Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 5

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Objective Type Part 5 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 5

प्रश्न 1.
गुट निरपेक्षता का अर्थ है
(a) परस्पर विरोधी गुटों में शामिल होना
(b) विश्व के किसी भी गुट में शामिल नहीं होना
(c) विश्व के सभी गुटों में शामिल होना
(d) मौजूदा परस्पर विरोधी गुटों में सामंजस्य बनाए रखना
उत्तर:
(b) विश्व के किसी भी गुट में शामिल नहीं होना

प्रश्न 2.
भारत में लौह पुरुष की संज्ञा किसे दी गई है ?
(a) महात्मा गांधी
(b) पं० जवाहरलाल नेहरू
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सरदार वल्लभ भाई पटेल

प्रश्न 3.
भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?
(a) पं० नेहरू
(b) सरदार पटेल
(c) डॉ० राधाकृष्णन
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
उत्तर:
(d) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

प्रश्न 4.
शिमला समझौता पर 3 जुलाई, 1972 को किसके द्वारा हस्ताक्षर किया गया ?
(a) जुलफिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी
(b) अटल बिहारी वाजपेयी और चीन के प्रधानमंत्री
(c) जवाहरलाल नेहरू और कोसीजीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जुलफिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी

प्रश्न 5.
स्टालिन संविधान कब लागू हुआ ?
(a) 1936
(b) 1924
(c) 1977
(d) 1999
उत्तर:
(a) 1936

प्रश्न 6.
अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकवादियों का हमला कब हुआ ?
(a) 11 सितंबर, 2001
(b) 11 नवंबर, 2003
(c) 21 जुलाई, 2005
(d) 30 अक्टूबर, 2008
उत्तर:
(a) 11 सितंबर, 2001

प्रश्न 7.
भारत का वायु प्रदूषित नगर है/हैं
(a) मुम्बई
(b) कोलकाता
(c) कानपुर
(d) सभी नगर
उत्तर:
(d) सभी नगर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य है ?
(a) संयुक्त राष्ट्र संघ
(b) नेपाल
(c) बिहार
(d) राष्ट्र संघ
उत्तर:
(b) नेपाल

प्रश्न 9.
छात्र आंदोलन की शुरुआत कहाँ से हुई ?
(a) बिहार
(b) पंजाब
(c) मद्रास
(d) महाराष्ट्र
उत्तर:
(a) बिहार

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा शहर किसी-न-किसी देश की राजधानी नहीं है ?
(a) चेन्नई
(b) बगदाद
(c) तेहरान
(d) डरबन
उत्तर:
(a) चेन्नई

प्रश्न 11.
काँग्रेस के एकदलीय प्रभुत्व कायम करने में निम्न में किस बात का योगदान नहीं था?
(a) ऐतिहासिक विरासत
(b) राजनीतिक विकल्प का अभाव
(c) नायक पूजा के प्रति झुकाव
(d) कानूनी प्रावधान
उत्तर:
(d) कानूनी प्रावधान

प्रश्न 12.
भारत विभाजन के श्रेय किस गवर्नर जनरल को दिया जाता है ?
(a) लॉर्ड वेवेल
(b) लॉर्ड माउण्टबेटेन
(c) लॉर्ड कर्जन
(d) लॉर्ड लिनलिथगो
उत्तर:
(b) लॉर्ड माउण्टबेटेन

प्रश्न 13.
किस देशी रियासत के विरुद्ध भारत सरकार को विलय हेतु बल का प्रयोग करना पड़ा?
(a) जूनागढ़
(b) हैदराबाद
(c) त्रावनकोर
(d) मणिपुर
उत्तर:
(b) हैदराबाद

प्रश्न 14.
1956 में भारतीय राज्यों के पुनर्गठन का आधार क्या बनाया गया ?
(a) भाषा
(b) भौगोलिक क्षेत्र
(c) जाति का धर्म
(d) देशी रियासत की पृष्ठभूमि
उत्तर:
(a) भाषा

प्रश्न 15.
कश्मीर समस्या के संदर्भ में कौन-सा कथन गलत है ?
(a) कश्मीर द्वारा भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया गया
(b) अन्य भारतीय क्षेत्रों की तरह कश्मीर के लोग चुनाव में भाग लेते हैं
(c) कश्मीर का एक भाग पाकिस्तान के नियंत्रण में है
(d) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है
उत्तर:
(d) सरकार द्वारा कश्मीर में मानवाधिकार का हनन किया जाता है

प्रश्न 16.
इंदिरा गाँधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा कब की थी ?
(a) 18 मई, 1975
(b) 25 जून, 1975
(c) 5 जुलाई, 1975
(d) 10 अगस्त, 1975
उत्तर:
(b) 25 जून, 1975

प्रश्न 17.
समकालीन विश्व-व्यवस्था के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(a) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके
(b) अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अमेरिका की चलती है
(c) विभिन्न देश एक-दूसरे पर बल प्रयोग कर रहे हैं
(d) जो देश अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें संयुक्त राष्ट्रसंघ कठोर दंड देता है
उत्तर:
(a) ऐसी कोई विश्व-सरकार मौजूद नहीं जो देशों के व्यवहार पर अंकुश रख सके

प्रश्न 18.
पंचशील के पाँच सिद्धांत किसके द्वारा घोषित किए गए थे ?
(a) लालबहादुर शास्त्री
(b) राजीव गाँधी
(c) जवाहरलाल नेहरू
(d) अटल बिहारी वाजपेयी
उत्तर:
(c) जवाहरलाल नेहरू

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है ?
(a) अमेरिका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक युद्ध की समाप्ति
(b) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रमंडल की उत्पत्ति
(c) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में परिवर्तन
(d) मध्यपूर्व में संकट
उत्तर:
(c) विश्व व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में परिवर्तन

प्रश्न 20.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय की स्थापना हुई
(a) 1957 में
(b) 1992 में
(c) 2005 में
(d) 2006 में
उत्तर:
(a) 1957 में

प्रश्न 21.
परंपरागत सुरक्षा नीति के कौन-कौन तत्व हैं ?
(a) शक्ति -संतुलन
(b) गठबंधन की राजनीति
(c) सामूहिक सुरक्षा
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में समूचे पर्यावरण को कौन सुरक्षा देता है ?
(a) ओजोन मंडल
(b) वायुमंडल
(c) सौर्यमंडल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) ओजोन मंडल

प्रश्न 23.
ताशकंद समझौते के समय सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व कौन नेता कर रहा था ?
(a) स्टालिन
(b) कोसिजिन
(c) पुतीन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) कोसिजिन

प्रश्न 24.
2003 में अमेरिका ने किस देश पर हमला किया ?
(a) कुवैत
(b) इराक
(c) ईरान
(d) तेहरान
उत्तर:
(b) इराक

प्रश्न 25.
किस देश के प्रभुत्व से एक ध्रुवीयता कायम हुआ ?
(a) रूसी संघ
(b) चीन
(c) फ्रांस
(d) अमेरिका
उत्तर:
(d) अमेरिका

प्रश्न 26.
कौन-सा वर्ष भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाया गया ?
(a) 1954
(b) 1962
(c) 1988
(d) 2006
उत्तर:
(a) 1954

प्रश्न 27.
2014 में भारत-चीन संबंध सुधारने की ओर किस भारतीय प्रधानमंत्री ने पहल की?
(a) मनमोहन सिंह
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) दोनों ने
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 28.
दक्षिण एशिया का कौन-सा देश नस्लीय उग्रवाद से पीड़ित है ?
(a) नेपाल
(b) बांग्लादेश
(c) श्रीलंका
(d) भारत
उत्तर:
(c) श्रीलंका

प्रश्न 29.
किस दक्षिण एशियाई देश में संवैधानिक संकट है ?
(a) पाकिस्तान
(b) बांग्लादेश
(c) भूटान
(d) नेपाल
उत्तर:
(d) नेपाल

प्रश्न 30.
संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे बड़ा अंग कौन है ?
(a) सुरक्षा परिषद्
(b) महासभा
(c) सचिवालय
(d) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
उत्तर:
(b) महासभा

प्रश्न 31.
विश्व बैंक की स्थापना कब हुई ?
(a) 1946 में
(b) 1947 में
(c) 1948 में
(d) 1949 में
उत्तर:
(a) 1946 में

प्रश्न 32.
विश्व के देशों के बीच व्यापार संबंधों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) विश्व व्यापार संगठन
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) विश्व बैंक
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) विश्व व्यापार संगठन

प्रश्न 33.
किस संधि में परमाणु परीक्षण को पूर्णतया वर्जित किया गया है ?
(a) परमाणु अप्रसार
(b) आंशिक परीक्षण प्रतिबंध
(c) व्यापक परीक्षण प्रतिबंध
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(a) परमाणु अप्रसार

प्रश्न 34.
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा कब की गई ?
(a) 1945
(b) 1946
(c) 1947
(d) 1948
उत्तर:
(d) 1948

प्रश्न 35.
बच्चों के अधिकारों के लिए कौन-सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन है ?
(a) रेड क्रॉस सोसाइटी
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल
(c) यूनिसेफ
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) एमनेस्टी इन्टरनेशनल

प्रश्न 36.
उत्तराखंड में किस दल की सरकार है ?
(a) काँग्रेस
(b) भाजपा
(c) समाजवादी दल
(d) आप
उत्तर:
(b) भाजपा

प्रश्न 37.
पाकिस्तान के वर्तमान प्रधानमंत्री कौन हैं ?
(a) बेनजीर भुट्टो
(b) नवाज शरीफ
(c) परवेज मुशरफ
(d) इमरान खान
उत्तर:
(d) इमरान खान

प्रश्न 38.
“गैर-काँग्रेसवाद” का नारा किसने दिया ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) मोरारजी देसाई
(c) राम मनोहर लोहिया
(d) राज नारायण
उत्तर:
(c) राम मनोहर लोहिया

प्रश्न 39.
भारत में नई आर्थिक नीति किस वर्ष शुरू की गई ?
(a) 1990
(b) 1991
(c) 1992
(d) 1993
उत्तर:
(b) 1991

प्रश्न 40.
राज्यों के पुनर्गठन आयोग के अध्यक्ष कौन थे ?
(a) गोविन्द बल्लभ पन्त
(b) के.एम. पन्निकर
(c) पण्डित हृदय नाथ कुंजरू
(d) न्यायमूर्ति फजल अली
उत्तर:
(d) न्यायमूर्ति फजल अली

प्रश्न 41.
भारत ने पहला सफल परमाणु परीक्षण कब किया ?
(a) 1963
(b) 1974
(c) 1980
(d) 1998
उत्तर:
(b) 1974

प्रश्न 42.
किस वर्ष चीन ने भारत पर आक्रमण किया ?
(a) 1962
(b) 1964
(c) 1965
(d) 1966
उत्तर:
(a) 1962

प्रश्न 43.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अन्तर्गत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है ?
(a) अनुच्छेद 352
(b) अनुच्छेद 356
(c) अनुच्छेद 360
(d) अनुच्छेद 368
उत्तर:
(a) अनुच्छेद 352

प्रश्न 44.
विश्व में शान्ति बनाए रखने का दायित्व किस पर है ?
(a) महासभा
(b) सुरक्षा परिषद
(c) आर्थिक व सामाजिक परिषद्
(d) महासचिव
उत्तर:
(b) सुरक्षा परिषद

प्रश्न 45.
मण्डल कमीशन रिपोर्ट की सिफारिशों को किस प्रधानमंत्री ने लागू किया ?
(a) चन्द्रशेखर
(b) मोरार जी देसाई
(c) चरण सिंह
(d) वी० पी० सिंह
उत्तर:
(d) वी० पी० सिंह

प्रश्न 46.
किसे नए सामाजिक आन्दोलन की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता?
(a) चिपको आन्दोलन
(b) नर्मदा बचाओ आन्दोलन
(c) टेहरी बाँध आन्दोलन
(d) गृह स्वराज्य आन्दोलन
उत्तर:
(d) गृह स्वराज्य आन्दोलन

प्रश्न 47.
भारतीय जनता पार्टी किस पार्टी का नया नाम है ?
(a) भारतीय जनसंघ
(b) भारतीय क्रान्ति दल
(c) भारतीय लोक दल
(d) भारतीय जनता दल
उत्तर:
(d) भारतीय जनता दल

प्रश्न 48.
भारत में गठबन्धन की सरकार के पहले प्रधानमंत्री कौन थे ?
(a) वी० पी० सिंह
(b) देवगौड़ा
(c) इन्द्रकुमार गुजराल
(d) अटल बिहारी वाजपेयी
उत्तर:
(a) वी० पी० सिंह

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 4

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 4 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
विश्व बैंक के प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर:
विश्व बैंक के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सदस्य देशों के प्रदेशों के पुनर्निर्माण व विकास में सहायक होना।
  • ऋण व अन्य उपनिवेशों में सहभागिता के आधार पर प्रत्याभूतियाँ देना व उनके विदेशी निजी निवेशकों को प्रोत्साहन देना।
  • विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निवेशों को प्रोत्साहित करना ताकि उत्पादकता, जीवन स्तर व श्रम की दशाएँ ऊँची हो।

प्रश्न 2.
नर्मदा बचाओ आंदोलन क्या था ?
उत्तर:
(i) लोगों द्वारा 2003 ई० में स्वीकृति राष्ट्रीय पुनर्वास नीति को नर्मदा बचाओ जैसे सामाजिक आंदोलन की उपलब्धि के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु असफलता के साथ ही नर्मदा बचाओ आंदोलन को बाँध के निर्माण पर रोक लगाने की मांग उठाने पर तीखा विरोध भी झेलना पड़ा है।

(ii) आलोचकों का कहना है कि आंदोलन का अड़ियल रवैया विकास की प्रक्रिया, पानी की उपलब्धता और आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को बाँध का काम आगे बढ़ाने की हिदायत दी है लेकिन साथ ही उसे यह आदेश भी दिया गया है कि प्रभावित लोगों का पुनर्वास सही ढंग से किया जाए।

(iii) नर्मदा बचाओ आंदोलन, दो से भी ज्यादा दशकों तक चला। आंदोलन ने अपनी माँग रखने के लिए हरसंभव लोकतांत्रिक रणनीति का इस्तेमाल किया। आंदोलन ने अपनी बात न्यायपालिका से लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों तक से उठायी। आंदोलन की समझ को जनता के सामने रखने के लिए नेतृत्व ने सार्वजनिक रैलियों तथा सत्याग्रह जैसे तरीकों का भी प्रयोग किया परंतु विपक्षी दलों सहित मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के बीच आंदोलन कोई खास जगह नहीं बना पाया।

(iv) वास्तव में, नर्मदा आंदोलन की विकास रेखा भारतीय राजनीति में सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक दलों के बीच निरंतर बढ़ती दूरी को बयान करती है। उल्लेखनीय है कि नवें दशक के अंत तक पहुँचते-पहुँचते नर्मदा बचाओ आंदोलन से कई अन्य स्थानीय समूह और आंदोलन भी आ जुड़े। ये सभी आंदोलन अपने-अपने क्षेत्रों में विकास की वृहत परियोजनाओं का विरोध करते थे। इस समय के आस-पास नर्मदा बचाओ आंदोलन देश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे समधर्मा आंदोलनों के गठबंधन का अंग बन गया।

प्रश्न 3.
‘भारत में सिक्किम विलय’ विषय पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पृष्ठभूमि- मतलब यह कि तब सिक्किम भारत का अंग तो नहीं था लेकिन वह पूरी तरह संप्रभु राष्ट्र भी नहीं था। सिक्किम की रक्षा और विदेशी मामलों का जिम्मा भारत सरकार का था जबकि सिक्किम के आंतरिक प्रशासन की बागडोर यहाँ के राजा चोग्याल के हाथों में थी। यह व्यवस्था कारगर साबित नहीं हो पायी क्योंकि सिक्किम के राजा स्थानीय जनता की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को संभाल नहीं सके।

(i) सिक्किम में लोकतंत्र तथा विजयी पार्टी का सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने का प्रयास- एक बड़ा हिस्सा नेपालियो का था| नेपाली मूल की जनता के मन में यह भाव घर कर गया कि चोग्याल अल्पसंख्यक लेपचा-भूटिया के एक छोटे-से अभिजन तबके का शासन उन पर लाद रहा है। चोग्याल विरोधी दोनों समुदाय के नेताओं ने भारत सरकार से मदद माँगी और भारत सरकार का समर्थन हासिल किया। सिक्किम विधानसभा के लिए पहला लोकतांत्रिक चुनाव 1974 में हुआ और इसमें सिक्किम कांग्रेस को भारी विजय मिली। यह पार्टी सिक्किम को भारत के साथ जोड़ने के पक्ष में थी।

(ii) सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य (प्रांत) बनाया गया- विधान सभा ने पहले भारत के ‘सह-प्रान्त’ बनने की कोशिश की और इसके बाद 1975 के अप्रैल में एक प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में भारत के साथ सिक्किम के पूर्ण विलय की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद सिक्किम में जनमत-संग्रह कराया गया और जनमत-संग्रह में जनता ने विधानसभा के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी। भारत सरकार ने सिक्किम विधानसभा के अनुरोध को तत्काल मान लिया और सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बन गया। चोग्याल ने इस फैसले को नहीं माना और उसके समर्थकों ने भारत सरकार पर साजिश रचने तथा बल प्रयोग करने का आरोप लगाया। बहरहाल, भारत संघ में सिक्किम के विलय को स्थानीय जनता का समर्थन प्राप्त था।

प्रश्न 4.
एकधुवीय व्यवस्था और द्विध्रुवीय व्यवस्था क्या है ?
उत्तर:
एकध्रुवीय व्यवस्था और द्विध्रुवीय व्यवस्था 1991 में सोवियत रूस के बिखर जाने के बाद विश्व की व्यवस्था पूँजीवादी ग्रुप अमेरिका के नेतृत्व में एकध्रुवीय व्यवस्था बन गई है जो आज भी कायम है।

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व दो गुटों में विभक्त होकर द्विध्रुवीय व्यवस्था में परिणत हो गया। पूँजीवादी गुटों के देशों का नेतृत्व अमेरिका द्वारा और साम्यवादी देशों का नेतृत्व सोवियत रूस के द्वारा होने लगा।

प्रश्न 5.
वामपंथी दल से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
भारतीय राजनीति में कांग्रेस के विरुद्ध साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल को वामदल की संज्ञा दी जाती है। यह दल अपने कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब, दलित, शोषित एवं सर्वहारा दल के हित की रक्षा के लिए यह दल कार्यरत रहता है। यह दल पूँजीपतियों के खिलाफ है। एक लम्बे समय तक पश्चिमी बंगाल, त्रिपुरा आदि राज्यों के शासन में इसकी भूमिका प्रमुख थी।

प्रश्न 6.
बिमारू राज्यों का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
भारत में वैसे राज्य जो आर्थिक, दृष्टिकोण से पिछड़े हुए हैं। वहाँ पर लोगों में शिक्षा की कमी, बेरोजगारी, महिलाओं की आर्थिक स्थिति दयनीय है। इसका उदाहरण उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आसाम के समीपवर्ती राज्य एवं बिहार का भी कुछ हिस्सा बिमारू राज्य के श्रेणी में आता है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
जो दल राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव जीतकर संसद में आता है उसे राष्ट्रीय दल की संज्ञा दी जाती है। इसमें कुल मतदान का कुछ प्रतिशत निर्धारित रहता है। भारत में भाजपा, भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस, कम्युनिष्ट पार्टी एवं तृणमुल दल राष्ट्रीय दल है।

जो दल क्षेत्रीय स्तर पर या प्रान्तीय स्तर पर जीत प्राप्त कर संसद या विधानमंडल की सदस्यता प्राप्त करता है उसे क्षेत्रीय दल की संज्ञा दी जाती है। बिहार में जनता दल यू, राजद एवं उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा आदि दल क्षेत्रीय दल में आते हैं।

प्रश्न 8.
राज्य और संघशासित राज्य में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
भारत में संघीय प्रणाली को अपनाकर शासन संचालित किया जाता है। संघ एवं राज्य के क्षेत्रों को विभक्त कर शासन चलाया जाता है। राज्य शासन का वास्तविक प्रधान मुख्यमंत्री होता है। जैसे बिहार, यू०पी०, बंगाल आदि राज्य हैं। अभी भारत में 29 राज्य है।

भारत के कुछ क्षेत्रों में संघशासित राज्य है जिसका प्रधान लेफ्टीनेंट गवर्नर जनरल होता है। वह केन्द्र सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है। भारत में संघशासित राज्यों की संख्या 6 है। जिसमें अंडमान निकोबार द्वीप समूह, दमन, चंडीगढ़ आदि राज्य संघशासित राज्य हैं।

प्रश्न 9.
मोदी का नोटबन्दी प्रोग्राम क्या है ?
उत्तर:
भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवम्बर, 2016 के एक घोषणा द्वारा यह कहा कि आज से भारत में 500 और 1000 के पुराने नोट नहीं चलेंगे। मोदी का यह एक क्रान्तिकारी फैसला था। इससे देश में काला धन पर रोक के साथ-साथ आतंकवादी गतिविधियों पर भी लगाम लगाया जा सकता है। किन्तु पुराने नोट भी 31 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों और पोस्टऑफिस में बदला जा सकता है। इतना ही नहीं 31 मार्च 2017 तक भारतीय रिजर्व बैंक में उचित कारण देकर पुराने नोट बदले जायेंगे।

प्रश्न 10.
मोदी का सर्जिकल स्ट्राइक क्या है ?
उत्तर:
पाकिस्तान द्वारा शुरू से लेकर आज तक भारत-पाकिस्तान सीमा पर आतंकवादियों द्वारा भारतीय सीमा में प्रवेश कर निरपराध भारतीयों की हत्या की जा रही है। इतना ही नहीं भारतीय सीमा में घुसकर लगभग 20 भारतीय जवानों को मौत के घाट उतार कर आतंकवादी पाक सीमा में घुस गये। इसी को ध्यान में रखकर प्रधानमंत्री मोदी ने जांबाज भारतीय सैनिकों को पाक में भेजकर सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को मारकर पुनः वापस आ गये।

प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवादियों द्वारा 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा में 40 सैनिकों को मार दिये जाने के बाद 26 फरवरी, 2019 को सर्जिकल स्ट्राइक II द्वारा पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकवादियों के ट्रेनिंग सेंटर पर हवाई हमलों द्वारा करीब 300 पाक आतंकवादियों को मारकर भारतीय सैनिक वापस लौट आया।

प्रश्न 11.
सुरक्षा से जुड़े केन्द्रीय मूल्यों (या चीजों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सुरक्षा के केन्द्रीय मूल्य (Central Values or things of Security)- आदमी जब भी अपने घर से बाहर कदम निकालता है तो उसके अस्तित्व अथवा जीवनयापन के तरीकों को किसी न किसी अर्थ में खतरा जरूर होता है। यदि हमने खतरे का इतना व्यापक अर्थ लिया तो फिर हमारी दुनिया में हर घड़ी और हर जगह सुरक्षा के ही सवाल नजर आयेंगे।

इसी कारण जो लोग सुरक्षा विषयक अध्ययन करते हैं उनका कहना है कि केवल उन चीजों को ‘सुरक्षा’ से जुड़ी चीजों का विषय बनाया जाय जिनसे जीवन के केन्द्रीय मूल्यों’ को खतरा हो। तो फिर सवाल उठता है कि किसके केन्द्रीय मूल्य ? क्या पूरे देश के केन्द्रीय मूल्य’ ? आम स्त्री-पुरूषों के केन्द्रीय मूल्य ? क्या नागरिकों की नुमाइंदगी करने वाली सरकार हमेशा केन्द्रीय मूल्यों’ का वही अर्थ ग्रहण करती है जो कोई साधारण नागरिक ?

प्रश्न 12.
सुरक्षा नीति का संबंध किससे होता है ? इसे क्या कहा जाता है ? इसे रक्षा कब कहा जाता है ?
उत्तर:
युद्ध में कोई सरकार भले ही आत्मसमर्पण कर दे लेकिन वह इसे अपने देश की नीति के रूप में कभी प्रचारित नहीं करना चाहेगी। इस कारण, सुरक्षा-नीति का संबंध युद्ध की आशंका को रोकने में होता है जिसे ‘अपराध’ कहा जाता है और युद्ध को सीमित रखने अथवा उसको समाप्त करने से होता है जिसे रक्षा कहा जाता है।

प्रश्न 13.
हरित क्रांति क्या है ?
उत्तर:
सरकारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे। शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायता देने की नीति अपनायी थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने जब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं।

सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीच, उर्वरक, कीटनाशाक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुमादित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरूआत थी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

प्रश्न 14.
दक्षिण एशिया क्या है ?
उत्तर:
सामान्यतया दक्षिण एशिया में नौ देशों को शामिल किया जाता है। इनमें आठ देश- (i) बांग्लादेश, (ii) भूटान, (iii) भारत, (iv) मालदीव, (v) नेपाल, (vi) पाकिस्तान, (vii) श्रीलंका एवं (viii) अफगानिस्तान को शामिल किया जाता है।

उत्तर की विशाल हिमायल पर्वत-श्रृंखला, दक्षिण का हिंदमहासागर, पश्चिम का अरब सागर और पूरब में मौजूद बंगाल की खाड़ी से यह इलाका एक विशिष्ट प्राकृतिक क्षेत्र के रूप में नजर आता है। यह भौगोलिक विशिष्टता ही उस उप-महाद्वीपीय क्षेत्र की भाषाई, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अनूठेपन के लिए जिम्मेदार है। इस क्षेत्र की चर्चा में जब-तब अफगानिस्तान और म्यांमार को भी शामिल किया जाता है। चीन इस क्षेत्र का एक प्रमुख देश है लेकिन चीन को दक्षिण एशिया का अंग नहीं माना जाता।

प्रश्न 15.
शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
उत्तर:
पुरुषों और महिलाओं की स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अंतर है। स्त्री साक्षरता 2001 में 54.16 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की साक्षरता 75.85 प्रतिशत थी। शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता सीमित है।

प्रश्न 16.
जन आंदोलन की प्रकृति पर अति लघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जन आंदोलन वे आंदोलन होते हैं। जो प्रायः समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय, अथवा स्थानीय हितों, माँगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए 1973 ई० में चलाया गया ‘चिपको आंदोलन’ भारतीय किसान यूनियन द्वारा चलाया गया आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन, आंध्र प्रदेश ताड़ी विरोधी आंदोलन, समय-समय पर चलाए गए छात्र आंदोलन, नारी मुक्ति और सशक्तिकरण समर्थित आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि जन आंदोलन के उदाहरण हैं।

प्रश्न 17.
उन कारणों/कारकों का उल्लेख कीजिए जिनकी वजह से सरकार ने इस्पात उद्योग उड़ीसा में स्थापित करने का राजनीतिक निर्णय लेना चाहा ?
उत्तर:
(a) इस्पात की विश्वव्यापी माँग बढ़ी तो निवेश के लिहाज से उड़ीसा एक महत्वपूर्ण जगह के रूप में उभरा। उड़ीसा में लौह-अयस्क का विशाल भंडार था और अभी इसका दोहन बाकी था। उड़ीसा की राज्य सरकार ने लौह-अयस्क की इस अप्रत्याशित माँग को भुनाना चाहा। उसने अंतर्राष्ट्रीय इस्पात निर्माताओं और राष्ट्रीय स्तर के इस्पात-निर्माताओं के साथ सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए।

(b) सरकार सोच रही थी कि इससे राज्य में जरूरी पूँजी-निवेश भी हो जाएगा और रोजगार के अवसर भी बड़ी संख्या में सामने आएँगे।

प्रश्न 18.
उड़ीसा में लौह-इस्पात उद्योग की स्थापना का, वहाँ के आदिवासियों ने क्यों विरोध किया था ?
उत्तर:
लौह-अयस्क के ज्यादातर भंडार उड़ीसा के सर्वाधिक अविकसित इलाकों में हैंखासकर इस राज्य के आदिवासी-बहुल जिलों में। आदिवासियों को डर है कि अगर यहाँ उद्योग लग गए तो उन्हें अपने घर-बार से विस्थापित होना पड़ेगा और आजीविका भी छिन जाएगी।

प्रश्न 19.
पर्यावरण विदों के विरोध के क्या कारण थे ? उनके विरोध के बावजूद भी केन्द्र उड़ीसा में इस्पात उद्योग की स्थापना के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी क्यों देना चाहती थी?
उत्तर:
उड़ीसा में इस्पात प्लांट लगाये जाने से पर्यावरणविदों को इस बात का भय है कि खनन और उद्योग से पर्यावरण प्रदूषित होगा। केन्द्र सरकार को लगता है कि अगर उद्योग लगाने की अनुमति नहीं दी गई, तो इससे एक बुरी मिसाल कायम होगी और देश में पूंजी निवेश को बाधा पहुंचेगी।

प्रश्न 20.
‘साम्यवाद के प्रसार की रोक’ के लिए अमेरिका ने क्या कदम उठाए ?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका में साम्यवादी प्रसार की रोक के लिए टूमैन सिद्धांत, मार्शल योजना तथा आइजन हावर सिद्धांत बनाए।

अमेरिका ने 1971 तक चीन को संयुक्त राष्ट्र संघ से पृथक् रखा तथा कश्मीर के मामले में पाकिस्तान का पक्ष लिया। पूर्वी एशिया के देशों में आर्थिक तथा सैनिक सहायता दी। सुदूर पूर्व में जापान के साथ सैनिक सन्धि की तथा यूरोप में स्पेन और पश्चिमी जर्मनी के साथ। अंग्रेजों और फ्रांसीसी के उपनिवेशवाद की भी उसने अधिक तीव्र शब्दों में निन्दा नहीं की तथा पाकिस्तान को सैनिक सहायता प्रदान की।

प्रश्न 21.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी पर एक अति लघु टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 19:1 ई० में हुआ। वह महान देश भक्त, स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू महासभा के प्रसिद्ध नेता थे। स्वतंत्रता के बाद जवाहरलाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में उन्हें मंत्री नियुक्त किया गया। वह संविधान सभा के सदस्य रह चुके थे। उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की। नेहरूजी के साथ पाकिस्तान के साथ संबंधों में मतभेदों के कारण 1950 में मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। वह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए। वह कश्मीर को स्वायत्तता देने के विरुद्ध थे। कश्मीर नीति पर भारतीय जनसंघ के प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 1953 ई० में पुलिस हिरासत में ही उनकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 22.
दीनदयाल उपाध्याय पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में हुआ। उन्होंने आजादी से पहले ही देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। 1942 से राष्ट्रीय स्वयं सेवा संघ (RSS) के पूर्ण कालिक कार्यकर्ता थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ-साथ भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से थे। वह पहले तो भारतीय जनसंघ पार्टी के महासचिव और बाद में अध्यक्ष बने। यह कुशल विचारक नीतिकार तथा महान संगठनकर्ता थे। उन्हें समग्र मानवता के सिद्धान्त के प्रणेता के रूप में याद किया जाता है। 1968 ई० में उनका देहांत हो गया।

प्रश्न 23.
जे० सी० कुमारप्पा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जे० सी० कुमारप्पा का जन्म 1892 में हुआ। इनका असली नाम जे० सी० कार्नेलियस था। इन्होंने अर्थशास्त्र एवं चार्टर्ड एकाउंटेंट की भी अमेरिका में शिक्षा प्राप्त की। यह महात्मा गाँधी के अनुयायी थे। आजादी के बाद उन्होंने गाँधीवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने का प्रयास किया। उनकी कृषि इकॉनोमी ऑफ परमानैंस को बड़ी ख्याति मिला। एक योजना आयोग के सदस्य के रूप में उन्हें ख्याति मिली।

प्रश्न 24.
चकबन्दी से क्या लाभ है ?
उत्तर:
चकबन्दी से कृषकों को उन्नत किस्म के आदानों का प्रयोग करने में सहायता मिलती है। तथा वे कम से कम प्रयत्नों से अधिकतम उत्पादन करने में सफल होते हैं। इससे उत्पादन लागत में भी कमी आती है।

प्रश्न 25.
भूमि सुधार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
भूमि सुधार से अभिप्राय भूमि (जोतों) के स्वामित्व में परिवर्तन लाना। दूसरे शब्दों में भूमि सुधार में भूमि के स्वामित्व के पुनः वितरण को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 26.
पंचशील क्या है ?
उत्तर:
28 जून, 1954 के दिन भारतीय तथा चीनी प्रधानमंत्रियों ने अपने संयुक्त वक्तव्य में पंचशील के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।

पंचशील के पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  1. एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता तथा सर्वोच्च सत्ता के प्रति पारस्परिक सम्मान की भावना।
  2. एक-दूसरे के प्रदेश पर आक्रमण का परित्याग।
  3. एक-दूसरे के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने का संकल्प।
  4. समानता और पारस्परिक लाभ के सिद्धांत के आधार पर मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना।
  5. शांतिपूर्ण सहअस्तित्त्व का सिद्धांत।

14 दिसंबर, 1959 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में उपस्थित 82 देशों ने पंचशील के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 27.
कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए क्या प्रयत्न किए गये ?
उत्तर:
असमानता को दूर करने के लिए भूमि सुधार किया गया तथा उत्पादन में वृद्धि लाने के लिए उन्नत बीजों का प्रयोग किया गया। सिंचाई विधाओं का विस्तार किया गया। कृषि में आधुनिक मशीनों तथा उपकरणों का प्रयोग में लाया गया।

प्रश्न 28.
भारत अमेरिकी सम्बन्धों की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर:
भारत और अमेरिका के सम्बन्ध पुराने हैं। स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व राष्ट्रीय आन्दोलन के समय से ही अमेरिका भारत के प्रति सहानुभूति रखता था और उसने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को गहारा दिया था। इस हेतु द्वितीय विश्वयुद्ध के काल में अमेरिका ने ब्रिटेन पर दबाव बनाया कि भारत को भी आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना चाहिए। भारत के लोगों के प्रति अमेरिका की सहानुभूति सोवियत प्रभाव को रोकने के उद्देश्य से भी थी।

प्रश्न 29.
सीमांत गांधी कौन थे ? उनके द्वि-राष्ट्र सिद्धांत के बारे में दृष्टिकोण का उल्लेख करते हुए उनकी भूमिका का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
खान अब्दुल गफ्फार खान पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत (North-West Frontier Province NWFP) (पेशावर के मूलतः निवासी) के निर्विवाद नेता थे। वह काँग्रेस के नेता तथा लाल कुर्ती नामक संगठन के जन्मदाता थे। वह सच्चे गाँधीवादी, अहिंसा, शांतिप्रेम के समर्थक थे। उनकी प्रसिद्धि ‘सीमांत गाँधी’ के रूप में थी। वे द्वि-राष्ट्र-सिद्धांत के एकदम विरोधी थे। संयोग से, उनकी आवाज की अनदेखी की गई और ‘पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत’ को पाकिस्तान में शामिल मान लिया गया।

प्रश्न 30.
रजवाड़ों के संदर्भ में सहमति-पत्र का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए लगभग सभी रजवाड़े जिन्की सीमाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नयी सीमाओं से मिलती थीं, 15 अगस्त, 1947 से पहले ही भारतीय संघ में शामिल हो गए। अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए । इस सहमति-पत्र को ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ कहा जाता है। इस पर हस्ताक्षर का अर्थ था कि रजवाड़े भारतीय संघ का अंग बनने के लिए सहमत हैं। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का विलय वाकियों की तुलना में थोड़ा कठिन साबित हुआ।

प्रश्न 31.
आंध्रप्रदेश के गठन के संदर्भ में पोट्टी श्रीरामुलु का नाम किस तरह जुड़ा हुआ है ?
उत्तर:
1. प्रांत के तेलगुभाषी क्षेत्रों में विरोध भड़क उठा। पुराने मद्रास प्रांत में आज के तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश शामिल थे। इसके कुछ हिस्से मौजूदा केरल एवं कर्नाटक में भी हैं। विशाल आंध्र आंदोलन (आंध्र प्रदेश नाम से अलग राज्य बनाने के लिए चलाया गया आंदोलन) ने मांग की कि मद्रास प्रांत के तेलगुभाषी इलाकों को अलग करके एक नया राज्य आंध्रप्रदेश बनाया जाए। तेलुगुभाषी क्षेत्र की लगभग सारी राजनीतिक शक्तियाँ मद्रास प्रांत के भाषाई पुनर्गठन के पक्ष में थी।

2. केन्द्र सरकार ‘हाँ-ना’ की दुविधा में थी और उसकी इस मनोदशा से इस आंदोलन ने जोर पकड़ा। काँग्रेस के नेता और दिग्गज गांधीवादी, पोट्टी श्रीरामुलु, अनिश्चितकालीन भूख-हड़ताल पर बैठ गए। 56 दिनों की भूख-हड़ताल के बाद उनकी मृत्यु हो गई। इससे बड़ी अव्यवस्था फैली।

3. आंध्र प्रदेश में जगह-जगह हिंसक घटनाएँ हुईं। लोग बड़ी संख्या में सड़कों पर निकल आए। पुलिस फायरिंग में अनेक लोग घायल हुए या मारे गए। मद्रास में अनेक विधायकों ने विरोध जताते हुए अपनी सीट से इस्तीफा दे दिया। आखिरकार 1952 के दिसंबर में प्रधानमंत्री ने आंध्रप्रदेश नाम से अलग राज्य की घोषणा की।

प्रश्न 32.
संक्षेप में राज्य पुनर्गठन आयोग के निर्माण की पृष्ठभूमि, कार्य तथा इससे जुड़े ऐक्ट का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
आंध्र प्रदेश के गठन के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी भाषायी आधार पर राज्यों को गठित करने का संघर्ष चल पड़ा। इन संघर्षों से बाध्य होकर केन्द्र सरकार ने 1953 में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया। इस आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। इससे अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि मामले पर गौर करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीका: किया कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जानेवाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्र शासित प्रदेश बनाए गए।

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 4

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय विकास परिषद् के क्या कार्य हैं ?
उत्तर:
राष्ट्रीय विकास परिषद्-राज्यों तथा केंद्रों के बीच शक्तियों के विभाजन को देखते हुए योजना तैयार करने में राज्यों का भाग लेना अनिवार्य था। इसलिए 1952 में राष्ट्रीय विकास परिषद् की स्थापना की गयी। राष्ट्रीय विकास परिषद् का अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं।

परिषद् की स्थापना के उद्देश्य-

  • योजना आयोग की सहायता के लिए राज्य के स्रोतों तथा परिश्रम को सुदृढ़ करने तथा उनको गतिशील बनाना।
  • सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समरूप आर्थिक नीतियों के अंगीकरण को प्रोत्साहित करना।
  • देश के सभी भागों के तीव्र तथा संतुलित विकास के लिए प्रयास करना।

परिषद् के कार्य-

  • राष्ट्रीय योजना की प्रगति पर समय-समय पर विचार करना।
  • राष्ट्रीय विकास को प्रभावित करने वाली आर्थिक तथा सामाजिक नीतियों संबंधी विषयों पर विचार तथा
  • राष्ट्रीय योजना के निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए सुझाव देना।

प्रश्न 2.
वर्तमान समय के संदर्भ में भारत और चीन के संबंधों की विवेचना करें।
उत्तर:
चीन के साथ भारत का संबंध (India’s Relations with China)-
(i) प्रस्तावना (Introduction) – पश्चिमी साम्राज्यवाद के उदय से पहले भारत और चीन एशिया की महाशक्ति थे। चीन का अपने आसपास के इलाकों पर भी काफी प्रभाव था और आसपास के छोटे देश इसके प्रभुत्व को मानकर और कुछ नजराना देकर चैन से रहा करते थे। चीनी राजवंशों के लम्बे शासन में मंगोलिया, कोरिया, हिन्द-चीन के कुछ इलाके और तिब्बत इसकी अधीनता मानते रहे थे। भारत के भी अनेक राजवंशों और साम्राज्यों का प्रभाव उनके अपने राज्य से बाहर भी रहा था।

भारत हो या चीन, इनका प्रभाव सिर्फ राजनैतिक नहीं था-यह आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भी था। पर चीन और भारत अपने प्रभाव क्षेत्रों के मामले में कभी नहीं टकराए थे। इसी कारण दोनों के बीच राजनैतिक और सांस्कृतिक प्रत्यक्ष सम्बन्ध सीमित ही थे। परिणाम यह हुआ कि दोनों देश एक-दूसरे को ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जान सके और जब बीसवीं सदी में दोनों देश एक-दूसरे से टकराए तो दोनों को ही एक-दूसरे के प्रति विदेश नीति विकसित करने में मश्किलें आई।

(ii) ब्रिटिश शासन के उपरांत भारत-चीन संबंध (After British rule India-China relations) – अंग्रेजी राज से भारत के आजाद होने और चीन द्वारा विदेशी शक्तियों को निकाल बाहर करने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि ये दोनों मुल्क साथ आकर विकासशील दुनिया और खास तौर से एशिया के भविष्य को तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे। कुछ समय के लिए हिंदी-चीनी भाई-भाई का नारा भी लोकप्रिय हुआ। सीमा विवाद पर चले सैन्य संघर्ष ने इस उम्मीद को समाप्त कर दिया। आजादी के तत्काल बाद 1950 में चीन द्वारा तिब्बत को हड़पने तथा भारत-चीन सीमा पर बस्तियाँ बनाने के फैसले से दोनों देशों के बीच संबंध एकदम गड़बड़ हो गए। भारत और चीन दोनों मुल्क अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और लद्दाख के अक्साई चीन क्षेत्र पर प्रतिस्पर्धी दावों के चलते 1962 ई० में लड़ पड़े।

(iii) भारत-चीन युद्ध और उसके बाद (Indo-China War and later on) – 1962 ई० के युद्ध में भारत को सैनिक पराजय झेलनी पड़ी और भारत-चीन सम्बन्धों पर इसका दीर्घकालिक असर हुआ। 1976 तक दोनों देशों के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध समाप्त होते रहे। इसके बाद धीरे-धीरे दोनों के बीच सम्बन्धों में सुधार शुरू हुआ। 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध में चीन का राजनीतिक नेतृत्व बदला। चीन की नीति में भी अब वैचारिक मुद्दों की जगह व्यावहारिक मुद्दे प्रमुख होते गए। इसलिए चीन भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने के लिए विवादास्पद मामलों को छोड़ने को तैयार हो गया। 1981 ई. सीमा विवादों को दूर करने के लिए वार्ताओं की श्रृंखला भी शुरू की गई।

(iv) भारत-चीन संबंध-राजीव गांधी के काल में (Indo-China relation period Rajiv Gandhi Period) – दिसम्बर 1988 ई. में राजीव गाँधी द्वारा चीन का दौरा करने से भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के प्रयासों को बढ़ावा मिला। इसके बाद से दोनों देशों ने टकराव टालने और सीमा पर शांति और यथास्थिति बनाए रखने के उपायों की शुरूआत की है। दोनों देशों ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में परस्पर सहयोग और व्यापार के लिए सीमा पर चार पोस्ट खोलने के समझौते भी किए हैं।

(v) भारत-चीन संबंध शीत युद्ध के बाद (Indo-China relation after Cold War) – शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से भारत चीन सम्बन्धों में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। अब इनके संबंधों का रणनीतिक ही नहीं, आर्थिक पहलू भी है। दोनों ही खुद को विश्व-राजनीति की उभरती शक्ति मानते हैं और दोनों ही एशिया की अर्थव्यवस्था और राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहेंगे।

(vi) भारत-चीन के आर्थिक संबंध, 1992 से (Since 1992 India Sino-Economic relation) – 1999 से भारत और चीन के बीच व्यापार सालाना 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। इससे चीन के साथ संबंधों में नयी गर्मजोशी आयी है। चीन और भारत के बीच 1992 ई० में 33 करोड़ 80 लाख डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था जो 2006 ई० में बढ़कर 18 अरब डॉलर का हो चुका है। हाल में, दोनों देश ऐसे मसलों पर भी सहयोग करने के लिए राजी हुए हैं। जिनसे दोनों के बीच विभेद पैदा हो सकते थे, जैसे-विदेशों में ऊर्जा-सौदा हासिल करने का मसला। वैश्विक धरातल पर भारत और चीन ने विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संगठनों के संबंध में एक जैसी नीतियाँ अपनायी हैं।

(vi) सैनिक उतार-चढ़ाव एवं कूटनीतिक संबंध (Military development and diplomatic relations) – 1998 ई० में भारत के परमाणु हथियार परीक्षण को कुछ लोगों ने चीन से खतरे के मद्देनजर उचित ठहराया था लेकिन इससे भी दोनों के बीच संपर्क कम नहीं हुआ। यह सच हैं कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम में भी चीन को मददगार माना जाता है। बंगलादेश और म्यां से चीन के सैनिक संबंधों को भी दक्षिण एशिया में भारतीय हितों के खिलाफ माना जाता है, पर इनमें से कोई भी मुद्दा दोनों मुल्कों में टकराव करवा देने लायक नहीं माना जाता।

इस बात का (क प्रमाण यह है कि इन चीजों के बने रहने के बावजूद सीमा विवाद सुलझाने की बातचीत और सैन्य स्तर पर सहयोग का कार्यक्रम जारी है। चीन और भारत के नेता तथा अधिकारी अब अक्सर नयी दिल्ली और बीजिंग का दौरा करते हैं। परिवहन और संचार मार्गों की बढ़ोत्तरी, समान आर्थिक हित तथा एक जैसे वैश्विक सरोकारों के कारण भारत और चीन के बीच संबंधों को ज्यादा सकारात्मक तथा मजबूत बनाने में मदद मिली है।

प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान के संबंधों की मुख्य समस्यायें क्या हैं ?
उत्तर:
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ शांति एवं मित्रता का संबंध बनाए रखना चाहता है। भारत की स्वतंत्रता के साथ ही पाकिस्तान का जन्म एक पड़ोसी के रूप में हुआ। अपने पड़ोसी देशों से मधुर संबंध रहे तो संबंधित राज्य मानसिक चिंताओं और तनाव के वातावरण से मुक्त होकर अपने साधनों का इस्तेमाल विकास संबंधी कार्यों में लगा सकता है। भारत के पड़ोसी राज्यों से लगभग अच्छे हैं। चीन के साथ हमारे सीमा विवाद का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। पाकिस्तान के साथ बनते-बिगड़ते संबंधों के चलते हमारी परेशानियां बढ़ी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्दों में भारत अपने पड़ोसियों के साथ शांति और मित्रता से रहना चाहता है। आकार और जनसंख्या में बड़ा होने पर भी वह छोटे देशों के साथ समानता के आधार पर सहयोग करना चाहता है। भारत पाकिस्तान के मध्य संबंधों में कटुता विद्यमान है, ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

  • कश्मीर का मामला
  • शरणार्थियों का प्रश्न
  • आतंकवाद
  • नहर पानी विवाद
  • ऋण की अदायगी का प्रश्न।

ये ऐसी समस्याएँ है जिसके चलते दोनों के बीच काफी उग्रता उत्पन्न हुई हैं पाकिस्तान ने तोड़-फोड़ जासूसी सीमा अतिक्रमण, आदि कार्यवाहियों के अलावा 1947, 1965 और 1971 में आक्रमण भी किया।

प्रश्न 4.
हरित क्रांति क्या है ? हरित क्रांति के सकारात्मक एवं नकारत्मक पहलुएँ बताइए।
उत्तर:
हरित क्रांति का अर्थ : सरकारी खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो इलाके अथवा किसान खेती के मामले में पिछड़े हुए थे शुरू में सरकार ने उनको ज्यादा सहायाता देने की नीति अपनायी थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन इलाकों पर ज्यादा संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा मौजूद थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में दलील यह दी गई कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीच, उर्वरक, कीटनाशक और बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर मुहैया कराना शुरू किया। सरकार ने इस बात की भी गारंटी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जाएगा। यही उस परिघटना की शुरूआत थी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है।

हरित क्रांति के दो सकारात्मक परिणाम (Two Positive Results of Green Revolution)-

  • हरित क्रांति में धनी किसानों और बड़े भू-स्वामियों को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। हरित क्रांति से खेतीहर पैदावार में सामान्य किस्म का इजाफा हुआ। (ज्यादातर गेहूँ की पैदावार बढ़ी) और देश में खाद्यान्न उपलब्धता में बढ़ोत्तरी हुई।
  • इससे समाज के विभिन्न वर्गो और देश के अलग-अलग इलाकों के बीच ध्रुवीकरण तेज हुआ। पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे इलाके कृषि के लिहाज से समृद्ध हो गए जबकि बाकी इलाके खेती के मामले में पिछड़े रहे।

हरित क्रांति के दो नकारात्मक परिणाम (Two Negative Reseults of Green Revolution)-

  • इस क्रांति का एक बुरा परिणाम तो यह हुआ कि गरीब किसानों और भू-स्वामियों के बीच का अंत: मुखर हो उठा। इससे देश के विभिन्न हिस्सों में वामपंथी संगठनों के लिए गरीब किसानों को लामबंद करने के लिहाज से अनुकूल स्थित पैदा हुई।
  • हरित क्रांति के कारण कृषि में मंझोले दर्जे के किसानों यानी मध्यम श्रेणी के भू-स्वामित्व वाले किसानों का उद्धार हुआ। इन्हें बदलावों से फायदा हुआ था और देश के अनेक हिस्सों में ये प्रभावशाली बनकर उभरे।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations)-
(i) चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Help in Preparation of theU.N. Charter) – संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभावं के लाग करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री स. राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था।

(ii) संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations) – संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

(iii) आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems) – भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है
और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

(iv) निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India’s Co-operation to U. N. for the disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह जिम्मेदारी डाल दी गई है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुनः पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में, भारत का सहयोग (India’s Co-operation in the Political Functions of the United Nations) – भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं-

(i) कोरिया की समस्या (Korean Problems) – जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था! ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal) – जुलाई, 1956 के बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अत: उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मित्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

(iii) हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo-China) – सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

(iv) हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition of Atrocities in Hangery) – जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

(v) चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China) – विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

(vi) नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) – भारत का सदा प्रयत्न रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

(vii) रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) – जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

(viii) भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चका है (India had worked at different posts) – भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं! डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था।

अब तक छः बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ॰ नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के. पी. एस. मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।

प्रश्न 6.
भारतीय विदेश नीति के मुख्य तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति (Foreign Policy) – साधारण शब्दों में विदेश नीति से तात्पर्ग उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। उसे राजनीतिक आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करना है उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।

भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of India’s foreign policy)-
(i) गुट निरपेक्षता (Non-alignment) – दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात् विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। इसमें से एक पश्चिमी देशों का गुट था और दूसरा साम्यवादी देशों का। दोनों महाशक्तियों ने भारत को अपने पीछे लगाने के काफी प्रयास किए, परंतु भारत ने दोनों ही प्रकार से सैनिक गुटों से अलग रहने का निश्चय किया और तय किया कि वह किसी सैनिक गठबन्धन का सदस्य नहीं बनेगा, स्वतंत्र विदेश नीति अपनाएगा तथा प्रत्येक राष्ट्रय महत्व के प्रश्न पर स्वतंत्र तथा निष्पक्ष रूप से विचार करेगा।

(ii) उपनिवेशवाद व साम्राज्यवाद का विरोध (Opposition to colonialism and imperialism) – साम्राज्यवादी देश दूसरे देशों की स्वतंत्रता का अपहरण करके उनका शोषण करते हैं। संघर्ष और युद्धों का सबसे बड़ा कारण साम्राज्यवाद है। भारत स्वयं साम्राज्यवादी शोषण का शिकार रहा है। द्वितीय महायुद्ध के बाद एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के अधिकांश राष्ट्र स्वतंत्र हो गए। पर साम्राज्यवाद का अभी पूर्ण विनाश नहीं हो पाया है। भारत ने एशियाई और अफ्रीकी देशों की एकता का स्वागत किया है।

(iii) अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly relations with other countries) – भारत की विदेश नीति की अन्य विशेषता यह है कि भारत विश्व के अन्य देशों से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सदैव तैयार रहता है। भारत ने न केवल मित्रतापूर्ण सम्बन्ध एशिया के देशों से ही बढ़ाए हैं बल्कि उसने विश्व के अन्य देशों से भी सम्बन्ध बनाएं हैं। भारत के नेताओं ने कई बार स्पष्ट . घोषणा की है कि भारत सभी देशों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है।

(iv) पंचशील और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Panchsheel) – पंचशील का अर्थ है पाँच सिद्धांत। ये सिद्धांत हमारी विदेश नीति के मूल आधार हैं। इन पाँच सिद्धातों के लिए “पंचशील” शब्द का प्रयोग सबसे पहले 24 अप्रैल 1954 ई० को किया गया था। ये ऐसे सिद्धांत है कि यदि इन पर विश्व के सब देश चलें तो विश्व में शांति स्थापित हो सकती है। ये पाँच सिद्धांत निम्नलिखित हैं-

  • एक-दूसरे की अखण्डता और प्रभुसत्ता को बनाए रखना।
  • एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  • एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
  • शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत को मानना।
  • आपस में समानता और मित्रता की भावना को बनाए रखना।

पंचशील के ये पाँच सिद्धांत विश्व में शांति स्थापित करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। ये संसार के बचाव की एकमात्र आशा हैं क्योंकि आज का युग परमाणु बम और हाइड्रोजन बम का युग है। युद्ध छिड़ने से कोई नहीं बच पायेगा। अत: केवल इन सिद्धांतों को मानने से ही संसार में शांति स्थापित हो सकती है।

(v) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा (Safeguarding the national Interests) – भारत प्रारंभ से ही शांतिप्रिय देश रहा है इसलिए उसने अपने विदेश नीति को राष्ट्रीय हितों के सिद्धांत पर आधारित किया है। अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भी भारत ने अपने उद्देश्य मैत्रीपूर्ण रखे हैं। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत सरकार ने संसार के सभी देशों से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित किए हैं। इसी कारण आज भारत आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में शीघ्रता से उन्नति कर रहा है। इसके साथ-साथ वर्तमान समय में भारत के संबंध विश्व की महाशक्तियों (रूस तथा अमेरिका) एवं अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और अच्छे हैं।

प्रश्न 7.
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यवस्था से किस तरह अलग है ?
उत्तर:
आज की चीनी अर्थव्यवस्था नियंत्रित अर्थव्यस्था से निम्नलिखित प्रकार से अलग है-

  1. 1978 में तत्कालीन नेता देंग श्याआपेंग ने चीन में आर्थिक सुधारों और ‘खुले द्वार की नीति’ की घोषणा की।
  2. इस घोषणा के पश्चात् यह निश्चित किया गया कि विदेशी पूँजी और प्रौद्योगिकी के निवेश से उच्चतर उत्पादकता को प्राप्त किया जाय। बाजारमूलक अर्थव्यवस्था को अपनाने के लिए चीन ने अपना तरीका अपनाया।
  3. चीन ने शॉक थेरेपी को महत्त्व नहीं दिया बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को क्रमबद्ध तरीके से आरंभ किया।
  4. कृषि का निजीकरण कर दिया गया जिसके कारण कृषि उत्पादों तथा ग्रामीण में पर्याप्त आय हुई।
  5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निजी बचत को महत्व दिया गया जिससे ग्रामीण उद्योगों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हुई। इस प्रकार उद्योग और कृषि दोनों ही क्षेत्रों में चीन की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर तेज रही।
  6. व्यापार के नये कानून तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special Economic Zones) का निर्माण किया गया। इससे विदेशी व्यापार में अद्भुत बढ़ोत्तरी हुई।
  7. उसने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को महत्त्व दिया। फलस्वरूप उसके पास विदेशी मुद्रा का विशाल भंडार हो गया है। विदेशी मुद्रा की सहायता से वह दूसरे देशों में निवेश कर रहा है।
  8. 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल हो गया है। इस प्रकार वह दूसरे देशों में अपनी अर्थव्यवस्था खोलने में सक्षम हो गया है।

प्रश्न 8.
भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के गठन एवं क्षेत्राधिकार का परीक्षण करें।
उत्तर:
भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्याय व्यवस्था के शीर्ष स्थान पर है। मूल संविधान के अनुसार इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा सात अन्य न्यायाधीश हो सकते थे। परन्तु संविधान संशोधन द्वारा उनकी संख्या में वृद्धि कर दी गई है।

गठन (Composition) – सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 25 अन्य न्यायाधीश होते हैं। न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है। सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश वही नियुक्त किया जा सकता है जो-

  • भारत का नागरिक हो।
  • एक या एक से अधिक न्यायालयों में पाँच वर्षों तक न्यायाधीश रह चुका हो या किसी एक अथवा एक से अधिक उच्च न्यायालयों में 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  • राष्ट्रपति की दृष्टि से वह एक सुविख्यात विधिवेत्ता हो।

सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने पद पर 65 वर्ष तक बना रह सकता है। इसके पहले भी वह त्याग-पत्र देकर हट सकता है। इसके अतिरिक्त कदाचारिता या अक्षमता के आरोप में संसद के दोनों सदनों के पृथक्-पृथक् दो-तिहाई बहुमत में प्रस्ताव पारित कर किसी न्यायाधीश को पदच्युत किया जा सकता है। वर्तमान समय में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को एक लाख रुपये तथा अन्य न्यायाधीश को 90,000 रुपये मासिक वेतन एवं अन्यान्य सुविधायें प्राप्त हैं।

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction) – सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों एवं कार्यों को निम्नलिखित वर्ग में बाँटा जा सकता है-
(i) प्रारंभिक अधिकार इस श्रेणी में वे विषय आते हैं जिनकी सुनवाई केवल सर्वोच्च न्यायालय में ही होती है। ऐसे विषय निम्नलिखित हैं-

  • संघ तथा राज्य विवाद।
  • भारत सरकार, राज्य या कई राज्यों तथा एक या उससे अधिक राज्यों के बीच विवाद।
  • दो या दो से अधिक राज्यों की बीच विवाद, जिसमें कोई ऐसा प्रश्न अन्तर्निहित हो, जिस पर किसी वैध अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर हो।

इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकार के मामले भी सर्वोचच न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। परन्तु इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में भी हो सकती है।

(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय केवल उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनता है। यह अपील संवैधानिक, फौजदारी, दीवानी और कुछ विशिष्ट मामलों में सुनी जाती है।

संवैधानिक मामलों में अपील तभी सुनी जा सकती है, जबकि उच्च न्यायालय ऐसा प्रमाण दे कि इस मामले में अपील की जा सकती है, या सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा विश्वास हो जाए कि उसमें संविधान की व्याख्या का प्रश्न निहित है। फौजदारी मामलों में अपील तभी की जा सकती है जबकि-

  • उच्च न्यायालय ने अपने अधीनस्थ न्यायालय द्वारा किए गए किसी अभियुक्त को मृत्यु दंड का आदेश दिया हो। अथवा
  • उच्च न्यायालय या अपने अधीनस्थ न्यायालय में किसी फौजदारी मामले को मंगाकर अभियुक्त को प्राण दण्ड देना।

दीवानी मामले में निम्नलिखित परिस्थितियों में अपील की जा सकती है-

  • यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाण दे कि इस मामले में कानून की व्याख्या का प्रश्न निहित है।
  • उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र दे कि मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने योग्य है। कुछ विशिष्ट मामलों में सर्वोच्च न्यायालय अपील की अनुमति दे सकता है।

(iii) परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार – संविधान की धारा 143 के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह किसी भी संवैधानिक मामले अथवा समझौते या सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्न से संबंधित किसी भी विषय पर सार्वजनिक न्यायालय के समक्ष विचार के लिए रख सकता है।. सर्वोच्च न्यायालय इस पर अपनी सलाह देता है। परन्तु इस सलाह का मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।

(iv) आवत्ति संबंधी क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय अपने किसी निर्णय पर पूर्ण विचार कर सकता है और उसे परिवर्तित कर भूल सुधार कर सकता है।

(v) अभिलेख न्यायालय – सर्वोच्च न्यायालय को ऊपर वर्णित अधिकारों के अतिरिक्त भी बहुत से अधिकार प्राप्त हैं। जैसे-

यह मौलिक अधिकारों का सबसे बड़ा रक्षक है। उसकी रक्षा के लिए यह विभिन्न नियम जारी कर सकता है। यह संविधान का भी एक रक्षक है। यह संसद तथा राज्य विधान मंडल द्वारा बनाए गए ऐसे कानून को जो संविधान के विरुद्ध हैं, अवैध घोषित कर सकता है। उसे अपनी कार्य-प्रणाली के संचालन के लिए नियम बनाने का भी अधिकार है। यह अपने कर्मचारियों पर भी नियंत्रण रखता है।

प्रश्न 9.
लोक सभा के संगठन और कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
लोकसभा का गठन-लोकसभा संसद का प्रथम अथवा निम्न सदन है। इसके कुल सदस्यों की संख्या अधिकतम 550 हो सकती है। इनमें से 530 सदस्य राज्यों की जनता के द्वारा तथा 20 सदस्य केन्द्र शासित प्रदेशों की जनता के प्रतिनिधि हो सकते हैं। इसके सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। आजकल लोकसभा में 545 सदस्य हैं जिसमें से दो सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एंग्लो-इण्डियन हैं। सदस्यों के निर्वाचन में वस्यक मताधिकार का प्रयोग होता है। प्रत्येक 18 वर्ष की आयु वाले नागरिक वोट डालते हैं। 25 वर्ष की आयु वाला नागरिक जिसका नाम मतदाता सूची में हो, चुनाव लड़ सकता है। सदस्यों का चुनाव 5 वर्ष के लिए किया जाता है।

लोकसभा का कार्य :

  • लोकसभा संघ की सूची के विषयों पर कानून बनाती है। संसद में कोई विधेयक लोकसभा और राज्य सभा दोनों में अलग-अलग पारित किया जाता है, तभी राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करता है। उसके बाद वह विधेयक कानून बन जाता है।
  • वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जाते हैं तथा अंतिम रूप से इसी के द्वारा पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में लेती है।
  • लोकसभा में बहुमत दल के नेता को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री बनाया जाता है।
  • लोकसभा लोगों की सभा है। लोगों के कल्याण के लिए यहाँ अनेक प्रस्ताव पास किए जाते हैं।
  • लोकसभा मंत्रिमंडल पर नियंत्रण रखती है। वह उसके प्रति अविश्वास का प्रस्ताव भी पारित कर सकती है, जिससे मंत्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव लाकर, प्रश्न पूछकर लोकसभा मंत्रिमण्डल पर नियंत्रण रखती है।
  • राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने का अधिकार संसद को है। इस प्रकार लोकसभा इस कार्य में भी राज्यसभा की सहभागी है। वह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को भी उनके पद से हटा सकती है।

प्रश्न 10.
भारतीय संविधान की प्रस्तावना की आलोचनात्मक व्याख्या करें। इसकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर:
प्रत्येक देश की मूल विधि का अपना विशेष दर्शन होता है। हमारे देश के संविधान का मूल दर्शन (Basic Philosophy) हमें संविधान की प्रस्तावना में मिलता है, जिसे के. एम. मुंशी ने राजनीतिक जन्म-पत्री (Political Horoscope) का नाम दिया है। यद्यपि कानूनी दृष्टि से प्रस्तावना संविधान का अंग नहीं होती और इसे न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जाता है तथापि संविधान की प्रस्तावना बहुत ही महत्वपूर्ण दस्तवेज है जो संविधान के मूल उद्देश्यों, विचारधाराओं तथा सरकार के उत्तरदायित्वों पर प्रकाश डालता है।

जब संविधान की कोई धारा संदिग्ध हो और इसका अर्थ स्पष्ट न हो, तो न्यायालय उसकी व्याख्या करते समय प्रस्तावना की सहायता ले सकते हैं। वास्तव में, प्रस्तावना को ध्यान में रखकर ही संविधान की सर्वोत्तम व्याख्या की जा सकती है। प्रस्तावना से यह पता चलता है कि संविधान-निर्माताओं की भावनाएँ क्या थीं। प्रस्तावना संविधान बनानेवालों को मन की कुंजी है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना से संविधान के उद्देश्यों, लक्ष्यों, विचारधाराओं तथा हमारे स्वप्नों का स्पष्ट पता चल जाता है।

हमारे संविधान की प्रस्तावना की सर्वश्रेष्ठ प्रशंसा सर अर्नेस्ट बार्कर (Sir Earnest Barker) ने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा के सिद्धान्त पर (Principle of Social and Political Theory) में इन शब्दों में की है : “जब मैं इसे पढ़ता हूँ, तो मुझे लगता है कि इस पुस्तक का अधिकांश तर्क संक्षेप में वर्णित है, अतः इसे इसकी कुंजी कहा जा सकता है। मैं इसे देखने के लिए इसलिए भी और लालायित हूँ कि मुझे इस बात का गर्व है कि भारत के लोग अपने स्वतंत्र जीवन का प्रारम्भ राजनीतिक परम्परा के उन सिद्धान्तों के साथ कर रहे हैं, जिन्हें हम पश्चिम के लोग पाश्चात्य कहकर पुकारते हैं, परन्तु जो अब पाश्चात्य से कहीं अधिक है।” संविधान सभा के सदस्य पण्डित ठाकुर दास भार्गव ने प्रस्तावना की सराहना करते हुए कहा था, “प्रस्तावना संविधान का सबसे मूल्यवान अंग है। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान की कुंजी है। यह संविधान का रत्न है।”

(The Preamble is the most precious part of the Constitution. It is the key to the Constitution. It is the jewel in the Constitution.) कुछ वर्ष पूर्व श्री एन. ए. पालकीवाला ने सुप्रीम कोर्ट में 24, 25 और 29वें संविधानों की आलोचना करते समय कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक आवश्यक अंग है।

प्रस्तावना (Preamble) – प्रस्तावना एक वैधानिक प्रलेख में प्राक्कथन के रूप में होती है। संविधान की प्रस्तावना संविधान के अनुसार ही होती है और इसलिए भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान सभा ने संविधान पारित करने के उपरांत पारित किया। संविधान की प्रस्तावना में उन भावनाओं का वर्णन है, जो दिसम्बर, 1946 ई० को पं. जवाहरलाल नेहरू ने उद्देश्य प्रस्ताव में रखा था। उद्देश्य प्रस्ताव में कहा गया है कि संविधान सभा घोषित करती है कि इसका ध्येय व दृढ़ संकल्प भारत को सर्वप्रभुत्व सम्पन्न, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाना है और इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल प्रस्तावना में किया गया है। 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में संशोधन करके समाजवाद (Socialism) तथा धर्म-निरपेक्ष (Secular) शब्दों को प्रस्तावना में अकित किया गया। हमारे वर्तमान संविधान की प्रस्तावना इस प्रकार है।

“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष-लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने तथा समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय, विचार-अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्तवंत्रता, प्रतिष्ठा तथा अवसर की समता प्राप्त कराने और उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करनेवाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़-संकल्प होकर अपनी इस विधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, सम्वत् दो हजार छ: विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित तथा आत्मार्पित करते हैं।”

महत्व – M.P. Pylee के अनुसार, “भारतीय संविधान की प्रस्तावना आज तक अकित इस प्रकार के प्रलेखों में सर्वोच्च है। यह विचार, आदर्श और अभिव्यक्ति में अनुपम है। यह संविधान की आत्मा है। यह प्रस्तावना भारतीयों के दृढ़-संकल्प की प्रतीक है कि वे एकता प्राप्त कर ऐसे स्वतंत्र राष्ट्र का निर्माण करेंगे, जिसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृभाव की विजय हो।” वी० एन० शुक्ला (V. M. Shukla) ने प्रस्ताव के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखा है, “यह सामान्य तथा राजनीतिक, नैतिक व धार्मिक मूल्यों का स्पष्टीकरण करती है, जिन्हें संविधान प्रोत्साहित करना चाहता है।”

भारतीय संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से तीन बातों पर प्रकाश डालती है-

  1. सांविधानिक शक्ति का स्रोत क्या है,
  2. भारतीय शासन-व्यवस्था कैसी है तथा
  3. संविधान के उद्देश्य या लक्ष्य क्या हैं ?

प्रस्तावना के प्रारम्भिक शब्द यह इंगित करते हैं कि भारतीय संविधान का स्रोत जनता है। भारतीय शासन की अंतिम सत्ता जनता में निहित है तथा भारतीय जनता ने ही संविधान को अंगीकृत और अधिनियमित किया है। इसके सम्बन्ध में पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “यह संविधान राज्यों ने नहीं बनाया और न ही कुछ राज्यों के लोगों ने और न ही यह संभव है कि हमारे राज्यों में से एक अथवा उनका एक घटक इस संविधान को भंग कर दे और वे हमसे अलग हो जायँ।” Dr. Ambedkar के अनुसार, “The preamble emobides what is the desire of every member of the house, that this constitution should have its roots, its authority, its sovereignty from the people.”

प्रश्न 11.
राष्ट्रपति शासन से आप क्या समझते हैं ? अथवा, राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितियों में लगाया जाता है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की दशा में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है। ऐसा राष्ट्रपति की उद्घोषणा द्वारा संभव है। राष्ट्रपति शासन छः माह की अवधि के लिए लगाया जा सकता है, जिसे पुनः छः माह तक के लिए बढ़ाया जा सकता है। एके वर्ष की अवधि के उपरांत यह तभी लागू रह सकता है जब राष्ट्रीय आपात लागू हो तथा चुनाव आयोग यह प्रमाणित कर दे कि राज्य विधान सभा का चुनाव कराना फिलहाल संभव नहीं है। राष्ट्रपति शासन की दशा में राज्य मंत्रिमण्डल बर्खास्त कर दिया जाता है तथा राज्य की कार्यपालिकीय शक्तियाँ राष्ट्रपति के हाथ में आ जाती हैं। राज्य की विधानसभा या तो बर्खास्त कर दी जाती है या लम्बित रहती है। राष्ट्रपति शासन में राज्य के उच्च न्यायालय की शक्तियों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 12.
भारत के राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकारों का वर्णन कीजिए। अथवा, ‘भारतीय राष्ट्रपति के आपातकालीन अधिकार’ पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
जर्मनी के वाइमर संविधान के राष्ट्रपति की तरह भारत के राष्ट्रपति को भी संकटकाल में उत्पन्न कठिनाइयों का समाधान करने के लिए अत्यन्त ही विस्तृत और निरंकुश अधिकार दिए गए हैं। जब राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करेगा तब उसके हाथों में ऐसे बहुत-से अधिकार आ जाएँगै जो उसे साधारण स्थिति में प्राप्त नहीं है। संकट तीन प्रकार के हो सकते हैं-

  • युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट;
  • राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न संकट;
  • आर्थिक संकट।

(a) युद्ध या युद्ध की संभावना अथवा आंतरिक अशांति से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छे 352 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा तथा शांति युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण संकट में है, तो वह संकटकाल की घोषणा कर देश का या देश के किसी भाग का शासन अपने हाथ में ले सकता है। राष्ट्रपति इस आशय की घोषण उस दशा में भी कर सकता है, जब उसे यह विश्वास हो जाए कि युद्ध अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण देश अथवा देश के किसी भाग की सुरक्षा और शांति निकट भविष्य में संकट में पड़नेवाली है। तात्पर्य यह है कि संभावना मात्र से ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।

संविधान के 44वें संशोधन अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार में अनेक परिवर्तन किए गए; जैसे-

  • अपने मंत्रिमण्डल के निर्णय के बाद प्रधानमंत्री द्वारा लिखित सिफारिश के बाद ही राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल की घोषणा के 30 दिनों के अन्तर्गत घोषणा पर संसद के दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा छह महीने के बाद संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
  • यदि लोकसभा के 1/10 सदस्य इस आशय का प्रस्ताव रखें कि संकटकाल समाप्त हो जाना चाहिए तो 14 दिनों के अन्दर ही इस प्रस्ताव पर विचार के लिए सदन की बैठक बुलाने की व्यवस्था की जाएगी।
  • नागरिकों के व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार संकटकाल की घोषणा के बाद भी समाप्त नहीं किए जाएँगे। भारत के राष्ट्रपति ने अपने इस अधिकार का प्रयोग सर्वप्रथम 1962 ई० में किया, जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दूसरी बार इसका प्रयोग 1971 ई० में किया गया। तीसरी बार इसका प्रयोग 26 जून, 1975 को आंतरिक अशांति के लिए किया गया।

जब तक यह घोषणा लागू रहेगी तब तक

  • संघ की कार्यपालिका किसी राज्य को यह आदेश दे सकती है कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका-शक्ति का किस रीति से उपयोग करें,
  • संसद राज्यों की सूची में वर्णित विषयों पर कानून-निर्माण कर सकती है,
  • नागरिकों के कई मूल अधिकार (स्वतंत्रता-संबंधी अधिकार) स्थगित हो जाएँगे,
  • राष्ट्रपति मूल अधिकारों को कार्यान्वित करने के लिए किसी व्यक्ति के उच्च या अन्य न्यायालयों में जाने के अधिकार को स्थगित कर सकता है और
  • राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों के बीच राजस्व-विभाजन-संबंधी समस्त उपबन्ध को स्थगित कर सकता है।

(b) राज्यों में सांविधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न संकट – संविधान के अनुच्छेद 356 अनुसार, यदि राष्ट्रपति को राज्यपाल से सूचना मिले अथवा उसे यह विश्वास हो जाए कि अमुक राज्य में संविधान के अनुसार शासन चलाना असंभव हो गया है, तो वह घोषणा द्वारा उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है। ऐसी स्थिति में राज्य की कार्यपालिका-शक्ति अपने हाथों में ले सकता है, राज्य के विधानमण्डल की शक्तियाँ संसद राष्ट्रपति को दे सकती है। राष्ट्रपति कभी भी दूसरी घोषणा द्वारा इस घोषणा को रद्द कर सकता है। इस अधिकार का प्रयोग राष्ट्रपति ने अगस्त 1988 को नागालैंड में किया।

इस प्रकार की घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और दो महीने तक लागू रहेगी। लेकिन, यदि इसी बीच संसद की स्वीकृति मिल जाए, तो वह दो महीनों के पश्चात भी स्वीकृति की तिथि से छह महीने तक लागू रहेगी। संविधान के 44वें संशोधन के अनुसार अब किसी राज्य में राष्ट्रपति-शासन अधिक-से-अधिक । वर्ष रह सकता है। 1 वर्ष से अधिक तभी रह सकता है जब निर्वाचन आयोग यह सिफारिश करे कि राज्य में चुनाव करना संभव नहीं है। संविधान का 48वाँ संशोधन-अधिनियम, 1984 के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन को 1 वर्ष और बढ़ाने का प्रावधान है।

इस प्रकार की घोषणा से राष्ट्रपति राज्य से उच्च न्यायालय के अधिकारों को छोड़कर राज्य के समस्त कार्यों और अधिकारों को अपने हाथ में ले सकता है। यदि लोकसभा अधिवेशन में न हो, तो राज्य की संचित निधि में से वह व्यय करने की आज्ञा भी दे सकता है। संविधान द्वारा संघ सरकार का राज्यों की सरकारों के लिए जो निर्देश देने का अधिकार है यदि उनका पालन सुचारू रूप से न होता हो, तो राष्ट्रपति यह समझ सकता है कि राज्य का सांविधानिक तंत्र विफल हो चुका है और वह इस आशय की घोषणा निकाल सकता है।

(c) आर्थिक संकट – संविधान के अनुच्छेद 360 के अनुसार, यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो जाए कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसमें भारत अथवा उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग की आर्थिक स्थिरता एवं साख को खतरा है, तो वह इस आशय की घोषणा कर सकता है। दूसरी घोषणा के द्वारा उसे इस घोषणा को रद्द करने का भी अधिकार है। यह घोषणा संसद के दोनों सदनों के सामने रखी जाएगी और संसद की स्वीकति मिल जाए तो यह दो महीनों तक लाग रहेगी। दो महीनों तक लागू रहेगी। यदि यह घोषणा उस समय की गई है जबकि लोकसभा के भंग होने के पूर्व स्वीकृति न हुई हो, तो युद्ध अथवा आंतरिक अशांति के लिए निर्धारित व्यवस्था काम में लाई जाएगी।

इस घोषणा का प्रभाव यह होगा कि संघ की कार्यपालिका-शक्ति को राज्यों के आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल जाएगा। राष्ट्रपति को यह अधिकार होगा कि वह सरकारी नौकरों, यहाँ तक कि सर्वोच्च और न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन कम करने और राज्यों के विधानमण्डल द्वारा स्वीकृत धन-विधेयक और वित्त-विधेयक को अपनी स्वीकृति के लिए रोक रखने का आदेश दे। इसका प्रयोग नहीं हुआ है।

प्रश्न 13.
किसी राज्य के मुख्यमंत्री के अधिकार एवं कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा होती है। राज्यपाल साधारणतः उस व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त करता है जो विधान सभा में बहुमत दल का नेता हो।

अधिकार एवं कार्य- मुख्यमंत्री के निम्नलिखित अधिकार एवं कार्य हैं-

  • वह मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष है। इस हैसियत से वह इसकी बैठकों का सभापतित्व करता है और मंत्रिपरिषद के समक्ष किसी बात को विचार हेतु रखता है।
  • वह यह देखता है कि सभी मंत्री एक टीम के रूप में कार्य करें। उसे सभी प्रशासकीय विभागों के निरीक्षण तथा समन्वय का अधिकार प्राप्त है। इसका निर्णय अन्तिम होता है।
  • विधानमंडल के नेता के रूप में यह देखता है कि कोई भी विधेयक समय पर पास हो जाए, किस विषय पर और कब मतदान लिया जाए तथा किस विषय पर कर लगाया जाए।
  • राज्यपाल मुख्यमंत्री के परामर्श पर नियुक्तियाँ करता है, मंत्रियों की नियुक्ति और पदच्युति तथा. विधान सभा के विघटन के बारे में कार्य करता है।
  • मुख्यमंत्री राज्यपाल तथा मंत्रिपरिषद के बीच में सम्पर्क स्थापित करने के लिए कड़ी का काम करता है। राज्यपाल को सभी निर्णयों की सूचना देना उसका कर्तव्य है।
  • राज्य सरकार तथा सत्तारूढ़ दल का प्रमुख प्रवक्ता होने के कारण उसके शब्द तथा आश्वासन आधिकारिक माने जाते हैं।
  • राज्यपाल महाधिवक्ता तथा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करता है, लेकिन ये नियुक्तियाँ वस्तुत: मुख्यमंत्री द्वारा की जाती हैं।
  • अगर राज्यपाल चाहे तो वह मुख्यमंत्री से कह सकता है कि किसी मंत्री द्वारा व्यक्तिगत रूप से लिये गये निर्णय पर सम्पूर्ण मंत्रिमंडल फिर से विचार करे। मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत हो जाने पर उस निर्णय को राज्यपाल को मानना ही होगा।

प्रश्न 14.
भारत में साम्प्रदायिकता पर एक संक्षिप्त निबंध लिखें।
उत्तर:
साम्प्रदायिकता का आरंभ उस धारणा से होता है कि किसी समुदाय विशेष के लोगों के एक सामान्य अर्थ के अनुयायी होने के नाते राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक हित भी एक जैसे ही होते हैं। उस मत के अनुसार भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई अलग-अलग सम्प्रदायों से संबंधित हैं। साम्प्रदायिकता की शुरुआत हितों की पारस्परिक भिन्नता से होती है किंतु इसका अंत विभिन्न धर्मानुयायियों में पारस्परिक विरोध तथा शत्रुता की भावना से होता है।

साम्प्रदायवादी वह व्यक्ति है जो स्वयं अपने सम्प्रदाय के हितों या स्वार्थों की रक्षा करता है जबकि एक धर्म निरपेक्ष व्यक्ति व्यापक राष्ट्रीय हितों अथवा सभी सम्प्रदायों के हितों को ध्यान में रखता है। अर्थात् साम्प्रदायवादी हितों को बढ़ावा देने से संबंधित नीति को साम्प्रदायिकता कहा जाता है।

भाजपा को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली। 1986 के बाद उस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिंदू राष्ट्रवाद के तत्वों पर जोड़ देना शुरू किया। भाजपा ने हिंदुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिंदुओं को लामबंद करने की रणनीति अपनायी।

मुस्लिम साम्प्रदायिकता की जड़ें भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों के कारण गहरी हो चुकी थी। भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यक थे। अल्पसंख्यकों की यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति हैं कि उन्हें यह खतरा रहता है कि बहुसंख्यक लोग उन पर हावी न हो जाएँ भले ही ऐसा महसूस करने के कोई वास्तविक आधार मौजूद न हों। इस संबंध में बहुसंख्यकों का विशेष दायित्व होता है। उन्हें एक निश्चित उदारता के साथ व्यवहार करना चाहिए जिससे कि अल्पसंख्यकों का यह भय धीरे-धीरे समाप्त हो जाय। दुर्भाग्यवश हिंदू साम्प्रदायवाद ने उसके विपरीत भूमिका अदा की। उन्होंने भारत को हिंदुओं की भूमि कहा और घोषित किया कि हिंदुओं का यह एक अलग शब्द है।

भाजपा ने अयोध्या मसले को उभारकर देश में हिंदुत्व को लामबंद करने की कोशिश की। उन्होंने जनसमर्थन जुटाने के लिए गुजरात स्थित सोमनाथ से उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या (राम जन्म भूमि) तक की बड़ी रथ यात्रा निकाली।

राम मंदिर निर्माण का समर्थन कर रहे संगठन 1992 के दिसम्बर में एक कार सेवा का आयोजन किया। 6 दिसंबर, 1992 को देश के विभिन्न भागों में लोग अयोध्या पहुँचे और इन लोगों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया। मस्जिद के विध्वंस की खबर सुनते ही देश के कई भागों में हिंदू और मुसलमानों के बीच झगड़ा हुई। 1993 के जनवरी में एक बार फिर मुम्बई में हिंसा भड़की और अगले दो हफ्तों तक जारी रही। बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर गहरा धक्का लगा।

2002 के फरवरी-मार्च में गुजरात के मुसलमानों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। गोधरा स्टेशन पर घटी एक घटना इस हिंसा का तात्कालिक कारण साबित हुई। इस साम्प्रदायिक हिंसा में 1100 व्यक्ति मारे गए जो अधिकतर मुसलमान थे।

1984 के सिक्ख विरोधी दंगों के समान गुजरात के दंगों से भी यह जाहिर हुआ कि सरकारी मशीनरी साम्प्रदायिक भावनाओं के आवेग में आ सकती है। गुजरात में घटी यह घटनाएँ हमें अगाह करती है कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए धार्मिक भावनाओं को भड़काना खतरनाक हो सकता है। इससे हमारी लोकतांत्रिक राजनीति को खतरा पैदा हो सकता है।

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 4

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Objective Type Part 4 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 4

प्रश्न 1.
भारत का संविधान किस वर्ष अंगीकृत किया गया ?
(a) 1948
(b) 1949
(c) 1950
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 1950

प्रश्न 2.
भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे ?
(a) के० एम० मुंशी
(b) डॉ० बी० आर० अंबेडकर
(c) सरदार पटेल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सरदार पटेल

प्रश्न 3.
‘पंचशील’ समझौता किन देशों के बीच हस्ताक्षरित हुआ ?
(a) भारत और पाकिस्तान
(b) भारत और चीन
(c) भारत और यू० एस० ए०
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) भारत और चीन

प्रश्न 4.
भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना की शुरुआत कब हुई ?
(a) 1950
(b) 1951
(c) 1952
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1951

प्रश्न 5.
द्वितीय पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल क्या था ?
(a) 1951-1956
(b) 1956-1961
(c) 1961-1966
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 1956-1961

प्रश्न 6.
भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुआ था ?
(a) 1949
(b) 1950
(c) 1951
(d) 1952
उत्तर:
(d) 1952

प्रश्न 7.
किस पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने 1966 में ‘ताशकंद समझौते’ पर हस्ताक्षर किया था ?
(a) परवेज मुशर्रफ
(b) जनरल जिया-उल-हक
(c) अयूब खान
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अयूब खान

प्रश्न 8.
शिमला समझौता किस वर्ष हस्ताक्षरित हुआ ?
(a) 1970
(b) 1971
(c) 1972
(d) 1973
उत्तर:
(c) 1972

प्रश्न 9.
भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति कौन थे ?
(a) डॉ० एस० राधाकृष्णन
(b) डॉ० जाकिर हुसैन
(c) वी० वी० गिरि
(d) डॉ० शंकर दयाल शर्मा
उत्तर:
(a) डॉ० एस० राधाकृष्णन

प्रश्न 10.
भारत में किस अनुच्छेद के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जाता है ?
(a) अनुच्छेद 352
(b) अनुच्छेद 356
(c) अनुच्छेद 360
(d) अनुच्छेद 368
उत्तर:
(a) अनुच्छेद 352

प्रश्न 11.
जनता पार्टी के शासनकाल में भारत के प्रधानमंत्री कौन थे ?
(a) चन्द्रशेखर
(b) चरण सिंह
(c) मोरारजी देसाई
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मोरारजी देसाई

प्रश्न 12.
“संपूर्ण क्रांति” का नारा किसने दिया ?
(a) आचार्य कृपलानी
(b) राज नारायण
(c) चन्द्रशेखर
(d) जय प्रकाश नारायण
उत्तर:
(d) जय प्रकाश नारायण

प्रश्न 13.
“बीस-सूत्री कार्यक्रम’ किस प्रधानमंत्री से संबंधित है ?
(a) राजीव गाँधी
(b) इंदिरा गाँधी
(c) वी० पी० सिंह
(d) आई० के० गुजराल
उत्तर:
(b) इंदिरा गाँधी

प्रश्न 14.
बिहार की प्रथम महिला मुख्यमंत्री कौन थी ?
(a) सुचेता कृपलानी
(b) राबड़ी देवी
(c) सरोजिनी नायडू
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) राबड़ी देवी

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से कौन एक पर्यावरणविद् नहीं है ?
(a) सुनीता नारायण
(b) मेधा पाटकर
(c) आर० के० पचौरी
(d) अरविंद केजरीवाल
उत्तर:
(d) अरविंद केजरीवाल

प्रश्न 16.
डी० एम० के किस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी है ?
(a) असम
(b) नागालैण्ड
(c) केरल
(d) तमिलनाडू
उत्तर:
(d) तमिलनाडू

प्रश्न 17.
यू० एस० ए० के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कब किया गया था ?
(a) 9 सितंबर, 2001
(b) 11 सितंबर, 2001
(c) 9 सितंबर, 2002
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 11 सितंबर, 2001

प्रश्न 18.
एमनेस्टी इंटरनेशनल किससे संबंधित है ?
(a) बाल श्रम
(b) मानवाधिकार
(c) पर्यावरण
(d) शिक्षा
उत्तर:
(b) मानवाधिकार

प्रश्न 19.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई ?
(a) 1945
(b) 1950
(c) 1953
(d) 1956
उत्तर:
(a) 1945

प्रश्न 20.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय कहाँ अवस्थित है ?
(a) जेनेवा
(b) बर्लिन
(c) न्यूयार्क
(d) हेग
उत्तर:
(d) हेग

प्रश्न 21.
दक्षेस की स्थापना कब हुई थी ?
(a) 1984
(b) 1985
(c) 1986
(d) 1987
उत्तर:
(b) 1985

प्रश्न 22.
इंग्लैण्ड का वर्तमान प्रधानमंत्री कौन है ?
(a) जॉन मेजर
(b) टोनी ब्लेयर
(c) थेरेसा मे
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) थेरेसा मे

प्रश्न 23.
1975 में राष्ट्रव्यापी आंदोलन का नेतृत्व किसने दिया था ?
(a) वी० पी० सिंह
(b) जय प्रकाश नारायण
(c) अटल बिहारी वाजपेयी
(d) चन्द्रशेखर
उत्तर:
(b) जय प्रकाश नारायण

प्रश्न 24.
संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल कितने राज्य हैं ?
(a) 49
(b) 50
(c) 51
(d) 52
उत्तर:
(b) 50

प्रश्न 25.
जर्मनी का एकीकरण कब हुआ ?
(a) 1988 ई०
(b) 1989 ई०
(c) 1990 ई०
(d) 1991 ई०
उत्तर:
(d) 1991 ई०

प्रश्न 26.
इंदिरा गाँधी की हत्या किस वर्ष हुई ?
(a) 1983 ई०
(b) 1984 ई०
(c) 1985 ई०
(d) 1986 ई०
उत्तर:
(b) 1984 ई०

प्रश्न 27.
नेशनल कांफ्रेंस किस राज्य की पार्टी है ?
(a) असम
(b) जम्मू-कश्मीर
(c) नागालैण्ड
(d) त्रिपुरा
उत्तर:
(b) जम्मू-कश्मीर

प्रश्न 28.
अनुच्छेद 370 किस राज्य से संबंधित है ?
(a) जम्मू-कश्मीर
(b) बिहार
(c) केरल
(d) गुजरात
उत्तर:
(a) जम्मू-कश्मीर

प्रश्न 29.
सूचना का अधिकार कानून किस वर्ष से लागू हुआ ?
(a) 2004 ई०
(b) 2005 ई०
(c) 2006 ई०
(d) 2007 ई०
उत्तर:
(b) 2005 ई०

प्रश्न 30.
लाल बहादुर शास्त्री का निधन किस वर्ष हुआ ?
(a) 1965 ई०
(b) 1966 ई०
(c) 1967 ई०
(d) 1968 ई०
उत्तर:
(b) 1966 ई०

प्रश्न 31.
भारत में पहला परमाणु परीक्षण कब हुआ ?
(a) 1973 ई०
(b) 1974 ई०
(c) 1975 ई०
(d) 1976 ई०
उत्तर:
(b) 1974 ई०

प्रश्न 32.
भारत में वर्तमान में कुल कितने संघशासित प्रदेश हैं ?
(a) 6
(b) 7
(c) 8
(d) 9
उत्तर:
(b) 7

प्रश्न 33.
1952 में किस संगठन की स्थापना हुई थी ?
(a) योजना आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) राष्ट्रीय विकास परिषद्
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) वित्त आयोग

प्रश्न 34.
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत वित्तीय आपातकाल लगाया जाता है ?
(a) अनुच्छेद 352
(b) अनुच्छेद 356
(c) अनुच्छेद 360
(d) अनुच्छेद 364
उत्तर:
(c) अनुच्छेद 360

प्रश्न 35.
गुट निरपेक्ष देशों का शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में कब आयोजित किया गया था ?
(a) 1982 ई०
(b) 1983 ई०
(c) 1984 ई०
(d) 1985 ई०
उत्तर:
(b) 1983 ई०

प्रश्न 36.
भारत में नई आर्थिक नीति की शुरुआत किस प्रधानमंत्री ने की ?
(a) मनमोहन सिंह
(b) नरसिम्हा राव
(c) राजीव गाँधी
(d) वी० पी० सिंह
उत्तर:
(a) मनमोहन सिंह

प्रश्न 37.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की-मून किस देश के हैं ?
(a) अमेरिका
(b) ब्रिटेन
(c) चीन
(d) दक्षिण कोरिया
उत्तर:
(d) दक्षिण कोरिया

प्रश्न 38.
किस संविधान संशोधन के द्वारा नगर-निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया ?
(a) 72वाँ
(b) 73वाँ
(c) 74वाँ
(d) 75वाँ
उत्तर:
(c) 74वाँ

प्रश्न 39.
सर्वप्रथम किस राज्य में महिलाओं को पंचायतों में पचास प्रतिशत आरक्षण दिया गया?
(a) प० बंगाल
(b) गुजरात
(c) बिहार
(d) तमिलनाडु
उत्तर:
(c) बिहार

प्रश्न 40.
अनुसूचित जाति संघ की स्थापना किसने की थी ?
(a) बी० आर० अम्बेदकर
(b) कांशी राम
(c) मायावती
(d) राम विलास पासवान
उत्तर:
(a) बी० आर० अम्बेदकर

प्रश्न 41.
भारत में वर्तमान में कुल कितने राष्ट्रीय दल हैं ?
(a) 4
(b) 5
(c) 6
(d) 7
उत्तर:
(b) 5

प्रश्न 42.
कारगिल युद्ध कब हुआ था ?
(a) 1997 ई०
(b) 1998 ई०
(c) 1999 ई०
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 1999 ई०

प्रश्न 43.
नीचे के देशों में आसियान का सदस्य कौन नहीं है ?
(a) इण्डोनेशिया
(b) फिलीपिन्स
(c) सिंगापुर
(d) श्रीलंका
उत्तर:
(a) इण्डोनेशिया

प्रश्न 44.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के संस्थापक कौन थे ?
(a) लियाकत अली
(b) ए० ओ० ह्यूम
(c) एस० एन० बनर्जी
(d) जी० के० गोखले
उत्तर:
(b) ए० ओ० ह्यूम

प्रश्न 45.
1975 में आपातकाल की घोषणा करनेवाले भारतीय राष्ट्रपति का नाम है
(a) नीलम संजीव रेड्डी
(b) ज्ञानी जैल सिंह
(c) जाकीर हुसैन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) जाकीर हुसैन

प्रश्न 46.
6 दिसंबर, 1992 को निम्न में से कौन-सी घटना हुई ?
(a) गोधरा काण्ड
(b) बाबरी मस्जिद का विध्वंस
(c) जनता दल का गठन
(d) रा० ज० ग० सरकार का गठन
उत्तर:
(b) बाबरी मस्जिद का विध्वंस

प्रश्न 47.
शीत युद्ध के संबंध में निम्न में से कौन-सा कथन सही नहीं है ?
(a) दो महाशक्तियों के बीच विचारों की होड़
(b) अमेरिका सोवियत संघ और उनके मित्र देशों के बीच प्रतिस्पर्धा
(c) नि:शस्त्रीकरण की होड़
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ युद्ध में सम्मिलित
उत्तर:
(c) नि:शस्त्रीकरण की होड़

प्रश्न 48.
भारतीय अर्थव्यवस्था किसे कहते हैं ?
(a) निजी अर्थव्यवस्था
(b) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
(c) मिश्रित अर्थव्यवस्था
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) मिश्रित अर्थव्यवस्था

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 3

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 3 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
‘द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा।’ तथ्य देकर प्रमाणित करें।
उत्तर:

  1. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ महाशक्ति के रूप में उभरा। अमेरिका को छोड़ दें तो सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था शेष विश्व की तुलना में कहीं ज्यादा विकसित थीं।
  2. सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी। उसके पास विशाल ऊर्जा-संसाधन था जिसमें खनिज, तेल, लोहा, और इस्पात तथा मशीनरी उत्पाद शामिल हैं।
  3. सोवियत संघ के दूर-दराज के इलाके भी आवागमन की सुव्यवस्थित और विशाल प्रणाली के कारण आपस में जुड़े हुए थे।
  4. सोवियत संघ का घरेलू उपभोक्ता-उद्योग भी बहुत उन्नत था और पिन से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन वहाँ होता था। यद्यपि सोवियत संघ के उपभोक्ता उद्योग में बनने वाली वस्तुएँ गुणवत्ता के लिहाज से पश्चिमी देशों के स्तर की नहीं थीं।
  5. सोवियत संघ की सरकार ने अपने सभी नागरिकों के लिए न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित कर दिया था। सरकार बुनियादी जरूरत की चीजें मसलन स्वास्थ्य-सुविधा, शिक्षा बच्चों की देखभाल तथा लोक-कल्याण की अन्य चीजें रियायती दर पर मुहैया कराती थी। बेरोजगारी नहीं थी।
  6. मिल्कियत का प्रमख रूप राज्य का स्वामित्व था तथा भमि और अन्य उत्पादक संपदाओं पर स्वामित्व होने के अलावा नियंत्रण भी राज्य का ही था।
  7. हथियारों की होड़ में सोवियत संघ ने समय-समय पर संयुक्त राज्य अमेरिका को बराबर की टक्कर दी।

प्रश्न 2.
अमेरिका द्वारा 2003 ई० में इराक पर किए गए आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
इराक पर अमेरिकी आक्रमण (2003) (American’s attack on Iraq)-
1. 2003 ई० के 19 मार्च को अमेरिका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के कूटनाम से इराक पर सैन्य-हमला किया। अमेरिकी अगुआई वाले ‘कॉअलिशन ऑव वीलिंग्स (आकांक्षियों के महाजोट)’ में 40 से अधिक देश शामिल हुए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इराक पर इस हमले की अनुमति नहीं दी थी। दिखावे के लिए कहा गया कि सामूहिक संहार के हथियार (वीपंस ऑव मास डेस्ट्रक्शन) बनाने से रोकने के लिए इराक पर हमला किया गया है। इराक में सामूहिक संहार के हथियारों की मौजूदगी के कोई प्रमाण नहीं मिले। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि हमले के मकसद कुछ और ही थे, जैसे इराक के तेल-भंडार पर नियंत्रण और इराक में अमेरिका की मनपसंद सरकार कायम करना।

2. सद्दाम हुसैन की सरकार तो चंद रोज में ही जाती रही, लेकिन इराक को ‘शांत’ कर पाने में अमेरिका सफल नहीं हो सका है। इराक में अमेरिका के खिलाफ एक पूर्णव्यापी विद्रोह भड़क उठा। अमेरिका के 3000 सैनिक इस युद्ध में खड़े रहे जबकि इराक के सैनिक कहीं ज्यादा बड़ी संख्या में मारे गये। एक अनुमान के अनुसार अमेरिकी हमले के बाद से लगभग 50,000 नागरिक मारे गये हैं। अब यह बात बड़े व्यापक रूप में मानी जा रही है कि एक महत्त्वपूर्ण अर्थ में इराक पर अमेरिका हमला सैन्य और राजनीतिक धरातल पर असफल सिद्ध हुआ है।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत (Principles of United Naitons)- संयुक्त राष्ट्र अपने उद्देश्यों की सिद्धि के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों के अनुसार कार्य करता है-

  1. संयुक्त सभी सदस्यों की प्रभुसत्ता और समानता के सिद्धांत में विश्वास रखता है।
  2. सभी सदस्य राष्ट्रों का यह कर्तव्य है कि इस चार्टर के अनुसार उनकी जो जिम्मेदारियाँ हैं, वे ईमानदारी के साथ निभाएँ।
  3. सभी सदस्य राष्ट्र अपने विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण तरीकों से करें।
  4. अन्य राष्ट्रों की अखण्डता और राजनीतिक स्वाधीनता का आदर करें।
  5. संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार कोई कार्यवाही करे तो सभी सदस्य राष्ट्रों को उसकी सहायता करनी चाहिए।
  6. संयुक्त राष्ट्र उन मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा जो अनिवार्य रूप से किसी राज्य के आन्तरिक अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

प्रश्न 4.
पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कब और कहाँ हुआ था? यह कौन-सी तीन बातों की परिणति (Culnination) था ?
उत्तर:
I. पहला गुट निरपेक्ष सम्मेलन 1961 ई. में बेलग्रेड में हुआ था।
II. पहला गुटनिरपेक्ष सम्मेलन कम-से-कम निम्नलिखित तीन बातों की परिणति था-

  1. पाँच देशों (भारत, मिस्र, यूगोस्लाविया, इण्डोनेशिया तथा घाना) के बीच सहयोग।
  2. शीतयुद्ध का प्रसार और इसके बढ़ते हुए दायरे को रोकना आदि।
  3. अंतर्राष्ट्रीय फलक (Arena) पर कई नव स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्रों का नाटकीय उदय हो चुका था। सन् 1960 ई० तक 16 नये अफ्रीकी देश संयुक्त राष्ट्र (UNO) में सदस्यता ग्रहण कर चुके थे।

प्रश्न 5.
भारत में नियोजन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
नियोजन अनिवार्यतः एक प्रयास है ताकि समस्याओं का विवेकशील समाधान किया जा सके। आर्थिक नियोजन का अर्थ है समुदाय के उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी तरीके एक उपयोग करना। तेजी से आर्थिक विकास करना तथा रोजगार का विस्तार करना, आय व धन की असमानता को कम करना, आर्थिक सत्ता के सकेन्द्रण को रोकना तथा एक स्वतंत्र व समान समाज के मूल्यों व रुझान की रचना ही हमारी योजनाओं के लक्ष्य रहे हैं।

प्रश्न 6.
काँग्रेस सिंडिकेट का अर्थ बतलावें।
उत्तर:
यह काँग्रेस के पुराने व वरिष्ठ नेताओं का गुट था जिसने इंदिरा गाँधी को सत्ता से वंचित करने हेतु उन्हें दल की प्राथमिक सदस्यता से वंचित कर दिया।

प्रश्न 7.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी एवं दक्षिणी अफ्रीका के अफ्रीकन नेशनल काँग्रेस पार्टी के समानताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी एवं दक्षिणी अफ्रीका के अफ्रीकन नेशनल काँग्रेस पार्टी की समानताएँ-

  • अखिल राष्ट्रीय स्तर का चरित्र
  • राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत संगठन।

प्रश्न 8.
निषेधाधिकार (Veto) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् में कुल 15 सदस्य होते हैं। इनमें 5 स्थायी सदस्य तथा 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। प्रक्रिया सम्बन्धी विषयों (Procedural matters) पर कोई निर्णय तभी लिया जाएगा जब 15 में से 9 सदस्यों के सकारात्मक मत होंगे परंतु अन्य महत्त्वपूर्ण मामलों में जिनमें आर्थिक या सैनिक कार्यवाही शामिल है, किसी निर्णय के लिए पाँचों स्थायी सदस्यों का मत भी अनिवार्य है। इस प्रकार किसी भी स्थायी सदस्य का नकारात्मक मत होने की स्थिति में सुरक्षा परिषद् कोई सक्षम कार्यवाही नहीं कर सकेगी। इसी को निषेधाधिकार (Veto) कहा गया है।

प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रधान अंग बताइए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र के प्रधान अंग (Main organs of U.N.)-

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा,
  • सुरक्षा परिषद्,
  • आर्थिक व सामाजिक परिषद्,
  • न्यास-परिषद्,
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय,
  • सचिवालय।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र के शांति स्थापना के प्रयासों में भारत के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय सेना को शांति स्थापित करने एवं युद्ध विराम को सुनिश्चित बनाने के लिए कोरिया भेजा गया। भारतीय सेना ने प्राय: संयुक्त राष्ट्र की सभी प्रमुख कार्यवाहियों में भाग लिया। न केवल प्रारंभिक वर्षों में ही भारत ने कोरिया, मिस्र और कांगो जैसी शांति निर्माण कार्यवाहियों में भाग लिया अपितु पिछले वर्षों में भी भारत ने सोमालिया, अंगोला और रंवाडा में इसी प्रकार की कार्यवाहियों में भाग लिया।

भारत के ले० जनरल सतीश नाम्बियार ने बाल्कन युद्ध में संयुक्त राष्ट्र सेना की कमान सँभाली। भारत ने संयुक्त राष्ट्र की शांति निर्माण सेना में स्वेज नहर संकट, कांगो, अंगोला, नामीबिया, गाजा, कम्बोडियो, युगोस्लाविया, लेबनान में अपनी टुकड़ियाँ भेज कर अंतर्राष्ट्रीय शांति पुनःस्थापित करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रश्न 11.
रंगभेद क्या है ? संयुक्त राष्ट्र द्वारा रंगभेद के विरुद्ध किये गये दो उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रंगभेद नस्ल आधारित भेद-भाव का निकृष्टतम रूप है। यह मानवता और लोकतंत्र विरोधी है-

  1. संयुक्त राष्ट्र ने 1954 में दक्षिण अफ्रीका की रंगभेद समर्थक सरकार के विरुद्ध राजनीतिक प्रतिबंध लगाये।
  2. 1956 में संयुक्त राष्ट्र ने रोडेशिया के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगाये।

प्रश्न 12.
विश्व स्वास्थ्य संघ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
विश्व स्वास्थ्य संघ (W.H.O.) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष संस्था है इसकी स्थापना 1948 ई० में की गई थी। इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य सभी देशों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करना है। इसका मुख्य कार्यालय जेनेवा (स्विट्जरलैंड) में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नई-नई औषधियों की खोज की है।
  2. इसने नशीली वस्तुओं के प्रयोग की रोकथाम के लिए अनेक उपाय किये हैं।
  3. इसने विश्व में हैजे को खत्म किया है।
  4. यह तपेदिक को खत्म करने के लिए प्रयत्नशील है।
  5. इसने संसार के देशों को बी० सी० जी० सिलिन के टीके भिजवाये हैं।

प्रश्न 13.
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.) संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष संस्था है। इसकी स्थापना 1946 ई० में हुई। इसका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक न्याय के लिए प्रयास करना और श्रमिकों की दशा में सुधार लाना है। इस संस्था के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. विभिन्न राष्ट्रों के मजदूरों के वेतन तथा काम करने का समय आदि निश्चित करना।
  2. मजदूरों में प्रचलित बेकारी को रोकना।
  3. बच्चों तथा स्त्रियों को शोषण से बचाना।
  4. मिल मालिकों तथा मजदूरों के बीच हुए झगड़ों को सुलझाना।
  5. मजदूरों के जीवन-स्तर को उन्नत करना तथा मजदूरों की भलाई के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन करना।

प्रश्न 14.
सुरक्षा क्या है ?
उत्तर:
सुरक्षा का बुनियादी अर्थ है खतरे से आजादी। मानव का अस्तित्व और किसी देश का जीवन खतरों से भरा होता है। तब क्या इसका मतलब यह है कि हर तरह के खतरे को सुरक्षा पर खतरा माना जाय ?

प्रश्न 15.
युद्ध का क्या अर्थ है ? यह क्या देता है ?
उत्तर:
युद्ध का अर्थ है- विनाश। युद्ध देता है-सभी को विध्वंस, मृत्यु, आपात जन धन, हानि पीछे छोड़ देता है विकलांग, विधवाएँ, अनाथ बच्चे, भय, भयंकर बीमारियाँ और कई बार तो शहरों, गाँवों और लोगों का नामोनिशान भी मिटा देता है। युद्ध वस्तुतः किसी को सुरक्षा नहीं देता।

प्रश्न 16.
आचार्य नरेन्द्र देव कौन थे ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
आचार्य नरेन्द्र देव का जन्म 1889 ई० में हुआ। वह देश के स्वतंत्रता सेनानी थी। उन्होंने सोशलिस्ट काँग्रेस की स्थापना की। स्वराज्य के लिए संघर्ष के आंदोलन के दौरान वह अनेक बार जेल गए। वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे। उन्होंने देश में किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया। वह बौद्ध धर्म के ज्ञाता और विद्वान थे। देश की आजादी मिलने के बाद पहले तो उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी और कालांतर में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी को नेतृत्व प्रदान किया। 1956 ई० में उन्होंने अपना दिवंगत शरीर छोड़ दिया।

प्रश्न 17.
बाबा साहब अबेंडकर पर अति संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
डॉ० भीमराव अंबेडकर (1891-1956)- इनका जन्म 1891 ई० में एक महर खानदान में हुआ था। इन्होंने इंग्लैंड एवं अमेरिका से वकालत की शिक्षा ग्रहण की थी। 1923 ई० में इन्होंने वकालत प्रारंभ की। 1926 से 1934 ई० तक ये बंबई विधान परिषद् के सदस्य रहे। इन्होंने गोलमेज सम्मेलन में भी भाग लिया। 1942 ई० में यह वायसराय के कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य नियुक्त किए गए। इन्हें भारत की संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इन्हें आजाद भारत का न्यायमंत्री भी बनाया गया। इन्होंने हिंदू कोड बिल पास करवाया एवं संविधान में हरिजनों को आरक्षण दिलवाया। 1956 ई० में इनका निधन हो गया।

प्रश्न 18.
सी. राजगोपालाचारी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
सी० राजगोपालाचारी का जन्म 1878 ई० में हुआ। वे काँग्रेस के वरिष्ठ नेता और साहित्यकार थे। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के वह प्रिय करीबी कार्यकर्ता थे। वह देश के लिए निर्माण करने वाली संविधान सभा के सदस्य रहे। 1948 से 1950 ई० तक उन्हें स्वतंत्र भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल बनने का सौभाग्य मिला। देश की स्वंत्रता के बाद देश की आंतरिक सरकार में वह मद्रास के मुख्यमंत्री बने। वह भारत रत्न से सम्मानित पहले भारतीय थे। उन्होंने 1959 में स्वतंत्र पार्टी का गठन किया और 1972 ई० में उनका स्वर्गवास हो गया।

प्रश्न 19.
वैश्वीकरण की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
वैश्वीकरण वह प्रक्रम है जिसमें हम अपने निर्णयों को दुनिया के एक क्षेत्र में क्रियान्वित करते हैं जो दुनिया के दूरवर्ती क्षेत्र में व्यक्तियों और समुदायों के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 20.
नव उपनिवेशवाद क्या है ?
उत्तर:
नव उपनिवेशवाद परंपरागत उपनिवेशवाद का एक नया रूप है। इसके अंतर्गत एक समृद्ध तथा शक्तिशाली देश किसी कमजोर देश पर सीधे आर्थिक शोषण करने के बजाए उसका अप्रत्यक्ष रूप से शोषण करता है।

प्रश्न 21.
वैश्वीकरण के संदर्भ में भारत की क्या भूमिका रही है ?
उत्तर:
24 जुलाई, 1991 ई० को नयी औद्योगिक नीति घोषित किये जाने के साथ ही भारत में आर्थिक सुधारों तथा उदारीकरण नीतियों का सूत्रपात हुआ था। जनवरी 1995 ई० में भारत ने प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया। उसी दिन विश्व व्यापार संगठन की स्थापना हुई। 26 सितम्बर 2000 ई० के प्राग में विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वार्षिक बैठक में मुद्रा कोष के प्रबन्धक, विश्व बैंक के अध्यक्ष तथा भारत के वित्तमंत्री यशवन्त सिन्हा ने विश्व के गरीबों का जीवन स्तर उठाने का आह्वान किया तथा विश्व व्यापीकरण (वैश्वीकरण) अपनाने पर बल दिया।

प्रश्न 22.
उदारीकरण क्या है ?
उत्तर:
उदारीकरण का अर्थ है अर्थव्यवस्था से प्रतिबंधों को समाप्त करके उसे और अधिक प्रतिस्पर्धात्मक स्वरूप प्रदान करना, उदाहरण के नई आर्थिक नीति के फलस्वरूप निजी क्षेत्रों को और अधिक सुविधाएँ प्रदान की गई है।

इस प्रकार उदारीकरण हिन्दी भाषिक शब्द उदार से बना है जिससे अभिप्राय है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को बंद तथा नियंत्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर एक ऐसी अर्थव्यवस्था का स्वरूप प्रदान करना जिसमें निजी क्षेत्रों का पूर्ण विकास हो सके।

अर्थव्यवस्था के प्रतिबंधित क्षेत्रों को भी निजी क्षेत्रों के अंतर्गत लाया जाए और निजीकरण की प्रक्रिया को अपनाते हुए सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को निजीकरण के अवसर उपलब्ध कराये जाएँ।

प्रश्न 23.
सुशासन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
शासन का सुन्दर, स्वच्छ, पारदर्शी तथा जन हितकारी रूप ही सुशासन है। समाज, राजनीति, अर्थ तथा सांस्कृतिक जीवन में व्याप्त विषमताओं की समाप्ति, जटिलताओं का सरलीकरण तथा वैयक्तिक स्तर पर सुखद अनुभूति प्रदान करना ही सुशासन है। सैद्धांतिक रूप में सुशासन एक अवधारणा है, जो शासन को व्यावहारिक, विस्तृत तथा प्रभावकारी बनाता है। लोककल्याणकारी राज्य के समर्थक जन-कल्याण को प्रभावी रूप में सम्पन्न करने वाली शासन को ही सुशासन का नाम दिया जाता है। यह एक सतत प्रक्रिया है।

संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में सुशासन की स्थापना जैसे अवधारणा को बहुआयामी माना जाता है। इसके द्वारा न केवल कानून के शासन को लागू किया जाता है बल्कि बिना किसी के दबाव सबको समान कानूनी संरक्षण भी प्रदान किया जाता है। लोकतंत्र में इसका संबंध आधुनिकीकरण से भी है।

प्रश्न 24.
राजनैतिक न्याय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
राजनैतिक न्याय का अर्थ राज्य सत्ता एवं जनता के आपसी संबंधों से लिया जाता है। फ्रांसीसी राज्य क्रांति, अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा एवं मानव अधिकारों की घोषणा में भी इस पर बल दिया गया है। मानव अधिकारों की घोषणा में स्पष्ट कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश की शासन व्यवस्था में हाथ बँटाने का अधिकार है”। स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति कों बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक अधिकार प्राप्त करना ही राजनीतिक न्याय है। राजनीतिक न्याय तभी संभव है जब शासन की शक्ति शासितों की इच्छा या स्वीकृति पर आधारित हों। इसके लिए आवश्यक है कि लोकतंत्र में वयस्क मताधिकार पर आधारित स्वच्छ प्रशासन।

प्रश्न 25.
‘पीली क्रांति’ क्या है ?
उत्तर:
तेलहन की फसल में अभूतपूर्व उत्पादन लक्ष्य रखने हेतु इसे पीली क्रांति नाम दिया गया। भारत तेल उत्पादन के मामले में आत्म निर्भर हुआ है। यहाँ तेलहनी पौधों के अच्छी उपज के लिए विशेष रूप में किसानों को अच्छी बीज के साथ-साथ उसमें उपयुक्त होने वाली कीटनाशक दवाओं की भी मुख्य रूप से उपलब्धता पर ध्यान दिया गया है। यहाँ तेलहनी पौधों में मुख्यतः सरसों, तीसी, राई, कुसुम, सूर्यमुखी आदि अनेक हैं जिसमें से तेल को निकाला जाता है।

प्रश्न 26.
शीत युद्ध क्या है ?
उत्तर:
शीत युद्ध हथियार विहीन युद्ध है। जब दो देश आपस में वैचारिक मतभेद उत्पन्न कर लेते हैं तो इसे शीत युद्ध कहा जाता है। भारत ने सदैव शीत युद्ध की निन्दा की तथा अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा व सहयोग का समर्थन किया। धीरे-धीरे इस नीति के निहितार्थ स्पष्ट हुए जिनसे भारत को विश्व में अपनी महत्त्वपूर्ण पहचान बनाने का अवसर मिला। शीत युद्ध के दौर से मुख्यरूप से आज भारत-चीन, भारत-पाकिस्तान गुजर रहे हैं। इस युद्ध में सीमा पर जवानों को गोली चलानी नहीं पड़ती बल्कि इसमें दो देशों के बीच आपसी खींचातानी संचार के माध्यम से होता है।

प्रश्न 27.
एक-दलीय व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जिस राजनीतिक व्यवस्था में केवल एक राजनीतिक दल हो उसे एक दलीय व्यवस्था कहा जाता है। विश्व में सिर्फ भारत ही एक मात्र ऐसा देश नहीं है जो एक दल के प्रभुत्व से गुजरा हो। विश्व के अनेक देशों में एक दल का शासन एवं प्रभुत्व रहा है। लेकिन इन देशों में एक दलीय प्रभुत्व और स्वतंत्रता के बाद भारत में एक दलीय कांग्रेस के प्रभुत्व के बीच एक बड़ा भारी अंतर है। विश्व के अन्य देशों में एक दल का प्रभुत्व लोकतंत्र के मूल्य पर स्थापित हुआ है।

प्रश्न 28.
क्षेत्रीयता अथवा क्षेत्रवाद का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
क्षेत्रवाद किसी क्षेत्र विशेष के लोगों की उस प्रवृत्ति से संबंधित है जो उनमें अपने क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक अथवा राजनीतिक शक्तियों की वृद्धि करने के लिए प्रेरित करती है। इस दृष्टि से क्षेत्र देश का वह भू-भाग होता है जिसमें रहने वाले लोगों के समान उद्देश्य व आकांक्षाएँ होती हैं। इस प्रकार जब किसी भौगोलिक दृष्टि से पृथक् भूखंड में रहने वाले मानव समूह में धार्मिक, सांस्कृतिक भाषायी, आर्थिक-सामाजिक, राजनीतिक तथा ऐतिहासिक आदि दृष्टि से उसी प्रकार के अन्य भूखंड से पृथकता उत्पन्न हो जाती है तथा स्वयं की एकरूपता व समानता का विकास हो जाता है तब उस मानव समूह में अपने क्षेत्रों के हितों के प्रति पैदा हुई जागरूकता को क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद कहा जाता है।

प्रश्न 29.
पंचशील संधि के पांच सिद्धांत कौन-से हैं ?
उत्तर:
पंचशील के पांच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

  • एक दूसरे की सम्प्रभुता व प्रादेशिक अखण्डता का आदर करना,
  • आक्रमण न करना,
  • एक-दूसरे के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना,
  • समानता और परस्पर लाभ,
  • शांतिपूर्ण सहअस्तित्व।

प्रश्न 30.
यूरोपीय संघ का निर्माण किन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया गया?
उत्तर:
यरोपीय संघ के प्रमख उद्देश्य हैं- आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना, अपने क्षेत्र का सतत व संतुलित विकास करना, क्षेत्र में स्थायित्व को बनाये रखना, जीवन स्तर को ऊँचा उठाना तथा सदस्य राज्यों के बीच निकट आर्थिक संबंध स्थापित करना। सभी सदस्य राज्यों को इस संधि की परिषद के आदेश का पालन करना अनिवार्य है।

प्रश्न 31.
शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा बनाए गए किन्हीं दो सैन्य संगठनों के नाम लिखिए। सैन्य संधियाँ किस सिद्धांत पर आधारित थीं?
उत्तर:
1. नाटो- 1949 में अमरीका के नेतृत्व में साम्यवाद को रोकने के लिए नाटो का गठन किया गया था। अब नाटो के सदस्यों को ‘शांति का भागीदार’ कहा जाता है।

2. वारसा- सोवियत संघ के नेतृत्व में 1955 में वारसा संधि का गठन हुआ इसका उद्देश्य सदस्य देशों को अमेरिका प्रभुत्व से बचाना था। इसमें पोलैण्ड, हंगरी, पूर्वी जर्मनी, बुल्गारिया आदि देश शामिल थे। ये सैन्य संधियाँ आत्मरक्षा के लिए की गई थी। सदस्य राष्ट्र अपने आर्थिक, राजनीतिक सामरिक हितों को देखते हुए सैनिक गुटों में शामिल हुए। ये संधियाँ सामूहिक सुरक्षा पर आधारित थी।

प्रश्न 32.
प्रतिद्वंद्विता की भावना शीतयुद्ध के लिए कैसे उत्तरदायी हैं ?
उत्तर:
शीतयुद्ध से हमारा अभिप्राय ऐसी अवस्था से है जब दो या दो से अधिक देशों के बीच वातावरण उत्तेजित व तनावपूर्ण हो किंतु वास्तविक रूप में कोई युद्ध न हो रहा हो। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सोवियत संघ अमेरिका के बाद दूसरी बड़ी ताकत बनकर उभरा। हालांकि युद्ध के दौरान ब्रिटेन, अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर फासीवादी ताकतों को हराया था। लेकिन युद्ध के बाद उनमें टकराव और तनाव उभरने लगे और उनके संबंध बिगड़ने लगे। इसी टकराव व तनावपूर्ण स्थिति को शीतयुद्ध के नाम से जाना जाता है।

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 2

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 2 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 2

प्रश्न 1.
विदेश नीति के चार अनिवार्य कारक बताइए।
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति निश्चित करने के लिए निम्नलिखित चार कारक अनिवार्य माने जाते हैं-

  1. राष्ट्रीय हित
  2. राज्य की राजनीतिक स्थिति
  3. पड़ोसी देशों से संबंध
  4. अंतर्राष्ट्रीय राजनैतिक वातावरण।

प्रश्न 2.
विदेश नीति के लक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विदेश नीति के मुख्यतः दो लक्ष्य होते हैं-

  1. राष्ट्रीय हित (National interests)- राष्ट्रीय हितों में आर्थिक क्षेत्र में राष्ट्रीय विकास, राजनीतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय स्थिरता या स्वामित्व, रक्षा क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा आदि का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
  2. विश्व समस्याओं के प्रति दृष्टिकोण (Attitudes towards international problems)- इनमें प्रमुख रूप से विश्वशांति, राज्यों का सहअस्तित्व, राज्यों का आर्थिक विकास, मानव अश्किार आदि शामिल है।

प्रश्न 3.
1960 के दशक में किस संकट को ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ के रूप में जाना गया ?
उत्तर:
क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा परमाणु हथियार तैनात करने की भनक अमरीकियों को तीन हफ्ते बाद लगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी और उनके सलाहकार ऐसा कुछ भी करने से हिचकिचा रहे थे जिससे दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध शुरू हो जाए। लेकिन वे इस बात को लेकर दृढ़ थे कि खुश्चेव क्यूबा से मिसाइलों और परमाणु हथियारों को हटा लें। कैनेडी ने आदेश दिया कि अमेरिकी जंगी बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोका जाए।

प्रश्न 4.
जवाहरलाल नेहरू कौन थे ? विश्व नेता के रूप में उनकी भूमिका संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
जवाहरलाल नेहरू (1889-1964) भारत के पहले प्रधानमंत्री (1947-64) थे। वे विश्व में शांति के महान दूत के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने अफ्रीकी एशियाई एकता, अनौपनिवेशीकरण और निरस्त्रीकरण के प्रयास किए और विश्व-शांति के लिए शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की वकालत की।

प्रश्न 5.
जोसेफ ब्रॉज टीटो कौन थे ? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
जोसेफ ब्रॉज टीटो (1892-1980) यूगोस्लाविया के शासक (1940-80) रहे। वह दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी के खिलाफ लड़े थे। उन्होंने साम्यवादी, सोवियत संघ से दूरी बनाए रखी तथा यूगोस्लाविया में एकता कायम की वह गूट निरपेक्षता आंदोलन के समर्थक थे।

प्रश्न 6.
भारत को सुरक्षा परिषद में स्थाई सदस्यता के लिए कारण बतावें।
उत्तर:
जब 1945 में संयुक्त राष्ट्रसंघ बना था, उसमें 51 सदस्य थे अब उसकी संख्या 1992 हो गई। अतः सुरक्षा परिषद का विस्तार होना चाहिए। 1945 में उसमें 11 सदस्य थे, 1965 में यह संख्या 15 हो गई। अब संख्या बढ़नी चाहिए जिसमें जर्मनी, जापान, ब्राजील व भारत जैसे राज्यों को स्थायी स्थान मिलना चाहिए।

भारत के दावे के पक्ष में तीन बिन्दु प्रस्तुत किए जा सकते हैं-

  1. भारत विश्व का विशालतम लोकतंत्र है।
  2. भारत विश्व का सबसे बड़ा विकासशील देश है।
  3. भारत गुट निरपेक्ष आंदोलन का अगुआ रहा है।

प्रश्न 7.
महाराष्ट्र में दलित पैंथर्स की स्थापना कैसे हुई ?
उत्तर:
हमारे समाज में दलित समुदाय ने लम्बे समय तक क्रुरतापूर्ण जातिगत अन्याय भुगता है। 1970 के दशक में शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। दलित हितों के दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में 1972 में दलित युवाओं का एक संगठन दलित पैंथर्स की स्थापना हुई। आजादी के बाद के सालों में दलित समुदाय वाले मुख्यतः जाति आधारित असमानता और आर्थिक असमानता के खिलाफ लग रहे थे।

प्रश्न 8.
‘क्योटो प्रोटोकॉल’ क्या है ?
उत्तर:
क्योटो प्रोटोकॉल एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता है। इसके अन्तर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाइड्रोफ्लोरो कार्बन जैसी कुछ गैसों के बारे में माना जाता है कि वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 9.
काँग्रेस सिंडिकेट का अर्थ बतलावें।
उत्तर:
यह काँग्रेस के पुराने व वरिष्ठ नेताओं का गुट था जिसने इंदिरा गाँधी को सत्ता से वंचित करन हेतु उन्हें दल की प्राथमिक सदस्यता से वंचित कर दिया।

प्रश्न 10.
दलाई लामा का भारत में शरण लेने का कारण स्पष्ट करें।
उत्तर:
1950 में चीन ने तिब्बत पर नियंत्रण कर लिया। तिब्बत के ज्यादातर लोगों ने चीनी कब्जे का विरोध किया। चीन ने भारत को आश्वासन दिया था कि तिब्बत को चीन के अन्य इलाके से कहीं ज्यादा स्वायत्तता दी जाएगी। किंतु ऐसा नहीं हुआ। तिब्बतियों को बहुत सारी यातनाओं को झेलना पड़ा। 1958 में चीनी आधिपत्य के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह हुआ। इस विद्रोह को चीनी सेनाओं ने दबा दिया। स्थिति बिगड़ते देखकर तिब्बत के पारंपरिक नेता दलाई लामा ने सीमा पारकर भारत में प्रवेश किया और 1959 में भारत से शरण माँगी। भारत ने दलाई लामा को शरण दे दी।

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई ? इसकी स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना युद्धों को रोकने, आपसी शांति और प्रेम स्थापित करने तथा जन-कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 185 देश इसके सदस्य हैं। इस संस्था की विधिवत् स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयार्क (New york) अमेरिका में है।

उद्देश्य (Aims)-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाये रखना।
  2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ाना।
  3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना।
  4. ऊपर दिये गये हितों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की कार्यवाही में तालमेल करना।

प्रश्न 12.
नामदेव ढसाल कौन था ? उनके दलित पैंथर्स समर्थक (पक्षधर ) विचारों का उनकी एक मराठी कविता के आधार पर संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
नामदेव ढसाल मराठी के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने अनेक रचनाएँ लिखी जिनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध (गोलपीठ) अंधेरे में पदयात्रा और सूरजमुखी अशीशो वाला फकीर थी।

विचार (Thoughts)-

  • नामदेव दलितों के प्रति सच्ची हमदर्दी रखते थे। वे यह मानते थे कि वह सदियों तक दूषित सामाजिक अथवा जाति प्रथा के कारण कष्ट उठाते रहे हैं।
  • वे यह मानते थे कि अब अन्याय रूपी सामाजिक व्यवस्था के अंधकार का अंत और सामाजिक समानता और न्यायरूपी सूरज के उदय होने का समय आ गया है।
  • नामदेव यह मानते थे कि दलित पैंथर्स लोग अपने हक और न्याय के लिए खुदं खड़े होंगे और समाज को बदलेंगे। वे प्रगति करके आकश को छू लेंगे। वह सूरजमुखी की भाँति प्रगति, न्याय और समानता की ओर अपना रुख करेंगे।

प्रश्न 13.
महिला राष्ट्रीय आयोग का गठन कब हुआ? इसके अधीन कौन-कौन से उपायों को सम्मिलित किया जिनके द्वारा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो।
उत्तर:
महिलाओं के अधिकार और कानूनी अधिकारों की सुरक्षा के लिए 1990 ई० में संसद ने महिलाओं के लिए राष्ट्रीय आयोग की स्थापना के लिए कानून बनाया जो 31 जनवरी 1992 ई० को अस्तित्व में आया। इसके अन्तर्गत कानून की समीक्षा, अत्याचारों की विशिष्ट व्यक्तियों शिकायतों में हस्तक्षेप और जहाँ कहीं भी उपयुक्त और संभव हो महिलाओं के हितों की रक्षा के उपाय सम्मिलित हैं।

प्रश्न 14.
शिक्षा और रोजगार में पुरुषों और महिलाओं की स्थिति का अंतर बताइए।
उत्तर:
पुरुषों और महिलाओं की स्थिति में शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अंतर है। स्त्री साक्षरता 2001 में 54.16 प्रतिशत थी जबकि पुरुषों की साक्षरता 75.85 प्रतिशत थी। शिक्षा के अभाव के कारण रोजगार, प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की सफलता सीमित है।

प्रश्न 15.
बीसवीं सदी के कौन-से दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में देखा जा सकता है ? इसके कुछ मुख्य राजनीतिक प्रभाव दृष्टिगोचर हैं ? केवल उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1980 ई० के दशक को स्वायत्तता की माँग के दशक के रूप में भी देखा जा सकता है। इस दौर में देश के कई हिस्सों में स्वायत्तता की माँग उठी और इसने संवैधानिक हदों को भी पार किया। इन आंदोलनों में शामिल लोगों ने अपनी माँग के पक्ष में हथियार उठाए, सरकार ने उनको दबाने के लिए जवाबी कार्रवाई की और इस क्रम में राजनीतिक तथा चुनावी प्रक्रिया अवरुद्ध हुई।

प्रश्न 16.
‘क्षेत्रवाद एवं राष्ट्रीय सरकार’ विषय पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
उत्तर:
1. क्षेत्रवाद ने राष्ट्र के लिए चिंता उत्पन्न की। राष्ट्रीय सरकार को कई बार हथियार उठाकर उन्हें कुचलने का प्रयास करने पड़े।

2. यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता कि स्वाययत्ता की माँग को लेकर चले अधिकतर संघर्ष लंबे समय तक जारी रहे और इन संघर्षों पर विराम लगाने के लिए केंद्र सरकार को सुलह की बातचीत का रास्ता अख्तियार करना पड़ा अथवा स्वायत्तता के आंदोलन की अगुवाई कर रहे समूहों से समझौते करने पड़े।

3. क्षेत्रवाद के समर्थक गुटों/नेताओं आदि एवं देश की सरकार के मध्य हुई बातचीत की एक लंबी प्रक्रिया के बाद दोनों पक्षों के बीच समझौता हो सका। बातचीत का लक्ष्य यह रखा गया कि विवाद के मुद्दों को संविधान के दायरे में रहकर निपटा लिया जाए। बहरहाल, समझौते तक पहुँचने की यह यात्रा बड़ी दुर्गम रही और इसमें जब-तब हिंसा के स्वर उभरे।

प्रश्न 17.
1991 में ‘नई विश्व व्यवस्था’ की शुरुआत कैसे हुई ?
उत्तर:
नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत (Beginning of New World Order)-
1. सोवियत संघ के अचानक विघटन से हर कोई आश्चर्यचकित रह गया। दो महाशक्तियों (अमेरिका तथा सोवियत संघ) में अब एक का वजूद तक न था जबकि दूसरा अपनी पूरी ताकत या कहें कि बढ़ी हुई ताकत के साथ कायम था। इस तरह जान पड़ता है कि अमेरिका के वर्चस्व (Hegemony) की शुरुआत 1991 में हुई जब तक ताकत के रूप में सोवियत संघ अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से गायब हो गया। एक सीमा तक यह बात सही है लेकिन हमें इसके साथ-साथ दो और बातों का ध्यान रखना होगा।

2. पहली बात यह है कि अमेरकी वर्चस्व के कुछ पहलुओं का इतिहास 1991 तक सीमित नहीं है बल्कि इससे कहीं पीछे दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति के समय 1945 तक जाता है।

3. दूसरी बात, अमेरिका ने 1991 से ही वर्चस्वकारी ताकत की तरह बर्ताव करना शुरू नहीं किया। दरअसल यह बात ही बहुत बाद में जाकर साफ हुई कि दुनिया वर्चस्व के दौर में जी रही है।

प्रश्न 18.
इराक पर अमेरिकी आक्रमण के दो वास्तविक उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
(i) इराक के तेल भंडार पर अमेरिकी नियंत्रण बनाना। अमेरिका एक विकसित देश है यद्यपि उसके पास विश्व में लगभग तेल के 40 प्रतिशत संसाधन मौजूद हैं लेकिन यह तेल उत्पादक देशों को नियंत्रण में रखना चाहता है ताकि उसकी यातायात, सैन्य और अन्य संबंधित तेल आवश्यकताओं के साधन कभी भी किसी संकट का सामना न करे।

(ii) अमेरिका चाहता है कि इराक में उसकी मनपसंद सरकार कायम रहे ताकि कुवैत सहित अन्य खाड़ी और तेल उत्पादक देश उनके मित्र और सहयोगी बने रहे। अमेरिका अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए इराक सहित सभी देशों में अपनी मनपसंद सरकार कामय रखना चाहता है।

प्रश्न 19.
वर्चस्व का अर्थ क्या होता है ? समझाइए।
उत्तर:
वर्चस्व (Hegemony)- यह राजनीति की एक ऐसी कहानी है जो शक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। किसी भी आम आदमी की तरह हर समूह भी ताकत पाना और कायम रखना चाहता है। हम रोजाना बात करते हैं कि फलाँ आदमी ताकतवर होता जा रहा है या ताकतवर बनने पर तुला हुआ है। विश्व राजनीति में भी विभिन्न देश या देशों के समूह ताकत पाने और कायम रखने की लगातार कोशिश करते हैं। यह ताकत सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक-शक्ति, राजनीतिक रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के रूप में होती है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो इसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा।

प्रश्न 20.
एकधुवीय व्यवस्था का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
शीतयुद्ध के समय (1945-91) दो अलग-अलग गुटों में शामिल देशों के बीच शक्ति का बँटवारा था शीतयुद्ध के समय सं. रा. अमेरिका और सोवियत संघ इन दो अलग-अलग शक्ति-केद्रों के अगुआ थे। सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति अमेरिका बचा। जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था किसी एक महाशक्ति या कहें कि उद्धत महाशक्ति के दबदबे में हो तो बहुधा इसे ‘एकध्रुवीय’ व्यवस्था भी कहा जाता है। भौतिकी के शब्द ‘ध्रुव’ का यह एक तरह से भ्रामक प्रयोग है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो इसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा।

प्रश्न 21.
यूरोपीय संघ और आसियान के दो सामान्य उपयोगी निर्णयों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  • यूरोपीय संघ और आसियान, दोनों ने ही अपने-अपने इलाके में चलने वाली ऐतिहासिक दुश्मनियों और कमजोरियों का क्षेत्रीय स्तर पर समाधान ढूँढा।
  • साथ ही इन्होंने अपने-अपने इलाकों में अधिक शांतिपूर्ण और सहकारी क्षेत्रीय व्यवस्था विकसित करने की तथा इस क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्थाओं को समूह बनाने का दिशा में काम किया है।

प्रश्न 22.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरापीय आर्थिक संघ (EEC)- यूरोपीय आर्थिक संघ शीत युद्ध के दौरान हुए सभी समुदायों में सबसे अधिक प्रभावशाली समुदाय था। इसे यूरोपीय सामान्य बाजार भी कहा जाता था। इसमें फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम तथा लक्जमबर्ग शामिल थे। इस संगठन का निर्माण यूरोपीय कोयला और स्टील समुदाय की प्रेरणा से हुआ। इस समुदाय में पहले पाँच वर्षों (1951-56) में इस्पात के उत्पादन में 50 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। यूरोपियन आर्थिक संघ.के संस्थापक सदस्यों ने आपस में सभी प्रकार के सीमा कर तथा कोटा प्रणाली समाप्त करके मुक्त व्यापार अथवा खुली स्पर्धा का मार्ग प्रशस्त किया। 1961 ई० तक यूरोपियन आर्थिक संघ एक सफल संगठन बन गया। इसकी सफलता को देखते हुए 1973 ई० में ब्रिटेन भी इसमें शामिल हो गया।

प्रश्न 23.
आप कैसे कह सकते हैं कि आजाद हिन्दुस्तान के शुरुआती कुछ साल चुनौतियों से भरे हुए थे ?
उत्तर:
भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ था। आजाद हिन्दुस्तान के शुरुआती कुछ साल चुनौतियों से भरे थे।

  • सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय एकता और अखंडता की थी। देश रियासतों का भारत संघ में शामिल करने का मसला तुरंत हल करना जरूरी था।
  • आजादी मिलने के साथ-साथ देश का विभाजन भी हुआ। इस बँटवारे के कारण बड़े पैमाने पर हिंसा हुई : लोग विस्थापित हुए। उन्हें पुन: बसाना एक बड़ी चुनौती थी।
  • देश विभाजन, विस्थापन आदि के कारण धर्म निरपेक्ष भारत की धारणा पर ही आँच आने लगी थी। संविधान में देश की धर्म निरपेक्ष (घोषित कर) इस चुनौती को हल कर लिया गया।

प्रश्न 24.
आतंकवाद सुरक्षा के लिए परंपरागत खतरे की श्रेणी में आता है या अपरंपरागत खतरे की श्रेणी में ?
उत्तर:
1. आतंकवाद अपरंपरागत श्रेणी में आता है। आतंकवाद का आशय राजनीतिक खून-खराबे से है जो जान-बूझकर और बिना किसी मुरौव्वत के नागरिकों को अपना निशाना बनाता है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद एक से ज्यादा देशों में व्याप्त है और उसके निशाने पर कई देशों के नागरिक हैं।

2. कोई राजनीतिक संदर्भ या स्थिति नापंसद हो तो आतंकवादी समूह उसे बल-प्रयोग अथवा बल-प्रयोग की धमकी देकर बदलना चाहते हैं। जनमानस को आतंकित करने के लिए नागरिकों को निशाना बनाया जाता है और आतंकवाद नागरिकों के असंतोष का इस्तेमाल राष्ट्रीय सरकारों अथवा संघर्षों में शामिल अन्य पक्ष के खिलाफ करता है।

3. आतंकवाद के चिर-परिचित उदाहरण हैं विमान-अपहरण अथवा भीड़ भरी जगहों जैसे रेलगाड़ी, होटल, बाजार या ऐसी ही अन्य जगहों पर बम लगाना। सन् 2001 ई० के 11 दिसंबर को आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला बोला। इस घटना के बाद से दूसरे मुल्क और वहाँ की सरकारें आतंकवाद पर ज्यादा ध्यान देने लगी है बहरहाल, आतंकवाद कोई नयी परिघटना नहीं है। गुजरे वक्त में आतंकवाद की अधिकांश घटनाएँ मध्यपूर्व, यूरोप, लातिनी अमेरिका और दक्षिण एशिया में हुई।

प्रश्न 25.
भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों है? तीन कारण बताकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
I. मानव अधिकार ऐसे अधिकारों को कहते हैं जो कि प्रत्येक मनुष्य को पहचान देने के नाते अवश्य ही प्राप्त होने चाहिए।

II. भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है। इसके तीन प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं-

  • भारत का यह मानना है कि आधुनिक युग में कोई भी स्वतंत्र व लोकतांत्रिक देश मानव अधिकारों के बिना न तो प्रगति कर सकता है और न ही उस देश में शांति स्थापित कर सकती है।
  • मानव अधिकार ऐसे अधिकार हैं जो कि मानव की उन्नति व प्रगति के लिए अति आवश्यक व महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत विश्व शांति तथा मानवता के उत्थान में विश्वास रखता है। इसलिए वह मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है।

प्रश्न 26.
प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर:
10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में “मानव अधिकार दिवस” के रूप में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 10 दिसंबर, 1948 ई० को “मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र” (Charter of Human Rights) स्वीकार किया था। इस घोषणा-पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नागरिकों का आदर करेंगी। मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी मनुष्यों को मानव होने के नाते मिलने ही चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक सामाजिक परिषद् ने 1946 ई० में मानव अधिकारों की समस्या के बारे में एक आयोग की नियुक्ति की। आयोग ने 1948 ई० में अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की महासभा को प्रदान की और संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 ई० को मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र को स्वीकृति दे दी जिसमें 20 मानव अधिकारों की एक सूची का वर्णन किया गया था। अतः प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस मनाकर प्रत्येक देश की सरकार को यह याद दिलाया जाता है कि वे अपने नागरिकों को उन्नति व विकास के लिए मानव अधिकार प्रदान करें।

प्रश्न 27.
निरस्त्रीकरण शब्द को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरस्त्रीकरण का अर्थ है कि मानवता का संहार करने वाले अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण बंद हो व आणविक शस्त्रों पर प्रतिबंध लगे। विश्व के अनेक देशों ने अणुबम तथा हाइड्रोजन बम बना लिए हैं और कुछ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति को दिन-प्रतिदिन खतरा बढ़ रहा है। एक देश द्वारा बनाए गए संहारक शस्त्रों का उत्तर दूसरा देश अधिक विनाशक शस्त्रों का निर्माण करके देता है। भारत प्रारंभ से ही निरस्त्रीकरण के पक्ष में रहा है। इस दृष्टि से संसार में होने वाले किसी भी सम्मेलन का भारत ने स्वागत किया है। 1961 ई० में भारत ने अणुबम न बनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा में रखा था’ जेनेवा में होने वाले निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंत में हम यह कह सकते हैं कि निरस्त्रीकरण में ही विश्व का कल्याण निहित है।

प्रश्न 28.
जन आंदोलन की प्रकृति पर अतिलघु टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
जन आंदोलन वे आंदोलन होते हैं। जो प्रायः समाज के संदर्भ या श्रेणी के क्षेत्रीय अथवा स्थानीय हितों, माँगों और समस्याओं से प्रेरित होकर प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से चलाए जाते हैं। उदाहरण के लिए 1973 ई० में चलाया गया ‘चिपको आंदोलन’ भारतीय किसान यूनियन द्वारा चलाया गया आंदोलन, दलित पैंथर्स आंदोलन, आंध्र प्रदेश ताड़ी विरोधी आंदोलन, समय-समय पर चलाए गए छात्र आंदोलन, नारी मुक्ति और सशक्तिकरण समर्थित आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन आदि जन आंदोलन के उदाहरण हैं।

प्रश्न 29.
सुरक्षा परिषद् के क्या कार्य हैं ? अथवा, सुरक्षा परिषद् पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
सुरक्षा परिषद् (Security Council)- सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके 15 सदस्य होते हैं। जिनमें 5 स्थायी सदस्य हैं-अमेरिका, इंगलैंड, फ्रांस, चीन और रूस। पहले सोवियत संघ इसका स्थायी सदस्य था परंतु जनवरी, 1992 में सोवियत संघ की समाप्ति के बाद यह स्थान रूसी गणराज्य को दे दिया गया है। इसके अन्य 10 सदस्य महासभा के द्वारा 2 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

भारत कई बार सुरक्षा परिषद् का सदस्य चुना जा चुका है। 1992 ई० में सुरक्षा परिषद् की एक विशेष बैठक हुई जिसमें इसके स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाये जाने पर जोर दिया गया और भारत का इसका स्थायी सदस्य बनाये जाने के विचार ने जोर पकड़ा। कुछ लोग स्थायी सदस्यता के प्रावधान को समाप्त करना चाहते हैं और सभी सदस्यों को समान समझे जाने पर जोर देते हैं। स्थायी सदस्य को किसी भी प्रस्ताव पर वीटो (Veto) का अधिकार है।

सुरक्षा परिषद् के कार्य निम्नलिखित हैं-

  • यह विश्व में शांति स्थापित करने के लिए उत्तरदायी है और किसी भी मामले पर जो विश्व शांति के लिए खतरा बना हुआ हो, विचार कर सकती है।
  • यह किसी भी देश द्वारा भेजी गई किसी भी शिकायत पर विचार करती है और मामले या झगड़े का निर्णय करती है।
  • सुरक्षा परिषद् अपने प्रस्तावों या निर्णयों को लागू करवाने के लिए सैनिक कार्यवाही भी कर सकती है। इराक के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही का निर्णय सुरक्षा परिषद् ने लिया था।

प्रश्न 30.
जूनागढ़ की भौगोलिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। सरदार पटेल ने इस राज्य को किस तरह से भारतीय संघ में मिलाने के लिए विवश किया ?
उत्तर:
जूनागढ़ की भौगोलिक स्थिति (Geographical Situation of Junagarh)- जूनागढ़ गुजरात के दक्षिण-पश्चिम किनारे पर स्थित एक देशी रजवाड़ा या राज्य था। इसमें मनसबदार, बाबरिया बाड़ तथा मंगरोल नामक जागीरें शामिल थीं। इसके साथ पाकिस्तान के बीच सागर था।

जूनागढ़ के शासक द्वारा पाकिस्तान में मिलाने का असफल प्रयास (Unsuccessful attempt Junagrah to Join Pakistan)- जूनागढ़ का नवाब महावत खान पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। सरदार पटेल जैसा दूरदर्शी ऐसा नहीं होने देना चाहते थे क्योंकि उन्हें पता था यहाँ 80 प्रतिशत गैर-इस्लामी लोग हैं। उन्होंने इस राज्य में जनमत संग्रह कराने के लिए नवाब पर दबाव डाला। नवाब के आनाकानी करने पर सरदार पटेल ने जूनागढ़ की तीन जागीरों पर बलपूर्वक कब्जा करने के लिए आदेश दे दिया। जूनागढ़ का दरबार जो पहले से ही आर्थिक विफलता का सामना कर रहा था और बाद में भारतीय सरकार को आमंत्रित किया कि वह आकर जूनागढ़ के शासन की बागडोर को संभाले। दिसम्बर के माह में जनमत-संग्रह कराया गया और उसमें 99 प्रतिशत लोगों ने पाकिस्तान के स्थान पर भारत में सम्मिलित होने के लिए अपनी पसन्द को व्यक्त किया।

प्रश्न 31.
निःशस्त्रीकरण को परिभाषित करें। नि:शस्त्रीकरण के मुद्दे पर भारत क्या भूमिका निभाता रहा है ?
उत्तर:
निःशस्त्रीकरण का अर्थ है, विश्व शांति के लिए घातक हथियारों पर रोक लगाना। निःशस्त्रीकरण में भारत की भूमिका निम्नलिखित है-
(a) भारत ने घोषण की कि-

  • भारत हथियारों की दौड़ से बाहर रहकर आवश्यक न्यूनतम परमाणु अवरोधक शक्ति बना रहेगा।
  • भारत भविष्य में भूमिगत परमाणु विस्फोट नहीं करेगा।
  • परमाणु हथियारों के संदर्भ में भारत ने स्वेच्छा से इनको पहले प्रयोग न करने के सिद्धांत को स्वीकार किया।

(b) भारत ने विश्व समुदाय के समक्ष ‘पहले प्रयोग न करने’ के समझौते को परमाणु हथियारों की समाप्ति की ओर एक कदम के रूप में सुझाया।

(c) भारत, संयुक्त राष्ट्र में निःशस्त्रीकरण के मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। यह जेनेवा निःशस्त्रीकरण आयोग का एक सदस्य था। डॉ० होमी जहाँगीर भाभा 1955 में संयुक्त राष्ट्र के परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग के लिए हुए प्रथम सम्मेलन के निर्वाचित अध्यक्ष थे। भारत ने 1957 में वियना में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आई० ए० ई० ए०) के गठन में निर्णायक भूमिका निभाई थी।

(d) भारत ने 1988 में निःशस्त्रीकरण को समर्पित संयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व को परमाणु हथियारों से मुक्त और अहिंसक विश्व व्यवस्था बनाने के लिए एक कार्य योजना प्रस्तुत की।

प्रश्न 32.
संयुक्त राष्ट्र का महासचिव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र महासचिव (The Secretary General of United Nations)- संयुक्त राष्ट्र के कार्यों का संचालन करने के लिए एक सचिवालय है। इसके अध्यक्ष को महासचिव कहा जाता है। सर्वप्रथम नार्वे के त्रिगवेली प्रथम महासचिव बने थे। वर्तमान महासचिव काफी अन्नान हैं। ये दोबारा निर्वाचित हुए हैं। महासचिव के प्रमुख कार्य निम्नलिखित होते हैं-

  1. महासचिव सुरक्षा परिषद, आर्थिक तथा सामाजिक परिषद आदि की बैठकों को आमंत्रित करता है।
  2. संघ के विभिन अंगों के द्वारा लिये गये निर्णयों को लागू करता है।
  3. यदि विश्व में कहीं भी शांति को खतरा पैदा होता है तो उसकी सूचना सुरक्षा परिषद को देता है।
  4. सचिवालय के सारे कार्यों की रिपोर्ट महासभा को देता है।
  5. अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाना, अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का सर्वेक्षण, अंतराष्ट्रीय गोष्ठियों का आयोजन आदि।

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 3

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Objective Type Part 3 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 3

प्रश्न 1.
जनता पार्टी, जनसंघ, काँग्रेस फॉर डेमोक्रेसी और संगठन काँग्रेस अप्रैल, 1977 में विलय कर कौन पार्टी बनाए ?
(a) जनता दल
(b) जनता पार्टी
(c) स्वतंत्र पार्टी
(d) लोक दल
उत्तर:
(a) जनता दल

प्रश्न 2.
सौराष्ट्र किस राज्य का अंग है ?
(a) महाराष्ट्र
(b) राजस्थान
(c) कर्नाटक
(d) गुजरात
उत्तर:
(a) महाराष्ट्र

प्रश्न 3.
अकाली आन्दोलनकारियों की क्या माँग थी ?
(a) अलग पंजाब
(b) खालिस्तान राज्य
(c) पृथक राष्ट्र
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) खालिस्तान राज्य

प्रश्न 4.
मेधा पाटेकर का नाम किस आंदोलन से जुड़ा है ?
(a) प्रदूषण रोको
(b) टेहरी बाँध विरोध
(c) नर्मदा बचाओ
(d) चिपको
उत्तर:
(c) नर्मदा बचाओ

प्रश्न 5.
पहला पिछड़ा आयोग का अध्यक्ष कौन था ?
(a) कालेलकर
(b) बी० पी० मण्डल
(c) अम्बेडकर
(d) मुंगेरी लाल
उत्तर:
(d) मुंगेरी लाल

प्रश्न 6.
1988 में स्थापित जनता दल का संस्थापक किसे माना जाता है ?
(a) जयप्रकाश नारायण
(b) चन्द्रशेखर
(c) वी० पी० सिंह
(d) लालू प्रसाद
उत्तर:
(a) जयप्रकाश नारायण

प्रश्न 7.
जी-77 में कौन-से देश आते हैं ?
(a) अविकसित
(b) विकसित
(c) विकासशील
(d) इनमें से सभी
उत्तर:
(c) विकासशील

प्रश्न 8.
पहले गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किसने किया ?
(a) वाजपेयी
(b) नेहरू
(c) पटेल
(d) कामराज
उत्तर:
(b) नेहरू

प्रश्न 9.
किस देश ने NATO में अमेरिकी नेतृत्व का विरोध किया ?
(a) ब्रिटेन
(b) फ्रांस
(c) पश्चिम जर्मनी
(d) इटली
उत्तर:
(c) पश्चिम जर्मनी

प्रश्न 10.
1917 में रूस में साम्यवादी राज्य की स्थापना किसने की ?
(a) लेनिन
(b) मार्क्स
(c) एंजिल्स
(d) स्टालिन
उत्तर:
(a) लेनिन

प्रश्न 11.
भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकंद समझौता कब हुआ था ?
(a) 1965
(b) 1966
(c) 1970
(d) 1971
उत्तर:
(b) 1966

प्रश्न 12.
भारतीय संविधान में 42वाँ संशोधन कब हुआ?
(a) 1971 में
(b) 1976 में
(c) 1977 में
(d) 1978 में
उत्तर:
(b) 1976 में

प्रश्न 13.
‘देश में आन्तरिक गड़बड़ी’ के कारण संकटकालीन स्थिति की घोषणा कब हुई ?
(a) 1971 में
(b) 1974 में
(c) 1975 में
(d) 1977 में
उत्तर:
(c) 1975 में

प्रश्न 14.
भारत में उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में असम का भाग काट कर पहला राज्य कौन बना ?
(a) नागालैण्ड
(b) मेघालय
(c) मिजोरम
(d) त्रिपुरा
उत्तर:
(a) नागालैण्ड

प्रश्न 15.
बोडोलैण्ड स्वायत्तशासी परिषद् किस राज्य में स्थित है ?
(a) असम
(b) नागालैण्ड
(c) मेघालय
(d) मिजोरम
उत्तर:
(a) असम

प्रश्न 16.
सुन्दर लाल बहुगुणा का नाम किस आन्दोलन से जुड़ा है ?
(a) कृषक आन्दोलन
(b) मानवाधिकार
(c) श्रमिक आन्दोलन
(d) चिपको आन्दोलन
उत्तर:
(d) चिपको आन्दोलन

प्रश्न 17.
भारतीय जनता पार्टी को किस पार्टी का पुनर्जन्म कहा जाता है ?
(a) भारतीय जनसंघ
(b) भारतीय क्रांति दल
(c) भारतीय लोकदल
(d) भारतीय जनता दल
उत्तर:
(a) भारतीय जनसंघ

प्रश्न 18.
पहला गुट-निरपेक्ष सम्मेलन कहाँ हुआ?
(a) नई दिल्ली में
(b) बेलग्रेड में
(c) काहिरा में
(d) हवाना में
उत्तर:
(b) बेलग्रेड में

प्रश्न 19.
दो ध्रुवीयता का क्या अर्थ है ?
(a) अमेरिका का प्रभुत्व
(b) सोवियत संघ का प्रभुत्व
(c) अमेरिका और सोवियत संघ का प्रतिद्वन्द्वी प्रभुत्व
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) अमेरिका और सोवियत संघ का प्रतिद्वन्द्वी प्रभुत्व

प्रश्न 20.
भारतीय राजनीतिक दलीय व्यवस्था को किस श्रेणी में रखा गया है ?
(a) एक-दलीय व्यवस्था
(b) द्वि-दलीय व्यवस्था
(c) बहु दलीय व्यवस्था
(d) एकल-दल प्रभुत्व व्यवस्था
उत्तर:
(c) बहु दलीय व्यवस्था

प्रश्न 21.
प्रेस्त्रोयका एवं ग्लासनोस्त के मंत्र किसने दिये ?
(a) लेनिन
(b) स्टालिन
(c) क्रुश्चेव
(d) गोर्वाचेव
उत्तर:
(d) गोर्वाचेव

प्रश्न 22.
दूसरी दुनिया के देशों में किस प्रकार के देश आते हैं ?
(a) पूंजीवादी देश
(b) साम्यवादी देश
(c) विकासशील देश
(d) गुट-निरपेक्ष देश
उत्तर:
(c) विकासशील देश

प्रश्न 23.
एकध्रुवीय विश्व किस देश के प्रभुत्व का परिचायक है ?
(a) सोवियत रूस
(b) चीन
(c) फ्रांस
(d) अमेरिका
उत्तर:
(d) अमेरिका

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन-सा देश आसियान का सदस्य नहीं है ?
(a) मलेशिया
(b) इन्डोनेशिया
(c) भारत
(d) थाइलैण्ड
उत्तर:
(b) इन्डोनेशिया

प्रश्न 25.
दक्षेस का पहला सम्मेलन कहाँ हुआ ?
(a) भारत
(b) पाकिस्तान
(c) श्रीलंका
(d) बांग्लादेश
उत्तर:
(d) बांग्लादेश

प्रश्न 26.
संयुक्त राष्ट्र संघ के कितने अंग हैं ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) छ:
उत्तर:
(d) छ:

प्रश्न 27.
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में निःशस्त्रीकरण आयोग कब बना?
(a) 1945 में
(b) 1952 में
(c) 1959 में
(d) 1966 में
उत्तर:
(b) 1952 में

प्रश्न 28.
भूमण्डलीकरण किस विचारधारा पर टिका है ?
(a) समाजवाद
(b) साम्यवाद
(c) उदारवाद
(d) अराजकतावाद
उत्तर:
(c) उदारवाद

प्रश्न 29.
निम्नलिखित में से कौन भूमण्डलीकरण का आलोचक नहीं है ?
(a) फ्रक
(b) वालरस्टीन
(c) चोवस्की
(d) मनमोहन सिंह
उत्तर:
(d) मनमोहन सिंह

प्रश्न 30.
‘पूर्व बनाम पश्चिम’ का सम्बंध किससे है ?
(a) विश्व युद्ध
(b) शीत युद्ध
(c) तनाव शैथिल्य
(d) उत्तर-शीत युद्ध
उत्तर:
(d) उत्तर-शीत युद्ध

प्रश्न 31.
तनाव शैथिल्य का दौर कब शुरू हुआ ?
(a) 1945 के बाद
(b) 1960 के बाद
(c) 1970 के बाद
(d) 1980 के बाद
उत्तर:
(d) 1980 के बाद

प्रश्न 32.
सोवियत संघ का विघटन कब हुआ?
(a) 1970
(b) 1980
(c) 1991
(d) 2000
उत्तर:
(c) 1991

प्रश्न 33.
परमाणु अप्रसार संधि पर किस देश ने हस्ताक्षर नहीं किया ?
(a) उत्तरी कोरिया
(b) भारत
(c) चीन
(d) ईरान
उत्तर:
(b) भारत

प्रश्न 34.
निम्नलिखित में से कौन जम्मू-कश्मीर का आतंकवादी संगठन नहीं है ?
(a) लश्कर-ए-तोयबा
(b) आल-जिहाद
(c) तहरीक-उल-मुजाहिद्दीन
(d) तालिबान
उत्तर:
(d) तालिबान

प्रश्न 35.
बोडो सुरक्षा बल किस राज्य का उग्रवादी संगठन है ?
(a) असम
(b) नागालैंड
(c) मेघालय
(d) प० बंगाल
उत्तर:
(a) असम

प्रश्न 36.
अखिल भारतीय किसान काँग्रेस की स्थापना किसने की ?
(a) जवाहरलाल नेहरू
(b) राजेन्द्र प्रसाद
(c) सरदार पटेल
(d) चौधरी चरण सिंह
उत्तर:
(d) चौधरी चरण सिंह

प्रश्न 37.
2004 में बने संयुक्त प्रगतिवादी गठबंधन में निम्नलिखित में कौन दल शामिल नहीं है ?
(a) काँग्रेस
(b) राष्ट्रवादी काँग्रेस
(c) राजद
(d) भाजपा
उत्तर:
(d) भाजपा

प्रश्न 38.
सार्क का मुख्यालय कहाँ है ?
(a) नई दिल्ली
(b) इस्लामाबाद
(c) काठमाण्डू
(d) ढाका
उत्तर:
(c) काठमाण्डू

प्रश्न 39.
‘चिपको आंदोलन’ से कौन संबंधित है ?
(a) मेधा पाटकर
(b) सुनीता नारायण
(c) सुन्दरलाल बहुगुणा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) सुन्दरलाल बहुगुणा

प्रश्न 40.
काँग्रेस में विभाजन किस वर्ष हुआ ?
(a) 1968
(b) 1969
(c) 1970
(d) 1971
उत्तर:
(a) 1968

प्रश्न 41.
मंडल कमीशन की सिफारिशों को किसने लागू किया ?
(a) वी० पी० सिंह
(b) चरण सिंह
(c) मोरारजी देसाई
(d) इंदिरा गाँधी
उत्तर:
(a) वी० पी० सिंह

प्रश्न 42.
“गैर-काँग्रेसवाद” का नारा किसने दिया ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) मोरारजी देसाई
(c) राम मनोहर लोहिया
(d) राज नारायण
उत्तर:
(c) राम मनोहर लोहिया

प्रश्न 43.
भारत में नई आर्थिक नीति किस वर्ष शुरू की गई ?
(a) 1990
(b) 1991
(c) 1992
(d) 1993
उत्तर:
(b) 1991

प्रश्न 44.
भारत के दूसरे राष्ट्रपति कौन थे ?
(a) जाकिर हुसैन
(b) राधाकृष्णन
(c) शंकर दयाल शर्मा
(d) आर० वेंकटरमन
उत्तर:
(b) राधाकृष्णन

प्रश्न 45.
भारत में हरित क्रांति के जनक कौन हैं ?
(a) एम० एस० स्वामीनाथन
(b) यू० आर० राव
(c) कुरियन
(d) बी० जी० देशमुख
उत्तर:
(a) एम० एस० स्वामीनाथन

प्रश्न 46.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना किसने की थी ?
(a) मायावती
(b) कांशी राम
(c) अम्बेडकर
(d) जगजीवन राम
उत्तर:
(b) कांशी राम

प्रश्न 47.
जनता दल (यूनाइटेड) किस राज्य की पार्टी है ?
(a) बिहार
(b) झारखण्ड
(c) पंजाब
(d) उत्तर प्रदेश
उत्तर:
(a) बिहार

प्रश्न 48.
जनसंघ के संस्थापक कौन थे ?
(a) अटल बिहारी वाजपेयी
(b) आडवाणी
(c) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(d) दीन दयाल उपाध्याय
उत्तर:
(c) श्यामा प्रसाद मुखर्जी

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 3

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 3 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Long Answer Type Part 3

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे ? संयुक्त राष्ट्र के संगठन और इसके अंगों के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
अथवा, उन मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए जिन पर संयुक्त राष्ट्र आधारित है ? कहाँ तक उनकी प्राप्ति हो सकी है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना युद्धों को रोकने, आपसी शांति और भाईचारा स्थापित करने तथा जन-कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 192 देश इसके सदस्य हैं। इस संस्था की विधिवत स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है।

उद्देश्य (Aims)-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना।
  2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बढ़ावा देना।
  3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना।
  4. ऊपर दिये गये हितों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की कार्यवाही में तालमेल करना।

संयुक्त राष्ट्र का संगठन (Organization of the United Nations)-
1. साधारण सभा या महासभा (General Assembly) – यह सभा संयुक्त राष्ट्र का अंग है। इसमें जब सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके भी सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र 5 प्रतिनिधि भेज सकता है परंतु उनका वोट एक ही होता है। इसका अधि वेशन वर्ष में एक बार होता है।

कार्य (Functions)- 1. यह सभा शांति तथा सुरक्षा कार्यों पर विचार करती है। 2. यह सभा संयुक्त राष्ट्र का बजट पास करती है। 3. महासभा संयुक्त राष्ट्र के बाकी सब अंगों के सदस्यों का चुनाव करती है।

सुरक्षा परिषद (Security Council) – यह परिषद संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारिणी है। इसके कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थायी सदस्य हैं और 10 अस्थायी। 5 स्थायी सदस्य हैं- (i) अमेरिका, (ii) रूस, (iii) फ्रांस, (v) साम्यवादी चीन। अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्ष के लिए किया जाता है।

सुरक्षा परिषद् के कार्य (Function of Security Council) –

  • यह परिषद विश्व में शांति स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है। कोई भी देश अपनी शिकायत इस परिषद के सामने रख सकता है।
  • यह झगड़ों का निर्णय करती है और यदि उचित समझे तो किसी भी देश के विरुद्ध सैनिक शक्ति का प्रयोग कर सकती है।
  • साधारण सभा के सहयोग से अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के जजों को नियुक्त करती है।

3. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council) – इस परिषद के 27 सदस्य होते हैं जो साधारण सभा के द्वारा 3 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इनमें एक-तिहाई सदस्य हर वर्ष टूट जाते हैं। उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिए जाते हैं।

कार्य (Functions)- यह परिषद अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों पर विचार करती है।

4. संरक्षण परिषद् (Trusteeship Council)- यह परिषद उन प्रदेशों के शासन की देखभाल करती है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अन्य देशों के संरक्षण में रखा हो। इसके अतिरिक्त यह इस बात का भी प्रयत्न करती है कि प्रशासन चलाने वाले देश इन प्रदेशों को हर प्रकार से उन्नत करके स्वतंत्रता के योग्य बना दें।

कार्य (Functions)- संरक्षण परिषद समय-समय पर संरक्षित इलाकों की उन्नति का अनुमान लगाने के लिए मिशन भेजती है।

5. अन्तर्राष्टीय न्यायालय (International Court of Justice) – यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमुख न्यायिक अंग है। इस न्यायालय के 15 न्यायाधीश होते हैं जो साधारण सभा तथा सुरक्षा परिषद् द्वारा 9 वर्षों के लिए चुने जाते हैं। यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र के भिन्न-भिन्न अंगों द्वारा उनकी समाजसेवी संस्थाओं को न्यायिक परामर्श भी देता है।

कार्य (Functions) – यह न्यायालय उन झगड़ों का फैसला करता है जो भिन्न-भिन्न देश उसके सामने पेश करते हैं।

6. सनिवालय (Secretariat) – यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यालय है। इसका सबसे बडा अधिकारी महासचिव (Secretary General) होता है जिसकी सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर साधारण सभा नियुक्त करती है। यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य प्रबन्धक होता है। उसके अधीन दफ्तर के लगभग 6000 कर्मचारी काम करते हैं जो भिन्न-भिन्न देशों के होते हैं।

कार्य (Functions) – संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का प्रमुख कार्य सारे विश्व में फैले संयुक्त राष्ट्र के अंगों की शाखाओं का प्रबन्ध करता है और उनकी आर्थिक एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करता है।

प्रश्न 2.
भारत की विदेश नीति विश्व शांति की स्थापना में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है ?
उत्तर:
प्रस्तावना – भारत ने स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् जो विदेश नीति अपनाई उसके अनसार गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेशी नीति का आधार बनाया। विश्व के सभी देशों के साथ और विशेषतया अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाये रखना और विश्व शांति को बनाए रखना भारत की विदेश नीति के उद्देश्य रहे हैं। विश्व शांति की स्थापना में भारत के योगदान का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है-

विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान (Contribution of Indian in maintaining world-peace)-
(i) भारत की तटस्थता की नीति (India’s policy of neutrality) – अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भारत ने हमेशा तटस्थता की नीति को अपनाया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सारा विश्व दो विरोधी गुटों में बँटा हुआ है और ये दोनों गुट संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के रास्ते में एक रुकावट सिद्ध हो रहे थे। इन दोनों गुटों के आपसी खिंचाव के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की शंकाएँ बढ़ती जा रही है परंतु भारत हमेशा इन दोनों गुटों से तटस्थ रहा है और दोनों महाशक्तियों को एक-दूसरे से नजदीक लाने के लिए कोशिशें करता रहा है।

(ii) सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the military alliances) – विश्व में बहुत-से सैनिक गुट बने जैसे नाटो, सैन्ट्रो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा है कि ये सैनिक गुट बनने से युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधक हैं। अतः भारत ने हमेशा इन सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं कि बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है।

(iii) निःशस्त्रीकरण में सहायता (Support of disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ ने निःशस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है। इस समस्या को हल करने के लिए वहुत से प्रयास किए हैं। भारत ने इस समस्या को समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र की मदद की है क्योंकि भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की स्थापना हो सकती है। सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था, “विकास स्वतंत्रता, निःशस्त्रीकरण और शांति परस्पर एक-दूसरे से संबंधित हैं। क्या नाभिकीय अस्रों के रहते शाति संभव है?’ एक नाभिकीय विमानवाहक पर जो खर्च होता है वह 53 देशों के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से अधिक है। नाग ने अपना फन फैला दिया है। समूची मानव जाति भयाक्रांत और भयभीत निगाहों से उसे इस झूठी आशा के साथ देख रही है कि वह उसे काटेगा नहीं।”

(iv) जातीय भेदभाव का विरोध (Opposition of the policy of discriminations based on caste, creed and colour) – भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेदभाव को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिण अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाता तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है।

(v) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (Co-operation to the United Nation) – संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों को भारतीय संविधान में भी स्थान दिया गया है तथा भारत शुरू से ही इसका सदस्य रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्तिशाली बनाना और उसके कार्यों में सहयोग देना भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शांति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की। जैसे स्वेज नहर, हिन्द-चीन के प्रश्न, वियतनाम की समस्या, साइप्रस आदि में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर अपनी सेनाएँ भी भेजी थी। भारत कई बार सुरक्षा परिषद् का भी सदस्य चुना गया है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेन्सियों का सदस्य बनकर क्रियात्मक योगदान प्रदान कर रहा है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना सदस्यता के लिए भारत प्रयासरत है।

प्रश्न 3.
“यदि बड़े और संसाधन संपन्न देश अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येतर संस्थाएँ अमरीकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पाएँगी।” इस कथन की जाँच करें और अपनी राय बताएँ।
उत्तर:
1. हमारी राय के अनुसार यह कथन कि यदि बड़े संसाधन संपन्न देश अमेरिकी वर्चस्व का प्रतिकार नहीं कर सकते तो यह मानना अव्यावहारिक है कि अपेक्षाकृत छोटी और कमजोर राज्येत्तर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध कर पाएँगी। अमेरिका दुनिया का सबसे धनी और सैन्य दृष्टि से शक्तिशाली देश है।

2. आज वैचारिक दृष्टि से भी पूँजीवाद, समाजवाद को बहुत पीछे छोड़ चुका है। लगभग 70 वर्षों तक सोवियत संघ पूँजीवाद के विरुद्ध लड़ा। वहाँ की जनता को अनेक नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों से वंचित रहना पड़ा। वहाँ विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं थी। एक ही राजनैतिक पार्टी की तानाशाही भी रही लेकिन वहाँ के लोगों ने महसूस किया कि उपभोक्ता संस्कृति और विकास की दर से पश्चिमी देशों की तुलना में न केवल सोवियत संघ बल्कि अधिकांश पूर्वी देश भी पिछड गए।

3. अब विश्व में सबसे बड़ा साम्यवादी देश चीन है। वहाँ पर भी ताइवान, तिब्बत और अन्य क्षेत्रों में अलगाववाद, उदारीकरण, वैश्वीकरण के पक्ष में आवाज उठती रहती है, माहौल बनता रहा। जब ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, भारत और चीन जैसे अमेरिका के वर्चस्व को खुलकर चुनौती नहीं दे सकते तो छोटे देश जिनकी संख्या 160-170 से भी ज्यादा है। वे अमेरिका को चुनौती किस प्रकार से दे सकेंगे। वस्तुतः हाल में यह सोचना गलत होगा। छोटी और कमजोर राज्येत्तर संस्थाएँ अमेरिकी वर्चस्व का कोई प्रतिरोध नहीं कर पाएँगी। अभी तो उदारीकरण, वैश्वीकरण और नई अर्थव्यवस्था का बोलबाला है। भविष्य अनिश्चित है फिर भी अनुमान लगाना मनुष्य के स्वभाव और प्रकृति का अभिन्न अंग है।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा का संगठन और कार्य लिखिए।
उत्तर:
महासभा (General Assembly) – महासभा संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च अंग है और एक प्रकार से विश्व की संसद के समान है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य इसके सदस्य होते हैं और प्रत्येक सदस्य राष्ट्र इसमें पाँच प्रतिनिधि भेजता है परन्तु उनका मत एक ही होता है। प्रायः वर्ष में एक बार इसका अधिवेशन होता है। इसकी स्थापना के समय इसके सदस्यों की कुल संख्या 51 थी जो बाद में बढ़ते-बढ़ते अब 185 के लगभग है। 1992 के आरंभ में सोवियत संघ के समाप्त होने से उसके पूर्व स्वायत्त गणराज्य अब स्वतंत्र होकर इसके सदस्य बन गए हैं।

महासभा के प्रमुख कार्य अग्रलिखित हैं-

  1. यह सभा अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सम्बन्धी मामलों पर विचार करती है और निर्णय लेती है।
  2. यह संयुक्त राष्ट्र का बजट पास करती है।
  3. महासभा नये राज्यों को संयुक्त राष्ट्र का सदसय बनाये जाने का निर्णय करती है और किसी पुराने सदस्य की सदस्यता को समाप्त करने का निर्णय ले सकती है।
  4. संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों के सदस्यों का चुनाव महासभा द्वारा होता है।
  5. महासभा अपना प्रधान एक वर्ष के लिए चुनती है।
  6. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश से महासभा द्वारा की जाती है।

प्रश्न 5.
‘किसी देश की सुरक्षा, आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है।’ इस कथन को समझाते हुए बताइए कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विश्व की दो महान शक्तियों ने अपनी सीमाओं के बाहर खतरों पर ध्यान क्यों केन्द्रित किया ?
उत्तर:
1. पारंपरिक धारणा के अनुसार किसी देश की सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था पर अवलंबित होती है। अगर किसी देश के भीतर रक्तपात हो रहा हो अथवा होने की आशंका हो तो वह देश सुरक्षित कैसे हो सकता है? यह बाहर के हमलों से निपटने की तैयारी कैसे करेगा जबकि खुद अपनी सीमा के भीतर सुरक्षित नहीं है? इसी कारण सुरक्षा की परंपरागत धारणा का जरूरी अंदरूनी सुरक्षा से भी है।

2. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया तो इसका कारण यही था कि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। हमने पहले कहा था कि संदर्भ और स्थिति को नजर में रखना जरूरी है। आंतिरक सुरक्षा ऐतिहासिक रूप से सरकारों का सरोकार बनी चली आ रही थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ऐसे हालात और संदर्भ सामने आये कि आतिरक सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं कम महत्त्व की चीज बन गई।

3. सन् 1945 के बाद ऐसा जान पड़ा कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अपनी सीमा के अंदर एकीकृत और शांति संपन्न है। अधिकांश यूरोपीय देशों, खासकर ताकतवर पश्चिमी मुल्कों के सामने अपनी सीमा के भीतर बसे समुदायों अथवा वर्गों से कोई गंभीर खतरा नहीं था। इस कारण इन देशों ने अपना ध्यान सीमापार के खतरों पर केन्द्रित किया।

प्रश्न 6.
‘शक्ति-संतुलन’ क्या है ? कोई देश इसे कैसे कायम करता है ?
उत्तर:
1. परंपरागत सुरक्षा-नीति का एक तत्त्व और है। इसे शक्ति-संतुलन कहते हैं। कोई देश अपने अड़ोस-पड़ोस में देखने पर पाता है कि कुछ मुल्क छोटे हैं तो कुछ बड़े। इससे इशारा मिल जाता है कि भविष्य में किस देश से उसे खतरा हो सकता है। मिसाल के लिए कोई पड़ोसी देश संभव है यह न कहें कि वह हमले की तैयारी में जुटा है हमले का कोई प्रकट कारण भी नहीं जान पड़ता हो। फिर भी यह देखकर कि कोई देश बहुत ताकतवर है यह भांपा जा सकता है कि भविष्य में वह हमलावर हो सकता है इस वजह से हर सरकार दूसरे देश से अपने शक्ति-संतुलन को लेकर बहुत संवेदनशील रहती है।

2. कोई सरकार दूसरे देशों से शक्ति-संतुलन का पलड़ा अपने पक्ष में बैठाने के लिए जी-तोड़ कोशिश करती है। जो देश नजदीक हों, जिनके साथ अनबन हो या जिन देशों के साथ अतीत में लड़ाई हो चुकी हो उनके साथ शक्ति-संतुलन को अपने पक्ष में करने पर खास तौर पर जोर दिया जाता है। शक्ति-संतुलन बनाये रखने को अपने पक्ष में करने पर खास तौर पर जोर दिया जाता है। शक्ति-संतुलन बनाये रखने की यह कवायद ज्यादातर अपनी सैन्य-शक्ति बढ़ाने की होती है लेकिन आर्थिक और प्रौद्योगिकी की ताकत भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सैन्य-शक्ति का यही आधार है।

प्रश्न 7.
भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक क्यों है ? तीन कारण बताकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
I. मानव अधिकार ऐसे अधिकारों को कहते हैं जो कि प्रत्येक मनुष्य को पहचान देने के नाते अवश्य ही प्राप्त होने चाहिए।
II. भारत मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है। इसके तीन प्रमुख कारण अग्रलिखित हैं..

  1. भारत का यह मानना है कि आधुनिक युग में कोई भी स्वतंत्र व लोकतांत्रिक देश मानव अधिकारों के बिना न तो प्रगति कर सकता है और न ही उस देश में शांति स्थापित कर सकती है।
  2. मानव अधिकार ऐसे अधिकार हैं जो कि मानव की उन्नति व प्रगति के लिए अति आवश्यक व महत्त्वपूर्ण हैं।
  3. भारत विश्व शांति तथा मानवता के उत्थान में विश्वास रखता है। इसलिए वह मानव अधिकारों का प्रबल समर्थक है।

प्रश्न 8.
प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस के रूप में क्यों मनाया जाता है ?
उत्तर:
10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में “मानव अधिकार दिवस” के रूप में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि 10 दिसंबर, 1948 ई० को “मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र’ (Charter of Human Rights) स्वीकार किया था। इस घोषणा-पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की सरकारों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे अपने नागरिकों का आदर करेंगी। मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी मनुष्यों को मानव होने के नाते मिलने ही चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक सामाजिक परिषद् ने 1946 ई० में मानव अधिकारों की समस्या के बारे में एक आयोग की नियुक्ति की। आयोग ने 1948 ई० में अपनी रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की महासभा को प्रदान की और संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 ई० को मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र को स्वीकृति दे दी जिसमें 20 मानव अधिकारों की एक सूची का वर्णन किया गया था। अतः प्रति वर्ष 10 दिसंबर को संपूर्ण विश्व में मानव अधिकार दिवस मनाकर प्रत्येक देश की सरकार को यह याद दिलाया जाता है कि वे अपने नागरिकों को उन्नति व विकास के लिए मानव अधिकार प्रदान करें।

प्रश्न 9.
निरस्त्रीकरण शब्द को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निरस्त्रीकरण का अर्थ है कि मानवता का संहार करने वाले अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण बंद हों व आणविक शस्त्रों पर प्रतिबंध लगे। विश्व के अनेक देशों ने अणुबम तथा हाइड्रोजन बम बना लिए हैं और कुछ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय शांति को दिन-प्रतिदिन खतरा बढ़ रहा है। एक देश द्वारा बनाए गए संहारक शस्त्रों का उत्तर दूसरा देश अधिक विनाशक शस्त्रों का निर्माण करके देता है। भारत प्रारंभ से ही निरस्त्रीकरण के पक्ष में रहा है। इस दृष्टि से संसार में होने वाले किसी भी सम्मेलन का भारत ने स्वागत किया है। 1961 ई० में भारत ने अणुबम न बनाने का प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ की साधारण सभा में रखा था। जेनेवा में होने वाले निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंत में हम यह कह सकते हैं कि निरस्त्रीकरण में ही विश्व का कल्याण निहित है।

प्रश्न 10.
‘हरित क्रांति एवं इसके राजनीतिक त्याग’ विषय पर निबंध लिखिए।
उत्तर:
हरित क्रांति (Green Revolution) – हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि की उत्पादन तकनीकी को सुधारने एवं कृषि उत्पादन में तीव्र वृद्धि करने से है। हरित क्रांति के मुख्य तत्व थे-
(i) रासायनिक खादों का प्रयोग, (ii) उन्नत किस्म के बीजों का प्रयोग, (iii) सिंचाई सुविधाओं में विस्तार, (iv) कृषि का मशीनीकरण आदि। हरित क्रांति के प्रयासों के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में बहुमुखी प्रगति हुई है। कृषि क्रांति से पूर्व देश को भारी मात्रा में खाद्यान्नों को आयात करना पड़ता था जबकि आज हमारा देश इस क्षेत्र में लगभग आत्मनिर्भर हो गया है। यद्यपि राष्ट्र को हरित क्रांति से लाभ हुआ परंतु प्रयोग की जानेवाली तकनीकी जोखिम से मुक्त नहीं थी। इसके बारे में संक्षेप में दो संशय थे- (i) इससे छोटे तथा बड़े किसानों के बीच असमानता बढ़ जायेगी और (ii) उन्नत किस्म के बीजों पर जीव-जन्तु शीघ्र आक्रमण करते हैं, परंतु ये दोनों संशय सही नहीं निकले।

हरित क्रांति के राजनैतिक त्याग (Political Sacrifies of the Green Revolution)-

  • भुखमरी राज्य की स्थिति से भारत- खाद्यान्न निर्माण करने वाले राज्य के रूप में परिवर्तित हो गया। इस गतिविधि ने राष्ट्रों के सौहाद्रं से, विशेषकर तीसरी दुनिया से काफी प्रशंसा प्राप्त की।
  • हरित क्रांति उन तत्वों में से एक था जिसने श्रीमती इंदिरा गांधी (1967-84) तथा उनके दल, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को, भारत में एक शक्तिशाली राजनीति शक्ति बना डाला।
  • हरित क्रांति सभी हिस्सों और जरूरतमंद किसानों को फायदा नहीं पहुंचा सकी। 1950 से 1980 के बीच भारत की अर्थव्यवस्था सालाना 3-3.5 प्रतिशत की धीमी रफ्तार से आगे बढ़ी।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उद्यमों में भ्रष्टाचार और अकुशलता का जोर बढ़ा। नौकरशाही भी आर्थिक विकास में ज्यादा सकारात्मक भूमिका नहीं निभा रही थी। सार्वजनिक क्षेत्र अथवा नौकरशाही के प्रति शुरू-शुरू में लोगों में गहरा विश्वास था लेकिन बदले हुए माहौल में यह विश्वास टूट गया। जनता का भरोसा टूटता देख नीति-निर्माताओं ने 1980 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में राज्य भूमिका को कम कर दिया।

प्रश्न 11.
कश्मीर समस्या पर एक लघु निबंध लिखें।
उत्तर:
अगस्त 14-15 मध्यरात्रि 1947 ई० में जब ब्रिटिश ने भारत को भारत तथा पाकिस्तान में विभाजित किया था, तब उत्कृष्ट (Pre-dominently) रूप में मुसलमान राज्य पर अलोकप्रिय तथा निरकुंश महाराजा हरी सिंह कश्मीर तथा जम्मू पर शासन कर रहा था और इसने शायद इस आशा में कि वह भारत तथा पाकिस्तान से भिन्न एक स्वतंत्र एवं स्वायत्त शासन स्थापित कर सकेगा, दोनों राज्यों में से किसी एक में भी विलय होने के दबाव का प्रतिरोध किया। समय को टालने तथा अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने पाकिस्तान के साथ अगस्त, 16, 1947 को एक समझौता किया और ऐसा ही एक समझौता भारत के साथ करने की ठानी।

कश्मीर के पश्चिमी भाग में मुसलमानों के महाराजा के विरुद्ध बगावत की और अपनी ही स्वतंत्र (आजाद) कश्मीर सरकार की स्थापना की। इस अवसर पर लाभ उठाने के लिए तथा कश्मीर के अवशेष राज्य को पाकिस्तान में सम्मिलित कराने के लिए 22 अक्टूबर, 1947 ई. को उत्तरी-पश्चिम सीमा प्रांत (NWFP) के सशस्त्र-पठान कबीलों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। वह उस राज्य की राजधानी श्री नगर के पंद्रह मील दूर तक पहुंच गए थे। इस आक्रमण से सावध न होकर हरी सिंह ने भारत से सैनिक सहायता की माँग की परंतु भारत ने तब तक मदद करने से इंकार कर दिया जब तक महाराजा ‘सम्मिलन के दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं कर देता।

यह एक ऐसी मानक प्रक्रिया थी जिसके अंतर्गत अन्य देशी नरेशों के राज्य भारत अथवा पाकिस्तान के साथ सम्मिलित हुए। नेशनल कान्फ्रेंस दल के धर्म-निरपेक्ष तथा लोकप्रिय नेता शेख अब्दुला से सहमति प्राप्त होने के पश्चात् भारत ने इस सम्मेलन को स्वीकार किया। हरी सिंह ने इस समझौते पर 27 अक्टूबर, 1947 ई० को हस्ताक्षर किए और उसी दिन भारतीय सेना ने छापामारों को पीछे धकेलने के लिए कश्मीर में प्रवेश किया।

भारतीय सेना को तुरंत जम्मू-कश्मीर भेजा गया। भारत इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में भी ले गया और पाकिस्तान पर आक्रमण करने का आरोप लगाया। संयुक्त राष्ट्र ने एक जनवरी 1949 ई. को युद्ध विराम लागू करवाया । पाकिस्तान द्वारा अधिगृहीत कश्मीर को खाली कराने के लिए भारत के आग्रह के बावजूद पाकिस्तान ने इसे खाली नहीं किया। जम्मू और कश्मीर की जनता द्वारा निर्वाचित संविधान सभा ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।

कबाइलियों की सहायता से जम्मू-कश्मीर को हड़पने के पाकिस्तान के प्रयास विफल रहे। बाद के वर्षों में पाकिस्तान अलग-अलग समय पर भिन्न-भिन्न तरीकों को अपनाता रहा। इन तरीकों में पाकिस्तान का पश्चिमी सैन्य गुट में शामिल होना, पाकिस्तान अधिकृत भारतीय क्षेत्र का एक भाग चीन को सौंपना, भारत के विरूद्ध खुला आक्रमण, सीमा पर आतंकवाद और जम्मू-कश्मीर के घुसपैठ सम्मिलित है।

प्रश्न 12.
“मुल्कों की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय संगठनों को बनाने और मजबूत करने पर टिकी है।” इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर:
प्रत्येक देश की शांति और समृद्धि क्षेत्रीय आर्थिक संगठनों के निर्माण और उन्हें सुदृढ़ बनाने पर टिकी है क्यों क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बनने पर कृषि, उद्योग-धंधों, व्यापार, यातायात, आर्थिक संस्थाओं आदि को बढ़ावा देती है। ये आर्थिक संगठन बनेंगे तो लोगों को प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में रोजगार मिलेगा। रोजगारी गरीबी को दूर करती है। समृद्धि का प्रतीक राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय का बढ़ाना प्रमुख सूचक है।

जब लोगों को रोजगार मिलेगा, गरीबी दूर होगी तो, आर्थिक विषमता कम करने के लिए साधारण लोग भी अपने-अपने आर्थिक संगठनों में आवाज उठाएँगे। श्रमिकों को उनका उचित हिस्सा, अच्छी मजदूरियों/वेतनों, भत्तों, बोनस आदि के रूप में मिलेगा तो उनकी क्रय शक्ति बढेगी। वे अपने परिवार के जनों को शिक्षा, स्वास्थ्य, यातायात, संवादवहन आदि की अच्छी सुविधाएँ प्रदान करेंगे। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन बाजार शक्तियों और देश की सरकारों की नीतयों से गहरा संबंध रखती है।

हर देश अपने यहाँ कृषि, उद्योगों और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए परस्पर क्षेत्रीय राज्यों (देशों) से सहयोग माँगते हैं और उन्हें पड़ोसियों को सहयोग देना होता है। वे चाहते हैं कि उनके उद्योगों को कच्चा माल मिले वे अतिरिक्त संसाधनों का निर्यात करना चाहते हैं। ये तभी संभव होगा जब क्षेत्रों और राष्ट्रीय स्तर पर शांति होगी। बिना शांति के विकास नहीं हो सकता। क्षेत्रीय आर्थिक संगठन पूरा व्यय नहीं कर सकते। पूरा उत्पादन हुए बिना समृद्धि नहीं आ सकती। संक्षेप में क्षेत्रीय आर्थिक संगठन विभिन्न देशों में पूँजी निवेश, श्रम गतिशीलता, यातायात सुविधाओं के विस्तार, विद्युत उत्पादन वृद्धि में सहायक होते हैं। यह सब मूल्कों की शांति और समृद्धि को सुदृढ़ता प्रदान करते हैं।

प्रश्न 13.
दक्षिणी-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान) के परिणामों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(i) बुनियादी रूप से आसियान एक आर्थिक संगठन था और वह ऐसा ही बना रहा। आसियान क्षेत्र की कुल अर्थव्यवस्था अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान की तुलना में काफी छोटी है पर इसका विकास इन सबसे अधिक तेजी से हो रहा है। इसके चलते इस क्षेत्र में और इससे बाहर इसके प्रभाव में तेजी से वृद्धि हो रही है।

(ii) आसियान आर्थिक समुदाय का उद्देश्य आसियान देशों का साझा बाजार और उत्पादन आधार तैयार करना तथा इस इलाके के सामाजिक और आर्थिक विकास में मदद करना है। यह संगठन इस क्षेत्र के देशों के आर्थिक विवादों को निपटाने के लिए बनी मौजूदा व्यवस्था को भी सुधारना चाहेगा।

(iii) आसियान ने निवेश, श्रम और सेवाओं के मामले में मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने पर भी ध्यान दिया है। इस प्रस्ताव पर आसियान के साथ बातचीत करने की पहल अमेरिका और चीन ने कर भी दी है।

(iv) आसियान तेजी से बढ़ता हुआ एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। इसके विजन दस्तावेज 2020 ई० में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में आसियान की एक बहिर्मुखी भूमिका को प्रमुखता दी गई है। आसियान द्वारा अभी टकराव की जगह बातचीत को बढ़ावा देने की नीति से ही यह बात निकली है। इसी तरकीब से आसियान ने कंबोडिया के टकराव को समाप्त किया, पूर्वी तिमोर के संकट को सँभाला है और पूर्व-एशियाई सहयोग पर बातचीत के लिए 1999 ई० से नियमित रूप से वार्षिक बैठक आयोजित की है।

(v) आसियान की मौजूदा आर्थिक शक्ति, खासतौर से भारत और चीन जैसे तेजी से विकसित होने वाले एशियाई देशों के साथ व्यापार और निवेश के मामले में उसकी प्रासंगिता ने इसे और भी आकर्षण बना दिया है। शुरुआती वर्षों में भारतीय विदेश नीति ने आसियान पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लेकिन हाल के वर्षों में भारत ने अपनी नीति सुधारने की कोशिश की है। भारत ने दो आसियान सदस्यों, सिंगापुर और थाईलैंड के साथ मुक्त व्यापार का समझौता किया है।

(vi) भारत आसियान के साथ भी मुक्त व्यापार संधि करने का प्रयास कर रहा है। आशियान की असली ताकत अपने सदस्य देशों, सहभागी सदस्यों और बाकी गैर-क्षेत्रीय संगठनों के बीच निरंतर संवाद और परामर्श करने की नीति में है। यह एशिया का एकमात्र ऐसा क्षेत्रीय संगठन है जो एशियाई देशों और विश्व शक्तियों को राजनैतिक और सुरक्षा मामलों पर चर्चा के लिए राजनैतिक मंच उपलब्ध कराता है।

प्रश्न 14.
भारत में गठबंधन राजनीति की आवश्यकता एवं संभावना पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
भारत में एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली पर पहला आघात 1967 में हुआ जब कई राज्यों में गैर कांग्रेसी गठबंधन सरकारें स्थापित की गयीं। 1977 में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की राजनीति का पुनः प्रयोग परिवर्तित रूप में किया गया। विभिन्न विचारधाराओं और नेतृत्वों पर आधारित राजनीतिक दलों को मिलाकर जनता पार्टी का गठन किया गया। जनता पार्टी तकनीकी रूप में एक दल था किन्तु व्यवहारतः यह एक गठबंधन ही था। यह प्रयोग भी असफल रहा।

1989 के बाद भारतीय राजनीति में क्रांतिकारी परिवर्तन आया। कांग्रेस दिनों-दिन कमजोर होती चली गई। दूसरी ओर भाजपा की लोकप्रियता में अप्रत्याशित वृद्धि हुई । राज्यों में क्षेत्रीय दलों का भी विकास होने लगा। बिहार में राजद, जद (यु), उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी तथा बसपा, आंध्रप्रदेश में तेलगुदेशम, पंजाब में अकालीदल, महाराष्ट्र में शिवसेना आदि क्षेत्रीय दल प्रभावी स्थिति में आ गये। कांग्रेस का बार-बार विघटन होने लगा। कांग्रेस के परम्परागत वोट बैंक-ब्राह्मण, हरिजन तथा अल्पसंख्यक में भी दरार पैदा हो गया।

इन समस्त परिस्थितियों का प्रभाव पड़ा कि कोई भी दल अपने बलबूते सरकार बनाने की स्थिति में नहीं रहा। इस कारण गठबंधन राजनीति का दौर प्रारंभ हुआ।

इस दौर में भी पहला प्रयास अल्पमत सरकारों के गठन का किया गया। इसमें बाह्य समर्थन के आधार पर सरकारें बनाई गई।

अल्पमत सरकारों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह थी कि बाह्य समर्थन देनेवाला दल जहाँ समर्थन दिये जाने का मूल्य वसूलता था वहाँ उत्तरदायित्व के निर्वाह से साफ बच निकलता था। अतः ऐसी आवश्यकता महसूस की गई कि समर्थन देने वाली सभी पार्टियाँ मिलकर सरकार बनाएँ। वे साथ रहकर सामूहिक दायित्व का निर्वाह करें।

गठबंधन सरकार के सफल संचालन का प्रथम श्रेय श्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिया जा सकता है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन० डी० ए०) के नाम से उन्होंने सरकार बनाई जो करीब 5 वर्षों से अधिक तक चलती रही। इसे देखकर कांग्रेस ने भी गठबंधन राजनीति से जुड़ने का निर्णय लिया। उसके नेतृत्व में गठित संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा (संप्रग) अपना कार्यकाल पूरा किया और फिर 2009 में सरकार बनी। मनमोहन सिंह इस सरकार के प्रधानमंत्री हैं।

इस प्रकार भारतीय राजनीति गठबंधन की राजनीति के दौर से गुजर रही है। लोकसभा का अगला चुनाव भी दोनों गठबंधनों के बीच हुआ। गठबंधन की रक्षा, सरकार को बचाये रखना, गठबंधन हेतु नये सहयोगियों की खोज, राजनीति प्रक्रिया का मुख्य आयाम हो जाता है।

भविष्य में उम्मीद की जाती है कि गठबंधन राजनीति द्विध्रुवीय राजनीति के रूप में स्थायी रूप ले सकेगा। ऐसा होने पर संसदीय व्यवस्था मजबूत होगी।

प्रश्न 15.
मूलवासी और उनके अधिकार विषय पर निबंध लिखें।
उत्तर:
मूलवासी और उनके अधिकार (Indegenous people and their rights) – मूलवासियों का सवाल पर्यावरण, संसाधन और राजनीति को एक साथ जोड़ देता है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1982 में इनकी एक-एक कामकाजी परिभाषा दी। इन्हें ऐसे लोगों का वंशज बताया गया जो आज मौजूद किसी देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे थे। फिर भी वे लोग किसी दूसरी संस्कृति अथवा जातीय मूल के लोग विश्व के दूसरे हिस्से से उस देश में आये और इन लोगों को अधीन बना लिया। किसी देश के ‘मूलवासी’ आज भी उस देश की संस्थाओं के अनुरूप आचरण करने से ज्यादा अपनी परंपरा, सांस्कृतिक रिवाज तथा अपने खास सामाजिक, आर्थिक ढर्रे पर जीवनयापन करना पसंद करते हैं।

(ii) भारत सहित विश्व के विभिन्न हिस्सों में मौजूद लगभग 30 करोड़ मूलवासियों के सर्व सामान्य विश्व राजनीति के संदर्भ में क्या हैं ? फिलीपीन्स के कोरडिलेस क्षेत्र में 20 लाख मूलगसी लोग रहते हैं। चीले में मापुशे नाम मूलवासियों की संख्या 10 लाख है। बांग्लादेश के चटगाँव पर्वतीय क्षेत्र में 600000 आदिवासी हैं। उत्तरी अमेरिकी मूलवासियों की संख्या 3 लाख 50 हजार, पनामा नहर के पूरब में कुना नामक मूलवासी 50000 की तादाद में हैं और उत्तरी सोवियत में ऐसे लोगों की आबादी 10 लाख है। दूसरी सामाजिक आंदोलनों की तरह मूलवासी भी अपनी संघर्ष एजेंडा और अधिकारों की आवाज उठाते हैं।

(iii) विश्व राजनीति में मूलवासियों की आवाज विश्व बिरादरी में बराबरी का दर्जा पाने के लिए उठी है। मूलवासियों के निवास पहले स्थान मध्य और दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा भारत में हैं जहाँ इन्हें आदिवासी अथवा जनजाति कहा जाता है।

(iv) ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड समेत ओसियन क्षेत्र के बहुत-से द्वीपीय देशों में हजारों सालों से पॉलिनेशिया, मैलनेशिया और माइक्रोनेशिया वंश के मूलवासी रहते हैं। सरकारों से इनकी माँग है कि इन्हें मूलवासी कौम के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान रखने वाला समुदाय माना जाए। अपने मूल वासस्थान पर अपने हक की दावेदारी में विश्व भर के मूलनिवासी यह जुमला इस्तेमाल करते हैं कि हम यहाँ अनंत काल से रहते चले आ रहे हैं। भौगोलिक रूप से चाहे मूलवासी अलग-अलग जगहों पर न कायम है लेकिन जमीन और उस पर आधारित विभिन्न जीवन प्रणालियों के बारे में इनकी विश्व दृष्टि आश्चर्यजनक रूप से एक जैसी है। भूमि की हानि का अर्थ है, आर्थिक संसाधनों के एक आधार को हानि और मूलवासियों के जीवन के लिए बहुत बड़ा खतरा है। उस राजनीतिक आजादी का क्या मतलब जो जीने के लिए साधन ही न मुहैया कराये ?

(v) भारत में ‘मूलवासी’ के लिए अनुसूचित जनजाति या आदिवासी शब्द का प्रयोग किया जाता है जो कुल जनसंख्या के आठ प्रतिशत हैं। अपवादस्वरूप कुछेक घुमन्तू जनजातियों को छोड़ दें तो भारत की अधिकांश आदिवासी जनता अपने जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर हैं। सदियों से ये लोग बेधड़क जितनी बन पड़े उतनी जमीन पर खेती करते आ रहे थे, लेकिन ब्रितानी औपनिवेशिक शासन कायम होने के बाद से जनजातीय समुदायों का सामना बाहरी लोगों से हुआ।

(vi) यद्यपि राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिहाज से इनको संवैधानिक सुरक्षा हासिल है लेकिन देश के विकास का इन्हें ज्यादा लाभ नहीं मिल सका है। आजादी के बाद से विकास की बहुत-सी समुदाय सबसे बड़ा है। दरअसल इन लोगों ने विकास की बहुत बड़ी कीमत चुकायी है।

(vii) मूलवासी समुदायों के अधिकारों से जुड़े मुद्दे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय जनजाति में लम्बे समय तक अपेक्षित रहे। हाल के दिनों में इस सवाल पर ध्यान दिया जाने लगा है।

(viii) 1970 के दशक में विश्व के विभिन्न भागों के मूलवासियों के नेताओं के बीच संपर्क बढ़ा। इससे इनके साझे अनुभवों और सरोकारों को एक शक्ल मिली। 1975 में वर्ल्ड काउंसिल ऑफ इंडिजिनस पीपुल का गठन हुआ। संयुक्त राष्ट्रसंघ में सबसे पहले इस परिषद् को परामर्शदायी परिषद् का दर्जा दिया गया। इसके अतिरिक्त आदिवासियों के सरोकारों से सम्बद्ध 10 अन्य स्वयंसेवी संगठन को भी यह दर्जा दिया गया है।

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 1

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 1 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Important Questions Short Answer Type Part 1

प्रश्न 1.
सर्जिकल स्ट्राइक 2 क्या है ?
उत्तर:
कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को आतंकवादियों ने बम विस्फोट कर 40 भारतीय सैनिकों को मौत के घाट सुला दिया। इसके जवाब में भारतीय वायु सैनिकों ने 26 फरवरी, 2019 को पाकिस्तान के बालाकोट में बम गिराकर उसके करीब 300 आतंकवादियों को मार डाला एवं उसके आतकंवादी ट्रेनिंग सेंटर को बर्बाद कर वापस आ गया। भारतीय सैनिकों द्वारा इस कार्रवाई को सर्जिकल स्ट्राइक 2 कहा गया है।

प्रश्न 2.
ग्राम पंचायत के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
ग्राम पंचायत के निम्नलिखित कार्य है-

  • पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वार्षिक योजना तथा वार्षिक बजट तैयार करना।
  • प्राकृतिक विपदा में सहायता करने का कार्य।
  • सार्वजनिक सम्पत्ति से अतिक्रमण हटाना और
  • स्वैच्छिक श्रमिकों को संगठित करना और सामुदायिक कार्यों में स्वैच्छिक सहयोग करना।

प्रश्न 3.
भाषा नीति क्या है ?
उत्तर:
भाषा के चलते देश में किसी प्रकार की अड़चन या बलवा न होने देना भाषा नीति कहलाती है। भारत में 114 भाषाएँ बोली जाती हैं। हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है। संविधान के अनुसार सरकारी काम काज की भाषा में अंग्रेजी के प्रयोग के निषेध के बावजूद गैर हिन्दी भाषी प्रदेशों की माँग के कारण अंग्रेजी का प्रयोग जारी है। तमिलनाडु में इसके लिए उग्र आंदोलन हुआ। इस विवाद को सरकार ने हिन्दी या अंग्रेजी भाषा के प्रयोग को मान्यता देकर सुलझाया।

प्रश्न 4.
नगर निगम के क्या कार्य है ?
उत्तर:
नगर निगम नागरिकों की स्थानीय आवश्यकता एवं सुख-सुविधा के लिए अनेक कार्य करता है। नगर निगम के कुछ कार्य निम्नलिखित हैं-

  • नगर क्षेत्र की नालियों, पेशाबखाना, शौचालय आदि का निर्माण करना एवं उसकी देखभाल करना।
  • कूड़ा-कर्कट तथा गंदगी की सफाई करना।
  • पीने के पानी का प्रबंध करना।
  • गलियों, पुलों एवं उद्यान की सफाई एवं निर्माण करना।
  • मनोरंजन गृह का प्रबंध करना।
  • आग बुझाने का प्रबंध।
  • दुग्धशाला की स्थापना एवं प्रबंध करना।
  • खतरनाक व्यापारों की रोकथाम, खतरनाक जानवरों तथा पागल कुत्तों को मारने का प्रबंध करना।
  • विभिन्न कल्याण केन्द्रों जैसे मृत केन्द्र, शिशु केन्द्र, वृद्धाश्रम की स्थापना एवं देखभाल करना।
  • जन्म-मृत्यु का पंजीकरण का प्रबंध करना।
  • नगर की जनगणना करना।
  • नये बाजारों का निर्माण करना।
  • नगर में बस चलवाना।
  • श्मशानों तथा कब्रिस्तानों की देखभाल करना।
  • गृह उद्योग तथा सहकारी भंडारों की स्थापना करना आदि।

प्रश्न 5.
पंचायती राज में सरपंच की शक्तियों की व्याख्या करें।
उत्तर:
सरपंचं गाँव का मुखिया होता है उसे गाँव के मुखिया के रूप में गाँव की भलाई के लिए फैसले लेने होते हैं और ग्राम पंचायत के लिए जो कार्य ऊपर लिखे गए हैं उनमें सरपंच की अहम भूमिका होती है। इन सभी कार्यों को करने की उसकी जिम्मेवारी होती है और उसका दायित्व होता है की गाँव की भलाई के लिए वह हर सामाजिक कार्य करे जिससे जन-जन का भला होता हो। उसे सभी के सुख-दुःख में शामिल होना चाहिए व एक सच्चे सेवक की भांति कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 6.
पंचायती राजव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
पंचायती राजव्यवस्था उस व्यवस्था को कहते हैं जिसके द्वारा गाँव के लोगों को अपने गाँवों का प्रशासन तथा विकास स्वयं अपनी इच्छा तथा आवश्यकतानुसार करने का अधिकार दिया गया है। गाँव के लोग अपने इस अधिकार का प्रयोग पंचायतों द्वारा करते हैं। इसलिए इसे पंचायती राज कहा जाता है। पंचायती राज एक त्रिस्तरीय (Three tier) ढाँचा है, जिसका निम्नतम स्तर ग्राम पंचायत का है और उच्चतम स्तर जिला परिषद् का और बीच वाला स्तर पंचायत समिति का। 73वें संविधान संशोधन के अनुसार जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है। उन राज्यों में पंचायती राज की दो स्तरीय प्रणाली की व्यवस्था की गई है। पंचायती राज के प्रत्येक स्तर पर शक्तियों का वितरण किया गया है और प्रत्येक स्तर पर लोग प्रशासन को चलाने में भाग लेते हैं।

प्रश्न 7.
न्यायिक पुनर्रावलोकन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
न्यायिक पुनर्रावलोकन उस प्रक्रिया को कहते है जिसके अन्तर्गत कार्यकारिणी के कार्यों की न्यायपालिका द्वारा पुर्नरीक्षा का प्रावधान हो। दूसरे शब्दों में न्यायिक पुनर्रावलोकन से तात्पर्य न्यायालय की उस शक्ति से है, जिस शक्ति के बल पर वह विधायिका द्वारा बनाये कानूनों कार्यपालिका द्वारा जारी किये गये आदेशों तथा प्रशासन द्वारा किये गये कार्यों की जाँच करती है कि वह मूल ढांचे के अनुरूप है या नहीं। मूल ढाँचे के प्रतिकूल होने पर न्यायालय उसे घोषित करती है। न्यायिक पुनरावलोकन की उत्पति सामान्यतः संयुक्त राज्य अमेरिका से मानी जाती है।

प्रश्न 8.
भारत की राजनीति में जाति की भूमिका का वर्णन करें।
उत्तर:
कहा जाता है कि सामुदायिक समाज की संरचना का आधार जाति है क्योंकि एक जाति के लोग ही स्वाभाविक समुदाय का निर्माण करते हैं। इन समुदायों के लोगों के समान हित होते हैं। दूसरे अन्य समुदाय के हितों से उनका हित भिन्न होता है। जाति हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। राजनीति में जाति के अनेक पहलू हो सकते हैं-

(i) निर्वाचन के वक्त पार्टी प्रत्याशी तय करते समय जातीय समीकरण का ध्यान जरूर रखती है। चुनाव क्षेत्र में जिस जाति विशेष की मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक होती है, पार्टियाँ उस जाति के हिसाब से प्रत्याशी तय करती हैं ताकि उन्हें चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट मिल जाए। सरकार गठन के समय भी जातीय समीकरण को ध्यान में रखा जाता है।

(ii) राजनीतिक पार्टियाँ जीत हासिल करने हेतु जातिगत भावना को भड़काने की कोशिश करती हैं। कुछ दल-विशेष की पहचान भी जातिगत भावना के आधार पर हो जाती है।

(iii) निर्वाचन के समय पार्टियाँ वोटरों के बीच साख बनाने हेतु अपना चेहरा स्वच्छ और जाति भावना से ऊपर बनाने की कोशिश करती हैं।

(iv) दलित और नीची जातियों का भी महत्त्व निर्वाचन के समय बढ़ जाता है। उच्च वर्ग या जाति के उम्मीदवार भी नीची जातियों के सम्मुख नम्र भावना से जाते हैं और उनके मत हासिल करने हेतु अनुनय-विनय करते हैं। इन अवसरों पर नीची जातियों में भी आत्म गौरव जागृत होता है और स्वाभिमान जगता है अर्थात् इन जातियों में राजनीतिक चेतना के सुअवसर प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 9.
मौलिक अधिकार क्या है ?
उत्तर:
मौलिक अधिकार उन आधारभूत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण अधिकारों को कहा जाता है जिनके बिना देश के नागरिक अपने जीवन का विकास नहीं कर सकते। जो स्वतंत्रताएँ तथा अधि कार व्यक्ति तथा व्यक्तित्व का विकास करने के लिए समाज में आवश्यक समझे जाते हों, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। भारतीय संविधान में सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है परन्तु 44वें संशोधन के बाद 6 तरह के मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं। ये अधिकार हैं-

  • समानन्ना का अधिकार
  • संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार।

प्रश्न 10.
बांग्लादेश के उदय के कारण बताइए।
उत्तर:
अयूब खाँ के ‘बुनियादी लोकतंत्र’ के प्रति पाकिस्तानियों का मोहभंग हो चुका था। पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान की भौगोलिक दूरी के कारण दोनों भागों की संस्कृति में भी अंतर था। 1970 के चुनाव के बाद पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने बंगालियों की न्यायोचित माँगों को ठुकरा दिया था। 1971 ई० में वहाँ गृह युद्ध शुरू हो गया था। लाखों शरणार्थी भारत आ गए। भारत ने मानवीय आधार पर उनको शरण दी। इसके विरोधस्वरूप 3 दिसम्बर, 1971 ई० को पाकिस्तान ने भारत के हवाई अड्डों पर आक्रमण कर दिया। भारतीय सेना ने बड़े वेग से जवाबी कार्यवाही की। पाकिस्तान युद्ध हार गया और उसका पूर्वी बंगाल का भाग स्वतंत्र होकर बांग्लादेश के रूप में उदित हुआ।

प्रश्न 11.
‘शिमला समझौते’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
आधुनिक बांग्लादेश 1971 से पूर्व पाकिस्तान का एक भाग था। 1971 में वहाँ गृह युद्ध शुरू हो जाने के कारण लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आये। भारत ने मानवीय आधार पर उनको शरण दी। इसके विरोधस्वरूप पाकिस्तान ने 3 दिसंबर, 1971 को भारत के हवाई अड्डों पर धावा बोल दिया। भारतीय सेना ने बड़े वेग से जवाबी कार्यवाही की। पाकिस्तान युद्ध हार गया और उसका पूर्वी बंगाल का भाग स्वतंत्र होकर बांग्लादेश के रूप में उदित हुआ।

युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंधों को सामान्य बनाने के लिए 3 जुलाई, 1972 को दोनों देशों के प्रधानमंत्री के बीच शिमला में एक समझौता हुआ। दोनों देशों ने यह करार किया कि भारत व पाकिस्तान के बीच डाक-तार सेवा फिर से चालू की जाएगी तथा आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की मदद करेंगे।

प्रश्न 12.
शिमला समझौते के दो मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शिमला समझौते के दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • नियंत्रण रेखा से दोनों देशों की सेनाओं की वापसी की जाए अर्थात् जीता हुआ प्रदेश वापस किया जाए।
  • भारत द्वारा बंदी बनाए गए एक लाख सैनिकों की रिहाई।

प्रश्न 13.
कोलम्बो योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
1962 ई० की सैनिक भिड़न्त के कुछ समय बाद ही सीमा विवाद के हल के लिए छ: अफ्रो-एशियाई देशों ने कोलम्बो योजना पेश की। इसमें तत्कालीन मौजूदा स्थिति को समझौते का आधार प्रदान करने पर बल दिया गया तथा चीन से कहा गया कि वह पश्चिमी क्षेत्र से अपनी सेना 20 किमी० पीछे हटा ले और इस क्षेत्र में दोनों देशों का नागरिक प्रशासन कायम हो। पूर्वी क्षेत्र में यथास्थिति का सुझाव दिया गया। चीन के इस योजना को मानने से इंकार किया यद्यपि भारत मानने को तैयार था।

प्रश्न 14.
भारत-बांग्लादेश के बीच विवाद के मुख्य मुद्दे क्या हैं ?
उत्तर:
भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं-

  • नदी जल विवाद,
  • शरणार्थियों की समस्या,
  • बांग्लादेशी नागरिकों की भारत में अवैध घुसपैठ,
  • काँटेदार बाड़ का विवाद,
  • चकमा शरणार्थियों की वापसी की समस्या।

प्रश्न 15.
सार्क के सदस्य देशों के नाम बताइए।
उत्तर:
सार्क देशों में भारत, मालदीव, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, भूटान, नेपाल एवं अफगानिस्तान सम्मिलित हैं। इनका मुख्यालय काठमांडू (नेपाल) में हैं।

प्रश्न 16.
मार्शल योजना क्या थी ?
उत्तर:
यह योजना अमेरिकी विदेश मंत्री के नाम पर ‘मार्शल योजना’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस योजना के फलस्वरूप बहुत कम समय में यूरोपीय देशों की आर्थिक स्थिति युद्ध पूर्व स्तर पर आ गई। आने वाले वर्षों में पश्चिम यूरोपीय देशों की व्यवस्था में बहुत तेजी से विकास हुआ।

प्रश्न 17.
यूरोपीय आर्थिक समुदाय (EEC) से आप क्या समझते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यूरोपीय आर्थिक संघ (EEC)- यूरोपीय आर्थिक संघ शीत युद्ध के दौरान हुए सभी समुदायों में सबसे अधिक प्रभावशाली समुदाय था। इसे यूरोपीय सामान्य बाजार भी कहा जाता था। इसमें फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, इटली, नीदरलैंड, बेल्जियम तथा लक्जमबर्ग शामिल थे। इस संगठन का निर्माण यूरोपीय कोयला और स्टील समुदाय की प्रेरणा से हुआ। इस समुदाय में पहले पाँच वर्षों (1951-56) में इस्पात के उत्पादन में 50 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।

यूरोपियन आर्थिक संघ के संस्थापक सदस्यों ने आपस में सभी प्रकार के सीमा कर तथा कोटा प्रणाली समाप्त करके मुक्त व्यापार अथवा खुली स्पर्धा का मार्ग प्रशस्त किया। 1961 ई० तक यूरोपियन आर्थिक संघ एक सफल संगठन बन गया। इसकी सफलता को देखते हुए 1973 ई० में ब्रिटेन भी इसमें शामिल हो गया।

प्रश्न 18.
यूरोपीय संघ के झंडे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
सोने के रंग के सितारों का घेरा यूरोप के लोगों की एकता और मेलमिलाप का प्रतीक है। इसमें 12 सितारें हैं क्योंकि बारह की संख्या को वहाँ पारंपरिक रूप से पूर्णता, समग्रता और एकता का प्रतीक माना जाता है।

प्रश्न 19.
आसियान के झंडे का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
आसियान के प्रतीक-चिह्न में धान की दस बालियाँ दक्षिण-पूर्व एशिया के दस देशों को इंगित करती हैं जो आपस में मित्रता और एकता के धागे से बँधे हैं। वृत्त आसियान की एकता का प्रतीक है।

प्रश्न 20.
1978 ई० में चीन द्वारा मुक्त द्वार की नीति का परिचय दीजिए।
उत्तर:
1978 ई० के दिसंबर में देंग श्याओपेंग ने ‘ओपेन डोर’ (मुक्त द्वार ) की नीति चलायी। इसके बाद से चीन ने अद्भुत प्रगति की और अगले सालों में एक बड़ी आर्थिक-ताकत के रूप में उभरा। यह तस्वीर चीन में विकास की तेजी से बदलती प्रवृत्तियों का पता देती है।

प्रश्न 21.
आसियान के 10 सदस्य देशों के नाम बताइए।
उत्तर:

  1. इंडोनेशिया,
  2. मलेशिया,
  3. फिलिपींस,
  4. सिंगापुर,
  5. थाइलैंड,
  6. दारुस्सलाम,
  7. वियतनाम,
  8. लाओस,
  9. म्यांमार,
  10. कंबोडिया।

प्रश्न 22.
चीन में विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि लाने के लिए दो कारकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
चीन के द्वारा 1978 में खुले द्वार की नीति विशेषकर व्यापार में सहायक नए कानूनों को अपनाया। इससे विशेष आर्थिक क्षेत्रों (Special economic-zone=spz) के निर्माण में, विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

प्रश्न 23.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत क्यों की?
उत्तर:
चीन भारत का पड़ोसी एवं विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। यह देश अभी कुछ वर्ष पहले तक संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं था। भारत ने सदा चीन की सदस्यता की वकालत की। 1971 में साम्यवादी चीन की सदस्यता संयुक्त राष्ट्र में स्वीकार की गई। भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में चीन की सदस्यता की वकालत जिन कारणों से की गई, उनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-

  1. चीन विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है। भारत ने यह अनुभव किया कि ऐसे देश का विश्व मंच से बाहर रहना विश्व के लिए खतरा हो सकता है।

प्रश्न 24.
लालडेंगा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
लालडेंगा का जन्म 1937 ई० में हुआ। वह मिजो नेशनल फ्रंट के संस्थापक और सबसे ज्यादा ख्याति प्राप्त नेता थे। 1959 ई० में मिजोरम में पड़े भयंकर अकाल और उस समय की असम सरकार द्वारा उस समय के अकाल की समस्या के समाधान में विफल होने के कारण वे देश-विद्रोही बन गए।

प्रश्न 25.
आनंदपुर साहिब प्रस्ताव का सिखों एवं देश पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
आनदंपुर साहिब प्रस्ताव का सिख जन-समुदाय पर बड़ा कम असर पड़ा। कुछ साल बाद जब 1980 ई० में अकाली दल की सरकार बर्खास्त हो गई तो अकाली दल ने पंजाब तथा पड़ोसी राज्यों के बीच पानी के बँटवारे के मुद्दे पर एक आंदोलन चलाया।

प्रश्न 26.
1990 ई० के दशक के मध्यवर्ती वर्षों में पंजाब में शांति किस तरह आ गई और इसके क्या अच्छे परिणाम दिखाई दिए ?
उत्तर:
यद्यपि 1992 ई० में पंजाब राज्य में आम चुनाव हुए लेकिन गुस्से में आई जनता ने दिल से मतदान में पूरी तरह भाग नहीं लिया। केवल 22 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान का प्रयोग किया। यद्यपि उग्रवाद को सुरक्षाबलों ने अंततः दबा दिया लेकिन अनेक वर्षों तक पूरी जनता-हिंदू और सिख दोनों को ही कष्ट और यातनाएँ झेलनी पड़ी।

प्रश्न 27.
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं पर आंतरिक क्षेत्रीय नीतियों के हिसाब से क्या उल्लेखनीय प्रभाव डाला ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
चीन के साथ हुए युद्ध ने भारत के नेताओं को पूर्वोत्तर की डावांडोल स्थिति के प्रति सचेत किया। यह इलाका अत्यंत पिछड़ी दशा में था और अलग-थलग पड़ गया था। राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिहाज से भी यह इलाका चुनौतीपूर्ण था।

प्रश्न 28.
1962 और 1965 ई० को युद्धों का भारतीय रक्षा व्यय पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
भारत ने अपने सीमित संसाधनों के साथ नियोजित विकास की शुरुआत की थी। पड़ोसी देशों के साथ संघर्ष के कारण पंचवर्षीय योजना पटरी से उतर गई। 1962 ई० के बाद भारत को अपने सीमित संसाधन खासतौर से रक्षा क्षेत्र में लगाने पड़े। भारत को अपने सैन्य ढाँचे का आधुनिकीकरण करना पड़ा। 1962 ई० में रक्षा-उत्पाद विभाग और 1965 में रक्षा आपूर्ति विभाग की स्थापना हुई।

प्रश्न 29.
1962 के बाद 1979 ई० तक भारत-चीन संबंध का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत और चीन के बीच सबंधों को सामान्य होने में करीब दस साल लग गए। 1976 ई० में दोनों देशों के बीच पूर्ण राजनयिक सबंध बहाल हो सके।

प्रश्न 30.
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 ई० अथवा पाक-बांग्लादेश और भारत युद्ध के तीन राजनैतिक प्रभाव लिखिए।
उत्तर:

  1. भारतीय सेना के समक्ष 90,000 सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
  2. बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय के साथ भारतीय सेना ने अपनी तरफ से एकतरफा युद्ध-विराम घोषित कर दिया। बाद में, 3 जुलाई, 1972 को इंदिरा गाँधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला-समझौते पर हस्ताक्षर हुए और इससे अमन की बहाली हुई।

प्रश्न 31.
विदेशी नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
आधुनिक समय में प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए विदेश नीति निर्धारित करनी पड़ती है। संक्षेप में विदेश नीति से तात्पर्य उस नीति से है जो एक राज्य द्वारा अन्य राज्यों के प्रति अपनाई जाती है। वर्तमान युग में कोई भी स्वतंत्र देश संसार के अन्य देशों से अलग नहीं रह सकता। उसे राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जरूरतों को पूरा करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। इस संबंध को स्थापित करने के लिए वह जिन नीतियों का प्रयोग करता है, उन नीतियों को उस राज्य की विदेश नीति कहते हैं।

प्रश्न 32.
भारतीय विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति के वैचारिक मूलाधारों की चर्चा निम्न प्रकार की जा सकती है-

  1. भारत की विदेश नीति का उदय संसार में होने वाले राष्ट्रीय आंदोलनों के युग में हुआ था। अत: यह स्पष्ट है कि भारतीय विदेश नीति का जन्म एक विशेष पर्यावरण में हुआ था।
  2. हमारी विदेश नीति का उदय दूसरे विश्व युद्ध के बाद परस्पर निर्भरता वाले विश्व के दौर में हुआ था।
  3. भारत की विदेश नीति के मूलाधारों को उपनिवेशीकरण के विघटन की प्रक्रिया को भी एक कारक माना जा सकता है।
  4. भारत की विदेश नीति का जन्म उस समय हुआ था जबकि विश्व में सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे।

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 2

BSEB Bihar Board 12th Political Science Important Questions Objective Type Part 2 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Political Science Objective Important Questions Part 2

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रथम एशियाई महासचिव कौन थे ?
(a) बान की मून
(b) यू थांट
(c) कोफी अन्नान
(d) बुतरस घाली
उत्तर:
(b) यू थांट

प्रश्न 2.
ग्राम कचहरी का प्रधान कौन होता है ?
(a) सरपंच
(b) मुखिया
(c) वार्ड सदस्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) सरपंच

प्रश्न 3.
संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति कौन हैं ?
(a) बिल क्लिंटन
(b) जॉर्ज बुश
(c) डोनाल्ड ट्रम्प
(d) बराक ओबामा
उत्तर:
(c) डोनाल्ड ट्रम्प

प्रश्न 4.
योजना आयोग के पदेन अध्यक्ष कौन हैं ?
(a) प्रधानमंत्री
(b) राष्ट्रपति
(c) उप-राष्ट्रपति
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) प्रधानमंत्री

प्रश्न 5.
वर्चस्व के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है ?
(a) इसका अर्थ किसी एक देश की सुवाई या प्राबल्य है
(b) इस शब्द का इस्तेमाल प्राचीन यूनान में एथेन्स की प्रधानता को चिह्नित करने के लिए किया जाता था
(c) वर्चस्वशील देश की सैन्यशक्ति अजेय होती है
(d) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया
उत्तर:
(d) वर्चस्व की स्थिति नियत होती है, जिसने एक बार वर्चस्व कायम कर लिया उसने हमेशा के लिए वर्चस्व कायम कर लिया

प्रश्न 6.
राज्य पुनर्गठन आयोग की स्थापना कब हुई ?
(a) 1953 ई.
(b) 1955 ई.
(c) 1956 ई.
(d) 1958 ई.
उत्तर:
उत्तर:
(a) 1953 ई.

प्रश्न 7.
भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1972 में कौन-सी समझौता पर हस्ताक्षर हुआ ?
(a) फरक्का समझौता
(b) आगरा समझौता
(c) शिमला समझौता
(d) लाहौर समझौता
उत्तर:
(c) शिमला समझौता

प्रश्न 8.
भारत में वर्तमान में कुल कितने संघशासित प्रदेश हैं ?
(a) 6
(b) 7
(c) 8
(d) 9
उत्तर:
(c) 8

प्रश्न 9.
1952 में किस संगठन की स्थापना हुई थी ?
(a) योजना आयोग
(b) वित्त आयोग
(c) राष्ट्रीय विकास परिषद्
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) योजना आयोग

प्रश्न 10.
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना कब हुई ?
(a) 1977
(b) 1980
(c) 1982
(d) 1984
उत्तर:
(a) 1977

प्रश्न 11.
काँग्रेस मुक्त भारत का नारा भारत में किसने दिया है ?
(a) राम मनोहर लोहिया
(b) नरेन्द्र मोदी
(c) जे० पी०
(d) मुलायम सिंह
उत्तर:
(b) नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 12.
ताशकन्द समझौता कब हुआ था?
(a) 1962
(b) 1964
(c) 1966
(d) 1968
उत्तर:
(c) 1966

प्रश्न 13.
गुट निरपेक्ष आन्दोलन की नींव किस सम्मेलन में पड़ी?
(a) बांडुंग सम्मेलन
(b) बेलग्रेड सम्मेलन
(c) काहिरा सम्मेलन
(d) लुसाका सम्मेलन
उत्तर:
(a) बांडुंग सम्मेलन

प्रश्न 14.
भारत में द्वितीय आम चुनाव कब हुआ था ?
(a) 1952
(b) 1955
(c) 1957
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) 1957

प्रश्न 15.
भारत में द्वितीय पंचवर्षीय योजना की शुरुआत कब हुई ?
(a) 1951
(b) 1956
(c) 1961
(d) 1965
उत्तर:
(b) 1956

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति कौन था ?
(a) जार्ज वाशिंगटन
(b) जार्ज बुश
(c) अब्राहम लिंकन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) जार्ज वाशिंगटन

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय विकास परिषद का अध्यक्ष कौन हैं ?
(a) राष्ट्रपति
(b) उप-राष्ट्रपति
(c) प्रधानमंत्री
(d) मुख्य न्यायाधीश
उत्तर:
(c) प्रधानमंत्री

प्रश्न 18.
विश्व श्रम संगठन का मुख्यालय कहाँ है ?
(a) दिल्ली
(b) पेरिस
(c) लंदन
(d) जिनेवा
उत्तर:
(d) जिनेवा

प्रश्न 19.
भारत के प्रथम शिक्षामंत्री कौन थे?
(a) डॉ० बी० आर० अम्बेदकर
(b) के० एम० मुंशी
(c) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(d) अबुल कलाम आजाद
उत्तर:
(d) अबुल कलाम आजाद

प्रश्न 20.
योजना आयोग का गठन कब हुआ?
(a) 1948
(b) 1949
(c) 1950
(d) 1951
उत्तर:
(c) 1950

प्रश्न 21.
यूरोपीय संघ के सदस्यों की मुद्रा क्या है ?
(a) यूरो
(b) डॉलर
(c) रुपया
(d) येन
उत्तर:
(a) यूरो

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन एक राज्य नहीं है ?
(a) असम
(b) मणिपुर
(c) दिल्ली
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(d) इनमें से कोई नहीं

प्रश्न 23.
उत्तर प्रदेश में किस दल की सरकार है ?
(a) समाजवादी दल
(b) बहुजन समाज पार्टी
(c) भाजपा
(d) काँग्रेस
उत्तर:
(c) भाजपा

प्रश्न 24.
भारत-चीन युद्ध कब हुआ?
(a) 1962
(b) 1963
(c) 1964
(d) 1965
उत्तर:
(a) 1962

प्रश्न 25.
सार्क का मुख्यालय कहाँ है ?
(a) नई दिल्ली
(b) इस्लामाबाद
(c) काठमाण्डू
(d) ढाका
उत्तर:
(d) ढाका

प्रश्न 26.
बांग्लादेश का निर्माण किस वर्ष हुआ?
(a) 1970
(b) 1971
(c) 1972
(d) 1973
उत्तर:
(b) 1971

प्रश्न 27.
“जय जवान जय किसान” का नारा किसने दिया था ?
(a) राजीव गाँधी
(b) लाल बहादुर शास्त्री
(c) इंदिरा गाँधी
(d) मोरारजी देसाई
उत्तर:
(b) लाल बहादुर शास्त्री

प्रश्न 28.
1974 की रेल हड़ताल के नेता कौन थे ?
(a) जय प्रकाश नारायण
(b) राज नारायण
(c) के० एम० मुंशी
(d) जार्ज फर्नाडीस
उत्तर:
(d) जार्ज फर्नाडीस

प्रश्न 29.
“विश्व मानवाधिकार दिवस” कब मनाया जाता है ?
(a) 1 दिसम्बर
(b) 10 दिसम्बर
(c) 24 दिसम्बर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) 10 दिसम्बर

प्रश्न 30.
निम्नलिखित में से कौन देश सार्क का सदस्य नहीं है ?
(a) पाकिस्तान
(b) भारत
(c) नेपाल
(d) थाईलैण्ड
उत्तर:
(d) थाईलैण्ड

प्रश्न 31.
सिक्किम भारत का सहवर्ती राज्य कब बना?
(a) 1974
(b) 1975
(c) 1980
(d) 1986
उत्तर:
(b) 1975

प्रश्न 32.
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की प्रथम महिला अध्यक्ष कौन थी?
(a) एनी बेसेन्ट
(b) सरोजिनी नायडू
(c) इंदिरा गाँधी
(d) सोनिया गाँधी
उत्तर:
(a) एनी बेसेन्ट

प्रश्न 33.
भारत में 1940 के दशक के अंतिम सालों में किसके निर्देशन में परमाणु कार्यक्रम शुरू हुआ?
(a) होमी जहाँगीर भाभा
(b) अब्दुल कलाम
(c) सी० वी० रमण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) होमी जहाँगीर भाभा

प्रश्न 34.
बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री कौन थे ?
(a) अनुग्रह नारायण सिंह
(b) श्रीकृष्ण सिंह
(c) कर्पूरी ठाकुर
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) श्रीकृष्ण सिंह

प्रश्न 35.
तेलुगु देशम पार्टी किस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी है ?
(a) पंजाब
(b) असम
(c) तमिलनाडु
(d) आन्ध्र प्रदेश
उत्तर:
(d) आन्ध्र प्रदेश

प्रश्न 36.
अमेरिका के किस राष्ट्रपति को शांति का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है।
(a) बराक ओबामा
(b) बिल क्लिटन
(c) जार्ज बुश
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(a) बराक ओबामा

प्रश्न 37.
संविधान सभा के अध्यक्ष कौन थे ?
(a) डॉ० अम्बेडकर
(b) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(c) डॉ० राधाकृष्णन
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद

प्रश्न 38.
काँग्रेस ने किस प्रकार का समाजवाद अपनाया ?
(a) मार्क्सवादी
(b) ब्रिटेन का लोकतांत्रिक समाजवाद
(c) गाँधी का सर्वोदय
(d) लेनिन का साम्यवाद
उत्तर:
(b) ब्रिटेन का लोकतांत्रिक समाजवाद

प्रश्न 39.
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी किस दल के हैं ?
(a) काँग्रेस
(b) शिवसेना
(c) भारतीय जनता पार्टी
(d) जनता पार्टी
उत्तर:
(c) भारतीय जनता पार्टी

प्रश्न 40.
दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री केजरीवाल किस दल के हैं ?
(a) भाजपा
(b) आम आदमी पार्टी
(c) लोक दल
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) आम आदमी पार्टी

प्रश्न 41.
संविधान द्वारा किस भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया गया है ?
(a) अंग्रेजी
(b) हिन्दी
(c) उर्दू
(d) हिन्दुस्तानी
उत्तर:
(b) हिन्दी

प्रश्न 42.
‘सामाजिक न्याय के साथ विकास’ किस पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य था ?
(a) तीसरी
(b) चौथी
(c) पांचवीं
(d) छठी
उत्तर:
(b) चौथी

प्रश्न 43.
1965 और 1971 में भारत का किस देश से युद्ध हुआ था ?
(a) चीन
(b) श्रीलंका
(c) पाकिस्तान
(d) बांग्लादेश
उत्तर:
(c) पाकिस्तान

प्रश्न 44.
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य कब बना ?
(a) 1945 में
(b) 1947 में
(c) 1950 में
(d) 1952 में
उत्तर:
(a) 1945 में

प्रश्न 45.
शिमला समझौते पर भारत के किस प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए ?
(a) लाल बहादुर शास्त्री
(b) जवाहरलाल नेहरू
(c) इन्दिरा गाँधी
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) इन्दिरा गाँधी

प्रश्न 46.
‘गरीबी हटाओ’ का नारा किसने दिया ?
(a) राजीव गाँधी
(b) इन्दिरा गाँधी
(c) मनमोहन सिंह
(d) नरेन्द्र मोदी
उत्तर:
(b) इन्दिरा गाँधी

प्रश्न 47.
काँग्रेस फॉर डेमोक्रेसी के संस्थापक नेता कौन था ?
(a) बहुगुणा
(b) सत्पथी
(c) जगजीवन राम
(d) राम विलास पासवान
उत्तर:
(c) जगजीवन राम

प्रश्न 48.
सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन का नेतृत्व किसने किया ?
(a) कर्पूरी ठाकुर
(b) चन्द्रशेखर
(c) जयप्रकाश नारायण
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) जयप्रकाश नारायण

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

BSEB Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 1 are the best resource for students which helps in revision.

Bihar Board 12th Business Studies Important Questions Long Answer Type Part 1 in Hindi

प्रश्न 1.
वित्त कार्य करते समय प्रत्येक प्रबन्धक को तीन मुख्य निर्णय लेने होते हैं। उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वित्त कार्य करते समय प्रबंधक को निम्नलिखित मुख्य निर्णय लेने पड़ते हैं-
(i) वित्तीय नियोजन से संस्था के पूँजीगत ढाँचे के निर्धारण का निर्णय लेना पड़ता है जिसमें ‘अंश पूँजी के अनुपात निश्चित किये जाते हैं। उदाहरण के लिए समता अंश पूँजी कितनीः और पूर्वाधिकार अंश पूँजी कितने धन के रखे जायें, इसका निर्णय करना पड़ता है।

(ii) प्रबंधक विभिन्न साधनों से आवश्यक पूँजी प्राप्त करने की विवेकपूर्ण योजना बनाने का निर्णय लेता है। पर्याप्त मात्रा में वित्त की प्राप्ति होने से व्यावसायिक संस्था में पर्याप्त पूँजी एकत्र होती है जिससे कारोबार अच्छी तरह से चलता है।

(iii) वित्तीय कार्य करते समय प्रबंधक उद्योग की प्रकृति के अनुसार वित का प्रबंध करने का निर्णय लेता है। पूँजी सघन उद्योग के लिए प्रबंधक अधिक पूँजी एकत्र करने का प्रयत्न करता है जबकि श्रम साधन उद्योगों के लिए कम पूँजी एकत्र करने का निर्णय लेता है। साथ ही अधिक जोखिम वाले उद्योगों को अपनी पूँजी जुटाने के लिए स्वामित्वशील प्रतिभूतियों (Ownership Securities) पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा जबकि कम जोखिम वाले उद्योग ऋण लेकर स्वामियों को समता पर व्यापार (Trading on Equity) का लाभ दे सकते हैं।

प्रश्न 2.
एक कार्यात्मक ढाँचा एक डिवीजनल ढाँचे से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर:
कार्यात्मक और डिविजनल संरचना (ढाँचा) के बीच अन्तर यह है कि कार्यात्मक संरचना एक संगठनात्मक संरचना है जिसमें संगठन को विशेष कार्यात्मक क्षेत्रों जैसे कि उत्पादन, विपणन और बिक्री के आधार पर छोटे समूहों में विभाजित किया गया है जबकि विभाजन (डिविजनल) संरचना एक प्रकार का संगठनात्मक ढाँचा है जहाँ संचालन को विभाजन या अलग उत्पाद के आधार पर समूहीकृत किया जाता है। श्रेणियाँ एक संगठन को विभिन्न संरचनाओं के अनुसार व्यवस्थित किया जा सकता है, जो संगठन को संचालित और प्रदर्शन करने में सक्षम बनाता है। इसका उद्देश्य, उद्देश्य से सुचारू रूप से और कुशलतापूर्वक संचालन करना है।

इस प्रकार कार्यात्मक ढाँचा और डिविजनल ढाँचा का तुलनात्मक अध्ययन करने से इस बात की जानकारी होती है कि इन दोनों की प्रकृति और लक्षण अलग-अलग हैं। इसलिए इन दोनों में अन्तर पाया जाता है।

प्रश्न 3.
प्रबन्ध के कार्य के रूप में संगठन का महत्त्व समझाइये।
उत्तर:
प्रबन्ध के कार्य के रूप में संगठन के महत्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(i) विशिष्टीकरण का लाभ (Benefits of specialisation) – संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं को उनकी योग्यता एवं कार्य-क्षमता के अनुसार बाँटने में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों के द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है एवं उतपादन की मात्रा बढ़ जाती है। लगातार एक ही कार्य को करते रहने से कर्मचारी उस कार्य को करने का विशिष्ट अनुभव प्राप्त कर लेते हैं एवं कार्य को करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।

(ii) कार्य सम्बन्धों में स्पष्टता (Clarity in working relationship) – कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसने किसको रिपोर्ट करनी है इस बात को एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना एवं अनुदेशों के स्थानान्तरण (Ambiguity in transfer) में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम (Hierarchical order) के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके एवं एक व्यक्ति के द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण (Delegation of authority) किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

(iii) संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum utilisation of resources) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कुल काम को अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक क्रिया एक अलग कर्मचारी के द्वारा की जाती है। ऐसा करने से न तो कोई क्रिया करने से रह जाती है और न ही किसी क्रिया को अनावश्यक रूप से दो बार किया जाता है। परिणामतः, संगठन में उपलब्ध सभी संसाधनों जैसे-मानव, माल, मशीन आदि का अनुकूलतम उपयोग (Optimum use) संम्भव हो पाता है।

(iv) परिवर्तन में सुविधा (Adaptation to change) – संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण (Business environment) परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबन्धकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन एवं आपसी सम्बन्धों के संशोधनों में पारगमन (Inter-relationship) का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बाबजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति करता है।

(v) प्रभावी प्रशासन (Effective administration) – प्रायः देखा जाता है कि प्रबन्धकों में अधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। संगठन प्रक्रिया प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं एवं प्राप्त अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख करती है। यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक किस कार्य को करने के लिए किसको आदेश देगा। प्रत्येक कर्मचारी को इस बात की जानकारी होती है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है ? इस प्रकार अधिकारों को लेकर उत्पन्न होने वाले भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है। परिणामतः प्रभावी प्रशासन सम्भव हो पाता है।

(vi) कर्मचारियों का विकास (Development of personnel) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकार अन्तरण (Delegation of authority) किया जाता है। ऐसा एक व्यक्ति की सीमित क्षमता के कारण ही नहीं वरन् काम को करने की नई-नई विधियों की खोज करने के कारण भी किया जाता है। इसमें अधीनस्थों को निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए वे नई-नई विधियों को खोज करते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं, परिणामत: उनका विकास होता है।

(vii) विस्तार एवं विकास (Expansion and growth) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्राप्त निर्णय-स्वतन्त्रता (Freedom to take decisions) से उनका विकास होता है। वे नई-नई चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए अपने-आप को तैयार करने में सक्षम हो पाते हैं। इस स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिए वे उपक्रम का विस्तार करते हैं। विस्तर से लाभ कमाने की क्षमता बढ़ती है जो उपक्रम के विकास में सहायक होती है।

संगठन की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए सी. कैनेथ ने एक स्थान पर कहा है, “एक कमजोर संगठन अच्छे उत्पादन को मिट्टी में मिला सकता है और एक अच्छा संगठन जिसका उत्पाद कमजोर है, अच्छे उत्पाद को भी बाजार से भगा सकता है।”

प्रश्न 4.
मौद्रिक प्रेरणाओं का क्या अर्थ है ? कोई तीन मौद्रिक प्रेरणाएँ बताइए जो कर्मचारियों के बेहतर निष्पादन में सहायक हो।
उत्तर:
मौद्रिक प्रेरणा वैसी प्रेरणा होती है जिसका मूल्यांकन प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा से किया जा सकता है। मौद्रिक प्रेरणा के अन्तर्गत एक कर्मचारी को अधिक कार्य करने पर अधिक धन प्राप्ति की प्रेरणा होती है। इसमें श्रमिक को जो भी लाभ होता है वह नगदी के रूप में होता है ये चाहे अधिक वेतन के रूप में हों, कमीशन या लाभांश के रूप में हों, सभी मौद्रिक प्रेरणा कहलाती है। यदि श्रमिक को इससे धन की प्राप्ति होती है तो कार्य के अनुसार श्रमिकों को अधिक वेतन देना मौद्रिक प्रेरणा का प्रमुख उदाहरण है।

तीन मौद्रिक प्रेरणायें जो कर्मचारियों के बेहतर निष्पादन में सहायक होती है वे निम्नलिखित हैं-

  • बोनस – कोई भी व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी वर्ष के अंत में प्रेरणा के रूप में कर्मचारियों को बोनस की रकम नगद रूप में देती है। बोनस की रकम मिलने से कर्मचारी में अधिक-से-अधिक काम कारने की प्रेरणा उत्पन्न होती है।
  • कमीशन – एक व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी अपने कर्मचारियों को वेतन के अतिरिक्त विक्रय पर एक निश्चित दर से कमीशन देती है। इस कमीशन की रकम से कर्मचारियों में अधिक काम करने की प्रेरणा आती है।
  • प्रीमियम – एक व्यापारिक संस्था, फर्म या कम्पनी अपने कर्मचारियों को नगद रूप में प्रीमियम की रकम का भी भुगतान करती है। इसमें कर्मचारियों में अधिक-से-अधिक काम करने की प्रेरणा आती है।

प्रश्न 5.
नियोजन क्या है ? प्रबंध द्वारा नियोजन प्रक्रिया में कौन-कौन से कदम उठाये जाते है ?
उत्तर:
नियोजन में पहले ही क्या करना है एवं कैसे करना है निर्माण सम्मिलित रहता है। यह कार्यों को पूर्ण करने से पहले ही किया गया प्रयास है। नियोजन अनुमान सघनशीलता एवं नवीकरण का सम्मिश्रण है। नियोजन किसी भी कार्य को करने के लिए समयबद्ध दृष्टिकोण है। वह विभिन्न विकल्पों के बीच चुनाव है। उसका एक उद्देश्य है जिसे प्राप्त करना है। इस प्रकार नियोजन कार्य को निश्चित अवधि में पूरा करने का प्रयास है।

उर्विक के अनुसार “नियोजन मूल रूप से कार्यों की सुव्यवस्थित ढंग से करने, कार्य करने से पूर्व उस पर मनन करने तथा कार्य को अनुमानों की तुलना में तथ्यों के आधार पर करने का प्राथमिक रूप में एक मानसिक चिंतन है।”

प्रबंध द्वारा नियोजन प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम उठाए जाते हैं-

  • उद्देश्यों का निर्धारण – ये संगठन के उद्देश्य हैं जिसे प्राप्त करना है। इस दिशा में विभागीय योगदान की आशा एवं निर्धारित कर्मचारियों की भूमिका जिसे निर्देश की आवश्यकता है, का निर्धारण करना है।
  • विकसित उपवाद – नियोजन को भविष्य की अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है। इसलिए उपवाद भविष्य के घटनाओं का दिशा-निर्देश करता है जिसके आधार पर मूल्यांकन प्रस्ताव तैयार किया जा सकता है।
  • विकल्प की पहचान – उद्देश्य की प्राप्ति के विभिन्न रास्ते हैं। प्रबंध को यह तय करना पड़ता है कि हम अपने उद्देश्यों को बेहतर तरीके से कैसे प्राप्त कर सकते हैं। नवीकरण के रूप में नए विकल्प की खोज भी की जा सकती है।
  • प्रतिफल का मूल्यांकन – निर्धारित उद्देश्यों के दृष्टिकोण से सभी विकल्पों के सकारात्मक एवं नकारात्मक पहलुओं की जाँच की जानी चाहिए। प्रत्येक विकल्प के संभाव्यता एवं परिणाम की भी जाँच की जानी चाहिए।
  • सर्वोत्तम का चुनाव – सभी विकल्पों में से वैसे विकल्प जो लाभदायक हो, सहनीय हो एवं सकारात्मक हो, का चुनाव कर कार्यान्वित किया जाना चाहिए।
  • नियोजन का कार्यान्वयन – यह प्रक्रिया का क्रियान्वयन है अर्थात् नियोजन का कार्यरूप में परिवर्तन।
  • कार्य निष्पादन का अनुकरण – नियोजन प्रक्रिया का अंतिम कदम यह निश्चित करना है कि नियोजन के अनुकुल सभी कार्य निष्पादित किये गये ताकि संगठन के उद्देश्य को प्रभावकारी ढंग से प्राप्त किया जा सके।

प्रश्न 6.
वित्तीय नियोजन क्या है ? वित्तीय नियोजन को प्रभावित करने वाले कौन-कौन-से तत्व हैं ?
उत्तर:
वित्तीय नियोजन का संबंध पूँजी की मात्रा निश्चित करने तथा यह निश्चित करने से है कि कितनी पूँजी स्वामी लगाएँगे तथा कितनी पूँजी अन्य साधनों से ऋण के रूप में प्राप्त की जाऐगी और यदि पूँजी बाजार से एकत्र की जाएगी तो कितनी पूँजी के अंश व ऋण पत्र निर्गमित किये जाएंगे। इनका विस्तृत निर्धारण ही वित्तीय नियोजन है।

ए० एस० डीइंग के शब्दों में, “वित्तीय नियोजन का पूँजीकरण या पूँजी के मूल्यांकन में पूँजी स्कंध (Stock) तथा ऋण पत्रों दोनों को सम्मिलित करते हैं।”

रॉबर्ट जैरट जूरियर (Robert Jerrett Jr.) के अनुसार “व्यापक वित्तीय नियोजन से आशय वित्तीय प्रबंध की समस्त योजनाओं के साथ एकीकरण एवं समन्वय करने से है।”

वित्तीय नियोजन को कुछ विद्वानों ने पूँजीकरण या पूँजी संरचना (Capitalisation or Capital Structure) के नाम से भी पुकारा है।

उपक्रम की वित्तीय नियोजना पर विभिन्न तत्वों का प्रभाव पड़ता है। अतः योजना बनाते समय उन तत्वों पर भली-भाँति विचार कर लेना चाहिए। ऐसे प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं-
1. उद्योग की प्रकृति (Nature of Industry) – वित्तीय नियोजन के निर्माण में उद्योग की प्रकृति अपना निर्णायक मत रखती है। पूँजी-सघन उद्योग के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है और श्रम-सघन उद्योगों के लिए कम पूँजी।

2. जोखिम को मात्रा (Amount of Risks) – अधिक जोखिम वाले उद्योगों को अपनी पूँजी जुटाने के लिए स्वामित्वशील प्रतिभूतियों (Ownership Securities) पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा जबकि कम जोखिम वाले उद्योग ऋण लेकर स्वामियों को समता पर व्यापार (Trading or . Equity) का लाभ दे सकते हैं।

3. औद्योगिक इकाई की प्रस्थिति (Status o Industrial Unit) – इसके अन्तर्गत उपक्रम . की निजी विशेषताएँ जैसे उसकी आयु, आकार, कार्य-क्षेत्र तथा प्रवर्तकों एवं प्रबन्धकों की साख एवं ख्याति आदि तत्व आते हैं। बड़े आकार वाली कम्पनियों को पूँजी जुटाने में अधिक कठिनाई नहीं होती। पुरानी तथा अच्छी साख वाली संस्थाओं में हर विनियोक्ता धन लगाने को तैयार रहता है लेकिन नए प्रवर्तकों को धन एकत्रित्र करने में अधिक कठिनाइयाँ उठानी पड़ती है।

4. विभिन्न वित्ताय साधना का मूल्याकन (Appraisal of atternative Sources or Finance) – जब भी पूँजी का आवश्यकता हो, बाजार में प्रचलित तथा लोकप्रिय प्रतिभूतियों को .देखना चाहिए और उनके अंकित मूल्य, निर्गमन लागत तथा उन्य तथ्यों पर विचार करना चाहिए। यह निश्चित करते समय कि किस-किस साधन से कितना धन एकत्रित करना है। यह भी ध्यान में रखना पड़ेगा कि उस साधन से उस समय धन एकत्रित करने का अनुकूल समय भी है अथवा नहीं।

5. उद्योग के भावी विस्तार की योजनाएँ – यह तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करने वाले तत्वों में से एक तत्व है। उद्योग के भावी विस्तार की योजनाएँ इनमें बनाई जाती है। जिससे भविष्य में उद्योग को कैसे विस्तार किया जाना है इसकी योजना बनायी जाती है।

6. प्रबंधकों की मनोवृति – यह तत्व भी उद्योग को प्रभावित करने वाले में से एक तत्व है। उद्योगों को कैसे संचालित करना है, यह प्रबन्धकों की मनोवृत्ति पर निर्भर करता है। जितना अच्छा प्रबंधकों की मनोवृति होगी उद्योग का विकास और विस्तार उतना ही तेजी से होगा।

7. बाहरी पूंजी की आवश्यकता – बाहरी पूँजी की आवश्यकता भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करती है। उद्योग में बाहरी पूँजी की आवश्यकता पड़े और इस पूँजी को कहाँ से लाया जाए वित्तीय नियोजन का एक प्रमुख अंग माना जाता है।

8. पूँजी संग्रह के स्रोतों की उपलब्धता – यह तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करता है। पूँजी को कैसे संग्रह किया जाए और किन-किन स्रोतों से संग्रह किया जाए वित्तीय नियोजन का एक प्रमुख अंग है। उद्योग से जो पूँजी प्राप्त होती है लाभ के रूप में उसे कैसे और किन साधनों से संग्रह किया जाए इसका भी ध्यान रखा जाता है।

9. सरकारी नियंत्रण – सरकारी नियंत्रण तत्व भी वित्तीय नियोजन को प्रभावित करते हैं। उद्योग पर सरकारी नियंत्रण रहना भी आवश्यक है। तभी एक उत्पादक अच्छी किस्म और गुणवत्ता वाली वस्तुओं का उत्पादन कर सकता है इसीलिए किसी भी उद्योग पर सरकारी नियंत्रण रहना भी एक आवश्यक तत्व है।

प्रश्न 7.
विभिन्न द्रव्य बाजार प्रपत्रों की व्याख्या करें।
उत्तर:
मुद्रा बाजार का अर्थ ऐसे बाजार से लगाया जाता है जिसमें अल्पकालीन कोषों में व्यवहार होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मुद्रा बाजार उस बाजार को कहा जाता है जहाँ पर अल्पकालीन ऋण लेने व देने का कार्य होता है या अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराये जाते हैं। मुद्रा बाजार एक अत्यन्त सक्रीय स्थान है जिसमें वित्त समस्याएँ अपने सामान्य व्यवसाय अथवा मुख्य व्यवसाय के रूप में तरलता उत्पन्न करने के उद्देश्य से मुद्रा सम्पति का क्रय-विक्रय करते हैं।

मुद्रा बाजार के कई प्रमुख प्रपत्र (Instrument) होते हैं, जैसे- 1. माँग मुद्रा। अल्प सूचना ऋण 2. कोषागार विपत्र। 3. वाणिज्यिक विपत्र। 4. जमा प्रमाण-पत्र तथा 5. वाणिज्यिक पत्र। वास्तव में, भारतीय द्रव्य बाजार या मुद्रा बाजार के विभिन्न प्रपत्र या उपकरण को इस प्रकार स्पष्टः किया जा सकता है।

  1. याचना या माँग मुद्रा (Call money)
  2. अल्प नोटिस मुद्रा (Short Notice money)
  3. सर्वाधिक या मियादी मुद्रा (Term money)
  4. जमा प्रमाण-पत्र (Certificate of Deposit)
  5. वाणिज्यि पत्र (Commercial paper)
  6. मुद्रा बाजार म्युचुअल निधि (Money market mutual fund)
  7. वाणिज्यि बिल (Commercial Bill)
  8. खजाना बिल (Treasure Bill)
  9. अंतर्कारपोरेट विधि (Inter corporate fund)
  10. अंतकॉरपोरेट रेपॉस (Inter corporate repos)

प्रश्न 8.
प्रत्यायोजन से क्या आशय है ? ऐसे किन्ही चार बिंदुओं को समझाइए जो एक संगठन में प्रत्यायोजन के महत्व को उजागर करते हैं।
उत्तर:
प्रत्यायोजन या अधिकार प्रबंधकीय कार्य की कुंजी है। यदि प्रत्यायोजन न हो तो प्रबंधक रह जाता है।

कुन्ट्ज और ओ डेनेल के अनुसार, “प्रत्यायोजन से तात्पर्य वैज्ञानिक या स्तत्वधिकार संबंधी शक्तियों से है।”

दूसरे शब्दों में, “आदेश देने या कार्य करने का स्वत्व ही प्रत्यायोजन है।”
एक प्रबंधक विस्तृत अधिकार प्राप्त करने के कारण ही प्रबंधक कहलाता है। इसीलिए एक प्रबंधक को दिये जाने वाले अधिकार इतनं प्रर्याप्त होने आवश्यक है कि वह उसे संस्था में आवश्यक सममान प्रदान कराने के साथ-साथ दायित्व पूरा करने योग्य बना सके। अधिकार और दायित्व एक-दूसरे पर निर्भर हैं और साथ -साथ चलते हैं। अतः दायित्वों पूरा करने के लिए अधिकार आवश्यक है। साथ ही यहाँ पर भरार्पण का वर्णन करना भी आवश्यक है। भरार्पण का अर्थ अपने अधीनस्थों को निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत कार्य करने के लिए अधिकार प्रदान करना है। यह दूसरे से कार्य कराने की कला है। जब किसी उच्च अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को अधिक मात्रा में अधिकारों को सौंपा जाता है तो वह विकेन्द्रीकरण कहलाता है।

एक संगठन में प्रत्यायोजन का विशेष महत्व होता है जिन्हें निम्नलिखित विचार-बिंदुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • एक संगठन या संस्था में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए है क्योंकि इसके द्वारा अधिकार अन्तरण होता है। जिससे सारे अधिकार एक ही प्रबंधक और कर्मचारी के बीच नहीं रहता है बल्कि अधिकार का अन्तरण होने से संबंधी कार्य अच्छी तरह से होता है।
  • एक संगठन में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसके माध्यम से सभी कर्मचारी अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह से निभाते हैं। परिणामस्वरूप संगइन का काम अच्छी तरह से होता है।
  • एक संगठन प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है कि इसके माध्यम से संगठन की प्रबंध संबंधी कार्य पूरी कुशलता के साथ होते हैं। परिणामस्वरूप संगठन अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल होती है।
  • एक संगठन में प्रत्यायोजन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें अधिकार और कर्तव्य प्रत्येक कर्मचारी का निश्चित हो जाता है और वे इसी अधिकार के अनुसार अपने कर्तव्य को निभाते हैं। परिणामस्वरूप संगठन या संस्था के सभी अधिकारी और कर्मचारी अपना कार्य अच्छी तरह से करते हैं।

प्रश्न 9.
वैज्ञानिक प्रबन्ध के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
टेलर ने एक संगठन को वैज्ञानिक ढंग से संचालित करने के लिये प्रबन्ध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। टेलर द्वारा बताये गये वैज्ञानिक प्रबन्ध के आधारभूत सिद्धान्त की व्याख्या नीचे दी गई है-

1. विज्ञान, न कि रूढ़िवादिता (Science, Not Rule of Thumb) – टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि संगठन में किया जाने वाला, कार्य वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा किया जाना चाहिए न कि अंतःज्ञान (Intuition), अनुभव तथा भूल और सुधार (Hit and Miss) विधियों के आधार पर। क्योंकि जहाँ एक ओर वैज्ञानिक विधियाँ किसी कार्य के सूक्ष्म से सूक्ष्म पहलू को प्रदर्शित करती हैं वहाँ रूढ़िवादिता केवल अनुमान को महत्त्व देती हैं। किसी भी कार्य के विभिन्न पहलुओं की यथार्थता वैज्ञानिक प्रबन्ध का आधारभूत सार है, जैसे एक दिन की उचित मजदूरी का निर्धारण, कार्य का प्रमापीकरण (Standard of Work), मजदूरी भुगतान की विभेदात्मक पद्धति आदि। यह आवश्यक है कि इन सभी का निर्धारण अनुमानों पर आधारित न होकर परिशुद्धता पर आधारित होना चाहिए।

2. समन्वय, न कि मतभेद (Harmony, Not Discord) – टेलर ने इस बात पर जोर दिया कि सामूहिक क्रियाओं में संघर्ष मतभेद के स्थान पर आपस में समन्वय स्थापित करने का प्रयास होना चाहिए। सामूहिक समन्वय इस बात का सुझाव देता है कि आपस में आदान-प्रदान की स्थिति एवं उचित समझ होनी चाहिए ताकि एक समूह व्यक्तियों के योग से अधिक योगदान दे सके। टेलर ने कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों दोनों के दृष्टिकोण से सम्पूर्ण मानसिक क्रान्ति (Complete Mental Revolution) का समर्थन किया। टेलर के अनुसार जहाँ एक ओर प्रबन्धकों को प्रबुद्ध ज्ञान (Enlightened Attitude) एवं उत्पादकता के लाभों को कर्मचारियों के साथ बाँटना चाहिए वहाँ दूसरी ओर कर्मचारियों को भी वफादारी एवं अनुशासन के साथ कार्य करना चाहिए।

3. सहयोग, न कि व्यक्तिवाद (Co-operation Not Individualism) – वैज्ञानिक प्रबन्ध अव्यवस्थित व्यक्तिवाद के स्थान पर सहयोग प्राप्त करने से सम्बन्धित होना चाहिए। इस आपसी विश्वास, सहयोग व साख पर आधारित होना चाहिए। प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों में आपसी समझ एवं विचारों के द्वारा सहयोग की भावना का विकास किया जा सकता है। टेलर ने सुझाव दिया कि उन कर्मचारियों को जिन्हें वास्तव में इन कार्यों को सम्पन्न करना है प्रमाप तय करते समय शामिल किया जाना चाहिए। इससे उनका योगदान बढ़ेगा और वे इन प्रमापों को पूरा करने का प्रयास करेंगे।

4. प्रत्येक व्यक्ति का उसकी अधिकतम कुशलता एवं सफलता तक विकास (Development of Each and Every Person to Hisekher Greater Efficiency and Prosperity) – इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति की कुशलता के स्तर पर उससे चयन (Selection) से ही ध्यान दिया जाना चाहिए एवं सभी कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण की उपयुक्त व्यवस्था की जानी चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि प्रत्येक व्यक्ति को उसकी रुचि एवं योग्यता के अनुसार ही काम सौंपा जाए। इस प्रकार की व्यवस्था किए जाने से कर्मचारियों की कुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है जिसका लाभ कर्मचारियों एवं मालिकों दोनों को होता है।

उपरोक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि टेलर व्यवसाय के उत्पादन में वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग पर कट्टर समर्थक था।

प्रश्न 10.
प्रबंध की परिभाषा दीजिए। इसके महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रबन्ध की परिभाषा देना यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। विद्वानों ने प्रबन्ध को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है। अत: इसकी सर्वमान्य परिभाषा कोई नहीं है। इस सम्बन्ध में ई० एफ० एल० ब्रेच (E.F.L. Brech) तो प्रबन्ध की परिभाषा ही महसूस नहीं करते। उनका मानना है कि महत्त्व प्रबन्ध का है न कि उसकी परिभाषा का। प्रबन्ध की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

1. स्टेनले वेन्स (Stanley Vance) के शब्दों में, “प्रबन्ध केवल निर्णय लेने एवं मानवीय क्रियाओं पर नियंत्रण रखने की विधि है जिससे पूर्व निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सके।”

स्टेनले वेन्स द्वारा दी गई परिभाषा की व्याख्या – उपरोक्त परिभाषा की व्याख्या करने प्रबन्ध के संबंध में निम्न तीन बातें स्पष्ट होती हैं-

  • प्रबन्ध निर्णय लेने की एक प्रक्रिया है;
  • प्रबन्ध मानवीय क्रियाओं पर नियन्त्रण रखने की विधि है एवं
  • प्रबन्धकीय क्रियाएँ पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए की जाती हैं।

2. कन्टज तथा ओ’डोनेल (Koontz and O ‘Donnell) के शब्दों में, “प्रबन्ध का कार्य अन्य व्यक्तियों द्वारा उनके साथ मिलकर काम करना है।”

कून्ट्ज़ की परिभाषा का यदि विश्लेषण किया जाए तो उससे निम्न बातें सामने आती हैं : (i) प्रबन्ध एक कला है; (ii) प्रबन्ध का उद्देश्य कार्य को पूर्ण कराना है; एवं (iii) प्रबन्ध का कार्य दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर कार्य करना व उनसे कार्य लेना है।

वास्तव में प्रबन्ध के सभी कार्य स्वयं कार्य करने व दूसरों से कार्य कराने से ही संबंधित होते हैं। यद्यपि प्रबन्ध की उपरोक्त विचारधारा में कुछ दोष भी है।

जैसे (i) प्रबन्ध केवल कला ही नहीं है; (ii) प्रबन्ध केवल कर्मचारियों का ही प्रबन्ध न : है एवं (iii) प्रबन्ध जोर-जबरदस्ती करना नहीं है।

3. प्रो० जॉन एफ० मी के अनुसार, “प्रबन्ध से तात्पर्य न्यूनतम प्रयास के द्वारा अधिकतः परिणाम प्राप्त करने की कला से है, जिससे नियोक्ता एवं कर्मचारी दोनों के लिए अधिकतम समृद्धि तथा जन-समाज के लिए सर्वश्रेष्ठ सेवा संभव हो सके।”

यह परिभाषा प्रबन्धकों के सामाजिक उत्तरदायित्व की ओर संकेत करती है। अधिकांश विद्वानों ने प्रबन्ध की परिभाषा इस प्रकार दी है-

4. जार्ज आर टैरी (George R. Terry) के अनुसार, “प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है जिसमें नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन तथा नियंत्रण को सम्मिलित किया जाता है तथा इनका निष्पादन व्यक्तियों एवं साधनों के उपयोग द्वारा उद्देश्यों को निर्धारित एवं प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषा से प्रबन्ध के निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं-

  • प्रबन्ध एक पृथक् प्रक्रिया है;
  • प्रबन्ध के अंतर्गत नियोजन, संगठन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण को शामिल किया जाता है;
  • इसमें व्यक्तियों व साधनों का उपयोग किया जाता है एवं
  • प्रबन्ध का उपयोग उद्देश्यों को निर्धारित व प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

5. टर एफ० ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध एक बहुउद्देश्यीय तन्त्र है जो व्यवसाय का प्रबन्ध करता है तथा प्रबन्धकों का प्रबन्ध करता है और कार्य वालों एवं कार्य का. प्रबन्ध करता है।”

स्वयं कार्य करने की बजाय प्रबन्धक दल दूसरों के कार्यों का समन्वय करता है।
पीटर एफ० ड्रकर द्वारा दी गई परिभाषा की व्याख्या से निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं-

  • प्रबन्ध एक बहुउद्देश्यीय तन्त्र है;
  • यह व्यवसाय का प्रबन्ध करता है;
  • प्रबन्ध प्रबन्धकों का भी प्रबन्ध करता है एवं
  • प्रबन्ध कार्य करने वाले और कार्य दोनों का प्रबन्ध करता है।

इस दृष्टिकोण से प्रबन्धकीय वर्ग के महत्त्व का पता चलता है किन्तु प्रबन्ध के कार्यों या तत्त्वों का ज्ञान नहीं होता।

6. हेनरी फेयोल (Henry Fayol) का कथन है, “प्रबन्ध का अर्थ पूर्वानुमान लगाना, योजना बनांना, संगठन करना, निर्देश देना, समन्वय करना और नियंत्रण करना है।”

7. लारेंस ए० एप्ले (Lawrence A. Appley) का कथन है कि “प्रबन्ध व्यक्तियों के विकास से संबंधित है न कि वस्तुओं के निर्देशन से।” प्रबन्ध का यह दृष्टिकोण भी प्रबन्ध का सही अर्थ स्पष्ट नहीं कर पाता।

8. सी. डब्ल्यू. विल्सन के अनुसार, “निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानवीय शक्ति का प्रयोग एवं निर्देशित करने की विधि प्रबन्ध कहलाती है।”

प्रबन्ध का महत्त्व (Importance of Management) – किसी भी संस्था में चाहे वह बड़ी हो अथवा छोटी, व्यावसायिक हो अथवा गैर- व्यावसायिक सामूहिक प्रयत्नों के द्वारा सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। इन प्रयत्नों में आवश्यक सामंजस्य स्थापित करना संस्था की सफलता के लिए आवश्यक है। वास्तव में सामंजस्य स्थापित करना प्रबन्ध का कार्य है। जिस प्रकार मस्तिष्क के बिना मानव शरीर एक अस्थि पिंजर है। उसी प्रकार प्रबन्ध के बिना कोई संस्था पूँजी व श्रम का निष्क्रिय समूह है।

व्यवसाय में प्रबन्ध का और भी अधिक महत्त्व है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है जिसमें विभिन्न साधनों के प्रयोग से उत्पादन और विपणन (Marketing) किया जाता है। इनके समुचित प्रवाध के द्वारा ही व्यावसायिक क्रियाओं को सफलतापूर्वक सम्पन्न किया जा सकता है। पीटर एफ ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “प्रबन्ध प्रत्येक व्यवसाय का गतिशील, जीवनदायिनी तत्व है, इसके नेतृत्व के बिना उत्पादन के साधन केवल साधन ही रह जाते हैं, वे कभी उत्पादन नहीं बन पाते।” प्रो. रोबिन्सन के शब्दों में, “कोई भी व्यवसाय स्वयं नहीं चल सकता, चाहे वह संवेग की स्थिति में ही क्यों न हो, इसके लिए इसे नियमित उद्दीपन की आवश्यकता पड़ती है।”

यह उद्दीपन व्यवसाय को प्रबन्ध प्रदान करता है। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार मानव शरीर मस्तिष्क के अभाव में हाड़-मांस का एक पुतला है, उसी प्रकार व्यवसाय प्रबन्ध के बिना निष्क्रिय रहता है। वास्तव में प्रबन्ध संगठन को शक्ति देता है। ई० एफ० एल० बेच के विचार में दोष-रहित प्रबन्ध ही मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से कम प्रयल द्वारा अधिक उत्पादन (More production with less efforts) को संभव बनाता है। दूसरी ओर पीटर एफ० ड्रकर ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रबन्ध के बिना उत्पादन के साधन सिर्फ साधन ही रह जाते हैं, उत्पादन नहीं बन पाते।

प्रबन्ध, व्यवसाय के लक्ष्यों को इनकी प्राप्ति की सही योजना बनाकर निर्देशित, नियन्त्रित तथा समन्वित प्रयासों के द्वारा प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। प्रबन्ध के प्रयत्न सदैव कम मूल्य पर अधिक उत्पादन करना होता है। उर्विक के शब्दों में, “कोई भी आदर्श, कोई भी वाद अथवा राजनीतिक सिद्धांत मानवीय एवं माल संबंधी मिश्रित प्रकृति के साधनों से अधिकतम उत्पादन नहीं करा सकता। ऐसा केवल कुशल प्रबन्ध से ही संभव है।” वर्तमान में किसी देश के आर्थिक एवं औद्योगिक विकास का आधार पूँजी निर्माण को न माना जाकर प्रबन्धकीय प्रतिभा को माना जाता है। अतएव कुन्दन एवं ओ’डोनेल के इस कथन में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि “शायद प्रबन्ध से अधिक महत्त्वपूर्ण मानव क्रिया का कोई और क्षेत्र नहीं है।” प्रबन्ध के इस बढ़ते हुए महत्त्व का अध्ययन निम्न शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है-

1. प्रबन्ध सामूहिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक (Management helps in achieving group goals) – प्रबन्ध की आवश्यकता प्रबन्ध के लिये ही नहीं वरन् संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये भी होती है। प्रबन्ध का कार्य संगठन के विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये व्यक्तिगत प्रयत्न को समान दिशा उपलब्ध कराना है।

2. प्रबन्ध से कुशलता बढ़ती है (Management increases efficiency) – किसी भी संगठन की सफलता के लिये उद्देश्यों को कुशलता एवं प्रभावपूर्णता से प्राप्त किया जाना आवश्यक है। प्रबन्ध एक ऐसी शक्ति है जो संस्था में उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum use) करके इसे सम्भव बनाती है। कुशलता को सुनिश्चित करने के लिये प्रबन्ध लागतों को न्यूनतम (Minimum) करने की चेष्टा करता है। प्रभावपूर्णता को प्राप्त करने के लिये सही निर्णय लेकर काम को समय पर पूरा किया जाता है। प्रबन्ध के द्वारा बदलते वातावरण पर कड़ी निगरानी रखना भी कुशलता (Efficiency) एवं प्रभावपूर्णता (Effectiveness) की प्राप्ति में सहायक होता है।

3. प्रबन्ध गतिशील संगठन तैयार करता है (Management creates a dynamic organisation) – प्रत्येक संगठन का प्रबन्ध निरन्तर बदल रहे पर्यावरण के अन्तर्गत करना होता है। सामान्यतया देखा गया है कि किसी भी संगठन में कार्यरत लोग परिवर्तन का विरोध करते हैं क्योंकि इसका अर्थ होता है परिचित (Familiar), सुरक्षित पर्यावरण से नवीन एवं अधिक चुनौतीपूर्ण पर्यावरण की ओर जाना। प्रबन्ध व्यक्तियों को इन परिवर्तनों को अपनाने में सहायक होता है ताकि संगठन अपनी प्रतियोगी श्रेष्ठता (Competitive edge) को बनाये रखने में सफल रहे।

4. प्रबन्ध व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक है (Management helps in achieving personal objectives) – प्रबन्धक अपनी टीम को इस प्रकार से प्रोत्साहित करता है कि प्रत्येक सदस्य संगठन के उद्देश्यों में अपना योगदान देते हुए व्यक्तिगत उद्देश्यों को प्राप्त कर सके। अभिप्रेरणा (Motivation) एवं नेतृत्व (Leadership) के माध्यम से प्रबन्ध व्यक्तियों को टीम–भावना, सहयोग एवं सामूहिक सफलता के प्रति प्रतिबद्धता के विकास में सहायता प्रदान करता है।

5. व्यक्तियों/समाज के विकास के लिए:Development of People/Society) – प्रवन्ध व्यक्तियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है और उनका सर्वांगीण विकास करता है । लॉरेन्स एं० एप्पले ने ठीक ही कहा है, “प्रबन्ध व्यक्तियों का विकास है, न कि वस्तुओं का निर्देशन…….” वास्तव में प्रबन्ध की समस्त क्रियाएँ मानवीय विकास से संबंधित होती हैं। कुशल प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति और व्यक्तियों का विकास करने के लिए लक्ष्यों का निर्धारण करते हैं, इनकी प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं, कर्मचारियों की भर्ती एवं उनके प्रशिक्षण इत्यादि की व्यवस्था करते हैं, उनका निर्धारित लक्ष्य की ओर मार्ग प्रशस्त करते हैं, उन्हें प्रबन्ध एवं लाभ में हिस्सा प्रदान करते हैं और उनके जीवन स्तर को ऊँचा उठाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि व्यक्तियों के विकास में प्रबन्ध का अत्यंत महत्त्व है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य (Some other important facts)-

6. न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम परिणामों की प्राप्ति के लिए (To obtain maximum results with minimum efforts)-प्रबन्ध न्यूनतम प्रयत्नों के द्वारा अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। प्रबन्ध निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु उत्पादन के विभिन्न साधनों में प्रभावपूर्ण समन्वय स्थापित कर न्यूनतम प्रयासों से अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। प्रबन्ध के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उर्विक एवं ब्रेच (Urwick and Brech) ने एक स्थान पर लिखा है कि, “कोई भी विचारधारा, कोई भी वाद, कोई भी राजनीतिक सिद्धान्त उपलब्ध मानवीय एवं भौतिक साधनों के उपयोग से न्यूनतम प्रयत्नों द्वारा अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति नहीं कर सकता। यह तो सुदृढ़ प्रबन्ध द्वारा ही संभव है और अधिक उत्पादन द्वारा ही व्यक्तियों का जीवन-स्तर ऊँचा उठ सकता है, व्यक्तियों का जीवन आरामदायक हो सकता है और व्यक्ति अनेक सुविधाएँ प्राप्त कर सकते हैं।” वास्तव में प्रबन्ध संस्था के उपलब्ध साधनों में उपयुक्त समन्वय स्थापित कर मनुष्यों का विकास करता है।

7.कटु प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए (To face cut-throat competition) – वर्तमान में उत्पादन केवल स्थानीय, राज्यीय एवं अन्तर्राज्यीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही नहीं अपितु अंतर्राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी किया जाता है। अतः जैसे-जैसे उत्पादन के पैमाने में वृद्धि हो रही है और बाजारों का विकास हो रहा है त्यों-त्यों प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा के युग में वही उद्योगपति टिक पाता है जो न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करने में सफल हो पाता है। इस स्थिति से प्रबन्ध ही उसको बाहर निकाल सकता है। अच्छे एवं कुशल प्रबन्ध में दूरदर्शिता, योजनाओं के निर्माण की क्षमता, क्रियाओं के निर्धारण की क्षमता, सामूहिक प्रयासों में समन्वय स्थापित करने की क्षमता, देश की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन करने की क्षमता, ग्राहकों की रुचि का अध्ययन करने की क्षमता आदि होती है।

8. तकनीकी एवं वैज्ञानिक अनुसंधान का लाभ उठाना (To get advantage of technical and scientific research) – वैज्ञानिक एवं तकनीकी सुधारों से जहाँ एक ओर भूमि का उत्पादन संभव हुआ है वहीं दूसरी ओर उत्पादन की विधियों में भी आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है जो काम पहले हाथ से किया जाता था उसे अब स्वचालित मशीनें करती हैं। विज्ञान एवं तकनीकी विकास ने जहाँ एक ओर कार्यविधियों को सरल किया है वहाँ दूसरी ओर अनेक समस्याओं को जन्म भी दिया है। इन समस्याओं का समाधान करने के लिए तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को लागू करने के लिए योग्य एवं अनुभवी प्रबन्ध की आवश्यकता रही है। कुशल प्रबन्धक द्वारा ही इन्हें लागू किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
संगठन के महत्त्व अथवा लाभों का वर्णन कीजिए।
अथवा, संगठन की प्रकृति एवं उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर:
संगठन का महत्त्व इसी बात से जाना जा सकता है कि इसके बिना कोई भी संस्था अपने उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं कर सकती। किसी भी संस्था की योजना तभी सफल हो सकती है जबकि एक मजबूत संगठन द्वारा इसके कर्मचारियों की सेवाओं का अधिकतम लाभ उठाया जा सके।

लौन्सबरी फिश (Lounsbury Fish) के अनुसार, “संगठन की उपयोगिता चार्ट से कहीं अधिक होती है। यह वह तन्त्र है जिसकी सहायता से प्रबन्ध, व्यवसाय संचालन, समन्वय तथा नियन्त्रण करता है। यह वास्तव में प्रबन्ध की आधारशिला है। यदि संगठन की योजना में कोई दोष रह जाता है तो प्रबन्ध व्यवस्था का कार्य कठिन एवं प्रभावहीन हो जाता है। इसके विपरीत यदि वह विद्यमान आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए स्पष्ट तर्कसंगत एवं पूर्व नियोजित हो तो समझना चाहिए कि स्वस्थ प्रबन्ध की प्राथमिक आवश्यकता की प्राप्ति की जा चुकी है।”

अमेरिका के एण्ड्रयू कारनेगी (Andrew Carnegie) ने संगठन के महत्त्व को बहुत सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है, “मुझसे मेरे सब कारखाने, सब व्यापार, परिवर्तन के सभी साधन तथा सारा धन ले लो, परन्तु मेरे संगठन को मेरे पास ही छोड़ दो तो मैं चार वर्षों के अन्दर स्वयं को पुनः स्थापित कर लूँगा।”

अतः स्पष्ट है कि एक कुशल व सक्षम संगठन उद्देश्य प्राप्ति के लिए मानवीय सहयोग का वह सर्वश्रेष्ठ उपकरण है जो उद्योग, समाज, राष्ट्र तथा समस्त विश्व को गति प्रदान करता है। संगठन का महत्त्व निम्नलिखित विशेषता से स्पष्ट हो जाता है-

1.विशिष्टीकरण का लाभ (Benefits of specialisation) – संगठन कर्मचारियों में विभिन्न क्रियाओं को उनकी योग्यता एवं कार्य-क्षमता के अनुसार बाँटने में मार्गदर्शक का कार्य करता है। कर्मचारियों के द्वारा एक ही कार्य को लगातार करते रहने से काम का बोझ कम हो जाता है एवं उत्पादन की मात्रा बढ़ जाती है। लगातार एक ही कार्य को करते रहने से कर्मचारी उस कार्य को करने का विशिष्ट अनुभव प्राप्त कर लेते हैं एवं उस कार्य को करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं।

2. कार्य सम्बन्धों में स्पष्टता (Clarity in working relationship) – कार्य करने में सम्बन्धों का स्पष्टीकरण सम्प्रेषण को स्पष्ट करता है तथा किसने किसको रिपोर्ट करनी है इस बात को एक-एक करके बतलाता है। यह सूचना एवं अनुदेशों के स्थानान्तरण (Ambiguity in transfer) में भ्रमों को दूर करता है। यह सोपानिक क्रम (Hierarchical order) के निर्माण में सहायता करता है ताकि उत्तरदायित्व को निर्धारित किया जा सके एवं एक व्यक्ति के द्वारा किस सीमा तक अधिकारों का अन्तरण (Delegation of authority) किया जा सकता है, इसका स्पष्टीकरण करता है।

3. संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग (Optimum utilisation of resources) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कुल काम को अनेक छोटी-छोटी क्रियाओं में विभाजित कर दिया जाता है। प्रत्येक क्रिया एक अलग कर्मचारी के द्वारा की जाती है। ऐसा करने से न तो कोई क्रिया करने से रह जाती है और न ही किसी क्रिया को अनावश्यक रूप से दो बार किया जाता है। परिणामतः संगठन में उपलब्ध सभी संसाधनों जैसे-मानव, माल, मशीन आदि का अनुकूलतम उपयोग (optimum use) सम्भव हो पाता है।

4. परिवर्तन में सविधा (Adaptation to change) – संगठन प्रक्रिया व्यावसायिक इकाइयों को व्यावसायिक पर्यावरण (Business environment) परिवर्तनों में समायोजित होने की अनुमति प्रदान करता है। यह संगठन संरचना में प्रबन्धकीय स्तर का उपयुक्त परिवर्तन एवं आपसी सम्बन्धों के संशोधनों में पारगमन (Inter-relationship) का मार्ग प्रशस्त करता है। यह संगठन परिवर्तनों के बावजूद भी जीवित रहने तथा उन्नति करते रहने सम्बन्धी, आवश्यकता की पूर्ति करता है।

5. प्रभावी प्रशासन (Effective administration) – प्रायः देखा गया है कि प्रबन्धकों में अधिकारों को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। संगठन प्रक्रिया प्रत्येक प्रबन्धक द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं एवं प्राप्त अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख करती है। यह भी स्पष्ट कर दिया जाता है कि प्रत्येक प्रबन्धक किस कार्य को करने के लिए किसको आदेश देगा। प्रत्येक कर्मचारी को इस बात की जानकारी होती है कि वह किसके प्रति उत्तरदायी है ? इस प्रकार अधिकारों को लेकर उत्पन्न होने वाले भ्रम की स्थिति समाप्त हो जाती है परिणामतः प्रभावी प्रशासन सम्भव हो पाता है।

6. कर्मचारियों का विकास (Development of personnel) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत अधिकार अन्तरण (Delegation of authority) किया जाता है। ऐसा एक व्यक्ति की सीमित क्षमता के कारण ही नहीं वरन् काम को करने की नई-नई विधियों की खोज करने के कारण भी किया जाता है। इसमें अधीनस्थों को निर्णय लेने के अवसर प्राप्त होते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाते हुए वे नई-नई विधियों को खोज करते हैं एवं उन्हें लागू करते हैं, परिणामतः उनका विकास होता है। .

7. विस्तार एवं विकास (Expansion and growth) – संगठन प्रक्रिया के अन्तर्गत कर्मचारियों को प्राप्त निर्णय-स्वतन्त्रता (Freedom to take decisions) से उनका विकास होता है। वे नई-नई चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए अपने-आप को तैयार करने में सक्षम हो पाते हैं। इस स्थिति का लाभ प्राप्त करने के लिए वे उपक्रम का विस्तार करते हैं। विस्तार से ाभ कमाने की क्षमता बढ़ती है जो उपक्रम के विकास में सहायक होती है।

संगठन को उपयोगिता स्पष्ट करते हुए सी. कैनेथ ने एक स्थान पर कहा है, “एक कमजोर संगठन अच्छे उत्पादन को मिट्टी में मिला सकता है और एक अच्छा संगठन जिसका उत्पाद. कमजोर है, अच्छे उत्पाद को भी बाजार से भगा सकता है।”

प्रश्न 12.
प्रबंध में पर्यवेक्षण से क्या आशय है ? संक्षेप में पर्यवेक्षक की भूमिका स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्यवेक्षण का अर्थ – वर्तमान समय में पर्यवेक्षण का प्रबंध में महत्वपूर्ण स्थान है। पर्यवेक्षण वह कृत्य है जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के कार्य की उचित रूप से देखभाल एवं उनका मार्गदर्शन करता है जो व्यक्ति इस प्रकार देखभाल करता है उसे हम पर्यवेक्षक तथा कार्य की देखभाल की क्रिया को पर्यवेक्षण कहते हैं। इस व्यक्ति को निम्नलिखित में से किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है-

ओवरसियर, चार्जमैन, फोरमैन अथवा मुख्य लिपिक।

प्रमुख परिभाषाएँ (Important Definitions) – पर्यवेक्षण की परिभाषा विभिन्न विद्वानों ने इस प्रकार दी है-
वाइटल्स के अनुसार, “पर्यवेक्षण से आशय किसी कार्य के निष्पादन में कार्य करने वाले कर्मचारियों को प्रत्यक्ष एवं तुरंत परामर्श दिये जाने और उन पर नियंत्रण स्थापित करने से है।” (According to Viteles, “Supervision refers to the direct the immediate guidance and control of subordinates in the performance of their task.”)

आर० सी० डेविस के अनुसार, “पर्यवेक्षण क्रिया द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि जो भी कार्य हो रहा है वह किसी योजना एवं निर्देशों के आधार पर ही हो रहा है।” (According to R. C. Davis. “Supervision is the function of assuring that the work is being done is accordance with the plan and instructions.”)

एक अमरीकन श्रम अधिनियम के अनुसार, “पर्यवेक्षक वे व्यक्ति हैं जिन्हें कर्मचारियों का चुनाव करने, निकालने, अनुशासन, पारिश्रमिक और इनसे संबंधित अन्य कार्यों के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है।” (According to an American Labour law, “Supervisor are those having authority to exercise independent judgement in hiring, discharging, discipline, rewarding and taking other actions of a similar nature with respect to employees.”)

अत: हम कह सकते हैं कि पर्यवेक्षण का मुख्य काम नेतृत्व करना, प्रेरणा देना, मार्ग दर्शन करना और श्रम एवं प्रबंध के मध्य समस्याओं को हल करना होता है।

किसी भी व्यावसायिक संस्था में पर्यवेक्षक को निम्नलिखित भूमिका होती है-

  • कर्मचारियों एवं मालिकों के बीच की कड़ी (A link between workers and Management) – पर्यवेक्षक दोनों के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है। श्रमिकों के सुझाव एवं शिकायतें इसी के माध्यम से बड़े अधिकारियों तक पहुँचाती हैं तथा बड़े अधिकारियों के आदेश व निर्देश भी इसी के द्वारा श्रमिकों तक पहुँचाए जाते हैं।
  • प्रेरणा देना (Motivation) इसका प्रमुख कार्य अपने विभाग में, कर्मचारियों को समय-समय पर अधिकाधिक काम करने की प्रेरणा देना होता है।
  • मधुर औद्योगिक संबंध (Better Industrial Relations) – पर्यवेक्षक मालिकों एवं श्रमिकों के मध्य संबंध बनाये रखने में विशेष भूमिका प्रदान करता है, जिसके कारण अनेक झगड़े व विवाद अपने स्तर पर ही निपटा लेता है।
  • कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करता है।
  • कर्मचारियों को एक टीम के रूप में संगठित करके उनकी कार्यक्षमता का पूरा-पूरा प्रयोग करता है।
  • कर्मचारियों में आत्मविश्वास एवं संतोष पैदा करता है।
  • कर्मचारियों में अनुशासन, समन्वय तथा संतुलन पैदा करता है।
  • अधीनस्थों का मनोबल ऊँचा करता है।

प्रश्न 13.
उद्यमिता से आप क्या समझते हैं ? उद्यमिता की किन्हीं तीन आवश्यकताओं का वर्णन करें।
उत्तर:
1. उद्यमिता का आशय है तीव्र गति से आर्थिक एवं सामाजिक विकास के लिए . विभिन्न साधनों की प्रभावपूर्ण गतिशीलता है। यह बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

2. विकास की प्रक्रिया मुख्यतः व्यावसायिक गृहों द्वारा प्रारंभ किया जाता है जो लाभप्रद विकास का दोहन करता है। उद्यमिता आर्थिक व व्यावसायिक विचारों, अवसरों व प्रस्तावों को व्यावसायिक परियोजना में परिवर्तित करता है। यह ज्ञान को नीति में बदलता है।

3. उद्यमिता नियोजन, संगठन, परिचालन तथा व्यावसायिक उपक्रम के जोखिमों को ग्रहण करने की प्रक्रिया है।

4. उद्यमिता सृजनात्मक एवं नव-प्रवर्तनीय विचारों एवं कार्यों को प्रबंधकीय तथा संगठनात्मक ज्ञानों को एक साथ लाने की प्रक्रिया है। यह चिह्नित आवश्यकता को पूरा करने के लिए उचित लोगों, मुद्रा एवं संचालन संसाधनों को गतिशील बनाने तथा धन के निर्माण के लिए आवश्यक है।

5. उद्यमिता विकास है- (a) व्यावसायिक उपक्रम के निर्बाध संचालन के लिए प्रशासकीय ज्ञान का। (b) कार्य-कुशलता बनाये रखने के लिए प्रशासकीय ज्ञान का। (c) संगठन को पर्यावरण/ वातावरण के साथ संबंधित करने के लिए सृजनात्मक चतुराई/नव-प्रवर्तनीय ज्ञान का।

6. उद्यमिता एक सामूहिक प्रयास है जो चतुराई ज्ञान, क्षमता द्वारा व्यवसाय को प्रारंभ करने एवं इसके संचालन में सहायक होता है। आज के इस वाणिज्य-व्यवसाय वाले युग में उद्यमिता की बहुत अधिक आवश्यकता है। उद्यमिता की तीन आवश्यकता इस प्रकार है-

  • धन सजित करने में- उद्यमिता की आवश्यकता धन को सृजित करने में होती है। उद्यमिता के विकास से रोजगार का अवसर बढ़ता है। परिणामस्वरूप धन का सृजन होता है।
  • रोजगार के अवसर को बढ़ावा देने में- उद्यमिता की आवश्यकता रोजगार को बढ़ावा देने में होती है। उद्यमिता के विकास से रोजगार का अवसर बढ़ता है। परिणामस्वरूप लोगों का जीवन-स्तर सुधरता है।
  • नयी तकनीक को बढावा देने में-उद्यमिता की आवश्यकता नयी तकनीक को बढ़ावा देने में भी होती है। उद्यमिता का विकास होने से नयी-नयी तकनीक का विकास होता है। नयी-नयी तकनीक का विकास होने से किसी भी देश को उन्नति को राह खुलती है। परिणामस्वरूप देश का आर्थिक विकास होता है।

प्रश्न 14.
“मनुष्यों को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता, उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता है।” इस संदर्भ में अमौद्रिक अभिप्रेरकों की व्याख्या करें।
उत्तर:
यह कथन बिल्कुल सत्य है कि मनुष्यों को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता; उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता होती है।

अमौद्रिक अभिप्रेरणा के अंतर्गत श्रमिक को अधिक धन नहीं दिया जाता है, बल्कि पदोन्नति के अवसर, नौकरी की सुरक्षा, सम्मान एवं प्रशंसा प्रदान की जाती है। इस प्रकार अमौद्रिक अभिप्रेरणा के अन्तर्गत वे सभी साधन आ जाते हैं जो श्रमिक को प्रत्यक्ष रूप से अधिक धन प्रदान नहीं करते, चाहे अप्रत्यक्ष रूप से उसे वित्तीय लाभ हो रहा है।

माओ (Mayo) के विभिन्न अध्ययन से स्पष्ट होता है कि अधिक उत्पादन के लिए श्रमिक को अधिक धन के बजाय मनुष्य जैसा व्यवहार प्रदान करना अधिक महत्त्वपूर्ण तथा प्रभावकारी रहता है। 1924 और 1932 के मध्य अमेरिका की Western Electric Company के Hawthern Plant में किये गये विभिन्न अनुसंधानों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि श्रमिक केवल अधिक धन ही नहीं चाहते बल्कि धन के अतिरिक्त अन्य बहुत से तत्त्व भी हैं जो उन्हें कार्य के लिए प्रेरित करते हैं। इनमें से प्रमुख अभिप्रेरणा निम्नलिखित हैं-

(i) दण्ड (Punishment) – इस प्रेरणा के अन्तर्गत कर्मचारियों को डराकर कार्य लिया जाता है। श्रमिकों को नौकरी से हटाने का भय, पदावनति का भय, डाँट-फटकार का भय दिखाकर कार्य लिया जाता है।

(ii) प्रशंसा (Praise) – प्रत्येक व्यक्ति अच्छे कार्यों के लिए चाहता है कि लोग उसकी प्रशंसा करें। श्रमिक भी चाहता है कि प्रबंधक उसकी प्रशंसा करे। प्रशंसा के उचित प्रयोग द्वारा भी कर्मचारियों को अधिक कार्य के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।

(iii) सुझाव विधि (Suggestion System) – विभिन्न विश्वविद्यालयों में किये गये अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि जो प्रबंधक कार्य करने से पहले कर्मचारियों की सलाह लेता है वह अधिक कार्यकुशल होता है तथा जो नहीं लेता वह कम। इस रूप में कर्मचारियों को पारस्परिक हित के मामलों में सलाह का अधिकार देकर उनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है।

(iv) नौकरी की सुरक्षा (Security of Job) – अस्थायी नौकरी करने वाला व्यक्ति पूर्ण कार्यकुशलता से कार्य नहीं कर सकता क्योंकि उसे नहीं मालूम होता कि कब उस नौकरी को छोड़कर अन्यत्र जाना पड़े। नौकरी को स्थायित्व प्रदान कर कर्मचारी को हृदय से कार्य के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

(v) परिणाम का ज्ञान (Knowledge of Result) – N. Norwel द्वारा किये गये अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि एक श्रमिक जिसे कार्य की प्रगति, अच्छाई या बुराई बतला दी जाती है, उसकी कार्यकशलता उनकी तलना में अधिक होती है जिन्हें उनके कार्य की प्रगति नहीं बतलाई जाती है। इस रूप में कर्मचारियों को उनके कार्य के परिणाम बतला कर सुधार करने तथा अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरणा दी जा सकती है।

(vi) मुकाबला एवं प्रतियोगिता (Competition and Contest) – कर्मचारियों के मध्य प्रतियोगिता कराकर अच्छा कार्य करने वाले को पारितोषिक प्रदान करने से भी प्रबन्ध करने की कार्यकुशलता बढ़ती है।

(vii) समूह सम्बन्ध (Group Relation) – ऐसा देखा गया है कि कुछ व्यक्ति वेतन में वृद्धि करने के बाद भी किसी अन्य विभाग में परिवर्तन नहीं कराना चाहते क्योंकि वे उसकी समूह में रहना चाहते हैं इसका कारण उनका उस समूह से सम्बन्ध होता है। इस तरह से अच्छा सम्बन्ध बनाने से भी उत्पादन में वृद्धि होती है।

(vii) उपाधि (Titles) – कम्पनी द्वास योग्य व्यक्तियों को तमगे तथा उपाधि दिये जाने वाली व्यवस्था भी लाभदायक रहती है। उदाहरणतः एक कम्पनी, जिसका नाम Life Corporation है, श्रेष्ठ व्यक्ति को Life Corporation Man की उपाधि देने की व्यवस्था करके कर्मचारियों को अधिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।

(ix) न्यायपूर्ण व्यवहार (Justified Behaviour) – कर्मचारियों के प्रति न्याय, सामान्यता तथा सद्भाव का व्यवहार करके भी उनको उत्पादन वृद्धि के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है, भेदभाव का व्यवहार करने पर नहीं।

(x) पदोन्नति के अवसर (Chance of Advancement) – प्रत्येक कर्मचारी धन की अपेक्षा ऊँची नौकरी पर कार्य करना चाहता है। इसके लिए आवश्यक है कि विभिन्न व्यक्तियों को उन्नति के पर्याप्त अवसर मिलें क्योंकि ऐसा होने पर वह उनका लाभ उठाने के लिए अपने को सुधारता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

(xi) रुचिकर नौकरी (Interesting Job) – कार्य को रुचिकर बनाकर भी कर्मचारियों से अधिक कार्य कराया जा सकता है। प्रायः यह देखा गया है कि एक कर्मचारी, जिसकी कार्य अरुचिकर होता है, अधिक कुशलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता।

(xii) भौतिक वातावरण (Physical Environment) – फैक्ट्री में हवा, रोशनी, सफाई का पर्याप्त प्रबन्ध आदि न होना भी अधिक उत्पादन में बाधा उत्पन्न करता है। इसमें सुधार करने से भी उत्पादकता बढ़ती है।

(xiii) कम्पनी सुविधाओं के प्रयोग का अधिकार (Right to Use Company Facilities) यद्यपि उच्च प्रबन्धकों को अच्छा वेतन दिया जाता है जिससे वे अच्छा जीवन व्यतीत कर सकते हैं, फिर भी संस्थाएँ उनको कम्पनी की कार, क्लब आदि प्रयोग करने का अधिकार प्रदान करती हैं। उन्हें संस्था की ओर से सभाओं (Conference) में भाग लेने का अधिकार दिया जाता है जिससे उनकी कार्यकुशलता बढ़ती है और वे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ी हुई समझते हैं।

(xiv) भाग (Participation) – प्रबंधक ऐसी समस्याएँ, जिनका सम्बन्ध कर्मचारियों से है, सुलझाने में यदि कर्मचारियों की सहायता लेते हैं तो वह उसे आसानी से हल कर लेते हैं तथा उसे हल करने में कर्मचारियों का मन से सहयोग प्राप्त करने में सफल होते हैं जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है।

(xv) वेतन सहित छुट्टियाँ (Paid Vacations)-संस्थाएँ प्रबंधकों को घूमने जाने के लिए पर्याप्त छुट्टियाँ दिये जाने का प्रबंध करती हैं जिनके द्वारा भी प्रबंधकों व कर्मचारियों में कार्यकुशलता वृद्धि में प्रोत्साहन दे सकते हैं।

अतः उपर्युक्त विचार-बिन्दुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मनुष्य को केवल मौद्रिक प्रोत्साहन द्वारा ही अभिप्रेरित नहीं किया जा सकता है, बल्कि उन्हें अभिप्रेरित करने के लिए अमौद्रिक अभिप्रेरकों की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 15.
“समन्वय प्रबंध का सार है।” इस कथन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
“समन्वय प्रबंध का सार है” यह कथन प्रबन्ध विद्वान श्री कूण्टज तथा ओ डोनेल ने समन्वय की महत्व एवं आवश्यकता की व्याख्या करते समय लिखा था। निखरे हुए तन को किसी नियत उद्देश्य से श्रृंखलाबद्ध करना एवं एक सूत्र में पिरोना ही समन्वय कहलाता है। समन्वय प्रबन्ध का सार है जो उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में तालमेल बनाये रखना। इसलिए बनाये रखने से है। समन्वय से लोग एक टीम के रूप में कार्य करते हैं।

उदाहरण के लिए एक बड़े प्रकाशक के प्रेस में अनेक विभाग होते हैं जैसे छपाई विभाग, कम्पोजिंग विभाग, प्रूफ-रीडिंग विभाग, जॉब विभाग, बाईडिंग विभाग, कटिंग विभाग इत्यादि। यदि इन विभागों के बीच पारस्परिक एकता एवं तालमेल न हो तो प्रेस का कार्य एक दिन भी सफलतापूर्वक नहीं चल सकेगा। इसलिए समन्वय से ही पारस्परिक सहयोग की वृद्धि होती है तथा सम्बन्धित व्यावसायिक उपक्रम का सफल संचालन सम्भव होता है। समन्वय की आवश्यकता केवल व्यवसाय में ही नहीं बलिक सभी स्थानों पर होती है। इसी कारण समन्वय को प्रबन्ध का एक पृथक् कार्य माना गया।

जब हम समन्वय के महत्त्व पर विचार करते हैं तो हमें प्रबन्ध विद्वान श्री कूण्ट्ज तथा ओ डोनेल के निम्नलिखित कथन अनायास ही याद हो जाते हैं। समन्वय प्रबन्ध का केवल एक कार्य ही नहीं है बल्कि प्रबन्ध का सार भी है। वस्तुतः स्थिति भी यही। चाहे हम व्यवसाय के क्षेत्र में हो या प्रशासन के क्षेत्र में हों, खेल के मैदान में हों अथवा किसी क्लब में सभी स्थानों पर समन्वय का ही बोलबाला दिखाई देता है। उदाहरण के लिए फुटबॉल के क्षेल के मैदान में जीतने वाली टीम के खिलाड़ियों के बीच थोड़ा-सा भी समन्वय भंग हो जाने पर जीत हार में बदल सकती है। इसी प्रकार व्यवसाय के क्षेत्र में उत्पादक के विभिन्न साधनों में भी समन्वय न रहने पर उसका अर्स ही खतरे में पड़ सकता है। प्रबंध विशेषज्ञ उर्विक ने तो यहाँ तक कह दिया है कि संगठन का उद्देश्य ही समन्वय स्थापित करना है। बर्नार्ड ने भी इस सम्बन्ध में ठीक कहा है कि समन्वय, किसी संगठन को जीवित रखने के लिए महत्वपूर्ण तत्त्व है।

एक संस्था में विभिन्न जाति, धर्म, प्रदेश तथा भाषा बोलने वाले एवं विचारधारा वाले व्यक्ति विभिन्न किस्म के कार्यों का निष्पादन करते हैं जबकि उनका लक्ष्य समान होता है। इन सभी के कार्य करने का तरीका एवं मस्तिष्क अलग-अलग होता है। इस प्रकार उनके कार्यों में विविधता पाई जाती है किन्तु निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यह जरूरी हो जाता है कि ऐसे व्यक्तियों की क्रियाओं को एक सूत्र में पिरोया जाय अर्थात् उनके बीच समन्वय स्थापित किया जाय। समन्वय के द्वारा इन विविधताओं के होते हुए भी लोगों में एक टीम की भावना पैदा की जा सकती है। एक लम्बे समय तक टीम के रूप में कार्य करते रहने से लोग विविधताओं एवं विषमताओं को भूल जाते हैं जिससे एक नई एकीकृत संस्कृति का जन्म होता है। यह समन्वय के बिना सम्भव नहीं है इसलिए समन्वय को प्रबन्ध का सार कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन के महत्त्व की विवेचना करें।
उत्तर:
किसी भी व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन का बहुत अधिक महत्त्व होता है। दूसरे शब्दों में संदेशवाहन व्यावसायिक संगठन की जान मानी जाती है। बिना संदेशवाहन में व्यावसायिक संस्था अपने व्यावसायिक उद्देश्यों में सफल नहीं होती है।

व्यावसायिक संगठन में संदेशवाहन के निम्नलिखित महत्त्व है-
(i) शीघ्र निर्णय एवं क्रियान्वयन(Quick Decision and Its Enforcement) – निर्णय लेने में देरी करने से और समस्याओं को टालते रहने से व्यवसाय में असंतोष का वातावरण उत्पन्न हो सकता है। अतः एक संगठित तथा व्यवस्थित संदेशवाहन प्रणाली व्यवसाय के वातावरण को मधुर तथा स्वस्थ बनाने में सहायक होती है। एक व्यवस्थित संदेशवाहन पद्धति से विचार-विमर्श शीघ्र और सुगम हो जाता है।

(ii) कार्य सम्बन्धी सूचनाएँ पहुंचाना तथा सहयोग प्राप्त करना (Operational Information) – प्रत्येक कार्य को करने के लिए पर्याप्त सूचनाओं की आवश्यकता होती है। कार्य कब शुरू करना है, कैसे और कहाँ करना है, कहाँ से इनके लिए सहायता प्राप्त होगी आदि सूचनाओं की जानकारी कर्मचारियों को आवश्यक होती है। इनमें देरी होने से कार्य रुक जाता है। कार्यकुशल संदेशवाहन की सहायता से यह सूचनाएँ समय पर तथा प्रभावी ढंग से कर्मचारियों तक पहुँचाई जा सकती है।

(iii) प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि (Increase in Managerial Efficiency) – सहायकों का सहयोग प्राप्त करने के लिए उन्हें नीतियाँ तथा उद्देश्य बताने होते हैं। अत: व्यवसाय में प्रबंधकीय क्षमता में वृद्धि के लिए प्रभावी संदेशवाहन या संचार व्यवस्था सहायक होती है।

(iv) अनुशास (Discipline) – कार्य को व्यवस्थित ढंग से जारी रखने के लिए अनुशासन आवश्यक होता है। अनुशासन बनाये रखने के लिए आवश्यक है कि संस्था के प्रत्येक कर्मचारी को संस्था की अनुशासन सम्बन्धी नीतियाँ, कार्य के घंटे, सामान रखने का स्थान, कार्य के समय पहनने के कपड़े तथा प्रयोग की जाने वाली अन्य सामग्री तोड़ने की अवस्था में की जा सकने वाली कार्यवाही आदि सम्बन्धी बातों का पूर्ण ज्ञान हो। संदेशवाहन इन सभी कार्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

(v) लोक सम्पर्क (Public Relations) – एक औद्योगिक संस्था की सफलता समाज की सहायता पर ही निर्भर करती है, इसलिए जनता को संस्था के बारे में जानकारी देकर संस्था के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन किया जा सकता है। यह सूचनाएँ संस्था के लिए समाज में अनुकूल . वातावरण में परिवर्तन करने के साथ-साथ संस्था के लिए अच्छे कर्मचारियों की प्राप्ति, ग्राहकों की संतुष्टि, अंशधारियों के विश्वास को बढ़ाती है। इन सबके लिए कुशल संदेशवाहन का प्रभावशाली होना आवश्यक है।

(vi) आँकड़ों का संग्रह (Collection of Data) – प्रबंधकों को समय-समय पर योजनाएँ बनाने तथा संस्था की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए विभिन्न प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता होती है, जो सरकारी कार्यालयों, उपभोक्ताओं, व्यापारियों से प्राप्त करने होते हैं। किसी भी संस्था या व्यक्ति को ऐसी सूचनाएँ देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसलिए कुशल संदेशवाहन द्वारा उसमें सहयोग की भावना उत्पन्न करके ही तथ्य प्राप्त किये जा सकते हैं।

(vii) शान्ति की व्यवस्था (Maintenance of Peace) – प्रबन्धकों को समय-समय पर परियोजनाएँ बनाने तथा संस्था की महत्त्वपूर्ण समस्याओं को सुलझाने के लिए कुशल संचार व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

(viii) समन्वय (Co-ordination) – श्रम-विभाजन तथा विशिष्टीकरण के सिद्धान्तों को उद्योग पर लागू करने के परिणामस्वरूप उत्पादन का कार्य विभागों तथा उपविभागों में होने लगा है, जिस कारण उनमें समन्वय कायम करने की समस्या उत्पन्न हो जाती है। समन्वय कायम करने के लिए संचार-व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

(ix) अधीनस्थों के सुझाव(Suggestions from Sub-ordinates) – व्यवसाय में समय-समय पर समस्याएँ उत्पन्न होती रहती है। ये समस्याएँ सुलझाने का उत्तरदायित्व प्रबंधकों का होता है, जिन्हें उस समस्या के सम्बन्ध में वास्तविक तथ्य प्राप्त नहीं होते हैं। इसलिए कुशल संदेशवाहन का होना जरूरी है।

(x) पद संतुष्टि की व्यवस्था (Provision of Job Satisfaction) – प्रबंध क्या चाहता है और कर्मचारी क्या करते हैं, के विषय में संदेशवाहन द्वारा प्रबंध तथा कर्मचारियों के बीच पारस्परिक विश्वास, प्रेम तथा सहयोग उत्पन्न होता है। प्रबंधक जैसा कार्य चाहता था उसी के अनुसार कार्य कर्मचारी द्वारा करने पर उसे अपने कार्य में संतुष्टि मिलती है और प्रबंध तथा कर्मचारी के बीच किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं होती है।

अतः निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि संदेशवाहन व्यावसायिक संगठन में अपना महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अभाव में कोई भी व्यावसायिक संगठन अपने व्यावसायिक उद्देश्यों में सफल नहीं हो सकता है। साथ ही बिना संदेशवाहन के किसी भी व्यावसायिक संगठन के सफल संचालन की कल्पना करना व्यर्थपूर्ण है।