Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
राष्ट्रीय महामार्ग और राज्य महामार्ग में निम्नलिखित अंतर है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 1

प्रश्न 2.
भारत में सड़कों के असमान वितरण के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सड़कों के असमान वितरण के तीन कारण निम्नलिखित हैं-

  1. भौतिक बनावट (Physiography) – सड़क घनत्व भौतिक बनावट से प्रभावित होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का घनत्व कम है, जबकि मैदानी भागों में घनत्व अधिक है।
  2. जलवायु (Climate) – जलवायु के प्रभाव से भी सड़क वितरण प्रभावित होता है। उत्तरी पूर्वी राज्यों में घनत्व इसलिये कम है कि यहाँ अधिक वर्षा होती है।
  3. आर्थिक विकास (Economic Development) – आर्थिक रूप से विकसित प्रदेशों में सड़कों का घनत्व अधिक है जबकि निम्न आर्थिक विकास स्तर के प्रदेशों में सड़कों का घनत्व कम है। केरल में सबसे अधिक सड़क घनत्व 37.5 किमी. है जबकि अरुणाचल में यह सबसे कम केवल 10 किमी. है।

प्रश्न 3.
परिवहन तथा संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
परिवहन तथा संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 2

प्रश्न 4.
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
व्यक्तिगत संचार तथा जन संचार में निम्नलिखित अंतर हैं-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 3

प्रश्न 5.
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत दूरभाष, तार, फैक्स, इंटरनेट, रेडियो, टेलीविजन उपग्रह को सम्मिलित करते हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग विकास में क्रांति लाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसने संचार को बहुत त्वरित एवं आसान बना दिया है। संचार के विभिन्न साधनों में रेडियो, टेलीविजन, उपग्रह संचार प्रमुख हैं।

रेडियो : यह संचार का सबसे सस्ता एवं लोकप्रिय साधन है। भारत में रेडियो का प्रसारण सन् 1923 ई० में रेडियो क्लब ऑफ बाम्बे द्वारा प्रारंभ किया गया था। सरकार ने 1930 ई० में इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के अंतर्गत इस लोकप्रिय संचार माध्यम को अपने नियंत्रण में ले लिया। 1936 ई० में इसे ऑल इंडिया रेडियो और 1957 ई० में आकाशवाणी में बदल दिया गया। यह सूचना, शिक्षा, मनोरंजन से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों को प्रस्तुत करता है।

टेलीविजन : इसकी महत्वपूर्ण विशेषता है कि इसके जरिये हम किसी भी घटना को सुनने के साथ-साथ देख भी सकते हैं। टेलीविजन एक अत्यधिक प्रभावी दृश्य-श्रव्य माध्यम है। इसे शुरू में 1959 ई० में सिर्फ महानगरों में प्रारंभ किया गया। 1976 ई० में टी. वी. को ऑल इंडिया रेडियो से विलगित कर दिया गया और दूरदर्शन (डी. डी.) के रूप में एक अलग पहचान दी गइ

उपग्रह संचार : उपग्रह संचार की स्वयं में एक विधा है और ये संचार के अन्य साधनों का भी नियमन करते हैं। उपग्रह से प्राप्त चित्रों का मौसम के पूर्वानुमान, प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी, सीमा क्षेत्रों की चौकसी आदि के लिए उपयोग किया जा सकता है।

भारत की उपग्रह प्रणाली को समाकृति तथा उद्देश्यों के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. इंडियन नेशनल सेटेलाइट सिस्टम (INSAT)
  2. इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट सिस्टम (IRS)

इनसैट की स्थापना 1983 ई० में हुई थी। यह एक बहुद्देशीय उपग्रह प्रणाली है जो दूर संचार, मौसम विज्ञान संबंधी अवलोकनों तथा विभिन्न अन्य आंकड़ों एवं कार्यक्रमों के लिए उपयोगी है।

इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाइट उपग्रह प्रणाली मार्च 1988 ई० में रूस के वैकानूर से IRS-IA के प्रक्षेपण के साथ प्रारंभ हुई। प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए यह बहुत उपयोगी है। हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी आंकड़ों का अधिग्रहण एवं प्रक्रमण की सुविधा उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 6.
देश के आर्थिक विकास में रेलों का योगदान लिखिए। कोई चार बिन्दु दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेल मार्ग एशिया में प्रथम स्थान रखता है। इसका देश के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। रेलवे ने कृषि और उद्योगों के विकास की गति को तेज करने में योगदान दिया है। रेल यात्रियों की भारी संख्या को दूरदराज के स्थानों तक ले जाती है तथा रेलें भारी मात्रा में माल की ढुलाई करती हैं। औद्योगिक और कृषि क्षेत्रों के विकास में रेल परिवहन की मांग में अधिक वृद्धि हुई है।

यह निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट है-

  1. कोयला रेलों द्वारा सबसे अधिक ढोया जाता है। 2001-02 में रेल द्वारा 230 करोड़ टन कोयला ढोया गया।
  2. लौह अयस्क, मैगनीज, चूना पत्थर आदि की ढुलाई औद्योगिक इकाइयों के लिए की गई है।
  3. रेलें, उर्वरक, मशीन आदि को कृषि कार्य के लिए पहुँचाती रहती हैं।
  4. रेलें तैयार माल को बाजारों तक पहुँचाती हैं।
  5. विदेशों से आयात किये गये माल को देश के आन्तरिक भागों तक पहुँचाती हैं।
  6. रेलों द्वारा श्रमिक एक स्थान से दूसरे स्थान को रोजगार के लिये जाते हैं।

निम्न सारणी रेलों द्वारा ढोये गये माल की प्रकृति दर्शाती है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 4

प्रश्न 7.
भारत के विदेशी व्यापार की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के विदेशी व्यापार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की भागीदारी (Share of India in International Trade) – भारत की अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में केवल 0.5% की भागीदारी है। यूरोप के छोटे से देश स्विट्जरलैंड की भागीदारी 1.8% से भी कम है।

2. समुद्री मार्गों की प्रमुखता (Priority of Sea Routes) – भारत का विदेशी व्यापार मुख्य रूप से समुद्री मार्गों से होता है।

3. प्रति व्यक्ति व्यापार कम (Per Capita Trade is Less) – विशाल जनसंख्या और कम व्यापार की मात्रा का परिणाम है कि प्रति व्यक्ति विदेशी व्यापार विकसित और अनेक विकासशील देशों की तुलना में काफी कम है।

4. निर्यात और आयात में भारी वृद्धि (High Increase in Import and Export) – देश का आयात 2000-01 में बढ़कर 227512 करोड़ रुपये मूल्य का था जबकि यह 1950-51 में केवल 608 करोड़ रुपये का था इसी प्रकार निर्यात भी 606 करोड़ रुपये से बढ़कर 201674 करोड़ रुपये का हो गया।

5. विपरीत व्यापार संतुलन (Unfavourable Balance of Trade) – आयात में निरन्तर वृद्धि से व्यापार संतुलन हमारे पक्ष में नहीं रहा। 2000-01 में यह घाटा 25898 करोड़ रुपये का था।

6. व्यापार की दिशा में विविधता (Variation in Trade Items)-स्वतंत्रता से पहले भारत का व्यापार गिने-चुने देशों के साथ था लेकिन अब भारत 200 देशों को निर्यात तथा 180 देशों से आयात करता है।

7. व्यापार की वस्तुओं में विविधता (Variation in Trade Items)-आज भारत 9300 प्रकार की वस्तुओं का निर्यात करता है। 8250 प्रकार की वस्तुओं का आयात करता है।

8. इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर का निर्यात (Export of Electronics, Computer Hardware and Software) – भारत ने हाल ही में इन वस्तुओं के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि की है। दूसरी सबसे बड़ी विशेषता विकसित देशों को इसका निर्यात करना है।

प्रश्न 8.
भारत के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की बदलती प्रकृति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय विदेशी व्यापार में पिछले वर्षों में परिवर्तन आया है। यह निम्न तालिका में । स्पष्ट हो जायेगा।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 5

1950-51 में भारत का विदेशी व्यापार 12140 मिलियन रु० था जो बढ़कर 2004-05 में 8371330 मिलियन रुपये का हो गया। यह वृद्धि आयात-निर्यात में हुई। आयात का मूल्य निर्यात के मूल्य से अधिक होता गया। पिछले कुछ वर्षों में व्यापार घाटे में भी वृद्धि हुआ। यह घाटा तेल के मूल्यों में वृद्धि होने के कारण हुआ। निर्यात संघटन की वस्तुओं में परिवर्तन होता जा रहा है। कृषि उत्पाद के भाग में गिरावट आयी है। तेल उत्पाद के आयात में वृद्धि हुई है। परम्परागत वस्तुओं के व्यापार में अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के कारण गिरावट आयी है। कृषि उत्पाद जैसे कहवा के निर्यात में कमी आयी है।

विनिर्मित वस्तुओं के निर्यात में 2003-04 में 75.96% व्यापार इंजीनियरिंग वस्तुओं के निर्यात में सुधार हुआ है।

प्रश्न 9.
भारत में गंदी बस्तियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में मलिन बस्तियों की समस्यायें कई प्रकार की होती हैं। मलिन बस्तियों की स्थापना ग्रामीण क्षेत्रों से लोग जो रोजगार की तलाश में नगरों में जाते हैं, वे नगर के बाहरी क्षेत्र में पटरियों के साथ रहने लगते हैं। इन लोगों को मजबूर होकर यहाँ बसना होता है। ये लोग पर्यावरणात्मक अधूरी एवं स्तरहीन क्षेत्रों में कब्जा कर लेते हैं। यहाँ जीर्ण शीर्ण मकान, खराब स्वास्थ्य, स्वच्छता परिस्थितियाँ होती हैं। खराब हवा का आवागमन तथा पेय जल, प्रकाश तथा शौच सुविधाओं जैसी आधारभूत आवश्यक चीजों से अभावपूर्ण होते हैं। यहाँ आने-जाने की सुविधा नहीं होती। गलियाँ संकरी और मलिन होती हैं। खराब परिस्थितियों के कारण लोग बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। सुलभ शिक्षा का प्रबन्ध नहीं होता। ये लोग नशीली दवाओं के आदि शराबी, अपराध, गुंडागिरी आदि कुरीतियों के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
जल प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर:
जल प्रदूषण के अनेक प्रभाव हैं-

  1. रागा का प्रसार (Spreading of Diseases) – प्रदूषित जल के सेवन से मनुष्य को अनेक रोग लग जाते हैं। जैसे-हैजा, चेचक, पीलिया, टाइफाइड, पेचिश आदि।
  2. जलीय पौधों और जीव-जन्तुओं की मौत (Death of Animals and Water Plants) – विषैले जल से जलीय पौधे और जीव-जन्तु मर जाते हैं।
  3. फसला का नाश (Destruction of Crops) – प्रदूषित जल की सिंचाई से फसलें नष्ट हो जाती हैं या उनमें रासायनिक विष घुल जाते हैं।
  4. मिट्टी की उर्वरता का नाश (Destruction of Fertility of Soil) – प्रदूषित जल मिट्टी को प्रदूषित करके उसकी उर्वरता को नष्ट कर देता है। मृदा के जीवाणु और अन्य सूक्ष्म जीव मर जाते हैं।
  5. सुपोषण (Eutrophication) – जलाशयों में जैविक अजैविक पोषक तत्त्वों की भरमार होती है। इससे अवांछित पौधों और जीव-जन्तुओं की संख्या में भारी वृद्धि हो जाती है।
  6. सागरीय जल का प्रदूषण (Pollution of Sea Water) – समुद्र के जल में पेट्रोलियम पदार्थों के मिल जाने से समुद्र में पाये जानेवाले जीव-जन्तु मरने लगते हैं।

प्रश्न 11.
देश में भूमि प्रदूषण को कम करने के दो उपाय बताइए।
अथवा, (भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।
उत्तर:

  1. किसानों को रासायनिक पदार्थों का उचित प्रयोग करने के लिये प्रशिक्षण देना चाहिए। डी. डी. टी. आदि के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
  2. नगरीय तथा औद्योगिक गन्दे पानी को साफ करके सिंचाई के लिये प्रयोग किया जा सकता है।
  3. सड़ी-गली सब्जियों और फलों तथा पशुओं के मल-मूत्र को उचित प्रौद्योगिकी द्वारा बहुमूल्य खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  4. मलिन बस्तियों के लोगों को सुलभ शौचालय की सुविधा देकर भूमि प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  5. प्लास्टिक के बने पदार्थों को जल के प्रवाह में न जाने दिया जाए। इससे जल प्रदूषित होता है जो भूमि को भी प्रदूषित करता है।

इन उपर्युक्त उपायों से भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 12.
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में पनामा नहर की महत्ता का वर्णन करें।
उत्तर:
पनामा नहर का निर्माण अटलांटिक एवं प्रशान्त महासागर के तटीय देशों को जोड़ने के उद्देश्य से 1913 ई० में किया गया था। 70 किलोमीटर लम्बा यह नहर पनामा नहर और कोलोन के बीच फैला है। इस नगर मार्ग के मध्य 6 दरवाजे या जलबन्ध बनाये गये हैं जो यहाँ से समुद्र जहाजों को पार करने में मदद करती हैं। दोनों महासागरों के जलस्तर में 26 मीटर का अंतर होने के कारण इस नहर को पार करने पर जहाजों को 26 मीटर ऊपर-नीचे होकर जाना पड़ता है।

इस नहर के बन जाने के बाद सबसे अधिक लाभ संयुक्त अमेरिका को हुआ है। इसके पूर्वी और पश्चिमी तट के बीच यात्रा की दूरी और समय दोनों में उल्लेखनीय कमी आयी है। न्यूयार्क तथा सेन फ्रांसिस्को के बीच लगभग 1300 किलोमीटर की कमी आयी। इसी तरह अमेरिका के पश्चिमी तथा दक्षिण अमेरिका के पूर्वी तटों एवं यूरोप तथा एशिया के बीच की यात्रा और समय कम हो गया है। इसी तरह उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट और दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तटीय देशों के बीच समय और दूरी कम हो गयी है। समय और दूरी कम लगने से वस्तुओं के परिवहन पर लगने वाले व्यय या लागत में भी कमी आयी है। पनामा नहर को प्रशान्त महासागर का सिंहद्वार भी कहा जाता है।

इस नगर मार्ग के बन जाने से न्यूयार्क एवं याकोहामा के बीच 5440 किलोमीटर, सेन फ्रांसिस्को से लिवरपुल के मध्य 8000 किलोमीटर तथा न्यूयार्क एंव आर्कलैण्ड के मध्य 4000 किलोमीटर की दूरी घट गयी है।

प्रश्न 13.
दिये गये मानचित्र का अध्ययन कीजिए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) उत्तरी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश का नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
(ii) उत्तरी-पश्चिमी भाग के जल-अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश के नाम बताइए। यह प्रदेश किस वर्ग (उष्ण या शीत) में रखा गया है ?
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उत्तर:
(i) जम्मू-कश्मीर का उत्तरी भाग। यह शीत वर्ग में आता है।
(ii) हरियाणा का पश्चिमी भाग, पश्चिमी राजस्थान तथा गुजरात का पश्चिमी भाग। यह उष्ण वर्ग में आता है।

प्रश्न 14.
संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाइए-
(i) उत्तरी अमेरिका, यूरोप तथा एशिया, प्रत्येक से एक-एक वैश्विक नगर
(ii) हाँगकाँग, शेनझेग, गुआंगझाऊ-झुई-मुकाऊ के विकसित गेगालोपोलिस।
उत्तर:
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प्रश्न 15.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को इंगित करें :
(क) पटना (ख) दिल्ली (ग) कोंकण तट (घ) अंडमान निकोबार द्वीप (ङ) बंगाल की खाड़ी (च) मुंबई हाई।
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प्रश्न 16.
ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत कौन-से हैं ? भारत में इसकी संभावनाओं की चर्चा करें।
उत्तर:
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत के अंतर्गत सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा एवं जैव ऊर्जा को सम्मिलित करते हैं। भारत के संदर्भ में इसका विवरण निम्न है-

(i) सौर ऊर्जा – ऊर्जा का वैसा रूप जिसे सौर प्लेटों के सहारे सूर्य की किरणों से प्राप्त किया जाता है, सौर ऊर्जा कहलाता है, इस प्रकार की ऊर्जा कोयला एवं तेल आधारित संयंत्रों की अपेक्षा 7 प्रतिशत अधिक तथा नाभिकीय ऊर्जा से 10 प्रतिशत अधिक प्रभावी है। भारत के पश्चिमी भागों गुजरात व राजस्थान में सौर विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।

(ii) पवन ऊर्जा – प्रवाहित पवन के द्वारा प्राप्त ऊर्जा को पवन ऊर्जा कहते हैं। यह प्रदूषण मुक्त ऊर्जा होती है। पवन ऊर्जा का हमारे देश में संभावित क्षमता 50,000 मेगावाट की है। एशिया महादेश का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा संयंत्र गुजरात के कच्छ में लाम्बा पवन ऊर्जा संयंत्र है। पवन ऊर्जा के लिए राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक में अनुकूल परिस्थितियाँ विद्यमान है।

(iii) ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा – समुद्री जल के ज्वारीय तरंगों से प्राप्त ऊर्जा को ज्वारीय ऊर्जा कहते हैं। महासागरीय धाराएँ ऊर्जा का अपरिमित भंडार गृह हैं। भारत के पश्चिमी तट पर वृहत् ज्वारीय तरंग उत्पन्न होती है। भारत में इस प्रकार की ऊर्जा का विकास अभी शैशवावस्था में है।

(iv) भूतापीय ऊर्जा – पृथ्वी के गर्भ से तप्त मैग्मा जो अधिक मात्रा में ऊष्मा निर्मुक्त करती है, इससे प्राप्त ऊर्जा को भूतापीय ऊर्जा कहते हैं। भारत में, भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मानीकरण में अधिकृत किया जा चुका है। बिहार राज्य के राजगीर, गया एवं मुंगेर से निकलने वाली सल्फर युक्त गर्म जल से भी ऊर्जा की प्राप्ति हो सकती है।

(v) जैव ऊर्जा – जैविक उत्पादों से प्राप्त ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। जैविक उत्पादों के अंतर्गत गोबर, मल-मूत्र, अपशिष्ट को सम्मिलित करते हैं। भारत के दिल्ली केन्द्रशासित प्रदेश में नगरपालिका कचरे से ऊर्जा की प्राप्ति होती है।

प्रश्न 17.
निरुद्योगीकरण एवं पुनरुद्योगीकरण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरुद्योगीकरण (Deindustrialisation) – विनिर्माण उद्योगों के ह्रास को निरुद्योगीकरण कहा जाता है। निरुद्योगीकरण की प्रक्रिया विकसित देशों में अनेक कारकों का परिणाम है।

  1. विनिर्माण उद्योगों में मनुष्य के स्थान पर मशीनों का प्रयोग बढ़ना।
  2. विदेशों में अत्यंत सस्ती दरों पर उत्पन्न औद्योगिक उत्पादों की प्रतिस्पर्धा।
  3. नई मशीनों के निवेश में कमी के कारण इन उत्पादों का मूल्य अधिक होना।
  4. उच्च योग्यता प्राप्त लोगों द्वारा तृतीयक तथा चतुर्थक क्षेत्र के कार्यों को वरीयता देना।
  5. उच्च ब्याज दर तथा विदेशों से खरीदी जाने वाली वस्तुओं का और अत्यधिक महँगा होना।

पुनरुद्योगीकरण (Reindustrialisation) – इससे तात्पर्य नए उद्योगों के कुछ खंडों का विकास करना है। विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ उद्योगों का ह्रास हुआ है। अत्यधिक विकसित देशों में पुनरुद्योगीकरण की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. उच्च प्रौद्योगिक फर्मों जैसे इलैक्ट्रोनिक्स के सामान का उत्पादन करने वाली फर्मों की वृद्धि।
  2. ऐसी नई फर्म जो बहुधा उच्च कुशलता वाले कम श्रम के आधार पर विनिर्माण की स्थापना करती है।
  3. नई फर्म जो अपेक्षाकृत अल्प औद्योगिक क्षेत्रों में अथवा महानगरों के सीमांतों पर आधारित हैं।

प्रश्न 18.
स्वर्णिम चतुर्भुज परम-राजमार्ग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वर्णिम चतुर्भुज परम राजमार्ग (Golden Quadrilateral Super Highways) – भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने देश में चार महानगरों-दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई एवं चेन्नई को 4 लेन वाले द्रूतगामी सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना का शुभारम्भ 2 जनवरी, 1999 को किया। इस योजना में स्वर्णिम चतुर्भुज जो दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता चार महानगरों को जोड़ने वाले 5,846 किलोमीटर और उत्तर-दक्षिण तथा पूरब-पश्चिम गलियारों (7,300 किलोमीटर) जो क्रमशः श्रीनगर से कन्याकुमारी तथा सिल्वर से पोरबन्दर से जोड़ते हैं, 4/6 लेन वाले शामिल हैं। 5,846 किलोमीटर लम्बे इस कुल मार्ग में 5,319 किलोमीटर को 4 लेन वाला किया जा चुका था। 7,300 किलोमीटर में से 822 किलोमीटर लम्बे मार्ग को चार लेन में बदलने का कार्य पूरा हो चुका है और 4,892 किलोमीटर की लम्बाई के मार्ग पर कार्य चल रहा है।

प्रश्न 19.
संसार के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को उचित चिह्नों द्वारा दर्शाइए तथा उनके नाम लिखिए-
(i) संसार के पाँच सबसे बड़े व्यापारिक देश।
(ii) यूरोपीय मुक्त व्यापार संगठन (इफ्टा) देशों के नाम।
(iii) ओपेक के सदस्य देश।
(iv) आसियान के सदस्य देश।
उत्तर:
(i)
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चित्र : संसार के पाँच व्यापारिक देश

(ii)
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(iii)
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(iv)
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प्रश्न 20.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(a) तालचिर (b) कांडला पत्तन (c) राँची (d) शिमला (e) अजमेर (f) पटना।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 13

प्रश्न 21.
भारत के रेखा मानचित्र पर सूती वस्त्र उद्योग के प्रमुख केन्द्रों का वितरण दिखाइए।
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 5, 14

प्रश्न 22.
भारत का मानचित्र बनाकर निम्नलिखित को प्रदर्शित करें :
(क) जमशेदपुर
(ख) आगरा
(ग) दिल्ली
(घ) हैदराबाद
(ङ) पुणे
(च) शिलांग।
उत्तर:
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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Short Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
क्या केवल नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है ?
उत्तर:
नियोजन सफलता सुनिश्चित करता है। नियोजन प्रबंधन का प्राथमिक कार्य है। निर्धारित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए भविष्य में क्या करना है, क्यों करना है, किसे करना है, कब करना है, कैसे करना है और किन-किन साधनों के उपयोग से करना है इत्यादि बातों का पहले से ही निर्धारण करना नियोजन कहलाता है। वास्तव में व्यापार की सफलता बहुत हद तक नियोजन पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
अस्थायी अलगाव से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अस्थायी तौर पर जब नियोक्ता किसी कर्मचारी को उसके काम से निलंबन करता है या उसे. हटा देता है तो इसे अस्थायी अलगाव कहा जाता है। इसमें नियोक्ता अपने कर्मचारी को उसके बकाये वेतन और अन्य सुविधाओं को देता है। बाद में चलकर नियोक्ता पुनः उस कर्मचारी की नियुक्ति कर देता है। जब कर्मचारी की पुनः नियुक्ति होती है तब उसी समय से कर्मचारी की वेतन तय होता है।

प्रश्न 3.
विनियोग निर्णय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
विनियोग का अर्थ होता है पैसे का किसी भी क्षेत्र में निवेश करना। विशेष रूप से अंश और ऋण में पैसे का विनियोग करना लाभदायक होता है। विनियोग करने के संबंध में उचित निर्णय लेना ही विनियोग निर्णय कहलाता है। सोच-समझकर विनियोग का निर्णय करने से निवेशकों को लाभ के रूप में आय की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न 4.
NESI को मॉडल एक्सचेंज क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
NESI को विभिन्न कारणों से मॉडल एक्सचेंज कहा जाता है। ये कारण निम्न हैं-

  • राष्ट्रव्यापी बाजार उपलब्ध कराना,
  • व्यापार में कुशलता निष्पक्षता एवं पारदर्शिता लाना
  • समान रूप से उच्च किस्म की सेवाएं प्रदान करना
  • राष्ट्रीय स्कन्ध विपणि को सभी निवेशकों की पहुँच में लाना
  • ऋण बाजार का विकास करना
  • लागतों में कमी लाना
  • अखिल भारतीय स्तर पर सेवायें प्रदान करना।

प्रश्न 5.
संदेशवाहन शब्द को लैटिन शब्द भाषा के “Communis” शब्द से लिया गया है। इसका क्या अर्थ हैं ?
उत्तर:
संदेशवाहन (Communication) शब्द लैटिन भाषा के Comminis शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है-Common। किसी विचार या तथ्य को कुछ व्यक्तियों में सामान्य से दूसरे व्यक्ति तक इस तरह पहुँचाना है कि वह उन्हें जान सके तथा समझ सके।

प्रश्न 6.
“प्रबन्ध एक सरल विज्ञान है।” कैसे ?
उत्तर:
किसी विषय का व्यवस्थित ज्ञान ही विज्ञान है, प्रबन्ध भी व्यवस्थित ज्ञान है। विज्ञान की विशेषतायें इसमें पाई जाती हैं। प्रबंध के अनेक सार्वभौमिक सिद्धान्त हैं जो सभी जगह लागू होते हैं। विज्ञान की भाँति प्रबन्ध भी कारण और परिणाम में सम्बन्ध स्थापित करता है।

प्रश्न 7.
अधिकार का अर्थ क्या है ?
उत्तर:
किसी भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी के प्रबंधक अपने अधीनस्थों को प्रबंध सम्बन्धी कार्य करने की जिम्मेदारी देता है। तो इसे अधिकार कहा जाता है। अधिकार मिलने से ही अधीनस्थ कर्मचारी अपने कर्तव्यों का पालन अच्छी तरह से कर सकते हैं। वास्तव में औद्योगिक युग में कोई भी व्यक्ति न तो सभी कार्य स्वयं कर सकता है और न ही सभी निर्णय स्वयं ले सकता है। अतः वह कुछ कार्य दूसरों को सौंप देता है। इस प्रकार अपने कार्यभार का कुछ भाग दूसरे व्यक्तियों को सौपना ही भारार्पण या अधिकार कहलाता है।

दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि प्रबंध संबंधी शक्ति प्राप्त करना ही अधिकार कहलाता है।

प्रश्न 8.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अंधा है ?
उत्तर:
ऐसा कहा जाता है कि नियंत्रण नियोजन के अभाव में अन्धा है। क्योंकि जब नियोजन की प्रक्रिया अच्छी तरह से नहीं होती है तो व्यवसायिक संस्था को नियंत्रण भी अच्छी तरह से नहीं किया जा सकता है। नियोजन और नियंत्रण दोनों एक दूसरे के लिए आवश्यक कार्य है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। नियोजन के बिना नियंत्रण अर्थहीन है तथा नियंत्रण नियोजन के बिना अंधा है। वास्तव में नियंत्रण नियोजन को उदेश्यपूर्ण बनाता है एवं नियोजन नियंत्रण को निर्देशन प्रदान करता है।

प्रश्न 9.
वितरण माध्यम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
वितरण माध्यम वस्तुओं को उत्पादक (निर्माता) से उपभोक्ताओं तक पहुँचाने का वह मार्ग है जिसमें वे सभी व्यक्ति एवं संस्थाओं सम्मिलित की जाती है जो बिना किसी परिवर्तन के इनको पहुँचाने का कार्य करती है। निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अन्तिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। उपयुक्त माध्यम वह है जो मितव्ययी हो तथा अधिकतम लाभप्रद हो।

प्रश्न 10.
ऐसा क्यों कहा जाता है कि प्रबन्ध के सिद्धान्त सार्वभौमिक हैं ?
उत्तर:
प्रबंध के सिद्धान्त सार्वभौमिक है क्योंकि प्रबंध के सभी सिद्धान्त सार्वभौमिक योग्यता और उपयोगिता पर आधारित है। यह मानव के प्रत्येक क्षेत्र आर्थिक, समाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक में लागू होता है। प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन, निर्देशन, समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता पड़ती है। अतः प्रबंध की उपयोगिता सार्वभौमिक है।

प्रश्न 11.
नियंत्रण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
नियंत्रण के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • उद्देश्य की जानकारी करना (Determining objectives) – इस बात का पता लगाना कि क्या किया जाना है और किस समय किया जाना है।
  • साधनों की जानकारी करना (Determining of Resources) – किसी कार्य को करने के लिए कितनी पूँजी और मानवीय शक्ति की आवश्यकता है।
  • विचलन का पता लगाना (Determining of deviation) – प्रतिमानों एवं निष्पादन में विचलन का पता लगाना और संशोधन करना।

प्रश्न 12.
पूँजी संरचना से क्या आप समझते हैं ?
उत्तर:
पूँजी संरचना से आशय पूँजी के दीर्घकालीन साधनों के पारस्परिक अनुपात से है। इसमें समस्त दीर्घकालीन कोष सम्मिलित होते हैं, जैसे – अंश पूँजी, ऋणपत्र, दीर्घकालीन ऋण तथा संचितियाँ।

प्रश्न 13.
उच्च स्तरीय प्रबंध के किन्ही तीन कार्यों को बताएं।
उत्तर:
उच्च स्तरीय प्रबंध के दो कार्य निम्नलिखित हैं-

  • उच्च स्तरीय प्रबंधक संस्था के उद्देश्यों का निर्धारण करते हैं।
  • निर्धारित उद्देश्यों के प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय प्रबंधक द्वारा नीतियों का निर्धारण किया जाता है।
  • निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उच्च स्तरीय प्रबंध द्वारा विभिन्न साधनों की व्यवस्था की जाती है।

प्रश्न 14.
नियंत्रण आगे देखना है। समझाइए।
उत्तर:
नियंत्रण का उद्देश्य व्यवसाय के भावी लक्ष्यों की प्राप्ति है। यही कारण है कि सुधारक कार्यवाहियाँ इस प्रकार की जाती हैं कि भविष्य में उन कमियों और गलतियों को न दोहराया जाए जो कि वर्तमान में की गयी है। इस प्रकार नियंत्रण प्रक्रिया कार्य की वास्तविक प्रगति की समीक्षा ही नहीं वरन् भविष्य के उद्देश्यों और लक्ष्यों की प्राप्ति भी है।

प्रश्न 15.
प्रबंध के नियंत्रण कार्य में प्रयोग होने वाले ‘विचलन’ शब्द का अर्थ बताएँ।
उत्तर:
नियंत्रण प्रक्रिया का अगला तीसरा स्तर प्रमाप (विचलन) और वास्तविक हुए कार्यों के बीच आने वाले अंतर के कारणों को मालूम करना है। इससे यह तथ्य मालूम करने का प्रयत्न किया जाता है कि जो अंतर आया है वह गलत योजना बनने के कारण आया है या योजना ठीक तरह से लागू करने के कारण आया है।

प्रश्न 16.
मुद्रा बाजार क्या है ?
उत्तर:
मुद्रा बाजार (Money market) वह केन्द्र या बाजार है जिसमें मुद्रा एवं अल्पावधि वित्तीय आस्तियाँ जो मुद्रा के निकट के प्रतिरूप हैं, ली और दी जाती हैं। मुद्रा बाजार में मुद्रा विनिमय-पत्रों, प्रतिज्ञा-पत्रों व अल्पकालीन बिलों को मुद्रावत (near money) कहा जाता है।

प्रश्न 17.
विपणन के दो तत्वों को बताइए।
उत्तर:
विपणन के दो तत्व निम्नलिखित हैं-

  • बाजार तथा
  • ग्राहक

प्रश्न 18.
उत्पाद के मूल्य संबंधी निर्णय से आपका क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
मूल्य निर्धारण विपणन-मिश्रण का दूसरा तत्व है। मूल्यों का निर्धारण इस प्रकार किया जाना चाहिए कि मूल्य उपभोक्ता को अधिक प्रतीत न हो, संस्था प्रतियोगिता में टिककर उचित लाभ प्राप्त कर सके तथा सरकारी नियंत्रणों से भी अपने आपको बचा सके।

प्रश्न 19.
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है। कैसे ?
उत्तर:
विज्ञापन क्रेता को भ्रमित करता है, क्योंकि विज्ञापन खराब-से-खराब वस्तुओं और सेवाओं को अच्छा-से-अच्छा बना देता है। विज्ञापन में जो दिखाया जाता है, वह वास्तव में होता नहीं है। विज्ञापन द्वारा वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है जिससे क्रेता आसानी से भ्रमित हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
उद्यमिता क्या है?
उत्तर:
उद्यमितया या साहसिक कार्यों का अर्थ है-कार्यों को देखना, विनियोग करना, उत्पादन के अवसरों को देखना, उपक्रम को संगठित करना और नई विधि से उत्पादन करना, पूँजी प्राप्त करना, श्रम और सामग्री को एकत्रित करना, उच्च पद के अधिकारी, प्रबंधकों का चयन जो संगठन के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को करेंगे।

प्रश्न 21.
प्रबंध में हेनरी फेयोल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर:
प्रबंध में हेनरी फेयोल का महत्वपूर्ण योगदान है। फेयोल ने प्रबंध के लिए 14 सिद्धांत दिए हैं-

  • कार्य विभाजन
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व
  • अनुशासन
  • आदेश की एकता
  • निर्देश की एकता
  • केन्द्रीयकरण या विकेन्द्रीकरण
  • व्यक्तिगत हित सामान्य हित के अधीन
  • कर्मचारियों
  • सोपान श्रृंखला
  • व्यवस्था अथवा क्रमबद्धता
  • समता
  • कर्मचारियों में स्थायित्व
  • पहल क्षमता
  • सहयोग की भावना

प्रश्न 22.
नियोजन की सीमाएँ लिखें।
उत्तर:
नियोजन की सीमाएँ इस प्रकार हैं-

  • नियोजन पर किए गए व्यय से लागत व्ययों में वृद्धि होती है।
  • नियोजन में यदि परिवर्तन किया जाए तो बाधाएँ आती हैं।
  • नियोजन में पक्षपातपूर्ण निर्णय किए जाते हैं।
  • संकट काल में नियोजन करना संभव नहीं है।
  • नियोजन बहुत अधिक खर्चीली प्रक्रिया है। इसको तैयार करने में बहुत अधिक समय, श्रम तथा धन का अपव्यय होता है।

प्रश्न 23.
क्या जवाबदेही को सौंपा जा सकता है ?
उत्तर:
जवाबदेही के संबंध में उल्लेखनीय बात है कि प्रबंधक अपने जवाबदेही का सौंपना या प्रतिनिधान (delegation) नहीं कर सकता। हाँ, अन्य व्यक्तियों से सहायता ली जा सकती है किन्तु जवाबदेही मूल व्यक्ति का ही रहता है। उदाहरण के लिए, एक कंपनी की दशा में प्रबंध संचालक अपने कर्तव्यों के लिए संचालक मण्डल के प्रति उत्तरदायी होगा।

वह अपने कार्य-भार को हल्का करने के उद्देश्य से अन्य लोगों की सहायता लेता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार भी प्रदान करता है परंतु यदि अधीनस्थ व्यक्ति के आचरण से कंपनी को कोई हानि होती है तो संचालक मण्डल के सम्मुख प्रबंध संचालक ही जवाबदेह होगा। संक्षेपण में हम यह कह सकते. हैं कि केवल अधिकारों को ही सौंपी जा सकता है जवाबदेही को नहीं।

प्रश्न 24.
वित्तीय नियोजन के महत्व समझाइए।
उत्तर:
पूँजी आधुनिक उद्योगों की जीवन-संजीवनी है। कोई भी उद्योग, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, उस समय तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में पूँजी का प्रबंध न हो। कोई भी व्यवसाय शुरू करने का विचार मन में आने की स्थिति से लेकर उसके प्रवर्तन, संचालन, विस्तार और उसके समापन तक सभी परिस्थितियों में पूँजी की आवश्यकता होती है।

आवश्यकतानुकूल एवं समय पर वित्त का प्रबंध न होने पर बड़ी से बड़ी और अच्छी-सेअच्छी योजनाएँ भी असफल हो जाती हैं। अतः प्रबंधकों को चाहिए कि वे वित्तीय आयोजन भली-भाँति करें। कम्पनी की भावी सफलता वित्तीय आयोजन की सुदृढ़ता पर ही निर्भर करती है।

यदि इसके निर्माण में पर्याप्त ज्ञान, तकनीकी अनुभव और दूरदर्शिता का प्रयोग किया जाता है तो भविष्य के लिए वरदान सिद्ध होगी। इसके विपरीत अदूरदर्शिता, अपरिपक्व ज्ञान एवं अनुभवहीनता के आधार पर जल्दबाजी में बनाई गई वित्तीय योजना कम्पनी के भविष्य और अंशधारियों के हितों के लिए स्थायी खतरा बन जाती है। उपक्रम के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन दोनों ही प्रकार के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि भली प्रकार से वित्तीय नियोजन (Financial Planning) किया जाए।

प्रश्न 25.
स्थायी पूँजी की कोई तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
स्थायी पूँजी की तीन विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • इसका उपयोग स्थायी संपत्तियों का क्रय करने में किया जाता है।
  • यह व्यवसाय में दीर्घकाल तक रहती है।
  • इसकी मात्रा व्यवसाय की प्रकृति पर निर्भर करती है।

प्रश्न 26.
शेयर बाजार को परिभाषित करें।
उत्तर:
शेयर बाजार एक ऐसा संगठित बाजार है जहाँ पर विभिन्न प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। ये प्रतिभूतियाँ वे हैं जो शेयर बाजार की सूची में सम्मिलित हों और जो पहले ही किसी संस्था द्वारा जारी की गई हों। जैसे-सार्वजनिक कंपनियों द्वारा निर्गमित कंपनियों द्वारा निर्गमित अंश एवं ऋणपत्र, सरकार तथा नगरपालिका द्वारा जारी किये गये ब्रांड आदि तथा विभिन्न प्रयासों द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियाँ। शेयर बाजार में प्रतिभूतियों का लेन-देन विनियोग या सट्टे के लिए कुछ निश्चित नियमों के अनुसार किया जाता है।

प्रतिभूति अनुबंध (नियमन) अधिनियम, 1956 के अनुसार, ‘स्टॉक एक्सचेंज का आशय व्यक्तियों के एक ऐसे संगठन या संस्था से है, चाहे वह समामेलित हो या न हो, जिसकी स्थापना प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय और लेन-देन में सहायता नियमन तथा नियंत्रण करने के उद्देश्य से की गई हो।’

प्रश्न 27.
विपणन मिश्रण की क्या विचारधारा है ?
उत्तर:
विपणन मिश्रण का अर्थ (Meaning of marketing mix) – विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण कहलाता है।

परिभाषा – विपणन मिश्रण की प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. डॉ० आर० एस० डावर के अनुसार, ‘निर्माताओं के द्वारा बाजार में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियाँ विपणन-मिश्रण (Marketing mix) का निर्माण करती हैं।’
  2. कीली एवं लेजर के अनुसार, ‘विपणन मिश्रण उस बड़ी बैटरी की युक्तियों से बना है जिसको क्रेताओं का किसी विशेष वस्तु की खरीद करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से काम में लाया जा सकता है।
  3. फिलिप कोटलर के अनुसार, ‘एक फर्म का उद्देश्य अपने विपणन घरों के लिए सर्वोत्तम विन्यास (Setting) को खोजना है। यह विन्यास विपणन-मिश्रण कहलाता है।’

विक्रय में सफलता प्राप्त करने के उद्देश्य से विक्रेता/उत्पादक विभिन्न नीतियों का मिश्रण (mix) करता है। यही विपणन मिश्रण (Marketing mix) कहलाता है। प्रत्येक विक्रेता अनेक घटकों (वस्तु का ब्राण्ड, मूल्य, पैकिंग, विज्ञापन, वितरण, अनुसंधान आदि) का मिश्रण (mix) इस प्रकार करता है कि एक निश्चित समय पर सर्वाधिक लाभ प्राप्त किया जा सके।

विपणन रीति-नीति (Marketing Strategy) का एक भाग/हिस्सा विपणन-मिश्रण (Marketing mix) है। विपणन रीति-नीति के अंतर्गत दो बातों का अध्ययन होता है-

  • बाजार लक्ष्यों की परिभाषा देना (Definition of Market Targets)
  • विपणन-मिश्रण का संयोजन (Composition of marketing mix) जबकि विपणन-मिश्रण उपकरणों का संयोग (Combination) है जिसके माध्यम से विपणन उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 28.
लेबल के विभिन्न प्रकार क्या है ?
उत्तर:
लेबल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं
(i) ब्रांड लेबल – ऐसा लेबल जिस पर केवल वस्तु के ब्रांड का नाम लिखा हो, ब्रांड लेबल कहलाता है। इस लेबल पर वस्तु के ब्रांड के नाम के अतिरिक्त अन्य कोई जानकारी नहीं दी जाती है।

(ii) श्रेणी लेबल – यह एक ऐसा लेबल होता है जिस पर लिखे शब्द या अंक उस वस्तु की क्वालिटी या श्रेणी को प्रदर्शित करते हैं। जैसे-जब इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड, कोलकाता उषा ब्रांड के नाम से पंखे बनाती है जो कि क्वालिटी के आधार पर अनेक प्रकार के हैं। इसी आधार पर उन पर Delux, Prima व Continentel के लेबल लगे होते हैं। इस प्रकार के लेबल श्रेणी लेबल कहलाते हैं।

(iii) विवरणात्मक लेबल – इन लेबलों पर उत्पादन का पूर्ण विवरण लिखा होता है। जैसे-

  • वस्तु किन-किन चीज को मिलाकर तैयार की जाती है
  • वस्तु का प्रयोग किस प्रकार किया जाए
  • वस्तु के विभिन्न प्रयोग
  • प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
  • उत्पादक का नाम
  • उत्पादक की तिथि
  • बैच नम्बर आदि। इस तरह के लेबलों का प्रयोग प्रायः दवाई निर्माता करते हैं।

प्रश्न 29.
साझेदारी की विशेषताएं क्या हैं ?
उत्तर:
साझेदारी की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. साझेदारी की स्थापना के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों का होना अनिवार्य है।
  2. साझेदारों के बीच समझौता होना चाहिए जो लिखित या मौखिक हो सकता है।
  3. किसी वैद्य व्यापार को चलाने के लिए साझेदारी की स्थापना होती है।
  4. समझौते का उद्देश्य व्यवसाय के लाभ-हानि का बँटवारा करना होता है।
  5. साझेदारी फर्म के सभी साझेदारों को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने का अधिकार होता है।

इस प्रकार प्रत्येक साझेदार फर्म का एजेन्ट भी होता है और स्वामी भी।

प्रश्न 30.
प्रबन्ध के चार कार्यों की विवेचना कीजिए। अथवा, प्रबन्ध के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
प्रबन्ध के चार कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. नियोजन- यह प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। व्यावसायिक संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए पहले से ही कार्य नीति निर्धारण करना कि क्या करना है, कब, किसे और कैसे करना है नियोजन कहलाता है।
  2. नियुक्तिकरण- इसके अंतर्गत व्यक्तियों से पदों को भरा जाता है ताकि कार्यों का निष्पादन किया जा सके।
  3. संगठन-नियोजन तो किसी विचार को लिख देना मात्र ही है, लेकिन इस विचार को वास्तविकता में बदलने के लिए मानव समूह की आवश्यकता होती है। मानव समूह को व्यवस्था में बाँधने के लिए संगठन की आवश्यकता होती है। इसके अंतर्गत सम्पूर्ण कार्य को विभिन्न छोटे-छोटे कार्यों में बाँटा जाता है।
  4. नियंत्रण- यह प्रबंध का अंतिम तथा महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके अंतर्गत प्रबंधक यह देखता है कि कार्य निश्चित योजना के अंतर्गत हो रहा है या नहीं।

प्रश्न 31.
वित्तीय प्रबंध के कार्यों का संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय प्रबंध के कार्यों को दो भागों में बाँटा जाता है-
1. प्रशासनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय पूर्वानुमान
  • वित्तीय नियोजन
  • कोषों की प्राप्ति
  • वित्तीय निर्णय
  • विनियोग निर्णय
  • आय का प्रबंध
  • वित्तीय निष्पादन का मूल्यांकन
  • वित्त नियंत्रण

2. नैत्यिक या दैनिक कार्य- इसके अंतर्गत निम्न कार्य आते हैं-

  • वित्तीय अभिलेख रखना
  • वित्तीय विवरणों को तैयार करना
  • रोकड़ शेष बनाए रखना
  • महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रलेखों को सुरक्षित रखना

प्रश्न 32.
नियुक्तिकरण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
नियुक्तिकरण से आशय प्रशासन द्वारा निर्धारित नीतियों को लागू करने के लिए योग्य पदाधिकारियों की नियुक्ति, चुनाव, प्रशिक्षण, पदोन्नति, पदावनति, स्थानांतरण, सेवा समाप्ति आदि से संबंधित नियम सिद्धांत तथा समस्याओं से है।

पीटर ड्रकर के अनुसार, “प्रबंध के प्रमुख रूप से तीन उत्तरदायित्व हैं – (i) प्रबंध कार्य, (ii) श्रमिकों का प्रबंध, (iii) मैनेजर्स का प्रबंध।

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 2 in Hindi

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प्रश्न 1.
प्रबन्ध के सामाजिक उत्तरदायित्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक उत्तरदायित्व का अर्थ उन क्रियाओं से है जिसे व्यवसाय ने स्वयं के लिए कर्मचारियों के लिए, विनियोग्यताओं के लिए, अन्य व्यवसायों के लिए तथा देश के लिए करना है। व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व को विभिन्न विद्वानों ने परिभाषित किया है-

ब्रोवन के अनुसार, “व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्व का आशय उन नीतियों का अनुकरण करना, उन निर्णयों को लेना या उन कार्यों को करना है, जो समाज के लक्ष्यों और मूल्यों की दृष्टि से वांछनीय है।”

स्टोनियर के अनुसार, “वास्तविक अर्थों में सामाजिक दायित्वों के अंगीकरणं का तात्पर्य समाज की आकांक्षाओं को समझना एवं मान्यता देना और इसकी सफलता के लिए योगदान देने का निश्चय करना है।”

नई दिल्ली में हुई अंतर्राष्ट्रीय सेमीनार, 1965 के घोषणा-पत्र के अनुसार, “व्यवसाय के सामाजिक दायित्व का अर्थ ग्राहकों, कर्मचारियों, अंशधारियों एवं समाज के प्रति दायित्व से है।”

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि व्यापार द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को ही व्यवसाय का सामाजिक उत्तरदायित्व कहते हैं।

आज व्यापार कुशल व्यक्ति इस बात को मानने लगे हैं कि व्यवसाय द्वारा समाज के विभिन्न वर्गों की सेवा की जाए। परन्तु कुछ ऐसे भी व्यापारी हैं जो केवल लाभ के लिए ही कार्य करते हैं। इन व्यापारियों को अपना अस्तित्व बनाये रखना कठिन हो जाता है।

प्रश्न 2.
प्रशिक्षण के महत्त्व एवं विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण किसी भी कार्य प्रणाली का रीढ़ माना जाता है। व्यक्ति की किसी खास कार्य के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। कर्मचारियों को कई प्रकार से प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण कर्मचारी विभाग की सहायता से आयोजित करना ज्यादा लाभदायक होता है। दूसरी ओर विशेषज्ञों द्वारा विशेष पाठ्यक्रम एवं योजना के अधीन प्रशिक्षण दिया जाता है।

इन प्रणालियों को दो भागों में बाँटा गया है-
1. काम पर प्रशिक्षण प्रणाली-इसके अंतर्गत कर्मचारियों को काम पर लगाकर प्रशिक्षण दिया जाता है। इससे कर्मचारी काम भी सीखता है और उत्पादन भी करता है। वह यहाँ पर अपनी भूल को तुरंत सुधारने की चेष्टा भी करता है। इसकी लागत भी कम आती है। इस प्रकार के प्रशिक्षण निम्न प्रकार से दिये जाते हैं-

(i) निर्देशन एवं परामर्श-निर्देशन एवं परामर्श भी इस प्रणाली में दिये जाते हैं। कई वरिष्ठ अनुभवी कर्मचारी उन्हें काम का प्रशिक्षण देता है और स्वयं करके दिखाने से जल्दी समझ में आता है। वह कठिनाइयों को तुरंत दूर करता है।

(ii) प्रशिक्षार्थी प्रशिक्षण प्रणाली इस प्रणाली में युवा प्रशिक्षार्थी को किसी अनुभवी, प्रशिक्षित तथा निपुण कारीगर के साथ दिया जाता है। वह कारीगर ही उसे काम सिखाता है। काम की बारीकियों को समझाता है। जैसे-चार्टर्ड एकाउन्टेंट।

(iii) सहायक अधिकारी प्रणाली इस प्रणाली में किसी उच्च अधिकारी का सहायक बना दिया जाता है। वह समय-समय पर उनकी अनुपस्थिति में उसकी जिम्मेदारियों का निर्वाह करता है। उच्च अधिकारी समय-समय पर उसे निर्णय भी देते रहता है। इससे वह निपुण हो जाता है।

(iv) कार्य बदली प्रणाली-इस प्रणाली में एक प्रशिक्षण संचालक के निर्देशन में विभिन्न सम्बन्ध विभागों में काम पर घुमाया जाता है और सभी सीटों पर काम करने की प्रणाली से परिचित कराया जाता है। फलस्वरूप वह संस्था की तंत्र व्यवस्था को भली-भाँति समझ लेता है और अपने अधीन काम करने वालों की प्रणाली को समझ लेता है।

2. कार्य से पृथक प्रशिक्षण-इसके अंतर्गत एक पूर्व नियोजित कार्य के अनुसार व्यापक प्रशिक्षण दिया जाता है। इसकी मुख्य विधियाँ निम्न हैं-
(i) विशेष पाठ्यक्रम-संस्था के अनुभवी प्रबंधकों एवं शिक्षाविदों की सहायता से एक विशिष्ट पाठ्यक्रम बनाया जाता है और उसी के अनुसार कक्षाएँ आयोजित की जाती है। इन कक्षाओं में सैद्धान्तिक और व्यावहारिक ज्ञान प्रशिक्षार्थी को दिया जाता है।

(ii) भूमिका निर्वाह-इस प्रणाली में एक कृत्रिम संघर्ष का निर्माण किया जाता है, जिसमें किसी प्रशिक्षार्थी को किसी पात्र की भूमिका निभानी होती है। अपनी भूमिका अदा करके परीक्षार्थी दूसरे के समक्ष व्यवहार करना सीखता है। वह अपने व्यवहार तथा दूसरों पर इसके प्रभाव का अवलोकन करके मानव सम्बन्धों और नेतृत्व सम्बन्धी प्रशिक्षण प्राप्त करता है।

(iii) व्यावसायिक क्रिया व्यावसायिक क्रिया एक ऐसी प्रतियोगिता है जिससे वास्तविक जीवन की परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व होता है। परीक्षार्थी को व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्र, जैसेउत्पादन, वितरण, वित्त आदि में निर्णय लेने को कहा जाता है। जिसका निर्णय सर्वोत्तम समझा जाता है उसे प्रतियोगिता में सर्वप्रथम स्थान दिया जाता है।

(iv) बहुपद प्रबन्ध-इस पद्धति में दो प्रबन्ध मण्डलों का गठन किया जाता है। कनिष्ठ प्रबन्ध मण्डल, जिसमें मध्य तथा निम्न स्तर के अधिकारी सम्मिलित होते हैं। समस्याओं का अध्ययन कर वरिष्ठ प्रबन्ध मण्डल को अपने सुझाव देते हैं। वरिष्ठ प्रबन्ध मण्डल में उच्च प्रबन्धक होते हैं और अन्तिम निर्णय लेते हैं। कनिष्ठ मण्डल में बारी-बारी से विभिन्न अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है।

(v) संवेदनशील प्रशिक्षण-यह एक ऐसी विधि है जिसमें प्रबंधकों में जागरुकता, सहनशीलता, दूसरों को समझने की योग्यता आदि गुणों का विकास किया जाता है। प्रशिक्षार्थियों को छोटे-छोटे समूह में विभाजित करके नियंत्रित परिस्थितियों में उनके पारस्परिक व्यवहार की समीक्षा की जाती है।

(vi) अन्य विधियाँ-इन विधियों के अलावे प्रशिक्षण की कुछ और विधियाँ है। जैसे-गोष्ठी, सम्मेलन, चुने हुए या स्वयं पठन, परिचर्चा, सभा, कार्यशाला, कार्य अनुसंधान, कारखाना दौरे आदि।

प्रश्न 3.
व्यवसाय में दीर्घकालीन वित्तीय स्रोतों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जिस प्रकार मनुष्य के जीवन के लिए रक्त की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार व्यवसाय के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। बिना रक्त के शरीर काम नहीं कर सकता उसी तरह बिना वित्त के व्यावसायिक क्रियाओं का चलना कठिन है। अतः व्यवसाय के कार्यों को निरंतर गति से चलाने के लिए वित्त या पूँजी की आवश्यकता पड़ती है।

व्यवसाय के दीर्घकालीन वित्तीय स्रोत इस प्रकार हैं-

  1. स्वामी की पूँजी।
  2. सावधिक ऋण वित्तीय संस्थाओं से।
  3. जमा ऋण जो स्वामी ने दिये हों।
  4. उधार क्रय तथा लीज सुविधा।
  5. मशीन का क्रय भारतीय औद्योगिक विकास बैंक बिलों की पुनः कटौती योजना।
  6. शीर्ष पूँजी, सीमांत राशि, सहायता, उधार, ऋण सरकार से तथा अन्य विशिष्ट संस्थाओं से लेना।

प्रश्न 4.
पार्षद सीमा नियम एवं पार्षद अंतर नियम में अंतर बताइए।
उत्तर:
पार्षद सीमा नियम एवं पार्षद अंतर्नियम में निम्नलिखित आधार पर अंतर स्पष्ट किया जा सकता है
(i) विषय-वस्तु के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम कम्पनी का अधिकार पत्र तथा संविधान होता है जिसमें कम्पनी के उद्देश्यों का वर्णन रहता है। परन्तु अन्तर्नियम में आंतरिक प्रबंध तथा कार्य प्रणाली संबंधी नियम होता है।

(ii) उद्देश्य के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम बनाने का उद्देश्य कम्पनी के उच्च पदाधिकारियों को कम्पनी के कार्य के नियमों तथा उपनियमों की जानकारी देना होता है।

(iii) परिवर्तन के आधार पर अंतर – पार्षद नियम में परिवर्तन लाना कठिन होता है। वैधानिक कार्यवाही करने के बाद न्यायालय द्वारा आज्ञा प्राप्त कर इसमें परिवर्तन लाया जा सकता है। परन्तु अन्तर्नियम में परिवर्तन लाना आसान होता है। केवल सदस्यों के विशेष प्रस्ताव द्वारा इसमें विषय परिवर्तन लाया जा सकता है।

(iv) अनिवार्यता के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम में बिना कम्पनी का रजिस्ट्रेशन अथवा सम्मेलन नहीं हो सकता है। परन्तु अन्तर्नियम प्रत्येक कम्पनी के लिये आवश्यक नहीं होता है। इसके न रहने पर Table A का नियम लागू होता है।

(v) वैधानिक प्रभाव के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा भंग होने पर अन्य व्यक्तियों के बीच की प्रसविदा को लागू नहीं कराया जा सकता है। परन्तु अन्तर्नियम के भंग होने पर प्रसविदा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

(vi) शक्तियों से बाहर का सिद्धान्त के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम में वर्णित कार्य-क्षेत्र के बाहर कम्पनी द्वारा किया गया सभी कार्य विवर्जित होते हैं। ऐसे कार्यों को सभी सदस्यों द्वारा भी सम्पुष्ट नहीं किया जा सकता। परन्तु अन्तर्नियम के अधिकार क्षेत्र से बाहर किए गए कार्य को सदस्यों द्वारा सम्पुष्ट किया जा सकता है।

(vii) महत्त्व के आधार पर अंतर – पार्षद सीमा नियम कम्पनी का एक महत्त्वपूर्ण प्रलेख होता है जिसकी तुलना देश के संविधान से की जा सकती है। परन्तु अन्तर्नियम पार्षद सीमा नियम का सहायक होता है जिसकी तुलना देश के संविधान के अंतर्गत बनाए गये वैधानिक अधिनियमों से की जा सकती है।

प्रश्न 5.
व्यवसाय के सामाजिक दायित्वों का वर्णन करें।
उत्तर:
हालांकि व्यवसाय करने का प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना है, लेकिन व्यवसाय में समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व भी हैं। व्यवसाय-कार्य करने के सिलसिले में यह बात ध्यान रखना चाहिए कि व्यवसाय ऐसे करना चाहिए जिससे कि समाज के लोगों का शोषण नहीं हो और समाज में शांति का वातावरण बना रहे। कानूनी दृष्टिकोण से वैध व्यापार करना चाहिए। अवैध व्यापार नहीं करना चाहिए। तभी समाज का वातावरण अच्छा बना रहता है।

वास्तव में, व्यवसाय के सामाजिक उत्तरदायित्वों को निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • समाज को रोजगार के उचित अवसर प्रदान करना।
  • समाज में नागरिकों के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता करना।
  • व्यवसाय में स्वास्थ्यप्रद वातावरण बनाये रखना।
  • समाज के विभिन्न कल्याणकारी कार्यों में सहयोग देना।
  • समाज में शिक्षा, चिकित्सा इत्यादि की सुविधाएँ उपलब्ध कराना, जैसे-बड़ी-बड़ी औद्योगिक संस्थाएँ अपने स्कूल चलाती हैं।
  • असहाय व अपाहिजों को रोजगार के अवसर देकर उनकी सहायता करना।
  • प्राकृतिक विपदाओं के समय समाज की उन्नति में सहयोग देना। बाढ़ व सूखा क्षेत्रों में आर्थिक सहायता प्रदान करना।

प्रश्न 6.
अधिकार अंतरण प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकार अंतरण से अभिप्राय दूसरे लोगों को कार्य सौंपना तथा उसे करने के लिए अधिकार प्रदान करना है। इसके निम्नलिखित कदम हैं-
1. उत्तरदायित्व सौंपना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का पहला कदम उत्तरदायित्व सौंपा जाना है। प्रायः कोई भी अधिकारी इतना सक्षम नहीं होता कि वह अपना सारा काम स्वयं ही कर ले। अपने कार्य को सफलतापूर्वक निष्पादन के लिए अधिकारी अपने सम्पूर्ण कार्य का विभाजन कर देता है। इस प्रकार वह महत्त्वपूर्ण कार्यों को पास रखकर शेष सभी कार्यों को अधीनस्थों को सौंप देता है। अधीनस्थों को कार्य सौंपते समय उसकी योग्यता एवं कुशलता का ध्यान रखा जाता है। उदाहरण के लिए एक वित्त प्रबंधक वित्त व्यवस्था के काम को अपने पास रखकर लेखांकन आँकड़े एकत्रित करने, आदि कार्यों को अधीनस्थों को सौंप सकता है।

2. अधिकार प्रदान करना – अधिकार अंतरण प्रक्रिया का दूसरा कम कार्यों का सफलतापूर्वक निष्पादन के लिए अधिकार सौंपना है। जब तक अधीनस्थों को अधिकार प्रदान न कर दिए जाए तब तक कार्यभार सौंपना अर्थहीन होता है। उदाहरण के लिए, जब एक मुख्य प्रबंधक क्रय प्रबंधक को क्रय विभाग का काम सौंपता है तो माल क्रय करने, माल का स्टॉक रखने, अपने कार्य को अधीनस्थों में बाँटने आदि के अधिकार भी प्रदान करता है।

3. उत्तरदेयता निश्चित करना – यह अधिकार अंतरण प्रक्रिया का अंतिम कदम है। प्रत्येक अधीनस्थ केवल उस अधिकारी के समक्ष ही जवाबदेह होता है जिससे कार्य करने के लिए अधिकार प्राप्त होते हैं। जवाबदेही का अभिप्राय कार्य निष्पादन के लिए अधिकारी द्वारा माँगे गए स्पष्टीकरण का उत्तर देने से है।

प्रश्न 7.
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के भारत में व्यवसाय तथा उद्योग पर प्रतिकूल प्रभावों में से पाँच प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के भारत में व्यवसाय तथा उद्योग पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है उनसे कुछ निम्न है-

  • आयात में वृद्धि – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश में आयात की वृद्धि हुई है।
  • निर्यात में वृद्धि – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश के निर्यात में काफी वृद्धि हुई है।
  • विदेशी मुद्रा की बढ़ोत्तरी – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से हमारे देश में विदेशी मद्रा भंडार में काफी बढ़ोत्तरी हुआ है।
  • नये उत्पाद की जानकारी – उदारीकरण एवं वैश्वीकरण से नये-नये उत्पाद की जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाता है।
  • रोजगार में वद्धि – उदारीकरण तथा वैश्विकरण का ही देन है कि आज हमारे देश में बेरोजगार को प्रतिष्ठित एवं उच्च वेतन पर काम मिल जाता है।

प्रश्न 8.
अनुशासन एवं सहयोगी भावना सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनुशासन – किसी भी कार्य का सफलतापूर्वक निष्पादन करने के लिए अनुशासन का होना आवश्यक है। फेयोल के अनुसार अनुशासन से अभिप्राय आज्ञाकारिता, अधिकारों के प्रति श्रद्धा तथा. निर्धारित नियमों का पालन करने से है। सभी स्तरों पर, अच्छी पर्यवेक्षण व्यवस्था प्रदान करके नियमों की स्पष्ट व्याख्या करके एवं परस्कार तथा दण्ड पद्धति को लाग करके अनशासन कायम किया जा सकता है। प्रबंधक स्वयं को अनुशासित करके अधीनस्थों के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि कर्मचारी अपनी पूरी क्षमता से काम करने के वायदे को तोड़ते हैं तो यह आज्ञाकारिता का उल्लंघन होगा। इसी प्रकार एक बिक्री प्रबंधक को अधिकार प्राप्त है कि वह उधार बिक्री कर सकता है। लेकिन वह यह सुविधा आम ग्राहकों को न देकर अपने रिश्तेदारों तथा मित्रों को ही देता है तो यह अधिकारों के प्रति श्रद्धा को अनदेखा करना है।

सहयोग की भावना – इस सिद्धांत के अनुसार प्रबंधक को लगातार कर्मचारियों में टीम भावना के विकास का प्रयास करते रहना चाहिए। ऐसा करने के लिए प्रबंधक को अधीनस्थों से वार्तालाप के दौरान मैं के स्थान पर हम शब्द का प्रयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, प्रबंधक को अधीनस्थों से हमेशा यह कहना चाहिए कि हम यह काम करेंगे न कि मैं यह काम करूँगा। प्रबंधक के इस व्यवहार से अधीनस्थों में टीम भावना का संचार होगा।

प्रश्न 9.
उद्यमिता को परिभाषित करें तथा उद्यमिता विकास में सरकार की भूमिका की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
उद्यमिता जोखिम एवं साहस का कार्य है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता है। उद्यमी अपने सृजनात्मक व्यवहार तथा कल्पनाशीलता से अपने विचारों को मूर्त रूप प्रदान करता है तथा नये-नये साहसिक कार्य करता है। इस हेतु वह व्यवसायिक अवसरों की पहचान करता है। वातावरणीय विश्लेषण करता है, नयी इकाई की स्थापना हेतु वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, वित्त के स्रोत ज्ञात करता है तथा उद्यमी पूँजी स्रोत को ज्ञात करते हुए नये साहसिक एवं जोखिमपूर्ण कार्य को मूर्त रूप प्रदान करता है तथा व्यवसायिक इकाई की स्थापना करता है।

सरकार की नीति उद्यमिता को बढ़ाने में काफी सराहनीय है। सरकार छोटे-छोटे उद्यमिता के लिए कम ब्याज पर ऋण सुविधा प्रदान किया जाता है। छोटे-छोटे उद्यमिता को लाइसेन्स से मुवी प्रदान किया गया है। टैक्स प्रणाली को अत्यन्त लचीला बना दिया गया है। समय-समय सरकार द्वारा उचित सुझाव व मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 10.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए तथा इसकी प्रमुख विशेषताएं समझाइए।
उत्तर:
प्रबंध यह जानने की कला है कि आप में व्यक्तियों से क्या करवाना चाहते हैं और इसके बाद यह देखना कि कार्य सर्वोत्तम एवं मितव्ययितापूर्ण विधि से कैसे किया जा सकता है।

प्रबंध की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. प्रबंध एक सामूहिक क्रिया है।
  2. प्रबंध एक सतत् क्रिया है।
  3. प्रबंध कला एवं विज्ञान दोनों है।
  4. प्रबंध एक पेशा है।
  5. प्रबंध उद्देश्य प्रधान प्रक्रिया है।
  6. प्रबंध सर्वव्यापक है।

प्रश्न 11.
स्टॉक एक्सचेंज को परिभाषित कीजिए। स्टॉक एक्सचेंज की किन्हीं तीन विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरल शब्दों में स्टॉक एक्सचेंज से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंशों, ऋणपत्रों, सरकारी एवं अर्द्धसरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय होता है।

हार्टले विदर्स के अनुसार, “स्कन्ध विनियम एक बड़े गोदाम की तरह है जहाँ पर विभिन्न प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है।” पाटले के अनुसार, “स्कन्ध विपणि वह स्थान है जहाँ सूचीबद्ध प्रतिभूतियों का विनियोजन या सट्टे के उद्देश्य से क्रय-विक्रय किया जाता है।”

स्टॉक एक्सचेंज की विशेषताएँ-स्टॉक एक्सचेंज की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • यह एक सुसंगठित पूँजी बाजार है।
  • इसमें संयुक्त पूँजीवाली कंपनियों, सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं लोकोपयोगी संस्थाओं के अंशों तथा ऋणपत्रों आदि का क्रय विक्रय होता है।
  • स्कन्ध विपणि समामेलित अथवा असमामेलित दोनों प्रकार की हो सकती है।

प्रश्न 12.
प्रबंध के दृष्टिकोण से विपणन के चार कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन का कार्य उन समस्त क्रियाओं का निर्देशन करना है जिनके माध्यम से विपणन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है। विपणन कार्य ग्राहक से प्रारंभ होते हैं और ग्राहक तक उत्पाद अथवा वस्तुएँ पहुँच जाने एवं उसे संतुष्टि प्रदान करने पर समाप्त हो पाते हैं।

विपणन के चार कार्य निम्नलिखित हैं-
(i) क्रय करना-क्रय करना विपणन क्रिया का सबसे प्रथम चरण है। निर्माण इकाई की दशा में कच्चा माल तथा व्यापारिक इकाई की दशा में तैयार माल क्रय किया जाता है। स्थिति चाहे जो भी हो विपणन विभाग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विपणन विभाग यह सुनिश्चित करता है कि उचित किस्म का माल, उचित मूल्य पर, उचित मात्रा में, उचित समय पर एवं उचित पूर्तिकर्ता से खरीदा जाये।

(ii) उत्पादन नियोजन- यह विपणन प्रबंध का महत्वपूर्ण कार्य है। सामान्य अर्थ में उत्पाद नियोजन से आशय उत्पादित की जाने वाली वस्तु का उत्पाद के बारे में व्यापक योजना बनाने से है।

(iii) मूल्य निर्धारण-विपणन प्रबंध का तीसरा महत्वपूर्ण कार्य विपणन योग्य उत्पाद का मूल्य निर्धारण है। एक उत्पादक निर्माता उत्पाद का मूल्य निर्धारण काफी सोच विचार कर करने के पश्चात करता है। सच पूछा जाय तो विपणन प्रबंध की सफलता अथवा असफलता बहुत हद तक मूल्य निर्णयन पर निर्भर करती है।

(iv) एकत्रीकरण अथवा संकलन- एकत्रीकरण से आशय विभिन्न स्रोतों से माल का क्रय करके उसे एक निश्चित स्थान पर एकत्रित होने पर सरलता से ग्राहकों को उपलब्ध कराया जा सके।

प्रश्न 13.
स्कन्ध विपणि की परिभाषा दें। इसके कार्य एवं महत्व का वर्णन करें।
उत्तर:
आधुनिक युग में स्कंध विपणि किसी भी देश के पूँजी बाजार की एक महत्वपूर्ण अंग मानी जाती है। स्कंध विपणि से आशय ऐसे संगठित बाजार से है जहाँ पर अंश ऋण पत्रों, सरकारी एवं अर्ध सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है। अर्थात स्कंध विपणि एक सुसंगठित बाजार है जहाँ केवल सदस्य अपने लिए या दूसरों की ओर से विभिन्न प्रकार की सूचीबद्ध औद्योगिक अथवा आर्थिक प्रतिभूतियों जैसे संयुक्त पूँजी वाली कंपनी के अंशों, स्कन्धों तथा ऋण पत्रों, राजकीय पत्रों एवं अन्य संस्थाओं के ऋणपत्रों और बॉण्डों इत्यादि का क्रय-विक्रय निर्धारित नियमों एवं उप नियमों के अधीन करते हैं।

स्कंध विपणि के कार्य एवं महत्त्वं स्कंध विपणि के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • विद्यमान स्कंध को तरलता एवं विपणीयता प्रदान करना।
  • माँग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा स्कंध के मूल्य निर्धारण का एक स्थिर यंत्र प्रदान करना।
  • निर्धारित कानूनी प्रक्रिया के अन्तर्गत स्वच्छ एवं सुरक्षित लेनदेन को निश्चित करना।
  • पूँजी निर्माण और आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया में विनियोग एवं पुनर्वियोग के द्वारा बचत को उत्पादनीय कार्य में लगाना।
  • नये अंशों के निर्गमन एवं व्यापारिक लेन-देन के द्वारा अंश-पूँजी की लागत निर्धारित करना।
  • मूल्य निरंतरता एवं व्यापारिक लेनदेन में तरलता का अवसर प्रदान करना।

उपरोक्त महत्त्वपूर्ण कार्यों के कारण स्कंध विपणि किसी भी देश के सुदृढ़ औद्योगिकीकरण एवं आर्थिक विकास का स्तंभ माना जाता है। प्रो० मार्शल के शब्दों में, “स्कंध विपणियाँ केवल व्यापारिक व्यवहारों की प्रमुख प्रदर्शनकर्ता ही नहीं अपितु वे मापदण्ड है जो व्यापारिक वातावरण की सामान्य दशा को दर्शाते हैं।” यही कारण है कि उनको पूँजी का गढ़ व मूल्यों का मंदिर कहा जाता है। स्कंध विपणि विनियोजकों को मनचाही प्रतिभूतियों में धन विनियोजित करने की सुविधाएँ । प्रदान करना है। इसके अभाव में राष्ट्र में औद्योगिक विकास मंद होगा।

प्रश्न 14.
वैज्ञानिक प्रबंध पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता फ्रेडरिक टेलर ने स्पष्ट किया है कि “वैज्ञानिक प्रबंध यथार्थ में यह जानने की कला है कि क्या किया जाना है और उसको करने की सर्वोत्तम विधि क्या है।” इस प्रकार संक्षेप में कहा जा सकता है कि वैज्ञानिक प्रबंध एक दर्शन है अथवा धारणा है जो कार्य और कार्मिकों के प्रबंध की तीर एवं तुक्के एवं अंगूठे के नियम पर आधारित परम्परागत विधियों के स्थान पर अनुसंधान एवं प्रयोगों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के आधार पर अपनायी गई विधियों के प्रयोग पर बल देते हैं।

अतः हम कह सकते हैं कि वैज्ञानिक प्रबंध सामूहिक प्रयासों की पद्धति एवं संगठित प्रणाली है जो वैज्ञानिक अन्वेषण, विश्लेषण एवं प्रयोगों पर आधारित है जिससे सभी पत्रकारों को लाभ होता है।

वैज्ञानिक प्रबंध के प्रमुख तत्त्व हैं-

  • वैज्ञानिक पद्धति के अध्ययन और विश्लेषण के द्वारा कार्यक्षमता को बढ़ाना और तब सम्पूर्ण संगठन के लिए एक प्रभाव बिन्दु का विकास करना अर्थात पुराने नियम का परित्याग करना।
  • मालिक और कर्मचारियों के बीच अच्छे संबंध स्थापित करना विवाद को दूर करना, दृष्टिकोण में परिवर्तन करना, मानसिक शांति का विकास करना, कर्मचारियों और प्रबंध के हितों का समन्वय करना और संगठन के समृद्धि को प्राप्त करना है।
  • सद्भावना, सहयोग, पहचान, रचनात्मक सलाह, पारितोषिक के द्वारा प्रतिस्पर्धा को समाप्त करना। सूचना के सभी माध्यमों को खुला रखना और एक दूसरे की सहायता करना है।
  • अतिरिक्त प्रशिक्षण और कार्यानुभव के द्वारा व्यक्तिगत कार्य क्षमता और समृद्धि के विकास के लिए सभी संभावित अवसर प्रदान करना ताकि व्यवसाय और कर्मचारी दोनों के संवृद्धि में योगदान दे सकें।

वैज्ञानिक प्रबंध, संगठन के सभी पदों के सक्रिय, क्रमबद्ध, सहयोग की आशा करता है ताकि संगठन के सभी पदों की क्षमता और समृद्धि को प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 15.
संगठन की परिभाषा दें तथा इसके आवश्यक तत्वों की व्याख्या करें।
उत्तर:
संगठन से हमारा अभिप्राय सामूहिक उद्देश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न अंगों में मैत्रीपूर्ण समायोजन करने से होता है।

मूने एवं रेले के अनुसार “संगठन सामान्य हितों की पूर्ति के लिए बनाया गया मनुष्यों का एक समुदाय है।”

उर्विक के अनुसार “किसी कार्य को सम्पादित करने के लिए किन-किन क्रियाओं को किया जाये, इसका निर्धारण करना एवं व्यक्तियों के बीच उन क्रियाओं के वितरण की व्यवस्था करना ही संगठन है।”

संगठन प्रबंध का एक कार्य है, यह एक प्रक्रिया है-

  • निष्पादित करने वाले कार्यों का समूहीकरण एवं पहचान करना
  • अधिकार एवं उत्तरदायित्व का हस्तांतरण एवं परिभाषित करना
  • उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए कार्यों को एक साथ सम्पादित करने के लिए लोगों में संबंध को स्थापित करना।

उद्देश्य की प्राप्ति एवं नियोजन के क्रियान्वयन के लिए संसाधनों का संगठन आवश्यक है, सभी प्रयास, उद्देश्यों को प्राप्त करने एवं संसाधनों का सफल प्रयोग करने के लिए। संगठन का अर्थ सम्पूर्ण कार्य को छोटे टुकड़ों, कार्यों के समूह में बाँटना है। इसमें संचालन पर नियंत्रण, संबंधों में समन्वय, वार्तालाप उद्देश्य की निश्चितता एवं संभावित योगदान प्राप्त करना सम्मिलित है।

संगठन एक प्रक्रिया है जो-

  • मानवीय प्रयासों का समन्वय,
  • संसाधनों को इकट्ठा करना,
  • निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसका प्रयोग करना

संगठन, इसलिए उद्देश्य की प्राप्ति संसाधनों का प्रयोग, कार्य संबद्ध कार्य वितरण के द्वारा नियोजन को कार्यान्वित करने में मदद करता है।

संगठन के तत्त्व – संगठन के विभिन्न तत्व इस प्रकार से है-

  • कार्य विभाजन – मानवीय प्रयासों में विशेषज्ञता प्राप्त करने के लिए उचित कार्य विभाजन आवश्यक है।
  • अधिकार और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन – अधिकार किसी कार्य को करने के लिए आदेश देने का अधिकार एवं दायित्व इस अधिकार का उचित प्रयोग है।
  • अनुशासन – अनुशासन की स्थापना हो ताकि प्रबंध और कर्मचारी दोनों ही अपने कार्यों एवं उद्देश्यों के प्रति समर्पित हो।
  • आदेश की एकात्मकता – आदेश की एकात्मकता अर्थात कर्मचारी को एक ही अधिकारी से आदेश मिलना चाहिए एवं वे एक ही अधिकारी के प्रति जवाबदेह हों।
  • निर्देश की एकात्मकता अर्थात संगठन के सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए समन्वय एवं कार्यों में एकता।
  • व्यक्तिगत हितों की तुलना में संगठन के हितों की अधिक प्राथमिकता।
  • कर्मचारियों को उचित मजदूरी ताकि सहयोगी भावना का विकास हो सके।
  • निर्णय लेने के अधिकारों में केन्द्रीकरण एवं विकेन्द्रीकरण के बीच संतुलन।
  • उच्च अधिकारियों से निम्न अधिकारियों के बीच अधिकारों का संवहन।
  • उत्पादकता एवं कार्यक्षमता प्राप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति सही समय एवं स्थान पर अवस्थित हो।
  • प्रबंध का कर्मचारियों के प्रति न्यायोचित व्यवहार ताकि संगठन के प्रति कर्मचारियों का विश्वास प्राप्त किया जा सके।
  • संचालन की निरन्तरता को प्राप्त करने के उद्देश्य से कर्मचारी की संतुष्टि, स्थिरता, दक्षता एवं प्रशिक्षण की कम लागत।
  • उत्पादक विनियोग, विकास, प्रेरणा एवं पहल के लिए सलाह।
  • पारस्परिक सहयोग एवं समूह जोश की भावना के साथ कार्य करना।

फियोल द्वारा प्रतिपादित प्रबंध का सिद्धांत एवं लाभ को बढ़ाने में काफी उपयोगी है क्योंकि यह सिद्धांत मालिक एवं कर्मचारी दोनों के हितों का ख्याल रखता है।

प्रश्न 16.
स्थायी पूँजी तथा कार्यशील पूँजी में कोई छ: अंतर बतायें।
उत्तर:
स्थायी पूँजी से आशय पूँजी के उस भाग से है जिसका निवेश स्थायी सम्पत्तियों जैसे भूमिक, भवन, मशीनरी, फर्नीचर, उपकरण आदि की खरीद के लिए किया जाता है उन सम्पत्तियों का क्रय करने का उद्देश्य दीर्घकाल तक इनसे आय अर्जित करना होता है।

कार्यशील पूँजी से तात्पर्य चालू सम्पत्तियों के चालू दायित्वों पर आधिक्य है। दूसरे शब्दों में यदि चालू सम्पत्तियों के योग में से चालू दायित्वों के योग को घटा दिया जाय तो जो शेष बचेगा वह कार्यशील पूँजी कहलायेगी।

स्थायी पूँजी और कार्यशील पूंजी में अंतर- स्थायी पूँजी और कार्यशील पूँजी में निम्नलिखित अंतर है-

स्थायी पूँजी:

  1. स्थायी पूँजी से आशय उस पूँजी की मात्रा से है जिसका निवेश चालू सम्पत्तियों (जैसे- भूमि, भवन, मशीन, फर्नीचर आदि) में किया जाता है।
  2. स्थायी पूँजी दीर्घकाल के लिए होती है।
  3. स्थायी पूँजी स्थिर प्रकृति की होती है।
  4. स्थायी पूँजी स्थायी रूप से अवरुद्ध हो जाती है तथा दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं के लिए उपलब्ध नहीं होती है।
  5. स्थायी पूँजी अंशों तथा ऋण पत्रों के निर्गमन तथा दीर्घकालीन वित्तीय ऋणों के माध्यम से प्राप्त होती है।
  6. स्थायी पूँजी की आवश्यकता स्थायी सम्पत्ति (जैसे भूमि, भवन, मशीनरी, फर्नीचर आदि) के क्रय करने के लिए होती है।

कार्यशील पूँजी:

  1. कार्यशील पूँजी से आशय उस पूंजी की मात्रा से है जिसका निवेश स्थायी सम्पत्तियों जैसे प्राप्ति विपत्र, विविध देनदार, कच्चा माल, अर्द्ध निर्मित माल तथा निर्मित माल में किया जाता है।
  2. कार्यशील पूँजी अल्पकाल के लिए होती है।
  3. कार्यशील पूँजी अस्थिर प्रकृति की होती है।
  4. कार्यशील पूँजी कार्यशील एवं घूमती रहती है तथा इसका उपयोग दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं के लिए किया जाता है।
  5. कार्यशील पूँजी अल्पावधि वित्त प्रदान करने वाले स्रोतों से प्राप्त होती है जैसे वाणिज्यिक बैंक, व्यापारिक उत्पाद, ग्राहकों से अग्रिम आदि।
  6. कार्यशील पूँजी की आवश्यकता चालू सम्पत्तियों (जैसे देनदार, स्टॉक, प्राप्य विपत्र, रोकड़ी शेष) के रखने तथा दैनिक व्ययों का भुगतान करने के लिए होता है।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
भारत के संभावित जल संसाधनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत उन गिने-चुने देशों में से एक है जहाँ भूमि और जल संसाधन प्रचुर मात्रा में हैं। भारत में जल के तीन स्रोत हैं वर्षा, पृष्ठीय जल तथा भूमिगत जल।

वर्षा (Rainfall) – वर्षा जल का मूल स्रोत है। भारत में औसतन 118 सेमी. वर्षा होती है। वर्षा का कुछ जल तो धरातल पर बहता हुआ नदियों का रूप ले लेता है तथा कुछ भूमि सोख लेती है जो भूमिगत जल कहलाता है।

पृष्ठीय जल (Surface Water) – जल का यह महत्त्वपूर्ण स्रोत बहने वाली नदियों, झीलों, तालाबों और दूसरे जलाशयों के रूप में मिलता है। भारत में नदियों का औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है। कुल पृष्ठीय जल का लगभग 60% भाग सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों से होकर बहता है। भारत की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा संसार की सभी नदियों में बहने वाली जल की मात्रा का 6% है।

भूमिगत जल (Ground Water) – एक अनुमान के अनुसार भारत में कुल भौम जल क्षमता 433.9 अरब घन मीटर है। भारत के उत्तरी मैदान में भौम जल के विकास की संभावनायें अधिक उपलब्ध हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ही भौमगत जल की क्षमता 19% है। प्रायद्वीपीय भारत में कम है। जम्मू-कश्मीर में 1.07% तथा पंजाब में 98.34% है। भारत में जिन राज्यों में घट-बढ़ अधिक होती है तथा पृष्ठीय जल की कमी है उन क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर भौम जल विकास किया गया है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, गुजरात इसके उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
भारत में सिंचाई की आवश्यकता है। क्यों ?
उत्तर:
जल का प्रमुख उपयोग सिंचाई के लिए होता है। भारत एक उष्ण कटिबन्धीय प्रदेश है इसलिए यहाँ सिंचाई की अधिक माँग है। सिंचाई की बढ़ती माँग के कारण निम्नलिखित हैं-
(i) वर्षा का असमान वितरण (Uneven Distribution of Rainfall) – देश में संपूर्ण वर्ष वर्षा का अभाव बना रहता है। अधिकांश वर्षा, वर्षा ऋतु में होती है। इसलिए शुष्क अवधि में सुनिश्चित सिंचाई सुविधा के बिना कृषि कार्य संभव नहीं है।

(ii) मानसून जलवायु (Monsoon Climate) – भारत की जलवायु मानसूनी है। यहाँ वर्षा केवल तीन से चार महीने तक होती है, शेष समय शुष्क रहता है। इसलिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।

(iii) वर्षा बहुत परिवर्तनशील है (Variable Rainfall) – वर्षा ऋतु में पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सिंचाई की आवश्यकता होती है क्योंकि वर्षा की मात्रा प्रति वर्ष निश्चित नहीं है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की भिन्नता बहुत अधिक है। इसलिए वर्षा के दिनों में कभी कहीं सूखा होता है तो कभी कहीं। सिंचाई के बिना भारतीय कृषि मानसून का जुआ बनकर रह जाता है।

(iv) वर्षा की अनिश्चितता (Uncertainty of rainfall) – कंवल वर्षा का आगमन और पश्चगमन ही अनिश्चित नहीं है अपितु इसकी निरन्तरता और गहनता भी अनिश्चित है। इस उतार-चढ़ाव में कृषि को केवल सिंचाई से ही सुरक्षा मिलती है।

(v) कुछ फसलों के लिए जल की अधिक आवश्यकता (Water is More Needed for Few Crops) – चावल, गन्ना, जुट आदि फसलों को अपेक्षाकृत अधिक पानी की आवश्यकता होती है जो सिंचाई द्वारा ही पूरी की जाती है।

(vi) अधिक उपज देने वाले फसलें (Crops Giving More Yield) – ऐसी फसलें जो अधिक उपज देती हैं उनसे उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिए निरन्तर पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए विकसित सिंचाई वाले क्षेत्र में हरित क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव रहा।

(vii) लम्बा वर्धनकाल (Long Growing Season) – भारत में वर्धन काल पूरे वर्ष रहता है। अतः सिंचाई की सुविधा मिलने पर बहुफसली खेती संभव है।

(viii) खाद्यान्न तथा कृषि कच्चे माल की बढ़ती माँग (Increasing Demand of Food Grains and Raw Material) – सिंचित क्षेत्र में असिंचित क्षेत्र की तुलना में उत्पादन तथा उत्पादकता अधिक होती है। देश में बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
जल-संभर प्रबन्धन क्या है ? क्या आप सोचते हैं कि यह सतत पोषणीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है ?
उत्तर:
जल विभाजक प्रबन्धन से तात्पर्य मुख्य रूप से सतह और भूमिगत जल संसाधनों की सफल व्यवस्था से है। इसके अंतर्गत बहते जल को रोकना और विभिन्न विधियों जैसे पुनर्भरण कुओं आदि के द्वारा भूमिगत जल का संचयन और पुनर्भरण शामिल है। जल विभाजक व्यवस्था का उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और समाज के बीच सन्तुलन लाना है। जल विभाजक व्यवस्था की सफलता मुख्य रूप से सम्प्रदाय के सहयोग पर निर्भर करती है।

यह व्यवस्था सतत पोषणीय विकास में सहयोग कर सकता है। जल प्रबन्धन के कार्यक्रम कई राज्यों में चल रहे हैं। जैसे-नीरू नीरू-कार्यक्रम आंध्र प्रदेश में तथा राजस्थान में अलवर में लोगों के सहयोग से यह व्यवस्था चल रही है। तमिलनाडु में घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) पृष्ठीय जल तथा भौम जल (ii) हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय नदियाँ (iii) निर्मित सिंचाई क्षमता तथा उपयोग में लाई गई क्षमता (iv) प्रमुख तथा लघु सिंचाई परियोजना।
उत्तर:
(i) पृष्ठीय जल (Surface Water)-

  • यह जल ताल-तलैया, नदियों-सरिताओं और जलाशयों में पाया जाता है।
  • नदियाँ पृष्ठीय जल का प्रमुख स्रोत हैं।
  • नदियों में प्रवाहित औसत वार्षिक प्रवाह 1869 अरब घन मीटर है।
  • कुल पृष्ठीय जल का 60% भाग सिंधु-गंगा, ब्रह्मपुत्र नदियों में से होकर बहता है।
  • भारत में हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदी तंत्रों में भरपूर पृष्ठीय जल संसाधन उपलब्ध है।

भौम जल (Ground Water)-

  • वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है जिसे भौम जल कहते हैं। भारत में भौम जल क्षमता लगभग़ 433.9 अरब घन मीटर है।
  • भारत के उत्तरी विशाल मैदान में भौम जल के विकास की संभावनाएँ अधिक हैं।
  • प्रायद्वीपीय भारत में भौम जल की संभावनाएँ कम हैं।
  • देश में भौम जल का वितरण असमान है।
  • भारत के उत्तरी मैदान में पंजाब से लेकर ब्रह्मपुत्र घाटी तक भौम जल के विशाल भंडार हैं।

(ii) हिमालय की नदियाँ (Himalayan Rivers)-

  • हिमालय की नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र बहुत बड़ा है।
  • हिमालय की नदियाँ विशाल गार्ज से होकर बहती हैं।
  • हिमालय की नदियों के दो जल स्रोत हैं-वर्षा तथा हिम।
  • इन नदियों के मार्ग में कम बाधायें आती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ अधिक आती है।

प्रायद्वीपीय नदियाँ (Peninsular Rivers)-

  • प्रायद्वीपीय नदियों का बेसिन तथा जल ग्रहण क्षेत्र काफी छोटा है।
  • प्रायद्वीपीय नदियाँ उथली घाटियों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों का जल स्रोत केवल वर्षा है। इसलिए शुष्क ऋतुओं में प्रायः ये सूख जाती हैं।
  • प्रायद्वीपीय नदियों के मार्ग में बाधायें अधिक हैं। ये पथरीली चट्टानों से होकर बहती हैं।
  • इन नदियों में बाढ़ की संभावनाएँ कम होती हैं।

(iii) निर्मित सिंचाई क्षमता (Irrigation Potential Created) – स्वतंत्रता के पश्चात् सिंचाई की क्षमता में काफी वृद्धि हुई है। 1999-2000 में कुल सिंचित क्षेत्र 8.47 करोड़ हेक्टेयर था।

उपयोग में लाई गई क्षमता (Irrigation Potential Utilised) – देश में सिंचाई की कुल उपयोग में लाई गई क्षमता 2.26 करोड़ हेक्टेयर थी।

(iv) प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ (Major Irrigation Projects) – उत्तरी विशाल मैदानों में प्रमुख सिंचाई परियोजनाएँ हैं, ऊपरी वारी दोआब नहर, दोआब सरहिन्द, इन्दिरा गाँधी तथा पश्चिमी यमुना नहर।

उत्तर प्रदेश में गंगा की ऊपरी, मध्य तथा निचली नहरें। दक्षिणी भारत की नागार्जुन सागर, तुंगभद्रा परियोजना तथा कृष्णा-गोदावरी डेल्टा प्रदेश की नहरें।

लघु सिंचाई परियोजनाएँ(Minor Irrigation Projects) – उत्तर भारत की लघु परियोजनाओं में पूर्वी यमुना नहर, शारदा नहर, राम गंगा नहर, मयूराक्षी आदि दक्षिण भारत में मैटूर बाँध, पालार, वोगाई आदि परियोजनाएँ हैं।

प्रश्न 5.
भारत में जल विद्युत पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:
विद्युत मानव सभ्यता के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और अनूठे आविष्कार का नाम है। विद्युत कोयला और बहते जल से बनाई जाती हैं जल विद्युत ही सबसे सस्ती है। इसके निर्माण के लिये प्राकृतिक जल प्रपात सुविधाजनक ही है। जल प्रपात के लिये निरन्तर जल प्रवाह आवश्यक है।

जल विद्युत निगम की स्थापना जल विद्युत उत्पादन के लिये की गई। इसके द्वारा अब तक आठ परियोजना पूर्ण कर ली हैं। ये परियोजनायें हैं-चमेरा और वैरा सिडल (हिमाचल प्रदेश), लोकतक (मणीपुर), उडी आर सलाल (जम्मू कश्मीर), टनकपुर (उत्तरांचल) आदि। दसवीं पंचवर्षीय योजनाओं में निगम का लक्ष्य 4357 मैगावाट विद्युत उत्पादन का है। भारत में जल विद्युत का उत्पादन दक्षिणी पठार पर अधिक है।

प्रमुख केन्द्र हैं-

  • कर्नाटक – शिव समुद्रम, महात्मा गाँधी जल विद्युत केन्द्र। यहाँ 72000 किलोवाट क्षमता वाला बिजली घर स्थित है। शरावती जल विद्युत केन्द्र और शिमशा परियोजना है।
  • तमिलनाडु – मैटूर योजना, पापकारा, पापानासम तथा कुन्डा परियोजना है। महाराष्ट्र-राटा जल विद्युत केन्द्र, कोयना योजना, कवर दरा।
  • उत्तर प्रदेश – गंगा नहर पर 12 स्थानों पर जल विद्युत केन्द्र बनाये गये हैं- इनमें 23800 कि.वा. विद्युत तैयार की जाती है।
  • पंजाब – भाखड़ा नांगल परियोजना में 1050 मैगावाट जल विद्युत तैयार की जाती है। व्यास परियोजना में विद्युत तैयार की जाती है।

इसके अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में विद्युत उत्पन्न की जाती है।

प्रश्न 6.
भारत के लौह एवं इस्पात उद्योग के विकास एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में लौह अयस्क के प्रचुर संसाधन है, यहां एशिया के विशालतम लौह अयस्क आरक्षित है। हमारे देश में लौह अयस्क के दो प्रमुख प्रकार हेमेटाइट एवं मैग्नेटाइट पाये जाते हैं।

भारत में लोहा पिघलाने और ढालने तथा इस्पात तैयार करने का कार्य अत्यंत प्राचीन काल से किया जा रहा है। बिहार एवं मध्य प्रदेश में अगरिया एवं गाडी लोहारिया जाति यह कार्य करती थी किन्तु पश्चिमी देशों में आधुनिक ढंग के कारखाने स्थापित हो जाने के कारण भारतीय कुटीर उद्योग को बड़ा धक्का पहुँचा और भारत निर्यातक से आयातक देश बन गया। सर्वप्रथम भारत में लौह-इस्पात की स्थापना सन् 1874 में पश्चिम बंगाल के कुल्टी में बाराकर लौह कम्पनी की हुई थी। इसके बाद कालांतर में 1907 में झारखण्ड में सांकची नामक स्थान पर भारत के प्रसिद्ध व्यवसायी श्री जमशेदजी टाटा द्वारा टाटा लौह-इस्पात कंपनी की स्थापना की गयी।

हमारे देश में 2004 – 05 में लौह अयस्क के आरक्षित भंडार लगभग 200 करोड़ टन थे, जिसका 95 प्रतिशत भाग उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोवा तथा तमिलनाडु राज्यों में स्थित है। उड़ीसा में लौह अयस्क सुन्दरगढ़, मयूरगंज की पहाड़ियों में पाया जाता है। झारखण्ड के सिंहभूम जिला तथा छत्तीसगढ़ के दुर्ग, दान्तेवाड़ा एवं वैलाडिला लौह अयस्क का मुख्य क्षेत्र है। कर्नाटक के बेलारी जिले में महाराष्ट्र के चन्द्रपुर एवं तमिलनाडु के सलेम क्षेत्रों में लौह अयस्क की प्राप्ति होती है।

भारत के विभिन्न राज्यों में लौह-अयस्क का उत्पादन निम्न है-
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4, 1

प्रश्न 7.
भारत में मैंगनीज, अयस्क और बॉक्साइट के उपयोग और वितरण का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
बॉक्साइट (Bauxite) उपयोग (Uses) – बॉक्साइट का ऐलुमिनियम धातु बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में उपयोग किया जाता है। वायुयान निर्माण, बिजली के उपकरण तथा तार एवं भवन निर्माण में भी उपयोग में आता है।

वितरण (Distribution) – उड़ीसा के कालाहांडी, संबलपुर, रायगढ़ और कोरापुट में बॉकसाइट के भंडार पाये जाते हैं।

आन्ध्र प्रदेश में – विशाखापटनम, विजयनगर तथा श्रीकाकुलम जिले में बॉक्साइट के निक्षेप हैं। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़ का बस्तर और बिलासपुर जिला, मध्य प्रदेश में मैकाल पहाड़ियाँ।

गुजरात – जामनगर, साबरकांठा, खेड़ा, कच्छ और सूरत तथा महाराष्ट्र में थाणे, कोलाबा, कोल्हापुर आदि जिले।

मैगनीज (Manganese)-उपयोग (Uses) – मैंगनीज का सबसे अधिक उपयोग इस्पात की चादर बनाने के लिये किया जाता है जो युद्ध के टैंक निर्माण में प्रयोग की जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी मिट्टी के बर्तन, बिजली का सामान, कांच ब्लीचिंग पाउडर, दवायें, शुष्क बैटरी, सोने के आभूषणों पर मीना करने के लिये, वार्निश तथा रसायन उद्योगों में मैंगनीज का उपयोग होता है। इसे बहुउपयोगी खनिज भी कहते हैं।

वितरण (Distribution) – मैंगनीज सबसे अधिक उड़ीसा में मिलता है। इसके बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और गोआ का स्थान है। इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी मैंगनीज पाया जाता है।
Bihar Board 12th Geography Important Questions Long Answer Type Part 4, 2

प्रश्न 8.
भारत में पेट्रोलियम के उत्पादन एवं वितरण का वर्णन करें।
उत्तर:
पेट्रोलियम एक ऐसा अकार्बनिक तरल पदार्थ है, जो अवसादी चट्टानों की विशेष संरचनाओं में पाया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत के लगभग 14 लाख वर्ग मीटर क्षेत्र में तेल भंडार हैं, जिसमें सबसे विशाल असम तेल क्षेत्र है। भारत के इयोसीन एवं मायोसीन काल की अवसादी चट्टानों में पेट्रोलियम के भंडार है। सर्वप्रथम असम के डिगबोई में इसका पता चला था। उसके बाद द्वितीय और तृतीय पंचवर्षीय योजनाकालों में भारत के विभिन्न भागों में तेल की खोज तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोजन द्वारा की गयी। रूस विशेषज्ञों के अनुसार भारत में लगभग 6 अरब टन के बड़े-बड़े तेल भंडार हैं। अनुमान है कि महाद्वीपीय मग्नतट के लगभग 3 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में परतदार चट्टानें पेट्रोलियम से भरी हैं।

1951 ई में देश में पेट्रोलियम का कुल उत्पादन 205 लाख टन था जो 2001 ई० में बढ़कर 320 लाख टन हो गया।

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पेट्रोलियम के उत्पादन में 50 गुणा से भी अधिक वृद्धि हुई है।
भारत में पेट्रोलियम के तीन मुख्य उत्पादन क्षेत्र हैं –

  • असम तेल क्षेत्र।
  • गुजरात तेल क्षेत्र।
  • मुम्बई हाई तेल क्षेत्र।

इसके अलावा गोदावरी और काबेरी नदी के बेसिनों में तथा बंगाल की खाड़ी के मग्नतट पर भी तेल मिले हैं। बिहार के उत्तरी मैदान भाग में भी तेल की खोज का कार्य जारी है। इन क्षेत्रों से प्राप्त कच्चे तेल का परिष्करण तटीय भागों, बाजार क्षेत्र तथा उत्पादन केन्द्रों के निकट स्थापित कुल 14 तेल शोधनशालाओं में किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारत में चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के निकट स्थापित किये जाने के लिए उत्तरदायी तीन कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
चीनी मिलों के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित होने के लिये अग्रलिखित तीन कारक उत्तरदायी हैं-
1. कच्चा माल (Raw Material) – गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में मिलों के स्थापित होने का प्रमुख कारण गन्ने की निरन्तर आपूर्ति है। आपूर्ति टूट जाने से मिल को पुनः आरम्भ करने में बहुत व्यय तथा समय लगता है। इसलिये निरन्तर आपूर्ति आवश्यक है।

2. यातायात के साधन (Means of Transport) – गन्ना मैदानी क्षेत्रों में उत्पन्न किया जाता है। मैदानी क्षेत्रों में परिवहन के साधन रेल मार्ग तथा सड़क मार्ग उपलब्ध हैं। लेकिन अधिकतर गन्ने की दुलाई बैलगाड़ी अथवा ट्रैक्टर द्वारा की जाती है और ये साधन अधिक से अधिक 10 या 15 किलोमीटर तक ही सीमित होते हैं। इसलिये चीनी मिलों का गन्ना क्षेत्रों में स्थापित होना आवश्यक है।

3. बाजार की समीपता (Nearness of Market) – चीनी की खपत के लिए बाजार की समीपता आवश्यक है जो इन क्षेत्रों में जनसंख्या से अधिक होने से मिल जाती है। इसके अतिरिक्त चीनी को रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग द्वारा समीप वाले बाजारों को भेज दिया जाता है।

प्रश्न 10.
आप उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण से क्या समझते हैं ? उन्होंने भारत के औद्योगिक विकास में किस प्रकार से सहायता की है ?
उत्तर:
उदारीकरण (Liberalisation) – उदारीकरण आर्थिक विकास की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र में उद्योगों को चलाने पर बल दिया जाता है तथा उन सब नियमों और प्रतिबन्धों से छूट दी जाती है जिससे पहले निजी क्षेत्र के विकास में रुकावट आती है।

निजीकरण (Privatisation) – निजीकरण से अभिप्राय है कि सरकार द्वारा लगाये गये उद्योगों को निजी क्षेत्र में स्थापित किया जाये। इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम होगा।

वैश्वीकरण (Globalisation) – वैश्वीकरण से अभिप्राय है कि देश की अर्थव्यवस्था को संसार की अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने की प्रक्रिया से है। इसके अधीन आयात पर प्रतिबन्ध तथा आयात शुल्क में कमी की गई। इस प्रक्रिया में एक देश के पूँजी संसाधनों के साथ-साथ वस्तुएँ और सेवायें, श्रमिक तथा अन्य संसाधन दूसरे में स्वतंत्रतापूर्वक आ जा सकते हैं।

इन प्रक्रियाओं ने देश के औद्योगिक विकास में बड़ी सहायता की है-

  • विदेशी पूँजी का सीधा निवेश किया जा सकता है।
  • व्यापारिक प्रतिबन्ध समाप्त हो जाते हैं जिससे देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने में सुविधा होती है।
  • भारतीय कम्पनियों को विदेशी कम्पनी के साथ प्रवेश करने का अवसर मिलता है।
  • उदारीकरण कार्य से आयात किया जा सकता है आदि।

प्रश्न 11.
उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं ? भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर:
उदारीकरण का अभिप्राय अर्थव्यवस्था के नियंत्रणवाले प्रावधानों को शिथिल करना है। इसे अनियंत्रण की नीति भी कहा जाता है। उदारीकरण के अंतर्गत सरकारी नियंत्रण को कम करना, लाइसेंस की समाप्ति, उद्योगपत्तियों को अधिक स्वतंत्रता देना, बाजार की शक्तियों के स्वतंत्र क्रियाकलाप को प्रश्रय देना शामिल है।

जबकि निजीकरण का अर्थ बाजार की शक्तियों को मजबूत करते हुए निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व प्रदान करना है तथा वैश्वीकरण का तात्पर्य देश की अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करना है।

वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी पूँजी का प्रवाह बढ़ा है। साथ ही तकनीकी प्रवाह के कारण उत्पादन बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि आयी है, जिसका सीधा असर लोगों के रहन-सहन पर पड़ा है। मक्त आकाश नीति की घोषणा से भारतीय निर्यातकों को प्रतियोगितापूर्ण बनाया गया है।

वैश्वीकरण के प्रभाव से उपभोक्ताओं को अंतर्राष्ट्रीय स्तर की वस्तुएँ उपलब्ध हैं किन्तु भारत के छोटे एवं कुटीर उद्योग प्रतिस्पर्धा में पीछे रहने के कारण दिनोंदिन खत्म होते जा रहे हैं। औसत रूप में वैश्वीकरण के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की गति तीव्र हुई है।

प्रश्न 12.
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम और कृषि-जलवायु नियोजन पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखें। ये कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर:
प्रादेशिक विषमताओं को घटाने के लिये तैयार कार्यक्रमों में सुखाप्रवण क्षेत्रों के लिये भी ऐसे कार्यक्रम तैयार किये जिनके द्वारा उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आय में वृद्धि हो और रोजगार के अवसर प्राप्त हों। यह कार्यक्रम शुष्क भूमि कृषि में निम्न प्रकार से सहायक हो सकता है।

  • जिन सूखाप्रवण क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन अपर्याप्त है वहाँ गरीबी को कम करने में रोजगार देकर ये सहायक हो सकते हैं।
  • अभावग्रस्त लोगों के लिये काम के अवसर निकाले जा सकते हैं।

कृषि जलवायुविक नियोजन(Agro-climate Planning) – भारत के योजना आयोग में कृषि सम्बन्धित विकास के लिये कृषि क्षेत्र के कार्यक्रम बनाये गये। सातवीं योजना के मध्यवर्ती मूल्यांकन ने कृषि प्रबन्धन और जल नियोजन की सक्षमता पर बल दिया तथा बीज की नई नीति पर बल दिया। इसने सुझाव दिया कि किसी प्रदेश की कृषि सम्भाव्यता उसके प्रादेशिक कृषि जलवायुविक दशाओं के अनुसार हो सकता है। इस सम्बन्ध में 1988 में विशेष खाद्यान्न उत्पादन कार्यक्रम आरम्भ किया गया। यह देश के 169 जिलों में लागू किया गया। इसके पश्चात् कृषि के विकास के लिए अन्य कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये इन्हें कृषि जलवायुविक कार्यक्रम कहते हैं।

इस कार्यक्रम से भी शुष्क भूमि कृषि में सहायता मिली। विभिन्न प्रदेशों में फसल और गैर फसल आधारित विकास हुआ। टिकाऊ कृषि विकास के लिये जल उपयोग और भूमि विकास तैयार किये गये।

प्रश्न 13.
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर:
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के निम्नलिखित उद्देश्य थे
1. राष्ट्रीय आय में वृद्धि तथा आर्थिक विकास (Increase in national income and economic development) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में वृद्धि और आर्थिक विकास में वृद्धि करना है। ये वृद्धि देश के आर्थिक विकास में सहायक होती है।

2. जीवन स्तर में वृद्धि(Increase in standard of living) – पंचवर्षीय योजनाओं का दूसरा उद्देश्य लोगों की आर्थिक संपन्नता में वृद्धि करके जीवन स्तर को ऊँचा उठाना है। जीवन स्तर में वृद्धि अनेक बातों पर निर्भर करती है। जैसे प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय, कीमत स्थिरता, आय का समान वितरण आदि।

3. आर्थिक असमानताओं को घटाना (To reduce economic inequalities) – प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य विभिन्न प्रदेशों और समाज के विभिन्न वर्गों में असमानताओं को कम करना है। आर्थिक असमानताएँ देश में अन्याय व शोषण को बढ़ाती हैं जिससे धनी अधिक धनी व निर्धन अधिक निर्धन होता जाता है। इस असमानता को समाप्त करने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं में बहुत से कार्य किए गए हैं।

4. सर्वांगीण विकास (Comprehensive development) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास करना है परन्तु प्रत्येक योजना में इन क्षेत्रों के विकास को एक समान महत्त्व नहीं दिया है। पहली योजना में कृषि को, दूसरी में उद्योग को तथा पाँचवीं में दोनों को महत्त्व दिया गया है। छठी, सातवीं, आठवीं योजना में बिजली व ऊर्जा के विकास को अधिक महत्व दिया गया।

5. क्षेत्रीय विकास (Regional development) – भारत के विभिन्न भाग आर्थिक दृष्टि से समान रूप से विकसित नहीं हैं। पंजाब, गोआ, हरियाणा आदि कुछ राज्य अपेक्षाकृत विकसित हैं लेकिन बिहार, उड़ीसा, मेघालय जैसे राज्य अविकसित रह गए हैं।

6. आर्थिक स्थिरता (Economic stability) – आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने के लिए आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य प्राप्त करना आवश्यक होता है। भारत की प्रत्येक पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य देश में आर्थिक स्थिरता को कायम रखना रहा है।

7. आत्मनिर्भरता तथा स्वपोषित सतत् विकास (Self sufficiency and self sustained growth) – पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य देश के कृषि, उद्योग आदि क्षेत्रों को उत्पादन के सम्बन्ध में उपलब्ध साधनों के अनुसार आत्मनिर्भर बनाना है। योजनाओं का उद्देश्य बचत व निवेश की दर को बढ़ाकर स्वयं स्फूर्ति की अवस्था प्राप्त करना है।

8. सार्वजनिक न्याय (Social justice) – भारत की प्रत्येक योजना का उद्देश्य सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना है। आठवीं योजना का मुख्य उद्देश्य ‘गरीबी हटाओ’ था। इसके लिए न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम को अपनाया गया था। देश में 26% जनसंख्या निर्धनता रेखा से नीचे है।

9. रोजगार में वृद्धि (Increase in Employment) – योजनाओं का मुख्य उद्देश्य मानव शक्ति का उचित उपयोग तथा रोजगार में वृद्धि करना है। नौवीं-दसवीं, योजनाओं में रोजगार के अवसर जुटाने पर बल दिया गया है।

10. निवेश व बचत में वृद्धि (Increasing saving and investment) – योजनाओं का उद्देश्य राष्ट्रीय आय में बचत व निवेश के अनुपात को बढ़ावा देना है। इसके फलस्वरूप देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 14.
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन कौन-कौन से हैं ? इनके विकास को प्रभावित करनेवाले कारकों की विवेचना करें।
उत्तर:
भारत में परिवहन के प्रमुख साधन रेलमार्ग सड़क मार्ग, जलमार्ग और वायुमार्ग हैं। इनमें रेलमार्ग तथा सड़क मार्ग प्रमुख साधन हैं। इनके विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं-
1. आर्थिक कारक (Economic Factors) – परिवहन साधनों के विकास में आर्थिक स्थिति को देखा जाता है। उन्हीं क्षेत्रों में इनका विकास किया जाता है जहाँ आर्थिक क्रियाएँ विकसित रही हैं और वह क्षेत्र समृद्ध है।

2. भौगोलिक कारक (Geographical Factors) – भारत के उत्तरी मैदानों में रेल तथा सड़क मार्गों का जाल बिछा हुआ है। इस प्रदेश में समतल भूमि, सघन जनसंख्या, समृद्ध कृषि और विकसित उद्योग तथा बड़े-बड़े नगर हैं।

3. राजनैतिक कारक (Political Factors) – अंग्रेजी शासन में रेलों को प्रमुख नगरों से ही जोड़ा गया था लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात् देश में रेलों और सड़कों का विकास हुआ।

प्रश्न 15.
भारत में रेलमार्ग के विकास का विस्तृत वर्णन करें तथा उनका महत्त्व बताएँ।
उत्तर:
भारतीय रेल 1853 में आरम्भ की गई जो मुम्बई से थाणे तक चली। यह भारत सरकार का सबसे बड़ा प्रक्रम है। भारतीय रेल जाल की कुल लम्बाई 63221 किलोमीटर है। भारतीय रेलवे प्रबन्धन 16 क्षेत्रों में विभाजित है। भारतीय रेल द्वारा ढोई जानेवाली मुख्य वस्तुयें हैं जो निम्न तालिका से प्रदर्शित की गई है-

वस्तुयें1970 – 712004 – 05
कोयला47.9251-75
इस्पात का कच्चा माल16.143.65
लौह अयस्क9.826.6
सीमेन्ट1149.3
खाद्यान्न15.144.3
रासायनिक खाद4.723.7
पेट्रोल8.932
अन्य48.271.4

रेल मार्गों में 16272 किलोमीटर का विद्युतीकरण कर दिया गया है। भारतीय रेलमार्ग पर प्रतिदिन 12670 रेलगाड़ियाँ दौड़ती हैं।

भाप के इंजनों के स्थान पर विद्युत इंजन दौड़ने लगे हैं जिससे प्रदूषण नहीं होता। पर्यावरण स्वच्छ रहता है।

मैट्रो रेल का प्रारम्भ हो गया है जो कोलकाता दिल्ली में चलाई जा रही है। मैट्रो के द्वारा सी.एन.जी. बसें चलाई जा रही हैं जो पर्यावरण हितैषी परिवहन है।

प्रश्न 16.
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत के आर्थिक विकास में सड़कों, का बड़ा योगदान है। लगभग 85% यात्री तथा 70% माल सड़कों द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है।

सड़क परिवहन का ग्रामीण क्षेत्र में छोटे स्थानों को जोड़ने में बहुत महत्त्व है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार आ गया है। गाँव बड़े नगरों से जुड़ गये हैं। सड़कों के प्रबन्धन के अनुसार उनको राष्ट्रीय महामार्ग तथा राज्य महामार्ग में प्रमुख रूप से विभाजित किया है।

कुल परिवहन के क्षेत्र में सड़क मार्गों की भागीदारी में निरन्तर प्रगति हो रही है। इसका मुख्य चरण सड़क परिवहन का लचीला होना तथा दुर्गम क्षेत्रों में भी निर्माण संभव होता है। सड़कों की भागीदारी 1993-94 तक 1500 अरब यात्री किलोमीटर थी जो रेलों के अनुपात में चार गुणा अधिक था। अब यात्रियों की संख्या तथा माल ढुलाई भी कई गुना बढ़ गई है।

प्रश्न 17.
भारत में सड़कों का घनत्व में प्रादेशिक भिन्नता का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रति 100 वर्ग किमी. क्षेत्र के अनुपात में सड़क मार्ग की लम्बाई को सड़क मार्ग का घनत्व कहते हैं। सड़कों के प्रादेशिक घनत्व में बहुत अन्तर है। सड़कों का सबसे अधिक घनत्व केरल, गोआ, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उड़ीसा और पंजाब में पाया जाता है। 60 से 100 किमी. सड़क मार्ग के औसत घनत्व वाले राज्य असम, नागालैण्ड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल, पश्चिम बंगाल, आन्ध्र प्रदेश और हरियाणा हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मणिपुर में सड़कों का घनत्व 40 से 60 किमी. प्रति 100 वर्ग किमी. है। राजस्थान, मेघालय, मिजोरम और सिक्किम में सड़कों का घनत्व 20 से 40 किमी. तक है। सबसे कम घनत्व वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर हैं।

प्रश्न 18.
जनसंचार में रेडियो और टेलीविजन के महत्त्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जनसंचार के साधनों में रेडियो और टेलीविजन का महत्त्व अधिक है। ये जनसंचार के प्रमुख साधन हैं-
रेडियो (Radio) – भारत में आकाशवाणी से प्रसारण 1927 में मुम्बई और कोलकाता से शुरू हुआ। रेडियो का मुख्य उपयोग जनता का मनोरंजन, शिक्षा और उन तक महत्त्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना है। मनोरंजन के अतिरिक्त खेती-बाड़ी, स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों का भी प्रसारण किया जाता है। आकाशवाणी का विदेश सेवा विभाग अपने विविध प्रकार के कार्यक्रमों के द्वारा राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर भारतीय दृष्टिकोण को विशेष महत्त्व देकर प्रसारित करता है।

टेलीविजन (Television) – दूरदर्शन भारत का राष्ट्रीय टेलीविजन है। दूरदर्शन का पहला कार्यक्रम 15 सितम्बर, 1959 को प्रसारित किया गया था। दूरदर्शन तीन स्तरों वाली राष्ट्रीय, प्रादेशिक, स्थानीय-बुनियादी कार्यक्रम प्रसारण सेवा है। दूरदर्शन अपने दर्शकों को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व के अनेक कार्यक्रम सीधे प्रसारण द्वारा दिखाता है।

प्रश्न 19.
आधुनिक जीवन में उपग्रह और कम्प्यूटर के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपग्रह (Satellites) – कृत्रिम उपग्रहों के विकास और उपयोग के द्वारा संसार और भारत के संचार तंत्र में एक क्रांति आ गई है। आकृति और उद्देश्यों के आधार पर भारत की उपग्रह प्रणाली को दो वर्गों में रखा गया है-

  1. भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली,
  2. भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली।

इन्सेट दूरसंचार, मौसम विज्ञान संबंधी प्रेक्षण और उसके विविध आँकड़ों के एकत्रीकरण तथा कार्यान्वयन के लिए एक बहुउद्देशीय प्रणाली है। ये उपग्रह अनेक आँकड़े एकत्र करते हैं तथा विभिन्न उपयोगों के स्थलीय स्टेशनों को उनका प्रसारण करते हैं।

कम्प्यूटर (Computer) – कम्प्यूटर का अनेक प्रकार से उपयोग किया जाता है। यह चार प्रकार के कार्य करता है-

  1. निवेश के रूप में आँकड़ों को स्वीकार करता है।
  2. यह आँकड़ों का भंडारण करता है। स्मृति में संरक्षित रखता है।
  3. यह अभीष्ट सूचना के लिए निर्देशानुसार आँकड़ों का प्रसंस्करण करता है।
  4. यह सूचना को निर्गम के रूप में संचालित करता है। अपनी विभिन्न क्षमताओं के कारण कम्प्यूटर का विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक उपयोग किया जाता है। शिक्षा के ज्ञान के प्रसार में कम्प्यूटर की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

प्रश्न 20.
भारत में रेलों के वितरण प्रतिरूप का विवरण दीजिए।
उत्तर:
भारतीय रेलों के वितरण प्रतिरूप में भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्हीं प्रदेशों में रेल जाल अधिक घना है तो कहीं कम। पर्वतीय, पठारी, मैदानी भागों में भिन्न-भिन्न है।

  1. मैदानी भाग (Plains) – समतल भूमि होने के कारण मैदानों में रेल पटरियाँ बिछाना सरल है तथा कृषि और औद्योगिक विकास के कारण रेल जाल सघन है।
  2. उत्तरी-पूर्वी भाग (Northern-Eastern Region) – भारत के इस भाग में रेल जाल विरल है। इस क्षेत्र में अधिक वर्षा के कारण घने वन हैं। इसके अतिरिक्त यह भाग पहाड़ी है इसलिए रेल पटरियाँ बिछाना कठिन है।
  3. पूर्वी तटीय मैदान तथा पश्चिमी तटीय मैदान (East CoastalPlain and West Coastal Plain) – इन भागों में भी रेलजाल अधिक सघन नहीं है क्योंकि समतल भूमि और कृषि तथा उद्योगों के लिए अनुकूल आर्थिक परिस्थितियाँ नहीं हैं।
  4. राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र (Desert Regions of Rajasthan) – यहाँ रेल जाल अत्यधिक विरल है। पश्चिमी राजस्थान की मरुभूमि रेल जाल बिछाने के लिए अनुकूल नहीं है।
  5. हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में भी रेल जाल विरल है। यह पहाड़ी उच्चावच तथा ऊबड़खाबड़ भूमि रेल पटरियाँ बिछाने के अनुकूल नहीं है। इन क्षेत्रों में आर्थिक विकास भी भिन्न स्तर का है।

Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 7 in Hindi

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Bihar Board 12th Business Studies Objective Important Questions Part 7 in Hindi

प्रश्न 1.
एक अच्छे कर्मचारी को संगठन में अच्छे ……………. मिलना चाहिए।
(a) ईलाज/चिकित्सा सुविधा
(b) भुगतान
(c) स्थान/प्रतिष्ठा
(d) व्यवहार
उत्तर:
(d) व्यवहार

प्रश्न 2.
एक उत्पाद बाजार में मुख्यतः ……………. की सहायता पर निर्भर रह सकता है।
(a) उत्पादक
(b) ग्राहक
(c) आपूर्तिकर्ता
(d) वित प्रदानकर्ता
उत्तर:
(b) ग्राहक

प्रश्न 3.
उद्यमिता इच्छा और …………… के विकल्प का समायोजन है।
(a) लाभदायकता
(b) लचीलापन
(c) भावुकता
(d) समाजिकता
उत्तर:
(b) लचीलापन

प्रश्न 4.
उत्पादक के लिये, ग्राहक सुरक्षा एक ……………. औचित्य है।
(a) नैतिक
(b) आर्थिक
(c) सांस्कृतिक
(d) राजनीतिक
उत्तर:
(a) नैतिक

प्रश्न 5.
सामाजिक विपणन की विचारधारा में ………….. सम्मिलित है।
(a) वातावरण
(b) जनसंख्या
(c) मुद्रास्फीति
(d) लाभदायकता
उत्तर:
(d) लाभदायकता

प्रश्न 6.
प्रबंध का प्रमुख उत्तरदायित्व है।
(a) अपने उत्पाद का विक्रय संवर्धन
(b) योग्य व्यक्ति को नियुक्ति प्रदान करना
(c) पूँजी के लिये पर्याप्त निधि की व्यवस्था करना
(d) संगठन के संसाधनों का दोहन करना
उत्तर:
(d) संगठन के संसाधनों का दोहन करना

प्रश्न 7.
विपणन मिश्रण में सम्मिलित नहीं होता है
(a) मूल्य
(b) उत्पाद
(c) प्रोन्नती
(d) उपभोक्ता संरक्षण
उत्तर:
(c) प्रोन्नती

प्रश्न 8.
प्रबंध की एक अच्छी पद्धति समायोजित नहीं करती है
(a) संगठनात्मक उद्देश्य
(b) सामाजिक उद्देश्य
(c) वैयक्तिक उद्देश्य
(d) राजनैतिक उद्देश्य
उत्तर:
(d) राजनैतिक उद्देश्य

प्रश्न 9.
प्रबंध के सफलता का सबसे महत्वपूर्ण गुण है
(a) ग्रुप प्रभाव
(b) उद्यमिता जोश
(c) खतरे को अवसर में परिवर्तन
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 10.
नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य है
(a) भिन्नता
(b) विचलन
(c) सुधार
(d) हानि
उत्तर:
(c) सुधार

प्रश्न 11.
व्यवसाय में संचार के प्रभावपूर्ण पद्धति का होना क्यों आवश्यक है ?
(a) सहायता के लिये
(b) सूचना के लिये
(c) निर्देशन के लिये
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 12.
अन्तरण की प्रक्रिया में उत्तरदेयता को
(a) बाँटा नहीं जा सकता
(b) अन्तरण नहीं किया जा सकता
(c) न (a) और न (b)
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(d) (a) और (b) दोनों

प्रश्न 13.
नियन्त्रण प्रबन्ध का …………. कार्य है।
(a) प्रथम
(b) अन्तिम
(c) तृतीय
(d) द्वितीय
उत्तर:
(b) अन्तिम

प्रश्न 14.
नेता अधीनस्थों से काम लेता है
(a) चातुर्य से
(b) डण्डे से
(c) धमका कर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) चातुर्य से

प्रश्न 15.
किसी भी देश के विकास में सबसे अधिक आवश्यकता है
(a) भौतिक संसाधनों की
(b) आर्थिक संसाधनों की
(c) मानवीय संसाधनों की
(d) कुशल प्रबन्धन की
उत्तर:
(c) मानवीय संसाधनों की

प्रश्न 16.
एक अच्छी योजना होती है
(a) दृढ़
(b) खर्चीली
(c) लोचपूर्ण
(d) समय लेने वाली
उत्तर:
(c) लोचपूर्ण

प्रश्न 17.
निम्न में से कौन-सा नियुक्तिकरण का कार्य नहीं है ?
(a) नियोजन
(b) भर्ती
(c) चयन
(d) प्रशिक्षण
उत्तर:
(a) नियोजन

प्रश्न 18.
प्रभावी नियन्त्रण है
(a) स्थिर
(b) निर्धारित
(c) गतिशील
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(c) गतिशील

प्रश्न 19.
तरलता का निर्माण करता है
(a) संगठित बाजार
(b) असंगठित बाजार
(c) प्राथमिक बाजार
(d) गौण बाजार
उत्तर:
(c) प्राथमिक बाजार

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन विक्रय संवर्द्धन का यंत्र नहीं है ?
(a) नमूने
(b) पैकेट में इनाम
(c) कूपन
(d) प्रचार
उत्तर:
(d) प्रचार

प्रश्न 21.
वित्तीय प्रबन्ध की आधुनिक विचारधारा है
(a) कोषों को प्राप्त करना
(b) कोषों का उपयोग करना
(c) (a) तथा (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) (a) तथा (b) दोनों

प्रश्न 22.
उद्यमी के कार्य हैं
(a) व्यावसायिक विचार की कल्पना
(b) परियोजना सम्भाव्यता अध्ययन
(c) उपक्रम की स्थापना करना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 23.
निम्न में से कौन पैकेजिंग का कार्य है ?
(a) सुरक्षा
(b) सुविधा
(c) परिचय
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा उपभोक्ता संगठन के कार्य नहीं है ?
(a) उपभोक्ता के व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को दूर करना
(b) उपभोक्ता में जागरूकता का विकास करना
(c) विभिन्न उत्पाद का सूचना एकत्र करना
(d) उपभोक्ता को कानूनी सहायता प्रदान करना
उत्तर:
(a) उपभोक्ता के व्यक्तिगत और पारिवारिक समस्याओं को दूर करना

प्रश्न 25.
जो कम्पनी उच्च वृद्धि दर की क्षमता रखते हैं वे
(a) लाभांश नहीं देते हैं
(b) लाभांश कम देते हैं
(c) लाभांश अधिक देते हैं
(d) सम्पूर्ण लाभ का पूँजीकरण करते हैं
उत्तर:
(b) लाभांश कम देते हैं

प्रश्न 26.
नियंत्रण में सम्मिलित है
(a) प्रभाव कार्यनिस्पादन की तुलना वास्तविक कार्यनिस्पादन से स्थापित करना
(b) प्रभाव और वास्तविक कार्य निस्पादन की तुलना कर विचलन ज्ञात करना
(c) कार्य निस्पादन के वृद्धि के सही-सही निर्णय लेना
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 27.
निम्नलिखित में से कौन-सा नियोजन की सीमा नहीं है ?
(a) कठोरता
(b) समय की बर्बादी
(c) नियंत्रण का आधार
(d) अत्यधिक लागत
उत्तर:
(c) नियंत्रण का आधार

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से कौन-सा नौकरी में प्रशिक्षण नहीं आते हैं ?
(a) प्रशिक्षु कार्यक्रम
(b) निहित प्रशिक्षण
(c) आन्तरिक प्रशिक्षण
(d) कार्य चक्रानुसार प्रशिक्षण
उत्तर:
(b) निहित प्रशिक्षण

प्रश्न 29.
प्रबंध हमेशा किसके प्रति सचेत रहता है ?
(a) लागत
(b) लाभ
(c) मूल्य
(d) संतुष्टि
उत्तर:
(d) संतुष्टि

प्रश्न 30.
प्रति अंश उच्च लाभांश संबंधित होता है
(a) उच्च उपार्जन, नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन और अल्प वृद्धि अवसर
(b) उच्च उपार्जन, उच्च नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन, वृद्धि अवसर
(c) उच्च उपार्जन, उच्च नगद प्रवाह अस्थिर उपार्जन और उच्च वृद्धि अवसर
(d) उच्च उपार्जन, अल्प नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन अल्प वृद्धि अवसर
उत्तर:
(a) उच्च उपार्जन, नगद प्रवाह, स्थिर उपार्जन और अल्प वृद्धि अवसर

प्रश्न 31.
सामाजिक संबंध का जाल जो स्वेच्छा से कार्य करने के कारण जागृत है, कहा जाता है
(a) औपचारिक संगठन
(b) अनौपचारिक संगठन
(c) विकेन्द्रीकरण
(d) अधिकार का हस्तांतरण
उत्तर:
(b) अनौपचारिक संगठन

प्रश्न 32.
पूँजी बाजार में व्यापार होता है
(a) अल्पावधि कोष
(b) मध्यावधि कोष
(c) दीर्घ अवधि कोष
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) दीर्घ अवधि कोष

प्रश्न 33.
अभिप्रेरक साधनों के निर्धारण का आधार होना चाहिए
(a) सामूहिक
(b) व्यक्तिगत
(c) कृत्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 34.
विपणन विचारधारा है
(a) उत्पाद उन्मुखी
(b) विक्रय उन्मुखी
(c) उपभोक्ता उन्मुखी
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(d) इनमें से सभी

प्रश्न 35.
निम्न में से कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) प्रबंधकीय प्रशिक्षण
(d) सृजनात्मक क्रिया
उत्तर:
(c) प्रबंधकीय प्रशिक्षण

प्रश्न 36.
वाणिज्यिक प्रपत्र की अधिकतम अवधि होती है
(a) 3 महीना
(b) 6 महीना
(c) 12 महीना
(d) 24 महीना
उत्तर:
(c) 12 महीना

प्रश्न 37.
भारत में स्कंध विपणियों का भविष्य हैं
(a) उज्जवल
(b) अंधेरे में
(c) सामान्य
(d) कोई भविष्य नहीं
उत्तर:
(a) उज्जवल

प्रश्न 38.
नियोजन व्यापार के सभी बुराइयों का उपाय नहीं है क्योंकि
(a) नियोजन सामान्यतः पक्षपातपूर्ण और समय खपत करने वाला होता है
(b) नियोजन लक्ष्य अभिमुखी होता है
(c) नियोजन भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के योग्य बनाता है
(d) नियोजन प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को बढ़ाता है
उत्तर:
(c) नियोजन भविष्य की अनिश्चितताओं का सामना करने के योग्य बनाता है

प्रश्न 39.
निम्न में से कौन-सा पूँजी संरचना को निर्धारित करने वाला तत्व है ?
(a) रोकड़ प्रवाह विवरण
(b) ब्याज आवरण अनुपात
(c) ऋण भुगतान आवरण अनुपात
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 40.
निम्न में से कौन उद्यमिता की विशेषता नहीं है ?
(a) जोखिम लेना
(b) नवाचार
(c) सृजनात्मक क्रिया
(d) प्रबन्धकीय प्रशिक्षण
उत्तर:
(d) प्रबन्धकीय प्रशिक्षण

Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 5

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Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 5

प्रश्न 1.
अकबर की मनसबदारी व्यवस्था की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1573 ई० में भारत में मुगल सम्राट अकबर ने मंगोलों से प्रेरणा लेकर दशमलव पद्धति के आधार पर मनसबदारी प्रथा को चलाया।

प्रत्येक मनसबदारी को दो पद ‘जात’ और ‘सवार’ दिये जाते थे। एक मनसबदार के पास जितने सैनिक रखने होते थे, वह ‘जात’ का सूचक था। ‘सवार’ से तात्पर्य मनसबदारों को रखने वाले घुड़सवारों की संख्या से था। जहाँगीर ने खुर्रम (शाहजहाँ) को 1000 और 5000 का मनसब दिया। अर्थात् शाहजहाँ के पास 10000 सैनिक और पाँच हजार घुड़सवार थे। सबसे छोटा मनसब 10 का और बड़ा 60000 तक का था। बड़े मनसब राजकुमारों तथा राज परिवार के सदस्यों को ही दिये जाते थे। जहाँगीर के काल में मनसबदारी व्यवस्था में दु-अश्वा (सवार पद के दुगने घोड़े) सि-अश्वा (सवार पद के तिगुने घोड़े) प्रणाली लागू हुई। हिन्दु, मुस्लिम दोनों मनसबदार हो सकते थे और इनकी नियुक्ति, पदोन्नति, पदच्युति सम्राट द्वारा की जाती थी।

प्रश्न 2.
बर्नियर भारतीय नगरों को किस रूप में देखता है ?
उत्तर:
बर्नियर के अनुसार मुगल काल में अनेक बड़े और समृद्ध नगर थे। आबादी का 15 प्रतिशत भाग नगरों में रहता था। यूरोपीय शहरों की तुलना में मुगलकालीन नगरों की आबादी अधिक घनी थी। दिल्ली और आगरा नगर राजधानी नगर के रूप में विख्यात थे। नगरों में भव्य रिहायसी इमारतें, अमीरों के मकान और बड़े बाजार थे। नगर दस्तकारी उत्पादों के केन्द्र थे। नगर में राजकीय कारखाना थे, जहाँ विभिन्न प्रकार के सामान बनाए जाते थे। नगर में कलाकार, चिकित्सक, अध्यापक, वकील, वास्तुकार, संगीतकार, सुलेखक रहते थे। जिन्हें राजकीय और अमीरों का संरक्षण प्राप्त था। नगरों का एक प्रभावशाली वर्ग व्यापारी वर्ग था। पश्चिमी भारत में बड़े व्यापारी महाजन कहलाते थे। इनका प्रधान सेठ कहलाता था। वर्नियर नगरों की उत्पादन एवं व्यापार में भूमिका को स्वीकार करते हुए भी इनके वास्तविक स्वरूप को स्वीकार नहीं करता है। वह मुगलकालीन नगरों को ‘शिविन नगर’ कहता है जो सत्य से परे है।

प्रश्न 3.
शाहजहाँ के काल को स्वर्णयुग कहा जाता है। वर्णन करें।
उत्तर:
मध्यकालीन भारतीय इतिहास में शाहजहाँ के काल को (1627-1658) ‘स्वर्णयुग’ कहा जाता है। जैसाकि शाहजहाँ के समकालीन लेखक राय भारमल तथा खफी खाँ ने भी उसके शासनकाल को स्वर्णयुग कहा है क्योंकि वह व्यक्ति और शासक के रूप में महान था। उसका शासन अत्यंत सफल था। उस समय पूरे राज्य में शांति और व्यवस्था कायम थी, निष्पक्ष न्याय की व्यवस्था थी। उसके समय में कला, शिक्षा एवं साहित्य का भी काफी उत्थान हुआ। आर्थिक क्षेत्र में भी काफी तरक्की हुई। इन्हीं आधारों पर हम कहते हैं कि शाहजहाँ का काल स्वर्णयुग था। इसका विस्तृत वर्णन हम निम्नलिखित रूप में कर सकते हैं-

(i) उत्तम शासक-शाहजहाँ एक उदार एवं प्रगतिशील व्यक्ति था। वह सुशील, दयालु तथा सज्जन प्रकृति का था। वह विद्वान तथा सुरुचि सम्पन्न सम्राट था। उनका स्वभाव मृदुल एवं नम्र था। साहित्य तथा ललित कलाओं में वह विशेषरूप से रुचि लेता था। यद्यपि डा. स्मिथ ने उसे अच्छा व्यक्ति नहीं माना है क्योंकि उसने अपने पिता जहाँगीर के विरुद्ध विद्रोह किया था लेकिन मुगल शाहजादों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। जहाँगीर ने भी अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया था। इसके अलावे शाहजहाँ ने जो भी काम किया वह नूरजहाँ के विरोधी कार्यों के चलते ही किया। डॉ० स्मिथ उसे आदर्श पति भी नहीं मानते हैं क्योंकि मुमताज महल की मृत्यु के बाद भी उसका सम्बन्ध अन्य पत्नियों से रहा। लेकिन यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि मुगल सम्राट बहुपत्नीवादी होते थे। साथ ही शाहजहाँ ने तो कई वर्षों तक मुमताज के प्रति प्रेम को पवित्रतापूर्वक निभाने की हर संभव कोशिश की थी। इस प्रकार एक व्यक्ति के रूप में वह अच्छा था।

(ii) उत्तम सैनिक-व्यवस्था – शाहजहाँ एक कुशल सेना एवं सेनानायक था। वह वृद्धावस्था में भी स्वयं युद्ध की योजनाएँ बनाता था तथा युद्ध का संचालन करता था। उसने मुगल सेना को पुनर्संगठित कर उसे सशक्त एवं क्रियाशील बनाया। कुशल सेनानायक होने के कारण ही उसने अपने प्रारंभिक वर्षों में हुए विद्रोहों को सफलतापूर्वक दबा सका। उसने पुर्तगालियों को बढ़ती हुई शक्ति को नष्ट किया तथा दक्षिण में अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुंडा आदि राज्यों पर मुगल सत्ता को सुदृढ़ किया।

(iii) उत्तम शांति-व्यवस्था – शाहजहाँ एक कुशल शासक, कुशल प्रबन्धक तथा उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ था। उसके शासनकाल में राज्य में पूरी शांति व्यवस्था बनी रही। उसके विशाल साम्राज्य को देखते हुए, जो पश्चिम में सिंध से लेकर पूरब में आसाम तक तथा उत्तर में काश्मीर से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ था, इस तरह की शासन-व्यवस्था कोई मामूली बात न थी। इतने बड़े साम्राज्य को सुसंगठित और सुव्यवस्थित रखना ही उसके कुशल शासक होने का द्योतक है। यद्यपि मध्ययुग में अशांति रहती थी तथा चोरी, डकैती, हत्या आदि होते रहते थे लेकिन शाहजहाँ ने सामान्य जीवन को सुरक्षित बनाने के उद्देश्य से उचित कदम उठाये। फलस्वरूप इस तरह की बारदातों में काफी कमी आई।

(iv) आर्थिक सम्पन्नता – उसके समय में राज्य की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी। साम्राज्य का राजस्व मंत्री मुर्शीद कुली खाँ बड़ा ही योग्य व्यक्ति था और उसने विभिन्न प्रयत्नों से राज्य की आमदनी को काफी बढ़ाया। उसके पहले राज्य कर के रूप में उपज का 2/3 भाग भूमिकर के रूप में लगता था लेकिन उसने अब उसे बढ़ाकर 9/2 भाग कर दिया जिससे राज्य की आमदनी में काफी वृद्धि हुई और राज्य सम्पन्न हो गया। इसके अलावे उसके समय में शांति-व्यवस्था कायम थी इसलिए देश अधिक समृद्ध एवं सम्पन्न बन गया। प्रजा भी काफी खुशहाल थी।

(v) उत्तम न्याय-व्यवस्था – शाहजहाँ के काल में न्याय की भी उत्तम व्यवस्था थी। वह एक न्यायप्रिय शासक था तथा निष्पक्ष न्याय के लिए प्रसिद्ध था। वह सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में रहता था तथा अपराधियों को कठोर दंड दिया करता था। वह प्रत्येक बुधवार को महल के न्यायालय में बैठकर सभी की शिकायतों को सुनता था तथा अपराधियों को कड़ा दंड देता था। फलस्वरूप अपराध कम होते थे और लोग शांतिमय जीवन बसर करते थे।

(vi) लोकहितकारी कार्य – शाहजहाँ निरंकुश शासक होते हुए भी बहुत ही लोकप्रिय था। वह बहत ही परिश्रमी, कर्तव्यनिष्ठ तथा सहनशील था और प्रत्येक काम जनता की भलाई को देखकर करता था। उसने जनता की भलाई के लिए कई काम किए, जैसे-कई स्कूल, मस्जिदें, सराय, बगीचे आदि का निर्माण किया तथा सिंचाई के उद्देश्य से यमुना नहर का निर्माण करवाई। 1650 ई०में जब दक्षिण में अकाल पडा तो वहाँ लगान माफ कर तथा अन्य उपायों द्वारा अकाल पीड़ितों की सहायता की थी। 1696 ई० में जब पंजाब में भी अकाल पड़ा तो उस समय भी इसी तरह की व्यवस्था कर लोगों के प्राणों की रक्षा की।

(vii) शिक्षा एवं साहित्य का उत्थान – शाहजहाँ के काल में शिक्षा एवं साहित्य का उत्थान हुआ। खासकर संस्कृत, हिन्दी तथा फारसी साहित्य की काफी उन्नति हुई। उसके दरबार में विभिन्न भाषाओं के कई विद्वान रहा करते थे। ‘गंगाधर’ तथा गंगालहरी के प्रसिद्ध लेखक जगन्नाथ पंडित के अलावे हिन्दी और संस्कृत के कई विद्वान (कवीन्द्र आचार्य सरस्वती) उसके दरबार में रहा करते थे। वह इन लोगों को संरक्षण प्रदान करता था। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सुन्दर दास और चिंतामणि भी इसी के दरबार में रहते थे। फारसी साहित्य की भी काफी उन्नति हुई। अब्दुल हमीद लाहौरी ने कई ग्रंथों की रचना की।

साहित्य के अलावे ज्योतिष विज्ञान की भी काफी उन्नति हुई। शाहजहाँ ज्योतिष में विश्वास करता था अतः उसने जन्मकुण्डलीयाँ बनाने, विवाह हेतु शुभ लग्न निकालने, तथा सैनिक अभियानों के लिए शुभ मुहुर्त बतलाने हेतु कई ज्योतिषियों को भी दरबार में रखता था। इसके अलावे ज्ञान-विज्ञान के दूसरे क्षेत्रों में भी काफी उन्नति हुई।

(viii) कलाओं का विकास – शाहजहाँ के शासन काल में ललित कला, संगीत, चित्रकला, स्थापत्य कला आदि का काफी विकास हुआ। खासकर स्थापत्य कला के क्षेत्र में तो यह मुगल काल में सर्वश्रेष्ठ थी। उसके द्वारा निर्मित भव्य एवं सुरम्य महल तथा अन्य इमारतें, दिल्ली का लाल किला, जामा मस्जिद, आगरा का ताजमहल आदि मुगल वास्तुकला की पराकाष्ठा प्रदर्शित करती हैं। ताजमहल तो विश्व के आश्चर्यजनक चीजों में गिना जाता है। उसने मयूर सिंहासन का भी निर्माण करवाया था। उसके समय में संगीत कला का भी काफी विकास हआ।

(ix) उद्योग-धंधों तथा व्यापार में प्रगति – शाहजहाँ के शासन-काल में उद्योग-धंधों तथा व्यापार में काफी प्रगति हुई क्योंकि उस समय देश में शांति एवं व्यवस्था कायम थी। भारत से सिल्क तथा सती कपडे नमक, लोहा, मोम, अफीम, मसाले, विभिन्न औषधियाँ भंगार प्रसाधन आदि पश्चिमी एशिया भेजे जाते थे। इन उद्योगों तथा विदेशी व्यापार से राज्य को काफी आमदनी होती थी।

इस प्रकार शाहजहाँ के शासनकाल में देश की राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, कला खासकर स्थापत्य कला आदि की प्रगति को देखकर हम कह सकते हैं कि उसका शासन काल मध्यकालीन भारत का स्वर्णयुग था।

प्रश्न 4.
मुगल काल में जमींदारों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मुगल काल में जमींदारों की स्थिति निम्नलिखित प्रकार से थी-
(i) कृषि उत्पादन में सीधे हिस्सेदारी नहीं करते थे। ये जमींदार थे जो अपनी जमीन के मालिक होते थे और जिन्हें ग्रामीण समाज में ऊँची हैसियत की वजह से कुछ खास सामाजिक और आर्थिक सुविधाएँ मिली हुई थीं। जमींदारों की बढ़ी हुई हैसियत के पीछे एक कारण जाति था; दूसरा कारण यह था कि वे लोग राज्य को कुछ खास किस्म की सेवाएँ (नजराना) देते थे।

(ii) जमींदारों की समृद्धि की वजह थी उनकी विस्तृत व्यक्तिगत जमीन। इन्हें मिल्कियत कहते थे, यानि संपत्ति मिल्कियत जमीन पर जमींदार के निजी इस्तेमाल के लिए खेती होती थी। अक्सर इन जमीनों पर दिहाड़ी के मजदूर या पराधीन मजदूर काम करते थे। जमींदार अपनी मर्जी के मुताबिक इन जमीनों को बेच सकते थे, किसी और के नाम कर सकते थे या उन्हें गिरवी रख सकते थे।

(iii) जमींदारों की ताकत इस बात में थी कि वे अक्सर राज्य की ओर से कर वसूल कर सकते थे। इसके बदले उन्हें वित्तीय मुआवजा मिलता था। सैनिक संसाधन उनकी ताकत का एक 139 और जरिया था। ज्यादातर जमींदारों के पास अपने किले भी थे और अपनी सैनिक टुकड़ियाँ भी जिनमें घुड़सवारों, तोपखाने और पैदल सिपाहियों के जत्थे होते थे।

(iv) इस तरह, अगर हम मुगलकालीन गाँवों में सामाजिक संबंधों की कल्पना एक पिरामिड के रूप में करें, तो जमींदार इसके संकरे शीर्ष का हिस्सा थे।

(v) समसामयिक दस्तावेजों से पता लगता है कि जंग में जीत जमींदार की उत्पत्ति का संभावित स्रोत रहा होगा। अक्सर, जमींदारी फैलाने का एक तरीका था ताकतवर सैनिक सरदारों द्वारा कमजोर लोगों को बेदखल करना। मगर इसकी संभावना कम ही है कि किसी जमींदार को इतने आक्रामक रुख की इजाजत राज्य देता हो जब तक कि एक राज्यादेश (सनद) के जरिये इसकी पुष्टि नहीं कर दी गई हो।

(vi) इससे भी महत्त्वपूर्ण थी जमींदारी को पुख्ता करने की धीमी प्रक्रिया। स्रोतों में दस्तावे वेज भी शामिल हैं। यह कई तरीकों से किया जा सकता था: नयी जमीनों को बसाकर (जंगल-बारी), अधिकारों के हस्तांतरण के जरिये, राज्य के आदेश से, या फिर खरीद कर।

(vii) यही वे प्रक्रियाएँ थीं जिनके जरिये अपेक्षाकृत “निचली” जातियों के लोग भी जमींदारों के दर्जे में दाखिल हो सकते थे। क्योंकि इस काल में जमींदारी धडल्ले से खरीदी और बेची जाती थी।

(viii) जमींदारों ने खेती लायक जमीनों को बसाने में अगआई की और खेतिहरों को खेती के साजो-समान व उधार देकर उन्हें वहाँ बसने में भी मदद की। जमींदारी की खरीद-फरोख्त से गाँवों के मौद्रीकरण की प्रक्रिया में तेजी आई। इसके अलावा, जमींदार अपनी मिल्कियत की जमीनों की फसल भी बेचते थे। ऐसे सबूत हैं जो दिखाते हैं कि जमींदार अक्सर बाजार (हाट) स्थापित करते थे जहाँ किसान भी अपनी फसलें बेचने आते थे।

(ix) यद्यपि इसमें कोई शक नहीं कि जमींदार शोषण करने वाला तबका था, लेकिन किसानों से उनके रिश्तों में पारस्परिकता, पैतृकवाद और संरक्षण का पुट था। जो पहलू इस बात की पुष्टि करते हैं। एक तो यह कि भक्त संतों ने जहाँ बड़ी बेबाकी से जातिगत और दूसरी किस्मों के अत्याचारों की निंदा की। वहीं उन्होंने जमींदारों को (या फिर, दिलचस्प बात है, साहूकारों को) किसानों के शोषक या उन पर अत्याचार करने वाले के रूप में नहीं दिखाया। आमतौर पर राज्य का राजस्व अधिकारी ही उनके गुस्से का निशाना बना। दूसरे, सत्रहवीं सदी में भारी संख्या में कृषि विद्रोह हुए और उनमें राज्य के खिलाफ जमींदारों को अक्सर किसानों का समर्थन मिला।

प्रश्न 5.
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ ?
उत्तर:
अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण बड़ी तेजी के साथ हुआ। यूरोपीय मूलतः अपने-अपने देशों के शहरों से आए थे। उन्होंने औपनिवेशिक सरकार के काल में शहरों का विकास किया। पुर्तगालियों ने 1510 में पणजी, डचों ने 1605 में मछलीपटनम, अंग्रेजों ने 1639 में मद्रास (चेन्नई), 1661 में मुम्बई और 1690 में कलकत्ता (कोलकाता) बसाए तो फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी नामक शहर बसाए। इनमें से अनेक शहर समुद्र के किनारे थे। व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र होने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यकलापों के भी केंद्र थे। अनेक व्यापारिक गतिविधियों के साथ इन शहरों का विस्तार हुआ। आसपास के गाँवों में अनेक सस्ते मजदूर, कारीगर, छोटे-बड़े व्यापारी, सौदागर, नौकरी-पेशा, बुनकर, रंगरेज, धातु कर्म करने वाले लोग रहने लगे। इन शहरों में ईसाई मिशनरियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। अनेक स्थानों पर पश्चिमी-शैली की इमारतें, चर्च और सार्वजनिक महत्त्व की इमारतें बनाई गईं। स्थापत्य में पत्थरों के साथ ईंट, लकड़ी, प्लास्टर आदि का प्रयोग किया गया। छोटे गाँव कस्बे और कस्बे छोटे-बड़े शहर बन गए।

आस-पास के किसान तीर्थ करने के लिए कई शहरों में आते थे। अकाल के दिनों में प्रभावित लोग कस्बों और शहरों में इकट्ठे हो जाते थे। लेकिन जब कस्बों पर हमले होते थे तो कस्बों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लेने के लिए चले जाते थे। व्यापारी और फेरी वाले लोग कस्बों से गाँव में जाकर कृषि उत्पाद और कुछ कुटीर व छोटे पैमाने के उद्योग-धंधों में तैयार माल बिक्री के लिए शहरों और कस्बों में आते थे। इससे बाजार का विस्तार हुआ। भोजन और पहनावे की नई शैलियाँ विकसित हुई। अनेक शहरों की चारदीवारियों को 1857 के विद्रोह के बाद तोड़ दिया गया जैसे दिल्ली का शाहजहाँनाबाद। दक्षिण भारत में मदुरई, कांचीपुरम मुख्य धार्मिक केन्द्र भी बन गए। 18वीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए।

राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर जैसे आगरा, लाहौर, दिल्ली पतनोन्मुख हुए तो नए शहर मद्रास (चेन्नई), मुम्बई, कलकत्ता (कोलकाता) शिक्षा, व्यापार, प्रशासन, वाणिज्य आदि के महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गए। विभिन्न समुदायों, जातियों, वर्गों, व्यवसायों के लोग यहाँ रहने लगे।

नई क्षेत्रीय ताकतों के विकास से क्षेत्रीय राजधानी जैसे अवध की राजधानी लखनऊ, दक्षिण के अनेक राज्यों की राजधानियाँ जैसे तंजौर, पूना, श्रीरंगपट्टनम, नागपुर, बड़ौदा के बढ़ते महत्त्व दिखाई दिए।

व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केंद्रों से नई राजधानियों की ओर काम तथा रोजगार की तलाश में आने लगे।

नए राज्यों और उदित होने वाली नई राजनीतिक शक्तियों में प्रायः निरंतर लड़ाइयाँ होती रहती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि भाड़े के सिपाहियों को भी तैयार रोजगार मिल जाता था।

कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से संबंधित अधिकारियों ने भी इस मौके का उपयोग करके पुरम और गंज जैसी शहरी बस्तियों में अपना विस्तार किया।

लेकिन राजनैतिक विकेन्द्रीकरण का प्रभाव सर्वत्र एक जैसे नहीं थे। कई स्थानों पर नए सिरे से आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ीं, कुछ अन्य स्थानों पर लूटपाट तथा राजनीतिक अनिश्चितता, आर्थिक पतन में बदल गई। जो शहर व्यापार तंत्रों से जुड़े हुए थे। उनमें परिवर्तन दिखाई देने लगे। यूरोपीय कम्पनियों ने अनेक स्थानों पर अपने आर्थिक आधार या फैक्ट्रियाँ स्थापित कर ली। 18वीं शताब्दी के अंत तक एकल आधारित साम्राज्य का स्थान, शक्तिशाली यूरोपीय साम्राज्यों ने लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद और पूँजीवाद की शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं।

मध्य अठारहवीं शताब्दी से परिवर्तन का नया चरण शुरू हुआ। अब व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केंद्रित होने लगी। मुगल काल में जो तीन शहर बहुत प्रगति पर थे-सूरत, मछलीपटनम और ढाका उनका निरंतर पतन होता चला गया।

1757 में प्लासी, 1767 में बक्सर और 1765 में इलाहाबाद की संधि के बाद अंग्रेजों ने बंगाल में अपनी सत्ता स्थापित कर ली। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने अपना व्यापार फैलाया। मद्रास (चेन्नई), मुम्बई और कलकत्ता (कोलकाता) तीनों औपनिवेशिक शहर न केवल बंदरगाह शहर बने बल्कि नई आर्थिक राजधानियों के रूप में भी उभरे। ये तीनों औपनिवेशिक शहर औपनिवेशिक सत्ता और प्रशासन के मुख्य केंद्र बन गए।

नए शहरों में नए भवन, संस्थाएँ विकसित हुईं और शहरी स्थानों को नए ढंग से व्यवस्थित किया गया। अनेक जगहों पर (पश्चिमी शिक्षा केंद्र, अस्पताल. रेलवे दफ्तर. व्यापारिक गोदाम. सरकारी कार्यालय आदि) नए-नए रोजगार विकसित हुए। दूर-दूर के प्रदेशों और गाँवों से पुरुष, महिलाएँ औपनिवेशिक शहरों की ओर उमड़ने लगे। देखते-ही-देखते 1800 तक जनसंख्या की दृष्टि से औपनिवेशिक शहर देश के सबसे बड़े शहर बन गए।

प्रश्न 6.
प्लासी युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
प्लासी युद्ध का भारतीय इतिहास में विशेषतः राजनैतिक महत्व है। इस युद्ध ने देश की राजनीति में महान परिवर्तन ला दिया। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

(i) भारत में अंग्रेजों का राज्य स्थापित करने का विचार-अंग्रेज यद्यपि भारत में व्यापार करने के लिए आये थे, परंतु यहाँ की राजनीतिक स्थिति को देखकर उनके विचारों में परिवर्तन हो गया। उन्होंने यहाँ अपने साम्राज्य की स्थापना का विचार कर लिया। फ्रांसीसियों को पराजित करने के पश्चात् उन्होंने भारतीय शासकों को पराजित करने का कार्यक्रम बनाया और बंगाल से ही अपने कार्यक्रम को लागू करना आरंभ किया।

(ii) सिराजुद्दौला से अंग्रेज आतंकित-प्लासी के युद्ध के समय बंगाल का शासक सिराजुद्दौला था। वह देश के लिए अंग्रेजों को खतरनाक समझता था। अंग्रेज भी उससे घबराये हुए थे। मरने से पूर्व उसके नाना अलीवर्दी खाँ ने कहा था-“मुल्क के अंदर यूरोपियन कौमों की ताकत पर नजर रखना। यदि खुदा मेरी उम्र बढ़ा देता तो मैं तुम्हें इस डर से भी आजाद कर देता-अब मेरे बेटे यह काम तुम्हें करना होगा …..।”

अलीवर्दी खाँ ने भी एक बार अंग्रेजों से कहा था-“तुम लोग सौदागर हो, तुम्हें किलों की क्या जरूरत ? तब तुम मेरी हिफाजत में हो तो तुम्हें किसी दुश्मन का डर नहीं हो सकता।”

परंतु अब अंग्रेज न तो केवल सौदागर ही रहना चाहते थे और न दूसरे के शासन में रहना चाहते थे, वे भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने प्लासी का युद्ध लड़ा।

(iii) बंगाल को प्राप्त करना – अंग्रेज हर परिस्थिति में राजनैतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान बंगाल को प्राप्त कर लेना चाहते थे। अतः उन्हें इस प्रदेश को प्राप्त करने हेतु किसी न किसी बहाने की आवश्यकता थी जो उन्हें प्लासी का युद्ध करने के लिए शीघ्र मिल गया।

(iv) किलेबंदी – सिराजुद्दौला के नाना अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेज और फ्रांसीसियों को किलेबंदी न करने की स्पष्ट चेतावनी दी थी परंतु उसके मरते ही फिर किलेबंदी होनी प्रारंभ हो गई। सिराजुद्दौला ने भी किलेबंदी करनी की मनाही की इससे फ्रेंच कंपनी ने किलेबंदी समाप्त कर दी, . परंतु अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस कारण सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के संबंध कटु हो गये। और उनमें युद्ध होना आवश्यक हो गया। .

(v) अंग्रेजों द्वारा विरोधियों को सहायता देना – अंग्रेज व्यापारी सिराजुद्दौला के विरोधियों की सहायता कर रहे थे। असंतुष्ट दरबारियों तथा अन्य शत्रुओं को अंग्रेज शरण दिया करते थे, इससे सिराजुद्दौला अंग्रेजों से चिढ़ गया था। अंग्रेजों ने नवाब की इच्छा के विरुद्ध ढाका के दीवान राजबल व कृष्ण बल्लभ को भी अपने यहाँ शरण दी जिससे उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। ऐसी स्थिति में युद्ध को टाला नहीं जा सकता था।

(vi) सुविधाओं का अनुचित उपयोग – मुगल शासकों द्वारा जो सुविधायें अंग्रेजों को दी गई थीं, उसका वे दुरूपयोग कर रहे थे। अपने माल के साथ भारतीय व्यापारियों के माल को भी वह अपना माल बताकर चुंगी को बचा लेते थे और उनसे स्वयं चुंगी लेते थे। इससे आपसी संबंध कटु होते गये और युद्ध की स्थिति स्पष्ट नजर आने लगी।

(vii) उत्तराधिकार के मामलों में हस्तक्षेप – अंग्रेज़ सिराजुद्दौला के विरोधी उत्तराधिकारियों के पक्ष में झुक रहे थे। ढाका के शासक की विधवा बेगम तथा उसकी मौसी के पुत्र शौकत जंग का अंग्रेज समर्थन किया करते थे। ऐसी परिस्थिति में सिराजुद्दौला उनसे रुष्ट हो गया और उनसे युद्ध करने की ठान ली।

सिराजुद्दौला ने रुष्ट होकर अंग्रेजों को बंगाल से निष्कासित करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने जनवरी 1756 में कासिम बाजार में स्थित अंग्रेजी कारखाने पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् वह कलकत्ता की ओर चला। 18 जून, 1756 को नवाब ने कलकत्ते पर आक्रमण किया तथा उस पर सिराजुद्दौला का अधिकार हो गया। इसी समय काल कोठरी की घटना घटी। जैसे कि इतिहासकारों ने बताया है कि 146 अंग्रेजों को एक कोठरी में बंद करके मार डाला गया। यह घटना ‘ब्लैक हॉल’ के नाम से प्रसिद्ध है। 2 जनवरी, 1757 को कलकत्ता पर मानिक चन्द के विश्वासघात करने के कारण अंग्रेजों का फिर से अधिकार हो गया। अब अंग्रेजों ने सेनापति मीरजाफर तथा सेठ अमीचन्द को अपनी ओर मिलाकर सिराजुद्दौला को परास्त करने की योजना बनाई।

इस बीच क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगाया और 22 जून, 1757 को 3200 सैनिकों को लेकर राजधानी के समीप प्लासी स्थान पर पहुँच गया। सिराजुद्दौला अपनी 50 हजार सेना को लेकर मैदान में आया। 23 जून, 1757 को युद्ध प्रारंभ हुआ। मीरजाफर और राय दुर्लभ अपनी सेनाओं के साथ चुपचाप खड़े रहे। केवल मोहनलाल और मीरमदान ने पूर्ण साहस से शत्रुओं का सामना किया, परंतु अपने प्रमुख सहयोगियों द्वारा विश्वासघात करने पर सिराजुद्दौला का दिल टूट गया। प्लासी के मैदान में उसकी पराजय हुई। 24 जून, 1757 को वह अपनी पत्नी के साथ महल की एक खिड़की से कूदकर भाग गया परंतु वह पकड़ा गया और मीरजाफर के पुत्र मीर द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।

प्लासी के युद्ध के परिणाम-

  • बंगाल की नवाबी मीरजाफर को मिली।
  • 24 परगनों की जमींदारी कंपनी को प्राप्त हुई।
  • अमीचन्द को इस युद्ध में निराश रहना पड़ा।
  • बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
  • अंग्रेज अब केवल व्यापारी न होकर शासक हो गया।
  • कंपनी का व्यापार पूरे बंगाल में फैल गया।
  • अलीवर्दी खाँ के वंश का अंत हो गया।

प्रश्न 7.
1857 के विद्रोह के कारणों को लिखें।
उत्तर:
1857 के सिपाही विद्रोह के महत्त्वपूर्ण प्रमुख कारण निम्नांकित थे-
(i) सामाजिक कारण (Social causes) – अंग्रेजों ने अनेक भारतीय सामाजिक कुरीतियों कोने के लिए कानन बनाया। उन्होंने सती प्रथा को काननी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधावा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय हुआ कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं। संयुक्त परिवार, जाति, व्यवस्था तथा सामाजिक रीति-रिवाज को वे नष्ट करके अपनी संस्कृति हम पर थोपना चाहते हैं। अतः उनके मन में विद्रोह की चिंगारी सुलग रही थी। अंग्रेज भारतीयों को उच्च पद देने के लिए तैयार न थे। अपने जातीय अहंकार के कारण वे लोग समझते थे कि उनके क्लबों में काले लोग नहीं जा सकते। एक साथ वे एक ही रेल के डिब्बे में यात्रा नहीं कर सकते हैं। वे भारतीयों को निम्न कोटि का समझते थे।

(ii) धार्मिक कारण (Religious causes) – ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन करा देते थे। जेलों में ईसाई धर्म की शिक्षा का प्रबन्ध था। 1850 ई० में एक कानून बनाकर ईसाई बनने वाले व्यक्ति को अपनी पैतृक सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना निश्चित किया गया। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अतः पंडितों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी।

(iii) सैनिक कारण (Military causes) – भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे, जैसे वे तिलक, चोटी, पगड़ी या दाढ़ी आदि नहीं रख सकते थे। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे।

(iv) तात्कालिक कारण (Immediate causes) – तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।

26 फरवरी, 1857 ई. को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई० को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कोजिए।
उत्तर:
विद्रोह की उपलब्धियाँ (Achievements of the Revolt) – 1857 का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम चाहे असफल रहा, परन्तु इसकी अनेक उपलब्धियाँ एवं परिणाम बहुत ही महत्त्वपूर्ण थे। यह विद्रोह व्यर्थ नहीं गया। यह अपनी उपलब्धियों के कारण ही हमारे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं की श्रेणियों में आ सका। इसकी उपलब्धियाँ निम्न थीं-

1. हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim Unity) – इस आन्दोलन एवं संघर्ष के दौरान हिन्दू एवं मुस्लिम न केवल साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपने देश में एक सामान्य मंच पर आए, बल्कि देश के लिए लड़े और एक साथ ही यातनायें भी सहीं। अंग्रेजों को यह एकता तनिक भी नहीं भायी। इसलिए उन्होंने शीघ्र ही अपनी ‘फूट डालो एवं शासन करो’ की नीति को और तेज कर दिया।

2. राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि (The Background of National Movement) – राष्ट्रीय आन्दोलन एवं स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष की पृष्ठभूमि इस विद्रोह ने तैयार की। इस संग्राम ने देश की पूर्ण स्वतंत्रता के जो बीज बोए उसी का फल 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुआ।

3. देशभक्ति की भावना का प्रसार (Spread ofPatriotic Feelings) – इस संग्राम ने भारतीय जनता के मस्तिष्क पर वीरता, त्याग एवं देशभक्तिपूर्ण संघर्ष की एक ऐसी छाप छोड़ी कि वे अब प्रान्तीय एवं क्षेत्रीयता की संकर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर धीरे-धीरे राष्ट्र के बारे में एक सच्चे नागरिक की तरह सोचने लगे। विद्रोह के नायक सारे देश के लिए प्रेरणा के स्रोत एवं घर-घर में चर्चित होने वाले नायक बन गए। यह इस आन्दोलन की एक महान उपलब्धि थी।

4. देषी राज्यों को मारत (Relifeofthe Princelv States) – देशी राजाओं को अंग्रेजी सरकार ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में उनके राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग नहीं बनाया जाएगा। उनका अस्तित्व स्वतन्त्र रूप से बना रहेगा। इसलिए अधिकांश देशी राजाओं ने ब्रिटिश शासन का समर्थन करना शुरू कर दिया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार दे दिया गया। इससे अनेक शासकों ने राहत की साँस ली।

5. भारतीयों को सरकारी नौकरियों की घोषणा (Govt. Service to the Indians) – सैद्धान्तिक रूप में भारतीय सर्वोच्च पदों पर धीरे-धीरे प्रगति करके जा सकते थे। सरकारी घोषणा की गई थी कि भारतीयों के साथ जाति एवं रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा; लेकिन अंग्रेजों ने अपना वायदा पूरा नहीं किया, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन बराबर बढ़ता गया।

6. धार्मिक हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया (The Religious Interference Ended) – सैद्धान्तिक रूप से भारतीय प्रजा को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता का विश्वास दिलाया गया, लेकिन व्यावहारिक रूप में हिन्दू और मुसलमानों में धार्मिक घृणा एवं साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया।

प्रश्न 9.
“ईस्ट इंडिया कम्पनी काल में जोतदारों का उदय” विषय पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
जोतदारों का उदय (The rise of the Jotedars)-
(i) वे धनी किसान थे जिन्होंने अठारहवीं शताब्दी में कुछ गाँवों, समूहों, में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।

(ii) 19वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक आते-आते जोतदारों के जमीन के बड़े-बड़े रकबे (भूखंड), जो कभी-कभी कई हजार एकड़ में फैले थे, प्राप्त कर लिए थे।

(ii) जोतदारों का स्थानीय ग्रामीण व्यापार और साहूकारों के कारोबार पर नियंत्रण था। वे अपने क्षेत्र के गरीब काश्तकारों पर व्यापक शक्ति का प्रयोग करते थे।

(iv) जोतदारों की जमीन का बड़ा भाग बटाईदारों के माध्यम से जोता जाता था जो खुद अपना हल लाते थे, जोतदारों के खेतों में काम करते थे और फसल की उपज का 50 प्रतिशत जोतदारों को दे देते थे।

(v) गाँव में जोतदारों की शक्ति, जमींदारों की शक्ति से ज्यादा प्रभावशाली थी। जमींदार तो शहरों में रहते थे जबकि जोतदार गाँव में ही रहा करते थे। गाँव में रहने वाले गरीब लोगों के काफी बड़े तबके पर उनका सीधा नियंत्रण होता था।

(vi) जोतदारों का जमींदारों से टकराव होता था इसके कई कारण थे। प्रथम, जब जमींदार गाँव की जमा (लगान) बढ़ाने की कोशिश करते थे तो जोतदार उसका विरोध करते थे। दूसरे जमींदारों की अधिकारियों को अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकते थे। तीसरा, जो रैयत उन पर निर्भर रहते थे उन्हें वे अपने पक्ष में एकजुट रखते थे और जमींदारों से खुन्दक निकालने के लिए वे रैयतों को राजस्व के भुगतान में जानबूझकर देरी करने के लिए उकसाते रहते थे। चौथा, जब जमींदारी की भू-सम्पदाएँ नीलाम होती थीं तो जोतदार उनकी जमीनों को खरीदकर कटे पर नमक छिड़कने का काम करते थे।

(vii) संक्षेप में कहा जा सकता है उत्तरी बंगाल में जोतदार सर्वशक्तिशाली थे। उनके उदय होने से जमींदारों के अधिकारों का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था। कई स्थानों पर जोतदारों को हवलदार या मंडल या गाँटीदार भी कहते थे। प्रायः जमींदार जोतदारों को पसंद नहीं करते थे क्योंकि जोतदार बड़ी-बड़ी जमीनें जोतने और अपनी उभरी हुई स्थिति के कारण कठोर और जिद्दी भी थे।

प्रश्न 10.
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई भू-राजस्व व्यवस्थाओं और सर्वेक्षण पर लेख लिखिए।
उत्तर:
भू-राजस्व व्यवस्था तथा सर्वेक्षण (Land Revenue Systems and Surveys)
(a) स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement)-

  • बंगाल में स्थायी बंदोबस्त 1793 में लागू किया गया था। इस व्यवस्था में भूमि जमींदारों को स्थायी रूप से दी दी जाती थी और उन्हें एक निश्चित धनराशि सरकारी कोष में जमा करनी पड़ती थी।
  • इससे जमींदारों को कानूनी तौर पर मालिकाना अधिकार मिल गये। अब वे किसानों से मनमाना लगान लेते थे।
  • इस व्यवस्था से सरकार को लगान के रूप में बँधी-बँधाई धनराशि मिल जाती थी।
  • इस व्यवस्था से नये जमींदारों का जन्म हुआ, जो शहरों में बड़े-बड़े बंगलों में और तरह-तरह की सुख-सुविधाओं के साथ रहते थे। गाँव में उनके कारिन्दे किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार करके भूमि कर ले जाते थे। जमींदार को किसानों को दुःख-सुख से कोई लगाव न था।
  • किसानों को बदले में सिंचाई या ऋण सुविधा नाममात्र को भी नहीं मिलती थी।

(b) रैयतवाड़ी व्यवस्था (Raiyatwari System) – दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम भारत में रैयतवाड़ी बंदोबस्त लागू किया गया जिसके अंतर्गत किसान भूमि का मालिक था यदि वह भू-राजस्व का भुगतान करता रहा। इस व्यवस्था के समर्थकों का कहना है कि यह वही व्यवस्था है, जो भारत में पहले से थी। बाद में यह व्यवस्था मद्रास और बंबई प्रेसिडेंसियों में भी लागू कर दी गई। इस व्यवस्था में 20-30 वर्ष बाद संशोधन कर दिया जाता था तथा राजस्व की राशि बढ़ा दी जाती थी। रैयतवाड़ी व्यवस्था में निम्नलिखित त्रुटियाँ थीं-

  1. भू-राजस्व 45 से 55 प्रतिशत था, जो बहुत अधिक था।
  2. भू-राजस्व बढ़ाने का अधिकार सरकार ने अपने पास रखा था।
  3. सूखे अथवा बाढ़ की स्थिति में भी पूरा राजस्व देना पड़ता था। इससे भूमि पर किसान का प्रभुत्व कमजोर पड़ गया।

प्रभाव –

  1. इससे समाज में असंतोष और आर्थिक विषमता का वातावरण छा गया।
  2. सरकारी कर्मचारी किसानों पर अत्याचार करते रहे तथा किसानों का शोषण पहले जैसा .. ही होता रहा।

(c) महालवाडी प्रथा (Mahalwari Systemi) –

  1. इस व्यवस्था के अंतर्गत मालगजारी का बंदोबस्त अलग-अलग गाँवों या जागीरों (महलों) के आधार पर उन जमींदारों या उन परिवारों के मुखिया के साथ किया गया जो भूमि कर के स्वामी होने का दावा करते थे।
  2. अब अपनी भूमि बेचकर भी किसान भू-राजस्व दे सकता था। अगर वह भू-राजस्व समय पर नहीं देता था तो सरकार उनकी भूमि नीलाम करवा सकती थी।

प्रश्न 11.
स्थायी बंदोबस्त से आप क्या समझते हैं ? इसके लाभ एवं हानियों का वर्णन करें।
उत्तर:
बंगाल का स्थायी बन्दोबस्त (Permanent Settlement of Bengal) – बंगाल की राजस्व व्यवस्था में सुधार करके लॉर्ड कॉर्नवालिस ने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उसके द्वारा प्रतिपादित व्यवस्था ही बाद में “स्थायी बन्दोबस्त” के नाम से प्रसिद्ध हुई।

स्थायी बन्दोबस्त के लिये उत्तरदायी परिस्थितियाँ : वारेन हेस्टिंग्स ने कम्पनी की आय में वृद्धि करने के विचार से भूमि को पाँच वर्ष के लिये और बाद में केवल एक वर्ष के लिये ठेके पर देना आरम्भ किया था। ठेके पर भूमि देने की यह प्रणाली अत्यन्त असन्तोषजनक और दोषपूर्ण सिद्ध हुई। उसमें अनेक दोष थे-

  1. उत्साह तथा जिद्द में आकर जमींदार अधिक से अधिक बोली लगाते थे, परन्तु वे भूमि की आय से इतनी राशि नहीं प्राप्त कर पाते थे, इस कारण सरकार का बहुत-सा धन बिना वसूल किये ही रह जाता था।
  2. जमींदारों को यह भी विश्वास नहीं होता था कि अगले वर्ष भूमि उनको मिलेगी अथवा नहीं, इस कारण वह भूमि की दशा को सुधारने का कोई प्रयास नहीं करते थे, परिणामस्वरूप भूमि ऊसर होने लगी।
  3. एक वर्ष के ठेके में अपनी धनराशि को पूरा करने के लिये जमींदार कृषकों पर बहुत अत्याचार करते थे।

बंगाल का स्थायी भूमि प्रबन्ध : इंगलैंड की सरकार को लॉर्ड कॉर्नवालिस के भारत आने के पूर्व ही भूमि ठेके पर देने के दोषों का पता चल चुका था। इसी कारण सन् 1784 के पिट्स इण्डिया ऐक्ट (Pit’s India Act) में कम्पनी के संचालकों को स्पष्ट आदेश दिया गया था कि वे भारत में वहाँ की न्याय व्यवस्था तथा संविधान के अनुसार उचित भूमि व्यवस्था लागू करें। अप्रैल 1784 ई० में जब कॉर्नवालिस भारत आ रहा था तो कम्पनी के संचालकों ने उसे स्पष्ट निर्देश दिए थे कि वह पिट्स इण्डिया ऐक्ट की धाराओं के अनुसार भारत में भूमि कर निश्चित कर दें।

लॉर्ड कॉर्नवालिस शीघ्रता से कोई कार्य नहीं करना चाहता था। उसने भूमि कर की जाँच-पड़ताल का कार्य बंगाल प्रशासन के एक अनुभवी सदस्य सर जान शोर को दिया। उसने सम्पूर्ण लगान व्यवस्था का लगभग तीन वर्ष तक अध्ययन किया। उसकी रिपोर्ट के आधार पर कॉर्नवालिस ने दस वर्ष के लिए भूमि जमींदारों को सौंप दी। जब यह परीक्षण सफल रहा तो कॉर्नवालिस ने उसे एक स्थायी रूप दे दिया और भूमि सदा के लिए जमींदारों को सौंप दी गई। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार थीं-

(i) अभी तक जमींदारों की कानूनी स्थिति यह थी कि वे भूमिकर एकत्रित करने के अधिकारी तो थे, परन्तु भूमि के स्वामी नहीं थे, परन्तु अब उनको भूमि का स्थायी रूप से स्वामी मान लिया गया।

(ii) अब उन्हें नित्यप्रति दिये जाने वाले उत्तराधिकार के शुल्क से भी मुक्ति मिल गई।

(iii) इसके अतिरिक्त जमींदारों से लिया जाने वाला कर भी निश्चित कर दिया गया, परन्तु उसकी रकम में वृद्धि की जा सकती थी। यह निश्चित किया गया कि सन् 1793 ई० में किसी जमींदार को लगान से जो कुछ भी प्राप्त होता था, सरकार भविष्य में उसका 10/11 भाग लिया करेगी, शेष धन का अधिकारी जमींदार रहेगा।

स्थायी बन्दोबस्त से लाभ : मार्शमैन तथा आर० सी० दत्त जैसे विद्वानों ने स्थायी बन्दोबस्त की अत्यन्त प्रशंसा की है। मार्शमैन ने इसे एक अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण कार्य बताया है। इसी प्रकार इतिहासकार आर० सी० दत्त का कथन है, लॉर्ड कार्नवालिस द्वारा प्रतिपादित स्थायी भूमि व्यवस्था, अंग्रेजों द्वारा किए गए कार्यों से सर्वाधिक बुद्धिमत्तापूर्ण तथा सफल कार्य था।”

स्थायी भूमि व्यवस्था के अनेक लाभ इस प्रकार हैं-
(i) जमींदारों के लिए लाभदायक- भूमि के इस स्थायी बन्दोवस्त का लाभ जमींदार वर्ग को ही रहा। उन्हें भूमि का स्वामित्व प्राप्त हो गया। समय के साथ-साथ भूमि से अधिक उत्पादन होने लगा जिससे जमींदार समृद्धशाली हो गये।

(ii) बार-बार भूमि कर निश्चित करने के झंझट से मुक्ति- इस व्यवस्था से सरकार और जमींदार दोनों को ही प्रतिवर्ष भूमि कर निश्चत करने वाली कठिनाइयों से मुक्ति मिल गई।

(iii) सरकार की आय का निश्चित होना-स्थायी प्रबन्ध से भूमि-कर की रकम निश्चित कर दी गई, परिणामस्वरूप सरकार की आय भी निश्चित हो गई तथा अब सरकार सरलता से बजट बना सकती थी।

(iv) प्रशासन की कार्यकुशलता में वृद्धि-स्थायी को अपना अधिकांश समय भूराजस्व एकत्रित करने तथा उससे संबंधित समस्याओं की ओर लगाना पड़ता था। परन्तु स्थायी व्यवस्था के परिणामस्वरूप सरकार को राजस्व संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिल गई। अब सरकार अन्य प्रशासनिक कार्यों की ओर ध्यान दे सकती थी।

(v) उत्पादन तथा समृद्धि में वृद्धि-स्थायी व्यवस्था के फलस्वरूप भूमि की दशा में सुधार होने लगा और अधिक से अधिक अन्न का उत्पादन होने लगा।

(vi) ब्रिटिश सरकार को स्थिरता प्राप्त होना- स्थायी बन्दोवस्त के कारण बंगाल में अंग्रेजी सरकार का आधार सुदृढ़ हो गया। अंग्रेजों ने जमींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया था। इसी कारण वे सरकार के प्रबल समर्थक बन गये और सन् 1857 की क्रांति के समय अंग्रेजों के भक्त बने रहे। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार “राजनैतिक दृष्टि से भी यह कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था। जमींदार ब्रिटिश साम्राज्य की सुरक्षा तथा उसके बने रहने में रूचि लेने लगे। विद्रोह के समय भी उनकी वफादारी दृढ़ रही। इस दृष्टिकोण से यह व्यवस्था अत्यन्त सफल रही।”

स्थायी बन्दोबस्त से हानि : मिल, थार्नटन और होम्ज आदि कुछ इतिहासकारों ने स्थायी व्यवस्था की कड़ी आलोचना की है। उनके अनुसार इस व्यवस्था में अनेक दोष थे-
(i) आरम्भ में जमींदारों पर उल्टा प्रभाव-प्रारम्भ में अनेक जमींदार परिवार नष्ट हो गये, क्योंकि उन्होंने अपना समस्त धन भूमि को सुधारने पर व्यय कर दिया, परन्तु उत्पादन में उस अनुपात में वृद्धि नहीं हुई, इस कारण वह अपनी रकम को जो उस समय के अनुसार बहुत अधिक थी समय पर जमा न कर सके, फलतः बिक्री के नियम जो कि विनाशकारी नियम के नाम से भी प्रसिद्ध था, के अनुसार उनकी बिक्री कर दी गई।

(ii) कृषकों के हितों की उपेक्षा-स्थायी बन्दोबस्त में कृषकों के अधिकारों तथा हितों का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया तथा उन्हें पूर्ण रूप से जमींदारों की दया पर ही छोड़ दिया गया। जमींदार उन पर अनेक प्रकार के अमानवीय अत्याचार करते थे। उन्होंने किसानों से अधिकाधिक धनं बटोरना प्रारम्भ कर दिया।

(iii) राज्य के भावी हितों की अवहेलना-स्थायी व्यवस्था के द्वारा राज्य के भावी हितों की भी उपेक्षा की गई। समय के साथ-साथ भूमि से प्राप्त होने वाली आय में वृद्धि होने लगी, परन्तु राजकीय भाग निश्चित था, इस कारण बढ़ी हुई आय से सरकार को एक पैसा भी नहीं सका।

(iv) खेती करने वालों पर करों का भारी बोझ-समय के साथ-साथ सरकार के व्यय में वृद्धि हो रही थी, परन्तु वह जमींदारों से एक पाई भी अधिक लेने में असमर्थ थी। इस कारण जमींदारी से होने वाले घाटे को सरकार अन्य व्यक्तियों पर भारी कर लगाकर पूरा करती थी। इस प्रकार जमींदारों के लाभ के लिए अन्य लोग करों के भार से दब गए जो पूर्णतया अन्याय था।

(v) अन्य प्रान्तों पर भार- समय व्यतीत होने पर सरकार के लिए बंगाल एक घाटे का प्रान्त बन गया। बंगाल के अकृषक वर्ग पर भी कर लगाने से जब यह घाटा पूरा न हुआ तब सरकार ने बाध्य होकर अन्य प्रान्तों पर भारी कर लगाये।

Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3

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Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
“कृषि प्रक्षेत्र में भारतीय मजदूरों की सबसे बड़ी भागीदारी है।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत मानसूनी जलवायु का प्रदेश है। यहाँ वर्ष भर सघन कृषि का कार्य किया जाता है। हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है, जो अपने जीविकोपार्जन हेतु प्राथमिक क्रिया के अंतर्गत कृषि का कार्य करते हैं।

यही कारण है कि भारतीय मजदूरों की भागीदारी कृषि क्षेत्रों में सर्वाधिक है।

प्रश्न 2.
भारत में अभ्रक वितरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अभ्रक का उपयोग विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में किया जाता है। भारत में अभ्रक की प्राप्ति झारखंड, आन्ध्रप्रदेश व राजस्थान में होता है। सबसे अधिक अभ्रक का उत्पादन झारखंड राज्य के कोडरमा जिला में होता है।

प्रश्न 3.
पूरे पृष्ठ पर भारत का मानचित्र बनाएँ और निम्नलिखित को दर्शाएँ।
(क) कॉफी उत्पादन क्षेत्र
(ख) जय प्रकाश अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा
उत्तर:
Bihar Board 12th Geography Important Questions Short Answer Type Part 3, 1

प्रश्न 4.
नगरीकरण और औद्योगिकीकरण से जनसंख्या घनत्व बढ़ता है व्याख्या करें।
उत्तर:
जनसंख्या घनत्व को बढ़ाने में नगरीकरण तथा औद्योगीकरण की भूमिका प्रमुख है। नगरीकरण के फलस्वरूप लोगों को नये रोजगार के बेहतर अवसर, शैक्षणिक व चिकित्सा संबंधी सुविधाएँ तथा परिवहन और संचार के बेहतर साधन उपलब्ध हो पाते हैं वहीं औद्योगीकरण के फलस्वरूप भी लोगों को रोजगार, परिवहन, परिचालन, दुकानदार, बैंककर्मी, डॉक्टर एवं अध्यापक जैसे साधनों का उपयोग करने का अवसर प्राप्त होता है। यही कारण है कि जनसंख्या घनत्व में वृद्धि देखी जाती है।

प्रश्न 5.
मानवीय क्रियाकलाप क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैसे विभिन्न प्रकार के कार्य को मानव समूहों के द्वारा किया जाता है, मानवीय क्रिया-कलाप कहलाता है। मानवीय क्रियाकलाप को चार वर्गों में वर्गीकृत करते हैं

  1. प्राथमिक क्रियाकलाप : कृषि, खनन, मछली पकड़ना, पशुचारण।
  2. द्वितीय क्रियाकलाप : विनिर्माण उद्योग, प्रसंस्करण उद्योग।
  3. तृतीय क्रियाकलाप : व्यापार, परिवहन, संचार संवाएँ।
  4. चतुर्थ क्रियाकलाप : सूचना संग्रहण, उत्पादन, अनुसंधान।

प्रश्न 6.
प्रवास के आर्थिक परिणाम कौन-से है ?
उत्तर:
प्रवास के फलस्वरूप आर्थिक परिणाम देखे जाते हैं। उद्गम क्षेत्र के लिए जहाँ से लोग प्रवास करते हैं, उस क्षेत्र के लिए अपने द्वारा अर्जित धन को भेजते हैं। भारत ने सन् 2002 में अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों द्वारा 110 अरब अमेरिकी डॉलर प्राप्त किये। पंजाब, करल और तमिलनाडु राज्यों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों से महत्वपूर्ण राशि प्राप्त किये हैं। भारत के आंतरिक प्रवासियों द्वारा भी आर्थिक वृद्धि की गई है, जिसमें आर्थिक धन का प्रयोग भोजन, ऋण की अदायगी, उपचार, विवाह एवं बच्चों की शिक्षा इत्यादि पर खर्च किये जाते हैं। बिहार, उत्तरप्रदेश, उड़ीसा जैसे राज्यों के लोग महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु जैसे राज्यों से आर्थिक धन की प्राप्ति करते हैं।

प्रश्न 7.
जनसंख्या का पर्यावरण पर प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या का पर्यावरण पर निम्न प्रभाव पड़ते हैं

  • जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप आवासों का निर्माण किया जा रहा है, जिससे कृषि भूमि में कमी आ रही है।
  • वनस्पतियों की कटाई अधिक मात्रा में किया जा रहा है।
  • वायु प्रदूषण की पात्रा में वृद्धि हो रही है।
  • नगरीय क्षेत्रों में अपशिष्ट कचरों की मात्रा बढ़ने से वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।
  • जल प्रदूषण बढ़ रहा है।
  • मृदा अपरदन की क्रिया तीव्र हो गई है।

प्रश्न 8.
भारत के राष्ट्रीय जलमार्ग का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में 14500 किमी. लंबा जलमार्ग उपलब्ध है, जिसका देश के परिवहन में 1% योगदान है। भारत में तीन अंत: स्थलीय जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया है। ये हैं

  • हल्दिया से इलाहाबाद तक 1620 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-1
  • सादिया से धुबरी तक 891 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-2
  • कोट्टापुरम से कोलम तक 168 कि० मी० लंबा जलमार्ग संख्या-3
    राष्ट्रीय जलमार्ग सं०-2 का भारत एवं बंग्लादेश साझेदारी में प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता वस्तु उद्योग तथा उत्पादन वस्तु उद्योग में अंतर बताएँ।
उत्तर:
उपभोक्ता वस्तु उद्योग तथा उत्पादक वस्तु उद्योग में अंतर :
उपभोक्ता वस्तु उद्योग :

  1. हम अपने दैनिक जीवन में अनेक प्रकार की वस्तुओं का उपभोग करते हैं।
  2. उद्योग जो वस्तुओं का उत्पादन प्राय: लोगों के दैनिक उपयोग के लिए करते हैं, उन्हें उपभोक्ता वस्तु उद्योग कहते हैं, जैसे-खाने के तेल, चाय, कॉफी, रेडियो, टी० वी० वस्त्र, चीनी, वनस्पति घी उद्योग आदि।
  3. इनके उत्पादों का प्रयोग सीधा उपभोग के काम आता है। उपभोक्ता वस्तु उद्योग प्रायः छोटे पैमाने तथा हल्के वर्ग के होते हैं।

उत्पादक वस्तु उद्योग :

  1. इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग अन्य प्रकार के उत्पादन प्राप्त करने के लिए किया जाता है, जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग, भारी मशीनरी उद्योग।
  2. इन उद्योगों से प्राप्त मशीनें अन्य उत्पादों को बनाने के लिए प्रयोग की जाती है। इसलिए इन्हें आधारभूत उद्योग भी कहते हैं।
  3. इन उद्योगों के उत्पादों का प्रयोग उसी समय नहीं होता, बल्कि वह भविष्य में उत्पादन प्रक्रम में योगदान देता है।

प्रश्न 10.
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में पनामा नहर की भूमिका पर संक्षेप में प्रकाश डालें।
उत्तर:
72 किलोमीटर लंबे पनामा नहर के निर्माण से न्यूयार्क एवं सेन-फ्रांसिस्को के बीच की समुद्री दूरी लगभग 13000 किमी. हो गई है। संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी तटीय क्षेत्र का पश्चिमी यूरोप एवं दक्षिण एशियाई देशों के बीच की दूरी कम हो जाने से समय एवं लागत दोनों की बचत हुई है।

प्रश्न 11.
आकृति के आधार पर ग्रामीण बस्तियों को वर्गीकृत करें।
उत्तर:
आकृति के आधार पर ग्रामीण बस्तियों के प्रमुख प्रकार हैं-

  • रैखिक प्रतिरूप – सड़क रेलमार्ग, नदी, नहर इत्यादि के किनारे अथवा तटबंधों के सहारे विकसित प्रतिरूप।
  • आयताकार प्रतिरूप – मैदानी भागों में सड़कों के चौराहे एवं पर्वतीय घाटियों में विकसित बस्तियाँ।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप – झीलों एवं तालाबों के चारों ओर विकसित बस्ती।
  • ‘टी’ आकार – सड़क किनारे तिराहे पर विकसित बस्तियाँ।

प्रश्न 12.
कृषि सेक्टर में भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक अंश संलग्न है स्पष्ट करें।
उत्तर:
पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में कृषि सेक्टर के श्रमिकों के अनुपात में कमी आयी है। इसके बावजूद 2001 की जनगणना आँकड़ों के अनुसार श्रमिकों का 58.2% प्राथमिक, 4.2% द्वितीय एवं 37.6% तृतीयक क्रियाकलापों में संलग्न हैं। इससे स्पष्ट है कि आज भी भारतीय श्रमिकों का सर्वाधिक हिस्सा कृषि सेक्टर में संलग्न है।

प्रश्न 13.
किसी देश की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ने पर वहाँ के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
जनसंख्या की तीव्र वृद्धि कारण अनेक प्रकार की आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं-

  • भोजन की समस्या (Food Problems) – तीव्र गति से जनसंख्या की वृद्धि के कारण भोज्य पदार्थों की आवश्यकता की पूर्ति कठिन हो जाती है।
  • आवास की समस्या ( Housing Problems) – बढ़ती जनसंख्या के कारण निवास स्थानों की कमी होती जा रही है। लाखों लोग झुग्गी तथा झोपड़ी में निवास करते हैं।
  • बेरोजगारी (Unemployment) – जनसंख्या वृद्धि के कारण बेकारी एक गम्भीर समस्या के रूप में उभर कर सामने आयी है। आर्थिक विकास कम हो जाने से रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं और बेरोजगारों की संख्या बढ़ जाती है।
  • निम्न जीवन-स्तर (Low Standardof Living) – अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति आय कम हो जाती है, इसलिए जीवन स्तर गिर जाता है।
  • जनसंख्या का कृषि पर अधिक दबाव (Pressure of Population on Land) – बढ़ती जनसंख्या को खाद्यान्नों की पूर्ति करने के लिए कृषि योग्य भूमि पर दबाव बढ़ जाता है।
  • बचत में कमी (Less Savings) – जनसंख्या वृद्धि के कारण कीमतें बढ़ जाती हैं तथा बचत कम होती है। लोगों को शिक्षा व चिकित्सा सुविधाएँ बहुत कम प्राप्त होती हैं।
  • स्वास्थ्य (Health) – नगरों में गंदगी बढ़ जाती है। स्वास्थ्य और सफाई का स्तर नीचे गिर जाता है।

प्रश्न 14.
नाभिकीय ऊर्जा क्या है ? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
रेडियोधर्मी तत्वों के नाभिकीय विखंडन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहा जाता है।
भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के नाम हैं-

  • तारापुर
  • रावतभाटा
  • कलपक्कम्
  • नरोरा
  • काकरापाड़
  • कैगा।

प्रश्न 15.
भारत में एक्सप्रेस वे क्या है ?
उत्तर:
दिल्ली जयपुर तथा मुंबई से पुणे तक चार लेनवाली आधुनिक सड़कों को एक्सप्रेस-वे कहा जाता है। इस पर चलनेवाली गाड़ियों की अतिरिक्त टोल-टैक्स देना पड़ता है। इस सड़क पर किसी अन्य सड़क से कोई गाड़ी नहीं आ सकती है।

प्रश्न 16.
1991 ई० की नई औद्योगिक नीति के तीन मुख्य उद्देश्यों को लिखिए।
उत्तर:
1991 ई० की औद्योगिक-नीति के तीन मुख्य उद्देश्य हैं-

  • उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण पर आधारित इस नीति में सतत विकास पर ध्यान दिया गया है।
  • उत्पादकता एवं लाभप्रद रोजगार को बढ़ाने का लक्ष्य है।
  • लाभदायक पदार्थों के निर्माण को बढ़ाकर तथा गुणवत्ता और बाजार को आकर्षक बनाकर लाभ में वृद्धि करना।

प्रश्न 17.
नियतिवाद और संभावनावाद में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
नियतिवाद और संभावनावाद में निम्नलिखित अंतर है-

नियतिवाद (Determinism):

  1. इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य के प्रत्येक क्रियाकलाप को पर्यावरण से नियंत्रित माना जाता है।
  2. नियतिवादी सामान्यतः मानव को एक निष्क्रिय कारक समझते हैं, जो पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होता है।
  3. हिपोक्रेट्स, अरस्तू, हेरोडोटस, स्ट्रैबो आदि रोमन और यूनानी विद्वानों ने नियतिवाद का समर्थन किया। रैटजैल, रिटर, हम्बोल्ट, कांट आदि ने भी इस विचारधारा का समर्थन किया।
  4. इस विचारधारा के मानने वाले मानव के आचरण, निर्णय क्षमता, कार्य- कुशलता तथा जीवन पद्धति आदि को भी पर्यावरण के भौतिक कारकों द्वारा प्रभावित मानते हैं।
  5. इस विचारधारा के अनुसार प्राकृतिक पर्यावरण सर्वप्रमुख है जो मानव के सारे क्रिया-कलापों को नियंत्रित करता है।

संभावनावाद (Possibilism):

  1. इस विचारधारा के अनुसार मनुष्य अपने पर्यावरण में परिवर्तन करने में समर्थ है तथा वह प्रकृतिदत्त अनेक संभावनाओं का इच्छानुसार अपने लाभ के लिए उपयोग कर सकता है।
  2. संभावनावाद प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान देता है और उसे सक्रिय शक्ति के रूप में देखता है।
  3. लूसियन फैबने, वाइडल डी० ला ब्लाश ने व्यवस्थित तरीके से इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया।
  4. इस विचारधारा के अनुसार नियतिवाद का यह सिद्धांत कि मनुष्य प्रकृति का दास है, अस्वीकृत कर दिया गया।
  5. कुछ भूगोलवेत्ताओं ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य प्रकृति के तत्त्वों को अपने लाभ के लिए चुनने के लिए स्वतंत्र होता है और इस दृष्टि से मनुष्य को उसके भौतिक पर्यावरण की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

प्रश्न 18.
मानव भूगोल के अध्ययन में वाइडल डी ला ब्लॉश का क्या योगदान है ?
उत्तर:
वाइडल डी-ला ब्लॉश के अनुसार मानव भूगोल की परिभाषा इस प्रकार है-मानव भूगोल प्रकृति एवं मनुष्य के बीच पारस्परिक सम्बन्धों को एक नई समझ देता है। उन्होंने मानव भूगोल में संभावनावाद की नींव रखी। जब प्रकृति की तुलना में मनुष्य को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाए और जब मानव को निष्क्रिय शक्ति के रूप में देखा जाए तो यह धारणा संभावनावाद कहलाती है। यद्यपि संभावनावाद की संकल्पना प्रथम विश्व युद्ध से पहले की गई लेकिन वाइडल डी. ब्लॉश ने व्यवस्थित तरीके से इस विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया।

उनके अनुसार मनुष्य की जीवन शैली मनुष्य और उसके निवास स्थान के सम्बन्धों को नियंत्रित करने वाले भौतिक ऐतिहासिक और सामाजिक प्रभावों का समन्वित परिणाम है। उन्होंने समान पर्यावरण के भीतर मानव समूह के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि विभिन्नतायें भौतिक, पर्यावरण के दबाव के प्रतिफल नहीं अपितु दूसरे कारकों जैसे मानव मूल्य एवं आदतों में परिवर्तन का परिणाम हैं। यही संकल्पना सम्भावनावादियों के लिये आधारभूत दर्शन बनी।

प्रश्न 19.
मानव भूगोल के अध्ययन के संदर्भ में फ्रेडरिक रेटजैल के योगदान का वर्णन करें।
उत्तर:
फ्रेडरिक रेटजैल मानव भूगोल के जन्मदाता माने जाते हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘एन्थ्रोयोलाजी’ (1899) में भूगोल के अध्ययन को मानव केन्द्रित विचारधारा में परिवर्तित किया। मानव भूगोल के विकास की यह एक युगान्तकारी घटना है। मानव भूगोल को मानव केन्द्रित अध्ययन में स्थापित करने के कारण रेटजैल को आधुनिक मानव भूगोल का जनक कहा जाता है। उसके अनुसार मानव भूगोल मानव समाज एवं भूपृष्ठ के मध्य पारस्परिक सम्बन्धों का संश्लिष्ट सम्बन्ध है. तथा मानव भूगोल के विषय सर्वत्र वातावरण से संबंधित होते हैं जो स्वयं भौतिक दशाओं का एक योग होता है।

प्रश्न 20.
चलवासी पशुचारण की प्रमुख विशेषतायें तथा इससे संबंधित क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विशेषताएँ :

  • चलवासी पशु चारक विभिन्न समुदायों में विभाजित होते हैं। प्रत्येक समुदाय एक सुस्पष्ट सीमा में विचरण करता है।
  • इन्हें अपने क्षेत्र के मौसम के अनुसार चारे तथा जल आपूर्ति की जानकारी होती है।
  • इस प्रक्रिया में पशु पूर्णतः प्राकृतिक वनस्पति पर ही निर्भर करते हैं।
  • चलवासी पशुचारक गाय, भैंस, घोड़े, भेड़-बकरी पालते हैं।
  • इन लोगों का जीवन पूर्णतः पशुओं पर ही निर्भर करता है।
  • हिमालय क्षेत्र के चलवासी गुज्जर-बकरवाल, गद्दी व भोटिया भेड़, बकरी व याक पालते हैं।

चलवासी पशुचारण के तीन प्रमुख क्षेत्र निम्न हैं-

  • यह क्षेत्र 5° प० अक्षांश के मध्य उत्तरी अफ्रीका के सहारा मरुस्थल से पूर्वी अफ्रीका के तटीय भाग, सऊदी अरब, इराक, ईरान, अफगानिस्तान होता हुआ मंगोलिया तक फैला है।
  • यूरेशिया में टुण्ड्रा ।
  • दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका तथा मालागासी के पश्चिमी भाग

प्रश्न 21.
जनसंख्या की व्यावसायिक संरचना का क्या अर्थ है ? संसार में पाए जाने वाले व्यावसायिक संरचना के चार प्रमुख वर्गों की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
व्यावसायिक संरचना का अर्थ है किसी देश की विशिष्ट आर्थिक क्रियाओं में जनसंख्या का आनुपातिक वितरण। संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व की जनसंख्या को निम्नलिखित आर्थिक क्रियाओं में विभाजित किया है-
1. कृषि, 2. आखेट, 3. वानिकी, 4. मत्स्य, 5. खनन, 6. विनिर्माण, 7. वाणिज्य आदि। इनको चार समूहों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. प्राथमिक व्यवसाय (Primary Occupation) – इसके अन्तर्गत कृषि, वानिकी, मत्स्य आदि सम्मिलित हैं।
  2. द्वितीयक अथवा गौण व्यवसाय (Secondary Occupation) – इसके अन्तर्गत विनिर्माण उद्योग आदि आते हैं।
  3. तृतीयक उद्योग (Terriary Occupation) – इसके अन्तर्गत यातायात, संचार आदि सेवाएँ आती हैं।
  4. चतुर्थक व्यवसाय (Quarternary Occupation) – इसके अन्तर्गत बौद्धिक व्यवसाय, अनुसंधान, शिक्षा, सूचना आदि आते हैं।

विकसित देशों में द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थक व्यवसाय अधिक पाए जाते हैं जबकि विकासशील देशों में प्राथमिक व्यवसाय अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 22.
व्यापारिक पशुपालन किसे कहते हैं ? उसकी चार विशेषतायें लिखें।
उत्तर:
बड़े-बड़े फार्मों पर धन कमाने के लिए वैज्ञानिक ढंग से पशुओं का पालनपोषण करना व्यापारिक पशुपालन कहलाता है। इसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • यह एक बड़े पैमाने पर चारे की फसलों की सहायता से घास के मैदानों में स्थायी रूप से पशुपालन है।
  • यह पशुपालन कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में बड़े-बड़े फार्मों पर किया जाता है।
  • यह पशुपालन शीतोष्ण घास के मैदानों में प्रचलित है जहाँ सम जलवायु पाई जाती है।
  • यह प्रायः विकसित देशों जैसे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों में प्रचलित है।

प्रश्न 23.
संसार में उद्योगों की अवस्थिति के लिए कच्चा माल, श्रम तथा ऊर्जा के स्रोतों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. कच्चा माल (Raw Material) – उद्योगों की स्थापना के लिए कच्चा माल उनका आधार है। भारी कच्चे माल के समीप ही उद्योग लगाए जाते हैं। जैसे–चीनी उद्योग, इस्पात उद्योग आदि।
  2. श्रम (Labour) – उद्योगों के लिए श्रमिक अनिवार्य हैं। कुछ उद्योग श्रम प्रधान होते हैं तथा कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, मुरादाबाद का बर्तन उद्योग, एम्सटरडम का हीरा उद्योग, स्वीडन का मशीन-उपकरण उद्योग आदि।
  3. ऊर्जा (Energy) – मशीनों को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा की नियमित आपूर्ति आवश्यक है। उद्योगों को ऊर्जा के स्रोतों के निकट ही लगाया जाता है।

प्रश्न 24.
भारी रसायन उद्योगों तथा पेट्रो रसायन उद्योगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारी रसायन उद्योग (Heavy Chemical Industries) – रासायनिक पदार्थ जो कि खनिज अथवा औद्योगिक गौण पंदार्थों पर निर्भर रहते हैं, भारी रसायन कहलाते हैं। उदाहरण-सल्फ्यूरिक, हाइड्रोक्लोरिक।

पेट्रो रासायनिक उद्योग (Petro Chemical Industries) – जो रसायन कोयला, प्राकृतिक गैस या पेट्रोलियम पर निर्भर रहते हैं, वे पेट्रो-कैमिकल कहलाते हैं। उदाहरण-रासायनिक खाद, प्लास्टिक सामग्री आदि।

प्रश्न 25.
संसार में रेलमार्गों के विकास में सहायक तीन प्रमुख कारक बताइए।
उत्तर:
संसार में रेलमार्गों के विकास में निम्न कारक सहायक हैं

  1. समतल भूमि (Plains) – समतल मैदानों में रेलमार्गों का विकास अधिक संभव है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के मैदानों में रेलमार्गों का जाल बिछा हुआ है।
  2. सघन जनसंख्या (Dense Population) – सघन जनसंख्या के कारण भी अधिक रेलमार्ग बिछाए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप भारत का उत्तरी मैदान।
  3. औद्योगीकरण तथा समृद्ध कृषि (Industrialisation and Developed Agriculture) – उद्योगों के विकास तथा समृद्ध कृषि क्षेत्रों में भी रेलों का अधिक विकास होता है। उदाहरण-यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका।

प्रश्न 26.
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रसिद्ध पाइप लाइन कौन-सी है ? पाइप लाइन परिवहन के चार लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रसिद्ध पाइप लाइन का नाम बिग इंच है। पाइप लाइन परिवहन के लाभ निम्नलिखित हैं-

  • पाइपलाइन से तरल तथा गैसीय पदार्थों को दूर स्थानों तक ले जाया जाता है। इनसे पानी, पेट्रोल, गैस आदि ले जाए जाते हैं।
  • पाइपलाइन निर्माण में एक बार ही पूँजी निवेश करना पड़ता है। फिर खर्च में कमी आ जाती है और परिवहन सुगम हो जाता है।
  • पाइपलाइनों से तरल पदार्थों की आपूर्ति निरंतर बनी रहती है।
  • पाइपलाइन को सभी प्रकार के धरातल-ऊबड़-खाबड़, पठारी, पर्वतीय व कठिन भू-भागों यहाँ तक कि पानी के नीचे भी बिछाया जा सकता है।
  • इनसे समय की बचत होती है।
  • पाइपलाइन द्वारा परिवहन पर्यावरण-हितैषी तीव्र एवं सस्ता है।

प्रश्न 27.
सड़क परिवहन सुविधाजनक क्यों होता है ?
उत्तर:

  • सड़क परिवहन अपेक्षाकृत सस्ता है। इसकी लागत, मरम्मत और देखभाल तुलनात्मक दृष्टि से कम है।
  • सड़कें उपभोक्ता के घर तक पहुँचती हैं। उत्पादक और व्यापारी सड़क परिवहन को अधिक पसंद करते हैं क्योंकि माल को बार-बार उतारना या चढ़ाना नहीं पड़ता।
  • यह कम दूरी के लिए बहुत उत्तम है।
  • शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुयें, जैसे सब्जियाँ, फल, दूध उत्पाद आदि के लिए उपयोगी हैं।
  • कहीं भी कभी भी अर्थात् समय और स्थान की पाबन्दी नहीं है। यात्री और सामान को कहीं से कहीं भी ढोया जा सकता है।
  • पैकिंग आदि की आवश्यकता नहीं। फल, सब्जियाँ आदि सीधे ट्रकों से ढोई जा सकती हैं।

प्रश्न 28.
पत्तनों को अंतर्राष्टीय व्यापार का प्रवेश द्वार क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
समुद्र तट का वह स्थान जहाँ से भारी मात्रा में माल समुद्री मार्गों से स्थलमार्गों द्वारा और स्थलमार्गों से समुद्री मार्ग द्वारा भेजा जाता है, पत्तन कहलाता है। पत्तन अपने पृष्ठ प्रदेश (Hinter land) के लिए विदेशों से माल आयात करता है तथा अपने पृष्ठ प्रदेश में उत्पादित माल दूसरे देशों को भेजता है।

पत्तन सागरीय व्यापार के द्वार होते हैं जहाँ जहाजों के ठहरने का उचित प्रबन्ध होता है। जहाजों से सामान उतारने तथा उन पर सामान लादने की भी उचित व्यवस्था होती है। पत्तन का मुख्य कार्य आयात एवं निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को कम समय में सक्षम ढंग से भेजना है। इसकी क्षमता माल के भार तथा जलयानों की संख्या से आंकी जाती है। पत्तनों पर अनेक प्रकार की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। जैसे-माल रखने के लिए गोदाम की सुविधा, यात्रियों के ठहरने के लिए विश्रामगृह, नौगम्य चैनल के रख-रखाव की सुविधा। ये देश के आंतरिक भागों से रेल तथा सड़कों द्वारा जुड़े हुए होते हैं। इस प्रकार पत्तन व्यापार के लिए स्थल से समुद्र तक तथा समुद्र से स्थल तक द्वार का काम करते हैं। अतः इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रवेश द्वार कहा जाता है।

प्रश्न 29.
आयात और निर्यात में अंतर बताइए।
उत्तर:
आयात और निर्यात में अंतरआयात (Import)-

  • एक देश जो माल दूसरे देशों से मँगवाता है, उसे आयात कहते हैं।
  • आयात व्यापार के लिए देशों को अपनी बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को खर्च करना होता है।
  • आयात द्वारा देश अपने उद्योगों के विकास के लिए मशीनें, कच्चा माल आदि प्राप्त करता है।
  • जनता के उपभोग के लिये आवश्यक सामग्री आयात करता है।

निर्याता (Export)-

  • किसी देश से जो माल अन्य देशों को भेजा जाता है, उसे निर्यात कहते हैं।
  • निर्यात तभी होता है जब किसी देश में वस्तुओं का उत्पादन अधिशेष हो और दूसरे देश इसकी माँग करते हों।
  • वे देश जो वस्तुओं का उत्पादन अधिक मात्रा में करते हैं और उनको वे बाहर भेजना चाहते हैं, निर्यात कहलाता है।
  • निर्यात द्वारा देश विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।

प्रश्न 30.
सतलुज-गंगा के मैदान में सघन जनसंख्या के संकेन्द्रण के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में भौतिक कारकों के साथ सामाजिक तथा आर्थिक कारक भी सम्मिलित हैं। सतलुज-गंगा के मैदान में सघन जनसंख्या संकेन्द्रण के कारण निम्नलिखित हैं

  1. समतल मैदान (Levelled Plain) – सतलुज-गंगा का मैदान समतल है। मैदान के उपजाऊ होने के साथ-साथ अन्य सभी सुविधायें उपलब्ध हैं।
  2. निरन्तर जल आपूर्ति (Continuous Water Supply) – इस मैदान में अनेक सदावाही नदियाँ हैं। अतः कृषि के लिए जल की आपूर्ति निरन्तर बनी रहती है।
  3. जलवायु (Climate) – इस मैदान में मृदुल जलवायु के कारण वर्ष भर वर्धनकाल लम्बा रहता है। इसलिए कृषि कार्य संभव है।

प्रश्न 31.
आयु के आधार पर भारत की जनसंख्या के तीन प्रमुख वर्ग कौन-से हैं ? कार्यरत आयु वर्ग कौन-सा है ? इस आयु वर्ग की तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
आयु के आधार पर जनसंख्या को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है : युवक, प्रौढ़ तथा वृद्धा।
युवक 0-14 वर्ष, प्रौढ़ 15-59 वर्ष तथा वृद्ध 60 वर्ष से अधिक।
कार्यरत वर्ग 15-59 वर्ष के वर्ग समूह को कहा जाता है। इसकी तीन विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. कार्यरत वर्ग का अनुपात 56.7% है।
  2. इस वर्ग में स्त्रियों के अनुपात को प्रजनन वर्ग कहा जाता है।
  3. इस वर्ग पर देश की सहभागिता निर्भर है।

प्रश्न 32.
भारत में जनसंख्या प्रवास के मुख्य कारण कौन-से हैं ?
उत्तर:
भारत में जनसंख्या प्रवास के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. आजीविका अथवा रोजगार (Employment) – ग्रामीण इलाकों में अधिकांश लोग कृषि पर निर्भर करते हैं। बहुत बड़े भाग को गाँवों में आजीविका उपलब्ध नहीं होती इसलिए वे नगर की ओर रोजगार के लिए जाते हैं।
  2. विवाह (Marriage) – विवाह प्रवास का एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक कारक है। प्रत्येक लड़की को विवाह के पश्चात् अपनी ससुराल के घर जाकर रहना पड़ता है।
  3. शिक्षा (Education) – ग्रामीण इलाकों से शिक्षा विशेषकर उच्च शिक्षा के लिए बड़े नगरों में आकर रहना पड़ता है।
  4. सरक्षा की कमी (Lack of Security) – राजनीतिक तथा जातीय दंगों के कारण लोग अपने घरों को छोडकर सरक्षित स्थानों की ओर प्रवास करते हैं। जैसे कश्मीर घाटी के पंडित सुरक्षित स्थानों में रहने चले गए हैं।
  5. कृषि पर दबाव (Pressure on Agriculture) – कृषि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण बहुत से ग्रामीण बेरोजगार होने लगते हैं। इसलिए ये लोग नगरों की ओर प्रवास करते हैं।

प्रश्न 33.
उत्तरी भारत के अधिकांश राज्यों में मानव विकास के निम्न स्तरों के दो कारण बताइए।
उत्तर:
उत्तरी भारत में मानव विकास के निम्न स्तर के कारण निम्नलिखित हैं-

  • गरीबी (Poverty) – पंजाब, हरियाणा को छोड़कर अन्य जैसे-उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, असम आदि राज्यों में गरीबी के कारण मानव विकास नहीं हो पाया है।
  • पिछडा (Backwardness) – ये प्रदेश कृषि प्रधान होने के कारण अन्य क्षेत्रों में पिछडे हुए हैं जैसे-औद्योगिकीकरण आदि। शिक्षा का स्तर भी नीचा है। पिछड़ेपन के कारण इन राज्यों का मानव विकास नहीं हो पाया है।

प्रश्न 34.
देश में अपेक्षाकृत निम्न साक्षरता दर के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में पहली बार 90 के दशक में 3.19 करोड़ निरक्षरों की कमी हुई। 1951 में साक्षरता दर केवल 18.33% थी। 2001 में यह बढ़कर 65.38 हो गई । पुरुष साक्षरता दर की तुलना में अभी भी स्त्री साक्षरता दर कम है।

भारत में साक्षरता दर के निम्न होने के कारण निम्नलिखित है-

  • गरीबी (Poverty) – भारत में अभी भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति (Position of Women in the Society) – भारत में स्त्रियों को समाज में समान दर्जा प्राप्त नहीं है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा पर बल नहीं दिया जाता। इसलिए स्त्री शिक्षा अभी भी बहुत कम है।
  • शिक्षा सविधाओं का अभाव (Lack of Education Facilities) – भारत में प्राथमिक विद्यालयों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का व्यापक प्रचार नहीं हुआ है।
  • अजानता (Ignorance) – अनेक जनजातीय क्षेत्रों में अज्ञानता के कारण शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता इसलिए साक्षरता दर में कमी रहती है।
  • नगरीकरण की स्थिति (Urbanisation) – भारत में अधिकतर जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है इसलिए साक्षरता दर नीची है। नगरों में साक्षरता दर ऊँची होती है।

प्रश्न 35.
देश में कुल उपयोग किए गए जल में कृषि क्षेत्र का हिस्सा कम होने की संभावना क्यों है ?
उत्तर:
कृषि क्षेत्र में सतह जल का 89% और भूमिगत जल का 92% उपयोग होता है। इसके विपरीत औद्योगिक क्षेत्र में सतह जल केवल 2% और भूमिगत जल का 5% ही उपयोग होता है। कुल जल उपयोग में कृषि क्षेत्र का भाग अन्य क्षेत्र से अधिक है। अन्य क्षेत्रों का भाग बढ़ाने के लिये कृषि क्षेत्र का उपयोग कम करना आवश्यक है।

प्रश्न 36.
लोगों पर संदूषित जल/गंदे पानी के उपयोग के क्या संभव प्रभाव हो सकते हैं ?
उत्तर:
दुषित जल के उपयोग से गरीबों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। दूषित जल से जलजनित बीमारियाँ हो जाती हैं। इनमें हैजा, डायरिया, पीलिया आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 37.
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों में सबसे अधिक भौम जल विकास के लिए कौन-से कारक उत्तरदायी हैं ?
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा और तमिलनाडु में नदी बेसिनों में भूमिगत जल का स्तर अपेक्षाकृत ऊँचा है क्योंकि इन नदियों में पुनः पूर्ति योग्य भूमिगत जल की मात्रा अधिक है।

प्रश्न 38.
देशों में सिंचाई के विभिन्न साधनों के सापेक्षिक महत्त्व में परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में सिंचाई के तीन प्रमुख साधन हैं-नहरें, कुएँ और तालाब। समय के अनुसार प्रत्येक साधन का सापेक्ष महत्त्व बदलता रहा है।
1950 तक नहरें सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन थीं। नहरों की भागीदारी लगभग 40% थी। 1950 के बाद नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत अनुपात कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचित क्षेत्र की तुलना में घटता गया और 1999-2000 में घटकर 31.3% रह गया।

इसी प्रकार तालाब द्वारा सिंचित क्षेत्र का अनुपात 1950 में 17.3% था जो घटते हुए 1999-2000 में केवल 4.7% रह गया। तालाबों द्वारा सिंचाई का महत्त्व समय के साथ-साथ कम हो गया जबकि कुएँ और नलकूप से सिंचाई के महत्त्व में लगातार वृद्धि होती गई। 1950-51 में कुएँ और नलकूप द्वारा सिंचाई का प्रतिशत अनुपात 28.7% था जो बढ़कर 1990-91 में 51.5% तथा 2000 तक 58.8% हो गया। कुओं तथा नलकूपों द्वारा सिंचाई का महत्त्व बढ़ने के कारण नलकूपों में डीजल तथा विद्युत पंखों का आरम्भ होना था।

प्रश्न 39.
वर्षा जल संग्रहण क्या है ? आजकल यह भारत में क्यों आवश्यक है ? चार कारण दीजिए।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण भौम जल में पुन:भरण की एक तकनीक है। इसमें स्थानीय रूप से वर्षा जल को एकत्र करके भूमि जल भंडारों को भरना है जिससे भौम जल के जल पटल में जल की कमी न रहे और इस जल से लोगों की स्थानीय माँग की पूर्ति होती रहे। वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता के निम्न कारण हैं-

  1. जल की निरन्तर माँग को पूरा करते रहना।
  2. नालियों को रोकने वाले सतही प्रवाह को कम करना।
  3. सड़कों के जल भराव को रोकना।
  4. भौम जल प्रदूषण को रोककर प्रदूषण को घटाना।
  5. भौम जल की गुणवत्ता को सुधार कर उसे बढ़ाना।
  6. मृदा अपरदन को रोकना।
  7. ग्रीष्म काल में जल की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करना।

प्रश्न 40.
ऊर्जा के अपारंपरिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर:
अपारंपरिक ऊर्जा में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भू तापीय ऊर्जा, जैव ऊर्जा आदि सम्मिलित हैं।

ये उपर्युक्त संसाधन समान रूप से वितरित तथा पर्यावरणीय हितैषी हैं। इन संसाधनों से सतत पोषणीय पर्यावरणीय हितैषी तथा सस्ती. ऊर्जा मिलती है।

प्रश्न 41.
अन्तर स्पष्ट करें – (i) धात्विक खनिज और अधात्विक खनिज (ii) ताप विद्युत और जल विद्युत
उत्तर:
(i) धात्विक खनिज (Metalic Minerals)-

  • जिन खनिजों को पिघलाने से धातुएँ बनती हैं उन्हें धात्विक खनिज कहते हैं। जैसे-लोहा, ताँबा आदि।
  • इनकी अपनी चमक होती है।
  • ये आग्नेय और कायान्तरित शैलों में पाये जाते हैं।
  • इनका औद्योगिक महत्त्व बहत अधिक है।
  • इनकी तार व छड़ें नहीं बनाई जा सकती हैं।

अधात्विक खनिज (Non-metalic Minerals)-

  • जिन खनिजों में धातुएँ नहीं होती उन्हें अधात्विक खनिज कहते हैं। जैसे-नमक, कोयला आदि।
  • ये ठोस, तरल अथवा गैस के रूप में होते हैं।
  • ये अवसादी शैलों में मिलते हैं।
  • चूना पत्थर, कोयला आदि अधात्विक खनिज हैं।
  • इनकी तार व चादरें बनाई जा सकती हैं।

(ii) ताप विद्युत (Thermal Electricity)-

  • यह कोयला, डीजल अथवा परमाणु ऊर्जा से तैयार की जाती है।
  • ये साधन समाप्य साधन हैं। इसलिए अधिक खर्चीले साधन हैं।
  • ये पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं। कोयले से धुआँ निकलता है जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है।
  • ताप विद्युत संयंत्र कोयला अथवा परमाणु ऊर्जा के संसाधनों के समीप ही बनाये जाते हैं।

जल विद्युत (Hydro Electricity)-

  • यह नदियों पर बाँध बनाकर तैयार की जाती है।
  • जल एक असमाप्य साधन है। इसलिए जल विद्युत भी असमाप्य संसाधन है।
  • यह प्रदूषित रहित है।
  • यह कम खर्चीला साधन है।

प्रश्न 42.
भारत में पेट्रोलियम के किन्हीं तीन व्यापारिक उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करें।
उत्तर:
भारत में पेट्रोलियम का व्यापारिक उत्पादन निम्न क्षेत्रों में किया जाता है-

  1. उत्तर-पूर्वी प्रदेश (North-east Regions) – इस प्रदेश में तेल क्षेत्र हैं-डिग्बोई, नहर कटिया, मोरान, रुद्रसागर आदि।
  2. गुजरात प्रदेश (Gujarat Region) – अंकलेश्वर, कलोल, नवगाव, कोसावा, महसाना, आलियावेंट आदि।
  3. मुम्बई हाई (Mumbai High) – यह क्षेत्र मुम्बई से 176 किमी अरब सागर में अपतट क्षेत्र है। यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र है। यहाँ से देश के उत्पादन का दो-तिहाई तेल निकाला जाता है।

प्रश्न 43.
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है ?
उत्तर:
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग है। इसके निम्न कारण हैं-

  1. यह उद्योग गन्ने के उत्पादन समय पर निर्भर करता है।
  2. गन्ने का भंडारण लम्बे समय तक नहीं हो सकता इसलिये गन्ने की कटाई के समय ही यह उद्योग चलाया जाता है। गन्ना एक निश्चित समय में काटा जाता है।
  3. इस उद्योग पर वर्ष भर कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो सकती। इसलिये गन्ना की कटाई के समय ही यह उद्योग चालू रहता है।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 6

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 6

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से जल किस प्रकार का संसाधन है ?
(a) अजैव संसाधन
(b) अनवीकरणीय संसाधन
(c) जैव संसाधन
(d) चक्रीय संसाधन
उत्तर:
(d) चक्रीय संसाधन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित नदियों में से देश में किस नदी में सबसे ज्यादा पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन है ?
(a) सिन्धु
(b) ब्रह्मपुत्र
(c) गंगा
(d) गोदावरी
उत्तर:
(c) गंगा

प्रश्न 3.
घन किमी में दी गई निम्नलिखित संख्याओं में से कौन-सी संख्या भारत में कुल वार्षिक वर्षा दर्शाती है ?
(a) 2,000
(b) 4,000
(c) 3,000
(d) 5,000
उत्तर:
(c) 3,000

प्रश्न 4.
निम्नलिखित दक्षिण भारतीय राज्यों में से किस राज्य में भौम जल उद्योग ( % में) इसके कुल भौम जल संभाव्य से ज्यादा है ?
(a) तमिलनाडु
(b) कर्नाटक
(c) आंध्र प्रदेश
(d) केरल
उत्तर:
(a) तमिलनाडु

प्रश्न 5.
देश में प्रयुक्त कुल जल का सबसे अधिक समानुपात निम्नलिखित सेक्टरों में से किस सेक्टर में है ?
(a) सिंचाई
(b) उद्योग
(c) घरेलू उपयोग
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सिंचाई

प्रश्न 6.
भारत में कुल आपूरणीय भौम जल क्षमता कितनी है ?
(a) 43.39 अरब घन मीटर
(b) 433.9 अरब घन मीटर
(c) 433.01 अरब घन मीटर
(d) 4.331 अरब घन मीटर
उत्तर:
(b) 433.9 अरब घन मीटर

प्रश्न 7.
हीराकुण्ड बाँध किस नदी पर बना है ?
(a) सोन
(b) महानदी
(c) स्वर्ण रेखा
(d) कोसी
उत्तर:
(b) महानदी

प्रश्न 8.
1999-2000 में कुल सिंचित क्षेत्र कितना था ?
(a) 84.7 करोड़
(b) 847 करोड़
(c) 8.47 करोड़
(d) 7.84 करोड़
उत्तर:
(c) 8.47 करोड़

प्रश्न 9.
भारत की सर्वाधिक उपयोग योग्य जल क्षमता वाली नदी है
(a) सिंधु
(b) यमुना
(c) गंगा
(d) ब्रह्मपुत्र
उत्तर:
(c) गंगा

प्रश्न 10.
वर्षण से प्राप्त जल कैसा होता है ?
(a) अलवणीय
(b) लवणीय
(c) पृष्ठीय
(d) वायुमंडलीय
उत्तर:
(a) अलवणीय

प्रश्न 11.
गंगा भारत के किस क्षेत्र में बहती है ?
(a) उत्तर
(b) दक्षिण
(c) पश्चिम
(d) मध्य
उत्तर:
(a) उत्तर

प्रश्न 12.
वर्षा का जल बहकर नदियों, झीलों और तालाबों में चला जाता है उसे क्या कहते
(a) भौम जल
(b) पृष्ठीय जल
(c) अलवणीय जल
(d) महासागरीय
उत्तर:
(b) पृष्ठीय जल

प्रश्न 13.
पढ़ आय वर्ग से तात्पर्य है-
(a) 15 से 59 वर्ष
(b) 10 से 40 वर्ष
(c) 20 से 60 वर्ष
(d) 5 से 35 वर्ष
उत्तर:
(a) 15 से 59 वर्ष

प्रश्न 14.
लिंग अनुपात का संबंध है
(a) पुरुष तथा स्त्रियों के बीच
(b) बच्चे और प्रौढ़ों के बीच
(c) (a) और (b) दोनों
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(a) पुरुष तथा स्त्रियों के बीच

प्रश्न 15.
अधिकांश देशों में ग्रामीण-नगरीय विभाजन किस आधार पर होता है ?
(a) पिरामिड
(b) आकार बिन्दु
(c) सारिणी
(d) कोई नहीं
उत्तर:
(b) आकार बिन्दु

प्रश्न 16.
विश्व की नगरीय जनसंख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है
(a) 8 करोड़
(b) 5 करोड़
(c) 6 करोड़
(d) 4 करोड़
उत्तर:
(c) 6 करोड़

प्रश्न 17.
पूर्वी एशिया में प्रौढ़ शिक्षा दर है
(a) 83.4
(b) 93.4
(c) 60
(d) 65
उत्तर:
(a) 83.4

प्रश्न 18.
निम्न में से कौन-सी एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन का स्वामित्व व्यक्तिगत होता है ?
(a) पूँजीवाद
(b) मिश्रित
(c) समाजवाद
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) पूँजीवाद

प्रश्न 19.
निम्न में से कौन-सा एक प्रकार का उद्योग अन्य उद्योग के लिए कच्चे माल का उत्पादन करता है ?
(a) कुटीर उद्योग
(b) छोटे पैमाने के उद्योग
(c) आधारभूत उद्योग
(d) स्वच्छंद उद्योग
उत्तर:
(c) आधारभूत उद्योग

प्रश्न 20.
निम्न में से कौन-सा जोड़ा सही मेल खाता है ?
(a) स्वचालित वाहन उद्योग 1. लास एंजिल्स
(b) पोत निर्माण उद्योग 2. लुसाका
(c) वायुयान निर्माण उद्योग 3. फलोरेंस
(d) लौह-इस्पात उद्योग 4. पिट्सबर्ग
उत्तर:
(d) लौह-इस्पात उद्योग 4. पिट्सबर्ग

प्रश्न 21.
जल अधिकांश उद्योगों में प्रयोग किया जाता है-प्रसंस्करण भाप निर्माण या मशीनों को
(a) ठंडा करने के लिए
(b) गर्म करने के लिए
(c) साफ करने के लिए
(d) (a) और (b) दोनों
उत्तर:
(a) ठंडा करने के लिए

प्रश्न 22.
उद्योगों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है ?
(a) आकार
(b) उत्पाद
(c) कच्चे माल की प्रकृति
(d) उपर्युक्त सभी के लिए
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी के लिए

प्रश्न 23.
भारत तथा चीन में कपड़े, खिलौने, फर्नीचर, खाद्य तेल तथा चमड़े का उत्पादनहोता है
(a) छोटे पैमाने के उद्योगों में
(b) बड़े पैमाने के उद्योगों में
(c) मशीनों से
(d) हाथ द्वारा
उत्तर:
(a) छोटे पैमाने के उद्योगों में

प्रश्न 24.
जिन उद्योगों में वनों से प्राप्त उत्पादों का कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है उन्हें कहते हैं
(a) वन आधारित उद्योग
(b) कृषि आधारित उद्योग
(c) कोयला आधारित उद्योग
(d) लघु उद्योग
उत्तर:
(a) वन आधारित उद्योग

प्रश्न 25.
विनिर्माण का शाब्दिक अर्थ है
(a) हाथ से बनाना
(b) मशीनों से बनाना
(c) दोनों (a) और (b)
(d) दोनों सही
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)

प्रश्न 26.
कौन-सा उद्योग अन्य सभी उद्योगों को आधार प्रदान करता है ?
(a) रसायन उद्योग
(b) कपड़ा उद्योग
(c) लोहा तथा इस्पात उद्योग
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(c) लोहा तथा इस्पात उद्योग

प्रश्न 27.
संसार के कुल औद्योगिक उत्पादों में कितने प्रतिशत भाग संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान तथा जर्मनी का है ?
(a) 60%
(b) 40%
(c) 50%
(d) 100%
उत्तर:
(c) 50%

प्रश्न 28.
विनिर्माण उद्योग के पुनरुद्योगीकरण ह्रास को कहते हैं
(a) निरूद्योगीकरण
(b) पुनरूद्योगीकरण
(c) विनिर्माण
(d) केन्द्रीयकरण
उत्तर:
(a) निरूद्योगीकरण

प्रश्न 29.
हीरा काटने तथा पॉलिश करने के लिए किसकी आवश्यकता होती है ?
(a) कुशल श्रमिकों की
(b) लघु मशीनों की
(c) बड़ी मशीनों की
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) कुशल श्रमिकों की

प्रश्न 30.
स्वच्छंद उद्योगों की एक प्रमुख विशेषता है
(a) कुशलता
(b) निम्न पूँजी की आवयश्यकता
(c) अधिक उत्पादन
(d) कहीं की स्थापना
उत्तर:
(a) कुशलता

प्रश्न 31.
निम्न में से किस प्रकार की बस्तियाँ सड़क, नदी या नहर के किनारे होती हैं ?
(a) वृत्ताकार
(b) चौक पट्टी
(c) रेखीय
(d) वर्गाकार
उत्तर:
(c) रेखीय

प्रश्न 32.
निम्न में से कौन-सी एक आर्थिक क्रिया ग्रामीण बस्तियों की मुख्य आर्थिक क्रिया है ?
(a) प्राथमिक
(b) तृतीयक
(c) द्वितीयक
(d) चतुर्थक
उत्तर:
(a) प्राथमिक

प्रश्न 33.
निम्न में से किस प्रदेश में प्रलेखित प्राचीनतम नगरीय बस्ती रही है ?
(a) ह्वांगहो की घाटी
(b) सिंधु घाटी
(c) नील घाटी
(d) मेसोपोटामिया
उत्तर:
(b) सिंधु घाटी

प्रश्न 34.
2006 के प्रारंभ में भारत में कितने मिलियन सिटी थे ?
(a) 40
(b) 41
(c) 42
(d) 43
उत्तर:
(c) 42

प्रश्न 35.
विकासशील देशों की जनसंख्या के सामाजिक ढाँचे के विकास एवं आवश्यकताओं की पूर्ति में कौन-से प्रकार के संसाधन सहायक हैं ?
(a) वित्तीय
(b) मानवीय
(c) प्राकृतिक
(d) सामाजिक
उत्तर:
(c) प्राकृतिक

प्रश्न 36.
5 लाख की जनसंख्या वाले नगर से 1 करोड़ की जनसंख्या वाला महानगर बनने में लंदन को कितने वर्ष लगे ?
(a) 100 वर्ष
(b) 23 वर्ष
(c) 300 वर्ष
(d) 25 वर्ष
उत्तर:
(d) 25 वर्ष

प्रश्न 37.
जनवरी 2006 में विश्व में कितने विराट नगर थे ?
(a) 35
(b) एशिया
(c) 15
(d) चीन
उत्तर:
(c) 15

प्रश्न 38.
विकासशील देशों के महानगरों में लगभग कितने प्रतिशत निवासी अवैध बस्तियों में रहते हैं ?
(a) 10 से 20 प्रतिशत
(b) 20 से 30 प्रतिशत
(c) 30 से 60 प्रतिशत
(d) 60 से 80 प्रतिशत
उत्तर:
(c) 30 से 60 प्रतिशत

प्रश्न 39.
भारत सबसे अधिक किस धातु का निर्यात करता है ?
(a) मैंगनीज
(b) ताँबा
(c) अभ्रक
(d) सोना
उत्तर:
(c) अभ्रक

प्रश्न 40.
भारत में खनिज तेल का पहला कुआँ कहाँ खोदा गया ?
(a) नहीर पौग
(b) सूरमा घाटी
(c) नहरकटिया
(d) डिगबोई
उत्तर:
(a) नहीर पौग

प्रश्न 41.
गोंडवाना कोयले के मुख्य भंडार कहाँ हैं ?
(a) दामोदर घाटी
(b) अरुणाचल प्रदेश
(c) रानीगंज
(d) औरंगाबाद
उत्तर:
(a) दामोदर घाटी

प्रश्न 42.
भारत का लोहे के उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है ?
(a) पाँचवाँ
(b) सातवाँ
(c) दसवाँ
(d) दूसरा
उत्तर:
(b) सातवाँ

प्रश्न 43.
भारत के निम्नलिखित राज्यों में से किस एक में स्त्री साक्षरता निम्नतम है ?
(a) जम्मू और कश्मीर
(b) अरुणाचल प्रदेश
(c) झारखंड
(d) बिहार
उत्तर:
(d) बिहार

प्रश्न 44.
केरल का मानव विकास सूचकांक कितना है ?
(a) 0 532
(b) 0.533
(c) 0.638
(d) 0.523
उत्तर:
(c) 0.638

प्रश्न 45.
भारत के निम्नलिखित केन्द्र-शासित प्रदेशों में से किस एक की साक्षरता दर उच्चतम है ?
(a) लक्षद्वीप
(b) चण्डीगढ़
(c) दमन और दीव
(d) अंडमान एवं निकोबार द्वीप
उत्तर:
(a) लक्षद्वीप

प्रश्न 46.
बिहार में साक्षरता दर कितनी है ?
(a) 92.4%
(b) 47.53%
(c) 90.92%
(d) 46.53%
उत्तर:
(b) 47.53%

प्रश्न 47.
केरल में साक्षरता दर कितना प्रतिशत है ?
(a) 92.4%
(b) 90.92%
(c) 50.16%
(d) 54.16%
उत्तर:
(b) 90.92%

Bihar Board 12th History Important Questions Short Answer Type Part 4

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प्रश्न 1.
मंगल पांडे कौन थे ? उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मंगल पांडे (Mangal Pandey) – भारतीय इतिहास में प्राय: मंगल पांडे को 1857 के विद्रोह का प्रथम जनक, महान देशभक्त तथा क्रांतिकारी माना जाता है। वे बैरकपुर (बंगाल) की 34वीं (सैन्य) बटालियन का एक साधारण सिपाही ही थे। उन्होंने अपनी छावनी में चर्बी वाले कारतूस की बात पहुँचाई तथा अंग्रेज अधिकारियों के धर्म विरोधी आदेश की अवहेलना की। सारजेन्ट मेजर हगसन के आदेशानुसार जब किसी भी भारतीय सैनिक ने पांडे को कैद नहीं किया तो उन्होंने हगसन तथा लैफ्टिनेंट बाम को उसके घोड़े सहित ढेर कर दिया। कालान्तर में उन्हें कैद कर लिया गया तथा 8 अप्रैल, 1857 को फाँसी दे दी गई। उनकी वीरता एवं कुर्बानी ने कालान्तर में मेरठ सैनिक छावनी के विप्लव की भूमिका तैयार की।

प्रश्न 2.
शैलावासों की स्थापना के प्रमुख कारण क्या थे ?
अथवा, ब्रिटिश शासकों के लिए हिल स्टेशन क्यों महत्वपूर्ण थे ?
उत्तर:
शैलावास को अंग्रेजी में ‘हिल स्टेशन’ कहा जाता है। शैलावासों की स्थापना प्रमुखतः स्वास्थ्यवर्द्धक स्थलों के रूप में की गई है। भारत के प्रायः सभी राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों में हिल स्टेशन स्थापित हैं। अनेक व्यक्ति पर्यटन एवं स्वास्थ्य लाभ हेतु इन स्थलों पर जाते हैं। इनकी स्थापना का एक कारण पर्यटनों के आकर्षण का केन्द्र स्थापित करना भी था। राजस्थान में माउण्ट आबू, दक्षिण में ऊटी, उत्तर में मसूरी, मध्य प्रदेश में पंचमढ़ी का विकास हिल स्टेशन के रूप में हुआ है। हमारे देश के सात उत्तर-पूर्वी राज्य तो प्रमुखतः हिल स्टेशन के लिए ही जाने जाते हैं। अंग्रेज गर्म जलवायु के ‘आदी नहीं’ थे अत: उन्होंने अपनी सुविधा हेतु भी हिल स्टेशन स्थापित किए।

प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह की असफलता के कारणों का संक्षिप्त उल्लेख करें।
उत्तर:
1857 के विद्रोह की असफलता के कारण (Causes of the Failure of the Revolt of 1857) – 1857 के विद्रोह में भारतीय जनता ने जी-तोड़ संघर्ष कर अंग्रेजों का सामना किया, किन्तु कुछ कारणों से इस विद्रोह में भारतवासियों को असफलता मिली। इस असफलता के निम्न कारण थे-

  1. यह विद्रोह निश्चित तिथि से पहले आरम्भ हो गया। इसकी तिथि 31 मई निर्धारित की गई थी, किंतु यह 10 मई, 1857 को शुरू हो गया।
  2. यह स्वतंत्रता संग्राम सारे भारत में फैल गया, परिवहन तथा संचार के अभाव में भारतवासी इस पर पूर्ण नियंत्रण न रख सके।
  3. भारतवासियों के पास अंग्रेजों के मुकाबले हथियारों का अभाव था।
  4. भारत में कुछ वर्गों ने इस विद्रोह में सक्रिय भाग नहीं लिया।
  5. भारत में अंग्रेजों के समान कुशल सेनापतियों का अभाव था।
  6. अंग्रेजों को ब्रिटेन से यथासमय सहायता प्राप्त होती गई।
  7. क्रांतिकारियों में किसी एक योजना एवं निश्चित उद्देश्यों की कमी थी।

प्रश्न 4.
संविधान निर्माताओं की प्रमुख समस्याएँ क्या थी ?
उत्तर:
भारत जैसे विशाल देश के लिए जहाँ जीवन के हर पक्ष में विविधता पाई जाती हैं, संविधान बनाना कोई सरल कार्य नहीं रहा होगा। संविधान निर्माताओं की मुख्य समस्याएँ इस प्रकार थीं-

  • पहली समस्या थी भारत की अखंडता को बनाये रखना।
  • दूसरी प्रमुख समस्या थी देशी रियासतों की। लॉर्ड माउंटबेटन ने अपने प्रस्ताव में देशी रियासतों को भारतीय संघ में सम्मिलित होने अथवा नहीं होने की छूट दे रखी थी। ऐसी स्थिति में भारतीय संघ में उन्हें सम्मिलित करना एक कठिन कार्य था।
  • भारत की सांस्कृतिक विविधता भी एक अन्य प्रमुख समस्या थी। एक संविधान में सभी जातियों, जनजातियों, विभिन्न भाषा-भाषियों के लिए स्थान बनाना सरल कार्य नहीं था। आदिवासियों को मुख्य धारा से जोड़कर रखना भी एक प्रमुख समस्या थी।
  • अंग्रेजी शासनकाल शोषण एवं उत्पीड़न का काल था। अतः स्वतंत्रता के साथ आम भारतीयों की बची हुई आशाएँ जुड़ी हुई थीं। इन सभी आशाओं को पूरा करना तथा एक नए भारत का निर्माण करना भी एक प्रमुख समस्या थी।

प्रश्न 5.
क्या भारत विभाजन को रोका जा सकता था ?
उत्तर:
1947 में भारत को खण्डित आजादी मिली थी। आजादी के साथ ही भारत का विभाजन भी हो गया तथा एक ब्रिटिश उपनिवेश को भारत और पाकिस्तान के रूप में दो देशों में बाँट दिया गया।

स्वतंत्रता के बाद भी यह चर्चा का विषय बना रहा कि क्या इस विभाजन को रोका जा सकता था किन्तु तत्कालीन कारकों की विवेचना से यही लगता है कि विभाजन अवश्यम्भावी था-

  • अंग्रेजों की नीति थी-फूट डालो, शासन करो। इसके आधार पर उन्होंने सबसे पहले . हिन्दू-मुस्लिम एकता पर प्रहार किया।
  • दोनों ही दलों के नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने भी विभाजन को अनिवार्य बना दिया।
  • लॉर्ड माउंटबेटन ने स्वतंत्रता को विभाजन के उस पार खड़ा कर दिया। अंततः काँग्रेस विभाजन के लिए तैयार हो गई।
  • काँग्रेस ने मुस्लिमों के साथ तुष्टिकरण की नीति अपनाई जिससे लीग की हठधर्मिता को बल मिला। उन्हें यकीन हो गया था कि यदि वे पाकिस्तान की माँग पर अड़े रहे तो उन्हें पाकिस्तान अवश्य ही मिलेगा।

प्रश्न 6.
राष्ट्रवादियों तथा साम्प्रदायवादियों में मुख्य अन्तर क्या था ?
उत्तर:
राष्ट्रवादी, भारत को एक ऐसे राष्ट्र के रूप में देखते थे जिसमें सभी धर्मों के लोग साथ-साथ सम्मानपूर्ण तरीके से रहते हैं। दूसरी ओर साम्प्रदायिकतावादी भारत को धर्म के आधार पर समूह के रूप में देखते थे। वे व्यक्तिगत हितों को राष्ट्रीय हित की अपेक्षा अधिक महत्व देते थे। इस दृष्टिकोण को आधार बनाकर ही मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र की मांग की गई थी।

प्रश्न 7.
अमरीकी गृहयुद्ध और स्वेज नहर का प्रारम्भ होने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अमरीकी गृहयुद्ध का प्रारम्भ 1861 में हुआ। तत्पश्चात् अमरीका से कपास अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में आना बन्द हो गया। इससे भारतीय कपास की माँग में वृद्धि होने लगी। कपास का उत्पादन मुख्य रूप से दक्षिण भारत में होता था। इस समय व्यापारियों तथा बिचौलियों को काफी लाभ हुआ। 1869 में स्वेज नहर का प्रारम्भ होने के साथ ही बम्बई शहर का महत्त्व अत्यधिक बढ़ गया। बम्बई के कपड़ा उद्योग में काफी पैसा लगा तथा यह भारत का सबसे अधिक व्यस्त शहर बन गया।

प्रश्न 8.
औद्योगिक शहर के रूप में ब्रिटिश काल में किन नगरों का उदय हुआ ?
उत्तर:
सही मायनों में ब्रिटिश काल में केवल दो नगरों का औद्योगिक विकास हुआ। पहला नगर था कानपुर, जहाँ सूती कपड़े, ऊनी कपड़े और चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन होता था। दूसरा नगर था-जमशेदपुर, जहाँ स्टील का उत्पादन होता था। इस काल में भारत में अन्य औद्योगिक नगरों का विकास इसलिए नहीं हुआ क्योंकि अंग्रेजों की नीति पक्षपातपूर्ण थी। वे एक औपनिवेशिक देश को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे।

प्रश्न 9.
गाँधीजी 1917 में चम्पारण क्यों गये ? वहाँ उन्होंने क्या किया ?
उत्तर:
19वीं सदी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से में नील की खेती करना अनिवार्य था। इस ‘तिनकठिया’ पद्धति कहा जाता था। किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण के किसानों की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अंत में गाँधीजी की विजय हुई।

प्रश्न 10.
स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में महात्मा गाँधी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में इनका स्थान सर्वोच्च है। भारत की स्वाधीनता उन्हीं की भूमिका का फल है। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में एक नये युग का निर्माण किया और जीवन के अंतिम क्षण तक देश सेवा तथा राष्ट्रीय आंदोलन का पथ-प्रदर्शन करते रहे। इसी कारण उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा जाता था। वे शांति के दूत थे। सत्य और अहिंसा उनके हथियार थे। उनका आंदोलन इसी पर आधारित था।

वैसे तो 1914 ई० में उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया था लेकिन 1919 ई० में अत्यंत प्रभावशाली ढंग से राष्ट्रीय आंदोलन को प्रभावित करना शुरू किया और अन्त तक राष्ट्रीय आंदोलन के प्राण बने रहे। 1920 ई० से 1947 ई० तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर उन्हीं के हाथों में रही। इस अवधि में राष्ट्रीय संग्राम के सर्वोच्च नेता के रूप में भारतीय राजनीति का उन्होंने मार्ग दर्शन किया, उसने साधन दिये, उसको नया दर्शन दिया और उसे सक्रिय बनाया। इसी कारण इस अवधि को ‘गाँधी युग’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने असहयोग आन्दोलन करते हुए भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन को जन-आंदोलन का रूप दिया।

प्रश्न 11.
चम्पारण आन्दोलन के क्या कारण थे ?
उत्तर:
चम्पारण आंदोलन के निम्नलिखित कारण थे-

  • चम्पारण में नील के खेतों में काम करने वाले किसानों पर यूरोपियन निलहे बहुत अत्याचार करते थे।
  • गाँधीजी के दक्षिण अफ्रीका के संघर्षों की कहानी सुनकर चम्पारण के कई किसानों ने उन्हें वहाँ आकर उनकी समस्याओं को सुना एवं उनके हितों के लिए सत्याग्रह शुरू कर दिया।

प्रश्न 12.
असहयोग आन्दोलन के कारणों पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
गाँधीजी ने 1920 ई० में असहयोग आंदोलन आरम्भ किया। इसके निम्नलिखित कारण थे-
(i) रॉलेट एक्ट – प्रथम विश्व युद्ध के बाद 1919 ई० में रॉलेट एक्ट पास किया गया। इसके द्वारा सरकार अकारण ही किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती थी। इससे असंतुष्ट होकर महात्मा गाँधी ने असहयोग आंदोलन चलाया।।

(ii) जालियाँवाला बाग की दुर्घटना – रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में जालियाँवाला बाग के स्थान पर एक जनसभा बुलायी गई। जनरल डायर ने इस सभा में एकत्रित लोगों पर अंधाधुंध गोलियाँ चलायीं। भयंकर हत्याकाण्ड हुआ महात्मा गाँधी ने इस हिंसात्मक घटना से दुःखी होकर असहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया।

प्रश्न 13.
काँग्रेस में उग्रवादियों की भूमिका का परीक्षण करें।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम तथा बीसवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस में एक नए एवं तरूण दल का उदय हुआ जो पुराने नेताओं के आदर्श तथा ढंगों का प्रबल आलोचक था। उनका ध्येय था कि काँग्रेस का लक्ष्य स्वराज होना चाहिए। वे काँग्रेस के उदारवादी नीतियों का विरोध करते थे।

1905 से 1919 का काल भारतीय इतिहास में उग्रवादी युग के नाम से जाना जाता है। उस युग के नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्रपाल, लाला लाजपत राय आदि प्रमुख थे। उग्रवादियों ने विदेशी माल का बहिष्कार और स्वदेशी माल अंगीकार करने पर बल दिया।

प्रश्न 14.
संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
संघ सूची में वे विषय रखे जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है। जैसे-प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक-तार व टेलीफोन, रेल मुद्रा, बीघा व विदेशी व्यापार इत्यादि। इस सूची में कुल 35 विषय है।

राज्य सूची में प्रादेशिक महत्त्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं-कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि। इन विषयों की संख्या 66 थी।

समवर्ती सूची में 47 विषय थे। इस सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्यों दोनों कानून बना सकते हैं किंतु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। इस सूची के प्रमुख विषय हैं-बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियंत्रण, समाचार-पत्र, छापेखाने, दीवानी कानून, हिंसा, वन, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि।

प्रश्न 15.
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को क्यों लागू किया गया ?
उत्तर:
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1949 को बनकर तैयार हो गया था परन्तु उसे 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया। इसका एक कारण था कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने काँग्रेस के दिसम्बर, 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग का प्रस्ताव पास कराया था और 26 जनवरी, 1930 का दिन ‘प्रथम स्वतन्त्रता दिवस’ के रूप में आजादी से पूर्व ही मनाया गया था। इसके बाद काँग्रेस ने हर वर्ष 26 जनवरी का दिन इसी रूप में मनाया था। इसी पवित्र दिवस की याद ताजा रखने के लिए संविधान सभा ने संविधान को 26 जनवरी, 1950 को लागू करने का निर्णय किया था।

प्रश्न 16.
‘पाँचवीं रिपोर्ट पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन और गतिविधियों से संबद्ध यह पाँचवीं रिपोर्ट थी जिसे 1813 में ब्रिटिश संसद में पेश किया गया। इसे एक प्रवर समिति ने तैयार किया था। रिपोर्ट 1002 पृष्ठों में थी। इनमें मुख्यत: जमींदारों, रैयतों की अर्जियाँ, कलक्टर की रिपोर्ट बंगाल-मद्रास के राजस्व और न्यायिक और न्यायिक अधिकारियों पर टिप्पणियाँ थी। रिपोर्ट द्वारा ब्रिटिश संसद में लम्बी बहस हुई।

प्रश्न 17.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना के मुख्य आदर्श क्या हैं ?
उत्तर:
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हमें यह बताती है कि वास्तव में संविधान का क्या उद्देश्य है। यह घोषणा करता है कि संविधान का स्रोत भारत की जनता है। यह निम्नलिखित सिद्धांतों तथा आदर्शों पर बल देता है

  • न्याय : सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक।
  • स्वतंत्रता : विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास तथा पूजा-अर्चना की।
  • समानता : प्रतिष्ठा तथा अवसर की समानता।
  • भ्रातृत्व : व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता सुनिश्चित करना तथा आपसी बन्धुत्व बढ़ाना।

प्रश्न 18.
फोर्ट विलियम नामक किला कहाँ बनाया गया था ? बाद में यह जगह क्या कहलाई ?
उत्तर:
1698 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने सूतानाटी, कालिकाता और गोविंदपुरी की जमींदारी प्राप्त कर ली और वहाँ उन्होंने अपनी फैक्ट्री के इर्द-गिर्द फोर्ट विलियम नाम का किला बनाया। यही गाँव जल्द ही बढ़कर एक नगर बन गया। जिसे अब कोलकाता कहा जाता है।

प्रश्न 19.
प्लासी का युद्ध (1757) किसके बीच हुआ था ?
उत्तर:
प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 ई० को बंगाल का नबाब सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के बीच प्लासी के मैदान में हुआ था। यह सही रूप में लड़ाई नहीं थी बल्कि अंग्रेजी सेनापति क्लाइव की कूटनीतिक चाल थी। इसने नबाब के सेनापति मीरजाफर को अपनी ओर मिलाकर लड़ाई का ढोंग रचा था । सेनापति मीरजाफर के विश्वासघात के कारण नबाब की हार हो गई और नबाब सिराजुद्दौला की हत्या कर दी गई। इस तरह क्लाइव का षड़यंत्र सफल रहा। वहीं से भारत में अंग्रेजी शासन की नींव पड़ गई।

प्रश्न 20.
संक्षेप में रॉलेट एक्ट के प्रति भारतीय प्रतिक्रिया का विवेचना कीजिए।
उत्तर:
1. मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों (1919) से भारतीय राष्ट्रीय नेताओं में घोर निराशा व असंतोष देखकर सरकार बुरी तरह घबरा उठी। सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अपना दमनचक्र चला दिया।

2. सरकार ने 1919 ई० के प्रारंभ में रॉलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट में सरकार को दो व्यापक अधिकार मिले

  • इस एक्ट के द्वारा सरकार किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए तथा दोषी सिद्ध किए जेल में बंद कर सकती है।
  • सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) के अधिकार को स्थगित कर सकती थी।

3. इस एक्ट के कारण लोगों में रोष की लहर दौड़ गई। अतः देश में विरोध होने लगा। देश भर में विरोध सभाएँ, प्रदर्शन और हड़तालें हुई। सेंट्रल लेजिस्लेटिव कौंसिल से तीन भारतीय सदस्यों-मोहम्मद अली जिन्ना, मदन मोहन मालवीय और मजहरूलहक ने इस्तीफा दे दिया। सरकार ने दमन शुरू किया। कई स्थानों पर उसने लाठी-गोली आदि का सहारा लिया। इस एक्ट के विरुद्ध गाँधीजी ने सत्याग्रह किया। पंजाब के जालियाँवाला बाग में इसी एक्ट के विरुद्ध शांतिपूर्ण जनसभा हो रही थी जिससे क्रुद्ध होकर जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियों की वर्षा करवा दी थी।

प्रश्न 21.
1931 के गाँधी-इरविन समझौते का क्या परिणाम निकला ?
उत्तर:

  1. यद्यपि गाँधीजी दूसरे गोलमेल सम्मेलन में भाग लेने गए थे। जनवरी, 1932 ई० को गाँधीजी तथा अन्य नेताओं को बंदी बना लिया गया।
  2. कांग्रेस को पुनः गैरकानूनी घोषित कर दिया गया।
  3. एक लाख से अधिक सत्याग्रही बंदी बना लिए गये।
  4. हजारों प्रदर्शनकारियों की भूमि, मकान तथा संपत्ति सरकार ने जब्त कर ली।

प्रश्न 22.
“सांप्रदायिक पंचाट” की घोषणा किसने की ? इसके प्रावधान क्या थे ?
उत्तर:
16 अगस्त, 1932 को ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मेकडॉनल्ड ने एक घोषणा की जो मेकडॉनल्ड निर्णय या सांप्रदायिक पंचाट के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रावधान – इसके अनुसार दलितों को हिंदुओं से अलग मानकर उन्हें अलग प्रतिनिधित्व देने को कहा गया और दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान किया गया।

प्रश्न 23.
‘द्विराष्ट्र-सिद्धान्त’ का क्या अर्थ है ? यह किस प्रकार से भारतीय इतिहास की पूर्ण मिथ्या थी ?
उत्तर:
द्विराष्ट्र-सिद्धान्त से अभिप्राय यह है कि हिन्दुओं एवं मुसलमानों के दो अलग-अलग राष्ट्र (देश) हैं, अतः वे एक होकर नहीं रह सकते।

यह सिद्धान्त इस आधार पर मिथ्या था कि मध्यकाल में हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने एक सांझी संस्कृति का विकास किया। सन् 1857 की क्रान्ति में भी वे एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 24.
साइमन कमीशन भारत क्यों आया था ?
उत्तर:
1919 ई० के एक्ट के अनुसार यह निर्णय हुआ था कि प्रत्येक दस वर्ष के बाद सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैंड से एक कमीशन भारत आयेगा। इसलिए 1928 ई० में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग (Commission) भारत आया था। इस आयोग में एक भी भारतीय न था, जबकि इसका उद्देश्य भारत के हितों की देखभाल करना था। अतः भारतीयों ने इसका स्थान-स्थान पर बहिष्कार और जोरदार विरोध किया। जहाँ भी यह आयोग गया, वहाँ पर भारतीयों डे दिखाकर ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों के साथ बहिष्कार किया। अंग्रेजों ने प्रदर्शकारियों का दमन बड़ी क्रूरता से किया।

जब यह आयोग लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपतराय ने प्रदर्शन कर रहे जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस के भीषण लाठी प्रहार में लालाजी को कई गहरी चोटें लगी जिनके फलस्वरूप बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसी तरह से लखनऊ में जुलूस का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। उन पर भी जब लाठी प्रहार होने लगा, तो गोविंद बल्लभ पंत ने तुरंत अपना सिर उनके सिर पर रख दिया. जिसके फलस्वरूप पंतजी को पक्षाघात हो गया और जीवन भर वे अपनी गर्दन सीधी रखकर न बैठ पाये।

प्रश्न 25.
आजाद हिंद फौज की रचना और गतिविधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. सुभाषचंद्र बोस ने ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन अंग्रेजों के साथ सशस्त्र संघर्ष के लिए किया था। दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होते ही सुभाषचंद्र बोस को उनके कलकत्ता (कोलकाता) स्थित निवास स्थान पर नजरबंद कर दिया गया था जिससे कि वे अपनी क्रांतिकारी गतिविधियाँ अंग्रेजों के विरुद्ध प्रयुक्त न कर सकें।
  2. 1941 ई० में अंग्रेजों की आँखों में धूल झोंककर वे अफगानिस्तान के मार्ग से जर्मनी पहुँच गये। 1943 ई० में बर्मा पहुँच कर जापान द्वारा बंदी किए गये भारतीय सैनिकों को संगठित कर ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया।
  3. लोभ प्यार से सुभाषचंद्र बोस को नेताजी कहते थे। नेताजी ने युवकों को ललकारा और कहा, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।” उन्होंने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए विदेशों से भी सहायता ली।
  4. 1945 ई० के बाद जापान की पराजय के बाद भारत की सीमा तक पहुँची हुई आजाद हिंद फौज के पाँव उखड़ गये। अतः आजाद हिंद फौज (Indian National Army) के कई बड़े सैनिक अधिकारियों और सिपाहियों को अंग्रेजों ने पकड़ लिए।

प्रश्न 26.
क्रिप्स मिशन कब भारत आया ? क्रिप्स वार्ता क्यों भंग हो गई ?
उत्तर:
क्रिप्स मिशन मार्च, 1942 में भारत आया। यह वार्ता इसलिए भंग हो गई क्योंकि सरकार युद्ध के बाद भी भारत को स्वाधीनता का वचन देने के लिए तैयार न थी। क्रिप्स ने काँग्रेस का यह प्रस्ताव भी ठुकरा दिया था कि युद्ध के बाद एक राष्ट्रीय सरकार बनाई जाए।

प्रश्न 27.
काँग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?
उत्तर:
1942 ई० के प्रारम्भ में ही ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध प्रयासों में भारतीयों के सक्रिय सहयोग की पुरी तरह आवश्यकता महसूस हुई। ऐसा सहयोग पाने के लिए उसने कैबिनेट मंत्री पर स्टैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च, 1942 ई० में एक मिशन भारत भेजा।

सर स्टैफोर्ड क्रिप्स पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्के समर्थक थे।

क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य यहाँ, “जितनी जल्दी सम्भव हो स्वशासन की स्थापना करना था” फिर भी उसकी एवं काँग्रेसी नेताओं की लम्बी बातचीत टूट गई। ब्रिटिश ने नेताओं की यह माँग मानने से इन्कार कर दिया कि शासन सत्ता तुरन्त भारतीयों को सौंप दी जाये। वे इस वायदे से सन्तुष्ट नहीं थे कि भविष्य में भारतीयों को सत्ता सौंप दी जायेगी और फिलहाल वायसराय के हाथों में ही निरकुंश सत्ता बनी रहनी चाहिए।

क्रिप्स मिशन की असफलता से भारतीय जनता रुष्ट हो गई। भारत में द्वितीय महायुद्ध के कारण वस्तुओं का अभाव हो रहा था। चीजों की कीमतें लगातार बढ़ रही थीं। अप्रैल, 1942 से अगस्त 1942 ई० के मध्य लगभग 5 महीनों में ब्रिटिश सरकार तथा भारतीयों के मध्य तनाव बढ़ता ही गया। गांधीजी भी अब जुझारू हो गये।

प्रश्न 28.
पूना समझौता क्या था? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) – सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं- डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ० अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।

समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी।

पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।

प्रश्न 29.
भारत छोड़ो आंदोलन 1942 के बारे में लिखें।
उत्तर:
क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीयों में असंतोष का वातावरण बना दिया। इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्रों को कमजोर स्थिति के चलते भारत पर जापानी आक्रमण का खतरा बढ़ गया। भारतीयों को यह लगने लगा कि अंग्रेजों के बाद यहाँ जापानी शासन कायम हो जायेगा। इसीलिये भारतीयों ने गाँधीजी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नारा दिया और आंदोलन शुरू कर दिया तथा सत्ता भारतीयों के हाथों सौंप देने की माँग की। लेकिन सरकार ने इसे बर्बरतापूर्वक दबा दिया। इस तरह यह विद्रोह असफल सिद्ध हुआ।

प्रश्न 30.
पूना समझौता क्या था ? इसमें महात्मा गांधी की भूमिका का परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
पूना समझौते का अर्थ (Meaning of Poona Pact) सांप्रदायिक पंचाट (Communal Award) के विरुद्ध भारत के प्रमुख नेताओं-डॉ० राजेंद्र प्रसाद, पं० मदनमोहन मालवीय, घनश्याम दास बिड़ला, राजगोपालाचार्य और डॉ० भीमराव अंबेदकर ने पूना में एकत्र होकर विचार-विनिमय किया। उन्होंने गाँधीजी और डॉ अंबेदकर की स्वीकृति का एक समझौता तैयार किया, जो पूना समझौता कहलाता है। इसे ब्रिटिश सरकार ने भी मान लिया।

समझौते की मुख्य शर्ते (Main terms of the Poona Pact) – (i) सांप्रदायिक पंचाट में दलितों के लिए प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में सभी राज्यों में निर्धारित 71 स्थानों को बढ़ाकर 148 कर दिया गया। (ii) संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था की गई। दलितों के लिए चुनाव क्षेत्र की व्यवस्था समाप्त कर दी गई। (iii) स्थानीय संस्थाओं और सार्वजनिक सेवाओं में दलितों के लिए उचित प्रतिनिधित्व निश्चित किया गया। (iv) दलितों की शिक्षा के लिए आर्थिक सहायता की सिफारिश की गई। (v) यह योजना आरंभ में 10 वर्षों के लिए होगी। पूना समझौते से अंग्रेजों द्वारा सांप्रदायिक पंचाट के माध्यम से दलितों को हिंदुओं से अलग करने के षड्यंत्र में कमी आ गई। गाँधीजी ने पंचाट के विरुद्ध 20 सितंबर, 1932 ई० को आमरण ‘अनशन शुरू कर दिया था। पूरा समझौते के बाद 26 दिसंबर, 1932 ई० को उन्होंने अपना अनशन तोड़ दिया।

प्रश्न 31.
पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग की माँग को स्पष्ट कीजिए। लीग ने यह माँग कब रखी थी ?
उत्तर:
1. जब देश में साम्प्रदायिक दल (लीग तथा हिन्दु सभा) बहुत मजबूत होने लगे थे तो मुहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग काँग्रेस के सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई थी। अब उसने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यक हिंदुओं में समा जाने का खतरा है। उसने इस अवैज्ञानिक और अनैतिहासिक सिद्धांत का प्रचार किया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। उनका एक साथ रह सकना असंभव है। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने एक प्रस्ताव पास करके माँग की कि आजादी के बाद दो भाग कर दिए जायें और मुसलमानों के लिए पाकिस्तान नाम का एक अलग राज्य बनाया जाए।

2. हिंदुओं के बीच हिंदू महासभा जैसे सांप्रदायिक संगठनों के अस्तित्व के कारण मुस्लिम लीग के प्रचार को बल मिला। ‘हिंदू एक अलग राष्ट्र है और भारत हिंदुओं का देश है।’ यह कहकर हिंदू संप्रदायवादियों ने मुस्लिम लीग की ही की बात दोहराई।

3. दिलचस्प बात यह है कि हिंदू और मुस्लिम संप्रदायवादियों ने कांग्रेस के विरुद्ध एक-दूसरे से हाथ मिलाने में संकोच नहीं किया। पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत, पंजाब, सिंध और बंगाल में हिंदू संप्रदायवादियों ने काँग्रेस के विरोध में मुस्लिम लीग तथा दूसरे सम्प्रदायवादी संगठनों का मंत्रिमंडल बनवाने में मदद की। सांप्रदायिक दलों ने पूर्ण निष्ठा के साथ स्वराज्य में चल रहे संघर्ष में भाग नहीं लिया तथा न ही उन्होंने जनता की सामाजिक, आर्थिक माँग उठाने में ही रुचि ली। वस्तुतः उन्हीं के कारण देश का विभाजन हुआ और आज हमें भारत के अलावा पाकिस्तान और बांगलादेश भी दिखाई पड़ रहे हैं।

प्रश्न 32.
1940 के अगस्त प्रस्ताव पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री चर्चिल महोदय जर्मनी द्वारा ब्रिटिश घेराबंदी एवं विश्व के विभिन्न भागों में फासीवादी शक्तियों की विजय से चिन्तित थे। उसने भारत के वायसराय लिनलिथगो को भारतीय नेताओं से बातचीत करने का आदेश दिया ताकि युद्ध में भारत के सक्रिय सहयोग को यथाशीघ्र प्राप्त किया जा सके। वायसराय ने जो 8 अगस्त, 1940 को घोषणा की वह इतिहास में अगस्त प्रस्ताव (August Offer) कहलाती है। इसकी प्रमुख बातें थीं-

  • भारत को शीघ्र ही औपनिवेशिक स्तर (या स्वतंत्रता) (Dominion Status) दे दिया जायेगा।
  • भारत का नया संविधान बनाने के लिए. एक संविधान सभा का गठन किया जायेगा।
  • नई संविधान सभा में भी सम्प्रदायों तथा दलों के प्रतिनिधि शामिल किये जायेंगे।
  • भारत की सत्ता तब तक किसी ऐसी सरकार को नहीं सौंपी जाएगी जब तक इसमें सभी सम्प्रदायों तथा तत्वों के प्रतिनिधि शामिल नहीं होंगे।
  • युद्ध सम्बन्धी मामलों पर विचार-विमर्श के लिए पृथक् समिति का गठन होगा जिससे भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं के प्रतिनिधियों के साथ-साथ देशी राजा-महाराजाओं के प्रतिनिधि भी शामिल किये जायेंगे।
  • महायुद्ध के दौरान वायसराय की कार्यकारिणी परिषद (कौंसिल) में इंग्लैण्ड सरकार कुछ स्थानों पर राष्ट्रवादियों को नियुक्त करेगी।

काँग्रेस ने अगस्त, 1940 ई० के प्रस्तावों को ठुकरा दिया, क्योंकि इसमें पूर्ण स्वतंत्रता की बात नहीं की गई थी। मुस्लिम लीग ने भी अगस्त प्रस्ताव को ठुकरा दिया क्योंकि इसमें उसकी सर्वाधिक प्रबल माँग-पाकिस्तान बनाने की माँग का कोई जिक्र नहीं था। सन् 1942 ई० को ब्रिटेन की सरकार ने क्रिप्स मिशन को भारत भेजा।

प्रश्न 33.
वेवेल योजना क्या थी ? लार्ड वेवेल की भूमिका का महत्व एवं इस योजना की गतिविधियों के साथ-साथ शिमला सम्मेलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
14 जून, 1945 को लॉर्ड वेवेल ने एक योजना रखी, जिसे वेवल योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. भारत में व्याप्त जनाक्रोश को कम करना।
  2. जापान के विरुद्ध भारत का सहयोग प्राप्त करना।
  3. ब्रिटेन के आगामी चुनाव के लिए अनुदार दल के प्रति जनमत प्राप्त करना।
  4. इससे स्वशासन की माँग और वायसराय की कार्यकारिणी समिति में मुसलमानों व हिंदुओं की संख्या को बराबर करने को कहा गया।

शिमला अधिवेशन – वेवेल ने देश के सभी दलों के प्रमुख नेताओं को शिमला में 25 जून, 1945 को आमंत्रित किया। यह सम्मेलन वेवेल योजना पर विचार करने के लिए बुलाया गया, इसमें 21 भारतीय नेता शामिल थे। सम्मेलन अच्छे ढंग से चल रहा था, लेकिन जिन्ना इस बात पर अड़ गए कि केवल मुस्लिम लीग ही सारे भारत के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करती है। अत: यह सम्मेलन असफल हो गया।

प्रश्न 34.
भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भड़के ?
उत्तर:
सांप्रदायिक दंगे (Communal Riots) – भारत विभाजन में देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों का भी बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग की ‘सीधी कार्यवाही’ के कारण सारा देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगा था। हत्याएँ, लूटमार, आगजनी, बलात्कार जैसे शर्मनाक कार्य हर कूचे और हर बाजार में देखे जा सकते थे। ये घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही थीं। इन घटनाओं के प्रति नेहरूजी को संकेत करते हुए लेडी माउंटबेटन ने कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों, बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाए।” दूसरी ओर माउंटबेटन ने पटेल को भी ये दंगे रोकने के लिए भारत-विभाजन पर राजी कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।

प्रश्न 35.
संविधान क्या है ? भारतीय संविधान कब बनकर तैयार हुआ ? यह लागू कब हुआ?
उत्तर:
संविधान एक कानूनी दस्तावेज है जिसके द्वारा किसी देश का शासन चलाया जाता है। भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई० को बनकर तैयार हुआ और 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया।

प्रश्न 36.
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ? इस सभा को कब प्रारूप समिति ने अपनी संस्तुतियाँ प्रस्तुत की थीं ?
उत्तर:
संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ० बी० आर० अम्बेदकर थे। संविधान प्रारूप समिति ने संविधान निर्माण सभा को अपनी संस्तुतियाँ 4 नवम्बर, 1948 को प्रस्तुत की थीं।

प्रश्न 37.
देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुई ?
उत्तर:
देशी रियायतों का एकीकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल (लौह पुरुष) ने किया। इस काम के लिए उन्होंने छोटी रियासतों को मिलाकर उनका एक संघ बनाया। कुछ बड़ी-बड़ी रियासतों को राज्य के रूप में मान्यता दी। कुछ पिछड़े हुए तथा शासन व्यवस्था ठीक न होने वाले राज्यों को केन्द्र की निगरानी में रखा गया।

प्रश्न 38.
डॉ० राजेन्द्र प्रसाद पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
संविधान का निर्माण होने पर 26 नवम्बर, 1949 को डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, अध्यक्ष संविधान सभा, ने उस पर हस्ताक्षर करते हुए इन बिन्दुओं पर दुःख प्रकट किया था

  1. भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है।
  2. इसमें किसी भी पद पर कोई भी शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है।
  3. भारत में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही बनाए गये।

प्रश्न 39.
भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?
उत्तर:
निरपेक्ष शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन 1976 ई० में जोड़ा गया। इसका तात्पर्य यह है कि भारत किसी धर्म या पंथ को राज्य धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता तथा न ही किसी धर्म का विरोध करता है। प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता होगी। धर्म को व्यक्तिगत मामला माना गया है। अतः राज्य लोगों के इस कार्य में हस्तक्षेप नहीं करेगा।

Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 4

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Bihar Board 12th History Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
अल्लाउद्दीन खिलजी के शासन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा, अल्लाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक एवं सैनिक सुधारों का वर्णन करें।
उत्तर:
अलाउद्दीन एक सुयोग्य शासक और कुशल राजनीतिज्ञ था। उसमें उच्चकोटि की मौलिकता थी और नये प्रयोगों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की क्षमता। उसमें रचनात्मक प्रतिभा थी और वह नये-नये प्रयोगों को करने के लिए सदैव उत्सुक रहता था। पुरानी परिपाटियों और संस्थाओं से उसे संतोष नहीं था।

उसने अपने शासनकाल में सभी क्षेत्रों में क्रान्तिकारी सुधार किये थे जिनकी उसके पूर्वाधिकारियों ने कल्पना भी नहीं की थी। प्रत्येक क्षेत्रों में अलाउद्दीन ने ऐसी नवीन नीति का अनुसरण किया जो उसकी प्रतिभा का परिचय देती है। नीचे प्रत्येक क्षेत्र में अलाउद्दीन के सुधारों का वर्णन दिया जाता है-

प्रशासनिक सुधार – अलाउद्दीन उच्च कोटि का प्रबन्धक और शासनकर्त्ता था। उसमें एक जन्मजात सेनानायक और प्रशासक के गुण विद्यमान थे। अतएव एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने के साथ-साथ उसने उस साम्राज्य को सरक्षित ससंगठित तथा सव्यवस्थित रखने के किया। उसका शासन पूर्ण रूप से स्वेच्छाचारी, निरंकश और विशद्ध सैनिक शासन था। राज्य की सारी शक्तियाँ सुल्तान के हाथ में थी और वह सभी अधिकारों का स्रोत था। राज्य के सभी कार्य उसकी आज्ञा और आदेश से होता था। शासन के प्रत्येक भाग पर उसका नियंत्रण रहता था। उसका गुप्तचर-विभाग इतना सुसंगठित और सक्षम था कि राज्य की सारी घटनाओं की सूचना उसे मिलती रहती थी। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ा नियंत्रण रखता था। इस प्रकार अलाउद्दीन का शासन एक केन्द्रीभूत सैनिक शासन था।

अलाउद्दीन ने भी बलवन के राजत्व सम्बन्धी सिद्धान्त को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। वह राजा के प्रताप में विश्वास करता था और उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। उसका दृढ़ विश्वास था कि सुल्तान अन्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होता है, इसलिए उसकी इच्छा ही कानन होनी चाहिए। वह इस सिद्धान्त में विश्वास करता था कि राजा . का कोई सम्बन्धी नहीं होता है और राज्य के सभी निवासी उसके सेवक होते हैं। इसलिए वह राज्य के मामले में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। वह यह मानता था कि धर्म और प्रशासन दो भिन्न विषय हैं। उसने किसी भी अधिकारी को यह अनुमति न दी कि वह उसे किसी बात में सलाह दे या धर्म का दबाव डालकर उसे कोई काम करने के लिए मजबूर करे। केवल दिल्ली का कोतवाल काजी अलाउल मुल्क ही ऐसा व्यक्ति था जिसकी सलाह का सुल्तान सम्मान करता था।

वह राज्य प्रबन्ध के सम्बन्ध में स्पष्ट कहता था कि, “मुझे जो बात पसन्द आयेगी, वही मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समशृंगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समझूगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूँगा। मैं नहीं जानता कि मेरा आचरण धार्मिक-कानून की दृष्टि में उचित है अथवा विपरीत। मैं तो राज्य की भलाई के लिए जो कुछ ठीक समझता हूँ अथवा अवसर के अनुकूल मुझे जो कुछ ठीक अँचता है, वह मैं कर डालता हूँ। मैं नहीं जानता कि कयामत के दिन ईश्वर के दरबार में मेरा क्या होगा।” इस प्रकार अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।

अलाउद्दीन के शासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उसने राजनीति को धर्म से अलग कर दिया था। वह राजनीति में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। शासन में मुल्लाओं का कोई प्रभाव नहीं था। वह वही करता था, जिसे वह राज्य के हित में ठीक समझता था। डॉ० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “उसे जो सामग्री उपलब्ध थी, उसी की सहायता से वह दृढ़तापूर्वक अपने गन्तव्य की ओर बढ़ता जाता था और उसकी मैकियावेलियन राजनीति में नैतिकता और धार्मिक निर्णय के लिए कोई स्थान न था।” इस प्रकार बलवन की भाँति अलाउद्दीन ने भी लौकिक शासन की स्थापना की, जिसका अनुसरण आगे चलकर अकबर और शेरशाह ने किया।

अलाउद्दीन ने अपनी न्याय व्यवस्था को भी लौकिक रूप दिया था। उसने इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया कि परिस्थिति और लोक-कल्याण के विचार से जो नियम उपयुक्त हो, वही राज्य का नियम होना चाहिए। इस प्रकार उसने राज्य के नियम को धर्म के चंगुल से मुक्त किया। न्यायाध श के पद पर चरित्रवान और नीति-निपुण व्यक्तियों को नियुक्त किया गया। न्यायाधीशों की सहायता के लिए पुलिस और गुप्तचर की नियुक्ति की गयी। प्रत्येक नगर में कोतवाल का कार्य अपराधी का पता लगाना था। गुप्तचर भी अपराधियों का पता लगाने में सहायता करते थे। दण्ड-विधान अत्यन्त ही कठोर था। बिना किसी भेदभाव के अपराधियों को दण्ड दिया जाता था।

सैनिक व्यवस्था – अलाउद्दीन का शासनतंत्र पूर्णतया सैन्य शक्ति पर आधारित था। उसका विश्वास था कि बाह्य आक्रमण से साम्राज्य की सुरक्षा और आन्तरिक शांति के लिए एक सुसज्जित एवं सुसंगठित सेना का होना आवश्यक है। अतः उसने सैन्य-सुधार की ओर ध्यान दिया और निम्नलिखित सुधार किए-

(i) स्थायी सेना की व्यवस्था – दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन पहला सुल्तान था जिसने स्थायी सेना रखने की व्यवस्था की थी। उसने 4,75,000 (चार लाख पचहत्तर हजार) स्थायी सेना का संगठन किया और सेना के प्रधान के पद पर ‘अरोज-ए-मुमालिक’ (सेना-मंत्री) की नियुक्ति की। स्थायी सेना की मदद से ही अलाउद्दीन ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की थी।

(ii) सेना में भर्ती करने की व्यवस्था – यद्यपि सेना में सैनिकों की भर्ती सेना-मंत्री द्वारा की जाती थी, लेकिन इसे साथ-ही-साथ सुल्तान स्वयं सेना की भर्ती करता था। सेना में भर्ती योग्यता के आधार पर होती थी। प्रत्येक सैनिक सम्बन्धी जानकारी एक राजकीय रजिस्टर में अंकित रहती थी, ताकि सैनिक के स्थान पर कोई न आ सके।

(iii) नकद वेतन की व्यवस्था – अलाउद्दीन ने सैनिकों को जागीरें देने के स्थान पर नकद वेतन देने की व्यवस्था चलायी। प्रत्येक सैनिक को 234 टंका वेतन दिया जाता था तथा एक घोड़ा रखने वाले को 78 टंका अधिक मिलता था। सैनिक को वेतन राजकीय कोष से मिलता था तथा उन्हें घोड़े, हथियार तथा युद्ध की अन्य सामग्री भी राज्य की ओर से दी जाती थी।

(iv) घोड़ों पर दाग लगाने की व्यवस्था – अलाउद्दीन के पहले सैनिक लोग अच्छी नस्ल के घोड़ों के स्थान पर रद्दी नस्ल के घोड़े रखकर राज्य को धोखा दिया करते थे। अत: अलाउद्दीन ने इस कुप्रथा को समाप्त करने के लिए घोड़ों पर दाग लगवाने की प्रथा चलायी। फरिश्ता के अनुसार उसकी सेना में 47,500 अश्वारोही सैनिक थे। अच्छी नस्ल के घोड़े बाहर से मँगवाये गये थे

(v) ये दुर्गों का निर्माण तथा पुराने दुर्गों की मरम्मत करने की व्यवस्था – अलाउद्दीन ने मंगोलों के आक्रमण को रोकने के लिए सीमान्त प्रदेश में कुछ नये दुर्गों का निर्माण करवाया था । तथा पुराने किलों की मरम्मत करवायी, क्योंकि उसके शासन काल में मंगोलों के आक्रमणों के कारण अत्यधिक अशांति रही थी। इन दुर्गों में शक्तिशाली सेनाएँ रखी गईं जो किसी भी बाह्य आक्रमण का सामना करने के लिए सदैव तत्पर रहती थीं।

इन सुधारों के परिणामस्वरूप अलाउद्दीन की सेना का संगठन बहुत सुदृढ़ हो गया और वह अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति में सफल रहा। उसका सेना पर पूर्ण नियंत्रण था। उसके इस सैन्य-संगठन ने ही उसकी निरंकुशता को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया था।

राजस्व-व्यवस्था – अलाउद्दीन की आर्थिक व्यवस्था उसकी सैन्य व्यवस्था का परिणाम थी, क्योंकि एक विशाल स्थायी सेना का प्रबन्ध और उसका व्यय आसानी से चलाना असम्भव था। इसलिए उसने आर्थिक व्यवस्था में सुधार करने का संकल्प किया और अत्यधिक धन प्राप्त करने के लिए अनेक उपायों को अपनाया था। वह राज्य के आर्थिक साधनों को भी बढ़ाना चाहता था। इसलिए उसने राजस्व-विभाग में सुधार की ओर ध्यान दिया। पहले के शासकों में वैज्ञानिक राजस्व-नीति निर्धारित करने का प्रयास नहीं किया था। उन्होंने हिन्दू-काल की पुरातन-व्यवस्था को कायम रखा। किन्तु अलाउद्दीन एक साहसी शासन-सुधारक था। वह राजस्व में वृद्धि करने के लिए मौलिक परिवर्तन का इच्छुक था। इस उद्देश्य से उसने एक नियमावली प्रचलित की जिससे राजस्व-व्यवस्था में परिवर्तन आया। उसने मुसलमान माफीदारों तथा धार्मिक व्यक्तियों की राज्य द्वारा दी गयी सम्पत्ति, पेंशन और वक्फ आदि के रूप में मिली हुई भूमि जब्त कर ली। मुकद्दम, खुत तथा चौधरी आदि अधिकारियों को विशेषाधिकार से वंचित कर दिया गया। उन्हें भी भूमि, मकान तथा चारागाह पर कर देना पड़ता था।

इस प्रकार भूमि-कर के सम्बन्ध में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच कोई अन्तर नहीं था। खेती योग्य भूमि का पता लगाने के लिए भूमि की नाप करवायी गयी। भूमि का नाप कराना हिन्दूकालीन राजस्व-व्यवस्था की एक विशेषता थी। भूमि का बन्दोबस्त करने से पहले उसने यह पता लगाया कि राज्य के प्रत्येक गाँव में कितनी खेती के योग्य जमीन है और उससे कितना लगान आता है। भूमि-सम्बन्धी नियमों को लागू करने के लिए योग्य तथा ईमानदार राजस्व पदाधिकारी नियुक्त किये गये। इन सुधारों का परिणाम यह हुआ कि राज्य की आय में पर्याप्त वृद्धि हुई और उसका बोझ किसानों, भूमिहरों तथा समाज के अन्य वर्गों पर पड़ा। किन्तु इस व्यवस्था का अधिक भार हिन्दुओं पर पड़ा क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू भूमि से सम्बन्धित थे।

इन सुधारों का कृषकों और प्रजा पर बहुत भयंकर प्रभाव पड़ा। उनको किसी-न-किसी प्रकार से कर देना ही पड़ता था। दिल्ली तथा दोआब के आस-पास के किसानों को उनकी उपज का पचास प्रतिशत कर के रूप में देना पड़ता था। गैर-मुस्लिम प्रजा को जजिया देना पड़ता था। अधिकांश जनता को अपनी उपज का अर्ध भाग और चरागाहों पर भारी कर देना पड़ता था। सुल्तान उनको ऐसा परिस्थिति में कर देना चाहता था कि न वे अस्त्र उठा सकें, न अश्वों पर आरूढ़ हो सकें, न सुन्दर वस्त्र धारण कर सकें और न जीवन के अन्य ऐश्वर्य साधनों का उपयोग कर सकें। वास्तव में उनकी दशा अति दयनीय थी।

प्राचीन जागीरदार तथा हिन्दू जो अपनी खोई स्वतन्त्रता के लिए विद्रोह कर रहे थे, उसकी स्थिति अब ऐसी दयनीय हो गई थी कि उनकी जबान पर अब विद्रोह शब्द नहीं आता। जनता से किसी-न-किसी प्रकार का बहाना करके धन लिया जाता था। अनेक हिन्दू धनहीन हो गये और अन्त में ऐसा हो गया कि बड़े अमीरों, उच्च पदाधिकारियों तथा चोटी के व्यापारियों को छोड़कर अन्य लोगों के घरों में सोना देखने को न मिलता था। सम्पूर्ण राज्य में हिन्दू दुख और दरिद्रता में डूब गये। यदि कोई ऐसा वर्ग था जिसकी दशा दूसरों से अधिक दयनीय थी तो वह वंशानुगत कर निर्धारित तथा वसूल करने वाले पदाधिकारियों का था जिसका पहले समाज में सबसे अधिक सम्मान था। समकालीन इतिहासकार बनी इस नियमों के परिणामों का सारांश इस प्रकार लिखता है-“चौधरी, और मुकद्दम इस योग्य न रह गये थे कि घोड़े पर चढ़ सकते, हथियार बाँध सकते, अच्छे वस्त्र पहन सकते अथवा पान का शौक कर सकते। कोई भी हिन्दू सर ऊँचा नहीं कर सकता था। उनके घरों में सोने, चाँदी, पीतल या टंका के कोई अलंकार का चिन्ह नहीं दिखाई पड़ता था। निर्धनता की मार से त्रस्त होकर हिन्दु मुखियों और जमीन्दारों के घरों की स्त्रियाँ मुसलमान के घरों में जाकर मजदूरी करती थीं।”

मुनाफाखोरों के साथ-साथ निरीह जनता को भी पिसना पड़ा। उसने भी नाना प्रकार के कर लिए जाते थे। अधिक दरिद्र तथा दुखी हो जाने से खेती-बाड़ी से उनका विश्वास हट गया था। इस विश्वास को फिर से स्थापित करने के लिए तथा खेती को प्रोत्साहन देने के लिए गयासुद्दीन तुगलक को भूमि-कर में कमी करनी पड़ी।

कुछ विद्वानों का कथन है कि अलाउद्दीन ने ये नियम हिन्दुओं को दबाने के लिए नहीं बनाये थे। हिन्दुओं को इसलिए पिसना पड़ा कि अधिकांश हिन्दू किसी-न-किसी रूप से जमीन पर आश्रित थे।

प्रश्न 2.
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधारों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
उत्तर:
अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासनकाल में आर्थिक जीवन के दो महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुधार लागू किये। वे थे कृषि और व्यापार कृषि-क्षेत्र में सुधारों का सम्बन्ध लगान व्यवस्था से था। लगान अथवा भू-राजस्व राज्य की आमदनी का प्रमुख साधन था और अलाउद्दीन राज्य की आमदनी में पर्याप्त वृद्धि करने का इच्छुक था। इसके अतिरिक्त वह मध्यस्थ भूमिपति वर्ग का दमन भी करना चाहता था जो राज्य में विद्रोह का एक प्रमुख कारण था। इस प्रकार अलाउद्दीन के राजस्व-सुधार दो उद्देश्यों से प्रेरित थे, राज्य की आमदनी में पर्याप्त वृद्धि जिससे कि साम्राज्य-विस्तार के लिए विशाल सेना का निर्माण किया जा सके, मध्यस्थ भूमिपति वर्ग का दमन और उसका धन छीनना ताकि इस वर्ग द्वारा विद्रोह एवं उपद्रव की समस्या का समाधान हो सके।

प्रथम उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अलाउद्दीन ने तीन महत्वपूर्ण उपाय किए-उसने दोआब – (गंगा और यमुना के बीच के क्षेत्र) में लगान की दर में वृद्धि के आदेश दिये। किसानों को उपज के 1/3 अथवा 33% के स्थान पर 1/2 अथवा 50% लगान के रूप में देने के आदेश दिये गये। इससे राज्य की आमदनी में वृद्धि हुई। दूसरी ओर अलाउद्दीन ने दोआब क्षेत्र में कर-मुक्त भूमि पर केन्द्रीय नियंत्रण स्थापित कर दिया और भूमि अनुदान वापस ले लिए। इक्ता, मिल्क, वक्फ आदि के रूप में सीमान्तों, अधिकारियों और उलेमा के पास जो भूमि थी उसे खालसा (सुल्तान के प्रत्यक्ष शासन के अधीन) भूमि में परिवर्तित करने के आदेश दिये गये। इस प्रकार राज्य की आमदनी में और वृद्धि संभव हुई। अलाउद्दीन ने संभवतः लगान निर्धारण की पद्धति में सुधार लाया। बरनी के अनुसार, उसने भूमि की माप के आधार पर लगान के निर्धारण के आदेश दिये। इस पद्धति के लिए ‘मसाहत’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। परन्तु बरनी ने इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी नहीं दी है। उसने मात्र इतना ही लिखा है कि अलाउद्दीन ने प्रति ‘बिस्वा’ में उपज के आधार पर लगान निर्धारण करने के आदेश दिये। लगान, वसूली के कार्य में व्याप्त दोषों को दूर करने के लिये अलाउद्दीन ने एक नये विभाग ‘दीवान मुस्तखरज’ की स्थापना की। इस विभाग द्वारा लगान वसूलने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा बकाया राशि की वसूली के लिए कठोर उपाय किये गये।

मध्यस्थ भूमिपति वर्ग के दमन के लिए भी अलाउद्दीन ने कई उपाय किये। इस वर्ग के लिए बरनी ने ‘खूत मुकद्दम एवं चौधरी’ शब्द का प्रयोग किया है। ये विभिन्न श्रेणियों के भूमिपति थे जो लगान वसूली के काम में राज्य का सहयोग देते थे। इनके द्वारा किसान से लगान वसूल कर राज्य को पहुँचाया जाता था। इस सेवा के बदले में राज्य द्वारा कुछ सुविधाएँ इन्हें दी जाती थीं। जैसे ये लोग अपनी भूमि का रियायती दर पर लगान देते थे और किसानों से ये राज्य के लगान के अतिरिक्त अपने लिए भौकर आदि वसूल सकते थे। राज्य को दिया जानेवाला लगान सामान्य रूप से ‘खिराज’ कहलाता था, जबकि भूमिपतियों द्वारा लिया जानेवाला कर ‘हुक्क’ कहलाता था। ऐसा देखा गया था कि इस वर्ग के लोग अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते थे। किसानों से अधिक लगान और अपने कर वसूल कर ये धन अर्जित कर रहे थे, जबकि राज्य को लगान की राशि का पूर्ण भुगतान न करके ये लोग धनी हो गये थे। धनी होने के कारण इनके लिए अपनी निजी सेना भरती करना आसान था और इन सैनिकों के माध्यम से ये विद्रोह और उपद्रव खड़े करते थे।

अलाउद्दीन ने इस वर्ग को कमजोर बनाने के लिए इसका धन छीनना आवश्यक समझा। उसने सर्वप्रथम इन भूमिपतियों को लगान देने की सुविधा से वंचित कर दिया। द्वितीय उसने इन्हें रियायती दर पर लगान वसूली के काम से मुक्त कर दिया। तृतीय उसने इनके सभी ‘हुक्क’ अवैध घोषित कर दिये। इन उपायों से इस वर्ग की आर्थिक स्थिति पर आघात पहुँचा। बरनी के अनुसार अब इस वर्ग के लिए घुड़सवारी करना, हथियार रखना, उत्तम वस्त्र पहनना और पान खाना संभव नहीं रहा। इनके घरों की औरतें अब दूसरों के घरों में काम करने पर बाध्य हुई। वरनी के ये विचार अतिशयोक्तिपूर्ण हैं। परन्तु मध्य भूमिपतियों की स्थिति निश्चित रूप से कमजोर पड़ी और उनकी उद्दण्डता समाप्त हो गयी।

अलाउद्दीन ने कर-प्रणाली में भी सुधार किया। खिराज (भूमिकर) की दर में उसने वृद्धि की। खम्स (युद्ध में लूटे गये धन में राज्य का 1/5 अंश) की दर उसने बदलकर 4/5 कर दी। उसने कई नये कर लगाये जिनमें घरों (मकान पर लगने वाला कर) और चराई (चरागाह पर लगनेवाला कर) प्रमुख हैं। पूर्वकाल से प्रचलित ‘जजिया’ और ‘जकात’ कर भी उसके समय में लिये जाते रहे।

इन सभी उपायों से अलाउद्दीन अपने दोनों लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहा। धन अर्जित करने और राज्य में सुव्यवस्था बनाये रखने में अलाउद्दीन की सफलता पूर्णतः स्पष्ट है।

अलाउद्दीन के सुधारों में सबसे अधिक महत्व उसकी मूल्य-निर्धारण योजना अथवा बाजार नियंत्रण की नीति का है। इतिहासकारों में इस योजना के उद्देश्य, क्षेत्र एवं प्रभाव के सम्बन्ध में मतभेद है। इसके उद्देश्यों के सम्बन्ध में के. एस. लाल ने बरनी के विचार से सहमति व्यक्त की और कहा कि यह योजना कम खर्च पर विशाल सेना को बनाए रखने के लिए लागू की गयी थी। उनके अनुसार अलाउद्दीन ने साम्राज्य विस्तार एवं मंगोल आक्रमण का सामना करने के लिए विशाल सेना का निर्माण किया। इस कार्य में राज्य को अत्यधिक धन खर्च करना पड़ता था। अतः अलाउद्दीन ने सैनिकों का वेतन निर्धारित कर दिया। 234 टंका प्रतिवर्ष वेतन और 78 टंका भत्ते के रूप में सैनिकों को दिया जाता था। अब यह अनिवार्य हो गया कि उस निर्धारित वेतन में ही सैनिकों को सभी आवश्यक वस्तुएँ उपलब्ध कराई जाएँ अन्यथा इनमें असंतोष फैलता। बाजार नियंत्रण की योजना इसलिए लागू की गई।

योजना कार्यान्वित करने के लिए अलाउद्दीन ने एक नये विभाग का गठन किया जिसे ‘दीवाने रियासत’ नाम दिया। यह वाणिज्य विभाग था तथा इसका प्रधान सरे-रियासत कहा जाता था। इस विभाग के अधीन प्रत्येक बाजार के लिए निरीक्षक नियुक्त किया गया। इन्हें शहना कहते थे जो योजना लागू करने के लिए उत्तरदायी थे। गुप्तचर अथवा बरीद एवं मुन्हीयाँ नियुक्त किये गये ताकि बाजार की गतिविधियों और शहना पर निगरानी रखें। इसके अतिरिक्त अलाउद्दीन स्वयं भी अपने दासों और अन्य व्यक्तियों द्वारा समय-समय पर बाजार से सामान मँगा कर अपनी सन्तुष्टि करता था। आदेशों का उल्लंघन करने वाले व्यापारियों के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान था, अधिक मूल्य लेने पर कोड़े मारने की सजा थी तथा कम तौलने पर अनुपात में मांस व्यापारी के शरीर से काट लिया जाता था। इस कठोर दण्ड एवं कुशल गुप्तचर व्यवस्था के माध्यम से अलाउद्दीन ने योजना को पूरी कड़ाई से लागू किया।

समकालीन इतिहासकारों के अनुसार अलाउद्दीन ने निम्नलिखित बाजार स्थापित किये-

  1. मण्डी-जहाँ अनाज का व्यापार होता था।
  2. सराय अदल-जहाँ वस्त्र का व्यापार होता था।
  3. दास, घोड़ों और मवेशियों एवं अन्य वस्तुओं के लिए सामान्य बाजार।

उसने विभिन्न वस्तुओं के लिए मूल्य निर्धारित कर दिये। गेहूँ 7 1/2 जीतल प्रति मन, चावल 5 जीतल प्रति मन, जौ 4 जीतल प्रति मन, चना 5 जीतल प्रति मन आदि मूल्य निर्धारित किये। कपड़े में रेशमी वस्त्र सोलह टंका से लेकर दो टंका के बीच बिकता था, जबकि सूती कपड़ा 36 जीतल से 6 जीतल के बीच बिकता था। उत्तम श्रेणी के घोड़े 100 से 120 टंका एवं मामूली टटू 10 से 25 टंका में बिकते थे। दासों का मूल्य 5 टंका से 40 टंका के बीच था।

मण्डी में अनाज की आपर्ति के लिए अलाउद्दीन ने लगान की वसली अनाज के रूप में करने का आदेश दिया। इसके अतिक्ति उसने किसान से निजी आवश्यकता से अधिक अनाज निर्धारित मूल्य पर खरीदने का आदेश दिया। इन उपायों से राज्य को अनाज का विस्तृत भण्डार उपलब्ध हो गया जिसे बाजारों के माध्यम से मण्डी तक पहुँचाया गया। मण्डी में यह अनाज लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों द्वारा बेचने का आदेश दिया गया। व्यापारियों को निर्धारित मात्रा में ही अनाज प्रतिदिन बेचने का आदेश था। यह अनाज राज्य के अतिरिक्त भण्डार से उपलब्ध कराया जाता था। इन उपायों से अलाउद्दीन ने सभी परिस्थितियों में अनाज का व्यापार नियंत्रित मूल्य पर ही होने की व्यवस्था की जो कि निश्चित रूप से एक असाधारण सफलता थी।

वस्त्र बाजार में विदेशों से आयात किये गये रेशमी कपड़ों का मूल्य-निर्धारित करना कठिन था। अतः अलाउद्दीन ने मुल्तानी व्यापारियों को राज्य ऋण प्रदान किया ताकि वे व्यापारियों से उपलब्ध मूल्य पर कपड़ा खरीदें और उसे बाजार लाकर निर्धारित मूल्य पर बेच दें। इस व्यापार में जो हानि होती थी वह राज्य द्वारा पूरी की जाती थी तथा व्यापारियों को उनकी सेवा के बदले में कमीशन प्रदान किया जाता था। महँगे वस्त्र केवल विशेष परमिट के आधार पर ही खरीदे जा सकते थे।

दासों, घोड़ों एवं मवेशियों के बाजार में मूल्य वृद्धि की समस्या दलालों द्वारा उत्पन्न की जाती थी जो व्यापारी एवं ग्राहक दोनों से कमीशन वसूलते थे। अत: अलाउद्दीन ने इन दलालों को बाजार से निष्कासित कर दिया एवं राज्य द्वारा व्यापारियों के लिए कुछ नियम निर्धारित कर दिये। हर व्यापारी को अपने सामान सरकारी अधिकारियों द्वारा निरीक्षित कराना पड़ता था। इस आधार पर इनकी श्रेणियाँ निर्धारित कर दी जाती थीं। प्रत्येक श्रेणी के लिए निर्धारित मूल्य के अनुसार ही उन्हें अपना सामान बेचना पड़ता था।

अलाउद्दीन ने इन उपायों से सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित कर दिया और अपने शासन काल की पूरी अवधि में इनमें किसी प्रकार की वृद्धि नहीं होने दी। यह एक प्रशंसनीय सफलता थी, किन्तु प्रश्न यह उठता है कि ये उपाय क्या सभी वर्गों के लिए लाभदायक एवं हितकारी सिद्ध हुए ? के० एस० लाल के अनुसार अलाउद्दीन का उद्देश्य केवल सैनिक और सामान्त वर्ग को ही सन्तुष्ट रखना था ताकि इनके समर्थन से वह अपनी निरंकुश सत्ता को मजबूत बना सके। उसने अन्य सभी वर्गों के शोषण पर इस व्यवस्था को विकसित किया और किसान, शिल्पकार एवं व्यापारी इससे असंतुष्ट रहे। कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं कि अलाउद्दीन के इन उपायों का उद्देश्य केवल दिल्ली की प्रजा को सन्तुष्ट रखना था ताकि वे उसके निरंकुश शासन के विरुद्ध आवाज न उठाएँ।

इसके लिए उसने सीमावर्ती क्षेत्रों की प्रजा का शोषण किया । सक्सेना आदि ने इन विचारों को गलत बताते हुए स्पष्ट किया है कि स्वयं बरनी के अनुसार अलाउद्दीन ने सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित करने के पूर्व उत्पादन पर हुई लागत को ध्यान में रखा अर्थात् मूल्य-निर्धारण मनमाने ढंग से नहीं हुआ। बरनी के ही शब्दों में अलाउद्दीन ने मुनाफाखोरी को समाप्त करने का प्रयास किया, साधारण व्यापार को अस्त-व्यस्त करने का नहीं। यह भी स्मरणीय है कि अलाउद्दीन ने सभी आवश्यक वस्तुओं का मूल्य निर्धारित किया । यदि किसान को निर्धारित मूल्य पर अनाज बेचना था तो उन्हें निर्धारित मूल्य पर ही वस्त्र एवं अन्य वस्तुएँ उपलब्ध कराई जा रही थीं। इसलिए किसानों और शिल्पकारों पर योजना का बुस प्रभाव पड़ना तर्कसंगत नहीं लगता। व्यापारी वर्ग निश्चित रूप से योजना से अप्रसन्न था परन्तु इरफान हबीब ने बरनी के वर्णन के आधार पर स्पष्ट किया है कि योजना का लाभ वास्तव में केवल सामन्त और सैनिक वर्ग को ही प्राप्त हुआ। सामान्य जनता को इसका लाभ इसलिए नहीं हुआ कि मूल्य में कमी के साथ-साथ मजदूरी की दर भी घटी।

अतः केवल उसी वर्ग को वास्तविक लाभ हुआ और उसकी क्रयशक्ति में वृद्धि हुई जो वेतन पाता था, जैसे सैनिक या सामन्त जिनके पास संचित धन था। अलाउद्दीन के जीवन काल में तो व्यापारी ने योजना का विरोध करने का साहस नहीं कर सके। किन्तु उसकी मृत्यु के बाद व्यापारियों ने योजना का विरोध करना आरम्भ किया और मुबारक खिलजी जैसे अयोग्य शासक के लिए योजना को जारी रखना असम्भव हो गया। अतः योजना स्थगित हो गयी। किन्तु के. एस. लाल के अनुसार मुबारक खिलजी ने योजना इसलिए स्थगित कर दी थी कि अब पहले की तरह सैनिक खर्च की आवश्यकता नहीं रह गयी थी।

इरफान हबीब के अनुसार योजना स्थगित करने का कारण यह था कि उसकी उपयोगिता सीमित समय के लिए ही थी। मूल्यों में कमी से आगे चलकर राज्य का भी लाभ प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि मूल्यों में कमी से राज्य की आय का वास्तविक मूल्य भी कम हो रहा था। अतः अलाउद्दीन के उत्तराधिकारी ने इसे स्थगित कर दिया।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि मूल्य-निर्धारण की योजना अलाउद्दीन खिलजी की एक विशिष्ट उपलब्धि थी जो उसकी असाधारण प्रतिभा का व्यापक प्रमाण प्रस्तुत करती है। इस योजना के लिए उसकी प्रशंसा समकालीन, मुगलकालीन और आधुनिक इतिहासकारों ने भी की है। दुर्भाग्यवश यह सारी उपलब्धि एक व्यक्ति की प्रतिभा पर आधारित थी और उस व्यक्ति अर्थात् अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् इस योजना का कार्यान्वयन कारगर रूप से सम्भव नहीं रहा।

प्रश्न 3.
कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
कुतुबुद्दीन का जन्म तुर्किस्तान में हुआ था। बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि का था। बचपन में ही उसे गुलाम बनाकर फारस के एक व्यापारी काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी के हाथ बेच दिया गया था। वहाँ उसने काजी के पुत्रों के साथ पढ़ने-लिखने के अलावे सैनिक घुड़सवारी का प्रशिक्षण लिया। काजी फखरुद्दीन की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने उसे बेच दिया। अंत में मुहम्मद गोरी ने उसे खरीदा। यह उसकी प्रतिभा एवं योग्यता से काफी प्रभावित हुआ और उसे अपनी सेना की एक टुकड़ी का नायक बना दिया। बाद में उसका साहस, कर्तव्यनिष्ठा तथा स्वामिभक्ति से प्रभावित होकर उसने ‘अमीर-ए-आखूर’ (अस्तबल का अध्यक्ष) के सम्मानित पद पर प्रतिष्ठित किया।

अब से वह गोरी के साथ सैनिक अभियानों में भाग लेने लगा। गोरी के भारत आक्रमण के समय उसने अपनी योग्यता प्रदर्शित की तथा उसे पूर्ण सहयोग दिया। उसकी योग्यता एवं सक्रिय सहायता से गोरी को भारतीय शासकों के विरुद्ध सफलता मिली। उसकी योग्यता एवं स्वामिभक्ति देखकर गोरी ने तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई०) में अजमेर तथा दिल्ली के शासक पृथ्वीराज ने शासन-व्यवस्था को अपनी राजधानी दिल्ली बनाई और गोरी की अनुपस्थिति में ही विजय अभियान चलाकर गोरी के राज्य तथा यश की काफी वृद्धि की। 1192 ई० से 1205 ई० के बीच उसने गोरी के विरुद्ध राजपूतों के विद्रोहों का दमन किया तथा कई नए प्रदेशों को भी जीता।

मुहम्मद गोरी का गुलाम कुतुबद्दीन ऐबक गोरी की मृत्यु के बाद 1206 ई० में दिल्ली की गद्दी पर बैठा। उसकी उपलब्धियों को हम दो भागों में विभक्त कर दर्शा सकते हैं। पहले गोरी के सूबेदार के रूप में तथा दूसरे शासक के रूप में।

सूबेदार के रूप में ऐबक की उपलब्धियाँ – 1192 ई० में जब गोरी ने उसे भारतीय प्रांतों का सूबेदार बनाकर गजनी लौट गया तो पृथ्वीराज का भाई हरि राय ने विद्रोह कर दिया तथा रणथम्भौर पर घेरा डाल दिया। ऐबक ने उस विद्रोह को सफलतापूर्वक दबा दिया। पुनः अजमेर के पास राजपूतों ने जटवन नामक सरदार के नेतृत्व ने विद्रोह किया और हौसी को घेर लिया। लेकिन ऐबक ने उसे भी दबा दिया। बुलंदशहर पर भी उसने अधिकार कर लिया। 1192 ई० में ही उसने मेरठ पर विजय की। 1193 ई० में दिल्ली के तोमर राजा को हराकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उसने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाई। उसके बाद वह गजनी चला गया।

1194 ई० में वह पुनः गजनी से लौटकर आया। उसने अलीगढ़ पर विजय प्राप्त की। उसी वर्ष गोरी में राजपूतों की शक्ति के प्रमुख केन्द्र कनौज (जहाँ का राजा जयचन्द था) पर आक्रमण कर उसे परास्त किया। उसमें ऐबक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विजय के बाद गोरी जब लौटकर चला गया तो ऐबक ने स्वामी के विजय अभियान को जारी रखा। 1195 ई० में पृथ्वीराज के भाई हरि राय ने पुनः विद्रोह कर दिल्ली पर अधिकार करने का प्रयास किया। लेकिन ऐबक ने उसे विफल कर दिया। 1195 ई० में उसने अलीगढ़ (कोइल) को जीता।

1196 ई० में उसने रणथम्भौर का दुर्ग जीतकर अजमेर पहुँचा जहाँ विद्रोह हो गये थे। 1197 ई० में उसने विद्रोह को दबाकर वहाँ अपनी स्थिति मजबूत बनाई। 1197 ई० में ही उसने गुजरात की राजधानी अन्हिलबाड़ा पर आक्रमण किया। उसे हराकर काफी सम्पत्ति लूटी क्योंकि वहाँ का चालुक्य राजा भीमदेव द्वितीय का हाथ अजमेर के विद्रोह में था। 1197 से 1203 ई० के बीच उसने कोटा बदायूँ, चन्दवर, सिरोह, उज्जैन तथा काशी को जीता। 1202-03 ई० कालिंजर (बुंदेलखंड), महोबा, खजुराहो तथा कालपी पर विजय प्राप्त की। इस तरह उस समय तक लगभग सम्पूर्ण पश्चिमोत्तर भारत ऐबक के अधीन हो गया। यही कारण था कि गोरी की हत्या (15 मार्च, 1206 ई०) के बाद उसे यहाँ का शासक बनने में काफी आसानी हुई।

शासक के रूप में उसकी उपलब्धियाँ – गोरी की मृत्यु के लगभग 3 महीने बाद ऐबक ने 24 जून 1206 ई० को राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली और गुलामवंश की स्थापना की, क्योंकि गोरी का भतीजा तथा उत्तराधिकारी ग्यासुद्दीन मोहम्मद गोर इतना योग्य नहीं था कि गजनी के साथ-साथ वह भारतीय राज्य को भी सम्हाल सके। अतः लाहौर की जनता के आमंत्रण पर उसने अपना राज्याभिषेक किया। लेकिन उस समय उसने सुल्तान की उपाधि नहीं धारण की क्योंकि उस समय उसकी स्थिति बहुत नाजुक थी। गोरी का उत्तराधिकारी गयासुद्दीन रजनी और अफगानिस्तान का शासक एल्दौज, कुबाचा (सिन्ध का शासक) अली मर्दान तथा कई तुर्क अमीर ऐबक के विरोधी थे। इनके अलावे भारत में भी राजपूत शासक पुनः अपने को स्वतंत्र कर रहे थे। सभी जगह विद्रोह हो रहे थे। इस तरह वह आंतरिक तथा बाह्य कठिनाइयों से घिरा हुआ था।

ऐसी विषम स्थिति में भी उसने हिम्मत नहीं हारी और धैर्य, वीरता, कुशलता एवं दूरदर्शिता से उनका सामना किया। उसने लगभग 4 वर्षों तक शासन किया। उस समय वह कोई नयी विजय नहीं कर सका बल्कि अपनी स्थिति सुरक्षित एवं सुदृढ़ करने में लगा रहा।

अपनी स्थिति को सुरक्षित एवं सुदृढ़ करने के उद्देश्य से उसने वैवाहिक संबंधों का सहारा लिया और इल्तुतमिश, कुबाचा तथा एल्दौज के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किए। गजनी और अफगानिस्तान का शासक ताजुद्दीन एल्दोज से ऐबक को सर्वाधिक खतरा महसूस होता था। उसने गयासुद्दीन से मुक्ति पत्र पा लिया था लेकिन एल्दौज गजनी का शासक होने के का अपने आपको भारतीय राज्य का भी संप्रभु मानता था। जब ख्वारिज्म के शाह ने (जो मध्य एशिया में अपनी शक्ति का विस्तार कर रहा था।) गजनी पर चढ़ाई कर एल्दौज को वहाँ से निकाल दिया तो वह 1208 में भारत आकर पंजाब पर आक्रमण किया लेकिन ऐबक ने उसे पीछे धकेल दिया और पीछा करते-करते गजनी पहुँच गया और वहाँ अधिकार कर लिया। लेकिन मात्र 80 दिन ही वह वहाँ रह सका। जब वहाँ के नागरिकों में असंतोष फैला तो वह लौटकर यहाँ चला आया। एल्दौज पुनः वहाँ अधिकार कर लिया। इसके बाद एल्दौज पुनः भारतीय राज्य की ओर नजर नहीं घुमाई तथा अपनी लड़की की शादी ऐबक से कर अच्छे संबंध बना लिए।

सिन्ध तथा उच्च का शासक नासिरउद्दीन कुबाचा भी काफी महत्वाकांक्षी था। गोरी की मृत्यु के बाद वह स्वतंत्र शासक बन गया था। उसकी शक्ति का भी विस्तार हो चुका था। वह भी भारतीय राज्य पर अधिकार करना चाहता था। ऐबक ने उसे अपने पक्ष में करने हेतु अपनी बहन की शादी कुबाचा से कर दी। इसके कारण दोनों के संबंध मधुर हो गए।

अपनी स्थिति सुरक्षित करने के बाद उसने आंतरिक स्थिति को ठीक करने हेतु कदम उठाये। बख्तियार खिलजी के मरने के बाद अली मर्दान खाँ बंगाल तथा बिहार का स्वतंत्र शासक बन बैठा था। लेकिन स्थानीय खिलजी सरदारों ने उसे पदच्युत कर जेल में बंद कर दिया था। वह किसी तरह से जेल से निकलकर ऐबक से मिला। ऐबक ने खिलजी सरदारों से समझौता करवाकर उसे पुनः बंगाल का नवाब बना दिया। उसने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली।

गोरी की मृत्यु के बाद कई राजपूत शासकों ने बुन्देलखंड, ग्वालियर, बदायूं आदि कई स्थानों पर अधिकार कर लिया था। ऐबक को उन प्रदेशों को जीतने की फुर्सत नहीं मिली। फिर भी राजाओं पर दबाव डालकर बदायूँ पर पुनः अधिकार कर लिया और अपने योग्य गुलाम इल्तुतमिश को वहाँ का सूबेदार नियुक्त किया। 4 नवंबर, 1210 ई० को लाहौर में चौगान (पोलो) खेलते समय अचानक घोड़े पर से गिर गया। पोलो की छड़ी का नुकीला. भाग छाती तथा पेट में गड़ गया। साथ ही घोड़ा भी उसपर चढ़ गया। इस कारण उसकी मृत्यु हो गई।

इस प्रकार हम देखते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक काफी योग्य, प्रतिभावान, दूरदर्शी एवं साहसी था। उसमें स्वामीभक्ति की भावना भी कूट-कूटकर भरी हुई थी। जैसा कि हम देखते हैं कि अपने मालिक गोरी का वह सबसे प्रिय एवं विश्वासी व्यक्ति था। उसने मात्र दूरदर्शिता से विजय पायी वह उसकी कुशलता का परिचायक था।

भारतीय इतिहास में उसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने गोरी द्वारा स्थापित भारतीय राज्य में शत्रुओं का दमन कर अपना शासन (गुलाम वंश) की स्थापना की। यद्यपि समय की कमी के कारण वह अपने राज्य को बढ़ा नहीं सका लेकिन उसकी स्थिति सुरक्षित, सुदृढ़ अवश्य कर दी। समयाभाव के कारण वह शासन संबंधी सुधार नहीं ला सका फिर भी वह अपने राज्य में शांति स्थापित करने में बहुत हद तक सफल रहा। इस तरह हम कह सकते हैं कि ऐबक जो एक गुलाम था ने अपनी प्रतिभा, शौर्य, वीरता तथा साहस के बदौलत भारत में अपना स्वतंत्र शासन स्थापित कर सका। इसलिए यदि उसे भारत प्रथम मुस्लिम बादशाह कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

प्रश्न 4.
विजयनगर राज्य का ‘चरमोत्कर्ष और पतन’ नामक विषय पर एक निबंध लिखिए।
उत्तर:
विजयनगर साम्राज्य का चरमोत्कर्ष – राजनीति में सत्ता के दावेदारों में शासकीय वंश के सदस्य तथा सैनिक कमांडर शामिल थे। पहला राजवंश, जो संगम वंश कहलाता था, ने 1485 ई० तक नियंत्रण रखा। उन्हें सुलुवों ने उखाड़ फेंका, जो सैनिक कमांडर थे और वे 1503 ई० तक सत्ता में रहे। इसके बाद तुलुवों ने उनका स्थान लिया। कृष्णदेव राय तुलुव वंश से ही संबद्ध था।

कृष्णदेव राय के काल में विजयनगर – कृष्णदेव राय के शासन की चारित्रिक विशेषता विस्तार और दृढीकरण था। इसी काल में तुंगभद्रा और कृष्णा नदियों के बीच का क्षेत्र (रायचूर दोआब) हासिल किया गया (1512), उड़ीसा के शासकों का दमन किया गया (1514) तथा बीजापुर के सुल्तान को बुरी तरह पराजित किया गया था (1520)। हालाँकि राज्य हमेशा सामरिक रूप से तैयार रहता था, लेकिन फिर भी यह अतुलनीय शांति और समृद्धि की स्थितियों में फला-फूला। कुछ बेहतरीन मंदिरों के निर्माण तथा कई महत्त्वपूर्ण दक्षिण भारतीय मंदिरों में भव्य गोपुरमों को जोड़ने का श्रेय कृष्णदेव को ही जाता है। उसने अपनी माँ के नाम पर विजयनगर के समीप ही नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना भी की थी। विजयनगर के संदर्भ में सबसे विस्तृत विवरण कृष्णदेव राय के या उसके तुरंत बाद के कालों से प्राप्त होते हैं।

विजयनगर कष्णदेव राय की मत्य के उपरान्त – कृष्णदेव की मत्य के पश्चात 1529 ई० में राजकीय ढाँचे में तनाव उत्पन्न होने लगा। उसके उत्तराधिकारियों को विद्रोही नायकों या सेनापतियों से चुनौती का सामना करना पड़ा। 1542 ई० तक केन्द्र पर नियंत्रण एक अन्य राजकीय वंश, अराविदु के हाथों में चला गया, जो सत्रहवीं शताब्दी के अंत तक सत्ता पर काबिज रहे। पहले की ही तरह इस काल में भी विजयनगर शासकों और साथ ही दक्कन सल्तनतों के शासकों की सामरिक महत्त्वाकांक्षाओं के चलते समीकरण बदलते रहे। अंततः यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री-समझौते के रूप में परिणत हुई।

विजयनगर का पतन – 1565 ई० में विजयनगर की प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी-तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरि (तिरुपति के समीप) से शासन किया।

प्रश्न 5.
विजयनगर साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं कलात्मक स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर:
दक्षिण भारत के इतिहास में विजयनगर का महत्त्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि इसके राजाओं ने एक सुदृढ़ और विशाल साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि इसका महत्त्व इस कारण भी है कि इस समय यह राज्य ‘हिन्दु-पुनरुत्थान’ का केन्द्र था। तत्कालीन अभिलेखों, साहित्यिक ग्रंथों एवं यूरोपीय, मध्य एशियाई एवं पुर्तगाली यात्रियों के विवरणों से इस राज्य की आंतरिक व्यवस्था पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।

प्रशासनिक व्यवस्था – विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत साम्राज्य की आर्थिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए एक सर्वथा नई राज्य व्यवस्था का विकास हुआ। राजा शासन का प्रधान होता था। प्रत्येक राजा शासन में गहरी रुचि लेता था। वह राय कहलाता था। राजा राज्य में न्याय, समता, धर्मनिरपेक्षता, शांति और सुरक्षा की व्यवस्था करता था। वह आर्थिक और सामाजिक मामलों में भी अभिरुचि रखता था। वह प्राचीन राजधर्म को ध्यान में रखते हुए शासन करता था। सिद्धांततः उसकी भक्ति असीम थी, परंतु व्यवहारतः उसे धर्मानुकूल शासन करना पड़ता था। युवराज को भी प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। कभी-कभी दो राजा साथ-साथ शासन करते थे, जैसे हरिहर एवं बुक्का, विजयराय और देवराय। नाबालिग राजाओं के लिए संरक्षक नियुक्त किए जाते थे, जो कभी-कभी सारी शक्ति स्वयं अपने ही हाथों में केन्द्रित कर लेते थे। राजपरिषद् राजा की सलाहकार समिति थी। इसमें प्रांतीय शासकों, सामंतों, व्यापारिक निगमों इत्यादि को स्थान दिया गया था। राज्य के नीति-निर्धारण का कार्य इसी के जिम्मे था।

मंत्रिपरिषद् का प्रधान महाप्रधानी या प्रधानमंत्री होता था। इसमें राज्य के मंत्रियों, उप-मंत्रियों और विभागीय अध्यक्षों के अतिरिक्त राजा के निकट संबंधी भी होते थे। परिषद् के सदस्यों की संख्या करीब 20 थी। राजा की सहायता के लिए दंडनायक (अधिकारियों की एक विशिष्ट श्रेणी) एवं कार्यकर्ता (अधिकारियों का एक अन्य वर्ग) थे। राजा और युवराज के पश्चात् महाप्रधानी ही शासन का सर्वोच्च पदाधिकारी था। केन्द्र में एक सचिवालय होता था, जो पूरे प्रशासन पर नियंत्रण रखता था। इसमें विभिन्न विभागों के प्रधान एवं उनके प्रमुख सहकर्मी रहते थे, जैसे, मानेय प्रधान (गृहमंत्री), रायसम् (सचिव), कर्णिकम् (हिसाब-किताब रखनेवाले), मुद्राकर्ता (राजकीय मुद्रा रखने वाला) इत्यादि। विजयनगर के राजा न्याय के संपादन में भी दिलचस्पी लेते थे। राजा स्वयं सर्वोच्च न्यायाधीश था, यद्यपि केन्द्रीय एवं स्थानीय स्तर पर अनेक न्यायालय थे। विजयनगर की सेना विशाल, स्थायी एवं सुदृढ़ थी। सेना में पैदल, घुड़सवार, हाथी तथा तोपखाने की टुकड़ियाँ थीं। इस सेना में मुसलमानों और तुर्की अश्वारोहियों एवं धनुर्धरों की भी भर्ती की गई। यद्यपि सैन्य व्यवस्था सामंती सिद्धांतों पर आधृत थी, तथापि इस पर कठोर निगरानी रखी जाती थी। राज्य में शांति व्यवस्था की स्थापना के लिए पुलिस का प्रबंध भी था। राज्य की आमदनी के साधन विभिन्न कर थे, जैसे भूमि कर, व्यापार, उद्योग इत्यादि से प्राप्त होनेवाली आय, व्यावसायिक कर, विवाह-कर इत्यादि।

प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण साम्राज्य विभिन्न प्रांतों (राज्य) में विभक्त था। इनकी संख्या बदलती रहती थी। प्रांत मंडल, कोट्टम् या वलनाडु में विभाजित थे। कोट्टम से छोटी इकाई नाडु थी। नाडु मेलाग्राम (पचास गाँवों का समूह) में विभक्त था। सबसे छोटी इकाई उर या ग्राम था। प्रांतों का शासन प्रांतपतियों के जिम्मे सुपुर्द किया गया था। यह पद राजपरिवार से सम्बद्ध व्यक्तियों एवं महत्त्वपूर्ण सैनिक-पदाधिकारियों को सौंपा जाता था। इन्हें पर्याप्त प्रशासनिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। केन्द्र सामान्यतया प्रांतीय मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता था। प्रांतीय गवर्नरों का मुख्य कार्य राजस्व की वसूली एवं कानून-व्यवस्था को बनाए रखना था। प्रांतीय व्यवस्था के साथ-साथ नायंकर व्यवस्था भी प्रचलित थी। नायंकर भी प्रांतीय गवर्नरों के ही समान क्षेत्र-विशेष में राज्य करते थे एवं उन्हें भी प्रशासनिक स्वायत्तता प्राप्त थी। नायंकर एक प्रकार से सैनिक सामंत थे, जो राजस्व वसूली के अतिरिक्त अपने क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखते थे, न्याय करते थे, राजा के लिए सेना एकत्र करते थे तथा आर्थिक विकास के कार्य करते थे। इन्हें प्रांतीय गवर्नरों से भी अधिक स्वतंत्रता प्राप्त थी, जिसका दुरुपयोग भी इन लोगों ने किया। स्थानीय शासन में प्राचीन संस्थाएँ सभा, नाडु अब भी वर्तमान रही, किन्तु आयगार-व्यवस्था (बारह व्यक्तियों का समूह) की स्थापना ने स्थानीय शासन की स्वायत्तता समाप्त कर दी।

सामाजिक जीवन – विजयनगर राज्य का सामाजिक जीवन वर्ण व्यवस्था पर आधृत था। राज्य समस्त वर्गों के हितों की रक्षा करता था। समाज में प्रथम स्थान ब्राह्मणों को प्राप्त था। वे मृत्युदण्ड से परे थे। उन्हें सेना एवं शासन में उच्च पद प्राप्त थे। क्षत्रियों के विषय में स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है। तीसरा वर्ग शेट्टी या चेट्टी का था। इसी वर्ग के अंतर्गत बड़े एवं छोटे व्यापारी, दस्तकार (वीर-पांचाल) रेड्डी,लोहार, स्वर्णकार, बढ़ई, जुलाहे, मूर्तिकार इत्यादि आते हैं।डोंबर (बाजीगर), जोगी, मछुआरों इत्यादि की स्थिति निम्न थी। समाज में दास-प्रथा भी प्रचलित थी। पुरुष एवं स्त्री दोनों ही दास बनते थे। उत्तरी भारत से दक्षिण आकर बसनेवाली जातियाँ वडवा कहलाती थी। इनका भी सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था।

राज्य सामाजिक मामलों में यदा-कदा हस्तक्षेप कर सामाजिक करीतियों एवं तनाव को समाप्त करने की कोशिश करता था। उदाहरणस्वरूप 1424-25 ई० के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि राज्य ने दहेज-प्रथा को गैर-कानूनी घोषित कर दिया था। सामाजिक नियमों को तोड़नेवालों के लिए दण्ड की व्यवस्था की गई थी। स्त्रियों की स्थिति बहुत उच्च नहीं थी। सामान्यतः, उन्हें भोग्या ही माना जाता था। आभिजात्य वर्ग की महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी थी। उन्हें नृत्य, संगीत एवं साहित्य की शिक्षा दी जाती थी। निम्न वर्गों की स्त्रियाँ विभिन्न व्यवसायों और दस्तकारियों में प्रवीण होती थीं। सामान्य वर्गों में एकात्मक विवाह ही होते थे, परंतु राजपरिवार एवं सामंत वर्गों में बहुपत्नीत्व की प्रथा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त राजपरिवार में असंख्य दासियाँ एवं रखैलें भी रहती थीं। समाज में देवदासियों एवं गणिकाओं की भी भरमार थी। इनका सामाजिक जीवन उपेक्षित न होकर सम्मानित था। परदा प्रथा का प्रचलन नहीं था, परंतु सती प्रथा विद्यमान थी। सामान्यतया यह प्रथा राजपरिवारों और सैनिक पदाधिकारियों के परिवारों तक ही सीमित थी। सती स्त्रियों के सम्मान में पाषाण स्मारक स्थापित किए जाते थे।

यद्यपि राज्य विधवा विवाह को प्रोत्साहन देता था, (विधवा विवाह करनेवाले दम्पत्ति विवाह कर से मुक्त थे) तथापि विधवाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। इस समय के लोग वस्त्र आभूषण एवं श्रृंगार के प्रसाधनों के शौकीन थे। कुलीन वर्ग के वस्त्र आभूषण विशिष्ट प्रकार के होते थे। लोग मांस मदिरा का सेवन भी करते थे। मनोरंजन के साधनों में नाटक, नृत्य, संगीत, शतरंज एवं पासा का खेल तथा जुआ खेलना प्रचलित था। संक्षेप में विजयनगर राज्य का सामाजिक जीवन, अंतर्विरोधों और तनावों के बावजूद शांत, सुखी एवं समृद्ध था।

आर्थिक स्थिति – विजयनगर एक समद्ध एवं वैभवपूर्ण राज्य था। तत्कालीन इतालवी और पोर्तुगीज यात्रियों ने इस नगर के वैभव का वर्णन किया है। कोण्टी, अब्दुर रज्जाक, पेईज, बारबोसा, सभी विजयनगर को समृद्धि का वर्णन करते हैं। इनके वर्णनों से राज्य की आर्थिक स्थिति पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। राज्य की आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। राज्य की तरफ से कृषि के विकास के लिए अनेक कदम उठाए गए। बंजर और जंगली भूमि को भी कृषि योग्य बनाकर कृषि का विस्तार किया गया। सिंचाई की सुविधा के लिए राज्य, मंदिर, व्यक्तियों और अनेक संस्थाओं ने प्रयास किया। अनेक नहरें एवं तालाब खुदवाए गए। जो व्यक्ति सिंचाई की सुविधा के लिए प्रयास करते थे एवं सिंचाई के साधनों की देखभाल करते थे, उन्हें राज्य की तरफ से करमुक्त भूमि अनुदान में दी जाती थी।

भू-व्यवस्था में भी इस समय महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। भू-स्वामित्व के अनेक रूप इस समय देखने को मिलते हैं। इनमें प्रमुख हैं भंडारवाद ग्राम (राज्य के सीधे नियंत्रणवाली भूमि), ब्रह्मदेय, देवदेथ, मठापुर भूमि (ब्राह्मणों, मठों मंदिरों को दान में दी गई भूमि), अमरम् भूमि (सैनिक एवं असैनिक कार्यों के बदले दी जाने वाली जमीन), उबलि (ग्राम में विशिष्ट सेवा के बदले दी गई जमीन) कट्टगि (पट्टे पर दी जाने वाली भूमि) इत्यादि। इस भूमि व्यवस्था का एक दुष्परिणाम यह निकला कि राज्य में बड़े भू-स्वामियों की संख्या बढ़ गई एवं छोटे किसानों की स्थिति बिगड़ गई। उनमें अनेक कुदि या कृषक मजदूर बन गए।

इस समय उपजाई जाने वाली फसलों में प्रमुख थी चावल, जौ, दलहन, तिलहन, नील, कपास, काली मिर्च, अदरक, इलायची, नारियल इत्यादि। विभिन्न प्रकार के उद्योगों एवं व्यवसायों का भी विकास हुआ। धातुकर्म का व्यवसाय सबसे अधिक उन्नत अवस्था में था। इस समय देशी और विदेशी व्यापार की भी प्रगति हुई। पुर्तगाल, मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापारिक संबंध उन्नत था। विजयनगर से इस्पात एवं इस्पात से बने सामान, शक्कर, वस्त्र एवं शोरा विदेशों को भेजे जाते थे तथा बाहर से घोड़े, सिल्क, जवाहरात इत्यादि मँगवाए जाते थे। बारबोसा के अनुसार, विजयनगर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केन्द्र था। उसका कहना है कि ‘नगर विस्तृत और घना बसा हुआ है तथा चालू व्यापार का केन्द्र है; हीरे, पीगू के लाल, चीन और सिकंदरिया का रेशम, कपूर, सिन्दूर, कस्तूरी तथा मालावार की काली मिर्च और चन्दन इन वस्तुओं का अधिक क्रय-विक्रय होता है।” आर्थिक समृद्धि के कारण जनता का जीवन खुशहाल था। करों की संख्या अधिक रहने पर भी करों का बोझ हल्का था।

धार्मिक व्यवस्था-विजयनगर के राजाओं का शासनकाल हिन्दू धर्म के पुनरुत्थान का समय माना जाता है। दक्षिण में इस्लामी राजाओं के उत्थान और प्रसार के बावजूद विजयनगर के.शासक हिन्दूधर्म की दृढ़तापूर्वक रक्षा कर सके। यह उनकी एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। विजयनगर साम्राज्य में वैष्णव और शैवधर्म प्रधान थे। यज्ञ, आहुति और बलि की प्रथा प्रचलित थी। देवताओं के मंदिर बने। उनकी मूर्तियाँ भी बनाई गई। समाज में ब्राह्मणों (पुरोहितों) का यथेष्ट सम्मान था। विजयनगर के राजाओं ने हिन्दूधर्म को प्रश्रय देते हुए भी उदार धार्मिक नीति अपनाई। सभी धर्मानुयायियों के साथ उदारतापूर्वक व्यवहार किया गया। फलतः, हिन्दू धर्म के साथ-साथ इस्लाम, जैन एवं ईसाई धर्म के माननेवाले भी राज्य में शांति और सम्मान के साथ रहते थे।

शैक्षणिक एवं साहित्यिक प्रगति – यद्यपि विजयनगर के राजाओं ने राज्य की तरफ से शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था नहीं की तथा चोलों और पल्लवों की तरह राजकीय विद्यालयों की भी स्थापना नहीं की, तथापि स्वतंत्र शैक्षणिक संस्थाओं को दान एवं संरक्षण देकर शिक्षा के विकास में सहायता पहुँचाई। मठ, मंदिर एवं अग्रहार शिक्षा के प्रचार का कार्य करते थे। राज्य विद्वानों को संरक्षण देता था। उन्हें करमुक्त भूमि दान में दी जाती थी। इस युग में संस्कृत, तेलुगु, तमिल तथा कन्नड़ भाषाओं का पर्याप्त विकास हुआ। कृष्णदेवराय के समय में साहित्यिक प्रगति पराकाष्ठा पर पहुंच गई। उसने तेलुगु और संस्कृत में कई ग्रंथों की रचना की। उसके द्वारा रचित ग्रंथों में आमुक्त माल्यद (तेलुगु) सबसे प्रसिद्ध है। इस युग के प्रसिद्ध विद्वानों में विद्यारण्य, सायणाचार्य एवं माधवाचार्य के नाम प्रमुख हैं। अलसनी तेलुगु का महान कवि था।

कलात्मक विकास – विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न कलाओं का भी विकास हुआ। स्थापत्य के क्षेत्र में विशेष प्रगति हुई। इस युग के राजाओं ने सुंदर और भव्य महलों, झीलों, नहरों, पुलों, तालाबों का निर्माण करवाया। विजयनगर की प्रशंसा विदेशी यात्रियों ने की है। इतालवी यात्री निकोलो कोण्टी लिखता है कि “नगर की परिधि 60 मील है; उसकी दीवारें पर्वत-शिखरों तक पहुँचती हैं और उनके चरणों को घाटियाँ घेरे हुई हैं; इससे उसका विस्तार और भी अधिक बढ़ जाता है……”। बारबोसा के अनुसार नगर विस्तृत और धनी आबादीवाला था। अब्दुर रजाक तो नगर की सुंदरता देखकर विमुग्ध हो गया था। वह कहता है कि “विजयनगर ऐसा है, जिसकी समता का दूसरा नगर पृथ्वी पर आँख से न देखा और न कान से सुना।” इस काल में सुंदर एवं भव्य मंदिरों का भी निर्माण हुआ। विजयनगर के मंदिरों में सबसे अधिक विख्यात कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित हजार खम्भों वाला मंदिर तथा विट्ठलस्वामी का भव्य मंदिर है। विभिन्न ललित कलाओं-नृत्य, संगीत, अभिनय के साथ-साथ चित्रकला एवं मूर्तिकला की भी प्रगति हुई। वस्तुतः विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत के मध्यकालीन राज्यों में राजनीतिक और सांस्कृतिक दोनों ही क्षेत्रों में, सबसे प्रमुख बन गया।

प्रश्न 6.
भक्ति आंदोलन के परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर:
भक्ति आंदोलन का प्रभाव (Effect of Bhakti Movement) – संतों तथा सुधारकों के प्रयासों से जो भक्ति आंदोलन का आरम्भ हुआ उनसे मध्य भारत के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में एक नवीन शक्ति एवं गतिशीलता का संचार हुआ। प्रो० रानाडे के अनुसार भक्ति आंदोलन के परिणामों में साहित्य-रचना का आरम्भ, इस्लाम के साथ सहयोग के परिणामस्वरूप सहिष्णुता की भावना का विकास जिसकी वजह से जाति व्यवस्था के बंधनों में शिथिलता आई और विचार तथा कर्म दोनों स्तरों पर समाज का उन्नयन हुआ।

(i) सामाजिक प्रभाव (Social Impact) – भक्ति आंदोलन के कारण जाति प्रथा, अस्पृश्यता तथा सामाजिक ऊँच-नीच की भावना को गहरी चोट लगी। अधिकतर भक्त संतों ने विभिन्न जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने जाति प्रथा का तीव्र विरोध किया एवं ब्राह्मण तथा शूद्र को समान बताया। इस तरह समाज में जाति बंधनों पर गहरा प्रहार हुआ लेकिन यह मानना पड़ेगा कि भक्ति आंदोलन भारतीय समाज से जाति प्रथा के दोषों को पूर्णतया समाप्त नहीं कर सका। भक्त-संतों ने नारी को समाज में उच्च तथा सम्मानीय स्थान दिये जाने का समर्थन किया। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के साथ मिलकर सांसारिक बोझ उठाने का परामर्श दिया। कबीर तथा नानक ने पुरुषों की तरह नारियों को अपनी शिक्षाएँ दीं। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई का भी विरोध किया। इस आंदोलन में समाज सेवा की भावना को प्रोत्साहन मिला क्योंकि भक्त संतों ने लोगों को निर्धन. अनाथों. बेसहारा आदि की सेवा करने का उपदेश दिया।

(ii) धार्मिक प्रभाव (Religious Impact) – भक्ति आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव धर्म पर पड़ा। इस आंदोलन के कारण ही इस्लाम तथा हिन्दू धर्म के अनुयायियों में कर्मकांडों और अंधविश्वासों के विरुद्ध वातावरण तैयार हुआ। हिन्दुओं में मूर्तिपूजा की लोकप्रियता में कमी हुई। हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायों में समन्वय तथा एकता की भावना को प्रोत्साहन मिला। भक्ति आंदोलन के कारण ही सिख धर्म के रूप में नये धर्म का जन्म हुआ। गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु तथा गुरु ग्रंथ साहिब सिखों के लिए बाइबल है। गुरु ग्रंथ साहिब में अधिकांश भक्ति-संतों की वाणी ही संकलित है। इससे धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिला। हिन्दु तथा मुसलमानों में जो कटुता व्याप्त थी धीरे-धीरे इस आंदोलन से उसको गहरा आघात पहुँचा। धार्मिक कट्टरता कम हुई तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रसार हुआ।

(iii) सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effects) – भक्ति आंदोलन के कारण सर्वसाधारण की भाषा एवं बोलियाँ अधिक लोकप्रिय हुईं। अनेक प्रांतीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में अनेक भक्त संतों ने रचनाएँ की। कबीर की भाषा अनेक भाषाओं के सुन्दर समन्वय का अच्छा उदाहरण है जो खिचड़ी भाषा कहलाती है। मलिक मुहम्मद जायसी, तुलसीदास आदि ने अवधी में अपनी रचनाएँ कीं। सूरदास ने ब्रज तथा नानक ने पंजाबी व हिन्दी को अपनाया। चैतन्य ने बंगला में और अनेक भक्त संतों ने उर्दू में भी रचनाएँ की। यह रचनाएँ समय पाकर भारतीय भाषाओं के साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गईं।

प्रश्न 7.
भक्ति आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ? इस आन्दोलन का क्षेत्र एवं इससे जुड़े प्रमुख सन्तों के नाम बताइए।
उत्तर:
(i) भक्ति आन्दोलन का अर्थ (Meaning of Bhakti Movement) – भक्ति आन्दोलन से हमारा अभिप्राय उस आन्दोलन से है जो तुर्कों के आगमन (बारहवीं सदी से पूर्व ही) से काफी पहले ही यहाँ चल रहा था और जो अकबर के काल (इसका अन्त 1605 ई. को हुआ।) तक चलता रहा। इस आन्दोलन ने मानव और ईश्वर के मध्य रहस्यवादी संबंधों को स्थापित करने पर बल दिया। कुछ विद्वानों की राय है कि भक्ति भावना का प्रारम्भ उतना ही पुराना है जितना कि आर्यों के वेद। परन्तु इस आन्दोलन की जड़ें सातवीं शताब्दी से जमीं। शैव नयनार और वैष्णव अलवार ने जैन और बौद्ध धर्म के अपरिग्रह सिद्धान्त को अस्वीकार कर ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत भक्ति को ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने वर्ण और जाति भेद को अस्वीकार किया और प्रेम तथा व्यक्तिगत ईश्वर भक्ति का संदेश दिया। उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन का प्रसार दक्षिण भारत से आया यद्यपि इस प्रसार में बहुत कम समय लगा। उत्तर में संत और विचारक दोनों भक्ति दर्शन लाए।

भक्ति आन्दोलन की परिभाषा देते हुए प्रसिद्ध विद्वान तथा इतिहासकार डॉ० युसूफ हुसैन के अनुसार, “भक्ति आंदोलन रूढ़िवादी, सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरुद्ध हृदय की प्रतिक्रिया तथा भावों का उद्गार है। भारतीय परिवेश में भक्ति आन्दोलन का विकास इन्हीं परिस्थितियों का परिणाम है।”

(ii) क्षेत्र तथा संत (Area and Saints) – भक्ति आन्दोलन व्यापक था और सारे देश में इसका प्रसार हुआ। यह आन्दोलन तेरहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक इस्लाम के सम्पर्क में आया और इसकी चुनौतियों को अंगीकार करता हुआ इससे प्रभावित, उत्तेजित और आन्दोलन हुए। इस आन्दोलन ने शंकराचार्य जैसे महान दार्शनिक के अद्वैतवाद और ज्ञान-मार्ग के विरोध में भक्ति मार्ग पर अधिक जोर दिया। इस आन्दोलन के चार विभिन्न संस्थापकों ने चार मतों को जन्म दिया। वे थे-

(a) बारहवीं शताब्दी के रामानुजाचार्य (विशिष्टद्वैतवाद),
(b) तेरहवीं सदी के मध्वाचार्य (द्वैतवाद),
(c) तेरहवीं शताब्दी के विष्णु स्वामी (शुद्धसद्वैतवाद) और
(d) तेरहवीं शताब्दी के निम्बार्काचार्य (द्वैताद्वैतवाद)। थोड़े बहुत अन्तर होते हुए भी इन चारों मतों की मूल प्रवृत्ति सगुण भक्ति की ओर झुकी हुई थी। इन्होंने ब्रह्म और जीव की पूर्ण एकता को स्वीकार नहीं किया। मध्यकाल में यह आन्दोलन विराट आन्दोलन के रूप में प्रकट हुआ और इसका प्रसार सोलहवीं सदी तक होता रहा।

प्रश्न 8.
सूफीवाद पर संक्षिप्त लेख लिखें।
उत्तर:
सूफीवाद उन्नीसवीं शताब्दी में मुद्रित एक अंग्रेजी शब्द है। सूफीवाद के लिए इस्लामी ग्रंथों में जिस शब्द का इस्तेमाल होता है वह है तसत्वुफ। कुछ विद्वानों के अनुसार यह शब्द ‘सूफ’ से निकला है जिसका अर्थ ऊन है। यह उस खुरदुरे ऊनी कपड़े की ओर इशारा करता है जिसे सूफी पहनते थे। अन्य विद्वान इस शब्द की व्युत्पत्ति ‘सफा’ से मानते हैं जिसका अर्थ है साफ। यह भी संभव है कि यह शब्द ‘सफा’ से निकला हो जो पैगम्बर की मस्जिद के बाहर एक चबूतरा था जहाँ निकट अनुयायियों की मंडली धर्म के बारे में जानने के लिए इकट्ठी होती थी।

सूफी सन्त के प्रमुख सिद्धान्तों की व्याख्या :

  • एकेश्वरवाद (Mono God) – सूफी लोग इस्लाम धर्म को मानने के साथ एकेश्वरवाद पर जोर देते थे। पीरों और पैगम्बरों के उपदेशों को वे मानते थे।
  • रहस्यवाद (Mistensue) – इनकी विचारधारा रहस्यवादी है। इनके अनुसार कुरान के छिपे रहस्य को महत्त्व दिया जाता है। सफी सारे विश्व के कण-कण में अल्लाह को देखते हैं।
  • प्रेम समाधना पर जोर (Stress on Love and Meditation) – सच्चे प्रेम से मनुष्य अल्लाह के समीप पहुँच सकता है। प्रेम के आगे नमाज, रोजे आदि का कोई महत्त्व नहीं।
  • भक्ति संगीत (Bhakti Music) – वे ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए गायन को विशेष महत्त्व देते थे। मूर्ति-पूजा के वे विरोधी थे।
  • गुरु या पीर का महत्व (Importance of Pir or Teacher) – गुरु या पीर को सूफी लोग अधिक महत्त्व देते थे। उनके उपदेशों का वे पालन करते थे।
  • इस्लाम विरोधी कछ सिद्धान्त (SomePrinciples Against Islam) – वे इस्लाम विरोधी कुछ बातें-संगीत, नृत्य आदि को मानते थे। वे रोजे रखने और नमाज पढ़ने में विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 9.
अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना करें।
उत्तर:

  • आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
  • 1575 ई० में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर उतर जाते थे। अतः अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कम हो गई।
  • वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अतः कट्टरपंथी मुसलमान उसे काफिर कहने लगे थे।
  • 1579 ई० में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
  • अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
  • उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दु ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीतिक से दूर रखता था।
  • फतेहपुर सीकरी में एक महल, जोधाबाई का महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।

प्रश्न 10.
दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित है और इसकी महानता का मुख्य कारण है इसका विराट व्यक्तित्व। साम्राज्य की सुदृढता, साम्राज्य में शांति स्थापना पापना तथा मानवीय से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर-मसलमानों को राहत दिया. राजपतों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किया। बल्कि एक कशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया। धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है।

दीन-ए-इलाही द्वारा अकबर ने सर्व-धर्म-समभाव की भावना को उत्प्रेरित किया है।

प्रश्न 11.
मुगल शासक अकबर की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर:
अकबर को भारतीय इतिहास का एक महान और प्रतापी शासक एवं सम्राट माना जाता है। कुछ इतिहासकार उसे राष्ट्रीय भी कहते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी रचना ‘Discovery of India’ में अकबर को भारतीय राष्ट्रीयता का पिता कहा है। यहाँ पर स्मरणीय है कि राष्ट्रीयता का सिद्धांत आधुनिक युग की देन है और मध्यकालीन भारत में राष्ट्रीय चेतना का वह आधुनिक युग विकसित नहीं हुआ था फिर भी अकबर को एक राष्ट्रीय सम्राट कहा जाता है क्योंकि इसने अपनी नीतियों से ऐसे तथ्यों को प्रोत्साहित किया और ऐसी परिस्थितियों को विकसित किया जिससे राष्ट्रीय चेतना प्रबल हो सकें। एक राष्ट्र निर्माता उस व्यक्ति को कहा जा सकता है जो किसी जनसमूह में राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भान जाए और उन्हें प्रशासनिक एकता के रूप में बाध्य है। 15वीं एवं 16वीं शताब्दी में यूरोप में ऐसे शासकों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्हें राष्ट्रीय सम्राट (National Monarch) कहा जाता है।

इनमें इंगलैंड के हेनरी सप्तम फ्रांस का लुई चौदह, प्रशा के फ्रेडरिक महान जैसे शासक अग्रगण्य है। इनके मुख्य उपलिब्ध रह रही है कि उन्होंने अपने देशों में सामंतवादी एवं विघटनकारी शक्तियों का अंत किया और भौगोलिक एवं प्रशासनिक एकता स्थापित की। भारत में भी अकबर ने एक विशाल एवं संगठित राज्य का निर्माण किया जो विभिन्न सम्प्रदायों के बीच एकता एवं सहिष्णुता की भावना पर आधारित था और जिसमें विभिन्न संस्कृति तथा परंपराओं का संतुलित एवं सुंदर समन्वय था। विविधता में एकता का जो लक्ष्य अकबर ने सफलता से प्राप्त किया वह अद्भुत है और इसलिए अकबर को एक महान शासक और राष्ट्र निर्माता के रूप में जाना जाता है।

अकबर ने एक विशाल साम्राज्य का निर्माण किया। मौर्य साम्राज्य के पतनोपरांत लगभग 1000 वर्षों के अंतराल पर एक भारत व्यापी साम्राज्य अकबर ने संगठित किया जिसमें एक रूपी शासन प्रणाली थी। अकबर ने अपने शासन के प्रथम दो दशकों में उत्तरी भारत में साम्राज्य विस्तार किया। मालवा, गांण्डवाना, राजपूताना के अनेक राज्य गुजरात, बिहार और बंगाल की विजय इस काल में सम्पन्न हुई। दूसरे चरण में अकबर ने पश्मिोत्तर सीमांत में साम्राज्य विस्तार किया जिसके फलस्वरूप कश्मीर एवं लद्दाख, काबुल, कंधार, सिंध और मकरान के क्षेत्र मुगल साम्राज्य में सम्मिलित हुए। अंतिम चरण में अकबर ने दक्षिण भारत में साम्राज्य विस्तार किया, जिसके फलस्वरूप खान देश बराट और हमद नगर का एक बड़ा क्षेत्र उसने अपने अधिकार में ले लिया। इस तरह उत्तर में कश्मीर, दक्षिण में गोदावरी, पश्चिम में सिंध और पूरब में बंगाल तक फैले हुए क्षेत्र पर अकबर ने राजनीति एकता की स्थापना की। पश्चिमोत्तर क्षेत्र में हिन्दुकुश पर्वतमाला को पारकर अकबर ने काबुल तक साम्राज्य का विस्तार किया।

अकबर द्वारा स्थापित इस विशाल साम्राज्य की विशिष्टता यह थी कि इसमें प्रशासनिक एकरूपता स्थापित की गई। इस तरह भारतीय उपमहाद्वीप में पहली बार ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था का विकास हुआ, जिसमें स्थानीय और क्षेत्रीय भावनाओं और परम्पराओं के स्थान पर केन्द्रीय नियंत्रण एवं एकरूपता की सिद्धांत को अपनाया गया। अकबर ने मंसवादारी प्रथा का निर्माण किया। मंसवदार लोग प्रशासनिक तथा सैनिक अधिकारी थे, जिनकी वेतनमान एवं सेवा के नियम सारे राज्य में एक थे। इसकी तुलना भारतीय प्रशासनिक सेवा से भी की गई है। इस प्रकार अकबर ने प्रशासकों और सेवकों का एक मिला-जुला वर्ग विकसित किया, जो शासन के प्रति निष्ठा रखता था।

प्रशासनिक एकरूपता लाने के लिए अकबर ने सभी प्रांतों में एक जैसी प्रशासनिक व्यवस्था लागू की। हर प्रांत में एक सूवेदार की नियुक्ति की गई जो प्रांतीय प्रशासन का प्रधान था। उसके सहायता के लिए हर प्रांत में दीवान, वित्त-अधिकारी, बख्सी (सैनिकों का वेतन दाता) वाकियाँ नवीश (गुप्तचर), सदर (धार्मिक एवं न्याय संबंधी मामलों का प्रधान), काजी (न्यायधीश) आदि की नियुक्ति हुई। प्रांत को सरकार एवं हर सरकार को परगना में विभक्त किया गया और सभी स्तरों पर प्रशासनिक एकरूपता लाई गई। प्रत्येक सरकार में 3 प्रशासनिक अधिकारी नियुक्त किये गये। इनमें फौजदार साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गुजार-लगान वसूली के लिए एवं काजी-न्याय के लिए उत्तरदायी थे। इसी प्रकार हर परगना में तीन अधिकारी बहाल किये गये, जिसमें सिकंदर-साम्राज्य प्रशासन के लिए, अमल गजारा लगान वसूली के लिए एवं काजी न्याय के लिए उत्तरदायी थे।

अकबर ने आर्थिक एकीकरण के लिए भी उपाय किये। उसने अपने राज्य में लगान व्यवस्था में भी एकरूपता लाई और प्रबल व्यवस्था को लागू किया। मुद्रा प्रणाली, माप तौल के उपकरण आदि में एकरूपता लाई गई जिससे कि उत्तरी भारत में एकरूपता स्थापित हई। यू तो शेरशाह के समय में ही अर्थ व्यवस्था में एरूपता लाने के उपाय किये गये थे परंतु अकबर ने इस व्यवस्था को और सदढ एवं स्थायी आधार प्रदान किया। आर्थिक एकीकरण ने राष्ट्रीय एकीकरण के कार्य में सहायता पहचायी।

अकबर ने अपने शासनकाल में सांस्कृतिक एकीकरण के भी उपाय किये। उसने उदार धार्मिक नीति का अनुसरण किया। उसने हिन्दुओं को जजिया कर और तीर्थ भाग कर देने से मुक्त करदिया एवं बलपूर्वक धर्म परिवर्तन को अवैध घोषित कर दिया। अकबर ने हिन्दुओं के अतिरिक्त, ईसाइयों, पारसियों, सिक्खों एवं बौद्धों के साथ भी धार्मिक सहिष्णुता बरती। इन सभी धर्मों के आचारियों को उसने अपनी राजधानी फतेहपुर सिकरी में स्थित इबास्तखाना में निमंत्रित किया। उसने विभिन्न धर्मों के उपदेशों का संकलन करके ‘दीन-ए-इलाही के रूपमें एक ऐसी आचारसंहिता (Code of Corduct) प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी धर्मों के अनुयायी पूरी निष्ठा रखते हुए भी कार्य कर सकते थे। अशोक के धर्म (धम्म) की तरह दीन-ए-इलाही भी विभिन्न धर्मावलम्बियों के बीच एकता और सद्भावना लाने का एक सराहनीय प्रयास था।

अकबर ने हिन्दू धर्म और इस्लाम के बीच अलगाव एवं भांतियों को दूर करने के लिए दोनों ही धर्मों से संबंधित रचनाओं का अनुवाद करवाया ताकि उसके सिद्धांत को अच्छे ढंग से समझ सकें। उसने मुगल दरबार में हिन्दू उत्सवों और प्रभावों को अपनाया ताकि एक संभावित परम्परा का विकास हो सके। इसी तरह अकबर ने संगीत, चित्रकला और स्थापत्य-कला के क्षेत्रों में एकता लाने का प्रयास किया जिससे भारत में एक समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास संभव हो सका।

अकबर ने अपने शासन काल में स्थापत्य कला में एक समन्वित शैली का विकास किया जिसमें ईरानी शैली और राजपूत शैली के साथ-साथ भारत के विभिन्न शैलियों का समावेश था। इस समन्वित शैली का उदाहरण फतेहपुर सिकरी के अनेक भवनों में देखें जा सकते हैं। अकबर ने जो समन्वित शैली विकसित की उसे उसके उत्तराधिकारियों ने बनायें रखा और जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगजेब एवं प्रवर्ती शासकों के काल में भी भवन निर्माण कला का यह समन्वित रूप बना रहा।

अकबर ने संगीत और चित्रकला में भी समन्वित शैली का विकास किया। मुगल दरबार में ईरानी शैली समन्वित रूप को चित्रकला में विकसित हुआ कहा जाता है कि मुगल दरबार में जो शैली विकसित हुई उसका रूप भारतीय था जबकि उसकी आत्मा ईरानी थी। इसमें यूरोपीय शैली की विशेषताएँ सम्मिलित थी। इसलिए मुगल शैली अत्यधिक उन्नत और परिपक्व बनी रही। इसका विकास जहाँगीर के समय में चरमोत्कर्ष पर पहुँच गया। संगीत में भी ईरानी और भारतीय गायन शैलियों के समन्वय से एक नयी मिश्रित परम्परा विकसित हुई इसका सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन तानसेन की गायन शैली में हुआ। यही समन्वित शैली हिन्दुस्तानी शैली कहलायी। अकबर ने दरबार में ऐसी प्रथाएँ और रीति-रिवाज विकसित किये जिससे कि दरबार में समन्वित सांस्कृतिक परम्परा का विकास हुआ। उसने नौ रोज का व्यवहार मुगुले का राष्ट्रीय व्यवहार बना दिया। उसने राजपूतों से झरोखा दर्शन और कलादान की पद्धति मुगल दरबार में लागू की।

अकबर ने हिन्दू और मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों और बुराइयों को दूर किया। उसने अपने आप को हिन्दुओं और मुसलमानों का शुभ चिंतक माना। अकबर की नीति की खास विशेषता यह थी कि उसने किसी एक धर्म का सम्प्रदाय से ही अपना संबंध नहीं रखा बल्कि उसने सभी वर्गों, सम्प्रदाय और क्षेत्रों को अपनी प्रजा के रूप में एक जैसा अधिकार और सुविधा प्रदान की जो कि भारतीय इतिहास में एक महत्वपर्ण घटना थी।

इस प्रकार अकबर की उपलब्धियों और उसके प्रयास ही दिशा में एकीकरण के उद्देश्य से प्रेरित थी। उसने राजनैतिक और भौगोलिक एकता स्थापित की प्रशासनिक एवं आर्थिक एकरूपता लाई और सांस्कृतिक क्षेत्र में विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के बीच एकता स्थापित करके विविधता में एकता (Unity in diversity) का उद्देश्य प्राप्त करना चाहा।

Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 5

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Bihar Board 12th Geography Objective Important Questions Part 5

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में खनिज तेल का सबसे बड़ा उत्पादक देश कौन है?
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) रूस
(c) सऊदी अरब
(d) बेनजुएला
उत्तर:
(c) सऊदी अरब

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में कौन-सा मानव का प्राचीन क्रियाकलाप था ?
(a) आखेट एवं संग्रहण
(b) पशुपालन
(c) खनन
(d) बुनाई
उत्तर:
(a) आखेट एवं संग्रहण

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में किस देश में न्यूनतम जन्म-दर पाई जाती है ?
(a) फ्रांस
(b) जापान
(c) जर्मनी
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर:
(a) फ्रांस

प्रश्न 4.
विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या केन्द्रित है
(a) पर्वतीय प्रदेशों में
(b) पठारी प्रदेशों में
(c) मैदानी प्रदेशों में
(d) मरुस्थलीय प्रदेशों में
उत्तर:
(c) मैदानी प्रदेशों में

प्रश्न 5.
कौन आधुनिक मानव भूगोल के पिता के रूप में जाने जाते हैं?
(a) विडाल डीला ब्लाश
(b) इलिशवर्थ हंटिगटन
(c) फ्रेडरिक रैटजेल
(d) कुमारी अलेन सैम्पल
उत्तर:
(c) फ्रेडरिक रैटजेल

प्रश्न 6.
मुम्बई में सबसे पहला आधुनिक सूती वस्त्र उद्योग स्थापित किया गया क्योंकि
(a) मुम्बई एक पतन है
(b) यह कपास उत्पादक क्षेत्र के निकट है
(c) मुम्बई एक वित्तीय केन्द्र है
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा की अनवीकरणीय स्रोत है?
(a) जल
(b) सौर
(c) कोयला
(d) पवन
उत्तर:
(c) कोयला

प्रश्न 8.
शुष्क भूमि में निम्नलिखित में से कौन-सी फसल नहीं बोयी जाती है?
(a) रागी
(b) मूंगफली
(c) ज्वार
(d) गन्ना
उत्तर:
(d) गन्ना

प्रश्न 9.
कौन-सा देश रेलमार्ग नेटवर्क का सबसे अधिक घनत्व रखता है?
(a) ब्राजील
(b) रूस
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका
(d) कनाडा
उत्तर:
(c) संयुक्त राज्य अमेरिका

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सा उद्योग अन्य उद्योगों के लिए कच्चा माल उत्पन्न करता है ?
(a) गृह उद्योग
(b) लघु उद्योग
(c) बेसिक उद्योग
(d) फूटलूज उद्योग
उत्तर:
(c) बेसिक उद्योग

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा बागानी फसल नहीं है?
(a) कॉफी
(b) गन्ना
(c) गेहूं
(d) रबर
उत्तर:
(c) गेहूं

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किस महादेश में सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि है?
(a) अफ्रीका
(b) एशिया
(c) दक्षिण अमेरिका
(d) उत्तरी अमेरिका
उत्तर:
(a) अफ्रीका

प्रश्न 13.
दक्षिण-पूर्वी एशिया में जनसंख्या केन्द्रित है
(a) बाढ़ के मैदानों में
(b) समतल पठारों पर
(c) उच्च दोआबों पर
(d) नदी घाटी के उच्च भागों में
उत्तर:
(d) नदी घाटी के उच्च भागों में

प्रश्न 14.
विश्व में सबसे अधिक नगरीकृत देश हैं।
(a) संयुक्त राज्य अमेरिका
(b) ग्रेट ब्रिटेन
(c) ऑस्ट्रेलिया
(d) मिस्र
उत्तर:
(b) ग्रेट ब्रिटेन

प्रश्न 15.
मानव विकास सूचकांक का मापक निम्न में से कौन-सा है?
(a) स्वास्थ्य
(b) शिक्षा
(c) संसाधनों तक पहुंच
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 16.
भारत में कौन-सा राज्य प्रवास को आकर्षित करता है?
(a) महाराष्ट्र
(b) दिल्ली
(c) गुजरात
(d) हरियाणा
उत्तर:
(a) महाराष्ट्र

प्रश्न 17.
ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत निम्न में से कौन-सा है?
(a) सौर ऊर्जा
(b) पवन ऊर्जा
(c) भूतापीय ऊर्जा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 18.
अनान्नास किस प्रकार की कृषि की उपज है ?
(a) दुग्ध कृषि
(b) रोपण कृषि
(c) भूमध्यसागरीय कृषि
(d) मिश्रित कृषि
उत्तर:
(c) भूमध्यसागरीय कृषि

प्रश्न 19.
ग्रामीण बस्तियों में किस कार्य की प्रधानता पायी जाती है ?
(a) व्यापार
(b) कृषि
(c) निर्माण उद्योग
(d) मिट्टी उद्योग
उत्तर:
(b) कृषि

प्रश्न 20.
जनांकिकीय संक्रमण की ………अवस्थाएँ होती हैं।
(a) दो
(b) तीन
(c) छः
(d) सात
उत्तर:
(b) तीन

प्रश्न 21.
ट्रक-फार्मिंग के लिए…………..विश्व प्रसिद्ध है।
(a) वाशिंगटन
(b) टोक्यो
(c) फ्लोरिडा
(d) ब्राजीलिया
उत्तर:
(c) फ्लोरिडा

प्रश्न 22.
ब्राजील में कॉफी बागान को ………… कहा जाता है।
(a) फेजेण्डा
(b) हेसिए डा
(c) पंपास
(d) भेल्ड
उत्तर:
(a) फेजेण्डा

प्रश्न 23.
1992-97 तक भारत में…………पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल था।
(a) 9वीं
(b) 7वीं
(c) 8वीं
(d) 10वीं
उत्तर:
(c) 8वीं

प्रश्न 24.
ध्वनि की तीव्रता ……. में मापी जाती है।
(a) डेसीबेल
(b) मिलीमीटर
(c) किलोमीटर
(d) हर्ट्ज
उत्तर:
(a) डेसीबेल

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में कौन असत्य कथन है ?
(a) संभववाद के समर्थक ब्लाश
(b) चिकल जेपोटा वृक्ष के दूध से नहीं बनता है
(c) प्रारंभ में भूगोल को भूगोल कोश कहा जाता था
(d) मुरादाबाद का बर्तन उद्योग कुशल श्रमिक प्रधान उद्योग का उदाहरण है
उत्तर:
(b) चिकल जेपोटा वृक्ष के दूध से नहीं बनता है

प्रश्न 26.
निम्न में कौन सत्य कथन है ?
(a) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा दूध का परिवहन किया जाता है
(b) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पानी का परिवहन किया जाता है
(c) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पेट्रोलियम का परिवहन किया जाता है
(d) एल्युमीनियम उद्योग कच्चा माल आधारित उद्योग है
उत्तर:
(c) बिंग इंच पाइपलाइन द्वारा पेट्रोलियम का परिवहन किया जाता है

प्रश्न 27.
निम्न में कौन सत्य कथन है ?
(a) जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(b) जनांकिकीय संक्रमण की पहली अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(c) जनांकिकीय संक्रमण की तीसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है
(d) सभी कथन गलत हैं
उत्तर:
(a) जनांकिकीय संक्रमण की दूसरी अवस्था में जनसंख्या वृद्धि उच्च होती है

प्रश्न 28.
निम्न में कौन असत्य कथन है ?
(a) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है
(b) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में बच्चों की संख्या कम है।
(c) पश्चिमी देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में पुरूषों की संख्या अधिक है
(d) पश्चिमी देशों में परिवहन का उत्तम विकास मिलता है
उत्तर:
(a) पश्चिमी देशों के नगरीय क्षेत्रों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों की संख्या अधिक है

प्रश्न 29.
किस खनिज को तरल सोना कहा जाता है?
(a) पारा
(b) सीसा
(c) पीतल
(d) पेट्रोलियम
उत्तर:
(d) पेट्रोलियम

प्रश्न 30.
विश्व में नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत है
(a) 28
(b) 48
(c) 55
(d) 65
उत्तर:
(b) 48

प्रश्न 31.
भारतीय रेल प्रतिदिन कितने यात्रियों को उनके नियत स्थानों पर पहुँचाती हैं ?
(a) 25 लाख
(b) 2.3 करोड़
(c) 10 करोड़
(d) 50 लाख
उत्तर:
(b) 2.3 करोड़

प्रश्न 32.
भारत में प्रतिदिन कितनी रेलगाड़ियाँ चलती हैं ?
(a) 12,617
(b) 12,680
(c) 10,500
(d) 11,670
उत्तर:
(a) 12,617

प्रश्न 33.
दिल्ली और मुम्बई को कौन-सा राष्ट्रीय महामार्ग जोड़ता है ?
(a) राष्ट्रीय महामार्ग-1
(b) राष्ट्रीय महामार्ग-6
(c) राष्ट्रीय महामार्ग-4
(d) राष्ट्रीय महामार्ग-8
उत्तर:
(d) राष्ट्रीय महामार्ग-8

प्रश्न 34.
भारत में पहली रेलगाड़ी कब चलाई गई ?
(a) 1853 में
(b) 1856 में
(c) 1840 में
(d) 1836 में
उत्तर:
(a) 1853 में

प्रश्न 35.
सीमा सड़क संगठन कब बनाया गया ?
(a) 1950
(b) 1960
(c) 1962
(d) 1956
उत्तर:
(b) 1960

प्रश्न 36.
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है ?
(a) कृषि विकास
(b) पारितंत्र विकास
(c) परिवहन विकास
(d) भूमि उपनिवेशन
उत्तर:
(b) पारितंत्र विकास

प्रश्न 37.
‘लिमिटस टू ग्रोथ’ पुस्तक का अधिकृत लेखक कौन है ?
(a) ब्रन्डटलैंड
(b) मीडोरू तथा अन्य
(c) एलियोट और अन्य
(d) वाकर तथा अन्य
उत्तर:
(d) वाकर तथा अन्य

प्रश्न 38.
कौन-सी पंचवर्षीय योजना स्पष्ट रूप से विकास विचारधारा पर बल देती है ?
(a) द्वितीय
(b) चौथी
(c) पाँचवीं
(d) आठवीं
उत्तर:
(b) चौथी

प्रश्न 39.
किस वर्ष में कृषि जलवायु नियोजन को आरंभ किया गया ?
(a) 1988
(b) 1974
(c) 1966
(d) 1992
उत्तर:
(a) 1988

प्रश्न 40.
टाटा और बिड़ला ने मुम्बई योजना कब बनाई ?
(a) 1944 में
(b) 1952 में
(c) 1956 में
(d) 1936 में
उत्तर:
(a) 1944 में

प्रश्न 41.
एम० विश्वेश्वरैया ने दस वर्षों की योजना कब प्रकाशित की ?
(a) 1836 में
(b) 1936 में
(c) 1944 में
(d) 1926 में
उत्तर:
(b) 1936 में

प्रश्न 42.
क्रियाओं को विकसित करने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं ?
(a) नियोजन
(b) योजन
(c) विकास
(d) योजना
उत्तर:
(a) नियोजन

प्रश्न 43.
शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि मुख्य रूप से किस पर आधारित थी?
(a) उद्योग
(b) कृषि
(c) योजना
(d) राष्ट्रीय आय
उत्तर:
(d) राष्ट्रीय आय

प्रश्न 44.
किस पंचवर्षीय योजना में भारत में समाजवादी समाज की स्थापना का प्रतिरूप प्रस्तुत किया गया ?
(a) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(b) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(c) चौथी पंचवर्षीय योजना
(d) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(b) द्वितीय पंचवर्षीय योजना

प्रश्न 45.
उन क्षेत्रों में कौन-सा विकास कार्यक्रम शुरू किया गया जहाँ 50% से अधिक जनजाति के लोग रहते हैं ?
(a) जनजातीय विकास कार्यक्रम
(b) पहाड़ी क्षेत्र विकास कार्यक्रम
(c) गहन कृषि विकास कार्यक्रम
(d) सामुदायिक विकास कार्यक्रम
उत्तर:
(a) जनजातीय विकास कार्यक्रम

प्रश्न 46.
रोजगारों की संख्या 2000 में कितनी हो गई ?
(a) 30.3 करोड़
(b) 33.3 करोड़
(c) 39.7 करोड़
(d) 37.9 करोड़
उत्तर:
(d) 37.9 करोड़

प्रश्न 47.
‘गहन कृषि विकास कार्यक्रम’ किस पंचवर्षीय योजना में शुरू किया गया ?
(a) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(b) चौथी पंचवर्षीय योजना
(c) तीसरी पंचवर्षीय योजना
(d) छठी पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(c) तीसरी पंचवर्षीय योजना