे कानून का और राज्य का कोई संबंध नहीं।

भारत में भी स्त्री को पुरुषों की समानता में कोई अवसर और जीने का मौका नहीं मिला। पश्चिम में भी वही बात थी। चूँकि सारे शास्त्र और सारी सभ्यता और सारी शिक्षा पुरुषों ने निर्मित की है इसलिए पुरुषों ने अपने आप को बिना किसी से पूछे श्रेष्ठ मान लिया है, स्त्री को श्रेष्ठता देने का कोई कारण नहीं। स्वभावतः इसके घातक परिणाम हुए।

सबसे बड़ा घातक परिणाम तो यह हुआ कि स्त्रियों के जो भी गुण थे वे संभ्यता के विकास में सहयोगी न हो सके। सभ्यता अकेले पुरुषों ने विकसित की। अकेले पुरुष के हाथ से जो सभ्यता विकसित होगी उसका अंतिम परिणाम युद्ध के सिवाय और कुछ भी नहीं हो सकता। अकंले पुरुष के गुणों पर जो जीवन निर्मित होगा वह जीवन हिंसा के अतिरिक्त और कहीं नहीं ले जा सकता। पुरुषों की प्रवृत्ति में, पुरुष के चित्त में ही हिंसा का, क्रोध का, युद्ध का कोई अनिवार्य हिस्सा है।

नीत्से ने आज से कुछ ही वर्षों पहले यह घोषणा की कि बुद्ध और क्राइस्ट स्त्रैण रहे होंगे, क्योंकि उन्होंने करुणा और प्रेम की इतनी बातें कहीं हैं, वे बाते पुरुषों के गुण नहीं हैं। नीत्से ने क्राइस्ट को और बुद्ध को स्त्रैण, स्त्रियों जैसा कहा है। एक अर्थ में शायद उसने ठीक ही बात कही है। वह इस अर्थ में कि जीवन में जो भी कोमल गुण हैं, जीवन के जो भी माधुर्य से भरे सौंदर्य, शिव की कल्पना और भावना है वह स्त्री का अनिवार्य स्वभाव है। मनुष्य की सभ्यता माधुर्य और प्रेम और सौंदर्य से नहीं भर सकी, क्रूर और परुष हो गई, कठोर और हिंसक हो गई और अंतिम परिणामों में केवल युद्ध लाती रही।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) लेखक ने मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति को अधूरा क्यों कहा है?
(ग) नारी ने संस्कृति के निर्माण में अपना योगदान क्यों नहीं दिया?
(घ) चीन में नारी के प्रति कैसी दृष्टि थी?
(ङ) भारत में पुरुषों को नारी से श्रेष्ठ क्यों मान लिया गया?
(च) पुरुष-प्रधान समाज का क्या कुपरिणाम हुआ?
(छ) पुरुषों द्वारा विकसित समाज युद्धों की ओर क्यों ले जाता है?
(ज) क्राइस्ट और बुद्ध को स्त्रैण क्यों कहा गया?
(झ) स्त्रियों में कौन-से गुण प्रमुख होते हैं?
(ञ) इस पाठ से संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के दो-दो शब्द छाँटिए।
(ट) इस पाठ से एक सरल, संयुक्त तथा मिश्र वाक्य छाँटिए।
(ठ) विशेषण-विशेष्य के चार युग्म इस पाठ में से छाँटिए।
(ड) मनुष्य, समानता तथा चित्त के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर
(क) पुरुष द्वारा निर्मित अधूरी संस्कृति।
(ख) लेखक ने मनुष्य की सभ्यता और संस्कृति को अधूरा इसलिए कहा है क्योंकि यह केवल परुषों द्वारा निर्मित है। इसके निर्माण में स्त्रियों ने अपना योगदान नहीं दिय
(ग) नारी ने संस्कृति के निर्माण में अपना योगदान इसलिए नहीं दिया क्योंकि उसे पुरुषों ने मौका नहीं दिया। कहीं उसे हीन समझा गया तो कहीं जड़ पदार्थ समझा गया। उसे पुरुष के समान नहीं माना गया।
(घ) चीन में हजारों वर्षों तक नारी की गिनती जड़ पदार्थों में होती रही। पुरुष मानता था कि उसमें आत्मा नहीं होती। इसलिए वह पत्नी को अपनी संपत्ति मानता था। यदि वह उसे मार डालता था तो भी डित नहीं होता था।
(ड़) भारत में भी सारी संस्कृति और सभ्यता का निर्माण पुरुषों ने अपने हाथों से किया, इसलिए उसने पुरुषों को ही अधिक महत्व दिया। नारी को नीच माना गया।
(च) .पुरुष-प्रधान समाज होने का सीधा दुष्परिणाम यह हुआ कि समाज में एक-पर-एक अनेक युद्ध हुए। सारी सभ्यता क्रोध और हिंसा से भर गई।
(छ) पुरुषों के व्यक्तित्व में हिंसा, क्रोध और युद्ध का अनिवार्य तत्त्व है। इसलिए उनके द्वारा निर्मित् संस्कृति युद्धमय ही होगी।
(ज) क्राइस्ट और बुद्ध- दोनों ने अहिंसा, करुणा, सेवा और प्रेम के कोमल भावों को बहुत अधिक महत्व दिया। ये भाव नारी-स्वभाव के गुण हैं। इसलिए नीत्से ने उन्हें स्त्रैण अर्थात् स्त्रियों जैसा. ठीक ही कहा है।
(झ) स्त्रियों में प्रेम, सौंदर्य और मधुरता जैसे कोमल गुण होते हैं। (ब) संस्कृत-परिणाम, सभ्यता। उर्दू- मौका, सिवाय। अंग्रेजी- कंट्रीब्यूशन, क्राइस्ट। (ट) सरल-पुरुष ने उसे करने का कोई मौका भी नहीं दिया। संयुक्त वाक्य?
मिश्र- चूँकि सारे शास्त्र और सारी सभ्यता पुरुषों ने निर्मित की है इसलिए पुरुषों ने अपने आप को बिना किसी से पूछे श्रेष्ठ मान लिया है।
(ठ) 1. घातक परिणाम
2. जड़ पदार्थ
3. कोमल गुण
4. अनिवार्य स्वभाव
(ड) मनुष्य – मानव, मनुज।
समानता- एकता, समता।
चित्त- हृदय, दिल, मन।

8. नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए:

जुलूस शहर की मुख्य सड़कों से गुजरता हुआ चला जा रहा था। दोनों ओर छतों पर, छज्जों पर, जंगलों पर, वृक्षों पर दर्शकों की दीवारें-सी खड़ी थीं। बीरबल सिंह को आज उनके चेहरों पर एक नयी स्फूर्ति एक नया उत्साह, एक नया गर्व झलकता हुआ मालूम होता था। स्फूर्ति थी वृद्धों के चहरों पर, उत्साह युवकों के और गर्व रमणियों के। यह स्वराज के पथ पर चलने का उत्साह था। अब उनकी यात्रा का लक्ष्य अज्ञात न था, पथभ्रष्टों की भांति इधर-उधर भटकना न था, दलितों की भांति सिर झुका कर रोना न था। स्वाधीनता का सुनहरा शिखर सुदूर दलितों की भाति सिर झुका कर रोना न था। स्वाधीनता का सुनहरा शिखर सुदूर आकाश में चमक रहा था। ऐसा जान पड़ता था कि लोगों के बीच के नालों और जंगलों की परवाह नहीं है। सब उस सुनहले लक्ष्य पर पहुँचने के लिए उत्सुक हो रहे हैं।

ग्यारह बजते-बजते जलस नदी के किनारे जा पहुँचा. जनाजा उतारा गया और लोग शव को गंगा-स्नान कराने के लिए ले चले। उनके शीतल, शांत, पीले मस्तक पर लाठी की चोट साफ नजर आ रही थी। रक्त जमकर काला हो गया था। सिर के बड़े-बड़े बाल खून जम जाने से किसी चित्रकार की तूलिका की भांति चिमट गये थे। कई हजार आदमी इस शहीद के अंतिम दर्शनों के लिए खड़े थे लाठी की चोट उनहें भी नजर आयी। उनकी आत्मा ने जोर से धिक्कारा। वह शव की ओर न ताक सके। मुँह फेर लिया। जिस मनुष्य के दर्शन के लिए, जिसके चरणों की रज मस्तक पर लगाने के लिए लाखों आदमी विकल हो रहे हैं, उसका मैंने इतना अपमान किया। उनकी आत्मा इस समय स्वीकार कर रही थी कि उस निर्दय प्रहार में कर्तव्य के भाव का लेश भी न था, केवल स्वार्थ करने की लिप्सा थी। हजारों आँखें क्रोध से भरी हुई उनकी ओर देख रही थी, पर वह सामने ताकने का साहस न कर सकते थे।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) जुलूस में उत्साह क्यों था?
(ग) बीरबल सिंह चोट के निशान की ओर ताक क्यों नहीं पा रहे थे?
(घ) बीरबल सिंह को किस बात का पश्चाताप हो रहा था?
(ङ) “लिप्सा’ का अर्थ लिखिए।
(च) ‘पथभ्रष्ट’ का सविग्रह समास बनाएँ।
(छ) ‘पथभ्रष्ट’ का सविग्रह समास बनाएँ।
(ज) मदद और खून के लिए तत्सम शब्द लिखिए।
उत्तर
(क) जुलूस या बीरबल सिंह का हृदय-परिवर्तन।
(ख) स्वराज के लिए गौरवमय बलिदान के कारण जलस में उत्साह था।
(ग) बीरबल सिंह ने ही चोट मारी थी। इसी अपराध बोध के कारण वे उधर ताक नहीं पा रहे थे।
(घ) बीरबल सिंह ने ही शहीद को लाठी से मारा था, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी थी। इसी अपराध बोध का पश्चाताप उसे हो रहा था।
(ङ) लिप्सा = लोभ, लालच।
(च) कारनामा करना, अपने पद और शक्ति का प्रभाव दिखाना।
(छ) पथभ्रष्ट = पथ से भ्रष्ट-तत्पुरुष समास।
(ज) मदद = सहायता। खून = रक्त।

9. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उससे संबंधित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए:

आज के युग में कम्प्यूटर का आविष्कार एक वरदान की तरह हुआ है। कम्प्यूटर दुनिया के जटिल से जटिल और श्रमसाध्य कार्यों को चुटकी बजाते ही हल कर देता है। कम्प्यूटर भविष्यवाणी तक कर सकता है, मनोरंजन करा सकता है, आदमी के शरीर का विश्लेषण और अध्ययन कर सकता है तथा दुनिया की किसी भी जानकारी को पकड़ सकता है। कम्न्यूटर सूचनाओं को ही संचार के क्षेत्र में आयीन्न का वास्तविक कारण माना जा सकता है। यह एक ऐसा इलेक्टानिक उपकरण है, जिसमें सूचनाओं का चुम्बकीय टेप भरा जाता है। इसमें चिप पर कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं। चिप आदमी के नाखूनों के बराबर होते हैं। इस पर पैकेज तैयार होते हैं, जिसके माध्यम से कम्प्यूटर कार्य करता है।

कम्प्यूटर में टेलीविजन की तरह ही एक स्क्रीन होती है उससे जुड़ा हार्डवेयर होता है और उसी से जडा टाइपराइटर की तरह ही अंकित अक्षरों वाला एक उपकरण होता है जिसे ‘की बोर्ड’ कहते हैं। कम्प्यूटर में मेमोरी अर्थात स्मृति की व्यवस्था होती है। कम्प्यूटर की मेमोरी में सूचनाओं को सुरक्षित रखा जाता है। इसमें एक प्रिंटर भी होता है, जिसके द्वारा सूचनाएँ मुद्रित की जाती हैं।

किसी भी सूचना को की बोर्ड के माध्यम से स्क्रीन पर देखकर अंकित किया जाता है तथा हार्डवेयर द्वारा फ्लापी पर उसे सुरक्षित किया जाता है। फ्लापी पोस्टकार्ड से भी छोटी एक वस्तु है जिसपर सूचनाएँ अंकित हो जाती है, उसी तरह फ्लापी में सूचनाएँ टेप हो जाती है। उस फ्लापी में अंकित सूचनाओं को कभी भी विश्लेषित किया जा सकता है। कम्प्यूटर से जुड़े प्रिंटर के द्वारा उसे प्रिंट किया जा सकता है।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) कम्प्यूटर आज के युग में वरदान है। कैसे?
(ग) कम्प्यूटर क्या-क्या कार्य कर सकता है?
(घ) कम्प्यूटर कैसे कार्य करता है?
(ङ) कम्प्यूटर में सूचनाएँ कैसे भरी जाती है?
(च) फ्लापी क्या होती हैं?
(छ) चिप क्या है?
(ज) ‘श्रमसाध्य’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर
(क) कम्प्यू टर।
(ख) कम्प्यूटर कठिन-से-कठिन और श्रमसाध्य कार्यो को अत्यन्त सरलता से कुछ ही क्षणों में संपन्न कर देता है।
(ग) कम्प्यूटर हर तरह का कार्य कर सकता है। जैसे- भविष्यवाणी, छपाई, गणित के कठिन प्रश्न, जासूसी, वैज्ञानिक अनुसंधानों में सहायता, मनारंजन आदि।
(घ) कम्प्यूटर में चुंबकीय टेप भरा जाता है, जिसमें चिप पर कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं। इस पर पैकेज तैयार होते हैं, जिसके माध्यम से कम्प्यूटर कार्य करता है।
(ङ) कम्प्यूटर में एक स्क्रीन होता है जो एक हार्डवेयर से जुड़ा होता है और उसी से एक की बोर्ड जुड़ा होता है जिस पर अक्षर अंकित होते हैं। इसी की-बोर्ड की सहायता से इसकी स्मृति में सूचनाएँ भरी जाती हैं।
(च) फ्लापी पोस्टकार्ड से भी छोटी एक वस्तु है जिस पर सूचनाओं को कभी भी विश्लेषित किया जा सकता है।
(छ) चिप आदमी के नाखूनों के बराबर होते हैं जिन पर पैकेज तैयार होते हैं। इसी के माध्यम से कम्प्यूटर कार्य करता है।
(ज) श्रमसाध्य = कठिन परिश्रम।

10. नीचे दिये गये गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए

एक समय था जब पानी सब जगह मिल जाता था। इसीलिए इसे कोई महत्त्व नहीं दिया जाता था। लेकिन तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और जीवन शैली में आये परिवर्तन के कारण जल अब दर्लभ हो गया है। इसी दर्लभता के कारण जल का आर्थिक मूल्य बहुत बढ़ गया है। अब तक जल की प्रमुख माँग फसलों की सिंचाई के लिए होती थी। लेकिन अब उद्योगों और घरेलू उपयोग के लिए भी जल की बहुत आवश्यकता है। इसीलिए जल अब एक बहुमूल्य संसाधन बन गया है। नगरीय और ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की मांग बिल्कल अलग-अलग तरह की होती है। आइए, सबसे पहले नगरीय क्षेत्रों में जल की समस्या का अध्ययन करें।

नगरीय क्षेत्रों में सामान्यतः जल का एक ही स्रोत होता है और उसी से सभी की आवश्यकताएं पूरी होती हैं। नगरीय क्षेत्रों में जल, झीलों या कृत्रिम जलाशयों या नदियों के तल में गहरे खोदे गये कुओं या नलकूपों से लाकर इकट्ठा किया जाता है। कभी-कभी जल के लिए इन सभी स्रोतों का उपयोग किया जाता है। इस स्रोतों को लेकर पहले उसमें क्लोरीन जैसे रसायन मिलाकर उसे स्वच्छ किया जाता है। इसके बाद वह पीने के लिए सुरक्षित बन जाता है। ऐसा सुरक्षित जल नगर की सम्पूर्ण जनसंख्या को अनेक बीमारियों से बचाता है। नगरों में जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है क्योंकि जल को पीने के साथ-साथ सभी घरेलू कामों में उपयोग होता है। बहुत सारा जल तो सीवर में जल-मल बहाने में लग जाता है। जैसे-जैसे नगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे वहाँ पानी की कमी के कारण झुग्गी-झोपड़ियों के निवासियों को प्रायः बिना साफ किया हुआ गंदा पानी ही पीना पड़ता है। इसी कारण वहाँ प्रायः बिना साफ किया हुआ गंदा पानी ही पीना पड़ता है। इसी कारण वहाँ प्रायः महामारियाँ फैल जाती है। नगरों में उद्योग के लिए भी जल की भारी मात्रा में आवश्यकता होती है।

ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की आपूर्ति में कई दोष पाये जाते हैं। वहाँ पीने के सुरक्षित पानी का कोई स्रोत नहीं होता है। प्रायः जल के एक स्रोत का ही अनेक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है। उसी में बरतन साफ होते हैं, आदमी और जानवर एक साथ नहाते हैं, कपड़े धोये जाते हैं और गंदगी भी. बहायी जाती है। इसके अतिरिक्त भूमिगत जल कभी खारा होता है और कभी उसका रासायनिक संघटन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इस पानी को स्वच्छ करके मानवीय उपयोग के लायक बनाने की कोई व्यवस्था भी नहीं होती।

प्रश्न
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) पहले सब जगह सुलभ जल अब दुर्लभ क्यों हो गया है?
(ग) जल एक बहुमूल्य संसाधन क्यों बन गया है?
(घ) नगरों में पेयजल की व्यवस्था किस प्रकार की जाती है?
(ङ) नगरों की झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में बीमारी का क्या कारण है?
(च) ग्रामीण क्षेत्र में पीने के पानी का अभाव क्यों है?
(छ) दुर्लभ और स्वच्छ का विलोम शब्द बनाएँ?
(ज) नगरीय और मानवीय शब्दों से प्रत्यय अलग कीजिए?
उत्तर-
(क) पेय जल की माँग या पेय जल की आवश्यकता।
(ख) तीव्रगति से बढ़ती जनसंख्या और जीवन शैली में बदलाव के कारण।
(ग) घरेलू उपयोग के साथ-साथ उद्योगों के लिए जल एक बहुमूल्य संसाधन बन गया है।
(घ) नगरों में विभिन्न जलाशयों में एकत्रित जल को जल संयंत्रों से इकट्ठा करके उसमें अनेक पदार्थों को डालकर उसे स्वच्छ किया जाता है।
(ङ) नगरों की झुग्गी-झोपड़ी बस्तियों में बीमारी का प्रमुख कारण है-स्वच्छ जल नहीं मिल पाना।
(च) ग्रामीण क्षेत्रों में जल का प्रायः एक ही स्रोत होता है, उसी में गंदगी साफ करना, पशु नहलाना, कपड़ा धोना तथा पीना सब होता है।
(छ) दुर्लभ = सुलभ। स्वच्छ = अस्वच्छ।
(ज) नगरीय = ईय। मानवीय = ईय।

Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह स्वरूप

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : भूमि एवं लोग Chapter 3 अपवाह स्वरूप Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Geography Solutions Chapter 3 अपवाह स्वरूप

Bihar Board Class 9 Geography अपवाह स्वरूप Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

Bihar Board Class 9 Geography Solutions प्रश्न 1.
लक्ष्मीसागर झील किस राज्य में स्थित है ?
(क) मध्यप्रदेश
(ख) उतर प्रदेश
(ग) बिहार
(घ) झारखंड
उत्तर-
(ग) बिहार

Bihar Board Class 9 Geography Book Solution प्रश्न 2.
निम्न में से कौन लवणीय झील है ?
(क) वूलर
(ख) डल
(ग) सांभर
(घ) गोविन्दसागर
उत्तर-
(ग) सांभर

कक्षा 9 भूगोल अध्याय 3 Question And Answer Bihar Board प्रश्न 3.
गंगा नदी पर गांधी सेतु किस शहर के निकट अवस्थित है ?
(क) भागलपुर
(ख) कटिहार
(ग) पटना
(घ) गया
उत्तर-
(ग) पटना

Bihar Board Class 9th History Solution प्रश्न 4.
कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है ?
(क) महानदी
(ख) कृष्णा
(ग) तापी
(घ) तुंगभ्रदा
उत्तर-
(ग) तापी

Bihar Board Class 9 Social Science Solution प्रश्न 5.
कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी है ?
(क) नर्मदा
(ख) गोदावरी
(ग) कृष्णा
(घ) महानदी
उत्तर-
(ख) गोदावरी

Bihar Board Class 9th Geography Solution प्रश्न 6.
सिंधु जल समझौता कब हुआ था ?’
(क) 1950 ई० में
(ख) 1955 ई० में
(ग) 1960 ई० में
(घ) 1965 ई० में
उत्तर-
(ग) 1960 ई० में

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 7.
‘शांग-पो’ किस नदी का उपनाम है
(क) गंगा
(ख) ब्रह्ममपुत्र
(ग) सतलुज
(घ) गोदावरी
उत्तर-
(ख) ब्रह्ममपुत्र

Bihar Board Class 9 Sst Solution प्रश्न 8.
इनमें से गर्म जल का जल प्रपात कौन है ?
(क) ककोलत
(ख) गरसोप्पा
(ग) ब्रह्मकुंड
(घ) शिवसमुद्रम
उत्तर-
(ग) ब्रह्मकुंड

Bihar Board Class 9 Geography Solution प्रश्न 9.
कोसी नदी का उद्गम स्थल है ?
(क) गंगोत्री
(ख) मानसरोवर
(ग) गोसाईंथान
(घ) सतपुड़ा श्रेणी
उत्तर-
(ग) गोसाईंथान

लघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Solution Class 9 Social Science प्रश्न 1.
जल विभाजक का क्या कार्य है ? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
जब कोई ऊँचा.क्षेत्र, जैसे पर्वत या उच्चभूमि दो निकटवर्ती अपवाह श्रेणियों को एक-दूसरे से अलग करती है तब ऐसी उच्च भूमि जल विभाजक कहलाती है। जैसे-दिल्ली की उच्चभूमि सतलज बेसिन और गंगा बेसिन को अलग करने के कारण जल विमाजका का उदाहरण है।

Bihar Board Class 9 Economics Solution प्रश्न 2.
भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर-
भारत की सबसे विशाल नदी द्रोणी गंगा है। इसकी लम्बाई 2525 किमी० है।

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 3.
सिंध एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती हैं ?
उत्तर-
सिंधु नदी तिब्बत के निकट मानसरोवर झील से निकलती है जबकि गंगा हिमालय की गंगोत्री नामक हिमानी से निकलती है ।

Bihar Board Solution Class 9 History प्रश्न 4.
गंगा की दो प्रारंभिक धाराओं के नाम लिखिए ? ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं ?
उत्तर-गंगा की दो मुख्य धाराएँ अलकनंदा और भागीरथी हैं । ये देव प्रयाग नामक स्थान पर मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती हैं।

Class 9 History Bihar Board प्रश्न 5.
लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद(सिल्ट) क्यों है ?
उत्तर-
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी का मार्ग काफी लम्बा है । परन्तु इस मार्ग में इसे वर्षा अथवा अन्य साधनो से कम जल प्राप्त होता है । कम जल के कारण इसकी अपरदन शक्ति कम होती है । इसी कारण इसमें गाद (सिल्ट) की मात्रा कम होती है ।

Bihar Board Class 9th Social Science Solution प्रश्न 6.
कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ धासान घाटी से होकर बहती हैं ? समुद्र में प्रवेश करने के पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं ?
उत्तर-
नर्मदा एंव तापी दो प्रायाद्वीप में प्रवेश करने के पहले ज्वारनदमुख (estury) का निर्माण करती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 9 Civics Solution प्रश्न 1.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय भारत की नदियों की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत की नदियों के दो वर्ग हैं –

(1) हिमालय की नदियाँ तथा (2) प्रायद्वीपीय नदियाँ अलग-अलग भौगोलिक प्रदेशों में इनकी उत्पत्ति होने के कारण नदियाँ एक दूसरे से । भिन्न हैं । इनकी भिन्नता के कारन ही इनकी खास विशेषता हो गई हैं

(i) हिमालय की अधिकांश नदियाँ बारहमासी अथवा स्थायी हैं । इन्हें वर्षा के जल के अतिरिक्त पर्वत की चोटियों पर जमे हिम के पिघलने से सलो भर जलापूर्ति होती रहती है।

(ii) सिंधु एंव ब्रह्मपुत्र जैसी भारत की प्रमुख नदियाँ हिमालय से निकलती हैं । इन नदियों ने प्रवाह के क्रम में पर्वतों को काटकर गार्ज का निर्माण किया है । जसै-ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय के नामचा बरवा शिखर के पास अंग्रेजी के ‘U’ आकार का मोड़ बनाकर अरुणाचल प्रदेश में गार्ज का निर्माण करती है ।

(iii) हिमालय जनित नदियाँ उद्गम स्थल से समुद्र तक यात्रा के दौरान अनेक प्रकार के क्रिया-कलाप को अंजाम देती हैं।

(iv) ये नदियाँ अपने मार्ग के ऊपरी भाग में तीव्र अपरदन करती है और सिल्ट (गाद) बालू, मिट्टी जैसे-अपरदित पदार्थो को ढोते चलती है। नदियाँ ज्यों-ज्यों आगे बढ़ती है, अबसाद की मात्रा बढ़ती जाती है । इसे मध्य एंव निचले मार्ग में जहाँ भूमि की ढाल की हो जाती है, नदियों का संवहन करने में कठिनाई होती है ।

(v) परिणामतः नदियाँ उसे जमा करती है, जिससे गोखर झील, बाढ़ का मैदान और डेल्टा जैसे अनेक आकृतियों का निर्माण करती हैं ।

प्रायद्वीपीय नदियाँ : इनकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  • यहाँ की अधिकांश नदियाँ मौसमी हैं, जिनका स्रोत मुख्यतः वर्षा का जल है ।
  • ग्रीष्म काल में जब वर्षा नहीं होती है तो नदियाँ सिकुड़ कर पतली हो जाती हैं और छोटी धाराओं में बहने लगती है ।
  • नर्मदा तथा तापी नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं पठारी भाग से ही निकलती हैं। सागर में गिरने के पहले ज्वारनदमुख का निर्माण करती है।
  • कृष्णा, कावेरी, महानदी, गोदावरी पश्चिमी घाटी से निकलकर

पूरब में बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं और अपने मुहाने पर डेल्टा का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 2.
प्रायद्वीपीय पठार के पूर्व एवं पश्चिम की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों की तुलना कीजिए।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियाँ अनुगामी या अनुवर्ती नदी-प्रणाली कहलाती हैं। यहाँ पूर्व में बहने वाली मुख्य नदियाँ-महानदी, गोदावरी, तथा कृष्णा और कावेरी है तथा पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में नर्मदा और ताप्ती है। दोनों की तुलना इस प्रकार हैं

पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ –

  • पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं।
  • गोदावरी को दक्षिण की गंगा कहा जाता है।
  • मुहाने के निकट इन नदियों की गति बहुत मंद पड़ जाती है। ये नदियाँ अपने मुहाने पर डेल्टा बनाती हैं।
  • कुछ नदियों में शिवनाथ, हंस देव, मांद, जोंक, तेल, दूध गंगा, पंचगंगा, तुंगभद्रा, कोयना, घाटप्रभा, मालप्रभा, वैतरणी एवं सुवर्णरेखा

पश्चिम की ओर बहने वाली नदियाँ –

  • ये नदियाँ अरब सागर में गिरती हैं।
  • मुहाने के निकट इन नदियों की गति बहुत तेज हो जाती है।
  • ये नदियाँ अपने मुहाने पर ज्वारनदमुख अथ्वा एस्चुअरी का निर्माण करती हैं।
  • कुछ नदियों में गोवा का मांडवी और जुआरी, कर्नाटक की कालिन्दी, गंगावली, शर्वती तथा नेत्रवती, केरल की पेरियार, पम्बा तथा मनिमाला हैं जो अरब सागर में गिरती हैं। ये सभी तीव्रगामी नदियाँ हैं।

प्रश्न 3.
भारत की अर्थव्यवस्था में नदियों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
भारत की अर्थव्यवस्था में नदियों का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है। –

  • इन नदियों के प्रवाह से ही कृषि भूमि का आज 40% प्रतिशत भूभाग जलोढ़ मिट्टी से ढका हुआ है जो नदी घाटी, डेल्टा और तटीय मैदानी भागों में फैले हुए हैं ।
  • गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र के डेल्टा एवं मैदानी भाग में जलोढ़ की प्रचुरता हैं जो अत्यंत ही उपजाऊ है।
  • ये यातायात के साधन भी रही हैं। आज भी ब्रह्ममपुत्र, गंगा और यमुना में दूर-दूर तक स्टीमरें चलती हैं।
  • ये जल विद्युत उत्पन्न कर रही हैं और जलशक्ति का भंडार भी है।
  • ये नदियाँ मछलियाँ प्राप्त के साधन हैं । पूर्वी भारत के कितने ही लोगों के आहार में मछली की प्रमुखयता है। अतः मछली उद्योग – बहुतों की अजीबिका है।
  • नदियाँ उद्योग केन्द्र और नगरों की स्थापना और विकास में मदद पहुँचाती हैं । जैसे स्वर्णरेखा का जमशेदपुर के विकास में, हुगली का कोलकाता के विकास में, गंगा का वाराणसी और कानपुर के विकास में ।
  • नदियाँ पर्यटन के आकर्षक केन्द्र भी हैं।
  • अनेक परियोजनाओं के द्वारा इसे और भी महत्वपूर्ण बनाया जा रहा है।

प्रश्न 4.
भारत में झीलों के प्रकार का वर्णन उदाहरण सहित कीजिए।
उत्तर-
निर्माण की दृष्टि से झीलों के निम्नलिखित प्रकार हैं

  • धंसान घाटी झील-धंसान घाटी में जब जल जमाव होता है तो इस प्रकार की झील का निर्माण होता है । जैसे-अफ्रीका में विक्टोरिया, रूडोल्फा, न्यासा । भारत में तिलैया बाँध द्वारा कृत्रिम झील बनाया गया
  • गोखुर झील-नदियों में जब अवसाद की मात्रा बढ़ जाती है या – भूमि का जल कम जाता हैं । तब उसके मार्ग में विसर्पण कम जाता है। विसर्पण भाग कटकर मुख्यधारा से अलग हो जाता है, जिसका आकार गाय के ‘खुर’ के समान होता है । इसे गोखुर या परिव्यक्त झील भी कहा जाता है । जैसे- बिहार के बेतिया का ‘सरैयामान’ बेगूसराय का ‘कांवर झील’ इनके उदाहरण है।
  • लैगून झील-ऐसी झीलें समुद्र तट पर मिलती हैं । जहाँ समुद्र का जल बंदी बन कर रह जाता है । पूर्वी समुद्र तट पर चिलका तथा पुलीकट झीलें हैं।
  • अवरोधक झील-पर्वतीय प्रदेशों में भू-स्खलन के कारण चट्टाने गिरकर नदियों के प्रवाह को रोक देते हैं, जिसके कारण झील बन जाती है । इसे अवरोधक झील कहते हैं। जैसे-हिमालय क्षेत्र में गोहना झील ।
  • क्रेटर झील-पुराने ज्वालामुखी के मुँह पर बने झील को क्रेटर झील कहते हैं । जैसे- महाराष्ट्र का नोलार झील ।
  •  हिमानी झील-हिमालय क्षेत्र में हिमानी द्वारा निर्मित झीलों में नैनीताल, भीमताल, सातताल आदि हिमानी झीलें हैं।
  • भूगर्भीय क्रिया से निर्मित झील-जम्मू-कश्मीर में ‘वूलर झील’ मीठे पानी का झील है । यह मीठे पानी की भारत में सबसे बड़ी झील है।

मानचित्र कौशल

(क) भारत के मानचित्र पर निम्नलिखित नदियों को चिह्नित कीजिए
तथा उनके नाम लिखिए-
(i) गंगा, (ii) सतलुज, (iii) दामादर, (iv) कृष्णा , (v) नर्मदा, (vi) तापी, (vii) महानदी ।

(ख) भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित झीलों को चिह्नित
कीजिए –
(a) चिल्का, (b) सांभर, (c) वूलर, (d) पुलीकट, (e) कोलेरू ।
उत्तर-
Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 3 अपवाह स्वरूप - 1

Bihar Board Class 9 History Solutions Chapter 5 जर्मनी में नाजीवाद का उदय

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions History इतिहास : इतिहास की दुनिया भाग 1 Chapter 5 जर्मनी में नाजीवाद का उदय Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science History Solutions Chapter 5 जर्मनी में नाजीवाद का उदय

Bihar Board Class 9 History जर्मनी में नाजीवाद का उदय Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

History Class 9 Bihar Board प्रश्न 1.
हिटलर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(क) जर्मनी
(ख) इटली
(ग) जापान
(घ) आस्ट्रिया
उत्तर-
(घ) आस्ट्रिया

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 2.
नाजी पार्टी का प्रतीक चिह्न क्या था?
(क) लाल झंडा
(ख) स्वास्तिक
(ग) ब्लैक शर्ट
(घ) कबूतर
उत्तर-
(ख) स्वास्तिक

Bihar Board Solution Class 9 Objective Question प्रश्न 3.
‘मीनकेम्फ’ किसकी रचना है ?
(क) मुसोलनी
(ख) हिटलर
(ग) हिण्डेनवर्ग
(घ) स्ट्रेसमैन
उत्तर-
(ख) हिटलर

Bihar Board Solution Class 9 Social Science प्रश्न 4.
जर्मनी का प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र था
(क) आल्सस-लॉरेन
(ख) रूर
(ग) इवानो
(घ) बर्लिन
उत्तर-
(ख) रूर

Bihar Board Class 9th History Solution प्रश्न 5.
जर्मनी की मुद्रा का नाम क्या था ?
(क) डॉलर
(ख) पौंड
(ग) मार्क
(घ) रूबल
उत्तर-
(ग) मार्क

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. हिटलर का जन्म …………… ई० में हुआ था।
2. हिटलर जर्मनी के चांसलर का पद …………… ई० में संभाला था।
3. जर्मनी ने राष्ट्रसंघ से संबंध विच्छेद …………… ई० में किया था।
4. नाजीवाद का प्रवर्तक …………… था।
5. जर्मनी के निम्न सदन को …………… कहा जाता था।
उत्तर-
1. 20 अप्रैल, 1889,
2. 30 जनवरी, 1933,
3. 1933,
4. हिटलर,
5. राइख स्टैग ।

स्तम्भ मिलान सम्बन्धी प्रश्न :

Bihar Board Solution Class 9 Social Science Objective प्रश्न 1.
स्तम्भ ‘क’ और स्तम्भ ‘ख’ से मिलान करें-
Bihar Board Solution Class 9 History
उत्तर-
(i)-(ग), (ii)-(क), (iii)-(ख), (iv)-(घ), (v)-(ङ)

सही और गलत :

Bihar Board Solution Class 9 History प्रश्न 1.
हिटलर लोकतंत्र का समर्थक नहीं था।
उत्तर-
सही

Bihar Board 9th Class History Book प्रश्न 2.
नाजीवादी कार्यक्रम यहूदी समर्थक था।
उत्तर-
सही

Bihar Board Class 9 Social Science Solution प्रश्न 3.
नाजीवाद में निरंकुश सरकार का प्रावधान था।
उत्तर-
सही

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 4.
वर्साय संधि में हिटलर के उत्कर्ष के बीज निहित थे।
उत्तर-
सही .

Bihar Board Class 9 History प्रश्न 5.
नाजीवाद में सैनिक शक्ति एवं हिंसा को गौरवान्वित किया जाता है।
उत्तर-
सही

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

Bihar Board Class 9 History Solution प्रश्न 1.
टिप्पणी लिखें
(i) तानाशाह
(ii) वर्साय संधि
(iii) तुष्टिकरण की नीति
(iv) वाइमर गणराज्य
(v) साम्यवाद
(vi) तृतीय राइख
उत्तर-
(i) तानाशाह-शासन की ऐसी व्यवस्था जिसमें शासक निरंकुश तथा दूसरे का हस्तक्षेप नहीं रखता जिसमें जनता राज्य के लिए होता है।
(ii) वर्साय संधि-प्रथम विश्वयुद्ध के बाद विश्वशांति के लिए 28 जून, 1919 को विजित राष्ट्रों जर्मनी के साथ एक संधी फ्रांस के वर्साय शहर में की गई।
(iii) तुष्टिकरण की नीति-किसी आक्रामक शक्ति की कार्यवाही को मूक सहमति देना है । जैसे फासिस्ट राष्ट्र कई देशों पर आक्रमण करते रहे और ब्रिटेन, फ्रांस चुप रहे।
(iv) वाइमर गणराज्य-जर्मन संविधान सभा का प्रथम बैठक 5 फरवरी, 1919 ई० को बाइमर नामक स्थान पर हुई । इसलिए यह वाइमर गणराज्य कहलाया।
(v) साम्यवाद-प्राचीन काल से चली आ रही पूँजीवादी पद्धति एवं सामंत वाद को मिटाकर ऐसी शासन व्यवस्था कायम किया जाना जिसमें स्वतंत्रता, समानता और वंधुत्व की भावना का विकास हो, साम्यवाद है।
(vi) तृतीय राइख-हिटलर के चांसलर बनने पर जर्मनी में गणतंत्र की समाप्ति हुई और नात्सी क्रान्ति का आरंभ हुआ जिसे हिटलर ने ‘तृतीय राइख’ का नाम दिया।

लघु उत्तरीय प्रश्न 

Bihar Board Class 9 History Book प्रश्न 1.
वर्षाय संधि ने हिटलर के उदय की पृष्ठभूमि तैयार की। कैसे?
उत्तर-
वर्षाय की संधि ने जर्मनी और हिटलर को उद्वेलित कर दिया। हिटलर ने इसे ‘राजमार्ग की डकैती’ कहा । हिटलर का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक और प्रभावोत्पादक था । हिटलर जर्मन जाति की मनोदशा से पूरी तरह परिचित था। वह जानता था कि जर्मनीवासी वर्षाय की संधि के अपमान को भूले नहीं हैं। अतः अपने भाषणों में वह संधि का और संधि करनेवाले को ‘नवंबर क्रिमिनल्स’ कहना नहीं भूलता । वह यहाँ तक कहता था कि वर्साय के संधि पत्र को फाड़ दो । जनता उसके विचारों से उसकी ओर आकृष्ट हुई। जनता उसे अपने राष्ट्रीय अपमान का बदला लेनेवाला एवं राष्ट्रीय गौरव की स्थापना करने वाला समझने लगे। इस प्रकार वर्साय की संधि उसके उत्थान की पृष्ठ भूमि तैयार कर दी थी।

Bihar Board Class 9th Social Science Solution प्रश्न 2.
वाइमर गणतंत्र नाजीवाद के उदय में सहायक बना, कैसे?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी में एक क्रान्ति हुई । जर्मनी का सम्राट केसर विलियम देश छोड़ कर भाग गया और वहाँ राजतंत्र का पतन हो गया । राजतंत्र के पतन के बाद वहाँ गणराज्य की स्थापना हुई। जर्मनी के इतिहास में यह गणराज्य वाइमर गणराज्य के नाम से विख्यात है। हिटलर के उत्थान से पूर्व इसने अनेक समस्याओं को जन्म दिया। इसी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किए । महंगाई और बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी। 1929 ई० की महामंदी ने और जटिल बना दिया । सेना भी असंतुष्ट थी। फलस्वरूप जनता का इससे मोह भंग हो गया हिटलर को अच्छा अवसर मिल गया, उसने गणराज्य का विरोध किया, उसकी असफलताओं पर विचार किया और उसने नाजीवाद को बढ़ावा दिया । बढ़ावा ही नहीं बल्कि नाजीवाद कायम कर दिया।

Class 9 History Bihar Board प्रश्न 3.
नाजीवाद कार्यक्रम ने द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि तैयार की कैसे?
उत्तर-
नाजीवाद के निम्नलिखित कार्यक्रम थे

  • नाजीवाद उदारवाद और लोकतंत्र का कहर विरोध की अवधारणा है। अतः सत्ता प्राप्त करते ही हिटलर ने लोकतांत्रिक आवाज को दफन करने का प्रयास किया जो राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध हुआ ।
  • नाजीवाद समाजवाद का प्रबल विरोधी है। हिटलर ने ॥ समाजवाद के विरुद्ध आवाज बुलंद किया। उसने अपने पूँजीपतियों का अपनी ओर मिला लिया। हिटलर के इस कार्य से इंग्लैंड तथा फ्रांस की ओर से अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त हुआ जिसके कारण उसका मनोबल बढ़ता गया जिससे पूरा विश्व एक भयंकर युद्ध के नजदीक अपने को खड़ा पाया।
  • उग्रराष्ट्रवाद-हिटलर प्रचंड उग्रवादी एवं निरंकुश था । उसने राजनीतिक विरोधियों का दमन किया । उसने दूसरे का राजनैतिक जीवन समाप्त कर दिया। अब जर्मनी में एक पार्टी थी-नाजी पार्टी एवं एक नेता था-हिटलर । इस प्रकार नाजीवाद कार्यक्रम ने द्वितीय विश्वयुद्ध के तटपर ला खड़ा किया।

प्रश्न 4.
क्या साम्यवाद के भय ने जर्मन पूँजीपतियों को हिटलर का समर्थक बनाया?
उत्तर-
1917 ई० की रूसी क्रान्ति का प्रभाव जर्मनी पर पड़ा यहाँ भी अनेक युवक साम्यवादी संगठन का निर्माण किए। साम्यवादियों ने वाइमर गणतंत्र को उखाड़ने एवं सर्वहारा वर्ग का अधिनायकवाद लाने का प्रयास किया । यह प्रयास जर्मनी में राष्ट्रीयता के लिए एक निश्चित खतरा था। देश के उदारवादी लोग साम्यवाद की बढती हई शक्ति देश के लिए संकट समझते थे। हिटलर ने जनता को साम्यवाद के विनाशकारी परिणामों से अवगत कराया। जर्मनी का उद्योगपति, पूँजीपति एवं जमींदार वर्ग काफी भयभीत हो गए। क्योंकि साम्यवादी व्यवस्था में-देश की सारी सम्पत्ति राष्ट्रीय संपत्ति हो जाती । उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व समाप्त कर दिया जाता और उत्पादन व्यवस्था में निजी मुनाफे की भावना को निकाल दिया जाता । उद्योग पर मजदूरों का नियंत्रण हो जाता। इसी भय से भयभीत होकर जर्मन पूँजीपतियों ने हिटलर का साथ दिया।

प्रश्न 5.
रोम-बर्लिन टोकियो धुरी क्या है ?
उत्तर-
अबीसीनियई युद्ध में जर्मनी ने इटली की सहायता की थी। अतः रोम (इटली की राजधानी) और बर्लिन (जर्मनी की राजधानी) ने आपस में एक संधि कर ली यह रोम-बर्लिन धुरी के नाम से जाना जाता है। 1936 ई० में जर्मनी और जापान ने साम्यवाद के विरुद्ध एक आपसी समझौता किया । फलतः यह त्रिदलीय संधि रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी के नाम से विख्यात हुआ। ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिटलर के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
एडोल्फ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल, 1889 ई० को आस्ट्रिया के ब्रौना नामक शहर में एक साधारण परिवार में हुआ था। उसका लालन-पालन सही तरह से नहीं हो सका। बचपन में वह चित्रकार बनना चाहता था परन्तु उसकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। अंततः उसने सेना में नौकरी कर ली । प्रथम विश्वयुद्ध में वह जर्मनी की तरफ से लड़ा और युद्ध में अभूतपूर्व वीरता के लिए उसे ‘आयरन क्रास’ प्राप्त हुआ था

हिटलर 1921 ई० में नाजी पार्टी की स्थापना की, और जर्मनी की सत्ता हथियाने का प्रयास करने लगा । पर असफल हो गया और जेल भेज दिया गया। जहाँ उसने मेन केम्फ (Mein Kemf) अर्थात ‘मेरा संघर्ष’ नामक पुस्तक की रचना की। जेल से बाहर आने के बाद, जर्मनी के राष्ट्रपति ने उसे 30 जनवरी, 1933 ई० को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया। 1934 ई० में जर्मन राष्ट्रपति हिंडेनवर्ग की मृत्यु हो गई। अब वह पूर्णतः तानाशाह बन गया । वे देश का फ्यूहरर (नेता) बन गया। उसने ‘एक राष्ट्र, एक देश और एक नेता’ (one people. one impire and one leader) का नारा दिया। 1945 ई० तक वह जर्मनी का भाग्य विध पता बन गया। हिटलर का आकर्षक और प्रभावोत्पादक व्यक्तित्व था। वह भाषण देने में अत्यंत निपुण था । अपने भाषणों से वह श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर अपनी ओर आकर्षित कर लेता था उसके सतारूढ़ होने में जनमत का उसके पक्ष में होना अत्यन्त सहायक सिद्ध हुआ । हिटलर जर्मन जाति की मनोभावना से भली भाँति परिचित था । वह जानता था कि जर्मन निवासी वर्साय की संधि के अपमान को नहीं भूले हैं । इसलिए वह अपने भाषणों से संधि और इसे करनेवाले’ ‘नवम्बर क्रिमिनल्स’ कहना नहीं भूलता था। जनता उसके विचारों से उसकी ओर आकृष्ट हुई। जर्मनी में उसकी धाक जम गई।

प्रश्न 2.
हिटलर की विदेश नीति जर्मनी की खोई प्रतिष्ठा प्राप्त करने का एक साधन था । कैसे?
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पराजित जर्मनी पर मित्र राष्ट्रों द्वारा वर्साय संधि की अपमानजनक शर्ते लाद दी गई थी, जिसे हिटलर नहीं भूल पाया था। निजी दर्शन के अनुसार वह शक्ति के बल पर जर्मन साम्राज्य की सीमा और गौरव को बढ़ाना चाहता था इसी से उसकी खोई प्रतिष्ठा प्राप्त होने की संभावना थी। ऐसा हिटलर समझता था । हिटलर की विदेश नीति के मूलतत्व में अपमानजनक वर्साय संधि को समाप्त करना, जर्मनी को एक सूत्र में बाँधना तथा जर्मन साम्राज्य का विस्तार करना था। यूरोप में साम्यवाद को रोकना चाहता था। इन सब नीतियों को लागू कर हिटलर अपनी प्रतिष्ठा प्राप्त करना चाहता था और .. वह अपनी नीतियों को कार्यान्वयन में सक्रिय हो गया।

  • राष्ट्रसंघ से पृथक होना-वर्साय की कठोरता और अपमानजनक संधि से जर्मन आहत थे । राष्ट्रसंघ का सदस्य बने रहने से जर्मनी को कोई लाभ नहीं था। अतः उसने 1933 ई० में जेनेवा निःशस्त्रीकरण की शर्ते सभी राष्ट्रों पर समान रूप से लागू करने की मांग की परन्तु जब उसे सफलता नहीं मिली तो उसने 1933 ई० में राष्ट्रसंघ की सदस्यता छोड़ने की घोषणा कर दी।
  • वर्साय की संधि को भंग करना-हिटलर ने वर्साय की संधि को मानने से इन्कार कर दिया, उसे नहीं मानते हुए संधि की धज्जियाँ उड़ा दी और 1935 ई० से वर्साय की संधि को मानने से इन्कार कर दिया ।
  • पोलैंड के साथ दस वर्षीय समझौता-1934 ई० में हिटलर ने पोलैंड के साथ 10 वर्षीय समझौता किया कि वे एक दूसरे की वर्तमान सीमाओं का किसी भी प्रकार अतिक्रमण नहीं करेंगे।
  • ब्रिटेन से समझौता-जून, 1935 में जर्मनी तथा ब्रिटेन में समझौता हो गया जिसके अनुसार ब्रिटेन ने स्वीकार कर लिया कि वह (जर्मनी) अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा सकता है, वशर्ते वह अपनी नौ सेना 35 प्रतिशत से अधिक न बढ़ाए । हिटलर की यह कूटनीतिक विजय थी।
  • रोम-बर्लिन धुरी-जर्मनी मित्र की तलाश में इटली की ओर हाथ बढ़ाया फलतः रोम-वर्लिन धुरी का निर्माण हुआ।
  • कामिन्टन विरोधी समझौता-साम्यवादी खतरा से बचने के लिए जर्मनी, इटली एवं जापान के बीच कामिन्टन विरोधी समझौता 1936 ई० में संपन्न हुआ जो बाद में ‘धुरी राष्ट्र’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।
  • आस्ट्रिया एवं चेकोस्लोवाकिया का विलयन-जर्मन भाषा-भाषी को एक सूत्र में बाँधने का हिटलर को विदेश नीति का लक्ष्य था । उसने आस्ट्रिया को अपने राज्य में मिला कर वह गौरवान्वित हुआ। उसका मनोबल काफी बढ़ गया । इस तरह वह अपनी साख बनाने में सफल हुआ।

प्रश्न 3.
नाजीवादी दर्शन निरंकुशता का समर्थक एवं लोकतंत्र का विरोध था। विवेचना कीजिए।
उत्तर-
नाजी दर्शन सर्वाधिकारवाद या निरंकुशता का समर्थक था। वह सारी शक्ति एक व्यक्ति अथवा राज्य में केन्द्रित करना चाहता था । इसलिए यह जनतंत्रात्मक व्यवस्था एवं लोकतंत्र का विरोधी था । नाजी दर्शन में संसदीय संस्थाओं के लिए कोई स्थान नहीं था। नाजी सारी शक्ति एक महान और शक्तिशाली नेता के हाँथों में सौंप देने की बात करते थे।

(i) लोकतंत्र का विरोध-जर्मनी में सत्ता सँभालने के बाद ही हिटलर ने सारी शक्तियाँ अपने हाथों में केन्द्रित कर ली तथा एक तानाशाह बन बैठा । उसने प्रेस तथा वाक् अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया एवं विरोधी दलों का पूर्णतः सफाया कर दिया। उसने शिक्षण संस्थाओं तथा जनसंचार पर भी प्रतिबंध लागू किया। इस प्रकार जर्मनी में लोकतांत्रिक आवाज को दफन करने का प्रयास हुआ जो बाद में राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध हुआ।

(ii) निरंकुशता का समर्थक-नाजीवाद राजा की निरंकुश शक्ति पर बल प्रदान करता है । जर्मनी में हिटलर निरंकुश शक्ति का सहारा लिया । सत्ता में आते ही उसने गुप्तचर पुलिस ‘गेस्टापो’ का संगठन किया जिसका आतंक पूरे जर्मनी पर छा गया । उसने विशेष कारागृह की स्थापना की जिसके माध्यम से राजनीतिक विरोधियों का दमन किया । राइस्टांग की इमारत में हिटलर ने खुद आग लगवाई परन्तु उसका दोषारोपण समाजवादियों पर लगा दिया । इस तरह राजनैतिक जीवन समाप्त कर दिया गया । अब जर्मनी में एक पार्टी थी, एक नेता था-हिटलर ।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 बिहार का लोकगायन

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Varnika Bhag 1 Chapter 1 बिहार का लोकगायन Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions Varnika Chapter 1 बिहार का लोकगायन

Bihar Board Class 9 Hindi बिहार का लोकगायन Text Book Questions and Answers

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solution प्रश्न 1.
लोकगीत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ग्रामीण एवं प्रदेश के स्तर पर जन्म, जनेऊ, तिलकोत्सव, विवाहोत्सव, व्रत-उत्सव, कँटोनी पिसौनी, रोपनी आदि के समय जो गीत गाये जाते हैं, लोकगीत कहलाते हैं।

ये गीत आकृत्रिम उल्लासपूर्ण, भक्ति, प्रेम परिहास, उलाहना के साथ स्वागत एवं विदाई के भाव से युक्त होते हैं। खिलौना, सोहर, झूमर, ज्योनार, अँतसार, साझा, पराती, रोपनी गीत, होली, चैता आदि दर्जनों प्रकार के गीत बिहार की मिट्टी की अपनी गूंज है, अंतस की अभिव्यक्ति है। जनेऊ तथा विवाह के हल्दी मण्डपाच्छादन, स्नान, तिलक, स्वांगत, भोजन गुरहथी, सिंदूरदान, कोहबर, कन्या विदाई आदि विभिन्न प्रसंगों के गीत हमारी ग्रामीण कृषि संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। इन्हें नारी समाज ने सदियों से अपनी चेतना और स्मृति में सँजो रखा है। इनमें हमारी हजारों वर्ष के प्राचीन संस्कृति का इतिहास गुँथा हुआ दिखाई पड़ता है। मिथिला और नचारी जैसे गीतों की मोहक परंपरा भी बिहार के लोक-गीत की मूल्यवान निधि है। भोजपुरी, मगही, मैथिली, अंगिका आदि भाषाओं में गाये जाने वाली लोकगीत समान भाव से गाये जाते हैं।

Bihar Board Solution Class 9 Hindi प्रश्न 2.
लोकगीत के प्रमुख भेदों का परिचय दें। उत्तर-लोकगीत के पाँच प्रमुख भेद हैं
(i) संस्कार गीत (i) पर्व गीत (iii) श्रम गीत (iv) प्रेम मनोरंजन के गीत, गाथा गीत और (v) ऋतु गीत ।
उत्तर-
(i) संस्कार गीत-जन्म, जनेऊ, तिलक विवाह आदि के शुभ-अवसर पर विभिन्न प्रसंगों पर गाये जाने वाले गीत संस्कार गीत कहे जाते हैं।
(ii) पर्व गीत-भक्तिमूलक गीतों का गायन पर्व गीतों में किये जाते हैं। ग्राम देवी, शंकर पार्वती या गंगा की भक्ति के गीतों के अलावे छठ के गीत इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय हैं।
(iii) श्रम गीत-श्रम गीतों में जाँते में गेहूँ पीसती नारियाँ और धान का विचड़ा रोपती मजदरिनों द्वारा जो गीत गाये जाते हैं अर्थात् अँतसार और रोपनी गीतों का विशेष स्थान है। हल जोतते हलवाहे, गाय भैंस चराते चरवाहे जो अन्य प्रेमगीत, गाथा गीत हैं वह भी एक हद तक श्रमगीत के अन्तर्गत कहा जा सकता है किन्तु ग्वालों के निजी उत्सव पर विरहा गायन की परंपरा श्रमगीत है।
(iv) प्रेम मनोरंजन के गीत-इस प्रकार के गीतों का प्रचलन श्रमशील पुरुषों (चरवाहे, हलवाहे, गाड़ीवान आदि) में रहा है जो मन की मौज के अनुसार बिरहा, लारिकायन आदि भी मक्त भाव स गाते हैं। लोरिका. भरथरी और नैका गाथा गीतों के गायक रहे हैं।
(v) ऋतु गीत-होली और चैता का गायन ऋतु गीत के अन्तर्गत आते हैं किन्तु ये उत्सव गीत भी कहे जाते हैं।

Bihar Board 9th Class Hindi Book Solution प्रश्न 3.
संस्कार गीत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जन्म, जनेऊ, तिलक, विवाह आदि के विभिन्न प्रसंगों पर गाये जाने वाले संस्कार गीत कहलाते हैं। गृहों में जनेऊ संस्कार जिस अधिकारी कुमार का किया जाता है उन्हें गीतों में बडुआ कर सम्बोधित किया जाता है। तिलकोत्सव लड़के वाले के यहाँ सम्पन्न होता है इसलिये यह उन्हीं के यहाँ गाये जाते हैं. जिसमें लडके को अधिक गुणवान और दहेज को कम बता कर उलाहना भरा गीत गाया जाता है। हल्दी कलश स्थापन से चौथारी तक अलग-अलग प्रसंगों के गीत वर और कन्या दोनों के यहाँ नियमित रूप से गाये जाते हैं। संध्यावाती के समय घर की बुजुर्ग महिलायें धीमी स्वर में गाती हुई पितरों का आह्वान और वन्दन करती हैं।

द्वार पूजा के लिये दरवाजे पर आयी बारात के स्वागत में गीत गाती नारियों का. समूह घर के वयस्क सदस्यों का नाम ले-लेकर अगवानी करने का आग्रह करते हैं। इससे आगे परिछावन, चुमावन आदि के गीत भी होते हैं। भोजन करने आये समधी एव बारातियों के पैर धोने की परम्परा गोर-धुलाई और भोजन करते समय भी अलग-अलग गीतों से वातावरण आह्लादित होते रहता है।

विवाह गीतों में सिंदूर-दान एवं बेटी की विदाई के करुण भाव मांगलिक पक्ष के परिचायक हैं। करुण गीत का प्रयोग सिंदरदान में प्रवेश करता है और विदाई के समय चरम स्थिति में परिणत हो जाता है।
इस प्रकार संस्कार गीत लोकगीत का एक प्रमुख गीत है।

बिहार बोर्ड ९थ क्लास बुक Hindi प्रश्न 5.
आपको अपने क्षेत्र में विवाह के किन-किन प्रसंगों के गीत गाये जाते
उत्तर-
हमारे क्षेत्र में विवाह के विभिन्न प्रसंगों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के गीत गाये जाते हैं। जैसे बारात के द्वार लगने पर द्वार पूजा, समधी मिलन, पाँव परिक्षालन, चुमावन, सिंदूरदान, कोहवर, विदाई आदि के प्रसंगों पर भिन्न-भिन्न भाव और अर्थ के गीत गाये जाते हैं।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions प्रश्न 6.
किस पर्व के गीत आपको सबसे अधिक अच्छे लगते हैं और क्यों?
उत्तर-
हमें छठ पर्व का गीत सबसे अच्छा लगता है। क्योंकि छठ बिहार का अपना प्रादेशिक पर्व है और इसके गीतों की अपनी सर्वथा अलग धुन तथा लय होती है। छठ पर्व के गीत बिहार की कृषि संस्कृति वाले परिवार को समर्पित सूर्यभक्ति की निष्कलुष व्यंजना करते हैं। “कांच ही बाँस के बहंगिया बहँगी लचकत जाय”।
से अलग “उगी न सरुजदेव लीही न अरिघिया” में एक भिन्न छन्द बनता है।
छठ के गीत पर्वगीत के अन्तर्गत आते हैं। पर्वो के भक्तिमूलक लोकगायन में पूर्णतः पारिवारिक-सामाजिक संदर्भ होता है, जिसमें देव या देवी की कृपालुता, रुष्टता, लीला, स्वरूप, सौंदर्य आदि का वर्णन-चित्रण हुआ करता है।

Bihar Board Class 9th Hindi Solutions प्रश्न 7.
शास्त्रीय गीत तथा लोकगीत का सामान्य अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
शास्त्रीय संगीत शास्त्र सम्मत होते हैं और लोकगीत अकृत्रिम होते हैं। लोकगीत स्वच्छंद चेतना पर आधारित है। लोकगीत गाँवों में ग्रामीण और शास्त्रीय गीत नगरीय है। शास्त्रीय संगीत में गीतकार के भिन्न घराने होते हैं किन्त लोकगीत में विभिन्न अंचलों की संवेदना स्पष्ट होती है और दोनों परम्परागत हैं। शास्त्रीय संगीत परम्परा पर निर्भर नहीं है और लोकगीत निर्भर है।
(iii) लोकगीतकार अधिक लोकप्रिय हैं। शास्त्रीय के नियम और गायकी के रूप एवं उसकी सीमा आदि पर संगीतकार को आश्रित रहना पड़ता है। लोकगीत इसके विरुद्ध परम्परा पर
है, उसमें कोई नियम सीमा नहीं होती है। लोकगीत अनपढ़ द्वारा भी गाया और रचा जाता है।

9th Class Hindi Book Bihar Board प्रश्न 8.
विवाह गीतों में किन्हीं पाँच का परिचय दें।
उत्तर-
विवाहोत्सव में बारात जब द्वार पर आती है तो द्वार पूजा के समय महिलाओं का समूह गीत से स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् समधी एवं नजदीकी संबंधी के साथ बारात का पाँव परिछालन प्रसंग पर गीत गाये जाते हैं उन्हें गोरधोआई गीत . कहा जाता है। तत्पश्चात् चुमावन के गीत होते हैं। द्वारपूजा के बाद भोजन करने बैठ . चुके बारातियों के साथ परिहास भाव की अभिव्यक्ति के रूप में उनकी पत्नी, बहन, बुआ आदि को लगाकर जो गालियाँ गायी जाती हैं उसमें किशोरियों से लेकर वयस्क महिलाओं तक की उम्र एवं पद की सारी मर्यादायें ध्वस्त हो जाती हैं। किन्तु बराती इतनी गालियाँ सुनकर मुसकुराते हुए भोजन करते रहते हैं। सिंदूरदान और विदाई के समय कारुणिक एवं मांगलिक गीत गाये जाते हैं करुणा तो बेटी की विदाई के समय चरम रूप ले लेती है और विदाई की गीत तो सभी को रुलाकर ही छोड़ती है।

Hindi Class 9 Bihar Board प्रश्न 9.
किन्तु शास्त्रीय संगीत में संगीतकार जो राग रागिनी के जानकार हैं
उत्तर-
उसका पालन करते हैं कुल मिलाकर लोकगीत एक निर्मल झरना है गंभीरता, गहराई आदि पर ध्यान देते हुए शास्त्रीय नियम का पालन करना शास्त्रीय गीतकार के लिये अनिवार्य है।

Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 7 टॉलस्टाय के घर में

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 7 टॉलस्टाय के घर में Text Book Questions and Answers, Summary, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Hindi Solutions गद्य Chapter 7 टॉलस्टाय के घर में

Bihar Board Class 9 Hindi टॉलस्टाय के घर में Text Book Questions and Answers

 

टॉलस्टॉय के घर में Bihar Board प्रश्न 1.
टॉल्सटाय ने अपनी अमर कृतियों की रचना कहाँ की थी?
उत्तर-
यासनाया पोलयाना में टॉल्सटाय ने अपनी अमर कृतियों की रचना की थी।

Bihar Board Solution Class 9 Hindi प्रश्न 2.
यासनाया पोलयाना के लिए जाते हुए लेखक के मन में कैसा भय समा रहा था और क्यों?
उत्तर-
यासनाया पोलयाना जाते समय लेखक के मन में यह भय लग रहा था कि जहाँ विश्व साहित्य की अमर कृतियाँ लिखी गई थीं, जहाँ आना का चरित्र कागज पर उतरा था, जहाँ ‘युद्ध और शांति’ के कितने ही सजीव चित्र रचे गए थे। प्रसत्रता के साथ-साथ एक प्रकार का भय भी उत्पन्न हो रहा था कि कैसे मैं वह सब अपनी आँखों से देख सकूँगा, कैसे उस वातावरण के साथ अपने आपको समन्वय कर पाऊँगा।

Bihar Board Class 9 Hindi Book Solution प्रश्न 3.
यूरा कौन था? लेखक की यात्रा के दरम्यान उसकी भूमिका पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
लेखक की यात्रा में यूरा एक अनुवादक था। टॉल्सटाय की जीवनी के संबंध में यूरो रूसी भाषा में कहते जा रहे थे।

Bihar Board 9th Class Hindi Book Solution प्रश्न 4.
टॉल्सटाय के परिवार में चित्रकारी का शौक किन्हें था?
उत्तर-
टॉल्सटाय के अभिन्न मित्र को चित्रकारी का शौक था।

Godhuli Bhag 1 Bihar Board प्रश्न 5.
रामकुमार के अनुसार टॉल्सटाय के मकान का सबसे महत्वपूर्ण भाग कौन था? उसका एक संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
रामकुमार के अनुसार टॉल्सटाय के मकान का सबसे महत्त्वपूर्ण वह कमरा था जहाँ वें पढ़ते-लिखते थे। एक कोने में छोटी सी मेज और बिना सिरहाने की एक तिपाई थी। मेज पर एक कलम और दवात रखी थी। इस तिपाई पर बैठकर उन्होंने अपने जीवन का कितना बड़ा भाग बिताया होगा, यहीं बैठकर उन्होंने ‘आना करीबिना’ और ‘युद्ध और शांति’ की रचना की होगी।

गोधूलि भाग 1 Class 9 Solution प्रश्न 6.
टॉल्सटाय रूसी के अलावा और कौन-कौन विषय पढ़ लेते थे?
उत्तर-
टॉल्सटाय रूसी के अलावा जर्मन, फ्रांसीसी और अंग्रेजी भी पढ़ लेते थे।

Godhuli Class 9 Bihar Board प्रश्न 7.
टाल्सटाय ने अंतिम बार जब घर छोड़ा तो उनके साथ कौन गया था?
उत्तर-
टॉल्सटाय ने जब अंतिम बार घर छोड़ा था तो उनके साथ केवल डाक्टर ही गया था।

गोधूलि भाग 1 Class 9 Bihar Board प्रश्न 8.
टॉल्सटाय ने अपने निजी कमरे का चित्रण किस उपन्यास के किस पात्र के कमरे के रूप में किया है? कमरे की कुछ विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
टॉल्सटाय के मकान में एक और कमरा था जो उन्हें बेहद पसंद था क्योंकि यह घर के शोरगुल से दूर था और यहाँ उन्हें सदा एकांत मिलता था। इस कमरे का बहुत-सा वर्णन उन्होंने ‘आना करीनिना’ में लेनिन के कमरे की चर्चा करते समय किया था क्योंकि लेबिन के चरित्र में उन्होंने बहुत कुछ अपनी बातें कही थीं।

कमरे की सादगी, बाहर खुलती हुई एक खिड़की एक चारपाई बहुत कुछ वही था। एक कोने में पानी भरने का एक बर्तन रखा हुआ था जिसमें टॉल्सटाय अपने अंतिम दिनों में स्वयं ही पानी भरकर लाते थे।

गोधूलि भाग 2 Class 9 Solution Bihar Board प्रश्न 9.
टॉल्सटाय ने अपनी समाधि के विषय में क्या कहा था?
उत्तर-
अपनी मृत्यु से पूर्व टॉल्सटाय ने अपनी समाधि के विषय में विस्तार से आदेश दिया था कि जैसी निर्धन से निर्धन व्यक्ति की समाधि होती है वैसी ही उनकी भी बने, उनकी मृत्यु पर किसी भी व्यक्ति का भाषण न हो।

Bihar Board Class 9 Hindi Book प्रश्न 10.
टॉल्सटाय के गाँव का एक संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत करें।
उत्तर-
लगभग सौ डेढ़ सौ घरों के एक छोटे से गाँव के सिरे पर टॉल्सटाय का घर है जिसके चारों ओर दूर-दूर तक फैले हुए बाग-बगीचे हैं। पास ही एक तालाब है जिसके किनारे टॉल्सटाय घंटों जाकर बैठे रहते थे। आजकल इस मकान को सरकार ने म्यूजियम बना दिया है, जिसमें टॉल्सटाय का सब सामान तरतीबवार सजा हुआ है।

टालस्टाय के कपड़े कहां लगे हुए थे Bihar Board प्रश्न 11.
लेखक ने अपनी इस यात्रा को तीर्थयात्रा क्यों कहा है?
उत्तर-
अपनी सुखद यात्रा का अनुभव कर जब लेखक लौट रहा था तो लेखक अतीत की दुनियाँ से बाहर आकर वर्तमान की ओर बहुत तेजी से बढ़ा जा रहा था। सुबह आते वक्त खिड़की के बाहर जिन गाँवों, शहरों और मकानों को देखने में लेखक की जो दिलचस्पी थी वह अब समाप्त हो गई थी। लेखन ने अपनी आँखें बन्दकर ली परन्तु यासनाया पोलयाना की दुनिया से अपने-आपको अलग नहीं कर सका। २. इसलिए लेखक ने अपनी इस यात्रा को तीर्थयात्रा कहा है।

नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।

1. यह उनका सोने का कमरा था। खिड़की के पास उनकी चारपाई बिछी हुई थी। दूसरी मंजिल से दूर तक फैले हुए खेत गाँव के मकानों की छतें और छोटी-छोटी हरी पहाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं। उनकी पत्नी के सोने का कमरा अलग था, क्योंकि अंतिम वर्षों में आपस में खटपट रहने के कारण उनके सोने के कमरे अलग-अलग थे। सुबह उठकर कुछ घंटे वह अपनी चारपाई पर बैठकर ही लिखा करते थे। एक अन्य कमरे में एक और मेज भी थी जिस पर टॉल्सटाय की पत्नी पहले उनकी पांडुलिपियों की नकल किया करती थीं और शायद ‘युद्ध और शांति’ जैसी बड़ी पुस्तक की उन्होंने तीन बार नकल की थी, परंतु बाद में उन्होंने यह सब छोड़ दिया था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) सोने के कमरे की खिड़की से कौन-सा दृश्य दिखाई पड़ता था?
(ग) टॉल्सटाय कब और किस रूप में लिखा करते थे?
(घ) टॉल्सटाय की पत्नी वहाँ क्या लिखा करती थी?
(ङ) अंतिम वर्षों में टॉल्सटाय का अपनी पत्नी के साथ कैसा संबंध था? सोदाहरण लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-टॉल्सटाय के घर में, लेखक का नाम-रामकुमार।
(ख) टॉल्सटाय के सोने के कमरे में खुली खिड़की थी। लेखक उसमें पहुँचा। उसे खुली खिड़की से दूर तक फैले खेत, गाँव के मकानों की छतें और आसपास फैली हुई छोटी-छोटी तथा हरी पहाड़ियों की श्रृंखला दिखलाई पड़ रही थी।
(ग) टॉल्सटाय जीवन के अंतिम वर्षों में सोने के कमरे में ही सुबह उठकर कुछ घंटे चारपाई पर बैठकर लिख लिया करते थे। उसी कमरे के बगल में एक अन्य कमरे में एक मेज थी उस पर भी पहले वे लिखा करते थे।
(घ) बगल के कमरे में जो एक मेज थी उस पर टॉल्सटाय की पत्नी पहले के कुछ वर्षों तक अपने पति की पांडुलिपियों की नकल किया करती थी और एक समय था कि उन दिनों उनकी पत्नी ने उनके द्वारा लिखित चर्चित उपन्यास पुस्तक “युद्ध और शान्ति” की तीन बार स्वयं लिखकर नकल की थी।
(ङ) अंतिम वर्षों में टॉल्सटाय का पत्नी से अच्छा सम्बन्ध नहीं था। दोनों में खटपट का रूप ऐसा कुछ विकृत हो चुका था कि टॉल्सटाय और उनकी पत्नी के सोने के कमरे अलग-अलग थे।

2. नीचे की मंजिल में कुछ अतिथियों के लिए कमरे थे। एक उनके डॉक्टर का था जो उनके साथ ही रहता था और अंतिम बार जब सदा के लिए टॉल्सटाय ने अपना घर छोड़ा तो केवल डॉक्टर ही उनके साथ गया था। एक और उनका निजी कमरा था। उनके सेक्रेटरी ने बतलाया कि यह कमरा उन्हें बेहद पसंद था क्योंकि यह घर के शोरगुल से दूर था यहाँ उन्हें सदा एकांत मिलता था। इस कमरे का बहुत-सा वर्णन उन्होंने ‘आना करीनिना’ में लेविन के कमरे की चर्चा करता था। इस कमरे का बहुत-सा वर्णन उन्होंने ‘आना करीनिना’ में लेविन के कमरे की चर्चा करते समय किया था, क्योंकि लेविन के चरित्र में उन्होंने बहुत कुछ अपनी बातें कहीं थीं। कमरे की सादगी, बाहर खुलती हुई एक खिड़की, एक चारपाई बहुत कुछ वही था। एक कोने में पानी भरने का एक बर्तन रखा हुआ था जिसमें टॉल्सटाय अपने अंतिम दिनों में बाहर जाकर कुएं से स्वयं ही पानी भरकर लाते थे।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) टॉल्सटाय को अपने घर का कौन-सा कमरा विशेष प्रिय था : और क्यों?
(ग) टॉल्सटाय ने अपने प्रिय कमरे की चर्चा कहाँ, क्यों और किस रूप में की है?
(घ) एक उदाहरण देकर बताएं कि टॉल्सटाय अपना कार्य स्वयं करते थे।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-टॉलस्टाय के घर में, लेखक-रामकुमार

(ख) टॉल्सटाय के मकान के नीचे की मंजिल में उसका एक निजी कमरा था। यह कमरा टॉल्सटाय को बहुत पसंद था क्योंकि यह घर-मकान के शोरगुल से कुछ दूर हटकर स्थित था और टॉल्सटाय को यहाँ एकांत का सुख मिलता था

(ग) टॉल्सटाय ने अपने प्रिय कमरे की चर्चा अपने चर्चित उपन्यास ‘आना करीनिना’ पुस्तक में उपन्यास के पात्र लेविन के कमरे की चर्चा के क्रम में की है। कमरे की सादगी और बाहर के खुलापन के कारण वह कमरा स्वाभाविक रूप से टॉल्सटाय के लिए बड़ा प्रिय था।

(घ) टॉल्सटाय अपना काम स्वयं करते थे इसकी जानकारी हमें इस उदाहरण से मिलती है, टॉल्सटाय के निजी कमरे के कोने में पानी भरने का एक बर्तन रखा रहता था। टॉल्सटाय कमरे से बाहर जाकर कुएँ से स्वयं ही पानी भरकर लाया करते थे। यह घटना उनके जीवन के अंतिम दिनों की है।

(ङ) लेखक ने इस गद्यांश में टॉल्सटाय के स्वभाव, उनकी पसंद और उनकी दिनचर्या का वर्णन किया है। टॉल्सटाय का निजी कमरा उनके मकान से कुछ दूर दूसरे हिस्से में स्थित था। वहाँ मकान का शोरगुल नहीं पहुंच पाता था। वहाँ उन्हें एकांत का सुख मिलता था। कमरा बड़ा साफ-सुथरा था। जीवन के अंतिम दिनों में टॉल्सटाय स्वयं घर से बाहर जाकर कुएँ से पानी भरकर लाते थे।

3. म्यूजियम को देखकर ऐसा जान पड़ा कि जिस व्यक्ति को जीवन में कभी नहीं देखा, जिसकी मृत्यु हुए भी लगभग पचास साल बीत गए हैं, उनके जीवन की एक झाँकी, एक धुंधली-सी छाया आज दिखाई दी जिसकी स्मृति शायद कभी धुंधली नहीं पड़ सकेगी। सूने मकान के कमरों में आज भी मुझे आना और लेविन की हल्की-हल्की पदचाप सुनाई दी, वे सब व्यक्ति शायद इस स्थान को कभी नहीं छोड़ सकेंगे। इस मकान में केवल टॉल्सटाय के जीवन का इतिहास ही नहीं पता चलता, बल्कि कितनी ही आत्माओं के स्वर सुनाई देते हैं जिन्हें टॉल्सटाय ने जन्म दिया था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) लेखक को किसकी स्मृति कभी धुंधली नहीं पड़ेगी और क्यों?
(ग) लेखक ने गद्यांश में वर्णित कमरे की क्या विशेषताएँ बतलाई हैं? उन्हें स्पष्ट करें।
(घ) म्यूजियम को देखकर लेखक को कैसा जान पड़ा?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय/सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-टॉल्सटाय के घर में, लेखक-रामकुमार।
(ख) म्यूजियम बने टॉल्सटाय के घर को देखकर लेखक को उनके जीवन की एक झाँकी की धुंधली सी छाया दिखलाई पड़ी, लेकिन लेखक को यह यकीन है कि टॉल्सटाय की स्मृति कभी धुंधली नहीं पड़ सकेगी, क्योंकि वह स्मृति उनके गहरे दिल में घर कर गई थी।
(ग) लेखक द्वारा वर्णित कमरा टॉल्सटाय के मकान का कमरा है जिसे सरकार ने म्यूजियम का रूप दिया है। उस सूने मकान के कमरे में लेखक को आज भी उनके उपन्यासों के पात्र ‘आना’ और ‘लेविन’ की हल्की-हल्की पदचाप सुनाई पड़ती है। क्योंकि टॉल्सटाय ने उसी कमरे में बैठकर अपने उपन्यासों को लिखा था।
(घ) म्यूजियम को देखकर लेखक को ऐसा जान पड़ा कि टॉल्सटाय के जीवन की एक झाँकी एक धुंधली-सी छाया के रूप में वहाँ आज भी विद्यमान है। लेखक ने टॉल्सटाय को कभी देखा नहीं था। उनकी मृत्यु हुए भी पचास साल से ज्यादा बीत चुके थे लेकिन म्यूजियम को देखकर उसे उनके जीवन की एक झाँकी के दर्शन का अनुभव हुआ।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने महान विचारक साहित्यकार टॉल्सटाय की पावन-स्मृति की अपने दिल पर पड़ी छाप का वर्णन किया है। म्यूजियम बने टॉल्सटाय के कमरे में लेखक गया हुआ था। उस कमरे में पहुँचकर उसे ऐसा लगा कि टॉल्सटाय की पवित्र स्मृति वहाँ बैठकर टॉल्सटाय द्वारा लिखे गए उपन्यास के पात्रों की सजीवता के रूप में विद्यमान है। उस मकान के कमरे में कितनी ही आत्माओं के स्वर जिन्हें टॉल्सटाय ने जन्म दिया था, सुनाई पड़ी।

4. जब मकान से बाहर निकले तो हम तीनों ही चुप थे मानो दो घंटों तक कोई स्वप्न देख रहे थे। बाहर तेज धूप निकली हुई थी और कुछ क्षणों के लिए मेरी आँखें उस रोशनी में चौधिया सी गईं। लोगों के झुंड इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ देर बाद हम टॉल्सटाय की समाधि की ओर बढ़ गए जो उस घर से दो फलांग की दूरी पर थी। पतली-सी सड़क के दोनों ओर विशालकाय हरे-भरे पड़ों की कतारें आकाश को ढंके हुए थीं। छोटे-छोटे बाग, कहीं फूलों की क्यारियों और कहीं ऊबड़-खाबड़ झाड़ियाँ थीं। सेक्रेट्री धीमें स्वर में धीरे-धीरे टॉल्सटाय के विषय में कुछ कह रहे थे, परंतु मेरे कानों तक उनका स्वर पहुँच नहीं पा रहा था। चारों ओर उदासी थी और सन्नाटा छाया हुआ था।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) मकान से बाहर निकलने के बाद लेखक क्यों चुप की स्थिति में थे?
(ग) समाधि-स्थल के आसपास का प्राकृतिक परिवेश कैसा था?
(घ) सेक्रेट्री धीमे स्वर में क्या बात कर रहे थे? (ङ) इस गद्यांश का सारांश लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-‘टॉल्सटाय के घर में’, लेखक-रामकुमार।

(ख) टॉल्सटाय के मकान से सब कुछ देखने-सुनने के बाद जब लेखक अपने कुछ आदमियों के साथ बाहर निकले तब सब-के-सब खामोश थे। लेखक दो घंटे तक उस मकान में रहा। वह जब तक वहाँ रहा तब तक एक स्वप्नदर्शी के रूप में रहा। उसे ऐसा लगा मानो वह दो घंटे तक सपनों के सिवा कुछ नहीं देख रहा था। वह अतिशय भावुकता के साथ विचारशीलता की मन:स्थिति में था जिसमें मौन रहना उसके लिए स्वाभाविक स्थिति थी।

(ग) लेखक के अनुसार समाधि-स्थल टॉल्सटाय के घर से कुछ दूर स्थित थी। वहाँ तक जाने वाली सड़क पतली-सी थी। उस सड़क के दोनों ओर हरे-भरे, बड़े-बड़े ऊंचे पेड़ आकाश को ढंके हुए थे। आसपास में कई छोटे-छोटे बाग लगे थे जिनमें फूलों की क्यारियों के साथ उबड़-खाबड़ झाड़ियाँ थीं।

(घ) सेक्रेट्री धीमे स्वर में जो कुछ बात कर रहे थे उसे लेखक ने स्पष्ट रूप से कुछ सुना नहीं। हाँ उसने जो कुछ हल्के-फुल्के रूप से सुना उससे उसे लगा कि सेक्रेट्री टॉल्सटाय के विषय में कुछ कह रहे थे या बता रहे थे जबकि वहाँ उदासी भरा शांत वातावरण व्याप्त था।

(ङ) इस गद्यांश में लेखक ने टॉल्सटाय के समाधि-स्थल, वहाँ के प्राकृतिक परिवेश तथा वहाँ व्याप्त माहौल का चित्रण किया है। टॉल्सटाय का समाधि-स्थल टॉल्सटाय के मकान से दो फाग की दूरी पर था। वहाँ तक हरे-भरे बड़े-बड़े वृक्षों से आच्छादित एक पतली सी. सड़क जाती थी। उस स्थल के आस-पास कुछ फूलों और झाड़ियों से भरे बाग लगे थे। वहाँ का माहौल उदासी और सन्नाटे में डूबा था।

5. हमारी कार फिर तेजी से मास्को की ओर रवाना हो गई। रेडियो से फिर संगीत की ध्वनि हमारे कानों तक पहुँचने लगी। शाम की धुंधली रोशनी में पेड़ों की परछाइयाँ लंबी होने लगीं। अतीत की दुनिया से बाहर आकर वर्तमान की ओर हम बहुत तेजी से बढ़े जा रहे थे। सुबह आते वक्त खिड़की से बाहर जिन गाँवों, शहरों और मकानों को देखने में जो मेरी दिलचस्पी थी वह अब समाप्त हो गई थी। मैंने आँखें बंद कर ली, परंतु यासनाया पोलयाना की दुनिया से अपने-आपको अलग नहीं कर सका।
(क) पाठ और लेखक के नाम लिखें।
(ख) लेखक की कार की मास्को की ओर रवानगी के समय का क्या परिवेश था?
(ग) “अतीत की दुनिया से बाहर आकर वर्तमान की ओर हम बहुत तेजी से बढ़े जा रहे थे।”-लेखक के इस कथन को स्पष्ट करें।
(घ) लेखक की सुबह वाली दिलचस्पी लौटते समय क्यों समाप्त हो चली थी?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का आशय लिखें।
उत्तर-
(क) पाठ-टॉल्सटाय के घर में, लेखक-रामकुमार।

(ख) लेखक म्यूजियम से बाहर निकलकर अपनी कार से मास्को की ओर रवाना हो गया। उस समय का माहौल और वातावरण सहज शांत था। कार में लगे रेडियो से संगीत की मंद ध्वनि निकल रही थी। शाम का समय था। संध्या की रोशनी धुंधली पड़ रही थी। सूर्य के अस्ताचलगामी हो रहने की स्थिति में पेड़ों की परछाइयाँ लंबी हो रही थीं।

(ग) लेखक दो घंटे से टॉल्सटाय के मकान में भ्रमण कर रहा था। वहाँ टॉल्सटाय तो नहीं थे, क्योंकि वे अतीत की दुनिया में पचास वर्ष पहले खो गए थे, लेकिन लेखक का मन अतीत बने टॉल्सटाय की स्मृति से जुड़ा था। वहाँ से बाहर निकलने पर उसे वर्तमान के एहसास का आभास हुआ। इसीलिए उसे लगा कि वह अतीत की दुनिया से निकलकर बाहर आ रहा है।

(घ) लेखक सुबह में टॉल्सटाय के मकान को देखने के लिए चला था। इसलिए, उसके मन में एक प्रकार की उत्सुकता थी और एक प्रकार का उतावलापन था। लेकिन, उस मकान में भ्रमण करने के बाद जब वह वहाँ से निकला तो उसका सारा जोश, उत्साह और लगन सब कुछ शिथिल पड़ गया था, क्योंकि अब उसमें वह दिलचस्पी ही शांत हो गई थी।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने टॉल्सटाय के मकान देखने के बाद की अपनी मानसिक अवस्था का वर्णन किया है। लेखक टॉल्सटाय के मकान से निकलकर कार से मास्को की ओर रवाना हो गया। उसे लगा कि जब तक वह टॉल्सटाय के मकान में भ्रमण कर रहा था तब तक वह खुद को अतीत में डूबा पा रहा था। वहाँ से लौटने पर उसे वर्तमान का एहसास हुआ। सुबह जिस समय वह मकान देखने चला था उस समय उसके मन में काफी उत्साह था। वह अब ठंडा हो चुका था। वह कार में आँखें बंद कर टॉल्सटाय के घर के बारे में सोचने में खोया हुआ था।

Bihar Board 9th English Objective Answers Chapter 2 Yayati

Bihar Board 9th English Objective Questions and Answers

BSEB Bihar Board 9th English Objective Answers Chapter 2 Yayati

 

Yayati Was A Brave Bihar Board Question 1.
Yayati was filled with
(a) Cruelness
(b) kindness
(c) sadness
(d) happiness
Answer:
(c) sadness

Yayati Question Answer Bihar Board Question 2.
Yayati went to Kubera’s
(a) form
(b) house
(c) park
(d) garden
Answer:
(d) garden

Yayati Class 9 Questions And Answers Question 3.
At kubera’s garden, Yayati spent many years with an
(a) apsara
(b) old lady
(c) old man
(d) saint
Answer:
(a) apsara

Yayati Class 9 Bihar Board Question 4.
Yayati realised that man’s desires can never be completely.
(a) unhappy
(b) satisfied
(c) completed
(d) unsatisfied
Answer:
(b) satisfied

Yayati Realised That Man’s Desire Question 5.
How many sons did Yayati have ?
(a) five
(b)three
(c) four
(d) one
Answer:
(a) five

Yayati Meaning Bihar Board Question 6.
Who showed great respect to his ancestor
(a) Puru
(b) Yayati
(c) The Pandavas
(d) Sukracharya
Answer:
(b) Yayati

Yayati Was A Brave Answer Bihar Board Question 7.
Yayati was a brave
(a) king
(b) fighter
(c) man
(d) minister
Answer:
(a) king

Yayati Was Brave Bihar Board Question 8.
Yayati was famous for his devotion to the welfare of his
(a) son
(b) subjects
(c) daughter
(d) father
Answer:
(b) subjects

Yayati Was A Brave King Bihar Board Question 9.
Yayati’s youngest son was
(a)Kunce
(b)Charu
(c) Puru
(d) Mayur
Answer:
(c) Puru

Puru The Brave Question And Answers Bihar Board Question 10.
Emperor Yayati had never been
(a) won
(b) lost
(c) conquest
(d) defeated
Answer:
(d) defeated

Puru The Brave Story In English Bihar Board Question 11.
Yayati was one of the ancestors of the
(a) Pandavas
(b) Kauravas
(c) Dashrath
(d) Ravana
Answer:
(a) Pandavas

Question 12.
Yayati has become old at an early age by the curse of
(a) Vishwamitra
(b) Sukracharya
(c) Brihshpati
(d) Kripacharya
Answer:
(b) Sukracharya

Question 13.
Yayati was full of sorrow at the refusal of the
(a) eldest son
(b) three sons
(c) third son
(d) four sons
Answer:
(d) four sons

Question 14.
In the end Yayati retired to
(a) his kingdom
(b) the forest
(c) Kubera’s garden
(d) heaven
Answer:
(b) the forest

Question 15.
Where did Yayati return after spending many years in Kubera’s garden?
(a) To Puru
(b) To his kingdom
(c) To his five sons
(d) To the forest
Answer:
(a) To Puru

Question 16.
Yayati became prematurely old by the curse of
(a) Sukracharya
(b) DronaCharya
(c) Vishwamitra
(d) Kripacharya
Answer:
(a) Sukracharya

Question 17.
Yayati had never known
(a) win
(b) defeat
(c) conquest
(d)lose
Answer:
(b) defeat

Question 18.
Yayati greatly respected his
(a) ancient
(b) old
(c) ancenstors
(d) forefather
Answer:
(c) ancenstors

Question 19.
The story of Yayati is taken from the
(a) Quran
(b) Bible
(c) Puran
(d) Mahabharata
Answer:
(d) Mahabharata

Question 20.
Sensual desire is never satisfied by ‘
(a) indulgence
(b) negligence
(c) gratitude
(d) magnitude
Answer:
(a) indulgence

Question 21.
Yayati was not devoid of sensual
(a) overcomes
(b) desires
(c) feeling
(d) attitude
Answer:
(b) desires

Question 22.
At last, Yayati returned and realised that sensual desire can not be
(a) quenched
(b) unsatisfied
(c) ignored
(d) remained
Answer:
(a) quenched

Question 23.
‘Yayati’ the story has been rendered in English by
(a) Kunal verma
(b) C. Rajgopalachari
(c) Moti Nisane
(d) Nehru
Answer:
(b) C. Rajgopalachari

Question 24.
C. Rajgopalachari became the first Indian Governor General of ………….. India on 15th Aug, 1947.
(a) dependent
(b) free
(c) independent
(d) undivided
Answer:
((c) independent

Question 25.
Yayati was one of the ancestores of the
(a) Kauravas
(b) Suryavanshi
(c) Drupadas
(d) Pandavas
Answer:
(d) Pandavas

Question 26.
Yayati became prematurely old by the Curse of Sukracharya for having wronged his wife
(a) Kalyani
(b) Devayani
(c) Dayamati
(d) Damyanti
Answer:
(b) Devayani

Question 27.
Yayati was struck with sorrow at the refusal of the
(a) three sons
(b) one son
(c) two sons
(d) four sons
Answer:
(d) four sons

Question 28.
Yayati became old due to
(a) hard work
(b) sickness
(c) curse
(d) illness
Answer:
(c) curse

Question 29.
Wife of Yayati was
(a) Dayamati
(b) Damyanti
(c) Devmani
(d) Devayani
Answer:
(d) Devayani

Question 30.
Yayati bad
(a) four sons
(b)two sons
(c) five sons
(d) three sons
Answer:
(c) five sons

Question 31.
Youngest son of Yayati was
(a) Kam
(b) Charu
(c) Piyush
(d) Puru
Answer:
(d) Puru

Question 32.
Who accepted the proposal of his father, Yayati
(a) Nal
(b) Charu
(c) Puru
(d) Devayani
Answer:
(c) Puru

Question 33.
Grand father of puru was
(a) Vishwamitra
(b) Kripacharya
(c) Dronacharya
(d) Sukracharya
Answer:
(b) Kripacharya

Question 34.
Father-in-law of Yayati was
(a) Sukracharya
(b) Kripacharya
(c) Ramdev
(d) Ramanjucharya
Answer:
(a) Sukracharya

Question 35.
Who was Devayani of Sukracharya
(a) wife
(b) sister
(c) daughter
(d) mother
Answer:
(c) daughter

Question 36.
Yayati became prematurely old by the curse of
(a) Santanu
(b) God
(c) Angel
(d) Sukracharya
Answer:
(d) Sukracharya

Question 37.
Yayati told his sons that one of ought to bear the burden of his
(a) kingdom
(b) old age
(c) youth
(d) life
Answer:
(b) old age

Question 38.
The fourth son begged to be
(a) kept
(b) keep silent
(c) for given
(d) excused
Answer:
(c) for given

Question 39.
It is needless to describe the misery
(a) vigorous youth
(b) youth only
(c) old
(d) nothing
Answer:
(a) vigorous youth

Question 40.
Yayati found himself suddenly
(a) a vigorous youth
(b) an old man
(c) a boy
(d) great king
Answer:
(b) an old man

Question 41.
Yayati was still haunted by the desire for
(a) young lady
(b) the girl.
(c) wealth
(d) sensual enjoyment
Answer:
(d) sensual enjoyment

Question 42.
Which son agreed to give Yayati his youth and take his old age?
(a) The smallest son
(b) The youngest son
(c) Both (a) & (b)
(d) All sons
Answer:
(b) The youngest son

Question 43.
Yayati has been written by
(a) K. Verma
(b) Moti Nisani
(c) O. Henry
(d) C. Rajgopalachari
Answer:
(d) C. Rajgopalachari

Question 44.
Yayati was full of sorrow at the refusal of the
(a) eldest son
(b) three sons
(c) four sons
(d) second sons
Answer:
(c) four sons

Question 45.
The emperor desired to enjoy life in full
(a) youth
(b) young age
(c) vigour
(d) vigour of youth
Answer:
(d) vigour of youth

Question 46.
Puru, the youngest sons, moved by
(a) father’s love
(b) self love
(c) his love
(d) filial love
Answer:
(a) father’s love

Question 47.
Sensual desire is never quenched by
(a) love
(b) women
(c) himself
(d) indulgence
Answer:
(d) indulgence

Question 48.
One can reach peace only by a
(a) good work
(b) mental pose
(c) hating others
(d) service
Answer:
(a) good work

Question 49.
Puru told that he relieved his father of the sorrows of old age and the cares of
(a) kingdom
(b) state affairs
(c) state be happy
(d) life
Answer:
(a) kingdom

Question 50.
Yayati went to Kubera’s garden to get more
(a) sensual satisfaction
(b) financial satisfaction
(c) physical satisfaction
(d) mental peace
Answer:
(a) sensual satisfaction

Question 51.
Choose the correct one
(a) vigor
(b) vigur
(c) vigour
(d) vigour
Answer:
(c) vigour

Question 52.
Choose the correct one
(a) pitiful
(b) pityful
(c) piteful
(d) pitifool
Answer:
(a) pitiful

Question 53.
WhIch of them is correct.
(a) relieva
(b) ralieve
(c) relievee
(d) relieve
Answer:
(d) relieve

Question 54.
Which of them ¡s correct.
(a) bestouw
(b) bestowe
(c) bestow
(d) bestou
Answer:
(c) bestow

Question 55.
Which is the correct spelling
(a) indulgence
(b) induijence
(e) indulgense
(d) indulginee
Answer:
(a) indulgence

Question 56.
Defeat means
(a) loss
(b)win
(c) wrong
(d) easy
Answer:
(a) loss

Question 57.
Meaning of desire Is
(a) interest
(b) want
(e) heaven
(d) exchange
Answer:
(b) want

Question 58.
Choose the correct adjective of ‘Joy’
(a) Joyful
(b) Joyee
(e) Joyious
(d) Joyous
Answer:
(d) Joyous

Question 59.
Choose the correct adjective of ‘merit’
(a) meritorious
(b) mentious.
(e) meritorius
(d) mentious
Answer:
(a) meritorious

Question 60.
Choose the correct noun of ‘Attain’.
(a) Attainess
(b) Attaintness
(c) Attainment
(d) Attaintee
Answer:
(c) Attainment

Bihar Board Class 9 Economics Solutions Chapter 6 कृषक मजदूर

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Economics अर्थशास्त्र : हमारी अर्थव्यवस्था भाग 1 Chapter 6 कृषक मजदूर Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Economics Solutions Chapter 6 कृषक मजदूर

Bihar Board Class 9 Economics कृषक मजदूर Text Book Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

बिहार में कृषि की समस्या Class 9 Economics प्रश्न 1.
सन् 2001 ई० को बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या थी-
(क) 48%
(ख) 42%
(ग) 52%
(घ) 26.5%
उत्तर-
(क) 48%

बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा एवं समस्याओं का उल्लेख करें। Class 9 Economics प्रश्न 2.
सन् 1991 ई0 में बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या थी-
(क) 26.1%
(ख) 37.1%
(ग) 26.5%
(घ) 37.8%
उत्तर-
(ख) 37.1%

बिहार में कृषि की समस्याओं की विवेचना कीजिए Class 9 Economics प्रश्न 3.
बिहार के कृषक मजदूर हैं-
(क) अशिक्षित
(ख) शिक्षित
(ग) ज्ञानी
(घ) कुशल
उत्तर-
(क) अशिक्षित

कृषक समाज की परिभाषा Class 9 Economics Bihar Board प्रश्न 4.
सामान्यतः कृषक मजदूर को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है
(क) तीन
(ख) दो
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर-
(क) तीन

कृषि श्रमिक की परिभाषा Class 9 Economics Bihar Board प्रश्न 5.
ऐसे मजदूर जिनके पास खेती करने के लिए अपनी कोई भूमि नहीं होती है उन्हें कहते हैं-
(क) छोटा किसान
(ख) बड़ा किसान
(ग) भूमिहीन मजदूर
(घ) जमींदार
उत्तर-
(ग) भूमिहीन मजदूर

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. जो मजदूर कृषि का कार्य करते हैं उन्हें हम ……….. मजदूर कहते हैं।
2. क्वेसने ने कहा था कि-दरिद्र कृषि, दरिद्र राजा, दरिद्र …………… ।
3. बिहार में अधिकांश कृषक मजदूर …………… एवं पिछड़ी जातियों के हैं।
4. बिहार में अब कृषि कार्यों में ………………… का प्रयोग होने लगा हैं।
5. बिहार के कृषक मजदूर रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर . …………….कर रहे हैं।
उत्तर-
1. कृषक,
2. देश,
3. अनुसूचित जाति,
4. मशीन,
5. पलायन ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषक मजदूर से हमारा क्या मतलब है ?
उत्तर-
ऐसे मजदूर कृषक मजदूर हैं जो बिलकुल ही भूमिहीन हैं जिनकी बाध्यता है कि वे मजदूरी करके ही पेट पालन करें।

प्रश्न 2.
कृषक मजदूरों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-
कृषक मजदूरों को तीन भागों में बाँटा गया है-

  • खेत में काम करने वाले मजदूर
  • कृषि से संबंद्ध अन्य कार्य करने वाले मजदूर
  • वैसे मजदूर जो कृषि के अलावा अन्य सहायक उद्योगों में भी लगे हुए हैं।

प्रश्न 3.
भूमिहीन मजदूर किसे कहेंगे?
उत्तर-
वैसे मजदूर जिनके पास अपनी भूमि नहीं है।

प्रश्न 4.
बंधुआ मजदूर की परिभाषा दें।
उत्तर-
वैसे कृषक मजदूर जो किसी ऋण के चलते मालिक के यहाँ आजन्म या ऋण चुकता होने तक भोजन के बदले काम करते हैं, उन्हें बंधुआ मजदूर कहते हैं।

प्रश्न 5.
पलायन का अर्थ बतावें।
उत्तर-
रोजगार की तलाश में एक जगह से दूसरे जगह जाना ही । पलायन कहलाता है।

प्रश्न 6.
भू-दान आंदोलन पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
बड़े-बड़े भूमिपतियों से अतिरिक्त भूमि मांगकर ‘भूमिहीन मजदूरों को देने के लिए आचार्य विनोवा भावे ने एक आंदोलन चलाया था, जिसे भू-दान आंदोलन कहते हैं ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बिहार में कृषक मजदूरों की वर्तमान दशा एवं समस्याओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
बिहार की कुल आवादी की 48% संख्या कृषक मजदूरों की है। ग्रामीण ऋण ग्रस्तता के कारण उनकी दशा काफी दयनीय है। इन मजदूरों की अनेक समस्याएँ हैं

  • कम मजदूरी-उन्हें कम मजदूरी देकर अधिक से अधिक काम लिया जाता है।
  • मौसमी रोजगार-कृषि के समय में इन्हें कार्य मिलता है बाकी के महीने बैठे रहते हैं।
  • ऋणग्रस्ता-ये सदा ऋण ग्रस्त रहते हैं। जिसके कारण इन्हीं बेगारी भी करनी होती है।
  • आवास की समस्या-आवास हीनता से ग्रसित ये कहीं पर झोपड़ी बनाकर रहते हैं, स्वस्थ वातावरण के अभाव में इनके बच्चे अस्वस्थ हो जाते हैं।
  • सहायक धंधों का अभाव-कृषि के अलावा गाँवों में और कोई कार्य नहीं । बेकार बैठे समय इनका बीतता है । कोई संकट के समय इन पर संकट ही संकट आ पड़ता है।
  • संगठन का अभाव-कृषि-मजदूरों में संगठन का बिलकुल अभाव है। अपनी समस्याओं को किसी से कह नही.सकते ।
  • निम्न सामाजिक स्तर-बिहार में कृषक मजदूर अनुसूचित जाति या पिछड़ी जाति के हैं जिनका सदियों से शोषण होता आया है इससे उनका सामाजिक स्तर निम्न कोटी का बना हुआ है। ये सारी समस्याएँ श्रमिकों की हैं।

प्रश्न 2.
बिहार में कृषक मजदूरों की संख्या क्यों तेजी से बढ़ती जा रही है ?
इनकी दशा में सुधार लाने के लिए उपाय बतावें।
उत्तर-
बिहार में कृषि-श्रमिकों की संख्या बहुत अधिक है तथा निरंतर वृद्धि हो रही है। 2001 ई० की जनगणना के अनुसार बिहार में कृषि-मजदूरों की संख्या 90.20 लाख से भी अधिक थी। इसके अनेक कारण हैं

(i) तेजी से जनसंख्या में वृद्धि-1991-2001 ई० में बिहार की जनसंख्या 28.43% बढ़ी जबकि सम्पूर्ण भारत के लिए यह वृद्धि 21.34% थी। अतः अन्य उद्योगों के अभाव में कृषि को ही जनसंख्या का यह अतिरिक्त बोझ वहन करना पड़ता है । इससे कृषि-श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

(ii) औद्योगीकरण का अभाव-बिहार में इसकी गति विलकुल अवरुद्ध है । झारखंड के बन जाने से बिहार में उद्योग का अभाव हो गया । जो कुछ है जैसे चीनी मिल, कागज उद्योग, सिमेंट उद्योग आदि बंद हो. गए। कई उद्योग साधनों के अभाव में बंद हो गए । कुटीर एवं लघु उद्योगों की भी यही हालत है। अतः सब भार कृषि पर ही पड़ रहा है कृषि-श्रमिकों की तेजी से वृद्धि हो रही है ।

(iii) भूमि का असमान वितरण-बिहार में जमींदारी उन्मूलन के बाद भी भूमि-सुधार का कोई भी कार्यक्रम नहीं हुआ । भू-दान से प्राप्त भूमि भी कानूनी विवादों में उलझकर रह गयी। छोटे-छोटे किसान ऋणग्रस्तता के कारण-कृषि-श्रमिक बनने पर मजबूर हो गए। इनकी दशा में सुधार लाने के लिए उपाय बतावें ।

(शब्द सीमा इतनी कम है कि दोनों प्रश्नों का उत्तर उतने शब्दों में देने के लिए केवल कारणों को ही लिख देना होगा उसका विस्तार नहीं करना होगा । अतः इसे दूसरा प्रश्न भी बनाया जा सकता है। मैंने वैसा हीं कर इसका विस्तार किया है।)
उत्तर-
कृषि-श्रमिकों की दशा में सुधार के उपाय निम्न प्रकार हैं
(i) कृषि पर आश्रित उद्योगों का विकास-कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास से कृषक मजदूर खाली समय में इन उद्योगों में काम कर सकें और अपनी आय में सुधार ला सकें । इन उद्योगों में चीनी मिलों की स्थापना या बंद मिलों को फिर से चालू करना, जूट उद्योग आदि प्रमुख हैं।

(ii) न्यूनतम मजदूरी नियमों को लागू करना–भारत सरकार का न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू है। पर उसका ठीक ढंग से पालन नहीं हो रहा है। अतः मजदूर आर्थिक शोषण के शिकार हमेशा होते हैं।

(ii) कृषि मजदूरों के लिए भूमि की व्यवस्था-भूमि व्यवस्था को सुधार कर उनके बीच भूमि का वितरण हो सके।

(iv) अन्य कारण-कृषि-श्रमिकों की एक प्रमुख कठिनाई यह है ..कि ये पूर्णतः निरक्षर और असंगठित हैं। इनमें संगठन नहीं है अतः महाजनों द्वारा इनका शोषण होता है । इसी तरह कृषि कल्याण केन्द्र की स्थापना होनी चाहिए जहाँ इनका और इनके बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल हो सके । सहकारी समितियों की स्थापना, कार्य के घंटे को निश्चित करना । ये सब कार्य करने से कृषक मजदूरों की दशा में सुधार लाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
बिहार में कृषक मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक उपाय पर प्रकाश डालें
उत्तर-
बिहार में कृषक मजदूरों की समस्याओं के समाधान के लिए आवश्यक उपायों निम्नलिखित हैं

(i) कृषि पर आश्रित उद्योगों का विकास-बिहार में गन्ना, जूट, तम्बाकू फल और सब्जियों की खेती प्रचुर मात्रा में होती है। उन्हीं उत्पादनों के आधार पर उद्योगों एवं लघु उद्योगों की स्थापना से खाली के समय में बैठे कृषक मजदूर काम कर सकेंगे और अपनी आय में वृद्धि कर जीवन स्तर में सुधार ला सकते हैं।

(ii) कार्य के घंटे निश्चित करना तथा काम के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित उचित मजदूरी का क्रियान्वयन आवश्यक है । तथा उचित समय-समय पर छुट्टियाँ भी मिलनी चाहिए।

(ii) कृषि श्रम कल्याण केन्द्र की स्थापना एवं उनके लिए आवास की व्यवस्था आवश्यक है ताकि उनका स्वस्थ्य ठीक रह सके उनके बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके।

(iv) कृषक मजदूर निरक्षर और असंगठित हैं । अतः अपनी समस्याओं के मालिकों के सामने रखने में असमर्थ हैं । निरक्षरता के कारण ये शोषण का शिकार बनते हैं।

(v) अन्य उपाय-इनकी सबसे बड़ी समस्या है गरीबी, अशिक्षा रोजगार का नहीं मिलना । अतः ग्रामीण रोजगार केन्द्रों की स्थापना कर इनकों सूचित किया जाना चाहिए कि अन्यत्र रोजगार की व्यवस्था है। भूदान में मिली जमीन को भूमिहीन मजदूरों के बीच बँटवारा कर उनमें सरकार ओर से बीज एवं खाद की व्यवस्था की जाय ।

प्रश्न 4.
कृषक मजदूरों की दशा सुधारने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए प्रयासों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
हमारी सरकार ने कृषक मजदूरों की समस्याओं को हल (निदान, समाधान या सुधार) करने के लिए अनेक प्रयास किये हैं जो इस प्रकार हैं-

  • न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948)-यह नियम कृषि पर भी लागू किया गया । कृषक मजदूरों को भी मिलना चाहिए ।
  • भूमिहीन मजदूरों को मकान के लिए मुफ्त प्लॉट (जगह) की व्यवस्था की गयी है।
  • भूदान में प्राप्त भूमि का उचित ढंग से वितरण किया गया है ।
  • बंधुआ मजदूर प्रथा को समाप्त कर दिया गया।
  • जोत की सिलींग का निर्धारण और बची हुई भूमि, बंजर भूमि मजदूरों के बीच बाँटी जा रही है।
  • कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास के उद्देश्य से ग्रामीण औद्योगिक वस्तियाँ स्थापित की गई हैं।
  • कृषि-मजदूरों को वित्तीय सुविधा देने के लिए कृषि सेवा समितियों की स्थापना की गई है।
  • पुराने ऋणों से मुक्ति दिलाने के लिए भिन्न-भिन्न कानून बनाए गए।
  • ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम शुरू किया गया है।
  • बाल श्रमिक निरोधक अधिनियम बनाया गया जिसके तहत कृषक मजदूरों के बच्चों के शोषण को अपराध घोषित किया गया।

प्रश्न 5.
बिहार में कृषक मजदूरों के पलायन से उत्पन्न समस्याओं पर प्रकाश डालें । इनका निदान कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
कृषक मजदूरों के पलायन से बिहार में अनेक तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो रही है । एक तरफ बिहार में कृषि मजदूरों की संख्या में कमी हो रही है तथा कृषि कार्य के लिए मजदूर उपलब्ध नहीं हो रहे दूसरी बात जो भी शेष कृषक मंजदूर रह जाते हैं उनको पूर्व की · अपेक्षा अधिक पारिश्रमिक प्राप्त हो रहा है।

इनका निदान-

  • कृषि पर आश्रित उद्योगों का विकास करना जरूरी
  • गाँवों में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास होना चाहिए ताकि भूमिहीन श्रमिक इस प्रकार के कार्यों में लग सके और अपनी आय में वृद्धि कर सकें।
  • न्यूनतम मजदूरी के नियमों का पालन होना चाहिए। दूसरे राज्यों में यहाँ से अधिक मजदूरी मिलती है यह भी उनका एक आकर्षण
  • काम के घंटों को निश्चित किया जाना चाहिए ।
  • मजदूरों के लिए मकान एवं कृषि कल्याण केन्द्रों की स्थापना करनी चाहिए।
  • कृषक मजदूरों की एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि वे अशिक्षित है अतः उन्हें शिक्षित करना आवश्यक है।
    इन सब बातों पर ध्यान देकर इनकी समस्याओं का निदान संभव है।

Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु

Bihar Board Class 9 Social Science Solutions Geography भूगोल : भारत : भूमि एवं लोग Chapter 2 भौतिक स्वरूप : संरचना एवं उच्चावच Text Book Questions and Answers, Additional Important Questions, Notes.

BSEB Bihar Board Class 9 Social Science Geography Solutions Chapter 2 भौतिक स्वरूप : संरचना एवं उच्चावच

Bihar Board Class 9 Geography भौतिक स्वरूप : संरचना एवं उच्चावच Text Book Questions and Answers

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न :

हिंदी में कक्षा 9 भूगोल अध्याय 4 जलवायु Question Answer Bihar Board प्रश्न 1.
जाड़े में तमिलनाडु के तटीय भागों में वर्षा का क्या कारण है ?
(क) दक्षिण-पश्चिमी मौनसून
(ख) उत्तर-पूर्वी मौनसून
(ग) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
(घ) स्थानीय वायु परिसंचरण ।
उत्तर-
(क) दक्षिण-पश्चिमी मौनसून

Bihar Board Class 9 Geography Solutions  प्रश्न 2.
दक्षिण भारत के संदर्भ में कौन-सा तध्य गलत है ?
(क) दैनिक तापांतर कम होता है ।
(ख) वार्षिक तापांतर कम होता है ।
(ग) तापांतर वर्ष भर अधिक रहता है ।
(घ) विषम जलवायु पायी जाती है।
उत्तर-
(क) दैनिक तापांतर कम होता है ।

जलवायु के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Geography प्रश्न 3.
जब सूर्य कर्क रेखा पर सीधा चमकता है, तो उसका क्या प्रभाव होता है ?
(क) उत्तरी पश्चिमी भारत में उच्च वायुदाब रहता है ।
(ख) उत्तरी पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब रहता है ।
(ग) उत्तरी पश्चिमी भारत में तापमान एवं वायुदाब में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
(घ) उत्तरी-पश्चिमी भारत से मौनसून लौटने लगता है।
उत्तर-
(ख) उत्तरी पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब रहता है ।

पाठ 4 जलवायु के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Geography प्रश्न 4.
विश्व में सबसे अधिक वर्षा किस स्थान पर होती है ?
(क) सिलचर
(ख) चेरापुंजी
(ग) मौसिमराम
(घ) गुवाहाटी
उत्तर-
(ग) मौसिमराम

Bihar Board Class 9 Geography Book Solution प्रश्न 5.
मई महिने में पश्चिम बंगाल में चलने वाली धूल भरी आँधी को क्या कहते हैं ?
(क) लू
(ख) व्यापारिक पवन
(ग) काल वैशाखी
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(ग) काल वैशाखी

Bihar Board Solution Class 9 Social Science प्रश्न 6.
भारत में दक्षिणी-पश्चिम मौनसून का आगमन कब से होता है ?
(क) 1 मई से
(ख) 2 जून से
(ग) 1 जुलाई से
(घ) 1 अगस्त से
उत्तर-
(ख) 2 जून से

जलवायु पाठ प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Geography प्रश्न 7.
जाड़े में सबसे ज्यादा ठंढ कहाँ पड़ती है ?
(क) गुलमर्ग
(ख) पहलगाँव
(ग) खिलनमर्ग
(घ) जम्मू
उत्तर-
(ग)

Jalvayu Ke Question Answer Bihar Board Class 9 Geography प्रश्न 8.
उत्तर पश्चिमी भारत में शीतकालीन वर्षा का क्या कारण है ?
(क) उत्तर-पूर्वी मौनसून
(ख) दक्षिण-पश्चिमी मौनसून
(ग) पश्चिमी विक्षोभ
(घ) उष्णकटिबंधीय चक्रवात
उत्तर-
(ख)

Bihar Board Class 9 Social Science Solution In Hindi प्रश्न 9.
ग्रीष्म ऋतु का कौन स्थानीय तूफान है जो कहवा की खेती के लिए उपयोगी होता है ?
(क) आम्र वर्षा
(ख) फूलों वाली बौछार
(ग) काल वैशाली
(घ) लू
उत्तर-
(क)

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

1. जनवरी में चेन्नई का तापमान कोलकाला से … से रहता
(कम/अधिक)

2. उत्तर भारत में वर्षा पूरब की अपेक्षा पश्चिम की ओर ….. .. …..” होती है।
(कम/अधिक)

3. मौनसून शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम . .. नाविकों ने किया था ।
(अरब/भारत)

4. पश्चिम घाट पहाड़ के पश्चिमी भाग में ……………….. वर्षा होती
(कम/अधिक)

5. पर्वत का ……………….. भाग वृद्धि छाया का प्रदेश होता है।
(पवन विमुख/पवन अभिमुख)

उत्तर-

  1. अधिक,
  2. कम,
  3. अरब,
  4. अधिक,
  5. पवन विमुख ।

भौगोलिक कारण बताएँ

जलवायु पाठ के प्रश्न उत्तर Bihar Board Class 9 Geography प्रश्न 1.
पश्चिमी राजस्थान एक मरुस्थल है ?
उत्तर-
राजस्थान का पश्चिमी भाग मरुस्थल है.जो थार की मरुभूमि कहलाता है । मरुस्थल होने के कई कारण हैं
(i) बंगाल की खाड़ी मौनसून शाखा की हवाएँ उत्तर पश्चिम के निम्नतम दाब वाले क्षेत्र में पहुँचने के पहले ही सूख जाती है । अत: वर्षा नहीं कर पाती हैं।
(ii) अरब सागरीय मौनसून शाखा के मार्ग में अरावली पहाड़ियाँ कोई अवरोध उत्पन्न नहीं करती क्योंकि ये मौनसून पवनों के समानांतर स्थित है । अतः वहाँ हवाएँ ऊपर चढ़कर आगे बढ़ जाती हैं।
(iii) बलुई क्षेत्र का ग्रीष्म ऋतु में तापमान इतना अधिक रहता है जिससे कि मौनसून पवनों की आर्द्रता वाष्पीकृत हो जाती है । इस क्षेत्र में सालाना वर्षा , 25 से०मी० होती है। इन कारणों से राजस्थान का पश्चिमी भाग मरुस्थल है।

जलवायु पाठ के प्रश्न उत्तर कक्षा 9 Bihar Board प्रश्न 2.
तमिलनाडु में जाड़े में वर्षा होती है।
उत्तर-
सितम्बर के अंत में सूर्य के दक्षिणायन होने के कारण उत्तरी-पश्चिमी भाग का निम्नदाब समाप्त होकर दक्षिण में खिसक जाता है । फलतः मौनसून वापस लौटने लगता है। हवाएँ स्थल की ओर से चलने लगती है, अतः शुष्क होती हैं । ये हवाएँ बंगाल की खाड़ी को पार करके लौटते आर्द्रता ग्रहण कर दक्षिण-पूर्वी का कारोमंडल तट पर भारी वर्षा करती है। यह तमिलनाडु का क्षेत्र है जहाँ वर्षा की अधिकतम मात्रा 44% से 60% इसी शीत ऋतु में होती है। इसी शीतऋतु में बंगाल की खाड़ी में बनने वाले चक्रवातों से भी यहाँ भारी वर्षा होती है।

Jalvayu Class 9 Bihar Board प्रश्न 3.
भारतीय कृषि मौनसून के साथ जुआ है ?
उत्तर-
भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ की कृषि मुख्यतः वर्षा पर ही आधारित है। भारत में वर्षा मौनसून पवनों द्वारा ही होती है, पर भारत की कृषि मौनसून के साथ जुआ हैं। इनके निम्नलिखित कारण हैं
(i) अनिश्चितता-भारत में होने वाली मौनसूनी वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी तो मौनसन पवन समय से पहले पहँच भारी वर्षा करती है । कई स्थानों में बाढ़ आ जाती है । कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही खत्म हो जाती है कि सूखे की स्थिति पैदा हो जाती है।
(ii) असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है । पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों ओर मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250mm से भी अधिक.वर्ण होती है । दूसरी ओर पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी कश्मीर आदि जगहों पर 25mm से भी कम वर्षा होती है।
(iii) अस्थिरता-भारत में मौनसून पवनों से वर्षा भरोसे योग्य नहीं है। यहाँ के किसान खेतों में बीज बो देते हैं पर मौनसून के अनिश्चित होने के कारण फसल मारी जाती है, तो कभी अच्छी फसल भी हो जाती है अतः कहा जाता है कि भारतीय कृषि मौनसून के साथ जुआ है।

Jalvayu Question Answer Bihar Board प्रश्न 4.
मौसिमराम में विश्व की सर्वाधिक वर्षा होती है।
उत्तर-
दक्षिण-पश्चिम मौनसून बंगाल की खाड़ी से जलवाष्प लेकर उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ता है । यह मेघालय तक पहुँच जाता है । उसके

पहले यह मौनसून हवा मेघालय पठार के दक्षिण स्थित गारो, खासी, जैन्तिया पहाड़ियों से टकराती है । वह खासी पहाड़ी पर स्थित मौसिमराम नामक स्थान में संसार की सबसे अधिक वर्षा 1187 से०मी० करती है, हवा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ती जाती है, उन पहाड़ियों का फैलाव कीचनुआ है जिससे हवाएँ तीन ओर से घिरकर ऊपर उठने लगती है और वर्षा करने लगती है और अधिक वर्षा करने में समर्थ हो जाती है। 5. ऊटी में सालोंभर तापमान काफी नीचे रहता है।
उत्तर-सौर किरणों के सीधा या तिरछा होने पर सौर्य ऊर्जा की मात्रा में अन्तर हो जाता है । सूर्य की किरणें निम्न अक्षांशों पर सीधी तथा.उच्च अक्षांशों पर तिरछी पडती है। जैसे-जैसे समद्रतल से धरातल की ऊँचाई बढती जाती है, वायमण्डल विरल होता जाता है तथा तापमान घटता जाता
है। यही कारण है कि निम्न आक्षांश में स्थित ऊँटी (तमिलनाडु) जो अधिक ऊँचाई पर स्थित है सालोभर तापमान कम रहता है ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

जलवायु Class 9 Notes In Hindi Bihar Board प्रश्न 1.
जाड़े के दिनों में भारत में कहाँ-कहाँ वर्षा होती है ?
उत्तर-
जाड़े के दिनों में भारत के पूर्वी तटीय भाग तमिलनाडु तथा केरल में वर्षा होती है।

Bihar Board Class 9 History Book Solution प्रश्न 2.
फैरेल का क्या नियम है ?
उत्तर-
पृथ्वी पर स्थायी वायु दाब पेटियों के बीच चलनेवाली प्रचलित हवाएँ (Precalling wind) की दिशा पर पृथ्वी के घूर्णन का प्रभाव पड़ता है । पृथ्वी के.घूर्णन के कारण ही कोरियोलिस बल (Coriolis Force) उत्पन्न होता है जिसके कारण उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है । अर्थात् विषुवत् रेखा को पार करने के बाद दक्षिणी गोलार्द्ध की हवाएँ दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं तथा दक्षिण-पश्चिम से चलने लगती है। इसे सबसे फेरल महोदय ने पता लगाया इसीलिए इसे फैरल का नियम कहते हैं।

Bihar Board Solution Class 9 History प्रश्न 3.
जेट स्ट्रीम क्या है ?
उत्तर-
ऊपरी वायुसंचरण भारत में पश्चिमी प्रवाह से प्रभावित रहता है। जेट धाराएँ इसी प्रवाह का मुख्य अंग हैं। जेट धाराएँ ऊपरी वायुमंडल (1200 मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर) में लगभग 27° से 30° ऊत्तरी अक्षांशों के बीच चलती हैं। अतः इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है। ये सितम्बर से मार्च तक हिमालय के दक्षिण छोर पर चला करती हैं तथा देश के उत्तर एवं पश्चिम भाग में पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ के रूप में आकर कभी-कभी वर्षा की झड़ी लगा देती हैं। गर्मियों में इसकी गति लगभग 110 कि०मी० और सर्दियों में 184 किमी० प्रतिघंटा होती है।

Bihar Board 9th Class Social Science Book Pdf प्रश्न 4.
भारतीय मौनसून की तीन प्रमुख विशेषताएँ बताइए?
उत्तर-
भारतीय मौनसून की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं(i) मौनसून वर्षा भूआकृति द्वारा नियमित होती है ।
(ii) मौनसूनी वर्षा का भारत में वितरण भी असमान होता है जो औसत 12 से०मी० से 1180 से०मी० के नीचे पाया जाता है ।
(iii) मौनसून कभी पहले और कभी देर से आती है, कभी अतिवृष्टि एवं कभी अनावृष्टि लाती है । फलतः फसलें प्रभावित होती हैं तथा बाढ़ एवं सूखा जैसी आपदाएँ लाती हैं।

Bihar Board Class 9 Geography Chapter 1 प्रश्न 5.   
लू से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
ग्रीष्म ऋतु में मई के महीने में उत्तर भारत में चलने वाली हवा अत्यन्त गर्म और शुष्क होती है, तापक्रम लगभग 40°C तक चला जाता है । इस शुष्क चलने वाली हवा को ‘लू’ कहते हैं। . 6. मौनसून का विस्फोट क्या है ?
उत्तर-उत्तर भारत में आधे जून से मौसम में अचानक बदलाव आने लगता है। तेजी से हवा दक्षिण पश्चिम से आने लगती है। आकाश बादलों

से आच्छदित हो जाता है तथा गर्जन-तर्जन के साथ भारी वर्षा होने लगती है। इसे ही मौनसून का फटना (Monsoon Burst) कहा ता है। लोगों को गर्मी से राहत मिलती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की मौनसूनी जलवायु की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को सोदाहरण समझाइए?
उत्तर-
निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है कि भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में विविध प्रकार की जलवायु दशाएँ पायी जाती हैं
तापमान-भारत में विभिन्न भागों के तापमान में काफी अन्तर मिलता है। राजस्थान के बाड़मेर में जून में दिन का तापमान 482-55 सेंटिग्रेड होता है तो उसी दिन कश्मीर के गुलमर्ग का तापमान 20° से भी कम रहता है। यहाँ तक कि गुलमर्ग के उत्तर में खिलनमर्ग का तापमान 0° से भी कम रहता है । उसी तरह दिसंबर में कश्मीर के किसान ठंढ से काँपते हैं, उसी समय केरल तट पर मोपला जाति के लोग लुंगी पहने खुले बदन धान की खेती करते मिलते हैं। दिसम्बर की रात में कारगिल जैसे स्थानों में न्यूनतम तापमान – 402 सेंटीग्रेट तक होता है। राजस्थान के थार मरुस्थल में गर्मी का दिन बेहद गर्म होता है तो रात बेहद ठंढी । ताप गिरते हुए 0°C तक चला जाता है। भारत के किसी अन्य भागों में इतना अधिक तापान्तर नहीं मिलता है।

वर्षा-जून में उत्तर भारत शुष्क और गर्म होता है जबकि असम में इतनी वर्षा होती है कि ब्रह्मपुत्र नदी में भयंकर बाढ़ आने लगती है।
भारत के समुद्र तटीय क्षेत्र में तापमान सम एवं स्थल के मध्य में विषम पाया जाता है। ये सभी दैनिक विभिन्नताएँ हैं।
वर्षा की दृष्टि से मासिमराम में औसत वर्षा 1180 सेंटीमीटर है जबकि जैसलमेर में 12 से०मी० से अधिक नहीं होती।
उत्तर भारत में वर्षा की मात्रा पूर्व से पश्चिम में घटती जाती है जिससे लोगों के भोजन, वस्त्र एवं आवास में विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 2.
भारत में कितनी ऋतुएँ पायी जाती हैं ? किसी एक का भौगोलिक विवरण दीजिए।
उत्तर-
भारत में कुल छः ऋतुएँ पायी जाती हैं- वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, .शरद एवं शिशिर । पर भौगोलिक दृष्टि से तथा मौसम विभाग के अनुसार भारत में मुख्यतः चार ऋतुएँ हैं-
(i) शीतऋतु-मध्य नवम्बर से मध्य मार्च तक ।
(ii) ग्रीष्म ऋतु-मध्य मार्च से मध्य जून तक ।
(iii) वर्षा ऋतु-मध्य जून से मध्य सितम्बर तक ।
(iv) लौटती मौनसून ऋतु-मध्य सितम्बर से मध्य नवम्बर तक ।
शीतऋतु-यह ऋतु मध्य नवम्बर से मध्य मार्च तक रहती है। इस ऋतु में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है। इस ऋतु में सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में होता है मध्य भारत में औसत तापक्रम 212 से 27° सेंटीग्रेट के बीच रहता है। गंगा के मैदान में 12 से 180° सेंटीग्रेड होता है।

दक्षिण भारत में चेन्नई का तापक्रम औसत 25° से० कोलकाता का 20° से०, पटना का 17° से० तथा दिल्ली का 14 से० रहता है । सबसे अधिक ठंढक उत्तर-पश्चिमी भाग में रहती है। इसलिए वहाँ एक उच्च दाब क्षेत्र बन जाता है, इस समय हवाएँ स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं जो शुष्क होती हैं और वर्षा नहीं करती हैं। आकाश स्वच्छ रहता है। बादल रहित आकाश के कारण रात में ताप बहुत कम हो जाता है। हिमालय क्षेत्र के जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में इन दिनों हिमपात होता है।

इस समय भारत के दो क्षेत्रों में वर्षा होती है। एक उत्तर पश्चिमी भाग तथा दूसरा दक्षिणी पूर्वी भाग, उत्तर-पश्चिमी भारत में भूमध्यसागरीय चक्रवातों से वर्षा होती है यह वर्षा दिसम्बर से मार्च तक होती है। वर्ष मात्र 3 से 6 सेंटीमीटर ही होती है।

दूसरे स्थान पर जनवरी-फरवरी में उत्तरी-पूर्वी शुष्क हवायें बंगाल की खाड़ी से गुजरती है जलवाष्प ग्रहण कर लेती हैं और भारत के दक्षिणी पूर्वी भाग में तमिलनाडु में वर्षा करती है।

प्रश्न 3.
भारत की जलवायु के मुख्य कारकों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित
(i) अक्षांश-कर्क रेखा 23.5° उत्तर भारत के मध्य से गुजरती है जिसमें भारत को लगभग उत्तर उपोष्ण तथा दक्षिण उष्ण कटिबंधीय जलवायु पायी जाती है । उत्तर उपोष्ण में जाड़े में तापमान घट जाता है काफी ठंडा हो जाता है दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र है यह क्षेत्र बराबर गर्म रहता है।

(ii) ऊँचाई-ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ तापमान घटता जाता है । कहा जाता है ‘Higher we go cooler we find’ साधारणतः 165 मीटर की ऊचाई पर 1° सेंटीग्रेट घट जाता है। भारत के उत्तर में हिमालय पर्वतमाला स्थित है जिसकी औसत ऊँचाई लगभग 6000 मीटर है और भारत की तटीय मैदान की ऊँचाई 30 से 150 मीटर है अतः पर्वतीय क्षेत्र ठंढा तथा मैदानी या तटीय क्षेत्र अपेक्षाकृत गर्म रहता है।

(iii) तट रेखा-लम्बी तट रेखा होने से भारत का तटीय क्षेत्र भी विस्तृत है। समुद्र तटीय क्षेत्र में जाड़ा तथा गर्मी के तापमान में ज्यादा अन्तर नहीं पड़ता क्योंकि जल देर से गर्म होता है और देर से ठंढा होता है। अतः समुद्र जल का प्रभाव स्थल भाग पर पड़ता है। जलवायु सम बनी रहती है। दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्र इसके प्रभाव में रहते हैं पर उत्तर भारत के समुद्र से दूर होने के कारण समुद्र का प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः वहाँ जाड़े में खूब ठंढक और गर्मी में खूब गर्मी पड़ती है। वार्षिक तापान्तर बहुत ज्यादा होता है तथा जलवायु विषम होती है।

(iv) पवन की दिशा या वायुदाब-वायुदाब तथा पवन की दिशा ने भारत की जलवायु को विशिष्ट बना दिया है। सूर्य के (मई-जून) उत्तरी गोलार्द्ध में होने के कारण राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में निम्नदाब का केद्र बन जाता है तथा मकर रेखा क्षेत्र में उच्च दाब बन जाता है अतः गर्मी में दक्षिणी गोलार्द्ध के मकर रेखा क्षेत्र की हवाएँ तेजी से हिन्द महासागर को पार कर भारत में पहुँचने लगती हैं और भारत मौनसून के प्रभाव में आ जाता है।

प्रश्न 5.
जेट धाराएँ क्या हैं तथा भारतीय जलवायु पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
जेट धाराएँ ऊपरी वायुमंडल (1200 मीटर से भी अधिक ऊँचाई पर) में तेज गति से चलनेवाली पवनें हैं, जेट धाराएँ लगभग 272 से 30° उत्तरी अक्षांशों के बीच वायुमंडल के ऊपरी भाग में चलती हैं। अतः इन्हें उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ कहा जाता है। ये सितम्बर से मार्च तक हिमालय के दक्षिणी छोर पर चला करती हैं तथा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम भाग में पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ के रूप में आकर कभी-कभी वर्षा की झड़ी लगा देती हैं।

भारत की जलवायु पर प्रभाव-भारत पर जेट हवाओं का गहरा प्रभाव है। शीत ऋतु में हिमालय के दक्षिणी भाग के ऊपर समताप मंडल में पश्चिमी जेट धारा की स्थिति रहती है। जून के महीने में यह उत्तर की ओर खिसक जाती है। इससे 15° उत्तर आक्षांश के ऊपर एक पूर्वी जेट धारा कके विकास में सहायता मिलती है। यही उत्तरी भारत में मौनसून- विस्फोट के लिए उत्तरदायी है । यह बंगाल, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश आदि के तटीय भाग में कभी-कभी तूफानी हवा के साथ वर्षा करती हैं।

प्रश्न 6.
भारत में होने वाली मौनसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारत में होने वाली मौनसूनी वर्षा दो प्रकार की हैं(i) शीतकालीन वर्षा (ii) ग्रीष्म कालीन वर्षा
(i) शीतकालीन वर्षा-भारत में शीतकालीन वर्षा के सीमित क्षेत्र . हैं । लौटती मौनसून तथा उत्तरी पूर्वी मौनसून से भारत के पूर्वी तटीय भाग, तमिलनाडु तथा केरल में वर्षा होती है। स्थल से चलने वाली यह हवा जब बंगाल की खाड़ी से होकर गुजरती है तो नमी धारण कर लेती है जिससे वह वर्षा करती है। दक्षिण-पश्चिम से चलने वाली हवा भारत में प्रवेश कर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा बिहार में वर्षा करती है । यह पश्चिमी विक्षोभ के कारण होता है। वर्षा पश्चिम से पूरब की ओर घटती जाती है।

(ii) ग्रीष्मकालीन वर्षा-भारत में ग्रीष्मकालीन वर्पा दक्षिण पश्चिम मौनसून हवा से होती है । दक्षिण-पश्चिम मौनसून हवा दो शाखाओं में बँटकर आगे बढ़ती है। एक शाखा अरब शाखा है जिससे भारत के पश्चिम तटीय भाग तथा पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल पर भारी वर्षा होती है।
दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी शाखा है। इस शाखा से अंडमान निकोबार द्वीपों में भारी वर्षा होती है। आगे बढ़ने पर मॉनसूनी वर्पा पूर्वांचल एवं मेघालय के बीच पहुँचकर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है तथा पूर्वोत्तर भारत एवं गंगा ब्रह्मपुत्र के मैदान में भारी वर्षा करती है। ज्यों-ज्यों यह पश्चिम की ओर बढ़ती है, वर्षा कम होती जाती है। जून से सितम्बर के बीच कोलकाता में 118 सें०मी०, पटना में 100 सें०मी०, इलाहाबाद में 90 सें०मी० तथा दिल्ली में 55 सें०मी० तथा वार्षिक वर्षा 1187 सें०मी० होती है.। लेकिन राजस्थान पहुँचते-पहुँचते वार्षिक वर्षा मात्र 25 सें०मी० तक ही रह जाती है।

मौनसूनी वर्षा की विशेषताएँ –

(i) वर्षा का समय तथा मात्रा-भारत में मौनसूनी पवनों से प्राप्त वर्षा 87% मौनसूनी पवनों द्वारा जून से सितम्बर तक होती है । 3% वर्षा सर्दियों में तथा 10% वर्षा मौनसून आने के पहले तक हो जाती है । बाकी वर्षा जून से सितम्बर तक में होती है।
(ii) अस्थिरता-भारत में मौनसूनी पवनों से प्राप्त वर्षा भरोसे योग्य नहीं है। देश में असमान वर्षा होती है।
(iii) अनिश्चितता-वर्षा की मात्रा पूरी तरह निश्चित नहीं है। कभी मौनसून समय से पहले पहुँचकर भारी वर्षा करता है। कभी वर्षा इतनी कम होती है कि निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है जिससे सूखे की स्थिति कायम हो जाती है।
(iv) शुष्क अंतराल-कई बार गर्मियों में मौनसूनी वर्षा लगातार न होकर कुछ दिन या सप्ताह अंतराल से होती है । इसके चलते वर्षा का चक्र टूट जाता है और वर्षा ऋतु में एक लंबा व शुष्क काल जमा हो जाता निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि मौनसूनी वर्षा अनिश्चित तथा असमान होती है। फिर भी भारत के लिए मौनसून वरदान है।

प्रश्न 7.
एल-निनों एवं ला-निना में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
एल-निनो एवं ला-निना’ के अन्तर इस प्रकार हैं –
Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु - 1
Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु - 2

मानचित्र कार्य

1. पूरे पृष्ठ पर भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित . को दर्शाइए।
(क) 400 सेंमी० से अधिक वर्षा का क्षेत्र,
(ख) 20 सेंमी० से कम वर्षा का क्षेत्र,
(ग) भारत में दक्षिण-पश्चिमी मौनसून की दिशा,
(घ) शीतकालीन वर्षा वाले क्षेत्र ,
(ङ) (i) चेरापूँजी, (ii) मौसिमराम, (ii) जोधपुर, (iv) मंगलोर, (v) ऊटी, (vi) नैनीताल।
Bihar Board Class 9 Geography Solutions Chapter 4 जलवायु - 3